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 16 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोल अनेको का कल्याण किया ?*

 

➢➢ *नष्टोमोहा बन एक बाप से अपना बुधीयोग रखा ?*

 

➢➢ *मुख से हर एक को ज्ञान के दो वचन सुनाकर उनका कल्याण करना है ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *दृढ़ निश्चय द्वारा फर्स्ट डिवीज़न के भाग्य को निश्चित किया ?*

 

➢➢ *स्वयं को हीरो पार्टधारी समझ बेहद नाटक में हीरो पार्ट बजाया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  बापदादा इस साकारी देह और दुनिया में आते हैं, सभी को इस देह और दुनिया से दूर ले जाने के लिए *दूर-देश वासी सभी को दूर-देश निवासी बनाने के लिए आते हैं।* दूर-देश में यह देह नहीं चलेगी। पावन आत्मा अपने देश में बाप के साथ-साथ चलेगी। *तो चलने के लिए तैयार हो गये हो* वा अभी तक कुछ समेटने के लिए रह गया है? जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो तो विस्तार को समेट परिवर्तन करते हो। तो दूर-देश वा अपने स्वीट होम में जाने के लिए तैयारी करनी पडेगी? *सर्व विस्तार को बिन्दी में समाना पडे।* इतनी समाने की शक्ति, समेटने की शक्ति धारण कर ली है? समय प्रमाण बापदादा डायरेक्शन दे कि *सेकण्ड में अब साथ चलो तो सेकण्ड में, विस्तार को समा सकेंगे?* शरीर की प्रवृति, लौकिक प्रवृति, सेवा की प्रवृति, अपने रहे हुए कमजोरी के संकल्प की और संस्कारों की प्रवृत्ति, *सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते हो?* वा कोई प्रवृति अपने तरफ आकर्षित करेगी?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  रूहानी सर्जन प्रोफेसर बन, हॉस्पिटल कम यूनिवर्सिटी खोल अनेको का कल्याण करना"*

 

_ ➳  बचपन में आसमानी चाँद देख मचला करते थे...पर पा न सके...क्योकि तब मेरे पास ब्रह्मा मां जो न थी... *आज भाग्य से मिली प्यारी ब्रह्मा मां ने... मुझे प्यारा शिव चाँद हाथो में दे दिया है.*..और मन इस चाँद से हर पल खेल रहा है... ऐसा खुबसूरत भाग्य... मुझ आत्मा का होगा.... यह तो कल्पनाओ में भी न था... इन मीठी यादो में खोयी खोयी मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में... अपनी ब्रह्मा माँ और शिव पिता से मिलने पहुंचती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रूहानी सर्जन बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा से जो प्यार और ज्ञान की दौलत पायी है.. उसको पूरे विश्व पर दिल खोल कर बरसाओ... इस धरा से दुखो का नामोनिशान मिटाने वाले मा सुख दाता बनकर मुस्कराओ... *जिन सच्ची खुशियो की मचान पर खिलखिला रहे हो.. इन खुशियां को हर दिल का अधिकार बनाओ.*..

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से पायी असीम खुशियो को अपनी झोली में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... *आपने मेरा हाथ थामकर मुझे सुखो का सरताज बना दिया है.*. मेरी रूहानी रंगत पर विश्व फ़िदा हो गया है... मै आत्मा सुखो का पर्याय बनकर, हर दिल को सुख भरा रास्ता दिखाने वाली, रौशनी बन गयी हूँ..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अखूट खजानो के मालिक बनाते हुए कहते है :- "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... *ईश्वरीय खुशियो को जितना बांटोगे, उतना धनवान् बन मुस्कराओगे..*. यह ज्ञान धन अखूट है... इसलिए रूहानी सर्जन और प्रोफेसर बनकर, सबको इस रूहानी पढ़ाई से वाकिफ कराओ... सत्य का परिचय देने वाले सच्चे सत्यवान बन मुस्कराओ...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान रत्नों को पाकर कर खुशियो में झूम कर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... सच्चे ज्ञान से कोसो दूर मै आत्मा... कितनी अनपढ सी थी... *आज आपने तीनो लोको का ज्ञान देकर... मुझे प्रोफेसर और सर्जन बना दिया है..* मुझे कुछ भी नही से उठाकर, सब कुछ बना दिया है...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को रूहानी ज्ञान का प्रतिनिधि बनाते हुए कहते है :- "जो कार्य मीठे बाबा ने किया है वही कर्तव्य आप बच्चों का है... *सबको सत्य का परिचय देकर, सच्चे सुखो की अमीरी से भरपूर करो.*.. मीठे बाबा जैसा हर दिल का कल्याण कर... असीम दुआओ और पुण्यो का खाता बढ़ाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे मीठे बाबा को बड़े स्नेह से निहारते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने विश्व कल्याणकारी बनाकर, मुझे कितना ऊँचा उठा दिया है... *मै आत्मा खुशियो की सौगात लिए, हर दिल आँगन को भरती जा रही हूँ..*. भगवान धरा पर अखूट खजाने बाँट रहा है..यह खबर पूरे विश्व में फैला रही हूँ..."अपने प्यारे बाबा से रुहरिहानं कर मै आत्मा... सृस्टि जगत में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नष्टोमोहा बन एक बाप से बुद्धियोग रखना*"

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया से डिटैच हो कर, अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं को देख रही हूं। इस देह से उपराम, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान मैं एक चमकती हुई मणि हूँ। *अपने इस वास्तविक स्वरूप में स्थित होते ही मैं स्वयं को लगावमुक्त अनुभव कर रही हूं। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु से जैसे मैं अनासक्त हो गई हूँ*। संसार के किसी भी पदार्थ में मुझे कोई आसक्ति नही। इस नश्वर संसार से अनासक्त होते ही एक बहुत प्यारी और हल्की स्थिति का अनुभव मैं कर रही हूं। ऐसा लग रहा है जैसे देह और देह के सम्बन्धो की रस्सियों ने मुझ आत्मा को बांध रखा था इसलिए मैं उड़ नही पा रही थी लेकिन अब मैं सभी बन्धनों से मुक्त हो गई हूँ।

 

_ ➳  बन्धनमुक्त हो कर अब मैं आत्मा इस देह से निकल कर चली ऊपर की ओर। आकाश के पार मैं पहुंच गई फरिश्तों की दुनिया में। फरिश्तों की इस दुनिया मे पहुंच कर अपने सम्पूर्ण निर्विकारी, सम्पूर्ण पावन फ़रिशता स्वरूप को मैने धारण कर लिया। *अब मैं फ़रिशता देख रहा हूँ स्वयं भगवान अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सम्मुख हैं। उनकी पावन दृष्टि जैसे जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मैं फ़रिशता अति तेजस्वी बनता जा रहा हूँ*। बापदादा की शक्तिशाली किरणे मोती बन कर मेरे ऊपर बरस रही हैं और हर मोती से निकल रही रंग बिरंगी शक्तियों की किरणें मुझे शक्तिशाली बना रही हैं। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे डबल लाइट बना रही है।

 

_ ➳  अपने इसी लाइट माइट स्वरूप में मैं फ़रिशता अब वापिस धरती की ओर लौट रहा हूँ। अब मैं सम्पूर्ण लगावमुक्त हूँ, विरक्त हूँ। संसार के सब प्रलोभनों से ऊपर हूँ। *देह की आकर्षण से मुक्त, देह के सम्बन्धो और देह से जुड़ी सभी इच्छाओं से मुक्त मैं फ़रिशता अब अपनी साकारी देह में प्रवेश कर रहा हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं देह में रहते हुए भी निरन्तर अव्यक्त स्थिति में स्थित हूँ। स्वयं को निरन्तर बापदादा की छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रहा हूँ। *अब मेरे सर्व सम्बन्ध केवल एक बाबा के साथ हैं। मेरे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म में केवल बाबा की याद समाई है*। बाबा की स्वर्णिम किरणों का छत्र निरन्तर मेरे ऊपर रहता है जो मुझे अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति से सदैव भरपूर रखता है।

 

_ ➳  देह में रहते अव्यक्त स्थिति में स्थित होने के कारण अब मैं आत्मा स्वयं को सदा बाबा के साथ अटैच अनुभव करती हूं और उनकी लाइट माइट से स्वयं को हर समय भरपूर करती रहती हूँ। *साकारी देह में रहते हुए सम्पूर्ण नष्टोमोहा बन मैं अपने पिता परमात्मा के स्नेह में निरन्तर समाई रहती हूँ*। देह और देह की दुनिया से अब मेरा कोई रिश्ता नही।

 

_ ➳  बाबा के प्रेम के रंग में रंगी मुझ आत्मा को सिवाय बाबा के और कुछ नजर नही आता। सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुवात करते बाबा, हर संकल्प, हर बोल में बाबा, हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली मैं लवलीन आत्मा बन गई हूं। *मुख से और दिल अब केवल यही निकलता है "दिल के सितार का गाता तार - तार है, बाबा ही संसार मेरा, बाबा ही संसार है"*

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा दृढ़ निश्चय द्वारा फ़र्स्ट डिविजन के भाग्य को निश्चित करती हूं।"*

 

 _ ➳  *दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है*... जैसे मेरे ब्रह्मा बाप फ़र्स्ट नंबर में निश्चित हो गए, ऐसे मुझे भी फ़र्स्ट डिविजन में आना ही है- यह मेरे अंदर दृढ़ निश्चय है... ड्रामा में हर बच्चे को यह गोल्डेन चांस है... मुझ आत्मा का अभ्यास पर अटेंशन है, जिससे मैं आत्मा नंबर आगे ले सकती हूं... इसलिए मैं आत्मा मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करती चलती हूं... साथ के अनुभव को बढ़ाती चल रही हूँ जिससे सब सहज होता जाता है... *जिसके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान बाप है उसके आगे माया पेपर टाइगर है*...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को हीरो पार्टधारी समझ बेहद नाटक में हीरो पार्ट बजाने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं आत्मा इस बेहद के नाटक में हीरो पार्टधारी हूँ... *मुझ आत्मा पर सम्पूर्ण विश्व कल्याण की जिम्मेवारी हैं...* मैं आत्मा परमात्मा से प्राप्त शक्तियों और खुशियों का खजाना सर्व के साथ बाँट... पूरे विश्व में सुख और खुशिया फैलाने के निमित्त हूँ... मैं हीरो पार्टधारी सदा तत्पर  हूँ... क्योकि मैं आदर्श हूँ... पुरे विश्व के सामने एग्जाम्पल हूँ... मैं पूर्वज आत्मा हूँ... *मेरे संकल्पों, बोल, और कर्म का प्रभाव अनेक आत्माओं पर पड़ता है... मेरे श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ बोल और श्रेष्ठ कर्म नई दुनिया स्थापन करने के नींव हैं...* मैं आत्मा आलरॉउंड पार्ट प्ले करने वाली विशेष आत्मा हूँ... इस बेहद ड्रामा में मेरा ऊंच ते ऊंच पार्ट है... मैं ब्राहण आत्मा चोटी हूँ इस विश्व की...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *सबसे सहज है कि पहले स्वयं को झमेले मुक्त करो। दूसरे के पीछे नहीं पड़ो।* ये स्टूडेन्ट ऐसा हैये साथी ऐसा हैये सरकमस्टांश ऐसे हैं- उसको नहीं देखो लेकिन अपने को झमेला मुक्त करो।

➳ _ ➳  जहाँ झमेला हो वहाँ अपने मन को, बुद्धि को किनारे कर लो। आप सोचते हो-ये झमेला पूरा होगा तो बहुत अच्छा हो जायेगा, हमारी सेवा भी अच्छीहमारी अवस्था भी अच्छी हो जायेगी। लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं। *क्या पहाड़ से माथा टकराना हैपहाड़ हटेगा क्यास्वयं किनारा कर लो या उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ।* तो पहाड़ भी आपको एकदम सहज अनुभव होगा।

➳ _ ➳  मुझे बनना है। अमृतवेले से ये स्वयं से संकल्प करो कि मुझे झमेला मुक्त बनना है। बाकी तो है ही झमेलों की दुनियाझमेले तो आयेंगे ही। आपकी दुनिया आपका सेवाकेन्द्र है तो आपकी दुनिया ही वो हैतो वहाँ ही आयेंगे ना। आप पेपर देने के लिए अमेरिका, लण्डन जायेंगी क्या? सेन्टर पर ही देंगी ना! *तो झमेला नहीं आवे- यह नहीं सोचो। झमेला मुक्त बनना है-ये सोचो।*

✺   *ड्रिल :-  "झमेला मुक्त बनना"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपनी शांत स्वरूप स्थिति में मीठे बाबा की यादों में खोई हुई हूं... तभी मुझे बाबा के यह महावाक्य स्मृति में आते हैं कि *"जैसे विश्व ड्रामा को मैं साक्षी होकर देखता हूं वैसे ही तुम भी देखो"...* यह स्मृति आते ही मेरे मानस पटल पर विश्व ड्रामा  के सीन उभरने लगते हैं... सहज रुप से एक के बाद एक सीन आता है और चला जाता है... *मैं आत्मा पूर्णत: डिटैच होकर हर सीन को देख रही हूं...*

➳ _ ➳  *इस साक्षी स्थिति में मैं क्या, क्यों के सभी प्रश्नों से मुक्त हूँ... प्रसन्नचित्त अवस्था में हूँ... मेरा मानस अब शांत होता जा रहा है...* इस सुखदाई, आनंदमई स्थिति में मैं अपने प्यारे शिव बाबा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा से अनंत शक्तियां मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण नष्ट होते जा रहे हैं...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा स्वयं को सभी विकारों और विकृतियों की मैल से मुक्त देख रही हूं... *मैं परदर्शन और परचिंतन की धूल से मुक्त होती जा रही हूं... सभी प्रकार के झमेलों से स्वयं को न्यारा करती जा रही हूं...* मुझ आत्मा में स्वचिंतन और परमात्म चिंतन की लगन बढ़ती जा रही है... स्वदर्शन चक्र फ़िराते हुए माया के बंधनों से मैं मुक्त होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  मैं आत्मा अब उड़ती कला का अनुभव कर रही हूं... *परिस्थितियों रूपी पहाड़ों से टकराने में अपना समय गंवाने की बजाय स्वयं को मोल्ड, स्वयं को परिवर्तित करती जा रही हूं...* कोई बदले फिर मैं बदलू ऐसे झमेलों से मुक्त होकर एक बाबा की लगन में मगन होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  सेवा केंद्र हो या कार्यक्षेत्र जो भी बातें आती हैं, विघ्न आते हैं... उन सभी विघ्नों को मैं एक बाबा की याद में रहकर पार करती जा रही हूं... हर पेपर को बाबा की याद में रह क्रॉस करती जा रही हूं... परिस्थितियां तो आनी ही है... *विघ्न ना आए इस व्यर्थ चिंतन में समय को नष्ट ना कर मैं आत्मा अपने को सर्व झमेलों से मुक्त करती जा रही हूं...* बाबा की शक्तियों और गुणों से मैं स्वयं को संपन्न अनुभव कर रही हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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