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 16 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप समान निरहंकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अपने आपसे बातें कर प्रफुल्लित रहे ?*

 

➢➢ *दुःख के चक्करों से सदा मुक्त रहे और दूसरों को मुक्त करवाया ?*

 

➢➢ *अकाल तख़्त नशीन बन अपनी श्रेष्ठ शान में रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी समय प्रमाण बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। बिना बेहद के वैराग्य वृत्ति के सकाश की सेवा हो नहीं सकती।* वर्तमान समय जबकि चारों ओर मन का दु:ख और अशान्ति, मन की परेशानियां बहुत तीव्रगति से बढ़ रही हैं। तो जितना तीव्रगति से दुःख ही लहर बढ़ रही हैं उतना ही आप सुख दाता के बच्चे अपने मन्सा शक्ति से, सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर सुख की अंचली का अनुभव कराओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विजय के तिलकधारी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ अनुभव होता है? अविनाशी तिलक अविनाशी बाप द्वारा लगा हुआ है। तो तिलक है स्मृति की निशानी। तिलक सदा मस्तक पर लगाया जाता है। तो मस्तक की विशेषता क्या है? याद या स्मृति। *तो विजय के तिलकधारी अर्थात् 'सदा विजय भव' के वरदानी। जो स्मृति-स्वरूप हैं वे सदा वरदानी हैं। वरदान आपको मांगने की आवश्यकता नहीं है।* वरदान दे दो-मांगते हो?

 

  *मांगना क्या चाहिए-यह भी आपको नहीं आता था। क्या मांगना चाहिए-वह भी बाप ही आकर सुनाते हैं। मांगना है तो पूरा वर्सा मांगो।* बाकी हद का वरदान-एक बच्चा दे दो, एक बच्ची दे दो, एक मकान दे दो, अच्छी वाली कार दे दो, अच्छा पति दे दो - यही मांगते रहे ना। बेहद का मांगना क्या होता है- वो भी नहीं आता था। इसीलिए बाप जानते हैं कि इतने नीचे गिर गये जो मांगते भी हद का हैं, अल्पकाल का हैं। आज कार मिलती है, कल खराब हो जाती है, एक्सीडेन्ट हो जाता है। फिर क्या करेंगे? फिर और मांगेंगे-दूसरी कार दे दो!

 

  आप तो अधिकारी बन गये। बेहद के बाप के बेहद के वर्से के अधिकारी बन गये। अभी स्वत: ही वरदान प्राप्त हो ही गये। जब दाता के बच्चे बन गये, वरदाता के बच्चे बन गये-तो वरदान का खजाना बच्चों का हुआ ना। तो जब वरदानों का खजाना ही हमारा है तो मांगने की क्या आवश्यकता है! *अभी खुशी में रहो कि 'मांगने से बच गये। जो सोच में भी नहीं था वह साकार रूप में मिल गया! हर बात में भरपूर हो गये, कोई कमी नहीं'।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अशरीरी के लिए विशेष 4 बातों का अटेन्शन रखो :- 1. कभी भी अपने आपको भूलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। *प्रीत दुनिया को भूलाने का साधन है, देह को भूलाने का साधन है।*

 

✧  2. दूसरी बात *सच्चा मीत भी दुनिया को भूलाने का साधन है।* अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है। 3. तीसरी बात दिल के गीत - *अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है।*

 

✧  4. चौथी बात - यथार्थ रीत। अगर *यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है।* रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है। तो एक हुआ प्रीत, 2.- मीत, 3.- गीत, 4.- रीत।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जैसे बहुत ऊँचे स्थान पर चले जाते हो तो चक्कर लगाना नहीं पड़ता लेकिन एक स्थान पर रहते सारा दिखाई देता है। ऐसे जब टॉप की स्टेज पर, बीजरूप स्टेज पर, विश्व-कल्याणकारी स्थिति में स्थित होंगे तो सारा विश्व ऐसे दिखाई देगा जैसे छोटा 'बाल' है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विकार की कड़ी भूल कभी नहीं करना"*

 

➳ _ ➳  *अपने भाग्य के नशे में झूमती गाती मैं आत्मा मेरे भाग्य विधाता के पास वतन में पहुँच जाती हूँ... इस मरुस्थल रूपी कलियुगी दुनिया से निकाल मुझे सदाबहार संगमयुग में ला दिया है...* विकारों रूपी कांटे निकाल ज्ञान योग के पानी से सींचकर रूहानी फूल बनाकर सजा दिया है... मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ अपने अन्दर पावनता की खुशबू भरने...   

 

❉  *बाबा का बनकर कोई भूल ना करने की शिक्षा देते हुए प्यारे  बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... प्यारा बाबा बड़ी उम्मीदों से फूल बच्चों को देख रहा... *अब ईश्वर पिता का हाथ छुड़ा फिर विकारो का हाथ न थामना... भूल से भी यह भूल न करना... प्यारे बाबा की लाज रखना...* और दिव्य गुणो की धारणा से बाबा का नाम रौशन कर सदा का मुस्कराना...”

 

➳ _ ➳  *अपने दिल की गहराईयों से प्यारे बाबा का धन्यवाद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की आपके दुलार की ममता की रोम रोम से ऋणी हूँ... *मीठे बाबा आपने मेरे दुखो भरे कलुषित जीवन को सुखो का पर्याय बनाया है... मुझे फूलो सा खिलाया है... ईश्वरीय प्यार को पाकर निहाल हूँ...”*

 

❉  *मेरे मन आंगन में यादों की हरियाली बिखरते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस संकल्प समय को यादो से भर लो... ईश्वरीय यादो में इस कदर महक उठो की हर दिल इस खुशबु से सुवासित हो उठे... *आपकी चमक से पिता के आने की आहट गूंजे... ऐसा रूहानियत भरा महकता जीवन हो... अपने हर कर्म को ईश्वरीय यादो से भरकर सुकर्म बनाओ...”*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा सदा पावनता की खुशबू से महकते हुए प्यारे मीठे बाबा से कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में अतीन्द्रिय सुख में झूल रही हूँ...  हर कर्म बाबा की मीठी मीठी यादो में डूबी हो कर रही हूँ... *सदा श्रीमत को पलको में लिए जीवन को  श्रृंगार  रही हूँ... अपने श्रेष्ठ कर्मो से प्यारे बाबा की झलक पूरे जहान को दिखा रही हूँ...”*

 

❉  *मुझे विकारों के दलदल से निकाल श्रीमत के आशियाने में बिठाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब जो ईश्वर पिता ने बाँहों में भरकर असीम प्यार किया है ज्ञान खजानो को लुटाकर मालामाल किया है... *ईश्वरीय जागीर नाम कर बादशाह बनाया है तो श्रीमत को कभी न छोडो... भूल कर भी कोई भूल न करो और ऐसे निस्वार्थ प्रेम को बदनाम न करो... हर कदम अपनी सम्भाल करो...”*

 

➳ _ ➳  *अपने रोम-रोम में प्यारे बाबा के प्यार को बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपके प्यार का दिव्य गुणो का अथाह ज्ञान रत्नों का कैसे शुक्रिया करूँ... आपने प्यारे बाबा दुखो से उबार कर मुझे फूलो के गलीचे पर रख दिया है... सारी खुशियो की फुलवारी मेरे दिल आँगन में सजा दी है...* ऐसे मीठे बाबा का किन शब्दों में धन्यवाद मै करूँ...”

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अभी हम यात्रा पर है इसलिए बहुत सम्भल कर चलना है*

 

_ ➳  स्वयं भगवान पण्डा बन कर जिस रूहानी यात्रा पर हमें ले जा रहें हैं उस यात्रा पर बहुत सम्भल कर चलना होगा क्योंकि माया घड़ी - घड़ी उस रास्ते से हटाने की कोशिश करेगी। *इसलिए अपने पिता परमात्मा के श्रीमत रूपी हाथ को कसकर थामे, मुझे इस रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ना है और उस मंजिल तक पहुंचना है जहाँ बाबा हमे ले जाना चाहते हैं। सम्पूर्णता की वो मंजिल जो ब्रह्मा बाबा ने शिव बाबा की श्रीमत पर सम्पूर्ण रीति चल कर हासिल की*। अपनी उसी सम्पूर्णता की मंजिल को अब मुझे हासिल करना है। मन ही मन एकांत में बैठ मैं अपने आप से बातें कर रही हूँ और यह चिंतन करते हुए मैं अपने आप से प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस बात को अब मैं कभी नही भूलूँगी, हमेशा स्मृति में रखूँगी कि "मैं यात्रा पर हूँ" और इस यात्रा पर मुझे एक - एक कदम सम्भल - सम्भल कर चलना है।

 

_ ➳  इसी प्रतिज्ञा के साथ, मन बुद्धि की रूहानी यात्रा पर चलने के लिए मैं अब सभी बातों से अपने मन बुद्धि को समेट लेती हूँ और अपनी चेतना को मस्तक के सेन्टर में भृकुटि के मध्य भाग पर एकाग्र कर लेती हूँ।*एकाग्रता की यह शक्ति धीरे - धीरे संकल्पो की गति को धीमा कर मुझे बिल्कुल रिलैक्स कर देती हैं। मैं महसूस कर रही हूँ शरीर के किसी भी अंग में अब कोई हलचल नही है। मेरा सम्पूर्ण ध्यान अब केवल मेरे उस स्वरूप पर केंद्रित है जो एक सितारे के रूप में मुझे भृकुटि में चमकता हुआ स्पष्ट दिखाई दे रहा है*। मन बुद्धि के तीसरे नेत्र से मैं देख रही हूँ इस सितारे में से निकल रहे खूबसूरत प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों को जो झिलमिल करती मन को असीम आनन्द प्रदान कर रही हैं।

 

_ ➳  एक गहन सुख, शांति और आनन्द से ये किरणे मुझे तृप्त कर रही हैं। इनसे निकल रहे सातो गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन्स औंस की बूंदों की तरह चारो और फैल रहें हैं। *हल्की - हल्की फुहारों की तरह इन्हें मैं अपने ऊपर गिरता हुआ महसूस कर रही हूँ और गहन शीतलता की अनुभूति कर रही हूँ। अपने इस आनन्दमयी, सुखदाई स्वरूप का अनुभव करते - करते मैं आत्मा मन बुद्धि के विमान पर बैठ इस रूहानी यात्रा पर और आगे बढ़ रही हूँ*। अब मैं जा रही हूँ भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ ऊपर आकाश की ओर। सूर्य, चाँद, तारागणों को पार करके अपने परमधाम घर में मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ। इस परमधाम घर में चारों ओर फैली गहन शान्ति के अनुभव में गहराई तक खोकर, इस अंतहीन निराकारी दुनिया मे विचरण करते - करते अपने महाज्योति शिव पिता के पास मैं पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं अपने प्यारे पिता के अति सुन्दर, मनभावन स्वरूप को। मुझ बिंदु आत्मा के समान मेरे पिता भी एक अति सूक्ष्म बिन्दु हैं किन्तु गुणों में सिंधु हैं। अपने ही समान अपने पिता के स्वरूप को देखकर मैं आत्मा आनन्दविभोर हो कर, उनसे मिलन मनाने के लिए अब उनके समीप जा रही हूँ। *उनके बिल्कुल समीप जा कर बड़े प्यार से उन्हें निहारते हुए, उनके प्यार की किरणों की शीतल छाया में बैठ, शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती हुए मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूँ*। सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मेरे अन्दर असीम ऊर्जा का संचार कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  शक्तियों का पुंज बन कर, अब मैं आत्मा अपने पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ने के लिए, परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अपने प्यारे शिव पिता की याद में निरन्तर रहकर, स्वयं को बलशाली बनाकर, अपने रूहानी पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर सम्भल - सम्भल कर चलते हुए अपनी मंजिल पर पहुँचने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दुःख के चक्करों से सदा मुक्त्त रहने और सब को मुक्त्त करने वाली स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अकाल तख़्तनशीन बन अपने श्रेष्ठ शान में रहते हुए कभी परेशान नहीं होने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

*✺ अव्यक्त बापदादा :-*

 

_ ➳  *सेवाधारी अर्थात् बड़ों के डायरेक्शन को फौरन अमल में लाने वाले।* लोक संग्रह अर्थ कोई डायरेक्शन मिलता है तो भी सिद्ध नहीं करना चाहिए कि मैं राइट हूँ। भल राइट हो लेकिन लोकसंग्रह अर्थ निमित्त आत्माओं का डायरेक्शन मिलता है तो सदा -  *‘जी हाँ', ‘जी हाजर', करना यही सेवाधारियों की विशेषता हैयह झुकना नहीं हैनीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है।* कभी-कभी कोई समझते हैं अगर मैंने किया तो मैं नीचे हो जाऊँगीमेरा नाम कम हो जायेगामेरी पर्सनैलिटी कम हो जायेगीलेकिन नहीं। मानना अर्थात् माननीय बननाबड़ों को मान देना अर्थात् स्वमान लेना। तो ऐसे सेवाधारी हो जो अपने मान शान का भी त्याग कर दो। अल्पकाल का मान और शान क्या करेंगे। *आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है।* तो अविनाशी लेना है या अभी-अभी का लेना हैतो सेवाधारी अर्थात् इन सब बातों के त्याग में सदा एवररेडी।

 

_ ➳  *बड़ों ने कहा और किया। ऐसे विशेष सेवाधारीसर्व के और बाप के प्रिय होते हैं। झुकना अर्थात् सफलता या फलदायक बनना।*  यह झुकना छोटा बनना नहीं है लेकिन सफलता के फल सम्पन्न बनना है। उस समय भल ऐसे लगता है कि मेरा नाम नीचे जा रहा हैवह बड़ा बन गयामैं छोटी बन गई। मेरे को नीचे किया गया उसको ऊपर किया गया। *लेकिन होता सेकण्ड का खेल है। सेकण्ड में हार हो जाती और सेकण्ड में जीत हो जाती।* सेकण्ड की हार सदा की हार है जो चन्द्रवंशी कमानधारी बना देती है और सेकण्ड की जीत सदा की खुशी प्राप्त कराती जिसकी निशानी श्रीकृष्ण को मुरली बजाते हुए दिखाया है। तो कहाँ चन्द्रवंशी कमानधारी और कहाँ मुरली बजाने वाले! ‘तो सेकण्ड की बात नहीं है लेकिन सेकण्ड का आधार सदा पर है'। तो इस राज़को समझते हुए सदा आगे चलते चलो।

 

✺   *ड्रिल :- "बड़ों ने कहा और किया" - ऐसे विशेष सेवाधारी बनकर रहना।"*

 

_ ➳  *भृकुटी सिंहासन पर विराजमान मैं आत्मा... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति...* अपने निज् गुण... निज् स्वधर्म को जान... बैठी हूँ एक बाप की लगन में मग्न होकर... न देह का भान... न इस दैहिक दुनिया का भान... अपने आप में मस्त... बैठी हूँ तपस्या धाम में... तपस्या धाम... पवित्र भूमि... भगवान के अवतरण की भूमि जहाँ *बापदादा से योग लगाना नहीं पड़ता... स्वतः ही लग जाता है... बापदादा से मन के तार को जुड़ने में पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता... वहाँ आप और बाप... बाप और आप ही दिखाई देते हैं...*

 

_ ➳  *"तपस्या करनी हैं तो तपस्या धाम में जाओ..."* और मैं आत्मा तपस्या धाम में बैठी बापदादा का आह्वान करती हूँ... मन बुद्धि रूपी घोड़े को बाप की याद रूपी लगाम से मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ परमधाम... सुनहरे किरणों के प्रकाश की दुनिया में... पवित्रता... शांति का साम्राज्य छाया हुआ हैं जहाँ... देह की दुनिया से परे... अपने ओरिजिनल स्वरुप में... *मैं आत्मा बिन्दुरूप में बिन्दुरूपी बाप को और सभी आत्माओं को निहार रही हूँ... जो तन-मन-धन से... मंसा-वाचा-कर्मणा से एक बाप को प्रत्यक्ष करने पर लगे है...*

 

_ ➳  हम सभी आत्मायें एक बाप की लगन में और अपने आप को सदा बाप के प्यार के झूले में झूलता अनुभव करते... सर्व शक्तियों से भरपूर होते जा रहें हैं... रंग बिरंगी किरणों की फाउंटेन में हम सभी आत्मायें परिपूर्ण होते जा रहे हैं... और *बाबा के साथ हम सभी आत्मायें पहुँचते हैं... सूक्ष्म वतन में... जहाँ ब्रह्मा बाबा हमारा इंतजार कर रहे थे...* शिवबाबा का ब्रह्मा बाबा के सूक्ष्म शरीर में प्रवेश और हमारा बिन्दुरूप से फ़रिश्ता स्वरुप में परिवर्तन का यह नजारा सूक्ष्म वतन में पूनम के चाँद के जैसे चांदनी बिखेर रहा हैं...

 

_ ➳  दिव्य स्वरूप वह ब्रह्मा बाबा का... अलौकिकता से भरे नयनों से प्यार की वर्षा.. हम सभी आत्माओ को भीगाता जा रहा हैं... ब्रह्मा तन में विराजमान शिवबाबा ने मुरली चलाई... "मेरे लाडले बच्चों..." और हम सभी फ़रिश्ते झूम उठे... बाबा ने कहा... "बच्चे सेवाधारी हो कि अथक सेवाधारी हो? सेवा में क्या मेरेपन की भावना और मैंने किया यह संकल्प तो हावी नहीं हो रहा है? *बड़ों ने कहा और किया।* ऐसे विशेष सेवाधारीसर्व के और बाप के प्रिय होते हैं तो क्या विशेष सेवाधारी बन के रहते हो? *‘जी हाँ', ‘जी हाजर', करना यही सेवाधारियों की विशेषता हैयह झुकना नहीं हैनीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है।"*

 

_ ➳  *"आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है... तो अविनाशी लेना है या अभी-अभी का लेना हैतो सेवाधारी अर्थात् इन सब बातों के त्याग में सदा एवररेडी..."* बापदादा की यह अमूल्य शिक्षाओं को हम सभी फ़रिश्ते आत्मायें अपने में धारण करते जा रहें हैं और मेरेपन के त्याग से अपने पुरूषार्थ को उच्च शिखर पर पहुँचा रहे हैं... अमूल्य शिक्षाओं के खजानों से भरपूर हम आत्मायें वापिस अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करते हैं और हर कार्य चाहे लौकिक हो या अलौकिक सेवा हो... मेरेपन के भावना से परे हो करके करते जा रहे हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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