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 17 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *होपलेस आत्माओं को साहस दिलाया ?*

 

➢➢ *चलते फिरते स्व अभ्यास प्रति जितना भी समय मिला, उसे सफल किया ?*

 

➢➢ *चारों प्रकार की हलचल के बीच एक के अंत में खो एकांतवासी स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *एक की ही महिमा, एक का ही गीत गा, एक का ही परिचय दे एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे सूर्य की किरणें फैलती हैं, वैसे ही मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज पर शक्तियों व विशेषताओं रुपी किरणें चारों ओर फैलती अनुभव करे,* इसके लिए 'मैं मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ', इस स्वमान के स्मृति की सीट पर स्थित होकर कार्य करो तो विघ्न सामने तक भी नहीं आयेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सदा खुश रहने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ"*

 

  सभी खुश रहते हो? *कैसी भी परिस्थिति आ जाए, कितना भी बड़ा विघ्न आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। विघ्न आता है तो चला जायेगा। लेकिन अपनी चीज क्यों चली जाए। वह आया, वह जाए। अपनी चीज तो नहीं जाए ना।* आने वाला जायेगा या रहने वाला भी चला जायेगा? तो खुशी अपनी चीज है।

 

  *बाप का वर्सा है ना खुशी। तो विघ्न आता और चला जाता है। जब भी विघ्न आये ना तो यह सोचो यह आया है चले जाने के लिए। कोई घर का मेहमान आता है तो ऐसे नहीं, मेहमान होकर आया और सारी चीजें लेकर जाये। ध्यान रखेंगे ना।*

 

  तो विध्न आया और चला जायेगा। लेकिन आपकी खुशी तो नहीं ले जाये। दा खुशी साथ रहे। *बाप है अर्थात् खुशी है। अगर पाप है तो खुशी नहीं, बाप है तो खुशी है। तो सदा खुश रहो। हर एक समझे कि मैं खुश रहने वाला हूँ। खुश रहने वाले को देख दूसरा भी खुश हो जाता है। रोने वाले को देखेंगे तो दूसरे को भी रोना आ जाता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकंड में आतार ने हैं। जब चाहे धारण करें, जब चाहे न्यारे हो जाएं।  लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बंधन नहीं होगा। *अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच हो नहीं सकेंगे।*

 

✧  जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार *मन्सा, वाचा, कर्मणा सम्बन्ध में अगर अटैचमेंट है लगाव  है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे।* ऐसा अभ्यास सहज कर सकते हो। जैसा संकल्प किया, वैसा स्वरूप हो जाए।

 

✧  संकल्प के साथ-साथ

स्वरूप बन जाते हो या संकल्प के बाद टाइम लगता है स्वरूप मैंने में? संकल्प किया और अशरीरी हो जाओ। *संकल्प किया मास्टर प्रेम के सागर की स्थिति में स्थित हो जाओ और वह स्वरुप हो जाए।* ऐसी प्रैक्टिस हैं? अब इसी प्रैक्टिस को बढ़ाओ। इसी प्रैक्टिस के आधार पर स्कॉलरशिप ले लेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते हैं, *तो जैसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य हैं वैसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् महान आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं। जब चाहो कर्मयोगी बनो, जब चाहो परमधाम निवासी योगी बनो, जब चाहो सूक्ष्मवतनवासी योगी बनो। स्वतन्त्र हो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एकाग्रता से सर्व शक्तियों की प्राप्ति"*

 

 _ ➳  *मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... आंगन में टहल रही हूँ... और सोच रही हूँ कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को, गले लगाकर, मुझे गुणों और शक्तियों के श्रृंगार से नई नवेली बना दिया है...* और श्रृंगारित करके... अपने दिल में संजो लिया है... भगवान के दिल की रानी बनकर, *मैं आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... बाबा से अपने दिल की हर बात कह दुनिया से बेखबर रहती हूँ... अब तो मेरे चारों ओर सुख ही सुख बिखरा हुआ है...* यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

*मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की खुशी से भरते हुए कहा :-*"मीठे प्यारे फूल बच्चे... जितना एकाग्रचित्त हो ज्ञान का मनन चिंतन करने का अभ्यास करोगे... उतना ही सर्वशक्तियों से भरपूर होते जाओगे... *क्योंकि एकाग्रता की शक्ति अति श्रेष्ठ है... सर्व शक्तियों की प्राप्ति की खान है... एकाग्रता ही सहज सफलता की चाबी है... जितना एकाग्र हो हर कर्म करोगे... सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के मीठे प्यार में झूमते हुए कहती हूँ :-*"मेरे मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर, *मुझे महान भाग्यशाली बना दिया है... मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा एकाग्र हो... बस एक की लगन में मगन रहती हूँ... एक ही संकल्प में टिकने का अभ्यास करती हूँ...* आपने मुझे प्यारे बाबा पुनः मेरी खोयी अमीरी से भर दिया है..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणों और शक्तियों से मालामाल करते... एकाग्रता की शक्ति का महत्व समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *एकाग्रता की स्थिति बहुत शक्तिशाली है... ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है... इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो... और अपनी रूहानियत की खुशबू चारों ओर फैलाओ...* सदा श्रेष्ठ कर्मो और दिव्य गुणों की धारणा से जीवन को शानदार बनाओ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में अतीन्द्रिय सुख पाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे दिल के आराम बाबा... *आपने मुझ आत्मा का कितना प्यारा और शानदार भाग्य सजाया है... कि परमधाम से धरा पर आकर, मुझे काँटो से फूल जैसा महका रहे हो...* अपनी पालना देकर, मुझे मनुष्य से देवता बना रहे हो... मैं आत्मा... आप सच्चे साथी को साथ रख कर... एकाग्रता की शक्ति धारण कर हर कर्म को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ..."

 

. *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी आँखों का तारा बनाते हुए कहा :-*"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... किसी भी नवीनता की इन्वेन्शन के लिये *एकाग्रता* की आवश्यकता है... *और जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ स्पष्टता स्वतः होगी... मीठी बच्ची... तुम किसी भी आत्मा को इस शक्ति द्वारा दूर बैठे सहयोग दे सकते हो...* उस समय सिवाय एक बाप के दूसरा कोई संकल्प न हो... बच्ची... इस शक्ति से तुम सारे विश्व की आत्माओं का कल्याण कर सकते हो..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर मुस्करा कर कहती हूँ:-*"मेरे मीठे मीठे बाबा... आपने मुझे ज्ञान का अथाह भण्डार देकर... दिव्य गुणों से महका दिया है... *मैं आत्मा एकाग्रता की शक्ति धारण कर विश्व  परिवर्तन के महान कार्य में अपना सहयोग देने का भरसक प्रयत्न कर रही हूँ...* मीठे बाबा से बेहद की समझ लेकर मैं आत्मा... अपने कार्य क्षेत्र पर आ गयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एकाग्रता से सर्वशक्तियों की प्राप्ति का अनुभव करना*

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया को भूल, एकाग्रता की स्थिति में स्थित होने के लिए मैं अपने मन और बुद्धि को हर संकल्प विकल्प से हटाकर अपना पूरा ध्यान अपने स्वरूप पर केंद्रित करती हूँ और कुछ क्षणों के लिए बाहरी दुनिया से पूरी तरह डिटैच होकर स्थित हो जाती हूँ अपनी सम्पूर्ण निराकारी स्थिति में। *इस स्थिति में मैं स्वयं को अपने सम्पूर्ण सत्य अनादि स्वरूप में भृकुटि के मध्य चमकते हुए एक अति सूक्ष्म सितारे के रूप में देख रही हूँ जिसमे से हल्की - हल्की प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे निकल रही हैं। इन रंग बिरंगी किरणों के साथ मुझे मेरे मस्तक से हल्की - हल्की फुहारों के रूप में मेरे सातों गुणों के वायब्रेशन्स भी निकलते हुए अनुभव हो रहें हैं जो मुझे सुख, शांति, आनन्द का अनुभव करवा रहें हैं*।

 

_ ➳  एकाग्रता की यह स्थिति मुझे मेरे सत्य स्वरुप में स्थित करके, मेरे अंदर समाये उन गुणों और शक्तियों का अनुभव करवा रही है जिनसे मैं आज दिन तक अंजान थी। *देह भान में आकर अपने ध्यान को देह और देह की दुनिया मे भटकाकर मैं कितनी दुखी और अशांत हो गई थी किन्तु आज एकाग्रता की शक्ति द्वारा अपने सर्वगुणों और सर्वशक्तियों से सम्पन्न सम्पूर्ण स्वरूप का अनुभव करके मैं जैसे तृप्त हो गई हूँ*। इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप का आनन्द लेते हुए अब मेरा मन और बुद्धि एक की लगन में मग्न होते जा रहें हैं। *उस एक के अंत मे मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ जिसके साथ मेरे अनादि सर्व सम्बन्ध है। मेरा वो परम पिता परमात्मा जो दिखने में मेरी ही तरह एक बिंदु है किंतु गुणों में वो सिंधु है*।

 

_ ➳  अपने उस बिंदु पिता को अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से निहार रही हूँ। कभी अपने स्वरूप को और कभी उनके स्वरूप को निहारते हुए उनके प्रेम की लगन में मग्न होकर अब मैं उनके पास जा रही हूँ। *संकल्प करते ही मैं स्वयं को लौकिक और अलौकिक दुनिया से परे उस पारलौकिक दुनिया मे देख रही हूँ जहाँ मेरे पिता रहते हैं। सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ उनसे आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में समाते हुए मैं महसूस कर रही हूँ कि मेरी सोई हुई शक्तियाँ पुनः जागृत हो रही हैं*। अपनी एक - एक शक्ति को मैं विकसित होते हुए स्पष्ट देख रही हूँ। आठों शक्तियों से सम्पन्न मेरा स्वरूप मुझे बहुत ही लुभायमान लग रहा है।

 

_ ➳  अपने अष्ट शक्ति सम्पन्न स्वरूप में मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। मेरे अंदर समाई हुई हर शक्ति प्रकाश की अलग - अलग रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ आत्मा से निकलती हुई ऐसे दिखाई दे रही हैं जैसे कोई बेदाग हीरा चमक रहा है। *अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की शीतल छाया के नीचे बैठ, सर्वशक्तियों की प्राप्ति का अनुभव करके, हीरे के समान चमकते हुए अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ*। अपने साकार शरीर रूपी रथ पर भृकुटि सिहांसन पर अब मैं फिर से विराजमान होकर सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजा रही हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन मे अब मैं एकाग्रता की शक्ति द्वारा हर क्षेत्र में सहज ही सफलता प्राप्त करती जा रही हूँ। कभी अपनी एकाग्र स्थिति में स्थित होकर अपने श्रेष्ठ संकल्पो द्वारा विश्व की आत्माओं को दूर बैठे सहयोग देने की सेवा करती हूँ तो कभी एक के अंत मे खोकर एक ही संकल्प में स्थित होकर एक बाप में सर्व प्राप्तियों की अनुभूति सहजता से कर लेती हूँ। *एकाग्रता से सर्व शक्तियों की प्राप्ति का अनुभव करते हुए, हलचल की परिस्थिति में भी अब मैं सेकंड में स्व अभ्यास द्वारा एकांतवासी बन स्वयं को उस परिस्थिति के जाल से सहज ही मुक्त कर लेती हूँ*। एकाग्रता की शक्ति एक के अंत मे सदा खोये रहने के अनुभव को बढ़ा कर मुझे सर्वशक्तियों की प्राप्ति द्वारा माया पर विजय दिलाकर अब हर प्रकार की मेहनत से मुक्त कर सहजयोगी बनाती जा रही है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं याद औऱ सेवा द्वारा हर चक्करों को समाप्त कर शमा पर फिदा होने वाली सच्चे परवाने आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सच्चा पारस बनकर अपने संग में लोहे सदृश्य आत्माओं को भी सोना बनाने वाली  शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ यह भी एक गुह्य कर्मों का हिसाब बुद्धि में रखो। कर्मों का हिसाब कितना गुह्य है - इसको जानो। *किसी भी आत्मा द्वारा अल्पकाल का सहारा लेते हो वा प्राप्ति का आधार बनाते हो, उसी आत्मा के तरफ बुद्धि का झुकाव होने के कारण कर्मातीत बनने के बजाए कर्मों का बन्धन बंध जाता है। एक ने दिया दूसरे ने लिया - तो आत्मा का आत्मा से लेन-देन हुआ।* तो लेन-देन का हिसाब बना वा समाप्त हुआ? उस समय अनुभव ऐसे करेंगे जैसे कि हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन वह आगे बढ़ना, बढ़ना नहीं, लेकिन कर्म बन्धन के हिसाब का खाता जमा किया। रिजल्ट क्या होगी! कर्म-बन्धनी आत्मा, बाप से सम्बन्ध का अनुभव कर नहीं सकेगी। कर्मबन्धन के बोझ वाली आत्मा याद की यात्रा में सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव कर नहीं सकेगी, वह याद के सबजेक्ट में सदा कमजोर होगी। नॉलेज सुनने और सुनाने में भल होशियार, सेन्सीबुल होगी लेकिन इसेन्सफुल नहीं होगी। सर्विसएबुल होगी लेकिन विघ्न विनाशक नहीं होगी। सेवा की वृद्धि कर लेंगे लेकिन विधिपूर्वक वृद्धि नहीं होगी। इसलिए ऐसी आत्मायें कर्म बन्धन के बोझ कारण स्पीकर बन सकती हैं लेकिन स्पीड में नहीं चल सकती अर्थात् उड़ती कला की स्पीड का अनुभव नहीं कर सकती। तो यह भी दोनों प्रकार के देह के सम्बन्ध हैं जो ‘महात्यागी' नहीं बनने देंगे।

➳ _ ➳ तो सिर्फ पहले *इस देह के सम्बन्ध को चेक करो - किसी भी आत्मा से चाहे घृणा के सम्बन्ध में, चाहे प्राप्ति वा सहारे के सम्बन्ध से लगाव तो नहीं है? अर्थात् बुद्धि का झुकाव तो नहीं है? बार-बार बुद्धि का जाना वा झुकाव सिद्ध करता है कि बोझ है।* बोझ वाली चीज झुकती है। तो यह भी कर्मों का बोझ बनता है इसलिए बुद्धि का झुकाव न चाहते भी वहाँ ही होता है।

✺ *"ड्रिल :- आत्मा का आत्मा से लेनदेन कर कर्मों से नए बंधन नहीं बनाना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा नुमाशाम योग में बैठी हूं... जैसे-जैसे मैं योग की गहराई में जाती हूँ... मेरे शरीर की एक-एक नस खुलने लगती है... जो भी आज तक किसी कारणवश बन्द थी वो सभी नसें खुलने लगती हैं... पवित्र सफेद प्रकाश से मेरा मस्तिष्क एकदम सफेद लाइट रूपी बॉल के समान प्रतीत हो रहा है... और अब मैं धीरे-धीरे अपने आपको सफेद प्रकाश रूपी शरीर में अनुभव करती हूं... मेरे शरीर से अद्भुत किरणें निकल रही है... और यह पूरा स्थान सफेद किरणों से भरा हुआ प्रतीत होता है... *मेरा सूक्ष्म शरीर निकलकर प्रकृति के पास पहुंच जाता है... जहां मेरे बाबा मेरा हाथ पकड़े मुझे यह नजारा दिखा रहे हैं... और मैं इस प्रकृति को और यहां रहने वाली सभी आत्माओं को साकाश दे रही हूं...*

➳ _ ➳ प्रकृति को साकाश देते समय मैं ऐसे स्थान पर पहुंच जाती हूं... जहां पर एक मां अपने पुत्र को कहीं जाने से रोकती है, विलाप कर रही है जितना मैं उसके पास जाती हूँ उतना ही मुझे उनकी स्थिति का अनुभव होता है... *मुझे ज्ञात होता है वह मां अपने पुत्र मोह के कारण अपने पुत्र को अपने से दूर नहीं कर रही है... और पुत्र इस संसार की गतिविधियों को जानने के लिए वहां से जाना चाहता है... माँ का बुद्धि का झुकाव अपने पुत्र में इस कदर हो जाता है... कि वह अपने आपको इस पुत्रमोह में फंसा लेती है... इस कारण मां ना सो पाती है ना ही कुछ खा पाती है... और ना ही किसी प्रकार की सेवा कर पाती है... जैसे ही वह किसी भी प्रकार की सेवा करती है... उसका बुद्धियोग अपने पुत्र में चला जाता है...*

➳ _ ➳ और अपना *बुद्धि योग पुत्र में जाने के कारण कर्म बंधन में आ जाती है... जिस कर्म को अभी तक अपना कर्तव्य और सेवा समझती थी... अब वह कर्म उसका बंधन बन जाता है... अपने इस बंधन के कारण वह अपने आप को किसी भी प्रकार निस्वार्थ आगे नहीं बढ़ा पाती है... और ना ही निमित्त भाव से सेवा करने का अनुभव कर पाती है...* इस संसार में वह स्वयं भी अपना यह बंधन नहीं देख पाती है... और ना ही समझ पाती है... कुछ देर रुककर मैं आत्मा उस आत्मा को शांति का साकाश देती हूं... जैसे ही वह आत्मा शांति का अनुभव करती है मैं आत्मा उसे समझाने लगती हूं...

➳ _ ➳ और कहती हूँ... *हे आत्मा अपने आप से इस मोह का और इस कर्म बंधन का पर्दा हटा कर देखो... तुम धीरे-धीरे इस कर्म बंधन में फंसती जा रही हो... तुम्हारी इस स्थिति के कारण तुम परमपिता परमात्मा से योग नहीं लगा पा रही हो... और ना ही आत्मिक स्थिति का अनुभव कर पा रही हो... अगर ऐसा ही रहा तो तुम्हारा कर्मों का खाता बढ़ता जाएगा और पुरुषार्थ की लगन कम होती जाएगी... जब-जब तुम याद की यात्रा से उड़ती कला का अनुभव करने लगोगी तब तब तुम्हें यह कर्म बंधन अपनी और खींचेगा और तुम्हें उड़ने नहीं देगा...* मेरे यह वचन सुनकर उस आत्मा को सत्य का आभास होता है और याद की यात्रा में और पुरुषार्थ में आगे बढ़ने का वचन देती है... इसी तरह मैं सारी आत्माओं को साकाश देते हुए अपने इस शरीर में वापस विराजमान हो जाती हूं... और मैं इस स्मृति में अपने पुरुषार्थ को आगे बढ़ाती हूं... कि मुझे कर्म बंधन को चेक करते हुए आगे बढ़ना है...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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