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 12 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मात-पिता के तख़्त को जीतने की दौड़ लगाई ?*

 

➢➢ *"मेरा तो एक दूसरा न कोई" - इसी निश्चय में पक्का रहे ?*

 

➢➢ *हर एक को प्यार और शक्ति की पालना दी ?*

 

➢➢ *मायावी चतुराई से परे रह बाप के अति प्रिय बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *देह-अभिमान को छोड़ना-यह बड़े ते बड़ा त्याग है। इसके लिए हर सेकेण्ड अपने आपको चेक करना पड़ता है।* इस त्याग से ही तपस्वी बनेंगे और एक बाप से ही सर्व सम्बन्धों का अनुभव करेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति करने वाली अनुभवी आत्मा हूँ"*

 

  दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति की अनुभूति करने के अनुभवी हो ना! *जैसे वाणी द्वारा शक्ति की अनुभूति करते हो। मुरली सुनते हो तो समझते हो ना शक्ति मिली। ऐसे दृष्टि द्वारा शक्तियों की प्राप्ति के अनुभूति के अभ्यासी बने हो या वाणी द्वारा अनुभव होता है, दृष्टि द्वारा कम।* दृष्टि द्वारा शक्ति कैच कर सकते हो? क्योंकि कैच करने के अनुभवी होंगे तो दूसरों को भी अपने दिव्य दृष्टि द्वारा अनुभव करा सकते हैं। और आगे चल कर वाणी द्वारा सबको परिचय देने का समय भी नहीं होगा और सरकमस्टांस भी नहीं होंगे, तो क्या करेंगे?

 

  वरदानी दृष्टि द्वारा, महादानी दृष्टि द्वारा महादान देंगे, वरदान देंगे। तो पहले जब स्वयं में अनुभव होगा तब दूसरों को करा सकेंगे। दृष्टि द्वारा शान्ति की शक्ति, प्रेम की शक्ति, सुख वा आनन्द की शक्ति सब प्राप्त होती है। जड़ मूर्तियों के आगे भी जाते हैं तो जड़ मूर्ति बोलती तो नहीं है ना! फिर भी भक्त आत्माओंको कुछ-न-कुछ प्राप्ति होती है, तब तो जाते हैं। कैसे प्राप्ति होती है? उनकी दिव्यता के वायब्रेशन से और दिव्य नयनों की दृष्टि को देख कर वायब्रेशन लेते हैं। *कोई भी देवता या देवी की मूर्ति में विशेष अटेन्शन नयनों के तरफ देखेंगे। हरेक का अटेन्शन सूरत की तर]फ जाता है। क्योंकि मस्तक के द्वारा वायब्रेशन मिलते हैं, नयनों के द्वारा दिव्यता की अनुभूति होती है। वह आप चैतन्य मूर्तियों की जड़ मूर्तियाँ हैं। आप सबने चैतन्य में यह सेवा की है तब जड़ मूर्तियाँ बनी हैं। तो दृष्टि द्वारा शक्ति लेना और दृष्टि द्वारा शक्ति देना - यह प्रैक्टिस करो। शान्ति के शक्ति की अनुभूति बहुत श्रेष्ठ है।*

 

  जैसे वर्तमान समय साइंस की शक्ति का प्रभाव है, हर एक अनुभव करते हैं। लेकिन साइंस की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही निकली है ना! जब साइंस की शक्ति अल्पकाल के लिए प्रप्ति करा रही है तो साइलेन्स की शक्ति कितनी प्राप्ति करायेगी। पद्मगुणा तो इतनी शक्ति जमा करो। बाप की दिव्य दृष्टि द्वारा स्वयं में शक्ति जमा करो। तब समय पर दे सकेंगे। अपने लिए ही जमा किया और कार्य में लगा दिया अर्थात् कमाया और खाया। जो कमाते हैं और खा के खत्म कर देते हैं उनका कभी जमा का खाता नहीं रहता और जिसके पास जमा का खाता नहीं होता है उसको समय पर धोखा मिलता है। धोखा मिलेगा तो दुःख की प्राप्ति होगी। *अगर साइलेन्स की शक्ति जमा नहीं होगी, दृष्टि के महत्त्व का अनुभव नहीं होगा तो लास्ट समय श्रेष्ठ पद प्राप्त करने में धोखा खा लेंगे फिर दुःख होगा। पश्चाताप् होगा ना। इसलिए अभी से बाप की दृष्टि द्वारा प्राप्त हुई शक्तियों को अनुभव करते जमा करते रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे जिस्मानी मिलिट्री को आँर्डर करते हैं - एक सेकण्ड में जहाँ हो, वहाँ ही खडे हो जाओ। *अगर वह इस आँर्डर को सोचने में व समझने में ही टाइम लगा दे तो उसका रिजल्ट क्या होगा?* विजय का प्लान प्रैक्टिकल में नहीं आ सकता।

 

✧  *इसी प्रकार सदा विजयी बनने वाले की विशेषता यही होगी एक सेकण्ड में अपने संकल्प को स्टाँप कर लेना।* कोई भी स्थूल कार्य व ज्ञान के मनन करने में बहुत बिजी है लेकिन ऐसे समय में भी अपने आप को एक सेकण्ड में स्टाँप कर लेना।

     

✧  *जैसे वे लोग यदि बहुत तेजी से दौड रहे हैं वा कश्म - कश के युद्ध में उपस्थित हैं, वे ऐसे समय में भी स्टाँप कहने से स्टाँप हो जायेंगे।* इसी प्रकार यदि किसी समय यह संकल्प नहीं चलता है अथवा इस घडी मनन करने के बजाय बीजरूप अवस्था में स्थित हो जाना है। तो सेकण्ड में स्टाँप हो सकते हैं?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अशरीरी बनने का अभ्यास इतना ही सरल अनुभव होता है, जैसे शरीर में आना अति सहज और स्वत: लगता है। *रूहानी मिलिट्री हो ना? मिल्ट्री अर्थात् हर समय सेकण्ड में ऑर्डर को प्रेक्टिकल में लाने वाले।* अभी-अभी ऑडर हो अशरीरी भव, तो एवररेडी हो या रेडी होना पडेगा? *अगर मिल्ट्री रेडी होने में समय लगाये तो विजय होगी? ऐसा सदा एवररेडी रहने का अभ्यास करो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मात-पिता को पूरा-पूरा फालो कर बाप के तख़्तनशीन बनना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा समुन्दर के किनारे बैठ उछलते हुए लहरों का आनंद ले रही हूँ... ऐसे लग रहा जैसे ये लहरें आसमान को छूने की कोशिश कर रही हैं... आसमान को छूकर मेरे क़दमों में आती इन लहरों की शीतलता को महसूस कर आनंदित हो रही हूँ...* इन लहरों के साथ खेलती मैं आत्मा प्यार के सागर की लहरों में डूबने उड़ चलती हूँ... वतन में प्रेम के सागर के पास... जहाँ मीठे-मीठे बाबा प्रेम की लहरों में मुझे डुबोकर... अपनी गोदी में बिठाते हुए रूह-रिहान करते हैं...

 

  *यादों के सागर में डूबोकर पवित्र बनाकर अपने दिल तख़्त पर बिठाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के सम्मुख नही थे तब किस कदर तकलीफ उठाते हुए उसे दर दर खोज रहे थे... आज अपने शानदार भाग्य के नशे में डूब जाओ... *आसमानी पिता की गोद में खिले हुए फूल बन रहे हो... बागवान बाबा हाथो से पोषित कर रहा है... तो उसकी मीठी यादो में पवित्रता के पानी को रगो में भर दो... और मातपिता को फॉलो करो...”*

 

_ ➳  *मातपिता को फॉलो कर बाप की तख्तनशीन बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा कितने जनमो से आपके प्यार की प्यासी थी... इस वरदानी संगम में मेरी चाहतो की प्यास बुझी है...* और पवित्रता की चुनरी ने मेरा खूबसूरत श्रंगार किया है... ऐसे मीठे भाग्य को पाकर मै आत्मा निहाल हूँ...

 

  *अपनी पलकों के झूले में झुलाते हुए मीठे प्यारे मेरे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता तो बच्चों को फूल सी तकलीफ भी न दे पाये वो तो सदा फूलो वाली मखमली गोद में ही खिलाये... *उसकी यादो में सुख घनेरे छिपे है उन मीठी यादो में डूब जाओ... मातपिता के कदमो पर कदम भर ही तो रखना है और अनन्त खुशियो को पल में पाना है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा हर कदम में पद्मों की कमाई करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में खोयी सी मात पिता के नक्शे कदम पर पग धरती हुई मीठे बाबा की दिल में मुस्करा रही हूँ...* और सम्पूर्ण पवित्रता की मिसाल बनकर पूरे विश्व को तरंगित कर रही हूँ...

 

  *खुशियों की चांदनी से मेरे जीवन के आँगन को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मात पिता स्वयं चल कर बच्चों के लिए राहे आसान बना रहे है और जो निशान छोड़ रहे  हैं उनपर कदम भर रखना यही मात्र पुरुषार्थ है...* बाकि विश्व पिता जनमो के थके बच्चों को कोई तकलीफ नही देता है... तो पवित्रता से सजकर मीठे बाबा को संग लिए अथाह खुशियो के आसमान में उड़ते रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के दिल की तिजोरी में हीरा बन चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मात पिता के आधार पर कंगूरा बन मुस्करा रही हूँ... और बाबा के दिल तख्त पर मणि सी दमक रही हूँ...* मनसा वाचा कर्मणा पवित्र बन देवताई ताज से सजने का महाभाग्य पा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पुराने काँटो से सम्बन्ध तोड़, "मेरा तो एक, दूसरा ना कोई" इस निश्चय में पक्का रहना है*

 

_ ➳  इस देह, देह की दुनिया और देह से जुड़े सम्बन्धों में उलझे सारे संसार की सभी मनुष्य आत्माओं की दुर्दशा के बारे में एकान्त में बैठ मैं विचार कर रही हूँ कि आज मनुष्य कैसा बन गया है कि रिश्तों की मर्यादा को ही भूल गया है। *बस अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए सब एक दूसरे कर साथ जुड़े तो है किन्तु काँटे बन एक दूसरे को ही लहू लुहान कर रहें हैं*। इसलिए आज यह दुनिया जो कभी फूलों का बगीचा थी, काँटो का जंगल बन गई है जहाँ सभी एक दो को काँटा लगाकर एक दूसरे को दुख और पीड़ा ही दे रहें हैं। *धन्यवाद मेरे प्यारे पिता का जिन्होंने मुझे इस काँटो के जंगल से निकाल फूलों के बगीचे में चलने का अति सहज रास्ता दिखा दिया है*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करके, देह, देह की दुनिया और देह से जुड़े हर सम्बन्ध से किनारा कर, "मेरा तो एक दूसरा ना कोई" इस निश्चय में स्थित होकर, एकांतवासी बन उस एक अपने प्यारे पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को मैं एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। *अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, अपने मीठे बाबा की दिल को सुकून देने वाली अति मीठी याद में खोये हुए, मैं स्वयं को एक बहुत सुंदर खुशबूदार फूलों के बगीचे में देख रही हूँ*। मेरे ऊपर मेरे दिलाराम बाबा अपने स्नेह के पुष्पों की वर्षा कर रहें हैं। उनके प्यार की शीतल फुहारें मुझे आनन्दित कर रही है। *मेरा मन मयूर खुशी में नाच रहा है और दिल के सितार का हर तार जैसे गा रहा है कि बाबा ही मेरा संसार है*।

 

_ ➳  दिल को आराम देने वाली अपने दिलाराम बाबा की याद में बैठ, इस खूबसूरत दृश्य का भरपूर आनन्द लेकर, अपने जीवन को अपने प्रेम के रंग से महकाने वाले अपने मीठे बाबा से स्नेह मिलन मनाने के लिए अब मैं मन बुद्धि की एक अति सुखदाई, आनन्दमयी आंतरिक यात्रा पर चल पड़ती हूँ। *अपने निराकार स्वरूप में, निराकार शिव पिता से उनकी निराकारी दुनिया मे स्नेह मिलन मनाने की रूहानी यात्रा पर धीरे - धीरे आगे बढ़ती हुई मैं देह की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ*। उमंग उत्साह के पँख लगाए, मंगल मिलन के गीत गाती अपने प्यारे पिता के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा पँछी, पुरानी दुनिया को भूल उस लोक की ओर जा रही हूँ जो स्थूल और सूक्ष्म हदों से भी परें हैं।

 

_ ➳  पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर, आकारी फरिश्तो की दुनिया से होती हुई मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया में। वाणी से परे अपने इस निर्वाण धाम घर में पहुंच कर मैं गहन सुख और शांति का अनुभव कर रही हूँ। देख रही हूँ मैं अपने सामने अपने शिव परम पिता परमात्मा को। *शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका अति सुंदर मनोहारी स्वरूप मन को लुभा रहा है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से एकटक उन्हें निहारते हुए धीरे - धीरे मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ। और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ*। बाबा का असीम स्नेह और वात्सलय उनकी ममतामयी किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरसते हुए, मुझमे असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रहा है।

 

_ ➳  बाबा के इस निस्वार्थ प्रेम को स्वयं में समा कर अब मैं वापिस लौट आती हूँ और अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर आकर फिर से विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और बाबा के प्रेम की लगन में मग्न हो कर हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा के असीम स्नेह और प्यार की अनुभूति मुझे देह से जुड़े रिश्तों रूपी पुराने काँटो से सम्बन्ध तोड़ने में विशेष मदद कर रही है। चलते - फिरते हर कर्म करते अब मेरी बुद्धि का योग बाबा के साथ स्वत: ही जुटा रहता है*। मनमनाभव की स्थिति में सदा स्थित रहते हुए , हर पल, हर घड़ी बाबा की छत्रछाया के नीचे रहकर, निश्चय बुद्धि निश्चिन्त अवस्था का अनुभव अब मैं हर पल कर रही हूँ। *"मेरा तो एक, दूसरा ना कोई" इस निश्चय में पक्का रहते हुए मैं सहजयोगी जीवन जीने का भरपूर आनन्द प्रतिपल ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर एक को प्यार और शक्त्ति की पालना देने वाली प्यार के भण्डार से भरपूर आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं मायावी चतुराई से परे रहकर बाप की अति प्रिय बनने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  तो ऐसे एवररेडी हो अर्थात् अनुभवी स्वरूप हो? साथ जाने के लिए तैयार हो ना या कहेंगे अभी अजुन यह रह गया है! ऐसी अनुभूति होती है वा सेवा में इतने बिजी हो गये हो जो घर ही भूल जाता है। सेवा भी इसीलिए करते हो कि आत्माओं को मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा दिलावें। सेवा में भी यह स्मृति रहे कि बाप के साथ जाना है तो सेवा में सदा अचल स्थिति रह सकती है? *सेवा के विस्तार में सार रूपी बीज की अनुभूति को भूलो मत। विस्तार में खो नहीं जाओ। विस्तार में आते स्वयं भी सार स्वरूप में स्थित रह और औरों को भी सार स्वरूप की अनुभूति कराओ। समझा -अच्छा।*

 

✺  *"ड्रिल :- सेवा के विस्तार में सार रूपी बीज की अनुभूति करना”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन रूपी घोड़े में बैठकर रंग-बिरंगी दुनिया के आकर्षणों के विस्तार में दौड़ लगा रही थी...* अपनी मंजिल को ढूंढते हुए न जाने कहाँ-कहाँ भटक रही थी... *अब परमपिता शिव बाबा ने आकर मंजिल तक पहुँचने का रास्ता बताकर भटकती हुई मेरे मन रूपी घोड़े की दिशा बदल दी...* अब मैं आत्मा मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथों में पकड़कर पहुँच जाती हूँ परमधाम...

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमधाम में चमकते हुए ज्योतिबिंदु से निकलती हुई रंग-बिरंगी किरणों में खो जाती हूँ...* दुनियावी रंगों के मुकाबले बाबा से निकलती हुई किरणों का रंग कितना ही आकर्षणीय है... प्यारे बाबा से ज्ञान, गुण, शक्तियों की अलग-अलग रंगों की किरणें निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा इन किरणों से भरपूर होकर सम्पन्न बन रही हूँ... सर्व खजानों की मालिक होने का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा विश्व सेवाधारी की स्टेज पर स्थित हो जाती हूँ... *मैं आत्मा महादानी बन बाबा से प्राप्त अविनाशी ज्ञान को सबमें बाँट रही हूँ...* गुण, शक्तियों के खजानों को स्वयं के लिए और सम्बन्ध सम्पर्क में आने वालों के लिए समय प्रमाण यूज कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्ञान, योग, धारणा, सेवा चारों सब्जेक्ट्स में पास विद आनर होने का पुरुषार्थ कर एवररेडी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा भटकती हुई आत्माओं को बाबा का सन्देश देकर उनका भटकन समाप्त कर रही हूँ... *सबको राजयोग का गुह्य ज्ञान देकर सच्चा-सच्चा राजमार्ग बता रही हूँ...* जिस राजमार्ग पर चलकर राजाओं का भी राजा बनते हैं... मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा पाते हैं... मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी बन सेवा निःस्वार्थ सेवा कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा इसी स्मृति में रहकर सेवा करती हूँ कि बाबा के साथ वापस घर जाना है... *स्मृति स्वरुप बन औरों को भी सदा घर की स्मृति दिलाकर एवररेडी बनाने की सेवा कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा सदा अचल स्थिति में रहकर सेवा करती हूँ... सदा बाबा की और घर की याद में रहकर सेवा कर रही हूँ... मैं आत्मा सदा बीजरूप धारण कर बीजरूप बाबा की याद में ही रहती हूँ... *अब मैं आत्मा सेवा के विस्तार में आकर स्वयं भी सार स्वरूप में स्थित रहती हूँ और औरों को भी सार स्वरूप की अनुभूति कराती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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