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 29 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *अपने ईश्वरीय बचपन को भूले तो नहीं ?*

 

➢➢ *माया के तूफानों से डरे तो नहीं ?*

 

➢➢ *अमृतवेले बाप की याद में बैठकर सुख अनुभव किया ?*

 

➢➢ *दृढ़ संकल्प रुपी व्रत द्वारा अपनी वृत्तियों को परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *अपने पवित्र श्रेष्ठ वाइब्रेशन की चमक विश्व में फैलाई ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  *फरिश्ता वा अव्यक्त जीवन की विशेषता है - इच्छा मात्रम् अविद्या।* देवताई जीवन में तो इच्छा की बात ही नहीं। *जब ब्राह्मण कर्मातीत स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं तब किसी भी शुद्ध कर्म, व्यर्थ कर्म, विकर्म वा पिछला कर्म, किसी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंध सकते।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  *सेकण्ड में एवररेडी बन सकते हो?* सेकण्ड में अशरीरी बन सकते हो? कि युद्ध करनी पडेगी कि नहीं, मैं शरीर नहीं हूँ, मैं शरीर नहीं हूँ ऐसे तो नहीं ना! *सोचा और हुआ।* सोचना और स्थित होना (बापदादा ने कुछ मिनटों तक ड्रिल कराई) अच्छा लगता है ना! तो सारे दिन में वीच-बीच में ये अभ्यास करो। कितने भी विजी हो लेकिन बीच-बीच में एक सेकण्ड भी अशरीरी होने का अभ्यास करो। इसके लिए कोई नहीं कह सकता - मैं बिजी हूँ।

 

✧  *एक सेकण्ड निकालना ही है, अभ्यास करना ही है।* अगर किसी से वातें भी कर रहे हो, किसके साथ कार्य कर रहे हो, तो उन्हों को भी एक सेकण्ड ये ड्रिल कराओ, क्योंकि समय प्रमाण ये अशरीरी-पन का अनुभव, यह अभ्यास जिसको ज्यादा होगा वो नम्वर आगे ले लेगा। क्योंकि सुनाया कि समय समाप्त अचानक होना है। *अशरीरी होने का अभ्यास होगा तो फौरन ही समय की समाप्ति का वायब्रेशन आयेगा।*

 

✧  इसलिए *अभी से अभ्यास वढाओ। ऐसे नहीं, अगले साल में डायमण्ड जुवली है तो अब नहीं करना है, पीछे करना है।* जितना बहुतकाल एड करेंगे उतना राज्य-भाग्य के प्राप्ति में भी नम्बर आगे लेंगे। *अगर बीच-बीच में यह अभ्यास करेंगे तो स्वत: ही शक्तिशाली स्थिति सहज अनुभव करेंगे।* ये छोटी-छोटी बातों में जो पुरुषार्थ करना पडता है वो सब सहज समाप्त हो जायेगा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान खज़ाना देने वाले बाप को ना भूल श्रीमत पर सदा चलते रहना"*

 

➳ _ ➳  जब से बाबा मिला हैं... *जीवन जैसे मधुर रागिनी सा बन गया हैं...* कांटो की शैया... फूलों की सेज बन गई हैं... मायूस दिन खुशियों के खजाने में परिवर्तित हो गए हैं... *कदम कदम पर बाबा का साथ और सिर्फ शिवबाबा की श्रीमत पर चल... मैं आत्मा रूहानी अमीर बन गई हूँ...* ज्ञान रत्नों से बाबा ने मेरी झोली भर दी हैं... खुशियों के ख़जाने को उभरता हुआ देख मैं आत्मा... *भावविभोर होकर पहुँचती हूँ पांडव भवन में... जहाँ मेरे बाबा को आवाज देना नहीं पड़ता हैं... उनकी प्रत्यक्षता स्वतः ही हो जाती हैं...* ऐसे मेरे बाबा से मिलने उड़ करके पहुँच गई हूँ... बाबा की कुटिया में...

 

❉  *दुःखो का सौदा खुशियों में करने वाले मेरे सौदागर बाबा ने मुझ आत्मा को सुखों से नवाजते हुए कहा:-* "मेरी प्यारी फूल बच्ची... मैं आया हूँ... ज्ञान रत्नों से झोली भरने तेरी... देख *तेरा दामन श्रीमत की पालना से जगमगा रहा हैं...* मुझ एक बाप की यादों में अपने सतयुगी भविष्य को महफूज़ करने वाली सौभाग्यशाली आत्मा हो... *स्थूल ख़ज़ानों के मोह से परे... ज्ञानी तू महान आत्मा हो...*"

 

➳ _ ➳  *अपने बाबा का हाथ मेरे सर पर रखती मैं आत्मा भीगी नयनों से उन्हें निहारती कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... *खुद को भूली तभी तो तुझे जान पाई हूँ...* तू तो हर स्वास में समाया हैं... तेरा प्यार तेरा दुलार कैसे कोई भूल पाता हैं... *उंगली पकड़ कर चलना जो तूने सिखाया... खुद को मिटा कर... तुझ में समाने लगी हूँ...* आप समान बनाने वाली तेरी श्रीमत को... पलकों में बिठाया हैं..."

 

❉  *मंद मंद मुस्कुराते मेरे बाबा अपने हाथों से मुझ आत्मा को विजयी भव का तिलक लगाके कहते हैं:-* "मेरी सच्चा सोना बच्ची... पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट लेने वाली कोटो में कोई ब्राह्मण आत्मा हो... *श्रीमत पर संग संग चलने वाली मेरा साया हो तुम...* ज्ञान रत्नों को दामन में सजा कर दान करने वाली महादानी आत्मा हो... पवित्र फूलों की खुशबू से सजी... *पवित्रता की देवी... मेरे दिलतख्तनशींन हों...*"

 

➳ _ ➳  *परमात्म गोद मे पली में खुशनसीब आत्मा बाबा के प्यार में रंगी  रंगबिरंगी रंगों को बिखेरती बाबा से कहती हूँ:-* "मेरे रूहानी पिता... मुझ को अपने वर्से की अधिकारी बनाकर... मालामाल कर दिया... *पालना श्रीमत की... स्वराज्य अधिकारी बना रहा...* रूहानी रंग में तरबतर मैं आत्मा... खुद को भूल आप की ही यादो में खोई रहती हूँ... *गुणों की खान मेरे बाबा आप ने मुझ को भी गुणाधिकारी बना दिया हैं...*"

 

❉  *नयनों से शक्तियो रूपी किरणों की बौछार करते मेरे बाबा मुझे पल पल अपने होने का अहसास दिलाकर मुझसे कह रहे हैं:-* "मेरी राजदुलारी लाडली बच्ची... नयनों की नूर... *मैं आया ही हूँ... दूर देश से... स्वराज्य अधिकार दिलाने...* अपने सिकीलधे बच्चों से मिलने... कल्प के बिछुड़े बच्चों से मिलने... ज्ञान गुणों से श्रृंगार करने... *श्रीमत पे चल सच्चा सोना बनाने... ज्ञान... गुण... शक्तियो का स्वयंवर रचने..."*

 

➳ _ ➳  *अपने भाग्य की रेखा को अपने हाथों बनता महसूस करती मैं आत्मा अपने स्वराज्य अधिकारी पद को इमर्ज होता देख बाबा से कहती हूँ:-* "बागबाँ मेरी जीवन बगिया के... आप का कोटि बार शुक्रिया जो आपने अपना बनाया... *अपनी श्रीमत की पालना के हकदार बनाया...* ज्ञान...गुण... शक्तियों की वारिस हकदार बनाया... *जीवन को गुल गुल बनाने वाले मेरे पिता...* तेरी श्रीमत इस संगमयुग में हीरे तुल्य हैं... बाबा से ज्ञान रत्नों से झोली भर मैं आत्मा वापिस अपने स्थूल देह में प्रवेश करती हूँ..."

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी प्रकार की गफलत नही करनी है*"

 

➳ _ ➳  पूरे कल्प में केवल संगमयुग का ही समय मोस्ट वैल्युबुल समय है जब स्वयं भगवान आ कर सर्व खजानों से अपने हर ब्राह्मण बच्चे को सम्पन्न बना देते हैं। *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जो परमात्मा बाप द्वारा मिले इन अनमोल खजानों को अपने परमात्मा बाप की श्रीमत प्रमाण यूज़ करके इन्हें सफल करते हैं औऱ कल्प - कल्प के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना लेते हैं*।

 

➳ _ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं परमात्मा बाप द्वारा मिले सर्व खजानों को स्मृति में ला कर स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि समय, संकल्प और श्वांसों का जो अनमोल खजाना भगवान ने मुझे गिफ्ट के रूप में दिया है उसे किसी भी प्रकार की गफलत में व्यर्थ नही गंवाना। *समय, संकल्प और श्वांसों के अनमोल खजाने को सफल करना ही सर्व खजानों की प्राप्ति का आधार है इसलिए अपना समय, संकल्प और श्वांस अपने प्यारे बाबा की याद और ईश्वरीय सेवा में सफल करते हुए अब मुझे सर्व खजानों को जमा करना है और उन्हें सर्व आत्माओं को बाँटना है*।

 

➳ _ ➳  स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने प्यारे बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हुई मैं जैसे ही उनकी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ *बाबा सहज ही मुझे अपनी और खींच लेते हैं और मैं आत्मा सेकण्ड में आजाद पँछी की भांति देह रूपी पिंजरे का दरवाजा खोल उड़ जाती हूँ ऊपर खुले आसमान की ओर*। नीले गगन में विचरण करते, सूर्य, चांद, सितारों रूपी बत्तियों की रिमझिम को निहारते मैं इन्हें पार करके, चैतन्य सितारों की दुनिया में प्रवेश करती हूँ। चमकते हुए चैतन्य सितारों की यह निराकारी दुनिया मेरे पिता परमात्मा का घर है।

 

➳ _ ➳  अपने बिल्कुल सामने मैं देख रही हूँ अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता परमात्मा को। *उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे अब मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ*। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा प्रेम के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के प्यार में गहराई तक समाती जा रही हूँ। अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं गहन सुख, शांति और आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। *सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारें मन को असीम शीतलता प्रदान कर रही हैं*।

 

➳ _ ➳  सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपनी लाइट की फ़रिशता ड्रेस को धारण कर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। जहां बाहें पसारे बापदादा का लाइट माइट स्वरूप मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है। *बाबा की बाहों में अब मैं फ़रिशता समा रहा हूँ। अपनी बाहों में भर कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर अब बाबा मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों से मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार करके गफलत से सदा मुक्त रहने का बल मुझमे भर रहें हैं*।

 

➳ _ ➳  बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपनी फरिश्ता ड्रेस को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकारी तन में आ कर प्रवेश करती हूँ। *स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ*। बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है। हर प्रकार की गफलत से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए अब मैं उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दृढ़ संकल्प रूपी व्रत द्वारा अपनी वृत्तियों को परिवर्तन करने वाली महान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने पवित्र श्रेष्ठ वायब्रेशन की चमक विश्व में फैलाने वाली रीयल डायमण्ड आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  दुनिया वाले कहते हैं हाइएस्ट इन दी वर्ल्ड और वह भी एक जन्म के लिए लेकिन *आप बच्चे हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प हैं। सारे कल्प में आप श्रेष्ठ रहे हैं।* जानते हो नाअपना अनादि काल देखो अनादि काल में भी आप सभी आत्मायें बाप के नजदीक रहने वाले हो। देख रहे हो, *अनादि रूप में बाप के साथ-साथ समीप रहने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो।* रहते सभी हैं लेकिन आपका स्थान बहुत समीप है। तो अनादि रूप में भी ऊंचे-ते-ऊंचे हो।

 

 _ ➳  फिर आओ *आदिकाल में सभी बच्चे देव-पदधारी देवता रूप में हो।* याद है अपना दैवी स्वरूप? आदिकाल में *सर्व प्राप्ति स्वरूप हो।* तन-मन-धन और जन चार ही स्वरूप में श्रेष्ठ हैं। सदा सम्पन्न होसर्व प्राप्ति स्वरूप हो। ऐसा देव-पद और किसी भी आत्माओं को प्राप्ति नहीं होता। चाहे धर्म आत्मायें हैंमहात्मायें हैं लेकिन ऐसा *सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठअप्राप्ति का नाम-निशान नहींकोई भी अनुभव नहीं कर सकता।*

 

 _ ➳  फिर आओ मध्यकाल मेंतो *मध्यकाल में भी आप आत्मायें पूज्य बनते हो। आपके जड़ चित्र पूजे जाते हैं।* कोई भी आत्माओं की ऐसे विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे पूज्य आत्माओं की विधि-पूर्वक पूजा होती है तो सोचो ऐसे विधि-पूर्वक और किसकी पूजा होती है! *हर कर्म की पूजा होती है क्योंकि कर्मयोगी बनते हो।* तो पूजा भी हर कर्म की होती है। चाहे धर्म आत्मायें या महान आत्माओं को साथ में मन्दिर में भी रखते हैं लेकिन विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। तो मध्यकाल में भी हाइएस्ट अर्थात् श्रेष्ठ हो।

 

 _ ➳  फिर आओ वर्तमान अन्तकाल मेंतो *अन्तकाल में भी अब संगम पर श्रेष्ठ आत्मायें हो।* क्या श्रेष्ठता हैस्वयं बापदादा- परमात्म-आत्मा और आदि -आत्मा अर्थात् *बापदादा, दोनों द्वारा पालना भी लेते हो, पढ़ाई भी पढ़ते होसाथ में सतगुरू द्वारा श्रीमत लेने के अधिकारी बने हो।*

 

 _ ➳  तो अनादिकाल, आदिकाल, मध्यमकाल और अब अन्तकाल में भी हाइएस्ट होश्रेष्ठ हो। इतना नशा रहता है? *बापदादा कहते हैं इस स्मृति को इमर्ज करो।* मन मेंबुद्धि में इस प्राप्ति को दोहराओ। *जितना स्मृति को इमर्ज रखेंगे उतना स्मृति से रूहानी नशा होगा। खुशी होगीशक्तिशाली बनेंगे।* इतना हाइएस्ट आत्मा बने हैं।

 

✺   *ड्रिल :-  "तीनों कालों में हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  बापदादा की मधुर... अनमोल वाणियाँ पढ़ते हुए... मन व बुद्धि नशे में झूमने लग जाता है... मैं आत्मा बार-बार बलिहारी जाती हूँ... *इन वाणियों के माध्यम से... ईश्वर स्वयं मुझसे बात करते हैं... मुझे पढ़ाते हैं... इस पुरानी दुनिया में... जीवन का जीना आसान कर देते हैं...* मैं तेजस्वी मणि ज्योतिस्वरूप... बिंदुस्वरूप भृकुटी के मध्य में विराजमान हूँ... *त्रिकालदर्शीपन की स्थिति में स्थित होकर... दिव्य बुद्धि के यंत्र द्वारा... अपने तीनों कालों को देख रही हूँ...* हाईएस्ट... श्रेष्ठ इन द कल्प होने का अनुभव कर रही हूँ... एक सेकंड में ही अपने मूलवतन... परमधाम पहुंच जाती हूँ... अपने अनादिस्वरुप में... अनादिकाल को देख रही हूँ... सभी आत्माएं चमकती मणियाँ सी प्रतीत हो रहीं हैं... *मुझ आत्मा का स्थान बाबा के बहुत ही समीप है... मुक्त अवस्था... पूर्ण निर्संकल्पता... दिव्यता ही दिव्यता... मैं बीजरूप... बस बाबा को निहारती हुई... गहरी शांति में डूबी हुई...* स्वयं को बाबा के बहुत समीप अनुभव कर रही हूँ... कुछ देर इसी अवस्था में स्थित हो जाती हूँ...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा स्वयं को आदिकाल में... देवता स्वरुप में अनुभव कर रही हूँ... *संपूर्ण सुख शांति संपन्न... दिव्य व पवित्र देह की मालिक... मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ... डबल ताजधारी... सोने के सिंहासन पर विराजमान हूँ...* मुझ आत्मा का दैवी स्वरूप सर्वगुण संपन्न... सोलह कला संपूर्ण है... तन मन धन से सदा संपन्न हूँ... यहाँ सभी जन भी निर्विकारी हैं... *चारों ओर संपूर्ण खुशहाली... समृद्धि...* अप्राप्ति का तो नाम निशान ही नहीं है... सोने के महल... पुष्पक विमान... *चहुं ओर देवी-देवता भ्रमण कर रहे हैं... सतोप्रधान प्रकृति का सौंदर्य...* सुगंधित पानी के झरने... ऐसे अद्भुत आनंद में... पशु पक्षी भी चहचहा रहे हैं... यह दृश्य देखते हुए... मैं आत्मा आनन्दविभोर हो रही हूँ...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा स्वयं के मध्यकाल को देख रही हूँ... अपने जड़ चित्र को मंदिरों में देख रही हूँ... *मैं अष्ट भुजा धारी दुर्गा हूँ... पापनाशिनी हूँ... असुर संहारिनी हूँ... जग उद्धारक हूँ...* भक्त लोग विधिपूर्वक... बहुत ही प्रेम से... मुझ आत्मा की जड़ चित्रों की पूजा कर रहे हैं... श्रेष्ठ कर्म की पूजा हो रही है... धर्मात्मा व महान आत्माओं के चित्र भी मंदिरों में साथ ही रखे हुए हैं... मुझ आत्मा की जड़ चित्रों से... *मेरे मस्तक से... शक्तिशाली किरणें निकलकर सभी पर पड़ रही हैं...* सभी का कल्याण कर रही हैं... सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो रही हैं...

 

 _ ➳  अब अंतकाल में इस वरदानी संगमयुग पर... स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा अनुभव कर रही हूँ... *बापदादा मुझ ब्राह्मण आत्मा पर... ज्ञान रत्नों के... खुशियों के... शक्तियों के व सर्वगुणों के खजाने लुटा रहे हैं...* इन अखुट खज़ानों से खेलती... मुझ आत्मा के मुख से... *सदा रतन ही निकल रहे हैं... मन में सदैव ज्ञान का मनन चल रहा है...* इस महान समय में... मुझ संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा को... बापदादा की पालना का... श्रीमत लेने का... श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त हुआ है...

 

 _ ➳  त्रिकालदर्शी की स्थिति में स्थित रहकर... मैं आत्मा अपने अनादिकाल... आदिकाल... मध्यमकाल तथा अंतकाल को देख रही हूँ... *हाईएस्ट... श्रेष्ठ इन द कल्प की अनुभूति करके... बहुत हर्षित हो रही हूँ...* अति आनन्दित हो रही हूँ... सर्व प्राप्ति संपन्न... सदा स्मृति स्वरूप हूँ... बापदादा के नयनों का नूर हूँ... *श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति के रूहानी नशे में मस्त... मैं श्रेष्ठ आत्मा सदैव हर्षित... सर्वशक्तिसंपन्न अनुभव कर रही हूँ...* मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति द्वारा... अंधकार को मिटाकर... विश्व को उज्जवल कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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