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❍ 05 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *विधिपूर्वक मुरली सुन सिद्धि स्वरुप स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा एक बाप की याद में रह एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा अचल अडोल रह अविनाशी ख़ुशी का अनुभव किया ?*
➢➢ *"हम स्वराज्य अधिकारी हैं" - सदा इसी ख़ुशी में रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए अभी-अभी आवाज में आते, डिस्कस करते, कैसे भी वातावरण में संकल्प करो और आवाज से परे, न्यारे फरिश्ता स्थिति में टिक जाओ।* अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी फरिश्ता अर्थात् आवाज से परे अव्यक्त स्थिति। *यही अभ्यास लास्ट पेपर में विजयी बनायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं समर्थ आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो? समर्थ आत्माओंकी निशानी क्या है? समर्थ आत्मायें कोई भी खजाने को व्यर्थ नहीं करेंगी। समर्थ अर्थात् व्यर्थ की समाप्ति। *संगमयुग पर बाप ने कितने खजाने दिये हैं? सबसे बड़ा खजाना है श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना। संगम का समय-यह भी बड़े ते बड़ा खजाना है। सर्व शक्तियां-यह भी खजाना है; सर्व गुण-यह भी खजाना है। तो सभी खजानों को सफल करना-यह है समर्थ आत्मा की निशानी।* सदा हर खजाने सफल होते हैं या व्यर्थ भी हो जाते हैं? कभी व्यर्थ भी होता है? जितना समर्थ बनते हैं तो व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है।
〰✧ जैसे-रोशनी का आना और अंधकार का जाना। क्योंकि जानते हो कि-हर खजाने की वैल्यु कितनी बड़ी है, संगमयुग के पुरुषार्थ के आधार पर सारे कल्प की प्रालब्ध है! तो एक सेकेण्ड, एक श्वास, एक गुण की कितनी वैल्यु है! अगर एक भी संकल्प वा सेकेण्ड व्यर्थ जाता है तो सारा कल्प उसका नुकसान होता है। तो इतना याद रहता है? एक सेकेण्ड कितना बड़ा हुआ! तो कभी भी ऐसे नहीं समझना कि सिर्फ एक सेकेण्ड ही तो व्यर्थ हुआ! लेकिन एक सेकेण्ड अनेक जन्मों की कमाई या नुकसान का आधार है। गाया हुआ है ना-कदम में पद्मों की कमाई है। एक कदम उठने में कितना टाइम लगता है? सेकेण्ड ही लगता है ना। *सेकेण्ड गँवाना अर्थात् पद्मापद्म गँवाना। इस वैल्यु को सदा सामने रखते हुए सफल करते जाओ। चाहे स्वयं के प्रति, चाहे औरों के प्रति-सफल करते जाओ तो सफल करने से सफलतामूर्त अनुभव करेंगे। सफलता समर्थ आत्मा के लिए जन्मसिद्ध अधिकार है। बर्थ-राइट मिला है ना!*
〰✧ कोई भी कर्म करते हो-ज्ञान-स्वरूप होकर के कर्म करने से सफलता अवश्य प्राप्त होती है। तो सफलता का आधार है- व्यर्थ न गँवाकर सफल करना। ऐसे नहीं-व्यर्थ नहीं गँवाया। लेकिन सफल भी किया? जितना कार्य में लगायेंगे उतना बढ़ता जायेगा। खजानों को बढ़ाना आता है? सफल करना अर्थात् लगाना। तो सदा कार्य में लगाते हो या जब चांस मिलता है तब लगाते हो? *हर समय चेक करो-चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से सफल जरूर करना है। सारे दिन में कितनों की सेवा करते हो? अगर सेवाधारी सेवा नहीं करे तो अच्छा नहीं लगेगा ना। तो विश्व-सेवाधारी हो! हर दिन सेवा करनी ही है!*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *शुरू से देखो - अपने देह के भान के कितने वैरायटी प्रकार के विस्तार है।* उसको तो जानते हो ना! मैं बच्चा हूँ, मैं जवान हूँ, मैं बुजुर्ग हूँ मैं फलने-फलाने आक्यूपेशन वाला हूँ। इसी प्रकार के देह की स्मृति के विस्तार कितने हैं! फिर सम्बन्ध में आओ कितना विस्तार है।
〰✧ किसका बच्चा है तो किसका बाप है, *कितने विस्तार के सम्बन्ध है। उसको वर्णन करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि जानते हो।* इसी प्रकार देह के पदार्थों का भी कितना विस्तार है। भक्ति में अनेक देवताओं को सन्तुष्ट करने का कितना विस्तार है। लक्ष्य एक को पाने का है लेकिन भटकने के साधन अनेक है।
〰✧ *इतने सभी प्रकार के विस्तार को सार रूप लाने के लिए समाने की वा समेटने की शक्ति चाहिए।* सर्व विस्तार को एक शब्द से समा देते। वह क्या? - 'बिन्दू'। मैं भी बिन्दू बाप भी बिन्दू। *एक बाप बिन्दू में सारा संसार समाया हुआ है।* यह तो अच्छी तरह से अनुभवी हो ना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आप सभी मास्टर रचयिता अपने रचतापन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं। *आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है।* इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? *देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचनापन विस्मृत तो नहीं कर देती है?* मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? *पहले-पहले इस देह के मालिकपन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है। अगर देह के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिकपन में भी सम्पन्न नही बन सकते हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार- “मुरली” "*
➳ _ ➳ *मुरली की तान पर थिरकता ये मधुबन सारा... मैं दीवानी मुरली की, मुरली मेरे प्राणों का सहारा*... अन्तर्मन के पट खुले ये पहेली अब समझ में आई है... *मुरली की खातिर भक्ति में जिन गोपियो ने सुधबुध बिसराई, वो मुरली और वो गोपियाँ मैने आज खुद में ही पाई है*... क्षुद्र जन्म से ये श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म, खुदा जब खुद हर रोज प्रेमपाति भेज रहा है... किस कदर मन के मैल धुल गये है वो सम्मुख बैठ देख रहा है और *मेरे सम्मुख बैठे है बापदादा... और मैं मंन्त्रमुग्ध सी बस सुन रही हूँ और समाँ रही हूँ श्रेष्ठ पद का आधार एक एक महावाक्य को ...बडी तल्लीनता के साथ*...
❉ *श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का ज्ञान और रुहानी पालना से भरपूर करने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरी चक्रधारी बच्ची... *ये प्रेम पाँति सर्वश्रेष्ठ पद का आधार है... एक एक महावाक्य में प्राप्तियों की लम्बी कतार है... एक एक महावाक्य अन्तर में समाँ लो... मनन चिन्तन से उसे धारणा अपनी बना लो*... क्या विधि की सिद्धि का ये राज आपको मालूम है... *पदमापदम भाग्यशाली बन गये हो आप क्या ये नशा सदा रहता है...?"*
➳ _ ➳ *ईश्वरीय मस्ती में मस्त मै देही विदेही बाप से बोली:-* "मीठे बाबा... *सदा एकव्रता बन तीनो लोको की सैर कराती है ये मुरली, सूक्ष्म वतन में कभी तो कभी देवताई झलक दिखाती है ये मुरली*... आपके संग संग फरिश्ता बन उड जाती हूँ मैं... जमाने भर की खुशियाँ मुट्ठी मे समेट लाती हूँ... संगम पर ये ऊँच ते ऊँच ब्राह्मण जन्म पाया है... *मुझ सा भाग्य किसका होगा... मुझे स्वराज्य अधिकारी बनना यही पर सिखलाया है...*"
❉ *अव्यक्त वतनवासी बाप मुझ साक्षात्कार मूर्त आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... *जैसे पाँच तत्वों के शरीर में बिन्दु बन रहती हो... वैसे ही अब लाइट के कार्ब में रहों... फरिश्ता बन धरा पर सेवार्थ कदम रखों ...* कारोबार पूरा कर फिर उपराम हो जाओ... अपने लाइट रूप से सबको साक्षात्कार कराओं... मुरली का स्वरूप बन विधि की सिद्धि सबको सिखाओं... *ज्वाला स्वरूप बन योग अग्नि से हर आत्मा को विकारों के बंधन से मुक्त कराओं"...*
➳ _ ➳ *स्वविकारों पर पैनी नजर रख उन्हें समाप्त करने वाली मैं मायाजीत आत्मा भोलेनाथ बाबा से बोली:-* "मेरे बाबा... *विकारों से अशान्त आत्माओं पर मैं फरिश्ता शान्ति की बदली बरसा रही हूँ... ज्ञान के खजानों से भरने सबको ज्ञान मुरली का वर्सा दिला रही हूँ*... लास्ट सो फास्ट जाने का तरीका श्रीमत पर ही सबको बता रही हूँ... बेफ्रिक बादशाह बनाया मुझे मुरली ने कैसे... अनुभव अपना मैं सबको बता रही हूँ..."
❉ *सच्चे सच्चे सेवाधारी बाप मुझ ज्ञानमूर्त आत्मा से बोले:-* "मेरी बच्ची... *अज्ञान और भक्ति के घने बीहड में काठ की मुरली और मुरली धर को अभी भी जो आत्माए खोज रही है उनको सदगुरू की सच्ची-सच्ची ज्ञान मुरली का रसपान कराओं*... मुरली से श्रेष्ठपद की प्राप्ति का अनुभव कराओं... मुरली को समालेना और स्वरूप बन जाने की विधि सिखाओं... अब अन्तिम समय का अन्तिम पुरूषार्थ और मायाजीत का अनुभव कराओं"...
➳ _ ➳ *सर्व खजानों से सम्पन्न धारणामूर्त मैं आत्मा बापदादा से बोली:-* "प्यारे बाबा... *मै तो निमित्त मात्र हूँ बाबा... ये ज्ञान मुरली ही सब करा रही है... महापरिवर्तन की वेला का आधार ये मुरली ही बनी है बाबा... जो पल मे तीनो लोको का भ्रमण करा देती है*... फरिश्ता बनाकर मुझे पल में दुआओं का कारोबार कराती है... मूढ पतित आत्माओं को पावन बना रही है... मेरे दैवी रूप का दीदार कराती है... प्रभु मिलन को बेताब आत्माओं को आपसे मिला देती है... *और कहते कहते मैं बीजरूप बन समाँ गयी हूँ मै बापदादा की गोद में..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विधिपूर्वक मुरली सुन सिद्धि स्वरूप स्थिति का अनुभव करना*
➳ _ ➳ स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं यह स्मृति एक अद्भुत रूहानी नशे से मुझे भरपूर कर देती है और एक दिव्य अलौकिक मस्ती में डूबी,अपने प्यारे प्रभु की याद में, तेज - तेज कदमो से चलते हुए मैं पहुँच जाती हूँ अपनी ईश्वरीय यूनिवर्सिटी में। *क्लासरूम में अपनी निमित टीचर बहन से मुरली सुनते हुए, आत्मिक स्मृति में बैठ, गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर, विधि पूर्वक मुरली सुन सिद्धि स्वरूप स्थिति का अनुभव करने के लिए मैं अपनी देह की सुध बुध भूल देही बन विदेही बाप से अब मुरली सुनने का अनुभव कर रही हूँ*। स्वयं भाग्यविधाता बाप परमशिक्षक बन मुझे पढा रहें हैं, इस पदमापदम भाग्य की स्मृति मात्र से ही मुझ आत्मा के ऊपर जैसे एक खुमारी चढ़ने लगी है। मेरे परमशिक्षक शिव बाबा के मधुर महावाक्य मुझे अविनाशी खुशी प्रदान कर रहें हैं।
➳ _ ➳ मुरलीधर की मुरली का नशा जैसे - जैसे मेरे ऊपर चढ़ रहा है वैसे - वैसे मैं स्वयं को इस धरनी और देह के आकर्षण से मुक्त अनुभव कर रही हूँ। मुरली के साज और राज से मुरलीधर बाप के साथ ज्ञान की गहराई में जाकर अनेक सुन्दर - सुन्दर अनुभवों के हीरे मोती मैं प्राप्त कर रही हूँ। *डबल लाइट बन कभी मूलवतन अपने निराकार शिव पिता के साथ स्नेह मिलन मनाने का आनन्द तो कभी अपने फरिश्ता स्वरूप में सूक्ष्म वतन में प्यारे बापदादा के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान और सूक्ष्म वतन के सुंदर - सुन्दर नजारों का आनन्द और कभी अपने राज्य में पहुँच कर स्वर्गिक दुनिया के खूबसूरत दृश्यों का आनन्द मैं ले रही हूँ*। मुरली सुन कर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का परमआनन्द प्राप्त करके, बाबा की याद में पैदल चलते हुए, मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ शरीर निर्वाह अर्थ किये जाने वाले कार्यो से निवृत होकर अब मैं एकांत में अपने *प्यारे प्रभु की याद में बैठ, उन महावाक्यों के लिए जो मेरे परमशिक्षक मुरली के माध्यम से हर रोज मुझे सुनाकर, अविनाशी ज्ञान के अखुट खजानो से मुझे भरपूर कर देते है, अपने प्यारे बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ* और प्रभु यादों की डोली में बैठ, उनसे मंगल मिलन मनाने की इच्छा से मन बुद्धि को उस रूहानी यात्रा की ओर ले जाती हूँ जो मुझे मेरे परमशिक्षक के पास ले जाने वाली है।
➳ _ ➳ अशरीरी बन इस रूहानी यात्रा पर चलने के लिए मैं रेडी होती हूँ और एक चमकता हुआ सूक्ष्म सितारा बन भृकुटि की कुटिया से बाहर आकर, ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ। धीरे - धीरे सूर्य, चाँद, तारा मण्डल को पार करती हुई, सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्ष्म लोक को पार करके मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास उनकी निराकारी दुनिया में जो वाणी से परे है। *अपने इस घर मे आकर मैं गहन सुख और शांति के अनुभव में खो जाती हूँ। इस सुख शांति के अनुभव में कुछ क्षण बिताकर अब मैं अपने शिव पिता के पास पहुँचती हूँ। शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरते हुए उनके अति सुंदर मनोहारी स्वरूप को निहारते - निहारते मैं उनके बिल्कुल समीप जाकर उन्हें टच करती हूँ*। अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे बाबा मुझे उठा लेते हैं और अपना असीम स्नेह अपनी किरणों के रूप में मुझ आत्मा के ऊपर बरसाने लगते हैं।
➳ _ ➳ बाबा के निस्वार्थ प्यार से भरपूर होकर मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ। और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर फिर से अपने पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। जैसे कर्मो की गति महान है ऐसे विधिपूर्वक मुरली सुनने समाने की गति भी अति श्रेष्ठ है इस बात को सदैव स्मृति में रख, अपने हर कर्म को मुरली का स्वरूप बनाने पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *मुरली ही ब्राह्मण जीवन का श्वांस है। श्वांस नही तो कुछ भी नही, ऐसे अनुभव करते हुए, विधि पूर्वक मुरली सुन कर, सारा दिन हर कर्म में मैं अब सिद्धि स्वरूप रहने का पुरुषार्थ निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं साइलेंस की शक्ति द्वारा नई सृष्टि की स्थापना के निमित्त बनने वाली मास्टर शांति देवा आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर आत्मा वा प्रकृति के प्रति शुभ भावना रखने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺
अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳
जैसे
आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो,
ऐसे
प्रकार के संकल्प - अभी यह करना है,
फिर
वापस जायेंगे - ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से
वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो,
लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? *वृक्ष
भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है। तो अभी
भी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है* लेकिन जितना विस्तार
वृद्धि को पा रहा है उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे,
यह
बात नहीं भूल जाना। *कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की
रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों। अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो।* जैसे आजकल यहाँ पहले
से ही अपना मरण मना लेते हैं ना- तो छुट्टी ले ली ना। *ऐसे सब प्रवृत्तियों के
बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। समाप्ति-समारोह मना लो।
उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो।*
✺
*"ड्रिल :- सर्व प्रवृत्तियों के बन्धनों से विदाई ले समाप्ति समारोह मनाना।"*
➳ _ ➳
आत्मिक स्थिति में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ एक बाप की याद में... मन को बाप
में लगाने की तम्मना के साथ... जन्म-जन्म के विकर्मों को दहन करने के एक ही
मार्ग पर चल पड़ी हूँ... एक ही संकल्प मन के तार को बापदादा से दूर करता जा रहा
है... *“क्या
विनाशी देह की भस्म को गंगा में बहाने से क्या सम्बन्ध पूरे होते हैं?
और
क्या उस सम्बन्ध से जुड़े पुराने तानेबाने ही ख़तम हो जाते हैं?
क्या
पुनर्जन्म में वह आत्मा अपने पुराने संस्कारो के वशीभूत जन्म लेगी ?
मोह
माया के रिश्तों में बंधे सभी आत्माओं का पुर्नजनम कैसा होगा ?*
अपने
इन विचारों में खोयी मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी नयनों द्वारा देखती हूँ बापदादा
को अपने समीप... अपने रूहानी वात्सल्य से भरे हाथों से मुझ आत्मा के मस्तक पर
हाथ रखकर अपनी अनंत शक्तियों को मुझमें समाते जा रहे हैं... और मैं आत्मा
आन्तरिक शांति को पाती जा रही हूँ... मन की चंचलता ख़त्म होती जा रही है... और
बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं...
➳ _ ➳
झरमर झरमर बहती गंगा... शांत और शीतल पवन के झोंके... धूप दीप नैवेद्य से भरी
थाली... एक कलश... लाल कपडे से बंधा हुआ... जिसमें विनाशी देह की भस्म भरी हुई
है... *विनाशी शरीर पंच महाभूतों में विलीन हो गया है...* विनाशी देह के सगे
सम्बन्धी उस विनाशी देह की भस्म को गंगा की लहरों में समर्पित करते जा रहे
हैं... और उस आत्मा से देह का रिश्ता पूरा होता है... और एक दृश्य बाबा दिखा रहा
है जहां एक आत्मा का जन्म होता हैं... हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ है... सभी
सगे सम्बन्धी खुशियों के झूले में खुद भी झूल रहे हैं और वह आत्मा के बालक
स्वरुप को भी झुला रहे हैं... कहीं पर मरण के दुखदायी नज़ारे हैं तो कहीं पर
जन्म की बधाइयां दी जा रही हैं... *रिश्तों के ताने बाने से बंधी आत्मा... जन्म
मरण के चक्कर में... मोह माया के बंधन में बंधती ही जा रही हैं...*
➳ _ ➳
यह
दृश्य देखती अपने आप से बातें करती मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का सिमरण करती
हूँ... *"अंत मती सो गति“*
और
इस महावाक्य को समझने में उलझ जाती हूँ... बापदादा के संग उनके रूहानी रंगों
में रंगी मैं आत्मा... अपने अंतर्मन को बापदादा की रूहानी शक्तियों से रंगती जा
रही हूँ *जन्म मरण के नजारों को साक्षी भाव से देख...* सृष्टि चक्र को बापदादा
की शक्तियों से फिरता देख... मैं आत्मा मन की चंचलता को समाप्त करती जा रही
हूँ... और मन बुद्धि रूपी आँखों से बापदादा और एक सीन दिखा रहे हैं... हम
ब्राह्मण आत्माओं का घर... वह ब्राह्मण आत्माएं जो *बाप की प्रत्यक्षता को जान
चुके हैं... भगवान की खोज को बापदादा की खोज में पूरा होता हुआ देख रहे हैं...*
वह ब्राह्मण आत्माएं जिन्होंने एक बाप से रूहानी रिश्ता जोड़ दुनियादारी के
सम्बन्धों से मन से किनारा कर लिया है... देह भान से परे सभी ब्राह्मण आत्माओं
का सम्बन्ध सिर्फ एक बाप से जुड़ा है...
➳ _ ➳
यही
वह बी के ब्राह्मण आत्मायें हैं जिनके घर पर जन्म मरण के दृश्य भी देखने को
मिलता है... यह वही ब्राह्मण आत्मायें हैं जो मन बुद्धि से लौकिक से किनारा कर
अलौकिक पार्ट बजा रहे हैं... जन्म मरण में देही अभिमानी बन शरीर को न देख आत्मा
को देखते हैं... *पंचमहाभूतों में विलीन शरीर की मालिक आत्मा को शांति की
शक्तियों से भरपूर कर दूसरे जन्म के लिए सजाते हैं... बापदादा की पवित्रता...
सुख... शांति के किरणों को दान कर लौकिकता को अलौकिकता में बदल देते हैं...*
संगमयुग की ब्राह्मण आत्मायें मृत्युशैया पर लेटी आत्मा को बापदादा की शक्तियों
से उनके विकार भस्म करवा कर सुखरूप से पुराना चोला छोड़ नया धारण करने में
मददरूप बनते हैं...
➳ _ ➳
मैं
आत्मा बापदादा द्वारा दिखाये दिए जा रहे सभी ब्राह्मण बी के आत्माओं के घर को
सतयुगी राजमहल के रूप में देख रही हूँ... बापदादा के संगमयुग में इस धरा पर
अवतरण का सुहावना नज़ारा देख रही हूँ... बापदादा के सुनहरे महावाक्य *"कोई भी
किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए... किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों...
अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई
ले लो... समाप्ति-समारोह मना लो... उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो"* को
प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... और बापदादा से विदाई लेकर लौकिक के सभी
कार्यों से... संबंधियों से... मन बुद्धि से विदाई लेकर समाप्ति समारोह मना रही
हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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