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❍ 29 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सवेरे सवेरे उठकर याद में जरूर बैठे ?*
➢➢ *एम ऑब्जेक्ट को बुधी में रख अछे मैनर्स धारण किये ?*
➢➢ *न्यारे और प्यारेपन की विशेषता द्वारा बाप के प्रिय बनकर रहे ?*
➢➢ *अपने नाम मान और शान का त्याग कर बेहद सेवा में तत्पर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है,* यह स्टेज लाइट हाउस, माइट हाउस का कार्य करती है। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है *ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते हो तो आटोमेटिकली विश्व को लाइट का पानी मिलता है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी रूहानी मौजों में रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा संगमयुग के रूहानी मौजों में रहने वाले अनुभव करते हो? मौजों में रहते हो वा कभी मौज में, कभी मूझंते भी हो या सदा मौज में रहते हो? क्या हालचाल है? *कभी कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए वा ऐसी कोई परीक्षा आ जाए तो मूंझते हो?(थोड़े टाइम के लिए) और उस थोड़े टाइम में अगर आपको काल आ जाए तो फिर क्या होगा? अकाले मृत्यु का तो समय है ना। तो थोड़ा समय भी अगर मौज के बजाए मूंझते हैं और उस समय अन्तिम घड़ी हो जाए तो अन्त मति सो गति क्या होगी? इसलिए सुनते रहते हो ना सदा एवररेडी!* एवररेडी का मतलब क्या है? क्या हर घड़ी ऐसे एवररेडी हो? कोई भी समस्या सम्पूर्ण बनने में विघ्न रूप नहीं बने।
〰✧ अन्त अच्छी तो भविष्य आदि भी अच्छा होता है। जैसा मत में होगा वैसी गति होगी। तो एवररेडी का पाठ इसलिए पढ़ाया जा रहा है। ऐसे नहीं सोचो कि थोड़ा समय होता है लेकिन थोड़ा समय भी, एक सेकण्ड भी धोखा दे सकता है। वैसे सोचते हैं ज्यादा टाइम नहीं चलता, ऐसा दो-चार मिनट चलता है लेकिन एक सेकण्ड भी धोखा देने वाला हो सकता है तो मिनिट की तो बात ही नहीं सोचो। क्योंकि सबसे वैल्युएबुल आत्मायें हो, अमूल्य हो। अमूल्य आत्माओ का कोई दुनिया वालों से मूल्य नहीं कर सकते। दुनिया वाले तो आप सबको साधारण समझेंगे। लेकिन आप साधारण नहीं हो, विशेष आत्मायें हो। *विशेष आत्मा का अर्थ ही है जो भी कर्म करे, जो भी संकल्प करे, जो भी बोल बोले वो हर बोल और हर संकल्प विशेष हैं, साधारण नहीं हो। समय भी साधारण रीति से नहीं जाये। हर सेकेण्ड और हर संकल्प विशेष हो। इसको कहा जाता है विशेष आत्मा।* तो विशेष करते-करते साधारण नहीं हो जाये-ये चेक करो।
〰✧ कई ऐसे सोचते हैं कि कोई गलती नहीं की, कोई पाप कर्म नहीं किया, कोई वाणी से भी ऐसा उल्टा-सुल्टा शब्द नहीं बोला, लेकिन भविष्य और वर्तमान श्रेष्ठ बनाया? बुरा नहीं किया लेकिन अच्छा किया? सिर्फ ये नहीं चेक करो कि बुरा नहीं किया, लेकिन बुरे की जगह पर अच्छे ते अच्छा किया या साधारण हो गया ? तो ऐसे साधारणता नहीं हो, श्रेष्ठता हो। नुकसान नहीं हुआ, लेकिन जमा हुआ? *क्योंकि जमा का समय तो अभी है ना। अभी का जमा किया हुआ भविष्य अनेक जन्म खाते रहेंगे। तो जितना जमा होगा उतना ही खायेंगे ना। अगर कम जमा किया तो कम खाना पड़ेगा अर्थात् प्रालब्ध कम होगी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ कई बच्चे रूह-रूहान करते हुए बाबा से पूछते हैं कि *'हम भविष्य में क्या बनेंगे, राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे?'* बापदादा बच्चों को रेस्पाण्ड करते हैं कि *अपने आप को एक दिन भी चेक करो* तो मालूम पड जायेगा कि मैं राजा बनूँगा वा साहूकार बनूँगा वा प्रजा बनूँगा।*
〰✧ पहले अमृतवेले से अपने मुख्य तीन कारोबार के अधिकारी, अपने सहयोगी, साथियों को चेक करो। वह कौन? 1. *मन अर्थात संकल्प शक्ताि* 2. *बुद्धि अर्थात निर्णय शक्ति।* 3. *पिछले वा वर्तमान श्रेष्ठ संस्कार* यह तीनो विशेष कारोबारी हैं।
〰✧ जैसे आजकल के जामने में राजा के साथ महामन्त्र वा विशेष मन्त्री होते हैं, उन्हीं के सहयोग से राज्य कारोबार चलता है। *सतयुग में मन्त्री नहीं होंगे लेकिन समीप के सम्बन्धी, साथी होंगे।* किसी भी रूप में, साथी समझो वा मन्त्री समझो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ वहाँ कोइ हद नहीं होती। तो बेहद का राज्य-भाग्य हो गया। लेकिन बेहद का राज्य-भाग्य प्राप्त करने वालों को पहले इस समय अपनी देह की हद से परे जाना पडेगा। *अगर देहभान की हद से निकले तो और सभी हद से निकल जायेंगे।* इसलिए बापदादा कहते हैं - पहले देह सहित देह के सब सम्बन्धों से न्यारे बनो। पहले देह फिर देह के सम्बन्धी। तो इस देह के भान की हद से निकले हो? क्योंकि देह की हद कभी भी ऊपर नहीं ले जायेगी। देह मिट्टी है, मिट्टी सदा भारी होती है। कोई भी चीज मिट्टी की होगी तो भारी होगी ना। *यह देह तो पुरानी मिट्टी है, इसमें फंसने से क्या मिलेगा! कुछ भी नहीं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अंतर्मुखी बन योगबल से पापों के खाते को भस्म करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमधाम निवासी... परमधाम से आयी इस स्थूल धरा पर... अपना पार्ट बजाने... सतयुग... त्रेतायुग... द्वापरयुग... कलियुग... पार्ट बजाते बजाते काली हो गई... *अपनी शक्तियों को भूल... अपने आप से अनजान... उस भगवान से भी अनजान... जो मेरा पिता है... और मै उनकी संतान हूँ... मैं आत्मा हूँ... और ना ही यह शरीर...* इस सत्य से अनजान मैं आत्मा बैठी हूँ... शांत शीतल समुद्र के तट पर... खोई हुई... उलझी हुई... मायूस सी मैं आत्मा बैठी हूँ... *पुकार रहीं हूँ उस भगवान को जो दुःखहर्ता... सुखहर्ता हैं...* मेरी पुकार सुन.. मेरे पिता स्वयं धरती पर आगये... *ब्रह्माकुमारी संस्था में मुझ आत्मा को सच्चा गीता ज्ञान... परमपिता परमात्मा का ज्ञान... आत्मा - परमात्मा का ज्ञान देने...* और मैं आत्मा... अपने पिता की पहचान को जान... द्रवित हो जाती हूँ... और पहुँच जाती हूँ उनके पास...
❉ *अपने पिता का हाथ पकड़ कर मैं आत्मा सैर कर रही हूँ और बाबा ने कहा :-* "मेरी फूल बच्ची... क्यों मायूस हो जाती हो... *मुझे जाना... पहचाना... अपना बनाकर क्यों... उलझी हुई हो ? इस धरा पर तुझसे प्यारा अतिरिक्त मुझे और कोई नहीं है...* मासुमसी यह आँखों मे दुःख की लहर क्यों है...?"
➳ _ ➳ *बाबा के प्यार और दुलार को देख मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे बाबा... *आप तो मेरे पिता हो... कल्प के बाद मिले हो... अब तक तो आप से अनजान थी...* अब मिले हो तो... खुशी में मन क्यों नहीं झूम रहा हैं... मन मे यह अदृश्य... असहनीय वेदना क्यों हैं... क्यों मन बारबार उदास हो जाता है ? *क्या वह बात हैं जिससे मैं अनजान हूँ... क्या वह दुःख हैं जो मैं महसूस कर रही हूँ..."*
❉ *शीतल पवन की लहरों समान मेरे बाबा बोले :-* "मेरी राज दुलारी... मेरी लाडली बच्ची... *कल्प के संगमयुग में मुझे आना हैं... इतने युगों पश्चात यह बाप और बच्चें का पवित्र मिलन हुआ हैं...* यह जन्म अंतिम जन्म हैं... *जिस घड़ी से मुझे जाना... उस घड़ी से जो बीता उसको बिंदी लगाना सीख गई हो... लेकिन अपने 63 जन्मो के विकर्मों को भस्म करना नहीं सीखी हो..."*
➳ _ ➳ *गुल गुल फूलों से महकते मेरे बाबा को मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे गुलाब बाबा... आपने अपना बनाया... 21 जन्मों के स्वराज्य भाग्य के अधिकारी बनाया... *दुःख की लहरों से दूर हमें आप सुख की ऊंची मंजिल पर ले आये हो... सर्व दोषो से मुक्त्त कर सर्वगुण सम्पन्न बना दिया हैं... श्रीमत आपकी इस अंतिम जन्म में गले का हार बन गई है... अंतर्मुखता की इस यात्रा में... मैं आत्मा... आप के नक़्शे कदम पे चल रहीं हूँ..."*
❉ *सुख के सागर मेरे प्यारे बाबा बोले :-* "रूहानी गुलाब सी मेरी प्यारी बच्ची... अब समय हैं जन्मों के विकारों के खाते को खत्म करना... *योगबल की शक्त्ति... पवित्रता की शक्त्ति से अपने पुण्य के खाते को बढ़ाना हैं... अपने सूक्ष्म ते सूक्ष्म विकर्मों के बोझ से मुक्त्त हो... सब को मुक्त्त करना हैं... सर्व शक्तिसम्पन्न बन सर्व को शक्ति का दान करना हैं...* शांति देवा बन शांति का दान करना हैं... 63 जन्मों के विकर्मों को योग अग्नि की भट्टी में स्वाहा करना है और कंचन वर्ण बनना हैं..."
➳ _ ➳ *प्यार भरी आँखो से बाबा के हाथ चूमती मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे बाबा... *कल्प के संगमयुग में... इस महा मिलन के कुम्भ मेले में... मैं आत्मा... इस सुवर्ण जन्म में... अपने जन्मों के विकारो को भस्म कर... आप समान बन रही हूँ...* योग अग्नि में तप कर खरा सोना बन रही हूँ... *योग की ऊंची मंजिल पर बैठ आप की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजा रही हूँ... हर गली... हर घर मे आप का ही झंडा लहरा रहा है..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पुण्य का खाता जमा करना है*"
➳ _ ➳ जिस महान भूमि भारत मे परमात्मा का अवतरण हुआ उस भारत भूमि का भ्रमण करने की इच्छा से अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं देह से बाहर निकलती हूँ और ऊपर आकाश में उड़ते हुए अपने उस महान भारत भूमि पर हो रही सभी गतिविधियों को देखने मे मगन हो जाती हूँ। *एक बहुत बड़े धार्मिक स्थल के रूप में अपनी इस भारत भूमि को मैं देख रही हूँ। लोगों के मन मे परमात्मा के प्रति अगाध प्रेम और विश्वास देख रही हूँ। भगवान के नाम पर लोगो द्वारा किये जाने वाले उन कर्मकांडो को देख रही हूँ जिसे मनुष्य बहुत बड़ा पुण्य समझ कर करते जा रहें हैं*। लेकिन उस परमात्मा की सही पहचान ना होने के कारण बेचारे पुण्य कमाने के लिए भक्ति के जो भी कर्मकांड पुण्य कार्य समझ कर रहें हैं उससे उन्हें प्राप्ति केवल अल्पकाल की ही मिल रही है।
➳ _ ➳ इन सभी दृश्यों को देखता हुआ मैं फ़रिश्ता मन ही मन विचार करता हूँ कि वास्तव में तो पुण्य का खाता जमा करने का केवल एक ही उपाय है और वो है परमात्मा की मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करना और सबसे बड़ा पुण्य है सबको परमात्मा का यथार्थ परिचय दे उन्हें इन व्यर्थ के कर्मकांडो से मुक्त करना। *यही पुण्य का खाता अब मुझे जमा करना है, मन ही मन इस दृढ़ संकल्प के साथ अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में पूरे भारत का चक्कर लगाकर अब मैं फ़रिश्ता आकाश से ऊपर उड़ जाता हूँ और फरिश्तो की आकारी दुनिया अपने अव्यक्त वतन में पहुँच जाता हूँ*। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित मैं देख रही हूँ इस पूरे वतन में चारों और फैले चाँदनी जैसे सफेद प्रकाश को जो मन को गहन सुकून दे रहा है। फरिश्तों की इस खूबसूरत दुनिया में चारों और अपनी श्वेत रश्मियाँ बिखरते हुए हजारों फरिश्ते एक साथ उड़ते हुए बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहें हैं।
➳ _ ➳ अपनी बाहों को फैलाये अव्यक्त बापदादा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में मेरे बिल्कुल सामने खड़े हैं। *जिस भगवान की एक झलक पाने के लिए मैं भटक रही थी वो मेरे प्यारे प्रभु मेरे सामने, अपने आकारी रथ पर विराजमान अपनी बाहों में मुझे भरने के लिए जैसे व्याकुल है। उनसे बिछुड़ने की जन्म - जन्म की प्यास बुझाने के लिए, उनके समान लाइट की आकारी देह धारण किये मैं धीरे - धीरे उनके पास जा रही हूँ और उनकी बाहों में समाकर उनके असीम स्नेह से स्वयं को तृप्त कर रही हूँ*। बापदादा की दृष्टि और उनके मस्तक से स्नेह की अनन्त धारायें निकल कर निरन्तर मेरे ऊपर प्रवाहित हो रही हैं। बाबा अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटा कर मुझे आप समान मास्टर स्नेह का सागर बना रहें हैं। *अपने स्नेह की शीतल किरणे मुझ पर प्रवाहित करने के साथ - साथ बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ भी मेरे अंदर भरते जा रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे प्रभु से अव्यक्त मिलन मना कर, उनका अथाह स्नेह पाकर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे भगवान से उनके निराकार स्वरूप में मिलन मनाने उनके निराकारी घर परमधाम की ओर जा रही हूँ। *चमकते हुए चैतन्य सितारों की इस दुनिया में अब मैं स्वयं को देख रही हूँ ज्ञानसूर्य निराकार अपने शिव पिता के सम्मुख।जिनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें धीरे - धीरे मुझे स्पर्श कर रही हैं। मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियो की किरणों का स्पर्श मुझे मीठा - मीठा सुखद अनुभव करवा रहा है*। एक अद्भुत रूहानी नशे से भरपूर होकर मैं आत्मा असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा की इन सर्वशक्तियों से मेरे चारों तरफ शक्तियों का एक अति सुंदर कार्ब बन गया है। *प्रकाश के इस शक्तिशाली कार्ब के साथ मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट कर अपने साकारी तन में, भृकुटि के भव्यभाल पर आकर विराजमान हो गई हूँ*।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत पर चल, श्रेष्ठ कर्म करके पुण्य का खाता जमा करने का पुरुषार्थ कर रही हूँ। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परमात्म परिचय दे कर, उन्हें उनके पारलौकिक पिता से मिलवा कर मैं कदमो में पदमों की कमाई जमा कर रही हूँ। *पूरे कल्प में केवल संगमयुग का यह थोड़ा सा समय ही मोस्ट वैल्यूबुल है जबकि भगवान स्वयं पुण्य का खाता जमा करने का सहज उपाय बता रहें हैं*। उस उपाय को अच्छी रीति जान, उस पर चलकर, पुण्य जमा कर दूसरों को भी वह उपाय बताकर उनहे भी पुण्य का खाता जमा करने का रास्ता बता कर, अपने समय, संकल्प और श्वासों को अब मैं स्वयं भी अच्छी तरह सफल कर रही हूँ तथा औरों को भी करवा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं न्यारे और प्यारे पन की विशेषता द्वारा बाप के प्रिय बनने वाली निरन्तर योगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने नाम-मान और शान का त्याग कर बेहद सेवा में रहने वाली परोपकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. *आज बापदादा एक बात की स्मृति दिला रहे हैं - कभी भी कोई भी शारीरिक बीमारी हो, मन का तूफान हो, तन में हलचल हो, प्रवृत्ति में हलचल हो, सेवा में भी हलचल होती है तो किसी भी प्रकार के हलचल में दिलशिकस्त कभी नहीं होना।* बड़ी दिल वाले बनो। बाप की दिल कितनी है, छोटी है क्या! बाप बड़ी दिल वाले हैं और बच्चे छोटी दिल कर देते हैं, बीमार हो गये तो रोना शुरु कर देंगे। दर्द हो गया, दर्द हो गया। तो दिलशिकस्त होना दवाई है? बीमारी चली जायेगी कि बढ़ेगी? जब हिसाब-किताब आ गया, दर्द आ गया तो हिसाब-किताब आ गया ना, *लेकिन दिलशिकस्त से बीमारी को बढ़ा देते हो। इसलिए हिम्मत वाले बनो तो बाप भी मददगार बनेंगे।*
➳ _ ➳ ऐसे नहीं, रो रहे हैं- हाय क्या करुँ, क्या करुँ और फिर सोचो कि बाबा की तो मदद है ही नहीं। *मदद उसको मिलती है जो हिम्मत रखते हैं। पहले बच्चे की हिम्मत फिर बाप की मदद है।* तो हिम्मत तो हार ली और सोचने लगते हो कि बाप की मदद तो मिली नहीं, बाबा भी टाइम पर तो करता ही नहीं है! तो आधे अक्षर याद नहीं करो, बाबा मददगार है लेकिन किसका? तो आधा भूल जाते हो और आधा याद करते हो कि बाबा भी पता नहीं महारथियों को ही करता है, हमको तो करता ही नहीं है, हमको तो देता ही नहीं है। पहले आप, महारथी पीछे। लेकिन दिलशिकस्त नहीं बनो और *मन में अगर कोई उलझन आ भी जाती है तो ऐसे समय पर निर्णय शक्ति चाहिये और निर्णय शक्ति तब आ सकती है जब आपका मन बाप के तरफ होगा।* अगर अपने उलझन में होंगे तो हाँ-ना, हाँ-ना, इसी उलझन में रह जायेंगे। इसलिए मन से भी दिलशिकस्त नहीं बनो।
➳ _ ➳ और धन भी नीचे-ऊपर होता है, जब करोड़पतियों का ही नीचे-ऊपर होता है तो आप लोग उसके आगे क्या हो। वो तो होना ही है। *लेकिन आप लोगों को निश्चय पक्का है कि जो बाप के साथी हैं, सच्चे हैं तो कैसी भी हालत में बापदादा दाल-रोटी जरूर खिलायेगा।* दो-दो सब्जी नहीं खिलायेगा, दाल-रोटी खिलायेगा। लेकिन ऐसे नहीं करना कि काम से थक करके बैठ जाओ और कहो बाबा दाल-रोटी खिलायेगा। ऐसे अलबेले या आलस्य वाले को नहीं मिलेगा। बाकी सच्ची दिल पर साहेब राजी है।
➳ _ ➳ और परिवार में भी खिटखिट तो होना है। जब आप लोग कहते हो कि अति के बाद अन्त होना है, कहते हो! अति में जा रहा है और जाना है तो परिवार में खिटखिट न हो, ये नहीं होना है, होना है! *लेकिन आप ट्रस्टी बन, साक्षी बन परिस्थिति को बाप से शक्ति ले हल करो।* गृहस्थी बनकर सोचेंगे तो और गड़बड़ होगी। पहले बिल्कुल न्यारे ट्रस्टी बन जाओ। मेरा नहीं। ये मेरापन-मेरा नाम खराब होगा, मेरी ग्लानि होगी, मेरा बच्चा और मुझे...., मेरी सास मेरे को ऐसे करती है.... ये मेरापन आता है ना तो सब बातें आती हैं। मेरा जहाँ भी आया वहाँ बुद्धि का फेरा हो जाता है, बदल जाते हैं। अगर बुद्धि कहाँ भी उलझन में बदलती है तो समझ लो ये मेरापन है, उसको चेक करो और जितना सुलझाने की कोशिश करेंगे उतना उलझेगा। *इसलिए सभी बातों में क्या नहीं बनना है? दिलशिकस्त नहीं बनना है। क्या नहीं बनेंगे? (दिलशिकस्त) सिर्फ कहना नहीं, करना है।*
➳ _ ➳ २. *अभी समर्थ बनो और सन शोज फादर का पाठ पक्का करो।* कच्चा नहीं करो, पक्का करो। सभी हिम्मत वाले हो ना? हिम्मत है? अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "दिलशिकस्त न बन, हिम्मते बच्चे, मददे बाप का अनुभव"*
➳ _ ➳ *ईश्वरीय सन्तान होने के अपने महान भाग्य पर इठलाती हुई मैं आत्मा ईश्वरीय नशे में झूमती हुई... अपने सच्चे साथी मीठे बाबा को दिल के घरोंदे में बुलाती हूँ...* मेरी यादों के दीवाने बाबा दिल के घरोंदे में सदा बसने को आतुर है... मीठे बाबा कभी मेरे उमंग उत्साह की तूफानी लहरों और अगले ही पल की दिलशिकस्त स्थिति से भली भांति वाकिफ है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने मीठे बाबा के सम्मुख खुली किताब की तरहा हो गयी हूँ... मुझे भली भांति पढ़ते हुए मुझे हर मुश्किल से उबारते हुए मीठे बाबा मुझे समाधानित करते हुए कहते है... *यह परिस्थितियां शक्तियों को जगाने का खुबसूरत साधन है... इनमें कभी दिलशिकस्त होकर निराश नही होना...* अपनी हिम्मत के एक कदम को उठाकर मीठे बाबा को हजार कदमों से दौड़ाते रहना...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान रत्नों में रमणीकता को देख मुस्कराती हूँ तो मीठे बाबा मुझमे अनन्त शक्तियों का संचार कर समझाते हैं... *मन को सदा ईश्वरीय यादों में मगन रख निर्णय शक्ति को बढ़ाओ...* धन की किसी भी हलचल में अचल और अछूते रहो... *भगवान साथी बन जब साथ है तो अपने बच्चों को दाल रोटी अवश्य खिलायेगा... उसके कन्धों पर बैठ सदा निश्चिन्त हो, मौजों का आनन्द लो...*
➳ _ ➳ मीठे बाबा मेरे परिवार की गांठो को सुलझाते हुए कहने लगे... मीठे बच्चे जब अति के बाद ही अंत तय है तो अति को सदा साक्षी भाव से देख पिता से शक्ति लेकर शक्तिशाली बन मुस्कुराओ... *देह भान ने जो मेरेपन के धागों में उलझाया है ट्रस्टी बन उन डोरियों को काटते चलो... मेरेपन में फंसकर बुद्धि का फेरा नही करो बल्कि मीठे बाबा के यादो में दिल को फिराते रहो...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सच्चे साथी से प्यार की दौलत और असीम ताकत पाकर स्वयं को समर्थ और शक्तियों से सजा हुआ पा रही हूँ... *मीठे बाबा ने मुझे हिम्मत के पंख देकर दिलशिकस्त की जमीं से ऊपर उड़ा कर सफलता के आसमाँ में उड़ना सिखा दिया है...* कुछ पल पहले जो व्यर्थ चिंतन में मैं आत्मा उलझ गयी थी दिल थाम कर बैठ गयी थी... प्यारे बाबा से ज्ञान संजीवनी को पाकर पुनः अपनी शक्तियों को थामे स्वमान की सीट पर विराजित मन्द मन्द मुस्करा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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