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❍ 12 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आत्माओं को घर का रास्ता बताया ?*
➢➢ *ट्रस्टी होकर सब कुछ संभाला ?*
➢➢ *रहम की भावना इमर्ज कर दुःख दर्द की दुनिया परिवर्तित करने की सेवा की ?*
➢➢ *ज्ञान और योग के दोनों पंख मज़बूत बना उडती कला का अनुभव किया ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *जैसे अन्य आत्माओ को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो।* लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की, ट्रस्टीपन की स्मृति, सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना रखो। *हद में नहीं आओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं निर्बन्धन आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को निर्बन्धन आत्मा महसूस करते हो? किसी भी प्रकार का बन्धन तो नहीं महसूस करते? *नालेजफुल की शक्ति से बन्धनों को खत्म नहीं कर सकते हो? नालेज में लाइट और माइट दोनो हैं ना।* नालेजफुल बन्धन में कैसे रह सकते हैं?
〰✧ *जैसे दिन और रात इक्ठ्ठा नहीं रह सकते, वैसे मास्टर नालेजफुल और बन्धन, यह दोनों इक्ठ्ठा कैसे हो सकते?* नालेजफुल अर्थात् निर्बन्धन। बीती सो बीती। जब नया जन्म हो गया तो पास्ट के संस्कार अभी क्यों इमर्ज करते हो?
〰✧ जब ब्रह्माकुमारकुमारी बन गये तो बन्धन कैसे हो सकता? ब्रहमा बाप निर्बन्धन है तो बच्चे बन्धन में कैसे रह सकते? *इसलिए सदा यह स्मृति में रखो कि हम मास्टर नालेजफुल हैं। तो जैसा बाप वैसे बच्चे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी को फील हो कि बस हमको भी अभी वैराग्य वृति में जाना है। अच्छा समझा क्या करना है? सहज है या मुश्किल है? थोडा-थोडा आकर्षण तो होगी या नहीं? साधन अपने तरफ नहीं खींचेंगे? *अभी अभ्यास चाहिए - जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसा चाहिए - वहाँ स्थिति को सेकण्ड में सेट कर सके।*
〰✧ सेवा में आना है तो सेवा में आये। सेवा से न्यारे हो जाना है तो न्यारे हो जाएँ। ऐसे नहीं, सेवा हमको खींचे। सेवा के बिना रह नहीं सके। *जब चाहें, जैसे चाहें, विल पॉवर चाहिए।* विल पॉवर है? स्टॉप तो स्टॉप हो जाए।
〰✧ *ऐसे नहीं लगाओ स्टॉप और हो जाए क्वेचन मार्क।* फुलस्टॉप स्टॉप भी नहीं फुलस्टॉप जो चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकें। चाहते हैं लेकिन होना मुश्किल है तो इसको क्या कहेंगे? विल पॉवर है कि पॉवर है? संकल्प किया - व्यर्थ समाप्त, तो सकण्ड में समाप्त हो जाए।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही अभिमानी बन याद से विकर्म विनाश करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ जाती हूँ...* और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... प्यारे बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के नैनों से जादुई किरणें निकलकर मुझ पर पड रही हैं... *बाबा की इन जादुई किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो गया है और मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ...* प्यारे बाबा मुझे अपने साथ बाहर लेकर जाते हैं और झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हुए प्यार भरी बातें करते हैं...
❉ *प्यारे बाबा अपनी प्यार भरी मुस्कान से मुझ आत्मा को निहाल करते हुए कहते है:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गई... अब *मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो...* अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देहभान से मुक्त होकर देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा *मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा मेरा सतरंगी श्रृंगार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैलेपन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... *अब अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुन्दर कमल फूल समान खिलकर अपनी रंगत चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ...”*
❉ *मेरे बाबा मुझ आत्मा के 63 जन्मों के विकर्मों को भस्म कर सच्चा सोना बनाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते चले जाओगे... *देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते चले जायेंगे... और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे...* पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...”
➳ _ ➳ *मैं देही अभिमानी आत्मा देह के सर्व बन्धनों से मुक्त होकर खुशियों के गीत गाती हुई कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... *और शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ...”*
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ट्रस्टी हो कर सब कुछ सम्भालना है*"
➳ _ ➳ अपने सभी बोझ बाबा को देकर, लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा का आह्वान कर, बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के बाद, मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद में जैसे ही बैठती हूँ* मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए, अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।
➳ _ ➳ हर बोझ से मुक्त, हर गम से अनजान सुंदर, सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। *अपनी पलको को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है*। संगमयुग पर परमात्म गोद मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है, तो *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे बोझ ले कर, अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा है*।
➳ _ ➳ स्वयं से बातें करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती, अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर, विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *देह से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है*। ऐसे ही आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ*।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ*। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर करते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करवाती है। *ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते, हर पल, हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं रहम की भावना को इमर्ज कर दुःख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने वाली मास्टर मर्सिफुल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ज्ञान और योग के दोनों पंख मजबूत कर उड़ती कला का अनुभव करने वाली डबललाइट फरिश्ता आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ऐसा कभी भी नहीं सुना होगा कि बाप का जन्म-दिन भी वही और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही। यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज आप मना रहे हो।* साथ-साथ सभी को यह भी न्यारा और प्यारा-पन स्मृति में है कि *यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है जो स्वयं भगवान बाप बच्चों का मना रहे हैं। परम आत्मा बच्चों का, श्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं।* दुनिया में कहने मात्र कई लोग कहते हैं कि हमको पैदा करने वाला भगवान है, परम-आत्मा है। परन्तु न जानते हैं, न उसी स्मृति में चलते हैं। आप सभी अनुभव से कहते हो - हम परमात्म-वंशी हैं, ब्रह्मा-वंशी हैं। *परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं। हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं।*
✺ *ड्रिल :- "परमात्मा द्वारा अपना अलौकिक जन्म दिवस मनाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *वाह मैं पद्मापदम भाग्यशाली आत्मा... जो स्वयं भाग्य विधाता परमात्मा... मेरा जन्म-दिवस मनाते हैं... ऐसा भाग्य मुझ आत्मा को सिर्फ... संगमयुग पर ही प्राप्त होता है...* इस संगम युग पर बाबा अकेले नहीं आते हैं... बच्चों के साथ ही आते हैं... क्यूँकि बाबा इस संगम युग पर... यज्ञ रचते हैं... और यज्ञ में ब्राह्मण आहूति डालते हैं... और हम बच्चें वही कल्प वाले ब्राह्मण है... *वाह मैं आत्मा अपना अलौकिक जन्म-दिवस... स्वयं परमात्मा के साथ मना रही हूँ... यह जयंती सब जयंतियों से वंडरफुल है... सारे कल्प में... यही एक जयंती है... जो बाप और बच्चों का साथ में जन्म होता है... इसलिए इस जयंती को हीरे तुल्य कहा गया है...*
➳ _ ➳ *मुझ आत्मा के इस अलौकिक जन्म-दिवस पर... परमात्मा मुझ आत्मा को मुबारक देते हैं... और मैं आत्मा अपने परमपिता को मुबारक देती हूँ...* बाबा ने कहा है... बच्चे साथ रहेंगे... साथ उड़ेंगे... साथ आएंगे और... ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करेंगे... साथ रहने का वादा है... मैं आत्मा भी कहती हूँ... *जहां बाप वहाँ साथ - साथ रहूँगी... यह है मुझ आत्मा का बाप से वादा... और बाप का मुझ आत्मा से वादा... शरीर द्वारा कही भी रहूँ... लेकिन दिल में सदा दिलाराम बाप साथ है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ ही रहती हूँ... अकेले कभी नहीं रहती हूँ... क्योंकि अकेले रहने से माया अपना चांस ले लेगी... और साथ रहने से लाइट - हाउस के आगे माया स्वतः ही भाग जाती है... मुझ आत्मा के नजदीक भी नहीं आती है...* इसीलिए मैं आत्मा सदा बाबा के साथ रहने का वादा निभा रही हूँ... और बाबा भी सदा मेरे साथ रहकर अपना वादा निभा रहे हैं...
➳ _ ➳ *ऐसा कभी भी किसी ने भी नहीं सुना होगा कि... बाप का जन्म-दिन भी वही... और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही... यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज हम बच्चे मना रहे है...* मुझ आत्मा को... यह जन्म-दिवस न्यारा... और प्यारा-पन अनुभव करा रहा है... *यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है... जो स्वयं भगवान बाप... बच्चों का मना रहे हैं...* परम आत्मा बच्चों का... श्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं... दुनिया में सभी आत्माएँ... कहने मात्र कहती हैं कि... हमको पैदा करने वाला भगवान है... परम-आत्मा है... परन्तु न उनको जानते हैं... न उनकी स्मृति में चलते हैं... *हम सभी बाप के बच्चें... अनुभव से कहते है - हम परमात्म-वंशी हैं... ब्रह्मा-वंशी हैं... परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं... हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं...*
➳ _ ➳ आज मैं आत्मा अपना जन्म-दिवस... और परमात्मा बाप का जन्म-दिवस साथ-साथ मना रही हूँ... मैं बाप का बर्थडे मना रही हूँ... और बाप मुझ आत्मा का बर्थडे मना रहे हैं... *मैं आत्मा बाप को मुबारक देती हूँ... वाह बाबा वाह... और बाप मुझ आत्मा को मुबारक देते हैं... वाह बच्चे वाह...* आज इस अलौकिक और अनोखे... बाप और बच्चों के जन्म दिवस पर... *मैं आत्मा बाप के सामने... यह संकल्प लेती हूँ कि... सदा एक दो को उमंग - उत्साह दिलाते हुए... सहयोगी बनूँगी... अपने व्यर्थ संकल्पों के अक के फूल बाप को अर्पण करती हूँ...* अब मैं आत्मा व्यर्थ संकल्प न करती हूँ... न सुनती हूँ... और न संग में आकर... व्यर्थ संकल्पों के संग का रंग लगाती हूँ... क्योंकि *जहाँ व्यर्थ संकल्प होगा... वहाँ याद का संकल्प... ज्ञान के मधुर बोल... जिसको मुरली कहते हैं... वह शुध्द संकल्प स्मृति में नहीं रहेंगे...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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