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 12 / 09 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *चलते फिरते कर्म करते बाप की याद में रहे ?*

 

➢➢ *बाप और वर्से को याद करते रहे ?*

 

➢➢ *"हीयर नो ईविल... सी नो ईविल... टॉक नो ईविल" - बाप की इस श्रीमत का पालन किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार जाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *स्वयं को महमान समझकर हर कर्म किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  स्थूल कर्मेन्द्रियाँ - यह तो बहुत मोटी बात है। कर्मेन्द्रिय-जीत बनना, यह फिर भी सहज है। लेकिन *मन-बुद्धि-संस्कार, इन सूक्ष्म शक्तियों पर विजयी बनना कहते हैं सूक्ष्म शक्तियों पर विजय अर्थात राजऋषि स्थिति।*

 

✧  जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को ऑर्डर करते हो कि यह करो, यह न करो। हाथ नीचे करो, ऊपर हो, तो ऊपर हो जाता है ना *ऐसे संकल्प और संस्कार और निर्णय शक्ति बुद्धि' ऐसे ही ऑर्डर पर चले।*

 

✧  आत्मा अर्थात राजा, मन को अर्थात संकल्प शक्ति को ऑर्डर करें कि *अभी-अभी एकाग्रचित हो जाओ, एक संकल्प में स्थित हो जाओ।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  चलते फिरते, कर्म करते, सच्ची कमाई कर, बाप की याद में रहना"*

 

➳ _ ➳  मीठे बाबा ने जब से जीवन में पर्दापण किया है... जीवन खुशियो के फूलो से महक उठा है... हर पल, हर कर्म मीठे बाबा की यादो से सजा धजा है... *मूर्तियो और मन्दिरो में मात्र दर्शन की प्यासी मै आत्मा... यूँ भगवान को जानूंगी, खुद को पहचानुगी यह तो कल्पनाओ में भी न था..*. आज मीठे बाबा को पाकर, सच की अमीरी से जीवन छलक रहा है... *खुद को जानने की और ईश्वर को पाने की ख़ुशी ने जीवन को बेशकीमती बना दिया है.*. मै आत्मा ईश्वरीय यादो से भरपूर होकर मा दाता बनकर मुस्करा हूँ... और यूँ मीठे चिंतन में डूबी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा को हाले दिल सुनाने, सूक्ष्म वतन में उड़ चलती हूँ...

 

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची कमाई के गहरे राज समझाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता के साथ भरा यह वरदानी समय... बहुत कीमती है, इसे अब यूँ ही व्यर्थ में न गंवाओ.*.. चलते फिरते हर कर्म को, ईश्वर पिता की यादो में कर, सच्ची कमाई से सम्पन्न हो, देवताई सुखो में मुस्कराओ... हर साँस से मीठे बाबा को याद कर, समर्थ चिंतन से देवताई अमीरी को पाओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की सारी जागीरों पर अपना अधिकार करते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने अपना यादो भरा हाथ, मेरे हाथो में देकर, मुझे देवताओ की अमीरी से पुनः नवाजा है.*.. आपको पाकर मै आत्मा... अपने सारे खोये खजाने लेकर...  विश्व का ताजोतख्त पा रही हूँ... सच्ची कमाई से भरपूर होकर फिर से खोयी हुई बादशाही को पा रही हूँ..."

 

❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे खोये सतयुगी सुखो को पुनः दिलाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *भाग्य ने जो खुबसूरत दिन दिखलाया है... और भगवान को पिता, टीचर, सतगुरु रूप में सम्मूख मिलवाया है.*.. अब हर पल इन मीठी यादो में खोकर, सच्ची कमाई करो... ईश्वर पिता की याद में हर साँस को पिरो दो...और 21 जनमो के लिए मालामाल हो जाओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की सारी वसीयत की मालिक बनते हुए कहती हूँ :-" प्यारे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा *ज्ञान धन से सम्पन्न होकर, यादो के झूले में खोयी हुई, हर क्षण सच्चे आनन्द को जी रही हूँ.*.. आपकी मीठी यादो में जीवन कितना प्यारा मीठा और सच्ची कमाई से भरपूर हो रहा है,... सदा आपके प्यार की छत्रछाया में पलने वाली महान भाग्यवान ही गयी हूँ..."

 

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादो के तारो में पिरोते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... संगम के सुहावने पलों में, मीठे बाबा की यादो में, सदा के धनवान् बन जाओ... *हर कर्म करते हुए मन और बुद्धि के तारो से मीठे बाबा को थामे रहो..*. सदा प्यारे बाबा के साथ रहो... और एक पल भी खुद को ईश्वरीय याद से जुदा नही करो... यादो की सच्ची कमाई से देवताई सम्पन्नता से भरपूर हो जाओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से अखूट खजाने लेकर सरे विश्व की मालिक बनकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने मुझ आत्मा के साधारण जीवन में आकर, जीवन को बेशकीमती बना दिया है... *सदा की गरीबी से छुड़ाकर, मुझ आत्मा को देवताई सुखो भरा ताज पहनाकर, राजरानी बनाया है.*.. मै आत्मा ईश्वरीय यादो में अथाह खुशियो को अपनी बाँहों में भर रही हूँ..."मीठे बाबा से प्यारी सी रुहरिहानं कर मै आत्मा... स्थूल तन में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जो पढ़ा है वह सब भूल, एक बाप से ही सुनना है*"

 

➳ _ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा, टीचर बाप से मधुर महावाक्य सुनने के लिए मैं मन, बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन में। जहां स्वयं भगवान टीचर बन अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं। *मधुबन के डायमण्ड हाल में मैं देख रही हूँ सभी ब्राह्मण आत्मायें गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित है और अपने टीचर शिव पिता परमात्मा का आह्वान कर रही हैं*। अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर मैं भी क्लास में आ कर बैठ जाती हूँ और अपने परम शिक्षक शिव बाबा का आह्वान करती हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने बच्चों का निमंत्रण मिलते ही शिव बाबा परमधाम से नीचे आ जाते हैं और सूक्ष्म लोक में पहुँच, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में बैठ सेकेंड में हम बच्चों के सामने उपस्थित हो जाते हैं। *अब मैं देख रही हूँ अपने सामने संदली पर अपने परमशिक्षक शिव बाबा को उनके लाइट माइट स्वरूप में। शिक्षक के रूप में बापदादा का स्वरूप अति लुभावना लग रहा है*। बापदादा की लाइट माइट चारों और फैल कर क्लासरूम के वातावरण को दिव्य और अलौकिक बना रही है। वायुमण्डल में फैली दिव्य अलौकिक आभा बुद्धि को एकाग्र कर रही है।

 

➳ _ ➳  सभी एकाग्रचित हो कर, एकटक बाबा को निहारते हुए, ब्रह्मा मुख से उच्चारित बाबा के एक - एक महावाक्य को ध्यान से सुन रहे हैं। *सभी की बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके अब बापदादा वापिस अपने धाम लौट रहे हैं*। अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित, मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर नाज़ करती हुई अब मैं विचार करती हूँ कि विनाशी शास्त्रों के ज्ञान से सम्पन्न आत्मा को भी अपने ज्ञान का कितना नशा होता है। किन्तु *यहां तो स्वयं भगवान अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझे भरपूर कर रहें है*।

 

➳ _ ➳  कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान टीचर बन मुझे पढ़ाने के लिए आते हैं, यह स्मृति मुझे असीम रूहानी नशे से भरपूर कर रही है। मैं सहज ही अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो रही है। अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर अब मैं सूक्ष्म लोक की ओर जा रही हूँ। *पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर मैं पहुँच गई सफेद प्रकाश की इस सुंदर दुनिया मे जहां मेरे सामने मेरे परम शिक्षक शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के लाइट के आकारी शरीर मे विराजमान है*। अपनी बाहें फैलाये वो मुझे अपने पास बुला रहें हैं। उनकी बाहों में समाकर मैं स्वयं को उनके प्यार से भरपूर कर रही हूँ।

 

➳ _ ➳  उनके वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर हैं और उनके हस्तों से निकल रही शक्तियां मुझ आत्मा में समाकर मेरी बुद्धि को स्वच्छ और निर्मल बना रही हैं। *बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध और निर्मल बना कर अब बापदादा टीचर बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अथाह खजानों से मेरे इस बुद्धि रूपी बर्तन को भर रहें हैं*। अविनाशी ज्ञान के अखुट खजाने ले कर अब मैं फ़रिशता वापिस पांच तत्वों की बनी साकारी दुनिया में लौट रहा हूँ और अपने सूक्ष्म शरीर के साथ अपने साकारी शरीर मे प्रवेश कर रहा हूँ।

 

➳ _ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और अपने परमशिक्षक शिव पिता के महावाक्यों को सदा स्मृति में रख, उनके द्वारा मिले अविनाशी ज्ञान को जीवन मे धारण कर अपने जीवन को ऊंच और महान बना रही हूँ। मेरे टीचर शिव बाबा द्वारा मिला सत्य ज्ञान अब मेरी बुद्धि में टपकता रहता है। *शास्त्रों का ज्ञान जो अब तक पढ़ा और सुना था वह सब कुछ भूल, एक बाप से ही सुनते और उसे अपने जीवन मे धारण करते हुए अब मैं अपने जीवन को पूजनीय और महिमा लायक बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :-  मैं आत्मा क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्रों से पार रहती हूँ।”*

 

➳ _ ➳  सर्व गुणों की खान शिवबाबा की संतान मैं गुणवान आत्मा हूँ… *मैं एक प्रसन्नचित्त आत्मा हूँस्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध मेंकिसी भी समय, किसी भी बात में संकल्प-मात्र भी क्वेस्चन नहीं उठाती हूँ*...यह ऐसा क्यों वा यह क्या हो रहा है, ऐसा भी होता है क्याऐसे बोल मुझ आत्मा के नहीं हो सकतेमुझ प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते, देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि *जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा हैऔर सदा अच्छा ही होना है*यह ड्रामा शत प्रतिशत कल्याणकारी हैमैं आत्मा *कभी क्या, क्यों, ऐसा वैसा इन प्रश्रों की उलझन में नहीं जाती हूँ*...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को मेहमान समझकर हर कर्म करते महान और महिमा योग्य बनना"*

 

➳ _ ➳  मैं देह नहीं देही हूँ... इस धरा पर इस देह में सेवार्थ अवतरित हुई हूँ... *ये देह परमपिता परमात्मा द्वारा मिली अमानत है... मैं आत्मा तो बस निमित्त हूँ... मेहमान हूँ...* कराने वाला करा रहा है... मैं आत्मा करनहार बस कर्मेन्द्रियों से कराए जा रही हूँ... *करनकरावनहार बाबा मेरा साथी है...* मैं आत्मा बस बाबा को साथ रख बाबा की यादों में हर कर्म कर रही हूँ... बाबा की याद में किया गया हर कर्म श्रेष्ठ हो रहा है... मैं आत्मा इस पुरानी देह व इस पुरानी दुनिया से लगाव मुक्त आकर्षण मुक्त हो रही हूँ... जैसे कोई मेहमान आता है तो उसे यही रहता है कि घर वापिस जाना है... ऐसे मैं आत्मा अपने को मेहमान समझ इस देह में रहती हूँ... मैं आत्मा निमित्त भाव रख हल्की रहती हूँ... *अपने को मेहमान समझ हर कर्म करते महान और महिमा योग्य अनुभव कर रही हूँ...*

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ब्रह्मा बाप को देखाकैसा भी बच्चा होशिक्षादाता बन शिक्षा भी देते लेकिन शिक्षा के साथ प्यार भी दिल में रखते।* और प्यार कोई बाहों का नहीं, लेकिन प्यार की निशानी है - अपनी शुभ भावना सेशुभ कामना से कैसी भी माया के वश आत्मा को परिवर्तन करना। कोई भी हैकैसी भी हैघृणा भाव नहीं आवेयह तो बदलने वाले ही नहीं हैंयह तो हैं ही ऐसे। नहीं। *अभी आवश्यकता है रहमदिल बनने की क्योंकि कई बच्चे कमजोर होने के कारण अपनी शक्ति से कोई बड़ी समस्या से पार नहीं हो सकतेतो आप सहयोगी बनो।* किससे? सिर्फ शिक्षा से नहींआजकल शिक्षा, सिवाए प्यार या शुभ भावना के कोई नहीं सुन सकता। यह तो फाइनल रिजल्ट है, शिक्षा काम नहीं करती लेकिन शिक्षा के साथ शुभ भावना, रहमदिल यह सहज काम करता है। *जैसे ब्रह्मा बाप को देखामालूम भी होता कि आज इस बच्चे ने भूल की हैतो भी उस बच्चे को शिक्षा भी तरीके सेयुक्ति से देता और फिर उसको बहुत प्यार भी करता, जिससे वह समझ जाते कि बाबा का प्यार है और प्यार में गलती के महसूसता की शक्ति उसमें आ जाती।*

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्रह्माबाप समान प्यार से शिक्षा देना"*

 

 _ ➳  रिमझिम रिमझिम बारिश की हल्की हल्की फुहारों के साथ... मैं सागर के किनारे बैठ कर लहरों को आता जाता देख... मन के ताने बाने से... सागर की गहराई को नापने की कोशिश कर रही हूँ... तभी *बाबा की याद में खोया हुआ मन पहुँच जाता है सूक्ष्म वतन में... जहाँ बापदादा लाल रंग के कमल के फूल पर बैठे हुए मन्द मन्द मुस्कुरा रहें हैं...*  

 

 _ ➳  मैं दौड़ कर उनकी गोद में जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा कहते... आ जाओ बच्ची... मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था... फिर बाबा अपने कोमल हाथों द्वारा मेरे सिर पर प्यार भरा हाथ फिराते हैं... *बाबा के वरद हाथों से अनन्त शक्तिशाली किरणें मेरे शरीर के रोम रोम में फैल रही हैं... मैं बाबा से आती इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाती हुई अनुभव कर रही हूँ...* लहरों के समान दौड़ता हुआ मेरा मन शांत शीतल होता जा रहा है... और स्नेह के सागर... प्रेम के सागर... के प्रेम में... मैं आत्मा लवलीन हो गयी हूँ... मास्टर प्रेम का सागर बन गयी हूँ...  

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा बाबा की मीठी बच्ची सदा ब्रह्मा बाप समान... हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना... शुभ भावना शुभ कामना... रहम की भावना रखती हूँ... किसी भी आत्मा के प्रति नकरात्मक संकल्प नहीं रखती हूँ... सबके प्रति प्रेम की भावना... पॉजिटिव सोच रखती हूँ... क्योंकि संकल्पों से ही वायुमण्डल बनता है... *धारणा स्वरूप... याद स्वरूप बन... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान रहमदिल बन सभी आत्माओं के प्रति शुभ भावना रख उन्हें ज्ञान की बातें सुना रही हूँ...* 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाप समान... रूहानी दृष्टि... वृत्ति रख... अन्य आत्माओं की कमी कमजोरी... अवगुणों को नज़र अंदाज़ करते हुए उन्हें बाबा का परिचय... सृष्टि के आदि-मध्य-अंत... के बारे में योगयुक्त... युक्तियुक्त... बहुत प्यार से समझा रही हूँ...* ज्ञान की बातें सुनकर उन आत्माओं के मन शांत हो रहें हैं... उनके मन में क्या... क्यों के प्रश्नों की झड़ियां समाप्त हो रही हैं... *ज्ञान की बातें उन्हें तीर की तरह लग रही हैं...*      

 

 _ ➳  हर आत्मा के प्रति यह एक ही शुभ संकल्प रहता कि हर आत्मा रूपी बच्चा सर्व खजानों से सम्पन्न हो जाये और अनेक जन्मों के लिये वर्से का अधिकारी बन जाये... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान सभी माया के वश आत्माओं को शुभ भावना... शुभ कामना से परिवर्तन कर उन्हें उमंग उत्साह से... प्यार से शिक्षा देते हुए खुशी का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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