━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 03 / 10 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *बाप की याद में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *इस दुनिया से पूरा नष्टोमोहा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *किसी के भी छी छी शरीर को तो याद नहीं किया ?*

────────────────────────

 

∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाकर सफल किया ?*

 

➢➢ *"बाप और मैं" - सदा इसी छत्रछाया में रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के महावाक्य*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  आज बच्चों के स्नेही बापदादा हर एक बच्चे को विशेष दो बातों में चेक कर रहे थे। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप बच्चों को सम्पन और सम्पूर्ण बनाना है। हर एक में *रूलिंग पॉवर और कन्ट्रोलिंग पॉवर कहाँ तक आई है - आज यह देख रहे थे।*

 

✧  जैसे आत्मा की स्थूल कर्मेन्द्रियाँ आत्मा के कन्ट्रोल से चलती है, जब चाहे, जैसे चाहे और जहाँ चाहे वैसे चला सकते हैं और चलाते रहते हैं। कन्ट्रोलिंग पॉवर भी है। जैसे हाथ-पाँव स्थूल शक्तियाँ हैं ऐसे *मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की सूक्ष्म शक्तियाँ हैं।*

 

✧  सूक्ष्म शक्तियों के ऊपर कन्ट्रोल करने की पॉवर अर्थात मन-बुद्धि को, संस्कारों को जब चाहें, जहाँ चाहे, जैसे चाहे, जितना समय चाहे - ऐसे कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर आई है? क्योंकि इस ब्राह्मण जीवन में मास्टर आलमाइटी अर्थार्टी बनते हो। *इस समय की प्राप्ति सारा कल्प - राज्य रूप और पुजारी के रूप में चलती रहती है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)

 

➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  स्वदर्शन फिराकर, सर्व सम्बन्धो की सैक्रीन बाबा को याद करना"*

 

_ ➳  मधुबन प्रांगण में घूमती हुई मै आत्मा.... अपने प्यारे बाबा का... *मुझ आत्मा के मिलन के लिए सजाया आशियाँ देख रही हूँ.*.. और अपने मीठे भाग्य के गौरव में पुलकित हो रही हूँ... दुनिया भगवान के नाम के सिमरन मात्र में खोयी हुई... और *मै भाग्यशाली आत्मा, सम्मुख मिलन के शानदार भाग्य को बाँहों में लेकर घूम रही हूँ.*.. मेरी जिंदगी की बागडोर ईश्वर पिता के हाथो में है... भगवान स्वयं टीचर बनकर... मुझे देवताई ताजोतख्त के पद से सजा रहा है... हर पल हर साँस ईश्वर प्रेम में डूबी हुई है... ईश्वर की याद, ईश्वर पिता की बात, ही मेरे दिल में सदा गूंजती रहती है... *इस धरती पर रहते हुए, ख़ुशी में, मन के पैर धरती से ऊपर उठकर... आनन्द में नृत्य कर रहे है..*. यह कितना मीठा और अनोखा मेरा भाग्य है...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को इस देह की दुनिया के विस्तार से निकाल कर, सार स्वरूप बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस देह के दलदल में जो गर्दन तक फंसे हो... *अब मीठे बाबा की यादो में डूबकर...कछुए मिसल सारी कर्मेन्द्रियों को समेट कर... इस देह से न्यारे हो जाओ.*.. मीठे बाबा से सर्व सम्बन्धो का सुख लेकर महान भाग्यशाली बन जाओ... मीठा बाबा ही सच्चा साथ निभाने वाला सर्व सम्बन्धी है..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को पाकर, आनन्द से झूमते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर, सुख के सागर में लहरा रही हूँ... सच्चे प्यार को पाने वाली, जीने वाली, महान भाग्यवान बन गयी हूँ... *इस देह से उपराम होकर, अपने खुबसूरत देवताई भविष्य के नशे में झूम रही हूँ.*.."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम की तरंगो में तरंगित कर सच्ची रौनक से भरते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो में खोये हुए परमात्म मिलन का आनन्द लेते रहो... स्वदर्शन फिराकर अपने महान भाग्य की स्मर्तियो में मगन रहो... *ईश्वर पिता ही सच्चा साथी है.. जो हर पल, सच्चा साथ निभायेगा... बाकि तो सब ठग कर खाली बनाएगा... इसलिए हर साँस ईश्वरीय यादो में डूबे रहो.*.."

 

_ ➳  मै आत्मा इस जनम में ईश्वर पिता को पाने वाली, महान भाग्य से सजकर कहती हूँ :-"सच्चे साथी बाबा मेरे... देह की मिटटी में लथपथ मै आत्मा.. खोखले रिश्तो को ही जीवन का सत्य मानकर...अँधेरी राहो पर चली जा रही थी... *आपने अज्ञान के उस अँधेरे में आकर... मेरे हाथो को थाम लिया और मुझे अपने सच्चे प्रेम, सुख की मीठी अनुभूतियों में डुबो दिया.*.. मै हर पल आपकी मीठी यादो में मगन हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे सुख की मधुर अनुभूतियों में भिगोते हुए कहा :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सच्चे प्रेम की बून्द को तरस रहे थे,आज प्रेम का सागर बाँहों में समा गया है.. तो ईश्वरीय प्रेम में हर रिश्ते का प्यार... अनुभव करने वाले खुशनसीब बन मुस्कराओ..*. सम्बन्धो की मिठास मीठे बाबा से... दिल के तार जोड़ कर, सच्चा सुख महसूस करो...

 

_ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के प्रेम में सराबोर होकर असीम खुशियो में नाचते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सुख शांति की तलाश में दर दर भटक रही थी... और *आपने समन्दर मेरे आँचल में उंडेल दिया है... आपका प्यार पाकर, तो पूरा संसार मुझ पर प्यार लुटा रहा है..* ईश्वरीय तरंगो से हर दिल मुझसे सुख पा रहा है... आपके प्यार ने मुझे ऐसा सुखदायी फ़रिश्ता बना दिया है..."मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मै आत्मा इस धरा पर उतर आयी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की याद में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना*"

 

_ ➳  "अतींद्रिय सुख पूछना है तो गोप गोपियों से पूछो" बाबा के ये महावाक्य स्मृति में आते ही मैं खो जाती हूँ उस अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में जो अपने गोपीवल्लभ बाप की याद में बैठते ही मैं आत्मा रूपी गोपी प्राप्त करती हूँ। *अपने गोपी वल्लभ बाप के साथ मनाई साकार मिलन की मीठी यादें अब एक - एक करके अनेक चित्रों के रूप में मेरी आँखों के सामने स्पष्ट हो रही हैं*। साकार मिलन का वो सुख मुझे बार - बार उस पावन धरती की याद दिला रहा है और मन रूपी पँछी बार - बार उड़ कर उस स्थान पर जा रहा है।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं स्वयं को मधुबन के आंगन में। बाबा की कुटिया के बाहर बने पार्क में मैं बैठी हूँ और एक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। *सामने नटखट कान्हा मुरली बजा रहें हैं और उस मुरली की मीठी तान सबको मदहोश कर रही है*। गोपियाँ मुरली की मीठी तान को सुन कर अपनी सुध - बुध गंवा कर दौड़ी चली आ रही है। हर गोपी के साथ कान्हा रास करता हुआ दिखाई दे रहा है। *सभी गोपिकाएं एक अलौकिक मस्ती में मस्त हो कर अपने नटखट कान्हा के साथ, नृत्य कर रही हैं*। देखते ही देखते यह दृश्य एक और खूबसूरत दृश्य में परिवर्तित हो जाता है।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को डायमण्ड हाल में अपने गोपीवल्लभ बाबा के सामने जो अपने निर्धारित रथ गुलजार दादी की भृकुटि में विराजमान हो कर, उनके मुख से मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। *वहां उपस्थित सभी आत्मा रूपी गोपिकाएं उन मधुर महावाक्यों को सुन कर, देह के भान से मुक्त, एक अलौकिक रूहानी मस्ती में डूबी हुई दिखाई दे रही हैं*। अपने गोपीवल्लभ बाबा की मीठी मुरली के मधुर महावाक्य मैं आत्मा गोपी एकाग्र हो कर सुन रही हूँ और इन मधुर महावाक्यो के एक - एक शब्द में समाये अपने गोपी वल्लभ बाबा के प्रेम का मैं गहराई तक अनुभव कर रही हूँ। उनके प्रेम का यह मधुर एहसास मुझे असीम सुख की अनुभूति करवा रहा है।

 

_ ➳  मुरली के मधुर महावाक्य उच्चारण करने के साथ - साथ अब मेरे गोपीवल्लभ बाबा अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल कर रहें हैं। *उनकी मीठी दृष्टि से आ रही लाइट और माइट पाकर मैं भी लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, मास्टर बीजरूप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*। और इस स्थिति में स्थित होते ही अब मै अपने गोपीवल्लभ बाबा को उनके निराकार बीजरूप स्वरूप में अपने बिल्कुल सामने देख रही हूँ। उनसे आ रही सर्वशक्तियाँ चारों और फैल रही है और उनसे निकल रहे वायब्रेशन शांति की गहन अनुभूति करवा रहें हैं।

 

_ ➳  गहन शांति की अनुभूति में गहराई तक खोई मैं आत्मा गोपी धीरे धीरे अपने गोपीवल्लभ बाप के बिल्कुल समीप पहुंच कर अब उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *इस कम्बाइंड स्थिति में स्थित होते ही अब मैं उनसे आ रही अनन्त शक्तियों को स्वयं में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। परमात्म शक्तियां मुझ आत्मा में समाकर मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। मेरे गोपीवल्लभ का प्रेम उनकी अनन्त किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे सुख का कोई झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ*।

 

_ ➳  इस अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहराई तक अनुभव करके अब मैं स्वयं को वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में और अपने गोपी वल्लभ बाप को उनके रथ पर विराजमान देख रही हूँ। *उनकी मीठी याद में समाये अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति को अपने साथ लेकर अब मैं मधुबन से वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ*। कर्मयोगी बन, हर कर्म करते अपने मीठे बाबा की याद में रह अब मैं हर समय अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ।

 

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :-  मैं आत्मा ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाकर सफल करती हूं।”*

➳ _ ➳  इस राजयोग के अभ्यास से श्रेष्ठ ईश्वरीय संस्कारों को इमर्ज करने वाली… मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ… मैं आत्मा अपने *ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाती हूं… इससे मेरे व्यर्थ संकल्प स्वत: खत्म हो जाते हैं… सफल करना माना बचाना या बढ़ाना… ऐसे नहीं पुराने संस्कार ही यूज करती रहूँ… और ईश्वरीय संस्कारों को बुद्धि के लॉकर में रख दूं*… जैसे कईयों की आदत होती है अच्छी चीजें वा पैसे बैंक अथवा अलमारियों में रखने की… पुरानी वस्तुओं से प्यार होता है… वही यूज करते रहते हैं… यहाँ मैं आत्मा ऐसे नहीं करती हूं… यहाँ तो मैं *मन्सा से, वाणी से, शक्तिशाली वृत्ति से… अपना सब कुछ सफल करती हूं… मैं आत्मा सफलतामूर्त हूँ*…

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  "बाप और मैं" यह छत्रछाया के साथ से विघ्नों से मुक्त अनुभव करना"*

 

_ ➳  *एक बाबा को अपना संसार बना कर... न्यारी व प्यारी... फरिश्ता समान डबल लाइट अवस्था* का अनुभव करने वाली... मैं विघ्नविनाशक आत्मा हूँ... परमात्मा प्रेम की पात्र हूँ... *अंतर्मुखी होकर... बाबा की याद को रोम-रोम में बसाकर... अनुभव के सागर में समाती जा रही हूँ...* बाबा को अपना साथी बना कर... साक्षी होकर... *संसार के विघ्नों रूपी खेल में विजयी होते हुए अनुभव कर रही हूँ...* बेहद स्मृति स्वरूप द्वारा... हद की बातों के विघ्नों को समाप्त करती जा रही हूँ... निरंतर ईश्वरीय याद की... सेफ्टी की छत्रछाया में रहते हुए... शक्ति स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ... विघ्नों की कोई शक्ति नहीं जो मुझ मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे ठहर सकें... *आत्मा और शरीर के चारों ओर... शक्तियों का कवच उत्पन्न होते हुए अनुभव कर रही हूँ...* सारे विघ्न... सारी समस्याएं... उस याद रुपी शक्तिशाली  कवच से टकराकर नष्ट होते जा रहे हैं...

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कोई कैसा भी हो उनके साथ चलने की विधि सीखो। कोई क्या भी करता होबार-बार विघ्न रूप बन सामने आता हो लेकिन यह विघ्नों में समय लगाना, आखिर यह भी कब तक? इसका भी समाप्ति समारोह तो होना है नातो *दूसरे को नहीं देखना। यह ऐसे करता हैमुझे क्या करना हैअगर वह पहाड़ है तो मुझे किनारा करना हैपहाड़ नहीं हटना है। यह बदले तो हम बदलें - यह है पहाड़ हटे तो मैं आगे बढूं। न पहाड़ हटेगा न आप मंजिल पर पहुंच सकेंगे। इसलिए अगर उस आत्मा के प्रति शुभ भावना हैतो इशारा दिया और मन-बुद्धि से खाली।* खुद अपने को उस विघ्न स्वरूप बनने वाले के सोच-विचार में नहीं डालो। जब नम्बरवार हैं तो नम्बरवार में स्टेज भी नम्बरवार होनी ही है लेकिन हमको नम्बरवन बनना है।

 

 _ ➳  ऐसे विघ्न वा व्यर्थ संकल्प चलाने वाली आत्माओं के प्रति स्वयं परिवर्तन होकर उनके प्रति शुभ भावना रखते चलो। टाइम थोड़ा लगता हैमेहनत थोड़ी लगती है लेकिन *आखिर जो स्व-परिवर्तन करता हैविजय की माला उसी के गले में पड़ती है। शुभ भावना से अगर उसको परिवर्तन कर सकते हो तो करो, नहीं तो इशारा दोअपनी रेसपान्सिबिल्टी खत्म कर दो और स्व परिवर्तन कर आगे उड़ते चलो*। यह विघ्न रूप भी सोने का लगाव का धागा है। यह भी उड़ने नहीं देगा। यह बहुत महीन और बहुत सत्यता के पर्दे का धागा है। यही सोचते हैं यह तो सच्ची बात है ना। यह तो होता है ना। यह तो होना नहीं चाहिए ना। *लेकिन कब तक देखतेकब तक रुकते रहेंगेअब तो स्वयं को महीन धागों से भी मुक्त करो। मुक्ति वर्ष मनाओ।*

 

✺   *ड्रिल :-  "विघ्न-विनाशक बन महीन धागों से मुक्त होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अमृतवेला के सुंदर सुहावने समय में मैं आत्मा मीठे बाबा की याद में बैठी हुई हूँ... *मेरा मन अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में झूम रहा है... कितनी खुशकिस्मत आत्मा हूँ मैं... स्वयं भगवान ने मुझे अपना बना लिया है... मेरे प्यारे बाबा ने मुझे स्वयं की सत्य पहचान दी...* मेरे 84 जन्मों के चक्र के बारे में बताया... सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग में अनेक जन्म लेते लेते... अब मैं आत्मा कल्प के इस अंतिम पड़ाव पर आ गई हूँ... इस बेहद सुंदर, कल्याणकारी संगम के समय में... मेरे मीठे शिवबाबा मेरे साथी बन गए हैं...

 

 _ ➳  बाबा से अविरल स्नेह की धारा मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मीठे बाबा अपनी स्नेहिल दृष्टि से मुझे निहाल कर रहे हैं... उनकी भृकुटी से, नयनों से दिव्य तेज निकलकर मुझमें समाता जा रहा है... मैं आत्मा सशक्त बनती जा रही हूँ... मैं चिंतन कर रही हूँ कि... कितना सुंदर भाग्य है मेरा स्वयं भगवान ने मुझे अपना बना लिया है... सारा संसार जिसकी एक झलक पाने के लिए तरस रहा है उससे मैं सम्मुख मिलन मना रही हूँ... *परमात्म मिलन और ईश्वरीय प्राप्तियों की चंद ही घड़ियाँ शेष रही हैं... इस बात को मैं आत्मा गहराई से स्वयं में समाती जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा संगम के अपने एक-एक पल को सफल कर रही हूँ... भिन्न-भिन्न स्वभाव संस्कार वाली आत्माओं से संस्कार मिलन की रास मना रही हूँ... कैसी भी आत्मा हो, कोई कुछ भी करता रहे... मैं आत्मा सभी के प्रति शुभ भावना ही रखती हूँ... *संस्कारों के टकराव में, विघ्नों में अपने अमूल्य समय को न गंवा कर... मैं ईश्वरीय फ़खुर में झूम रही हूँ... दूसरों के पार्ट पर ध्यान देने की बजाय मैं स्वचिंतन और स्व-परिवर्तन पर ध्यान दे रही हूँ...*

 

 _ ➳  विघ्न रूपी पहाड़ों से टकराने में समय और शक्तियों को व्यर्थ ना करके... मैं किनारा करती जा रही हूँ... विघ्न रूपी पहाड़ हटे तो मैं मंजिल पर पहुँचूँ, इन कपोल कल्पना में एक पल भी ना गंवा कर... हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना ही रख रही हूँ... मेरे बाबा मुझे राजा बच्चा देखना चाहते हैं... तो जैसा लक्ष्य उसी अनुसार मैं लक्षण धारण कर रही हूँ... *कोई भी आत्मा जो विघ्न डालने या व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित्त बनती है उनके प्रति भी मेरे मन में कल्याण की ही भावना है... मैं स्वयं को मोल्ड करती जा रही हूँ... क्योंकि स्व परिवर्तन करने वालों की विजय निश्चित होनी ही है...*

 

 _ ➳  शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना रख उस आत्मा को इशारा देकर आगे बढ़ रही हूँ... *स्व परिवर्तन द्वारा उड़ती कला के लक्ष्य की ओर अग्रसर हो रही हूँ... ये विघ्न सोने के लगाव के धागों के जैसे हैं...* बहुत ही महीन धागे हैं ये... जो पुरुषार्थ में उड़ान भरने नहीं देते... बाबा के साथ और सहयोग से मैं आत्मा स्वयं को इन महीन धागों से मुक्त, स्वतंत्र करती जा रही हूँ... समय अब अपनी अंतिम घड़ियां गिन रहा है, ऐसे में *मैं आत्मा... प्यारे बाबा के इशारे समझकर विघ्न विनाशक बन हर प्रकार के महीन धागों से मुक्त हो रही हूँ... संपन्नता की अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जा रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━