━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 11 / 07 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ कर्म किये ?*

 

➢➢ *बहुतों को योगी बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *पूरा पूरा नष्टोमोहा बनकर रहे ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ टे श्रेष्ठ बनायी ?*

 

➢➢ *संतुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखा ?*

────────────────────────

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए बाप की आज्ञा का उल्लंघन तो नहीं किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

➳ _ ➳  जैसे कल्प पहले का भी गायन है अर्जुन का - साधारण सखा रूप भी देखा लेकिन वास्तविक रूप का साक्षात्कार करने के बाद वर्णन किया कि आप क्या हो! इतना श्रेष्ठ और वह साधारण सखा रूप! इसी रीति आपके भी साक्षात्कार होंगे चलते-फिरते। दिव्य दृष्टि में जाकर देखें वह बात और है। जैसे शुरू में चलते-फिरते देखते रहते थे। यह ध्यान में जाकर देखने की बात नहीं। *जेसे एक साकार बाप का आदि में अनुभव किया वैसे अंत में अभी सबका साक्षात्कार होगा।* यह साधारण रूप गायब हो जावेगा, फरिश्ता रूप या पूज्य रूप देखेंगे। जैसे शुरू में आकारी ब्रह्मा और श्रीकृष्ण का साथ-साथ साक्षात्कार होता था। वैसे अभी भी यह साधारण रूप देखते हुए भी दिखाई न दे। आपके पूज्य देवी या देवता रूप या फरिश्ता रूप देखें। *लेकिन यह तब होगा जब आप सबका पुरुषार्थ देखते हुए न देखने का हो - तब ही अनेक आत्माओं को भी आप महान आत्माओं का यह साधारण रूप देखते हुए भी नहीं दिखाई देगा।* आँख खुले-खुले एक सेकण्ड में साक्षात्कार होगा। ऐसी स्टेज बनाने के लिए विशेष अभ्यास बताया कि देखते हुए भी न देखो, सुनते हुए भी न सुनो। *एक ही बात सुनो और एक बिन्दु को ही देखो।* विस्तार को न देख एक सार को देखो। विस्तार को न सुनते हुए सदा सार को ही सुनो। ऐसे जादू की नगरी यह मधुबन बन जावेगा - तो सुना *मधुबन का महत्व अर्थात मधुबन निवासियों का महत्व।*

 

✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  रूहानी सेना बन, विश्व के रक्षक होने के शुद्ध नशे में रहना"*

 

_ ➳  मीठे मधुबन के शांति स्तम्भ की शांत तरंगो में एकांत में बेठ... मीठे बाबा के प्यार में मगन, मै आत्मा अपने ज्ञान धन को निहार रही हूँ, और सोच रही हूँ... कितने अथाह खजानो से मीठे बाबा ने मुझे भर कर धनवान् बना दया है... *इतनी अमीरी से सजाकर भगवान ने जनमो की तपस्या का फल दे दिया है.*. और सामने बाबा कब से खड़े मेरे मन भावो को पढ़ते पढ़ते मुस्कराते जा रहे है...

 

   मीठे बाबा मुझ आत्मा में महान भाग्य की अनुभूतियों को जगाते हुए बोले :- " मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता द्वारा पसन्द किये गए, भाग्यवान फूल हो... और रूहानी सेना बनकर मुस्करा रहे हो... *ईश्वरीय याद द्वारा असीम शक्तियो स्वयं में भरकर विश्व रक्षक हो गए हो.*.. सर्व आत्माओ को आप समान सुखी बना रहे हो..."

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को पाकर ख़ुशी से झूम रही हूँ और कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... *आपसे पायी जिन खुशियो में मै आत्मा मुस्करा रही हूँ..*. उन्ही खुशियो को हर दिल पर दिल खोल कर लुटा रही हूँ... सबके जीवन को विकारो से मुक्त कराकर... सच्चे सुख शांति को आपसे दिलवा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा अपने सारे खजाने मुझ पर लुटाते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वरीय बाँहों में रूहानी सेना बनकर पूरे विश्व का कल्याण करने वाले हो... *अपने इस भाग्य को बार बार स्म्रति में रखकर शुद्ध नशे से भर जाओ..*. श्रीमत पर चलकर रावण राज्य का सफाया कर... सुखो भरा रामराज्य लाने वाले महान भाग्यवान हो..."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा और अपने महान भाग्य की स्म्रति में खोयी हुई कह रही हूँ :- "प्राणप्रिय बाबा मेरे... देह समझ कर सदा असुरक्षित थी.. और *आत्मिक स्वरूप में कितनी निश्चिन्त और निर्भय बन गयी हूँ..*. माया के हर वार से सावधान होकर... सबकी रक्षा करने वाली रूहानी सेना बन मुस्करा रही हूँ..."

 

   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को रूहानी नशे से भरते हुए ज्ञान वर्षा में भिगो रहे है और कह रहे है :- "प्यारे सिकीलधे बच्चे मेरे... रूहानी सेना बनकर विश्व धरा को सुखो की बगिया बनाओ... सबको विकारो रुपी रावण से मुक्त कराकर देवताई राज्य भाग्य दिलवाओ... *ईश्वरीय खजानो के मालिक बनाकर, सबके दामन में असीम खुशियो को सजाओ..*."

 

_ ➳  मै आत्मा अपने भाग्य की खूबसूरती पर मोहित होकर मीठे बाबा से कहती हूँ :- "प्यारे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपसे अथाह शक्तियाँ पाकर पूरे विश्व में सुख शांति की मीठी बयार ला रही हूँ..*. ज्ञान रत्नों को अपनी झोली से छलका कर.. सबको ज्ञान सागर पिता का दीवाना बना रही हूँ..." मीठे बाबा से प्यार भरी रुहरिहानं कर मै आत्मा स्थूल जग में आ गयी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- श्रीमत पर चल सदा श्रेष्ठ कर्म करते, पूरा पूरा नष्टोमोहा बनना*"

 

_ ➳  अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा, श्रेष्ठ कर्म सिखला कर जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परम पिता परमात्मा शिव बाबा का दिल ही दिल मे मैं शुक्रिया अदा करती हूं जिन्होंने मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा हीरे तुल्य बना दिया। अपनी *मनमत पर और आसुरी मनुष्यों की मत पर चल कर आज तक केवल दुख और निराशा का ही अनुभव किया किन्तु मेरे दिलाराम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ शिव बाबा ने आ कर मेरे जीवन को सुखी और शांतमय बना दिया*। कदम कदम पर मेरे मीठे बाबा ने मुझे श्रीमत दे कर मेरी हर मुश्किल को सहज बना दिया। अपने प्यारे बाबा की अपने ऊपर असीम अनुकम्पा का अनुभव करते ही मैं खो जाती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा की मीठी यादों में।

 

_ ➳  मीठे बाबा की मीठी यादें दिल को असीम सुकून देने वाली है, दुःखो से किनारा करवाकर सुखों से भरपूर करने वाली हैं। इस असीम सुख और सुकून का अनुभव करते करते देह से न्यारी हो कर मैं आत्मा *उमंग उत्साह के पंख लगा कर, ऊंची उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा के पास निर्वाणधाम जहां मेरे दिलाराम बाबा निवास करते हैं*। शांति की ऐसी दुनिया जहां पहुंचते ही आत्मा गहन शांति के अनुभव में खो कर तृप्त हो जाती है। उसी शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में आ कर अब मैं आत्मा उनका सच्चा और निस्वार्थ प्रेम पा कर सपष्ट अनुभव कर रही हूं कि झूठी देह और देह के सम्बन्धो से जुड़ा प्रेम केवल और केवल स्वार्थ से भरा है।

 

_ ➳  अपने दिलाराम मीठे बाबा का निस्वार्थ प्यार पा कर अब मैं देह और देह के सम्बन्धो से सहज ही नष्टोमोहा बनती जा रही हूं। *बाबा का असीम प्यार और दुलार बाबा से आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों के रूप में निरन्तर मुझ आत्मा पर बरस रहा है*। सर्वशक्तियों की शीतल छत्रछाया मुझ पर निरन्तर सर्वशक्तियों की मीठी मीठी फुहारें बरसा रही है। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा झूल रही हूं। बाबा से असीम स्नेह पा कर, सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ अपनी साकारी देह में।

 

_ ➳  बाबा के प्रेम के रंग में रंगी अब मैं आत्मा देह और देह की दुनिया में रहते हुए भी स्वयं को इस नश्वर दुनिया से न्यारा अनुभव कर रही हूं। अब मेरे सर्व सम्बन्ध केवल मेरे दिलाराम बाबा के साथ हैं। *उनसे सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए मैं देह और देह से जुड़े सम्बन्धों से सहज ही उपराम होती जा रही हूं*। देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बीच रहते भी उनसे तोड़ निभाते अब मेरा बुद्धि योग केवल मेरे दिलाराम बाबा के साथ जुटा हुआ है। किसी भी प्रकार का कोई भी बोझ अब मुझ आत्मा को भारी नही बना रहा। *प्रवृति में रहते, ट्रस्टी हो कर हर जिम्मेवारी सम्भालते अब मैं नष्टोमोहा बन हल्केपन का अनुभव कर रही हूं*। अपने प्यारे दिलाराम बाबा के साथ जीवन को जीने का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूं।

 

_ ➳  श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ अपने शिव पिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर हर कदम चलते हुए अब मैं अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना रही हूं। *बापदादा द्वारा मिले ज्ञान, गुणों और शक्तियों के श्रृंगार को धारण कर श्रृंगारीमूर्त आत्मा बन मैं अनेकों आत्माओं को दिव्य गुणों का श्रृंगार कराए उनके कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने में सहयोगी बन रही हूं*। बाबा की श्रीमत पर चल भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं आत्मा निरन्तर कर रही हूं।

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बना रही हूँ।"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा भाग्य विधाता बाप की संतान श्रेष्ठ भाग्यवान हूँ... भाग्य विधाता बाप ने याद और सेवा की यह विधि ऐसी दी है जिससे मैं आत्मा जितना चाहे उतना अपना श्रेष्ठ भाग्य बना सकती हूँ...* स्वयं परमात्मा ने भाग्य लिखने की कलम मुझ आत्मा को दे दी है... मैं आत्मा सिर्फ याद और सेवा में सदा बिजी रहती हूँ... यह दोनों ऐसे नेचुरल हो गए हैं जैसे शरीर में श्वास नेचुरल है... *मैं आत्मा हर समय एक की लगन में मगन रहती हूँ... हर कर्म, हर सेवा को बाबा की याद में ही करती हूँ... मैं आत्मा अपने दिल को एक बाबा को समर्पित कर चुकी हूँ...* मुझ ब्राह्मण आत्मा की जन्म-पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छे हैं... जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा वो और अच्छा और जो होने वाला है वह भी बहुत-बहुत अच्छा ही होगा... *मुझ आत्मा के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर लिखी हुई है… मैं आत्मा याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बना रही हूँ…* 

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  संतुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखते हुए संतुष्टमणि बनने का अनुभव करना "*

 

_ ➳  भ्रकुटी के मध्य में चमकती हुई... मैं एक चैतन्य शक्ति आत्मा... संतुष्टमणि हूँ... *मैं सत्य... अविनाशी आत्मा... परमधाम से इस तन में अवतरित हुई हूँ... साक्षी दृष्टा बन दुनिया के... परिस्थिति के हर खेल को देख रही हूँ...* अपनी वाणी व्यवहार से... संपर्क में आने वाली हर दूसरी आत्मा को सुख दे रही हूँँ... वह भी संतुष्टता का अनुभव कर रही है... *इस दिव्य जीवन का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा... संतुष्टता की सीट पर बैठी हुई हूँ... परिस्थिति के हर खेल पर विजय प्राप्त कर रही हूँ...* मंज़िल की ओर बढ़ते हुए... हर्ष और संतुष्टता का अनुभव कर रही हूँ... मुझ मास्टर सागर की अचल अडोल अवस्था के सम्मुख... हर परिस्थिति छोटी सी अनुभव हो रही है...

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  और कई अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं - *मेरी इच्छा नहीं थी लेकिन किसी को खुश करने के लिए किया! क्या अज्ञानी आत्मायें कभी सदा खुश रह सकती हैंऐसे अभी खुशअभी नाराज़ रहने वाली आत्माओं के कारण अपना श्रेष्ठ कर्म और धर्म छोड़ देते हो जो धर्म के नहीं वह ब्राह्मण दुनिया के नहीं*। *अल्पज्ञ आत्माओं को खुश कर लिया लेकिन सर्वज्ञ बाप की आज्ञा का उल्लंघन किया ना*! तो पाया क्या और गंवाया क्या! जो लोक अब खत्म हुआ ही पड़ा है। चारों ओर आग की लकड़ियाँ बहुत जोर शोर से इकट्ठी हो गई हैं। लकड़ियाँ अर्थात् तैयारियाँ। जितना सोचते हैं इन लकड़ियों को अलग-अलग कर आग की तैयारी को समाप्त कर दें उतना ही लकड़ियों का ढेर ऊँचा होता जाता है। जैसे होलिका को जलाते हैं तो बड़ों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी लकड़ियाँ इकट्ठी कर ले आते हैं। नहीं तो घर से ही लकड़ी ले आते। शौक होता है। तो आजकल भी देखो छोटे-ोटे शहर भी बड़े शौक से सहयोगी बन रहे हैं। तो ऐसे लोक की लाज के लिए अपने अविनाशी ब्राह्मण सो देवता लोक की लाज भूल जाते हो! कमाल करते हो! यह निभाना है या गंवाना है! इसलिए *ब्राह्मण लोक की भी लाज स्मृति में रखो। अकेले नहीं होबड़े कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखो*।

 

✺ *"ड्रिल :- अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए बाप की आज्ञा का उल्लंघन नही करना*"

 

_ ➳  शान्त, मगर निश्चय में अडोल... नदी का किनारा *उमंगों से भरपूर इठलाती... किनारों की मर्यादा में बहती नदी की धारा*... अपने प्रियतम सागर से मिलने को आतुर

गुनगुनाती हुई बहती जा रही है... *सफर लम्बा है, दुश्वारियों से भरा है, मगर प्रेम इन दुश्वारियों से कब डरा है*... नदी की धारा में मोती चुगती दूधिया हंसो की टोली... और *मैं आत्मा हंसिनी, उन्हीं किनारों पर सूर्य की किरणों के रथ पर सवार उतरते अपने शिव प्रियतम को निहारती हुई*... सुनहरें प्रकाश से चमक उठी है नदी की धाराएँ... मन खुशी से मानो गा उठा है... *यूँ खातिर मेरे तुम जो तशरीफ़ लाये, है मुझसे मोहब्बत, ये दिल मेरा गाये*...

 

_ ➳  सोना बरसाती हुई मेरे शिव प्रियतम की किरणें, गहन शान्ति की अनुभूति करा रही है... मेरा मन पूरी तरह शान्ति की चरम अनुभूतियों में डूबा हुआ... *मैं आत्मा ड्रामा के इस चक्र में अपनी जन्म जन्मान्तर की यात्रा का दर्शन करती हुई*... परम धाम में बिन्दु रूप में... शान्ति सागर में गहराई में गोते लगाती हुई... सभी आत्माओं को शान्ति के प्रकंम्पन प्रदान कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा देवताई शरीर धारण कर सतयुगी सृष्टि में पार्ट बजा रही हूँ... सम्पूर्ण सुखों का उपभोग करते हुए अब मेरी गिरती कला की शुरूआत हो चुकी है... और मैं आत्मा, स्वयं को रावण की कैद में देख रही हूँ... *मैं बन्दी कैसे बनी, मुझे आहिस्ता- आहिस्ता सब कुछ याद आ रहा है*...

 

_ ➳  मुझे याद आ रहा है... *अज्ञानी रावण को खुश करने के लिए श्रीमत का उल्लंघन करना, मर्यादा की लकीर को लांघकर कुटिया से बाहर कदम रखना... और फिर मेरा मेरे ही वजूद से लम्बा वनवास*... अशोक वाटिका से शोक वाटिका का मेरा आश्रय बन जाना...

 

_ ➳  एक लम्बें इन्तज़ार और भटकन के बाद आज फिर से मेरे शिव प्रियतम ने मुझे ढूँढ लिया है... और मुझे याद दिलाई है मेरे शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप की... कानो में धीरे से आकर गुनगुना दिया है... *अकेले नही हो तुम, बडे कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखना*... मैं आत्मा प्रतिज्ञा कर रही हूँ... *अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए मैं अब कभी बाप की आज्ञा का उल्लंघन नही करूँगी...* कभी खुश कभी नाराज़ रहने वाली आत्माओं के लिए मैं अपनी ब्राह्मण कुल का श्रेष्ठ धर्म और कर्म नही छोडूगीँ, अल्पज्ञ के लिए मैं सर्वज्ञ की आज्ञा का उल्लघंन नही करूँगी..

 

_ ➳  *आकाश से फूलों की बारिश करते बाप दादा... मेरे मस्तक पर विजय तिलक लगाते हुए, मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे सफलता मूर्त का वरदान दे रहे है*... नदी से निकलकर हंसों की टोली ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है... मानों मुझ में और मेरी प्रतिज्ञा में अपना निश्चय प्रकट कर अपनी खुशी जाहिर कर रहे हों... *ये लहरे ये किनारें, ये हंसों की टोली मेरे बाबा की मीठी बोली मेरे श्रेष्ठ कुल का गुणगान कर रही है*...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━