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❍ 26 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *दिमाग से व शरीर से थकने पर बाबा को अपने साथ कम्पैनियन के रूप में अनुभव किया ?*
➢➢ *बाबा के साथ मनोरंजन किया ?*
➢➢ *WHY को FLY में परिवर्तित किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *शुभ भाव और प्रेम भाव को इमर्ज कर क्रोध महाशत्रु पर विजयी बनकर रहे ?*
➢➢ *सदा बाबा के प्यार में समाये रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"जन्मदिन की विशेष गिफ्ट - शुभ भाव और प्रेम भाव को इमर्ज कर क्रोध महाशत्रु पर विजयी बनो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस अलौकिक हीरे तुल्य जन्मदिन पर अथाह खुशियो में झूम जाओ... *स्वयं भगवान जन्मदिन मना रहे कितना प्यारा सा भाग्य है*... इस मीठे नशे में खो जाओ... स्वयं बापदादा अपने विशेष साथियो सेवा साथियो पर प्रेम स्नेह की वर्षा कर रहे है... ऐसे अलौकिक प्यार में बाप दादा के दिल में समा जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अत्यंत सोभाग्यशाली हूँ... कितना मीठा प्यारा और निराला मेरा भाग्य है... *भगवान बेठ इस कदर प्यार कर रहा.*.. स्नेह के मोतियो की माला से स्वागत कर रहा है... और अपने साथ जन्मदिन मना रहा है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप दादा संग सर्व सम्बन्धो का सुख लेकर सदा का मुस्कराओ... सदा कम्पनी और कम्पेनियन बनकर खुशियो में खिलखिलाओ... *बाप को साथी बनाकर सदा खुशियो में आनन्द में फ्लाई करो*... अपने सारे विकारो की गिफ्ट बापदादा को देकर... निर्मल बन महक उठो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को साथी रूप में पाकर निहाल हूँ... पन था सो पा लिया है इस मीठे नशे में झूम रही हूँ... *बाप दादा का हाथ पकड़कर असीम खुशियो में झूम रही हूँ.*.. और सब कुछ बाबा को सौंप सदा की बेफिक्र हो चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी रूहानी मीठी अदा से हर पल ब्राह्मण कल्चर को प्रत्यक्ष कर चलो... *कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो के भाव से भर चलो.*.. सब पर स्नेह लुटाओ और सर्व को सन्तुष्ट कर सहयोगी बन चलो... सेकण्ड में बिंदी लगाकर मा सिंधु बन मुस्कराओ... पूरे विश्व को रौशनी देनेवाले मा ज्ञान सूर्य से सज जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को सुनहरे संगम पर खुशियो से सजा रही हूँ... *प्यारा सा भगवान यूँ सहज ही जीवन में आ चला है*... और अपनी असीम शक्तियो से मुझे भर चला है... मीठे बाबा आपके साये में खिलकर मै आत्मा हर दिल को रौशन कर रही हूँ... सारे विश्व को खुशनुमा बना रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अंतर्मुखी होकर बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप कर साइलेंस की प्रैक्टिस करती हूँ... मैं आत्मा मन-बुद्धि को अपने मस्तक पर एकाग्र करती हूँ... मै आत्मा *चमकती हुई मस्तक मणि* हूँ... एक बहुमूल्य हीरा हूँ... मैं आत्मा धीरे-धीरे देहभान से न्यारी होती जा रही हूँ... मै आत्मा प्रकाश का शरीर धारण कर ऊपर की ओर जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमधाम में ज्ञान सूर्य के सम्मुख बैठ जाती हूँ... ज्ञान सूर्य से तेज किरणों की बौछारें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मुझ आत्मा की *सोई हुई शक्तियां जागृत* होती जा रही है... मुझ आत्मा का जन्मों-जन्मों का विकार भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा ज्ञान, गुण, शक्तियों से सम्पन्न होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य बन चमक रही हूँ... मै आत्मा ज्ञान सूर्य से दिव्य किरणों को लेकर चारों ओर फैला रही हूँ... सभी अज्ञान-अंधकार में सोई हुई आत्माओं को जगा रही हूँ... मैं मास्टर ज्ञान सूर्य विकारों के अंधकार में भटकती हुई आत्माओं को *ज्ञान की रोशनी देकर उनका भटकन समाप्त* करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य बन विश्व के अंधकार को मिटा रही हूँ... मै आत्मा अपने लाइट-माईट प्रकाश-स्वरुप से दूसरों को लाइट-माईट दे रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा ज्ञान के प्रकाश में रहती हूँ... मै आत्मा स्वयं सदा प्रकाशित रह सम्पूर्ण पवित्रता का अनुभव करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा में विकारों का अंश मात्र भी समाप्त होता जा रहा है... अब मैं आत्मा विश्व से अंधकार को मिटाकर *रोशनी देने वाली मास्टर ज्ञान सूर्य* अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध-सम्पर्क में लाइट रहना ही मिलनसार बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की हो गई... *बाबा ही मुझ आत्मा की लगन है*... मैं एक पवित्र आत्मा हूँ... बाबा मुझ आत्मा को आप समान... नॉलेजफुल बना रहे है... मैं देवता बनने वाली आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैने सब-कुछ बाबा को दे दिया... तो सब खत्म... *न मैं, न मेरा है... मैं बाबा की ... मेरा सब बाबा का*... फिर यह संस्कार... यह स्वभाव... यह सम्बन्ध-सम्पर्क... एक बाबा की याद में रहने से कोई परिस्थिति भी मुझ आत्मा को डिस्टर्ब नही कर सकती...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को किसी भी सम्बन्ध, सम्पर्क, वस्तुओं में बुद्धि को फ़ंसाना नही है... मैं आत्मा बाप पर ही वारी हूँ... कुर्बान हूँ... *एक बाप के सिवाए... मुझ आत्मा के दिल में कोई भी नही है*...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के संस्कार में... मुझ आत्मा के व्यवहार में... सदा बाबा बसा हुआ है... *मुझ आत्मा ने अपने बाप को अच्छी तरह से पहचान लिया है*... मैं आत्मा बाप से पवित्रता का... लाइट का... माइट का स्नेह अनुभव करने लगी हूँ...
➳ _ ➳ बाबा को यथार्थ पहचान मैं आत्मा अचल- अडोल अवस्था का अनुभव करने लगी हूँ... *सारे बोझ मुझ आत्मा के बाबा ने ले लिए*... मुझ आत्मा के संस्कारों का परिवर्तन सहज ही होता जा रहा है... मैं आत्मा खुद को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं सदा श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ... स्वमान की स्मृति मुझ आत्मा के स्वभाव को अच्छा बनाती जा रही है... हर एक आत्मा से मुझ आत्मा का सम्बन्ध अच्छा और मिलन सार होता जा रहा है... *बाबा की शक्तिशाली स्मृति*... मुझ आत्मा के स्वभाव... संस्कार... सम्बन्ध-सम्पर्क में लाइट का अनुभव कराती जा रही है...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *फिर से अन्धकार को मिटा कर रौशनी को देने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ फिर से अन्धकार को मिटा कर रौशनी को देने वाले मास्टर सूर्य होते हैं क्योंकि... *मास्टर ज्ञान सूर्य वह होते हैं जो विश्व से अन्धकार को मिटा कर रौशनी देने वाले हैं,* अर्थात! जो सम्पूर्ण विश्व के अज्ञानता रुपी अन्धकार को बाबा से प्राप्त ज्ञान की रौशनी से रौशन कर देते हैं।
❉ वह स्वयं भी प्रकाश स्वरूप व लाइट - माइट स्वरूप होते हैं और दूसरों को भी लाइट व माइट देने वाले होते हैं। *वह स्वयं प्रकाश स्वरूप हो कर सारे विश्व को अपने प्रकाश से प्रकाशित कर देने वाले हैं।* उनके प्रकाश की चमक सारे जहान को रौशन कर देने की क्षमता रखती है।
❉ अतः जहाँ सदा रौशनी रहती है वहाँ अन्धकार का सवाल ही नहीं रहता है, अर्थात! वहाँ पर अन्धकार हो ही नहीं सकता। *मास्टर ज्ञान सूर्य अपने ज्ञान के प्रकाश से सारे विश्व के विकारों रुपी अन्धकार को समाप्त कर देते हैं।** जहाँ पर मास्टर ज्ञान सूर्य रहेगा वहाँ से विकार स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।
❉ क्योंकि... जो स्वयं विश्व को रौशनी देने वाले हैं वह स्वयं अन्धकार में कैसे रहेंगे, अर्थात! *जो स्वयं ही रोशन हैं उन की उपस्तिथि चहुँ ओर स्वतः ही रौशनी फैलाएगी।* अतः चारों ओर ज्ञान के प्रकाश का उजाला ही उजाला फैला हुआ दिखाई देगा। वहाँ पर अन्धकार का नाम व निशान भीं नज़र नहीं आयेगा।
❉ तभी तो कहा है कि जो विश्व को रौशनी देने वाले हैं वह स्वयं अन्धकार में नही रह सकते। सम्पूर्ण मीन्स पवित्रता अर्थात! रौशनी। उसके पास अन्धकार अर्थात! विकारों का अंश भी नहीं रह सकता। *मास्टर ज्ञान सूर्य संसार में फैले हुए विकारों रूपी अंधकार को स्वयं की उपस्तिथि द्वारा नष्ट कर देते हैं* और फिर से विश्व को रोशनी देते हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध - सम्पर्क में लाइट रहना ही मिलनसार बनना है... क्यों और कैसे* ?
❉ स्वभाव संस्कार में जब टकराव होता है तो उसका प्रभाव संबंधों पर भी पड़ता है । जिसके कारण संबंधों को निभाने में एक भारीपन का अनुभव होता है । और *स्वभाव संस्कार में टकराव का मुख्य कारण है स्वयं को देह समझना* । इसलिए जितना आत्मिक स्मृति में रह सम्बन्ध सम्पर्क में आने वालों को आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का करेंगे उतना ही सर्व के प्रति सदा शुभ भाव और शुभ भावना ही निर्मित होगी । जिससे स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध - सम्पर्क में लाइट रहेंगे और मिलनसार बन जायेंगे ।
❉ जैसे बाबा की दृष्टि और वृत्ति में सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की भावना होने के कारण बाबा की समीपता सबको सुख का अहसास कराती है । तो ऐसे ही *सुख सागर बाप के बच्चे हम आत्माएं भी मास्टर सुखदाता है* । अपने इस स्वमान की सीट पर जब हम सदा सेट रहेंगे तो मन बुद्धि में केवल सर्व के कल्याण का चिंतन ही चलता रहेगा जो समृति स्वरूप बना देगा । इससे सर्व के प्रति मन से केवल शुभभावना ही निकलेगी जो स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध - सम्पर्क में लाइट रखेगी और मिलनसार बना देगी ।
❉ स्वयं के वास्तविक स्वरूप को जान जितना उस स्वरूप में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे उतना औरों को भी उनके वास्तविक स्वरूप में देखने का अभ्यास पक्का होता जायेगा । इससे *आत्मा के निजी गुण ज्ञान, प्रेम, आनन्द, शक्ति, शांति इमर्ज रहेंगे* । अपने इस स्वरूप में टिक कर जब औरों को भी इन गुणों का दान देते रहेंगे तो किसी के भी अवगुण दिखाई नही देंगे । जब सबमे केवल गुण ही देखेंगे तो स्वभाव संस्कारों का टकराव सहज ही समाप्त हो जायेगा और सम्बन्ध सम्पर्क में लाइट रह मिलनसार बन जायेगें ।
❉ स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध - सम्पर्क में लाइट रहने के लिए जरूरी है जीवन में सहनशीलता का गुण धारण करना क्योकि सहनशीलता का गुण व्यवहार को नम्र और स्वभाव को सरल बनाता है । और *जिसका व्यवहार नम्र तथा स्वभाव सरल होता है वह अपने कठोर से कठोर संस्कार को भी शीतल बना लेता है* । केवल अपने संस्कारों को ही नही बल्कि उसका नम्र व्यवहार औरों के संस्कारों को भी परिवर्तित कर देता है और उसे मिलनसार बना कर हर आत्मा की दुआओं का पात्र बना देता है ।
❉ देह और देह के संबंधों में आकर्षण लगाव झुकाव और टकराव का कारण बनता है । लगाव और झुकाव के कारण व्यक्ति एक दूसरे से ऐसी आशाएं रख लेते हैं जिन्हें पूरा करना व्यक्ति के लिए सम्भव नही होता क्योंकि *हर आत्मा के स्वभाव संस्कार एक दूसरे से भिन्न है* । आशाएं पूरी ना होने के कारण यही लगाव और झुकाव टकराव में बदल जाता है । इसलिए *जितना देह और देह के संबंधों से अनासक्त रहेंगे* उतना बातों के प्रभाव से भी मुक्त रहेंगे और स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध - सम्पर्क में लाइट रहते हुए मिलनसार बन जायेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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