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 14 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *शिवबाबा से मिला हुआ खजाना सभी को बांटा ?*

 

➢➢ *अपनी अवस्था अचल अडोल बनाई ?*

 

➢➢ *सोचना, कहना और करना इन तीनो को समान बनाया ?*

 

➢➢ *कथनी, करनी और रहनी को समान बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है, बच्चों को विदेही बनाने के लिए। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते, विदेही आत्मा-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। *यह देह करनहार है, आप देही करावनहार हो, इसी स्थिति को 'विदेही स्थिति' कहते हैं। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है। बाप को फॉलो करने की स्थिति है सदा अशरीरी भव, विदेही भव, निराकारी भव!*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं होली हँस हूँ"*

 

  सदा होली हंस बन गये - ऐसा अनुभव करते हो? होली हंस हो ना! तो हंस क्या करता है? हंस का काम क्या होता है? (मोती चुगना) और दूसरा? दूध और पानी को अलग करना। *एक है ज्ञान रत्न चुगना अर्थात् धारण करना और दूसरी विशेषता है निर्णय शक्ति की विशेषता। दूध और पानी को अलग करना अर्थात् निर्णय शक्ति की विशेषता। जिसमें निर्णय शक्ति होगी वो कभी भी दूध की बजाय पानी नहीं धारण करेगा। दूध की वैल्यु पानी से ज्यादा है। तो दूध और पानी का अर्थ है व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करना।* व्यर्थ को पानी समान कहते हैं और समर्थ को दूध समान कहते हैं। तो ऐसे होली हंस हो? निर्णय शक्ति अच्छी है? कि कभी पानी को दूध समझ लेते, कभी दूध को पानी समझ लेते? व्यर्थ को अच्छा समझ लें और समर्थ में बोर हो जायें। नहीं।

 

  तो होली हंस अर्थात् सदा स्वच्छ। हंस सदा स्वच्छ दिखाते हैं। स्वच्छता अर्थात् पवित्रता। तो अभी स्वच्छ बन गये ना। मैलापन निकल गया या अभी भी थोड़ा-थोड़ा है? थोड़ा-थोड़ा रह तो नहीं गया? कभी मैले के संग का रंग तो नहीं लग जाता? कभी-कभी मैले का असर होता है? तो स्वच्छता श्रेष्ठ है ना। मैला भी रखो और स्वच्छ भी रखो तो क्या पसन्द करेंगे? स्वच्छ पसन्द करेंगे या मैला भी पसन्द करेंगे? *तो सदा मन-बुद्धि स्वच्छ अर्थात् पवित्र। व्यर्थ की अपवित्रता भी नहीं। अगर व्यर्थ भी है तो सम्पूर्ण स्वच्छ नहीं कहेगे। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होलीहंस बनना।*

 

  *हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहें, मनन चलता रहे। ज्ञान चलेगा तो व्यर्थ नहीं चलेगा। इसको कहा जाता है रत्न चुगना। व्यर्थ है पत्थर। कभी भी अगर व्यर्थ आता है तो दु:ख की लहर आती है ना। परेशान तो होते हो ना कि ये क्यों आया? तो पत्थर दु:ख देता है और रत्न खुशी देता है।* अगर किसी के हाथ में रत्न आ जाये तो परेशान होगा या खुश होगा? खुश होगा ना। अगर कोई पत्थर फ़ेक दे तो दु:ख होगा। तो बुद्धि द्वारा भी पत्थर ग्रहण नहीं करना। सदा ज्ञान रत्न ग्रहण करना। एक-एक रत्न की अनगिनत वैल्यु है! आपके पास कितने रत्न हैं? अनगिनत हैं ना! रत्नों से भरपूर हैं, खाली तो नहीं हैं? कभी भी बुद्धि को खाली नहीं रखो। कोई न कोई होम वर्क अपने आपको देते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अब तो घर जाना है? (कब जाना है?) *समय कभी भी बता के नहीं आयेगा, अचानक ही आयेगा।* जब समझेंगे समीप है तो नहीं आयेगा। जब समझने से थोडे अलबेले होंगे तो अचानक आयेगा।

 

✧  आने की निशानी अलबेलेपन वाले अलबेलेपन में आयेंगे, नहीं तो नम्बर कैसे बनेंगे? फिर तो सब कहें - हम भी अष्ट हैं, हम भी पास हैं। लेकिन थोडा बहुत अचानक होने से ही नम्बर होंगे। बाकी *जो महारथी हैं उन्हों को टचिंग आयेगी।*

 

✧  लेकिन बाप नहीं बतायेगा। *टचिंग ऐसे ही आयेगी जैसे बाप ने सुनाया।* लेकिन बाप कभी एनाउन्स नहीं करेंगे। एक सेकण्ड पहले भी नहीं कहेंगे कि एक सेकण्ड बाद होना है। यह भी नहीं कहेंगे। नम्बरवार बनने हैं, इसलिए यह हिसाब रखा हुआ है। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ और कुछ भी याद न हो, हर समय एक ही बात याद हो 'मेरा बाबा'। *क्योंकि मन व बुद्धि कहाँ जाती है? जहाँ मेरा-पन होता है। अगर शरीर-भान में भी आते हो तो क्यों आते हो? क्योंकि मेरा-पन है। अगर 'मेरा बाबा' हो जाता तो स्वत: ही मेरे तरफ बुद्धि जायेगी। सहज साधन है - 'मेरा बाबा'।* मेरा-पन न चाहते हुए भी याद आता है। जैसे-चाहते नहीं हो कि शरीर याद आवे, लेकिन क्यों याद आता है? मेरा-पन खीचता है ना, न चाहते भी खींचता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  माया की वार से सेफ रहना"*

 

➳ _ ➳  यादो के खुशनुमा मौसम में घूमती हुई... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य के बारे में सोच रही हूँ... कैसे, मेरा साधारण सा  जीवन आज असाधारण हो गया है... मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को प्यारा सा होली हंस बना दिया है... *ज्ञान मनन, ज्ञान जल में तैरना, और उड़ना सिखा कर जादू सा कर दिया है.*. और अचानक मीठे बाबा की चिर परिचित मधुर वाणी, मीठे बच्चे... सुनती हूँ... और ज्ञान सागर को अपने सम्मुख पाकर पुलकित हो उठती हूँ...

 

❉   मीठे बाबा मेरा स्वर्ग धरा पर आशियाना बनाने हेतु बोले ;- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देवताई राज्य भाग्य पाने के लिए डबल अहिंसक बनना है... ईश्वरीय यादो में गहरे डूबकर माया पर जीत पानी है... *दिव्य गुणो और शक्तियो से स्वयं की महानता को पुनः जगाओ.*.. विकारो के दुश्मन पर विजय पाकर देवत्व से भर जाओ... सम्पूर्ण निर्विकारी बनकर विश्व धरा पर शान से मुस्कराओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के सारे प्यार को अपने दामन में समेटकर बोली ;- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आज भाग्य ने मुझे आपके नैनो का नूर बना दिया है... *आपकी यादो के सहारे मै आत्मा सम्पूर्ण प्रकर्ति की मालिक बन रही हूँ..*. मेरा अंग अंग पवित्रता की किरणों से छलक रहा है...और मै आत्मा माया दुश्मन पर सदा की विजयी होती जा रही हूँ...."

 

❉   प्यारे बाबा मुझे रूहानी नशे से भरते हुए बोले :- " मीठे लाडले बच्चे... आप बच्चों की दृढता के आगे कुछ भी असम्भव नही है... *बस एक कदम हिम्मत का बढ़ाओ... तो हजार कदमो से मीठे बाबा की मदद सदा हाजिर है.*.. अपनी मीठी स्मर्तियो को जगाकर माया का सफाया करने वाले बनों... और पवित्रता की बहार से सम्पूर्ण विश्व को महका दो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा को मुझ आत्मा में जोश और जूनून जगाते देख बोली ;- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपकी सच्ची यादो में मुझ आत्मा का देह भान छूटता जा रहा है..* मै आत्मा सारे विकारो से मुक्त हो रही हूँ... मुझ आत्मा की सारी समस्याएं, मन का भारीपन सब समाप्त होता जा रहा है.. पवित्रता से सजधज कर मै आत्मा स्वर्ग की मालिक बन रही हूँ..."

 

❉   मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा पर अपनी सारी ममता दुलार बरसाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... अपने जीवन को सुखो का पर्याय बना लो... *भगवान जो भाग्य सजाने आया है, उसका भरपूर फायदा उठाओ.*.. सब कुछ लेकर अमीरी में मुस्कराओ... यादो में सदा की खूबसूरती से सज जाओ...और सम्पूर्ण निर्विकारी बन, अननोन वारियर्स होकर विजयश्री को गले से लगाओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे से आराध्य को मुझ पर यूँ कुर्बान होते देख कहती हूँ :- " मेरे प्राणप्रिय बाबा... *आपको पा लेने की इतनी बड़ी ख़ुशी ने जीवन को पूर्णता से भर दिया है..*. अपने आपको न जानने वाली, अपने ही मन की मोहताज, कभी मै आत्मा... आज आपके प्यार तले माया दुश्मन पर भारी पड़ रही हूँ... और विजय मेरे कदमो में बिखरी है..."यूँ बाबा के सम्मुख अपने भाग्य का गुणगान करते मै आत्मा अपनी भृकुटि में आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिव बाबा से मिला हुआ खजाना सभी को बाँटना है*"

 

_ ➳  अखुट अविनाशी खजानों से मुझे मालामाल बनाने वाले ज्ञान के सागर अपने शिव बाबा को याद करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरी याद मेरे मीठे बाबा तक पहुँच गई है औऱ *वो अविनाशी अखुट प्राप्तियों से मुझे भरपूर करने के लिए अपना धाम छोड़ कर मेरे पास आ गए है और आ कर मेरे ऊपर छत्रछाया बन कर स्थित हो गए हैं*। अपने बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया को मैं अपने ऊपर स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। उन किरणों से निकल रहा सुखद प्रकाश ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान सूर्य ने प्रकट होकर, अज्ञान अंधकार का विनाश कर चारों और उजाला ही उजाला कर दिया हो।

 

_ ➳  पूरा कमरा बाबा की सर्वशक्तियों के प्रकाश से भर गया है। इस प्रकाश में समाये सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के वायब्रेशन्स धीरे - धीरे चारों और फैल रहें हैं और औंस की मीठी - मीठी फुहारों की तरह मेरे ऊपर बरस रहें हैं। *ये वायब्रेशन्स मुझे गहन सुख और शांति की अनुभूति करवा रहें हैं। एक बहुत ही सुन्दर आनन्दमयी स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। जिस सुख और शांति को पाने के लिए सारे विश्व की आत्मायें भटक रही हैं उस सुख और शांति के साथ - साथ प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति के अविनाशी ख़ज़ानों से भी बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं* सर्वगुणों और सर्वशक्तियों का झरना बाबा से झर - झर करता हुआ निरन्तर मेरे ऊपर बह रहा है और मुझे सर्वगुणों, सर्वशक्तियो के अविनाशी खजानों से सम्पन्न बना रहा है।

 

_ ➳  बाबा से आ रही इन शक्तियों की किरणों के प्रभाव से मेरा साकार शरीर धीरे - धीरे लाइट के सुंदर आकारी शरीर का रूप धारण करता जा रहा है। एक बहुत ही खूबसूरत चमकते हुए फरिश्ते का मैं स्वरूप ले चुकी हूँ। *बाबा से आ रही शक्तिशाली किरणों का फव्वारा अभी भी निरन्तर मुझ फरिश्ते के ऊपर बरस रहा है। मेरे अंग - अंग से निकल रही श्वेत रश्मियों से मेरे चारो और प्रकाश का एक औरा बनता जा रहा है और उस औरे का विस्तार धीरे - धीरे बढ़ता जा रहा है*। प्रकाश का यह औरा धीरे - धीरे सारे वायुमण्डल में फैल रहा है। प्रकाश के एक बेहद सुन्दर कार्ब के साथ मैं फरिश्ता अब धीरे - धीरे धरती के आकर्षण से ऊपर उठने लगा हूँ और ऊपर उड़ने लगा हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे कोई पॉवर मुझे अपने आप ऊपर उड़ा रही है औऱ मैं फरिश्ता बहुत ही हल्केपन की अनुभूति के साथ निरन्तर ऊपर की ओर उड़ता ही जा रहा हूँ*।

 

_ ➳  साकारी दुनिया से बहुत ऊपर आ कर अब मैं आकाश में पहुँच चुका हूँ और सूर्य, चाँद, तारामंडल से सजे इस प्रकाश के मांडवे को पार करके उससे भी ऊपर जा रहा हूँ और एक ऐसी सुन्दर दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ जहाँ सफेद चांदनी सा निर्मल प्रकाश चारों और फैला हुआ दिखाई दे रहा है। *सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने ही समान चारों और उड़ते हुए फरिश्ते मैं देख रहा हूँ। फरिश्तों की इस आकारी दुनिया में सभी फरिश्तो के बीच अपने सम्पूर्ण फरिश्ता  स्वरुप को धारण किये अव्यक्त ब्रह्मा बाबा विशेष रूप से शोभायमान हो रहें हैं। उनकी भृकुटि में ज्ञानसूर्य शिव बाबा चमक रहें हैं जिनका प्रकाश पूरे वतन में फैल रहा है और सारे वतन को जगमगा रहा है*। उनकी लाइट माइट पाकर सभी फरिश्तो की प्रकाश की काया विशेष रूप से चमक रही है। वतन के इस खूबसूरत नजारे का आनन्द लेते हुए धीरे - धीरे मैं फरिश्ता बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच गया हूँ।

 

_ ➳  बड़े प्यार से बाबा मुझे अपने पास बिठाकर, प्यार भरी नजरों से मुझे निहारते हुए, अब ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर रहें हैं। दिव्य गुणो से मुझे सजाकर, सर्व ख़ज़ानों से मेरी झोली भर रहें है। *अपने सर्वगुणों और सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर वरदानों से मेरी झोली भर रहें हैं। ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर, सर्व गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से भरपूर होकर, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं पुनः साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ* और अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर फिर से भृकुटी के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से हर रोज ज्ञान के अखुट खजाने लेकर, अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, महादानी बन बाबा से मिला हुआ खजाना सभी को बाँट कर मैं सभी को आप समान बनाने की ईश्वरीय सेवा अब निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं कथनी, करनी और रहनी को समान बनाकर अव्यक्त व कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सोचना, कहना और करना इन तीनों को समान बनाने वाली बाप समान सम्पन्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुशी की जीवन।* कभी-कभी बापदादा देखते हैंकोई-कोई के चेहरे जो होते हैं ना वह थोड़ा सा.... क्या होता हैअच्छी तरह से जानते हैंतभी हंसते हैं। तो बापदादा को ऐसा चेहरा देख रहम भी आता और थोड़ा सा आश्चर्य भी लगता। मेरे बच्चे और उदास! हो सकता है क्यानहीं ना! *उदास अर्थात् माया के दास। लेकिन आप तो मास्टर मायापति हो। माया आपके आगे क्या हैचींटी भी नहीं हैमरी हुई चींटी। दूर से लगता है जिंदा है लेकिन होती मरी हुई है।* सिर्फ दूर से परखने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप की नालेज विस्तार से जानते हो नाऐसे माया के भी बहुरूपी रूप की पहचाननालेज अच्छी तरह से धारण कर लो। वह सिर्फ डराती हैजैसे छोटे बच्चे होते हैं ना तो उनको माँ बाप निर्भय बनाने के लिए डराते हैं। कुछ करेंगे नहींजानबूझकर डराने के लिए करते हैं।

 

 _ ➳  ऐसे माया भी अपना बनाने के लिए बहुरूप धारण करती है। जब बहुरूप धारण करती है तो आप भी बहुरूपी बन उसको परख लो। परख नहीं सकते हैं नातो क्या खेल करते होयुद्ध करने शुरू कर देते हो हायमाया आ गई! और युद्ध करने से बुद्धि, मन थक जाता है। फिर थकावट से क्या कहते होमाया बड़ी प्रबल हैमाया बड़ी तेज है। कुछ भी नहीं है। *आपकी कमजोरी भिन्न-भिन्न माया के रूप बन जाती है। तो बापदादा सदा हर एक बच्चे को खुशनसीब के नशे में, खुशनुमा चेहरे में और खुशी की खुराक से तन्दरूस्त और सदा खुशी के खजानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं।*       

 

✺   *ड्रिल :-  "माया को मरी हुई चींटी समझ सदा खुशनसीब के नशे में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा एकांत में शांत स्थिति में बैठी हुई... अपनी जीवन यात्रा पर एक नजर दौड़ाती हूँ... मैं देख रही हूँ कि जीवन यात्रा में जो भी खूबसूरत पल आये... भगवान हर पल, हर क्षण मेरे साथ थे... और जीवन के चैलेंजिंग क्षणों में मैं आत्मा... स्वयं को ईश्वर की गोदी में महफूज देख रही हूँ... यह सब देख कर *ईश्वर के प्रति मेरे मन में अगाध स्नेह उमड़ रहा है... ईश्वरीय स्नेह में मेरे नयन भीग रहे हैं...*

 

 _ ➳  प्रभु स्नेह में भीगी हुई मैं आत्मा... अपने प्यारे शिवबाबा को अपने बिल्कुल समीप देख रही हूँ... *उनकी शक्तियों का, प्यार का जल अजस्त्र धारा की तरह मुझ पर बरसता जा रहा है... मैं आत्मा ईश्वरीय स्नेह में डूबती जा रही हूँ*... मैं परमात्म प्यार से सराबोर होती जा रही हूँ... मैं स्वयं को ईश्वरीय रंग में रंगा हुआ देख रही हूँ...  

 

 _ ➳  कितना सुंदर है मेरा यह मरजीवा जन्म... *मेरा यह ब्राह्मण जीवन खुशियों से भरा जीवन है... मैं आत्मा बाबा की शक्तियों और सहयोग से... माया के हर रूप पर विजय प्राप्त करती जा रही हूँ... मैं मास्टर मायापति बन रही हूँ...* माया कैसा भी विकराल रुप धारण करके आवे... लेकिन मुछ आत्मा को हलचल में नहीं ला सकती... क्योंकि सर्वशक्तिमान बाबा मेरे साथ है... उनके साथ से हर क्षण मेरी विजय होती जा रही है... मैं आत्मा मायाजीत बन रही हूँ...

 

 _ ➳  बाबा अपनी सर्व शक्तियों के खजानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मीठे बाबा ने अपनी समस्त शक्तियां मुझे दे दी हैं... माया तो मरी हुई चींटी के समान निर्जीव बन गई है... *बाबा से मुझ आत्मा में परखने की शक्ति संपूर्ण रूप में समाती जा रही है... मुझ आत्मा को ज्ञान की गुह्य बातें स्पष्ट हो रही हैं... साथ ही माया के विविध रूपों की भी स्पष्ट परख, स्पष्ट पहचान होती जा रही है*... माया तो सिर्फ डराने के लिए आती है, वास्तव में उसमें कोई भी शक्ति नहीं है...

 

 _ ➳  मैं परख शक्ति के द्वारा माया के हर रूप को परख पा रही हूँ... हर कमजोरी से स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ... वह कमजोरी ही माया के विभिन्न रुप धारण कर आती थी और मैं आत्मा उसे युद्ध करने में अपनी शक्तियां गंवा रही थी, मन-बुद्धि इस युद्ध में शिथिल होती जा रही थी... लेकिन अब *हर प्रकार की कमजोरी पर जीत पाकर मैं आत्मा... अपनी खुशनसीब स्थिति में हूँ... अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों के गीत गुनगुना रही हूँ... खुशी की खुराक से मैं आत्मा तंदुरुस्त हो रही हूँ... खुशी के खजानों से भरपूर हो रही हूँ...* अपनी इस खुशकिस्मत अवस्था में खुशनुमा चेहरे और चलन से... सर्व आत्माओं को खुशी का खजाना बांटती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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