━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 05 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *निरंतर एक बाप की याद से मायाजीत जगतजीत अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बुधी से पुरानी दुनिया का सन्यास किया ?*

 

➢➢ *कलयुगी वातावरण में रहते हुए उसके वाइब्रेशन से सेफ रहे ?*

 

➢➢ *बुरे को अच्छे में बदला ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *जब योग में बैठते हो तो समाने की शक्ति सेकण्ड में यूज करो।* सेवा के संकल्प भी समा जाएं इतनी शक्ति हो जो स्टॉप कहा और स्टॉप हो जाए। *फुल ब्रेक लगे, ढीली ब्रेक नहीं। अगर एक सेकण्ड के बजाए ज्यादा समय लग जाता है तो समाने की शक्ति कमजोर कहेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं दिलवाले बाप को दिल देने वाली अचल आत्मा हूँ"*

 

  आपका इस आबू पर्वत पर कौन सा यादगार है? अचलगढ़ कौन बन सकता है? जिसने दिलाराम को अपना बना लिया, वही अचल बन सकता है। इसलिए दोनों ही यादगार बहुत कायदे प्रमाण बने हुए हैं। अगर दिलवाला बाप को अपना नहीं बनाया तो अचल की बजाए हलचल होती है। कोई भी चीज में हलचल होती रहे तो वह टूट जायेगी और जो अचल होगी वो सदा कायम रहेगी। *तो सदैव ये स्मृति में रखो कि हम दिलवाला बाप को दिल देने वाली अचल आत्मायें हैं। ये मेरा यादगार है - हरेक अनुभव करे। ऐसे नहीं - ये ब्रह्मा बाप का या महारथियों का है। नहीं, मेरा यादगार है।* देखो ड्रामानुसार अपने यादगार स्थान पर ही पहुँच गये। नहीं तो पाकिस्तान से आबू में आना - यह तो स्वपन में भी नहीं आ सकता था। लेकिन ड्रामा में यादगार यहीं था तो कैसे पहुँच गये हैं। अपने ही यादगार को देख हर्षित होते रहते हो।

 

  *अचल रहना - कोई मुश्किल बात नहीं है। कोई भी चीज को हिलाते रहो तो मेहनत भी और मुश्किल भी। सीधा रख दो तो वह सहज है। ऐसे ही मन-बुद्धि द्वारा हलचल में आना कितना मुश्किल होता है और मन बुद्धि एकाग्र हो जाती है तो कितना सहज होता है। अभी हलचल में आना पसन्द ही नहीं करेंगे। अच्छा नहीं लगेगा।* आधाकल्प हलचल में आते थक गये। तन की भी हलचल, मन की भी हलचल, धन की भी हलचल। तन से भी भटकते रहे। कभी किस मन्दिर में। कभी किस यात्रा पर, तो कभी किस यात्रा पर और मन परेशानियों में, हलचल में आते रहा और धन में तो देखो- कभी लखपति तो कभी कखपति। तो अनेक जन्मों की हलचल का अनुभव होने के कारण अभी अचल अवस्था अति प्रिय लगती है। इसीलिए दूसरों के ऊपर रहम आता है। शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि ये भी अचल हो जाये।

 

  अचल स्थिति वालों का विशेष गुण होगा - रहमदिल। सदा हर एक आत्मा के प्रति दातापन की भावना। ऐसे मास्टर दाता बने हो कि दूसरे को देखकर घृणा आती है? रहम आता है, दया भाव आता है, दातापन की स्मृति आती है? या क्यों क्या उत्पन्न है? *आप सबका विशेष टाइटल है - विश्व कल्याणकारी। जो विश्व कल्याणकारी है उसको हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना होगी। उसके अन्दर स्वत: ही किसी आत्मा के प्रति भी घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानि का भाव कभी उत्पन्न नहीं होगा। इसको कहा जाता है विश्व कल्याणकारी आत्मा।* तो ऐसे हो? या कभीकभी दूसरे भाव भी आ जाते हैं? बस, सदा कल्याण का भाव हो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा सब चीज़ें समीप अनुभव होती जाती है - दूर की आवाज़ टेलिफोन के साधन द्वारा समीप सुनन में आती है, टी . वि. (दूरदर्शन) द्वारा दूर का दृश्य समीप दिखाई देता है, ऐसे ही *साइलन्स की स्टेज द्वारा कितने भी दूर रहती हुई आत्मा को सन्देश पहुँचा सकते हो?*

 

✧  वो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में सम्मुख किसी ने सन्देश दिया है। *दूर बैठे हुए भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के दर्शन और प्रभु चरित्रों के दृश्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख देख रहे हैं।*

     

✧ *संकल्प द्वारा दिखाई देगा अर्थात आवाज से परे संकल्प की सिद्धि का पार्ट बजाएंगे।* लेकिन इस सिद्धि की विधि ज्यादा - से - ज्यादा अपने शान्त स्वरूप में स्थित होना है। इसलिए कहा जाता है - 'साइलन्स इज गोल्ड', यही गोल्डन ऐजड स्टेज कही जाती है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ सिर्फ यह भी स्मृति रहे तो कितनी मीठी जीवन का अनुभव करेंगे। *हम इस मृत्युलोक के नहीं लेकिन अवतार हैं। सिर्फ यह छोटी-सी बात याद रहे तो उपराम हो जायेंगे। अगर अपने को अवतार न समझ गृहस्थी समझते हो तो गृहस्थी की गाड़ी कीचड़ में फंसी रहती। गृहस्थी है ही बोझ की स्थिति और अवतार बिल्कुल हल्का। वह फैसा हुआ है वह बिल्कुल न्यारा। कभी अवतार कभी गृहस्थी यह चक्कर अगर चलता रहता तो संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन का, सुहावने सुख के जीवन का कभी-कभी अनुभव होगा, सदा नहीं।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह सहित इस सारी पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूलना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा इस देह की मालिक हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... अपने कर्मेन्द्रियों से कर्म करने वाली मैं कर्मेन्द्रियजीत आत्मा हूँ... मैं आत्मा इन स्वमानों का अभ्यास करते-करते इस देह से बाहर निकल जाती हूँ...* मैं अशरीरी आत्मा इस देह का भान छोड़, इस देह की दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में अपने मीठे प्यारे बापदादा के पास... बाबा के सम्मुख बैठ उनके मधुर वचनों को बड़े प्यार से सुनती हूँ...

 

  *पुरानी देह और देह के सम्बन्धी उन सबको भूल एक बाप को याद करने की श्रीमत देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे गुणो से महके और शक्तियो से सजे खुशबूदार फूल थे... *स्वयं को देह समझ मटमैले हो गए और दुखो के दलदल में धँस गए... अब वही खुबसूरत मणि सा रूप रंग याद करो... और श्रीमत का हाथ पकड़ इस देह के दलदल से मुक्त हो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के श्रीमत रूपी हाथों में हाथ रख मणि बन मुस्कुराते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको भूल स्वयं को भूल दुखो के घने जंगल में उलझ गयी थी... *आज आपकी गोद में आकर फिर से फूलो जैसा खिलती जा रही हूँ... अपने अविनाशी पन के नशे में डूबती जा रही हूँ... आपकी यादो में मेरा कायाकल्प हो गया है...”*

 

  *इस विषय सागर से निकाल अपने स्नेह के सागर में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिन देह के रिश्तो को सत्य समझ समय,साँससंकल्प खपा रहे.... वह मात्र छलावा हैयह देह के सम्बन्ध् विनाशी है... *श्रीमत के साये में आत्मिक स्नेह की धारा में खो जाओ... और सब विनाशी नातो को भूल एक पिता की सच्ची यादो में गहरे डूब जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की यादों में बेफिक्र बादशाह बन आजाद पंछी बनकर उड़ते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के सम्बन्धो से उपराम होकर आत्मिक सत्यता से छलक उठी हूँ... *प्यारे बाबा आपने ज्ञान के नेत्र से मुझे मेरे वजूद का पता देकर... मुझे कितना सुखी प्यारा और निश्चिन्त बना दिया है...* मै आत्मा श्रीमत को पाकर हर दुःख से उबर गयी हूँ...

 

  *सत्यता के रंगों से रंगकर मेरे जीवन को खुशनुमा बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता ने जो सत्य भरीश्रीमत की राहो का राही बनाया है... उस पर उमंगो और खुशियो के पंखो से सदा उड़ते रहो... *देह के विकारी नातो को भूल आत्मिक नशे में सच्चा स्नेह लुटाओ... सच्चे साथी ईश्वर पिता की यादो में... देवताओ सा मुस्करातासुखो से सजा जीवन पाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा देह के भान से मुक्त होकर आत्मिक नशे में नूर बन चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मिटटी में लथपथ मिटटी के खिलोनो से खेल... दुखो के जीवन को ही अपनी तकदीर समझ रही थी... *प्यारे बाबा आपने तो मेरा भाग्य ही खिला दिया... मुझे कितना प्यारा नूरानी बना दिया और सतयुगी राजरानी सजा दिया है...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बुद्धि से बेहद पुरानी दुनिया का सन्यास करना है*

 

_ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो के बीच रहते हुए भी मन बुद्धि से इस दुनिया के ख्याल को मैं जैसे ही अपने मन से निकालती हूँ मैं महसूस करती हूँ जैसे यह देह, देह की दुनिया और देह के ये सब सम्बन्ध झूठे है, नश्वर है, धोखा देने वाले है। *इन सभी चीजों से प्रीत झूठी है केवल एक भगवान के साथ जुड़ा हर सम्बन्ध सत्य है, शाश्वत है और स्थायी है*। यह विचार सेकण्ड में मुझे मेरे प्यारे पिता के साथ जुड़े हर सम्बन्ध के मीठे मधुर एहसास का सुख प्रदान कर, इस नश्वर देह को भुला देता है और बुद्धि से इस बेहद पुरानी दुनिया का सन्यास करवा कर मुझे सहज ही तपस्वीमूर्त बना देता है।

 

_ ➳  अपने तपस्वीमूर्त स्वरूप में स्थित होकर अब मैं गहन तपस्या में मग्न हो जाती हूँ। *तप की अग्नि जैसे - 2 प्रज्ज्वलित होने लगती है मेरा स्वरुप परिवर्तित होने लगता है और उस सत्य स्वरूप में मैं स्थित होने लगती हूँ जो मेरा वास्तविक स्वरूप है जिसे मैं भूल गई थी*। देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, वैभवों, पदार्थो को सच मान मन बुद्धि को इनमे लगाकर मैं इनकी गुलाम बन गई थी। किन्तु आज जब बुद्धि से इन सबका त्याग किया तो मेरा सत्य स्वरूप मेरे सामने प्रकट हो गया। वो स्वरूप जो शान्ति, सुख, आनन्द का अनुभव करवाने वाला है। *देख रही हूँ अब मैं दिव्य बुद्धि के तीसरे नेत्र से अपने सुन्दर सलौने मन भावन स्वरूप को जो एक अति सूक्ष्म चमकता हुआ सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान होकर चमक रहा है*। उसमे से निकल रही रंग बिरंगे प्रकाश की तरंगें मन को सुकून दे रही हैं।

 

_ ➳  अपने मस्तक से निकल रही प्रकाश की एक - एक किरण को निहारते हुए मैं अपने इस अनादि सत्य स्वरूप का आनन्द ले रही हूँ। *बुद्धि से सब कुछ भूल केवल अशरीरी आत्मा बन अब मैं भृकुटि की कुटिया से बाहर आकर मन बुद्धि से अपने आस पास की हर चीज को देख रही हूँ किन्तु इन सबके आकर्षण से मुक्त, एक अति सुखदाई साक्षी स्थिति में अब मैं स्थित हूँ और हर चीज को साक्षी होकर देख रही हूँ*। देह, देह के सम्बन्ध, वैभव कोई भी चीज अब मुझे अपनी और नही खींच रही। इन सबके बीच होते हुए भी जैसे मैं इनके बीच हूँ ही नही। मन को तृप्त करने वाले एक अद्भुत सच्चे आनन्द का मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  इस सच्चे आनन्द का अनुभव अब मुझे बेहद का सन्यासी बनाकर, इस बेहद पुरानी दुनिया से दूर अपने पिता के पास उनके धाम की ओर ले कर जा रहा है। मन बुद्धि के विमान पर बैठ, मन को अतीन्द्रीय सुख प्रदान करने वाली एक अति सुन्दर रूहानी यात्रा पर अब मैं जा रही हूँ। *इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए, आकाशमण्डल को पार कर सूक्ष्म वतन से होती हुई उससे भी परे मैं पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके निराकारी धाम में*। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को अपने परम प्रिय पारलौकिक शिव पिता परमात्मा की अनन्त शक्तियों की छत्रछाया के नीचे। इन शक्तियों की अनन्त किरणो के द्वारा मेरे पिता अपने स्नेह की शीतल फुहारें मुझ पर बरसा कर मुझे आप समान शीतल बना रहे हैं।

 

_ ➳  अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मेरे ऊपर प्रवाहित करके बाबा मेरी सोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर मुझे सर्वशक्तियों से सम्पन्न बना रहें हैं। *देह में रहते, देह की दुनिया में पार्ट बजाते हुए भी मेरा बुद्धि योग उस दुनिया मे ना लटके, इसके लिए बाबा परमात्म शक्तियों से मुझमे आत्म बल भर रहें हैं*। परमात्म स्नेह और परमात्म शक्तियों से आत्म बल अपने अंदर भरकर मैं आत्मा बुद्धि से बेहद पुरानी दुनिया का सन्यास करने के लिए अब पुरानी दुनिया मे वापिस लौट रही हूँ।

 

_ ➳  अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर भृकुटि पर विराजमान होकर अब मैं देह और देह की पुरानी दुनिया मे फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ लेकिन बुद्धि से बेहद पुरानी दुनिया का सन्यास कर अब मैं इस दुनिया मे रहते हुए भी जैसे इस दुनिया मे नही रहती। *बुद्धि का योग हर समय केवल अपने घर और अपने पिता के साथ लगाकर पुरानी दुनिया से मैं जैसे बिल्कुल उपराम हो गई हूँ। इस अति न्यारी और प्यारी उपराम स्थिति में रहते, सदा अतीन्द्रीय सुखमय स्थिति का अनुभव करते हुए, अपने सम्पूर्णता के लक्षय को पाने की दिशा में मैं अब बिल्कुल सहजता से आगे बढ़ रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं कलियुगी वायुमण्डल में रहते हुए उसके वाइब्रेशन से सेफ रहने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बुरे को अच्छे में बदलकर श्रेष्ठ शक्ति  को जमा करने वाली ऊंच ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ सदा सन्तुष्टता का फल खाते और खिलाते रहेंगे। तो मैं निमित्त हूँ- इससे न्यारा और बाप का प्यारा अनुभव करेंगे। मैंने किया यह भी कभी वर्णन नहीं करेंगे। मैं शब्द समाप्त हो जायेगा। *‘‘मैं'' के बजाए ‘‘बाबा बाबा''। तो बाबाबाबा कहने से सबकी बुद्धि बाप की तरफ जायेगी। जिसने निमित्त बनाया उसके तरफ बुद्धि लगने से आने वाली आत्माओं को विशेष शक्ति का अनुभव होगा क्योंकि सर्वशक्तिवान से योग लग जायेगा।* शक्ति स्वरूप का अनुभव करेंगे। नहीं तो कमजोर ही रह जाते हैं। तो निमित्त समझकर चलना यही सेवाधारी की विशेषता है। देखो - सबसे बड़े ते बड़ा सेवाधारी बाप है लेकिन उनकी विशेषता ही यह है - जो अपने को निमित्त समझा। मालिक होते हुए भी निमित्त समझा। निमित्त समझने के कारण सबका प्रिय हो गया।

➳ _ ➳ तो निमित्त हूँ, न्यारी हूँ, प्यारी हूँ, यही सदा स्मृति में रखकर चलो। *सेवा तो सब कर रहे हो, यह लाटरी मिल गई लेकिन इस मिली हुई लाटरी को सदा आगे बढ़ाना या कहाँ तक रखना यह आपके हाथ में है। बाप ने तो दे दी, बढ़ाना आपका काम है। भाग्य सबको एक जैसा बांटा लेकिन कोई सम्भालता और बढ़ाता है, कोई नहीं। इसी से नम्बर बन गये।* तो सदा स्वयं को आगे बढ़ाते, औरों को भी आगे बढ़ाते चलो। औरों को आगे बढ़ाना ही बढ़ना है। जैसे बाप को देखो, बाप ने माँ को आगे बढ़ाया फिर भी नम्बरवन नारायण बना। वह सेकण्ड नम्बर लक्ष्मी बनी। लेकिन बढ़ाने से बढ़ा। बढ़ाना माना पीछे होना नहीं, बढ़ाना माना बढ़ना।

✺ *"ड्रिल :- “मैं निमित हूँ" - इस स्थिति का अनुभव करना”*

➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में बैठ मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान में स्थित होकर सर्वशक्तिवान से योग लगाती हूं… *मैं आत्मा इस दुनिया से न्यारी होती हुई सर्वशक्तिवान की किरणों की रोशनी में रुहानी यात्रा करती हुई पहुंच जाती हूं अपने प्यारे बाबा के पास…* शक्तियों के सागर में डुबकी लगाती हुई मैं आत्मा सर्व शक्तियों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूं… मैं आत्मा सारी कमी कमजोरियों से मुक्त होकर शक्ति स्वरूप का अनुभव कर रही हूं…

➳ _ ➳ अब मुझ आत्मा से मैं मेरे मन की भावना खत्म हो रही है... शक्तियों के सागर में मैं शब्द को डुबोकर समाप्त कर दी हूं... अब मैं आत्मा सिर्फ बाबा बाबा करती रहती हूं... *अपने को निमित्त समझकर सच्चे सेवाधारी की विशेषता को ग्रहण कर रही हूं...* प्यारे बाबा मालिक होते हुए भी अपने को बच्चों का सेवाधारी कहते हैं... मैं आत्मा बाप के गुणों को धारण कर अपने को सेवाधारी बाप समान निमित्त समझ कर चल रही हूं...

➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा अल्पकाल के नाम मान शान के लिए कभी भी सेवा का वर्णन नहीं करती हूं... निस्वार्थ भाव से अपने को निमित समझ सेवा कर रही हूं... करावनहार करा रहा है मैं बस कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा अपना बुद्धि योग सिर्फ प्यारे बाबा से लगाती हूं... किसी भी देहधारी से नहीं जिससे मैं आत्मा विशेष शक्तियों का स्वयं में अनुभव कर रही हूं... और आने वाली आत्माओं को भी विशेष शक्ति का अनुभव करवा रही हूँ...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा निमित्त हूँ, न्यारी हूँ, प्यारी हूँ, सदा इसी स्मृति में रहकर सेवा करती हूं... बाबा से मिले श्रेष्ठ भाग्य के खजानों को स्वयं में धारण कर संभाल रही हूं और समय प्रमाण यूज कर बढ़ाती जा रही हूं...* मैं आत्मा बाप समान बनकर औरों को आप समान बना रही हूं... स्वयं भी आगे बढ़ रही हूं और औरों को भी आगे बढ़ाती जा रही हूं... जैसे ब्रह्मा बाप ने माँ को आगे बढ़ाकर नम्बरवन नारायण बने... वैसे ही मैं आत्मा ब्रह्मा बाप सामान सर्व के कल्याण की भावना से सर्व को आगे बढ़ा रही हूं और स्वतः आगे बढ़ती जा रही हूं और नंबर वन बन रही हूं...

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━