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❍ 16 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन किया ?*
➢➢ *माला का मनका बनने के लिए वफादार, फरमानदार बनकर रहे ?*
➢➢ *अपनी चलन बहुत रॉयल रखी ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *मन बुधी को बिजी रख व्यर्थ को समाप्त किया ?*
➢➢ *सदा परमात्म प्यार में खोये रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ *याद के चार्ट पर थकावट का असर नहीं होना चाहिए।* जितना सेवा में बिजी
रहते हो, भल कितना भी बिजी रहो लेकिन थकावट मिटाने का विशेष साधन *हर घण्टे वा दो घण्टे में एक मिनट भी शक्तिशाली याद का अवश्य निकालो।* जैसे कोई शरीर में कमजोर होता है तो शरीर को शक्ति देने के लिए डॉक्टर्स दो-दो घण्टे बाद ताकत की दवाई पीने लिए देते हैं।
〰✧ टाइम निकाल दवाई पीनी पडती हे ना तो *बीच-बीच में एक मिनट भी अगर शक्तिशाली याद का निकालो तो उसमें ए, बी, सी, - सब विटामिन्स आ जायेंगे।* सुनाया था ना कि शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती।
〰✧ जब हैं ही बाप के और बाप आपका, सर्व सम्बन्ध हैं, दिल का स्नहे हैं, नॉलेजफुल हो, प्राप्ति के अनुभवी हो, फिर भी शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती, उसका कारण क्या? अपनी याद का लिंक नहीं रखते। *लिंक टूटता है, इसलिए फिर जोडने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कभी मतभेद में आकर पढ़ाई नही छोड़ना*"
➳ _ ➳ *भगवान परमधाम से आकर, मेरे दामन में सुखो के फूल बिखेरेगा... मुझे यूँ पालेगा,युँ पढ़ायेगा, और मेरा ख्याल रखेगा.*.. अपनी श्रीमत देकर, पुरानी दुनिया के दुखो के जंगल में, सुखो की बाड़ सजाकर... मुझे खिलता रूहानी गुलाब सा महकायेगा.... यह ख्वाब तो कभी न संजोये थे... *बस ईश्वर के दर्शन भर ही तो मुझ आत्मा ने सदा चाहे थे... उसको पाना, चाहना, प्यार करना, मेरी चाहत भला कब थी, मुझे प्यार करना भी भगवान ने ही तो सिखाया है..*. बस इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलके लिए प्यार के सागर बाबा को निहारने मै आत्मा... वतन में उड़ चली हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की अपने प्यार और शिक्षाओ के साये में, माया से सुरक्षित करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर को पिता,टीचर, सतगुरु रूप में पाकर महानतम भाग्य के नशे में झूम जाओ... मीठे बाबा को पाकर, अमूल्य ज्ञान खजाने से कभी विमुख न होना.*.. कभी भी किसी मतभेद में आकर इस खजाने को न ठुकराना... यह पढ़ाई और ईश्वरीय याद ही सच्चा सहारा है... जो माया के दलदल से निकाल, सुखो भरे स्वर्ग में पहुंचाएगा..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत से, अपना भाग्य संवारते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा शरीर के भान और विकारो के जंगल में किस कदर उलझी रही... आपने मुझे अपनी गोद में लेकर मेरा सुंदर भाग्य सजाया है... *ईश्वर को ही शिक्षक रूप में पाने वाली मै आत्मा... इस संसार में सबसे ज्यादा भाग्यशाली आत्मा हूँ..*. ईश्वरीय शिक्षाओ में, खुशियो से सजधज कर मुस्करा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार श्रीमत को समझाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा के अतुलनीय ज्ञान धन को सदा बुद्धि दिल में समाये रहो... यादो के झूले में बेठ, खुशियो भरे नगमे गुनगुनाते रहो.*.. किसी भी बात के प्रभाव में आकर, ईश्वर पिता का हाथ और साथ कभी न छोडो... वरना अकेले हो जाओगे... और अकेला देख मायावी प्रभाव अपने चंगुल में पुनः ले जायेगा... मीठे बाबा का पढ़ाई रुपी हाथ कसके पकड़ लो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में दिल से कुर्बान होकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपके बिना तो कितनी अकेली थी... सच्चा सुख और सच्ची खुशियां मुझ आत्मा के लिये.... सदा एक अनसुलझी पहेली थी.*.. आपने प्यारे बाबा मेरे जीवन को दुखो से सुलझाया है... और सच्चे प्यार और पढ़ाई से मुझे सदा का आबाद किया है... मै आत्मा अब आपका साथ कभी भी न छोडूंगी..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन से विश्व का बादशाह बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *महान भाग्य सजाने वाली, देवताई सुखो को दामन को भरने वाली और परमात्म सुख की अनुभति कराने वाली, इस अमूल्य पढ़ाई को कभी भी न छोड़ना.*.. यह पढ़ाई ही त्रिकालदर्शी बनाकर... बेहद के सारे राज समझाएगी... और माया के विकारो से सुरक्षित रख, ईश्वरीय दिल की धड़कन बनाएगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की प्यार भरी बाँहों में मुस्कराते हुए कहती हूँ :-"प्यारे दुलारे बाबा मेरे... *भला भगवान को पाकर और मुझे क्या चाहिए... कि मै यह सारे खजाने छोड़ दूँ.... मीठे बाबा अब तो मै आत्मा... एक पल के लिए भी, आपका दामन नही छोडूंगी.*.. हर साँस से आपको और श्रीमत को पकड़े हुए... खुशियो के आसमाँ में उड़ती ही रहूंगी... मीठे प्यारे बाबा से सदा संग रहने का वादा करके मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- माला का मणका बनने के लिए वफादार, फरमानबरदार बनना*"
➳ _ ➳ भक्ति में भक्त लोग अटल श्रद्धा भाव के साथ माला के जिन मणकों का सिमरण करते हैं वह माला के मणके हम ब्राह्मण बच्चों का ही यादगार है इस बात को स्मृति में ला कर मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मुझे माला का मणका अवश्य बनना है। *इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, अपने प्यारे मीठे बाबा से विजय का तिलक लेने के लिए मैं अपनी साकारी देह से अलग हो कर अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर चल पड़ता हूँ फरिश्तों की दुनिया सूक्ष्म लोक की ओर*। साकारी दुनिया में विचरण करता हुआ इस लोक की हर वस्तु को देखता हुआ मैं उड़ता जा रहा हूँ।
➳ _ ➳ उड़ते - उड़ते मैं फ़रिशता गंगा के तट पर पहुंच जाता हूँ और देखता हूँ गंगा के किनारे बैठे अनेक ब्राह्मणों को अपने हाथ मे माला ले कर फिराते हुए। *माला के मणके के रूप में अपने ही स्वरूप का भक्ति में इतना मान देख मैं मन ही मन खुशी से गदगद हो रहा हूँ*। गंगा के तट को छोड़, अति तीव्र गति से उड़ते हुए अब मैं फ़रिशता सेंकड में आकाश को पार कर फरिश्तो की दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ। *सफेद प्रकाश से प्रकाशित इस दुनिया मे प्रकृति के पांच तत्वों से निर्मित कोई भी वस्तु नही*। चारों और लाइट की सूक्ष्म देह धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहें हैं।
➳ _ ➳ फरिश्तों की इस दिव्य अलौकिक दुनिया मे मैं फ़रिशता सैर कर रहा हूँ और सूक्ष्म लोक के दिव्य नज़ारे देख आनन्दित हो रहा हूँ। *सूक्ष्म लोक के अति मनोहारी सुंदर नज़ारो का आनन्द लेता हुआ अब मैं फ़रिशता बापदादा के पास पहुंच जाता हूँ*। मैं देख रहा हूँ बापदादा के हाथ मे एक बहुत सुंदर विजय माला है जिसका एक - एक मणका अति सुंदर दिव्य आभा से दमक रहा है। हर मणका हीरे के समान चमक रहा है। *माला के हर मणके को बाबा बड़ी प्यार भरी दृष्टि से देख रहें हैं। बाबा की दृष्टि पड़ते ही माला के वो मणके चमकते हुए चैतन्य सितारों के रूप में दिखाई देने लगे हैं*। हर चैतन्य सितारे को बाबा अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहें हैं। बाबा की शक्तियों से हर चैतन्य सितारे की चमक करोड़ो गुणा बढ़ने लगी है।
➳ _ ➳ इस सुंदर दृश्य को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रहा हूँ । माला के उन मणकों में अब मैं स्वयं को माला के एक खूबसूरत मणके के रूप में देख रहा हूँ। बाबा बड़े प्यार से मुझे दृष्टि दे रहें हैं। *अपने हाथों से मुझे छू कर जैसे अपनी सारी शक्तियां मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं*। मेरा स्वरूप निखरता जा रहा है। अति उज्ज्वल, चैतन्य सितारा बन, परमात्म शक्तियों से स्वयं को और अधिक भरपूर करने के लिए अब मैं परमधाम की ओर जा रहा हूँ। *बीज रूप स्थिति में अब मैं परमधाम में अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ और बाबा की अनन्त शक्तियों को स्वयं में समाकर बाप समान बन रही हूँ*। परमात्म शक्तियों का तेज करेन्ट मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े किचड़े को भस्म कर मुझे डायमण्ड के समान बेदाग बना रहा है।
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से सम्पन्न हो कर अब मैं बेदाग हीरा, मैं आत्मा, मैं चैतन्य शक्ति वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और अपने साकारी शरीर रूपी चोले को धारण कर, अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *माला का मणका बनने के लिए अब मैं वफादार, फरमानबरदार बन बाबा के हर फरमान का पालन कर रही हूँ*। बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण कर, धारणामूर्त बन, ईश्वरीय सेवाओं में बाबा की मददगार बन रही हूँ। *अपने शिव पिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर चल चारों सब्जेक्ट ज्ञान, योग, धारणा और सेवा पर पूरा अटेंशन देते हुए, माला का मणका बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बुद्धि को बिजी रखने की विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त करती हूँ ।*
➳ _ ➳ *बापदादा की दिव्य वाणी... मुरली... का मंथन हर पल करती मैं आत्मा... माया रूपी व्यर्थ संकल्पो को समाप्त करती जा रही हूँ...* बुद्धि को बिजी रखने की विधि द्वारा मैं आत्मा... व्यर्थ सोच... व्यर्थ बोल... व्यर्थ कर्म से और कर्म के प्रभाव से मुक्त... *उडता पंछी बन... उड़ती कला में तीव्र पुरुषार्थ को हाई जम्प दे रही हूँ...* असमर्थता को समर्थता में बदलती मैं आत्मा... शक्तिशाली बनती जा रही हूँ... *बापदादा की श्रीमत पर चलने की यथार्थ विधि* द्वारा मैं आत्मा अपनी बुद्धि को बिजी रख... व्यर्थ संकल्पों को समाप्त करती समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ... *व्यर्थ से मुक्त बुद्धि अब सिर्फ बापदादा को देखने.. सुनने... और समझने में सफल हो रही हैं...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- परमात्म प्यार में खोये रहने से, दुःख की दुनिया को भूलने का अनुभव"*
➳ _ ➳ सदा परमात्म प्यार के स्नेह में... लाइट के फाउण्टेन में... स्नान करने वाली विशेष आत्मा हूँ... *कोटों में कोई और कोई में भी कोई... बाप द्वारा चुनी गई*... बाप के नयनों के सितारे... बाप के दिलतख्तनशीं आत्मा हूँ... *साधरण नही विशेष हूँ... यह स्मृति मुझ आत्मा को... इस दुःख की दुनिया से दूर... सुख की दुनिया की अनुभूति कराता है*... ऐसा अनुभव होता है... कि मैं आत्मा इस दुःख की दुनिया में होते हुए भी नही हूँ... *इस दुख की दुनिया से कोई लगाव और झुकाव नही*... पुरानी दुनिया का सब भूलता जा रहा है... पुराना जो भी है समाप्त होता जा रहा है... *मैं और मेरेपन से फ्री होती जा रही हूँ... बाबा की गोद का बच्चा... नयनों का नूर बनती जा रही हूँ*... वाह!!! बाबा अपने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया... *खुशियों के पंख दे दिए उड़ने के लिए*... मीठे बाबा!!!आपकी लाइट और माइट की किरणें मुझ आत्मा को सुख की अनुभूति करा रही है...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ऐसे नहीं सोचना कि अभी कुछ समय तो पड़ा है, इतने में विनाश तो होना नहीं है, यह नहीं सोचना। विनाश होना है अचानक। पूछकर नहीं आयेगा कि हाँ तैयार हो! सब अचानक होना है। आप लोग भी ब्राह्मण कैसे बनें? *अचानक ही सन्देश मिला, प्रदर्शनी देखी, सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ बदल गये। क्या सोचा था कि इस तारीख को ब्राह्मण बनेंगे? अचानक हो गया ना! तो परिवर्तन भी अचानक होना है।* आपको पहले माया और ही अलबेला बनायेगी, सोचेंगे हमने तो दो हजार सोचा था - वह भी पूरा हो गया, अभी तो थोड़ा रेस्ट कर लो। पहले माया अपना जादू फैलायेगी, अलबेला बनायेगी। किसी भी बात में, चाहे सेवा में, चाहे योग में, चाहे धारणा में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में यह तो चलता ही है, यह तो होता ही है ...., ऐसे पहले माया अलबेला बनाने की कोशिश करेगी।
➳ _ ➳ *फिर अचानक विनाश होगा, फिर नहीं कहना कि बापदादा ने सुनाया ही नहीं, ऐसा भी होना है क्या!* इसलिए पहले ही सुना देते हैं - अलबेले कभी भी किसी भी बात में नहीं बनना। *चार ही सबजेक्ट में अलर्ट, अभी भी कुछ हो जाए तो अलर्ट।* उस समय नहीं कहना बापदादा अभी आओ, अभी साथ निभाओ, अभी थोड़ी शक्ति दे दो, उस समय नहीं देंगे। *अभी जितनी शक्ति चाहिए, जैसी चाहिए उतनी जमा कर लो। सबको खुली छुट्टी है, खुले भण्डार हैं, जितनी शक्ति चाहिए, जो शक्ति चाहिए ले लो। पेपर के समय टीचर वा प्रिन्सीपाल मदद नहीं करता।*
✺ *ड्रिल :- "अचानक की स्मृति से अलर्ट होकर अलबेलेपन से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ पहाड़ी की ऊँची चोटी पर खड़ी मैं आत्मा... देख रही हूँ प्रकृति के सौंदर्य को... आह्लादक नज़ारा... हरियाली की चुनरी ओढ़े सजी धरती... नीला नीला आसमान... जरमर जरमर बहते झरनें... असीम शांति की आगोश में मैं आत्मा सिर्फ एक की ही यादों में खोई हूँ... *वह हैं मेरे शिवबाबा... मेरे पिता परमेश्वर... ब्रह्माण्ड के स्वामी की मैं संतान... बिंदु रूपी बाप की यादों में बिंदु रूप बनती जा रही हूँ... देवकुल की मैं देव आत्मा... देवताई गुणों के स्वामी का आह्वान करती हूँ...*
➳ _ ➳ मेरे पिता परमेश्वर... अपनी राज दुलारी का दुलार भरा आह्वान सुन कर मेरे समीप आ जाते हैं... *ब्रह्मा तन में अवतरित मेरे पिता का भव्य रूप देख के मैं आत्मा भाव विभोर हो जाती हूँ...* अश्रुभीनी आँखों से मैं बापदादा के गले मिलती हूँ... बापदादा मुझे अपने पास बिठा कर मुझ आत्मा के सर पर आशीर्वादों से भरा रूहानी हाथ रख रहे हैं... बापदादा से आती हुई शक्तियों को मैं आत्मा अपने में धारण करती जा रही हूँ... *और अचानक बापदादा का धर्मराज का रूप देख मैं आत्मा भयभीत हो जाती हूँ...* बापदादा मेरा हाथ पकड़ें ले चलते हैं सूक्ष्म वतन में... और मैं आत्मा डरी हुई... सहमी सहमी सी बापदादा को देखती रहती हूँ... आँखों में अश्रु की धारा बहती ही जा रही हैं...
➳ _ ➳ सूक्ष्म वतन में बापदादा मेरे सर पर अपना हाथ रख कर मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहे हैं... *मनुष्यलोक में चारों ओर विनाश का तांडव रचा हुआ हैं... प्रकृति के पाचों तत्व का विकराल रूप देख कर मैं आत्मा अचंभित हो जाती हूँ...* कहीं ओर आकाश अग्नि वर्षा कर रहा है तो कहीं ओर वरुण का रौद्र रूप दिखाई दे रहा है... कहीं ओर जलसमाधि लिये हुए शहरों को देख रही हूँ... तो कहीं ओर पूरी धरती अचेतन शरीरों का बोझ उठा रही हैं... *त्राहिमाम त्राहिमाम सारी सृष्टि हो गई हैं... और त्राहिमाम त्राहिमाम हर आत्मा बन गयी हैं...*
➳ _ ➳ और मैं आत्मा देख रही हूँ अपने आप को इस विनाशी दुनिया में... अपने अंतिम पलों को महसूस करती हूँ... *समाधि अवस्था में बैठी मैं आत्मा सिर्फ बाप को याद करती हूँ... अंतिम समय में बापदादा की गोदी का सहारा लेकर मैं आत्मा शांति का अनुभव कर रही हूँ...* अब तो अपने घर को जाना हैं... अपने पिता के घर... और फिर सतयुगी दुनिया में रहना हैं... यह बात याद करती मैं आत्मा मृत्यु शैया पर भी मुस्कुराती रहती हूँ... बाप के रंग में रंगी मैं आत्मा... अब मृत्यु को अपने गले का हार बना रही हूँ... अपने अंतिम समय में बापदादा का शुक्रिया अदा करती हूँ... कर्मातीत अवस्था की अंतिम स्टेज पर पहुँची मैं आत्मा... अपनी आँखों से बापदादा को ही देख रही थी... *अंतिम स्वांस लेती मैं आत्मा... बापदादा की बाहों में सदा के लिए समां जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ बापदादा का रूहानी हाथ मेरे सर से उठते ही... मैं आत्मा वापिस स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूँ... और *मैं आत्मा यह नज़ारा देख मन ही मन अपने स्थूल देह को श्रद्धांजलि अर्पण करती हूँ... खुद के ही हाथों मंसा अग्निदाह दे रही हूँ...* और बापदादा को मुस्कुराते हुए देखती हूँ... उनका धर्मराज का रूप परिवर्तित हो कर मेरे बाबा का रूप दिखाई दे रहा है... और बापदादा द्वारा सतयुगी स्वराज्य अधिकार को प्राप्त करती हूँ... *अंत में ही आरम्भ को देखती मैं आत्मा कब बापदादा का सन्देश मिला... कैसे प्रदर्शनी देखी... कब सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ और अचानक ही बापदादा की बन गईं... कभी सोचा भी नहीं था कि ब्राह्मण जन्म मिलेगा...* और ऐसा शानदार... वैभवी ठाठबाठ... से खुद के ही हाथों से खुद का अग्निदाह करने को मिलेगा... *बापदादा के महावाक्य "अंत मती सो गति" को सफल कर दिखाया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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