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❍ 15 / 01 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)
➢➢ *"मेरा बाबा , वाह बाबा" - आज दिन भर दिल से यही निकलता रहा ?*
➢➢ *बापदादा से स्नेह और शक्ति दोनों का समान रूप से अनुभव किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)
➢➢ *बापदादा से "बाप समान भव" का वरदान स्वीकार किया ?*
➢➢ *आत्माओं को अपनी सूरत द्वारा ब्रह्मा की मूर्त का अनुभव करवाया ?*
➢➢ *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न विनाशक आत्मा हूँ" - इस स्वमान के स्मृति की सीट पर सेट रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"18 जनवरी जिम्मेदारी के ताजपोशी का दिवस"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... कितना प्यारा दिलकश भाग्य आप बच्चों का है... बापदादा के दिल और नयनों का नूर हो... आपके बिना विश्व में अंधकार सा है... वरदान के बीज से निकले वेरायटी फल हो... बाप समान बनने के वरदान को पाने के इस विशेष दिन... *स्नेह और शक्तियो से भरपूर हो चलो*... समान और समीपता से फ़रिश्ता बन मुस्कराओ
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा इस विशेष दिन आपके वरदानों से भरपूर हो चली हूँ... *ब्रह्मा बाप समान का वरदान पाकर अपने भाग्य पर नाज कर रही हूँ.*... खुशियो के सागर में लहरा रही हूँ... आपके प्यार और शक्तियो में स्वयं को भरपूर कर रही हूँ...
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... ब्रह्मा बाप की तरह तत्वम् के वरदान को प्रत्यक्ष करो... *अपने हर कदम में ब्रह्मा बाप की झलक दिखाओ.*.. शिव शक्ति और शक्ति में शिव समाया हुआ... ऐसी जादू भरी ईश्वरीय अदा विश्व को दिखाओ... संकल्प शक्ति की जादूगरी का विश्व को दीवाना बनाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपकी मीठी यादो में वरदानों को पाकर *ब्रह्मा बाबा की छवि से सारे विश्व को परिचित करा रही हूँ..*. मेरी हर झलक में बापदादा की झलक समायी है... मै आत्मा संकल्पों से पूरे विश्व में ईश्वरीय लहर फैला रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सदा खुशियो के पंख लिए डबल लाइट हो फ़रिश्ता बन उड़ते रहो... अनुभवो की जागीर लिए सदा सहजयोगी हो... हद की इच्छाओ का त्याग कर बेहद के सेवाधारी बन मुस्कराओ... और *सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बन विश्व के मालिक हो* विश्व धरा पर शान से इठलाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्ची ख़ुशी पाकर झूम रही हूँ... *यादो में पुलकित सी निस्वार्थ सेवा के आधार से.*.. सहज ही मायाजीत और विजयी होती जा रही हूँ... ईश्वरीय बाँहों में इतना मीठा प्यारा जीवन पाकर धन्य धन्य हो चली हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सर्व प्राप्ति सम्पन्न हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *भाग्यविधाता, ज्ञानदाता, वरदाता, सुखदाता की संतान* हूँ... मैं आत्मा मन, बुद्धि को एकाग्र कर... इस दुनिया के सर्व आकर्षणों से परे होकर स्वीट साइलेन्स होम में... ज्ञान सूर्य के सम्मुख बैठ जाती हूँ... ज्ञान सूर्य की किरणों से मुझ आत्मा के हद की इच्छायें, हद का आकर्षण ख़त्म होते जा रहे हैं... मुझ आत्मा के मांगने के संस्कार भस्म होते जा रहें हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अल्पकालिक हद की इच्छाओं को छोड़ *बेहद की सेवा का संकल्प* लेती हूँ... सारी हद की व्यर्थ बातें स्वतः समाप्त हो रही हैं... अब मैं आत्मा बेहद की स्मृति स्वरूप बन रहीं हूँ... मैं आत्मा ज्ञान, गुण, शक्तियों के सर्व खजानों से सम्पन्न तृप्त आत्मा बन रही हूँ... अब मैं आत्मा हद की इच्छा के बजाए अच्छा बनने की विधि अपना रहीं हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *हाइएस्ट, रिचेस्ट, लकीएस्ट* इन दी वर्ल्ड हूँ... अब मैं आत्मा सदा प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे और खुशी में स्थित रहती हूँ... सदा अपने भाग्य के गुण गाते रहती हूँ... खुशी के झूले में झूलते रहती हूँ... बेहद के बाप की बनते ही मैं आत्मा बेहद के अविनाशी खजानों की अधिकारी बन गई... मालामाल हो गई...
➳ _ ➳ अच्छा बनने से अब मुझ आत्मा की सभी शुभ इच्छायें स्वतः पूरी हो जाती हैं... मुझ दाता की संतान को अब कुछ भी माँगने की आवश्यकता नहीं है... अब मैं आत्मा लेवता बनने की आदत छोड़ देवता बन रहीं हूँ... अब मैं आत्मा बेगर से मास्टर वरदाता बन गई हूँ... अब मैं आत्मा हद की इच्छाओं का त्याग कर अच्छा बनने की विधि द्वारा *सर्व प्राप्ति सम्पन्न बन गई* हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - याद और निःस्वार्थ सेवा द्वारा मायाजीत बन विजयी बनना"*
➳ _ ➳ सदा बाप की याद और निःस्वार्थ अर्थात् जिसमें कोई स्वार्थ न हो, ऐसी सेवा में बिजी है तो मायाजीत बन विजय रत्न बन जायेंगे। *अनेक बार विजय प्राप्त की है, हम ही कल्प-कल्प की विजय आत्मा है।*
➳ _ ➳ मैं एक बाप की याद में समाई हुई आत्मा हूँ... *बुद्धि में बाबा की याद के सिवाए किसी की याद नही*... मैं आत्मा याद और सेवा में बिजी रहने वाली आत्मा हूँ... मुझ आत्मा की बुद्धि याद और सेवा में बिजी है... तो माया के विघ्न आ नही सकते...
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बाबा की याद में बिजी हूँ तो माया भी किनारा कर लेती है... माया आ ही नही सकती... माया चली जायगी... मैं आत्मा अनुभव करती हूँ... माया भी जानती है... ये मेरा साथी नही है... यही परमात्म याद है... *याद में रहने वाली मुझ आत्मा को कुछ हो नही सकता*...
➳ _ ➳ माया का काम है खेल करना... मैं आत्मा खेल से घबराती नही हूं... खेल को देख आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा सदा इस नशे में रहती हूँ... *अनन्त बार विजय प्राप्त की है*... विजय प्राप्त करना सहज है... मैं कल्प-कल्प की विजय आत्मा हूँ
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की याद से... और निःस्वार्थ सेवा से माया पर जीत पाने वाली विजयी आत्मा हूँ*... बुद्धि बाबा की याद और सेवा में बिजी होगी तो माया का वार हो नही सकता... बुद्धि फ्री होगी तभी माया वार करती है...
➳ _ ➳ बाबा की याद और सेवा मुझ आत्मा को शक्तिशाली अनुभव कराती है... मैं आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव करती जा रही हूँ... *मुझ आत्मा को बाबा के सिवाय और कोई नज़र नही आता*... मैं सदा अपने को परमात्म सेवा में बिजी रखने वाली आत्मा हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *हद की इच्छाओं का त्याग कर अच्छा बनने की विधि द्वारा सर्व प्राप्ति सम्पन्न होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ हद की इच्छाओं का त्याग कर अच्छा बनने की विधि द्वारा सर्व प्राप्ति सम्पन्न होते हैं क्योंकि... जो लोग हद की इच्छायें रखते हैं, उनकी इच्छायें कभी पूरी नहीं होती हैं। *अच्छा बनने वालों की सभी शुभ इच्छायें स्वतः ही पूरी* हो जाती हैं। उन्हें कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है।
❉ इसलिये! हमें हद के दायरे से बहार निकल कर ही इच्छाओं को रखना है। केवल स्वयं की ख़ुशी ही नहीं देखनी चाहिए, *हमें सर्व आत्माओं की ख़ुशियों के विषय में सोचना* है। सब आत्मायें सुखी हो जायें। सर्व आत्माओं का भला हो जाये। अतः हमें अपनी हद की सीमित दुनिया के सुखों को बेहद की दुनिया के सुखों में परिवर्तित कर देना है।
❉ हमें हद की इच्छाओं को त्याग कर,, बाबा के द्वारा प्रदान की गई *श्रीमत रुपी अच्छे बनने की विधि को अपना कर, स्वयं को अच्छा बना लेना* है, अर्थात! हमें अच्छा बनने की विधि के द्वारा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बन जाना है। यदि हम अपनी हद की इच्छाओं को बेहद की इच्छाओं में परिवर्तित कर देंगे, तो! हमारी सर्व इच्छायें स्वतः ही पूरी होती जायेंगी।
❉ अतः हमें अच्छा बनने का सदा ही, लगातार पुरुषार्थ करते रहना है, क्योंकि... हमारी निष्काम भावना के प्रभाव के कारण, *हमें हमारी सारी इच्छायें! अपने आप ही पूरी होती नज़र आयेंगी।* हम दाता के बच्चे हैं, इसलिये! हमें किसी से भी कुछ माँगने की आवश्यकता नहीं हैं।
❉ वैसे भी माँगने से, कभी भी, कुछ भी मिलता नहीं है। मांगना, अर्थात! अपने मन में इच्छा को रखना। अगर बेहद की सेवाओं का संकल्प, बिना हद की इच्छाओं के होगा, तो! हमारा वह संकल्प अवश्य ही पूरा होगा। इसलिये! हमें *हद की इच्छाओं के बजाए, अच्छा बनने की विधि को ही अपनाना है* इस विधि को अपनाने से, हम स्वतः ही सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बन जायेंगे।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *याद और नि:स्वार्थ सेवा द्वारा मायाजीत बनना ही विजयी बनना है... क्यों और कैसे* ?
❉ माया भिन्न भिन्न रॉयल रूप धारण कर हम ब्राह्मणों के जीवन में आती है और मैजोरिटी ब्राह्मण बच्चे माया के रॉयल रूप को पहचान नही पाते और माया से हार खा लेते हैं । किंतु *जो ब्राह्मण बच्चे निरन्तर बाबा की याद में और निस्वार्थ सेवा में स्वयं को बिज़ी रखते हैं* । उनका सामना माया भी नही कर पाती । और वे मायाजीत सिद्धि स्वरूप बन हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते हैं ।
❉ बाबा की याद एक ऐसा सुरक्षा कवच है जो माया के बड़े से बड़े तूफान भी इस सुरक्षा कवच को पार नही कर सकते । जैसे *सीता जब तक लक्ष्मण रेखा के अंदर थी रावण उसका कुछ नही बिगाड़ पाया* । ठीक इसी प्रकार जो बच्चे बाबा के याद रूपी सुरक्षा कवच को धारण किये रहते हैं और निस्वार्थ सेवा में अपना तन - मन - धन सफल करते रहते हैं वे मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न बन जाते हैं ।
❉ याद का बल आत्मा को शक्तिशाली बनाता है और निस्वार्थ सेवा की भावना उमंग उत्साह से भरपूर कर देती है । इसलिए जिनकी मन बुद्धि केवल एक बाप के साथ जुटी रहती है और *जो एवररेडी बन निरन्तर सेवा में लगे रहते हैं* । जिनका हर संकल्प और समय बाबा की याद और सेवा में ही सफल होता है वे अपने उत्साह और शक्ति के बल से हर विघ्न पर जीत प्राप्त कर माया
जीत बनने वाले विजयी रत्न बन जाते हैं ।
❉ भक्ति मार्ग मे गीत गाते हैं " जिसका साथी है भगवान, उसको क्या रोकेगा आंधी और तूफान " अर्थात जिसके साथ स्वयं भगवान हैं, *जो चलते - फिरते हर कर्म करते स्वयं को भगवान की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हैं* और भगवान की याद में मग्न रह, भगवान बाप के मददगार बन दिन रात निस्वार्थ सेवा में लगे रहते हैं । भगवान स्वयं उनका साथी बन उन्हें माया के हर जंजाल से मुक्त कर सफलतामूर्त बना देते हैं ।
❉ गीता में भी महाभारत युद्ध का वर्णन करते हुए स्पष्ट किया गया है कि कौरवों के साथ इतनी बड़ी अक्षोहिणी सेना होते हुए भी पांडव विजयी हुए क्योकि उनके साथ स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे । वो गायन वास्तव में किसी और का नही हम ब्राह्मणों का है क्योंकि हम ही वो पांडव हैं जिनकी युद्ध इस समय माया रावण के साथ हैं । तो *जो सच्चे पांडव बन परमात्मा बाप से प्रीत रखते हैं* । उनकी याद में रहते हुए उनके मददगार बन सेवा में बिजी रहते हैं । वे माया पर जीत पाने वाले विजयी रत्न बन जाते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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