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 26 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सच्चा व्यास बन सच्ची गीता सुनी और सुनायी ?*

 

➢➢ *ज्ञान अमृत के मां सरोवर में स्नान कर आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाया ?*

 

➢➢ *बेगमपुर के बेफिक्र बादशाह बनकर रहे ?*

 

➢➢ *समबन्ध में संतुष्टता रुपी स्वच्छता को धारण किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *चारों ओर हलचल है, व्यक्तियों की, प्रकृति की हलचल बढ़नी ही है, ऐसे समय पर सेफ्टी का साधन है सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लेना। तो बीच-बीच में ट्रायल करो* एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहे वहाँ स्थित कर सकते हैं! इसको ही साधना कहा जाता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पदमापदम भाग्यवान हूँ"*

 

  अपने को पद्मापदम भाग्यवान अनुभव करते हो? क्योंकि देने वाला बाप इतना देता है जो एक जन्म तो भाग्यवान बनते ही हो लेकिन अनेक जन्म तक यह अविनाशी भाग्य चलता रहेगा। ऐसा अविनाशी भाग्य कभी स्वप्न में भी सोचा था! असम्भव लगता था ना? लेकिन आज सम्भव हो गया। तो ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें है - यह खुशी रहती है? *कभी किसी भी परिस्थिति में खुशी गायब तो नहीं होती! क्योंकि बाप द्वारा खुशी का खजाना रोज मिलता रहता है, तो जो चीज रोज मिलती है वह बढ़ेगी ना। कभी भी खुशी कम हो नहीं सकती।*

 

  क्योंकि खुशियों के सागर द्वारा मिलता ही रहता है। अखुट है। भी भी किसी बात के फिकर में रहने वाले नहीं। *प्रापर्टी का क्या होगा, परिवार का क्या होगा? यह भी फिकर नहीं। बेफिक्र! पुरानी दुनिया का क्या होगा! परिवर्तन ही होगा ना। पुरानी दुनिया में कितना भी श्रेष्ठ हो लेकिन सब पुराना ही है। इसलिए बेफिक्र बन गये। पता  नहीं आज है कल रहेंगे- नहीं रहेंगे - यह भी फिकर नहीं।*

 

  *जो होगा अच्छा होगा। ब्राह्मणों के लिए सब अच्छा है। बुरा कुछ नहीं। आप तो पहले ही बादशाह हो। अभी भी बादशाह, भविष्य में भी बादशाह। जब सदा के बादशाह बन गये तो बेफिक्र हो गये। ऐसी बादशाही जो कोई छीन नहीं सकता।* कोई बन्दूक से बादशाही उड़ा नहीं सकता। यही खुशी सदा रहे और औरों को भी देते जाओ। औरों को भी बेफिक्र बादशाह बनाओ।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कोई भी किसी के वश हो जाता तो वश हुई आत्मा मजबूर हो जाती है और *मालिक बनने वाली आत्मा* कभी किसी से मजबूर नहीं होती, *अपने स्वमान' में मजबूत होते है।* कई बच्चे अभी भी कभी-कभी किसी-न-किसी कर्मन्द्रिय के वश हो जाते हैं, फिर  कहते हैं - आज आँख ने धोखा दे दिया, आज मुख ने धोखा दे दिया, दृष्टि ने धोखा दे दिया।

 

✧  परवश होना अर्थात धोखा खाना और *धोखे की निशानी है - दु:ख की अनुभूति होना।* और धोखा खाना चाहते नहीं हैं लेकिन न चाहते हुए भी कर लेते हैं, इसको ही कहा जाता है - वशीभूत होना। दुनिया वाले कहते हैं - चक्कर में आ गये. चाहते भी नहीं थे लेकिन पता नहीं कैसे चक्कर में आ गये।

 

✧  आप स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा किसी धोखे के चक्कर में नहीं आ सकती क्योंकि *स्वदर्शन चक्र अनेक चक्कर से छुडाने वाला है।* न सिर्फ अपने को, लेकिन औरों को भी छुडाने के निमित बनते हैं। अनेक प्रकार के दु:ख के चक्करों से बचने के लिए सोचते हैं - इस सृष्टि-चक्र से निकल जायें। लेकिन *सृष्टि चक्र के अंदर पार्ट बजाते हुए अनेक दु:ख के चक्करों से मुक्त हो जीवनमुक्त स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं* - यह कोई नहीं जानता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *कर्मयोगी अर्थात् कर्म के समय भी योग का बैलेन्स।* लेकिन आप खुद ही कह रहे हो कि बैलेन्स कम हो जाता है। इसका कारण क्या? अच्छी तरह से जानते भी हो, नई बात नहीं है। बहुत पुरानी बात है। बापदादा ने देखा कि सेवा वा कर्म और स्व-पुरुषार्थ अर्थात् योगयुक्त। *तो दोनों का बैलेन्स रखने के लिए विशेष एक ही शब्द याद रखो-वह कौन सा? बाप 'करावनहार' है और मैं आत्मा, (मैं फलानी नहीं) आत्मा 'करनहार' हूँ। तो करन-'करावनहार', यह एक शब्द आपका बैलेन्स बहुत सहज बनायेगा।* स्व-पुरुषार्थ का बैलेन्स या गति कभी भी कम होती है, उसका कारण क्या? *'करनहार' के बजाए मैं ही कराने वाली या वाला हूँ, 'करनहार' के बजाए अपने को 'करावनहार' समझ लेते हो।* मैं कर रहा हूँ जो भी जिस प्रकार की भी माया आती है, उसका गेट कौन सा है? माया का सबसे अच्छा सहज गेट जानते तो हो ही - 'मैं'। तो यह गेट अभी पूरा बन्द नहीं किया है। ऐसा बन्द करते हो जो माया सहज ही खोल लेती है और आ जाती है। *अगर 'करनहार' हूँ तो कराने वाला अवश्य याद आयेगा।* कर रही हूँ कर रहा हूँ लेकिन कराने वाला बाप है। बिना 'करावनहार' के 'करनहार' बन नहीं सकते हैं। *डबल रूप से 'करावनहार' की स्मृति चाहिए। एक तो बाप 'करावनहार' है और दूसरा मैं आत्मा भी इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ। इससे क्या होगा कि कर्म करते भी कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं आयेंगे। इसको कहते हैं-कर्मातीत अवस्था।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने को अशरीरी आत्मा समझना"*

 

_ ➳  *इस धरा पर भगवान ने उतरकर अपनी मुलाकातो का खुबसूरत महल मधुबन सजाया... उसी पावन महल की कुटिया में बेठी में आत्मा बाबा की यादो में खोयी हुई... अपने महान भाग्य को मन की आँखों से निहार रही हूँ...* जिसने ईश्वर को मनमीत बनाकर जीवन को सुखो की सेज बना डाला... इन्ही यादो की तन्द्रा मीठे बच्चे की आवाज से टूट गयी... और पलके उठाकर जो निहारा तो... मीठे बाबा सामने हैऔर बड़े प्यार से मेरी ओर देख रहे है...

 

  *प्यारे बाबा मुझे ज्ञान रत्नों की बहारो से भरते हुए बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मात्र यह शरीर नही निराली प्यारी आत्मा हो... अपने खुबसूरत मणि रूप के नशे से भर जाओ... *ईश्वरीय यादो में, देह के आकर्षण से मुक्त होकर... अशरीरी अवस्था को मजबूत बनाओ..*. बार बार इसका अभ्यास करो तो सहज हो जायेगा..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान वचनो को सुनकर आनन्द से भर गयी और बोली :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... श्रीमत के साये से कितने जनमो दूर रही... और देह न होकर भी देह के भान से सदा घिरी रही... *अब जो सत्य का सूरज जीवन को प्रकाशित कर रहा है.*.. मै आत्मा हर पल इस सत्य रौशनी में चमक रही हूँ..."

 

   *मीठे बाबा मेरे भाग्य की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हुए बोले :-* " सिकीलधे प्यारे बच्चे... संगम के इस खुबसूरत वरदानी समय को हर पल अपनी आत्मिक उन्नति में लगाओ... जो हो बस उसमे ही रम् जाओ... *झूठे आवरण को त्यागकर, अपने दमकते स्वरूप को प्रतिपल यादो में उभारो.*.. अब घर चलने के समय खुद को कहीं भी न उलझाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा को टीचर रूप में देख देख मन्त्रमुग्ध हूँ और कहती हूँ :-* "मेरे मीठे लाडले बाबा... देह के आवरण को सत्य समझ, मै आत्मा कितनी बेसमझ हो गयी थी... *आपने मेरे वजूद को पुनः याद दिलाकर मुझे अनोखी ख़ुशी से सजा दिया है.*.. अब झूठ से मै आत्मा सदा की मुक्त हूँ और सत्य राहो का राही बनकर मुस्करा रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा श्रीमत पर मेरे अटूट निश्चय को देख कर मुस्करा उठे और समझाते हुए कहने लगे :-* "मीठे प्यारे बच्चे... भाग्य ने जो ईश्वर पिता के हाथो में थमाया है... और खुबसूरत भविष्य सजाया है... तो श्रीमत को दिल से अपनाकर अपने खुबसूरत लक्ष्य की ओर बढ़ो... *अपनी अशरीरी स्थिति को इस कदर द्रढ़ करलो कि कोई भी बात हिला न सके.*..

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठी मुस्कान से मीठे बाबा को सहमति देते हुए कहती हूँ :-* "ओ सच्चे सच्चे बाबा मेरे... आपने सत्यता भरा हाथ मुझ आत्मा को थमाकर अनोखा जादु कर दिया है... *आत्मिक सुंदरता से सजाकर मुझे बेशकीमती बना दिया है.*.. इस देह के मटमैले पन को आपकी मीठी यादो में सहज ही धो रही हूँ... ऐसा कह अपने प्यार बाबा को दिल में लिए... मै आत्मा अपने कार्य स्थल में आ गयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- माया की मत छोड़ बाप की मत पर चलना है*

 

_ ➳  अपने शिव पिता की श्रेष्ठ मत और उनकी अनमोल शिक्षाओं को स्मृति में लाकर, मैं एकान्त में बैठ विचार करती हूँ कि भगवान की मत को ना जानने के कारण आज सारी दुनिया के सभी मनुष्य मात्र रावण की मत पर चल कर कैसे अपना खाना बर्बाद कर रहें हैं। *इस बात से भी बेचारे अनजान है कि उनका खाना अगर आबाद हो सकता है तो वो केवल एक भगवान की श्रेष्ठ मत से। और वो भगवान इस समय स्वयं इस सृष्टि पर हमारे सम्मुख आकर, अपनी सर्वश्रेष्ठ मत देकर हम सबका खाना आबाद कर रहें हैं*। धन्य है वो ब्राह्मण आत्मायें जिन्होंने उस भगवान को पहचाना है और उसकी श्रीमत को दिल से स्वीकार किया है। उनकी शिक्षाओं को इस समय जो अपने जीवन मे धारण कर रहें हैं केवल वही अपना खाना आबाद कर रहें हैं बाकी तो सब रावण की मत पर चल अपना खाना बर्बाद कर रहें हैं।

 

_ ➳  यह विचार करते - करते आखों के सामने आज के संसार की कटु तस्वीर उभर आती है और मैं सोचती हूँ कि जो संसार कभी हीरे तुल्य था। देवताओ की नगरी था। सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर था वही संसार आज कैसे कौड़ी तुल्य बन गया है। *घर - घर मे दुख, पीड़ा और अशांति व्याप्त है। संसार की ऐसी दुर्दशा करने वाली माया रावण ने कैसे सभी को भ्रमित कर दिया है कि चाह कर भी मनुष्य बेचारे उसके चंगुल से स्वयं को मुक्त नही कर पा रहे*। रावण की मत पर चल अपने ही हाथों अपना खाना बर्बाद कर दुखी हो रहें हैं।

 

_ ➳  संसार की इस तस्वीर को देखते हुए, रावण की मत पर कभी ना चलने की, और अपने प्यारे पिता की मत पर चल अपना और दूसरों का खाना आबाद करने की मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और अपनी श्रेष्ठ मत देकर हमारे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे प्रभु की याद में मन बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ। *अपने मन को मैं श्रेष्ठ संकल्प देती हूँ कि कितनी महान पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो भगवान के साथ डायरेक्ट मेरा मिलन हो रहा है। वो निराकार ज्योति बिंदु मेरा पिता स्वयं मेरा आह्वान कर रहा है*। "वाह मैं आत्मा वाह" "वाह मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य वाह"। वाह - वाह के गीत गाती हुई अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लग्न में मैं मगन हो जाती हूँ और यह लग्न मुझे सेकेण्ड में उनके समान मेरे निराकारी स्वरूप में स्थित कर, देह के भान से मुक्त कर देती है।

 

_ ➳  अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकार बिंदु बाप से मिलने के लिए अब मैं चल पड़ती हूँ मन बुद्धि की एक अति आनन्दमयी यात्रा पर। *एक ऐसी यात्रा जो मन को तृप्त करने वाली है, जन्म - जन्म की प्यास बुझाने वाली है। मन बुद्धि की इस खूबसूरत यात्रा पर चलने के लिए देह का आधार छोड़, भृकुटि की कुटिया से मैं बाहर आ जाती हूँ और उड़ चलती हूँ देह की दुनिया के पार जो प्रकृति के पांचों तत्वों से परें हैं*। जहाँ देह और देह की दुनिया का संकल्प भी नही। आत्माओं की ऐसी निराकारी दुनिया, अपने स्वीट साइलेन्स होम में मैं पहुँचती हूँ, जहाँ अनन्त प्रकाश ही प्रकाश है और इस प्रकाश की रोशनी मन को गहन सुकून दे रही है। *एक खुमारी सी आत्मा पर जैसे चढ़ती जा रही है और आत्मा ऐसे सुख का अनुभव कर रही है जिसका वर्णन ही नही किया जा सकता*।

 

_ ➳  अपने इस परमधाम घर में गहन सुकून का अनुभव करते हुए अब मैं अपने प्यारे पिता से मिलन मनाने उनके सम्मुख पहुँचती हूँ। देख रही हूँ अपने निराकार पिता को जो अपनी शक्तियों की अनन्त किरणो रूपी बाहों को फैलाये खड़े है। *बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये अपने पिता की किरणो रूपी बाहो में जा कर मैं समा जाती हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ने अपनी किरणों रूपी गोद में मुझे बिठा लिया है और अपना सारा प्यार अपनी किरणो के रूप में मेरे ऊपर बरसा रहें हैं*।

 

_ ➳  बाबा की सर्वशक्तियो की किरणो रूपी गोद मे बैठ, उनके असीम स्नेह की गहन अनुभूति करके मैं तृप्त हो जाती हूँ और लौट आती हूँ वापिस देह की साकारी दुनिया में फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए। मन मे यह दृढ़ संकल्प लेकर कि हर कदम अब मुझे अपने पिता की श्रेष्ठ मत पर चलकर अपना सर्वश्रेष्ठ पार्ट बजाना है और अपना खाना आबाद करना है। *इस प्रतिज्ञा को हर समय बुद्धि में रख, बार - बार अब मैं अटेंशन देकर चेक करती हूँ कि मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म श्रीमत प्रमाण है या नही। ऐसे बार - बार अपनी सूक्ष्म चेकिंग करते हुए अपने इस संकल्प को दृढ़ता के साथ अब मैं पूरा कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मै सम्बन्ध में सन्तुष्टता रूपी स्वच्छता को धारण कर सदा हल्के और खुश रहने वाली सच्ची पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं किसी भी बात का गम नहीं करने वाला बेगमपुर का बेफिक्र बादशाह हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *अब मनोबल को बढ़ाओ। बेहद की सेवा जो अभी आप वाणी या संबंध, सहयोग से करते होवह मनोबल से करो।* तो मनोबल की बेहद की सेवा अगर आपने बेहद की वृत्ति सेमनोबल द्वारा विश्व के गोले के ऊपर ऊंचा स्थित हो, *बाप के साथ परमधाम की स्थिति में स्थित हो थोड़ा समय भी यह सेवा की तो आपको उसकी प्रालब्ध कई गुणा ज्यादा मिलेगी।*

 

 _ ➳  2. आजकल के समय और सरकमस्टांश के प्रमाण अन्तिम सेवा यही मन्सा वा मनोबल की सेवा है। इसका अभ्यास अभी से करो। चाहे वाणी द्वारा वा संबंध सम्पर्क द्वारा सेवा करते हो लेकिन अब इस *मन्सा सेवा का अभ्यास अति आवश्यक हैसाथ-साथ अभ्यास करते चलो।*

 

 _ ➳  3. यह मन्सा सेवा वही रंगत दिखायेगी जो स्थापना के आदि में बाप की *मन्सा द्वारा रूहानी आकर्षण ने बच्चों को आकर्षित किया।* और मन्सा सेवा के फल स्वरूप अभी भी देख रहे हो कि वही आत्मायें अब भी फाउण्डेशन हैं। ड्रामा अनुसार यह बाप की मन्सा आकर्षण का सबूत है जो कितने पक्के हैं। तो *अन्त में भी अभी बाप के साथ आपकी भी मन्सा आकर्षणरूहानी आकर्षण से जो आत्मायें आयेंगी वह समय अनुसार समय कममेहनत कम और ब्राह्मण परिवार में वृद्धि करने के निमित्त बनेंगी।* वही पहले वाली रंगत अन्त में भी देखेंगे। जैसे आदि में ब्रह्मा बाप को साधारण न देख कृष्ण के रूप में अनुभव करते थे। साक्षात्कार अलग चीज है लेकिन साक्षात स्वरूप में कृष्ण ही देखतेखाते-पीते चलते थे।

 

 _ ➳  4. *तो स्थापना में एक बाप ने कियाअन्त में आप बच्चे भी आत्माओंके आगे साक्षात देवी-देवता दिखाई देंगे।* वह समझेंगे ही नहीं कि यह कोई साधारण हैं। वही पूज्यपन का प्रभाव अनुभव करेंगे, तब बाप सहित आप सभी के प्रत्यक्षता का पर्दा खुलेगा। अभी अकेले बाप को नहीं करना है। बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होना है। जैसे स्थापना में ब्रह्मा के साथ विशेष ब्राह्मण भी स्थापना के निमित्त बनेंऐसे समाप्ति के समय भी *बाप के साथ-साथ अनन्य बच्चे भी देव रूप में साक्षात अनुभव होंगे।*

 

 _ ➳  5. *अभी सभी अपने अनादि स्वरूप में एक सेकण्ड में स्थित हो सकते होक्योंकि अन्त में एक सेकण्ड की ही सीटी बजने वाली है। तो अभी से अभ्यास करो।* बस टिक जाओ। (ड्रिल कराई) अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "मनोबल द्वारा बेहद की सेवा करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *चेतना को भृकुटि के मध्य में केन्द्रित करते हुए, बाह्य जगत, व्यक्त देह सबसे उपराम मैं अति सूक्ष्म ऊर्जा बिन्दु आत्मा हूँ...* समस्त देह में मुझ आत्मा से प्रकाश की किरणें फैल रही हैं... तत्वों से बनी यह देह धीरे-धीरे तत्वों में विलीन हो रही है... अब बच गयीं केवल मैं आत्मा, एक गहन सन्नाटा बाह्य सज्ञां से उपराम, सम्पूर्ण साक्षी भाव धारण कर चलती हूँ... इस जगत से पार, तत्वों से पार, इस स्थूल संसार से पार अपने निजवतन की ओर... वह निराकारी दुनिया मुझे पुकार रही हैं... *अनुभव कर रही हूँ, मैं आत्मा स्वयं को इस निर्विकारी दुनिया में, चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश... डेड साइंलेस, सामने महाज्योती है* ज्ञान सूर्य बाबा से अनंत किरणें निकल मुझ आत्मा  पर पड़ रही है...

 

 _ ➳  *महाज्योती सर्वशक्तिमान से सर्व शक्तियाँ मुझमें समा रही हैं... एक-एक शक्ति को अपने अन्दर समाते हुए अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा...* जैसे-जैसे एक-एक शक्ति मेरे अन्दर समा रही है, मुझ आत्मा का प्रकाश बढ रहा हैं...  पवित्रता के सागर से पवित्रता की लहरें मुझ आत्मा में समा रही हैं... *जैसे-जैसे एक-एक पवित्र लहर अन्दर समा रही है... अन्दर का व्यर्थ रूपी, विकल्प रूपी किचड़ा समाप्त हो रहा है...* मैं आत्मा समर्थ बनती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का शुद्धिकरण हो रहा है... *मुझ आत्मा में पवित्रता का प्रकाश बढ रहा है... इससे मुझ आत्मा का मनोबल बढ रहा है... सभी आन्तरिक शक्तियाँ जागृत हो रही है...*

 

 ➳ _ ➳  *निर्संकल्प स्थिति का अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा.... सभी व्यर्थ संकल्प विकल्पों से मुक्त एक शक्तिशाली स्थिति, भरपूरता का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा भरपूर होकर, सर्व शक्तियों से सम्पन्न होकर अपनी दिव्य आभा बिखरते हुये अपना चमकीला ड्रेस धारण कर विश्व गलोब के ऊपर जहाँ से मैं इस संसार की हर आत्मा को देख रही हूँ... जिनके खुशियों के सूरज को ग्रहण लग गया है... वे दुख अशांति का जीवन जीने को मजबूर है... सुख-शांति की तलाश में भटक रही है... सच्चे प्यार, सच्ची खुशी को उनकी निगाहें तलाश कर रही हैं... *एक पल की शांति के लिए भी सब तरस रहे हैं...*

 

 _ ➳  *मैं विश्व कल्याणकारी फरिश्ताशांति का फरिश्ता इस पूरे विश्व गलोब पर शांति की किरणों की वर्षा कर रहा हूँ...* हर आत्मा शांति की अनुभूति कर रही है... बाबा से मिला प्यार मैं फरिश्ता हर आत्मा भाई को दे रहा हूँ... *सभी आत्माएँ सच्चे ईशवरीय प्यार की अनुभूति कर रही है... उनके दिल में प्रभु प्यार उत्पन्न हो रहा है...* मैं पवित्रता का फरिश्ता इस पूरे विश्व गलोब के ऊपर पवित्रता के फूल वर्षा रहा हूँ... ये पवित्रता के फूल हर आत्मा को मिल रहे है... *सुख शांति से उनका जीवन महक रहा है...* सभी सच्चे  प्यार, सच्ची सुख-शांति की  अनुभूति कर रहे हैं... मैं फरिश्ता सर्व आत्माओं को बाबा का सन्देश दे रहा हूँ...  *सर्व आत्माओं को बाबा का सन्देश मिल रहा है... बाबा की सेवा में तीव्र गति से वृद्धि हो रही हैं...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही स्वयं को कर्मक्षेत्र पर ब्राह्मण चोला धारण किए हुए... *मुझ आत्मा की श्रेष्ठ वृत्ति, शक्तिशाली मन्सा अनेक आत्माओं का कल्याण कर रही है...* सहज ही आत्माओं को सुख, शांति की अनुभूति करा रही है... वायुमंडल को पावरफुल बना रही है... *मैं आत्मा कर्म करते सेकंड में कभी आकारी, कभी निराकारी, और कभी साकारी स्वरूप धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा लाइट हाऊस माइट हाऊस बन गयीं हूँ... जो भी आत्मा मेरे सामने आ रही हैं वे अपने असली स्वरूप का अनुभव कर रही है... खुश और हल्का अनुभव कर रही है* और अपने असली घर का साक्षात्कार कर रही है... वे लाइट और माइट का अनुभव कर रही है... *ईश्वरीय आकर्षण उन्हें आकर्षित कर रहा है...* और सच्चे सुख और शांति की अनुभूति वे आत्माएं कर रही है... और *वे भी अपने सच्चे पिता का परिचय पा रही है...* इस प्रकार बाबा की ये सेवा तीव्र गति से बढ़ रही है... और एक साथ अनेक आत्माओं का कल्याण हो रहा है... *शुक्रिया मीठू बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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