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❍ 12 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *व्यर्थ संकल्पों को दूर करने के लिए पुरुषार्थ की भिन्न भिन्न विधियां अपनाई ?*
➢➢ *"मैं कल्प पहले वाला बाबा का बच्चा हूँ, वारिस हूँ, अधिकारी हूँ" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *कोई भी आत्मा सामने आई, तो उसके प्रति आशीर्वाद के दो बोल बोले ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *संकल्पों की गति धैर्यवत रही ?*
➢➢ *बुधी के बैलेंस द्वारा 16 कला संपन्न स्वरुप बनने का पुरुषार्थ किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"संकल्प की गति धैर्यवत होने से लाभ"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... इस वरदानी संगम युग में संकल्प ही विशेष एनर्जी है... *शरीर नही खुबसूरत मणि आत्मा हो* इस संकल्प ने भाग्य को हीरे जैसा सजा दिया है... अब इस एनर्जी का तीव्रता से खपना यानि भाग्य की एनर्जी को नष्ट करना है... इसके महत्व को जान संकल्पों की गति को धैर्यवत कर चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितनी महान भाग्यशाली हूँ... *प्यारे बाबा आपने संकल्पों का जादू मुझे सिखाकर जादूगर सा बना दिया है*... मै आत्मा इस मीठे जादू से विश्व धरा को सुख से प्रेम से और आनन्द से भर रही हूँ.... मेरे अलौकिक जनम ने जीवन कितना श्रेष्ठ और प्यारा बना दिया है...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... संकल्प वाणी को व्यर्थ ही खर्च न करो... मुख द्वारा महावाक्य बोलने वाले और बुद्धि द्वारा *सिद्धि स्वरूप संकल्प करने वाले महावीर के नशे से भर चलो.*.. सदा आशीर्वाद और अमृतवाणी से सर्व आत्माओ को शीतलता देकर दुःख दूर करो... ऐसी पूज्य आत्माये बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपकी बेपनाह मुहोब्बत में अति मीठी प्यारी हो चली हूँ... *आपसे पाये प्यार को संकल्पों से पूरे विश्व में लुटा रही हूँ.*.. अपने संकल्पों का महत्व जानकर सिद्धि स्वरूप हो चली हूँ... सबके दुखो को दूर करने वाली शीतला और महावीर हो चली हूँ..
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... रूहानी गुलाब बनकर ईश्वरीय बगिया को महका रहे हो... कितना मीठा प्यारा भाग्य है सहज ही ईश्वर पिता का हाथ पकड़ दीवानो से इन मीठी राहो पर चल दिए... *सदा बेलेन्स रख, ब्लिसफुल रहकर, सर्व को ब्लेसिंग देना है.*.. ऐसे सदा आनन्द की बौछार करने वाले... आनंद सागर के बच्चे मा आनन्द सागर बन विश्व धरा पर खुशियो में इठलाओ
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सारे विश्व को खुशियो से सराबोर कर रही हूँ... मीठे बाबा आपसे पाये अमूल्य वरदानों की बरसात से हर दिल आँगन को भिगो रही हूँ... *सबको सुख शांति की तरंगो से तरंगित कर रही हूँ.*.. और मीठे बाबा की विश्व बगिया को यूँ खुशियो के फूलो से खिला रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा वंडरफुल रुहानी बाबा की वंडरफुल रुहानी संतान हूँ... मैं आत्मा *वंडरफुल रुहानी यात्रा* कर रहीं हूँ... अब ये यात्रा समाप्ति की ओर है... अब मुझ आत्मा को वापस घर जाना है... मुझ आत्मा को बाप समान बनकर औरों को आप समान बनाना है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा जन्मों-जन्मों के विकार... पुराने स्वभाव-संस्कार इस जन्म में साथ लेकर आई हूँ... जिससे मैं आत्मा कर्मबंधनों, कर्मभोगों के जाल में जकडते चली गई... अब अविनाशी सर्जन मुझ आत्मा को *मनमनाभव का इंजेक्शन* लगाते हैं... जिससे मैं आत्मा 21 जन्मों के लिए एवरहेल्थी बन रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा *एक की लगन में मगन* होकर बैठती हूँ... मैं आत्मा मन-बुद्धि को एकाग्र कर रही हूँ... मैं आत्मा प्रभु प्रेम में एकरस अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... परमात्मा की शक्तियों को अपने अंदर समाते जा रही हूँ... मुझ आत्मा के जन्मों-जन्मों के विकार, पुराने स्वभाव-संस्कार ख़त्म होते जा रहे हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा दृढ़ संकल्प करती हूँ कि मुझे *बाप समान बनना ही है*... मैं आत्मा प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए रोज नये-नये प्लैन बनाती हूँ... पुरुषार्थ भी करती हूँ... पर अलबेलापन नये-नये रूप में आकर मुझ आत्मा के पुरुषार्थ व प्लैन को कमजोर कर देता है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अलबेलेपन के लूज स्क्रू को टाइट कर रही हूँ... परमात्म शक्तियों की किरणों से अलबेलेपन के संस्कार जड़ सहित ख़तम होते जा रहे हैं... अब मैं आत्मा सदा अटेन्शन रखती हूँ कि अलबेलापन किसी भी रूप में न आये... अब मैं आत्मा दृढ़ प्रतिज्ञा द्वारा अलबेलेपन के लूज स्क्रू को टाइट करने वाली *तीव्र पुरुषार्थी बनने का पुरुषार्थ* कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - बेहद की वैराग्य वृत्ति ही समय की समीपता का फाउंडेशन"*
➳ _ ➳ मैं बेहद की वैराग्य वृत्ति वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ... मुझ आत्मा के हर संकल्प में पवित्रता समाई हुई है... मैं रहम दिल आत्मा हूँ... मैं आत्मा बेहद की वैराग्य वृति में रह...*विश्व की आत्माओं को रहम की दृष्टि देती जा रही हूँ*...जिसकी उन्हें बहुत ही आवश्यकता है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने को बाप के साथ... परमधाम में अनुभव कर रही हूँ... बाप के साथ कम्बाइंड अनुभव कर... *विश्व की आत्माओं को दया की दृष्टि देती जा रही हूँ*... चारो तरफ शुभ वायब्रेशन फैलाती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ विश्व की आत्मायें... जो पापों के बोझ के नीचे... खुद को अनुभव कर रही है... जिन आत्माओं में अपने पापों के बोझ को उठानी की शक्ति... समाप्त होती जा रही है... *मैं उन आत्माओं को शक्तियों का दान देती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ऐसी अनेक आत्माओं को पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्त कराती जा रही हूँ... *जो अपने ही बुरे किये कर्मों के बोझ के तले दबती जा रही हैं*... अपनी की गल्तियों की क्षमा मांग रही है... मैं आत्मा क्षमा का मास्टर बन... उन आत्माओं को क्षमा करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *अभी सभी आत्मायें अपने इष्ट देव-देवियों को पुकार रहे हैं*... मुझ आत्मा को अपने इष्ट रूप में स्थित हो... तड़पती हुई आत्माओं की पुकार सुन... उन्हें शांति का अनुभव... कराने की सेवा का अनुभव कर रही हूँ..
➳ _ ➳ मैं आत्मा सभी आत्माओं की इच्छा को पूर्ण कर... इच्छाओं से मुक्त करती जा रही हूँ... सभी आत्माएं वैराग्य वृत्ति का अनुभव करती जा रही हैं... *सभी आत्माएं साधनों के वश नही... बल्कि साधना में रहने वाली... अनुभव कर रहीं हैं*... सभी आत्माओं की बेहद की वैराग्य वृत्ति ही समय की समीपता का फॉउंडेशन है।
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *दृढ़ प्रतिज्ञा द्वारा अलबेलेपन के लूज़ स्क्रू को टाइट करने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ दृढ़ प्रतिज्ञा द्वारा अलबेलेपन के लूज़ स्क्रू को टाइट करने वाले तीव्र पुरुषार्थी होते हैं क्योंकि... *प्रतिज्ञा में लूज़ होने का मूल कारण अलबेलापन ही है।* अलबेलापन मनुष्य को आलसी बना देता है। आलसी मनुष्य कभी भी अपने कार्य समय पर नहीं कर सकते हैं। उनका अधिकांश समय सोचने में ही व्यर्थ चला जाता है।
❉ उन्हें अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा द्वारा अपने अलबेलेपन के स्क्रू को टाइट कर देना हैं, जिससे उनका पुरुषार्थ भी तीव्रता से आगे बढ़ने लगे। जैसे किसी भी प्रकार की व कितनी भी बड़ी मशीनरी ही क्यों न हो! *और उस मशीन का एक छोटा सा पुर्जा भी खराब हो गया हो* अर्थात! एक छोटा सा स्क्रू भी लूज़ हो गया हो, तो वह पुर्जा सारी मशीनरी को बेकार कर देता है।
❉ उसी प्रकार से कितना भी बड़ा तीव्र पुरुषार्थी या महारथी ही क्यों न हो, उनमें भी अगर *अलबेलेपन रूपी स्क्रू की टाइटनेस समाप्त हो जाये, तो महान से महान धुरन्धर पुरुषार्थी भी डाँवाडोल हो सकते हैं,* अर्थात! वे भी पतन की गर्त में गिर सकते हैं। अतः हमें अपनी शारीरिक व मानसिक दोनों मशीनरी को सदा ही चैक करते रहना है।
❉ वैसे हम अपने प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिये श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ प्लान बनाते हैं और उस प्लान को पूरा करने के लिये पुरुषार्थ भी करते हैं, लेकिन! *पुरुषार्थ को कमजोर बनाने वाला एक ही स्क्रू है अलबेलापन, उस स्क्रू को टाइट नहीं करते हैं।* तब हमारे सभी प्लान और पुरुषार्थ व्यर्थ हो जाते हैं।
❉ इसलिये! सर्व प्रथम हमें अपने इस अवगुण अलबेलेपन को बाहर निकाल देना है, क्योंकि... यही अलबेलापन नये नये रूपों में हमारे सामने आ जाता है। अतः इस लूज़ स्क्रू को सब से पहले टाइट करना है और फिर दृढ़ प्रतिज्ञा करनी है कि... *मुझे बाप समान बनना ही है। तब इसी एक दृढ़ संकल्प से तीव्रपुरुषार्थी बन जायेंगे।*
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *बेहद की वैराग्य वृत्ति ही समय की समीपता का फाउंडेशन है... क्यों और कैसे* ?
❉ जैसे मेहमान का किसी से लगाव झुकाव नही होता क्योंकि उसे पता होता है कि उसे हमेशा के लिए वहां नही रहना है इसलिए वो जिस घर में जाता हैं वहां रहते हुए भी उसका ममत्व उस घर में नही होता । इसी तरह *हम भी इस दुनिया में केवल मेहमान हैं । हमारा असली घर तो परमधाम हैं* जहां हमे वापिस लौटना है । जिनकी बुद्धि में सदा यह बात रहती है कि हम इस दुनिया में केवल मेहमान हैं उनके मन में बेहद की वैराग्य वृति सदैव इमर्ज रहती है जो समय की समीपता का मुख्य फाउंडेशन है ।
❉ इस बात को हम सभी अच्छी रीति जानते हैं कि सृष्टि के महापरिवर्तन का समय चल रहा है और समय की समीपता का आधार है बेहद की वैराग्यवृति जो तभी धारण होगी जब निर्बन्धन स्थिति होगी । इस *दुनिया में सबसे बड़ा बन्धन है देह और देह के सम्बन्धो का बन्धन* और इस बंधन से मुक्त तब हो सकेंगे जब सर्व सम्बन्धो का सुख केवल एक परमात्मा बाप से लेने के अनुभवी बनेंगे । इसलिए जितना बाप से सर्व सम्बन्ध जुटेंगे उतना दुनियावी सम्बन्धो से मन बुद्धि निकलती जायेगी जो बेहद की वैराग्य वृति का आधार बन जायेगी ।
❉ जैसे कमल का फूल कीचड़ में रहते हुए भी कीचड़ में नही फंसता बल्कि कीचड़ से ऊपर न्यारा और प्यारा रहता है और अपनी खुशबू से कीचड़ की दुर्गन्ध को भी सुगन्ध में बदल देता है । ठीक इसी तरह जब हम भी इस *दुनिया में रहते हुए इस दुनिया से उपराम रहेंगे तो देह और देह की दुनिया के कीचड़ में नही फंसेंगे* बल्कि देह, देह की दुनिया और देह के सम्बन्धो में रहते हुए भी उनसे न्यारे रहेंगे और बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर अपनी रूहानियत की खुश्बू हर तरफ फैलाते हुए समय को समीप ले आयेंगे ।
❉ जैसे ट्रेन या बस में यात्रा करने वाले हर यात्री का केवल यही लक्ष्य होता है कि उसकी मंजिल आने पर उसे इस ट्रेन से उतर जाना है । ठीक इसी तरह हमे भी यह बात सदा स्मृति में रखनी है कि हम आत्माएं भी इस सृष्टि रंग मंच पर एक यात्री के रूप में आई हैं और *हमे भी अपनी यात्रा पूरी कर वापिस अपनी मंजिल अर्थात परमधाम लौटना है* । और इस यात्रा पर हम सबको अकेले ही जाना है । इसलिए किसी के भी साथ की अपेक्षा नही रखनी बल्कि इन सबसे वैरागी बन अपनी मंजिल अर्थात समय को समीप लाना है ।
❉ बेहद के वैरागी अर्थात् किसी में भी लगाव नहीं, सदा एक बाप के प्यारे । यह प्यारापन ही न्यारा बनाता है । जो बाप के प्यारे नहीं बनते वे न्यारे भी नहीं बन सकते । क्योकि लगाव में आ जाते हैं । किन्तु *जो बाप के प्यारे बनते है वह सर्व आकर्षणों से परे अर्थात् न्यारे रहते है जिसको निर्लेप स्थिति कहते हैं* । निर्लेप का अर्थ ही है कोई भी हद के आकर्षण की लेप में आने वाले नहीं । और यही निर्लेप स्थिति अर्थात बेहद की वैराग्य वृति ही समय की समीपता अर्थात बाप की प्रत्यक्षता का आधार है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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