━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 30 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *सेवा करते मेरेपन से न्यारे होकर रहे ?*

 

➢➢ *सेवा में क्वान्टिटी के साथ साथ क्वालिटी पर भी अटेंशन दिया ?*

 

➢➢ *आत्माओं को अनुभवी मूर्त बनाया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *समाने की शक्ति और समेटने की शक्ति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सर्व प्रवृत्तियों के बन्धनों से विदाई ले समाप्ति समारोह मनाया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ *सेकंड में विस्तार को सार में समाने का अनुभव किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

➳ _ ➳  अपने आप से एवररेडी हो! *समय को छोडो, समय नहीं गिनती करो।* अभी यह होना है, यह होना है - वह समय जाने आप जाने। सेवा जाने बाप जाने। स्व की सेवा से सन्तुष्ट हो? *विश्व सेवा को किनारे रखो, स्व को देखो।* स्व की स्थिति में, स्व के स्वतन्त्र राज्य में, स्वयं से सन्तुष्ट हो? स्व की राजधानी ठीक चला सकते हो? यह सभी कर्मचारी, मंत्री, महामंत्री सभी आपके अधिकार में हैं? कहाँ अधीनता तो नहीं है? कभी आपके ही मंत्री, महामंत्री धोखा तो नहीं देते? कहाँ अन्दर ही अन्दर गुप्त में अपने ही कर्मचारी माया के साथी तो नहीं बन जाते हैं? स्व के राज्य में आप राजाओं की रूलिंग पॉवर, कन्ट्रलिंग पॉवर यथार्थ रूप से कार्य कर रही है? ऐसे तो नहीं कि ऑर्डर करो शुभ संकल्प में चलना है और चले व्यर्थ संकल्प। *ऑर्डर करो, सहनशीलता के गुण को और आवे हलचल का अवगुण।* सभी शक्तियाँ, सभी गुण, हे स्व राजे, आपके ऑर्डर में हैं? यही तो आप के राज्य के साथी है। तो सभी ऑर्डर में हैं? *जैसे राजे लोग ऑर्डर करते और सभी सेकण्ड में जी हजूर कर सलाम करते हैं, ऐसे कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर हैं?* इसमें एवररेडी हो? स्व की कमजोरी, स्व का बन्धन धोखा तो नहीं देगा?

 

✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  विस्तार को बिंदी में समाना"*

 

➳ _ ➳  आज मुझ आत्मा को मीठे बाबा की यादो ने इस कदर घेरा... कि मै आत्मा, पलक झपकते डायमण्ड हॉल में पहुंच जाती हूँ... और दिल पुकारता है *मीठे बाबा जल्दी आओ*... मन की आँखों से देखती हूँ दादी गुलजार सम्मुख विराजित है... और मीठे बापदादा कब से आकर मुझे दृष्टि से निहाल कर रहे है... पता ही न चला जेसे... अपने प्रियतम बाबा को अपनी यादो के आँचल में...यूँ बन्धा देखकर... मै आत्मा अपने महान भाग्य का दिल शुक्रिया कर रही हूँ... अपने मनमीत को सामने पाकर मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ...

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को पावनता से सजाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने मीठे परमधाम में जाने के लिए सारे विस्तार को बिन्दु में समाओ... *सर्वप्रव्रतियों से न्यारे और बाप के प्यारे बनकर डबल लाइट फ़रिश्ता हो उड़ जाओ.*.. समेटने की शक्ति को कार्य में लगाकर बीज में सब समा दो... लगाव के सारे धागों को तोड़ उड़ता पंछी बन खुशियो के आसमान में उड़ जाओ..."

 

➳ _ ➳  में आत्मा मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को दिल में उतारते हुए कहती हूँ :- "मेरे मीठे दुलारे बाबा... *आपके प्यार भरे साथ और अमूल्य रत्नों ने जीवन को सार गर्भित बना दिया है.*.. जीवन का हर क्षण कीमती और सार्थक हो गया है... मै आत्मा हर विस्तार से परे होकर सार को पा रही हूँ... बिन्दु बन बिन्दु बाबा की याद में मुस्करा रही हूँ..."

 

❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ भरे हाथ देते हुए कहते है :- " संगमयुग में हीरो पार्ट बजाने वाली महान भाग्यवान आत्माये हो... कभी भी सेवाओ में अपने न्यारेपन को नही छोड़ना... लगाव की चमकीली रस्सियों से परे रहकर, हर आत्मा को प्रत्यक्षफल की अनुभूति कराओ... *स्वराज्यधिकारी सो विश्वराज्यधिकारो ऐसी वारिस क्वालिटी को बढ़ाओ.*.."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे पिता की दौलत का वारिस बनते हुए कहती हूँ :- "मीठे लाडले बाबा मेरे... *आपने मुझे हर व्यर्थ से मुक्त कराकर कितना प्यारा और समर्थ बना दिया है.*.. देह के विकारो में फंस कर... कालिमा से घिर गयी थी... आज आपकी यादो में अपना वही आत्मिक तेज... और वही ओज पाकर पुनः तेजस्वी हो रही हूँ...

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों की दौलत से भरते हुए बोले :- " विशेष अनुभव की खान बन, अनुभवी मूर्त बनाने का महादान करो... हर आत्मा को रूहे गुलाब बनाने की सेवा करो... सर्व शक्तियो को सदा कार्य में लगाकर स्वयं को उड़ती कला में उड़ाओ... *सी फादर फॉलो फादर कर सेवाओ में सफलतामूर्त बनकर मुस्कराओ..*. और सदा का श्रेष्ठ भाग्य बनाओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के अमूल्य रत्नों को बुद्धि कलश में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जिन सच्ची खुशियो से मुझ आत्मा का दामन सजाया है *वही खुबसूरत बहार, मै आत्मा, सबके आँगन में खिला रही हूँ..*. खुबसूरत रूहानी गुलाब बनाकर सबको गुणो की खुशबु से महका रही हूँ और मीठे बाबा आपको पेश कर रही हूँ..." मीठे बाबा से यूँ मीठी मीठी बाते करके मै आत्मा, धरती पर लौट आयी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सेकंड में विस्तार को सार में समाने का अनुभव करना*"

➳ _ ➳  अपने प्यारे परमपिता परमात्मा से साकार मिलन मनाने का सुख पाने की इच्छा से मैं मधुबन के डायमण्ड हॉल में पहुंच कर वहां के खूबसूरत नज़ारे का आनन्द ले रही हूँ। *मैं देख रही हूँ वहां उपस्थित उन हजारों ब्राह्मण आत्माओं को जो परमात्मा से मिलने के लिए दूर दूर से आई हुई है*। परमात्म मिलन की मस्ती में डूबी हुई सभी आत्मायें जैसे मन की डांस कर रहीं हैं। मन ही मन खुशी में झूम रहीं हैं, गा रहीं हैं कि आज हमारे बाबा आने वाले हैं। रूहानियत से सभी के चेहरे चमक रहें हैं। *सभी के मुख मण्डल पर एक दिव्य आभा छाई हुई है। जिसे देख कर स्पष्ट अनुभव हो रहा है कि इन्हें वो मिला है जो दुनिया में किसी को नही मिला*। सभी के चेहरे की सन्तुष्टता जैसे बयां कर रही है कि "जो पाना था वो पा लिया, अब और कुछ पाने की इच्छा नही रही"

➳ _ ➳  भगवान के सम्मुख आने की घड़ियां नजदीक आ रही हैं। इसलिए सभी योगयुक्त हो कर अपने प्यारे प्रभु की याद में बैठे बार बार अपने मीठे बाबा का आह्वान कर रहें हैं। सामने स्टेज पर बाबा के निर्धारित रथ गुलजार दादी जी का आगमन हो चुका है। *दादी जी को देख कर आभास होता है जैसे कोई महान तपस्विनी आत्मा सामने बैठी है*। कुछ सेकेंड में ही बापदादा की पधरामनी हो जाती है। पूरे डायमण्ड हाल में एक गहन सन्नाटा छा जाता है और देखते ही देखते बापदादा के शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे डायमण्ड हॉल में फैलने लगते हैं। *बाबा की दृष्टि एक - एक करके डायमण्ड हाल में बैठी सभी आत्माओं पर पड़ने लगती हैं*। सभी बाबा से दृष्टि लेते हुए स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहें हैं। बाबा बीच बीच मे हाथ उठा कर सभी की झोली वरदानो से भर रहें हैं।

➳ _ ➳  अपनी मीठी दृष्टि से वहां उपस्थित अपने सभी ब्राह्मण बच्चो को तृप्त करके अब बाबा सभी बच्चों को ओमशान्ति कह कर मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। *आज बाप दादा विशेष रूप से "सेकेंड में विस्तार को सार में समाने का अनुभव" बढ़ाने का इशारा दे रहें हैं*। बाबा पूछ रहे है कि समय प्रमाण अगर सेकण्ड में साथ चलने का डायरेक्शन मिले तो सेकण्ड में विस्तार को सार में समा सकेंगे? शरीर की प्रवृत्तिलौकिक प्रवृत्तिसेवा की प्रवृत्तिअपने रहे हुए कमज़ोरी के संकल्प की और संस्कार प्रवृत्तिसर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते होवा कोई प्रवृत्ति अपने तरफ आकर्षित करेगी?

➳ _ ➳  डायरेक्शन मिले कि अब चलना है तो क्या डबल लाइट के उड़न आसन पर स्थित हो उड़ जायेंगे? *यह कह कर बाबा अब सभी बच्चों को ड्रिल करवा रहें हैं कि अभी सेकण्ड में हर प्रकार के विस्तार को सार में समाकर बिंदु रूप में स्थित हो जाओ*। बाबा का निर्देश मिलते ही सभी बातों से मन बुद्धि को समेट कर अपने मन बुद्धि को भृकुटि पर एकाग्र कर मैं अपने ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अब मैं देख रही हूं स्वयं को अपने वास्तविक निराकारी स्वरूप में। *इस स्वरूप में टिकते ही मुझे मेरे मौलिक गुणों और शक्तियों का सहज अनुभव हो रहा है और गहन शांत चित्त स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ*।

➳ _ ➳  इस शांति चित्त स्थिति में स्थित होते ही मुझे अंतर्मुखता का विचित्र अनुभव हो रहा है। मैं स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हैं जहां रुहों का निवास है। हर तरफ रूहें ही रूहें दिखाई दे रही हैं। *देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु यहां दिखाई नहीं दे रही। रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से*। सम्बन्ध भी आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा। मैं आत्मा स्वयं को साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूं, जैसे कि देह से संकल्प मात्र भी अटैच नहीं हूं। बेहद न्यारी और प्यारी अवस्था है यह।

➳ _ ➳  इसी न्यारी और प्यारी अवस्था में स्थित होकर अब मैं जा रही हूं अपने निजधाम अपने परमप्रिय परमपिता शिव बाबा के पास और उनके पास पहुंच कर स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर करके वापिस लौट रही हूं। *डायमण्ड हॉल में आ कर अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो कर मैं फिर से बापदादा के मधुर महावाक्यों को सुन रही हूं* और उनके साथ साकार मधुर मिलन का आनन्द ले रही हूं।

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सदा विजय की स्मृति से हर्षित रहती हूँ और सर्व को ख़ुशी दिलाती हूँ।*

 

 _ ➳  मैं विजयी रत्न आत्मा... बापदादा के हाथों विजयीभव का वरदानी तिलक लगाकर अपने सौभाग्य की रेखा को बढ़ता देख रही हूँ... *सतयुगी सौभाग्य की प्रालब्ध की स्मृति में सदा हर्षित रहने वाली मैं आत्मा... ख़ुशी के खजानों को बांटती जा रही हूँ...* मुझ आत्मा के हर्षित चेहरे से ख़ुशी रूपी सेवा स्वतः होती रहती हैं... ऐतिहासिक संगमयुग में मैं आत्मा बापदादा के गुण, शक्तियों रूपी किरणों से अपने आपको खुशनसीब बनाती जा रही हूँ... और मुझ आत्मा का आकर्षण मूर्त हर्षित चेहरे द्वारा बेहद की सेवा का अतुलनीय पार्ट बज रहा हैं... *कल्प की विजयी रत्न मैं आत्मा... विजय का तिलक सदा मस्तक पर चमकता रख...* संगमयुग के अमूल्य क्षणों को यथार्थ रीति परिपूर्ण कर रही हूँ...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अव्यक्त स्थिति की लाइट को चारों ओर फैला, लाइट हाउस बनने का अनुभव करना"*

➳ _ ➳  मैं बापदादा की छत्रछाया में पलने वाली विशेष आत्मा हूँ... *बाबा की शक्तियों का फव्वारा लगातार मुझ आत्मा पर पड़ रहा है*... पावर हाउस बाबा की शक्तिशाली दृष्टि... शक्तिशाली किरणें... मुझ आत्मा की रोशनी को तेजोमय बनाती जा रही है... *मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती जा रही हूँ*... देह का भान समाप्त होता जा रहा है... मैं आत्मा अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने लगी हूँ... *अव्यक्त स्थिति मुझ आत्मा को एकदम हल्का... सर्व बन्धनों से न्यारा बना रही है*... अव्यक्त स्थिति की लाइट बढ़ती जा रही है... और मुझ आत्मा से निकल-निकल कर... चारों ओर फैलती जा रही है... *मैं आत्मा लाइट हाउस बनने का अनुभव कर रही हूँ*... मुझ आत्मा से पवित्रता की... सुख, शान्ति की... रंग-बिरंगी किरणें विश्व की सर्व आत्माओं तक फैलती जा रही है...

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  सेवा के साधन भी भल अपनाओ। नये-नये प्लैन भी भले बनाओ। लेकिन किनारों में रस्सी बांधकर छोड़ नहीं देना। *प्रवृत्ति में आते ‘कमलबनना भूल न जाना। वापिस जाने की तैयारी नहीं भूल जाना। सदा अपनी अन्तिम स्थिति का वाहन - न्यारे और प्यारे बनने का श्रेष्ठ साधन - सेवा के साधनों में भूल नहीं जाना।* खूब सेवा करो लेकिन न्यारेपन की खूबी को नहीं छोड़ना। अभी इसी अभ्यास की आवश्यकता है। या तो बिल्कुल न्यारे हो जाते या तो बिल्कुल प्यारे हो जाते। *इसलिए ‘न्यारे और प्यारेपन का बैलेन्सरखो। सेवा करो लेकिन ‘मेरेपनसे न्यारे होकर करो।* समझा क्या करना हैअब नई-नई रस्सियाँ भी तैयार कर रहे हैं। पुरानी रस्सियाँ टूट रही हैं। समझते भी नई रस्सियाँ बाँध रहे हैं क्योंकि चमकीली रस्सियाँ हैं। तो इस वर्ष क्या करना हैबापदादा साक्षी होकर के बच्चों का खेल देखते हैं। रस्सियों के बंधने की रेस में एक दो से बहुत आगे जा रहे हैं। इसलिए सदा विस्तार में जाते सार रूप में रहो।

✺   *"ड्रिल :- सेवा करते मेरेपन से न्यारे होकर रहना"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रकृति के मनमोहक छटाओं के बीच एक बहुत ही सुंदर सरोवर के किनारे स्वयं को देख रही हूँ... बहुत शांत वातावरण है और सरोवर का जल भी बिलकुल शांत है... सरोवर में खिले हुए कमल के पुष्प सरोवर की शोभा बढ़ा रहे है... *उन कमल पुष्पों को देखते हुए मैं विचारों में खो जाती हूँ... ये कमल के पुष्प सरोवर में होते हुए भी कितने न्यारे और प्यारे हैं...*

➳ _ ➳  अब मैं पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मा स्वयं को देखती हूँ जिसे स्वयं परमात्मा पिता ने अपना बच्चा बनाया और मुझे मेरी पहचान बतायी... *विश्व कल्याणकारी परमात्मा पिता ने मुझे विश्व कल्याण के निमित्त, नयी दुनिया के स्थापना हेतु मुझे अपना सहयोगी विश्व सेवाधारी बनाया है...* साथ ही अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखा खींचने की कलम मेरे हाथों में दे दी है...

➳ _ ➳  इन्ही विचारों में खोई मैं आत्मा सरोवर के तट पर टहलती जा रही थी कि तभी सामने से बापदादा को अपनी ओर आते हुए देखती हूँ... बाबा की दिव्य मुस्कान और उनके प्यार में खोई हुई मैं आत्मा मंत्रमुग्ध सी बापदादा की ओर बढ़ने लगती हूँ... *बाबा मेरे करीब आते ही मेरे सिर पर हाथ रख मुझे प्यार भरी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं... मैं आत्मा प्यार के सागर में गहरे डूबती जा रही हूँ...*

➳ _ ➳  अब बाबा भी सरोवर के तट पर मेरे साथ टहलने लगते हैं... सरोवर में खिले हुए कमल की ओर इशारा करते हुए बाबा मुझसे कहते हैं- बच्चे तुम्हे इन कमल के फूलों की तरह ही बनना है... *भल प्रवृति में रहना है लेकिन इन कमल पुष्प के समान स्वयं को न्यारे और प्यारे रखते हुए विश्व सेवा करते मेरेपन के भाव से, सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे बनो...* क्योंकि सेवा का लगाव भी सोने की जंजीर है... यह बेहद से हद में ले आता है...

➳ _ ➳  इसीलिए देह की स्मृति से, ईश्वरीय सम्बन्ध से, सेवा के साधनों के लगाव से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सदा सफलता मिलती रहेगी... मैं आत्मा बाबा के प्यार में मंत्रमुग्ध सी बाबा की बातों को सुनती जा रही हूँ... बाबा की सारी बातें मेरे अंतर्मन में गहरे उतरती जा रही है... *मैं आत्मा स्वयं को अंदर से बहुत ही शक्तिशाली महसूस करते हुए बाबा की बहुत ही न्यारी और प्यारी विश्व सेवाधारी के रूप में देख रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━