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❍ 30 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *सब लोकिक इच्छाएं छोड़ ईश्वरीय कुल की वृधि करने में मददगार बने ?*
➢➢ *लेन देन का कनेक्शन सिर्फ एक बाप से रखा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *ज्ञान के राजों को समझ सदा अचल स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *दृढ़ता की शक्ति साथ रख सफलता को गले का हार बनाया ?*
➢➢ *"देना है, देना है, देना ही देना है" - यह लहर फैलाई ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *साक्षातकारमूर्त स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - किसी भी प्रकार की हबच (लालच) तुम बच्चों को नही रखनी है, किसी से भी कुछ मांगना नही है, क्योकि तुम दाता के बच्चे देने वाले हो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पुत्र होने के नशे में सदा झूमते रहो... *ईश्वर पिता से पायी अनन्त शक्तियो को असीम खजानो को* याद कर पास विद ऑनर होने का पुरुषार्थ करो... किसी से भी कुछ लेकर हिसाब नही बनाना है... दाता पुत्र हो सदा दुआओ से दामन सजाना है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आज दातापन के नशे में मुस्करा रही हूँ.*.. प्यारे बाबा कभी सोचा भी न था कि मै दाता बन सबके आँचल को भर चलूंगी और मेरे खाली से हाथ यूँ खजानो से भर जायेंगे... आपके मीठे प्यार ने इस जादूगरी से सजाया है...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... अब विनाशी सारी इच्छाओ का त्याग कर अविनाशी दौलत को अपनाओ... महज इच्छाओ के पीछे लेनदेन कर अपने हिसाबो को और न बढ़ाओ... *भगवान के बच्चे होकर भरपुरता के नशे में सदा मुस्कराओ.*.. सदा देने के भाव को दिल में लिये ईश्वरीय राहो में बढ़ते चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कभी कितनी गरीब सी दीन सी सबसे माँगा करती थी... आज *प्यारे बाबा का हाथ पकड़ कर अथाह धन सम्पदा की मालिक हो कर मुस्करा रही हूँ.*.. सबके दुखो को दूर करने वाली, झोली भरने वाली इष्टदेवी बन इठला रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... हद की ख्वाहिशो को छोड़ बेहद के अनन्त सुख में खो जाओ... देह के सम्बन्धो, समेट कर *बेहद के दातापन के स्वमान से सज जाओ.*.. हद की ख्वाहिशे नये हिसाबो की जंजीरो में जकड़ कर फिर से दुःख के जाल में फसायेंगी... लेना नही सिर्फ देना है इस बात को पक्का करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खबसूरत देवता बन सबके *जीवन में खुशियो के फूल खिला रही हूँ.*.. चहुँ ओर सुख की बौछार कर हर दिल को शांति प्रेम से भरती जा रही हूँ... आपसे पाये खजाने से सबको मालामाल बनाती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा विघ्न विनाशक हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *ज्ञान के सागर की संतान* हूँ... ज्ञान सागर पिता ने मुझ आत्मा को अपना बनाकर ज्ञान के गुह्य ते गुह्य राजों को समझाया... मैं कौन, मेरा कौन के राज को समझाया... मैं आत्मा हूँ... परम पिता परमात्मा ही मुझ आत्मा का असली पिता है... असली शिक्षक है... परम सतगुरु है...
➳ _ ➳ प्यारे पिता ने मुझ आत्मा को *ड्रामा का गुह्य ज्ञान देकर त्रिकालदर्शी* बना दिया... सृष्टि चक्र एक ड्रामा है जो हर 5000 साल बाद हूबहू रिपीट होता रहता है... मुझ आत्मा के जीवन में जो भी हो चुका है.. जो हो रहा है... जो भी होगा सब कुछ ड्रामा में पहले से ही नूंध है... नथिंग न्यू... कुछ भी नया नहीं है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से विघ्न विनाशक बनती जा रही हूँ... अब मुझ आत्मा को हर विघ्न नथिंग न्यू लगता है... बहुत पुरानी बात है... कल्प पहले भी हो चुका है... और मैं आत्मा अनेक बार विजयी बन चुकी हूँ... अब मैं आत्मा *निश्चय बुद्धि बन निश्चिंत* हो गई हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा ज्ञान सागर के किरणों के नीचे बैठकर ज्ञान रत्नों को अपनी बुद्धि रुपी झोली में भरते रहती हूँ... सदा *ज्ञान रत्नों को ही धारण* करते रहती हूँ... अब मुझ आत्मा की बुद्धि स्थिर हो गई है... अब मुझ आत्मा की बुद्धि की चंचलता समाप्त हो गई है... अब मैं आत्मा माया की चंचल घर से निकल अचल घर में रहती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा विघ्न विनाशक स्थिति में स्थित रहती हूँ... बड़े से बड़े विघ्नों को खेल अनुभव करती हूँ... खेल समझने के कारण अब मैं आत्मा विघ्नों से कभी घबराती नहीं हूँ... अब मैं आत्मा सदा खुशी खुशी से विजयी बनती जा रही हूँ... सदा डबल लाइट रहती हूँ... अब मैं आत्मा ज्ञान के राजों को समझ सदा अचल रहने वाली *निश्चय बुद्धि विघ्न विनाशक* बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दृढ़ता की शक्ति द्वारा सफलता को गले का हार बनाना"*
➳ _ ➳ मैं स्वयं को भृकुटि के मध्य में चमकती हुई ज्योति बिंदु सितारे के रूप में अनुभव कर रही हूँ... मैं विदेही आत्मा स्वयं को अपने निराकारी सम्पूर्ण स्वरूप में देख रही हूँ... *शिवबाबा मुझ विदेही आत्मा को सर्व शक्तियों से सम्पन्न कर रहे है... विषेश कर दृढ़ता की शक्ति मुझमें भरते जा रहे हैं...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति द्वारा अचल-अडोल हो गई... कोई भी बात... कोई भी परिस्थिति... *माया का कोई भी रूप... मेरा कोई भी कड़ा संस्कार... रत्ती मात्र भी मेरे लोह समान मजबूत इरादों को हिला नहीं पा रहे हैं...* बड़े-बड़े विघ्न, माया के विकराल से विकराल रूप मुझ आत्मा के सामने घुँटने टेक रहे हैं... मेरे इरादों की दृढ़ता... मेरे संकल्पों की दृढ़ता के सामने सभी नतमस्तक हो रहे हैं... मेरे दृढ़ता से भरे संकल्प अंगद के पैर की तरह हैं...
➳ _ ➳ मेरी यही दृढ़ता की शक्ति के कारण माया मुझे सफलता का हार पहना रही हैं... मेरी दृढ़ता की शक्ति मुझे हर बात में सफलता दिला रही हैं... *मेरे सोचने मात्र की देरी हैं... सोचा और सफलता हुई पड़ी है...*
➳ _ ➳ *मेरी यही दृढ़ता की शक्ति मुझे विजय माला का दाना बनायेगी ...* बाबा को मुझ आत्मा को दृढ़ता की शक्ति प्रदान करने के लिए धन्यवाद करती हूँ... अपनी सफलताओं के हार से सजी मैं आत्मा संगमयुग पर हर अवगुण पर, विकारों पर, अपने पुराने शुद्रता के संस्कारों पर अपनी विजय का आनन्द ले रही हूँ ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *ज्ञान के राजों को समझ सदा अचल रहने वाले निश्चय बुद्धि, विघ्न विनाशक होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ ज्ञान को ही सहज रीति कहते है समझ जो बाबा हमको मुरली के द्वारा दे रहे है, ओर समझा रहे है की कैसे ड्रामा के हर सीन को देखते हुए भी नही देखना अर्थात *कल्याणकारी ड्रामा* की नॉलेज से स्थिति अचल रहती व ड्रामा बिंदी पर १००% निश्चय रहने से हर परिस्थिति के आने से पहले ही विनाश हो जाती ।
❉ डेली पढ़ाई पढ़ने से बाबा बहुत गुहिय राज़ समझा देते जिससे आने वाली अनेक परिस्थिति में अचल रहने का साहस मिलता ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती ओर बाबा के महावाक्य याद आते *नथिंग न्यू* कल्प कल्प की विजयी आत्मा हुँ ।
❉ ज्ञान के राज़ों को समझने के लिए , जो बाबा कहते है उसपर *मनन करना चाहिए* कि जो बाबा कह रहे है वह सत्य है या नहीं , जैसे ही आत्मा को बाबा के द्वारा दिया हुआ ज्ञान धारण होगा वह एक नया अनुभव बन जाएगा जिससे आत्मा का निश्चय पक्का होगा ओर सदा ही अचल स्थिति रहने लगेगी ।
❉ इसलिए बाबा कहते माया को दूर से ही परखकर , ज्ञान की समझ से *योगयुक्त व युक्तियुक्त* विघ्न विनाशक बन सदा अचल रह ओर निश्चय बुद्धि सदा ही निश्चिन्त व विजयी का अनुभव करेगी । सम्पूर्ण निश्चय अर्थात आत्मा बिंदु, परमात्मा बिंदु, ड्रामा बिंदु, ब्राह्मण परिवार बिंदु ।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *दृढ़ता की शक्ति साथ हो तो सफलता गले का हार बन जायेगी... क्यों और कैसे* ?
❉ कोई भी कार्य कितना भी मुश्किल से मुश्किल क्यों ना हो किन्तु दृढ़ता से उस कार्य करने का संकल्प भी कार्य में सफलतामूर्त बना देता है । क्योकि *दृढ़ता की शक्ति आत्म विश्वास को जागृत करती है* और आत्म विश्वास की भावना जब व्यक्ति के अंदर जागृत हो जाती है तो *मुश्किल से मुश्किल कार्य भी सहज लगने लगता है* । इसलिये जितना दृढ़ता की शक्ति को स्वयं में धारण करेंगे उतना ही सफलता गले का हार बन जायेगी ।
❉ परीक्षा में असफल होने वाला विद्यार्थी भी जब दृढ़ता के साथ अपनी पढ़ाई में लग जाता है तो वह भी सफल हो जाता है । हमारी भी यह ईश्वरीय पढ़ाई है । इस *पढ़ाई में भी वही पास विद ऑनर बन सकते हैं और जो दृढ़ता के साथ पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ते हैं* और दृढ़ता के साथ ही ज्ञान के हर प्वाइंट को अपने जीवन में धारण करते हैं । अर्थात दृढ़ता की शक्ति को जीवन में धारण कर जो धारणामूर्त बनते हैं, सफलता उनके ही गले का हार बनती है ।
❉ दृढ़ता की शक्ति संकल्प, बोल और कर्म के व्यर्थपन को समाप्त कर, उन्हें सहज ही समर्थ बना देती है । *स्मर्थपन जैसे जैसे आता जाता है कमजोरिया समाप्त होती जाती है* । क्योकि दृढ़ता की शक्ति एकाग्रता की शक्ति को जागृत करती है और एकाग्र स्थिति में स्थित रहने वाला मन बुद्धि की लाइन क्लीयर होने के कारण हर परिस्थिति को परख कर निर्णय लेता है । इस लिए जीवन की किसी भी परीक्षा में वह कभी भी असफल नही होता ।
❉ जैसे साइंस वाले शस्त्र से शस्त्र को खत्म कर देते है, एक विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं । इसी प्रकार हम भी अपने शुद्ध और पवित्र वायब्रेशन से अशुद्ध और व्यर्थ वायब्रेशन को, शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों से व्यर्थ संकल्पों को तथा अपने अनादि और *आदि संस्कारों से कमजोर आसुरी संस्कारों को सहज ही समाप्त कर सकते हैं* किन्तु यह तभी कर सकते हैं जब दृढ़ता की शक्ति स्वयं में धारण करेंगे क्योकि दृढ़ता से कमजोर संस्कारों को समाप्त करने का जब लक्ष्य रखेंगे तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी ।
❉ जैसे कछुए और खरगोश की कहानी में दिखाते हैं कि कछुए ने हिम्मत नही हारी । वह दृढ़ता से धीरे धीरे अपना रास्ता तय करता रहा और अंत में खरगोश से पहले अपनी मंजिल पर पहुँच गया और जीत हासिल कर ली । यह कहानी भी हमे यही शिक्षा देती है कि जीवन में चाहे कैसी भी विपरीत परिस्थितयां क्यों ना आये किन्तु जो दृढ़ता की शक्ति को धारण कर *परिस्थितियों से पलायन करने के बजाए उनका डट कर सामना करते हैं* सफलता उनके गले का हार बन जाती है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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