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 21 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *दिल की प्रीत एक बाप से लगाई ?*

 

➢➢ *इस दुनिया को बुधी से भूलने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *"मेरा तो एक बाबा... दूसरा न कोई" - यह पाठ पक्का किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *हर समय, हर संकल्प, हर सेकंड को समर्थ बना ज्ञान स्वरुप बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सेवा में सदा जी हाज़िर कर प्यार का सच्चा सबूत दिया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *ब्रह्मा बाप समान निर्माणचित होकर सेवा की ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  सभी सदा प्रवृति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो? *जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे।* तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? *सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना।* जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृति के बन्धन से भी न्यारा रहता है। *निमित मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो लेकिन अभी-अभी ऑर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  जीते जी मरकर, बाप का बन, सच्चा परवाना बनना"*

 

_ ➳  मै चमकती हुई मणि आत्मा प्रकर्ति के खुशनुमा यौवन को निहारती हूँ... और एक ऊँची पहाड़ी पर बेठ, बाबा की यादो में खो जाती हूँ... जब अपने भटकन भरे अतीत की तुलना... में अपने मीठे आज को और *अपने खुबसूरत भविष्य को देखती हूँ... तो मीठे बाबा पर दिल जान से मर मिटती हूँ..*.धड़कनो में मीठे बाबा को पुकारती हूँ... और मेरे प्यार का दीवाना बाबा... मुझे प्यार करनेगले लगाने, वरदानों से सजाने, हथेली पर स्वर्ग उपहार लिए सम्मुख खड़ा है...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को सत्य के प्रकाश में ओजस्वी बनाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सच्चे साथ को पाकर, सत्य ज्ञान से भरपूर होकर देह के आकर्षण से मुक्त हो जाओ... और अशरीरी पन के अभ्यास को बढ़ाकर जीते जी शरीर के भान को छोड़... सच्चे परवाने बन, मीठे बाबा पर फ़िदा हो जाओ... *सच्ची प्रीत के सुख में सदा के लिए खो जाओ.*..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को सच्चे मनमीत रूप में पाकर... सच्चे प्रेम की मीठी यादो में खोकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा खुद को शरीर समझ... विकारो के दलदल में गर्दन तक धँसी मुझ आत्मा... को जो आपने हाथ पकड़ बाहर निकाला है... *इस सच्चे प्यार पर मै आत्मा दिल से कुर्बान हूँ... और आपकी मीठी यादो की दीवानी हूँ.*.."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्ची मुहोब्बत का राज समझाते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे...ईश्वर ही सच्चे प्रेम की अनुभूति करा सकता है... *अपने सत्य स्वरूप के नशे में खोकर ईश्वरीय प्रेम में गहरे डूब जाओ*... और मीठे बाबा के दिल तख्त पर मणि सा सज जाओ... ईश्वरीय यादो में ही स्वर्ग के मीठे सुखो के और शांति प्रेम के भण्डार छुपे है..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा की रोम रोम से उपकारी हूँ और कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा कब सोचा था भला कि झूठ के आकर्षण से मुक्त होकर सच्चे प्यार में यूँ खिलखिलाउंगी... *आपके प्यार की छाया तले यूँ दिव्यता और पवित्रता के रंग में रंगकर.*.. इस कदर प्यारी और खुबसूरत आत्मा हो जाउंगी...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को नश्वर शरीर से अलगाव करा, आत्मानुभूति में डुबोते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... देह की मिटटी और देहभान के मटमैले पन से बाहर निकल कर सत्य के प्रकाश को फैलाओ... जीते जी मीठे बाबा पर बलिहार हो जाओ... *बेहद की शमा पर परवाने सा कुर्बान होकर, सच्ची प्रीत की रीत निभाओ.*.."

 

_ ➳  ईश्वर पिता के असीम प्यार को देख... मै आत्मा छलछला आयी पलको से, मीठे बाबा का दिल से धन्यवाद करते हुए बोली :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मुझ आत्मा के उज्ज्वल भविष्य के खातिर कितने खप रहे हो... *ज्ञान रत्नों से मुझे सजाकर अशरीरी पन के नशे में भिगो रहे हो.*..  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा पर हर साँस और संकल्प से कुर्बान हूँ..." दिल से यूँ मीठे बाबा का शुक्रिया कर... मै आत्मा, अपने कार्य जगत में आ गयी....

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपने जीवन को हीरे तुल्य बनाने के लिए एक बाप पर पूरा - पूरा फिदा होना*"

 

_ ➳  हीरे के समान चमकती मैं मस्तक मणि आत्मा इस देह में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर अपनी दिव्य आभा चारों ओर बिखेर रही हूं। *मैं अजर, अमर, अविनाशी आत्मा शिव पिता की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान हूं*। मेरा वास्तविक स्वरुप तो हीरे के समान अति उज्ज्वल ही है किंतु देह अभिमान में आने के कारण, *विकारों की प्रवेशता ने मेरे इस अति उज्ज्वल रूप को लोहे के समान बना कर उसे मैला कर दिया था* जिसे मेरे दिलाराम दिलरुबा शिव बाबा ने आ कर ज्ञान और योग द्वारा फिर से चमकदार बनाने का सहज उपाय बता दिया।

 

_ ➳  मेरे दिलाराम शिव बाबा अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा हर *रोज ज्ञान और योग रूपी साबुन से मुझ आत्मा की धुलाई कर मेरे मैले हो चुके स्वरूप को फिर से चमकदार बना कर मुझ आत्मा को कौड़ी से हीरे जैसा बना रहे हैं*। मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने वाले ऐसे दिलाराम बाप पर मुझे कितना बलिहार जाना चाहिए, यह विचार करते करते अपने दिलरुबा शिव बाबा से मिलने के लिए मैं आत्मा इस नश्वर देह को छोड़ चल पड़ती हूँ उस रूहानी यात्रा पर जो मुझे मेरे दिलाराम शिव बाबा तक पहुंचाने वाली है।

 

_ ➳  मन मे अपने शिव प्रीतम से मिलने का उमंग उत्साह लिए, ज्ञान और योग के पंख लगाए मैं आत्मा उड़ती जा रही हूं। सूर्य, चांद, सितारों को पार करते हुए उससे परे सूक्ष्म लोक को भी पार करते हुए मैं पहुंच गई आत्माओं की उस निराकारी दुनिया मे जहां मेरे शिव पिया रहते हैं। *अब मैं देख रही हूं अपने सामने अपने दिलरुबा शिव बाबा को जिनकी अनन्त शक्तियों रूपी किरणों से यह निराकारी दुनिया एक दिव्य प्रकाश से प्रकाशित हो रही है*। शांति और शक्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन इस पूरे ब्रह्मांड में सर्वत्र फैले हुए हैं जो मन को असीम शान्ति और शक्ति से भरपूर कर शक्तिशाली बना रहे हैं।

 

_ ➳  गहन शान्ति की अनुभूति करते हुए अपने शिव पिया के सानिध्य में मैं उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर मुझे हीरे के समान चमकदार बना रही है। मेरा स्वरुप अति उज्ज्वल होता जा रहा है। *विकर्मों का बोझ मुझ आत्मा के ऊपर से उतरने लगा हैं और मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करने लगी हूँ। अपने मीठे प्यारे शिव बाबा की लाइट और माइट को स्वयं में समा कर लाइट माइट स्वरूप बन कर अब मैं आत्मा लौट रही हूँ* फिर से उसी कर्मक्षेत्र पर अपना पार्ट बजाने के लिए। अपनी साकारी देह में प्रवेश कर मैं आत्मा फिर से आ कर भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  साकारी तन में विराजमान हो कर, इस कर्मभूमि पर रहते, हर कर्म करते अब मैं आत्मा अपने शिव पिया की शिक्षाओं को जीवन मे धारण कर अपने जीवन को हीरे तुल्य बनाने का दृढ़ संकल्प करती हूं। मेरा *यह दिव्य अलौकिक ब्राह्मण जीवन मेरे दिलाराम शिव बाबा की अमानत है इसलिए मनमत या परमत पर चल कर मुझे इस अमानत में खयानत नही डालनी* बल्कि एक-एक कदम अपने दिलाराम बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर अब मुझे उन पर पूरी तरह बलिहार जाना है। सच्चा परवाना बन शमा पर पूरी तरह फिदा हो जाना है।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करती हुई अपने शिव पिया की श्रेष्ठ मत पर चल अब मै अपने हर कर्म को दिव्य और श्रेष्ठ बना रही हूँ। *शिव बाबा द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में स्वयं को समर्पित कर, ईश्वरीय कार्य मे उनकी मददगार बन उन पर फिदा होने का सच्चा सबूत दे रही हूं*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा संगमयुग पर हर समय, हर संकल्प, हर सेकण्ड को समर्थ बनाती हूँ।"* 

 

 _ ➳  *ज्ञान सागर बाबा से ज्ञान की बरसात में भीगती हुई मैं आत्मा... ज्ञान की एक-एक बूंद को अपने में समा रही हूँ...* इस दिव्य रूहानी ज्ञान की बरसात में मुझ आत्मा से व्यर्थ का सारा मैल धुलकर बाहर निकल गया है... मैं आत्मा ज्ञान सुनने और सुनाने के साथ-साथ ज्ञान को स्वरूप में लाती हूँ... ज्ञान की हर प्वाइंट को साथ-साथ धारण करती जाती हूँ... *ज्ञान स्वरूप बनने के लिए मैं आत्मा इस संगमयुग पर हर संकल्पबोल और कर्म को समर्थ बना रही हूँ...* सबसे पहले संकल्प रूपी बीज को समर्थ बनाती हूँ... क्योंकि संकल्प रूपी बीज समर्थ है तो वाणी, कर्मसम्बन्ध सहज ही समर्थ हो जाता है... *मैं आत्मा सदा श्रेष्ठ और समर्थ संकल्पों के निर्माण में अपने मन-बुद्धि को बिजी रखती हूँ... जिससे व्यर्थ कभी होता ही नहीं है...* सदा ज्ञान स्वरूप बन ज्ञान के प्रकाश को चारों ओर फैलाती रहती हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सेवा को जी हाजिर कर, सच्चे प्यार के सबूत का अनुभव करना"*

 

_ ➳  मैं बापदादा की सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ... संगमयुग के इस सुहावने समय में... *भगवान ने मुझ आत्मा का हाथ थाम लिया*...  मुझ आत्मा को भाग्यशाली बना दिया... वरदानों, शक्तियों और गुणों से भरपूर कर दिया... तो *मुझ आत्मा को भी बाबा का सबूत देने वाला सपूत बच्चा बनना है*... मेरा हर कर्म ऐसा हो जो बाबा को मिसाल देना सहज हो... *बाबा की मीठी-मीठी शिक्षाएं... मुझ आत्मा को सबूत बनने में*... लायक बनने में बहुत मदद करती जा रही हैं... मैं ऐसा पात्र बनती जा रही हूं... जो बाबा किसी भी घड़ी सेवा के निमित्त बना सेवा लें... बाबा का प्यार है ही मुझ आत्मा के लिए... इसका रिटर्न *हर सेवा में जी हाजिर कर*... मैं आत्मा देती जा रही हूँ... *मैं आत्मा परमात्मा द्वारा चुनी लाखों में कोई हूँ*... अपना जीवन बाबा को समर्पण कर... बाबा की कल्प पहले वाली... समय, श्वांस,संकल्प सेवा में सफल कर... *प्यार का सच्चा सबूत दे... खुशी के झूले में झूलने वाली आत्मा हूँ*...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ब्रह्मा बाप को देखा - *ब्रह्मा बाप ने अपने को कितना नीचे किया - इतना निर्मान होकर सेवाधारी बना जो बच्चों के पाँव दबाने के लिए भी तैयार। बच्चे मेरे से आगे हैंबच्चे मेरे से भी अच्छा भाषण कर सकते हैं।* ‘‘पहले मैं'' कभी नहीं कहा। आगे बच्चे, पहले बच्चेबड़े बच्चे कहातो स्वयं को नीचे करना नीचे होना नहीं हैऊँचा जाना है। तो इसको कहा जाता है - ‘सच्चे नम्बरवन योग्य सेवाधारी'। लक्ष्य तो सभी का ऐसा ही है ना!

 

✺   *"ड्रिल :- ब्रह्मा बाप समान निर्माणचित होकर सेवा करना।"*

 

_ ➳  गुलाबी गुलाबी सा मौसम, सर्द ठंडी हवाएं, लम्बे से खजूर के पेड़ पर इठलाती हुई सर्द हवाएँ और गुलाबी समन्दर की अठखेलियां करती हुई लहरे... और उस स्थान पर मैं एक ऊँचे से मिट्टी के पहाड़ पर बैठी हुई हूँ... जहां से मैं ये वातावरण फील करती हूं... चारों तरफ भीनी भीनी मोगरे के फूलों की खुशबू फैल रही है... और जैसे-जैसे यह खुशबू हवाओं में बिखर रही है... यहां का वातावरण एकदम खुशनुमा और शीतलता पूर्वक लग रहा है... और मैं इस अवस्था में परमपिता से योग लगा रही हूं... *हल्की खुली हुई आंखों से मैं अपने आपको आत्मिक रूप में देख रही हूं... और परमपिता से सीधा संपर्क में आने से मेरी आत्मा से अनेक रंग बिरंगी किरणें निकलकर इस वातावरण में फैल रही है...*

 

_ ➳  और कुछ समय बाद मैं अपने आप को खुशबू में परिवर्तन कर उड जाती हूं... और एक ऐसे स्थान पर आ पहुँचती हूं... यहां से मुझे इस दृश्य का एकदम साफ नजारा दिखाई दे रहा है... मैं अपनी खुशबू को बहुत गहराई से अनुभव कर रही हूं... और *अपनी खुशबू को एक ऐसे स्थान पर अनुभव करती हूं... जहां पर एक आश्रम में गुरु अपने शिष्यों को नई शिक्षा दे रहे हैं... जिसमे गुरु आश्रम में स्वयं झाड़ू निकाल रहे हैं और सभी विद्यार्थी खड़े होकर उन्हें देख रहे हैं... मैं अपनी खुशबू से और बाबा से साकाश लेते हुए उस आश्रम में अपनी पवित्र खुशबूनुमा किरणें फैला रही हूं...*

 

_ ➳  मेरी खुशबू जैसे ही गुरूजी के पास जाकर उन्हें छूती है तो उन्हें मेरे वहां होने का आभास होता है... और मेरी भावनाओं को समझते हुए मुझे कहते हैं *कि कई बार हमें दूसरों को उनसे नीचे दिखाना पड़ता है क्योंकि इससे उनकी स्थिति  हमसे ऊपर होती है... और वह अपने आप को और भी तीव्र पुरुषार्थी समझने लगते हैं... और इस आभास से वह आगे बढ़ने का रास्ता सहज ही खोज लेते हैं... इसलिए मैं आज यहां अपने शिष्यों को स्वयं आश्रम के छोटे-छोटे काम करना सिखा रहा हूं... मुझे देखकर उन्हें यह आभास हो रहा है कि ये हमसे ऊंची स्थिति में होने के कारण भी इतना छोटा काम कर रहे हैं... ताकि हमें कुछ सिखा सके... जिससे हम अपने आपको अब और आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे...* 

 

_ ➳  इतना सुनकर मैं वहां से अपनी खुशबू बिखेरते हुए उसी स्थान पर आ जाती हूं... जहां पर गुलाबी गुलाबी मौसम हो रहा है... समुंद्र की गुलाबी लहरें हवाओं से अठखेलियां खेल रही है... मैं अभी खुली हुई आंखों से अपने परमपिता से योग लगा रही हूं और अपनी गुलाबी किरणें इस सुंदर वातावरण में बिखेर रही हूं... *मैं बाबा से आती हुई किरणों को अपने अंदर समाती जा रही हूं... और बाबा से मन ही मन यह कह रही हूं... बाबा आपकी यह अद्भुत दी हुई अनमोल शिक्षाएं मैं अपने अंदर हमेशा के लिए संभाल लूंगी... और अपने चाल चलन और पुरुषार्थ से हमेशा आपका नाम बाला करूंगी... इन संकल्पों से मेरी आंतरिक उर्जा बढ़ती जा रही है... मेरा यह शरीर हवा के जैसा हल्का लग रहा है... और मुझे आभास हो रहा है... मानो मैं स्वयं परमपिता की कोमल गोद में बैठकर उनसे रूह रूहान कर रही हूं...*

 

_ ➳  और मैं अपने सामने एक हवा के समान हल्की स्थिति को अनुभव करते हुए... ब्रह्मा बाबा को अपने सामने ईमर्ज करती हूं... और उनसे दृष्टि लेते हुए मैं अपने आप को पूर्ण रूप से सफेद प्रकाशमयी अवस्था को अनुभव करती हूं... और *मैं हमेशा यह प्रयास करने का संकल्प लेती हूं... कि आज से जो भी आत्माएं मेरे सामने आएंगी मेरे साथ संपर्क में आएंगे उन्हें हमेशा परमात्मा के बच्चे कहकर संबोधित करूंगी... सदा निर्माणचित् अवस्था में स्थित रहूंगी... अपने में इन संस्कारों का निर्माण करूँगी... और इन कुछ संकल्पों के बाद मैं अपने आप को उस गुलाबी वातावरण के अंदर पूरी तरह समा लेती हूं... और परमात्मा की गोद में झूला झूलने लगती हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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