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27 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आपस में एकमत होकर रहे ?*

 

➢➢ *जो बात पसंद नहीं आई, उसे एक कान से सुन दुसरे से निकाला ?*

 

➢➢ *बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बंधन से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बंधन से मुक्त रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अभी समय प्रमाण वृत्ति से वायुमण्डल बनाने के तीव्र पुरुषार्थ की आवश्यकता हैं इसलिए वृत्ति में जरा भी किचड़ा न हो, तब प्रकृति तक आपका वायब्रेशन जायेगा और वायुमण्डल बनेगा इसलिए *हर एक की विशेषताओं को देखो और अपनी वृत्ति को सदा शुभ रखो। इसके लिए याद रखो कि 'दुआ देना है और दुआ लेना है' कोई भी निगेटिव बात एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं महावीर आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को महावीर अनुभव करते हो? *महावीर अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान। जो महावीर आत्मा है उसके लिए सर्व शक्तियां सदा सहयोगी हैं। ऐसे नहीं कि कोई शक्ति सहयोगी हो और कोई शक्ति समय पर धोखा देने वाली हो! हर शक्ति आर्डर पर चलने वाली हो।* जिस समय जो शक्ति चाहिए वो सहयोगी बनती है या टाइम निकल जाता है, पीछे शक्ति काम करती है? आर्डर किया और हुआ। ये सोचना वा कहना न पड़े कि-करना नहीं चाहिए था लेकिन कर लिया, बोलना नहीं चाहिए लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि शक्ति समय पर सहयोगी नहीं होती। सुनना नहीं चाहिए लेकिन सुन लिया, तो कान कर्मेन्द्रिय अपने वश में नहीं हुई ना! अगर सुनने नहीं चाहते और सुन लिया-तो कान ने धोखा दे दिया।

 

  अपनी कर्मेन्द्रियां अगर समय पर धोखा दे दें तो उसको राजा कैसे कहेंगे! राजयोगी का अर्थ ही है हर कर्मेन्द्रिय र्डर पर चले। जो चाहे, जब चाहे, जैसा चाहिए-सर्व कर्मेन्द्रियां वैसा ही करें। *महावीर कभी भी यह बहाना नहीं बना सकता कि समय ऐसा था, सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी। नहीं। समस्या का काम है आना और महावीर का काम है समस्या का समाधान करना, न कि हार खाना।* तो अपने आपको परीक्षा के समय चेक करो। ऐसे नहीं-परीक्षा तो आई नहीं, मैं ठीक हूँ! पास तो पेपर के टाइम होना पड़ता है! या पेपर हुआ ही नहीं और मैं पास हो गया?

 

  तो सदा निर्भय होकर विजयी बनना। कहना नहीं है, करना है! छोटी-मोटी बात में कमजोर नहीं होना है। जो महावीर विजयी आत्मा होते हैं वो सदा हर कदम में तन से, मन से खुश रहते हैं। उदास नहीं रहते, चिंता में नहीं आते। सदा खुश और बेफिक्र होंगे। *महावीर आत्मा के पास दु:ख की लहर स्वप्न में भी नहीं आ सकती। क्योंकि सुख के सागर के बच्चे बन गये। तो कहाँ सुख का सागर और कहाँ दु:ख की लहर! स्वप्न  भी परिवर्तन हो जाते हैं।* नया जन्म हुआ तो स्वप्न भी नये आयेंगे ना! संकल्प भी नये, जीवन भी नई। जब बाप के बन गये तो जैसा बाप वैसे बच्चे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज से परे रहने वाला बाप, आवाज की दुनिया में आवाज द्वारा सर्व को आवाज से परे ले जाते हैं। बापदादा का आना होता ही है साथ ले जाने के लिए तो सभी साथ जाने के लिए एवररेडी हो वा अभी तक तैयार होने के लिए समय चाहिए? *साथ जाने के लिए बिन्दु बनना पडे। और बिन्दु बनने के लिए सर्व प्रकार के बिखरे हुए विस्तार अर्थात अनेक शाखाओं के वृक्ष को बीज में समाकर बीजरूप स्थिति अर्थात बिन्दु में सबको समाना पडे।*

 

✧  लौकिक रीति में भी जब बडे विस्तार का हिसाब करते हो तो सारे हिसाब को समाप्त कर लास्ट में क्या कहते? कहा जाता है - 'कहो शिव अर्थात बिन्दी।' ऐसे सृष्टि चक्र वा कल्प वृक्ष के अन्दर आदि से अंत तक कितने हिसाब-किताब के विस्तार में आये? *अपने हिसाब-किताब की शाखाओं अथवा विस्तार रूपी वृक्ष को जानते हो ना?*

 

✧  देह के हिसाब की शाखा, देह के सम्बन्धों के शाखायें, देह के भिन्न-भिन्न पदार्थों में बन्धनी आत्मा बनने की शाखा, भक्तिमार्ग और गुरुओं के बंधनों के विस्तार की शाखायें, भिन्न-भिन्न प्रकार के विकर्मों के बंधनों की शाखायें, कर्मभोग की शाखायें, कितना विस्तार हो गया। अब इन *सारे विस्तार को बिन्दु रूप बन बिन्दी लगा रहे हो?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *पूजा की विधि में बूंद-बूंद का महत्व है।* इस समय आप बच्चे 'बिन्दू' के रहस्य में स्थित होते हो। विशेष सारे ज्ञान का सार एक बिन्दू शब्द में समाया हुआ है। बाप भी बिन्दू, आप आत्मायें भी बिन्दू और ड्रामा का ज्ञान धारण करने के लिए जो हुआ - फिनिश अर्थात् फुलस्टाप। बिन्दू लगा दिया। *परम आत्मा, आत्मा और यह प्रकृति का खेल अर्थात् ड्रामा तीनों का ज्ञान प्रैक्टिकल लाइफ में 'बिन्दू' ही अनुभव करते हो ना।* इसलिए भक्ति में भी प्रतिभा के बीच बिन्दू का महत्व है। *दूसरा है - बूंद का महत्व- आप सभी याद में बैठते हो या किसी को भी याद में बिठाते हो तो किस विधि से कराते हो? संकल्पों की बूंदों द्वारा - मैं आत्मा हूँ, यह बूंद डाली। बाप का बच्चा हूँ - यह दूसरी बूंद। ऐसे शुद्ध संकल्प की बूंद द्वारा मिलन की सिद्धि को अनुभव करते हो ना।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान में गंभीरता का गुण धारण करना"*

 

➳ _ ➳  *परमात्म मिलन की खुशी में मेरा तन मन आनंद मगन हो रहा है... डायमंड हॉल में मैं आत्मा अपने शिव साजन से मिलन मनाने के लिए बैठी हुई हूँ...* सामने स्टेज पर दादी के तन में शिव बाबा बैठे हैं... पुरे हॉल में बस मैं और मेरे बाबा हैं... बड़े प्यार से बाबा मुझे स्टेज पर बुलाते हैं... मैं फ़रिश्ता बापदादा के बिल्कुल सम्मुख बैठा हूँ... उनकी स्नेह भरी मुस्कान पाकर मैं आत्मा निहाल हो रही हूँ... *अपना प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिराकर बाबा मुझे सर्व खजानों से, सर्व सुखों से भरपूर कर रहे हैं...*

 

❉  *मुझ नन्हे फरिश्ते को अपनी स्नेहमयी गोदी में बिठाकर शिव बाबा मां के रूप में कहते हैं:-* "मीठे प्यारे बच्चे... यह श्रेष्ठ और ऊंचे से ऊंचा ज्ञान स्वयं भगवान तुम्हें सुना रहे हैं... *इस ज्ञान में गंभीरता का गुण धारण करना बहुत जरूरी है... कभी भी अपना अभिमान नहीं आना चाहिए... माताओं का रिगार्ड रखना है...*

 

➳ _ ➳  *अपनी मीठी मां की गोद में बैठ अपार सुख पाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणाधार मीठे बाबा... मैं आत्मा सदैव आपकी श्रीमत को अपने जीवन में धारण कर रही हूँ... इस *ज्ञान की एक-एक पॉइंट पर गहराई से चिंतन करते हुए, विचार सागर मंथन करके इसे आत्मसात कर रही हूँ...* ज्ञान में *रमणीकता और गंभीरता का गुण धारण कर रही हूँ...* आपने ज्ञान कलश माताओं के सिर पर रखा है... इसलिए मैं आत्मा माताओं का ही रिगार्ड रख रही हूँ... अहंकार अभिमान से मुक्त होती जा रही हूँ...

 

❉  *ज्ञान की शीतल फुहारों से मुझ आत्मा की प्यास बुझाते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... तुम्हें सतयुगी सुखों की दुनिया में ले जाने के लिए बाबा आए हैं... तुम बच्चे *इस ज्ञान को अच्छी रीति धारण करो... कभी भी ब्राह्मणी से रूठना नहीं है... रूठ करके तुम्हें कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है... पढ़ाई अगर छोड़ेंगे तो रसातल में चले जाओगे...* बाबा आए हैं ज्ञान सुनाने तो यह ज्ञान सुनना चाहिए... जैसे भक्ति में गीता आदि कितने नियम से सुनते हैं, वैसे ही तुम्हें भी *नियम से ज्ञान मुरली सुननी है... और बाबा की याद में रहना है... याद से ही बुद्धि का ताला खुलेगा..."*

 

➳ _ ➳  *बाबा से मिले एक एक ज्ञान रत्न को बुद्धि रूपी पात्र में धारण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... आपने मुझे अपना बनाकर मेरे जीवन में जैसे कि खुशियों की बहार ला दी है... *मैं कितनी भाग्यवान आत्मा हूँ... जो स्वयं ईश्वर पिता ने मुझे अपनी गोदी में बिठा लिया है...* मैं आत्मा आपके द्वारा दिए गए ज्ञान को ही धारण कर रही हूँ... नियम से ज्ञान मुरली सुन रही हूँ... *मुरली के एक एक महावाक्य पर मनन करके उसे जीवन में समा रही हूँ...* आपकी याद से मेरे सभी विकर्म भस्म होते जा रहे हैं..."

 

❉  *मुझ आत्मा को दिव्य गुणों और शक्तियों के गहनों से सजाते हुए शिव मां कहती है:-* "नैनों की नूर प्यारे बच्चे... *यदि बाबा की याद नहीं रहेगी तो माया रूपी ग्राह हप कर लेगा... इस ज्ञान में बहुत गंभीरता चाहिए... और अभिमान नहीं आना चाहिए कि मैं ही जानता हूँ...* जितना हो सके हर बात में माताओं को आगे रखना है... माताओं का रिगार्ड रखना है... आपस में एकमत होकर रहना है... *क्रोध बहुत नुकसान करता है... इसलिए कभी भी क्रोध नहीं करना है... बहुत बहुत मीठा बनना है..."*

 

➳ _ ➳  *प्रभु पिता की पालना में पलकर खुशी में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे बाबा... मैं आत्मा हर समय आपकी ही मीठी यादों में समाई हुई हूँ... *आपकी याद रूपी कवच में मैं माया के हर वार से पूरी तरह सुरक्षित हूँ...* अहंकार और अभिमान से पूरी तरह मुक्त होती जा रही हूँ... माताओं को हर बात में स्नेह और रिगार्ड दे रही हूँ... *आपस में बहुत स्नेह से एकमत होकर चल रही हूँ... क्रोध आदि विकारों से मुक्त होकर जीवन में मधुरता का गुण धारण कर रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूठ कर कभी भी पढ़ाई नही छोड़नी है*"

 

 _ ➳  स्वयं भगवान परमशिक्षक बन परमधाम से हर रोज मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति मेरे अंदर एक अदबुत रूहानी जोश और उमंग भर देती है। *मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते हुए मैं उन खूबसूरत पलों को याद करती हूँ जब निराकार भगवान साकार में आकर शिक्षक बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने हम पर लुटाते हैं*। उस सीन की मधुर स्मृति मुझे परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन के उस डायमंड हाल में ले जाती हैं जहाँ भगवान साकार में आकर, अपने बच्चों के समुख बैठ बाप बन उनकी पालना करते हैं, टीचर बन उन्हें पढ़ाते हैं और सतगुरु बन अपनी श्रेष्ठ मत उन्हें देकर उनका कल्याण करते हैं। *मन बुद्धि से पहुँची मधुबन के डायमंड हाल मैं बैठी परमात्म मिलन का मैं आनन्द ले रही हूँ और अपने परमशिक्षक के मुख कमल से उच्चारे महावाक्यों को सुन कर मन ही मन हर्षित हो रही हूँ*।

 

 _ ➳  यह विचार कि "मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" और स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए आये हैं, जैसे मुझ पर एक नशा चढ़ा रहा है। मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनाने वाली अपने परमशिक्षक शिव भगवान द्वारा पढ़ाई जा रही इस पढ़ाई को मुझे ना केवल अच्छी रीति पढ़ना है बल्कि इसे जीवन मे धारण कर, औरों को भी यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाना है। *मन ही मन यह विचार कर, स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि चाहे कुछ हो जाये किन्तु कभी भी किसी से रूठ कर भी, अपने परमशिक्षक से पढ़ना  मैं नही छोडूंगी। जब तक मेरे परमशिक्षक  शिवबाबा मुझे पढ़ाते रहेंगे तब तक इस संगमयुग के अंत तक मैं इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ती रहूँगी और अपने प्यारे बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर अपने जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ करती रहूँगी*।

 

 _ ➳  अपने परमशिक्षक से पढाई को अच्छी रीति पढ़ने की प्रतिज्ञा कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपने सेवाक्षेत्र पर लौट आती हूँ और मन ही मन अपने प्यारे भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा कर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर, अपना सम्पूर्ण ध्यान मैं अपने मस्तक पर एकाग्र करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्वयं को टिकाने का प्रयास करती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं सहज ही और अतिशीघ्र अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। स्वयं को मैं भृकुटि के बीच मे चमकते हुए एक अति सूक्ष्म स्टार के रूप में देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे चारों और फैल रहा है और मन को गहन सुकून का अनुभव करवा रहा है*। इस प्रकाश में समाये गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स इस प्रकाश के साथ अब धीरे - धीरे चारों और फैल रहें हैं। जो वायुमण्डल को गहन सुखमय और शांतमय बना रहे हैं।

 

 _ ➳  अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके, असीम आनन्द लेते हुए मैं आत्मा अब अपने परमशिक्षक शिव पिता से मिलन मनाने उनकी निराकारी दुनिया की ओर जा रही हूँ। *भृकुटि के भव्यभाल से उतर कर, मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर चल पड़ी हूँ। प्रभु प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सेकण्ड में साकार और सूक्ष्म वतन को पार कर अब पहुँच गई हूँ अपने शिव पिता के पास उनके निर्वाणधाम घर में जो वाणी से परें हैं*। साइलेन्स की यह दुनिया मेरा स्वीट साइलेन्स होम जहां आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। देख रही हूँ महाज्योति अपने शिव पिता, अपने परमशिक्षक को अपने बिल्कुल सामने। *ऐसा लग रहा है जैसे सर्व शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरते मेरे प्यारे पिता अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे समाने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बिखेरता मेरे पिता का यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे सहज ही अपनी और खींच रहा है। *मैं चमकती हुई जगमग करती चैतन्य ज्योति अब धीरे - धीरे महाज्योति अपने प्यारे पिता के समीप पहुँचती हूँ और जा कर जैसे ही उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे मुझे अपने आगोश में ले लेती हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का बल मुझे भी उनके समान शक्तिशाली और तेजोमय बना रहा है। *शक्तियों से सम्पन्न अपने अति चमकदार और लुभावने स्वरूप को देख मैं मंत्रमुग्ध हो रही हूँ  जो रीयल गोल्ड की तरह दिखाई दे रहा है*।

 

_ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे, साकार सृष्टि पर कर्म करने के लिए वापिस लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव पिता के फरमान पर चल, उनकी शिक्षायों को अपने जीवन मे धारण कर, अब मैं श्रेष्ठ बनने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं इस बात को सदा स्मृति में रखकर, रुठ कर पढ़ाई छोड़ने का संकल्प भी अपने मन मे ना उठाते हुए, अपने परमशिक्षक प्यारे बाबा से मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों से हर रोज अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर मैं औरो को भी इन ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना कर उनका भी कल्याण अब हर समय कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बंधन से मुक्त्त रहने वाली जीवन मुक्त्त   आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बंधन से मुक्त, साक्षी व रहमदिल बनने वाली तपस्वी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सर्वंश त्यागी सदा अपने को हर श्रेष्ठ कार्य के - सेवा की सफलता के कार्य मेंब्राह्मण आत्माओं की उन्नति के कार्य मेंकमज़ोरी वा व्यर्थ वातावरण को बदलने के कार्य में जिम्मेवार आत्मा समझेंगे।* सेवा में विघ्न बनने के कारण वा सम्बन्घ सम्पर्क में कोई भी नम्बरवार आत्माओं के कारण जरा भी हलचल होती है, तो *सर्वंन्श त्यागी बेहद के आधारमूर्त समझचारों ओर की हलचल को अचल बनाने की जिम्मेवारी समझेंगे।* ऐसे बेहद की उन्नति के आधार मूर्त सदा स्वयं को अनुभव करेंगे। ऐसा नहीं कि यह तो इस स्थान की बात है या इस बहन वा भाई की बात है। नहीं। ‘मेरा परिवार है'। मैं कल्याणकारी निमित्त आत्मा हूँ। टाइटल विश्व-कल्याणकारी का मिला हुआ हैं न कि सिर्फ स्व-कल्याणकारी वा अपने सेन्टर के कल्याणकारी। दूसरे की कमज़ोरी अर्थात् अपने परिवार की कमज़ोरी हैऐसे बेहद के निमित्त आत्मा समझेंगे। मैं-पन नहींनिमित्त मात्र हैं अर्थात् विश्व-कल्याण के आधारमूर्त बेहद के कार्य के आधारमूर्त हैं। *सर्वंश त्यागी सदा एकरस, एक मत, एक ही परिवार का एक ही कार्य है - सदा ऐसे एक ही स्मृति में नम्बर एक आत्मा होंगे।*

 

 ✺   *"ड्रिल :- विश्व कल्याणकारी अवस्था का अनुभव करना।"*

 

_ ➳  भक्ति मार्ग की मैं भक्त आत्मा... अपनी ही उलझन में उलझी... अपने ही दुःखों में डूबी... *अपनी ही विपरीत परिस्थितिओं को सुलझाने में खुद ही उलझ पड़ती मैं आत्मा... न अपना उद्धार कर पा रही थी और न ही औरों का...* भगवान को दर दर ढूंढती मैं आत्मा... सोचती थी मैं भगवान की पक्की भक्त फिर भी भगवान आ नहीं रहे हैं तो समस्त विश्व में मेरे जैसे कितने दुःखी... अशांत आत्मायें हैं जो भगवान को पुकार रहे हैं... *क्या भगवान को सुनाई नहीं दे रहा हैं... समस्त लोक के दुःखी... अशांत... आत्माओं की पुकार...* एक ही संकल्प मन में मुझ भक्त आत्मा में चलता रहता था कि मैं इन समस्त आत्माओं के लियें कुछ भी नहीं कर पा रही हूँ... बस देखती... सुनती रहती हूँ... और *मन ही मन भगवान को पुकारती रहती हूँ... अब तो आ जाओ...* और कितना पाप का घड़ा भरना बाक़ी हैं... अब तो अत्याचार की पराकाष्ठा हो गईं भगवान... अब तो आ जाओ...

 

_ ➳  और मैं भक्त आत्मा... भगवान को खोजती पहुँच जाती हूँ ब्रह्माकुमारी के सेंटर पर... *जहाँ सच्चा गीता ज्ञान मिला... मैं कौन... मेरा कौन... भगवान कौन की पहचान मिली...* और मन की आँखे खुल गई जब भगवान के अवतरण को प्रत्यक्ष महसूस किया... भगवान मेरे पिता शिवबाबा हैं... उनकी शक्तियों और प्यार की मैं हक़दार बच्ची हूँ... *यही वह संगमयुग हैं जब भगवान स्वयं अपना धाम छोड़ कर इस पतित दुनिया में आते हैं... अपने भक्तों को भक्ति का फल देने... अपने बच्चों को वर्सा देने आते हैं...* अपने बच्चों को अपनी ही शक्तियों से अवगत कराने आते हैं... अपने ही संस्कारों से परिपूर्ण कराने आते हैं... और मैं आत्मा बापदादा की शक्तियों की अधिकारी बन गई... अपने आप में सर्व शक्तियों से भरपूर हो गई... खुद के ही दुःखों की जंजीरों में बंधी मैं आत्मा... *बापदादा के प्यार भरी मुरली रूपी शिक्षाओं से दुःखों से मुक्त हो गई...*

 

_ ➳  और मैं आत्मा हद के बंधनों से निकल कर पहुँच जाती हूँ बेहद के त्यागी... तपस्वी जीवन में... *मैं आत्मा सदा स्वयं को बेहद की उन्नति की आधार मूर्त अनुभव करती हूँ...* समस्त ब्रह्माण्ड मेरा परिवार है... और सभी आत्माओं की मैं पूर्वज... विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ... दाता की बच्ची मैं दातापन के संस्कारों को अपने में उजागर करती हूँ... *मेरेपन की त्यागी मैं आत्मा बापदादा की लाडली बच्ची बन समस्त ब्रह्माण्ड में बापदादा के शांति रूपी किरणों को फैलाने में संगमयुग के क्षणों को व्यतीत करती जा रही हूँ...* दैवीय संस्कारों का आह्वान कर... सभी आत्माओं की मनोकामनाएं पूर्ण करती जा रही हूँ...

 

_ ➳  *हर पल बापदादा से बातें करती... बापदादा को साथ साथ महसूस करती... बापदादा के संग संग चलती मैं आत्मा... प्रत्यक्ष बापदादा को अनुभव करती रहती हूँ...*  उनके आशीर्वादों रूपी शक्तियों को अपने में धारण कर समस्त ब्रह्माण्ड में फैलाती जा रही हूँ... बापदादा के साथ साथ सभी अशांत... दुःखी... आत्माओं को शांति... पवित्रता के वाइब्रेशन से भरपूर करती जा रही हूँ... बापदादा के साथ फ़रिश्ता ड्रैस में सज मैं आत्मा... पूरे ब्रह्माण्ड में लाइट माइट हाउस बन शक्तियों रूपी लाइट से प्रकाशित करती जा रही हूँ... *विश्व-कल्याणकारी के स्टेज पर विराजमान मैं आत्मा... चारों ओर की हलचल को अचल बनाने की जिम्मेवारी बापदादा के साथ साथ निभाती जा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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