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 15 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *इस पुराने शरीर का श्रृंगार तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *वनवाह में एह नए घर में चलने की तैयारी की ?*

 

➢➢ *ज्ञान और योग के बल द्वारा माया की शक्ति पर विजय प्राप्त की ?*

 

➢➢ *कर्म करते कर्म के बन्धनों से मुक्त रह फ़रिश्ता स्थिति का अनुभव किया ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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〰✧  *समय प्रमाण लव और ला का बैलेन्स रखो लेकिन ला में भी लव महसूस हो। इसके लिए आत्मिक प्यार की मूर्त बनो* तब हर समस्या को हल करने में सहयोगी बन सकोगे। *शिक्षा के साथ सहयोग देना ही आत्मिक प्यार की मूर्त बनना है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बापसमान शक्तिशाली आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा स्वयं को शक्तिशाली आत्मा अनुभव करते हो? शक्तिशाली आत्मा का हर संकल्प शक्तिशाली होगा। *हर संकल्प में सेवा समाई हुई हो। हर बोल में बाप की याद समाई हो। हर कर्म में बाप जैसा चरित्र समाया हुआ हो।* तो ऐसी शक्तिशाली आत्मा अपने को अनुभव करते हो?

 

✧  मुख में भी बाप, स्मृति में भी बाप और कर्म में भी बाप के चरित्र - इसको कहा जाता है बाप समान शक्तिशाली। ऐसे हैं? *एक शब्द 'बाबा' लेकिन यह एक ही शब्द जादू का शब्द है। जैसे जादू में स्वरूप परिवर्तन हो जाता वैसे एक बाप शब्द समर्थ स्वरूप बना देता है।*

 

  गुण बदल जाते, कर्म बदल जाते, कर्म बदल जाते, बोल बदल जाते। यह एक शब्द, जादू का शब्द है। तो सभी जादूगर बने हो ना। जादू लगाना आता है ना। *बाबा बोला और बाबा का बनाया, यह है जादू।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आसन ही सिंहासन प्राप्त कराता है।* अब आसन है फिर सिंहासन है। हलचल वाला आसन पर एकाग्र होकर बैठ नहीं सकता। इसलिए कहा *व्यर्थ समाप्त, अशुभ समाप्त* - तो अचल हो जायेंगे और अचल स्थिति के आसन पर सहज और सदा स्थित हो सकेंगे। देखो, आप सबका यादगार यहाँ अचलघर है। अचलघर देखा है ना? यह किसका यादगार है?

 

✧  *आप सबके स्थिति का यादगार यह अचलघर है।* अनुभव करो, ट्रायल करते जाओ, यूज करते जाओ। ऐसे नहीं समझ लेना, हाँ, सर्व शक्तियाँ तो हैं ही। समय पर यूज हो। यूज नहीं करेंगे तो समय पर धोखा मिल सकता है। इसलिए छोटी-मोटी परिस्थिति में यूज करके देखो। परिस्थितियाँ तो आनी ही हैं, आती भी हैं। पहले भी बापदादा ने कहा है कि वर्तमान समय अनुभव करते हुए चलो।

 

✧  हर शक्ति का अनुभव करो, हर गुण का अनुभव करो। *ऐसे अनुभवी मूर्त बनो जो कोई भी आवे तो आपके अनुभव की मदद से उस आत्मा को प्राप्ति हो जाए।* दिन-प्रतिदिन आत्मायें शक्तिहीन हो रही हैं, होती रहेगी। ऐसी आत्माओं को आप अपनी शक्तियों की अनुभूतियों से सहारा बन अनुभव करायेंगे। अच्छा। मालिक है ना तो मालेकम सलाम, बाप कहते हैं - मालिकों को सलाम। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्व आत्माओं को बाप का परिचय देना"*

 

_ ➳  *इस सुहानी संगम के अमृतवेले मेरे प्राण प्यारे बाबा अलौकिक जन्मदिन की बधाई देते हुए मुझे प्यार से जगाते हैं...* मैं आत्मा भी बाबा को जन्मदिन की बधाई देती हूँ... *कितना अनोखा संगम है इस अनोखे संगम युग पर... बाप और बच्चे का जन्मदिन एक ही दिन...* प्यारे बाबा मुझे गोदी में उठाकर वतन में लेकर जाते हैं... जहाँ चारों ओर रंग बिरंगे हीरों से सजे हुए बैलून्स हैं... इन बैलून्स से रंग बिरंगी किरणें निकलकर मुझ आत्मा की चमक और बढ़ा रही है... *प्यारे बाबा मीठी रूह-रिहान करते हुए मुझे ज्ञानामृत पिलाते हैं...*

 

   *सर्व आत्माओं को बाप का परिचय देने सर्विस की भिन्न भिन्न युक्तियाँ बतलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में फूल सा खिलने का जो सुख पाया है उस सुख को दूसरो के दामन में भी सजाओ... *दुखो में तड़फ रहे पुकार रहे हताश और निराश हो चले भाई आत्माओ को सुख और शांति की राह दिखाओ... सच्चे पिता से मिलाकर उनको भी खजानो से भरपूर कर दो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्रभु प्यार की कश्ती में डूबकर अनंत अविनाशी खुशियों से भरपूर होते हुए कहती हूँ:–* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे अथाह खुशियो को पाकर सबको इस खान का मालिक बना रही हूँ... *पूरा विश्व खुशियो से गूंज उठे ऐसी परमात्म लहर फैला रही हूँ... प्यारे बाबा से हर दिल का मिलन करवा रही हूँ... और आप समान भाग्य सजा रही हूँ...”*

 

   *मीठे बाबा खिवैया बन काँटों के समुंदर से फूलों के बगीचे में ले जाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... आप समान सबके दुखो को दूर करो... आनन्द प्रेम शांति से हर मन को भरपूर करो... सबको उजले सत्य स्वरूप के भान का अहसास दिलाओ... *प्यारा बाबा आ गया है यह दस्तक हर दिल पर दे आओ... सब बिछड़े बच्चों को सच्चे पिता से मिलवाओ और दुआओ का खजाना पाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा फ़रिश्ता बन चारों ओर मेरा बाबा आ गयाके ज्ञान फूल बरसाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये प्यार दुलार और ज्ञान रत्नों को हर दिल को बाटने वाली दाता बन गई हूँ... *सबको देह से अलग सच्ची मणि आत्मा के नशे से भर रही हूँ... प्यारे बाबा का परिचय देकर उनके दुखो से मुरझाये चेहरे को सुखो से खिला रही हूँ...”*

 

   *मेरे बाबा कलियुगी अंधकार को दूर कर अखंड ज्योति बन ज्ञान की लौ जलाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सबके जीवन को खुशियो से भर दो... विचार सागर कर नई योजनाये बनाओ... और ईश्वरीय पैगाम हर आत्मा तक पहुँचाओ... *सबकी जनमो की पीड़ा को दूर कर ख़ुशी उल्लास उमंगो से जीवन सजा आओ... पिता धरा पर उतर आया है... पुकारते बच्चों को जरा यह खबर सुना आओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को उमंग उत्साह के पंख दे उड़ाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे पायी अनन्त खुशियो की चमक सबको दिखा रही हूँ... *प्यारा बाबा खुशियो की खान ले आया है खजानो को लुटाने आया है... यह आहट हर दिल पर करती जा रही हूँ...* भर लो अपनी झोलियाँ यह आवाज सबको सुना रही हूँ...

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पुराने शरीर का श्रृंगार नही करना है*"

 

 _ ➳  देह और देह की यह दुनिया अब कब्रिस्तान होनी है और पाँच तत्वों से बने सब के शरीर पाँच तत्वों में ही मिल जाने हैं। इन्ही विचारों में खोई एक पार्क के किनारे बनी पगडंडी पर मैं टहलते हुए जा रही हूँ और पार्क में टहल रहे लोगों की गतिविधियों को भी देखती जा रही हूँ। *शारीरिक सौंदर्य के प्रति जागरूक लोगों को देख मन मे विचार आता है कि कितनी बड़ी गलतफहमी में जी रहें है लोग। जिस शरीर को मिट्टी में मिल जाना है उसके श्रृंगार पर कितना समय व्यर्थ गंवा रहें है और जिस आत्मा को परमात्मा के साथ जाना है उस आत्मा को सजाने और सवांरने का किसी को ख्याल ही नही*।

 

 _ ➳  कितने दुर्भाग्यशाली हैं वो मनुष्य जो इस बात से अनजान है कि स्वयं परमपिता परमात्मा साजन हम आत्मा सजनियो का ज्ञान और गुणों से श्रृंगार कर, हमे अपने साथ ले जाने के लिए इस धरती पर आये हुए है और *कितनी दुर्भाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जो इस सत्यता को जानने के बाद भी देह के आकर्षण से स्वयं को मुक्त नही कर पा रही और पुराने जड़जड़ीभूत शरीर के श्रृंगार पर अपने संगमयुग के अनमोल पलों को व्यर्थ गंवाती जा रही हैं*।

 

 _ ➳  यही सोचते - सोचते एक दृश्य मेरी आँखों के सामने उभर आता है। मैं देख रही हूँ पार्क में जो मनुष्य टहल रहें थे वो सब जैसे लाशों में तबदील हो गए हैं। वो पार्क अब पार्क ना रह कर कब्रिस्तान बन गया है। चारों और लाशों के ढ़ेर और उनसे आ रही दुर्गन्ध। *यह दृश्य मेरे अंदर देह और देह की दुनिया से वैराग्य उतपन्न कर रहा है और इसी वैरागमई स्थिति में इस दृश्य से अपना ध्यान हटाकर मैं अपने वस्तविक स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और खो जाती हूँ अपने अति सुन्दर, मणि के समान चमकते, जगमग करते आकर्षणमयी स्वरूप में*। अपने इस स्वरूप में स्थित होते ही अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे गहन सुकून से भरपूर कर देता है।

 

 _ ➳  यह गहन आनन्द और सुकून की अनुभूति मुझे आभास कराती है जैसे *मेरे ही समान एक चमकता हुआ ज्योति पुंज जो अनन्त प्रकाशमय है, गुणों में सिंधु के समान है मुझे ऊपर अपनी और आकर्षित कर रहा है*। ये मेरे शिव पिता है जो मुझे इस कब्रिस्तान से निकालने के लिए अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणो की हजारों बाहों को फैलाये खड़े हैं। अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे अब मैं आत्मा, मैं चमकती मणि जा रही हूँ अपने शिव पिता के साथ एक खूबसूरत यात्रा पर।

 

 _ ➳  अपना असीम स्नेह लुटाते, अपनी बाहों के झूले में झुलाते मेरे बाबा मुझे अपने साथ एक अति सुंदर, ऐसी निराकारी दुनिया में ले आते हैं जहाँ शान्ति ही शांति है। मन को अशांत करने वाली देह की दुनिया का यहाँ संकल्प मात्र भी नही। *यहाँ पहुँच कर अपनी सर्वशक्तियों की किरणों के बाहों के झूले से मेरे बाबा मुझे नीचे उतार देते हैं और मैं चमकती मणि अब इस शांति की दुनिया की सैर करने चल पड़ती हूँ*। शान्ति की इस अनन्त दुनिया में बहुत देर विचरण करके, भरपूर आनन्द लेकर अब मैं बाबा के पास आ कर बैठ जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।

 

 _ ➳  सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर, इस आनन्दमयी अति सुंदर रूहानी यात्रा और अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने प्यारे बाबा के साथ बिताए मंगल मिलन की अनमोल यादों के अनुभव को सँजोये अब मैं आत्मा वापिस अपना पार्ट बजाने देह की दुनिया में लौट आती हूँ। *किन्तु देह में रहते अब इस पुरानी देह से मेरा ममत्व समाप्त हो गया है*। ये शरीर केवल मेरा रथ है जिसका आधार मुझ आत्मा ने केवल कर्म करने के लिए लिया है इस बात को सदैव स्मृति में रख इस रथ की मैं पूरी सम्भाल करती हूँ किन्तु इसका श्रृंगार नही करती।

 

 _ ➳  *इस रथ पर विराजमान हो कर, अपने प्यारे बाबा की शिक्षायों को अपने जीवन में धारण कर, ज्ञान और गुणों से अपना श्रृंगार कर केवल अपने प्यारे बाबा के समान बनने का ही पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ज्ञान और योग के बल द्वारा माया की शक्ति पर विजय प्राप्त करने वाली मायाजीत, जगतजीत आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं कर्म करते कर्म के बंधनों से मुक्त रहने वाली फरिश्ता आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  होलीहंसों की विशेषता को सभी अच्छी तरह से जानते हो। *'सदा होली हैपी हंस अर्थात् स्वच्छ और साफ दिल'*। ऐसे होलीहंसों की स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण *हर शुभ आशायें सहज पूर्ण होती हैं। सदा तृप्त आत्मा रहते हैं। श्रेष्ठ संकल्प किया और पूर्ण हुआ।* मेहनत नहीं करनी पड़ती। क्यों? बापदादा को सबसे प्रिय, सबसे समीप साफ दिल प्यारे हैं। *साफ दिल सदा बापदादा के दिलतख्त नशीन, सर्व श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होने के कारण वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सरल और स्पष्ट एक समान दिखाई देते हैं।* सरलता की निशानी है - दिल, दिमाग, बोल एक समान। दिल में एक, बोल में और (दूसरा) - यह सरलता की निशानी नहीं है। *सरल स्वभाव वाले सदा निर्माणचित, निरहंकारी, निर-स्वार्थी होते हैं। होलीहंस की विशेषता - सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि।*

 

✺   *ड्रिल :-  "होली हंस की विशेषता- सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि को स्वयं में अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं होली हंस आत्मा हूँ...* ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान गुण और शक्तियों की किरणें निरंतर मुझ आत्मा पर आ रही हैं... और *मेरा जीवन दिव्यता से भरपूर हो रहा है... मेरा मन निर्मल हो रहा है, बुद्धि स्वच्छ बन रही है और संस्कार दिव्य हो रहे हैं...*

 

_ ➳  *मैं होली हंस आत्मा अवगुण रूपी कंकड़-पत्थर को अलग कर गुण रुपी मोती चुगने वाली हूँ...* मैं होली हंस आत्मा *सदा दूसरों के गुणों को देखती हूँ... और गुणों का ही वर्णन करती हूँ...* मुझ होली हंस का दिल स्वच्छ और साफ है... मुझ आत्मा की सभी आशाएं सहज ही पूर्ण हो जाती है... मैं होली हंस आत्मा सदा बापदादा की सबसे प्रिय लाडली बच्ची हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा होली हंस हूँ...  *इसलिए मैं किसी के अवगुणों को नहीं देखती हूँ... अब मेरी अवगुणी दृष्टि, गुणग्राही दृष्टि में परिवर्तन हो रही है...* हर एक के गुणों व विशेषताओं को ही...  देखने का लक्ष्य रखने वाली मैं आत्मा होली हंस हूँ...

 

_ ➳  *मैं होली हंस आत्मा किसी की निंदा, ग्लानि और परचिन्तन कभी नहीं करती...* सदा फॉलो फादर करती हूँ... जैसे ब्रह्मा बाबा जितना नॉलेजफुल थे उतना ही उनका सरल स्वभाव भी था... *मैं होली हंस आत्मा भी सफलतामूर्त बनने के लिए... सरलता और सहनशीलता के गुणों को धारण करती हूँ...*

 

 ➳ _ ➳  स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण मैं होली हंस आत्मा *सदा तृप्त रहती हूँ...* जो भी श्रेष्ठ संकल्प करती हूँ... *स्वतः ही सब पूर्ण हो जाते हैं...* सदा मैं आत्मा *बापदादा के दिलतख्तनशीन* रहती हूँ... *मैं निरहंकारी, निःस्वार्थी व  निर्माण चित्त आत्मा हूँ... मेरा दिल, दिमाग, बोल सब एक समान होते हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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