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 17 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *काम काज करते बाबा की याद में रहे ?*

 

➢➢ *आत्मा भाई भाई हूँ की दृष्टि पक्की की ?*

 

➢➢ *दुःख सुख से न्यारी निर्संकल्प अवस्था का नुभव किया ?*

 

➢➢ *दिव्य गुणों रुपी प्रभु प्रसाद खाया और खिलाया ?*

 

➢➢ *सदा उमंग उत्साह का अनुभव किया ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  ब्राह्मणों की भाषा आपस में अव्यक्त भाव की होनी चाहिए। *किसी की सुनी हुई गलती को संकल्प में भी न तो स्वीकार करना है, न कराना है। संगठन में विशेष अव्यक्त अनुभवों की आपस में लेन-देन करनी है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  तो *उडती कला के लिए ब्रेक बहुत पॉवरफुल चाहिए।* जब पहाडी पर ऊँचे चढते हैं तो बार-बार क्या कहते हैं कि ब्रेक चेक करो, ब्रेक चेक करो। तो ऊंची अवस्था में जा रहे हो ना तो बार-बार ये ब्रेक चेक करो। कोई भी संकल्प वा संस्कार निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन कर सकते हैं और कितने समय में कर सकते हैं?

 

✧  समय है एक सेकण्ड का और आप पाँच सेकण्ड में करो तो क्या होगा? *तो अटेन्शन इस परिवर्तन शक्ति का चाहिए।* पहले स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व को परिवर्तन कर सकते हो। स्व-परिवर्तक बने हो?

 

✧  *पहले है स्व-परिवर्तक उसके बाद है विश्व-परिवर्तक।* क्योंकि अनुभव होगा कि व्यर्थ संकल्प की गति बहुत फास्ट होती है। एक सेकण्ड में कितने व्यर्थ संकल्प चलते हैं, अनुभव है ना फास्ट चलते हैं ना। तो ऐसे फास्ट गति के समय पॉवरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास चाहिए। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  विशाल बुद्धि बन पूरे विश्व को दुःखधाम से सुखधाम बनाने की सेवा करना"*

 

_ ➳ शिव जयंती समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित राजयोग चित्र प्रदर्शनी की तैयारियों में लगी मैं आत्मा... इन चित्रों को ध्यान से देख रही हूँ... *मुझ आत्मा को परमपिता ने आकर आत्मा, परमात्मा, सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दिया... मेरे ज्ञान चक्षु खोलकर मुझे त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बना दिया...* ऐसे प्यारे पिता को याद करते ही मेरे सामने आकर मुस्कुराते हुए खड़े हो जाते हैं...

 

   *मेरे प्यारे बाबा सृष्टि परिवर्तन के लिए रूद्र ज्ञान यज्ञ की ज्वाला प्रज्वलित करते हुए कहते हैं:-* "मेरे लाडले बच्चे... जो खजाने आपने पाये है उसे संसार में भी लुटाओ... सारे विश्व के बच्चों को मीठे पिता के आने का सन्देश दे आओ... *पूरे विश्व के कल्याण की विशाल सी बुद्धि को बनाओ... बड़ी बड़ी जगहों पर सेवाओ का लंगर चलाओ... पूरे विश्व को दुःखधाम से सुखधाम, पतित से पावन बनाने की सेवा करो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी स्वमान में स्थित होकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने जो खूबसूरत दौलत ज्ञान की आपसे पायी है... *वह विश्व में सबको सुनाकर सबके जीवन को खुशियो संग खिलाना है... सच्चे पिता के परिचय से उनके जीवन को भी महकाना है..."*

 

  *प्यारे बाबा प्रदर्शनी की तैयारियों को देखकर खुश होते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब हदो के छोटेपन से निकल विशाल ह्रदय से भर जाओ... पूरे विश्व में... भगवान आ गया है धरती पर यह गूंजा दो... *खूब प्रदर्शनियां आदि लगाओ और हर दिल पर ईश्वरीय खबर की दस्तक दे आओ..."*

 

 ➳ _ ➳  *मैं आत्मा प्रदर्शनी के इनविटेशन कार्ड्स घर-घर जाकर बांटते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा अपने मीठे बाबा का परिचय हर दिल को दे रही हूँ...* सबके सच्ची खुशियो का स्थायी पता बाँट रही हूँ... रूहानी सेवाधारी बन बेहद की सेवा में जुट गयी हूँ..."

 

   *मेरे बाबा विश्व कल्याण की बागडोर मेरे हाथों में सौंपते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्वस्तरीय सेवा कर सबके दुःख दूर करो... *विशाल बुद्धि बनकर बड़े बड़े प्लान बना कर विहंग मार्ग की सेवा में खप जाओ... टाइम सेफ करो, व्यर्थ नहीं गवाओं...* सबके जीवन को सुखो से भर आओ... सबका कल्याण कर विश्व को सुखो का सुंदर बगीचा बनाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाप समान मास्टर सुखकर्ता बन सबको दुखों से मुक्त होने का रास्ता बताने का संकल्प लेते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा हर दिल को खुशियो को पता देती जा रही हूँ... आपकी मीठी यादो में खोकर औरो को भी इस सुख का अधिकारी बना रही हूँ... *सब सुख शांति आनन्द से भर जाय... यह सेवा की अलख जगा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विकल्पों पर जीत प्राप्त कर दुख सुख से न्यारी निरसंकल्प अवस्था मे रहना है*"

 

_ ➳  हर प्रकार के संकल्प विकल्प से परें, एक अति न्यारी निरसंकल्प स्थिति में मैं आत्मा परमधाम में हूँ। *सर्वशक्तियों और सर्व गुणों के सागर अपने शिव पिता को दिव्य बुद्धि के नेत्र से निहारती हुई मैं असीम आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ*। मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियाँ अनन्त किरणों के रूप चारों और फैल रही है। *एक - एक किरण को ज्ञान के दिव्य चक्षु से मैं देख रही हूँ। यह अति सुंदर और लुभावना दृश्य मेरे मन को तृप्त कर रहा है*। बिना किसी संकल्प के एकटक उन्हें निहारते हुए मैं उनके इस अति सुंदर और मन भावन स्वरूप का रसपान कर रही हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्र एक सेकण्ड के लिए भी उनके इस स्वरूप से हटना नही चाहते।

 

_ ➳  जन्म - जन्मान्तर से उनसे बिछुड़ने की प्यास को मैं प्यासी आत्मा आज ही बुझा लेना चाहती हूँ। उनके प्रेम की गहराई में डूब कर उनके समान बन कर, मैं उनमें खो जाना चाहती हूँ। *उनकी किरणों रूपी बाहों में ऐसे समा जाना चाहती हूँ कि फिर कोई कभी मुझे उनसे अलग ना कर सके*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि मेरे शिव पिता ने अपनी किरणों रूपी बाहों के आगोश में मुझे भर लिया है। *बाबा की किरणों रूपी बाहों के सुंदर झूले में झूलती मैं आत्मा उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उनके साथ टच हो रही हूँ*। अपने शिव पिता के साथ टच होते ही मेरा स्वरूप भी उनके समान अति तेजस्वी, पूर्ण प्रकाशित हो गया है।

 

_ ➳  निर्संकल्प स्थिति में स्थित होकर मास्टर बीज रुप बन अपने बीज रुप परम पिता परमात्मा शिव बाबा को मैं बस निहारती ही जा रही हूँ। बिंदु बन बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का यह सुख परम आनंद देने वाला है। *बीज रुप परम पिता परमात्मा शिव बाबा से सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन निकल - निकल कर चारों ओर फ़ैल रहे हैं*। सर्व शक्तियों, सर्व गुणों रुपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे उन से निकल कर मुझ आत्मा पर पड़ रही है और मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। *परमात्म शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*।

 

_ ➳  शक्तिशाली बनकर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर फ़रिश्तों की अव्यक्त दुनिया सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। सामने अव्यक्त बापदादा बॉहें पसारे खड़े हैं। उनकी बाहों में मैं फ़रिशता जाकर समा जाता हूँ। *अपनी बाहों में समा कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर, बापदादा मुझे अपने पास बिठा लेते हैं*। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर बाबा मुझे विकल्पों पर जीत प्राप्त करके, दुख - सुख से न्यारी निरसंकल्प अवस्था मे रहने का वरदान देते हुए अपनी सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करने लगते हैं।

 

_ ➳  व्यर्थ संकल्पो विकल्पों पर विजय पाने का वरदान ले कर और स्वयं में परमात्म शक्तियाँ भर कर, अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ साकारी दुनिया में और अपने पांच तत्वों के बने शरीर में प्रवेश कर जाती हूँ। *परमात्म बल से स्वयं को सदा भरपूर रखते हुए, समर्थ चिंतन द्वारा समर्थ बनने का प्रयास अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*। कर्मो की गुह्य गति को स्मृति में रख, योग बल से अपने सभी पुराने हिसाब - किताब चुकतू कर रही हूँ। *दोबारा कोई हिसाब किताब ना बने इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए, विकल्पों पर जीत प्राप्त कर दुख सुख से न्यारी निरसंकल्प अवस्था मे रहने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दिव्य गुणों रूपी प्रभू प्रसाद खाने और खिलाने वाली संगमयुगी फरिश्ता सो देवता आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा उमंग उत्साह में रहने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सदा कहते हैं कि *किसी भी रूप में अगर एक बाबा का सम्बन्ध ही याद रहेदिल से निकले 'बाबा', तो समीपता का अनुभव करेंगें*। मन्त्र मुआफिक नहीं कहो 'बाबा-बाबा', वह राम-राम कहते हैं आप बाबा-बाबा कहतेलेकिन दिल से निकले 'बाबा!'

 

✺   *ड्रिल :-  "दिल से 'बाबा' कह समीपता का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान मैं आत्मा एक छोटी सी, नन्ही सी बच्ची का चोला पहने अपने शिव पिता की उंगली थामे चल पड़ती हूँ दुनिया की चकाचौंध को देखने। *बाबा की उंगली थामे मैं सारे विश्व का भ्रमण कर रही हूं। दुनिया के खूबसूरत नजारों का आनन्द ले रही हूँ*। एक स्थान पर लोगों की भीड़ देख कर मैं बाबा से वहां चलने का आग्रह करती हूँ। बाबा मुझे वहां ले आते हैं। मैं देख रही हूं यहां बहुत सुंदर मेला लगा है। मेले की एक एक चीज मन को आकर्षित कर रही है। *उन चीजों के आकर्षण में आकर कब बाबा का हाथ मेरे हाथ से छूट जाता है मुझे पता ही नही चलता*। मेले की चीजों के आकर्षण में आकर मैं अपने बाबा को ही भूल जाती हूँ।

मेला समाप्त होता है और सभी अपने घर लौट जाते हैं।

 

 _ ➳  स्वयं को अकेला पाकर अब मैं वापिस घर लौटने का रास्ता ढूंढती हूँ लेकिन कोई रास्ता नही मिलता। जहां से जाती हूँ भूलभुलैया की तरह हर रास्ता बंद मिलता है। घबरा कर मैं रोने लगती हूँ। *तभी कानो में आवाज आती है "दिल से बाबा कहो तो बाबा समीप है" अब मैं बाबा को दिल से पुकारती हूँ और देखती हूँ मेरे सामने मुस्कराते हुए मेरे बाबा खड़े हैं*। बाबा को देखते ही मैं दौड़ कर बाबा की बाहों में समा जाती हूँ। बाबा अपनी बाहों में उठाये अब मुझे उस भूलभुलैया से बाहर ले आते हैं। जैसे ही मैं उस भूल भुलैया से बाहर आती हूँ वैसे ही मेरी चेतनता लौट आती है।

 

 _ ➳  अब मैं विचार करती हूं कि ये दुनिया भी तो एक भूल भुलैया की तरह ही है। इससे बाहर निकलने का रास्ता कोई नही जानता। इसकी चकाचौंध में सब फंसे पड़े है। बाहर निकलना चाहते हैं लेकिन निकल नही पा रहें। दुखी हो रहें हैं, रो रहें हैं। लेकिन *मैं कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे मेरे शिव पिता मिल गए। जो दिल से बाबा कहते ही मेरे समीप आ जाते है और इस संसार की हर उलझन रूपी भूलभुलैया से पलक झपकते ही मुझे बाहर निकाल लेते हैं*।

 

 _ ➳  अपने प्यारे मीठे बाबा की मेहरबानियों को याद करते ही मुख से स्वत: ही निकलता है। "मेरे तो शिव बाबा एक, दूसरा ना कोई" और इसी लग्न में मग्न हो कर मैं जैसे ही दिल से बाबा कहती हूँ। बाबा को अपने समीप अनुभव करती हूँ और *इस समीपता का अनुभव करते - करते नश्वर देह का त्याग कर चल पड़ती हूँ अपने प्राणेश्वर बाबा के पास, उनके प्यार की शीतल छाया में बैठ स्वयं को तृप्त करने के लिए*। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने दिलाराम बाबा के पास। मेरे दिलाराम बाबा की समीपता मुझे परमआनन्द का अनुभव करवा रही है। *गहन शांति के अनुभवों मे मैं डूब रही हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं*। भरपूर हो कर मैं वापिस लौट रही हूँ और साकार सृष्टि पर कर्म करने हेतू फ़िर से अपने पांच तत्वों के बने भौतिक शरीर मे प्रवेश कर रही हूं।

 

 _ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और हर घड़ी मैं बाबा को अपने समीप अनुभव करती हूं। अब मेरे हर श्वांस में मेरे मीठे बाबा की याद बसी है। *मेरे नयनो में उनकी सूरत और सीरत समाई हुई है। मेरे कानों में उनके ही बोल हर समय गूंजते रहते हैं*। मेरा रोम - रोम उनकी याद से पुलकित हो रहा है। मेरे हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म में उनकी ही छवि है। मेरे मनबुद्धि की तार निरन्तर उनसे जुड़ी हुई है। मैं हर पल उनके लव में लीन हूँ। *दिल से बाबा कह अब मैं हर पल उन्हें अपने समीप अनुभव करती हूं*।

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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