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 27 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *आत्म अभिमानी बन सदा हर्षित स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"हम आत्मा भाई भाई हैं" - यह दृष्टि पक्की की ?*

 

➢➢ *रूहानी सोशल वर्कर बन आत्माओं को ज्ञान का इंजेक्शन लगाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *मन और बुधी को सदा सेवा में बिजी रखा ?*

 

➢➢ *सेवा से दुआएं प्राप्त कर तंदरुस्ती का अनुभव किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *सदा बाबा के प्यार में समाये रहे ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - माया की बीमारी से छूटने के लिए ज्ञान और योग का एपिल (सेव) रोज खाते रहो

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... देह की मटमैली सी दुनिया को सत्य समझकर दुखो का पर्याय बन चले हो... अपने महकते दमकते अविनाशी स्वरूप को भूलकर गुणो से शक्तियो से महरूम से हो चले हो... अब मीठे बाबा के *प्यार की शीतल छाया में ज्ञान और योग का एपिल खाओ.*.. और सतयुगी सुखो में ख़ुशी के लाल गालो से चमक जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा खुद को मात्र शरीर समझकर कितनी दुखो गरीब और शक्तिहीन हो चली थी... प्यारे बाबा आपने मुझे बाँहों भरकर जो प्यार भरा हाथ सिर पर फेरा, मै आत्मा खुशनुमा हो चली... *सत्य भरी सच्ची मुस्कान पाकर मै खिल उठी हूँ.*..

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता का साथ भरे इन मीठे सुनहरे दिनों में ज्ञान और योग के जादू भरे एपिल को खाकर *सदा के स्वस्थ निरोगी और खुशहाल हो जाओ.*.. अब दुखो की धरती पर नही बेठो... मीठे बाबा की मखमली गोद में ईश्वर पुत्र का सुख लूटो और फिर सतयुगी राजगद्दी पर मुस्काओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख निहाल हूँ... मीठे बाबा आपकी आसमान से नजर मुझ पर पड़ी है... और *आपकी मीठी बाँहों में खेल रही हूँ,खिल रही हूँ,और ज्ञान और योग के फल को खाकर* हष्टपुष्ट होती जा रही हूँ... दुःख की बीमारियो से मुक्त होती जा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सुखदायी स्वरूप के नशे से भर जाओ... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न हो सदा के मालामाल हो जाओ... *ईश्वरीय प्रेम की अटूट याद में मस्त मगन हो जाओ.*.. और ज्ञान और योग के नशे में इस कदर झूम जाओ और देवताओ सा खुबसूरत जीवन सदा का अपने नाम लिखवाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान से लबालब होकर यादो की बहारो में झूम रही हूँ... मीठे बाबा *आपकी ऊँगली पकड़ मदमस्त सी निश्चिन्त होकर* जीवन पथ पर चल रही हूँ... भगवान को पा लिया है और उसके पिता रूप में मीठे साथ भरे सुख की जी रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा निर्विघ्न सेवाधारी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा विश्व परिवर्तक हूँ... मैं आत्मा बाबा के इस *रुद्र यज्ञ की रुहानी सैनिक* हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन के कार्य में निमित्त बनाया है... मुझ आत्मा को इस ईश्वरीय श्रेष्ठ कार्य में तन, मन, धन से सहयोग देना है... मुझ आत्मा को अपना सब कुछ सफल करना है... सम्पूर्ण समर्पित होना है... मैं आत्मा निरंतर और निर्विघ्न सेवाधारी बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा के मन-बुद्धि कई जन्मों से रावण की कैद में रहने के कारण मायावी आकर्षणों के परवश हो गये थे... मैं आत्मा अपने मन और बुद्धि को अपने वश में करने के लिए के लिए *पूरी दिनचर्या का टाइम-टेबल सेट* करती हूँ... मैं आत्मा अपने मन और बुद्धि को अमृतवेले एक बाबा की याद में बिठाती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा *मन-बुद्धि को रुहानी एक्सर्साइज* में बिजी रखती हूँ... रोज रुहानी सैर कराती हूँ... मैं आत्मा मन-बुद्धि को अन्तर्मुखता की गुफाओं के दर्शन करा रही हूँ... अपने आत्मिक स्वरूप के दर्शन करा रही हूँ... फिर सूरज, चांद, सितारों की दुनिया से होते हुए सूक्ष्मवतन की सैर करा रही हूँ... बापदादा से रूह-रिहान कर पवित्र दृष्टि लेकर फिर मूलवतन की सैर कराती हूँ... मैं आत्मा मन-बुद्धि द्वारा दिव्य गुणों, शक्तियों को धारण करती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वदर्शन चक्र फिराकर अपने मन-बुद्धि को माया के चक्रों से छुड़ाती जा रही हूँ... मैं आत्मा अपने मन और बुद्धि को *आदि-अनादि स्वरुप की स्मृति दिलाकर स्मृति स्वरूप* बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा सेवा व स्व-पुरुषार्थ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए  अटेन्शन रुपी पहरा रखती हूँ... अब मैं आत्मा मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त कर सदा उमंग-उत्साह का अनुभव करती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा निरंतर सेवाओं में बिजी रहने के कारण सहज मायाजीत बनती जा रही हूँ... सेवा में बुद्धि बिजी रहने से मैं आत्मा निर्विघ्न बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि का भटकने का संस्कार  खत्म होता जा रहा है... अब मैं आत्मा मन और बुद्धि को सदा सेवा में बिजी रखने वाली *निर्विघ्न सेवाधारी स्थिति का अनुभव* करती जा रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सेवाओं से मिली दुआओं से तन्दरुस्त रहना"*

 

➳ _ ➳  मैं तेजस्वी मणि... योगयुक्त... शान्तिस्वरूप आत्मा... विश्वकल्याणकारी परम पिता परमात्मा की सन्तान हूँ... *विश्व का मालिक... विश्व में शान्ति स्थापना का कार्य मुझ आत्मा को निमित्त बना करा रहे हैं...* मैं आत्मा अपना ध्यान अपने असली गुणधर्म की ओर केन्द्रित करते हुये... संपूर्ण व्यक्तिव में शान्ति भरती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  बाबा समझा रहे हैं अनुभव में रह कर अनुभव कराना... स्वरूप बन कर स्वरूप बनाना... *अभी का संगमयुगी समय ही सेवा के लिये योग्य समझो...* मैं अशरीरीपन की स्थिति में बाबा से योग लगाये हुये अपने को शक्ति स्वरूप... विध्न विनाशक स्वरूप अनुभव कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  बाबा ने प्यार और शान्ति के द्वारा मुझ आत्मा को पालना दी है... उसी *प्यार और शान्ति की पालना मुझ आत्मा को और आत्माओं को देनी है...* प्रभु प्रेम की सेफ्टी की छत्रछाया में रहते हुये... सबकी स्नेही व सहयोगी बनना की सेवा करनी है... यह विश्व मेरे लिये सेवा स्थान है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा *विघ्न विनाशक स्वरूप* में  स्थित होकर... बाकी आत्माओं के विघ्नों से मुक्त होने में... उनकी सहायता कर रही हूँ... उन्हें भी अनुभव हो रहा है... शान्ति की किरणें आ रहीं हैं... *वह भी शान्त... घर भी शान्त... शान्त वातावरण* में आनन्द विभोर हो रही हैं... भय और चिंता से मुक्त हुई आत्मायें लगातार दुआयें देती जा रही हैं...

 

➳ _ ➳  इन सेवाओं और दुआओं भरे  वातावरण के संपर्क में जो भी आत्मा आती है... हल्कापन अनुभव करती है... चिन्ताओं से... मानसिक पीड़ाओ से उत्पन्न हुई बिमारियों से मुक्त होती जा रही है... *सेवायें करती हुईं... दुआयें लेती हुईं... ईश्वरीय पढा़ई की धारणा से सभी आत्मायें तन्दरुस्त होती जा रही हैं...*

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *मन और बुद्धि को सदा सेवा में बिज़ी रखने वाले निर्विघ्न सेवाधारी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  मन,बुद्धि और संस्कार यह हम आत्माओं की तीन ऑर्गन है जिनको ही ज्ञान योग से बाबा ठीक करवा रहे है। जैसे की हम जानते है की मन का काम ही है संकल्प चलाना, वह इस कार्य को किए बिना नही रह सकता... इसलिए मन को सदा बिज़ी रखना ही बहुत ऊँच कार्य है जिसके लिए ही गायन है *मनजीत सो जगतजीत* अर्थात  जिसने अपने मन को जीता है उसी ने जगत को जीता है। मन को सदा बिज़ी रखने के लिए इसको सुंदर सुंदर संकल्प दे डेली सुबह और कुछ स्वमान की लिस्ट बनाए जो आप घड़ी घड़ी अटेन्शन रख सके। 

 

 ❉  बुद्धि का कार्य होता है निर्णय लेना या विज़न बनाना, जिसका पूरा आधार हमारे मन में चलने वाले संकल्पों के ऊपर डिपेंड करता है की संकल्पों की क्वालिटी क्या है। संकल्प भी क्योंकि बहुत प्रकार के होते है नेगेटिव,पॉज़िटिव,समर्थ,व्यर्थ आदी। अब बाबा कहते *एकांत में मनन करना चाहिए और रात को पोतामेल दे बाबा को* जिससे पता चले की बुद्धि में कौनसी पिक्चर या मन में कौनसे संकल्प ज़्यादा चलते है।

 

 ❉  विघ्न कब आते है जब हमारा मन और बुद्धि फ्री रहती है क्योंकि जैसे ही ये फ्री होंगे तो मन व्यर्थ संकल्पो में जायेगा और बुद्धि फिर उसपे व्यर्थ का चिंतन करना ऑटमैटिक्ली शुरू कर देगी। आत्मा की एनर्जी इसमें सबसे ज्यादा वेस्ट होती है व्यर्थ चिंतन में और ज्यादातर *दुखों का कारण भी आज के समय में व्यर्थ का चिंतन ही है।* तो इनसे बचने का बहुत ही सहज उपाय है मन और बुद्धि को सेवा में बिज़ी रखो क्योंकि मन की एक बहुत बड़ी कमजोरी है ये एक समय में सिर्फ एक ही विचार(thought)को पकड़ के रख सकता है* ये जब एक को छोड़ेगा तब ही दूसरे विचार को पकड़ पायेगा।

तो क्यों न वो विचार हम इससे सेवा का दे और उसमें ही इससे बिज़ी रखे।

 

 ❉  जब कोई आत्मा सेवा कर रही होती है तो उसका उमंग उत्साह बढ़ा रहता है और इसका सबसे बड़ा कारण ये होता है कि उस आत्मा को कही न कही *यह स्मृति रहती है सेवा करते हुए की बाबा इस समय मुझे देख रहा होगा* उसका कार्य जो में कर रहा हु तो उसकी नज़रे भी मेरे ऊपर होगी तो इस संकल्प मात्र से बुद्धि में बाप की याद भी ऑटमैटिक्ली बनी रहती है और बाप की याद में किया गया कर्म निर्विघ्न होना ही है। इसके लिए ही ब्रह्मा बाबा सदा कहते अटेन्शन रखो टेन्शन नही, और जो कर्म मैं करूँगा मुझे देख ओर करेंगे।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सेवा से जो दुआयें मिलती हैं - वही तन्दरूस्त रहने का साधन है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जैसे पौष्टिक भोजन शरीर को तन्दरूस्त रखता है ऐसे ही *सेवा से जो दुआएं मिलती हैं वो आत्मा को तन्दरूस्त रखने का साधन है* ।

इसलिए जो सेवा निस्वार्थ और निष्काम भाव से की जाती हैं तथा जिस सेवा में सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी भाव समाया होता है । उस सेवा में सर्व की दुआयें समाई होने के कारण वह सेवा असीम ख़ुशी का अनुभव करवाती हैं और जो सर्व आत्माओं की दुआएं जमा करने के साथ साथ इस प्रत्यक्ष फल का अनुभव करते रहते हैं *वे हंसते मुस्कुराते सदा तन्दरूस्त रहते हैं* ।

 

❉   शरीर की तन्दरूस्ती निर्भर करती है मन की तन्दरूस्ती पर । अगर मन स्वस्थ है तो शरीर की अस्वस्थता भी मन पर नकारात्मक प्रभाव नही डाल सकती । और *मन को स्वस्थ रखने का सहज साधन है दुआयें* । मन में जब सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना और शुभकामना  समाई होती है तो उस सेवा से जो दुआयें मिलती हैं वे मन को सन्तुष्टता से भरपूर कर देती हैं और जिनका जीवन सन्तुष्टता से भरपूर होता है वे सदा *ख़ुशी के खजाने से सम्पन्न रहते हैं इसलिए तन्दरूस्त रहते हैं* ।

 

❉   सेवा में जब समर्पणता होती है अर्थात सेवा में जब सम्पूर्ण समर्पण का भाव निहित होता है तो यह *समर्पण भाव एक तो संगठन में सहयोग की भावना ला कर अनेको आत्माओं की दुआयों का अधिकारी बनाता है* और साथ ही साथ मन को भी असीम आनन्द और ख़ुशी की अनुभूति करवाता है । क्योकि सेवा में समर्पण भाव सेवा को सफलता के ऊँचे शिखर पर ले जाता है और सफलता की प्राप्ति आत्मा को अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का अनुभव करा कर उसे तन्दरूस्त रखती है ।

 

❉   सेवा की सफलता और उससे मिलने वाली ख़ुशी इस बात पर निर्भर करती है कि उस सेवा के पीछे भाव और भावना कैसी है । अगर मन में कोई छल कपट है, या ईर्ष्या वश कोई सेवा की जाती है तो भले थोड़े समय के लिए उसमे सफलता मिल भी जाये लेकिन वह सफलता सन्तुष्टता और ख़ुशी का अनुभव कभी नही करवा सकती । *विश्व कल्याण के कार्य में भी भाव और भावना विशेष महत्व रखते हैं* । सर्व आत्मायों के कल्याण की श्रेष्ठ भावना रख कर जब सेवा की जाती है तो वह सेवा ख़ुशी और सन्तुष्टता प्रदान करती है और मन को तन्दरूस्त रखती है ।

 

❉   जब स्वयं को निमित समझने के बजाए करावनहार समझने लगते हैं तो *सेवा में सन्तुष्टता और ख़ुशी के बजाए एक बोझ और थकावट का अनुभव होता है* जो सेवा में सफलतामूर्त नही बनने देता । लेकिन जब निमित पन की स्मृति में रह करनकरावन हार बाबा की छत्रछाया में स्वयं को अनुभव करते हुए सेवा के क्षेत्र में आते हैं तो बाबा का हाथ और साथ हर मुश्किल कार्य को सहज बना देता है । जिससे *सेवा में सर्व की दुआये भी प्राप्त होती है और ख़ुशी की अनुभूति भी होती है* जो मन बुद्धि को तन्दरूस्त बना देती हैं ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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