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 21 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *8 घंटा पांडव गवर्नमेंट की मदद जरूर की ?*

 

➢➢ *सूर्यवंशी राजाई लेने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *अपने पन के अधिकार की अनुभूति द्वारा अधीनता को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *अपने संस्कार व गुणों को सर्व के साथ मिलाकर चले ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  लास्ट सो फास्ट पुरुषार्थ ज्वाला-रुप का ही रहा हुआ है। *पाण्डवों के कारण यादव रुके हुए हैं। पाण्डवों की श्रेष्ठ शान, रुहानी शान की स्थिति यादवों के परेशानी वाली परिस्थिति को समाप्त करेगी।* तो अपनी शान से परेशान आत्माओं को शान्ति और चैन का वरदान दो। ज्वाला स्वरुप अर्थात् लाइट हाउस और माइट हाउस स्थिति को समझते हुए इसी पुरुषार्थ में रहो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मा हूँ"*

 

  सदा यह नशा रहता है कि हम कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मायें बनते हैं? कितनी बार आपकी पूजा हुई है? पूज्य आत्मा हूँ-यह पूज्यपन की अनुभूति क्या होती है? निशानी क्या है? किस विशेषता के आधार पर कोई पूज्य बनता है? लौकिक में भी देखो-किसको कहते हैं कि यह तो पूज्य है। *पूज्य आत्मा की निशानी है-वह कभी भी किसी भी वस्तु के पीछे, व्यक्ति के पीछे झुकेगा नहीं। सब उसके आगे झुकेंगे लेकिन वह झुकेगा नहीं। नम्रता से झुकना-वह अलग चीज है। लेकिन झुकना अर्थात् प्रभावित होना। पूज्य के आगे सब झुकते हैं, पूज्य नहीं झुकता है।*

 

  तो किसी भी प्रकार के व्यक्ति या वैभव की आकर्षण झुका लेवे-यह पूज्य की निशानी नहीं है। तो यह चेक करो कि कभी भी, किसी भी आकर्षण में मन और बुद्धि झुकती तो नहीं है, प्रभावित तो नहीं होते हो? *सिवाए एक बाप के और कहाँ भी मन और बुद्धि का झुकाव नहीं। पूज्य अर्थात् झुकाने वाला, न कि झुकने वाला। जो कल्प-कल्प का पूज्य होगा उसकी निशानी क्या होगी? सिवाए बाप के, और कहाँ भी आंख नहीं डूबेगी। यह बहुत अच्छा है, यह बहुत अच्छी चीज है-नहीं। पूज्य आत्माओंके आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं।* 

 

  लगाव तब होता है जब झुकाव होता है। बिना लगाव के झुकाव नहीं होता। आज के भक्तों का भी चाहे अल्पकाल की प्राप्ति की तरफ लगाव हो, तभी झुकाव होता है। आजकल पूज्य की तरफ लगाव नहीं है, अल्पकाल की प्राप्ति के तरफ लगाव है। लेकिन प्राप्ति कराने वाली पूज्य आत्मायें हैं, इसलिये झुकते उनकी तरफ ही हैं। तो समझा, पूज्य की निशानी क्या है? कल्प-कल्प की श्रेष्ठ पूज्य आत्मायें सदा स्वयं को सम्पन्न अनुभव करेंगी। जो सम्पन्न होता है उसकी आंख किसमें भी नहीं जाती। पूज्य आत्मा सम्पन्न होने के कारण सदा ही अपने रूहानी नशे में रहेगी। उनके मन-बुद्धि का झुकाव कहाँ भी नहीं होगान देह के सम्बन्ध में, न देह के पदार्थ में। सबसे न्यारा और सबसे प्यारा। *ब्राह्मण जीवन का मजा जीवन्मुक्त स्थिति में है। न्यारा अर्थात् मुक्त। संस्कार के ऊपर भी झुकाव नहीं। जब कहते हो कि क्या करुँ, कैसे करुँ-तो उस समय जीवन्मुक्त हुए या जीवन-बन्ध? करना नहीं चाहते थे लेकिन हो गया-यह है जीवन-बन्ध बनना। इच्छा नहीं थी लेकिन अच्छा लग गया, शिक्षा देनी थी लेकिन क्रोध आ गया-यह है जीवन-बन्ध स्थिति। ब्राह्मण अर्थात् जीवन्मुक्त। कभी भी किसी बंधन में बंध नहीं सकते।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सदा अपनी स्मृति की समर्थी से अपने तीनों स्थान और तीनों स्थिति, *निराकारी आकारी और साकारी तीनों स्थिति में सहज ही स्थित हो सकते हो?*

 

✧  जैसे आदि स्थिति साकार स्वरुप में सहज ही स्थित रहते हो ऐसे *अनादि निराकारि स्थिति इतनी ही सहज अनुभव होती है?* अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो?

 

✧  जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे *अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अनेक बन्धनों से मुक्त एक बाप के सम्बन्ध में समझो तो सदा
एवर-रेडी रहेंगे। संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस करो। कितना भी सेवा में बिज़ी हों, कार्य की चारों ओर की खींचतान हो, बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिज़ी हो- ऐसे टाइम पर अशरीरी बनने का अभ्यास करके देखो। *यथार्थ सेवा का कभी बन्धन होता ही नही। क्योंकि योग युक्त, युक्तियुक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं। ऐसे नहीं कि सेवा ज़्यादा है इसलिए अशरीरी नहीं बन सकते। याद रखो मेरी सेवा नहीं बाप ने दी है तो निर्बन्धन रहेंगे।* 'ट्रस्टी हूँ, बन्धनमुक्त हूँ' ऐसी प्रैक्टिस करो। अति के समय अन्त की स्टेज, कर्मातीत अवस्था का अभ्यास करो तब कहेंगे तेरे को मेरे में नहीं लाया है। अमानत में ख्यानात नहीं की है समझा, अभी का अभ्यास क्या करना है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ईश्वरीय बचपन को ना भूल, फुल पास होकर सूर्यवंशी घराने में राज्य लेना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा स्वयं को हिस्ट्री हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं और साकार बाबा की मधुर वाणी को स्मरण कर रही हूं... शिव बाबा साकार बाबा द्वारा कैसे हम बच्चों को पालना देते थे, और दे रहे हैं... इन मधुर मधुर यादों में खोई मैं आत्मा पहुंच जाती हूं निर्वाणधाम* यहाँ शिव बाबा की अलौकिक शक्ति चारों ओर लाल सुनहरे प्रकाश में बहती जा रही है... *मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ उस दिव्य अलौकिक शक्ति को अपने में समाती जा रही हूं... शक्तियों के प्रवाह से मैं आत्मा बहुत हल्का महसूस कर रही हूं... जन्मों जन्मों के विकर्मों को विनाश कर मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र नन्हा फ़रिश्ता बन सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूं...*

 

  *बापदादा मुझे देख मुस्कुरा कर बोले:-* "आओ *मेरे नन्हें फ़रिश्ते... बाप तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं... मेरे फूल बच्चे तुम्हें ईश्वरीय बचपन को ना भूल, फुल पास होकर सूर्यवंशी घराने में राज्य लेना है...* बाप की मत ही तुम्हें सूर्यवंशी राज्य अधिकारी बनाएगी इसलिए सदैव एक बाप की मत को धारण करो..."

 

 _ ➳  *बाबा से राज्य भाग्य का वरदान लेती मैं आत्मा अपने मीठे बाबा से कहती हूं:-* "मेरे दिलाराम बाबा... आपकी मत से मेरा जीवन सभी दुखों से मुक्त हो गया है... *मैं आत्मा दिव्य गुणों से सुसज्जित हो गयी हूं... ऐसा लगता है कि मैं अलौकिक प्रकाश की चमक से जगमगा रही हूं... अपने भाग्य का चिंतन कर मैं कभी कभी विस्मित हो जाती हूँ और दिल से आवाज़ आती है वाह बाबा वाह वाह मेरा भाग्य वाह...*"

 

  *मुझ नन्हे फ़रिश्ते को अपनी गोद में लेकर बाबा बहुत प्यार से कहते हैं:-* "मेरे रूहे गुलाब बच्चे... *बाप आये ही हैं तुम्हें विश्व की बादशाही देने, डबल ताजधारी विश्व महाराजन विश्व महारानी बनाने इसलिए अपने ईश्वरीय बचपन को सदैव याद रखो और एक बाप से योग लगायो...* योग से ही तुम्हारी आत्मा की खाद निकलेगी और तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया मे मालिक बन जाएंगे..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने भाग्य को देख ख़ुशी में भाव विभोर होकर बाबा से कहती हूं:-* "मेरे जीवन को *ईश्वरीय ज्ञान, प्रेम और पवित्रता से सुसज्जित करने वाले मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी बातों को धारण कर मुझ आत्मा का जीवन निखर गया है...* मेरे जादूगर बाबा आपकी जादूगरी ने मुझे पवित्रता की देवी बना दिया है... *आप क्या से क्या बनाते हो मन इन बातों का चिंतन करता रहता है और खुशी के झूले में झूलता रहता है... मुझे अपार खुशिओं का खजाना देकर आपने मुझे कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है..."*

 

  *अपना वरदानी हाथ मेरे सर पर रखकर बाबा मेरे सर को सहलाते हुए मुझसे बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञानी तू आत्मा बनने के लिए *बाप की मत ही सहायक है... एक बात को पक्का करो मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इसी स्मृति से तुम अशरीरी अवस्था में टिक सकते हो... अशरीरी पन का अभ्यास ही अंत मति सो गति का आधार है... बाप के ज्ञान बाण ही तुम्हें अलौकिक एवं आत्मिक स्वरूप प्रदान करेंगे...* अपनी ईश्वरीय बचपन की स्मृति में स्थित रहो... *सदैव याद रखो तुम ईश्वर की सन्तान हो यही स्मृति तुम्हें फुल पास कराकर सूर्यवंशी घराने में राज्य अधिकारी का पद दिलाएगी... इस विकारी दुनिया से ममत्व मिटाकर एक बाप से बुद्धि योग लगाओ... बाप के गुणों को धारण कर दूसरों को कराने की सेवा करो...*"

 

 _ ➳  *मैं फ़रिश्ता बाबा की मधुर वाणी की धुन में खोई हुई सी बाबा से कहती हूं:-* " हाँ, मेरी जीवन नैया को भवसागर से पार लगाने वाले *मेरे सतगुरु बाबा... आपकी वाणी ने मेरे जीवन का हर दुख हर लिया है...* मेरा जीवन कितने विकारों, दुखों और संकटो से भरा हुआ था आपने आकर *विघ्न विनाशक बन इन दुखों से मुझे छुड़ा लिया है...* मोहबन्धन से मेरा मन छुड़ा कर अपनी याद में लीन कर दिया है... *आप नही मिलते तो नाजाने कितने ही जन्म मैं यूँही इस भवसागर में गोते खाती रहती... मुझे ईश्वरीय प्रेम देने वाले बाबा मेरे आपको कोटि कोटि धन्यवाद... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से स्नेह भरा धन्यवाद कर अपने साकारी तन में लौट आती हूँ...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- 8 घण्टा पाण्डव गवर्मेन्ट की मदद जरूर करनी है*

 

_ ➳  इस पतित सृष्टि को पावन सतयुगी दुनिया मे परिवर्तन करने का जो कर्तव्य इस समय स्वयं भगवान इस धरा पर आकर कर रहें हैं उस ऑल माइटी अथॉरिटी, पाण्डव गवर्मेंट के साथ इस कर्तव्य में उसका मददगार बनना कितने महान सौभाग्य की बात है! *कितना श्रेष्ठ भाग्य है मेरा जो भगवान की मदद करने का गोल्डन चांस भगवान ने स्वयं मुझे दिया है। कोटो में कोई, कोई में भी कोई मैं वो महान सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जिसे भगवान ने स्वयं अपने सर्वश्रेष्ठ कार्य के लिए चुना है*। "वाह मैं आत्मा और वाह मेरा भाग्य"। अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाकर वाह - वाह के गीत गाती हुई मैं आत्मा अपने उस प्यारे पिता का कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करके उनसे वादा करती हूँ कि *अपनी हर रोज की दिनचर्या में मैं 8 घण्टे पांडव गवर्मेंट की मदद अवश्य करूँगी। तन मन धन से ईश्वरीय कार्य मे सहयोग जरूर दूँगी*।

 

_ ➳  अपने सर्वशक्तिवान, सृष्टि के रचयिता पिता से वादा करके मैं जैसे ही मन बुद्धि को उनकी याद में स्थिर करती हूँ मुझे आभास होता है जैसे मेरे पिता अपना असीम बल भरकर मुझे अथक और अचल अडोल बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं। *स्वयं भगवान मेरा आह्वान कर रहें हैं यह विचार कर मन ही मन गदगद होती हुई मैं सेकण्ड में देह भान का त्याग कर अपने अनादि बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को पूरी तरह अपने प्यारे पिता के स्वरूप पर फोकस कर लेती हूँ*। देख रही हूँ अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता को मैं फरिश्तो के अव्यक्त वतन में अपने अव्यक्त रथ में विराजमान होकर बाहें फैलाये अपना इंतजार करते हुए। अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में अनन्त प्रकाशवान अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो मुस्कारते हुए अव्यक्त इशारे से मुझे बुला रहें हैं।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर जागृत हो रही है जो मुझे धीरे - धीरे अव्यक्त स्थिति में स्थित कर रही है। मेरा साकार शरीर लाइट के शरीर मे परिवर्तित होता जा रहा है। *ऊपर से लेकर नीचे तक अब मैं स्वयं को एक सुंदर प्रकाश की काया में अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं इतना हल्का महसूस कर रही हूँ कि ऐसा लग रहा है जैसे मेरे पाँव धरती को स्पर्श ही नही कर रहे और धीरे - धीरे अपनी प्रकाश की काया के साथ मैं ऊपर उड़ रही हूँ*। एक बहुत ही सुंदर अनुभूति और लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए सारे विश्व का चक्कर लगा कर अब मैं आकाश से ऊपर जा रही हूँ। *निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए अब मैं सफेद प्रकाश की उस खूबसूरत दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ जहाँ अव्यक्त बापदादा मेरा इंतजार कर रहें हैं*।

 

_ ➳  फ़रिश्तों की इस लाइट की दुनिया में अपने सम्पूर्ण लाइट माइट स्वरूप में अपना अनन्त प्रकाश पूरे वतन में फैलाते हुए बापदादा को मैं सामने देख रही हूँ। अपनी दोनों बाहों को फैलाये अपने इंतजार में खड़े बापदादा के मुस्कारते हुए सुंदर मनभावन स्वरूप को निहारते हुए बापदादा के पास पहुंच कर मैं उनकी बाहों में समा जाती हूँ। *उनके नयनो में अथाह प्यार का सागर मेरे लिए उमड़ रहा है उस स्नेह सागर की गहराई में डूब कर मैं गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे बापदादा का अथाह प्यार पाकर तृप्त होकर अब मैं उनके सम्मुख बैठी हूँ और उनसे मीठी दृष्टि लेकर परमात्म शक्तियों को अपने अंदर भर रही हूँ*। बाबा के मस्तक से निकल रही तेज लाइट सीधी मुझ में प्रवाहित हो रही है। अथक सेवाधारी बन पाण्डव गवर्मेंट अर्थात ईश्वरीय कार्य मे मदद करने के लिए बाबा अपने हाथ मे मेरा हाथ लेकर अपनी सारी शक्तियों का बल मुझे दे रहें हैं। वरदानों से मेरी झोली भरकर मुझे भरपूर कर रहें हैं।

 

_ ➳  सर्व शक्तियों, सर्व वरदानों और सर्व खजानो से सम्पन्न होकर अब मैं अपनी लाइट की शक्तिशाली सूक्ष्म काया के साथ वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकार ब्राह्मण तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ। *भगवान की पाण्डव गवर्मेंट का सच्चा सेवक बन सृष्टि परिवर्तन के उनके कार्य मे मदद करने के लिए अब मैं सम्पूर्ण समर्पण भाव से भगवान द्वारा रचे रुद्र ज्ञान यज्ञ में पूरा सहयोग दे रही हूँ। शरीर निर्वाह अर्थ अपने सभी दैनिक कर्तव्यों को पूरा करने के साथ - साथ 8 घण्टा पाण्डव गवर्मेंट की सेवा में सहयोगी बन, परमात्म सेवा और परमात्म याद द्वारा अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को मैं श्वांसों श्वांस सफल कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनेपन के अधिकार की अनुभूति द्वारा अधीनता को समाप्त करने वाली सर्व अधिकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने संस्कार वा गुणों को सर्व के साथ मिलाकर चलने की विशेषता को अनुभव करने वाली विशेष आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ क्योंकि आप सभी ब्राह्मण आत्माओं का विश्व के मंच पर हीरो और हीरोइन का पार्ट है। ऐसी हीरो पार्टधारी आत्माओं का एक-एक सेकण्ड, एक-एक संकल्प, एक-एक बोल, एक-एक कर्म, हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान है। *अगर एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो जैसे हीरे को गँवाया। अगर कीमती से कीमती हीरा किसका गिर जाए, खो जाए तो वह सोचेगा ना - कुछ गँवाया है। ऐसे एक हीरे की बात नहीं। अनेक हीरों की कीमत का एक सेकण्ड है। इस हिसाब से सोचो। ऐसे नहीं कि साधारण रूप में बैठे-बैठे साधारण बातें करते-करते समय बिता दो।* फिर क्या कहते - कोई बुरी बात तो नहीं की, ऐसे ही बातें कर रहे थे, ऐसे ही बैठे थे, बातें कर रहे थे। ऐसे ही चल रहे थे। यह ऐसे-ऐसे करते भी कितना समय चला जाता है। ऐसे ही नहीं लेकिन हीरे जैसे हैं। तो अपने मूल्य को जानो।

➳ _ ➳ आपके जड़ चित्रों का कितना मूल्य है। एक सेकण्ड के दर्शन का भी मूल्य है। *आपके एक संकल्प का भी इतना मूल्य है जो आज तक उसको वरदान के रूप में माना जाता है। भक्त लोग यही कहते हैं कि एक सेकण्ड का सिर्फ दर्शन दे दो। तो दर्शन ‘समय' की वैल्यु है, वरदान ‘संकल्प' की वैल्यु, आपके बोल की वैल्यु - आज भी दो वचन सुनने के लिए तड़पते हैं। आपके दृष्टि की वैल्यु आज भी नज़र से निहाल कर लो, ऐसे पुकारते रहते हैं। आपके हर कर्म की वैल्यु है। बाप के साथ श्रेष्ठ कर्म का वर्णन करते गद्गद् होते हैं। तो इतना अमूल्य है आपका हर सेकण्ड, हर संकल्प। तो अपने मूल्य को जान व्यर्थ और विकर्म वा विकल्प का त्याग।*

✺ *"ड्रिल :- अपने हर सेकेंड, संकल्प, बोल और कर्म के मूल्य को समझना "*

➳ _ ➳ मैं आत्मा कुछ कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए हुए नाटक को देखने के लिए आती हूं... जहां मुझे आकर अनेक तरह के भिन्न-भिन्न चित्र दिखाई पड़ते हैं... मैं वहां देखती हूं कि वहां पर बैठे सभी लोग जो सामने नाटक प्रस्तुत कर रहे हैं उस हीरो पार्ट धारी को बहुत गौर से देख रहे हैं... *मेरी भी बार बार नजर नाटक के हीरो पर ही जाती है... मेरा सारा ध्यान नाटक के हीरो के हर छोटे बड़े एक्शन की तरफ जाता है... उनकी हर छोटी बड़ी बात मुझे प्रभावित करती है...* यूं तो वहां और भी कलाकार थे परंतु हम सभी बार-बार मुख्य भूमिका वाले एक्टर को देखने के लिए प्रभावित हो रहे है... और हम सभी श्रोतागण उस ऐक्टर की भूमिका की सराहना कर रहे हैं...

➳ _ ➳ जब यह नाटक समाप्त होता है तो मैं अपने घर चली जाती हूं... और मुझे बार-बार उस हीरो पार्टधारी एक्टर की भूमिका याद आती है... बार-बार मेरी बुद्धि उधर ही चली जाती है... इससे मुझे ज्ञात होता है कि *जैसे मेरी बुद्धि बार-बार उधर जा रही है, मैं चाहकर भी उस एक्ट को नहीं भुला पा रही हूं... उसके जैसा ही बनना चाहती हूं, उसके जैसा ही जीवन जीना चाहती हूं, उसकी कही हुई हर बात को अपने अंदर समाना चाहती हूं, उसकी हर कला को अपने अंदर समा कर उसके जैसी ही भूमिका अदा करना चाहती हूं... ऐसे ही सृष्टि रूपी रंगमंच पर सर्वश्रेष्ठ पार्ट निभाने वाले व्यक्ति को सभी लोग बड़ी गहराई से देखते हैं और उसकी कही हुई हर बात का अनुसरण करते हैं...*

➳ _ ➳ कुछ देर तक विचार करने के बाद मैं एकांत अवस्था में जाकर बैठ जाती हूं... और विचार विमर्श करने लगती हूं... तभी मेरी नजर एक ऐसे चित्र पड़ जाती है जहां पर सभी ब्राह्मण आत्माएं कल्पवृक्ष की जड़ों में बैठकर इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष को साकाश दे रहे हैं... उस चित्र को देखकर मुझे यह ज्ञात होता है कि यह *सभी ब्राह्मण आत्माएं अपने इस संगम युग के महत्वपूर्ण समय को सही तरीके से यूज कर उसका पूर्ण लाभ उठा रहे हैं... और अपना वा पूरे संसार का कल्याण कर रहे हैं... जैसे-जैसे मैं उन ब्राह्मण आत्माओं को जड़ चित्रों के रुप में देखती हूं वैसे वैसे ही मैं शिव बाबा को बीज रूप में अनुभव करती हूं...* और कुछ देर के लिए मैं एकदम शांत अवस्था में बैठ जाती हूं...

➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं मन बुद्धि से फरिश्ता स्वरुप में आ जाती हूं और अपने आप को सफ़ेद प्रकाश रूपी शरीर में अनुभव करती हूं... और मैं अनुभव करती हूं कि मुझसे रंग बिरंगी किरणें निकल रही है... और साथ ही यह भी फील करती हूँ कि शिवबाबा बीज रुप में बैठे हुए हैं, और उनसे अद्भुत रंग बिरंगी किरणें मुझ पर आकर गिर रही हैं... और *मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुझे कह रहे हैं कि बच्चे तुम भी उस नाटक के हीरो के समान हो... जैसे उस हीरो पार्टधारी को सभी मनुष्य देखते हैं और उसको फॉलो करने की कोशिश करते हैं... वैसे ही तुम्हारा भी चाल- चलन और हर कर्म संकल्प ऐसे होने चाहिए कि आपकी हर एक गतिविधि को अन्य आत्माएं फॉलो कर सके और श्रीमत की राह पर चल सके...*

➳ _ ➳ बाबा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए मुझे कहते हैं कि जैसे नाटक में हीरो की समय अवधि निर्धारित होती है... वह कोशिश करता है कि इस समय में वह अपनी सबसे बेहतरीन भूमिका दे सके... वह अपना पूरा जोर लगा देता है... जिसके कारण वह अपना अभिनय सबसे अच्छा देने की कोशिश करता है और उस समय अवधि में वह अपने हर संकल्प बोल को बहुत ही सोच समझकर उपयोग मे लाता है... उसी कारण वह अपना अभिनय सबसे श्रेष्ठ कर पाते हैं... वैसे ही तुम्हें भी अपने समय संकल्प की महत्वपूर्णता को जानते हुए हर कर्म करना है... इन्हीं कर्मों के कारण आप अपनी स्थिति इतनी ऊंची कर सकते हैं की आपकी एक झलक के लिए इस संसार की अन्य आत्माएं तरसती हैं... उनके एक एक बोल को अपने लिए वरदान समझते हैं, और उस वरदान के कारण ही वह आपके आगे नतमस्तक हो जाते हैं इसलिए इस समय की महत्वपूर्णता को जानते हुए *अपने संकल्प बोल और कर्मों को इतना महान बनाइए कि आपके वचन और बोल के लिए अन्य आत्माएं युगों-युगों तक आप की पुकार करने लगे और आप के दर्शन मात्र के लिए आपके इंतजार में बैठी रहे... और बाबा की यह बातें सुनकर मेरा मन गदगद हो उठता है... और मैं उसी समय से अपने आपको सृष्टि रूपी रंगमंच की हीरो पार्टधारी के रुप में अनुभव करने लगती हूं...*
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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