━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 07 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं को इस शरीर में भ्रकुटी के मध्य चमकती हुई मणि समझने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शांति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा स्व उत्साह में रहे और सर्व को उत्साह दिलाया ?*
➢➢ *ड्रामा के राज़ को समझ नथिंग न्यू का पाठ पक्का किया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *'मेरा तो एक बाबा', और मेरा सब-कुछ इस 'एक मेरे' में समा जाए। तो एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी।* जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा मन एकाग्र हो जाए *इसको कहा जाता हैं मन वश में हैं। इस एकाग्रता की शक्ति से स्वत: ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ"*
〰✧ सदा अपने को राजा समझते हो? *सेल्फ पर राज्य है अर्थात् स्वराज्य अधिकारी हो। और दूसरे कौनसे राजा हो? बेफिक्र बादशाह। बेफिक्र बादशाह इस समय बनते हो। क्योंकि सतयुग में फिक्र वा बेफिक्र का ज्ञान ही नहीं है।* कल क्या थे और आज क्या बने हो! बेफिक्र बादशाह बन गये ना! बेफिक्र बनने से भण्डारे भरपूर हो गये हैं।
〰✧ ब्राह्मण जीवन अर्थात् बेफिक्र बादशाह। स्वराज्य मिला-सब-कुछ मिला। स्वराज्य मिला है? कभी कोई कर्मेन्द्रियां तो धोखा नहीं देती? *कभी-कभी थोड़ा खेल करती हैं तो कन्ट्रोलिंग पावर या रूलिंग पावर कम है। तो सदैव चलते-फिरते यह स्मृति सदा रहे कि-मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ। बाप आया ही है आप सबके फिक्र लेने के लिए। तो फिक्र दे दिया ना।* थोड़ा छिपाके तो नहीं रखा है?
〰✧ *पॉकेट चेक करके देखो। बुद्धि रूपी, मन रूपी पॉकेट दोनों ही देखो। जब हैं ही बाप के बच्चे, तो बच्चे बेफिक्र होते हैं। क्योंकि बाप दाता है, तो दाता के बच्चों को क्या फिक्र है!*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही - सार रूप में स्थित हो सदा सुख-शान्ति के, खुशी के, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूलना।* सर्व प्राप्तियों के सम्पन स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहो। सदा चेहरे पर प्राप्ति ही प्राप्ति है - उस सम्पन स्थिति की झलक और फलक दिखाई दे। जब सिर्फ स्थूल धन से सम्पन विनाशी राजाई प्राप्त करने वाले राजाओं के चेहरे पर भी द्वापर के आदि में वह चमक थी। *यहाँ तो अविनाशी प्राप्ति है तो कितनी रूहानी झलक और फलक चेहरे से दिखाई देगी!*
〰✧ ऐसे अनुभव करते हो? वा सिर्फ अनुभव सुन करके खुश होते हो! पाण्डव सेना विशेष है ना! पाण्डव सेना को देख हर्षित जरूर होते हैं। लेकिन *पाण्डवों की विशेषता है उन्हें सदा बहादुर दिखाते हैं, कमजोर नहीं।* अपने यादगार चित्र देखे हैं ना। चित्रों में भी महावीर दिखाते हैं ना। तो बापदादा भी सभी पाण्डवों को विशेष रूप से, सदा विजयी, सदा बाप के साथी अर्थात पाण्डवपति के साथी, बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में सदा रहें, यही विशेष स्मृति का वरदान दे रहे हैं।
〰✧ *भले नये भी आये हो लेकिन हो तो कल्प पहले के अधिकारी आत्मायें।* इसलिए सदा अपने सम्पूर्ण अधिकार को पाना ही है - इस नशे और निश्चय में सदा रहना। समझा। अच्छा। सदा सेकण्ड में बुद्धि को एकाग्र कर, सर्व प्राप्तियों को अनुभव कर, सदा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण प्रयोग में लाते, सदा एक बाप में सारा संसार अनुभव करने वाले, ऐसे सम्पन और समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *'सम्पूर्ण अर्थात् समाधान स्वरूप'। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, समस्या ले जाने वाला भी समस्या भूल जाता था।* क्या लेकर आया और क्या ले करके गया। यह अनुभव किया ना। *समस्या की बातें बोलने की हिम्मत नहीं रही। क्यों कि सम्पूर्ण स्थिति के आगे बचपन का खेल अनुभव करते थे। इसलिए समाप्त हो जाती थी। इसको कहते हैं - 'समाधान स्वरूप'।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने स्वधर्म में टिकना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के कमरे में एकाग्रचित्त होकर बैठ जाती हूँ... अपने शरीर के सभी आरगन्स से धीरे-धीरे डिटैच होती जाती हूँ... और अपने मस्तक सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ... मैं आत्मा मस्तक के बीचों-बीच मणि समान चमक रही हूँ...* भृकुटी के बीच चमकती हुई मैं आत्मा मणि भृकुटी के द्वार से बाहर निकल जाती हूँ और उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ शांति के सागर के पास शांतिधाम... निराकार बाबा से आती हुई शांति की किरणों को अपने में समेटती हुई नीचे आ जाती हूँ सूक्ष्म वतन में...
❉ *स्वधर्म और स्वदेश का ज्ञान देकर सत्यता के प्रकाश से मुझ आत्मा को प्रकाशित करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *सत्य पिता ने आकर सत्य स्वरूप का अहसास कराया है... इस सत्य के नशे में आओ... अपने स्वधर्म में स्थित हो प्यार से दूसरी आत्मा को सम्मान दो...* ओम शांति कह आत्मा का अभिवादन करना ही सच्चा सम्मान देना है...”
➳ _ ➳ *इस शरीर को भूलकर अपने सुन्दर मणि रूप को देखते हुए उसकी चमक में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आत्मिक स्मृतियों से भर गई हूँ... अपने खूबसूरत स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... इसी स्वधर्म के नशे में गहरे उतर रही हूँ...* और सबको आत्मिक भाव से रिगार्ड दे रही हूँ...”
❉ *मुझ आत्मा पर सुख-शांति की वर्षा करते हुए सुख शान्ति के सागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... *आत्मा के सच्चे नशे से भर जाओ... इन्ही यादो में डूब कर दूसरों को भी इसी आत्मिकता का नशा चढ़ाओ...* ओम शांति के सच्चे भाव में डूब जाओ... इन्ही यादो में भरो और औरो को भी भर आओ...”
➳ _ ➳ *सत्यता के सुन्दर नजारों में डूबकर अपने श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य के नशे में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ओमशन्ति के स्वरूप में समा रही हूँ... इन सुंदर अहसासो में भीग रही हूँ... आत्मा देख आत्मा से बात कर रही हूँ...* सबको सच्चा रिगार्ड देकर ईश्वरीय नजरो में सज रही हूँ...”
❉ *मेरे निज स्वरुप के दर्शन कराकर मेरे मन मंदिर में शांति की बरसात करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे बच्चे... *सारा मदार स्मृतियों पर टिका है... स्वयं को आत्मा निश्चित कर इस भाव से स्वयं को भर लो...* और ओम शांति के भाव में डूबकर अन्य आत्माओ का भी सम्मान करो... यही दिली रिगार्ड है... जो एक दूसरे को देना है...”
➳ _ ➳ *अपने स्वधर्म में टिककर सत्यता के बादलों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबको सच्चा रिगार्ड दे रही हूँ... *सदा अपने स्वधर्म में स्थित होकर मुस्करा रही हूँ... सच्चा सम्मान दे रही हूँ और पा भी रही हूँ.... यह स्वरूप बहुत ही लुभावना मीठा और प्यारा है...”*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव करना है*
➳ _ ➳ मैं शान्त स्वरूप आत्मा, शांतिधाम की रहने वाली, शांति के सागर शिव पिता की सन्तान हूँ यह स्मृति मुझे सेकण्ड में अपने शान्त स्वधर्म में स्थित कर देती हैं और अपने इस शान्त स्वधर्म में स्थित होते ही शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे मस्तक से निकल कर तेजी से चारों और फैलने लगते हैं। *मैं अनुभव कर रही हूँ कि मेरे आस - पास का वायुमण्डल शांति के वायब्रेशन्स के प्रभाव से पूरी तरह शांत और निस्तब्ध होने लगा है और मेरे चारों तरफ एक "विशाल शांति कुंड" बनता जा रहा है जिसकी ज्वाला शांति की शक्तिशाली किरणों के रूप में चारों और फैल कर अब दूर - दूर तक जा रही है और सारे वातावरण को भी शांत बनाती जा रही है*। साइलेन्स का बल मेरे अंदर भरता जा रहा है।
➳ _ ➳ साइलेन्स की यह शक्ति धीरे - धीरे मेरे अंदर जमा होकर मुझे शांति की ऐसी गहरी गुफा में ले कर जा रही है जहाँ कोई आवाज नही, कोई हलचल नही, केवल एक गहन चुप्पी है। बाहर की दुनिया में हो रहे शोर का भी अब मेरे ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ रहा। *शांति की गुफा में बैठ गहन शांति का अनुभव मुझे बहुत सुकून दे रहा है। इस सुकून का सुखद आनन्द लेते - लेते मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि जिस शांति के हार की तलाश में मैं भटक रही थी वो शांति का हार तो मेरे गले मे ही पड़ा था जिसे आज अपने स्वधर्म में स्थित होकर कितनी सहजता से मैने प्राप्त कर लिया*!
➳ _ ➳ शान्ति के इस हार को अब मैं कभी गुम नही होने दूँगी। इसे अपने गले मे हमेशा पहने रखने के लिए अब मैं सदैव अपने स्वधर्म और स्वदेश की स्मृति में रहूँगी। *इसी संकल्प के साथ, अपने स्वधर्म में स्थित होकर मैं आत्मा अब इस पराई देह और देह की पराई दुनिया से किनारा करके अपने स्वदेश जाने के लिए तैयार होती हूँ*। अपने उस देश, उस शान्तिधाम घर को स्मृति में लाते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे शान्तिधाम में रहने वाले शांति के सागर मेरे शिव पिता भी मुझ से मिलने के लिए व्याकुल हैं।
➳ _ ➳ शांति के सागर अपने पिता के संकल्पों को कैच कर, मैं झट से भृकुटि की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर सेकण्ड में आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होकर अपने शान्ति धाम घर में पहुँच जाती हूँ। *गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात, कोई संकल्प नही, ऐसे अपने स्वदेश में आकर, यहां चारों और फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर मैं असीम शान्ति का अनुभव कर रही हूँ*। शन्ति की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने शिव पिता के समीप पहुँच गई हूँ।
➳ _ ➳ अपने शांति धाम घर मे अपने शिव पिता के पास जाकर अब मैं उनके सानिध्य में बैठ उनसे आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *बाबा से आ रही शांति की हल्की नीले रंग की किरणों का फव्वारा मुझ पर बरस रहा है और मुझे रोमांचित कर रहा है। शांति की शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नीले रंग की किरणों के किसी विशाल झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और शांति की किरणें झर - झर करते पानी की तरह मेरे ऊपर बह रही हैं जिन्हें मैं गहराई तक अपने अंदर समाती जा रही हूँ*। शांति के सागर अपने शिव बाबा से शांति की अनन्त शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव हर पल करते हुए शांति की शक्ति मैं अपने अंदर जमा कर रही हूँ और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि शांति की शक्ति जैसे - जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है वैसे - वैसे हर समस्या का समाधान अपने आप होता जा रहा है। *साइलेन्स के बल से मेरे जीवन मे होने वाले अनेक चमत्कारिक परिवर्तन मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी अपने स्वधर्म और स्वदेश की याद दिला कर शान्ति का अनुभव करने का रास्ता दिखा रहें हैं*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा हर दिन स्व उत्साह में रहने और सर्व को उत्साह दिलाने वाली रूहानी सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ड्रामा के राज़ को समझ नथिंगन्यू का पाठ पक्का करने वाला बेफिक्र बादशाह हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳
अभी
तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी
विकार हो। ये क्यों, ये
क्या, ऐसा
होना नहीं चाहिए, ऐसा
होना चाहिए... या कामन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने
गुण का, अपनी
विशेषता का अभिमान आता है या तो *जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात
में कमी
को देख करके, कमी
अपने पुरुषार्थ की नहीं लेकिन नाम में, मान
में, शान
में, पूछने
में, आगे
आने में, सेन्टर इन्चार्ज
बनाने में, सेवा
में, विशेष
पार्ट देने में - ये कमी, ये
व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान
करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है।*
➳ _ ➳ तो
आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन
की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान
या दूसरे शब्दों में कहो अपमान
- मेरे को कम क्यों, मेरा
भी ये पद होना चाहिए, मेरे
को भी आगे करना चाहिए, तो
ये अपमान समझते हो ना।
तो ये दो बातें *अभिमान और अपमान - यही दो आजकल व्यर्थ संकल्प का कारण है। इन
दोनों को अगर न्योछावर
कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है।*
✺
*ड्रिल :- "अभिमान और अपमान के व्यर्थ संकल्प से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳
सावन का महीना और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली खिलते हुए फूलों की महक के बीच
मैं आज सावन का झूला झूल रही हूं... और मेरे आस-पास मेरी सहेलियां मुझे झूला
झूला रहे हैं... आज हम सभी मिलकर मधुर गीत गुनगुना रही हैं... इस झूमते हुए
मौसम में आज चारों तरफ खुशी के माहौल में मैं आत्मा झूला झूल रही हूं... *झूला
झूलते झूलते मैं अपने आप को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रही हूं... और
धीरे-धीरे मेरा झूला गति को प्राप्त करता है... और मैं अपने आप को सबसे ऊंची
स्थिति पर पाकर सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं...* मुझे उस झूले से अन्य आत्माएं
बहुत ही छोटी छोटी नजर आ रही हैं... मेरी ऊंचाई और आत्माओं से बहुत ऊंची हो गई
है...
➳ _ ➳
और
अब मैं कुछ देर अपनी इस ऊंची अवस्था में अपने आप को अनुभव करते-करते मैं हवाओं
के साथ अपने मन बुद्धि से सूक्ष्म वतन पहुंच जाती हूँ... सूक्षम वतन का यह सफेद
प्रकाश मेरे अंदर शीतलता उत्पन्न कर रहा है... सामने बापदादा मुझे अपनी बाहें
फैलाए अपने पास बुला रहे हैं... मैं दौड़कर बापदादा के पास जाती हूँ... और अपने
आप को उसी स्थिति का स्मरण कराते हुए बापदादा से कहती हूँ... बाबा आज मैं अपने
आप को अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में अनुभव कर रही हूं... मुझे इस स्थिति में
बहुत ही आनंद आ रहा है... बाबा मुझे उसी समय रोकते हुए कहते हैं... कि नहीं
मेरे बच्चे बेशक तुम अपने पुरुषार्थ से अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में पहुंच
जाओ... लेकिन याद रहे कि अपने को कभी भी अभिमानी स्थिति का आभास भी नहीं होने
देना है... अपने चाल चलन से अन्य आत्माओं के प्रति हमेशा विनम्र और सहज सरल
स्वभाव ही रखना... *अगर अपने पुरुषार्थ से तुम ऊंची स्थिति को पाकर किसी भी
प्रकार का अभिमान करते हो तो तुम्हारी अन्य आत्माओं से यह ऊंची स्थिति नहीं
कहलाएगी... सरल और सहज स्वभाव में रहते हुए विनम्रता का गुण अपने अंदर धारण
करना होगा...*
➳ _ ➳
बापदादा के इतना कहने पर मैं बाबा को कहती हूं... बाबा मुझे आपकी इस बात का
हमेशा स्मरण रहेगा... बाबा मेरी यह बात सुनकर मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ रख
देते हैं... और मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न होती हूँ... कुछ देर रुकने के बाद
बाबा से असीम प्यार करते हुए जैसे ही मैं वापस प्रस्थान करने लगती हूँ... तो
बाबा मुझे रोकते हुए मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझे कहते हैं... रुको बच्चे मैं
तुम्हें एक बात और कहना चाहता हूँ... कि *मीठे बच्चे तुम अगर कितना भी सेवा में
ऊंची स्थिति पर चले जाओ... और सेवा में कभी कोई आत्मा आपको कुछ कठोर शब्द कहें
तो उन शब्दों को प्रभु अर्पण कर दिया करें... और उस आत्मा को हमेशा शुभ भावना
ही देते रहें... सेवार्थी भाव की स्थिति में कभी भी अपमान शब्द का संकल्प या
अनुभव नहीं होना चाहिए...* अगर हमें अपमान और मान का संदर्भ होगा तो हम कभी आगे
नहीं बढ़ पाएंगे...
➳ _ ➳
मेरे मीठे बाबा के ये अनमोल शब्द सुनकर मैं आत्मा अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली
अनुभव कर रही हूं... और अब मैं अपनी मन बुद्धि से वापस अपने इस स्थूल देह में
अवतरित हो जाती हूं... इसलिए यहाँ आकर मैं बाबा की कही हुई हर बात को अपने अंदर
समा लेती हूं... और सदा उसी स्मृति स्वरूप में रहती हूं... इस सुहाने मौसम में
झूला झूलते हुए मैं आत्मा अपनी सहेलियों से अपना झूला मन्दगति पर करवाती हूं...
*और धीरे से उस झूले से उतरकर मैं अन्य आत्माओं को भी उस झूले पर बिठाकर उसके
आनंद का अनुभव करा रही हूं... और बापदादा को बार-बार धन्यवाद कर रही हूं...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━