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 25 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *श्रीकृषण समान जगतजीत बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *बुधीयोग की दौड़ लगाई ?*

 

➢➢ *बैलेंस की विशेषता को धारण कर सर्व को ब्लेसिंग दी ?*

 

➢➢ *विस्तार को सेकंड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *ज्ञान मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का, ट्रैफिक कण्ट्रोल का टाइम मुकरर करो। विशेष एकान्तवासी और खजानों के एकानामी का प्रोग्राम बनाओ।* एकनामी और एकानामी वाले बनो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ"*

 

  अपने को सदा विघ्न-विनाशक आत्मा अनुभव करते हो? या विघ्न आये तो घबराने वाले हो? विघ्न-विनाशक आत्मा सदा ही सर्व शक्तियों से सम्पन्न होती है। विघ्नों के वश होने वाले नहीं, विघ्न-विनाशक। कभी विघ्नों का थोड़ा प्रभाव पड़ता है? *कभी भी किसी भी प्रकार का विघ्न आता है तो स्मृति रखो कि-विघ्न का काम है आना और हमारा काम है विघ्नविनाशक बनना। जब नाम है विघ्न-विनाशक, तो जब विघ्न आयेगा तब तो विनाश करेंगे ना।* तो ऐसे कभी नहीं सोचना कि हमारे पास यह विघ्न क्यों आता है?

 

  विघ्न आना ही है और हमें विजयी बनना है। तो विघ्न-विनाशक आत्मा कभी विघ्न से न घबराती है, न हार खाती है। ऐसी हिम्मत है? क्योंकि जितनी हिम्मत रखते हैं, एक गुणा बच्चों की हिम्मत और हजार गुणा बाप की मदद। तो जब इतनी बाप की मदद है तो विघ्न क्या मुश्किल होगा? *इसलिए कितना भी बड़ा विघ्न हो लेकिन अनुभव क्या होता है? विघ्न नहीं है लेकिन खेल है। तो खेल में कभी घबराया जाता है क्या? खेल करने में खुशी होती है ना! ऐसे खेल समझने से घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे।*

 

  सदा ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न को 'नथिंग न्यु' समझेगा। नई बात नहीं, बहुत पुरानी है। कितने बार विजयी बने हो? (अनेक बार) याद है या ऐसे ही कहते हो? सुना है कि ड्रामा रिपीट होता है, इसीलिए कहते हो या समझते हो अनेक बार किया है? *अगर ड्रामा की पॉइंट बुद्धि में क्लीयर है कि हू-ब-हू रिपीट होता है, तो उस निश्चय के प्रमाण हू-ब-हू जब रिपीट होता है, तो अनेक बार रिपीट हुआ है और अब रिपीट कर रहे हैं। लेकिन निश्चय की बात है।* अगले कल्प में और कोई विजयी बने और इस कल्प में आप विजयी बनो-यह हो नहीं सकता। क्योंकि जब बना-बनाया ड्रामा कहते हैं, तो बना हुआ है और बना रहे हैं अर्थात् रिपीट कर रहे हैं। ऐसा निश्चयबुद्धि अचल-अडोल रहता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी ब्रह्माकुमार और कुमारियों का विशेष कर्तव्य क्या है? ब्रह्मा बाप का विशेष कर्तव्य क्या है? *ब्रह्मा का कर्तव्य ही है - नई दुनिया की स्थापना।* तो *ब्रह्माकुमार और कुमारियों का विशेष कर्तव्य क्या हुआ?*

 

✧  *स्थापना के कार्य में सहयोगी।* तो जैसे अमेरिका में विनाशकारियों के विनाश की स्पीड बढ़ती जा रही है। ऐसे स्थापना के निमित बच्चों की स्पीड भी तीव्र है? वे तो बहुत फास्ट गति से विनाश के लिए तैयार है।

 

✧  ऐसे आप सभी भी स्थापना के कार्य में इतने एवररेडी तीव्र गति से जा रहे हो? उन्हों की स्पीड तेज है या आपकी तेज है? *वो 15 सेकण्ड में विनाश के लिए तैयार है और आप - एक सेकण्ड में?*  क्या गति है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *आप प्रभु प्रेमी बच्चों ने त्याग किया वा भाग्य लिया? क्या त्याग किया? अनेक चतिया लगा हुआ वस्त्र,* जड़जड़ीभूत पुरानी अन्तिम जन्म की देह का त्याग, यह त्याग है? *जिसे स्वयं भी चलाने में मजबूर हो, उसके बदले फ़रिश्ता स्वरूप लाइट का आकार जिसमें कोई व्याधि नहीं, कोई पुराने संस्कार स्वभाव का अंश नहीं, कोई देह का रिश्ता नहीं, कोई मन की चंचलता नहीं, कोई बुद्धि के भटकने की आदत नहीं - ऐसा फ़रिश्ता स्वरूप, प्रकाशमय काया प्राप्त होने के बाद पुराना छोड़ना, यह छोड़ना हुआ? लिया क्या और दिया क्या?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- भोलानाथ बाबा आयें हैं, भक्तों को भक्ति का फल देने"*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा मधुबन में बाबा के कमरे में बैठी बाबा की तस्वीर को निहार रही हूं... बाबा की आंखों में कितना प्रेम है, मन ही मन ये विचार कर रही हूं... बाबा से प्रेम भरी बातें करते करते पहुंच जाती हूँ परमधाम...* शिव बाबा मेरे संमुख प्रकाशपुंज के स्वरूप में स्थित मुझ आत्मा में अपनी शक्तिशाली किरणों को प्रवाहित कर रहे हैं... मैं आत्मा बाबा से आती हुई अनंत किरणों को स्वयं में समाती जा रही हूँ... परमात्म शक्तिओं से भरपूर होती जा रही हूँ... *परमात्म शक्तिओं को भरकर अब मैं आत्मा अपने को सूक्ष्म वतन में अनुभव कर रही हूं... चारों ओर सफेद प्रकाश फैला हुआ है और मैं फ़रिश्ता बापदादा के सामने हूँ... मैं आत्मा नन्ही परी बन बाबा की गोद में बैठ जाती हूँ और बाबा से मीठी मीठी बातें करने लगती हूँ...*

 

❉  *बाबा मुझ आत्मा को बहुत सारा प्यार देते हुए कहते हैं:-* "मेरे लाडले दिलतख़्तनशीन बच्चे... *भोलानाथ बाबा आये हैं भक्तों को भक्ति का फल देने... अब भक्त से बच्चे बन बाप से सुख और आनंद का वर्सा लो और बाप का हाथ पकड़कर इस भवसागर से पार हो जाओ... भगवान पढ़ाते हैं और भगवान फिर साथ भी ले जाएँगे...* पुकारते भी हैं लिबरेटर गाइड आओ दुखों से छुड़ाओ... *अब भोलानाथ बाबा आये हैं तुम्हें सर्व दुखों से छुड़ाकर सुखधाम में ले जाने...*

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के मधुर महावाक्यों को अपने भीतर समाते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे प्राणेश्वर बाबा... मैं आत्मा जन्मों जन्मों की प्यासी थी आपने अपना बनाकर मुझ आत्मा को तृप्ति के सागर में स्नान करा सन्तुष्ट कर दिया है... *पहले जीवन कितना नीरस और असंतुष्टता से भरा हुआ था आपके आने भर से मानो सारी समस्याओं ने अपना रास्ता ही बदल लिया हो... मैं सुख और आंनद से भरपूर हो गयी हूँ... आपकी बनकर कितनी निखर गयी हूँ... ज्ञान रत्नों से अलंकृत हो कर अपने फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित हो गयी हूँ...*"

 

❉  *बाबा सर पर फूलों का ताज रखते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठे बच्चे... बाप की आश है कि अब बच्चे बाप को प्रत्यक्ष करें और बाप का बनकर बाप को पवित्रता का सहयोग दें... *स्वयं पवित्र बन औरों को भी बनाने की सेवा करो... भक्तों को बाप से मिलाकर उनको शांति का रास्ता बताओ... एक बाप की सुनो एक बाप को ही अपना मानो एक से ही सर्व सम्बंध जोड़ो... इस दुनिया से ममत्व छोड़ एक बाप से जोड़ना है...*"

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के शब्दों की मधुरता में डूबी हुई बाबा से कहती हूं:-* "हां मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सदा श्रेष्ठ परिवार के नशे में रहने वाले प्रभु परिवार को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूं... *परमात्मा की बनकर मैं कितनी विशेष हो गयी हूं... बेहद का खज़ाना पाकर मैं आत्मा मालामाल हो गयी हूँ... नया जीवन मिला और इस दुःख भरी दुनिया से निकल कर अपने पिता परमात्मा की बाहों में ईश्वरीय पालना में झूल रही हूं... आपने मुझे ये अनमोल जीवन देकर मेरी झोली खुशिओं से भर दी है...*"

 

❉  *मेरे गालों को सहलाते हुए बाबा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जितना तुम श्रीमत पर चलेंगे उतना ही ऊंच पद पाएंगे... *तुम्हारा टीचर कोई देहधारी नही हैं स्वयं भगवान है सदैव इस नशे में रहो तो माया वार नही करेगी... भोलानाथ अपने बच्चों को स्वर्ग की बादशाही देने आये हैं... अपने भक्तों को भक्ति का फल देकर अपने साथ ले जाने आये हैं...*"

 

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बातों से अपने में उमंग उत्साह भर्ती हुई बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे मेरे दिलाराम बाबा... भगवान मेरा टीचर है मुझे पढ़ाने परमधाम से आते हैं यह स्मृति आते ही मैं आत्मा गद गद हो जाती हूँ... शायद ही मुझ जैसा कोई भाग्यवान होगा जिसको स्वयं भगवान पढ़ाते हैं... *अपने भाग्य को देखकर मैं आत्मा खुशी में झूम जाती हूँ और अपने दिल की गहराइयों से बाबा को बारम्बार शुक्रिया कर रही हूं... बाबा को आभार प्रकट कर मैं आत्मा पुनः अपने साकारी तन में लौट आती हूँ...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  माया पर जीत पाकर श्रीकृष्ण समान जगतजीत बनना है*

 

➳ _ ➳  एक खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण एकांत स्थान पर बैठी, प्रभु चिंतन करते हुए मन बुद्धि से प्रभु मिलन के अनेक सुन्दर - सुन्दर दृश्य देख मैं मन ही मन हर्षित हो रही हूँ। इन अति सुंदर मनभावन दृश्यों को देखते - देखते एक दृश्य में मैं जैसे खो जाती हूँ। *इस दृश्य में मैं देख रही हूँ नटखट श्री कृष्ण को उनके बाल रूप में अनेक प्रकार की लीलाएं करते हुए। उनकी लीलाओं का भरपूर आनन्द लेते हुए मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि श्रीकृष्ण के इस पद को पाने के लिए प्यारे ब्रह्मा बाबा ने कितना पुरुषार्थ किया। माया पर जीत पाकर जगतजीत बने तभी भविष्य नई दुनिया के फर्स्ट प्रिन्स बनने का गौरव उन्होंने प्राप्त किया*। अब मुझे भी भविष्य नई दुनिया में प्रिन्स प्रिंसेज बन, 21 जन्मों की राजाई पाने के लिए माया पर जीत पाकर श्री कृष्ण समान जगतजीत बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है। मन ही मन यह संकल्प करके, माया पर जीत पहनाने वाले अपने प्यारे बाबा की मीठी - मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ।

 

➳ _ ➳  मेरे मीठे बाबा की मीठी यादें वातावरण में जैसे एक रूहानी जादू बिखेर रही है। दुनिया की भीड़ से अलग इस एकांत स्थान में मेरे प्यारे बाबा की मीठी यादें मन को गहन सुकून दे रही है। *इन आँखों से नजर ना आते हुए भी अपने दिलाराम बाबा को मैं अपने आस -पास महसूस कर रही हूँ। उनकी उपस्थिति का और भी गहराई से अनुभव करनेे के लिए हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर, सम्पूर्ण एकाग्र अवस्था मे स्थित होने के लिए अपने सम्पूर्ण ध्यान को भृकुटि के बीच, अपने स्वरूप पर मैं केंद्रित कर लेती हूँ*। एकाग्रता की शक्ति धीरे - धीरे सारे शरीर से चेतनता को समेट कर एक बिंदु पर आ कर स्थित हो जाती है। देख रही हूँ अब मैं दिव्य बुद्धि से उस बिंदु को जो मस्तक के बिल्कुल बीच मे चमक रहा है। इस बिंदु से निकल रहा प्रकाश मन को गहन शांति और सुख प्रदान कर रहा है।

 

➳ _ ➳  अपने इस अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स को चारों और फैलता हुआ मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। इन वायब्रेशन्स से मेरे चारों ओर का वायुमण्डल एक अलौकिक दिव्यता से भरने लगा है। *एक अद्भुत खुमारी में डूबी मैं आत्मा अपने इस निराले स्वरूप का आनन्द लेते हुए अब अपने प्यारे पिता का आह्वान करती हूँ और सेकण्ड में महसूस करती हूँ कि  ज्ञान सूर्य शिवबाबा जैसे मेरे बिल्कुल ऊपर स्थित हैं*। उनकी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की छत्रछाया को मैं अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। मेरे प्यारे पिता से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों से मेरे चारों तरफ एक शक्तिशाली औरे का निर्माण हो रहा है जो धीरे - धीरे विस्तार को पाता जा रहा है। इसे निरन्तर बढ़ता हुआ मैं देख रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकाश के इस औरे में सारा संसार समा गया है।

 

➳ _ ➳  अपने प्यारे शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों से निर्मित प्रकाश के इस औरे के साथ अब मैं आत्मा देह से निकल कर अपने ऊपर स्थित अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे उनके साथ उनके धाम जा रही हूँ। *परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, मायाजीत बनने का संकल्प मन मे लिए मैं अपने पिता के साथ ऊपर की ओर उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को पार कर अपनी निराकारी दुनिया मे पहुंच जाती हूँ*। चैतन्य सितारों से सजी आत्माओं की इस दुनिया में अपने निराकार शिव पिता की किरणों रूपी बाहों के घेरे से निकल कर अब मैं अपने इस शांति धाम घर मे फैली शांति का गहन अनुभव करते हुए इस अन्तहीन ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही हूँ। *स्थूल सांसारिक आकर्षणों से मुक्त, इस साइलेन्स वर्ल्ड में विचरण करने का अनुभव बहुत अदबुत और निराला है*।

 

➳ _ ➳  इस अन्तहीन ब्रह्माण्ड की सैर करके, असीम आनन्द ले कर अब मैं परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिए, सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास जाकर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के फव्वारे के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। सर्वशक्तियों की किरणों की रंगबिरंगी फुहारे मेरे ऊपर बरसने लगती हैं और मुझे सर्वशक्तियों से भरपूर करने लगती हैं। *कुछ समय अपने प्यारे पिता की किरणों की छत्रछाया में बैठ उनकी शक्तियों को स्वयं में भरकर, शक्तिशाली बन कर मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ*।

 

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं माया पर जीत पाकर, जगतजीत बनने के लिए स्वयं को सदा परमात्म छत्रछाया के अंदर रखती हूँ। *बाबा की याद से माया पर विजय प्राप्त करने के साथ - साथ श्रीकृष्ण समान 16 कला सम्पूर्ण बनने के लिए, अपने प्यारे ब्रह्ना बाप के कदम पर कदम रखते हुए उनके समान बनने का भी पुरुषार्थ मैं पूरी लग्न और दृढ़ता के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बैलेंस की विशेषता को धारण कर सर्व को ब्लैसिंग देने वाली शक्तिशाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं विस्तार को सेकंड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव करा लाइट माइट हाउस बनने वाला फरिश्ता हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति से व्यर्थ के किचड़े को समाप्त करो:- सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा समझते हो?  *सर्वशक्तिवान अर्थात् समर्थ। जो समर्थ होगा वह व्यर्थ के किचड़े को समाप्त कर देगा*। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् व्यर्थ का नाम निशान नहीं। *सदा यह लक्ष्य रखो कि - ‘मैं व्यर्थ को समाप्त करने वाला समर्थ हूँ*'। जैसे सूर्य का काम है किचड़े को भस्म करना। अंधकार को मिटानारोशनी देना। तो इसी रीति मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् - व्यर्थ किचड़े को समाप्त करने वाले अर्थात् अंधकार को मिटाने वाले।

 

 _ ➳  *मास्टर सर्वशक्तिवान व्यर्थ के प्रभाव में कभी नहीं आयेगा*। अगर प्रभाव में आ जाते तो कमजोर हुए। बाप सर्वशक्तिवान और बच्चे कमजोर! यह सुनना भी अच्छा नहीं लगता। कुछ भी हो - लेकिन सदा स्मृति रहे -‘‘मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ''। ऐसा नहीं समझो कि मैं अकेला क्या कर सकता हूँ.. एक भी अनेकों को बदल सकता है। तो स्वयं भी शक्तिशाली बनो और औरों को भी बनाओ। जब एक *छोटा-सा दीपक अंधकार को मिटा सकता है तो आप क्या नहीं कर सकते*! तो सदा वातावरण को बदलने का लक्ष्य रखो। विश्व परिवर्तक बनने के पहले सेवाकेन्द्र के वातावरण को परिवर्तन कर पावरफुल वायुमण्डल बनाओ।

 

✺   *"ड्रिल :- व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित करना।"*

 

 _ ➳  अष्ट शक्तियों के घेरे में सुरक्षित मैं आत्मा हीरा, देह सहित बैठ गयी हूँ, बाप दादा के चित्र के सामने... बापदादा की आँखों से बहती स्नेह की अविरल धारा प्रकाश की असंख्य धाराओं के रूप में मुझ तक आ रही है... आकाश में बादलों के पीछे से झाँकता सूरज जैसे बादलों को अपने सुनहरे रंग में रंग देता है उसी प्रकार रूहानी रंग से रंगी मेरी ये देह भी अपनी स्थूलता भूल चुकी है... *बस रूह ही बाकी है यहाँ और रूहानियत के पैमाने है... उतर रहा नूर परमधाम से उसका, निर्बाध से ये मयखाने है...* मैं आत्मा हीरा अपने कवच में सुरक्षित तेज गति से उडती हुई पहुँच गयी हूँ परम धाम... गुणों, शक्तियों का शान्त-सा सागर, शिव बिन्दु अनगिनत आत्मा मणियों का गुलदस्ता सजाये, किरणों रूपी लहरों से मानों मेरा आह्वान कर रहा है... मैं आत्मा मणि समाँ जाती हूँ उन किरणों के आगोश में, और आहिस्ता आहिस्ता एकरूप होती जा रही हूँ उन लहरों के साथ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता रूप में, बादलों के विमान पर सवार होकर बापदादा के साथ विश्व सेवा पर... आहिस्ता आहिस्ता ये विमान उतर गया है सुन्दर शान्त झील के किनारे... झील में मोती चुगते हंसों की पंक्ति... *विवेक बुद्धि से व्यर्थ रूपी कंकड़ अलग कर केवल मोती चुग रहें है...* देखते ही देखते मैं आत्मा हंस रूप धारण कर हंसों की पंक्ति का हिस्सा बन गयी हूँ... बापदादा मुझे देखकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे हैं... और धीरे से मेरे पास आकर मुझे सर्वशक्तिमान की स्मृति दिला रहे है... मैं फरिश्ता उडकर पहुँच गया हूँ आकाश में और एक ही प्रयास में हाथ बढाकर सूर्य का गोला किसी बाॅल की तरह उछालता हुआ बापदादा  के सम्मुख उपस्थित हो गया हूँ... कानों में गूँज रहे है बापदादा के वही महावाक्य *एक छोटा सा दीपक अंधकार को मिटा सकता है तो आप क्या नही कर सकते...*

 

 _ ➳  *और मैं अकेला ही निकल गया हूँ संसार के किचडे को भस्म करने, व्यर्थ को समर्थ में बदलने...* झील के उस तरफ देख रहा हूँ... सूखे झाड झाडियाँ, व्यर्थ के कँटीले घास फूस और अज्ञानता की गहन गुफाएँ... बापदादा का इशारा पाते ही सूर्य रूपी गेंद मैंने उछाल दी है उस तरफ... *एक तेज विस्फोट और तेज ज्वाला के साथ भस्म होता वो सूखा किचडा, प्रकाश में नहा उठी है वो गुफाएँ... वो हृदय रूपी गुफाएँ...* और मैं बापदादा के कन्धे पर बैठकर खुशी से झूमता हुआ... स्वयं की समर्थता का भी जश्न मनाता हुआ, वापस लौट आया हूँ उसी अष्ट शक्तियों के घेरे में सर्वशक्तिमान की गहरी स्मृति के साथ... अष्ट शक्तियों रूपी सेविकाएँ पग-पग पर मेरे इशारों पर मौन नर्तन करती हुई... *हर व्यर्थ को समर्थ करने के पुरूषार्थ में पहले से ज्यादा तल्लीनता के साथ जुटी हुई है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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