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 05 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢  *ड्रामा के पट्टे पर मज़बूत रहे ?*

 

➢➢  *एक दो को सावधान कर उन्नति को पाया ?*

 

➢➢  *सेवा के बंधन द्वारा कर्म बन्धनों को समाप्त किया ?*

 

➢➢  *अपने दैवी स्वरुप की स्मृति में रहे ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  *किसी कमजोर आत्मा की कमजोरी को न देखो। यह स्मृति में रहे कि वैराइटी आत्मायें हैं। सबके प्रति आत्मिक दृष्टि रहे।* आत्मा के रुप में उनको स्मृति में लाने से पावर दे सकोगे। आत्मा बोल रही है, आत्मा के यह संस्कार हैं, *यह पार्ट पक्का करो तो सबके प्रति स्वत: शुभ भावना रहेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢  *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं लाइट हाउस, माइट हाउस हूँ"*

 

✧  अपने को लाइट हाउस और माइट हाउस समझते हो? जहाँ लाइट होती है वहाँ कोई भी पाप का कर्म नहीं होता है। *तो सदा लाइट हाउस रहने से माया कोई पाप कर्म नहीं करा सकती।* सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे। 

 

✧  ऐसे अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? पुण्य आत्मा संकल्प में भी कोई पाप कर्म नहीं कर सकती। *और पाप वहाँ होता है जहाँ बाप की याद नहीं होती। बाप है तो पाप नहीं, पाप है तो बाप नहीं।* तो सदा कौन रहता है? पाप खत्म हो गया ना? जब पुण्य आत्मा के बच्चे हो तो पाप खत्म।

 

✧  तो आज से 'मैं पुण्य आत्मा हूँ पाप मेरे सामने आ नहीं सकता' यह दृढ़ संकल्प करो। जो समझते हैं आज से पाप को स्वपन में भी, संकल्प में भी नहीं आने देंगे वह हाथ उठाओ। *दृढ़ संकल्प की तीली से 21 जन्मों के लिए पाप कर्म खत्म।* बापदादा भी ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों को मुबारक देते हैं। यह भी कितना भाग्य है जो स्वयं बाप बच्चों को मुबारक देते हैं। इसी स्मृति में सदा खुश रहो और सबको खुश बनाओ।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢  *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आप सबका लक्ष्य क्या है? कर्मातीत बनना है ना! या थोडा-थोडा कर्मबन्धन रहा तो कोई हर्जा नहीं? रहना चाहिए या नहीं रहना चाहिए? कर्मातीत बनना है? *बाप से प्यार की निशानी है - कर्मातीत बनना।* तो करावनहार' होकर कर्म करो, कराओ, कर्मेन्द्रियाँ आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ।

 

✧  बिल्कुल अपने को न्यारा समझ कर्म कराना - यह कान्सेसनेस इमर्ज रूप में हो। मर्ज रूप में नहीं। मर्ज रूप में कभी करावनहार' के बजाए कर्मेन्द्रियों के अर्थात मन के, बुद्धि के, संस्कार के वश हो जाते हैं। कारण? *‘करावनहार' आत्मा हूँ मालिक हूँ विशेष आत्मा, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ यह स्मृति मालिक-पन की स्मृति दिलाती है।*

 

✧  नहीं तो कभी मन आपको चलाता और कभी आप मन को चलाते। इसलिए सदा नेचुरल मनमनाभव की स्थिति नहीं रहती। मैं अलग हूँ बिल्कुल, और सिर्फ अलग नहीं लेकिन मालिक हूँ, *बाप को याद करने से मैं बालक हूँ और मैं आत्मा कराने वाली हूँ तो मालिक हूँ। अभी यह अभ्यास अटेन्शन में कम है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢  *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- लौकिक अलौकिक परिवार से तोड़ निभाकर मोह्जीत बनना"*

 

_ ➳ *मैं आत्मा रूपी पतंग इस धरती से ऊपर अम्बर में उडती हुई हिचकोले खाती ख़ुशी ख़ुशी झूमती हुई सैर कर रही हूँ...* लौकिक अलौकिक संबंधों रूपी काँटों में फंसकर मैं आत्मा रूपी पतंग उड़ नहीं पा रही थी... अब मुझ आत्मा रूपी पतंग की डोर सिर्फ और सिर्फ प्यारे बाबा के हाथों में है... जिससे मैं आत्मा सदा फर्श से न्यारी रह फ़रिश्ता बन उडती रहती हूँ... *सैर करते करते अब मैं चली अपने वतन प्यारे मीठे बाबा के पास...*

 

   *विकारी संबंधो से ममत्व निकालने राजयोग का ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की दिल पसन्द मणि हो... तो इस खुदाई नशे से भरकर दुनिया में रहते हुए भी उपराम रहो... अपने राजयोगी होने की खुमारी की सदा दिल दिमाग पर छाये हुए... *विकारी दुनिया से अछूते होकर कार्य व्यवहार करो... ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सम्बन्धो को तोड़ मात्र निभाते रहो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा जन्म-जन्मान्तर के इन संबंधों के चक्रव्यूह से बाहर निकलकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... जिस विकारी दुनिया ने मुझे दुखी और खाली सा किया... अब उस दुनिया से मेरा कोई नाता न हो... *मात्र तोड़ ही बस मुझे तो निभाना है... और अपनी यादो में मीठे बापदादा और अपने सजीले घर को ही बसाना है...”*

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा के सत्य स्वरुप की स्मृति दिलाते हुए कहते हैं:–* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैलेपन और विकारो के दलदल ने सत्य स्वरूप को भुला दिया... *अब जो मीठे बाबा ने फूलो सी गोद में लेकर राजयोगी बनाया है तो हर कर्म में अपनी शान को याद रखो... अपने सत्य स्वरूप को यादो में कायम रख कर ही दुनियावी कारोबार करो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने निज स्वरुप में स्थित होकर आनंद विभोर होती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा सारे विकारी सम्बन्धो से उपराम होकर आपकी मीठी यादो में अपने राजयोगी के नशे में खो रही हूँ...* इस विकारी दुनिया से अलग अपनी ज्योतिमय दुनिया को यादो में बसाये देवताई स्वरूप को पाती जा रही हूँ...

 

   *मेरा बाबा अपने रूहानी रंगों से मुझ आत्मा रूपी पतंग को सजाते हुए कहते है:–* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो में फंसकर गुणो और शक्तियो को खोकर खाली हो गए हो... *अब ईश्वरीय राहो में राजयोगी बन खुशियो के आसमाँ में खुशनुमा से उड़ते रहो...* इस धरा पर ईश्वर पिता का चुना हुआ गुलाब हूँ... इस नशे से भरकर अपनी रूहानियत की छटा बिखेरते रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सभी दुनियावी संबंधो से तोड़ निभाकर मोह्जीत बनते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को चुनकर अपनी गोद में बिठा कर मेरे मटमैले पन को धोकर आपने खूबसूरत राजयोगी सा सजा दिया है... *मै आत्मा अब विकारो से परे कमल फूल सा प्यारा न्यारा जीवन जी रही हूँ...”*

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है*"

 

 _ ➳  इस बेहद के सृष्टि ड्रामा में पार्ट बजाने वाली मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ जिसने आदि से लेकर अंत तक इस बेहद ड्रामा में कल्प - कल्प हीरो पार्ट बजाया है। *इस बात को स्मृति में लाते ही पूरे 84 जन्मो का पार्ट मेरे सामने एक पिक्चर के रूप स्पष्ट होने लगता है*। सबसे पहले परमधाम में मेरा अनादि सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप जहां से मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में ही अपने घर परमधाम से सृष्टि रूपी रंगमंच पर इस बेहद के ड्रामा में पार्ट बजाने के लिए नई सतोप्रधान सतयुगी दुनिया मे अवतरित हुई।

 

 _ ➳  एक ऐसी दुनिया जो अपरमअपार सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थी। जहाँ देवतायें निवास करते थे। *ऐसी दैवी दुनिया मे 20 जन्म इतना सुंदर पार्ट बजाने के बाद द्वापर युग मे भी पूज्य आत्मा बन मैने विशेष पार्ट बजाया*। ईष्टदेवी बन अपने भक्तों की हर मनोकामना को मैने पूर्ण किया। मन्दिरों में स्थापित मेरे जड़ चित्र आज भी भक्तों की हर मनोकामना को पूरा कर रहें हैं। *और अब मेरा यह ब्राह्मण जीवन भी कितना श्रेष्ठ है। स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहें हैं। सर्व सम्बन्धो का सुख मुझे दे रहें हैं। "वाह ड्रामा वाह" और "वाह मेरा पार्ट वाह"*।

 

 _ ➳  इस बेहद के खूबसूरत ड्रामा में आदि से अंत तक के अपने विशेष हीरो पार्ट को मन बुद्धि से देखते - देखते अब मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब इस अंतिम जन्म में जबकि सभी हिसाब किताब चुकतू होने है इसलिए इस अंतिम जन्म में अनेक परिस्थितियों और दुखद घटनाओ के रूप में आने वाले कर्मभोग से मुझे घबराना नही है बल्कि *ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है और बाबा की याद से हर कर्मभोग को सहज रूप से हँसते - हँसते चुकतू करना है*। स्वयं से यह प्रतिज्ञा करते - करते मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमे भरने के लिए मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं।

 

 _ ➳  अशरीरी बन देह और देह की दुनिया से किनारा कर, ज्ञान और योग के पंख लगा कर मैं आत्मा अब अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *कुछ क्षणों की सुंदर, लुभावनी रूहानी यात्रा करके मैं पहुंच जाती हूँ उस अद्भुत दुनिया परमधाम में अपने प्यारे मीठे बाबा के पास*। संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर शांति के सागर बाप के सामने मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूँ।

 

 _ ➳  धीरे - धीरे अब मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा की ओर बढ़ रही हूँ। उनके समीप पहुंच कर मैं जैसे ही उन्हें टच करती हूँ शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगता है। *मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है*। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ।

 

 _ ➳  शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि "मैं विशेष हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ"। मुझे केवल अपने पार्ट को देखना है। दूसरों के पार्ट को देख कर प्रश्नचित नही बनना। *बुद्धि में इस बात को अच्छी रीति धारण कर अब मैं ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहकर इस बेहद ड्रामा में अपना ऐक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ*। ड्रामा में हर आत्मा के पार्ट को साक्षी हो कर देखते हुए और जीवन मे आने वाली हर परिस्थिति को खेल समझते हुए क्या,क्यो, और कैसे की क्यू से मुक्त होकर सेकण्ड में फुल स्टाप लगा कर एकरस स्थिति में स्थित रहने का पुरुषार्थ अब मैं सहज रीति कर रही हूँ।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवा के बन्धन द्वारा कर्म-बन्धन को समाप्त करने वाली विश्व सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢  इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रह कर हर व्यर्थ नज़र से दूर रहने वाली देव आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢  इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  देखोबापदादा 'मैजारिटीशब्द कह रहा हैसर्व नहीं कह रहा हैमैजारिटी कह रहा है। तो दूसरी बात क्या देखीक्योंकि कारण को निवारण करेंगे तब नव-निर्माण होगा। तो दूसरा कारण - अलबेलापन भिन्न-भिन्न रूप में देखा। कोई-कोई में बहुत रायल रूप का भी अलबेलापन देखा। *एक शब्द अलबेलेपन का कारण - सब चलता है। क्योंकि साकार में तो हर एक के हर कर्म को कोई देख नहीं सकता हैसाकार ब्रह्मा भी साकार में नहीं देख सके लेकिन अब अव्यक्त रूप में अगर चाहे तो किसी के भी हर कर्म को देख सकते हैं*। जो गाया हुआ है कि परमात्मा की हजार आंखे हैंलाखों आंखें हैं,लाखों कान हैं। वह अभी निराकार और अव्यक्त ब्रह्मा दोनों साथ-साथ देख सकते हैं। कितना भी कोई छिपायेछिपाते भी रायल्टी से हैंसाधारण नहीं। तो *अलबेलापन एक मोटा रूप हैएक महीन रूप हैशब्द दोनों में एक ही है 'सब चलता हैदेख लिया है क्या होता है! कुछ नहीं होता। अभी तो चला लोफिर देखा जायेगा!यह अलबेलेपन के संकल्प हैं*।

 

 _ ➳  बापदादा चाहे तो सभी को सुना भी सकते हैं लेकिन आप लोग कहते हो ना थोड़ी लाज-पत रख दो। तो बापदादा भी लाज पत रख देते हैं लेकिन यह अलबेलापन पुरुषार्थ को तीव्र नहीं बनासकता। पास विद आनर नहीं बना सकता। जैसे स्वयं सोचते हैं ना'सब चलता है'। तो रिजल्ट में भी चल जायेंगे लेकिन उड़ेंगे नहीं। तो सुना क्या दो बातें देखी! परिवर्तन में किसी न किसी रूप सेहर एक में अलग-अलग रूप से अलबेलापन है। तो *बापदादा उस समय मुस्कराते हैंबच्चे कहते हैं देख लेंगे क्या होता है! तो बापदादा भी कहते हैं देख लेना क्या होता है!* तो आज यह क्यों सुना रहे हैं?क्योंकि चाहो या नहीं चाहोजबरदस्ती भी आपको बनाना तो है ही और आपको बनना तो पड़ेगा ही। आज थोड़ा सख्त सुना दिया है क्योंकि आप लोग प्लैन बना रहे होयह करेंगे, यह करेंगे... *लेकिन कारण का निवारण नहीं होगा तो टैम्प्रेरी हो जायेगाफिर कोई बात आयेगी तो कहेंगे बात ही ऐसी थी ना! कारण ही ऐसा था! मेरा हिसाब-किताब ही ऐसा है। इसलिए बनना ही पड़ेगा*। मंजूर है ना! 

 

✺   *ड्रिल :-  "'सब चलता है'- यह अलबेलापन समाप्त करना"*

 

 _ ➳  आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त, तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाली मैं आत्मा अपने शिव पिता परमात्मा की मधुर याद में बैठी, संगमयुग की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का आनन्द लेते हुए स्वयं पर नाज कर रही हूं... और साथ ही साथ यह भी विचार कर रही हूं कि *कितनी बदनसीब हैं वो आत्मायें जो भगवान को पहचानने के बाद भी आलस्य अलबेलेपन में अपने समय को व्यर्थ गंवा रही हैं... यह सोच कर कि सब चलता है...* यही विचार करते करते मेरी आँखों के सामने एक दृश्य उभर आता है...

 

 _ ➳  मैं देख रही हूँ एक तरफ भविष्य नई दुनिया सतयुग का गेट और दूसरी तरफ़ संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों की दुनिया... जहां *बाबा के वैरायटी ब्राह्मण बच्चे बाबा की श्रीमत अनुसार इस सतयुगी दुनिया के गेट का पास प्राप्त कर इस दुनिया मे ऊंच पद पाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रहें हैं...* वही दूसरी ओर अनेक ब्राह्मण बच्चे ऐसे भी है जो आलस्य अलबेलेपन में संगमयुग के अनमोल पलो को व्यर्थ गंवा रहें हैं... गफलत कर रहें हैं... बड़े बड़े प्लैन बना रहें हैं कि यह करेंगे, वह करेंगे... लेकिन उस *प्लैन को दृढ़तापूर्वक प्रेक्टिकल में नही ला रहे...* फिर सोचते हैं कि "सब चलता है... अभी बाकी कौन से सम्पूर्ण बने हैं... लास्ट में बन जायेंगें..."

 

 _ ➳  ऐसे तीव्र पुरुषार्थ करने वाले, और आलस्य अलबेलेपन में समय व्यर्थ गवाने वाले वैरायटी ब्राह्मण बच्चो को मैं देख रही हूँ... इस दृश्य को देख कर मैं *मन ही मन स्वयं से प्रोमिस करती हूं कि मुझे आलस्य अलबेलेपन में भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले संगमयुग के बहुमूल्य पलो को व्यर्थ नही गंवाना है...* बल्कि अपना हर सेकेंड, हर श्वांस परमात्म याद और सेवा में रह कर सफल कर, अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है...

 

 _ ➳  यही संकल्प करके अब मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर, अपने प्यारे मीठे शिव बाबा की याद में बैठ जाती हूँ... और *सेकण्ड में अपने सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, अव्यक्त फरिश्ता बन पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में, बापदादा के पास...* यहां पहुंच कर एक और विचित्र दृश्य मैं देखती हूँ कि आज बापदादा की एक नही बल्कि हज़ारों आंखे हैं जिनसे वो अपने एक - एक ब्राह्मण बच्चे को देख रहें हैं...

 

 _ ➳  बाबा के मन के भावों को, बाबा की हजारों आंखों में जैसे मैं स्पष्ट पढ़ रही हूं... *जो बच्चे सोचते है कि अभी तो चला लो, कुछ नही होता, आगे देख लेंगे... बच्चो की इस बात को सुनकर, कि देख लेंगे क्या होता है, बापदादा भी जैसे मुस्करा रहें है कि देख लेना क्या होता है और चेतावनी दे रहें हैं कि आप चाहो ना चाहो जबरदस्ती भी आपको बनाना तो है और आपको बनना तो पड़ेगा ही...* इस दृश्य के समाप्त होते ही अब मैं देख रही हूं बाहें पसारे बापदादा का पहले जैसा लाइट माइट स्वरूप जो मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है... बाबा की बाहों में अब मैं फरिश्ता समा रहा हूँ... अपनी शक्तिशाली दृष्टि से बाबा मेरे अंदर आलस्य अलबेलेपन से सदा मुक्त रहने का बल भर रहें हैं...

 

 _ ➳  बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपने फरिश्ता स्वरूप को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर पहुंच जाती हूँ परमधाम अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के पास उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, स्वयं को शक्तिसम्पन्न बनाने... बिंदु स्वरूप में अब मैं स्वय को देख रही हूं अपने बिंदु बाप के बिल्कुल सामने... *उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उतार कर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं...* बाबा से आ रही एक एक किरण मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार कर रही है...

 

 _ ➳  स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... *बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है... मन पर अब किसी भी प्रकार का कोई बोझ नही... आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए, उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूं...* दृढ़तापूर्वक हर प्लैन को प्रेक्टीकल में लाने से, कदम कदम पर परमात्म मदद का अनुभव मुझे सहज ही सफ़लतामूर्त बना रहा है... *"कर लेंगे, हो जायेगा" के बजाए "करना ही है" इस पाठ को पक्का कर बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के लक्ष्य की ओर अब मैं अपने कदम बढ़ा रही हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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