━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 19 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *हर एक्टर का पार्ट साक्षी होकर देखा ?*
➢➢ *"अब तो हमें वापिस जाना है" - अपने आपसे यह बातें की ?*
➢➢ *डबल लाइट स्थिति द्वारा उडती कला का अनुभव किया ?*
➢➢ *शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा कर मनसा सेवा का अभ्यास किया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जैसे साकार में आने जाने की सहज प्रैक्टिस हो गई है वैसे आत्मा को अपनी कर्मातीत अवस्था में रहने की भी प्रैक्टिस हो। अभी-अभी कर्मयोगी बन कर्म में आना, कर्म समाप्त हुआ फिर कर्मातीत अवस्था में रहना, इसका अनुभव सहज होता जाए। *सदा लक्ष्य रहे कि कर्मातीत अवस्था में रहना है, निमित्त मात्र कर्म करने के लिए कर्मयोगी बने फिर कर्मातीत।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं अनेक बार की विजयी आत्मा हूँ"*
〰✧ अनेक बार की विजयी आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? विजयी बनना मुश्किल लगता है या सहज? *क्योंकि जो सहज बात होती है वह सदा हो सकती है, मुश्किल बात सदा नहीं होती। जो अनेक बार कार्य किया हुआ होता है, वह स्वत: ही सहज हो जाता है। कभी कोई नया काम किया जाता है तो पहले मुश्किल लगता है लेकिन जब कर लिया जाता है तो वही मुश्किल काम सहज लगता है।*
〰✧ तो आप सभी इस एक बार के विजयी नहीं हो, अनेक बार के विजयी हो। *अनेक बार के विजयी अर्थात् सदा सहज विजय का अनुभव करने वाले। जो सहज विजयी हैं उनको हर कदम में ऐसे ही अनुभव होता कि यह सब कार्य हुए ही पड़े हैं, हर कदम में विजयी हुई पड़ी है। होगी या नहीं - यह संकल्प भी नहीं उठ सकता।* जब निश्चय है कि अनेक बार के विजयी हैं तो होगी या नहीं होगी - यह क्वेश्चन नहीं। 'निश्चय की निशानी है नशा और नशे की निशानी है खुशी'। जिसको नशा होगा वह सदा खुशी में रहेगा। हद के विजयी में भी कितनी खुशी होती है। जब भी कहाँ विजय प्राप्त करते हैं, तो बाजे-गाजे बजाते हैं ना।
〰✧ तो जिसको निश्चय और नशा है तो खुशी जरूर होगी। वह सदा खुशी में नाचता रहेगा। शरीर से तो कोई नाच सकते हैं, कोई नहीं भी नाच सकते हैं लेकिन मन में खुशी का नाचना - यह तो बेड पर बीमार भी नाच सकता है। कोई भी हो, यह नाचना सबके लिए सहज है। *क्योंकि विजयी होना अर्थात् स्वत: खुशी के बाजे बजना। जब बाजे बजते हैं तो पांव आपेही चलते रहते हैं। जो नहीं भी जानते होंगे, वह भी बैठे-बैठे नाचते रहेंगे। पांव हिलेगा, कांध हिलेगा। तो आप सभी अनेक बार के विजयी हो - इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते चलो।* दुनिया में सबको आवश्यकता ही है खुशी की। चाहे सब प्राप्तियां हों लेकिन खुशी की प्राप्ति नहीं है। तो जो अविनाशी खुशी की आवश्यकता दुनिया को है, वह खुशी सदा बांटते रहो।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ ज्ञानी तू आत्मा हो ना? ज्ञानी का अर्थ ही है समझदारा और आप तो तीनों कालों के समझदार हो, इसलिए *होली मनाना अर्थात इस गलती को जलाना।* जो भूलना है वह सेकण्ड में भूल जाये और जो याद करना है वह सेकण्ड में याद आए। कारण सिर्फ बिन्दी के बजाए क्वेचन मार्क है।
〰✧ क्यों सोचा और क्यू शुरू हो जाती है। ऐसा, वैसा, क्यों, क्या बडी क्यू शुरू हो जाती है। सिर्फ क्वेचन मार्क लगाने से। और बिन्दी लगा दो तो क्या होगा? *आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और व्यर्थ को भी बिन्दी, फुलस्टॉप स्टॉप भी नहीं, फुलस्टॉप।* इसको कहा जाता है होली।
〰✧ और इस होली से सदा बाप के संग के रंग की होली, मिलन मानते रहेंगे। सबसे पक्का रंग कौन-सा है? यह स्थूल रंग भल कितने भी पक्के हो लेकिन *सबसे पक्का रंग है बाप के संग का रंगा तो इस रंग से मनाओ।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बापदादा ने पहले भी समझाया है कि मुख्य ब्राह्मण जीवन के खज़ाने हैं- संकल्प, समय और वैसे श्वाँस भी बहुत अमूल्य है। एक श्वाँस भी कामन न हो। व्यर्थ नहीं हो। भक्ति में कहते हैं श्वाँसों-श्वाँस अपने इष्ट को याद करो। श्वाँस व्यर्थ नहीं जाये। *मुख्य संकल्प, समय और श्वाँस - आज्ञा प्रमाण सफल होता है? व्यर्थ तो नहीं जाता क्योंकि व्यर्थ जाने से जमा नहीं होता।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से सर्व सम्बन्ध रखना"*
➳ _ ➳ मधुबन प्रांगण में घूमती हुई मै आत्मा.... अपने प्यारे बाबा का... मुझ आत्मा के मिलन के लिए सजाया आशियाँ देख रही हूँ... और अपने मीठे भाग्य के गौरव में पुलकित हो रही हूँ... दुनिया भगवान के नाम के सिमरन मात्र में खोयी हुई... और *मै भाग्यशाली आत्मा, सम्मुख मिलन के शानदार भाग्य को बाँहों में लेकर घूम रही हूँ... मेरी जिंदगी की बागडोर ईश्वर पिता के हाथो में है... भगवान स्वयं टीचर बनकर... मुझे देवताई ताजोतख्त के पद से सजा रहा है... हर पल हर साँस ईश्वर प्रेम में डूबी हुई है... ईश्वर की याद, ईश्वर पिता की बात, ही मेरे दिल में सदा गूंजती रहती है...* इस धरती पर रहते हुए, ख़ुशी में, मन के पैर धरती से ऊपर उठकर... आनन्द में नृत्य कर रहे है... यह कितना मीठा और अनोखा मेरा भाग्य है...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को इस देह की दुनिया के विस्तार से निकाल कर, सार स्वरूप बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस देह के दलदल में जो गर्दन तक फंसे हो... *अब मीठे बाबा की यादो में डूबकर... कछुए मिसल सारी कर्मेन्द्रियों को समेट कर... इस देह से न्यारे हो जाओ... मीठे बाबा से सर्व सम्बन्धो का सुख लेकर महान भाग्यशाली बन जाओ... मीठा बाबा ही सच्चा साथ निभाने वाला सर्व सम्बन्धी है..."*
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को पाकर, आनन्द से झूमते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर, सुख के सागर में लहरा रही हूँ... सच्चे प्यार को पाने वाली, जीने वाली, महान भाग्यवान बन गयी हूँ... *इस देह से उपराम होकर, अपने खुबसूरत देवताई भविष्य के नशे में झूम रही हूँ..."*
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम की तरंगो में तरंगित कर सच्ची रौनक से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो में खोये हुए परमात्म मिलन का आनन्द लेते रहो... स्वदर्शन फिराकर अपने महान भाग्य की स्मृतियों में मगन रहो... *ईश्वर पिता ही सच्चा साथी है.. जो हर पल, सच्चा साथ निभायेगा... बाकि तो सब ठग कर खाली बनाएगा... इसलिए हर साँस ईश्वरीय यादो में डूबे रहो..."*
➳ _ ➳ मै आत्मा इस जनम में ईश्वर पिता को पाने वाली, महान भाग्य से सजकर कहती हूँ :- "सच्चे साथी बाबा मेरे... देह की मिटटी में लथपथ मै आत्मा.. खोखले रिश्तो को ही जीवन का सत्य मानकर... अँधेरी राहो पर चली जा रही थी... *आपने अज्ञान के उस अँधेरे में आकर... मेरे हाथो को थाम लिया और मुझे अपने सच्चे प्रेम, सुख की मीठी अनुभूतियों में डुबो दिया... मै हर पल आपकी मीठी यादो में मगन हूँ..."*
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे सुख की मधुर अनुभूतियों में भिगोते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सच्चे प्रेम की बून्द को तरस रहे थे, आज प्रेम का सागर बाँहों में समा गया है.. तो ईश्वरीय प्रेम में हर रिश्ते का प्यार... अनुभव करने वाले खुशनसीब बन मुस्कराओ... सम्बन्धो की मिठास मीठे बाबा से... दिल के तार जोड़ कर, सच्चा सुख महसूस करो...*
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के प्रेम में सराबोर होकर असीम खुशियो में नाचते हुए कहती हूँ :-"मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सुख शांति की तलाश में दर दर भटक रही थी... और *आपने समन्दर मेरे आँचल में उंडेल दिया है... आपका प्यार पाकर, तो पूरा संसार मुझ पर प्यार लुटा रहा है..* ईश्वरीय तरंगो से हर दिल मुझसे सुख पा रहा है... आपके प्यार ने मुझे ऐसा सुखदायी फ़रिश्ता बना दिया है..."मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मै आत्मा इस धरा पर उतर आयी...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह सहित सबसे मोह निकाल विदेही बनने का पुरुषार्थ करना है"*
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया से डिटैच हो कर, अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं को देख रही हूं। इस देह से उपराम, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान मैं एक चमकती हुई मणि हूँ *अपने इस वास्तविक स्वरूप में स्थित होते ही मैं स्वयं को लगावमुक्त अनुभव कर रही हूं। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु से जैसे मैं अनासक्त हो गई हूँ*। संसार के किसी भी पदार्थ में मुझे कोई आसक्ति नही। इस नश्वर संसार से अनासक्त होते ही एक बहुत प्यारी और हल्की स्थिति का अनुभव मैं कर रही हूं। ऐसा लग रहा है जैसे देह और देह के सम्बन्धो की रस्सियों ने मुझ आत्मा को बांध रखा था इसलिए मैं उड़ नही पा रही थी लेकिन अब मैं सभी बन्धनों से मुक्त हो गई हूँ।
➳ _ ➳ बन्धनमुक्त हो कर अब मैं आत्मा इस देह से निकल कर चली ऊपर की ओर। आकाश के पार मैं पहुंच गई फरिश्तों की दुनिया में। फरिश्तों की इस दुनिया मे पहुंच कर अपने सम्पूर्ण निर्विकारी, सम्पूर्ण पावन फ़रिशता स्वरूप को मैने धारण कर लिया। *अब मैं फ़रिशता देख रहा हूँ स्वयं भगवान अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सम्मुख हैं। उनकी पावन दृष्टि जैसे - जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मैं फ़रिशता अति तेजस्वी बनता जा रहा हूँ*। बापदादा की शक्तिशाली किरणे मोती बन कर मेरे ऊपर बरस रही हैं और हर मोती से निकल रही रंग बिरंगी शक्तियों की किरणें मुझे शक्तिशाली बना रही हैं। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे डबल लाइट बना रही है।
➳ _ ➳ अपने इसी लाइट माइट स्वरूप में मैं फ़रिशता अब वापिस धरती की ओर लौट रहा हूँ। अब मैं सम्पूर्ण लगावमुक्त हूँ, विरक्त हूँ। संसार के सब प्रलोभनों से ऊपर हूँ। *देह की आकर्षण से मुक्त, देह के सम्बन्धो और देह से जुड़ी सभी इच्छाओं से मुक्त मैं फ़रिशता अब अपनी साकारी देह में प्रवेश कर रहा हूँ*।
➳ _ ➳ अब मैं देह में रहते हुए भी निरन्तर अव्यक्त स्थिति में स्थित हूँ। स्वयं को निरन्तर बापदादा की छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रहा हूँ। *अब मेरे सर्व सम्बन्ध केवल एक बाबा के साथ हैं। मेरे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म में केवल बाबा की याद समाई है*। बाबा की स्वर्णिम किरणों का छत्र निरन्तर मेरे ऊपर रहता है जो मुझे अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति से सदैव भरपूर रखता है।
➳ _ ➳ देह में रहते अव्यक्त स्थिति में स्थित होने के कारण अब मैं आत्मा स्वयं को सदा बाबा के साथ अटैच अनुभव करती हूं और उनकी लाइट माइट से स्वयं को हर समय भरपूर करती रहती हूँ। *साकारी देह में रहते हुए सम्पूर्ण नष्टोमोहा बन मैं अपने पिता परमात्मा के स्नेह में निरन्तर समाई रहती हूँ*। देह और देह की दुनिया से अब मेरा कोई रिश्ता नही।
➳ _ ➳ बाबा के प्रेम के रंग में रंगी मुझ आत्मा को सिवाय बाबा के और कुछ नजर नही आता। सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुवात करते बाबा, हर संकल्प, हर बोल में बाबा, हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली मैं लवलीन आत्मा बन गई हूं। *मुख से और दिल अब केवल यही निकलता है "दिल के सितार का गाता तार - तार है, बाबा ही संसार मेरा, बाबा ही संसार है"*
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाली बन्धनमुक़त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा करके मनसा सेवा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ (ड्रिल बहुत अच्छी लग रही थी) यह रोज हर एक को करनी चाहिए। ऐसे नहीं हम बिजी हैं। *बीच में समय प्रति समय एक सेकण्ड चाहे कोई बैठा भी हो, बात भी कर रहा हो, लेकिन एक सेकण्ड उनको भी ड्रिल करा सकते हैं* और स्वयं भी अभ्यास कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है। *दो-चार सेकण्ड भी निकालना चाहिए इससे बहुत मदद मिलेगी।* नहीं तो क्या होता है, सारा दिन बुद्धि चलती रहती है ना, तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और बीच-बीच में अभ्यास होगा तो जब चाहें उसी समय हो जायेंगे क्योंकि *अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेही पन का अभ्यास बहुत आवश्यक है।* ऐसे नहीं बात पूरी हो जाए और विदेही बनने का पुरुषार्थ ही करते रहें। तो सूर्यवंशी तो नहीं हुए ना! इसलिए *जितना जो बिजी है, उतना ही उसको बीच-बीच में यह अभ्यास करना जरूरी है।* फिर सेवा में जो कभी-कभी थकावट होती है, कभी कुछ-न -कुछ आपस में हलचल हो जाती है, वह नहीं होगा। अभ्यासी होंगे ना। *एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगा, तो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ।*
➳ _ ➳ युद्ध नहीं करनी पड़े। युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे। लास्ट घड़ी भी युद्ध में ही जायेगी, अगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृत्ति में, वायुमण्डल के प्रभाव में, जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जानबूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी। इसीलिए *विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है।* कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। *एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा।* जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ना। *विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ हैं, और देह से न्यारा हो गया, तो सबसे न्यारा हो गया।* इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, *इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। मन को कन्ट्रोल कर सकें, बुद्धि को एकाग्र कर सकें।* नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। पहले एकाग्र करें, तब ही विदेही बनें। अच्छा। आप लोगों का तो अभ्यास 14 वर्ष किया हुआ है ना! (बाबा ने संस्कार डाल दिया है) फाउण्डेशन पक्का है।
✺ *ड्रिल :- "सारे दिन के बीच-बीच में सेकण्ड में विदेही बनने का अभ्यास करना"*
➳ _ ➳ आवाज से परे, सुनहरी लाल प्रकाशमय निराकार दुनिया में, मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा स्थूल, सुक्ष्म देह से मुक्त, इस मुक्तिधाम के एकदम मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...* मैं सतचित आंनद स्वरूप आत्मा स्वधर्म में स्थित, स्वरूप में स्थित निजानंद में हूँ... *सामने महाज्योती सर्वशक्तिमान... सर्वशक्तिमान से अनंत शक्तियाँ मुझ निराकार आत्मा में समा रही है...* एक-एक शक्ति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा... *अपने अंदर समाती एक-एक का स्वरूप बनती जा रही हूँ...* शिवपिता की किरणों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ मैं विदेही आत्मा... मैं आत्मा अंनत शक्तियों से सम्पन्नता भरपूरता का अनुभव कर रही हूँ... *इसी नव उर्जा के साथ मैं आत्मा धरती की ओर प्रस्थान करती हूँ...* साकारी दुनिया में साकारी देह में मैं आत्मा अवतरित होती हूँ... और मैं आत्मा देख रही हूँ... *स्वयं को इस कर्म क्षेत्र पर भिन्न-भिन्न कार्यकलाप करते हुए...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब स्वयं को गृह के कार्य करते हुए देख रही हूँ... सभी कार्य करते, *मैं आत्मा एक सेकंड में समस्त चेतना को एकाग्र कर लेती हूँ भृकुटि के मध्य में... सामने आंनद का सागर मेरा बाबा है...* आंनद के सागर से अंनत आंनद की किरणों की बारिश मुझ आत्मा पर हो रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को आंनद स्वरूप अनुभव कर रही हूँ... *पूरे घर में आंनद की किरणों की बारिश मुझ आत्मा से हो रही है... आसपास की हर आत्मा आंनद की अनुभूति कर रही हैं...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ... एक भीड़ भरे स्थान से गुजरते हुए... चारों तरफ शोर ही शोर हैं... अलग-अलग तरह के वायब्रेशन्स से वायुमंडल प्रभावित है... *एक पावरफुल बेक्र के साथ मैं आत्मा मन में चल रहे संकल्पों को स्टाप करती हूँ... और स्थित हो जाती हूँ... अपने स्वधर्म में... और गहराई से अनुभव कर रही हूँ...* मैं अपने इस शांत स्वरूप को, शांति के सागर की छत्रछाया में, मुझ शांत स्वरूप आत्मा से *शांति की बारिश चारों ओर हो रही है... सभी आत्माएँ इस शांति की बारिश में भीगकर शांति की अनुभूति कर रही है...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को आफिस में वर्क करते हुए... *इस व्यवस्था के बीच, मैं आत्मा मन में उठ रही विचारों रूपी लहरों को, अन्तरमुखता रूपी सागर के तल में जाकर कहती हूँ कीप क्वाइट...* और सेकेंड में देह से न्यारी मैं विदेही आत्मा पहुंच जाती हूँ... बाबा की कुटिया में चारों तरफ लाल प्रकाश बीच में *मैं आत्मा सुख के सागर बाबा की शक्तिशाली किरणों में स्वयं को सुख स्वरूप अनुभव कर रही हूँ...* मुझ आत्मा से सुख की किरणें चारों ओर फैल रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बगीचे में अन्य आत्माओं के साथ स्वयं को वार्तालाप करते हुए देख रही हूँ... *ट्रैफिक की आवाज सुन मैं आत्मा एक दम एलर्ट मन में चल रही संकल्पों की धारा को एकाग्रता की शक्ति से मोड कर परमधाम में शिव पिता से जोड़ देती हूँ...* प्रेम के सागर से प्रेम की बरसात मुझ आत्मा पर हो रही है... और मुझ से ये किरणें अन्य आत्माओं पर पड़ रही है... *वे सभी भी ईशवरीय प्रेम का अनुभव कर रही है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा गाड़ी में बैठी हूँ... *मैं आत्मा मन में चल रहे संकल्पों के ट्रैफिक को एक सेकंड में आत्मिक स्थिति रूपी लाल बत्ती जलाकर स्टाप करती हूँ...* अनुभव कर रही हूँ, मैं निराकार आत्मा स्वयं को पवित्रता के सागर के झरने के नीचे... *पवित्रता की अनंत किरणें मुझ आत्मा में समा रही हैं... और मुझ से निकल चारों ओर फैल रही है...* सभी आत्माएं और प्रकृति भी इन किरणों को पाकर सुख-शांति का पवित्रता का अनुभव कर रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को खेतों में कार्य करते हुए... मैं आत्मा खेतों में बीज बो रही हूँ... तभी *मैं आत्मा मन में उठ रही संकल्पों रूपी शाखाओं के विस्तार को एक सेकेंड में समेट परमधाम में अपनी मास्टर बीजरुप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* बीजरुप बाबा की शक्तिशाली किरणों के नीचे *मैं आत्मा स्वयं को बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ... विदेही हूँ ये स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... देह से न्यारे होने से... सब से न्यारी हो गयी हूँ... अब एकाग्रता की शक्ति भी बढ़ गयीं है... कंट्रोलिंग पॉवर भी बढ़ गयी है... देह के कमजोर संस्कार स्वभाव धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे है...* और बार-बार के विदेही होने के अभ्यास से, मैं आत्मा माया के किसी भी प्रकार के प्रभाव से मुक्त हूँ...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━