━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 07 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢  *अंतरमुखी बन एक बाप से ही सुना ?*

 

➢➢  *रूहानी बाप की याद के नशे में रह भोजन बनाया व् खाया ?*

 

➢➢  *प्रवृति में रहते लोकिकता से न्यारे रह प्रभु का प्यार प्राप्त किया ?*

 

➢➢  *सदा खजानों से संपन्न और संतुष्ट स्थिति का अनुभव किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  *जैसे कोई भी व्यक्ति दर्पण के सामने खड़ा होते ही स्वयं का साक्षात्कार कर लेता है, वैसे आपकी आत्मिक स्थिति, शक्ति रुपी दर्पण के आगे कोई भी आत्मा आवे तो वह एक सेकेण्ड में स्व स्वरुप का दर्शन वा साक्षात्कार कर ले।* आपके हर कर्म में, हर चलन में रुहानियत की अट्रेक्शन हो। *जो स्वच्छ, आत्मिक बल वाली आत्मायें हैं वह सबको अपनी ओर आकर्षित जरूर करती हैं।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢  *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✺   *"मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*

 

✧  जो कुछ भी ड्रामा में होता है उसमें कल्याण ही भरा हुआ है, अगर यह स्मृति में सदा रहे तो कमाई जमा होती रहेगी। समझदार बच्चे यही सोचेंगे कि जो कुछ होता है वह कल्याणकारी है। क्यों, क्या का क्वेशचन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। *अगर स्मृति रहे कि यह संगमयुग कल्याणकारी युग है, बाप भी कल्याणकारी है तो श्रेष्ठ स्टेज बनती जायेगी। चाहे बाहर की रीति से नुकसान भी दिखाई दे लेकिन उस नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा निश्चय हो। जब बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता।*

 

✧  अभी पेपर बहुत आयेंगे, उसमें क्या, क्यों का क्वेशचन न उठे। कुछ भी होता है होने दो। *बाप हमारा, हम बाप के तो कोई कुछ नहीं सकता, इसको कहा जाता है 'निश्चय बुद्धि'।* बात बदल जाए लेकिन आप न बदलो - यह है निश्चय। कभी भी माया से परेशान तो नहीं होते हो? कभी वातावरण से, कभी घर वालों से, कभी ब्रह्मणों से परेशान होते हो? अगर अपने शान से परे होते तो परेशान होते हो। 'शान की सीट पर रहो'।

 

✧  साक्षीपन की सीट शान की सीट है इससे परे न हो तो परेशानी खत्म हो जायेगी। *प्रतिज्ञा करो कि 'कभी भी कोई बात में न परेशान होंगे, न करेंगे'।* जब नालेजफुल बाप के बच्चे बन गये, त्रिकालदर्शी बन गये, तो परेशान कैसे हो सकते? संकल्प में भी परेशानी न हो। 'क्यों' शब्द को समाप्त करो। 'क्यों' शब्द के पीछे बड़ी क्यू है।  

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢  *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *यह कर्मेन्द्रियाँ हमारी साथी हैं, कर्म की साथी हैं लेकिन मैं न्यारा और प्यारा हूँ अभी एक सेकण्ड में अभ्यास दोहराओ।* (बापदादा ने ड़िल कराई) सहज लगता है कि मुश्किल है? सहज है तो सारे दिन में कर्म के समय यह स्मृति इमर्ज करो, तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज करेंगे।

 

✧  क्योंकि सेवा वा कर्म को छोड सकते हो? छोडेगे क्या? करना ही है। तपस्या में बैठना यह भी तो कर्म है तो बिना कर्म के वा बिना सेवा के तो रह नहीं सकते हो और रहना भी नहीं है। क्योंकि *समय कम है और सेवा अभी भी बहुत है।* सेवा की रूपरेखा बदली है।

 

✧  लेकिन अभी भी कई आत्माओं का उल्हना रहा हुआ है। इसलिए *सेवा और स्व-पुरुषार्थ दोनों का बैलेन्स रखो।* ऐसे नहीं कि सेवा में बहुत बिजी थे ना इसलिए स्व-पुरुषार्थ कम हो गया। नहीं। और ही सेवा में स्व-पुरुषार्थ का अटेन्शन ज्यादा चाहिए। क्योंकि *माया को आने की मार्जिन सेवा में बहुत प्रकार से होती है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢  *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- टाइम वेस्ट ना कर बाप की याद में रह टाइम आबाद करना"*

 

_ ➳  एकांत में बैठी मैं आत्मा घडी की टिक-टिक को सुन रही हूँ... घडी की टिक-टिक जैसे कह रही हो समय बड़ा अनमोल, समझो इसका मोल... कोई भी पल खो न जाए, गया समय फिर हाथ न आए... *हर घडी अंतिम घडी की स्मृति से मैं आत्मा इस स्थूल देह को छोड़ सूक्ष्म शरीर धारण कर, इस स्थूल दुनिया को छोड़ सूक्ष्म वतन में प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...* मीठे मीठे बाबा संगमयुग के एक-एक सेकंड के अनमोल समय के महत्व को समझा रहे हैं...  

 

   *प्यारे बाबा टाइम वेस्ट ना करने की समझानी देते हुए कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में महकने और खिलने के खुबसूरत लम्हों में सदा ज्ञान के सुरीले नाद से आत्माओ को मन्त्रमुग्ध करना है*... सबका जीवन खुशियो से खिल उठे, सदा इस सुंदर चिंतन में ही रहना है... ईश्वर पिता के साथ भरे इस मीठे समय को सदा यादो से ही संजोना है...

 

_ ➳  *मैं आत्मा एक बाप की याद में रह टाइम आबाद करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में दीवानी सी... *ज्ञान रत्नों की बौछार सदा साथ लिए, खुशियो के आसमाँ से, आत्माओ के दिल पर बरस रही हूँ...* सबको मीठे बाबा का परिचय देकर हर पल पुण्यो की कमाई में जीजान से जुटी हूँ...

 

   *मीठे बाबा संगम युग की सुहावनी घड़ियों को सफल करने का राज बतलाते हुए कहते है:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता के प्यार से लबालब, संगम का यह अनोखा अदभुत समय. संसार की व्यर्थ बातो में, भाग्य के हाथो से, यूँ रेत सा न फिसलाओ... *ज्ञानी तू आत्मा बनकर ज्ञान की झनकार पूरे विश्व को सुनाओ...* ईश्वर पिता के साथ विश्व सेवा कर 21 जनमो का महाभाग्य पाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञानी तू आत्मा बन बाबा के ज्ञान रत्नों को चारों ओर बांटते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये *अमूल्य रत्नों को पूरे विश्व में बिखेर कर सतयुगी बहार ला रही हूँ...* हर पल यादो में खोयी हुई खुशियो में चहक रही हूँ... और ज्ञानी आत्मा बनकर अपनी रूहानी रंगत से बापदादा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...

 

   *मेरे बाबा मुझ पर वरदानों की रिमझिम बरसात करते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे कल्प का कीमती और वरदानी समय सम्मुख है... जिसे कन्दराओं में जाकर ढूंढ रहे थे, दर्शन मात्र को व्याकुल थे... *वो पिता दिलजान से न्यौछावर सा दिल के इतना करीब है...* जो चाहा भी न था वो भाग्य खिल उठा है... इस मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ, सबको ऐसा भाग्यशाली बनाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सच्ची सच्ची रूहानी सेवाधारी बन सारे विश्व में खुशियों को बाँटती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चा सुख पाकर 21 जनमो की खुशनसीब बन गयी हूँ... और यह ख़ुशी हर घर के आँगन में उंडेल रही हूँ... सारा विश्व खुशियो से भर जाये... *हर दिल ईश्वरीय प्यार भरा मीठा और सच्चा सुख पाये... यह दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अंतर्मुखी बन एक बाप से ही सुनना है, बाहरमुखता में नही आना है*"

 

 _ ➳  अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, एकांतवासी बन अपने शिव पिता के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते, असीम आनन्द का अनुभव करके मैं रियलाइज करती हूँ कि कितना सुकून है इस अंतर्मुखता में! *आज दिन तक मैं इस बात से कितनी अनभिज्ञ थी। इसलिए बाहरमुखता में, भौतिक संसधानों में सुख तलाश कर रही थी*। शुक्रिया मेरे शिव पिता का जिन्होंने आ कर मुझे अंदर की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलना सिखा कर ऐसे अथाह सुख का अनुभव करवाया। *तो अब मुझे अंतर्मुखी बन केवल अपने शिव पिता से ही सुनते, उनसे सदा मीठी - मीठी रूहरिहान करते इस असीम आनन्द का अनुभव निरन्तर करते रहना है*। बाहरमुखता में नही आना है।

 

 _ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करती अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने सत्य स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और *अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव करते, अंतर्मुखता की एक ऐसी असीम आनन्दमयी शांन्तचित स्थिति में स्थित हो जाती हूँ जहां किसी भी प्रकार की कोई आवाज, शोरगुल यहां तक की संकल्पों की भी हलचल नही*। इस गहन शांति की अवस्था में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन निकल कर चारों ओर वायुमंडल में फैल रहें है और आस - पास के वायुमंडल को शांत बना रहे हैं। *शांति की शक्तिशाली किरणों का एक शक्तिशाली औरा मेरे चारों तरफ निर्मित होता जा रहा है*।

 

 _ ➳  शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन चारों और फैलाती मैं चैतन्य शक्ति आत्मा अब सहजता से देह का आधार छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अंतरिक्ष को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परें मैं जागती ज्योति अब स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हैं जहां लाल प्रकाश ही प्रकाश है। चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियां दिखाई दे रही हैं*। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु का यहां अभाव है। केवल रूहें ही रूहें हैं इसलिए रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से। सम्बन्ध भी आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा।

 

 _ ➳  चैतन्य मणियों की जगमग करती इस अति सुंदर दुनिया में अब मैं स्वयं को महाज्योति अपने शिव पिता के सम्मुख देख रही हूँ जिनसे निकल रही प्रकाश की अनन्त किरणे पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही है। *मन्त्रमुग्ध हो कर इस अति सुंदर नजारे को मैं देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि महाज्योति मेरे शिव पिता से आ रही अनन्त गुणों और शक्तियों की ये किरणें मुझे अपनी ओर खींच रही हैं*। धीरे - धीरे मैं आत्मा अब उनकी ओर बढ़ रही हूँ। उनके समीप पहुंच कर उन्हें टच करके उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को अब मैं स्वयं में भर रही हूँ।

 

 _ ➳  बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरकर मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ और सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ और फिर से अपनी साकार देह का आधार ले कर इस कर्मभूमि पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। किन्तु अब मैं सदैव अंतर्मुखता में रहते केवल अपने शिव पिता से सुनते, हर सेकण्ड उन्हें अपने साथ अनुभव करती हूँ।

 

 _ ➳  *सर्व सम्बन्धो का सुख बाबा से लेते अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में बाबा की याद को बसा कर, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ एकांतवासी बन अपने प्यारे बाबा के सानिध्य में अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति अब मैं सदैव कर रही हूँ और बाहरमुखता से सहज ही दूर होती जा रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं प्रवृति में रहते लौकिकता से न्यारे रह प्रभु का प्यार प्राप्त करने वाली लगाव मुक्त्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢  इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा खजानों से संपन्न और संतुष्ट रहकर आती हुई परिस्थितियों को बदल देने वाली संपन्न आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢  इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। *आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है।* सबसे नम्बरवन त्याग का एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - *जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे।* समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार *त्याग श्रेष्ठ त्याग नहीं है।* शुरू से ही देखो *तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया।* नये- बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी।

 

 _ ➳  ब्रह्मा  का फल आप बच्चों को मिल रहा है। *तपस्या का प्रभाव इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है।* साथ में बच्चे भी हैंबच्चों की भी तपस्या है लेकिन निमित्त तो ब्रह्मा बाप कहेंगे। जो भी मधुबन तपस्वी भूमि में आते हैं तो ब्राह्मण बच्चे भी अनुभव करते हैं कि *यहाँ का वायुमण्डलयहाँ के वायब्रेशन सहजयोगी बना देते हैं।* योग लगाने की मेहनत नहींसहज लग जाता है और कैसी भी आत्मायें आती हैंवह कुछ न कुछ अनुभव करके ही जाती हैं। ज्ञान को नहीं भी समझते लेकिन *अलौकिक प्यार और शान्ति का अनुभव करके ही जाते हैं। कुछ न कुछ परिवर्तन करने का संकल्प करके ही जाते हैं।* यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव। 

 

✺   *ड्रिल :-  "मधुबन तपोभूमि की स्मृति से अलौकिक प्यार और शांति का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मधुबन की मधुर स्मृतियों को स्मृति में रख पहुँच जाती हूँ शान्ति स्तम्भ... *जहाँ प्यारे बापदादा बाहें पसारे खड़े मुस्कुरा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा की बाँहों में सिमट जाती हूँ... और बाबा को कहती हूँ बाबा- अब घर ले चलो... इस आवाज़ की दुनिया से पार ले चलो... बापदादा बोले:- बच्चे- मैं अपने साथ ले जाने के लिए ही आया हूँ... साथ जाने के लिए एवररेडी बनो... ब्रह्मा बाप समान त्यागी बनो...* बिंदु रूप में स्थित हो जाओ...

 

 _ ➳  *धन्य है आबू की धरती, जिस पर जहाँ- तहाँ फरिश्ते विचरण कर रहे हैं...* जिधर भी नजर जा रही है फरिश्ते ही घूमते नजर आ रहे हैं... जैसे की फरिश्तों की दुनिया को छोड़ कर सारे फरिश्ते इस धरा पर उतर आये हों... कैसा अद्भुत नजारा है यह जिसे निरन्तर देखते रहने का मन हो रहा है... *यहाँ-वहाँ फरिश्ते सर्व आत्माओं पर अपनी निःस्वार्थ स्नेह, निश्चल प्रेम वा सौहार्द भरी दिव्य रूहानी दृष्टि डालकर मनुष्य आत्माओं को परम सुख-शांति वा खुशी की अनुभूति करा रहे हैं...*  

 

_ ➳  मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के त्याग की कहानी शिव बाबा से सुन... अन्दर ही अन्दर दृढ़ संकल्प करती हूँ... *मुझ आत्मा को भी बाप समान बनना ही है...* जिस प्रकार ब्रह्मा बाबा ने पहली मुलाकात में ही अपना सारा व्यापार, सारे रिश्ते-नाते, समेट लिए... *उसी प्रकार मुझ आत्मा को भी अपना सब कुछ समेट लेने की शक्ति बापदादा से मिल रही है...* बापदादा की दृष्टि से निकलती हुई शक्ति की किरणें मुझ आत्मा में समा रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... ब्रहमा बाबा के साथ-साथ ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव मधुबन भूमि में समाया हुआ है... *यहाँ का वायुमंडल यहाँं के वाइब्रेशन मुझे सहज योगी बना देते हैं...* मैं आत्मा देख रही हूँ... कोई भी ब्राह्मण आत्मा जो मधुबन तपस्वी भूमि में आती है... तो अनुभव करती हैं कि... *यहाँ योग लगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती, सहज ही लग जाता है...* मैं आत्मा देख रही हूँ... कैसी भी आत्माएं आती हैं... वह कुछ ना कुछ अनुभव करके ही जाती हैं... ज्ञान को नहीं समझते लेकिन *अलौकिक प्यार और शांति का अनुभव करके ही जाते हैं...*

   

 _ ➳  *मैं आत्मा सदा बाप समान विश्व हूँ...* बाबा जैसी दृष्टि, बाबा जैसी वृत्ति, बाबा जैसी स्मृति, सदा बाप समान साक्षी दृष्टा स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करती हूँ... *मैं मास्टर ब्रहमा हूँ... मेरी चलन, दृष्टि, वृत्ति बाबा जैसी हो रही है... बाबा मेरी मस्तक मणि हैं...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━