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❍ 22 / 12 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *माया के तूफानों में मूंझे तो नहीं ?*
➢➢ *याद का चार्ट रखा ?*
➢➢ *अपनी जीवन को हीरे समान वैल्युएबल बना स्मृति और विस्मृति के चक्कर से मुक्त रहे ?*
➢➢ *अपनी कर्मेन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चला सच्चे राजयोगी बनकर रहे ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ जैसे अनेक जन्म अपने देह के स्वरूप की स्मृति नेचुरल रही है, वैसे ही अपने असली स्वरूप की स्मृति का अनुभव होना चाहिए। *इस आत्म - अभिमानी स्थिति से सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के निमित्त बनेंगे। यही स्थिति विजयी माला का दाना बना देगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप समान सर्व गुण सम्पन्न आत्मा हूँ"*
〰✧ जैसे बाप के गुणों का वर्णन करते हो वैसे स्वयं में भी वे सर्व गुण अनुभव करते हो? *जैसे बाप ज्ञान का सागर, सुख का सागर है वैसे ही स्वयं को भी ज्ञान स्वरूप सुख स्वरूप अनुभव करते हो? हर गुण का अनुभव - सिर्फ वर्णन नहीं लेकिन अनुभव।*
〰✧ जब सुख स्वरूप बन जायेंगे तो सुख स्वरूप आत्मा द्वारा सुख की किरणें विश्व में फैलेंगी क्योंकि मास्टर ज्ञान सूर्य हो। *तो जैसे सूर्य की किरणें सारे विश्व में जाती हैं वैसे आप ज्ञान सूर्य के बच्चों का ज्ञान, सुख, आनन्द की किरणें सर्व आत्माओ तक पहुँचेंगी।*
〰✧ जितने ऊँचे स्थान और स्थिति पर होंगे उतना चारों और स्वत: फैलती रहेंगी। तो ऐसे अनुभवी मूर्त हो? *सुनना सुनाना तो बहुत हो गया अभी अनुभव को बढ़ाओ। बोलना अर्थात् स्वरूप बनाना, सुनना अर्थात स्वरूप बनना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आप लोग एक चित्र दिखाते हो ना! साधारण अज्ञानी आत्मा को कितनी रस्सियों से बंधा हुआ दिखाते हो। वह है अज्ञानी आत्मा के लिए लोहे की जंजीरा मोटे-मोटे बंधन हैं। लेकिन *ज्ञानी तू आत्मा बच्चों के बहुत महीन और आकर्षण करने वाले धागे हैं।*
〰✧ *लोहे की जंजीर अभी नहीं है, जो दिखाई देवे बहुत महीन भी है, रॉयल भी है।* पर्सनैलिटी फील करने वाले भी है, लेकिन वह धागे देखने में नहीं आते, अपनी अच्छाई महसूस होती है।
〰✧ अच्छाई है नहीं लेकिन महसूस ऐसे होती है कि हम बहुत अच्छे हैं। हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। तो बापदादा देख रहे थे - *यह जीवन बन्ध के धागे मैजारिटी में हैं।* चाहे एक हो, चाहे आधा हो लेकिन जीवनमुक्त बहुत थोडे देखे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप आये है राजयोग सिखलाकर विश्व का महाराजा महारानी बनाने"*
,
➳ _ ➳ *गुलाबी ठण्ड से अठखेलियाँ करती इन्द्रधनुषी सूरज की किरणों से सजी सुहावनी सुबह में मैं आत्मा पार्क में बैठ योगा कर रही हूँ...* अनुलोम विलोम करती मैं आत्मा सांसो को अन्दर बाहर छोडते हुए एकाग्रता का अनुभव कर रही हूँ... एक एक श्वांस पर ध्यान देती मैं आत्मा धीरे-धीरे इस देह से अलग होती जा रही हूँ... *सांसों के तार तार में प्रभु प्यार को पिरोकर मैं आत्मा अपने प्यारे प्रभु के पास पहुँच जाती हूँ वतन में...*
❉ *दिल में फूलों सा सजाकर अपने दिल का राजा बनाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने फूलो को यूँ कुम्हलाते देख बागबान बाबा को भला कैसे चैन आये... *अपने फूलो की चिंता में आसमानी बागबान धरा पर दौड़ा चला आये... बच्चों को गोद में ले ज्ञान योग से सींच फिर से राजाओ का महाराजा गुलाब सा महकाएँ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा से राजयोग सीखकर नई दुनिया के लिए नई तकदीर बनाकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा संग यादो में रहकर खुशनुमा फूल बन विश्व धरा पर महक रही हूँ... *कभी निराश थकी और दुखी मै आत्मा आज ईश्वर पिता से राजयोग सीख़ कर अपना खोया स्वराज्य फिर से पाकर सदा की मुस्करा उठी हूँ...”*
❉ *ज्ञानयोग से श्रृंगार कर प्यार का सरगम छेड़कर मीठे बाबा कहते हैं:–* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता ज्ञानयोग की जादूगरी से अपने बच्चों को विश्व का मालिक सजाते है... यह अदभुत कार्य सिवाय विश्वपिता के कोई मनुष्यमात्र कर ही न सके...* महान पिता यह महान कार्य कर मनुष्य से देवताई रूप में ढाल स्वर्णिम युग में सजाते है...”
➳ _ ➳ *युगों युगों की जो चाहत थी उस मंजर का दीदार पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै भगवान को पाने वाली और उसके सानिध्य में बैठकर राजयोग सीखने वाली महान आत्मा हूँ... मेरा बाबा अपना धाम छोड़ मेरे उज्ज्वल भविष्य को बना रहा... *मुझे देह के मटमैले आवरण से निकाल सुंदर मणि सा फिर से दमका रहा है...”*
❉ *टूटे दिल के तार जोडकर हर घडी सांसो को यादों का उपहार बनाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वर पिता की यादो में स्वराज्य अधिकारी बन विश्व महाराजन बन जाओ... मीठे बाबा के साये में सारे गुण और शक्तियो को स्वयं में भरपूर कर मुस्कराओ...* सारे खजाने अपने नाम कर मालामाल हो जाओ... खुबसूरत भाग्य को अपनी तकदीर में सजा दो...”
➳ _ ➳ *काँटों के भंवर से निकल अपने साहिल को सामने पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा किस कदर भाग्य की धनी हूँ... भगवान बैठ राजयोग सिखा रहा... मेरे सुखो की चिंता में परमधाम छोड़ धरती पर आ गया है... *अपने प्यार की छाँव देकर सारे विकारो की तपन से महफूज कर पूरे विश्व की राजाई का हुनर सिखा रहा है...”*
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूहानी सेवाधारी बन रूहों को ज्ञान का इंजेक्शन लगाना है*"
➳ _ ➳ सड़क पर पैदल चलते हुए मैं सामने से आ रहे हर मनुष्य की भृकुटि पर विराजमान अपने आत्मा भाई को देखती जा रही हूँ और विचार करती हूँ कि आज हर आत्मा 5 विकारों की बीमारी से पीड़ित है तभी तो सब दुखी और अशांत दिखाई दे रहें हैं। *केवल ज्ञान का इंजेक्शन ही इन बीमार रूहों का उपचार है। सुप्रीम सर्जन शिव पिता द्वारा दिया जा रहा सत्य ज्ञान ही हर रूह को 5 विकारों की बीमारी से मुक्त करने का उपाय है* और अपने शिव पिता के इस रूहानी मिशन में रूहानी सेवाधारी बन रूहों का ज्ञान का इंजेक्शन लगाकर उन्हें इस बीमारी से छुड़ाने का जो कर्तव्य भगवान ने हम बच्चों को दिया है उस कर्तव्य को करना हर ब्राह्मण बच्चे का फर्ज और भगवान के स्नेह का रिटर्न है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के रूहानी हॉस्पिटल का रूहानी सर्जन बन अब मुझे हर मनुष्य आत्मा को ज्ञान का इंजेक्शन लगा कर 5 विकारों की बीमारी से छुड़ाने का ही रूहानी धन्धा हर समय करना है *इन्ही विचारों के साथ अपने शिव पिता का आह्वान कर, उनकी छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अब मैं अपने आस पास से गुजरने वाली हर आत्मा को मनसा साकाश द्वारा परमात्म अवतरण का संदेश देती जा रही हूँ*। चलते - चलते एक पार्क में पहुँच कर वहाँ एकत्रित लोगों के समूह को परमात्म ज्ञान दे कर उन्हें 5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने का उपाय बता कर वापिस अपने सेवा स्थल पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ अपने मन बुद्धि को परमात्म याद में स्थिर करके स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब मैं अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर, नश्वर देह से ममत्व निकाल, स्वयं को उससे बिल्कुल न्यारा करते हुए, उससे बाहर आ जाती हूँ। *देह से न्यारी होकर एक बहुत ही सुन्दर उपराम स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ*। हर बन्धन, हर बोझ से मुक्त यह उपराम स्थिति मुझे धीरे धीरे ऊपर आकाश की और ले कर जा रही है। *एक अदभुत हल्केपन का अनुभव करते हुए मैं चैतन्य ज्योति ऊपर की और उड़ते हुए आकाश को पार कर जाती हूँ*।
➳ _ ➳ आकाश को पार करके, उससे भी बहुत ऊपर सफेद प्रकाश की एक बहुत सुंदर दुनिया मे मैं प्रवेश करती हूँ जहाँ चारों और लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर वाले फ़रिश्ते उड़ते हुए दिखाई दे रहें हैं। *फ़रिश्तों की इस दुनिया को भी मैं आत्मा पार कर जाती हूँ और उससे ऊपर अंतहीन विशाल ब्रह्माण्ड में मैं प्रवेश करती हूँ*। लाल प्रकाश की इस दुनिया में चारों और डायमण्ड के समान चमकती मणियों का आगार मन को बहुत सुंदर अनुभूति करवा रहा है। समस्त ब्रह्माण्ड में फैले शांति के अनन्त वायब्रेशन मुझ आत्मा को गहन शान्ति का अनुभव करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ शान्ति की इस दिव्य अलौकिक दुनिया मे विचरण करते, *स्वयं को गहन शान्ति की शक्ति से भरपूर करते अब मैं ज्ञान, गुण और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँच कर उनकी शीतल किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ और स्वयं को ज्ञान, गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर करने के बाद उस विशाल ब्रह्माण्ड से वापिस लौट कर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया मे आ जाती हूँ*। यहाँ आ कर मैं आत्मा अपना लाइट का सूक्ष्म आकारी शरीर धारण कर लेती हूँ और अपने प्यारे बापदादा से दृष्टि और वरदान लेने के लिए उनके सम्मुख पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपनी लाइट माइट और ज्ञान के अखुट खजानों से बापदादा मुझ फ़रिश्ते को भरपूर कर देते हैं और रूहानी सेवाधारी बन रूहों को ज्ञान का इंजेक्शन लगाने का रूहानी धन्धा करने का फरमान देकर, विजय का तिलक मेरे मस्तक पर लगा कर मुझे विदा करते हैं। *ज्ञान और योग का बल स्वयं में भरकर अब मैं फिर से अपने ओरिजनल ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और फ़रिशतो की दुनिया से नीचे आ कर साकारी मनुष्यों की दुनिया मे लौट कर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर ईश्वरीय सेवा में लग जाती हूँ*।
➳ _ ➳ कभी स्थूल साकार तन द्वारा मुख से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ज्ञान रत्नों का दान देकर तो *कभी सूक्ष्म आकारी फ़रिशता स्वरूप द्वारा मनसा साकाश की सूक्ष्म सेवा करते विश्व की सर्व रूहों को ज्ञान का इंजेक्शन लगा कर उन्हें पाँच विकारों की बीमारी से मुक्त करने का रूहानी धन्धा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपने जीवन को हीरे समान वैल्युएबल बनाने वाली स्मृति और विस्मृति के चक्कर से मुक्त्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी कर्मेंद्रियों को ला और ऑर्डर प्रमाण चलाने वाली सच्ची राजयोगी आत्मा हूँँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा को एक बात पर बच्चों को देख करके मीठी-मीठी हँसी आती है। किस बात पर? चैलेन्ज करते हैं, पर्चा छपाते हैं, भाषण करते हैं, कोर्स कराते हैं। क्या कराते हैं? हम विश्व को परिवर्तन करेंगे। यह तो सभी बोलते हैं ना! या नहीं? सभी बोलते हैं या सिर्फ भाषण करने वाले बोलते हैं? तो *एक तरफ कहते हैं विश्व को परिवर्तन करेंगे,मास्टर सर्वशक्तिवान हैं! और दूसरे तरफ अपने मन को मेरा मन कहते हैं, मालिक हैं मन के और मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। फिर भी कहते हैं मुश्किल है?* तो हंसी नहीं आयेगी! आयेगी ना हंसी! तो *जिस समय सोचते हो, मन नहीं मानता, उस समय अपने ऊपर मुस्कराना।*
➳ _ ➳ मन में कोई भी बात आती है तो बापदादा ने देखा है तीन लकीरें गाई हुई हैं। एक पानी पर लकीर, पानी पर लकीर देखी है, लगाओ लकीर तो उसी समय मिट जायेगी। लगाते तो है ना! तो दूसरी है किसी भी कागज पर, स्लेट पर कहाँ भी लकीर लगाना और *सबसे बड़ी लकीर है पत्थर पर लकीर। पत्थर की लकीर मिटती बहुत मुश्किल है।* तो बापदादा देखते हैं कि कई बार बच्चे अपने ही मन में पत्थर की लकीर के मुआफिक पक्की लकीर लगा देते हैं। जो मिटाते हैं लेकिन मिटती नहीं है। ऐसी लकीर अच्छी है? *कितना वारी प्रतिज्ञा भी करते हैं, अब से नहीं करेंगे। अब से नहीं होगा। लेकिन फिर-फिर परवश हो जाते हैं। इसलिए बापदादा को बच्चों पर घृणा नहीं आती है, रहम आता है। परवश हो जाते हैं। तो परवश पर रहम आता है।*
✺ *ड्रिल :- "अपने मन के मालिक होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्व स्वरूप का गहराई से चिंतन कर रही हूँ... *मैं अति सूक्ष्म जगमगाती, चमकती हुई प्रकाश की मणि हूँ... अपनी रूहानी दिव्य आभा फैलाती हुई, झिलमिल करती हुई मैं ज्योति का सितारा हूँ*... मैं दिव्य बुद्धि के नेत्रों से स्वयं को देख रही हूँ... मेरा औरा चारों ओर बढ़ता जा रहा है... मैं आत्मा चलती हूँ... अपने रूहानी घर की ओर... अपने मीठे प्यारे वतन की ओर... लाल प्रकाश की दुनिया में... यहाँ मैं आत्मा सर्व बंधनों से, सर्व हदों से मुक्त हूँ, स्वतंत्र हूँ...
➳ _ ➳ निर्वाण धाम, शांति धाम की असीम शांति मैं स्वयं में समाती जा रही हूँ... मैं आत्मा के सातों गुणों का स्वरुप बनती जा रही हूँ... निराकारी आत्माओं के झाड़ को मैं निहार रही हूँ... हर एक आत्मा यहां अपने संपूर्ण प्रकाशमय स्वरुप में जगमगा रही है... *झाड़ के बीज में मेरे प्यारे शिव बाबा बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा के बिल्कुल समीप चली जाती हूँ... बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ...*
➳ _ ➳ सर्वशक्तिमान बाबा की शक्तियों रूपी सागर में... मैं आत्मा गहरे, गहरे और गहरे उतरती जा रही हूँ... परमात्म शक्तियां मुझ में समाती जा रही हैं... मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... मैं स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... अपनी रूहानी स्थिति द्वारा समस्त विश्व में रूहानियत की खुशबू फैला रही हूँ... *मैं सर्वशक्तिमान बाबा की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... भृकुटी तख्त पर विराजमान हूँ... मैं आत्मा राजा हूँ... मालिक हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्थूल कर्मेन्द्रियों की, मन-बुद्धि-संस्कारों की मालिक हूँ... मैं आत्मा राजा मन को श्रीमत प्रमाण चला रही हूँ... *मैं आत्मा राजा अपनी शक्तिशाली स्थिति में मन मंत्री को आर्डर करती हूँ... और मन मंत्री मेरे आर्डर को सहर्ष स्वीकार कर रहा है... मेरा मन व्यर्थ और नेगेटिव से मुक्त होकर... समर्थ और श्रेष्ठ संकल्पों की रचना कर रहा है*... मेरे हर संकल्प में मजबूती है, दृढ़ता है... *मैं पत्थर की लकीर के समान अपने संस्कार परिवर्तन के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं शक्तिशाली आत्मा बाबा की शक्तियों के फव्वारे के नीचे हूँ... उनसे शक्तियों की लाल-लाल किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं संपूर्ण दृढ़ता से संस्कार परिवर्तन की रूहानी यात्रा पर आगे बढ़ रही हूँ... *मैं आत्मा राजा अपने श्रेष्ठ, शुभ संकल्पों को दृढ़ संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञा के जल से सींच रही हूँ... उन्हें मजबूती प्रदान कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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