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 19 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *पढाई का सिमरन करते रहे ?*

 

➢➢ *एक की ही अव्यभिचारी याद में रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान धन के स्थायी नशे में रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *परिवर्तन शक्ति द्वारा बीती को बिंदी लगाया ?*

 

➢➢ *मस्तक पर स्मृति का तिलक सदा चमकता रहा ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *प्रवृत्ति में आते 'कमल' बनना भूल न जाना।* वापिस जाने की तैयारी नहीं भूल जाना, *सदा अपनी अन्तिम स्थिति का वाहन - न्यारे और प्यारे बनने का श्रेष्ठ साधन - सेवा के साधनों में भूल नहीं जाना।* खूब सेवा करो लेकिन न्यारे-पन की खूबी को नहीं छोडना अभी इसी अभ्यास की आवश्यकता है। या तो बिल्कुल न्यारे हो जाते या तो बिल्कुल प्यारे हो जाते। इसलिए *न्यारे और प्यारे-पन का बैलेन्स' रखो।* सेवा करो लेकिन मेरे-पन' से न्यारे होकर करो। समझा क्या करना है? अब नई-नई रस्सियाँ भी तैयार कर रहे हैं। पुरानी रस्सियाँ टूट रही हैं। समझते भी है *नई रस्सियाँ बाँध रहे हैं क्योंकि चमकीली रस्सियाँ हैं।* तो इस वर्ष क्या करना है? बापदादा साक्षी होकर के बच्चों का खेल देखते हैं। रस्सियों के बंधन की रेस में एक-दो से बहुत आगे जा रहे हैं। इसलिए *सदा विस्तार में जाते सार रूप में रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पढ़ाई का सिमरन कर, सदा नशा रहे कि हमे पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है"*

 

_ ➳  मीठे बाबा को पाकर मुझ आत्मा का जीवन कितना प्यारा और खुशनुमा हो गया है... *सदा भगवान को पुकारता मेरा मन... आज उसकी मीठी यादो में, बातो में, ज्ञान रत्नों की बहारो में खिल रहा है.*.. भाग्य की यह जादूगरी देख देख मै आत्मा रोमांचित हूँ... प्यारे बाबा को दिल से पुकारती भर हूँ... कि भगवान पलक झपकते सम्मुख हाजिर हो जाता है... कितना शानदार भाग्य है कि भगवान मेरी बाँहों में है... इसी मीठे चिंतन में खोई हुई मै आत्मा... अपने प्यारे बाबा से मिलने... मीठे बाबा के कमरे की ओर रुख करती हूँ...

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे ज्ञान धन की अमीरी का नशा दिलाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ही शिक्षक बनकर, जीवन को सवांरने और देवता पद दिलाने आ गया है.*.. अपने इस मीठे भाग्य का, ईश्वरीय ज्ञान का, सदा सिमरन कर आनन्द में रहो... कितना ऊँचा भाग्य सज रहा है... भगवान बेठ निखार रहा है... सजा और संवार रहा है...

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान अमृत को पीती हुई कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... *आपकी प्यार भरी गोद में बैठकर मै आत्मा मा नॉलेजफुल बन रही हूँ..*. स्वयं को भी भूली हुई कभी मै आत्मा... आज बेहद की जानकारी से भरपूर हो गयी हूँ... यह सारा जादु आपने किया है मीठे बाबा... मुझे क्या से क्या बना दिया है..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने प्यार के नशे में भिगोते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में खोये रहो... मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ का स्वरूप बनकर विश्व को प्रकाशित करो... *ईश्वर पिता पढ़ाकर भाग्य को खुशियो का पर्याय बनाने आ गया है... इन मीठी खुशियो से सदा छलकते रहो..*."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान मणियो को दिल में आत्मसात करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन को सोने सा दमकता हुआ बना दिया है... *सच्चे ज्ञान के घुंघुरू पहनकर मै आत्मा... पूरे विश्व में खुशियो की थाप दे रही हूँ..*. कि भगवान को पाकर मेने सारा जहान पा लिया है..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने ज्ञान खजानो से सम्पन्न बनाते हुए कहा :-"मीठे सिकीलधे बच्चे...  *सदा ईश्वरीय ज्ञान की मौजो में डूबे रहो... जितना इन रत्नों को स्वयं में समाओगे, उतना ही सुखो में मुस्कराओगे.*.. ईश्वर पिता से पढ़कर त्रिकालदर्शी बन रहे हो यह कितने श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है...

 

_ ➳  मै आत्मा आनंद के सागर में खोकर प्यारे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने सत्य ज्ञान से मुझ आत्मा को सदा का नूरानी बनाया है..*. अंधेरो से निकाल कर ज्ञान की उजली राहों पर चलाया है... मै आत्मा आपको पाने के अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आपने कितना सुंदर मेरा भाग्य सजाया है..." मीठे बाबा से अपने दिल की सारी बाते कह मै आत्मा साकार जगत में आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- क्षीर सागर में जाने के लिए एक बाप से ही सच्ची प्रीत रखना*"

 

_ ➳  सागर के किनारे पर खड़ी मैं सागर से आ रही शीतलता का आनन्द ले रही हूं और अपने ही विचारों में खोई सोच रही हूं कि *ये सागर कितना महान है जो नदियों, नालो से आने वाले हर प्रकार के किचड़ें को स्वयं में समा लेता है और जो भी इसकी गहराई में जाने की हिम्मत रखता है वो इसकी गहराई में छुपे रत्नों को पाकर मालामाल हो जाता है*। ये विचार करते करते मैं देखती हूँ जैसा पूरा सागर दो भागों में बंट गया है। एक भाग में सांप, बिच्छु, टिंडन, कीड़े मकोड़े आदि चल रहे हैं जबकि दूसरा भाग रत्नों से भरा हुआ बहुत ही मनमोहक और सुंदर दिखाई दे रहा है।

 

_ ➳  सागर को दो भागों में बंटा देख मैं दुविधा में पड़ जाती हूँ और इस दुविधा से बाहर निकलने के लिए, इस रहस्य को जानने की  इच्छा मन मे लिए मैं अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में और अव्यक्त बापदादा के सामने जा कर खड़ी हो जाती हूँ। मुझे देखते ही बाबा स्वागत की मुद्रा में खड़े अपनी बाहें फैला लेते हैं। *स्नेह सिंधु बापदादा की बाहों में समा कर मैं फ़रिशता बाबा के असीम स्नेह से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ*। बाबा का कोमल स्पर्श, बाबा का स्नेह मुझ में असीम ऊर्जा का संचार कर रहा है। स्वयं को मैं बहुत ही एनरजेटिक और शक्तिशाली अनुभव कर रहा हूँ।

 

_ ➳  परमात्म बल और शक्तियों से मुझे भरपूर करके अब बाबा मेरे मन की दुविधा को दूर करने के लिए वही सीन मेरे सामने इमर्ज कर देते हैं और इशारे से मुझे समझाते है,देखो बच्चे:- " सागर के यह दो भाग विषय सागर और क्षीर सागर है। *इस विषय सागर में 5 विकारों रूपी सांप, बिछु, टिंडन आदि भरे पड़े है जो मनुष्य को डसते रहते हैं*। सारी दुनिया आज इसी विषय सागर में गोते खा रही है। दूसरा यह क्षीर सागर है जिसमे अविनाशी रत्नों के खजाने भरे पड़े है। जो भी मनुष्य इस क्षीर सागर में स्नान करता है वो देवता बन जाता है। किंतु *इस क्षीर सागर में जाने के लिए देह और देह के सम्बन्धो की झूठी प्रीत को छोड़ एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी पड़े*।

 

_ ➳  बापदादा के इशारे को स्पष्ट रीति समझ कर अपने मन की दुविधा को समाप्त करके मैं फ़रिशता मन ही मन संकल्प करता हूँ कि अब मुझे 5 विकारों रूपी विषय सागर में कभी नही फंसना। *मुझे तो क्षीर सागर में डुबकी लगा कर, ज्ञान परी बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के खजानों से सदा सम्पन्न रहना है*। मेरे इन संकल्पो को बाबा झट जान जाते हैं और मेरे मस्तक पर स्मृति का अविनाशी तिलक देते हुए मुझे सदा सफ़लतामूर्त भव का वरदान दे कर इस संकल्प को सिद्ध करने का बल मेरे अंदर भर देते हैं। *बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही शक्तियों की धाराएं मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे सिद्धि स्वरूप बना रही हैं*।

 

_ ➳  सिद्धि स्वरूप बन, इन संकल्पो को सिद्ध करने के लिए, एक बाप से साथ प्रीत की रीत निभाने के लिए फ़रिशता स्वरूप से अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *एक बाप से ही स्नेह जुटा कर, विषय सागर में ले जाने वाले देह के सम्बन्धियो से अब मैं अपनी प्रीत तोड़ चुकी हूं*। देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते भी मैं जैसे उनके प्रति नष्टोमोहा बन चुकी हूँ।

 

_ ➳  अब मैं अपने हर सम्बन्ध को अपने प्यारे, मीठे बाबा के साथ अनुभव कर रही हूं। उनके सिवाय मेरी दृष्टि और कहीं जा नही सकती। मेरी वृति में अब केवल वही हैं। *मैं उन्ही के संग खाती हूँ, उन्ही के सँग बैठती हूँ और उन्ही के संग हर कर्म करती हूँ*। अपने प्यारे मीठे बाबा के साथ अपने दिल की तार को जोड़ कर मैं उनके प्रति अपनी सच्ची प्रीत की रीत निभा रही हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा परिवर्तन शक्ति द्वारा बीती को बिंदी लगाने वाली निर्मल और निर्माण हूँ।* 

 

 _ ➳  *व्यर्थ संकल्पों को समर्थ में परिवर्तन करती मैं बीती को बिंदी लगाती हूँ... मेरा स्वरुप बिंदु रूपी आत्मा हैं न की यह शरीर हैं...* पुराने स्वाभाव को... पुराने संस्कारों को... बापदादा की परिवर्तन शक्ति द्वारा परिवर्तित करती हूँ... *जो एक सेकण्ड बीता वह पास्ट... बिंदी लगाती जा रही हूँ...* और अपने आप को व्यर्थ संकल्पों की जंजीरों से मुक्त करती जा रही हूँ... *व्यर्थ संकल्पों की जंजीरों से मुक्त बन मैं आत्मा... अपने पुरुषार्थ को तीव्र गति की हाई जम्प देती हूँ...* पुराने स्वभाव... पुराने संस्कारों को योग अग्नि रूपी हवन में स्वाहा करती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मस्तक पर स्मृति का चमकता तिलक लगा, सच्चे सुहाग की निशानी का अनुभव करना।"*

 

_ ➳  याद के आकर्षण में बंधी मैं आत्मा... साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ... उड़ता पंछी बन... अपने बाबा से मिलन मनाने के लिए... दिलाराम बाप के सानिध्य में... *मैं आत्मा आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ*...  दिलाराम बाप मुझ आत्मा से कहते है... मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे... *तुम बाप के दिलतख्त-नशीन हो*... तुम्हें सदा इसी नशें में रहना है... *मैं तख्तनशीन आत्मा हूँ* ... मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ जी बाबा... मैं आत्मा झूम उठती हूँ... बाबा ने मुझ आत्मा को दिल तख्त पर बिठा... मुझ आत्मा को स्मृति का तिलक लगा दिया... यह अविनाशी तिलक... *सदा सुहागन होने का अनुभव करा रहा है*... मुझ आत्मा को कितनी खुशी और नशा दिला रहा है... मस्तक पर चमकता यह स्मृति का तिलक... तख्तनशीन होने का अनुभव करा रहा है...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  कोई भी इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी। या इच्छा पूर्ण करो या अच्छा बनो। आपके हाथ में है। और देखा जाता है कि ये इच्छा ऐसी चीज है जैसे धूप में आप चलते हो तो आपकी परछाई आगे जाती है और आप उसको पकड़ने की कोशिश करोतो पकड़ी जाएगी? और आप पीठ करके आ जाओ तो वो परछाई कहाँ जायेगीआपके पीछे-पीछे आयेगी। तो *इच्छा अपने तरफ आकर्षित कर रुलाने वाली है और इच्छा को छोड़ दो तो इच्छा आपके  पीछे-पीछे आयेगी।*

➳ _ ➳  *मांगने वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता। और कुछ नहीं मांगते हो लेकिन रायल मांग तो बहुत है।* जानते हो ना-रायल मांग क्या हैअल्पकाल का कुछ नाम मिल जायेकुछ शान मिल जायेकभी हमारा भी नाम विशेष आत्माओं में आ जायेहम भी बड़े भाइयों में गिने जायेंहम भी बड़ी बहनों में गिने जायें, आखिर हमको भी तो चांस मिलना चाहिए।

➳ _ ➳  लेकिन *जब तक मंगता हो तब तक कभी खुशी के खजाने से सम्पन्न नहीं हो सकते।* ये मांग के पीछे या कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे ही समझो जैसे मृगतृष्णा है। इससे सदा ही बचकर रहो। छोटा रहना कोई खराब बात नहीं है। *छोटे शुभान अल्लाह हैं। क्योंकि बापदादा के दिल पर नम्बर आगे हैं।*

✺   *ड्रिल :-  "हद की इच्छाओं की मृगतृष्णा से मुक्त होने का अनुभव"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप की चमकीली ड्रेस पहनकर पहुंच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में... जहां मेरे प्यारे बापदादा बड़े प्यार से मुझे बुला रहे हैं... *मैं फरिश्ता बापदादा की बाहों में समा जाती हूँ... बापदादा गुणों और शक्तियों से मेरा श्रृंगार कर रहे हैं... अब बापदादा मेरा हाथ पकड़कर मुझे सैर पर ले जा रहे हैं...* मैं बाबा की किरणें सारे विश्व में फैला रही हूँ... मीठे बापदादा मुझे कभी पहाड़ों पर ले जाते हैं... कभी लहलहाते खेतों में... कभी मैदान में तो कभी रेगिस्तान में...

➳ _ ➳  अचानक मेरी नजर रेगिस्तान में चलते हुए उन यात्रियों की ओर जाती है... जो प्यास से बेहाल हैं... सूरज की चमकती किरणें जैसे जैसे रेत पर पड़ती है... तो उन्हें वहां पानी होने का भ्रम होता है और वे पथिक... उस ओर भागते चले जा रहे हैं... जहां पहुंचकर उन्हें सिर्फ निराशा हाथ लगती है...  तभी *कुछ दूरी पर आगे पानी होने का वही भ्रम होता है... और निराशा भरी भाग-दौड़ का सिलसिला चलता रहता है*...

➳ _ ➳  मैं फरिश्ता चिंतन करती हूँ कि... मेरा मन भी तो इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा में इसी तरह से भटक रहा था... इच्छाओं की गुलाम होकर मैं आत्मा भी इसी तरह से कष्ट पा रही थी... फिर *बाबा का मीठा ज्ञान सुनकर... उनका प्यार भरा हाथ अपने सिर पर पा कर... मैं आत्मा इच्छाओं की गुलामी से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा मन का मालिक बनती जा रही हूँ...* अंतहीन इच्छाओं के पीछे भागना तो ऐसे ही हो रहा था जैसे कि... मैं आत्मा अपनी परछाई को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी...

➳ _ ➳  इच्छाओं की भागमभाग में कभी स्व पर ध्यान ही नहीं दिया था लेकिन... अब मैं आत्मा स्व पुरुषार्थ पर ध्यान दे रही हूँ... इच्छाओं के, आसक्तियों के बंधनों से मुक्त होती जा रही हूँ... *मैं आत्मा स्थूल इच्छाओं से स्वयं को मुक्त करती जा रही हूँ... साथ ही स्व चेकिंग के द्वारा हर प्रकार की रॉयल, सूक्ष्म इच्छाओं से भी... मुक्त होती जा रही हूँ... हद के नाम मान शान की... रॉयल कामनाओं का भी त्याग करती जा रही हूँ*...

➳ _ ➳  मैं आत्मा दाता पिता की संतान हूँ... *मैं सब प्रकार के रॉयल भिखारीपन से मुक्त हूँ... मैं आत्मा ईश्वरीय खजानों से, खुशी के खज़ाने से संपन्न हूँ*... मैं आत्मा पूरी तरह संतुष्ट हूँ... तृप्त हूँ... सदा ईश्वरीय नशे और ख़ुमारी में मगन हूँ... बापदादा के स्नेह में समाकर उनके विशेष स्नेह का अनुभव कर रही हूँ... बापदादा के दिलतख्त पर स्थित होकर अपने श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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