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 19 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बाप समान बहुत मीठा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *किसी का अवगुण तो नहीं देखा ?*

 

➢➢ *गोडली स्टूडेंट लाइफ की ख़ुशी में रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *बापदादा की आशाओं का दीप जगाकर सच्ची दीपावली मनाई ?*

 

➢➢ *पवित्रता की धारणा पर विशेष अटेंशन रहा ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  ज्ञानी तू आत्मा हो ना? ज्ञानी का अर्थ ही है समझदारा और आप तो तीनों कालों के समझदार हो, इसलिए *होली मनाना अर्थात इस गलती को जलाना।* जो भूलना है वह सेकण्ड में भूल जाये और जो याद करना है वह सेकण्ड में याद आए। कारण सिर्फ बिन्दी के बजाए क्वेचन मार्क है।

 

✧  क्यों सोचा और क्यू शुरू हो जाती है। ऐसा, वैसा, क्यों, क्या बडी क्यू शुरू हो जाती है। सिर्फ क्वेचन मार्क लगाने से। और बिन्दी लगा दो तो क्या होगा? *आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और व्यर्थ को भी बिन्दी, फुलस्टॉप स्टॉप भी नहीं, फुलस्टॉप।* इसको कहा जाता है होली।

 

✧  और इस होली से सदा बाप के संग के रंग की होली, मिलन मानते रहेंगे। सबसे पक्का रंग कौन-सा है? यह स्थूल रंग भल कितने भी पक्के हो लेकिन *सबसे पक्का रंग है बाप के संग का रंगा तो इस रंग से मनाओ।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  खुद नॉलेजफुल बनकर, औरो को भी बनाना"*

 

_ ➳  शांति स्तम्भ में मीठे बाबा से आती.... शीतल और शांत किरणों तले बेठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा से पाये अखूट खजानो का आकलन करती हूँ... और *उसकी बदौलत पायी अथाह अमीरी को निहारती हूँ... तो पाती हूँ, कि इस पूरे विश्व में मै आत्मा... सबसे अमीर हूँ, क्योकि मेरे पास ईश्वरीय खानों का अम्बार है.*.. दुखो की गरीबी अब ओझल हो गयी है... और मेरे चारो तरफ सुख ही सुख बिखरा है... मीठे बाबा ने मुझे धनवान्, ज्ञानवान बनाकर, मुझे बेहद का समझदार बना दिया है...कभी खुद को भी न जानने वाली मै आत्मा... *मीठे बाबा की छत्रछाया में पूरे ब्रह्माण्ड की जानकारी...बुद्धि जेब में रख कर घूम रही हूँ... कितना प्यारा यह इत्तफाक है.*.. और मीठे बाबा की यह कितनी प्यारी जादूगरी है...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को नई दुनिया का मालिक बनाने के लिए ज्ञान धन से सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... सच्चे पिता को पाकर, सच्चे ज्ञान से भरपूर होकर... सदा खुशियो में खिलखिलाते रहो... मीठे बाबा के मददगार बनकर, नई दुनिया के स्थापना में सहयोग के हाथ बढ़ाओ... और *अपने भाग्य में चार चाँद लगाओ... इस कदर ज्ञान रत्नों से भर जाओ... सदा यह रत्न छलकते रहे*..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में गहरे डूबकर अतीन्द्रिय सुख पाते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे मनमीत बाबा... *आपने मेरे जीवन में आकर, जीवन को अनोखी अदा से सजाया है... आज जीवन मूल्यों से सजा हुआ... ईश्वरीय प्रेम से छलक रहा है.*.. और हर दिल को आपका दीवाना बना रहा है... मै आत्मा आपसे पायी ज्ञान धन की दौलत को सारे विश्व में बांटकर सब्को मालामाल बनाती जा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यार में सतयुग दुनिया का सरताज बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... मीठे बाबा ने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर जो त्रिकालदर्शी बनाया है... वही बेहद की नजर हर दिल को भी दिलाओ... *सबको आप समान ईश्वरीय धन से अमीर बनाओ... और मीठे बाबा से असीम खुशियो की जागीर दिलवाकर... सबके दिल आँगन में सच्चे सुखो की फुलवारी सजाओ.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से असीम प्यार को पाकर, पूरे विश्व को पर उंडेलते हुए कहती हूँ :-"सच्चे साथी मेरे बाबा... मै आत्मा सुखो से सजी, नई दुनिया को बनाने में ईश्वर पिता की सहयोगी बनूंगी... भला यह मेने कब सोचा था... आज इस महान भाग्य को पाने वाली... *सबसे ज्यादा भाग्यवान बन गयी हूँ... और इन मीठी खुशियो और मीठे भाग्य को हर आत्मा की तकदीर बना रही हूँ.*.."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से सजाकर, देवताई श्रंगार से निखारते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता से पाये अखूट खजानो को अमूल्य ज्ञान रत्नों को... पूरे विश्व पर लुटाने वाले विश्व कल्याणकारी बनकर मुस्कराओ,... आप समान मीठा प्यारा भाग्य, हर आत्मा का भी सजाओ... *मीठे बाबा से पायी सच्ची खुशियो और आनन्द से हर दिल को अभिभूत करो..*. सबको दुखो के जंगल से निकालकर सुखो की बगिया में सदा का आराम दिलाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से अथाह प्यार पाकर, रहम की भावना से भरकर... हर दिल को सच्चे सुख दिलाकर कहती हूँ :-" मेरे प्यारे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके साये में प्रेम स्वरूप बनकर मुस्करा रही हूँ... हर दिल का भला चाहने वाली... *ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से सजाने वाली... मा सुखदाता बन गयी हूँ... सबकों प्यारे बाबा से मिलवाने वाली रहनुमा बन गयी हूँ.*.."मीठे बाबा से अथाह वरदानों से सजकर मै आत्मा... इस साकारी देह में आ गयी....

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप समान बहुत मीठा बन सबको मीठी दृष्टि से देखना*"

 

 _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये मैं फ़रिशता सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने बैठा उनकी मीठी दृष्टि से स्वयं को निहाल कर रहा हूँ। बापदादा की मीठी दृष्टि मेरे रोम - रोम में मिठास घोल रही है और मुझे आप समान मीठा बना रही है। *बाबा की दृष्टि में मेरे लिए समाया असीम स्नेह, प्रेम के मीठे झरने के रूप में मुझ पर निरन्तर प्रवाहित हो रहा है*। बड़े स्नेह से निहारते हुए बाबा मेरी बुद्धि रूपी झोली को वरदानों से भरपूर कर रहें हैं। मुझे आप समान बहुत बहुत मीठा बना कर, सबको मीठी दृष्टि से निहाल कर, सबका कल्याण करने का वरदान दे रहें हैं।

 

 _ ➳  मेरे नैन अपने अति मीठे बापदादा को एकटक निहार रहें हैं। एक पल के लिए भी मेरी आँखें उनके ऊपर से नही हटना चाहती। ऐसा लगता है कि उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म - जन्म की प्यास को मेरी ये आंखे आज ही बुझा लेना चाहती हैं। *बाबा के नयनो में अथाह स्नेह का सागर लहराता हुआ मैं स्पष्ट देख रही हूँ और उस स्नेह की गहराई में मैं डूबती जा रही हूँ*। बाबा के नयनो में समा कर, बाबा को निहारते हुए, बाबा के वरदानी हस्तों को मैं अपने सिर के ऊपर अनुभव कर रही हूँ। बाबा के वरदानी हस्तों से बाबा की सर्वशक्तियाँ, गुण और खजाने मुझ फ़रिश्ते में समा रहें हैं और मुझे सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न बना रहे हैं।

 

 _ ➳  अब मैं सामने से अपनी अति मीठी मम्मा को आते हुए देख रही हूँ जो बाबा के पास आ कर बैठ गई है और बहुत मीठी दृष्टि से मुझे निहारती जा रही हैं। *मम्मा के मस्तक से निकल रही लाइट सीधी मेरे मस्तक पर पड़ रही है और मुझमे असीम शक्ति का संचार कर रही है*। मम्मा का मुस्कराता हुआ चेहरा और मीठी मुस्कान मुझे दिल की गहराई तक स्पर्श कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी मीठी मुस्कान और मीठी दृष्टि से मम्मा अपनी सारी मिठास मेरे अंदर प्रवाहित कर मुझे आप समान अति मीठा बना रही है। *अपने हाथ से इशारा करते हुए मम्मा मुझे अपने पास बुला रही है। अपनी गोद में बिठा कर अपने हाथों से मुझे मीठी टोली खिला रही हैं*।

 

 _ ➳  मम्मा के हाथों की मीठी टोली, और बापदादा की अति मीठी दृष्टि से मेरे अंदर देह अभिमान के कारण जो कड़वाहट आ गई थी वो अब बिल्कुल समाप्त हो गई है और मैं स्वयं को विशेष रूहानी स्नेह और प्यार की मिठास से भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाप समान बहुत - बहुत मीठा बन कर अब मैं साकारी दुनिया में वापिस लौट रहा हूँ। *बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर मैं सारे विश्व में चक्कर लगा रहा हूँ और अपने रूहानी स्नेह के वायब्रेशन सारे विश्व मे चारों और फैला रहा हूँ*। मैं देख रहा हूँ रूहानी स्नेह के वायब्रेशन से लोंगो के हृदय परिवर्तन हो रहें हैं। जिस हृदय में एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या - द्वेष और नफरत के भाव थे, वो भाव आपसी स्नेह में परिवर्तित हो रहें हैं। *सभी एक दो को मीठी दृष्टि से देख रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नफरत की दुनिया स्नेह की एक सुंदर दुनिया बन गई है*।

 

 _ ➳  सभी आत्माओं के एक दूसरे के प्रति अति मीठे व्यवहार को देखता हुआ, प्रसन्नचित मुद्रा में मैं फ़रिशता अब साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और अपने मीठे बाबा के प्यार की मिठास से स्वयं को भरपूर करके, उस मिठास से भरपूर वायब्रेशन, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को देते हुए, उनके जीवन को भी मैं मिठास से भर रही हूँ*। मेरी मीठी दृष्टि पा कर सभी आत्माओं की दृष्टि, वृति भी परिवर्तित हो गई है। सभी एक दो को सच्चा रूहानी स्नेह और प्यार दे कर, एक दो के जीवन में खुशियां भर रहें हैं

 

 _ ➳  *सबको आत्मा भाई - भाई की मीठी दृष्टि से देखते हुए, अपने मधुर व्यवहार और मीठे बोल से सबको संतुष्ट करने वाली सन्तुष्ट मणि आत्मा बन मैं अपने मीठे बाबा और सर्व आत्माओं की दुआयों की पात्र आत्मा बन गई हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल:-  मैं आत्मा बापदादा की आशाओं का दीपक जगा कर सच्ची सच्ची दीपावली मनाती हूँ"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा चैतन्य दीपक हूं...* अपने इस *दीपक की ज्योति* को जाग्रत रखने के लिए *मैं सदा बाबा से मिले ज्ञान रूपी घृत को डालती जा रही हूं...* जैसे जैसे ज्ञानानुसार मैं *अपने कर्मों की...अपने संकल्पो...* की श्रेष्ठता बढ़ाती जा रही हूं... वैसे वैसे मुझ आत्मा रूपी दीपक की चमक बढ़ती जा रही है... और *मैं आत्मा कुलदीपक बन बापदादा की आशाओं के दीपक की दीपमाला जला सच्ची दीवाली मना रही हूं...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा... ब्रह्मा मुख वंशावली... सच्ची - सच्ची ब्राह्मण आत्मा हूं... पवित्रता मेरे जीवन का मुख्य श्रृंगार है...* इस आभूषण को धारण किए... मैं आत्मा शिव पिता के गले का हार बन गई हूं... मेरा जीवन शांति, सुख, आनंद से भरपूर है... मैं ही कल्प पहले वाली... गोपी वल्लभ की सच्ची - सच्ची गोपी हूं... *पुरुषोत्तम युग कि... मैं सच्ची - सच्ची ब्राह्मण आत्मा... रूद्र ज्ञान यज्ञ की रक्षक हूं...* पवित्रता मुझ आत्मा का निज धर्म है... इस धर्म में स्थित मैं आत्मा... ब्राह्मण सो फरिश्ता सो देवता बन रही हूं... बाबा से पवित्र जीवन पा मैं आत्मा... धन्य धन्य हो गई हूं... *पाना था सो पा लिया और पाना क्या बाकी रहा... दिल में यह तार बज उठे हैं...*

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  (ड्रिल बहुत अच्छी लग रही थी) यह रोज हर एक को करनी चाहिए। ऐसे नहीं हम बिजी हैं। *बीच में समय प्रति समय एक सेकण्ड चाहे कोई बैठा भी होबात भी कर रहा होलेकिन एक सेकण्ड उनको भी ड्रिल करा सकते हैं* और स्वयं भी अभ्यास कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है। *दो-चार सेकण्ड भी निकालना चाहिए इससे बहुत मदद मिलेगी।* नहीं तो क्या होता हैसारा दिन बुद्धि चलती रहती है नातो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और बीच-बीच में अभ्यास होगा तो जब चाहें उसी समय हो जायेंगे क्योंकि *अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेही पन का अभ्यास बहुत आवश्यक है।* ऐसे नहीं बात पूरी हो जाए और विदेही बनने का पुरुषार्थ ही करते रहें। तो सूर्यवंशी तो नहीं हुए ना! इसलिए *जितना जो बिजी हैउतना ही उसको बीच-बीच में यह अभ्यास करना जरूरी है।* फिर सेवा में जो कभी-कभी थकावट होती है, कभी कुछ-न -कुछ आपस में हलचल हो जाती हैवह नहीं होगा। अभ्यासी होंगे ना। *एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगातो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ।*

 

 _ ➳  युद्ध नहीं करनी पड़े। युद्ध के संस्कारमेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे। लास्ट घड़ी भी युद्ध में ही जायेगीअगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगेचाहे स्वभाव मेंचाहे सम्बन्ध में आने मेंचाहे संकल्प शक्ति मेंवृत्ति में, वायुमण्डल के प्रभाव मेंजिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जानबूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी। इसीलिए *विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है।* कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। *एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा।* जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति होउसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ना। *विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ हैंऔर देह से न्यारा हो गयातो सबसे न्यारा हो गया।* इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, *इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। मन को कन्ट्रोल कर सकेंबुद्धि को एकाग्र कर सकें।* नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। पहले एकाग्र करेंतब ही विदेही बनें। अच्छा। आप लोगों का तो अभ्यास 14 वर्ष किया हुआ है ना! (बाबा ने संस्कार डाल दिया है) फाउण्डेशन पक्का है।

 

✺   *ड्रिल :-  "सारे दिन के बीच-बीच में सेकण्ड में विदेही बनने का अभ्यास करना"*

 

 _ ➳  आवाज से परे, सुनहरी लाल प्रकाशमय निराकार दुनिया में, मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा स्थूल, सुक्ष्म देह से मुक्त, इस मुक्तिधाम के एकदम मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...* मैं सतचित आंनद स्वरूप आत्मा स्वधर्म में स्थित, स्वरूप में स्थित निजानंद में हूँ... *सामने महाज्योती सर्वशक्तिमान... सर्वशक्तिमान से अनंत शक्तियाँ मुझ निराकार आत्मा में समा रही है...* एक-एक शक्ति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा... *अपने अंदर समाती एक-एक का स्वरूप बनती जा रही हूँ...* शिवपिता की किरणों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ मैं विदेही आत्मा... मैं आत्मा अंनत शक्तियों से सम्पन्नता भरपूरता का अनुभव कर रही हूँ... *इसी नव उर्जा के साथ मैं आत्मा धरती की ओर प्रस्थान करती हूँ...* साकारी दुनिया में साकारी देह में मैं आत्मा अवतरित होती हूँ... और मैं आत्मा देख रही हूँ... *स्वयं को इस कर्म क्षेत्र पर भिन्न-भिन्न कार्यकलाप करते हुए...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अब स्वयं को गृह के कार्य करते हुए देख रही हूँ... सभी कार्य करते, *मैं आत्मा एक सेकंड में समस्त चेतना को एकाग्र कर लेती हूँ भृकुटि के मध्य में... सामने आंनद का सागर मेरा बाबा है...* आंनद के सागर से अंनत आंनद की किरणों की बारिश मुझ आत्मा पर हो रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को आंनद स्वरूप अनुभव कर रही हूँ... *पूरे घर में आंनद की किरणों की बारिश मुझ आत्मा से हो रही है... आसपास की हर आत्मा आंनद की अनुभूति कर रही हैं...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... एक भीड़ भरे स्थान से गुजरते हुए... चारों तरफ शोर ही शोर हैं... अलग-अलग तरह के वायब्रेशन्स से वायुमंडल प्रभावित है... *एक पावरफुल बेक्र के साथ मैं आत्मा मन में चल रहे संकल्पों को स्टाप करती हूँ... और स्थित हो जाती हूँ... अपने स्वधर्म में... और गहराई से अनुभव कर रही हूँ...* मैं अपने इस शांत स्वरूप को, शांति के सागर की छत्रछाया में, मुझ शांत स्वरूप आत्मा से *शांति की बारिश चारों ओर हो रही है... सभी आत्माएँ इस शांति की बारिश में भीगकर शांति की अनुभूति कर रही है...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को आफिस में वर्क करते हुए... *इस व्यवस्था के बीच, मैं आत्मा मन में उठ रही विचारों रूपी लहरों को, अन्तरमुखता रूपी सागर के तल में जाकर कहती हूँ कीप क्वाइट...* और सेकेंड में देह से न्यारी मैं विदेही आत्मा पहुंच जाती हूँ... बाबा की कुटिया में चारों तरफ लाल प्रकाश बीच में *मैं आत्मा सुख के सागर बाबा की शक्तिशाली किरणों में स्वयं को सुख स्वरूप अनुभव कर रही हूँ...* मुझ आत्मा से सुख की किरणें चारों ओर फैल रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा बगीचे में अन्य आत्माओं के साथ स्वयं को वार्तालाप करते हुए देख रही हूँ... *ट्रैफिक की आवाज सुन मैं आत्मा एक दम एलर्ट मन में चल रही संकल्पों की धारा को एकाग्रता की शक्ति से मोड कर परमधाम में शिव पिता से जोड़ देती हूँ...* प्रेम के सागर से प्रेम की बरसात मुझ आत्मा पर हो रही है... और मुझ से ये किरणें अन्य आत्माओं पर पड़ रही है... *वे सभी भी ईशवरीय प्रेम का अनुभव कर रही है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा गाड़ी में बैठी हूँ... *मैं आत्मा मन में चल रहे संकल्पों के ट्रैफिक को एक सेकंड में आत्मिक स्थिति रूपी लाल बत्ती जलाकर स्टाप करती हूँ...* अनुभव कर रही हूँ, मैं निराकार आत्मा स्वयं को पवित्रता के सागर के झरने के नीचे... *पवित्रता की अनंत किरणें मुझ आत्मा में समा रही हैं... और मुझ से निकल चारों ओर फैल रही है...* सभी आत्माएं और प्रकृति भी इन किरणों को पाकर सुख-शांति का पवित्रता का अनुभव कर रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को खेतों में कार्य करते हुए... मैं आत्मा खेतों में बीज बो रही हूँ... तभी *मैं आत्मा मन में उठ रही संकल्पों रूपी शाखाओं के विस्तार को एक सेकेंड में समेट परमधाम में अपनी मास्टर बीजरुप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* बीजरुप बाबा की शक्तिशाली किरणों के नीचे *मैं आत्मा स्वयं को बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ... विदेही हूँ ये स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... देह से न्यारे होने से... सब से न्यारी हो गयी हूँ... अब एकाग्रता की शक्ति भी बढ़ गयीं है... कंट्रोलिंग पॉवर भी बढ़ गयी है... देह के कमजोर संस्कार स्वभाव धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे है...* और बार-बार के विदेही होने के अभ्यास से, मैं आत्मा माया के किसी भी प्रकार के प्रभाव से मुक्त हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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