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❍ 25 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *अव्यभिचारी बनकर रहे ?*
➢➢ *खुदाई खिदमतगार बन भारत को पावन बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *एक बाप से प्रीत बुधी बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *दृढ़ संकल्प द्वारा असम्भव को संभव कर सफलता का अनुभव किया ?*
➢➢ *करनकरावनहार की स्मृति से भान और अभिमान को समाप्त किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"करना ही है... बनना ही है" - ऐसे दृढ़ संकल्प किये ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - सब दुखियो को सुखी बनाना, यह एक बाप का ही फर्ज है, वही सर्व का सदगति दाता है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जब सारा विश्व दुखो में हाहाकार से भर जाता है... तब *मै सच्चा पिता सुख की ठंडी छाँव हथेली पर लेकर*... बच्चों के लिए आता हूँ... दुखो से तपते हर दिल को सच्ची आथत् देकर सच्चे ज्ञान सच्चे प्यार से देवता रूप में सजाता हूँ... और सच्चा फर्ज निभाता हूँ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ कि ईश्वर पिता की सुख भरी गोद में फूलो सी खिल रही हूँ... देहभान से निकलकर अपने अविनाशी स्वरूप में स्थित होकर मीठे बाबा संग मुस्करा रही हूँ... सुखो की खान मीठे बाबा को पाकर निहाल हो चली हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जब घर से चले कितने खुबसूरत ओज से भरे... दमकती सी मणि थी... देह की मिटटी में किस कदर दुखो से भर चले हो... अब मै पिता पुनः सदा का सुखी बनाने आया हूँ... अपने बच्चों को सुखो भरी दुनिया का मालिक बनाकर सच्चा फर्ज निभाने आया हूँ... सबकी सदगति करने ही मै विश्व पिता इस धरती पर उतर आया हूँ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे सच्चा ज्ञान पाकर *सच्ची श्रीमत को अपनाकर हर दुःख से मुक्त हो गयी हूँ.*.. मात्र देह नही हूँ... मै आत्मा चमकता सितारा ईश्वर पुत्र हूँ इस नशे में झूम रही हूँ... और अथाह सुखो में जी रही हूँ... सर्व के सदगति दाता की सुख भरी गोद में पालना पा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने ही खुशनुमा फूलो को दुखो में कुम्हलाता... मै विश्व पिता भला कैसे देख पाऊं... बच्चों के लिए अथाह सुखो से भरी दुनिया लेकर... मै विश्व पिता धरती पर दौड़ा सा आऊं... *मेरे बच्चे सदा के सुखी हो जाये*... जीवनमुक्ति को पाये और सुखो से भरी सुनहरी धरती पर खिलखिलाए... तो मुझ पिता को चैन आराम आ जाये...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सुखसागर बाबा से मिलकर बाप समान सुख स्वरूप बनती जा रही हूँ... सच्चे ज्ञान से और अनमोल खजाने पाकर मीठे सुखो से भरे स्वर्ग की... स्वामिन् बन मुस्करा रही हूँ... *आपने प्यारे बाबा मुझे सदा का सुखी बना दिया है.*..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा निश्चित विजयी हूँ ।"*
➳ _ ➳ संगमयुग विशेष वरदानों का युग है... मै आत्मा *विशेष संगमयुग की विशेष आत्मा* हूँ... मैं आत्मा कल्प-कल्प की हीरो पार्टधारी हूँ... मै आत्मा संगमयुगी अमृतवेले में उठकर प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... मै आत्मा प्यारे बाबा से सर्व वरदानों को प्राप्त करती जा रही हूँ... सर्व खजानों की प्राप्तियां करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का संगमयुगी जीवन का एक-एक संकल्प बहुत ही मूल्यवान है...
➳ _ ➳ मै आत्मा संकल्प, समय और श्वास के खजानों को जमा करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का संकल्प में भी क्यों-क्या की हलचल खत्म होती जा रही है... अब मुझ आत्मा से क्या करूं, कैसे करूं की कंप्लेंट खत्म होती जा रही है... मुझ आत्मा का अलबेलापन, व्यर्थ संकल्पों का संस्कार खत्म होता जा रहा है... मै *आत्मा स्मृति स्वरुप बनती* जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मै आत्मा अमृतवेले ही *श्रेष्ठ संकल्पों का फाउंडेशन* डाल रही हूँ... अब मै आत्मा प्रीत बुद्धि, निश्चय बुद्धि बनती जा रही हूँ... अब मुझ आत्मा में हर संकल्प श्रीमत अनुसार ही उठता है... जो बाबा के संकल्प वही मुझ आत्मा का भी संकल्प बनता जा रहा है... अब मै आत्मा फालो फादर कर बाबा के संस्कारों को धारण करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मै आत्मा हर कार्य दृढ़ संकल्प द्वारा करती हूँ... मुझ आत्मा को अब यह निश्चय है कि यह हुआ ही पड़ा है... मै आत्मा सिर्फ रिपीट कर रही हूँ... कल्प-कल्प मुझ आत्मा ने यह कार्य किया है... और सफलता प्राप्त किया है... अब मै आत्मा दृढ़ संकल्प को यूज कर सहज सफलता प्राप्त करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा दृढ़ प्रतिज्ञा द्वारा असम्भव को सम्भव कर सफलता का अनुभव करने वाली *निश्चित विजयी अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - सदा करन करावनहार बाप की स्मृति रहने से मान और अभिमान समाप्त करना"*
➳ _ ➳ मैं भाग्यवान आत्मा हूँ... करन करावनहार बाप सदा मेरे साथ है... भगवान वरदान देने के लिए बैठा है... मुझ आत्मा को क्या चिंता... बाबा करन करावनहार है... *मैं आत्मा बाप की श्रीमत पर चलने वाली आत्मा हूँ*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा अनुभव करती हूँ... मैं बाप की छत्रछाया के नीचे रह... हर कर्म को करती जा रही हूँ... *मैं निमित आत्मा हूँ... सदा स्मृति स्वरूप में रहने वाली आत्मा हूँ*... करावन हार करा रहा है... मैं विश्व- कल्याणकारी आत्मा निमित हूँ...
➳ _ ➳ करनकरावनहार का साथ मैं आत्मा सदा अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा मनसा में भी स्वमान की स्मृति में... वाचा में... कर्मणा में... निर्मान अवस्था का अनुभव करती जा रही हूँ... *मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार के मान की आवयश्कता अनुभव नही हो रही*...
➳ _ ➳ जिसका साथी स्वयं करन करावनहार है... उसके मान और अभिमान सब समाप्त हो जाते हैं... स्वमान में रहने वाली... अभिमान को समाप्त करने वाली आत्मा हूँ... *सारे कल्प में ऐसा सौभाग्य प्राप्त नही होगा... जो बाप को अपना बना सके*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा बाप द्वारा दिये... स्वमान में रहने वाली आत्मा हूँ... *स्वमान मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार के मान और अभिमान की सीट पर बैठने नही देता*... अभिमान मुझ आत्मा को काँटों का अनुभव कराता है... दुःख का अनुभव कराता है...
➳ _ ➳ करन करावनहार बाप ने मुझ आत्मा को... *इस्ट्रूमेंट बना सेवा करवाते है*... बाबा ने कराई... तो मुझ आत्मा ने की... सेवा भी अच्छी हुई... सफलता भी प्राप्त हुई... मैं आत्मा निर्मान भाव का अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा ने नही किया बाबा...आपका कार्य था... आपकी सेवा थी... आपने किया... मैं आत्मा बस हर सेवा को करती व उससे प्राप्त सफलता भी बाबा को अर्पण... करती हूं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *दृढ़ संकल्प द्वारा असम्भव को सम्भव कर सफलता का अनुभव करने वाले निश्चित विजयी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ दृढ़ संकल्प द्वारा असम्भव को सम्भव कर सफलता का अनुभव करने वाले निश्चित विजयी होते हैं क्योंकि... संगमयुग को विशेष वरदान मिला हुआ है कि असम्भव को सम्भव करना, इसलिये! *हमें ये नहीं सोचना है कि ये सब कैसे होगा। हमें तो सदा यह ही सोचना है कि ये ऐसे होगा।* अतः हमें कैसे शब्द को ऐसे शब्द में परिवर्तित करते जाना है।
❉ हमें अपने हर कार्य में संपूर्ण निश्चय रख कर चलना है कि ये कार्य तो हुआ ही पड़ा है। *सिर्फ उस कर्म को प्रैक्टिकल स्वरूप में लाना बाकी है।* अब तो बस! उसे केवल रिपीट ही करना है। इसलिये! हमें अपने दृढ़ संकल्प को यूज़ करना है। जितनी हमारे संकल्प में दृढ़ता होगी उतनी ही हम सफलता भी प्राप्त कर पायेंगे।
❉ हमें विशेषता से परिपूर्ण इस संगमयुग पर, बाबा से विशेष वरदान प्राप्त हुआ है अर्थात *यूँ कहें कि संगमयुग को ये विशेष वरदान प्राप्त है कि... असम्भव से असम्भव कार्य को भी सम्भव कर के दिखाना।* इसीलिये! कभी यह नहीं सोचो कि ये काम कैसे होगा, बल्कि! ये सोचो कि ये काम तो ऐसे होगा। कभी भी किसी कार्य को देख कर अपने मन में दिलशिकस्त नहीं बनना है।
❉ हमें सदा स्वयं पर, बाबा पर व संगम युग के प्रभाव पर सदा ही भरोसा रखना है, तथा अपने मन में यही सोचना है कि *यह कार्य तो हुआ ही पड़ा है। अब तो केवल इसे कर्म में लाना ही शेष है।* अपने कर्म में लाते ही वह कार्य साकार में सफल हो कर प्रत्यक्ष में हमारे समक्ष आ जाता है। यानि की कार्य सफल हो गया, अर्थात! सहज सफलता प्राप्त कर ली है।
❉ हमारे संकल्पों में भी क्या क्यों की हलचल न हो, तो हमारी विजय निश्चित ही है। हमें दृढ़ संकल्प को यूज करना है, अर्थात! सहज सफलता को प्राप्त करना। *कोई भी कर्म प्रैक्टिकल स्वरूप में सिद्ध हो जाता है तब दृढ़ संकल्प होने के कारण कार्य सिद्धि हो जाती है।* इस के लिये हमें दृढ़ संकल्प प्रतिग्य बनना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *सदा करनकरावनहार बाप की स्मृति रहे तो भान और अभिमान समाप्त हो जायेगा... क्यों और कैसे* ?
❉ जो सदा करन - करावनहार बाप की स्मृति रह कर हर कर्म करते है उनकी बुद्धि में सदैव निमितपन का भाव रहता है । *स्वयं को केवल निमित समझने के कारण वे कर्म के प्रभाव में नही आते* इसलिए किसी भी प्रकार के आकर्षण में आकर्षित नही होते । कर्म करते बुद्धि का योग निरन्तर एक बाप से जुटा होने के कारण उनमे देह का भान बिलकुल ही समाप्त हो जाता है और जब देह का भान ही समाप्त हो जाता है तो किसी भी प्रकार के अभिमान या अपमान के प्रभाव से भी वे मुक्त हो जाते हैं ।
❉ जिन्हें निरन्तर करन - करावनहार बाप की स्मृति रहती है वे कभी भी खुद को अकेला अनुभव नही करते । हर कर्म करते वे सदा बाप को अपने साथ रखते हैं । *याद और सेवा का डबल लॉक उन्हें हद की सभी बातों से उपराम कर देता है* और बेहद की उपराम वृति को धारण करने के कारण वे विनाशी देह और देह की दुनिया के संग के प्रभाव से सदैव परे रहते हैं । बाप के संग का रंग उन्हें हर प्रकार के संग दोष से बचा कर रखता है । इसलिए देह के भान और किसी भी प्रकार के अभिमान के प्रभाव से वे मुक्त रहते हैं ।
❉ जो सदा करनकरावनहार बाप की स्मृति में रहते हैं उनकी बुद्धि में सदा यह बात रहती है कि यह तन, मन, धन उन्हें सेवा अर्थ मिला है । इसलिए यह बाबा की अमानत है और इस अमानत को श्रीमत प्रमाण ही यूज़ करना है । मनमत पर चल इस अमानत में खयानत नही डालनी है । ऐसे स्वयं को ट्रस्टी समझ वे हर कर्म करते हैं । *ट्रस्टीपन का यह भाव उनमें देह का भान या अभिमान नही आने देता* । इसलिए ट्रस्टी बन अपना तन, मन, धन ईश्वरीय सेवा में लगाते हुए वे सहज ही सर्व से न्यारे और बाप के प्यारे बन जाते हैं ।
❉ जैसे ब्रह्मा बाबा ने हर कर्म सदा करनकरावनहार बाप की स्मृति में रह कर किया । स्वयं को सदा निमित समझा । देह के भान और अभिमान के भाव से मुक्त हो कर हर कर्म किया इसलिए उनका हर कर्म एक यादगार बन गया । *सेवा वा कोई भी कर्म छोड़ा नही लेकिन न्यारे हो कर सेवा की* । और करनकरावनहार बाप की मदद से हर कर्म में सफलता का सहज अनुभव भी किया । ऐसे फॉलो फादर करते हुए जो सदा करनकरावनहार बाप की स्मृति में रहते हैं उनमे देह का भान और अभिमान समाप्त हो जाता है ।
❉ कर्म करते जब इस बात को सदा स्मृति में रखते है कि मैं आत्मा परमधाम से इस सृष्टि पर इस देह में कर्म करने के लिए अवतरित हुई है तो यह स्मृति आत्मिक स्मृति में स्थित रखती है । और *जितना आत्मिक स्मृति में रह कर कर्म करते हैं तो कर्म के प्रभाव से मुक्त रहते हैं* क्योंकि कर्म करते ही आत्मा स्वयं को इस देह से डिटैच अनुभव करती है । जितना यह अभ्यास बढ़ता जाता है उतना करनकरावनहार बाप की स्मृति बनी रहती है । और सदा करावन हार बाप को स्मृति में रखने से हद का देह भान और अभिमान स्वत: ही समाप्त हो जाता है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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