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 31 / 01 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 2*5=10)

 

➢➢ *अपनी सब खामियां निकाल सदा श्रीमत पर चले ?*

 

➢➢ *अपनी कथनी और करनी एक की ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:3*10=30)

 

➢➢ *सर्व खजानों से संपन्न बन हर समय सेवा में बिजी रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान और योग को नेचर बना हर कर्म नेचुरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त बनाया ?*

 

➢➢ *ज्ञान मनन के साथ साकाश देने का, मन के मौन का और ट्रैफिक कण्ट्रोल का समय मुक़र्रर किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 10)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *अपने दिल के सब संकल्प अपने सच्चे फ्रेंड(बाबा) को सुनाये ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - श्रेष्ठ बनना है तो श्रीमत पर पूरा पूरा चलो, श्रीमत पर न चलना ही सबसे बड़ी खामी है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... श्रीमत के हाथो में ही देवताई जादू को पा सकते हो... गर जीवन को खुबसूरत बनाना है और सुखो का अधिकारी बन मुस्कराना है तो श्रीमत पर हर कदम को उठाओ... *श्रीमत से ही जीवन दिव्यता से सजकर* अथाह सुख दिलाएगा...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को शिक्षक रूप में पाकर *श्रीमत के  जादू से स्वयं को देवताई स्वरूप में निखार रही हूँ.*.. श्रीमत ही मेरे जीवन की साँस है, मीठे बाबा आपका साथ ही मुझ आत्मा के प्राण है... ऐसा सच्चा साथ मुझे देवताओ सा सजा रहा है...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... इंसानी मतो पर चलकर जीवन को दुःख भरे दलदल में समा दिया है... अब श्रीमत की ऊँगली पकड़कर इस दलदल से बाहर निकल सुन्दरतम स्वरूप में मुस्कराओ... *श्रीमत ही सच्चे सुखो के फूलो की बहार जीवन में खिलाएंगी.*. श्रीमत पर ही जीवन को हरपल चलाना है...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में फूल समान खिलती जा रही हूँ... *मेरा जीवन गुणो की खुशबु से भर चला है.*.. मै आत्मा श्रीमत को अपनाकर कितना मीठा प्यारा जीवन जीती जा रही हूँ... और श्रेष्ठता की ओर बढ़ती चली जा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *श्रीमत ही सुनहरे सुखो का सच्चा सच्चा आधार है* इसलिए श्रीमत को हर पल हर संकल्प हर साँस में भर चलो... और खुबसूरत देवताई श्रंगार से सज चलो... ईश्वरीय मत जीवन को श्रेष्ठ बनाकर अथाह सुख सम्पदा को दामन में भर देगी...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय मत पर चलकर सदा की सुखी हो चली हूँ... मुझ आत्मा का जीवन सच्चे प्रेम, सच्चे ज्ञान, सच्चे सुखो का पर्याय हो चला है... मीठे बाबा आपकी राहो का पथिक बनकर *मै आत्मा खुशियो के बगीचे में पहुंच गयी हूँ.*..

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी हूँ।"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा विश्व कल्याण के निमित्त बनी हुई हूँ... मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा की मुख रचना, *मानस रचना सर्वोत्तम ब्राह्मण* हूँ... मैं आत्मा मन, बुद्धि को एक प्यारे बाबा की याद में एकाग्र करती हूँ... ज्ञान की किरणों से मैं आत्मा पत्थरबुद्धि से पारस बुद्धि बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा सर्व खजानों से सम्पन्न बनती जा रही हूँ... भरपूर होती जा रही हूँ...

 

➳ _ ➳ प्यारे बाबा के रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में मैं आत्मा बापदादा की सहयोगी हूँ... *यज्ञ स्नेही हूँ... यज्ञ रक्षक* हूँ... मुझ ब्राह्मण आत्मा को इस यज्ञ में सम्पूर्ण स्वाहा होना है... मुझ ब्राह्मण आत्मा को अपना तन, मन, धन, समय, संकल्प, श्वांस, वचन, कर्म, गुण, कला, विशेषता, सम्बन्ध, सम्पर्क सब कुछ इस यज्ञ में स्वाहा करना है...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा *मनसा, वाचा, कर्मणा हर समय सेवा में बिजी* रहती हूँ... मैं आत्मा सदा श्रीमत पर चलकर सेवा और पुरुषार्थ को बढा रही हूँ... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा ने ज्ञान देकर जैसे वर्से का अधिकारी बनाया... मैं आत्मा वैसे ही सर्व को प्यारे बाबा का परिचय देकर लायक बनाने की निःस्वार्थ सेवा कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा की राइट हेंड बन सदा राइटियस कर्म करती हूँ... बापदादा के कर्तव्य की जिम्मेवार और अलौकिक बेहद वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ... अब मैं आत्मा सदा अपने लक्ष्य को स्मृति में रख हर कर्म करती हूँ... मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखती हूँ... अब मैं आत्मा सर्व खजानों से सम्पन्न बन हर समय सेवा में बिजी रहने वाली *विश्व कल्याणकारी बनने का पुरुषार्थ कर रही* हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान और योग की नेचर से हर कर्म नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त बनाना।*

 

➳ _ ➳  मैं ज्ञान सूर्य शिवबाबा की सन्तान मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ... अपने ज्ञान प्रकाश से पूरे विश्व को रोशन कर रही हूँ... परमात्मा की शिक्षाओं द्वारा पलने वाली... मैं ज्ञान स्वरूप आत्मा... मेरा नेचर ही ज्ञान और योगयुक्त हैं... मेरे हर कर्म शिवबाबा से प्राप्त श्रीमत अनुसार है...शिवबाबा से प्राप्त सम्पूर्ण ज्ञान स्वयं में उतार... ज्ञानी तू आत्मा बन गई हूँ... *मेरा प्रत्येक संकल्प, प्रत्येक बोल, प्रत्येक कर्म ज्ञान युक्त, योग युक्त हैं...*

 

➳ _ ➳  *मेरे व्यहार में, चाल-चलन में, प्रत्येक बोल में ज्ञान और योग समाया हुआ हैं...* ज्ञान और योग मेरा स्वभाव बन गया है... मैं आत्मा पावन बन... हर कर्म में ज्ञान और योग की शक्ति भरती हूँ... मेरा हर कर्म श्रेष्ठ और युक्तीयुक्त बनते जाता हैं...

 

➳ _ ➳  मेरे नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त कर्म द्वारा... मुझे हर कदम पर सफलता मिलती हैं... *मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ... ज्ञानी तू, योगी तू आत्मा हूँ...*  

 

➳ _ ➳  ज्ञान स्वरूप और योगी बन मैं आत्मा... बाबा की सम्पूर्ण शिक्षाओं का स्वरूप बन गई हूँ... बाबा की शिक्षायें ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा बल हैं... *मेरा ज्ञान युक्त और योग युक्त स्वभाव ही मुझे जीवन की हर परिस्थिति में सुरक्षित रखता है...* मैं त्रिकालदर्शी बन प्रत्येक कर्म एकदम एक्यूरेट करती हूँ... मैं नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त कर्म करते महान आत्मा बन गई हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न बन हर समय सेवा में बिज़ी रहने वाले विश्व कल्याणकारी होते हैं...क्यों और कैसे?*

 

 ❉  *सर्व ख़ज़ाने अर्थात ज्ञान,गुण शक्तियाँ* .... ज्ञान अर्थात मैं आत्मा हुँ यह देह नहीं हुँ , ज्ञान के तीसरे नेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा समय टिकने के लिए चाहिए पवित्रता का गुण ओर पवित्रता को धारण करने के लिए चाहिए सहनशक्ति ... जिस आत्मा में यह क्वॉलिटी होंगी वह नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार खजानो की मालिक होंगी ।

 

 ❉  जिस आत्मा को सदा यह स्मृति रहती की मैं एक चेतनय शक्ति आत्मा हुँ तब उस आत्मा को ज्ञान की धारणा होती है , इसके लिए ही बाबा ने कहा है की एक एक ज्ञान रत्न बहुत अमुल्य है ओर इसको सम्भालने के लिए *सोने का बर्तन चाहिए* जो एक एक मोती बन चमके ।

 

 ❉  जैसे ब्रह्मा बाबा मनमनाभव मध्याजीभव के महामंत्र से

एक बाबा को याद करते रहते , इसके लिए बाबा ने सहज रीति कहा की *अमृतबेले आप आत्मा बिंदी बन शिवबाबा के पास आकर बैठ जाओ* केवल ओर ऐसा अनुभव करो जो बाप का वह सब बच्चों का ... इसके मेहनत नहीं मोहब्बत चाहिए ।

 

 ❉  जो आत्मा एक बाप के प्यार में लग्न व मग्न अवस्था में होगी, वह सदा ही मनसा वाचा कर्मना सेवा में बिज़ी रहती अर्थात *बाप ओर आप* के साथ से विश्वकल्याणकारी आत्मा बन जाती । इसीलिए सुबह अमृतवेले सर्व खजानो से सम्पन्न बन पूरा दिन सेवा में बिज़ी रहने वाले ही विश्वकल्याणकारी का टाइटल लेते ।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *ज्ञान और योग की नेचर बना लो तो हर कर्म नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त होगा... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जैसे वर्तमान समय ब्रह्मा बाबा अव्यक्त फरिश्ता बन शुद्ध संकल्पो की शक्ति से हम सबकी पालना कर रहें हैं, सेवा की वृद्धि के सहयोगी बन सेवा को आगे बढ़ा रहें हैं । तो ऐसे *ब्रह्मा बाप समान इस विशेषता को स्वयं में बढ़ाने के लिए जरूरी है ज्ञान और योग को अपनी नेचर बना लेना* । क्योकि जितना ज्ञान की धारणा और योग युक्त स्थिति होगी उतना हर कर्म नेचरल, श्रेष्ठ और युक्ति युक्त होगा । जो सेवा में सफलता का आधार बन जायेगा ।

 

❉   जब ज्ञान और योग को अपनी नेचर बना लेंगे तभी सिद्धि स्वरूप आत्मा बन स्वरूप बनाने की सेवा कर सकेंगे । अभी के समय प्रमाण और आगे आने वाले समय प्रमाण इस सेवा की अधिक आवश्यकता है । क्योंकि आत्माएं सुनते सुनते थक गई है । अब वो अनुभव चाहती हैं । और *दूसरों को अनुभव कराने के लिए जरूरी है शक्तिशाली वायुमंडल* । जो तभी निर्मित होगा जब हर कर्म नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त होगा ।

 

❉   जितनी जीवन में ज्ञान की धारणा और आत्मा में योग का बल जमा होगा उतना हर कर्म नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त होगा जिससे *वृत्ति द्वारा वृतियों को और संकल्प द्वारा संकल्पों को बदलना सहज हो जायेगा* । यह सूक्ष्म सेवा आत्माओं को स्वत: ही कई कमजोरियों से मुक्त कर देगी और ऐसा शक्तिशाली वायुमण्डल निर्मित कर देगी जो अनेको आत्मायों के जीवन को बदलने में विशेष रूप से सहायक बन जायेगा ।

 

❉   जैसे आज कल साइंस द्वारा हर चीज को क्वांटिटी के बजाए क्वालिटी में ला रहे हैं । ऐसा छोटा सा रुप बना रहे हैं । जो *रुप है छोटा लेकिन शक्ति अधिक भरी हुई होती है* । इसी प्रकार जब ज्ञान और योग को जीवन में धारण कर उसे अपनी नेचर बना लेंगे तो हर कर्म ऐसा नेचरल श्रेष्ठ और युक्तियुक्त बन जायेगा कि हमारे हर संकल्प, बोल और *कर्म से रूहानियत की ऐसी खुशबू फैलेगी* जो अनेकों आत्मायों के जीवन में शक्ति का संचार कर देगी ।

 

❉   जैसे अख़बारों द्वारा, टीवी व रेडियो द्वारा एक ही समय में अनेकों को संदेश पहुंचाने की सेवा करते हैं । उसी प्रकार कर्म और मनसा दोनों सेवा का बैलेंस वायुमंडल को ऐसा शक्तिशाली बना देगा । जिससे *विहंग मार्ग की सेवा होगी* । याद बल और श्रेष्ठ संकल्प के बल द्वारा की गई ऐसी विहंग मार्ग की सेवा लाखों-करोड़ों आत्माओं का कल्याण करेगी । किन्तु *यह सेवा तभी होगी जब ज्ञान और योग की जीवन में धारणा होगी* तथा हर कर्म नेचरल, श्रेष्ठ और युक्तियुक्त होगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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