━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 11 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए बुधी को ज्ञान से भरपूर किया ?*

 

➢➢ *उल्टी बात सुनाने वालों के संग से बहुत दूर रहे ?*

 

➢➢ *निरंतर एक बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ किया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *हदों से न्यारे रह परमात्म प्यार का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *व्यक्त भाव और भावनाओ से परे रह अव्यक्त स्थिति का अनुभव किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

➳ _ ➳  *सेकण्ड में स्थापना का कार्य अर्थात सेकण्ड में दृष्टि दी और सृष्टि बन गई* - ऐसी स्पीड है? तो सदा स्थापना के निमित आत्माओं को यह स्मृति रखनी चाहिए कि *हमारी गति विनाशकारियों से तेज हो* क्योंकि पुरानी दुनिया के विनाश का कनेक्शन नई दुनिया की स्थापना के साथ-साथ है।

पहले स्थापना होनी है या विनाश? स्थापना की गति पहले तेज होनी चाहिए ना! स्थापना की गति तेज करने का विशेष आधार है - सदा अपने को पॉवरफुल स्टेज पर रखो। *नॉलेजफुल के साथ-साथ पॉवरफुल दोनों कम्बा हो। तब स्थापना का कार्य तीव्र गति से होगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  निरन्तर एक बाप की याद में रह, बेहद का सतोप्रधान पुरुषार्थ करना"*

 

_ ➳  जीवन अपनी गति से चलते चला ही जा रहा था... कि अचानक जनमो के पुण्यो का फल सामने आ गया... मन्दिरो में प्रतिमा में खुदा छुपा था... *वह मेरा मीठा बाबा बनकर सामने आ गया..*. और जीवन सच्चे प्यार का पर्याय बन गया... ईश्वरीय प्रेम को पाकर मै आत्मा... दुखो की तपिश की भूल निर्मल हो गयी... मीठे बाबा के प्यार की मीठी अनुभूतियों में डूबी हुई मै आत्मा... बाबा की यादो में खोई सी, ठिठक जाती हूँ... और देखती हूँ... सम्मुख मेरा बाबा बाहें फैलाये मुस्करा रहा है...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सुखो का अधिकारी बनाते हुए कहते है:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने समय साँस और संकल्पों को निरन्तर मीठे बाबा की मीठी यादो में पिरो दो..*. यह यादे ही असीम सुखो का खजाना दिलायेगी... मीठे बाबा की यादो में सतोप्रधान बन बाबा संग घर चलने की तैयारी करो... सिर्फ और सिर्फ मीठे बाबा को हर पल याद करो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *अब जो मीठे भाग्य ने आपका हाथ और साथ मुझ आत्मा को दिलाया है.*.. मै आत्मा हर घड़ी हर पल आपकी ही यादो में खोयी हुई हूँ... देह और देहधारियों के ख्यालो से निकल कर अपने मीठे बाबा की मधुर यादो में मगन हूँ..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अनन्त शक्तियो से भरते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में निरन्तर खो जाओ... इन यादो में गहरे डूबकर, स्वयं को असीम सुखो से भरी खुबसूरत दुनिया का मालिक बनाओ... और *यादो में सतोप्रधान बनकर, विश्व धरा पर देवताई ताजोतख्त को पाओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा से अमूल्य ज्ञान खजाने को पाकर, खुशियो से भरपूर होकर कहती हूँ :- " मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर कितनी खुशनसीब हो गयी हूँ.. श्रीमत को पाकर ज्ञानधन से भरपूर हो, मालामाल हो गयी हूँ... *आपके खुबसूरत साथ को पाकर सत्य से निखर गयी हूँ.*.."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेहद के सतोप्रधान पुरुषार्थ के लिए उमंगो से सजाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह *अंतिम जन्म में देह के भान और परमत से निकल कर, आत्मिक सुख की अनुभूतियों में खो जाओ..*. हर साँस ईश्वरीय यादो में लगाओ... यह यादे ही समर्थ बना साथ निभाएगी... देह धारियों के याद खाली कर ठग जायेंगी... इसलिए हर पल यादो को गहरा करो..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने शानदार भाग्य पर मुस्कराते हुए मीठे बाबा से कहती हूँ :- "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मेरे हाथो में अपना हाथ देकर, *आपने मुझे कितना असाधारण बना दिया है... ईश्वरीय खूबसूरती से सजाकर, मुझे पूरे विश्व में अनोखा बना दिया है.*.. मै आत्मा रग रग से आपकी यादो में डूबी हुई दिल से शुक्रिया कर रही हूँ..."मीठे बाबा को अपने प्यार की कहानी सुनाकर, मै आत्मा... साकारी तन में लौट आयी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर अपना श्रृंगार करना*"

 

 _ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार कर, मुझे सजा सँवार कर अपने साथ ले जाने के लिए मेरे शिव पिया आने वाले हैं। उनके इंतजार में मैं आत्मा इस देह रूपी कुटिया में भृकुटि रूपी दरवाजे पर पलके बिछाये खड़ी हूँ। *मेरे प्रेम की डोर से बंधे मेरे शिव पिया बिना कोई विलम्ब किए अपना धाम छोड़कर, अपने रथ पर विराजमान हो कर मेरे पास आ रहें हैं। हवाओं में फैली रूहानियत की खुशबू उनके आने का स्पष्ट संकेत दे रही है*। मुझ आत्मा पर पड़ रही उनके प्रेम की शीतल फुहारें मुझे उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। फिजाओं में एक दिव्य अलौकिक रूहानी मस्ती छा गई है जिसमे मैं आत्मा डूबती जा रही हूं।

 

 _ ➳  अपने शिव पिया को मैं अब अपने बिल्कुल समीप देख रही हूं। अपनी किरणों रूपी बाहों को फैला कर वो मुझे अपने साथ चलने का इशारा दे रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों को थामे अब मैं आत्मा सजनी उनके साथ चली जा रही हूं। *हर बन्धन से अब मैं मुक्त हो चुकी हूं। अपने शिव साजन का हाथ थामे मैं आत्मा सजनी इस दुख देने वाली दुनिया को छोड़ कर अपने शिव पिया के साथ उनके घर जा रही हूं*। पांच तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार करते हुए, अपने शिव पिया के साथ मैं आत्मा पहुंच गई सूक्ष्म लोक में जहां मेरे शिव पिया मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से सोलह श्रृंगार कर मुझे अपनी निराकारी दुनिया मे ले जायेंगे।

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूं अपने शिव पिया को उनके लाइट माइट स्वरूप में। उनका यह स्वरूप बहुत ही आकर्षक, लुभावना और मन को मोहने वाला है। *अब मैं आत्मा भी अपनी फ़रिशता ड्रेस धारण कर लेती हूं और अविनाशी ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए अपने शिव पिया के सामने पहुंच जाती हूँ*। मुझे अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से वो मुझे निहार रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं।

 

 _ ➳  मन ही मन मैं विचार कर रही हूं कि कितना लंबा समय मैं अपने अविनाशी साजन से अलग रही। उनसे अलग रहने के कारण मैं तो श्रृंगार करना ही भूल गई थी। अविनाशी खजानों से वंचित हो गई थी। किंतु अब *बहुत काल के बाद मेरे शिव साजन मेरे सामने है और बहुत काल के बाद यह सुंदर मिलन हुआ है तो इस मिलन से अब मुझे सेकेंड भी वंचित नहीं रहना*। यह विचार मन मे आते ही अपने शिव पिया के प्रति प्यार और भी गहरा हो उठता है और मैं आत्मा सजनी उनके और समीप पहुंच जाती हूँ।

 

 _ ➳  मेरे शिव पिया अब स्वयं ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर रहें हैं। मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर सर्व ख़ज़ानों से मेरी झोली भर रहें है। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके मेरे शिव पिया ने मुझे कितना सम्पत्तिवान बना दिया है*। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर मेरे शिव पिया खुशी से फूले नही समा रहे। अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने इस रूप को मैं मन रूपी दर्पण में देख कर मन ही मन अपने भाग्य पर गर्व कर रही हूं जो ऐसा अनुपम श्रृंगार करने वाले अविनाशी साजन मुझे मिले। *मन ही मन अपने शिव पिया से मैं प्रोमिस करती हूं कि इन अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी सजाई रहूँगी*।

 

 _ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से सज - धज कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ कर अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो गई हूं। *अपने शिव पिया से मिले सर्व ख़ज़ानों से अब मैं स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*। हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, अपना श्रृंगार करके मैं आत्मा वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजाने वाले उनके अविनाशी प्रीतम से मिलवाने के रूहानी धन्धे में लग गई हूं।

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा हदों से न्यारी रह परमात्म प्यार का अनुभव करती हूं।"*

 

 _ ➳  इस दुख की दुनिया से छूट अब मैं आत्मा बाबा और ब्राम्हणों की संगत में रहने लगी हूं... रूहानीयत की खुशबू फैलाती रूहे गुलाब बन गई हूं... जैसे गुलाब का पुष्प काटों के बीच में रहते भी न्यारा और खुशबूदार रहता है... काटों के कारण बिगड़ नहीं जाता... ऐसे ही *मैं रूहे गुलाब भी सर्व हदों से वा देह से न्यारी हूं...* कभी भी किसी के प्रभाव में नहीं आती हूँ... *हद के कलियुगी विकारों रूपी संस्कारों के वशीभूत न होकर मैं आत्मा कमल फूल समान न्यारी... प्यारी... पवित्र बन गईं हूँ...* मैं सदा रूहानी खुशबू से संपन्न रहती हूं... एेसी *खुशबूदार बन मैं आत्मा बाप की वा ब्राम्हण परिवार की प्यारी बन गई हूं...* परमात्म प्यार अख़ुट है अटल है... इतना है जो सभी को प्राप्त हो सकता है... *न्यारी हो मैं आत्मा परमात्म प्रेम का अनुभव करती हूं...*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- व्यक्त भाव और भावनाओं को परे रख अव्यक्त स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि को एकाग्र कर... भृकुटि के बीचों बीच स्थित चमकते हुए सितारे को देखती हूँ... मैं आत्मा शरीर के भान से परे... *आत्मिक स्थिति में स्थित होती जा रही हूँ*... मैं आत्मा आत्मिक स्वरूप में टिक कर...अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव करती जा रही हूँ... *देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु दिखाई नही दे रही है*... आत्मिक स्थिति का भान मुझ आत्मा के पुराने संस्कारों को समाप्त करता जा रहा है... *दृष्टि पवित्र होती जा रही है*... किसी से बात करते भी... शरीर को न देख मस्तक के बीच मणि को देखती जा रही हूं... सभी व्यक्त भाव से मैं आत्मा ऊपर उठती जा रही हूँ... भावनाओं से भी परे... *जीरो स्थिति में स्थित होती जा रही हूँ*... देह भान से दूर... परमात्मा से कनेक्शन जोड़... औरों को भी शरीर के भान से अलग बनाने की सर्विस करती जा रही हूँ...

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *बापदादा तो सबकी दिल की बातें सुनते भी हैंदेखते भी हैं। कोई कितना भी छिपाने की कोशिश करे* सिर्फ बापदादा कहाँ-कहाँ लोक संग्रह के अर्थ खुला इशारा नहीं देतेबाकी जानते सब हैं, देखते सब हैं। कोई कितना भी कहे कि नहींमैं तो कभी नहीं करता, बापदादा के पास रजिस्टर हैकितने बार कियाक्या-क्या किया,किस समय कियाकितनों से किया - यह सब रजिस्टर है। सिर्फ कहाँ-कहाँ चुप रहना पड़ता है। तो दूसरी बात सुनाई-परचिन्तन।

➳ _ ➳  तीसरी बात है परदर्शन। दूसरे को देखने में मैजारिटी बहुत होशियार हैं। परदर्शन जो देखेंगे तो देखने के बाद वह बात कहाँ जायेगीबुद्धि में ही तो जायेगी। और *जो दूसरे को देखने में समय लगायेगा उसको अपने को देखने का समय कहाँ मिलेगा?* बातें तो बहुत होती हैं नाऔर जो बातें होती हैं वो देखने में भी आती हैंसुनने में भी आती हैंजितना बड़ा संगठन उतनी बड़ी बातें होती हैं।

➳ _ ➳  और *ये बातें ही तो पेपर हैं। जितनी बड़ी पढ़ाई उतने बड़े पेपर भी होते हैं।* यह वायुमण्डल बनना - *यह सबके लिए पेपर भी है कि परमत या परदर्शन या परचिन्तन में कहाँ तक अपने को सेफ रखते हैं?* दो बातें अलग हैं। एक है जिम्मेवारी, जिसके कारण सुनना भी पड़ता हैदेखना भी पड़ता है। तो उसमें कल्याण की भावना से सुनना और देखना। जिम्मेवारी हैकल्याण की भावना हैवो ठीक है। लेकिन *अपनी अवस्था को हलचल में लाकर देखनासुनना या सोचना - यह रांग है। अगर आप अपने को जिम्मेवार समझते हो तो जिम्मेवारी के पहले अपनी ब्रेक को पावरफुल बनाओ।* जैसे पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले से ही सूचना देते हैं कि अपनी ब्रेक को ठीक चेक करो। तो जिम्मेवारी भी एक ऊंची स्थिति हैजिम्मेवारी भले उठाओ लेकिन पहले यह चेक करो कि सेकण्ड में बिन्दी लगती है? कि लगाते हो बिन्दी और लग जाता है क्वेश्चनमार्क? वो रांग है। उसमें समय और इनर्जी वेस्ट जायेगी। इसलिए पहले अपना ब्रेक पावरफुल करो। चलो - देखासुनाजहाँ तक हो सका कल्याण किया और फुलस्टाप। अगर ऐसी स्थिति है तो जिम्मेवारी लोनहीं तो देखते नहीं देखोसुनते नहीं सुनो, स्वचिन्तन में रहो। फायदा इसमें है।

➳ _ ➳  *परमतपरचिन्तन और परदर्शन इन तीन बातों से मुक्त बनो और एक बात धारण करोवो एक बात है पर-उपकारी बनो।* तीन प्रकार की पर को खत्म करो और एक पर - पर-उपकारी बनो।

✺   *ड्रिल :-  "परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह पर-उपकारी बनना"*

➳ _ ➳  देह रूपी कश्ती की खेवनहार, मैं आत्मा, मन बुद्वि रूपी पतवार से संसार सागर की लहरों पर रूहानी मस्ती में तैरती जा रही हूँ... दृश्य चित्र बनाकर देखे स्वयं को रूहानी मल्लाह के रूप में) बेहद खूबसूरत है मेरी इस यात्रा का हर पडाव... पुरानी दुनिया के किनारों पर बंधे लंगर पूरी तरह खोल दिये है मैंने... मेरी कश्ती चल पडी है किनारों की ओर... साथ- साथ है मेरे शिव बाबा ज्योति रूप में मेरा मार्ग दर्शन करते हुए... *लहरों के बीच में बनी श्रीमत की सुनहरी-सी पगडंडियाँ, जिन पर मुझ आत्मा की कश्ती हौले- हौले अपने मुकाम की ओर बढती ही जा रही है निरन्तर एक लय में...* श्रीमत की सुनहरी पगडंडियों को रोशनी से नहलाते शिव सूर्य ऊपर आकाश में मुस्कुरा रहे हैं... आहिस्ता-आहिस्ता झिलमिलाते प्रकाश में मैं आत्मा हल्की होकर ऊपर की ओर उडती जा रही हूँ... शिव बाबा संग उडती हुई मैं आत्मा बिन्दु रूप में परम धाम में, शिवसागर के प्रकाश में नहाती हुई... और कुछ ही पलों में शिवसागर में समाँ गयी हूँ लवलीन अवस्था में...

➳ _ ➳  फरिश्ता रूप में मैं अब सूक्ष्म लोक में, स्वयं को देख रही हूँ बापदादा के ठीक सामने... *घुटनों के बल बैठी मैं आत्मा बापदादा से स्वराज्यधिकारी का तिलक ले रही हूँ,* मेरे सिर पर हाथ रखते हुए *बाबा मुझे परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह उपकारी बनने का वरदान दे रहे है...* गहराई से महसूस कर रही हूँ मैं उस वरदान की शक्ति को... अब बापदादा मेरा हाथ पकड मेरे संग चल दिए है, कुछ गहरी अनुभूतियों के लिए... सागर में एक कश्ती पर सवार मैं और बापदादा... बापदादा मुझे पार जाने के लिए मार्गदर्शन कर रहें है, नीले साफ निर्मल आकाश में जगमगाते चाँद की बरसती चाँदनी में नहाते हुए हम दोनों इस सुहाने सफर पर मगन अवस्था में बढे जा रहे हैं... आसपास दूसरी कश्तियाँ मगर मेरा ध्यान पूरी तरह से बापदादा की ओर... कुछ कश्तियाँ मुझसे आगे और कुछ पीछे दायें और बायें चल रही है...

➳ _ ➳  सहसा आकाश में बादलों के एक समूह ने चाँद को पूरी तरह से ढक लिया है... अंधेरा होते देख मैंने कुछ घबराकर कश्ती की रफ्तार बढा दी...  *अब मैं आगे वाली कश्ती के पीछे चल पडा हूँ... मेरा ध्यान कुछ पल के लिए उस कश्ती के खेवनहार की तरफ जो बडी कुशलता से आगे बढता जा रहा है...* मैं सोच रहा हूँ उसकी कुशलता के बारे मैं... मैं देख रहा हूँ उसके नाव चलाने के तरीके को... पल भर के लिए मैं भूल ही गया कि बापदादा भी मेरी कश्ती में सवार है... *अचानक सागर में तूफानी लहरें और मेरे हाथ से पतवार गिर गयी है... मेरी निगाह बापदादा को ढूँढ रही है मगर वो भी अब वहाँ नजर नही आ रहे...  तूफानी लहरों के बीच मैं अकेला, जूझ रहा हूँ उन लहरों के बीच में...* चिल्ला चिल्लाकर पुकार रहा हूँ बापदादा को और *अपनी गलतियों का पश्चाताप कर रहा हूँ... बापदादा को भूलकर परमत, परचिन्तन और परदर्शन का परिणाम आज मेरी आँखों के सामने है...*

➳ _ ➳  अचानक आकाश में छाये बादल हट रहे है, *चाँद फिर से अपनी चाँदनी का तोहफा लिए खडा मुस्कुरा रहा है, शान्त होती समुन्द्र की लहरें और हाथ में पतवार लिए मेरे सामने खडे मुस्कुरा रहे हैं बापदादा*... और अब पल भर में मैं समझ गया हूँ सारा दृश्य... *परमत परदर्शन और परचिन्तन का पेपर था मेरे लिए...* मैं कितने अंको से पास हुआ ये तो नही जानता मगर *गहराई से अनुभव कर लिया है परमत परचिन्तन और परदर्शन का परिणाम*... बापदादा की ओर कृतज्ञता पूर्ण आँखों से देखते हुए मैं अनुभव कर रहा हूँ... *सीख भी दी और समझ भी, अनुभव कराये और दिये वरदान भी, वाह मेरे सतगुरू!  कश्ती तेरे हाथों में है और है, अब पतवार भी...* अब मैं आत्मा पूरी तरह से अपनी कश्ती और पतवार बापदादा के हाथों में सौपकर निश्चिन्त होकर बस मन्मनाभव होकर बढता जा रहा हूँ किनारों की ओर... *आगे पीछे दायें बायें की सभी कश्तियाँ सब मेरे पीछे है... इन सबके प्रति भी उपकार की गहरी भावना मन में लिए मैं बढता जा रहा हूँ मेरे सतगुरू की महिमा करता और कराता हुआ*... इस भव सागर का किनारा कुछ ही दूर है... और दूसरी तरफ है मेरी वो सतयुगी राजधानी...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━