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❍ 03 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *बेहद शब्द के स्वरुप में स्थित होने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *"एक मेरा बाबा... दूसरा न कोई" - इस बेहद के मेरे में अनेक मेरे मेरे को समाया ?*
➢➢ *उपराम स्थिति से हद की दीवारों को पार किया ?*
➢➢ *स्वयं को सोने की जंजीरों में तो नहीं बाँधा ?*
➢➢ *बेहद की जगत माता होने का नशा रहा ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ जैसे यह देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये। *मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे वा स्मृति में न आये। ऐसे निरन्तर तपस्वी बनो तब हर आत्मा के प्रति कल्याण का शुभ संकल्प उत्पन्न होगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ (बापदादा ने ड़िल कराई) एक सेकण्ड में अपने को अशरीरी बना सकते हो? क्यों? संकल्प किया मैं अशरीरी आत्मा हूँ, तो कितना टाइम लगा? सेकण्ड लगा ना! तो *सेकण्ड में अशरीरी, न्यारे और बाप के प्यारे - ये ड्रिल सारे दिन में बीच-बीच में करते रहो।*
〰✧ करने तो आती है ना? *तो अभी सब एक सेकण्ड में सब भूलकर एकदम अशरीरी बन जाओ* (बापदादा ने 5 मिनट ड़िल कराई) अच्छा। इस ड्रिल को दिन में जितना बार ज्यादा कर सको उतना करते रहना।
〰✧ चाहे एक मिनट करो। तीन मिनट, दो मिनट का टाइम न भी हो एक मिनट, आधा मिनट *यह अभ्यास करने से लास्ट समय अशरीरी बनने में बहुत मदद मिलेगी।* बन सकते हैं?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- प्रथम और अंतिम पुरुषार्थ- बेहद शब्द के स्वरुप में स्थित होना"*
➳ _ ➳ *अमृतवेला की पावन, मनभावन, सुहावनी बेला में, मैं आत्मा आँख खुलते ही बेहद ज्ञान सागर बाबा को अपनी आँखों के सामने फरिशता स्वरूप में पाती हूँ...* बाबा को सामने देख मैं आत्मा बेशुमार खुशियों से भर जाती हूँ... और बिना देर किए मीठे बाबा के गले लग जाती हूँ... *बाबा मुझे देख मुस्कुराते हुए सिर पर हाथ फिराते हुए रिमझिम किरणों की वर्षा करने लगते है...* मैं आत्मा इन किरणों को स्वयं में समाती दिल से मुस्कुराती, रूहानियत से भरपूर चमचमाती जा रही हूँ... और फिर बाबा मुझे ज्ञान की किरणों से ओतप्रोत करते हुए कहते है...
➳ _ ➳ *बेहद बाबा बेहद के रंग में मुझ आत्मा को रंगतें हुए कहतें है :-* "ओ मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... जरा खुबसूरत शब्द बेहद पर गौर फरमाओं हद के बेरंग जीवन से ऊपर उठ तुम अब बेहद के रंग में रंग जाओं... *इस प्रथम और अन्तिम पुरूषार्थ का अब तुम स्वरूप बन जाओं...* हदों के ताने बाने में ना समय गवाओं समय की समीपता को देखते बच्चे बेहद की अवस्था को अपनाओं..."
❉ *मैं आत्मा बेहद के रंग में रगंते हुए कहती हूँ :-* "मीठे-मीठे बाबा मेरे... कितना सुदंर बेहद का राज है आपने बताया... हदों में फंस कितना था यह जीवन मुरझाया... हद के तानें-बाने ने इस जीवन को बेरंग सा था बनाया... *इस बेहद की अवस्था ने है इस जीवन को रंगीन बनाया...* इस बेहद स्थिति को जान और मान इस स्थिति में अब मैं टिक रही हूँ... आप के समान बेहद रंग में रंग उड़ता पंछी बन रही हूँ..."
➳ _ ➳ *बेहद की समझानी देते हुए बेहद बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे-मीठे फूल बच्चे... मेरे हदों के जन्जाल में ना अब अपने आप को उलझाओं... इन हदों के किनारों को छोड़ बाप समान बेहद अवस्था में आओ... हद के पिंजड़े को तोड़ *हे आत्मा पंछी मुक्त बेहद के आकाश में पंख फैलाओं...* इस प्रथम और अतिंम पुरूषार्थ को अब तुम साकार कर दिखलाओं..."
❉ *मैं आत्मा मीठे बाबा की समझानी को गहरें से दिल में समाते हुए कहती हूं :-* "दिलाराम ओ बाबा मेरे... इन हदों में था कितना ना मैंने स्वयं को उलझाया... इस हद के जन्जाल ने ही मुझें बोझिल बनाया... *आपकी इस बेहद समझानी से है मेरा मन हर्षायाँ...* हदों की जाल से निकल मैं आत्मा मुक्त पंछी बन बेहद आंसमा में पंख फैला रही हूँ... इस प्रथम और अंतिम पुरूषार्थ का स्वरूप बनती जा रही हूँ..."
➳ _ ➳ *बेहद बाबा बेहद स्थिति का मुझ आत्मा को अनुभव कराते हुए कहतें है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... कितने समय से तुमनें हदों में उलझ अपने जीवन को था नीरस बनाया... इन हदों की गलियों में तुमनें था अपना अस्तित्व गवाया... अब हद की सूनी गलियों से ऊपर बेहद आसंमा में आओ *बेहद बाप की बेहद समझानी को जरा गहरे से अन्दर समाओं... बेहद शब्द की स्थिति का स्वरूप बन जाओ..."*
❉ *मैं आत्मा बेहद स्थिति का शानदार अनुभव करते हुए कहती हूँ :-* "लाडले मीठे मीठे बाबा मेरे... गहरे से आपकी इस समझानी पर मैं आत्मा समझ के साथ गौर फरमाते हुए *इसे अन्दर समा रही हूँ... और इस बेहद की खूबसूरत शानदार अवस्था को अपना बना रही हूँ...* हदों की सूक्ष्म रस्सियों को भी तोड़ बेहद स्थिति में सच्चा सुख पा रही हूँ बेहद शब्द की स्थिति का स्वरूप साकार कर दिखला रही हूँ..."
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- उपराम स्थिति से हद की दीवारों को पार करना*"
➳ _ ➳ एक खूबसूरत बगीचे में एकांत में टहलते, मनुष्य जीवन के बारे में विचार करते - करते मन मे ख्याल आता है कि देह और देह के बन्धनों में फंसा आज हर मनुष्य का जीवन कैसे हद की दीवारों में ही कैद हो कर रह गया है! *"मैं और मेरे पन" के भान में आ कर मनुष्य ने अपने चारों ओर कर्मबन्धन का कैसा जाल बुन लिया है! कि उसमे से चाह कर भी वह नही निकल पाता*। जितना निकलने की कोशिश करता है उतना और ही इस जाल में फंसता चला जाता है। कितने बदनसीब है वो लोग जो अपना सारा जीवन इन हद के बन्धनों में बंध कर, रोते, चिल्लाते, दुखी होकर ही बिता देते हैं।
➳ _ ➳ यह सब सोचते - सोचते मन ही मन मैं अपने श्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार करती हूँ कि *कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे स्वयं भगवान ने आ कर, सत्य ज्ञान दे कर हद की दीवारों को पार करके, हर दुख से स्वयं को मुक्त करने का सहज रास्ता बता दिया*। बस उपराम बनो और हद की दीवारों को सेकण्ड में पार कर जाओ।
➳ _ ➳ उपराम स्थिति से हद की दीवारों को पार कैसे करें! *इस पर विचार करते - करते अचानक मेरी निगाहें सामने वृक्ष की डाली पर बैठे एक पँछी पर पड़ती हैं जो बड़ी सहजता से एक वृक्ष की डाली से उड़कर दूसरी डाली पर, फिर दूसरी से तीसरी डाली पर जाकर बैठ जाता है और हर डाली के आकर्षण से मुक्त हो कर सेकण्ड में उड़ान भरकर बहुत दूर चला जाता है*। इस दृश्य को देख मन में विचार आता है कि इस पँछी की भांति आत्मा रूपी पँछी भी कर्म के कल्प वृक्ष की डाली पर आए और कर्म करके कर्म रूपी डाली के बन्धन में ना फँसते हुए उससे मुक्त हो कर सेकण्ड में मन बुद्धि से अपने धाम पहुँच जाये यही उपराम स्थिति से हद की दीवारों को पार करना है।
➳ _ ➳ ऐसी उपराम स्थिति से हद की दीवारों को पार करने का ही अभ्यास अब मुझे निरन्तर करना है इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अब मैं एकांत में बैठ हर बात से किनारा कर, मन बुद्धि को भृकुटि पर एकाग्र करती हूँ और *अनुभव करती हूँ जैसे आत्मा रूपी पँछी इस देह रूपी पिंजरे से बाहर निकल रहा है और हर प्रकार के बन्धन से मुक्त हो कर, ऊंची उड़ान भर कर अपने निराकारी धाम की ओर जा रहा है*। सेकण्ड में तारामण्डल और सूक्ष्म वतन को पार करके मैं आत्मा पँछी अब आत्माओं की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं स्वयं को लाल प्रकाश से प्रकाशित, चमकती हुई मणियों से सुसज्जित एक अति सुंदर मनोहारी दुनिया परमधाम में। लाल प्रकाश से प्रकाशित इस सितारों की दुनिया में पहुँच कर मुझ आत्मा को गहन शांति की अनुभूति हो रही है। *अपने बिल्कुल सामने मैं अपने शिव पिता परमात्मा को एक अत्यंत प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में देख रही हूँ*। अनन्त शक्तियों की किरणें बिखेरता उनका यह प्रकाशमय स्वरूप मुझे स्वत: ही अपनी और खींच रहा है और उनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं धीरे - धीरे उनकी ओर बढ़ रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के बिल्कुल समीप जा कर उनके साथ अटैच हो कर उनकी सारी शक्ति को मैं स्वयं में भर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे उनकी सारी शक्तियों को स्वयं में भर कर मैं सर्वशक्तियों का शक्तिशाली पुंज बन गई हूँ। अपने शिव पिता की अथाह शक्ति से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा पँछी वापिस अपने शरीर रूपी पिंजरे में लौट रही हूँ किन्तु पिंजरे में बंद पँछी की भांति नही बल्कि आजाद पँछी की भांति अब मैं स्वयं को अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ केवल कर्म करने के लिए मैंने शरीर का आधार लिया है इस बात को सदैव स्मृति में रखने से भिन्न - भिन्न कर्म की डाली पर बैठ कर्म करते हुए भी अब मैं कभी भी कमजोरी के पंजो से डाली के बन्धन में नही आती। *संगयुगी श्रेष्ठ कर्म रूपी हीरे की डाली के भी बन्धन से मुक्त सदा उपराम स्थिति में रहते हुए हद की दीवारों को अब मैं सहजता से पार करती जा रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सेवा का प्रत्यक्ष फल खाते एवरहैल्थी, वेल्थी और हैप्पी रहने वाली सदा खुशहाल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वच्छता और सत्यता का दर्पण पवित्र आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *अमृतवेले से लेकर हर चलन को चेक करो - हमारी दृष्टि अलौकिक है? चेहरे का पोज सदा हर्षित है? एकरस, अलौकिक है वा समय प्रति समय बदलता रहता है?* सिर्फ योग में बैठने के समय वा कोई विशेष सेवा के समय अलौकिक स्मृति वा वृत्ति रहती है व साधारण कार्य करते हुए भी चेहरा और चलन विशेष रहता है? कोई भी आपको देखे - कामकाज में बहुत बिजी हो, कोई हलचल की बात भी सामने हो लेकिन आपको अलौकिक समझते हैं? तो *चेक करो कि बोल-चाल, चेहरा साधारण कार्य में भी न्यारा और प्यारा अनुभव होता है? कोई भी समय अचानक कोई भी आत्मा आपके सामने आ जाए तो आपके वायब्रेशन से, बोल-चाल से यह समझेंगे कि यह अलौकिक फरिश्ते हैं?*
➳ _ ➳ 2. बापदादा जानते हैं कि बहुत अच्छे-अच्छे पुरुषार्थी,पुरुषार्थ भी कर रहे हैं, उड़ भी रहे हैं लेकिन बापदादा इस 21वीं सदी में नवीनता देखने चाहते हैं। सब अच्छे हो, विशेष भी हो, महान भी हो लेकिन *बाप की प्रत्यक्षता का आधार है - साधारण कार्य में रहते हुए भी फरिश्ते की चाल और हाल हो।* बापदादा यह नहीं देखने चाहते कि बात ऐसी थी, काम ऐसा था, सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी, इसीलिए साधारणता आ गई। फरिश्ता स्वरूप अर्थात् स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं, स्वरूप में हो। ऐसा परिवर्तन किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता है? जैसी बात वैसा अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो?परिवर्तन किसको कहा जाता है? प्रैक्टिकल लाइफ का सैम्पल किसको कहा जाता है? जैसा समय, जैसा सरकमस्टांश वैसे स्वरूप बने - यह तो साधारण लोगों का भी होता है। लेकिन *फरिश्ता अर्थात् जो पुराने या साधारण हाल-चाल से भी परे हो।*
➳ _ ➳ *इस नई सदी में बापदादा यही देखने चाहते हैं कि कुछ भी हो जाए लेकिन अलौकिकता नहीं जाए।* इसके लिए सिर्फ चार शब्दों का अटेन्शन रखना पड़े, वह क्या? वह बात नई नहीं है, पुरानी है,सिर्फ रिवाइज करा रहे हैं। एक बात - शुभचिंतक। दूसरा - शुभ-चिंतन, तीसरा - शुभ-भावना, यह भावना नहीं कि यह बदले तो मैं बदलूं। उसके प्रति भी शुभ-भावना, अपने प्रति भी शुभ-भावना और 4- शुभ श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप। *बस एक 'शुभ' शब्द याद कर लो,इसमें 4 ही बातें आ जायेंगी। बस हमको सबमें शुभ शब्द स्मृति में रखना है।* यह सुना तो बहुत बारी है। सुनाया भी बहुत बारी है। अब और स्वरूप में लाने का अटेन्शन रखना है।
✺ *ड्रिल :- "बाप की प्रत्यक्षता का आधार- सदा फरिश्ता स्वरूप स्थिति में रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्व चिंतन करती हुई एक झील के पास बैठी हूँ... स्व स्वरूप का चिंतन करते हुए मेरा मन पूरी तरह शांत होता जा रहा है... मैं आत्मा पास के उद्यानों की सुंदरता को निहार रही हूँ... *पक्षियों का सुंदर कलरव मन को आनंदित कर रहा है... पक्षियों की उड़ान, मधुर ध्वनि... जीवन को हल्का, प्रसन्न रखने की जैसे कि प्रेरणा दे रही है... खिलते, मुस्कुराते फूल जैसे कह रहे हैं कि... सदा मुस्कुराते हुए दिव्य गुणों की खुशबू से... स्वयं का और सर्व का जीवन सुगंधित करना है...*
➳ _ ➳ झील में किनारे पर कमल पुष्प खिले हुए बहुत सुंदर लग रहे हैं... कमल फूल तो जैसे जीवन जीने का तरीका सिखा रहे हैं... किस तरह से ये जल में जन्म लेते हैं, जल में पलते और बढ़ते हैं... लेकिन पानी की एक बूँद भी इन पर ठहर नहीं सकती... *संसार में रहते हुए, सब कुछ करते हुए किस तरह से न्यारा और प्यारा रह सकते हैं... यह सुंदर पाठ पढ़ाते हैं कमल के ये खिलखिलाते सुंदर पुष्प*... यह चिंतन करते-करते मैं आत्मा स्वयं को कमल आसन पर देख रही हूँ... ऊपर से पवित्रता के सागर शिवबाबा से... पवित्रता की किरणें, शीतल फुहारों के रूप में मुझ पर बरस रही हैं...
➳ _ ➳ बाबा की किरणों रूपी जल में नहाते-नहाते... मुझ आत्मा की जन्म जन्म की मैल धूल रही है... *व्यक्त भाव समाप्त हो अव्यक्त स्थिति बनती जा रही है... मेरी दृष्टि दिव्य, अलौकिक हो गई है... एकरस, मधुर आनंदमय अवस्था बन गई है... मेरा चेहरा खुशी से जगमगा रहा है... मेरी चलन, मेरे हर कर्म में अलौकिकता, विशेषता समाती जा रही है*... मैं आत्मा विशेष आत्मा के स्वमान में स्थित होकर हर कर्म कर रही हूँ... मेरे बोल, संकल्प, कर्म से साधारणता समाप्त हो रही है... मेरा जीवन कमल पुष्प समान न्यारा और प्रभु प्यारा बनता जा रहा है...
➳ _ ➳ मैं अव्यक्त फरिश्ता स्वरुप में बाबा की किरणों में नहाती हुई... अपने संबंध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को दिव्यता, अलौकिकता की अनुभूति करा रही हूँ... *मेरा हर कर्म फरिश्ते समान अव्यक्त स्थिति की अनुभूति करा रहा है... फरिश्ता स्वरुप मेरी भविष्य स्टेज नहीं, मेरी वर्तमान स्थिति है... मेरा वर्तमान स्वरुप है... मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप में स्थित हूँ*... कोई भी बात, कोई भी परिस्थिति मेरी स्थिति को हलचल में नहीं ला सकती... हर प्रकार के पुराने, साधारण संकल्प, बोल, कर्म से परे... मैं फरिश्ता स्वरुप की न्यारी और प्यारी अवस्था में स्थित हूँ... अपनी फरिश्ता स्वरुप स्थिति द्वारा अपने मीठी बाबा की प्रत्यक्षता का आधार बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं अपने मीठे बापदादा की उम्मीदों का सितारा हूँ... उनकी आशाओं का दीपक हूँ... अपनी अलौकिक स्थिति में स्थित हूँ... *मैं हर आत्मा के प्रति शुभ चिंतन कर रही हूँ... हर एक के प्रति मेरी वृति शुभचिंतक की है... सर्व के प्रति और स्वयं के प्रति भी मेरे मन में शुभ भावना समाई हुई है*... मैं आत्मा शुभ और श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप में स्थित हूँ... *बाबा की मीठी मीठी शिक्षाओं का प्रैक्टिकल स्वरुप बनती हुए मैं फरिश्ता... अपने मीठे बाबा को विश्व में प्रत्यक्ष करने के निमित्त बन रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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