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❍ 28 / 03 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सबको लक्ष्य देने की सेवा की ?*
➢➢ *विचार सागर मंथन कर ज्ञान की गहराई में गए ?*
➢➢ *अनुभवों की सम्पन्नता द्वारा सदा उमंग उल्लास में रहे ?*
➢➢ *अमृतवेला का महत्व जान इसका पूरा लाभ लिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सेवा में सफलता का मुख्य साधन है-त्याग और तपस्या ।* ऐसे त्यागी और तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लग्न में लवलीन, प्रेम के सागर में समाए हुए, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए को ही कहेंगे-तपस्वी । *ऐसे त्याग तपस्या वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मायें अनुभव करते हो? *यह साक्षीपन की स्थिति सबसे बढिया श्रेष्ठ सीट है। इस सीट पर बैठ कर्म करने या देखने में बहुत मजा आता है।* जैसे सीट अच्छी होती है तो बैठने में मजा आता है ना। सीट अच्छी नहीं तो बैठने में मजा नहीं।
〰✧ *यह 'साक्षीपन की सीट' सबसे श्रेष्ठ सीट है।* इसी सीट पर सदा रहते हो? दुनिया में भी आजकल सीट के पीछे भाग-दौड़ कर रहे हैं। आपको कितनी बिढ़या सीट मिली हुई है। जिस सीट से कोई उतार नहीं सकता।
〰✧ उन्हों को कितना डर रहता है, आज सीट है कल नहीं। आपको अविनाशी है निर्भय होकर बैठ सकते हो। *तो साक्षी-पन की सीट पर सदा रहते हो। अपसेट वाला सेट नहीं हो सकता। सदा इस सीटपर सेट रहो। यह ऐसी आराम की सीट है जिस पर बैठकर जो देखने चाहो जो अनुभव करने चाहे वह कर सकते हो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ वह अनुभव, वह अन्तिम स्थिती की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अन्तिम स्थिति के नजदीक है। जैसे सूर्य अपने जब पूरे प्रकाश में आ जाता है तो हर चीज स्पष्ट देखने में आती है। जो अन्धकार है, धूंध है वह सभी खत्म हो जाते है। *इसी रीती जब सर्वशक्तिवान ज्गान सूर्य के साथ अटुट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आयेगी*।
〰✧ *जो चलते - चलते पुरुषार्थ में माया का अंधकार वा धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपाने वाले हैं, वह हट जायेंगे*। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज लेकर देते हैं।
〰✧ तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन - सी अनोखी चीज देंगे? *आज के इस मधुर मिलन के मेले का यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिंतक और शुभ चिंतन में रहना।* शुभ चिंतक और शुभ चिंतन। यह दो बातें सदैव याद रखना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *एक होता है डायरेक्ट विकर्म विनाश की स्टेज में स्थित हो फुल फोर्स से विकर्मों का नाश करना। दूसरा तरीका है जितना-जितना शुद्ध संकल्प वा मनन की शक्ति से अपनी बुद्धि को बिज़ी रखते हो, वह जो शक्तियां जमा होती हैं, तो उनसे वह धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा।* बुद्धि में यह भरने से वह पहले वाला स्वयं ही निकल जायेगा। *एक होता है पहले सारा निकाल कर फिर भरना, दूसरा होता है भरने से निकालना। अगर खाली करने की हिम्मत नहीं है तो दूसरा भरते जाने से पहला आपेही खत्म हो जायेगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सब पुरानी चीजें लेकर नई देने वाला भोला व्यापारी एक बाप है"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा, पदमापदम् भाग्यशाली... *जो स्वयं भाग्य विधाता भोला व्यापारी बन पुराना कखपन ले... नई दुनिया की बादशाही देने... अपनी गोद की पालना देने स्वयं मेरे पास आये हैं...* मैं अपने दिल की बात बाबा से कहती हूँ... मेरे मीठे प्यारे बाबा... आप कितने भोले हो... जो मेरे पुराने स्वभाव संस्कार को... जानते हुए भी... मुझे सतयुगी दुनिया में ले चलने के लिये आये हो..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की भावनाओ से सजाते हुए कहा:-* "मेरे मीठे प्यारे फूल बच्चे... *तुम्हारे पास जो पांच खोटे सिक्के हैं... वो मुझे दे दो... पवित्र योगी जीवन जियो...* और मुझ ईश्वर पिता की यादों में डूबकर, श्रीमत के हाथो में अपना हाथ देकर... सबको श्रेष्ठ जीवन का पाठ पढ़ाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे प्यारे बाबा के प्यार को दिल में समेटते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... *आपने मुझ आत्मा के जीवन को... सदा के लिये सुखो से आबाद कर दिया है... दिव्य गुणों शक्तियों और पवित्रता से सजाकर मुझे देवताई गुणों से सजा दिया है...* मैं आत्मा दुःख भरी जिंदगी से निकल... सुख शांति से भरी जिंदगी जी रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने अतुलनीय खजानों का मालिक बनाते हुए कहा:-* "मेरे प्यारे राज दुलारे बच्चे... स्वयं से कभी यह पूछा है कि *सबसे अधिक सुख देने वाला कौन है...सद्गतिदाता कौन है...? ऐसे-ऐसे विचार सागर मन्थन करने से बुद्धि एकाग्र भी होती है और तीक्ष्ण भी होती है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में दिल से कुर्बान होते हुए कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे मेरे बाबा... सच में मैं आत्मा... आपके बिना... आपके प्यार के बिना अधूरी थी बाबा... आपके बिना तो बिलकुल अकेली थी मैं आत्मा... *सच्चा सुख... सच्ची खुशियां तो मुझ आत्मा को आपसे ही प्राप्त हुई... प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को काँटों से निकाल फूल जैसी खुशबू भरा बना दिया है...* मैं आत्मा अब आपका साथ कभी भी नहीं छोडूंगी..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे बच्चे... *ईश्वर पिता के साथ यह वरदानी समय... बहुत कीमती है... बेशकीमती है... इसे अब सार्थक करो... अपना पुराना स्वभाव संस्कार... पुराना कखपन... मुझे दे दो... और स्वयं बेफिक्र होकर जियो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की प्यार भरी मुस्कराहट को देखते हुए कहती हूँ:-* "मेरे सिकीलधे बाबा... *आपने मुझ आत्मा का हाथ पकड़ कर... मुझे फूलों जैसा खुशबूदार जीवन दे दिया है...* अब मैं आत्मा हर कर्म आपकी श्रीमत प्रमाण... पवित्र राह पर चल कर करुँगी... मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... स्थूल देह में लौट आई..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मण सो देवता बनने के लिए स्वदर्शन चक्र का और मनमनाभव का अर्थ बुद्धि में यथार्थ रीति रखना है*"
➳ _ ➳ एक ऊँची पहाड़ी पर बैठी मैं प्रकृति के खूबसूरत नजारो का आनन्द ले रही हूँ और साथ - साथ अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन के बारे में भी विचार कर रही हूँ और *अपने भाग्य की महिमा करते हुए सोच रही हूँ कि आज दिन तक जिन देवी देवताओं के जड़ चित्रों के आगे मैं माथा टेकती आई वो देवी देवता कोई और नही मैं ही ब्राह्मण सो देवता बनने वाली वो परम पूज्य, महान आत्मा*। मैं ही हूँ वो अष्ट भुजाधारी दुर्गा जिसकी नवरात्रों के रुप में आज दिन तक पूजा हो रही है। अपने बारे में सोचती, अपने आप से बातें करती अचानक मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरी आँखों के सामने दो चित्र बार - बार प्रकट हो रहें हैं।
➳ _ ➳ ध्यान लगाकर इन चित्रों को मैं देखने का प्रयास करती हूँ और महसूस करती हूँ कि मेरी आँखों के बिल्कुल सामने श्री कृष्ण और विष्णु चतर्भुज की दो विशाल प्रतिमाएं दिखाई दे रही हैं। *इन विशाल प्रतिमाओं को देख भक्ति में इनके चरित्रों के बारे में वर्णित बातें स्मृति में आने लगती है और मैं विचार करती हूँ कि दुनिया के सभी मनुष्य मात्र कितने बड़े घोर अंधियारे में हैं जो समझते हैं कि विष्णु ने स्वदर्शन चक्र चला कर असुरों का संहार किया*। ये बात भी किसी की बुद्धि में नही आती कि सबको सुख देने वाले देवता भला हिंसा कैसे कर सकते हैं! मनमनाभव शब्द जो गीता में लिखा हुआ है उसे भी श्री कृष्ण के साथ जोड़ कितनी बड़ी अज्ञानता कर दी! कृष्ण तो देहधारी है वो भला मनुष्यो को मनमनाभव रहने के लिए कैसे कह सकता है!
➳ _ ➳ विष्णु चतर्भुज और श्री कृष्ण की उस विशाल प्रतिमा को देखती और यह सब चिन्तन करती एकाएक मैं अनुभव करती हूँ कि उन दोनों प्रतिमाओं के ठीक ऊपर एक विशाल ज्योति आकर स्थित हो गई है। *अनन्त ज्योति के उस प्रकाश पुंज अपने पिता परमात्मा को मैं देख रही हूँ जिनसे अनन्त प्रकाश की रंग बिरंगी किरणें निकल कर अब चारों और फैलने लगी है*। पूरी पहाड़ी खूबसूरत सतरँगी प्रकाश की किरणों से ऐसे ढक गई है कि सतरँगी किरणो का एक बहुत ही सुंदर औरा पहाड़ी के चारों तरफ बन गया है और उस औरे से औंस की बूंदों की तरह निकल रहे वायब्रेशन चारों और फैल कर सारे वायुमण्डल को इतना दिव्य और अलौकिक बना रहे हैं कि एक रूहानी मस्ती मेरे ऊपर छाने लगी है।
➳ _ ➳ उस अलौकिक रूहानी मस्ती में डूबी अपने शिव पिता की सुखदाई अनन्त किरणों का आनन्द लेते - लेते मैं महसूस करती हूँ कि उस विष्णु चतर्भुज और श्री कृष्ण की विशाल प्रतिमा के स्थान पर अब मेरे अलग - अलग स्वरूप बार - बार मेरी आँखों के सामने आ रहें हैं। *अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप मैं मैं स्वयं को एक विशेष चमकते हुए सितारे के रूप में अपनी अनन्त किरणे बिखेरते हुए देख रही हूँ जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है*। अपने आदि स्वरूप में मैं देख रही हूँ स्वयं को डबल ताजधारी देव स्वरूप में जो प्यूरिटी की रॉयल्टी से सम्पन्न महान स्वरूप है।
➳ _ ➳ अपने पूज्य स्वरूप में मैं अपने उस पूज्य चित्र को देख रही हूँ जिसमे पवित्रता की चमक रूहानियत के रूप में सबको आकर्षित कर रही है। भक्तों को सुख, शांति का अनुभव करवा रही है। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं परमात्म पालना, परमात्म प्यार पाने वाले अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम भाग्यशाली स्वरूप को देख रही हूँ और अपने फ़रिश्ता स्वरूप में मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने लाइट माइट परमात्म सहयोगी स्वरूप में*। अपने इन पांचो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ स्वरूपों को देख कर और इनका अनुभव करके अब मैं अपने वर्तमान ब्राह्मण जीवन की स्मृति में वापिस लौटती हूँ।
➳ _ ➳ *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, स्वदर्शन चक्र और मनमनाभव का अर्थ बुद्धि में यथार्थ रीति रख कर, अब मैं अपने पांचो स्वरूपों को मन बुद्धि से देखते, स्वयं का दर्शन करते हुए, यथार्थ रीति मनमनाभव होकर अर्थात अपने वास्तविक निराकार स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकार भगवान बाप के साथ अपने मन बुद्धि का कनेक्शन जोड़ कर ब्राह्मण सो देवता बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अनुभवों की सम्पन्नता द्वारा सदा उमंग-उल्लास में रहने वाली मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं, अमृतवेला विशेष प्रभु पालना की वेला का महत्व जानकर पूरा लाभ लेने वाली योगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *मधुबन, मधुबन ही है। विदेश में भी सुन रहे हैं। लेकिन वह सुनना और मधुबन में आना, इसमें रात-दिन का फर्क है।*बापदादा साधनों द्वारा सुनने, देखने वालों को भी यादप्यार तो देते हैं, कोई बच्चे तो रात जागकर भी सुनते हैं। ना से अच्छा जरूर है लेकिन अच्छे ते अच्छा मधुबन प्यारा है। मधुबन में आना अच्छा लगा है, या वहाँ बैठकर मुरली सुन लो! क्या अच्छा लगता है? वहाँ भी तो मुरली सुनेंगे ना। यहाँ भी तो पीछे-पीछे टी.वी. में देखते हैं। *तो जो समझते हैं मधुबन में आना ही अच्छा है, वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। फिर भी देखो भक्ति में भी गायन क्या है? मधुबन में मुरली बाजे। यह नहीं है लण्डन में मुरली बाजे।* कहाँ भी हो, मधुबन की महिमा का महत्व जानना अर्थात् स्वयं को महान बनाना।
✺ *ड्रिल :- "मधुबन की महिमा का महत्व अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले आज, मैं आत्मा... उमंग उत्साह के पंख लगाए उड़ चलती हूँ... मधुबन, अपने प्यारे बाबा के घर... आह! क्या मनोरम वातावरण है... चारो ओर एकदम शान्ति ही शान्ति है...* फूलो की धीमी-धीमी खुशबू वातावरण को महका रही है... साथ ही साथ रूहानी बाप की रूहानी खुशबू मन को महका रही है... बाबा का रूहानी प्यार अपनी ओर आकर्षित कर रहा है... मै आत्मा फरिश्तो की दुनिया में पहुच गयी हूँ... जहाँ देखो हर तरफ सफ़ेद वस्त्रधारी फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है...
➳ _ ➳ *मै आत्मा मधुबन का चक्र लगाती पहुंच जाती हूँ बाबा के कमरे में, जहाँ मेरे प्यारे मीठे बाबा बाहें फैलाये मुझ आत्मा का आह्वान कर रहे है...* कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा से रूहरिहान करती हूँ... बाबा की दृष्टि में समाती हुई मै आत्मा एकदम हल्की होती जा रही हूँ... बाबा के साथ उड़ती हुई अब मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ तपस्या भवन में...
➳ _ ➳ *तपस्या भवन में योगियो की सभा सजी हुई है... बाबा के मस्तक से निकलते हुए तेजोमय प्रकाश में समाती हुई मै आत्मा योगयुक्त हो शिव बाबा से योग लगा रही हूँ...* योग से मुझ आत्मा के विकर्म विनाश होते जा रहे है... बाबा से निकलती हुई किरणों से मुझ आत्मा में सातो गुण वा शक्तियाँ समाती जा रही है... बुद्धि से सभी व्यर्थ संकल्प समाप्त होते जा रहे है... योगयुक्त मै आत्मा शांत स्वरुप होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं शांत स्वरुप आत्मा पहुँच जाती हूँ प्रकाश स्तंभ पर...* यहाँ बैठ मै आत्मा दादी प्रकाशमणि जी की शिक्षाओं को जीवन में धारण कर चमकती हुई मणि का अनुभव कर अपने फ़रिश्ताई स्वरुप में स्थित हो पहुँच जाती हूँ डायमंड हॉल में...
➳ _ ➳ *आह! डायमंड हॉल का क्या नजारा है... चारो ओर फरिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है... फरिश्तो की महफ़िल सजी हुई है... सभी फरिश्ते अपने-अपने योग सिंहासन पर बैठे शिव परमपिता परमात्मा से रूहानी पढ़ाई पढ़ रहे है...* इस रूहानी पाठशाला में मैं फरिश्ता स्वरुप आत्मा अपने योग सिंहासन पर विराजमान हो अपने प्यारे पारलौकिक पिता के सम्मुख बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ *वाह! बाबा वाह!..., वाह! मेरा भाग्य वाह!... मै कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जो परमपिता परमात्मा शिव स्वयं परम शिक्षक बन मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर मनुष्य से देवता बनाने की रूहानी पढ़ाई पढ़ा रहे है...* मै आत्मा ज्ञान रत्नों से सजती जा रही हूँ... बाबा के उच्चारित महावाक्य मुझ आत्मा में उसी तरह समाते जा रहे जैसे माँ के हाथ की गरमा गरम रोटी डायरेक्ट तवा टू माउथ हो... मुरली का एक-एक महावाक्य मुझ आत्मा को उमंग-उत्साह से भरता जा रहा है... मधुबन में बैठी मै आत्मा मुरली के एक-एक पोइन्ट को गहराई से धारण कर रही हूँ... *बाबा की मुरली सभी बच्चो के लिए पूरे विश्व में एक जैसी चलती है... बाबा का याद प्यार सभी बच्चो को मिल रहा है परन्तु मधुबन की मुरली वा मधुबन के बाबा का प्यार जो मधुबन में बरस रहा है उसका तो, क्या कहना...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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