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 22 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *फूल बनकर सबको सुख दिया ?*

 

➢➢ *कदम कदम बाप की श्रीमत पर चलते रहे ?*

 

➢➢ *सिर्फ एक बाप से ही सुना ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *अमृतवेले तीन बिंदियों का तिलक लगा क्या, क्यों की हलचल से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के बहाव का फ़ोर्स समाप्त किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  कोई भी संकल्प न आये, *फुलस्टॉप कहा और स्थित हो गये।* क्योंकि लास्ट पेपर अचानक आना है। अचानक के कारण ही तो नम्बर बनेंगे ना। लेकिन होना एक सेकण्ड में हैं। तो कितना अभ्यास चाहिए?

 

✧  अगर अभी से नष्टोमोहा हैं, मेरा-मेरा समाप्त है तो फिर मुश्किल नहीं है, सहज है। तो सभी पास होने वाले हो ना। *जो निश्चय बुद्धि हैं उनकी बुद्धि में यह निश्चत रहता है कि मैं विजयी बना था, बनेंगे और सदा ही बनेंगे।* बनेंगे या नहीं बनेंगे, यह क्वेचन नहीं होता है।

 

✧  तो ऐसे बुद्धि में निश्चत है कि हम ही विजयी है? लेकिन वहुतकाल का अभ्यास जरूर चाहिए। अगर उस समय कोशिश करेंगे, बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो मुश्किल हो जायेगा। *बहुत काल का अभ्यास अंत में मदद देगा।* अच्छा

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्न सुनने से कानो का भी मीठा बनना*"

 

_ ➳  भक्ति में सदा कनरस में डूबी हुई मै आत्मा... मन्दिर में एक प्रतिमा के दर्शन में जीवन की सफलता को निहारा करती थी... तब कहीं ख्वाबो और ख्यालो में भी... ईश्वरीय मिलन की कोई और चाहना भी न थी... बून्द ही मेरे लिए सागर थी... किसी और प्यार के सागर को भला मै क्या जानु... पर भगवान को मेरे ये खोखले और क्षणिक सुख नही भाये... और वह *मुझे सच्चे सुखो की अमीरी का अहसास कराने... परमधाम छोड़, धरती पर आ गया... मेरे अथाह सुखो की चाहना में... धरा पर डेरा जमा चला.*.. अपने प्यारे बाबा के सागर दिल को याद करते करते... और उसके असीम उपकारों को सिमरते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में मिलन के लिए पहुंचती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने खोये गुणो से भरपूर कर पुनः चमकदार बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे,... जनमो से ईश्वर के दर्शनों को तरसते थे... आज उनके सम्मुख बेठ मा नॉलेजफुल बन रहे हो... तो अब हर पल, हर साँस को ईश्वरीय यादो में ही बिताओ... *सिर्फ एक सच्चे बाप से सच्चे ज्ञान को सुनकर, गुणो की धारणा कर, स्वयं को सदा के लिए मीठा बनाओ.*.. इन अविनाशी ज्ञान रत्नों को सुनने वाली... आपकी कर्मेन्द्रियों का भी भाग्य है.. कि आत्मा को ईश्वरीय सुख दिलाने में भागीदार है..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के अमृत वचन सुनकर स्वयं के भाग्य की सराहना करते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा ने आपके बिना अथाह दुःख पाया... सच्चे प्यार को तरसती मै आत्मा... दर दर भटकती रही... आज आप प्यार के सागर ने मुझे अपनी प्यार भरी बाँहों में लेकर... मेरे थके मन, बुद्धि को सुख से भर दिया है... *आपकी यादो में मेरा प्यारा मन और दिव्य बुद्धि मुझे असीम खुशियो से सजा रही है.*.."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... महान भाग्य ने जो अविनाशी ज्ञान रत्नों को दामन में सजाया है... उनको खनक में सदा खोये रहो... *श्रीमत की धारणा से मन प्यारा और बुद्धि दिव्यता से सज कर, सदा सुखो की बहारो में ले जायेगी.*.. और ज्ञान को सुनते सुनते, स्थूल कर्मेन्द्रियाँ भी मिठास से परिपूर्ण हो जायेगी... इसलिए सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में आनन्दित रहो और यादो में झूमते रहो...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की सारी दौलत को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके बिना कितनी सूनी थी... पराये देश में पिता बिना कितनी अकेली थी... आप आये तो जीवन में बहार आयी है... *ज्ञान और योग से जीवन रौनक से भरा, खुबसूरत हो गया है... यह जीवन सच्ची खुशियो से संवर गया है.*.. सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियाँ ईश्वरीय प्यार में शीतल सुखदायी हो गयी है और मुझ आत्मा को सदा का सुख दे रही है..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डूबने का फरमान देते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर अब पुरानी दुनिया के व्यर्थ से मुक्त हो जाओ... *सिर्फ मीठे बाबा के सच्चे ज्ञान रत्नों को ही सुनो... यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही सच्ची कमाई है... सदा इस सच्ची कमाई में ही डूबे रहो.*.. सत्य ज्ञान और सच्चे वजूद को जानकर, अब स्वयं को कहीं भी न उलझाओ... मीठे बाबा की प्यारी यादो में डूब, सदा के लिए प्यारे और न्यारे बन जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की मीठी मीठी यादो में गहरे डूबकर कहती हूँ :-"प्यारे दुलारे बाबा... विकारो की कालिमा में कंगाल बन गयी... मुझ आत्मा को अपने सच्चे ज्ञान से पुनः मालामाल बना रहे हो... मै क्या बन गयी थी, और आप मुझे पुनः देवता सजा रहे हो... ऐसा मीठा खुबसूरत भाग्य पाकर, तो मै आत्मा निहाल हो गयी हूँ... *आपकी मीठी यादे और अमूल्य ज्ञान रत्न ही... मेरे जीवन का सच्चा आधार है, और इसी पर मेरे सारे सुखो का मदार है*..."मीठी बाबा को अपने दिल की बात सुनाकर मै आत्मा... साकारी लोक में आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह अभिमान में आ कर नाफ़रमानबरदार नही बनना*"

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत और उनके फ़रमान पर चल अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य भी है और कर्तव्य भी है। *मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हुई मैं अपने शिव पिता की आज्ञानुसार आत्म अभिमानी स्थिति में जैसे ही स्थित होती हूँ वैसे ही देह और देह की दुनिया की हर चीज में मुझे बदलाव दिखाई देने लगता है*। दुनिया के हर आकर्षण से मैं स्वयं को मुक्त अनुभव करने लगती हूँ। इस अति न्यारी और प्यारी अवस्था मे स्थित हो कर मैं विचार करती हूँ कि स्वयं को देह समझने की भूल ने ही तो मेरे हीरे तुल्य जीवन को कौड़ी तुल्य बना दिया है।

 

_ ➳  सतयुग में जब देह अभिमान नही था तो मै आत्मा कितनी सतोप्रधान थी, सोने के समान अति उज्ज्वल स्वरूप था मेरा। सुख, शांति सम्पन्नता से मैं भरपूर थी। किन्तु द्वापर युग मे देह का भान आते ही मेरी अवस्था क्या से क्या हो गई! *किंतु अब जबकि मेरे शिव पिता परमात्मा ने आ कर मुझे इस बात का बोध करवा दिया है तो अब अपने शिव पिता परमात्मा के फरमान पर चल, मुझे देह अभिमान में आ कर ऐसा कोई कर्म नही करना जो मुझे फिर से गिरती कला में ले जाये*। अब तो अपने शिव पिता परमात्मा की फ़रमानबरदार बन हर कदम उनकी ही श्रीमत पर चलना है।

 

_ ➳  मेरे शिव पिता परमात्मा का पहला फ़रमान है:- "स्वयं को आत्मा समझ बाप को याद करना और सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखना"। *अपने प्यारे मीठे बाबा के इस फरमान का पालन करने के लिए अब मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होकर बाबा की याद में बैठ जाती हूँ और सेकेंड में देह के बन्धन से मुक्त हो कर, भृकुटि सिहांसन को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ*। अपनी नश्वर देह और आस - पास की हर वस्तु को देखते हुए अब मैं उन सबसे किनारा कर अपने शिव पिता से मिलन मनाने ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ। मेरे शिव पिता परमात्मा की मीठी याद, स्नेह की डोर के रूप में मेरे सामने है। उस डोर को थामे मैं निरन्तर ऊपर उड़ती जा रही हूँ।

 

_ ➳  पांचो तत्वों को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, उस निराकारी दुनिया मे मैं प्रवेश कर जाती हूँ जहां से मेरे शिव पिता परमात्मा अपने स्नेह की डोर से मुझे खींच रहे थे। मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से अपने शिव पिता परमात्मा को मैं अपने सम्मुख देख हर्षित हो रही हूँ। *मेरे अति मीठे शिव बाबा के स्नेह की डोर, स्नेह के मीठे झरने के रूप में मुझ पर बरस रही है*। अपने शिव पिता के स्नेह की शीतल फुहारों के नीचे मैं असीम आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। *अपने निश्छल और निस्वार्थ प्रेम से बाबा मुझे भरपूर कर, आप समान मास्टर प्रेम का सागर बना रहे हैं*। अपनी सर्वशक्तियाँ मुझ आत्मा में प्रवाहित कर बाबा मुझे सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बना रहें हैं।

 

_ ➳  अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूँ। परमधाम से नीचे वापिस साकारी लोक में आकर अब मैं अपने शरीर रूपी रथ पर फिर से विराजमान हो गई हूँ। मेरे शिव पिता परमात्मा के असीम स्नेह की मीठी अनुभूति अब मुझे हर कदम उनके फ़रमान पर चलने की प्रेरणा दे रही है। *मेरे मीठे बाबा के निःस्वार्थ प्रेम ने मेरी दृष्टि, वृति को बदल दिया है*। देह अभिमान को छोड़ आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित रहने और सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का होने लगा है। *अपने शिव पिता की फ़रमानबरदार बन उनके हर फ़रमान का पालन करते हुए, अब मैं अपने साथ - साथ सबके जीवन को श्रेष्ठ बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा अमृतवेले तीन बिंदियों का तिलक लगाने वाली क्यूँ - क्या की हलचल से मुक्त हूँ।*

 

➳ _ ➳  *बाप बिंदी... मैं बिंदी... ड्रामा बिंदी... तीन बिंदी का तिलक* अमृतवेले लगाती मैं आत्मा... क्यूँ - क्या की हलचल रूपी परिस्थितियों से परे बन... अचल... अडोल आत्मा बन गई हूँ... *नथिंग न्यू का पाठ पक्का करती मैं आत्मा... हर पहाड़ रूपी परिस्थितियों को साक्षीपन की सीट पर स्थित होकर के देख रही हूँ...* स्मृति स्वरुप बनती मैं आत्मा... लौकिक कार्य को क्यूँ - क्या की परछाई से दूर रखती हूँ... तीनो बिंदी का तिलक... स्मृति पटल पर सुनहरे अक्षरों में अंकित करती मैं आत्मा... हर पल हर घड़ी... अंतिम घडी समझ के... हलचल मुक्त आत्मा बन गई हूँ... *तीनों बिंदी का तिलक बापदादा के हाथों लगाती मै आत्मा... संगमयुग के अमूल्य क्षणों को तीव्र पुरुषार्थ रूपी सीढ़ी द्वारा सफल कर कर्मातीत अवस्था की शिखर पर पहुँच रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ के भाव को समाप्त कर समर्थ बनने का अनुभव"*

 

_ ➳  *संगमयुग पर बाबा मुझ आत्मा को... खजानों से भरपूर कर रहें है*... सबसे बड़ा श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना... *तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक मुझ आत्मा की सर्वशक्तियों... सर्वगुणों के खजाने को व्यर्थ नही जाने देते*... जिस कारण मुझ *आत्मा में तीव्रता से परिवर्तन होता जा रही हूँ*... मुझ आत्मा में परिवर्तन शक्ति बढ़ती जा रही है... *कोई भी साधारण संकल्प नही*... बाबा द्वारा मिले इस परिवर्तन शक्ति के खजानों को... मैं आत्मा विश्व की आत्माओं को परिवर्तन करने की सेवा में लगाती जा रही हूँ... *ब्राह्मण जीवन है ही सेवा के लिए*... यह परिवर्तन शक्ति मुझ आत्मा के व्यर्थ संकल्पों के बहाव के फोर्स को समाप्त करती जा रही है... *व्यर्थ समाप्त होता अनुभव हो रहा है.... ओर मैं आत्मा समर्थ बनने का अनुभव करती जा रही हूँ*... मैं बाबा के विश्व परिवर्तन के कार्य में साथी बनती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *देखा गया है कि क्रोध की सबजेक्ट में बहुत कम पास हैं। ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं हैयह शस्त्र है, विकार नहीं है*। लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है। क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और *क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानी होती है*। कहने वाले यही कहते हैंदेख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को। *क्रोध के बहुत रूप हैं। एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते होदिखाई देता है - यह क्रोध कर रहा है।*

 

 _ ➳  *दूसरा - क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्याद्वेषघृणा होती है। इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है,* लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है तो क्रोध  अग्नि रूप है नावह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है। ऐसे *ईर्ष्या, द्वेष, घृणा - यह जिसमे हैवह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है*। बाहर से लाल, पीला नहीं होतालाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है।

 

 _ ➳  *तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है*। वह क्या है?  *कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है। कहाँ-कहाँ ला उठाना ही पड़ता है - कल्याण के लिए।* अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो। *बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में ला उठाने की छुट्टी नहीं दी है*। क्या कोई मुरली में कहा है कि भले लाॅ  उठाओ, क्रोध नहीं करोलाॅ उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है। जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी ला उठाते नहीं हैंलेकिन उन्हों को लाॅ रिवाइज कराना पड़ता है। लाॅ कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए ला को रिवाइज करना पड़ता है। निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी हैसबको नहीं।    

 

✺   *ड्रिल :-  "क्रोध के बहुरूपों को पहचान क्रोध की सब्जेक्ट में पास होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मन रूपी आकाश में बिखरे संकल्प रूपी बादल... कुछ श्वेत कुछ श्याम, और कुछ सबसे अलग अँगारों के समान, गहरे लाल रंग के... जैसे किसी ज्वाला मुखी से बिखरा लावा...* एक एक संकल्प को साक्षी भाव से देखते हुए... मैं आत्मा बैठ गयी हूँ बापदादा की कुटिया में, और अब एक एक कर शान्त होते मेरे ये संकल्प... मन बिल्कुल स्वच्छ, शान्त, होता जा रहा है... बापदादा के चित्र से आती प्रकाश की किरणें... मेरी भृकुटी पर स्थित होकर... आहिस्ता आहिस्ता मेरे मस्तिष्क में प्रवेश कर रही है... और इस प्रकाश की धारा से जगमगाता मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व...

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता रूप में बापदादा के साथ हिस्ट्री हाॅल में... बापदादा आज बच्चों को उनके अलौकिक जन्मदिन की बधाई दे रहे है... एक एक करके... बारी-बारी से सबको... मेरा नम्बर सबसे आगे... मगर बापदादा मुझे इशारे से पीछे होने का संकेत करते हुए... एक एक आत्मा को वरदान और पावर फुल दृष्टि, साथ बेशकीमती सौगातें... और मैं एक एक कर अपने सामने से उमंगों से भरपूर होकर जाती एक एक आत्मा को देख रहा हूँ... लम्बे इन्तजार के बाद मेरा नम्बर आता है... और बापदादा मेरी उपेक्षा कर चले जाते है हिस्ट्री हाॅल से... मैं बैठकर सोच रहा हूँ इस उपेक्षा का कारण... और *एक एक आत्मा के प्रति ईर्ष्या से भरता जा रहा हूँ मैं... अन्दर ही अन्दर एक बेचैनी और घुटन... एक बेबसी की भावना... क्योंकि मुझे बाहर से शान्त भी दिखना है...* एक अन्तहीन सा संघर्ष... जिसकी पीडा मैं ही जानता हूँ... तभी कन्धे पर किसी का प्यार भरा स्पर्श... और जैसे किसी ने कोई पीडानाशक घोल पिला दिया हो... और सारी कटुता सारी ईर्ष्या बह गयी है आँखो से आसुँओं की धारा बनकर...

 

 _ ➳  मैं अब बापदादा के साथ एक अनोखी यात्रा पर... मैं और बाबा एक ऊँची पहाडी पर... दूर कहीं फटता ज्वालामुखी और बहकर आता हुआ उसका गहरा लाल लावा... बेहद डरावना और जलाने वाला... मैं देख रहा हूँ बाबा के मनोभावों को और समझने की कोशिश कर रहा हूँ... हिस्ट्री हाॅल का उनका व्यवहार और अब ये ज्वाला मुखी... और सहसा समझ में आ रहा है मुझे सब कुछ... *क्रोध का भीषण रूप ठीक इस ज्वालामुखी की तरह से जलाने वाला... और सूक्ष्म रूप ईर्ष्या...* सोचकर खुद से ही नजरें चुरा रहा हूँ मैं और बाबा रहस्यपूर्ण नजरों से देखे जा रहें है मुझे... मगर मैं नजरें उठाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा अब... और तभी बापदादा मेरा हाथ पकड कर एक झील के पास ले जाते हुए... मुझे झील के पानी में पैर उतारने का आह्वान करते हुए... और मैं देख रहा हूँ पानी से उठता धुआँ... गरम खौलता झील का पानी... कुछ ही पल में समझ रहा हूँ क्रोध के तीसरे रूप को... शीतलता का प्रतीक झील का पानी, मगर आज ये गरम और खौलता हुआ... *ठीक वैसे ही जैसे निमित्त बनी आत्मा लाॅ को हाथ में उठाये और कल्याण के नाम पर क्रोध को करें*...

 

 _ ➳  क्रोध के विभिन्न रूपों की पहचान कर मैं क्रोध मुक्त बनने के लिए बैठ गया हूँ... शान्त पहाडी झरने के नीचे... झरने के ऊपर बापदादा... मुझ आत्मा से क्रोध के अंश मात्र को धोते हुए... और निर्मल और शान्त होती हुई मैं आत्मा... *बिन्दु बन परमधाम की ओर जाती हुई मैं आत्मा... और अन्य आत्माओं को मुझसे आगे निकलने का आह्वान करते बापदादा... मगर मैं शान्त और यथा स्थिति में... न कोई संकल्प और न ही हलचल*... क्रोध के पेपर में पास मैं शान्त स्वरूप आत्मा... और अब बापदादा के एकदम करीब... बिल्कुल करीब... मैं बापदादा के सबसे करीब की आत्मा... भरे जा रही हूँ स्वयं को उनके स्नेह से... स्नेह सागर में समाती हुई... ॐ शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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