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 14 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *कम से कम 8 घंटा याद की सर्विस में रहे ?*

 

➢➢ *इकठे रहते हुए भी और संग तोड़ एक संग जोड़ने की मेहनत की ?*

 

➢➢ *तेज़ बुधी स्टूडेंट बनकर रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *न्यारी अवस्था में स्थित रह हर कार्य किया ?*

 

➢➢ *शुभ भावना का स्टॉक फुल कर व्यर्थ को फुल स्टॉप लगाया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *"मैं कल्प पहले वाला बाबा का बच्चा हूँ, वारिस हूँ, अधिकारी हूँ" - यह स्मृति रही ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - सेन्सिबल बन चलते फिरते जहाँ भी सेवा हो, करते चलो, बाप का परिचय दो, सर्विस का शोक रखो"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जो खुशियां, जो सुख, जो प्यार, जो दुलार, जो ममता, जो अमूल्य खजाने आप बच्चों ने पाये है... *सबका दामन इन खुशियो से सजाकर* पिता समान दरियादिल हो चलो... बिछड़े लालो को बाप से मिलाने का पुण्य कार्य कर चलो... और दुआओ से दामन सजाकर मुस्कराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा से पायी ख़ुशी और प्यार की दौलत से हर आत्मा को सजा रही हूँ... *मीठा बाबा आ गया.*.. दुखो का जंगल अब साफ हुआ... .यह ख़ुशी की लहर हर दिल आँगन तक फेला रही हूँ..

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इन हवाओ में यह खुशबु फेला दो... कि *सच्चा पिता अथाह सुखो को बच्चों को देने* धरा पर आ पहुंचा है... सारे सुख बाबा से लेकर अपना दामन भर चलो... सुखो की खानो को नाम करने आया है... तो नाम लिखवाकर विश्व राज्य अधिकारी बन चलो...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितना सुखद भाग्य बाँहों में भरकर मुस्करा रही हूँ... *वरदानी संगम पर ईश्वर पिता की मददगार* बन सारे विश्व को बाबामय बना रही हूँ... सच्चे पिता का परिचय देकर सबको सच्ची तसल्ली और सुख भरे महल बाबा से दिलवा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों और यादो भरे सच्चे पलों से सबका दामन सजाओ... *हर आत्मा के दिल में सुख भरी बहार सजाओ*... होठो पर सच्ची हंसी और सुख भरे जीवन का उपहार विश्व पिता से दिलवाओ... यह सच्ची सेवा कर चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा रोम रोम से आपकी सेवा में जुटी हूँ... ईश्वर पिता का परिचय देकर *सच्ची खुशियो से रूबरू करवा रही हूँ.*.. हर साँस में मीठे बाबा को समाकर मै दीवानी आत्मा सबको शिव पिता के आने की दस्तक दे रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा परमात्म प्यार की अधिकारी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा *श्रेष्ठ संगमयुग की श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा* हूँ... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूँ... मुझ आत्मा को स्वयं परमपिता परमात्मा मिल गए... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को घोर कलियुगी अंधियारे से निकालकर... संगमयुगी सोझरे में ले आए... मैं आत्मा 63 जन्मों के रावण की कैद से छूटकर आजाद हो गई हूँ...

 

➳ _ ➳  परमात्मा स्वयं मुझ आत्मा को गोद लेकर अपना बच्चा बनाया... प्यारे बाबा *पालना देकर, शिक्षा देकर, सर्व वरदानों, खजानों से सम्पन्न* बनाकर मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया में राजा बनने के लायक बना रहे हैं... प्यारे बाबा ज्ञान, योग का अविनाशी क्रीम लगाकर मुझ आत्मा का कलियुगी कालापन दूर कर गोरा बना रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा देह के भान से न्यारी होती हुई बीजरूप अवस्था में स्थित हो जाती हूँ... एक प्यारे बाबा से मधुर मिलन मनाती हूँ... सुप्रीम बिंदु से दिव्य प्रकाश की किरणें मुझ आत्मा बिंदु में समाती जा रही हैं... मैं आत्मा *बाप समान स्थिति का अनुभव* करती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  फिर मैं आत्मा इस साकार देह में प्रवेश होकर कर्म करती हूँ... मैं आत्मा कर्म करते हुए भी एक बाबा की याद में ही रहती हूँ... मैं आत्मा बीच-बीच में *देह से न्यारे होने की प्रेक्टिस* करती हूँ... फिर देह में प्रवेश कर कर्म करती हूँ... न्यारी अवस्था में स्थित रह कर्म करने से मुझ आत्मा के कर्म भी श्रेष्ठ होते जा रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाप समान सबसे न्यारी और सबकी प्यारी बनती जा रही हूँ... न्यारापन मुझ आत्मा को प्यारा बना रहा है... मैं आत्मा अपने देह के भान से न्यारी होकर सर्व की प्यारी बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा परमात्म प्यार की अधिकारी बनती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा न्यारी अवस्था में स्थित रह हर कार्य करने वाली *सर्व की वा परमात्म प्यार की अधिकारी* बनती जा रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शुभ भावना के स्टॉक को फुल रख  व्यर्थ पर फुलस्टॉप लगाना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा शुद्ध पवित्र संकल्पों का स्त्रोत हूँ... मैं आत्मा निरन्तर शुभ संकल्पों की रचना करती हूँ... मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से सजी धजी हूँ... बाबा की मुरली के स्वर... अंतर्मन में सतत्... गूंजते रहते हैं... *ज्ञान रत्नों से सजी बाबा की मुरली ने मुझ आत्मा को श्रेष्ठ संकल्पों की खान बना दिया है...*

 

➳ _ ➳  सर्व के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रखना... मुझ आत्मा का नेचर हैं... मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा... हर आत्मा प्रति शुभ भावना ही रखती हूँ... *मैं नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ...* तीनों कालो को ध्यान में रख... हर आत्मा को उसके ओरीजिनल स्वरूप देख... उसे सदा शुभ भावना और शुभ कामना देती हूँ...

 

➳ _ ➳  *बाबा की आज्ञा हैं की कोई भी आत्मा हमारी सामने से खाली हाथ न जाये...* मैं ब्राह्मण सो देवता... महादानी आत्मा हैं... सभी सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को शुभ भावना और शुभ कामनाओं का दान देती हूँ...

 

➳ _ ➳  शुभ भावना का स्टॉक फुल होने से... व्यर्थ को स्वतः ही फुलस्टॉप लग गया है... व्यर्थ को फुलस्टॉप लगने से... *मैं आत्मा सदा उमंग उत्साह से भरपूर हूँ...* सर्व को दुआये देना और दुआये लेना...इससे मुझ आत्मा की स्थिति बहुत ऊँची हो गई हैं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *न्यारी अवस्था में स्थित रह हर कार्य करने वाले सर्व के व परमात्म प्यार के अधिकारी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  बाबा बहुत बार कहते है न्यारा प्यारा बनो लेकिन किसी को यह नही पता न्यारा बनना कैसे है इसलिए

जितना हम खुद अपनी देह से न्यारा रहेंगे उतना ज्यादा हम *देहि अभिमानी की स्टेज पे टिक* सकेंगे और उतना ही हमारा ध्यान भी दूसरों की ऊंच आत्मिक स्थिति पर ही जायेगा न की उनकी कमी कमजोरियों पे इससे सहज ही स्वयं के व सर्व के प्यारे बन जाएँगे । इसी के लिए बाबा ने कहा था प्यारे नही बनो , न्यारे बनो ।

 

 ❉  जितना हम दूसरों के गुणों को देखेंगे उतना ही हम खुद भी और दूसरों को भी *गुण ग्राहक* बनाएंगे। और स्वतः ही सर्व के प्यारे बन जायेंगे।और जितना हम देह से न्यारे रहेंगी और विचार करेंगी की यह गुण भी बाबा का है उतना ही बाप की याद सहज और ऑटमैटिक होगी तो बाप के भी प्यारे बन जायेंगे।

 

 ❉  जैसे ब्रह्माबाबा हर कार्य करते यह नही भूलते थे की यह यज्ञ मेरा नही शिवबाबा का है और इसी *ट्रस्टी भाव या कहो निम्मित भाव ने ब्रह्माबाबा को न्यारा बनाके रखा* जिससे वह हर एक बच्चे के साथ होते हुए भी एक शिवबाबा के प्यारे बनके रहे । वह घड़ी घड़ी स्वयं को याद दिलवाते की शिवबाबा बैठा है, यह शिवबाबा का ही संकल्प है मुझे तो बस इस संकल्प मात्र के लिए बाबा को रथ देना है बाक़ी बाबा संभाल लेगा, इस ड्रामा के निश्चय से वह नम्बर वन बन गये ।

 

 ❉  जब ऐसी आत्मा *हर एक कार्य करने से पहले शिवबाबा बिंदु की याद में रहकर हर कर्म करती* है तो इससे उसके विक्रम भी विनाश होते है और साथ साथ पुण्य का खाता भी जमा होता है जिससे वह हर कार्य प्रभु पसंद बन जाता है और जो कार्य प्रभु पसंद बन जाए वह सर्व का प्यारा बन जाता अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाता जैसे प्यारे ब्रह्माबाबा (कृष्ण) ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *शुभ भावना का स्टॉक फुल हो तो व्यर्थ को फुलस्टॉप लग जाएगा... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जैसे कमरे में फैला अंधकार बिजली का स्विच ऑन करते ही समाप्त हो जाता है और उसकी जगह रोशनी आ जाती है ठीक इसी प्रकार जब ज्ञान का प्रकाश जीवन में फैलने लगेगा । ज्ञान से अपने मन बुद्धि को जैसे जैसे महीन और सूक्ष्म बना लेंगे । तथा *बाबा के साथ गहराई से हर सम्बन्ध निभाते हुए, पावर हाउस बाप से निरन्तर कनेक्शन जोड़ कर जैसे - जैसे आत्मा में पावर भरते जाएंगे* वैसे - वैसे आत्मा में शुभ भावना का स्टॉक फुल होता जायेगा और व्यर्थ का जो किचड़ा है वह धीरे-धीरे समाप्त होने लगेगा ।

 

❉   कहा जाता है कि लोहे को अगर पारस के साथ रख दिया जाए लोहा भी पारस के संग में सोना बन जाता है । ऐसा ही सच्चा सोना हमें भी बनना है । किंतु वह तभी बन सकेंगे जब जरा भी लोहे का अंश नहीं होगा । क्योंकि अगर लोहे का अंश भी होगा तो वैल्यू को कम कर देगा । *व्यर्थ संकल्प लोहे के समान है जो आत्मा को सच्चा सोना बनने नहीं देते* । इसलिए जितना पारसनाथ बाप के संग में रहेंगे । आत्मा पर चढ़ी लोहे की कट उतरने लगेगी । शुभ भावना का स्टॉक पुल होने लगेगा और व्यर्थ स्वत: ही समाप्त होने लगेगा ।

 

❉   लौकिक में भी देखा जाता है कि सेल्समैन अगर अच्छा है तो सभी उस से ही खरीदारी करना पसन्द करते हैं । हम भी रूहानी सेवाधारी हैं । तो *जितना हमारे पास शांति का, प्रेम का और सुख का खजाना होगा उतना ही हम अनेकों का कल्याण कर सकेंगे* । किंतु यह खजाना तभी जमा होगा जब शुभ भावना का स्टॉक फुल होगा । और इसके लिए जरूरी है व्यर्थ को समाप्त करना ।  इसलिए जितना स्वयं को समर्थ चिंतन में बिजी रखेंगे उतना शुभ भावना का स्टॉक जमा होता जायेगा और व्यर्थ समाप्त होता जायेगा ।

 

❉   हंस की यह विशेषता होती है कि वह मोती और कंकड़ में से मोती को चुग लेता है और कंकड़ को छोड़ देता है । क्योकि उसमे परखने की शक्ति बहुत तीव्र होती है । ठीक इसी प्रकार हमें भी होली हंस बनना है इसलिए *हमारे अंदर भी परखने और निर्णय करने की शक्ति होनी चाहिए कि क्या व्यर्थ है और क्या समर्थ है* । तो जितना इस शक्ति को स्वयं में धारण करेंगे उतना ही श्रेष्ठ तथा समर्थ संकल्प रूपी मोती मन बुद्धि में धारण होने से बुद्धि स्वच्छ और निर्मल होती जाएगी जिससे शुभ भावना का स्टॉक बढ़ता जाएगा और व्यर्थ समाप्त होता जाएगा ।

 

❉   जैसे बाबा की दृष्टि और वृत्ति में सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की भावना होने के कारण बाबा की समीपता सबको सुख का अहसास कराती है । तो ऐसे ही *सुख सागर बाप के बच्चे हम आत्माएं भी मास्टर सुखदाता है* । अपने इस स्वमान की सीट पर जब हम सदा सेट रहेंगे तो मन बुद्धि में केवल सर्व के कल्याण का चिंतन ही चलता रहेगा *जो समृति स्वरूप बना देगा* । इससे शुभ भावना का स्टॉक जमा होने लगेगा और सर्व के प्रति श्रेष्ठ तथा कल्याणकारी वृति होने से व्यर्थ समाप्त होने लगेगा

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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