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 30 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी भी बात में मुरझाये तो नहीं ?*

 

➢➢ *बाप की याद से सब कलह कलेश मिटाए ?*

 

➢➢ *अपनी चलन और चेहरे द्वारा सेवा की ?*

 

➢➢ *अंगद समान अचल अडोल, एकरस रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *समय प्रमाण अब चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का कार्य करना है।* अब इसी सेवा की आवश्यकता है क्योंकि समय बहुत नाजुक आना है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प पहले वाली बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हूँ"*

 

✧  बाप में निश्चय है कि वही कल्प पहले वाला बाप फिर से आकर मिला है। ऐसे ही अपने में भी इतना निश्चय है कि हम भी वही कल्प पहले वाले बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्माएं हैं? या बाप में निश्चय ज्यादा है, अपने में कम है? अच्छा, ड्रामा में जो भी होता है उसमें भी पक्का निश्चय है? *जो ड्रामा में होता है वह कल्याणकारी युग के कारण सब कल्याणकारी है। या कुछ अकल्याण भी हो जाता है? कोई मरता है तो उसमें कल्याण है? वो मर रहा है और आप कल्याण कहेंगे, कल्याण है? बिजनेस में नुकसान हो गया-यह कल्याण हुआ? तो नुकसान भी कल्याणकारी है!*

 

  ज्ञान के पहले जो बातें कभी आपके पास नहीं आई, ज्ञान के बाद आई-तो उसमें कल्याण है? माया नीचे-ऊपर कर रही है, कल्याण है? इसमें क्या कल्याण है? माया आपको अनुभवी बनाती है। *अच्छा, तो ड्रामा में भी इतना ही अटल निश्चय हो। चाहे देखने में अच्छी बात न भी हो लेकिन उसमें भी गुप्त अच्छाई क्या भरी हुई है, वो परखना चाहिए।* जैसे कई चीजें होती हैं, उनका बाहर से कवर (ढक्कन) अच्छा नहीं होता है लेकिन अन्दर बहुत अच्छी चीज होती है। बाहर से देखेंगे तो लगेगा-पता नहीं क्या है? लेकिन पहचान कर उसे खोलकर अन्दर देखेंगे तो बढ़िया चीज निकल आयेगी।

 

  *तो ड्रामा की हर बात को परखने की बुद्धि चाहिए। निश्चय की पहचान ऐसे समय पर आती है। परिस्थिति सामने आवे और परिस्थिति के समय निश्चय की स्थिति, तब कहेंगे निश्चय बुद्धि विजयी। तो तीनों में पक्का निश्चय चाहिए-बाप में, अपने आप में और ड्रामा में।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आज बापदादा सर्व स्नेही बच्चों का खेल देख रहे थे।* क्या खेल होगा? खेल देखना तो आपको भी अच्छा लगता है। क्या देखा? अमृतवेले का समय था।

 

✧  *हरेक आत्मा, जो पक्षी समान उडने वाली है अथवा रॉकेट की गति से भी तेज उडने वाली है, आवाज की गति से भी तेज जाने वाली है,* सब अपने-अपने साकार स्थानों पर, जैसे प्लेन एरोड्रोम पर आ जाता है वैसे सब अपने रूहानी एरोड्रोम पर पहुँच गये।

 

✧  लक्ष्य और डायरेक्शन सबका एक ही था। *लक्ष्य था उडकर बाप समान बनने का और डायरेक्शन था एक सेकण्ड में उडने का।* क्या हुआ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने का साधन क्या है? अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना है। यही साधन है।* इसका बार-बार अटेन्शन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है ना। *अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार यही अटेन्शन रहेगा। तो यह साधना अर्थात बार-बार अटेन्शन की तपस्या चाहिए। चेक करो कि मैं अव्यक्त फ़रिश्ता हूँ? अगर स्वयं नहीं होंगे तो दूसरों को कैसे बना सकेंगे?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- दिल से बाबा बाबा कहते अपार खुशी में रहना"*

 

 _ ➳  *संगमयुग की सुहानी घड़ी में... व्यक्त से परे... अव्यक्त इशारों* को मैं आत्मा अपने मे धारण कर तीव्र पुरुषार्थ की ऊँची उड़ान भर... बिंदु रूप में परिवर्तन होकर पहुँच जाती हूँ... *परमधाम... वो धाम जो मेरा है... वो धाम जो मेरा घर है...* वो धाम जो मेरे बाबा का है... मुझ आत्मा का घर जहाँ में रहती हूँ... *मेरे प्यारे बाबा के साथ... परमधाम की सुनहरी किरणों में मुझे सिर्फ मेरे बाबा दिखाई दे रहे है...* मैं आत्मा... शांति के सागर में तैरती अपनी नैया को पार होता देख रही हूँ... *मैं और मेरा बाबा... और कोई संकल्प नही... कोई एहसास नहीं...*

 

  *पवित्र प्यार के एहसास से भरपूर मुझ आत्मा को देख प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *मुद्दत से प्रतीक्षा कर रहा हूँ तुम्हारी... अब आ ही गई...* क्या मुझे भूली तो नहीं... अपने बाबा को प्यार से याद तो करती हो न... *बापदादा की छत्रछाया में सदा रहने वाली... मेरी गुल गुल बच्ची... आओ मैं तुम्हे आप समान बना दूँ...* प्यार से झोली भर दूँ... तुम्हारी नजर तो उतार लूँ... और बाबा से आती हुई रंगबिरंगी किरणों को मुझ में समाता हुआ देख रही हूँ... *अपने ज्योति को उसकी ज्योति को मिलता देख रही हूँ..."*

 

_ ➳  *प्यार भरे किरणों से भरपूर होकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे बाबा... तुम्हें तो मैं जन्मों से ढूंढ रही हूँ... कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा... *अब मिले हों... जी भर के देख लूँ... महसूस कर लूं... मेरे बाबा... तेरे ही प्यार में खोई हूँ... तेरे ही प्यार में डूबी हुई हूँ...* "बाबा बाबा" कहती झूमती नाचती रहती हूँ... खुशी के नगाड़े बजाती रहती हूँ... बाबा बाबा कहती सब को खुशियों के झूलो में झुलाती हूँ और खुद भी झूलती रहती हूँ..."

 

  *प्यार के फूलों से मेरे बगीचे को संवारते हुए मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *प्यार से प्यार को निभाने वाली... पवित्र सुखों की उत्तराधिकारी हो...* स्वयं को और औरो को भी सुगन्धित फूलों से भरपूर करने वाली मास्टर बागवान हो...  *"मेरा बाबा"  शब्द के जादुई तरंगों से सबको प्यार में तरबतर करने वाली... मेरी प्यारी फूल बच्ची हो... मेरी प्रत्यक्षता करवाने वाली... संगमरमर की मूर्त हो..."*

 

_ ➳  *बाबा के वचनों से मंत्रमुग्ध मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे बाबा... आपने मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाया है...  स्वर्ग के सुखों की भागीदार बनाया है... *प्यार से इस मुरझे हुए पौधे को खुशबूदार... महकदार पौधा बना दिया है...* मैं साधारण आत्मा दिव्य आत्मा बन गई हूँ... *सब कुछ पाया... जग जीता... जो तुम्हे पाया..."*

 

  *अपने नयनो पर बिठाकर मुझ आत्मा को संवारते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मुझ रूह की ताशिर हो तुम... मुझ में तुम और तुझ में मैं नजर आये वो पवित्र दृष्टि हो तुम...* अपने चेहरे और चलन से मुझ को प्रत्यक्ष करने वाली... दीपशिखा हो तुम... *खुशबूदार सुगंधित पुष्पों से भरा बगीचा हो तुम..."*

 

_ ➳  *बाबा के प्यार की तरंगों में समाती मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे बाबा... *मेरे प्राण प्यारे बाबा... कोटि बार धन्यवाद... पलकों पे बिठाने वाले...* मेरे प्यारे बाबा.... तुझे पाने की खुशी में... रोम रोम पुलकित हो उठा है... *इस संगमयुग में मैं ब्राह्मण आत्मा... नखशिख ... सुखों के झूलो में झूलती जा रही हूँ और औरो को भी झुलाती जा रही हूँ....* शुक्रिया मेरे मीठे बाबा... *शुक्रिया जो प्यार से नवाजा...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी बात में मुरझाना नही है, बाप की याद से सब कलह क्लेश मिटा देने हैं*

 

_ ➳  एकांत में बैठ अपनी दैनिक गतिविधियो के बारे में विचार करते हुए मैं महसूस करती हूँ कि जब तक जीवन मे अपने प्यारे पिता के साथ का अनुभव नही किया था तब तक जीवन कितना नीरस था! *रोज़ की दिनचर्या में होने वाली छोटी - छोटी बाते भी जीवन की सारी खुशियाँ छीन लेती थी! किन्तु जब से बाबा ने आकर मुझे अपना बनाया है तब से जीवन जैसे खुशियों से भर गया है*। हर गम हर कर बाबा ने तो मुझे बेगमपुर का बादशाह बना दिया है। मेरे जीवन को कितना निश्चिंत बना दिया है मेरे दिलाराम बाबा ने। *मन ही मन अपने प्यारे पिता के अनगिनत उपकारों को याद करते - करते, अपने भाग्य के गीत गुनगुनाते हुए मैं खो जाती हूँ अपने दिलाराम बाबा की दिल को आराम देने वाली मीठी यादों में*।

 

_ ➳  अपने मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे ही बैठती हूँ मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई डोर मुझे अपनी ओर खींच रही है। *एक ऐसी कशिश मुझ आत्मा को हो रही है जो देह के भान से धीरे - धीरे मुझे मुक्त करती जा रही है। हर वस्तु, हर वैभव, हर सम्बन्ध के आकर्षण से मैं जैसे परे होती जा रही हूँ। साक्षी भाव से इन सब चीजों को मैं ऐसे देख रही हूँ जैसे इनसे मेरा कोई लगाव या झुकाव कभी था ही नही*। ऐसे प्यारी निर्लिप्त अवस्था का मैं अनुभव करके मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ और आनन्द की उस चरम अवस्था का, उस अतीन्द्रिय सुख का जिसके बारे में गायन है कि देवता भी उस सुख के लिए तरसते हैं, उस आनन्दमयी अवस्था का अनुभव करने के लिए अपने दिलाराम बाबा के पास ले जाने वाली मन बुद्धि की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर अब मैं जा रही हूँ।

 

_ ➳  एक ऐसी आंतरिक यात्रा जिसका अनुभव बहुत ही निराला है बहुत ही सुखदाई है, उसकी अनुभूति करने के लिए मैं आत्मा अब देह का आधार छोड़, भृकुटि के अकालतख्त से उतर कर देह से बाहर आ जाती हूँ। *देह से बाहर आकर अपनी ही देह को देखने का मैं एक अनोखा अनुभव कर रही हूँ। देह और देही दोनों को मैं अलग - अलग देख रही हूँ। देह से डिटैच मेरा यह अनोखा स्वरूप मुझे बहुत ही प्यारा लग रहा है*। इस डिटैच अवस्था मे अपने अंदर समाये एक - एक गुण, एक - एक शक्ति का अनुभव करके मुझे जैसे अथाह तृप्ति मिल रही है। *मेरे मस्तक से मेरे गुणों और शक्तियों की किरणों के वायब्रेशन्स निकल कर जैसे - जैसे मेरे चारों और फैल रहें हैं वैसे - वैसे एक सुंदर आभामण्डल मेरे चारों और निर्मित होता जा रहा है*।

 

_ ➳  इस दिव्य आभामण्डल के साथ मैं आत्मा अब ऊपर की और उड़ान भरकर आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर मे प्रवेश कर रही हूँ। मणियो की जगमगाती हुई एक सुंदर दुनिया जहाँ चारो और चमकते हुए चैतन्य सितारे अपना प्रकाश चारों और फैला रहें हैं। *एक दिव्य आभा से चमक रहे इन चैतन्य सितारों के बीच में एक बहुत ही सुन्दर चमकता हुआ तेजोमय ज्योतिपुंज मैं देख रही हूँ*। ये मेरे प्यारे बाबा हैं जिनकी अनन्त शक्तियों का प्रकाश पूरे परमधाम घर मे फैला हुआ है और इस प्रकाश में विधमान उनके सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन्स भी इस पूरे परमधाम घर में चारों और फैले हुए है जो मुझे सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की गहन अनुभूति करवा रहें हैं।

 

_ ➳  अपने अंदर समाये प्रेम, सुख, शांति, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों को मैं अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता के सम्पर्क में आकर कई गुणा बढ़ता हुआ महसूस कर रही हूँ। मेरे अंदर समाई आठों शक्तियाँ भी जैसे पूरी तरह जागृत हो गई हैं। *सर्वगुणों, सर्वशक्तियों का सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं नीचे आ जाती हूँ और साकार सृष्टि में आकर अपने साकार तन में प्रवेश कर, फिर से वापिस भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। आत्मिक स्मृति में रहकर अपने दिलाराम बाबा की याद से, अपने गुणों और शक्तियों को सदा इमर्ज रख कर अब मैं उचित समय पर उचित शक्ति के प्रयोग से हर परिस्थिति को सहज ही पार करती जा रही हूँ। *बाबा की याद हर कलह क्लेश को मिटाकर मुझे हर परिस्थिति में खुशहाल रखती है इसलिए अब किसी भी बात में मैं मुरझाती नही बल्कि अचल, अडोल बन एकरस स्थिति के आसन पर सदा विराजमान रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी चलन और चेहरे द्वारा सेवा करने वाली निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अंगद समान सदा अचल अडोल एकरस रहकर, माया दुश्मन को हरा देने वाली मायाजीत आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  यह सर्व प्राप्ति भी महादानी बन औरों को दान करने के बजाए स्वयं स्वीकार कर लेते हैं। तो मैं और मेरा' शुद्ध भाव की सोने की जंजीर बन जाती है। भाव और शब्द बहुत शुद्ध होते हैं कि हम अपने प्रति नहीं कहते, सेवा के प्रति कहते हैं। *मैं अपने को नहीं कहती कि मैं योग्य टीचर हूँ लेकिन लोग मेरी मांगनी करते हैं। जिज्ञासु कहते हैं कि आप ही सेवा करो। मैं तो न्यारी हूँ लेकिन दूसरे मुझे प्यारा बनाते हैं। इसको क्या कहा जायेगा? बाप को देखा वा आपको देखा? आपका ज्ञान अच्छा लगता है, आपके सेवा का तरीका अच्छा लगता है, तो बाप कहाँ गया? बाप को परमधाम निवासी बना दिया! इस भाग्य का भी त्याग।* जो आप दिखाई न दें, बाप ही दिखाई दे। महान आत्मा प्रेमी नहीं बनाओ परमात्म प्रेमी बनाओ'। इसको कहा जाता है और प्रवृत्ति पार कर इस लास्ट प्रवृत्ति में सर्वांश त्यागी नहीं बनते। यह शुद्ध प्रवृत्ति का अंश रह गया। तो महात्यागी तो बने लेकिन सर्वस्व त्यागी नहीं बने। तो सुना दूसरे नम्बर का महात्यागी।

 

 ✺   *"ड्रिल :-  आत्माओं को "महान आत्मा प्रेमी" बनाने की बजाये "परमात्मा प्रेमी" बनाना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा एक ऐसे स्थान पर हूं जहां चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं और मैं फूलों के बीच भागती जा रही हूँ... और फूलों की खुशबू को अपने अन्तर्मन तक महसूस कर रही हूं... *जैसे-जैसे उन फूलों की खुशबू को मैं अपने अंदर फील करती हूं... वैसे-वैसे मेरा मन भी फूलों की तरह खिल रहा है और मैं देखती हूं कि मैं अपने आप को बहुत ही तेज खुशबूदार फूल अनुभव करती हूं... और मैं अपने इस अनुभव को सबसे श्रेष्ठ अनुभव समझने लगती हूं...* बाकी सभी फूल मुझे अपने से कम खुशबू वाले प्रतीत होते हैं मुझे लगता है की मैं खुशबू से भरी हुई हूँ और बाकी सभी फूलों की रंगत मुझसे कम है...

 

 _ ➳  तभी मैं खुशबू बनकर ऊपर उठने लगती हूं और पहुंच जाती हूं सूक्ष्म वतन जहां फरिश्ते ही फरिश्ते बैठे हुए हैं... वैसे ही मैं खुशबू से एक फरिश्ते का स्वरुप ले लेती हूं और अपनी चमक दूर-दूर तक अनुभव करती हूँ... तभी मैं देखती हूं कि वहां पर मेरे मीठे बाबा ने दरबार लगाया हुआ है और हमें समझा रहे हैं... बाबा ने सभी फरिश्तों को बताया कि आप सब योग्य टीचर हो आपको मुख्य भूमिका अदा करनी है... *जब कभी भी आप टीचर बनकर शिक्षा दे रहे होते हैं... उस समय आपको सभी कहते हैं कि आप बहुत अच्छा समझाते हो तो आप बहुत प्रसन्न होते हो...*

 

 _ ➳  और *जब आप प्रसन्न होते हो तो उस समय आपको यह आभास नहीं होता कि आपने यह भाव अपने अंदर कुछ इस तरह संभाल लिया है कि आप में देहभान आने लगता है... जब सिर्फ आपका ही वर्णन होता है और कहा जाता है कि आपकी यह सेवा हमें बहुत प्रभावित करती है... अगर आप हमें यह सेवा नहीं देंगे तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे... उस समय आप यह अनुभव करते हो जी हां यह सेवा मैं बहुत अच्छी कर रही हूं... उस समय बाप कहीं भी आपके दिमाग में नहीं होते हैं... सिर्फ आपको अपनी सेवा की महानता के बारे में ही अनुभव होता है...* उस समय वह सभी आत्माएं सिर्फ आप की महानता के प्रेमी बन जाते हैं... तभी एक फरिश्ता उठ कर अपने पंख फैलाकर उड़ता हुआ बाबा को कहता है मेरे मीठे, बाबा मैं ऐसी सेवा नहीं करूंगा, जिससे वह मेरी महानता के प्रेमी बने...

 

 _ ➳  और बाबा को यह शब्द कहकर वह फरिश्ता बाबा के सामने बैठ जाता है... और बाबा उस पर अपना हाथ रखकर उसे  वरदान देते हैं, सफलता मूरत भव... *मैं  बाबा से कहती हूं, बाबा मैं हमेशा आपकी कही हुई बातों को स्मृति में रखूंगी और सभी आत्माओं को परमात्मा प्रेमी बनाऊंगी...* मैं अचानक अपने इस फरिश्ते स्वरूप से खुशबू फैलाते हुए नीचे आ जाती हूं... जहां चारों तरफ फूलों की खुशबू बिखर रही है... और  फूलों से यह वातावरण बहुत सुंदर लग रहा है और इस खुशबूदार वातावरण से अब मैं वापस अपने कर्म स्थल पर आ जाती हूं और अपनी सेवा प्रारंभ करती हूं... 

 

 _ ➳  मैं जैसे ही अपनी सेवा आरंभ करती हूं... तो मेरे सामने अनेक आत्माएं बैठी हुई रहती हैं और मैं उनको बाबा की मुरली सुनाने लगती हूँ... उस दौरान सभी बहने मुझे कहती हैं... बहन आप बहुत अच्छी मुरली सुनाते हो... मैं उनसे कहती हूं उसी समय मैं बाबा का धन्यवाद करती हूं और मै बहनों को यह समझाती हूँ कि यह मुरली सिर्फ और सिर्फ परमात्मा द्वारा दिया हुआ हम सभी के लिए श्रीमत रूपी वरदान है... यह सुनकर सभी बहने बाबा का धन्यवाद करती है और सभी इसी भाव से ज्ञान सुनते हैं कि यह ज्ञान हमें परमात्मा सुना रहे हैं... *जो आत्माएं पहले मेरी महानता का गुणगान करती थी वह सभी आत्माएं अब परमात्मा प्रेमी बन गए हैं... सभी आत्माएं परमात्मा की श्रीमत पर चल रही है और मैं भी अपनी महानता को त्याग परमात्मा प्रेमी स्थिति का आनंद ले रही हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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