━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 08 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हम सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल के हैं" - इसी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *किसी भी बात में संशय तो नहीं उठाया ?*

 

➢➢ *पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकंड में व्यक्त भाव से परे जाने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *ख़ुशी की खुराक खाकर मन और बुधी को शक्तिशाली बनाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  जैसे एटम बम एक स्थान पर छोड़ने से चारों ओर उसके अंश फैल जाते हैं - *वह एटम बम है और यह आत्मिक बम है। इसका प्रभाव अनेक आत्माओं को आकर्षित करेगा और सहज ही प्रजा की वृद्धि हो जायेगी इसलिए संगठित रुप में आत्मिक स्वरूप के अभ्यास को बढ़ाओ, स्मृति स्वरुप बनो तो वायुमण्डल पॉवरफुल हो जायेगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✺   *"मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ "*

 

✧  अपने को सदा दिल तख्तनशीन समझते हो? यह दिलतख्त सारे कल्प में सिवाए इस संगम युग के कहाँ भी प्राप्त नहीं हो सकता। दिलतख्त पर कौन बैठ सकता है? *जिसकी दिल सदा एक दिलाराम बाप के साथ है। एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में रहने वालों के लिए स्थान है - 'दिलतख्त'।* तो किस स्थान पर रहते हो? अगर तख्त छोड़ देते हो तो फाँसी के तख्ते पर चले जाते। जन्म जन्मान्तर के लिए माया की फाँसी में फंस जाते हो। या तो है बाप का दिलतख्त या है माया की फाँसी का तख्ता।

 

✧  तो कहाँ रहना है? एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये, अपना शरीर भी नहीं। अगर देह याद आई तो देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। *जरा संकल्प रूप में भी अगर सूक्ष्म धागा जुटा हुआ होगा तो वह अपनी तरफ खींच लेगा। इसलिए मंसा, वाचा कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी रस्सी न हो।*

  

✧  सदा मुक्त रहो तब औरों को भी मुक्त कर सकेंगे। आजकल सारी दुनिया माया के जाल में फँसकर तड़प रही है, उन्हें इस जाल से मुक्त करने के लिए पहले स्वयं को मुक्त होना पड़े। सूक्ष्म संक्लप में भी बंधन न हो। *जितना निर्बन्धन होंगे उतना अपनी ऊंची स्टेज पर स्थित हो सकोगे बंधन होगा तो ऊँचा चाहते भी नीचे आ जायेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  नाम सेवा लेकिन होता है स्वार्थी अपने को आगे बढाना है लेकिन बढ़ाते हुए बैलेन्स को नहीं भूलना है क्योंकि सेवा में ही स्वभाव, संबंध का विस्तार होता है और माया चांस भी लेती है। *थोडा-सा बैलेन्स कम हुआ और माया नया रूप धारण कर लेती है, पुराने रूप में नहीं आयेगी।*

 

✧  नये-नये रूप में, नई-नई परिस्थिति के रूप में, सम्पर्क के रूप में आती है। तो *अलग में सेवा को छोडकर अगर बापदादा बिठा दे, एक मास बिठाये, 15 दिन बिठाये तो कर्मातीत हो जायेंगे?* एक मास दें, बस कुछ नहीं करो, बैठे रहो, तपस्या करो, खाना भी एक बार बनाओ बसा फिर कर्मातीत बन जायेंगे? नहीं बनेंगे?

 

✧  *अगर बैलेन्स का अभ्यास नहीं है तो कितना भी एक मास क्या, दो मास भी बैठ जाओ लेकिन मन नहीं बैठेगा, तन बैठ जायेगा।* और बिठाना है मन को, न कि तन को। तन के साथ मन को भी बिठाना है, बैठ जाए बस, बाप और मैं, दूसरा न कोई। तो एक मास ऐसी तपस्या कर सकते हो या सेवा याद आयेगी?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पढ़ाने वाला स्वयं शिवबाबा है इस निश्चय में रहना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूपी गोपिका जन्म जन्मान्तर से ढूंढ रही अपने मुरलीधर को सामने पाकर अलौकिक सुखों के नशे में डूब जाती हूँ...* वो हर पल मेरी ऊँगली पकड मेरे संग-संग चल रहा है, माया के छल में फिर से फंसने से पल पल बचा रहा है... *ऐसे मुरलीधर की मधुर मुरली का रस पान करने मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन सेण्टर में बाबा के सामने बैठ जाती हूँ...*

 

   *प्यारे बाबा रूहानी पाठशाला में नर से नारायण बनने की शिक्षा देते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो... जिस ईश्वर पिता को दर दर खोज रहे थे... *आज वह पिता, टीचर, और सतगुरु रूप में सम्मुख मौजूद है...* और साधारण नर से श्रेष्ठतम नारायण बना रहा है... अपने इस बेमिसाल भाग्य के नशे में गहरे डूब जाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमात्मा को अपने सामने हाजिर नाजिर पाकर धन्य धन्य होती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख पुलकित हूँ और खुशियो में झूम रही हूँ... प्यारा भगवान मुझे यूँ सहज मुफ़्त में मिल गया... *मेरा भाग्य सदा का खुबसूरत हो गया... यह गीत में धरती अम्बर में गुनगुना रही हूँ...*

 

   *मीठे बाबा निश्चय बुद्धि विजयंती का पाठ पक्का कराते हुए मुझसे कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सोचा था कल्पनाओ में भी कभी... कि भगवान यूँ बैठ पढ़ायेगा, ज्ञान रत्नों से सजाएगा, और हाथ में हाथ लिए अपने मीठे घर को ले जायेगा...* फिर अनन्त सुखो से भरी दुनिया में राज्याधिकार दिलाएगा... ऐसे भाग्य को पाने वाले खुबसूरत देवता हो... सदा इस निश्चय में निश्चिन्त रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ईश्वर को पाकर, पाना था सो पा लिया का गीत गुनगुनाती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को ही सतगुरु रूप पाकर दुनियावी गुरुओ से मुक्त हो गई हूँ... *देह के हर नाते से उपराम होकर ईश्वरीय यादो में खोती जा रही हूँ... और अपने देवताई स्वरूप की यादो में रोमांचित हो रही हूँ... मीठे बाबा आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है...”*

 

   *प्यारे बाबा गॉडली गोल्डन गिफ्ट के स्टॉक से मुझे भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता ने स्वयं अपनी पलको से चुना है और अपनी निराली पाठशाला का फूल बनाया है... इस महानतम नशे को रग रग में समालो... ईश्वर स्वयं पिता, टीचर और सतगुरु बन पालना कर रहा... *ज्ञान रत्नों से झोली भर कर सदा का मालामाल कर रहा है... सदा इस निश्चय में अटल रहो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बन प्यारे बाबा की गोदी में निश्चिन्त होकर सुखों का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा न जाने कौन से पुण्य से आज भगवान को पा गई हूँ... *मीठे बाबा आपने हर भटकन से छुड़ाकर, कदमो तले सुखो के फूल बिछाए है...* और श्रीमत के हाथो में जीवन कितना महफूज कर दिया है... मै आत्मा ईश्वरीय पालना में कितनी सुखी और निश्चिन्त हो गयी हूँ..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूहानी सेवाधारी बनना है*"

 

➳ _ ➳  इस पुरानी दुनिया के डूबे हुए बेड़े को पार लगाने के लिए स्वयं परम पिता परमात्मा *शिव बाबा ने आ कर जो रूहानी मिशनरी चलाई है उस ईश्वरीय मिशनरी में रूहानी सेवाधारी बन रूहों को सेल्वेज करने के कार्य मे स्वयं भगवान ने मुझे अपना मददगार बना कर जो श्रेष्ठ भाग्य बनाने का गोल्डन चाँस मुझे दिया है उसके लिए अपने शिव पिता परमात्मा का मैं दिल से कोटि कोटि धन्यवाद करती हूँ* और रूहानी सेवा करने के उनके फ़रमान को पूरा करने और सेवा मे सफ़लता प्राप्त करने के लिए स्वयं को मनसा,वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बनाने के लिए अब मैं अपने शिव पिता की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ।

 

➳ _ ➳  अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शरीर के सभी अंगों से चेतना सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र हो गई है। *एकाग्रता की इस अवस्था मे अपने सत्य स्वरूप का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं एक चैतन्य सितारे के रूप में भृकुटि के बीचोंबीच चमकता हुआ देख रही हूँ*। ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत जिसके बिना इस शरीर का कोई अस्तित्व नही। अपने इसी वास्तविक स्वरूप में स्थित हो कर मैं जागती ज्योति आत्मा अब भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। विशाल तारामण्डल और अंतरिक्ष को पार करके अब मैं सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ।

 

➳ _ ➳  सूक्ष्म वतन में प्रवेश करते ही मैं देख रही हूँ सामने सृष्टि के रचयिता सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा अपने लाइट माइट स्वरूप में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हैं। *अपनी बाहों को फैलाये स्वागत की मुद्रा में खड़े बाबा मेरा आह्वान कर रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे*। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, चमकीली फ़रिशता ड्रेस पहन कर अब मैं बापदादा के पास जा रही हूँ। अपनी बाहों में समाकर असीम स्नेह लुटाने के बाद अब बाबा अपनी शक्तिशाली दृष्टि से अपनी सम्पूर्ण लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करके मुझे आप समान बलशाली बना रहे हैं। *सेवा में सदा सफ़लता प्राप्त करने के लिए बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे सफ़लतामूर्त भव का वरदान दे रहें हैं और मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं*।

 

➳ _ ➳  बाबा से वरदान और विजय का तिलक ले कर सूक्ष्म रूहानी सेवा करने के लिए अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब के ऊपर पहुँच जाता हूँ और उन आत्माओं को जो अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ कर उन्हें पाने के लिए दर - दर भटक रही है और दुखी हो रही हैं। *उन भटकती आत्माओं को मनसा साकाश द्वारा परमात्म पहचान और परमात्म पालना का अनुभव करवाकर अब मै स्थूल सेवा करने के लिए अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट खजानों से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जाने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ* और परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

➳ _ ➳  यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों और सर्वगुणों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली किरणो का फव्वारा मेरे ज्ञान सागर शिव पिता से सीधा मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगता है। *अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट अविनाशी खजानों से भरपूर करके स्थूल सेवा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

➳ _ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और रूहानी सेवाधारी बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उनकी बुद्धि रूपी झोली में भी अविनाशी ज्ञान रत्न डाल कर उन्हें भी उनके परमपिता परमात्मा बाप से मिलवाने की रूहानी सेवा कर रही हूँ। *अपने शिव पिता द्वारा मिले ज्ञान रत्नों को स्वयं धारण कर ज्ञान स्वरुप बन मैं अनेको आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ*। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल अनेकों आत्माओं को मुक्ति, जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहें हैं।

 

➳ _ ➳  *बाप समान निरहंकारी बन, सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर, उनका कल्याण करने की रूहानी सेवा ही मेरे ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है इस बात को सदा स्मृति में रख सच्ची रूहानी सेवाधारी बन अब मैं रूहों की सेवा के कार्य पर सदैव तत्पर रहती हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकन्ड में व्यक्त्त भाव से परे होने वाली अव्यक्त फरिश्ता व अशरीरी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं खुशी की खुराक खाते रहने से मन और बुद्धि को शक्तिशाली बनाने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़ संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहिनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जाएं।* दिल से रहम इमर्ज हो। क्या जब साइन्स की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्तिरहमदिल भावना द्वारा वा संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती! जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। *जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैंआपके ही सभी बिरादरी हैंशाखायें हैं, परिवार हैआप ही भक्तों के ईष्ट देव हो।* यह नशा है कि हम ही ईष्ट देव हैंतो भक्त चिल्ला रहे हैंआप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे ईष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे होउन्हों को रेसपान्ड नहीं करते होतो *बापदादा कहते हैं हे भक्तों के ईष्ट देव अभी पुकार सुनोरेसपान्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं।* क्या रेसपान्ड देंगेपरिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ। आपका रेसपान्ड उन्हों को नहीं मिलता तो वह भी अलबेले हो जाते हैं। चिल्लाते हैं फिर चुप हो जाते हैं।   

 

✺   *ड्रिल :-  "साइलेन्स की शक्ति और रहमदिल भावना से हलचल को परिवर्तन करना"*

 

 _ ➳  अमृतवेले बाबा की यादों में खोई मुझ आत्मा को ये सुहानी वेला ऐसे लगती है जैसे प्यासा अपनी प्यास बुझा रहा है... अमृत की बूंदें ऊपर से टप टप कर मुझ आत्मा को तृप्त कर रही हैं... *ये रूहानी अमृत और इसका नशा वाह वाह क्या कहने!* मैं मन ही मन बाबा से कहती हूँ कि क्यों अब तक दूर रखा मुझे इस अमृत से... 

 

 _ ➳  बाबा की याद में डूबी मैं आत्मा वापिस आती हूं साकारी लोक में, तभी एक दृश्य सामने आता है *"भक्त आत्माएँ मंदिर जा रही हैं सुख चैन की तलाश में उनको देख तरस आता है, कि ये कहाँ जड़ चित्रों में सुख शांति ढूंढ रही हैं* ये मेरे भाई बहन इनके चित्त को कैसे आराम मिले... मैंने जो अमृत पान किया है, वो ये भी अगर चख लें तो इनके चित्त को भी आराम मिल जाये... बाबा ने मुझे जो दिया है, वो मुझे अपने इन भाई बहनों को भी देना है...

 

 _ ➳  *इसी भावना के साथ बाबा को याद कर एकाग्रचित्त हो मैं आत्मा समा जाती हूं जड़ मूर्ति में...* देखती हूँ उन भक्त आत्माओं को जो अपने दुःख में दुखी इन मूर्तियों के आगे माथा टिका रहे हैं कि कैसे भी दो पल का सुख चैन मिल जाये...

 

 _ ➳  *मैं ईष्टदेवी हूँ... इस स्वमान में सैट होकर रहमदिल बन मैं इन आत्माओं को सुख शान्ति की किरणें दे रही हूं... बाबा से निरंतर किरणें मुझ पर आ रही हैं... और मुझ से होती हुई उन भक्त आत्माओं तक पहुंच रही हैं...* सभी आत्माऐं प्रसन्न हो रही हैं... उनके अंदर की हलचल समाप्त हो गई है, और उनके मन शांत हो गए हैं... वो सब अपने ईष्टदेवी की जय-जय कार कर रहे हैं... इन आत्माओं का अलबेलापन हलचल सब समाप्त हो गई है... वातावरण पूरी तरह से परिवर्तन हो गया है... *बाबा के प्यार की किरणें चारों और फैली हुईं हैं जो सबके दिलों को छू रही हैं...*

 

 _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मुरझाए पड़े वृक्ष को पानी मिल गया है... पत्ता-पत्ता... शाखा-शाखा... हर टहनी लहलहाने... खिलखिलाने लग गई है *वाह वाह रे मेरे बाबा क्या अद्धभुत तेरा कमाल "करते हो तुम बाबा मेरा नाम हो रहा है"*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━