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❍ 07 / 03 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *रावण की शरण में जाकर बाप की निंदा तो नहीं कराई ?*
➢➢ *योगी बन विकर्म विनाश किये ?*
➢➢ *पवित्र दुनिया में चलने के लिए पवित्रता की धारणा पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *धन कमाते अथवा संबंधो को निभाते हुए दुखों से मुक्त रहे ?*
➢➢ *निर्बल को हिम्मत और बल दे रहमदिल बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *सेल्फ रीयलाईजेशन से डिप्रेशन को दूर भगाया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप आये है तुम्हे इस दुःख के लोक से निकाल सुख के धाम में ले जाने, धाम पवित्र स्थान को कहा जाता है"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने ही खुशनुमा फूलो को दुखो की तपिश से कुम्हलाया देख विश्व पिता भला कैसे चैन पाये... बच्चों को दुखो से निकालने को आतुर सा धरा पर दौड़ा चला आये... अपनी गोद में बिठाकर दिव्य गुणो से सजाये और *सच्चे सुखो से दामन भर जाये.*.. तब ही पिता दिल आराम सा पाये...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा तो दुखो भरे जीवन की आदी हो चली थी... और उन्हें ही अपनी नियति समझ बेठी थी... *आपने प्यारे बाबा जीवन में आकर खुशियो के फूल खिलाये है.*.. दिव्य गुणो से सजाकर मुझे देवतुल्य बना रहे हो....
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस दुखधाम से निकल कर मीठे सुखो के अधिकारी बन चलो... ईश्वरीय ज्ञान और यादो से विकारो से मुक्त हो चलो... *पवित्र धाम में चलने के लिए पवित्रता के श्रंगार से सजकर मुस्कराओ.*.. ईश्वरीय याद और प्यार से निर्मलता को रोम रोम में छ्लकाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपको मीठी यादो में सम्पूर्ण पवित्रता से सजधज कर मुस्करा उठी हूँ... जीवन कितना पवित्र प्यारा सा अलौकिक हो चला है... मीठे बाबा आपने मुझे *देह के मटमैलेपन से मुक्त करवाकर सुंदर सजीला बना दिया है.*..
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय बाँहों में सुखो की बहारो को पाओ... असीम सुखो की जागीर ईश्वरीय खजानो और यादो में पाकर देवताओ के श्रंगार से सजकर मीठा सा मुस्कराओ... मीठा बाबा *अपने बच्चों को फिर से खुशियो में खिलाने आया है* तो पवित्र बनकर ईश्वरीय दिल पर छा जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देहभान की धूल में धूमिल सी थी... आज आत्मिक स्वरूप में दमक रही हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझे *कमल समान पवित्र जीवन की धरोहर देकर आलिशान सुखो की मालकिन* सा सजाया है... कौड़ी जीवन को हीरे सा चमकाया है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा नष्टमोहा, ट्रस्टी हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस संगम युग पर अपना अंतिम पार्ट निभा रही हूँ... इस अंतिम जन्म में मुझ आत्मा को सारे कर्म बन्धनों से मुक्त होना है... सारा हिसाब-किताब खत्म करना है... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को कर्मों की गुह्य गति का सत्य ज्ञान दिया है... मैं आत्मा *स्मृति स्वरुप, समर्थी स्वरुप* बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा सुख सागर की संतान हूँ... सुख सागर से सुख की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा की जन्मों-जन्मों की दुःख की लहर खत्म होती जा रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बाबा से लगन लगा रही हूँ... एक के प्यार में स्वयं को समाती जा रही हूँ... अब न तन की चिंता, न मन की परेशानी, न तन के कर्मभोग की चिंता... एक बाबा से लगन की अग्नि में सभी चिंताए भस्म होती जा रही हैं... सारे फ़िक्र समाप्त कर मैं आत्मा *बेफिक्र बादशाह बनती जा रही* हूँ... अब मैं आत्मा तन, मन, धन, वाणी और कर्म से एक बाबा को समर्पित होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का विनाशी संबंधो का लगाव खत्म होता जा रहा है... मुझ आत्मा का कमजोर स्वभाव-संस्कार खत्म होता जा रहा है... अब मैं आत्मा ट्रस्टी बन लौकिक संबंधो के बीच अपना पार्ट निभा रही हूँ... अब मैं आत्मा स्वयं के तन की बीमारी या करीबी सम्बन्ध में कोई बीमार भी हो जाए तो भी मैं आत्मा दुखी नहीं होती हूँ... *कमल पुष्प समान न्यारी* हो जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मुझ आत्मा का विनाशी धन का मोह खत्म होता जा रहा है... अब मैं आत्मा नष्टमोहा बन धन कमा रही हूँ... अब मुझ आत्मा को विनाशी धन के अप्राप्ति वा कमी होने पर भी दुःख की लहर नहीं आ सकती है... अब मैं आत्मा हर परिस्थिति में अचल अडोल रहती हूँ... अब मैं आत्मा *नष्टमोहा, ट्रस्टी अवस्था में स्थित रह* धन कमाते अथवा संबंधो को निभाते हुए दुःखों से मुक्त रहती हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निर्बल को हिम्मत और बल देकर रहम दिल बनना"*
➳ _ ➳ मैं मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा... साक्षीदृष्टा बन... बातों के सारे विस्तार को समेट कर... अपने मीठे प्यारे शिवबाबा का साथ अनुभव कर रही हूँ... इस संसार से न्यारी होकर सर्व आत्माओं को देख रही हूँ... मेरा कल्याणकारी बाबा सभी आत्माओं का कल्याण करने आया है... *मुझे भी रहमदिल बन सबको हिम्मत और बल प्रदान करने हैं...*
➳ _ ➳ जो आत्मायें संसार में पार्ट बजाते बजाते शक्तिहीन... निराश हो गयीं हैं... *मुझ आत्मा को उन्हें समस्याओं से लड़ने के लिये सशक्त करना है...* सर्व के प्रति रहमदिल की विशेषता उनका शुभचिंतक बना देगी... उनको चिन्तामुक्त करा देगी... भय से मुक्त करा देगी...
➳ _ ➳ इस संगमयुग के सुहाने समय में अवतरित मैं शक्तिशाली आत्मा... *सर्वशक्तियों का प्रकम्पन चारों ओर फैला रही हूँ...* सर्व आत्माओं को सर्व शक्तियों का दान दे रही हूँ... वह आत्मायें भी अपने में बल अनुभव कर रही हैं... हर आत्मा मुझे अपने समीप अनुभव कर... मेरा सहयोग प्राप्त कर रही है...
➳ _ ➳ मैं शक्ति स्वरूप आत्मा... आध्यात्मिक व अलौकिक शक्तियों का पुंज हूँ... शक्तियों की खान हूँ... शक्तियों से भी ओत प्रोत हूँ... हर निर्बल आत्मा को ड्रामा में पार्ट बजाने के लिये शक्तिशाली बना रही हूँ... वह आत्मायें भी अब चिन्ताओं से... भय से मुक्त हो रही हैं... उनमें भी अब *साक्षीपन में रह सब खेल खेलने की शक्ति व हिम्मत* आ गयी है... वह आनन्द से अब अपना पार्ट बजा रही हैं...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *धन कमाते अथवा सम्बंधो को निभाते हुए दुःखों से मुक्त रहने वाले नष्टोमोहा, ट्रस्टी होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ नष्टोमोहा अर्थात *डिटैच्मेंट या कहो न्यारी अवस्था*। यह अवस्था जिस भी आत्मा की होती है वह सबसे न्यारा और सर्व का प्यारा बन जाता क्योंकि इससे अब वह आत्मा जैसे अब स्टेबल,सम्पन्न,सम्पूर्ण,भरपूर होती है सर्वशक्तियो में। जब हम ज्ञान में आते है तब हमको एक ही एम दिया जाता है...मनुष्य से देवता बनना। जिसकी सम्पूर्ण डेफ़िनिशन है, सर्वगुण सम्पन्न, १६कलाँ सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसक परमोधर्म, नष्टोमोहा स्मृति लब्धा।
❉ सर्व दुखों का कारण ही है (मैं पन) की बीमारी। जिस जिस चीज में बुद्धि में *( मैं और मेरा )* अटकी वहा से स्वतः ही दुःख की लहर आने जाने लगेगी क्योंकि जैसे ही बुद्धि देह रूपी मै पन में फसती है तो सबसे पहली चीज उसके *अंदर आता है भय* भय भी चीज़ों को लोगो को खो देने का डर फिर ये भय उसको बंधन में जकड़ लेता है और उसका सारा समय अब लगाव झुकाव में लग जाता है कि कही धन या संबंधी किसी भी तरह से मेरे से दूर न चले जाये।
❉ लौकिक सम्ब्न्धो के बीच में रहते सम्बंध निभाना अलग चीज़ है और उनकी तरफ़ आकर्षित होना अलग चीज़ है। क्योंकि कभी सम्बंध निभाने में कोई बीमार हो जाए या कोई शरीर छोड़ दे तो वही सम्बंध अब अटैच्मेंट की वजह से या कहो (मेरे पन) की स्मृति की वजह से दुःख अशांति का अनुभव करती है, इसके लिए *आत्मा को सदा ही कमल फ़ुल समान न्यारी प्यारी अवस्था में रहने का अभ्यास* करना चाहिए।
❉ ऐसे ही ट्रस्टी होकर धन कमाना अलग चीज़ है, लगाव से कमाना, मोह से कमाना अलग चीज़ है। क्योंकि कभी कमाने में धन नीचे ऊपर हो जाए तो वही ( मैं पन ) की बीमारी की वजह से दुःख अशांति की लहर आ जाती है, इसके लिए *आत्मा को सदा करनकरावनहार और कर्मी की गुहिय गति को ध्यान में रखते हुए बेफ़िक्र बनके रहना चाहिए*।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *रहमदिल उसे कहा जाता जो निर्बल को हिम्मत और बल देता रहे... क्यों और कैसे* ?
❉ जिनके हृदय में सर्व आत्माओं के प्रति दया और रहम का भाव सदा इमर्ज रहता है वे रहमदिल विश्व कल्याणकारी आत्मा बन कमजोर आत्मा को भी उसकी महिमा की स्मृति दिला कर महान बना देते हैं । *अपने रहमदिल की शक्ति से वे कमजोर आत्माओं के अवगुणों व कमजोरियों को धारण नही करते* बल्कि अपने शक्ति सम्पन्न स्वरूप से उनको भी उनके अवगुणों की विस्मृति करा कर उन्हें भी हिम्मत और बल प्रदान कर समर्थ आत्मा बना देते हैं ।
❉ जैसे बेहद का बाप दया का सागर है सबकी अच्छी बुरी बातों को समा लेता है । बच्चों की बुराइयों व कमी कमजोरियों को दिल में ना रख उन्हें माफ़ कर देता है । ऐसे ही बाप समान *मास्टर दया के सागर बन जो सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं की बुराइयों वा कमजोरियों को नजरअंदाज करने की विशेषता स्वयं में धारण कर लेते हैं* । वही रहमदिल बन निर्बल और कमजोर आत्माओं को आत्मिक बल और हिम्मत प्रदान कर उन्हें ऊँचा उठाने का महान कार्य कर सकते हैं ।
❉ जिनके हृदय में सर्व आत्माओं के प्रति रहम की भावना होती है उनके स्वभाव में सरलता और जीवन में उदारता की विशेषता स्पष्ट दिखाई देती है । *व्यवहार में सच्चाई और स्वभाव में सफाई उन्हें परमात्मा के दिल रूपी तख़्त पर सदा विराजमान रखती है* । इसलिए वे कदम कदम पर परमात्मा बाप की मदद का अनुभव करते रहते हैं और परमात्म छत्रछाया में स्वयं को सदा सेफ अनुभव करते हुए, परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर निर्बल आत्माओं को भी अपने बल और हिम्मत से बलशाली बना देते हैं ।
❉ जैसे एक किसान पूरी हिम्मत, उत्साह और दृढ़ता के साथ जब एक बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की ठान लेता है तो उसकी मेहनत कलराठी जमीन को भी हरा - भरा बना देती है । इसी प्रकार जो रहम की भावना से भरपूर होते हैं *वे रहमदिल बन पुराने स्वभाव - संस्कारों के वश हुई आत्माओं को उनके पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्ति दिलाने का जब दृढ़ संकल्प कर लेते हैं* तो अपनी हिम्मत और बल से वे निर्बल आत्माओं को भी पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्त कर उन्हें भी चढ़ती कला में ले आते हैं ।
❉ जो रहमदिल होते हैं वे सरल होते हैं और सरलता का गुण मनुष्य को नम्रचित बनाता है । नम्रता को अपने जीवन धारण करने वाले अपने सरल और *नम्र स्वभाव के कारण हर प्रकार की परिस्थिति और हर प्रकार के स्वभाव संस्कार वाली आत्मा के साथ स्वयं को समायोजित करने की योग्यता विकसित कर लेते हैं* । स्वयं को एडजेस्ट करने में उन्हें समय और शक्ति को व्यर्थ नही गंवाना पड़ता
इसलिए वे सदा स्वयं को शक्तिसम्पन्न अनुभव करते हैं और अपनी शक्ति से निर्बल आत्माओं को भी शक्तिशाली बना देते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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