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 14 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *श्रीमत पर ज्ञान और योगबल से माया पर विजय प्राप्त की ?*

 

➢➢ *अन्नदोष से बहुत बहुत संभाल की ?*

 

➢➢ *व्यर्थ की अपवित्रता को समाप्त कर सम्पूरण स्वच्छ बनकर रहे ?*

 

➢➢ *हर तूफ़ान को तोहफा बनाया ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  ब्राह्मण संगठन का आधार आत्मिक प्यार है। चलते-फिरते आत्मिक प्यार की वृत्ति, बोल, सम्बन्ध - सम्पर्क अर्थात् कर्म हो। *ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर मास्टर प्रेम का सागर है। इसी नेचर को धारण करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बापदादा के समीप रत्न हूँ"*

 

✧  सदा स्वयं बाप के समीप रत्न समझते हो? समीप रत्न की निशानी क्या होगी? समीप अर्थात् समान। समीप अर्थात् संग में रहने वाले। संग में रहने से क्या होता है? वह रंग लग जाता है ना। *जो सदा बाप के समीप अर्थात् संग में रहने वाले हैं उनको बाप का रंग लगेगा तो बाप समान बन जायेंगे।* समीप अर्थात् समान ऐसे अनुभव करते हो? हर गुण को सामने रखते हुए चेक करो कि क्या क्या बाप समान है? हर शक्ति को सामने रख चेक करो कि किस शक्ति में समान बने हैं। आपका टाइटल ही है 'मास्टर सर्वगुण सम्पन्न, मास्टर सर्व शक्तिवान'।

 

✧  तो सदा यह टाइटल याद रहता है? सर्वशक्तियाँ आ गई अर्थात् विजयी हो गये फिर कभी भी हार हो नहीं सकती। जो बाप के गले का हार बन गये उनकी कभी भी हार नहीं हो सकती। *तो सदा यह स्मृति में रखो कि मैं बाप के गले का हार हूँ, इससे माया से हार खाना समाप्त हो जायेगा। हार खिलाने वाले होंगे, खाने वाले नहीं।* ऐसा नशा रहता है?

 

✧  हुनमान को महावीर कहते हैं ना। महावीर ने क्या किया? लंका को जला दिया। खुद नहीं जला, पूंछ द्वारा लंका जलाई। तो लंका को जलाने वाले महावीर हो ना। माया अधिकार समझकर आये लेकिन आप उसके अधिकार को खत्म कर अधीन बना दो। हनूमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी था। अपने को सेवक समझता था। तो यहाँ जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं। जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते। हनुमान के दिल में सदा राम बसता था ना। एक राम दूसरा न कोई। *तो बाप के सिवाए और कोई भी दिल में न हो। अपने देह की स्मृति भी दिल में नहीं। सुनाया ना कि देह भी पर है, जब देह ही पर होगई तो दूसरा दिल में कैसे आ सकता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कर्मातीत का अर्थ ही है हर सबजेक्ट में फुल पास। 75 परसेन्ट, 90 परसेन्ट भी नहीं, फुल पास। यह अवस्था तब आयेगी जब अपने अनुभव में सर्व शक्तियों का स्टॉक प्रैक्टिकल में यूज में आवे।

पहले भी सुनाया - *सर्वशक्तियाँ बाप ने दी, आपने ली लेकिन समय पर यूज होती हैं या नहीं, सिर्फ स्टॉक ही है!*

 

✧   सिर्फ स्टॉक है लेकिन समय पर यूज नहीं हुआ तो होना या न होना एक ही बात है। यह अनुभव करो परिस्थिति बहुत नाजुक है लेकिन *ऑर्डर दिया मन-बुद्धि को कि न्यारे होकर खेल देखो तो परिस्थिति आपके इस अचल स्थिति के आसन के नीचे दब जायेगी।* सामना नहीं करेगी।

 

✧  आसन नहीं छोडो, *आसन में बैठने का अभ्यास ही सिंहासन प्राप्त करायेगा।* अगर आसन पर बैठना नहीं आता है, कभी-कभी बैठना आता है तो सिंहासन में भी कभी-कभी बैठेगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा मुरलीधर बाबा से सच्ची सच्ची गीता सुनने सेण्टर पहुँच जाती हूँ...* प्यारे बाबा ऊँचे ते ऊँचे धाम से मुझ आत्मा को सत्य ज्ञान देकर दुखों से मुक्त करने इस धरा पर उतर आयें हैं... असत्य की दुनिया से निकाल सत्य की दुनिया में ले जाने आयें हैं... मैं मगन अवस्था में बैठ प्यारे मुरलीधर बाबा की मुरली सुनती हूँ...

 

   *ज्ञान के सागर मेरे प्यारे बाबा ज्ञान की बरसात करते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य ज्ञान के बिना सत्य पिता के बिना किस कदर दुखो की अंधी गलियो में भटक रहे थे... *अब जो ईश्वर पिता ने अपनी पलको से चुनकर फूलो सा सजाया है... ज्ञान रत्नों से मालदार बनाया है... उस मीठे भाग्य के नशे में झूम जाओ...* और ब्राह्मण होने के मीठे भाग्य पर इठलाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा आदि-मध्य-अंत के ज्ञान को पाकर त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे ज्ञान रत्नों की असीम दौलत पाकर... सारे सुखो को कदमो में बिखरा रही हूँ... स्वयं से थी कभी अनजान जो आज त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रही हूँ... *ब्रह्मा वंशी बन विश्व धरा पर चहक रही हूँ...”*

 

   *मीठे बाबा मुझे रचना रचता का ज्ञान देकर स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दुनिया जिसे पुकार रही... *वह विश्व पिता अपने बच्चों को बैठ पढ़ा रहा... ज्ञान रत्नों से दामन सजा रहा... अपनी सारी जागीर सारे खजाने बच्चों पर दिल खोल लुटा रहा...* सारे राज बताकर सदा का समझदार बना रहा... इस खुबसूरत मीठे भाग्य के नशे में झूम झूम जाओ...

 

_ ➳  *बाबा के प्यार में सुख को पाते हुए सुख सागर में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने अनोखे अदभुत से भाग्य पर बलिहार हूँ... धरा की मिटटी से सने देह के रिश्तो से निकल... सच्चे प्यार सच्चे धन को पा रही हूँ... *यूँ भगवान की गोद में इठलाऊँगी... भला कब मैंने सोचा था...* कितना मीठा सा मेरा भाग्य है...

 

   *मेरे बाबा ज्ञान रतन धन से सजाकर ज्ञान रत्नों की खान सौगात में देते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता से वर्से में जो ज्ञान धन पाकर मालामाल बने हो... उस दौलत को हर साँस संकल्प में गिनते ही रहो... पूरे विश्व में आप चुने हुए भाग्यशाली ब्रह्मा वत्स हो... और *ईश्वर पिता के हर जज्बात को जानने वाले उनके दिल पर राज करने वाले दिल पसन्द हो... इस नशे की खुमारी में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमात्म प्यार की अधिकारी बन प्यारे बाबा के दिलतख़्त पर बैठ मुस्कुराते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आज आपके प्यार को पाकर कितनी धनवान् हो गयी हूँ... *ज्ञान रत्नों की बेशुमार दौलत मेरे चँहु ओर बिखरी है...* और इस अखूट खजाने को पाकर ज्ञान परी बन चहक रही हूँ... मा त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद का राज्य लेने के लिए हर बात में अपना बचाव करते रहना है*"

 

_ ➳  21 जन्मों के लिए बेहद विश्व का राज्य भाग्य देने वाले अपने शिव पिता का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए मैं जैसे ही उस राज्य भाग्य के बारे में विचार करती हूँ *उस खूबसूरत सतयुगी दुनिया के खूबसूरत दृश्य मेरी आँखों के सामने स्पष्ट होने लगते हैं और उन खूबसूरत दृश्यों का आनन्द लेते - लेते मन बुद्धि से मैं उस खूबसूरत दुनिया में पहुँच जाती हूँ*।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं स्वयं को हीरों के समान जगमग करते एक बहुत बड़े राजमहल में जहाँ बहुत सुंदर राज दरबार लगी है। उस राजदरबार में डबल ताज धारण किये, विश्व महारानी के रूप में राज सिहांसन पर मैं विराजमान हूँ। *राज सिहांसन के ऊपर सोने का एक सुंदर छत्र सुशोभित हो रहा है। दायें बायें सोने की झालरों वाले सुंदर पंखों को अपने हाथों से झुलाते, मुख मण्डल पर मीठी मधुर मुस्कान बिखेरे, दास दासी खड़े हैं*। सामने राजनर्तकी नृत्य कर रही हैं। राजदरबार में उपस्थित सभी राजा रानी प्रसन्नचित मुद्रा में राजदरबार में होने वाली हर गतिविधि का आनन्द ले रहे हैं।

 

_ ➳  राजमहल के अंदर के इस खूबसूरत दृश्य का भरपूर आनन्द लेने के बाद राजमहल के बाहर के खूबसूरत दृश्यों का आनन्द लेने के लिए अब मैं राजमहल के बाहर बने बहुत बड़े उपवन में आ जाती हूँ। *चारों और प्रकृति के ख़ूबसूरत नज़ारे। हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणें*। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख रही हूँ।

 

_ ➳  सोने के महीन धागों से बनी हीरे जड़ित अति शोभनीय ड्रेस पहने नन्हे - नन्हे राजकुमार राजकुमारियां उपवन में खेल रहे हैं। *सुख, शान्ति, सम्पन्नता से भरपूर इस देवलोक में सोलह कलाओं से युक्त, मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवता अपने पुष्पक विमानों में विहार कर रहे हैं*। रमणीकता से भरपूर देवलोक के इन नजारों का आनन्द लेकर मैं जैसे ही अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ। बाबा के महावाक्य स्मृति में आते हैं कि *"बेहद का राज्य लेने के लिए हर बात में अपना बचाव करते रहना है"*।

 

_ ➳  बाबा के इन महावाक्यों को स्मृति में लाकर स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि 21 जन्मों का बेहद विश्व का राज्य भाग्य लेने के लिए पहले मुझे यहाँ संगम युग पर स्वराज्य अधिकारी बनने का पुरुषार्थ करना है। और इसी प्रतिज्ञा के साथ अब मैं इस लक्ष्य को पाने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण जीवन मे अब मैं अपने हर कर्म पर विशेष अटेंशन दे रही हूँ। 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम बनने के लिए ब्राह्मण जीवन के नियमों और मर्यादाओं का पालन करते हुए, संग दोष से अपनी पूरी सम्भाल करते, खान - पान, स्वभाव, संस्कार आदि हर बात में अपना बचाव करते हुए, अपने बेहद के इस लक्ष्य को पाने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं पूरी लगन के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं व्यर्थ की अपवित्रता को समाप्त कर सम्पूर्ण स्वच्छ बनने वाली होलिहंस आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं नाव और खिवैया को मजबूत कर तूफान को तोहफा बनाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. एक बात बापदादा ने मैजारिटी में देखी है। मैनारिटी नहीं मैजारिटी। क्या देखाजब कोई सरकमस्टांश सामने आता है तो मैजारिटी में एकदोतीन नम्बर में क्रोध का अंश न चाहते भी इमर्ज हो जाता है। कोई में महान क्रोध के रूप में होताकोई में जोश के रूप में होताकोई में तीसरा नम्बर चिड़चिड़ेपन रूप में होता है। चिड़चिड़ापन समझते होवह भी है क्रोध का ही अंशहल्का है। तीसरा नम्बर है ना तो वह हल्का है। पहला जोर से हैदूसरा उससे थोड़ा। फिर भाषा तो आजकल सबकी रायल हो गई है। तो रायल रूप में क्या कहते हैं? बात ही ऐसी है नाजोश तो आयेगा ही। तो *आज बापदादा सभी से यह गिफ्ट लेने चाहते हैं कि क्रोध तो छोड़ो लेकिन क्रोध का अंश मात्र भी नहीं रहे।* क्योंक्रोध में आकर डिस-सर्विस करते हैं क्योंकि क्रोध होता है दो के बीच में। अकेला नहीं होता हैदो के बीच में होता है तो दिखाई देता है। चाहे मन्सा में भी किसके प्रति घृणा भाव का अंश भी होता है तो मन में भी उस आत्मा के प्रति जोश जरूर आता है। तो बापदादा को यह डिस-सर्विस का कारण अच्छा नहीं लगता है। तो क्रोध का भाव अंश मात्र भी उत्पन्न न हो। जैसे ब्रह्मचर्य के ऊपर अटेन्शन देते होऐसे ही काम महाशत्रुक्रोध महाशत्रु गाया हुआ है। शुभ भावप्रेम भाव वह इमर्ज नहीं होता है। फिर मूड आफ कर देंगे। उस आत्मा से किनारा कर देंगे। सामने नहीं आयेंगेबात नहीं करेंगे। उसकी बातों को ठुकरायेंगे। आगे बढ़ने नहीं देंगे। यह सब मालूम बाहर वालों को भी पड़ता है फिर भले कह देते हैंआज इसकी तबियत ठीक नहीं हैबाकी कुछ नहीं है। *तो क्या जन्म-दिवस की यह गिफ्ट दे सकते हो?*

 

 _ ➳  2. *सच्ची दिल पर भी साहेब राजी होता है।*

 

 _ ➳  3. जो समझते हैं कि हम दो तीन मास में कोशिश करके छोड़ेंगे वह बैठ जाओ। और जो समझते हैं 6 मास चाहिएअगर 6 मास पूरा लेंगे भी तो कम करनाइस बात को छोड़ना नहीं क्योंकि यह बहुत जरूरी है। यह डिससर्विस दिखाई देती है। मुख से नहीं बोलोशक्ल बोलती है। इसलिए *जिन्होंने हिम्मत रखी है उन सब पर बापदादा ज्ञान, प्रेमसुखशान्ति के मोतियों की वर्षा कर रहे हैं।* अच्छा।

 

 _ ➳  4. बापदादा रिटर्न सौगात में यह विशेष सभी को वरदान दे रहे हैं - *जब भी गलती से भीन चाहते हुए भी कभी क्रोध आ भी जाए तो सिर्फ दिल से 'मीठा बाबाशब्द कहनातो बाप की एक्स्ट्रा मदद हिम्मत वालों को अवश्य मिलती रहेगी। मीठा बाबा कहना, सिर्फ बाबा नहीं कहना, *'मीठा बाबातो मदद मिलेगीजरूर मिलेगी* क्योंकि लक्ष्य रखा है ना। तो लक्ष्य से लक्षण आने ही हैं। 

 

✺   *ड्रिल :-  "क्रोध को अंश सहित बापदादा को गिफ्ट में देना"*

 

 _ ➳  मैं ज्योति बिंदु स्वरूप आत्मा अपना फरिश्ता रूप धर कर बाबा से मिलन मनाने सूक्ष्म वतन जा रही हूं... जहाँ मेरे मीठे बाबा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... *चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बाबा अपने कोमल हाथों से मुझे अपने पास में बिठाते हैं...* बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...  

 

 _ ➳  मैं आत्मा कई जन्मों से आसुरी कर्म कर आसुरी संस्कार धारण करने की आदत डाल ली थी... इसको अपना नैचुरल संस्कार बना ली थी... मै आत्मा बाबा को उनके जन्मदिवस पर अपनी क्रोध, जोश, चिड़चिड़ापन रूपी कमी कमजोरियों का गिफ्ट दे रही हूं... मुझ आत्मा की सरल भाव से हिम्मत रखते देख बाबा मुस्कुरा रहे है... बाबा के वरदानी हाथों के कोमल स्पर्श से *सभी अवगुणों, कमी-कमजोरियों, क्रोध, चिड़चिड़ापन इत्यादि विकारों से मुक्त होकर मैं आत्मा शुद्ध व हलकी हो रही हूँ...*

 

 _ ➳  *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में खुशी का रस घोल रही है... मैं आत्मा अपने मन से घृणा भाव को मिटाते हुए बाप समान मीठी बन रही हूँ...* मुझ आत्मा के क्रोध व घृणा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... बाबा के हाथों से दिव्य गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के क्रोधवश साथी आत्माओ से किनारा कर लेने के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को खुद में समा कर सभी के प्रति शुभ भाव, प्रेम भाव को धारण कर सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा स्वयं को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा क्रोध, चिड़चिड़ापन, साथी आत्माओ से किनारा कर लेने रूपी कलियुगी संस्कार से मुक्त हो रही हूँ...* मैं आत्मा हर परिस्थिति में अपनी धारणा में परिपक्व हो रही हूँ...

 

 _ ➳  *बाबा सर्व वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मैं आत्मा विकारों से मुक्त होकर सर्व खजानों से सम्पन्न हो रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा से हर पल मीठा बने रहने का वायदा करती हूं और दिल से मीठा बाबा कहते स्थूल वतन लौट आती हूं, नीचे आकर सभी आत्माओ को मीठी दृष्टि दे रही हूं, सभी के प्रति शुभ भाव व प्रेम भाव रखते हुए *इस कर्म भूमि में विश्व कल्याणकारी बन विश्व की निःस्वार्थ सेवा कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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