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❍ 23 / 10 / 17 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 3*5=15)
➢➢ *दिल की एक सच्ची प्रीत बाप से रखी ?*
➢➢ *सच्चे बाप से सदा सच्चे रहे ?*
➢➢ *खान पान की परहेज़ रखी ?*
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∫∫ 2 ∫∫ विशेष अभ्यास (Marks:2*10=20)
➢➢ *महावीर बन हर समस्या का समाधान किया ?*
➢➢ *सर्व के प्रति कल्याण की भावना रही ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के महावाक्य* ✰
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〰✧ सभी अपने को राजयोगी अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन-सा है? आसन किसको कहेंगे? *भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं।* कभी अपने स्वमान की स्थिति में स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है।
〰✧ कभी *बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में स्थित होते तो वह दिलतखत स्थिति आसन बन जाती है।* जैसे आसन पर स्थित होते हैं, एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो।
〰✧ तो वेरायटी अच्छा लगता है ना। एक ही चीज कितनी भी बढिया हो, लेकिन वही चीज बार-बार अगर यूज करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वेरायटी अच्छी लगेगी। तो *बापदादा ने वेरायटी स्थितियों के वेरायटी आसन दे दिये हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ विशेष पुरुषार्थ (Marks:-15)
➢➢ *अव्यक्त बापदादा के ऊपर दिए गए महावाक्यों पर एकांत में अच्छे से मनन कर इन महावाक्यों पर आधारित योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 4 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धि को शुद्ध रखने के लिए, खानपान की परहेज रखना*"
➳ _ ➳ मधुबन के प्रांगण में घूमते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की यादो में मगन हूँ... अपने घर में टहलते हुए मै आत्मा... *असीम शुख की अनुभूति कर रही हूँ... और सोच रही हूँ कैसे मुझे चलते चलते भगवान मिल गया है.*.. और जीवन कितना खुबसूरत प्यारा हो गया है... मै आत्मा ईश्वरीय मिलन से पहले क्या थी... आज भगवानं से मिलकर कितनी दिव्य और पवित्र बन गयी हूँ... *मेरा पवित्र मन और मेरी दिव्य बुद्धि आनन्द और सुख से भरपूर हो गयी है... मेरा जीवन पवित्रता का पर्याय बनकर.*.. हर दिल को आकर्षित कर रहा है... और हर दिल... प्यारे बाबा की बाँहों में आने को आतुर हो गया है... अपने सुंदर भाग्य को यूँ सोचते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की कुटिया में प्रवेश करती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से सजाकर देवताई सुखो से सुसज्जित करते हुए कहा:-"मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने सच्चे रत्नों से सजाकर, जो दिव्यता और पवित्रता से निखारा है... तो इस देवताई श्रंगार की जीजान से सम्भाल करो.*.. बुद्धि की शुद्धता के लिए खानपान की शुद्धि का पूरा ख्याल करो... पवित्र ब्राह्मण बनने का जो सोभाग्य प्राप्त हुआ है...तो अपवित्रता भरा भोजन कभी स्वीकार न करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में खुशियो में खिलते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी गोद में बैठकर,देवताई हुनर सीख कर... कितनी अनोखी बनती जा रही हूँ.*.. पहले मेरा जीवन कितना मूल्य विहीन और विकारी था... और *आज आपको पाकर तो मेरी हर अदा दिव्यता की झलक दिखा रही है.*.. मीठे बाबा मै आत्मा हर पल अपनी दिव्य बुद्धि की सम्भाल रख आपकी मीठी यादो में मगन हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची खुशियो और गुणो की प्रतिमूर्ति बनाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की यादो में जो बुद्धि रुपी पात्र को सोने जैसा बनाया है... उसकी चमक को सदा बरकरार रखो... *अन्न की शुद्धि से बुद्धि पात्र की पवित्रता को सदा सजाये रखो... तभी इसमे सच्चे ज्ञान रत्न ठहर सकेंगे.*.. और यह दिव्य बुद्धि ही प्यारा साथी बनकर... अनन्त सुखो की अनुभूति कराकर... मीठे बाबा की यादो में डुबो देगी...."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की बाँहों में पवित्रता से सज संवर कर कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ कि *स्वयं भगवान मुझे सजाकर, यूँ पवित्रता से दमका रहा है... मुझे जीने के सारे हुनर सिखा कर, देवताई संस्कारो से भर रहा है.*.. मीठे बाबा आपने मेरे जीवन में यूँ दिव्यता की छटा बिखेर कर.. मुझे क्या से क्या बना दिया है... मै आपकी श्रीमत सदा मेरे संग है..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को सतयुगी सुखो का मालिक बनाकर कहते है :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा श्रीमत का हाथ पकड़कर सुखी और निश्चिन्त जीवन को जीते रहो... *ईश्वरीय राहों पर चलकर, खानपान की शुद्दि का पूरा पूरा ख्याल रखो.*.. ईश्वरीय प्यार और याद में जो बुद्धि इतनी पावन बनकर... निखरी है, तो हर पल इस प्यारी दिव्य बुद्धि का ध्यान रख, सदा शुद्ध अन्न को प्राथमिकता दो... *इस दिव्य बुद्धि की बदौलत ही तो ईश्वर पिता को जाना है... ज्ञान रत्नों को पाया है... और ईश्वरीय प्यार को महसूस किया है.*.."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को जीवन में पाकर, आनन्द से सराबोर होकर कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा आपकी प्यारी गोद में आकर... विकारी जीवन, अशुद्ध खानपान से पूरी तरहा मुक्त हो गयी हूँ... *मेरी दिव्य बुद्धि ने ही तो मुझे आपकी बाँहों में भरा है... इस मीठी बुद्धि का मै आत्मा हर साँस से ख्याल रख रही हूँ.*.. और सदा शुद्ध भोजन से इसकी पवित्रता को कायम रख रही हूँ..."मीठे बाबा से श्रीमत पर चलने का सच्चा वादा करके.... मै आत्मा इस धरा पर लौट आयी...
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∫∫ 5 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है*"
➳ _ ➳ अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं आकाश में विचरण करता हुआ साकारी दुनिया के रंग बिरंगे, मन को मोहने वाले मायावी दुनिया के नजारे देख रहा हूँ। *इस मायावी दुनिया की झूठी चकाचौंध को सच समझने वाले कलयुगी मनुष्यों को देख मुझे उन पर रहम आता है और मन मे ये विचार आता है कि कितने बेसमझ है बेचारे ये लोग जो देह और देह की दुनिया को सच माने बैठे हैं*।
➳ _ ➳ अपना सारा समय देह के झूठे सम्बन्धों के साथ प्रीत निभाने में जुटे हैं। अपने और अपने परिवार के लिए भौतिक सुख, सुविधाओं को जुटाने में ही अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ गंवाते जा रहे हैं। इस बात से कितने अनजान है कि देह, देह की दुनिया और देह के ये सब सम्बन्ध समाप्त होने वाले है। *इस विनाशकाल में केवल एक परमात्मा के साथ प्रीत ही इस जीवन की डूबती नैया को पार लगा सकती है*।
➳ _ ➳ दुनिया के झूठे सहारों का किनारा छोड़ परमात्मा बाप को सहारा बनाने वाले ही मंजिल को पा सकेंगे बाकि तो सब डूब जायेंगे। मन ही मन यह विचार करते हुए एकाएक मेरी आँखों के सामने महाविनाश का भयंकर दृश्य उभरता है। *मैं फ़रिशता अपने दिव्य चक्षुओं से देख रहा हूँ कहीं भयंकर तूफ़ान में गिरती हुई बड़ी - बड़ी बिल्डिंगे और उनके नीचे दबे हुए लोगों को चीखते, चिल्लाते हुए*। कहीं बाढ़ का भयंकर दृश्य जिसमे हजारों फुट ऊंची पानी की लहरें सब कुछ तबाह करती जा रही हैं। *कहीं ज्वालामुखी का लावा तीव्र गति से आते हुए सब कुछ जला कर भस्म करता जा रहा है*। खून की नदिया बह रही है। चारों और लोगों के मृत शरीर पड़े हैं।
➳ _ ➳ विनाश के इस भयानक दृश्य को देखते - देखते एकाएक मुझे मेरा ब्राह्मण स्वरूप दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ कि अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हूँ। *मेरी आँखों के सामने मेरे सम्बन्धी एक - एक करके काल का ग्रास बन रहें हैं*। मैं साक्षी हो कर हर दृश्य को देख रही हूँ। मेरी बुद्धि की तार केवल मेरे शिव पिता के साथ जुड़ी हुई है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं देह और इस देह से जुड़े हर सम्बन्ध से नष्टोमोहा बन चुकी हूँ। *अपने इस नष्टोमोहा ब्राह्मण स्वरूप को देख कर इस स्वरूप को जल्द से जल्द पाने का लक्ष्य रख मैं फ़रिशता अब साकारी दुनिया को छोड़ सूक्ष्म लोक की ओर चल पड़ता हूँ*।
➳ _ ➳ सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित सूक्ष्म वतन में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप में मेरे सामने खड़े है और उनकी भृकुटि में शिवबाबा चमक रहें हैं। *बापदादा के मस्तक से आ रही लाइट और माइट चारों और फैल कर पूरे सूक्ष्म वतन को प्रकाशित कर रही है*। सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन इस पूरे वतन में चारों और फैले हुए हैं। मैं फ़रिशता धीरे - धीरे बाबा के पास पहुंचता हूँ। *बापदादा के मस्तक से आ रही शक्तियों की लाइट और माइट अब सीधी मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है और मैं फ़रिशता सर्वशक्तियों से भरपूर होता जा रहा हूँ*। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर बाबा मुझे "नष्टोमोहा भव" का वरदान दे रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से वरदान लेकर और सर्वशक्तियो से सम्पन्न बन कर मैं फ़रिशता अब वापिस साकार लोक की ओर प्रस्थान करता हूँ। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन के साथ मैं अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ। अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ। *यह देह और देह की दुनिया अब खत्म होने वाली है, इस बात को सदा स्मृति में रखते हुए इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत केवल अपने शिव बाप से रखते हुए अब मैं हर बात से स्वत: ही उपराम होती जा रही हूँ*।
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∫∫ 6 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मैं आत्मा महावीर बन हर समस्या का समाधान करती हूं।*
➳ _ ➳ मैं आत्मा निर्भयता से हर परिस्थिति का सामना करती हूं... इस *ब्राह्मण जन्म* को लेते ही बाबा ने मुझे अद्भुत शक्तियों से भरपूर किया है... *मैं सर्वशक्तिमान पिता की संतान हूं... यही शक्ति मुझे निर्भय बना विजयी बनाती है...* जैसे जैसे बाबा की दी ये शक्तियां मुझमें इमर्ज होती जा रही हैं... मैं आत्मा बलवान बनती जा रही हूं... इसीलिए *किसी भी परिस्थिति में, मैं आत्मा बिना मूंझे महावीर बन हर समस्या का समाधान करती हूं...* ये महावीरता ही मुझे सफलता की सीढ़ियां चढ़ाते हुए ऊंचाई पर बिठा रही है... *बाबा कहते हैं की महावीर आत्मा को दुःख की लहर छू भी नहीं सकती, वो सदा तन और मन से खुश रहती है...* तो मैं आत्मा भी *बाबा की दी गई महावीरता के द्वारा... अपनी कमजोरियों को दूर कर विजय के, सफलता के फल को खा खुशी में रहती... और दूसरों को भी रखती हूं...*
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ स्मृतियाँ / संकल्प (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शुभ भावना संपन्न ज्ञानी योगी आत्मा होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ ज्ञान सागर की संतान... मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सागर हूं... रहम दिल बाप समान मैं भी रहम दिल हूं... *सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, कल्याण की भावना के स्टॉक से भरपूर, संपन्न हूं...* मैं आत्मा बाप समान निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी हूं... *सारे दिन में जो भी आत्मा... मुझ आत्मा के संबंध संपर्क में आती है... वरदानी मूर्त बन मैं आत्मा... सर्व प्रति कल्याण की भावना रख... कल्याण भव... का वरदान लुटा रही हूं...* इस प्रकार सबको दुआओं से भरपूर कर... मैं आत्मा बाप की दुआओं की पात्र बन गई हूं... *यही दुआएं मुझ आत्मा को निर्विघ्न बनाये हुये हैं... मैं आत्मा महसूस करती हूं निर्विघ्न बन... मैं आत्मा ज्ञान और योग में तीखी जा रही हूं...*
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∫∫ 8 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *जिस भी बच्चे को देखें, जो भी मिले, संबंध-सम्पर्क में आये, उन्हों को यह लक्षण दिखाई दें कि यह जैसे परमात्मा बाप, ब्रह्मा बाप के गुण हैं, वह बच्चों के सूरत और मूरत से दिखाई दें।* अनुभव करें कि इनके नयन, इनके बोल, इन्हों की वृत्ति वा वायब्रेशन न्यारे हैं।
➳ _ ➳ 2. *जो बच्चा जहाँ भी रहता है, जो भी कर्मक्षेत्र है, हर एक बच्चे से बाप समान गुण, कर्म और श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल अनुभव में आये, इसको बापदादा कहते हैं - बाप समान बनना।* जो अभी तक संकल्प है बाप समान बनना ही है, वह संकल्प अभी चेहरे और चलन से दिखाई दे। *जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उनके दिल से यह आवाज निकले कि यह आत्मायें बाप समान हैं।*
➳ _ ➳ बापदादा अभी सभी बच्चों से यह प्रत्यक्षता चाहते हैं। जैसे वाणी द्वारा प्रत्यक्षता करते हो तो वाणी का प्रभाव पड़ता है, उससे भी ज्यादा प्रभाव गुण और कर्म का पड़ता है। *हर एक बच्चे के नयनों से यह अनुभव हो कि इन्हों के नयनों में कोई विशेषता है।* साधारण नहीं अनुभव करें। अलौकिक हैं। *उन्हों के मन में क्वेश्चन उठे कि यह कैसे बनें, कहाँ से बनें। स्वयं ही सोचें और पूछें कि बनाने वाला कौन?* जैसे आजकल के समय में भी कोई बढ़िया चीज देखते हो तो दिल में उठता है कि यह बनाने वाला कौन है! ऐसे अपने बाप समान बनने की स्थिति द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो।
➳ _ ➳ आजकल मैजारिटी आत्मायें सोचती हैं कि क्या इस साकार सृष्टि में, इस वातावरण में रहते हुए ऐसे भी कोई आत्मायें बन सकती हैं! तो *आप उन्हों को यह प्रत्यक्ष में दिखाओ कि बन सकता है और हम बने हैं। आजकल प्रत्यक्ष प्रमाण को ज्यादा मानते हैं। सुनने से भी ज्यादा देखने चाहते हैं* तो चारों ओर कितने बच्चे हैं, हर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाए तो मानने और जानने में मेहनत नहीं लगेगी।
✺ *ड्रिल :- "बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अब तक मैं आत्मा झूठे जिस्मानी प्रेम की मृगतृष्णा में भटक रही थी... जिसके द्वारा जन्म जन्मांतर दुःख पाती रही... *मेरे मीठे बाबा ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को दुःखों से छुड़ा... अपने स्नेह... प्यार की पालना देकर... अपने गले से लगा लिया... वाह रे मैं भाग्यशाली आत्मा!!* जो परमात्मा स्वयं मुझे अपने जैसा बनने की पढ़ाई पढ़ाने रोज़ धरा पर आते हैं...
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को देख कर गर्व करती मैं आत्मा... स्वयं भगवान मेरा है... उसका सबकुछ मेरा हो गया है... *उसने अपने सर्व वरदान और सर्वशक्तियां मुझे दे दी हैं... आहा!! मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य... इस अंतिम जन्म में हर पल भगवान मेरे साथ है... स्वयं भगवान मुझ आत्मा को सर्व सम्बन्धों की पालना दे रहे हैं...* बाबा के सानिध्य से प्राप्त इन सर्व शक्तियों को धारण कर... मैं आत्मा धारणा स्वरूप बन गयी हूँ...
➳ _ ➳ जैसे ही मैं आत्मा अपने पवित्र स्वरूप में टिकती हूँ... मुझ आत्मा के सम्पर्क में जो भी आत्माऐं आती हैं... वह मन-वचन-कर्म से पवित्रता का अनुभव करती हैं... मैं आत्मा स्वराज्य के धर्म और बाबा द्वारा दी गई सभी मर्यादाओं का पालन करती हूँ... *संकल्प व स्वप्न में भी मेरे प्यारे शिवबाबा के सिवाय और कोई नही... मुझे बाबा को प्रत्यक्ष करना ही है... करना ही है... सभी आत्माओं को बाबा का बनाना ही है...*
➳ _ ➳ कर्मक्षेत्र में जो भी आत्माऐं मुझ आत्मा के सम्बन्ध सम्पर्क में आती हैं... मुझ आत्मा की रूहानियत उन्हें बाबा की ओर आकर्षित करती हैं... *मेरे मधुर बोल... उन्हें शांति का अनुभव कराते हैं... मेरे नयनों से उन्हें अलौकिकता... स्पष्ट दिखाई देती है... मेरे हर कर्म से... चाल चलन से... झलकती हुई दिव्यता उन्हें भरसक मेरी ओर आकर्षित करती है...*
➳ _ ➳ मेरा हर बोल बाप समान... जो बाबा का संकल्प... वही मुझ आत्मा का संकल्प... मेरी हर श्वांस... हर सेकंड... तन-मन-धन... बाप समान बन रहा है... *मैं आत्मा जहाँ भी जाती हूँ... सारे वातावरण को रूहानियत की खुशबू से महका देती हूँ... बाबा से प्राप्त गुणों और शक्तियों का प्रभाव... हर कर्म से झलकती दिव्यता... अलौकिकता... सभी आत्माओं को सोचने में मजबूर कर देती है... आखिर इन ब्रह्माकुमारियों को ऐसा क्या मिला है जो ये सदा खुश रहती हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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