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❍ 17 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *इर्ष्या के कारण अपना समय और संकल्प व्यर्थ तो नहीं गंवाया ?*
➢➢ *सहनशीलता का अवतार बनकर रहे ?*
➢➢ *माया से घबराने की बजाये माया से पाठ सीखा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *व्यर्थ संकल्पों को समर्थ संकल्पों में परिवर्तित किया ?*
➢➢ *मन की ख़ुशी से शरीर को चलाया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ विस्मृति तो हो नहीं सकती, याद रहती है। लेकिन *सदा शक्तिशाली याद स्वत: रहे उसके लिए यह लिंक तूटना नहीं चाहिए।* हर समय बुद्धि में याद का लिंक जूट रहे - उसकी विधि यह है। यह भी आवश्यक समझो जैसे वह काम समझते हो कि आवश्यक है यह प्लैन पूरा करके ही उठना है। इसलिए समय भी देते हो, एनर्जी भी लगाते हो।
〰✧ वैसे यह भी आवश्यक है, इनको पीछे नहीं करो कि *यह काम पहले पूरा करके फिर याद कर लेंगे। नहीं।* इसका समय अपने प्रोग्राम में पहले ऐड करो। जैसे सेवा के प्लैन किये दो घण्टे का टाइम निकाल फिक्स करते हो - चाहे मीटिंग करते हो, चाहे प्रेक्टिकल करते हो, तो दो घण्टे के साथ-साथ यह भी बीच-बीच में करना ही है - यह ऐड करो।
〰✧ जो एक घण्टे में प्लैन बनायेंगे, वह आधा घण्टे में हो जायेगा। करके देखो। आपे ही फ्रेशनेस से दो बजे आँख खुलती है, वह दूसरी बात है। लेकिन कार्य के कारण जागना पडता है तो उसका इफैक्ट (प्रभाव) शरीर पर आता है। इसलिए *बैलेन्स के ऊपर सदा अटेन्शन रखो।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ*"
➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहानं करने के लिए... जब मै आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुंचती हूँ... *सुंदर सतयुग और मनमोहक श्री कृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ.*.. भक्ति में यह चित्र, आज ज्ञान में मन की आँखों से देखकर... मै आत्मा आनन्द की चरमसीमा पर हूँ... मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखलाया है... भक्ति में सब कुछ कितना दूर था... और *आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नजारा दिल के कितना करीब है... भगवान ने मेरी सोच बदल कर... सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नजारे मेरे नाम लिख दिए है.*.. मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... कमरे की ओर बढ़ चलती हूँ...."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की ख़ुशी से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *भगवान को अपनी बाँहों में भरने वाले अति सोभाग्यशाली हो... इस मीठी ख़ुशी में सदा आनन्द के साथ झूमते रहो.*.. व्यर्थ चिंतन से परे होकर, समर्थ मनन से शक्तिशाली बनो... भगवान को पाकर अब किस बात की चिंता है... मन की ख़ुशी तन पर भी स्वतः झलकेगी... सदा यह सोच कर मुस्कराओ...यह मन और तन दोनों ही प्यारे है,जो भगवान से मिलने का आधार बने हे...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से ख़ुशी की खुराक लेकर शक्तिशाली बनकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के प्रपंच में कितना उलझी थी कि चहुँ ओर दुःख ही दुःख बिखरा था... व्यर्थ सोचना ही मुझ आत्मा का संस्कार था... *आपने प्यारे बाबा, मुझे कितना प्यारा खुबसूरत जीवन दिया है... मै आत्मा अब सदा प्रफुल्लित हूँ.*.. सदा उमंगो और खुशियो में चहकती हुई, हर दिल को आप समान बना रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में शुभ संकल्पों के संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय मिलन में सहयोगी, इस पुराने तन को... वाह वाह कर चलाओ.*.. दिल शिकस्ती के संकल्प नही चलाओ... माया के तूफान को भी... शक्तियो और गुणो को बढ़ाने में, सहयोगी समझो... हर पल, हर स्थिति में सदा शुभ संकल्प के ऊँचे शिखर पर विराजमान रहो... कभी ख़ुशी, कभी गम, इस नेचर को बदल, सदा सदा के लिए, ख़ुशी के सम्राट बन जाओ...."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से, हर बात में कल्याण की भावना को, अपने दिल में भरकर कहती हूँ :-"सच्चे साथी बाबा मेरे... आप जीवन में आये हो बाबा... तो खुशियो की बहार संग लाये हो...मेरे दुखो के आँसू सुखाकर, खुशियो की चमक आँखों में लाये हो... मै आत्मा आपके प्यार के साये में, कितनी खुबसूरत होती जा रही हूँ... *मेरी सुंदर सोच मुझे कितना सुख दे रही है... और सुखो भरी दुनिया, आने वाले कल में, मेरे लिए ही सज रही है.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरी सुंदर सोच में छिपे खुबसूरत खजानो को उजागर करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सदा शुभभावना रख, हर दिल को अपना बनाओ... मुझे अपने को बदलना है यह स्वयं को पक्का कराओ... हर बात में बीच में बाबा को लाओ.*.. तो माया स्वतः ही काफूर हो जायेगी... सदा विशेषताओ के मोती चुगने वाले, होलिहंस बन,ख़ुशी से रेस कर, एक दूजे से आगे बढ़, सदा मुस्कराओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर दिल से न्यौछावर होकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... *आपने शुभ संकल्पों, और शुभ भावना का जादु मुझे सिखाकर, मेरा जीवन कितना निराला और अनोखा कर दिया है.*.. मै आत्मा शुभभावना से भरकर, प्यारे और मीठे जीवन को सहज ही पा गयी हूँ... आपसे पाये असीम प्यार की तरंगे... पूरे विश्व पर बिखरने वाली विश्व कल्याणकारी बन गयी हूँ... मीठे बाबा के उपकारों का यूँ रोम रोम से शुक्रिया कर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- *मन की ख़ुशी से शरीर को चलाना*"
➳ _ ➳ शरीर रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा अपने इस रथ को देख रही हूँ और विचार करती हूँ कि इस अंतिम जन्म में भगवान ने मुझे अपना बनाया है इसलिए *बलिहारी है इस शरीर की जो इस पुराने शरीर द्वारा जन्म - जन्म का वर्सा लेने की मैं अधिकारी आत्मा बन गई हूँ*। वाह मेरा पुराना शरीर, जिसने भगवान बाप से मिलाने के निमित बनाया। इस शरीर की सम्भाल करना मेरा कर्तव्य है। इसलिए *समर्थ संकल्पो रूपी विटामिन से स्वयं को शक्तिशाली बना कर मुझे अपने इस पुराने शरीर को स्वस्थ रखना है* ताकि इस रथ को ईश्वरीय सेवा में लगा कर 21 जन्मो के लिए मैं अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना सकूँ।
➳ _ ➳ "मन की खुशी से मुझे अपने इस पुराने शरीर को चलाना है", यह संकल्प करते हुए खुशी के खजाने से स्वयं को भरपूर करने के लिए मैं अखुट खजानों के मालिक अपने शिव पिता के पास जाने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरुप में स्थित होती हूँ और अपने शिव परम पिता परमात्मा की याद में बैठ जाती हूँ। *बाबा की याद मुझे सेकेंड में इस देह से न्यारा कर देती है और मैं जगमगाती हुई ज्योति, देह से डिटैच हो कर, एक पल में ही इस साकारी शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल आती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने इस शरीर को अब मैं आत्मा मन बुद्धि के नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ। शरीर से बाहर, स्वयं को इस शरीर से थोड़ी ऊपर स्थित करके अब मैं अपने मन बुद्धि को अपने शिव पिता के साथ जोड़ कर उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाने लगती हूँ। उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, अब मैं इन शक्तियों को अपने सामने पड़े शरीर मे प्रवाहित कर रही हूँ। *शरीर के एक- एक अंग में ये शक्तियां जा रही है और शरीर को स्वस्थ, निरोगी बना रही हैं*। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों से अपने शरीर रूपी रथ को स्वच्छ बना कर अब मैं आत्मा धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ रही हूँ।
➳ _ ➳ शरीर से डिटैच, हल्के हो कर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा अब आकाश में विचरण कर रही हूं। *ऐसा लग रहा है जैसे बादलों के ऊपर बैठ कर मैं पूरे आकाश की सैर कर रही हूँ*। समस्त सौरमण्डल को पार करके, उससे परें सूक्ष्म लोक को पार करके अब मैं अत्यन्त ज्योतिर्मय लाल प्रकाश की दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ। *लाल प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया, मेरा स्वीट साइलेन्स होम, मेरे शिव पिता का घर है*। अपने स्वीट साइलेन्स होम में आ कर मैं आत्मा गहन शांति की अनुभूति कर रही हूँ। अपने सामने मैं शांति के सागर अपने शिव पिता को देख रही हूँ। उनसे मिलने के लिए अब मैं उनके पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के बिल्कुल समीप पहुंच कर अब मैं बाबा को टच कर रही हूँ। बाबा की किरणों रूपी बाहों ने मुझे अपने आगोश में भर लिया है। *ऐसा लग रहा है जैसे बाबा में समाकर मैं बाबा का ही रूप हो गई हूँ*। बाबा की शक्तियां मुझ में भरती जा रही हैं। मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं झूल रही हूँ। *बाबा का प्यार मुझे अथाह खुशी दे रहा है। खुशी के खजाने से मैं भरपूर हो रही हूँ*। बहुत ही शक्तिशाली और अथाह खुशी से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा अपने शिव पिता परमात्मा से अलग हो कर धीरे - धीरे परमधाम से वापिस नीचे की ओर आ रही हूँ।
➳ _ ➳ खुशी के खजाने से अब मैं भरपूर हूँ और इसी खुशी को अपनी नेचर बनाये अब मैं अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूँ। भृकुटि पर विराजमान हो कर अपने शरीर रूपी रथ को अब मैं बड़ी खुशी से चला रही हूँ। *अपने मन को सदा ख़ुशी की खुराक खिला कर, कर्मभोग के रूप में आने वाली शरीर की किसी भी बीमारी को देख अब मैं दिलशिकस्त नही होती बल्कि खुशी में नाचते हुए, बापदादा के गुणों के गीत गाते हुए, हर दर्द को भूल अब मैं उमंग उत्साह से आगे बढ़ते हुए औरों को भी आगे बढ़ाती रहती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा अपनी शक्तियों वा गुणों द्वारा निर्बल को शक्तिवान बनाती हूँ ।*
➳ _ ➳ मैं आत्मा... बापदादा से आती हुई शक्तियों को अपने में धारण कर... शक्तियों को गुणों का दान कर... निर्बल... असमर्थ आत्माओं को शक्तिवान बनाती हूँ... *बापदादा के महावाक्य "दानी बनो महादानी बनो"* को यथार्थ रूप से सफल कर रही हूँ... *श्रेष्ठ दानी.. महादानी... मैं पूर्वज आत्मा...* बापदादा से प्राप्त सर्व खजानों रूपी गुणों... संस्कारों को... शक्तियों को अज्ञानी... असमर्थ आत्माओं को दान कर उनको समर्थ और शक्तिशाली बनाती जा रही हूँ... *कदम कदम पर शक्तियों की वर्षा करती मैं आत्मा... बापदादा की दिलतख्तनशीन बन गई हूँ...* बापदादा की श्रीमत पर चल... पूरे ब्रह्माण्ड में शुभ भावना रूपी मोती फैला रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दृढ़ निश्चय से भाग्य को निश्चित कर सदा निश्चिंत रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं बाबा की कल्प पहले वाली... *सिकीलधी विश्व कल्याण की सेवा के निमित्त आत्मा हूँ*... मन्सा, वाचा, कर्मणा सेवा द्वारा... बाबा की श्रीमत पर चलने वाली... *हर आज्ञा का पालन करने वाली... सदा निश्चयबुद्धि बन बाबा से विजय भव... भाग्यशाली भव आत्मा का वरदान प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ*... बाबा का हाथ पकड़ सदा आगे बढ़ने वाली... *चढ़ती कला का भाग्य प्राप्त करने वाली आत्मा बनती जा रही हूँ*... सर्वशक्तिवान बाप का हाथ पकड़... मैं आत्मा निश्चिंत बनती जा रही हूँ... सर्वशक्तिवान मेरा हो गया... *साथी शक्तिशाली है यह दृढ़ निश्चय मुझ आत्मा के... भाग्य को निश्चित कर... सदा निश्चिंत रहने का अनुभव कराता जा रहा है*...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आप लोग यह नहीं सोचना कि हम लौकिक काम क्यों करें! यह तो आपकी सेवा का साधन है। *लौकिक कार्य नहीं करते हो लेकिन अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए लौकिक कार्य करते हो।* जहाँ भी जाते हो वहाँ सेन्टर खोलने का उमंग रहता है ना। तो लौकिक कार्य कब तक करेंगे-यह नहीं सोचो। *लौकिक कार्य अलौकिक कार्य निमित्त करते हो तो आप सरेन्डर हो।* लौकिकपन नहीं हो, अलौकिकपन है तो लौकिक कार्य में भी समर्पण हो।लौकिक कार्य को छोड़कर समर्पण समारोह मनाना है - यह बात नहीं है। ऐसा करने से वृद्धि कैसे होगी! इसीलिए निमित्त बनते हो, तो जो निमित्त लौकिक समझते हैं और रहते अलौकिकता में हैं, ऐसी आत्माओं को डबल क्या, पदम मुबारक है। समझा। इसीलिए यह नहीं कहना-दादी हमको छुड़ाओ, हमको छुड़ाओ। नहीं, और ही डबल प्रालब्ध बना रहे हो।
➳ _ ➳ हाँ आवश्यकता अगर समझेंगे तो आपेही छुड़ायेंगे, आपको क्या है! जिम्मेवार दादियां हैं, *आप अपने लौकिकता में अलौकिकता लाओ।* थको नहीं। लौकिक काम करके थक कर आते हैं तो कहते हैं क्या करें! नहीं खुशी-खुशी में दोनों निभाओ क्योंकि देखा गया है कि डबल विदेशी आत्माओं में दोनों तरफ कार्य करने की शक्ति है। तो अपनी शक्ति को कार्य में लगाओ। कब छोड़ेंगे, क्या होगा.... *यह बाप और जो दादियां निमित्त हैं उनके ऊपर छोड़ दो, आप नहीं सोचो।* कौन-कौन हैं जो लौकिक कार्य भी करते हैं और सेन्टर भी सम्भालते हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। आप निश्चिंत रहो। नम्बर आप लोगों को वैसे ही मिलेंगे, जो सारा दिन करते हैं उन्हों जितना ही मिलेगा। *सिर्फ ट्रस्टी होकर करना, मैं-पन में नहीं आना। मैं इतना काम करती हूँ, मैं-पन नहीं। करावनहार करा रहा है। मैं इन्स्ट्रुमेंट हूँ। पावर के आधार पर चल रही हूँ।*
✺ *ड्रिल :- "अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए ट्रस्टी होकर लौकिक कार्य करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *सुबह की ठंडी-ठंडी हवाओं में, उगते सुरज की सुनहरी रोशनी की पनाहों में, मैं कमल पुष्प समान आत्मा बगीचे में बैठ, मीठे बाबा की मीठी-मीठी यादों में विचरण कर रही हूँ...* मैं रुहे गुलाब आत्मा अपनी रूहानी खुशबू फैलाती, सुख-शांति की किरणों से इस प्रकृति को सजाती, *बाबा की यादों की लहरों में समा जाती हूँ...* खो जाती हूँ अपने शिव पिता की यादों में... तभी मुझ आत्मा की नजर सामने वाले वृक्ष पर पड़ती है... जिसमें गहरे नीले रंग की एक चिडिय़ा अपने घौंसले में बैठे बच्चों के मुख में दाना डाल रही है... उन्हें उड़ना सिखा रही है... इस दृश्य को देख मुझ आत्मा के मानस पटल पर पर बाबा के कहे महावाक्य सामने आ रहे हैं... बच्चे *गृहस्थ व्यवहार में रहते न्यारे और प्यारे हो रहो... स्वयं को निमित समझ कर रहो...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सामने चल रहे इस दृश्य को देख विचार करती हूँ... ये चिडिय़ा अपने बच्चों को सम्भालती है... उन्हें दाना देती है उड़ना सिखाती है... और एक दिन ये सभी अपने ही द्वारा बनाए गए, तिनका-तिनका इकठ्ठा कर तैयार किए घौंसले को छोड़ उड़ान भरते हैं अपनी-अपनी मंजिल की तरफ... कितने न्यारे होकर रहते है... अपने इस घौंसले में... मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों द्वारा सामने लौकिक घर को देखती हूँ... बाबा के कहें महावाक्य एक बार फिर मुझ आत्मा के मानस पटल पर आते हैं... बच्चे *ये आपका लौकिक घर नहीं बल्कि सेवास्थान है...* और फिर मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों द्वारा लौकिक कार्य क्षेत्र को देखती हूँ... इसे देखते ही मुझ आत्मा को बाबा के महावाक्य याद आते हैं... बच्चे *यह तो आपकी सेवा का साधन हैं...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेवास्थान ( लौकिक घर ) के अन्दर प्रवेश करती हूँ... और एक संकल्प क्रिएट करती हूँ... *ये बाबा का घर है... ये सेवास्थान है... ये संकल्प क्रिएट करते ही बाबा से करंट मिलती है... और पूरे बाबा के इस घर में ईश्वरीय एनर्जी का फ्लो होना शुरु हो जाता है...* मैं आत्मा बापदादा की छत्रछाया की स्पष्ट अनुभूति कर रही हूँ... मुझ आत्मा में एक नयी उर्जा का संचार हो रहा है... अब *मैं आत्मा हर कार्य खुशी से बाबा की याद में कर रही हूँ...* इस स्पष्ट समृति के साथ की बाबा ने मुझे इस सेवा स्थान के निमित्त बनाया है... यहाँ अनेक आत्माओं के कल्याण अर्थ भेजा है... *इसी स्मृति द्वारा मैं आत्मा लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करने में सहज ही सफल हो रही हूँ...* हर कार्य मैं आत्मा निमित्त भाव से कर रही हूँ... ट्रस्टी भाव धारण कर हर कार्य करते मैं आत्मा बहुत हल्कापन महसूस कर रही हूँ... कोई बन्धन नहीं कोई बोझ नहीं... कमल पुष्प समान *मैं आत्मा न्यारी और प्यारी होकर हर कर्म कर रही हूँ...निमित मात्र हूँ बाबा का इंस्ट्रूमेंट हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को कार्य क्षेत्र पर जहाँ मैं आत्मा हर कार्य खुशी से बाबा की याद में कर रही हूँ... इस स्पष्ट स्मृति के साथ की *ये लौकिक कार्य क्षेत्र अलौकिक सेवा का साधन हैं... मैं आत्मा हर पल बाबा के हाथ और साथ का सहज अनुभव कर रही हूँ...* ये कार्य मैं आत्मा इस भाव से कर रही हूँ कि ये बाबा ने मुझ आत्मा को सेवा दी हैं... बाबा ने मुझे निमित्त बनाया हैं... *मैं आत्मा करनहार हूँ और मेरा बाबा करावनहार है... बाबा की शक्ति मुझे चला रही है... ये स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* इससे मैं आत्मा सहज ही हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... और *ये सेवास्थान भी अब अनेक आत्माओं के कल्याण अर्थ निमित्त बन गया है... मैं आत्मा देख रही हूँ कई आत्माओं को बाबा का सन्देश मिल रहा है... उनका कल्याण हो रहा है...*बाबा की अलौकिक सेवा में वृद्धि हो गयी है... जो आत्माएं यह ज्ञान सुन रही है वो भी लौकिकता को अलौकिकता में परिवर्तन कर हल्के हो चल रहे हैं... *वे भी बंधनमुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हैं... और वे ट्रस्टी बन गए हैं... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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