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❍ 10 / 02 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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✺ शिवभगवानुवाच :-
➳ _ ➳ रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *याद की घृत डाल आत्मा रुपी दीपक को सदा जागृत रखा ?*
➢➢ *सदा ज्ञान सोझरे में रहे ?*
➢➢ *बेहद नाटक को बुधी में रख स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म कर्मयोगी बनकर किया ?*
➢➢ *अनुभवों की अथॉरिटी बनकर रहे ?*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)
( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢ *"यह ऐसा है, यह तो बदलना ही नहीं है" - किसी भी आत्मा के प्रति इस तरह से सूक्षम घृणा भाव तो नहीं रखा ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
➢➢ *"मीठे बच्चे - तुम प्यार से कहते हो मीठे बाबा, तो मुख में रस आ जाता है, ईश्वर या प्रभु कहने से वह रस नही आता"*
❉ प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... पिता की गोद में जब फूलो से खिलते हो तो... *अपनेपन की अधिकार की खुशबु से भर उठते हो*... ईश्वर कहने से वो प्यार, वो अपनापन, वो अधिकार भरा रंग नही छलकता... बाप के बच्चे बनते हो तो... उसकी जागीर को सहज ही बाँहों में भरकर मुस्करा उठते हो...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा जब मीठे बाबा मेरे कह पुकारती हूँ... *असीम सुख आनन्द से भर उठती हूँ.*.. खुदा को जीवन में पिता तुल्य पाकर मै आत्मा बेफिक्र निश्चिन्त सी खुशियो के गीत गाती हुई धरा गगन को अनहद नाद से भिगोती हूँ...
❉ मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे... बाबा कहकर ईश्वर पिता के कन्धों पर नाच उठते हो... प्यार से बाबा पुकार कर, सारे खजाने सारी दौलत के मालिक हो उठते हो....बाबा के अधिकारी बन, परछाई सा संग लिए फिरते हो और खुदाया साथ पाकर खुशियो के आसमान पर झूमते हो... *जो मिठास बाबा रूप में चखते हो.*.. प्रभु रूप में दूर से बस इंतजार सा करते हो....
➳ _ ➳ आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा दुखो के गर्त में डूबी हुई सी दर दर ईश्वर को खोज रही थी... और मीठे बाबा ने बच्चे कहकर हाथ थाम लिया... प्यारे बाबा का प्यार पाकर मै आत्मा फूल सी खिल उठी हूँ... और *प्यारा बच्चा बनकर सारे खजाने बाबा के लूट रही हूँ*...
❉ मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मेरा बाबा कहकर सांसो को बाबा में भिगो दो, और *सुखो के मीठेपन को चख चलो.*.. अतीन्द्रिय सुख में डूबकर.. संगम के वरदानी वेला में, बच्चे बनने का महाभाग्य प्राप्त कर... अथाह संम्पत्ति के अधिकारी हो... पिता के दिल में मणि सा बस जाओ... ईश्वर और प्रभु में यह आनंद कहाँ... जो बाप के पहलु में सहज ही मिलता है...
➳ _ ➳ आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर को कितना पुकार रही थी... और आप पिता बनकर सम्मुख आ चले... मुझे गोद में उठाया कन्धों पर चढ़ाया... असीम प्यार देकर ज्ञान रत्नों से श्रंगार कर खुबसूरत देवता बना रहे हो... मीठे बाबा... *ईश्वर तो कितना दूर सा था और आप दिल की धड़कन हो.*..
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा कर्मबंधन मुक्त हूँ ।"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा आस पास के व्यक्तियों, परिस्थितियों से डिटैच होकर अपने भृकुटी के बीच ध्यान केंद्रित करती हूँ... मैं आत्मा अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु हूँ... *मस्तक में चमकता रुहानी सितारा* हूँ... मैं आत्मा अविनाशी चैतन्य शक्ति हूँ... मुझ आत्मा का शरीर पंच तत्वों से बना जड़ है...
➳ _ ➳ इस शरीर को धारण करने वाली मैं आत्मा प्वाइंट ऑफ लाइट माइट हूँ... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूँ... *कर्मेंद्रियों की राजा* हूँ... यह दुनिया एक कर्मक्षेत्र है. मुझ आत्मा का असली घर इस दुनिया से दूर, पाँच तत्वों से पार है... मैं आत्मा अखंड लाल ब्रह्म महा तत्व में निवास करती हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा के पिता परमात्मा भी परमधाम में निवास करते हैं... मुझ आत्मा के अति प्रिय परम पिता ने सद्ज्ञान देकर मेरे जीवन के अंधकार को समाप्त कर दिया... मुझ आत्मा को *ज्ञान की रोशनी मिल गई* है... अब मैं आत्मा सद्ज्ञान को धारण कर एक बाबा से योग लगाती हूँ... एक बाबा की ही याद में बैठती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व ईश्वरीय गुणों, सर्व रुहानी शक्तियों को धारण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बेहद के रुहानी नशे में रहती हूँ... मैं आत्मा सदा श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म कर रही हूँ... अब मैं आत्मा कर्म करते कर्म के बंधन में नहीं आती हूँ... *सदा न्यारी और प्यारी रहती* हूँ... अब मैं आत्मा कर्मयोगी बनकर हर कर्म कर रही हूँ... अब मुझ आत्मा के पास दुःख की लहर नहीं आ सकती...
➳ _ ➳ अब मुझ आत्मा को कोई भी कर्म का बंधन अपनी ओर खींच नहीं सकता... मैं आत्मा सदा मालिक होकर कर्म कराती हूँ... मैं आत्मा बंधनमुक्त स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा स्वयं भी सदा खुश रहती हूँ... और दूसरों को भी खुशी देती हूँ... अब मैं आत्मा श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म कर्मयोगी बन करने वाली *कर्मबंधन मुक्त अवस्था का अनुभव* कर रही हूँ...
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल - अनुभवों की अथॉरिटी बनो तो कभी धोखा नही खाएँगे।"*
➳ _ ➳ सारे कल्प में यही थोड़ा समय है, जब परमात्म-पालना मिलती है। *ये श्रेष्ठ पालन अब नही तो कब नहीं।* सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य की श्रेष्ठ लकीर को सदा मस्तक में अनुभव करना, सर्व शक्तियों के स्वरूप बन अनुभवी मूर्त बनना, मुझे कभी धोखा खाने नही देता।
➳ _ ➳ मैं परमात्म-पालना में पलने वाली आत्मा हूँ... मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ... मैं देवता बनने वाली आत्मा हूँ... मैं ज्ञान स्वरूप... शक्ति स्वरूप आत्मा हूँ... *बाप का बनते ही मैं आत्मा खुद को शक्तिशाली अनुभव करती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ अमृतवेले बाप स्वयं मुझ आत्मा से मिलने आते है... मुझ आत्मा को शक्तियों से भर देते है... बाबा मुझ आत्मा को मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे कह कर पुकाराते है... *मैं आत्मा परमात्म प्यार में पूरी तरह से भीगी हुई अनुभव करती जा रही हूँ*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा अपने को स्वमान की सीट अनुभव करती जा रही हूँ... *मैं आत्मा अपने आदि स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ*... अपनी हर शक्ति... अपने हर गुण को स्वतः ही इमर्ज करती जा रहा है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा व्यर्थ से मुक्त होती जा रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित होती जा रही हूँ*... मैं आत्मा अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ... अनुभव मुझ आत्मा को धोखे से दूर रखते जा रहें है...
➳ _ ➳ *मुझ आत्मा की निर्णय शक्ति बढ़ती जा रही है*... इसलिये मैं आत्मा माया से धोखा नही खा सकती... मैं आत्मा दुखों से भी मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा मेहनत से छूटती जा रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ *श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म कर्मयोगी बन करने वाले कर्मबन्धन से युक्त होते हैं... क्यों और कैसे?*
❉ श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म, कर्मयोगी बन कर करने वाले कर्मबन्धन से युक्त होते हैं क्योंकि... *जो बच्चे श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म करते हुए बेहद के रूहानी नशे में रहते हैं,* वह कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन में नहीं आते हैं, वह तो न्यारे और प्यारे रहते हैं तथा वह सर्व के प्रिय भी बन जाते हैं। अतः हमें अपने सब कर्म रूहानियत के दायरे में रह कर ही करने हैं।
❉ जो कर्मयोगी बन कर, प्रत्येक कर्म करते हैं, उन आत्मायों को कर्म करने में कभी भी अशान्ति का अनुभव नहीं होता है। *साथ ही उनके पास किसी भी प्रकार का दुःख या दुःख की लहर आ नहीं सकती है।* इसलिये! वे सदा ही न्यारे और प्यारे रहते हैं।
❉ उन आत्माओं को किसी भी प्रकार का कर्म बन्धन अपनी ओर खींच नहीं सकता है। *वे सदा ही अपने कर्म मालिक की स्थिति में स्थित रह कर करते हैं।* अतः उनकी मालिकपन की स्थिति उनको बन्धनमुक्त स्थिति का अनुभव करवाती हैं। बन्धन मुक्त अवस्था स्वयं में ही, अति विशेष अवस्था है।
❉ ऐसी आत्मा स्वयं तो सदा खुश रहती ही हैं, परन्तु! अन्य आत्माओं को भी ख़ुशी प्रदान करती है। अतः हमें श्रेष्ठ मत के अनुसार ही अपने हर कर्म को करना हैं और *जो भी कर्म हम कर रहे हैं वह ईश्वरीय याद में रह कर करना है।* ईश्वरीय याद में किया गया, हमारा हर कर्म सुखदाई होता है।
❉ अतः ईश्वरीय याद में रह कर, प्रत्येक कर्म करने से हमारा हर कर्म, निष्काम कर्म बन जाता है क्योंकि... उस निष्काम कर्म का कोई भी फल नहीं बनता है। वह कर्म अविनाशी व सतोगुणी बन जाता है तथा साथ ही *निष्काम कर्म हमें, कर्म बन्धनों से मुक्त भी रखता है और हम आत्मायें श्रेष्ठ मत के अनुसार हर कर्म कर के,* कर्मयोगी भी बन जाती हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ *अनुभवों की ऑथोरिटी बनो तो कभी धोखा नहीं खायेंगे... क्यों और कैसे* ?
❉ आत्मा में अगर ज्ञान है किन्तु अनुभव की कमी है तो स्व स्थिति कभी भी शक्ति शाली नही बन सकती । *जैसे परमात्म सम्बन्ध का ज्ञान है किन्तु अनुभव नही है*, सर्व शक्तियों का ज्ञान है किन्तु सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनने की अनुभूति की कमी है तो जब तक इस कमी को भरेंगे नही तब तक सफलतामूर्त नही बन सकते । क्योंकि कमजोर स्थिति होने के कारण परिस्थितियों में धोखा खा लेंगे । किन्तु जब *अनुभवों के ऑथोरिटी बनेंगे तो किसी भी परिस्थिति में धोखा खाने से बच जाएंगे* ।
❉ जो ज्ञान की हर प्वाइंट को सुनने सुनाने के साथ साथ उसे अपने जीवन में धारण कर लेते है वो अनुभवों का ऐसा स्वरूप बन जाते हैं कि समय के हर प्रकार के धोखे से स्वयं को बचा लेते हैं । क्योकि *जिनके जीवन में ज्ञान यथार्थ रीति धारणा में आ जाता है तो वह ज्ञान उन्हें अनुभवों की अथॉरिटी बना देता है* । और अनुभवों की डबल अथॉरिटी उन्हें ऐसा अनुभवी मूर्त बना देती हैं कि अपने अनुभव के आधार पर वे झट आने वाली परिस्थिति को भांप जाते हैं और उसके धोखे से बच जाते हैं ।
❉ अनुभवीमूर्त बनने का आधार है ज्ञान की गुह्यता में जाना । इसलिए जो जितना ज्ञान की गहराई में जाते हैं उनके बुद्धि रूपी नेत्र ज्ञान की दिव्यता से दिव्य और आलौकिक बन जाते हैं । *जैसे जैसे यह दिव्यता और अलौकिकता बढ़ती जाती है ज्ञान के अथॉरिटी स्वरूप बनना भी उतना ही सहज हो जाता है* । और ज्ञान सहज ही धारणा में स्पष्ट दिखाई देने लगता है । ज्ञान को धारणा में ला कर जब अनुभवों का स्वरूप बन जाते हैं तो अनुभवों की अथॉरिटी हर धोखे से बचा लेती है ।
❉ परमात्म ज्ञान को अनुभव में ला कर जो अनुभवों की अथॉरिटी बन जाते है वे परमात्म पालना और परमात्म मिलन का निरन्तर अनुभव करते रहते हैं । इसलिए वे सदा स्वयं को *परमात्म पालना में पलने वाली सौभाग्यशाली आत्मा अनुभव करते हैं और सदा इसी नशे में रहते हैं कि स्वयं भगवान हमारा साथी है* । ऐसे सदा परमात्म आनन्द में खोई रहने वाली आत्मा नये नये परमात्म अनुभव प्राप्त करते हुए अनुभवों का ऐसा स्वरूप बन जाती है कि कोई भी परिस्थिति उसे धोखा नही दे सकती ।
❉ कहा जाता है कि " अपनी घोट तो नशा चढे " अर्थात किसी भी चीज का पता तब तक नही लग सकता जब तक उसे स्वयं अनुभव ना किया जाये । इसलिए जो ज्ञान को धारणा में ला कर उसका अनुभव करते हैं वही अनुभवों की ऑथोरिटी बनते हैं । और *अनुभवों की अथॉरिटी उनमे परखने और निर्णय करने की शक्ति विकसित करती है* । इसलिए जीवन में घटित होने वाली किसी भी घटना या परिस्थिति को समय से पहले परख कर और सही निर्णय ले कर वे हर प्रकार के धोखे से बच जाते है ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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