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 04 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *ज्ञान के अलंकारों को धारण करने पर विशेष अटेंशन रहा ?*

 

➢➢ *बाप के राईट हैण्ड धर्मराज को स्मृति में रख कोई विकर्म तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *पावन बनने की प्रतिज्ञा को निभाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *सदा ख़ुशी की खुराक खायी और खिलाई ?*

 

➢➢ *हर परिस्थिति में सहनशील बन मौज का अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  जितना ही आधा कल्प विश्व की राज्य सता प्राप्त करते हो, उस अनुसार ही जितना शक्तिशाली राज्य पद वा पूज्य पद मिलता है, उतना ही भक्ति मार्ग में भी श्रेष्ठ पुजारी बनते हो। *भक्ति में भी श्रेष्ठ आत्मा मन-बुद्धि-संस्कारों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर रहती है।*

 

✧  भक्तों में भी नम्बरवार शक्तिशाली भक्त बनते हैं। अर्थात जिस इष्ट की भक्ति करना चाहे, जितना समय चाहे, जिस विधि से करने चाहे - ऐसी भक्ति का फल भक्ति की विधि प्रमाण संतुष्टता, एकाग्रता, शक्ति और खुशी को प्राप्त कराता है। लेकिन *राज्य-पद और भक्ति के शक्ति की प्राप्ति का आधार यह ब्राह्मण जन्म' है।*

 

✧  तो इस संगमयुग का छोटा-सा एक जन्म सारे कल्प के सर्व जन्मों का आधार है। जैसे राज्य करने में विशेष बनते हो वैसे ही भक्त भी विशेष बनते हो, साधारण नहीं। भक्त-माला वाले भक्त अलग है लेकिन *आपे ही पूज्य आपे ही पूजारी आत्माओं की भक्ति भी विशेष है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शोक वाटिका से अशोक वाटिका में जाना"*

➳ _ ➳ मै आत्मा देह की मिटटी में गर्दन तक... धँसी हुई ईश्वर पिता को पुकार रही थी... कि मीठे बाबा ने आसमाँ से उतरकर... अपनी फूलो सी गोद में मुझे बिठा दिया... ईश्वरीय पालना में पलकर मै आत्मा विकारी जीवन से मुक्त हो गयी... *मेरे दुखो में कंटीले जीवन को मीठे बाबा ने अपने प्यार की मखमली छाया में फूलो जैसा कोमल और स्निग्ध बना दिया है.*.. मेरे इस खुबसूरत रूप और गुणो की महक का पूरा विश्व दीवाना हो रहा है... मुझे प्यारे बाबा ने अपने प्यार में महकता दिव्य गुलाब बना दिया है...प्यारे बाबा पर दिल का प्यार उंडेलने मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को खुशियो का फ़रिश्ता बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा की यादो का हाथ पकड़कर... दुखो की दुनिया से निकलकर... सुखो की जन्नत में खुशियो से सजा हुआ जीवन जीओ... *सदा सुखो में मुस्कराओ और अशोक वाटिका में आनन्द और प्रेममय जीवन जीने वाले,महान भाग्यशाली बनो.*.. मीठे बाबा के प्यार में देह का विकारी जीवन त्यागकर, आत्मिक नशे में खो जाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के अथाह प्यार को पाकर दिव्यता से निखरते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा ईश्वरीय दौलत से भरपूर होकर, कितनी प्यारी और मालामाल हो गयी हूँ... आपने प्यारे बाबा... मेरे जीवन में आकर, मुझे कितना ऊँचा उठा दिया है... मेरा कितना मान बढ़ा दिया है... *मुझे दिव्य और पावन बनाकर, सुखो भरी अशोक वाटिका में ले जा रहे हो.*..
 
❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय खजानो से भरपूर करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में गहरे डूबकर, देह की मिटटी से उपराम हो जाओ... *जनमो के विकारो से मुक्त होकर, पवित्रता से सजधज कर, सतयुगी सुखो में आनन्द भरे नगमे गाओ.*.. मीठे बाबा की यादो भरी ऊँगली पकड़... इस विकारो भरी नदी से निकलकर... खुशियो के जहान में मुस्कराओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में उतारते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी फूलो सी गोद में बैठकर खुशनुमा फूल बनती जा रही हूँ..*. देह के भान से निकलकर... अपने तेजस्वी स्वरूप के नशे में खोती जा रही हूँ... सारे विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सारे दुखो से मुक्त कराते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा सच्ची यादो में खोकर अपने खोये प्रकाश से पुनः भर जाओ... *देह की शोक वाटिका से निकलकर, आत्मिक गुणो की अशोक वाटिका में सुख भरे साम्राज्य का आनन्द उठाओ..*. अपनी आत्मिक सुंदरता को पुनः पाकर शान से देवताई राज्य भाग्य को पाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में गहरे डूबकर कहती हु :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा ईश्वरीय प्यार में पलने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हूँ... *भगवान स्वयं मुझे इस शोक वाटिका से निकाल कर... अशोक वाटिका में ले जाने आया है..*. मै आत्मा आपके असीम प्यार में देह की मिटटी से निकलती जा रही हूँ... और आत्मिक प्रकाश में दमक रही हूँ..."मीठे बाबा को अपने दिल की बात सुनाकर मै आत्मा... इस धरा पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप के राइट हैण्ड धर्मराज़ को स्मृति में रख कोई भी विकर्म नहीं करने हैं*"

➳ _ ➳ बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है ये बात स्मृति में लाते ही मन मे विचार चलते हैं कि जब अंत समय होगा, बाबा का धर्मराज का रूप होगा और सभी आत्माओं के कर्मो का हिसाब किताब चुकतू होगा उस समय का दृश्य कैसा होगा! *इन्ही विचारों के साथ एक - एक करके आंखों के सामने कुछ दृश्य उभरने लगते हैं। मैं देख रही हूँ सूक्ष्म वतन में ट्रिब्यूनल लगी है। धर्मराज के रूप में बाबा सामने बैठे हैं*। एक - एक करके बाबा के सामने सभी ब्राह्मण आत्मायें आ रही है और बाबा उनके द्वारा किये हुए सभी अच्छे और बुरे कर्मो का पूरा लेखा - जोखा उन्हें एक बहुत बड़ी स्क्रीन पर दिखा रहें हैं।

➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ जो ब्राह्मण आत्मायें बाबा की श्रीमत को नजरअंदाज करके अपने कीमती समय को गफलत में बर्बाद करती रही थी वो अपराधी की तरह बाबा के सामने अपनी आंखें नीची किये खड़ी हैं। उनके अपराध के अनुसार धर्मराज के द्वारा उन्हें कड़ी सजाये सुनाई जा रही हैं। इतनी कड़ी सजायें सुनकर वो आत्मायें डर से कांप रही हैं और अपने किये हुए विकर्मों के लिए माफी मांग रही हैं। बहुत ही दयनीय स्थिति है उनकी। किंतु *बाप के रूप में बाबा का वो लाड, प्यार और दुलार अब धर्मराज की सजाओं का रूप ले चुका है। जिसके लिए कोई रियायत नही है*।

➳ _ ➳ इस भयानक दृश्य को देख मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि *बाबा की याद में रह मुझे जल्दी ही मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मों के बोझ को भस्म करना है और साथ ही साथ अब ऐसा कोई भी विकर्म नही करना जिससे मुझ आत्मा पर विकर्मों का कोई और बोझ चढ़े और मुझे बाबा का धर्मराज का रूप देखना पड़े*। यह प्रतिज्ञा करके मैं जैसे ही शिव बाबा को याद करती हूँ मेरे दिलाराम बाबा के स्नेह की डोर मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है। बाबा की लाइट माइट पड़ते ही मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ।

➳ _ ➳ बापदादा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता सूक्ष्म लोक में प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्म वतन के दिव्य अलौकिक नज़ारे को मैं फ़रिशता मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रहा हूँ। *बापदादा की दिव्य किरणे इस सूक्ष्म वतन में चारों ओर फैली हुई हैं। मैं बाबा के पास पहुंच कर बाबा के सामने खड़ा हो जाता हूँ*। बाबा मुझे दृष्टि दे रहें हैं। बाबा के नयनो से अथाह स्नेह की धाराएं बह रही हैं। बाबा के वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं। *अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रख कर मुझे विकर्माजीत भव का वरदान दे रहें हैं*।

➳ _ ➳ बापदादा से विकर्माजीत भव का वरदान और दृष्टि ले कर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ और 63 जन्मो के विकर्मों को भस्म करने के लिए परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने बीज रुप परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा जा कर विराजमान हो जाती है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे अब निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं जो धीरे - धीरे ज्वलन्त स्वरूप धारण करती जा रही है*। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझ आत्मा के विकारों रूपी किचड़े को अपनी जवलंत शक्तियों से भस्म कर रहे हैं।

➳ _ ➳ आंतरिक रूप से मैं शुद्ध बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आकर अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर हर कर्म करते अब मुझे सदा यह स्मृति रहती है कि बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है। और धर्मराज की सजायें मुझे ना खानी पड़े इसके लिए बाबा की याद में रह, हर कर्म करने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं आत्मा निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *ड्रिल :- मै आत्मा ब्राह्मण जीवन में खुशी की खुराक खाती और खिलाती हूँ।*

➳ _ ➳ *जिसका पिता स्वयं परमात्मा हो, वो बालक कितना भाग्यवान है...* मैं कितनी खुशनसीब आत्मा हूं... जिसका पिता स्वयं ईश्वर है... *विश्व के मालिक का बालक यानी बालक सो मालिक...* वाह वाह री आत्मा! वाह वाह रे मुझ आत्मा का श्रेष्ठ भाग्य! इसी *ईश्वरीय नशें* में मैं आत्मा सदा *खुशनसीबी के झूले* में झूलती रहती हूं... *बाबा कहते औरों को भी ख़ुशी का महादान दे खुशनसीब बनाओ...* आपका जीवन ही खुशी है... *खुश रहना ही जीना है... यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ वरदान है... तो मैं आत्मा खुशी की खुराक खाती औऱ खिलाती हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सहनशीलता द्वारा हर परिस्थिति में मौज का अनुभव"*

 

_ ➳  सूक्ष्म ज्योति बिंदु मैं आत्मा... प्रकाश की देह में विराजमान... *सहनशीलता का अवतार हूं...* सर्व के बीच सर्व से न्यारी... हर परिस्थिति में *एडजस्ट करने का गुण मुझ आत्मा को रूहानी मौजों का अनुभव करा रहा है...* एकरस स्थिति में स्थित हो मैं आत्मा उड़ती कला का अनुभव कर रही हूं... *स्वयं को बदल अब मुझे सारी दुनिया बदली - बदली सी दिखाई देती है...* सहनशीलता के गुण को धारण कर मैं आत्मा ड्रामा की हर सीन... साक्षी हो देख रही हूं... सारे दृश्य खेल समान लग रहे हैं... मैं आत्मा इन दृश्यों से खेल पाल कर अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूं... *जिस प्रकार आम का वृक्ष स्वयं पर पत्थर पड़ने के पश्चात भी मीठे फल नहीं देना छोड़ता...* उसी प्रकार सहनशीलता का गुण धारण कर मैं आत्मा भी बाप समान बन अपकारी पर उपकार करती जा रही हूं...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा देखते हैं *जो सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ते जाते हैंउन्हों के खाते में पुण्य का खाता बहुत अच्छा जमा होता जाता है।* कई बच्चों का एक है अपने पुरुषार्थ के प्रालब्ध का खातादूसरा है सन्तुष्ट रह सन्तुष्ट करने से दुआओं का खाता और तीसरा है यथार्थ योगयुक्तयुक्तियुक्त सेवा के रिटर्न में पुण्य का खाता जमा होता है। यह तीनों खाते बापदादा हर एक का देखते रहते हैं। *अगर कोई का तीनों खाते में जमा होता है तो उसकी निशानी है - वह सदा सहज पुरुषार्थी अपने को भी अनुभव करते हैं और दूसरों को भी उस आत्मा से सहज पुरुषार्थ की स्वत: ही प्रेरणा मिलती है।* वह सहज पुरुषार्थ का सिम्बल है। मेहनत नहीं करनी पड़ती, *बाप सेसेवा से और सर्व परिवार से मुहब्बत है तो यह तीनों प्रकार की मुहब्बत मेहनत से छुड़ा देती है।*

 

 _ ➳  *अभी बापदादा सभी बच्चों के चेहरे पर सदा फरिश्ता रूप, वरदानी रूपदाता रूप, रहमदिल, अथक, सहज योगी वा सहज पुरुषार्थी का रूप देखने चाहते हैं।*  यह नहीं कहो बात ही ऐसी थी ना। *कैसी भी बात हो लेकिन रूप मुस्कराता हुआशीतलगम्भीर और रमणीकता दोनों के बैलेन्स का हो।* कोई भी अचानक आ जाए और आप समस्या के कारण वा कार्य के कारण सहज पुरुषार्थी रूप में नहीं हो तो वह क्या देखेगाआपका चित्र तो वही ले जायेगा। कोई भी समयकोई भी किसी को भी चाहे एक मास का होदो मास का हो, अचानक भी आपके फेस का चित्र निकाले तो ऐसा ही चित्र हो जो सुनाया। *दाता बनो। लेवता नहींदाता।*

 

 _ ➳  *कोई कुछ भी देअच्छा दे वा बुरा भी दे लेकिन आप बड़े ते बड़े बाप के बच्चे बड़ी दिल वाले हो अगर बुरा भी दे दिया तो बड़ी दिल से बुरे को अपने में स्वीकार न कर दाता बन आप उसको सहयोग दोस्नेह दोशक्ति दो। कोई न कोई गुण अपने स्थिति द्वारा गिफ्ट में दे दो।* इतनी बड़ी दिल वाले बड़े ते बड़े बाप के बच्चे हो। *रहम करो। दिल में उस आत्मा के प्रति और एकस्ट्रा स्नेह इमर्ज करो। जिस स्नेह की शक्ति से वह स्वयं परिवर्तित हो जाए।* ऐसे बड़ी दिल वाले हो या छोटी दिल हैसमाने की शक्ति हैसमा लो। सागर में कितना किचड़ा डालते हैंडालने वाले कोवह किचड़े के बदले किचड़ा नहीं देता। *आप तो ज्ञान के सागरशक्तियों के सागर के बच्चे होमास्टर हो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सच्ची और बड़ी दिल से नि:स्वार्थ सेवा कर जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *नशवर संसार और नशवर देह की स्मृतियों से परे मैं जगमगाता नन्हा फरिश्ता* देख रहा हूँ स्वयं को बाबा के कमरे के बाहर... मैं नन्हा फरिश्ता बिना देर किए... जल्दी से दबे पांव बाबा के कमरे की तरफ जाता हूँ और देखता हूँ... *मेरे लाडले बाबा फरिश्ता स्वरूप में बिस्तर पर बैठे कुछ लिख रहे हैं... मैं फरिश्ता बाबा को बड़े ध्यान से देख रहा हूँ...* बाबा का ये फरिश्ता स्वरूप कितना चमकीला है... मैं नन्हा फरिश्ता अपलक नयनों द्वारा बस एकटक मेरे मीठू बाबा को देख रहा हूँ... तभी अचानक बाबा वहाँ से गायब हो जाते है... मैं अन्दर यहाँ-वहाँ देखता हूँ... कोई नजर नहीं आता *मुझ फरिश्ते की निगाहें मीठे बाबा को देखने के लिए बेचैन हो रही हैं...* तभी छोटी-छोटी लाल-नीली तितलियाँ मुझ फरिश्ते के चारों तरफ घूमती हुई मुझे बाहर आने का ईशारा करती हैं... मैं फरिश्ता बाहर देखता हूँ... *हिस्ट्री हाल के बाहर बाबा बाहें फैलाएं मुझ नन्हें फरिश्ते को बुला रहे है...* और बाबा अपने फरिश्ता स्वरूप में ऊपर की तरफ जाने लगते हैं... और मुझे भी इशारा करते है... अपने पास आने का... *मैं फरिश्ता भी बाबा के पीछे-पीछे चल पड़ता हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं फरिश्ता ऊँचा उड़ते हुए... साकारी दुनिया के भिन्न-भिन्न दृश्य स्पष्ट देखते हुए आगे बढ़ रहा हूँ...* अब मैं फरिश्ता उड़ रहा हूँ एक विशाल सागर के ऊपर से... देख रहा हूँ... बड़ी-बड़ी नदियाँ उछाल खाते हुए सागर की तरफ आ रही है... और सागर आराम से इन्हें अपने में समा रहा है ये दृश्य ऐसा लग रहा है *जैसे सागर बाहें फैलाएँ, मुस्कुराते हुए, नम्रतापूर्वक इन सबका स्वागत कर रहा हो...* तभी फिर से मैं फरिश्ता बाबा को देखता हूँ... बाबा मुस्कुराते आगे की तरफ जाते हुए मुझे अपने पीछे-पीछे आने का ईशारा कर रहे हैं... और मैं फरिश्ता एक बहुत सुंदर बड़े से बगीचे में पंहुच गया हूँ... जहाँ फलों से लदे हुएँ वृक्षों को देख रहा हूँ... और मुझ आत्मा के मन में इस दृश्य को देख संकल्प उठता है... कि कैसे *निस्वार्थ भाव से ये वृक्ष सबको फल देते है... छाया देते है... कोई कुछ दे या ना दे और ये दाता बन सबको देते ही जाते है...* मुझ फरिश्ते की नजर साथ के ही रंग-बिरंगे फूलों से भरे बगीचे पर जाती है... जहाँ रंग-बिरंगे हरे, नीले, लाल, पीले, नारंगी, सफेद रंग के फूल खिले हुए हैं... *इन फूलों को देख लग रहा जैसे ये सब मुस्कुरा रहे हो... और अपनी खुशबू से वातावरण को महका रहे हैं... निस्वार्थ भाव से...*

 

 _ ➳  तभी मैं फरिश्ता देखता हूँ... *बाबा सामने रंग-बिरंगे फूलों के बीच खड़े होकर मुस्कुरा रहे है... और बड़ी मीठी और प्यार भरी नजरों से मुझे देख रहे है...* मैं नन्हा सा फरिश्ता दौड़ कर बाबा के पास जाता हूँ... बाबा मुझे गोदी में उठा लेते हैं... और मेरे सिर पर हाथ फेरते हैं... इन सभी दृश्यों को देख कर जो मुझ आत्मा के मन में विचारों रूपी लहरें उठ रही थी वो अब शांत हो गयी है... *बाबा की आंखों से ज्ञान प्रकाश निकल मुझ फरिश्ते में समा रहा है... बाबा जो मुझे इन दृश्यों द्वारा समझाना चाह रहे हैं... वो सब इस ज्ञान प्रकाश से स्पष्ट होता जा रहा हैं...* बाबा मुझ फरिश्ते के सर पर हाथ रखते हुए मुझे वरदानों से शक्तियों से भर रहे है... *मुझ फरिश्ते में नव उर्जा का संचार हो रहा हैं... ईश्वरीय शक्तियों का फ्लो मुझ आत्मा में हो रहा हैं... स्वयं को भरपूर, सम्पन्न अनुभव कर रहा हूँ...*

 

 _ ➳  *इस नव उर्जा के साथ मैं फरिश्ता फिर से वापिस साकारी दुनिया के चोले में प्रवेश करता हूँ...* और अब देख रही हूँ मैं आत्मा स्वयं को कर्म क्षेत्र पर जहाँ *मैं आत्मा बाबा की याद में सेवा कर रही हूं... बाबा की याद से सहज ही मुझ आत्मा में निमित्त भाव आ गया है...* जिससे हर सेवा हल्का होकर अथक होकर, सच्ची दिल से सेवा कर रही हूँ... *फूलों के समान मैं आत्मा हर सेवा निःस्वार्थ भाव से करते रूहानी खुशबू चारों ओर फैला रही हूँ...* मैं आत्मा देख रही हूँ सामने से कोई भी कुछ भी दे, लेकिन सागर के समान *मैं आत्मा नम्रतापूर्वक, बड़ी दिल कर, रहमदिल बन सबको और ही स्नेह और शक्ति रूपी मोती दे रही हूँ...*

 

 _ ➳  फलों से लदे वृक्ष के समान सबको मास्टर दाता बन सुख, शांति, शक्ति, प्रेम दे रहा हूँ... और ही सभी को भरपूर बना रही हूँ... सबका कल्याण हो, सभी सुखी हो ऐसी श्रेष्ठ भावना से हर सेवा  कर रही हूँ... इस प्रकार कई गुणों का मुझ आत्मा में विकास हो रहा हैं... और *ये सब करते हुए एक अजब सी खुशी और भरपूरता का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ... मैं आत्मा सहजयोगी, सहज पुरुषार्थी बन गयी हूँ...* मुझे देख अन्य आत्माओं को भी सहज पुरूषार्थ की, सच्ची और बड़ी दिल से, निःस्वार्थ भाव से सेवा करने की प्रेरणा मिल रही हैं... *वे सभी आत्माएं भी इस मार्ग में आगे बढ़ रही हैं... उनका भी कल्याण हो रहा है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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