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❍ 23 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप की याद और ज्ञान सागर के ज्ञान से सुंदर ज्ञान परी बनकर रहे ?*
➢➢ *अन्दर से भूतों को निकाल श्रेष्ठाचारी बनकर रहे ?*
➢➢ *इच्छा मातरम् अविध्या की स्थिति द्वारा मास्टर दाता बनकर रहे ?*
➢➢ *अपने मन बुधी संस्कारों पर सम्पूरण राज्य कर स्वराज्य अधिकारी अवस्था का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *एक तरफ बेहद का वैराग्य हो, दूसरी तरफ बाप के समान बाप के लव में लवलीन रहो,* एक सेकेण्ड और एक संकल्प भी इस लवलीन अवस्था से नीचे नहीं आओ । *ऐसे लवलीन बच्चों का संगठन ही बाप को प्रत्यक्ष करेगा ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बेफिकर बादशाह हूँ"*
〰✧ सभी बेफिकर बादशाह हो ना? अभी भी बादशाह और अनेक जन्म भी बादशाह! *जो अभी बेफिकर बादशाह नहीं बनते तो भविष्य के भी बादशाह नहीं बनते। अभी की बादशाही जन्म-जन्म की बादशाही के अधिकारी बना देती है।* कोई फिकर रहता है? चलते-चलते कोई भी सरकमस्टांस होते,पेपर आते तो फिकर तो नहीं होता? क्योंकि जब सब कुछ बाप के हवाले कर दिया तो फिकर किस बात का।
〰✧ *जब मेरा-पन होता है तब फिकर होता। जब बाप के हवाले कर दिया तो बाप जाने और बाप का काम जाने! स्वयं बेफिकर बादशाह। याद की मौज में रहो और सेवा करते रहो। याद में रह सेवा करो इसी में ही मौज है। मौजों के युग की मौजें मनाते रहो।* यह मौज सतयुग में भी नहीं होगी। यह ईश्वरीय मौजें हैं। वह देवताई मौजें होंगी। ईश्वरीय मौजों का समय अभी है। इसलिए मौज मनाओ, मूँझो नहीं जहाँ मूँझ है वहाँ मौज नहीं।
〰✧ किसी भी बात में मूँझना नहीं, क्या होगा, कैसे होगा! यह तो नहीं होगा.....यह है मूँझना। जो होता है वह अच्छा और कल्याणकारी होता है इसलिए मौज में रहो। *सदा यही टाइटल याद रखो कि हम बेफिकर बादशाह हैं। तो पुरूषार्थ की रफ्तार तीव्र हो जायेगी। मौज करो, मौज में रहो, कोई भी बात को सोचे नहीं, बाप सोचने वाले बैठा है, आप असोच बन जाओ।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ मानो अभी आप याद में बैठते हो, कैसे भी विघ्नों की अवस्था में बैठते हो, कैसे भी परिस्थितियाँ सामने होते हुए भी बैठते हो - लेकिन एक सेकण्ड में सोचा और अशरीरी हो जायें। वैसे तो एक सेकण्ड में अशरीरी होना बहुत सहज है। *लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, कोई सर्वीस के बहुत झंझट सामने है, सोचना और करना साथ - साथ चले*। सोचने के बाद पुरुषार्थ न करना पडे।
〰✧ अभी तो आप सोचते हो तब उस अवस्था में स्थित होते हो, *लेकिन ऐसा जो होगा उसका सोचना और स्थित होना साथ में होगा*, सोच और स्थिति में फर्क नहीं होगा। सोचा और हुआ।
〰✧ ऐसे जो अभ्यासी होंगे वही सर्वीस करने का पान का बीडा उठा सकेंगे। ऐसे कोई निमित्त है लेकिन बहुत थोडे। मैजोरिटी नहीं है, मैनारिटी हैं। उन्हों के ऊपर यहाँ ही फूल बरसायेंगे। *ऐसे जो ' पास विद आँनर ' होंगे, उन्हीं के ऊपर जो द्वापर के भक्त हैं वह अन्त में इस साकर रूप म़े फूलों की वर्षा करेंगे*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ समर्थ आत्मा समझ इस शरीर को देख रही हो? साक्षी अवस्था की स्थिति में स्थित होने से शक्ति मिलती है। जैसे कोई कमजोर होता है तो उनको शक्ति भरने के लिए ग्लूकोज़ चढ़ाते हैं। *तो जब अपने को शरीर से परे अशरीरी आत्मा समझते हैं तो यह साक्षीपन की अवस्था शक्ति भरने का काम करती है। और जितना समय साक्षी अवस्था की स्थिति रहती है उतना ही बाप साथी भी याद रहता है अर्थात् साथ रहता है। तो साथ भी है और साक्षी भी है। एक साक्षीपन की शक्ति, दूसरा बाप के साथी बनने की खुशी की खुराक। तो बताओ फिर क्या बन जायेंगी? निरोगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रेष्ठाचारी बनना और बनाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परमधाम में अपने अनादि स्वरुप में चमकती हुई मणि, इस सृष्टि में अपना पार्ट बजाने सतयुग में अवतरित होती हूँ... जहाँ चारों और खुशहाली ही खुशहाली रहती है...* सुख, शांति से भरी इस दुनिया में सभी श्रेष्ठाचारी रहते हैं... मैं आत्मा अपना श्रेष्ठ पार्ट बजाते-बजाते पतित, भ्रष्टाचारी कलियुगी दुनिया में पहुँच गई... जहाँ चारों ओर विकारों के गर्त में धंसकर सभी दुखी, अशांत हैं... फिर पतित पावन परमपिता परमात्मा इस सृष्टि में आकर सत्य ज्ञान देकर सबको पावन बना रहे हैं... *मैं आत्मा श्रेष्ठाचारी बनने की शिक्षा लेने पहुँच जाती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास...*
❉ *पवित्र रूहानी किरणों की छत्र छाया में दिव्य गुणों से श्रृंगार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... प्रवृत्ति में रहते हुए पवित्रता के आधार पर कमाल कर दिखाना है... *रूहानी गृहस्थी बनकर सबको श्रेष्ठता भरा मार्ग दिखाना है*... अपना जीवन महका कर औरो के जीवन में भी खुशियो के फूल खिलाने है... पावनता से सबको सजाकर देवताई सुंदरता दिलानी है...”
➳ _ ➳ *दिव्य, श्रेष्ठ कर्मों को अपने जीवन में धारण कर श्रेष्ठाचारी बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा पावनता के रंग में रंगकर निखरती जा रही हूँ... इस खुबसूरत रंग से पूरे विश्वधरा को रंग रही हूँ... *मीठे बाबा आपके प्यार में रूहानी जादूगर बनकर सबको श्रेष्ठाचारी बना रही हूँ... सच्चे सुखो से सबका दामन सजाकर खुशहाल बना रही हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा अपने नैनों से, मीठी मुस्कान से मेरी हर श्वांस को रंगीन बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता की शिक्षाओ का स्वरूप बनकर सुंदर जीवन की झलक हर दिल को दिखाओ... अपने जीवन की श्रेष्ठता का सबको दीवाना बनाओ...* गृहस्थ में रहते स्नेह से सबकी पालना करते, सुन्दरतम जीवन का प्रतिरूप बन जाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने दिव्य फरिश्ते स्वरूप में स्थित होकर पूरे विश्व को श्रेष्ठाचारी बनाने की सेवा करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यार भरी छत्रछाया का सुख हर आत्मा को दिलवा रही हूँ... *ईश्वर पिता धरा पर आकर मुझे देवताई श्रृंगार से सजा रहा, यह मीठी गूंज सारे विश्व में फैला रही हूँ...* सबके जीवन से दुखो की कालिमा हटाने वाली मै आत्मा कमाल दिखा रही हूँ..."
❉ *पवित्रता के दामन से मुझ आत्मा को सजाकर पूरे विश्व धरा को पावन बनाने की जिम्मेवारी देते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की मिटटी में गहरे घिरकर जो पतित और मलिन हो गए थे... अब ईश्वरीय प्यार में उजले पवित्र बन दमक उठो... *इस विश्व धरा से भ्र्ष्टाचार का सफाया कर दिव्य गुणो की धारा बहा दो... सबके दामन दिव्यता और श्रेष्ठता से रंग दो... और विश्व को सुखो का चमन बना दो..."*
➳ _ ➳ *मैं होली हंस आत्मा दिव्य वरदानों से अपनी झोली भरकर औरों को भी अमूल्य ख़ज़ाने पाने का मार्ग बतलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा आपसे पाये सच्चे ज्ञान रत्नों और श्रेष्ठ उत्तम जीवन को पाकर कितनी धनी मालामाल हो गयी हूँ... *आपके असीम स्नेह में प्रेम की प्रतिमूर्ति बन सबकी श्रेष्ठ पालना कर रही हूँ...* ईश्वरीय ज्ञान का हर दिल को मुरीद बना रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की याद और ज्ञान सागर के ज्ञान से सुन्दर ज्ञान परी बनना है*"
➳ _ ➳ एकांत में बैठ अपने ज्ञान सागर बाबा द्वारा मिले अविनाशी ज्ञान का मन्थन करके मन ही मन मैं हर्षित हो रही हूँ। *ज्ञान का एक - एक रत्न मेरे जीवन के हर अंधकार को मिटाकर मुझे उस रोशनी का अनुभव करवा रहा है जिस रोशनी से बड़े - बड़े महामंडलेश्वर और साधू सन्यासी भी परिचित नही है*। अपने आप को वेदों शास्त्रों के ज्ञाता समझने वाले, अपने ऊपर श्री श्री का टाइटल रख स्वयं को श्रेष्ठ समझने वाले वो साधू महात्मा वास्तव में कितने बड़े अज्ञान अंधकार में भटक रहे हैं, ये वो बेचारे स्वयं ही नही जानते। और कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं, जो भगवान स्वयं आकर हर रोज अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर करते हैं।
➳ _ ➳ इसी शुद्ध अहंकार के साथ, एक दिव्य रूहानी मस्ती से मैं झूमने लगती हूँ और रूहानी नशे से भरपूर होकर ज्ञान सागर अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन बुद्धि को स्थिर करती हूँ। *मन बुद्धि की तार ज्ञान सागर बाप के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से ज्ञान रत्नों की मेरे ऊपर बरसात हो रही है। ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की शीतलता का सुखद एहसास मन को जैसे गुदगुदा रहा है*। मैं स्वयं में एक अनोखी ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव कर रही हूँ। मेरा सारा शरीर एकदम रिलेक्स होता जा रहा है। कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शान्त और स्थिर हो चुकी हैं और शरीर की सारी चेतनता सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र गई है।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति मुझे मेरे वास्तविक स्वरुप, मेरे गुणों और मेरी शक्तियों का अनुभव करवा रही है। *स्वयं को मैं भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान एक चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ जिसमे से हल्का हल्का प्रकाश निकल रहा है और वो प्रकाश सात रंगों की अलग - अलग किरणों के रूप चारों ओर बिखर रहा है*। सातों गुणों की इन सतरँगी किरणो और इनके प्रकाश को मैं धीरे - धीरे अपने चारों और फैलता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *इस सतरँगी प्रकाश की किरणों को चारों ओर फैलाते हुए अब मैं भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ती हूँ और ज्ञान सागर अपने शिव पिता के साथ जुड़ी बुद्धि की डोर को थामे उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ सेकण्ड में साकारी और आकारी दुनिया को पार कर अपने निराकार शिव पिता की निराकारी दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ और उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरँगी किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मुझ आत्मा से निकल रही सतरँगी किरणो के प्रकाश को कई गुणा बढ़ा रहा है*। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे सम्पूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं। ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं इस निराकारी दुनिया से वापिस लौटती हूँ और फरिश्तो की आकारी दुनिया में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ सामने लाइट के संपूर्ण फरिश्ता स्वरूप में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में विराजमान शिव बाबा को मैं देख रही हूँ। *अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं उनके पास पहुँचती हूँ। अपनी बाहों में भरकर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाते हुए बापदादा मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और अपना वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर रख देते हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे बापदादा की हजारों भुजाओं के नीचे मैं बैठी हूँ और उन भुजाओं में से अखुट ज्ञान के खजाने निकल - निकल कर मेरे ऊपर बरस रहें हैं। *इन अखुट ख़ज़ानों के प्रकाश से मेरी प्रकाश की काया और भी चमकदार हो गई है और मेरा फरिश्ता स्वरूप एक सुन्दर सी ज्ञान परी के रूप में परिवर्तित हो गया है*।
➳ _ ➳ ज्ञान सागर अपने शिव पिता के ज्ञान से सुन्दर ज्ञान परी बन कर अब मैं ज्ञान के रंग बिरंगे मोती विश्व की सर्व आत्माओं पर बिखेरती हुई वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं अब ज्ञान रत्न दे कर उन्हें मालामाल बना रही हूँ। *ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में, उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे रहकर अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, ज्ञान परी बन मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का उपहार देकर, उन्हें अविनाशी खुशी प्रदान कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं इच्छा मात्रम अविद्या की स्थिति द्वारा मास्टर दाता बनने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने मन बुद्धि संस्कारों पर संपूर्ण राज्य करने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, वर्णन भी करते हो जैसे सम्पन्नता का समय समीप आता रहा तो क्या देखा? चलता फिरता फरिश्ता रूप, देहभान रहित। देह की फीलिंग आती थी? *सामने जाते रहे तो देह देखने आती थी या फरिश्ता रूप अनुभव होता था? कर्म करते भी, बातचीत करते भी, डायरेक्शन देते भी, उमंग-उत्साह बढ़ाते भी देह से न्यारा, सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति की।* कहते हो ना कि ब्रह्मा बाबा बात करते-करते ऐसे लगता था जैसे बात कर भी रहा है लेकिन यहाँ नहीं है, देख रहा है लेकिन दृष्टि अलौकिक है, यह स्थूल दृष्टि नहीं है। *देह-भान से न्यारा, दूसरे को भी देह का भान नहीं आये, न्यारा रूप दिखाई दे, इसको कहा जाता है देह में रहते फरिश्ता स्वरूप। हर बात में, वृत्ति में, दृष्टि में, कर्म में न्यारपन अनुभव हो।* यह बोल रहा है लेकिन न्यारा-न्यारा, प्यारा-प्यारा लगता है। आत्मिक प्यारा। *ऐसे फरिश्तेपन की अनुभूति स्वयं भी करे और औरों को भी करायें क्योंकि बिना फरिश्ता बने देवता नहीं बन सकते हैं।* फरिश्ता सो देवता है। तो नम्बरवन ब्रह्मा की आत्मा ने प्रत्यक्ष साकार रूप में भी फरिश्ता जीवन का अनुभव कराया और फरिश्ता स्वरूप बन गया।
✺ *ड्रिल :- "देह में रहते फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *वाह!! मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य... स्वयं भगवान बाप के रूप में हमारी कितनी श्रेष्ठ पालना कर रहें हैं... शिक्षक बन देवपद के लिये पढ़ाई पढ़ा रहें हैं... सद्गुरु बन वरदानों से भरपूर कर रहें हैं...* इतना श्रेष्ठ भाग्य... मैने तो कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि स्वयं भगवान मेरे ऊपर बलिहार जायेंगे...
➳ _ ➳ मैं आत्मा चमकती हुई ज्योति प्रकाश की देह में विराजमान हूँ... मुझसे चारों ओर प्रकाश की दिव्य... तेजस्वी किरणें फैल रहीं हैं... मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ... मन बिल्कुल हल्का... कोई बोझ नहीं... कोई कमी कमजोरी नहीं... बेफिक्र बादशाह... निश्चिन्त जीवन अनुभव कर रही हूँ... *सब बाबा को देकर... डबल लाइट बन संगमयुग के जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा इस देह में रहते हुए स्वयं को फरिश्ता स्थिति में देख रही हूँ...*
➳ _ ➳ *आहा!!! मेरा फरिश्ता स्वरूप...* सूक्ष्मवतन में बापदादा के सम्मुख... कभी उनकी गोद में... कभी साकार वतन में... देह में रह... कर्म करते हुए... *अव्यक्त स्थिति में... निरन्तर योगयुक्त... सभी के लिये कल्याण की भावना... शुभ भावना रख रही हूँ...* इर्ष्या... द्वेष... घृणा... नफरत... तेरे मेरे से परे हो गयी हूँ... *स्वयं भी आत्मिक स्थिति में रहती हूँ और दूसरों को भी आत्मा रूप में देखती हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा फरिश्ता स्थिति में रह सारे संसार को सन्देश दे रही हूँ... श्रेष्ठ वायब्रेशन्स फैला रही हूँ...* मैं आत्मा सभी आत्माओं को ईश्वरीय सन्देश देती हुई मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता दिखा रही हूँ... *मैं आत्मा इस देह में रहते सदा आत्मिक स्थिति में रहती हूँ...*
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➳ _ ➳ *देह के भान से न्यारी मैं आत्मा... हर बात में... वृति में... दृष्टि में... कृति में न्यारी रहती हूँ...* फरिश्ता रूप धर कर एक मिनट में कभी परमधाम... कभी सूक्ष्मवतन... कभी स्थूल वतन में चक्कर लगाती रहती हूँ... *मैं आत्मा इस देह में रहते हुए बार बार अपने इस फरिश्ते रूप को... अपने इस दिव्य... तेजस्वी स्वरूप को देख रही हूँ... मैं फरिश्ता ग्लोब पर खड़े होकर सारे संसार को... सम्पूर्ण प्रकृति को पवित्रता के और शक्तियों के वायब्रेशन्स दे रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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