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❍ 22 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *ज्ञान धन में साहूकार बन बाप का नाम बाला करने की सेवा की ?*
➢➢ *"मेरे मेरे" में जो ममत्व है, उसे छोड़ने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *लोकिक वर्से का नशा तो नहीं रखा ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *काम महाशत्रु के साथ उसके सर्व साथियों को भी विदाई देने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *माया की अधीनता से स्वतंत्र रह संगम युग की मौज का अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *स्वयं भी विघन विनाशक बने और दूसरों को भी विघन विनाशक बनाने अर्थ निमित बने ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - यह पढ़ाई बहुत ऊँची है, इसमे माया रावण ही विघ्न डालता है, उससे अपनी सम्भाल करो"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... मीठा बाबा धरती पर उतरकर शिक्षक बनकर पढ़ा रहा... *विकारो के काँटों से निकाल दिव्यता का फूल* बनाकर सुनहरे सुखो में खिला रहा है... तो इस बहुमूल्य पढ़ाई में माया रावण के हर विघ्नो से सावधान होकर... सच्चे स्टूडेंट बनकर अपना हर पल ख्याल रखो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से ज्ञान रत्नों को पाकर देवताओ सी धनवान्,निर्मल और पवित्र बनती जा रही हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझे अपनी मखमली गोद में बिठाया है, और खूबसूरती से सजाया है... *रत्नों से मालामाल बना दिया है*...
❉ मीठा बाबा कहे - यह पढ़ाई असाधारण है जो मनुष्य से देवताओ सा दिव्य सहज ही बना देती है... इस सच्ची खुशियो को दिलाने वाली पढ़ाई के रोम रोम से कद्रदान बनो... माया के हर वार की दूर से ही पहचान शक्तिशाली बनकर हरा दो... *हर साँस, संकल्प में याद और पढ़ाई समायी हो* ऐसा जुनूनी बन चलो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे अमूल्य खजानो को ज्ञान रत्नों को पाने वाली महान भाग्यवान मणि हूँ... कभी सोच भी न था कि... *यूँ भगवान सुध लेगा और मुझे बेठ पढ़ायेगा, निखारेगा.*.. कितना प्यारा मीठा यह भाग्य मीठे दिन ले आया है...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथ के इन कीमती पलो में... यादो से और *ज्ञान रत्नों से बेशुमार दौलत को* बाँहों में भरकर, सदा का खुशियो में मुस्कराओ... यह पढ़ाई ही खुशियो का सच्चा आधार है... इसमे हर साँस को डुबो दो... और विघ्नो से परे रहकर, हर पल इस कीमती पढ़ाई में जुट जाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई से असीम दौलत को पाने वाली जादूगरी को स्वयं में भर चली हूँ... *मै ज्ञान बुलबुल बनकर खुशियो की बगिया में चहक रही हूँ.*.. हर दिल को सच्ची पढ़ाई का गीत सुनाकर माया रावण को रफादफा कर रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं संगम युग की सच्ची ब्राह्मण आत्मा हूँ... *ब्राह्मण आत्मा का निज धर्म पवित्रता* है... मैं आत्मा आदि-अनादिकाल में सम्पूर्ण पवित्र थी... मैं आत्मा पवित्रता के ताज से सदा सुसज्जित रहती थी... मैं ब्राह्मण आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बनने के लिए भूतों को भगाने का पक्का व्रत लेती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा साइन्स की दुनिया, साइन्स के साधनों से उपराम होती हुई... साइलेन्स के विमान में बैठकर साइलेन्स की दुनिया में... पवित्रता के सागर के सम्मुख बैठ जाती हूँ... पवित्रता के सागर की लहरों को स्वयं में महसूस कर रही हूँ... मुझ आत्मा में *पवित्र वाईब्रेशन्स का दिव्य सुगंध* भरता जा रहा है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा में रुहानीयत भरती जा रही है... मुझ आत्मा के जन्मों-जन्मों के काम, क्रोध से भरा विकारों का दुर्गन्ध बाहर निकलता जा रहा है... मुझ आत्मा की *दृष्टि, वृत्ति, वाणी, संकल्पों में पवित्रता की शक्ति* भरती जा रही है... मुझ आत्मा के संकल्प और स्वप्न से भी अपवित्रता का अंश भी मिटता जा रहा है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा में विकारों के सूक्ष्म अंश वंश सहित खत्म होता जा रहा है... अब मैं आत्मा विशेष अटेन्शन रखती हूँ... मैं आत्मा ईर्ष्या, द्वेष, जलन जैसे क्रोध महाभूत के बाल-बच्चों से भी दूर रहती हूँ... मैं आत्मा पवित्रता का फरिश्ता बन चारों ओर वायुमंडल में पवित्रता के वाईब्रेशन्स फैला रही हूँ... अब मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में काम महाशत्रु के साथ उसके सर्व साथियों को भी विदाई देने वाली *सम्पूर्ण पवित्र अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- माया की अधीनता से स्वतन्त्र रह संगमयुग की मौज का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ संगमयुग की पावन वेला हैं... जिस समय हर पल भगवान मेरे साथ हैं... पूरे कल्प का हीरे तुल्य समय जब मुझ भाग्यशाली आत्मा का परमात्मा से मिलन होता हैं... *संगम के हर पल नशे में रह परमात्म स्नेह के झूले में झूलती रहू...* हर पल मौज मनाती रहू... इसके लिए माया की अधीनता से सदा स्वतन्त्र रहना हैं...
➳ _ ➳ मैं माया पर विजय प्राप्त करने वाली विजय रत्न आत्मा हूँ... माया की अधीनता से मुक्त... प्रति पल अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती हूँ... *संगमयुग हैं ही मौज मनाने का समय... जब सर्वशक्तिमान परमात्मा मेरे साथ हैं...* तो माया का अंश मात्र भी मुझे नहीं छू सकता...
➳ _ ➳ प्रभु प्यार की मस्ती में खोई हुई... मैं आत्मा मायाजीत हूँ... हर बन्धन से मुक्त... मैं आत्मा न्यारी और प्यारी हूँ... मैं प्रभु प्रिय आत्मा... मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ... *अपनी सर्व शक्तियों से माया को परास्त कर... सदा परम्आनन्द का अनुभव करती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं सदा खुश रह... चहु ओर ख़ुशी की लहर फ़ैलाने वाली आत्मा हूँ... सदा मौज में रह... उमंग उत्साह में उड़ती हूँ... सर्व में उमंग उत्साह भरती हूँ... हर घड़ी मन का डांस करती... प्रभु पनाहों में पलती हूँ... *बेफिक्र बादशाह बन सर्वशक्तिमान की छत्रछाया में... हर पल उत्सव मनाती हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *ब्राह्मण जीवन में काम महाशत्रु के साथ उसके सर्व साथियों को भी विदाई देने वाले सम्पूर्ण पवित्र होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ ब्राह्मण जीवन है ही निर्विकारी जीवन अर्थात सम्पूर्ण पवित्र जीवन , *केवल अन्न या ब्रह्मचर्य नहीं बल्कि आत्मा के संकल्पो में भी शुद्धि* होनी आवश्यक है तभी ब्राह्मण जीवन सबसे श्रेष्ठ बनता है और ब्रह्मणो की ऊँच चोटी होती है । आत्मा, ब्राह्मण बनने से पहले शूद्र होती है तभी शिवबाबा आते और पवित्रता की प्रतिज्ञा करवाते आत्माओं से जिससे उनके संकल्प बोल कर्म में शुद्धि होना शुरू हो जाता तभी वह सच्चे-सच्चे ब्राह्मण कहलाते है ।
❉ बाबा कहते तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण यानी *स्वयं भगवान ने ब्रह्मा के मुख द्वारा अडॉप्ट किया है और ज्ञान अमृत देकर वह डेली हमको पतित से पावन बनाने की युक्ति बता रहे है* जिससे हमारे पिछले 63जन्म का भी हिसाब किताब चूकतु हो जाए और हम सहज ही वापिस अपने घर परमधाम जा सके... और दुनिया वाले है कुख वंशावली ब्राह्मण जिनका धर्म ब्राह्मण है लेकिन कर्म नही, क्योंकि उन्हें भी यह ज्ञान नही की उनका स्वधर्म कौनसा है और यह तो तभी पता चले जब स्वयं भगवान आके समझाए ।
❉ जब आत्मा अपने स्वधर्म में टिकना शुरू करती है तभी उसको विकारों का भी आभास होता है, जैसे जब तक *आत्मा अपने शांत स्वरूप की अनुभूति ना करे तब तक उसको क्रोध होता क्या है यह समझ ही नही आएगा* , अब चाहे इसमें कोई भी गुण लेलो । जैसे किसी आत्मा ने अगर पहले संतरा खाया हुआ है तो अभी उसको कहे की ऐसा सोचो की तुम संतरा खा रहे हो तो उसको झट संतरा का टेस्ट मुख में आ जाएगा ऐसे ही आत्मा का स्वधर्म है ही (सुख शांति पवित्रता आनंद शक्ति ज्ञान प्रेम) जिससे जैसे ही आत्मा परमात्मा के साथ मिलन मनाएँगी उसको वो टेस्ट आने लगेगा और कार्य व्यवहार में उसको 5विकारों के साथियों का भी पता चलेगा ।
❉ जैसे की मोटे रूप में काम विकार है जिसको बाबा ने कहा अपने ही आत्मा भाई की हत्या किया ये सबसे बड़ा महापाप है फिर उसके साथी आ जाते देह भान की वजह से क्रोध, इरशा, द्वेष, मोह,आदी जिससे आत्मा अपने को ख़ुद श्रापित करता और दोष भगवान या क़िस्मत पर लगा देता क्योंकि ख़ुद के पास हिम्मत नही होती स्वधर्म में टिकने की इसलिए परमात्मा कहते अब मैं आया हुँ *तुम अपने को आत्मा समझ, स्वधर्म में टिको और कर्म करो जिससे ब्राह्मण जीवन में काम महाशत्रु के साथ उसके सर्व साथियों की विदाई दे और सम्पूर्ण पवित्र बन सतयुगी नयी दुनिया के राजा बने ।*
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *संगमयुग की मौज का अनुभव करना है तो माया की अधीनता से स्वतंत्र रहो... क्यों और कैसे* ?
❉ माया भिन्न भिन्न रॉयल रूप धारण कर हम ब्राह्मणों के जीवन में आती है और मैजोरिटी ब्राह्मण बच्चे माया के रॉयल रूप को पहचान नही पाते और माया से हार खा लेते हैं । *इस लिए संगम युग के अलौकिक सुख से वंचित रह जाते हैं* । संगमयुग के इन अलौकिक सुखों का अनुभव करने के लिए जरूरी है माया के वार से स्वयं को बचा कर रखना । जो ब्राह्मण बच्चे निरन्तर बाबा की *याद में और निस्वार्थ सेवा में स्वयं को बिज़ी रखते हैं* वही माया की अधीनता से स्वतंत्र रह कर संगम युग की मौजों का अनुभव कर पाते है ।
❉ शक्तिशाली आत्मा ही संगमयुग के असीम सुखों का अनुभव कर सकती है । और आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए जरूरी है परमात्म याद का बल और निष्काम सेवा भाव । *याद का बल आत्मा को शक्तिशाली बनाता है और निस्वार्थ सेवा की भावना उमंग उत्साह से भरपूर कर देती है* । इसलिए जिनकी मन बुद्धि केवल एक बाप के साथ जुटी रहती है और जो एवररेडी बन निरन्तर सेवा में लगे रहते हैं । वे अपने उत्साह और शक्ति के बल से माया पर जीत प्राप्त कर संगमयुग की मौज का अनुभव करते रहते हैं ।
❉ पूरे कल्प में केवल एक संगमयुग का समय ही ऐसा है जब आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है और *आत्मा परमात्म मिलन के उस परमानन्द का अनुभव करती है जो देवता भी नही कर सकते* । प्रभु पालना और परमात्म प्रप्तियाँ यही संगम युग की मौज है और इस मौज का अनुभव करने में माया बहुत विघ्न डालती है । किंतु जो निरन्तर बाबा की याद रूपी सुरक्षा कवच के अंदर रहते है । माया के तूफान भी उनके लिए तोहफा बन जाते हैं और माया की अधीनता से स्वतंत्र होकर वे परमात्म मौज का अनुभव
सदा करते रहते हैं ।
❉ पूरे 21 जन्मो की श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का समय केवल संगम युग ही है और जो संगम युग की मौज का अनुभव करते हैं वही भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध प्राप्त करते हैं । *जिसे पाने का आधार है श्रेष्ठ मत जो पूरे कल्प में केवल संगम युग पर स्वयं परमात्मा बाप आ कर देते हैं* । और जो परमात्मा बाप की श्रेष्ठ मत को अपने जीवन में धारण कर श्रीमत प्रमाण हर कर्म परम पिता परमात्मा बाप की याद में करते हैं वो सहज ही परमात्म ब्लैसिंग के अधिकारी बन जाते हैं और माया की अधीनता से स्वतंत्र हो कर संगमयुग की मौज का अनुभव करते रहते हैं ।
❉ भक्ति मार्ग मे गाते हैं " जिसका साथी है भगवान, उसको क्या रोकेगा आंधी और तूफान " अर्थात जिसके साथ स्वयं भगवान हैं, उसका रास्ता दुनिया की कोई भी ताकत रोक नही सकती । क्योकि *भगवान स्वयं उनका साथी बन उन्हें माया के हर विघ्न से बचा लेते है* । और परमात्म साथ का यह अनुभव प्राप्त करने का समय केवल संगम युग ही है जब परमात्मा सर्व सम्बन्ध निभाने के लिए साकार में हमारे सम्मुख आते हैं । इसलिए जो परमात्मा को पहचान कर सर्व सम्बन्धों का सुख उनसे लेते हैं वे संगमयुग की मौज का अनुभव करते हुए माया की अधीनता से सदा स्वतन्त्र रहते हैं ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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