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 24 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *कदम कदम पर बड़ी सावधानी से चले ?*

 

➢➢ *बाप के पास जाने के लिए पुराने सब हिसाब किताब चुक्तु करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *अशरीरी बनने का पूरा अभ्यास किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *नॉलेज की लाइट और माईट द्वारा सोलकोन्सेस बनकर रहे ?*

 

➢➢ *साधारणता में महानता का अनुभव किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *स्व - पुरुषार्थ के साथ सम्बन्ध संपर्क में रहने वाली आत्माओं से दुआएं प्राप्त की ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - बाप से तुम्हे सुमत मिली है, तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है सबको अपनी बुद्धि का सहयोग देना"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... रावण के संग में कुमत से स्वर्ग के मीठे सुख गंवा चले... अब जो मीठे बाबा का हाथ पकड़ा है ईश्वरीय बुद्धि से सजे हो... तो *इस बुद्धि से सबके जीवन में खुशियो के फूल खिलाओ.*.. सबके दुःख दूर कर सच्ची मुस्कान अधरों पर खिलाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में कितनी महफूज और सुखी हो गयी हूँ... मीठे बाबा आपने मेरी बुद्धि को कितना प्यारा दिव्य बना दिया है... मै आत्मा *इन मीठी खुशियो को हर आँचल में बिखेर कर सबको आप समान* भाग्यशाली बना रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय मत को पाकर पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन खिल उठे हो... *परम् भाग्यशाली आत्मा बन देवताई श्रंगार से सज संवर रहे हो.*.. यही सुख, यही खुशियां यहीं आनन्द की लहरो से विश्व धरा का सिंचन करो... सबको तपते दुखो से शीतल कर, दामन में सच्चे सुख छलका आओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा *श्रीमत का हाथ थाम कर अनन्त सुखो की मालकिन बन मुस्करा रही हूँ.*.. कुमत ने जो मुझे बदरंग किया था... उससे मुक्त होकर सच्चे ईश्वरीय प्रेम रंग में रंग गयी हूँ... और सबको सहयोग का हाथ देकर खुशियो में झूम रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की दुनिया में बुद्धि को फंसाकर मलिनता से भर चले... और कुमत ने कालिमा से रंग दिया है... अब *प्यारे बाबा ने श्रीमत से बुद्धि को सुनहरा सा सजाया है,* सच्चे सतयुगी सुखो का आधार बनाया है... तो इस बुद्धि से हर दिल आत्मा को सहयोग दो... आप समान प्यारा जीवन बनाने में सबकी दिल जान से मदद करो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दुखो को सह सह कर पत्थर हो गयी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे पारस सा चमकाया है *मेरी बुद्धि को दिव्यता से सजाकर मुझे देवताओ सा खुबसूरत बनाया है.*.. मै आत्मा हर दिल को दिव्य रास्ता दिखाकर सच्चा सुख पहुंचा रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-   मैं आत्मा स्मृति स्वरुप  हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एकांत में बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इस देह से अपना ध्यान हटाकर *एकाग्रता से अपने आत्म स्वरूप को देखती हूँ...* इस देह की दुनिया, देह के सम्बन्ध, देह की वस्तुओं, परिस्थितियों को समेटते हुए... अपने भृकुटी सिंहासन पर बैठ जाती हूँ... सभी हलचल के संकल्पों के विस्तार को भी समेटते हुए प्यारे बाबा के दिए ज्ञान का चिंतन करती हूँ...      

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा ने सृष्टी के *आदि, मध्य, अंत का ज्ञान देकर मुझ आत्मा के दिव्य चक्षुओं* को खोल दिया... त्रिनेत्री बना दिया... मुझ आत्मा को ज्ञान के प्रकाश से भरपूर कर दिया... मैं आत्मा प्रकाश का शरीर धारण कर ज्ञान के प्रकाश मार्ग में सैर करने निकल जाती हूँ... मैं आत्मा उड़ते हुए अपने स्वीट साइलेंस होम पहुँच जाती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा स्वयं को निराकार परमपिता के सामने निराकार ज्योति स्वरुप में देख रही हूँ... मैं आत्मा अपने इस अनादि स्वरुप में चमकते हुए हीरे समान दिख रही हूँ... मुझ आत्मा का ये असली स्वरूप बहुत ही प्यारा है... मैं आत्मा सभी कर्मबंधनो से मुक्त, सभी संकल्पों से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा *डीप साइलेंस की अनुभूति करती जा रही हूँ...* बाबा से सर्व शक्तियों को प्राप्त करती जा रही हूँ...      

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा शांतिधाम से नीचे उतरती जा रही हूँ... मैं आत्मा *अपने आदि स्वरूप सतोप्रधान दैवीय स्वरूप में* स्वयं को देख रही हूँ... सोने, हीरों से जगमगाते हुए भव्य महल, चारों ओर की सतोप्रधान प्रकृति अति शोभनीय दिख रहे हैं... यहाँ मैं आत्मा सम्पूर्ण निर्विकारीसम्पूर्ण पवित्र और देही-अभिमानी अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... यहाँ मैं आत्मा रत्नों से खेलती, रत्नजडित झूलों में झूलती, सुख, समृद्धि और संपन्नता से भरपूर स्वर्ग सुखों को भोग रही हूँ...       

 

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा अपने अनादि-आदि स्वरुप की स्मृति में रहती हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप बन बार-बार सोलकान्सेस स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करती जा रही हूँ... मैं आत्मा आत्मिक स्वरुप में स्थित रह दूसरों को भी आत्मा ही देखने का अभ्यास करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा स्वयं भी संतुष्ट रहती हूँ... और औरों को भी संतुष्ट करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा नालेज की लाइट और माइट द्वारा सोलकान्सेस रहने वाली  *स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल-  महान आत्मा बन साधारणता में महानता का अनुभव करना"* 

 

➳ _ ➳  मैं साधारणता में महानता का अनुभव करने वाली महान आत्मा हूँ... सदा हर्षित रहने वाली आत्मा हूँ... *मुझे कौन मिला है... मैं किसकी हूँ... सदा इसी नशे में रहने वाली आत्मा हूँ*...

 

➳ _ ➳  बाबा ने मुझ आत्मा को संकल्पों में... व्यवहार और रहन सहन में साधारण बना... महान आत्मा बना दिया... *मैं आत्मा बेहद बाप के साथ... बेहद की स्टेज पर... बेहद का पार्ट प्ले करती जा रही हूँ*... मैं आत्मा अपने पार्ट से एक्ट से... सन्तुष्ट बनती जा रही हूँ... 

 

➳ _ ➳  *मुझ आत्मा की वृति, दृष्टि, बोल और चलन सभी सत्य बनता जा रहा है*... बोल और कर्म एक समान होता जा रहा है... मैं सर्व की प्यारी आत्मा बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का चेहरा और चलन... सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराता जा रहा है... 

 

➳ _ ➳  मैं सदा आत्मिक-स्वरूप की स्मृति में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ... *मुझ आत्मा के नयनों में... बिंदु रूप बाप ही समाया हुआ है*... मैं आत्मा व्यक्त भाव से ऊपर...  फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करती जा रही हूँ... कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलकर... मैं आत्मा सम्पन्नता का अनुभव करती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा उड़ती कला का अनुभव करती जा रही हूँ... सर्व बन्धन समाप्त होते जा रहे हैं... *मुझ आत्मा की अंदुरुनी स्थिति बहुत मीठी... रस भरी बनती जा रही है*... माया से दूर... और बाबा के ज्ञान की खुशबु फैलाती जा रही हूँ... बाबा के प्यार में खुद को समाया हुआ अनुभव करती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं सर्व का स्नेह व् सहयोग प्राप्त करती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का रहन-सहन, सम्बन्ध और व्यवहार में...साधारण ही महानता का अनुभव करवाती जा रही है... *मुझ आत्मा की साधारणता ही भविष्य रॉयल फैमिली में आने का अधिकारी होने का अनुभव करा रही है*...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *नॉलेज की लाइट और माइट द्वारा सोल कान्सेस रहने वाले स्मृति स्वरूप होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   नॉलेज की लाइट और माइट द्वारा सोल कान्सेस रहने वाले स्मृति स्वरूप होते हैं क्योंकि...  सही मायने में देखा जाये तो *हमारा अनादि स्वरूप ही निराकार ज्योति स्वरूप आत्मा है और आदि स्वरूपदेव आत्मा है।* दोनों स्वरूप सदा स्मृति में तब रहेंगेजब लाइट - माइट के आधार से सोल कॉन्शियसनेस की स्थिति में रहने के अभ्यासी होंगें।

 

❉   अतः हमें नित्य ही अपनी सोल कॉन्शियसनेस को बढ़ाते जाना है तथा *अपने आदि और अनादि स्वरूप की स्मृति को सदा ही बनाये रखना है।* साथ ही हमें अपने लाइट और माइट स्वरूप की कॉन्शियसनेस को भी बार बार विज्योलाइज़ करना है अर्थात्!  अपने आत्मिक स्वरूप को बारम्बार देखना है।

 

❉   इन सब बातों के लिये- हमें अपनी आत्मा से निकलते हुए प्रकाश को देखना है तथा अपनी आत्मा से निकलती हुई शक्तियों की किरणों को पहचानने की कोशिश करनी है। *हमें अपनी आत्मा से निकलती हुई, प्रकाश की किरणों को निहारना है* व आत्म की शक्ति का अनुभव भी करना है।

 

❉   हमें अपने देव स्वरूप के गुणों व शक्तियों की महिमा को जानना है तथा उस स्वरूप की स्मृति में भी रहना है। अभी हम ब्राह्मण स्वरूप में हैं। *अतः ब्राह्मण बनना अर्थात्!  नॉलेज की लाइट - माइट के स्मृति स्वरूप को बढ़ाना।* जो बच्चे!  अपने ब्राह्मण स्वरूप में अपनी लाइट व माइट की स्मृति को सदा बढ़ाते रहने के पुरुषार्थ में लगे रहते हैंवही स्मृति स्वरूप भी बनते हैं।

 

❉   अतः जो स्मृति स्वरूप हैंवह स्वयं भी संतुष्ट रहते हैं और दूसरों को भी संतुष्ट करते हैं। तभी तो कहा गया है कि.  जो दोनों ही स्वरूपों की, सदा स्मृति में रहते हैं,  *वह ही लाइट - माइट के आधार से सोल कॉन्शियसनेस की स्थिति में रहने के अभ्यासी होते हैं* और स्मृति स्वरूप भी वही कहलाये जाते हैं।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *साधारणता में महानता का अनुभव करना ही महान आत्मा बनना है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   महान आत्मा उसे कहते हैं जिसके हर संकल्प, बोल और कर्म में महानता की झलक स्पष्ट दिखाई दे । और महानता तब आएगी जब व्यर्थ की अविद्या होगी । क्योकि *व्यर्थ के अविद्या स्वरूप ना बनने से कई बार व्यर्थ का जोश सत्यता और यथार्थता के होश को समाप्त कर देता है* । इसलिए जितना व्यर्थ से मुक्त रहेंगे उतना अपने सत्य और यथार्थ स्वरूप की स्मृति में स्थित रह साधारणता में भी महानता का अनुभव करते रहेंगे और महान आत्मा बन जायेंगे ।

 

❉   साधारणता में ही महानता छुपी है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कई बार साधारण सी दिखने वाली चीज भी अपनी स्वच्छता के कारण दूसरों के आकर्षण का केंद्र बन जाती है और ना चाहते हुए भी सब उसकी और खिंचे चले आते हैं । इसी प्रकार *जो सम्बन्ध में, व्यवहार में और रहन - सहन में साधारण रहते हुए भी अपने संकल्प, बोल और कर्म को परमात्म मत पर चल कर श्रेष्ठ बना लेते हैं* । वे साधारणता में भी महानता का अनुभव करने वाली महान आत्मा बन जाते हैं ।

 

❉   साधारणता में महानता का अनुभव करने वाली महान आत्मा वही बनते हैं जो सिम्पल बन अनेकों के आगे सैम्पल बनते हैं । जैसे ब्रह्मा बाप सब बातों में सिम्पल रहते हुए सर्व आत्माओं के आगे सैम्पल बने । *उनके साधारण से प्रतीत होने वाले कर्तव्यों में भी अलौकिकता की ऐसी छाप दिखाई देती थी जो दूसरों को भी आलौकिकता से भरपूर कर देती थी* । ऐसे फॉलो फादर कर जो साधारणता में महानता का अनुभव स्वयं भी करते हैं तथा औरों को भी करवाते हैं वही महान आत्मा कहलाते हैं ।

 

❉   जो सदा इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में रहते हैं कि मैं पूर्वज आत्मा हूँ और सारे विश्व का कल्याण करने के निमित्त हूँ तो उनकी हर एक्ट साधारण होते हुए भी रॉयल्टी से स्वत: भरपूर हो जाती हैं । क्योंकि *वे सदा इस बात को स्मृति में रखते हैं कि जैसे विश्व बेहद का है, बाप बेहद का है, वैसे ही विश्व की बेहद आत्मायें हमारी हर एक्ट को कॉपी करने वाली है* । इसलिए बेहद की स्थिति में स्थित हो कर हर एक्ट को साधारण रीति करते हुए भी उसमे महानता का अनुभव करते हुए वे महान आत्मा बन जाते हैं ।

 

❉   जैसे गाँधी जी दिखने में बिलकुल साधारण थे । किन्तु उनकी साधारणता में भी विशेषता छुपी हुई थी । इसलिए उनके सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाला हर व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नही रहता था । *उनकी साधारणता में छुपी विशेषता ने ही उन्हें राष्ट्र पिता बना दिया* । यह तो हद की बात है किंतु हम ब्राह्मण बच्चे बेहद विश्व पर राज्य करने वाले है इसलिए *साधारण रह कर अपने कर्मो को ऐसा श्रेष्ठ बनाना है* कि साधारणता में भी महानता का अनुभव करने और कराने वाली महान आत्मा बन सकें ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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