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 09 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *योगबल से अपने सब बंधनो को काट बंधनमुक्त होने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *जो भी ईश्वरीय डायरेक्शन मिलते हैं, उन पर पूरा पूरा चले ?*

 

➢➢ *मियाँ मिठू तो नहीं बने ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूंझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *हर एक को सम्मान दे सर्व का सम्मान प्राप्त किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ *आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम सबको सच्ची गीता सुनाकर सुख देने वाले सच्चे सच्चे व्यास हो, तुम्हे अच्छी तरह पढ़कर सबको पढ़ाना है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता से पायी बेपनाह सुखो की दौलत से हर दिल आँगन में ख़ुशी की रंगोली सजा आओ... *दुखो में मुरझाये दिलो को ख़ुशी का साज सुना आओ*... प्यारा पिता धरा पर गुणो और शक्तियो के खजानो लिए आ चला...यह सुख की खबर सुना आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे पाये सुख के खजानो को पूरे विश्व में बाँट रही हूँ... *ज्ञान रत्नों से हर दिल को मालामाल बना रही हूँ.*.. सच्चे पिता का परिचय देकर सबको सुख का रास्ता दिखा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सत्य ज्ञान सुनाकर *सबके दुखो को दूर करने वाले सुखदाता बन चलो.*.. थके मनो को शांति और प्रेम की शीतलता से सिंचित करो... सच्चे पिता के सच्चे व्यास बनकर सबके जीवन को खुशियो के फूलो से खिला दो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे ज्ञान रत्नों को पाकर सुख की गूंज पूरे विश्व में फेला रही हूँ... *सच्ची सच्ची गीता सुनाकर हर दिल को मीठे बाबा से मिलवा रही हूँ.*.. सबको सुख देने वाली पुण्य आत्मा बन चली हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जो खुशियां जो खजाने जो अथाह ज्ञान रत्न आप बच्चों ने पाये है... .उनकी चमक पूरे विश्व को दिखाओ... प्यारा बाबा *धरा पर अतुलनीय दौलत लेकर आ चला है.*. यह शंखध्वनि कर आओ... शिव पिता के व्यास बनकर सबको सच्चे सुखो का असीम आनन्द का पता दे आओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबके जीवन को सुनहरे सुखो का अधिकारी बना रही हूँ... *सच्ची गीता सुनाकर हर मन को सतयुगी सुखो का पता बता रही हूँ..*. जो मीठे सुख जो ज्ञान रत्न मुझ आत्मा ने पाये है वह खुशियो की जागीर सब पर लुटा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मयोगी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं ज्योतिर्बिंदु आत्मा हूँ... भृकुटी के बीच जगमगाती रहती हूँ... मैं आत्मा शांतिधाम निवासी हूँ... मैं अविनाशी आत्मा हूँ... मैं आत्मा इस सृष्टि पर निरंतर अपना पार्ट बजाते आ रही हूँ... आदिकाल में मुझ आत्मा ने *सर्वगुण सम्पन्न देवताई स्वरूप* का पार्ट बजाया था... मध्यकाल में मुझ आत्मा का पवित्र पूजनीय स्वरूप था...

 

➳ _ ➳  अब अंतकाल में मैं आत्मा *सर्वोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण* का पार्ट बजा रही हूँ... पतित पावन परमात्मा ने मुझ आत्मा को तीनों कालों का ज्ञान देकर त्रिकालदर्शी बना दिया... अब मुझ आत्मा के सामने तीनों काल क्लीयर हैं... मंजिल और रास्ता क्लीयर है...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा ने लक्ष्य तक पहुँचने का ज्ञान देकर *मुझ आत्मा को त्रिनेत्री बना* दिया... लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्यारे बाबा हर पल मुझ आत्मा को गाइड करते हैं... मुझ आत्मा को श्रेष्ठ मत देते हैं... स्वमान देकर मुझ आत्मा का मान बढ़ाते हैं... गुणों, शक्तियों के खजानों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हैं... वरदानों से झोली भरते हैं...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा सदा *बाबा की छत्रछाया का अनुभव* करती हूँ... हर कर्म में बाबा को साथ रखती हूँ... मैं आत्मा हर काम मौज से करती हूँ... अब मैं आत्मा किसी भी परिस्थिति में मूंझती नहीं हूँ... अब मैं आत्मा कठिन से कठिन परिस्थिति में भी मौज का अनुभव करती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मुझ आत्मा ने कल्प-कल्प यह पार्ट बजाया है... और सफलता प्राप्त किया है... बनी बनाई बन रही है, नथिंग न्यू... मैं कल्प -कल्प की विजयी रतन आत्मा हूँ... अब मैं आत्मा त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा *मूंझने की परिस्थितियों को मौज में* परिवर्तन करने वाली कर्मयोगी अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्व का सम्मान प्राप्त करने के लिए हर एक को सम्मान देना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाप समान मीठी और नम्रचित्त हूँ... सर्व को सम्मान देने वाली... सर्व के प्रति समभाव रखने वाली... निर्माण आत्मा हूँ... बाबा ने बताया है - *सम्मान देना ही सम्मान लेना हैं...* हमें सम्मान मांगना नहीं हैं... वो तो स्वतः मिलता हैं जब हम किसी को भी सम्मान देते हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्व का रिगार्ड रखती हूँ... चाहे कोई उम्र, अनुभव , औदे से छोटा हो या बड़ा... कोई ज्ञानी हो या अज्ञानी... कैसे भी स्वभाव संस्कार की आत्मा हो...  *चाहे कोई उपकारी हो या अपकारी... सभी को ही मैं आत्मा सम्मान देती हूँ...*

 

➳ _ ➳  मालिक बन अपनी बात रखना और बालक बन सर्व की स्वीकृति अनुसार बात मान... सभी के ओपिनियन को सम्मान देती हूँ... *सभी की बातों को ध्यान से सुनकर... हर आत्मा का रिगार्ड रखती हूँ...* हर बात में पहले हाँ जी करती हूँ... औरों को स्वयं से आगे रख... सभी के लिए शुभ भावना और शुभ कामना रखती हूँ...

 

➳ _ ➳  सदा सभी को रिगार्ड देने वाली... मैं सभी से रिगार्ड प्राप्त करती हूँ... *सर्व से सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट लेकर... मैं आत्मा, स्व पसन्द, परिवार पसन्द और प्रभु पसन्द बन गई हूँ...*

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूँझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन करने वाले कर्मयोगि होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  त्रिकालदर्शी अर्थात जो आत्मा अपने तीनो कालों को जानती व समझती है... *तीन काल माना अपने पास्ट, प्रेज़ेंट फ़्यूचर को जानती है*। जब आत्मा अपने तीसरे नेत्र का यूज़ करती है तभी वह त्रिकालदर्शी होकर हर परिस्थिति को देख सकती है अर्थात देहि अभिमानी स्थिति में स्थित आत्मा ही त्रिकालदर्शी साक्षी होकर अपने तीनो कालों को देख सकती है।

 

 ❉  जब भी मनुष्य आत्मा के पास कोई बड़ी या छोटी परिस्थिति आयी है तो कोई आत्मा अगर मूँझि है तो केवल इसलिए क्योंकि उसने जो कर्म किया या सोचा उसको करते हुए उसका इफ़ेक्ट नही सोचा की आज पर क्या पढ़ेगा ओर साथ साथ फ़्यूचर में भी... जिसके लिए गायन है *जैसी करनी वैसी भरनी* और जैसे ही परिस्थिति आयी वह डिस्टर्ब होकर मूँझ जाते है।

 

 ❉  इसके लिए कोई भी *निर्णय लेना हो तो त्रिकालदर्शी की स्टेज पर स्थित होकर ले* जिससे हर परिस्थिति समझ के साथ मौज का अनुभव करवाए और एक बाबा की याद स्वतः ही बनी रहेगी। जैसे की वह स्टेज हमको कर्मों की नॉलेज देगी की यह जो भी आज हमारे साथ अच्छा या बुरा हो रहा है वह हमारा ही पास्ट में बीज बोया हुआ है लेकिन आज के रीऐक्शन से मैं आत्मा अपना कल लिख रही हुँ। इसलिए डबल अटेन्शन !!

 

 ❉  सदा के लिए त्रिकालदर्शी व सदा कर्मयोगी स्टेज में स्थिति होने के लिए त्*रिकालदर्शी के साथ साथ ड्रामा की नॉलेज और पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन* होना बहुत ज़रूरी है जिससे आत्मा सदा हर्षितमुख रह हर बड़ी छोटी परिस्थिति में स्वयं की स्थिति से मूँझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन कर देगी और सहज कर्मयोगी की स्टेज पर स्थित रहेगी। इसके लिए एक गायन है " जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छा हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सर्व का सम्मान प्राप्त करना है तो हर एक को सम्मान दो... क्यों और कैसे* ?

 

❉   हर मनुष्य की यही इच्छा होती है कि सभी उसे सम्मान दे, उसका रिगार्ड रखें । और यह भी सबसे बड़ा सच है कि जो चीज हम दूसरे को देते हैं बदले में वही चीज हमे उनसे रिटर्न में प्राप्त होती है । *इसलिए यदि हम चाहते हैं कि दूसरे हमारा आदर करें तो पहले हमे उनका आदर करना पड़ेगा* । अगर हम दूसरों का आदर नही करते तो दूसरों से भी यह उम्मीद नही रख सकते कि दूसरे हमे रिस्पेक्ट देंगें । इसलिए जितना दूसरों को सम्मान देंगे तो सर्व के सम्माननीय स्वत: ही बन जायेंगे ।

 

❉   स्व परिवर्तन से ही विश्व परिवर्तन गाया हुआ है । इसलिए जब दूसरे को बदलने का लक्ष्य छोड़ स्वयं को बदलने का लक्ष्य रखेंगे और इस भाषा को बदली करेंगे कि दूसरा सम्मान दे तभी मैं दूँ, दूसरा बदले तो मैं बदलूं । इसके बजाए *मास्टर दाता बन जब केवल देने का भाव रखेंगे और यही सोचेंगे कि मुझे केवल देना है* । बदले में किसी से कुछ भी लेने की उम्मीद नही रखनी हैं तो यह चिंतन सहज ही सर्व आत्माओं के प्रति स्नेह और प्रेम का भाव जागृत करेगा जिससे दूसरे भी सम्मान की नजरो से देखने लगेंगे ।

 

❉   देने वाले का हाथ सदा ही ऊपर होता है और लेने वाले का हाथ सदा ही नीचे होता है । इसलिए *देने वाला सदैव पूजनीय माना जाता है* । जैसे भक्ति मार्ग में भी देवी देवताओं के जड़ चित्रों में उनके *दातापन की झलक स्पष्ट देखने में आती है* । तभी तो आज तक भी उनका पूजन और गायन हो रहा है । हम ही वो होवनहार देवी देवता है इस बात को जो सदा समृति में रखते हैं वो किसी से सम्मान पाने की आश नही रखते बल्कि हर एक को सम्मान देते हुए स्वत: ही सर्व का सम्मान प्राप्त कर लेते हैं ।

 

❉   जैसे बाबा सर्व आत्माओं को सदैव सम्मान की नजऱ से देखते हैं और यही समझानी देते हैं कि कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा हमारे सामने आ जाये किन्तु *हमारे सद व्यवाहर को देख उसका भी स्वभाव संस्कार परिवर्तित हो जाये* । हमारे रहम की भावना उन आत्माओ का भी कल्याण कर दे जो पुराने स्वभाव संस्कारों के परवश हैं और दुखी हो रही हैं । ऐसी आत्माओं से स्वयं के प्रति सम्मान भावना की अपेक्षा रखने के बजाए उन्हें भरपूर सहयोग देना और *उन्हें दिल से सम्मान देना ही उनसे मान प्राप्त करना है* ।

 

❉   भक्ति मार्ग में कहा जाता है कि देना ही लेना होता है । इसी भावना के वशिभूत हो कर भक्त लोग दान पुण्य आदि करते हैं ताकि भगवान उनकी झोली हमेशा खुशियों से भरी रखे । ठीक इसी प्रकार *इस संसार में हम जो चीज दूसरों को देते हैं वह कई गुणा हो कर बदले में हमे वपिस मिलती है* । यदि हम दूसरों को प्रेम, स्नेह देने और उनके प्रति शुभभावना और शुभकामना रखने के बजाए अपने लिए उनसे प्रेम और स्नेह पाने की उम्मीद रखते हैं तो वह हमे कभी नही मिल सकता । किन्तु उन्हें सम्मान दे कर हम सहज ही उनका सम्मान प्राप्त कर सकते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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