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❍ 07 / 08 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *अथॉरिटी के साथ साथ बहुत रिस्पेक्ट से बात की ?*
➢➢ *किसी भी देहधारी के नाम रूप को तो याद नहीं किया ?*
➢➢ *बाप से पावन बनने की प्रतिज्ञा की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *बिजी रहने के सहज पुरुषार्थ द्वारा निरंतर योगी, निरंतर सेवाधारी बनकर रहे ?*
➢➢ *ख़ुशी की खुराक खाकर आत्मा को तंदरुस्त रखा ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ जब साइन्स के साधन सेकण्ड में अधकार से रोशनी कर सकते हैं तो हे ज्ञान सूर्य बच्चे, आप कितने समय में रोशनी कर सकते हो? *साइन्स से तो साइलेंस की शक्ति अति श्रेष्ठ है।* तो ऐसे अनुभव करते हो कि *सेकण्ड में स्मृति का स्विच ऑन करते अंधकार में भटकी हुई आत्मा को रोशनी में लाते हैं?* क्या समझते हो? सात दिन के सात घण्टे का कोर्स दे अंधकार से रोशनी में ला सकते हो वा तीन दिन के योग शिविर से रोशनी में ला सकते हो? वा सेकण्ड की स्टेज तक पहुँचे गये हो? क्या समझते हो? अभी घण्टों के हिसाब से सेवा की गति है वा मिनट व सेकण्ड की गति तक पहुँच गये हो? क्या समझते हो? *अभी टाइम चाहिए वा समझते हो कि सेकण्ड तक पहुँच गये हैं?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही अभिमानी बनने की प्रेक्टिस करना*
➳ _ ➳ मै आत्मा कभी अपने शरीर भान में उलझे अतीत को देखती हूँ... तो सोचती हूँ, मीठे बाबा ने किस दलदल में से मुझे निकाल कर... कितनी खुबसूरत सुख भरी राहो पर ला दिया है... आज ईश्वरीय यादो में और ज्ञान रत्नों की खनक में गूंजता हुआ जीवन... कितना प्यारा प्यारा सा है... और मै आत्मा *अपने प्यारे बाबा की प्यारी यादो में खोकर... दिल से शुक्रिया करने*... मीठे वतन में उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सत्य रूप के अहसासो में डुबोते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *देह के भान से निकल कर देही अभिमानी बनने की हरपल प्रेक्टिस करो.*.. मै आत्मा हूँ... हर समय इस सत्य को यादो में भरो... और अब मुझे अपने मीठे बाबा संग घर को जाना है... यह बार बार स्म्रति में लाओ... देह के आवरण से अब अछूते बन, आत्मिक भाव में आओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा को बड़ी ही प्यार भरी नजरो से देखते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे मेरे बाबा... खुद को देह मानकर मै आत्मा कितने दुखो से भरी थी... *आपने मुझे मेरा सच आत्मा बताकर कितना सुकून दे दिया है..*. हर पल मै आत्मा अपने भान में खोयी हुई मुस्करा रही हूँ...और देही अभिमानी बनती जा रही हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अलौकिकता से सजाते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... जब घर से चले थे, चमकती मणि स्वरूप थे... अपने उस सत्य के नशे में पुनः खो जाओ... देह को छोड़ देहि अभिमानी बन मुस्कराओ... हर क्षण अपने आत्मिक भान में रहो... *बार बार यही अभ्यास करो और पिता का हाथ पकड़ कर घर चलने की तैयारी में जुट जाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने सच्चे साथी बाबा से कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझे अपना बनाकर असीम खुशियो को मेरे दामन में सजा दिया है... मेरा जीवन सत्य की चमक से प्रकाशित हो गया है... *मै आत्मा अपने नूरानी नशे में खोयी हुई घर चलने को अब आमादा हूँ.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य के प्रकाश से रौशन करते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर जो अपने खोये वजूद को पा लिया है उसकी सत्यता में हर साँस डूबे रहो... *देह के आकर्षण से बाहर निकल अपने चमकते स्वरूप में गहरे खोकर आत्मिक तरंगे सदा फैलाओ.*.. अपने मीठे बाबा संग घर चलने की तैयारी कर पुनः देवताई कुल में आओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से अनगिनत रत्नों को बटोर कर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे...आपने मुझे मेरे सत्य का पता देकर मुझे कितना हल्का प्यारा और निश्चिन्त कर दिया है... *मै आत्मा हूँ देह नही इस खुबसूरत सच ने मुझे खुशियो से भर दिया है.*..और मै आत्मा अब ख़ुशी ख़ुशी घर चलने की तैयारी में हूँ..."अपने मीठे बाबा से मीठा वादा करके मै आत्मा कर्म जगत पर आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक अव्यभिचारी याद में रहना और किसी भी देहधारी के नाम रूप को याद नही करना*"
➳ _ ➳ मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में रखते हुए, देह और देह के सर्व सम्बन्धों से किनारा कर, एक परमात्मा की अव्यभिचारी याद में मैं आत्मा अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। उस एक *अपने परम प्रिय प्रभु की अव्यभिचारी याद में बैठते ही इस देह रूपी पिंजड़े में कैद मैं आत्मा रूपी पँछी इस देह के पिंजड़े के हर बंधन को तोड़ उड़ चलती हूँ अपने उस परमप्रिय प्रभु, अपने स्वामी, शिव पिता परमात्मा के पास जिनके साथ मेरा जन्म - जन्म का अनादि सम्बन्ध है*। अपने सच्चे शिव प्रीतम की याद मुझे उनसे मिलने के लिए बेचैन कर रही है इसलिए ज्ञान और योग के पंख लगाए मैं आत्मा पँछी और भी तीव्र उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने प्रभु के धाम, शांति धाम, निर्वाणधाम में।
➳ _ ➳ अपने शिव प्रभु को अपने सामने पा कर बिना कोई विलम्ब किये मैं पहुंच जाती हूँ उनके पास और उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *जन्म जन्मान्तर से अपने शिव पिता परमेश्वर से बिछुड़ी मैं आत्मा अपने शिव प्रभु की किरणों रूपी बाहों में अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति में मैं इतना खो जाती हूँ कि देह और देह की दुनिया संकल्प मात्र भी याद नही रहती*। केवल मैं और मेरे प्रभु, दूसरा कोई नही। प्रेम के सागर अपने परम प्रिय मीठे बाबा के अति प्यारे, अति सुन्दर, चित को चैन देने वाले अनुपम स्वरूप को निहारते - निहारते मैं डूब जाती हूँ उनके प्रेम की गहराई में और उनके सच्चे निस्वार्थ रूहानी प्रेम से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे शिव प्रीतम का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी फुहारें मन को रोमांचित कर रही हैं, तृप्त कर रही हैं और साथ ही साथ रावण की जेल में कैद होने के कारण निर्बल हो चुकी मुझ आत्मा को बलशाली बना रही हैं*। अपने शिव प्रभु की सर्व शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, उनके प्यार को अपनी छत्रछाया बना कर अब मैं वापिस देह और देह की दुनिया की में लौट रही हूं। किन्तु *अब मेरे शिव प्रभु का प्यार मेरे लिए ढाल बन चुका है* जो मुझे इस आसुरी दुनिया मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धों के लगाव से मुक्त कर रहा है।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी अब इस दुनिया से मेरा कोई ममत्व नही रहा। यह तन - मन - धन मेरा नही, मेरे बाबा का है, यह सम्बन्धी भी मेरे नही, बाबा ने मुझे इनकी सेवा अर्थ निमित बनाया हैं। *इस स्मृति में रहने से मैं और मेरे से अटैचमेन्ट समाप्त हो गई है। प्रवृति को ट्रस्टी बन कर सम्भालने से अब मैं स्वयं को हर बन्धन से मुक्त, न्यारा और प्यारा अनुभव कर रही हूं*। परमात्म प्रीत से मेरे सभी लौकिक सम्बन्ध भी अलौकिक बन गए हैं इसलिए देह और दैहिक सम्बन्धो में होने वाला लगाव, झुकाव और टकराव अब समाप्त हो गया है।
➳ _ ➳ साक्षी भाव से हर आत्मा के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं और हर कर्म साक्षी पन की सीट पर सेट हो कर करने से सदा बाप के साथीपन का अनुभव कर रही हूं। *देह और देह के सम्बन्धो के प्रति साक्षीभाव मुझे इस पुरानी दुनिया से स्वत: ही उपराम बना रहा है*। दैहिक दृष्टि और वृति परिवर्तित हो कर रूहानी बन गई है। इसलिए अब सदैव यही अनुभव होता है कि मैं इस देह में मेहमान हूँ। *मैं रूह हूँ और मुझ रूह का करन करावनहार सुप्रीम रूह है। वह चला रहे हैं, मैं चल रही हूं। सदा मैं रूह और सुप्रीम रूह कम्बाइंड हैं*। निरन्तर इस स्मृति में रहने से किसी भी देहधारी के नाम रूप की अब मुझे याद नही आती। केवल अपने शिव प्रभु की अव्यभिचारी याद में रह, मैं उनके ही प्रेम का रसपान करते हुए सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती रहती हूं।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बिज़ी रहने के सहज पुरुषार्थ द्वारा निरंतर योगी सहज योगी हूँ।"*
➳ _ ➳ बाबा ने ब्राह्मण जन्म देने के साथ साथ मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेदारी का ताज़ दिया है... मुझ ब्राह्मण आत्मा को त्याग तपस्या सेवा द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने का मौका मिला है... यह ब्राह्मण जन्म है ही सदा सेवा के लिए... *जितना सेवा में बिज़ी रहेंगे उतना ही सहज मायाजीत बनेंगे*... इसलिए बाप की श्रीमत प्रमाण मैं आत्मा *ज़रा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाती हूँ*... सेवा के सिवाय समय नहीं गंवाती हूँ... चाहे संकल्प से, वाणी से या कर्म से सेवा करती हूँ... मैं अपने संपर्क और चलन द्वारा भी सेवा करती हूं... *सेवा में बिज़ी रहना ही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है... बिज़ी रहने पर मैं आत्मा युद्ध से छूट निरंतर योगी निरंतर सेवाधारी बन रही हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- खुशी की खुराक खाते रहने से आत्मा का सदा तंदुरुस्त रहना अनुभव करना "*
➳ _ ➳ *मैं पदमा पदम् खुशनसीब आत्मा... एक बाबा को अपना सारा संसार बना कर सदा हंसने गाने और उड़ने वाली प्रसन्नचित आत्मा हूँ...* मुझ राजयोगी आत्मा ने ईश्वरीय ज्ञान का खजाना प्राप्त कर... अपने संगमयुगी जीवन को श्रेष्ठ व सुखमय बना लिया है... सारी दुनिया जिस परमात्मा को ढूंढ रही है... उसने स्वयं मुझे ढूंढ कर... मुझे अपना बना लिया है... *अपने अनमोल ज्ञान रत्नों से मुझे सजाया है... अपना नूरे रत्न बना लिया है... ऐसी परम प्राप्ति से... खुशियों में मैं आत्मा नाच उठी हूँ...* बाप के समीप रहने वाली मैं आत्मा... मास्टर सुखों का सागर बन... अलौकिक सेवा करती हुई... दिव्य जीवन व्यतीत कर रही हूँ... *सदा अतींद्रिय सुख और प्रभु मिलन के आनंद में झूलती हुई मैं आत्मा... सदैव तंदुरुस्ती का अनुभव कर रही हूँ...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳
अभी
तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी
विकार हो। ये क्यों, ये
क्या, ऐसा
होना नहीं चाहिए, ऐसा
होना चाहिए... या कामन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने
गुण का, अपनी
विशेषता का अभिमान आता है या तो *जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात
में कमी
को देख करके, कमी
अपने पुरुषार्थ की नहीं लेकिन नाम में, मान
में, शान
में, पूछने
में, आगे
आने में, सेन्टर इन्चार्ज
बनाने में, सेवा
में, विशेष
पार्ट देने में - ये कमी, ये
व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान
करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है।*
➳ _ ➳ तो
आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन
की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान
या दूसरे शब्दों में कहो अपमान
- मेरे को कम क्यों, मेरा
भी ये पद होना चाहिए, मेरे
को भी आगे करना चाहिए, तो
ये अपमान समझते हो ना।
तो ये दो बातें *अभिमान और अपमान - यही दो आजकल व्यर्थ संकल्प का कारण है। इन
दोनों को अगर न्योछावर
कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है।*
✺
*ड्रिल :- "अभिमान और अपमान के व्यर्थ संकल्प से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳
सावन का महीना और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली खिलते हुए फूलों की महक के बीच
मैं आज सावन का झूला झूल रही हूं... और मेरे आस-पास मेरी सहेलियां मुझे झूला
झूला रहे हैं... आज हम सभी मिलकर मधुर गीत गुनगुना रही हैं... इस झूमते हुए
मौसम में आज चारों तरफ खुशी के माहौल में मैं आत्मा झूला झूल रही हूं... *झूला
झूलते झूलते मैं अपने आप को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रही हूं... और
धीरे-धीरे मेरा झूला गति को प्राप्त करता है... और मैं अपने आप को सबसे ऊंची
स्थिति पर पाकर सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं...* मुझे उस झूले से अन्य आत्माएं
बहुत ही छोटी छोटी नजर आ रही हैं... मेरी ऊंचाई और आत्माओं से बहुत ऊंची हो गई
है...
➳ _ ➳
और
अब मैं कुछ देर अपनी इस ऊंची अवस्था में अपने आप को अनुभव करते-करते मैं हवाओं
के साथ अपने मन बुद्धि से सूक्ष्म वतन पहुंच जाती हूँ... सूक्षम वतन का यह सफेद
प्रकाश मेरे अंदर शीतलता उत्पन्न कर रहा है... सामने बापदादा मुझे अपनी बाहें
फैलाए अपने पास बुला रहे हैं... मैं दौड़कर बापदादा के पास जाती हूँ... और अपने
आप को उसी स्थिति का स्मरण कराते हुए बापदादा से कहती हूँ... बाबा आज मैं अपने
आप को अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में अनुभव कर रही हूं... मुझे इस स्थिति में
बहुत ही आनंद आ रहा है... बाबा मुझे उसी समय रोकते हुए कहते हैं... कि नहीं
मेरे बच्चे बेशक तुम अपने पुरुषार्थ से अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में पहुंच
जाओ... लेकिन याद रहे कि अपने को कभी भी अभिमानी स्थिति का आभास भी नहीं होने
देना है... अपने चाल चलन से अन्य आत्माओं के प्रति हमेशा विनम्र और सहज सरल
स्वभाव ही रखना... *अगर अपने पुरुषार्थ से तुम ऊंची स्थिति को पाकर किसी भी
प्रकार का अभिमान करते हो तो तुम्हारी अन्य आत्माओं से यह ऊंची स्थिति नहीं
कहलाएगी... सरल और सहज स्वभाव में रहते हुए विनम्रता का गुण अपने अंदर धारण
करना होगा...*
➳ _ ➳
बापदादा के इतना कहने पर मैं बाबा को कहती हूं... बाबा मुझे आपकी इस बात का
हमेशा स्मरण रहेगा... बाबा मेरी यह बात सुनकर मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ रख
देते हैं... और मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न होती हूँ... कुछ देर रुकने के बाद
बाबा से असीम प्यार करते हुए जैसे ही मैं वापस प्रस्थान करने लगती हूँ... तो
बाबा मुझे रोकते हुए मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझे कहते हैं... रुको बच्चे मैं
तुम्हें एक बात और कहना चाहता हूँ... कि *मीठे बच्चे तुम अगर कितना भी सेवा में
ऊंची स्थिति पर चले जाओ... और सेवा में कभी कोई आत्मा आपको कुछ कठोर शब्द कहें
तो उन शब्दों को प्रभु अर्पण कर दिया करें... और उस आत्मा को हमेशा शुभ भावना
ही देते रहें... सेवार्थी भाव की स्थिति में कभी भी अपमान शब्द का संकल्प या
अनुभव नहीं होना चाहिए...* अगर हमें अपमान और मान का संदर्भ होगा तो हम कभी आगे
नहीं बढ़ पाएंगे...
➳ _ ➳
मेरे मीठे बाबा के ये अनमोल शब्द सुनकर मैं आत्मा अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली
अनुभव कर रही हूं... और अब मैं अपनी मन बुद्धि से वापस अपने इस स्थूल देह में
अवतरित हो जाती हूं... इसलिए यहाँ आकर मैं बाबा की कही हुई हर बात को अपने अंदर
समा लेती हूं... और सदा उसी स्मृति स्वरूप में रहती हूं... इस सुहाने मौसम में
झूला झूलते हुए मैं आत्मा अपनी सहेलियों से अपना झूला मन्दगति पर करवाती हूं...
*और धीरे से उस झूले से उतरकर मैं अन्य आत्माओं को भी उस झूले पर बिठाकर उसके
आनंद का अनुभव करा रही हूं... और बापदादा को बार-बार धन्यवाद कर रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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