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 06 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *मोह की सब रगें तोड़ इस पुरानी देह और दुनिया से ममत्व निकाला ?*

 

➢➢ *अच्छा तैरने वाला बन सबको पार लगाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *बुधी कीचड़े में तो नही लगाई ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *एक बल एक भरोसा रख हलचल की परिस्थिति में एकरस रहे ?*

 

➢➢ *बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृत्ति रख विश्व कल्याणकारी अवस्था का अनुभव किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *बाप के, अपने जीवन की श्रेष्ठ महिमा के, ज्ञान के, सर्व प्राप्तियों के गीत गाते रहे ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - माया की फागी बड़ी जबरदस्त है, उसमे खबरदार रहना है, फागी (बादल) में कभी भी मूंझना नही"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... आत्मिक नशे को इस कदर बढ़ाओ कि देहभान और... विकारो के बादल सदा के लिए काफूर हो चले... अब जो सत्य भरी खुबसूरत और सुकून भरी राहो पर कदम बढ़ाया है तो... सहज ही सामने खड़े स्वर्ग को बाँहों में भर लो... *महावीर बनकर माया के हर प्रभाव को निष्फल कर चलो*... और विजेता बन मुस्कराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा शरीर के नशे में विकारो के दलदल में फंस चली थी... अब आपने जो मुझे उस दलदल से बाहर निकाला है... *तो मै आत्मा अपनी सजग प्रहरी बन चली हूँ.*.. आपकी यादो से शक्तिशाली बनकर सब विकारो पर विजयी हो चली हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय फूल बनकर जो खिले हो तो माया के बादल मुरझाने का प्रयास अवश्य ही करेंगे... तो ज्ञान सूर्य बाबा की ओर रुख कर लेना... *यादो के नशे में खो जाना तो अपनी रंगत और महक को कायम रख सकेंगे.*.. ज्ञान सूर्य बाबा की छत्रछाया में स्वयं के खुशनुमा खिलंदड़े वजूद को सदा का बनाये रखना....

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में, आपके साये में कितनी निश्चिन्त हो गयी हूँ... *विकारो की धुंध को दूर से ही पहचान कर ईश्वरीय राहो की ओर* रुख कर चली हूँ... जीवन कितना  पवित्र और निर्मल हो चला है... मीठे बाबा मै आत्मा कितनी सुखी हो गयी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देहभान के बादलो ने आत्मिक वजूद को ही छिपा दिया था... *ज्ञान सूर्य बाबा ने अपनी शक्तियो और खजानो से उसे जो निखारा है.*.. उस चमक की हर पल सम्भाल करो... फिर उन अँधेरी राहो पर न चलो कि जीवन दुखो का पर्याय बन जाये... मीठे बाबा की श्रीमत का हाथ पकड़कर माया के बादलो को सदा का उड़ा दो....

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा विकारो से मुक्त होती जा रही हूँ... *ईश्वरीय यादो में पवित्रता से निखरती जा रही हूँ.*.. मीठे संगम पर बाबा आपको पाकर तो मै आत्मा सत्य राहो की राही बन चली हूँ... अंध श्रद्धा और भ्रमो से मुक्त होकर आनन्दमय जीवन की अधिकारी हो चली हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व शक्ति सम्पन्न हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा संसार रूपी विषय सागर में फंस गई थी... संसार रूपी सागर की गहराईयों में फंसकर मै आत्मा दुखी, अशांत हो गई थी... माया मुझ आत्मा को विकारों के चक्रव्यूह में धकेलते जा रही थी... मुझ आत्मा की जन्मों-जन्मों की पुकार सुनकर परमपिता परमात्मा इस धरती पर आकर... मुझ आत्मा को इस *भवसागर से निकालकर ज्ञान सागर के किनारे* ला दिए...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा ज्ञान सागर के किनारे बैठकर प्यारे बाबा को देख रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को *सर्व गुणों, शक्तियों से सुसज्जित* कर रहे हैं... ज्ञान सागर बाबा से तेज धार और चमकती तलवार रूपी ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा से जन्मों-जन्मों का अज्ञानता का अंधकार दूर होता जा रहा है... मैं आत्मा ज्ञान सागर की गहराईयों में उतरती जा रही हूँ... गुण रूपी मोतियों को धारण करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के विकारों, अवगुणों रूपी कंकड़ टूटकर भस्म होते जा रहे हैं...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा से त्रिशूल रूपी किरणें मुझ आत्मा के मस्तक पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनती जा रही हूँ... बाबा से सृष्टि चक्र का ज्ञान पाकर मै आत्मा *स्वदर्शन चक्रधारी* बनती जा रही हूँ... बाबा से आती तेज वज्र के समान किरणों से मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति को धारण करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के क्यों, क्या का संशय खत्म होता जा रहा है... मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  ज्ञान सूर्य परमात्मा से मुझ आत्मा के चारों ओर लाल सुनहरा तेजोमय प्रकाश प्रवाहित होता जा रहा है...  परमात्मा के इन दिव्य किरणों से मुझ आत्मा का देह रूपी वस्त्र का भान छूटता जा रहा है... मैं आत्मा प्रकाश का शरीर धारण करती जा रही हूँ... शंख रूपी किरणों से मै आत्मा पवित्र बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के रजो, तमो गुणी संस्कार नष्ट होते जा रहे हैं... पवित्रता के बल से मैं आत्मा *कर्मेंद्रियजीत, प्रकृतिजीत* बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा बाबा के द्वारा सु्सज्जित इन शस्त्रों को धारण कर शस्त्रधारी बनती जा रही हूँ... सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनती जा रही हूँ... अब मै आत्मा शिव शक्ति बन विकारों, दुर्गुणों रूपी माया शेर पर नियंत्रण करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा एकरस स्थिति में रहती हूँ... एक बाबा से ही सर्व संबंधो का सुख, सर्व प्राप्तियों का रस अनुभव करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा कैसी भी हलचल की परिस्थिति में सदा अचल रहती हूँ... अब माया मुझ आत्मा को जरा भी हिला नहीं सकती है... अब मैं आत्मा एक बल एक भरोसा रख हलचल की परिस्थिति में एकरस रहने वाली *सर्व शक्ति सम्पन्न अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ... 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृत्ति रख कर विश्व कल्याणकारी बनना"*

 

➳ _ ➳  मैं एक चैतन्य शक्ति आत्मा... विश्व निर्माता... विश्व कल्याणकारी की सन्तान हूँ... विश्व का मालिक स्वयं विश्व के कल्याण के लिये विश्व की सेवा में उपस्थित है... मैं आत्मा भी बाबा के साथ ही अलौकिक सेवा में जुट गयी हूँ... *परमपिता परमात्मा के साथ मिल कर कार्य करने का कितना सुन्दर भाग्य पाया है...*

 

➳ _ ➳  मैं कल्याणकारी आत्मा... सर्व आत्माओं की बेहद... निष्काम और निरंकारी रीति से अलौकिक सेवा कर रही हूँ... प्रेमस्वरूप... शान्तस्वरूप में स्थित होकर दूसरी आत्माओं के कल्याण के लिये ईश्वरीय कार्य में निमित्त हूँ... *नि:स्वार्थ सेवा की वृत्ति से मेरी आत्मिक अवस्था और भी ऊँची हो गयी है...*

 

➳ _ ➳  *दूसरी आत्माओं को ज्ञान रत्नों का तथा गुणों का दान देकर...* मैं योग-युक्त आत्मा उनके जीवन की समस्याएँ समाप्त कर रही हूँ... निराकारी आत्मिक स्थिति में निरंतर उन्हें सकाश देते हुये... उनका जीवन भी निर्विघ्न बना रही हूँ...

 

➳ _ ➳  *पतित से पावन... दु:खी से सु:खी बनाने की... सेवा की श्रेष्ठ वृत्ति लिए मैं आत्मा सेवाधारी हूँ...* मुझ आत्मा को अपने सूक्ष्म भावों से... संकल्पों द्वारा... संसार में सुख व शांति की वायब्रेशनस फैलानी हैं... संसार के तमाम जीव... प्रकृति सभी शांत स्वरूप हो जायें... सब तरफ सुख व शांति की किरणें फैल जायें...

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा विश्व का कल्याण करने के लिये ही इस तन में अवतरित हुई हूँ...* सर्व आत्माओं को सर्व शक्तियों तथा गुणों का दान देती हुई... उन्हें भी परमात्म पालना का अनुभव करा रही हूँ... सभी आत्मायें परमात्म मिलन से आनन्द विभोर हो उठीं हैं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *एक बल एक भरोसा रख हलचल की परिस्थिति में एकरस रहने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  एक बल एक भरोसा अर्थात एक *शिवबाबा से ही बल लेना और उनके ऊपर भरोसा रखना की जो भी हो रहा है उसमें कल्याण ही छिपा हुआ है।* क्योंकि कई बार परिस्थिति ऐसा रूप ले लेती है जिससे आत्मा को लगता की इसमें क्या कल्याण होगा किसी का लेकिन ऐसा लगता भी तब है जब आत्मा उस परिस्थिति के प्रभाव में आ गयी है। इसके लिए ही बाबा कहते ek बल एक भरोसा रखो, तुम *ब्राह्मण का हर बात में कल्याण है और अकल्याण  में भी कल्याण है।*

 

 ❉  हलचल की परिस्थिति उसी कोने से आएगी जहाँ पर कोई कमज़ोरी होगी आत्मा की, चाहे वह स्थूल या सूक्ष्म कमज़ोरी हो। जैसे सूक्ष्म कमज़ोरी है फ़ीलिंज़ में आना, बस अब कोई ऐसी बात सामने अवश्य आती रहेगी परिस्थिति के रूप में जो आपको बार बार फ़ीलिंज़ में ले आएगी, इसके लिए ही बाबा ने कहा सर्वशक्ति सम्पन्न बनो अर्थात *समय से पहले परख शक्ति का यूज़ करके कारण को निवारण में बदलो।*

 

 ❉  एकरस स्थिति अर्थात चाहे कोई भी दुःख का सीन हो या चाहे सुख का सीन हो उसमें आत्मा को एक का ही रस आए , जैसे की सर्वशक्तिमान बाप मेरे साथ है ,करनकरावनहार बाबा करवा रहे है, हम तो केवल निमित आत्मा है...ऐसी स्मृति रखने से स्थिति स्वतः ही एकरस रहेगी लेकिन इसके लिए बहुतकाल का अशरीरि होने का अभ्यास चाहिए जिससे आत्मा को *घड़ी घड़ी याद आए की मैं कौन हुँ और सर्वशक्तिमान बाप मेरा साथी है* फिर हर परिस्थिति में एकरस रहने सहज है।

 

 ❉  जैसे ब्रह्माबाबा ने अपने जीवन से हमको ख़ुद एक युक्ति बतायी की कैसे वह घड़ी घड़ी अपने को आत्मा समझने के प्रयास करते रहते थे और जैसे ही टिकते तो पूरा वातावरण अलौकिक बन जाता था ,*बाबा केवल हर बात में ड्रामा की नॉलेज और शिवबाबा से कनेक्शन रखते जिससे सर्वशक्तिमान बाप के साथ बैठने से ही सर्वशक्तिया आत्मा में आ जाती* और वह हर परिस्थिति में एक बल एक भरोसा रहकर सर्वशक्ति सम्पन्न रहे उसी ने उन्हें अनुभवीमूर्त व मास्टर सर्वशक्तिमान का टाइटल दे दीया। कम्बाइंड स्वरूप अर्थात सर्वशक्ति सम्पन्न आत्मा।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृति रखना ही विश्व कल्याणकारी बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   स्वयं को जब देह समझते हैं तो देह और देह की दुनिया से जुड़े सम्बन्ध याद आते हैं यह सम्बन्ध ही हदों में बाँध देते हैं । *मेरा पति, मेरे बच्चे, मेरा परिवार जब यह स्मृति में रख इस बेहद ड्रामा की स्टेज पर आते हैं तो अनेक प्रकार के बंधनो में बन्ध जाते हैं* । किन्तु जब आत्मिक स्मृति में रह सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखते हैं तो सेवा का लक्ष्य भी बेहद का हो जाता है और बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृति रखने वाले को ही विश्व कल्याणकारी कहा जाता है ।

 

❉   विश्व एक परिवार है और हम सभी एक ही परम पिता परमात्मा बाप के बच्चे हैं *जो इस बात को अच्छी रीति समझ लेते हैं और सदा यह बात स्मृति में रखते हैं कि परमात्मा बाप के हम सभी बच्चे आपस में भाई भाई है* । उनका हद के रिश्ते नातों में आकर्षण धीरे धीरे समाप्त होने लगता है और सर्व के साथ रूहानियत का रिश्ता बनने लगता है । सबके प्रति रूहानी स्नेह और समदृष्टि का भाव उन्हें हद के सर्व बन्धनों से मुक्त कर बेहद विश्व का सेवाधारी बना देता है ।

 

❉   जो सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहते हैं वे सब बातों के प्रभाव से सहज ही मुक्त हो जाते हैं । क्योंकि त्रिकालदर्शी की सीट उनमे साक्षीपन का भाव पैदा करती हैं । इसलिए वे सभी के पार्ट को साक्षी हो कर देखते हैं । *साक्षीपन का भाव हद के मैं और मेरेपन को समाप्त कर देता है और हद की दृष्टि वृति को बेहद में परिवर्तित कर देता है* । बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृति और बेहद सेवा का लक्ष्य रख सेवा के क्षेत्र मे आना ही विश्व कल्याणकारी बनना है ।

 

❉   सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी वृति रख सेवा करना ही सेवा की सफलता का आधार है । अगर सेवा करते हुए मन में सर्व आत्माओं के प्रति शुभ चिंतक वृति नही है तो वह सेवा आत्माओं को प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति कभी नही करवा सकती । *रीति प्रमाण की हुई सेवा केवल हद का नाम और मान ही दिलवा सकती है* । किंतु बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृति और शुभ भावना - शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्पो के साथ जो सर्व आत्माओं के कल्याणार्थ सेवा करते है वही विश्व कल्याणकारी आत्मा कहलाते हैं ।

 

❉   विश्व कल्याणकारी आत्मा वही हो सकती है जिसके हर संकल्प और श्वांस में सर्व आत्माओं के कल्याण का भाव समाया हो । *परम पिता परमात्मा की संतान हम संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं के शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो में तो विशेष शक्ति है* । हम ब्राह्मण आत्मायें ही विश्व की सर्व आत्मायों को प्रत्यक्ष फल की अनुभूति करवाने वाले है इसलिए हम ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य है सदा विश्वकल्याणकारी की सीट पर सेट हो कर बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृति रख सर्व आत्माओं का कल्याण करना ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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