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 28 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एक दो को सावधान करते रहे ?*

 

➢➢ *सारा दिन याद में रहने की मेहनत की ?*

 

➢➢ *देह अहंकार व अभिमान के सूक्षम अंश का भी त्याग किया ?*

 

➢➢ *समय पर सहयोगी बनकर रहे ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  *अशरीरी बनना अर्थात् आवाज से परे हो जाना। शरीर है तो आवाज है। शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस।* एक सेकेण्ड में सर्विस के संकल्प में आये और एक सेकेण्ड में संकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जायें। *कार्य प्रति शारीरिक भान में आये फिर सेकेण्ड में अशरीरी हो जायें, जब यह ड्रिल पक्की होगी तब सभी परिस्थितियों का सामना कर सकोगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं परमात्मा बाप की स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ"*

 

  *सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर बाप के साथ स्नेही और सहयोगी आत्मायें हैं, ऐसा समझकर चलते हो? हम आत्माओंको इतना श्रेष्ठ भाग्य मिला है, यह आक्यूपेशन सदा याद रहता है?* जैसे लौकिक आक्यूपेशन वाली आत्मा के साथ भी कार्य करने वाले को कितना ऊंचा समझते हैं लेकिन आपका पार्ट, आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है। तो कितना श्रेष्ठ पार्ट हो गया। ऐसे समझते हो?

 

  *पहले तो सिर्फ पुकारते थे कि थोड़ी घड़ी के लिए दर्शन मिल जाए। यही इच्छा रखते थे ना। अधिकारी बनने की इच्छा वा संकल्प तो सोच भी नहीं सकते थे, असम्भव समझते थे।* लेकिन अभी जो असम्भव बात थी वह सम्भव और साकार हो गई। तो यह स्मृति रहती है? सदा रहती है वा कभी-कभी। अगर कभी-कभी रहती है तो प्राप्ति क्या करेंगे?

 

  कभी-कभी राज्य मिलेगा। कभी राजा बनेंगे कभी प्रजा बनेंगे। *जो सदा के राजयोगी हैं वही सदा के राजे हैं। अधिकार तो अविनाशी और सदाकाल का है। जितना समय बाप ने गैरन्टी दी है, आधाकल्प उसमें सदाकाल राज्य पद की प्राप्ति कर सकते हो।* लेकिन राजयोगी नहीं तो राज्य भी नहीं। जब चांस सदा का है तो थोड़े समय का क्यों लेते।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अभी अगर आपको कहें कि 108 ऐसे नाम बताओ जो वेस्ट और निगेटिव से मुक्त हों, तो आप लोग माला बना सकती हैं।* सिर्फ 108 कह रहे हैं।

 

✧  99 तक तो 16000 चाहिए। 9 लाख तो बन जायेंगे, उसकी कोई बडी बात नहीं है। पहले तो 108 तैयार हो जाएँ (सभा से) *आप सोचते हो हम 108 में आयेंगे?*

 

✧  अभी जो कुछ हो उसे निकाल लेना, और दादी को कहना कि हम एवररेडी है। *हाँ अपना-अपना नाम देवें, आफर करो - हम 108 में है फिर वैरीफाय करेंगे।* सबसे अच्छा तो अपना नाम आपे ही देवें। (दादियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पतितों को पावन बनाने की सर्विस करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बादलों के विमान में बैठ बापदादा के साथ पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा रही हूँ...* बाबा के साथ सूरज, चाँद, सितारों, आसमान की सैर करते हुए आनंद की लहरों में डोल रही हूँ... परमधाम, सूक्ष्मवतन से होते हुए हम विश्व के गोले के ऊपर बैठ जाते हैं... *बापदादा सारे विश्व की प्यासी, दुखी आत्माओं, तमोप्रधान प्रकृति को दिखाकर मुझे विश्व सेवा करने की शिक्षाएं देते हैं...*

 

   *प्यारे बाबा सबका कल्याण कर अन्धो की लाठी बनने के लिए प्रेरित करते हुए कहते है:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की तरहा विश्व कल्याण की भावना से भर जाओ... जो मीठे सुख जो खुशियां आपके जीवन में महकी है उन्हें सबके दिल आँगन में खिला आओ... *सारा विश्व सच्ची खुशियो में खिलखिलाये और हर मन मीठा मुस्कराये ऐसी रूहानी सेवा करते रहो...*"

 

_ ➳  *ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में भरकर चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आप समान सबको सुखी और ईश्वरीय वर्से का अधिकारी बना रही हूँ... *सबको सच्चे सुख का रास्ता दिखाने वाली मा सुखदाता हो गई हूँ...* ज्ञान के प्रकाश से हर दिल की राहे रौशन कर रही हूँ..."

 

   *पतित पावन मीठे बाबा पवित्रता की किरणों से मुझे चमकाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  दिन रात सदा सबके कल्याण के ख्यालातों में मगन रहो... स्वयं भी व्यर्थ से मुक्त रहेंगे और सबके जीवन को सुनहरे सुखो से सजाने वाले... *विश्व कल्याणकारी बन मीठे बापदादा के दिल तख्त पर इठलायेंगे...* और खुबसूरत भाग्य के धनी बन जायेंगे..."

 

_ ➳  *दिन रात अपनी बुद्धि में सर्विस के खयालातों को भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पायी खुशियो की दौलत को हर दिल पर लुटा रही हूँ... *सच्चे ज्ञान की झनकार से हर दिल में सुख की बहार सजा रही हूँ...* सबका जीवन खुशियो से खिल रहा है और पूरा विश्व मीठा मुस्करा रहा है..."

 

   *विश्व कल्याण का झंडा मेरे हाथों में सौंपते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के सहयोगी बनने वाले और सबके जीवन को नूरानी बनाने वाले महा भाग्यशाली हो... *सच्चे सहारे होकर, सबको इन मीठी खुशियो का पैगाम देते जाओ*... ज्ञान के तीसरे नेत्र से सबकी जिंदगी में उजाला कर सुखो का पता दे आओ..."

 

_ ➳  *मैं विश्व कल्याणी फरिश्ता पूरे विश्व और प्रकृति को सर्व गुणों और शक्तियों की साकाश देते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा ईश्वरीय सेवा धारी बनकर अपने महान भाग्य पर मुस्करा उठी हूँ... कभी अपने ही गमो में रोने वाली, *आज धरा से दुःख के आँसू का सफाया कर रही हूँ...* चारो ओर खुशहाली और आनन्द के फूल खिलाने वाली खुबसूरत माली हो गई हूँ..."

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूहानी यात्रा पर रहने के लिये एक दो को सावधान करते रहना*"

 

_ ➳  स्वयं परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने रूहानी पण्डा बन जो रूहानी यात्रा हम बच्चों को सिखलाई है, उस यात्रा पर रहने के लिए एक दो को सावधानी देते आगे बढ़ना और बढ़ाना ही हम ब्राह्मण बच्चों का कर्तव्य है। *अपने आश्रम में, बाबा के कमरे में बैठी मैं मन ही मन यह विचार करते हुए बाबा का आह्वान करती हूँ और बाबा के साथ कम्बाइंड हो कर वहाँ उपस्थित अपने सभी ब्राह्मण भाईयों और बहनों को मनसा सकाश देते हुए ये संकल्प करती हूँ कि यहाँ उपस्थित मेरे सभी ब्राह्मण भाई बहन एक दो को सहयोग देते, इस रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते रहें* और ऐसे ही आगे बढ़ते और दूसरों को बढ़ाते जल्दी ही सारे विश्व की सभी ब्राह्मण आत्मायें संगठित रूप से एकमत होकर बाबा को प्रत्यक्ष करने का कार्य सम्पन्न करें।

 

_ ➳  इसी संकल्प के साथ, स्वयं को अपने प्यारे बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, *अपने ब्राह्मण सो फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो कर, मैं फरिश्ता अब बापदादा के साथ कम्बाइंड होकर ऊपर की ओर उड़ते हुए मधुबन की पावन धरनी पर पहुँचता हूँ जो परमात्मा की अवतरण भूमि है*। जहाँ भगवान साकार में आ कर अपने ब्राह्मण बच्चों से मिलन मनाते हैं, उनकी पालना करते हैं और परमात्म प्यार से उन्हें भरपूर करते हैं। *इस पावन धरनी पर आकर अब मैं देख रहा हूँ करोड़ो ब्राह्मण आत्मायें यहां उपस्थित है और सभी एक दूसरे के प्रति आत्मा भाई - भाई की रूहानी दृष्टि, वृति रख, अपने रूहानी शिव पिता के प्रेम की लग्न में मग्न हैं*।

 

_ ➳  सभी ब्राह्मण बच्चों के स्नेह की डोर बाबा को अपनी ओर खींच रही है और बच्चो के स्नेह में बंधे भगवान को भी अपना धाम छोड़ कर नीचे आना पड़ता है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ, बाबा परमधाम से नीचे आ रहें है। *सूक्ष्म वतन से होते हुए अपने आकारी रथ पर विराजमान हो कर बापदादा अब मधुबन की उस पावन धरनी पर हम बच्चों के सामने आ कर उपस्थित होते हैं*। सभी ब्राह्मण बच्चे अब अपने पिता परमात्मा से मिलन मनाने का आनन्द ले रहे हैं। बापदादा अपने एक - एक अमूल्य रत्न को नजर से निहाल कर रहें हैं। एक - एक करके सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा के पास जा कर बाबा से दृष्टि और वरदान ले रहें हैं।

 

_ ➳  मैं फरिश्ता भी बापदादा से दृष्टि और वरदान लेने के लिए उनके पास पहुंचता हूँ और उनकी ममतामयी गोद में जा कर बैठ जाता हूँ। अपनी स्नेह भरी दृष्टि से बाबा मुझे निहार रहें हैं। बाबा की दृष्टि से बाबा के सभी गुण मुझ में समाते जा रहें हैं। *बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मुझमें एक अलौकिक रूहानी नशे का संचार कर रही हैं । जिससे मैं फरिश्ता असीम रूहानी आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ*। बाबा के हाथों का मीठा - मीठा स्पर्श मुझे बाबा के अपने प्रति अगाध प्रेम का स्पष्ट अनुभव करवा रहा है ।

 

_ ➳  मैं बाबा के नयनो में अपने लिए असीम स्नेह देख कर गद गद हो रहा हूँ और साथ ही साथ बाबा के नयनों में अपने हर ब्राह्मण बच्चे के लिए जो आश है कि सभी एक दो को सावधान करते इस रूहानी यात्रा पर सदा आगे बढ़े। *बाबा की इस आश को जान, मन ही मन बाबा को मैं प्रोमिस करता हूँ कि इस रूहानी यात्रा पर एक दो को सावधान करते, मैं निरन्तर आगे बढ़ता ओर बढाता रहूँगा*। बाबा मेरे मन के हर संकल्प को पढ़ते हुए, अपना वरदानी हाथ मेरे मस्तक पर रख मुझे सदा विजयी रहने का वरदान दे रहें हैं।

 

_ ➳  अपने सभी ब्राह्मण बच्चो को नजर से निहाल करके, वरदानो से भरपूर करके, अपने मीठे मधुर महावाक्यों द्वारा अपने सभी बच्चों को मीठी समझानी देकर अब बाबा सभी बच्चों को याद की रूहानी यात्रा पर चलने की ड्रिल करवा रहें है। *मैं देख रही हूँ सभी ब्राह्मण आत्मायें सेकेंड में अपनी साकारी देह को छोड़ निराकारी आत्मायें बन रूहानी दौड़ में आगे जाने की रेस कर रही हैं। सभी का लक्ष्य इस रूहानी दौड़ में आगे बढ़ने का है और सभी अपने पुरुषार्थ के अनुसार नम्बरवार इस लक्ष्य को प्राप्त कर अपनी मंजिल पर पहुंच रही हैं*।

 

_ ➳  सभी आत्मायें इस रूहानी यात्रा को पूरा कर अब परमधाम में अपने प्यारे बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मिलन मना रही हैं। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हैं। *शक्ति सम्पन्न बन कर अब सभी आत्मायें वापिस अपने साकारी ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही है और सभी एक दो को सावधान करते, एक दूसरे को सहयोग देते अपनी रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ रही हैं*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं देह-अहंकार वा अभिमान के सूक्ष्म अंश का भी त्याग करने वाली आकारी सो निराकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं समय पर सहयोगी बन पदमगुणा रिटर्न प्राप्त करने वाली सहयोगी आत्मा हूंँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. जब माया को चैलेन्ज किया तो *यह समस्यायें, यह बातें, यह हलचल माया के ही तो रायल रूप हैं। माया और तो कोई रूप में आयेगी नहीं। इन रूपों में ही मायाजीत बनना है।* बात नहीं बदलेगी, सेन्टर नहीं बदलेगास्थान नहीं बदलेगा, आत्मायें नहीं बदलेगी, हमें बदलना है। आपका स्लोगन तो सबको बहुत अच्छा लगता है - बदलके दिखाना हैबदला नहीं लेना हैबदलना है। यह तो पुराना स्लोगन है। *नये-नये रूपरायल रूप बनके माया और भी आने वाली हैघबराओ नहीं। बापदादा अण्डरलाइन कर रहा है - माया ऐसेऐसे रूप में आनी हैआ रही है।* जो महसूस ही नहीं करेंगे कि यह माया है, कहेंगे नहीं दादी, आप समझती नहीं होयह माया नहीं है। यह तो सच्ची बात है। और भी रायल रूप में आने वाली हैडरो मत। क्यों? देखोकोई दुश्मन चाहे हार खाता हैचाहे जीत होती हैजो भी उनके पास छोटे मोटे शस्त्र अस्त्र होंगेयूज करेगा या नहीं करेगाकरेगा नातो *माया की भी अन्त होनी है लेकिन जितना अन्त समीप आ रहा हैउतना वह नये-नये रूप से अपने अस्त्र शस्त्र यूज कर रही है, करेगी भी। फिर आपके पाँव में झुकेगी। पहले आपको झुकाने की कोशिश करेगीफिर खुद झुक जायेगी।*

 

 _ ➳  2. *अपने में सिर्फ दृढ़ता लाओथोड़ी सी बात में संकल्प को ढीला नहीं कर दो। कोई इन्सल्ट करेकोई घृणा करे, कोई अपमान करेनिंदा करे, कभी भी कोई दुःख दे लेकिन आपकी शुभ भावना मिट नहीं जाए। आप चैलेन्ज करते हो कि हम माया को, प्रकृति को परिवर्तन करने वाले विश्व-परिवर्तक हैं,* अपना आक्यूपेशन तो याद है ना? विश्व-परिवर्तक तो हो ना! अगर कोई अपने संस्कार के वश आपको दुःख भी देचोट लगाये, हिलाये, तो क्या आप दुःख की बात को सुख में परिवर्तन नहीं कर सकते होइन्सल्ट को सहन नहीं कर सकते हो? गाली को गुलाब नहीं बना सकते हो? समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन नहीं कर सकते हो?   

 

✺   *ड्रिल :-  "दृढ़ता से माया के बहुरूपों को परिवर्तन कर बाप समान बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ अपने प्यारे घर... शान्तिधाम... मैं आत्मा शान्तिधाम की गहन शांति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा बीजरूप स्थिति में बीजरूप बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... *बाबा से निकलती किरणों से मैं आत्मा अपनी अपवित्रता के संकल्पों... अपनी कमी कमजोरियों के संकल्पों... माया के विभिन्न स्वरूपो को बीज सहित उखाड़ कर समाप्त कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपनी चैकिंग करती हूँ कि कहीं मैं आत्मा दूसरे को बदलने की कोशिश तो नहीं कर रही... मुझे तो स्वयं को परिवर्तन करना है... मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ कि... माया नये नये रूप... रॉयल रूप बनाकर कैसे मेरे आगे पीछे चक्कर लगाती है... *मैं आत्मा अपने हर संकल्प... हर कर्म पर अटेंशन देने लगती हूँ... मैं आत्मा याद और सेवा का डबल लॉक लगाकर बुद्धि को पहरेदार बनाकर सावधान करती हूँ... कि माया किसी भी चोर गेट से अंदर न आ सके...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की चाबी का इस्तेमाल कर हर संकल्प पर अटेंशन दे रही हूँ... *कोई इन्सल्ट करे... कोई घृणा करे... कोई निंदा करे... लेकिन मुझ आत्मा पर इन बातो का कोई असर न पड़े...* कैसी भी परिस्थिति मुझ आत्मा के सामने आये भी तो मैं अचल अडोल बन हर परिस्थिति में महावीर की तरह... अंगद की तरह अटल रहती हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर कदम बाबा की श्रीमत को फॉलो कर रही हूँ... *मैं आत्मा परखने की शक्ति को यूज़ कर माया से हार नहीं खाती हूँ...* मैं आत्मा सदैव सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति बाप समान शुभ भावना और शुभ कामना रख... निमित्त भाव से सेवा कर रही हूँ... *मैं रूहानी रूहे गुलाब बन चारों ओर बाप समान अपनी खुशबू फैला रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा माया की छाया से मुक्त हो चुकी हूँ... और सदा बाबा की छत्रछाया का अनुभव करती हूँ... *मैं आत्मा माया के सभी बहुरूपों पर विजय प्राप्त कर बाप समान होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया का अनुभव करती हूँ...* किसी भी समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन कर सदा उमंग उत्साह और खुशी के झूले में झूलती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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