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❍ 30 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपना पूरा समाचार बाप को दिया ?*
➢➢ *रक्षा बंधन का यथार्थ रहस्य बुधी में रख पवित्रत की प्रतिज्ञा की ?*
➢➢ *रूहानियत के साथ रमणीकता में आये ?*
➢➢ *आत्मिक शक्ति को बढाने का पुरुषार्थ किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे ब्रह्मा बाप को चलता-फिरता फरिश्ता, देह भान रहित अनुभव किया। कर्म करते, बातचीत करते, डायरेक्शन देते, उमंग-उत्साह बढ़ाते भी देह से न्यारा, सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति कराई, ऐसे फालो फादर करो।* सदा देह-भान से न्यारे रहो, हर एक को न्यारा रूप दिखाई दे, इसको कहा जाता है देह में रहते फरिश्ता स्थिति।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को त्रिकालदर्शी अनुभव करते हो? संगमयुग पर बाप सभी आत्माओंको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। क्योंकि संगमयुग है श्रेष्ठ, ऊंचा। तो जो ऊंचा स्थान होता है वहाँ खड़ा होने से सब कुछ दिखाई देता है। *तो संगमयुग पर खड़े होने से तीनों ही काल दिखाई देते हैं। एक तरफ दु:खधाम का ज्ञान है, दूसरे तरफ सुखधाम का ज्ञान है और वर्तमान काल संगमयुग का भी ज्ञान है। तो त्रिकालदर्शी बन गये ना! तीनों ही काल का ज्ञान इमर्ज है? तीनों ही काल स्मृति में रखो-कल दु:खधाम में थे, आज संगमयुग में हैं और कल सुखधाम में जायेंगे।* जो भी कर्म करो वह त्रिकालदर्शी बनकर के करो तो हर कर्म श्रेष्ठ होगा। व्यर्थ नहीं होगा, समर्थ होगा! समर्थ कर्म का फल समर्थ मिलता है।
〰✧ त्रिकालदर्शी बनने से-यह क्यों हुआ, यह क्या हुआ, 'ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए'.......-यह सब क्वेश्चन-मार्क खत्म हो जाते हैं। नहीं तो बहुत क्वेश्चन उठते हैं। *'क्यों' का क्वेश्चन उठने से व्यर्थ संकल्पों की क्यू लग जाती है और त्रिकालदर्शी बनने से फुलस्टॉप लग जाता है। नथिंग न्यु - तो फुल स्टॉप लग गया ना! फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी लगाने से बिन्दु रूप सहज याद आ जाता है।* बापदादा सदा कहते हैं कि अमृतवेले सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और जो हो गया, जो हो रहा है, नथिंगन्यु, तो फुलस्टॉप भी बिन्दी। यह तीन बिन्दी का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक। मस्तक स्मृति का स्थान है, इसलिए तिलक मस्तक पर ही लगाते हैं। तीन बिन्दियों का तिलक लगाना अर्थात् स्मृति में रखना। फिर सारा दिन अचल-अडोल रहेंगे। यह 'क्यूं' और 'क्या' ही हलचल है। तो अचल रहने का साधन है-अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। यह भूलो नहीं।
〰✧ जिस समय कोई बात होती है उस समय फुलस्टॉप लगाओ। ऐसे नहीं कि याद था लेकिन उस समय भूल गया। गाड़ी में यदि समय पर ब्रेक न लगे तो फायदा होगा या नुकसान? तो समय पर फुलस्टॉप लगाओ। *नथिंग न्यु-होना था, हो रहा है। और साक्षी होकर के देखकर आगे बढ़ते चलो। तो त्रिकालदर्शी अर्थात् आदि, मध्य, अन्त-तीनों को जान जैसा समय, वैसा अपने को सदा सेफ रख सको। ऐसे नहीं कहो कि - 'यह समस्या बहुत बड़ी थी ना, छोटी होती तो मैं पास हो जाती लेकिन समस्या बहुत बड़ी थी!' कितनी भी बड़ी समस्या हो लेकिन आप तो मास्टर सर्वशक्तिवान हो ना!*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे स्थूल शरीर के वस्त्र और वस्त्र धारण करने वाला शरीर अलग अनुभव होता है ऐसे *मुझ आत्मा का यह शरीर वस्त्र है,* मैं वस्त्र धारण करने वाली आत्मा हूँ। ऐसा स्पष्ट अनुभव हो। जब चाहे इस देह भान रूपी वस्त्र को धारण करें, *जब चाहे इस वस्त्र से न्यारे अर्थात देहभान से न्यारे स्थिति में स्थित हो जायें।*
〰✧ ऐसा न्यारे-पन का अनुभव होता है? वस्र को मैं धारण करता हूँ या वस्त्र मुझे धारण करता है? चैतन्य कौन? मालिक कौन? तो *एक निशानी - ‘न्यारे-पन की अनुभूति।' अलग होना नहीं है लेकिन मैं हूँ ही अलग। तीसरी अनुभूति - ऐसी समान आत्मा अर्थात एवररेडी आत्मा* - साकारी दुनिया और साकार शरीर में होते हुए भी बुद्धियोग की शक्ति द्वारा सदा ऐसा अनुभव करेगी कि मैं आत्मा चाहे सूक्ष्मवतन में, चाहे मूल वतन में, वहाँ ही वाप के साथ रहती हूँ।
〰✧ *सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवनत वासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी हो* कर्मयोगी बन कर्म का पार्ट वजाने वाली हूँ लेकिन अनेक बार अपने को बाप के साथ सूक्ष्मवतन और मूलवतन में रहने का अनुभव करेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *यह कमजोरी व पुरुषार्थहीन वा ढीला पुरुषार्थ देह-अभिमान की रचना है।* स्व अर्थात् आत्म-अभिमानी। इस स्थिति में वह कमजोरी की बातें आ नहीं सकती। तो *यह देह-अभिमान की रचना का चिन्तन करना यह भी स्व-चिन्तन नही।* स्व-चिन्तन अर्थात् जैसा बाप वैसे मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ। ऐसा स्वचिन्तन वाला शुभ चिन्तन कर सकता है। शुभ चिन्तन अर्थात् ज्ञान रत्नों का मनन करना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्र बनकर सबको पवित्र बनाने की प्रतिज्ञा करना"*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा के कमरे में रूहरिहान करने के लिये... जब मैं आत्मा... पाण्डव भवन के प्रांगण में पहुंचती हूँ... वहाँ श्रीकृष्ण की मनमोहक छवि(चित्र) को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ...* भक्ति में यह चित्र, आज ज्ञान में मन की आँखों से देखकर... मैं आत्मा अति आनंदित हो रही हूँ... मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रों में चैतन्यता को सहज ही दिखलाया है... *आज प्यारे बाबा की गोद में बैठ कर... हर नज़ारा दिल के कितने करीब है... बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी नजारे दिखाकर... भाव विभोर कर दिया है...* मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... बाबा रूम की ओर बढ़ चलती हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को... ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का महत्व समझाते हुए कहा :-* "मेरे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस संगमयुग पर अपनी पवित्रता द्वारा चारों युगों के भाग्य को जान सकते हो... *ब्राह्मण जीवन का मुख्य आधार... पवित्रता है, जितनी श्रेष्ठ पवित्रता होगी... उतना ही श्रेष्ठ भाग्य बनेगा... और उतने ही ईश्वरीय खजानो के अधिकारी बनोगे...* पवित्र बन सबके जीवन में आप समान खुशियों की बहारों को सजाओ... *ईश्वर पिता को पाकर... जो सच्चे अहसासो को आपने जिया है... उनकी अनुभूति हर दिल को भी कराओ...* उनके भी सोये हुए भाग्य को जगाकर... उन्हें भी पतित से पावन बनाकर देवताई राज्य भाग्य दिलाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के अमूल्य ज्ञान को बुद्धि में समेटकर कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा आप द्वारा दी गयी श्रीमत पर चल... पवित्रता धारण कर हर कर्म कर रही हूँ... मैं आत्मा ज्ञान धन से सम्पन्न होकर, आपकी मीठी यादों के झूले में खोयी हुई... हर क्षण सच्चे आनंद को जी रही हूँ...* आपकी यादों की छत्रछाया में पलकर, असीम खुशियों की धनी हो गयी हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादों के तारों में पिरोते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...* सेवा का मुख्य आधार... पवित्रता ही है... *पवित्रता के श्रेष्ठ आकर्षण से सहज ही आत्मायें... परमपिता की ओर खिंची चली आती हैं... पवित्रता के बल से तुम्हारी हर सेवा आसान हो जाती है...* इसलिए रहमदिल बन... हर आत्मा के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना रख सभी आत्माओ को पवित्र बनाने की प्रतिज्ञा करो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से महा धनवान बनकर पूरे विश्व में इस ज्ञान धन की दौलत लुटाकर कहती हूँ :- "मेरे शाहों के शाह... मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके अथाह प्यार को पाकर... प्रेम, सुख, शांति की तरंगो से भर गयी हूँ...* और आपसे प्राप्त धन सम्पदा... को अपनी बाँहों में भरकर, हर दिल को... पवित्र बनाकर... आपकी ओर आकर्षित कर रही हूँ... *मुझे इस कदर प्यारा बनाने वाले, पिता की झलक, अपनी रूहानियत से सबको दिखा रही हूँ...* और आपकी बाँहो में पालना दिलवा कर, पुनः सभी आत्माओं को पावन बना रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य के नशे से भरते हुए कहा :-* "मेरे मीठे राजदुलारे बच्चों... *जैसे सूर्य अपनी किरणें फैलाकर समस्त विश्व को प्रकाशित कर देता है... वैसे ही पवित्र आत्मा, अपनी पवित्रता की किरणों द्वारा... संसार से माया रूपी अंधकार को मिटाने में समर्थ होती है...* अगर संसार में पवित्रता न हो तो पाप के भार से पृथ्वी डोलने लगती है... *अतः मीठे बच्चों... पवित्र बन सभी आत्माओ को पवित्र बनाने की दृढ प्रतिज्ञा कर... बाबा के सहयोगी बनो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के स्नेह में डूबी, अपने मीठे भाग्य पर इतराती बाबा से कहती हूँ :- "मेरे मीठे दिलाराम बाबा...* आपने आकर मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य... अमूल्य बना दिया है... मुझे देवताओं से भी ऊंच बनाकर, अपने गले से लगाया है... *मेरी झोली वरदानों से भरकर... मुझे खुशनसीब बना दिया है... मैं आत्मा आपको पाकर... धन्य-धन्य हो गयी हूँ...* प्यारे बाबा से मीठी रूहरिहान करके मैं आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से पूरा - पूरा लव रख मातेला बनना है*"
➳ _ ➳ जिस भगवान को दुनिया ढूंढ रही है इस आश के साथ कि कभी तो भगवान उनकी पुकार सुनेंगे, उन्हें दर्शन देकर उनके नयनों की प्यास बुझायेंगे वो भगवान हर रोज़ मेरे पास आते हैं आकर अपना असीम प्यार मुझ पर बरसाते हैं और मुझे अपनी शक्तियों, अपने गुणों अपने खजानों से मालामाल कर देते हैं। "वाह मैं आत्मा", "वाह मेरा भाग्य' जो स्वयं भगवान मेरा हो गया। *हर सम्बन्ध का मुझे सुख देने वाला भगवान मेरा बाबा मेरा साथी हर पल मेरे साथ रहता है। किसी को दिखाई नही देता लेकिन फिर भी खाते - पीते, चलते - फिरते, सोते - उठते हर पल मुझे मेरे आस - पास होने का एहसास दिलाता है। ऐसा असीम प्यार करने वाले अपनेे बाबा के साथ मैं पूरा लव रखूँगी। उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण करूँगी और उनकी श्रीमत पर चल श्रेष्ठ कर्म करके, उनका मातेला बच्चा बनूँगी*। मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर एहसास का अनुभव करने के लिए मैं आत्मा अब उनके पास जाने का संकल्प करती हूँ।
➳ _ ➳ अपने पिता से मिलने का संकल्प, बाकि सभी संकल्पो विकल्पों के जाल से मुझे मुक्त कर देता है और अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मनाने के इस संकल्प में मैं आत्मा स्थित होकर जल्दी ही अपने मनबुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ। *शरीर के विभिन्न अंगों में फैली चेतना को समेट कर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को भृकुटि के बीच मे स्थित करते ही देह के भान से मैं मुक्त होने लगी हूँ और देह में होते हुए भी विदेही स्थिति का अनुभव करने लगी हूँ*। देह और देही दोनों को मैं अलग - अलग देख रही हूँ। यह डिफरेंस मुझे देह के आकर्षण से पूरी तरह मुक्त स्थिति का अनुभव करवा रहा है। *देह के आकर्षण से मुक्त होकर अब मैं पूरी तन्मयता के साथ अपने अति सुन्दर चमकते हुए सूक्ष्म बिंदु स्वरुप को देख रही हूँ*। मुझ चैतन्य सितारे से निकल रही रंग बिरंगी किरणों का प्रकाश मेरे चारो और फैल कर, इंद्रधनुष के खूबसूरत रंगों के समान एक आभामण्डल का निर्माण कर रहा है।
➳ _ ➳ बड़ी सहजता के साथ अपनी देह का त्याग कर, मैं आत्मा देह से बाहर निकलती हूँ और प्रकाश के इस खूबसूरत कार्ब के साथ ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ। *सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम, आनन्द, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों की सतरंगी किरणों को चारों और बिखेरते हुए मैं आत्मा सारे विश्व का चक्कर लगाकर आकाश मार्ग से होती हुई, सूक्ष्म लोक में प्रवेश करके, उसे भी पार करके अपने मूल वतन परमधाम घर मे पहुँच जाती हूँ*। देह और देह की दुनिया के संकल्प मात्र से भी मुक्त अपने इस परमधाम घर में मैं चारों और फैले दिव्य लाल प्रकाश को देख रही हूँ। चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियों का आगार है। *शन्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स अपने चारों और मैं महसूस कर रही हूँ जो मुझे गहन शांति की अनुभूति करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ शांति के गहरे अनुभवों में खोई मास्टर बीज रूप स्थिति में अपने बीज रूप प्यारे पिता के पास मैं पहुँचती हूँ और जाकर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। *इस कम्बाइंड बीज रूप स्थिति में मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मैं आत्मा सर्वशक्तियों के फव्वारे के नीचे बैठी हूँ और बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। असीम परम आनन्द की मैं अनुभूति कर रही हूँ*। प्यार के सागर मेरे प्यारे पिता अपने प्रेम की शीतल किरणों को मेरे ऊपर बिखेरते हुए अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। *मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित होकर, गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करके और स्वयं को ईश्वरीय स्नेह से भरपूर करके, फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए मैं वापिस लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा के सच्चे निस्वार्थ प्यार के अनुभव की मीठी - मीठी यादे अपने आँचल में सँजोये, उनके प्यार की गहराई में खो कर, उनसे पूरा - पूरा लव रख, मातेला बन उनके हर फरमान पर चलते हुए, उनके प्यार के झूले में मैं अब हर पल झूल रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों से ममत्व निकाल, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने मीठे बाबा से लेते हुए, मैं अब कदम - कदम उनकी श्रीमत को फ़ॉलो करके, उनके प्रति अपने सच्चे प्यार का सबूत दे रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं रूहानियत के साथ रमणीकता में आने वाली मर्यादा पुरुषोत्तम आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मिक शक्ति को बढ़ाकर सदा स्वस्थ रहने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवा
के साधन भी भल अपनाओ। नये-नये प्लैन भी भले बनाओ। लेकिन किनारों में रस्सी
बांधकर छोड़ नहीं देना। *प्रवृत्ति में आते ‘कमल' बनना
भूल न जाना। वापिस जाने की तैयारी नहीं भूल जाना। सदा अपनी अन्तिम स्थिति का
वाहन - न्यारे और प्यारे बनने का श्रेष्ठ साधन - सेवा के साधनों में भूल नहीं
जाना।* खूब सेवा करो लेकिन न्यारेपन की खूबी को नहीं छोड़ना। अभी इसी अभ्यास की
आवश्यकता है। या तो बिल्कुल न्यारे हो जाते या तो बिल्कुल प्यारे हो जाते।
*इसलिए ‘न्यारे
और प्यारेपन का बैलेन्स' रखो।
सेवा करो लेकिन ‘मेरेपन' से
न्यारे होकर करो।* समझा क्या करना है? अब
नई-नई रस्सियाँ भी तैयार कर रहे हैं। पुरानी रस्सियाँ टूट रही हैं। समझते भी नई
रस्सियाँ बाँध रहे हैं क्योंकि चमकीली रस्सियाँ हैं। तो इस वर्ष क्या करना है? बापदादा
साक्षी होकर के बच्चों का खेल देखते हैं। रस्सियों के बंधने की रेस
में एक दो से बहुत आगे जा रहे हैं। इसलिए सदा विस्तार में जाते सार रूप में
रहो।
✺
*"ड्रिल :- सेवा करते मेरेपन से न्यारे होकर रहना"*
➳ _ ➳
मैं
आत्मा प्रकृति के मनमोहक छटाओं के बीच एक बहुत ही सुंदर सरोवर के किनारे स्वयं
को देख रही हूँ... बहुत शांत वातावरण है और सरोवर का जल भी बिलकुल शांत है...
सरोवर में खिले हुए कमल के पुष्प सरोवर की शोभा बढ़ा रहे है... *उन कमल पुष्पों
को देखते हुए मैं विचारों में खो जाती हूँ... ये कमल के पुष्प सरोवर में होते
हुए भी कितने न्यारे और प्यारे हैं...*
➳ _ ➳
अब
मैं पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मा स्वयं को देखती हूँ जिसे स्वयं परमात्मा पिता ने
अपना बच्चा बनाया और मुझे मेरी पहचान बतायी... *विश्व कल्याणकारी परमात्मा पिता
ने मुझे विश्व कल्याण के निमित्त,
नयी
दुनिया के स्थापना हेतु मुझे अपना सहयोगी विश्व सेवाधारी बनाया है...* साथ ही
अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखा खींचने की कलम मेरे हाथों में दे दी है...
➳ _ ➳
इन्ही विचारों में खोई मैं आत्मा सरोवर के तट पर टहलती जा रही थी कि तभी सामने
से बापदादा को अपनी ओर आते हुए देखती हूँ... बाबा की दिव्य मुस्कान और उनके
प्यार में खोई हुई मैं आत्मा मंत्रमुग्ध सी बापदादा की ओर बढ़ने लगती हूँ...
*बाबा मेरे करीब आते ही मेरे सिर पर हाथ रख मुझे प्यार भरी दृष्टि से निहाल कर
रहे हैं... मैं आत्मा प्यार के सागर में गहरे डूबती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳
अब
बाबा भी सरोवर के तट पर मेरे साथ टहलने लगते हैं... सरोवर में खिले हुए कमल की
ओर इशारा करते हुए बाबा मुझसे कहते हैं- बच्चे तुम्हे इन कमल के फूलों की तरह
ही बनना है... *भल प्रवृति में रहना है लेकिन इन कमल पुष्प के समान स्वयं को
न्यारे और प्यारे रखते हुए विश्व सेवा करते मेरेपन के भाव से,
सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे बनो...* क्योंकि सेवा का लगाव भी सोने की
जंजीर है... यह बेहद से हद में ले आता है...
➳ _ ➳
इसीलिए देह की स्मृति से,
ईश्वरीय सम्बन्ध से,
सेवा के साधनों के लगाव से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सदा सफलता मिलती
रहेगी... मैं आत्मा बाबा के प्यार में मंत्रमुग्ध सी बाबा की बातों को सुनती जा
रही हूँ... बाबा की सारी बातें मेरे अंतर्मन में गहरे उतरती जा रही है... *मैं
आत्मा स्वयं को अंदर से बहुत ही शक्तिशाली महसूस करते हुए बाबा की बहुत ही
न्यारी और प्यारी विश्व सेवाधारी के रूप में देख रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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