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❍ 20 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *दधिची ऋषि मिसल सेवा में हड्डियां दी ?*
➢➢ *कभी भी रोये या जोर से तो नहीं हँसे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *सवा और सेवा के बैलेंस द्वारा दुआएं ली और दुआएं दी ?*
➢➢ *गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाया ?*
➢➢ *स्वयं के लिए, साथियों के लिए, एनी आत्माओं के लिए याद का किला बनाया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"मेरा बाबा , वाह बाबा" - आज दिन भर दिल से यही निकलता रहा ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम्हे सदा सर्विस के ख्यालातों में रहना है, ज्ञानी तू आत्मा बनना है, समय व्यर्थ नही गंवाना है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में महकने और खिलने के खुबसूरत लम्हों में *सदा ज्ञान के सुरीले नाद से आत्माओ को मन्त्रमुग्ध करना है*... सबका जीवन खुशियो से खिल उठे, सदा इस सुंदर चिंतन में ही रहना है... ईश्वर पिता के साथ भरे इस मीठे समय को सदा यादो से ही संजोना है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... में आत्मा आपकी यादो में दीवानी सी... *ज्ञान रत्नों की बौछार सदा साथ लिए,* खुशियो के आसमाँ से, आत्माओ के दिल पर बरस रही हूँ... सबको मीठे बाबा का परिचय देकर हर पल पुण्यो की कमाई में जीजान से जुटी हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता के प्यार से लबालब, संगम का यह अनोखा अदभुत समय. संसार की व्यर्थ बातो में, भाग्य के हाथो से,यूँ रेत सा न फिसलाओ... *ज्ञानी तू आत्मा बनकर ज्ञान की झनकार* पूरे विश्व को सुनाओ... ईश्वर पिता के साथ विश्व सेवा कर 21 जनमो का महाभाग्य पाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये *अमूल्य रत्नों को पूरे विश्व में बिखेर कर सतयुगी बहार ला रही हूँ.*.. हर पल यादो में खोयी हुई खुशियो में चहक रही हूँ... और ज्ञानी आत्मा बनकर अपनी रूहानी रंगत से बापदादा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे कल्प का कीमती और वरदानी समय सम्मुख है... जिसे कन्दराओं में जाकर ढूंढ रहे थे, दर्शन मात्र को व्याकुल थे... *वो पिता दिलजान से न्यौछावर सा दिल के इतना करीब है.*.. जो चाहा भी न था वो भाग्य खिल उठा है... इस मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ, सबको ऐसा भाग्यशाली बनाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चा सुख पाकर 21 जनमो की खुशनसीब बन गयी हूँ... और *यह ख़ुशी हर घर के आँगन में उंडेल रही हूँ.*.. सारा विश्व खुशियो से भर जाये... हर दिल ईश्वरीय प्यार भरा मीठा और सच्चा सुख पाये... यह दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सफलतामूर्त हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सहज योगी हूँ... मैं आत्मा पूर्वज हूँ... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान *मास्टर ग्रेट-ग्रेट ग्रेन्ड फादर* हूँ... मैं आत्मा इस सृष्टि रूपी वृक्ष के जड़ में बैठकर तपस्या कर रही हूँ... मैं आत्मा वृक्ष के बीज से बुद्धि योग लगा रही हूँ... बीज से सारे गुण, शक्तियां मुझ आत्मा में प्रवेश कर रही हैं... वृक्ष की सारी नॉलेज मुझ आत्मा की बुद्धि में समा रही है... मैं आत्मा नॉलेजफुल बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा नॉलेजफुल बनकर सारे वृक्ष को शक्तियों का जल दे रही हूँ... मैं आत्मा सारे वृक्ष की टाल-टालियों व पत्तों को सकाश दे रही हूँ... शक्तियों द्वारा सबकी पालना कर रही हूँ... मैं आत्मा *ज्ञानी तू आत्मा बन शंख-ध्वनि* कर रही हूँ... हर एक को सच्ची रुहानी यात्रा सिखला रही हूँ... सर्व को एक बीज से कनेक्ट कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप से मिले ज्ञान-रत्नों का दान कर अनेकों का कल्याण कर रही हूँ... मैं आत्मा सबको *शुभ भावना और शुभ कामना की दुआएं* देते जा रही हूँ... और सर्व से स्वतः ही दुआएं प्राप्त करती जा रही हूँ... मैं आत्मा अनेक आत्माओं की ब्लेसिंग प्राप्त कर उन्नति कर रही हूँ... मैं आत्मा माता-पिता और परिवार की दुआओं से सदा आगे बढ़ते जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेवाओं के साथ-साथ स्व-उन्नति पर भी पूरा-पूरा अटेन्शन रखती हूँ... मैं आत्मा सदा स्व-उन्नति और सेवा का बेलेन्स रखती हूँ... मैं आत्मा बैलेन्स रख ब्लेसिंग प्राप्त करते जा रही हूँ... मैं आत्मा सिर्फ दुआएं लेते और सबको दुआएं देते सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ... अब मैं आत्मा स्व और सेवा के बेलेन्स द्वारा *दुआएं लेने और देने वाली सफलतामूर्त* बन गई हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - गुणमूर्त बनना और सर्व को गुणमूर्त बनाना ही महादान करना"*
➳ _ ➳ *हम भगवान की दृष्टि के पात्र बने है, साधारण बात नही है।* तो बाप समान सर्वगुण सम्पन्न, गुणमूर्त बनना और सर्व को गुणमूर्त बनाने की सेवा करनी है। स्वयं गुणवान बनने के लिए अटेंशन है तो स्वतः ही औरों को गुण-दान होता जायेगा। यही महादान है। अन्दर की भावना ही गुणवान बना देती है।
➳ _ ➳ *मैं बाप समान सुख स्वरूप... गुण स्वरूप आत्मा हूँ*... मैं बाप द्वारा दिये हर गुण का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा को अपने पुरुषार्थ में सफलता पाने की... सच्ची भावना से सेवा करने की धुन लगी हुई है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप द्वारा मिले गुणों पर अटेंशन रखती जा रही हूँ... *अंदर की भावना ही मुझ आत्मा को गुणवान बनाती जा रही है*... हर गुण का अनुभव करती जा रही हूँ... मैं आत्मा गुणमूर्त बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ गुणमूर्त आत्मा से... शक्तिशाली किरणें निकल कर विश्व की आत्माओं को... गुणों का सहयोग... गुणों का दान देती जा रही हैं... *दान देना ही कमाई करना है... दुआएं प्राप्त करना है*... मैं आत्मा ख़ुशी का खजाना अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को सर्वगुण सम्पन्न बनना है... इसलिए एक भी गुण की कमी न हो... बाबा की याद में...मैं आत्मा समाई हुई हूँ... तो सब गुण स्वतः ही आते जा रहें हैं... *बाबा ने मुझ आत्मा की झोली... गुणों से भर गुणमूर्त बना दिया है*...
➳ _ ➳ मुझ गुणमूर्त आत्मा द्वारा... मनसा शक्ति की वायब्रेशन चारों और फैलती जा रही है... मुझ आत्मा के कर्मों द्वारा... गुणों के सहयोग द्वारा अज्ञानी आत्माओं को भी... गुणमूर्त बनाने की सेवा हो रही है... *गुणों को दान करना ही सबसे बड़ा दान है*...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *स्व और सेवा के बैलेन्स द्वारा दुआयें लेने और देने वाले सदा सफलतामूर्त होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ स्व और सेवा के बैलेन्स द्वारा दुआयें लेने और देने वाले सदा सफलतामूर्त होते हैं क्योंकि... जब हम अपनी *सेवाओं में बहुत आगे बढ़ रहे होते हैं तब हमें अपनी स्वयं की उन्नति पर भी पूरा अटेन्शन* देना है। हमें अपनी सेवाओं और स्व की उन्नति के पुरुषार्थ में सदा ही बैलेन्स बना कर रखना आना चाहिये।
❉ क्योंकि हमारे लिये दोनों ही कार्य अति आवश्यक हैं। अतः हमें इन दोनों ही कार्यों में समुचित ताल-मेल बैठा कर चलना है। ताल-मेल बैठा कर चलने से सेवाओं और स्वयं की उन्नति, *दोनों ही बातों में स्वतः ही सफलता मिलती रहेगी* तथा साथ ही साथ हम दुआयें प्राप्ति के पात्र भी बन जायेंगे।
❉ क्योंकि जिनको ये बैलेन्स बना कर चलना आता है वे *सदा ही दुआयें लेते हैं और दुआयें देते भी हैं। तभी तो कहा है कि... बैलेंस की प्राप्ति ही ब्लेसिंग्स है।* जो इन दोनों में बैलेन्स बना कर रखते हैं उनको ब्लैसिंग नहीं मिले ऐसा कभी भी हो नहीं सकता है।
❉ तभी तो! हमारे देखने में अक्सर यह आता है कि... जितना हम अन्य आत्माओं से दुआ लेते हैं उतना ही हम आगे की ओर बढ़ते चले जाते हैं। इसीलिये! हमारी भारतीय संस्कृति में बड़ों को नमन करने की प्रथा है। जब हम अपने बड़ो को नमन करते हैं *तब उनके मुख से अनायास ही आशीर्वाद के रूप में दुआयें निकलती है।*
❉ इसी प्रकार से माता-पिता और परिवार की दुआओं जे द्वारा हम सदा ही आगे की ओर बढ़ते चले जाते हैं। अतः *यह दुआयें प्राप्त होना ही हमारी पालना होना है।* इसीलिये हमें सब से दुआयें लेते हुए चलना है और सर्व की दुआओं से स्वतः ही सहजता से सफलतामूर्त बन जायेंगे। साथ ही हमारे जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी हमें सहजता से सफलतायें प्राप्त होती रहेंगी।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *गुणमूर्त बनना और सर्व को गुणमूर्त बनाना - यही महादान है... क्यों और कैसे* ?
❉ हम ब्राह्मणों का मुख्य लक्ष्य सर्वगुण सम्पन्न बनना है और सर्वगुण हमारे अंदर तभी आयेंगे जब किसी का अवगुण हमारे चित पर नही होगा । इसलिए गुणमूर्त बन *जब दूसरों के अवगुण को ना देख गुणों को देखेंगे और गुणो का ही दान करेंगे तो स्वयं भी गुणवान बन जायेंगे* तथा औरों को भी गुणों का दान दे कर गुणमूर्त बना सकेंगे । गुणों का दान ही महादान है और जो गुणमूर्त बन सर्व को गुण मूर्त बनाते हैं वही महादानी हैं ।
❉ स्वयं के वास्तविक स्वरूप को जान जितना उस स्वरूप में स्थित रहने का अभ्यास करेंगे उतना औरों को भी उनके वास्तविक स्वरूप में देखने का अभ्यास पक्का होता जायेगा । यह अभ्यास ही गुणमूर्त बना देगा । *आत्मा के निजी गुण ज्ञान, प्रेम, आनन्द, शक्ति, शांति जब इमर्ज रहेंगे* तो अपने इस स्वरूप में टिक कर औरों को भी इन गुणों का दान दे कर उन्हें भी गुणमूर्त बना सकेंगे । गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाना ही महादानी बनना है ।
❉ जैसे मम्मा ने अपने ब्राह्मण जीवन में तीन बातों को पक्का करने का विशेष पुरुषार्थ किया कि मुझे गुणवान बनना है, गुण देखना है, गुण दान करना है । इन तीन बातों को पक्का कर, उन्हें धारणा में ला कर मम्मा नम्बर वन चली गई । तो हमारी चलन भी ऐसी हो जो औरों को प्रेरणा दे । *हमारे बोल चाल से अन्य आत्माओं को स्वत: ही गुण ग्राही बनने की प्रेरणा मिले* । यह भी एक प्रकार का गुप्त महादान है ।
❉ गुणों के साथ स्वभाव का सीधा कनेक्शन है । अगर हम किसी का अवगुण देख लेते हैं तो वह हमारे स्वभाव में प्रकट हो जाता है । क्योंकि उसके अवगुण को देख कर उसके प्रति हमारे मन में जो धारणा बनती है वह हमारे चेहरे के हाव - भाव से स्पष्ट हो जाती है । इसलिए *अपने स्वभाव को शीतल, शांत और मीठा बनाने के लिए आवश्यक है* कि हम किसी के अवगुण ना देखें बल्कि गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाने वाले महादानी बने ।
❉ जितना हम संगठित रूप में मिलकर हर एक कार्य को करते हैं उतना पावरफुल वायब्रेशन बनता है । यही पावरफुल वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन का आधार बनेगा । जितना हम सभी स्वयं को अंतर्मुखी बनायेंगे, *एक दूसरे के प्रति शुभ भावना रखेंगे उतना एक दूसरे के सहयोगी, साथी रहेंगे* और यह तभी होगा जब एक दो की कमी कमजोरियों को देखने के बजाए गुणमूर्त बन सर्व को गुणमूर्त बनाने वाले महादानी बन गुणों का दान करेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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