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 13 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप और स्वीट होम की याद से स्वयं को पावन बनाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *रूहानी पंडा बन सबको सच्ची यात्रा कराई ?*

 

➢➢ *अमृतवेले से लेकर रात तक मर्यादापूर्वक चलने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *किसी भी बात में स्वयं को मोल्ड कर सर्व की दुआओं के पात्र बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  डबल लाइट अर्थात् आत्मिक स्वरुप में स्थित होने से हल्कापन स्वत: हो जाता है। ऐसे डबल लाइट को ही फरिश्ता कहा जाता है। *डबल लाइट अर्थात् सदा उड़ती कला का अनुभव करने वाले।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाबा के साथ सदा कम्बाइण्ड रहने वाली आत्मा हूँ"*

 

〰✧  सभी अपने को सदा बाप और आप कम्बाइण्ड हैं-ऐसा अनुभव करते हो? जो कम्बाइण्ड होता है उसे कभी भी, कोई भी अलग नहीं कर सकता। आप अनेक बार कम्बाइण्ड रहे हो, अभी भी हो और आगे भी सदा रहेंगे। ये पक्का है? तो इतना पक्का कम्बाइण्ड रहना। *तो सदैव स्मृति रखो कि- 'कम्बाइण्ड थे, कम्बाइण्ड हैं और कम्बाइण्ड रहेंगे। कोई की ताकत नहीं जो अनेक बार के कम्बाइण्ड स्वरूप को अलग कर सके।'* तो प्यार की निशानी क्या होती है? (कम्बाइण्ड रहना) क्योंकि शरीर से तो मजबूरी में भी कहाँ-कहाँ अलग रहना पड़ता है। प्यार भी हो लेकिन मजबूरी से कहाँ अलग रहना भी पड़ता है। लेकिन यहाँ तो शरीर की बात ही नहीं। एक सेकेण्ड में कहाँ से कहाँ पहुंच सकते हो!

 

✧  आत्मा और परमात्मा का साथ है। परमात्मा तो कहाँ भी साथ निभाता है और हर एक से कम्बाइण्ड रूप से प्रीत की रीति निभाने वाले हैं। हरेक क्या कहेंगे-मेरा बाबा है। या कहेंगे-तेरा बाबा है? हरेक कहेगा-मेरा बाबा है! तो मेरा क्यों कहते हो? अधिकार है तब ही तो कहते हो। *प्यार भी है और अधिकार भी है। जहाँ प्यार होता है वहाँ अधिकार भी होता है। अधिकार का नशा है ना। कितना बड़ा अधिकार मिला है! इतना बड़ा अधिकार सतयुग में भी नहीं मिलेगा! किसी जन्म में परमात्म-अधिकार नहीं मिलता। प्राप्ति यहाँ है। प्रालब्ध सतयुग में है लेकिन प्राप्ति का समय अभी है।* तो जिस समय प्राप्ति होती है उस समय कितनी खुशी होती है! प्राप्त हो गया-फिर तो कॉमन बात हो जाती है।

 

✧  लेकिन जब प्राप्त हो रहा है, उस समय का नशा और खुशी अलौकिक होती है! तो कितनी खुशी और नशा है! क्योंकि देने वाला भी बेहद का है। तो दाता भी बेहद का है और मिलता भी बेहद का है। तो मालिक किसके हो-हद के या बेहद के? *तीनों लोक अपने बना दिये हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन हमारा घर है और स्थूल वतन में तो हमारा राज्य आने वाला ही है। तीनों लोकों के अधिकारी बन गये! तो क्या कहेंगे- अधिकारी आत्मायें।* कोई अप्राप्ति है? तो क्या गीत गाते हो? (पाना था वह पा लिया) पाना था वह पा लिया, अभी कुछ पाने को नहीं रहा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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छोडना भी नहीं चाहते और उडना भी नहीं चाहते। तो क्या करना पडेगा? चलना पडेगा। चलने में तो जरूर मेहनत लगेगी ना। इसलिए *अब कमजोर रचना बन्द करो तो मन की मेहनत से छूट जायेंगे।* फिर हँसी की बात क्या कहते हैं? बाप कहते यह रचना क्यों करते, तो जैसे आजकल के लोग कहते हैं ना - क्या करें ईश्वर दे देता है। दोष सारा ईश्वर पर लगाते हैं, ऐसे यह व्यर्थ रचना पर क्या कहते? हम चाहते नहीं है लेकिन माया आ जाती है। हमारी चाहना नहीं है लेकिन हो जाता है। इसलिए *सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे मालिक बनो। राजा बनो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *रूहे गुलाब अर्थात् जिसमें सदा रूहानी खुशबू हो। रूहानी खुशबू वाले जहाँ भी देखेंगे, जिसको भी देखेंगे तो रूह को देखेंगे, शरीर को नहीं देखेंगे। स्वयं भी सदा रूहानी स्थिति में रहेंगे और दूसरों की भी रूह को देखेंगे। इसको कहते हैं रूहानी गुलाब।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद के बाप का वर्सा लेना और सभी को दिलाना"*

 

 _ ➳  *शिवबाबा परमधाम से आकर, मेरे दामन में सुखों के... खुशियों के फूल बिखेरेंगे... मुझे अपना बनाकर... इस कदर मेरा ख्याल रखेंगे... अपनी श्रीमत देकर, पुरानी दुनिया के दुःख भरे जंजाल से निकाल... सुखों की बाड़ सजाकर... मुझे खिलता हुआ रूहानी गुलाब सा महकाएँगे...* ऐसा तो मैने कभी सोचा भी न था... मैं तो इस सांसारिक दुनिया के चक्कर में फंसकर उन्हें भूल गयी थी... लेकिन उन्होंने सदा मेरा ध्यान रखा... बस इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलकें लिए प्यार के सागर बाबा को निहारने मैं आत्मा... वतन में उड़ चली...

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार श्रीमत को समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा यह याद रखो कि *तुम बच्चे ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से स्वर्ग की बादशाही पाने के लिये राजयोग सीख रहे हो... शिवबाबा तुमको जो समझाते हैं... वह फिर तुम्हें औरों को समझाना है...* जैसे तुम निरन्तर एक बाप की याद में रह... हर कर्म करते हो... वैसे ही सभी आत्माओं को बाप का परिचय दे... इस संगमयुग के महत्व को समझाओ... उन्हे भी सतयुगी वर्से का अधिकारी बनाओ..." 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे अविनाशी बाबा... *मुझे इस जीवन में आप... अविनाशी साजन के रूप में... प्रेम करने का श्रेष्ठ अवसर मिला... खुद भगवान ने आकर मुझे अपनी प्रियतमा बनाया... वाह!! यह तो मेरा परम् सौभाग्य है... जो मुझे अविनाशी साजन मिला है...* मैं आप द्वारा सिखाये राजयोग का अभ्यास... आदि-मध्य-अंत का ज्ञान... सभी आत्माओं को बता रही हूँ..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियों को, मीठे सुखों को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियों से हर दिल आंगन को भर आओ... सबके कौड़ी जैसे जीवन को हीरे तुल्य बनाने की कला सिखा दो... *सबके जीवन में सुखों की बहारों को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओं को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :-* "मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखों की अनुभूतियों से भरकर... *आपसे प्राप्त वर्से के अनुभव की दौलत को हर दिल पर... दिल खोलकर... लुटा रही हूँ...* अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियों की अधिकारी बना रही हूँ..."

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में श्रेष्ठ संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे राजदुलारे बच्चे...  *शिवपिता से जो आपने... अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस परम सत्य को सदा स्मृति में रखना... अर्थात स्मृति स्वरूप बन सदा ईश्वरीय नशे में रह हर आत्मा को इस परम् सत्य से रूबरू करवाना...* तो तुम्हारा यह जीवन सहज ही सफल हो जायेगा..." 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर, मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... *मैं आत्मा हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिये हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ...* बेहद के पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ... *मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनायें सुनाकर मैं आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप की मत से स्वयं को डबल सिरताज बनाना है*"

 

_ ➳  केवल एक परमपिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत ही श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाली है इसलिए उनकी मत पर चलना माना डबल सिरताज बन भविष्य 21 जन्मों के लिए अपनी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाना। *मन ही मन एकांत में बैठ, विचार सागर मन्थन करते हुए मैं अपने श्रेष्ठ भाग्य के बारे में चिंतन करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ भगवान स्वयं श्रेष्ठ मत देकर मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं*। मुझे डबल सिरताज बना रहे हैं। ऐसे प्यारे शिव पिता परमात्मा पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए।

 

_ ➳  उनका वफादार फरमानबरदार बन सदा उनकी श्रीमत पर चलने की मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने डबल सिरताज स्वरूप को स्मृति में लाकर अपने उस स्वरूप का आनन्द लेते हुए मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जो मेरा इंतजार कर रही है। *वो दुनिया जहाँ 21 जन्म मुझे राज्यभाग्य का सुख भोगना है। उस खूबसूरत स्वर्गिक दुनिया के अति सुंदर नजारे अब मेरी आंखों के सामने चित्रित हो रहें है और उन खूबसूरत नजारों का मैं आनन्द ले रही हूँ*।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं स्वयं को विश्व महाराजन के रूप में, सतयुगी दुनिया मे हीरे जवाहरातों से सजे एक बहुत बड़े राजमहल में जहाँ राजाओ, महाराजाओ की एक विशाल सभा के बीच, एक रत्न जड़ित सिहांसन पर मैं विराजमान हूँ और मेरा राज्य अभिषेक हो रहा है। *डबल सिरताज विश्व महाराजन बन सारे विश्व पर मैं राज्य कर रहा हूँ। मेरी इस स्वर्णिम दुनिया मे प्रकृति भी दासी बन सबको सुख दे रही है। राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं*। पुष्पक विमानों पर बैठ देवी देवता विश्व भ्रमण कर रहें हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं।

 

_ ➳  रमणीकता से भरपूर देवलोक के मनभावन, अति सुन्दर नजारों का और अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न, डबल सिरताज विष्णु चतर्भुज स्वरूप का आनन्द लेते - लेते एक अद्भुत नारायणी नशा मुझ आत्मा पर स्वत: ही छाने लगता है। *अपने इस डबल सिरताज स्वरूप को पाने का लक्ष्य सामने रख अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और अपने प्यारे पिता का शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने इतना खूबसूरत लक्ष्य और उसे पाने की श्रेष्ठ मत मुझे दी*। अपने डबल सिरताज स्वरूप की स्मृति में खोकर, एक अद्भुत रूहानी नशे से भरपूर, अपने पिता से मिलने का संकल्प ले कर, अब अपने आत्मिक स्वरूप में मैं स्थित होती हूँ और देह से डिटैच निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा बन अपने प्यारे पिता के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  एक अति सुंदर न्यारे पन का अनुभव करते हुए मैं अति सूक्ष्म प्वाइंट ऑफ लाइट अपनी किरणो को चारों और फैलाती हुई अब धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे इस धरती के आकर्षण से मैं पूरी तरह मुक्त हूँ और एक मैग्नेटिक पावर अपनी फुल फोर्स के साथ मुझे ऊपर की और खींच रही है। तीव्र गति से उड़ती हुई मैं आकाश को पार करके उससे भी ऊपर सफेद प्रकाश से प्रकाशित सूक्ष्म फ़रिशतो की आकारी दुनिया को क्रॉस करके  अब एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रही हूँ जहाँ मेरे ही समान असंख्य चमकते हुए सितारे मुझे दिखाई दे रहें हैं*। आत्माओं की यह निराकारी दुनिया मेरा घर है जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं अपने सामने अपने शिव पिता को एक ज्योतिपुंज के रूप में, अपने प्रेम की किरणों की शीतल फ़ुहारें मुझ पर बरसाते हुए, अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में मुझे समाने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं। *उनके प्रेम की शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती हुई मैं उनकी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में जा कर समा जाती हूँ। मेरे प्यारे बाबा की सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर समाकर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में गहराई तक समाकर, सर्वशक्तियों से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकार लोक में लौट रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, बाबा की शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण करते हुए, उनकी श्रीमत पर चलकर स्वयं को डबल सिरताज बनाने का पूरा पुरुषार्थ मैं पूरी लगन और दृढ़ता के साथ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अमृतवेले से लेकर रात तक मर्यादापूर्वक चलने वाली मर्यादा पुरुषोत्तम       आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं किसी भी बात में स्वयं को मोल्ड कर सर्व की दुआओं की पात्र बनने वाली सरल आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *एक होती है कल्याण के भावना की सेवा और दूसरी होती है स्वार्थ से।* *मेरा नाम आ जायेगामेरा अखबार में फोटो आ जायेगा, मेरा टी.वी. में आ जायेगामेरा ब्राह्मणों में नाम हो जायेगाब्राह्मणी बहुत आगे रखेगीपूछेगी..... यह सब भाव स्वार्थी-सेवा के हैं।* क्योंकि आजकल के हिसाब सेप्रत्यक्षता के हिसाब सेअभी सेवा आपके पास आयेगीशुरू में स्थापना की बात दूसरी थी लेकिन अभी आप सेवा के पिछाड़ी नहीं जायेंगे। *आपके पास सेवा खुद चलकर आयेगी। तो जो सच्चा सेवाधारी है उस सेवाधारी को चलो और कोई सेवा नहीं मिली लेकिन बापदादा कहते हैं अपने चेहरे सेअपने चलन से सेवा करो।* आपका चेहरा बाप का साक्षात्कार कराये। आपका चेहरा, आपकी चलन बाप की याद दिलावे। ये सेवा नम्बरवन है। ऐसे सेवाधारी जिनमें स्वार्थ भाव नहीं हो। ऐसे नहीं मुझे ही चांस मिलेमेरे को ही मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता, मिलना चाहिए - *ऐसे संकल्प को भी स्वार्थ कहा जाता है।*

➳ _ ➳  चाहे ब्राह्मण परिवार में आपका नाम नामीग्रामी नहीं है,सेवाधारी अच्छे हो फिर भी आपका नाम नहीं हैलेकिन बाप के पास तो नाम है ना, *जब बाप के दिल पर नाम है तो और क्या चाहिए!* *और सिर्फ बाप के दिल पर नहीं लेकिन जब फाइनल में नम्बर मिलेंगे तो आपका नम्बर आगे होगा। क्योंकि बापदादा हिसाब रखते हैं।* आपको चांस नहीं मिलाआप राइट हो लेकिन चांस नहीं मिला तो वो भी नोट होता है। और मांग कर चांस लियावो किया तो सही लेकिन वो भी मार्क्स कट होते हैं।

➳ _ ➳  *ये धर्मराज का खाता कोई कम नहीं है। बहुत सूक्ष्म हिसाब-किताब है। इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनोअपना स्वार्थ नहीं हो। कल्याण का स्वार्थ हो।* यदि आपको चांस है और दूसरा समझता है कि हमको भी मिले तो बहुत अच्छा और योग्य भी है तो अगर मानो आप अपना चांस उसको देते हो तो भी आपका शेयर उसमें जमा हो जाता है। चाहे आपने नहीं कियालेकिन किसको चांस दिया तो उसमें भी आपका शेयर जमा होता है। क्योंकि *सच्चा डायमण्ड बनना है ना। तो हिसाब-किताब भी समझ लोऐसे अलबेले नहीं चलोठीक हैहो गया...... बहुत सूक्ष्म में हिसाब-किताब का चौपड़ा है। बाप को कुछ करना नहीं पड़ता हैआटोमेटिक है।*

✺   *ड्रिल :-  "नि:स्वार्थ सेवाधारी बन सच्चा डायमण्ड बनना"*

➳ _ ➳  *मैं आत्मा अपने ही धुन में तितली की भांति उड़ती चली जा रही हूँ... कभी इस फूल पे तो कभी किसी बादल की टुकड़ी पर...* जो भी मुझे देख रहे खुश हो रहे, तारीफ कर रहे... मैं आत्मा देख रही हूँ हर बादल की टुकड़ी को... वो कभी टी.वी, तो कभी अखबार है... अपनी ऊंचाइयों को छूती जा रही हूँ... कितना सुकून है जहां सिर्फ मैं ही मैं हूँ... कितना ना आराम से बैठी हूँ बादल की टुकड़ी पर... और देखती हूँ कि दिव्य किरणें नीचे की ओर आ रही है... *ये किरणें चारों ओर फैल रही है... देखती हूँ बाबा धीरे-धीरे किरणों से उतरते जा रहे हैं...*

➳ _ ➳  बाबा मेरे हाथ थामे माउंट आबू की पहाड़ी पर ले जाते हैं... और बाबा के साथ बैठ जाती हूँ... *बाबा कहते हैं बच्चे तुम अपने दिव्य बुद्धि से देखो, त्रिकालदर्शी बन अपनी हर एक पार्ट को देखो जो अंतिम जन्म तक भी श्रेष्ठ है...* अपनी असली स्वरूप की स्मृति होते ही अल्पकाल की मान, प्रशंसा, नाम की जो भी संकल्प रहते थे उससे डिटैच होने लगी हूँ...

➳ _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के सानिध्य में बैठी बाबा से पवित्रता की सफेद किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... जो मेरे देहभान को खत्म करता जा रहा है...* ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान की नीली किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... मास्टर ज्ञान सूर्य बन मास्टर दाता बनती जा रही हूँ... स्नेह, सुख, शांति, शक्ति, आनंद की रंगबिरंगी किरणें मुझमें समाती जा रही है... सातों गुणों से भरपूर होकर मैं आत्मा इच्छा मात्रम अविद्या सी हो गयी हूँ... देहअभिमान से छूटती देहिअभिमानी होती जा रही हूँ... मैं आत्मा डायमंड जैसी बनती जा रही हूँ... *बाबा ने कहा कि बच्चे सेवा तुम्हारे पास चल कर आएगी... तुम्हें सेवा मांगना नहीं है... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है...*

➳ _ ➳  *कल्प-कल्प मैं आत्मा ही निस्वार्थ सेवाधारी बनी हूँ... हर ब्राह्मण आत्मा को शुभभावना, शुभकामना की टचिंग हो रही है...* हर ब्राह्मण आत्मा को सेवा का चांस मिलता जा रहा है... कोई न कोई सेवा का चांस बाबा मुझ आत्मा द्वारा औरों को भी दे रहे हैं... *ये ब्राह्मण जीवन सफल होता जा रहा है... कल्प-कल्प के लिए श्रेष्ठ भाग्य का खाता नूँध हो गया है... वाह रे मैं आत्मा... वाह रे मेरा भाग्य...*

➳ _ ➳  *दिलाराम बापदादा की दिलतख़्तनशीन बन गई हूँ... सच्चा-सच्चा  डायमंड बनती जा रही हूँ... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है... बाबा ने मुझ आत्मा को बेदाग, सच्चा डायमंड बना दिया है...* एक चमकता हुआ डायमंड जो रोशनी से भरपूर होकर... औरों को भी अपने चेहरे और चलन से बाबा की प्रत्यक्षता करती जा रही है... शुक्रिया बाबा... बहुत बहुत शुक्रिया... जो धर्मराज के खाते में पुण्य जमा होता जा रहा है... सूक्ष्म हिसाब-किताब का चौपड़ा भी चमक रहा... *शुक्रिया बाबा जो सच्चा डायमंड बन गई हूँ... ओम् शान्ति।*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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