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 31 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कदम कदम पर बाप से राय ली ?*

 

➢➢ *ब्राह्मणी से रूठकर पढाई तो नहीं छोड़ी ?*

 

➢➢ *बोल पर डबल अटेंशन कर हर बोल को अनमोल बनाया ?*

 

➢➢ *शुभ चिंतन मणि बन अपनी किरणों से विश्व को रौशन किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *हर बात में, वृत्ति में, दृष्टि में, कर्म में न्यारापन अनुभव हो, यह बोल रहा है लेकिन न्यारा-न्यारा, प्यारा-प्यारा लगता है। आत्मिक प्यारा।* नम्बरवन ब्रह्मा की आत्मा के साथ आप सभी को भी फरिश्ता बन परमधाम में चलना है, तो मन की एकाग्रता पर अटेंशन दो, ऑर्डर से मन को चलाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ स्वमानधारी आत्मा हूँ"*

 

  स्वयं को श्रेष्ठ स्वमानधारी आत्मा अनुभव करते हो? *जितना स्वमान में स्थित होते हो, तो 'स्वमान' देहभान को भुला देता है। आधा कल्प देहभान में रहे और देह-भान के कारण अल्पकाल के मान प्राप्त करने के भिखारी रहे। अभी बाप ने आकर स्वमानधारी बना दिया।* स्वमान में स्थित रहते हो या कभी हद के मान की इच्छा रखते हो? जो स्वमान में रहता उसे हद के मान प्राप्त करने की कभी इच्छा नहीं होती, इच्छा मात्रम् अविद्या हो जाते। एक स्वमान में सर्व हद की इच्छायें समा जाती हैं, मांगने की आवश्यकता नहीं रहती। क्योंकि यह हद की इच्छायें कभी भी पूर्ण नहीं होती हैं। एक हद की इच्छा अनेक इच्छा को उत्पन्न करती है, सम्पन्न नहीं करती लेकिन पैदा करती है।

 

  *स्वमान सर्व इच्छाओंको सहज ही सम्पन्न कर देता है। तो जब बाप सदा के लिए स्वमान देता है, तो कभी-कभी क्यों लेवें! स्वमानधारी सदा बेफिक्र बादशाह होता है, सर्व प्राप्ति-स्वरूप होता है। उसे अप्राप्ति की अविद्या होती है। तो सदा स्वमानधारी आत्मा हूँ-यह याद रखो।* स्वमानधारी सदा बाप के दिलतख्त-नशीन होता है क्योंकि बेफिक्र बादशाह है! बादशाह का जीवन कितना श्रेष्ठ है! दुनिया वालों के जीवन में कितनी फिक्र रहती हैं-उठना तो भी फिक्र, सोयेंगे तो भी फिक्र। और आप सदा बेफिक्र हो। पाण्डवों को फिक्र रहता है? कल व्यापार ठीक होगा या नहीं, कल देश में शान्ति होगी या अशान्ति........-यह फिक्र रहता है?कल बच्चे अच्छी तरह से सम्भाल सकोगे या नहीं-यह फिक्र माताओंको रहता है?

 

  दुनिया में कुछ भी हो लेकिन अशान्ति के वायुमण्डल में आप तो शान्तस्वरूप आत्मायें ता औरों को भी शान्ति देने वाले। या अशान्ति होगी तो आप भी घबरा जायेंगे? आपके घर के बाहर बहुत हंगामा हो रहा हो, तो आप उस समय क्या करते हो? याद में बैठ जाते हो ना! बाप को याद करके शान्ति लेकर औरों को देना-यह सेवा करो। क्योंकि जो अच्छी चीज अपने पास है और दूसरों को उसकी आवश्यकता है, तो देनी चाहिए ना! *तो अशान्ति के समय पर मास्टर शान्ति-दाता बन औरों को भी शान्ति दो, घबराओ नहीं। क्योंकि जानते हो कि-जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बापदादा इस साकारी देह और दुनिया में आते हैं, सभी को इस देह और दुनिया से दूर ले जाने के लिए *दूर-देश वासी सभी को दूर-देश निवासी बनाने के लिए आते हैं।* दूर-देश में यह देह नहीं चलेगी। पावन आत्मा अपने देश में बाप के साथ-साथ चलेगी।

 

✧  *तो चलने के लिए तैयार हो गये हो* वा अभी तक कुछ समेटने के लिए रह गया है? जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो तो विस्तार को समेट परिवर्तन करते हो। तो दूर-देश वा अपने स्वीट होम में जाने के लिए तैयारी करनी पडेगी? *सर्व विस्तार को बिन्दी में समाना पडे।* इतनी समाने की शक्ति, समेटने की शक्ति धारण कर ली है?

 

 

✧  समय प्रमाण बापदादा डायरेक्शन दे कि *सेकण्ड में अब साथ चलो तो सेकण्ड में, विस्तार को समा सकेंगे?* शरीर की प्रवृति, लौकिक प्रवृति, सेवा की प्रवृति, अपने रहे हुए कमजोरी के संकल्प की और संस्कारों की प्रवृत्ति, *सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते हो?* वा कोई प्रवृति अपने तरफ आकर्षित करेगी?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सदा इस स्मृति में डबल लाईट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दु। बिन्दु में कोई बोझ नही। यह स्मृति-स्वरूप सदा आगे बढ़ाता रहेगा। *आँखों में बीच में देखो तो बिन्दु ही है। बिन्दु ही देखता है। बिन्दु न हो तो आँख होते भी देख नहीं सकते। तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कदम-कदम पर शिवबाबा की श्रीमत लेना"*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मुस्कुराते हुए भाग्य को देख रही हूँ...* कितना सुन्दर भाग्य है मुझ आत्मा का... जो इस संगमयुग में हर पल भगवान के संग-संग रहती हूँ... सदा भगवान् की छत्रछाया, भगवान् का साथ, भगवान् की मदद का अनुभव करती हूँ... *स्वयं भगवान अपना परमधाम छोडकर, मुझे परम ज्ञान देकर, परम योगी बनाकर, परम पद देने के लिए ब्रह्मा तन में अवतरित हुए हैं... मैं आत्मा अपना सब समाचार देने, बाबा से श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के पास...*  

 

❉  *कदम कदम पर श्रीमत पर चलने की शिक्षा देते हुए ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर चमकते हुए प्यारे शिव बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... इस पराये देश परायी सी दुनिया के भूल भुलैया के खेल में... स्वयं के सच्चे स्वरूप और असली घर को ही भूलकर... दुखो का पर्याय बन गए हो... *अब सच्चे पिता की सच्ची श्रीमत पर चलकर... वही तेजस्वी स्वरूप को पुनः पा लो... और मीठे सुखो के मधुमास में खुशनुमा जीवन के अधिकारी बन मुस्कराओ...”*

 

➳ _ ➳  *बापदादा की शिक्षाओ को धारण कर खुशनुमा फूलों से सजते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझकर दुखो के दलदल में धँस गई थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपनी श्रीमत का हाथ देकर सदा का सुखी बनाया है... श्रीमत को बाँहों में लेकर मै आत्मा ख़ुशी के आसमान में उड़ रही हूँ...”*

 

❉  *मुझे अपने मखमली गोद में बिठाकर वरदानों से नवाजते हुए मीठे प्यारे बापदादा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *हर कदम को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत को रखकर... बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्कराओ... बाबा की श्रीमत भरा हाथ हाथो में थामकर निश्चिन्त हो इठलाओ... अपनी हर साँस संकल्प को श्रीमत प्रमाण चलाओ...* और सुंदर देवताई संस्कारो को दामन में सजाओ...”

 

➳ _ ➳  *सच्चे प्यार के साये में बाबा के हर कदम में कदम रख चलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपका साथ और साया पाकर कितनी भाग्यशाली बन गई हूँ...* प्यारे बाबा आपके बिना मै आत्मा... कितनी निराश थकी और टूटी सी हो उठी थी... *आपके प्यार और श्रीमत ने पुनः मुझे रूहानी फूल सा खिला दिया है...”*

 

❉  *निराकार बाबा, साकार बाबा के द्वारा अलौकिक दिव्य ज्ञान देते हुए मुझसे कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य मतो पर चलकर जीवन के खोखलेपन और शक्तिहीनता के गहरे अनुभवी हो गए हो... अब श्रीमत पर चलकर खुद ही खुद पर दया करो... *ईश्वर पिता जो सुख और खजाने हाथो में ले आया है उनके अधिकारी बन सुन्दरतम जीवन को पाओ... हर कदम श्रीमत प्रमाण ही उठाओ...”*

 

➳ _ ➳  *बापदादा के प्यार में अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झूलते हुए मैं तकदीरवान आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान को पाकर कितनी मीठी ख़ुशी से भर उठी हूँ... *प्यारे बाबा, जीवन कितना सरल प्यारा और श्रेष्ठ हो गया है... और ईश्वरीय हाथो में सदा का सुरक्षित हो गया है... आपकी श्रीमत ने मुझे दुखो की गुलामी से मुक्त करा दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा को ब्रह्मा के थ्रू याद करना है*"

 

 _ ➳  अपने निराकार शिव भगवान के साकार रथ ब्रह्मा बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने बैठी उन्हें निहारते हुए मैं दिल से अपने प्यारे ब्रह्मा बाप का शुक्रिया अदा करती हूँ जो वो हमे भगवान से मिलवाने के निमित बने। *कितनी महान, और कितनी विशेष है वो आत्मा जिसके शरीर रूपी रथ का आधार स्वयं भगवान ने लिया। मन में यह विचार आते ही ब्रह्मा बाबा के चरित्र की पूरी कहानी आँखों के सामने चित्रित होने लगती है और उनकी साकार पालना लेने वाली वरिष्ठ दीदी, दादियों के उनके साथ के अनुभव स्मृति में आने लगते हैं और उन्हें याद करते ही मैं आत्मा उन अनुभवों का आनन्द लेते हुए उसी साकार पालना के मधुर एहसास में खो जाती हूँ*। उन अनुभवों का आनन्द लेते - लेते मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के चरित्रों की यादगार भूमि मधुबन में जहाँ का कण - कण बाबा की कर्म कहानी को परिलक्षित करता हुआ प्रतीत होता है। जहाँ की हवायें आज भी बाबा की उपस्थिति का एहसास दिलाती है।

 

 _ ➳  मन बुद्धि के विमान द्वारा मधुबन की इस पावन धरनी पर अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के साथ स्वयं को अनुभव करते हुए मैं इस खूबसूरत शक्तिशाली भूमि पर आकर स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। *ऐसा लग रहा है इस पावन तपस्वी भूमि पर आते ही याद की मेहनत से मैं जैसे मुक्त हो कर सहजयोगी बन गई हूँ। अपने डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे बापदादा के साथ मैं इस तीर्थ की सैर करके असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ*। हर पल, हर सेकण्ड यहाँ मैं स्वयं को बापदादा के साथ कम्बाइंड महसूस कर रही हूँ और कंबाइंड स्वरूप की यह स्मृति मुझे बहुत ऊर्जावान बना रही है। एक अद्भुत शक्ति का संचार मैं हर पल स्वयं में होता हुआ अनुभव कर रही हूँ। *यह शक्ति मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित करके, ज्ञान और योग के खूबसूरत पंख लगाकर, ऊपर की ओर उड़ा रही है*।

 

 _ ➳  मधुबन की इस धरनी से उड़कर मैं फ़रिश्ता अब ऊपर आकाश की और जा रहा हूँ। प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेते हुए मैं फ़रिशता अब आकाश को पार करके पहुँच गया हूँ अपने उस अव्यक्त वतन में जहाँ अव्यक्त बापदादा का निवास है। *यहाँ पहुँच कर मैं देख रहा हूँ अपने बिल्कुल सामने अपने प्यारे बापदादा को जो अपनी दोनों बाहों को फैलाये अपनी बाहों में मुझे भरने के लिए आतुर हैं। बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये, मैं उनके पास जा कर उनकी बाहों में समा जाता हूँ*। अपनी बाहों में मुझे समाकर अपना असीम स्नेह और प्यार बाबा मुझ पर लुटा कर अपनी ममतामयी गोद मे मुझे बिठा लेते है। अपनी स्नेह भरी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बाबा अपनी सारी शक्तियाँ मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान शक्तिशाली बना देते हैं। *अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा वरदानों से मुझे भरपूर कर देते हैं*।

 

 _ ➳  बापदादा से वरदान और शक्तियाँ लेकर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकारी वतन की ओर चलती हूँ और अति शीघ्र अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को आत्माओं की ऐसी निराकारी दुनिया में जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही। *बस चारों ओर चमकते हुए चैतन्य सितारे और उन सितारों के बीच मे सूर्य के समान चमकता हुआ एक ज्योतिपुंज अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं*। वो अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज मेरे शिव परम पिता परमात्मा है जिनसे शक्तियों की अनन्त किरणे निकल रही हैं। *इन किरणों में समाये शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा को अपने अनादि ओरिजनल स्वरूप में स्थित करके मुझे गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं निराकारी दुनिया से नीचे वापिस फिर से अव्यक्त वतन में आती हूँ और *अपने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सम्मुख बैठ उनके थ्रू अपने शिव पिता से मीठी - मीठी रूह रिहान करके, वापिस साकारी दुनिया मे आकर अपने साकारी तन में प्रवेश करके भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ*। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं जब चाहे अपने शिव बाबा को ब्रह्मा बाबा के थ्रू याद करके उनसे मीठी - मीठी रूहरिहान करते हुए स्वयं को ईश्वरीय वरदानों से भरपूर करती रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बोल पर डबल अंडरलाइन कर हर बोल को अनमोल बनाने वाली मास्टर सद्गुरु आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं शुभचिंतक मणी बन अपनी किरणों से विश्व को रोशन करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *वर्तमान समय सेवा की रिजल्ट में क्वान्टिटी बहुत अच्छी है लेकिन अब उस क्वान्टिटी में क्वालिटीज भरो। क्वान्टिटी की भी स्थापना के कार्य में आवश्यकता है।* लेकिन वृक्ष के पत्तों का विस्तार हो और फल न हो तो क्या पसन्द करेंगेपत्ते भी हो और फल भी हों या सिर्फ पत्ते होंपत्ते वृक्ष का श्रृंगार हैं और फल सदाकाल के जीवन का सोर्स हैं।

✺   *"ड्रिल :- सेवा में क्वान्टिटी के साथ साथ क्वालिटी पर भी अटेंशन देना।"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्मा को याद करते हुए अपने मन बुद्धि से एक बुलबुले के अंदर अपने आप को इमर्ज करती हूं... और मैं अनुभव करती हूँ कि मैं उस बुलबुले में बैठी हूं... और उड़ती जा रही हूं... *खुले आसमान में उड़ते हुए मैं अपने आपको इस दुनिया में सबसे अद्भुत अनुभव करती हूं... मैं अनुभव करती हूँ... कि उड़ने की शक्ति परमात्मा ने केवल मुझे ही दी है... मैं आत्मा यह सोचते हुए अपने आप को उस बुलबुले की सहायता से और भी ऊंची अवस्था में महसूस करती हूं...* और कुछ समय बाद मैं अपनी मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं अपने घर परमधाम... वहाँ पहुंचकर मैं देखती हूं कि वहां का वातावरण इस इस स्थूल वतन से बिल्कुल ही न्यारा है...

➳ _ ➳  जैसे जैसे मैं परमधाम में समय व्यतीत करती हूं... मुझे आभास होता है कि उस लाल सुनहरे प्रकाश के बीच मैं बुलबुले के आकार की चमकती हुई मणि के समान प्रतीत हो रही हूं... और मैं अपने सामने परमात्मा को अनुभव करती हूँ... जिनसे अनेक रंग बिरंगी किरणें निकल रही है... और मुझमें समाती जा रही है... *जैसे जैसे वह शक्तिशाली किरणें मुझमें प्रवेश करने लगती है... वैसे वैसे ही मैं फिर से एक बुलबुले के रूप में परिवर्तित होती जा रही हूं... और मुझे ये आभास होता है कि परमात्मा मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से भर रहे हैं...* और इन किरणों से अपने आप को भरपूर कर मैं अब बन जाती हूँ एक शक्तिशाली बुलबुला...

➳ _ ➳  और मैं आत्मा अपनी मन बुद्धि से बुलबुले की आकृति में धीरे-धीरे नीचे उतरती जाती हूं... जैसे जैसे मैं नीचे उतरते जाती हूं... मैं प्रकृति के पांचो तत्वों को अपनी पॉजिटिव किरणों से पवित्र बनाती जा रही हूं... और मैं यह फील करती हूं... कि *मुझ आत्मा रूपी बुलबुले से यह पवित्र किरणें निकलकर प्रकृति के पांचो तत्वों को पवित्र बना रही है... और मैं उनको पवित्र बनते हुए अनुभव कर रही हूं...* और जैसे ही मैं आत्मा इस धरा पर आती हूं... तो मैं अपने आप को इस कल्पवृक्ष की जड़ों में स्थित कर लेती हूं... मैं अपनी शक्तिशाली किरणों से इस पूरी सृष्टि को शांति की किरणें देती जा रही हूँ... और जैसे-जैसे मैं अपनी शांति की किरणें सारे कल्पवृक्ष में फैलाती जा रही हूं... वैसे ही मैं अनुभव करती हूँ... कि यह कल्पवृक्ष एकदम भरपूर हो रहा है... कल्पवृक्ष की एक-एक शाखाएं शांति को अनुभव करते हुए हरियाली से भरपूर हो रही हैं...

➳ _ ➳  और जैसे-जैसे मुझसे किरणें निकलती जा रही है... मैं बुलबुले के आकार से धीरे-धीरे अपने असली स्वरुप में आ रही हूं... मैं उस बुलबुले से अब चमकती हुई मणि रूपी आत्मा का आभास कर रही हूं... और अपने आपसे एकाग्रचित अवस्था में स्थित होकर यह संकल्प कर रही हूँ... कि मैं आत्मा अपने आपको सातों गुणों से भरपूर अनुभव करते हुए और परमात्मा द्वारा दिए हुए हर खजाने को अपने अंदर समाते हुए... इस सृष्टि की सेवाधारी बन कर रहूँगी... *मैं आत्मा अपने आपको विश्व सेवाधारी की स्टेज पर अनुभव करती हूँ... और अपने अंदर सभी खजानों को भी गहराई से अनुभव करती हूँ... तथा मैं अपनी सभी कमी कमजोरियों को बारीकी से चेक करते हुए... इन्हें समाप्त करती जा रही हूं...* जैसे जैसे मैं अपनी कमी कमजोरियों को समाप्त करती जाती हूं... मैं अपनी शांति भरी स्थिति का आनंद लेती जा रही हूँ... और अपनी शक्तियों को पहचानते हुए, जानते हुए मैं अन्य दुखी आत्माओं को परमात्मा का परिचय देकर उन्हें सही मार्ग पर लाती जा रही हूँ...  

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा परमात्मा द्वारा दिए हुए... ज्ञान रत्नों और शक्तियों से श्रृंगारित होती जा रही हूं... इन अविनाशी रत्नों से सज संवर कर अन्य आत्माओं को भी ज्ञान रत्नों से सजाती जा रही हूं... मैं यह देख रही हूं... कि सभी आत्माएं श्रृंगारित होकर बहुत ही आनंदित हो रही है... और बार-बार अपने आपको सजा सँवरा देखकर हर्षित हो रही है... उनके हर्षित मुख के कारण मुझ आत्मा की चमक और भी बढ़ती जा रही है... *जैसे-जैसे मैं अपने आप को शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करती हूं... वैसे वैसे ही मैं अपने आपके और भी करीब होती जा रही हूँ... और अपनी छुपी हुई शक्तियों को पहचानती जा रही हूं...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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