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 27 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *सदा ज्ञान की रिमझिम में रहे ?*

 

➢➢ *रूहानी पंडा बन सबको रास्ता बताया ?*

 

➢➢ *सदा हर्षितमुख, गंभीर और विशालबुधी बनकर रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मेरे को तेरे में परिवर्तित कर सर्व आकर्षण मुक्त बनकर रहे ?*

 

➢➢ *दुआओं का खाता जमा कर विघन प्रूफ बनकर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  आप चैलेन्ज करते हो कि हम आपको जीवन में मुक्ति डबल दिला सकते हैं - जीवन भी हो और मुक्ति भी हो, ऐसी चैलेन्ज की है ना? नशे से कहते हो कि जीवनमुक्ति आपका और हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है, तो *स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात दु:ख के चक्करों से मुक्त रहने वाले और मुक्त करने वाले।* वशीभूत होने वाले नहीं लेकिन अधिकारी बन, मालिक बन सर्व कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले।

 

✧  धोखा खाने वाले नहीं लेकिन औरों को भी धोखे से छुडाने वाले। यही अभ्यास करते हो ना - *कर्म में आना और फिर न्यारे हो जाना,* तो याद का अभ्यास क्या रहा? - आना और जाना और पढाई अर्थात ज्ञान का सार क्या है? कर्मातीत बन घर जाना है और फिर राज्य करने का पार्ट बजाने अपने राज्य में आना है। यही ज्ञान का सार है ना। तो *जानाऔर आना' - यही ज्ञान और योग है,* इसी अभ्यास में दिन-रात लगे हुए हो।

 

✧  बुद्धि में घर जाने की और फिर राज्य में आने की खुशी है। जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। जब से टिकेट बुक कराते हो तब से जाना है, जाना है - यह बुद्धि में याद रहता है ना! तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन *खुशी से कौन जायेगा? जितना सदा यह 'आने' और जाने' का अभ्यास होगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप की शिक्षाओ को धारण कर, गुणवान फूल बन, सदा हर्षित रहना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा के कमरे में बेठी हुई मै आत्मा... आत्म चिंतन में खोयी अपने गुणो और खुशियो से सजे जीवन के बारे में सोचती हुई... मुझे ऐसा सुंदर सजाने वाले मीठे बाबा की ओर निहारती हूँ... *प्यारे बाबा ने अपनी सर्व शक्तियो और बेपनाह मुहोब्बत से सींचकर मुझ पर अपना सब कुछ लुटा दिया है*... और रूहानियत से भरकर, मुझे कितना सुगन्धित कर दिया है... ऐसे प्यारे पिता को पाकर मै आत्मा... बलिहार हो गयी हूँ... और अपने मीठे भाग्य का गुणगान कर रही हूँ... दिल से ईश्वर पिता का धन्यवाद कर रही हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान की अमूल्य मणियो से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने जो अमूल्य शिक्षाओ से संवारा है... ज्ञान रत्नों की अमीरी से भरपूर किया है...उस अमीरी की मुस्कान को पूरे जग में बिखेरो.. *श्रीमत की धारणा कर, गुणवान फूल बनकर मुस्कराओ.. मूल्यों की दौलत से सज संवर कर,ईश्वरीय प्यार में ख़ुशी से खिल जाओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की शिक्षाओ को पाकर खुशनुमा फूल बनकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले पलकर, कितनी प्यारी और दिव्य हो गयी हूँ... *गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर, अपने खोये वजूद को पुनः पा चली हूँ.*.. ईश्वरीय शिक्षाओ को पाकर गुणो से महकता रूहानी गुलाब हो गयी हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान मोतियो से सजाकर होलिहंस बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे...मीठे बाबा ने आकर जो ईश्वरीय मत दी है उस मत पर चलकर, अथाह सुखो के मालिक बनकर, विश्व धरा पर मुस्कराओ... *ज्ञान को जीवन में धारण कर, जीवन सच्ची खुशियो का पर्याय बनाओ.*.. जनमो के दुखो को भूल, ईश्वरीय प्यार में सदा खिलखिलाते हसंते मुस्कराते रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में खुशियो संग खिलते हुए कहती हूँ :-"मेरे सच्चे साथी बाबा... *आपने मेरा जीवन ज्ञान रत्नों से सजाकर, कितना दिव्य और पावन कर दिया है.*.. आपकी श्रीमत के हाथो में मै आत्मा... अपने खोये मूल्यों को पाकर पुनः मालामाल हो रही हूँ... सदा हर्षित रहकर देवताई मुस्कान से सज रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी प्यार भरी बाँहों में भरकर देवत्व से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... देह के भान में आकर अपने सत्य स्वरूप को ही भूल गए हो... अब अनमोल ज्ञान रत्नों में गहरे खोकर, खोयी चमक को फिर से पाकर, सदा के लिए नूरानी बन जाओ... *सदा की मुस्कराहट से निखर कर, अपने सुंदर देवताई स्वरूप में खो जाओ*..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में गहरे खोकर कहती हूँ ;-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपके प्यार भरी छत्रछाया में सुख शांति प्रेम से भरा दिव्य जीवन पा रही हूँ..*. सदा खुशियो की बहारो में झूम रही हूँ... और वरदानी संगम पर देवताई पावनता से भरती जा रही हूँ...सदा की खुशियो की अधिकारी हो गयी हूँ..."मीठे बाबा को अपने दिल की बात सुनाकर मै आत्मा... इस धरा पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा ज्ञान की रिमझिम में रहना*"

 

_ ➳  अपने घर के आंगन में बैठी मैं बारिश की रिमझिम फुहारों को देख रही हूँ। बारिश की इस हल्की - हल्की रिमझिम में गीली मिट्टी की भीनी - भीनी खुशबू और मौसम में हल्की - हल्की ठंडक मन को लुभा रही है। *मन ही मन मैं अपने दिलाराम बाबा को याद करती हूँ और सोचती हूँ कि मौसम की ये बरसात तो कभी - कभी ही होती है लेकिन मेरे ज्ञानसूर्य शिव पिया के ज्ञान रत्नों की बरसात तो निरन्तर मुझ पर होती ही रहती है*। तो कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो हर समय ज्ञान की रिमझिम का आनन्द लेती रहती हूँ। मेरे शिव पिया के ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की शीतलता मुझे सदा स्फूर्ति और ताजगी से भरपूर रखती है।

 

_ ➳  यही विचार करते - करते एकाएक मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान की बारिश की रिमझिम फुहारें मेरे ऊपर बरसने लगी है। इन फ़ुहारों की रिमझिम से एक अलौकिक रूहानी मस्ती मुझ आत्मा में भरने लगी है। *परमधाम से मेरे ज्ञानसूर्य शिव बाबा के ज्ञान की रंग बिरंगी किरणों की बारिश मेरे अंग अंग को शीतल बना रही है*। इन रिमझिम फुहारों से शरीर की  चेतनता जैसे सिमट रही है। कर्मेंद्रियां शांन्त और स्थिर हो रही है। *शरीर की सारी चेतनता सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र हो रही है और शरीर रूपी गुफा में जगता हुआ एक चैतन्य दीपक स्पष्ट दिखाई देने लगा है*। इस चैतन्य दीपक को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ।

 

_ ➳  इस चैतन्य दीपक की लौ से आ रहे प्रकाश में सात अलग - अलग रंगों को मैं देख रही हूँ। सातों गुणों की सतरंगी किरणों का प्रकाश धीरे - धीरे बढ़ता जा रहा है और ये किरणे धीरे - धीरे चारो और फैलने लगी है। *परमधाम से मेरे ज्ञानसूर्य निराकार बाबा से सर्वगुणों की सतरंगी किरणे अब सीधे मुझ आत्मा रूपी दीपक पर पड़ रही है*। बाबा से आ रही इन सातों गुणों की सतरंगी किरणों के मुझ आत्मा पर पड़ने से, मुझ आत्मा से निकल रही सतरंगी किरणों का प्रकाश कई गुणा बढ़ कर अब और भी दूर - दूर तक फैल रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे पूरे घर मे ज्ञान का इंद्रधनुष बन गया है*। ज्ञानसूर्य के ज्ञान की बरसात से बने इस इंद्रधनुष के रंगों से चारों और एक सुन्दर औरा निर्मित हो गया है जो मन को गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहा है।

 

_ ➳  अपने ज्ञानसूर्य शिव पिता परमात्मा के ज्ञान की किरणों को और भी समीप से ग्रहण करने के लिए अब मैं आत्मा धीरे - धीरे अपनी साकार देह को छोड़ ऊपर की ओर जा रही हूँ। इस साकार लोक से परे, सूक्ष्म लोक को पार करती हुई मैं पहुँच गई ज्ञान के सागर अपने शिव पिया के पास उनके निजधाम, परमधाम घर में। *ज्ञानसूर्य शिव बाबा के ज्ञान की रिमझिम मुझे उनकी और आकर्षित कर रही है और उसी आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं अपने पिता परमात्मा के बिल्कुल समीप जा कर उनकी शक्तिशाली किरणों रूपी छत्रछाया के नीचे स्थित हो जाती हूँ*। ज्ञानसूर्य के ज्ञान की बरसात निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रही है और मेरे चारों और निर्मित औरे को और भी बड़ा और शक्तिशाली बना रही है।

 

_ ➳  इस शक्तिशाली औरे के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से साकार लोक की ओर वापिस आ रही हूँ। अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो कर मास्टर ज्ञानसूर्य बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर ज्ञान की बरसात कर रही हूँ। *स्वयं को ज्ञानसूर्य शिव बाबा के साथ कम्बाइंड  अनुभव करते, सदा ज्ञान की रिमझिम में रहते, आनन्दमयी जीवन जीते मैं सबकी झोली ज्ञान रत्नों से भर रही हूँ और सबको ज्ञान अमृत पिला कर उनकी जन्मों - जन्मो की प्यास बुझा कर उन्हें तृप्त कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा मेरे को तेरे में परिवर्तन कर सर्व आकर्षण मुक्त हूँ।*

 

 _ ➳  *संगमयुग में बिंदु के महत्व को जान... बिंदु रूपी बाप को जान... बिंदु रूपी  आत्मा बन... मेरे को तेरे में परिवर्तन कर रही हूँ...* सेवा निमित्त सर्जित मैं ब्राह्मण संगमयुगी आत्मा... मेरे को एक बिन्दुरूपी बाप की छाया में परिवर्तित होता देख रही हूँ... मेरेपन के अधिकार को समाप्त कर... मेरेपन के क्षणिक आकर्षण से खुद को मुक्त कर रही हूँ... *मेरा रूपी माया की जाल से मुक्त बन मैं आत्मा... सभी आत्मायें बाप के बच्चे हैं यह स्मृति में रखती हूँ...* मेरेपन के संस्कारों को एक बाप की याद रूपी योग अग्नि में स्वाहा कर रही हूँ... *ब्राह्मण जीवन में डबल लाइट बन रही हूँ।*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विघ्न प्रूफ बन दुआओं का खजाना जमा करने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं सम्पन्न बनने वाली आत्मा हूँ... *सदा बापदादा की मदद और दाता की देन... वरदाता के वरदानों में पलने वाली आत्मा हूँ*... इसलिए परीक्षाएं व विघ्न अति के रूप में आएंगे... परन्तु मैं बाप की याद के छत्रछाया के अन्दर रहने वाली आत्मा हूँ... बाप की छत्रछाया मुझ आत्मा को विघ्न प्रूफ बनाती जा रही है... *किसी भी प्रकार का विघ्न... खेल समान लगने लगा है*... बाबा से प्राप्त सर्व शक्तियां मुझ आत्मा का श्रृंगार बनती जा रही है... *मैं आत्मा फॉलो फादर कर... सर्व आत्माओं की मुश्किल बातों को सहज बना... दुआओं का खजाना जमा करती जा रही हूँ*... हम ही सर्व की मुश्किलातों को सहज करने वाले है... यह स्मृति मुझ आत्मा को कभी कोई विघ्न व कठिनाई आने पर विघ्न प्रूफ अनुभव कराती है...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *प्रसन्नचित आत्माकोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नजर से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है 'नजर से निहाल करने वाले', वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है* और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो *नजर से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगाएक नजर से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी*।

 

✺   *ड्रिल :-  "नजर से निहाल करने की सेवा का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि को एकाग्र कर भृकुटी... के मध्य में स्वयं को अनुभव करती हूं... *आत्म पंछी उड़ान भरता है सूक्ष्म वतन की ओर जहां... ब्रह्मा बाबा और उनके मस्तक के बीचों बीच परम ज्योति बापदादा* को देख मैं आत्मा अपनी सुधबुध भूल जाती हूँ...

 

 _ ➳  बाबा बड़े प्यार से मुझे देख रहे हैं... हाथ से पास आने का इशारा करते हैं... मैं तुरंत उनके पास पहुंच जाती हूं... पाती हूं अपने आपको बाबा की गोद में... *बाबा बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराते हैं... और आशीर्वाद देते हैं... प्रसन्नचित आत्मा भव* और दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की नजर पड़ते ही मैं आत्मा... भूल जाती हूं सब कुछ... असीम शान्ति... आनन्द ही आनन्द... कैसा जादू है... *बाबा की नजर से ही मैं आत्मा निहाल हो चली हूं खो चली हूं... इस परम आनंद... परम सुख में...*

 

 _ ➳  *मेरे अंदर से दुख... अशांति... सब भाप बन कर उड़ता जा रहा है...* अपने अंदर प्रसन्नता का अनुभव होते ही... मेरी सबको देखने की नजर बदलती जा रही है... *मेरी दृष्टि सबके लिए प्यार भरी... रहम भरी... कल्याणकारी होती जा रही है...*

 

 _ ➳  *सुख और आनंद...* के झूले में झूलते हुए मैं एहसास करती हूं कि मुझे बाबा ने जो अनुभव कराया है... वैसा ही अनुभव मुझ आत्मा से विश्व की सर्व आत्माओं को हो रहा हैै... *बाप समान बन किसी के प्रति भी घृणा भाव न रख उन्हें सुख और आनंद दे रही हूं... अपनी शुभ भावना की दृष्टि द्वारा उनका कल्याण कर रही हूं... शान्ति को खोजती आत्माओं के दिल की आस पूर्ण कर रही हूं...*

 

 _ ➳  *इन संकल्पों के उदय होने के साथ ही मैं अपने अंदर एक नई ऊर्जा... और प्रसन्नता... को पाती हूं* और अपने इस सुंदर पावन स्वरूप के लिये... इस सेवा के लिए... बाबा को दिल से... धन्यवाद देती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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