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 16 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *देह के संबंधो को भूल अपने को अकेली आत्मा समझा ?*

 

➢➢ *बाप पर पूरा पूरा बलि चडने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *आज का काम कल पर तो नहीं छोड़ा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *कर्म और योग के बैलेंस द्वारा निर्णय शक्ति को बढाया ?*

 

➢➢ *एक बाबा से सर्व संबंधो का रस लिया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  महारथियों की स्थिति औरों से न्यारी और प्यारी स्पष्ट हो रही है ना। जैसे ब्रह्माबाप स्पष्ट थे, ऐसे नम्बरवार आप निमित आत्माएँ भी साकार स्वरूप से स्पष्ट होती जाती। *कर्मातीत अर्थात न्यारा और प्यारा।*

 

✧  कर्म दूसरे भी करते हैं और आप भी करते हो लेकिन आपके कर्म करने में अन्तर है। स्थिति में अन्तर है। जो कुछ बीता और न्यारा बन गया। *कर्म किया और वह करने के बाद ऐसा अनुभव होगा जैसे कि कुछ किया नहीं।*

 

✧  कराने वाले ने करा लिया। ऐसी स्थिति का अनुभव करते रहेंगे। हल्का-पन रहेगा। *कर्म करते भी तन का भी हल्का-पन, मन की स्थिति में भी हल्का-पन।* कर्म की रिजल्ट मन को खैच लेती है। ऐसी स्थिति है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विघ्नो से बचने के लिए, जितना हो सके योग में रहना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा के कमरे में बेठी मै आत्मा... मेरे और बाबा के मीठे, अनोखे रिश्ते के बारे में सोच सोच कर मुस्करा रही हूँ... देह की मिटटी में लथपथ और सदा दुखो में व्याकुल, दीन हीन मै आत्मा... *आसमानी मणि हूँ... यह सच जानकर, तो मीठे बाबा के प्यार में बावरी हो गयी हूँ*... ऐसे प्यारे पिता को भला मै आत्मा कैसे भूलूंगी... जिसने मेरे *जीवन में चार चाँद लगाकर... जीवन को कोहिनूर बना दिया है... सच्चे ज्ञान की खनक से जीवन खुशियो में गूंजः रहा है*... मै आत्मा अजर अमर अविनाशी हूँ... यह सत्य सुनाकर, *मीठे बाबा ने आसमाँ को ही मेरे कदमो में रख दिया है.*..

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी बाँहों में समाकर, सुरक्षित करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वरीय यादो में जब गहरे डूबोगे, तो ज्ञान रत्नों को भी जीवन में उतार पाओगे.*.. बिना योग के, शक्तिहीन होकर रह जाओगे और सच्चा ज्ञान जीवन में कभी उतर न पायेगा... तो फिर संस्कारो का भी परिवर्तन भला कैसे होगा...इसलिए यादो में हर पल हर साँस से गहरे डूबे रहो..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ पर चलकर जीवन को खुबसूरत बनाते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने श्रीमत के हाथो में मेरा जीवन ही फूलो जैसा सुंदर कर दिया है.*..मै आत्मा निर्विघ्न बनकर खुशियो को हर पल जीती जा रही हूँ... आपकी मीठी यादो में डूबकर,अतीन्द्रिय सुख को पाती जा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय यादो का दीवाना बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा यादो में रहकर... अथाह ईश्वरीय सम्पदा को पाने वाले महा भाग्यवान बन जाओ... *इन गहरी यादो का प्रवाह जीवन को सदा विघ्नो से सदा सुरक्षित रखेगा.*..जितना यादो में गहरे डूबोगे उतना ही... शक्तिशाली बनकर हर विघ्न पर भारी होंगे...

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में हर साँस संकल्प से डूबकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे अमूल्य ज्ञान रत्नों को पाकर, मालामाल हो गयी हूँ... और यादो में गहराई से उतरकर... रत्नों को दिल की गहराई में समाती जा रही हूँ... *आपकी प्यार भरी छत्रछाया में जीवन कितना प्यारा और खुशियो भरा हो गया है.*.."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी शक्तियाँ और खजानो को मुझे सौंपते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर प्यार में, ज्ञान रत्नों को व्यवहारिक जीवन में सजाकर... विघ्न और समस्याओ से सदा मुक्त रहो... *मीठे बाबा का प्यार ही वह जादूगरी है... जो माया के विघ्न को सहज ही खत्म कर देगी... इसलिए सदा यादो के मौसम में खोये रहो..*. और निर्विघ्न बन मुस्कराओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा ईश्वरीय खजानो को बुद्धि तिजोरी में रख, यादो में मालामाल बनकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा... मै आत्मा *आपकी बाँहों में खोकर,आपकी मीठी यादो में सारे जहान की खुशियां पाने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ.*.. आपकी यादो में शक्तियो से सज संवर कर मै आत्मा... ज्ञान रत्नों की धारणा से हर विघ्न पर विजयी होकर मुस्करा रही हूँ..."प्यारे बाबा को दिल की दास्ताँ सुनाकर मै आत्मा... इस धरा पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह के सम्बन्धो को भूल अपने को अकेली आत्मा समझना।*"

 

 _ ➳  "मैं देह नही बल्कि इस देह में विराजमान एक चैतन्य ज्योति हूँ, एक शक्ति हूँ जो इस देह को चलाने वाली है। इस सत्य ज्ञान को पाकर ऐसा लगता है जैसे मुझे मेरे जीवन का सार मिल गया। *आज दिन तक स्वयं को देह समझने के कारण देह के सम्बन्धो को ही सब कुछ माना और इस भूल ने मुझ आत्मा से जो विकर्म करवाये, उन विकर्मों के बोझ ने मेरी सुख, शांति को छीन मुझे कितना दुखी और अशांत बना दिया था*। धन्यवाद मेरे शिव पिता परमात्मा का जिन्होंने आ कर ये सत्य ज्ञान मुझे दिया कि "मैं अकेली आत्मा हूँ देह नही और मेरे सर्व सम्बन्ध केवल मेरे पिता परमात्मा के साथ है"।

 

 _ ➳  अपने सत्य स्वरूप को पहचान कर, उस स्वरूप में टिकते ही अब मैं आत्मा सेकेंड में अपने उस एक परम पिता परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ कर, उस गहन सुख और शांति की अनुभूति कर लेती हूँ जिसकी तलाश मैं आज दिन तक दैहिक सम्बन्धों में कर रही थी। *मन ही मन स्वयं से यह बातें करती हुई मैं जैसे ही अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि मेरा वास्तविक स्वरूप कितना सुन्दर और कितना प्यारा है*।

 

 _ ➳  अपने अति सुंदर, तेजोमय स्वरूप को मैं अब अपने मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। *एक चैतन्य दीपक इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि सिहांसन पर चमकता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है जिसमे से अनन्त प्रकाश निकल रहा है*। इस प्रकाश को मैं अपने चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ। यह प्रकाश मेरे मन को गहन शांति की अनुभूति करवा रहा है। *इस प्रकाश में समाये सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन चहुँ और फैल कर मेरे आस - पास के वायुमण्डल को शुद्ध और शांतमय बना रहे हैं*।

 

 _ ➳  आत्मिक स्वरुप में टिक कर, अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे एक अति सुंदर शांतचित स्थिति में स्थित करके, एक विचित्र अंतर्मुखता का अनुभव करवा रहा है। अंतर्मुखता की इस स्थिति में मैं चैतन्य दीपक सहजता से देह रूपी मन्दिर को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रहा हूँ। *आकाश को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परें मैं प्वाइंट ऑफ लाइट अब स्वयं को एक ऐसी विचित्र दुनिया में देख रही हैं जो लाल प्रकाश से आच्छादित है, जहां चारों और चमकते हुए जगमग करते चैतन्य दीपक दिखाई दे रहें हैं*। देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु यहां दिखाई नहीं दे रही। रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से। सम्बन्ध भी आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा।

 

 _ ➳  इस अति सुंदर जगमग करते दीपकों की दुनिया में अब मैं देख रही हूँ अपने बिल्कुल सामने महाज्योति शिव बाबा को जिनसे निकल रही अनन्त प्रकाश की किरणों से पूरा परमधाम प्रकाशित हो रहा है। *जैसे शमा को देखते ही परवाना स्वत: ही उसकी ओर खिंचने लगता है ऐसे ही मेरे महाज्योति शिव पिता के अनन्त गुणों और शक्तियों की किरणें मुझे अपनी ओर खींच रही हैं और मैं धीरे - धीरे उनकी ओर बढ़ रही हूँ*। मैं चैतन्य दीपक महाज्योति शिव बाबा के अति समीप पहुंच कर उन्हें टच करती हूँ और उन्हें टच करते ही उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरता हुआ स्पष्ट अनुभव करती हूँ।

 

 _ ➳  बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरकर मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ और सर्वशक्ति स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ और देह धारण कर फिर से इस कर्मभूमि पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। किन्तु अब मैं स्वयं को आत्मा निश्चय कर हर कर्म कर रही हूँ। *देह के सभी सम्बन्धो को भूल स्वयं को अकेली आत्मा समझने से मेरी दृष्टि, वृति भी आत्मिक होने लगी है इसलिए इस देह से जुड़े सम्बन्धियों को भी अब मैं देह नही बल्कि उनके आत्मिक स्वरूप में देख रही हूँ*। अपने को अकेली आत्मा समझने और सबके प्रति आत्मा भाई - भाई की दृष्टि हो जाने से देह के सम्बन्धों के प्रति अब मेरा लगाव, झुकाव और टकराव समाप्त हो गया है और जीवन बहुत ही आनन्दमयी लगने लगा है।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा कर्म और योग के बैलेंस द्वारा निर्णय शक्ति को बढ़ाती हूँ ।*

 

 _ ➳  क़दमो में पदमों की कमाई जमा करने वाली मैं निश्चय बुद्धि आत्मा... *योग और कर्म में बैलेंस रखती हूँ...* निश्चय बुद्धि विजयन्ती मैं आत्मा... यथार्थ रीति सृष्टि चक्र के राज को जान... *भगवान के अवतरण को जान...* योग और कर्म में सफलता पूर्वक बैलेंस द्वारा निर्णय शक्ति को बढ़ा रही हूँ... परिस्थितियों में भी संयम पूर्वक निर्णय बापदादा की छत्रछाया में सफलता रूप से ले रही हूँ... क्यों... क्या... कैसे के क्वेश्चन से परे मैं आत्मा... *हर घड़ी को कल्याणकारी समझ रही हूँ...* मंगलकारी मैं आत्मा... हर पल को मंगलमय बना रही हूँ... *एक बाप में निश्चय रख... हर कार्य बाप को पूछकर सफल करती हूँ...* मन मंदिर में सिर्फ एक बाबा की प्रतिमा रख... बुद्धि को श्रीमत पर चला रही हूँ... *संस्कार रूपी नाव से... संगमयुग को सफलता पूर्वक पार कर... पहुँचती हूँ सतयुग में...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  किसी और को याद न कर एक बाबा से सर्व संबंधों का रस लेने का अनुभव करना"*

 

_ ➳  *सर्व संबंध एक बाबा के साथ जोड़ने वाली... मैं बंधनमुक्त आत्मा हूँ... सदा योगयुक्त हूँ...* देह के भान से रिश्ता समाप्त कर... फरिश्ता बन स्वतंत्र पंछी समान... उड़ते रहने का अनुभव कर रही हूँ... *सदा नयनों में... दिल में बाबा को समाए हुए... एक बाबा दूसरा न कोई...* यही गीत गाते हुए बाबा की याद में मग्न रहती हूँ... एक बाबा ही मुझ आत्मा का सारा संसार बन गए हैं... सर्वप्राप्तियां भी बाबा से हो रही हैं... *किसी की याद बुद्धि में नहीं रही... भिन्न भिन्न संबंधों से सदा बाबा के समीप रहने से...* मैं शक्तिशाली आत्मा... रमणीकता और खुशी की अनुभूतियों में खो जाती हूँ... मीठे प्यारे बाबा ने... स्नेह के बंधन से मुझ आत्मा को बांध कर... सदा का भाग्यवान बना दिया है... *सदा बाबा की याद में समाई हुई मैं सहजयोगी आत्मा... नष्टोमोहा बनकर...* ट्रस्टी बनकर... सर्व की पालना बहुत ही स्नेह व सम्मान से कर रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *ब्रह्मा बाप यही कहते कि बच्चे सोचते बहुत हैं,* क्या होगा, यह होगावह होगा... यह होगा वा नहीं होगा...! यह होगा! - इस सोच में ज्यादा रहते हैं। यह तो नहीं होगा! कभी सोचते होगाकभी सोचते नहीं होगा। यह होगाहोगा का गीत गाते रहते हैं। लेकिन अपने फरिश्ते पन केसम्पन्न सम्पूर्ण स्थिति में तीव्रगति से आगे बढ़ने का श्रेष्ठ संकल्प कम करते हैं। *होगाक्या होगा!... यह गा-गा के गीत ज्यादा गाते हैं।*

 

 _ ➳  बाप कहते हैं कुछ भी होगा लेकिन आपका लक्ष्य क्या है?  *जो होगा वह देखने और सुनने का लक्ष्य है वा ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बनने का है?*  उसकी तैयारी कर ली हैप्रकृति अपना कुछ भी रंग-रूप दिखाये, आप फरिश्ता बनबाप समान अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखने के लिए तैयार होप्रकृति की हलचल के प्रभाव से मुक्त फरिश्ते बने होअपनी स्थिति की तैयारी में लगे हुए हो वा क्या होगाक्या होगा - इसी सोचने में लगे होक्या कोई भी परिस्थिति सामने आये तो आप प्रकृतिपति अपने प्रकृतिपति की सीट पर सेट होंगे वा अपसेट होंगेयह क्या हो गयायह हो गया, यह हो गया... इसी नजारों के समाचारों में बिजी होंगे वा *सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करेंगे?*    

 

✺   *ड्रिल :-  "सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ...* आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने बाहे फैलाये आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...   

 

_ ➳  बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... *बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है...* मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की शक्तिशाली किरणों को ग्रहण कर रही हूँ... *इन किरणों को ग्रहण कर मैं आत्मा दिव्य दृष्टि द्वारा इस देह से न्यारी हो एक ओर अपने आदि स्वरुप(देव स्वरुप) को देख रही हूँ, तो दूसरी ओर माया के जाल में फँसे हुए कमजोर स्वरुप को देख रही हूँ...* 

 

_ ➳  क्या होगा, कैसे होगा, कब होगा, होगा या नही होगा... इन व्यर्थ के संकल्पों में उलझकर मैं आत्मा माया के जाल में फंसी हुई थी, संशय बुद्धि बन गयी थी... *माया ने मुझ आत्मा के उमंग उत्साह के पंख काट दिए थे... मैं आत्मा अपना समय व्यर्थ गंवाती जा रही थी... बाबा से निकलती हुई शक्तिशाली किरणों में मुझ आत्मा के सभी व्यर्थ संकल्प भस्म हो गये है... अब मैं आत्मा व्यर्थ से समर्थ बन गयी हूँ... मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं... मैं आत्मा विकारो का त्यागकर कमजोर से महावीर बन जाती हूँ...* 

 

 _ ➳  महावीर स्थिति में स्थित हो मैं आत्मा सभी बंधनों से न्यारी... *बादलो को चीरती हुई उड़ती जा रही हूँ... सामने से आते हुए विघ्न रुपी बादलो को मैं आत्मा जम्प लगा क्रॉस करती हुई बाप समान फरिश्ता स्वरुप स्थिति का अनुभव करती हुई पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ...* प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्मवतन में ले जाते हैं...

 

_ ➳  *सूक्ष्मवतन से बापदादा वा एडवांस पार्टी की आत्माओ से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ...* अब मैं आत्मा ड्रामा के चक्र को बुद्धि में धारण कर, पांचो स्वरूपो का अभ्यास करती हुई साक्षी हो ड्रामा के हर सीन को..., सम्बन्ध-संपर्क में आयी हर आत्मा के स्वभाव संस्कारो को तथा तमोप्रधान प्रकृति के रूप रंग को अपनी सम्पन्नता की स्थिति में सेट हो देखती हुई, शांति का दान देती हूँ... प्रकृति की कोई भी हलचल मुझ आत्मा को अब अपने फरिश्तेपन की स्टेज से अपसेट नही कर सकती... *अपनी सम्पन्नता की स्टेज में स्थित हो मैं प्रकृतिपति आत्मा बापदादा से प्राप्त दिव्य शक्तियों को चारों ओर फैलाकर  तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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