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 19 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *याद की रूहानी दोड में आगे जाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *अपने हमजीन्स को बचाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *पवित्र बनने और बनाने की युक्ति रची ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *सर्व शक्तियों ओ समय पर आर्डर प्रमाण कार्य में लगा मास्टर सर्वशक्तिमान बनकर रहे ?*

 

➢➢ *संतुष्टता की शक्ति से प्रसन्नता को प्राप्त किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *मनमनाभव के महामंत्र से बाप के स्नेह में समा बाप के साथ रूहानी मिलन मनाया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  मेरा पुरुषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं। मेरी हैन्डलिंग पॉवर बहुत अच्छी है, मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है, मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिंग में हैं। *यह मेरा-मेरा आया कहाँ से? यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकण्ड में प्रकृतिजीत बन जायेंगे।* प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्वजीत व जगतजीत है। *फिर एक सेकण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जायेगा।* खेल क्या देखा। तेरे को मेरे बनाने में बडे होशियार हैं। जैसे जादू मन्त्र से जो कोई कार्य करते हैं तो पता नहीं पडता कि हम क्या कर रहे हैं। *यह रॉयल माया भी जादू-मन्त्र कर देती है जो पता नहीं पडता कि हम क्या कर रहे हैं।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  माताओ को अपने हमजिंसो का उद्धार कर, अपनी जवाबदारी निभाना"*

 

_ ➳  मनमीत बाबा के प्यार के आगोश में डूबी हुई... मै आत्मा प्रकर्ति की खूबसूरती को निहार रही हूँ... मेरी आँखों के सामने खुबसूरत गुलाब है... इन्हे देखते हुए ईश्वरीय प्यार में रूहानी गुलाब बने... अपने गुलाबी जीवन और दिव्य गुणो की खुशबु पर मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... सोचती हूँ... कैसे ईश्वरीय पालना में जीवन का कायाकल्प हो उठा है... बागबान बाबा की पालना में... मै आत्मा किस कदर खिली खिली सी, सुगन्ध लिए सबसे प्यारी और अनोखी बन गयी हूँ... *तभी दिल से बागबान बाबा को पुकारती हूँ... ओ मेरे मीठे बागबान बाबा*... और अगले ही पल अपने खुबसूरत बागबान की बाँहों में समा जाती हूँ...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को वन्दे मातरम् का गहरा अर्थ समझाते हुए बोले ;- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने धरा पर आकर ज्ञान कलश माताओ पर सुशोभित किया है,.. तो माताओ को अपनी ईश्वरीय जवाबदारी समझ... अपनी हमजिंसो का उद्धार करना है... *उनकी राहो में खुशियो के फूल खिलाकर स्वर्ग का अधिकारी बनाना है.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के विशाल दिल और स्नेह को देख कह रही हूँ ;- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पाये अमूल्य प्यार की दौलत हर दिल पर लुटा कर खुशियो से सजाती जा रही हूँ... *दुखो से, विकारो से छुड़ाकर आपके प्यार तले दिव्य गुणो की मूरत बना रही हूँ.*.. आपके आगोश में हर आत्मा को सच्चा सुख अनुभव करा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा अपनी ज्ञान रश्मियों को लुटाते हुए बोले :-"मीठे लाडले बच्चे... इस दुखमय संसार को स्वर्ग रुपी जन्नत बनाने में मीठे बाबा के मददगार बनकर... अपनी खुबसूरत तकदीर को सजा लो... अपनी हम जिंसों के दामन से दुखो के कांटे चुनकर... सुख भरे फूलो की खशबू भर दो... *सबका कल्याण करने वाले विश्व कल्याणकारी बनकर मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा को दिल से वादा करते हुए बोली :- "मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार को पाकर और ज्ञान रत्नों की अमीरी से सजकर...सबको सुख देने वाली, सबका उद्धार करने वाली मा सुखदाता बनकर खिल उठी हूँ...  *सबके दुःख के आँसू पोंछ कर, खुशियो के मोती खिला रही हूँ.*.."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को बड़ी ही उम्मीदों से देखते हुए कह रहे है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... इस धरती से दुखो का नामोनिशान मिटाने वाले... भगवान के मददगार बनने का सोभाग्य प्राप्त करो... सबके अधरों को खुबसूरत मुस्कराहट से सजादो... *हर दिल को सुख शांति प्रेम और सुकून का सच्चा रास्ता दिखाने वाले प्रकाशित दीपक बनो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे से भगवान की दिली आस पर अपनी दृढता की मोहर लगाते हुए कह रही हूँ :- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान गंगा बनकर हर दिल को पावनता के रंग से धवल बनाउंगी... *चहुँ ओर सुख और शांति बिखरा हो... ऐसी खुबसूरत बगिया इस धरा पर खिला रही हूँ..*. सबको मीठे बाबा का हाथ थमाकर स्वर्ग के वर्से का अधिकारी बना रही हूँ..." ऐसे द्रढ़ वचन अपने मीठे बाबा को देकर मै आत्मा अपने तख्त पर शरीर में विराजित हो गयी....

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप का सच्चा सच्चा बन याद की रूहानी दौड़ में आगे जाना*"  

 

_ ➳  अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, सच्चे बाप के साथ सदा सच्चे रहने का मन मे दृढ़ संकल्प ले कर मैं आत्मा जा रही हूं याद की रूहानी यात्रा पर। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूं इस देह में विराजमान अपने वास्तविक चैतन्य दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप को एक चमकते हुए सितारे के रूप में*। जैसे आकाश में चमकते हुए सितारे में से किरणे निकलती हैं ऐसे मुझे आत्मा रूपी सितारे में से भी शांति, प्रेम, आनंद, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति की सतरंगी किरणे निकल रही हैं।

 

_ ➳  अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह से अपने इस सत्य स्वरूप, गुणों और शक्तियों पर फोकस करके कुछ क्षणों के लिए मैं खो जाती हूं अपने इस सुखमय स्वरुप में। *बड़े प्यार से मैं अपने इस स्वरूप को निहार रही हूं और देख रही हूं कि कितना शुद्ध और शक्तिशाली मेरा स्वरूप है*। आज दिन तक अपने इस सुखमय स्वरूप से मैं अनभिज्ञ थी। शुक्रिया मेरे प्यारे मीठे बाबा का जिन्होंने मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप की पहचान करवाई।

 

_ ➳  अपने सत्य वास्तविक स्वरुप का अनुभव करते-करते मैं आत्मा अपने मीठे दिलाराम बाबा की मीठी यादों में खोई हुई भृकुटि की कुटिया से बाहर निकल आती हूँ और *एक ऊंची उड़ान भर कर अति शीघ्र पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म लोक में अपने दिलाराम बाबा के पास उन्हें अपना सच्चा सच्चा समाचार देने*।

 

_ ➳  सूक्ष्म वतन में मेरा प्रकाश का फरिश्ता स्वरूप अपनी सम्पूर्ण अवस्था में विराजमान है। अपने उस संपूर्ण फरिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं फ़रिशता बापदादा के सामने पहुंच जाता हूँ और उनकी ममतामयी गोद में जा कर बैठ जाता हूँ। *अपनी स्नेह भरी दृष्टि से बाबा मुझे निहार रहें हैं। बाबा की दृष्टि से बाबा के सभी गुण मुझ में समाते जा रहें हैं।बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मुझमें एक अलौकिक रूहानी नशे का संचार कर रही हैं*। जिससे मैं फरिश्ता असीम रूहानी आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ। बाबा के हाथों का मीठा - मीठा स्पर्श मुझे बाबा के अपने प्रति अगाध प्रेम का स्पष्ट अनुभव करवा रहा है । मैं बाबा के नयनो में अपने लिए असीम स्नेह देख कर गद गद हो रहा हूँ और बाबा को अपना सच्चा समाचार सुना रहा हूँ।

 

_ ➳  देह अभिमान में आ कर जाने अनजाने में मुझ से जो भी गलतियां हुई है वो सब कुछ सच सच बाबा को बता रहा हूँ। *बाबा मेरी हर गलती को माफ करते हुए, दोबारा ना दोहराने की चेतावनी दे कर उसे योगबल से चुकतू करने की युक्ति बताते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख रहें हैं*। बाबा के हस्तों से अनन्त शक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणे निकल कर मेरे मस्तक से होती हुई मेरे अंग अंग में समा रही हैं। मैं स्पष्ट अनुभव कर रहा हूं कि ये ज्वाला स्वरूप किरणे मेरे द्वारा की हुई गलतियों से बने विकर्मों को दग्ध कर रही हैं। मैं बोझ मुक्त होता जा रहा हूँ। स्वयं को अब मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रहा हूँ। *देह अभिमान में आ कर दोबारा गलतियां ना हो इसके लिए बाबा मुझे सदा याद की रूहानी दौड़ में रहने की श्रीमत दे रहें हैं*।

 

_ ➳  बाबा की श्रीमत का पालन करने का बाबा को वचन दे कर अब मैं अपने फ़रिशता स्वरूप से ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ। और बाबा के मधुर महावाक्यों को सुनने के लिए आश्रम पहुंच जाता हूँ। अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर मैं बाबा के मधुर महावाक्य सुन रही हूं। *महावाक्य उच्चारण करते करते अब बाबा बीच मे याद की रूहानी दौड़ पर चलने की ड्रिल करवा रहें हैं*। वहां उपस्थित सभी ब्राह्मण आत्मायें सेकेंड में अपनी साकारी देह को छोड़ निराकारी आत्मायें बन रूहानी दौड़ में आगे जाने की रेस कर रही हैं। *सभी का लक्ष्य इस रूहानी दौड़ में आगे बढ़ने का है* और सभी अपने पुरुषार्थ के अनुसार नम्बरवार इस लक्ष्य को प्राप्त कर अपनी मंजिल पर पहुंच रही हैं।

 

_ ➳  सभी आत्मायें इस रूहानी यात्रा को पूरा कर अब परमधाम में अपने प्यारे बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मिलन मना रही हैं। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हैं। *शक्ति सम्पन्न बन कर अब सभी आत्मायें वापिस अपने साकारी ब्राह्मण स्वरूप में लौट कर फिर से बाबा के मधुर महावाक्य सुन रही हैं*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व शक्तियों को समय पर आर्डर प्रमाण कार्य में लगाती हूँ।"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सर्व सर्वशक्तिमान की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ... मैं आत्मा जिस समय जिस शक्ति का आह्वान करती हूँ... वो शक्ति प्रैक्टिकल स्वरूप में... अनुभव करती हूँ...* मुझ आत्मा ने सहनशक्ति को ऑर्डर किया... तो सामना करने की शक्ति नहीं आती... जिस समय... जिस शक्ति की आवश्यकता हो... वही शक्ति सहयोगी बनती हैं... *मास्टर अर्थात्... शक्ति को ऑर्डर किया... वो हाज़िर*... मुझ आत्मा की शरीर की शक्तियों के साथ-साथ... सूक्ष्म शक्तियां भी ऑर्डर प्रमाण कार्य करती हैं... एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं पड़ता है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सन्तुष्टता की शक्ति द्वारा प्रशन्नता का अनुभव करना "* 

 

 _ ➳  मैं चैतन्य शक्ति आत्मा भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हूँ... मैं सम्पूर्ण हूँ... *ड्रामा के ज्ञान ने और बाबा के साथ ने मुझे सन्तुष्टमणि बना दिया हैं...* मैं हर सीन में सन्तुष्टता का अनुभव कर रही हूँ... *ड्रामा की लय में चलते हर सीन को एन्जॉय कर रही हूँ...* बाबा से सर्व प्राप्तियां प्राप्त कर मैं आत्मा स्वयं को भरपूर अनुभव कर रही हूँ... सन्तुष्टता की शक्ति ने मुझ आत्मा को बेहद की खुशियों से भर दिया हैं... ड्रामा का हर सीन कल्याणकारी है... यह स्मृति मुझे हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहने की शक्ति भरती है... *हर परिस्थिति मेरे लिए अनुभवों का खजाना लेकर आती हैं...* बाबा से प्राप्त सर्व अविनाशी खजाने मुझे हर पल सन्तुष्टता का अनुभव कराते है... मैं सन्तुष्ट आत्मा सदा प्रशन्न हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *‘‘आज ज्ञान गंगाओं और ज्ञान सागर का मिलन मेला है*। जिस मेले में सभी बच्चे बाप से रूहानी मिलन का अनुभव करते। बाप भी रूहानी बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चे भी रूहानी बाप से मिल हर्षित होते हैं। क्योंकि *कल्पकल्प की पहचानी हुई रूहानी रूह जब अपने बुद्धियोग द्वारा जानती हैं कि हम भी वो ही कल्प पहले वाली आत्माएं हैं और उसी बाप को फिर से पा लिया है तो उसी आनन्दसुख केप्रेम केखुशी के झूले में झूलने का अनुभव करती हैं*। ऐसा अनुभव कल्प पहले वाले बच्चे फिर से कर रहे हैं। वो ही पुरानी पहचान फिर से स्मृति में आ गई। ऐसे स्मृति स्वरूप स्नेही आत्मायें इस स्नेह के सागर में समाई हुई लवलीन आत्मायें ही इस विशेष अनुभव को जान सकती हैं।

 

_ ➳  स्नेही आत्मायें तो सभी बच्चे होस्नेह के शुद्ध सम्बन्ध से यहाँ तक पहुँचे हो। फिर भी स्नेह में भी नम्बरवार हैंकोई स्नेह में समाई हुई आत्मायें हैं और कोई मिलन मनाने के अनुभव को यथाशक्ति अनुभव करने वाले हैं। और कोई इस रूहानी मिलन मेले के आनन्द को समझने वालेसमझने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। फिर भी सभी को कहेंगे - ‘स्नेही आत्मायें'। *स्नेह के सम्बन्ध के आधार पर आगे बढ़ते हुए समाये हुए स्वरूप तक भी पहुँच जायेंगे*। समझना - समाप्त हो समाने का अनुभव हो ही जायेगा - क्योंकि *समाने वाली आत्माएँ समान आत्माएँ हैं। तो समान बनना अर्थात् स्नेह में समा जाना*।

 

_ ➳  तो अपने आप को स्वयं ही जान सकते हो कि कहाँ तक बाप समान बने हैं? * बाप का संकल्प क्या है? उसी संकल्प समान मुझ लवलीन आत्मा का संकल्प है*? ऐसे वाणी, कर्म, सेवा सम्बन्ध सब में बाप समान बने हैंवा अभी तक महान अन्तर है वा थोड़ा सा अन्तर है? *अन्तर समाप्त होना ही - ‘मन्मनाभव का महामंत्र है'। इस महामंत्र को हर संकल्प और सेकण्ड में स्वरूप में लाना इसी को ही समान और समाई हुई आत्मा कहा जाता है*।

 

✺   *"ड्रिल :- मनमनाभव के महामंत्र से बाप के स्नेह में समा बाप के साथ रूहानी मिलन मनाना।"*

 

_ ➳  देह रूपी दीपक में, मैं जलती बाती के समान जगमग आत्मज्योति... अपने प्रकाश से अंधकार को पराजित करती हुई... (दृश्य चित्र बनाकर खुद को कुछ देर तक महसूस कीजिए इसी स्वरूप में)  *परमात्म स्नेह के तेल में पूरी तरह डूबी हुई, मुझ बाती का प्रकाश हर पल एक नई चेतना फैलाता हुआ, विघ्नों की तूफानी हवाओं में भी दूर दूर तक फैल रहा है...* साक्षी भाव से मैं देख रही हूँ स्वयं को दीपक से अलग होती हुई... दीपक अपनी जगह पर स्थित है और मैं ज्योति आहिस्ता आहिस्ता उससे अलग होकर फरिश्तें की काया धारण कर लेती हूँ... दो मिनट रूक कर देख रही हूँ मैं उस दीपक को जो एकदम अचल अवस्था में है... और आहिस्ता आहिस्ता उड जाती हूँ अनन्त की ओर... मैं फरिश्ता उडता जा रहा हूँ, अपने पीछे मोह माया की अनेक ऊँची अट्टालिकाओं को छोडता हुआ... स्वयं से बातें करता हुआ... *कल्प कल्प की पहचानी रूहानी रूह अब अपने बुद्धि योग से जान गयी है कि मैं वही कल्प पहले वाली आत्मा हूँ, मैने बाप को फिर से पा लिया है*... बाप से स्नेह मिलन मनाने और बाप समान बनने के लिए मैं चार धाम की यात्रा पर जा रही हूँ... और मैं आत्मा पाण्डव भवन के मुख्य प्रवेश द्वार पर... फरिश्ता रूप में स्वयं बापदादा द्वार पर ही मेरा इन्तजार कर रहे हैं... दौडकर गले से लग गया हूँ मैं उनके... ये मिलन अनोखा मिलन है संगम पर... *सागर की बाँहों में ज्ञान गंगा समा गयी हैं और अब दोनों एक समान*... अन्तर करना नामुमकिन है कि सागर में गंगा की धारा कौन सी है?...

 

_ ➳  बापदादा की उँगली पकडे मैं फरिश्ता बैठ गया हूँ उनके संग कुटिया के सामने झूले पर... अतिन्द्रिय सुख का ये झूला... मेरे एक ओर ब्रह्माबाबा तो दूसरी ओर धारणा शक्ति मम्मा, मुस्कुराती हुई...  *झूले के ऊपर वृक्ष की शाखाओं से झाँकते शिव सागर स्नेह की बारिश करते हुए... बाबा के कन्धे पर शीश झुकाये, मम्मा की आँखों से धारणा शक्ति स्वयं में समाता हुआ और शिव सागर की स्नेह रूपी बारिश में नहाता हुआ*... अपने भाग्य पर इठला रहा हूँ आज... स्नेह की बारिश में भीगता मेरा रोम रोम... कुछ देर तक ऐसे ही निहारें स्वयं को साक्षी होकर... जन्मों की थकान मिटती जा रही है,आत्मा हीरें की तरह पारदर्शी होती जा रही है... मैं और मेरे पन के संस्कार, तू और तेरा में बदल रहें है... देहभान का त्याग, सेवा के विस्तार का त्याग और त्याग का भी त्याग, कितनी श्रेष्ठ स्थिति है मुझ आत्मा की इस समय... *मैं देख रही हूँ इस स्नेह के सागर के तल को बढते हुए... सागर के जल का स्तर बढता ही जा रहा है... जल मेरे कन्धों तक आ गया है... बाबा की कुटिया, बाबा का कमरा शक्ति स्तम्भ और हिस्ट्री हाॅल... सभी हाऊस बोट की तरह तैर रहे है इस सागर पर*...

 

_ ➳  मैं फरिश्ता बापदादा की कुटिया में बाबा से रूहरिहान करता हुआ... *एक एक संकल्प बापदादा को समर्पित करता... बापदादा मुस्कुराकर मन्मनाभव का मन्त्र दे रहे है मुझे*... उनका वरदानी हाथ मेरे सिर पर... गहराई से देर तक महसूस कर रहा हूँ उन उँगलियों के स्पर्श को... मेरा रोम रोम पुलकित हो रहा है... *बापदादा के साथ मैं फरिश्ता बाबा के कमरें में... मैं बैठ गया हूँ घुटनों के बल बापदादा के ठीक एकदम करीब जाकर... और मुस्कुराते हुए बाबा मुझे आप समान बनने का वरदान दे रहे है*... वरदान को गहराई में समाता हुआ मैं फरिश्ता... अब पँहुच गया हूँ शक्ति स्तम्भ पर, *स्वयं में स्नेह और शक्तियों का बैलेन्स भरा हुआ*... स्नेह की धाराए हाऊसबोट में मुझे भिगो कर जा रही है... हिस्ट्री हाॅल में मैं फरिश्ता... देख रहा हूँ सन्दली पर बैठे  बापदादा एक एक आत्मा को दृष्टि से निहाल करते हुए... मैं बापदादा के ठीक सामने बापदादा से दृष्टि लेते हुए... उनकी आँखों से बरसता रूहानी नूर मेरे जन्मों जन्मों के विकर्मों को भस्म कर रहा है... *मैं फरिश्ता स्थिर हो गया हूँ सिर्फ एक संकल्प में... जो बापदादा का संकल्प वही मेरा सकंल्प... मन्मनाभव का मन्त्र गहराई से धडकनों में गूँज रहा है*...

 

_ ➳  बाहर भीतर सब जगह बस स्नेह की बारिश और स्नेह का सागर लहरा रहा है... हाऊस बोट से उतरकर मैं बापदादा की उँगली पकडे सागर में तैरती हुई गहराई में डुबकियाँ लगाती हुई... किनारे खडी आत्माओं का आह्वान कर रही हूँ... और *एक साथ किनारों पर खडी असंख्य आत्माए मेरे साथ उस सागर में समाती जा रही है... सागर में तैरती मणियों के समान*... मैं आत्मा वापस झूले पर बापदादा के साथ... बापदादा से विदाई लेकर वापस उसी देह रूपी दीपक में... पहले से ज्यादा मिठास और स्नेह के साथ अंधकार को पराजित करने का संकल्प मन में समाए...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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