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 09 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *मुरली के नोट्स तैयार किये ?*

 

➢➢ *ख़ुशी में रहने के लिए आप समान बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *ज्ञान योग में तीखा बन ब्रह्मा बाप की दिल पर चढ़कर रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियाँ देकर सेवा लका खेल खेला ?*

 

➢➢ *मुरलीधर की मुरली पर देह की सुध बुध भूल, ख़ुशी के झूले में झूल सच्ची सच्ची गोपिका बनकर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  जैसे इन स्थूल कर्मेन्द्रियों को, जिस समय, जैसा ऑर्डर करते हो, उस समय वो ऑर्डर से चलती है। ऐसे ही *ये सूक्ष्म शक्तियाँ भी आपके ऑर्डर पर चलने वाली हो।*

 

✧  चेक करो कि सारे दिन में सर्व शक्तियाँ ऑडर में रही? क्योंकि *जब ये सर्वशक्तियाँ अभी से आपके ऑर्डर पर होंगी तब ही अंत में भी आप सफलता को प्राप्त कर सकेंगे।*

 

✧  इसके लिए बहुत काल का अभ्यास चाहिए। तो इस नये वर्ष में ऑर्डर पर चलाने का विशेष अभ्यास करना। क्योंकि विश्व का राज्य प्राप्त करना है ना। *'विश्व राज्य-अधिकारी बनने के पहले स्वराज्य अधिकारी बनो।”* (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  रूहानी यौद्वे बन ज्ञान गोलों,से माया दुश्मन पर जीत पाना"*

 

_ ➳  जीवन में भगवान की प्रवेशता से कितना प्यारा जादु छा गया है... यही सोचते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की कुटिया की तरफ कदम बढ़ाती हूँ... मीठे बाबा के अमूल्य ज्ञान धन सम्पद्दा को पाकर मै आत्मा... कितनी मालामाल हो गयी हूँ... *मेरा जीवन मूल्यों से सज संवर कर. कितना शक्तिशाली हो गया है.*.. देहभान से घिरी हुई मै आत्मा यूँ रूहानियत से खिल जाउंगी यह मेने कब सोचा था... और मेरे सारे दुःख पलभर में अथाह सुखो में तब्दील हो जायेंगे... *आज यह जीवन कदम कदम पर विजय श्री से सजा है... और में आत्मा भगवान की बाँहों में मुस्करा रही हूँ..*.

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से आबाद करते हुए कहा :-" मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा ने जो अथाह रत्नों से दामन को सजाया है...इन ज्ञान रत्नों के मनन से शक्तिशाली बनकर... विकारो से मुक्त होकर, सदा के विजयी बन विश्वधरा पर मुस्कराओ... *ज्ञान की अमूल्य धरोहर को दिल में समाये, और यादो में गहरे डूबकर, माया पर सहज ही जीत पा लो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से सारे ज्ञान गोले अपने मनबुद्धि रुपी तोप में भरकर कहती हूँ ;-"मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना इस कुरुक्षेत्र पर कितनी अकेली और असहाय थी... विकारो से जूझ रही थी और हारती ही जा रही थी... *आपने मुझे मेरा वास्तविक रूप याद दिलाकर, मुझे अपनी शक्तियो से सजाकर, शक्तिशाली बना दिया है.*.. और मै आत्मा विकारो पर जीतकर मुस्करा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान के असीम खजानो से मालामाल करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में दिल की गहराइयो से समाकर... अपनी खोयी चमक को पुनः पा लो... *ईश्वर पिता ने जो ज्ञान के तीक्ष्ण तीर, बुद्धि रुपी हाथो में थमाए है.. उससे माया को सहज ही परास्त कर... सतयुगी असीम सुखो की धरा पर मौज मनाओ..*.

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की अथाह धन सम्पत्ति की मालिक बनकर कहती हूँ :-"प्यारे प्यारे बाबा मेरे... *आपने मेरे जीवन में आकर, मुझ आत्मा का खोया सम्मान पुनः वापिस दिलवाया हे.*.. इस युद्व में मै आत्मा जनमो से हारती आयी... और आज आपने संगम के वरदानी युग में मेरा साथ देकर, मुझे अपनी बाँहों में भरकर, विजयी श्री दिलवाई है..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देह भान और विकारो से छुड़ाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वरीय यादो के सहारे रूहानी यौद्वे बनकर, ज्ञान के गोलों से माया दुश्मन को परास्त कर... सच्ची खुशियो में आनन्द भरे गीत गाओ... *ईश्वरीय ज्ञान और यादो की दौलत ही माया के चंगुल से छुड़ाकर... विश्व महाराजन सा सजाएगी.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे खजाने लेकर, बुद्धि को अमीरी से भरते हुए कहती हूँ ;-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा सदा अज्ञान अंधेरो में भटक कर... देहभान में लटक कर बेहोश थी... *आज आपने मुझे यादो और ज्ञान की ताकत देकर पुनः सुरजीत सा किया है.*.. मीठे बाबा मै आत्मा आपकी मदद पाकर माया दुश्मन को हराकर,पुनः विजयी बन गयी हूँ..."मीठे बाबा को दिल से शुक्रिया कर मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- खुशी में रहने के लिए आप समान बनाने की सेवा करना*"

 

 _ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह को धारण कर मैं फ़रिशता अपनी साकारी देह से बाहर निकलता हूँ और दुनिया के नज़ारो को देखने चल पड़ता हूँ। सड़क पर लोगों की भीड़ के बीच मैं चल रहा हूँ। कोई मुझे नही देख पा रहा लेकिन मैं सबको देख रहा हूँ। *हर व्यक्ति का चेहरा मैं देख भी रहा हूँ और उनके चेहरे के हाव - भाव भी पड़ रहा हूँ। हर व्यक्ति एक अजीब सी कशमकश में उलझा हुआ दिखाई दे रहा है*। दुनिया की अन्धी दौड़ में सब भाग रहें है लेकिन जाना कहाँ है, मंजिल कहाँ हैं, किसी को नही पता। चेहरे पर उदासी और दुख की रेखाये लिए सब अपना जीवन जी रहें हैं।

 

 _ ➳  किसी के चेहरे पर खुशी की कोई झलक दिखाई नही दे रही। कोई हंसता हुआ अगर दिखाई भी दे रहा है तो ऐसा लग रहा है जैसे झूठी हंसी हंस रहा है। *लोगों के ऐसे उदास चेहरे देख मन मे विचार आता है कि ये सब मेरे आत्मा भाई ही तो है*। जैसे मेरे मीठे बाबा ने आ कर मेरे जीवन को खुशियों से भरपूर कर दिया है ऐसे ही मेरा भी ये फर्ज बनता है कि अपने इन आत्मा भाईयों को आप समान बना कर मैं इन्हें भी सच्ची खुशी पाने का सहज मार्ग दिखा कर इनके जीवन मे भी खुशियां ले आऊँ। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अब मैं तीव्र उड़ान भरते हुए आकाश को पार कर पहुँच जाता हूँ अपने अति परम प्रिय, खुशियों के वरदाता बापदादा के पास उनके अव्यक्त वतन में*।

 

 _ ➳  बापदादा मेरे आने का आश्रय समझ प्रसन्नचित मुद्रा में, अपनी बाहें फैला कर मेरा स्वागत करते हुए मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। *अपना असीम स्नेह और प्यार मुझ पर लुटा कर, बाबा खुशी के अथाह खजाने से मेरी झोली भरते हुए मुझे "सदा खुशी में रह, सबको आप समान बनाने" का वरदान देते हुए, अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं*। खुशी के खजाने और वरदान ले कर अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट आता हूँ। बापदादा का आह्वान कर, कम्बाइन्ड स्वरूप में अब मैं फ़रिशता सारे विश्व का चक्कर लगा रहा हूँ। *बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं और श्वेत रश्मियो के रूप में मुझ फ़रिश्ते से निकल कर सारे विश्व में चारों और फैल रही हैं*।

 

_ ➳  मेरे चारों ओर प्रकाश का एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। इस औरे से निकल रहे शक्तिशाली वायब्रेशन सबको सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं। *डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप धारण किये, परमपिता परमात्मा का संदेशवाहक बन, सूक्ष्म रीति मैं सारे विश्व की आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रहा हूँ*। परमात्म सन्देश पा कर सभी आत्माओं के चेहरे एक दिव्य अलौकिक मुस्कान से खिल उठे हैं। सबके चेहरे पर खुशी की झलक मैं स्पष्ट देख रहा हूँ। विश्व की सर्व आत्माओं को सच्ची खुशी की अनुभूति करवा कर अब मैं फ़रिशता अपने साकारी तन में प्रवेश करता हूँ।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को आप समान बना कर, असीम खुशी का अनुभव करते हुए, उन्हें भी सच्ची खुशी का अनुभव करवा रही हूँ। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल उनके दुखी जीवन को सुखमय बना रहे हैं। *खुशी के खजाने से मुझे सम्पन्न करके, खुशियों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा ने सबकी झोली खुशियों से भरने के मुझे निमित बना कर मुझे सर्व की दुआयों की पात्र आत्मा बना दिया है*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियां देकर सेवा को खेल अनुभव करती हूँ ।*

 

 _ ➳  *मास्टर सर्वशक्तिमान मैं आत्मा.. हर पल सर्वशक्तिमान बाप की छत्रछ्या में हल्की रहती हूँ...* जिम्मेवारियों के बोझों से मुक्त... सेवा को भी खेल अनुभव करती हूँ... *ब्राह्मण जीवन में सर्वशक्तिमान बाप को जान... बाप का बनकर...* संगमयुग में परिस्थिति रूपी जिम्मेवारियों को एक बाप को अर्पण कर निश्चिन्त बन गई हूँ... परिस्थितियों रूपी पहाडों को *मास्टर सर्वशक्तिमान के वरदान की स्मृति द्वारा सफलतापूर्वक पार कर रही हूँ...* सर्वशक्तिमान की संतान मैं मास्टर सर्वशक्तिमान... सुख और शांति के झूले में झूल रही हूँ... जिम्मेवारियों से मुक्त... मैं आत्मा... *सेवा में सफलता का ताज धारण कर रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मुरलीधर की मुरली पर देह की सुध बुध भूल कर, खुशी के झूले में झूलने वाली सच्ची सच्ची गोपिका बनने का अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मुरलीधर की मुरली के साज़ पर... नाचते गाते हुए... खुशियां मनाने वाली... मैं खुशनसीब आत्मा हूँ...* बाबा के प्यार में समा कर मैं भाग्यवान आत्मा... खुशियों के... मौजों के झूले में झूलने लग जाती हूँ... *रोज की ज्ञान मुरली... हर कारण को निवारण में परिवर्तित कर... जीवन का जीना आसान कर रही है...* दुनिया के बंधनों की... दुःखभरी जंजीरों से आजाद कर रही है... *परमात्म पालना का अनुभव करती हुई मैं आत्मा... मुरली की धुन में मग्न...* देह की सुध बुध को भुलाये... स्वतः ही खिंची चली आती हूँ... बाबा के रूहानी प्यार की मधुरता... शीतलता में समाई हुई... आनंद विभोर हो रही हूँ... *मुरली की दीवानी सी मैं आत्मा... हर कदम श्रीमत के आधार पर उठाती हुई...* परिस्थितियों के खेल के आनंद को जीती जा रही हूँ... *बाबा की असीम प्रेम से भरी हुई शिक्षाओं को... जीवन में धारण कर... सच्ची-सच्ची गोपिका बनने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बाप के रूप में परमात्म पालना का अनुभव कर रहे हो। यह परमात्म पालना सारे कल्प में सिर्फ इस ब्राह्मण जन्म में आप बच्चों को प्राप्त होती हैजिस परमात्म पालना में आत्मा को सर्व प्राप्ति  स्वरूप का अनुभव होता है। *परमात्म प्यार सर्व संबंधों का अनुभव कराता है। परमात्म प्यार अपने देह भान को भी भुला देता, साथ-साथ अनेक स्वार्थ के प्यार को भी भुला देता है। ऐसे परमात्म प्यारपरमात्म पालना के अन्दर पलने वाली भाग्यवान आत्मायें हो।* कितना आप आत्माओं का भाग्य है जो स्वयं बाप अपने वतन को छोड़ आप गाडली स्टूडेन्टस को पढ़ाने आते हैं। ऐसा कोई टीचर देखा जो रोज सवेरे-सवेरे दूरदेश से पढ़ाने के लिए आवेऐसा टीचर कभी देखालेकिन आप बच्चों के लिए रोज बाप शिक्षक बन आपके पास पढ़ाने आते हैं और कितना सहज पढ़ाते हैं।

 

 _ ➳  *दो शब्दों की पढ़ाई है - आप और बाप, इन्हीं दो शब्दों में चक्कर कहोड्रामा कहो, कल्प वृक्ष कहो सारी नालेज समाई हुई है।* और पढ़ाई में तो कितना दिमाग पर बोझ पड़ता है और बाप की पढ़ाई से दिमाग हल्का बन जाता है। हल्के की निशानी है ऊंचा उड़ना। हल्की चीज स्वत: ही ऊंची होती है। तो इस पढ़ाई से मन-बुद्धि उड़ती कला का अनुभव करती है। तो दिमाग हल्का हुआ ना! तीनों लोकों की नालेज मिल जाती है। तो ऐसी पढ़ाई सारे कल्प में कोई ने पढ़ी है। कोई पढ़ाने वाला ऐसा मिला। तो भाग्य है ना!

 

 _ ➳  फिर सतगुरू द्वारा श्रीमत ऐसी मिलती है जो सदा के लिए क्या करूंकैसे चलूंऐसे करूं या नहीं करूंक्या होगा..... यह सब क्वेश्चन्स समाप्त हो जाते हैं। *क्या करूंकैसे करूं,ऐसे करूं या वैसे करूं... इन सब क्वेश्चन्स का एक शब्द में जवाब है - फालो फादर। साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करोनिराकारी स्थिति में अशरीरी बनने में शिव बाप को फालो करो। दोनों बाप और दादा को फालो करना अर्थात् क्वेश्चन मार्क समाप्त होना वा श्रीमत पर चलना।*

 

 _ ➳  *तो सदा अपने भाग्य की प्राप्तियों को सामने रखो। सिर्फ बुद्धि में मर्ज नहीं रखोइमर्ज करो। मर्ज रखने के संस्कार को बदलकर इमर्ज करो। अपनी प्राप्तियों की लिस्ट सदा बुद्धि में इमर्ज रखो।* जब प्राप्तियों की लिस्ट इमर्ज होगी तो किसी भी प्रकार का विघ्न वार नहीं करेगा। वह मर्ज हो जायेगा और प्राप्तियों इमर्ज रूप में रहेंगी।

 

✺   *ड्रिल :-  "परमात्म पालना में सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन और बुद्धि द्वारा कुम्भ के मेले में पहुँचती हूँ... मैं पाँच हज़ार वर्ष से अपने पिता से बिछड़ी हुई थी... दुःखी होने के कारण उदास थी... मैं आत्मा तरेसठ जन्मों से घोर अंधियारे में थी... तभी अचानक से सुगन्धित खुशबू महकने लगती है...* मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो अपने खोये हुए पिता को कमल पुष्प में पाती हूँ... बहुत सालों बाद अपने पिता को देख रही हूँ... बाबा को देखकर पाँच हज़ार वर्ष पुरानी स्मृतियाँ याद आ रही हैं...

 

_ ➳  *मेले में चमकते हुए जुगनू रूपी परमात्म प्यार और ठंडे शर्बत रूपी श्रीमत के मुफ्त स्टॉल्स लगे हुए है... जो जितना चाहे उतना ले सकता हैं... बाबा मुझे उन स्टॉल्स तक ले गये और मुझे ढ़ेर सारा जुगनू रूपी प्यार और रंग बिरंगे शर्बत रूपी श्रीमत मुफ़्त में दिला दिये...* जैसे ही मैंने उन जुगनुओं को हाथ में लिया, उनमे से तेज़ चमकती हुई रोशनी मुझ आत्मा पर पड़ने लगी... उन ठंडे शर्बत रूपी श्रीमतों को पीने से मैं शीतल हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा की हर श्रीमत को आसानी से धारणा में ला रही हूँ... अब मैं क्या करूँ, कैसे चलूं के क्वेश्चन्स भूल चुकी हूँ...

 

_ ➳  मेरे बाबा मुझपर सोने जैसे रंग का फुव्वारा न्यौछावर कर रहे हैं... मैं उसमे नहा रही हूँ... *मुझ आत्मा से मैल रूपी देह भान निकल रहा हैं... जो अनेक आत्माओं से स्वार्थ का प्यार था वो भी छूट रहा हैं... मुझे बस बाबा ही दिखाई दे रहे हैं... मुझे बस अब यह ध्यान है कि मैं आत्मा हूँ और बाबा से मेरे सर्व संबंध हैं...* वह मेरे पिता, सतगुरु, टीचर, माँ, भाई, बहन सब कुछ हैं...

 

_ ➳  मैं एकदम हल्की होती जा रही हूँ... बाबा ने मुझपर दो पंख लगा दिए है... अब मैं जब चाहूं तब उड़ सकती हूँ... जब चाहूं बाबा की गोद मे बैठकर सारे क्वेश्चन मार्क को समाप्त कर सकती हूँ... *मैं बिंदू, बाबा बिंदू, ड्रामा भी बिंदू, इन तीनों की नॉलेज को अब मैं सिर्फ बुद्धि में नहीं रखती बल्कि प्रैक्टिकल स्वरूप में लाती हूँ...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमात्म पालना में सर्व प्राप्तियों का अनुभव कर रही हूँ...  मैं अब जो भी साकार में कर्म करती हूँ तो सबसे पहले ब्रह्मा बाबा के कर्मो और उनके तीव्र पुरुषार्थ को सामने रखकर कर्म करती हूँ... निराकारी स्थिति में अशरीरी बनने में शिव बाबा को फॉलो करती हूँ...* अब कोई भी विघ्न आता है तो मैं अपने भाग्य की प्राप्तियों को सामने रख इमर्ज करती हूँ... अब सारे विघ्न आसानी से हल हो जाते है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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