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❍ 28 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *धंधा आदि करते भी स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*
➢➢ *कितनी भी परीक्षाएं आ जाएँ तो भी स्मृति में रहे ?*
➢➢ *विकारों का दान देकर वापिस तो नहीं लिया ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *चित की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ते रहे ?*
➢➢ *रूहानी मौज का अनुभव किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ आवाज में आना सहज लगात है ना। ऐसे ही आवाज से परे होना इतना ही सहज लगता है? आवाज में आना सहज है वा आवाज से परे होना सहज है? *आवाज में आना सहज है और आवाज से परे होने में मेहनत लगती है?* वैसे आप आत्माओं का आदि स्वरूप क्या है? आवाज से परे रहना या आवाज में आना?
〰✧ तो अभी मुश्किल क्यों लगता है? 63 जन्मों ने आदि संस्कार भूला दिया है। *जब अनादि स्थान 'परमधाम' आवाज से परे है,* वहाँ आवाज नहीं है और आदि स्वरूप आत्मा में भी आवाज नहीं है - *तो फिर आवाज से परे होना मुश्किल क्यों?*
〰✧ यह मध्य-काल का उल्टा प्रभाव कितना पक्का हो गया है। ब्राह्मण जीवन अर्थात जैसे आवाज में आना सहज वैसे आवाज से परे हो जाना - यह भी अभ्यास सहज हो जाये। *इसकी विधि है - राजा होकर के चलना और कर्मन्द्रियों को चलाना।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सवेरे उठ याद कर, पास विद ऑनर होना"*
➳ _ ➳ देह भान में डूबी हुई और देह के दलदल में फंसी हुई मै आत्मा... अपनी कीमती सांसो के प्रति कितनी अनजान थी...और झूठे प्यार के पीछे स्वयं को खपाती जा रही थी... प्यारे बाबा ने जीवन में आकर, मुझे उस सच्चे प्यार से भर दिया... की मै आत्मा तृप्त हो गयी हूँ... इन सच्ची प्यारी यादो में कितना सुख समाया है... *इसी सच्चे प्यार की प्यासी मै आत्मा... कस्तूरी सुगन्ध जैसा यहाँ वहाँ खोज रही थी... और प्यारे बाबा ने मेरे मन बुद्धि को अपने से जोड़कर.... मुझे इन प्यारे मीठे अनुभवो में डुबो दिया... और मेरे रोम रोम को अपने प्यार में छलका दिया है.*.. इन मीठी अनुभूतियो में खोकर मै आत्मा.... प्यारे बाबा की कुटिया में पहुंचती हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने असीम प्यार की तरंगो में डुबोकर कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सवेरे सवेरे उठकर, मीठे बाबा को बहुत प्यार से याद करो... और भोजन करते समय भी, मीठे बाबा की यादो में डूबकर, भोजन करो.*.. साथ ही एक दूसरे को भी याद दिलाते रहो... यह यादे ही सच्चा आधार बनकर, सतयुगी दुनिया का मालिक बनाएंगी...और असीम सुखो से दामन को सजायेंगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में गहरे डूबकर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... *अब जो मेरे जीवन में आप बहार बनकर आये हो... मै आत्मा एक सेकण्ड के लिए भी आपको भूलती नही हूँ.*.. हर साँस और संकल्प से आपकी यादो में खोयी हुई... दिव्यता से भरपूर होती जा रही हूँ... रोम रोम से आपकी यादो में डूबी हुई मै आत्मा... सुखो की दुनिया की अधिकारी बनती जा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अनन्त सुखो की जागीर देकर, देवताई सम्मान से सुशोभित कराते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... *भगवान धरती पर आकर आपको फूलो जैसा महकाने आया है... असीम खुशियो मै खिलाकर, देवताई श्रंगार से सजाने आया है.*.. ऐसे प्यारे बाबा को हर पल याद करो... सवेरे के सुंदर समय में, मीठे बाबा से दिल ही दिल बात करो... और सच्चे प्यारे के अहसासो में गहरे खो जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को मन बुद्धि में गहरे समाते हुए कहती हूँ :-"प्यारे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा *आपके प्यार की छत्रछाया में कितनी अनोखी और प्यारी हो गयी हूँ... मेरा जीवन आपके प्यार की छाँव तले, कितना निखर गया है.*.. मै आत्मा मीठे बाबा की याद में हर क्षण याद खोयी हुई हूँ... और महान भाग्य से सजती जा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को फूलो जैसा खुशनुमा बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सवेरे के खुशनुमा और शांत समय में उठकर... दिल से मीठे बाबा की सच्ची यादो में डुबकी लगाओ... और गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर... विश्व के राज्य भाग्य के मालिक बन मुस्कराओ... *यह मीठी यादे ही जीवन को पावनता और गुणो का पर्याय बनाकर... विश्व का अधिकार आपके दामन में सहज ही सजाएगी.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की यादो के झूले में झूलती हुई कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा.... देह की मिटटी और विनाशी रिश्तो को प्यार करके मै आत्मा... अपनी सांसो को पानी जैसा बहा रही थी... *प्यारे बाबा आपने मुझे अपनी बाँहों का सहारा देकर...सच्चे प्यार से मेरा दामन भर दिया है... मै आत्मा इन सच्ची यादो को पाकर, परमानन्द की अवस्था में डूबी हुई हूँ.*.."प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर मै आत्मा... इस धरा पर लौट आयी....
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कितनी भी परीक्षायें आ जायें तो भी स्मृति में जरूर रहना है*"
➳ _ ➳ मनमनाभव का महामन्त्र जो भगवान बाप ने हम बच्चों को दिया है वो मन्त्र जीवन में आने वाली हर परिस्थिति रूपी परीक्षाओं में सफल होने का एकमात्र उपाय है। *केवल एक परम पिता परमात्मा बाप की याद ही जीवन मे आने वाली सभी समस्याओं का हल है। इसका अनुभव अपने जीवन मे हर पल करती हुई मैं अपने शिव पिता का दिल की गहराई से शुक्रिया अदा करती हूँ* जो उन्होंने मेरे जीवन में आ कर, मेरे जीवन को कितना सहज और सुंदर बना दिया। जब तक बाबा मेरे जीवन मे नही आये थे, जीवन कितना नीरस और जटिल अनुभव होता था। जीवन में आने वाली छोटी से छोटी परिस्थिति भी इतनी बड़ी परीक्षा अनुभव होती थी।
➳ _ ➳ यही विचार करते - करते जीवन मे घटित होने वाली रोजमर्रा की घटनाये जो परीक्षाओं के रूप में आती रहती हैं वो सभी घटनायें एक - एक करके भिन्न - भिन्न दृश्यों के रूप मेरी आँखों के सामने स्पष्ट होने लगती है और *उन सभी दृश्यों को देखते - देखते मैं अनुभव करती हूँ कि हर परिस्थिति रूपी परीक्षा में बाबा की याद ने कैसे ढाल बन कर, परीक्षा की उस घड़ी में मुझे सफ़लता दिलाई*। ऐसी अनगिनत परीक्षायें मेरे सामने स्पष्ट हो रही है और उन सभी परीक्षाओं में मेरे शिवबाबा की मदद के वो अनुभव मेरे मन मे मेरे बाबा के लिए प्यार को कई गुणा बढ़ा रहें हैं। *हृदय में बाबा से मिलने की तड़प तीव्र हो रही है*।
➳ _ ➳ बिना एक पल की भी देरी किये मैं अपने मीठे बाबा के पास पहुंच जाना चाहती हूँ। *यही संकल्प करके अब मैं अपने मन में चल रहे सभी विचारों की दिशा को केवल अपने अति मीठे शिव बाबा की ओर मोड़ लेती हूँ और अपनी बुद्धि को परमधाम में बैठे अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करती हूँ*। सेकेंड में मन बुद्धि की तार अपने शिव पिता के साथ जोड़ कर अब मैं अशरीरी बन अपनी साकारी देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने बाबा के याद की डोरी को थामे उनके पास पहुंच जाती हूँ।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने निराकार शिव बाबा के सम्मुख। मेरे सामने अनन्त शक्तियों के पुंज के रूप में मेरे शिव पिता विराजमान है और अपने चारों तरफ मैं देख रही हूँ असंख्य जगमग करते चैतन्य दीपकों के रूप में निराकारी आत्माओं को। *दीपराज के सामने असंख्य जगमग करते चैतन्य दीपकों का यह नज़ारा मन को लुभाने वाला है*। अपना सम्पूर्ण ध्यान अपने शिव पिता पर केंद्रित करती हुई अब मैं बुद्धि रूपी नेत्रों से उन्हें निहार रही हूँ। *उनसे निकल रहे प्रकाश की एक - एक किरण को निहारते हए मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ बाबा की सर्वशक्तियाँ अब अनन्त किरणों के रूप में मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे शक्तियों के फव्वारे के नीचे खड़ी मैं स्नान कर रही हूँ। गहन शीतलता की अनुभूति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। *एक दिव्य अलौकिक आनन्द और अथाह सुख का मैं अनुभव कर रही हूँ। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं झूल रही हूँ*। बाबा की सर्वशक्तियों रूपी किरणों का प्रवाह निरन्तर बढ़ता जा रहा है और मेरे अंदर प्रवाहित हो कर मुझमे असीम बल भर रहा है। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली और तृप्त अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता से मिल कर, उनसे शक्तियों की खुराक ले कर, असीम ऊर्जावान बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में विराजमान हो कर, अपने शिव पिता की याद को सदा अपने हृदय में बसाये अब मैं सदा स्मृति स्वरूप रहती हूँ और अपने जीवन मे आने वाली हर परिस्थिति रूपी परीक्षा पर अपने स्मृति सो समर्थी स्वरूप द्वारा सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा चित्त की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ती हूँ ।*
➳ _ ➳ *तपस्या की सिद्धि स्वरूप...* सन्तुष्ट मणि मैं आत्मा... प्रसन्न्ता रूपी फल प्राप्त कर रही हूँ... *स्वयं से... सेवा से... और सर्व से सन्तुष्ट* मैं आत्मा प्रसन्नता के झूले में झूल रही हूँ... प्रसन्नचित मैं आत्मा... दिल... दिमाग से सुख और शांति की अनुभूति में रहती हूँ... सन्तुष्टमणी बन सुख... शांति और समृद्धि की वर्षा पूरे ब्रह्मांड में कर... *दुआओं की अधिकारी आत्मा बन... दुआओं के विमान में उड़ती रहती हूँ...* प्रसन्न... हर्षित मुझ आत्मा से पूरे ब्रह्मांड में खुशी के रंग बिरंगी किरणे फैल रहे हैं... *पूरा ब्रह्मांड बापदादा के आशीर्वचनों से भरपूर हो रहा हैं..* रूहानी सुखों के ख़ज़ानों से मालामाल मैं आत्मा... संगमयुग में भरपूर हो रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी कर रूहानियत में रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *ऊँच ते ऊँच बाप की मैं ऊँच ते ऊँच सन्तान हूँ*... यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन... सच्चे दाता की देन है... *वरदाता बाप ने सदा स्वस्थ रहने का वरदान दे*... श्रेष्ठ भाग्य की लकीर, भाग्यविधाता ने लिख... मुझ आत्मा को निहाल कर दिया है... मुझ आत्मा की झोली वरदानों से भर दी है... *मैं आत्मा भी वरदाता से वरदान पा... निहाल होती जा रही हूँ*... मन हर पल बाबा की याद में समाया रहता है... दिल हर-पल यही गीत गाता है... *मेरा तो एक शिव बाबा दूसरा न कोई*... दुःख के इस संसार से... बाबा ने मुझ आत्मा को न्यारा बना दिया... *दुःख की लहर अब स्पर्श भी नही कर सकती*... मैं आत्मा बाबा की छत्रछाया में रूहानियत का अनुभव करती जा रही हूँ...
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *संगमयुग पर ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं हो सकते। इसलिए सिर्फ जब सेवा में, कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते हो ना तो साथ भी भूल जाते हो और फिर थक जाते हो।* फिर कहते हो थक गये, अभी क्या करें! *थको नहीं, जब बापदादा आपको सदा साथ देने के लिए आये हैं, परमधाम छोड़कर क्यों आये हैं? सोते, जागते, कर्म करते, सेवा करते, साथ देने के लिए ही तो आये हैं।* ब्रह्मा बाप भी आप सबको सहयोग देने के लिए अव्यक्त बनें। व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ़्तार बहुत तीव्र है, इसलिए ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज कर दिया। तो *शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय आप सबको सहयोग देने के लिए सदा हाजिर हैं। आपने सोचा बाबा और सहयोग अनुभव करेंगे।* अगर सेवा, सेवा, सेवा सिर्फ वही याद है, बाप को किनारे बैठ देखने के लिए अलग कर देते हो, तो बाप भी साक्षी होकर देखते हैं, देखें कहाँ तक अकेले करते हैं। फिर भी आने तो यहाँ ही हैं। *तो साथ नहीं छोड़ो। अपने अधिकार और प्रेम की सूक्ष्म रस्सी से बांधकर रखो। ढीला छोड़ देते हो। स्नेह को ढीला कर देते हो, अधिकार को थोड़ा सा स्मृति से किनारा कर देते हो। तो ऐसे नहीं करना।*
➳ _ ➳ *जब सर्वशक्तिवान साथ का आफर कर रहा है तो ऐसी आफर सारे कल्प में मिलेगी? नहीं मिलेगी ना?* तो बापदादा भी साक्षी होकर देखते हैं, अच्छा देखें कहाँ तक अकेले करते हैं! *तो संगमयुग के सुख और सुहेजों को इमर्ज रखो। बुद्धि बिजी रहती है ना तो बिजी होने के कारण स्मृति मर्ज हो जाती है।* आप सोचो सारे दिन में किसी से भी पूछें कि बाप याद रहता है या बाप की याद भूलती है? तो क्या कहेंगे? नहीं। यह तो राइट है कि याद रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहता है या मर्ज रहता है? स्थिति क्या होती है? इमर्ज रूप की स्थिति या मर्ज रूप की स्थिति, इसमें क्या अन्तर है? इमर्ज रूप में याद क्यों नहीं रखते? *इमर्ज रूप का नशा शक्ति, सहयोग, सफलता बहुत बड़ी है। याद तो भूल नहीं सकते क्योंकि एक जन्म का नाता नहीं है, लेकिन प्रिंसिपल चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होगा लेकिन नाता तो यही रहेगा ना ! भूल नहीं सकता* है, यह राइट है। हाँ कोई विघ्न के वश हो जाते हो तो भूल भी जाता है लेकिन वैसे जब नेचरल रूप में रहते हो तो भूलता नहीं है लेकिन मर्ज रहता है। *इसलिए बापदादा कहते हैं - बार-बार चेक करो कि साथ का अनुभव मर्ज रूप में है या इमर्ज रूप में?* प्यार तो है ही। प्यार टूट सकता है? नहीं टूट सकता है ना? I *तो प्यार जब टूट नहीं सकता तो प्यार का फायदा तो उठाओ। फायदा उठाने का तरीका सीखो।*
✺ *ड्रिल :- "सर्वशक्तिवान के साथ का इमर्ज रूप में अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं संगमयुगी ब्रह्मकुमारी... ब्रह्मा मुखवंशावली... श्रेष्ठ आत्मा हूँ... बाबा ने कहा है संगमयुग पर... ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं है... बापदादा ने हमेशा साथ देने का वादा किया है...* लेकिन बच्चे ही बापदादा के साथ को भूल जाते हैं... *जब सेवा में... कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते है... तो साथ को भूल जाते... फिर थक जाते है... बच्चे थकते ही तब हैं... जब साथ का अनुभव नहीं करते हैं...* जब बाबा को साथ लेकर नहीं चलते हैं... फिर कहते हैं... बाबा अब क्या करें... तो बाबा ने कहा है... *बच्चे थको नहीं... बच्चे बाबा तो आए ही हैं... आपको सदा साथ देने के लिए... अपना परमधाम छोड़कर...* मैं आत्मा बाबा की इस बात को अब हमेशा याद रखती हूं... और हर पल बाबा के साथ रहती हूँ... *कैसी भी सेवा हो... बिना विघ्न और थकावट के पूर्ण करती हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सोते... जागते... कर्म करते... सेवा करते... बाबा के साथ को हमेशा यूज करती हूं...*क्योंकि मुझे पता चल गया है... बाबा साथ देने के लिए ही तो आये हैं... *ब्रह्मा बाप भी मुझ आत्मा को... सहयोग देने के लिए ही अव्यक्त बनें...* ब्रह्मा बाबा के व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ़्तार बहुत तीव्र है... *अव्यक्त रूप में सेवा ज्यादा देने के लिए ही... ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज किया है...* अब तो मुझ आत्मा को... *शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय... सहयोग देने के लिए सदा हाजिर है... जब भी मैं आत्मा सोचती हूँ.... बाबा मेरे साथी मेरे पास आ जाओ तो... बाबा मेरे सामने हाजिर - नाजिर होते जाते हैं... मैं आत्मा बाबा के सहयोग और साथ का अनुभव करने लगती हूँ...* कभी - कभी मुझ आत्मा को सेवा... और सिर्फ सेवा ही याद रहती है... मैं आत्मा बाबा को किनारे कर देती हूँ... बाप भी किनारे बैठ कर... देखते रहते हैं और मुस्कुराते रहते हैं... की बच्ची किस तरह मेहनत कर रही है... ये सब कुछ बाबा साक्षी होकर... दूर बैठे देखते रहते हैं कि... बच्चे कहाँ तक अकेले करते... बाबा भी जानते हैं कि अंत में थक हार के... आना मेरे पास ही हैं... *इसलिए मैं आत्मा अब... हर छोटे से छोटे कार्य में पहले बाबा को रखती हूँ... मैं आत्मा तो सिर्फ निमित्त मात्र हूँ... करनहार तो मेरे सर्व शक्तिमान बाबा है...*
➳ _ ➳ *वाह मैं आत्मा कितनी धन्य हूँ... जिसके साथ के लिए तपस्वी इतनी कठिन तपस्या करते हैं... वो सर्वशक्तिवान परम पिता स्वयं मुझे साथ का आफर कर रहे हैं... ऐसी आफर सारे कल्प में... सिर्फ संगमयुग पर ही मिलती है...* संगमयुग में बाप के साथ के... ऐसे आनंदमय सुखों को सहेज कर... मैं आत्मा इमर्ज रूप में... हमेशा सामने रखती हूँ... मैं आत्मा अपनी बुद्धि को कभी भी बिजी नहीं रखती हूं... *बुद्धि बिजी होना माना बापदादा की... स्मृति मर्ज होना है...* मैं आत्मा स्वयं चेक करती हूँ कि... मुझ आत्मा को बाबा की याद... इमर्ज रूप में रहती है या मर्ज रूप में रहती है... *अगर याद मर्ज रूप में होगी तो... याद में मिलावट होगी... जिससे बाप के साथ और शक्तियों का अनुभव नहीं होगा...* बाबा ने कहा है... *इमर्ज रूप का नशा... शक्ति... सहयोग... और... सफलता दिलाता है...* मुझ आत्मा को... बाबा की याद कभी भूल नहीं सकती है... क्योंकि *बाबा से मेरा एक जन्म का नाता नहीं है... मेरा और उनका नाता तो कल्प - कल्प का है... चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होंगे... लेकिन मेरा और उनका नाता तो हमेशा रहेगा...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को निमित्त समझ कर... सारे बोझ करनहार बाबा पे छोड़ के... निश्चिंत हो जाती हूँ...* अब मैं आत्मा कभी भी... अपने सर्व शक्तिमान शिव बाबा का साथ नहीं छोड़ती हूँ... *मैं आत्मा शक्तिमान शिव बाबा की संतान हूँ... इस अधिकार और प्रेम की... सूक्ष्म रस्सी से हमेशा बाबा को बांधकर रखती हूं...* इस प्रेम की डोर को... मैं आत्मा स्नेह की इस डोर को कभी ढीला नहीं होने देती हूँ... क्योंकि मैं आत्मा जान चुकी हूँ... *स्नेह के सागर मेरे शिव बाबा... इस डोर में बंधे हुए दौड़े चले आते हैं... बाबा ने कहा भी है कि... बच्चे बुलाए और बाप ना आए... ऐसा हो नहीं सकता है...* मैं आत्मा सर्व शक्तिमान की संतान हूँ... अपने इस अधिकार को हमेशा स्मृति में रखती हूँ... अपने परम पिता से अब कभी भी किनारा नहीं करती हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का बाबा से मेरा ये नाता... कभी भूल नहीं सकता... लेकिन कभी - कभी... मैं आत्मा किसी विघ्न के वश हो जाती हूँ... तो याद भूलती नहीं है लेकिन मर्ज रूप में रहती है... *इसलिए बापदादा के कहे अनुसार... मैं आत्मा बार-बार चेक करती हूँ कि... बाबा का साथ और शक्तियों का अनुभव मर्ज रूप में है... या इमर्ज रूप में... सर्व शक्तिमान बाप से मेरा प्यार अटूट है... और मैं आत्मा इस प्यार का फायदा.... हमेशा लेती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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