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 22 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अन्धो की लाठी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *याद का चार्ट रखा ?*

 

➢➢ *स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित बने ?*

 

➢➢ *समय, संकल्प और बोल की एनर्जी को वेस्ट से बेस्ट में चेंज किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  आप रूहानी रॉयल आत्मायें हो इसलिए मुख से कभी व्यर्थ वा साधारण बोल न निकलें। *हर बोल युक्तियुक्त हो, व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव वाला हो तब रॉयल फैमली में आयेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं निश्चिंत सेवाधारी हूँ"*

 

  *'सदा निश्चिन्त बन सेवा करने का बल आगे बढ़ाता रहता है'। इसने किया या हमने किया - इस संकल्प से निश्चिन्त रहने से निश्चिंत सेवा होती है और उसका बल सदा आगे बढ़ाता है।*

 

  *तो निश्चिंत सेवाधारी हो ना? गिनती करने वाली सेवा नहीं। इसको कहते हैं -निश्चिंत सेवा।*

 

  *तो जो निश्चिंत हो सेवा करते हैं, उनको निश्चित ही आगे बढ़ने में सहज अनुभूति होती है। यही विशेषता वरदान रूप में आगे बढ़ाती रहेगी।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *एवररेडी का अर्थ ही है ऑर्डर हुआ और चल पडा।* इतना मेरे-पन से मुक्त हो? सबसे बडा मेरा-पन सुनाया ना कि देहभान के साथ देह-अभिमान के सोने-चांदी के धागे बहुत है।

 

✧  इसलिए सूक्ष्म बुद्धि से, महीन बुद्धि से चेक करो कि कोई भी अल्पकाल का नशा ये धागा बन करके रोकने के निमित तो नहीं बनेगा? मोटी बुद्धि से नहीं सोचना कि मेरा कुछ नहीं है, कुछ नहीं है। *फालो करने में सदा ब्रह्मा बाप को फालो करो।*

 

✧  सर्वप्रति गुणग्राहक बनना अलग चीज है लेकिन फालो फादर कई है जो भाई-बहनों को फालो करने लगते हैं लेकिन वो किसको फालो करते हैं? *वो फालो ब्रह्माबाप को करते हैं और आप फिर उनको करते!* डायरेक्ट क्यों नहीं करते?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जो वाचा के महादानी हैं उनको क्या मिलता है? वह हैं मास्टर नालेज़फुल। उनके एक-एक शब्द की बहुत वैल्यु होती है।* एक रत्न की वैल्यु अनेक रत्नों से अधिक होती है। तो जो ज्ञान-रत्नों का दान करते हैं *उनका एक-एक रत्न इतना वैल्युएबुल हो जाता है जो उनके एक-एक वचन सुनने के लिए अनेक आत्मायें प्यासी होती हैं।* अनेक प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाला एक वचन बन जाता है। *मास्टर नालेज़फुल, वैल्युएबुल और तीसरा फिर सेन्सीबुल बन जाता है। उनके एक-एक शब्द में सेन्स भरा हुआ होता है। सेन्स अर्थात् सार के बिना कोई शब्द नहीं होता।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

*✺   "ड्रिल :- देही अभिमानी बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्मृतिपटल पर व्यक्त हो रहे सभी विचारों को फुल स्टॉप लगाकर एकांतवासी होकर सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठती हूँ... एक के अंत में मगन हो जाती हूँ...* धीरे-धीरे इस देह, देह की दुनिया से डिटैच होकर ऊपर उड़ते हुए, बादलों, पहाड़ों, चाँद, सितारों, आसमान से भी पार होती हुई पहुँच जाती हूँ... मेरे प्यारे बाबा के पास... और बाबा के सम्मुख बैठ बाबा की रूहानी बातों को प्यार से सुनती हूँ...

 

  *इस अंतिम जनम में देह अभिमान को छोड़कर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... 21 जनमो के मीठे सुख आपकी दहलीज पर आने को बेकरार है... इन सुखो को जीने के लिये अपने सत्य स्वरूप के नशे से भर जाओ... *वरदानी संगम पर आत्मा अभिमानी के संस्कार को इस कदर पक्का करो कि अथाह सुख अथाह खुशियां दामन में सदा की सज जाएँ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने सत्य स्वरुप में चमकती हुई अपने स्वधर्म के गुण गाती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा शरीर के भान से निकल कर आत्मा होने की सत्यता से परिपूर्ण होती जा रही हूँ... *सातो गुणो से सजधज कर तेजस्वी होती जा रही हूँ... और नई दुनिया में अनन्त सुखो की स्वामिन् होती जा रही हूँ...”*

 

  *दिव्य गुणों की खुशबू से मेरे जीवन को दिव्य बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के भान ने उजले प्रकाश को धुंधला कर दुखो के कंटीले तारो में लहुलहानं सा किया है... अब आत्मिक ओज से स्वयं को भर लो... *अपने चमकते स्वरूप और गुणो की उसी खूबसूरती से फिर से दमक उठो... तो सुखो के अम्बार कदमो में सदा के बिछ जायेंगे...”*

 

_ ➳  *आत्मदर्शन कर सर्वगुणों से सुसज्जित हो दिव्यता से ओतप्रोत होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी खोयी चमक वही खूबसूरत रंगत पुनः पाती जा रही हूँ... आत्मा अभिमानी होकर खुशियो में मुस्करा रही हूँ... *मीठे बाबा के प्यार में सतयुगी सुख अपने नाम करवा रही हूँ...”*

 

  *संगम पर मेरे संग-संग चलते हुए मेरे क़दमों में फूल बिछाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *संगम के कीमती समय में सुखो की जागीर अपनी बाँहों में भरकर 21 जनमो तक अथाह खुशियों में मुस्कराओ...* ईश्वर पिता का सब कुछ अपने नाम कर लो... और खूबसूरत दुनिया के मालिक बन विश्व धरा पर इठलाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा आत्मिक स्वरुप की झलक और फलक से संगम के अमूल्य समय, श्वांस, संकल्पों को सफल करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कभी यूँ ईश्वर पिता के दिल पर इतराउंगी ... सब कुछ मेरी मुट्ठी में होगा... *भाग्य इतना खूबसूरत और ईश्वरीय प्यार के जादू में खिलेगा ऐसा मैंने भला कब सोचा था... ये प्यारे से ईश्वरीय पल मुझे 21 जनमो का सुख दिलवा रहे है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रात को जाग कर खास याद करना है*"

 

_ ➳  जिस विश्वास, प्यार और त्याग की तलाश देह और देह के सम्बन्धो में मैं कर रही थी वो विश्वास, प्यार और त्याग मुझे कभी कोई देहधारी दे ही नही सकता इस बात का एहसास मुझे मेरे साथी दोस्त शिव भगवान ने आकर करवा दिया। *और अब जबकि इतनी तलाश के बाद, इतना भटकने के बाद मेरी आँखों के सामने मेरा वो भगवान खुद चल कर मेरे सामने आ गया है तो मेरी पलकें एक सेकंड के लिए भी कैसे झपक सकती है! मुझे नींद कैसे आ सकती है*! जिन नयनों में अपने सांवरे सलौने श्याम की सूरत बसी हो वो नयन उसे देखे बिना कैसे रह सकते हैं!

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं अपने नयनों में अपने निराकार भगवान बिंदु बाप को बसाये उनके पास जाने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होती हूँ। *अपने मन बुध्दि को हर संकल्प, विकल्प से मुक्त कर अपना सम्पूर्ण ध्यान मैं जैसे ही अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ। देह के भान से मैं मुक्त होकर पॉइंट ऑफ लाइट बन बड़ी आसानी से अपने शरीर रूपी रथ को छोड़ उससे बाहर आ जाती हूँ*। देह से बाहर निकलते ही देह के हर बन्धन से मुक्त एक अति सुखद, एक दम हल्केपन का अनुभव मुझे आनन्द विभोर कर देता है। ऐसा आनन्द, ऐसा हल्कापन तो मैंने आज तक महसूस नही किया था। *यह हल्कापन मन को असीम सुकून दे रहा है और मुझे इस नश्वर देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर ऊपर की ओर ले जा रहा है*।

 

_ ➳  स्वयं को मैं धरती के हर आकर्षण से मुक्त अनुभव कर रही हूँ और एक बैलून की भांति एकदम हल्की होकर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ। *प्रकृति के खूबसूरत नजारो का मैं आनन्द लेती इस अति मनभावन सुखदाई आंतरिक यात्रा पर निरन्तर बढ़ते हुए मैं आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और आगे की यात्रा पर निरन्तर बढ़ते हुए अब मैं सफेद प्रकाश की दुनिया को पार कर एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करती हूँ जहां चारों और एक गहन शांतमयी लाल सुनहरी प्रकाश ही प्रकाश फैला हुआ है*। शांति की यह दुनिया वही ब्रह्म तत्व है जिसमे समा जाने का लक्ष्य रख साधू महात्माये कठोर तपस्या करते हैं लेकिन इस स्थान तक कभी नही पहुँच पाते।

 

_ ➳  ऐसे निर्वाणधाम अपने ब्रह्म तत्व घर में अब मैं गहन शांति की अनुभूति करते हुए इस अंतहीन ब्रह्मांड में बिल्कुल उन्मुक्त अवस्था में विचरण कर भरपूर आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। *जिस भगवान का पता सारी दुनिया का कोई भी मनुष्य मात्र नही जानता अपने उस निराकारी भगवान बाप के साथ उसकी निराकारी दुनिया में मैं स्वयं को उसके सम्मुख देख रही हूँ*। उसकी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे मुझे ऐसा आभास करवा रही हैं जैसे अपनी किरणो रूपी बाहों को फैलाये वो मुझे अपनी बाहों में भर कर अपने असीम प्यार से मुझे तृप्त करने के लिए मुझे अपने पास बुला रहा है।

 

_ ➳  अपने पिता परमात्मा से पूरे एक कल्प की बिछड़ी मैं प्यासी आत्मा स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने पिता के पास पहुँचती हूँ और जा कर उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी किरणों रूपी बाहों के झूले में मुझे झुलाते अपना सारा प्यार मेरे मीठे बाबा मुझ पर उड़ेल कर मेरी जन्म - जन्म की प्यास बुझा रहें हैं*। देह भान में आने से मेरे सर्व गुण, सर्वशक्तियाँ जिन्हें मैं भूल गई थी उन गुणों, उन शक्तियों को बाबा अपने गुणों औए सर्वशक्तियों की अनन्त धाराओं के रूप में मुझ पर बरसाते हुए उन्हें पुनः जागृत कर रहे हैं।

 

_ ➳  अपने बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों को मैं जैसे - जैसे अपने ऊपर अनुभव कर रही हूँ मुझे मेरी सोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हुई स्पष्ट अनुभव हो रही हैं जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवा रही हैं। *अपने निराकार भगवान बाप के साथ अपने निराकारी घर में मिलन मनाने का सुखद एहसास अपने साथ लेकर, सर्वगुण और सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर मैं वापिस कर्म करने के लिए अपनी कर्मभूमि पर लौटती हूँ*।अपने साकार शरीर रूपी रथ पर बैठ हर कर्म करते, अपने निराकार भगवान बाप के अति सुन्दर स्वरूप को अपने नयनों में बसाये, मैं उनके सुन्दर सलौने स्वरूप का रसपान हर समय करती रहती हूँ।

 

_ ➳  मेरे मन बुध्दि रूपी नयन हर समय अपने भगवान बाप के अति सुंदर मनमोहक निराकार स्वरूप को देखने के लिए व्याकुल रहते हैं *इसलिए निद्रा का त्याग कर, निद्रा जीत बन मैं मन बुद्धि की रूहानी यात्रा करते, मन बुद्धि के नेत्रों से अपने शिव पिता का दीदार करती रहती हूँ और उनके साथ सदा अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्व -परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के  निमित्त बनने वाली श्रेष्ठ सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं समय, संकल्प और बोल की एनर्जी को वेस्ट से बेस्ट में चेंज कर देने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा ने पहले भी कहा है - रोज अमृतवेले अपने आपको तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाओ तो एक खजाना भी व्यर्थ नहीं जायेगा। हर समयहर खजाना जमा होता जायेगा।* बापदादा ने सभी बच्चों के हर खजाने के जमा का चार्ट देखा। उसमें क्या देखाअभी तक भी जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना नहीं है। समय, संकल्प, बोल व्यर्थ भी जाता है। चलते-चलते कभी समय का महत्व इमर्ज रूप में कम होता है। *अगर समय का महत्व सदा याद रहे, इमर्ज रहे तो समय को और ज्यादा सफल बना सकते हो।* सारे दिन में साधारण रूप से समय चला जाता है। गलत नहीं लेकिन साधारण। ऐसे ही संकल्प भी बुरे नहीं चलते लेकिन व्यर्थ चले जाते हैं। *एक घण्टे की चेकिंग करोहर घण्टे में समय या संकल्प कितने साधारण जाते हैं?* जमा नहीं होते हैं। फिर बापदादा इशारा भी देता हैतो बापदादा को भी दिलासे बहुत देते हैं। बाबाऐसे थोड़ा सा संकल्प है बस। बाकी नहींसंकल्प में थोड़ा चलता है।सम्पूर्ण हो जायेंगे। ठीक हो जायेंगे। अभी अन्त थोड़ेही आया हैथोड़ा समय तो पड़ा है। समय पर सम्पन्न हो जायेंगे।

 

 _ ➳  *लेकिन बापदादा ने बार-बार कह दिया है कि जमा बहुत समय का चाहिए।* ऐसे नहीं जमा का खाता अन्त में सम्पन्न करेंगे, समय आने पर बन जायेंगे! बहुत समय का जमा हुआ बहुत समय चलता है। वर्सा लेने में तो सभी कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। अगर हाथ उठवायेंगे कि त्रेतायुगी बनेंगेतो कोई नहीं हाथ उठाता। और लक्ष्मी-नारायण बनेंगेतो सभी हाथ उठाते। *अगर बहुत समय का जमा का खाता होगा तो पूरा वर्सा मिलेगा।* अगर थोड़ा-सा जमा होगा तो फुल वर्सा कैसे मिलेगा? *इसलिए सर्व खजाने को जितना जमा कर सको उतना अभी से जमा करो।* हो जायेगा, आ जायेंगे....गे गे नहीं करो। *'करना ही है' - यह है दृढ़ता।* अमृतवेले जब बैठते हैं, अच्छी स्थिति में बैठते हैं तो दिल ही दिल में बहुत वायदे करते हैं - यह करेंगेयह करेंगे। कमाल करके दिखायेंगे... यह तो अच्छी बात है। *श्रेष्ठ संकल्प करते हैं लेकिन बापदादा कहते हैं इन सब वायदों को कर्म में लाओ।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "अमृतवेले तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाकर व्यर्थ वा साधारणता से मुक्त बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अमृतवेला की शांतमय सुहावनी वेला में, मैं आत्मा बिन्दु आंख खुलते ही अपने ज्योति बिन्दु शिव पिता को मुस्कुराते हुए गुडमार्निंग विश करती हूँ... गुडमार्निंग प्यारे बाबा और मैं आत्मा बिन्दु बाबा रूम में जाती हूँ... और जाते ही एक निराला सीन मुख आत्मा के सामने उभरता है... *दीवार पर लगे बापदादा के चित्र से लाइट निकल कर सामने राइट साइड पर लगे सृष्टि चक्र पर पड़ रही हैं...* मैं आत्मा बिन्दु बड़े ध्यान से इस दृश्य को देख रही हूँ... अचानक से सृष्टि चक्र का चित्र बड़ा हो जाता है... और हाइलाइट होकर और ऊभर कर सामने आ गया है... *3 डी व्यू की तरह यह सामने आ गया है...* ये चित्र बेहद स्पष्ट नजर आ रहा हैं... *और देखते ही देखते ये काल चक्र ( समय चक्र ) जिसे चार भागों में विभाजित किया है, घूमने लगता हैं...* इस समय चक्र के बीच लगी घड़ी के समान सुईयां धीरे-धीरे चलने लगती है...

 

 _ ➳  ये सुईयां सृष्टि चक्र के शुरू सतयुग से चलना शुरु होती है... और त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग के अन्तिम चरण संगमयुग में पहुँच जाती हैं... जैसे ही इस काल चक्र की सुईयां संगमयुग में पहुँचती हैं... उसी पल मुझ आत्मा के सामने कुछ स्मृतियां इमर्ज होती है... *मैं कौन की स्मृति इसी संगमयुग में मिली, ये स्मृति सामने आते ही मैं आत्मा अपने असली स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ...* भृकुटि के भव्य भाल पर सितारे के समान चमक रही हूँ... इस प्रकार आत्म-स्मृति का तिलक लगाती, *मैं आत्मा स्वयं में नव उर्जा का अनुभव कर रही हूँ...* और एक दूसरी स्मृतियाँ मेरे सामने इस सृष्टि चक्र को देख इमर्ज होती है... *मुझ आत्मा के सामने, मुझ आत्मा को सत्य प्रकाश देने वाले शिव पिता की वो सभी स्मृतियाँ इमर्ज हो जाती है...* जब वो ज्ञान सूर्य मेरे जीवन में आया और उसने अज्ञान रूपी अन्धकार को मेरे जीवन से हटाया अपना बनाया... *सामने शिव ज्योति बिन्दु पिता को देख रही हूँ... उनसे आता प्रकाश मुझ आत्मा में समा रहा है... ये प्रकाश मुझे अलौकिक ईश्वरीय शक्तियों से भर रहा हैं... इस प्रकार बिन्दी बाबा की याद रुपी द्वितीय तिलक मैं आत्मा  लगाती हूँ...*

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा के सामने अब ज्योति बिन्दु पिता के द्वारा दिये इस सृष्टि चक्र के ज्ञान की सभी तस्वीरें एक-एक कर सामने आने लगती है, इमर्ज होती है...* आदि मध्य अन्त, देख रही हूँ मैं आत्मा किस प्रकार हर आत्मा इस सृष्टि चक्र ( वर्ल्ड ड्रामा ) में अपना फिक्स और एक्यूरेट पार्ट प्ले कर रही है... *देख रही हूँ मैं आत्मा इस कल्याणकारी समय चक्र को जिसकी हर सीन में कल्याण है...* इस प्रकार मैं आत्मा ड्रामा बिन्दी लगा एक निश्चित और निरप्रश्न स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... इस समय की स्मृति के साथ और तीन बिन्दियों का तिलक लगाकर मैं आत्मा अपनी दिनचर्चा की शुरुआत करती हूँ... *मैं आत्मा हर कदम में पदमों की कमाई जमा कर रही हूँ... तीन बिन्दुओं का तिलक   लगाकर हर कर्म कर रही हूँ...* और हर खजाने को सफल कर जमा का खाता बढ़ा रही हूँ... और समय का महत्व हर पल इमर्ज रूप में है... *समय के महत्व को सदा सामने रख मैं आत्मा समय, संकल्प, बोल हर खजाने को सफल कर जमा का खाता बढाते नम्बर वन में आने का पुरूषार्थ कर रही हूँ... और मैंने बाबा से जो वायदे किये सब दृढ़ता से कर्म में ला रही हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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