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 13 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *डबल अहिंसक बन मन वचन कर्म से किसी को भी दुःख तो नहीं दिया ?*

 

➢➢ *स्वर्ग का मालिक बनने के लिए भूतों पर विजय प्राप्त की ?*

 

➢➢ *रीगार्ड मांगने की बजाये सदा ऊंची स्थिति में रहे ?*

 

➢➢ *माया का तिरस्कार कर सर्व के सतकारी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग का प्रयोग करने के लिए दृष्टि-वृत्ति में भी पवित्रता को और अण्डरलाइन करो।* मूल फाउण्डेशन-अपने संकल्प को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप बनाओ। *कोई कितना भी भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव समझता हो लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर दे। यही है योग का प्रयोग।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं परमात्मा का सिकीलधा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को सिकीलधे समझते हो ना। सदा बाप के सिक व प्रेम का विशेष अनुभव होता है ना! जिस सिक व प्रेम से बाप ने अपना बनाया ऐसे सिक व प्रेम से आपने भी बाप को अपना बनाया है ना! दोनों का स्नेह का अविनाशी पक्का सौदा हो गया। ऐसे सौदा करने वाले सौदागर वा व्यापारी हो ना! ऐसा सौदा सारी दुनिया में कोई कर नहीं सकता। कितना सहज सौदा है। *दो शब्दों का सौदा है लेकिन है अमर। दो शब्द कौन से हैं? आपने कहा 'तेरा' और बाप ने कहा 'मेरा'। बस सौदा हो गया। तेरा और मेरा इन दो शब्दों में अविनाशी सौदा हो गया। और कुछ देना नहीं पड़ता।*

 

  देना भी न पड़े और सौदा भी बढ़ीया हो जाएँ तो और क्या चाहिए! सब कुछ मिल गया है ना। ऐसे समझा था कि घर बैठे इतना सहज सौदा भगवान से करेंगे। सोचा था! तो जो संकल्प में भी नहीं था वह प्रैक्टिकल कर्म में हो गया। यह खुशी है ना? सबसे ज्यादा खुशी किसको है? विशेषता यही है जो हरेक कहता - हमें ज्यादा खुशी है। पहले मैं। ऐसे नहीं इन्हें है हमें नहीं। यह भी रेस है, ईर्ष्या नहीं। इसमें हरेक एक दो से आगे बढ़ो। *चांस है आगे बढ़ने का। जितना आगे बढ़ने चाहो उतना बढ़ सकते हो। तो सब पक्के सौदागर बनो। कच्चा सौदा करेंगे तो नुकसान अपने को ही करेंगे।*

 

  सदा स्वयं को समाया हुआ अनुभव करते हो? *बाप के नयनों में, दिल में समाया हुआ। जो समाये रहते हैं वह दुनिया से पार रहते हैं। उन्हें अनुभव होता कि बाप ही सारी दुनिया है। स्वप्न में भी पुरानी दुनिया की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती है। ऐसे समाये हुए को किसी भी बात में मुश्किल का अनुभव नहीं हो सकता। वह दुनिया से खोया हुआ है। अविनाशी सर्व प्राप्ति प्राप्त किया हुआ है।* सदा दिल में एक ही दिलाराम रहता, ऐसी समाई हुई आत्मा सदा सफल है ही।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *अच्छा सारे दिन अव्यक्त स्थिती कितना समय रहती है?* बिन्दि रूप के लिए नहीं पूछते हैं। अव्यक्त स्थिति कितना समय रहती है? बापदादा सम्पूर्ण स्टेज को  सामने रख पूछते हो और आप अपने पास्ट के पुरुषार्थ को सामने रख सोचते हो कितना फर्क हो गया। वर्तमान समय पढाई कि मुख्य सब्जेक्टस् कौन - सी चल रही है? *मुख्य सबजेक्ट यह पढ रहे हो कि ज्यादा से ज्सादा अव्यक्त स्थिति बनें*।

 

✧  तो मुख्य सबजेक्ट में रिजल्ट कम है। निरंतर याद में रहने कि सम्पूर्ण स्टेज के आगे एक - दो घण्टा क्या है। इनसे ज्यादा अपनी अव्यक्त स्थिति बनाने की विधी बुद्धी में हैं? अगर विधी है तो वृद्धि क्यों नहीं होती है, कारण? विधी का ज्ञान सारा स्पष्ट बुद्धी में आता है, लेकिन एक बात नहीं आती, जिस कारण विधि का मालूम होते भी वृद्धि नहीं होती है। वह कौन - सी बात है?

 

✧  अच्छा आज वृद्धि कैसे हो उस पर सुनाते है। *एक बात जो नहीं आती है वह है कि विस्तार करना और विस्तार में जाना आता है लेकिन विस्तार को जब चाहे समेटना और समा लेना यह प्रैक्टीस कम है*। ज्ञान के विस्तार में आना भी जानते हो लेकिन विस्तार को समाकर ज्ञान स्वरूप बन जाना, बीज रुप बन जाना इसकी प्रैक्टीस कम है। विस्तार से जाने से टाइम बहुत व्यर्थ जाता है और संकल्प भी व्यर्थ जाते है। इसलिए जो शक्ति जमा होनी चाहिए, वह नहीं होती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे बाप को सर्व स्वरूपों से व सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी ऐसा जानना आवश्यक है। *जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हो ऐसे मानकर चलेंगे तो क्या स्थिति होगी? देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- "मनसा-वाचा-कर्मणा कभी किसी को दुःख नही देना*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ बाबा के प्रेम तरगों में डूबी हुई हूँ... यह पावन भूमि बहुत ही मीठी भूमि है... जहाँ निराकार परमपिता परमात्मा ब्रह्मा तन में आकर नई दुनिया के लिए नया  ज्ञान देते हैं...* पतितों को पावन बनाते हैं... यहाँ की हवाओं में फैली मीठी-मीठी पावन खुशबू मन को आह्लादित कर रही है... *फिर मीठे बाबा मेरा हाथ पकड बगीचे में ले जाते हैं और मुझे अपने हाथों से मीठे-मीठे अंगूर तोड़कर खिलाते हुए मीठी समझानी देते हैं...*

 

  *मनसा-वाचा-कर्मणा कभी किसी को भी दुःख ना देने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे लाडले बच्चे... *प्यार के सागर के दिल की मणि हो तो मीठे बन प्यार से मुस्कराओ...* हर दिल को पिता जैसे प्यार से सहलाओ... सबके सहयोगी बन सदा का दिल जीतो... *मीठे बोलो की टोली खाते रहो और खिलाते रहो... और मीठी वाणी से मीठे पिता का पता दे आओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में दीवानी होकर सर्व पर प्यार के फूल बरसाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी मीठी और प्यारी बन गई हूँ... हर दिल की राहत हो गई हूँ... सारा विश्व मेरा परिवार है... *सब मेरे अपने ही आत्मा भाई है... इस सुंदर भाव में डूबकर सदा की मीठी हो गयी हूँ...”*

 

  *प्यार के सागर प्यारे बाबा प्यार की मिठास का एहसास कराते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारी दुनिया दुखो में डूबी हुई निढाल हो गई है... आप प्यार भरी मिठास से उनमे नव जीवन का संचार करो... प्यार के मरहम से उनके दुखो को दूर करो... *मनसा-वाचा-कर्मणा सुख देकर उनके थके तनमन को आनन्द से भर दो... मा. प्यार सागर बन प्यार का दरिया बहाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्रेम की बदली बन पूरे विश्व को प्रेम की वर्षा में भिगोते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में प्रेम से ओतप्रोत हो रही हूँ... सब पर प्यार लुटाती जा रही हूँ... *सबपर सुखो की वर्षा कर दुखो से मुक्त कर रही हूँ.... मा. प्रेमसागर बन प्रेम के झरनो में सबको भिगो रही हूँ...”*

 

  *अपने प्रेम किरणों से विकारों को भस्म कर निर्विकारी बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप बड़े वाले देवता हो... आपको सबको प्यार देना है सबका ध्यान रखना है सबकी सम्भाल करनी है... *ईश्वर के बच्चे हो सबको खुशियां देने के निमित्त हो... सारे विश्व को खुशियो से भर दो... हर आत्मा को प्रेम से सींच कर खुशहाली दो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा डबल अहिंसक बन भाई-भाई की मीठी दृष्टि रख सब पर प्रेम लुटाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा प्रेम धारा बनकर सबकी मीठी पालना कर रही हूँ...* मेरा पोर पोर प्यार में डूब रहा है और यह प्रेम तरंगे पूरे विश्व में फैला कर सुखो का कारवां ला रही हूँ.... *चारो और सुख और प्रेम बिखरा है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से किसी को भी दुख नही देना है*"

 

_ ➳  दुखों से लिबरेट कर, सबको सुख देने वाले दुख हर्ता सुख कर्ता, सदा कल्याणकारी *अपने सदाशिव भगवान बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बन सबको खुशी देने और डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से कभी भी किसी को दुख ना देने का स्वयं से वायदा कर, मैं दया के सागर, सुख के सागर अपने निराकार शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और उनके पास ले जाने वाली अति सुखदायी आंतरिक यात्रा पर धीरे - धीरे अग्रसर होती हूँ। मन और बुद्धि जैसे - जैसे स्थिर होने लगते हैं और जैसे - जैसे एकाग्रता की शक्ति बढ़ने लगती है मुझे मेरा वास्तविक स्वरूप बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देने लगता है।

 

_ ➳  अपनी साकार देह में अपनी दोनों आइब्रोज़ के बीच अपने आपको एक चमकते हुए सितारे के रूप में मैं देख रही हूँ। *उस सितारे में से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मुझे बहुत सुखद एहसास करवा रहा है और उस प्रकाश की सतरँगी किरणों में अपने अंदर निहित सातों गुणों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से निकल कर, चारो ओर फैलता हुआ मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। अपने निज स्वरूप से निकल रहे इन सातों गुणों के वायब्रेशन्स को एक रंग बिरंगे फव्वारे से निकल रही फ़ुहारों के रूप में अपने ही शरीर पर पड़ता हुआ मैं अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  मैं देख रही हूँ जैसे - जैसे ये फुहारें मेरे शरीर पर पड़ रही है मेरे शरीर के सभी अंग एक - एक करके शिथिल हो रहें हैं। अपने आपको मैं एक दम रिलेक्स महसूस कर रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे शरीर का भान बिल्कुल समाप्त हो गया है और मैं बिल्कुल अशरीरी हो गई हूँ*। जैसे मक्खन से बाल निकलता है ऐसे इस अशरीरी अवस्था में मैं आत्मा बिल्कुल सहज रीति देह से बिल्कुल न्यारी होकर अब भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ उससे बाहर आ गई हूँ।

 

_ ➳  दैहिक दुनिया के हर बन्धन से मुक्त इस अवस्था मे मैं स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ। यह हल्कापन मुझे धरनी के आकर्षण से मुक्त करके, ऊपर की ओर उड़ा रहा है। *धीरे - धीरे मैं चमकता सितारा अपनी खूबसूरत आंतरिक यात्रा के इस पहले को पड़ाव को पार कर अब ऊपर आकाश की ओर जा रहा हूँ*। निरन्तर अपनी मंजिल की ओर बढ़ती हुई मैं चैतन्य शक्ति आत्मा आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को पार करती हुई अब अपनी मंजिल, अपने शांति धाम घर में अपने सुख सागर बाबा के पास पहुँच चुकी हूँ।

 

_ ➳  बाबा के पास पहुँच कर उनसे आ रही सुख की किरणों के शीतल झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्वयं को उनके सुख की किरणों से भरपूर कर स्वयं को उनके समान मास्टर सुख का सागर बना रही हूँ। *बाबा से आ रही सुख की पीले रंग की शक्तियों का झरना झर - झर करके मेरे ऊपर बहता ही जा रहा है और उन शक्तियों को मैं अपने अन्दर गहराई तक समाती जा रही हूँ*। अपने सुख सागर बाबा से सुख की अनन्त शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौटती हूँ।

 

_ ➳  अपने सुख सागर बाप से अपने अंदर भरी हुई सुख की शक्ति मुझे बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बना रही है। अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर रहम की दृष्टि रखते हुए, सुख के वायब्रेशन उन्हें देकर मैं सबको सुख का अनुभव करवा रही हूँ। *कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा मेरे सम्पर्क में क्यो ना आये, किन्तु डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से किसी को भी दुख ना पहुँचाकर, सबके प्रति शुभभावना शुभकामना रखते हुए, मैं मास्टर सुख का सागर बन सबको सुख देकर, सबकी दुआयों की पात्र आत्मा बन रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं रिगार्ड मांगने के बजाए सदा ऊंची स्थिति में रहने वाली सर्व की पूजनीय            आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं माया का तिरस्कार करके सर्व की सत्कारी बनने वाली मायाजीत आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ब्रह्मा बाप के हर कार्य के उत्साह को तो देखा ही है। जैसे शुरू में उमंग था - चाबी चाहिए! अभी भी ब्रह्मा बाप यही शिव बाप से कहते - अभी घर के दरवाजे की चाबी दो। लेकिन साथ जाने वाले भी तो तैयार हों। अकेला क्या करेगा! *तो अभी साथ जाना है ना या पीछे-पीछे जाना है? साथ जाना है ना? तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि बच्चों से पूछो अगर बाप चाबी दे दे तो आप एवररेडी हो? एवररेडी हो या रेडी हो, सिर्फ रेडी नहीं - एवररेडी त्याग, तपस्या, सेवा तीनों ही पेपर तैयार हो गये हैं?* ब्रह्मा बाप मुस्कराते हैं कि प्यार के आँसू बहुत बहाते हैं और ब्रह्मा बाप वह आँसू मोती समान दिल में समाते भी हैं लेकिन एक संकल्प ज़रूर चलता कि सब एवररेडी कब बनेंगे! *डेट दे देवें। आप कहेंगे कि हम तो एवररेडी हैं, लेकिन आपके जो साथी हैं उन्हें भी तो बनाओ या उनको छोड़कर चल पड़ेंगे?*

 

✺  *"ड्रिल :- एवररेडी स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳  *‘अब घर जाना हैकि स्मृति से मैं आत्मा उड़ चली अपने घर परमधाम…* मैं आत्मा ज्ञान सूर्य की किरणों के नीचे बैठ जाती हूँ... ज्ञान सूर्य से निकलती किरणों को मैं आत्मा स्वयं में भर रही हूँ... सर्व गुणों और शक्तियों का फाउंटेन मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... *रंग-बिरंगी किरणों के फाउंटेन से मुझ आत्मा में ज्ञान, प्रेम, सुख, आनंद, पवित्रता, शांति, और सर्व शक्तियां समा रही हैं...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा देहभान के विस्तार को सार में समेट रही हूँ...* मैं आत्मा मेरा फलाना नाम है, फलाना आक्यूपेशन है, मैं नर हूँ, नारी हूँ... इन सब विस्तारों को समाप्त कर रही हूँ... *मैं सिर्फ और सिर्फ एक ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ... अविनाशी हूँ... इस देह की मालिक हूँ... मैं आत्मा बिंदु रूप में स्थित हो रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा देह के सभी संबंधो के विस्तार को सार में समेटती हूँ...* ये मेरी माँ है, ये बाप है, ये बेटा है या बेटी है... ये सब सिर्फ इस जन्म में पार्ट बजाने के साथी हैं... *मुझ आत्मा का सिर्फ एक शिव बाबा से ही सर्व सम्बन्ध हैं...* मैं आत्मा एक शिव बाबा में ही सर्व सम्बन्धों का सुख अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा देह के पदार्थों, साधनों, वैभवों के विस्तार को सार में समेट रही हूँ...* ये सब साधन विनाशी हैं... मुझ आत्मा का स्थूल विनाशी साधनों के अल्पकाल के सुख का मोह मिट रहा है... *ये पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध, वस्तुएं सब नश्वर हैं...* मैं आत्मा मन-बुद्धि के सभी विस्तारों को समेटकर सार रूप में स्थित हो रही हूँ... *एक सेकंड में बुद्धि को व्यर्थ से समर्थ की ओर स्थित करती हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सर्व संबंधो, सर्व सम्पतियों की प्राप्तियों का सुख एक बाबा में ही अनुभव कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा सार रूप में स्थित होकर सदा सुख, शांति, ख़ुशी, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूल रही हूँ... *सदा सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहती हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा अंत मति सो गति की स्मृति से मन-बुद्धि को एक बाबा में ही एकाग्र कर रही हूँ...* मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान त्यागी, तपस्वीमूर्त, विश्व सेवाधारी बन रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण स्व के और सर्व के प्रयोग में लाती हूँ... *अब मैं आत्मा त्याग, तपस्या और सेवा तीनों ही पेपर्स में एवररेडी स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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