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❍ 26 / 09 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *सर्विस के लिए विचार सागर मंथन किया ?*
➢➢ *लोकिक के बीच में रहते भी पारलोकिक बाप को याद किया ?*
➢➢ *श्रेष्ठ पुरुषार्थ से अपनी ऊंची प्रालब्ध बनाई ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *बुराई में भी बुराई न देख अच्छाई का पाठ पड़ा ?*
➢➢ *साइलेंस की शक्ति से बुराई को अच्छाई में परिवर्तित किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ कोई भी किसी के वश हो जाता तो वश हुई आत्मा मजबूर हो जाती है और *मालिक बनने वाली आत्मा* कभी किसी से मजबूर नहीं होती, *अपने ‘स्वमान' में मजबूत होते है।* कई बच्चे अभी भी कभी-कभी किसी-न-किसी कर्मन्द्रिय के वश हो जाते हैं, फिर कहते हैं - आज आँख ने धोखा दे दिया, आज मुख ने धोखा दे दिया, दृष्टि ने धोखा दे दिया।
〰✧ परवश होना अर्थात धोखा खाना और *धोखे की निशानी है - दु:ख की अनुभूति होना।* और धोखा खाना चाहते नहीं हैं लेकिन न चाहते हुए भी कर लेते हैं, इसको ही कहा जाता है - वशीभूत होना। दुनिया वाले कहते हैं - चक्कर में आ गये. चाहते भी नहीं थे लेकिन पता नहीं कैसे चक्कर में आ गये।
〰✧ आप स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा किसी धोखे के चक्कर में नहीं आ सकती क्योंकि *स्वदर्शन चक्र अनेक चक्कर से छुडाने वाला है।* न सिर्फ अपने को, लेकिन औरों को भी छुडाने के निमित बनते हैं। अनेक प्रकार के दु:ख के चक्करों से बचने के लिए सोचते हैं - इस सृष्टि-चक्र से निकल जायें। लेकिन *सृष्टि चक्र के अंदर पार्ट बजाते हुए अनेक दु:ख के चक्करों से मुक्त हो जीवनमुक्त स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं* - यह कोई नहीं जानता है।
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दुरांदेशी विशाल बुद्धि से सच और झूठ का कन्ट्रास्ट सिद्ध करना*"
➳ _ ➳ मै आत्मा कभी अनुभवी थी, सिर्फ झूठ की ठोकरों की... मीठे बाबा ने *जीवन में आकर सत्य का खुबसूरत सवेरा दिखाकर*...मेरे जनमो के अंधकार को एक सेकण्ड में दूर कर दिया...और *आज सच की खनक से जीवन गुंजायमान हो उठा है*... अज्ञान के अंधेरो की आदी मै आत्मा... इसी को जीवन की नियति मानकर जीती जा रही थी... कि सहसा *भगवान ने जीवन में प्रवेश कर... मेरे जीवन से हर झूठ का सफाया कर दिया... मुझे तीसरा नेत्र देकर मुझे त्रिनेत्री सजा दिया.*.. इस नेत्र की बदौलत मै आत्मा अपने खुबसूरत सतयुग को निहार कर... आनन्द की चरमसीमा पर हूँ... और *आनन्द की यही लहरे... हर दिल पर उछालने वाली, ज्ञान गंगा बन मुस्करा रही हूँ.*.. दिल की यह बात मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में प्रवेश करती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अथाह ज्ञान रत्नों की जागीर सौंपते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे...ईश्वर पिता ने मा नॉलेजफुल बनाकर ज्ञान के तीसरे नेत्र से रौशन किया है... तो सत्यता की इस रौशनी मे सच और झूठ का फर्क सिद्धकर दिखाओ... विश्व को ज्ञान की सत्य राहों का मुरीद बनाओ... *अज्ञान के अंधेरो से हर दिल को निकाल कर... सत्य की चमकती मुस्कराती राहों पर चलाओ.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में असीम ख़ुशी को पाकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा अज्ञान की फिसलती राहो पर चलती हुई गर्त में जा रही थी... आपने मेरा हाथ पकड़कर, मुझे इस दलदल से निकाल, अपने दिल में बसा लिया है... मै आत्मा *इस सत्य का शंखनाद कर, हर दिल को जगा रही हूँ...और सच की चमक से भरे... जीवन की सौगात हर दिल को दिला रही हूँ.*.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी सम्पत्ति का मालिक बनाते हुए कहा:-" मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सत्य पिता की सत्य भरी बाँहों में जो महके हो... उस ज्ञान की खशबू से हर मन को सुवासित करो... ईश्वर पिता द्वारा सुनी हुई सत्य की लहर को पूरे विश्व में बहाकर, अज्ञान का सूखापन मिटाओ... *दुरांदेशी विशाल बुद्धि बनकर,सच और झूठ का भेद सिद्ध कर, अज्ञान का पर्दा उठाओ..*.
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से ज्ञान धन का अखूट खजाना अपनी बाँहों में भरते हुए कहती हूँ :-"मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के भान में पतित हो चली बुद्धि संग यहाँ वहाँ कितना भटक रही थी... आपने प्यारे बाबा *अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर... मुझे पावनता से सजाया है... बेहद का ज्ञान देकर मुझे दुरांदेशी बना दिया है.*.. अब यह ख़ुशी मै आत्मा.... हर मन को बाँट रही हूँ... भक्ति और ज्ञान का सच्चा फर्क समझा कर... आप समान बेहद का समझदार बना रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान की कूक सुनाने वाली ज्ञान बुलबुल बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता से जिन सच्ची खुशियो को बाँहों में समाकर... इस कदर खुशनुमा बने हो,.. यह सच्ची खुशियां सबके दामन में भी सजा आओ... *झूठ के दायरे से बाहर निकाल सच के सूर्य का अहसास कराओ... हर दिल सच्चाई को ही तो ढूंढ रहा है... उनकी मदद करने वाले सच्चे रहनुमा बनकर.*.. उन्हें भी आप समान ज्ञान का धनी बनाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से सारी शक्तियो को लेकर, शक्तिशाली बनकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *सच की झनकार को पूरे विश्व में गूंजा रही हूँ... सबके मनो की उलझन को सुलझाकर, सच का सुनहरा सवेरा दिखा रही हूँ..*. मीठे बाबा आपने जो सत्य मुझ आत्मा को दिखाकर देह के जंजालों से छुड़ाया है... मै आत्मा सबके दामन में यह प्रकाश खिला रही हूँ... प्यारे बाबा से वरदानों की सौगात लेकर मै आत्मा कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रेष्ठ पुरूषार्थ से अपनी ऊंच प्रालब्ध बनाना*"
➳ _ ➳ अपनी आंखों को मूंदे, बाबा के मधुर गीतों को सुनती एक रूहानी, अलौकिक मस्ती में बैठी मैं एक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। इस दृश्य में मैं स्वयं को डबल ताज पहने सतयुग की महारानी के रूप में एक बहुत बड़े राजमहल में देख रही हूँ। *सोने से जड़ित राज सिहांसन पर विश्व महारानी के रूप में मैं बैठी हुई हूँ। सोने से जड़ित एक सुंदर छत्र मेरे सिर के ऊपर शोभायमान हो रहा है*। राजसी ठाठ - बाठ से सुसज्जित मेरे राहमहल में हर चीज आलीशान है। *दास - दासियां, नौकर - चाकर और प्रजा सभी मेरे राज्य में सुख, शांति, सम्पन्नता से भरपूर सुखमय जीवन व्यतीत कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ विश्व महारानी की अपनी इस अतिश्रेष्ठ भविष्य प्रालब्ध के इस अति सुंदर नजारे को देख मन ही मन मैं असीम खुशी और रोमांच से भर जाती हूँ और विचार करती हूँ कि मेरी इस भविष्य ऊंच प्रालब्ध का सारा मदार मेरे अब के ब्राह्मण जीवन के पुरुषार्थ पर है। *अपने ब्राह्मण जीवन की स्मृति आते ही अब मैं अपने ब्राह्मण जीवन की उपलब्धियों में खो जाती हूँ*। अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन को देख मैं विचार करती हूं कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा, जिसे स्वयं भगवान ने करोड़ो आत्माओं में से चुना हैं।
➳ _ ➳ कोटो में कोई, कोई में भी कोई के गायन वाली वो विशेष आत्मा मैं हूँ जिसकी महिमा के गीत रोज स्वयं भगवान गाता है। रोज मुझे स्मृति दिलाता है कि मैं महान आत्मा हूँ। मैं विशेष आत्मा हूँ। मैं इस दुनिया की पूर्वज आत्मा हूँ। *अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन की स्मृति, मुझे मेरे जीवन को ऐसा सर्वश्रेष्ठ बनाने वाले दिलाराम बाबा की याद दिला रही है*। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को याद करते - करते मैं अपने दिलाराम बाबा की मीठी - मीठी यादों में खो जाती हूँ। *मेरी याद संकल्प के रूप में जैसे ही मेरे दिलाराम बाबा तक पहुंचती है उनकी याद का रिटर्न उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में परमधाम से सीधे मुझ आत्मा पर बरसने लगता है*।
➳ _ ➳ मैं अनुभव करती हूँ कि परमधाम से आ रही सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणों से शरीर का भान जैसे धीरे - धीरे समाप्त हो रहा है और मैं अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होने लगी हूँ। मुझे केवल मेरा जगमग करता ज्योतिबिंदु स्वरूप ही दिखाई दे रहा है। *अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित होते ही अब मैं साकारी दुनिया को छोड़ दिव्य प्रकाश से प्रकाशित उस निराकारी दुनिया परमधाम की और जा रही हूँ जो मेरा वास्तविक घर है*। मेरे पिता परमात्मा का घर है। अपने इस मुक्तिधाम, शान्तिधाम घर मे मैं परममुक्ति का, गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। मेरे शिव पिता परमात्मा से सतरंगी किरणे निकल कर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और मैं स्वयं को सातों गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ सर्वगुण सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ इस स्मृति और दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ कि अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन मे श्रेष्ठ पुरुषार्थ करके ऊंच प्रालब्ध बनानी है। *अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन के सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य और अपनी भविष्य 21 जन्मो की ऊंच प्रालब्ध को स्मृति में रख अब मैं केवल अपने पुरुषार्थ पर ध्यान दे रही हूँ*। इस रावण राज्य की विनाशी चीजो को प्राप्त करने में समय ना गंवाकर, ज्ञानी तू योगी आत्मा बन अपने समय को सफल करते हुए अब मैं अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बुराई में भी बुराई को न देख अच्छाई का पाठ पढ़ाने वाली हूँ।*
➳ _ ➳ *प्रजापिता ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मैं रूहानी स्टूडेन्ट... बुराई को न देख अच्छाई का पाठ पढ़ रही हूँ...* मैं ब्राह्मण आत्मा... हर आत्मा में दैवीय... सतयुगी गुणों को ही देखती हूँ.. कलियुगी दुनिया में... कलियुगी संस्कारों के मध्य में मैं आत्मा... *संगमयुगी ब्राह्मण बन शिवबाबा की श्रीमत का पालन कर कलियुगी संस्कारों को न देख दिव्य गुणों को ही देखती हूँ...* परिस्थिति में भी धीरज का... सहनशीलता का पाठ पढ़ सतयुग की स्थापना में बापदादा के साथ साथ कदम से कदम मिलाती हूँ... *बुराई में भी अच्छाई का दीया जलाती मैं आत्मा... बुराई रूपी अँधेरे को समाप्त कर रही हूँ।*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल:- सदा प्रसन्नचित्त रह साइलेंस की शक्ति से बुराई को अच्छाई में परिवर्तन करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा ख़ुशनसीब हूँ... पदमापदम भाग्यशाली हूँ... *कोटों में कोई कोई में से भी कोई जिसे स्वयं भगवान ने चुना है... अपना बच्चा बनाया है... जिसे कब से पुकारती रही कहाँ कहाँ ढ़ूढ़ती रही... स्वयं भगवान ने मुझे ढूंढ़ा... वाह रे मैं आत्मा!!* बाबा से हुई प्राप्तियों की स्मृति में मैं आत्मा सदा प्रसन्नचित्त रहती हूँ... मैं आत्मा अंतर्मुखी रह बस एक की याद में मग्न हूँ... मैं आत्मा याद के बल से पुराने स्वभाव संस्कारों को स्वाहा कर रही हूँ... मैं आत्मा बाबा की शिक्षाओं पर चलते हुए बस हरेक के प्रति शुभ भावना व शुभ कामना ही रखती हूँ... *मैं आत्मा एक की याद में रह साइलेंस का बल जमा करती जा रही हूँ...* मैं आत्मा हरेक में अच्छाई को ही देख अच्छाई को ही धारण करती जा रही हूँ... *स्वयं भगवान मेरा साथी है... हर पल हर कदम पर मेरे साथ हैं*... ऐसा अनुभव करती मैं प्रसन्नचित्त आत्मा साइलेंस के बल से बुराई को अच्छाई में परिवर्तित कर रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *अब मनोबल को बढ़ाओ। बेहद की सेवा जो अभी आप वाणी या संबंध, सहयोग से करते हो, वह मनोबल से करो।* तो मनोबल की बेहद की सेवा अगर आपने बेहद की वृत्ति से, मनोबल द्वारा विश्व के गोले के ऊपर ऊंचा स्थित हो, *बाप के साथ परमधाम की स्थिति में स्थित हो थोड़ा समय भी यह सेवा की तो आपको उसकी प्रालब्ध कई गुणा ज्यादा मिलेगी।*
➳ _ ➳ 2. आजकल के समय और सरकमस्टांश के प्रमाण अन्तिम सेवा यही मन्सा वा मनोबल की सेवा है। इसका अभ्यास अभी से करो। चाहे वाणी द्वारा वा संबंध सम्पर्क द्वारा सेवा करते हो लेकिन अब इस *मन्सा सेवा का अभ्यास अति आवश्यक है, साथ-साथ अभ्यास करते चलो।*
➳ _ ➳ 3. यह मन्सा सेवा वही रंगत दिखायेगी जो स्थापना के आदि में बाप की *मन्सा द्वारा रूहानी आकर्षण ने बच्चों को आकर्षित किया।* और मन्सा सेवा के फल स्वरूप अभी भी देख रहे हो कि वही आत्मायें अब भी फाउण्डेशन हैं। ड्रामा अनुसार यह बाप की मन्सा आकर्षण का सबूत है जो कितने पक्के हैं। तो *अन्त में भी अभी बाप के साथ आपकी भी मन्सा आकर्षण, रूहानी आकर्षण से जो आत्मायें आयेंगी वह समय अनुसार समय कम, मेहनत कम और ब्राह्मण परिवार में वृद्धि करने के निमित्त बनेंगी।* वही पहले वाली रंगत अन्त में भी देखेंगे। जैसे आदि में ब्रह्मा बाप को साधारण न देख कृष्ण के रूप में अनुभव करते थे। साक्षात्कार अलग चीज है लेकिन साक्षात स्वरूप में कृष्ण ही देखते, खाते-पीते चलते थे।
➳ _ ➳ 4. *तो स्थापना में एक बाप ने किया, अन्त में आप बच्चे भी आत्माओंके आगे साक्षात देवी-देवता दिखाई देंगे।* वह समझेंगे ही नहीं कि यह कोई साधारण हैं। वही पूज्यपन का प्रभाव अनुभव करेंगे, तब बाप सहित आप सभी के प्रत्यक्षता का पर्दा खुलेगा। अभी अकेले बाप को नहीं करना है। बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होना है। जैसे स्थापना में ब्रह्मा के साथ विशेष ब्राह्मण भी स्थापना के निमित्त बनें, ऐसे समाप्ति के समय भी *बाप के साथ-साथ अनन्य बच्चे भी देव रूप में साक्षात अनुभव होंगे।*
➳ _ ➳ 5. *अभी सभी अपने अनादि स्वरूप में एक सेकण्ड में स्थित हो सकते हो? क्योंकि अन्त में एक सेकण्ड की ही सीटी बजने वाली है। तो अभी से अभ्यास करो।* बस टिक जाओ। (ड्रिल कराई) अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "मनोबल द्वारा बेहद की सेवा करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *चेतना को भृकुटि के मध्य में केन्द्रित करते हुए, बाह्य जगत, व्यक्त देह सबसे उपराम मैं अति सूक्ष्म ऊर्जा बिन्दु आत्मा हूँ...* समस्त देह में मुझ आत्मा से प्रकाश की किरणें फैल रही हैं... तत्वों से बनी यह देह धीरे-धीरे तत्वों में विलीन हो रही है... अब बच गयीं केवल मैं आत्मा, एक गहन सन्नाटा बाह्य सज्ञां से उपराम, सम्पूर्ण साक्षी भाव धारण कर चलती हूँ... इस जगत से पार, तत्वों से पार, इस स्थूल संसार से पार अपने निजवतन की ओर... वह निराकारी दुनिया मुझे पुकार रही हैं... *अनुभव कर रही हूँ, मैं आत्मा स्वयं को इस निर्विकारी दुनिया में, चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश... डेड साइंलेस, सामने महाज्योती है* ज्ञान सूर्य बाबा से अनंत किरणें निकल मुझ आत्मा पर पड़ रही है...
➳ _ ➳ *महाज्योती सर्वशक्तिमान से सर्व शक्तियाँ मुझमें समा रही हैं... एक-एक शक्ति को अपने अन्दर समाते हुए अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा...* जैसे-जैसे एक-एक शक्ति मेरे अन्दर समा रही है, मुझ आत्मा का प्रकाश बढ रहा हैं... पवित्रता के सागर से पवित्रता की लहरें मुझ आत्मा में समा रही हैं... *जैसे-जैसे एक-एक पवित्र लहर अन्दर समा रही है... अन्दर का व्यर्थ रूपी, विकल्प रूपी किचड़ा समाप्त हो रहा है...* मैं आत्मा समर्थ बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का शुद्धिकरण हो रहा है... *मुझ आत्मा में पवित्रता का प्रकाश बढ रहा है... इससे मुझ आत्मा का मनोबल बढ रहा है... सभी आन्तरिक शक्तियाँ जागृत हो रही है...*
➳ _ ➳ *निर्संकल्प स्थिति का अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा.... सभी व्यर्थ संकल्प विकल्पों से मुक्त एक शक्तिशाली स्थिति, भरपूरता का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा भरपूर होकर, सर्व शक्तियों से सम्पन्न होकर अपनी दिव्य आभा बिखरते हुये अपना चमकीला ड्रेस धारण कर विश्व गलोब के ऊपर जहाँ से मैं इस संसार की हर आत्मा को देख रही हूँ... जिनके खुशियों के सूरज को ग्रहण लग गया है... वे दुख अशांति का जीवन जीने को मजबूर है... सुख-शांति की तलाश में भटक रही है... सच्चे प्यार, सच्ची खुशी को उनकी निगाहें तलाश कर रही हैं... *एक पल की शांति के लिए भी सब तरस रहे हैं...*
➳ _ ➳ *मैं विश्व कल्याणकारी फरिश्ता, शांति का फरिश्ता इस पूरे विश्व गलोब पर शांति की किरणों की वर्षा कर रहा हूँ...* हर आत्मा शांति की अनुभूति कर रही है... बाबा से मिला प्यार मैं फरिश्ता हर आत्मा भाई को दे रहा हूँ... *सभी आत्माएँ सच्चे ईशवरीय प्यार की अनुभूति कर रही है... उनके दिल में प्रभु प्यार उत्पन्न हो रहा है...* मैं पवित्रता का फरिश्ता इस पूरे विश्व गलोब के ऊपर पवित्रता के फूल वर्षा रहा हूँ... ये पवित्रता के फूल हर आत्मा को मिल रहे है... *सुख शांति से उनका जीवन महक रहा है...* सभी सच्चे प्यार, सच्ची सुख-शांति की अनुभूति कर रहे हैं... मैं फरिश्ता सर्व आत्माओं को बाबा का सन्देश दे रहा हूँ... *सर्व आत्माओं को बाबा का सन्देश मिल रहा है... बाबा की सेवा में तीव्र गति से वृद्धि हो रही हैं...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा देख रही स्वयं को कर्मक्षेत्र पर ब्राह्मण चोला धारण किए हुए... *मुझ आत्मा की श्रेष्ठ वृत्ति, शक्तिशाली मन्सा अनेक आत्माओं का कल्याण कर रही है...* सहज ही आत्माओं को सुख, शांति की अनुभूति करा रही है... वायुमंडल को पावरफुल बना रही है... *मैं आत्मा कर्म करते सेकंड में कभी आकारी, कभी निराकारी, और कभी साकारी स्वरूप धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा लाइट हाऊस माइट हाऊस बन गयीं हूँ... जो भी आत्मा मेरे सामने आ रही हैं वे अपने असली स्वरूप का अनुभव कर रही है... खुश और हल्का अनुभव कर रही है* और अपने असली घर का साक्षात्कार कर रही है... वे लाइट और माइट का अनुभव कर रही है... *ईश्वरीय आकर्षण उन्हें आकर्षित कर रहा है...* और सच्चे सुख और शांति की अनुभूति वे आत्माएं कर रही है... और *वे भी अपने सच्चे पिता का परिचय पा रही है...* इस प्रकार बाबा की ये सेवा तीव्र गति से बढ़ रही है... और एक साथ अनेक आत्माओं का कल्याण हो रहा है... *शुक्रिया मीठू बाबा शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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