━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 26 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पवित्रता की प्रतिज्ञा की ?*

 

➢➢ *निश्चयबुधी बन पढाई रेगुलर पडी ?*

 

➢➢ *एकरस और निरंतर ख़ुशी की अनुभूति की ?*

 

➢➢ *सदा मनसा महादानी बनकर रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *यदि कोई संस्कार स्वभाव वाली आत्मा आपके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो तो उस आत्मा के प्रति भी सदा कल्याण का संकल्प वा भावना बनी रहे,* आपके मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे, तब श्रेष्ठ शुभ वृत्तियों द्वारा मन्सा सेवा कर सकेंगे।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाली आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले समझते हो? कितना जमा किया है? अरब, खरब कितना जमा किया है? हिसाब कर सकते हो? आजकल का कम्यूटर हिसाब कर सकता है? *तो सारे कल्प में और सारे वर्ल्ड में ऐसा साहूकार कोई होगा? आप सभी हो? या कोई कम हो, कोई ज्यादा हो? सभी भरपूर हो? सदैव ये नशा रहे कि हर कदम में पद्मों की कमाई करने वाली आत्मा हूँ।* लौकिक दुनिया में कहते हैं कि इतना कमा कर इकठ्ठा करें जो वंश के वंश खाते रहें। तो आपकी कितनी जनरेशन (पीढ़िया) खाती रहेंगी? एक जन्म में अनेक जन्मों की कमाई जमा कर ली है और अनेक जन्म आराम से खाते रहेंगे।

 

  *सतयुग में अमृतवेले उठकर योग लगायेंगे? योग की सिध्धि प्राप्त करेंगे। जैसे-पढ़ाई तब तक पढ़ी जाती है जब तक पास नहीं हो जाते। तो अनेक जन्मों जितना जमा किया है? कभी भी विनाश हो जाये तो आपका जमा रहेगा ना।* या कहेंगे थोड़ा समय मिले तो और कर लें? अभी और टाइम चाहिए? एवररेडी हो? आप यहाँ आये हो और यहीं विनाश शुरू हो जाए तो सेन्टर या सेन्टर का सामान याद आयेगा? कुछ याद नहीं आयेगा। इतने बेफिक्र बादशाह बने हो ना!

 

  *जब देह भी अपनी नहीं तो और क्या अपना है! तन, मन, धन-सब दे दिया ना! जब संकल्प किया कि सब-कुछ तेरा, तो एवररेडी हो गये ना। सभी ने दृढ़ संकल्प कर लिया है कि मैं बाप की और बाप मेरा। संकल्प किया या दृढ़ संकल्प किया? कोई फिक्र नहीं है।* कोई ऐसी खबर आ जाये तो फिक्र होगा? पÌलैट याद नहीं आयेगा? अच्छा है, पक्के हैं। जब ब्रह्मण बनना ही है तो पक्का बनना है, कच्चा बनने से क्या फायदा! जीते-जी मर गये कि थोड़ा-थोड़ा श्वांस चलता है? कहाँ श्वांस छिप तो नहीं गया है?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *सेकण्ड में स्थापना का कार्य अर्थात सेकण्ड में दृष्टि दी और सृष्टि बन गई* - ऐसी स्पीड है? तो सदा स्थापना के निमित आत्माओं को यह स्मृति रखनी चाहिए कि *हमारी गति विनाशकारियों से तेज हो* क्योंकि पुरानी दुनिया के विनाश का कनेक्शन नई दुनिया की स्थापना के साथ-साथ है। 

 

✧  पहले स्थापना होनी है या विनाश? *स्थापना की गति पहले तेज होनी चाहिए ना!*

 

✧  स्थापना की गति तेज करने का विशेष आधार है - सदा अपने को पॉवरफुल स्टेज पर रखो। *नॉलेजफुल के साथ-साथ पॉवरफुल दोनों कम्बा हो। तब स्थापना का कार्य तीव्र गति से होगा।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ यह देह अब आपकी देह नहीं रही। देह भी बाप को दे दी। सब तेरा कहा अर्थात् मेरा कुछ नहीं। *इस देह को सेवा के अर्थ बाप ने लोन में दी है। लोन में मिली हुई वस्तु पर मेरे-पन का अधिकार हो नहीं सकता। जब मेरी देह नहीं तो देह का भान कैसे आ सकता!* आत्मा भी बाप की बन गई। देह भी बाप की हो गई तो मैं और मेरा अल्प का कहाँ से आया! *मैं-पन सिर्फ एक बेहद का रहा। मैं बाप का हूँ। जैसा बाप वैसा मैं मास्टर हूँ। तो यह बेहद का मैं-पन रहा। हद का मैं-पन विघ्नों में लाता है। बेहद का मैं-पन निर्विघ्न, विघ्न विनाशक बनाता है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को अपने किए हुए पाप बताना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा 63 जन्मों से माया रावण के चंगुल में पडकर विकारों में धंसते चले गई और पाप करते गई... और जन्म-जन्मान्तर से अपने किए हुए पापों का बोझा ढोते-ढोते मैं आत्मा दुखी-अशांत हो गई थी... *प्यारे बाबा ने आकर अपने पवित्र किरणों से मेरे पापों का मैल धो दिया, जन्म-जन्म का बोझा उतारकर मुझे हल्का कर दिया... ज्ञान योग की किरणों से मुझे अलौकिक फ़रिश्ता बना दिया... मैं फ़रिश्ता अपना श्रृंगार कराने पहुँच जाता हूँ फरिश्तों की दुनिया में... बापदादा के पास...*

 

❉  *अपने प्रेम के फूल मुझ पर बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वरीय राहों में सदा सच का राही बन चलना है...* जिन संस्कारो ने गहरे दुःख, अंतर्मन को देकर जख्मी किया है, उन्हें ईश्वर पिता को सौप मुक्त होना है... *फिर कभी कोई भूल हो जाये तो सच्चे मन से पिता को बताना है... सदा सच्चे सोने सा गुणवान बन चमकना है...”*

 

➳ _ ➳  *सत्यता की चादर ओढ़ हीरे समान चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा विकारो में लिप्त होकर,असत्य से दामन भर ली थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चाई भरा खुबसूरत उजला जीवन दिया है... मै आत्मा सारे विकारो का त्यागकर खुबसूरत मणि बन दमक उठी हूँ...”*

 

❉  *अवगुणों को निकाल सद्गुणों से मुझे सजाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह की मिटटी और विकारो के संग में मटमैले हो गए थे... अब जो प्यारा ईश्वरीय जीवन मिला है तो गुणवान और शक्तिवान बन मुस्कराओ... *देह अभिमान ने जो सुनहरी चमक को धुंधला किया है... देही अभिमानी बन अपने नूर को पा लो... और सत्य पिता की बाँहों में सत्यता से खिलखिलाओ...”*

 

➳ _ ➳  *काँटों को छोड़ बाबा का हाथ पकड फूलों की राह पर चलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी गोद में खिलकर गुणो की मिठास से भर रही हूँ... *जीवन प्यारा खुशनुमा और सच्चाई की खनक से गूंज उठा है... दिल के हर राज का राजदार. बाबा को बनाकर मै आत्मा ईश्वर दिल को जीत ली हूँ...”*

 

❉  *सुखों का मार्ग रोशन कर देवता समान मुझे सुशोभित करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देवताओ सा खुबसूरत जीवन और स्वर्ग के अथाह सुखो का अधिकारी बनना है, तो अपनी कमियो को ईश्वर पिता को अर्पण कर हल्के हो जाओ... *गर कोई भूल हो जाये तो पिता के साथ बयान करो... साफ सुथरा, प्यारा सा सच्चा जीवन जीते हुए आनन्द के झूलो में झूलते रहो...”*

 

➳ _ ➳  *अपने दिल की हर बात बाबा से शेयर कर खुशियों के गीत गुनगुनाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो की झलक को प्यासी सी, आज खुशियो की मचान पर मुस्करा रही हूँ... *ईश्वर पिता के प्यार में चरित्रवान गुणवान और शक्तिवान बनकर, देवताई सौभाग्य को बाँहों में लिये, मीठे गीत गा रही हूँ...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा को काले से गोरा बनाने का पुरुषार्थ करना है*"

 

➳ _ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा अपनी सत्य पहचान पाकर, आत्म चिंतन करते हुए मैं विचार करती हूँ कि शरीर धारण कर, इस सृष्टि रंगमंच पर आकर पार्ट बजाने से पहले जब मैं आत्मा अपने प्यारे पिता के साथ उनके परमधाम घर मे रहती थी तो मैं आत्मा कितनी गोरी थी। *विकारों की लेप - छेप से मैं पूर्णतया मुक्त थी। कितना सुंदर स्वरूप था मेरा। यह विचार करते - करते अपने अनादि स्वरुप की स्मृति में खोई मैं मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने अनादि स्वरूप का अनुभव करने के लिए अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम में*।

 

➳ _ ➳  देख रही हूँ अब मैं स्वयं को अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप में जो बहुत सुंदर, बहुत आकर्षक और बहुत ही प्यारा है। *बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान मै आत्मा अपने अनादि स्वरूप में सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान अवस्था में उनके सम्मुख हूँ। हजारों चंद्रमा से भी अधिक उज्ज्वल, एक दिव्य पवित्र प्रकाश की बहुत ही स्वीट दुनिया की मैं रहने वाली हूँ*। मुझ में पवित्रता की अनन्त शक्ति है। अपने इस स्वरूप में मैं आत्मा हर प्रकार के कर्म के बंधन से मुक्त, सातों गुणों और अष्टशक्तियों से सम्पन्न हूँ। मेरा यह अनादि स्वरूप रीयल गोल्ड के समान अत्यंत चमकदार है। पवित्रता की लाइट मुझ आत्मा से निरन्तर निकल रही है।

 

➳ _ ➳  अपने इस वास्तविक सम्पूर्ण स्वरूप का आनन्द लेकर मैं आत्मा वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप की स्मृति में लौटती हूँ और *विचार करती हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी सुन्दर और गोरी थी किन्तु देह भान ने विकारों का ग्रहण लगाकर मुझे कितना कुरूप और काला बना दिया है। अपने गुणों और शक्तियों को भी मैं भूल गई और कितनी दुखी और अशांत हो गई*। अब मुझे अपने इस अति सुंदर अनादि स्वरूप को सदैव स्मृति में रख, स्वयं को गोरा बनाने के लिए विकारों की कालिख को योग अग्नि में जलाकर भस्म करने का पूरा पुरुषार्थ करना है।

 

➳ _ ➳  इसी दृढ़ संकल्प के साथ मैं आत्मा अब  सेकण्ड में मन बुद्धि को देह से डिटैच कर अशरीरी स्थिति में स्थित होकर देह से बाहर आ कर एक अति सुन्दर रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ। *हर प्रकार के बंधन से मुक्त, एक आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त हो कर उड़ने का भरपूर आनन्द लेते - लेते मैं आत्मा नीले गगन को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, जगमग करते, चमकते सितारों की खूबसूरत दुनिया में प्रवेश करती हूँ*। लाल प्रकाश से प्रकाशित चैतन्य सितारों की इस दुनिया में आकर मैं गहन शांति की अनुभूति कर रही हूँ।

 

➳ _ ➳  एक अति प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता को मैं अपने बिल्कुल सामने देख रही हूँ। अनन्त शक्तियों की किरणें बिखेरता उनका, मन को लुभाने वाला यह सुन्दर सलोना स्वरूप मुझे अपनी और खींच रहा है। उनके आकर्षण में आकर्षित हो कर अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उन्हें स्पर्श कर रही हूँ। *बाबा को छूते ही एक तेज करेण्ट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगा है। अपने पिता की सारी शक्तियों को मैं अपने अंदर भरता हुआ महसूस कर रही हूँ। अपने पिता के समान, स्वयं को मैं सर्वशक्तियों के एक शक्तिशाली पुंज के रूप में अनुभव कर रही हूँ*। अथाह शक्ति से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकार वतन में आकर अपने साकार तन में प्रवेश कर रही हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण तन में, जो मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है, उस तन में भृकुटि पर विराजमान हो कर अब मैं इस सृष्टि रंगमंच पर अपना एक्यूरेट पार्ट बजाते हुए, काली हो चुकी आत्मा को गोरा बनाने के लिये, देह भान से मुक्त रहने और विकर्मों से बचने के लिए हर कर्म अपने अनादि स्वरूप की स्मृति में स्थित होकर कर रही हूँ। *कर्म करके, बार - बार देह से न्यारे अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने बीज रूप पिता के पास उनके परमधाम घर जाकर योग अग्नि से विकर्मों को दग्ध कर, आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उतार, आत्मा को गोरा बनाने का पुरुषार्थ अब मै निरन्तर कर रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एकरस और निरंतर खुशी की अनुभूति द्वारा नम्बर वन लेने वाली अखुट खजाने से सम्पन्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानी स्थिति में सदा स्थित रहकर मन्सा महादानी बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सर्वंश त्यागीसदा विश्व-कल्याणकारी की विशेषता वाले होंगे। सदा दाता का बच्चा दाता बन सर्व को देने की भासना से भरपूर होंगे।* ऐसे नहीं कि यह करे वा ऐसी परिस्थिति हो, वायुमण्डल हो तब मैं यह करूँ। दूसरे का सहयोग लेकर के अपने कल्याण के श्रेष्ठ कर्म करने वाले अर्थात् लेकर फिर देनेे वाले, सहयोग लिया फिर दियातो लेना और देना दोनों साथ-साथ हुआ। लेकिन *सर्वंश त्यागी स्वयं मास्टर दाता बन परिस्थितियों को भी परिवर्तन करने काकमजोर को शक्तिशाली बनाने का, वायुमंडल वा वृत्ति को अपनी शक्तियों द्वारा परिवर्तन करने कासदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान देने का संकल्प करेंगे।* यह हो तो यह करें, नहीं। मास्टर दाता बन परिवर्तन करने कीशुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात् देने का कार्य करता रहेगा। मुझे देना हैमुझे करना हैमुझे बदलना हैमुझे निर्मान बनना है। ऐसे ‘‘ओटे सो अर्जुन'' अर्थात् दातापन की विशेषता होगी।

 

✺   *"ड्रिल :- सदा दाता का बच्चा बन सर्व को देने की भासना से भरपूर रहना।*"

 

_ ➳  खुशनुमा संध्या की वेला में मैं आत्मा... मासूम... खिलखिलाते... महकते... चहकते बच्चों को एक गार्डन में खेलते... कूदते... मौज... मस्ती करते देख रही हूँ... अपनी ही खेल में व्यस्त... *न देह का भान... न दुनियादारी का भान... अपनी अलौकिक मासूमियत से भरे सभी बच्चों को देख मन हर्षित हो उठा...* छोटे छोटे बच्चे जो बोलना चलना भी ठीक से नहीं जानते वह बच्चे एक दूसरे के साथ खेल रहे हैं... *पवित्रता और मासूमियत से छलकते गागर के जैसे यह बच्चे...* न जान न पहचान... एक दूसरे से ऐसे घुलमिल गये हैं कि खुद का नास्ता... भी एक दूसरें को अपने हाथों से ख़िला रहे हैं...

 

_ ➳  एक दूसरे से गले मिलते... खेलते... कूदते बच्चों को देख मेरा मन भर आया... एक ही संकल्प चला... क्या मैं ऐसी नहीं बन सकती... *क्या मैं इन बच्चों के जैसे निःस्वार्थ प्यार नहीं कर सकती.... क्या मेरा तेरा किये बिगर एक दिन भी नहीं गुजर सकता...* कोई मेरा अच्छा करे तो ही क्या मैं उनका अच्छा करुं... मैं भी तो बचपन में ऐसी ही मासूम थी... पवित्रता और मासूमियत से भरे नयन... कहाँ गया सब... *क्या बड़े होने का यह मतलब है कि पवित्रता... मासूमियत को अलविदा कह दो...* अपने ही उलझन में उलझी मैं आत्मा... अपने इस सवाल के जवाब के लिए एक की ही ओर दृष्टि करती हूँ... और वह हैं मेरे बाबा... शिव पिता... जिन्हें मिलकर मेरी सारी उलझन सुलझ जाती हैं...

 

_ ➳  और मैं आत्मा... मन बुद्धि के पंख लगाकर पहुँच जाती हूँ मेरे पिता से मिलने... अपने सूक्ष्म शरीर में... पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... अपने ब्रह्मा बाबा के सामने... मंद मंद मुस्कुराते ब्रह्मा बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे और बाबा का आह्वान करते हैं... *ब्रह्मा बाबा का आह्वान और शिवबाबा का सूक्ष्म वतन में आना...* मैं आत्मा निहार रही हूँ यह अलौकिक संगमयुग का अकल्पनीय नजारा... *शिवबाबा का अपने रथ... ब्रह्मा बाबा के तख़्त सिंहासन पर विराजमान होना... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति का आगमन महसूस* करने के लिये लाखों आत्मायें इंतजार कर रही हैं... और मैं सौभाग्यशाली आत्मा... यह प्रत्यक्ष देख रही हूँ...

 

_ ➳  बापदादा का कंबाइंड भव्य रूप देखकर मैं आत्मा... भावविभोर हो जाती हूँ... बापदादा से आती हुई शीतल मधुर किरणों को अपने सूक्ष्म शरीर में महसूस कर रही हूँ... और मेरा सूक्ष्म शरीर... पवित्र फ़रिश्ता ड्रैस धारण कर लेता है... *बापदादा से आती हुई अनंत शक्तियों रूपी किरणों से मेरा फ़रिश्ता स्वरुप जगमगा रहा है...* और बापदादा मुझे मेरा सतयुगी स्वरुप दिखा रहा है... *सोलह कला संपूर्ण... संपूर्ण निर्विकारी... परम पवित्र... अलौकिक मासूमियत... स्वार्थ से परे मैं आत्मा* अपना ही स्वरुप देखती रहती हूँ... बोलना... चलना... उठना... बैठना... सभी कार्य में अलौकिकता दिखाई दे रही हैं... स्वार्थ की भावना से परे यह मेरा ही रूप मैं देख रही हूँ...

 

_ ➳  मेरे दैवीय रूप से निकलती शक्तियों रूपी किरणें सारे ब्रह्माण्ड में फ़ैल रही हैं... और सभी अशांत... दुःखी... हताश आत्माओं तक पहुँच रही हैं... *अपने आप निकलती यह किरणों की फव्वारे... बिना मांगे सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हैं...* भक्ति मार्ग के मंदिर में पत्थर की मूर्त के रूप में सजा मेरा दैवीय रूप सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहा है... मैं आत्मा... मेरे फ़रिश्ते ड्रेस में अपने ही सतयुगी जन्म को देख रही थी... *सतयुगी जन्म में अपने दातापन के संस्कारों को उजागर होता देख मैं आत्मा...* दृढ संकल्प करती हूँ... दाता की बच्ची मैं आत्मा... संगमयुग में भी अपने दातापन के अधिकार को उजागर करुँगी...

 

_ ➳  *सदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान* देने का संकल्प करके मैं आत्मा बापदादा से विदाई लेकर पहुँच जाती हूँ अपने साकार लोक में... और *मास्टर दाता बन निःस्वार्थ भावना से कोई भी परिस्थिति को परिवर्तित कर रही हूँ...* मास्टर दाता बन परिवर्तन करने कीशुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात् देने के कार्य में जुड़ जाती हूँ... पवित्र और मासूमियत से भरे बच्चों के रूप में मैं आत्मा मेरा ही सतयुगी स्वरुप को महसूस कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपने दातापन के अधिकार से सज समस्त ब्रह्माण्ड में पवित्र... सुख... शांति के किरणों को फ़ैला रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━