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❍ 18 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *वनवास में रहे ?*
➢➢ *इन आँखों से जो कुछ दिखाई देता है, उसे देखते हुए भी नहीं देखने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *पूरा नष्टोमोहा बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *बापदादा के स्नेह के रीटर्न में समान बनने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *शीतल बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल करने वाले शीतल योगी बनकर रहे ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ जितना ही बाहर का वातावरण भारी होगा उतना ही अनन्य बच्चों के संकल्प, कर्म, सम्बन्ध लाइट (हल्के) होते जायेंगे और इस लाइटनेस के कारण सारा कार्य लाइट चलता रहेगा। *वायुमण्डल तो तमोप्रधान होने के कारण और भिन्न-भिन्न प्रकार से भारी-पन का अनुभव करेंगे।*
〰✧ प्रकृति का भी भारी-पन होगा। मनुष्यात्माओं की वृत्तियों का भी भारी-पन होगा। *इसके लिए भी बहुत हल्का-पन भी औरों को भी हल्का करेगा।* अच्छा, सब ठीक चल रहा है ना कारोबार का प्रभाव आप लोग के ऊपर नहीं पडता। लेकिन आपका प्रभाव कारोबार पर पडता है।
〰✧ जो कुछ भी करते हो, सुनते हो तो आपके हल्के-पन की स्थिति का प्रभाव कार्य पर पडता है। कार्य की हलचल का प्रभाव आप लोगों के ऊपर नहीं आता। *अचल स्थिति कार्य को भी अचल बना देती है।* सब रीति से असम्भव कार्य सम्भव और सहज हो रहे हैं और होते रहेंगे। अच्छा। (दादीजी के साथ पर्सनल मुलाकात)
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दिव्य दृष्टि से ममत्व मिटाकर,पूरा बलि चढ़ना*"
➳ _ ➳ भगवान जब धरती पर आया... *मेरे लिए अनन्त खुशियां, आसमाँ से लेकर... मेरे दिल आँगन में पधारा*... यह मीठा चिंतन करते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे की ओर रुख करती हूँ... और सोचती हूँ, मीठा बाबा जीवन में गर न आया होता... तो मुझ आत्मा को दुखो के जंगल से कौन निकलता... *प्यारे बाबा ने मुझ धूल को अपने मस्तक से लगा दिया है... और सब कुछ करके, मेरे पीछे स्वयं को जेसे छिपा लिया है.*.. मै आत्मा गुणो से सजी रहूँ... मेरा खुबसूरत भाग्य बने... मै विश्व कल्याणी बनकर सतयुग धरा का ताजोतख्त पाऊँ.. यही प्यारे बाबा की चाहत है... *मेरे ऊपर अपना सर्वस्व लुटाकर.... मुझे देवताओ की सुंदरता में ढालना... इतना कुछ मेरे बाबा ने मेरे लिए किया है.*.. मै आत्मा भला क्या मोल चूका पाऊँगी इस चाहत का... बस हर साँस से मीठे बाबा की उपकारी हूँ, ऋणी हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को इस पुरानी दुनिया से ऊँचा उठाकर खुशियो भरे स्वर्ग में ले जाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे.... *मीठा बाबा आप बच्चों के लिए सच्ची खुशियो की सौगात, अपनी हथेली पर सजाकर ले आया है.*.. तो अब इस पतित दुनिया से सारा बुद्धियोग हटाकर, सच्चे सुखो को प्रतिपल याद करो... प्यारे बाबा की यादो में खोकर, सच्चे आनन्द में डूब जाओ... यह दुखो के काँटों से भरी दुनिया, आप फूल बच्चों के लिए नही है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से सच्चे सुख पाकर, आनन्द से भाव विभोर होकर कहती हूँ :-"ओ मेरे मनमीत बाबा... *सच्चे सुखो के फूल मेरे दामन में सजाकर... आपने मुझे कितना प्यारा और खुशनुमा बनाकर... मेरे जीवन को बेशकीमती बना दिया है..*. ईश्वरीय दौलत को बाँहों में भरने वाली मै अनोखी आत्मा हूँ... मै आत्मा आपके सच्चे प्यार में इस दुखो की दुनिया को भूल गयी हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से निखारते हुए, सतयुगी बादशाही से सजाकर, कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा से साथ भरे इस सुहाने वरदानी संगम पर... अपने मन और बुद्धि को, इस दुनिया के जंजालों में अब और न उलझाओ... बुद्धि को समेटकर, प्यारे बाबा की यादो में... गहरे नशे से भर जाओ... *सदा दिव्य दृष्टि से सुख से सजे, मीठे स्वर्ग के अहसासो में खो जाओ... इस पुरानी, विकारी दुनिया से मोह निकाल कर... सिर्फ मीठेबाबा को प्यार करो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को अपने दिल की गहराइयो में गहरे समाकर कहती हूँ :-"मेरे मीठे सतगुरु बाबा... *आपने मुझ आत्मा को अपनी सुख भरी हथेलियो पर पालकर, फूलो जैसा सुगन्धित और निर्मल बना दिया है..*. मुझे ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर... इस विकारी दुनिया से मोह भंग करा कर...मुझे विकारो की कालिमा में काला होने से बचा लिया है... मै आत्मा दिल की गहराइयो से आपकी शुक्रगुजार हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दिव्य दृष्टि देकर बेहद का राज समझाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जो दिव्यता का नेत्र देकर, त्रिकालदर्शी बना दिया है तो अब हद के दायरों से बाहर निकल... दुखो की इस दुनिया से उपराम होकर... *सच्चे सुखो और खुशियो से अपना दिल आँगन सजाओ... सिर्फ प्यार के सागर मीठे बाबा से ही अपना दिल लगाओ.*.. सच्चे बाबा पर दिलोजान से बलिहार हो जाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा असीम खुशियो में झूमते गाते हुए मीठे बाबा पर दिल से बलिहार होकर कहती हूँ :-"मीठे जादूगर बाबा... *आपने मेरे जीवन में आकर जो प्यार और खुशियो का जादु लगाया है... जीवन दुखो की सारी सीमाओ को तोड़... खुशियो के अनन्त आसमाँ पर सदा उड़ता ही फिरता है.*..मै आत्मा अब विनाशी रिश्तो से बाहर निकल आत्मिक स्नेह की गंगा बहा रही हूँ... आप पर फ़िदा होकर सब्को आपका दीवाना बना रही हूँ..."प्यारे बाबा पर अपना असीम प्यार उंडेल कर मै आत्मा... इस धरा पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- वनवास में रहना है*"
➳ _ ➳ अपने मन बुद्धि को सभी बाहरी बातों से डिटैच करके, मैं जैसे ही एकाग्र हो कर बैठती हूँ। प्यारे शिव पिता परमात्मा के महावाक्य स्मृति में आने लगते है, बच्चे:- "वनवास में रहना है"। *इन महावाक्यों के स्मृति में आते ही वो दृश्य आंखों के सामने आने लगता है जब ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन सब कुछ यज्ञ में समर्पित कर दिया, दादियों ने भौतिक संसार की सभी सुख सुविधाओं को त्याग 14 वर्ष का वनवास ले लिया*। योग की भट्टी में स्वयं को तपा कर ऐसा सच्चा सोना बना दिया जिसकी चमक आज पूरी दुनिया में फैल रही है।
➳ _ ➳ मन मे यह विचार आते ही मैं स्वयं को पांडव भवन के उस स्थान पर खड़ा हुआ देखती हूँ जहां रह कर 14 वर्ष ब्रह्मा बाबा और दादियों ने भौतिक जगत की सभी सुख सुविधाओं को त्याग कर कठोर तपस्या की। सब ऐशो - आराम होते हुए भी उसका त्याग कर वनवास में रहे। *उनकी कठोर तपस्या का प्रतिफल ही शक्तिशाली वायब्रेशन के रुप में पूरे मधुबन में फैला हुआ है जो यहां आने वाली हर आत्मा को गहन शांति की अनुभूति करवाकर तृप्त कर देता है*।
➳ _ ➳ मधुबन के पांडव भवन में शांति स्तम्भ पर बैठ गहन शांति की अनुभूति करके मैं स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि जैसे ब्रह्मा बाबा ने सांसारिक सुखों का त्याग कर, वनवास में रह, अति साधारण जीवन व्यतीत किया ऐसे ही फॉलो फादर कर मुझे भी बाप समान बनना है। *स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए मैं स्पष्ट महसूस करती हूँ कि मेरे सामने बापदादा, मम्मा, यज्ञ में सब कुछ समर्पित कर वनवास में रहने वाली वरिष्ठ दादियां और एडवांस पार्टी की आत्मायें उपस्थित है*। बापदादा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है। बाबा मुझे विजयी भव का वरदान दे रहें हैं। दादियां और एडवांस पार्टी की सभी आत्मायें भी अपनी ब्लैसिंग दे रही हैं।
➳ _ ➳ सभी की ब्लैसिंग लेकर अब मैं शांति स्तम्भ से उठ कर बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ और ब्रह्मा बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने जा कर बैठ जाती हूँ। *बाबा के उस चित्र से आ रही लाइट माइट सेकण्ड में मुझे मेरे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर देती है और लाइट माइट स्वरुप में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ कि अव्यक्त बापदादा मेरे सामने बॉहें पसारे खड़े हैं और मैं फ़रिशता उनकी बाहों में समाकर उनकी लाइट माइट से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ*। बापदादा अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख कर अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल कर रहें हैं। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपना सम्पूर्ण बल मेरे अंदर भर रहें हैं जो मुझे भौतिक जगत की सुख सुविधाओं के हर आकर्षण से मुक्त कर इच्छा मात्रम अविद्या बना रहा है। *भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग कर, अति साधारण किन्तु श्रेष्ठ और विशेष जीवन जीने की प्रेरणा दे रहा है*। बाबा की लाइट माइट स्वयं में भरकर अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ मैं अपने स्थूल शरीर मे प्रवेश कर जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपनी कर्म भूमि, अपने सेवा स्थल पर लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं सदैव स्वयं को वनवास में अनुभव करती हूँ। हद की सभी इच्छाओं का त्याग कर, बेहद की सन्यासी बन, कदम - कदम पर फॉलो फादर कर, बाप समान बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बापदादा के स्नेह का रिटर्न समान बन कर दे रही हूं"*
➳ _ ➳ *बाबा कहते हैं... "बच्चे स्व की उन्नति और तीव्र पुरुषार्थ के लिए तपस्या करो..." हद के किनारों को छोड़ बेहद के वैरागी बनो...* तो जैसे *स्नेह...त्याग और तपस्या की मूरत... मेरे पिता हैं...* मैं वैसे ही तपस्वीमूर्त बन रही हूं... हद को छोड़ बेहद में खुद को समा रही हूं... *बापदादा के वरदान का मनन करती मैं आत्मा बाबा के स्नेह के रिटर्न में बापसमान बनने के पथ पर चल रही हूं...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शीतल दृष्टि द्वारा सर्व को शीतलता का अनुभव कराने वाली अनुभवी मूरत आत्मा होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा... ये चली रूहानी यात्रा पर... मैं देखती हूं... *मेरे चारों ओर की आत्माएं... काम रूपी चिता पर विराजमान हैं...* सभी एकदम कामी और क्रोधी बन गई हैं... सभी काम रूपी अग्नि में जल रही है... *शीतल दृष्टि से भरपूर मैं आत्मा... फायर ब्रिग्रेडेर बन... सर्व को शीतलता प्रदान कर रही हूं...* मैं आत्मा अनुभव करती हूं... मेरा अंग-अंग एकदम शांत और शीतल है... *नैनों से निकलती शीतलता की किरणें... सर्व को ठंडक दे रही हैं...* अब मैं महसूस करती हूं... सर्व आत्माएं एकदम शांति और शीतलता को प्रदान है... *सभी काम रूपी चिता से उतर... अब ज्ञान रूपी चिता पर विराजमान हो गई हैं...* सभी कमल फूल समान... न्यारी और बाप की प्यारी बन गई है...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *विश्व-कल्याणकारी की स्टेज है - सदा बेहद की वृत्ति हो, दृष्टि हो और बेहद की स्थिति हो। वृत्ति में जरा भी किसी आत्मा के प्रति निगेटिव या व्यर्थ भावना नहीं हो।* निगेटिव बात को परिवर्तन कराना, वह अलग चीज है। लेकिन जो स्वयं निगेटिव वृत्ति वाला होगा वह दूसरे के निगेटिव को भी पाजेटिव में चेंज नहीं कर सकता। इसलिए हर एक को अपनी सूक्ष्म चेकिंग करनी है कि वृत्ति, दृष्टि सर्व के प्रति सदा बेहद और कल्याणकारी है? जरा भी कल्याण की भावना के सिवाए हद की भावना, हद के संकल्प, बोल सूक्ष्म में भी समाये हुए तो नहीं हैं? जो सूक्ष्म में समाया हुआ होता है, उसकी निशानी है कि समय आने पर वा समस्या आने पर वह सूक्ष्म स्थूल में आता है। सदा ठीक रहेगा लेकिन समय पर वह इमर्ज हो जायेगा। फिर सोचते हैं यह है ही ऐसा। यह बात ही ऐसी है। यह व्यक्ति ही ऐसा है। *व्यक्ति ऐसा है लेकिन मेरी स्थिति शुभ भावना, बेहद की भावना वाली है या नहीं है? अपनी गलती को चेक करो।* समझा।
➳ _ ➳ यह हो गया, यह हो गया... यह नहीं सोचना। यह तो होना ही है। पहले से ही पता है यह होना है लेकिन *बाप समान फरिश्ता बनना ही है।* समझा। करना है ना? कर सकेंगे? एक वर्ष में तैयार हो जायेंगे कि आधे वर्ष में तैयार हो जायेंगे? *आपके सम्पन्न बनने के लिए ब्रह्मा बाप भी आह्वान कर रहा है और प्रकृति भी इन्तजार कर रही है।* 6 मास में एवररेडी बनो, चलो 6 मास नहीं एक वर्ष में तो बनो। *हलचल में नहीं आना, अचल। लक्ष्य नहीं छोड़ना, बाप समान बनना ही है, कुछ भी हो जाए। चाहे कई ब्राह्मण हिलावें, ब्राह्मण रूकावट बनकर सामने आयें फिर भी हमें समान बनना ही है।*
✺ *ड्रिल :- "सदा विश्व-कल्याणकारी की स्टेज पर स्थित रहकर बाप समान बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *प्रकृति के सुंदर, सुरम्य वातावरण में... मैं आत्मा आबू की पहाड़ियों पर अपने प्यारे शिव बाबा की यादों में बैठी हुई हूँ...* इन्हीं पहाड़ियों पर साकार बाबा बच्चों के साथ तपस्या करते थे और बच्चों को अनेक सुंदर अनुभव कराते थे... इसी का यादगार शास्त्रों में दिखाया गया है कि ऋषि-मुनियों ने पहाड़ों की गुफाओं में, कन्दराओं में गहन तपस्या की थी... यहां के सुंदर सुरम्य वातावरण में मेरा मन बाबा की याद में मगन होता जा रहा है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने मीठे मीठे बाबा को अपने पास देख रही हूँ... उनका सुंदर सलोना रूप मुझे आकर्षित कर रहा है... *मैं एकटक हो अपने प्यारे बाबा को निहार रही हूँ... मीठे बाबा बड़े प्यार से दृष्टि देकर मुझ आत्मा में रूहानी स्नेह की खुशबू घोल रहे हैं... मैं आत्मा ईश्वरीय खजानों, शक्तियों और गुणों से संपन्न बनती जा रही हूँ...* इन खजानों से भरपूर हो इन्हें सारे विश्व में फैलाने के निमित्त बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को विश्व कल्याणकारी के स्वरुप में देख रही हूँ... हद का मैं-मेरा पन समाप्त होता जा रहा है... मेरे हर संकल्प, बोल, कर्म, दृष्टि, वृत्ति में हद की संकुचित भावनाएं समाप्त होती जा रही हैं... मैं बेहद की स्थिति में स्थित हूँ... किसी भी आत्मा के प्रति मेरे मन में कोई भी नेगेटिव भावना नहीं है*... हर एक के कल्याण की शुभेच्छा, शुभ कामना ही मेरे मन में जागृत हो रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *अतिसूक्ष्म चेकिंग करती हूँ कि मेरी दृष्टि और वृत्ति में कहीं अंश मात्र भी हद की भावना तो नहीं है... क्या मेरी वृत्ति में बेहद विश्व के कल्याण की भावना समाई हुई है... मैं अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर के स्वयं को चेंज कर रही हूँ...* कोई आत्मा कैसी भी है, कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली है... मैं स्वयं में सर्व के प्रति बेहद की, कल्याण की, शुभ भावना ही देख रही हूँ... मैं आत्मा सर्व ईश्वरीय खजाने सारे विश्व में फैला रही हूँ... सर्व आत्माओं को ईश्वरीय सन्देश दे उन्हें बाबा से वर्सा दिलाने के निमित्त बन रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं बाप समान संपन्न फरिश्ता बन रही हूँ... मैं अपने संपन्न स्वरुप का आह्वान कर रही हूँ... संपूर्ण प्रकृति मेरे संपन्न बनने का इंतजार कर रही है... सूक्ष्म वतन में बापदादा भी मेरे संपूर्ण स्वरुप आह्वान कर रहे हैं...* मैं आत्मा संपन्नता की मंजिल की ओर अग्रसर हो रही हूँ... कोई भी परिस्थिति मुझे हलचल में नहीं ला सकती... मैं बाप समान दृढ़, अचल-अडोल बन रही हूँ... कितने भी विघ्न-बाधाएं आएं, चाहे ज्ञानी या अज्ञानी आत्मायें विघ्न लाएं... लेकिन मैं दृढ़ता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही हूँ... *मैं बाप समान स्थिति में स्थित हूँ... सम्पूर्ण क़ायनात को ईश्वरीय खजानों से भरपूर करती जा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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