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❍ 15 / 12 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान और योगी बन बाप का प्रिय बनकर रहे ?*
➢➢ *मुरली चलाने का होंसला रखा ?*
➢➢ *मनसा और वाचा की शक्तिं को यथार्थ और समर्थ रूप से कार्य में लगाया ?*
➢➢ *मेरेपैन के अधिकार का भी त्याग कर सम्पूरण नष्टोमोहा बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *समय प्रमाण लव और ला का बैलेन्स रखो लेकिन ला में भी लव महसूस हो। इसके लिए आत्मिक प्यार की मूर्त बनो* तब हर समस्या को हल करने में सहयोगी बन सकोगे। *शिक्षा के साथ सहयोग देना ही आत्मिक प्यार की मूर्त बनना है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा के समीप रत्न हूँ"*
〰✧ सदा स्वयं बाप के समीप रत्न समझते हो? समीप रत्न की निशानी क्या होगी? समीप अर्थात् समान। समीप अर्थात् संग में रहने वाले। संग में रहने से क्या होता है? वह रंग लग जाता है ना। *जो सदा बाप के समीप अर्थात् संग में रहने वाले हैं उनको बाप का रंग लगेगा तो बाप समान बन जायेंगे।* समीप अर्थात् समान ऐसे अनुभव करते हो? हर गुण को सामने रखते हुए चेक करो कि क्या क्या बाप समान है? हर शक्ति को सामने रख चेक करो कि किस शक्ति में समान बने हैं। आपका टाइटल ही है 'मास्टर सर्वगुण सम्पन्न, मास्टर सर्व शक्तिवान'।
〰✧ तो सदा यह टाइटल याद रहता है? सर्वशक्तियाँ आ गई अर्थात् विजयी हो गये फिर कभी भी हार हो नहीं सकती। जो बाप के गले का हार बन गये उनकी कभी भी हार नहीं हो सकती। *तो सदा यह स्मृति में रखो कि मैं बाप के गले का हार हूँ, इससे माया से हार खाना समाप्त हो जायेगा। हार खिलाने वाले होंगे, खाने वाले नहीं।* ऐसा नशा रहता है?
〰✧ हुनमान को महावीर कहते हैं ना। महावीर ने क्या किया? लंका को जला दिया। खुद नहीं जला, पूंछ द्वारा लंका जलाई। तो लंका को जलाने वाले महावीर हो ना। माया अधिकार समझकर आये लेकिन आप उसके अधिकार को खत्म कर अधीन बना दो। हनूमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी था। अपने को सेवक समझता था। तो यहाँ जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं। जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते। हनुमान के दिल में सदा राम बसता था ना। एक राम दूसरा न कोई। *तो बाप के सिवाए और कोई भी दिल में न हो। अपने देह की स्मृति भी दिल में नहीं। सुनाया ना कि देह भी पर है, जब देह ही पर होगई तो दूसरा दिल में कैसे आ सकता।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *आसन ही सिंहासन प्राप्त कराता है।* अब आसन है फिर सिंहासन है। हलचल वाला आसन पर एकाग्र होकर बैठ नहीं सकता। इसलिए कहा *व्यर्थ समाप्त, अशुभ समाप्त* - तो अचल हो जायेंगे और अचल स्थिति के आसन पर सहज और सदा स्थित हो सकेंगे। देखो, आप सबका यादगार यहाँ अचलघर है। अचलघर देखा है ना? यह किसका यादगार है?
〰✧ *आप सबके स्थिति का यादगार यह अचलघर है।* अनुभव करो, ट्रायल करते जाओ, यूज करते जाओ। ऐसे नहीं समझ लेना, हाँ, सर्व शक्तियाँ तो हैं ही। समय पर यूज हो। यूज नहीं करेंगे तो समय पर धोखा मिल सकता है। इसलिए छोटी-मोटी परिस्थिति में यूज करके देखो। परिस्थितियाँ तो आनी ही हैं, आती भी हैं। पहले भी बापदादा ने कहा है कि वर्तमान समय अनुभव करते हुए चलो।
〰✧ हर शक्ति का अनुभव करो, हर गुण का अनुभव करो। *ऐसे अनुभवी मूर्त बनो जो कोई भी आवे तो आपके अनुभव की मदद से उस आत्मा को प्राप्ति हो जाए।* दिन-प्रतिदिन आत्मायें शक्तिहीन हो रही हैं, होती रहेगी। ऐसी आत्माओं को आप अपनी शक्तियों की अनुभूतियों से सहारा बन अनुभव करायेंगे। अच्छा। मालिक है ना तो मालेकम सलाम, बाप कहते हैं - मालिकों को सलाम। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *सभी ने बाप से पूरा-पूरा अधिकार ले लिया है? पूरा अधिकार लेने के लिए पुराना सब कुछ देना पड़े। तो दोनों सौदे किये हैं ना?* या तेरा सो मेरा लेकिन मेरे को हाथ नहीं लगाना- ऐसे तो नहीं है ना? *जब एक शब्द बदल जाता है अर्थात् मेरा तेरे में बदल जाता तो डबल लाइट हो जाते हैं।* ज़रा भी मेरापन आया तो ऊपर से नीचे आ जाते हैं। तेरा तेरे अर्पण तो सदा डबल लाइट और सदा ऊपर उड़ते रहेंगे अर्थात् ऊँची स्थिति में रहेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी रॉयल चलन से सेवा करना"*
➳ _ ➳ बरसात के भीगे भीगे खुबसूरत मौसम में... मै आत्मा ठंडी फुहारों का आनन्द लेती हुई... अपने प्रियतम बाबा को पुकारती हूँ... मीठे बाबा एक पल में हाजिर हो जाते है...और मै आत्मा... *अपने प्यारे बाबा के असीम प्यार की बदौलत... मीठे हो गए, अपने मन को निहारती हूँ... यह मन बिना बाबा के कितना कटु और शुष्क था... आज सच्चे प्रेम में पोर पोर से डूबा हुआ है...* मीठे बाबा ने मुझे प्रेम की मिसाल बना दिया है... आज सारा विश्व मेरी प्रेम तंरगों का दीवाना है... और मुझे यूँ खोया देख बाबा मुस्करा रहे है...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी सुखो से आबाद बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को टीचर, और सतगुरु को पाकर सब कुछ पा लिया है... मीठे बाबा के सारे खजाने सारी खाने आपकी है.. इतनी दौलत के मालिक बनकर... *अपनी श्रीमत के रंग में रंगी, मीठी दैवी चलन का, दीवाना विश्व को बनाओ... सबको आप समान सुखो से भर आओ..."*
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा सागर से मीठेपन को स्वयं में भरकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... *आपने जीवन में आकर, अपने प्यार की मिठास से, मुझ आत्मा को कितना, मीठा, प्यारा बना दिया है...* मै आत्मा इस सच्चे प्रेम की तरंगे, सारे विश्व पर बरसा रही हूँ... सबको सुखो का अधिकारी बनाती जा रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को विश्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत करते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... मीठे बाबा को पाकर, जो सुखो की दौलत पायी है... खुशियो की जागीरे दिल में समायी है... *उनकी झलक अपनी रूहानियत से सारे जहान में फैलाओ... अपनी देवताई चलन से सहज ही ईश्वर पिता का परिचय दे आओ... बिछड़े हुए बच्चों को प्यारे पिता से मिलवाओ..."*
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की सारी रत्नों भरी खाने, अपने नाम, करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आप जीवन में न थे बाबा... तो मै आत्मा कितनी कँटीली और कड़वी थी... सच्ची मिठास से कितनी अनजान और अनभिज्ञ थी... *आपने अपने मीठे प्यार से सींच सींचकर... मुझे रूहानी गुलाब बना दिया है... मै आत्मा दिव्यता की खुशबु हर दिल पर महका रही हूँ..."*
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सम्पत्ति का मालिक बनाते हुए कहते है :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जो इतना मीठा प्यारा और दिव्य स्वरूप खिलाया है... *इस दिव्यता का मुरीद सबको बनाकर, सच्चे पिता की छवि, अपनी मीठी चलन से दिखाओ... सबको मीठे बाबा के वर्से का अधिकारी, आप समान बना आओ..."*
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्रेम से निहारते हुए कहती हूँ :-* "मेरे सच्चे साथी बाबा... *आपने अपनी प्यार भरी बाँहों में समाकर, मुझे रूहानी बना दिया है... अपनी असली सुंदरता को पाकर, मै आत्मा... गुणो की खान बनकर मुस्करा रही हूँ...* और इस दैवी सुन्दरता की छटा, पूरे विश्व में बिखेर कर, आपके करीब ला रही हूँ... मीठे बाबा पर यूँ अपना प्यार उंडेल कर मै आत्मा... धरा की ओर रुख करती हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का प्रिय बनने के लिये ज्ञानी और योगी बनना है*"
➳ _ ➳ ज्ञान और योग के सुन्दर सजीले पंख लगाकर, भक्तो के भगवान अपने रूहानी बाप से मंगल मिलन मनाने का मन मे संकल्प करते हुए एक बहुत ही खूबसूरत दृश्य मेरी आँखों के सामने उभर आता है और मैं उस खूबसूरत दृश्य में खो जाती हूँ। *मैं देख रही हूँ स्वयं को अपनी ब्रह्मा माँ और शिव बाबा के कम्बाइन्ड स्वरूप में उनकी ममतामयी गोद मे बैठे हुए। एक नन्ही सी परी बन बापदादा की गोद में बैठ उनके असीम स्नेह को स्वयं पर बरसते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ*। अपने रुई समान कोमल हाथों से बापदादा मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए, अथाह प्यार से भरी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए जैसे अपना सारा प्यार और दुलार मुझ पर उड़ेल रहें हैं। *मेरे साथ मीठी - मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। अपने हाथों से मुझे टोली खिला रहें हैं*।
➳ _ ➳ इन अति सुंदर दृश्य को देख मन ही मन मुझे अपने भाग्य पर गर्व महसूस होता है और यह शुद्ध अहंकार मेरे अंदर जागृत होने लगता है कि "मैं भगवान की पालना में पलने वाली इस संसार की सबसे खुशनसीब आत्मा हूँ"। *यह स्मृति मेरे अंदर एक अद्भुत रूहानी नशे का संचार कर मुझे सहज ही अशरीरी स्थिति में स्थित कर देती है। इस स्थिति में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मुझ आत्मा को ज्ञान और योग के खूबसूरत पँख लग गए है जो मुझे उड़ा कर इस दुख अशांति की दुनिया से बहुत दूर, ऊपर शांति की दुनिया में ले जा रहें है*। मैं आत्मा देह से बाहर निकल कर अब इन पँखो को फैला कर, ऊंची उड़ान भरते हुए ऊपर आकाश की दिशा में चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञान और योग के पँख लगाकर ऊपर उड़ते हुए, असीम आनन्द का अनुभव करते - करते मैं जैसे ही नीचे पृथ्वी लोक के दृश्यों को देखती हूँ, *मन्दिरो में खड़े अराधना करते भक्तों की लंबी कतारों को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि ये भगत बेचारे क्षण भर के विनाशी सुखों को पाना ही जीवन का लक्ष्य समझते हैं*। केवल इस विनाशी जीवन की अल्पकाल की विनाशी इच्छाओं की पूर्ति ही ये करना चाहते हैं। लेकिन इस बात से बेचारे कितने अंजान है कि इस समय भगवान स्वयं आकर ज्ञान और योग सिखाकर केवल इस एक जन्म की नही बल्कि 21 जन्मों की अविनाशी प्राप्ति करवा रहे है।
➳ _ ➳ कितनी खुशनसीब हैं वो आत्मायें जो इस समय भगवान को पहचान कर, उससे ज्ञान और योग सीख भगत से ज्ञानी तू आत्मा बन रही हैं। यह विचार करतेे, इस दृश्य से ध्यान हटा कर, ज्ञान और योग सिखलाने वाले अपने योगेश्वर बाप से मिलने के लिए अब मैं अति तीव्र गति से उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और आकाश से भी ऊपर उड़ते उड़ते अपने योगेश्वर बाप के पास उनकी निराकारी दुनिया में पहुँच जाती हूँ। *हर बन्धन से मुक्त इस मुक्तिधाम घर में आ कर मैं आत्मा जीवन मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ। लाल सुनहरी प्रकाश से प्रकाशित चमकती हुई मणियों की इस निराकारी दुनिया मे चारों ओर फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा को गहन शांति की गहन अनुभूति करवा रहें हैं*।
➳ _ ➳ गहन शांति की गहन अनुभूति में खोई मैं धीरे धीरे शांति के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँच कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *इस कम्बाइंड स्वरूप में मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे सर्व शक्तियों के फवारे के नीचे मैं आत्मा खड़ी हूँ और बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा है*। ऐसा लग रहा है जैसे प्यार के सागर बाबा अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। उनके प्यार की शीतल किरणे मुझे भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बना रही हैं। *उनकी लाइट माइट पाकर मैं स्वयं को एकदम हल्का डबल लाइट अनुभव कर रही हूँ और यह डबल लाइट स्थिति मुझे गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करवा रही है*।
➳ _ ➳ गहन सुख का अनुभव करके, शक्तिसम्पन्न बनकर मैं लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ। *भगत बन सुख, शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करने के बजाए ज्ञान और योग को अपने जीवन मे धारण कर गहन सुख और शांति का अनुभव बिल्कुल सहज रीति करते हुए ज्ञानी तू योगी आत्मा बन मैं स्वयं के साथ साथ अनेकों आत्माओं को ज्ञान योग की धारणा कराये उन्हें भी आप समान बना रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मनसा और वाचा की शक्त्ति को यथार्थ और समर्थ रूप से कार्य में लगाने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं मेरेपन के अधिकार का भी त्याग कर देने वाली सम्पूर्ण नष्टोमोहा आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ होलीहंसों की विशेषता को सभी अच्छी तरह से जानते हो। *'सदा होली हैपी हंस अर्थात् स्वच्छ और साफ दिल'*। ऐसे होलीहंसों की स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण *हर शुभ आशायें सहज पूर्ण होती हैं। सदा तृप्त आत्मा रहते हैं। श्रेष्ठ संकल्प किया और पूर्ण हुआ।* मेहनत नहीं करनी पड़ती। क्यों? बापदादा को सबसे प्रिय, सबसे समीप साफ दिल प्यारे हैं। *साफ दिल सदा बापदादा के दिलतख्त नशीन, सर्व श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होने के कारण वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सरल और स्पष्ट एक समान दिखाई देते हैं।* सरलता की निशानी है - दिल, दिमाग, बोल एक समान। दिल में एक, बोल में और (दूसरा) - यह सरलता की निशानी नहीं है। *सरल स्वभाव वाले सदा निर्माणचित, निरहंकारी, निर-स्वार्थी होते हैं। होलीहंस की विशेषता - सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि।*
✺ *ड्रिल :- "होली हंस की विशेषता- सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि को स्वयं में अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं होली हंस आत्मा हूँ...* ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान गुण और शक्तियों की किरणें निरंतर मुझ आत्मा पर आ रही हैं... और *मेरा जीवन दिव्यता से भरपूर हो रहा है... मेरा मन निर्मल हो रहा है, बुद्धि स्वच्छ बन रही है और संस्कार दिव्य हो रहे हैं...*
➳ _ ➳ *मैं होली हंस आत्मा अवगुण रूपी कंकड़-पत्थर को अलग कर गुण रुपी मोती चुगने वाली हूँ...* मैं होली हंस आत्मा *सदा दूसरों के गुणों को देखती हूँ... और गुणों का ही वर्णन करती हूँ...* मुझ होली हंस का दिल स्वच्छ और साफ है... मुझ आत्मा की सभी आशाएं सहज ही पूर्ण हो जाती है... मैं होली हंस आत्मा सदा बापदादा की सबसे प्रिय लाडली बच्ची हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा होली हंस हूँ... *इसलिए मैं किसी के अवगुणों को नहीं देखती हूँ... अब मेरी अवगुणी दृष्टि, गुणग्राही दृष्टि में परिवर्तन हो रही है...* हर एक के गुणों व विशेषताओं को ही... देखने का लक्ष्य रखने वाली मैं आत्मा होली हंस हूँ...
➳ _ ➳ *मैं होली हंस आत्मा किसी की निंदा, ग्लानि और परचिन्तन कभी नहीं करती...* सदा फॉलो फादर करती हूँ... जैसे ब्रह्मा बाबा जितना नॉलेजफुल थे उतना ही उनका सरल स्वभाव भी था... *मैं होली हंस आत्मा भी सफलतामूर्त बनने के लिए... सरलता और सहनशीलता के गुणों को धारण करती हूँ...*
➳ _ ➳ स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण मैं होली हंस आत्मा *सदा तृप्त रहती हूँ...* जो भी श्रेष्ठ संकल्प करती हूँ... *स्वतः ही सब पूर्ण हो जाते हैं...* सदा मैं आत्मा *बापदादा के दिलतख्तनशीन* रहती हूँ... *मैं निरहंकारी, निःस्वार्थी व निर्माण चित्त आत्मा हूँ... मेरा दिल, दिमाग, बोल सब एक समान होते हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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