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❍ 30 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपना टाइम विस्तार की बातों में वेस्ट तो नहीं किया ?*
➢➢ *"बुधी किसी भी कर्म में मलीन न हो" - इसका पूरा ध्यान रखा ?*
➢➢ *"मैं" शब्द की स्मृति द्वारा अपने ओरिजिनल स्वरुप में स्थित होने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *सम्पूरण निश्चयबुधी बन निश्चित विजय और निश्चिंत स्थिति का अनुभव किया ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ वैसे अशरीरी होना सहज है लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, *कोई सर्विस के झंझट सामने हों, कोई हलचल में लाने वाली परिस्थितियां हों, ऐसे समय में सोचा और अशरीरी हो जाएं, इसके लिए बहुत समय का अभ्यास चाहिए।* सोचना और करना साथ-साथ चले तब अन्तिम पेपर में पास हो सकोगें।
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ-ते-श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को बाप के स्नेही और सहयोगी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो ना? सदा यह नशा रहता है कि हम श्रेष्ठ-ते-श्रेष्ठ आत्मायें हैं क्योंकि बाप के साथ पार्ट बजाने वाली हैं। सारे चक्र के अन्दर इस समय बाप के साथ पार्ट बजाने के निमित बने हो। ऊंच-ते ऊंच पार्ट बजाने के निमित बने हो। ऊंचे-ते-ऊंचे भगवान के साथ पार्ट बजाने वाले कितनी ऊंची आत्मायें हो गई। लौकिक में भी कोई पद वाले के साथ काम करते हैं, उनको भी कितना नशा रहता है! प्राइम मिनिस्टर के प्राइवेट सेक्रेटरी को भी कितना नशा रहता। तो आप किसके साथ हो! *ऊंचे-ते-ऊंचे बाप के साथ और फिर उसमें भी विशेषता यह है कि एक कल्प के लिए नहीं, अनेक कल्प यह पार्ट बजाया है और सदा बजाते ही रहेंगे। बदली नहीं हो सकता। ऐसे नशे में रहो तो सदा निर्विग्न रहेंगे।*
〰✧ कोई विघ्न तो नहीं आता है ना? वायुमण्डल का, वायब्रेयशन का, संग का, कोई विघ्न तो नहीं है? कमलपुष्प के समान हो? कमलपुष्प समान न्यारे और प्यारा। बाप का कितना प्यारा बना हूँ, उसका हिसाब न्यारेपन से लगा सकते हो। अगर थोड़ा-सा न्यारा है, बाकी फंस जाते हैं तो प्यारे भी इतने होंगे। *जो सदा बाप के प्यारे हैं उनकी निशानी है - 'स्वत: याद'। प्यारी चीज स्वत: सदा याद आती है ना। तो यह कल्प-कल्प की प्रिय चीज है। एक बार बाप के नहीं बने हो, कल्प-कल्प बने हो। तो ऐसी प्रिय वस्तु को कैसे भूल सकते।* भूलते तब हो जब बाप से भी अधिक कोई व्यक्ति या वस्तु को प्रिय समझने लगते हो। अगर सदा बाप को प्रिय समझते तो भूल नहीं सकते।
〰✧ यह नहीं सोचना पड़ेगा कि याद कैसे करें, लेकिन भूले कैसे-यह आश्चर्य लगेगा। तो नाम अधर कुमार है लेकिन हो तो ब्र.कु.। ब्रहमाकुमार सदा नशे और खुशी मे रहेंगे। तो सभी निश्चय बुद्धि विजयी हो ना? अधरकुमार तो अनुभवी कुमार हैं। सब अनुभव कर चुके। *अनुभवी कभी भी धोखा नहीं खाते। पास्ट के भी अनुभवी और वर्तमान के भी अनुभवी।* एक-एक अधरकुमार अपने अनुभवों द्वारा अनेंकों का कल्याण कर सकते हैं। यह है विश्व कल्याणकारी ग्रुप।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ चारों ओर हलचल है, प्रकृति के सभी तत्व खूब हलचल मचा रहे हैं, एक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैं, व्यक्तियों की भी हलचल है, प्रकृति की भी हलचल है, ऐसे समय पर *जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगे?*
〰✧ सेफ्टी का साधन कौन-सा है? *सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो तो हलचल में अचल रह सकते हो।*
〰✧ इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगा? अभी टायल करो - *एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो?* (बाबा ने ड्रिल कराई) इसको कहा जाता है - 'साधना'। अन्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आत्मा का स्वधर्म शांति है, स्वधर्म में टिकना है"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठ चिंतन करती हुई स्व की गहराइयों में उतरती जाती हूँ... मैं ज्योतिबिन्दु स्वरूप आत्मा भृकुटि के सिंहासन पर चमकती हुई मणि हूँ...* इस देह में अवतरित होकर अपना पार्ट बजाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा और गहरे उतरती जाती हूँ... अंतर्मुखी होकर गहरी शांति का अनुभव करती हुई शांति के सागर प्यारे बाबा के पास पहुंच जाती हूँ...
❉ *शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा शांति की किरणों से सराबोर करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं को देह समझ शांति के लिए बहुत बाहर भटक चुके हो... अब अपने सच्चे वजूद के नशे में गहरे डूब जाओ... और भीतर मौजूद शांति का गहरा आनंद लो... *शांति का खजाना भीतर सदा साथ है, स्वधर्म है, बस परधर्म छोड़ अपने स्वधर्म में खो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गले मे शांति का हार पहन स्वधर्म में टिकती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे पाये ज्ञान के तीसरे नेत्र से, स्वयं के खजानो को देखने वाली नजर को पाकर निहाल हो गयी हूँ... प्यारे बाबा मै शांति की बून्द भर को भी प्यासी थी... *आपने तो मेरे भीतर समन्दर का पता दे दिया और मुझे सदा के लिए तृप्त कर दिया है..."*
❉ *मीठे बाबा दुख, अशांति की दुनिया से निकाल शांति के समंदर में डुबोते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने गुणवान और शक्तियो से श्रंगारित थे... आत्मिक भान से परे, देह होने के अहसास ने सारे प्राप्त खजानो से वंचित कर दिया... *अब अपने आत्मिक स्वरूप की स्मृतियों में हर साँस को भिगो दो...* और असीम शांति की तरंगो से स्वयं और पूरे विश्व को तरंगित कर दो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर अतीन्द्रिय सुख, शांति की अनुभूति में डूबकर कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा शांति के सागर से मिलकर गुणो के सौंदर्य से खिल उठी हूँ... प्यारे बाबा *आपने मुझे मेरी खोयी खुशियां लौटाकर, मुझे मालामाल कर दिया है...* हर भटकन से मुक्त कराकर गुणो के वैभव से पुनः सजा दिया है... और अथाह शांति के स्त्रोत को भीतर जगा दिया है..."
❉ *प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख सर्व ख़ज़ानों के वरदानों की बरसात करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने दमकते हुए मणि स्वरूप की खुमारी में डूब जाओ... और सुख शांति से लबालब हो जाओ... ईश्वर पिता से पाये गुणो और शक्तियो के खजानो का जीवन में भरपूर आनन्द लूटते हुए... सतयुगी दुनिया के सुखो को बाँहों में भरो... *सच्ची शांति जो भीतर निहित है उससे जीवन को सजा लो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा शांति कुंड बन शांति की किरणों से सारे विश्व को चमकाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आत्मिक गुणो से सजधज कर अप्रतिम सौंदर्य से निखर उठी हूँ... मीठे बाबा *आपकी यादो में पवित्र बन, सुख और शांति के अखूट खजानो को पा रही हूँ...* आपकी प्यारी यादो में मैंने अपना खोया रंगरूप पुनः पा लिया है... सारे खजाने मेरी बाँहों में मुस्करा उठे है..."
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धि किसी भी कर्म में मलीन ना हो, इसका ध्यान रखना है*"
➳ _ ➳ अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान और योग से स्वच्छ बनाने के लिए मैं आत्मा *अपनी बुद्धि का कनेक्शन बुद्धिवानो की बुद्धि अपने शिव पिता के साथ जोड़ने के लिए, अपने सम्पूर्ण ध्यान को देह और देह की दुनिया से जुड़ी हर चीज से हटाकर केवल अपने स्वरूप पर और अपने शिव पिता परमात्मा के स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ*। नश्वर देह के हर हिस्से से अपनी चेतना को समेट कर अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान उस चैतन्य शक्ति को देख रही हूँ जो इस शरीर को चला रही है। *वो ऊर्जा का अखण्ड स्त्रोत मैं आत्मा हूँ जो इस शरीर रूपी रथ पर बैठ 84 जन्मो का अविनाशी पार्ट बजा रही है*।
➳ _ ➳ उस चैतन्य शक्ति को, अपने सत्य स्वरूप को मैं आत्मा अब अपने मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। मेरा यह सत्य स्वरूप मुझे अपने अंदर निहित सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की अनुभूति करवा रहा है। *मुझ आत्मा के अंदर समाहित सातों गुण और अष्ट शक्तियाँ अलग - अलग रंगों की अलग - अलग किरणों के रूप में मुझ चैतन्य सितारे से निकल कर चारों ओर फैल रहें हैं*। ये किरणे मुझे इन गुणों और शक्तियों का अनुभव करवाकर असीम सुकून प्रदान कर रही हैं।
➳ _ ➳ अपने इन गुणों और शक्तियों की किरणों को चारों ओर फैलाते हुए *अब मैं आत्मा भृकुटि सिहांसन को छोड़ ज्ञान, गुण और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास जा रही हूँ* जिन्हों ने मुझे ये सत्य ज्ञान दे कर, मेरे अंदर निहित गुणों और शक्तियों से मुझे अवगत करवा कर इस रूहानी यात्रा पर चलना सिखाया।
➳ _ ➳ यही सुंदर विचार करती अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मग्न मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा के अनुपम प्यार को स्वयं में समाए अब पाँच तत्वों की बनी इस साकारी दुनिया को पार कर जाती हूँ और *इन स्थूल सितारों की दुनिया से ऊपर, सूक्ष्म लोक से भी परें चैतन्य सितारों की उस सुंदर लुभावनी दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ जहां मेरे शिव पिता रहते हैं*। निराकारी आत्माओं की यह निराकारी दुनिया परमधाम मुझ आत्मा का और मेरे पिता परमात्मा का घर है। इस स्वीट साइलेन्स होम में आ कर मैं गहन शांति की अनुभूति में खो जाती हूँ। *इस शांतिधाम में शांति के सागर शिव पिता से निकल रहे शांति के गहन वायब्रेशन चारों ओर फैले हुए हैं*।
➳ _ ➳ शांति की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं आत्मा अपने शिव पिता के समीप जा रही हूँ। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, शक्तियों की किरणों की मीठी फुहारों का मैं आनन्द ले रही हूँ। *इन शीतल फुहारों की शीतल बूंदें मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उतार कर मेरे बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बना रही हैं। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की मैल जैसे - जैसे उतर रही है वैसे - वैसे मेरी बुद्धि शुद्ध और पावन बनती जा रही है*। मुझ आत्मा का बुद्धि रूपी बर्तन सच्चे सोने के समान चमकदार बनने लगा है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की फुहारों से अपने बुद्धि रूपी बर्तन की सफाई करके अब मैं आत्मा फिर से कर्म करने के लिए परमधाम से वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट रही हूँ। *सूक्ष्म वतन से होती हुई, आकाश से नीचे वापिस पाँच तत्वों की बनी उसी साकारी दुनिया में अब मैं प्रवेश कर रही हूँ जहाँ मुझे अपने साकारी शरीर रूपी रथ का आधार ले कर अपना पार्ट पूरा करना है*।
➳ _ ➳ अपने साकारी तन में अब मैं आत्मा भृकुटि पर विराजमान हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित रहते हुए अपने इस इस संगमयुगी ब्राह्मण जन्म का अद्भुत पार्ट बजा रही हूँ। *अपने संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप को सदा स्मृति में रख अब मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि बुद्धि किसी भी कर्म में मलीन ना हो*। हर कर्म बाबा की याद में रह कर करते हुए अपने हर कर्म को मैं श्रेष्ठ बना रही हूँ।
➳ _ ➳ *खाते - पीते, चलते - फिरते, सोते - उठते हर समय बुद्धि का योग केवल अपने शिव पिता के साथ जोड़े, उनकी छत्रछाया को सदा अपने ऊपर अनुभव करते, हर कर्म में अपने शिव पिता को साथी बना कर, अपने हर कर्म की श्रेष्ठता द्वारा मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी परमात्म प्यार और पालना का अनुभव करवा सहज ही रही हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं "मैं" शब्द की स्मृति द्वारा अपने ओरिजिनल स्वरूप में स्थित होने वाली देह के बन्धन से मुक्त्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बन निश्चिंत विजय और निश्चिंत स्थिति का अनुभव करने वाली निश्चिंत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कई बच्चे सोचते हैं सफल तो करें लेकिन विनाश हो जाए कल परसों तो, हमारा तो काम में आया ही नहीं। हमारा तो सेवा में लगा नहीं। तो करें, सोच कर करें। हिसाब से करें, थोड़ा-थोड़ा करके करें। यह संकल्प बाप के पास पहुँचते हैं। लेकिन मानों आज आप बच्चों ने अपना तन सेवा में समर्पण किया, मन विश्व-परिवर्तन के वायब्रेशन में निरन्तर लगाया, धन जो भी है, है तो प्राप्ति के आगे कुछ नहीं लेकिन जो भी है, आज आपने किया और कल विनाश हो जाता है तो क्या आपका सफल हुआ या व्यर्थ गया? सोचो, सेवा में तो लगा नहीं, तो क्या सफल हुआ? आपने किसके प्रति सफल किया? *बापदादा के प्रति सफल किया ना? तो बापदादा तो अविनाशी है, वह तो विनाश नहीं होता! अविनाशी खाते में, अविनाशी बापदादा के पास आपने आज जमा किया, एक घण्टा पहले जमा किया, तो अविनाशी बाप के पास आपका खाता एक का पदमगुणा जमा हो जायेगा ना!* पुरानी सृष्टि विनाश होगी ना! इसीलिए आपका दिल से किया हुआ, *मजबूरी से किया हुआ, देखा-देखी में किया हुआ, उसका पूरा नहीं मिलता है। मिलता जरूर है क्योंकि दाता को दिया है लेकिन पूरा नहीं मिलता है।*
✺ *ड्रिल :- "अविनाशी बाप के पास जमा कर अपना खाता एक का पदमगुणा बढ़ाना"*
➳ _ ➳ मधुबन तपोभूमि में तपस्या धाम में बैठी मैं तपस्या मूर्त आत्मा हूँ... समस्त चेतना को भृकुटि के मध्य केन्द्रित करती हूँ... *स्थूल देह में विराजमान यह ज्योतिमय किरण, यह चमकता प्रतिबिंब, यह जगमगाता ज्योति पुंज मैं आत्मा हूँ...* संकल्प विकल्पों से परे होकर मैं आत्मा रुपी बैटरी परमात्मा शिव बाबा पावरहाउस से कनेक्शन जोड़ती हूँ... *परमात्मा पावर हाऊस से आती किरणों से मैं आत्मा चार्ज हो रही हूँ... मुझ आत्मा की लाइट बढ़ रही है... सूरज के समान मैं आत्मा चमक रही हूँ...* एक नयी उर्जा का संचार मुझ आत्मा में हो रहा है... बेहद लाइट और माइट मैं आत्मा फील कर रही हूँ... *मुझ उर्जा बिन्दु से ऊर्जा की किरणें समस्त वायुमंडल में फैल रही है... इस वायुमंडल को पावरफुल बना रही है...*
➳ _ ➳ थोड़ी देर के इस अभ्यास के बाद मैं तपस्या मूर्त आत्मा शिव पिता की याद में तपस्या धाम से रोटी डिपार्टमेंट में स्थूल सेवा के लिए चल पड़ती हूँ... तभी अचानक कहीं एक गीत बजता है... *शुभ कर्म में ना देरी करो सांसों का भरोसा नहीं... जिन्दगी को सफल अब करो सांसों का भरोसा नहीं...* ये सुनते ही जैसे मन रूपी सागर में विचार रूपी लहरें उठती है... और मैं आत्मा अपने आप से प्रश्न करने लगती हूँ... मुझ आत्मा ने अपना जमा का खाता कितना बढाया है... अगर आज या कल ही विनाश हो जाएं तो... अगर जमा कर लिया और काम में नहीं आया सेवा में नहीं लगा तो वो सफल होगा या नहीं... *तभी अचानक ऊपर आती हुई एक तेज रोशनी मुझ आत्मा पर पड़ती है...* और एक दृश्य मुझ आत्मा के सामने आता है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ... सामने एक बिल्ड़िग है जिस पर लिखा है... *"ईश्वरीय बैंक"* और बाहर एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है... *"एक का पदमगुणा"* मैं आत्मा देख रही हूँ, कुछ आत्माएँ इस ईश्वरीय बैंक की तरफ जा रही है... मैं आत्मा ये दृश्य बड़े ध्यान से देख रही हूँ... अन्दर एक बहुत बड़ी मशीन है जिसमें से एक स्टैम्प बाहर निकल रही है जो भी जमा करने के लिए आत्माएँ आ रही है उस पर ये स्टैम्प लग रही है... *इस स्टैम्प पर लिखा है "अविनाशी खाता"* और उसी मशीन पर एक स्क्रीन लगी है जो भी आत्मा कुछ भी जमा कर रही है ऊपर लिखा आ रहा है *"एक का पदमगुणा जमा"*
➳ _ ➳ लेकिन तभी मैं आत्मा देख रही हूँ... कुछ आत्माएँ ईश्वरीय बैंक में गई आत्माओं को देख, उनसे सुन देखा-देखी में मजबूरी में कुछ जमा करने के लिए अन्दर जाती है... लेकिन *जैसे वो आत्माएँ जमा करती है मशीन से वैसे ही स्टैम्प निकलती है उस जमा खाते पर वो अविनाशी सटैम्प लगती है... लेकिन मशीन की स्क्रीन पर अब एक का पदमगुणा लिखा नहीं आता...* तभी अचानक सारा दृश्य गायब हो जाता है *बाबा से ज्ञान प्रकाश मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... जिससे बाबा द्वारा दिखाए इस दृश्य का राज मुझ आत्मा के सामने स्पष्ट हो जाता है...* मन में चली संकल्पों की सब लहरें शांत हो गई है... और अब मैं आत्मा समझ गयी हूँ *दिल से जमा किया हुआ ईश्वरीय बैंक में एक का पदमगुणा जमा हो जाता है...*
➳ _ ➳ कभी व्यर्थ नहीं जाता कोई भी आत्मा चाहे देखा-देखी में जमा करे लेकिन अविनाशी बाप से उसका भी रिटर्न मिलता हैं... भले पूरा ना मिले मिलता जरूर है... *अविनाशी बापदादा के पास एक का पदमगुणा जमा हो जाता है...* और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को कर्म करते हुए... पुरानी सृष्टि के विनाश से पहले टू लेट से पहले *सच्ची दिल से मैं आत्मा तन को ईश्वरीय सेवा में लगा तन को सफल कर रही हूँ... और बाबा को दिया हुआ धन और मन द्वारा सदा विश्व कल्याण के वायब्रेशनस फैला रही हूँ... मनसा सेवा कर रही हूँ... दिल से धन को ईश्वरीय कार्य में लगा रही हूँ... इस प्रकार मैं आत्मा सच्ची दिल से, अविनाशी बाप के पास हर रीति से तन, मन, धन सफल का एक का पदमगुणा जमा कर रही हूँ...* और निरंतर सच्ची खुशी का अनुभव कर रही हूँ... *इस जीवन को हर प्रकार से सफल कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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