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❍ 09 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *निंदा स्तुति में समान स्थिति रखी ?*
➢➢ *ज्ञान के नशे में रहे ?*
➢➢ *आत्माओं को लक्ष्मी नारायण की सच्ची जीवन कहानी सुनायी ?*
➢➢ *समस्याओं के पहाड़ को उडती कला से पार किया ?*
➢➢ *याद की वृत्ति से वायुमंडल को पावरफुल बनाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *लगाव की रस्सियों को चेक करो।* बुद्धि कहीं कच्चे धागों में भी अटकी हुई तो नहीं है? कोई सूक्ष्म बंधन भी न हो, अपनी देह से भी लगाव न हो - *ऐसे स्वतन्त्र अर्थात् स्पष्ट बनने के लिए बेहद के वैरागी बनो तब अव्यक्त स्थिति में स्थित रह सकोगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ अच्छा! सभी एक-दो के साथी हैं। विन करना सहज है। क्यों सहज है? (बाबा साथ है) और अनेक बार विजयी बने हैं तो रिपीट करने में क्या मुश्किल है। कोई नई बात करनी होती है तो मुश्किल लगता है और किया हुआ काम फिर से करो तो मुश्किल लगता है क्या?
〰✧ तो *कितनी बार विजयी बने हो?* कितना सहज है! *किये हुए कार्य में कभी क्वेचन नहीं उठेगा* - कैसे होगा, क्या होगा, ठीक होगा, नहीं होगा? किया हुआ है तो इजी हो गया ना। कितना इजी? बहुत इजी है! अभी इजी लग रहा है। वहाँ जा के मुश्किल हो जायेगा? *सदा इजी।*
〰✧ जब मुश्किल लगे तो याद करो - *कितने बारी किया है तो मुश्किल के बजाये इजी हो जायेगा।* सभी बहादुर हैं। क्या याद रखेंगे? बिन्दु बनना भी बिन्दु है, लगाना भी बिन्दु है। फुलस्टॉप लगाना अर्थात बिन्दु लगाना। तो इसको भूलना नहीं। अच्छा (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्वगुण संपन्न बनने के लिए आत्म अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना"*
➳ _ ➳ शरीर की प्रवृत्ति, लौकिक प्रवृत्ति, सेवा की प्रवृत्ति, स्वभाव संस्कार की प्रवृत्ति, सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारी होती हुई मैं आत्मा मन-बुद्धि को अपने भृकुटी के मध्य एकाग्र करती हूँ... *अपने जगमगाते हुए सत्य स्वरूप में टिकते ही मुझे परमात्मा की याद आने लगती है...* और मैं आत्मा उड़कर पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने प्यारे शिव बाबा के पास... बाबा से आती सतरंगी दिव्य किरणों से भरपूर हो रही हूँ... फिर शिव बाबा संग नीचे उतरते हुए पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... मैं सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करती हूँ... प्यारे शिवबाबा, ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं... मैं बाबा को निहारते हुए रूह-रिहान करने लगती हूँ...
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा में परमात्म शक्तियों का बल भरते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... अब ईश्वरीय राहो पर फूलो सा महकने के दिन आ चले है... तो मीठे बाबा की यादो संग पूरे विश्व में सुख की मीठी बयार चलाओ... *हर दिल आत्मा को प्रेम से सींच प्रेम सागर से मिलवाओ... अपने आत्मिक स्वरूप और गुणो का सबको मुरीद बनाओ... देह अभिमान में आने से पाप होते है इसलिए आत्म अभिमानी बनो*"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के संग रूहानी चमन में उड़ते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब देह के भान से निकल आत्मा के नशे में गहरे खो गई हूँ... खुद अथाह सुख को पाकर सबको यह सुखदायी रास्ता बता रही हूँ... *अपनी चलन और रूहानियत की खुशबु से हर दिल को मीठे बाबा का पता दे रही हूँ..."*
❉ मीठे बाबा आत्म अभिमानी भव का वरदान देते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के भान में आकर अपना वजूद ही खो दिए हो... सारी चमक को धुंधला कर कलुषित हो गए हो... अब इस *नकली आवरण को छोड़ असली सुंदरता के नशे में खो जाओ...* अपने आत्मिक सुन्दरतम स्वरूप में मदमस्त हो गुणवान छवि दिखाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा से अपने प्यार का इजहार करते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... कितना न आपका मै आत्मा शुक्रिया करूँ... मै क्या बन गयी थी बाबा और आपने अपने प्यार में कितना सुंदर बना दिया है... प्रेम गुलाब बना मुझे महका दिया है... *मेरा मीठा सा रूप रंगत देख देख हर दिल मेरे बाबा का आशिक बन रहा है..."*
❉ मेरे बाबा पवित्रता का नूर मुझमें भरते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे प्यारे बाबा के मीठे से संग में मिठास और ख़ुशी के प्रतीक बनो... देहभान के कंटीले साये से दूर होकर आत्मिक गुणो की महक फैलाओ... *ईश्वरीय यादो में हर कालिमा को धो लो और सम्पूर्ण पवित्रता भरे प्रकाश से नूरानी हो जाओ..."*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह अभिमान से मुक्त होकर आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित होते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान और योग से पाये अपने सच्चे रूप पर मोहित हो उठी हूँ... *सबको अपना निखरा और धवल प्रकाशित स्वरूप दिखा रही हूँ... और मीठे प्यारे बाबा से पायी गुणो की दौलत सारे जहान में लुटा रही हूँ...*"
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको बाप का परिचय दे लक्ष्मी - नारायण की सच्ची जीवन कहानी सुनाना*"
➳ _ ➳ स्वराज्य अधिकारी आत्मा बन स्वदर्शन चक्र फिराते हुए अपने आदि देव स्वरूप को स्मृति में लाते ही मन बुद्धि से मैं पहुँच जाती हूँ भविष्य आने वाली नई सतयुगी दुनिया में और उस दुनिया के अति सुन्दर, मन को लुभाने वाले नज़ारो में मैं खो जाती हूँ। *स्वयं को मैं देख रही हूँ विश्व महाराजन के रूप में। विष्णु चतुर्भुज के रूप में मेरा यह स्वरूप संपूर्ण सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न है*। अपने इस सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न स्वरूप को देख एक अद्भुत नारायणी नशे से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ लक्ष्मी नारायण का यह कम्बाइंड स्वरूप ही मेरा लक्ष्य है। अपने इस स्वरूप को जल्दी से जल्दी प्राप्त करने के इस लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ करने के लिए अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और खो जाती हूँ अपने ब्राह्मण जीवन की उन सुखद स्मृतियों में जो हर रोज मेरे शिव परमात्मा मुझे करवाते हैं। *उन अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाते ही मैं आत्मा उड़ती कला का अनुभव करने लगती हूँ और अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ*। अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं औरों को भी बाप का परिचय दे लक्ष्मी नारायण की सच्ची कथा सुना कर, उन्हें भी विष्णुपुरी में जाने का मार्ग दिखाने के लिए चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ मैं फ़रिशता पूरे विश्व का भ्रमण करता हुआ लक्ष्मी नारायण के एक - एक मंदिर को देख रहा हूँ। इन सभी मन्दिरो को देखते - देखते मैं नीचे उतरता हूँ और एक मंदिर में प्रवेश कर जाता हूँ। *मंदिर में बिल्कुल सामने विष्णु चतुर्भुज की एक बहुत बड़ी प्रतिमा मैं देख रहा हूँ। अलंकारों से सजी यह प्रतिमा सबको अपनी और आकर्षित कर रही है*। लक्ष्मी नारायण के इस कम्बाइंड स्वरूप अर्थात विष्णु चतुर्भुज के सामने खड़े भक्त अराधना कर रहें हैं। लक्ष्मी नारायण की कथा चल रही है। भक्त हाथ जोड़े बैठें हैं और ब्राह्मण के मुख से उच्चारित लक्ष्मी नारायण की कथा सुन रहें हैं।
➳ _ ➳ शास्त्रों में लिखी सत्य नारायण की इस कथा को सुनते भक्तों को वास्तविकता का बोध करवाने के लिए मैं फ़रिशता विष्णु चतर्भुज की उस विशाल प्रतिमा में प्रवेश कर जाता हूँ। *अपने अलंकारों को धारण कर मैं फ़रिशता बापदादा का आह्वान करता हूँ और सेकण्ड में बापदादा की छत्रछाया को अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव करता हूँ*। बाबा की सर्वशक्तियां लक्ष्मी नारायण के उस जड़ चित्र में विराजमान मुझ फ़रिश्ते पर पड़ते ही मुझसे सर्वशक्तियां निकल कर अब पूरे मन्दिर में फैलने लगती है। *देखते ही देखते मन्दिर का वातावरण एक अद्भुत रूहानियत, दिव्यता और अलौकिकता से भरपूर होने लगता है*।
➳ _ ➳ बापदादा की आज्ञानुसार अब मैं फ़रिशता मन्दिर में उपस्थित सभी भक्तों को सत्य बाप का परिचय दे उन्हें लक्ष्मी नारायण की सत्य जीवन कहानी सुना रहा हूँ। *सभी इस बात को स्वीकार कर रहें हैं कि नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने वाला सत्य परमात्मा बाप आया हुआ है जो सच्ची - सच्ची सत्यनारायण की कथा सुना रहा है*। इस सत्यता को जान कर और परमात्मा का सत्य परिचय पा कर सभी के चेहरे खुशी से चमक रहें हैं। सबको बाप का सत्य परिचय दे कर और लक्ष्मी नारायण की सच्ची कहानी सुना कर मैं फ़रिशता अब लक्ष्मी नारायण की उस जड़ प्रतिमा से बाहर निकल कर अब बापदादा के साथ ऊपर की ओर उड़ता हुआ,
सूक्ष्म वतन में पहुँचता हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करके और बाबा के सानिध्य में बैठ, उनसे सर्व प्राप्तियां करके मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया में लौट कर अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित रहते हुए अब मैं सबको बाप का सत्य परिचय देती रहती हूँ और सबको लक्ष्मी नारायण की सच्ची जीवन कहानी सुनाती रहती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समस्याओ के पहाड़ों को उड़ती कला से पार करने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं याद की वृत्ति से वायुमण्डल को पावरफुल बनाने की मन्सा सेवा करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा पहली सेवा यही बताते हैं कि अभी समय अनुसार सभी बच्चे वानप्रस्थ अवस्था में हैं, तो *वानप्रस्थी अपने समय, साधन सभी बच्चों को देकर स्वयं वानप्रस्थ होते हैं। तो आप सभी भी अपने समय का खजाना, श्रेष्ठ संकल्प का खजाना अभी औरों के प्रति लगाओ।* अपने प्रति समय, संकल्प कम लगाओ। औरों के प्रति लगाने से स्वयं भी उस सेवा का प्रत्यक्षफल खाने के निमित्त बन जायेंगे। *मन्सा सेवा, वाचा सेवा और सबसे ज्यादा - चाहे ब्राह्मण, चाहे और जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उन्हों को कुछ न कुछ मास्टर दाता बनके देते जाओ। नि:स्वार्थ बन खुशी दो, शान्ति दो, आनंद की अनुभूति कराओ, प्रेम की अनुभूति कराओ।* देना है और देना माना स्वत: ही लेना। *जो भी जिस समय, जिस रूप में सम्बन्ध-सम्पर्क में आये कुछ लेकर जाये। आप मास्टर दाता के पास आकर खाली नहीं जाये।* जैसे ब्रह्मा बाप को देखा - चलते-फिरते भी अगर कोई भी बच्चा सामने आया तो कुछ न कुछ अनुभूति के बिना खाली नहीं जाता। यह चेक करो जो भी आया, मिला, कुछ दिया वा खाली गया? *खजाने से जो भरपूर होते हैं वह देने के बिना रह नहीं सकते। अखुट, अखण्ड दाता बनो। कोई मांगे, नहीं। दाता कभी यह नहीं देखता कि यह मांगे तो दें।*अखुट महादानी, महादाता स्वयं ही देता है। तो पहली सेवा इस वर्ष - महान दाता की करो। आप दाता द्वारा मिला हुआ देते हो। ब्राह्मण कोई भिखारी नहीं हैं लेकिन सहयोगी हैं। तो *आपस में ब्राह्मणों को एक दो में दान नहीं देना है, सहयोग देना है। यह है पहला नम्बर सेवा।*
✺ *ड्रिल :- "मास्टर दाता बन हर एक आत्मा को कुछ ना कुछ देने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ शान्तिधाम... शान्तिधाम की गहन शान्ति को गहराई से अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा मास्टर दाता की स्थिति धारण कर... सर्वशक्तिवान... शिवबाबा... दाता के समीप बैठ जाती हूँ... *शिवबाबा से निकलती शक्तिशाली किरणों को मैं आत्मा स्वयं में धारण करती जा रही हूँ... भरपूर होती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा... दाता की बच्ची... मास्टर दाता बन हर एक आत्मा को दातापन की दृष्टि से देख रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं बाबा की बच्ची... शांतिदाता की बच्ची... शान्त स्वरूप हूँ... मास्टर दाता हूँ... *बाबा ने मुझ आत्मा को वरदानों से... गुणों से श्रृंगारित कर सर्व आत्माओं को दुःखों से... विघ्नों से... अशांति से मुक्त कराने के निमित्त बनाया है... मुझ आत्मा को सर्व आत्माओं को सुख... शांति... प्रेम की अनुभूति करानी है... मैं आत्मा अशरीरी बन सर्व आत्माओं के प्रति शांति के वायब्रेशनस फैला रही हूँ... स्वदर्शन चक्रधारी बन सुख के वाइब्रेशन्स फैला रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं पद्मापदम् सौभाग्यशाली आत्मा हूँ... बाबा ने मुझे अपना बनाकर... खजानों से सम्पन्न बना दिया... मैं आत्मा सदा भरपूरता के नशे में रहती हूँ... ख़ुशी का पारा चढ़ा रहता है... *बाबा कहते हैं... बच्ची, देना ही लेना है... इसलिये बांटते चलो... तुम्हारी झोली स्वतः ही भरती जायगी... तो जिस शक्ति का जिस समय आह्वान करती हूँ... वह शक्ति उस समय जी हाज़िर हो जाती है... और मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन औरों को बाँट कर उन्हें ख़ुशी व शांति की अनुभूति कराती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं शांत स्वरूप आत्मा, आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर... शांति सागर परमात्मा से योगयुक्त होकर... गहन शांति में स्थित हो फिर शांति की किरणों का प्रवाह अन्य आत्माओं पर प्रवाहित करती हूँ... *सर्वशक्तिवान से बुद्धि जोड़ने से असीम शक्तियों का प्रवाह कमजोर आत्माओं में बल भर रहा है... और उन्हें शांति की अनुभूति हो रही है... जो भी आत्मा मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आती है... उसे बिना मांगे... बिना कहे शांति का अनुभव होने लगता है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति शुद्ध और शुभ भावना रखती हूँ... *शुभ कामना और निमित्त भाव के साथ मास्टर दाता बन हर एक को सुख शांति की अनुभूति करा रही हूँ...* मैं आत्मा अपने पवित्र संकल्पों का प्रभाव सभी आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... शुद्ध संकल्पों से सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ... *मैं आत्मा मनसा सकाश द्वारा सर्व आत्माओं को परमात्म स्नेह की पालना का एहसास करवा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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