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 23 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने को सदा रिफ्रेश रखा ?*

 

➢➢ *उदासी में बाबा के गीत सुने ?*

 

➢➢ *शांति की शक्ति द्वारा असंभव को संभव किया ?*

 

➢➢ *निमित बन निर्माण का कार्य कर सच्चे सेवाधारी बनकर रहे ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  *आत्मा बोल रही है। आत्मा के यह संस्कार हैं.... यह पहला पाठ पक्का करो।* आत्मा शब्द स्मृति में आते ही रुहानियत - शुभ भावना आ जायेगी। *दृष्टि पवित्र हो जायेगी। सर्व के स्नेही, सहयोगी बन जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं खुशी के खजाने से सम्पन्न आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा खुशी के खजानों से खेलने वाले हो ना? *खुशी भी एक खजाना है जिस खजाने द्वारा अनेक आत्माओंको माला माल बना सकते हो। आजकल विशेष इसी खजाने की आवश्यकता है।* और सब हैं लेकिन खुशी नहीं। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गयी है। अनगिनत खजाना मिल गया है।

 

✧  खुशी के खजाने में भी वैराइटी है ना। कभी किस बात की खुशी कभी किस बात की खुशी। कभी बालक पन की खुशी तो मालिकपन की खुशी। *कितने प्रकार के खुशी के खजाने  मिले हैं। वो वर्णन करते हुए औरों को भी मालामाल बना सकते हो। तो इन खजानों को सदा कायम रखो। और सदा खजानों के मालिक बनो।*

 

✧  सदा बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों को कार्य में लगाते रहो। बाप ने तो शक्तियाँ दे दी हैं। अब सिर्फ उन्हें कार्य में लगाओ। *सिर्फ मिल गया है, इसमें खुश नहीं रहो लेकिन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज करो तो सदा मालामाल अनुभव करेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  तो बापदादा देख रहे थे कि हिसाब के अनुसार यह सेकण्ड स्टेज है जीवनमुक्त, लास्ट स्टेज तो है - देह से न्यारे विदेही-पन की। *उस स्टेज और जो स्टेज सुनाई उसके लिए और बहुत-बहुत-बहुत अटेन्शन चाहिए।* 

 

✧  सभी बच्चे पूछते हैं 99 आयेगा क्या होगा? क्या करें? क्या करें, क्या नहीं करें? बापदादा कहते हैं 99 के चक्कर को छोडो। *अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए।* जो भी परिस्थितियाँ आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए।

 

✧  इसलिए और सभी बातों को छोड यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा। क्या होगा, इस क्वेचन को छोड दो। *विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- साइलेन्स में रहकर एक बाप को याद करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने आसपास के वातावरण के शोरगुल से अपने को समेटती हुई अपना ध्यान भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... धीरे-धीरे मेरा मन शांत हो रहा है... मेरी सर्व कर्मेन्द्रियाँ शांत हो रही हैं... मैं आत्मा देह से निकल शांतिधाम में पहुँच जाती हूँ और शांति के सागर मेरे बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... *शांति के सागर बाबा से निकलती शांति की किरणों से अपने को भरपूर कर... मैं आत्मा बाबा के साथ आसमान की सैर करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में पहुँच जाती हूँ... और मीठी रूह रिहान करती हूँ...*

 

   *प्यारे बाबा साइलेन्स की शक्ति से मुझ आत्मा को भरपूर करते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता शांति का सागर है और आप बच्चे भी उसी शान्तिधाम के रह वासी हो... भाषा भी वही शांति की है... तो इस गहन शांति में खोकर ईश्वर पिता से रुह रिहान करो...* उसके अनन्त प्यार में खो जाओ और अथाह शांति को स्वयं में भरकर जनमो के विचलित मन को सुखदायी बना लो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा शांति का पाठ पढ़कर गहन शांति में डूबकर प्यारे बाबा से कहती हूँ:–* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा अपने सच्चे रूप को ही जो भूल गई थी तो वाचाल हो गई... आपने ही मुझे मेरी भूली सी शक्तियो का अहसास कराया है...* और आपकी शीतल शांत किरणों के बीच मै आत्मा असीम सुख पाती जा रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा अपनी गोद में बिठाकर मेरी किस्मत का सितारा बुलंद करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता ने जब धरती पर उतर कर गले न लगाया तब तक बच्चों ने आसमान तक आवाजे लगाई... *पर अब जो पिता धड़कन सा दिल के करीब है तो धीमे धीमे मौन में मुलाकाते कर ख़ुशी में झूमते रहो... कुछ न बोलो बस मूक रह निहारते रहो और शांति की लहरो में हाले दिल बयान करो...”*

 

_ ➳  *‘आ मिले बाबा हमें मिल गई मंजिल, मन मधुबन में गूंज रही है खुशियों की सरगम’-ये गीत गाती हुई मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा भक्ति में कितनी मुखर सी... सारे प्रयास बाहर कर भीतर से गहरे थक गई थी... प्यारे बाबा ने बाँहों में भरकर मुझे शांति की भाषा सिखायी है... *कितना सुख मेरे चारो और बिखरा है और कितनी गहरी गुफ्तगू ईश्वर पिता के साथ हर पल करती जा रही हूँ...”*

 

   *परमात्म शक्तियों, वरदानों को प्यार से मुझ पर बरसाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:–* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता बच्चों को आवाज की भी तकलीफ नही दे सकता... मेरे फूल बच्चे भारी भारी घण्टे बजाकर हाथो को थकाये यह भी उसे गवारा नही... बच्चों के संकल्प हर पल दिल पर दस्तक देते है... *तो फूलो सी शांत मखमली गोद में बैठ दिल ही दिल में बात करो... कुछ अपनी कहो और कुछ उसकी सुनो शांत बहारो में मधुर मिलन करो...”*

 

_ ➳  *अंतर्मन को शांति की दिव्य शक्तिशाली किरणों से भरकर परमानन्द का अनुभव करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर... अपने घर शान्तिधाम को जानकर कितनी सुखी हो गई हूँ...* मेरे जनमो की थकान मिट गयी है... बिना बाबा के कितना थक गयी थी... अब मीठे बाबा की शांत किरणों में असीम शांति को पाकर आनंद से भर गई हूँ...

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपने को सदा रिफ्रेश रखना है*"

 

 _ ➳  अपने आश्रम के बाबा रूम में, अपने परमशिक्षक शिव पिता परमात्मा के मधुर महावाक्य सुनने और *ज्ञान की रिमझिम फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने के बाद अपने प्यारे बापदादा के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करने के लिये मैं उनका आह्वान करती हूँ और अनुभव करती हूँ कि मेरे पुकारते ही मेरे प्यारे मीठे शिव बाबा परमधाम से नीचे आ कर सूक्ष्म लोक में अपने भाग्यशाली रथ अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो कर नीचे साकारी दुनिया मे प्रवेश कर रहें हैं*। अपनी सर्वशक्तियों से सारे वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाते हुए बापदादा सेकण्ड में मेरे सम्मुख उपस्थित हो जाते हैं।

 

 _ ➳  बापदादा की उपस्थिति का प्रभाव मुझे आश्रम के बाबा रूम में स्पष्ट अनुभव हो रहा है। पूरा कमरा एक दिव्य अलौकिक रूहानी खुशबू से महकने लगा है। वायुमण्डल में एक अद्भुत रूहानी मस्ती छाने लगी है। *मेरे चारों और फैला रूहानियत का यह वातावरण मुझे देह से न्यारेपन का अनुभव करवा रहा है। धीरे - धीरे देह का भान समाप्त हो रहा है और मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ*। अपने लाइट माइट फ़रिशता स्वरूप में अब मैं स्वयं को बापदादा के सामने देख रही हूँ। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते पर पड़ कर मेरी लाइट माइट को कई गुणा बढ़ा रही है। मैं स्पष्ट देख रही हूँ कि मुझ से निकल रही लाइट माइट अब चारों और फैलने लगी है।

 

 _ ➳  अपनी लाइट माइट चारों और फैलाते हुए अब मैं बापदादा का हाथ थामे आश्रम से बाहर आकर ऊपर की और उड़ रही हूँ। *अपने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा के साथ पूरे विश्व की सैर करते हुए मैं ऊपर से नीचे साकार सृष्टि के नज़ारो को देख रही हूँ कि कैसे आज प्रत्येक मनुष्य स्वयं को खुश करने के लिए साइंस के साधनों का सहारा ले रहा हैं*। यह सब दृश्य देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि स्वयं को रिफ्रेश करने के लिए दुनिया के सभी मनुष्य विनाशी साधनों का चाहे कितना भी सहारा ले लें लेकिन इन अल्पकाल के विनाशी साधनों से वो खुशी कभी नही प्राप्त कर सकते जो अविनाशी खुशी भगवान इस समय स्वयं आ कर हम बच्चो को दे रहें हैं।

 

 _ ➳  स्वयं अपने और दुनिया के मनुष्यों के बारे में विचार करते - करते अपने प्यारे बापदादा के साथ उनका हाथ थामे, अपने भाग्य पर नाज करती अब मैं अंतरिक्ष को पार कर अव्यक्त वतन में प्रवेश करती हूँ। *बापदादा के सम्मुख बैठ, बापदादा से मीठी दृष्टि लेते हुए अब मैं अपने प्यारे बापदादा के साथ मीठी - मीठी रूहरिहान कर रही हूँ :- मेरे प्राणप्रिय प्यारे बाबा मैं किस - किस बात के लिए आपका शुक्रिया अदा करू! दुनिया वाले पल भर की खुशी पाने के लिए क्या - क्या उपाय कर रहें हैं और आपने तो मेरे जीवन को ही खुशियों से भर दिया*। दुनिया भर के सभी मनुष्य मात्र आपके प्यार की एक बूंद की प्यासे है और आपने प्यार का सागर बन अपना अथाह प्यार मुझ पर लुटा कर मुझे तृप्त कर दिया।

 

 _ ➳  ऐसे अपने प्यारे बापदादा से जी भर कर मीठी - मीठी बातें करने के बाद और बाबा के स्नेह की शीतल छाया में बैठ स्वयं को बाबा के अथाह प्रेम से तृप्त करके, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर इठलाती मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर फिर से अपने आश्रम में पहुँच कर अपने साकारी ब्राह्मण तन में प्रवेश करती हूँ। *अपने ऊँच ब्राह्मण जीवन की ऊंची उपलब्धियों को अब मैं अपने प्यारे बाबा के सानिध्य में रह हर समय प्राप्त कर रही हूँ*।

 

 _ ➳  कभी अपने ब्राह्मण और फ़रिशता स्वरूप में मन बुद्धि से मधुबन के मधुर नज़ारो का आनन्द लेती तो *कभी बापदादा के साथ सारे विश्व की सैर और सूक्ष्म वतन के सुंदर दृश्यों को देखती और कभी अपने निराकारी स्वरूप में अपने स्वीट साइलेन्स होम, परमधाम घर में अपने शिव पिता की छत्रछाया में बैठ स्वयं को उनके सर्वगुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से भरपूर करती, अब मैं स्वयं को सदा रिफ़्रेश रखते हुए अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं शांति की शक्त्ति द्वारा असंभव को सम्भव करने वाली योगी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं निमित्त बन निर्माण का कार्य करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा सदा ही बच्चों को सम्पन्न स्वरूप में देखने चाहते हैं*। जब कहते ही होबाप ही मेरा संसार है। यह तो सब कहते हो ना! दूसरा भी कोई संसार है क्याबाप ही संसार हैतो संसार के बाहर और क्या है?  *सिर्फ संस्कार परिवर्तन करने की बात है। ब्राह्मणों के जीवन में मैजारिटी विघ्न रूप बनता है - संस्कार। चाहे अपना संस्कार, चाहे दूसरों का संस्कार। ज्ञान सभी में है, शक्तियां भी सभी के पास हैं। लेकिन कारण क्या होता हैजो शक्तिजिस समय कार्य में लानी चाहिएउस समय इमर्ज होने के बजाए थोड़ा पीछे इमर्ज होती हैं*। पीछे सोचते हैं कि यह न कहकर यह कहती तो बहुत अच्छा। यह करने के बजाए यह करती तो बहुत अच्छा। लेकिन जो समय पास होने का था वह तो निकल जाता हैवैसे सभी अपने में शक्तियों को सोचते भी रहते होसहनशक्ति यह हैनिर्णय शक्ति यह हैऐसे यूज करना चाहिए। सिर्फ थोड़े समय का अन्तर पड़ जाता है।

 

 _ ➳  *और दूसरी बात क्या होती हैचलो एक बार समय पर शक्ति कार्य में नहीं आई और बाद में महसूस भी किया कि यह न करके यह करना चाहिए था*। समझ में आ जाता है पीछे। लेकिन उस गलती को एक बार अनुभव करने के बाद आगे के लिए अनुभवी बन उसको अच्छी तरह से रियलाइज कर लें जो दुबारा नहीं हो। फिर भी प्रोग्रेस हो सकती है। *उस समय समझ में आता है - यह रांग हैयह राइट है। लेकिन वही गलती दुबारा नहीं होउसके लिए अपने आपसे अच्छी तरह से रियलाइजेशन करना, उसमें भी इतना फुल परसेन्ट पास नहीं होते*। और माया बड़ी चतुर हैवही बात मानो आपमें सहनशक्ति कम हैतो ऐसी ही बात जिसमें आपको सहनशक्ति यूज करना है, एक बार आपने रियलाइज कर लियालेकिन माया क्या करती है कि दूसरी बारी थोड़ा-सा रूप बदली करके आती है। होती वही बात है लेकिन जैसे आजकल के जमाने में चीज वही पुरानी होती है लेकिन पालिश ऐसी कर देते हैं जो नई से भी नई दिखाई दे। तो माया भी ऐसे पालिश करके आती है जो बात का रहस्य वही होता है *मानों आपमें ईर्ष्या आ गई। ईर्ष्या भी भिन्न-भिन्न रूप की हैएक रूप की नहीं है। तो बीज ईर्ष्या का ही होगा लेकिन और रूप में आयेगी। उसी रूप में नहीं आती है। तो कई बार सोचते हैं कि यह बात पहलेवाली तो वह थी नायह तो बात ही दूसरी हुई ना। लेकिन बीज वही होता है सिर्फ रूप परिवर्तित होता है।उसके लिए कौन-सी शक्ति चाहिए? - 'परखने की शक्ति'*

 

 _ ➳  *इसके लिए बापदादा ने पहले भी कहा है कि दो बातों का अटेन्शन रखो। एक - सच्ची दिल। सच्चाई। अन्दर नहीं रखो*। अन्दर रखने से गैस का गुब्बारा भर जाता है और आखिर क्या होगाफटेगा ना! तो सच्ची दिल - चलो आत्माओं के आगे थोड़ा संकोच होता है,थोड़ा शर्म-सा आता है - पता नहीं मुझे किस दृष्टि से देखेंगे। लेकिन सच्ची दिल सेमहसूसता से बापदादा के आगे रखो *ऐसे नहीं मैंने बापदादा को कह दियायह गलती हो गई। जैसे आर्डर चलाते हैं - हाँ, मेरे से यह गलती हो गईऐसे नहीं।महसूसता की शक्ति सेसच्ची दिल सेसिर्फ दिमाग से नहीं लेकिन दिल से अगर बापदादा के आगे महसूस करते हैं तो दिल खाली हो जायेगी, किचड़ा खत्म। बातें बड़ी नहीं होती हैछोटी ही होती है लेकिन अगर आपकी दिल में छोटी-छोटी बातें भी इकट्ठी होती रहती हैं तो उनसे दिल भर जाती है। खाली तो नहीं रहती है ना! तो दिल खाली नहीं तो दिलाराम कहाँ बैठेगा*! बैठने की जगह तो हो ना! तो सच्ची दिल पर साहेब राजी। जो हूँ, जैसी हूँजो हूँजैसा हूँबाबा आपका हूँ। 

 

✺   *ड्रिल :-  "सच्ची दिल में दिलाराम को बिठाकर, समय पर शक्तियों को इमर्ज कर माया पर विजय प्राप्त करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  देह रूपी पिंजरें में कैद *मैं आत्म पंछी उड चला हूँ मन बुद्धि के पंख पसारे... एक बल एक भरोसा का तिनका अपनी नन्हीं सी चोच में सम्भालें*... गगन चुंबी इमारतों को, ऊँचे शैल शिखरों को पार करता हुआ... *बादलों के साथ खेलता, चाँद तारों को पीछे ढकेलता मैं पहुँच गया हूँ सूक्ष्म वतन में*... श्वेत प्रकाश का एक ऐसा लोक जो कुछ कुछ ग्लेशियर की अनुभूति करा रहा है... सब कुछ श्वेत... *झरने, शिखर, नदिया और उन में तैरती कश्तियाँ*... और कश्तियों पर सवार वों फरिश्ते... गरिमामयी सी चाल... मुस्कुराहटों में बरसता जीवन... आँखों में तैरता अपनत्व... 

 

 _ ➳  *मैं फरिश्ता जाकर बैठ गया हूँ एक बहते झरने के नीचे*... शिव प्यार का झरना... मेरे रोम रोम में समाती जा रही है इसकी एक -एक बूँद... शीतलता पावनता और शक्तिस्वरूप बनकर... *मन के कोने कोने से हर कीचडे को बहाकर ले जा रही है इसकी हर धारा... पूरी महसूसता के साथ अपनी हर कमी कमजोरी को बाबा के सम्मुख रखता हुआ मैं... और अब दिल दर्पण चमक उठा है किसी चमचमाते हीरे की तरह*... हर बोझ हर भार शिव स्नेह की धाराओं में बह चला है... *सच्ची दिल में आकर चुपके से विराजमान हो गये है शिव सूर्य*... और प्रकाश से दमक उठा है मेरा रोम रोम... मेरे अभिषेक को उतावली सी अष्ट शक्तियाँ... जो मेरी सहचरी बनकर मुझमें समाती जा रही है...

 

 _ ➳  *अब मैं फरिश्ता सैकडों फरिश्तों के साथ उड चला विश्व सेवा पर*... अष्ट शक्तियों के सुरक्षा घेरें में... पाँचों तत्वों को सकाश देता हुआ... पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु... सन्तुष्ट नजर आ रहे है  परम शान्ति की किरणें पाकर... और अब मैं उतर रहा हूँ सागर के किनारें... *सागर की लहरों पर डोलती खाली कश्तियाँ*... और मैं फरिश्ता सवार हो गया हूँ एक छोटी सी कश्ती पर... सभी दूसरी कश्तियों में भी मेरे हमसफ़र फरिश्ते... लहरों पर जगमगातें असंख्य दीपकों की भाँति... 

 

 _ ➳  *आकाश में घिरते बादलों के साथ छाता घना अंधकार*... लहरों में सुनामी की आहट... मझधार में फँसी कश्ती... आँखों से ओझल होतें फरिश्ते... और *इन सब मायावी तूफानों से घिरा मैं आह्वान कर रहा हूँ अष्ट शक्तियों का... भय के सब संकल्प सिमटते जा रहे है*... और *सामना कर रहा हूँ मैं उन लहरों का*... कश्ती को छोडकर मैं लहरों पर ही सवार हो गया हूँ... *दिल में बैठे दिलाराम को दिल की बात बता मैं बेफिक्र होता जा रहा हूँ... ये सुनामी लहरें, शिव स्नेहीं लहरों में रूपान्तरित हो रही है... और अंधेरें को चीरता मैं निर्णय शक्ति के आह्वान पर खुद को छोड देता हूँ लहरों के अनुकूल दिशा में*...

 

 _ ➳  *दूर से आता लाईट हाऊस का प्रकाश... और उसी दिशा में मुझे लेकर जाती हुई लहरे*... आकाश में बादलों के पीछे से झाँकता चाँद... *चाँदनी की गागर भर कर उडेल रहा है मेरी ओर*... मेरे अनूकूल होता वातावरण मुझे अपनी जीत का एहसास करा रहा है... रात का अंधकार समाप्त हो गया है... शिव सूर्य बाहें फैलाए खडे है मेरे सामने... मैं फरिश्ता समाँ गया हूँ उनकी गोद में... अपने वजूद को समेटता सागर चरणों में झुक कर अभिनन्दन कर रहा है बापदादा का... और *मैं मुस्कुरा रहा हूँ उनकी गोद में... सम्पन्न स्वरूप में*... दुगुने उत्साह से शक्तियों   को एक एक संस्कार के परिवर्तन का दायित्व देता हुआ मैं लौट आया हूँ अपनी देह में... *माया के तूफानों पर जीत का गहरा अनुभव लिए*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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