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 04 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पुरुषार्थी (पुरुष + रथी) शब्द के अर्थ स्वरुप में स्थित होने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *जन्म के अधिकार का तख़्त, तिलक, ताज और राज्य संभाल कर रखे ?*

 

➢➢ *बहनों को शक्ति के स्वरुप में और भाइयों को महावीर के स्वरुप में देखा ?*

 

➢➢ *"परिवर्तन करना ही है" - यह दृढ़ संकल्प किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  किसी भी कर्म में बहुत बिजी हो, *मन-बुद्धि कर्म के सम्बन्ध में लगी हुई है, लेकिन डायरेक्शन मिले-फुलस्टाप। तो फुलस्टाप लगा सकते हो कि कर्म के संकल्प चलते रहेंगे?* यह करना है, यह नहीं करना है, यह ऐसे है, यह वैसे है....। तो यह प्रैक्टिस एक सेकण्ड के लिये भी करो लेकिन अभ्यास करते जाओ, *क्योंकि अन्तिम सर्टीफिकेट एक सेकण्ड के फुलस्टाप लगाने पर ही मिलना है। सेकण्ड में विस्तार को समा लो, सार स्वरूप बन जाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप समान सर्वगुण, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप समान सर्वगुण, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हैं - ऐसे अनुभव करते हो? *बाप के बच्चे तो सदा हो ना। जब बच्चे सदा हैं तो बाप समान धारणा स्वरूप भी सदा चाहिए ना। यही सदा अपने आप से पूछो कि बाप के वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ।* अधिकारी आत्मा को अधिकार कभी भूल नहीं सकता।

 

  जब सदा का राज्य पाना है तो याद भी सदा की चाहिए। हिम्मत रखकर, निर्भय होकर आगे बढ़ते रहे हो इसलिए मदद मिलती रही है। *हिम्मत की विशेषता से सर्व का सहयोग मिल जाता है। इसी एक विशेषता से अनेक विशेषताये स्वत: आती जाती हैं। एक कदम आगे रखा और अनेक कदम सहयोग के अधिकारी बने इसलिए इसी विशेषता का औरों को भी दान और वरदान देते आगे बढ़ाते रहो।*

 

 *जैसे वृक्ष को पानी मिलने से फलदायक हो जाता है, वैसे विशेषताओंको सेवा में लगाने से फलदायक बन जाते हैं। तो ऐसे विशेषताओंको सेवा में लगाए फल पाते रहना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। कारण यह है, जैसे देखो रावण को मारते भी हैं, लेकिन सिर्फ मारने से छोड नहीं देते हैं, जलाते हैं और जला के फिर हड़ियाँ जो है वह आजकल तो नदी में डाल देते हैं।* कोई भी मनुष्य मरता है तो हड़ियाँ भी नदी में डाल देते है तभी समाप्ति होती है।

 

✧  तो आप क्या करते हो? *ज्ञान की प्वाइन्टस से, धारणा की प्वाइन्टस से उस बात रूपी रावण को मार तो देते हो लेकिन योग अग्नि में स्वाहा नहीं करते हो।* और फिर जो कुछ बातों की हड़ियाँ बच जाती है ना - वह ज्ञान सागर बाप के अर्पण कर दो। तीन काम करो - एक काम नहीं करो।

 

✧  *आप समझते हो पुरुषार्थ तो किया ना, मुरली पढी, 10 बारी मुरली पढी फिर भी आ गई क्योंकि आपने योग अग्नि में जलाया नहीं, स्वाहा नहीं किया।* अग्नि के बाद नाम-निशान गुम हो जाता है फिर उसको भी बाप सागर में डाल दो, समाप्त। इसलिए *इस वर्ष मे बापदादा हर बच्चे को व्यर्थ से मुक्त देखने चाहते हैं। मुक्त वर्ष मनाओ।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *परखने की शक्ति को तीव्र बनाने लिए मुख्य कौन -सा साधन है?* परखने का तरीका कौन-सा होना चाहिए ? तुम्हारे सामने कोई भी आये उनको परख सकते हो? (हरेक ने अपना-अपना विचार बताया) सभी का रहस्य तो एक ही है। अव्यक्त स्थिति व याद व आत्मिक-स्थिति बात तो वही है। *लेकिन आत्मिक स्थिति के साथ-साथ यथार्थ रूप से वही परख सकता है जिनकी बुद्धि एक की ही याद में, एक के ही कार्य में और एकरस स्थिति में होगी।* वह दूसरे को जल्दी परख सकेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- दृष्टि, वृत्ति परिवर्तन करने की युक्तियां"*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे आत्मिक रूप का एहसास याद दिलाकर... जीवन को खुशियों से... फूलों की मादकता जैसे... महका दिया है...* जीवन को नया आयाम दे दिया है... बाबा ने कौड़ी जैसे जीवन को हीरे तुल्य बना दिया... अब तो हर पल... हर कर्म मीठे बाबा की यादों से सज गया है... *खुद को जानने की... और ईश्वर को पाने की खुशी ने जीवन को आलिशान... बेशकीमती... बना दिया है... मैं आत्मा ईश्वरीय यादों से भरपूर हो हरपल मुस्करा रही हूँ...* बाबा के प्यार की छत्रछाया में पलने वाली मैं आत्मा महान... सौभाग्यशाली हो गई हूँ... इस मीठे चिंतन में डुबी हुई मैं आत्मा... उड़ चलती हूँ... मीठे सूक्ष्म वतन में... अपने मीठे प्यारे बाबा के पास...

 

  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को मेरे श्रेष्ठ भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *देही अभिमानी बन... सारा दिन आत्मिक दृष्टि का खूब अभ्यास करो... जिसे भी देखो... आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखो...* कोई मित्र... सम्बन्धी... की देह न नजर आये... वह आत्मा ही दिखाई दे... ऐसा अनुभव करो कि जैसे इस स्थूल दुनिया में रहते हुए... इन आत्माओं की दुनिया में रह रही हो... *हर पल आत्म अभिमानी स्थिति की अनुभूति करो...*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा बड़े प्यार से नशे से महकते हुए गुलाब की तरह रूहानियत भरे अंदाज़ में बाबा से कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपकी याद में रह... मैं आत्मा अपने पुराने स्वभाव संस्कार... दृष्टि... वृति... से निजात पा रही हूँ... अब मैं आत्मा... ब्रह्मा बाबा को अनुसरण करती हुई... साक्षीदृष्टा बनने का भरसक प्रयत्न कर रही हूँ... किसी को गलत करते हुए या देखते हुए भी *मैं आत्मा देही अभिमानी बन... एकरस स्थिति में... सभी मित्र... सम्बंधियों को... सभी मनुष्यों को आत्मा रूप में देखती हूँ... हर एक को आत्मा रूप में देखने से भाई-भाई की दृष्टि पक्की हो रही है...*"

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को साक्षीदृष्टा भव!! का वरदान देते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *अपनी दृष्टि... वृति... अपने पुराने संस्कार स्वभाव को अब परिवर्तन कर साक्षी दृष्टा बनो...* किसी के अवगुणों को देखते हुए भी चित्त पर न धरो... आपकी चलन से रूहानियत झलके... अन्य मनुष्य आत्माऐं आपके चलन से प्रभावित हो... आपकी तरफ आकर्षित हो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा से वरदान पाकर और ईश्वरीय मत पाकर खुशनुमा जीवन की मालिक बनकर कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा आपको पाकर... आप द्वारा ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी सुखी हो गई हूँ... विकर्मो की कालिमा से छूट कर पवित्रता से सज संवर रही हूँ...* मीठे बाबा... आप जैसे सच्चे साथी को साथ रखकर अपनी दृष्टि... वृति को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... *मेरे जीवन के सहारे बाबा... अब एक पल के लिये भी... आपका श्रीमत रूपी हाथ कभी भी नहीं छोडूंगी..."*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने निराकारी रूप के नशे से भरते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा अपने चमकते हुए रूप के भान में रह... हर कर्म करो... *सदा स्वयं को आत्मा निश्चय कर... दिव्य कर्मो से अपने दामन को स्वच्छ बनाओ...* और दिल में सदा यादों में खोये हुए... अपने महान भाग्य की खुमारी से ओतप्रोत... *दिव्य दृष्टि... दिव्य कृति द्वारा हर कर्म करो... तभी तुम्हारी दृष्टि... वृति से रूहानियत स्पष्ट दिखाई देगी..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर स्नेह पर दिल से न्योछावर होकर कहती हूँ:-* "मीठे मीठे बाबा... *आपने अपना बनाकर... मुझ कमजोर आत्मा को मूल्यवान... अमूल्य बना दिया...* आपने शुभ संकल्पों और शुभ भावना का जादू सिखा कर... मेरा जीवन हीरे जैसा बना दिया... *अब मैं आत्मा आपके बताये मार्ग पर चलकर... अपनी दृष्टि... वृति द्वारा रूहानियत फैला रही हूँ...* मीठे प्यारे बाबा के उपकारों का यूँ रोम रोम से शुक्रिया कर... मैं आत्मा स्थूल जगत में लौट आयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरुषार्थी (पुरुष + रथी) शब्द के अर्थ स्वरुप में स्थित होना*"

 

_ ➳  मेरा यह संगमयुगी ब्राह्मण जीवन पुरुषार्थी जीवन है और इस ब्राह्मण जीवन में पुरुषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होना ही स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनना है। *इस बात को स्मृति में लाकर, पुरुषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होते ही मैं सहज ही स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो जाती हूँ और शरीर रूपी रथ की रथी अर्थात शरीर रूपी प्रकृति की मालिक बन, कर्मेन्द्रियों की लगाम को अपने हाथ मे लेकर, मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपने मन बुद्धि को उस ज्योति के देश की ओर ले कर चल पड़ती हूँ* जो मेरा अपना घर है, जहाँ मेरे निराकार शिव पिता रहते हैं।

 

_ ➳  शरीर रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा रथी साक्षी होकर अपने शरीर रूपी रथ को बिल्कुल सहज भाव से देख रही हूँ। *"मैं आत्मा रथी हूँ और यह शरीर मेरा रथ है" यह स्मृति मुझे देह से न्यारा कर रही है। अपने इस अति न्यारे और प्यारे दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप को देह से अलग हो कर देखना मुझे बहुत ही आनन्दित कर रहा है*। मेरे अंदर समाहित गुण, शक्तियाँ और ख़ज़ाने जो देह के आवरण के नीचे छुप गए थे वो देह का भान समाप्त होते ही अब सपष्ट दिखाई देने लगे हैं। मुझ चैतन्य सितारे में निहित गुण और शक्तियाँ रंग बिरंगी किरणो के रूप में स्वयं से निकलते हुए मैं देख रही हूँ और अपने अंदर निहित इन गुणों और शक्तियों का अनुभव करके गहन सुख और शांति की एक अति न्यारी और स्थिति में स्थित होती जा रही हूँ।

 

_ ➳  यह न्यारी सी प्यारी स्थिति मुझे परमात्म प्यार के झूले में झुलाती, साकारी दुनिया से बहुत दूर ऊपर की ओर ले कर जा रही हूँ। *उमंग, उत्साह के पंख लगाए, उन्मुक्त होकर मैं बस ऊपर की ओर उड़ती जा रही है। आकाश को पार कर, अंतरिक्ष से परें, सूक्ष्म लोक से होती हुई, आत्माओं की अति सुंदर निराकारी दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ*। यहाँ पहुंचते ही एक गहन शांति की अनुभूति से मैं आत्मा भर जाती हूँ। ऐसा लग रहा है जिस शांति की तलाश में मैं आज दिन तक भटक रही थी वो तलाश मेरी पूरी हो गई है। एक अद्भुत परम आनन्द और परम शांति का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो गई हूँ।

 

_ ➳  मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अब मैं अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के समीप जा रही हूँ। बाबा के पास पहुँच कर, बाबा की सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ अब मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही है वैसे - वैसे मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा स्वच्छ और निर्मल बनती जा रही हूँ*। मुझ आत्मा की चमक बढ़ रही है। असीम बल से मैं आत्मा स्वयं को भरपूर अनुभव कर रही हूँ। बलशाली बन कर, अब मैं आत्मा वापिस नीचे आ रही हूँ।

 

_ ➳  साकारी दुनिया में अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं आत्मा विराजमान हो कर अपने इस पुरुषार्थी ब्राह्मण जीवन मे पुरुषार्थी शब्द के अर्थ स्वरुप में स्थित होकर, पुरानी सर्व कमजोरियों पर सहज ही विजय प्राप्त कर रही हूँ। *अधिकारी पन की सीट पर सदा सेट रहते हुए, अपने शरीर रूपी प्रकृति की अधिकारी के साथ - साथ सर्वशक्तिवान बाप की सर्वशक्तियों की अधिकारी आत्मा बन, उचित समय पर उचित शक्ति के प्रयोग से मैं हर परिस्थिति पर सहज ही विजय प्राप्त कर रही हूँ*। पुरुषार्थी शब्द के अर्थ स्वरुप में स्थित रहने अर्थात रथी बन शरीर रूपी रथ को अपने नियंत्रण में रखने से अब मैं माया के हर प्रकार के धोखे से स्वयं को बचाकर अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं वाणी और मनसा दोनों से एक साथ सेवा करने वाली सहज सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान रहकर अचल-अडोल रहने वाली  श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *अभी आपके अन्दर चेक करो - मेरी वृत्ति में किसी आत्मा के प्रति भी कोई निगेटिव है तो वह विश्व परिवर्तन कर नहीं सकेगा।* बाधा पड़ती रहेगी, समय लग जायेगा। वायुमण्डल में पावर नहीं आयेगी। कई बच्चे कहते हैं वह है ही ऐसा ना! है ही ना! तो वायब्रेशन तो होगा ना! बाप को भी ज्ञान देते हैं, बाबा आपको पता नहीं है, वह आत्मा है ही ऐसी। लेकिन बाप पूछते हैं कि वह खराब है, राँग है, होना नहीं चाहिए लेकिन खराब को अपने वृत्ति में रखो, क्या यह बाप की छूट्टी है?

 

 _ ➳  2. जब तक हर ब्राह्मण आत्मा के स्वयं की वृत्ति में कैसी भी आत्मा के प्रति वायब्रेशन निगेटिव है तो विश्व कल्याण प्रति वृत्ति से वायुमण्डल में वायब्रेशन फैला नहीं सकेंगे। यह पक्का समझ लो। कितनी भी सेवा कर लो, रोज आठ-आठ भाषण कर लो, योग शिविर करा लो, कई प्रकार के कोर्स करा लो लेकिन किसी के प्रति भी अपनी वृत्ति में कोई पुराना निगेटिव वायब्रेशन नहीं रखो। अच्छा वह खराब है, बहुत गलतियाँ करता है, बहुतों को दुःख देता है, तो क्या आप उसके दुःख देने में जिम्मेवार बनने के बजाए, उसको परिवर्तन करने में मददगार नहीं बन सकते। दुःख में मदद नहीं करना है, उसको परिवर्तन करने में आप मददगार बनो। अगर कोई ऐसी भी आत्मा है जो आप समझते हैं, बदलना नहीं है। चलो, आपकी जजमेन्ट में वह बदलने वाली नहीं है, लेकिन नम्बरवार तो हैं ना! तो आप क्यों सोचते हो यह तो बदलने वाली है ही नहीं। आप क्यों जजमेन्ट देते हो, वह तो बाप जज है ना। आप सब एक दो के जज बन गये हो। बाप भी तो देख रहा है, यह ऐसे हैं, यह ऐसे हैं, यह ऐसे हैं...। *ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष में देखा कैसी भी बार-बार गलती करने वाली आत्मा रही लेकिन बापदादा (विशेष साकार रूप में ब्रह्मा बाप) ने सर्व बच्चों प्रति याद-प्यार देते, सर्व बच्चों को मीठे-मीठे कहा। दो चार कडुवे और बाकी मीठे... क्या ऐसे कहा?* फिर भी ऐसी आत्माओं के प्रति भी सदा रहमदिल बने। क्षमा के सागर बने। लेकिन अच्छा आपने अपनी वृत्ति में किसी के प्रति भी अगर निगेटिव भाव रखा, तो इससे आपको क्या फायदा है? अगर आपको इसमें फायदा है, फिर तो भले रखो, छुट्टी है। अगर फायदा नहीं है, परेशानी होती है..., वह बात सामने आयेगी। बापदादा देखते हैं, उस समय उसको आइना दिखाना चाहिए। तो जिस बात में अपना कोई फायदा नहीं है, नालेजफुल बनना अलग चीज है, नालेज है - यह राँग है, यह राइट है। नालेजफुल बनना राँग नहीं है, लेकिन वृत्ति में धारण करना यह राँग है क्योंकि अपने ही मूड आफ, व्यर्थ संकल्प, याद की पावर कम, नुकसान होता है। जब प्रकृति को भी आप पावन बनाने वाले हो तो यह तो आत्मायं हैं। वृत्ति, वायब्रेशन और वायुमण्डल तीनों का सम्बन्ध है। वृत्ति से वायब्रेशन होते हैं, वायब्रेशन से वायुमण्डल बनता है। लेकिन मूल है वृत्ति। अगर आप समझते हो कि जल्दी-जल्दी बाप की प्रत्यक्षता हो तो तीव्र गति का प्रयत्न है सब अपनी वृत्ति को अपने लिए, दूसरों के लिए पाजिटिव धारण करो। नालेजफुल भले बनो लेकिन अपने मन में निगेटिव धारण नहीं करो। निगेटिव का अर्थ है किचड़ा। अभी-अभी वृत्ति पावरफुल करो, वायब्रेशन पावरफुल बनाओ, वायुमण्डल पावरफुल बनाओ क्योंकि सभी ने अनुभव कर लिया है, वाणी से परिवर्तन, शिक्षा से परिवर्तन बहुत धीमी गति से होता है, होता है लेकिन बहुत धीमी गति से। अगर आप फास्ट गति चाहते हो तो नालेजफुल बन, क्षमा स्वरूप बन, रहमदिल बन, शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करो।

 

✺   *ड्रिल :-  "वृत्ति द्वारा आत्माओं को परिवर्तन करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  संगमयुग के अपने सुहाने सफर में आगे बढ़ते हुए मैं आत्मा अपने बाबा को याद करते हुए एक शान्त स्थान पर बैठी हुई हूँ... प्रकृति के बीच बैठ कर मैं यहाँ की सुंदरता को निहार रही हूँ... प्रकृति के इस शान्त वातावरण में मेरा मन भी शान्त हो रहा है... मेरी देह धीरे धीरे हल्की होती जा रही है और मैं अपने मन को स्वयं पर केंद्रित कर रही हूँ... मेरे संकल्पों की गति धीमी हो गयी है... *मैं एक दम शान्त अवस्था में स्थित हो गयी हूँ... अब मैं इस स्थूल देह के चोले को छोड़ अपना सूक्ष्म शरीर धारण करती हूं...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता बन कर इस देह को छोड़ कर इस संसार में विचरण कर रही हूँ... अलग अलग स्थानों पर मैं फरिश्ता जाती हूँ... मैं देखती हूँ कि आज सर्व ओर की आत्मायें अनेक प्रकार के विकारों के वशीभूत हैं... घृणा के संस्कार, क्रोध के संस्कार, द्वेष के संस्कार, ईर्ष्या के संस्कार, किसी की आलोचना करने के संस्कार, लोभ के संस्कार आज हर जगह हर आत्मा में दिखाई देते हैं... *सर्व आत्मायें अपने मूल स्वभाव संस्कारों को भूल इन कलियुगी संस्कारों को स्वयं के संस्कार समझ कर उसी अनुसार व्यवहार कर रही हैं...*

 

 _ ➳  ये सब आत्मायें इन विकारों में फंस कर स्वयं भी दुखों का अनुभव करती हैं... और अपने आस पास के वातावरण को भी दूषित कर रही हैं... मैं आत्मा जब इन सब आत्माओ को ऐसे देखती हूँ तो मुझे इन सब पर तरस पड़ता है... और मैं इन सब की मदद करने का संकल्प ले अपने स्थूल शरीर में वापिस आती हूँ... *मैं आत्मा अमृतवेले बाबा की शक्तियों से स्वयं को चार्ज करती हूँ और सारा दिन ये शक्तिशाली वाइब्रेशन वातावरण में फैला रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा जहाँ भी जाती हूँ मेरे प्योर और शक्तिशाली वाइब्रेशन अन्य आत्मायें भी महसूस करती हैं... *किसी भी आत्मा के आसुरी स्वभाव संस्कार को देख कर मैं आत्मा उसके प्रति कोई नेगेटिव फीलिंग नहीं रखती...* बल्कि उसके इन संस्कारों को परिवर्तित करने में मैं उसकी मदद करती हूँ... किसी की कोई भी कमज़ोरी को चित्त पर न रखते हुए उसके प्रति शुभभावना रखती हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस सृष्टि के राज़ को जान गयी हूँ और इस सारे ड्रामा की नॉलेज मेरे मीठे बाबा ने मुझे दे दी है... उस नॉलेज को यूज़ करते हुये मैं किसी भी आत्मा के प्रति कोई भी गलत भाव अपने मन मे नहीं रखती... *बाबा की तरह क्षमा का सागर बन अपने लिए बुरा करने वालों को भी माफ कर देती हूँ...* उनके प्रति भी रहमदिल बन शुभभावना और शुभकामना द्वारा उन्हें भी परिवर्तित करने के निमित बनती हूँ... मेरी ये पवित्र और श्रेष्ठ वृत्ति वायुमण्डल को भी परिवर्तित कर रही है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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