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 11 / 03 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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शिवभगवानुवाच :-

➳ _ ➳  रोज रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)

 

➢➢ *"जो कर्म हम करेंगे, हमें देखकर और करेंगे" - यह स्मृति में रहा ?*

 

➢➢ *बहुत बहुत निर्माणचित और निरहंकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सवेरे सवेरे उठकर बाप को याद करने का शौंक रखा ?*

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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)

 

➢➢ *कंट्रोलिंग पॉवर द्वारा तूफ़ान को भी तोहफा बनाया ?*

 

➢➢ *योगयुक्त और युक्तियुक्त कर्म कर विघन प्रूफ बनकर रहे ?*

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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks: 15)

( इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )

 

➢➢ *खुशियों में नाचते नाचते हर कर्म किया ?*

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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

➢➢ *"मीठे बच्चे - एकांत में बेठ पढ़ाई करो तो धारणा बहुत अच्छी होगी, सवेरे सवेरे उठकर विचार सागर मन्थन करने की आदत डालो"*

 

❉   प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई ही विश्वधरा पर सुनहरे सुखो को दिलायेगीं... *इसलिए इस असाधरण ज्ञान को दिल की गहराइयो में समा लो.*.. जितना ज्ञान पर मन्थन करेंगे उतनी ही धारणा होगी और जीवन ज्ञान युक्त खूबसूरती से झलकेगा...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय खजानो को पाने वाली अति धनवान् मालामाल हूँ... ज्ञान रत्नों को जीवन में सजाने वाली महान भाग्य की धनी हूँ... *एकांत में बैठकर रत्नों को बुद्धि की तिजोरो में भर रही हूँ..*.

 

❉   मीठा बाबा कहे - मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  कितने महान भाग्यशाली हो कि स्वयं भगवान शिक्षक बनकर रत्नों को लुटा रहा... तो *इन रत्नों की खानो को अपने नाम कर चलो.*.. जितना रत्नों के साथ खेलेंगे उतना ही मीठा इस विश्व धरा पर मुस्करायेंगे... ईश्वरीय पढ़ाई में जीजान से मेहनत कर ईश्वर पिता के दिल में बस जाओ...

 

 ➳ _ ➳  आत्मा कहे - मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई पर मेहनत करके...  सवेरे सवेरे उठकर मन्थन से तीव्र पुरुषार्थी बनकर...  बापदादा के आँखों का तारे सा मुस्करा रही हूँ... *एकांत में ईश्वरीय पढ़ाई का गहन अध्ययन कर*, ज्ञान रत्नों की चमक भरा ईश्वरीय जीवन जीती जस रही हूँ...

 

❉   मेरा बाबा कहे - प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय ज्ञान ही जीवन को जादू जैसा सुखमय और खुबसूरत* बनाने वाला है... इस पढ़ाई को रोम रोम में उतार चलो... और एकांत में जितना घोटेंगे उतनी ईश्वरीय खूबसूरती जीवन से स्वतः झलकेगी... इसलिए सवेरे सवेरे ज्ञान रत्नों का मनन करो...

 

➳ _ ➳  आत्मा कहे - हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा स्वयं ईश्वर पिता के हाथो ज्ञान रत्नों से सजने वाली सौभाग्यवान आत्मा हूँ... *स्वयं भगवान पढ़ा रहा और सतयुगी सुखो का हकदार बना रहा.*.. ज्ञान रत्नों से मेरी जनमो की निर्धनता को खत्म कर विश्व अधिकारी सा सजा रहा है...

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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मैं आत्मा यथार्थ योगी हूँ ।"*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट हूँ...* रुहानी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हूँ... सुप्रीम शिक्षक मुझ आत्मा को रुहानी पढाई पढ़ा रहे हैं... मैं आत्मा सुप्रीम टीचर को देख रही हूँ... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि चुपके से बाहर निकल जाते हैं... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि विनाशी दुनिया के आकर्षणों के पीछे भटकते जा रहे हैं... सुप्रीम टीचर मुझ आत्मा को प्यार से मन-बुद्धि को कन्ट्रोल करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का इस विनाशी दुनिया के प्रति लगाव समाप्त करने प्यारे बाबा *मुझ आत्मा को तीन बिंदियों का पाठ पढ़ा रहे* हैं... पहला पाठ आत्मा का पक्का करा रहे हैं... मैं आत्मा ज्योतिबिंदु स्वरूप हूँ... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूँ... ये शरीर विनाशी है... मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूँ... मैं आत्मा इन कर्मेंद्रियो से कर्म कराने इस शरीर में आती हूँ...

 

➳ _ ➳   मुझ आत्मा को इस दुनिया में अपना पार्ट बजाकर वापस अपने घर जाना है... मुझ आत्मा का देह का आकर्षण समाप्त होता जा रहा है... मैं आत्मा देही-अभिमानी बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा आत्मिक स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ... फिर प्यारे बाबा परमात्मा का पाठ पक्का करा रहे हैं... *परमात्मा ही मुझ आत्मा का असली पिता है*... मुझ आत्मा का असली घर परमधाम है... असली शांति, असली सुख मुझ आत्मा को एक परमात्मा ही दे सकते हैं... ये विनाशी सम्बन्ध या वस्तुएँ नहीं...

 

➳ _ ➳  फिर सुप्रीम टीचर मुझ आत्मा को ड्रामा का पाठ पढ़ा रहे हैं... ये ड्रामा अनादि, अनंत है... ये बना बनाया ड्रामा है... कल्प-कल्प हूबहू रिपीट होता रहता है... ड्रामा में सब आत्माओं का पार्ट निश्चित है... सभी *ड्रामानुसार अपना-अपना पार्ट बजाते रहते* हैं... ड्रामा में जो भी हो रहा है वो कल्याणकारी है... अब मैं आत्मा तीन बिंदियों का पाठ सदा स्मृति में रखती हूँ...

 

➳ _ ➳  रोज अमृतवेले मैं आत्मा *तीन बिंदियों के स्मृति का तिलक लगाती* हूँ... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि में एकाग्रता की शक्ति बढ़ती जा रही है... मुझ आत्मा के व्यर्थ संकल्पों का तूफान खत्म होता जा रहा है... मुझ आत्मा की याद की शक्ति, समर्थ संकल्पों की शक्ति बढ़ती जा रही है... अब मुझ आत्मा के मन-बुद्धि का भटकन समाप्त होता जा रहा है...

 

➳ _ ➳  अब माया का कोई भी तूफान मुझ आत्मा को नहीं हिला सकता है... अब मैं आत्मा कन्ट्रोलिंग पावर से तूफान को भी तोहफा समझ आगे बढ़ जाती हूँ... अब मैं आत्मा बुद्धि को एक सेकंड में जहाँ चाहे वहाँ एकाग्र कर सकती हूँ... अब मैं आत्मा कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा *तूफान को भी तोहफा बनाने वाली यथार्थ योगी अवस्था* का अनुभव कर रही हूँ...

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल -  योगयुक्त और युक्तियुक्त किए कर्म से विघ्न प्रूफ बनना*"

 

➳ _ ➳  मैं सदा बाप की याद में समाए रहने वाली आत्मा हूँ... *बाबा की याद में किया... मुझ आत्मा का हर कर्म... श्रेष्ठ कर्म बन जाता है*... बाबा की याद से... मुझ आत्मा का हर संकल्प... हर बोल... युक्तियुक्त होता जा रहा है... 

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा आपने सतगुरु की आज्ञा पर चलने वाली हूँ... *योग में रह कर्म करती... सेवा में बिजी रहने वाली आत्मा हूँ*... सदा लाइट रहने वाली आत्मा हूँ... हर घड़ी कार्य व्यवहार में... न्यारेपन की धुन में मगन... रहने वाली आत्मा हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा की कल्प पहले वाली सिकीलधी बच्ची हूँ... *बाबा के प्यार की पात्र... सदा खुश रहने वाली आत्मा बनती जा रही हूँ*... मैं निश्चिन्त आत्मा हूँ... बाबा का हाथ सदा मेरे हाथ में है... ऐसा मैं आत्मा अनुभव करती जा रही हूँ... 

 

➳ _ ➳  *निश्चयबुद्धि होने से मैं आत्मा विघ्न प्रूफ बनती जा रही हूँ*... हर विघ्न को ऐसे पार करती जा रही हूँ.. मानो कोई खेल खेल रही हूँ... बाप की याद हर परिस्थिति... कैसी भी समस्या आ जाए... जीत प्राप्त कराती जा रही है...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा की योगयुक्त स्थिति... मुझे सदा सेफ रखती है... *बाप की छत्रछाया में सदा सेफ रहने वाली आत्मा हूँ*... बाबा की याद एक किले का अनुभव कराती है... जिसमें कोई नही आ सकता... हलचल में भी सेफ अचल...

 

➳ _ ➳  मुझ आत्मा का हर सेकण्ड... हर संकल्प बाबा की याद में ही बीतता है... योगयुक्त हो मैं आत्मा... अपने विकर्म विनाश करती जा रही हूँ... *विजयी बन... माया प्रूफ बन... बाबा के गले का हार बनती जा रही हूँ*...

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∫∫ 7 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

➢➢  *कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा तूफान को भी तोहफा बनाने वाले यथार्थ योगी होते हैं...  क्यों और कैसे?*

 

❉   कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा तूफान को भी तोहफा बनाने वाले यथार्थ योगी होते हैं क्योंकि यथार्थ वा सच्चा योगी वह ही होता है *जो अपनी बुद्धि को एक सेकण्ड में जहाँ पर चाहें जितनी देर भी चाहें और जब भी लगाना चाहें, वहाँ पर लगा सकें।*यही सच्चे योगी की निशानी होती है।

 

❉   इसलिये! हमारे सामने हमारी परिस्थितियाँ कितनी भी जटिल व हलचल की क्यों न हों और साथ ही वायुमण्डल भी तमोगुणी क्यों न हो तथा माया भी हमें अपना बनाने का लगातार प्रयत्न क्यों न कर रही हो फिर भी हमें सेकण्ड में एकाग्र हो जाना है क्योंकि यही है *एकाग्रता की व याद की शक्ति।* बाबा की याद से ही हमारे विकर्म विनाश हो जाते हैं।

 

❉   इसलिये!  हमें सदा यही सोचना है कि हम ज्यादा से ज्यादा बाबा की याद में रहें तथा हमारे मन में कितना भी व्यर्थ संकल्पों का तूफान क्यों न उठ रहा हो लेकिन!  फिर भी हमें!  उस उठने वाले व्यर्थ संकल्पों के तूफान को *सेकण्ड में आगे बढा कर अपने लिये शुभ संकल्पों का तोहफा बना लेना है।*

 

❉    अतः इस बात की सफलता के लिये हमें अपने मन, बुद्धि व अपनी स्थूल व सूक्ष्म सभी कर्मेन्द्रियों को अपने कन्ट्रोल में रखना अति आवश्यक है। इसलिये!  *हमें स्वयं की कन्ट्रोलिंग पावर को बढ़ाना है।* जितनी हमारी कन्ट्रोलिग पावर बढ़ेगीउतनी ही हमें हमारे योग में सिद्धि प्राप्त होती जायेगी।

 

❉   हमारे पास ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर हो, जो हमारा मन बुद्धि एकदम एकाग्रता को प्राप्त हो जाये और *हमारे शुभ संकल्पों की सिद्धि भी हो जाये।* अतः हमें ऐसी शक्तिशाली आत्मा बनना है जिसके संकल्प में भी ये बात कभी नहीं आये कि... चाहते तो नहीं है परन्तु फिर भी हो जाता है।

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∫∫ 8 ∫∫ ज्ञान मंथन (Marks:-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

➢➢  *योगयुक्त और युक्तियुक्त कर्म करने वाले ही विघ्न प्रूफ बन सकते हैं... क्यों और कैसे* ?

 

❉   जो अपने मन बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रख अपने आप को व्यर्थ बातों, व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से मुक्त रखते हैं उनका हर सेकण्ड हर संकल्प समर्थ होता है इसलिए उनका हर कर्म योगयुक्त और युक्तियुक्त होता है । क्योकि *मन बुद्धि समर्थ चिंतन में बिजी रहने के कारण व्यर्थ संकल्पो के रूप में माया का कोई भी विघ्न उन पर वार नही कर सकता* । इसलिए विघ्न प्रूफ बन वे माया के हर प्रकार के विघ्न के वार से सेफ रहते हैं और अपने हर संकल्प, हर सेकेण्ड को सफल करते चले जाते हैं ।

 

❉   जो ज्ञान को सुनने सुनाने के साथ साथ उसे धारणा में ला कर धारणामूर्त बनते हैं उन्हें उचित समय पर ज्ञान की उचित प्वाइंट को सही रीति यूज़ करना आ जाता है *इसलिए नॉलेजफुल आत्मा बन सही समय पर ज्ञान की उचित प्वाइंट को यथार्थ रीति धारण कर* वे हर कर्म योगयुक्त और युक्तियुक्त तरीके से करते हुए किसी भी परिस्थिति पर जीत प्राप्त कर लेते हैं । अपने नॉलेज की ऑथोरिटी से सेकण्ड में ज्ञान को स्मृति में ला कर वे समाधान स्वरूप बन जाते हैं इसलिए विघ्न प्रूफ बन हर विघ्न के प्रभाव से स्वयं को मुक्त कर लेते हैं ।

 

❉   समय और संकल्पो का खजाना संगम युग का सबसे वैल्यूबुल खजाना है और जिन्हें *इस वैल्यूबुल खजाने को सही रीति यूज़ करना आ जाता है उनका हर कर्म स्वत: ही योगयुक्त और युक्तियुक्त बन जाता है* । क्योकि जिन्हें संगमयुग के इस अनमोल खजाने की सदा स्मृति रहती है वे कोई भी परिस्थिति या समस्या आने पर क्या, क्यों और कैसे की क्यू में उलझ कर अपने समय और संकल्पो को व्यर्थ नही गंवाते बल्कि सेकेण्ड में फुलस्टॉप लगा कर हर परिस्थिति पर जीत प्राप्त करने वाली विघ्न प्रूफ आत्मा बन जाते हैं ।

 

❉   विघ्नों में हार खाने का मुख्य कारण है विघ्नों का निवारण ना कर पाना । और निवारण ना कर पाने का कारण है निर्णय शक्ति का कम होना । *निर्णय शक्ति तब कमजोर होती है जब व्यर्थ संकल्प - विकल्प बुद्धि में निरन्तर चलते रहते हैं* और बुद्धि क्लीयर नही हो पाती । बुद्धि की लाइन को क्लीयर रखने का सहज उपाय है ज्ञान को बुद्धि में धारण करना और योगयुक्त रहना । जितना जीवन में ज्ञान और योग की धारणा करेंगे उतना हर कर्म योगयुक्त और युक्तियुक्त होगा जो सहज ही विघ्नप्रूफ बना देगा ।

 

❉   जो चलते - फिरते हर कर्म करते स्वयं को सुप्रीम रूह की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हैं उनका हर कर्म योगयुक्त और युक्तियुक्त होता है । हर कर्म करते वे एक की लगन में मगन रहते हैं । तो *लग्न की अग्नि उनके सामने आने वाले हर विघ्न को जलाकर भस्म कर देती है* और उन्हें विघ्न प्रूफ आत्मा बना देती है । क्योकि सुप्रीम रूह की छत्रछाया उनके चारों ओर एक ऐसा सेफ्टी का किला बना देती है कि माया का कोई भी विघ्न उस किले के अंदर आ नही सकता ।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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