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❍ 21 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सदा विकर्म विनाश करने की लगन में रहे ?*
➢➢ *ईविल बातों से कानो को बंद किया ?*
➢➢ *अमृतवेले के फाउंडेशन द्वारा सारे दिन की दिनचर्या को ठीक रखा ?*
➢➢ *बुधी को एकाग्र कर बाबा की मदद को कैच किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त बन विदेही स्थिति द्वारा कर्मातीत बने, तो *अव्यक्त ब्रह्मा की विशेष पालना के पात्र हो इसलिए अव्यक्त पालना का रेसपान्ड विदेही बनकर दो। सेवा और स्थिति का बैलेन्स रखो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी सच्चा ब्राह्मण हूँ"*
〰✧ *अपने को संगमयुगी सच्चे ब्राह्मण समझते हो! वह हैं नामधारी ब्राह्मण और आप हो पुण्य का काम करने वाले ब्राह्मण।*
〰✧ *ब्राह्मण अर्थात् स्वयं भी ऊँची स्थिति में रहने वाले और दूसरों को भी श्रेष्ठ बनाने के निमित्त बनने वाले। यही आपका काम है।*
〰✧ *सदा बेहद बाप के हैं बेहद की सेवा के निमित्त हैं, यही याद रखो। बेहद सेवा ही उड़ती कला में जाने का साधन है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बाप क्वेचन भी सुना रहे हैं, टाइम भी बता रहे है, फिर भी देखो कितने नम्बर बन जाते हैं। कहाँ 8 दाने का पहला नम्बर और कहाँ 16,000 का लास्ट नम्बर! कितना फर्क हुआ! क्वेचन सेकण्ड का वही होगा - *पहले नम्बर के लिए भी तो 16,000 के लास्ट नम्बर वाले के लिए भी क्वेचन एक ही होगा।*
〰✧ और कितने समय से सुना रहे हैं? तो सभी नम्बरवन आने चाहिए ना। इसी को ही अपने यादगार में ‘नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप' कहा है। बस, *सेकण्ड में मेरा बाबा दूसरा न कोई।* इस सोचने में भी समय लगता है लेकिन टिक जाएँ हिले नहीं। यह भी नहीं - सेकण्ड तो हो गया, *यह सोचा तो भी फेल हो जायेंगे।*
〰✧ कई बार जो पेपर देते हैं, वह इसी बात में ही फेल हो जाते हैं। क्वेचन पर जो लिखा हुआ होता है कि यह क्वेचन 5 मिनट का, यह 10 मिनट का, तो यही देखते हैं कि 5 मिनट, 10 मिनट हो तो नहीं गया। *समय को देखते, क्वेचन का उतर देना भूल जाते हैं।* तो यह अभ्यास चलते-फिरते, बीच-बीच मे करते रहो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ तो जिस समय 'मैं' शब्द-यूज़ करते हो उस समय ये सोचो कि मैं कौन? मैं शरीर तो हूँ ही नहीं ना। बॉडी-कॉन्सेसनेस तब आवे जब मैं शरीर हूँ। *शरीर तो मेरा कहते हो ना? कि मैं शरीर कहते हो? कभी ग़लती से कहते हो कि मैं शरीर हूँ? ग़लती से भी नहीं कहेंगे ना कि मैं शरीर हूँ। तो 'मैं' शब्द और ही स्मृति और समर्थी दिलाने वाला शब्द है, गिराने वाला नहीं है।* तो परिवर्तन करो। विश्व-परिवर्तक पक्के हो ना? देखना कच्चे नहीं बनना। *तो 'मैं' शब्द को भी अर्थ से परिवर्तन करो। जब भी 'मैं' शब्द बोलो, तो उस स्वरूप में टिक जाओ और जब ‘मेरा' शब्द-यूज़ करते हो तो सबसे पहले मेरा कौन?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से लव रखना"*
➳ _ ➳ प्रकृति के सानिध्य में, बैठी हुई मुझ आत्मा को... कलकल करते झरनो और कलरव करते पंछियो के मधुर गीत ने अपने प्रियतम की याद में डुबो दिया... मीठे बाबा के पास मेरे दिल के भाव जो पहुंचे... तो पलक झपकते बाबा मेरी नजरो के सम्मुख मौजूद हो गए... प्रेम से प्रेम मिल खिल गया और खुबसूरत समां बन गया... *आत्मा और परमात्मा दो दीवाने एक दूजे की दीवानगी में खो गए*... पूरी प्रकृति प्रेम तरंगो से सराबोर हो गयी... मै और बाबा दो प्रेमी संग प्रकृति का पत्ता पत्ता खिल उठा...
❉ मीठे बाबा मुझ भाग्यशाली आत्मा को अपने आगोश में लेते हुए प्यार करते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस देह की दुनिया में सच्चे प्यार की आस, मात्र एक भ्रम है... सिवाय ईश्वरीय प्रेम के हर प्रेम झूठा है, विकारी है... *सिर्फ ईश्वर पिता की यादे ही सच्चे प्यार का पर्याय है.*.. इसलिए इन खुबसूरत यादो में गहरे डूब जाओ... अशरीरी बनने का अभ्यास हर पल बढ़ाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वर प्रेम का अध्याय मीठे बाबा से यूँ सुनकर झूम उठी और बोली :- " प्यारे बाबा मेरे... इस धरती पर सच्चे प्रेम के लिए ही तो मै आत्मा व्याकुल थी... *कल्प पहले मिले आपके प्रेम की ही तो सदा तलाश थी.*.. आज भाग्य ने जो आपसे मुझे पुनः मिलाया है... मै आत्मा अपने चमकते रूप को पाकर... ख़ुशी में बावरी होकर हर पल आपकी यादो में खोयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा मेरे दिल से आती प्रेम तरंगो को अपनी बाँहों में समेटते हुए बोले :- "लाडले बच्चे... सदा सत्य की तलाश में ही तो दर दर भटके हो... *आज वह सत्य दिल के द्वार पर खड़ा बाहे फैलाये पुकार रहा.*.. फिर क्यों झूठ के आकर्षणों में समय और सांसो को खपाना... अपने आत्मिक स्वरूप में रहकर, अपनी अनन्त शक्तियो और गुणो के नशे में डूब जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे भगवान को पिता रूप में पाकर अपने भाग्य पर नाज कर कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... *आपने जो ज्ञान धरोहर देकर मेरे जीवन को अमूल्य बनाया है.*.. उसके नशे में, मै आत्मा हर पल खोयी हुई हूँ... देह के भ्रम से निकल कर, आत्मिक आकर्षण में खो गयी हूँ... और आपके प्रेम में डूबी हुई हूँ..."
❉ मीठे बाबा अपनी शक्तियो को मुझ पर उंडेलते हुए बोले :- "मीठे बच्चे... सच्चे पिता के सच्चे प्रेम मे खोकर जनमो के बिछड़ेपन को यादो से मिटाओ... *देह के नातो से बुद्धि निकाल सच्ची यादो में अथाह सुखो को पाओ.*... बिन्दु बन कर बिन्दु बाप की यादो में गहरे डूब जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने बाबा को मुझ आत्मा के कल्याण अर्थ... इस तरहा चिंतन में देख कहती हूँ :- "दुलारे प्यारे मेरे मीठे बाबा... आपके प्रेम को तो मै आत्मा जनमो से तरस रही हूँ... आज जो भाग्य ने आपको दिलाया है... तो आपकी यादे ही जीवन की साँस है... बिना साँस के तो मेरा वजूद ही नही... *आपके प्रेम में जो सुख मुझ आत्मा ने पाया है वह अमूल्य है.*.. ऐसी मीठी रुहरिहानं प्यारे बाबा से करके, मै आत्मा स्थूल जग में आ गयी..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- माया की ग्रहचारी से बचने के लिये इविल बातो से कान बन्द कर लेने है*
➳ _ ➳ एकान्त में बैठ परमात्म चिंतन करते हुए, बाबा के महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा बार - बार मुरलियों में माया से सावधान रहने का इशारा देते हैं। *क्योंकि माया इतनी जबरदस्त है जो रॉयल से रॉयल रूप धारण करके ब्राह्मण बच्चो के जीवन मे प्रवेश कर उन्हें भगवान से भी बेमुख कर देती है*। इसलिए माया के रॉयल से रॉयल रूप को भी परखने की शक्ति मुझे अपने अंदर जमा करनी है और उसके लिए बाबा ने जो अति सहज उपाय बताया है कि माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल लो अर्थात अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो जाओ। इस अभ्यास को ही अब मुझे बढ़ाना है।
➳ _ ➳ माया के हर वार से स्वयं को बचाने के लिए साइलेन्स की शक्ति स्वयं में जमा करने का संकल्प लेकर, स्वयं को मैं अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ और देह से डिटैच, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ। *सेकेण्ड में मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तियों की तेज लाइट सीधी नीचे आ रही है और मेरे मस्तक को छू रही है। शक्तियों का एक तेज करेन्ट मेरे मस्तक से होता हुआ मेरे सारे शरीर मे दौड़ रहा है*। एक अद्भुत शक्ति जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है जो मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार करने के साथ - साथ मुझे लाइट स्थिति में भी स्थित करती जा रही है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मैं देह के बन्धन से मुक्त होकर एक दम हल्की हो गई हूँ और अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मैं जैसे पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ और बस सीधी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती ही चली जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया पीछे छूटती जा रही है और मैं उस दुनिया से किनारा कर अब आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके स्वीट साइलेन्स होम में*। अपने इस साइलेन्स होम में आकर गहन शान्ति की अनुभूति में जैसे मैं स्वयं को भी भूल गई हूँ। हर संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुंदर निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर मैं केवल अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों और फैली हुई बहुत ही लुभायमान लग रही है और मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रही हैं। *एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे बाबा के पास जाती हूँ और एक - एक किरण को बड़े प्यार से टच करती हूँ। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणो को छूते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे हर किरण में से शान्ति की शीतल फ़ुहारों का झरना फूट रहा है और उन शीतल फ़ुहारों से निकलने वाले शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे रोम - रोम को शांति की शक्ति से भर रहें हैं*। साइलेन्स की शक्ति का बल स्वयं में भरकर, इस बल से माया को हराने के लिए अब मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, मुख में मुहलरा डालने की अपने सर्वशक्तिवान पिता द्वारा बताई युक्ति द्वारा अब मैं माया के वार से स्वयं को बचाने में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ। माया अनेक प्रकार के रॉयल रूप धारण करके मेरे पास आती है किंतु मुझे मेरे शांत स्वधर्म में स्थित देख, मेरे साइलेन्स के बल को देख वापिस लौट जाती है। *अपने शांत स्वधर्म में सदा स्थित रहकर, शांति के सागर अपने प्यारे पिता के साथ सदा स्वयं को कम्बाइंड रखने से माया का कोई भी वार अब मेरे ऊपर अपना कोई भी प्रभाव नही डालता। मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की सर्वशक्तियों का बल मुझे हर समय सर्व शक्तियों से भरपूर शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवाकर, मेरे चारों और हर समय एक शक्तिशाली सेफ्टी का किला बना कर मुझे माया से पूरी तरह सेफ रखता है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अमृतवेले के फाउंडेशन द्वारा सारे दिन की दिनचर्या को ठीक रखने वाली सहज पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं बुद्धि को एकाग्र करके बाबा की मदद को कैच करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है। ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ। मेरा निजी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो। वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया। पराये माल को अपना बना लिया। अब बाप के खजाने को अपना बनाओ। *रावण की चीज को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है?* कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है।
➳ _ ➳ जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं - बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है। बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज्यादा। *बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं। फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है - कि दिल से अगर एक बार भी 'मेरा बाबा' बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला 'मेरा बाबा', तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो।* ले तो जाना ही है। सिर्फ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सजनी बनकर चलना।
✺ *ड्रिल :- "रावण की जायदाद को छोड़ बाप की जायदाद को सम्भालना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक बहुत ही सुंदर बगीचे में बैठी हूं... जहां रंग बिरंगे फूल खिल रहे हैं... और फूलों पर तितलियां मंडरा रही है... और आस-पास बहुत ही मनमोहक हरियाली हो रही है... और इस हरियाली में अनेक तरह तरह के पक्षी चहचहा रहे हैं... मैं आत्मा एक स्थान पर बैठकर यह सारा नजारा अपने इन स्थूल नेत्रों से देख रही हूं...* और देख रही हूं कुछ पक्षी आपस में लड़ रहे हैं... और कभी कभी आपस में प्रेम कर रहे हैं... उनका लड़ना झगड़ना देखकर मैं अब अपनी दृष्टि तितलियों पर डालती हूँ... तितली जिस फूल पर बैठी है उस फूल में से एक भंवरा बाहर निकल कर उस तितली को कस के पकड़ना चाह रहा है... और तितली उसके कसके पकड़ने से बहुत ही तड़प रही है...
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं देखती हूं... कि वह भंवरा तितली को तड़पता हुआ देखकर छोड़ देता है... और तितली फर से उड़ जाती है... यह प्रक्रिया वह भंवरा बार बार दोहरा रहा है... पर तितली बार-बार उड़ जाती है... फिर मैं देखती हूँ की वह भंवरा शांत स्वरुप स्थिति में आराम से उस फूल पर बड़े स्नेह से बैठ जाता है... और जब वह तितली आती है तो उसे छूने की कोशिश करता है... उस तितली को भँवरे के स्नेह का आभास होता है... और वह आराम से उस फूल पर बैठकर फूलों से रस निकालती है... यह दृश्य देखकर मुझे आभास होता है कि *जब भँवरे के रावण के संस्कार थे तो तितली उससे दूर भाग रही थी... और जब वह अपने स्वधर्म में आया तो तितली उधर ही बैठ गयी...*
➳ _ ➳ और मेरे अंतर्मन को आभास होता है... कि *मेरे अंदर जो पुराने संस्कार हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार अगर इनके अंश भी है तो धीरे-धीरे इनका वंश बनने में समय नहीं लगेगा... और यह जो पुराने संस्कार है वह मेरे अपने संस्कार नहीं है... वह रावण के संस्कार हैं...* रावण की मत पर चलकर मैंने इतने समय से सिर्फ अपने साथ और अन्य आत्माओं के साथ गलत कर्म ही किए हैं... और इन कर्मों के कारण मेरा विकर्मो का खाता बढ़ता ही जा रहा है... और तभी मुझे आभास होता है कि मुझे अब इन रावण के अंश विकारों का भी अपने मन बुद्धि से त्याग करना होगा...
➳ _ ➳ और यह विचार करते मैं आत्मा अब अपने मन बुद्धि से अपने आप को फरिश्ता स्वरुप में अनुभव करती हूं... और परमात्मा को अपने साथ ज्योतिर्बिन्दु रूप में अनुभव करती हूँ... और फील करती हूं मेरा पूरा शरीर सफेद किरणों से जगमगा रहा है... औऱ अनुभव करती हूँ... की *परमात्मा मुझमें अद्भुत शक्ति भर रहे हैं... शक्तियों का झरना मुझपर कुछ तरह से गिरता है कि मुझे प्रतीत होता है मानों स्वयं मेरे बाबा मुझमें नये संस्कार भर रहे हो... और जैसे जैसे ये झरनों रूपी संस्कार मुझमें भरते हैं... मेरे पुराने संस्कार पानी के रूप में मेरे शरीर से निकलकर बहते जा रहे हैं... और अब मैं आत्मा एकदम पवित्र और हल्की बन गई हूं...* अब मुझ आत्मा में सहनशक्ति के साथ साथ शांति की शक्ति का समावेश हो गया है... इस शांत और ऊंची स्थिति का मैं गहराई से आनंद ले रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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