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 24 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *ज्ञान ही मुख से रिपीट किय और कराया ?*

 

➢➢ *बाप को पुराना कखपन डे बैग- बेगेज ट्रान्सफर किया ?*

 

➢➢ *"सबको बाप का परिचय मिल जाए" - इसी एक चिंता में रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *याद और सेवा के आधार पर शक्तिशाली बन मायाजीत स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सर्व शक्तियों से संपन्न अवस्था का अनुभव कर विघन विनाशक बनकर रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *सोने की डालियों को छोड़ उड़ता पंछी स्थिति का अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  आज सभी मिलन मनाने के एक ही शुद्ध संकल्प में स्थित हो ना। *एक ही समय, एक ही संकल्प - यह एकाग्रता की शक्ति अति श्रेष्ठ है।* यह संगठन की एक संकल्प की एकाग्रता की शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। *जहाँ एकाग्रता की शक्ति है वहाँ सर्व शक्तियाँ साथ हैं।* इसलिए एकाग्रता ही सहज सफलता की चावी हैं। *एक श्रेष्ठ आत्मा के एकाग्रता की शक्ति भी कमाल कर दिखा सकती है तो जहाँ अनेक श्रेष्ठ आत्माओं के एकाग्रता की शक्ति संगठन रूप में है वह क्या नहीं कर सकते।* जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ श्रेष्ठता और स्पष्टता स्वत: होगी। किसी भी नवीनता की इन्वेन्शन के लिए एकाग्रता की आवश्यकता है। चाहे लौकिक दुनिया की इन्वेन्शन हो, चाहे आध्यात्मिक इन्वेन्शन हो। *एकाग्रता अर्थात एक ही संकल्प में टिक जाना।* एक ही लगन में मगन हो जाना। *एकाग्रता अनेक तरफ का भटकाना सहज ही छुडा देती है।* जितना समय एकाग्रता की स्थिति में स्थित होंगे उतना समय देह और देह की दुनिया सहज भूली हुई होगी। क्योंकि उस समय के लिए संसार ही वह होता है, जिसमें ही मगन होते। *ऐसे एकाग्रता की शक्ति के अनुभवी हो?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सच्चे प्रीतम को याद कर, प्रीतम साथ घर चलना"*

➳ _ ➳  प्रकर्ति के शांत और सुखद मिजाज का आनन्द लेते हुए... मै आत्मा अपने स्वाभाविक गुण प्रेम के बारे में चिंतन करती हूँ... और साथ ही सच्चे प्रेम की अनुभूति कराने वाले महाप्रेमी मीठे बाबा... की गहरी यादो में डूब जाती हूँ... मेरी यादो के सदा दीवाने बाबा भी वहाँ मौजूद होकर... मुझ आत्मा को प्रेम तरंगो से भर रहे है... मै आत्मा सच्चे ईश्वरीय प्रेम से सजे हुए, अपने भाग्य पर बलिहार हूँ... और *मीठे बाबा के हाथो में अपना हाथ देकर, सदा की प्रेम तृप्ति को पा रही हूँ.*..
 
❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम के अहसासो में डुबोते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह की दुनिया के दैहिक प्रेम में स्वयं को निस्तेज कर, दामन को विकर्मो से भर दिया है... अब सच्ची यादो में डूबकर जीवन को दिव्य गुणो का पर्याय बनाओ... और माया के हर प्रभाव से मुक्त होकर, *मीठे बाबा के साथी बन, साथ साथ घर चलने की तैयारी करो.*.."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने सच्चे प्रीतम बाबा को पाकर भाव विभोर हो कहती हूँ :- "प्यारे बाबा आपने जीवन में आकर जीवन को सच्ची खुशियो से सजाया है... दैहिक आकर्षणों से मुक्त कराकर मुझ आत्मा को सच्ची चमक से रौशन किया है... और *पवित्रता से सजाकर अपने साथी पन का अहसास कराया है.*.."
 
❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को गहरे सुखो के राज बताते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वरीय याद के हाथ को थाम कर... सहज ही मायावी दलदल से बाहर निकल, अपने ओजस्वी दमक में मुस्कराओ... हर साँस हर संकल्प को यादो के तारो में पिरो दो... और *ईश्वर पिता का हाथ पकड़ कर हँसते, मुस्कराते हुए घर की ओर रुख करो.*..
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को बड़े प्यार से मुस्कराते हुए निहार कर कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मनुष्य साथियो के पीछे खपकर मै आत्मा कितनी कलुषित हो गयी... आपने जीवन में आकर ज्ञान अमृत से मुझे उजला बनाकर मेरा खोया वजूद याद दिलाया है... *आप सच्चे प्रीतम को पाकर, मै आत्मा प्रेम दरिया बन, सबको स्नेह से सींच रही हूँ.*..

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा पर वरदानों की बौछारों में भिगो कर बोले :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... देह के आकर्षण ने विकर्मो में लिप्त कराकर सदा का दीन हीन बनाया... *अब श्रीमत के हाथो में पल और ईश्वरीय यादो में डूबकर देवताई खूबसूरती से सज जाओ*... और मनमीत बाबा के साथ हाथो में हाथ लिए नाचते, गाते खुशियो में झूमते अपने घर में चलो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में झूमती हुई खुशियो संग चहकती हुई कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... मनुष्य प्रेम में कितना भटकी, पर सच्चे प्यार की बून्द भी पा न सकी... और ही गर्त में गिरती चली गयी... *आज आपने अपनी बाँहों में भरकर, मुझे सच्चे प्यार की मीठी अनुभूतियों में डुबोकर*... देवताई सुंदरता और अपने सच्चे साथ का अनुभव से महाभाग्यशाली बना दिया है..." अपने प्यार का इजहार मनमीत बाबा से करके... मै आत्मा अपने भृकुटि सिहांसन पर आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाबा के साथ वापिस जाने के लिए पुराना कखपन दे बैग बैगेज ट्रांसफर कर देना*"

➳ _ ➳  अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे अपने निराकारी घर परमधाम में हूँ। मुझ आत्मा में पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *सर्व गुणों, सर्व शक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ*। मेरा स्वरूप रीयल गोल्ड के समान अति चमकदार है। पवित्रता की लाइट मुझ आत्मा से निरन्तर निकल रही है।

➳ _ ➳  अपनी इसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा अपनी निराकारी दुनिया परमधाम को छोड़ इस सृष्टि रंगमंच रूपी *कर्मभूमि पर पार्ट बजाने के लिए, सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप धारण कर सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई दुनिया मे अवतरित होती हूँ*। एक ऐसी दुनिया जिसे स्वर्ग कहतें हैं, जो मेरे पिता परमात्मा ने मेरे लिए स्थापन की थी। जहां अपरमपार सुख, शांति और सम्पन्नता थी।

➳ _ ➳  लक्ष्मी नारायण के इस सुखमयी राज्य में दो युग अपरमपार सुख भोगने के बाद मैं आत्मा जब द्वापरयुग में आई तो देह भान में आ कर विकारो में गिरने से मुझ आत्मा की कलाये कम हो गई। *मैं आत्मा जो सच्चा सोना थी, अब कॉपर की बन गई और अपने गुणों, अपनी शक्तियों को ही भूल गई*। कलयुग अंत तक आते आते मै आत्मा बिल्कुल कला विहीन हो गई। सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से तमोप्रधान अवस्था मे पहुंच गई। किन्तु संगमयुग पर मेरे पिता परमात्मा ने आ कर मुझे स्वयं अपना और मेरा यथार्थ परिचय दे कर राजयोग द्वारा मुझे फिर से चढ़ती कला में जाने की यथार्थ विधि बता दी।

➳ _ ➳  बाबा ने आ कर यह स्पष्ट कर दिया कि अब यह सृष्टि का नाटक पूरा हुआ इसलिए मुझे वापिस अब उसी सतोप्रधान अवस्था मे अपनी उसी निराकारी दुनिया परमधाम लौटना है जहां से मैं आत्मा अपनी सपूर्ण सतोप्रधान अवस्था के साथ आई थी। *अपने पिता परमात्मा के साथ वापिस अपने धाम जाने के लिए अब मुझे सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है* इसके लिए पुराना कखपन बाबा को दे बैग बैगेज सब ट्रांसफर कर देना है।

➳ _ ➳  बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर अब मैं आत्मा राजयोग के द्वारा अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बन फिर से सतयुगी राजाई प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर रही हूं। *देह भान में आने के कारण मुझ आत्मा पर विकारों की जो कट चढ़ गई थी उन विकारों की कट को अपने पिता परमात्मा की याद से, योगअग्नि द्वारा भस्म करने के लिए मैं आत्मा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, मन बुद्धि से अब जा रही हूँ परमधाम*।

➳ _ ➳  अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने प्राणेश्वर शिव बाबा के सम्मुख देख रही हूं। मुझ पर निरन्तर मेरे प्राणेश्वर बाबा की शक्तिशाली किरणे पड़ रही हैं। इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं शक्ति स्वरूप बन रही हूं। *अपने प्यारे परमपिता परमात्मा की सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर और अमर भव का वरदान ले कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में*। मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है।

➳ _ ➳  इस सत्यता को अब मैं जान गई हूं कि यह सृष्टि नाटक अब पूरा हुआ और इस नश्वर संसार को छोड़ अब मुझे अपने शिव पिता के साथ वापिस अपने धाम जाना है। इस विनाशी दुनिया का कोई भी सामान साथ नही जा सकता इसलिए *बाबा के साथ वापिस जाने के लिए पुराना कखपन दे बैग बैगेज भविष्य नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देने में ही कल्याण है*। इस बात को स्मृति में रख तीन स्मृतियों का तिलक सदा मस्तक पर लगाये अब मैं बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रह, विकारों रूपी कखपन बाबा को दे,भविष्य नई दुनिया के लिए अपने जीवन को हीरे तुल्य बना रही हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में याद और सेवा द्वारा शक्तिशाली बनती हूँ।"*

 

 _ ➳  सृष्टि के रचयिता... शिवपिता द्वारा चुनी हुई... मैं ब्राह्मण आत्मा... प्रभु पसंद... पदमापदम भाग्यशाली हूँ... मेरा ब्राह्मण जीवन... हीरे तुल्य... अमूल्य है... इसका एक-एक श्वांस, संकल्प, सेकण्ड... वैल्युबुल हैं... *मुझ ब्राह्मण जीवन का आधार ही... याद और सेवा है... मैं आत्मा शिव बाबा की छत्रछाया में... स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ*... बाबा का अविनाशी हाथ... और साथ ले कैसी भी सरकमस्टांस हो... उसे पार करती जा रही हूँ... कोई सहयोग... किसी के साथ की कमी अनुभव नहीं हो रही... बाप की निरंतर याद से... मैं आत्मा तीव्र गति से बढ़ रही हूँ... *अकेले हूँ... अकेले जाना है... एक अकेले को याद कर... हर कर्म करते विजयी बनती जा रही हूँ*... फॉलो ब्रह्मा बाबा कर... निःस्वार्थ सेवा कर रही हूँ... याद और सेवा के डबल लॉक से... मायाजीत बन गई हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सर्वशक्तियों से संपन्न बनकर विघ्न-विनाशक स्थिति का अनुभव करना "*
 
➳ _ ➳  मैं सर्वशक्ति संपन्न आत्मा... विघ्न विनाशक स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा... इन विघ्नों से मजबूत और शक्तिशाली हूँ...* विजयी रत्न हूँ... मैं स्थूल और सूक्ष्म कर्मेंद्रियों पर राज्य करने वाली आत्मा हूँ... शक्ति सेना को कंट्रोल में रखने वाली... शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ... विघ्नों पर मुझ आत्मा की विजय निश्चित है... *विघ्न तो मुझ आत्मा की लग्न को आगे बढ़ाने के लिए ही आते हैं... उन्हें खेल समझते हुए उन पर जीत प्राप्त करती जा रही हूँ...* अनुभवी मूर्त बन रही हूँ... सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है... मुझ सफलता मूर्त के आगे... कोई भी विघ्न पुरुषार्थ में रुकावट नहीं डाल सकता... *मुझ आत्मा की शक्तिशाली योगयुक्त स्थिति के आगे... समस्या व विघ्न शक्तिहीन होकर नष्ट होते जा रहे हैं...*

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अच्छा - बाकी एक बारी मिलने का रहा हुआ है। वैसे तो साकार द्वारा मिलन मेले काइस रूपरेखा से मिलने का आज अन्तिम समय है। प्रोग्राम प्रमाण तो आज साकार मेले का समाप्ति समारोह है फिर तो आगे की बात आगे देखेंगे। एकस्ट्रा एक बाप का चुगा भी मिल जायेगा। लेकिन इस सारे मिलन मेले का स्व प्रति सार क्या लियासिर्फ सुना वा समाकर स्वरूप में लायाइस मिलन मेले की सीजन विशेष किस सीजन को लायेगी? इस सीजन का फल क्या निकलेगा? *सीजन के फल का महत्व होता है ना! तो इस सीजन का फल क्या निकला! बापदादा मिला यह तो हुआ लेकिन मिलना अर्थात् समान बनना।* तो सदा बाप समान बनने के दृढ़ संकल्प का फल बापदादा को दिखायेंगे ना! ऐसा फल तैयार किया है? अपने को तैयार किया हैवा अभी सिर्फ सुना हैबाकी तैयार होना हैसिर्फ मिलन मनाना है वा बनना है

 

 _ ➳  जैसे मिलन मनाने के लिए बहुत उमंग-उत्साह से भाग-भाग कर पहुँचते हो वैसे बनने के लिए भी उड़ान उड़ रहे होआने जाने के साधनों में तकलीफ भी लेते हो। लेकिन उड़ती कला में जाने के लिए कोई मेहनत नहीं है। *जो हद की डालियाँ बनाकर डालियों को पकड़ बैठ गये होअभी हे उड़ते पंछीडालियों को छोड़ो। सोने की डाली को भी छोड़ो। सीता को सोने के हिरण ने शोक वाटिका में भेजा। यह मेरा मेरा हैमेरा नाममेरा मान, मेरा शानमेरा सेन्टर यह सब - सोने की डालियाँ हैं।* बेहद का अधिकार छोड़हद के अधिकार लेने में आ जाते हो। मेरा अधिकार यह हैयह मेरा काम है - इस सबसे उड़ते पंछी बनो। इन हद के आधारों को छोड़ो। तोते तो नहीं हो ना जो चिल्लाते रहो कि छुड़ाओ। छोड़ते खुद नहीं और चिल्लाते हैं कि छुड़ाओ। तो ऐसे तोते नहीं बनना। छोड़ो और उड़ो। छोड़ेंगे तो छूटेगें ना! बापदादा ने पंख दे दिये हैं - पंखो का काम है उड़ना वा बैठनातो उड़ते पंछी बनो अर्थात् उड़ती कला में सदा उड़ते रहो। समझा - इसको कहा जाता है सीजन का फल देना।

 

✺   *"ड्रिल :- सोने की डालियों को छोड़ उड़ता पंछी स्थिति का अनुभव करना।*

 

 _ ➳  सफेद चमकीली ड्रेस पहने हुए मैं आत्मा अपने आप को देख रही हूं... और *बाबा से पवित्रता की किरणें लेकर अपनी ड्रेस को और भी चमकीली अनुभव कर रही हूं... जैसे जैसे मैं अपनी सफेद चमकीली पोशाक को और भी चमकीला अनुभव करती हूं... वैसे वैसे मैं देखती हूं कि बाबा ने मुझे तो उड़ने के लिए पंख भी लगा दिए हैं... जो मुझे इस दुनिया से ऊपर की और उड़ा कर ले जाएंगे... और मैं अपने आपको इस हलचल भरी संकल्पों की इस दुनिया से दूर परमधाम में अनुभव करती हूँ...* जैसे ही मैं वह पंख धारण करती हूं... मैं आकाश में उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते अपने आपको बहुत ही हल्के पक्षी के पंख के रूप में अनुभव करती हूं...

 

 _ ➳  और  इस हल्केपन की स्थिति को फील करते हुए... मैं अपने आप को एक मायावी पेड़ की शाखा पर अनुभव करती हूँ... तभी मैं सोचती हूं कि यह मायावी पेड़ जो मुझे आकर्षित कर रहा है... यह मुझे उड़ने से रोक रहा है... परंतु मैं इस पेड़ की शाखा में अपने आप को नहीं फंसने दूंगी... और अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उड़ने का प्रयास करुंगी... इतना संकल्प कर मैं फरिश्ते समान चमकीली ड्रेस पहनकर फिर से खुले वातावरण में और खुले आसमान में उड़ने लगती हूं... और *उड़ते-उड़ते सफेद पोशाक में मैं मधुबन बाबा मिलन में आकर बैठ जाती हूं... और अपने आप को बापदादा के सामने अनुभव करती हूँ... बापदादा मुझे अपनी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं... और मैं बापदादा द्वारा दी हुई दृष्टि को अपने अंदर समाती जा रही हूं...*

 

 _ ➳  और उस दौरान मुझे यह आभास होता है कि... मानो बाबा मुझे कह रहे हो कि... आज तुम यहां से अपने आप को पके हुए फल की भांति समझकर जाओ... क्योंकि सभी पके हुए फल ही पसंद करते हैं... अर्थात यहां से सभी शक्तियों से परिपूर्ण होकर जाओ... ताकि तुम अपनी शक्तियों से सभी आत्माओं को तृप्त कर सको... और इस रूहानी मिलन का असल फल प्राप्त कर सको... मेरे मन में जैसे ही यह संकल्प उत्पन्न होता है... मेरा मन अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता है... और *मैं अपने आपको शक्तियों से भरे हुए फल के समान अनुभव करती हूं... जो सभी शक्तियों रुपी मिठास प्राप्त किए हुए हैं... और अपने मन में यह भाव लेकर अपने अगले संकल्प की ओर प्रस्थान करती हूं... और अगला भाव जो मेरी मन बुद्धि में आता है... कि मेरेपन की भावना को समाप्त करते हुए मुझे निमित्त भाव से हर कर्म करना है...*

 

 _ ➳  अब मैं अपने आपको इन रुहानी संकल्पों से परिपूर्ण करके फिर से उड़ जाती हूं... नीले आसमान में... और स्वतंत्र अवस्था में मैं अपने इन शुद्ध संकल्पों का इस सृष्टि पर रहने वाली आत्माओं पर उपयोग कर रही हूं... मैं उन्हें इन पवित्र संकल्पों के द्वारा उनके पुराने आसुरी संस्कारों को समाप्त करने का प्रयास कर रही हूं... और उन सभी आत्माओं को हंसते खिलखिलाते हुए देख रही हूं... जो पहले मेरेपन की बीमारी से पीड़ित थे... वह अब निमित्त भाव में रहकर खुशनुमा जीवन जी रहे हैं... अब मैं एक सफेद रंग की इस ड्रेस को गहराई से फील करते हुए... और इस हल्केपन की स्थिति को अनुभव करते हुए... धीरे-धीरे इस धरा पर आने का प्रयत्न करती हूं... और *मेरे रास्ते में आती हुई हर छोटी बड़ी चीज को शांति की वाइब्रेशन देती जा रही हूं... हर चीज पवित्र होती जा रही है... और मेरी मन बुद्धि भी एकदम शांत अवस्था में इस भाव को अनुभव कर रहे हैं...*

 

 _ ➳  और अब मैं जैसे-जैसे नीचे आती हूं... मुझे वह सभी पेड़ पौधे और शाखाएं दिखाई देती है... परंतु अब वह मुझे सोने के पिंजरे रूपी बेड़ियां दिखाई देती है... मैं उनकी सुंदरता को बस दूर से निहार कर आगे बढ़ जाती हूं... और प्रकृति को पवित्र वाइब्रेशन देती हुई नीचे की तरफ आती जा रही हूं... अपने आप को इस अवस्था में पाकर, मैं आत्मिक स्थिति से अपने आप को बहुत ही गहराई से अनुभव करती हूँ... इस स्थिति को पूर्ण रूप से समझ कर अब *जब भी आसमान में उड़ता परिंदा देखती हूं... तो अपने आप को इसी अवस्था में फील करती हूं... और परमात्मा का बार-बार इस स्थिति के लिए धन्यवाद करती हूं... और फिर से अपने आपको स्वतन्त्र परिंदे रूपी फरिश्ते समान स्थिति में अनुभव करती हूं... और उड़ जाती हूँ प्रभु मिलन की चाह में...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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