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❍ 22 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *किसी भी समस्या व संस्कार के आधीन बन उदास तो नहीं हुए ?*
➢➢ *अभी अभी आवाज़ में आने का और अभी अभी आवाज़ से परे जाने का अभ्यास किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *अटेंशन के समर्थ स्वरुप द्वारा अनेक आत्माओं के टेंशन को समाप्त किया ?*
➢➢ *हर कर्मेन्द्रिय "जी हाज़िर", "जी हुज़ूर" करती रही ?*
➢➢ *अपने ज्वालामुखी नेत्र द्वारा माया को शक्तिहीन किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"विश्व का उद्धार - आधारमूर्त आत्माओ पर निर्भर"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली आत्माये हो... *विश्व की आधारमूर्त आत्माये हो.*.. स्म्रति स्वरूप से सदा समर्थी स्वरूप हो स्वपरिवर्तन से विश्व परिवर्तन करने वाली जादूगर हो... अपने आधारमूर्त शक्तिशाली स्वरूप में स्थित हो चलो... और अटेंशन खिंचवाने वाले तीर्थ बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा खुबसूरत भाग्य से भरी हूँ... विश्व की आधारमूर्त आत्मा बन सबको टेंशन से मुक्त करवा कर शिव पिता से बुद्धियोग जुड़वा रही हूँ... *शिवशक्ति के कम्बाइंड स्वरूप की अनुभूति करवा रही हूँ.*..
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की मीठी यादो में *स्वयं को अचल बनाकर रूहानी चुम्बक बन चलो*... निर्बल आत्माओ को शक्ति के पॉँव देकर शिव पिता से मिलवाओ... सबके दुःख दूरकर उड़ती कला के अनुभवी बनाओ... ऐसे शक्तिस्वरूप बन बापदादा के दिल में मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपसे पाया अनमोल प्यार अमूल्य रत्न और बेशकीमती खजाने हर दिल पर लुटा रही हूँ... *मा दुखहर्ता बन सबके दुःख तनाव दूर कर रही हूँ.*.. सबको सच्चे सुखो का पता देकर प्यारे बाबा से मिलवा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... कर्मेन्द्रियों के राजा बन मुस्कराओ... *जब चाहो तब संकल्प बोल में आओ जब चाहो तब बिन्दु बन खिल जाओ.*.. अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों की सभा लगाओ... स्वयं ही चेंकिंग करो और निर्माणता के गुण को अपनाकर हर कर्म में विजयी हो चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्ची ख़ुशी पाकर झूम रही हूँ... *यादो में पुलकित सी निर्माण बन, हर दिल को प्यार और स्नेह से जीत रही हूँ* अपनी कर्मेन्द्रियों की राजा बनकर शान से मुस्करा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व की माननीय हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *याद की रुहानी यात्रा* कर रही हूँ... मैं आत्मा संगमयुगी मिलन मेला मना रही हूँ... कल्प पहले बिछ्डे अपने पिता से मिलन मना रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान-स्नान करा रहे हैं... मैं आत्मा परम पवित्र शुद्ध होती जा रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा का दिव्य गुणों से श्रॄंगार कर रहे हैं... सर्व खजानों से सम्पन्न बना रहे हैं...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को लाइट माइट का ताज पहना रहे हैं... मैं आत्मा सर्व बोझों से, सर्व बंधनों से मुक्त होकर हल्की होती जा रही हूँ... मैं आत्मा *दिव्यता को धारण कर अलौकिक* बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का देह अभिमान ख़त्म होता जा रहा है... मैं आत्मा क्रोध, अहंकार, लोभ जैसे सर्व विकारों से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा देही अभिमानी बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं *कल्प-कल्प की विजयी रत्न* आत्मा हूँ... मैं आत्मा संगमयुगी हीरा हूँ... अब मैं आत्मा सदा स्वमानों की सीट पर सेट रहती हूँ... मैं आत्मा जिम्मेवारी का ताज पहन सर्व की सहयोगी बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा स्व-कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण कर रही हूँ... मैं आत्मा विश्व परिवर्तन के कार्य में प्यारे बाबा की राइट हेंड बन रही हूँ... मैं आत्मा स्वयं को बाप समान और सर्व को आप समान बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा वर्तमान समय के प्रमाण सदा और सहज सफलता प्राप्त करने निर्माणता के स्वमान पर टिकी रहती हूँ... मैं आत्मा निर्मान बन सर्व द्वारा सहज ही मान प्राप्त कर रही हूँ... अब मैं आत्मा स्वयं को सदा निर्माणचित्त की विशेषता से चला रही हूँ... और सहज सफलता को पा रही हूँ... हर कर्म, सम्बन्ध और सम्पर्क में निर्मान बन विजयी रत्न बन रही हूँ... अब मैं आत्मा निर्माणता की विशेषता द्वारा सहज सफलता प्राप्त करने वाली *सर्व की माननीय बन गई* हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - नॉलेज की शक्ति धारण कर विघ्न जीत बनना"*
➳ _ ➳ बाबा ने हमें सारा ज्ञान दे नॉलेजफुल बना दिया है। नथिंग न्यू का पार्ट पक्का कराया, *कल्याणकारी बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नही सकता।* विघ्न तो आते है परन्तु हाई जम्प दे विघ्नजीत बनना है। कल्प-कल्प के हम विजय है।
➳ _ ➳ मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ... *अनेक बार का रिपीट किया हुआ दृश्य फिर से रिपीट हो रहा है*... नथिंग न्यू...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बीती बातों को न तो चितन में लाती हूँ... और न ही चित पर रखती हूं... न ही वर्णन करती हूँ... *बीती को बीती कर आगे बढ़ती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ आए हुए किसी भी विघ्न को... मैं आत्मा सेकंड में हाई जम्प देने के लिए... डबल लाइट स्थिति में स्थित हो जाती हूँ... *मैं आत्मा ड्रामा के हर सीन को त्रिकालदर्शी बनकर देखती हूँ*...
➳ _ ➳ कोई भी विघ्न आता है तो उसे पेपर समझ... मैं आत्मा आगे बढ़ती जा रही हूँ... *मुझ आत्मा की योग अग्नि जलती रहने से*... माया रुपी विघ्न स्वतः दूर हो जाते हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा नॉलेज की शक्ति से ... विघ्नों और परिस्थितियों में भी अचल-अडोल रहती हूँ... अंगद के समान बनती जा रही हूँ... *मैं आत्मा सदा साक्षी की सीट पर सेट रह*... ड्रामा के हर सीन को देखती रहती हूँ... और यही गीत भी गाती हूँ... वाह ड्रामा वाह...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *निर्माणता की विशेषता द्वारा सहज सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के माननीय होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ निर्माणता की विशेषता द्वारा सहज सफलता को प्राप्त करने वाले सर्व के माननीय होते हैं क्योंकि... *सर्व द्वारा मान प्राप्त करने का सहज साधन ही है – निर्मान बनना।* जो आत्मायें स्वयं को सदा निर्माणचित की विशेषता से चलाती रहती हैं वह सहज ही सफलता को प्राप्त कर पाती हैं।
❉ मनुष्य का सब से बड़ा दुश्मन अहंकार है। हमें सदा ही निरहंकारी बन कर रहना है। जितना जितना हम निरहंकारी अवस्था को प्राप्त करते जायेंगे, उतनी ही *निर्माणता हमारे जीवन में भी स्वतः ही आती जायेगी और सफलता* भी हमें सहज ही प्राप्त होती जाएगी तथा सर्व के माननीय भी बनते जायेंगे।
❉ तभी तो कहा है कि... निर्माण बनो। निर्माण बनना ही स्वमान में स्थित होना हैं। निर्माण बनना अर्थात झुकना नहीं है। लेकिन! *सर्व को अपनी विशेषताओं से और प्यार से झुकाना है।* अतः हमें स्वयं को निर्माण बनाना है व अन्य सभी आत्माओं का सन्मान करना है। साथ साथ स्वयं को स्वमान में स्थित भी करना है।
❉ वर्तमान समय के प्रमाण *सदा और सहज सफलता प्राप्त करने का यही मूल आधार है।* स्वयं को निर्मान बनाओ और दूसरे को भी मान दे कर माननीय बना दो। तभी तो! हर कर्म में वा हर सम्बन्ध में हमें निर्मान बन कर चलना है। निर्माण बनना मीन्स झुक कर चलना है। सर्व को सन्मान व निस्वार्थ प्रेम देना है।
❉ अतः जो सभी सम्बन्ध और सम्पर्क में निर्माण बनने वाले होते हैं, वही सदा के विजयी-रत्न बनते हैं। *सदा के विजयी बनने के लिये हमें सर्व द्वारा मान प्राप्त* करने का प्रयास करते रहना है क्योंकि जो आत्मायें स्वयं को निर्माणचित बनाती हैं वह ही सहज सफलता भी प्राप्त करती हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *नॉलेज की शक्ति धारण कर लो तो विघ्न वार करने के बजाय हार खा लेंगे... क्यों और कैसे* ?
❉ जिन्हें नॉलेज की शक्ति को सही रीति धारण करना आता है वही नॉलेजफुल आत्मा बन सही समय पर *ज्ञान की उचित प्वाइंट को यथार्थ रीति यूज़ कर किसी भी परिस्थिति पर जीत प्राप्त कर सकते हैं* । क्योकि नॉलेजफुल आत्मा अपने नॉलेज की ऑथोरिटी से सेकण्ड में ज्ञान की भिन्न - भिन्न प्वाइंटस को स्मृति में ला कर समाधान स्वरूप बन हर समस्या का समाधान कर लेती है । इसलिए उसके समर्थ स्वरूप को देख विघ्न वार करने के बजाए उनसे हार खा लेते हैं ।
❉ विघ्नों के वार से वही बच सकते हैं जो नॉलेज की शक्ति को स्वयं में धारण कर लेते हैं । क्योंक़ि विघ्नों का वार तब होता है जब बुद्धि एकाग्र नही होती और व्यर्थ चिंतन में लगी रहती है । *किन्तु जो नॉलेज की शक्ति को धारण कर लेते हैं वे अपने मन बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिज़ी रखना सीख लेते हैं* । जिनका मन और बुद्धि जितना समर्थ चिंतन में बिजी रहते हैं उतना ही व्यर्थ चिंतन के रूप में आने वाले माया के हर विघ्न से वे बचे रहते हैं ।
❉ समय और संकल्पों का खजाना संगम युग का सबसे वैल्यूबुल खजाना है जिसे गंवाना अपनी ही तकदीर को लकीर लगाना है । किन्तु माया के तूफान विघ्नों के रूप में इस वैल्युबुल खजाने को समय - समय पर लूटते रहते हैं । इस *खजाने को लुटने से बचाने का उपाय है नॉलेज की शक्ति को धारण करना* । क्योकि जिन्हें नॉलेज की शक्ति को स्वयं में धारण करना आता है वे अपनी नॉलेज की अथॉरिटी से सेकण्ड में माया को परख लेते हैं इसलिए विघ्न वार करने के बजाए उनसे हार खा लेते हैं ।
❉ ज्ञान का अर्थ केवल ज्ञान की प्वाइंट रिपीट करना या ज्ञान को बुद्धि में रखना नहीं है । *ज्ञान का अर्थ है - समझ । अर्थात सत्य - असत्य की समझ, समय प्रमाण कर्म करने की समझ, त्रिकालदर्शी बनने की समझ* । इसको ज्ञान कहा जाता है । तो नॉलेज की शक्ति धारण करना अर्थात हर समय, हर कार्य और हर कर्म में ज्ञान की प्वाइंट को धारणा में ला कर समझ से कार्य को यथार्थ रीति संपन्न करना । ऐसे नॉलेज की शक्ति धारण करने वाली नॉलेजफुल आत्मा कभी विघ्नों में हार नही खा सकती।
❉ विघ्नों में हार खाने का मुख्य कारण है विघ्नों का निवारण ना कर पाना । और निवारण ना कर पाने का कारण है निर्णय शक्ति का कम होना । निर्णय शक्ति तब कमजोर होती है जब व्यर्थ संकल्प - विकल्प बुद्धि में निरन्तर चलते रहते हैं और बुद्धि क्लीयर नही हो पाती । बुद्धि क्लीयर ना होने के कारण यथार्थ निर्णय नहीं कर पाते । *बुद्धि की लाइन को क्लीयर रखने का सहज उपाय है ज्ञान को बुद्धि में धारण करना* । जितना बुद्धि में ज्ञान को धारण करेंगे उतना सही समय पर ज्ञान की शक्ति को यूज कर हर विघ्न का सामना कर सकेंगे ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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