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❍ 10 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनकर रहे ?*
➢➢ *कृपा मांगने की बजाये मात-पिता को फॉलो किया ?*
➢➢ *पढाई ध्यान से पडी और पढाई ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाया ?*
➢➢ *ज्ञान, गुण और शक्तियों का दान कर महादानी बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ सभी ब्रह्माकुमार और कुमारियों का विशेष कर्तव्य क्या है? ब्रह्मा बाप का विशेष कर्तव्य क्या है? *ब्रह्मा का कर्तव्य ही है - नई दुनिया की स्थापना।* तो *ब्रह्माकुमार और कुमारियों का विशेष कर्तव्य क्या हुआ? स्थापना के कार्य में सहयोगी।* तो जैसे अमेरिका में विनाशकारियों के विनाश की स्पीड बढ़ती जा रही है। ऐसे स्थापना के निमित बच्चों की स्पीड भी तीव्र है? वे तो बहुत फास्ट गति से विनाश के लिए तैयार है। ऐसे आप सभी भी स्थापना के कार्य में इतने एवररेडी तीव्र गति से जा रहे हो? उन्हों की स्पीड तेज है या आपकी तेज है? *वो 15 सेकण्ड में विनाश के लिए तैयार है और आप - एक सेकण्ड में?* क्या गति है?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्रता का पक्का व्रत रख, पवित्र बन, पवित्र दुनिया में जाना"*
➳ _ ➳ मीठे प्यारे बाबा की यादो में डूबी हुई मै आत्मा... अपने फ़रिश्ते प्रकाश को ओढ़कर सूक्ष्म वतन में पहुंचती हूँ... मीठे बाबा मुझे देख कर मुस्कराते हुए वरदानों की बौछार में मुझे भिगोने लगते है... *अपने आराध्य और मुझ आत्मा के मिलन् की प्यारी घड़ियों में वक्त ही ठहर गया है.*.. सारा आलम सुख और सुकून भरा है... सुख और आनन्द चहुँ ओर बिखर रहा है... और मुझ आत्मा की सुख अनुभूति से भरी सुख की किरणे स्थूल वतन तक फैल रही है... सारी प्रकर्ति और आत्माये सुख की अनुभूतियों में खोयी हुई है...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को पवित्रता के श्रंगार से सजाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... कभी तो भगवान के दर्शन की कामना रखते थे... और आज ईश्वर ही पिता बनकर सम्मुख बेठा है.. तो *पिता की यादो भरी गोद में बैठकर, पवित्रता की खुशबु से भर जाओ.*.. इस अंतिम जनम में पावनता के रंग में रंग पवित्र बन... घर चलने की तैयारी करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को मुझ आत्मा के भविष्य को सुनहरा करते देख कहती हूँ :- "प्राणप्रिय बाबा मेरे... मनमत और परमत के प्रभाव में आकर मै आत्मा कितनी पतित हो गयी थी... *आपने अपनी प्यार भरी बाँहों में भरकर, मुझे कितना पावन बना दिया है.*.. मै आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बनकर मुस्करा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा से पवित्रता के पक्के व्रत का वादा लेते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... मीठे बाबा के प्यारे साथ के, इस वरदानी संगम में पवित्रता का पक्का व्रत रखकर पवित्र बनो... यह अन्तिम जनम प्यारे बाबा के हाथो में सौंप दो... पावनता से जगमगाओ... *यही पवित्रता सच्चे सुखो का आधार है, जो अपार सुखो से दामन सजाएगी.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की गोद में ख़ुशी से झूमते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन कितना प्यारा और अदभुत बना दिया है... विकारी बनकर जो खुद की ही नजरो में गिर गयी थी... आज पावन बनकर फिर से गर्वित हो गयी हूँ... *पवित्रता ने मेरा खोया हुआ सम्मान दिलाकर, मुझे कितना ऊँचा बना दिया है.*.."
❉ मीठे बाबा मुझे अपने ज्ञान और याद की रश्मियों से लबालब करते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... देह भान को छोड़ मीठे बाबा की यादो के नशे में डूबकर... पावन बन मुस्कराओ... पवित्रता का पक्का पक्का व्रत रखो... और *अपनी वही चमक दमक को पाकर, अपूर्व सुखो के मालिक बन, खुशियो में खिलखिलाओ.*.. पवित्र बन कर, ही पवित्र दुनिया में जाना है...."
➳ _ ➳ मै आत्मा पवित्रता से सजधज कर मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... आप जीवन में न थे तो मै आत्मा कितनी काली पतित बनकर बुझ गयी थी, आपने आकर मेरी बुझी ज्योति को पुनः जगाया है... *मुझे पावनता से सजाकर मुझे कितना खुबसूरत बनाया है.. मेरा खोया श्रंगार वापिस दिलाया है.*.."प्यारे बाबा को दिल के सारे जज्बात सुनाकर मै आत्मा.. अपने साकारी तन में लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल पुष्प समान रहना*"
➳ _ ➳ परमधाम में मैं आत्मा पतित पावन, पवित्रता के सागर अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा से पवित्रता की शक्तिशाली किरणे लेकर स्वयं को पावन बना रही हूं। *बाबा से आ रही पवित्रता की श्वेत किरणों का ज्वालामुखी स्वरूप मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी 63 जन्मो के विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रहा है*। विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा धीरे धीरे अपने उसी सम्पूर्ण निर्विकारी सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूं जिसे देहभान में आ कर, विकारों में लिप्त हो कर मैंने गंवा दिया था।
➳ _ ➳ परमधाम में बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाकर, योग की अग्नि में तपकर मेरा स्वरूप सच्चे सोने के समान बन गया है। *सोने के समान उज्ज्वल बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ रही हूं और प्रवेश करती हूं सफेद प्रकाश की एक ऐसी दुनिया में जहां शिव बाबा अपने नन्दी अर्थात अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान हो कर हम बच्चों से अव्यक्त मिलन मनाते हैं*। इस स्थान पर पहुंच कर अपने लाइट के सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप को धारण कर मैं पहुंच जाती हूँ बापदादा के सामने। मैं देख रही हूं ब्रह्माबाबा की भृकुटि में शिव बाबा को चमकते हुए। बाबा की भृकुटि से पवित्रता का अनन्त प्रकाश निकल रहा है जिसकी किरणे पूरे सूक्ष्म लोक में फैल रही हैं। बापदादा से आ रही पवित्रता की शक्तिशाली किरणें मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे पावन बना रही हैं।
➳ _ ➳ अब बाबा मेरे समीप आ कर अपने वरदानी हाथ से मेरे मस्तक को छूते हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बहुत तेज करंट मेरे अंदर प्रवाहित होने लगा है जिसने मेरे अंदर की कट को पूरी तरह जला कर भस्म करके मुझे डबल लाइट बना दिया है। मैं फ़रिशता जैसे पवित्रता का अवतार बन गया हूँ। अब *बाबा अपना हाथ ऊपर उठाते हैं औऱ देखते ही देखते एक कमल का पुष्प बाबा के हाथ मे आ जाता है जो धीरे धीरे बढ़ने लगता है*। बाबा उस कमल पुष्प को मेरे सामने रख देते हैं और मुझे उस कमल आसन पर बैठने का इशारा करते हैं। *कमल आसन पर विराजमान हो कर, बापदादा से विजय का तिलक ले कर अब मैं फ़रिशता ईश्वरीय सेवा अर्थ नीचे पतित दुनिया मे लौट आता हूँ*।
➳ _ ➳ ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर स्वयं को सदा कमल आसन पर विराजमान अनुभव करने से मुझे अपने मस्तक पर निरन्तर सफ़ेद मणि के समान चमकता हुआ पवित्रता का प्रकाश सदा अनुभव होता है जिससे निरन्तर पवित्रता के शक्तिशाली प्रकम्पन निकल कर चारों ओर फैलते रहते हैं। *मेरे चारों ओर पवित्रता का एक ऐसा शक्तिशाली औरा बन चुका है जो मुझे हर प्रकार की अपवित्रता से बचा कर रखता है* और गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे कमल पुष्प समान पवित्र जीवन जीने का बल देता है।
➳ _ ➳ घर गृहस्थ में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू अब मैं चारों और फैला रही हूं। *लौकिक सम्बन्धों को अलौकिक बना कर, सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास मुझे प्रवृति में रहते हुए भी पर - वृति का अनुभव करवा रहा है*। अपने लौकिक सम्बन्धियो को देख कर मैं यही अनुभव करती हूं कि ये सब भी शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान हैं। ये सब भी शिव बाबा के बच्चे और मेरे भाई हैं। संसार के सभी मनुष्य मात्र मेरे भाई बहन है। वे सब भी पवित्र आत्मायें हैं। *इन्ही शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो के साथ, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्रता का श्रृंगार किये अब मैं सबको पवित्रता की राह पर चलने का रास्ता बता रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाती हूं।"*
➳ _ ➳ रोज सुबह-सुबह हम आत्माओं को अमृतवेले विश्व राज्य के विजय का तिलक वा माला लिए बापदादा हमें समक्ष मिल जाते हैं... बाबा की श्रीमत के अनुसार मैं आत्मा अब विजय का तिलक लगाती हूं... भक्ति की निशानी तिलक है और सुहाग ही निशानी भी तिलक है... *राज्य भाग्य प्राप्त करने की निशानी भी तिलक है... हम सभी आत्माओं को बाप के साथ का सुहाग है इसलिए यह तिलक अविनाशी है...* इसीलिए अभी मैं आत्मा *स्वराज्य तिलकधारी बनती हूं... जिससे भविष्य में बाबा से मुझे विश्व के राज्य का तिलक मिल जाएगा...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान, गुण और शक्तियों के दान द्वारा महादानी होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व अविनाशी खजानों से भरपूर हूँ... मैं सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा... गुणों, ज्ञान और शक्तियों का निरन्तर दान करती हूँ... बाबा से प्राप्त गुणों को अपने कर्मो में यूज़ कर, अपने गुणों को सहज ही सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ट्रांसफर करती हूँ... अर्थात अपने गुणों का दान करती हूँ... अनमोल ज्ञान रत्न को सबको बाँटती हूँ... और निरन्तर शक्तियों की बौछार कमजोर आत्माओं पर करती हूँ... मैं महादानी आत्मा हूँ... *मैं महादानी और वरदानी आत्मा... बाबा को अति प्यारी हूँ...* बाबा की अंखियो का नूर हूँ... ज्ञान, गुणों, शक्तियों की खुशबू से पूरे विश्व को महका कर... विश्व को परिवर्तन करने की निमित्त आत्मा हूँ... *मैं महादानी आत्मा सर्व की दुआओं की पात्र आत्मा हूँ...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ क्रोध
का कारण - *आपके जो संकल्प हैं वो चाहे उल्टे हों,चाहे
सुल्टे हों लेकिन पूर्ण नहीं होंगे - तो क्रोध आयेगा*।
मानो आप चाहते हो कि कान्फ्रेन्स होती है, फंक्शन
होते हैं तो उसमें हमारा भी पार्ट होना चाहिए। आखिर भी हम
लोगों को कब चांस मिलेगा?
आपकी इच्छा है और आप इशारा भी करते हैं लेकिन आपको चांस नहीं मिलता है तो
उस समय चिड़चिड़ापन आता है कि नहीं आता है?
➳ _ ➳
चलो, महाक्रोध
नहीं भी करो, लेकिन
जिसने ना की उनके प्रति व्यर्थ
संकल्प भी चलेंगे ना? तो
वह पवित्रता तो नहीं हुई। *आफर करना,
विचार देना इसके लिए छुट्टी है लेकिन विचार के पीछे उस विचार को इच्छा के रूप
में बदली नहीं करो। जब संकल्प इच्छा के रूप में बदलता है तब चिड़चिड़ापन भी
आता है*, मुख
से भी क्रोध होता है वा हाथ पांव भी चलता है। हाथ पांव चलाना-वह हुआ महाक्रोध।
लेकिन *निस्वार्थ
होकर विचार दो, स्वार्थ
रखकर नहीं कि मैंने कहा तो होना ही चाहिए-ये नहीं सोचो।*
➳ _ ➳ आफर
भले करो, ये रांग
नहीं है। लेकिन क्यों-क्या में नहीं जाओ। नहीं तो ईर्ष्या,
घृणा - ये एक-एक साथी आता है। इसलिए *अगर पवित्रता
का नियम पक्का किया, लगाव
मुक्त हो गये तो यह भी लगाव नहीं रखेंगे कि होना ही चाहिए। होना ही चाहिए, नहीं*।
आफर किया ठीक,
आपकी निस्वार्थ आफर जल्दी पहुँचेगी। स्वार्थ या ईर्ष्या के वश आफर और क्रोध पैदा
करेगी।
✺
*ड्रिल :- "सेवा में क्रोध मुक्त स्थिति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मन
रूपी झील में उठते सकंल्पों को मैं आत्मा साक्षी होकर देख रही हूँ*... मैं देखे
जा रही हूँ अपने हर संकल्प रूपी बीज को, *और
गहराई से निरीक्षण कर रही हूँ इसके उत्पन्न होने के कारण का*...
आहिस्ता-आहिस्ता संकल्प रूपी लहरें शान्त होती जा रही है... बिल्कुल शान्त...
शान्त झील में तैरते किसी हिमशैल के समान,
मैं
आत्मा अपने आस-पास शीतलता और पावनता का सृजन कर रही हूँ... झिलमिलाते हीरे के
समान मैं आत्मा अपनी आभा बिखेर रही हूँ... मेरे मस्तक पर अपनी किरणों का जाल
बिखेरते शिव सूर्य,
एकदम अद्भुत नजारा है... *सुनहरी किरणों को स्वयं में समाती हुई... स्वयं भी
केवल एक सुनहरी किरण बन निकल पडी हूँ अपनी रूहानी चैतन्य यात्रा पर सब कुछ पीछे
छोडती हुई...*
➳ _ ➳ मैं
आत्मा फरिश्ता रूप धारण कर सूक्ष्म वतन में... सूक्ष्म वतन आज बिल्कुल मधुबन की
तरह प्रतीत हो रहा है... वैसा ही बापदादा का कमरा,
कुटिया और वही शान्ति स्तम्भ... सुनहरे बादलों के अस्तित्व से बना है ये सुन्दर
मधुबन रूपी सूक्ष्म वतन... चारों तरफ घूमते फरिश्ते अपनी-अपनी सेवाओं में
मगन... *हिस्ट्री हाॅल में सन्दली पर फरिश्ता रूप में बैठे बापदादा... सेवा के
सब्जैक्ट के बारे में इशारा दे रहे हैं,
बाबा कहते- महाक्रोध,
चिडचिडापन और व्यर्थ संकल्पों का कारण है सेवा में कोई न कोई हद की इच्छा
रखना*... बापदादा समझाते जा रहे हैं और उनकी हर बात को गहराई से धारण करता हुआ
मैं लौट चला हूँ अपने स्थूल वतन की ओर... मगर मैं महसूस कर रहा हूँ कि अभी भी
इस सफर में बापदादा मेरे साथ है...
➳ _ ➳
हम
दोनों उतर जाते हैं एक सुन्दर बगीचे में... *गुलाब के फूलों पर मंडराती
मधुमक्खियाँ*... *सेवा रूपी शहद का निर्माण करती मधुमक्खियाँ*... मैं गहराई से
चिन्तन कर रहा हूँ इन्हें देखकर... और याद आ रहा है उनका शहद पान करने का
तरीका... *शहद का पान करती हुई कैसे स्वयं के पंखों और नन्हें पंजों को बचा
लेती है उसमें चिपकने से*... ताकि शहद का पान तो करे मगर पंख सलामत रहें...
*मुझे भी अपने मन बुद्धि रूपी पंखों को सेवा रूपी शहद की मिठास में चिपकने से
बचाना है... सेवा के विचार और सेवा कार्य सब करते हुए लगाव मुक्त रहना है...
लगाव नही होगा तो व्यर्थ सकंल्प,
चिडचिडाहट और महाक्रोध से मुक्त रह सकूँगा* तभी एक मधुमक्खी का उडकर मेरे कन्धे
पर बैठ जाना और *बापदादा का मुझे देखकर गहराई से मुस्कुराना... मानों वरदान दे
रहे हो सदा मन बुद्धि रूपी पंखों को सेवा रूपी शहद में न चिपकने का*...
➳ _ ➳
किस
तरह सेवाओं में क्रोध और उसके हर अंश से दूर रह सकता हूँ,
इसकी गहरी समझ लिए मैं आत्मा लौट आई हूँ अपनी उसी देह में... देख रही हूँ शान्त
और स्थिर मन की उस झील को... जिसमें बहुत कम संकल्प रूपी लहरें हैं,
ये
संकल्प पहले से मजबूत है *सेवा में लगाव मुक्त और क्रोध मुक्त रहने के*...
*संकल्पो में भी बस ट्रस्टी भाव ही बाकी है अब*... 'मेरा
मुझमें क्या बाकी,
किया हर संकल्प का तुमने तो सृजन... मनबुद्धि और प्राण तुम्हारे,
तुमने ही तो दिया ये नवजीवन...'
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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