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❍ 12 / 03 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *मेहनत की बजाये मोहब्बत का अनुभव किया ?*
➢➢ *"संकल्प किया और अनुभूति हुई" - ऐसे सहज अभ्यासी बनकर रहे ?*
➢➢ *बिंदी लगाने का अभ्यास किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *कमजोरी के संकल्प संस्कार को दृढ़ता की तीली से जलाया ?*
➢➢ *स्वराज्य का मज़ा अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"होलो मनाने और होली बनाने की अलौकिक रीति"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... कितना खुबसूरत सा हाईएस्ट पिता और होलिहंसो का मिलन है... बच्चों के प्रेम की धारा और मीठे बाबा से अष्ठ शक्तियो की पिचकारी आ रही है... *रूहानी रंग ने शक्तियो और गुणो से रंग दिया है*... ऐसे अपने होलिहंस के नशे में रहो और लाइट हाउस बन विश्व को रौशन कर चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ईश्वर प्रेम में रंगकर होलिहंस बन मुस्करा रही हूँ.*.. ज्ञान रत्नों ने जीवन कितना प्यारा खुशहाल बना दिया है... मीठे बाबा आपने मुझे होली तिलक देकर गुण और शक्तियो से रंग दिया है... मै आत्मा रूहानी गुलाब बन महक रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... संकल्पों की तीली से, *दृढता से, सारे व्यर्थ को, कमजोरियों को जलाकर सच्ची होली मनाओ.*.. इस अंतिम जन्म में मेहनत नही मुहब्बत का फल खाओ... सदा श्रेष्ठ संकल्पों के खजानो को प्र्योग में लाओ... गुणो के गहनों से सजे सदा श्रंगार धारी सुहागन बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सारे दुखो से मुक्त होकर मीठे बाबा की मुहोब्बत में खोयी हूँ... सारे व्यर्थ को जलाकर सच्ची होली मना रही हूँ... मीठे बाबा आपने मुझे गुण और शक्तियो से रंगकर 16 कलाओं से सजा दिया है... *मै आत्मा सदा सुहागन शिव दिलरुबा हो चली हूँ..*.
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे बाबा से अथाह खजाने लुटने वाले बड़े से बड़े व्यापारी हो.. *बिंदी लगाकर अनन्त कमाई करने वाले भाग्यशाली हो*... एक बाबा को संसार बनाकर न्यारे और प्यारे बनकर मुस्कराओ... आल राउंडर सेवाधारी होकर पूरे विश्व में नवीनता की लहर फैलाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा बिंदी लगाकर विस्तार को सार में समाती जा रही हूँ... समय साँस संकल्पों को यादो से भरकर मालामाल होती जा रही हूँ... *आल राउंडर सेवाधारी बनकर विश्व में शिव परचम लहरा रही हूँ.*.. सच्ची सेवाधारी बनकर मीठे बाबा के दिल पर राज कर रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मबंधन मुक्त हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा कई जन्मों से अलग-अलग शरीर धारण करते-करते कर्मबंधनों में जकडती चली गई... मैं आत्मा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के वश होती चली गई... *मै, मेरेपन के स्वार्थी बंधनों में उलझती गई...* इस देह के आकर्षण में, देहधारियों के आकर्षण में, कभी विनाशी धन-वैभव के आकर्षण में फंसकर मुझ आत्मा के मन के अलग-अलग टुकडे हो गए हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होती हुई... रुहानी उडनखटोले में बैठ अपने वतन पहुँच जाती हूँ... मैं आत्मा *सुप्रीम रुहानी चुम्बक के सम्मुख बैठ जाती हूँ...* सुप्रीम रुहानी चुम्बक से तेज चुम्बकीय शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के देह पर पड़ रही हैं... इस देह में फंसा हुआ मुझ आत्मा के मन का टुकडा अंश सहित सुप्रीम चुम्बक में चिपक जाता है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का देह का लगाव समाप्त होता जा रहा है... फिर *चुम्बकीय शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के देह के सम्बन्धों* पर पड़ रही हैं... देह के सम्बन्धों में फंसा हुआ मुझ आत्मा के मन का टुकड़ा सुप्रीम चुम्बक में चिपक जाता है... मुझ आत्मा का देह के स्वार्थी सम्बन्धों का मोह समाप्त होता जा रहा है...
➳ _ ➳ फिर ये किरणें मुझ आत्मा के विनाशी धन-वैभव के आकर्षण पर पड़ रही हैं... विनाशी धन के लोभ में फंसा मुझ आत्मा का मन का टुकडा सुप्रीम चुम्बक में चिपक जाता है... मुझ आत्मा का विनाशी धन का मोह खत्म होता जा रहा है... *मुझ आत्मा का मैं मेरापन मिटता जा रहा* है... क्रोध, मोह व देह अभिमान पूरी तरह समाप्त होता जा रहा है...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझ आत्मा के इन मन के टुकडों को जोड़ते जा रहे हैं... मुझ आत्मा का *मन एक सुंदर दिल के आकार का बन गया* है... कई जगहों में फंसा हुआ मुझ आत्मा का मन एक हो गया है... अब मुझ आत्मा के मन का अंश भी किसी आकर्षण में नहीं फंसा है... अब मैं आत्मा कमजोर संस्कारों के कर्मबंधनों से मुक्त होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब इस दिल में एक बाबा ही बसा है... सब मेरा-मेरा एक बाप में समाता जा रहा है... "एक बाप दूसरा न कोई", अब एक बाबा ही मुझ आत्मा का सारा संसार बन गया है... अब मैं आत्मा मेरेपन के अधिकार को समाप्त कर *क्रोध व अभिमान पर विजयी बनने वाली कर्मबंधन मुक्त अवस्था* का अनुभव कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - मास्टर सर्वशक्तिमान बन समय प्रमाण हर गुण, हर शक्ति को कार्य में लगाना"*
➳ _ ➳ मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... बाबा ने मुझ आत्मा को मास्टर सर्वशक्तिमान का टाइटल दे... सर्व गुण... सर्व शक्तियां दे दी... *मैं सर्व शक्तियों से सम्पन्न आत्मा हूँ*.. मुझ आत्मा के हस्त सबको वरदान देने वाले हों...
➳ _ ➳ मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति मुझ आत्मा की शक्तियों को इमर्ज करती जा रही है... जिस भी शक्ति की आवश्यकता हो... उस शक्ति को कार्य में लगा सकती हूँ... मैं अधिकारी आत्मा हूँ... *सूक्ष्म शक्तियों को भी कार्य में लगाती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा जिस समय जिस शक्ति का आह्वान करूँ... वह शक्ति प्रैक्टिकल में अनुभव करती जा रही हूँ... *हर शक्ति सहयोगी बनती जा रही है*... हर गुण... हर शक्ति आर्डर में कार्य कर रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा स्वमान की सीट पर सेट रह... हर शक्तियों को कार्य में ला रही हूँ... मैं आत्मा अपनी शक्तियों को कार्य में ले... खुद को शक्तिशाली अनुभव करती जा रही हूँ... *स्वयं को विजय अनुभव कर रही हूँ*...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के सर्व गुण... सर्व शक्तियां भरपूर होने का अनुभव करा रही है... मैं आत्मा हर परिस्थिति को स्वतः ही पार करती जा रही हूँ... *सदा ख़ुशी-ख़ुशी से सहजता से... उड़ती हुई अनुभव करती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ सर्व शक्तिओं के खजाने को बार-बार यूज़ करते-करते... मैं आत्मा अनुभवी बनती जा रही हूँ... *बाबा से प्रवाहित होती सर्व शक्तियां से सम्पन्न होकर... मैं आत्मा पूरे विश्व की आत्माओं को... शक्तियों के वायब्रेशनस पहुँचा रही हूँ*... मैं आत्मा प्यारे बाबा की छत्रछाया में हर परिस्थिति में मास्टर सर्वशक्तिमान स्थिति का अनुभव करती हूं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *मेरेपन के अधिकार को समाप्त कर क्रोध व अभिमान पर विजयी बनने वाले बन्धन से मुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ मेरेपन के अधिकार को समाप्त कर क्रोध व अभिमान पर विजयी बनने वाले कर्म बन्धन से मुक्त होते हैं क्योंकि... *जहाँ पर हम मेरेपन का अधिकार रखते हैं कि ये कार्य क्यों किया, यह वस्तु मेरी है या ये सामान मेरा है* तो उस बात पर या उस वस्तु सामान आदि के अधिकार पर क्रोध अभिमान या मोह आ जाता है।
❉ इसलिए तो कहा है कि जहाँ मेरेपन का अधिकार रखते हैं या कहते हैं कि... ये क्यों किया, यह मेरी है या यह मेरा है तो उस बात पर हमें *क्रोध अभिमान या मोह आता है।* लेकिन यह सब सेवा के साथी हैं न कि मेरे का अधिकार है। जब मेरा नहीं है, तो! क्रोध व मोह का बन्धन भी नही होता है।
❉ ये सभी विकार मेरेपन का भाव आने के साथ ही आ जाते हैं। तो! इन सभी विकारों से या कर्म बन्धनों से मुक्त होने के लिये *हमें एक बाप को अपना संसार बना लेना है।* हमारा स्लोगन है न "एक बाप दूसरा न कोई" हमें सदा इस स्लोगन को याद रखना है और बाबा को दिल से हमेशा याद करना है।
❉ जब एक बाप ही संसार है तो अन्य आकर्षण हमें किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं कर सकते। बाप के रहते कोई संस्कारों का भी बन्धन नहीं रहेगा। *सब मेरा मेरा एक बाप में समां जायेगा।* जब सारा का सारा मैं पन अर्थात! मेरापन एक बाप में समां जायेगा तब हम सभी प्रकार के कर्म बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे।
❉ तभी तो कहा कि मेरेपन के अधिकार को समाप्त कर क्रोध व अभिमान पर विजियी बनने वाले कर्म बन्धन से मुक्त होते हैं। जब हम किसी भी क्षेत्र पर मेरेपन का अधिकार रखते हैं तो *वहाँ क्रोध व अभिमान का आना स्वभाविक हो जाता है* और मोह भी आने में समय नहीं लेता। इसलिए हमें सदा बाप की छत्र छाया में ही रहना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *मास्टर सर्वशक्तिमान वह है जो समय प्रमाण हर गुण, हर शक्ति को कार्य में लगाये... क्यों और कैसे* ?
❉ समय पर हर गुण और सर्वशक्तियों को कार्य में वही लगा सकते हैं जो सर्वशक्तियों को अपने आर्डर में रखते हैं । *सर्वशक्तियों को अपने आर्डर में रखने की सहज विधि है चलते-फिरते याद की शक्ति और सेवा की शक्ति देने में स्वयं को बिजी रखना* । जितना सर्वशक्तिमान बाप की याद में रह निर्बल आत्माओं को सर्वशक्तियों द्वारा शक्ति प्रदान करते रहेंगे । उतना सर्वशक्तियां ऑर्डर में रहेंगी और समय प्रमाण जिस गुण और शक्ति की आवश्यकता होगी उसी शक्ति का प्रयोग करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान बन जाएंगे ।
❉ जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है । उसी प्रकार आत्मा को शक्तिशाली बनाने का भोजन है मुरली । *जो भी शक्तियां चाहिए उन सबसे संपन्न रोज का भोजन मुरली है* । जो रोज इस शक्तिशाली भोजन को ग्रहण करते हैं । वह कभी भी कमजोर नहीं पड़ सकते । माया उन्हें कभी भी हरा नहीं सकती । सर्वशक्तियों और सर्व गुणों से संपन्न मास्टर सर्वशक्तिमान बन वे सर्व शक्तियों को जब चाहे समय और परिस्थिति अनुसार काम में ला कर माया पर विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
❉ देह और देह के सम्बन्धो में आसक्ति आत्मा को शक्तिहीन बनाती है । क्योंकि यह आसक्ति माया की प्रवेशता का कारण बनती है । और *माया की बार-बार प्रवेशता आत्मा को शक्तिशाली बनने नहीं देती* । इसलिए जो जितना देह और देह की दुनिया से अनासक्त होकर रहते हैं । वे सर्व संबंधों का सुख केवल एक सर्वशक्तिमान बाप से लेते हुए *स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से सम्पन्न बना लेते हैं* और मास्टर सर्वशक्तिमान बन उचित समय पर उचित शक्ति को कार्य में लगा कर सफलतामूर्त आत्मा बन जाते हैं ।
❉ बुद्धि का कनेक्शन अगर निरंतर
सर्वशक्तिमान बाप के साथ जुड़ा हुआ है तो *संबंध से सर्वशक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में स्वत: प्राप्त होता है* । और जो सर्व शक्तियों के वर्से के अधिकारी बन सदा अधिकारीपन की स्मृति में रहते हैं वे कभी भी किसी के भी अधीन नही होते । मास्टर सर्वशक्तिमान बन वे सही समय पर सर्वशक्तियों और गुणों को कार्य में लगा कर पुराने संस्कारों पर, माया पर भी सहज ही विजय पाने के अधिकारी बन जाते हैं ।
❉ मास्टर सर्वशक्तिमान बन सर्वशक्तियों को अपने आर्डर में रख समय पर सर्वशक्तियों को वही यूज़ कर सकते हैं । जो चिंतन और वर्णन के साथ साथ उसका स्वरूप बनते हैं । क्योंकि *स्वरूप बनना अर्थात समर्थ बनना और जो सदा स्मृति स्वरुप रहते हैं* वही समर्थी स्वरूप बन हर कार्य में सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं । समर्थी स्वरूप आत्मा की मुख्य निशानी ही यही है कि वह सर्वशक्तियों को सदा आपने आर्डर में रखती हैं और सदा सर्व गुणों से भरपूर रहती है इसलिए उनका हर कर्म स्वत: ही शक्तिशाली होता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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