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 24 / 12 / 17  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *सर्व संबंधो से बाप को अपना बनाया ?*

 

➢➢ *संगमयुग के सर्व खजानों का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *स्वयं को पूज्य आत्मा अनुभव किया ?*

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         ❂ *योगी जीवन प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं*

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✧  *शरीर में होते निराकारी आत्मिक रुप में स्थित रहो तो यह साकार रूप गायब हो जायेगा।* जैसे साकार बाप को देखा, व्यक्त गायब हो अव्यक्त दिखाई देता था। *तो ऐसी अवस्था बनाने के लिए मन्सा में निराकारी स्टेज, वाचा में निरहंकारी और कर्म में निर्विकारी स्टेज हो। संकल्प में भी कोई विकार का अंश न हो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं वरदानी आत्मा हूँ"*

 

  सब वरदानी आत्मायें हो ना? इस समय विशेष भारत में किसकी याद चल रही है? वरदानियों की। *देवी अर्थात् वरदानी, देवियों को विशेष वरदानी के रूप में याद करते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि हमें याद कर रहें है? अनुभव होता है?* भक्तों की पुकार महसूस होती है कि सिर्फ नालेज के आधार से जानते हो?

 

✧  एक है जानना दूसरा है अनुभव होना। तो अनुभव होता है? वरदानी मूर्त बनने के लिए विशेषता कौन सी चाहिए? आप सब वरदानी हो ना। तो वरदानी की विशेषता क्या है? *वे सदा बाप के समान और समीप रहने वाले होगें। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरूषाथी तो वरदानी नहीं बन सकते।*

 

✧  क्योंकि बाप पुरूषार्थ नहीं करता लेकिन सदा सम्पन्न स्वरूप में है तो अगर बहुत पुरूषार्थ करते हैं तो पुरूषार्थी छोटे बच्चे हैं, बाप समान नहीं। *समान अर्थात् सम्पन्न। ऐसे सदा समान रहने वाले सदा वरदानी होगें।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चाहे प्रकृति के पाँचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परंतु *विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद ऑनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद ऑनर का सबूत रहेगा।*

 

✧  बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। *आप सोचते भी हो, प्लैन बनाते भी हो, बनाओ।* भले सोचो लेकिन क्या होगा! उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोची लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो।

 

✧  अभी आवश्यकता स्थिति की है। *यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी।* जैसे बादल आये, चले गये। और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोची।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- परचिन्तन परदर्शन नहीं करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठकर स्वदर्शन चक्र फिराती हूँ... अपने निज स्वरूपों का दर्शन करती हूँ... स्वदर्शन करते हुए स्वचिन्तन करती हूँ कि कैसे मैं आत्मा इस ड्रामा में अपना हीरो पार्ट बजा रही हूँ...* चक्र फिराते फिराते मैं आत्मा मधुबन पहुँच जाती हूँ और चार धामों का चक्कर लगाती हूँ... फिर शांति स्तम्भ प्यारे बाबा के सामने बैठ बाबा को निहारती हूँ... *बाबा दोनों हाथों को फैलाए मुझे अपनी गोद में बिठाकर प्यारी प्यारी बातें करते हैं...*  

 

   *परचिन्तन छोड़ स्व के कल्याण का पुरुषार्थ कर सोने जैसा बनकर औरो को भी मार्ग बताने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *देह और देह की दुनिया की बाते समय साँस संकल्पों को मिटटी में मिलायेगी... इन सांसो को यादो में बैठ निखारो...* स्वयं को सुनहरा संवारो और औरो को भी ज्ञान रत्नों से दमकाओ... यह खूबसूरत रास्ता सबको बताओ...

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की यादों की महफ़िल में खुद को सजाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे बाबा... अब मै आत्मा व्यर्थ से समर्थ की और रुख कर रही हूँ... सुनहरे जीवन के सच्चे सूत्रो को जान यादो में खो गई हूँ... *खुद भी सुंदर बन औरो को भी खूबसूरत बनाने में जुट गयी हूँ...”*

 

   *जीवन के दाता सांसों के स्वामी मेरे मीठे बाबा जीवन को खुशहाल बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब सबके ख्यालो को छोड़ सिर्फ अपने जीवन को स्वर्णिम बनाने का ख्याल करो... *सच्चे सुखो के अधिकारी बन कर ज्ञान की महक से सबको महकाओ...* पूरे विश्व का कल्याण कर सबको खुशियो से भर आओ...

 

_ ➳  *ज्ञान योग के पंखों से रूहानियत की खुशबू चारों ओर फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान और योग के पंख लिए खूबसूरत परी बन गई हूँ... *हद के दायरों से निकल पूरे विश्व के कल्याण के भावो में डूबी हूँ... अपने साथ सबको महकाने के प्रयासों में जुट गयी हूँ...”*

 

   *नई स्वर्णिम सुबह की किरणों से जीवन को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *दूसरो के चिंतन में सांसो को न खपाओ... इन मोतियो को प्यारे बाबा की मीठी यादो में पिरो खूबसूरती को पाओ...* अथाह सुखो पर अपना नाम लिखवाओ... प्रेम और शांति सुख की जन्नत में इतराओ... और इसी खुशबु से पूरे जहान के चमन को खुशनुमा बना आओ...

 

_ ➳  *प्यारे बाबा के अनुपम ज्ञान की जादूगरी से विश्व को महकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने सदा दूसरो का ही चिंतन किया... सदा दुखो भरा जीवन ही व्यतीत किया... *अब आपके मीठे प्यार की जादूगरी में मै सुनहरी परी बन रही हूँ... और यही जादू पूरे विश्व में फैला रही हूँ...”*

 

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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्व संबंधो से बाप को अपना बनाना*"

 

 _ ➳  स्वयं भगवान सर्व सम्बन्धों से जिसका हो जाये उससे भाग्यशाली और भला कौन हो सकता है! *यही विचार करती, मन ही मन स्वयं के भाग्य की सराहना करती, अपने शिव पिता परमात्मा, अपने भगवान बाप का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने ने मेरे जीवन मे आ कर सर्व सम्बन्धों का मुझे सुख देकर मेरे जीवन को खुशियों से भर दिया*।

 

 _ ➳  जब - जब जिस भी सम्बन्ध से अपने प्यारे मीठे बाबा को मैंने याद किया उस सम्बन्ध का असीम सुख मैंने बाबा से प्राप्त किया। *कभी बाप के रूप में अपना असीम प्यार और दुलार दिया तो कभी माँ बन कर अपने ममता के आंचल की ठन्डी छाँव में बिठाया, कभी दोस्त बन कर कदम - कदम पर मेरा साथ दिया तो कभी जीवन साथी बन कर हर सुख - दुख में मेरा साथ निभाया*। ऐसे मेरे शिव पिता परमात्मा ने हर एक सम्बन्ध के सुख का मुझे अनुभव करवा कर मेरे बेरंग जीवन को अपने प्यार के रंग से भर दिया।

 

 _ ➳  स्वयं भगवान से मिलने वाले सर्व सम्बन्धो के सुखद अनुभवों को याद करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ और वो सभी अनुभव अनेक चित्रों के रूप में मेरी आँखों के सामने एक - एक करके उभरने लगते हैं। *कहीं मैं स्वयं को एक छोटे बच्चे के रूप में देख रही हूँ। बाबा ने अपने हाथ मे मेरा हाथ पकड़ा हुआ है और मुझे पूरे विश्व की सैर करवा रहें हैं। मेरे साथ अनेक प्रकार से खेलपाल कर रहें हैं*। फिर मैं देख रही हूँ स्वयं को ब्रह्मा माँ की गोद मे। बाबा माँ बन कर अपनी ममता की मीठी छाँव में मुझे बिठा कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं।

 

 _ ➳  कहीं मैं देखती हूँ अपने लाइट माइट स्वरूप में बाबा दोस्त बन मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर बैठें हैं और अपने खुदा दोस्त से मैं अपने मन की सारी बाते कह रही हूँ और वो बड़े प्यार से मुस्कराते हुए मेरी हर बात को ध्यान से सुन रहें हैं और मेरी हर बात का जवाब दे रहें हैं। अब मैं देख रही हूँ बाबा को अपने साजन के रूप में। *अपने निराकार स्वरूप में शिव बाबा साजन बन मुझ निराकार आत्मा सजनी को अपनी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया में बिठा कर अपने निश्छल प्रेम की मीठी फुहारें मुझ पर निरन्तर बरसा रहें हैं*।

 

 _ ➳  इन सर्व सम्बन्धो के अनुभवों का सुख लेकर, अपने भगवान बाप से मिलन मनाने के लिए अब मैं *अपने मन बुद्धि को सब बातों से हटा कर केवल अपने शिव पिता पर एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में देह से न्यारी विदेही आत्मा बन चल पड़ती हूँ उनके पास उनके धाम*। आकाश से ऊपर, सूक्ष्म वतन को पार कर एक अति सुन्दर दिव्य प्रकाशमयी अलौकिक दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ जो मेरे पिता परमात्मा का घर है। इस स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर गहन शांति का मैं अनुभव कर रही हूँ।

 

 _ ➳  अपने प्यारे बाबा के अति सुंदर दिव्य प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए, उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों के नीचे बैठ स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में  विराजमान हो कर सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाते हुए अब मैं हर सम्बन्ध का सुख अपने प्यारे बाबा से लेते हुए, देह और देह के झूठे सम्बन्धों से उपराम होती जा रही हूँ*। सर्व सम्बन्धों से भगवान बाप को अपना बना कर भगवान की पालना में पलने का सुख अब मैं हर पल ले रही हूँ।

 

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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वमान में स्थित रह  देहभान को समाप्त करने वाली अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी स्थिति को ऊँचा बनाकर  परिस्थितियों को छोटा बनाने वाली साक्षी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा ने देखा है कि एक संस्कार या नेचर कहोनेचर तो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन *सर्व का स्नेही और सर्व बातों मेंसम्बन्ध में सफलमन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता तब आ सकती है जब इजी नेचर हो।* अलबेली नेचर नहीं। अलबेलापन अलग चीज है। इजी नेचर उसको कहा जाता है - *जैसा समयजैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देवे। इजी अर्थात् मिलनसार।* टाइट नेचर बहुत टू-मच आफीशियल नहीं, आफीशियल रहना अच्छा है लेकिन टू-मच नहीं और समय पर जब समय ऐसा हैउस समय अगर कोई आफीशियल बन जाता है तो वह गुण के बजाएउनकी विशेषता उस समय नहीं लगती। अपने को मोल्ड कर सकेमिलनसार हो सकेछोटा होबड़ा हो। बड़े से बड़ेपन में चल सकेछोटे से छोटेपन में चल सके। साथियों में साथी बनके चल सकेबड़ों से रिगार्ड से चल सके। इजी मोल्ड कर सकेशरीर भी इजी रखते हैं ना तो जहाँ भी चाहें मुड जाते हैं और टाइट होगा तो मुड नहीं सकेगा। अलबेला भी नहींइजी है तो जहाँ चाहे इजी हो जाए, अलबेला हो जाए। नहीं। *बापदादा ने कहा ना इजी हो जाओ तो इजी हो गयेऐसे नहीं करना। इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप बना सके।*

 

✺   *ड्रिल :-  "इजी नेचर से जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश वैसा अपना स्वरूप बनाना"*

 

 _ ➳  *कोटो में कोई और कोई में भी कोई मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा... ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा बन गई...* शुक्रिया अदा करती मैं संगमयुगी आत्मा... बैठी हूँ बाबा के कमरे में... बापदादा का भावपूर्ण आह्वान करती मैं आत्मा ज्योतिपुंज... अपने शरीर के अकालतख्त पर विराजमान हूँ... *देह अभिमान से मुक्त मुझ आत्मा का प्यार भरा आह्वान सुनकर बापदादा आ जाते हैं मेरे समीप...* बाबा का कमरा दिव्य अलौकिक खुशबू से भर जाता हैं... बापदादा का फ़रिश्ता स्वरुप गोल्डन तेजोमय किरणों से प्रकाशित हो रहा हैं...

 

 _ ➳  *बापदादा से आती हुई रंग बिरंगी चमकीली किरणों का फाउंटेन पूरे कमरे में फ़ैल गया हैं...* मैं आत्मा परिपूर्ण होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का स्थूल शरीर भी पवित्र होता जा रहा हैं... मैं आत्मा अपने स्थूल शरीर का त्याग कर फ़रिश्ता स्वरुप धारण करती हूँ... और मैं आत्मा अपने फ़रिश्ते स्वरुप में चल पड़ती हूँ बापदादा के साथ... एक ग्लोब की चोटी पर... *बापदादा के संग मैं आत्मा बैठी हूँ ग्लोब की चोटी पर...* बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं... एक बड़ा हॉल हैं जहाँ एक फंक्शन चल रहा हैं... बच्चे... जवान... वृद्ध... सभी खुश खुशहाल नजर आ रहे हैं...

 

 _ ➳  खाना-पीना... ऐश-आराम की कोई कमी नहीं थी... भरपूरता ही भरपूरता थी... *बस कमी थी तो संस्कारों की... न बड़ो का लिहाज रखा जा रहा था और न बच्चों और छोटो से प्यार भरा आचरण था... युवा पीढ़ी अपने ही दैहिक आकर्षणों में उलझी हुई थी...* चारो तरफ वातावरण अस्त-व्यस्त दुराचार से भरा हुआ था... तभी वहाँ पर एक ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी के एक ग्रुप का आगमन होता हैं... *वाइट ड्रेस में... श्री लक्ष्मी श्री नारायण का बैच पहने... हाथों में बापदादा का झंडा लहराए...* द्वार पे खड़े थे... प्रोग्राम के आयोजक से परमिशन लेकर ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियों ने शिव प्रदर्शनी का आयोजन किया...

 

 _ ➳  और पूरे हॉल में डीप साइलेंस छा जाता हैं... जब ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का प्रवचन स्टार्ट होता हैं... *भगवान कौन... हम कौन... सारे सृष्टि चक्र का राज... संगमयुग में भगवान के अवतरण को जानकर* सभी उपस्थित अचम्भित हो जाते हैं... न कभी सुना ऐसा गुह्य ज्ञान... सुन कर भाव विभोर हो जाते हैं... *ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का मिलनसार व्यक्तित्व... संयमपूर्वक वार्तालाप... नजरों में... वाणी में... एक एक बोल में... प्यार भरी मिठास* देख के... सुन के... सभी उपस्थित लोगों का दिल ख़ुशी के हिलोरे ले रहा हैं... और मैं फ़रिश्ता आत्मा यह नजारा देख मन ही मन बाबा को धन्यवाद कहती हूँ... बापदादा से प्रवाहित होता किरणों का झरना उन सभी उपस्थित और ब्रह्माकुमार - ब्रह्माकुमारियों पर प्रवाहित हो रहा हैं और सभी के व्यक्तित्व में निखार आ रहा हैं... *सभी को अपनी भूलों का अहसास होता है... और सभी का व्यवहार  मिलनसार... खुशनुमा बनता जा रहा हैं...*

 

 _ ➳  *बाबा के पवित्र... रूहानी किरणों से सभी आत्माओं की ज्योति जग जाती हैं... और सभी बाबा के बच्चे बन जाते हैं...* ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में राजयोग मेडिटेशन का कोर्स कर बापदादा की श्रीमत पर पूरा पूरा बलिहार जाते हैं... सभी उपस्थित आत्मायें... *सर्व का स्नेही और सर्व बातों मेंसम्बन्ध में सफलमन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता लाने में सक्षम हो जाते हैं... इजी नेचर - जैसा समयजैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देना ही अब हम सभी ब्राह्मण आत्माओं का ईश्वरीय कर्तव्य बन गया हैं...* बाबा से आशीर्वाद लेती मैं आत्मा वापिस अपने स्थूल देह में प्रवेश करती हूँ और अपने लौकिक कार्य में इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप अनुभव कर रही हूँ।

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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