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 29 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *झरमुई झगमुई की व्यर्थ बातें तो नहीं सुनी ?*

 

➢➢ *अपना समय व्यर्थ तो नहीं गंवाया ?*

 

➢➢ *मनसा तूफानो के वश हो कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म तो नहीं किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *स्वयं को विशेष पार्टधारी समझ साधारणता को समाप्त कर परम व श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *अपनी वृत्ति को पावरफुल बना सेवा में वृद्धि को प्राप्त किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *स्वयं को भोग में समर्पण किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  इन कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना। *जब चाहो कर्म में आओ, जब चाहो कर्म से परे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ।* इसको कहा जाता है अभी-अभी न्यारे और अभी-अभी कर्म द्वारा सर्व के प्यारे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर अनुभव होती है ना।  *जिन बातों को दुनिया के मानव मुश्किल कहते वह मुश्किल बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए सहज नहीं लेकिन अति सहज है।* क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो। दुनिया के मानव तो समझते यह कैसे होगा! इसी उलझन में बुद्धि द्वारा, शरीर द्वारा भटकते रहते हैं और आप क्या कहेंगे? कैसे होगा - यह संकल्प भी आ सकता है? कैसे अर्थात क्वेचन मार्क। तो *कैसे के बजाए फिर से यही आवाज निकलता कि ऐसे होता है।* ऐसे अर्थात फुलस्टॉप। क्वेचन मार्क का बदलकर फलस्टॉप लग गया है ना।  कल क्या थे और आज क्या हो! महान अन्तर है ना समझते हो कि महान अन्तर हो गया। *कल कहते थे ओ गाड और आज ओ, के बजाए ओही कहते हो।* ओही मीठे बाबा गाड नहीं लेकिन बाबा दूर से नजदीक में बाप मिल गया।

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपना अमूल्य समय बर्बाद न कर, बाप की याद से आबाद होना"*

➳ _ ➳  अपने महान भाग्य को याद करते हुए... मै आत्मा अपने खुबसूरत ब्राह्मण स्वरूप को निहारती हूँ... कैसे मै आत्मा साधारण मनुष्य से ब्राह्मण दुलारा बन गयी हूँ... फिर दूसरी और अपना ही देवताई स्वरूप देख मन्त्रमुग्ध हूँ... दोनों रूपो को निहारते हुए... शिव पिता की बलिहारी हूँ... *यूँ अपने महान कायाकल्प और मीठे बाबा की याद आते ही..*. फ़रिश्ते रूप को धारण कर अपने मीठे वतन में पहुंचती हूँ... मीठे वतन में शिव पिता की किरणों तले बैठ असीम सुख पाती जा रही हूँ...
 
❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को संगम पर महानता से सजाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जब तक भगवान को नही जाना तब तक समय के मूल्य से भी अनजान रहे... अब ईश्वर पिता के साथ के बहमूल्य पलों में सदा के आबाद हो जाओ... किसी भी व्यर्थ में नही उलझो न ही उलझाओ... और *यादो की माला में पिरो कर सुखो के सरताज बन जाओ.*.."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में समाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... आपने जीवन को कितना कीमती और अमूल्य बना दिया है... अपनी मीठी यादो में डुबोकर मुझे अनोखा बना दिया है... *संकल्पों और याद का जादू सिखाकर मुझे बेशकीमती बना दिया है.*.."
 
❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे सुखो का राज समझाते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के मिलन की घड़ी में समय की भी महत्वपूर्ण भूमिका है... इसलिए इस संगम के समय को व्यर्थ में न गंवाओ... *यादो में रहकर इन लम्हों को सुखो की मणियो सा सजा लो*... मीठे बाबा को हर साँस, हर पल याद करके... सच्चे सुखो के अधिकारी बन जाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर, अनोखे बने अपने जीवन पर, मुस्कराते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... भक्ति में आपको कहाँ कहाँ नही ढूंढा... पर कभी पा न सकी... आपने जब आवाज दी तो मेने सम्मुख भगवान को पाया... इस मीठे भाग्य की महिमा कैसे करूँ... *बलिहारी इस अमूल्य समय की है जिसने मीठा बाबा दिलाकर मुझे सनाथ बना दिया है.*.."

❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को देवताई सुखो का मालिक बनाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... *ईश्वरीय साथ भरे, इन कीमती पलों में सच्चे सुखो की बुनियाद बनाओ*... मीठे बाबा की यादो में इस कदर खो जाओ कि व्यर्थ के समय ही शेष न रहे... हर साँस मीठे बाबा की यादो में आबाद होकर, सुखो का पर्याय बन जाये...
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से जीवन जीने की बारीकियां सीखकर कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... आप के बिना तो जीवन ही व्यर्थ से सा था... लक्ष्यहीन और विकारो से भरा हुआ था... आपने आकर मुझे देवताई सुंदरता से सजाया है... *अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर, मुझे अपनी मीठी प्यारी यादो में महकाया है..*. और खुशियो से आबाद किया है..." अपने बाबा का दिल की गहराइयो से शुक्रिया कर...  मै आत्मा सृस्टि जगत में लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ऊंच पद पाने के लिए अपनी पढ़ाई में तत्पर रहना और एक दो को ज्ञान सुनाकर उनका कल्याण करना*"

➳ _ ➳  जिस भगवान के दर्शन मात्र के लिए दुनिया प्यासी है वो भगवान शिक्षक बन मुझे पढ़ाने के लिए अपना धाम छोड़ कर आते हैं, यह ख्याल मन मे आते ही एक रूहानी नशे से मैं आत्मा भरपूर हो जाती हूँ और खो जाती हूँ उस परम शिक्षक अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में। *उनकी मीठी सुखदायी याद मुझे असीम आनन्द से भरपूर करने लगती है। और ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे परम शिक्षक, मीठे शिव बाबा का प्यार उनकी अनंत शक्तियों की किरणों के रूप में परमधाम से सीधा मुझ आत्मा पर बरसने लगा है*।

➳ _ ➳  इसी गहन आनन्द की अनुभूति में समाई हुई मैं आत्मा अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर, *अपने मोस्ट बिलवेड परम शिक्षक शिव बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हुए घर से चल पड़ती हूँ उस ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर जहां मेरे परम शिक्षक, मेरे मीठे शिव बाबा हर रोज मुझे ऐसी अविनाशी पढ़ाई पढ़ाने आते हैं जिसे पढ़ कर मैं भविष्य विश्व महारानी बनूँगी*। यह विचार मन मे आते ही एक दिव्य आलौकिक नशे से मैं भरपूर हो जाती हूँ और अपने परम शिक्षक की याद में तेज तेज़ कदमों से चलते हुए मैं पहुंच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और क्लासरूम में जा कर अपने परमप्रिय मीठे शिव बाबा की याद में बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳  मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं कैसे शिव बाबा परमधाम से नीचे सूक्ष्म वतन में पहुंच कर अपने रथ पर विराजमान हो कर नीचे आ रहे हैं और आ कर सामने संदली पर बैठ गए हैं। *बापदादा के आते ही उनके शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे क्लास रूम में फैलने लगें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे क्लासरूम में एक अलौकिक दिव्य रूहानी मस्ती छा गई है। एक दिव्य आलौकिक वायुमण्डल बन गया है। अपने परम शिक्षक बापदादा की उपस्थिति को क्लास रूम में बैठी हुई सभी ब्राह्मण आत्मायें स्पष्ट महसूस कर रही हूं। *बापदादा से लाइट माइट पा कर ब्राह्मण स्वरूप में स्थित सभी गॉडली स्टूडेंट्स भी जैसे अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो गए हैं*।

➳ _ ➳  मीठे बच्चे कहकर सभी ब्राह्मण बच्चो को सम्बोधित करते हुए शिव बाबा ब्रह्मा मुख से अब मीठे मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं और साथ साथ सभी को अपनी मीठी दृष्टि से निहाल भी कर रहें हैं। *सभी गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण बच्चे आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर, बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से स्वयं को भरपूर करने के साथ साथ बाबा के मधुर महावाक्यों को भी बड़े प्रेम से सुन रहे हैं*। सब अपलक बाबा को निहार रहे हैं। बाबा सभी बच्चों को पढ़ाई पर विशेष अटेंशन खिंचवाते हुए समझा रहे हैं कि ऊंच पद पाने के लिए पढ़ाई में सदा तत्पर रहना और एक दो को ज्ञान सुना कर उनका भी कल्याण करना।

➳ _ ➳  मैं मन ही मन "जी बाबा" कहते हुए बाबा के इस डायरेक्शन को अमल में लाने का दृढ़ संकल्प करती हुई विचार करती हूं कि *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं, जिसे स्वयं भगवान से पढ़ने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य प्राप्त हुआ*। पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ने और एक दो को ज्ञान सुना कर उनका कल्याण करने का होमवर्क दे कर बाबा अपने धाम लौट जाते हैं। बाबा द्वारा मिले इस होमवर्क को पूरा करने के लिए मैं पूरी तन्मयता से अपनी ईश्वरीय पढ़ाई में लग जाती हूँ। *ज्ञान रत्न धारण कर, ज्ञान की शंख ध्वनि द्वारा औरों का कल्याण करने हेतू अब मैं ईश्वरीय विश्वविद्यालय से बाहर आ जाती हूँ*।

➳ _ ➳  चलते चलते रास्ते मे मिलने वाली आत्माओं को अब मैं सत्य ज्ञान सुनाती हुई, *उन्हें परमात्मा का यथार्थ परिचय दे कर परमात्मा से मिलने का रास्ता बताती हुई अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ और कर्मयोगी बन अपने कर्म में लग जाती हूँ*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा स्वयं को विशेष पार्टधारी समझ साधारणता को समाप्त करती हूँ।* 

 

 _ ➳  *साधारणता को असाधारणता में बदलने वाली मैं आत्मा... स्वयं को विशेष हीरो पार्टधारी समझ हर परिस्थिति को पार करती जा रही हूँ...* सृष्टिरूपी रंगमंच पर अपना हीरो पार्ट संगमयुग में बाबा के आशीर्वादों रूपी किरणों से बजाती जा रही हूँ... बाप की याद रूपी योग अग्नि में अपने अलबेलेपन के संस्कारों को भस्म कर रही हूँ... *हर घड़ी अंतिम घडी समझ कर एक-एक क्षण को चित्रकार बन चित्रों में चित्रण करती जा रही हूँ...* संगमयुग पर अपनी ही दैवीय स्वरुप का आह्वान कर रही हूँ... चेहरे और चलन से एक बाप को प्रत्यक्ष करने में मैं आत्मा... मंसा... वाचा... कर्मणा... ऐतिहासिक पार्ट बजा रही हूँ... बापदादा से विजयीभव का वरदानी तिलक लगा कर संगमयुग में हर परिस्थिति को पार करती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वृत्ति को पावरफुल बना सेवा में वृद्धि का अनुभव करना*"

➳ _ ➳ मेरा बाबा प्यार का सागर... स्नेह का सागर... नॉलेजफुल, सर्वशक्तिमान... ने मुझ आत्मा को अपना बना लिया... कितना रहमदिल... सर्व का कल्याण करने वाला मेरा बाबा... *मुझ आत्मा को अपने दिल में छिपा... अपने नयनों में बिठाने वाले मेरे बाबा*... मुझ आत्मा को भी प्यार की मूर्त, स्नेह की मूर्त्त बनाते जा रहे है... *मैं आत्मा हरेक को आत्मिक भाव से व आत्मिक दृष्टि से देख रही हूँ... चमकती मणि को ही देख रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा की वृत्ति में रूहानियत और क्षमा भाव आने लगा है*... जिससे वृत्ति पावरफुल बनती जा रही है... और वातावरण भी लाइट बनता जा रहा है... जिसके सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा... *स्नेह और खुशी का अनुभव करने लगी है*... वृति पावरफुल होने से सेवा में वृद्धि होती जा रही है... *अच्छे वृत्ति के वायब्रेशन... अन्य आत्माओं को मदद कर रहें हैं*... पावरफुल वृत्ति से सेवा स्वतः ही होती जा रही है... वातावरण लाइट और सेवा में मेहनत समाप्त होती जा रही है...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  तीनों ही विशेषता सामने रख स्वयं से पूछो कि मैं कौन-सा ‘त्यागीहूँकहाँ तक पहुँचे हैंकितनी पौड़ियाँ चढ़ करके बाप समान की मंजिल पर पहुँचे हैं? फुल स्टैप तक पहुँचे हो या अभी कुछ स्टैप तक पहुँचे होया अभी कुछ स्टैप रह गये हैंत्याग की भी स्टैप सुनाई ना। तो किस स्टैप तक पहुँचे होसात कोर्स में से कितने कोर्स किये हैंसप्ताह पाठ का लास्ट में भोग पड़ता है - तो बापदादा भी अभी भोग डालेआप लोग तो हर गुरूवार को भोग लगाते हो लेकिन बापदादा तो महाभोग करेंगे ना। जैसे सन्देशियाँ ऊपर वतन में भोग ले जाती हैं - तो बापदादा भी कहाँ ले जायेंगे! *पहले स्वयं को भोग में समर्पण करो। भोग भी बाप के आगे समर्पण करते हो ना। अभी स्वयं को सदा प्रत्यक्ष फलस्वरूप बनाकर समर्पण करो। तब महाभोग होगा। अपने आपको सम्पन्न बनाकर आफर करो।* सिर्फ स्थूल भोग की आफर नहीं करो। सम्पन्न आत्मा बन स्वयं को आफर करो। समझा - बाकी क्या करना है वह समझ में आया?

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को भोग में समर्पण करना।"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने सेंटर पर अपनी प्यारी दीदी से मुरली सुन रही हूं... और मुरली सुनते समय मैं पूरी तरह से दीदी के हर एक शब्द को गहराई से अनुभव कर रही हूं... और मुरली के हर शब्द से मैं एक अलौकिक चित्र बनाकर उसमें भ्रमण कर रही हूं... और अपने परमपिता को कंबाइंड स्थिति मैं फील कर रही हूं... जब मुरली समाप्त होती है... तो मुझे याद आता है... कि आज वीरवार है... और *हमारी दीदी हमारे प्यारे बाबा को अनेक तरह के व्यंजनों का भोग लगाना आरंभ कर रहे हैं... हम सभी क्लास में बैठी आत्माएं योग प्रारंभ करती हैं... तभी मैं अपने आपको मन बुद्धि से अपनी प्यारी दीदी के साथ सूक्ष्म वतन में अनुभव करती हूं...*

 

 _ ➳  और मैं अपने आप को कुछ समय बाद बापदादा के सामने सूक्ष्म वतन में अनुभव करती हूं... मैं देखती हूं कि हमारी दीदी फरिश्ता स्वरूप में बाबा के सामने खड़े हैं... और *मैं भोजन की थाली लेकर उनके पास खड़ी हूं... जैसे जैसे बाबा को भोग लगना प्रारंभ होता है... तो मुझे आभास होता है कि बाबा कह रहे हो कि यह पकवान मुझे कुछ समय के लिए खुश कर सकते हैं... और इसका कुछ ही समय के लिए मैं आनंद ले सकता हूं... मैं कुछ ऐसा भोजन चाहता हूं... जिससे मेरी खुशी अपरम्पार हो जाए...* बाबा की बात सुनकर मैं कुछ सोच में पड़ जाती हूँ... और बापदादा से पूछती हूँ... बाबा आप हमें बताएं कि आपको कैसा भोजन ज्यादा प्रिय होगा? बाबा मुस्कुराते हैं... बाबा मुस्कुराते हुए और मुझे अपनी दृष्टि से निहाल करते हुए इशारे ही इशारों में मुझे समझाने लगते हैं...

 

 _ ➳  और मुझे बाबा की दृष्टि से यह एहसास होता है... कि मानो *बाबा मुझे कह रहे हो कि जब मेरे बच्चे अपने तीव्र पुरुषार्थ से और श्रीमत का पालन करते हुए... जो अभी कच्चे फल की भांति है... अपनी उस अवस्था को परिपक्व करते हुए... अपने आपको मेरे पास उपस्थित करेंगे... तो मैं उन्हें पके हुए फल की भांति स्वीकार करके अपनी इस भूख से तृप्त हो जाऊंगा... और बच्चों के इस परिपक्व भाव के कारण वह हमेशा मेरे दिल के पास रहेंगे...* और बाबा इसका मुझे आभास बहुत गहराई से कराने लगते हैं... मैं भी उनकी शक्तिशाली किरणों द्वारा दृष्टि द्वारा अपने अंदर यह अनुभव करती हूं... कि मैं जो अभी पुरुषार्थ कर रही हूं उसको आगे बढ़ाते हुए पके हुए फल की भांति परिपक्व स्थिति में आने का पूर्ण पुरुषार्थ करूंगी... और अपने इसी संकल्प को लेते हुए मैं दीदी के साथ वहां पर फरिश्ता स्वरुप में नीचे आ जाती हूं...

 

 _ ➳  जब मैं अपने आप को फिर से स्थूल वतन में सेंटर पर अपने इस शरीर में अनुभव करती हूं... और मुझे यहां आकर तो बापदादा की कही हर बात याद आती है... और मैं मन ही मन बापदादा से और अपने से वादा कर लेती हूं... और मैं सेंटर से मुरली सुनकर परमात्मा की याद में अपने आपको अनुभव करते हुए... वापस अपने इस लौकिक परिवार में आ जाती हूं... जब मैं रास्ते से गुजर कर अपने इस गृहस्थ आश्रम में आगमन करती हूं... *मैं ये संकल्प करती हूँ की उन सभी पुराने संस्कारों को रोज अपने बाबा को अर्पण करती चलूंगी... और साथ ही साथ स्वयं को पूर्ण रुप से पुरुषार्थ की परिपक्व अवस्था में... पके हुए फल की भांति बापदादा को अर्पण कर दूंगी... अपने इस संकल्प से मैं अपनी स्थिति को महान बनाते हुए... बाबा की याद में हर कर्म करना प्रारंभ कर देती हूँ...* इस दुनिया में रहते हुए... मैं स्वयं को परमात्मा की याद में समाने का अभ्यास करती चली जाती हूँ... 

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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