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❍ 17 / 03 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *"अब यह नाटक पूरा हुआ" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *योगबल से काम विकार पर विजय पाने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *निश्चयबुधी बन बाप की श्रीमत पर चलते रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *आकारी और निराकरी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहे ?*
➢➢ *दिव्य गुणों की धारणा पर विशेष अटेंशन रहा ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *मेहनत की बजाये मोहब्बत का अनुभव किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम बाप के बने हो इस दुनिया से मरने के लिए, ऐसी अवस्था पक्की करो जो अंत में बाप के सिवाय कोई भी याद न आये"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... अब ईश्वर पिता का *मखमली हाथ थाम कर जो देह के मटमैलेपन* से बाहर निकले हो तो इस मीठे भाग्य की मधुरता में खो जाओ... ईश्वर पिता से प्यार कर फिर देह की दुनिया की ओर रुख न करो... इन मधुर यादो में खोकर अपना सुनहरा सतयुगी भाग्य सजाओ...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके हाथ और साथ को पाकर नये पवित्र जन्म को पा चली हूँ... आपकी मीठी सी यादो में... देह की अपवित्र दुनिया से निकल कर *सतयुगी खुबसूरत सुखो की मालकिन सी सज संवर रही हूँ.*..
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितने मीठे भाग्य से सज चले हो... मीठे बाबा की पसन्द बनकर धरा पर खुशनुमा इठला रहे हो... इन प्यारी यादो में इस कदर खो जाओ कि... सिवाय बाबा के जेहन में कोई भी याद शेष न हो... ऐसे *गहरे दिल के तार ईश्वर पिता से जोड़ चलो* कि वही दिल पर हमेशा छाया रहे...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा दुखो की दुनिया से निकल कर सच्चे प्यार की छाँव में आ गयी हूँ... प्यारे बाबा आपकी *सुखभरी छत्रछाया मे पुरानी दुनिया से मरकर नये ब्राह्मण जन्म को पा* गयी हूँ... और यहाँ से घर चलकर सुखो की नगरी में आने का मीठा भाग्य पा चली हूँ...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब पुरानी दुनिया की हर बात से उपराम होकर सच्ची यादो में अंतर्मन को छ्लकाओ... *सच्चे प्यार से सदा का नाता जोड़कर उसके प्रेम में प्रति पल भीग जाओ.*.. इन यादो में इतने गहरे डूब जाओ कि... बस उसके सिवाय दुनिया भूली सी हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में रोम रोम से भीगकर... *सच्चे प्रेम को जीने वाली महान भाग्य की धनी हो गयी हूँ.*.. मीठे बाबा अब आप ही मेरा सच्चा सहारा हो... और आपके संग साथी बनकर ही मुझे अपने घर चलना है...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा बाप समान हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने घर से इस सृष्टि पर खेलने आई थी... मैं आत्मा जन्म-मरण का खेल खेलते-खेलते इसी खेल में मगन हो गई थी... अपने असली घर को भूल गई थी... मैं आत्मा जन्मों-जन्मों से *पार्ट बजाते-बजाते इस देह रूपी वस्त्र के बंधन में* जकड़ गई थी... मैं आत्मा माया के दलदल में धंसते चली गई...
➳ _ ➳ प्यारे परमपिता परमात्मा इस सृष्टि पर *अवतरित होकर मुझ आत्मा को कोटो में से कोई व कोई मे से भी कोई से ढूंढ* निकाला... ज्ञान सूर्य परमात्मा ने मुझ आत्मा को हाथ पकडकर माया की कीचड़ से बाहर निकाला... प्यारे बापदादा मुझ आत्मा को एक सुन्दर बगीचे में ले आते हैं... ज्ञान सूर्य से निकलती किरणों के झरने के नीचे मुझ आत्मा को बिठाते हैं...
➳ _ ➳ ज्ञान सूर्य की किरणों के झरने में मुझ आत्मा का सारा विकारों रूपी कीचड़ भस्म होता जा रहा है... प्यारे बापदादा मुझ आत्मा में *ज्ञान-योग के द्वारा स्मृतियों के पंख लगा रहे* हैं... मुझ आत्मा में सारी स्मृतियाँ वापस आने लगी हैं... मुझ आत्मा को अपना असली स्वरूप, असली घर याद आने लगा है... मैं आत्मा स्मृतियों के पंख लगाकर अपना असली घर देखने प्यारे बापदादा के साथ ऊपर उड़ने लगती हूँ...
➳ _ ➳ प्यारे बापदादा पहले मुझ आत्मा को सूक्ष्म वतन लेकर जाते हैं... मुझ आत्मा को चमकीली फरिश्तों की ड्रेस पहनाते हैं... प्यारे बापदादा गुण, शक्तियों के खजानों से मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहे हैं... फिर मैं आत्मा *बिंदु बन बिंदु बाप के साथ अपने असली घर परमधाम* जाती हूँ... लाल सुनहरे प्रकाश से भरा मुझ आत्मा का ये घर कितना ही सुन्दर और प्यारा है... यहाँ मैं आत्मा कितनी शांति का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा कभी शिव बाबा की तरह निराकारी बन परमधाम चली जाती हूँ... कभी ब्रह्मा बाबा की तरह आकारी फरिश्ता बन सूक्ष्म वतन में उड़ जाती हूँ... अब मैं आत्मा बार-बार यही अभ्यास करती जा रही हूँ... और बाप सामान बनती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाली *बाप समान स्थिति की अनुभवी बनती जा रही* हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - दिव्य गुणों की प्राप्ति को प्रभु प्रसाद अनुभव करना"*
➳ _ ➳ बाबा मुझ आत्मा को सर्वगुण सम्पन्न बनाना चाहते है... मनुष्य से देवता बनना गुण-अवगुण... नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ दिव्य गुणों पर ही आधारित है... *मैं आत्मा दिव्यगुणों को धारण करने का ही पुरुषार्थ करती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञानसागर परमपिता सुप्रीम शिक्षक के सम्मुख बैठ जाती हूं... मैं आत्मा अनुभव कर रही हूः कि बाबा मुझ आत्मा को दिव्य गुणों की माला पहना रहे है... बाबा मुझ आत्मा को रोज ज्ञान मुरली द्वारा ज्ञान रत्नों से संजाकर सर्वगुण सम्पन्न बना रहें है... मैं आत्मा ज्ञान को धारण कर उसका स्वरुप बनती जा रही हूं... मुझ आत्मा को दिव्य गुणों को धारण कर देवताओं के समान सम्पन्न बनना है... *योगाभ्यास द्वारा मैं आत्मा गुणों में स्थिर होती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे मीठे बाबा की याद से जीवन को दिव्य गुणों से सजाती जा रही हूँ*... दृढ़ता के गुण को धारण कर मैं आत्मा... सभी गुणों को आता अनुभव करती जा रही हूँ... दृढ़ता के बिना कोई भी गुण टिक नही सकता... मुझ आत्मा को दिव्य गुण धारण करने ही हैं...
➳ _ ➳ *दैवीगुण मुझ आत्मा को विजयमाला का दाना बना रहें हैं*... मैं भविष्य में देवता बनने वाली आत्मा हूँ... मैं आत्मा संगम पर दिव्यगुणों की मूर्ति बनती जा रही हूँ... यह दिव्यगुण मुझ आत्मा को प्रभु द्वारा मिला प्रसाद है...
➳ _ ➳ सतयुग में तो देवता होंगे ही... मैं आत्मा दिव्य गुणों का प्रभु प्रसाद अभी संगम पर एक मीठे बाबा से ग्रहण कर रही हूं... ये दिव्य गुणों का प्रसाद मुझ आत्मा को देवता मूर्ति बनाता जा रहा है... *मैं आत्मा स्वयं को दिव्य गुणों से सजा अनुभव कर रही हूँ*...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को गुणों को धारण कर... सर्वगुण सम्पन्न बनना ही है... क्योंकिं गुणों की ही महानता हैं... गुणों को ही पूजा जाता है... यह गुण ही मुझ आत्मा को मनुष्य से देवता बनाते जा रहें है... *धन्य हो गई मैं आत्मा... दिव्यगुणों को प्रभु प्रसाद में पाकर*...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाले बाप समान होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाले बाप समान होते हैं, क्योंकि... जैसे हमारा विकारों के साथ में रहना अभी नैचुरल हो गया है, वैसे ही *आकारी और निराकारी स्थिति में रहना भी नैचुरल हो सकता है।* अतः हमारे मन में सदा ये ही संकल्प होना चाहिये कि... मैं आकारी फरिश्ता हूँ।
❉ मैं आकारी फरिश्ता हूँ और मैं ही निराकारी श्रेष्ठ आत्मा भी हूँ– यह दोनों स्मृतियाँ जब नेचुरल हो जायेंगी तब हम बाप समान बन जायेंगे, क्योंकि... शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी और *हमें बाप समान तो बनना ही है,* इसलिये! हमें बार बार इन उपरोक्त दोनों स्मृतियों में स्थित होने का निरन्तर अभ्यास करते रहना है।
❉ अतः आकारी स्थिति और निराकारी स्थिति का लगातार अभ्यास करते रहने से, हम *हलचल की परिस्थिति में भी, अचल स्थिति का अनुभव करेंगे।* तब अचल अवस्था में स्थित रहते हुए हम शिव पिता व ब्रह्मा बाप के सभी गुणों व सर्व शक्तियों को, स्वयं में समाने का दिव्य कार्य करने लगते हैं और बाप समान बनने लगते हैं।
❉ क्योंकि... दिव्य गुण और दिव्य शक्तियों को स्वयं में समाने का एक मुख्य कारण ये भी है कि... हमें अपने दोनों पिताओं से अति प्यार है। अगर हमारा दोनों से ही, प्रेम व प्यार है तो! हमें बाप समान बनना ही है, क्योंकि... जैसे! *सर्व श्रेष्ठ दोनों बाप हैं, वैसे ही सर्व श्रेष्ठ उनके बच्चे भी हैं।*अतः हमें सदा ही बाप समान बनने का पुरुषार्थ करते रहना है।
❉ इसलिये! साकार में रहते हुए, हमें ये अभ्यास निरन्तर करते रहना है कि... *अभी अभी आकारी और अभी अभी निराकारी।* ये आकारी और निराकारी अवस्था की ड्रिल हमें, लगातार करते रहना है। यही दोनों स्थितियों का उचित अभ्यास ही, हमें हलचल में अचल बना देगा तथा यही अभ्यास हमें बाप समान भी बना देगा।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *दिव्य गुणों की प्राप्ति होना ही सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है... क्यों और कैसे* ?
❉ जो निरन्तर परमात्मा बाप की याद में रहते हुए अपने जीवन को योगयुक्त और युक्तियुक्त बना लेते हैं उनका जीवन दिव्यता से महकने लगता है । *जैसे एक अगरबती की खुशबू पूरे घर को अपनी सुगन्ध से महका देती है* ठीक उसी प्रकार योगी व्यक्ति का जीवन भी परमात्मा के सानिध्य में रहने से दिव्य गुणों से महकने लगता है । आसुरी अवगुण स्वत: ही विदाई ले लेते हैं और उसका *जीवन ऐसा दिव्य और अलौकिक बन जाता है* जो अनेक आत्माओं के जीवन को भी दिव्यता से भर देता है । यही सबसे बड़ा प्रभू प्रसाद है ।
❉ जैसे कमरे में फैला अंधकार बिजली का स्विच ऑन करते ही समाप्त हो जाता है और उसकी जगह रोशनी आ जाती है ठीक इसी प्रकार *जब ज्ञान का प्रकाश जीवन में फैलने लगता है और जीवन में ज्ञान की धारणा होने लगती है तो मन बुद्धि स्वच्छ होने लगते हैं* । जितना मन बुद्धि में स्वच्छता आती जाती है उतना परमात्मा के साथ कनेक्शन जुड़ने लगता है और आत्मा में बल भरने लगता है । यह बल व्यर्थ के किचड़े को समाप्त कर दिव्य गुणों से आत्मा को भरपूर कर देता है । दिव्य गुणों की यह प्राप्ति ही सबसे बड़ा प्रभू प्रसाद है ।
❉ किसी भी चीज को छोड़ने के बजाए किसी चीज को धारण करना सहज होता है । जैसे पुराने स्वभाव संस्कारों को छोड़ना कठिन लगता है । इसलिए *बापदादा कहते हैं कि छोड़ने की मेहनत नही करो लेकिन स्वमान में स्थित रहने का अटेंशन रखो तो पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार स्वत: ही छूट जायेंगे* । बाप दादा द्वारा हर ब्राह्मण बच्चे को श्रेष्ठ स्वमान की माला मिली हुई है । तो जो सदा श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहते हैं उन्हें दिव्य गुणों के रूप में प्रभू प्रसाद की श्रेष्ठ गिफ्ट मिल जाती है और आसुरी स्वभाव, संस्कारों से वे मुक्त हो जाते हैं ।
❉ कहा जाता है कि लोहे को अगर पारस के साथ रख दिया जाए तो लोहा भी पारस के संग में सोना बन जाता है । ऐसा ही सच्चा सोना हमें भी बनना है । किंतु वह तभी बन सकेंगे जब जरा भी लोहे का अंश नहीं होगा । क्योंकि अगर लोहे का अंश भी होगा तो वैल्यू को कम कर देगा । *आसुरी स्वभाव, संस्कार लोहे के समान है जो आत्मा को सच्चा सोना बनने नहीं देते* । इसलिए जितना पारसनाथ बाप के संग में रहेंगे दिव्य गुण प्रभू प्रसाद के रूप में प्राप्त होते रहेंगे जिससे आत्मा दिव्य गुणों से सम्पन्न सच्चा सोना बन जायेगी ।
❉ जैसे बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती है जो मनुष्य नजदीक से दूर जाकर गिरता है । इसी प्रकार ईश्वरीय करेन्ट भी ऐसी शक्ति है जो हर विकार को भस्म कर आत्मा को आसुरी संस्कारों से दूर कर देती है । लेकिन यह *ईश्वरीय करेन्ट तभी मिलती है जब कनेक्शन ठीक होता है* । और कनेक्शन तभी ठीक हो सकता है जब बुद्धि में सिवाय एक परमात्मा के और कोई की याद ना हो । इसलिए जितना कनेक्शन अटूट होगा उतना ईश्वरीय करंट मिलने से आत्मा दिव्य गुणों से भरपूर होती जाएगी ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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