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 21 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *5 विकारों का पूरा दान दिया ?*

 

➢➢ *कोई पाप कर्म तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *शरीर से ममत्व निकाल मोह्जीत बनने का पुरुषार्थ किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *ब्राह्मण जीवन में बधाइयों की पालना द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *सच्ची सेवा द्वारा सर्व की आशीर्वाद प्राप्त की ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  एक सेकण्ड भी आवाज से परे हो स्वीट साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाओ। तो कितना प्यारा लगता है? साइलेन्स प्यारी क्यों लगती है? क्योंकि आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है, ओरिजनल देश भी शान्ति देश है। इसलिए *आत्मा को स्वीट साइलेन्स बहुत प्यारी लगती है।* एक सेकण्ड में भी आराम मिल जाता है।

 

✧  कितनी भी मन से, तन से थके हुए हो लेकिन *अगर एक मिनट भी स्वीट साइलेन्स में चले जाओ तो तन और मन को आराम ऐसा अनुभव होगा जैसे बहुत समय आराम करके कोई उठता है तो कितना फ्रेश होता है।* कभी भी कोई हलचल होती है, लडाई झगडा या हल्ला-गुल्ला कुछ भी होता है तो एक-दो को क्या कहते है?

 

✧  शान्त हो जाओ। क्योंकि *शान्ति में आराम है तो आप भी सारे दिन में समय-प्रति-समय, जब भी समय मिले स्वीट साइलेन्स में चले जाओ।* अनुभव में खो जाओ - बहुत अच्छा लगेगा। अशरीरी बनने का अभ्यास सहज हो जायेगा। क्योंकि अंत में अशरीरी-पन का अभ्यास ही काम में आयेगा। सेकण्ड में अशरीरी हो जायें।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  माया के संग से अपनी सम्भाल कर, खबरदार रहना"*

 

_ ➳  मधुबन के तपस्या धाम में बेठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारती हुई सोचती हूँ... कि मीठे बाबा ने अगर मेरा हाथ न पकड़ा होता... मै आत्मा स्वयं को और प्यारे बाबा को कभी भी न जान पाती... *मीठे बाबा ने मुझे देह की मिटटी से निकाल कर... यादो में उजला खुबसूरत बना दिया है..*. विकारी दुनिया में जंग लगी मुझ आत्मा को... अपने प्यार और गुणो रुपी पानी में सोने सा दमकाया है... पारस बाबा ने अपने साये में बिठाकर... *मुझे भी आप समान चमकीला बनाकर... मेरी दिव्यता और पवित्रता का सारे विश्व में डंका बजवाया है... आज पूरा विश्व मुझे और मेरी पवित्रता को सम्मानित कर रहा है.*.. ऐसे मीठे बाबा का मै आत्मा कितना न शुक्रिया करूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अमूल्य शिक्षाओ से हीरे जैसा सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो तक दुखो के दलदल में फंसे रहे... और विकारो में लिप्त रहकर अपनी खुबसूरत को खो बेठे... *अब जो मीठे बाबा का साथ और हाथ मिला है... तो यह सच्चा साथ, प्यार और पालना कभी छोड़ना.*.. अपने संग की सदा सम्भाल कर... ईश्वरीय प्यार और पालना में... सदा रूहानी गुलाब बन महकना..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की छत्रछाया में फूलो जैसा मुस्कराते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी पालना में कितनी गुणवान और शक्तिवान बनकर... देवताई श्रंगार से सज गयी हूँ... *आपने सच्चे ज्ञान और प्यार को देकर... मुझे देह की मिटटी से छुड़ाकर... सदा के लिए उजला खुबसूरत बना दिया है.*..आपकी श्रीमत के हाथो में माया के काले साये से महफूज हूँ...

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा अपनी प्यार भरी गोद में लेकर माया से बचाते हुए कहा:-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा ने *जो ज्ञान का प्रकाश देकर मा नॉलेजफुल बनाया है... उस ज्ञान प्रकाश में, मायावी आकर्षण को दूर से ही परख कर सदा दूर रहो.*.. अब जो ईश्वरीय साथ को पाया है... तो माया के साथ से किनारा करो.. विकारी संग से सदा खबरदार रहो....

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को अपने दिल की गहराइयो में समाकर कहती हूँ:-"प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पायी ज्ञान धन की, असीम दौलत में मालामाल हो गयी हूँ... और तीसरे नेत्र को पाकर... *विवेक शक्ति से, बेहद की समझदार हो गयी हूँ... और आपकी यादो में देह के प्रभाव से मुक्त होकर...अपनी आत्मिक रूप में चमक रही हूँ.*.."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया के सुख ऐश्वर्य से मेरी झोली सजाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... *सदा प्यारे बाबा संग यादो के झूले में झूलते रहो... और माया के हर झोंके से सुरक्षित रहकर... मीठे बाबा के प्यार भरे आँचल में छुपे रहो.*.. सदा ज्ञान और योग के पंख लिए... खुशियो के अनन्त आसमाँ में... इतना ऊँचा उड़ते रहो कि माया का संग छु भी न सके...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में बैठकर माया के चंगुल से सुरक्षित होकर कहती हूँ :-"मीठे सच्चे साथी बाबा,.. आपने *मुझ आत्मा को अपने गले से लगाकर... अपनी अमूल्य शिक्षाओ से सजाकर... मेरा जीवन खुशियो की फुलवारी बना दिया है.*.. मेरा दिव्य गुणो और पवित्रता से श्रंगार कर... मेरा कायाकल्प कर दिया है... अब मै आत्मा माया के विकारी संग से सदा परे रह... इस सच्चे आनन्द में मगन रहूंगी..."मीठे बाबा को अपनी दिली दास्ताँ सुनाकर... मै आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शरीर से भी ममत्व निकाल मोहजीत बन जाना*"

 

 _ ➳  "मैं अजर, अमर, अविनाशी आत्मा हूँ, देह नही" इस सत्य को स्वीकार करते ही यह देह और इस देह से जुड़ी हर चीज से ममत्व निकलने लगता है और मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्वत: ही स्थित हो जाती हूँ। *देख रही हूँ अब मैं केवल अपने अनादि सत्य स्वरूप को जो बहुत ही न्यारा और प्यारा है*। एक चैतन्य सितारा जिसमे से रंग बिरंगी शक्तियो की किरणें निकल रही है, इस देह रूपी गुफा में, मस्तक रूपी दरवाजे पर चमकता हुआ, अपने प्रकाश से इस देह रूपी गुफा में प्रकाश करता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। *एक ऐसा प्रकाश जिसमे ऐसी हीलिंग पॉवर है जो पूरे शरीर को हील कर रही है*।

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस देह रूपी गुफा में बैठी, अँखियों की खिड़कियों से अपने आस - पास फैले उस रूहानी वायुमण्डल को देख आनन्द विभोर हो रही हूँ जो मुझ आत्मा से निकलने वाले प्रकाश की हीलिंग पॉवर से बहुत ही शक्तिशाली बन रहा है। *इस रूहानी वायुमण्डल के प्रभाव  से हर चीज मुझे रूहानियत से भरपूर दिखाई दे रही हैं*। मुझ आत्मा में निहित सातों गुणों की सतरंगी किरणों के प्रकाश से बनने वाला औरा एक खूबसूरत इंद्रधनुष के रूप में मुझे अपने चारों और दिखाई दे रहा है जिसमे से सातों गुणों की सतरंगी किरणे फ़ुहारों के रूप में मेरे रोम - रोम को प्रफुलित कर रही हैं।

 

 _ ➳  ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे किसी सतरंगी झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और उससे आने वाली शीतल फ़ुहारों का आनन्द ले रही हूँ जो मेरे अंतर्मन को पूरी तरह से शांन्त और शीतल बना रही हैं। *इस अति शांन्त और शीतल स्थिति में स्थित, अब मैं विचार करती हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी शांन्त और शीतल हूँ किन्तु देह का भान आते ही मेरे अंदर की शांति को जैसे ग्रहण लग जाता है और मैं कितनी दुखी और अशांत हो जाती हूँ*। अगर मैं सदैव अपने इस अनादि स्वरूप की स्मृति में रहूँ तो कोई भी बात मुझे देह भान में ला कर दुखी और अशान्त नही कर सकती।

 

 _ ➳  केवल मेरा अनादि ज्योति बिंदु स्वरूप ही सत्य है, और सदा के लिए है। बाकी इन आँखों से जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो सब विनाश होने वाला है। यहां तक कि यह देह भी मेरी नही, यह भी विनाशी है। *यह बात स्मृति में आते ही मैं आत्मा मोहजीत बन अब इस देह से ममत्व निकाल, इस नश्वर देह का त्याग कर एक अति सुन्दर रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*। कितनी सुंदर और आनन्द देने वाली है यह यात्रा। हर प्रकार के बंधन से मुक्त, एक आजाद पँछी की भांति मैं उन्मुक्त हो कर उड़ रही हूँ। *उड़ते - उड़ते मैं विशाल नीलगगन को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, जगमग करते, चमकते सितारों की खूबसूरत दुनिया में प्रवेश करती हूँ*।

 

 _ ➳  लाल प्रकाश से प्रकाशित यह सितारों की दुनिया गहन शांति की अनुभूति करवा कर मन को तृप्त कर रही है। अपने बिल्कुल सामने मैं अपने पिता शिव परमात्मा को एक ज्योतिपुंज के रूप में देख रही हूँ। *अनन्त शक्तियों की किरणें बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मुझे स्वत: ही अपनी और खींच रहा है और उनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं उनके अति समीप पहुंच कर उनके साथ अटैच हो गई हूँ*। मेरे शिव पिता की सारी शक्ति मुझ आत्मा में भरती जा रही है। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ। अपने शिव पिता की अथाह शक्ति से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस अपने शरीर रूपी गुफा में लौट रही हूँ।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण तन में, जो मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है, उस तन में भृकुटि पर विराजमान हो कर अब मैं इस सृष्टि रंगमंच पर अपना एक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ। *देह से ममत्व निकाल, मोहजीत बन अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ*। आत्मिक स्मृति में रह कर हर कर्म करने से मैं कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से मुक्त होकर, कर्मातीत अवस्था को सहज ही प्राप्त करती जा रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :-  मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में बधाईयों की पालना द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करती हूं।”*

 

_ ➳  खुशियों के झूले में झूलने वाली मैं भाग्यशाली ब्राह्मण आत्मा हूँसंगमयुग पर विशेष खुशियों भरी बधाईयों से ही सर्व ब्राह्मण वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं… *ब्राह्मण जीवन की पालना का आधार बधाईयाँ हैंबाप के स्वरूप में हर समय मुझ आत्मा के लिए बधाईयां हैंशिक्षक के स्वरूप में हर समय शाबास-शाबास का बोलमुझे पास विद् आनर बना रहा हैसद्गुरू के रूप में हर श्रेष्ठ कर्म की दुआयेंसहज और मौज वाली जीवन अनुभव करा रही हैं*इसलिए मैं आत्मा *पदमापदम भाग्यवान हूँजो भाग्यविधाता भगवान का बच्चा हूँमैं आत्मा सम्पूर्ण भाग्य की अधिकारी हूँ…*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्ची सेवा कर सर्व का आशीर्वाद प्राप्त करने वाली तकदीरवान होने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं शुभचिंतक वृत्ति से सारे विश्व की सेवा करने वाली आत्मा हूँ... *बाप समान सर्व के प्रति शुभ कामना... और शुभ भावना रख बाप को फॉलो करने वाली आत्मा हूँ*... शुभ संकल्पों द्वारा सच्ची-सच्ची सेवा कर... सर्व आत्माओं का आशीर्वाद प्राप्त करने वाली... तकदीरवान आत्मा हूँ... *आज विश्व को शुभचिंतक आत्माओं की आवयश्कता है*... शुभचिंतक आत्माएँ विश्व को अति प्रिय है... *शुभ कामना और शुभ भावना यही सेवा का फाउंडेशन है*... मैं सच्ची सेवा कर... सर्व आत्माओं को खुशी की... हिम्मत के पंखों की... उमंग-उत्साह की प्राप्ति करा... सर्व का आशीर्वाद प्राप्त करने का अनुभव कर रही हूँ... *मैं तकदीरवान आत्मा बन रही हूँ*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *खुशी में नाचते भी रहना और दिलखुश मिठाई बांटते भी रहना। साथ में जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उसको कोई ना कोई गिफ्ट देनाकोई हाथ खाली नहीं जाये* कौन-सी गिफ्ट देंगेआपके पास गिफ्ट तो बहुत है। गिफ्ट का स्टाक हैतो देने में कन्जूस नहीं बननादेते जाना। *फ्राकदिल बननाकिसी को शक्ति का सहयोग दो, शक्ति का वायब्रेशन दोकिसको कोई गुण की गिफ्ट दो। मुख से नहीं लेकिन अपने चेहरे और चलन से दो*। यदि कोई गुण वा शक्ति इमर्ज नहीं भी होतो कम-से-कम छोटी सी सौगात भी देनावह कौन सी? शुभ भावना और शुभ कामना की। *शुभ कामना करो कि यह मेरा सिकीलधा भाई या बहनसिकीलधा सोचेंगे तो अशुभ भावना से शुभभावना बन जायेगी। इस भाई -बहन का भी उड़ती कला का पार्ट हो जाएइसके लिए सहयोग वा शुभ भावना है*।

 

 _ ➳  कई बच्चे कहते हैं कि हम देते हैं वह लेते नहीं हैं। अच्छा शुभ भावना नहीं लेते हैंकुछ तो देते हैं ना। चाहे अशुभ बोल आपको देते हैंअशुभ वायब्रेशन देते हैं, अशुभ चलन चलते हैं तो आप हो कौन? *आपका आक्यूपेशन क्या हैविश्व-परिवर्तक होआपका धंधा क्या हैविश्व परिवर्तक हैं ना! तो विश्व को परिवर्तन कर सकते हो और उसने अगर आपको उल्टा बोल दियाउल्टा चलन दिखाई तो उसका परिवर्तन नहीं कर सकते हो?*

 

 _ ➳  पाजिटिव रूप में परिवर्तन नहीं कर सकते होनिगेटिव को निगेटिव ही धारण करेंगे कि निगेटिव को पाजिटिव में परिवर्तन कर आप हर एक को शुभ भावनाशुभ कामना की गिफ्ट देंगे। *शुभ भावना का स्टाक सदा जमा रखो। आप दे दो। परिवर्तन कर लो। तो आपका टाइटिल जो विश्व परिवर्तक है वह प्रैक्टिकल में यूज होता जायेगा। और यह पक्का समझ लो कि जो सदा हर एक को परिवर्तन कर अपना विश्व-परिवर्तक का कार्य साकार में लाता है वही साकार रूप में 21 जन्म की गैरन्टी से राज्य अधिकारी बनेगा*। तख्त पर भले एक बारी बैठेगा लेकिन हर जन्म में राज्य परिवार मेंराज्य अधिकारी आत्माओं के समीप सम्बन्ध में होगा। तो *विश्व परिवर्तक ही विश्व राज्य अधिकारी बनता है। इसलिए सदा यह अपना आक्यूपेशन याद रखो - मेरा कर्तव्य ही है परिवर्तन करना। दाता के बच्चे हो तो दाता बन देते चलो, तब ही भविष्य में हाथ से किसको देंगे नहीं लेकिन सदा आपके राज्य में हर आत्मा भरपूर रहेगीयह इस समय के दाता बनने का प्रालब्ध है। इसलिए हिसाब नहीं करनाइसने यह कियाइसने इतना बार कियामास्टर दाता बन गिफ्ट देते जाओ*।

 

✺   *ड्रिल :-  "मास्टर दाता बन सदा खुशी में नाचते रहना और दिलखुश मिठाई बांटते रहना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा देह से निकल अपने आप को *फ़रिश्ता स्वरूप* में स्थित करती हूं,बेहद सुंदर प्रकाशीय स्वरूप और पहुँचता हूं मैं फ़रिश्ता अपने घर *सूक्ष्म वतन* में... जहां हर तरफ सफेद चमकीला प्रकाश फैला हुआ है... *देखता हूं मैं फ़रिश्ता स्वयं को बापदादा की बाहो में और साथ में हैं एडवांस पार्टी वाले वरिष्ठ भाई बहनें वो भी फ़रिश्ता स्वरूप में...* सूक्ष्म वतन में सब फरिश्ते लाइट के ताज से सुसज्जित अपने अपने स्थान पर बैठे हैं... सब प्रसन्न हैं मुझे फ़रिश्ता रूप में परिवर्तित देख कर...

 

 _ ➳  *फिर बापदादा मुझे तिलक देते हैं और आशीर्वाद देते हैं विश्व परिवर्तक भव... मास्टर दाता भव... और टोली खिलाते हैं... और पहनाते हैं लाइट का गोल क्राउन...* इस ताज को पहनते ही मुझ फ़रिश्ते की रोशनी और बढ़ जाती है... इसके बाद एक एक कर सभी भाई बहने मुझे मिठाई खिलाकर शुभ भावना की गिफ्ट दे रहें हैं... तभी उस सीट पर बैठे बैठे एक दृश्य इमर्ज होता है मुझ फरिश्ते को अपने कर्तव्यों का कि मुझे साकार दुनिया में जाकर क्या करना है...

 

 _ ➳  सम्पूर्णता के सुखद अहसासों से भर कर मैं फ़रिश्ता आता हूं वापिस इस साकारी लोक में अपनी आत्मिक स्थिति में... *बाबा के दिये वरदान गूँज रहे हैं... बाबा ने विश्व परिवर्तक आत्मा भव, मास्टर दाता भव के वरदानों से मुझ आत्मा को सजाया है... मैं अधिकारी आत्मा हूं* इस नशे में मैं आत्मा झूम रही हूं नाच रही हूं... मुझ आत्मा को बाबा ने निमित्त बनाया है... *वाह बाबा वाह* के गीत गाते हुए मैं आत्मा उमंग उत्साह भरी अपनी सेवा के कार्य को शुरू करती हूं...

 

 _ ➳  *बाबा की याद में खोई हुई वरदानों की बारिश में भीगती अब मैं आत्मा सभी आत्माओं को मास्टर दाता बन शुभ भावना शुभ कामना की गिफ़्ट दे रही हूं... मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूं... नेगेटिव को पाजिटिव में बदल अब मैं अपने सिकीलधे भाई बहनों को गुण और शक्तियों का दान दे रही हूं... कोई के अशुभ बोल भी अब मैं शुभ में परिवर्तित कर रही हूं...* सब अपने आपको उड़ता हुआ अनुभव कर रहे हैं... इनको प्राप्त कर सभी बहुत खुश दिख रहे हैं... *सभी को बाबा प्रत्यक्ष हो रहे हैं... इसी खुशी में सभी नाचते हुए बाबा को धन्यवाद देते हुए गा रहे हैं... बरस रही है बाबा हम पर आप की मेहरबानियां...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सबको दिलखुश मिठाई खिलाकर बहुत खुश हूं...* और इसी खुशी में नाच रही हूँ... कितना आत्म विभोर करने वाले पल हैं ये... *आनंद में सराबोर मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा की यादों में खो जाती हूँ... बाबा... बाबा... बाबा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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