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 31 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"हम पवित्र बन आपके मददगार जरूर बनेंगे" - बाप से यह प्रतिज्ञा की ?*

 

➢➢ *आत्माओं को शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताया ?*

 

➢➢ *सदा रूहानी यात्रा की और कराई ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *प्लेन बुधी बन सेवा के प्लान बना यथार्थ सेवाधारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान दान के साथ साथ गुणदान भी किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  योग को बुद्धियोग कहते हैं तो अगर यह विशेष आधर स्तम्भ अपने अधिकार में नहीं हैं वा कभी हैं, कभी नहीं है, अभीअभी हैं, अभी-अभी नहीं हैं, *तीनों में से एक भी कम अधिकार में हैं तो इससे ही चेक करो कि हम राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे?*

 

✧  *बहुतकाल के राज्य अधिकारी* बनने के संस्कार *बहुतकाल के भविष्य राज्य अधिकारी* बनायंगेे। अगर *कभी अधिकारी, कभी वशीभूत* हो जाते हो तो आधा कल्प अर्थात *पूरा राज्य-भाग्य का अधिकार प्राप्त नहीं कर सकेंगे।*

 

✧  *आधा समय के बाद त्रेतायुगी राजा बन सकते हो,* सारा समय राज्य अधिकारी अर्थात राज्य करने वाले रॉयल फैमिली के समीप सम्बन्ध में नहीं रह सकते। अगर वशीभूत बार-बार होते हो तो संस्कार अधिकारी बनने के नहीं लेकिन राज्य अधिकारियों के राज्य में रहने वाले हैं। वह कौन हो गये? वह हुई प्रजा तो समझा, राजा कौन बनेगा, प्रजा कौन बनेगा?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप से पवित्र बनने की प्रतिज्ञा कर, मददगार बनना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को... पवित्रता की खशबू से सजाकर... कितना प्यारा और मीठा  महकता बना दिया है... मै आत्मा देह की मिटटी में विकारो में कितनी लथपथ थी... और *आज ईश्वरीय यादो का साथ पाकर मेरी कालिमा धुल गयी है*... और मै आत्मा देव तुल्य धवल पवित्र प्रतिमा बनती जा रही हूँ... *मीठे बाबा जादूगर ने अपनी जादुई तरंगो में मुझे कितना निखार दिया है.*.. मेरे लिए इतना सब कुछ सिर्फ... मेरा भगवान ही तो कर सकता था... यह दिल की बात बाबा को बताने मै आत्मा... तपस्या धाम में बाबा को बुलाती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे ज्ञान धन से आबाद करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सच्चे सुखो का आधार सम्पूर्ण पवित्रता है... विकारो भरा मन और बुद्धि सतयुगी दुनिया में कभी जा नही सकते..*. इसलिए मीठे बाबा की यादो में रह विकर्मो को भस्म कर, मन बुद्धि को उजला धवल बनाओ... पवित्र रहने की प्रतिज्ञा को दिल से निभाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में अपने खोये तेज को पुनः पाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे प्यारे बाबा... *आपने मुझ आत्मा को अपनी प्यार भरी बाँहों में लेकर कितना प्यारा और पवित्र बना दिया है..*. मेरे विकारी मन को सुमन बनाकर मुझे सच्चे सुखो के अहसासो से भर दिया है... पवित्रता के सौंदर्य से मुझे निखार दिया है..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को पवित्रता की सुंदरता से सजाकर, दिव्य बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जब घर से चले थे, किस कदर खुबसूरत और पवित्र थे... देह के भान में आकर कितने पतित और मटमैले हो गए... *अब पुनः पवित्रता को अपने दामन में सजा लो और अपनी पवित्रता से मीठे बाबा के मददगार बनो..*. विकारो रहित सुंदर दिव्य दुनिया बनाने में, मीठे बाबा की मदद करने वाले महा भाग्यवान बनो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के गुण और शक्तियो को स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने मुझे सत्य ज्ञान देकर, पवित्रता और दिव्य गुणो से सजाकर, असीम खुशियो का मालिक बना दिया है.*.. मै आत्मा अपने पिता की मददगार बनकर, कितने प्यारे भाग्य की मालकिन बन गयी हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरी पवित्रता की प्रतिज्ञा को याद दिलाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे :- "ईश्वर पिता का श्रीमत रुपी हाथ पकड़कर पावन बनकर मुस्कराओ... *पावनता से सजधज कर... सतयुगी दुनिया को बनाने में मीठे बाबा का हाथ बंटाओ.*.. सच्चे सुखो से भरी खुबसूरत दुनिया बनाकर, विश्व के मालिक बन मुस्कराओ...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से अपनी खोयी पावनता को पाकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे मेरे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार को पाने वाली महाभाग्यवान हूँ... आपकी यादो की छत्रछाया में कितनी सुंदर और पावन बनकर, सुखो की दुनिया बनाने में सहयोगी बन रही हूँ... *पवित्रता से सज संवर कर, अथाह खुशियो से सजी दुनिया को बाँहों में भर रही हूँ.*.."मीठे बाबा से दिल से पावन बनने की प्रतिज्ञा कर मै आत्मा... स्थूल जगत में आ गयी..."

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- काँटे से फूल बन सबको फूल बनाना और सबको शान्ति धाम, सुख धाम का रास्ता बताना।*"

 

_ ➳  इस काँटो के जंगल (दुखधाम) को फूलों का बगीचा (सुखधाम) बनाने का जो कर्तव्य करने के लिए परमपिता परमात्मा शिव बाबा इस धरा पर अवतरित हुए है उस कार्य में उनका मददगार बनने के लिए मुझे काँटे से फूल बन सबको फूल बनाने का पुरुषार्थ अवश्य करना है और सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताना है। मन ही मन अपने आपसे यह प्रतिज्ञा करते हुए अपने दिलाराम बागवान बाप की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ। *प्रभु यादों की डोली में बैठ अव्यक्त फ़रिशता बन इस साकारी दुनिया और दुनियावी सम्बन्धो से किनारा कर मैं चल पड़ती हूँ उस अव्यक्त वतन में जहां मेरे दिलाराम बाबा मेरे आने की राह में पलके बिछाए बैठे हैं*।

 

_ ➳  वतन में पहुंच कर अब मैं वतन का खूबसूरत नजारा मन बुद्धि रूपी दिव्य नेत्रों द्वारा स्पष्ट देख रही हूं। पूरा वतन रंग बिरंगे फूलों की खुशबू से महक रहा है। मेरे ऊपर लगातार पुष्पो की वर्षा हो रही हैं। *जहाँ - जहाँ मैं पाव रखती हूं मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे पैरों के नीचे मखमली फूंलो का गलीचा बिछा हुआ है*। सामने मेरे दिलाराम मेरे बागवान बाबा अपने लाइट माइट स्वरूप में रंग बिरंगे फूलो से सजे एक बहुत सुंदर झूले पर बैठे मेरा इन्जार कर रहें हैं। मुझे देखते ही बाबा मुस्कराते हुए स्वागत की मुद्रा में खड़े हो कर अपनी बाहें फैला लेते हैं और आओ मेरे रूहे गुलाब बच्चे कह कर अपने गले लगा लेते हैं।

 

_ ➳  बाबा की बाहों के झूले में झूलते, अपनी आंखें बन्द कर मैं असीम सुख की अनुभूति में खो जाती हूँ। *अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहराई तक अनुभव करने के बाद मैं जैसे ही अपनी आंखें खोलती हूं तो देखती हूँ कि बाबा के साथ मैं एक बहुत बड़े फूंलो के बगीचे में खड़ी हूँ*। बाबा बड़े प्यार से एक एक - एक फूल पर दृष्टि डाल कर, हर फूल को बड़े प्यार से सहलाते हुए आगे बढ़ जाते हैं। मैं भी बाबा के पीछे - पीछे चलते हुए हर फूल को बड़े ध्यान से देख रही हूं। *कुछ फूल तो एक दम खिले हुए बड़ी अच्छी खुशबू फैला रहे हैं, कुछ अधखिलें हैं और कुछ थोड़े थोड़े मुरझाए हुए भी दिखाई दे रहें हैं*। लेकिन हर फूल के ऊपर प्यार भरी दृष्टि डाल कर अब बाबा वापिस उस झूले पर आ कर बैठ जाते हैं और मुझे भी अपने पास बैठने का ईशारा करते हैं।

 

_ ➳  मेरे मन मे चल रही दुविधा को जैसे बाबा मेरे चेहरे से स्पष्ट पढ़ रहे हैं इसलिए मेरे कुछ भी पूछने से पहले बाबा मुझसे कहते हैं, मेरे रूहे गुलाब बच्चे:- *"इस काँटो की दुनिया को फूलो की नगरी बनाने के लिए ही बाबा ये सैपलिंग लगा रहें हैं" और ये सभी फूल मेरे वो मीठे, सिकीलधे बच्चे हैं जो श्रीमत पर चल काँटे से फूल बनने का पुरुषार्थ कर रहें हैं, लेकिन नम्बरवार हैं*। इसलिए कुछ फूल तो पूरी तरह खिले हुए हैं जो अपनी रूहानियत की खुशबू सारे विश्व में फैला रहें हैं। कुछ अधखिले हैं जो अभी खिलने के लिए तैयार हो रहें हैं। और कुछ मुरझाए हुए भी हैं जो बार बार माया से हार खाते रहते हैं। लेकिन बाबा अपने हर बच्चे को नम्बर वन रूहे गुलाब के रूप में देखना चाहते हैं इसलिए हर बच्चे को सूक्ष्म में इमर्ज कर उन्हें बल देते रहते हैं।

 

_ ➳  अपने मन में चल रहे सभी सवालों के जवाब सुन कर अब मैं मन ही मन दृढ़ संकल्प करती हूं कि अब मुझे नम्बर वन रूहे गुलाब अवश्य बनना है। इसलिए *काँटे से फूल बन, सबको फूल बनाने का ही अब मुझे पुरुषार्थ करना है*। बाबा मेरे मन के हर संकल्प को पढ़ कर बड़ी गुह्य मुस्कराहट के साथ मुझे देखते हैं और अपना वरदानीमूर्त हाथ मेरे सिर पर रख देते है। मुझे माया जीत भव और सफलता मूर्त भव का वरदान देते हुए मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगाते हैं।

 

_ ➳  विजय का स्मृति तिलक लगाकर, काँटे से फूल बनने के पुरुषार्थ में आने वाले माया के हर विघ्न का डटकर सामना करने के लिए अब मैं *स्वयं को बलशाली बनाने के लिए निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा बन चल पड़ती हूँ अपने निराकार काँटो को फूल बनाने वाले बबूलनाथ अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा के पास परमधाम और जा कर उनके सानिध्य में बैठ स्वयं को उनकी सर्वशक्तियो से भरपूर करने लगती हूँ*। स्वयं में परमात्म बल भर कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ।

 

_ ➳  साकारी दुनिया मे, अपने साकारी ब्राह्मण तन में प्रवेश कर, अब मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को सच्चा - सच्चा परमात्म ज्ञान सुना कर उन्हें शान्तिधाम, सुखधाम जाने का रास्ता बता रही हूँ। *रूहानियत की खुशबू चारों और फैलाते हुए अपनी पवित्रता की शक्ति से मैं विकारों रूपी काँटो की चुभन से पीड़ित आत्माओं को उस चुभन से निकाल उन्हें फूलो की मखमली शैया का सुखद अनुभव करवा कर उन्हें भी काँटे से फूल बनने का सत्य मार्ग दिखा रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :-  मैं आत्मा प्लेन बुद्धि बन सेवा का यथार्थ प्लैन बनाती हूँ।”*

 

_ ➳  दिव्य बुद्धि पारस बुद्धि के दाता शिवबाबा की संतान *मैं आत्मा यथार्थ सेवाधारी हूंमैं स्व की और सर्व की सेवा साथ साथ करती हूंमेरी स्व की सेवा में सर्व की सेवा भी समाई रहती है*बाबा ने आज मुझे सावधानी दी हैकि ऐसा नहीं कि मैं आत्मा दूसरों की सेवा करूंऔर मैं आत्मा अपनी सेवा में अलबेले हो जाऊं… *मुझ आत्मा की सेवा में सेवा और योग दोनों साथ साथ होती है*इसके लिए मैं आत्मा प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाती हूँप्लेन बुद्धि अर्थात *कोई भी बात मेरी बुद्धि को टच नहीं करता है... मुझ आत्मा की बुद्धि में सिर्फ निमित्त और निर्माण भाव समायी रहती हैहद का नाम, मान नहीं लेकिन निर्मानमैं आत्मा यही शुभ भावना शुभ कामना की बीज लगाती हूं*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान के साथ गुणों का दान कर सफलता का अनुभव करना"*

 

_ ➳  मैं  आत्मा सर्व अविनाशी खजानों से भरपूर हूँ... मैं सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा... गुणों, ज्ञान और शक्तियों का निरन्तर दान करती हूँ... *बाबा से प्राप्त गुणों को अपने कर्मो में यूज़ कर, अपने गुणों को सहज ही सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ट्रांसफर करती हूँ... अर्थात अपने गुणों का दान करती हूँ...* अनमोल ज्ञान रत्न को सबको बाँटती हूँ... और निरन्तर शक्तियों की बौछार कमजोर आत्माओं पर करती हूँ... मैं महादानी आत्मा हूँ...  मैं महादानी और वरदानी आत्मा... बाबा को अति प्यारी हूँ... बाबा की अंखियो का नूर हूँ... ज्ञान, गुणों, शक्तियों की खुशबू से पूरे विश्व को महका कर... विश्व को परिवर्तन करने की निमित्त आत्मा हूँ... *मैं महादानी आत्मा सर्व की दुआओं की पात्र आत्मा हूँ...* ज्ञान और गुणों को दान करते मैं आत्मा सफलता मूर्त बन गई हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   १. माया तो लास्ट घड़ी तक आयेगी। ऐसे नहीं जायेगी। लेकिन माया का काम है आना और आपका काम है दूर से भगाना। आ जावे फिर भगाओये नहीं। ये टाइम अभी समाप्त हुआ। माया आवे और आपको हिलावे फिर आप भगाओटाइम तो गया ना! *लेकिन साइलेन्स के साधनों से आप दूर से ही पहचान सकते हो कि ये माया है। इसमें भी टाइम वेस्ट नहीं करो और माया भी देखती है ना कि चलो आने तो देते हैं नातो आदत पड़ जाती है आने की।* जैसे कोई पशु कोजानवर को अपने घर में आने की आदत डाल दो फिर तंग होकर भगाओ भी लेकिन आदत तो पड़ जाती है ना! *और बाप ने सुनाया था कि कई बच्चे तो माया को चाय-पानी भी पिलाते हैं।*

 

 _ ➳  *चाय-पानी कौन सी पिलाते हो? पता है नाक्या करूँकैसे करूँअभी तो पुरुषार्थी हूँअभी तो सम्पूर्ण नहीं बने हैंआखिर हो जायेंगे - ये संकल्प चाय-पानी हैं।* तो वो देखती है चाय-पानी तो मिलती है। किसी को भी अगर चाय-पानी पिलाओ तो वो जायेगा कि बैठ जायेगातो जब भी कोई परिस्थिति आती है तो क्योंक्याकैसे,कभी-कभी तो होता ही हैअभी कौन पास हुआ हैसबके पास है - ये है माया की खातिरी करना। कुछ नमकीनकुछ मीठा भी खिला देते हो। और फिर क्या करते होफिर तंग होकर कहते हो अभी बाबा आप ही भगाओ। आने आप देते हो और भगाये बाबा, क्यों?आने क्यों देते हो?

 

 ➳ _ ➳  माया बार-बार क्यों आती है? *हर समयहर कर्म करते, त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट नहीं होते हो। त्रिकालदर्शी अर्थात् पास्ट, प्रेजेन्ट और फ्यूचर को जानने वाले।* तो क्योंक्या नहीं करना पड़ेगा। त्रिकालदर्शी होने के कारण पहले से ही जान लेंगे कि ये बातें तो आनी हैंहोनी हैंचाहे स्वयं द्वाराचाहे औरों द्वाराचाहे माया द्वाराचाहे प्रकृति द्वारासब प्रकार से परिस्थितियाँ तो आयेंगीआनी ही हैं। लेकिन स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो पर-स्थिति उसके आगे कुछ भी नहीं है।

 

 _ ➳  २. इसका साधन है - *एक तो आदि-मध्य-अन्त तीनों काल चेक करके, समझ कर फिर कुछ भी करो। सिर्फ वर्तमान नहीं देखो।* सिर्फ वर्तमान देखते हो तो कभी परिस्थिति ऊंची हो जाती और कभी स्व-स्थिति ऊंची हो जाती। दुनिया में भी कहते हैं पहले सोचो फिर करो। नहीं तो जो सोच कर नहीं करते तो पीछे सोचना पश्चाताप् का रूप हो जाता है। *ऐसे नहीं करतेऐसे करतेतो पीछे सोचना अर्थात् पश्चाताप् का रूप और पहले सोचना ये ज्ञानी तू आत्मा का गुण है।*

 

 _ ➳  ३. *ऐसा अपने को बनाओ जो अपने आपमें भीमन में एक सेकण्ड भी पश्चाताप् नहीं हो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर माया को दूर से भगाना"*

 

 _ ➳  देह और देह की दुनिया के अनेक कर्म करते थक कर मैं आत्मा स्वयं को रिलैक्स करने के लिए अपने शिव पिता की गोद में सिर रख कर लेट जाती हूँ... *अपने शिव पिता की दिव्य अलौकिक गोद रूपी झूले में सिर रखते ही मैं गहन निद्रा की आगोश में खो कर स्वप्नों की एक बहुत सुंदर दुनिया में पहुंच जाती हूँ*... मैं देख रही हूं स्वयं को एक छोटे से बालक के रूप में अपने शिव पिता के साथ, मन को लुभाने वाली एक बहुत सुंदर दुनिया में, जहां अनेक प्रकार की सुंदर - सुंदर चीजें और अनेक प्रकार के सुंदर खिलौने रखे हैं... उन सुंदर - सुंदर खिलौनों को देख कर उनके साथ खेलने के लिए मेरा मन ललचा रहा है...

 

 _ ➳  एक बहुत सुंदर सोने के समान चमक रही फुटबॉल को देख कर मैं जैसे ही उसे उठाने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता हूँ, कानों में एक आवाज आती है नही बच्चे, इसे अपने हाथ में मत उठाना... *लेकिन उस बॉल का आकर्षण मुझे बार - बार उसे अपने हाथों में उठाने के लिए मजबूर कर रहा है*... स्वयं को मैं रोक नही पा रहा...  इसलिए फिर से उसे उठाने के लिए मैं जैसे ही अपने हाथ आगे बढ़ाता हूँ तभी पीछे से शिव बाबा आ कर उस बॉल को जोर से किक मारते हैं... वो बॉल बहुत दूर जा कर एक बहुत तेज धमाके के साथ फ़ट जाती है... अब बाबा मुझे अपनी गोद में उठा कर समझाते हुए कहते हैं, *मेरे बच्चे:- "हर आकर्षित करने वाली चीज सुख देने वाली हो यह जरूरी नही है"...*

 

 _ ➳  अपनी गोद में उठा कर बाबा अब मुझे उस चकाचौंध करने वाली, मन को लुभाने वाली दुनिया से निकाल कर अपने साथ ले जाते हैं... *मेरी निद्रा टूटते ही अब मैं स्वयं को उस स्वप्न लोक से बाहर, अपने फ़रिशता स्वरूप में बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में देख रही हूँ*... मेरे सामने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा बैठे हैं जो बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं...

 

 _ ➳  अपनी मीठी दृष्टि से मुझे भरपूर करते हुए बाबा उस स्वप्न का राज मुझे समझा रहे हैं, *मेरे बच्चे:- "उस स्वप्न लोक की भांति यह संसार भी एक बहुत बड़ी माया नगरी है"*... यहां मन को लुभाने और आकर्षित करने वाली हर चीज धोखा देने वाली है... इस लिए इस संसार रूपी माया नगरी के मोह जाल में कभी नही फंसना... यहां आपकोे कदम कदम पर सम्भल कर चलना है... माया के अति रॉयल रूप से कभी आकर्षित नही होना... क्योकि *माया के प्रति आकर्षण ही आपको उसके अधीन कर देगा फिर उसे भगाने में बहुत टाइम व्यर्थ चला जायेगा*... जैसे किसी जानवर या पशु को घर में आने की आदत डाल दी जाए और बाद में तंग हो कर यदि उसे भगाने का प्रयास किया जाए तो वह भागता नही... ठीक इसी प्रकार यदि समय पर माया को पहचान कर उसे नही भगाया तो गोया उसकी ख़ातिरी कर सदा के लिए उसका गुलाम बनना हुआ...

 

 _ ➳  जीवन में आने वाली परिस्थितियां भी माया का रूप है... *उस समय क्यों, क्या, कैसे ये संकल्प भी अगर मन में आते हैं तो समझो आप माया की ख़ातिरी कर रहे हो*... उसे चाय, पानी पिला रहे हो... इसलिए त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर माया के हर रॉयल रूप को पहले से ही पहचान कर सावधान रहो तो आपकी स्व स्थिति माया रूपी हर परिस्थिति पर आपको सहज ही विजय दिला देगी... यह कह कर बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख मुझे सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहने का वरदान देते हैं...

 

 _ ➳  बाबा से वरदान लेकर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर करती हूं... *आदि, मध्य, अंत तीनों काल चेक करके, समझ कर हर कर्म करने से माया के वार से हार खा कर पश्चाताप करने के बजाए अब मैं सफलतामूर्त बन हर कार्य में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूं*... मेरी शक्तिशाली स्व स्थिति अब मुझे हर परिस्थिति रूपी माया पर सहज ही विजय दिला कर मायाप्रूफ बना रही है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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