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 01 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *सदा अपनी धुन में रहे ?*

 

➢➢ *योग की भट्टी में रह अपने संस्कारों को परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *बाप का पूरा रीगार्ड रखा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *बिंदु रूप में स्थित रह उडती कला में उड़ते रहे ?*

 

➢➢ *नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तित किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  अपने ही दर्पण में अपने तकदीर की सूरत को देखो। यह ज्ञान अर्थात नॉलेज दर्पण है। तो सबके पास दर्पण है ना तो अपनी सूरत देख सकते हो ना। *अभी बहुत समय के अधिकारी बनने का अभ्यास करो।* ऐसे नहीं अंत में तो बन ही जायेंगे। *अगर अंत में बनेंगे तो अंत का एक जन्म थोडा-सा राज्य कर लेंगे।*

 

✧  लेकिन यह भी याद रखना कि अगर बहुत समय का अब से अभ्यास नहीं होगा वा आदि से अभ्यासी नहीं बने हो, आदि से अब तक यह विशेष कार्यकर्ता आपको अपने अधिकार में चलाते हैं वा डगमग स्थिति करते रहते हैं अर्थात धोखा देते रहते हैं, *दु:ख की लहर का अनुभव कराते रहते हैं तो अंत में भी धोखा मिल जायेगा।*

 

✧  धोखा अर्थात दु:ख की लहर जरूर आयेगी। तो अंत में भी पचाताप के दु:ख की लहर आयेगी। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को फिर से स्मृति दिलाते हैं कि *राजा बनो* और अपने विशेष सहयोगी कर्मचारी वा *राज्य कारोबारी साथियों को अपने अधिकार से चलाओ।* समझा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  नम्बरवन दुश्मन रावण पर ज्ञान और योग से जीत पाना"*

 

_ ➳  ऊँची पहाड़ी पर खड़ी मै आत्मा... नीचे की दुनिया देख रही हूँ... और दुनिया से अलग अपनी ऊँची खुबसूरत स्थिति देखकर सोचती हूँ... इतना प्यारा निर्विकारी जीवन तो कभी ख्वाबो में भी न था... जो आज जीवन की हकीकत है... कभी तो विकार ही जीवन का सत्य बने हुए थे... उनसे हटकर मेरा भी कोई सत्य है यह दूर दूर तक पता न था... *कैसे प्यारे बाबा ने जीवन में आकर, जीवन को सच्ची खुशियो और रौनक से सजाया है.*.. और दुखो की मायूसी हटाकर, सुखदायी मुस्कान से मुझे इतना सुंदर बनाया है... दिल से धन्यवाद करने मै आत्मा... अपने प्यारे बाबा के पास उड़ चलती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतोप्रधान बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देहभान और देह के विकारो ने कितना निस्तेज कर दिया है... अपनी दिव्यता को ही भूल कितने साधारण बन पड़े हो... अब मीठे बाबा की यादो में ज्ञान और योग से... उसी खोये दिव्य सौंदर्य को पुनः पा लो... *प्यार से मीठे बाबा को याद करो और सतोप्रधान बनकर, विश्व के मालिक बन, सुखो का आनन्द लो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपनी बुद्धि पात्र में भरते हुए कहती हूँ :- मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी प्यारी सी छत्रछाया में मै आत्मा... विकारो जीवन से मुक्त होकर दिव्यता से भरती जा रही हूँ... *ज्ञान और योग की चमक ने जीवन को सदा का रौशन किया है* और मुझे पवित्रता से सजाया है..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादो में तेजस्वी बनाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितने खिले और खुबसूरत फूल थे... पर देह के जंजालों में फंसकर, विकारो की कालिमा में कितने काले हो गए... *अब यादो की अग्नि में स्वयं को उसी आभा में फिर से निखारो.*.. पुनः सतोप्रधान बनकर, देवताई सुखो के अधिकारी बनकर विश्व धरा पर सुखो भरा राज्य भाग्य पाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को मेरा भाग्य इतना मीठा और प्यारा बनाने पर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा *सदा आपकी यादो की छाँव में... अपने खोये वजूद को पाकर, पावनता की सुंदरता से... देवताई ताजोतख्त पा रही हूँ.*.. दुखो से मुक्त होकर, सुखो की मालकिन बनती जा रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रावण पर जीत पाने का राज समझाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता के साये में सतोप्रधान बनकर, खुशियो से महकती खुबसूरत दुनिया को अपनी बाँहों में पाओ... *ज्ञान के मनन और योग की खुशबु से. विकारो रुपी रावण को सहज ही जीत जाओ..*. श्रीमत का हाथ पकड़ इस दलदल से सहज ही निकल जाओ...."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... आपकी प्यारी बाँहों में पलकर कितनी शक्तिशाली बन गयी हूँ... *शक्तियो और दिव्य गुणो को पाकर, विकारो को जीतकर मुस्करा रही हूँ..*.ज्ञान की अमीरी और योग से मालामाल हूँ..."मीठे बाबा से मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा... स्थूल वतन में आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपने संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए योग की भट्ठी में रहना*"

 

_ ➳  "मैं देवकुल की महान आत्मा हूँ" स्वयं को यह स्मृति दिलाते हुए, अपने अंदर दैवी संस्कार भरने के लिए मैं अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरुप को स्मृति में लाती हूँ। अपने सम्पूर्ण स्वरूप को स्मृति में लाते ही मेरा सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि और आदि स्वरूप मेरे सामने स्पष्ट होने लगता है। *अब अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मैं अशरीरी आत्मा बन अपनी साकारी देह से बाहर निकल कर, चल पड़ती हूँ परमधाम*। सूर्य, चांद, तारागणों को पार करते हुए, सूक्ष्म लोक को भी पार करके मैं पहुंच गई अपने घर परमधाम।

 

_ ➳  लाल प्रकाश से प्रकाशित इस परमधाम घर मे मैं स्वयं को देख रही हूँ। यहां पहुंचते ही मुझे डेड साइलेन्स का अनुभव हो रहा है। *मेरे बिल्कुल सामने है सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं*। इस परमधाम घर मे चारों और फैले सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा को गहराई तक छू रहें हैं और मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। इन सर्वशक्तियों का स्वरुप तेजी से परिवर्तित हो रहा है। ऐसा लग रहा है इन सर्वशक्तियों ने जैसे जवालस्वरूप धारण कर लिया है। *मेरे इर्द - गिर्द जैसे आग की बहुत तेज लपटे उठ रही हैं जिनकी तपन में मेरे पुराने स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं*।

 

_ ➳  जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने संस्कारों का दाह संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मेरा अनादि सतोप्रधान स्वरूप इमर्ज हो रहा है। अपने उसी सतोप्रधान स्वरुप को अब मैं देख रही हूँ। *डायमण्ड के समान चमकते हुए अपने रीयल स्वरूप को अब मैं अनुभव कर रही हूँ। मेरा अनादि स्वरूप कितना प्यारा, कितना आकर्षक है*। मुझ हीरे की चमक चहुँ और फैल रही है। कभी मैं अपने इस अति सुंदर मनोहर स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा को निहार रही हूँ। *जिनकी अनन्त किरणे मुझ आत्मा हीरे पर पड़ कर मुझे और भी चमकदार बना रही हैं*।

 

_ ➳  हीरे के समान चमकदार बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ रही हूँ। *साकारी दुनिया, साकारी शरीर मे रहते हुए अब मैं अपने अनादि और आदि सतोप्रधान स्वरूप को हर समय स्मृति में रख, निरन्तर योग की भट्ठी में रह, अपने पुराने संस्कारों का पविर्तन कर रही हूँ*। मुझ आत्मा के ऊपर चड़ी 63 जन्मो के विकारों की कट योग भट्ठी में जल कर भस्म हो रही है। *जैसे - जैसे विकारों की कट मुझ आत्मा के ऊपर से उतर रही है वैसे - वैसे नए दैवी संस्कारों को मैं आत्मा धारण करती जा रही हूँ*। अपने अनादि और आदि संस्कारों की स्मृति अब मुझे सहज ही संपूर्णता की ओर ले जा रही हैं।

 

_ ➳  निरन्तर याद की भट्ठी में रहने से पुराने संस्कार तो भस्म हो ही रहें है किंतु साथ ही साथ आगे होने वाले विकर्मों से भी मैं आत्मा स्वयं को बचाकर विकर्माजीत बन रही हूँ। विकर्मों का बोझ उतरने से मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्कापन मुझे हर समय उड़ती कला का अनुभव करवा रहा है। *ज्ञान और योग के पंख लगाए अब मैं एक लोक से दूसरे लोक और दूसरे लोक से तीसरे लोक हर समय भ्रमण करते हुए स्वयं को सदा शक्तियों से सम्पन्न करती रहती हूँ*।

 

_ ➳  *योग की भट्ठी में रहने से मेरे चारों और एक ऐसा शक्तिशाली औरा निर्मित हो गया है कि मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं के संस्कार भी अब उस शक्तिशाली औरे के प्रभाव से परिवर्तन हो रहें हैं*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा बिन्दु रूप में स्थित  रह उड़ती कला में उड़ती रहती हूँ ।* 

 

 _ ➳  बिन्दु बन बिन्दु रूपी बाप की याद में स्थित मैं आत्मा... मेरेपन के संस्कारों को योग अग्नि में स्वाहा करती जा रही हूँ... *बिंदु रूपी नाव पर सवार मैं आत्मा... देह अभिमान रूपी समुद्र को पार कर पहुँच जाती हूँ... बिन्दु रूपी एक बाप के पास...* सर्व शक्तियों रूपी सौगात को प्राप्त कर... डबल लाइट स्थिति का अनुभव करती हूँ... हर कार्य के बोझ से मुक्त रह... उड़ती कला का श्रृंगार करती हूँ... बिन्दु बन देह के बंधनों से परे रहती मैं आत्मा... बेहद के वैराग्य को धारण करती हूँ.... *मैं आत्मा बिन्दु... यह ड्रामा बिंदु... और मेरा बाबा भी बिन्दु...* तीन बिंदियों का तिलक बापदादा के हाथों लगवाती मैं आत्मा... परीक्षा रूपी हर परिस्थिति को पार कर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नेगटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक होने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... पांच तत्वों से बनी इस देह से न्यारे हो... *एक बाप की याद में समाई हुई*... सदा सन्तुष्ट, सदा खुशी बाँटने वाली आत्मा हूँ... *मेरा तो बस एक शिव बाबा दूसरा न कोई*... आज पूरा विश्व विकारों की अग्नि में जल रहा है... मैं आत्मा योगबल से विकारों की इस अग्नि को बुझा रही हूँ... नेगटिव को पॉजिटिव में बदलने के लिए... मैं आत्मा *बाबा की याद का बल भरती जा रही हूँ... मैं आत्मा स्वयं में शांति की शक्ति अनुभव करने लगी हूँ*... शांति की शक्ति मुझ आत्मा को भी परिवर्तन करती जा रही है... और *दूसरों को भी परिवर्तन करती जा रही है*... सभी विघ्न समाप्त होते जा रहे है... *नेगटिव, पॉजिटिव में परिवर्तन करती जा रही हूँ*... विकार समाप्त होते जा रहे हैं... याद के बल से व्यर्थ संकल्पों की हलचल भी समाप्त होती जा रही है... *अनेक जन्मों की भटकन समाप्त होती जा रही है*... प्रकृति भी बदलती जा रही है... *याद का बल मुझ आत्मा को... विश्व को परिवर्तन करने का अनुभव करा रहा है*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *कई बच्चे कहते हैं हम तो बहुत सेवा करते हैंबहुत मेहनत करते हैं लेकिन प्राप्ति इतनी नहीं होती है। उसका कारण क्या? वरदान सबको एक है६० साल वालों को भी एक तो एक मास वाले को भी एक है। खजाने सभी को एक जैसे हैं। पालना सबको एक जैसी हैदिनचर्यामर्यादा सबके लिए एक जैसी है।* दूसरी-दूसरी तो नहीं है ना! ऐसे तो नहींविदेश की मर्यादायें और हैंइण्डिया की और हैंऐसे तो नहींथोड़ा-थोड़ा फर्क हैनहीं हैतो जब सब एक है फिर किसको सफलता मिलती हैकिसको कम मिलती है - क्यों?कारणबाप मदद कम देता है क्याकिसको ज्यादा देता हो, किसको कम, ऐसे हैनहीं है।

 

 _ ➳  फिर क्यों होता हैमतलब क्या हुआअपनी गलती है। *या तो बाडी-कान्सेस वाला मैं-पन आ जाता हैया कभी-कभी जो साथी हैं उन्हों की सफलता को देख ईर्ष्या भी आ जाती है। उस ईर्ष्या के कारण जो दिल से सेवा करनी चाहियेवो दिमाग से करते हैं लेकिन दिल से नहीं।* और फल मिलता है दिल से सेवा करने का। कई बार बच्चे दिमाग यूज करते हैं लेकिन दिल और दिमाग दोनों मिलाके नहीं करते। दिमाग मिला है उसको कार्य में लगाना अच्छा है लेकिन सिर्फ दिमाग नहीं। जो दिल से करते हैं तो दिल से करने के दिल में बाप की याद भी सदा रहती है। सिर्फ दिमाग से करते हैं तो थोड़ा टाइम दिमाग में याद रहेगा-हाँबाबा ही कराने वाला हैहाँ बाबा ही कराने वाला है लेकिन कुछ समय के बाद फिर वो ही मैं-पन आ जायेगा। *इसलिए दिमाग और दिल दोनों का बैलेन्स रखो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सेवा में दिमाग और दिल दोनों का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा चांदनी रात में एकांत में बैठी हुई हूँ... *ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान शिव बाबा के पास मैं सफेद प्रकाश का आकारी शरीर धारण किये धीरे-धीरे सूक्ष्मवतन में पहुँचती हूँ...* वहाँ चारों तरफ फूलों से सजावट है... जैसे ही मैं वहां पहुँचती हूँ, बाबा मुझ फ़रिश्ते पर फूलों की बरसात करना शुरू कर देते है...

 

 _ ➳  बाबा की दृष्टि से, मस्तक से निकलता लाल रंग की ठंडी किरणों का फव्वारा मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रहा है... मैं किरणों से भीग चुकी हूँ...अनेक जन्मों के विकारों भरे संस्कार जलकर राख बन रहे है... *मैं अब सर्व गुणों का अनुभव कर रही हूँ...* विकार के वशीभूत देहअभिमान, ईर्ष्या, मेरापन सब समाप्त हो रहा है...

 

 _ ➳  बाबा मुझे लाल रंग का तिलक लगा रहे हैं... बाबा मुझे हीरों का बना ताज पहना रहे है... *मैं अब भूल चुकी हूँ कि देहअभिमान क्या होता है, मैं भूल चुकी हूँ ईर्ष्या क्या होती हैं... मैं भूल चुकी हूँ मेरापन क्या होता है...*

 

 _ ➳  अब मैं विकारों के वशीभूत देहअभिमान में नही आती हूँ... *जैसे ही मैं स्थूल या मन्सा सेवा करने लगती हूँ तो बाबा का लगाया हुआ लाल तिलक ही याद आता है... सब बाबा करा रहे हैं... मैं अब निमित्त भाव से हर कर्म कर रही हूँ... केवल सेवा के लिए निमित्त हूँ...* मेरे जो साथी है उनकी सफलता देख मैं खुशी से झूम उठती हूँ... हर कर्म करते मुझे बाबा ही याद आ रहे हैं...

 

_  ➳  *अब मैं दिल और दिमाग दोनों का बैलेंस रखकर देहीअभिमानी का अनुभव कर रही हूँ...* दिल से सेवा करने पर मैं दिलाराम बाप की सबसे स्नेही बच्ची बन चुकी हूँ... सभी आत्माएं मेरे इस अनुभव से बाबा की ओर आकर्षित हो रही है... मैं अब चढ़ती कला का अनुभव कर रही हूँ और सर्व को करा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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