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❍ 06 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बहुत बहुत सच्ची दिल रख सच्चे साहिब को राज़ी किया ?*
➢➢ *योग पर अटेंशन दे सुख का अनुभव किया ?*
➢➢ *स्वदर्शन चक्र फिराते रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा पुण्य कर्म किया ?*
➢➢ *सदा एक बाप की कंपनी में रहे और एक बाप को अपना कम्पेनियन बनाया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ वास्तव में इसको ही ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन कहा जाता है। जिसका जितना स्व पर राज्य है अर्थात स्व को चलने और सर्व को चलाने की विधि आती है, वही नम्बर आगे लेता है। *इस फाउण्डेशन में अगर यथाशक्ति है तो ऑटोमैटिकली नम्बर पीछे हो जाता है।*
〰✧ जिसको स्वयं को चलाने और चलने आता है वह दूसरों को भी सहज चला सकता है अर्थात हैंडलिंग पॉवर आ जाती है। सिर्फ दूसरे को हैंडलिंग करने के लिए हैंडलिंग पॉवर नहीं चाहिए *जो अपनी सूक्ष्म शक्तियों को हैंडिल कर सकता है। वह दूसरों को भी हैंडिल कर सकता है।*
〰✧ तो *स्व के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर सर्व के लिए यथार्थ हैंडलिंग पॉवर बन जाती है।* चाहे अज्ञानी आत्माओं को सेवा द्वारा हैडल करो, चाहे ब्राह्मण परिवार में स्नेह सम्पन्न, संतुष्टता सम्पन्न व्यवहार करो - दोनों में सफल हो जायेंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भगवान से बहिश्त की सौगात लेकर,अपार ख़ुशी में रहना"*
➳ _ ➳ अपने मीठे भाग्य के नशे में झूमती हुई मै आत्मा... सोच रही हूँ कि कब सोचा था... *यह जीवन ईश्वरीय हाथो में देवत्व की प्रतिमा सा सज जायेगा.*.. भगवान की सबसे सुन्दरतम रचना देवता बनकर मै आत्मा... सुखो की नगरी में राज्य करूंगी... *यह तो सपने भी नही थे,जो आज जीवन का... खुबसूरत सत्य बनकर, मुझे असीम ख़ुशी से सराबोर कर रहा है*.. जो भगवान की बपौती है.. वह सारी जागीरे मेरे द्वार पर सजी है... और *मै मालिक बनकर, उनका भरपूर लुत्फ़ उठाने वाली भाग्यवान हूँ.*.. स्वयं ईश्वर मेरे समक्ष उपस्थित है... और मै जो कहती हूँ करता चला जा रहा है... *मेरे हाथो में ईश्वरीय हाथ आ गया है, और कदमो तले सुख के फूल बिखरे है... वाह रे प्यारे भाग्य मेरे*...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी प्रेम तरंगो में रूहानी बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान को पाने वाले खुबसूरत भाग्य के धनी हो... कितना मीठा भाग्य है की ईश्वर *पिता सम्मुख हाजिर नाजिर है... और स्वर्ग की सौगात हथेली पर सजाकर ले आये है.*. सदा इन मीठी यादो में रहकर, अपने मीठे भाग्य के नशे में झूम जाओ... सदा अपार खुशियो में मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से ईश्वरीय जागीर को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर, जमी आसमाँ को बाँहों में समाकर मुस्करा रही हूँ... *मुझे दिव्यता से संवारने, अपना सब कुछ मुझे देने, भगवान धरती पर आ गया है.*.. यह मेरे भाग्य की कितनी निराली शान है..और भला मुझे क्या चाहिए..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान योग से श्रंगारित कर देवात्मा बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे,... सदा मीठी खुशियो में नाचते रहो... कि *ईश्वर की गोद में पलने वाली, उनकी बाँहों में झूलने वाली, शानदार किस्मत की धनी, मै आत्मा हूँ..*.मीठा बाबा असीम सुखो का उपहार बहिश्त... आपके लिए ही तो लाया है... इससे बड़ी ख़ुशी भला और क्या होगी... सदा इन मीठी स्मर्तियो में डूबे रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से सर्व शक्तियो की मालिक बनकर कहती हूँ ;-"प्यारे प्यारे बाबा... मै आत्मा भगवान को पाकर भी खुश नही रहूंगी, तो भला कब रहूंगी... यही तो मेरी जनमो की चाहत थी... कि मात्र एक झलक मै आत्मा भगवान की पाऊं... *आज साक्षात् भगवान के सम्मुख बेठ, अथाह ज्ञान रत्नों से मालामाल हो रही हूँ... यह कितना अनोखा मेरा भाग्य है.*.."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को खुशनसीब आत्मा के नशे से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता परमधाम से उतरकर, सारे खजाने और खानों को लेकर, सुखो और खुशियो से लबालब करने आये है... तो इन मीठी प्राप्तियों की यादो में रहकर... सदा खुशियो के शिखर पर सजे रहो... *भगवान गुणो और शक्तियो के सौंदर्य से, खुबसूरत बना रहा है... इन सच्ची खुशियो में सदा पुलकित रहो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में खुशनुमा फूल बनकर, खिलते हुए कहती हूँ... मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सच्ची खुशियो को सदा ही तरसती रही... देह की मिटटी में लथपथ होकर, आपसे पायी सुखो की जागीर को खो चुकी थी... *अब भाग्य ने मुझे वरदानी संगम युग में पुनः आपसे मिलवाकर.. असीम खुशियो से जीवन सजाया है.*..आपको पाकर मेने तो सब कुछ पा लिया है..."मीठे बाबा से खुशियो की सम्पत्ति लेकर मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र में आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बहुत - बहुत सच्ची दिल रख सच्चे साहिब को राजी करना*"
➳ _ ➳ अपने सच्चे बाप के साथ सदा सच्चे रहने का मन ही मन प्रोमिस करके मैं अपने सत बाप की याद में बैठ जाती हूँ। एकाएक वो सभी भूले, वो सभी गलतियां जो देह अभिमान में आने के कारण जाने - अनजाने मुझसे हुई है वो स्मृति में आने लगती है। *आंखों से आंसू बहने लगते हैं और मैं अपनी आंखें बंद कर लेती हूँ। उन भूलों को, उन गलतियों को अपने सच्चे साहिब को बताने और उन्हें फिर ना दोहराने का दृढ़ निश्चय कर मैं अपने सच्चे साहिब, अपने सत बाबा का आह्वान करती हूँ*। मन ही मन संकल्प करती हूँ:- "हे मेरे सच्चे साहिब मेरे पास आओ"।
➳ _ ➳ मेरे संकल्प जैसे ही बाबा तक पहुँचते हैं वैसे ही मेरे दिलाराम बाबा अपने आकारी ब्रह्मा तन में विराजमान हो कर मेरे सम्मुख आ जाते हैं। *अपने कंधे पर स्पर्श का अनुभव होते ही मैं जैसे ही अपनी आंखें खोलती हूँ तो अपने सच्चे साहिब, को लाइट माइट स्वरूप में अपने सामने खड़ा हुआ पाती हूँ*। उनके आते ही मेरे आस - पास जैसे एक अलौकिक दिव्यता छा गई है जो मुझमे विशेष बल भर रही है। उनकी शक्तिशाली किरणों का औरा मुझे विकर्मों के बोझ से मुक्त एक दम हल्का, विदेही स्थिति का अनुभव करवा रहा है। *धीरे - धीरे मेरा साकार शरीर लुप्त हो कर उसके स्थान पर सूक्ष्म लाइट का शरीर बन गया है*।
➳ _ ➳ अपने सूक्ष्म आकारी लाइट के फरिश्ता स्वरूप में मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। मेरे सच्चे साहिब अब मेरा हाथ थामे मुझे इस विकारी दुनिया से दूर अपनी अलौकिक दुनिया मे ले आते हैं। *फरिश्तों की इस दुनिया में आ कर चित को जैसे चैन मिल रहा है। बापदादा अब मुझे अपने पास बिठा लेते है और अपने रुई समान कोमल हाथों का स्पर्श मेरे मस्तक पर करते हैं। उनके हाथों का स्पर्श पाकर मेरी सारी थकान एक दम समाप्त हो जाती है*। बाबा को अब मैं एक - एक करके वो सारी भूले, वो सारी गलतियां बता रही हूँ। जो देह भान में आने के कारण जाने - अनजाने मुझ से हुई हैं।
➳ _ ➳ मेरा सिर ऊपर उठा कर मेरे आंसुओं को अपने कोमल हाथों से साफ करते हुए बाबा अपने हाथ मेरे सिर पर रख रहे हैं। *बाबा के हस्तों से अनन्त शक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणे निकल कर मेरे मस्तक से होती हुई मेरे अंग - अंग में समाने लगी हैं। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि ये ज्वाला स्वरूप किरणे मेरे द्वारा की हुई भूलो और गलतियों के कारण बने विकर्मों को भस्म कर रही हैं*। ऐसा लग रहा है, जैसे अपनी भूलो और गलतियों को अपने सच्चे साहिब को बता कर मैं हर प्रकार के बोझ से पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ। मेरा यह बोझ मुक्त लाइट और माइट स्वरूप मुझे असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है।
➳ _ ➳ अपने इस लाइट माइट स्वरूप के साथ अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे आ जाती हूँ और फिर से अपने साकारी तन में विराजमान हो जाती हूँ। *अपने इस लाइट माइट स्वरूप को सदा बनाये रखने के लिए अब मैं बहुत - बहुत सच्ची दिल रख, अपने सच्चे साहिब को सदा राजी रखने के लिए इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि हर बात अपने सच्चे साहिब को बताते हुए, उनसे राय ले कर, उन्हें अपने अंग - संग रख हर कर्म करूँ ताकि कोई भी भूल या गलती मुझ से ना हो* जिसके लिए मुझे पश्चाताप करना पड़े या अपने सच्चे साहिब की नजरों में मुझे झूठा बनना पड़े।
➳ _ ➳ *"सच्चे दिल पर साहिब राजी" यह बात सदा स्मृति में रख अब मैं अपने सच्चे साहिब से कुछ ना छिपाते हुए, उनके दिल पर राज करते हुए, उनके साथ अपने ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *ड्रिल
:- मैं आत्मा अपने हर सकंल्प, बोल और कर्म के द्वारा पुण्य कर्म करती हूं।*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को *बापदादा* ने विश्व परिवर्तन के निमित्त बनाया है... और *विश्व
परिवर्तक वही बन सकता है जिसके पास दुआओं का खज़ाना हो...* तो मैं आत्मा अपने
सम्बंध सम्पर्क में सबसे सहयोग कर अपना खज़ाना भर रही हूं... *अपने आप से मैं
दृढ़ संकल्प कर ,अपने हर बोल, हर कर्म और हर संकल्प पर अटेंशन रखती हूं,*की मेरा
कोई भी बोल व्यर्थ ना हो... *श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म द्वारा... मैं
आत्मा पुण्य आत्मा बनती जा रही हूं...* इसके प्रत्यक्ष फल के रूप में मुझे अन्य
आत्माओं की दुआएं मिलती जा रही हैं... *सहयोगी आत्मा बन सम्बन्ध सम्पर्क सुधार
सबके दिल से शुक्रिया रूपी दुआऐं लेती जा रही हूं...* अब मुझ आत्मा को दुआएं
लेने की अधिकारी बनता देख *बाबा मुझे प्राइज में विश्व परिवर्तक आत्मा निमित्त
करते हैं...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाबा के साथ साथीपन के संबंध का अनुभव"*
➳ _ ➳ आज सारे दिन में... मैं आत्मा... *बाबा के साथ... साथीपन के संबंध का... अनुभव करती हूं...* आज बाबा मेरे कम्पैनियन बन... मुझ आत्मा से पुरुषार्थ करा रहे हैं... स्थूल शरीर मे... भृकुटि के मध्य... मैं आत्मा... ये चली बाबा के साथ अपने कार्य क्षेत्र पर... आफिस की ओर... *रास्ते मे रेड लाइट होने पर बाबा और मैं कंबाइंड रूप में... अपने चारों ओर की समस्त आत्माओ को सकाश दे रहे हैं...* हाफ ब्रेक होने पर मैं आत्मा... बाबा के साथ... बैठ अब लंच करती हूं... बापदादा अपने हाथों से ब्रह्मा भोज खिला रहे हैं... *सारे दिन में हर कार्य करने से पहले मैं आत्मा... बाबा से राय ले रही हूं...* साए 4 बजते ही मैं आत्मा... अपना पार्ट खत्म कर... ये चली स्कूटी पर बाबा के साथ... घर... घर की ओर... परमधाम की ओर...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *जैसे बाप अशरीरी है, अव्यक्त है वैसे अशरीरी पन का अनुभव करना वा अव्यक्त फरिश्ते पन का अनुभव करना - यह है रंग में रंग जाना*। कर्म करो लेकिन अव्यक्त फरिश्ता बनके काम करो। अशरीरीपन की स्थिति का जब चाहो तब अनुभव करो। ऐसे मन और बुद्धि आपके कन्ट्रोल में हो। आर्डर करो - अशरीरी बन जाओ। आर्डर किया और हुआ। फरिश्ते बन जायें। जैसे *मन को जहाँ जिस स्थिति में स्थित करने चाहो वहाँ सेकण्ड में स्थित हो जाओ*। ऐसे नहीं ज्यादा टाइम नहीं लगा, 5 सेकण्ड लग गये, 2 सेकण्ड लग गये। आर्डर में तो नहीं हुआ, कन्ट्रोल में तो नहीं रहा। *कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है?* या सोचते - सोचते अशरीरी हो जाऊं, अशरीरी हो जाऊं, उसमें ही टाइम चला जायेगा?
➳ _ ➳ कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं,आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है... अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? *आपने मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है? कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है।* अगर कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियां हलचल में ले आ सकती हैं।
✺ *ड्रिल :- "परमात्म रंग में रंग जाना अर्थात् सेकण्ड में अशरीरी बनने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा, मन बुद्धि से बापदादा के कमरे में... बापदादा के चित्र के सामने... *मधुशाला के प्यालों के समान बाबा की दोनों आँखें... एक पावनता और दूसरा रूहानियत से भरपूर...* भर-भर कर छलक रहे है दोनों आँखों के प्याले... और उन पावन रूहानी एहसासों को मैं आत्मा, आँखों से ही घूँट- घूँट कर पिये जा रही हूँ... *रूहानी नशे में चूर मैं, अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हुई...* मन बुद्धि रूपी पंखों को फैलाये नन्हीं तितली के रूप में... *नन्हें पंखों को हिलाती हुई मैं बापदादा की हथेली पर जाकर बैठ गयी हूँ... एक खूबसूरत सा एहसास... उनके इतने करीब होने का...* अपनी नन्हीं नन्हीं आँखों से बाबा को टुकुर टुकुर देखती हुई... बेहद प्यार से दृष्टि दे रहे है बापदादा मुझे... और देखते ही देखते मैं चमचमाते हीरे के रूप में बदलती हुई... *उनकी हथेली पर मैं आत्मा चमचमाते कोहिनूर हीरे के समान...* मेरी आभा से भरपूर हो गया है आस पास का पूरा ही वातावरण... जैसे एक साथ असंख्य चाँद जमीन पर उतर आये हो...
➳ _ ➳ मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... बापदादा एक नये रूप में मेरे सम्मुख... *विशाल और भव्य से टबनुमा बर्तन में भरा है अशरीरी पन का रंग, रूहानियत का रंग... और हाथों में पावनता की पिचकारी लिए एक एक आत्मा को उस रंग में भिगोतें हुए... पूरा रंगने में समय लग रहा है किसी- किसी आत्मा को... अलग अलग पोज़ बदलती हुई आत्माए... मगर मैं याद कर रहा हूँ बापदादा के महावाक्य... बच्चे सेकेंड में अशरीरी होना ही बाप के रंग में रंगना है...* और ये निश्चय कर मैं उतर गया हूं पूरी तरह से उस विशाल से टब में एक ही सेकेंड में... *बेहद खूबसूरत एहसास... अशरीरीपन का...* हम दोनों एक ही रंग में रंगे... *अब पहचान मुश्किल सी है, कौन दर्पण है और कौन है चेहरा... मेरी रंगत से मेल खा रहा है रंग रूप तेरा...*
➳ _ ➳ बापदादा हाथ बढाकर मुझे निकाल रहें है उस टब से... *मगर वो रंग अब पूरी तरह मुझे रंग चुका है...* गले लगा रहे है बापदादा मुझे... और *सेकेंड में कन्ट्रोलिंग पावर का वरदान दे रहे है मेरे सर पर हाथ रखकर...* गहराई से महसूस कर रहा हूँ उन वरदानी हाथों की ऊष्मा को अपने सर पर... और बापदादा के सेकेंड के इशारें पर मैं बापदादा के साथ बिन्दु रूप धारण कर परम धाम की यात्रा पर... मैं और बापदादा परमधाम में बीज रूप अवस्था में... शिव बिन्दु के एकदम करीब... देर तक खुद को सेकेन्ड की कन्ट्रोलिंग पावर से सम्पन्न कर मैं लौट आया हूँ अपनी उसी देह में... मगर देह में भी विदेही और शरीर में अशरीरीपन का गहराई से एहसास समायें हुए... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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