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❍ 20 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"स्वयं ईश्वर हमें पढाते हैं" - इसी नशे में रहे ?*
➢➢ *आत्माओं को दूरादेश में रहने वाले बाप का परिचय दिया ?*
➢➢ *आत्माओं को दलदल से निकालने की सेवा की ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *सदा ऊंची स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहे ?*
➢➢ *शांति का दूत बन सबको शांति का दान दिया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ जैसे आवाज में आना अति सहज लगता है ऐसे ही आवाज से परे जाना इतना सहज है? यह बुद्धि की एक्सरसाइज सदैव करते रहना चाहिए। जैसे शरीर की एक्सरसाइज शरीर को तन्दरुस्त बनाती है ऐसे *आत्मा की एक्सरसाइज आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।* तो यह एक्सरसाइज आती है या आवाज में आने की प्रैक्टिस ज्यादा है?
〰✧ *अभी-अभी आवाज में आना और अभी-अभी आवाज से परे हो जाना* - जैसे वह सहज लगता है वैसे यह भी सहज अनुभव हो। क्योंकि आत्मा मालिक है। सभी राजयोगी हो, प्रजायोगी तो नहीं? राजा का काम है ऑर्डर पर चलाना। तो *यह मुख भी आपके ऑर्डर पर हो* - जब चाहो तब चलाओ और जब चाहो तब नहीं चलाओ आवाज से परे हो जाओ
〰✧ लेकिन इस रूहानी एक्सरसाइज में सिर्फ मुख की आवाज से परे नहीं होना है - *मन से भी आवाज में आने के संकल्प से परे होना है।* ऐसे नहीं मुख से चुप हो जाओ और मन में बातें करते रहो। *आवाज से परे अर्थात मुख और मन दोनों की आवाज से परे, शान्ति के सागर में समा जायें।* यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है! अनुभवी तो हो ना।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस हीरे समान, जनम में ईश्वर से पढ़कर, दुरांदेशी, विशालबुद्धि बनना*"
➳ _ ➳ प्यारे बाबा की कुटिया में बेठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ, और असीम प्यार को पाकर... अपनी खुशनसीबी पर नाज कर रही हूँ... *मेरी पालना स्वयं भगवान कर रहा है... मुझे ज्ञान रत्नों से सजाकर मेरा जीवन, हीरे जैसा चमका रहा है.*.. मै कभी खुद को भी नही जानती थी... आज मीठे बाबा की बदौलत, दूर परमधाम में बेठे... अपने भगवान को जान गयी हूँ...मेरी बुद्धि इस कदर निखर गयी है कि... मै सृस्टि के आदि मध्य अंत को जानने वाली महान आत्मा बन गयी हूँ... *जादूगर बाबा ने यह प्यारा जादु करके, मुझे क्या से क्या बना दिया है.*..और मै आत्मा... भीगे नयन और भीगे दिल से प्यारे बाबा का शुक्रिया करती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को टीचर बनकर स्वयं पढ़ाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने महान भाग्य के आनंद में खोकर, मीठे बाबा के प्यार में सदा डूबे रहो... ईश्वरीय हाथो में पलकर, हीरे जैसा भाग्य पा रहे हो... *ईश्वरीय प्यार की छाँव में दूर देश में रहने वाले... प्यारे पिता को सहज ही जान लेते हो... और विशाल बुद्धि बनकर, सारे सृस्टि चक्र के राज के जानने वाले, महा भाग्यवान बन जाते हो.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार के रंग में रंगकर खुबसूरत दमकता हीरा बनकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा तो अपने अस्तित्व को ही खो बेठी थी... आपने ही आकर मुझे सत्यता से संवारा है... और *मुझे देह की मिटटी से छुड़ाकर, हीरे जैसा पुनः निखारा है... आपके प्यार मै आत्मा बेहद की समझदार बन गयी हूँ.*.. और जीवन, मूल्यों से सजकर खुबसूरत बन गया है..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से श्रंगारित करते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा ने जो सच्चे ज्ञान से जीवन को खुबसूरत बनाया है... सच्ची खुशियो से सजाया है... सदा उसमे झूमते रहो.*.. स्वयं भगवान धरती पर उतर आया है...शिक्षक बनकर पढ़ा रहा...हीरे जैसा दमका रहा है... और हदो से निकाल कर बेहद के राजो से भरपूर कर रहा है... इस मीठे भाग्य के नशे में और मीठे बाबा की यादो में गहरे डूब जाओ...."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे खजाने लेकर रत्नों से भरपूर होकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी सारी दौलत पाने वाली, और *सुखो भरी सतयुगी दुनिया की अधिकारी हूँ... इस मीठी ख़ुशी ने मुझ आत्मा के आनन्द को चरमसीमा पर पहुंचा दिया है.*.. ज्ञान रत्नों से आबाद होकर, देवताई गुणो और शक्तियो से सज धज कर मै आत्मा... विशाल बुद्धि बन, आपकी यादो की गहराई में डूबी हुई हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची ख़ुशी से भरकर मुझे अपनी बाँहों में समाकर कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता से पायी अमूल्य शिक्षाओ को सदा दिल में समाये... मा नॉलेजफुल बनकर... जीवन के हर कर्म में उसकी झलक दिखाओ... दुरांदेशी बनकर, दूर देश में रहने वाले प्यारे बाबा की यादो में खो जाओ... *विशाल बुद्धि बनकर स्वदर्शन चक्र फिराते रहो...और खोयी हुई दिव्यता और शक्तियो को पुनः पाकर, खुशियो में खिल जाओ.*..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के असीम प्यार और शिक्षाओ को जीवन के हर कर्म में झलका कर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे.... *कब सोचा था, मेने भला की यूँ भगवान मुझे बेठ पढ़ायेगा... जीवन की हर बात मुझे सिखाएगा.*.. मुझे दुःख के कांटे से, सुख का खुशनुमा फूल फिर से बनाएगा... प्यारे बाबा आपके प्यार को पाने वाली आपकी... शिक्षाओ को दिल में समाने वाली... सबसे खुशनसीब आत्मा हो गयी हूँ..."प्यारे बाबा से प्यारी रुहरिहानं कर... मै आत्मा साकारी देह में लोट आयी....
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको दुबन ( दलदल ) से निकालने की सेवा करना*"
➳ _ ➳ अपने पांच स्वरूपों को स्मृति में ला कर, स्वदर्शन चक्र फिराते हुए अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर मैं विश्व की सेवा अर्थ जैसे ही विश्व भ्रमण के लिए निकलता हूँ। एक दृश्य देख कर मैं अचंभित हो जाता हूँ। *मैं देख रहा हूँ कहीं दूर एक बहुत बड़ा तालाब दिखाई दे रहा है जिसका पानी सोने के समान चमक रहा है और दूर से देखने पर बहुत ही आकर्षित लग रहा है*। सभी मनुष्य उस तालाब को देख, आकर्षित हो कर, उस तलाब के अंदर प्रवेश कर रहें हैं और जैसे ही वो तलाब में प्रवेश करते हैं तालाब का पानी दलदल बन जाता है और सभी उसमें डूबने लगते हैं। *बाहर निकलने के लिए अपने हाथ - पैर चलाते हैं किंतु उसमे और ही गहराई तक धँसते चले जाते हैं और अंत मे उसी दलदल में डूब कर मर जाते हैं*।
➳ _ ➳ तभी मैं अनुभव करता हूँ कि वो तालाब वास्तव में सारी विश्व है और दलदल वास्तव में विकारों की दुबन है जिसमे आज हर मनुष्य डूबा हुआ है। *विकारों की इस दुबन मे जो उन्हें क्षणभंगुर विनाशी सुख भासता है वही बाद में असहनीय दुख का कारण बन जाता है*। सभी इस दुबन से निकलना भी चाहते हैं, प्रयास भी करते हैं किंतु सही विधि ना जानने के कारण उनका हर प्रयास निष्फल हो जाता है और उस दलदल से बाहर निकलने के बजाए उसमें और ही गहरे धंस जाते हैं।
➳ _ ➳ अब पूरा विश्व मुझे विकारों की दुबन से भरा हुआ तालाब दिखाई दे रहा है और उस दुबन मे फँसे अपने ही आत्मा भाइयों को देख मुझे उन पर रहम आ रहा है। *उन्हें विकारों की उस दुबन से बाहर निकालने के लिए अपने प्यारे शिव परम पिता परमात्मा का मैं आह्वान करता हूँ*। सेकण्ड में मैं अनुभव करता हूँ कि मेरे शिव पिता परमात्मा मेरी पुकार सुनते ही ब्रह्मा बाबा के लाइट के शरीर में मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं। *बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं विकारों की दलदल में फंसे अपने आत्मा भाइयो को निकालने की सेवा में लग जाता हूँ*।
➳ _ ➳ मैं अनुभव करता हूँ कि बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं और लाइट की एक तेज धार के रुप में मुझ फ़रिश्ते के मस्तक से निकल कर उन सभी आत्माओं पर पड़ रही है। *लाइट की तेज धार उस दुबन मे फंसी एक - एक आत्मा को अपनी शक्ति से बाहर खींच रही है*। एक - एक करके अपने सभी आत्मा भाइयों को मैं बाबा द्वारा मिली शक्ति से खींच कर बाहर निकाल रहा हूँ। हर आत्मा उस दुबन से बाहर निकल कर जैसे सुख की सांस ले रही है।
➳ _ ➳ अपने सभी आत्मा भाइयों को विकारों की उस दलदल से निकाल एक सुंदर बगीचे में ला कर, कम्बाइंड स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं उन्हें सदा के लिए विकारो की दुबन से निकलने का सत्य मार्ग बता रहा हूँ। *परमपिता का संदेशवाहक बन अपने उन सभी आत्मा भाइयों को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रहा हूँ*। आत्मा और परमात्मा का वास्तविक परिचय पा कर और विकारो की दुबन से सदा के लिए निकलने का सत्य मार्ग जान कर सभी के चेहरों पर एक दिव्य अलौकिक मुस्कान दिखाई देने लगी है। *परमात्म शक्तियां सर्व आत्माओं के ऊपर निरन्तर पड़ रही हैं और सभी परमात्म पालना के अनुभव का सुख प्राप्त कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ सबको परमात्म ज्ञान दे कर, विकारों की दुबन से निकलने का रास्ता बता कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ। *अब मैं सदैव इस बात को स्मृति में रखती हूँ कि मेरे शिव पिता परमात्मा ने मुझे अपने सभी आत्मा भाइयों को विकारो की दुबन से निकालने की सेवा अर्थ मुझे इस धरा पर भेजा है*। इस स्मृति में स्थित हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को जो विकारों की दलदल में फंसी हुई है, उन्हें ईश्वरीय ज्ञान दे कर इस दुबन से बाहर निकालने की सेवा में सदा बिज़ी रहती हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ " *ड्रिल:- मैं आत्मा सदा ऊँची स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहती हूं*
➳ _ ➳ *मैं सर्वशक्तिमान पिता की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं...* स्वयं परमात्मा ने मुझे चुना है सदा इसी नशे में रहती मैं आत्मा अपने आपको ऊंचाई पर स्थित देखती हूँ... *ये ऊंची स्थिति ही मेरा श्रेष्ठ आसन है और इस पर स्वयं मेरे बाबा ने मुझे बिठाया है... ये ऊंची स्थिति ही मुझे माया के भिन्न भिन्न वारो से बचा कर रखती है...*इतनी ऊंचाई पर चढ़ना माया के बस की बात नहीं है... उसकी इतनी ताकत ही नहीं है... *बस बाबा के दिये इन्हीं श्रेष्ठ आसनों पर स्थित हो कर... मैं आत्मा माया को हार खिलाती रहती हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शांति का दूत बन शांति का दान देने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *शांति के सागर की संतान... मैं आत्मा... मास्टर शांतिदूत हूं... बाप समान महादानी, वरदानी आत्मा हूं... जो बाप का धंधा... वही मुझ आत्मा का मुख्य धंधा है...* मैं आत्मा... स्वयं को और बाबा को पहाड़ी पर इमर्ज करती हूं... मैं और बाबा... पहाड़ी की चोटी पर विद्यमान है... *मैं आत्मा देखती हूं... समस्त संसार पहाड़ी के नीचे... बाप और मुझ आत्मा से सकाश ले रहे हैं...* मैं स्वयं को बाप समान... संपूर्ण सम्पन... महसूस करती हूं... *मैं आत्मा देखती हूं... सृष्टि परिवर्तन हो समस्त संसार से... अशांति के बादल हट रहे हैं... सभी आत्माएं शांति को प्राप्त... शांति से तृप्त हैं...* मैं आत्मा पुरानी कलयुगी सृष्टि का विनाश... तथा सतयुगी सृष्टि का आरंभ देख रही हूं...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *चाहे विदेशी, चाहे भारतवासी दोनों ही भाग्य विधाता के बच्चे हैं इसलिए हर ब्राह्मण बच्चा विजयी है।* सिर्फ हिम्मत को इमर्ज करो। हिम्मत समाई हुई है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो- ऐसे हो ना? (सभी हाथ हिला रहे हैं) हाथ तो बहुत अच्छा हिलाते हैं। *अभी मन से भी सदा हिम्मत का हाथ हिलाते रहना। बापदादा को खुशी है, नाज है कि मेरा एक-एक बच्चा अनेक बार का विजयी है। एक बार नहीं, अनेक बार की विजयी आत्मायें हो।* तो कभी यह नहीं सोचना, पता नहीं क्या होगा? होगा शब्द नहीं लाना। विजय है और सदा रहेगी।
➳ _ ➳ 2. *मायाजीत हैं। हम नहीं होंगे तो और कौन होगा, यह रूहानी नशा इमर्ज करो।* और-और कार्य में मन और बुद्धि बिजी हो जाती है ना तो नशा मर्ज हो जाता है। लेकिन बीच-बीच में चेक करो कि कर्म करते हुए भी यह विजयीपन का रूहानी नशा है? *निश्चय होगा तो नशा जरूर होगा।* *निश्चय की निशानी नशा है और नशा है तो अवश्य निश्चय है। दोनों का सम्बन्ध है।*
➳ _ ➳ बापदादा के पास बच्चों के पत्र वा चिटकियां बहुत अच्छे-अच्छे हिम्मत की आई हैं कि हम अब से 108 की माला में अवश्य आयेंगे। बहुतों के अच्छे-अच्छे उमंग के पत्र भी आये हैं और रूह-रिहान में भी बहुतों ने बापदादा को अपने निश्चय और हिम्मत का अच्छा समाचार दिया है। *बापदादा ऐसे बच्चों को कहते हैं - बाप ने आप सबके बीती को बिन्दू लगा दिया।* इसलिए बीती को सोचो नहीं, अब जो हिम्मत रखी है, हिम्मत और मदद से आगे बढ़ते चलो। *बापदादा ऐसे बच्चों को यही वरदान देते हैं - इसी हिम्मत में, निश्चय में, नशे में अमर भव।*
✺ *ड्रिल :- "निश्चय बुद्धि बन विजयीपन के रूहानी नशे का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता उड़ती हुई ऊंची पहाड़ी पर आकर बैठ जाती हूँ...* और देखती हूँ कि दूर देश के फ़रिश्ते भी उड़ कर कभी पावन भारत भूमि पर आते तो कभी चले जाते... सबके मन खुशियों से, उमंग से भरे हुए हैं... हैं तो सभी भाग्य विधाता के बच्चे, ब्राह्मण बच्चे... कल-कल बहते पानी की मधुर आवाज से मन मगन हो जाता है... और *बुद्धि के पटल पर चलचित्र चलने लगता है.... इसमें मेरी ही कल्प-कल्प की कहानी चल रही है...*
➳ _ ➳ *मैं विजयी आत्मा हूँ... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि हूँ... और इसी नशे का अनुभव कर रही हूँ की मैं आत्मा सिर्फ एक बार की नहीं... बल्कि अनेक बार की कल्प कल्प की विजयी आत्मा हूँ।* बापदादा रूहानी दृष्टी देते हुए मुझ आत्मा को... विजयी भव का वरदान दे रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा से इस वरदान को पाकर मास्टर सर्वशक्तिवान की पॉवरफुल स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति मुझे मायाजीत बनाती जा रही है... *माया के हर मुखौटे को परखने की कसौटी से उन पर जीत पाती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि की यह अवस्था मुझ आत्मा को अत्यंत ही सुखदायी रूहानी नशे का अनुभव करवा रही है...* मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर अपना हर कर्म विजयी मूर्त आत्मा के इसी रूहानी नशे में स्थित होकर कर रही हूँ... और सदैव बापदादा की छत्रछाया में रहते हुए हर सेकंड अपने अलौकिक मार्ग में तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए हर कार्य में सफलता का अनुभव कर रही हूँ... *स्वयं भगवान मेरा साथी है - यह रूहानी नशा मुझ आत्मा को निडर बना मायाजीत अवस्था का अनुभव करवा रहा है...*
➳ _ ➳ *मैं परम पवित्र आत्मा अपने में निश्चय और हिम्मत का बल अनुभव करती हूँ...* बीती को बीती कर आगे बढ़ती जा रही हूँ... सभी सोच-फिकर बापदादा को देकर हल्की हो गयी हूँ... अब मैं आत्मा अपने हर कर्म में हर कदम पर हिम्मत का एक कदम उठा बापदादा की हज़ार गुना मदद का अनुभव कर रही हूँ... और मेरा यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन सम्पूर्ण निर्विघ्न होता जा रहा है... अब जबकि परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा की सभी बीती को बिंदु लगा दिया है... मैं आत्मा 108 की विजयमाला में होने का अनुभव कर रही हूँ... *कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ... ओम् शान्ति।*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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