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❍ 09 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपकारी पर भी उपकार कर बाप का सत्य परिचय दिया ?*
➢➢ *जो रतन बाबा के मुख से निकलते हैं, वही रतन निकाले ?*
➢➢ *नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तित किया ?*
➢➢ *नथिंग न्यू की विधि से विजयी अवस्था का अनुभव किया ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ ऐसा कोई भी ब्राह्मण नहीं होगा जो आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थी न हो। लेकिन निरन्तर आत्म-अभिमानी, जिससे कर्मेन्द्रियों के ऊपर विजय हो जाए, *हरेक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जाए, देह के पुराने संस्कार और सम्बन्ध से सम्पूर्ण मरजीवा हो जाए, इस पुरुषार्थ से ही नम्बर बनते हैं।*
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *" मैं परमात्मा द्वारा चुनी हुई श्रेष्ठ आत्मा हूँ "*
〰✧ सभी अपने को इस विश्व के अन्दर सर्व आत्माओंमें से चुनी हुई श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? यह समझते हो कि स्वंय बाप ने हमें अपना बनाया है? *बाप ने विश्व के अन्दर से कितनी थोड़ी आत्माओंको चुना। और उनमें से हम श्रेष्ठ आत्मायें हैं।* यह संकल्प करते ही क्या अनुभव होगा? अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होगी। ऐसे अनुभव करते हो? अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है वा सुना है? प्रैक्टिकल का अनुभव है वा सिर्फ नालेज है? क्योंकि ज्ञान अर्थात् समझ। समझ का अर्थ ही है - 'अनुभव में लाना'।
〰✧ सुनना, सुनाना अलग चीज है, अनुभव करना और चीज है। यह श्रेष्ठ ज्ञान है अनुभवी बनने का। द्वापर से अनेक प्रकार ज्ञान सुने और सुनाये। जो आधाकल्प किया वह अभी भी किया तो क्या बड़ी बात! *यह नई जीवन, नया युग, नई दुनिया के लिए नया ज्ञान, तो इसकी नवीनता ही तब है जब अनुभव में लाओ।*
〰✧ एक एक शब्द, आत्मा, परमात्मा, चक्र कोई भी ज्ञान का शब्द अनुभव में आये। रियलाइजेशन हो। *आत्मा हूँ यह अनुभूति हो, परमात्मा का अनुभव हो, इसको कहा जाता है - 'नवीनता'।* नया दिन, नई रात, नया परिवार सब कुछ नया ऐसे अनुभव होता है? भक्ति का फल अभी ज्ञान मिल रहा है तो ऐसे ज्ञान के अनुभवी बनो अर्थात् स्वरूप में लाओ।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बापदादा वा ड्रामा दिखाता ही रहता है कि दिन-प्रतिदिन सेवा बढ़नी ही है, तो बैठ कैसे जायेंगे?* जो एक साल पहले आपकी सेवा थी और इस साल जो सेवा की वह बढ़ी है या कम हुई है? बढ़ गई है ना!
〰✧ *न चाहते भी सेवा के बंधन में बंधे हुए हो लेकिन बैलेन्स से सेवा का बन्धन, बन्धन नहीं संबंध होगा।* जैसे लौकिक संबंध में समझते हो कि एक है कर्म बन्धन और एक है सेवा का संबंध तो बन्धन का अनुभव नहीं होगा, सेवा का स्वीट संबंध है। तो क्या अटेन्शन देंगे?
〰✧ सेवा और स्व-पुरुषार्थ का बैलेन्स सेवा के अति में नहीं जाओ। बस, मेरे को ही करनी है, मैं ही कर सकती हूँ, नहीं। *कराने वाला करा रहा है, मैं निमित्त ‘करनहार' हूँ तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शांतिधाम जाकर सुखधाम में आयेंगे इस ख़ुशी में रहना"*
➳ _ ➳ झील के किनारे बैठी मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... *प्यारे बाबा के आगमन से झील की लहरें ख़ुशी से उछल रही हैं... हवा और पानी साथ साथ खेल रहे हैं... पेड़ पौधे झुक झुककर सलाम कर रहे हैं...* मौसम की मस्ती से मेरे मन में भी उमंग उल्लास की लहरें दौड़ रही हैं... *ऐसा लग रहा पूरी प्रकृति प्रेम के सागर की आने की खुशी में प्रेम की कविताएं सुना रही हैं...* इस दुख की दुनिया से निकाल सुख, शांति की दुनिया में ले जाने आए मेरे बाबा के सामने मैं आत्मा बैठ प्यार की बातें करती हूँ...
❉ *सुख-शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा हथेली पर स्वर्ग की सौगात सजाकर कहते हैं:-* "मेरे लाडले बच्चे... मै विश्व का पिता आप बच्चों की झोली सदा के लिए सुख से भरने आया हूँ... अमन ही अमन हो ऐसी चैन की दुनिया बसाने आया हूँ... *सुख शांति भरपूर हो ऐसी मीठी सुखो की दुनिया बच्चों के लिए सौगात स्वरूप लाया हूँ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा खुशियों के सागर में झूमती लहराती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर दुखमय जीवन को अपनी नियति समझ रही थी... *आपने मीठे बाबा... मेरा दामन खुशियो से खिलाया है... सुख शांति से भरे जीवन का अधिकारी बना सजाया है..."*
❉ *प्यारे बाबा परमात्म माइट और परमात्म दिव्य लाइट से मुझे भरपूर करते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस घोर पाप की दुनिया से ईश्वर पिता के सिवाय कोई निकाल ही न सके... सुख भरा चैन सिर्फ पिता ही जीवन में ला सके... *ऐसे मीठे बाबा को हर पल यादो में सजाओ... जो परमधाम से उतर आये और सुख शांति के सौगातों से लबालब कर जाय..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा शांतिधाम और सुखधाम की स्मृतियों को मन में बसाकर कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *आप महा पिता मेरे लिए कितनी दूर से आते हो... सुनहरे सुखो से और शांतिमय जीवन से मेरी सदा के लिए दुनिया सजाते हो...* अपनी मीठी यादो से मुझे आप समान सुंदर बनाते हो... जिंदगी को महकाते हो..."
❉ *मेरे बाबा पाप की दुनिया से मुझे निकाल चैन की दुनिया में ले जाने दूर देश से आकर कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खिलते हुए खुशबूदार फूलो को इस कदर विकारो रुपी काँटों में झुलसता तो मै पिता देख ही न सकूँ... *और बच्चों को मुस्कराहटों से सजाने महकाने धरती पर चला आऊं... बच्चे सुख शांति के जीवन में चैन से रहे तो मै पिता सदा का आराम पाऊँ...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने घर को, स्वर्णिम दुनिया के सुखों को याद कर आनंदोल्लास में डूबकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा पाप की दुनिया में गहरे धस गई थी... आपसे मेरी दारुण सी दशा देखी न गई... *आप दौड़े से आये और मेरा जीवन सुखो की सौगातों से महका दिया... यूँ जीवन मीठा और प्यारा बना दिया..."*
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी वृति को शुद्ध रख दुश्मन को भी मित्र बनाना है*"
➳ _ ➳ शिव पिता की सन्तान सभी आत्मा भाई - भाई हैं, इस बात को स्मृति में लाकर मैं विचार करती हूँ कि *इस सत्यता को अगर सभी जान जायें तो धर्म और जाति के नाम पर होने वाला भ्रष्टाचार, पापाचार समाप्त हो जाये और सभी के हृदय में एक दूसरे के प्रति जो ईर्ष्या द्वेष, घृणा भाव है वो भी समाप्त हो कर उसके स्थान पर सबके मन मे एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना जागृत हो जाये*। ऐसी प्रेम और स्नेह की श्रेष्ठाचारी दुनिया बनाने के लिए ही तो स्वयं भगवान इस धरा पर आये हैं तो उनके इस कार्य मे सहयोगी बनने के लिए सबसे पहले हम ब्राह्मण बच्चो को ही अपनी वृति को ऐसा शुद्ध बनाना होगा कि दुश्मन भी मित्र बन जाये।
➳ _ ➳ यह सब चिंतन करते हुए अब मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का जो लक्ष्य शिव पिता परमात्मा ने हम बच्चों को दिया है उसे अवश्य पूरा करना है और इसके लिए अपनी वृति, दृष्टि को शुद्ध बनाने पर मुझे पूरा अटेंशन देना है। *इसी संकल्प के साथ अपने बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ करने के लिए अपने ज्ञानसूर्य शिव बाबा की मीठी मधुर याद में मैं अपने मन औऱ बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और आत्मा के ऊपर चड़ी हुई विकारों की अशुद्धता को मिटाने के लिए अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरुप में स्थित होकर चल पड़ती हूँ परमधाम अपने ज्ञानसूर्य परम पिता परमात्मा शिव बाबा के पास*।
➳ _ ➳ परमधाम में अपनी निराकारी बीज रूप अवस्था में अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा शिव बाबा के बिल्कुल समीप जा कर मैं बैठ जाती हूँ और बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणो को स्वयं में समाहित करने लगती हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ये अनन्त किरणे धीरे - धीरे तीव्र होते हुए ज्वाला स्वरूप धारण करती जा रही है*। इन ज्वाला स्वरुप किरणों के प्रभाव से मुझ आत्मा पर चढ़ी हुई विकारों की सारी अशुद्धता भस्म होती जा रही है और मैं आत्मा एकदम हल्की, शुद्ध होती जा रही हूँ। मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरी बुद्धि को शुद्ब बना कर मेरी वृति, कृति, स्मृति और दृष्टि सबको शुद्ध बना रहे है ताकि मेरे मन मे किसी के लिए कोई भी अशुद्ध संकल्प या भाव उतपन्न ना हो। *आप समान रहमदिल और स्नेहशील बनाने के लिए स्नेह के सागर मेरे मीठे बाबा अपने स्नेह की शीतल लहरे अब मेरी और प्रवाहित कर रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे शीतलता का कोई झरना बह रहा है और उसकी अनन्त धारायें बहुत तीव्र गति से मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं जो मुझे सम्पूर्ण शीतल बना रही हैं।
➳ _ ➳ अपने ज्ञानसूर्य शिव पिता की शीतल किरणों की शीतलता को पा कर, स्वयं को शुद्ध और शीतल बना कर अब मैं आत्मा साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए वापिस अपने साकारी तन में आ कर भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ। *सभी शिव बाबा की सन्तान मेरे आत्मा भाई हैं इस बात को सदैव स्मृति में रखने से अब किसी भी आत्मा के प्रति मेरे मन मे घृणा या नफरत के भाव पैदा नही होते*। इस सृष्टि ड्रामा में सभी पार्टधारी है और केवल अपना पार्ट प्ले कर रहें हैं यह बात बुद्धि में धारण होने से अब सबके पार्ट को मैं साक्षी हो कर देख रही हूँ।
➳ _ ➳ *अपनी वृति को शुद्ध बना कर अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को जो अपने स्वभाव संस्कारो के वश हो कर मेरे प्रति चाहे गलत व्यवहार भी कर रही है उनके प्रति भी शुभभावना, शुभकामना रखते हुए अब मैं उन्हें स्नेह और सम्मान दे कर उन्हें भी दुश्मन से मित्र बना रही हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं नेगेटिव को पॉज़िटिव में परिवर्तन करने वाली स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ड्रामा के ज्ञान को स्मृति में रखकर नथिंग न्यू की विधि से विजयी बनने वाली विजयीरत्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा बच्चों को कहते हैं - *सर्व शक्तियों का वर्सा इतना शक्तिशाली है जो कोई भी समस्या आपके आगे ठहर नहीं सकती है*। समस्या-मुक्त बन सकते हो। *सिर्फ सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो और समय पर कार्य में लगाओ*। इसके लिए अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखो। *जितनी बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन होगी उतना निर्णय शक्ति तीव्र होने के कारण जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता है वह कार्य में लगा सकेंगे*। क्योंकि समय के प्रमाण बापदादा हर एक बच्चे को विघ्न-मुक्त, समस्या-मुक्त, मेहनत के पुरुषार्थ-मुक्त देखने चाहते हैं। बनना तो सब को है ही लेकिन बहुतकाल का यह अभ्यास आवश्यक है।
➳ _ ➳ फालो करना तो सहज है ना! जब फालो ही करना है तो क्यों, क्या, कैसे...
यह समाप्त हो जाता है। और सबको अनुभव है कि व्यर्थ संकल्प के निमित्त यह क्यों, क्या, कैसे... ही आधार बनते हैं। फालो फादर में यह शब्द समाप्त हो जाता है। कैसे नही, ऐसे। बुद्धि फौरन जज करती है ऐसे चलो, ऐसे करो। तो बापदादा आज विशेष सभी बच्चों को चाहे पहले बारी आये हैं, चाहे पुराने हैं, यही इशारा देते हैं कि *अपने मन को स्वच्छ रखो। बहुतों के मन में अभी भी व्यर्थ और निगेटिव के दाग छोटे बड़े हैं। इसके कारण पुरुषार्थ की श्रेष्ठ स्पीड, तीव्रगति में रूकावट आती है।* बाप दादा सदा श्रीमत देते हैं कि *मन में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना और शुभ -कामना रखो - यह है स्वच्छ मन। अपकारी पर भी उपकार की वृत्ति रखना - यह है स्वच्छ मन।* स्वयं के प्रति वा अन्य के प्रति व्यर्थ संकल्प आना - यह स्वच्छ मन नहीं है। तो *स्वच्छ मन और क्लीन और क्लीयर बुद्धि।* जज करो, अपने आपको अटेन्शन से देखो, ऊपर-ऊपर से नहीं, ठीक है, ठीक है। नहीं, सोच के देखो - मन और बुद्धि स्पष्ट है, श्रेष्ठ है? तब डबल लाइट स्थिति बन सकती है। बाप समान स्थिति बनाने का यही सहज साधन है। और यह अभ्यास अन्त में नही, बहुत काल का आवश्यक है।
✺ *ड्रिल :- "समस्या मुक्त बनने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीन और क्लीयर रखना"*
➳ _ ➳ *मन बुद्धि के पंख लगाये मैं आत्म पंछी आहिस्ता आहिस्ता इस देह से अलग होने का अभ्यास करता हुआ*... देह से दूर स्थिर होकर मैं अपनी ही देह को साक्षी भाव से देख रहा हूँ... कुछ ही पल में इससे विदाई लेता हुआ मैं उड चला अनन्त की ओर... *मैं फरिश्ता चार धाम की यात्रा पर... बैठ गया हूँ शान्ति स्तम्भ पर... शिव बिन्दु आज मेरे सम्मुख अपने विराट रूप में*... मुझमें शक्तियों को भरते हुए... प्रकाश का घेरा मेरे चारों ओर... गहरा लाला प्रकाश और दूधिया रंग की आभा से सजा मैं फरिश्ता... *मुझसे, मेरे जैसे ही आठ फरिश्ते प्रकट होकर मेरे चारों ओर मुझे घेर कर खडे हो गये है... उनके चारों ओर प्रकाश से झिलमिलाती आठ दिव्य शक्तियाँ... एक एक फरिश्ते के भीतर समाती हुई... और भी शक्तिशाली रूप धारण कर ये फरिश्ते एक एक कर मुझ फरिश्ते में समातें जा रहे है*... अष्ट शक्तियों के वर्से से भरपूर होकर मैं फरिश्ता... बेहद की शक्तियों का प्रस्फुटन महसूस कर रहा हूँ स्वयं के भीतर से...
➳ _ ➳ उडता हुआ मैं फरिश्ता जा बैठा हूँ एक ऊँचे शिखर पर... सभी कुछ बहुत छोटा महसूस हो रहा है मेरी स्थिति के आगे... *विस्तार लिए फैले गगन के समान विस्तृत होता मेरा मन... और इसमे समाँ गयी है विश्व की हर आत्मा गगन की गोद में पलते तारों के समान... और हर आत्मा के प्रति शुभकामना और शुभभावना की किरणें भेजता हुआ मैं... व्यर्थ और नैगेटिव संकल्प टूटते तारों के समान मेरे मन रूपी आकाश से विदाई ले रहे है*...
➳ _ ➳ शिखर से बहता पावन झरना और झरने के निरन्तर बहाव से तलहटी में बनी झील... *मेरे मन रूपी झील की ही तरह पावनता से भरपूर है... झील की तलहटी व किनारों पर जमी समस्या रूपी शैवाल... निरन्तर बहते झरने के बहाव से पानी की धारा के साथ दूर और दूर होती हुई जा रही है*... निरन्तर बहता शिव प्यार का झरना... पावनता का झरना... ये शक्तियों और गुणों का झरना... और इस झरने के नीचे मगन रूप में मै फरिश्ता... *बुद्धि की लगन बस एक शिव पिता से... मेरे मन रूपी स्वच्छ पावन झील में उभरता शिव का प्रतिबिम्ब*.... जैसे ठहरे शान्त और स्वच्छ जल में उभरता चाँद का पूरा प्रतिबिम्ब... हर समस्या बहते पानी के साथ, बहती शैवाल के समान दूर हो रही है... समस्या से मुक्त होकर मैं अब समाधान स्वरूप बनती जा रही हूँ... *बुद्धि रूपी प्यालें में शिव स्नेह की मधुशाला*... समस्या ले रही विदाई... पग पग पर बस जीत का उजाला...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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