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❍ 19 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *स्वयं भी विघन विनाशक बने और दूसरों को भी विघन विनाशक बनाने अर्थ निमित बने ?*
➢➢ *इस वर्ल्ड ड्रामा में स्वयं के पार्ट को साक्षी होकर देखा ?*
➢➢ *"करना ही है... बनना ही है" - ऐसे दृढ़ संकल्प किये ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *ज्ञान, योग और गुणों की धारणा पर अटेंशन दे स्वयं के रंग, रूप और खुशबू को निखारा ?*
➢➢ *मधुबन की स्मृति से मायाजीत स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"चैतन्य पुष्पो में रंग रूप खुशबु का आधार"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता बागबान के बगीचे में रूहानी पुष्प बन खिले हो... कितना महकता और खूबसूरती से सजा शानदार सा भाग्य है... ज्ञान के सुंदर रंग में रंगे से... याद और दिव्य गुणो का महकता रूप और खुशबु लिए *चैतन्य पुष्प बन मुस्करा रहे हो.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कभी काँटों के जंगल का हिस्सा थी... आज ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल बन खिल रही हूँ... दूर से सबको अपनी रूहानी रंगत रूप और खुशबु से दीवाना बनाकर... *मीठे बाबा बागबान का पता दे रही हूँ.*..
❉ प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... अल्लाह के बगीचे के जो फूल बन खिले हो... तो ज्ञान और योग का प्रेक्टिकल स्वरूप दिव्य गुणो की धारणा भी अपने स्वरूप से छ्लकाओ... *स्वयं प्रकाशित होकर सबके दिलो से अँधेरा दूर कर चलो.*.. विघ्नो से मुक्ति देने वाले विघ्न विनाशक मा ज्ञान सूर्य से दमक उठो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल हूँ.*.. मीठा बाबा इस समय मेरा बागवान है... और योगी जीवन दिव्य गुणो की खुशबु से पूरा विश्व महका कर सुखो की बहार खिला रही हूँ... सबके दिलो की मलिनता और अँधेरा मिटा कर ज्ञान की रौशनी से जगमगा रही हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... तन मन धन से *सच्चे सेवाधारी बन ईश्वर पिता के दिल तख्त पर झूम जाओ.*.. वरदानी संगम युग में 84 जनमो का खूबसूरती से रिकार्ड भरकर... सदा सच्चे सुखो के मालिक बनो... प्राप्ति के समय में सच्ची कमाई के असीम खजानो को... बाँहों में भरकर खुशियो में मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को वरदानी संगम पर खुशियो से सजा रही हूँ... *इतना प्यारा और खुबसूरत समय जो तकदीर ने थमाया है बलिहार हो चली हूँ.*.. हर जन्म की सुन्दरतम कहानी भाग्य की लकीरो में स्वयं बेठ लिखती जा रही हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा मायाजीत, क्रोधमुक्त हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं अविनाशी चैतन्य सितारा इस जड़ शरीर से बाहर निकल परमधाम पहुंच जाती हूँ... प्यारे बाबा प्यार के सागर हैं... प्यारे शिव बाबा की अनंत किरणों के नीचे बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा *असीम प्यार की शीतल छांव में* अपने को महसूस कर रही हूँ... मैं आत्मा प्रेम, शांति की किरणों को अपने अंदर भरती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन के संकल्पों, विकल्पों के बोझ से मुक्त होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का सारा मैल धुलता जा रहा है... मैं आत्मा *परमात्मा के तेज किरणों से पवित्र* बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का जन्मों-जन्मों का क्रोध का विकार खत्म होता जा रहा हैं... प्रेम सागर की किरणों से मुझ आत्मा के क्रोध के संस्कार का सूक्ष्म अंश भी वंश सहित भस्म होता जा रहा है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा क्रोधजीत बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा शांत स्वरूप बनती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने *मास्टर प्यार के सागर के दिव्य स्वरूप* को अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने इस दिव्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... अब मैं आत्मा सदा प्रेम का फरिश्ता बन हर कार्य करती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा *प्रेम, शांति की फरिश्ता* बन चारों ओर सुख, शांति के वायब्रेशन्स फैला रही हूँ... मै आत्मा मा. विश्व कल्याणकारी बन सबको शुभ भावनायें, शुभ कामनाएं देती जा रही हूँ... अब कोई गाली दे या इन्सल्ट करें तो भी मैं आत्मा रोब नहीं दिखाती हूँ... क्रोध नहीं करती हूँ... मैं आत्मा क्रोधमुक्त बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा आत्मिक प्यार से, शांति से बिगड़े हुए काम भी ठीक कर देती हूँ... अब मैं आत्मा निंदा करने वाले को भी मित्र मानती हूँ... मैं आत्मा अपकारी पर भी उपकार करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाली *मायाजीत, क्रोधमुक्त अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी वृत्ति पावरफुल बनाकर अनेक आत्माओं की वृत्ति को योग्य और योगी बनाना"*
➳ _ ➳ भृकुटि के मध्य में चमकती हुई मैं एक चैतन्य ज्योतिपुंज आत्मा हूँ... इस *अशरीरी न्यारेपन की स्थिति का अनुभव कितना प्यारा है...* बाबा का प्यार धड़कनों में इस तरह समाया हुआ है... कि रोम रोम बाबा आपको ही पुकार रहा है... बाबा की याद मुझ आत्मा को बहुत पावरफुल बना रही है...
➳ _ ➳ ईश्वरीय याद से मुझ आत्मा का जीवन हर्षमय बन गया है... सन्तुष्टता... सरलता की धारणा सहज ही हो गयी है... *सभी सम्बन्धों का प्यार एक बाबा से अनुभव करके आनंदनृत्य* करते हुये देह के बंधनों से मुक्त हो गयी हूँ... प्रभु प्राप्ति से सब प्राप्ति हो गयी...
➳ _ ➳ इस *पावरफुल योग* से सारे संकल्प शांत हो गये हैं... बस बाबा हैं और मैं बाबा की स्नेही आत्मा... पाना था जो पा लिया... सदैव हर्षित... अतीन्द्रिय सुख और प्रभु मिलन के आनन्द... *डबल लाइट के उड़न आसन* पर स्थित उड़ने के लिये तैयार हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्नेहयुक्त होकर सदा नाचती हुई... उमंग उत्साह के पंखों से... फरिश्ता समान डबल लाइट... चमकीले स्वरूप में बाबा को साथ लिए यह सफर उड़ते हुए पूरा करती हूँ... *बाबा की श्रीमत* पर चलने से मै आत्मा बाबा की प्यारी हो गयी हूँ... न्यारी हो गयी हूँ...
➳ _ ➳ सदा स्मृति स्वरूप... सदा समर्थ स्वरूप ने हद की हर टेन्शन को खत्म कर अटेन्शन में परिवर्तित कर दिया... *सदा स्मृति स्वरूप... शान्ति... शक्ति स्वरूप* स्थिति में रह निर्बल आत्माओं को बल प्रदान कर रही हूँ... वो आत्माऐं अद्भुत शक्ति को अनुभव कर बाप की तरफ खींचती आ रही हैं... स्वयं के स्वभाव संस्कार में परिवर्तन अनुभव कर रही है...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तियों, गुणों व खजानों से भरपूर होते योग्य तथा योगी बनती जा रही हैं... अनेक आत्माओं की भी समझ में आ रहा है... *यह रुत... यह घड़ी प्रभु मिलन के परम सुखों* को पा लेने की है...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त होते हैं क्योंकि... *ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है*। भल कोई गाली भी दे और इन्सल्ट भी करे लेकिन! फिर भी हमको क्रोध न आये।
❉ क्रोध सब से बड़ा विकार है। क्रोध अक्सर दूसरे की गलती पर आता है और अन्य आत्माओं के द्वारा की गई गलती का परिणाम स्वयं को भोगना पड़ता है क्योंकि *क्रोध एक ऐसी अग्न है जो इंसान को भीतर ही भीतर से जला देती है।* इसमें नुकसान और किसी का नहीं क्रोध करने वाले व्यक्ति का होता है।
❉ इसीलिये कहा गया है कि... यदि हम अपने ब्राह्मण जीवन में सुख का अनुभव करना चाहते हैं तो हमें क्रोध को जीतना होगा। क्रोध भी काम के समान ही एक प्रकार का विकार है, जो कि अति दुखदाई है। *हमें इस क्रोध रुपी रावण पर जीत पहननी है।* हमें काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार रुपी माया रावण को जीतना है।
❉ हमें कभी भी क्रोध नहीं करना है। चाहे कोई कितनी भी बेइज्जती करे। *किसी भी प्रकार से रोब दिखाना भी एक प्रकार का क्रोध ही है।* रोब दिखाना, किसी को धमकाना, ये भी क्रोध का अंश ही है। हमें ऐसा कभी भी नहीं सोचना है कि... क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा।
❉ आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से शान्ति का अनुभव होता है। क्योंकि... *शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है* इसलिये इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझ कर छोड़ देना है और हमें मायाजीत व क्रोधमुक्त बन जाना है।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *अपनी वृति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो अनेक आत्मायें आपकी वृत्ति से योग्य और योगी बन जायें... क्यों और कैसे* ?
❉ जैसे वर्तमान समय ब्रह्मा बाबा अव्यक्त फरिश्ता बन शुद्ध संकल्पो की शक्ति से हम सबकी पालना कर रहें हैं, सेवा की वृद्धि के सहयोगी बन सेवा को आगे बढ़ा रहें हैं । *यह विशेष सेवा शुद्ध संकल्पो की शक्ति से ही चल रही है* । तो ऐसे ब्रह्मा बाप समान इस विशेषता को स्वयं में बढ़ाने के लिए जरूरी है
याद की वृति से वायुमण्डल को पावरफुल बनाने की । क्योकि याद की वृति से निर्मित पावरफुल वायुमण्डल ही संकल्प शक्ति को पावरफुल बनाकर अनेको आत्मायों का कल्याण करेगा तथा उन्हें योगी और योग्य बना देगा ।
❉ जैसे किसी भी झाड़ का मुख्य आधार बीज होता है । अगर बीज शक्तिशाली होता है तो झाड़ भी शक्तिशाली होता है । तो बीज है वृति *और जितना वृति रूपी बीज शक्तिशाली होगा उतना ही ब्राह्मणों का झाड़ भी वृद्धि को पाता जायेगा* । अगर वृति रूपी बीज कमजोर है तो वायुमण्डल में रूहानियत का प्रभाव कम होने के कारण सेवा में वृद्धि नही हो सकेगी । इसलिए सेवा में वृद्धि करने और अनेक आत्माओं को अपनी वृति से योग्य व योगी बनाने के लिए आवश्यक है अपनी वृति को पावरफुल बनाना ।
❉ शक्तिशाली संकल्प, दृष्टि वा वृति की यह निशानी है कि वह शक्तिशाली होने के कारण किसी को भी परिवर्तन कर सकता है । क्योंकि *शक्तिशाली संकल्प श्रेष्ठ सृष्टि की रचना करते हैं , शक्तिशाली वृति से वायु मण्डल परिवर्तन होता है* और शक्तिशाली दृष्टि सर्व आत्माओं को सेकण्ड में अशरीरी आत्मस्वरूप का अनुभव करवा सकती है । इसलिए संकल्प, वृति और दृष्टि जितने पावरफुल होंगे उतना ही अनेक आत्माओं को योगी व योग्य बना सकेंगे ।
❉ स्मृति बनती है संग से और वृति बनती है वातावरण व वायुमण्डल से । जैसे *स्थूल धन कमाने वाले सारा दिन उसी संग में रहते हैं तो संग का प्रभाव स्मृति पर इतना पड़ता है* कि उनको स्वप्न में भी वही स्मृति रहती है । ऐसे ही जब हम भी अमृतवेले से ले कर सारा दिन केवल एक श्रेष्ठ बाप के संग में रहेंगे तो स्मृति और वृति स्वत: ही श्रेष्ठ होगी । जितनी वृति श्रेष्ठ होगी उतना ही वायुमण्डल प्रभाव शाली होगा और जितना वायुमण्डल शक्तिशाली होगा उतना ही अनेको आत्माओं को अपनी वृति से योग्य व योगी बनाते जायेंगे ।
❉ वाणी द्वारा केवल जो सामने है उसका ही परिवर्तन कर सकते हैं लेकिन याद की वृति से वायुमण्डल बना कर जो सेवा की जाती है उस *सेवा द्वारा कितनी भी स्थूल में दूर रहने वाली आत्मा हो उसको सम्मुख का अनुभव करवा सकते हैं* । जैसे साइंस के साधन द्वारा दूर का दृश्य भी समीप अनुभव करते है ऐसे याद की वृति से ऐसा वायुमण्डल निर्मित कर सकेंगे जो दूर रहने वाली आत्माएं भी पास अनुभव करेंगी और हमारी शक्तिशाली वृति उन्हें भी योग्य व योगी बना देगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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