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 28 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आत्म अभिमानी बन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराया ?*

 

➢➢ *अलोकिक विचित्र कंबाइंड रूप का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"हम सो ब्राह्मण सो फ़रिश्ता" स्वरुप का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *भविष्य चतुर्भुज स्वरुप का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  कर्मातीत स्थिति को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति धारण करना आवश्यक है। *कर्मबन्धनी आत्माएं जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं और कर्मातीत आत्मायें एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं क्योंकि कर्मातीत हैं। उनकी स्पीड बहुत तीव्र होती है, सेकण्ड में जहाँ चाहे वहॉ पहुँच सकती हैं, तो इस अनुभूति को बढ़ाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजऋषि हूँ"*

 

   सदा अपने को 'राजऋषि' समझते हो? *एक तरफ है राज्य, दूसरे तरफ है वैराग - दोनों का बैलेन्स हो। बेहद का वैराग, वैराग नहीं लेकिन प्राप्तिस्वरूप बना देता है क्योंकि पुरानी दुनिया से वैराग लाते हो और नई दुनिया के मालिक बन जाते हो।*

 

  तो नाम वैराग है लेकिन मिलती प्राप्ति है। छोड़ने में ही लेना है। एक देते हो और पदम् लेते हो! *तो बेहद का वैराग राज्य भाग्य दिलाने वाला है। एक जन्म के लिए वैराग अनेक जन्मों के लिए सदा श्रेष्ठ भाग्य।* ऐसे राजऋषि हो?

 

  *राजऋषि कुमार और कुमारियों का ही गायन है। ऐसी राजऋषि आत्माओंको विश्व की आत्मायें दिल से प्यार करती है। चैतन्य से भी ज्यादा आपके जड़ चित्रों को प्यार से याद करते हैं। क्योंकि त्याग का भाग्य प्राप्त हुआ है। तो ऐसे राजऋषि आत्मायें हैं - इस नशे में सदा रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज में आना सहज लगात है ना। ऐसे ही आवाज से परे होना इतना ही सहज लगता है? आवाज में आना सहज है वा आवाज से परे होना सहज है? *आवाज में आना सहज है और आवाज से परे होने में मेहनत लगती है?* वैसे आप आत्माओं का आदि स्वरूप क्या है? आवाज से परे रहना या आवाज में आना?

 

✧  तो अभी मुश्किल क्यों लगता है? 63 जन्मों ने आदि संस्कार भूला दिया है। *जब अनादि स्थान 'परमधाम' आवाज से परे है,* वहाँ आवाज नहीं है और आदि स्वरूप आत्मा में भी आवाज नहीं है - *तो फिर आवाज से परे होना मुश्किल क्यों?*

 

✧  यह मध्य-काल का उल्टा प्रभाव कितना पक्का हो गया है। ब्राह्मण जीवन अर्थात जैसे आवाज में आना सहज वैसे आवाज से परे हो जाना - यह भी अभ्यास सहज हो जाये। *इसकी विधि है - राजा होकर के चलना और कर्मन्द्रियों को चलाना।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  मीठे बच्चे, अपने चलन और चेहरे से फ़रिश्ते स्वरूप को प्रत्यक्ष करो ! बापदादा नवीनता देखने चाहते हैं। सब अच्छे हो, विशेष भी हो, महान भी हो लेकिन *बाप की प्रत्यक्षता का आधार है- साधारण कार्य में रहते हुए भी फ़रिश्ते की चाल और हाल हो।* बापदादा यह नहीं देखने चाहते कि बात ऐसी थी, काम ऐसा था, सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी, इसीलिए साधारणता आ गई।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

*✺   "ड्रिल :- संगम पर चार कंबाइंड रूपों का अनुभव"*

 

_ ➳  *मुझ आत्मा का पूरे कल्प में एक ही बार इस संगम पर ही परमात्मा के साथ संगम होता है... मीठे सतगुरु बाबा अपना धाम छोडकर मुझे कलियुग से निकाल सतयुग में ले जाने के लिए इस संगमयुग में मिलन मनाने आयें हैं... इस सुहावने संगमयुग में बर्फीली पहाड़ियों पर मैं आत्मा सतगुरु बाबा के संग बैठ शीतलता का आनंद ले रही हूँ...* प्यारे बाबा इस संगमयुग में मेरे संग-संग रहकर मेरी रूहानी यात्रा करा रहे हैं... प्यारे बाबा राजयोग सिखलाकर त्रिकालदर्शी बना रहे हैं... झूठ की दुनिया से निकाल सत्य की दुनिया में ले जाने सत्य ज्ञान दे रहे हैं...

 

   *युगों युगों से प्रभु मिलन की आश को पूरा करते हुए अपने सत्य स्वरुप की झलक दिखलाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *जब विश्व पिता अपने ही फूलो को विष भरे काँटों में परिवर्तित होते देखता है अपना धाम छोड़ धरा पर उतरता है और सुहावने संगम पर उन कांटो को पलको से चुन रहा है और गोद में प्यार की नरमी से फिर से फूल बना रहा...* सिवाय पिता के पतित हो गए भारत को पावन कोई और बना ही न सके...

 

_ ➳  *हर स्वांस, हर धड़कन में प्यारे प्रभु को बसाकर प्रभु मिलन का आनंद लेते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की फूलो सी गोद में असीम सुख को पा रही हूँ... प्यारा बाबा मुझे देवताओ सा सुंदर बना रहा है... *मीठे संगम पर परमात्म मिलन का सुख पाकर मै आत्मा आनंद से भरपूर हो गई हूँ...”*

 

   *गागर को सागर, प्यासी धरती को सावन बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जब घर से निकले थे कितने खिले दिव्य गुणो से सजे महकते फूल थे... धरा के खेल को खेलते खेलते अपने वास्तविक वजूद को ही खो गए... अपनी पावनता को कलुषित कर मटमैले हो गए हो... *अब मीठा बाबा फिर से दिव्य और पावन बनाने आया है... अपने कुम्हलाये फूलो को पवित्रता से पुनः खिलाने आया है...”*

 

_ ➳  *मनभावन मनमीत के प्रीत में समाकर अनुभवों के सागर में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा भगवान की नजरो में समायी महान भाग्यशाली हूँ... संगमयुग में प्यारे बाबा की मीठी सी पसन्द हूँ...* मीठे बाबा की महकती यादो में पवित्रता की खुशबु से सराबोर हो रही हूँ... पावनता से सज रही हूँ...

 

   *प्रेम के हीरे, सुखों के मोती हर घर आँगन में बरसाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... स्वर्ग सा सुंदर भारत विकारो का पर्याय सा बन गया... देह की मिटटी में हर दिल आत्मा रंग गयी... अपने उजले दमकते सत्य स्वरूप को हर दिल खो गया... *कल्याणकारी पिता वरदानी युग में सबका कल्याण करने आ गया... सबको अपनी पावनता के रंग में रंग देवताई ताजो तख्त पर बिठा... सच्चे पिता का फर्ज निभा रहा...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की मुरली की धुन से मन मधुबन में खुशियों के नगमे गाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा देह के धर्म को जीवन का सत्य समझ दुखो के गहरे जंगल में खो गई थी... कितनी दुखी कितनी निराश और थक सी गयी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे मखमली सी गोद में बिठा दिया है... सुख की ठंडी छाँव में चैन और सदा का आराम दे दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्म अभिमानी बन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करवाना*"

 

_ ➳  इस देह रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा राजा, मन बुद्धि रूपी घोड़े की लगाम अपने हाथ मे ले कर, कर्मेन्द्रियों को अपने वश में कर जैसे ही स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होती हूँ स्वयं को विश्व राज्य अधिकारी के रूप में अनुभव करती हूं। *विश्व महाराजन के रूप में मैं स्वयं को देख रही हूं। सोने की बहुत बड़ी नगरी जिसमे बहुत बड़ा हीरे जवाहरातों से सजा राजमहल। उस राजमहल के विशाल राजदरबार में राजाओ, महाराजाओ की एक विशाल सभा और उस सभा मे एक रत्न जड़ित सिहांसन पर मैं विराजमान हूँ*। राजमुकुट पहना कर, मस्तक पर तिलक लगा कर मेरा राज्यभिषेक किया जा रहा है। तालियों की गड़गड़ाहट और खुशबूदार पुष्पों की वर्षा हो रही है।

 

_ ➳  विश्व महाराजन बनने का यह खूबसूरत दृश्य मेरे मन को रोमांचित कर रहा है। इस दृश्य का भरपूर आनन्द ले कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा विचार करती हूं कि विश्व महाराजन बनने के लिए पहले मुझे विकर्माजीत बन स्वयं को स्वयं ही स्वराज्य तिलक देना होगा तभी भविष्य राज्य तिलक पाने की मैं अधिकारी बन सकती हूं। इसलिये *अब मुझे योग में रह विकर्माजीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ अवश्य करना है*। विकर्माजीत बनने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं आत्मा अपने ऊपर चढ़ी 63 जन्मो के विकर्मों की कट को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ अपने योगेश्वर शिव बाबा के पास परमधाम।

 

_ ➳  साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने योगेश्वर शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। *बुद्धि का योग अपने योगेश्वर बाबा के साथ लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं। *मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं। सच्चा सोना बनती जा रही हूं*। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का पापमुक्त अनुभव कर रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।

 

_ ➳  साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म कर रही हूं। *राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही है*। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है।

 

_ ➳  पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो विकर्म बनाने के निमित बन रहे थे। *वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार कर्मेन्द्रियजीत बनने से परिवर्तन होने लगे हैं*। सहनशीलता का गुण मेरे अंदर विकसित होने लगा है। सहनशील बन हर आत्मा के पार्ट को साक्षी हो कर देखने और उन आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, *विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने हर कर्म और बोल द्वारा चलते फिरते हर आत्मा को शिक्षा देने वाली मास्टर शिक्षक  आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्म निश्चय से अपने संस्कारों को सम्पूर्ण पावन बनाने वाली श्रेष्ठ योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *संगमयुग पर ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं हो सकते। इसलिए सिर्फ जब सेवा मेंकर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते हो ना तो साथ भी भूल जाते हो और फिर थक जाते हो।* फिर कहते हो थक गये, अभी क्या करें! *थको नहींजब बापदादा आपको सदा साथ देने के लिए आये हैं, परमधाम छोड़कर क्यों आये हैं? सोते, जागते, कर्म करतेसेवा करतेसाथ देने के लिए ही तो आये हैं।* ब्रह्मा बाप भी आप सबको सहयोग देने के लिए अव्यक्त बनें। व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ़्तार बहुत तीव्र हैइसलिए ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज कर दिया। तो *शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय आप सबको सहयोग देने के लिए सदा हाजिर हैं। आपने सोचा बाबा और सहयोग अनुभव करेंगे।* अगर सेवासेवासेवा सिर्फ वही याद हैबाप को किनारे बैठ देखने के लिए अलग कर देते हो, तो बाप भी साक्षी होकर देखते हैं, देखें कहाँ तक अकेले करते हैं। फिर भी आने तो यहाँ ही हैं। *तो साथ नहीं छोड़ो। अपने अधिकार और प्रेम की सूक्ष्म रस्सी से बांधकर रखो। ढीला छोड़ देते हो। स्नेह को ढीला कर देते होअधिकार को थोड़ा सा स्मृति से किनारा कर देते हो। तो ऐसे नहीं करना।*

 

 _ ➳  *जब सर्वशक्तिवान साथ का आफर कर रहा है तो ऐसी आफर सारे कल्प में मिलेगीनहीं मिलेगी ना?* तो बापदादा भी साक्षी होकर देखते हैंअच्छा देखें कहाँ तक अकेले करते हैं! *तो संगमयुग के सुख और सुहेजों को इमर्ज रखो। बुद्धि बिजी रहती है ना तो बिजी होने के कारण स्मृति मर्ज हो जाती है।* आप सोचो सारे दिन में किसी से भी पूछें कि बाप याद रहता है या बाप की याद भूलती हैतो क्या  कहेंगेनहीं। यह तो राइट है कि याद रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहता है या मर्ज रहता हैस्थिति क्या होती है? इमर्ज रूप की स्थिति या मर्ज रूप की स्थितिइसमें क्या अन्तर हैइमर्ज रूप में याद क्यों नहीं रखते? *इमर्ज रूप का नशा शक्तिसहयोगसफलता बहुत बड़ी है। याद तो भूल नहीं सकते क्योंकि एक जन्म का नाता नहीं हैलेकिन प्रिंसिपल चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होगा लेकिन नाता तो यही रहेगा ना !  भूल नहीं सकता* हैयह राइट है। हाँ कोई विघ्न के वश हो जाते हो तो भूल भी जाता है लेकिन वैसे जब नेचरल रूप में रहते हो तो भूलता नहीं है लेकिन मर्ज रहता है।  *इसलिए बापदादा कहते हैं - बार-बार चेक करो कि साथ का अनुभव मर्ज रूप में है या इमर्ज रूप में?* प्यार तो है ही। प्यार टूट सकता हैनहीं टूट सकता है ना? I *तो प्यार जब टूट नहीं सकता तो प्यार का फायदा तो उठाओ। फायदा उठाने का तरीका सीखो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सर्वशक्तिवान के साथ का इमर्ज रूप में अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं संगमयुगी ब्रह्मकुमारी... ब्रह्मा मुखवंशावली... श्रेष्ठ आत्मा हूँ... बाबा ने कहा है संगमयुग पर... ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं है... बापदादा ने हमेशा साथ देने का वादा किया है...* लेकिन बच्चे ही बापदादा के साथ को भूल जाते हैं... *जब सेवा में... कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते है... तो साथ को भूल जाते... फिर थक जाते है... बच्चे थकते ही तब हैं... जब साथ का अनुभव नहीं करते हैं...* जब बाबा को साथ लेकर नहीं चलते हैं... फिर कहते हैं... बाबा अब क्या करें... तो बाबा ने कहा है... *बच्चे थको नहीं... बच्चे बाबा तो आए ही हैं... आपको सदा साथ देने के लिए... अपना परमधाम छोड़कर...* मैं आत्मा बाबा की इस बात को अब हमेशा याद रखती हूं... और हर पल बाबा के साथ रहती हूँ... *कैसी भी सेवा हो... बिना विघ्न और थकावट के पूर्ण करती हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सोते... जागते... कर्म करते... सेवा करते... बाबा के साथ को हमेशा यूज करती हूं...*क्योंकि मुझे पता चल गया है... बाबा साथ देने के लिए ही तो आये हैं... *ब्रह्मा बाप भी मुझ आत्मा को... सहयोग देने के लिए ही अव्यक्त बनें...* ब्रह्मा बाबा के व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ़्तार बहुत तीव्र है... *अव्यक्त रूप में सेवा ज्यादा देने के लिए ही... ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज किया है...* अब तो मुझ आत्मा को... *शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय... सहयोग देने के लिए सदा हाजिर है... जब भी मैं आत्मा सोचती हूँ.... बाबा मेरे साथी मेरे पास आ जाओ तो... बाबा मेरे सामने हाजिर - नाजिर होते जाते हैं... मैं आत्मा बाबा के सहयोग और साथ का अनुभव करने लगती हूँ...* कभी - कभी मुझ आत्मा को सेवा... और सिर्फ सेवा ही याद रहती है... मैं आत्मा बाबा को किनारे कर देती हूँ... बाप भी किनारे बैठ कर... देखते रहते हैं और मुस्कुराते रहते हैं... की बच्ची किस तरह मेहनत कर रही है... ये सब कुछ बाबा साक्षी होकर... दूर बैठे देखते रहते हैं कि... बच्चे कहाँ तक अकेले करते... बाबा भी जानते हैं कि अंत में थक हार के... आना मेरे पास ही हैं... *इसलिए मैं आत्मा अब... हर छोटे से छोटे कार्य में पहले बाबा को रखती हूँ... मैं आत्मा तो सिर्फ निमित्त मात्र हूँ... करनहार तो मेरे सर्व शक्तिमान बाबा है...*

 

 _ ➳  *वाह मैं आत्मा कितनी धन्य हूँ... जिसके साथ के लिए तपस्वी इतनी कठिन तपस्या करते हैं... वो सर्वशक्तिवान परम पिता स्‍वयं मुझे साथ का आफर कर रहे हैं... ऐसी आफर सारे कल्प में... सिर्फ संगमयुग पर ही मिलती है...* संगमयुग में बाप के साथ के... ऐसे आनंदमय सुखों को सहेज कर... मैं आत्मा इमर्ज रूप में... हमेशा सामने रखती हूँ... मैं आत्मा अपनी बुद्धि को कभी भी बिजी नहीं रखती हूं... *बुद्धि बिजी होना माना बापदादा की... स्मृति मर्ज होना है...* मैं आत्मा स्वयं चेक करती हूँ कि... मुझ आत्मा को बाबा की याद... इमर्ज रूप में रहती है या मर्ज रूप में रहती है... *अगर याद मर्ज रूप में होगी तो... याद में मिलावट होगी... जिससे बाप के साथ और शक्तियों का अनुभव नहीं होगा...* बाबा ने कहा है... *इमर्ज रूप का नशा... शक्ति... सहयोग... और... सफलता दिलाता है...* मुझ आत्मा को... बाबा की याद कभी भूल नहीं सकती है... क्योंकि *बाबा से मेरा एक जन्म का नाता नहीं है... मेरा और उनका नाता तो कल्प - कल्प का है... चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होंगे... लेकिन मेरा और उनका नाता तो हमेशा रहेगा...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा स्वयं को निमित्त समझ कर... सारे बोझ करनहार बाबा पे छोड़ के... निश्चिंत हो जाती हूँ...* अब मैं आत्मा कभी भी... अपने सर्व शक्तिमान शिव बाबा का साथ नहीं छोड़ती हूँ... *मैं आत्मा शक्तिमान शिव बाबा की संतान हूँ... इस अधिकार और  प्रेम की... सूक्ष्म रस्सी से हमेशा बाबा को बांधकर रखती हूं...* इस प्रेम की डोर को... मैं आत्मा स्नेह की इस डोर को कभी ढीला नहीं होने देती हूँ... क्योंकि मैं आत्मा जान चुकी हूँ... *स्नेह के सागर मेरे शिव बाबा... इस डोर में बंधे हुए दौड़े चले आते हैं... बाबा ने कहा भी है कि... बच्चे बुलाए और बाप ना आए... ऐसा हो नहीं सकता है...* मैं आत्मा सर्व शक्तिमान की संतान हूँ... अपने इस अधिकार को हमेशा स्मृति में रखती हूँ... अपने परम पिता से अब कभी भी किनारा नहीं करती हूँ...

 

 _ ➳  मुझ आत्मा का बाबा से मेरा ये नाता... कभी भूल नहीं सकता... लेकिन कभी - कभी... मैं आत्मा किसी विघ्न के वश हो जाती हूँ... तो याद भूलती नहीं है लेकिन मर्ज रूप में रहती है... *इसलिए बापदादा के कहे अनुसार... मैं आत्मा बार-बार चेक करती हूँ कि... बाबा का साथ और शक्तियों का अनुभव मर्ज रूप में है... या इमर्ज रूप में... सर्व शक्तिमान बाप से मेरा प्यार अटूट है... और मैं आत्मा इस प्यार का फायदा.... हमेशा लेती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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