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 15 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *अपनी मीठी दैवी चलन से बाप का शो किया ?*

 

➢➢ *फर्स्ट क्लास ज्ञानी तू आत्माओं का संग किया ?*

 

➢➢ *यज्ञ की बहुत प्यार से सच्ची दिल से संभाल की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *परमात्म प्यार के आधार पर दुःख की दुनिया को भूले ?*

 

➢➢ *अपने सर्व ज़िम्मेवारियों का बोझ बाप हवाले कर डबल लाइट बनकर रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  जैसे स्थूल शरीर के वस्त्र और वस्त्र धारण करने वाला शरीर अलग अनुभव होता है ऐसे *मुझ आत्मा का यह शरीर वस्त्र है,* मैं वस्त्र धारण करने वाली आत्मा हूँ। ऐसा स्पष्ट अनुभव हो। जब चाहे इस देह भान रूपी वस्त्र को धारण करें, *जब चाहे इस वस्त्र से न्यारे अर्थात देहभान से न्यारे स्थिति में स्थित हो जायें।* ऐसा न्यारे-पन का अनुभव होता है? वस्र को मैं धारण करता हूँ या वस्त्र मुझे धारण करता है? चैतन्य कौन? मालिक कौन? तो *एक निशानी - न्यारे-पन की अनुभूति।' अलग होना नहीं है लेकिन मैं हूँ ही अलग। तीसरी अनुभूति - ऐसी समान आत्मा अर्थात एवररेडी आत्मा* - साकारी दुनिया और साकार शरीर में होते हुए भी बुद्धियोग की शक्ति द्वारा सदा ऐसा अनुभव करेगी कि मैं आत्मा चाहे सूक्ष्मवतन में, चाहे मूल वतन में, वहाँ ही वाप के साथ रहती हूँ। *सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवनत वासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी हो* कर्मयोगी बन कर्म का पार्ट वजाने वाली हूँ लेकिन अनेक बार अपने को बाप के साथ सूक्ष्मवतन और मूलवतन में रहने का अनुभव करेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपनी दैवी मीठी चलन से बाप का परिचय देकर, वर्से का अधिकारी बनाना"*

 

_ ➳  बरसात के भीगे भीगे खुबसूरत मौसम में... मै आत्मा ठंडी फुहारों का आनन्द लेती हुई... अपने प्रियतम बाबा को पुकारती हूँ... मीठे बाबा एक पल में हाजिर हो जाते है...और मै आत्मा... *अपने प्यारे बाबा के असीम प्यार की बदौलत... मीठे हो गए, अपने मन को निहारती हूँ..*. यह मन बिना बाबा के कितना कटु और शुष्क था... आज सच्चे प्रेम में पोर पोर से डूबा हुआ है... मीठे बाबा ने मुझे प्रेम की मिसाल बना दिया है... आज सारा विश्व मेरी प्रेम तंरगों का दीवाना है... और मुझे यूँ खोया देख बाबा मुस्करा रहे है...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी सुखो से आबाद बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को टीचर, और सतगुरु को पाकर सब कुछ पा लिया है... मीठे बाबा के सारे खजाने सारी खाने आपकी है.. इतनी दौलत के मालिक बनकर... *अपनी श्रीमत के रंग में रंगी, मीठी दैवी चलन का, दीवाना विश्व को बनाओ.*.. सबको आप समान सुखो से भर आओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा सागर से मीठेपन को स्वयं में भरकर कहती हूँ :- "मेरे मीठे मीठे बाबा... *आपने जीवन में आकर, अपने प्यार की मिठास से, मुझ आत्मा को कितना, मीठा, प्यारा बना दिया है.*.. मै आत्मा इस सच्चे प्रेम की तरंगे, सारे विश्व पर बरसा रही हूँ... सबको सुखो का अधिकारी बनाती जा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को विश्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत करते हुए कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे मेरे... *मीठे बाबा को पाकर, जो सुखो की दौलत पायी है... खुशियो की जागीरे दिल में समायी है.*.. उनकी झलक अपनी रूहानियत से सारे जहान में फैलाओ... अपनी देवताई चलन से सहज ही ईश्वर पिता का परिचय दे आओ... बिछड़े हुए बच्चों को प्यारे पिता से मिलवाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की सारी रत्नों भरी खाने, अपने नाम, करते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आप जीवन में न थे बाबा... तो मै आत्मा कितनी कँटीली और कड़वी थी... सच्ची मिठास से कितनी अनजान और अनभिज्ञ थी... *आपने अपने मीठे प्यार से सींच सींचकर... मुझे रूहानी गुलाब बना दिया है.*.. मै आत्मा दिव्यता की खुशबु हर दिल पर महका रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सम्पत्ति का मालिक बनाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जो इतना मीठा प्यारा और दिव्य स्वरूप खिलाया है... *इस दिव्यता का मुरीद सबको बनाकर, सच्चे पिता की छवि, अपनी मीठी चलन से दिखाओ.*.. सबको मीठे बाबा के वर्से का अधिकारी, आप समान बना आओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्रेम से निहारते हुए कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... *आपने अपनी प्यार भरी बाँहों में समाकर, मुझे रूहानी बना दिया है.*.. अपनी असली सुंदरता को पाकर, मै आत्मा... गुणो की खान बनकर मुस्करा रही हूँ... और इस दैवी सुुंदरता की छटा, पूरे विश्व में बिखेर कर, आपके करीब ला रही हूँ..."मीठे बाबा पर यूँ अपना प्यार उंडेल कर मै आत्मा... धरा की ओर रुख करती हूँ..."

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- यज्ञ की बहुत प्यार से, सच्चे दिल से सम्भाल करनी*"

 

_ ➳  कर्मयोगी बन कर्म करते करते मैं बाबा के गीत सुन रही हूं। तभी गीत में एक पंक्ति आती हैं:- "बच्चो में संकल्प जो आये, वरदाता ही भागे आये"। गीत की इन पंक्तियों को सुनते ही मन में अपने शिव पिता परमात्मा से मिलने का संकल्प उतपन्न हो उठता है और *अपने शिव पिता परमात्मा से मिलने की इच्छा मन मे लिए, अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर, मैं अपने मन बुद्धि को अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करके उन्हें अपने पास आने का आग्रह करती हूं* और देखती हूँ परमधाम से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे की ओर आ रहा हैं जिसमे से अनन्त शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर चारों और फैल रही हैं।

 

_ ➳  धीरे - धीरे वह ज्योतिपुंज सूक्ष्म लोक में पहुंच कर ब्रह्मा तन में प्रवेश कर जाता है और कुछ ही क्षणों में मैं अपने परमप्रिय परम पिता परमात्मा को उनके आकारी रथ के साथ अपने सम्मुख पाती हूँ। अब मैं देख रही हूं बापदादा को अपने सामने। *उनके आने से वायुमण्डल में चारों ओर जैसे एक रूहानी मस्ती छा गई है। उनसे आ रही शक्तिशाली किरणे मुझ पर पड़ रही है और उन शक्तिशाली किरणों का औरा मुझे विदेही स्थिति का अनुभव करवा रहा है*। मेरा साकार जैसे जड़ हो गया है और उसमें से एक लाइट का सूक्ष्म आकारी शरीर बाहर निकल आया है।

 

_ ➳  अपने इस सूक्ष्म आकारी लाइट के फरिश्ता स्वरूप में मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। बापदादा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए अपना हाथ मेरी और बढ़ा रहे हैं। बाबा के हाथ मे जैसे ही मैं अपना हाथ रखती हूं।बाबा मेरा हाथ थाम कर मुझे इस साकारी दुनिया से लेकर दूर चल पड़ते हैं। *हर प्रकार की भीड़ - भाड़ से अलग एक बहुत बड़े खुले स्थान पर बाबा मुझे ले आते हैं। बड़े प्यार से मैं बाबा को निहारते हुए इस अलौकिक मिलन का आनन्द ले रही हूं*। तभी अचानक मैं देखती हूँ वो पूरा खुला स्थान जैसे एक बहुत बड़ा कुंड है और उस कुंड में अग्नि की विशाल लपटे निकल रही हैं जो आसमान को छू रही हैं। हैरान हो कर मैं बाबा की ओर देखती हूँ।

 

_ ➳  बाबा मेरा हाथ थामे मुझे उस कुंड के बिल्कुल नजदीक ले आते हैं। मनमनाभव का मंत्र दे कर बाबा मुझे उस स्थिति में स्थित करके, अपनी शक्तिशाली किरणे मुझ पर प्रवाहित करने लगते हैं। *मैं देख रही हूं बाबा के मस्तक से, बाबा की दृष्टि से शक्तियों की जवालस्वरूप धाराओं को निकलते हुए*। इन जवालस्वरूप धाराओं रूपी योग अग्नि से निकल रही ज्ञान और योग की पावन किरणे अब मुझ पर पड़ रही हैं और मेरे अंदर से 5 विकारों के भूत एक - एक करके बाहर निकल रहें हैं और इस योग अग्नि में जल कर स्वाहा हो रहें हैं। *इन भूतों के स्वाहा होते ही मेरा स्वरूप जैसे बदल रहा है*। मैं दैवी गुणों से सम्पन्न होने लगा हूँ।

 

_ ➳  अब मेरे मन की सारी दुविधा मिट चुकी है। मैं जान गई हूं कि यह विशाल कुंड बेहद का रुद्र ज्ञान यज्ञ है जो परमात्मा ने स्वयं आ कर रचा है। *इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से प्रज्ज्वलित होने वाली विनाश ज्वाला में सारी पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार जल कर भस्म हो जाएंगे और उसके बाद नया दैवी स्वराज्य स्थापन हो जाएगा*। जहां सभी दैवी गुण वाले मनुष्य अर्थात देवी देवताओं का राज्य होगा। लेकिन देवी देवताओं की इस दुनिया के आने से पहले परमात्मा द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल करना मेरी जिम्मेवारी है। इस जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए मैं फ़रिशता अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ।

 

_ ➳  बाबा की श्रीमत पर चल कर, बाबा द्वारा रचे इस अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ की बड़े प्यार से और सच्चे दिल से संभाल करना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है। और इस लक्ष्य को पाने के लिये अब मैं अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में लगा कर सम्पूर्ण समर्पण भाव इस यज्ञ को चलाने के निमित बन गई हूं। *परमात्मा बाप द्वारा रचे हुए इस अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ में सहयोगी बनने के लिए बाप से मैंने जो पवित्रता की प्रतिज्ञा की है उस प्रतिज्ञा को मन, वचन, कर्म से पूरा करने के पुरुषार्थ में अब मैं सदा तत्पर रहती हूं*। मनसा-वाचा-कर्मणा अपवित्रता का अंश भी मुझमे ना आये इस बात पर पूरा अटेंशन देते हुए, यज्ञ रक्षक बन यज्ञ की सच्चे दिल से मैं सम्भाल कर रही हूँ।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा परमात्म प्यार के आधार पर दुख की दुनिया को भूलती हूँ।"*

 

 _ ➳  *परमात्मा का प्यार ऐसा सुखदायी है जो उसमें यदि मैं खो जाऊँ तो दुख की दुनिया भूल जायेगी*... इस जीवन में जो चाहिए वो सर्व कामनाएं पूर्ण कर देना... यही तो परमात्म प्यार की निशानी है... *बाप सुख शांति क्या देता लेकिन उसका भंडार बना देता है*... जैसे बाप सुख का सागर है, नदी तालाब नहीं... ऐसे बाबा ने मुझ आत्मा को भी सुख के भंडार का मालिक बना दिया है... इसलिए मुझे मांगने की आवश्यकता नहीं... मैं आत्मा *मिले हुए ख़ज़ाने को विधि पूर्वक समय प्रति कार्य में लगाती हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपनी सर्व जिम्मेदारियों के बोझ को बाप के हवाले कर डबल लाइट बनता हुआ अनुभव करना"*

 

_ ➳  अपनी सर्व जिम्मेदारियाँ बाप को सौंपकर... *सर्व संबंध एक बाप के साथ जोड़कर... मैं आत्मा बंधन मुक्त... डबल लाइट अवस्था* का अनुभव कर रही हूँ... सदा योगयुक्त रहकर... *उड़ते पंछी की तरह स्वतंत्रता का अनुभव कर रही हूँ...* यह देह मेरी नहीं... बापदादा के द्वारा मिली हुई अमानत है... मैं आत्मा तो ट्रस्टी हूँ... सदा बाप की मर्ज़ी के अनुसार चल रही हूँ... व्यर्थ चिंतन की आंख बंद कर के बाप के कदम पीछे कदम रखती जा रही हूँ... *मैं और मेरा की सुनहरी जंजीरे तोड़कर... सब बाबा की अमानत बाबा को सौंपकर... मस्त फकीर हो गई हूँ... बेफिक्र बादशाह हो गई हूँ...* प्यारे बाबा ने जो पालना मुझे दी है... *वही प्यार और शांति की रुहानी पालना... संपर्क में आने वाली हर आत्मा की कर रही हूँ...* श्रीमत अनुसार सब की पालना बहुत ही स्नेह से कर रही हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  १. कई कहते हैं ज्ञान-योग बहुत अच्छा लगता हैअच्छा है वो तो ठीक है लेकिन कर्म में लाते होज्ञान माना आत्मापरमात्मा, ड्रामा.... यह कहना नहीं। *ज्ञान का अर्थ है समझ। समझदार जैसा समय होता है वैसे समझदारी से सदा सफल होता है*।

➳ _ ➳  २. समझदार की निशानी है *कभी धोखा नहीं खाना - ये है ज्ञानी की निशानी, और योगी की निशानी है - सदा क्लीन और क्लियर बुद्धि*। क्लीन भी हो और क्लियर भी हो। *योगी कभी नहीं कहेगा-पता नहीं, पता नहीं* उनकी बुद्धि सदा ही क्लियर है। और *धारणा स्वरूप की निशानी है सदा स्वयं भी डबल लाइट*। कितनी भी जिम्मेवारी हो लेकिन धारणामूर्तसदा डबल लाइट। चाहे मेला होचाहे झमेला हो-दोनों में डबल लाइट। और *सेवाधारी की निशानी है-सदा निमित्त और निर्माण भाव*। तो ये सभी अपने में चेक करो। कहने में तो सभी कहते हो ना कि चारों ही सब्जेक्ट के गाडली स्टूडेण्ट हैं। तो निशानी दिखाई देनी चाहिये।  

✺   *ड्रिल :-  "ज्ञानी, योगी, धारणा स्वरूप और सेवाधारी बनना"*

➳ _ ➳  *झील में खिले पावन कमल की कोमल पंखुरियों पर पडें ओस कणों के समान...* शिव सूर्य की किरणों से स्वर्ण मयी आभा बिखराती, मैं ज्योति बिन्दु उन्हीं किरणों पर सवार होकर पहुँच गयी हूँ परमधाम में... *असंख्य जगमगाते हीरों की मालाओं से जडी, जैसे कोई भव्य और विशाल पारदर्शी सुराही*... शान्ति और पावनता का मधुरस-सा झलकाती हुई... *सुराही के शीर्ष पर स्वयं अमृत के सागर, अनवरत अमृत धारा छलकाते हुए*... आत्माओं के उर को निरन्तर भरपूर किये जा रहे है... छलछलाती सुराही, शान्ति से, पावनता से, और भरपूर अवस्था में हर आत्मा मणि... मैं आत्मा शिवबाबा के एकदम करीब उनको पास से निहारती हुई... और *देखते ही देखते एक जादुई आकर्षण में बंधी समाँ गई हूँ उनकी परम पावन सी गोद में*... चिरकाल तक स्वयं को उस मधु से भरपूर करती हुई...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... सन्दली पर बैठे शिक्षक रूप में बापदादा, और असंख्य फरिश्तों की कतार उनके सामने बैठी है... आहिस्ता से पीछे जाकर बैठ गया हूँ मैं फरिश्ता भी... बापदादा की स्नेहमयी नजरें मेरा पीछा करती हुई... और *बापदादा हर एक फरिश्ते को ज्ञान, योग, सेवा और धारणा चारों विषयों में सम्पन्न बनने का वरदान दे रहे है*... वरदान पाकर सभी एक एक कर अपने अपने सेवा स्थानों को जाते हुए... मैं फरिश्ता मगन होकर देख रहा हूँ इस दृश्य को... सहसा चौक गया हूँ कोई स्नेहिल सा स्पर्श अपने कन्धे पर पाकर... *बापदादा सामने खडे हैं हाथो में उपहारों का थाल सजाये... मेरे सामने थाल को रख मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे ज्ञानी तू आत्मा का वरदान दे रहे है*... *सामने रखे स्वर्ण जडित थाल से स्वमानों की माला मेरे गले में पहनाते हुए, समझदारी की प्रतीक ज्ञान गदा सौंप रहे है मेरे हाथों में*... मैं देख रहा हूँ, गले मे पहनी स्वमानों की माला को... जो मेरी समझ और शक्ति को तीव्रता से बढा रही है... *योग का प्रतीक स्वदर्शन चक्र मेरी बुद्धि को क्लीन और क्लीयर कर रहा है*...

➳ _ ➳  *और अब धारणा का पावन कमल मैंने स्वयं ही उठा लिया बापदादा के सामने से... मेरी इस बालसुलभ उत्सुकता पर बापदादा मुस्कुरा रहे हैं आँखों में विशेष स्नेह भरकर... मानो कह रहे हो *बच्चे! अब ये सेवा का शंखनाद भी तुम्हें स्वतः ही करना है*... जैसे ही सेवा का शंख हाथ में उठाता हूँ... खुशी से भर गया हूँ सामने, अपना ही देवताई अलंकारों से सजा भव्य रूप देखकर... *गदा शंख चक्र और कमल देवताई अलंकारों से सुशोभित रूप अपने भविष्य रूप को देखकर उत्साह से भर गया हूँ मैं*... और चारों ही विषयों में सम्पूर्णता पाने की लगन अब पहले से तेज हो गयी है... सम्पूर्णता का दृढ निश्चय लिए मैं लौट आया हूँ अपने उसी ब्राह्मण शरीर में... *धारणाओं का कमल अब पहले से भी ज्यादा शोभा के साथ खिल रहा है उसी झील में*... *कोमल पत्तियों पर पडे ओस कण सुनहरे प्रतीत हो रहे है... मेरे सतयुगी भविष्य के समान*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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