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 18 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *कांटो को फूल बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *कम से कम 8 घंटा याद की यात्रा में रहने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *"अब घर जाना है" - बुधी में यही रहा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *सर्व खजानों को बांटते और बढ़ाते सदा भरपूर रहे ?*

 

➢➢ *हर कर्म अधिकारीपन के निश्चय और नशे से किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *व्यर्थ संकल्पों को दूर करने के लिए पुरुषार्थ की भिन्न भिन्न विधियां अपनाई ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - सदा इसी रुहाब में रहो की बाप हमको वापिस ले जाने के लिए आये है, अब सबको वापिस घर चलना है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन पूरे होने को आये है... अब दुःख की कालिमा से निकल *मीठे महकते सुखो में मुस्कराने के दिन आ चले है.*.. सदा इसी नशे में खोये रहो कि अब पिता संग घर चलना है... और फिर नई सी खुबसूरत दुनिया में आना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा दारुण दुखो से मुक्त हो चली हूँ... और कर्मातीत अवस्था को पाती जा रही हूँ... हर पल हर साँस में यही दोहरा रही हूँ कि अब आप संग घर वापिस चलना है... *जाना है और मीठे सुखो में पुनः वापिस आना है.*..

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दुखो के कंटीले जंगल से मुक्त कराने को प्यारा बाबा धरा पर उतर चला है... आप बच्चों के मीठे सुखो के लिए परमधाम छोड़ कर धरती पर बसेरा कर चला है... *तो हर साँस को घर चलने की याद में पिरो दो.*.. बाबा का हाथ पकड़ संगसंग घर चलने की तैयारी कर चलो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा न्यारी और प्यारी बनकर घर की और रुख ले रही हूँ... *मीठे बाबा आपका हाथ पकड़कर घर चलने को सज संवर चली हूँ.*.. यह खेल अब पूरा हुआ... और नया खुबसूरत खेल फिर शुरू होने वाला है मै आत्मा यह सोच सोच अथाह खुशियो में झूम रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... हर बात से उपराम होकर शान्तिधाम *पिता संग उड़ने की तैयारी में जीजान से जुट जाओ.*.. अपने सच्चे स्वरूप को याद कर उसकी मीठी याद में खो जाओ... खुबसूरत आसमानी मणि इस धरा पर खेलने मात्र आई थी... और अब वापिस अपने घर को जाना है...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप के नशे में खो चली हूँ... मै शरीर नही प्यारी सी चमकती आत्मा हूँ... स्वयं को और सच्चे चमकते पिता को जानकर घर की ओर रुख ले रही हूँ... *अब घर को जाना है यह यादो में गहरे समाया है.*..

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा बालक सो मालिक हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं अलौकिक और न्यारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपने प्राण प्यारे बाबा की प्यारी हूँ... मैं कितनी ही खुशनसीब आत्मा हूँ... स्वयं भगवान के साथ को पाकर मैं आत्मा इस संगमयुग में अलौकिक मौज मना रही हूँ... मैं आत्मा *रुहानी खुशियों की मालिक* बन गई हूँ...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को गोद लेकर नया ब्राह्मण जन्म दिया है... परमात्मा की संतान होने के नाते अपने पिता के सर्व खजानों पर मुझ आत्मा का जन्म सिद्ध अधिकार है... मैं आत्मा सर्व खजानों की स्वतः मालिक हूँ... अब मैं आत्मा अपने *खजानों को सम्भालने वा बढाने का पुरुषार्थ* कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा खजानों को बढ़ाने के लिए प्यारे बाबा की याद में बैठती हूँ... *सर्व गुणों, शक्तियों को स्वयं में* भरती जा रही हूँ... मैं आत्मा फरिश्ता बन बापदादा के साथ पूरे ग्लोब का चक्कर लगाती हूँ... मैं फरिश्ता पूरे विश्व में ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति, आनंद, पवित्रता, शक्तियों की किरणों को चारों ओर फैला रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा को प्यारे बाबा से जो ज्ञान धन, खुशियों का खजाना मिला है... मैं आत्मा सर्व को बांटते जा रही हूँ... बांटने से मुझ आत्मा के भंडार स्वतः भरपूर होते जा रहे हैं... मैं आत्मा खजाने को सदा सेफ रखने के लिए बार-बार अटेन्शन देती हूँ और चेकिंग करती हूँ... अब मैं आत्मा सर्व खजानों को बांटते और बढ़ाते सदा भरपूर रहने वाली *बालक सो मालिक अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  हर कर्म अधिकारीपन के निश्चय और नशे से करना"*

 

➳ _ ➳  मैं एक चैतन्य आत्मा... विश्व अधिकारी... विश्व निर्माता... विश्व कल्याणकारी की सन्तान मस्तक सिंहासन पर विराजमान हूँ... *मुझ स्वराज्य अधिकारी आत्मा को अपनी स्थूल कर्मेंद्रियों... संकल्पों... बुद्धि को पूर्ण नियंत्रण में रखना है...*

 

➳ _ ➳  हर कर्मेंद्री को योग अग्नि में तपाना है...  *कर्मयोगी की... अशरीरी न्यारेपन  की... अधिकारीपन की स्टेज* पर बैठी हुई हर कर्मेंद्री से हर कार्य बड़ी कुशलता से करवा रही हूँ... मन और बुद्धि की लगाम मालिकपन के नशे में पकड़े हुए चला रही हूँ...

 

➳ _ ➳  *मुझ आत्मा की शक्ति रूपी सेनानी सदा तैयार है...* जिस शक्ति का आह्वान करती हूँ... वह मुझ शक्तिशाली आत्मा की सेवा में हाज़िर हो जाती है... मैं आत्मा अब मायाजीत... प्रकृतिजीत... विकर्माजीत बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  *सर्वशक्तिवान मेरा बाबा है... मेरा साथी है*... मैं भृकुटि के तख्त पर बैठी हुई राजा आत्मा इस नशे में हूँ कि बाबा ने मुझे सारी शक्तियों की अधिकारी बना दिया... बाबा के प्यार में... न्यारेपन में... स्वराज्य अधिकारी बना दिया... बड़ी से बड़ी बात भी अब मुझ अधिकारी आत्मा के आगे खेल समान प्रतीत होने लगी है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा राजा बन *एक बाप की याद में रहने* से अपनी कर्मेन्द्रियों को अपने आर्डर प्रमाण चलाती हूँ... मुझ आत्मा को बाबा ने अपना बनाकर मुझे सर्वशक्तियों, गुणों व खजानों का अधिकारी बना दिया है... मैं आत्मा बाप के वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ... मैं आत्मा अपनी सब जिम्मेवारी बाप को सौंप सदा हल्की रहती हूँ... निश्चिंत व बेफिकर बादशाह बन गई हूँ... हर कर्म में बाप को साथ रख अधिकारीपन व रुहानी नशे में रहती हूं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *सर्व ख़ज़ानों को बाँटते और बढ़ाते सदा भरपूर रहने वाले बालक सो मालिक होते हैं...   क्यों और कैसे?*

 

❉   सर्व ख़ज़ानों को बाँटते और बढ़ाते सदा भरपूर रहने वाले बालक सो मालिक होते हैं क्योंकि...  *बाप ने सभी बच्चों को एक जैसा खजाना दे कर बालक सो मालिक बना दिया है।* अब बाबा ने तो सब को एक जैसा खज़ाना दे कर बालक सो मालिक बना दिया है परन्तु!  क्या सभी बच्चे एक समान बालक सो मालिक बने हैं। 

 

❉   नहीं बने हैं न!  क्योंकि... हमारे  देखने में ऐसा आता है कि सभी बच्चे एक समान सम्पन्न नहीं बने हैं। कुछ न कुछ हर बच्चे में कमी या अन्तर दिखाई देता है। *वैसे तो हर बच्चे को बाबा से खज़ाना तो एक जैसा ही मिला है,* लेकिन!  यदि कोई बच्चा भरपूर नहीं है तो, उसमें कमी किस की है।

 

❉   भरपूर न होने का कारण है कि ख़ज़ाने को सम्भालना व ख़ज़ाने को बढाने का तरीका नहीं आता है। *वैसे भी खज़ाने को बढाने का सब से अच्छा सरल व सुगम तरीका है ख़ज़ानों को बँटाना* क्योंकि जितना हम ख़ज़ानों को बाँटेगें उतना ही वह बढ़ेगा। बाँटने से बढ़ता है।

 

❉   अतः ख़ज़ानों को बढाने का तरीका तो है बाँटना और *खज़ानों को संभालने का तरीका है खज़ाने को बार बार चेक करना।* अतः  हमें अपने खज़ानों को बार बार सम्भालते हुए चेक करते रहना चाहिए कि हमारा खज़ाना बढ़ रहा है या नहीं। अगर नहीं बढ़ रहा है तो प्रयत्न कर के बढ़ाना चाहिये।

 

❉   खज़ाना बढ़ेगा तभी तो सदा भरपूर रहने वाले बालक सो मालिक बन जायेंगे। इसलिये अपने ख़ज़ानों को हर पल विभिन्न विधियों द्वारा बाँटते और सम्भालते हुए रहना चाहियेतभी तो!  हम अपने हर कर्म को अधिकारीपन के निश्चय और नशे से कर सकेंगे। *अतः अटेन्शन और चेकिंग...   यही दोनों पहरे वाले ठीक हों तो खज़ाना सदा सेफ रहता है।*

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *हर कर्म अधिकारीपन के निश्चय और नशे से करो तो मेहनत नहीं करनी पड़ेगी... क्यों और कैसे* ?

 

❉   लौकिक में भी जो स्थूल धन के खजानो से भरपूर रहते हैं उनकी रॉयल्टी की झलक उनके चेहरे और चलन से स्पष्ट दिखाई देती है । लेकिन *हम ब्राह्मण बच्चों को तो अविनाशी खजाने स्वयं परम पिता परमात्मा बाप द्वारा मिले हैं* । हर रोज बाबा ज्ञान रत्नों की थालियां भर भर कर हम बच्चों पर लुटाते हैं । इसलिए गायन भी है कि अप्राप्त नही कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में । ऐसे *स्वयं को सर्व प्राप्तियों से जो सदा सम्पन्न अनुभव करते हैं* वे अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रहकर हर कर्म रॉयल्टी से करते हैं इसलिए मेहनत से बच जाते हैं ।

 

❉   जब से ब्राह्मण बने तब से अपने श्रेष्ठ भाग्य को यदि स्मृति में रखें और अनुभव करें कि *स्वयं भाग्यविधाता बाप मेरे सर्वश्रेष्ठ भाग्य की महिमा का गुणगान कर रहे हैं* । बाप के रूप में स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहें हैं । ऐसी परमात्म पालना जिसमे आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है और ऐसा परमात्म प्यार जो सर्व सम्बन्धो का अनुभव कराता है । *ऐसे परमात्म प्यार और परमात्म प्राप्तियों की मौज के अधिकारी* बन अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रहने वाले सफलतामूर्त बन हर प्रकार की मेहनत से छूट जाते हैं ।

 

❉   संगमयुग पर बापदादा द्वारा बच्चों को जो भी प्राप्तियां हुई है उनकी स्मृति को इमर्ज रूप में रखने से कोई भी परिस्थिति स्थिति को हिला नही सकती । *सर्व प्राप्तियों की ख़ुशी कभी भी उन्हें हलचल में ला कर दुखी नही बना सकती* । हलचल मे तब आते हैं जब स्वयं को खाली अनुभव करते हैं । लेकिन जो स्वयं को सदा सम्पन्न अनुभव करते हैं और सदा अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रहते हैं *उनके मुख से सदैव एक ही गीत निकलता है " पाना था सो पा लिया* " और इस गीत को गाते हुए वे मेहनत से मुक्त हो कर सदा ख़ुशी के झूले में झूलते रहते हैं ।

 

❉   अधिकारीपन की सीट पर सेट रहने वाले को सदा अपनी ऑथोरिटी का नशा रहता है । इसलिए अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रहकर जब वह हर कर्म करता है तो *अपनी ऑथोरिटीज को, प्राप्त हुई सर्व शक्तियों, सर्व खजानों और वरदानो को अच्छी तरह से यूज कर पाता है* । अधिकारीपन की यह पोजीशन और सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की ऑथोरिटी उसे हर विघ्न से परे निर्विघ्न स्थिति में स्थित कर देती है इसलिए उसे किसी भी कार्य में मेहनत नही करनी पड़ती । सफलता स्वत: ही उसके गले का हार बन जाती है ।

 

❉   रोज अमृतवेले बाबा अपने हर एक बच्चे को श्रेष्ठ टाइटल दे कर उसे सर्व प्राप्तियों की मौज का अनुभव करवाते हैं । *इस टाइटल के रूहानी नशे में जो सदा रहते हैं और स्वयं को परमात्म शक्तियों का अधिकारी समझते है* । वे कोई भी परिस्थिति आने पर विचलित नही होते बल्कि उस परिस्थिति के अनुसार बाबा द्वारा मिले श्रेष्ठ टाइटल को स्मृति में रख अपनी स्थिति को समर्थ बनाये रखते हैं । ऐसे अधिकारीपन के निश्चय और नशे में रहने वाले श्रेष्ठ स्वमान धारी हर परिस्थिति में सदा अचल, अडोल रहते हैं इसलिए मेहनत से मुक्त रहते हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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