━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 15 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *माया के तूफानो से डरे तो नहीं ?*

 

➢➢ *किसी भी प्रकार के धोके से बचने के लिए श्रीमत लेते रहे ?*

 

➢➢ *निश्चयबुधी बन दूसरी आत्माओं को भी निश्चयबुधी बनाया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मन बुधी की स्वच्छता द्वारा यथार्थ निर्णय लिए ?*

 

➢➢ *सदा शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्प इमर्ज कर व्यर्थ संकल्पों को मर्ज किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  बापदादा देख रहे हैं - बच्चों में उमंग बहुत है, इसलिए शरीर का भी नहीं सोचते। *उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं।* आगे बढ़ना बापदादा को अच्छा लगता है, *फिर भी बैलेन्स अवश्य चाहिए।*

 

✧  भल करते रहते हो, चलते रहते हो लेकिन कभीकभी जेसे बहुत काम होता है तो बहुत काम में एक तो *बुद्धि की थकावट होने के कारण जितना चाहते उतना नहीं कर पाते* और दूसरा - बहुत कम होने के कारण थोडा-सा भी *किसी द्वारा थोडी हलचल होगी तो थकावट के कारण चिडचिडापन हो जाता।*

 

✧  उससे खुशी कम हो जाती है। वैसे अंदर ठीक रहते हो, सेवा का बल भी मिल रहा है, खुशी भी मिल रही है, फिर भी शरीर तो पुराना है ना। इसलिए *टू मच में नहीं जाओ। बैलेन्स रखो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  रूद्र ज्ञान यज्ञ के रक्षक, ब्राह्मण बन, गायन लायक बनना*"

 

_ ➳  कलकल करते झरने का, मधुर संगीत सुनकर, मुझ आत्मा को... *अपने जीवन में सजे सातो गुणो के सुर याद आते है... कि शिव संगीतकार पिता ने मेरे जीवन में आकर... मेरे जीवन को कितना प्यारा दिव्य बनाकर... यूँ गायन योग्य बना दिया है.*. विकारो के बेसुर भस्म कर दिए है... और ज्ञान की वीणा संग, यादो के सुरीले तारो को छेड़...मुझे सतो प्रधानता का गीत सिखाया है... देहभान में बेसुरी हो गयी मुझ आत्मा को.. सातो गुण में कितना सुरीला बनाकर, विश्व स्टेज पर दिव्यता से सजाया है... अपने प्यारे बाबा के प्यार में डूबी हुई मै आत्मा.... प्यार का गीत, मीठे बाबा को सुनाने, सूक्ष्म वतन पहुंचती हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *शिव बाबा ने धरा पर आकर, आप बच्चों को अपनी पलको से चुनकर, जो रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है.*.. उस यज्ञ के सच्चे रक्षक आप ब्राह्मण बच्चे हो... मीठे बाबा की याद में गुणवान और शक्तिवान बनकर... इस यज्ञ में अवगुणों को स्वाहा कर, गायन योग्य बनकर, सतयुग में मुस्कराते हो...."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समेटते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *अपने मीठे भाग्य पर कितना ना नाज करूँ... कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर, यूँ खुशियो में पुनः खिलाया है.*.. सारे विकर्मो से छुड़ाकर, मुझे देवताई श्रंगार से, फिर से सजाया है..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी आँखों का तारा बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... संगम के वरदानी समय में ईश्वर पिता के साथ... अथाह खजानो के मालिक बनकर, रूद्र ज्ञान यज्ञ के रक्षक बन रहे हो... अपनी *दिव्यता और पवित्रता से इस यज्ञ को सम्भाल कर... ईश्वर पिता के दिल में मणि सा सजकर मुस्करा रहे हो.*.. गुणो से सजकर, पूज्य बन रहे हो..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे प्यारे भाग्य पर मुस्करा कर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा स्वयं को ही भूल बेठी थी, आपने मेरे जीवन में आकर... *मुझे अपने प्यार में पवित्र बनाकर... दिव्य गुणो से महकाया है.*.. मुझ आत्मा को अपने साये तले रखकर... गायन योग्य बनाया है... मेरा खोया गौरव पुनः दिलाया है..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन के महान कार्य में अपना सहयोगी बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में आप ब्राह्मण बच्चे ही गायन योग्य बनते हो... शिव पिता के यज्ञ की दिल जान से रक्षा करते हो... फिर *आप ही दिव्यता और पवित्रता की दौलत से, देवताई स्वर्ग का राज्य भाग्य पाते हो*..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को अपने मन बुद्धि दिल में सजाकर कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी गोद में आकर, काँटों से फूल बन गयी हूँ... *ईश्वरीय पालना में पलकर क्या से क्या हो गयी हूँ... वरदानो और शक्तियो से सजकर, गायन योग्य बन गयी हूँ.*.. और देवताई सुखो का अधिकार पा रही हूँ..."मीठे बाबा से बेहद की समझ लेकर मै आत्मा... अपने कार्य क्षेत्र पर आ गयी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मुरली रोज जरूर पढ़नी है और माया के तूफानो से डरना नही है*"

 

_ ➳  अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को जो मुझे हर रोज मुरली के माध्यम से प्राप्त होती है। जिसमे लिखे एक - एक शब्द में मेरे शिव प्रीतम का मेरे प्रति अथाह प्रेम समाया होता है, उस प्रेम भरी पाति को पढ़ कर मैं आत्मा सजनी अपने शिव प्रीतम के प्रेम की गहराई में डूबती जा रही हूँ। *मुरली के एक - एक शब्द में अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। बाबा की मीठी याद प्रेम की मीठी मीठी फुहारों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसती हुई महसूस हो रही है जो मुझे एक बहुत ही न्यारी और प्यारी अवस्था की अनुभूति करवा रही है। *यह न्यारी और प्यारी अवस्था मुझे देह और देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर रही है*।

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त, अशरीरी स्थिति में मैं स्थित होती जा रही हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही मेरे शिव पिता परमात्मा का प्रेम चुम्बक की तरह मुझे अपनी ओर खींच रहा है। *अपने शिव प्रीतम के प्रेम की लग्न में मग्न हो कर मैं आत्मा सजनी विदेही बन, अपनी इस नश्वर देह का परित्याग कर चल पड़ी उनसे मिलने उनके ही धाम, परमधाम की ओर*। परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही अपने शिव प्रीतम के प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अब पहुंच गई अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में।

 

_ ➳  अब मैं स्वयं को आत्माओ की एक ऐसी निराकारी दुनिया मे देख रही हूँ जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही। *हर तरफ चमकते हुए सितारे दिखाई दे रहें हैं और उन सभी चमकते सितारों के बीच मे एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं*। उस ज्योतिपुंज शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली अनन्त किरणों का प्रकाश आत्मा को तृप्त कर रहा है। *उस प्रकाश में सातों गुण और अष्ट शक्तियों का समावेश है जो शक्तिशाली वायब्रेशन के रूप में पूरे परमधाम में फैल रहा है*। ये शक्तिशाली वायब्रेशन आत्मा को उसके ओरिजनल स्वरूप के स्थित करके उसे गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं।

 

_ ➳  अपने शिव प्रीतम के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे आकर, फ़रिशतो की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ। *अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को उनके ही मुख कमल से सुनने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर पहुंच जाती हूँ उनके सम्मुख*। मेरे बिल्कुल सामने मेरे प्रीतम शिव बाबा अपने अव्यक्त आकारी रथ ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान है। *ब्रह्मा मुख कमल से मेरे शिव साजन मीठे मधुर महावाक्य उच्चारण करते हुए, मुझ आत्मा सजनी से मीठी रूह - रिहान करते हुए अपनी प्रेम भरी दृष्टि से मुझे निहार रहें हैं*।

 

_ ➳  अपनी मीठी मधुर दृष्टि से मुझे भरपूर करके अब मेरे शिव प्रीतम ब्रह्मा मुख कमल द्वारा उच्चारित प्रेम भरे मधुर महावाक्यों को मुरली के रूप में मुझे भेंट कर अपने धाम लौट रहे हैं। *मैं आत्मा अपने प्यारे शिव परम पिता परमात्मा की उस प्रेम भरी पाति को अपने साथ लिए अब वापिस अपनी साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ*। अपने निराकार स्वरूप में अब मैं आत्मा अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हूँ और फिर से अपने अकाल तख्त पर आकर विराजमान हो गई हूँ।

 

_ ➳  अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को अब हर रोज मुरली के माध्यम से पढ़ कर, स्वयं को उनके प्रेम से भरपूर कर मैं आनन्द विभोर हो जाती हूँ। *मुरली में लिखे मेरे शिव प्रीतम के मधुर महावाक्य मुझे माया के हर तूफान से लड़ने का बल देते हैं*। अपने शिव प्रीतम के प्रेम पत्र मुरली को अपने दिल से लगाये, उनके प्रेम में खोई मैं हर बात से जैसे उपराम हो गई हूँ और इसी उपराम स्थिति ने मुझे मायाजीत बना दिया है।

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा मन - बुद्धि की स्वच्छ्ता द्वारा यथार्थ निर्णय करती हूँ ।*

 

➳ _ ➳  *नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तन करने वाली... सफलता की ऊंची मंजिल पर पहुँचने वाली मैं सफलता सम्पन्न आत्मा हूँ...* मन - बुद्धि रुपी मंदिर में सकारात्मक संकल्पो का पहरा लगाकर... व्यर्थ संकल्पों से मुक्त बन गई हूँ... सकारात्मक संकल्पों से यथार्थ निर्णय करने वाली मैं आत्मा... *समय को सफल करती जा रही हूँ...* संगमयुग के इस पावन क्षणों में मैं आत्मा... योग अग्नि द्वारा व्यर्थ संकल्पो रूपी किचड़े को साफ करती जा रही हूँ... सकारात्मकता की चाबी से मन - बुद्धि रूपी ख़ज़ाने को व्यर्थ संकल्पों रूपी ताले को खोल रही हूँ... *समय पर निर्णय शक्ति का सदुपयोग कर मैं आत्मा असफ़लता के पहाडों को पार करती जा रही हूँ...*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- "सदा श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्प इमर्ज होने से व्यर्थ  के स्वतः मर्ज होने का अनुभव*"

 

➳ _ ➳ *मैं आत्मा दुनिया की रिचेस्ट आत्मा हूँ*... भाग्यशाली आत्मा हूँ... शुक्रिया मेरे मीठे बाबा का... जो रोज अपना धाम छोड़... मुझ आत्मा को पढ़ाने के लिए आते है... *ज्ञान स्नान करा मुझ आत्मा का श्रृंगार करते*... मुरली द्वारा सर्व खजानों से भरपूर करते है... श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्पों से मुझ आत्मा की बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त करते जा रहे है... *मुरली का एक-एक पॉइंट लाखों का है*... मैं इन खजानों को धारण करती जा रही हूँ... *यह खजाना सदा श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्पों को इमर्ज कराता जा रहा है*... मैं आत्मा कितना सहज मालामाल बनती जा रही हूँ... शुद्ध संकल्पों की शक्ति को बढ़ा... *मैं आत्मा शक्ति के रूप में हर समय सेवा में लगाती जा रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा के व्यर्थ स्वतः ही मर्ज होते जा रहे है*... मैं आत्मा व्यर्थ को बिंदी लगा... अपने श्रेष्ठ संकल्पों के खजाने को जमा कर बढ़ाती जा रही हूँ...

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *बापदादा ने पहले भी दो शब्द सुनाये हैं - साथी और साक्षी। जब बापदादा साथ है तो साक्षीपन की सीट सदा मजबूत रहती है*। कहते सभी हो बापदादा साथ हैबापदादा साथ है लेकिन माया का प्रभाव भी पड़ता रहता और कहते भी रहते हो बापदादा साथ हैबापदादा साथ है। साथ है, लेकिन साथ को ऐसे समय पर यूज नहीं करते होकिनारे कर देते हो। जैसे कोई साथ में होता है ना, कोई बहुत ऐसा काम पड़ जाता है या कोई ऐसी बात होती है तो साथ कभी ख्याल नहीं होताबातों में पड़ जाते हैं। ऐसे साथ है यह मानते भी होअनुभव भी करते हो। कोई है जो कहेगा साथ नहीं हैकोई नहीं कहता। सब कहते हैं मेरे साथ हैयह भी नहीं कहते कि तेरे साथ है। हर एक कहता है मेरे साथ है। मेरा साथी है। मन से कहते हो या मुख सेमन से कहते हो?

 

 _ ➳  2. *बापदादा तो खेल देखते हैंबाप साथ बैठे हैं और अपनी परिस्थिति मेंउसको सामना करने में इतना मस्त हो जाते हैं जो देखते नहीं हैं कि साथ में कौन हैं*। *तो बाप भी क्या करतेबाप भी साथी से साक्षी बनकर खेल देखते हैं*। ऐसे तो नहीं करो ना। *जब साथी कहते हो तो साथ तो निभाओकिनारा क्यों करते होबाप को अच्छा नहीं लगता*।

 

 _ ➳  3. *साक्षीपन का तख्त छोड़ो नहीं। जो अलग-अलग पुरूषार्थ करते हो उसमें थक जाते हो।* आज मन्सा का किया, कल वाचा का किया, सम्बन्ध-सम्पर्क का किया तो थक जाते हो। *एक ही पुरुषार्थ करो कि साक्षी और खुशनुम: तख्तनशीन रहना है*। यह तख्त कभी नहीं छोड़ना है।

 

 _ ➳  4. *साक्षीपन के तख्तनशीन आत्मा कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती*। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और *कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा ना*।

 

✺   *ड्रिल :-  "साथी और साक्षीपन से माया के प्रभाव से मुक्त होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *देह रूपी कमल में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ पदमासन् लगाए... और देख रही हूँ स्वयं की देह को साक्षी होकर*... कमल की दो आधार पत्तियाँ, ये मेरे दोनो पैर... उदर भाग कमल का आधार तना है...ये दोनों भुजाएँ कमल की नीचे को झुकी दो बडी शाखाएँ, ये मस्तक मध्य की पंखुरी और मेरी दो आँखे, दोनों कान, मुख नासिका सभी उस कमल की नन्ही- नन्हीं पंखुरियाँ... *मैं आत्मा सुनहरा पराग बन बैठी हूँ शीर्ष पंखुरी पर*...  मेरे ठीक ऊपर शिव सूर्य अपनी नम किरणों से मुझे भरपूर करते हुए... *शिव सूर्य से प्रकाश शक्ति ग्रहण कर मैं कमल की एक एक पंखुरी को देखते हुए... खिल उठा है ये देह रूपी कमल*... और मैं आत्मा पराग बन शिव किरणों के साथ उड चली हूँ परम धाम की ओर...

 

 _ ➳  *परम धाम में मैं आत्मा साक्षी होकर एक एक आत्मा मणि को देखती हुई एकदम साक्षी भाव से*... एक से बढकर रूहानी चमक लिए ये  सुनहरी मणियाँ, शान्ति के सागर में, गहरी अनुभूतियों में मगन... और शान्ति की सुनहरी धाराओं से सींचते शिव सूर्य... कुछ देर साक्षी होकर देखती हुई मैं आत्मा भी, लीन हो गयी हूँ उसी परमानन्द में... *कुछ मणियों को सूक्ष्म वतन की ओर जाते देख मैं भी चल पडी हूँ उनके पीछे*... आगे आगे मम्मा बाबा और पीछे कुछ महारथी आत्माएँ... और मैं भी उमंगों से भरकर उनके साथ साथ... मम्मा के साथ वो सब जा रहे है सूक्ष्म वतन की ओर...

 

 _ ➳  और बापदादा मेरे संग उतर गये है, विशाल हरे-भरे से मैदान में... पर्वत शिखरों से घिरा ये मैदान खूबसूरती का बेजोड सा नमूना... बापदादा और मैं नन्हा फरिश्ता... *खुशी से फूला नही समाँ रहा हूँ, उनको साथी के रूप में पाकर... मैं और बापदादा पतंग उडाते हुए... मेरे हाथों में पतंग और बाबा के हाथों मे डोर*... सहसा उछाल देता हूँ मैं हवा की दिशा में उसको... और देखते ही देखते आकाश से बातें करती... *ये मेरी स्थिति की और महत्वकांक्षाओं की पतंग*... और बापदादा अब पतंग की डोर मेरे हाथों में थमाकर बैठ गये है मुझ से थोडी दूरी पर... *आनन्द से इठलाता हुआ मैं... एक नजर बाबा पर और दूसरी नजर पतंग पर जमाये...* और भी ऊँचाईयों पर उसे ले जा रहा हूँ...

 

 _ ➳  *और अब मेरा ध्यान केवल पतंग पर... ऊँचाईयों को छूती हुई ये पतंग मेरे मन का प्रतिबिम्ब लग रही है मुझे... मेरी ऊँची स्थिति का प्रतीक, ये हवा से बातें करती सबसे ऊँची उडती मेरी पतंग... मैं भूल गया हूँ बापदादा को भी... कुछ पल के लिए* सहसा कहीं से उडकर आता हुआ बाज पक्षी का झुण्ड और मेरी डोर को काटने का प्रयास करता हुआ... मैं भरपूर कोशिश कर रहा हूँ उसे बचाने की... मगर हर कोशिश मेरी व्यर्थ जा रही है... *हवा में बाज रूपी माया से लडता हुआ मैं अकेला* और पास में ही बैठे बापदादा साथी से साक्षी होते हुए...

 

 _ ➳  सहसा कानों में मधुर सी संगीतमय आवाज... *साक्षी और खुशनुमः तख्तनशीन रहना है, जब साथी कहते हो, तो किनारा क्यों करते हो? भूलों नहीं बापदादा को!  बाबा को, ये बिल्कुल अच्छा नही लगता*... और मैं फरिश्ता अचानक लौट आता हूँ बापदादा के साथ की स्मृति में... और दौडकर बापदादा के हाथों में डोर थमा देता हूँ... और खुद बैठ गया हूँ साक्षी होकर, *आहिस्ता आहिस्ता आकाश में गुम होता वो बाज पक्षियों का झुण्ड* और फिर से मैं खुशी में उमंगों से भरपूर अपनी मन बुद्धि रूपी पंतग को ऊँचे संकल्पों में विचरण कराता हुआ... मैं फरिश्ता लौट आया हूँ अपनी उसी कमल पुष्प समान देह में, जो अभी भी पदमासन् लगाए बैठी है मेरे इन्तजार में... *मगर अब बापदादा हर पल मेरे साथ है इस स्मृति को पक्का करते हुए... पहले से ज्यादा साक्षी और माया के प्रभाव से मुक्त*...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━