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 24 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"मैं फ़रिश्ता हूँ" - सदा यह स्मृति में रहा ?*

 

➢➢ *सदा स्टेज पर रह हीरो पार्ट बजाया ?*

 

➢➢ *दिलाराम को दिल दे उसे दिल में बसा कर रखा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मन, वाणी और कर्म से बाप के बनकर रहे ?*

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  आज मुरलीधर बाप अपने मास्टर मुरलीधर बच्चों को देख रहे हैं। सभी बच्चे मुरली और मिलन के चात्रक हैं। ऐसे चात्रक सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के और कोई हो नहीं सकता। *यह ज्ञान मुरली और परमात्म मिलन न्यारा और प्यारा है।* दुनिया की अनेक आत्मायें परमात्म मिलन की प्यासी हैं, इन्तजार में हैं।

 

✧  लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें दुनिया के कोन में गुप्त रूप में अपना श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त कर रहे हो क्योंकि *दिव्य बाप को जानने अथवा देखने के लिए दिव्य बुद्धि और दिव्य दृष्टि चाहिए जो बाप ने आप विशेष आत्माओं को दी है* इसलिए आप ब्राह्मण ही जान सकते और मिलन माना सकते हो।

 

✧  दुनिया वाले तो पुकारते रहते - *एक बूंद के प्यासे हम'* और आप क्या कहते हो - *हम वर्से के अधिकारी हैं*, कितना अन्तर है - कहाँ प्यासी और कहाँ अधिकारी: अभी भी सभी अधिकारी बनकर अधिकार से आकर पहुँचे हो। दिल में यह नशा है कि *हम अपने बाप के घर में अथवा अपने घर में आये हो।* ऐसे नहीं कहेंगे कि हम आश्रम में आये हैं। अपने घर में आये हैं - ऐसे समझते हो ना?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  समर्थ की निशानी संकल्प, बोल, कर्म, संस्कार बाप समान"*

 

_ ➳  आज ब्राह्मण जीवन की खूबसूरती को जब मै आत्मा... निहारती हूँ तो मीठे आनन्द से भर जाती हूँ... मीठे *बाबा ने मीठे बोल, मीठी चाल, स्नेह भरी दृष्टि और दिल की विशालता देकर...मुझे जन्नत की हूर सजा दिया है.*.. पहले यह जीवन देह के प्रभाव में कितना कड़वा और कँटीला था... मीठे बाबा ने प्यार का सोने का पानी डालकर... मेरे मन बुद्धि को कितना उजला सच्चा और खुबसूरत बना दिया है... *भगवान ही तो यह जादु कर सकता था... और भगवान ने आकर ही मुझे खुबसूरत कृति सा सजाया है.*.. मीठे बाबा की रोम रोम से आभारी मै आत्मा...शुकराना करने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो में आप समान बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *दिलाराम बाबा को दिल अर्पित करने वाले, महान भाग्य के धनी हो.*.. सब कुछ मीठे बाबा को सौपने वाले, समर्थ और सच्चे आशिक हो... समर्थ की निशानी है... हर संकल्प बोल कर्म संस्कार बाप समान होगा... यही निरन्तर याद की अवस्था है... मीठे बाबा की यादो में सदा खोये हुए सदा के मायाजीत बन मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा भगवान को अपने दिल में समाकर हर पल उसकी यादो में डूबकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे साथी बाबा... मै आत्मा देह के प्रभाव में अपने दिल के 100 टुकड़े करके जगह जगह बांटा करती थी... और *आज आपने मेरे सारे टुकड़ो को जोड़ कर, खुबसूरत दिल सजाकर, अपने दिल की तिजोरी में ही बन्द कर दिया है.*.. अब मुझे जिंदगी के दुःख तपन की कोई परवाह ही नही... मेरा जीवन भगवान के हाथो में सदा के लिए सुरक्षित हो गया है...

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सेवा के नये आयामो को समझाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा यह स्म्रति रहे कि हम है ही फ़रिश्ते... सब कुछ बाबा का है... मेरा कुछ भी नही इस भाव में सदा हल्के फ़रिश्ते बन मुस्कराते रहो.*.. सदा निराकार आकर और साकार को फॉलो करने वाले स्वराज्य अधिकारी... किंग और क्वीन बनकर, बापदादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान मणियो को सुनकर मन्त्रमुग्ध झूमती हुई कहती हूँ :-"प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी मीठी यादो की छाँव में कितनी हल्की निश्चिन्त और बेफिक्री से भरी हुई फ़रिश्ता बन गयी हूँ.*.. स्वयं भगवान मेरा साथी हो गया है... तो मै आत्मा हर फ़िक्र से परे हो गयी हूँ... अपने हर संकल्प, बोल, कर्म को बाप समान सजाकर, किस कदर खुबसूरत हो गयी हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने शानदार भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... कितना प्यारा और खुबसूरत भाग्य है कि स्वयं भगवान ने दिल की तिजोरी में छुपा कर रखा है... *पवित्रता की धरोहर से जीवन को श्रेष्ठ बनाकर क्या से क्या बन रहे हो... यह प्राप्ति औरो को भी कराओ..*. सबके जीवन आप समान खुशियो से महकाओ... सबकी आशाये पूर्ण करने वाले महादानी वरदानी बनो..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के प्यार की बरसात में भीगते हुए कहती हूँ :-"मीठे मनमीत बाबा... *आपने मेरा हाथ थामकर, मुझे देह के कंटीले जंगल से निकाल... खुबसूरत ज्ञान परी बना दिया है.*.. मै आत्मा भगवान को वरने वाली... उसके दिल में सजने वाली, शिव प्रियतमा ही गयी हूँ... शिव साजन को चुनकर, सारा ब्रह्माण्ड बाँहो में भर रही हूँ... और यह भाग्य हर दिल पर सजा रही हूँ..."मीठे बाबा को अपने जज्बात अर्पित कर... मै आत्मा स्थूल धरा पर उतर आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- दिलाराम को दिल दे उसे दिल में बसाकर रखना*"

 

_ ➳  दिल को आराम देने वाली, अपने दिलाराम बाबा की मीठी याद में खोई मैं उन पलों को याद करती हूँ जब मेरे दिलाराम बाबा ने पहली बार आ कर मेरे दिल पर दस्तक दी थी। *उस पल का वो खूबसूरत एहसास जब दिल ने ये स्वीकार किया था कि यही है वो जिसे मैं इस दुनिया की भीड़ में आज दिन तक ढूंढ रही थी*।

 

_ ➳  गुरुओं के बताए मार्ग पर भी चल कर देखा,भक्ति मार्ग के कर्मकांडो को भी अपनाया परन्तु फिर भी हर पल उससे एक दूरी सदा बनी रही और अब जबकि *उसने खुद आ कर ना केवल अपना परिचय दिया बल्कि अपनी उपस्थिति का, अपने प्यार का अनुभव भी करवाया तो अब दिल ने भी ये स्वीकार कर लिया कि इस दिल मे अब सिवाय दिलाराम के और कोई कभी नही बस सकता*।

 

_ ➳  दिलाराम को दिल दे, दिल मे उनकी याद को बसाये अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो, उनसे मिलने, उनसे मीठी - मीठी रूहरिहान करने और उनके प्यार की शीतल छांव में बैठ कर स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने मन की तार को उनके साथ जोड़ती हूँ। *उनकी मीठी याद और उनके प्रेम के मधुर एहसास की स्मृति मुझे एक रूहानी नशे से भरपूर कर रही है* और इसी रूहानी नशे में डूबी मैं आत्मा देह का आधार छोड़ चल पड़ती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा के पास।

 

_ ➳  देह रूपी कुटिया से निकल कर अब मैं आत्मा ऊपर परमधाम की ओर जा रही हूँ। *अपने दिलाराम बाबा के दिल रूपी तख्त पर बैठ, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करने के लिए, और भी तीव्र गति से उड़ते हुए, आकाश और सूक्ष्म वतन को पार कर, अब मैं परमधाम में प्रवेश कर रही हूँ*। अपने बिल्कुल सामने मैं अपने दिलराम बाबा को देख रही हूँ। उनको देखते ही मेरा रोम - रोम जैसे खिल उठा है। मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नही है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे अपने प्रेम की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे दिलाराम बाबा भी मेरा ही इंतजार कर रहें हैं। उनके प्रेम की किरणों रूपी बाहों में अब मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ। *मेरे दिलाराम बाबा का प्रेम और स्नेह किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है*। मेरे प्राणेश्वर बाबा से निकल रही सर्व शक्तियों  की शक्तिशाली किरणे मुझ पर पड़ रही हैं जो मुझे आनन्द विभोर कर रही हैं और शक्तिशाली बना रही हैं।

 

_ ➳  अपने दिलाराम शिव बाबा के प्रेम और उनकी सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में। *मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है। अपने दिल मे दिलाराम बाबा को बसा कर अब मै मन, वचन और कर्म से उनकी हो गई हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा निर्मानता द्वारा नव निर्माण करती हूँ ।*

 

➳ _ ➳  *अभिमान और निराशा मुक्त मैं आत्मा निर्मानता द्वारा नव निर्माण की स्थापना में बापदादा के साथ कदम से कदम मिला रही हूँ...* विजय माला की यादगार में विजयी रत्न आत्मा पुरुषार्थ में ऊँची उड़ान भर रही हूँ... *निराशा के संकल्प को भी मंसा... वाचा... कर्मणा में स्थान न देती...* मैं आत्मा... तीव्र पुरूषार्थी बन गईं हूँ... अभिमान रूपी माया के वार पर जीत पाती मैं आत्मा निरअभिमानी बन गई हूँ... *निराशा के काले घने बादलों के पार उड़ती मैं आत्मा... आशा के पंख लगाके पहुँच जाती हूँ स्वर्णिम युग में...* सतयुगी नव निर्माण के बापदादा के महा यज्ञ में मैं आत्मा अपना अलौकिक पार्ट निभा रही हूँ... *सतयुग की स्थापना में मैं आत्मा हीरो पार्ट प्ले कर रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विश्व सेवा के तख्तनशीन बन, राज्य तख्तनशीन बनने का अनुभव"*

 

_ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि से... सूक्ष्म वतन में पहुँच जाती हूँ... बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा पर लगातार प्रवाहित हो रही है... *बाबा मुझ आत्मा को गुणों, शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं*...बाबा ने मुझ आत्मा को कहा... *विश्व-सेवाधारी बच्चे विश्व सेवा के तख्तनशीन बनो तो... राज्य तख्तनशीन बन जायेंगे* ...अपनी मन्सा द्वारा विश्व की आत्माओं को... अपनी शक्तियों के खजाने... ज्ञान के... गुणों के खजाने को... *महादानी बन दान करते चलो*... मैं आत्मा जी बाबा कह... विश्व के ग्लोब पर बैठ... विश्व की सर्व आत्माओं को मन्सा सकाश दे... बेहद की सेवा का लक्ष्य रख... परोपकारी, रहमदिल बनती जा रही हूँ... *विश्व सेवा के निमित्त स्वयं भी हल्के रहना... और सर्व को हल्का बना रही हूँ*... देह का भान समाप्त होता जा रहा है... मैं आत्मा स्व पर राज्य करती मा. विश्वकल्याणकारी बन राज्य तख्तनशीं का अनुभव करती हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आज भाग्य विधाता बाप अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य की रेखायें देखदेख भाग्य विधाता बाप भी हर्षित होते हैं क्योंकि सारे कल्प में चक्र लगाओ तो आप जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी धर्म आत्मा, महान आत्माराज्य अधिकारी आत्माकिसी का भी इतना बड़ा भाग्य नहीं हैजितना आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का है। मस्तक से अपने भाग्य की रेखाओं को देखते होबापदादा हर एक बच्चों के मस्तक में चमकती हुई ज्योति की श्रेष्ठ रेखा देख रहे हैं। आप सभी भी अपनी रेखायें देख रहे हो? *नयनों में देखो तो स्नेह और शक्ति की रेखायें स्पष्ट हैं। मुख में देखो मधुर श्रेष्ठ वाणी की रेखायें चमक रही हैं। होठों पर देखो रूहानी मुस्कानरूहानी खुशी की झलक की रेखा दिखाई दे रही है। हृदय में देखो वा दिल में देखो तो दिलाराम के लव में लवलीन रहने की रेखा स्पष्ट है। हाथों में देखो दोनों ही हाथ सर्व खजानों से सम्पन्न होने की रेखा देखो, पांवों में देखो हर कदम में पदम की प्राप्ति की रेखा स्पष्ट है।* कितना बड़ा भाग्य है!     

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखाओं को देख श्रेष्ठ भाग्यवान होने का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा की याद में बैठी हूँ इस शरीर के भान से मुक्त हो, अपने चारों ओर के वातावरण से, देह के संबंधों से स्वयं को बुद्धि से मुक्त कर बाबा की याद में खो जाती हूँ... *और इस देह के बंधन को छोड़, इस साकारी दुनिया को छोड़ बाबा के पास उड़ जाती हूँ...* बाबा को देखते ही मेरे नयनों में प्रेम के आँसू छलक आते हैं और अपने भाग्य पर नाज़ होता है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ जो लाखों करोड़ों आत्माओं में से बाबा ने मुझे चुना है... मेरा भटकना बंद हो गया... *ये  संसार की आत्माएं आपको पाने के लिए कितने प्रयत्न करती हैं कितने जप तप तीर्थ व्रत करती हैं परंतु फिर भी आपको पा नहीं पाती और मेरा कितना श्रेष्ठ भाग्य आप भाग्य विधाता बाप ने बना दिया है...*

 

 _ ➳  इस संसार में मुझ जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी का भी नहीं है  *चाहे कोई धर्म आत्मा हो, महान आत्मा हो, राज्य अधिकारी आत्मा हो किसी का भी भाग्य इतना बड़ा इतना महान नहीं है...* ये सारी दुनिया कलियुग में जी रही है दुख भोग रही है और मैं आत्मा इस संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्तियों के झूले में झूल रही हूँ...

 

 _ ➳  मेरे प्यारे बाबा ने श्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझे दे दी है मैं जैसा चाहूँ अपना भाग्य लिख सकती हूँ... *मेरे नयनों से स्नेह और रूहानियत झलकती है... मेरा मुख मधुर वाणी बोलता है और होठों पर रूहानी मुस्कान रहती है जिसे देख अन्य आत्माएं भी सोचती हैं कि इन्हें ज़रूर कुछ मिला है और इस रूहानी प्रेम का अनुभव करने के लिए मेरी ओर खिंची चली आती हैं...* मैं आत्मा उन आत्माओं को भी रूहानी दृष्टि से प्रेम के वाइब्रेशन दे उनके मन को भी ररूहानियत से भर देती हूँ...

 

 _ ➳  *मेरा हृदय दिलाराम बाप के लव में लवलीन है... मैं आत्मा बाप द्वारा दिये सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न हूँ...* मेरे बाबा विकारों के बदले मुझे अमूल्य रत्नों से भरपूर कर रहे हैं... मेरे हर कदम में पदम समाया हुआ है... मैं इस संसार की सबसे भाग्यशाली आत्मा हूँ... *मेरे भाग्य की रेखा को देख मेरे बाबा भी हर्षित होते हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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