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 24 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *श्रीमत पर देह सहित सब कुछ भूलने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *कभी भी माया के तूफानों में कमजोर व संशय बुधी तो नहीं बने ?*

 

➢➢ *रियलाईजेशन द्वारा निर्बल से शक्तिशाली बनने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *कभी भी संकल्पों के वश तो नहीं हुए ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जो सदा बाप की याद में लवलीन अर्थात् समाये हुए हैं । ऐसी आत्माओं के नैनों में और मुख के हर बोल में बाप समाया हुआ होने के कारण शक्ति-स्वरुप के बजाय सर्व शक्तिवान् नज़र आयेगा ।* जैसे आदि स्थापना में ब्रह्मा रुप में सदैव श्रीकृष्ण दिखाई देता था, ऐसे आप बच्चों द्वारा सर्वशक्तिवान् दिखाई दे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं स्वराज्य अधिकरी आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो? *स्वराज्य अब संगमयुग पर,विश्व का राज्य भविष्य की बात है। स्वराज्य अधिकारी ही विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं।* सदा अपने को राजस्व अधिकारी समझ इन कर्मेन्द्रियों को कर्मचारी समझ अपने अधिकार से चलाते हो या कभी कोई कर्मेन्द्री राजा बन जाती है? आप स्वयं राजा हैं या कभी कोई कर्मेन्द्री राजा बन जाती? कभी कोई कर्मेन्द्री धोखा तो नहीं देती है? अगर किसी से भी धोखा खाया तो दुख लिया। धोखा दुख प्राप्त कराता। धोखा नहीं तो दुख नहीं।

 

  *तो स्वराज्य की खुशी में, नशे में, शक्ति में रहने वाले। स्वराज्य का नशा उड़ती कला में ले जाने वाला नशा है। हद के नशे नुकसान प्राप्त कराते, यह बेहद का नाशा अलौकिक रूहानी नशा सुख की प्राप्ति कराने वाले है।* तो यथार्थ राज्य है राजा का- प्रजा का राज्य हंगामें का राज्य है।

 

  आदि से राजाओंका राज्य रहा है। अभी लास्ट जन्म में प्रजा का राज्य चला है। तो आप अभी राज्य अधिकारी बन गये। अनेक-अनेक जन्म भिखारी रहे और अब भिखारी से अधिकारी बन गये। बापदादा सदा कहते- बच्चे खुश रहो, आबाद रहो। *जितना अपने को श्रेष्ठ आत्मा समझ, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बोल, श्रेष्ठ संकल्प करेंगे तो इस श्रेष्ठ संकल्प से श्रेष्ठ दुनिया के अधिकारी बन जायेंगे। यह 'स्वराज्य आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है', यही आपको जन्म-जन्म के लिए अधिकरी बनाने वाला है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जो अन्त तक 'सन शोज फादर ' करके ही जायेगे। ऐसा सर्वीसएबल मृत्यु होता है। इस मृत्यू से भी सर्वीस होती है। *सर्वीस के प्रति बच्चे ही निमित्त है, ना कि माँ बाप। वह तो गुप्त रूप में है।*

 

✧  सर्वीस में मात - पिता बैकबोन हैं और बच्चे सामने हैं। *इस सर्वीस के पार्ट में मात - पिता का पार्ट नहीं हैं, इसमें बच्चे ही बाप का शो करेंगे*।यह भी सर्वीस का अन्त में मैडल प्राप्त होता है, ऐसा मैडल ड्रामा में कोई - कोई बच्चों को मिलना है।

 

✧  अभी हरेक अपने आप से जज करे कि हम ऐसा मैडल प्राप्त करने के लिए निमित्त बन सकते हैं। *ऐसे नहीं सिर्फ पुरानी बहनें ही बन सकेंगी*। कोई भी बन सकते हैं। नये - नये रत्न भी हैं जो कमाल कर दिखायेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *शक्ति रूप न्यारी और प्यारी।* इस समय ऐसी न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित हो? यह स्थिति इतनी पावरफुल है - जैसे डॉक्टर लोग बिजली की रेजेज देते हैं कीटाणु मारने के लिए। *तो यह स्थिति भी ऐसी पावरफुल है जो एक सेकण्ड में अनेक विकर्मों रूपी कीटाणु भस्म हो जाते हैं। विकर्म भस्म हो गये तो फिर अपने को हल्का और शक्तिशाली अनुभव करेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह का भान और पुरानी दुनिया को भूल वापस घर चलना है"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा घर की छत पर बैठी उड़ते हुए पंछियों को निहार रही हूँ... संध्या की सुमधुर वेला में सभी पंछी वापस अपने घोंसलों में लौट रहे हैं... इन पंछियों को देख मुझ आत्मा को अपना घर परमधाम याद आ गया... अब मुझे भी अपने घर वापस जाना है...* पहले मैं आत्मा भगवान को पाने के लिए दर-दर भटक रही थी... मंदिरों में, तीर्थों पर ढूंढ रही थी... जप, तप, पूजा, पाठ, यज्ञ, व्रत करते-करते थक गई थी... स्वयं भगवान ने कोटों में से मुझे ढूंढकर अपना बनाया और मेरी भटकन को समाप्त कर दिया... अब मीठे बाबा रूहानी पंडा बन मुझ आत्मा को रूहानी यात्रा करा रहे हैं... *मैं आत्मा चल पड़ती हूँ रूहानी यात्रा करती हुई रूहानी बाबा के पास...*

 

  *दर-दर की भटकन को खत्म कर स्वीट होम की याद दिलाते हुए स्वीट बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... खुबसूरत फूल से जो धरा पर खेलने आये थे... वह खेल अब अंतिम पड़ाव पर आ गया है... *इसलिए अब पिता का हाथ पकड़कर घर चलने की तैयारी में जुटो... बुद्धि को समेटो और साजो सामान को बिन्दु कर अशरीरी हो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होकर मीठे बाबा की बाहों में मुस्कुराती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोकर अथाह सुख भरी दुनिया की अधिकारी बन रही हूँ... *अब हर भटकन से मुक्त होकर सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... प्यारे बाबा आप संग घर चलने को तैयार हो रही हूँ...”*

 

  *जीवन की राह से कांटो को निकाल दिव्य किरणों की राह दिखाते हुए मनमीत मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब बेहद की रात पूरी होने को है... मीठे सुख भरे दिन आये की आये... बेहद के खुबसूरत खिले दिन के सच्चे सुखो में फिर आना है... *सच्चा हँसना और मुस्कराना है... इसलिए देह की दुनिया से उपराम हो सच्ची यादो में खो जाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूहानी बाबा का हाथ थाम उनके संग रूहानी यात्रा करते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका हाथ थाम कर हर भटकन से मुक्त हो गई हूँ... ईश्वर पिता के सच्चे साथ में महफूज़ हो गयी हूँ... *देह के दुखो से निजात पाकर अपने अविनाशी वजूद और निराकारी पिता की बाँहों में खो गयी हूँ..."*

 

  *मीठे यादों के जहाज में बिठाकर इस दुनियावी समंदर के पार ले जाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब स्वयं को कहीं भी उलझाने और भटकाने की जरूरत नही है... *अब मन्नतो का फल खुदा को ही पा लिए हो... तो उसके प्यार में फूलो सा मुस्कराओ और इन मीठी महकती यादो में खोये हुए अपने घर चलने की तैयारी करो..."*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की मधुर रागिनी से प्यार में डूबकर अशरीरी बन घर जाने को तैयार होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे तो स्वयं बाबा लेने आया है... मै आत्मा बाबा का हाथ पकड़कर सबसे आगे चलूंगी...* और मीठे सुखो की नगरी में सबसे पहले मै ही तो उतरूंगी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी बात में मूँझना नही है*"

 

_ ➳  जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अचल अडोल रह, उसे पार करने का बल देने वाले अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा का मैं मन ही मन शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने अपनी सर्वशक्तियों का बल मुझे देकर हर बात से उपराम होना सिखला दिया। *मेरे प्यारे मीठे बाबा ने आकर ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर, जीवन की हर उलझी हुई पहेली को ऐसे सुलझा दिया कि किसी भी बात में मूँझने की दरकार ही नही रही*। शास्त्रों में कही एक - एक बात का वास्तविक अर्थ बताकर उसे प्रमाणित कर हर संशय को समाप्त कर दिया। *ऐसे हर बात को एकदम सहज बना कर, जीवन में सच्चे आनन्द का अनुभव करवाने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा की याद में मैं मग्न हो कर बैठ जाती हूँ*।

 

_ ➳  कर्मेन्द्रियों की हलचल से परें अपनी शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित होते ही जीवन की एक अद्भुत, मन को सुकून देने वाली रूहानी यात्रा पर मैं सहज ही चल पड़ती हूँ। *अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपनी दोनों आईब्रोज में भृकुटि के मध्य भाग पर केंद्रित कर, मैं देख रही हूँ अपने दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप को और अपने इस अति सुन्दर स्वरूप को निहारते - निहारते मैं अपने पिता परमात्मा से मिलन मनाने की इस अति खूबसूरत आंतरिक यात्रा पर आगे बढ़ती हूँ*।

 

_ ➳  एक चमकते हुए सितारे के रूप में स्वयं को अनुभव करते हुए मैं देखती हूँ जैसे आकाश में चमकते हुए सितारे में से किरणे निकलती हैं ऐसे मुझ आत्मा रूपी सितारे में से भी शांति, प्रेम, आनंद, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति की सतरंगी किरणे निकल रही हैं। *अपने इस सतोगुणी स्वरूप पर अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह फोकस कर अपने सत्य स्वरूप का, अपने गुणों और शक्तियों का भरपूर आनन्द लेते - लेते मैं भृकुटि की कुटिया से बाहर निकलती हूँ* और मन बुद्धि के विमान पर बैठ, देह और देह की दुनिया से किनारा कर, वाणी से परे अपने प्यारे पिता के निवार्ण धाम घर की और चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  पांचो तत्वों से पार, सूक्ष्म वतन से ऊपर अपने  निर्वाण धाम घर में, वाणी से परे की, निरसंकल्प अवस्था में स्थित होकर अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मनाने का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ। *हर संकल्प, विकल्प से परे यह आनन्दमयी अवस्था मुझे अतीन्द्रीय सुख का अनुभव करवा रही है। गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं कर रही हूँ*। बाबा के समीप जाकर, बाबा के साथ अटैच होकर अब मैं उनसे आ रही लाइट, माइट से स्वयं को भरपूर कर, शक्तिशाली बन रही है।

 

_ ➳  बाबा की लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ। अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, निरन्तर आत्मिक स्मृति में रहते हुए अपने शिव पिता की याद को सदा अपने हृदय में बसाये अब मैं सदा स्मृति स्वरूप रहती हूँ इसलिए *किसी भी बात में परेशान होने या अपनी स्थिति को खराब करने के बजाए, ज्ञान को ढाल बना कर, ज्ञान की उचित प्वाइंट को उचित समय पर यूज़ कर, अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति में स्थित रहकर, अब मैं हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त कर रही हूँ*।

 

_ ➳  त्रिकालदर्शी बन तीनो कालों को स्मृति में रख अब मैं हर कर्म करती हूँ इसलिए *किसी भी प्रकार के संशय में आकर, किसी भी बात में मूँझने वा विचलित होने के बजाए निश्चय बुद्धि बन अचल, अडोल और एकरस स्थिति का अनुभव करते हुए मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं रियलाइजेशन द्वारा निर्बल से शक्तिशाली बनने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं कभी भी संकल्पों के वश नहीं हो सकने वाली मन्सा महादानी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *ब्राह्मण माना ही है पवित्र आत्मा।* अपवित्रता का अगर कार्य होता भी है तो यह बड़ा पाप है। *इस पाप की सजा बहुत कड़ी है।* ऐसे नहीं समझना यह तो चलता ही है। थोड़ा बहुत तो चलेगा ही, नहीं। *यह फर्स्ट सबजेक्ट है। नवीनता ही पवित्रता की है।* ब्रह्मा बाप ने अगर गालियाँ खाई तो पवित्रता के कारण। हो गया, ऐसे छूटेंगे नहीं। *अलबेले नहीं बनो इसमें। कोई भी ब्राह्मण चाहे सरेण्डर है, चाहे सेवाधारी है, चाहे प्रवृत्ति वाला है, इस बात में धर्मराज भी नहीं छोड़ेगा, ब्रह्मा बाप भी धर्मराज का साथ देगा।* इसलिए कुमार कुमारियाँ कहाँ भी हो, मधुबन में हो, सेन्टर पर हो लेकिन इसकी चोट, संकल्प मात्र की चोट बहुत बड़ी चोट है। गीत गाते हो ना - पवित्र मन रखो, पवित्र तन रखो... गीत है ना आपका। तो *मन पवित्र है तो जीवन पवित्र है इसमें हल्के नहीं होना,* *थोड़ा कर लिया क्या है! थोड़ा नहीं है, बहुत है।* बापदादा आफीशियल इशारा दे रहा है, इसमें नहीं बच सकेंगे। *इसका हिसाब-किताब अच्छी तरह से लेंगे*, कोई भी हो।  *इसलिए सावधान, अटेन्शन।* सुना - सभी ने ध्यान से। दोनों कान खोल के सुनना। *वृत्ति में भी टचिंग नहीं हो। दृष्टि में भी टचिंग नहीं।* संकल्प में नहीं तो वृत्ति, दृष्टि क्या है! *क्योंकि समय सम्पन्नता का समीप आ रहा है, बिल्कुल प्युअर बनने का।* उसमें यह चीज तो पूरा ही सफेद कागज पर काला दगा है।

 

✺   *ड्रिल :-  "बापदादा का पवित्रता के प्रति सभी ब्राह्मणों को आफिशयल इशारा"*

 

_ ➳  बाबा ने मुझ भाग्यशाली आत्मा को अपना बनाया हैं... *बाबा ने मुझ आत्मा को कोटों में कोई, कोई में से भी कोंई, लाखों- करोड़ो आत्माओं में से अपने प्यार के लिए चुना हैं...* शूद्र से ब्राह्मण बनाया हैं... *ब्राह्मण जन्म लेते ही परमात्मा ने पवित्रता का वरदान दिया हैं...* मै आत्मा हद की ब्राह्मण नहीं हूँ... बेहद की ब्राह्मण हूँ... *परमात्मा ने मुझे पवित्र भव का वरदान दिया हैं... ब्राह्मण जन्म लेते ही मुझ आत्मा का दिव्य पवित्र जन्म हुआ हैं...* मुझ पवित्र आत्मा में अपवित्रता जैसी कोई भी बात नहीं हैं... मुझ आत्मा से पवित्रता की किरणें निकल रही है... *पवित्रता के सागर परमपिता मेरे पिता हैं...* मुझ आत्मा से अपवित्रता का कोई भी कार्य नहीं हो रहा है... *मै ब्रह्मा बाप के कदम में कदम रखने वाली पवित्र आत्मा हूँ...* पवित्रता मुझ आत्मा का फर्स्ट कदम हैं... मै आत्मा पवित्र स्वरुप हूँ...

 

_ ➳  *मै आत्मा सभी कमी कमज़ोरी को पीछे छोड़कर आगे बढती जा रही हूँ...* मुझ आत्मा में किसी भी प्रकार का अलबेला पन नहीं है... *बाबा की सभी शिक्षाओ और डायरेक्शन को फॉलो करते हुए आगे और आगे बढती जा रही हूँ...* मै आत्मा विश्व सेवाधारी हूँ... *पवित्रता के वाइब्रेशन मुझ आत्मा से निकल चारों और फ़ैल रही हैं...* मुझ आत्मा के चारों और पवित्रता का आभामंडल बना हुआ है... *संकल्प मात्र में भी मुझ आत्मा में अपवित्रता का कोई नाम निशान नहीं हैं...* मेरे तन के साथ साथ मेरा मन भी एकदम स्वच्छ, पवित्र और निर्मल है... *मेरा जीवन पवित्रता की राह में समर्पित है...* पवित्रता के बल से मै आत्मा पूज्यनीय बनती जा रही हैं... *पवित्रता के बल से मै आत्मा देवता बन रही हूँ...*

 

_ ➳  *मै आत्मा पवित्रता के बल से एकदम हल्की हो चुकीं हूँ...* किसी भी प्रकार का बोझ मुझ आत्मा को नहीँ हैं... *मै आत्मा पवित्रता का कठोरता से पालन कर रही हूँ...* इस बात को लेकर मै आत्मा एकदम हल्की नहीं हूँ... बापदादा ने पवित्रता का जो इशारा सभी बच्चो को दिया है... उसे मै आत्मा दृढ़ होकर पालन कर रही हूँ... *पवित्रता के सब्जेक्ट में मैं आत्मा फुल पास हूँ...* और इस सब्जेक्ट में मेरा फुल अटेंशन है...

 

_ ➳  *मुझ आत्मा का अनादी स्वरुप पवित्र है... मै शांतिधाम की निवासी हूँ...* जहा सभी आत्माये अपने बिंदु और संपूर्ण पवित्र स्वरुप में रहती है... और आदि स्वरुप भी पवित्र है... *मै आत्मा उस पवित्र दुनिया की मालिक हूँ... जिसे मेरे परम पवित्र परमात्मा ने मेरे लिए बनाया है... वहा सुख ही सुख है...* पवित्रता के बल से ही मै आत्मा स्वर्ग की मालिक बनती जा रही हूँ... *मुझ आत्मा की दृष्टि वृति एकदम पवित्र बनती जा रही है...* मुझ आत्मा की वृति में भी अपवित्रता की कोई टचिंग नहीं है... *मुझ आत्मा के संकल्प भी एकदम पवित्र है...* *मुझ आत्मा से पवित्रता के शुभ संकल्प निकल रहे है... जिससे मेरे चारों और पवित्रता का वातावरण बन गया है...*

 

_ ➳  *पवित्रता के बल से मै आत्मा एकदम विशेष बन गई हूँ...* जैसे जैसे समय समीप आता जा रहा है, मुझ आत्मा में और पवित्रता का बल भरता जा रहा हैं... *पवित्रता के सागर परमपिता परमात्मा से मै आत्मा पवित्रता की किरणें और शक्ति लेकर चारों और फैला रही हूँ...* जिससे संसार की सभी आत्माये पवित्र बनती जा रही हैं... *प्रकृति के पांचो तत्व पवित्र बनते जा रहे है...* मै आत्मा एकदम प्योर बनती जा रही हूँ... अपवित्रता का कोई भी दाग मुझ आत्मा में नहीं हैं... *पवित्रता ही सुख, शांति की जननी हैं...* मै आत्मा और भी *आत्माओ को पवित्रता की राह बता रही हूँ...* मेरा हर आचरण पवित्र बनता जा रहा है... *मुझ आत्मा की सबसे बड़ी पूंजी है पवित्रता...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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