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 27 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा की ?*

 

➢➢ *अपने ओ सर्विस बढाने का जिम्मेवार समझा ?*

 

➢➢ *किसी भी हाल में पढाई मिस तो नहीं की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाई ?*

 

➢➢ *"जो कर्म हम करेंगे, हमें देखकर और करेंगे" - यह स्लोगन सदा स्मृति में रहा ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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✧  जब ऊँची पहाडी पर चढ़ते हैं तो क्या लिखा हुआ होता है? *ब्रेक चेक करो। क्योंकि ब्रेक सेफ्टी का साधन है।* तो कन्ट्रोलिंग पॉवर का वा ब्रेक लगाने का अर्थ यह नहीं कि लगाओ यहाँ और ब्रेक लगे वहाँ कोई व्यर्थ को कन्ट्रोल करना चाहते है, समझते हैं - यह रांग है।

 

✧  तो *उसी समय रांग को राइट में परिवर्तन होना चाहिए।* इसको कहा जाता है कन्ट्रोलिंग पॉवर ऐसे नहीं कि सोच भी रहे हैं लेकिन आधा घण्टा व्यर्थ चला जाये, पीछे कन्ट्रोल में आये। *बहुत पुरुषार्थ करके आधे घण्टे के बाद परिवर्तन हुआ तो उसको कन्ट्रालिंग पॉवर नहीं, रूलिंग पॉवर नहीं कहा जाता।*

 

✧  यह हुआ थोडा-थोडा अधीन और थोडा-थोडा अधिकारी - मिक्स। तो उसको राज्य अधिकारी कहेंगे या पुरुषार्थी कहेंगे? तो *अब पुरुषार्थी नहीं, राज्य अधिकारी बनो।* यह राज्य अधिकारी का श्रेष्ठ मजा है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  इस पढ़ाई की बहुत कद्र करना*"

 

➳ _ ➳  मीठे बाबा की यादो में खोयी हुई मै आत्मा... नक्की झील में उठती फुहारों को देख रही हूँ...और सोच रही हूँ... *ऐसा ही खुबसूरत, मेरे मन के भीतर भी, ख़ुशी का फव्वारा निरन्तर बहता है... और भगवान को पाने के असीम आनन्द में मन झूमता और नाचता है..*. कभी बाहर की अमीर और भीतर से गरीब... मै आत्मा ख़ुशी को सदा तरसती थी... आज मीठे बाबा से, अनगिनत खजाने पाकर, भीतर की अमीरी और सुखो से लबालब हूँ... ईश्वरीय वंशी होकर, ईश्वर पिता द्वारा... गॉडली स्टूडेंट पुकारी जाती हूँ... *ऐसा रत्नों से दमकता शानदार भाग्य तो कभी कल्पनाओ में भी न था... जो आज प्यारे बाबा ने जीवन की सच्चाई बना दिया है.*..यही मीठा चिंतन करते हुए मै आत्मा... पांडव भवन की ओर रुख करती हूँ...

 

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अमूल्य ज्ञान रत्नों से मालामाल करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *मीठे बाबा आप बच्चों के लिए ही तो अथाह खजाने अपनी बाँहों में भरकर, सौगात सजाकर, धरती पर चला आया है... इन रत्नों से सदा खेलते रहो.*.. और इन अमूल्य रत्नों की दिल जान से कद्र करो... इन रत्नों की बदौलत ही तो अथाह सुख कदमो में बिखरेंगे... इसलिए इस सच्ची, देवता बनाने वाली पढ़ाई को, कभी न छोडो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की शिक्षाओ को पाकर संपत्तिवान बनकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह की मिटटी से निकलकर, आपकी गोद में बेठ देवताई ताजोतख्त से सज संवर रही हूँ... *अपने खोये मूल्यों को पुनः पाकर दिव्यता और अलौकिकता से सम्पन्न हो रही हूँ.*.. हर दिन ईश्वरीय पढ़ाई के आनन्द में बिताने वाली, महान भाग्यशाली आत्मा हूँ..."

 

❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अतुलनीय धन सम्पद्दा से भरकर विश्व का मालिक बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... यह *ईश्वरीय पढ़ाई अनमोल है, इसी पढ़ाई से देवताई संस्कार पुनः जाग्रत होंगे... इसलिए इस पढ़ाई के दिल से कद्रदान बनो.*.. हर पल इस सच्ची पढ़ाई को पढ़कर, मन्थन कर शक्तिशाली बनो... अंतिम साँस तक भी यह अमूल्य पढ़ाई पढ़ते ही रहो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से अथाह खजाने पाकर खुशियो में झूमते हुए कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे...मै आत्मा *आपसे सच्चे रत्नों की दौलत पाकर, कितने खुबसूरत जीवन की मालिक बन गयी हूँ.*.. जीवन खुशियो से छलक उठा है... और सुंदर शिक्षाओ को पाकर, देवताई संस्कारो से भर गया है... मै आत्मा इन बहुमूल्य रत्नों को पाकर, सुंदर भाग्य से सज गयी हूँ..."

 

❉   प्यारे बाबा ने मुझे विश्व राज्य की अधिकारी आत्मा बनाने के लिए श्रीमत से सजाकर कहा ;-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *मीठे बाबा ने जो टीचर बनकर पढ़ाया है... ज्ञान अमृत से उजला बनाया है... उन अमूल्य शिक्षाओ को श्रीमत को, सदा अपने जीवन का आधार बनाकर... दिव्य और पवित्र जीवन के मालिक बनो.*.. सदा इन ज्ञान मोतियो को ग्रहण करने वाले होली हंस बनकर मुस्कराओ... ज्ञान के सदा चात्रक बनकर, मरते दम तक ज्ञान अमृत को पीते रहो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से अमूल्य ज्ञान निधि को पाकर, सतयुगी अमीरी की अधिकारी बनकर कहती हूँ :-"मेरे सच्चे साथी बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले... ज्ञान और योग के पंख पाकर... खुशियो के आसमाँ में उड़ता पंछी बनकर मुस्करा रही हूँ... *सच्चे ज्ञान की झनकार ने मेरे जीवन को, आत्मिक मूल्यों से सजाकर कितना सुदर बना दिया है.*.. प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ का दिल से शुक्रिया कर मै आत्मा अपने साकार वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा जरूर करनी है*"

 

➳ _ ➳  कर्मयोगी बन कर्म करते भी कर्म के प्रभाव से मुक्त, एकरस मगन अवस्था में मैं स्थित हूँ। हाथों से कर्म करते बुद्धि का योग अपने शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़, उनसे मीठी - मीठी रूह - रिहान करते मैं सहजता से हर कार्य कर रही हूँ। *साथ ही साथ अपने भाग्य की भी सराहना कर रही हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे चलते - फिरते, उठते - बैठते, खाते - पीते, सोते - जागते हर कर्म करते हर समय भगवान का साथ मिलता है*।

 

➳ _ ➳  अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया मेरे भगवान साथी निरन्तर मेरे ऊपर बनाये रखते हैं और अपनी शक्तियों का संचार निरन्तर मुझ आत्मा में करते हुए, मुझे हर कर्म में हल्के पन का अनुभव करवाते रहते हैं। *जब भगवान मेरा साथी बन हर कर्म में मेरा साथ निभाते हैं तो मुझे भी अपने भगवान साथी के कार्य मे मददगार अवश्य बनना है*। घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा अवश्य करनी है, मन ही मन यह विचार करती, जल्दी से अपने सभी कार्य निबटा कर, मैं अपने मीठे बाबा की मीठी याद में बैठ जाती हूँ। *अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित अब मैं स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारा अनुभव कर रही हूँ*।

 

➳ _ ➳  भृकुटि के मध्य प्रज्ज्वलित एक दिव्य ज्योति को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ । ऐसा लग रहा है जैसे एक चमकती हुई दीपशिखा, एक सितारा जगमग करता हुआ भृकुटि के मध्य भाग से बाहर की ओर आ रहा है। *ये दीपशिखा, ये चैतन्य सितारा मैं आत्मा हूँ जिसमे से एक शांन्त और सुखद प्रकाश निकल रहा है*। यह शांत और सुखद प्रकाश अब धीरे - धीरे मेरी भृकुटि से निकल चारों ओर पूरे कक्ष में फ़ैलता जा रहा है। मैं इस प्रकाश को अपने चारों और महसूस कर रही हूँ जो मुझे गहन शांति से भरपूर कर रहा है। *शांति और सुख से भरपूर इस अवस्था में मेरी सर्व कर्मेन्द्रियां शांत और शीतल होती जा रही हैं। मेरे विचार शांत हो रहे हैं*।

 

➳ _ ➳  मन बुद्धि की तार जुड़ रही है शिव परम पिता परमात्मा के साथ। कितनी सुखद है उनकी याद जो मेरे चित को चैन दे रही है । एक दिव्य आलौकिक आनन्द की अनुभूति करवा रही है। *इस देह और देह की दुनिया से दूर मुझे शांति की दुनिया मेरे स्वीट साइलेन्स होम में ले जा रही है*। देख रही हूं अब मैं स्वयं को आत्माओं की निराकारी दुनिया अपने स्वीट साइलेन्स होम में। मेरे सामने शांति के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा है जिनके सानिध्य में मैं आत्मा असीम शांति का अनुभव कर रही हूँ।

 

➳ _ ➳  गहन शांति की अनुभूति मुझे मेरे शिव पिता के ओर समीप ले कर जा रही है। धीरे - धीरे मैं चैतन्य सितारा, मैं आत्मा अपने शिव पिता के पास पहुंच कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *अपने असीम प्यार से, अपनी सर्वशक्तियों से वो मुझे फुल चार्ज कर देते हैं*। उनके निस्वार्थ, निर्मल और निश्छल प्यार से भरपूर हो कर तथा उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं में शक्ति भर कर मैं लौट आती हूँ फिर से साकारी दुनिया, साकारी देह में अपना पार्ट बजाने के लिए।

 

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित अब मैं इस साकारी दुनिया मे, प्रवृति में रहते, स्वयं को देह से जुड़े सम्बन्धियों की सेवा अर्थ निमित समझते, सदैव ट्रस्टी बन कर रहती हूँ। *"मैं रूहानी सोशल वर्कर हूँ" इस बात को सदैव स्मृति में रख, घर के काम - काज करते भी समय निकाल रूहानी सेवा में सदा तत्पर रहती हूँ*। अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा रचे इस अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल करने के लिए ही मुझे यह ब्राह्मण जीवन मिला है, बुद्धि में इस बात को अच्छी रीति धारण कर, लौकिक और अलौकिक मे बैलेंस रख, ईश्वरीय सेवा में अपने समय को सफल करते हुए अब मैं अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य सहज ही बना रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :-  मैं आत्मा समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाती हूँ।*

 

_ ➳  बाप समान पूज्य बनने वालीगायन योग्य ब्राह्मण कुल की… *मैं आत्मा अष्ट शक्तियों से सम्पन्न हूँमैं हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति को कार्य में लगाती हूँ*मैंने अष्ट शक्तियां धारण की हैं… *इष्ट और अष्ट रत्न बनी हूँमैं अष्ट शक्ति सम्पन्न आत्माजैसा समय, जैसी परिस्थितिवैसी स्थिति सहज बना लेती हूं*मेरे हर कदम में सफलता समाई रहती है… *कोई भी परिस्थिति मुझे श्रेष्ठ स्थिति से नीचे नहीं उतार सकती*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  "जो कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे"- यह स्लोगन सदा स्मृति में रहते हुए कर्मों का श्रेष्ठ हो जाना अनुभव करना"*

 

_ ➳  *विश्व सेवा की जिम्मेवारी की ताजधारी... मैं एक ब्राह्मण आत्मा हूँ...* बापदादा को सदा ही अपना साथी बना कर... हर कर्म करने वाली... श्रेष्ठ आत्मा हूँ... ड्रामा के रहस्य को समझ रही हूँ... *मुझ ब्राह्मण आत्मा की ज्योति जगने से ही... विश्व का अंधकार दूर होगा... बाकी विश्व की आत्माओं की भी ज्योति जग जाएगी...* अपनी जिम्मेवारी भली भांति समझते हुए... हर कर्म... हर संकल्प करने से पहले ही चेक करती हूँ... *स्मृति है कि जो भी कर्म हम ब्राह्मण आत्माएं करेंगे... हमें देख विश्व की और आत्माएं भी करेंगी...* यही स्मृति स्वरूप... सदा समर्थ स्वरूप स्थिति का अटेंशन... अनेक आत्माओं के टेंशन को समाप्त कर रहा है... बाप की तरफ उनका अटेंशन स्वत ही हो रहा है... *मैं आत्मा स्व स्वरूप और सेवा स्वरूप दोनों... साथ साथ ही अनुभव कर रही हूँ... इस शक्तिशाली स्वरुप से...* हर कर्म को स्वतः ही श्रेष्ठ बनता हुआ अनुभव कर रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा कहते हैं आप लोगों ने ही प्रकृति को सेवा दी है कि खूब सफाई करो, उसको लम्बा-लम्बा झाडू दिया हैसफा करो। तो घबराते क्यों हो?* आपके आर्डर से वह सफाई करायेगी तो आप क्यों हलचल में आते होआपने ही तो आर्डर दिया है। *तो अचल-अडोल बन मन और बुद्धि को बिल्कुल शक्तिशाली बनाए अचल-अडोल स्थिति में स्थित हो जाओ। प्रकृति का खेल देखते चलो। घबराना नहीं।* आप अलौकिक होसाधारण नहीं हो। साधारण लोग हलचल में आयेंगे, घबरायेंगे। अलौकिकमास्टर सर्वशक्तिवान आत्मायें खेल देखते अपने विश्व-कल्याण के कार्य में बिजी रहेंगे। अगर मन और बुद्धि को फ्री रखा तो घबरायेंगे। *मन और बुद्धि से लाइट हाउस होलाइट फैलायेंगेइस कार्य में बिजी रहेंगे तो बिजी आत्मा को भय नहीं होगा, साक्षीपन होगा; और कोई भी हलचल हो अपने बुद्धि को सदा ही क्लीयर रखना, क्यों क्या में बुद्धि को बिजी वा भरा हुआ नहीं रखनाखाली रखना*।

 

 _ ➳  *एक बाप और मैं.. तब समय अनुसार चाहे पत्रटेलीफोन, टी.वी. वा आपके जो भी साधन निकले हैंवह नहीं भी पहुंचे तो बापदादा का डायरेक्शन क्लीयर कैच होगा।* यह साइंस के साधन कभी भी आधार नहीं बनाना। यूज करो लेकिन साधनों के आधार पर अपनी जीवन को नहीं बनाओ। कभी-कभी साइंस के साधन होते हुए भी यूज नहीं कर सकेंगे। *इसलिए साइलेन्स का साधन - जहाँ भी होंगेजैसी भी परिस्थिति होगी बहुत स्पष्ट और बहुत जल्दी काम में आयेगा। लेकिन अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखना। समझा*।

 

 _ ➳  चारों ओर हलचल हैप्रकृति के सभी तत्व खूब हलचल मचा रहे हैंएक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैंव्यक्तियों की भी हलचल हैप्रकृति की भी हलचल हैऐसे समय पर जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगेसेफ्टी का साधन कौन -सा है? *सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो तो हलचल में अचल रह सकते हो। इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगाअभी ट्रायल करो - एक सेकण्ड में मनबुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो? (ड्रिल) इसको कहा जाता है -'साधना'*। अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "दुनियावी वा प्राकृतिक हलचल को देखते हुए विदेही बन अचल-अडोल रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  बाबा के इन महावाक्यों को पढ़ मैं आत्मा बाबा के कहे अनुसार अभ्यास शुरू करती हूं... विदेही होने का क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में बहुकाल का अभ्यास चाहिए... *आँखों के आगे उस दृश्य को लाती हूं... प्रकृति के सारे तत्व अपना पेपर ले रहे हैं... इस  सृष्टि पर सब कुछ हलचल में है क्या धरती, क्या आसमान, कहीं आग, कहीं बाढ़, कहीं तूफ़ान, हर ओर तबाही का ही मंज़र है, सब तरफ त्राहि त्राहि मची हुई है... ऐसे में दुनियावी आत्मायें चीख़ चिल्ला रही हैं...*

 

 _ ➳  *याद आते हैं बाबा के महावाक्य जब चारों ओर हलचल होगी साइंस के साधन भी काम नहीं आएंगे तब तुम्हें ही मन बुद्धि से अचल अडोल बन कार्य करना होगा साइलेन्स की शक्ति काम करेगी...* ऐसे में मैं आत्मा अपने को इस हलचल से उपराम कर अशरीरी बन अपने मन बुद्धि को बाबा में लगाती हूं...

 

 _ ➳  मन बुद्धि से पहुँचती हूं *परमधाम* में और बीज रूप में स्थित होकर अपने *ज्योति स्वरूप शिव बाबा* की किरणों के साये तले बैठ जाती हूँ... *ज्योतिरबिन्दु से आती किरणों से मैं आत्मा प्रकाशित हो रही हूं... ये सुख स्वरूप किरणें, ये आनंद स्वरूप किरणें, ये प्रेम स्वरूप किरणें जैसे जैसे मुझ पर पड़ रहीं हैं...* वैसे वैसे मैं शीतलता की लहरों में लहराने लगती हूँ... कितना अलौकिक है ये... इस अलौकिकता में मैं स्वयं को भी अलौकिक महसूस कर रही हूं... मन और बुद्धि से स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूं... *परमपिता परमात्मा की छत्रछाया में मैं स्वयं को बेहद शक्तिशाली अनुभव करती हूं...*

 

 _ ➳  परमात्म प्रेम में डूबी मैं आत्मा वापिस इस धरा पर आती हूं... साइलेन्स की इस अवस्था में मुझे एक विशेष अनुभूति हो रही है... *बाबादादा की क्लियर डायरेक्शनस मुझ तक पहुंच रही हैं बच्चे तुम साधारण नहीं हो तुम अलौकिक हो मास्टर सर्वशक्तिमान हो अचल अडोल बन विश्व कल्याण के कार्य में हाथ बँटाओ...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा साक्षी दृष्टा बन प्रकृति द्वारा जो उथल पुथल हो रही है वो देखती हूं... पर अब वो विनाश नहीं प्रकृति द्वारा की जा रही सफ़ाई दिख रही है... बिना हलचल में आये मैं अचल अडोल होकर इस सारी प्रक्रिया को देख रही हूं... *मन बुद्धि को  सेवा में बिजी कर दु:ख में डूबी दुःखी आत्माओं को शांति का दान दे रही हूं... उनको शुभ भावना दे रही हूं... विश्व कल्याण के कार्य में सहयोग दे रही हूं... शान्ति की, शुभ भावना की, शुभ कामना की तरंगें सब तरफ फैल रही हैं...*

 

 _ ➳  शनैः शनैः प्रकृति के पांचों तत्त्व शांत हो रहे हैं... हलचल धीरे धीरे समाप्त हो रही है... संसार की सभी आत्मायें आसानी से अपने देह से निकल शान्ति धाम को प्रस्थान कर रही हैं... *बापदादा से निरंतर मेरे मन बुद्धि को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही है... और मैं आत्मा चल पड़ी हूं साधना के इस नवीनतम पथ पर अनवरत बिना रुके बिना थके... ओम शांति बाबा*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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