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 24 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप समान नॉलेजफुल बन चिंताओं से फ्री हुए ?*

 

➢➢ *बुधी में ज्ञान का सिमरन करते रहे ?*

 

➢➢ *एक के पाठ द्वारा निराकार, आकार को साकार में अनुभव किया ?*

 

➢➢ *किसी से किनारा करके अपनी अवस्था बनाने की बजाये सर्व का सहारा बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अगर सेकण्ड में विदेही बनने का अभ्यास नहीं होगा तो लास्ट घड़ी भी युद्ध में ही जायेगी और जिस बात में कमजोर होंगे,* चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृत्ति में, वायुमंडल के प्रभाव में, जिस बात में कमजोर होंगे, *उसी रूप में जान बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी इसीलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विशेष आत्मा हूँ"*

 

  अपने को विशेष आत्मायें समझते हो? *विशेष आत्मा विशेष कार्य के निमित्त हैं और विशेषतायें दिखानी हैं - ऐसे सदा स्मृति में रहे। विशेष स्मृति साधारण स्मृति को भी शक्तिशाली बना देती है। व्यर्थ को भी समाप्त कर देती है। तो सदा यह 'विशेष' शब्द याद रखना।*

 

  *बोलना भी विशेष, देखना भी विशेष, करना भी विशेष, सोचना भी विशेष। हर बात में यह विशेष शब्द लाने से स्वत: ही बदल जायेंगे और इसी स्मृति से स्व-परिवर्तन तथा विश्व-परिवर्तन सहज हो जायेगा।*

 

  *हर बात में विशेष शब्द ऐड करते जाना। इसी से जो सम्पूर्णता को प्राप्त करने का लक्ष्य है, मंजिल है उसको प्राप्त कर लेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज मुरलीधर बाप अपने मास्टर मुरलीधर बच्चों को देख रहे हैं। सभी बच्चे मुरली और मिलन के चात्रक हैं। ऐसे चात्रक सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के और कोई हो नहीं सकता। *यह ज्ञान मुरली और परमात्म मिलन न्यारा और प्यारा है।* दुनिया की अनेक आत्मायें परमात्म मिलन की प्यासी हैं, इन्तजार में हैं।

 

✧  लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें दुनिया के कोन में गुप्त रूप में अपना श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त कर रहे हो क्योंकि *दिव्य बाप को जानने अथवा देखने के लिए दिव्य बुद्धि और दिव्य दृष्टि चाहिए जो बाप ने आप विशेष आत्माओं को दी है* इसलिए आप ब्राह्मण ही जान सकते और मिलन माना सकते हो।

 

✧  दुनिया वाले तो पुकारते रहते - *एक बूंद के प्यासे हम'* और आप क्या कहते हो - *हम वर्से के अधिकारी हैं*, कितना अन्तर है - कहाँ प्यासी और कहाँ अधिकारी: अभी भी सभी अधिकारी बनकर अधिकार से आकर पहुँचे हो। दिल में यह नशा है कि *हम अपने बाप के घर में अथवा अपने घर में आये हो।* ऐसे नहीं कहेंगे कि हम आश्रम में आये हैं। अपने घर में आये हैं - ऐसे समझते हो ना?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ इसीलिए अलबेले मत बनना, रिवाइज करो। बार-बार रिवाइज करो। क्यों भूल जाते हो? *जब कोई काम शुरू करते हो ना तो बहुत अच्छा सोचते हो - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, ये भी आत्मा है, आत्मा शरीर से ये काम करा रही है, शुरू ऐसे करते हो। लेकिन काम करते-करते आत्मा मर्ज हो जाती है।* आप जो काम करते हो, उसमें हाथ तो चलता ही है लेकिन मन-बुद्धि सहित अपने को बिजी कर देते हो। *भल बॉडी-कान्सेज कम होते हो लेकिन एक्शन कॉन्सेज ज्यादा हो जाते हो।* फिर कहते हो बाबा मेरे से कुछ गलती नहीं हुई, मैंने किसको कुछ नहीं कहा, *लेकिन बापदादा कहते हैं कि मानो आप बॉडी कान्सेस नहीं हो, एक्शन कान्सेस हो और उसी समय कुछ हो जाये तो रिजल्ट क्या होगी? सोल कान्सेज जितना तो नहीं मिलेगा। तो इसकी विधि है बार-बार रिवाइज करो, बार-बार चेक करो।* जब काम पूरा होता है फिर आप सोचते हो, लेकिन नहीं, जब तक नेचरल सोल कान्सेज हो जाओ तब तक ये सहज विधि है बार-बार रिवाइज करना। *रिवाइज करेंगे तो जो पीछे सोचना पड़ता है वो नहीं होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ख़ुशी से सदा भरपूर रहना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा की यादो में खोयी... मै आत्मा अपनी खुशियो के खजाने को गिनने में मशगूल हूँ... और अपनी ईश्वरीय अमीरी को देख देख मुस्करा रही हूँ... कितना प्यारा अनोखी खुशियो से भरा जीवन मीठे बाबा ने सौगात सा दे दिया है... तभी मीठे बाबा पलक झपकते ही वहाँ उपस्थित होकर... मुझे खुशहाल देख जेसे, नयनों से कह रहे... *बच्चों की खुशियो में ही मुझ पिता की खुशियां समायी है.*..

 

  *मीठे बाबा आज खुशियो की बरसात मेरे मन आँगन में बिखराते हुए बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन खत्म हो गए है... *अब अथाह खुशियो भरे मीठे दिन आ गए है..*. अब ईश्वर पिता जीवन में आ गया है... चारो ओर खुशियो की बरसात है... इस नशे में सदा डूबे रहो कि सुख शांति प्रेम के मीठे पल आये की आये..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा के रूप में भगवान को सम्मुख देख देख पुलकित हूँ और कह रही हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... *ऐसा प्यारा ईश्वरीय साथ भरा जीवन तो कल्पनाओ में भी कभी न था..*. आज आपको पाने की ख़ुशी से छलक रहा मन... जीवन की सच्चाई है... और मीठे सुख मुझे अपनी बाँहों में पुकार रहे है..."

 

   *प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में दुलारते हुए ज्ञान धारा को बहाते हुए बोले :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... जो देवताई सुख कल्पनाओ से परे थे... *ईश्वर पिता उन सुख भरे खजानो को आप बच्चों की राहो में फूलो सा बिखराया है.*.. इस ख़ुशी में सदा झूमते रहो... अपने मीठे सुखो की यादो में खोये रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों की छत्रछाया में स्वयं को भरपूर करते हुए बोली :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... दुखो के जंगल में सुख की एक बून्द को तरसती... *मै आत्मा आज स्वर्ग की बादशाही पा रही हूँ..*. कितना प्यारा मीठा और खुबसूरत भाग्य है... मै आत्मा आपके सारे खजानो की मालिक बन गयी हूँ..."

 

   *मीठे बाबा रूहानी दृष्टि देते हुए और ज्ञान रत्नों से मुझे श्रंगारते हुए बोले :-* "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर जो सुखो की दौलत पायी है... उसके नशे में खोये रहो... संगम की यही खुशियां देवताई सुखो में बदल कर जीवन को खुशियो से महकायेंगी... *इन मीठे पलो के सुख को यादो में चिर स्थायी बनाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी मुस्कराहट से जवाब देते हुए कहती हूँ :-* "मीठे बाबा सच्चे ज्ञान को पाकर सारी भटकन से छूट गयी हूँ और *आपकी छत्रछाया में गुणवान शक्तिवान बनकर सच्ची खुशियो में खिलखिला रही हूँ..*. देवताई सुखो भरा स्वर्ग अपनी तकदीर में लिखवा रही हूँ..." अपनी खुशियो की चर्चा मीठे बाबा से कर मै आत्मा कार्य पर लौट आयी..." इन मीठी ईश्वरीय यादो को दिल में समेट कर मै आत्मा अपने जगत मे आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुराना सब कुछ ट्रांसफर कर देना है*"

 

_ ➳  अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे अपने निराकारी घर परमधाम में हूँ। मुझ आत्मा में पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *सर्व गुणों, सर्व शक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ*। मेरा स्वरूप रीयल गोल्ड के समान अति चमकदार है। पवित्रता की लाइट मुझ आत्मा से निरन्तर निकल रही है।

 

_ ➳  अपनी इसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा अपनी निराकारी दुनिया परमधाम को छोड़ इस सृष्टि रंगमंच रूपी *कर्मभूमि पर पार्ट बजाने के लिए, सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप धारण कर सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई दुनिया मे अवतरित होती हूँ*। एक ऐसी दुनिया जिसे स्वर्ग कहतें हैं, जो मेरे पिता परमात्मा ने मेरे लिए स्थापन की थी। जहां अपरमपार सुख, शांति और सम्पन्नता थी।

 

_ ➳  लक्ष्मी नारायण के इस सुखमयी राज्य में दो युग अपरमपार सुख भोगने के बाद मैं आत्मा जब द्वापरयुग में आई तो देह भान में आ कर विकारो में गिरने से मुझ आत्मा की कलाये कम हो गई। *मैं आत्मा जो सच्चा सोना थी, अब कॉपर की बन गई और अपने गुणों, अपनी शक्तियों को ही भूल गई*। कलयुग अंत तक आते आते मै आत्मा बिल्कुल कला विहीन हो गई। सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से तमोप्रधान अवस्था मे पहुंच गई। किन्तु संगमयुग पर मेरे पिता परमात्मा ने आ कर मुझे स्वयं अपना और मेरा यथार्थ परिचय दे कर राजयोग द्वारा मुझे फिर से चढ़ती कला में जाने की यथार्थ विधि बता दी।

 

_ ➳  बाबा ने आ कर यह स्पष्ट कर दिया कि अब यह सृष्टि का नाटक पूरा हुआ इसलिए मुझे वापिस अब उसी सतोप्रधान अवस्था मे अपनी उसी निराकारी दुनिया परमधाम लौटना है जहां से मैं आत्मा अपनी सपूर्ण सतोप्रधान अवस्था के साथ आई थी। *अपने पिता परमात्मा के साथ वापिस अपने धाम जाने के लिए अब मुझे सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है* इसके लिए पुराना कखपन बाबा को दे बैग बैगेज सब ट्रांसफर कर देना है।

 

_ ➳  बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर अब मैं आत्मा राजयोग के द्वारा अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बन फिर से सतयुगी राजाई प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर रही हूं। *देह भान में आने के कारण मुझ आत्मा पर विकारों की जो कट चढ़ गई थी उन विकारों की कट को अपने पिता परमात्मा की याद से, योगअग्नि द्वारा भस्म करने के लिए मैं आत्मा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, मन बुद्धि से अब जा रही हूँ परमधाम*।

 

_ ➳  अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने प्राणेश्वर शिव बाबा के सम्मुख देख रही हूं। मुझ पर निरन्तर मेरे प्राणेश्वर बाबा की शक्तिशाली किरणे पड़ रही हैं। इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं शक्ति स्वरूप बन रही हूं। *अपने प्यारे परमपिता परमात्मा की सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर और अमर भव का वरदान ले कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में*। मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है।

 

_ ➳  इस सत्यता को अब मैं जान गई हूं कि यह सृष्टि नाटक अब पूरा हुआ और इस नश्वर संसार को छोड़ अब मुझे अपने शिव पिता के साथ वापिस अपने धाम जाना है। इस विनाशी दुनिया का कोई भी सामान साथ नही जा सकता इसलिए *बाबा के साथ वापिस जाने के लिए पुराना कखपन दे बैग बैगेज भविष्य नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देने में ही कल्याण है*। इस बात को स्मृति में रख तीन स्मृतियों का तिलक सदा मस्तक पर लगाये अब मैं बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रह, विकारों रूपी कखपन बाबा को दे,भविष्य नई दुनिया के लिए अपने जीवन को हीरे तुल्य बना रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक के पाठ द्वारा निराकार, आकार को साकार में अनुभव करने वाली वरदानी मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं किसी से किनारा करके अपनी अवस्था बनाने के बजाए सर्व का सहारा बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आज भाग्य विधाता बाप अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य की रेखायें देखदेख भाग्य विधाता बाप भी हर्षित होते हैं क्योंकि सारे कल्प में चक्र लगाओ तो आप जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी धर्म आत्मा, महान आत्माराज्य अधिकारी आत्माकिसी का भी इतना बड़ा भाग्य नहीं हैजितना आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का है। मस्तक से अपने भाग्य की रेखाओं को देखते होबापदादा हर एक बच्चों के मस्तक में चमकती हुई ज्योति की श्रेष्ठ रेखा देख रहे हैं। आप सभी भी अपनी रेखायें देख रहे हो? *नयनों में देखो तो स्नेह और शक्ति की रेखायें स्पष्ट हैं। मुख में देखो मधुर श्रेष्ठ वाणी की रेखायें चमक रही हैं। होठों पर देखो रूहानी मुस्कानरूहानी खुशी की झलक की रेखा दिखाई दे रही है। हृदय में देखो वा दिल में देखो तो दिलाराम के लव में लवलीन रहने की रेखा स्पष्ट है। हाथों में देखो दोनों ही हाथ सर्व खजानों से सम्पन्न होने की रेखा देखो, पांवों में देखो हर कदम में पदम की प्राप्ति की रेखा स्पष्ट है।* कितना बड़ा भाग्य है!     

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखाओं को देख श्रेष्ठ भाग्यवान होने का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा की याद में बैठी हूँ इस शरीर के भान से मुक्त हो, अपने चारों ओर के वातावरण से, देह के संबंधों से स्वयं को बुद्धि से मुक्त कर बाबा की याद में खो जाती हूँ... *और इस देह के बंधन को छोड़, इस साकारी दुनिया को छोड़ बाबा के पास उड़ जाती हूँ...* बाबा को देखते ही मेरे नयनों में प्रेम के आँसू छलक आते हैं और अपने भाग्य पर नाज़ होता है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ जो लाखों करोड़ों आत्माओं में से बाबा ने मुझे चुना है... मेरा भटकना बंद हो गया... *ये  संसार की आत्माएं आपको पाने के लिए कितने प्रयत्न करती हैं कितने जप तप तीर्थ व्रत करती हैं परंतु फिर भी आपको पा नहीं पाती और मेरा कितना श्रेष्ठ भाग्य आप भाग्य विधाता बाप ने बना दिया है...*

 

 _ ➳  इस संसार में मुझ जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी का भी नहीं है  *चाहे कोई धर्म आत्मा हो, महान आत्मा हो, राज्य अधिकारी आत्मा हो किसी का भी भाग्य इतना बड़ा इतना महान नहीं है...* ये सारी दुनिया कलियुग में जी रही है दुख भोग रही है और मैं आत्मा इस संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्तियों के झूले में झूल रही हूँ...

 

 _ ➳  मेरे प्यारे बाबा ने श्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझे दे दी है मैं जैसा चाहूँ अपना भाग्य लिख सकती हूँ... *मेरे नयनों से स्नेह और रूहानियत झलकती है... मेरा मुख मधुर वाणी बोलता है और होठों पर रूहानी मुस्कान रहती है जिसे देख अन्य आत्माएं भी सोचती हैं कि इन्हें ज़रूर कुछ मिला है और इस रूहानी प्रेम का अनुभव करने के लिए मेरी ओर खिंची चली आती हैं...* मैं आत्मा उन आत्माओं को भी रूहानी दृष्टि से प्रेम के वाइब्रेशन दे उनके मन को भी ररूहानियत से भर देती हूँ...

 

 _ ➳  *मेरा हृदय दिलाराम बाप के लव में लवलीन है... मैं आत्मा बाप द्वारा दिये सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न हूँ...* मेरे बाबा विकारों के बदले मुझे अमूल्य रत्नों से भरपूर कर रहे हैं... मेरे हर कदम में पदम समाया हुआ है... मैं इस संसार की सबसे भाग्यशाली आत्मा हूँ... *मेरे भाग्य की रेखा को देख मेरे बाबा भी हर्षित होते हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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