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 08 / 01 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)

 

➢➢ *"आत्माओं को हिम्मत और उल्लास देने, उड़ाने के लिए नीचे आये और फिर ऊपर चले गए" - ऐसी प्रैक्टिस की ?*

 

➢➢ *इष्ट देवात्मा के संस्कार इमर्ज किये ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)

 

➢➢ *सर्व कर्मेन्द्रियों के अधिकारी अर्थात सर्व कर्मों के बंधन से मुक्त बनकर रहे ?*

 

➢➢ *शक्ति के रूप में पवित्र प्रेम और पालना द्वारा द्वारा आत्माओं की श्रेष्ठ पालना की ?*

 

➢➢ *अपने तपस्वी स्वरुप द्वारा विकर्मों को भस्म करने का पुरुषार्थ किया ? और साथ साथ हर आत्मा और प्रकृति के तमोगुण को भस्म करने की सेवा की ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)

 

➢➢ *आज की अव्यक्त मुरली का बहुत अच्छे से °मनन और रीवाइज° किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢  *"स्वराज्य अधिकारी  आत्माओ का आसन - कर्मातीत स्टेज"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... कर्म करते हुए भी सदा कर्म से अतीत हो अधिकारीपन के नशे में खोये रहो... स्वराज्य अधिकारी ही विश्व में ईष्ट देव बन चमकेंगे... प्यासी आत्माये कह उठेंगी *यही है और वही है, मिल गए, मिल गए.*.. ऐसी तरसती व्याकुल आत्माओ को स्वराज्य अधिकारी बन प्रेम और ख़ुशी की पालना दे खुशियो के झूले में झुलाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कभी जो इंद्रियों की गुलाम थी *आज ईश्वरीय यादो में मालिक बन मुस्करा उठी हूँ.*.. मीठे बाबा आपसे मिलकर जीवन कितना महक उठा है... चारो ओर खुशियां बिखरी है और हर दिल आपका मीठा प्यार मुझसे पा रहा है...

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे फूल बच्चे... सच्चे प्यार की लहर फैलाओ और थकी तरसी आत्माओ को समीप के सच्चे सम्बन्ध् की अनुभूति कराओ... *हमारे हमको मिल गए, पाना था सो पा लिया* ऐसा मीठा रूहानी वायुमण्डल बनाओ... हर दिल को सुख और आनंद का अहसास कराओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा आपसे सुखो की जन्नत और अथाह खुशियो की जागीर पाकर... इन सच्ची राहो पर सारे जहान को लाने में जीजान से जुटी हूँ... *आपसे पाया सच्चा प्यार हर दिल पर लुटा रही हूँ.*.. सबके जीवन में सुखो की बहार खिला रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय प्यार में सदा उड़ता पंछी बन खुशियो के आसमान में प्रचण्ड उड़ान भरो.*.. रूहानी आकर्षण लिए न्यारे और प्यारे कमल पुष्प सा ईश्वरीय जादू से खिल उठो... सब बोझ विश्व पिता को दे हल्के मुक्त और सहज ही मायाजीत जगतजीत बन मुस्कराओ....

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्ची ख़ुशी पाकर झूम रही हूँ... जहान में सबसे जुदा और *रूहानी रंगत लिए गुणो से महक रही हूँ.*.. सब चिताओ से बेफिक्र होकर ईश्वरीय दिल में मुस्करा रही हूँ... और सुख भरे झूले में इठला रही हूँ...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा न्यारी और प्यारी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  मैं *श्रेष्ठ तकदीरवान आत्मा* हूँ... इस संगमयुग में ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण कुलभूषण हूँ... मुझ आत्मा को स्वयं परमपिता परमात्मा ने एडॉप्ट किया है... बाबा ने सत्य ज्ञान देकर मुझ आत्मा को त्रिकालदर्शी बना दिया है... प्यारे बाबा ने बेहद के खजानों की चाबी देकर मुझ आत्मा को धनवान बना दिया...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस देह, देह के सम्बन्धों, देह के वैभवों से... सर्व प्रकार के हलचल से *न्यारी होती हुई स्वीट साइलेन्स होम* में अपने प्यारे बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... परमात्मा के तेजोमय किरणों से देह के स्वार्थी, विनाशी सम्बन्धों की मोह की रस्सियाँ टूटती जा रहीं हैं... पुराने स्वभाव-संस्कार, देह के अल्पकालिक आकर्षणों की रस्सियाँ टूट कर भस्म होती जा रहीं हैं...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा हद के बंधनों से न्यारी होकर बेहद के बाप की और सर्व की प्यारी बनती जा रहीं हूँ... मैं आत्मा प्यारे बाबा से सर्व सम्बन्धों का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं आत्मा *परमात्म प्यार में लवलीन* हो गई हूँ... मैं आत्मा सर्व गुण, शक्तियों से भरपूर होकर बाप समान स्थिति का अनुभव कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा सदा निमित्त भाव से हर कर्म कर रहीं हूँ... निमित्त भाव के अभ्यास से स्वतः और सहजयोगी बन रहीं हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरूप बन विश्व के आगे *बाप समान का एग्ज़ाम्पल* पेश कर रहीं हूँ... हर कदम में स्व की प्रगति और सर्व की प्रगति कर रहीं हूँ...

 

➳ _ ➳  अब मुझ आत्मा के कदम धरनी पर नहीं पड़ते हैं... मैं आत्मा सदा निमित्त सेवाधारी की स्टेज पर स्थित रहती हूँ... सर्व प्रकार के बंधनों और बोझ से हल्की होकर उड़ती कला का अनुभव कर रहीं हूँ... अब मैं आत्मा निमित्त भाव के अभ्यास द्वारा स्व की और सर्व की प्रगति करने वाली *न्यारी और प्यारी* बन गई हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल -  सुखदाता के बच्चे बन सदा सुख के झूले में झूलना*"

 

➳ _ ➳  बाबा से कितना बढ़िया झूला मिला है, सुख का झूला जो कभी टूटता नही, *सदा एकरस रहता है।* सदा अतीन्द्रिय सुख में रहने वालों के पास दुःख का नाम-निशान नही आ सकता। जब सुखदाता मेरा हो गया तो दुःख की लहर आ नही सकती। न दुःख लो, न दुःख दो सदा यही स्लोगन याद रखना है।

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा रूहानी नशें में रहने वाली आत्मा हूँ... *मैं सुखदाता बाप की सन्तान हूँ*... सुखदाता मेरा हो गया... मैं आत्मा सदा के लिए उसकी हो गई... यह रूहानी नशा... मुझ आत्मा के दुःख, अशांति को विदाई दे रहा है... 

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों का अनुभव करती जा रही हूँ... मैं आत्मा अपने को बाप समान सर्वगुण... *सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव करती जा रही हूँ*... मैं आत्मा सर्व सम्बन्ध एक बाप से अनुभव करती हूँ... एक बाप दूसरा न कोई मन में यही गीत चलता रहता है...

 

➳ _ ➳  मैं भरपूर आत्मा हूँ... बाबा ने मुझ आत्मा को सर्व प्राप्तियों से भरपूर का दिया है... मैं आत्मा यदि फुल भरी हूँ तो... कोई भी दुःख की हलचल नही आ सकती... *दुःख-दर्द सब समाप्त होते जा रहे हैं*... सदा अपने भाग्य को देख मैं आत्मा हर्षित रहती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा अपने भाग्य के गीत गाती हूँ... *वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य वाह*... सदा ख़ुशी के गीत गाते रहो... पाना था सो पा लिया... जो प्राप्ति चाहिए थी... वह पा ली... तो दुःख की लहर आ नही सकती..

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का कितना बड़ा सौभाग्य... स्वयं भाग्य विधाता ही भाग्य में मिल गया... *भाग्य विधाता, सुख दाता, सर्वशक्तिवान अपना हो गया*... तो बाकि क्या रह गया... यही अनुभव मुझ आत्मा को सदा सुख के झूले में झूलने की अनुभुति कराता है...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *निमित्तभाव के अभ्यास द्वारा स्व की और सर्व की सर्व की प्रगति करने वाले न्यारे और प्यारे होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   निमित्तभाव के अभ्यास द्वारा स्व की और सर्व की प्रगति करने वाले न्यारे और प्यारे होते हैं क्योंकि...  *निमित्त बनने का पार्ट सदा न्यारा और प्यारा बनता* है। अगर निमित्त भाव का अभ्यास स्वतः और सहज है तो सदा स्व की प्रगति और सर्व की प्रगति हर कदम में समाई हुई है।

 

❉   अतः निमित्त भाव ऊँचे से ऊँचा भाव है। *सर्व कार्य करने वाला तो वह परम पिता परमात्मा* ही है लेकिन! अहंकार रुपी विकार के वशीभूत हो कर स्वयं को कर्ता मान बैठते हैं इसीलिये!  ही आत्मा!  कर्म, अकर्म और विकर्म के बन्धन में बन्ध जाती है।

 

❉   अतः अपने को निमित्त समझ कर सर्व कार्य करने है। क्योंकि *निमित्त भाव हमको न्यारा और प्यारा* बना देता है। न्यारा व प्यारा भाव हमको प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता है। ये निमित्त भाव ही हमको सहज और सरल बनाता है।

 

❉   इसलिये!  ही कहा है कि...  निमित्त भाव में स्व की उन्नति व सर्व आत्माओं कीहर कदम में प्रगति समाई हुई है क्योंकि *हम सभी आत्माओं का कदम धरनी पर नहीं है, बल्कि!  इस सृस्टि रुपी विशाल स्टेज* पर है।  अतः हमें सर्व के न्यारे और सर्व के प्यारे बन कर रहना है।

 

❉   क्योंकि निमित्त बनी हुई आत्मायें!  सदा स्मृति स्वरूप होती हैं। वे सदा अपनी स्मृति में ये बात रखती हैं कि...  *वे विश्व के आगे बाप समान का एग्जाम्पल* हैं। ये आत्मायें!  विश्व के लिये उद्धाहरण स्वरूप बन जाती हैं। वे बाप को सारे विश्व में प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनती है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *सुख दाता के बच्चे सदा सुख के झूले में झूलते रहो, दुख की लहर में नहीं आओ... क्यों और कैसे* ?

 

❉   दुख तब होता है जब शरीर के मन में आते हैं । अगर शरीर के भान को भूलकर *अपने वास्तविक आत्मिक स्वरुप की स्मृति में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है* । क्योंकि जितना आत्मिक समृति में रहते हैं उतना सुखदाता बाप की याद निरंतर बनी रहती है । और सर्व सुखों का अनुभव होता ही होता रहता है जीवन ऐसा सुखदाई सुखमय बन जाता है कि दुख की लहर भी कभी समीप नहीं आ सकती ।

 

❉   जब सुखदाता बाप के बच्चे बन गए तो सुखदाता द्वारा सर्व सुखों का वर्सा स्वत: ही मिल गया । क्योंकि बाप कहा और वर्सा मिला । तो *सुख का वर्सा मिलना माना दुखों से सहज किनारा हो जाना* । जिसने दुख धाम को छोड़ दिया वह स्वयं भी सुखी बन गए और सुखदाई बन औरों को भी सुख देने के निमित्त बन गए । ऐसे सुखदाता बाप के सुखदाई बच्चों के जीवन में दुख की लहर कभी भी नहीं आ सकती ।

 

❉   सुखदाता बाप के सुखदाई बच्चों को सदा यह नशा रहता है कि हम अविनाशी खजाने के मालिक हैं । जो *बाप का खजाना ज्ञान, सुख शांति, आनंद, प्रेम, पवित्रता है वह सर्वगुण हमारे हैं* । क्योंकि बच्चा बाप की प्रॉपर्टी का स्वत ही मालिक होता है । ऐसे स्वयं को अधिकारी समझने वाली आत्मा अपने अधिकारीपन के नशे में सब बातों को भूल ऐसी सुखस्वरूप बन जाती है । जिसके सामने दुख की लहर कभी नहीं आ सकती ।

 

❉   सबसे श्रेष्ठ और ऊँचा जीवन ब्राह्मण जीवन गाया हुआ है । ब्राह्मणों का नाम भी ऊंचा काम भी ऊंचा और स्थिति भी होती है । *जैसे ब्राह्मणों की महिमा होती है वैसे अपने को सच्चे ब्राह्मण अर्थात ऊँची स्थिति पर जो सदा अनुभव करते हैं* । उनके हर संकल्प, बोल और कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ बन जाते हैं । और जब कर्म श्रेष्ठ बन जाते हैं तो दुख के बादल जीवन से छटने लगते हैं और सुख की लहरे जीवन को सुख दाई बनाने लगती हैं ।

 

❉   जैसे राजा के बच्चे सोने चांदी के खिलौनों से खेलते हैं । इसी प्रकार ज्ञान सागर के बच्चे सदा ज्ञान रत्नों से खेलते हैं । और *ज्ञान रत्नों से खेलने वाले बच्चों के जीवन में दुख अशांति की लहर कभी आ नहीं सकती* । क्योंकि ज्ञान रत्न भी है तो नॉलेज भी है । और नॉलेज के आधार पर सदैव अनुभव करेंगे कि दुख अशांति की जीवन कभी मेरी थी ही नहीं दूसरे की थी । यह अनुभूति सदा सुख शांति के झूले में झुलाती रहती है ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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