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❍ 02 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सभी तरफ से बुधी की प्रीत हटाकर एक बाप से जोड़ी ?*
➢➢ *मात-पिता की श्रेष्ठ मत पर चलते रहे ?*
➢➢ *समय के महत्व को जान व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित किया ?*
➢➢ *एक बाप के फरमान पर चलते रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं। याद प्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं,* तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर दो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पुण्य आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? *सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य है - बाप का सन्देश दे बाप का बनाना। ऐसा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हो क्योंकि अब की पुण्य आत्मा सदाकाल के लिए पूज्य बन जाती है। पुण्य आत्मा ही पूज्य आत्मा बनती है।* अल्पकाल का पुण्य भी फल की प्राप्ति कराता है लेकिन वह है अल्पकाल का, यह है अविनाशी पुण्य। क्योंकि अविनाशी बाप का बनाते हो। इसका फल भी अविनाशी मिलता है।
〰✧ जन्म-जन्म के लिए पूज्य आत्मा बन जायेंगे। तो सदा पुण्य आत्मा समझते हुए हर कर्म पुण्य का करते रहो। पाप का खाता खत्म। पिछला पाप का खाता भी खत्म। क्योंकि पुण्य करते-करते पुण्य का तरफ ऊँचा हो जायेंगा तो पाप नीचे दब जायेगा। पुण्य करते रहो तो पुण्य का बैलेन्स बढ़ जायेगा और पाप नीचे हो जायेगा अर्थात् खत्म हो जायेगा। *सिर्फ चेक करो - हर संकल्प पुण्य का संकल्प हुआ, हर बोल पुण्य के बोल हुए? व्यर्थ बोल भी नहीं। व्यर्थ से पाप नहीं कटेगा। और पुण्य का फल भी नहीं मिलेगा इसलिए हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प पुण्य का हो। ऐसे सदा श्रेष्ठ पुण्य का कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हैं, यही सदा याद रखो।*
〰✧ संगमयुगी ब्रह्मणों का काम ही क्या है? पुण्य करना। और जितना पुण्य का काम करते हो उतनी खुशी भी होती है। चलते-फिरते किसको सन्देश देते हो तो उसकी खुशी कितना समय रहती है! तो पुण्य कर्म सदा खुशी का खजाना बढ़ाता है। और पाप कर्म खुशी गँवाता है। *अगर कभी खुशी गुम होती है तो समझो कोई न कोई बड़ा पाप नहीं तो छोटा अंश मात्र भी जरूर किया होगा। देह-अभिमान में आना यह भी पाप है ना क्योंकि बाप याद नहीं रहा तो पाप ही होगा ना। इसलिए 'सदा पुण्य आत्मा भव'।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अपना स्वमान याद करो - मास्टर सर्वशक्तिवान, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, स्वदर्शन चक्रधारी, उसी स्वमान के आधार पर क्या सर्वशक्तिवान के बच्चे को कोई कमेंद्रिय आकर्षित कर सकती है?* क्योंकि समय की समीपता को देखते अपने को देखो - सेकण्ड में सर्व बन्धनों से मुक्त हो सकते हो?
〰✧ कोई भी ऐसा बन्धन रहा हुआ तो नहीं है? क्योंकि *लास्ट पेपर में नम्बरवन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, सेकण्ड में जहाँ, जैसे मन-बुद्धि को लगाने चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाये।*
〰✧ हलचल में नहीं आये। जैसे स्थूल शरीर द्वारा जहाँ जाने चाहते हो, जा सकते हो ना! *ऐसे बुद्धि द्वारा जिस स्थिति में स्थित होने चाहो उसमें स्थित हो सकते हो?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थों से लगाव मिटाना सरल है लेकिन देह के भान से मुक्त होना मेहनत की बात है।* अभी क्या बन्धन रह गया है? यही। देह के भान से मुक्त हो जाना। जब चाहें तब व्यक्त में आयें। ऐसी प्रैक्टिस अभी जोर शोर से करनी है। *ऐसे ही समझे जैसे अब बाप आधार लेकर बोल रहे हैं वैसे ही हम भी देह का आधार लेकर कर्म कर रहे हैं। इस न्यारेपन की अवस्था प्रमाण ही प्यारा बनना है। जितना इस न्यारेपन की प्रैक्टिस में आगे होंगे उतना ही विश्व को प्यारे लगने में आगे होंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अलौकिक मुसाफिर शिवबाबा को याद करते करते फर्स्ट क्लास बन जाना”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मुझे कौड़ी से हसीना बनाने वाले मुसाफिर के पास वतन में पहुँच जाती हूँ...* जिसने मुझे स्मृति दिलाई की मैं ये विनाशी देह नहीं, एक सुन्दर सी चमकती हुई आत्मा मणि हूँ... मैं आत्मा देहधारियों को याद करते-करते दुःखधाम की मालिक बन दुखों के गर्त में गिरती चली गई थी... *ये अलौकिक मुसाफिर परमधाम से सफ़र कर इस दुनिया में आए... मुझे मेरे 84 जन्मों के सफ़र की सत्य कहानी बताकर... मुझे खूबसूरत बनाकर वापस अपने साथ घर ले जा रहे हैं...*
❉ *इस पुरानी विनाशी देह से ममत्व मिटाकर फर्स्ट क्लास शरीर पाने का पुरुषार्थ कराते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह की मिटटी में मन बुद्धि रुपी हाथो को अब और मैला न करो... *अपने सत्य स्वरूप के भान में डूब जाओ.. खेल अब पूरा हो गया है, घर जाना है और खुबसूरत देवताई शरीर में वापिस आना है... तो सच्चे सुखो की यादो में खो जाओ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की यादों में अपने दिल के दामन को सुख, शांति, आनंद से भरते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपने दमकते स्वरूप को पाकर निहाल हो गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपने मुझे अपना बनाकर, मेरा सदा का भाग्य सुनहरा कर दिया है... देवताई श्रृंगार और कंचन काया को पाने की मै अधिकारी हो गई हूँ...*”
❉ *मीठा बाबा अपनी मीठी मंद-मंद मुस्कान से मुझे अशरीरीपन का अनुभव कराते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस विनाशी दुनिया विनाशी सम्बन्धो और विनाशी देह से दिल न लगाओ... यह माया का छलावा है, इसके चंगुल में न आओ... *इसके भान से निकल कर आत्मिक नशे से भर जाओ... तो सतयुग के अथाह सुखो के बीच, सुंदर शरीर को पाने वाले देवता बन मुस्करायेंगे...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा रूहानी मुसाफिर के साथ यादों के रूहानी सफ़र में दिव्य गुणों से श्रृंगार करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच और झूठ के मर्म को जानकर सत्य राहो की राही बन गई हूँ... इस विकारी शरीर के मोह से निकल कर आत्मिक खूबसूरती में खो गयी हूँ... *प्यारे बाबा सत्य ज्ञान ने अज्ञान की धुंध को हटाकर, जीवन को उजालो से भर दिया है...”*
❉ *ज्ञान का दीप जलाकर मन को रोशन कर जीवन को खुशहाल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह विनाशी देह तो विकारो की परिणीति है... इस सत्य को अंतर्मन में गहराई से समाओ... और देह के भान से निकल अपने चमकते ओज की ख़ुशी में खो जाओ... *जो हो वही यादो की स्मृतियों पर सजाओ... और न्यारे प्यारे होकर सतयुगी दुनिया में देवपद को पाओ...”*
➳ _ ➳ *बाबा के प्यार के बंधन में बंधकर उमंगों के पंख लगाकर उड़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा स्वयं को विकारी का पर्याय यह देह समझ जीती जा रही थी... आपने प्यारे बाबा मुझे *सत्य ज्ञान से प्रकाशित कर मुझे खुशियो और उमंगो का नजारा दिखाया है...* मुझ आत्मा को खुशनसीब बनाकर मीठे सुखो का अधिकारी बनाया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्र बन परिस्तान की परी बनना है*"
➳ _ ➳ पवित्रता ही मेरे ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है। और इस श्रृंगार से सदा सजे सजाये रहने की स्वयं से प्रतिज्ञा करते - करते मैं मन बुद्धि से एक बहुत खूबसूरत पवित्र दुनिया मे पहुँच जाती हूँ। *पवित्रता के अद्भुत श्रृंगार से श्रृंगारित अनेक सुन्दर - सुन्दर परियाँ इस परीलोक में मैं देख रही हूँ*। श्वेत चमकीले वस्त्र, मस्तक पर चमकता हीरे जड़ित क्राउन, उनकी सुंदरता में जैसे चार चांद लगा रहा है। उनके अंग - अंग से निकल रही श्वेत रश्मियों से पूरा परीलोक प्रकाशित हो रहा है।
➳ _ ➳ इस परीलोक के सुंदर - सुन्दर अद्भुत नजारों को देखते - देखते मैं परिमहल के अंदर प्रवेश करती हूँ। *सामने रत्न जड़ित सिहांसन पर रानी परी बैठी है जो मुझे देखते ही बड़े प्यार से अपने पास बुलाती है और जैसे ही मुझे छूती है मेरी काया उसके समान प्रकाश की बन जाती है*। बाकी परियों के समान मैं भी उस परीलोक की परी बन अब उस खूबसूरत परीलोक में उनके साथ विहार कर रही हूँ।
➳ _ ➳ परीलोक के सुंदर नजारो का भरपूर आनन्द लेने के बाद मैं रानीपरी के पास पहुँचकर एक विचित्र दृश्य देखती हूँ। *रानी परी के रूप में मेरे सामने मम्मा बैठी है और बाकी परियों के रूप में वो सभी वरिष्ठ दादियां बैठी है जिन्होंने कठोर तप किया और सम्पूर्ण पवित्रता को अपने ब्राह्मण जीवन मे धारण किया तथा ज्ञान और योग से स्वयं को निखार कर खूबसूरत परीलोक की परियाँ बन गई*।
➳ _ ➳ अब मैं देखती हूँ उन सबको परीलोक की परियाँ बनाने वाले बापदादा एकाएक मेरे सामने उपस्तिथ होते हैं। *मुझे अपने पास आने का इशारा कर, पवित्रता के श्रृंगार से मुझे सदा सजे सजाये रहने का वरदान देकर अपनी शक्तिशाली दृष्टि से बाबा मुझे भरपूर कर देते हैं*। बड़े प्यार से बाबा मुझे अपने पास बिठाकर, प्यार भरी नजरों से मुझे निहारते हुए, पवित्रता की शक्ति से मेरा श्रृंगार करते हैं। *मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर सर्व ख़ज़ानों से बाबा मेरी झोली भर देते हैं और सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम, आनन्द, शक्ति और गुणों से मुझे भरपूर कर देते हैं*।
➳ _ ➳ पवित्रता के श्रृंगार से सजे अपने सुन्दर सलौने स्वरूप को और अधिक निखारने के लिए अब मैं अनादि पवित्र स्वरूप में स्थित होकर, पवित्रता की किरणें चारों ओर फैलाती हुई, पवित्रता के सागर अपने शिव पिता के पास उनकी पवित्र दुनिया परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। *पवित्रता के सागर, अपने प्राणेश्वर शिव बाबा के सम्मुख जा कर मैं बैठ जाती हूँ और उनकी पवित्रता की शक्ति से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ*। पवित्रता की अनन्त किरणे बाबा से निकल कर मुझ आत्मा के ऊपर निरन्तर प्रवाहित हो रही हैं जिससे मुझ आत्मा के उपर चढ़ा विकारों का किचड़ा धुल रहा है और मैं आत्मा स्वच्छ बन रही हूँ।
➳ _ ➳ स्वच्छ और पवित्र बन कर मैं आत्मा अब अपने इसी अनादि स्वरूप में परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और नीचे साकार सृष्टि पर आकर अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण जीवन के स्लोगन "पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है" को सदैव स्मृति में रख मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में धारण करने पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ*। पवित्रता का हथियाला बांध, गृहस्थ व्यवहार में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू अब मैं चारों और फैला रही हूँ।
➳ _ ➳ *अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई - भाई की दृष्टि मुझे प्रवृति में रहते भी पर - वृति का अनुभव करवा रही है। पवित्रता की गहन धारणा से अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करते हुए परिस्तान की परी बनने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समय के महत्व को जान व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली नॉलेजफुल महान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं एक बाप के फरमान पर चलते रह सारी विश्व को स्वयं पर स्वतः कुर्बान जाते हुए अनुभव करने वाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्मयोगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है।* कारण क्या है? कर्म करते, सोल कान्सेस और कर्म कान्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन-सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर *इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ।* क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, डयुटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो *अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ।*
➳ _ ➳ *यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है।* आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो *यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए।* चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। *अनुभव करें कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है।*
✺ *ड्रिल :- "कर्म करते कर्मयोगी स्टेज की स्थिति का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान... मुझसे चारों ओर सर्व शक्तियों के वायब्रेशन्स फैल रहें हैं... मैं आत्मा सर्वशक्तिवान... शिवबाबा... से कंबाइंड हूँ... सर्वशक्तिवान की शक्तिशाली किरणें निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रहीं हैं... मैं आत्मा सर्वशक्तियों से भरपूर हो रही हूँ... *वाह!! मैं पद्मापदम सौभाग्यशाली आत्मा... जो स्वयं भगवान ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को अपना बना लिया... और मैं आत्मा परमात्म पालना में पल रही हूँ ...*
➳ _ ➳ शिवबाबा ने अपना बनाकर आत्मा और परमात्मा का... सृष्टि के आदि मध्य अंत... का सत्य ज्ञान दिया... *कर्म करने का अलौकिक ज्ञान दिया... मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ... यह ज्ञान दिया... मैं... मेरा... मेरेपन का बोध कराया... आत्म अभिमानी और देह अभिमानी का अंतर समझाया... यह समझाया कि कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने वाली मैं आत्मा हूँ...* यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं... लेकिन इन कर्मचारियों से *कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ... न्यारी प्यारी आत्मा हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बार बार अभ्यास करती हूँ कि मैं करावनहार बन कर्म कर रही हूँ... करनहार अलग है... करावनहार अलग है... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में रहकर करती हूँ...* योगयुक्त होकर कर्म करने से हर कर्म सहज हो जाता है... सही ढंग से... सफलतापूर्वक और समय से भी पहले हो जाता है...
➳ _ ➳ मेरा न्यारापन सभी आत्माओं को रूहानियत की ओर आकर्षित कर रहा है... यह न्यारापन ही ईश्वरीय ज्ञान को प्रत्यक्ष करेगा... *मैं आत्मा हर कर्म में न्यारी बन... कर्मयोगी स्थिति में कर्म करती हुई... श्वांसों श्वांस बाबा की याद में रह... स्वयं को करावनहार शक्तिशाली आत्मा समझ हर कर्म कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *आत्मिक स्थिति में स्थित होकर कर्म करने से मैंपन समाप्त हो गया... कोई भी जिम्मेवारी बोझ नहीं लगती... निमित्त भाव, हल्के और शांत मन से कर्म करने से ख़ुशी का एहसास ही अलग है... बाबा की याद में... योगयुक्त होकर... उमंग उत्साह से कर्म बहुत सरलता से हो रहा है...* जैसे परमपिता से हमारा प्यार हमें योगी बनाता है... वैसे ही ईश्वरीय परिवार की सभी आत्माओं से प्यार हमें कर्मयोगी बना देता है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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