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 18 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अमृतवेला उठ याद में बैठ ज्ञान का रमण किया ?*

 

➢➢ *सबको मैडिटेशन करने की सहज विधि समझाई ?*

 

➢➢ *प्यूरिटी की पर्सनालिटी और रॉयल्टी द्वारा बाप के समीप जाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *हर एक की विशेषता को देखने का चश्मा सदा लगा रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे शुरु-शुरू में अभ्यास करते थे-चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी जो दूसरे समझते कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई नहीं देता था, इसी अभ्यास से हर प्रकार के पेपर में पास हुए। तो अभी जबकि समय बहुत खराब आ रहा है तो डबल लाइट रहने का अभ्यास बढ़ाओ।* दूसरों को सदैव आपका लाइट रुप दिखाई दे-यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"*

 

✧  अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिमान् अनुभव करते हो? मास्टर का अर्थ है कि हर शक्ति को जिस समय आह्वान करो तो वो शक्ति प्रैक्टिकल स्वरूप में अनुभव हो। जिस समय, जिस शक्ति की आवश्यकता हो, उस समय वो शक्ति सहयोगी बने-ऐसे है? जिस समय सहनशक्ति चाहिये उस समय स्वरूप में आती है कि थोड़े समय के बाद आती है? अगर मानो शस्त्र एक मिनट पीछे काम में आया तो विजयी होंगे? विजय नहीं हो सकेगी ना। *तो मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात् शक्ति को ऑर्डर किया और हाजिर। ऐसे नहीं कि आर्डर करो सहन शक्ति को और आये सामना करने की शक्ति। तो उसको मास्टर सर्वशक्तिमान कहेंगे? जैसे कई परिस्थिति में सोचते हो कि किनारा नहीं करना है, सहन करना है लेकिन फिर सहन करते-करते सामना करने की शक्ति में आ जाते हो।*

 

  ऐसे ही निर्णय शक्ति की आवश्यकता है। लेकिन निर्णय शक्ति यथार्थ समय पर यथार्थ निर्णय नहीं ले तो उसको क्या कहेंगे? मास्टर सर्वशक्तिमान् या कमजोर? तो ऐसे ट्रायल करो कि जिस समय जो शक्ति आवश्यक है उस समय वो शक्ति कार्य में आती है? एक सेकेण्ड का भी फर्क पड़ा तो जीत के बजाय हार हो जाती है। सेकेण्ड की बात है ना। निर्णय करना हाँ या ना। और हाँ के बजाय अगर ना कर लिया तो सेकेण्ड का नुकसान सदा के लिये हार खिलाने के निमित्त बन जाता है। *इसलिये मास्टर सर्वशक्तिमान् का अर्थ ही है जो हर शक्ति र्डर में हो। जैसे ये शरीर की कर्मेन्द्रियां ऑर्डर में हैं ना। हाथ पांव जब चलाओ, जैसे चलाओ वैसे चलाते हो ना ऐसे सर्वशक्तियां इतना र्डर में चलें। जितना यूज करते जायेंगे उतना अनुभव करते जायेंगे।*

 

  सदा अपना ये स्वमान स्मृति में रखो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान हैं। इस स्वमान की सीट पर सदा स्थित रहो। जैसी सीट होती है वैसे लक्षण आते हैं। कोई भी ऐसी परिस्थिति सामने आये तो सेकेण्ड में अपने इस सीट पर सेट हो जाओ। सीट पर सेट नहीं होते तो शक्तियां भी र्डर नहीं मानती। सीट वाले का ऑर्डर माना जाता है। तो सेट होना आता है ना। सीट पर बैठने वाले कभी अपसेट नहीं होते। या तो है सीट या तो है अपसेट। लक्ष्य अच्छा है, लक्षण भी अच्छे हैं। सभी महावीर हैं। कभी-कभी सिर्फ थोड़ा माया से खेल करते हो। *अब के विजयी ही सदा के विजयी बनेंगे। अब विजयी नहीं तो फिर कभी भी विजयी नहीं बनेंगे। इसलिये संगमयुग है ही सदा विजयी बनने का युग। द्वापर-कलियुग हार खाने का युग है और संगम विजय प्राप्त करने का युग है। इस युग को वरदान है। तो वरदानी बन विजयी बनो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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आज सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह का रेस्पाण्ड करने के लिए बापदादा मिलन मनाने के लिए आये हैं। विदेही बापदाद को देह का आधार लेना पडता है। किसलिए? बच्चों को विदेही बनाने के लिए। जैसे बाप विदेही, देह में आते हुए भी विदेही स्वरूप में, विदेही-पन का अनुभव कराते हैं। ऐसे *आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते विदेही आत्म-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ।* यह देह करनहार है। आप देही करावनहार हो। इसी स्थिति को विदेही स्थिति कहते है। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *कई सोचते हैं - बीजरूप स्थिति या शक्तिशाली याद की स्थिति कम रहती है या बहुत अटेन्शन देने के बाद अनुभव होती है। इसका कारण अगले बार भी सुनाया कि लीकेज है, बुद्धि की शक्ति व्यर्थ तरफ बंट जाती है।* कभी व्यर्थ संकल्प चलेंगे, कभी साधारण संकल्प चलेंगे। *मनन करने वाले अभ्यास होने के कारण जिस समय जो स्थिति बनाने चाहें वह बना सकेंगे। लिंक रहने से लीकेज खत्म हो जायेगी और जिस समय जो अनुभूति – चाहे बीजरूप स्थिति की, चाहे फरिश्ते रूप की, जो करना चाहो वह सहज कर सकेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अमृतवेले मालिक बन ज्ञान रत्नों का सिमरण करना"*

 

 _ ➳  *अमृतवेले के सतोप्रधान समय में मैं आत्मा अंतर्मुखी होकर बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इस शरीर की मालिक हूँ... अपने सभी कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाली अधिकारी हूँ... मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... परमधाम की रहने वाली हूँ... परमात्मा की वारिस हूँ... उनके सर्व खजानों, सर्व वरदानों की अधिकारी हूँ...* मेरे प्यारे बाबा ने आदि-मध्य-अंत का गुह्य ज्ञान देकर मुझे त्रिकालदर्शी बनाया... मैं आत्मा चिंतन करते-करते, स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में प्यारे बापदादा के पास...

 

  *विषय सागर में मझधार में अटकी मेरे जीवन की नैया को पार लगाने वाले मेरे प्यारे खिवैया बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के रिश्तो को यादो में समाकर खाली हो गए... अब यादो में ईश्वर पिता को समाओ और गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर सदा का मुस्कराओ... *अमृतवेले पिता जब दिल पर दस्तक देता है... उस दस्तक में... प्यार की गहराइयो में डूब जाओ और सुधबुध खो दो ऐसा प्यार का दरिया बहा दो...”*

 

 _ ➳  *काँटों को निकाल मुझे फूल बनाकर अपने बगीचे में सजाने वाले बागवान बाबा से मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना कितनी दीन दुखी सी थी... *मीठे बाबा आपने जीवन में आकर फूलो सा खिलाया है... अमृतवेले दिल आँगन में उतरकर प्यार से सिक्त करते हो... और मुझे भरपूर कर देते हो...”*

 

  *ज्ञान अमृत का पान कराकर दैवीय गुणों से मेरा श्रृंगार करते हुए मीठे ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... प्यारे बाबा की यादो में जो खुद को भिगो दोगे तो जीवन सुखो का पर्याय बन महक उठेगा... *यह यादे अथाह खुशियो को जीवन में उतार देवताओ सा सजा देंगी... इन यादो के गहरे मर्म को समझ अमृतवेले मीठे बाबा से दिली रुह रिहान करो...”*

 

 _ ➳  *अमृतवेले के समय रूहानी बाबा के साथ रूहानी सफर करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा खोखले रिश्तो को यादो में भरकर गहरे खालीपन की अनुभवी हूँ... अब सच्चे प्यार को जाना है... इन यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख पाया है... *अमृतवेले दिल पर आहट कर...अनन्त प्यार बाँहों में लिए उतरे मीठे बाबा को पाकर भाग्य को सराहा है...”*

 

  *प्रेम का समुन्दर मुझ पर उड़ेलते हुए प्रेम के सागर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय प्रेम के प्याले को पीकर अपने सत्य स्वरूप की खुमारी में खो जाओ... इन यादो से जन्नत के मीठे सुख अपने कदमो तले बिखराओ...* डबल ताजधारी हो विश्व के मालिक बन मुस्कराओ... और ईश्वर पिता को अपनी पसन्द पर यूँ नाज सा करवाओ...

 

 _ ➳  *ईश्वरीय यादों के सुनहरे अमृत पलों को अपने में संजोकर प्रेम की दीवानी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अमृतवेले प्यारे बाबा संग मिलन मना कर और ईश्वरीय यादो से अपने सुनहरे स्वरूप को पाकर जगमगा रही हूँ...* प्यारा बाबा मुझे सतोगुणी और देवताओ सा श्रृंगार देने धरा पर उतर आया है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सबको मेडिटेशन करने की सहज विधि समझानी है*"

 

_ ➳  जिस परमपिता परमात्मा से मिलने के लिए आत्मा तड़प रही थी उसकी उस तड़प को मिटाकर, उसे सच्चे सुख और शांति का अनुभव करवाने का अति सहज तरीका है मेडिटेशन जो स्वयं परमात्मा बाप इस समय अपने बच्चे आत्माओ को सीखा रहें है जिसे सहज राजयोग कहते हैं। *अपने निराकारी सत्य स्वरूप में स्थित होकर, मन बुद्धि का कनेक्शन अपने पिता के साथ जोड़, उनसे शक्तियाँ लेकर शक्तिशाली बनने का अति सहज रास्ता है ये राजयोग मेडिटेशन*। अपने जीवन मे परिवर्तन लाने वाले इस राजयोग मेडिटेशन की सहज विधि सबको बताकर, उन्हें उनके पिता परमात्मा से मिलाने और सबके जीवन मे सुख शांति लाने का संकल्प मन मे लेकर, मेडिटेशन का अभ्यास करने के लिए अपनी स्व स्थिति में मैं स्थित होती हूँ।

 

_ ➳  स्वयं को देह से न्यारी ज्योति बिंदु आत्मा निश्चय कर, अपने मन और बुद्धि को सभी बातों के विस्तार से निकाल सार में लाकर अपने सत्य स्वरूप पर मैं पूरी तरह केंद्रित कर लेती हूँ और कुछ क्षणों के लिए अपने अति सुन्दर सुख और शांतमय स्वरूप का अनुभव करने में मग्न हो जाती हूँ। *बड़े प्यार से अपने बिंदु स्वरूप को निहारते हुए, मैं पूरी तरह अब केवल अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और देह से पूरी तरह डिटैच हो जाती हूँ*। देह और देही दोनों को अलग - अलग देखते हुए बड़ी आसानी से मैं देह की कुटिया से ऐसे बाहर निकल आती हूँ जैसे मक्खन से बाल अति सहज रीति बाहर निकल आता है। *देह से बाहर आकर अपने मृत शरीर को साक्षी होकर देखते हुए अब मैं अपने पिता से मिलने मन बुद्धि की खूबसूरत रूहानी यात्रा पर निकल पड़ती हूँ*।

 

_ ➳  एक अद्भुत सुकून और हल्केपन का अनुभव करते हुए मैं आत्मा एक चमकता हुए अति सूक्ष्म सितारा बन धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर चल पड़ता हूँ। *देह और देह के बंधन से मुक्त, इस अवस्था मे उड़ने का आनन्द बहुत ही अद्भुत और निराला है, यह अनुभव करते - करते मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, एक चैतन्य शक्ति आत्मा अब आकाश को पार करके सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ और उसे भी क्रॉस करके पहुँच जाती हूँ अपने पिता के पास उस बेहद के ब्रह्माण्ड मह तत्त्व में जहाँ मेरे पिता रहते हैं*। अपने इस बेहद के घर मे आकर, बेहद की शांति का अनुभव करके अपने पिता के साथ स्नेह मिलन मनाने के लिए मैं उनके पास पहुँचती हूँ। वो परम आत्मा जो मुझ आत्मा के पिता है उन्हें अब मैं अपने सामने देख रही हूँ जो दिखने में तो बिल्कुल मेरी ही तरह एक अति सूक्ष्म स्टार है किंतु गुणों और शक्तियों में सागर है।

 

_ ➳  सूर्य के समान चमकते हुए महाज्योति अपने शिव पिता को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके बिल्कुल समीप पहुँचती हूँ और महसूस करती हूँ कि बाबा की सर्वशक्तियों की किरणे रूपी बाहें फ़ैलती जा रही हैं और मैं जैसे उनमें समाती जा रही हूँ। *अपनी बाहों में भरकर बाबा सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारों के रूप में अपना सारा स्नेह मेरे ऊपर बरसा रहें हैं। अपने पिता परमात्मा के साथ यह सच्चा स्नेह मिलन मुझ आत्मा को उस परमआनन्द की अनुभूति करवा रहा है जिसे पाकर कर्मेंद्रियों के रसों का आनन्द बहुत ही फीका लगने लगा है*। गहन अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करके, अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, उनकी सारी शक्तियाँ अपने अंदर भरकर, *मेडिटेशन की इस प्रक्रिया का भरपूर आनन्द लेकर अब मैं सभी को मेंडिटेशन की सहज विधि समझाने की ईश्वरीय सेवा करने के लिए वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म परिचय देकर उन्हें भी उनके पिता परमात्मा से मिलवाने की सेवा में सदा तत्पर हूँ। *सबको मैडिटेशन की सहज विधि समझा कर उन्हें उनके जीवन को सुख और शांतमय बनाने का सच्चा और सहज रास्ता दिखाकर सबके जीवन को खुशहाल बनाने के साथ - साथ, मेडिटेशन द्वारा स्वयं में योगबल जमा करके, अनेक हिम्मतहीन और निर्बल आत्माओं को अपनी शक्तियों के बल से आगे बढ़ाने की ईश्वरीय सेवा भी मैं निरन्तर कर रही हूँ*। सबको मेडिटेशन करने की सहज विधि से अवगत करवाकर उनके जीवन मे सुखद परिवर्तन लाने की यह सेवा मुझे सर्व आत्माओं के साथ - साथ परमात्म ब्लेसिंग की भी अधिकारी आत्मा बना रही है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं प्यूरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी द्वारा बाप के समीप आने वाली देही -  अभिमानी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर एक की विशेषता को देखने का चश्मा सदा लगाने वाली विशेष आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳   *सहन करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो?* क्योंकि समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करेंलेकिन सहन करने की आज्ञा किसने दी हैझूठ बोलने वाले ने दी है?  *कई बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मजबूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना, इसमें अन्तर है।*

➳ _ ➳  *बात के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो।* तो बाप की आज्ञा मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मजबूरी हैतो कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता हैमोहब्बत भी होती है, मजबूरी भी होती है। *सहन कर ही रहे हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मजबूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता है ना तो मजबूरी लगती है और बाप सामने आवेकि बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्ब्त लगेगीमजबूरी नहीं।* तो ये शब्द नहीं सोचो।

➳ _ ➳  आजकल ये थोड़ा कामन हो गया है - मरना पड़ेगामरना पड़ेगाकब तक मरना पड़ेगाअन्त तक या दो साल, एक साल, ६ मासफिर तो अच्छा मर जायें... लेकिन कब तक मरना है।  *लेकिन यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या करेंगे? मरेंगेयह मरना शब्द खत्म कर दो।*

✺   *ड्रिल :-  "बाप की आज्ञा प्रमाण खुशी से सहन करना"*

➳ _ ➳  *बाबा और मैं एक बहुत सुंदर बगीचे में बैठे हुए हैं... चारों ओर हरियाली ही हरियाली है...* किस्म किस्म के रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ लगी हुई हैं... जिनसे बहुत मनमोहक... भीनी-भीनी महक आ रही है... यह ताज़गी मेरे मन को मोह रही है...   

➳ _ ➳  इस खुशनुमा वातावरण को देखकर... मेरा मन खुशी से झूमने लगा... तभी मेरी नज़र एक फलों से लदे हुए वृक्ष पर पड़ती है... बाबा मुझे उस वृक्ष को दिखाते हुए कहते हैं... देखो *बच्ची... यह वृक्ष फलों से कितना भरा हुआ है... कितनी छाया दे रहा है... फिर भी इसे बहुत सहन करना पड़ता है... बाबा मुझे यह दिखा कर सहनशीलता का पाठ पक्का करा रहे थे...*

➳ _ ➳  *बाबा मुझसे कहते हैं... बच्ची... कभी कोई छोटी... बड़ी बात या झूठी बात भी सामने आ जाये तो सहन करो... सहन करने में घबराओ मत... खुशी से सहन करो... मजबूरी से नहीं... बाबा की याद में रहकर... आज्ञा समझ कर... कोई भी कर्म करोगे तो बोझ या... सहन करना नहीं लगेगा...* फिर बाबा कहने लगे... बच्ची... सृष्टि चक्र का नियम है... *जो हो गया वह फिर से रिपीट होगा... इसलिये नथिंग न्यू का पाठ भी पक्का करो...* सहनशील बनो...

➳ _ ➳  मैं बाबा से कहती हूँ... बाबा... *आपसे प्राप्त गुणों और शक्तियों को धारण कर अपने प्रैक्टिकल जीवन में... हर कर्म में... लाऊंगी... किसी भी परिस्थिति में मुझे सहन करना भी पड़े तो मैं खुशी खुशी सहन करुँगी...* उसका वर्णन फिर कभी नहीं करुँगी... मन-वाणी और कर्म में सहनशील बनूंगी... 

➳ _ ➳  *मुझे ही मरना पड़ता है... मुझे ही सहन करना पड़ता है... बाबा... इन शब्दों को मैं आत्मा अब कभी नहीं कहूँगी... इस बेहद की स्क्रीन पर हर सीन को मैं आत्मा साक्षी भाव से देखूँगी...* कोई भी परिस्थिति मुझे डगमग नहीं कर सकेगी... मैं आत्मा सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रख अपना रोल प्ले करुँगी... *दिल व जान से आपकी बच्ची होने का सबूत हर आत्मा को कराऊँगी...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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