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 13 / 11 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)

 

➢➢ *बाप का बनकर माया के वश तो अनहि हुए ?*

 

➢➢ *बुधी से बेहद का सन्यास किया ?*

 

➢➢ *बेहद ख़ुशी में रहकर विशाल बुधी बन सेवा की ?*

 

➢➢ *सब कुछ बाप हवाले कर डबल लाइट होकर रहे ?*

 

➢➢ *मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहे ?*

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         ❂ *तपस्वी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  *अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए सदा याद रहे कि ‘‘समस्याओ को दूर भगाना है सम्पूर्णता को समीप लाना है।’’* इसके लिए किसी भी ईश्वरीय मर्यादा में बेपरवाह नहीं बनना, आसुरी मर्यादा वा माया से बेपरवाह बनना। *समस्या का सामना करना तो समस्या समाप्त हो जायेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  सारे दिन में 25-30 बार तो जरूर कहते होंगे। बोलते नहीं हो तो सोचते तो होंगे- 'मैं यह करूंगी, मुझे करना है|’ प्लैन भी बनाते हो तो सोचते हो ना। तो इतने बार का अभ्यास, आत्मा स्वरूप की स्मृति क्या बना देगी? निराकारी। *निराकारी बन, आकारी फरिश्ता बन कार्य किया और फिर निराकारी!*

 

✧  *कर्म सम्बन्ध के स्वरूप से सम्बन्ध में आओ, सम्बन्ध को बन्धन में नहीं लाओ।* देह-अभिमान में आना अर्थात कर्म-बन्धन में आना। देह सम्बन्ध में आना अर्थात कर्म-सम्बन्ध में आना। दोनों में अन्तर है। देह का आधार लेना और देह के वश होना - दोनों में अन्तर है।

 

✧  *फरिश्ता वा निराकारी आत्मा देह का आधार लेकर देह के बन्धन में नहीं आयेगी, सम्बन्ध रखेगी लेकिन बन्धन में नहीं आयेगी।* तो बापदादा फिर इसी वर्ष रिजल्ट देखेंगे कि निरहंकारी, आकारी फरिश्ते और निराकारी स्थिति में - लक्ष्य और लक्षण कितने समान हुए?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अवगुणों को निकाल साफ़ दिल बन, सच्चाई और पवित्रता का गुण धारण करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठ मन की आँखों से प्यारे बाबा को निहारती हुई बाबा की यादों में खोई हुई हूँ... मन के तार बाबा से जुड़ते ही मैं आत्मा ऊपर की ओर खींची चली जा रही हूँ...* और सुप्रीम चुम्बक बाबा से चिपक जाती हूँ... *सुप्रीम रूहानी चुम्बक से चिपकते ही मुझ आत्मा के अवगुणों रूपी लौह तत्व भी रूहानी चुम्बक बन जाते हैं...* सारे अवगुण ख़त्म हो सच्चाई और पवित्रता का गुण धारण कर रही हूँ...

 

   *प्यारे बाबा पवित्र दैवीय गुणों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हुए कहते है:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के साथ और प्यार के यह अनमोल पल व्यर्थ में न गंवाओ... ईश्वर पिता की मीठी यादो में देवतायी सौंदर्य, सच्चाई और पवित्रता के गुणो से भरपूर हो जाओ... *हर पल को यादो और सेवाओं में सफल कर श्रेष्ठतम भाग्य के अधिकारी बन मुस्कराओ... संगम के अमूल्य पलो में खुबसूरत भाग्य की तकदीर बना लो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा गुणों के सागर में डुबकी लगाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा संगम के बहुमूल्य समय को पाकर ईश्वरीय यादो में... हर पल देवताई श्रृंगार से सज रही हूँ... *प्यारे बाबा... आपकी यादो में अपना खुबसूरत भाग्य सजा रही हूँ... अथाह अमीरी और सुखो का रंग अपनी किस्मत की तस्वीर में भर रही हूँ..."*

 

   *मीठे बाबा संगमयुग के अमूल्य क्षणों का राज बतलाते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा से अतुलनीय खजानो को बाँहों में भरकर 21 जनमो तक सदा सुखो में मुस्कराने का आधार यही वरदानी संगम के खुबसूरत पल है...* दिव्य गुणी और शक्तियो से सम्पन्न बनकर... खुशियो में झूमने का राज इन्ही पलो की ईश्वरीय यादो में समाया है... इस समय को बेपनाह मुहोब्बत में डुबो दो... और स्वयं को सजा लो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा गुणों की खान, खजानों की मालिक बनकर ख़ुशी से कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... आपकी सारी दौलत को स्वयं में समाकर मालामाल हो रही हूँ... *मीठे बाबा... मेरी हर साँस इस अमूल्य कमाई में जुटी है...* मै आत्मा पुरानी दुनिया को भूल हर पल सुखो के स्वर्ग में विचरण कर रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा रूहानी पुष्पों की वर्षा करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... संगम के सुहावने समय को ईश्वरीय यादो में भिगोकर... अपने महानतम भाग्य की खुबसूरत तस्वीर सजा लो... *सुखो, खुशियो और प्रेम के फूलो से अनोखे भाग्य को महका दो*... मीठे बाबा के प्यार भरी बाँहों में सदा मुस्कराते रहो... पुरानी दुनिया की मिटटी में अब मलिन न बनो... सिर्फ यादो की बहारो में खोये रहो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा पत्थर रूपी अवगुणों को निकाल पारस रूपी पवित्रता को धारण कर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में कौड़ी से हीरे जैसी सज संवर रही हूँ... कभी खाली थकी निस्तेज सी मै आत्मा... *आज पुनः अपने तेजस्वी स्वरूप को पाकर चमकती मणि हो गई हूँ...* व्यर्थ से परे होकर हर पल मीठी यादो में खोयी... देवताओ सी सुंदर बन रही हूँ..."

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मातीत बनने का पुरुषार्थ करना*"

 

_ ➳  जैसे ब्रह्मा बाबा ने सम्पूर्ण समर्पण भाव और अपनी लाइट माइट स्थिति द्वारा कर्मातीत बन, सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। ऐसे ही फॉलो फादर कर, कर्म से अतीत हो कर, सम्पूर्णता को पाना हर ब्राह्मण आत्मा का लक्ष्य है। *इस लक्ष्य को पाने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए, अपने मन बुद्धि को एकाग्रचित करके मैं अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अपनी स्थूल देह से बाहर निकलती हूँ* और सेकण्ड में मन बुद्धि की लिफ्ट पर सवार होकर, अव्यक्त वतन में पहुंच जाती हूँ और अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सामने जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  बाबा के इस अव्यक्त स्वरूप में भी बाबा के साकार स्वरूप की झलक स्पष्ट दिखाई पड़ रही है जो बाबा की साकार पालना का अनुभव करवा रही है। *इस अनुभव को करते - करते मैं खो जाती हूँ साकार मिलन की खूबसूरत यादों में और मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ साकार ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि मधुबन में जहाँ की पावन धरनी पर बाबा के हर कर्म का यादगार है*। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे, इस बात का स्पष्ट अनुभव हिस्ट्री हाल में लगे साकार ब्रह्मा बाबा के हर चित्र को देख कर स्वत: और सहज ही होता है।

 

_ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन में मैं हिस्ट्री हाल में हूँ और वहाँ दीवार पर लगे एक - एक चित्र को बड़े ध्यान से देख रही हूँ। *हर चित्र ब्रह्मा बाबा के कर्म की गाथा सुना रहा है और साथ ही साथ कर्मातीत अवस्था को पाने के बाबा के पुरुषार्थ को भी परिलक्षित कर रहा है*। ब्रह्मा बाप समान कर्मातीत बनने का ही पुरुषार्थ अब मुझे करना है, यह दॄढ संकल्प करते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि जैसे अव्यक्त बापदादा मेरे सम्मुख आ गए हैं और आ कर अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया है। *अपने वरदानी हस्तों से बाबा मुझे "कर्म करते भी कर्म के प्रभाव से सदा मुक्त रहने" का वरदान दे रहें हैं*। मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं।

 

_ ➳  बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *अपनी लाइट और माइट से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं, मुझे बलशाली बना रहे हैं ताकि आत्म बल से सदा भरपूर रहते हुए मैं अति शीघ्र कर्मातीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ सहज रीति कर सकूँ*। बापदादा से लाइट माइट और वरदान ले कर अब मैं अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो कर, स्वयं को और अधिक परमात्म बल से भरपूर करने के लिए अव्यक्त वतन को छोड़ आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अब मैं स्वयं को निराकार महाज्योति अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख देख रही हूँ। उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों को स्वयं में समा कर मैं स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। उनकी किरणों की शीतल छाया मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही हैं। उनके सामने बैठ कर उनसे आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। कुछ देर बीज रूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा के साथ कम्बाइंड हो कर अतिन्द्रिय सुख लेने के बाद और सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के बाद मैं आ जाती हूँ परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया में।

 

_ ➳  पाँच तत्वों की साकारी दुनिया मे, अपने साकार तन में विराजमान हो कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित रहते हुए, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो कर रही हूँ।  *बाबा की लाइट माइट से स्वयं को सदा भरपूर करते हुए योग बल से अपने पुराने कर्म बन्धनों को काटने और कर्मातीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं  सब कुछ बाप हवाले कर डबल लाइट रहने वाली बाप समान न्यारी प्यारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं मर्यादाओं की लकीर के अंदर रहने वाली मर्यादा पुरूषोत्तम आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बाप सेवा के बिना रहता हैयाद के बिना भी नहीं रहता। *जितना बाप याद में रहता उतना आप मेहनत से रहते हैं। रहते हैं लेकिन मेहनत सेअटेन्शन से।* और बाप के लिए है ही क्यापरम आत्मा के लिए हैं ही आत्मायें। नम्बरवार आत्मायें तो हैं ही। सिवाए बच्चों की याद के बाप रह ही नहीं सकता।

 

 _ ➳  एक दिन में भी बाप के वर्से के अधिकारी बन सकते हैं अगर बाप समझकर कनेक्शन जोड़ा तो एक दिन में भी वर्सा ले सकता है। ऐसे नहीं कि हाँ अच्छा है, कोई शक्ति हैसमझ में तो आता है...यह नहीं। *वर्से के अधिकारी बच्चे होते हैं। समझने वाले, देखने वाले नहीं। अगर एक दिन में भी दिल से बाप माना तो वर्से का अधिकारी बन सकता है।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "दिल से बाप मानकर वर्से का अधिकारी बनना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस संगमयुग पर अपने पुराने जन्म की स्मृति को भूल अपने अलौकिक जन्म की अविनाशी प्राप्तियों को याद कर रही हूँ... इस देह के भान को भी भूल अपने प्यारे बाबा की छत्रछाया में स्वयं को देखती हूँ और उनकी शक्तिशाली किरणों को अपने में भर रही हूँ... *बाबा की शक्तियां जैसे जैसे मुझमें समाती जाती हैं मैं आत्मा अपनी कमजोरियों को छोड़ शक्तिशाली बनती जाती हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ जो स्वयं परमपिता परमात्मा मुझे याद करते हैं... सारी दुनिया उनको ढूंढ रही है और सर्वशक्तिमान बाप ने मुझे ढूंढ लिया और मेरी जन्म जन्मांतर की थकान मिटा दी है...* मैं उन्हें घड़ी घड़ी भूल भी जाती हूँ पर वो हर पल मुझे याद करते हैं... अपने कार्य व्यवहार में मुझे बाबा की याद भूल जाती है और याद करने में मेहनत भी लगती है पर अटेंशन देकर मैं बाबा की याद में रहती हूँ... पर मेरे बाबा हर समय मुझ आत्मा को याद करते हैं...

 

 _ ➳  बाबा हर कदम पर सहयोगी बनकर मेरे साथ चलते हैं... *जब भी मैं आत्मा बाबा को पुकारती हूँ बाबा आकर मेरी हर मुश्किल को सहज कर देते हैं...* मैं कर्मयोगी हूँ, सेवाधारी हूँ और सहज पुरुषार्थी हूँ... हम सभी बाबा के बच्चे बाबा को याद करते हैं उनसे अपना कनेक्शन जोड़कर उनसे सर्वशक्तियाँ प्राप्त करते हैं... और बाबा भी हम सभी आत्माओं को याद करते हैं...

 

 _ ➳  मुझ आत्मा को जिस दिन से बाबा ने अपना बच्चा बनाया उसी पल से मैं बाबा के वर्से की अधिकारी बन गई हूँ... *बाबा की सर्व शक्तियां अब मेरी भी शक्तियां हैं क्योंकि जो बाप की प्रॉपर्टी होती है उस पर बच्चे का पूरा हक होता है... मेरे बाबा ने भी मुझे अपना बच्चा बना कर अपना वारिस बना दिया है... मैं आत्मा पूरी तरह से बाप की हो चुकी हूँ बाप से कनेक्शन जोड़ कर सर्व शक्तियों का वर्सा उनसे प्राप्त करती हूँ...*

 

 _ ➳  मेरे बाबा मुझे उस पुरानी कलियुगी आसुरी दुनिया से निकाल कर इस नई संगमयुगी दुनिया में ले आये हैं... सारी समझ मुझ आत्मा में भर दी है और मैं आत्मा उस समझ से अपने नए जन्म में बाबा से पूरा वर्सा लेने के लिए पुरुषार्थ कर रही हूँ... लौकिक जन्म के जो संबंध हैं वो तो दुख ही देते आये हैं... *अपने पिता परमात्मा से जो मेरा अलौकिक संबंध जुड़ा है वो अविनाशी है और उसी अविनाशी संबंध से मैं आत्मा पूरी तरह अपने बाप की हो चुकी हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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