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 16 / 02 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बापदादा के सामान निरहंकारी और निराकरी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *पवित्रता की राखी बाँधी ?*

 

➢➢ *ज्ञान चिता पर बैठे रहे ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *ट्रस्टीपन की स्मृति से निमित समझ हर कार्य किया ?*

 

➢➢ *हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना रही ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

 

➢➢ *आज बाकी दिनों के मुकाबले एक घंटा अतिरिक्त °योग + मनसा सेवा° की ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - सारे कल्प में बड़े से बड़ी यह हस्ती ब्रह्मा है, इसमे ही बाप प्रवेश करते है, इन्हे ही तुम्हे फॉलो करना है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ब्रह्मा बाप समान निरहंकारी बन चलो... इतनी ऊँची हस्ती होते हुए भी... ब्रह्मा बाबा ने कितना साधारण और सरल सहज बन बच्चों का दिल जीता... और विश्व सेवा में पहला कदम उठाकर पूरा कारवां सजाया... ऐसे *महान पिता के नक्शे कदम पर चलकर* उसी महानता से सज चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा प्यारे *ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर बाप समान होती जा रही हूँ.*.. सदा निरहंकारी और निर्माणता से भरकर... मीठे बापदादा का प्यार सब आत्माओ पर लुटा रही हूँ... साधारण से असाधारण होती जा रही हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ब्रह्मा बाप की अनोखी अदाकारी को अपना कर ऊँचे व्यक्तित्व से सज जाओ... शिव पिता जिसका दीवाना हुआ है... आप बच्चे भी दीवाने बनकर ब्रह्मा समान अदभुत बन जाओ... सरलता सादगी से विश्व के नम्बरवन पद को पाने वाले ब्रह्मा बाबा के कदमो पर कदम रखकर... *शिव वसीयत के मालिक बन जाओ.*..

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा साकार ब्रह्मा के आचरण को जीवन में उतार कर... बाप समान निरखती जा रही हूँ... मीठे ब्रह्मा बाबा ने जो अनोखा रास्ता मुझे सहज ही थमाया है... उसपर चलकर मै आत्मा *ऊंचाइयों के शिखर को छूती जा रही हूँ..*.

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ब्रह्मा बाबा ने सहज ही सब कुछ ईश्वर पिता को सौंप दिया... और साधारण बनकर पुरुषार्थ में नम्बरवन हो चले... *ऐसे महान पिता के आदर्शो पर चलकर आप भी महानता से भर चलो.*.. ब्रह्मा बाबा की अटूट याद और पढ़ाई से प्रेरणा लेकर... उसी एकरस महान स्थिति से सज जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा की बाँहों में पलने वाली सोभाग्यशाली आत्मा हूँ... *निराकार और साकार का प्यार पाकर मै आत्मा मालामाल* और प्यार की धनी हो चली हूँ... ब्रह्मा बाबा की ऊँगली पकड़ ईश्वरीय राहो में संग संग चल रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा डबल लाइट हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने भृकुटी की कुटिया से निकल... पांडव भवन में *बाबा की कुटिया* में पहुंच जाती हूँ... प्यारे बाबा से रूह-रिहान करती हूँ... बाबा, मुझ आत्मा को आजकल हर कार्य में बोझ महसूस हो रहा है... कुछ उपाय बताओ बाबा... बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ प्यार से झूले में बिठाते हैं...

 

➳ _ ➳  बाबा बोले बच्चे चेक करो कहीं गलती से तेरे के बजाए मेरा तो नहीं कहते... मैं *आत्मा स्व चेकिंग करती* हूँ... क्या मैं आत्मा- मेरी जिम्मेवारी है... मेरे को ही सम्भालना है... मेरे को ही सोचना है... ऐसे हर कार्य में मेरा-मेरा करती हूँ? कई जन्मों से मेरा-मेरा करते ही मैं आत्मा देह-भान, और अहंकार के वश हो गई थी...

 

➳ _ ➳  प्यारे बाबा-आपने ही मुझ आत्मा को *ज्ञान देकर स्मृति दिलाई*... योग सिखाकर जन्मों-जन्मों के विकर्मों का नाश कर रहे हो... मुझ आत्मा के गुण, शक्तियां, सारी विशेषताएँ सब आपकी ही देन है... श्रेष्ठ श्रीमत देकर इनको धारण करने की शक्ति भी बाबा आप ही देते हो... मुझ आत्मा को सेवा के निमित्त भी आपने ही बनाया है...

 

➳ _ ➳  बाबा मुस्कुराकर मुझ आत्मा को प्यार से दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की शीतल दृष्टि से... मुझ आत्मा के मैं और मेरेपन के सूक्ष्म अंश जड़ सहित समाप्त होते जा रहे हैं... मैं आत्मा मेरे को तेरे में परिवर्तित करती जा रही हूँ... मैं आत्मा *निमित्तपन की स्मृति में स्थित* होती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  निमित्तपन के भाव से मुझ आत्मा के सारे बोझ सहज खत्म होते जा रहे हैं... अब मैं आत्मा सारी जिम्मेवारी बाबा को सौंप हल्की होती जा रही हूँ... मैं आत्मा डबल लाइट बन उड़ती कला का अनुभव करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने को ट्रस्टी समझ हर कार्य कर रही हूँ... अब मैं आत्मा ट्रस्टी पन की स्मृति से निमित्त समझ हर कार्य करने वाली *डबल लाइट स्थिति का अनुभव* कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना रख हर बोल को समर्थ बनाना"*

 

➳ _ ➳  बोल में बहुत शक्ति हैं... हर बोल को तोल मोल कर बोलना हैं... शब्दों का सीधा असर किसी के भी दिल पर होता हैं...  हर बोल शक्तिशाली हो... समर्थ हो... मुझ आत्मा को अपने बोल पर पूरा-पूरा अटेंशन रखना हैं... *सदा कम बोलना हैं, मीठा बोलना हैं, धीरे बोलना हैं...*

 

➳ _ ➳  जब मेरे हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना हो तो कोई भी मेरा बोल व्यर्थ जा नहीं सकता... मैं सदैव आत्मिक स्थिति में स्थित हो हर आत्मा के साथ व्यवहार में आती हूँ... इससे मेरे बोल स्वतः ही मधुर और उमंग उत्साह भरने वाले निकलते हैं... शुभ भावना के स्टॉक से भरपूर... *मुझ आत्मा के बोल से सर्व के लिए दुआये ही निकलती है...*

 

➳ _ ➳  मेरे बोल सदा ही ज्ञान युक्त और सर्व का भला करने वाले होते हैं... सर्व के लिए शुभ भावना और शुभ कामना के शब्द ही निकलते हैं... *मेरे शब्दों में मेरे ऊँच विचारों की ताकत हैं...* मेरा कोई भी बोल खाली नहीं जा सकता... शब्दों के मूल्यों से ही मुझ आत्मा का मूल्य है... मेरे बोल अमूल्य है...

 

➳ _ ➳  *मेरे वरदानी बोलो ने मुझ आत्मा को बहुत ऊंच और महान बना दिया है...* मेरा हर बोल हीरे तुल्य हैं... आत्मिक भाव और शुभ भाव से बोले गया एक एक बोल जादू का काम करते हैं... मेरे बोल हर आत्मा पर अमिठ छाप छोड़ते हैं... मेरे बोल अन्य आत्माओं को सत्य की और प्रेरित करते हैं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *ट्रस्टी पन की स्मृति से निम्मित समझ हर कार्य करने वाले डबल लाइट होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  निम्मित भाव अर्थात *इस शरीर को बाबा का रथ समझ कार्य में लगाना* बाप चाहे जैसे भी इसका इस्तेमाल करे माना सम्पूर्ण समर्पण । कोई भी कार्य करते निम्मित भाव समझ कार्य करने से बीच में मन में उठने वाले क्या क्यों कैसे किसलिए जैसे सभी प्रश्न स्वतः ही समाप्त हो जाते है और निम्मित भाव समझने के लिए ट्रस्टी पन की स्मृति चाहिए जिससे हर चीज से मैं पन(मेरा पन) का भोज हट सके।

 

 ❉  जितना ज्यादा किसी कार्य में मैं पन आएगा उतना आत्मा परवश होती चली जायेगी और लाइट की जगह हेवी हो जायेगी फिर उतना ही निम्मित समझ कार्य करना बहुत मुश्किल हो जायेगा और जल्दी ही हर कार्य में दिलशिकस्त होने लगेंगे और मेहनत ज्यादा सफलता थोड़ी पाएंगे। जब ये दोनों चीजे होंगी *ट्रस्टी पन की स्मृति और निम्मित भाव* होगा तब आत्मा डबल लाइट स्थिति का अनुभव सहज कर पायेगी।

 

 ❉  इसके लिए ही गायन था *तन मन धन सब तुझको अर्पण क्या लागे मेरा?* लेकिन बाहर आने तक फिर कहते जो तेरा वो भी मेरा... बस यही लाइन एक भोज बन गया । यह मैं और मेरा शब्द दोनो ही देह भान में ले आते है जिससे आत्मा ट्रस्टी पन और निम्मित भाव भूल जाती है जिससे अनेक परिस्थिति का सामना करना पढ़ता है, इसके लिए ही बाबा ने हमको कहा सदा एक दिल में दिलाराम को रखो और कोई भी पूछे तेरा कौन? दिल से कहो *मेरा बाबा* ।

 

 ❉  जैसे शिव बाबा जब ब्रह्माबाबा के तन में आए तो उन्होंने सबसे पहले यही निश्चय करवाया की *तुम अपने जन्मो को नहीं जानते हो, जब मैं आऊँ तभी बताऊँ...* इसी एक महवाक्य को देख ब्रह्माबाबा बस अपने को आत्मा समझ निम्मित भाव से एक एक संकल्प बाबा को देकर वह कार्य करते थे और जब निस्वार्थ सेवा हुई तो सफलता भी मिली और डबल लाइट बन उड़ती कला का अनुभव करवाते रहे ।  ( करणकरावनहार बाबा )

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना हो तो कोई भी बोल व्यर्थ नहीं जा सकता... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जितना आत्मिक स्मृति में रह सम्बन्ध सम्पर्क में आने वालों को *आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का करेंगे उतना ही सर्व के प्रति सदा शुभ भाव और शुभ भावना ही निर्मित होगी* । क्योकि आत्मिक स्मृति होने के कारण कोई भी कैसी भी आत्मा चाहे तमोगुणी, चाहे सतोगुणी सम्पर्क में आएगी किन्तु सर्व के प्रति हर संकल्प और बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना तथा शुभ चिंतक वृति होने के कारण मुख से निकला कोई भी बोल कभी भी व्यर्थ नही जा सकेगा ।

 

❉   जैसे छोटे बच्चे से नासमझी में कोई गलत कर्म भी हो जाता है तो बेसमझ मान कर उसे माफ़ कर दिया जाता है । उसके गलत कर्म पर कोई को उससे घृणा नही होती बल्कि और ही उसके ऊपर रहम व स्नेह आता है । ठीक इसी प्रकार *जब सबके प्रति आत्मिक भाव रखेंगे और स्वयं को सदा शुभ चिंतक, विश्व कल्याणकारी समझेंगे* तो रहम दिल होने के कारण इस प्रकार के व्यर्थ बोल मुख से नही निकलेंगे कि इसने ऐसा क्यों किया बल्कि उसके प्रति निकले हर बोल में कल्याण की भावना होगी ।

 

❉   शुभ चिन्तन में रहना भी मनन है । मनन से जो खुशी रूपी मक्खन निकलता हैवह स्व स्थिति को शक्तिशाली बना देता है और *स्व स्थिति में स्थित आत्मा का कोई भी संकल्प, बोल व कर्म कभी व्यर्थ नही जा सकता* । क्योकि शक्तिशाली स्व स्थिति में स्थित आत्मा की श्रेष्ठ स्थिति श्रेष्ठ स्मृति का आधार बन कर उसे समर्थी स्वरूप आत्मा बना देती है । और सदा समर्थ होने के कारण समर्थी स्वरूप आत्मा का कोई भी बोल व्यर्थ नही जाता क्योकि उसके हर बोल में सर्व के प्रति आत्मिक भाव और शुभ भावना समाई होती है ।

 

❉   जैसे बाप के संस्कार हैं सर्व के प्रति सदा कल्याणकारी, शुभ चिंतनधारी । इसी प्रकार *हम आत्माओं के ओरिजनल संस्कार भी सर्व के प्रति शुभ भावना शुभकामना के हैं* । किन्तु जब देह भान में आ जाते है तो दूसरों की अच्छी व बुरी बात को देख कर उनके प्रति शुभ भाव की बजाए घृणा का भाव मन में आ जाता है तो इसका अर्थ है ओरिजनल संस्कारों पर आसुरी संस्कारों का प्रभाव है । इसलिए जितना देह भान को छोड़ आत्मिक स्मृति में रहने का अभ्यास करेंगे तो सर्व के प्रति आत्मिक और शुभ भाव होने के कारण कोई भी बोल व्यर्थ नही जायेगा ।

 

❉   श्रीमत कहती है कि कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा हमारे सामने आ जाये किन्तु *हमारे सदव्यवाहर को देख उसका स्वभाव संस्कार भी परिवर्तित हो जाये* । अपने रहम की भावना से उन आत्माओं का भी कल्याण हो जाये जो पुराने स्वभाव संस्कारों के परवश हैं और उन स्वभाव संस्कारों के कारण दुखी हो रही हैं । ऐसी शुभ चिंतक वृति धारण कर सर्व आत्माओं का कल्याण तभी कर सकेंगे जब सर्व के प्रति आत्मिकता का भाव होगा शुभभावना, शुभकामना होगी । फिर कोई भी बोल कभी व्यर्थ नही जायेगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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