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❍ 03 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *माया के ग्रहण से बचने के लिए बाप को सच्चाई से सब सुनाया ?*
➢➢ *ज़रा भी किसी देहधारी में रग तो नहीं रखी?*
➢➢ *मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्व शक्तियों की किरनें दी ?*
➢➢ *जिम्मेवारी सँभालते हुए सब कुछ बाप को अर्पण कर डबल लाइट फ़रिश्ता बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जब विशेष याद में बैठते हो तो अपने कोई न कोई श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बैठो।* कभी 'मास्टर बीजरूप' की स्थिति के आसन पर, कभी 'अव्यक्त फरिश्ते' की सीट पर कभी 'विश्व-कल्याणकारी स्थिति' की सीट पर सेट हो जाओ, ऐसे *हर रोज भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर व सीट पर सेट होकर बैठो तो शक्तिशाली याद का अनुभव करेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा अनुभव करते हो? *श्रेष्ठ ब्राह्मण अर्थात् जिन्हों का हर संकल्प, हर सेकण्ड श्रेष्ठ हो। ऐसे श्रेष्ठ बने हो कि कभी साधारण, कभी श्रेष्ठ? अभी साधारण और श्रेष्ठ दोनों चलते हैं या सिर्फ श्रेष्ठ चलते हैं? क्या होता है? थोड़ा-थोड़ा चलता है? तो सदैव मैं ऊंचे से ऊंची श्रेष्ठ ब्रह्मण आत्मा हूँ-यह स्मृति इमर्ज रखो।*
〰✧ देखो, जो आजकल के नामधारी ब्राह्मण हैं, उन ब्राह्मणों से भी कौन-सा कार्य कराते हैं? जहाँ कोई श्रेष्ठ कार्य होगा तो ब्राह्मणों को बुलाते हैं। तो यह आप लोगों के यादगार हैं ना। क्योंकि आप श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने सदा श्रेष्ठ कार्य किया है, तभी अब तक भी यादगार में ब्राह्मण श्रेष्ठ कार्य के निमित्त हैं। अगर कोई ब्रह्मण ऐसा कोई काम कर लेता है तो उसको कहते हैं यह ब्राह्मण नहीं है। *तो ब्राह्मण अर्थात श्रेष्ठ कार्य करने वाले, श्रेष्ठ सोचने वाले, श्रेष्ठ बोलने वाले। तो जैसा कुल होता है वैसे कुल के प्रमाण कर्तव्य होता है। अगर कोई श्रेष्ठ कुल वाला ऐसा-वैसा काम करे तो उसको शर्मवाते हैं कि ये क्या करते हो!*
〰✧ तो अपने आपसे पूछो कि मैं ब्राह्मण ऊंचे से ऊंची आत्मा हूँ, श्रेष्ठ आत्मा हूँ तो कोई भी ऐसा कार्य कर कैसे सकते। क्योंकि श्रेष्ठ कर्म का आधार है श्रेष्ठ स्मृति। स्मृति श्रेष्ठ है तो कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होंगे। तो सदा यह श्रेष्ठ स्मृति रखो कि हम श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं। यह तो सदा याद रहता है या याद करना पड़ता है? कभी शरीर को याद करते हो कि मैं फलाना हूँ, मैं फलानी हूँ? क्योंकि याद तब किया जाता है जब भूलते हैं। अगर कोई बात भूली नहीं तो याद करनी पड़ेगी। *तो मैं ब्राह्मण आत्मा हूँ यह भी स्वत: याद रहे, न कि करना पड़े। तो स्वत: और सदा याद रहे कि 'मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ'। जब तक ब्राह्मण जीवन है तब तक ये स्वत: याद रहे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी है।* इससे कोई कितना भी बडा कार्य हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे *काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं।* चाहे कितना भी मेहनत का, सखा खेल हो, फिर भी खेल में मजा आयेगा ना।
〰✧ जब मल्लयुद्ध करते हैं तो कितनी मेहनत करते हैं। लेकिन जब *खेल समझकर करते हैं तो हँसतेहँसते करते हैं।* मेहनत नहीं लगती, मनोरंजन लगता है।
〰✧ तो कर्मयोगी के लिए कैसा भी कार्य हो लेकिन मनोरंजन है, *संकल्प में भी मुश्किल का अनुभव नहीं होगा।* तो कर्मयोगी ग्रुप अपने कर्म से अनेकों के कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले, इसी में बिजी रही। कर्म और याद कम्बाइन्ड, अलग हो नहीं सकते।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ओरिजिनल अभ्यास आत्मा को न्यारा होने में हैं। न्यारी थी, न्यारी हैं, फिर न्यारी बनेगी। *सिर्फ अटैचमेंट न्यारा बनने नहीं देता है।* वैसे आत्मा की ओरीजनल नेचर शरीर से न्यारे रहने की है, अलग है। शरीर आत्मा नहीं, आत्मा शरीर नही। तो न्यारे हुए ना। *सिर्फ 63 जन्मों से अटैचमेंट की आदत पड़ गई है। ओरीजनल तो ओरीजनल ही होता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कोई भी भूल हो तो बाप से छिपाना नहीं"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा... इस संगमयुग में... *ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में... मनुष्य से देवता बनने की... ईश्वरीय गुणों को धारण करने की पढ़ाई पढ़ रही हूँ...* मैं आत्मा... शांतिवन के उपवन में... बैठी... निहार रहीं हूँ सभी *आत्माओं को जो मधुबन आयी हैं... अपने भाग्य को... सौभाग्य में बदलने... 21 जन्मों का स्वराज्य अधिकार प्राप्त करने... सजनी अपने साजन से मिलने... बच्चे अपने बाप से मिलने... मित्र अपने सखा से मिलने... शिष्य अपने गुरु से मिलने और माँ अपने बच्चे से मिलने आए हैं...* सब को देख में आत्मा एक अलौकिक स्वप्न में विहर रहीं हूँ... मैं देख रहीं हूँ... अपने आप को... पांडव भवन में... बाबा के कमरे में... जहाँ बाबा मुरली चला रहे हैं... सभी आत्मायें बैठी हैं... *बाबा से अलौकिक पढ़ाई पढ़ रहीं हैं...*
❉ *सफ़ेद संदली पे बैठे बाबा ने कहा :-* "मेरे सिकीलधे बच्चें... कल्प के बिछड़े बच्चे... अब मिले हो... *जन्म मरण के खेल को खेल खेल कर थक गए हो...* गोरे से काले हो गए हो... *अपनी शक्तियों से बेखबर शक्तिहीन हो गए हों... मुझ और खुद के भी अस्तित्व से अनजान बन गए हो...* सतयुगी स्वराज्य अधिकारी के पदाधिकारी... विश्वकल्याणकारी आत्मायें... अब क्या बन गई हो... अपने ओरिजिनल गुण... संस्कारो को... कहाँ खो कर आयी हो..."
➳ _ ➳ *बाबा की अमी दृष्टि देख कर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे बाबा... *सौभाग्य हमारा जो आप मिले... अहोभाग्य हमारा जो हमें सच्चा सच्चा गीता का ज्ञान मिला... अपनी सच्ची पहचान मिली...* इस कलियुग में... हमें आप का सहारा मिला... दर दर भटकते... दर दर की ठोकरे खाते... लड़खड़ाते पैरो को... मंजिल मिल गई... *कोटि बार शुक्रिया बाबा जो आपने हमें ढूंढा... सहारा दीया... स्वराज्य अधिकारी के लायक बनाया..."*
❉ *गुल गुल गुलो के बागबान समान मेरे बाबा बोले :-* "मेरी राज दुलारी... मेरी लाडली बच्ची... तुझे तो मैंने दिल से ढूंढा हैं... अपने दिलतख्त पर बिठाया हैं... *तेरी जन्मों की पुकार को... जन्मों की भक्ति को फलस्वरूप बनाने आया हूँ... इस अलौकिक पढ़ाई को... इस ईश्वरीय श्रीमत को... पूरे तन-मन-धन से यथार्थ रीति पढ़ना और पढ़ाना... सेवा का सरताज बनना और बनाना..."*
➳ _ ➳ *अलौकिक तेज से भरपूर मेरे बाबा को मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे बाबा... इस कलियुगी वातावरण में... *मैं आत्मा... स्वर्ण से कंकड़ बन गई हूँ... तू जो मिला... स्वर्ग के द्वार खुल गए... इस अप्रतिम पढ़ाई से... अवर्णनीय स्वर्ग की प्राप्ति हो गई है... सतयुगी गुणों और संस्कारों की स्वरूप बन गई हूँ... सच्ची सेवाधारी बन... सेवा के लक्ष्य को प्राप्त कर रहीं हूँ..."*
❉ *सुख के सागर... मेरे प्यारे बाबा बोले :-* "रूहानी गुलाब सी मेरी प्यारी बच्ची... *यह अविनाशी ज्ञान यज्ञ है... अपने विकर्मों को... स्वाहा कर...* मुझ गुरु को अपने पुराने स्वभाव संस्कार का दान दे दो... बदले में 21 जन्मों का स्वराज्य अधिकार प्राप्त कर लो... *मैं तुम्हारा बाप हूँ... तो टीचर भी हूँ... गुरु भी हूँ... तो कोई भी विकर्मों का बोझ हो... मुझसे छुपाना नहीं... अपनी गलती... मुझे बता कर फ्री हो जाना... अपने भाग्य की लकीर को कटने मत देना... 21 जन्मो की सतयुगी बादशाही को... भूल से भी विकर्मों को छुपा कर गवा मत देना..."*
➳ _ ➳ *प्यार भरी आँखो से बाबा के हाथ चूमती मैं आत्मा... बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे बाबा... *आप की सतयुगी पढ़ाई ने... आपकी श्रीमत ने... इस संगमयुग में... मुझ आत्मा को कमल पुष्प समान बना दिया हैं... कौड़ी की कीमत थी मेरी... तूने हीरे तुल्य बना दिया है...* अब विकार मुक्त जीवन... तन-मन-धन सब बन गया हैं... *जन्मों जन्म के सुक्ष्म ते सूक्ष्म पाप को भी मैं आत्मा योग अग्नि में स्वाहा कर रहीं हूँ... और यह जीवन संगमयुग का सफल कर रहीं हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अन्दर बाहर दिल की सफाई से साहेब बाप को राजी रखना है*"
➳ _ ➳ अपने सच्चे साहेब की मीठी यादों में खोई असीम आनन्द का मैं अनुभव कर रही हूँ और मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के गीत गा रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि इस दुनिया मे मुझ से अधिक सौभाग्यशाली भला कौन हो सकता है जिसे उस सच्चे साहेब ने अपना बना लिया जिसे सारी दुनिया ढूंढ़ रही है। *वो साधु सन्यासी, वो बड़े - बड़े महा मण्डलेश्वर, वो तपस्वी जो आज भी उसका दीदार पाने के लिए कठोर तप कर रहें हैं, अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड कर रहें है, अपने शरीर को कष्ट पहुंचा रहें हैं लेकिन उस सच्चे साहेब के दर्शन तो दूर उसकी एक झलक भी नही पा सकते और मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा जिसे उस साहेब ने अपने दिल रूपी तख्त पर बिठा लिया*। दिन की शुरुआत से लेकर रात के सोने तक मेरा साहेब मेरे साथ रहता है, मेरा हर कार्य सम्पन्न करता है, यहाँ तक कि मेरे सोचने का काम भी वो करता है।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य और अपने साहेब से होने वाली प्राप्तियों की स्मृति मेरे अंदर एक रूहानी नशे का संचार करने लगती है। एक रूहानी मस्ती जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर छाने लगती है वैसे - वैसे देह भान रूपी दीवार गिरने लगती है और अपने सत्य स्वरूप में मैं स्थित होने लगती हूँ। *और इस सत्य स्वरूप में स्थित होते ही देह के सम्बंध, देह की दुनिया, देह से जुड़े वैभव सब पीछे छूटते हुए दिखाई देने लगते है, सारे सम्बन्ध केवल उस एक मेरे सच्चे साहेब के साथ जुड़ जाते हैं और अपने उस सच्चे साहेब से मिलने के लिए मैं देह की झूठी दुनिया से किनारा कर अपनी उस पारलौकिक निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ जो मेरे दिलाराम बाबा का धाम है*। ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगाए मैं आत्मा सजनी उड़ती जा रही हूँ अपने साजन के पास उनके निराकारी वतन की ओर।
➳ _ ➳ पांचों तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, आकारी दुनिया से होती हुई मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया ब्रह्मलोक में और मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से अपने इस निर्वाणधाम घर को देख रही हूँ। चारों और फैला लाल प्रकाश मन को गहन आनन्द का अनुभव करवा रहा है। *इस प्रकाश में समाये सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन्स चारों और फैल कर, औंस की मीठी - मीठी फुहारों की तरह मेरे ऊपर बरसते हुए मुझे गहन शीतलता की अनुभूति करवा रहें हैं। इन शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती, मैं चमकती हुई ज्योति अपने इस अंतहीन परमधाम घर की सैर कर रही हूँ*। देह और देह की दुनिया के हर संकल्प विकल्प से मुक्त एक बहुत ही प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर अपने इस शान्तिधाम घर की सैर करने का यह अनुभव बहुत ही निराला और आनन्दमयी है। इस अनोखी आनन्दमयी यात्रा का सुख लेते हुए अब मैं जा रही हूँ अपने निराकार सच्चे साहिब अपने शिव पिता के पास।
➳ _ ➳ सूर्य के समान अनन्त प्रकाशमय मेरे प्यारे बाबा ज्योतिपुंज के रूप में अपनी सर्वशक्तियो की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे सामने खड़े हैं। धीरे - धीरे बाबा के समीप जाकर मैं जैसे ही बाबा की किरणों रूपी बाहों में समाती हूँ वैसे ही बाबा अपनी किरणों रूपी बाहों को समेटने लगते हैं और बाबा की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर मैं आत्मा बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ। *स्वयं को मैं बाबा के इतना समीप देख रही हूँ कि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे बाबा और मैं एक हो गए है। बाबा में मैं पूरी तरह समाकर जैसे बाबा का ही रूप बन गई हूँ। स्वयं को मैं बहुत ही एनर्जेटिक महसूस कर रही हूँ*। बाबा की किरणों रूपी बाहें धीरे - धीरे फिर से फैलने लगी है और मैं बाबा की किरणों रूपी बाहों से निकल कर अब बाबा के सामने बैठ गई हूँ और उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनकी सर्वशक्तियो से भरपूर कर रही हूँ। *रंग बिरंगी किरणों के रूप में बाबा के सर्वगुण और सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर समाते जा रहें हैं*।
➳ _ ➳ सर्वगुणों और सर्वशक्तियों से सम्पन्न होकर अब मैं फिर से साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। अपने साकारी ब्राह्मण तन में भृकुटि की कुटिया पर विराजमान होकर अब मैं फिर से इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। *पार्ट बजाते हुए हर पल अपने सच्चे साहिब को अपने दिल मे बसाये, उनके साथ अंदर बाहर सदा सच्चे रहते हुए, अपने साहिब के दिल रूपी तख्त पर मैं राज कर रही हूँ। चलते फिरते हर कर्म करते उन्हें पल - पल का सच्चा समाचार सुना कर, उनसे राय लेकर मैं हर कार्य मे सहज ही सफलता प्राप्त करती जा रही हूँ*। सच्चे दिल से अपने सच्चे साहिब को सदा राजी रखने के लिए मैं इस बात पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ कि अनजाने में भी मुझ से ऐसा कोई कर्म ना हो जिसके लिए मुझे अपने साहेब के सामने शर्मिन्दा होना पड़े।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्व शक्त्तियों की किरणें देने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं जिम्मेवारी संभालते हुए सब कुछ बाप को अर्पण कर डबल लाइट रहने वाला फरिश्ता हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. आजकल दुनिया वाले तो स्पष्ट कहते हैं कि आजकल सच्चे लोगों का चलना ही मुश्किल है, झूठ बोलना ही पड़ेगा। लेकिन कई समय पर, कई परिस्थितियों में ब्राह्मण आत्मायें भी मुख से नहीं बोलती लेकिन अन्दर समझती हैं कि कहाँ-कहाँ चतुराई से तो चलना ही पड़ता है। उसको झूठ नहीं कहते लेकिन चतुराई कहते हैं। तो चतुराई क्या है? यह तो करना ही पड़ता है! तो वह स्पष्ट बोलते हैं और ब्राह्मण रायल भाषा में बोलते हैं। फिर कहते हैं मेरा भाव नहीं था,न भावना थी न भाव था लेकिन करना ही पड़ता है, चलना ही पड़ता है। लेकिन ब्रह्मा बाप को देखा, साकार है ना, निराकार के लिए तो आप भी सोचते हो कि शिव बाप तो निराकार है, ऊपर मजे में बैठा है, नीचे आवे तो पता पड़े क्या है! लेकिन ब्रह्मा बाप तो साकार स्वरूप में आप सबके साथ ही रहे, स्टूडेन्ट भी रहे और सत्यता व पवित्रता के लिए कितनी आपोजीशन हुई तो चालाकी से चला! लोगों ने कितना राय दी कि आप सीधा ऐसे नहीं कहो कि पवित्र रहना ही है, यह कहो कि थोड़ा-थोड़ा रहो। लेकिन ब्रह्मा बाप घबराया? *सत्यता की शक्ति धारण करने में सहनशक्ति की भी आवश्यकता है। सहन करना पड़ता है, झुकना पड़ता है, हार माननी पड़ती है लेकिन वह हार नहीं है, उस समय के लिए हार लगती है लेकिन है सदा की विजय।*
➳ _ ➳ 2. *सत्यता के पीछे अगर सहन भी करना पड़ता तो वह सहन नहीं है भल बाहर से लगता है कि हम सहन कर रहे हैं लेकिन आपके खाते में वह सहन शक्ति के रूप में जमा होता है।*
➳ _ ➳ 3. बाहर से ऐसे समझेंगे कि हम बहुत अच्छे चलते हैं, हमको चलने की चतुराई आ गई है, लेकिन अगर अपना खाता देखेंगे तो जमा का खाता बहुत कम होगा। इसलिए चतुराई से नहीं चलो, एक दो को देखकर भी कॉपी करते हैं, यह ऐसे चलती है ना तो इसका नाम बहुत अच्छा हो गया है, यह बहुत आगे हो गई है और हम सच्चे चलते हैं ना तो हम पीछे के पीछे ही रह गये। लेकिन वह पीछे रहना नहीं है, वह आगे बढ़ना है। *बाप के आगे, आगे बढ़ते हो और दूसरों के आगे चाहे पीछे दिखाई भी दो लेकिन काम किससे है! बाप से या आत्माओं से? (बाप से) तो बाप के दिल में आगे बढ़ना अर्थात् सारे कल्प के प्रालब्ध में आगे बढ़ना। और *अगर यहाँ आगे बढ़ने में आत्माओं को कॉपी करते हो, तो उस समय के लिए आपका नाम होता है, शान मिलता है, भाषण करने वाली लिस्ट में आते हो, सेन्टर सम्भालने की लिस्ट में आते हो लेकिन सारे कल्प की प्रालब्ध नहीं बनती।* जिसको बापदादा कहते हैं मेहनत की, बीज डाला, वृक्ष बड़ा किया, फल भी निकला लेकिन कच्चा फल खा गये, हमेशा के लिए प्रालब्ध का फल खत्म हो जाता है। तो अल्पकाल के शान, मान, नाम के लिए कॉपी नहीं करो। यहाँ नाम नहीं है लेकिन बाप के दिल में नम्बर आगे नाम है।
✺ *ड्रिल :- "सत्यता की शक्ति से बाप के दिल में नम्बर आगे लेने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत आत्मिक स्थिति में अमृतवेले समय खुली हवा में छत पर बैठी हूँ...* हल्के हल्के टिमटिमाते तारों से, चिड़ियों की चहचाहट से, फूलों की खुशबू से, घास पर ठंडी ठंडी ओस की बूंदों से मेरा तन, मन आनंद से भर रहा है... मैं आकाश की ओर देखकर बाबा को बुलाती हूँ... ब्रह्मा बाबा की भृकुटी में विराजमान शिव बाबा सूक्ष्मवतन से नीचे आ रहे है... मम्मा, दादी, दीदीयाँ सभी ब्राह्मण सफेद ड्रेस में नीचे आ रहे हैं...
➳ _ ➳ बाबा के आते ही चिड़ियाँ, फूल, घास सब चहकने लगते है... फूलों की खुशबू जो धीमी-धीमी थी, वह हज़ारों गुणा बढ़ गयी हैं... *बाबा, मम्मा, दादी, दीदीयाँ मुझ आत्मा में वर्षा रूपी किरणे भर रहे है...* किरणों से मैं एकदम हल्कापन महसूस कर रही हूँ... मुझ आत्मा से पाँचो विकार मानो खत्म हो रहे है...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा में बाबा सत्यता की शक्ति को भर रहे हैं... *बाबा ने इतनी शक्तियाँ भर दी कि 63 जन्मों के झूठ बोलने का संस्कार एकदम नष्ट होते दिखाई दे रहे है... बाबा मुझे सच्चाई का वरदान दे रहे हैं...* बाबा शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, आनन्द, शक्ति और ज्ञान की किरणे भर रहे हैं... मुझ आत्मा में सागर से भी गहरी सत्यता की शक्ति बढ़ चुकी है... अब मैं आत्मा सच्ची-सच्ची ब्राह्मण आत्मा महसूस कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मेरा मन आनंद से भर चुका है... मैं अतिइंद्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अब सूक्ष्म चेकिंग कर दिनचर्या को देखती हूँ कि कही मैं झूठ का साथ तो नहीं दे रहीं हूँ... *मैं अलौकिक अनुभूतियों का अनुभव कर रही हूँ... मेरा मुख मेरा दास बन चुका है...* अब यह वही बोलता है जो मैं इसे आदेश देती हूँ... किसी भी अन्य आत्माओं के संस्कारों का प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ रहा है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा कभी भी झूठ नहीं बोलती... ऐसी चतुराई नहीं दिखाती हूँ... अन्य आत्माओं को देख कॉपी नहीं करती हूँ... *ब्रह्मा बाबा की तरह सच्चाई के रास्ते पर चलती हूँ... सत्यता की शक्ति मुझे मज़बूत बना रही है...* बाबा की मैं लाडली बच्ची बन चुकी हूँ... प्यारे-प्यारे बाबा के दिल में मेरा नंबर सबसे पहले है... नाम, मान, शान मिले या न मिलें इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा हैं... मेरा जमा का खाता अब बढ़ रहा है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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