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 14 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"बाप का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे" - यह दृढ़ संकल्प किया ?*

 

➢➢ *बाप और घर को घड़ी घड़ी याद किया ?*

 

➢➢ *मदिर लायक बनने का पुरुषार्थ किया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा स्व को कण्ट्रोल कर फुल स्टॉप लगाया ?*

 

➢➢ *हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता रही ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *कमजोरी के संकल्प संस्कार को दृढ़ता की तीली से जलाया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - अब बेहद की रात पूरी हो चली है, दिन आने वाला है, वापिस घर चलना है इसलिए अब दर दर भटकना बन्द करो"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... खुबसूरत फूल से जो धरा पर खेलने आये थे... वह खेल अब अंतिम पड़ाव पर आ चला है... इसलिए अब *पिता का हाथ पकड़कर घर चलने की तैयारी में जुटो.*.. बुद्धि को समेटो और साजो सामान को बिन्दु कर अशरीरी हो चलो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोकर अथाह सुख भरी दुनिया की अधिकारी बन रही हूँ... अब हर भटकन से मुक्त होकर सत्य स्वरूप के नशे में खो चली हूँ... *प्यारे बाबा आप संग घर चलने को तैयार हो रही हूँ.*..

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  अब बेहद की रात पूरी होने को है... मीठे सुख भरे दिन आये की आये... *बेहद के खुबसूरत खिले दिन के सच्चे सुखो में फिर आना है.*.. सच्चा हँसना और मुस्कराना है... इसलिए देह की दुनिया से उपराम हो सच्ची यादो में खो जाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका हाथ थाम कर हर भटकन से मुक्त हो चली हूँ... *ईश्वर पिता के सच्चे साथ में महफूज़ हो गयी हूँ.*.. देह के दुखो से निजात पाकर अपने अविनाशी वजूद और निराकारी पिता की बाँहों में खो गयी हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब स्वयं को कहीं भी उलझाने और भटकाने की जरूरत नही है... *अब मन्नतो का फल खुदा को ही पा चले हो.*.. तो उसके प्यार में फूलो सा मुस्कराओ और इन मीठी महकती यादो में खोये हुए अपने घर चलने की तैयारी करो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे तो स्वयं बाबा लेने आया है... मै आत्मा बाबा का हाथ पकड़कर सबसे आगे चलूंगी... और *मीठे सुखो की नगरी में सबसे पहले मै ही तो उतरूंगी.*..

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा सदा समर्थ हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा कर्मेंन्द्रियो के जाल में फंसी हुई थी... मुझ आत्मा के आँख, नाक, कान, मन, बुद्धि परचिन्तन, परदर्शन में स्वाद ले रहे थे... मुझ आत्मा की सारी कर्मेन्द्रियाँ संसार के व्यर्थ बातों में लगी हुई थी... मैं *आत्मा कर्मेन्द्रियों के परवश होकर तख्तहीन हो गई* थी... कलाहीन हो गई थी... मैं आत्मा अपने असली स्वरुप को भूल देहभान में आ गई थी... दुखी, अशांत हो गई थी...

 

➳ _ ➳  परमपिता परमात्मा ने आकर मुझ आत्मा को अपने असली स्वरुप की पहचान कराई... मैं आत्मा ज्योतिबिंदु स्वरुप हूँ... मुझ आत्मा के पिता भी ज्योतिबिंदु स्वरुप हैं... मुझ आत्मा का स्वधर्म प्रेम, सुख, शांति, आनंद है... मैं आत्मा शांति से बैठ जाती हूँ... प्यारे बाबा को याद करती हूँ... प्यारे बाबा *ज्ञान योग की केंची से मुझ आत्मा के कर्मेंन्द्रियो का जाल* काटते जा रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा एक-एक इंद्रिय की अधीनता से आजाद होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि का विनाशी देह, दुनिया, वस्तुओं का आकर्षण खत्म होता जा रहा है... पुराना स्वभाव-संस्कार खत्म होता जा रहा है... दिव्य ज्ञान की किरणों से मुझ आत्मा के दिव्य चक्षु खुलते जा रहे हैं... मैं आत्मा त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा *दिव्य गुणों को धारण कर दिव्य गुण धारी* बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं *आत्मा स्मृति स्वरुप समर्थी स्वरुप बनती जा रही* हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों के विस्तार को समेटती जा रही हूँ... बिंदी लगाती जा रही हूँ... मैं आत्मा स्व-स्थिति में स्थित होती जा रही हूँ... अब सभी कर्मेन्द्रियां मुझ आत्मा के अधीन होती जा रही हैं... मैं आत्मा अपने कर्मेन्द्रियों को कंट्रोल करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा तख्तनशीन बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा किसी भी परिस्थिति के विस्तार में न जाकर फुलस्टॉप लगाती जा रही हूँ... अब मैं *आत्मा बिंदु बन बिंदु बाप में समाती जा रही* हूँ... अब मैं आत्मा सदा मस्तक पर आत्म स्मृति का तिलक लगाकर स्व पर राज्य करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा स्व को कंट्रोल कर फुलस्टॉप लगाने वाली सदा समर्थ स्तिथि का अनुभव कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- दृढ़ संकल्पता की विशेषता द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनना*"

 

➳ _ ➳  मैं योगयुक्त... शान्तिस्वरूप आत्मा... विश्वकल्याणकारी परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ... मुझ आत्मा को परमात्म गुणों को धारण करने पर पूरा ध्यान देना है... जीते जी सब कुछ भूल कर... एक बाबा की याद में समा कर... *ऐसा म्युजियम बन जाऊँ जिसमें बाप बिन्दु ही दिखाई दे...* बाबा अपने सभी बच्चों को दुःखों से छुड़ाकर सुखधाम में ले जाने के लिये आये हैं...

 

➳ _ ➳  जीते जी सब कुछ भूल कर... एक बाबा की याद में समा कर... नम्रचित्त व स्नेही स्थिति से सम्बन्ध व संपर्क में आने वाली हर आत्मा को आत्मिक दृष्टि से देखती हुई प्यार और सम्मान देती जाऊँ... *स्मृति में रह कर हर कार्य करती जाऊँ...* स्वयं भी संतुष्ट और सर्व में भी संतुष्टता की विशेषता भरती जाऊँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपना ध्यान अपने असली गुणधर्म की ओर केन्द्रित करते हुए... संपूर्ण व्यक्तिव में शान्ति भरती जा रही हूँ... बाबा ने प्यार और शान्ति के द्वारा मुझ आत्मा को पालना दी है... *अब मुझ आत्मा को भी सबके दुःखों को समाप्त कर उन्हें सुखधाम का रास्ता दिखाना है...* मैं आत्मा भी इस ईश्वरीय कार्य में निमित्त बन सच्चा सेवाधारी बनने का दृढ़ संकल्प करती हूँ...

 

➳ _ ➳  अपने प्यारे परमपिता शिवबाबा के साथ रहने वाली वाली मैं आत्मा... खुदाई खिदमतगार हूँ... *संसार की सबसे बड़ी हस्ती स्वयं ईश्वर मेरा साथी है...* बाबा के गुणों में मैं ऐसे लवलीन हो गई हूँ... जैसे बूँदें सागर में समा जाती हैं... सर्वगुणों के सागर... शक्तियों के सागर में समा कर मैं आत्मा भी सर्वगुण सम्पन्न... सर्वशक्तिसम्पन्न बनती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं परमपिता की सन्तान परमपिता के लक्षण धारण करती जा रही हूँ... *दुःखधाम से सुखधाम में ले जाने का जो लक्ष्य मेरे बाप का है... वही लक्ष्य मुझ आत्मा का भी है...* मुझ आत्मा को भी इस ईश्वरीय कार्य में निमित्त बनना ही है... दृढ़ संकल्प करती हूँ और सर्व आत्माओं का कल्याण करके विश्व सेवा करने की निमित्त हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा स्व को कंट्रोल कर फ़ुलस्टॉप लगाने वाले सदा समर्थ आत्मा होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  कंट्रोलिंग पॉवर अर्थात सेकंड में फ़ुलस्टॉप लगाना, फ़ुलस्टॉप माना फ़ुल स्टॉप यह नही संकल्प में या बोल में आगे आगे कंटिन्यू करते रहे बात को। क्योंकि बाबा ने एक बहुत सुंदर स्लोगन दिया हुआ है *जहाँ बात है वहाँ बाप नहीं और जहाँ बाप है वहाँ कोई बात नहीं* इसलिए सबसे अच्छी चेकिंग यही है की घड़ी घड़ी चेक करो की मैं आत्मा हुँ या शरीर हुँ? क्योंकि साइलेन्स की शक्ति से आत्मा में अपने आप कंट्रोलिंग पॉवर आ जाती और वह जब चाहे जहाँ चाहे, जितना समय चाहे बुद्धि से एकाग्र हो सकता है।

 

 ❉  बिंदु स्वरूप बाप और बिंदु स्वरूप आत्मा- दोनो की स्मृति फ़ुलस्टॉप अर्थात बिंदु लगाने में समर्थ बना देती है। समर्थ आत्मा के पास स्व के ऊपर कंट्रोल करने की कंट्रोलिंग पॉवर होती है। वह दूसरों को कंट्रोल नहीं करते लेकिन *स्व पर कंट्रोल रख परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाते।* क्योंकि हर समय परिस्थितियाँ बदलती रहती है, एक गीत भी है " यह वक़्त जा रहा है " तो कोई भी सीन ड्रामा में ठहरने वाली नही है , हर सीन बदल रहा है... इसलिए हर आत्मा को परिवर्तन शक्ति प्रयोग में लानी चाहिए।

 

 ❉  जब हम ज्ञान में आत्माएँ आयी तब बाबा ने सबसे पहले स्लोगन भी हमको यही दिया *'स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन'* इसका अर्थ ही यही है कि सबसे पहले आत्मा को अपने *मन के ऊपर रूल-कंट्रोल व बुद्धि को समर्थ विज़न के द्वारा एकाग्र करना* है। जो केवल *साइलेन्स की पॉवर* से ही पॉसिबल है, साइलेन्स की पॉवर को बढ़ाने के लिए बाबा ने हमको 8घंटा योग में रहने को कहा है जिससे आत्मा अचानक में आने वाली परिस्थितियों को अपनी परिवर्तन शक्ति के प्रयोग से रोंग को भी राइट बना देती है।

 

 ❉ जैसे ब्रह्माबाबा में हर एक आत्मा की विशेषता को देखने की ही शक्ति थी इसलिए वह रोंग को राइट करने की शक्ति रखते थे, वह कभी ऐसा नही कहते की क्या मुझे ही मरना है, मुझे ही सहन करना है? नहीं बल्कि उन्हें नारायणी नशा रहता था की *"मैं यह कार्य नही करूँगा तो ओर कौन करेगा" , अब जो शिवबाबा का कर्तव्य वही मुझ आत्मा का भी कर्तव्य है।* बाबा ने यह कार्य मुझे दिया है तो अवश्य मुझसे ही यह कार्य होना है। ऐसे समर्थ आत्मा यही समझती है की *यह मरना नहीं लेकिन स्वर्ग में स्वराज्य लेना है।*

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त वही बन सकते जिनके हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता है... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जैसे धरती में जब कोई बीज बोया जाता है और जब वह बीज अंकुरित हो कर फूटता है तो वृक्ष का निर्माण कर देता है और उस वृक्ष पर लगा फल सबको प्रत्यक्ष दिखाई देता है । ठीक इसी प्रकार *जब सबके हृदय रूपी धरनी में परमात्म पहचान का बीज डालेंगे* और परमात्म पालना रूपी स्वादिष्ट फल सबको चखायेंगे तो परमात्म पहचान का यह बीज ही परमात्मा का प्रत्यक्षता करायेगा किन्तु परमात्मा बाप की इस प्रत्यक्षता के निमित्त वही बन सकेंगे जिनके हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता होगी ।

 

❉   कोई भी फसल उगाने के लिए धरती में जब बीज डाला जाता है तो बीज डालने के बाद उसकी पूरी सम्भाल की जाती है । जैसे उसे समय पर पानी देना, वायु और धूप का उचित प्रबन्ध करना और बीज के फलीभूत होने पर उसकी कीड़े मकौड़ों अथवा जन्तुओं से रक्षा करना । इसी प्रकार *अपने हर संकल्प में दृढ़ता की शक्ति भर कर मनुष्यों के हृदय रूपी धरनी में परमात्म बीज डालने के बाद उन्हें जब ज्ञान और योग के पानी से सींचेगे* तो बीज सहज ही फलीभूत होने लगेगा जिससे स्वत: ही भगवान प्रत्यक्ष हो जायेंगे ।

 

❉   मेजोरिटी मनुष्य इस बात को अब सहज ही स्वीकार करने लगें हैं कि ब्रह्माकुमारीज संस्था कोई साधारण संस्था नही है और ब्रह्माकुमारियों द्वारा मिलने वाला ज्ञान कोई साधारण ज्ञान नही है । किन्तु *यह ज्ञान किसी देहधारी गुरु द्वारा नही बल्कि स्वयं परम पिता परमात्मा द्वारा दिया जाने वाला सत्य अविनाशी ज्ञान है* इस बात को सभी मनुष्य तभी स्वीकार करेंगे जब हमारे हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता होगी । संकल्पो में दृढ़ता लाकर जब परमात्म प्रेम का अनुभव दूसरों को करवायेंगे तो बाप की प्रत्यक्षता के सहज ही निमित्त बन जायेंगे ।

 

❉   जिनके अंदर दृढ़ता की शक्ति होती है उनके हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता होने के कारण उन्हें योग में गहन अनुभूतियां स्वत: ही होने लगती है किन्तु *योग में गहन अनुभूति तभी हो सकती है जब अंतर्मुखता में रहने का अभ्यास हो* और अंतर्मुखता का अभ्यास तभी होगा जब दृढ़ता की शक्ति से मन को बाह्यमुखी साधनो से मुक्त करने का अभ्यास होगा । बाहरी दुनिया और दुनिया के पदार्थो से जब लगाव समाप्त होने लगेगा तो अंतर्मुखी बन योग में रहना सहज होने लगेगा और हमारी योगयुक्त स्थिति ही बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनेगी ।

 

❉   आज सारे विश्व की सर्व आत्माएं विशेष यही चाहना रखती हैं कि उनकी भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए किन्तु यह *एकाग्रता तभी आ सकती है जब हमारे संकल्पो में दृढ़ता की विशेषता होगी* । क्योकि जब संकल्पो में दृढ़ता होगी तभी मन बुद्धि को जहां लगाना चाहें वहां लगा सकेंगे । इसलिये संकल्पों में दृढ़ता लाकर जब स्वयं के साथ साथ विश्व की सर्व आत्माओं को इस चाहना को पूर्ण करेंगे तो बाप की प्रत्यक्षता के निमित्त बन सकेंगे ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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