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❍ 20 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *मृत्युलोक के बंधनो में रहते सुख के समबन्ध को याद किया ?*
➢➢ *अपने को आत्मा समझ मन बुधी को भटकाने से छुड़ाया ?*
➢➢ *श्रीमत पर चल सभी भ्रमों से बुधी योग निकाला ?*
➢➢ *दुःख की लहरों से न्यारे रह प्रभु प्यार का अनुभव किया ?*
➢➢ *माया के बहुरूपों को सहज ही पहचाना ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *चाहे कोई भी साधारण कर्म भी कर रहे हो तो भी बीच - बीच में अव्यक्त स्थिति बनाने का अटेन्शन रहे।कोई भी कार्य करो तो सदैव बापदादा को अपना साथी समझकर डबल फोर्स से कार्य करो तो स्मृति बहुत सहज रहेगी।* स्थूल कारोबार का प्रोग्राम बनाते बुद्धि का प्रोग्राम भी सेट कर लो तो समय की बचत हो जायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ अच्छा, प्रवृत्ति को सम्भालने का बंधन है? ट्रस्टी होकर सम्भालते हो? *अगर ट्रस्टी हैं तो निर्बन्धन और गृहस्थी हैं तो बंधन है।* गृहस्थी माना बोझ और बोझ वाला कभी उड नहीं सकता। तो सब बोझ बाप को दे दिया या सिर्फ थोडा एक-दो पोत्रा रख दिया है?
〰✧ *पाण्डवों ने थोडा-थोडा जेबखर्च रख दिया है?* थोडा-थोडा रोब रख दिया, क्रोध रख दिया, यह जेबखर्च है? मेरे को तेरा कर दिया? किया है या थोडा-थोडा मेरा है? ठगी करते हैं ना मेरा सो मेरा और तेरा भी मेरा। ऐसी ठगी तो नहीं करते? आधाकल्प तो बहुत ठगत रहे ना कहना तेरा और मानना मेरा तो ठगी की ना।
〰✧ अभी ठगत नहीं लेकिन बच्चे बन गये। उडती कला कितनी प्यारी है, सेकण्ड में जहाँ चाहो वहाँ पहुँच जाओ। *उडती कला वाले सेकण्ड में अपने स्वीट होम में पहुँच सकते हैं।* इसको कहा जाता है योगबल, शान्ति की शक्ति। (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप से बुद्धियोग लगाकर सब बंधन समाप्त करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह, देह के संबंधो के, देह की दुनिया, वस्तु, वैभवों के जाल में फसी हुई थी... दुनियावी संबंधों के ताने-बाने में उलझ कर इधर-उधर भटक रही थी... इन जीवन बन्धनों में बंधी मैं आत्मा छटपटा रही थी... *कोटो में से मेरी पुकार सुनकर मेरे सच्चे पिता ने ज्ञान-योग की कैंची से मुझ आत्मा के बन्धनों की रस्सियों को काटकर मुझे इस जाल से आजाद कराया... गुण-शक्तियों का बल देकर आजाद पंछी की तरह मुझे उड़ना सिखाया...* मैं आत्मा इस देह रूपी वस्त्र को छोडकर प्रकाश का वस्त्र धारण कर... उड़ चलती हूँ प्रकाश की दुनिया में... जहाँ बापदादा बैठे मेरा इन्जार कर रहे हैं...
❉ *प्यारे बाबा दैहिक बन्धनों में भटकते हुए मेरे मन-बुद्धि को अपने स्नेह के सम्बन्ध में बांधते हुए कहते हैं:–* “मेरे मीठे फूल बच्चे... अब देह के मटमैले रिश्तो में स्वयं को मैला न करो... आत्मा के भान में रह आत्मिक अनुभूतियों का आनंद लो... *श्रीमत के साये में फूलो सा जीवन संवार चलो... विनाशी सम्बन्धो से निकलकर अविनाशी आत्मा के नशे में खो जाओ...* एक बाप से बुद्धियोग लगाकर सब बंधन समाप्त करो... ईश्वरीय साथ के अमूल्य पलों में खुद को कहीं भी न उलझाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बापदादा की बाँहों में समाकर बाबा के लाड-प्यार में खुश होतीे हुई कहती हूँ:–* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्यार को पाकर प्रेम दीवानी हो गयी हूँ... प्यारे बाबा... सच्चे प्यार की बून्द को तरसती मै आत्मा... *आज सागर को पाकर तृप्त हो गयी हूँ... आपके साथ और श्रीमत के हाथ को पकड़कर असीम खुशियो से भर गयी हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा अपनी मीठी-मीठी दुआओं से मेरा दामन सजाते हुए कहते हूँ:–* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्ची प्रीत सच्चे माशूक संग रखकर प्रेम के पर्याय बन सदा के खुशनुमा हो जाओ... *श्रीमत को रोम रोम में बसाकर देह के बन्धनों से मुक्त हो जाओ... संगम के सुनहरे पलों को ईश्वर पिता की यादो में समाकर असीम खुशियो से भरे भाग्य को पा लो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा विनाशी बन्धनों से मुक्त होकर बाबा के अविनाशी स्नेह के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के बन्धनों में कितनी उलझी सी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे उलझनों से निकाल श्रीमत पर सदा का सुखी बनाया है... *मेरा जीवन फूलो जैसा हल्का और खुशनुमा बनाया है... मै आत्मा इन मीठी यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख पा रही हूँ...”*
❉ *मेरे बाबा हद के दुखों से छुड़ाकर बेहद के सुख की दुनिया में ले जाते हुए कहते हैं:–* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... इस झूठ की दुनिया में सच्चे प्यार की बून्द की आस भी छलावा है... इसलिए प्यार के सागर में, प्रेम की अनन्त गहराइयो में डूब जाओ... और अतृप्त मन की प्यास बुझाओ... *और प्रेम अमृत में अमरता को पाकर अथाह सुखो में मुस्कराओ... सच्चे प्रियतम से जुड़कर प्रेम तरंगो से भर जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के पारलौकिक प्रेम के सागर की गहराइयों में डूबती हुई कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को देह के रिश्तो में सच्चा प्यार कभी न मिला... हर रिश्ते ने ठगा और खोखला किया... अब आपकी यादो की छत्रछाया में कितनी शीतल, कितनी सुखी और प्रेममय हो गयी हूँ... *देह के सारे भ्रम से निकल अपने और पिता के स्वरूप पर मन्त्रमुग्ध हो गयी हूँ...”*
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मृत्युलोक के बन्धनों में रहते सुख के सम्बन्ध को याद करना*"
➳ _ ➳ संगमयुग पर प्रीत की रीत निभाने के लिए भगवान स्वयं आकर, सर्व सम्बन्धों का सुख देते हैं और मृत्यु लोक के आसुरी बन्धनों से छुड़ा कर सुख के सम्बन्ध में ले जाते हैं। इसका प्रेक्टिकल अनुभव बाबा अपने हर ब्राह्मण बच्चे को करवाते हैं। *कितने सौभाग्य शाली हैं वो ब्राह्मण बच्चे जो सारी सृष्टि के रचयिता, ऑल माइटी अथॉरिटी भगवान के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ कर हर सम्बन्ध का भरपूर सुख लेते हैं*। यह विचार करते - करते अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज होता है। और अपने भाग्य की सराहना करती, अपने प्यारे बाबा की दिल को सुकून देने वाली मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने दिलराम बाबा की मीठी यादों में खोई हुई मैं अनुभव करती हूँ जैसे *मेरे मीठे बाबा ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान, अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे बिल्कुल सामने खड़े हैं और बड़े प्यार से मुझे निहारते हुए मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं* और मुस्कराते हुए जैसे मुझ से पूछ रहे हैं:- "कभी सोचा था कि भगवान ऐसे मिलेंगे! साकार में आकर पालना करेंगे! सर्व सम्बन्धों का सुख देंगे!
➳ _ ➳ मन ही मन अपने प्यारे बाबा के सवालों का जवाब देते हुए मैं बाबा की तरफ मुस्कराते हुए देखती हूँ और कहती हूँ:- प्राणों से प्यारे मेरे बाबा, कभी स्वप्न में भी नही सोचा था कि आप मुझे ऐसे मिल जाओगे। अपने प्यार से मेरे जीवन में खुशियां भर दोगे। *मृत्युलोक के बन्धनों में रहते सुख के सम्बन्ध का अनुभव करवाकर इन बन्धनों से मुक्त होने का मुझे रास्ता दिखाओगे*। मेरे बेरंग जीवन मे अपने प्रेम का रंग भर कर मेरे जीवन को रंगीन बना दोगे।
➳ _ ➳ बाबा को एकटक निहारती मैं मन ही मन बाबा के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते - करते अनुभव करती हूँ कि बाबा के मस्तक से बहुत तेज लाइट निकल कर जैसे - जैसे मेरे ऊपर पड़ रही है मेरा स्वरूप एक दम लाइट होता जा रहा है। *बाप समान लाइट माइट बन कर अपने फ़रिशता स्वरूप में अब मैं बाबा का हाथ थामे अव्यक्त वतन की ओर जा रही हूँ*। स्वयं भगवान मेरा साथी, मेरा साजन, मेरा दोस्त बन मेरा हाथ थामे मुझे सारे भू लोक की सैर करवा रहा है, यह विचार ही मुझे एक अलौकिक रूहानी मस्ती से भरपूर कर रहा है।
➳ _ ➳ बाबा के साथ पूरे विश्व की सैर करते - करते आकाश को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ अव्यक्त वतन में जो सफेद चांदनी में डूबा बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा है। *इस अव्यक्त वतन में पहुँच कर बाबा के प्रेम की शीतल छाया में बैठ स्वयं को तृप्त करने के बाद, प्वाइंट ऑफ लाइट बन मैं आत्मा अव्यक्त वतन से ऊपर की ओर उड़ चलती हूँ और पहुँच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया शान्ति धाम में*। बीजरूप निराकार शिव बाबा से मिलन मना कर, उनके साथ सम्बन्ध जोड़ कर, उनकी अनन्त शक्तियों को स्वयं में समा कर, शक्तिस्वरूप बन मैं वापिस साकार लोक में लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे, साकारी ब्राह्मण तन मे भृकुटी सिहांसन पर बैठ अब मैं इस मृत्यलोक के बन्धनों में रहते हुए भी सुख के सम्बन्ध को याद कर, स्वयं को निर्बन्धन अनुभव करती हूँ और अपार खुशी में रहती हूँ। सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार अपने दिलाराम बाबा से लेते देहधारियो के झूठे प्यार की झूठी आश से अब मैं सदा मुक्त रहती हूँ। *देह में रहते भी, ईश्वरीय सम्बन्ध का अनुभव अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है। ईश्वरीय याद में रह योगबल से पुराने कर्मबन्धनों के हिसाब किताब चुकतू हो रहें हैं और साथ ही साथ ईश्वरीय सुख के सम्बन्ध का अनुभव, मुक्ति में रहते भी जीवनमुक्त स्थिति की अनुभूति करवाकर मेरे जीवन को आनन्दमयी बना रहा है*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दुःख की लहरों से न्यारे रह प्रभु प्यार का अनुभव करने वाली खुशी के खजाने से संपन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं माया के बहुरूपों को सहज ही पहचान लेने वाली त्रिकालदर्शी वा त्रिनेत्री आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *कभी नाराज नहीं होना - न अपने ऊपर, न कोई आत्मा के ऊपर। खुश रहना।* ऐसे तो नहीं सेन्टर पर जाकर खुशी का खजाना एक मास जमा रहेगा फिर धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा? खत्म तो नहीं होगा ना? सदा साथ रखना। अच्छा - तन-मन-धन बाप को दे दिया है ना? अच्छा, दिल भी दे दी है? दिल बाप को दी है? *अगर दिल दे दी है तो बाप जैसे डायरेक्शन दे वैसे चलो,* आपके पास दिल-आपके लिए नहीं है। तो बताओ जिसने दिल, दिलाराम को दे दी वह कभी किसी भी आत्माओं से दिल लगायेगा? नहीं लगायेगा ना! तो *किसी से भी दिल लगी की बातें, बोल-चाल, दृष्टि वा वृत्ति से तो नहीं करेंगे?* या थोड़ी दिल दी है थोड़ी और से लगाने के लिए रखी है? दिल दे दी है? तो दिल नहीं लगाना। *बाप की अमानत, दिलाराम को दिल दे दी।* दिल लगी की कहानियां बहुत आती हैं।
➳ _ ➳ तो कुमार याद रखना, ऐसे तो प्रवृत्ति वाले भी याद रखना। लेकिन आज कुमारों का दिन है ना। तो बापदादा यह अटेन्शन दिलाते हैं कभी ऐसी रिपोर्ट नहीं आवे। *हमारी दिल है ही नहीं, बाप को दे दी।* तो दिल कैसे लगेगी! *जरा भी अगर किसकी दृष्टि, वृत्ति 'विघ्न-विनाशक' कमजोर हो तो कमजोर दिल को यहाँ से ही मजबूत करके जाना।* इसमें हाँ जी है! या वहाँ जाकर कहेंगे कि सरकमस्टांश ही ऐसे थे? कुछ भी हो जाए। जब बापदादा से वचन कर लिया, कितनी भी मुश्किल आवे लेकिन वचन को नहीं छोड़ना। बाप के आगे वचन करना, वचन लेना... इस बात को भी याद रखना। कोई आत्मा के आगे वचन नहीं कर रहे हो, परमात्मा के आगे दे कभी भी मिटाना नहीं। जन्म की प्रतिज्ञा कभी भी भूलना नहीं। अभी सभी एक मिनट के लिए अपने दिल से, वैसे दिल तो आपकी नहीं है, बाप को दे दी है फिर भी *दिल में एक मिनट वचन करो कि- 'सदा विघ्न-विनाशक, आज्ञाकारी रहेंगे'।* (ड्रिल)
✺ *ड्रिल :- "दिलाराम बाप को दिल देने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले ‘मीठे, लाडले बच्चे’- ये मधुर साज सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* सामने प्राण प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... मैं आत्मा झट से बाबा के गले लग जाती हूँ... मैं आत्मा ‘मेरा बाबा’ कहते हुए बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की मखमली रुई जैसे गोदी में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है... *बाबा के स्पर्श से मैं आत्मा इस शरीर को भूल रही हूँ...* और बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा भी रुई जैसे हलकी हो रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हलकी होकर प्यारे बाबा के साथ उडती हुई अपने घर पहुँच जाती हूँ... *बाबा से निकलती दिव्य तेजस्वी किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ...* मैं आत्मा अलौकिकता को धारण कर अलौकिक बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ रहती हूँ... *मैं आत्मा सदा अविनाशी बाबा के अविनाशी प्रेम में एकरस रहती हूँ...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा बेहद के नशे में रहती हूँ... *मुझ आत्मा का हद का नशा पूरी तरह से बाहर निकल रहा है...* मुझ आत्मा ने अपना दिल अपने दिलाराम बाबा को दे दिया है... *अब मैं आत्मा किसी भी हद के बन्धनों में नहीं पड़ती हूँ... मैं आत्मा एक बाबा से सर्व सम्बन्ध निभाती हुई अविनाशी बन्धन में बंध गई हूँ...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा किसी भी अन्य आत्मा से... दिल लगाने का सोच भी नहीं सकती... *क्योंकि मुझ आत्मा का दिल तो मेरे दिलाराम बाबा की अमानत है...* किसी से भी दिल लगी की बातें, बोल-चाल, दृष्टि वा वृत्ति से भी नहीं करती... मेरे दिल में यही गीत सदा बजता रहता है... *मेरा तो एक बाबा दूसरा ना कोई...* मैं आत्मा बाबा द्वारा दी हुई शिक्षाओं को अपनी बुद्धि में धारण करती हूँ... *अब कभी, न अपने ऊपर नाराज होती हूँ... और न ही किसी अन्य आत्मा के ऊपर...* सदा खुश रहने की खुराक प्यारे बाबा से जो मुझ आत्मा को मिल गई है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने मीठे बाबा से की हुई प्रतिज्ञा को हमेशा याद रखती हूँ...* बाबा की याद से मेरी दृष्टि, वृत्ति सब पावन बनती जा रही है... बाबा से लाइट-माइट की किरणें मुझ आत्मा पर निरन्तर पड़ रही है... *बाबा को दिया हुआ वचन दिल से निभाते हुए मैं आत्मा विघ्न विनाशक और आज्ञाकारी बनती हूँ... मैं आत्मा सदा बाबा के द्वारा दी हुई डाइरेक्शन पर चलती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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