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 20 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *पुरानी दुनिया को देख लट्टू तो नहीं हुए ?*

 

➢➢ *अपनी बैग बेगेज ट्रान्सफर की ?*

 

➢➢ *ज्ञान दान कर ज्ञान धन को बढाया ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *फॉलो फादर करते हुए सपूत बन हर कर्म में सबूत दिया ?*

 

➢➢ *हीरे तुल्य ऊंची स्थिति में स्थित होकर हर कर्म किया ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *मेहनत मुक्त बन जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - मीठे बच्चे तुम्हे अपनी तकदीर हीरे जेसी बनानी है, पुरुषार्थ कर बाप से पूरा पूरा स्वर्ग का वर्सा लेना है"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... जिस ईश्वर पिता को कन्दराओं में, तपस्याओ में खोज रहे थे... वह मीठा बाबा सम्मुख बेठ भाग्य सजा रहा है... *अपनी तकदीर को हीरे जैसा दमकाओ* और ईश्वर पिता की अथाह धन सम्पत्ति के सहज हो मालिक बन... मीठे सुखो में सदा मुस्कराओ... ऐसा पुरुषार्थ करो कि ईश्वर पिता की नजरो में हीरो बन इठलाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की दुनिया में फंसी कभी दुखो के पत्थरो से लहूलुहान थी... *आज मीठे बाबा आपको पाकर खुशियो में खिल उठी हूँ.*.. यादो में हर पल खोयी हुई... ईश्वरीय खजानो को पाने वाले महाभाग्य से सज गयी हूँ...

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... प्यारे बाबा की मीठी महकती यादो में खोकर खुबसूरत बहारो से दामन सजाओ... प्रेम की लगन इस कदर बढ़ाओ कि ईश्वर पिता की सारी जागीर आपकी बाँहों में हो... *सुनहरे सुखो में खिला हुआ खुबसूरत प्यारा जीवन हो*... ऐसा पुरुषार्थ कर बाबा के दिल में मुस्कराओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपने *महान भाग्य की तकदीर लिखती जा रही हूँ.*.. आलिशान सुखो भरा जीवन पाने वाली... हीरो की खानो में खिलखिलाने वाली, श्रेष्ठ धनी आत्मा बनती जा रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह दुनिया की हर बात से उपराम हो, अपने अविनाशी सत्य स्वरूप के नशे में खो जाओ... मीठे बाबा के साथ के मीठे पलों में तीव्र पुरुषार्थी बन, *अपनी शहंशाही किस्मत को पा चलो.*.. ईश्वर पिता के सारे खजानो पर अपना अधिकार जमा कर सदा के खुशकिस्मत हो जाओ...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... कभी देह की दुनिया में बदनसीब बन रोने वाली, आज ईश्वरीय बाँहों में ख़ुशी से झूम रही हूँ... प्यारे बाबा आपकी सारी दौलत पर मेरी गहरी नजर है... और *इसे पाकर मै हीरा आत्मा, हीरों से मालामाल हो रही हूँ.*..

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मैं आत्मा सफलता स्वरुप हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  परमपिता परमात्मा ने इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर मुझ आत्मा को अपना बनाकर कलियुगी काली दुनिया से निकाल दिया... प्यारे बाबा ज्ञान-योग की भट्टी में तपाकर मुझ आत्मा को गोरा बना रहे हैं... मुझ आत्मा का भटकन समाप्त होता जा रहा है... मुझ आत्मा की बुद्धि से जन्मों-जन्मों के सभी नकारात्मक संस्कार खत्म होते जा रहे हैं... मैं *आत्मा पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनती जा रही हूँ...* मैं आत्मा लोहे से सोना बनती जा रही हूँ...  

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा सर्वशक्तिमान, वरदानों के सागर की संतान हूँ... प्यारे बाबा ने गोद लेकर मुझ आत्मा को नया अलौकिक जन्म दिया है... प्यारे बाबा *सर्व वरदानों, गुणों, शक्तियों से मुझ आत्मा को भरपूर* करते जा रहे हैं... मैं आत्मा अपने को नन्हे फरिश्ते समान अनुभव करती जा रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा को रोज पढाई पढाकर नालेजफुल बनाते जा रहे हैं...

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा सिर्फ अपने प्यारे बाबा को ही निहारती रहती हूँ... मैं नन्हा फरिश्ता अपने बाबा को ही फालो करती जा रही हूँ... मैं आत्मा प्यारे बाबा का हाथ पकड़ उनके कदमों में कदम रख चलती जा रही हूँ... जो प्यारे बाबा के बोल वही मुझ आत्मा के बोल... जो बाबा के संकल्प वही मुझ आत्मा के भी संकल्प... अब मैं आत्मा *हर कर्म बाप समान करती जा रही* हूँ...    

 

➳ _ ➳  अब मुझ आत्मा का विनाशी दुनिया, विनाशी वस्तुओं, विनाशी सम्बन्धों से ममत्व मिटता जा रहा है... अब मैं आत्मा एक बाबा में ही पूरे संसार को देख रही हूँ... अब मैं आत्मा एक नन्हा फरिश्ता बन सदा बाबा की गोद में सर्व सुखों का अनुभव करती जा रही हूँ... मैं आत्मा सदा *बाबा के श्रीमत रूपी हाथ और साथ का अनुभव* करती हूँ...   

 

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा मनमत और परमत को छोड़ सदा श्रीमत पर चलती जा रही हूँ...  हर कर्म बाबा की राय लेकर करती जा रही हूँ... और सफल होती जा रही हूँ... मैं आत्मा सदा अपने प्राण प्यारे बाबा की छत्र-छाया में सदा सेफ अनुभव करती जा रही हूँ... अब मैं आत्मा फालो फादर करती हुई सपूत बन *हर कर्म में सबूत देने वाली सफलता स्वरुप  अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मूल्यवान कर्म करते हुए हीरे तुल्य ऊँची स्थिति का अनुभव करना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा देहभान से न्यारी... देह की दुनिया के सब संकल्पों को समेटकर बाबा आपको याद करती हूँ... शिवबाबा समझा रहे हैं कि *स्वयं को निमित्त अथवा ट्रस्टी मानकर... अर्पण बुद्धि होकर कार्य करेंगे तो सदैव हल्के रहेंगे...* मुझ आत्मा ने बाबा की शिक्षाओं को मन बुद्धि मे समा लिया है... मैं आत्मा अपना योग निरंतर अपने बाबा से ही लगाए रहती हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्मा से बुद्धि के तार जोड़कर... न्यारी अवस्था में... *स्मृति स्वरूप की हीरे तुल्य स्थिति में स्थित होकर... अपना हर कर्म योगयुक्त होकर कर रही हूँ...* योगयुक्त होकर करने से हर कर्म श्रेष्ठ तथा मूल्यवान होता जा रहा है... स्मृति स्वरूप में... फरिश्ते के लाईट स्वरूप में... ड्रामा में अपना पार्ट बजाती जा रही हूँ... स्थिर बुद्धि से... उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳ अशरीरीपन का... साक्षीपन का अनुभव करते हुए... मैं आत्मा परमात्म स्मृति की सेफ्टी की छत्रछाया में हूँ... मैं आत्मा सच्चे ज्ञान और प्यार में...  *पापकर्मो की छाया से दूर होकर... दिव्य जीवन को जीती हुई* अनन्त खुशियों में लहरा उठी हूँ... बाबा की श्रीमत का हाथ और साथ हर पल अनुभव कर रही हूँ... संसार की अनावश्यक बातों के विस्तार से मन बुद्धि को हटाकर... कर्मयोगी होकर जीवन में सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

➳ _ ➳  इस संगमयुग के सुहाने ब्राह्मण जीवन में... मन का मीत परमात्मा को बना कर कर्म करने से कर्मों में सामर्थ्य आ गया है... मनुष्य से देवताई बुद्धि वाली खुबसूरत आत्मा बन गयी हूँ... स्थिर बुद्धि से... उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ... जो भी आत्मा संपर्क संबंध में आती है... *अनादि गुणों से भरपूर आत्मिक दृष्टि डालने से कर्मयोग की स्थिति स्वतः ही श्रेष्ठ हो गयी है...*

 

➳ _ ➳  आत्म अभिमानी की ऊँची स्थिति में स्थित होकर... कर्मेंद्रियों की मालिक बन कर... एकाग्रता से कर्म करने से... मैं आत्मा व्यर्थ कर्मों के प्रभाव से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा ईश्वर की आज्ञाकारी बच्ची हूँ... कर्म सम्बन्ध में आकर भी कर्म बन्धन में नहीं फंसती... *हर कर्म बाबा की याद में करने से व प्रभु को अर्पण करने से महान और मूल्यवान होते जा रहे हैं...* मैं आत्मा न्यारी  प्यारी और ऊंच अवस्था का अनुभव कर रही हूं...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *फ़ालो फादर करते हुए सपूत बन हर कर्म में सबूत देने वाले सफलता स्वरूप होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

 ❉  बाबा ने एक बहुत सुंदर वाक्य हमको बताया है कि बच्चे जब भी आपको बिंदी बनने का अभ्यास करना हो तो फ़ॉलो शिवबाबा ( फ़ोर मुक्ति ) और अगर आपको बिंदी का अभ्यास कर्म करते हुए करना है तो फ़ॉलो ब्रह्माबाबा ( फ़ोर जीवनमुक्ति )। यह स्मृति भी जिस आत्मा को सदा रहती है वह सपूत बनके हर कर्म में सबूत देने वाली सफलतामूर्त आत्मा है। तो सबसे पहले तो यही कर्म है हमारा की अब तक जो हमारा ये किसी भी *असफलता की वजह से निराशा का अवगुण बना है उससे खत्म कर एक आशावादी बनना, कोई भी कार्य असंभव नहीं*।

 

 ❉  जैसे ब्रह्माबाबा संगमयुग पर एक बल एक भरोसा रख 16 कला संपूर्ण व विश्व महाराजा बना जा सकता है यह करके दिखाया। तो हमको भी पुरुषार्थ में सफलता स्वरुप बनने के लिए सबसे आसान तरीका है *हर बात में फ़ॉलो फादर करना क्योंकि नयी चीज़ का निर्माण करने में समय लगता लेकिन फ़ॉलो करने में नही*। और सबसे पहला ओर जरुरी गुण हर आत्मा में होनी चाहिए सफलता प्राप्ति के लिए वो है आशा(hope) आशावादी होना और ये गुण बाप से सबसे पहले सिखने का है।अब जैसे ही हम ब्रह्म बाप को फॉलो करना शुरू करते है तो उसका सच्चा सच्चा प्रमाण येही है कि पुरुषार्थ में हर कार्य में सफलता की प्राप्ति ही सच्चा सपूत बनने की निशानी है।

 

 ❉  जो फ़ॉलो फादर करने वाले बच्चे हैं वही समान हैं, क्योंकि जो बाप के क़दम वो आपके क़दम। *बापदादा सपूत उन्हें कहते- जो हर कर्म में सबूत दे।* सपूत अर्थात सदा बाप के श्रीमत का हाथ और साथ अनुभव करने वाले। और सफलता स्वरूप बनना माना ये नहीं है कि हम जो चाहे वैसा ही हमेशा हो पर जो सही है मुझ आत्मा के कल्याण के लिए और सर्व आत्माओ के कल्याण के लिए वो हो*।

 

 ❉  इसलिए बाबा ने सहज साधन बताया की जहाँ बाप की श्रीमत व वरदान का हाथ है अर्थात *स्वयं की सीट पर कम्बाइंड स्वरूप में सेट है वहाँ सफलता है ही है*, इसलिए कोई भी कार्य करते समय यही स्मृति में रखो कि बाप के वरदान का हाथ हमारे ऊपर है। सदा तेरा-तेरा बाबा के ऊपर करदो और एक *मेरा बाबा* याद रखो तो ख़ुशी की खुराक और सफलता हुई पड़ी है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *हीरे तुल्य ऊंची स्थिति में स्थित हो कर किए गये कर्म ही मूल्यवान कर्म हैं... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जो इस बात को अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर लेते हैं कि यह देह विनाशी है और इस देह में विराजमान जो चैतन्य सत्ता है वो अविनाशी है । और *इस देह का अस्तित्व केवल तब तक है जब तक वो अविनाशी सत्ता इस देह के अंदर विराजमान है* । इसलिए विनाशी देह को देखना और इससे ममत्व रखना स्वयं को ही ठगना है । यह स्मृति सहज ही हीरे तुल्य ऊंची स्थिति अर्थात आत्मिक स्थिति में स्थित कर देती है और सदा आत्मिक स्मृति में रह कर जो भी कर्म किये जाते हैं वो कर्म स्वत: ही मूल्यवान होते हैं ।

 

❉   जो हीरे तुल्य ऊंची स्थिति अर्थात अशरीरी स्थिति के अभ्यासी होते हैं वे स्वयं को सहज ही देह और देह की दुनिया से डिटैच कर लेते हैं और *आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर मन बुद्धि को केवल एक बाप की याद में ही लगाये रखते हैं* तथा सर्व सम्बन्धो से सदा एक बाप के साथ ही मिलन मेला मनाते रहते हैं । उन्हें शरीर का कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित नही करता । देह और देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त होने के कारण उनके द्वारा किया हर कर्म मूल्यवान होता है ।

 

❉   हीरे तुल्य ऊंची स्थिति में स्थित रहना अर्थात सदा अपनी स्व स्थिति में स्थित रहना और स्व स्थिति में स्थित आत्मा का कोई भी संकल्प, बोल व कर्म कभी व्यर्थ नही जा सकता । क्योकि *शक्तिशाली स्व स्थिति में स्थित आत्मा की श्रेष्ठ स्थिति श्रेष्ठ स्मृति का आधार बन कर उसे समर्थी स्वरूप आत्मा बना देती है* । और सदा समर्थ होने के कारण समर्थी स्वरूप आत्मा का कोई भी बोल अथवा कर्म व्यर्थ नही जाता क्योकि सर्व के प्रति आत्मिक भाव और शुभ भावना होने के कारण उसका हर बोल और कर्म मूल्यवान बन जाता है ।

 

❉   अपने वास्तविक स्वरूप में आत्मा सच्चे सोने के समान संपूर्ण शुद्ध है और यही स्थिति हीरे तुल्य ऊंची स्थिति है । किन्तु *स्वयं को देह तथा देह के विनाशी सम्बन्धो को अपना समझने की भूल ने आत्मा को दैहिक आकर्षणों के ऐसे सुनहरे जाल में उलझा दिया* कि आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को भूल अनेक प्रकार के विकर्मों में प्रवृत्त हो गई । किन्तु जब मैं और मेरेपन के भाव से मुक्त हो कर अपनी इसी ऊँची हीरे तुल्य स्थिति में स्थित होने का निरन्तर अभ्यास किया जाता हैं तो हर कर्म मूल्यवान बन जाता है ।

 

❉   जीवन बन्ध में रहते जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव भी हीरे तुल्य स्थिति है जिसे अनुभव करने का आधार है तपस्या और तपस्या का आधार है न्यारे और प्यारे बनना । *जितना न्यारे और प्यारे रहेंगे उतना स्थिति एकरस रहेगी और बन्धन मुक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे* । अगर न्यारे और प्यारे नही बनेंगे तो हद के आकर्षणों में आसक्ति रहेगी और यह हद के आकर्षण मन बुद्धि को विचलित करके विकर्म करवाते रहेंगे । इसलिए बेहद की स्थिति में स्थित हो कर जब कर्म करेंगे तो हर कर्म मूल्यवान बन जायेगा ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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