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❍ 21 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *फर्स्ट क्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम बाला किया ?*
➢➢ *कोई गुस्सा करे, गाली दे तो भी मुस्कुराते रहे ?*
➢➢ *श्रीमत पर पूरा पूरा ट्रस्टी बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *शुद्ध संकल्प और श्रेष्ठ संग द्वारा हलके बन ख़ुशी की डांस की ?*
➢➢ *सहजयोगी जीवन व्यतीत किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ बाप क्वेचन भी सुना रहे हैं, टाइम भी बता रहे है, फिर भी देखो कितने नम्बर बन जाते हैं। कहाँ 8 दाने का पहला नम्बर और कहाँ 16,000 का लास्ट नम्बर! कितना फर्क हुआ! क्वेचन सेकण्ड का वही होगा - *पहले नम्बर के लिए भी तो 16,000 के लास्ट नम्बर वाले के लिए भी क्वेचन एक ही होगा।*
〰✧ और कितने समय से सुना रहे हैं? तो सभी नम्बरवन आने चाहिए ना। इसी को ही अपने यादगार में ‘नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप' कहा है। बस, *सेकण्ड में मेरा बाबा दूसरा न कोई।* इस सोचने में भी समय लगता है लेकिन टिक जाएँ हिले नहीं। यह भी नहीं - सेकण्ड तो हो गया, *यह सोचा तो भी फेल हो जायेंगे।*
〰✧ कई बार जो पेपर देते हैं, वह इसी बात में ही फेल हो जाते हैं। क्वेचन पर जो लिखा हुआ होता है कि यह क्वेचन 5 मिनट का, यह 10 मिनट का, तो यही देखते हैं कि 5 मिनट, 10 मिनट हो तो नहीं गया। *समय को देखते, क्वेचन का उतर देना भूल जाते हैं।* तो यह अभ्यास चलते-फिरते, बीच-बीच मे करते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मणों को देवताओ से भी ज्यास्ती रायल्टी से चलना"*
➳ _ ➳ जीवन में जब भाग्य ने भगवान को प्रकट नही किया था... यह जीवन कितना बोझिल और अंधकार से भरा लक्ष्य हीन था.... अपने दुःख भरे अतीत की तुलना में, सुंदर सजीले वर्तमान को देख.... मै आत्मा *मेरे जीवन को यूँ सुंदरता के रंगो से सजाने वाले... जादूगर बाबा की यादो में खो जाती हूँ..*. प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में रंगकर, मुझ आत्मा को शिखर पर सजा दिया है... *शिव पिता और ब्रह्मा मां के आँगन में खिलने वाला खुबसूरत गुलाब मै आत्मा.*.. ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर गुणो... और शक्तियो की पंखुड़ियों से खिली मै आत्मा... पूरे विश्व को अपनी रूहानियत की खशबू सराबोर कर रही हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य के नशे में डुबोते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे.... *परमधाम से भगवान ने आकर, आप महान बच्चों को अपनी आँखों का तारा बनाया है.*.. दुखो के कंटीले जंगल से बाहर निकाल, सुख भरी गोद में बिठाया है... निराकार और साकारी पिता की अनूठी पालना में पलने वाले सोभाग्यशाली हो... सदा इसी रायल्टी में रहो... क्योकि ऐसा प्यारा भाग्य तो देवताओ का भी नही है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वरीय पालना में सजे संवरे अपने महान भाग्य को देख पुलकित होते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे प्यारे बाबा... *मुझ आत्मा ने स्वयं भगवान को पा लिया है इससे प्यारी बात भला और क्या होगी.*.. आपने मेरे कौड़ी जेसे जीवन को, हीरे जैसा बेशकीमती बना दिया है... मै आत्मा असीम सुखो की अनुभूतियों से भर गयी हूँ... अलौकिक और पारलौकिक पिता को पाने वाली... देवताओ से भी ज्यादा भाग्यशाली हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य ज्ञान से भरपूर करते हुए, और अपने सच्चे प्रेम की तरंगो से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय प्यार को पाकर, जो विकारो के काँटों से, दिव्य गुणो के फूल में परिवर्तित हुए हो... इन मीठी स्मर्तियो में सदा झूमते रहो... *अपनी रूहानियत भरी चाल से निराकार और साकार पिता की झलक... सारे विश्व को दिखाकर, सबको ईश्वरीय प्यार का दीवाना बनाओ*...
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य ज्ञान निधि से मन बुद्धि को शक्तिशाली बनते देख कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपके बिना तो मै आत्मा इस विकारी दुनिया में अनाथो जैसा भटक रही थी... खुशियो के लिए सदा तरसती ही रही... आपने प्यारे बाबा मुझे पिता का प्यार देकर फिर से सनाथ बना दिया है... *ब्रह्मा अलौकिक पिता संग निराकारी पालना ने मुझे हीरों सा सजा दिया है*...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने स्नेहिल आगोश में लेते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... आप देवताओ से भी ज्यादा खुशनसीब हो जो... भगवान के साये में सम्मुख बेठ, तीनो लोको और कालो को जान गए हो... *निराकार और साकार दोनों का प्यार पाने वाले, देवताओ से भी ऊँचे भाग्य के धनी हो.*.. सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के स्नेह में डूबी, अपने भाग्य पर मुस्कराते हुए कहती हूँ :-"मीठे दुलारे मेरे बाबा... आपने आकर जीवन को मीठी बहारो सा सजाया है... मुझे देवताओ से भी ऊँच बनाकर, अपने गले लगाया है... वरदानों भरा हाथ मेरे सिर पर रखकर... मुझे सबसे खुशनसीब बनाया है... *ब्रह्मा मा के आँचल में और शिव पिता की छत्रछाया में पलने वाली मै आत्मा महानता से सज गयी हूँ..*. प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं करके मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम बाला करना*"
➳ _ ➳ आप समान अति मीठा बनाने वाले, मेरे अति मीठे शिव बाबा की मीठी याद मेरे अंदर एक ऐसी मिठास घोल देती है जिसमे विकारों की कड़वाहट घुलने लगती है। *अपने ऐसे अति मीठे बाबा की मीठी याद में बैठी मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ परमधाम से सीधे अपने ऊपर गिरती उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों के मीठे झरने के नीचे स्वयं को अनुभव करती हूँ*। सातों गुणों की रंग बिरंगी किरणों का यह मधुर झरना मेरे तन - मन को शीतलता प्रदान कर रहा है। शीतलता की इसी गहन अनुभूति के बीच मैं अनुभव करती हूँ कि मुझ आत्मा को अपनी शीतल किरणों से शीतल बनाने वाले मेरे फर्स्टक्लास मीठे बाबा जैसे परमधाम से नीचे मेरे पास आ रहें हैं।
➳ _ ➳ उनकी उपस्थिति से उनकी समीपता का एहसास मुझे स्पष्ट अनुभव होने लगा है। अपने सिर के बिल्कुल ऊपर मुझे उनकी छत्रछाया की अनुभूति हो रही है। मेरे पूरे कमरे में जैसे शीतलता की मीठी लहर दौड़ रही है। पूरे घर मे मेरे मीठे शिव बाबा के शक्तिशाली वायब्रेशन फैल रहें हैं। *एक अति मीठी सुखदाई स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। यह स्थिति मुझे देह और देह के झूठे भान से मुक्त कर, लाइट माइट स्वरूप का अनुभव करवा रही है*। धीरे - धीरे मैं इस साकारी देह के बंधन से स्वयं को मुक्त कर अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर रही हूँ।
➳ _ ➳ मेरा यह लाइट का फ़रिशता स्वरूप मुझे धरती के आकर्षण से मुक्त कर, ऊपर की ओर ले जा रहा है। मैं स्वयं को धरती से ऊपर उड़ता हुआ अनुभव कर रहा हूँ। छत को पार करते हुए अब मैं खुले आकाश के नीचे पूरी दुनिया मे विचरण कर रहा हूँ। धीरे - धीरे अब मैं आकाश को भी पार करता हुआ लाइट की सूक्ष्म आकारी फरिश्तो की दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ। इस अति सुन्दर फरिश्तो की दुनिया मे विचरण करता हुआ अब मैं स्वय को अव्यक्त ब्रह्मा बाप के सामने देख रहा हूँ। *फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम बाला करने वाले अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के सामने बैठ मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करता हूँ कि मुझे भी ब्रह्मा बाप समान फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम अवश्य बाला करना है*।
➳ _ ➳ इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमें भरने के लिए अब परमधाम से मेरे अति मीठे शिव बाबा फरिश्तों की इस दुनिया मे प्रवेश करते हैं और आ कर ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं। *बाप दादा अपने वरदानी हस्तों से अब मुझे विजयी भव का वरदान देते हुए, अपनी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर प्रवाहित करते हुए मुझ आत्मा में बल भर रहें हैं ताकि कदम - कदम पर फॉलो फादर कर, अपने शिव बाबा का नाम मैं बाला कर सकूँ*। बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि से मेरे पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और उसके स्थान पर फर्स्टक्लास मीठा और बहुत - बहुत रॉयल बनने के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं।
➳ _ ➳ आसुरी संस्कारों का त्याग कर इन दैवी संस्कारों को ही अब मुझे अपने जीवन में धारण करने का पुरुषार्थ करना है, इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने लाइट माइट स्वरूप को अपने ब्राह्मण स्वरूप में मर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण जीवन के नियमो और मर्यादाओं पर चलते हुए अब मैं हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो कर रही हूँ। *अपने मीठे शिव बाबा की श्रीमत पर कदम - कदम चलते हुए अब मैं आसुरी अवगुणों का त्याग करती जा रही हूँ। मेरे मुख से अब किसी भी आत्मा को दुख देने वाले कड़वे बोल नही निकलते। बाप समान सबको सुख देने वाले मीठे बोल ही अपने मुख से बोलते हुए अब मैं सबके जीवन को खुशियों की मिठास से भर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा शुद्ध संकल्प और श्रेष्ठ संग द्वारा हलकी बन ख़ुशी की डांस करती हूँ।”*
➳ _ ➳ ज्ञान के सागर के तले में जाने वाली और ज्ञान रत्नों से खेलने वाली मैं भाग्यशाली ब्राह्मण आत्मा हूँ… मुझ *ब्राह्मण आत्मा के लिए रोज़ की मुरली ही शुद्ध संकल्प हैं... कितने शुद्ध संकल्प बाप द्वारा रोज़ सवेरे-सवेरे मिलते हैं… इन्हीं शुद्ध संकल्पों में मैं आत्मा बुद्धि को बिजी रखती हूँ… और सदा बाप के संग में रहती हूँ*…साथ साथ हल्के बन खुशी में डांस करते रहती हूँ… खुश रहने का सहज साधन है-सदा हल्के रहना… *शुद्ध संकल्प हल्के हैं... और व्यर्थ संकल्प भारी है... इसलिए मैं आत्मा सदा शुद्ध संकल्पों में बिजी रह हल्के रहती... और खुशी की डांस करती रहती हूँ… इन गुणों को धारण करने वाली मैं आत्मा अलौकिक फरिश्ता हूँ*...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- परमात्म प्यार की पालना का स्वरूप ही सहजयोगी जीवन का अनुभव कराता है"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सदा स्वयं को परमात्मा के प्यार और स्नेह की दुआओं में पलता हुआ अनुभव करती हूँ*... बाबा का मुझ आत्मा से सर्व सम्बन्धों का स्नेह है... *बाबा ही मेरा संसार है... एक बाप दूसरा न कोई*... परमात्म प्यार की पालना के स्वरूप में स्थित... मैं सहजयोगी आत्मा हूँ... *परमात्म प्यार ने मुझ आत्मा के जीवन को सहज बना दिया है... बाबा से समीप का सम्बंध अनुभव होता जा रहा है*... मेहनत समाप्त होती जा रही है... कुछ भी मुश्किल नही लगता... *बाप का साथ ही मुझ आत्मा को मेहनत कम और प्राप्ति ज्यादा करा रहा है*...अनेक विस्तार को छोड़ सार स्वरूप एक बाप... यह अनुभव कितनी खुशी मुझ आत्मा को करा रहा है...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है। ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ। मेरा निजी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो। वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया। पराये माल को अपना बना लिया। अब बाप के खजाने को अपना बनाओ। *रावण की चीज को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है?* कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है।
➳ _ ➳ जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं - बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है। बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज्यादा। *बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं। फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है - कि दिल से अगर एक बार भी 'मेरा बाबा' बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला 'मेरा बाबा', तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो।* ले तो जाना ही है। सिर्फ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सजनी बनकर चलना।
✺ *ड्रिल :- "रावण की जायदाद को छोड़ बाप की जायदाद को सम्भालना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक बहुत ही सुंदर बगीचे में बैठी हूं... जहां रंग बिरंगे फूल खिल रहे हैं... और फूलों पर तितलियां मंडरा रही है... और आस-पास बहुत ही मनमोहक हरियाली हो रही है... और इस हरियाली में अनेक तरह तरह के पक्षी चहचहा रहे हैं... मैं आत्मा एक स्थान पर बैठकर यह सारा नजारा अपने इन स्थूल नेत्रों से देख रही हूं...* और देख रही हूं कुछ पक्षी आपस में लड़ रहे हैं... और कभी कभी आपस में प्रेम कर रहे हैं... उनका लड़ना झगड़ना देखकर मैं अब अपनी दृष्टि तितलियों पर डालती हूँ... तितली जिस फूल पर बैठी है उस फूल में से एक भंवरा बाहर निकल कर उस तितली को कस के पकड़ना चाह रहा है... और तितली उसके कसके पकड़ने से बहुत ही तड़प रही है...
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं देखती हूं... कि वह भंवरा तितली को तड़पता हुआ देखकर छोड़ देता है... और तितली फर से उड़ जाती है... यह प्रक्रिया वह भंवरा बार बार दोहरा रहा है... पर तितली बार-बार उड़ जाती है... फिर मैं देखती हूँ की वह भंवरा शांत स्वरुप स्थिति में आराम से उस फूल पर बड़े स्नेह से बैठ जाता है... और जब वह तितली आती है तो उसे छूने की कोशिश करता है... उस तितली को भँवरे के स्नेह का आभास होता है... और वह आराम से उस फूल पर बैठकर फूलों से रस निकालती है... यह दृश्य देखकर मुझे आभास होता है कि *जब भँवरे के रावण के संस्कार थे तो तितली उससे दूर भाग रही थी... और जब वह अपने स्वधर्म में आया तो तितली उधर ही बैठ गयी...*
➳ _ ➳ और मेरे अंतर्मन को आभास होता है... कि *मेरे अंदर जो पुराने संस्कार हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार अगर इनके अंश भी है तो धीरे-धीरे इनका वंश बनने में समय नहीं लगेगा... और यह जो पुराने संस्कार है वह मेरे अपने संस्कार नहीं है... वह रावण के संस्कार हैं...* रावण की मत पर चलकर मैंने इतने समय से सिर्फ अपने साथ और अन्य आत्माओं के साथ गलत कर्म ही किए हैं... और इन कर्मों के कारण मेरा विकर्मो का खाता बढ़ता ही जा रहा है... और तभी मुझे आभास होता है कि मुझे अब इन रावण के अंश विकारों का भी अपने मन बुद्धि से त्याग करना होगा...
➳ _ ➳ और यह विचार करते मैं आत्मा अब अपने मन बुद्धि से अपने आप को फरिश्ता स्वरुप में अनुभव करती हूं... और परमात्मा को अपने साथ ज्योतिर्बिन्दु रूप में अनुभव करती हूँ... और फील करती हूं मेरा पूरा शरीर सफेद किरणों से जगमगा रहा है... औऱ अनुभव करती हूँ... की *परमात्मा मुझमें अद्भुत शक्ति भर रहे हैं... शक्तियों का झरना मुझपर कुछ तरह से गिरता है कि मुझे प्रतीत होता है मानों स्वयं मेरे बाबा मुझमें नये संस्कार भर रहे हो... और जैसे जैसे ये झरनों रूपी संस्कार मुझमें भरते हैं... मेरे पुराने संस्कार पानी के रूप में मेरे शरीर से निकलकर बहते जा रहे हैं... और अब मैं आत्मा एकदम पवित्र और हल्की बन गई हूं...* अब मुझ आत्मा में सहनशक्ति के साथ साथ शांति की शक्ति का समावेश हो गया है... इस शांत और ऊंची स्थिति का मैं गहराई से आनंद ले रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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