━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 28 / 07 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *सबको रावण की जंजीरों से मुक्त कर जीवनमुक्ति का वर्सा दिलाने की सेवा की ?*
➢➢ *सिर्फ एक बाप से ही सुना ?*
➢➢ *एक दो को सावधान कर बाप की याद दिलाते उन्नति को पाया ?*
────────────────────────
∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *उमंग उत्साह के आधार पर सदा उडती कला का अनुभव किया ?*
➢➢ *दुआएं देने और दुआएं लेने का श्रेष्ठ पुरुषार्थ किया ?*
────────────────────────
∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *प्रवृति के बन्धनों से मुक्त रहे ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
➳ _ ➳ आज आवाज से परे रहने वाले बाप आवाज की दुनिया से परे रहने वाले बाप आवाज की दुनिया में आये हैं सभी बच्चों को आवाज से परे स्थिति में ले जाने लिए क्योंकि *आवाज से परे स्थिति में अति सुख और शान्ति की अनुभूति होती है।* आवाज से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने से सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न स्थिति में अनुभव करते हैं। आज के मानव आवाज से परे सच्ची शान्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करते रहे हैं। कितने साधन अपनाते रहते हैं। लेकिन आप सभी शान्ति के सागर के बच्चे शान्त स्वरूप, मास्टर शान्ति के सागर हो। *सेकण्ड में आवाज में आना और सेकण्ड में आवाज से परे स्वधर्म में स्थित हो जाना - ऐसी प्रैक्टिस है?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- बाप की श्रीमत पर चलकर, दुखो से लिबरेट होना"*
➳ _ ➳
मैं
चमकती हुई मणि आत्मा,
अपने
प्रियतम बाबा से रुहरिहानं करने,
अपनी
सूक्ष्म देह में.... मीठे बाबा के पास कुटिया में पहुंचती हूँ... और कुटिया के
बाहर ही झूले में बेठ जाती हूँ... और भीतर से बाबा मुझे आवाज दे रहे है... *मीठे
बच्चे जल्दी मेरे पास आओ.*.. मै आत्मा झूले का आनन्द लेती हुई मदमस्त हूँ... कि
मेरे प्यार में दीवाने बाबा,
झूले
में ही चले आते है... और अपने वरदानी हाथो से झूले को झुलाते हुए... मुझ
भाग्यवान आत्मा को लोरी के अहसास में भिगोते है... मीठे बाबा को अपनी यादो में
यूँ सताकर... मै आत्मा परम् सुख की अनुभूतियों में डूब जाती हूँ...
❉
मीठे बाबा मुझ आत्मा को श्रीमत के हाथो में सुरक्षित करते हुए बोले :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... सच्चे पिता ने सुखो भरी दुनिया का मालिक बनाकर किस कदर
देवताई ताजो तख्त पर बिठाया था... पर देह के भान में आकर विकारो के चंगुल में
फंस गए हो... *अब श्रीमत के हाथो में अपना हाथ देकर फिर से खुशियो में मुस्कराओ.*.."
➳ _ ➳
मैं
आत्मा अपने मीठे बाबा की दरिया दिली पर मोहित होकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे
बाबा मेरे... जनमो तक मैं आत्मा दुखो में भटकती रही... पर सच्चा सुख नसीब से
कोसो दूर सा था... मीठे बाबा *आपने जीवन में आकर यह जीवन कितना मीठा,
प्यारा कर दिया है.*.. ज्ञान की रौनक से इसे अनोखा बना दिया है...
❉
प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे सुखो का पता देते हुए कहते है :- "मीठे लाडले
बच्चे... मनुष्य मत और मनमत पर चलकर जीवन दुखो के काँटों से भर दिया है... *अब
श्रीमत पर चलकर इसे प्रेम और सुखो की बगिया बनाओ.*.. ईश्वरीय मत ही सच्चे सुखो
का आधार है और दुखो से मुक्ति का साधन है... इसलिए मीठे बाबा की श्रीमत को सदा
दिल से थामे हुए सदा के सुखी हो जाओ..."
➳ _ ➳
मै
आत्मा अपने महान भाग्य को और कभी अपने बागबान पिता को देखती हुई कहती हूँ :- "मीठे
बाबा मेरे जीवन को सुखी बनाने परमधाम छोड़ जमीन पर ठिकाना बना बेठे हो... *निर्बन्धन
भगवान होकर मेरे प्यार में पिता बन बन्ध से गए हो.*.. और श्रीमत की खुबसूरत राहों
पर चलाकर सच्चा सोना बना रहे हो..."
❉
मीठे बाबा मुझ आत्मा को शक्तियो से भरते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे...
अपने खिले हुए फूलो को दुखो की तपिश में कुम्हलाया देख... मै बागबान पिता धरा
पर दौड़ आता हूँ... *अपनी यादो की छाया में बिठाकर फिर से फूलो को खिलाता
हूँ..*. और श्रीमत की खुराक देकर सुखो की मुस्कान से सजाता हूँ..."
➳ _ ➳
मै
आत्मा अपने बागबान पिता को,
दुःख के काँटों से घिरी,
मुझ
आत्मा को फूल बनाते देख कहती हूँ :- "मेरे प्यारे दुलारे बाबा... आपको पाकर मेने
सब कुछ पा लिया है... ज्ञान रत्नों की दौलत ने मेरा दामन गुणो से सजा दिया
है... *ईश्वरीय प्यार में,
मैं
आत्मा दुखो की कालिमा से निकल,
सुख
भरे प्रकाश में आ गयी हूँ.*.." मीठे बाबा को अपने सारे जज्बातों को सुनाकर...
मीठी मुस्कान लेकर,
मै
आत्मा साकार वतन में आ गयी....
────────────────────────
∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- बाप की श्रीमत पर सबको रावण की जंजीरो से मुक्त कर जीवनमुक्ति का वर्सा
दिलाना*"
➳ _ ➳
अपने
मन बुद्धि को सभी बाहरी बातों से डिटैच कर,
मन
मे चल रहे संकल्पो पर ध्यान केंद्रित करते हुए,
धीरे
धीरे उन संकल्पो को नियंत्रित कर,
अपनी
आंखों को हल्के - हल्के बन्द कर मैं एकदम रिलैक्स हो कर बैठ जाती हूँ। इसी
शांतमय स्थिति में कुछ देर बैठे - बैठे अचानक कुछ दृश्य आंखों के सामने उभरने
लगते हैं। *मैं देख रही हूँ बहुत बड़ी सोने की नगरी लंका और इस लंका में एक
वाटिका में कैद माँ सीता जो अपने प्रभु राम को याद करती हुई विलाप कर रही है*।
वही सामने सीता को हासिल करने की अपनी जीत पर अहंकार वश जोर जोर से अट्हास करता
हुआ रावण।
➳ _ ➳
इस
दृश्य को देखते ही मेरी चेतनता जैसे एक दम लौट आती है और मैं इस दृश्य के बारे
में विचार करने लगती हूँ। तभी ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे प्रभु राम,
मेरे
मीठे शिव बाबा फरमान कर रहे है कि जाओ सबको रावण की जंज़ीरों से मुक्त कर
जीवनमुक्ति का वर्सा दिलाओ। *अपने प्रभु राम,
शिव
बाबा की आज्ञा का पालन करने के लिए मैं महावीर हनुमान बन चल पड़ता हूँ इस रावण
राज्य रूपी अशोक वाटिका में कैद सभी मनुष्य आत्माओं रूपी सीताओं को पांच विकारों
रूपी रावण की कैद से छुड़ाये उन्हें उनके प्रभु राम से मिलवाने*।
➳ _ ➳
अपने
प्रभु राम का आह्वान कर,
उनकी
सर्वशक्तियों को स्वयं में भरपूर कर,
बलशाली बन मैं चल पड़ता हूँ उन आत्मा रूपी सीताओं को ढूंढने जो अपने प्रभु राम
से मिलने के लिए तड़प रही हैं। *ऊपर आकाश में मैं फ़रिशता,
महावीर हनुमान बन उड़ता जा रहा हूँ और देख रहा हूँ नीचे भू लोक का करुणामयी नजारा*।
कैसे आत्मायें विकारों की अग्नि में जल रही हैं। हर तरफ भ्रष्टाचार,
पापाचार की अग्नि दधक रही हैं जो सभी को अपनी लपेट में ले रही है। दुखी अशांत
आत्मायें पल भर की शांति के लिए भटक रही हैं। कहीं अकाले मृत्यु,
कहीं
प्रकृति का तांडव,
हर
तरफ दुख,
अशांति,
का
दृश्य दिखाई दे रहा है। *सर्व आत्मायें दुखी हो कर अपने प्रभु राम को पुकार रही
हैं*।
➳ _ ➳
मैं
देख रहा हूँ दुखों से छूटने के लिए परमात्मा को पाने की इच्छा में मनुष्य क्या
क्या नही कर रहे। अपने प्रभु के एक दर्शन पाने के लिए स्वयं को अनेक प्रकार के
दुख दे रहें हैं। *अपने प्यारे प्रभु राम का सन्देश वाहक बन अब मैं अपने
शक्तिशाली संकल्पो द्वारा सभी दुखी अशांत आत्माओं को सुख,
शांति पाने का सत्य रास्ता बता रहा हूँ*। उन्हें इस सत्यता का बोध करवा रहा हूँ
कि उन्हें दुख देने वाला रावण कहीं बाहर नही बल्कि उनके ही भीतर समाये वो
5
विकार है जिन्होंने उन्हें कैद कर रखा है। इन विकारों की कैद से मुक्त कराने और
जीवनमुक्ति अर्थात स्वर्ग में ले जाने के लिए ही उनके प्यारे प्रभु राम आ चुके
हैं। *आओ उनसे आ कर जीवनमुक्ति का वर्सा ले लो*।
➳ _ ➳
इन
शक्तिशाली श्रेष्ठ संकल्पो के साथ - साथ ज्ञान की शक्तिशाली किरणे बाबा से लेकर
मैं उन आत्माओं को दे रहा हूँ। *मुझ से आ रही ज्ञान की शीतल किरणे जैसे जैसे उन
आत्माओं पर पड़ रही हैं उन्हें सूक्ष्म रीति अपने प्रभु राम की छत्रछाया का
एहसास हो रहा है*। उन्हें अनुभव हो रहा है कि उन्हें रावण की जंजीरो से मुक्त
करने के लिए उनके प्रभु राम आ चुके हैं।
➳ _ ➳
अपने
प्रभु राम को पाने का सही रास्ता जानने के लिए अब सभी आत्मायें ब्रह्माकुमारीज़
आश्रमों में जा रही हैं। हर आश्रम पर मनुष्य आत्माओं की भीड़ लगी है।
ब्रह्माकुमारी बहने सभी आत्माओं को परमात्म परिचय दे कर उन्हें मुक्ति
जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बता रही है। *रावण की कैद में फंसी सभी आत्मा रूपी
सीतायें अब उस कैद से छूट कर,
अपने
प्रभु राम से मिलकर,
उनकी
श्रीमत पर चल जीवनमुक्ति के वर्से की अधिकारी बनने के पुरुषार्थ में लग गई
हैं*।
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा उमंग उत्साह के आधार पर सदा उड़ती कला का अनुभव करती हूँ।*
➳ _ ➳ मैं आत्मा उड़ता पंछी बन... उमंग उत्सह के पंखों द्वारा उड़ती कला का अनुभव करती हूँ... *संगमयुग में सिर्फ एक बाप की श्रीमत पर चल... एक एक क्षण को ऐतिहासिक क्षण बनता देख रही हूँ...* हर कार्य... चाहे लौकिक का हो चाहे ऑफिस का हो... चाहे सेवा अर्थ हो बापदादा से पूछ कर ही करती रहती हूँ और *सदा बापदादा को साथ-साथ महसूस कर रही हूँ... न थकान और न ही असफलता का डर...* अलौकिक प्राप्ति के ख़ुशी के झूले में झूलती मैं आत्मा लौकिक कार्य को भी ख़ुशी से परिपूर्ण करती जा रही हूँ... उमंग उत्साह से भरपूर मैं आत्मा औरों को भी भरपूर करती जा रही हूँ... *"चढ़ती कला तेरे भाने सबका भला" बाबा के इन महावाक्यों को परिपूर्ण कर रही हूँ*...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- दुआयें देने और दुआयें लेने के श्रेष्ठ पुरुषार्थ का अनुभव करना*"
➳ _ ➳
मैं
आत्मा पदमा पदम भाग्यशाली हूँ... जो मैं आत्मा ईश्वरीय संतान हूँ... गॉडली
स्टूडेंट हूँ... *मैं बाबा की ऑनेस्ट व ट्रस्टी आत्मा हूँ*... देही अभिमानी
आत्मा हूँ... बाबा द्वारा मिले ज्ञान,
गुणों
और शक्तियों को स्वयं में धारण कर... अमल करके दिखाने वाली आत्मा बनती जा रही
हूँ... *बाबा मुझ आत्मा को अमल करता देख... खुश होते है,*
और
मुझ आत्मा की झोली को दुआओं से भरपूर करते जा रहे है... *मैं आत्मा बाबा की
दुआयें लेने की अधिकारी बनती जा रही हूँ*... बाबा की स्नेह भरी किरणें मुझ आत्मा
से होते हुए... विश्व की कमजोर,
तड़पती हुई आत्माओं में समाती जा रही हूँ... जिससे वह आत्माएँ स्वयं में... *बाबा
के परिचय और बाबा के स्नेह को अनुभव कर... बाबा की बनती जा रही है*... अपने बाप
से मिलकर बाबा के घर से खुश होकर... वह आत्माएँ दिल से... मुझ आत्मा को दुआयें
देती जा रही है... *यह दुआयें मुझ आत्मा के श्रेष्ठ पुरुषार्थ की रफ्तार को
बढ़ाने लगी है*...
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सभी प्रवृत्ति में रहते, प्रवृत्ति के बन्धन से न्यारे और सदा बाप के प्यारे हो? किसी भी प्रवृत्ति के बन्धन में बंधे हुए तो नहीं हो? लोकलाज के बन्धन में, सम्बन्ध में बंधे हुए को बन्धनयुक्त आत्मा कहेंगे। तो कोई भी बन्धन न हो। मन का भी बन्धन नहीं। मन में भी यह संकल्प न आये कि हमारा कोई लौकिक सम्बन्ध है। *लौकिक सम्बन्ध में रहते अलौकिक सम्बन्ध की स्मृति रहे। निमित्त लौकिक सम्बन्ध लेकिन स्मृति में अलौकिक और पारलौकिक सम्बन्ध रहे। सदा कमल आसन पर विराजमान रहो। कभी भी पानी वा कीचड़ की बूँद स्पर्श न करे। कितनी भी आत्माओं के सम्पर्क में आते - सदा न्यारे और प्यारे रहो। सेवा के अर्थ सम्पर्क है। देह का सम्बन्ध नहीं है, सेवा का सम्बन्ध है। प्रवृत्ति में सम्बन्ध के कारण नहीं रहे हो, सेवा के कारण रहे हो। घर नहीं, सेवास्थान है।* सेवास्थान समझने से सदा सेवा की स्मृति रहेगी। अच्छा।
✺ *"ड्रिल :- प्रवृति के बन्धनों से मुक्त रहना।*"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने कमल आसन पर विराजमान होकर अपने मस्तक पर सफेद मणि के समान चमकते हुए प्रकाश को अनुभव करती हूं... *जैसे जैसे मेरे मस्तक पर यह आत्मिक मणी जगमगाती है... वैसे वैसे मैं कमल आसन पर विराजमान आत्मा अपने चारों ओर एक सफेद प्रकाश रूपी औरे को महसूस करती हूं... मैं इस औरे में अपने आप को सुरक्षित अवस्था में अनुभव करती हूं... जैसे जैसे मैं इस अवस्था की गहराई में जाती हूं... वैसे वैसे ही मैं अपने आप को परमात्मा के और करीब महसूस करती हूं...* मैं उन्हें हर समय अपने साथ लेकर चलने का संकल्प करती हूं... और मैं अपने कर्म में आगे बढ़ने लगती हूं...
➳ _ ➳ अब मैं अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती हूं... और हर कर्म में अपने आप को अलौकिक स्थिति में अनुभव करते हुए... और प्रवृत्ति मार्ग में रहते हुए भी मैं अपने आप को बेहद की वृत्ति में अनुभव करने का प्रयास करती हूं... और मैं अब अपने लौकिक परिवार के सभी सदस्यों को देखती हूं... और अनुभव करती हूं... कि यह सभी आत्माएं मेरे परम पिता की संतान हैं... और हम यहां पर परमात्मा द्वारा दिए गए महान कार्य को पूर्ण करने के लिए आए हैं... यह सभी आत्माएं बहुत महान और अलौकिक आत्माएं हैं... यह मेरी पूर्ण सहयोगी आत्माएं हैं... *सभी सदस्यों को मैं बेहद कि वृत्ति में अनुभव करती हूं... और ये अनुभव करती हूं... कि यह सभी आत्माएं शांतिधाम में रहने वाली मेरी प्रिय आत्माएं हैं... इस स्थिति का अनुभव करके मैं अपने आप को हर संबंध रूपी बेडी से आजाद अनुभव करती हूं...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने आपको बेहद की स्मृति में रखते हुए... इस लौकिक परिवार का हर कार्य निमित्त भाव से करती जा रही हूं... *मैं इस हलचल भरी दुनिया में भी अपने आप को शांति स्वरूप अवस्था में अनुभव कर रही हूं... और हर कार्य करते हुए मैं अपने आप को ऐसे व्यक्ति के रूप में अनुभव करती हूं... जैसे एक व्यक्ति फांसी पर लटका हुआ हो... अर्थात मैं अपने मन बुद्धि को परमधाम में प्रभु की याद में स्थित रखती हूं... और अपनी इस देह से सभी कर्म करती जा रही हूं...* मेरे इस स्थिति के कारण मेरे आसपास का वातावरण एकदम शांति से भरा हुआ प्रतीत हो रहा है... और मेरे आस पास रहने वाली सभी आत्माएं शांति की शक्ति का अनुभव कर रही है...
➳ _ ➳ अब मैं इस बेहद की वृत्ति को गहराई से अनुभव करते हुए... अपने आपसे यह वादा करती हूं... *कि अब मैं इस लौकिक जीवन में रहते हुए... अपने आपको सदा सभी लौकिक बंधनों से मुक्त करते हुए... उनके प्रति निमित्त भाव का अनुभव करूंगी... चाहे कैसी भी परिस्थिति हो मैं अपनी इस शांति और बेहद की वृत्ति में रहने वाली स्थिति को हलचल में नहीं आने दूंगी... और इन रिश्ते नातों रूपी बंधनों को अपने पुरुषार्थ की बेड़ी नहीं बनने दूंगी...* और अब मैं अपने आप को उसी कमल आसन पर बैठा हुआ और प्रवृत्ति मार्ग के बंधनों से मुक्त अवस्था का अनुभव करती जा रही हूं... और पुरुषार्थ की गति को और भी तीव्रता से आगे ले जा रही हूं...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━