━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 24 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *लोभ लालच तो नहीं रखा ?*

 

➢➢ *ड्रामा की निश्चित भावी समझ फखुर में रहे ?*

 

➢➢ *सदा भरपूरता की अनुभूति द्वारा टेढ़े रास्ते को सीधा बनाया ?*

 

➢➢ *रूहाब को धारण कर रूहानी गुलाब बनकर रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *सदा डबल लाइट स्थिति में रहने वाले निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त होंगे। उड़ती कला में रहेंगे।* उड़ती कला अर्थात् ऊंचे से ऊँची स्थिति। उनके बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं। धरनी अर्थात् देह भान से ऊपर। जो देह भान की धरनी से ऊपर रहते वह सदा फरिश्ते हैं।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा हूँ "*

 

〰✧  स्वयं को सदा सर्व खजानों से भरपूर अर्थात् सम्पन्न आत्मा अनुभव करते हो? *क्योंकि जो सम्पन्न होता है तो सम्पन्नता की निशानी है कि वो अचल होगा, हलचल में नहीं आयेगा। जितना खाली होता है उतनी हलचल होती है। तो किसी भी प्रकार की हलचल, चाहे संकल्प द्वारा, चाहे वाणी द्वारा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा, किसी भी प्रकार की हलचल अगर होती है तो सिद्ध है कि ख़जाने से सम्पन्न नहीं हैं।* संकल्प में भी, स्वप्न में भी अचल। क्योंकि जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् स्वरूप की स्मृति इमर्ज होगी उतना ये हलचल मर्ज होती जायेगी। तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति प्रत्यक्ष रूप में इमर्ज हो।

 

✧  *जैसे शरीर का आक्यूपेशन इमर्ज रहता है, मर्ज नहीं होता, ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन इमर्ज रूप में रहे। तो यह चेक करो-इमर्ज रहता है या मर्ज रहता है? इमर्ज रहता है तो उसकी निशानी है-हर कर्म में वह नशा होगा और दूसरों को भी अनुभव होगा कि यह शक्तिशाली आत्मा है।* तो कहा जाता है हलचल से परे अचल। अचलघर आपका यादगार है। तो अपना आक्यूपेशन सदा याद रखो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं-क्योंकि आजकल सर्व आत्मायें अति कमजोर हैं तो कमजोर आत्माओंको शक्ति चाहिये। शक्ति कौन देगा? जो स्वयं मास्टर सर्वशक्तिमान् होगा।

 

✧  किसी भी आत्मा से मिलेंगे तो वो क्या अपनी बातें सुनायेंगे? कमजोरी की बातें सुनाते हैं ना? जो करना चाहते हैं वो कर नहीं सकते तो इसका प्रमाण है कि कम]जोर हैं और आप जो संकल्प करते हो वो कर्म में ला सकते हो। *तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि संकल्प और कर्म दोनों समान होगा। ऐसे नहीं कि संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो और कर्म करने में वो श्रेष्ठ संकल्प नहीं कर सको, इसको मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहेंगे।* तो चेक करो कि जो श्रेष्ठ संकल्प होते हैं वो कर्म तक आते हैं या नहीं आ सकते? मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि जो शक्ति जिस समय आवश्यक हो उस समय वो शक्ति कार्य में आये।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

लोग चिल्लाते रहें और आप अचल रहो। *प्रकृति भी, माया भी सब लास्ट दाँव लगाने लिए अपने तरफ कितना भी खींचे लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रही। इसको कहा जाता - देखते हुए न देखो। सुनते हुए न सुनो। ऐसा अभ्यास हो।* इसी को ही स्वीट साइलेन्स' स्वरूप की स्थिति कहा जाता है। फिर भी बापदादा समय दे रहा है। अगर कोई भी कमी है तो अब भी भर सकते हो। क्योंकि बहुतकाल का हिसाब सुनाया। तो अभी थोडा चांस है। इसलिए *इस प्रैक्टिस की तरफ फुल अटेन्शन रखो।* पास विद ऑनर बनना या पास होना इसका आधार इसी अभ्यास पर है। ऐसा अभ्यास है?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ *आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना!* इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। 'तख्तनशीन आत्मा हूँ।' इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियां स्वत: ही ऑर्डर पर चलेंगी। *जो अकाल-तख्त-नशीन समझकर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, ने देह के सम्बन्ध है, न पदार्थ हैं एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा स्वयं को मधुबन में डाइमंड हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं, और बाबा मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ शिव बाबा के पास परमधाम, यहाँ चारों तरफ फैला हुआ अलौकिक प्रकाश मुझे दिव्यता और परमानंद की अनुभूति करा रहा है... निराकारी दुनिया में मैं आत्मा स्वयं को बिंदु रूप में चमकता हुआ देख रही हूं... बाबा से शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में निरंतर बहता जा रहा और इस ज्ञान स्नान से मुझ आत्मा में पड़ी हुई खाद भस्म होती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत पवित्र और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* शक्तिओं से भरपूर हो अब मैं आत्मा नीचे उतर रही हूं और पहुंच जाती हूँ निज वतन... सफेद प्रकाश से ढका हुआ सूक्ष्म वतन यहाँ चारों तरफ शांति ही शांति और बापदादा मेरे सामने फ़रिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाये खड़े हैं... *नन्हा फ़रिश्ता बन मैं आत्मा दौड़ कर बाबा की गोद में सिमट जाती हूँ...*

 

  *बाबा मुझे गोद में लेकर मेरे गालों को प्यार से सहलाते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे नन्हे फूल बच्चे... *संगमयुग मौजों का युग है, बाप आये हैं अपने ब्राह्मण बच्चों का कल्याण करने* इसलिए तो मुझे तुम बच्चे शिव बाबा कहते हो... *शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी,* इसलिए सदा फखुर में रहो की विश्व के रचियता बाप ने तुम बच्चों को अपनी गोद दी है... *सारी दुनिया जिस भगवान को ढूंढ रही है तुम बच्चे उस भगवान की पालना में पल रहे हो...*"

 

 _ ➳  *मैं आत्मा आत्मविभोर होकर बाबा की मधुर वाणी को सुनते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे अपना बनाया है, वाह मेरा भाग्य... *आपकी गोद मिली मानों त्रिलोकी का राज्य मिल गया हो... मेरा जीवन इतना सुंदर पहले कभी न था* आपने आकर इसे दिव्य और अलौकिक बना दिया है... *ज्ञान सागर में स्नान कर अलौकिकता और दिव्यता का प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निरंतर विश्व में प्रवाहित हो रहा है...* ज्ञान और वरदानों से श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को और निखार दिया है..."

 

  *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुस्कुरा कर मुझ आत्मा से बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... जो भी इन आँखों से दिखाई देता है वो सब खाक होना है , *इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर बस एक बाप की याद में रहो* की अब वापस घर जाना है... बाप आए हैं तुम्हें विश्व की राजाई देने... माया ने तुम्हें कंगाल बना दिया है बाप फिर से तुम्हें सतयुगी वैभव देकर मालामाल करने आये हैं... *बाप एक ही बार आते हैं, संगम पर इस कल्याणकारी युग का लाभ उठाओ और पुरुषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लो...*"

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे जादूगर बाबा... *आपकी मीठी मीठी बातों ने ऐसा जादू किया है* जो मैं आत्मा जिधर भी देखती हूं बस बाबा ही बाबा दिखाई देते हैं... *जीवन सुखों से भरपूर हो गया है...* इस ब्राह्मण जीवन को धारण कर मैं आत्मा आनंदित हो गई हूं... *जिस परमात्मा को संसार का हर प्राणी पाने के लिए दर दर भटक रहा है वो परम पिता परमात्मा मुझ आत्मा को मिला है,* ये स्मृति आते ही मुझ आत्मा की खुशी का ठिकाना नही रहता... बाबा आपने मुझे कौड़ी से हीरा बना दिया है... वाह मेरा भाग्य..."

 

  *मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बाबा मुझे समझानी देते हुए बोले:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप को बहुत तरस पड़ता है जब बच्चे माया से हार खाते हैं... *बाप की श्रीमत पर हर कार्य करो तो माया कभी हरा नही सकती...* तुम्हें एक बाप की याद में रहकर स्वमान की सीट पर सेट रहना है... *बाप परम कल्याणकारी हैं और तुम बच्चे मास्टर कल्याणकारी बन बाप के सहयोगी बनते हो...* बाप को खुशी होती है कि बच्चे बाप में सहयोगी बने हैं... बाप और बच्चे मिलकर विश्व को स्वर्ग बना रहे हैं... ये संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कमाई करने का युग है जिसकी प्रालब्ध तुम बच्चे सतयुग में भोगेंगे... संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहो और निरंतर बाप को याद करो... बाप की श्रीमत को धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करो... *ब्राह्मणों को चोटी कहा जाता है दूसरों का कल्याण करना ब्राह्मणों का परम कर्तव्य है , तुम बच्चे भी बाप समान कल्याणकारी बनों...*"

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी श्रीमत मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है, *आपकी श्रीमत मिली अहो भाग्य...* मैं आत्मा कितने जन्मों से भटक रही थी आपने मुझे अपना बनाकर मेरा जीवन पवित्रता और परमात्म प्रेम से भर दिया है... *आपको पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मैं आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मेरे जीवन को सवार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले *बाबा का दिल की गहराई से शुक्रिया कर मैं आत्मा लौट आती हूँ अपने साकारी तन में...*"

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कोई भी विघ्न में संशय ना उठाकर, ड्रामा की निहित भावी समझ फ़खुर मे रहना है*"

 

_ ➳  इस कल्याणकारी संगमयुग में कल्याणकारी भगवान की पालना में पलने वाली मैं पदमा पदम खुशनसीब आत्मा हूँ इसलिए किसी भी बात में मेरा अकल्याण कभी नही हो सकता। *ड्रामा प्लैन अनुसार मेरे जीवन में अगर कोई  विघ्न आता भी है तो वो भी मेरे लिए एक तोहफा है क्योंकि स्वयं कल्याणकारी भगवान मेरे साथ हैं। इस लिए जीवन मे आने वाले हर विघ्न, हर परिस्थिति को मुझे ड्रामा के पट्टे पर मजबूती से खड़े होकर देखना है*। किसी भी बात में संशय ना उठाकर, ड्रामा की निहित भावी समझा हमेशा इस फ़खुर मे रहना है कि इस ड्रामा में जो कुछ भी हो रहा है वो बिल्कुल एक्यूरेट है, सदैव कल्याणकारी है।

 

_ ➳  मन मे चल रहे इन श्रेष्ठ संकल्पों के साथ स्वयं में एक अद्भुत शक्ति का संचार अनुभव करते हुए अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ तीनों कालों को स्मृति में लाती हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपने सर्वश्रेष्ठ पार्ट को जैसे ही साक्षी होकर देखती हूँ जीवन बिल्कुल सहज लगने लगता है। *क्या, क्यो और कैसे के सभी सवालों से मुक्त एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में मैं सहज ही स्थित हो जाती हूँ। यह न्यारी और प्यारी स्थिति मुझे हर बोझ से मुक्त एकदम लाइट बना देती है और लाइट होकर जैसे ही मैं अपने मन बुद्धि को अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ देह का भान सेकेण्ड समाप्त हो जाता है और अपने ओरिजनल स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ*। मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से अपने आप को निहारते हुए, अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को मैं गहराई से अनुभव करने लगती हूँ।

 

_ ➳  अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करते हुए मैं इन गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में निकलता हुआ अनुभव करती हूँ। *देख रही हूँ मैं अपने आप को भृकुटि की कुटिया में विराजमान एक प्रकाशमय टिमटिमाते हुए सितारे के रूप में जिसमे से हल्का - हल्का प्रकाश निकल कर चारों और फैल रहा हैं और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के वायब्रेशन्स को चारों और फैलाकर वायुमण्डल को शक्तिशाली बना रहा है*। इंद्रधनुषी रंगों से बना शक्तियों का एक खूबसूरत आभामण्डल मेरे चारों और निर्मित होकर ऐसा लग रहा है जैसे किसी सतरँगी पारदर्शी शीशे के बॉक्स में एक हीरा चमक रहा है जिसकी चमकीली रश्मियाँ इस बॉक्स से बाहर निकल कर अपनी चमक चारों और बिखेर रही हैं।

 

_ ➳  हीरे के समान अपने इस अति सुंदर स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने प्यारे पिता की मन को सुकून देने वाली मीठी याद में खोकर उनसे मिलन मनाने के लिए उनकी निराकारी दुनिया की और चल पड़ती हूँ। *भृकुटि की कुटिया से बाहर आकर एक ऊँची उड़ान भरकर सेकेंड में मैं साकारी दुनिया को पार करके सूक्ष्म लोक में पहुँचती हूँ और अपनी लाइट की सुन्दर फ़रिश्ता ड्रेस पहनकर फरिश्तो की इस अव्यक्त दुनिया की सैर करके, अपने अव्यक्त बापदादा से मिलकर, उनके पास बैठ उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करके, उनसे लाइट माइट लेकर, अपनी फ़रिश्ता ड्रेस को उतार फिर से अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर सूक्ष्म वतन को छोड़ उससे ऊपर अपने निराकारी वतन की और चल पड़ती हूँ*। अति शीघ्र आत्माओं की निराकारी दुनिया अपने परमधाम घर मे मैं प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  मेरा यह परमधाम घर जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं, वाणी से परे अपने इस निर्वाणधाम घर मे आकर मैं गहन शांति के गहरे अनुभवों की अनुभूति में खो जाती हूँ और कुछ क्षण शांति की सुखद अनुभूति करके शांति के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँच जाती हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, उन शक्तियों की किरणों की मीठी फुहारों का आनन्द ले कर और अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उन फुहारों से धोकर अपने बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बना कर मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ। *परमात्म पालना में पलते हुए, अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को सदैव स्मृति में रख, निश्चय बुद्धि बन, जीवन मे आने वाले किसी भी विघ्न में संशय ना उठाकर, ड्रामा की निहित भावी समझ अब मैं सदा फ़खुर में रहती हूँ और हर बात में कल्याण अनुभव करते हुए सदा उमंग उत्साह में उड़ती रहती हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा भरपूरता की अनुभूति द्वारा टेढ़े रास्ते को सीधा बनाने वाली शक्त्ति अवतार    आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहाब को धारण करने वाला रूहानी गुलाब हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  डबल विदेशी या भारत वाले अगर परसेन्टेज के बिना फुल पास हो गये तो ब्रह्मा बाबा पता है क्या करेगा? (शाबास देंगे) बस, सिर्फ शाबास दे देगा! और क्या करेगा? *रोज आपको अमृतवेले अपनी बाहों में समा लेगा।आपको महसूसता होगी कि ब्रह्मा बाबा की बाहों मेंअतीन्द्रिय सुख में झूल रहे हैं। बड़ी-बड़ी भाकी मिलेगी। ब्रह्मा बाबा का बच्चों के साथ बहुत प्यार है ना तो अमृतवेले भाकी मिलेगी* और सारा दिन क्या मिलेगाजैसे चित्रों में दिखाते हैं नाकि जब तूफान आयापानी बढ़ गया तो सांप छत्रछाया बन गया। उन्हों ने तो श्रीकष्ण के लिए स्थूल बात दिखा दी है लेकिन वास्तव में ये है रुहानी बात।

 

 _ ➳  *तो जो फरिश्ता बनेगा उसके सामने अगर कोई भी परिस्थिति आई या कोई भी विघ्न आया तो बाप स्वयं आपकी छत्रछाया बन जायेंगे।* करके देखो। क्योंकि ऐसे ही बापदादा नहीं कहते हैं। पार्टीशन के समय बाबा की छत्रछाया *आप लोगों ने १४ वर्ष में योग तपस्या की तो विघ्न कितने आये लेकिन आपको कुछ हुआ? तो बापदादा छत्रछाया बना*    नाकितनी बड़ी-बड़ी बातें हुई। सारी दुनियामुखीनेतायेंगुरु लोग सब एन्टी हो गयेएक ब्रह्माकुमारियाँ अटल रही, प्रैक्टिकल में बेगरी लाइफ भी देखीतपस्या के समय भिन्न-भिन्न विघ्न भी देखे। बन्दूक भी आई तो तलवारें भी आईसब आया लेकिन छत्रछाया रही ना। कोई नुकसान हुआ?

 

 _ ➳  जब पाकिस्तान हुआ तो लोग हंगामें में डरकर सब छोड़कर भाग गये। और आपका टेनिस कोर्ट सामान से भर गया। क्योंकि जो अच्छी चीज लगती थीवो छोड़ें कैसेउससे प्यार होता है नातो जो सिन्धी लोग उस समय एन्टी थे वो गाली भी देते थे और सामान भी दिया। जो बढ़िया- बढ़िया चीजें थी वो हाथ जोड़कर देकर गये कि आप ही यूज करो। तो दुनिया वालों के लिए हंगामा था और ब्रह्माकुमारियों के लिए पांच रूपये में सब्जियों की सारी बैलगाड़ी थी। पांच रुपये में सब्जियाँ। आप कितने मजे से सब्जियाँ खाते थे। तो दुनिया वाले डरते थे और आप लोग नाचते थे। *तो प्रैक्टिकल में देखा कि ब्रह्मा बापदादा - दोनों ही छत्रछाया बन कितना सेफ्टी से स्थापना का कार्य किया।*   

 

✺   *ड्रिल :-  "फरिश्ता बन बाबा की छत्रछाया का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  अमृतवेला की महान वेला में, मैं महान आत्मा भृकुटी सिहांसन पर जगमगा रही हूँ... *मैं आत्मा साकार देह में होते भी अपने निराकारी स्वरूप का सहज और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* अपने इस निराकारी स्वरूप की और गहराई में मैं आत्मा जाती हूँ... कितना सुंदर और न्यारा मुझ आत्मा का ये स्वरूप है... कितना भव्य और तेजोमय यह स्वरूप है... मैं निराकारी आत्मा इन आँखों द्वारा सामने दीवार पर लगे बाबा के चित्र को देख रही हूँ... जिसमें मीठू बाबा अपने फरिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाएं खड़े हैं... धीरे-धीरे उस चित्र से *सफेद रंग की लाइट मुझ आत्मा की तरफ आती हुई प्रतीत हो रही है...* ये सफेद लाइट मुझ आत्मा पर पड़ रही है... ऐसा लग रहा है जैसे सफेद रंग की अलौकिक लाइट की वर्षा मेरे ऊपर हो रही है... और जैसे-जैसे मुझ आत्मा पर ये सफेद लाइट पड़ रही है *मैं आत्मा लाइट और माइट से भरपूर होती जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  देखते ही देखते *मुझ आत्मा से लाइट पूरे कमरे में फैल गई हैं... ऐसा लग रहा है जैसे मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में हूँ...* तभी फरिश्तों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटी में विराजमान शिव बाबा चित्र से बाहर निकलते प्रतीत होते हैं... *बाबा का ये रूप बड़ा ही मनमोहक और अलौकिक है...* बाबा का ऐसा बेहद चमकीला स्वरूप देखकर मैं आत्मा खुशी से भर गई हूँ... *अतीन्द्रिय  सुख के झूले में झूल रही हूँ...* और बस एकटक बाबा को देखे जा रही हूँ... तभी मुझ आत्मा के कान में मधुर शब्द गुजते है... मीठे बच्चे, मेरे लाडले बच्चे... देखो तो लाडले बच्चे बाबा आपके लिए कुछ लाया है...  ये मीठे मिश्री की तरह शब्द बाबा के मुख से सुन मैं आत्मा उठ कर जल्दी से जाकर अपने बाबा से लिपट जाती हूँ...

 

 _ ➳  *बाबा मुझ आत्मा के सिर पर हाथ रखते हैं और मुझे दृष्टि देते हुए कह रहे हैं, फरिश्ता स्वरूप भव बच्चे !* बस बाबा के इतना कहते ही धीरे-धीरे मुझ आत्मा का हड्डी-मांस खून से बनी देह परिवर्तन होकर लाइट की होती जा रही है... अनुभव कर रही हूँ, मैं आत्मा... बाबा के हाथ से निकल रही बेहद शक्तिशाली किरणें सिर से होते हुए पूरे शरीर में फैल रही है और *साकारी देह परिवर्तन होकर लाइट की हो गई है...* मैं आत्मा देह भान से न्यारा अनुभव कर रही हूँ... बन्धनमुक्त और बेहद हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब *मैं आत्मा बाप समान फरिश्ता बन गई हूँ...* मैं फरिश्ता बाबा से कहता हूँ बाबा ये गिफ्ट तो बहुत ही ज्यादा प्यारी हैं... और बाबा मुझ नन्हे फरिश्ते को अपनी गोद में उठा लेते हैं... और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं... मेरे लाडले बच्चे अब सारा दिन आप इस बाबा की दी हुई गिफ्ट को अपने पास रखना... तो सारा दिन बाबा की छत्रछाया आप हर पल अनुभव करते रहोगे... हर पल आपको बाबा का साथ अनुभव होगा... मैं फरिश्ता बाबा की तरफ देखते हुए कहता हूँ... हाँ हाँ मेरे मीठे-मीठे बाबा सारा दिन आपकी इस दी हुई गिफ्ट को साथ रखुंगा...

 

 _ ➳  और मुस्कुराते हुए बाबा मेरे सिर हाथ फेरते हुए कहते हैं... शाबास *मीठे बच्चे विजयी भव...* इस प्रकार मैं फरिश्ता अपनी दिनचर्या की शुरुआत करता हूँ... और कर्मक्षेत्र में निकलता हूँ... मैं फरिश्ता देख रहा हूँ... कई प्रकार की लहरों रूपी परिस्थितियाँ, पहाड़ रुपी विघ्न सामने आ रहे हैं... लेकिन *बाबा की छत्रछाया से हर परिस्थिति को, विघ्न को मैं फरिश्ता सहज ही खेल की तरह पार कर रहा हूँ...* जैसे कोई भी मुसीबत आने पर माँ अपने बच्चे की ढाल बनकर खड़ी हो जाती है अपने बच्चे की छत्रछाया बन जाती हैं... और बच्चे को सेफ रखती है ठीक उसी प्रकार मेरे बाबा भी हर पल मुझ नन्हे  फरिश्ते की छत्रछाया बनकर मुझे हर विघ्न परिस्थिति में सेफ रह सहज आगे बढा रहे हैं... मैं फरिश्ता हर पल योगयुक्त और बन्धनमुक्त अवस्था का अनुभव कर रहा हूँ... हर पल बाबा के साथ होने का स्पष्ट और सुखद अनुभव कर खुशी में गाते हँसते हुए आगे बढ रहा हूँ... *धूप में कभी छांव बनकर, लहरों में कभी नांव बनकर, जब लड़खड़ाएँ कदम, थामा है हाथ मेरे बाबा है साथ मेरे बाबा है साथ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━