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 02 / 08 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *गरीबों को ज्ञान धन का दान किया ?*

 

➢➢ *सच्ची दिल से बाप की सेवा में लगे रहे ?*

 

➢➢ *"मेरा तो एक शिव बाबा, दूसरा न कोई" - यह वायदा किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा रोंग को राईट में परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *अपने स्वभाव को सरल बना समय व्यर्थ जाने से बचाया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *सेकंड में विस्तार को सार में समाने का अनुभव किया ?*

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

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➳ _ ➳  *वरदानी रूप द्वारा सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए।* तथा अन्य संकल्पों को सेकण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए। सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराता रहे और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेंस स्वरूप हो जाए अर्थात ब्रेक पॉवरफुल हो। *संकल्प शक्ति* अपने कन्ट्रोल में हो। साथ-साथ आत्मा की और भी विशेष दो शक्तियाँ *बुद्धि और संस्कार*, तीनों ही अपने अधिकार में हो। *तीनों में से एक शक्ति के ऊपर भी अगर अधिकार कम है तो वरदानी स्वरूप की सेवा जितनी करनी चाहिए उतनी नहीं कर सकते।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पवित्र बनने का व्रत लेकर विश्व का मालिक बनना"*

 

➳ _ ➳  रिमझिम फुहारों में भीगती हुई... प्रकर्ति के रंगीन मिजाज का आनन्द लेती हुई... मै आत्मा... अपने सच्चे साथी बाबा को पुकारती हूँ... और अगले ही पल, मीठे बाबा को अपनी आँखों से निहारकर मन्त्रमुग्ध होती हूँ... आनन्द में डूबने के लिए... अब मै आत्मा बादलो की बौछारों की मोहताज नही हूँ... *क्योकि आनन्द का सागर मीठा बाबा ही मेरी बाँहों में भर आया है.*.. और अपने प्यार में मुझे भी प्रेम बदली बना रहा है...

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी फूलो सी गोद में लेकर कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे,.. *ईश्वर पिता हथेली पर असीम सुखो को आप बच्चों के लिए ही तो सजाकर लाया है.*.. इसलिए सदा मीठे बाबा की याद और वर्से के नशे में खोये रहो... पुरानी मान्यताओ को छोड़ कर, सत्य राह का राही बनो... और पवित्र बनकर कृष्णपुरी में आने का सोभाग्य प्राप्त करो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को अपनी यादो में बसाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन को कितना हल्का प्यारा और श्रेष्ठ बना दिया है... रूढ़ियों में फंस कर जीवन सत्य से कोसो दूर था... *आपने आकर सत्य के प्रकाश से इसे सदा के लिए रौशन किया है.*.. और मुझ आत्मा को सुखो से भरपूर कर दिया है..."

 

❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने नैनो का नूर बनाते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... देह के भान से निकलकर आत्मिक स्वरूप में रहो... *शरीर को कष्ट न देकर, ईश्वर पिता की यादो में आत्मा को पवित्रता से सजाओ..*. यादो में रहकर विकारो की कालिमा से मुक्त हो जाओ... मीठे बाबा की यादे ही पावनता से निखारकर स्वर्ग के असीम सुख दिलायेगी... इसलिए हर पल यादो में खोये रहो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी पलको पर रखते हुए कहती हूँ :- "सच्चे साथी मेरे बाबा... देह के जंजालों से सिर्फ भगवान ही मुझे छुड़ा सकता था... और भगवान ने ही आकर मुझे छुड़ाया... *प्यारे बाबा आपके सच्चे साथ ने जीवन को पावन कर महानता से भर दिया है.*.."

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा पर अपने असीम प्रेम की वर्षा करते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... *अब भगवान को पाकर जीवन को श्रेष्ठता और दिव्यता का पर्याय बनाओ.*.. दिव्य गुण और पवित्रता से सज संवर कर देवताई सुखो में मुस्कराओ... देह के भान को त्याग अपने सत्य भान में डूब जाओ... और खोया साम्रज्य पुनः बाँहों में भर आओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा पर बलिहार होकर दिल से धन्यवाद देते हुए कहती हूँ :- "मीठे मनमीत बाबा मेरे... आपको पाने की चाहत में मै आत्मा कितना भटकी, कितना थकी और कितनी गुमराह हुई... आपने अपना हाथ देकर मुझे सारी भटक्नो से बाहर निकाल दिया... और *ज्ञान के प्रकाश में मुझे मेरा सच्चा स्वरूप दिखाकर, मुझे फर्श से उठाकर अर्श पर बिठा दिया है.*.."अपने प्यारे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर, मै आत्मा मुस्कराती हुई अपने कार्य जगत पर लौट आयी...

 

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नॉलेज को धारण करने के लिए दिल को साफ रखना*"

 

➳ _ ➳  अपने परम शिक्षक, परम सतगुरु शिव बाबा की अनमोल शिक्षाओं पर विचार सागर मंथन करते हुए एक बगीचे में मैं टहल रही हूं। *अचानक एक साधु की कहानी याद आती है जो अपने हाथ मे एक गन्दा सा, कीचड़ से भरा कमंडल ले कर भिक्षा लेने के लिए अपनी कुटिया से निकलता है। किन्तु उसके कीचड़ से भरे, गन्दे कमण्डल को देख कर कोई भी उसे भिक्षा देने के लिए तैयार नही होता और उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ता है*। इस कहानी पर चिंतन करते करते मन में विचार आता है कि साधारण रीति भी जब बर्तन स्वच्छ ना होने के कारण साधु को भिक्षा से वंचित रहना पड़ा तो यहां तो बात स्वयं भगवान द्वारा दिये जा रहे अमूल्य ज्ञान की है।

 

➳ _ ➳  मनुष्य से देवता बनने की जो अमूल्य नॉलेज भगवान बाप आ कर दे रहें हैं उसे धारण करने के लिए बुद्धि रूपी बर्तन कितना शुद्ध होना चाहिए। अगर बुद्धि रूपी बर्तन स्वच्छ नही होगा तो यह ज्ञान उसमे कभी टिक ही नही सकेगा। *इसलिए सबसे पहले मुझे यही चेक करना है कि क्या मेरा बुद्धि रूपी बर्तन स्वच्छ है! किसी के प्रति घृणा भाव, ईर्ष्या द्वेष की भावना या विकारों के अंश मात्र की प्रवेशता मेरी बुद्धि को अस्वच्छ तो नही कर रहे*! यही विचार करते करते अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर मैं पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन अपने प्यारे बाबा के पास।

 

➳ _ ➳  अब मैं देख रही हूं स्वयं को लाइट के फ़रिशता स्वरूप में फरिश्तों की उस दुनिया में जहां लाइट का आकारी शरीर धारण किये ब्रह्मा बाबा और ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिवबाबा विराजमान हैं। *मेरे सामने अपने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा उपस्थित हैं जिनसे शांति और शक्तियों की अनन्त किरणें निकल कर पूरे सूक्ष्म वतन में फ़ैल रही हैं*। रंग - बिरंगी किरणों से प्रकाशित सूक्ष्म वतन का यह नजारा मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रहा है। मैं अपलक बापदादा को निहार रही हूं।

 

➳ _ ➳  बापदादा को निहारते निहारते एक विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रही हूं कि बपदादा की भृकुटि से एक फ़रिशता निकल रहा है जो बिल्कुल बाप समान दिखाई दे रहा है। *बाबा अपने सभी गुण और शक्तियां इस फ़रिश्ते में समाहित कर रहें हैं। अब यह फ़रिशता बिल्कुल बाप समान बन गया है और धीरे धीरे मेरी और बढ़ रहा है। मेरे पास पहुंच कर वह सम्पूर्ण फरिश्ता मुझ फ़रिश्ते में समा जाता है*। उस फ़रिश्ते के मुझमे समाते ही अब मुझ फ़रिश्ते की चमक करोड़ो गुणा बढ़ गई है और मैं स्वयं को बाप समान शक्तिशाली अनुभव कर रहा हूँ। बाबा के सभी गुण अब मुझ फ़रिश्ते में आ गए हैं। बाप समान बन कर अब मैं फ़रिशता वापिस लौट रहा हूँ और अपने साकारी तन में प्रवेश कर रहा हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं बाबा के गुणों को अपने जीवन मे धारण कर बापसमान बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं। व्यर्थ चिंतन से किनारा कर सदा समर्थ चिंतन में बुद्धि को लगा कर अपने बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध बना रही हूं। *अब मेरे मन मे किसी के प्रति कोई छल कपट नही है। परमात्म लाइट माइट से मन की मैल जैसे धुल चुकी है। मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म अब शुद्धता और पवित्रता से परिपूर्ण है*। अपने दिल रूपी दर्पण को साफ और स्वच्छ रखते हुए अब मैं बाबा द्वारा मिले ज्ञान रत्नों को बुद्धि में धारण कर औरों को आप समान बना रही हूं।

 

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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन करती हूँ।"* 

 

➳ _ ➳  *मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा स्व सिंहासन पर बैठकर अपना सफल शासन चला रही हूँ...* कुशल प्रशासक बन अपने राज्य के सभी कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर राज्य कर रही हूँ... मेरी सूक्ष्म शक्तियां मन-बुद्धि-संस्कारों को जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसे चाहे, जितना समय चाहे लगा सकती हूँ... *सूक्ष्म शक्तियों को कंट्रोल कर स्थूल कर्मेन्द्रियों को संयम और नियम में चला रही हूँ...* मैं आत्मा कभी भी अधीन बनकर नहीं रहती हूँ... सदा ही अपने अधिकारीपन की सीट पर सेट रहती हूँ... सदा अधिकारी आत्मा बन अयथार्थ वा व्यर्थ को उसी समय ब्रेक लगा देती हूँ... बिल्कुल भी व्यर्थ को चलने नहीं देती हूँ... *मैं आत्मा श्रेष्ठ पुरूषार्थी बन सेकण्ड में कन्ट्रोंलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन कर देती हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वभाव को सरल बनाने से समय को व्यर्थ जाने से बचाने का अनुभव"* 

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा चमकती हुई बिंदु... अत्यंत सरल स्वभाव की हूँ... मेरी सरलता सर्व बातों को अत्यंत इजी कर देते हैं... सदा सुलझा हुआ व्यवहार कर... सभी को सन्तुष्ट कर और सन्तुष्ट रह... अपने समय और संकल्पों की बचत करती हूँ... *सरल स्वभाव से सदा डीप आंतरिक शांति की अनुभूति होती हैं...* शांति की शक्ति द्वारा मैं आत्मा श्रेष्ठ और ऊँचे संकल्प क्रिएट करती हूँ... और श्रेष्ठ कर्म करते संगम के हर पल को सफल करते... मैं समर्थ आत्मा बन गई हूँ... *मेरे बोल और कर्मों की सरलता  मुझे सदा विघ्न मुक्त रखती हैं...* मैं क्यों, क्या के प्रश्नो से मुक्त... सदा ड्रामा की पटरी पर सरल चलने वाली आत्मा बन गई हूँ... व्यर्थ से मुक्त सम्पूर्ण पवित्र हूँ... निर्विघ्न हूँ...

 

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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  समय प्रमाण बापदादा डायरेक्शन दे कि सेकण्ड में अब साथ चलो तो सेकण्ड मेंविस्तार को समा सकेंगे? शरीर की प्रवृत्ति, लौकिक प्रवृत्तिसेवा की प्रवृत्ति, अपने रहे हुए कमज़ोरी के संकल्प की और संस्कार प्रवृत्ति, सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते होवा कोई प्रवृत्ति अपने तरफ आकर्षित करेगीसब तरफ से सर्व प्रवृत्तियों का किनारा छोड़ चुके हो वा कोई भी किनारा अल्पकाल का सहारा बन बाप के सहारे वा साथ से दूर कर देंगे? *संकल्प किया कि जाना हैडायरेक्शन मिला अब चलना है तो डबल लाइट के उड़न आसन पर स्थित हो उड़ जायेंगेऐसी तैयारी हैवा सोचेंगे कि अभी यह करना हैवह करना हैसमेटने की शक्ति अभी कार्य में ला सकते हो वा मेरी सेवामेरा सेन्टरमेरा जिज्ञासुमेरा लौकिक परिवार या लौकिक कार्य - यह विस्तार तो याद नहीं आयेगायह संकल्प तो नहीं आयेगा?*

✺   *"ड्रिल :- सेकंड में विस्तार को सार में समाना"*

➳ _ ➳  परम प्यारे शिवबाबा की सुनहरी यादों मे खोई हुई मैं मन बुद्धि को एकाग्र कर पहुँच जाती हूँ उस पावन तीर्थ स्थल पर... जहाँ आत्मा परमात्मा का सच्चा मिलन होता है... जहाँ स्वयं भगवान साकार में आकर अपने बच्चों से रुबरु मिलन मनाते हैं... उन्हें प्यार भरी दृष्टि देकर निहाल करते हैं... सम्मुख बैठ कर उनसे बातें करते हैं... *प्रभु मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई हुई मैं स्वयं को देख रही हूँ डायमण्ड हॉल में... हज़ारों की संख्या में ब्राह्मण बच्चे अपने परम प्यारे पिता से मिलन मनाने आये हैं... उन सभी के मुख मण्डल से रूहानियत स्पष्ट झलक रही है...*

➳ _ ➳  सभी आत्माएं एकटक नज़र लगाये आतुर अवस्था में मिलन मनाने के लिये लालायित से हो रहे हैं... *मीठे बापदादा महावाक्य उच्चारने से पहले बहुत देर तक सभी को स्नेह भरी दृष्टि से निहाल करने लगते हैं...* आत्मिक स्थिति में स्थित होकर... बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से स्वयं को भरपूर करती हुई मैं अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर रही हूँ...

➳ _ ➳  सभी ब्राह्मण बच्चों को सम्बोधित करते बहुत ही मीठे स्वर में बापदादा महावाक्य उच्चारण करने लगते हैं... *अब समय बहुत कम रह गया है, अचानक कुछ भी हो सकता है... अब किसी भी बात के विस्तार में नही जाओ... अपितु विस्तार को सार में समेटने का अभ्यास करो... फुलस्टॉप लगाने का अभ्यास करो... एक सेकंड में परिवर्तन कर फुलस्टॉप लगाना... इसकी कमी है, अब इसका अभ्यास कर पक्का करो...*

➳ _ ➳  वहाँ बैठी सभी आत्माएं बाबा द्वारा उच्चारित महावाक्यों को बहुत ध्यान से सुन रहे हैं... फिर बाबा कहने लगते हैं... मेरे सिकीलधे प्यारे बच्चों... *सर्व प्रकार की प्रवृतियों से, चाहे शरीर की प्रवृति हो... लौकिक प्रवृति हो... सेवा की प्रवृति हो... सब तरफ से न्यारे और प्यारे बन जाओ...* कोई भी आकर्षण तुम्हें आकर्षित न कर सके... अब तुम्हें बाप समान न्यारे और सबके प्यारे बनना ही है...

➳ _ ➳  पूरे डायमण्ड हॉल में चारों ओर एक अलौकिक दिव्यता छा गई है... सभी की नज़र बाबा पर है... बाबा की शक्तिशाली किरणें चारों ओर फैल कर हम सभी बच्चों पर पड़ रही है.. *प्यार के सागर शिवबाबा कहने लगे... मीठे बच्चों... अब मैं और मेरा खत्म करो... मेरी सेवा... मेरा सेंटर... मेरा जिज्ञासु... नहीं, अब तो बस "मैं बाबा की बाबा मेरा" यह याद रहे...* जैसे ही डायरेक्शन मिले... अब चलना है, उसी समय फ़रिश्ता बन उड़ती कला के आसन पर स्थित हो जाओ... *सभी बाबा के लव में लीन होकर असीम आनंद का अनुभव कर रहे हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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