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❍ 03 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *दान देते रहे ?*
➢➢ *स्तुति निंदा में स्थिति समान रखी ?*
➢➢ *शुद्ध मन और दिव्य बुधी के विमान द्वारा सेकंड में स्वीट होम की यात्रा की ?*
➢➢ *सच्ची दिल रख दिलाराम बाप की आशीर्वाद प्राप्त की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ कर्मातीत बनने के लिए कर्मों के हिसाब-किताब से मुक्त बनो। सेवा में भी सेवा के बंधन में बंधने वाले सेवाधारी नहीं। बन्धनमुक्त बन सेवा करो अर्थात् हद की रायॅल इच्छाओं से मुक्त बनो। *जैसे देह का बन्धन, देह के सम्बन्ध का बन्धन, ऐसे सेवा में स्वार्थ-यह भी बन्धन कर्मातीत बनने में विघ्न डालता है। कर्मातीत बनना अर्थात् इस रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं महावीर आत्मा हूँ"*
〰✧ सदैव अपने को महावीर अर्थात् महान् आत्मा अनुभव करते हो? *महान् आत्मा सदा जो संकल्प करेंगे, बोल बोलेंगे वो साधारण नहीं होगा, महान् होगा। क्योंकि ऊंचे-ते-ऊंचे बाप के बच्चे भी ऊंचे, महान् हुए ना।* जैसे कोई आजकल की दुनिया में वी.आई.पी. का बच्चा होगा तो वह अपने को भी वी.आई.पी. समझेगा ना। तो आप से ऊंचा तो कोई है ही नहीं।
〰✧ *तो ऐसे, ऊंचे-ते-ऊंचे बाप की सन्तान ऊंचे-ते-ऊंची आत्मायें हैं-यह स्मृति सदा शक्तिशाली बनाती है। ऊंचा बाप, ऊंचे हम, ऊंचा कार्य-ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा बाप समान बन जाते हैं। तो बाप समान बने हो? बाप हर बच्चे को ऊंचा ही बनाते हैं। कोई ऊंचा, कोई नीचा नहीं, सब ऊंचे-ते-ऊंचे।* अगर अपनी कमजोरी से कोई नीचे की स्थिति में रहता है तो उसकी कमजोरी है। बाकी बाप सबको ऊंचा बनाता है। सारे विश्व के आगे श्रेष्ठ और ऊंची आत्मायें आपके सिवाए कोई नहीं हैं, इसलिए तो आप आत्माओंका ही गायन और पूजन होता है।
〰✧ अभी तक गायन, पूजन हो रहा है। कभी भी कोई मन्दिर में जायेंगे तो क्या समझेंगे? कोई भी मन्दिर में मूर्ति देखकर क्या समझते हो? यह हमारी ही मूर्ति है। सिर्फ बाप नहीं पूजा जाता, बाप के साथ आप भी पूजे जाते हो। ऐसे महान् बन गये! एक बार नहीं, अनेक बार बने हैं-जहाँ यह नशा होगा वहाँ माया की आकर्षण अपने तरफ आकर्षित नहीं कर सकेगी, सदा न्यारे होंगे। सभी अपने आप से सन्तुष्ट हो? *जैसे बाप सुनाते हैं, वैसे ही अनुभव करते हुए आगे बढ़ना-यह है अपने आप से सन्तुष्ट रहना। 'ऊंचे-ते-ऊंचे'-यही विशष बरदान याद रखना। याद करना सहज है या मुश्किल लगता है? सहज स्मृति स्वत: आती रहेगी। माया कहाँ रोक नहीं सकेगी, सदा आगे बढ़ते रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज बच्चों के स्नेही बापदादा हर एक बच्चे को विशेष दो बातों में चेक कर रहे थे। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप बच्चों को सम्पन और सम्पूर्ण बनाना है। हर एक में *रूलिंग पॉवर और कन्ट्रोलिंग पॉवर कहाँ तक आई है - आज यह देख रहे थे।*
〰✧ जैसे आत्मा की स्थूल कर्मेन्द्रियाँ आत्मा के कन्ट्रोल से चलती है, जब चाहे, जैसे चाहे और जहाँ चाहे वैसे चला सकते हैं और चलाते रहते हैं। कन्ट्रोलिंग पॉवर भी है। जैसे हाथ-पाँव स्थूल शक्तियाँ हैं ऐसे *मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की सूक्ष्म शक्तियाँ हैं।*
〰✧ सूक्ष्म शक्तियों के ऊपर कन्ट्रोल करने की पॉवर अर्थात मन-बुद्धि को, संस्कारों को जब चाहें, जहाँ चाहे, जैसे चाहे, जितना समय चाहे - ऐसे कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर आई है? क्योंकि इस ब्राह्मण जीवन में मास्टर आलमाइटी अर्थार्टी बनते हो। *इस समय की प्राप्ति सारा कल्प - राज्य रूप और पुजारी के रूप में चलती रहती है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ मन के मालिक हो ना! तो सेकण्ड में स्टॉप, तो स्टॉप हो जाए। *ऐसा नहीं आप कहो स्टॉप और मन चलता रहे, इससे सिद्ध है कि मालिकपन की शक्ति कम है। अगर मालिक शक्तिशाली है तो मालिक के डायरेक्शन बिना मन एक संकल्प भी नहीं कर सकता।* स्टॉप, तो स्टॉप। चलो, तो चले। जहाँ चलाने चाहो वहाँ चले। *ऐसे नहीं कि मन को बहुत समय की व्यर्थ तरफ चलने की आदत है, तो आप चलाओ शुद्ध संकल्प की तरफ और मन जाये व्यर्थ की तरफ। तो यह मालिक को मालिकपन में चलाना नहीं आता।* यह अभ्यास करो। चेक करो स्टॉप कहने से, स्टॉप होता है? या कुछ चलकर फिर स्टॉप होता है? *अगर गाड़ी में ब्रेक लगानी हो लेकिन कुछ समय चलकर फिर ब्रेक लगे, तो वह गाड़ी काम की है? ड्राइव करने वाला योग्य है कि एक्सीडेंट करने वाला है? ब्रेक, तो फौरन सेकण्ड में ब्रेक लगनी चाहिए। यही अभ्यास कर्मातीत अवस्था के समीप लायेगा।* संकल्प करने के कर्म में भी फुल पास। कर्मातीत का अर्थ ही है हर सबजेक्ट में फुल पास।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा श्रीमत पर चलते रहना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में बागवानी करते हुए पौधों के आसपास के खरपतवार को निकाल रही हूँ... जो पौधों के पोषक तत्वों को शोषित कर उनके विकास की गति को धीमी कर रहे हैं...* खरपतवार को निकालने के बाद फूल-पौधे बहुत ही सुन्दर दिख रहे हैं... मुस्कुरा रहे हैं... *ऐसे ही परम बागबान ने मुझ आत्मा के अन्दर के विकारों रूपी खरपतवार को निकालकर मुझे रूहानी फूल बना दिया है... मेरे जीवन के आंगन को खुशियों से खिला दिया है...* मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले प्यारे बागबान बाबा के पास...
❉ *पावन दुनिया की राजाई के लिए श्रेष्ठ श्रीमत देते हुए पतित पावन प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर पावन बनते हो इसलिए पावन दुनिया के सारे सुखो के अधिकारी बनते हो...* मनुष्य की मत सम्पूर्ण पावन न बन सकते हो न ही सतयुगी दुनिया के मालिक बन सकते हो... यह कार्य ईश्वर पिता के सिवाय कोई कर ही न सके...”
➳ _ ➳ *श्रीमत की बाँहों में झूलते हुए सतयुगी सुखों के आसमान को छूते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत और दूसरो की मत से अपनी गिरती अवस्था की बेहतर अनुभवी हूँ... *अब श्रीमत का हाथ थाम खुशियो के संसार में बसेरा हुआ है... प्यारा बाबा मुझे पावन बनाने आ गया है...”*
❉ *प्यार भरी नज़रों से मुझे निहाल कर लक्ष्मी नारायण समान श्रेष्ठ बनाते हुए मीठे-मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... पतित पावन सिर्फ बाबा है जो स्वयं पावन है वही पावन बना भी सकता है... मनुष्य खुद इस चक्र में आता है वह दूसरो को पावनता से कैसे सजाएगा भला... *ईश्वर की मत ही सर्व प्राप्तियों का आधार है... श्रीमत ही मनुष्य को देवता श्रृंगार देकर सजाती है...”*
➳ _ ➳ *अपने जीवन की गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए मंजिल के करीब पहुँचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ कि श्रीमत मेरे भाग्य में है... श्रीमत की ऊँगली पकड़ मै आत्मा पावनता की सुंदरता से दमक रही हूँ...* और श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बन सतयुग की राजाई की अधिकारी बन रही हूँ...”
❉ *पवित्रता की खुशबू से महकाकर खुशियों के झूले में झुलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर लो... *यादो को सांसो सा जीवन में भर लो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आह्लादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान कलश को सिर पर धारण कर हीरे समान चमकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत पर चलकर और परमत का अनुसरण कर निराश मायूस हो गई थी... दुखो को ही अपनी नियति मान बैठी थी... *प्यारे बाबा आपकी श्रीमत ने दुखो से निकाल... मीठे सुखो से दामन सजा दिया है... प्यारी सी श्रीमत ने मुझे पावन बनाकर महका दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्तुति निंदा में स्थिति समान रखनी है*"
➳ _ ➳ मधुबन के पांडव भवन के हिस्ट्री हाल में लगे साकार ब्रह्मा बाबा के साकार कर्म के यादगार चित्रों को मैं देख रही हूँ और विचार करती हूँ कि *भगवान की प्रवेशता के बाद ब्रह्मा बाबा को कितनी ओपोजिशन का सामना करना पड़ा, कितने कलंक सहन करने पड़े, कितनी ग्लानि झेलनी पड़ी किन्तु फिर भी सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन ब्रह्मा बाप ने हर ओपोजिशन का सामना करते हुए, हर ग्लानि, हर कलंक को सहन करके कैसे अपनी सम्पूर्ण अवस्था को सहज ही प्राप्त कर लिया* और कलंगीधर बन भगवान बाप द्वारा रचे इस ईश्वरीय यज्ञ के इतिहास में अपना नाम बाला कर नम्बर वन पद प्राप्त किया।
➳ _ ➳ ऐसे फ़ॉलो फादर कर, सम्पूर्णता का पाने का लक्ष्य रख, प्यारे बाबा से मैं मन ही मन प्रोमिस करती हूँ कि *इस ज्ञान मार्ग में चलते चाहे कोई मेरी कितनी भी ग्लानि करे, कोई कितने भी विघ्न डाले परन्तु ब्रह्मा बाप समान कलंगीधर बन हर कलंक को सहन करते भी भगवान का हाथ और साथ मैं कभी नही छोडूंगी*। भगवान के नाम पर गाली खाना भी महान सौभाय की बात है। इसलिए ग्लानि से ना डरते हुए अपने भगवान बाप का हाथ थामे संगमयुग के अंत तक मैं इस मार्ग पर निरन्तर चलती रहूँगी।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता से मन ही मन प्रोमिस करते हुए मैं जैसे ही हिस्ट्री हाल में लगे ब्रह्माबाबा के ट्रांसलाइट के चित्र पर नजर डालती हूँ। *ऐसा आभास होता है जैसे उस ट्रांसलाइट के चित्र के स्थान पर अव्यक्त बापदादा साक्षात मेरे सामने खड़े, मुझे देख रहें हैं और मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मेरे मन के संकल्पो को रीड कर रहें हैं*। साथ ही साथ अपनी शक्तिशाली दृष्टि मुझ पर डालते हुए अपनी लाइट और माइट से मुझे भरपूर भी कर रहें हैं। बापदादा की दृष्टि से मिल रही लाइट और माइट मुझे असीम ऊर्जावान बना रही है। *इस ऊर्जा की शक्ति से मेरा साकार शरीर धीरे धीरे लाइट के आकारी शरीर में परिवर्तित हो कर सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरूप में रूपांतरित हो गया है*और मेरे अंग - अंग से श्वेत किरणो की रश्मियां निकल कर चारों और फैलने लगी है।
➳ _ ➳ चारो और अपनी श्वेत रश्मियों को फैलाता हुआ मैं फ़रिशता अब हिस्ट्री हाल से बाहर आ जाता हूँ और चारों धाम की यात्रा करके अब सूक्ष्म लोक की ओर चल पड़ता हूँ। *सूक्ष्म लोक में प्राणप्रिय बापदादा की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनकी मीठी दृष्टि और वरदानों से भरपूर करने के बाद मैं फ़रिशता अब वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आता हूँ और अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ पाँच तत्वों के बने अपने साकारी शरीर में प्रवेश कर जाता हूँ*। ब्रह्मा बाप को अपना रोल मॉडल बनाये, उनके हर कर्म को कॉपी करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अपने ब्राह्मण स्वरुप में मैं आत्मा अब स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ जैसे ब्रह्मा बाप ने "एक बल एक भरोसा" के आधार पर हर बड़ी से बड़ी परिस्थिति को भी सहजता से पार किया। लोगों की गलियां खा कर भी कभी संशय बुद्धि नही बने। *सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन, सम्पूर्ण समर्पण भाव से स्वयं को ईश्वरीय यज्ञ में स्वाहा कर दिया*। ऐसे हर कदम पर अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को फ़ॉलो करते हुए अब मैं समपूर्णता के अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ। *लोगो की ग्लानि की परवाह किये बिना, कलंगीधर बन सबके कलंक सहन करते हुए भी, सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखते हुए अब मैं अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर उसे पाने के पुरुषार्थ में निरन्तर लगी हुई हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा सेकण्ड में स्वीट होम की यात्रा करने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं दिल सदा सच्ची रखकर दिलाराम बाप की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली सच्ची आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कोई कैसा भी हो उनके साथ चलने की विधि सीखो। कोई क्या भी करता हो, बार-बार विघ्न रूप बन सामने आता हो लेकिन यह विघ्नों में समय लगाना, आखिर यह भी कब तक? इसका भी समाप्ति समारोह तो होना है ना? तो *दूसरे को नहीं देखना। यह ऐसे करता है, मुझे क्या करना है? अगर वह पहाड़ है तो मुझे किनारा करना है, पहाड़ नहीं हटना है। यह बदले तो हम बदलें - यह है पहाड़ हटे तो मैं आगे बढूं। न पहाड़ हटेगा न आप मंजिल पर पहुंच सकेंगे। इसलिए अगर उस आत्मा के प्रति शुभ भावना है, तो इशारा दिया और मन-बुद्धि से खाली।* खुद अपने को उस विघ्न स्वरूप बनने वाले के सोच-विचार में नहीं डालो। जब नम्बरवार हैं तो नम्बरवार में स्टेज भी नम्बरवार होनी ही है लेकिन हमको नम्बरवन बनना है।
➳ _ ➳ ऐसे विघ्न वा व्यर्थ संकल्प चलाने वाली आत्माओं के प्रति स्वयं परिवर्तन होकर उनके प्रति शुभ भावना रखते चलो। टाइम थोड़ा लगता है, मेहनत थोड़ी लगती है लेकिन *आखिर जो स्व-परिवर्तन करता है, विजय की माला उसी के गले में पड़ती है। शुभ भावना से अगर उसको परिवर्तन कर सकते हो तो करो, नहीं तो इशारा दो, अपनी रेसपान्सिबिल्टी खत्म कर दो और स्व परिवर्तन कर आगे उड़ते चलो*। यह विघ्न रूप भी सोने का लगाव का धागा है। यह भी उड़ने नहीं देगा। यह बहुत महीन और बहुत सत्यता के पर्दे का धागा है। यही सोचते हैं यह तो सच्ची बात है ना। यह तो होता है ना। यह तो होना नहीं चाहिए ना। *लेकिन कब तक देखते, कब तक रुकते रहेंगे? अब तो स्वयं को महीन धागों से भी मुक्त करो। मुक्ति वर्ष मनाओ।*
✺ *ड्रिल :- "विघ्न-विनाशक बन महीन धागों से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अमृतवेला के सुंदर सुहावने समय में मैं आत्मा मीठे बाबा की याद में बैठी हुई हूँ... *मेरा मन अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में झूम रहा है... कितनी खुशकिस्मत आत्मा हूँ मैं... स्वयं भगवान ने मुझे अपना बना लिया है... मेरे प्यारे बाबा ने मुझे स्वयं की सत्य पहचान दी...* मेरे 84 जन्मों के चक्र के बारे में बताया... सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग में अनेक जन्म लेते लेते... अब मैं आत्मा कल्प के इस अंतिम पड़ाव पर आ गई हूँ... इस बेहद सुंदर, कल्याणकारी संगम के समय में... मेरे मीठे शिवबाबा मेरे साथी बन गए हैं...
➳ _ ➳ बाबा से अविरल स्नेह की धारा मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मीठे बाबा अपनी स्नेहिल दृष्टि से मुझे निहाल कर रहे हैं... उनकी भृकुटी से, नयनों से दिव्य तेज निकलकर मुझमें समाता जा रहा है... मैं आत्मा सशक्त बनती जा रही हूँ... मैं चिंतन कर रही हूँ कि... कितना सुंदर भाग्य है मेरा स्वयं भगवान ने मुझे अपना बना लिया है... सारा संसार जिसकी एक झलक पाने के लिए तरस रहा है उससे मैं सम्मुख मिलन मना रही हूँ... *परमात्म मिलन और ईश्वरीय प्राप्तियों की चंद ही घड़ियाँ शेष रही हैं... इस बात को मैं आत्मा गहराई से स्वयं में समाती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा संगम के अपने एक-एक पल को सफल कर रही हूँ... भिन्न-भिन्न स्वभाव संस्कार वाली आत्माओं से संस्कार मिलन की रास मना रही हूँ... कैसी भी आत्मा हो, कोई कुछ भी करता रहे... मैं आत्मा सभी के प्रति शुभ भावना ही रखती हूँ... *संस्कारों के टकराव में, विघ्नों में अपने अमूल्य समय को न गंवा कर... मैं ईश्वरीय फ़खुर में झूम रही हूँ... दूसरों के पार्ट पर ध्यान देने की बजाय मैं स्वचिंतन और स्व-परिवर्तन पर ध्यान दे रही हूँ...*
➳ _ ➳ विघ्न रूपी पहाड़ों से टकराने में समय और शक्तियों को व्यर्थ ना करके... मैं किनारा करती जा रही हूँ... विघ्न रूपी पहाड़ हटे तो मैं मंजिल पर पहुँचूँ, इन कपोल कल्पना में एक पल भी ना गंवा कर... हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना ही रख रही हूँ... मेरे बाबा मुझे राजा बच्चा देखना चाहते हैं... तो जैसा लक्ष्य उसी अनुसार मैं लक्षण धारण कर रही हूँ... *कोई भी आत्मा जो विघ्न डालने या व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित्त बनती है उनके प्रति भी मेरे मन में कल्याण की ही भावना है... मैं स्वयं को मोल्ड करती जा रही हूँ... क्योंकि स्व परिवर्तन करने वालों की विजय निश्चित होनी ही है...*
➳ _ ➳ शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना रख उस आत्मा को इशारा देकर आगे बढ़ रही हूँ... *स्व परिवर्तन द्वारा उड़ती कला के लक्ष्य की ओर अग्रसर हो रही हूँ... ये विघ्न सोने के लगाव के धागों के जैसे हैं...* बहुत ही महीन धागे हैं ये... जो पुरुषार्थ में उड़ान भरने नहीं देते... बाबा के साथ और सहयोग से मैं आत्मा स्वयं को इन महीन धागों से मुक्त, स्वतंत्र करती जा रही हूँ... समय अब अपनी अंतिम घड़ियां गिन रहा है, ऐसे में *मैं आत्मा... प्यारे बाबा के इशारे समझकर विघ्न विनाशक बन हर प्रकार के महीन धागों से मुक्त हो रही हूँ... संपन्नता की अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जा रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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