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❍ 08 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सबको गति सद्गति की राह बतायी ?*
➢➢ *एक बाप के सिवाए किसी को भी याद तो नहीं किया ?*
➢➢ *निश्चयबुधी बन लोकिक में अलोकिक भावना रखी ?*
➢➢ *अपनी श्रेष्ठ वृत्ति से वायुमंडल को श्रेष्ठ बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *चेक करो - जो भी संकल्प उठता है वह स्वयं वा सर्व के प्रति कल्याण का है? सेकेण्ड में कितने संकल्प उठे - उसमें कितने सफल हुए और कितने असफल हुए?* संकल्प और कर्म में अन्तर न हो। संकल्प जीवन का अमूल्य खजाना है। *जैसे स्थूल खजाने को व्यर्थ नहीं करते वैसे एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बेफिकर बादशाह हूँ"*
〰✧ सदा बेफिकर बादशाह हो ना। जब बाप को जिम्मेवारी दे दी तो फिर किस बात का? *जब अपने ऊपर जिम्मेवारी रखते हो तो फिर फिकर होता है - क्या होगा, कैसे होगा.., और जब बाप के हावाले कर दिया तो फिकर किसको होना चाहिए, बाप को या आपको? और बाप तो सागर है, उसमें फिकर रहेगा ही नहीं।*
〰✧ *तो बाप भी बेफिकर और बच्चे भी बेफिकर हो गये। तो जो भी कर्म करो, कर्म करने से पहले यह सोचे कि मैं ट्रस्टी हूँ। ट्रस्टी काम बहुत प्यार से करता है लेकिन बोझ नहीं होता है। ट्रस्टी का अर्थ ही है सब कुछ, बाप तेरा। तो तेरे में प्राप्ति भी ज्यादा और हल्के भी रहेंगे, काम भी अच्छा होगा क्योंकि जैसी स्मृति होती है, वैसी स्थित होती है।* तेरा माना बाप की स्मृति। कोई रिवाजी महान आत्मा नहीं है, बाप है! तो जब तेरा कह दिया तो कार्य भी अच्छा और स्थिति भी सदा बेफिकर। जब बाप आफर कर रहा है कि फिकर दे दो, फिर भी अगर आफर नहीं मानें तो क्या कहेंगे?
〰✧ बाप की आफर है - बोझ छोड़ो तो सदा बेफिकर रहना है और दूसरों को बेफिकर बनाने की, अनुभव से विधि बतानी है। बहुत आशीर्वाद मिलेगी! *किसका बोझ वा फिकर ले लो तो दिल से दुआयें देंगे। तो स्वयं भी बेफिकर बादशाह और दूसरों की भी शुभ-भावना की दुआयें मिलेंगी। तो बादशाह हो, अविनाशी धन के बादशाह हो! बादशाह को क्या परवाह! विनाशी बादशाहों को तो चिंता रहती है लेकिन यह अविनाशी है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बिन्दु स्वरूप में स्थित होना अर्थात डबल लाइट बनना।* बडी चीज को उठाना मुश्किल होता है, छोटी चीज को उठाना सहज होता है। छोटे बिन्दु रूप को स्मृति में रखते हो या लम्बे शरीर को याद रखते हो?
〰✧ याद के लिए कहा जाता है - बुद्धि में याद रखना। मोटी चीज को याद रखते हो और छोटी चीज को छोड देते हो, इसलिए मुश्किल हो जाता है। लाइफ में भी देखो - छोटा बनना अच्छा है वा बडा बनना अच्छा है? छोटा बनना अच्छा है। तो *छोटा स्वरूप याद रखना अच्छा है ना।*
〰✧ क्या याद रखेंगे? बिन्दु। सहज काम दिया है या मुश्किल? तो फिर ‘कभी-कभी’ क्यों करते हो? *सहज काम तो ‘सदा' हो सकता है ना।* जब बाप भी बिन्दु, आप भी बिन्दु काम भी बिन्दु से है तो बिन्दु को याद करना चाहिए। तो अभी डॉट को नहीं भूलना बोझ नहीं उठाना। अच्छा! यह वैरायटी गुलदस्ता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अव्यक्त में सर्विस कैसे होती है- यह अनुभव होता जाता है? अव्यक्त में सर्विस का साथ कैसे सदैव रहता है यह भी अनुभव होता है? *जो वायदा किया है कि स्नेही आत्माओं के हर सेकेण्ड साथ ही हैं, ऐसे सदैव साथ का अनुभव होता है? सिर्फ रूप बदला है लेकिन कर्तव्य वही चल रहा है।* जो भी स्नेही बच्चे हैं उन्हों के ऊपर छत्र रूप में नज़र आता है। छत्रछाया के नीचे सभी कार्य चल रहा है- ऐसी भासना आती है। *व्यक्त से अव्यक्त, अव्यक्त से व्यक्त में आना यह सीढ़ी उतरना और चढ़ना जैसे आदत पड़ गई है। अभी-अभी वहाँ, अभी-अभी यहाँ। जिसकी ऐसी स्थिति हो जाती है, अभ्यास हो जाता है उसको यह व्यक्त देश भी जैसे अव्यक्त भासता है। स्मृति और दृष्टि बदल जाती है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस पुरानी दुनिया से दिल ना लगाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा निराकार परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... परमधाम की रहने वाली मैं निराकार आत्मा इस सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते-बजाते इस दुनिया से ही दिल लगा बैठी... अपने असली पिता को भूल, अपने असली घर को भूल, अपने असली वजूद को ही भूल गई थी...* इस देह, देह के संबंधों, देह के वैभवों के आकर्षण में पड़ गई थी... प्यारे बाबा ने आकर मेरी अज्ञानता के परदे को उठाकर मुझे सत्य ज्ञान दिया... मैं आत्मा इस देह और इस दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास गुह्य राज जानने...
❉ *अपनी हथेली पर बहिश्त लाकर मुझे स्वर्ग की बादशाही देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपने खिलते हुए फूल बच्चों को पिता भला दुखो में तड़फता कैसे देख पाया... बाप भला बिना बच्चों के सुख के कैसे सुख और चैन पाये... मीठा बाबा हथेली पर स्वर्ग सौगात ले आया है...* बादशाह बनाने आया है... ऐसे सुखदायी सच्चे पिता की यादो में खो जाओ..."
➳ _ ➳ *हद की दुनिया से बुद्धि निकाल बेहद बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा प्यारे प्यारे पिता की यादो में सुखो से महकते हुए स्वर्ग को पा रही हूँ... कभी सोचा भी न था कि विश्व की मालिक बनूंगी और आज अपने शानदार भाग्य पर मुस्करा रही हूँ...* मीठे बाबा की यादो में तपते कदमो तले फूलो की छुअन आ रही है...”
❉ *नश्वर दुनिया के काँटों को निकाल मेरे जीवन में स्वर्ग सुखों के फूल खिलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले रिश्तो को याद करके दुखी होकर कितना थक गए हो... *अब ईश्वर पिता की यादो में सदा का आराम पाकर इस कदर खो जाओ... ईश्वर पिता की सारी जागीर बाँहों में भरकर सुखो के स्वर्ग में खिलखिलाओ...”*
➳ _ ➳ *खुशियों की पंछी बन सुखों के आसमान में विचरण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से ज्ञान रत्नों को पाकर सारे सत्य को जान ली हूँ... *दुखो के दलदल से निकल सुखो के स्वर्ग में कदम बढ़ा रही हूँ... मीठे बाबा के प्यार में खोकर अपनी देवताई गरिमा को पाती जा रही हूँ...”*
❉ *अपने निस्वार्थ अविनाशी प्रेम के फव्वारों में मुझे भिगोते हुए मेरे मनमीत प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिन बन्धनों को सत्य समझ अपने कीमती समय साँस संकल्पों को पानी सा बहा रहे वह ठग जायेंगे खोखला और खाली तन्हा सा बनायेगे... *इन सांसो और संकल्पों को ईश्वरीय प्रेम में लुटा दो... अपने निश्छल प्रेम को ईश्वर पिता पर अर्पण कर दो जो सच्चे सुखो का आधार बन खुशियो को लाएगा...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गोपिका बन मुरलीधर के मधुर तान में अपना सुध-बुध खोकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की छाँव तले सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... *मीठी मीठी यादो में जन्नत अपने नाम लिखवा रही हूँ... और पूरे विश्व धरा पर फूलो सा मुस्कराने वाली शहजादी बन रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्र बन आप समान पवित्र बनाना है*"
➳ _ ➳ पवित्रता मुझ आत्मा का श्रृंगार है और पवित्रता ही मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है। अपने मूल स्वरूप में तो मैं आत्मा सदैव ही प्योर हूँ और मेरा आदि स्वरूप भी सम्पूर्ण पवित्र सतोप्रधान है। *किन्तु देह भान में आकर, विकारो में गिर कर अपनी जिस पवित्रता को खो कर मैं दुखी और अशांत हो गई थी अपने उसी पवित्र स्वरूप को पुनः पाने के लिए अपने प्यारे पिता की आज्ञाओ पर अब मुझे सम्पूर्ण रीति अवश्य चलना है*। सम्पूर्ण पावन बनने का जो ऑर्डिनेंस पवित्रता के सागर शिव बाबा ने आ कर हम सभी आत्माओं को दिया है उनके इस फरमान का पालन करते हुए, मैं स्वयं से और अपने प्यारे पिता से *मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बनने की और पवित्र रहने की सच्ची राखी हर एक को बाँधने की प्रतिज्ञा करती हूँ और याद करती हूँ अपने अनादि और आदि सम्पूर्ण पवित्र स्वरूप को*।
➳ _ ➳ अपने अनादि स्वरूप में मैं स्वयं को अपने परमधाम घर मे अपने एवर प्योर शिव पिता के पास देख रही हूँ। यही मेरा वास्तविक सत्य स्वरूप है। *अपने इस स्वरूप में स्थित होकर मैं महसूस कर रही हूँ कि मुझ आत्मा में पवित्रता की कितनी अनन्त शक्ति है। अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा कितनी सुन्दर दिखाई दे रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे कोई बेदाग हीरा चमक रहा है। पवित्रता की किरणों का तेज प्रकाश मुझ आत्मा सितारे को कितना प्रकाशमय बना रहा है। अपने इस सुंदर स्वरूप का मैं आत्मा भरपूर आनन्द ले कर अब अपने इसी सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को धारण किये नीचे साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर अवतरित होती हूँ। *देवी देवताओं से सजी एक सुन्दर मन को लुभाने वाली दैवी दुनिया में अपने सम्पूर्ण देवताई स्वरूप को धारण कर इस सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाने का मेरा खेल प्रारम्भ होता है*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं अपने सम्पूर्ण पवित्र देवताई स्वरूप को। पवित्रता का ताज और रत्न जड़ित ताज मेरी सुंदरता में चार चांद लगा रहें हैं। *पवित्रता, सुख, शांति और सम्पन्नता से भरपूर अपने देवताई जीवन के अनुभव का असीम आनन्द लेकर पुनः अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं लौट आती हूँ और सेकण्ड में ब्राह्मण सो फ़रिश्ता बन, पवित्रता की सच्ची राखी अपने प्यारे बापदादा से बंधवाने के लिए उनके अव्यक्त वतन की प्रस्थान कर जाती हूँ*। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं अति शीघ्र आकाश को पार कर अपने अव्यक्त वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने प्यारे बापदादा के पास पहुँच जाती हूँ जो अपनी पवित्रता की लाइट सारे वतन में फैलाते हुए बहुत ही लुभायमान लग रहे हैं।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बापदादा के सम्मुख बैठ, उनसे पवित्रता की राखी बंधवा कर, उनकी पवित्रता की लाइट अपने अंदर समाकर मैं पवित्रता की शक्ति से भरपूर हो जाती हूँ और पवित्रता के सागर अपने प्यारे पिता के पास उनकी पवित्र निराकारी दुनिया में उनसे मिलन मनाने के लिए फिर से रूहानी यात्रा पर चल कर पहुँच जाती हूँ अपने परमधाम घर में। *आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप परमात्मा बाप के समीप जा कर, उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे मैं बैठ जाती हूँ। पवित्रता की किरणों का तेज फव्वारा सीधा मुझ आत्मा के ऊपर प्रवाहित होने लगता है और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की मैल धीरे - धीरे धुलने लगती है*। पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों की सारी अशुद्धता धीरे - धीरे पवित्रता की तेज किरणों की लाइट से जल कर भस्म हो जाती है और मेरा स्वरूप बहुत ही उज्ज्वल और चमकदार बन जाता है।
➳ _ ➳ अपने लाइट माइट पवित्र स्वरूप में अब मै लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया मे और अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे पिता के फरमान का पालन करते हुए, उनसे की हुई अपनी पवित्रता की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपने ब्राह्मण जीवन मे अब मैं मनसा, वाचा कर्मणा सम्पूर्ण पावन बनने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। *अपने जीवन को पवित्र बना कर, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी, पवित्र रहने की सच्ची राखी बाँध, पवित्रता का महत्व बता कर उन्हें भी पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै निश्चय बुद्धि बन लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाली डबलसेवाधारी ट्रस्टी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी श्रेष्ठ वृत्ति से वायुमण्डल को श्रेष्ठ बनाने की सच्ची सेवा करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *विश्व में एक तरफ भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि होगी, दूसरे तरफ आप बच्चों का पावरफुल योग अर्थात् लगन की अग्नि ज्वाला रूप में आवश्यक है*। यह ज्वाला रूप इस भ्रष्टाचार, अत्याचार के अग्नि को समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी। *आपकी लगन ज्वाला रूप की हो अर्थात् पावरफुल योग हो, तो यह याद की अग्नि, उस अग्नि को समाप्त करेगी और दूसरे तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करायेगी*। बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रज्जवलित करायेगी। एक तरफ भस्म करेगी दूसरे तरफ शीतल भी करेगी। *बेहद के वैराग्य की लहर फैलायेगी*।
➳ _ ➳ बच्चे कहते हैं - मेरा योग तो है, सिवाए बाबा के और कोई नहीं, यह बहुत अच्छा है। परन्तु *समय अनुसार अभी ज्वाला रूप बनो*। *जो यादगार में शक्तियों का शक्ति रूप, महाशक्ति रूप, सर्व शस्त्रधारी दिखाया है, अभी वह महा शक्ति रूप प्रत्यक्ष करो*। चाहे पाण्डव हैं, चाहे शक्तियां हैं, सभी सागर से निकली हुई ज्ञान नदियां हो, सागर नहीं हो, नदी हो। ज्ञान गंगाये हो।तो *ज्ञान गंगायें अब आत्माओं को अपने ज्ञान की शीतलता द्वारा पापों की आग से मुक्त करो*। यह है वर्तमान समय का ब्राह्मणों का कार्य।
✺ *ड्रिल :- "ज्वाला रूप की योग अग्नि से भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि को समाप्त करना"*
➳ _ ➳ भृकुटी की कुटिया में बैठी मैं शिव सूर्य को एकटक निहारती हुई... *उनके रूहानी नयनों के प्यालों से बहता रूहानी प्रकाश... शक्तियों को मेरे रोम-रोम में भरता हुआ*... प्रकाश की एक तीव्र धारा मेरे मस्तिष्क में समाती हुई... *मन के सभी प्रकार के व्यर्थ के अंश को भस्म करती हुई... किसी तेज शावर की तरह यह मस्तिष्क से आँखों तक पहुँच रही है, और आँखो में बसे हर भ्रष्ट आचरण के अंश को पूरी तरह नष्ट कर रही है*... और बस आँखों में एक की ही सूरत... और उसी से लगी है पूरी लगन... बाकी अन्य सभी लगन विदाई लेती हुई... ये तेज शावर सभी ज्ञानेन्द्रियों से विकार के अंश को जलाकर भस्म कर रहा है... प्रकाश की दूसरी धारा शीतल पावन गंगाजल की भाँति मेरे रोम रोम में शीतलता प्रवाहित करती हुई... विकारों की भस्म को धोकर पूरी तरह साफ करती हुई...
➳ _ ➳ किसी पारदर्शी पावन दर्पण की तरह जगमगा उठा है मेरा अस्तित्व... शीशे की दीवारो में जगमगाती हुई जैसे कोई जगमग ज्योति... *एक विशाल ज्योति के रूप में मेरे ठीक ऊपर शिव पिता... मेरे साथ साथी बनकर*... सैकडों मील दूर तक फैली आकाश गंगा की भाँति उनसे निरन्तर मुझ तक आती हुई प्रकाश की धारा... और अब *ये प्रकाश ज्वाला का रूप धारण कर सारी सीमाओं को तोडता हुआ स्वछन्दता से आस पास के वातावरण में फैल रहा है... दूर दूर तक फैले हुए भ्रष्टाचार, और अत्याचार के कंटीले जंगल को जलाता हुआ*... उसके अंश को भस्म करता हुआ... *ये घने कैक्टस की झाडियाँ, ये विषैली नागफनियाँ*... जिन्होनें शिष्टाचार की कोमल कलियों को बंधक बना लिया था... आज जलकर भस्म हो रही है... शिव के साथ निरन्तर कम्बांइन्ड रूप में, मैं आत्मा शीतलता की धारा से इन कोमल कलियों को शीतल कर रही हूँ... मुक्त हुई ये कलियाँ बेहद के वैराग्य से भरकर निहार रही है शिव पिता की ओर... और हर एक अपने शक्ति स्वरूप को इमर्ज कर महाशक्ति रूप धारण कर रही है... देखते ही देखते इनसे एक साथ असंख्य ज्वालाएँ प्रकट होकर चारों दिशाओं में फैल गयी है... भ्रष्टाचार के वंश मात्र को भस्म करती हुई...
➳ _ ➳ और अब मैं आत्मा, शीतल गंगा की धारा बन, भ्रष्टाचार की इस भस्म को, इन पाँच तत्वों से बहुत दूर बहाकर ले जा रही हूँ... अपने पीछे की सृष्टि को सतोप्रधान बनाती हुई... एक नई ऊर्जा से भरकर ये धरा मुस्कुरा रही है... *सदाचार और नैतिकता के नन्हें अंकुर इसकी गोद में मुस्कुरानें लगें है... हवाऐं सौरभ लेकर गुनगुना रही है... मानों जगती का चप्पा चप्पा आज यही कह रहा है... जन्नत ने द्वार खटखटाया है आज... खोल सखी पट घूँघट के संदेशा प्रियतम का कोई लाया है आज*... निरन्तर अटैन्शन से, मैं आत्मा शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड रूप में... अब प्रवेश कर रही हूँ अपनी शीशे के समान पारदर्शी देह में... शिव शक्ति रूप में हर भ्रष्ट संकल्प के प्रति अटैन्शन रखती हुई... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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