━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 19 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पवित्रता की प्रतिज्ञा कर सगा बच्चा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *कांटे से कलि, कलि से फूल बने और बनाया ?*

 

➢➢ *हट बात में मुख से व मन से बाबा - बाबा कह मैं पैन को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *अपने तन - मन - धन को सफल किया और सर्व खजानों को बढाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  कितना भी कोई भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव भी समझते हो लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर दे। *सेवा में बेहद की वैराग्य वृत्ति अन्य आत्माओं को और समीप लायेगी। मुख की सेवा सम्पर्क में लाती है और वृत्ति से वायुमण्डल की सेवा समीप लायेगी।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं बाप समान निराकारी और आकारी स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ"*

 

  बाप समान निराकारी और आकारी-इसी स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? *क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। तो आप सभी भी साकारी होते हुए भी निराकारी और आकारी अर्थात् अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हो।* या साकार में ज्यादा आ जाते हो?

 

  *जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही 'मैं आकारी फरिश्ता हूँ'और 'निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ'-यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हों। क्योंकि जिससे प्यार होता है, तो प्यार की निशानी है समान बनना।* बाप और दादा-निराकारी और आकारी हैं और दोनों से प्यार है तो समान बनना पड़ेगा ना। तो सदैव यह अभ्यास करो कि अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। साकार में आते भी आकारी और निराकारी स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकेंगे

 

  जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां आपके कन्ट्रोल में हैं। आंख को वा मुख को बंद करना चाहो तो कर सकते हो। ऐसे मन और बुद्धि को उसी स्थिति में स्थित कर सको जिसमें चाहो। अगर फरिश्ता बनने चाहें तो सेकेण्ड में फरिश्ता बनो-ऐसा अभ्यास है या टाइम लगता है? क्योंकि हलचल जब बढ़ती है तो ऐसे समय पर कौनसी स्थिति बनानी पड़ेगी? आकारी या निराकारी। *साकार देहधारी की स्थिति पास होने नहीं देगी, फेल कर देगी। अभी भी देखो-किसी भी हलचल के समय अचल बनने की स्थिति 'फरिश्ता स्वरूप' या 'आत्म-अभिमानी' स्थिति ही है। यही स्थिति हलचल में अचल बनाने वाली है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  आवाज से परे जाने की युक्ति जानते हो? *अशरीरी बनना अर्थात आवाज से परे हो जाना।* शरीर है तो आवाज है। *शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस।* साइलेंस की शक्ति कितनी महान है, इसके अनुभवी हो ना? साइलेंस की शक्ति द्वारा सृष्टि की स्थापना कर रहे हो।

 

✧  *साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना।* तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित है तो *स्वयं साइलेंस रूप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेंगे।* अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता।

 

✧  विश्व में सबसे प्यारे से प्यारी चीज है - 'शान्ति अर्थात साइलेंस।इसके लिए ही बडी-बडी कानफ्रेंस करते हैं। शान्ति प्राप्त करना ही सबका लक्ष्य है। यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। और आप समझते हो *साइलेंसे तो हमारा स्वधर्म' है।* आवाज में आना जितना सहज लगता है उतना सेकण्ड में आवाज से परे जाना - यह अभ्यास है?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। *खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस अमूल्य जन्म में बाप स्वयं लक्ष्य सोप से वस्त्र साफ़ करते हैं"*

 

➳ _ ➳  *हीरें तुल्य ये ब्राह्मण जन्म और माया के हर वार से बचाने वाला ये प्रभु परिवार... सुखों की घनेरी छाया और संबंधो का ये सुखद सा संसार*... लक्ष्य हीन से जीवन को अब कोई लक्ष्य मिला है, घनघोर दुखों से तार तार बेरंग सी और दागदार ये आत्मा चदरियाँ... मगर अब महका है रेशा रेशा और गुलाबों सा खिला है... *मुझ आत्मा रूपी चदरियाँ के हर दाग को बडी शिद्दत से एक एक कर निकाल रहा है वो... बैठ कर मेरे सामने रेशे -रेशे में सद्गुणों के मोती पिरों रहा है वो*....

 

❉  *ऊँचे ते ऊँचे, मगर निरंहकारी बाप मुझ आत्मा से बोलें:-* "पदमापदम भाग्यशाली श्रेष्ठ आत्मा बच्ची... *यह ईश्वरीय जन्म कल्प में केवल एक बार मिलता है*... देवताई जन्म से भी श्रेष्ठ इस अमूल्य जन्म में स्वयं बाप आत्मा को जन्मों जन्मों की भटकन से छुडाने आये है... एक एक सेकेन्ड सालों के बराबर है यहाँ... *क्या आपने इस अमूल्य जन्म का महत्व यथार्थ समझा है... स्वाँस स्वाँस में अखुट कमाई छोडकर कही मन व्यर्थ में तो नही उलझा है...?*"

 

➳ _ ➳  *इस अमूल्य जन्म की सर्वश्रेष्ठ सौगात दिव्य नेत्र धारी मैं आत्मा ज्ञानसागर बाप से बोली:-* "मीठे बाबा... *प्रभु पालना में पल रही हूँ, हर पल आपके रूपरंग में ढल रही हूँ, इस अमूल्य जन्म की प्राप्तियों से मैं काँटों में भी अब गुलाबों सी खिल रही हूँ*... छोटे से जीवन के ये थोडे से पल और हर पल को सींचता आपका स्नेह, देखो... *अब मुझे उडना आ गया है... दिशाहीन नही है अब मेरी उडान... मुझे अपना परम लक्ष्य पा गया है...*"

 

❉  *उमंगों के पंख लगा जीवन का परम लक्ष्य देकर फरिश्ता बनाने वाले बाप मुझ आत्मा से बोलें:-* "मीठी बच्ची... *जन्म जन्म बिना किसी लक्ष्य के ही दर दर भटकते अपना नाम, रूप सब गवाँया है आपने... अब इस अन्तिम जन्म में खोया अस्तित्व पाया है आपने*... लक्ष्मी नारायण सा बनना है और और सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप भी पाना है ... बहुत संभाल करो इन ज्ञान रत्नों की... ये बहुत ही अनमोल खज़ाना है..."

 

➳ _ ➳  *सर्व सम्बन्धों का सुख एक बाप से लेने वाली मैं दिलतख्तनशीन आत्मा करनकरावनहार बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *मेरी खातिर परमधाम छोडकर आपका इस पतित दुनिया में आना, और जन्मों जन्मों की मैली हुई चादर को यूँ पावन बनाना*... दिल आभारी है आपका और रोम रोम गाता है शुकराना... आपको पाकर मै इस अमूल्य जन्म और अपने पावन लक्ष्य को जान चुकी हूँ...  *हर पल ऊँचाईयों की ओर ले जाती इन श्रीमत की पगडंडियों को पहचान चुकी हूँ...*"

 

❉  *अखंड सेवाधारी बाप मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... *कल्प कल्प का अब अपना भाग्य बनाओं... अमूल्य जन्म का अमूल्य लक्ष्य हर आत्मा तक पहुँचाओं... विषय विकारों के दल दल में धँसी रूहों की चादर को लक्ष्र्य रूपी सोप से अब उजला बनाओं*, जिसे ढूँढ रहे है वो मन्दिरों में तीर्थों पर... वो अब परमधाम से खुद धरा पर आ चुके है... गंगा में नहाने से जन्मो जन्मों की मैल नही जायेगी... *अब ज्ञान गंगा से संसार की आत्माओं को स्नान कराओं*"....

 

➳ _ ➳  *बाप समान बनती जा रही मैं अखंड सेवाधारी आत्मा बापदादा से बोली:* "मीठे बाबा... संगम का ये धोबी घाट अब आत्मा रूपी वस्त्रों से भरपूर हो रहा है... *पावन रूहों की मणियों का मेला सा दिख रहा है चारों ओर... लग रहा है, मानों संसार ही कोहिनूर हो गया है... देखों... फरिश्ते ही फरिश्ते घूम रहे है हर तरफ, जमघट माया का बहुत ही दूर हो गया है*... और बापदादा अपने वरदानी नजरों से मुझे निहाल किये जा रहे है"...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नए झाड़ की कलम लगानी है*

 

➳ _ ➳  एक खूबसरत बगीचे में बैठी मैं प्रकृति के ख़ूबसूरत नजारों का आनन्द ले रही हूँ। बगीचे में खिले रंग बिरंगे खुशबूदार फूल मन को आनन्दित कर रहें हैं। *उन खिले हुए फूलों की अद्भुत रंगत को देख मन मे सहज ही उस माली का विचार आता है जिसने इतनी खूबसूरती से इस पूरे झाड़ की कलम लगाई और ऐसा सुंदर बगीचा बनाया कि इस बगीचे में उगे वृक्षों की छाया के नीचे बैठ कर और इन अति सुंदर फूलो की सुगंध लेकर थके हारे मनुष्य एक अद्भुत ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव करते हैं*। मन ही मन यह चिंतन करते हुए, अब मैं विचार करती हूँ कि उस माली ने तो कलम लगाकर केवल यह फूलों का झाड़ तैयार किया है लेकिन मेरे बागवान शिव पिता तो आकर नए सृष्टि रूपी झाड़ की कलम लगा रहें हैं।

 

➳ _ ➳  दैवी गुणों से सजे मनुष्य रूपी फूलों का एक ऐसा चैतन्य बगीचा बना रहे है मेरे हेविनली गॉड फादर शिव पिता, जहाँ इससे करोड़ो गुना ज्यादा प्रकृति की खूबसूरती होगी। *दुख का नाम निशान भी नही होगा। चारों तरफ सुख, शन्ति और सम्पन्नता होगी। यह विचार करते - करते उस दैवी दुनिया के सुन्दर नज़ारे आंखों के सामने दिखाई देने लगते हैं और मैं उस अति मनभावनी, मन को लुभाने वाली स्वर्गिक दुनिया मे पहुँच जाती हूँ जहां चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं*।

 

➳ _ ➳  देख रही हूँ मैं स्वयं को एक बहुत बड़े राजमहल में बने एक खूबसूरत उपवन में जहाँ चारों और प्रकृति के ख़ूबसूरत नज़ारे दिखाई दे रहें हैं। *हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणें*। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख रही हूँ और रमणीकता से भरपूर सतयुगी नई दुनिया के इन नजारों को देख मंत्रमुग्घ हो रही हूँ।

 

➳ _ ➳  नए झाड़ की कलम लगा कर, अपने पिता द्वारा बनाई जा रही इस अति सुन्दर नई दैवी दुनिया के सुन्दर नजारों का भरपूर आनन्द लेकर अब मैं मन ही मन अपने पिता का कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करके, उन्हें नये झाड़ की कलम लगाने में उनका सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती हूँ और हर बात से अपने मन बुद्धि को हटाकर अब उनकी याद में स्वयं को स्थित करती हूँ। *सेकण्ड में विस्तार को सार में समाकर मैं बिंदु स्वरुप में स्थित होकर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने बिंदु पिता के ऊपर एकाग्र कर लेती हूँ। परमधाम में रहने वाले अपने महाज्योति शिव पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए मैं उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों को नीचे साकार सृष्टि पर, अपने ऊपर पड़ता हुआ महसूस करती हूँ*।

 

➳ _ ➳  परमधाम से आ रही मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मुझे उनके समान विदेही बना कर अपनी और खींच रही हैं, यह अनुभव करते हुए, मैं आत्मा देह से अलग होकर, एक प्वाइंट ऑफ लाइट बन अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर जा रही हूँ। *एक आजाद पँछी की भांति मैं उड़ रही हूँ और रुई समान एकदम हल्की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। सारे विश्व मे चक्कर लगाकर, हर दृश्य का आनन्द लेती हुई मैं ऊपर आकाश में पहुँच गई हूँ और अब नीलगगन को छूकर इससे भी ऊपर जा रही हूँ*। एक अति सुंदर सफेद प्रकाश की फरिश्तो की दुनिया से होते हुए अब मैं पहुँच गई हूँ अपनी उस निराकारी दुनिया में जहाँ चारों और चमकती हुई चैतन्य मणियो का आगार है। *ना देह, ना देह की दुनिया से जुड़ा कोई संकल्प। इस इनकारपोरियल वर्ल्ड में केवल सोल का सोल के साथ कनेक्शन है*।

 

➳ _ ➳  देख रही हूँ अब मैं सुप्रीम सोल, चैतन्य बीज रूप अपने शिव पिता को जो अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे सामने खड़े हैं। मास्टर बीज रूप अवस्था मे उनके सम्मुख हूँ। बिंदु का बिंदु से मिलन हो रहा है। कितना आलौकिक और दिव्य नजारा है। चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है। *एक बहुत ही न्यारी और प्यारी, आलौकिक सुखमय निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा बाप को निहारते हुए मैं असीम सुख का अनुभव कर रही हूँ। बीज रूप मेरे मीठे बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं*। मेरे अंदर जैसे एक शक्ति भरती जा रही है। सर्वशक्तियों से सम्पन्न, शक्ति स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, नए झाड़ की कलम लगाने में अपने पिता की सहयोगी बनने की अपनी प्रतिज्ञा को मैं दृढ़ता के साथ पूरा कर रही हूँ। *स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से सदा भरपूर रखते हुए, अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म प्यार और ईश्वरीय अलौकिक स्नेह दे कर सबको परमात्मा से जोड़ कर उन्हें भी खुशबूदार फूल बनाकर, दैवी दुनिया मे चलने का रास्ता बताकर, नए झाड़ की कलम लगाने के बाबा के कर्तव्य में उनका राइट हैंड बन मैं पूरा सहयोग दे रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर बात में मुख से वा मन से बाबा - बाबा कह मैं पैन को समाप्त करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *संगमयुग पर अपने तन-मन-धन को सफल करने और सर्व खजानों को बढ़ाने वाली समझदार आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *‘‘आज ज्ञान गंगाओं और ज्ञान सागर का मिलन मेला है*। जिस मेले में सभी बच्चे बाप से रूहानी मिलन का अनुभव करते। बाप भी रूहानी बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चे भी रूहानी बाप से मिल हर्षित होते हैं। क्योंकि *कल्पकल्प की पहचानी हुई रूहानी रूह जब अपने बुद्धियोग द्वारा जानती हैं कि हम भी वो ही कल्प पहले वाली आत्माएं हैं और उसी बाप को फिर से पा लिया है तो उसी आनन्दसुख केप्रेम केखुशी के झूले में झूलने का अनुभव करती हैं*। ऐसा अनुभव कल्प पहले वाले बच्चे फिर से कर रहे हैं। वो ही पुरानी पहचान फिर से स्मृति में आ गई। ऐसे स्मृति स्वरूप स्नेही आत्मायें इस स्नेह के सागर में समाई हुई लवलीन आत्मायें ही इस विशेष अनुभव को जान सकती हैं।

 

_ ➳  स्नेही आत्मायें तो सभी बच्चे होस्नेह के शुद्ध सम्बन्ध से यहाँ तक पहुँचे हो। फिर भी स्नेह में भी नम्बरवार हैंकोई स्नेह में समाई हुई आत्मायें हैं और कोई मिलन मनाने के अनुभव को यथाशक्ति अनुभव करने वाले हैं। और कोई इस रूहानी मिलन मेले के आनन्द को समझने वालेसमझने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। फिर भी सभी को कहेंगे - ‘स्नेही आत्मायें'। *स्नेह के सम्बन्ध के आधार पर आगे बढ़ते हुए समाये हुए स्वरूप तक भी पहुँच जायेंगे*। समझना - समाप्त हो समाने का अनुभव हो ही जायेगा - क्योंकि *समाने वाली आत्माएँ समान आत्माएँ हैं। तो समान बनना अर्थात् स्नेह में समा जाना*।

 

_ ➳  तो अपने आप को स्वयं ही जान सकते हो कि कहाँ तक बाप समान बने हैं? * बाप का संकल्प क्या है? उसी संकल्प समान मुझ लवलीन आत्मा का संकल्प है*? ऐसे वाणी, कर्म, सेवा सम्बन्ध सब में बाप समान बने हैंवा अभी तक महान अन्तर है वा थोड़ा सा अन्तर है? *अन्तर समाप्त होना ही - ‘मन्मनाभव का महामंत्र है'। इस महामंत्र को हर संकल्प और सेकण्ड में स्वरूप में लाना इसी को ही समान और समाई हुई आत्मा कहा जाता है*।

 

✺   *"ड्रिल :- मनमनाभव के महामंत्र से बाप के स्नेह में समा बाप के साथ रूहानी मिलन मनाना।"*

 

_ ➳  देह रूपी दीपक में, मैं जलती बाती के समान जगमग आत्मज्योति... अपने प्रकाश से अंधकार को पराजित करती हुई... (दृश्य चित्र बनाकर खुद को कुछ देर तक महसूस कीजिए इसी स्वरूप में)  *परमात्म स्नेह के तेल में पूरी तरह डूबी हुई, मुझ बाती का प्रकाश हर पल एक नई चेतना फैलाता हुआ, विघ्नों की तूफानी हवाओं में भी दूर दूर तक फैल रहा है...* साक्षी भाव से मैं देख रही हूँ स्वयं को दीपक से अलग होती हुई... दीपक अपनी जगह पर स्थित है और मैं ज्योति आहिस्ता आहिस्ता उससे अलग होकर फरिश्तें की काया धारण कर लेती हूँ... दो मिनट रूक कर देख रही हूँ मैं उस दीपक को जो एकदम अचल अवस्था में है... और आहिस्ता आहिस्ता उड जाती हूँ अनन्त की ओर... मैं फरिश्ता उडता जा रहा हूँ, अपने पीछे मोह माया की अनेक ऊँची अट्टालिकाओं को छोडता हुआ... स्वयं से बातें करता हुआ... *कल्प कल्प की पहचानी रूहानी रूह अब अपने बुद्धि योग से जान गयी है कि मैं वही कल्प पहले वाली आत्मा हूँ, मैने बाप को फिर से पा लिया है*... बाप से स्नेह मिलन मनाने और बाप समान बनने के लिए मैं चार धाम की यात्रा पर जा रही हूँ... और मैं आत्मा पाण्डव भवन के मुख्य प्रवेश द्वार पर... फरिश्ता रूप में स्वयं बापदादा द्वार पर ही मेरा इन्तजार कर रहे हैं... दौडकर गले से लग गया हूँ मैं उनके... ये मिलन अनोखा मिलन है संगम पर... *सागर की बाँहों में ज्ञान गंगा समा गयी हैं और अब दोनों एक समान*... अन्तर करना नामुमकिन है कि सागर में गंगा की धारा कौन सी है?...

 

_ ➳  बापदादा की उँगली पकडे मैं फरिश्ता बैठ गया हूँ उनके संग कुटिया के सामने झूले पर... अतिन्द्रिय सुख का ये झूला... मेरे एक ओर ब्रह्माबाबा तो दूसरी ओर धारणा शक्ति मम्मा, मुस्कुराती हुई...  *झूले के ऊपर वृक्ष की शाखाओं से झाँकते शिव सागर स्नेह की बारिश करते हुए... बाबा के कन्धे पर शीश झुकाये, मम्मा की आँखों से धारणा शक्ति स्वयं में समाता हुआ और शिव सागर की स्नेह रूपी बारिश में नहाता हुआ*... अपने भाग्य पर इठला रहा हूँ आज... स्नेह की बारिश में भीगता मेरा रोम रोम... कुछ देर तक ऐसे ही निहारें स्वयं को साक्षी होकर... जन्मों की थकान मिटती जा रही है,आत्मा हीरें की तरह पारदर्शी होती जा रही है... मैं और मेरे पन के संस्कार, तू और तेरा में बदल रहें है... देहभान का त्याग, सेवा के विस्तार का त्याग और त्याग का भी त्याग, कितनी श्रेष्ठ स्थिति है मुझ आत्मा की इस समय... *मैं देख रही हूँ इस स्नेह के सागर के तल को बढते हुए... सागर के जल का स्तर बढता ही जा रहा है... जल मेरे कन्धों तक आ गया है... बाबा की कुटिया, बाबा का कमरा शक्ति स्तम्भ और हिस्ट्री हाॅल... सभी हाऊस बोट की तरह तैर रहे है इस सागर पर*...

 

_ ➳  मैं फरिश्ता बापदादा की कुटिया में बाबा से रूहरिहान करता हुआ... *एक एक संकल्प बापदादा को समर्पित करता... बापदादा मुस्कुराकर मन्मनाभव का मन्त्र दे रहे है मुझे*... उनका वरदानी हाथ मेरे सिर पर... गहराई से देर तक महसूस कर रहा हूँ उन उँगलियों के स्पर्श को... मेरा रोम रोम पुलकित हो रहा है... *बापदादा के साथ मैं फरिश्ता बाबा के कमरें में... मैं बैठ गया हूँ घुटनों के बल बापदादा के ठीक एकदम करीब जाकर... और मुस्कुराते हुए बाबा मुझे आप समान बनने का वरदान दे रहे है*... वरदान को गहराई में समाता हुआ मैं फरिश्ता... अब पँहुच गया हूँ शक्ति स्तम्भ पर, *स्वयं में स्नेह और शक्तियों का बैलेन्स भरा हुआ*... स्नेह की धाराए हाऊसबोट में मुझे भिगो कर जा रही है... हिस्ट्री हाॅल में मैं फरिश्ता... देख रहा हूँ सन्दली पर बैठे  बापदादा एक एक आत्मा को दृष्टि से निहाल करते हुए... मैं बापदादा के ठीक सामने बापदादा से दृष्टि लेते हुए... उनकी आँखों से बरसता रूहानी नूर मेरे जन्मों जन्मों के विकर्मों को भस्म कर रहा है... *मैं फरिश्ता स्थिर हो गया हूँ सिर्फ एक संकल्प में... जो बापदादा का संकल्प वही मेरा सकंल्प... मन्मनाभव का मन्त्र गहराई से धडकनों में गूँज रहा है*...

 

_ ➳  बाहर भीतर सब जगह बस स्नेह की बारिश और स्नेह का सागर लहरा रहा है... हाऊस बोट से उतरकर मैं बापदादा की उँगली पकडे सागर में तैरती हुई गहराई में डुबकियाँ लगाती हुई... किनारे खडी आत्माओं का आह्वान कर रही हूँ... और *एक साथ किनारों पर खडी असंख्य आत्माए मेरे साथ उस सागर में समाती जा रही है... सागर में तैरती मणियों के समान*... मैं आत्मा वापस झूले पर बापदादा के साथ... बापदादा से विदाई लेकर वापस उसी देह रूपी दीपक में... पहले से ज्यादा मिठास और स्नेह के साथ अंधकार को पराजित करने का संकल्प मन में समाए...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━