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 04 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वयं को इस व्यक्त देह में अवतरित होने वाला अवतार समझा ?*

 

➢➢ *"यह देह सेवा के अर्थ बाप ने लोन में दी है" - यह स्मृति रही ?*

 

➢➢ *"जैसा बाप, वैसा मैं मास्टर" - यह बेहद का मैं पन रहा ?*

 

➢➢ *"एक तरफ उपराम स्थिति और दूसरी तरफ अपरमअपार प्राप्ति" - यह दोनों अनुभव साथ साथ किये ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए देह, सम्बन्ध वा पदार्थ का कोई भी लगाव नीचे न लाये।* जो वायदा है यह तन, मन, धन सब तेरा तो लगाव कैसे हो सकता! *फरिश्ता बनने के लिए यह प्रैक्टिकल अभ्यास करो कि यह सब सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को कल्प-कल्प की विजयी आत्मायें अनुभव करते हो? अनेक बार विजयी बनने का पार्ट बजाया है और अब भी बजा रहे हैं। *विजयी आत्मायें सदा औरों को भी विजयी बनाती है। जो अनेक बार किया जाता है वह सदा ही सहज होता है, मेहनत नहीं लगती है। अनेक बार की विजयी आत्मा हैं - इस स्मृति से कोई भी परिस्थिति को पार करना खेल लगता है।* खुशी अनुभव होती है?

 

  *विजयी आत्माओंको विजय अधिकार अनुभव होती है। अधिकार मेहनत से नहीं मिलता, स्वत: ही मिलता है। तो सदा विजय की खुशी से, अधिकार से आगे बढ़ते औरों को भी आगे बढ़ाते चलो। लौकिक परिवार में रहते लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करो क्योंकि अलौकिक सम्बन्ध सुख देने वाला है। लौकिक सम्बन्ध से अल्पकाल का सुख मिलता है, सदा का नहीं।* तो सदा सुखी बन गये।

 

  *दुखियों की दुनिया से सुख के संसार में आ गये - ऐसा अनुभव करते हो? पहले रावण के बच्चे थे तो दुखदाई थे, अभी सुखदाता के बच्चे सुखस्वरुप हो गये। फस्ट नम्बर यह अलौकिक ब्राह्मणों का परिवार है, देवतायें भी सेकण्ड नम्बर हो गये। तो यह अलौकिक जीवन प्यारी लगती है ना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बाप समान निराकारी और आकारी - इस स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? क्योंकि *शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। तो आप सभी भी साकारी होते हुए भी निराकारी और आकारी* अर्थात अव्यक्त स्थिति मे स्थित हो सकते हो।

 

✧  या साकार में ज्यादा आते हो? जैसे साकार में रहना नैचुरल हो गया है, ऐसे ही मैं आकारी फरिश्ता हूँ" और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ - यह दोनों स्मृतियाँ नैचुरल हो। क्योंकि जिससे प्यार होता है, तो *प्यार की निशानी है समान बनना।*

 

✧  बाप और दादा - निराकारी और आकारी हैं और दोनों से प्यार है तो समान बनना पडेगा ना तो *सदैव यह अभ्यास करो कि अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी।* साकार में आते भी आकारी और निराकारी स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकें।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जो हल्के होंगे वे एक सेकेण्ड में कोई भी आत्मा के संस्कारों को परख सकेंगे और जो भी परिस्थिति सामने आयेंगी उनको एक सेकेण्ड में निर्णय कर सकेंगे। यह है फ़रिश्तेपन की परख।* जब यह सभी गुण हर कर्म में प्रत्यक्ष दिखाई दें तो समझना अब सम्पूर्ण स्टेज नज़दीक है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ब्राहमण जन्म- अवतरित जन्म"*

 

_ ➳  वाह बाबा वाह आपने तो सचमुच मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा राजाओं का भी राजा बना दिया... *वह राजा तो कभी सीट पर बैठते कभी उतरते... लेकिन बाबा आपने तो मुझ आत्मा को सदा काल के लिए साक्षी पन के तख्त पर बिठा दिया...* वह तख्त जहां बैठ में आत्मा विश्व नाटक को हर्षित हो देख रही हूं... न कोई डर... न कोई चिंता मुझ आत्मा को सता रही है... चाहे प्रकृति की हलचल हो, या कोई भी कर्म भोग सामने आ जाए... मैं आत्मा साक्षी पन की सीट पर स्थित हूं... बाबा आपने तो बिल्कुल ही मुझ आत्मा को आप समान निडर बना दिया... *कितने ही अनुभव है बाबा जहां मुझ आत्मा ने साक्षी हो विजय पन का पार्ट बजाया... उन अनुभवों की स्मृति में खोई मैं आत्मा स्मृति स्वरूप हो गई हूं...* स्मृतियों के सागर में समाई मैं आत्मा उड़ चलती हूं अपने बाबा के घर...

 

   *मीठे बाबा निराकारी दुनिया में मुझ आत्मा का सच्चा सच्चा रूहानी श्रृंगार करते हुए कहते :-* मीठे बच्चे... *"काफी समय हुआ अपने साक्षी पन की सीट को छोड़ें... लो संभालो बच्चे अपने अविनाशी तख्त को... जहां के मालिक बन तुम आत्मा खुद पर, पूरे विश्व पर राज्य करती...* यही तो वह स्थिति थी जिसने आधा कल तुम्हें विजय बनाए रखा... यही वह तख्त है जहां बैठे खुशियों की कशिश तुम्हारे चेहरे से झलकती..."

 

_ ➳  *बाबा की आंखों में अपने प्रति इतना स्नेह इतनी फिक्र देख मैं आत्मा स्नेह सागर के सागर में समाई मीठे बाबा से बोली:-* "हां मेरे सच्चे सच्चे गुरु शुक्रिया... धन्यवाद बाबा मुझे सच्चा सच्चा राज्य दिलाने के लिए... *एक वह समय था मेरे सतगुरु जब मैं आत्मा परिस्थितियों के आगे जीरो थी... लेकिन आपके बिठाए साक्षी पन के तख्त पर मैं आत्मा जीरो से हीरो बन गई...* कोटि कोटि धन्यवाद मेरे सतगुरु... कोटि-कोटि धन्यवाद..."

 

  *मीठे बाबा ज्ञान बरसात करते, उमंग उत्साह की पिचकारी मारते मुझ आत्मा से बोले :-* "मेरे रूहानी गुलाब... *अब बीती सो बीती कर... आगे देखो... खुशियों का सागर बाहें फैलाए तुम्हें बुला रहा है... अब दुख के बादल हट सुखों का स्वर्णिम पहाड़ तुम्हारे लिए मीठे मीठे गीत गा रहा है... स्वर्ग के गेट बाहें फैलाए तुम्हारे स्वागत में खड़े हैं... चारों ओर प्रत्यक्षता के नगाड़े बज रहे हैं...* देखो बच्चे देखो ज्ञान का तीसरा नेत्र खोले, दिव्य बुद्धि द्वारा इस विश्व नाटक का भरपूर आनंद लो..."

 

_ ➳  *शिव शक्ति मैं आत्मा बाप के साथ कंबाइंड रूप में स्थित बाबा से बोलती हूं :-* "हां मीठे बाबा... देख रही हूं मैं आत्मा... चारों तरफ का नजारा देख रही हूं... सचमुच बाबा यह वही महाभारी लड़ाई है, जिससे अनेक धर्मों का विनाश हो एक सत्य धर्म की स्थापना हो रही है... *दुनिया वालों के लिए बाबा यह दुखों का पहाड़ है, मगर साक्षी पन की स्थिति में स्थित मैं आत्मा आपको अपना साथी बनाएं इन पहाड़ों को सुख का पहाड़ अनुभव कर रही हूं...* वाह बाबा वाह इतना तो एक ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है, जो पांव जमीन पर नहीं..."

 

   *मीठी मुस्कुराती दृष्टि देते हुए बाप दादा बोले :-* "हां बच्चे... ऐसे ही सदा उड़ती रहो... *तुम हो ही फरिश्ता... फरिश्तों के पांव भी कभी धरती पर पड़े हैं क्या! तुम तो हो ही अवतरित इस पुरानी देह, पुरानी दुनिया में...* यह दुनिया, यह देह, सब झूठ है... नाटक है... *साक्षी हो इस विश्व नाटक को देखते रहो उड़ते रहो... पूरे कल्प का यही वह समय है जब स्मृति है, ज्ञान है, बाप है... तो बस उड़ती रहो..."*

 

_ ➳  *उड़ती कला के विमान में बाप के साथ स्थित मैं आत्मा बाबा के कंधे पर सिर रखे बाबा से कहती हूं :-* "हां बाबा... ये स्थिति... कोई शब्द नहीं... बस महसूसता है... *आप और मैं इस संगम पर एक साथ पार्ट बजा रहे हैं...* क्या तो मेरा सौभाग्य है! स्वयं भाग्य विधाता मुझे मिल गया! मेरे बाबा शुक्रिया... क्या तो मैं बोलूं... बस अब यह पल है *आप हो और मैं हूं और यह सारी कायनात जो मुझे आपसे मिलाने की साजिश में लगी है... और दिल यही गीत गुनगुना रहा है, तुमको पाया है तो जैसे खोया हूं... कहना चाहूं भी तो तुमसे क्या कहूँ... मैं अगर कहूं कि तुमसा हसीन कायनात में नहीं है कोई, तारीफ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  स्वयं को इस देह में अवतरित हुआ अवतार समझना*

 

_ ➳  एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।

 

_ ➳  इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।

 

_ ➳  "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के  प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।

 

_ ➳  उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ज्ञान और योग की शक्त्ति से हर परिस्थिति को सेकण्ड में पास करने वाली महावीर आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं योग अग्नि से विकारों के बीज को भस्म करके समय पर धोखा नहीं खाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कई बच्चे कहते हैं कि समय समीप आ रहा है लेकिन जो संस्कार शुरू में इमर्ज नहीं थेवह अभी कहाँ-कहाँ इमर्ज हो रहे हैं। वायुमण्डल में संस्कार और इमर्ज हो रहे हैंइसका कारण क्या? *यह माया के वार का एक साधन है। माया इसी से अपना बनाकर परमात्म मार्ग से दिलशिकस्त बना देती है।* सोचते हैं कि अभी तक ऐसे ही है तो पता नहीं समानता की सफलता मिलेगी या नहीं मिलेगी! *कोई -न-कोई बात में जहाँ कमजोरी होगीउसी कमजोरी के रूप में माया दिलशिकस्त बनाने की कोशिश करती है।* बहुत अच्छा चलते-चलते कोई न कोई बात में माया संस्कार पर अटैक करपुराने संस्कार इमर्ज करने का रूप रखकर दिलशिकस्त करने की कोशिश करती है। *लास्ट में सब संस्कार समाप्त होने हैं इसलिए कभी-कभी रहे हुए संस्कार इमर्ज हो जाते हैं। लेकिन बापदादा आप सभी भाग्यवान बच्चों को इशारा दे रहे हैं - घबराओ नहींमाया की चाल को समझ जाओ।* आलस्य और व्यर्थ - इसमें निगेटिव भी आ जाता है - इन दोनों बातों पर विशेष अटेन्शन रखो। समझ जाओ कि यह माया का वर्तमान समय वार करने का साधन है।

 

 _ ➳  *बाप के साथ का अनुभव, कम्बाइन्ड-पन का अनुभव इमर्ज करो। ऐसे नहीं कि बाप तो है ही मेरासाथ है ही है। साथ का प्रैक्टिकल अनुभव इमर्ज हो।* तो यह माया का वारवार नहीं होगा,माया हार खा लेगी। यह माया की हार हैवार नहीं है। *सिर्फ घबराओ नहींक्या हो गयाक्यों हो गया! हिम्मत रखोबाप के साथ को स्मृति में रखो।* चेक करो कि बाप का साथ हैसाथ का अनुभव मर्ज रूप में तो नहीं है? *नालेज है कि बाप साथ हैनालेज के साथ-साथ बाप की पावर क्या हैआलमाइटी अथारिटी है तो सर्व शक्तियों की पावर इमर्ज रूप में अनुभव करो।* इसको कहा जाता है बाप के साथ का अनुभव होना। अलबेले नहीं बन जाओ - बाप के सिवाए और है ही कौनबाप ही तो है। जब बाप ही है तो वह पावर हैजैसे दुनिया वालों को कहते हो अगर परमात्मा व्यापक है तो परमात्म गुण अनुभव होने चाहिएदिखाई देने चाहिए। *तो बापदादा भी आपको पूछते हैं कि अगर बाप साथ हैकम्बाइन्ड है तो वह पावर हर कर्म में अनुभव होती है?*

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप के साथ का अनुभव इमर्ज कर माया को हराना"*

 

 _ ➳  अशरीरी स्वरूप में श्वेत प्रकाश के वस्त्र पहनकर मैं आत्मा स्थूल देह, स्थूल वतन को छोड़ अपने मीठे घर की ओर जा रही हूँ... प्रकाशमय अवस्था में स्वयं को हल्का एवं समर्थ अनुभव कर रही हूं... मीठे बाबा से मिलने की चाहत में मैं तीव्र गति से घर पहुंच रही हूं... परमधाम पहुंच मैं आत्मा अपने परमपिता से मिलन मना रही हूं... *मीठे बाबा की मीठी दृष्टि एवं उज्ज्वल शक्तिशाली किरणों के नीचे बैठ मैं आत्मा बाबा के स्नेहपूर्ण प्रकाश से भरपूर हो रही हूं...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा देह और देह की दुनिया में अपना पार्ट बजाते, कर्म खाता चुक्तु करते माया के प्रभाव से स्वयं को सुरक्षित करने के लिए *सर्वशक्तिमान बाबा की शक्तियों से श्रृंगार कर रही हूं...* बाबा मुझे अष्ट शक्तियों से सजा रहे हैं... सात गुणों की पावन किरणों से मुझे श्रृंगार रहे हैं... *मैं आत्मा शक्तियों व गुणों की अस्त्र शस्त्र से सजी हुई देवी स्वरूप में माया रूपी असुर विनाशिनी बन रही हूं...* तत्पश्चात मैं आत्मा बाबा से आज्ञा ले युद्ध स्थल अर्थात स्थूल वतन की ओर प्रस्थान करती हूं... *स्वयं के इस स्वरूप को देख मैं स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं...*

 

 _ ➳  *अब मैं देवी स्वरूपा विघ्न विनाशिनी रूप में धरती पर अवतरित होती हूं...* स्वयं के नए स्वरूप में स्थित होकर नए कर्तव्यों को प्रैक्टिकल में प्रयोग करने के लिए मैं तैयार हूं... माया के रॉयल सूक्ष्म रूप को पहचान कर बाबा के बताए महावाक्य रूपी बाण द्वारा माया के वार का सामना कर रही हूं... *माया के हलचल में स्वयं के नए स्वरूप में टिक कर आत्मा की अचल शक्तिशाली स्थिति को अनुभव कर रही हूं...* बाबा के साथ की स्मृति में रहकर माया के सम्मुख उपस्थित होते ही माया को धराशायी होते देख रही हूं... *बार बार माया को पराजित कर मैं आत्मा स्वयं के समर्थ स्वरूप को निहार रही हूं...* माया रावण को बाबा की मदद से हरा रही हूं, यह देख विजय की खुशी से गदगद हो रही हूं...

 

 _ ➳  *जिन परिस्थितियों को सम्हालना मुश्किल होता था कभी, आज उन्हीं परिस्थितियों को देख खेल सा अनुभव कर रही हूं...* माया का आना अब घबराहट नही बल्कि विजय की उद्घोषणा महसूस हो रही है... *एक सर्वशक्तिमान बाबा के संग कंबाइंड रहने से माया रूपी कालिया दमन सहजता से सम्भव हो रहा है...* माया के सिर पर खड़े होकर नृत्य करने की खुशी को अनुभव कर रही हूं... बाबा के संग हर साधारण कर्म असाधारण कमाई का ज़रिया महसूस हो रही है... *मीठे बाबा के अविनाशी हाथ और सदा साथ का सौगात पाकर मैं आत्मा स्वयं को भाग्यशाली महसूस कर रही हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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