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 22 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *ज्ञान योग को धारण कर फिर आसामी देखकर दान किया ?*

 

➢➢ *हर बात में अपना समय सफल किया ?*

 

➢➢ *"एक एक रतन लाखों रुपये का है"  ज्ञान रत्नों की इतनी वैल्यू रही ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *हर बोल द्वारा जमा का खाता बढाया ?*

 

➢➢ *हर कारण को निवारण में परिवर्तित कर सदा संतुष्ट रहे ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *संसार में एक सम्बन्ध, दूसरी है सम्पति। दोनों विशेषतायें बिन्दू बाप में समाई हुई हैं।* सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव किया है? सर्व सम्पत्ति की प्राप्ति सुख-शान्ति, खुशी यह भी अनुभव किया है या अभी करना है? तो क्या हुआ? विस्तार सार में समा गया ना! *अपने आप से पूछो अनेक तरफ विस्तार में भटकने वाली बुद्धि समेटने के शक्ति के आधार पर एक में एकाग्र हो गई है?* वा अभी भी कहाँ विस्तार में भटकती है! समेटने की शक्ति और समाने की शक्ति का प्रयोग किया है? या सिर्फ नॉलेज है। अगर इन दोनों शक्तियों को प्रयोग करना आता है तो उसकी निशानी सेकण्ड में जहाँ चाहो जब चाहो बुद्धि उसी स्थिति में स्थित हो जायेगी। जैसे स्थूल सवारी में पॉवरफुल ब्रेक होती है तो उसी सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ रोक सकते हैं। जहाँ चाहें वहाँ गाडी को या सवारी को उसी दिशा में ले जा सकते हैं। ऐसे स्वयं यह शक्ति अनुभव करते हो वा एकाग्र होने में समय लगता है? वा व्यर्थ से समर्थ की ओर बुद्धि को स्थित करने में मेहनत लगती है? *अगर समय और मेहनत लगती है तो समझो इन दोनों शक्तियों की कमी है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ज्ञान योग को धारण कर, फिर आसामी देखकर दान करना"*

 

_ ➳  झील के किनारे बेठी हुई मै आत्मा... प्रकर्ति के सौंदर्य को देख... रचनाकार पिता की स्मर्तियो में खो जाती हूँ...जिसने मेरे जीवन में आकर... जीवन को श्रेष्ठता से भर, दिव्य बना दिया है... आज ज्ञान रत्नों की अमीरी से मै आत्मा... कितनी धनवान् भाग्यवान बन गयी हूँ... मीठे बाबा के असीम उपकारों को याद करती मै आत्मा... मीठे बाबा के पास सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूँ... *मीठे बाबा मुझे देख आनन्दित होकर कहते है... आओ मेरे मीठे बच्चे... मै आपकी ही प्रतीक्षा में हूँ..*..

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व का महाराजा बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *मीठे बाबा जैसा रूप और बसन्त बनकर इस विश्व धरा पर गुणो और शक्तियो के फूल हर दिल पर खिलाओ.*.. ईश्वरीय रंगत की मुस्कान हर अधरों पर सजाओ... ज्ञान के अमूल्य मणियो को सही पात्र की झोली में भर आओ... ईश्वरीय ज्ञान धन का दान, सदा योग्यता को देखकर ही करो... यह खजाना सच्चे मन को ही अर्पित करो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा *आपकी मीठी यादो के साये में, सुखो से खिलती जा रही हूँ.*.. देवताई घराने की अधिकारी बनती जा रही हूँ... ज्ञान धन के रत्नों को पाकर, इस जहान में सबसे अमीर होती जा रही हूँ... और इस अमीरी को सुपात्र पर ही लुटा रही हूँ...

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान खजानो की खान सौंपते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय धन सम्पदा को पाने वाले महान भाग्यशाली हो... सदा यादो की छत्रछाया में रहकर ज्ञान रत्नों के खजाने को बुद्धि में गिनते रहो... और आप समान सच्चा दिल देखकर ही...  इस धन का दान करो... *यह ईश्वरीय दौलत बहुत कीमती है, इसे दिलवाले को ही देकर आओ..*."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के अनन्त खानों खजानो को अपनी बाँहों में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... *आपने मुझे अपनी फूलो भरी गोद में बिठाकर... तो रूप बसन्त बना दिया है.*.. योग की खुशबु और ज्ञान रत्नों की खनक लिए... मै आत्मा विश्व धरा पर घूम रही हूँ... सच्चे दिलो को आपके दिल के करीब ला रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा को देवताई सुखो का अधिकारी बनाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो में आबाद रहो... मीठे बाबा की तरह रूप और बसन्त बन मुस्कराते रहो... *सदा ज्ञान रत्नों के मनन में मगन रहो, और यह दौलत चाहत भरे दिलो में बाँट आओ..*. ज्ञान और योग की धारणा कर, अपने गुणो का सबको दीवाना बनाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के अखूट खजानो को अपने बुद्धि दिल में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *आपकी श्रीमत को, ज्ञान धन को, जीवन में धारण कर मै आत्मा... खुशनुमा जीवन को मालकिन हो गयी हूँ.*.. और यह खुशियो भरे रत्न सच्चे आसामी को देखकर लुटाती जा रही हूँ... सच्चे रत्नों का व्यापार करने वाली मै आत्मा मा रत्नागर बन गयी हूँ..." प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर आ गयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हर बात में अपना समय सफल करना और दान आसामी ( पात्र ) देख कर करना*"

 

_ ➳  "समय आपका शिक्षक बने, इससे पहले आप स्वयं ही स्वयं के शिक्षक बन जाओ" इन ईश्वरीय महावाक्यों पर विचार सागर मंथन करते करते एक पार्क में मैं टहल रही हूँ। टहलते - टहलते वही कोने में रखे एक बैंच पर मैं बैठ जाती हूँ और इधर उधर देखने लगती हूँ। तभी सामने सड़क पर लगे एक बोर्ड पर मेरी निगाह जाती है, जिस पर बड़े बड़े शब्दों में एक स्लोगन लिखा हुआ है *"समय की पुकार को सुनो" इस स्लोगन को पढ़ते ही मन फिर से विंचारो में खो जाता है और ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे कानों में कोई इन्ही शब्दो को बार बार दोहरा रहा है*। मैं इधर उधर देखती हूँ कि आखिर मेरे कानों में ये आवाज कहाँ से आ रही है।

 

_ ➳  फिर महसूस होता है कि ये आवाज तो ऊपर से आ रही है। मैं जैसे ही ऊपर की और देखती हूँ एक तेज प्रकाश मुझे अपने ऊपर अनुभव होता है। *मैं देख रही हूं अपने सिर के ऊपर महाज्योति शिव बाबा को जिनसे निकल रही प्रकाश की किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और मैं देह के भान से मुक्त स्वयं को एक दम हल्का अनुभव कर रही हूं*। अपने शरीर को मैं देख रही हूं जो शिव बाबा की लाइट और माइट पा कर एकदम लाइट का बन गया है। अब शिवबाबा ब्रह्माबाबा के आकारी रथ में विराजमान हो कर धीरे धीरे नीचे आ रहें हैं। अपने बिल्कुल समीप बैंच पर बापदादा की उपस्थिति को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  बापदादा मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहें हैं। बाबा की सम्पूर्ण शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं गहराई से बाबा के नयनो में देख रही हूँ। शक्ति लेते लेते एक विचित्र दृश्य देख कर मैं हैरान रह जाती हूँ। *एक पल के लिए मैं देखती हूँ दिल को दहलाने वाला दुनिया के विनाश का विनाशकारी दृश्य और दूसरे ही पल बाबा के नयनो में समाए अपने प्रति असीम स्नेह और बाबा की अपने प्रति वो आश जिसे बाबा जल्दी से जल्दी पूरा होते हुए देखना चाहते हैं*। अब मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं कि बाबा ने एक पल के लिए मुझे दिव्य दृष्टि से विनाश का साक्षात्कार करा कर समय की समीपता की ओर ईशारा किया है।

 

_ ➳  इस रोमांचकारी दृश्य का अनुभव करवाकर बापदादा अदृश्य हो जाते हैं और मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ और फिर से उसी स्लोगन पर नजर डालते हुए विचार करती हूं कि *संगमयुग का एक एक  सेकेण्ड मेरे लिए बहुमूल्य है। एक भी सेकेंड व्यर्थ गया तो बहुत बड़ा घाटा पड़ जायेगा*। यह विचार करते करते मैं घर लौट आती हूँ और संगमयुग के अनमोल पलो को सफल करने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपने हर सेकेंड, संकल्प, बोल और कर्म की वैल्यू को स्मृति में रख अब मैं उन्हें ईश्वरीय याद और सेवा में सफल कर रही हूँ* ।

 

_ ➳  हर श्वांस में अपने प्यारे मीठे बाबा की यादों को समाये अपनी बुद्धि को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके अब मैं *इन ज्ञान रत्नों को उन आत्माओं को दान कर रही हूं जो इस दान की पात्र आत्मायें हैं*। अपने वरदानी स्वरूप में स्थित हो कर, वरदानी बोल द्वारा उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बता रही हूं। *परखने की शक्ति का उचित प्रयोग करके, अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को परख कर, पात्र देख कर ज्ञान दान देते हुए उन आत्माओं का कल्याण करने के साथ साथ स्व - पुरुषार्थ करते हुए हर बात में मैं अपने समय को सफल कर रही हूं*।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा आत्मिक भाव रख हर बोल द्वारा जमा का खाता बढ़ाती हूं।"*

 

 _ ➳  कर्म, विकर्म और सुकर्म को बारीकी से जानने वाली मैं एक नॉलेजफुल आत्मा हूँ... द्वापर कलियुग में विकर्म करने के बाद मुझे संगम पर सुकर्म कर जमा का खाता बढ़ाने की चाबी बाबा ने दी है... बाबा ने आज बताया कि *बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती है... मैं आत्मा हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव रख जमा का खाता बढ़ा रही हूँ...* मैं आत्मा अपने बोल में ईर्ष्या, हषद, घृणा की भावना किसी भी परसेंट में समाकर ऐसे बोल द्वारा गँवाने का खाता नहीं बनाती हूँ... मुझ आत्मा का *हर बोल ऐसा समर्थ है जिससे हर बोल में प्राप्ति का भाव वा सार समाया है*... जिससे कोई भी बोल व्यर्थ के खाते में नहीं जाता है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  हर कारण का निवारण कर सदा संतुष्ट रहने से संतुष्टमणि बनते हुए अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं सर्व प्राप्ति संपन्न... संतुष्ट आत्मा हूँँ... निवारण स्वरूप हूँ...* मुझ सरलचित्त आत्मा के सम्मुख... हर समस्या सरल होती जा रही है... ज्ञान रत्नों को धारण करके... बुद्धि स्थिर हो गई है... *शांति की शक्ति... निर्णय करने की शक्ति... सहज ही प्राप्त होती जा रही है...* सामने कोई भी कारण आवे... उसी घड़ी उसको निवारण के रूप में परिवर्तित कर रही हूँ... *ऊर्जा के स्रोत...  परमात्मा से बुद्धि के तार जोड़कर... समस्याओं को समाधान में...* परिवर्तित कर रही हूँ... निवारण स्वरूप बन हर कर्म... हर संकल्प द्वारा सेवा करती जाती हूँ... *सरलचित्त बनने से... कारण समाप्त हो गए हैं... समस्याएं भी सरल होती दिखाई दे रहीं हैं...* स्थिर बुद्धि से... औरों को सहयोग दे रही हूँ... *संतुष्टमणि बनकर... उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...* दूसरी आत्माएं भी संतुष्ट होती प्रतीत हो रही हैं...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. *सेवा जो स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा नहीं हैस्वार्थ है।* और निमित्त कोई न कोई स्वार्थ ही होता है इसलिए नीचे-ऊपर होते हैं। चाहे अपनाचाहे *दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता है तब सेवा में डिस्टर्बेन्स होती है। इसलिए स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करो।*

 

 _ ➳  २. *चारों ओर अटेन्शन प्लीज।*

 

✺   *ड्रिल :-  "स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करना*

 

 _ ➳  *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित होकर पहुँच जाती हूँ... हिस्ट्री हॉल में... और बाबा के चित्र के आगे जाकर बैठ जाती हूँ...* बापदादा अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं... मैं बाबा को देख कर अति प्रसन्न होकर वाह बाबा वाह!! कह उनसे बातें करने लगती हूँ... तभी बाबा मुझे सेवा के महत्व के बारे में समझाते हुए कहते हैं...

 

 _ ➳  *बच्ची... हर कर्म को... हर सेवा को... निमित्त समझ कर... निःस्वार्थ भाव से... करो, कोई भी सेवा स्वार्थ वश नहीं करना...* चाहे उस सेवा से अपना स्वार्थ सिद्ध हो या दूसरे का... वो सेवा... सेवा नही, साधारण कर्म हो जायेगा... फिर बाबा समझाने लगे... *ऐसी सेवा भी नहीं करना जो दूसरों के लिये व्यवधान पैदा करे...*    

 

 _ ➳  *अपने को हर कर्म में निमित्त समझना... यही न्यारे और सर्व के प्यारे बनने का सहज साधन है...* निमित्त बन कर जब सेवा करते हैं तो वह सेवा निर्विघ्न... और अविनाशी कमाई जमा कराती है... बच्ची... *हर कदम ब्रह्मा बाबा को फॉलो करो... जैसे ब्रह्मा बाबा देह से न्यारे होकर कर्म करते थे... सदा अचल... अडोल... निश्चिन्त... उनके नक्शे कदम पर चलो...*      

 

 _ ➳  बाबा... मेरे मीठे मीठे बाबा... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के हर कदम पर... उनकी हर श्रीमत को पूरा पूरा फॉलो करुँगी...* जैसे बाबा हर सेवा में अटल... अचल... रहते थे... जैसे उन्हें पक्का निश्चय था कि सर्वशक्तिवान मेरे साथ है... करन करावनहार वही है... मैं निमित्त हूँ... वैसे ही *मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाबा की तरह... मनसा-वाचा-कर्मणा... हर सेवा को निमित्त समझ... स्वार्थ से परे... न्यारी और सर्व की प्यारी बनकर करुँगी...*   

 

 _ ➳  मैं बाबा से कहती हूँ... *बाबा... अब मैं आत्मा चलते फिरते... स्वार्थ से परे... सदा इसी न्यारेपन की स्थिति में स्थित रहकर हर सेवा करुँगी...* मैं आत्मा अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाकर दूसरों को भी स्वार्थ से परे रहने के लिये प्रेरित करुँगी...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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