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❍ 16 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *मनमनाभव के महामंत्र से बाप के स्नेह में समा बाप के साथ रूहानी मिलन मनाया ?*
➢➢ *त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त की ?*
➢➢ *"बड़ों ने कहा और किया" - ऐसे विशेष सेवाधारी बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *बाप के साथ एक धक के साथ दिल का सौदा कर बाप की सम्पूरण प्रॉपर्टी के अधिकारी बनकर रहे ?*
➢➢ *विघनो को अपने पुरुषार्थ में बाधा न बना तीव्र गति से पुरुषार्थ करते रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *मालिकपन की स्मृति से अधीनता के संस्कारों को छोड़ बाप के दिलतख़्तनशीन बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ जैसे साइन्स के साधन एरोप्लेन जब उडते हैं तो पहले चेकिंग होती है फिर माल भरना होता है। जो भी उसमें चाहिए - जैसे पेट्रोल चाहिए, हवा चाहिए, खाना चाहिए, जो भी चाहिए, उसके बाद धरती को छोडना होता है फिर उडना होता है। ब्राह्मण आत्मा रूपी विमान भी अपने स्थान पर तो आ ही गये। लेकिन जो डायरेक्शन था अथवा है एक सेकण्ड में उडने का, उसमें *कोई चेकिंग करने में रह गये। मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं हूँ - इसी चेकिंग में रह गये और कोई ज्ञान के मनन द्वारा स्वयं को शक्तियों से सम्पन्न बनाने में रह गये।* मैं मास्टर ज्ञान स्वरूप हूँ मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ - इस शुद्ध संकल्प तक रहे, लेकिन स्वरूप नहीं बन पाये। तो दूसरी स्टेज भरने तक रह गये और कोई भरने में बिजी होने के कारण उडने से रह गये। क्योंकि शुद्ध संकल्प में तो रमण कर रहे थे लेकिन यह देह रूपी धरती को छोड नहीं सकते थे। अशरीरी स्टेज पर स्थित नहीं हो पाते थे।
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बापदादा के दिलतख्तनशींन बनने का सर्व को समान अधिकार"*
➳ _ ➳ में चमकती हुई मणि आत्मा... शरीर के भृकुटि तख्त पर विराजित होकर... मीठे बाबा की यादो में खोयी... कानो की इंद्री से मीठे बाबा का मधुर गीत सुनती हूँ... *कैसे करूँ मै बाबा तेरा शुक्रिया*... और यह गीत सुनते ही, पलक झपकते मै आत्मा अपनी सूक्ष्म देह में फरिश्तों की नगरी उड़ चलती हूँ... मै आत्मा परमधाम में बेठे अपने मनमीत को आवाज देती हूँ... और अगले ही पल ब्रह्मा तन में मीठे बाबा विराजमान नजर आते है... *प्रेम के चरमौतकर्ष में डूबी हुई, मै आत्मा रोम रोम से प्यारे बाबा का शुक्रिया कर रही हूँ.*..
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी दिली बात बताते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठा बाबा अपने हर फूल को रूहानी गुलाब सा खिला हुआ देखने की चाह लिए... धरती पर कदम रखता है.. *हर बच्चा बाप समान बनकर स्नेह में समा जाये... और दिलतख्तनशींन बनकर मुस्कराये.*.. और सर्व बच्चे अधिकारी बन विश्व धरा पर इठलाये, यही चाहत विश्व पिता की है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे से दुलारे से बाबा की विशालता को देख फ़िदा हो कर कहती हूँ :- "प्यारे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में रूहानी गुलाब बन मुस्करा रही हूँ... और बड़ी ही शान से आपके कलेजे पर सुशोभित हो रही हूँ... *आपके स्नेह में डूबी हुई, ख़ुशी प्रेम और आनन्द के झूले में झूल रही हूँ.*..सेकण्ड में दिल का सौदा कर महान भाग्यवान हो गयी हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को दुलारते हुए कह रहे है :- "मीठे लाडले बच्चे... अधिकारी बनने के लिए अधीनता के संस्कारो का त्याग करो...मीठे बाबा का दिल बेहद का बड़ा है... सारे विश्व की आत्माये उसमे समा सकती है... इसलिए *सच्ची मुहोब्बत कर, दिलवाले बाबा को, एक धक से दिली सौदा कर, दिल सौंप दो..*."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को देख मन्द मन्द मुस्कराते हुए कह रही हूँ :- "मीठे लाडले बाबा मेरे... कितनी दुआओ, कितनी पुकारो, कितनी मन्नतो के बाद मेने आपको पाया है... अब दिल को धरती पर बिखराने की भूल मै आत्मा कदापि नही कर सकती... मीठे बाबा... *सच्चा प्रियतम जो मेने यूँ जनमो के बाद पाया है... यह दिल अब आपकी ही अमानत है.*.."
❉ मीठे प्यारे बाबा मुझे सच्ची प्रीत की रीत समझाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जितना दिल से ईश्वरीय दिल पर फ़िदा होंगे... उतनी मीठी अनुभूतियों से भरकर, सच्चे प्यार के सुखद अहसासो में जिएंगे... *वरदानी समय है, जितना पाना है, अभी पा लो, जो करना है, अभी ही करलो,* और मीठे बाबा के दिल पर अपना अधिकार जमाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा को तहेदिल से शुक्रिया कहते हुए कह रही हूँ :- "ओ प्राण प्रिय बाबा मेरे... देह के रिश्तो में खपकर, टुकड़ो में बिखरे दिल को, आपके सच्चे प्यार ने सदा का जोड़ दिया है... और *मेने यह दिल सदा का, अपने सच्चे मनमीत को अर्पण कर दिया है.*.. अब दो दीवानो के बीच किसी तीसरे की कोई जगह ही नही है..." अपने सच्चे प्रेम को... यूँ मीठे बाबा को बयान कर, मै आत्मा धरती की ओर रुख करती हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मालिकपन की स्मृति से अधीनता के संस्कारों को छोड़ बाप के दिलतख़्तनशीन बनना*"
➳ _ ➳ स्वयं ऑल माइटी अथॉरिटी भगवान जिनके दर्शन मात्र के लिये लोग तरस रहें हैं उनके दिल रूपी तख्त पर विराजमान होने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य प्राप्त करने वाली मैं दुनिया की सबसे खुशनसीब आत्मा हूँ यह विचार मन मे आते ही मेरी खुशनसीबी का खूबसूरत एहसास मुझे असीम खुशी से भरपूर कर देता है। *खुशी के पंख लगाए मैं आत्मा पंछी इस देह रूपी पिंजड़े के हर बन्धन को तोड़ अपने दिलाराम बाबा से अपने दिल का हाल बयां करने चल पड़ती हूँ*। अपने शिव पिया से मिलने की लगन में मग्न मैं आत्मा सजनी झूमती, गाती आकाश में विचरण करती, आकाश से भी ऊपर उड़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ चांद सितारों से पार, फरिश्तो की आकारी दुनिया मे मैं पहुंच जाती हूं। मेरे सामने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर में ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में मेरे दिलाराम शिव बाबा चमक रहे हैं। अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर *जैसे ही मैं बाबा के पास पहुंचती हूँ एक बहुत ही विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रही हूं बाबा का स्वरूप जैसे बहुत विशाल हो गया है*। हजारों की संख्या में ब्राह्मण बच्चे अपने फ़रिशता स्वरूप में वहां आ रहें हैं और एक साथ बाबा की बाहों में समाते जा रहें हैं। *बाबा हर बच्चे को आओ मेरे दिलतख्तनशीन बच्चे कह कर अपने दिल रूपी तख्त पर बिठा रहे हैं*। बाबा के दिलतख्तनशीन बन सभी खुशी में झूम रहें हैं। सभी को परमात्म शक्तियों से बाबा भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ अब बाबा अपने सभी फ़रिशता बच्चों को सम्बोधित करते हुए कह रहें हैं, हे मेरे मीठे सिकीलधे बच्चों:- "बाबा चाहते हैं कि मेरे सभी बच्चे बाप समान बन बाप के दिलतख्तनशीन बनें"। सभी बच्चे अधिकारी बन भी सकते हैं। क्योकि सभी को एक ही जैसा गोल्डन चांस है। चाहे आदि में आने वाले हैं, चाहे मध्य में वा अभी आने वाले हैं। *बाप के दिलतख्तनशीन बनने का अधिकार सभी को है। किन्तु अधिकार लेने के लिये अधीनता के संस्कार को छोड़ना पड़ता है*। इसलिए पुराने आसुरी संस्कारों की अधीनता को छोड़ अधिकारी आत्मा बनो तो सहज ही बाबा के दिलतख्तनशीन बन जायेंगे।
➳ _ ➳ बाबा का दिलतख्तनशीन बनने के लिए पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारो को छोड़ने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अब मैं अपने फ़रिशता स्वरूप को छोड़ निराकारी आत्मा बन योग अग्नि में पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को भस्म करने के लिए चल पड़ती हूँ परमधाम। *आत्माओं की निराकारी दुनिया मे अब मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूँ। मेरे सामने मेरे दिलाराम शिव बाबा विराजमान हैं*। उनसे आ रही पवित्रता की शक्तिशाली किरणों की योग अग्नि में मेरे *पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और मैं उनके समान बनती जा रही हूं*।
➳ _ ➳ उनके साथ का यह मंगल मिलन मन को असीम सुख का अनुभव करवा रहा है। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मैं आत्मा सिमटती जा रही हूं। कभी मैं स्वयं को देखती हूं और कभी सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिया को। कितना प्यारा और अलौकिक मिलन है यह। *अपने शिव पिया के सानिध्य में मैं स्वयं को धन्य धन्य अनुभव कर रही हूं। वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे हैं और प्युरीफाई कर आप समान बना रहे हैं*। इस दिव्य अलौकिक मिलन का सुंदर सुखमय अनुभव करने के बाद मैं निराकारी दुनिया से वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अब मैं अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो कर बाबा के दिलतख्तनशीन बनने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूं। *"बाबा का दिलतख्तनशीन बनना" अब मेरा केवल यही लक्ष्य है और इस लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर मालिकपन की स्मृति में रह अब मैं अधीनता के सब संस्कारों को छोड़ती जा रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा संगमयुग के समय का महत्त्व जान सदैव परमात्म दुआओं से झोली भरती हूँ।"*
➳ _ ➳ संगमयुग के एक एक क्षण की महत्ता को जान मैं ब्राह्मण आत्मा अपने इस अंतिम जन्म में बापदादा की श्रीमत पर पूरी बलिहार जाती हूँ... *इस कल्याणकारी संगमयुग में भगवान के अवतरण को प्रत्यक्ष निहारती... महसूस करती मैं आत्मा...* सिर्फ एक बाप की याद के पुरुषार्थ के बल से कर्मातीत अवस्था के उच्च शिखर पर अपने आप को पहुँचाने में जुट गयी हूँ... हर घड़ी अंतिम घडी समझ मैं आत्मा बिन्दुरूप बाप की यादों में खोयी रहती हूँ... अपनी खाली झोली परमातम प्यार से भरती ही रहती हूँ.... *बाबा के महावाक्य "अंत मती सो गति" को अपने मन बुद्धि में सुनहरे अक्षरों से अंकित करती मैं आत्मा संगमयुग के इन पावन क्षणों को बापदादा को समर्पित कर रही हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आज्ञाकारी बन बाप की वा परिवार की दुआओं के पात्र होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं अपने सच्चे सतगुरु की सच्ची-सच्ची... आज्ञाकारी संतान हूँ... *मात-पिता को फॉलो करने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ*... सदा हांजी का पार्ट बजाने वाली आत्मा हूँ... आज्ञाकारी बनने से मैं आत्मा सहज ही अपने लक्ष्य की और तेजी से बढ़ती जा रही हूँ... *आज्ञाकारी बनने से मैं आत्मा स्वतः ही बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर रही हूँ*... आशीर्वाद मिलना माना शक्ति मिलना... विजय का अनुभव करना... मन की स्थिति... *जैसा बाबा बनाना चाहते है वैसी बनती जा रही है*... जिस कारण खुशी भी बढ़ती जा रही है... और बाप से स्नेह की शक्ति और दुआएँ भी मिल रही है... *मुझ आत्मा से सभी को परिवारिक फीलिंग आने लगी है*... मैं आत्मा सभी के साथ खीर खण्ड बनती जा रही हूँ... आपसी स्नेह मुझ आत्मा को... *बाप का व परिवार की दुआओं के पात्र होने का अनुभव करा रहा है*...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
*✺ अव्यक्त बापदादा :-*
➳ _ ➳ *सेवाधारी अर्थात् बड़ों के डायरेक्शन को फौरन अमल में लाने वाले।* लोक संग्रह अर्थ कोई डायरेक्शन मिलता है तो भी सिद्ध नहीं करना चाहिए कि मैं राइट हूँ। भल राइट हो लेकिन लोकसंग्रह अर्थ निमित्त आत्माओं का डायरेक्शन मिलता है तो सदा - *‘जी हाँ', ‘जी हाजर', करना यही सेवाधारियों की विशेषता है, यह झुकना नहीं है, नीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है।* कभी-कभी कोई समझते हैं अगर मैंने किया तो मैं नीचे हो जाऊँगी, मेरा नाम कम हो जायेगा, मेरी पर्सनैलिटी कम हो जायेगी, लेकिन नहीं। मानना अर्थात् माननीय बनना, बड़ों को मान देना अर्थात् स्वमान लेना। तो ऐसे सेवाधारी हो जो अपने मान शान का भी त्याग कर दो। अल्पकाल का मान और शान क्या करेंगे। *आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है।* तो अविनाशी लेना है या अभी-अभी का लेना है? तो सेवाधारी अर्थात् इन सब बातों के त्याग में सदा एवररेडी।
➳ _ ➳ *बड़ों ने कहा और किया। ऐसे विशेष सेवाधारी, सर्व के और बाप के प्रिय होते हैं। झुकना अर्थात् सफलता या फलदायक बनना।* यह झुकना छोटा बनना नहीं है लेकिन सफलता के फल सम्पन्न बनना है। उस समय भल ऐसे लगता है कि मेरा नाम नीचे जा रहा है, वह बड़ा बन गया, मैं छोटी बन गई। मेरे को नीचे किया गया उसको ऊपर किया गया। *लेकिन होता सेकण्ड का खेल है। सेकण्ड में हार हो जाती और सेकण्ड में जीत हो जाती।* सेकण्ड की हार सदा की हार है जो चन्द्रवंशी कमानधारी बना देती है और सेकण्ड की जीत सदा की खुशी प्राप्त कराती जिसकी निशानी श्रीकृष्ण को मुरली बजाते हुए दिखाया है। तो कहाँ चन्द्रवंशी कमानधारी और कहाँ मुरली बजाने वाले! ‘तो सेकण्ड की बात नहीं है लेकिन सेकण्ड का आधार सदा पर है'। तो इस राज़को समझते हुए सदा आगे चलते चलो।
✺ *ड्रिल :- "बड़ों ने कहा और किया" - ऐसे विशेष सेवाधारी बनकर रहना।"*
➳ _ ➳ *भृकुटी सिंहासन पर विराजमान मैं आत्मा... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति...* अपने निज् गुण... निज् स्वधर्म को जान... बैठी हूँ एक बाप की लगन में मग्न होकर... न देह का भान... न इस दैहिक दुनिया का भान... अपने आप में मस्त... बैठी हूँ तपस्या धाम में... तपस्या धाम... पवित्र भूमि... भगवान के अवतरण की भूमि जहाँ *बापदादा से योग लगाना नहीं पड़ता... स्वतः ही लग जाता है... बापदादा से मन के तार को जुड़ने में पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता... वहाँ आप और बाप... बाप और आप ही दिखाई देते हैं...*
➳ _ ➳ *"तपस्या करनी हैं तो तपस्या धाम में जाओ..."* और मैं आत्मा तपस्या धाम में बैठी बापदादा का आह्वान करती हूँ... मन बुद्धि रूपी घोड़े को बाप की याद रूपी लगाम से मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ परमधाम... सुनहरे किरणों के प्रकाश की दुनिया में... पवित्रता... शांति का साम्राज्य छाया हुआ हैं जहाँ... देह की दुनिया से परे... अपने ओरिजिनल स्वरुप में... *मैं आत्मा बिन्दुरूप में बिन्दुरूपी बाप को और सभी आत्माओं को निहार रही हूँ... जो तन-मन-धन से... मंसा-वाचा-कर्मणा से एक बाप को प्रत्यक्ष करने पर लगे है...*
➳ _ ➳ हम सभी आत्मायें एक बाप की लगन में और अपने आप को सदा बाप के प्यार के झूले में झूलता अनुभव करते... सर्व शक्तियों से भरपूर होते जा रहें हैं... रंग बिरंगी किरणों की फाउंटेन में हम सभी आत्मायें परिपूर्ण होते जा रहे हैं... और *बाबा के साथ हम सभी आत्मायें पहुँचते हैं... सूक्ष्म वतन में... जहाँ ब्रह्मा बाबा हमारा इंतजार कर रहे थे...* शिवबाबा का ब्रह्मा बाबा के सूक्ष्म शरीर में प्रवेश और हमारा बिन्दुरूप से फ़रिश्ता स्वरुप में परिवर्तन का यह नजारा सूक्ष्म वतन में पूनम के चाँद के जैसे चांदनी बिखेर रहा हैं...
➳ _ ➳ दिव्य स्वरूप वह ब्रह्मा बाबा का... अलौकिकता से भरे नयनों से प्यार की वर्षा.. हम सभी आत्माओ को भीगाता जा रहा हैं... ब्रह्मा तन में विराजमान शिवबाबा ने मुरली चलाई... "मेरे लाडले बच्चों..." और हम सभी फ़रिश्ते झूम उठे... बाबा ने कहा... "बच्चे सेवाधारी हो कि अथक सेवाधारी हो? सेवा में क्या मेरेपन की भावना और मैंने किया यह संकल्प तो हावी नहीं हो रहा है? *बड़ों ने कहा और किया।* ऐसे विशेष सेवाधारी, सर्व के और बाप के प्रिय होते हैं तो क्या विशेष सेवाधारी बन के रहते हो? *‘जी हाँ', ‘जी हाजर', करना यही सेवाधारियों की विशेषता है, यह झुकना नहीं है, नीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है।"*
➳ _ ➳ *"आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है... तो अविनाशी लेना है या अभी-अभी का लेना है? तो सेवाधारी अर्थात् इन सब बातों के त्याग में सदा एवररेडी..."* बापदादा की यह अमूल्य शिक्षाओं को हम सभी फ़रिश्ते आत्मायें अपने में धारण करते जा रहें हैं और मेरेपन के त्याग से अपने पुरूषार्थ को उच्च शिखर पर पहुँचा रहे हैं... अमूल्य शिक्षाओं के खजानों से भरपूर हम आत्मायें वापिस अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करते हैं और हर कार्य चाहे लौकिक हो या अलौकिक सेवा हो... मेरेपन के भावना से परे हो करके करते जा रहे हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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