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 04 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *ड्रामा को साक्षी हो देखा ?*

 

➢➢ *कभी भी अपना रजिस्टर खराब तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *अपनी स्थिति का टेम्परेचर अपने आप देखा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *सम्पन्नता के आधार पर संतुष्टता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *याद और सेवा का डबल लॉक लगाए रखा ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *यज्ञ सेवा के महत्व को समझा ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  आवाज से परे जाने की युक्ति जानते हो? *अशरीरी बनना अर्थात आवाज से परे हो जाना।* शरीर है तो आवाज है। *शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस।* साइलेंस की शक्ति कितनी महान है, इसके अनुभवी हो ना? साइलेंस की शक्ति द्वारा सृष्टि की स्थापना कर रहे हो। *साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना।* तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित है तो *स्वयं साइलेंस रूप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेंगे।* अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता। विश्व में सबसे प्यारे से प्यारी चीज है - 'शान्ति अर्थात साइलेंस।इसके लिए ही बडी-बडी कानफ्रेंस करते हैं। शान्ति प्राप्त करना ही सबका लक्ष्य है। यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। और आप समझते हो *साइलेंसे तो हमारा स्वधर्म' है।* आवाज में आना जितना सहज लगता है उतना सेकण्ड में आवाज से परे जाना - यह अभ्यास है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बेहद लीला रुपी नाटक को जान, हीरो पार्ट बजाना"*

 

_ ➳  चाँदनी रात में नौका विहार करते करते... मै आत्मा चाँद की ओर निहारती हूँ... तो मुझे मेरा प्रियतम चाँद... मीठा बाबा याद आता है... मीठे बाबा की याद आते ही मै आत्मा...फ़रिश्ता बनकर मीठे बाबा के पास उड़ चलती हूँ... वतन में मीठे बाबा को देख मीठी ख़ुशी से भर जाती हूँ... *ईश्वर पिता को पाकर खुबसूरत हो गए अपने जीवन को*... और कभी, अपने सामने साधारण बन कर बेठे, असाधारण भगवान को देख देख... मीठे महान भाग्य के नशे में डूब जाती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से सजाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों को पाकर बेहद के खेल को जान गए हो... यह सुख और दुःख का बहुरूपी नाटक है... *इस नाटक में हीरो पार्ट बजाकर विश्व स्टेज पर मुस्कराना है..*. अज्ञान के अंधेरो से निकल, ज्ञान के प्रकाश में... सुखो भरी दुनिया अपनी तकदीर में सजानी है..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को ख़ुशी में भरकर कहती हूँ :- "प्यारे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो के साये में, अज्ञान के आवरण से निकल कर... सुखो की दुनिया की मालिक बन रही हूँ..*. आपने मुझे जाग्रत कर विकारो की कालिमा से छुड़ा दिया है,.. मै आत्मा दिव्य गुण और पवित्रता से सज संवर कर मुस्करा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को विश्व नाटक के राज समझाते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... *बेहद के नाटक में हीरो का पार्ट अदा कर शान से विश्व धरा पर मुस्कराओ*... ईश्वरीय यादो में इस कदर निखर जाओ कि... हीरो बन कर, नाटक की मुख्य भूमिका अदा करो...  देह की दुनिया और अज्ञान के अंधकार से निकल, सतयुगी सवेरे में खिलखिलाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा से असीम खजाने लेते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा अज्ञान मार्ग पर चलकर, कितनी विकारी और दुखो से भर गयी थी... कभी सोच भी नही सकती थी कि मै हीरो बन मुस्कराऊंगी... *आपने जीवन में आकर मुझे नई उमंगो से भर दिया है.*.. मुझे देवताई लक्ष्य देकर कितना ऊँचा बना दिया है..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सम्पत्ति का वारिस बनाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... *ईश्वर पिता को पाकर, उनकी यादो में गहरे डूबकर, विश्व राज्य अधिकारी बन कर, अथाह सुखो को बाँहों में भरो..*. ज्ञान के प्रकाश में नूरानी बन जाओ... शिव बाबा को पाकर जो ज्ञान खजाने से पाये है.. उस अमीरी से जन्नत के मीठे सुखो का आनन्द लो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे जादूगर बाबा से सुखो की अधिकारी बनकर कहती हूँ :- "सच्चे साथी मेरे बाबा... आपको पाकर मेने अपनी सत्यता को जाना है... और इस सत्यता ने मेरे जीवन को सच्ची खुशियो से सजाया है... अब मै आत्मा *आपकी यादो में पावन बनकर इस बेहद लीला रुपी नाटक में हीरो पार्ट की तैयारी में जुटी हूँ..*.मीठे बाबा से अथाह ज्ञान खजाने लेकर मै आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी बात में संशय ना उठाते हुए ड्रामा को साक्षी हो देखना*"

 

 _ ➳  इस सृष्टि रूपी विशाल रंगमंच पर चलने वाली सीन सीनरियो को देखने की इच्छा से अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फ़रिशता अपने साकारी शरीर से बाहर निकलता हूँ और सृष्टि रूपी भू लोक की सैर करने चल पड़ता हूँ। *धरती के आकर्षण से परे काफी ऊंचाई से मैं फ़रिशता धरती के चारों ओर का नजारा अपनी आंखों से स्पष्ट देख रहा हूँ*। इतनी ऊंचाई से देखने पर भू लोक का नज़ारा ऐसे लग रहा है जैसे मैं कोई बहुत बड़ा मंच देख रहा हूँ, जिस पर कोई ड्रामा अथवा नाटक चल रहा है। इस वैरायटी ड्रामा में वैरायटी एक्टर्स को वैरायटी पार्ट प्ले करते हुए मैं देख रहा हूँ।

 

 _ ➳  कोई गरीब है, कोई अमीर है। कोई दुखी है, कोई सुखी है। कोई हंस रहा है, कोई रो रहा है। कोई अत्याचार कर रहा है, कोई उस अत्याचार को सहने के लिए विवश है। *ये सब दृश्य देख कर मन मे विचार आता है कि सभी एक समान क्यो नही है! क्यो कोई दुखी और कोई सुखी है*! मन मे उठ रही इस दुविधा का हल जानने के लिए मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन अपने बाबा के पास। सूक्ष्म वतन में पहुंचते ही एक विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ सामने एक विशाल पर्दा है जिस पर वो सब सीन चल रही है जो मैं देखते हुए आ रहा था। जिसे देख कर मन मे विचार उठ रहे थे कि ऐसा क्यों? *लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बाबा भी यही सब दृश्य यहाँ बैठ कर स्पष्ट देख रहें है लेकिन बाबा के चेहरे पर कोई दुविधा नही। बल्कि मुस्कराते हुए बाबा हर दृश्य को देख रहें हैं*।

 

 _ ➳  तभी उस पर्दे पर और भी भयानक मंजर दिखाई देता है। कहीं बाढ़ के कारण तबाही का दृश्य, तो कहीं भूकम्प के कारण गिरती हुई बड़ी बड़ी बिल्डिंग, कही बॉम्ब फटने से तबाह होते शहर, कहीं गृह युद्ध। लाशों के ढेर लगे हैं, लोग चीख रहें हैं, चिल्ला रहे हैं लेकिन बाबा के चेहरे पर अभी भी वही गुह्य मुस्कराहट देख कर मैं हैरान हो रहा हूँ। *बाबा मेरे मन की दुविधा जान कर अब मेरे पास आते हैं और मुझ से कहते हैं, बच्चे:- "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर सीन को देखोगे तो कभी कोई संदेह या प्रश्न मन मे पैदा नही होगा"*। अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और मास्टर त्रिकालदर्शी भव का वरदान दे कर, तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक मेरे मस्तक पर लगा कर मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर देते हैं।

 

 _ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप धारण करके, मस्तक पर तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाये अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ और फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रहा हूँ। किन्तु *अब मेरे मन मे कोई संदेह, कोई प्रश्न नही। ड्रामा की हर सीन को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं*। त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर एक्ट को देखने से अब हर एक्ट एक खेल की भांति प्रतीत हो रही है और मनोरंजन का अनुभव हो रहा है।

 

 _ ➳  सृष्टि के आदि, मध्य, अंत के राज को जानने और स्वयं को केवल एक्टर समझ कर पार्ट बजाने से अब मैं हर फिक्र से मुक्त हो, बेफिक्र बादशाह बन जीवन का आनन्द ले रही हूं। *इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूं कि इस विश्व नाटक में कोई किसी का मित्र/शत्रु नही है*। सभी पार्टधारी है और सभी अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रहें हैं इसलिए क्या,क्यो और कैसे के सब सवालों से स्वयं को मुक्त कर, किसी भी बात में संशय ना उठाते हुए साक्षीदृष्टा बन इस सृष्टि ड्रामा में अपना पार्ट बजा रही हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा सम्पन्नता के आधार पर सन्तुष्टता का अनुभव करती हूँ।* 

 

➳ _ ➳  मैं रूहानी रॉयल आत्मा... सदा सम्पन्नता के नशे में रहती संतुष्ट... तृप्त आत्मा हूँ... पूर्वज... विश्वकल्याणकारी... *बापदादा की सर्व खजानों की मैं मालिक आत्मा... कल्पवृक्ष का बीजरूप मैं आत्मा...* सर्व शक्तियों की भरपूरता का अनुभव करती... अकल्याणकारी पर भी कल्याण की और अपकारी पर भी उपकार की शुभ भावना के रंग बिरंगी फूलों से स्वागत करती रहती हूँ... *संतुष्टता का गुण सहयोग में देने वाली मैं रहमदिल आत्मा... अपने दातापन के संस्कारों को उजागर कर रही हूँ...* असंतुष्ट वायुमंडल को संतुष्टता में परिवर्ततित करने वाली मैं संतुष्ट मणि आत्मा हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद और सेवा का डबल लॉक लगा माया को दूर भगाने का अनुभव"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा की छत्रछाया में पलने वाली... सदा याद और सेवा में मग्न रहने वाली... बाप के दिल तख्तनशीन आत्मा हूँ... *बाबा का दिलतख्त और शक्तिशाली याद... मुझ आत्मा को सफलतामूर्त बनाती जा रही है*... शक्तिशाली याद और सेवा में सदा बिजी रह... मैं आत्मा सेफ्टी का डबल लॉक लगा... माया को स्वयं से दूर अनुभव करती जा रही हूँ... शक्तिशाली याद से माया मुझ आत्मा के पास आने से भी डरती है... *याद की भट्टी में रहने से मैं आत्मा माया प्रूफ बनती जा रही हूँ*... याद से ही मुझ आत्मा को... सेवा में सफलता मिलती जा रही है... मेहनत समाप्त होती जा रही है... *याद ओर सेवा मुझ आत्मा को बाप समान सर्वशक्तियों का अनुभव करा रही है*... मैं आत्मा अनुभव करने लगी हूँ... कोई भी परिस्थिति मुझ आत्मा की तीव्रगति को रोक नही सकती... *सेवा में शक्तिशाली याद ही डबल लॉक लगा... माया को दूर भगाने का अनुभव करा रही है*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  एक हैं - आत्माओं को बाप का परिचय दे बाप के वर्से के अधिकारी बनाने के निमित्त सेवाधारी और दूसरे हैं - यज्ञ सेवाधारी। तो इस समय आप सभी यज्ञ सेवा का पार्ट बजाने वाले हो। यज्ञ सेवा का महत्व कितना बड़ा है - उसको अच्छी तरह से जानते हो?  *यज्ञ के एक-एक कणे का कितना महत्व हैएक-एक कणा मुहरों के समान है। अगर कोई एक कणें जितना भी सेवा करते हैं तो मुहरों के समान कमाई जमा हो जाती है। तो सेवा नहीं की लेकिन कमाई जमा की।*

➳ _ ➳  सेवाधारियों को - वर्तमान समय एक तो मधुबन वरदान भूमि में रहने का चांस का भाग्य मिला और दूसरा सदा श्रेष्ठ वातावरण उसका भाग्य और तीसरा सदा कमाई जमा करने का भाग्य। तो कितने प्रकार के भाग्य सेवाधारियों को स्वत: प्राप्त हो जाते हैं। इतने भाग्यवान सेवाधारी आत्मायें समझकर सेवा करते हो? इतना रूहानी नशा स्मृति में रहता है या सेवा करते करते भूल जाते हो?  *सेवाधारी अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी उमंग उल्लास दिलाने के निमित्त बन सकते हैं।*

✺   *"ड्रिल :- यज्ञ सेवा के महत्व को समझना।"*


➳ _ ➳  रंग बिरंगी किरणें मेरे मस्तिष्क से निकलते हुए मैं अपने आपको देख रही हूं... मेरे चारों तरफ सफेद प्रकाश का औरा चमक रहा है... *मैं फरिश्ता रूप में आते हुए अपनी मन बुद्धि में उमंगों के पंख लगा कर उड़ी जा रही हूं... अपने वतन में... मेरे बाबा वतन में मेरा इंतजार कर रहे है... चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश हीरों सी चमकती हुई आत्मा को अपने पास बुला रही है... उनके बीच में मैं अपने आप को देखती हूँ...* और सामने मेरे पास ज्योतिस्वरूप के रुप में अपनी रंग बिरंगी अद्भुत किरणें बिखेरते हुए... मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से नहला रहे हैं... बाबा की इन शक्तियों को अपने अंदर भरते हुए चली आती हूं मैं... सूक्ष्मवतन में... यहां मैं ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा को विराजमान अनुभव करती हूं...

➳ _ ➳  अब मैं अनुभव करती हूं... बापदादा मेरे सामने खड़े होकर मुझे अपनी बाहों में झूला झुलाने को आतुर हो रहे हैं... मैं दौड़कर अपने बाबा के पास जाती हूं... और अपने आपको बापदादा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... बापदादा की बाहों के झूले झूलने पर... मैं अपने आपको इस दुनिया की सबसे शक्तिशाली और भाग्यशाली आत्मा अनुभव करती हूं... मैं फ़रिश्ता स्वरूप  में बापदादा से मिलन मना रही हूं... *बापदादा मुझे अपनी बाहों के झूले झुलाते हुए मुझे अपने शुद्ध कर्मों का और कर्तव्यों का ध्यान दिला रहे है... मेरे बाबा मुझसे कहते हैं... मेरे मीठे बच्चे- तुम्हें ज्ञान रत्नों से सजाकर धनवान बना रहा हूं... तुम्हारा कर्तव्य भी अन्य आत्माओं को ज्ञान रत्नों से सजाना है...* बाबा के इन वाक्यों को सुनकर मेरा मन गदगद हो रहा है...

➳ _ ➳  अब कुछ देर बाद बाबा मुझे अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाते हैं... जहां चारों तरफ सफेद वस्त्र धारण किये हुए आत्माएं फ़रिश्ते की भांति घूम रही है... *मैं उन्हें उनकी सेवा करते बड़े ध्यान से देख रही हूं... और यह अनुभव करती हूं... कि इनका यह महान सौभाग्य है... कि जिन्होंने अपने सेवा का स्थान मधुबन पाया... यहाँ पर ये हर कदमों में पदमों की कमाई जमा कर रहे हैं... हर एक आत्मा श्रीमत की लकीर के अंदर रहकर काम कर रही है... और मैं यह देखती हूं... कि यह आत्माएं ज्ञान रत्नों से सुसज्जित होकर अपने आस पास रहने वाले सभी आत्माओं को ध्यान रखने से सजाने की सेवा कर रही हैं...* उनका यह कर्म मुझे नया संदेश दे रहा है... मैं उसी समय अपने आप से और बाबा से अंदर ही अंदर अपनी मन बुद्धि के तारों से यह वादा करती हूं... कि मैं ब्राह्मण आत्मा अपने आप को अन्य ब्राह्मण आत्माओं के सामने एक सैंपल आत्मा बनकर दिखाऊंगी...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा अपने आप को फूल की कली के अंदर अनुभव करती हूं... और परमात्मा रुपी सूर्य की किरणों से धीरे-धीरे उन फूल की कलियों से बाहर निकलते हुए अनुभव करती हूं... जैसे-जैसे मैं बाहर आती हूं... वैसे ही मुझे उस फूल के सेवा भाव के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि... यह छोटी सी कली परमात्मा रूपी सूर्य की किरणों से नहाकर अपने आपको खिले हुए फूल की भांति बनाकर इस पूरे संसार में पवित्र किरणों रूपी खुशबू फैला रही है... तभी मुझे अपने सामने कुछ फरिश्तों सी घूमती हुई आत्माएं नजर आती है... और मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी आत्माओं से अपनी मन बुद्धि के तारों को जोड़ते हुए कहती हूँ... *हे आत्माओं आप की सेवा इस फूल की भांति है... जो अपने परमपिता से योग लगाकर इस संसार में अन्य आत्माओं को भी इस रुद्र ज्ञान यज्ञ का ज्ञान दे रहे हैं...*

➳ _ ➳  अब मैं बनकर फरिश्ता चली जा रही हूं अन्य आत्माओं की रूहानी सेवा करने... मैं इस पृथ्वी के ऊपर अपने बाबा के साथ बैठी हूं... और इस संसार की सभी आत्माओं को बाबा से पवित्र और शांति की किरणें लेकर देती जा रही हूं... और मैं अनुभव कर रही हूं कि... इस सृष्टि की सभी आत्माएं शांति की अवस्था का आनंद ले रही है... उनको इस स्थिति में देख मुझे गहन शांति का अनुभव होता है... और *मुझे सभी ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी की सेवा के बारे में और गहराई से ज्ञान प्राप्त होता है... और अपने भाग्य का भी स्मरण होता है... मुझे अहसास होता है कि मेरी एक एक कण की सेवा भी मेरी पदमों की कमाई है...* ऐसी भावना को आगे बढ़ाते हुए जुट जाती हूँ... अपनी बेहद की सेवा में...  और परमात्मा की छत्रछाया में...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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