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 03 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सेकंड में मिलन का अनुभव कर सहज योगी जीवन का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बाप के साथ ही खाने - पीने, चलने - खेलने का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *अपना मन बाप को अर्पित किया ?*

 

➢➢ *प्यार का स्वरुप बन लवलीन अवस्था का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग माना शान्ति की शक्ति। यह शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को और दूसरों को परिवर्तन करती है, इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी।* व्यक्तियों को तो मुख का कोर्स करा लेते हो लेकिन प्रकृति को बदलने के लिए शान्ति की शक्ति अर्थात् योगबल ही चाहिए।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं तपस्वी आत्मा हूँ"*

 

  तपस्वी आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? *तपस्या अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे है या दूसरा कोई है अभी भी कोई है? कोई व्यक्ति या कोई वैभव? एक के सिवाए और कोई नहीं या थोड़ा लगाव है? निमित्त बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन लगाव जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ बुद्धि जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर।* तो चेक करो कि सारे दिन में मन और बुद्धि कहाँ-कहाँ भागती है? सिवाए बाप और सेवा के और कहाँ तो मन-बुद्धि नहीं जाती? अगर जाती है तो लगाव है। अगर व्यवहार भी करते हो, जो भी करते हो, वो भी ट्रस्टी बनकर। मेरा नहीं, तेरा। मेरा काम है, मुझे ही देखना पड़ता है.. मेरी जिम्मेवारी है.. ऐसे कहते हो कभी? क्या करें, मेरी जिम्मेवारी है ना, निभाना पड़ता है ना, करना पड़ता है ना, कहते हो कभी? या तेरा तेरे अर्पण, मेरा कहां से आया? तो यह बोल भी नहीं बोल सकते हो? मुझे ही देखना पड़ता है, मुझे ही करना पड़ता है, मेरा ही है, निभाना ही पड़ेगा...। मेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं निमित्त हूँ तो हल्के। बोझ उठाने की आदत तो नहीं है? 63 जन्म बोझ उठाया ना। कइयों की आदत होती है बोझ उठाने की। बोझ उठाने बिना रह नहीं सकते। आदत से मजबूर हो जाते हैं।

 

✧  मेरा मानना माना बोझ उठाना सभी तपस्या में सफलता को प्राप्त कर रहे हो ना। तपस्या में सन्तुष्ट हो? अपने चार्ट से सन्तुष्ट हो? या अभी होना है? यह भी एक लिफ्ट की गिफ्ट है। गिफ्ट जो होती है उसमें खर्चा नहीं करना पड़ता, खरीदने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। *एक तो है अपना पुरुषार्थ और दूसरा है विशेष बाप द्वारा गिफ्ट मिलना। तो तपस्या वर्ष एक गिफ्ट है, सहज अनुभूति की गिफ्ट। जितना जो करना चाहे कर सकता है। मेहनत कम, निमित्त मात्र और प्राप्ति ज्यादा कर सकते हैं।* अभी भी समय है, वर्ष पूरा नहीं हुआ है। अभी भी जो लेने चाहो ले सकते हो। इसलिए सफलता का सूर्य इस्ट में जगाओ। सदा सभी खुश हैं या कभी-कभी कुछ बातें होती तो नाखुश भी होते हो? खुशी बढ़ती जाती है, कम तो नहीं होती है?

 

  मायाजीत हो या माया रंग दिखा देती है? वह कितना भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ। माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले मनोरंजन समझकर देखो। देखते-देखते हार नहीं जाओ। साक्षी होकर के, न्यारे होकर के देखते चलो। सभी तपस्या में आगे बढ़ने वाले, गिफ्ट लेने वाले हो? सेवा अच्छी हो रही है? स्वयं के पुरुषार्थ में उड़ रहे हैं और सेवा में भी उड़ रहे हैं। सभी फर्स्ट हैं। *सदा फर्स्ट रहना, सेकेण्ड में नहीं आना। फर्स्ट रहेंगे तो सूर्यवंशी बनेंगे, सेकेण्ड बनें तो चन्द्रवंशी। फर्स्ट नम्बर मायाजीत होंगे। कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् फास्ट पुरुषार्थ। जिसका फास्ट पुरुषार्थ है वो पीछे नहीं हो सकता। सदा साक्षी और सदा बाप के साथी - यही याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अशरीरी भव - यह वरदान प्राप्त कर लिया है? *जिस समय संकल्प करो कि 'मैं अशरीरी हूँ', उसी सेकण्ड स्वरूप बन जाओ।* ऐसा अभ्यास सहज हो गया है? *सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की निशानी है।*

 

✧  कभी सहज, कभी मुश्किल, कभी सेकण्ड में, कभी मिनिट में या और भी ज्यादा समय में अशरीरी स्वरूप का अनुभव होना अर्थात सम्पूर्ण स्टेज से अभी दूर है। *सदा सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की परख है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ रायल्टी किन बातों की व रीयल्टी किस बात की? पहले अपने स्वरूप की रीयल्टी। *अगर रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति है तो स्वरूप की रीयल्टी से इस स्थूल सूरत में भी अलौकिक रायल्टी नज़र आयेगी। जो भी देखेंगे उनके मुख से यही निकलेगा कि यह इस दुनिया के नहीं हैं लेकिन अलौकिक दुनिया के फरिश्ते हैं अथवा यह स्वर्ग का कोई देवता उतरा है। ऐसे रायल्टी से अनुभव होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगमयुग- बाप बच्चों के मिलन का युग"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मधुबन के डायमंड हाल में पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे पिता से मिलने... मेरे पिता परमधाम से आयें हैं मुझे पतित से पावन बनाने... अपने साथ घर ले जाने... सभी फ़रिश्ते प्यार के सागर में डूबने बड़े ही आतुरता से प्यार के सागर मेरे बाबा का इन्तजार कर रहे हैं...* फिर वो मिलन की घडी आ जाती है और प्यारे बापदादा दादी के तन में विराजमान होकर दृष्टि देकर सबको निहाल कर रहे हैं... और मुझे अपने पास बुलाकर मेरे मन के मीत बाबा मुझसे प्यारी-प्यारी बातें करते हैं... 

 

  *रूहानी मिलन मेले में सबको अविनाशी सौगातों को बांटते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *प्यारे पिता से मिलन के यह खूबसूरत पल सदा के है... यह ख़ुशी अविनाशी है एक दिन की नही... सदा की ख़ुशी सदा का आनन्द... सदा ज्ञान गुणो का श्रृंगार है...* ईश्वरीय पिता के बच्चे सदा ही उमंगो के उत्सव् में है... दुनिया एक दिन के त्योहारो में खुशियां पाती है आप हर पल त्योहारो को जीते हो...

 

_ ➳  *मिलन मेले में खुशियों के खजानों को समेटते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो की कितनी प्यासी थी... एक दिन की ख़ुशी का बरस भर इंतजार सा था... *आज हर दिन खुशियो के मेले में मस्त हूँ... हर लम्हा श्रृंगार है हर पल ख़ुशी का खजाना मेरे पास है...”*

 

  *खुशियों की बरसात कर श्रेष्ठ भाग्य के झूले में झुलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... *परमात्मा से मिलन के मेले में पिता समान श्रेष्ठ हो गए हो... गुणो और शक्तियो से सजेधजे मुस्करा उठे हो... आपस में गुणो को लिए दिए चले जा रहे हो...* और खुशियो संग यूँ खेलते ही चले जा रहे हो... कितना मीठा और प्यारा यह महा सौभाग्य आप बच्चों का है कि सदा की खुशियो में जीते जा रहे हो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यार के सागर के प्यार की लहरों में उछलती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यार के पल आपकी यादो में जीती जा रही हूँ... खुशियो में खिलती ही जा रही हूँ.... *गुणो के लेन देन में सुखी होती जा रही हूँ... मिलन के मेले में खुशियो भरी तकदीर जगाती जा रही हूँ...”*

 

  *ज्ञान सूर्य मेरे बाबा चारों ओर ज्ञान की किरणों की बौछारें करते हुए कहते हैं:-* मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मधुर परमात्म मिलन के मेले में खोये रहो... प्रवृत्ति में रहते हुए भी सदा न्यारे और प्यारे बन पिता के दिल पर सितारे रहो... राजऋषि बन मुस्कराते रहो...* निर्विघ्न रह विजय पताका लहराते ही रहो... लक्की सितारे होकर बाबा के दिल पर इठलाते रहो... और चमकदार हीरे बन अपनी रश्मियों से संसार में आभा फैलाते रहो...

 

_ ➳  *प्रेम की लहरों में समाकर अमूल्य मणि बन चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी खूबसूरत सी छत्रछाया में जादू हो गया है... *मै आत्मा चमकता हीरा हो गई हूँ हर विघ्न पर विजयी हो कर न्यारी सी प्यारी सी अनोखी बन जहान में खुशियो की जादुई परी हो गयी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपना मन बाप के आगे अर्पित करना*

 

_ ➳  दिल को आराम देने वाले अपने दिलाराम बाबा की याद में बैठ, अपने मन को उनके आगे अर्पित करके मैं जैसे ही बैठती हूँ, मेरे मीठे बाबा अपने प्रेम की डोर से मुझे अपनी ओर खींच लेते हैं और अपने दिलाराम बाबा की मैं आत्मा सजनी उनके प्रेम की डोर को थामे बड़ी सहजता से उड़ चलती हूँ उनके वतन की ओर। *देह और देह की दुनिया के हर बन्धन को तोड़, उनके प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा अपने अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आती हूँ और एक ऊँची उड़ान के साथ सेकेण्ड में आकाश को भी पार कर जाती हूँ*। जैसे - जैसे अपने प्यारे शिव पिता के मूल वतन घर के मैं नजदीक पहुँचती जा रही हूँ उनसे मिलने की व्याकुलता भी मन मे बढ़ती जा रही है।

 

_ ➳  मन मे अपने प्यारे बाबा से मिलने की तड़प ने मेरी स्पीड को जैसे और भी तीव्र कर दिया है और सेकण्ड से भी कम समय में मैं पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके मूलवतन परमधाम घर मे। *निराकारी आत्माओं की इस दुनिया में, सितारों सी चमकती निराकारी आत्माओं के बीच महाज्योति मेरे शिव पिता अपनी अनन्त किरणे फैलाते हुए अति शोभायमान लग रहे हैं*। सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने दिलाराम बाबा के सामने मैं बैठी हूँ और बस उन्हें निहारती जा रही हूँ। मेरा मन और बुद्धि रूपी नेत्र एक पल के लिए भी उनके इस अति सुंदर स्वरूप को देखे बिना नही रहना चाहते।

 

_ ➳  उन्हें एकटक निहारते हुए उनसे बिछुड़ने की जन्म - जन्म की प्यास को बुझाकर, अब मैं धीरे - धीरे उनकी ओर बढ़ती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में जाकर समा जाती हूँ। *बाबा का असीम स्नेह उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में, बारिश की रिमझिम फुहारों की तरह मेरे ऊपर बरसने लगता है*। अपने दिलाराम बाबा के प्रेम की किरणों रूपी बाहों में समा कर, स्वयं को उनके निस्वार्थ प्रेम से भरपूर करके, अब मैं अपने मन को अपने मीठे बाबा के आगे अर्पित करके, अपने मन के सारे उदगार, संकल्पो के माध्यम से बाबा के सामने प्रकट कर रही हूँ।

 

_ ➳  ओ मेरे प्राणों से प्यारे बाबा, जन्म -जन्म से मैं आपको याद कर रही थी। अब आपसे मिल कर मेरी जन्म - जन्म की प्यास बुझ गई, मेरे सारे कष्ट मिट गये। सर्व दुखों से परे आपके पावन प्रेम की शीतल छाया को पाकर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ। आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया मेरे बाबा। *मेरे मन की भावनाओं को मेरे प्राण प्रिय बाबा समझ रहें है इसलिए रिटर्न में अपने स्नेह की अनन्त धाराओं को मेरे ऊपर प्रवाहित कर रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे स्नेह की शीतल किरणो का कोई झरना मेरे ऊपर बह रहा है और उसकी अनन्त धारायें मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं जो मुझे सम्पूर्ण शीतल और स्नेहशील बना रही हैं। *दिल लेने वाले अपने दिलाराम बाबा के असीम प्रेम और उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं फिर से कर्म करने के लिए अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के निस्वार्थ, निर्मल और निश्छल प्यार के मीठे मधुर एहसास को अपने मन मे छुपाये, अपना मन अपने दिलाराम बाबा को अर्पित कर अब मैं हर पल उनके साथ मंगल मिलन मना रही हूँ। दुनिया वाले जिसे मिलने की सिर्फ मन मे आश रखते हैं वो परम प्रिय मेरे प्यारे प्रभु खाते - पीते, सोते - उठते, चलते - फिरते हर कर्म करते मेरे साथ रहते हैं। *ऐसा लगता है जैसे प्यार के सागर अपने प्यारे पिता के लव में लीन रहने से मैं भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बन गई हूँ। ज्ञानसूर्य अपने प्यारे पिता के सानिध्य में स्वयं को सारा दिन मैं ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति और शक्ति की लहरों में लहराता हुआ अनुभव करती हूँ और अतीन्द्रीय सुख के झूले में हर पल झूलती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं प्रवृति में रहते एक बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने वाली देह के संबंधों से निवृत आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा संतुष्ट और सदा खुश रहने वाली खुशनसीब तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *इस पुरानी देह को बापदादा द्वारा मिली हुई ‘अमानत' समझो। सेवा अर्थ कार्य में लगाना है। यह मेरी देह नहीं लेकिन सेवा अर्थ अमानत है। जैसे मेहमान बन देह में रह रहे हैं।* थोड़े समय के लिए बापदादा ने कार्य के लिए आपको यह तन दिया है। तो आप क्या बन गये? मेहमान! मेरे-पन का त्याग और मेहमान समझ महान कार्य में लगाओ। मेहमान को क्या याद रहता है? असली घर याद रहता है या उसी में ही फँस जाते हो! तो आप सबका यह शरीर रूपी घर भी, यह फारिश्ता स्वरूप है, फिर देवता स्वरूप है। उसको याद करो। इस पुराने शरीर में ऐसे ही निवास करो जैसे बापदादा पुराने शरीर का आधार लेते हैं लेकिन शरीर में फँस नहीं जाते हैं। कर्म के लिए आधार लिया और फिर अपने फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो जाओ। अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। न्यारेपन की ऊपर की ऊँची स्थिति से नीचे साकार कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने लिए आओ, इसको कहा जाता है - ‘मेहमान अर्थात् महान'। ऐसे रहते हो? त्याग का पहला कदम पूरा किया है?

✺ *"ड्रिल :- स्वयं को इस देह में मेहमान समझ महान अवस्था का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में चली जा रही हूँ... बाबा तेज धूप में मुझपर अपनी ठंडी छत्रछाया डाल रहे हैं... कुछ दूर चलते-चलते मुझे कुछ लोग दिखाई दिए... उन्होंने मुझे रोका और किसी घर का पता पूछा... तभी मैने जाना तो वो मेरे ही लौकिक घर का पता था... मैं उनको आदर भाव से घर ले गयी... और उसी समय से मैं उन्हें ध्यान से देखने लगी... मैने देखा कि *वो एक स्थान पर बैठे हैं... और इस घर की किसी भी चीज को छू भी नहीं रहे है... और बार बार उस घर की बात कर रहे हैं, जहाँ से वो आये है... हमने उनका बहुत आदर भाव और मान मनुहार किया... वो बहुत खुश भी थे... परंतु बार बार अपने घर को याद करते है...*

➳ _ ➳ उन्हें देखकर मैं सोचने लगती हूँ... कि इन्हे इतना मान सम्मान और प्यार मिल रहा है तब भी ये अपने घर को नहीं भूल रहे... यहाँ की किसी भी चीज में ममत्व नहीं है... हर कर्म करते भी अपनी बुद्धि से अपने घर को याद कर रहे है... इन्हे मालूम है ये सिर्फ कुछ दिनो के लिए यहाँ आये है... फिर इन्हे वापिस अपने घर जाना है... *इसलिए जब ये मेहमान यहाँ से जाएंगे तब इन्हे यहाँ की चीजें याद नहीं आएँगी... और ना ही इनमें इनका मोह होगा... क्योंकि इन्हे पता है कि ये कोई भी चीज इनकी नहीं है...* मेहमान यहाँ पूरे परिवार के साथ रहते भी मन बुद्धि से अपने घर की याद में थे... इसलिए ये आसानी से बिना किसी दुःख के यहाँ से प्रस्थान कर रहे है...

➳ _ ➳ इस दृश्य को देखकर मैं मन बुद्धि से बाबा के पास चली जाती हूँ... और बाबा से कहती हूँ... बाबा... मेरा मार्गदर्शन कीजिये... और बाबा मुझसे कहते है... मेरे मीठे बच्चे, *तुम्हारा यह शरीर भी तुम्हारा नहीं है... यह सिर्फ कर्म करने के लिये तुम्हें मिला है...* तुम हमेशा इस शरीर को समझो जैसे तुम इसमे मेहमान हो... तुम्हे इस कमरे रूपी मकान में हमेशा नहीं रहना... इसमे रहकर अपना हर कर्म निभाना है... मेहमान के बुद्धि में हमेशा अपना घर रहता है... ऐसे ही तुम्हारी बुद्धि में भी हमेशा अपना असली स्वरूप रहना चाहिए... इस विनाशी शरीर से किसी भी प्रकार का लगाव नहीं रखना है... अगर इससे लगाव रखोगे तो अंत में इससे आसानी से नहीं निकल पाओगे... निकलते समय बहुत दुःख होगा...

➳ _ ➳ बाबा के वचन सुनकर मैं आत्मा बाबा से वादा करती हूँ... और कहती हूँ... बाबा... *मैं भी इस शरीर को सिर्फ़ कर्म करने का साधन मात्र समझूँगी... मैं हमेशा यह याद रखूँगी कि मैं एक ज्योतिर्बिन्दु हूँ... मैं इस शरीर और इन कर्मेन्द्रियों की मालिक हूँ...* मैं यह याद रखूँगी कि ये शरीर मुझे इस कर्मक्षेत्र पर कर्म करने के लिए मिला है... कर्म करते समय मैं अपने आपको चलता फिरता फ़रिश्ता स्वरूप में ही अनुभव करूँगी... जब कार्य समाप्त होगा मैं ज्योतिर्बिन्दु बनकर अपनी शक्तियां बढ़ाऊंगी... मैं आत्मा इस शरीर में मेहमान बनकर प्रवेश करूँगी... और मेहमान बनकर ही प्रस्थान करूँगी... और जब भी मैं आत्मिक स्थिति में रहकर कर्म करूँगी तो अपनी महान स्थिति का अवश्य ही अनुभव करूँगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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