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❍ 18 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *अमृतवेले उठ बाप को प्यार से याद किया ?*
➢➢ *घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान बनने का कोर्स उठाया ?*
➢➢ *हर एक की रग अथवा लगन देखकर ज्ञान दिया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *संपर्क सम्बन्ध में आते सदा संतुष्ट रह और संतुष्ट कर गुप्त पुरुषार्थी बनकर रहे ?*
➢➢ *पुराने स्वभाव संस्कार के वंश का अभी त्याग कर सर्वंश त्यागी बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ माया का रॉयल रूप और उस पर विजय प्राप्त करने की विधि :- 'कर्मभोग है’, ‘कर्मबन्धन है’, ‘संस्कारों का बन्धन है’, ‘संगठन का बन्धन है' - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फंस जाते हो, फिर कहते हैं कि अभी छुडवाओ। *बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए छोडो तो छूटे।* अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। पहले ही शरीर छोड चुके हो, मरजीवा बन चुके हो। *यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीर में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं। जिम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो।* जिम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोडते भी नहीं हो। *जिम्मेवारी छोड दो अर्थात मेरा-पन छोड दो।*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आसुरी अवगुण निकाल, 21 जनमो का स्वराज्य लेना"*
➳ _ ➳ मै आत्मा भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ... मुझसे चारो ओर दिव्य प्रकाश फैल रहा है.. अपने प्रकाशित स्वरूप को देख रही हूँ और फ़रिश्ता बनकर सूक्ष्म लोक में मीठी ब्र्ह्मा माँ के पास पहुंचती हूँ... *मीठी माँ मुझे स्नेह से अपनी ममतामयी गोद में आलिंगन करती है.*.. और शिव पिता भी आतुर से हसीन नजारा देखने चले आये है... शिव पिता को देख... मै आत्मा उनके गले मै झूम जाती हूँ... प्यारे बाबा अपने वरदानी हाथो को सिर पर रख... आशीर्वादों की वर्षा कर रहे है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को विजय तिलक से आलोकित करते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मै पिता बच्चों को माया के बन्धनों से मुक्त कराकर 21 जनमो का स्वराज्य देने आया हूँ... इसलिए गुणो और शक्तियो के सागर पिता से सारे खजाने लेकर... *स्वयं को ईश्वरीय गुणो से लबालब कर, सुखो के अधिकारी बनो.*.. यादो की अग्नि में सारे विकारो को भस्म करो...."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानी महावाक्य सुनकर कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपकी यादो में खोकर में आत्मा सदा ही मौज में हूँ... दिव्य गुणो से सजधज कर देवताओ की धरती पर कदम रख रही हूँ... *आपकी यादो में अपनी दैहिक विकृतियों को खत्म कर पवित्रता की किरणों से भर गयी हूँ..*."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अतुल धन दौलत का मालिक बनाते हुए बोले ;- " मीठे लाडले बच्चे... रूहानी फूल बनकर गुणो की खशबू से महकने वाले गुलाब बनो... *अपने विकारो के काँटों को योग अग्नि में जलाकर निर्मल पवित्र बनो.*.. और पवित्रता के सौंदर्य पर मीठे बाबा को मोहित कर स्वर्ग का अधिकार प्राप्त करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने खोये वजूद को मीठे बाबा से पाकर निहाल हो गयी और बोली :- "सच्चे साथी बाबा... *मेरे सुखो की चिंता स्वयं भगवान कर रहा है, यह कितना महान भाग्य है.*.. अपनी गोद में बिठाकर फूलो सा खिलाना... और स्वर्ग की जमी को मेरे नाम लिखना... यह ईश्वर पिता ही मेरे लिए कर सकता है कोई मनुष्य नही..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को सुखो के नजारे दिखाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह धरती, आसमाँ सुखो से सजे, आप बच्चों के लिए ही है... बस श्रीमत का हाथ पकड़ देह के भान... और *विकारो के दलदल से बाहर निकल जाओ.*.. सारे अवगुण खत्म कर... स्वर्ग की बादशाही पर अपना हक जमाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य की जादूगरी पर मुस्करा कर मीठे बाबा से कहती हूँ ;- "प्यारे लाडले बाबा मेरे... दैहिक रिश्तो और देहभान ने मुझे विकारी और काला कर दिया... *आपने अपनी पसन्द बनाकर मुझे गोरा और उजला कर दिया है.*.. आपके प्यार की शीतलता में, मै आत्मा पुनः निखर उठी हूँ और दिव्यता में मुस्करा रही हूँ..." यूँ अपनी भावनाओ का हार... मीठे बाबा के गले में डाल, मै आत्मा सृस्टि रंगमंच पर आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान बनने का कोर्स उठाना*"
➳ _ ➳ "मैं फ़रिशता पवित्रता का अवतार हूं"। इस सृष्टि पर मेरा जन्म ईश्वरीय सेवा अर्थ हुआ है। पतित पावन परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने इस पतित सृष्टि को पावन बनाने की बहुत बड़ी जिम्मेवारी मुझे सौंपी है। अपनी इसी जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए मैं स्वयं को पवित्रता की शक्तिशाली किरणों से भरपूर करने के लिए *अपने अनादि परम पवित्र ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर चल पड़ती हूँ पवित्रता के सागर, पतित पावन अपने परम प्यारे परम पिता परमात्मा के पास उनके पावन धाम में जो इस साकारी लोक से परे, सूक्ष्म लोक से भी परे ते परे है*।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को पतित पावन, पवित्रता के सागर अपने प्यारे पिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूं जैसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास मैं बुझा लेना चाहती हूं। भरपूर कर लेना चाहती हूं मैं स्वयं को। इस मिलन की आलौकिक मस्ती में मैं डूब जाना चाहती हूं। बाप के प्यार में समाकर बाप समान बन जाना चाहती हूं। *बाबा को अपलक निहारते निहारते मैं बाबा के बिल्कुल समीप पहुंच जाती हूँ और बाबा को टच करती हूं*। शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगा है।
➳ _ ➳ पवित्रता की शक्तिशाली किरणों से मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। *परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं*। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ जाती हूँ और कमल आसन पर विराजमान परम पवित्र फ़रिशता स्वरूप धारण कर अब मैं फ़रिशता विश्व ग्लोब के ऊपर स्थित हो जाता हूँ और मन बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में अपने शिव पिता के साथ जोड़ता हूँ। *बाबा के साथ कनेक्शन जुड़ते ही बाबा की सर्वशक्तियां मुझ फ़रिश्ते में समाने लगती हैं*।
➳ _ ➳ ये सर्वशक्तियां रंग-बिरंगे मोतियों के रूप में मुझ फ़रिश्ते की प्रकाश की काया से निकल कर अब विश्व ग्लोब पर फैल रही हैं। *श्वेत प्रकाश की काया से निकलते यह सतरंगी मोती ऐसे लग रहे हैं जैसे बाबा मुझ फरिश्ते को निमित्त बनाकर मेरे द्वारा इन सर्वशक्तियों से अपने सभी बच्चों तक पहुंचा कर उन्हें संपूर्ण पावन और सर्वगुणसंपन्न बना रहे हैं*। मुझ से निकल रही पवित्रता, सुख शांति, शक्ति सम्पन्न किरणे सारे विश्व मे फैल रही हैं और सभी मनुष्य आत्माओं के चित को छू कर उन्हें पवित्र बना रही हैं। पवित्रता की शक्तिशाली किरणे सम्पूर्ण विश्व मे फैलाते हुए अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ।
➳ _ ➳ अपना ब्राह्मण स्वरूप धारण कर, पवित्रता का हथियाला बांध, घर गृहस्थ में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू अब मैं चारों और फैला रही हूं। *अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई भाई की दृष्टि मुझे प्रवर्ति में रहते भी पर वृति का अनुभव करवा रही है*। पवित्रता ही मेरे ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है। इस श्रृंगार से अब मैं सदैव सजी सजाई रहती हूं। संसार के सभी मनुष्य मात्र मेरे भाई बहन है। वे सब भी पवित्र आत्मायें हैं इस बात को सदा स्मृति में रख *सभी को पवित्र नजरों से देखते हुए अब मैं पवित्रता की राह पर चल सबको पवित्र बना रही हूं*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सम्पर्क सम्बन्ध में आते सदा सन्तुष्ट रहती और सन्तुष्ट करती हूँ।"*
➳ _ ➳ *संगमयुग सन्तुष्टता का युग है… इसी संगम पर परमात्मा का संग मिला... जिस भगवान को पाने के लिए दर-दर भटक रही थी वो साकार में मिल गया... खुशियों का खजाना मिल गया...* इसलिए मैं आत्मा न स्वयं में किसी भी प्रकार की खिटखिट होने देती हूँ... न दूसरों के साथ सम्पर्क में आने में खिटखिट करती हूँ... क्योंकि हम सभी एक परमात्मा की संतान हैं और आपस में भाई-भाई हैं... *सदा पाना था सो पा लिया के अविनाशी नशे और ख़ुशी में रह सर्व प्रकार की खिटखिट से दूर रहती हूँ...* मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों की स्मृति में रहकर सदा उमंग-उत्साह में रहती हूँ... और सर्व का उमंग-उत्साह बढाने का कार्य करती हूँ... *मैं आत्मा माला का मणका बनने के लिए दाने-दाने के सम्पर्क में आती हूँ और सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा सन्तुष्ट रहती हूँ और परिवार में सर्व को सदा सन्तुष्ट करती हूँ...* मैं आत्मा गुप्त पुरूषार्थी बन सदा परिवार को एकजुट रखती हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पुराने स्वभाव-संस्कार के वंश का भी त्याग कर सर्वंश त्यागी स्थिति का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं श्रेष्ठ योगी जीवन जीने वाली... सर्वंश त्यागी आत्मा हूँ... शक्ति स्वरुप की स्थिति में स्थित श्रेष्ठ आत्मा हूँ...* बाबा की वफादार... फरमान फॉलो फादर करने वाली मैं आत्मा... इस पुरानी विनाशी दुनिया के स्वभाव संस्कार को परिवर्तित कर रही हूँ... स्नेही व सहयोगी आत्मा बन... सदा हिम्मत व उल्लास का अनुभव कर रही हूँ... देहभान की... *देह की प्रवृति से पूर्ण रुप से मुक्त हो रही हूँ... सर्व शक्तियों की व सर्व गुणों की सदाकाल की प्राप्तियों का अनुभव बहुत ही अनोखा है...* विकर्म तथा विकल्प की त्यागी बनकर... विकर्माजीत अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... देह की प्रवृति से पार होकर... श्रेष्ठ कर्म करने के लिए... मुझ आत्मा ने इस पुरानी देह का आधार लिया है... *विकर्म और व्यर्थ की त्यागी मैं भाग्यवान आत्मा... बाप समान सेवाधारी बन कर...* सर्व की रूहानी प्यारी तथा सर्व से न्यारी हो गई हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ अपने को सदा सेवाधारी समझकर सेवा पर उपस्थित रहते हो ना? सेवा की सफलता का आधार, सेवाधारी के लिए विशेष क्या है? जानते हो? सेवाधारी सदा यही चाहते हैं कि सफलता हो लेकिन सफल होने का अधार क्या है? आजकल विशेष किस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं? (त्याग पर) *बिना त्याग और तपस्या के सफलता नहीं। तो सेवाधारी अर्थात् त्याग मूर्त और तपस्वी मूर्त*।
➳ _ ➳ *तपस्या क्या है? ‘एक बाप दूसरा न कोई' यह है हर समय की तपस्या।*
➳ _ ➳ और त्याग कौनसा है? उस पर तो बहुत सुनाया है लेकिन *सार रूप में सेवाधारी का त्याग - जैसा समय, जैसी समस्यायें हो, जैसे व्यक्ति हों वैसे स्वयं को मोल्ड कर स्व कल्याण और औरों का कल्याण करने के लिए सदा इजी रहें।* जैसी परिस्थिति हो अर्थात् कहाँ अपने नाम का त्याग करना पड़े, कहाँ संस्कारों का, कहाँ व्यर्थ संकल्पों का, कहाँ स्थूल अल्पकाल के साधनों का... तो उस परिस्थिति और समय अनुसार अपनी श्रेष्ठ स्थिति बना सकें, *कैसा भी त्याग उसके लिए करना पड़े तो कर लें, अपने को मोल्ड कर लें, इसको कहा जाता है - ‘त्याग मूर्त'।* त्याग, तपस्या फिर सेवा। त्याग और तपस्या ही सेवा की सफलता का आधार है। *तो ऐसे त्यागी जो त्याग का भी अभिमान न आये कि मैंने त्याग किया। अगर यह संकल्प भी आता तो यह भी त्याग नहीं हुआ*।
✺ *"ड्रिल :- त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त करना।"*
➳ _ ➳ देह रूपी पारदर्शी डिबिया में दमकती, मैं आत्मा मणि, अपने गुणों व शक्तियों के प्रकाश से इस देह को भी आभा युक्त कर रही हूँ... *(दृश्य चित्र बनाकर कुछ देर महसूस कीजिए इस दृश्य को)* मैं आत्मा, उदय होता हुआ सूर्य और मेरे आसपास ये देह रूपी बादल... आहिस्ता-आहिस्ता ये बादल मेरे चारों और से हटने लगे है... और अब मैं आत्मा, अपने सम्पूर्ण प्रकाशमान रूप में... मेरा प्रकाश आसपास के वातावरण में प्रकाश के दरिया के रूप प्रवाहित हो रहा है... देखे स्वयं कों, प्रकाश के सागर में तैरते हुए... इस सागर की रंग बिरंगी लहरें कभी मुझे गहराई में लेकर जा रही है और कभी मैं लहरों के ऊपर अठखेलियाँ कर रही हूँ... *तपस्या की लगन में डूबी, एक बाप दूसरा न कोई इसी एक सकंल्प को लिए मैं मस्तक मणि, जा पहुँचती हूँ परम धाम में*...
➳ _ ➳ असंख्य सुन्दर मणियों से भरा हुआ जैसे कोई पारदर्शी -सा, भव्य और विशाल शीशे का जार... जार के ऊपर चमकता लाल रंग का शिव रत्नाकर, चमचमाती मणि के रूप में... और इस मणि के सबसे करीब, अपनी सम्पूर्ण आभा बिखेरता मैं नन्हा सा प्रकाश कण... अपनी किस्मत पर इठलाता हुआ... बस एक की ही लगन में मगन होता हुआ... फरिश्ता रूप में मैं रूहानी मणि उतरती हूँ अब सूक्ष्म लोक में... और बापदादा का हाथ पकडे उसी झील के किनारे जो, मेरे और बापदादा के रूहानी स्नेह की साक्षी है... *मैं देख रही हूँ आकाश में, बादलों के पीछे से झाँकने का प्रयास करता सूरज, और सूरज की लालिमा से सिन्दूरी रंग में रंगे ये बादल... बादल और सूरज दोनों ही अथक सेवाधारी है...*
➳ _ ➳ तभी बापदादा मेरे हाथ पकडे मुझे सामने के पर्वत पर चलने का इशारा कर रहे है... मैं फरिश्ता शिखर पर जाकर बैठ गया हूँ बादलों के ढेर के ऊपर और छोटी-छोटी सी गेंद बनाकर फेंक रहा हूँ उन्हें झील के पानी में... अपना वजूद मिटाकर पानी होते ये बादल... मगर दूसरे ही पल फिर झील से धुएँ के रूप में फिर से बनकर उडते ये बादल... *सर्वस्व त्याग का पाठ पढा रहे हैं... धरा की तपन मिटाने की सेवा और उस एक धुन में सर्वस्व त्याग का अनोखा उदाहरण बन गये है ये... तभी बाप दादा मेरे हाथों में पकडे हुए छोटे छोटे नन्हें रंगीन गुब्बारों की तरफ इशारा करके मानों पूछ रहें हों*, बच्चे- "ये नाम, संस्कार, व्यर्थ संकल्पों और अल्पकाल के साधनों का त्याग कब तक करोगे...
➳ _ ➳ और मैं, तुलना कर रहा हूँ, इन बादलों की त्यागवृत्ति से स्वयं की... कितना लचीलापन है इनमें, हवाओं के अनुसार स्वयं को किसी भी आकार में ढाल लेते है ये... *जो स्वयं को कैसे भी त्याग के लिए मोल्ड कर ले, ऐसी ही त्याग वृत्ति मुझे धारण करनी है, और ऐसा निश्चय कर मैंने वो सभी रंगीन गुब्बारें हवा में छोड दिए... आकाश में दूर दूर तक फैल गये है ये संस्कार, व्यर्थ संकल्पों और अल्पकाल के साधन रूपी गुब्बारें*... हवाओं में कलाबाजियाँ खाते हुए... और मैं देख रहा हूँ इनको खुद से दूर जाते हुए... दूर... बहुत दूर... और देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गये है वे सभी...
➳ _ ➳ *मैं देख रहा हूँ अपने दोनो हाथों को, कितना आराम महसूस कर रहे हैं मेरे दोनो हाथ... मुद्दतों के बाद आज मैं अपनी हथेली खोल रहा हूँ, बन्द कर रहा हूँ, आजादी के साथ*... असीम सुख का एहसास... *त्याग के सुख की गहरी अनुभूति हो रही है आज मुझे*... एक लम्बी और गहरी स्वाँस के साथ, मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... और बस देखे जा रहा हूँ एकटक, कृतज्ञता आँखों में भर कर... जैसे कोई चातक पक्षी दिन रात बादलों को निहारता है... और बापदादा बरसते बादलों की तरह स्नेह बरसा रहे हैं मेरे ऊपर... *त्याग के भी त्याग का सुख आज महसूस हुआ है मुझ आत्मा को*... सर्व के कल्याण की भावना मन में समाये, मैं आत्मा वापस लौट आयी हूँ, अपनी देह रूपी डिबियाँ में... *त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त करने का दृढ निश्चय मन में लिए*... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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