━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 27 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *समय निकाल सच्चाई से, निर्भय हो सर्विस की ?*
➢➢ *भोजन योगयुक्त होकर खाया ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *निश्चिंत स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेंट दिया ?*
➢➢ *मन में सर्व के प्रति कल्याण की भावना रख विश्व कल्याणकारी स्थिति में स्थित रहे ?*
➢➢ *अपने रहमदिल तपस्वी स्वरुप से परेशान आत्माओं को सर्व शक्तियों का साकाश दी ?*
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *हर कर्मेन्द्रिय "जी हाज़िर", "जी हुज़ूर" करती रही ?*
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - समझदार बन हर काम करो, माया कोई भी पापकर्म न करा दे इसकी सम्भाल करो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय गोद में जो खुबसूरत फूल बन मुस्कराये हो... माया की धूप से फिर न कुम्हलाना... ईश्वरीय बुद्धि को पाकर जो समझदार बने हो.... माया की बेसमझी में फिर न फंस जाओ, इसका पूरा ख्याल रखो... *हर कार्य श्रीमत का हाथ थामे हुए करो.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में कितनी प्यारी और *दिव्य बुद्धि की मालिक बन मुस्करा उठी हूँ.*.. मेरा हर कदम श्रीमत प्रमाण है और मै आत्मा ईश्वरीय समझ लिए अथाह सुखो की अधिकारी बन चली हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्चे ज्ञान को पाकर जो ज्ञानवान बने हो, तो *हर संकल्प को श्रीमत की कसौटी पर परख चलो.*.. अब माया के चंगुल और आकर्षण को दूर से पहचानने वाले दूरदृष्टि बनो... जिन कर्मो ने जीवन को दुखो का दलदल बना डाला है, उनसे स्वयं की सम्भाल करो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना, विकारो से भरी मलिन बुद्धि से दारुण दुखो में भटक सी रही थी... आपने प्यारे बाबा मेरा हाथ पकड़ कर, दुखो की गहरी खाई से बाहर निकाला है... *अब जीवन सुख की बगिया बन खिल उठा है.*..
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथ का यह वरदानी समय अमूल्य है... इस अनमोल समय को ईश्वरीय यादो से भरपूर कर अनन्त सुनहरे सतयुगी सुखो के अधिकारी बनो... *हर साँस संकल्प को श्रीमत के साथ दिव्यता से भर चलो.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके सच्चे ज्ञान और प्यार में मनुष्य से देवताई बुद्धि वाली खुबसूरत आत्मा बन मुस्करा रही हूँ... पापकर्मो की छाया से दूर होकर, *दिव्य जीवन को जीती हुई अनन्त खुशियो में लहरा रही हूँ.*..
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा निश्चयबुद्धि विजयी-रत्न हूँ।"*
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी विशेष ब्राह्मण आत्मा हूँ... ये मुझ आत्मा का नया अलौकिक जीवन है... *पदमापदम भाग्यशाली आत्मा हूँ... जो स्वयं परमपिता परमात्मा ने मुझे अपना बनाया है*... जिस भगवान के दर्शन पाने को दुनिया वाले न जाने कहाँ-कहाँ भटकते है... वो स्वयं भगवान रोज मुझ आत्मा को सुबह-सुबह इतने प्यार से उठाते हैं मेरे मीठे लाडले बच्चे उठो... अपनी गोद में बिठाकर निःस्वार्थ प्यार की वर्षा करते हैं... वरदानों से मेरी झोली भरते हैं... वाह!! मैं आत्मा वाह!!
➳ _ ➳ प्यारे मीठे बाबा आदि मध्य अंत का ज्ञान देकर मुझ आत्मा को नॉलेजफुल बना रहे हैं... *ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार* कर रहे हैं... प्यारे शिव बाबा से रोज ज्ञान अमृत पीकर मुझ आत्मा पर चढ़ी खाद उतरती जा रही है... मैं आत्मा कर्मो की गुह्य गति के राज को जान गई हूँ... मैं आत्मा ड्रामा के राज को जान व्यर्थ के क्यों, क्या, कैसे में नही फंसती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *एक बल एक भरोसे* से सदैव आगे बढ़ती जा रही हूँ... मुझ आत्मा को निश्चय है कि जब स्वयं भगवान मेरे साथ है... तो मुझ आत्मा का अकल्याण हो ही नही सकता... मैं आत्मा अपने ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा का साथ पाकर निश्चिंत हो गई हूँ... जब स्वयं भगवान कहते हैं *बच्चे मैं हूं ना... तुम क्यों चिंता करते हो*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा निश्चयबुद्धि निश्चिंत आत्मा हूँ... मुझ आत्मा को स्वयं पर निश्चय है... अपने परमपिता परमात्मा पर सम्पूर्ण निश्चय है... *एक पर निश्चय होने से हमेशा सफलतामूर्त* बनती हूँ... मैं आत्मा सर्वशक्तिवान की संतान मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... सर्वशक्तियां मुझ आत्मा के आर्डर अनुसार चलती है... मैं ऊंच ते ऊंच पिता की संतान हूँ... अपने पिता के वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ... कल्प पहले भी मैं आत्मा विजयी रत्न बनी... तो अब भी मुझ आत्मा की विजय हुई के हुई... जब *स्वयं भगवान मेरा साथी है... हर कदम पर मेरे साथ है*... मैं आत्मा सदैव हजार भुजाओं वाले साथी की छत्रछाया में हूँ... मुझ आत्मा की नैय्या का खिवैय्या प्यारे बाबा है... करनकरावनहार बस बाबा ही हैं... मैं तो बस निमि्त हूँ... बेफिक्र बादशाह हूँ... एक बाबा का श्रीमत रुपी हाथ व साथ पाकर मैं आत्मा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न बन गई हूँ...
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - मन में सर्व के प्रति कल्याण की भावना रखना ही विश्व कल्याणकारी बनना*"
➳ _ ➳ विश्व कल्याणकारी आत्मा वह जिसका हर सेकण्ड, हर संकल्प सर्व के कल्याण के प्रति हो। मनसा, वाचा,कर्मणा दूसरी आत्माओं का कल्याण करने की सेवा में ही बीते है। *भाग्यशाली है वो आत्माएं जिन्हें स्वयं भगवान ने सेलेक्ट कर लिया*, बुद्धि को शक्ति दे विश्व कल्याणकारी बनने का वरदान दिया।*
➳ _ ➳ मैं स्वयं भगवान द्वारा सेलेक्ट की गई आत्मा हूँ... मैं बाबा की कल्प पहले वाली...सिकीलधे विश्व कल्याण की सेवा के निमित्त आत्मा हूँ... मैं आत्मा बाबा से प्रतिज्ञा करती हूँ... कि *बाबा की श्रीमत के विपरीत नही चलूँगी*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की हर आज्ञा का... पालन करती जा रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व खजानों से भरपूर होती जा रही हूँ*... मैं आत्मा खुद को बालक सो मालिक की अनुभूति करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा में विश्व कल्याणकारी की स्मृति आती जा रही है...
➳ _ ➳ *मुझ आत्मा का हर सेकण्ड... हर श्वांस विश्व की सर्व आत्माओं के कल्याण के कर्तव्य में बिजी रहता है*... मैं आत्मा मनसा द्वारा वायब्रेशन फैलाने की सेवा करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के हर संकल्प में.. विश्वकल्याण की सेवा समाती जा रही है...
➳ _ ➳ *मुझ आत्मा की मन और बुद्धि सदा सेवा में बिजी रहती है*... सारा विश्व अपना सा लगता जा रहा है... हदों से भी पार... मैं आत्मा मनसा, कर्मणा और वाचा द्वारा भी सेवा करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने को... *विश्व कल्याणकारी आत्मा के वरदान से भरपूर अनुभव करती जा रही हूँ*... मैं आत्मा दूसरों का कल्याण करते... खुद की कमाई का अनुभव करती जा रही हूँ...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *निश्चिन्त स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेन्ट देने वाले निश्चयबुद्धि विजयी रत्न होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ निश्चिन्त स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेन्ट देने वाले निश्चयबुद्धि विजयी रत्न होते हैं क्योंकि... सदा विजयी बनने का केवल एक ही सरल और सहज साधन है, और *वो साधन है... एक बल व एक भरोसा।* जब हमारा किसी एक में भरोसा होता है तब हमें उससे बल की प्राप्ति होती है।
❉ हमारा निश्चय हमको सदा ही निश्चिन्त बनाता है और जिसकी स्थिति निश्चिन्त होती है, वह हर कार्य में सफल भी होता रहता है, क्योंकि *निश्चिन्त रहने से बुद्धि का जजमेन्ट भी यथार्थ और सटीक होता है।* इसके लिये हमें अब, केवल फॉलो फादर ही करना है और फादर के भरोसे ही निश्चिन्त भी रहना है।
❉ तो! यथार्थ निर्णय का आधार है... *निश्चय बुद्धि विजयन्ती। अर्थात! निश्चयबुद्धि बनना व निश्चिन्त रहना।* हमारी बुद्धि जितनी निश्चयबुद्धि बन कर, रहेगी उतना ही हमें निश्चिन्तबुद्धि भी बनायेगी। अतः विजयी रत्न बनने के लिये हमें श्रीमत के प्रमाण चलना, अति आवश्यक होता है।
❉ अतः हमको तो! अब, इस बात को भी सोचने की आवश्यकता नहीं है कि... हम विजयी रत्न कैसे बनेंगे? हमको तो *केवल फॉलो फादर करते हुए, फादर के कदम पर कदम ही रखना है।* अतः अभी तक जो भी श्रीमत हमको बाबा से मिलती आई है, उसी प्रमाण से हमें, श्रीमत का पालन करना है। अर्थात!
❉ हमको श्रीमत प्रमाण चलते रहना है। इसलिये! हमें सिर्फ! श्रीमत के कदम पर कदम रखते हुए चलना है। हम को तो! अब, केवल और केवल फॉलो फादर ही करना है। अगर हम श्रीमत के अनुसार, कदम पर कदम रखते हुए चलते चलेंगे तो! हम *निश्चित रूप से विजयी रत्न बन जायेंगे।* इसमें कोई संशय नहीं है।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *मन में सर्व के प्रति कल्याण की भावना रखना ही विश्व कल्याणकारी बनना है... क्यों और कैसे* ?
❉ सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी वृति रख सेवा करना ही सेवा का मुख्य फाउंडेशन है । अगर सेवा करते हुए मन में सर्व आत्माओं के प्रति शुभ चिंतक वृति नही है तो वह सेवा आत्माओं को प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति कभी नही करवा सकती । *रीति प्रमाण की हुई सेवा केवल हद का नाम और मान ही दिलवा सकती है* । किंतु शुभ भावना और शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प रखते हुए जो सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ सेवा करते है वही विश्व कल्याणकारी आत्मा कहलाते हैं ।
❉ जैसे एक किसान अपनी मेहनत और लगन से बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना देता है ठीक इसी तरह विश्व कल्याण की तीव्र भावना जिनके मन में होती है वे अपनी कल्याणकारी और *शुभ चिंतक वृति से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली कठोर से कठोर संस्कार वाली आत्मा के संस्कारों को भी बदल देते हैं* । स्वभाव - संस्कारों के परवश हुई दुखी आत्मायों को परिवर्तित कर उन्हें सुख शांति का अनुभव करवाना ही विश्व कल्याणकारी आत्मा का कर्तव्य है ।
❉ जैसे धरनी में जब एक बीज बोया जाता है तो उसे बोने के बाद उसकी पूरी सम्भाल की जाती है । समय पर पानी देना, धूप की उचित व्यवस्था होना, उसे कीट पतंगों से बचा कर रखना आदि । यह साधन अपनाने के बाद ही उस बीज से सुंदर फसल तैयार होती है । ठीक इसी प्रकार विश्व कल्याणार्थ की हुई सेवा भी तभी फलीभूत होती है जब *सेवा की श्रेष्ठ भावना के बीज को शुभभावना, शुभकामना के श्रेष्ठ संकल्पो का पानी देते रहें* । यही विश्व कल्याणकारी आत्मा का कर्तव्य है ।
❉ किसी भी कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस कार्य के पीछे भाव और भावना कैसी है । अगर मन में कोई छल कपट है, या ईर्ष्या वश कोई कार्य किया जाता है तो भले थोड़े समय के लिए उसमे सफलता मिल भी जाये लेकिन सदाकाल की सफलता की प्राप्ति कभी नही हो सकती । *विश्व कल्याण के कार्य में भी भाव और भावना विशेष महत्व रखते हैं* । सर्व आत्मायों के कल्याण की श्रेष्ठ भावना रख कर जब सेवा की जाती है तो वह सेवा सदा कल्याणकारी होती है ।
❉ विश्व कल्याणकारी आत्मा वही हो सकती है जिसके हर संकल्प और श्वांस में सर्व आत्माओं के कल्याण का भाव समाया हो । परम पिता परमात्मा की संतान हम संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं के शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो में तो विशेष शक्ति है । *हम ब्राह्मण आत्मायें ही विश्व की सर्व आत्मायों को प्रत्यक्ष फल की अनुभूति करवाने वाले है* इसलिए हम ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य है स्वयं को सदा विश्वकल्याणकारी की सीट पर सेट रखना और सर्व आत्माओं के प्रति शुभ एवं श्रेष्ठ संकल्पो की रचना करना ।
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━