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 13 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सहनशील बनकर रहे ?*

 

➢➢ *बुधी में ज्ञान का चिंतन चलता रहा ?*

 

➢➢ *हिम्मत और उत्साह द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त की ?*

 

➢➢ *बापदादा के स्नेह की छत्रछाया का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बाप से सच्चा प्यार है तो प्यार की निशानी है-समान, कर्मातीत बनो । ' करावनहार' होकर कर्म करो, कराओ ।* कर्मेन्द्रियां आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ । कभी भी मन-बुद्धि वा संस्कारों के वश होकर कोई भी कर्म नहीं करो ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सृष्टि ड्रामा के अन्दर विशेष पार्टधारी हूँ"*

 

  सभी अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर विशेष पार्टधारी समझते हो? कल्प पहले वाले अपने चित्र अभी देख रहे हो! यही ब्राह्मण जीवन का वन्डर है। *सदा इसी विशेषता को याद करो कि क्या थे और क्या बन गये! कौड़ी से हीरे तुल्य बन गये। दु:खी संसार से सुखी संसार में आ गये।*

 

  *आप सब इस ड्रामा के हीरो हीरोइन एक्टर हो। एक-एक ब्रह्माकुमार-कुमारी बाप का सन्देश सुनाने वाले सन्देशी हो। भगवान का सन्देश सुनाने वाले सन्देशी कितने श्रेष्ठ हुए!*

 

 *तो सदा इसी कार्य के निमित्त अवतरित हुए हैं। ऊपर से नीचे आये हैं यह सन्देश देने - यही स्मृति खुशी दिलाने वाली हैं। बस, आपना यही आक्यूपेशन सदा याद रखो कि खुशियों की खान के मालिक हैं। यही आपका टाइटिल है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  मीठे - मीठे बच्चे किसके सामने बैठे हो और क्या होकर बैठे हो? बाप तो तुम बच्चों को बिन्दि रुप बनाने आये हैँ। मै आत्मा बिन्दु रुप हूँ। बिन्दि कितनी छोटी होती है और बाप भी कितना छोटा है। इतनी छोटी - सी बात भी तुम बच्चों को बुद्धि में नहीं आती है ? बाप तो  बच्चों के सामने ही है, दूर नहीं। दूर हुई चीज को भूल जाते हो। *जो चीज सामने ही रहती है उस चीज को भूलना - यह तुम बच्चों को शोभा नहीं देता है*।

 

✧  बच्चे! अगर बिन्दि को ही भूल जायेंगे, तो बोलो, किस आधार पर चलेंगे? आत्मा के ही तो आधार से शरीर भी चलती है। मैं आत्मा हूँ। *यह नशा होना चाहिए कि मै बिन्दु , बिन्दु की ही सन्तान हूँ*। सन्तान कहने से ही स्नेह में आ जाते हैँ। तो आज तुम बच्चों को बिन्दु रूप में स्थित होने कि प्रैक्टिस करायें?

 

✧    *मैं आत्मा हूँ - इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है*। जैसे मुझ बाप को भूलने की जरूरत पडती है? हाँ, परिचय देने के लिए तो जरूर बोलना पडता है कि मेरा नाम, रूप, गुण, कर्तव्य क्या है और मै फिर कब आता हूँ, किस तन में आता हूँ। तुम बच्चों को ही अपना परिचय देता हूँ। तो क्या बाप अपने परिचय को भूल जाते है? बच्चे उस स्थिति में एक सेकण्ड भी नहीं रह सकते है? तो क्या अपने नाम, रुप, देश, को भी भूल जाते हैँ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  बिल्कुल इस दुनिया की बातों से, सम्बन्धों से न्यारे बनेंगे तब दैवी परिवार के बापदादा के और सारी दुनिया के प्यारे बनेंगे। *लेकिन यहाँ न्यारा बनना है ज्ञान सहित । सिर्फ बाहर से न्यारा नहीं बनना है। मन का लगाव न हो।* जब अपनी देह से भी न्यारा हो जाते हो तो न्यारेपन की अवस्था अपने आपको भी प्यारी लगती है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुराने जगत से नाता तोड़ नए जगत से नाता जोड़ना"*

 

 _ ➳  *रूहानी खिवैया ने कलियुगी विषय सागर में गोते खाकर डूबती हुई मुझ आत्मा का हाथ थामकर... मुझे डूबने से बचाकर संगमयुगी नाव में बिठा दिया है...* रूहानी खिवैया स्वयं इस नाव की पतवार हाथ में लेकर मुझे नई स्वर्णिम दुनिया में ले जा रहे हैं... *मैं आत्मा चैन से मीठे बाबा के साथ इस संगमयुगी नाव में बैठ सिर्फ नई दुनिया के सपने सजा रही हूँ...* पीछे मुड़कर पुरानी दुनिया की तरफ देखती भी नहीं हूँ... आगे ही आगे बढती जा रही हूँ... श्रीमत रूपी पतवार से इस नाव को चलाते हुए रूहानी खिवैया मीठे बाबा मुझसे रूह रिहान करते हैं...

 

  *जादू भरी नजरों से निहाल कर अपना दीवाना बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... अब इस विकारी विनाशी दुनिया के बन्धनों से स्वयं को मुक्त करो और समय साँस और संकल्पों को ईश्वरीय यादो से महकाओ... *इस वरदानी संगम के हर पल को ईश्वर पिता के नाम कर दो... और सतयुगी सुख अपने नाम करो... दिव्य गुण और शक्तियो से सजकर देवताई खूबसूरत सौंदर्य को पा लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा देही अभिमानी बन पुराने जगत से सारे नाते तोड नए जगत से जोड़ते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ की *सारे जग से अलग हो कलियुग से निकल सुंदर संगम में ईश्वर पिता का हाथ... हाथ में लिए खुशियो के आसमानों में उड़ रही हूँ...* और ईश्वरीय यादो में खो रही हूँ...

 

  *सच्ची खुशियों के गहनों से सजाकर जीवन को रोशन करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अपने मीठे महकते खुशियो से सजे महान भाग्य के नशे में झूम जाओ... *ईश्वरीय यादो से सुगन्धित संगम पर ईश्वर पिता की मखमली गोद में खिल रहे हो... सुन्दरतम देवताई स्वरूप से सज रहे हो...* इन गहरी यादो में खो जाओ...

 

_ ➳  *दुखों के जंजीरों से निकल सुख की नगरी में मुस्कुराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा अब दुखो के कलियुग में नही... ईश्वर पिता के साथ लिए महान संगम में हूँ...* और अपने महान भाग्य को देख पुलकित हूँ... मीठे बाबा की यादो में खोयी हुई सुध बुध भूली हूँ... और उनके प्यार की छाँव में खिली खिली सी हूँ...

 

  *अपने मधुर रश्मियों से मेरे भाग्य को आलोकित करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथ को यादो में गहरा संजो कर अनन्त शक्तियो और देवताई गुणो से स्वयं को भर कर... खूबसूरत दुनिया को अपनी बाँहों में भर सदा का मुस्कराओ... *ईश्वर पिता के मिलन के खूबसूरत पलो को दिल में समालो... और अपने मीठे शानदार भाग्य को सराहो... कलियुगी दुखो की छाया से स्वयं को परे कर मीठे बाबा की मीठी प्यारी यादो में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *बाबा की लवलीन किरणों की बाँहों में सिमटकर जगमगाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके बिना कितना दुखो और कष्टो भरा जीवन जी रही थी... *अब आपके प्यारे साथ ने मेरा जीवन महका कर खुशियो से आबाद किया है... दुखो के नामोनिशान से परे कर... ठंडी सुखदायी शीतल यादो में दिल को सदा का आराम दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि में ज्ञान का ही चिंतन करते रहना है*"

 

_ ➳  अपने आश्रम के क्लास रूम में, अपने परम शिक्षक शिव पिता परमात्मा के मधुर महावाक्य सुनने के बाद, ज्ञान के सागर, अपने प्यारे बाबा से मिलने वाले *अविनाशी ज्ञान रत्नों के बारे में विचार सागर मन्थन करते हुए, एकाएक शास्त्रों में लिखी एक बात स्वत: ही स्मृति में आने लगती है जिसमे कहा गया है "कि समुंद्र मन्थन में, समुंद्र को मथने से जो अमृत निकला था उसे पीकर देवता सदा के लिए अमर बन गए थे"*। भक्ति में कही हुई यह बात स्मृति आते ही मैं विचार करती हूँ कि वास्तव में वो अमृत तो यह ज्ञान अमृत है जो इस समय भगवान द्वारा दिये जा रहे ज्ञान का मंथन करके हम ब्राह्मण बच्चे प्राप्त कर रहें है और इस अमृत को पीकर भविष्य 21 जन्मो के लिए "सदा अमर भव" के वरदान के अधिकारी बन रहें हैं।

 

_ ➳  तो कितने पदमापदम सौभाग्यशाली है हम ब्राह्मण बच्चे जो इस ज्ञान अमृत को पीकर अमर बन रहें हैं। *मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करती, ज्ञान अमृत पिला कर, सदा के लिए अमर बनाने वाले, ज्ञान के सागर अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करके, मैं उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और ज्ञान सागर में डुबकी लगाने के लिए, एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपने अकाल तख्त को छोड़, देह की कुटिया से बाहर आकर, सीधा ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  आकाश को पार करके, मैं सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ और इस लोक को भी पार करके ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम में पहुँच जाती हूँ। *इस शान्ति धाम घर में आकर मुझे ऐसा लग रहा हूँ जैसे शांति की शीतल लहरें बार - बार आकर मुझ आत्मा को छू रही हैं और मुझे गहन शीतलता और असीम सुकून दे रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे एक छोटा बच्चा सागर के किनारे खड़ा, सागर की लहरों के साथ खेल रहा है और उस खेल का भरपूर आनन्द ले रहा हैं, *ऐसे ही मैं आत्मा शान्ति के सागर अपने शिव पिता की शान्ति की लहरों से खेलते हुए असीम आनन्द ले रही हूँ*

 

_ ➳  शान्ति की गहन अनुभूति करते - करते, मैं आत्मा ज्ञान, गुणों और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता से ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने अपनी बुद्धि रूपी झोली में भरने के लिए और स्वयं को गुणों और शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब बिल्कुल उनके समीप पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर शिव बाबा से ज्ञान की नीले रंग की फुहारे, और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों की इंद्रधनुषी रंगों की शीतल फुहारे मुझ पर बरस रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान, गुण और शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं।

 

_ ➳  सर्वगुण, सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर, अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरकर मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *"मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" सदा इस स्मृति में रहते हुए मैं आत्मा अब अपने ब्राह्मण जीवन मे ज्ञान के सागर शिवबाबा से प्रतिदिन मुरली के माध्यम से प्राप्त ज्ञानधन को जीवन मे धारण कर ज्ञानस्वरूप आत्मा बनती जा रही हूँ*। ज्ञान ख़ज़ानों से सम्पन्न होकर, परमात्म ज्ञान को मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  *बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द  का अनुभव करते, ज्ञान की हर प्वाइंट को अपने जीवन मे धारण कर मैं आत्मा ज्ञान सम्पन्न बनती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हिम्मत और उत्साह द्वारा हर कार्य मे सफलता प्राप्त करने वाली महान शक्त्तिशाली आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बापदादा के स्नेह की छत्रछाया में रहने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अभी इस वर्ष बापदादा बच्चों के स्नेह में कोई भी बच्चे की किसी भी समस्या में मेहनत नहीं देखने चाहते। *समस्या समाप्त और समाधान समर्थ स्वरूप। क्या यह हो सकता है?* बोलो दादियाँ हो सकता है? टीचर्स बोलो, हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? फिर बहाना नहीं बताना, यह था ना, यह हुआ ना! यह नहीं होता तो नहीं होता! बापदादा बहुत मीठे-मीठे खेल देख चुके हैं। *कुछ भी हो, हिमालय से भी बड़ा, सौ गुणा समस्या का स्वरूप हो, चाहे तन द्वारा, चाहे मन द्वारा, चाहे व्यक्ति द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा समस्या, पर-स्थिति आपकी स्व-स्थिति के आगे कुछ भी नहीं है और स्व-स्थिति का साधन है - स्वमान।*

 

 _ ➳  नेचरल रूप में स्वमान हो। याद नहीं करना पड़े, बार-बार मेहनत नहीं करनी पड़े, नहीं-नहीं मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं नूरे रत्न हूँ, मैं दिलतख्तनशीन हूँ... हूँ ही। और कोई होने है क्या! कल्प पहले कौन बने थे? और बने थे या आप ही बने थे? आप ही थे, आप ही हैं, हर कल्प आप ही बनेंगे। यह निश्चिंत है। *बापदादा सब चेहरे देख रहे हैं यह वही कल्प पहले वाले हैं। इस कल्प के हो या अनेक कल्प के हो? अनेक कल्प के हो ना! हो?* हाथ उठाओ जो हर कल्प वाले हैं? फिर तो निश्चित है ना, *आपको तो पास सर्टीफिकेट मिल गया है ना कि लेना है? मिल गया है ना? मिल गया है या लेना है?* कल्प पहले मिल गया है, अभी क्यों नहीं मिलेगा। तो यही स्मृति स्वरूप बनो कि सर्टीफिकेट मिला हुआ है। *चाहे पास विद आनर का, चाहे पास का, यह फर्क तो होगा, लेकिन हम ही हैं। पक्का है ना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "समाधान, समर्थ स्वरूप में स्थित होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  भृकुटि सिंहासन पर विराजमान...  मैं चमकता हुआ सितारा... अपने स्वमान में स्थित ज्ञान स्वरूप हूं... मुझ आत्मा से नीले रंग की चमत्कारी किरणें चारों ओर फैल रही है... अपने लाइट माइट स्वरूप में चारों ओर का किचड़ा मैं आत्मा भस्म करती जा रही हूं... मैं देखती हूं चारों ओर का वातावरण साफ व शुद्ध होता जा रहा है... *अपने अनादि संबंध की स्मृति में... अपने चारों ओर की आत्माओं को भाई-भाई की दृष्टि से निहारती मैं आत्मा स्मृति स्वरूप हूं... यह स्मृति मुझ आत्मा को समर्थ बनाए हुए हैं... आत्माओं द्वारा समस्या रूपी विघ्न मैं आत्मा  सहज ही पार करती जा रही हूं...*

 

 _ ➳  आत्मा-आत्मा भाई-भाई की रूहानी दृष्टि में स्थित... मै ज्ञानी तू आत्मा सहज ही सामने वाली आत्मा के साथ अपने संस्कारों का मिलान कर रही हूं... *मैं आत्मा शांति के सागर परमपिता शिव की संतान हूं... यह स्मृति मुझे शांति से भरपूर किए हुए हैं.... मुझसे शांति की अनंत किरणें निकल चारों ओर फैल रही हैं... मैं देखती हूँ मेरे चारों ओर की आत्माएं व प्रकृति एकदम शांत हैं... पांचों तत्व सतोप्रधानता को प्राप्त  हैं...* मैं स्वयं को प्रकृतिजीत स्थिति में देख रही हूं...  मुक्ति द्वार पर स्थित मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी हूं... ड्रामा के राज से परिचित मैं आत्मा साक्षी दृष्टा की सीट पर विराजमान हूं...

 

 _ ➳  साक्षीपन की ये स्मृति मुझ आत्मन को समस्या से समाधान स्वरूप बनाए हुए हैं... कोई भी विघ्न चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो मुझे चींटी समान प्रतीत हो रहा है... *मैं आत्मा उड़ती कला में स्थित तीव्र गति से हिमालय रूपी समस्याओं को पार करती हुई मंजिल की ओर बढ़ रही हूं...* मैं आत्मा मन की डांस में मगन हूं...  तन द्वारा आया कोई भी विघ्न मुझ आत्मा को कागज के शेर जैसा प्रतीत हो रहा है...  अंतिम जन्म की स्मृति... मुझ आत्मा को देह से न्यारे किए हुए है... मैं आत्मा अशरीरी पन का अनुभव करती जा रही हूं... मैं आत्मा सुख के सागर की संतान सुख स्वरूप... सागर के कंठे पर विराजमान अतींद्रिय सुख का अनुभव करती हूं...

 

 _ ➳  मेरे जीवन में दुःख का नाम निशान नहीं... दुःख की कोई भी लहर मुझ आत्मा से कोसों दूर है... मैं आत्मा सुख के सागर में समाई हुई सुखदाता की बच्ची मास्टर सुखदाता हूं... *मैं वही कल्प पहले वाली बाबा की बच्ची ब्राह्मण वंशावली हूं... सृष्टि मंच पर मैं आत्मा अपने 84 जन्मों का चक्कर लगाए स्वदर्शन चक्रधारी हूं...* अभी मैं आत्मा अपने अंतिम जन्म में स्थित पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनने जा रही हूं...  कल्प कल्प की मैं आत्मा स्वराज्य सो विश्व राज्य अधिकारी हूं...

 

 _ ➳  अब फिर से मैं आत्मा वही इतिहास दोहरा रही हूं... *मैं आत्मा स्नेह के सागर की संतान सर्व की स्नेही हूं... मुझ आत्मा का यही गुण मुझे सर्व का सहयोगी बना रहा है... सब मेरे सहयोगी बनते जा रहे हैं...* सर्वशक्तिमान शिव बाबा की संतान मैं आत्मा शक्ति स्वरुप हूं... यह स्वमान मुझ आत्मा को समर्थ बनाये हुए हैं... *स्नेह और शक्ति के इस बैलेंस द्वारा मैं आत्मा सहज ही आगे बढ़ती जा रही हूं...* मैं आत्मा सर्व की प्यारी बाप की प्यारी हूं... चारों ओर बापदादा की प्रत्यक्षता का नगाड़ा मैं आत्मा बजा रही हूं... वही हैं यह वही हैं जिनकी हमें तलाश थी की आवाज चारों ओर गूंज रही हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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