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❍ 25 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *कोई भी भूल हुई तो बाप से फ़ौरन क्षमा मांगी ?*
➢➢ *कभी भी इर्ष्या के कारण एक दो का परचिन्तन तो नहीं किया ?*
➢➢ *उल्टी सुलटी बातों को सुना अनुसुना कर दिया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *रंग और रूप के साथ साथ सम्पूरण पवित्रता की खुशबू को धारण किया ?*
➢➢ *यथार्थ सत्य को परखा ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ अधिकार की निशानी है - अपना-पना अपने बाप के पास आये हैं, अपने परिवार में आये हैं। मेहमान बन कर के नहीं आते लेकिन *बच्चे आये हैं अपने घर में।* चाहे चार दिन के लिए आते हो लेकिन समझते हो - मधुबन अपने स्थान पर पहुँचे हैं। तो यह आना और जाना। आप ब्राह्मणों की जो पढाई है वा *मुरलीधर की जो मुरली है उसका सार यह दो शब्द ही हैं - ‘आना और जाना'।*
〰✧ याद की यात्रा का अभ्यास क्या करते हो? कर्मयोगी का अर्थ ही है - मैं अशरीरी आत्मा शरीर के बंधन से न्यारी हूँ *कर्म करने के लिए कर्म में आती हूँ और कर्म समाप्त कर कर्म-सम्बन्ध से न्यारी हो जाती हूँ* सम्बन्ध में रहते हैं, बंधन में नहीं रहते।
〰✧ तो यह क्या हुआ? *कर्म के लिए ‘आना' और फिर न्यारे हो ‘जाना'।* कर्म के बन्धन वश कर्म में नहीं आते हो लेकिन कर्मेन्द्रियों को अधीन कर अधिकार से कर्म करने के लिए कर्मयोगी बनते हो। इन्द्रियों के कर्म के वशीभूत नहीं हो।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों को दान करने की रेस करना"*
➳ _ ➳ खुबसूरत प्रकर्ति के सानिध्य में बेठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा की यादो में डूबी हुई... अपने महान भाग्य को याद कर रही हूँ... कि अचानक चलते चलते भगवान ही मेरे जीवन में उतर आया... और यह साधारण गरीब और दुखी जीवन... *यकायक ईश्वरीय अमीरी से खनकने लगा... और मेरी अमीरी की गूंज पूरे विश्व में गुंजायमान हो गयी..*. ऐसे मीठे भाग्य को तो कल्पनाओ में भी कभी न देखा... और आज ऐसे मीठे, ज्ञान धन की दौलत से खनकते... जीवन की मालिक बनकर मुस्करा रही हूँ... *ऐसे प्यारे भाग्य को सजाकर... मेरे हाथो में सौंपने वाले मीठे बाबा को... प्यार करने* वतन में उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सारे खजानो को मुझे सौंपते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की बाँहों में समाकर... जो ज्ञान धन की दौलत से भरपूर हो गए हो... तो *यह खजाने, यह अमीरी, हर दिल पर बिखेर कर... सबका दामन सच्ची खुशियो से सजाने वाले... खुशियो के सौदागर बनकर मुस्कराओ.*.. अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करने की रेस की बदौलत... असीम आनन्द और सुख को अपने दिल में सजा हुआ सहज ही पाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में दीवानी हैकर कहती हूँ... मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा कोे अपने प्यार की बाँहों में भरकर, विश्व की बादशाही से सजा दिया है... कब सोचा था कि मेरी गरीबी यूँ ईश्वरीय अमीरी में बदल जायेगी... और मै आत्मा *यह धन बाँटने वाली... महा धनवान् बन इस धरा पर इठला उंगी.*.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझे अपने प्यार और पालना में पत्थर से पारस सा चमकाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर धन की बरसात करने वाले, सबको सुखो की मुस्कान सजाने वाले,... इस धरा पर खुशियो की बहार लाने वाले... *मा भगवान बन, सबको अविनाशी रत्नों रुपी धन बांटते चलो... और इस रेस में एक से बढ़कर एक... ऐसा कमाल दिखाओ..*."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को जीवन में उतारते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा.... मै आत्मा अपने समान सुंदर तकदीर हर आत्मा की बना रही हूँ... *ईश्वरीय ज्ञान रत्नों की दौलत देकर... सबकी दुखो भरी गरीबी, सदा की खत्म करवा रही हूँ..*. अपने बिछड़े पिता से हर आत्मा को मिलवाकर... पुण्यो का खाता बढ़ाती जा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझे ज्ञान धन से आबाद कर ज्ञान परी बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... हर दिल को ईश्वरीय धन से सम्पन्न बनाकर... सारे जहान को सच्चे आनंद से भरने वाले... सच्चे रहनुमा बन मुस्कराओ... सबके जीवन में सुख के फूल खिलाओ... *ईश्वरीय ज्ञान की झनकार सुना कर... सुख, शांति, प्रेम की तरंगे पूरे विश्व में फैलाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वरीय प्यार में गहरे डूबकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा... आपसे पायी खुशियां सबके दिन आँगन में सजाकर मै आत्मा... कितने महान भाग्य से सजती जा रही हूँ... *सच्चे ज्ञान की खशबू और गुणो की धारणा से हर दिल को अपने पिता से मिलवाने का महान सोभाग्य प्राप्त कर रही हूँ.*.."मीठे बाबा से प्यार भरी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने स्थूल तन में लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के साथ अन्दर बाहर साफ रहना*"
➳ _ ➳ भगवान बाप के साथ साकार मिलन की यादों की स्मृति मुझे बार - बार मधुबन घर की याद दिला रही है। मेरा मन रूपी पँछी उन यादों को ताजा करने के लिए, अपने पंख फड़फड़ाता हुआ बार - बार उड़कर अपने परम पिता परमात्मा की उस अवतरण भूमि मधुबन में जा रहा है। *मधुबन के आंगन में परमात्म पालना के असीम सुख की अनुभूति में खोई मैं स्वयं को बाबा की कुटिया में देख रही हूँ*। बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठते ही मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा बैठे हैं और उनकी भृकुटि में मेरे सच्चे साहिब शिवबाबा विराजमान हैं। *उन्हें देख कर मन से बार - बार आवाज आ रही है "सच्चे दिल पर साहिब राजी"*
➳ _ ➳ इस शब्द को स्मृति में रख अपने सच्चे साहिब शिव बाबा के साथ अंदर बाहर साफ रहने की प्रतिज्ञा करते हुए मैं जैसे ही अपने सच्चे साहिब की ओर देखती हूँ उस ट्रांसलाइट के चित्र के स्थान पर अव्यक्त बापदादा को अपनी दोनों बाहों को पसारे अपने सामने पाती हूँ। *अपनी स्नेह भरी दृष्टि से बाबा मुझे निहार रहें हैं और मेरी इस प्रतिज्ञा को सुन मन्द - मन्द मुस्कराते हुए जैसे मुझ पर बलिहार जा रहें हैं*। जिस भगवान पर दुनिया बलिहार जाती है वो भगवान अपने बच्चों पर कैसे बलिहार जाता है, यह देख कर मन खुशी से गदगद हो रहा है। अपनी खुशी को अपने भीतर समाये अब मैं बाप दादा की और बढ़ रही हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि से आ रही लाइट माइट मुझे भी लाइट माइट स्थिति में स्थित कर रही है। अपने लाइट माइट स्वरूप में बाबा के सामने पहुंच कर मैं बाबा की बाहों में समा जाती हूँ। बाबा की बाहों के झूले में झूलते हुए मैं अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति की अनुभूति कर रही हूँ। *जैसे एक छोटा बच्चा माँ की गोद मे आकर स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है और पलक झपकते ही सो जाता है ऐसे ही बापदादा की ममतामयी गोद मे बैठ, बाबा के प्रेम की शीतल छांव में मैं गहन सुख का अनुभव कर रही हूँ*। मेरे माथे पर रुई के समान बाबा के स्नेहमयी हाथों का हल्का - हल्का स्पर्श मुझे आनन्दित कर रहा है।
➳ _ ➳ परमात्म गोद का सुख पा कर मैं स्वयं को दुनिया की सबसे सौभाग्यशाली आत्म अनुभव कर रही हूँ। अब मैं बापदादा के सामने बैठ, परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है। वरदानों से बाबा मेरी झोली भर रहें हैं। *परमात्म बल से मुझे भरपूर कर रहें हैं ताकि कोई भी परिस्थिति मुझे सच के रास्ते से हटाकर झूठ की ओर ना ले जाये*। सच्चे साहिब के साथ अंदर बाहर सदा सच्चे रहने की प्रतिज्ञा पर मैं सदा अटल रहूँ इसके लिए बाबा अपनी शक्तियों से मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं और मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं।
➳ _ ➳ परमात्म बल से मुझे भरपूर करके अब बाबा मुझे मधुबन घर की सैर करवा रहें हैं। *अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में मैं बापदादा के साथ आबू की पहाड़ियों पर घूम रही हूँ। प्रकति के सुंदर नज़ारो का आनन्द ले रही हूँ। बाबा के साथ पिकनिक मना रही हूँ*। अव्यक्त पालना में भी बाबा मुझे साकार पालना का अनुभव करवा रहें हैं। अपने सच्चे साहिब के साथ अपने मधुबन घर की सैर करके अब मैं वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में अपने कार्य स्थल पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ *अपने सच्चे साहिब के सच्चे प्यार को अपने दिल मे बसाये, उनके साथ अंदर, बाहर सदा सच्चे रहने की प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात उन्हें बता कर अब मैं अपने साहिब के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा रंग और रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू को धारण करती हूँ । *
➳ _ ➳ परम पवित्र मैं आत्मा... मंसा... वाचा... कर्मणा... पवित्रता की खुशबू को धारण करती हूँ... *पूरे ब्रह्माण्ड में मुझ पवित्र आत्मा से पवित्रता के किरणों की वर्षा हो रही है...* दैवीय रूप और रंग की अधिकारी मैं आत्मा... अपने देवपन के संस्कार... पवित्रता को उजागर कर रही हूँ... *दैहिक आकर्षण से मुक्त बन बिंदु रूपी बाप में समाती जा रही हूँ...* तन से... सम्बन्ध से... संस्कारों से ब्रह्मचारी बन श्रीमत का पालन कर रही हूँ... पवित्र... मैं आत्मा... पवित्रता की खुशबू फैलाती... रूहे गुलाब बन गई हूँ... *पवित्रता का डबल ताज धारण कर मैं आत्मा... सतयुग की बादशाही की अधिकारी बन गई हूँ।*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- यथार्थ सत्य को परख अतीन्द्रिय सुख का सहज अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं इस देह में अवतरित आत्मा हूँ... मैं आत्मा चमकता अजब सितारा हूँ... ज्योति बिन्दु हूँ... *मुझ आत्मा के पिता भी मुझ समान ज्योति बिन्दु है... परम आत्मा हैं...* मैं कौन और मेरा कौन का यथार्थ ज्ञान मुझ आत्मा को मेरे सच्चे पिता द्वारा मिल गया है... सच्ची सच्ची गीता ज्ञान को समझ मैं आत्मा अंधेरे से सोजरे में आ गई हूँ... मुझ आत्मा का भटकना समाप्त हो गया है... मैं आत्मा दिव्य बुद्धि द्वारा यथार्थ सत्य को जान देह व देह के विनाशी सम्बंधों को भूल एक अविनाशी बाप की याद में हूँ... *मेरा प्यारा मीठा बाबा ही मेरा सच्चा साथी है... वाह! मेरा भाग्य वाह! स्वयं भगवान ही मेरा हो गया*... मैं आत्मा सुख के सागर... पवित्रता के सागर बाप का संग पाकर सच्चे सुख का अतीन्द्रिय सुख का सहज अनुभव कर रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *बापदादा यही चाहते हैं कि अब थोड़े समय के लिए पुरुषार्थ के प्रालब्ध स्वरूप बन जाओ।* बन सकते हो कि पुरुषार्थ की मेहनत अच्छी लगती है? प्रालब्ध वाले बनेंगे? अभी पुरुषार्थ कर रहा हूँ, पुरुषार्थ हो जायेगा, करके दिखायेंगे, यह शब्द समाप्त हों। करके दिखायें क्या, दिखाओ। और कब दिखायेंगे? क्या विनाश के समय दिखायेंगे? इसकी बहुत सहज विधि है कि अब मास्टर दाता बनो। *बाप से लिया है और लेते भी रहो लेकिन आत्माओं से लेने की भावना नहीं रखो* - यह कर लें तो ऐसा हो। यह बदले तो मैं बदलूं, यह लेने की भावना है। ऐसा हो तो ऐसा हो। यह लेने की भावनायें हैं। ऐसा हो नहीं, ऐसा करके दिखाना है। हो जाए तो नहीं, लेकिन होना ही है और मुझे करना है। *मुझे बायब्रेशन देना है। मुझे रहमदिल बनना है। मुझे गुणों का सहयोग देना है,मुझे शक्तियों का सहयोग देना है। मास्टर दाता बनो। लेना है तो एक बाप से लो। अगर और आत्माओं से भी मिलता है तो बाप का दिया हुआ ही मिलेगा। तो दाता बन फ्राकदिल बनो।* देते रहो, देने आता है? या सिर्फ लेने आता है? अब जो जमा किया है वह दो। आपस में ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर दाता बनो। और दे तो मैं दूं,नहीं। मुझे देना है।
➳ _ ➳ 2. जब खजानों से भरपूर हो तो देते जाओ। यह क्यों करता? यह क्यों कहता? यह सोच नहीं करो। *रहमदिल बन अपने गुणों का, अपनी शक्तियों का सहयोग दो - इसको कहा जाता है मास्टर दाता। महा सहयोगी। सहयोगी भी नहीं, महा सहयोगी बनो। महा दाता बनो।*
✺ *ड्रिल :- "महा सहयोगी, मास्टर दाता बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *नवल रूप बिखराती हुई हरी-भरी सुन्दर धरती, गगन से स्वर्णिम किरणें लहराता हुआ सूर्य, मीठी मधुर कलरव करते पंछी, शरद ऋतु के आगमन से ख़ुशी में झूम रहे हैं, मधुर संगीत गा रहे हैं... चारों ओर की हरियाली मन को लुभा रही है... इस सुहावने मौसम में मैं आत्मा इन सतरंगी समाओं का आनंद लेते हुए सेंटर जा रही हूँ...* प्यासी सूखी धरती की प्यास बुझ गई है... और एक तरफ प्यासी, तडपती आत्मायें मंदिरों में भटक रही हैं... शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में मंदिरों में भक्तों की लाइनें लगी हुई हैं... लाउडस्पीकर में माता के गीत गूंज रहे हैं... मंत्रोच्चार, भजन, कीर्तन हो रहे हैं... मंदिरों में पूजन, हवन, यज्ञ हो रहे हैं... चारों ओर देवियों की विधि-विधान से पूजा हो रही है... भक्त व्रत, उपवास, दान, पुण्य कर रहे हैं... मैं आत्मा सेंटर जाते-जाते इन भक्तों को देख रही हूँ... *ये सभी अज्ञानी आत्माएं अभी भी इन आडम्बरों में फसें हुए हैं... कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ मैं जो स्वयं परमात्मा, सर्व खजानों का दाता, प्यार का सागर ही मुझे मिल गया...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेंटर पहुंचकर बाबा के कमरे में बैठ जाती हूँ और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... अपने भाग्य पर नाज करती बाबा की याद में खो जाती हूँ... और अपने को फरिश्ते स्वरूप में सूक्ष्म वतन में पाती हूँ... *प्यारे बाबा प्यार से मुझ फरिश्ते को अपनी गोदी में बिठा लेते हैं... प्यारे बाबा की जादुई भरी मुस्कान मुझ पर जादू चला रही है... सर्व गुण-शक्तियों के सागर के नैनों से निकलती तेजस्वी किरणें मुझ फरिश्ते पर पडकर मेरी चमक और बढ़ा रही हैं...* बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ फेरते हैं... बाबा के वरदानी हाथों से वरदानों की बरसात हो रही है... मैं आत्मा अखूट खजानों से भरपूर हो रही हूँ... सर्व, गुण शक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ... मुझ फरिश्ते से अलौकिकता झलक रही है... मैं फरिश्ता बाप समान बन रही हूँ... दाता की संतान मास्टर दाता बन गई हूँ...
➳ _ ➳ बाबा अपने हाथों से एक सतरंगी हीरों से भरी एक सोने की थाली सजाते हैं... *बाबा के हाथों से निकलती प्रेम, सुख, शांति, आनंद की किरणें हीरों का रूप लेकर थाली में भरते जा रहे हैं... और बाबा मेरे हाथ में थाली देते हैं और प्यार से मुझे दृष्टि देते हैं... मुझ फरिश्ते से अनेक फरिश्ते निकलते जा रहे हैं... मेरे चारों ओर मेरे ही रूप में अनगिनत फरिश्ते हाथों में हीरों से सजी सोने की थाली लेकर खड़े हैं...* फिर बापदादा के साथ मुझ फरिश्ते के सभी रूप धरती पर उतरते हैं... चारों ओर की मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों के सभी दुखी, अज्ञानी आत्माओं के सामने खड़े हो जाते हैं... और हम फरिश्ते थाली से ज्ञान की नीले रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सभी अज्ञानी आत्माओं की अज्ञानता दूर हो रही है... सबको सत्य बाप का परिचय मिल रहा है...
➳ _ ➳ *फिर प्रेम की हरे रंग के हीरे डालते हैं, सबके अन्दर की घृणा भावना खत्म होकर प्रेम और स्नेह भर रहा है... सुख की पीली रंग के हीरे डालते ही सबके दुख पीड़ा दूर हो रहे हैं... सबको अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है...* शांति की आसमानी रंग के हीरों से सबके अन्दर से अशांति बाहर निकलती जा रही है... फिर हम फरिश्ते आनंद की बैंगनी रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबको सुख, शांति, आनंद का अनुभव हो रहा है... एक दूसरे प्रति सहयोग की भावना बढ़ रही है... फिर हम फरिश्ते शक्तियों की लाल रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबके अन्दर की कमी, कमजोरियां खत्म हो रही हैं... सभी अपने अन्दर अलौकिक शक्तियों का अनुभव कर रहे हैं... *पवित्रता के सफेद हीरे सब पर डालते ही सबके अन्दर की अपवित्रता, विकारों रूपी कीचड़ बाहर निकल रहा है... रूहानियत की सुगंध से भरपूर हो रहे हैं... इन चमकते हीरों से सजकर सभी कौड़ी से हीरे तुल्य बन रहे हैं... चारों ओर खुशहाली छा गई है...*
➳ _ ➳ अब मुझ फरिश्ते के सभी स्वरुप मुझमें एक हो गए हैं... और मैं देखती हूँ मेरे हाथों में रखी हीरों की थाली को जो और भी ज्यादा चमकते हुए हीरों से भर गई है... *जितना मैं मास्टर दाता बन देते जा रही हूँ, मेरी थाली के हीरे बढ़ते जा रहे हैं... मेरे अविनाशी खजाने बढ़ते जा रहे हैं...* मेरे खजानों के भंडार सदा भरपूर रहते हैं... बाबा ने मुझे वरदानी, महादानी बना दिया है... जो भी मुझे बाबा से मिलता है मैं आत्मा सबको देती जा रही हूँ... सदा रहमदिल बन अपने गुणों का, अपनी शक्तियों का सहयोग निःस्वार्थ भावना से देती रहती हूँ... शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं के वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाती रहती हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक बाबा से ही लेती हूँ, अन्य आत्माओं से कभी भी लेने की भावना नहीं रखती हूँ... *किसी से भी बिना अपेक्षा किए फ्राकदिल बन दे रही हूँ... सदा विश्व कल्याण के स्टेज पर सेट रहकर महा सहयोगी, महा दाता बन देती रहती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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