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❍ 25 / 11 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*5=25)
➢➢ *सदा सच्चे होकर रहे ?*
➢➢ *किसी को भी दुःख तो नहीं दिया ?*
➢➢ *वाचा बहुत फर्स्ट क्लास रखी ?*
➢➢ *कल्याणकारे युग में स्वयं का सर्व का कल्याण किया ?*
➢➢ *न्यारे और प्यारे होकर कर्म करते हुए सेकंड में संकल्पों पर फुल स्टॉप लगाया ?*
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❂ *तपस्वी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ *यदि किसी भी प्रकार का भारीपन अथवा बोझ है तो आत्मिक एक्सरसाइज करो।* अभी - अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाओ, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करो, अभी-अभी निराकारी बन मूलवतनवासी का अनुभव करो, इस एक्सरसाइज से *हल्के हो जायेंगे, भारीपन खत्म हो जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाये ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ यहाँ *बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त करायेगा।* अगर अल्पकाल का अभ्यास है तो प्राप्ति भी अल्पकाल की होगी। तो ये अभ्यास सारे दिन में जब भी चांस मिले करते रहो। एक सेकण्ड में कुछ बिगडता नहीं है। फिर काम करना शुरू कर दो।
〰✧ लेकिन हलचल में फुलस्टॉप लगता है या नहीं - ये चेक करो। कर्म के सम्बन्ध में आना और कर्म के बन्धन में आना इसमें भी फर्क है। अगर कर्म के बन्धन में आते हैं तो कर्म आपको खींचेगा, फुलस्टॉप नहीं लगाने देगा। और *न्यारे-प्यारे होकर किसी कर्म के सम्बन्ध में हो तो सेकण्ड में फुलस्टॉप लगेगा।* क्योंकि बन्धन नहीं है।
〰✧ बन्धन भी खींचता है और सम्बन्ध भी खींचता है लेकिन *न्यारे होकर सम्बन्ध में आना* - यह अण्डरलाइन करना। *इसी अभ्यास वाले ही पास विद ऑनर होंगे।* ये लास्ट कार्मतीत अवस्था है। बिल्कुल न्यारे होकर, अधिकारी होकर कर्म में आयें, बन्धन वश नहीं। तो चेक करो कर्म करते-करते कर्म के बन्धन में तो नहीं आ जाते?
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:- 15)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धियोग से गुप्त रूहानी यात्रा कर कमाई करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में पौधों को पानी देते हुए फूल पर बैठी तितली को देख रही हूँ...* उसके रंग-बिरंगे पंख मन को भा रहे हैं... सुंदर-सुंदर प्यारी तितली एक-एक फूल के कानों में जा धीरे से कुछ कहती है... कलियाँ खुश हो रही हैं... फूल भी मुस्कुरा रहे हैं... तितली रानी इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर फूल-फूल का रस ले रही है... एक जगह ठहरती नहीं, किसी के भी हाथ नहीं आती है... *मैं आत्मा मेरे जीवन में रंग भरकर, सर्व संबंधों का रस पान कराने वाले प्यारे बाबा के पास... रूहानी सैर करने तितली बन उड़ जाती हूँ...*
❉ *प्यारे बाबा मुझे गुप्त रूहानी याद की यात्रा कराते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही सच्ची कमाई है... *इन मीठी यादो में हर साँस संकल्प को पिरो दो... यह मीठी यादे ही सतयुग के सुनहरी सुखो को जीवन में बहार सा खिलाएंगी...* इसलिए हर साँस में ईश्वर पिता को प्यार कर लो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपना बुद्धि योग एक बाबा की याद में डुबोकर प्यार से कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी महकती यादो में एवरहेल्दी बनती जा रही हूँ... *अपार सुखो में, आनन्द के झूलो में झूलने वाली सौभाग्यशाली बन रही हूँ... सच्ची कमाई करने वाली सबसे अमीर हो गई हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा तितली को याद प्यार के रंग बिरंगी पंखों से सजाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इंसानी यादो ने खोखला कर बेवफाई से सिला देकर ठगा है... सच्चे प्रेम और वफादारी का पर्याय... *प्यार के सागर बाबा से बेपनाह मोहब्बत कर लो... इस प्रेम के रंग में रंगकर आत्मा को अनन्त सुख और कमाई से भर कर सदा का मुस्कराओ...* इस यात्रा में कभी रुकना नहीं...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गोपी वल्लभ की सच्ची सच्ची गोपिका बन उसकी यादों में प्रेममय होकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय प्यार को पाकर रोम रोम से पुलकित हूँ... इतना प्यारा बाबा साथी पाकर *मै आत्मा सदा की निश्चिन्त हो गई हूँ... और बाबा की यादो में खजाने लूट रही हूँ...* सच्ची कमाई को पाने वाली खुबसूरत आत्मा बन गयी हूँ...”
❉ *मेरे बाबा अपने स्नेह के शीतल छीटों की फुहारों से मुझे महकाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह गुप्त रूहानी यात्रा ही सच्चे सुखो का आधार है... *ईश्वर पिता की याद से ही अपना खोया ओज और तेज पा कर पुनः विश्व धरा पर चमकेंगे...* अपनी खुबसूरत सतोप्रधान अवस्था को पाकर... अथाह मीठे सुखो से भरे जीवन में खिलखिलायेंगे...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान सिंधु परमात्मा की यादों की लहरों में लहराते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य को देख देख निहाल हूँ... वफ़ा की बून्द की प्यासी आज प्यार का समन्दर बाँहों में लिए मुस्करा रही हूँ... *मीठे बाबा के प्यार में मगन होकर आनन्द के गीत गा रही हूँ...* यादो में मालामाल मैं आत्मा ख़ुशी के गगन में झूम रही हूँ...”
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- वाचा बहुत फर्स्टक्लास रखनी है*"
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी मधुर याद मन मे ऐसी मिठास भर देती है जिसमे देह, देह की दुनिया और दैहिक सम्बन्धों से मिलने वाली कड़वाहट का स्वरूप भी बदल कर मीठा लगने लगता है। *प्यारे मीठे बाबा के मधुर महावाक्य स्मृति में आते ही मन उनके प्रति अगाध प्रेम से ओत - प्रोत हो उठता है*। बाबा का "मीठे बच्चे" कहकर सम्बोधित करना। निरहंकारी बन बच्चों को नमस्ते कह कर याद प्यार देना। श्रेष्ठ स्वमानों की माला बच्चों के गले मे पहना कर उन्हें अपने से भी ऊंचा सम्मान देना। इन सभी बातों को याद करते - करते मैं स्वयं से एक सवाल करती हूँ कि क्या *जिस श्रेष्ठ स्वमान से भगवान हर रोज मीठे बच्चे कहकर मुझे सम्बोधित करते हैं क्या वो मिठास मेरे अंदर आ गई! क्या मेरी वाचा इतनी फर्स्टक्लास बन गई! क्या मेरे बोल दूसरों को सुख देने वाले बन गये!*
➳ _ ➳ स्वयं को चेक करके, बाप समान अति मीठा बनने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर मैं सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन अपने अति मीठे बाबा की मीठी मधुर याद में बैठ जाती हूँ। *मन बुद्धि को पूरी तरह से अपने सत्य ज्योतिर्मय स्वरूप पर एकाग्र करके, मन को गहन सुकून और शान्ति का अनुभव कराने वाली एक अति सुंदर, रूहानी यात्रा की ओर मैं प्रस्थान करती हूँ*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ एक प्वाइंट ऑफ लाइट भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ कर देह से बाहर निकल आई है और सिर के ऊपर स्थित हो कर अपनी देह को और अपने आस पास की हर वस्तु को देख रही है।
➳ _ ➳ इन सभी के आकर्षण से मुक्त, साक्षीपन के भाव से हर चीज को देखते हुए मैं आत्मा, प्वाइंट ऑफ लाइट अब धीरे धीरे इन सबसे किनारा कर रही हूँ। मीठे बाबा की मीठी यादें दिल को असीम सुकून दे कर, दुःखो से किनारा करवाकर मुझे सुखों से भरपूर कर रही हैं। *इस असीम सुख और सुकून का अनुभव करते - करते देह से न्यारी हो कर मैं आत्मा उमंग उत्साह के पंख लगा कर, ऊंची उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा के पास उनके धाम जहां मेरे दिलाराम बाबा निवास करते हैं*।
➳ _ ➳ शांति की ऐसी दुनिया जहाँ पहुँचते ही आत्मा गहन शांति के अनुभव में खो कर तृप्त हो जाती है। उसी शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में आ कर अब मैं आत्मा उनके सच्चे और निस्वार्थ प्रेम से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *बाबा का असीम प्यार और दुलार बाबा से आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों के रूप में निरन्तर मुझ आत्मा पर बरस रहा है। सर्वशक्तियों की शीतल छत्रछाया मुझ पर निरन्तर सर्वशक्तियों की मीठी मीठी फुहारें बरसा रही है*। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। बाबा से असीम स्नेह पा कर, सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में स्थित होकर अब मैं बापदादा के सम्मुख पहुँचती हूँ। अपनी मीठी दृष्टि से बापदादा मेरे अन्दर जैसे मिठास घोल रहें हैं। मीठे बापदादा की मीठी दृष्टि पाकर मैं भी बाप समान मीठी बन रही हूँ। *बाबा के हस्तों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं जिससे मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं और दिव्य गुणों की धारणा हो रही है*।
➳ _ ➳ बापदादा से दृष्टि ले कर और दिव्य गुणों का श्रृंगार करके अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर मैं सूक्ष्म लोक से नीचे स्थूल लोक में आ जाती हूँ और वापिस अपनी 5 तत्वों से बनी स्थूल काया में प्रवेश करती हूँ। *अपनी वाचा को मुझे बहुत फर्स्टक्लास रखना है इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपने मीठे शिव बाबा की श्रीमत पर कदम - कदम चलते हुए अब मैं आसुरी अवगुणों का त्याग करती जा रही हूँ*। मेरे मुख से अब किसी भी आत्मा को दुख देने वाले कड़वे बोल नही निकलते। बाप समान सबको सुख देने वाले मीठे बोल ही अपने मुख से बोलते हुए अब मैं सबके जीवन को खुशियों से भर कर उनके जीवन मे भी मिठास घोल रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं कल्याणकारी युग मे स्वयं का और सर्व का कल्याण करने वाली प्रकृतिजीत, मायाजीत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को स्वमान में स्थित करने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं संकल्पों पर सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाने वाली न्यारी व प्यारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ स्मृतियों में टिकाये रखने का विशेष योग अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। *जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो।* वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हना भी देते हो - क्या करें, कैसे करें...! अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है *अपना सब बोझ बाप के हवाले करो।* 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मजबूर हो जाते हैं और *बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है। अच्छी नहीं लगती है।*
➳ _ ➳ मास्टर सर्वशक्तिमान और मुश्किल? टाइटल अपने को क्या देते हो? मुश्किल योगी या सहज योगी? नहीं तो अपना टाइटल चेंज *करो कि हम सहज योगी नहीं हैं।* कभी सहजयोगी हैं, कभी मुश्किल योगी? और योग है ही क्या? बस, याद करना है ना। और *पावरफुल योग के सामने मुश्किल हो ही नहीं सकती। योग लगन की अग्नि है। अग्नि कितना भी मुश्किल चीज को परिवर्तन कर देती है। लोहा भी मोल्ड हो जाता है। यह लगन की अग्नि क्या मुश्किल को सहज नहीं कर सकती है?* कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, बाबा क्या करें वायुमण्डल ऐसा है, साथी ऐसा है। हंस, बगुले हैं, क्या करें पुराने हिसाब-किताब हैं। बातें बहुत अच्छी-अच्छी कहते हैं। बाप पूछते हैं आप ब्राहमणों ने कौन सा ठेका उठाया है? ठेका तो उठाया है -विश्वपरिवर्त न करेंगे। *तो जो विश्व-परिवर्तन करता है वह अपनी मुश्किल को नहीं मिटा सकता?*
✺ *ड्रिल :- "सब बोझ बाप को देकर सहज योगी बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में खोती जा रहीं हूँ... *बाबा ने मुझ आत्मा को सहज योगी का वरदान दिया हैं...* मैं आत्मा कोई भी मुश्क़िल को सहज ही पार कर लेती हूँ... *कैसी भी परिस्थिति में मैं आत्मा मुश्क़िल में नही आती हूँ...* और ना ही किसी और आत्मा के लिए मुश्क़िल पैदा करती हूँ... प्राण प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ऑफर किया हैं कि *जिस बोझ से मैं आत्मा भारी हो गई थी... उसे मुझे दे दो... मैं आत्मा अपने सारे बोझ बाप को देकर एकदम हल्की हो चुकी हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार का बोझ महसूस नही हो रहा हैं... *मैं आत्मा अपने सारे बोझ बाप को सौंपकर परमात्म प्यार, सुख और ईश्वरीय जीवन का सुख ले रही हूँ...* मैं आत्मा किसी भी प्रकार का बोझ ना उठाते हुए उड़ रही हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार की थकावट नही हैं... ना मन की और ना ही तन की... *मुझ आत्मा को कोई उल्हना ना बाप से हैं और ना ही किसी और आत्मा से हैं... मैं सर्व स्नेही आत्मा हूँ...* मैं आत्मा ड्रामा के नॉलेज से एकदम हल्की हो गई हूं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा क्या, क्यों, कैसे या और कोई भी क्वेश्चन में मूँझती नही हूँ...* क्योंकि परमात्मा मेरे साथ हैं, वो मुझ आत्मा को अपने पलकों में बिठाए हुए हैं... *मेरा सारा बोझ परमात्मा बाप ने ले लिया है...* वो पिता की तरह मेरी पालना कर रहे हैं... *मुझ आत्मा के 63 जन्मों के जो संस्कार हैं वो धीरे धीरे ख़त्म हो चुके हैं...* मैं आत्मा किसी भी प्रकार की मेहनत से मुक्त हूँ... मै आत्मा शिव साजन की मोहब्बत से आगे बढती जा रही हूँ... *मै आत्मा कभी भी किसी भी मुश्किल में नहीं आती हूँ...* मै आत्मा निरंतर योगी हूँ... मुझ आत्मा को किसी भी प्रकार के संस्कार मजबूर नहीं करते हैं... *मै स्वराज्य अधिकारी बन सहज योगी आत्मा बन गई हूँ... बापदादा के साथ मै आत्मा मेहनत मुक्त बन गई हूँ...* मुझ आत्मा के पुराने संस्कार समाप्त हो चुके हैं... *व्यर्थ संकल्प और संस्कारो के पीछे मैं आत्मा समय का अमूल्य ख़जाना व्यर्थ नहीं करती हूँ...*
➳ _ ➳ *मै आत्मा मास्टर सर्व शक्तिमान के स्वमान से निरंतर अपने आपको शक्तिशाली बना रही हूँ... मुझ मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा को कोई भी बात मुश्किल नहीं लगती हैं... बापदादा ने मुझ आत्मा को मास्टर सर्वशक्तिमान का टाइटल दिया हैं...* मुझ आत्मा के पास परमात्मा की दी हुई सर्व शक्तियाँ हैं... और उन्हें मै आत्मा समयानुसार यूज़ करती हूँ... *मै आत्मा निरंतर सहज योगी हूँ...* मेरा योग निरंतर एक बाप के साथ हैं... मै आत्मा कभी नही, अल्पकाल या कभी कभी की योगी नहीं हूँ... *बाबा के साथ पावरफुल योग द्वारा मैं आत्मा हर मुश्किल को आसान बना लेती हूँ... योग की अग्नि से मै आत्मा सारे विकारो, पुराने संस्कारों को भस्म कर रही हूँ...* जिस प्रकार अग्नि में कुछ भी चीज़ परिवर्तित हो जाती हैं... उसी प्रकार योग अग्नि से मेरे कड़े और पुरानें संस्कार भी परिवर्तित हो चुके हैं... *योग अग्नि और योग के प्रयोग से मुझ आत्मा के चारों ओर एक दिव्य आभामंडल बना हुआ हैं... जिससे हर बात सहज होती जा रही हैं... और ऐसा वायुमंडल बन गया है कि किसी भी अन्य आत्माओं और संस्कारों का असर मुझ आत्मा में नहीं पड़ता हैं...* बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व परिवर्तन का कार्य सौपा हैं... *मैं आत्मा स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य में बाप की साथी हूँ...*
➳ _ ➳ मै आत्मा बाप के साथ और याद द्वारा अपनी सारी मुश्किलों को मिटाती जा रही हूँ... *मै आत्मा अपने सारे बोझ और सारी मुश्किलें एक बाप को देकर एकदम मुक्त हो चुकी हूँ...* जहाँ बाप ने मुझ आत्मा को इतना बड़ा कार्य सौपा हैं, वहां मैं आत्मा किसी भी बात में हार नहीं खा रही हूँ... *सदैव एक बाप का हाथ पकड़ कर आगे और आगे बढती जा रही हूँ... सफ़लता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार हैं...* और दृढ़ संकल्प द्वारा हर कमी कमज़ोरी को समाप्त कर सफ़लता मूर्त बन गई हूँ... *बाबा ने मेरे सारे बोझ ले करके मुझे सहज योगी बना दिया हैं... धन्यवाद बाबा, आपका बहुत बहुत शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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