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❍ 26 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आत्माओं पर बाप समान सबको दुखों से लिबरेट करने का रहम किया ?*
➢➢ *कदम कदम पर सावधानी से चले ?*
➢➢ *निंदक को भी अपना मित्र समझ सम्मान दिया ?*
➢➢ *माया को सदा के लिए विदाई दे बाप की बधाइयों के पात्र बने ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ बाप को अव्यक्त रूप में सदा साथी अनुभव करना और सदा उमंग-उत्साह और खुशी में झूमते रहना। *कोई बात नीचे ऊपर भी हो तो भी ड्रामा का खेल समझकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा करते अच्छा बनना और अच्छे बनने के वायब्रेशन से नगेटिव को पॉजिटिव में बदल देना।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं डबल लाइट आत्मा हूँ"*
〰✧ *अपने को सदा डबल लाइट अनुभव करते हो? जो डबल लाइट है उस आत्मा में माइट अर्थात् बाप की शक्तियाँ साथ हैं। तो डबल लाइट भी हो और माइट भी है।* समय पर शक्तियों को यूज कर सकते हो या समय निकल जाता है, पीछे याद आता है? क्योंकि अपने पास कितनी भी चीज है, अगर समय पर यूज नहीं किया तो क्या कहेंगे? जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो उस शक्ति को उस समय यूज कर सकेंगे - इसी बात का अभ्यास आवश्यक है।
〰✧ कई बच्चे कहते हैं कि माया आ गई। क्यों आई? परखने की शक्ति यूज नहीं की तब तो आ गई ना! अगर दूर से ही परख लो कि माया आ रही है, तो दूर से ही भगा देंगे ना! माया आ गई - आने का चांस दे दिया तब तो आई। दूर से भगा देते तो आती नहीं। *बार-बार अगर माया आती है और फिर युद्ध करके उसको भगाते हो तो युद्ध के संस्कार आ जायेंगे। अगर बहुतकाल का युद्ध का संस्कार होगा तो चन्द्रवंशी बनना पड़ेगा। सूर्यवंशी बहुतकाल के विजयी और चन्द्रवंशी माना युद्ध करते-करते कभी विजयी, कभी युद्ध में मेहनत करने वाले।* तो सभी सूर्यवंशी हो ना! चन्द्रमा को भी रोशनी देने वाला सूर्य है। तो नम्बरवन सूर्य कहेंगे ना! चन्द्रवंशी दो कला कम हैं। 16 कला अर्थात् फुल पास।
〰✧ *कभी भी मन्सा में, वाणी में या सम्बन्ध-सम्पर्क में, संस्कारों में फेल होने वाले नहीं, इसको कहते हैं - 'सूर्यवंशी'। ऐसे सूर्यवंशी हो? अच्छा। सभी अपने पुरुषार्थ से सन्तुष्ट हो? सभी सब्जेक्ट में फुल पास होना - इसको कहते हैं अपने पुरुषार्थ से सन्तुष्ट।* इस विधि से अपने को चेक करो। यही याद रखना कि मैं उड़ती कला में जाने वाला उड़ता पंछी हूँ। नीचे फँसने वाला नहीं। यही वरदान है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बहुत न्यारा और बहुत प्यारा चाहिए। समझा क्या अभ्यास करना चाहिए? मुश्किल तो नहीं लगता है ना? कि थोडा-थोडा मुश्किल लगता है? कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना? राजयोगी अपने को कहलाते हो, किसके राजा हो? अमेरिका के, आफ़िका के! *कर्मन्द्रियों के राजा हो ना! और राजा बन्धन मे आ गया तो राजा रहा?*
〰✧ सभी का टाइटल तो बहुत अच्छा है। *सब राजयोगी हैं तो राजयोगी हो या प्रजायोगी हो?* कभी प्रजायोगी, कभी राजयोगी? तो डबल विदेशी सभी पास विद ऑनर होंगे? बापदादा को तो बहुत खुशी होगी - यदि सब विदेशी पास विद ऑनर हो जायें।
〰✧ थोडा-सा मुश्किल है कि सहज है? अच्छा मुश्किल शब्द आपके डिक्शनरी से निकल गया है। ये ब्राह्मण जीवन भी एक डिक्शनरी है। तो *ब्राह्मण जीवन के डिक्शनरी में मुश्किल शब्द है ही नहीं* कि कभी-कभी उडकर आ जाता है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *अभी का तिलक जन्म-जन्मान्तर का तिलकधारी वा ताजधारी बनाता है। तो सदैव एकरस रहना है।* फोला फादर करना है। जो स्वयं हर्षित है वह कैसे भी मन वाले को हर्षित करेगा। *हर्षित रहना यह तो ज्ञान का गुण है। इसमें सिर्फ रूहानियत एड करना है। हर्षितपन का संस्कार भी एक वरदान है जो समय पर बहुत सहयोग देता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
*✺ "ड्रिल :- देही-अभिमानी रह बाप की श्रीमत का पालन करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ जाती हूँ... और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... प्यारे बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के नैनों से जादुई किरणें निकलकर मुझ पर पड रही हैं... *बाबा की इन जादुई किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो गया है और मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ... प्यारे बाबा मुझे अपने साथ बाहर लेकर जाते हैं और झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हुए प्यार भरी बातें करते हैं...*
❉ *प्यारे बाबा अपनी प्यार भरी मुस्कान से मुझ आत्मा को निहाल करते हुए कहते है:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गई... *अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो... अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देहभान से मुक्त होकर देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ...* और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”
❉ *मीठे बाबा मेरा सतरंगी श्रृंगार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैलेपन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... *अब अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुन्दर कमल फूल समान खिलकर अपनी रंगत चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ...”*
❉ *मेरे बाबा मुझ आत्मा के 63 जन्मों के विकर्मों को भस्म कर सच्चा सोना बनाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते जायेंगे...* और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...”
➳ _ ➳ *मैं देही अभिमानी आत्मा देह के सर्व बन्धनों से मुक्त होकर खुशियों के गीत गाती हुई कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... *मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कदम - कदम पर सावधानी से चलना है*"
➳ _ ➳ कर्मयोगी बन हर कर्म करते, कदम - कदम पर सुप्रीम सर्जन *अपने शिव पिता परमात्मा से राय लेते, उनकी श्रीमत पर चल अपने दैनिक कर्तव्यों को पूरा करके, एकांत में अपने सुप्रीम सर्जन शिव बाबा की याद में मैं मन बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ* और विचार करती हूँ कि 5 विकारों रूपी ग्रहण ने कैसे मुझ आत्मा को बिल्कुल ही रोगी बना दिया था! मेरे सुंदर सलौने सोने के समान दमकते स्वरूप को इन विकारों की बीमारी ने आयरन के समान बिल्कुल ही काला कर दिया था।
➳ _ ➳ शुक्रिया मेरे सुप्रीम सर्जन शिव पिता परमात्मा का जो ज्ञान और योग की दवाई से मुझ बीमार आत्मा का उपचार कर मुझे फिर से स्वस्थ बना रहें हैं। *मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी हुई विकारों की कट को उतार, ज्ञान अमृत और योग अग्नि से हर रोज मुझे प्युरीफाई करके रीयल गोल्ड के समान फिर से चमकदार बना रहें हैं*। अपने सुप्रीम सर्जन शिव बाबा को याद करते - करते अब मैं अपने मन बुद्धि को अपने सुंदर सलौने ज्योति बिंदु स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ जो हर रोज ज्ञान और योग की खुराक खाकर सोने के समान उज्जवल बनता जा रहा है।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मन बुद्धि के नेत्रो से अब मैं अपने सत्य ज्योतिर्मय स्वरूप को। *अपनी स्वर्णिम किरणे बिखेरता एक चमकता हुआ सितारा भृकुटि के मध्य में जगमगाता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है*। मेरा यह दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप मुझे असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है। अपने इस सम्पूर्ण निर्विकारी स्वरूप में मैं आत्मा स्वयं को सातों गुणों और सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। *अपने इस सतोप्रधान स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अपना सम्पूर्ण ध्यान परमधाम में विराजमान अपने शिव पिता पर केंद्रित करती हूँ*।
➳ _ ➳ अशरीरी बन उनकी याद में बैठते ही मन उनसे मिलने के लिए बेचैन हो उठता है और मैं आत्मा उनसे मिलने के लिए जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि *मेरे सुप्रीम सर्जन मेरे शिव पिता परमात्मा एक ज्योतिपुंज के रूप में अपनी सर्वशक्तियों रूपी अनन्त किरणों को चारों और फैलाते हुए परमधाम से नीचे उतर कर मेरे सामने उपस्थित हो गए हैं और आ कर अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भर लिया है*। अपने शिव पिता परमात्मा की किरणों रूपी बाहों में समा कर इस नश्वर देह और देह की दुनिया को अब मैं बिल्कुल भूल गई हूँ। केवल मेरे सुप्रीम सर्जन शिव बाबा और मुझ पर निरन्तर बरसता हुआ उनका असीम प्यार मुझे दिखाई दे रहा है।
➳ _ ➳ अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए मेरे मीठे शिव बाबा अब मुझे अपने साथ इस छी - छी विकारी दुनिया से दूर, अपने निर्विकारी धाम की ओर ले कर जा रहे हैं। *एक चमकती हुई ज्योति मैं आत्मा स्वयं को महाज्योति अपने शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाये, साकारी दुनिया से दूर ऊपर की ओर जाते हुए मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ*। पांच तत्वों की इस दुनिया के पार, सूक्ष्म लोक से भी पार अपने शिव पिता के साथ मैं पहुंच गई निर्वाणधाम अपने असली घर। शिव पिता के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूँ ।
➳ _ ➳ मेरे सुप्रीम सर्जन शिव बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का स्वरूप ज्वालामुखी बन कर मुझ आत्मा द्वारा किये हुए 63 जन्मो के विकर्मों को दग्ध कर रहा है। *विकारों की कट उतर रही है और मैं आत्मा सच्चा सोना बनती जा रही हूँ*। मुझ आत्मा की चमक करोड़ो गुणा बढ़ती जा रही है। स्वयं को मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की लाइट माइट से स्वयं को भरपूर करके डबल लाइट बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो गई हूँ। *फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर हर कदम पर अपने सुप्रीम सर्जन शिव बाबा से राय ले कर अब मैं सम्पूर्ण निर्विकारी बनने का पुरुषार्थ निरन्तर कर रही हूँ*। मेरे सुप्रीम सर्जन शिव बाबा से कदम - कदम पर मिलने वाली राय मेरे हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर मुझे श्रेष्ठता का अनुभव करवा रही है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं निंदक को भी अपना मित्र समझ सम्मान देने वाली ब्रह्मा बाप समान मास्टर रचयिता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं माया को सदा के लिए विदाई देकर बाप की बधाईयों के पात्र बनने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *वाह मेरा परिवार! वाह मेरा भाग्य! और वाह मेरा बाबा! ब्राह्मण जीवन अर्थात् वाह-वाह! हाय-हाय नहीं।* शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहीं, वाह! यह भी बोझ उतरता है। अगर 10 मण से आपका 3-4 मण बोझ उतर जाए तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है?वाह बोझ उतरा! हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? *वाह-वाह करते जाओ तो वाह-वाह करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी।* देखो, यहाँ भी ऐसे होता है ना, किसकी महिमा करते हो तो वाह-वाह करते हैं। तो व्याधि को भी वाह-वाह कहो। हाय यह मेरे पास ही क्यों आई, मेरा ही हिसाब है! प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। *प्राप्तियां सामने रखो और हिसाब किताब सामने रखो, तो वह क्या लगेगा? बहुत छोटी सी चीज लगेगी।* मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाए, पाजिटिव रूप में देखो। निगेटिव से पाजिटिव करना तो आता है ना। निगेटिव पाजिटिव का कोर्स भी तो कराते हो ना! तो उस समय अपने आपको कोर्स कराओ तो मुश्किल सहज हो जायेगा। *मुश्किल शब्द ब्राह्मणों की डिक्शनरी में नहीं होना चाहिए। अच्छा - कोई भी हिसाब है, आत्मा से है, शरीर से है या प्रकृति से है; क्योंकि प्रकृति के यह 5 तत्व भी कई बार मुश्किल का अनुभव कराते हैं। कोई भी हिसाब-किताब योग अग्नि में भस्म कर लो।*
✺ *ड्रिल :- "ब्राह्मण जीवन में वाह-वाह करते हिसाब-किताब से छूटने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *कोहिनूर समान चमकती हुई मैं नूर भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ...* मुझ नूर से चमकती हुई किरणें निकल कर चारों ओर फैल रही है... इस शरीर से बाहर निकलकर चमकते हुए प्रकाश के कार्ब में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... श्वेत प्रकाश की दुनिया में... *जहाँ बापदादा हिसाब-किताब के लिस्ट देख रहे हैं...* मैं आत्मा बाबा के पास जाकर बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा से पूछती हूँ प्यारे बाबा- इस लिस्ट में मेरे और कितने हिसाब किताब रह गए हैं... बाबा बोले- *मीठी बच्ची 63 जन्मों के हिसाब किताब हैं... यूं ही थोड़ी खत्म हो जायेंगे...* हाँ बाबा कब से मैं आप को ढूंढ रही थी... पर आपने मुझे ढूंढ लिया... *कितने समय के बाद बाबा आप मिले हो कह कर मैं आत्मा बाप दादा के गले लग जाती हूँ...*
➳ _ ➳ *मेरी सिकीलधि बच्ची कहकर बापदादा मुझे अपनी गोदी में बिठाकर... मुझ पर अनन्त प्यार बरसा रहे हैं...* मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... मुझ आत्मा का कितना ऊंचा भाग्य है जो ऊँचे ते ऊँचे परमात्मा के साथ विशेष पार्ट है... अब मैं सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा गुणों के सागर की संतान हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरूप बन रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा मुझे वाह-वाह के गीत गाकर सुनाते हैं... *मुझ आत्मा के सभी हिसाब-किताब इस प्यारे से मीठे से वाह-वाह के गीत सुनकर चुक्तू हो रहे हैं...* वाह बाबा वाह ! आपने कितना सरल उपाय बताकर मुझ आत्मा के बोझ को हल्का कर दिया... प्यारे मीठे बाबा इस हाय-हाय की जंजीर से मुझ आत्मा को आपने मुक्त कर दिया है...
➳ _ ➳ *अब मैं नूर सदा निगेटिव को पॉजिटिव कर बाबा की नूरे रतन बन गई हूँ...* प्रभु पसन्द बन गई हूँ... *अब मैं आत्मा सदा योग अग्नि से अपने हिसाब किताब चुक्तू करती हूँ...* मैं आत्मा बाबा से मिली अनन्त प्राप्तियों का, अखण्ड खजानों का अनुभव करती हूँ... *अब मैं आत्मा सदा वाह मेरा परिवार ! वाह मेरा भाग्य ! और वाह मेरा बाबा ! के गीत गाते अपने को सरलता से सभी हिसाब किताब से छूटने का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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