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❍ 13 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बुधी को हद और बेहद से पार शांतिधाम में टिकाये रखा ?*
➢➢ *दुखों के बंधन से छोटने के लिए ईश्वरीय समबन्ध में रहे ?*
➢➢ *बेहद की हिस्ट्री जाग्राफी पडी और पढाई ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *अटेंशन की विधि द्वारा माया की छाया से स्वयं को सेफ कर हलचल में अचल स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *संकल्पों में उमंग उत्साह से संकल्पों की सिद्धि को प्राप्त किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *लोकिक लोकलाज के लिए ब्राह्मण कुल की लोकलाज को तो नहीं छोड़ा ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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➳ _ ➳ आज बापदादा रूहानी ड्रिल करा रहे थे। *एक सेकण्ड में संगठित रूप में एक ही वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हैं।* नम्बरवार हरेक इन्डीविजुवल अपने-अपने पुरुषार्थ प्रमाण, महारथी अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल को परविर्तन करते रहते हैं। लेकिन विश्व परिवर्तन में सम्पूर्ण कार्य की समाप्ति में संगठित रूप की एक ही वृति और वायब्रेशन चाहिए। थोडी-सी महान आत्माओं के वा तीव्र पुरुषार्थी महारथी बच्चों की वृत्ति व वायब्रशन्स द्वारा कहीं-कहीं सफलता होती भी रहती है लेकिन *अभी अंत में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की एक ही वृति की अंगुली चाहिए। एक ही संकल्प की अंगुली चाहिए तब ही बेहद का विश्व परिवर्तन होगा।* वर्तमान समय विशेष अभ्यास इसी बात का चाहिए।
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सुख के सम्बन्ध् में जाने के लिए पुराने कर्म बन्धन को खत्म करना"*
➳ _ ➳ मीठे बाबा की कुटिया में बेठ... मै आत्मा बाबा से ख़ुशी में भीगे नयनों से, दिल का हाल बता रही हूँ... मीठे बाबा को बस निहारती ही जा रही हूँ और खुशियो के झूले में झूलती जा रही हूँ... अपने मीठे भाग्य का सिमरन कर.. प्यारे अपने बाबा से पूछ रही हूँ बताओ ना प्यारे बाबा... किस पुण्य ने आपस,े मुझ आत्मा को यूँ मिलवाया और *अनाथ से सनाथो वाला जीवन देकर... ईश्वरीय दौलत* को दिलवाया है...
❉ मीठे बाबा अपनी स्नेहमयी नजरो से मुझ आत्मा को अभिभूत करते हुए बोले :- " मीठे प्यारे फूल बच्चे... दुःख भरे अब बीत चले है *अब सुख भरे दिन आ गए है..*. अब ईश्वरीय यादो में गहरे डूबकर... अपने सारे कर्म बन्धनों से मुक्त होकर... सुख भरे देवताई सम्बन्धो को जीने की तैयारी करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अति आनन्दित होकर ख़ुशी में झूमते हुए बाबा से कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन कितना सुखमय कर दिया है... दुःख भरे कर्म बन्धनों से छूटने की विधि बताकर... *सदा का चैन और आराम दे दिया है.*.. मै आत्मा आपकी यादो में हर बन्धन से छूटती जा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... अब सुख धरा पर चलने की जीजान से तैयारी करो... यादो में डूबकर जल्दी ही सारे हिसाबो को खत्म करो... *बन्धनों से मुक्त होकर, स्वर्ग के मीठे खुशनुमा सम्बन्धो का आनन्द लो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य से पाये भगवान को देख देख मन्त्रमुग्ध हूँ, और कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... किन जनमो के अच्छे कर्मो में मुझ आत्मा को आपकी फूलो वाली गोंद दिलवा कर... मेरा सदा का उद्धार कर दिया है... कभी आपके दर्शन मात्र को प्यासी मै आत्मा... *आज ज्ञान रत्नों से मालामाल होकर, हर बन्धन से छूट रही हूँ.*.."
❉ प्यारे मीठे बाबा मुझ आत्मा को शक्तिशाली किरणों से निरन्तर सींचते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता जो सुखो भरी सौगात लेकर धरती पर आया है... *सब कुछ लेकर अपने नाम कर लो... और पिता की जागीरों पर अपना अधिकार जमा लो.*.. दुःख के बन्धनों से छूट कर सच्चे सुखो के सम्बन्धो में सदा मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा को रोम रोम से धन्यवाद दे रही हूँ और कह रही हूँ :- "प्यारे सिकीलधे बाबा मेरे... कब सोचा था बाबा की *मुझ आत्मा को पढ़ाने और खजानो का मालिक बनाने यूँ भगवान धरा पर आ जायेगा.*.. मुझ पर राजी होकर स्वर्ग की वसीयत को मेरे नाम लिख जायेगा... ऐसे तो ख्वाब भी न संजोये कभी जैसा सुंदर आपने मेरा भाग्य सजाया है..." ऐसी प्यारी प्यारी बाते अपने बाबा को सुनाकर... मै आत्मा अपनी सृस्टि पर आ गयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दुख के बंधनों से छूटने के लिए ईश्वरीय सम्बन्ध में रहना*"
➳ _ ➳ अपनी आंखें बंद कर ,एकांत में बैठ मुरली में लिखे गीत "आज के इस इंसान को ये क्या हो गया" को सुनते सुनते मैं विचार करती हूं कि *पहले जब सम्बन्धों में स्नेह और मर्यादा थी तो सब कितने खुश, आनन्दित दिखाई देते थे* किंतु आज हर मनुष्य के चेहरे पर केवल निराशा और दुख की झलक ही दिखाई देती है।
➳ _ ➳ यह विचार करते करते एक सीन मेरी आँखों के सामने दिखाई देता है। मैं देख रही हूं जैसे सारी दुनिया एक बहुत बड़ी जेल है। सबके हाथ, पैर जंजीरों से जकड़े हुए है। सब इन जंजीरो से छूटने के लिए छटपटा रहें हैं। कैदी बन अपने ही जीवन को एक बोझ की तरह ढो रहें हैं। ना जाने कितने समय से ऐसा ही जीवन जीते आ रहें हैं। *तभी अचानक बहुत तेज दिव्य प्रकाश के साथ एक ज्योति पुंज प्रकट होता है और उसकी अनंत किरणे चारों तरफ फैल जाती है*। उन किरणों की शक्ति से एक एक करके सबके हाथों, पैरों में बंधी बेड़ियां टूटने लगती हैं। जेल की सलाखें एक एक करके गिरने लगती हैं। सभी आजाद हो कर खुशी से नाचने लगते हैं, गाने लगते हैं।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखते देखते जैसे ही अपनी चेतनता में लौटती हूं। उस देखे हुए दृश्य के बारे में विचार करती हूं कि आज वास्तव में सबका जीवन एक जेल की तरह ही तो बन गया है। इस *माया की नगरी, दुख धाम में देह और देह से जुड़े जो भी सम्बन्ध है वो सब जंजीरे ही तो हैं जिसमे सब जकड़े हुए हैं और सब दुखी हैं*। क्योंकि वो सभी सम्बन्ध माया रावण की आसुरी मत पर चल कर किये हुए विकर्मों के हिसाब किताब को चकुतू करने के लिए बने हैं। इसलिए ये सम्बन्ध नही बन्धन है और बन्धन में सदैव दुख की ही अनुभूति होती है।
➳ _ ➳ इन दुख के बंधनों को सुख के सम्बंध में अगर कोई बदल सकता है तो वो केवल ज्योतिपुंज, परमपिता परमात्मा ही तो है। और वही निराकार, महाज्योति परमपिता परमात्मा सबको दुख के बंधनों से छुड़ा कर सुख के सम्बंध में ले जाने के लिए इस धरा पर आए हुए हैं। *कितनी पदमापदमा सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो दुख के बंधनों से निकल, ईश्वरीय सम्बन्ध में रहने का सौभाग्य मुझे मिला है*। मेरे मीठे शिव बाबा, मेरे परम पिता परमात्मा स्वयं हर सम्बन्ध का सुख मुझे प्रदान कर इन झूठे देह के बंधनों से मुझे मुक्त करा रहे हैं।
➳ _ ➳ यह विचार आते ही मन मे अपने मीठे बाबा से मिलने की इच्छा जागृत हो उठती है और मैं निराकार ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निराकार शिव पिता से मिलने पहुंच जाती हूँ अपने निराकारी स्वीट साइलेन्स होम में। *अब मैं अपने शिव पिता के सम्मुख बैठ उनकी अनन्त शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं*। उनका असीम प्यार और दुलार उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप मे निरन्तर मुझ पर बरस रहा है जो मुझे गहन तृप्ति का अनुभव करवा रहा हैं। अब किसी भी देहधारी के झूठे प्यार की मुझे कोई आवश्यकता नही। *सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार मेरे मीठे शिव बाबा से मुझे निरन्तर प्राप्त हो रहा है*।
➳ _ ➳ ईश्वरीय सम्बन्धों का सच्चा सुख प्राप्त कर अब मैं आत्मा साकारी दुनिया मे वापिस लौट रही हूं। अपनी साकारी देह में प्रवेश कर, देह में रहते भी, ईश्वरीय सम्बन्ध का अनुभव अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है। *ईश्वरीय याद में रह योगबल से पुराने कर्मबन्धनों के हिसाब किताब चुकतू हो रहें हैं*। मुक्ति में रहते जीवन मुक्ति का अनुभव करते हुए अब मैं आनन्दमयी बन्धन मुक्त जीवन जी रही हूं।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा अटेन्शन की विधि द्वारा माया की छाया से स्वयं को सेफ रखती हूँ।"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा हलचल में भी अचल रहती हूँ... मुझ आत्मा को पता है... वर्तमान समय प्रकृति की तमोगुणी शक्ति... माया के सूक्ष्म रॉयल समझदारी की शक्ति... अपना कार्य तीव्रगति से कर रही हैं*... मुझ आत्मा ने... प्रकृति के विकराल रूप के साथ-साथ... माया के अति सूक्ष्म स्वरूप को जान लिया... मैं आत्मा माया के इन रूपों से... धोखा नहीं खा सकती... माया मुझ आत्मा के रांग को राइट... अनुभव नहीं करा सकती... मेरी महसूसता की शक्ति को... समाप्त नहीं कर सकती... मुझ आत्मा को... झूठ को सच करने में... होशियार नहीं बना सकती... *क्योंकि मुझ आत्मा को बाबा ने... "अटेन्शन" शब्द को अन्डरलाइन करा... सदा के लिए... माया से सेफ कर दिया है...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हर संकल्प में उमंग उत्साह भर संकल्पों की सिद्धि का अनुभव "*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व शक्तियों से भरपूर हूँ... मैं शिव शक्ति हूँ... मैं सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... *मेरा हर संकल्प शक्तिशाली और कल्याणकारी हैं...* मैं उमंग उत्साह से भरपूर आत्मा हूँ... मेरे हर संकल्प में उमंग उत्साह है... बाबा की पावन दृष्टी मुझ पर पड़ रही है... और मुझ में नई ऊर्जा, जोश का संचार हो रहा हैं... बाबा की पावन दृष्टी से मैं आत्मा दिव्य और पावन बन उड़ रही हूँ... मेरे संकल्प सिद्ध हुए पड़े है... हर संकल्प की सिद्धि का अनुभव कर रही हूँ... *अपने संकल्पों की सिद्धि द्वारा मैं विशेष आत्मा बन गई हूँ... मेरे समर्थ संकल्प इस विश्व के नव निर्माण का कार्य कर रहे है...* मेरे शक्तिशाली संकल्पों से सर्व का कल्याण हो रहा है... मैं कल्याणकारी बाप की सन्तान विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ब्रह्माकुमार-कुमारी बन अगर कोई भी साधारण चलन वा पुरानी चाल चलते हैं तो सिर्फ अकेला अपने को नुकसान नहीं पहुँचाते* - क्योंकि अकेले ब्रह्माकुमार-कुमारी नहीं हो लेकिन ब्राह्मण कुल के भाती हो। स्वयं का नुकसान तो करते ही हैं लेकिन कुल को बदनाम करने का बोझ भी उस आत्मा के ऊपर चढ़ता है। *ब्राह्मण लोक की लाज रखना यह भी हर ब्राह्मण का फर्ज है*। जैसे लौकिक लोकलाज का कितना ध्यान रखते हैं। लौकिक लोकलाज पद्मापद्मपति बनने से भी कहाँ वंचित कर देती है। स्वयं ही अनुभव भी करते हो और कहते भी हो कि चाहते तो बहुत हैं लेकिन लोकलाज को निभाना पड़ता है। ऐसे कहते हो ना? *जो लोकलाज अनेक जन्मों की प्राप्ति से वंचित करने वाली है, वर्तमान हीरे जैसा जन्म कौड़ी समान व्यर्थ बनाने वाली है, यह अच्छी तरह से जानते भी हो फिर भी उस लोकलाज को निभाने में अच्छी तरह ध्यान देते हो*, समय देते हो, एनर्जी लगाते हो। तो क्या इस ब्राह्मण लोकलाज की कोई विशेषता नहीं है!
➳ _ ➳ उस लोक की लाज के पीछे अपना धर्म अर्थात् धारणायें और श्रेष्ठ कर्म याद का, दोनों ही धर्म और कर्म छोड़ देते हो। कभी वृत्ति के परहेज की धारणा अर्थात् धर्म को छोड़ देते हों, कभी शुद्ध दृष्टि के धर्म को छोड़ देते हो। कभी शुद्ध अन्न के धर्म को छोड़ देते हो। फिर *अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए बातें बहुत बनाते हो। क्या कहते - कि करना ही पड़ता है*! थोड़ी सी कमज़ोरी सदा के लिए धर्म और कर्म को छुड़ा देती है। जो धर्म और कर्म को छोड़ देता है उसको लौकिक कुल में भी क्या समझा जाता है? जानते हो ना? *यह किसी साधारण कुल का धर्म और कर्म नहीं है। ब्राह्मण कुल ऊँचे ते ऊँची चोटी वाला कुल है*। तो किस लोक वा किस कुल की लाज रखनी है?
✺ *"ड्रिल :- लौकिक लोकलाज के लिए ब्राह्मण कुल की लोकलाज को नहीं छोड़ना।"*
➳ _ ➳ *देह रूपी थाली में पूजा के पावन दीपक की भाति, मैं आत्मा अपने प्रकाश से आसपास के अज्ञान अंधकार को दूर कर रही हूँ*... मेरी पावनता का प्रकाश आत्माओं की बुझती ज्योति में नवीन ऊर्जा का संचार कर रहा है... *अंधकार से लडना और जीतना मेरे कुल की मर्यादा है और इस पर मुझे पूरा नाज़ है...*
➳ _ ➳ फरिश्ता रूप धारण कर मैं आत्मा, बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में, बापदादा के ठीक सामने... बापदादा के हाथो में फूलों की दो मालाएँ... एक में सुन्दर गुलाब और एक में अक के फूल गुँथे हुए है... साफ अन्तर नजर आ रहा है दोनों में *एक का कुल साधारण है और एक का श्रेष्ठ*... एक खुशबू से रहित है दूसरा खुशबूदार है, कोमल है... मैं हाथ बढाकर गुलाब के फूलों की माला स्वीकार करता हूँ... बापदादा मेरी समझ पर मुस्कुरा रहे हैं...
➳ _ ➳ बापदादा के हाथों में हाथ लिए मैं आत्मा, द्वापर की यात्रा पर... सामने देख रही हूँ भव्य विशाल मन्दिर, मन्दिर के बाहर भक्तों की लम्बी कतार, मगर मन्दिर का दरवाजा बन्द है, क्योंकि दर्शनीय मूरत आत्माएं अभी श्रृंगार में ही लगी है... *कभी लौकिक लोकलाज का श्रृंगार तो कभी देवताई श्रृंगार...* मानो समय की महत्ता और संगम युगी जन्म का महत्व भूल गयी है... लम्बे इन्तजार के बाद भक्तों की निराश होकर लौटती भीड... एक बैचेनी सी पैदा कर रही है मेरे मन में... उनके चेहरों की निराशा देखकर मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... *और बापदादा मेरी पीडा को देखकर आज मुस्कुरा रहे है... मानो आज मुझे मेरे धर्म व धारणाओं का आईना दिखा रहे है...*
➳ _ ➳ मुझे याद आ रहा है कब कब *मुझ आत्मा की ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी बनकर साधारण चाल चलन रही* और कब कब मैने लौकिक कुल की लोक लाज निभाने के लिए ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं से समझौता किया... और *इस हीरे तुल्य जन्म को कौडियों के समान समझा...*
➳ _ ➳ ब्राह्मण कुल की लोकलाज के प्रति अटूट श्रद्धा का भाव मन में लिए मैं आत्मा बापदादा के साथ एक नौका पर सवार हूँ... *मेरे हाथों में लौकिक मर्यादाओं की पोटली है... मैं आत्मा देखते ही देखते फेंक देती हूँ इसे नदी की तेज धाराओं में... और देख रही हूँ अपने से आहिस्ता आहिस्ता दूर जाती हुई... इतनी दूर कि वो पोटली आँखों से पूरी तरह ओझल हो गयी है...*
➳ _ ➳ मुक्ति का तीव्र एहसास... और बापदादा गले से लगा रहे है मुझे... मेरा बापदादा से हाथों में हाथ लेकर वादा- *"अब कोई भक्त मेरे मन्दिर से निराश नही लौटेगा बाबा"... मैं बस ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं को ही जीवन में धारण करूँगी...* अब ये दर्शनीय मूरत श्रृंगार करने में ज्यादा समय नही लगायेगी... गहरे निश्चय और दृढता के साथ मैं फरिश्ता वापस अपने उसी देह रूपी थाली में... इस बार मुझ दीपक की लौ गहरे आत्मविश्वास के साथ जगमगा रही है... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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