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❍ 29 / 03 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *बाप समान निरहंकारी, नम्रचित बनकर रहे ?*
➢➢ *अपनी सेवा अपने हाथ से की ?*
➢➢ *सर्विस के लिए स्वयं को आपेही ऑफर किया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव किया ?*
➢➢ *कांटो के बीच में रहते न्यारे और प्यारे बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *एकांतवासी स्थिति का अनुभव किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - भगवान, जिसे सारी दुनिया ढूंढ रही है वह तुम्हारे सम्मुख बेठा है, तुम ऐसे बाप से पूरा वर्सा ले लो, भूलो मत"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जिस ईश्वर के दीदार मात्र को कभी व्याकुल थे, आज वह सम्मुख बेठा पढ़ा रहा... *अथाह खजानो को हथेली पर सजा, बच्चों पर दिल खोल कर लुटा रहा.*.. ऐसे मीठे बाबा से सब कुछ लेकर विश्व के मालिक बन मीठा मुस्कराओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देवताओ के दर्शन को तरसती थी, *आज भगवान को सामने देख, अपने भाग्य की जादूगरी पर मोहित हो चली हूँ.*.. और अथाह ज्ञान रत्नों को पाकर मालामाल होती जा रही हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दुनिया जिसे बहुत मुश्किल समझ जगह जगह ढूंढ रही... वह परमात्मा आप बच्चों के दिल के कितना करीब आ बेठा है... दुनिया साक्षात्कार को चाहती है... आप भाग्यवान बच्चे गोद में बेठे पढ़ रहे... और *देवताई शानो शौकत पाकर संपत्तिवान बन रहे.*..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे भाग्य पर फ़िदा हूँ, जिसने भगवान से मिलवाकर मुझे असीम सुखो की खुबसूरत दुनिया का भाग्य दिलाया है... *मुझे ईश्वरीय धन से धनवान् बनाकर 21 जनमो का बेफिक्र सा सजाया है.*..
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे सोभाग्य ने भगवान से मिलवाया है,तो भगवान की सारी जागीरे बाँहों में भरकर, *सतयुगी सुखो की बहारो में,आनन्द के गीत गाओ.*.. जितना चाहो उतना खजानो की दौलत को पाओ... रत्नों की खानो के मालिक बनकर विश्व धरा पर इठलाओ..
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... में आत्मा आपकी वारिस होकर, सारे खजानो की मालिक बन चली हूँ... *संगम के मीठे पलों में ईश्वरीय दौलत को बाँहों में भरकर,* सुनहरे सुखो को पाने वाली और खुशियो में खिलखिलाने खुशनसीब आत्मा बन गयी हूँ...
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∫∫ 5 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:-10)
( आज की मुरली की धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आज की मुरली से बाबा की 4 निमनलिखित शिक्षाओं की धारणा के लिए विशेष योग अभ्यास*"
❶ *निरहंकारी, नम्रचित बनना*
❷ *अपनी सेवा अपने हाथ से करना*
❸ *सर्विस के लिए स्वयं को ऑफर करना*
❹ *हीरे जैसा बनाने की सेवा करना*
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता अपने इस पांच तत्वों के बने शरीर से निकल बाहर जा रहा हूँ । सफेद प्रकाश का सूक्ष्म शरीर लिए मैं इस साकारी देह से बिलकुल अलग हो चुका हूँ । *साकारी देह से अलग हो कर मैं स्वयं को बहुत ही हल्का और निर्बन्धन अनुभव कर रहा हूँ* । बहुत ही न्यारी और प्यारी अवस्था है यह जहां कोई भी बोझ नही । हल्का हो कर मैं ऊपर उड़ रहा हूँ और पूरे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ । मैं देख रहा हूँ कैसे मनुष्य विकारों की अग्नि में जलकर दुखी हो रहे हैं, रो रहे हैं, चिल्ला रहें हैं ।
➳ _ ➳ इन सब दृश्यों को देखते देखते मैं पहुँच जाता हूँ पांचो तत्वों के पार फरिश्तों की आकारी दुनिया में जहां चांदनी सा सफेद प्रकाश ही प्रकाश फैला हुआ है । सामने बापदादा खड़े हैं जो मेरा ही इंतजार कर रहें हैं । मुझे देखते ही वो मेरे पास आ कर प्यार से मुझे अपनी बाँहों में भर लेते हैं । *मुझे अपने पास बैठा कर बाबा स्नेह भरी दृष्टि मुझे दे रहें हैं । बाबा की दृष्टि से बाबा के सभी गुण मुझ में समाते जा रहें हैं* । मुझे विश्व सेवा के निमित्त बना कर मास्टर विश्व कल्याणकारी के स्वमान से बाबा मुझे अलंकृत कर रहें हैं ।
➳ _ ➳ संपूर्ण सृष्टि के पारलौकिक पिता मेरे सम्मुख आ कर मुझ से कह रहे हैं - मेरे मीठे बच्चे विश्व की सर्व आत्माओं का आपको कल्याण करना है । और उसके लिए आपको बहुत बहुत निरहंकारी और नम्रचित बनना है । किसी भी बात में कभी भी अहंकार नही करना है । *सेवा में स्वयं को ऑफर कर हर प्रकार की सेवा के लिए सदा तैयार रहना है* । बाबा की बात सुनकर मैं बाबा से कहती हूँ - जी बाबा मैं किसी भी बात का अहंकार कभी भी अपने मन में नही लाऊंगी ।
➳ _ ➳ इस बात को मैं सदा स्मृति में रखूंगी कि मैं तो केवल निमित्त हूँ । करावनहार आप हो । मुझे निमित्त बना कर आप मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हो । मेरी बात सुनकर बाबा मीठी मुस्कान से मुझे देखते हैं और मुझे इशारा करते हैं कि जाओ बच्चे अब सारे विश्व की आत्माओं को विकारों रूपी भूतों से छुड़ाओ । *विकारों की प्रवेशता ने सभी का जीवन कौड़ी जैसा बना दिया है । उनके कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने की सेवा करो* । यह कहते हुए बाबा मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल करने लगते हैं ।
➳ _ ➳ अब मैं फरिश्ता स्वयं को बाप समान अनुभव कर रहा हूँ । बाबा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं विश्व के ग्लोब पर आ जाता हूँ । बाबा से शक्तियों की किरणें निकल कर निरन्तर मुझ पर और मुझ से विश्व की सर्व आत्माओं पर पड़ रही हैं । परमात्म प्यार की लहरों को मैं विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुंचा रहा हूँ । *विकारों की अग्नि में जल रही आत्मायें इन शीतल लहरों का स्पर्श पा कर शीतलता का अनुभव कर रही हैं* । मेरी पवित्रता का प्रकाश पतित विकारी आत्माओं के पापों को नष्ट कर रहा है । सर्व आत्मायें अब विकारों को छोड़ अपने कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने के पुरुषार्थ में लग गई हैं ।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा व्यर्थ से इनोसेंट, अविद्या स्वरूप हूँ ।"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस सृष्टि नाटक में हीरो पार्टधारी* हूँ... सृष्टि के डायरेक्टर ने मुझ आत्मा को बहुत ही सुन्दर हीरो का रोल दिया था... मुझ आत्मा ने 21 जन्मों तक नाटक में विश्व के बादशाही का रोल अदा किया था... 16 कलाओं से सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सम्पूर्ण पवित्र देवता का पार्ट बजाया था... मैं आत्मा स्व पर राज्य करती थी... सभी कर्मेन्द्रियाँ मुझ आत्मा के वश में थी... मैं आत्मा आत्मिक स्मृति में ही स्थित रहती थी...
➳ _ ➳ मध्य काल में माया ने आकर *विनाशी सम्बंधो, विनाशी वैभव, विनाशी वस्तुओं का मोह* दिखाकर मुझ आत्मा को अपने जाल में फंसा लिया था... माया ने मुझ आत्मा को विकारी, तमोप्रधान विलन का रोल दे दिया था... मैं आत्मा देहभान में आकर विकारों में गिरती चली गई... रावण माया के अधीन होकर पतित रोल करते-करते हीरो से जीरो बन गई थी...
➳ _ ➳ सृष्टि के डायरेक्टर प्यारे बाबा ने आकर मुझ आत्मा को स्मृति दिलाई... कि मुझ आत्मा ने ही विश्व पर राजाई की थी... प्यारे बाबा मुझ आत्मा की बुद्धि में ज्ञान-योग की वर्षा करते जा रहे हैं... मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खुलता जा रहा है... *मैं आत्मा दिव्यबुद्धिधारी बनती जा रही* हूँ... मुझ आत्मा की सभी स्मृतियाँ वापस आती जा रही हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनती जा रही हूँ...* मुझ आत्मा की बुद्धि से सारे तमोप्रधान संस्कार बाहर निकलते जा रहे हैं... सारा व्यर्थ का किचड़ा समाप्त होता जा रहा है... मुझ आत्मा से माया का सारा प्रभाव ख़त्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बाबा की पवित्र किरणों से सतोप्रधान बनती जा रही हूँ... दिव्य गुणों, शक्तियों को धारण करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा *पवित्र देवताई संस्कारों को धारण करती जा रही हूँ...* मैं आत्मा स्व पर कण्ट्रोल करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने मन-बुद्धि से समर्थ कार्य करती जा रही हूँ... समय, श्वांस, बोल, कर्म सबमें व्यर्थ से इनोसेंट बनती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा दिव्य संकल्प, दिव्य बोल, दिव्य कर्म करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा दिव्यता का अनुभव करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा फिर से अपना हीरो पार्ट पाने का लक्ष्य सामने रख तीव्र पुरुषार्थ करती जा रही हूँ... प्यारे बाबा की श्रीमत पर चलती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव करने वाली *व्यर्थ से इनोसेंट, अविद्या स्वरूप अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूहानी गुलाब बन काँटों के बीच में रहते भी न्यारे और प्यारे रहने के अनुभवी"*
➳ _ ➳ मैं बाबा की बगिया का रूहे गुलाब हूँ... *मेरे गुणों की खुशबू से पूरा विश्व महक रहा हैं...* बाबा ने बड़े प्यार से ज्ञान और योग के पानी से मुझे सींचा हैं... मेरी गुणों और शक्तियों की भीनी- भीनी महक हर आत्मा को भी महका रही हैं... मेरी रूहानी महक पूरे विश्व को पावन बना रही हैं...
➳ _ ➳ काँटों के बीच में रहते भी मैं रूहानी गुलाब, सदा मुस्कुराता हुआ... न्यारा और प्यारा रहता हूँ... कोई भी विकारों की बदबू मुझे छू नहीं सकती... और ही *विकारी बदबू मेरे अलौकिक खुशबू से दूर हो जाती हैं...*
➳ _ ➳ मैं स्वयं को सूक्ष्म वतन में बाबा के सम्मुख देखता हूँ... बाबा बड़े प्यार से मुझ रूहानी गुलाब में स्नेह और पवित्रता की खुशबू भर रहे हैं... रूहानियत की खुशबू से तरो ताजा हो... *पूरे विश्व पर अपनी खुशबू की बौछार, गुलाबबाशी से कर रहा हूँ...* पूरे विश्व की विकारों की अग्न ठण्डी होती जा रही हैं... पूरा विश्व पावनता से महक रहा हैं...
➳ _ ➳ काँटों के जंगल को अपनी पॉवरफुल महक से... फूलों का बगीचा बना रहा हूँ... बाबा की रूहानी खुशबू से हर आत्मा को आप समान सुंदर फूल बना रहा हूँ... मेरी रूहानियत हर आत्मा में आशा का दीप जला रही हैं... *हर आत्मा मेरी अलौकिक खुशबू से मन्त्र मुग्ध हो रही हैं...* अपनी सुध बुध खो कर बाबा की ओर आकर्षित हो रही हैं...
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव करने वाले व्यर्थ से इनोसेंट,अविद्या स्वरूप होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ देवताई संस्कार अर्थात *अष्ट शक्तियों को और आत्मा जो सतोगुण है उस स्वरूप को यूज़ में लाना*, क्योंकि जब यूज़ में लाएँगे तभी वह संस्कार इमर्ज होंगे। क्योंकि बहुत समय से आत्मा में आसुरी संस्कार की फ़ाइल खुलती रहती है क्योंकि पूरे आधाकल्प से इसी का यूज़ हुआ है लेकिन अब बाबा ने कहा है की दिव्य गुणों को डेली मुरली से अपने में इमर्ज करो।
❉ जब आत्मा दिव्य गुणों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव करता है तब आत्मा जैसे की अपने को सुखदायी अनुभव करता है। इसलिए कभी भी आत्मा को कमी कमज़ोरी का वर्णन नही करना है और ना ही देखना है... *जितना हम दिव्य गुणों को अपनाते जाएँगे, आसुरी संस्कार ख़त्म होते जाएँगे और आत्मा में बेहद का परिवर्तन आने लगेगा* जिससे स्वयं के साथ सर्व का कल्याण हो जाएगा।
❉ बाबा कहते जब आप अपने सतयुगी राज्य में थे तो व्यर्थ से बिलकुल इनॉसेंट थे तभी हम आत्माएँ संत व महान आत्मा कहलाएँ जाते। तो बाबा कहते अब अपने वही संस्कार इमर्ज करों और व्यर्थ से अविद्या स्वरूप बन जाओ जैसे हमको पता ही नही की वेस्ट थॉट्स होते क्या है। *जब व्यर्थ की अविद्या होगी तो दिव्यता स्वतः आएगी इसलिए यह नही सोचो की पुरुषार्थ करना है , बल्कि यह सोचे की पुरुष बन इस रथ कर्मइंद्रियों से कार्य करवाओ।*
❉ *समय, स्वाँस, कर्म, बोल, संकल्प ... सबमें व्यर्थ से अविद्या माना ही इनॉसेंट होना।* इसलिए बाबा ने कहाँ सोचो कम, कर्म ज़्यादा करों। क्योंकि कई आत्माएँ केवल सोचती ही रहती है लेकिन जब कर्म की बारी आती तो उनसे नही होता कुछ भी क्योंकि सब एनर्जी सोचने में ही वेस्ट हो गयी... तो बाबा ने कहाँ *ओन्ली अटेन्शन नो टेन्शन।*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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