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❍ 16 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान धारण कर फिर दूसरों को समझाया ?*
➢➢ *"श्रीमत का पालन कर प्रवृति में रहते हुए कैसे पवित्र रहते हैं ?" - यह अनुभव दूसरों को सुनाया ?*
➢➢ *संगमयुग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों में समाये रहे ?*
➢➢ *व्यर्थ की फीलिंग से परे रह मायाजीत स्थिति का अनुभव किया ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ आत्मिक स्वरूप में रहने से लौकिक में रहते भी अलौकिकता का अनुभव करेंगे। अपने को आत्मिक रूप में न्यारा समझना है। *कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रूप में कार्य करेंगे। इससे ही मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक प्रिय बनेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा यह नशा रहता है कि हम ही कल्प-कल्प के अधिकारी आत्मायें है, हम ही थे हम ही हैं, हम ही कल्प कल्प होंगे। कल्प पहले का नजारा ऐसे ही स्पष्ट स्मृति में आता है। आज ब्रह्मण हैं कल देवता बनेंगे। हम ही देवता थे यह नशा रहता है? *हम सो, सो हम यह मंत्र सदा याद रहता है? इसी एक नशे में रहो तो सदा जैसे नशे में सब बातें भूल जाती हैं, संसार ही भूल जाता है, ऐसे इस में रहने से यह पुरानी दुनिया सहज ही भूल जायेगी।* ऐसी अपनी अवस्था अनुभव करते हो? तो सदा चेक करो - आज ब्रह्मण कल देवता, यह कितना समय नशा रहा।
〰✧ जब व्यवहार में जाते तो भी यह नशा कायम रहता कि हल्का हो जाता है? जो जैसा होता है उसको वह याद रहता है। जैसे प्रजीडेन्ट है वह कोई भी काम करते यह नहीं भूलता कि मैं प्रेजीडेन्ट हूँ। तो आप भी सदा अपनी पोजीशन याद रखो। इससे सदा खुशी रहेगी, नशा रहेगा। सदा खुमारी चढ़ी रहे। *हम ही देवता बनेंगे, अभी भी ब्रह्मण चोटी हैं ब्रह्मण तो देवताओंसे भी ऊंच है। इस नशे को माया कितना भी तोड़ने की कोशिश करे लेकिन तोड़ न सके।*
〰✧ माया आती तभी है जब अकेला कर देती है। बाप से किनारा करा देती है। डाकू भी अकेला करके फिर वार करते हैं ना। *इसलिए सदा कम्बाइन्ड रहो कभी भी अकेले नहीं होना। मैं और मेरा बाबा, इसी स्मृति में कम्बाइन्ड रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज बहुत बातें सुनाई है। अभी एक सेकण्ड में एकदम मन और बुद्धि को बिल्कुल प्लेन कर एक बाप से सर्व संबंधों
का, बाप ही संसार है - चाहे व्यक्ति संबंध, चाहे प्राप्तियाँ, यही संसार है। तो *एक ही बाप संसार है, इस बाप की याद में, इस रूप में, इस रस में, इस अनुभव मे लवलीन हो जाओ।* (बापदादा ने 3 मिनट ड़िल कराई) अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भोलानाथ बाप द्वारा ज्ञान सुनकर मनुष्य से देवता बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा आत्म चिंतन करती हुई परमात्म चिंतन में डूब जाती हूँ... *कितनी ही भाग्यशाली आत्मा हूँ मैं जो वंडरफुल बाबा वंडरफुल ज्ञान देकर मुझ आत्मा को मनुष्य से देवता बना रहे हैं...* आदि-मध्य-अंत के राज बताकर राजयोग का ज्ञान देकर पतित दुनिया से पावन दुनिया में लेकर जा रहे हैं... मैं आत्मा ऐसे भोलेनाथ बाबा के पास उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ...
❉ *प्यारे भोलेनाथ बाबा संगमयुग पर ब्राह्मण से देवता बनने के लिए अच्छी बुद्धि और श्रेष्ठ मत देते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने खूबसूरत भाग्य के नशे में डूब जाओ... कितना सुंदर भाग्य है कि विकारो से मलिन बुद्धि... ईश्वरीय बुद्धि बन मुस्कराती है... *पिता की श्रीमत का हाथ थाम मखमली जीवन जीते हो... और संगम के सुहावने पलों को जीते हुए देवता डबलताजधारी बन सजते हो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अवगुणों को निकाल सद्गुणों से श्रृंगार करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत से फूलो में मुस्करा रही हूँ... *वरदानी संगम पर ईश्वरीय हाथो में पल रही हूँ... प्यारे बाबा की यादो में भीगने का असीम सुख ले रही हूँ...* और देवताई सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ...”
❉ *ज्ञान सागर मेरा मीठा बाबा मेरे मन के गागर में समाता हुआ कहता है:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की पसन्द चुने हुए से फूल हो... ज्ञान रत्नों से दमकते हुए और दिव्य गुणो से सजते हुए ईश्वरीय सन्तान हो... जो पिता के पास है वह सब तुम बच्चों पर दिल खोल लुटाया है... *श्रेष्ठ बुद्धि पाकर ब्राह्मण से देवता रूप में सजकर खुशियो में खिलखिलाते हो... और असीम सुख की दुनिया में फूलो सा जीवन पाते हो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में असीम प्राप्तियों को पाकर खुशियों से हर्षाते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा महान भाग्यशाली हूँ ईश्वर पिता को सम्मुख पाकर अपने भाग्य पर कुर्बान हूँ... हर पल श्रीमत का हाथ थामे हर कर्म को श्रेष्ठता से सजा रही हूँ...* हर साँस में बाबा को बसाकर आनंद के सागर में डूबी हुई हूँ...”
❉ *मेरे बाबा ताज, तख़्त और तिलक मुझ आत्मा को सौगात में देते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... पिता के प्यार और श्रीमत के साये तले सारे दुःख दूर हो गए है... *अब ब्राह्मण बन मुस्करा रहे हो... जनमो के दुखो को अब भूल गए हो और देवता बनने के नशे से भरपूर हो गए हो...* क्या थे और संगम पर क्या बन गए हो... ज्ञान और योग के पंख लिए दुखो की धरा छोड़ आनन्द के आसमाँ में उड़ रहे हो...”
➳ _ ➳ *बहते पवन के झोकों से बाबा के अविनाशी प्यार का एहसास करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की दौलत से लबालब हो रही हूँ... *शानदार भाग्य ने ब्राह्मण बनाया है और भविष्य में देवता सा सजा देगा... यह अहसास रोम रोम को पुलकित कर रहा...* प्यारी सी बुद्धि और मीठा सा मन पाकर मै आत्मा आप पर बलिहार हूँ...”
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सिर्फ पढ़ करके नही सुनाना, धारणा करके फिर समझाना है*"
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप ने हर कर्म पहले खुद करके दिखाया और अपने हर कर्म से औरों को कर्म करने की प्रेरणा देने वाले प्रेरणास्त्रोत बन अनेको आत्माओं के जीवन को परिवर्तन करने के निमित बनें। *ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने का मन मे दृढ़ संकल्प कर मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि शिव बाबा मुरली के माध्यम से हम बच्चों को जो भी श्रीमत देते हैं उसे दूसरों को सिर्फ पढ़ कर नही सुनाना बल्कि अपने जीवन मे धारण कर उसे अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में लाकर दूसरी आत्माओं को अनुभव करवाना है*।
➳ _ ➳ इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ मैं जैसे ही अपने प्यारे मीठे शिव बाबा की याद में बैठती हूँ, *ऐसा अनुभव होता है जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में विराजमान शिव बाबा मेरे बिल्कुल सामने आ कर बैठ गए हैं* और अपने वरदानी हस्तों को मेरे सिर के ऊपर फैलाये मुझे इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का वरदान दे रहें हैं। अपने प्यारे बापदादा को अपने बिल्कुल सामने पाकर मैं एकटक उन्हें निहारती हुई उनके वरदानों की शक्ति को स्वयं में धारण करती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा आगे बढ़कर मेरे मस्तक पर विजय का तिलक दे कर मेरी आँखों के सामने से एकदम ओझल हो जाते हैं और *बाबा के वरदानों की शक्ति को स्वयं में अनुभव करती, शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर, अब मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ अपने स्वरूप पर और अपनी निराकारी स्थिति में स्थित हो कर अपनी बुद्धि का योग अपने निराकार शिव पिता के साथ जोड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ ऐसा अनुभव होता है जैसे पारवतन में बैठे मेरे मीठे प्यारे शिव बाबा अपने प्रेम की डोर से सहज ही मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं। *बिना एक पल की भी देरी किये मैं आत्मा एक चमकता सितारा बन बिल्कुल सहज रीति इस देह को छोड़ ऐसे बाहर निकल आती हूँ जैसे मक्खन से बाल*। इस देह को मैं बिल्कुल साक्षी हो कर देख रही हूँ। इससे कोई ममत्व, कोई लगाव मुझे अनुभव नही हो रहा। *एक अति सुंदर न्यारे पन का अनुभव करते हुए मैं अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा अपनी किरणो को चारों और फैलाता हुआ अब धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर चल पड़ता हूँ*।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे इस धरती के आकर्षण से मैं पूरी तरह मुक्त हो चुका हूँ। एक बल, एक शक्ति मुझे बस ऊपर की और खींच रही है और निर्बाध गति से उड़ता हुआ मैं आकाश को पार करके उससे भी ऊपर कहीं दूर उड़ता चला जा रहा हूँ। *सफेद प्रकाश से प्रकाशित सूक्ष्म फ़रिशतो की आकारी दुनिया को क्रॉस करता हुआ उससे भी ऊपर मैं एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करता हूँ जहाँ मेरे ही समान असंख्य चमकते सितारे मुझे दिखाई दे रहें हैं*। यही मेरी मंजिल, मेरा घर, मेरे पिता परमात्मा का घर है। यहीं मेरे शिव पिता रहते हैं जिनके प्रेम की शक्ति मुझे खींच कर यहाँ ले आई है।
➳ _ ➳ अपने सामने अब मैं अपने शिव पिता को एक ज्योतिपुंज के रूप में देख रही हूँ जो अपने प्रेम की किरणों की शीतल फ़ुहारें मुझ पर बरसाते हुए मेरा स्वागत कर रहें हैं और अपनी शक्तियों रूपी किरणो की बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। *अपने शिव पिता के प्रेम की शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती हुई मैं उनकी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ*। मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियां मेरे अंदर समाकर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में गहराई तक समाकर अब मैं ईशवरीय सेवा अर्थ साकार लोक में वापिस लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के वरदान और शक्तियाँ मुझे बाबा की शिक्षाओं को धारण करने का बल प्रदान कर रही हैं। *अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को बाबा का ज्ञान केवल पड़ कर नही सुनाती बल्कि उसे स्वयं में धारण कर, अनुभवीमूर्त बन, परमात्म पालना का यथार्थ अनुभव सबको करवाते हुए अब मैं निमित बन सबको सच्चा ईश्वरीय ज्ञान देने की सेवा सफ़लतापूर्वक सम्पन्न कर रही हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं संगमयुग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों में समाने वाली सम्पूर्ण ज्ञानी योगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं व्यर्थ की फीलिंग से परे रहने वाली मायाजीत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. कौन-सी विशेष कमी है जिसके कारण आधी माला भी रूकी हुई है? तो चारों ओर के बच्चे हर एरिया, एरिया के इमर्ज करते गये, जैसे आपके जोन हैं ना, ऐसे ही एक-एक जोन नहीं, ]जोन तो बहुत-बहुत बड़े हैं ना। तो एक-एक विशेष शहर को इमर्ज करते गये और सबके चेहरे देखते गये, देखते-देखते *ब्रह्मा बाप ने कहा कि एकविशेषता अभी जल्दी-से-जल्दी सभी बच्चे धारण कर लेंगे तो माला तैयार हो जायेगी।* कौन सी विशेषता? तो यही कहा कि जितनी सर्विस में उन्नति की है, सर्विस करते हुए आगे बढ़े हैं। अच्छे आगे बढ़े हैं *लेकिन एक बात का बैलेन्स कम है। वह यही बात कि निर्माण करने में तो अच्छे आगे बढ़ गये हैं लेकिन निर्माण के साथ निर्मान - वह है निर्माण और वह है निर्मान। मात्रा का अन्तर है।* लेकिन निर्माण और निर्मान दोनों के बैलेन्स में अन्तर है। सेवा की उन्नति में निर्मानता के बजाए कहाँ-कहाँ, कब-कब स्व-अभिमान भी मिक्स हो जाता है। *जितना सेवा में आगे बढ़ते हैं, उतना ही वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, चाल में निर्मानता दिखाई दे, इस बैलेन्स की अभी बहुत आवश्यकता है।*
➳ _ ➳ 2. *ऐसे नहीं सोचो - यह तो है ही ऐसा, यह तो बदलना नहीं है। जब प्रकृति को बदल सकते हो, एडजेस्ट करेंगे ना प्रकृति को? तो क्या ब्राह्मण आत्मा को एडजेस्ट नहीं कर सकते हो?* अगेन्स्ट को एडजेस्ट करो, यह है - निर्माण और निर्मान का बैलेन्स। सुना!
➳ _ ➳ अभी तक जो सभी सम्बन्ध-सम्पर्क वालों से ब्लैसिंग मिलनी चाहिए वह ब्लैसिंग नहीं मिलती है। और *पुरुषार्थ कोई कितना भी करता है, अच्छा है लेकिन पुरुषार्थ के साथ अगर दुआओं का खाता जमा नहीं है तो दाता-पन की स्टेज, रहमदिल बनने की स्टेज की अनुभूति नहीं होगी।* आवश्यक है - स्व पुरुषार्थ और साथ-साथ बापदादा और परिवार के छोटे-बड़ों की दुआयें। यह दुआयें जो हैं - यह पुण्य का खाता जमा करना है। यह मार्क्स में एडीशन होती है। *कितनी भी सर्विस करो, अपनी सर्विस की धुन में आगे बढ़ते चलो,लेकिन बापदादा सभी बच्चों में यह विशेषता देखने चाहते हैं कि सेवा के साथ निर्मानता, मिलनसार - यह पुण्य का खाता जमा होना बहुत-बहुत आवश्यक है।* फिर नहीं कहना कि मैंने तो बहुत सर्विस की, मैंने तो यह किया, मैने तो यह किया, मैने तो यह किया, लेकिन नम्बर पीछे क्यों? इसलिए *बापदादा पहले से ही इशारा देते हैं कि वर्तमान समय यह पुण्य का खाता बहुत-बहुत जमा करो।*
✺ *ड्रिल :- "निर्माणता और निर्मानता का बैलेन्स रखना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अमृतवेले मेरे मीठे बापदादा से मिलन मना रही हूँ... *बाबा मुझ आत्मा में ऐसे शक्तियां भर रहें हैं जैसे खाली गुब्बारे में गैस भर रहें हों... मैं आत्मा इन शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो स्वयं को बहुत ही पावरफुल और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना फरिश्ता रूप धारण कर ग्लोब पर बैठ जाती हूँ... योगयुक्त होकर... बाबा से प्राप्त इन शक्तिशाली किरणों को समस्त विश्व की आत्माओं पर... प्रकृति के पांचों तत्वों पर प्रवाहित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा साकार वतन में... अपनी देह में प्रविष्ट होकर पार्ट बजा रही हूँ... इन आँखों से इस ड्रामा को देख रही हूँ... साक्षीपन के स्वमान में रह हरेक के पार्ट को देख रही हूँ... *याद आ रही है बापदादा की श्रीमत... बच्चे- बोल में निर्मान बनो... निर्माणता ही महानता है... मुख से ऐसे बोल बोलो जो सब कहे कि अभी और सुनाओ...* कभी भी अभिमान के बोल बोलकर... दूसरों को दुःख नहीं दो... कष्ट नहीं दो...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बापदादा की श्रीमत फॉलो कर... अपने स्वभाव को निर्मल... शांत बना रही हूँ... मुझे हर कार्य में सफलता प्राप्त हो रही है... शुद्ध... शीतल... निर्मल स्वभाव धारण कर... मैं आत्मा हरेक आत्मा की विशेषता को देख रही हूँ...* कभी भी मन में यह ख्याल नही लाती कि... यह आत्मा यह कार्य नहीं कर सकती... अपितु सकरात्मक सोच रखकर उस आत्मा को उमंग उत्साह दिलाती हूँ कि तुम यह कार्य बहुत अच्छे से कर सकते हो... सफलता तो तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है...
➳ _ ➳ *निमित्तभाव... निर्माणभाव... और निर्मल वाणी रख सर्व आत्माओं को निर्मान और निर्माण स्थिति में रह मास्टर मुक्तिदाता बन सभी को मुक्ति... जीवनमुक्ति का रास्ता दिखा रही हूँ...* हरेक आत्मा के प्रति कल्याण की भावना... ऊँचा उठाने की भावना... मधुरता... निर्माणता का स्वभाव धारण कर... व्यवहार कर रही हूँ... सभी आत्माओं के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना... रहम की भावना कूट कूट कर भर गई है... मेरी दृष्टि... वृति... कृति में निर्मानता की रूहानियत झलक रही है...
➳ _ ➳ *जो भी आत्माऐं मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आ रही हैं उन्हें मुझ आत्मा से पॉजिटिव वाइब्रेशनस मिल रही हैं... बहुत शांति की अनुभूति हो रही है... उनके मुख से मुझ आत्मा के लिये आर्शीवचन निकल रहें हैं... बहुत ब्लेसिंग्स मिल रहीं हैं... जिससे दुआओं का... पुण्य का खाता जमा हो रहा है...* मैं आत्मा बाबा के खजानों के अधिकार के नशे में रह... उमंग उत्साह के पंख लगा अपनी निर्मान स्थिति द्वारा बाबा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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