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 20 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अप्पोत आज्ञाकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सबसे बुधीयोग तोड़ निरंतर एक बाप की याद में रहे ?*

 

➢➢ *स्वयं को बाप हवाले कर बुधी से सरेंडर हुए ?*

 

➢➢ *अडोलता के तख़्त पर विराजमान हो, साक्षी दृष्टा बन पार्ट बजाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कोई भी आपके समीप सम्पर्क में आये तो महसूस करे कि यह रुहानी हैं, अलौकिक हैं। उनको आपका फरिश्ता रुप ही दिखाई दे।* फरिश्ते सदा ऊंचे रहते हैं। फरिश्तों को चित्र रुप में भी दिखायेंगे तो पख दिखायेंगे क्योंकि उड़ते पंछी हैं।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कोटो में कोई और कोई में भी कोई श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  अपने को सदा कोटों में कोई और कोई में भी कोई श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करते हों? कि कोटों में कोई जो गाया हुआ है वो और कोई है? या आप ही हो? *तो कितना एक-एक आत्मा का महत्व है अर्थात् हर आत्मा महान् है। तो जो जितना महान् होता है, महानता की निशानी जितना महान् उतना निर्माण। क्योंकि सदा भरपूर आत्मा है।* जैसे वृक्ष के लिये कहते हैं ना जितना भरपूर होगा उतना झुका हुआ होगा और निर्माणता ही सेवा करती है।

 

  जैसे वृक्ष का झुकना सेवा करता है, अगर झुका हुआ नहीं होगा तो सेवा नहीं करेगा। तो एक तरफ महानता है और दूसरे तरफ निर्माणता है। और जो निर्माण रहता है वह सर्व द्वारा मान पाता है। स्वयं निर्माण बनेंगे तो दूसरे मान देंगे। जो अभिमान में रहता है उसको कोई मान नहीं देते। उससे दूर भागेंगे। *तो महान् और निर्माण है या नहीं है-उसकी निशानी है कि निर्माण सबको सुख देगा। जहाँ भी जायेगा, जो भी करेगा वह सुखदायी होगा। इससे चेक करो कि कितने महान् हैं? जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये सुख की अनुभूति करे।* ऐसे है या कभी दु:ख भी मिल जाता है? निर्माणता कम तो सुख भी सदा नहीं दे सकेंगे। तो सदा सुख देते, सुख लेते या कभी दु:ख देते, दु:ख लेते? चलो देते नहीं लेकिन ले भी लेते हो? थोड़ा फील होता है तो ले लिया ना।

 

  अगर कोई भी बात किसी की फील हो जाती है तो इसको कहेंगे दु:ख लेना। लेकिन कोई दे और आप नहीं लो, यह तो आपके ऊपर है ना। जिसके पास होगा ही दु:ख वो क्या देगा? दु:ख ही देगा ना। लेकिन अपना काम है सुख लेना और सुख देना। ऐसे नहीं कि कोई दु:ख दे रहा है तो कहेंगे मैं क्या करुँ? मैंने नहीं दिया लेकिन उसने दिया। *अपने को चेक करना है-क्या लेना है, क्या नहीं लेना है। लेने में भी होशियारी चाहिये ना। इसलिये ब्राह्मण आत्माओंका गायन है-सुख के सागर के बच्चे, सुख स्वरूप सुखदेवा हैं। तो सुख स्वरूप सुखदेवा आत्मायें हो। दु:ख की दुनिया छोड़ दी, किनारा कर लिया या अभी तक एक पांव दु:खधाम में है, एक पांव संगम पर है?* ऐसे तो नहीं कि थोड़ा-थोड़ा वहाँ बुद्धि रह गई है? पांव नहीं है लेकिन थोड़ी अंगुली रह गई है? जब दु:खधाम को छोड़ चले तो न दु:ख लेना है न दु:ख देना है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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सभी एवररेडी हो ना! आज किसको कहाँ भेजें तो एवररेडी हो ना! *जब हिम्मत रखते हैं तो मदद भी मिलती है। एवररेडी जरूर रहना चाहिए।* और जब समय ऐसा आयेगा तो फिर ऑर्डर तो करना ही होगा। बाप द्वारा ऑर्डर होना ही है। कब करेंगे वह डेट नहीं बतायेंगे। डेट बतावें फिर तो सब नम्बरवन पास हो जाएँ। यहाँ डेट का ही 'अचानक' एक ही क्वेचन आयेगा! एवररेडी हो ना। कहें यहाँ ही बैठ जाओ तो बाल-बच्चे, घर आदि याद आयेगा? सुख के साधन तो वहाँ हैं लेकिन स्वर्ग तो यहाँ बनाना है। तो *सदा एवररेडीरहना। यह है ब्राह्मण जीवन की विशेषता।* अपनी बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। सेवा के लिए निमित मात्र स्थान बाप ने दिया है। तो निमित बनकर सेवा में उपस्थित हुए हो। फिर बाप का इशारा मिला तो कुछ भी सोचने की जरूरत ही नहीं है। *डायरेक्शन प्रमाण सेवा अच्छी कर रहे हो। इसलिए न्यारे और बाप के प्यारे हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *कहा भी जाता है - 'सच्चे दिल पर साहेब राजी'। विशाल दिमाग पर राजी नहीं कहा जाता है। विशाल दिमाग- यह विशेषता जरूर है, इस विशेषता से ज्ञान की प्वांट्स को अच्छी रीति धारण कर सकते हैं लेकिन दिल से याद करने वाले प्वाइंट अर्थात् बिन्दु रूप बन सकते हैं।* वह प्वाइंट रिपीट कर सकते हैं लेकिन पाइंट रूप बनने में सेकण्ड नम्बर होंगे, *कभी सहज कभी मेहनत से बिन्दु रूप में स्थित हो सकेंगे। लेकिन सच्ची दिल वाले सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दुस्वरूप बाप को याद कर सकते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद की यात्रा में टाइम देकर विकर्म विनाश करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की यादों में खोई हुई मन-बुद्धि से पहुँच जाती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... बाबा के सामने बैठ जाती हूँ और बाबा को प्यार से निहारती रहती हूँ... मीठे बाबा भी मुझे अपनी मीठी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं...* बस प्यार की तरंगे बहती जा रही हैं और मैं आत्मा इन प्यार की तरंगो में और गहरे, और गहरे डूबती जा रही हूँ... फिर मीठे बाबा मीठी शिक्षाओं से मुझे भरपूर करते हैं...

 

  *यादों के समुन्दर में डुबोकर हीरे मोतियों से मुझे सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *मीठे पिता की यादो के सिवाय कोई भी नाता सच्चा नही... ये यादे ही जादूगरी करके सुनहरा चमकीला रंग देकर सजायेंगी...* इसलिए इन यादो के मोतियो को अपनी सांसो में पिरो लो... यही पल सच्चे साथी बनेगे...

 

 _ ➳  *प्यारे बाबा के यादों की बाँहों में खूबसूरत फूल बन मुस्कुराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपकी मीठी यादो के साये में मै आत्मा कितनी खूबसूरत और प्यारी होती जा रही हूँ... इन यादो में अनन्त सुख को जी रही हूँ...* मै कितनी भाग्यशाली हूँ सच्चे पिता की गोद में सुरक्षित हूँ...

 

  *अपने प्यार की छत्रछाया में मुझे अमूल्य सितारा बनाकर गगन में चमकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... *खुद को खूबसूरती से सजाने वाले इन मीठे पलों को यादो में बांध लो... सांसो को यादो में अमर कर दो...* ये यादे ही जनमो की कलुषिता को जलायेगी और सोने जैसी दमकती काया और आनन्द ख़ुशी से छलकता महकता जीवन कदमो में भर जाएँगी...

 

 _ ➳  *खुद को भी भूल एक बाबा की यादों में समाकर मैं भाग्शाली आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर अधूरी सी थी... *आपने आकर जनमो के गहरे अँधेरे को सदा की रोशनी से रोशन किया है... ये पल आपकी यादो में भीगे भीगे से अनमोल है... जहाँ हम आप एक दूजे में खोये है...”*

 

  *सच्ची कमाई का राज समझाते हुए मेरे हर श्वांस को सफल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... *सारा मदार कीमती यादो और कीमती समय पर है... इस समय को मुट्ठी में बांध यादो में घोट दो... और सुर्ख योग अग्नि में सारी कालिमा को धो दो...* समय रहते बाबा के दिल को सदा का जीत लो... गफलत शब्द को सदा की विदाई दे अथक बन जाओ...

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की यादों में सच्ची कमाई कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मुझ आत्मा ने इस सच्चे समय के महत्व को जान लिया है... आपकी यादो में भर देने का इसे ठान लिया है...* न होगी यादो में गफलत कोई... दिल को यूँ समझा दिया है... और आपको सदा का बाहों में जकड़ लिया है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप को अपना कखपन दे, बलिहार हो सबसे ममत्व मिटा देना है*"

 

_ ➳  *देहभान में आने से विकारों का जो कखपन मुझ आत्मा में भर गया है उस कखपन को करनीघोर मेरे परमपिता परमात्मा स्वयं मुझसे मांग कर बदले में मुझे जन्म जन्मांतर के लिए प्योर और निरोगी बनाने का मेरे साथ सौदा कर रहें हैं तो ऐसे भगवान बाप पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए* जो मेरा कखपन लेकर मुझे विश्व की बादशाही दे रहें हैं। कितने रहमदिल दया के सागर हैं मेरे प्रभु जो सभी आत्माओं के ऊपर अपनी दयादृष्टि रखते हैं। सबको दुखों से लिबरेट कर सुख के संसार में ले जाते हैं।

 

_ ➳  विकारो ने आज जिस भारत को कौड़ी तुल्य बना दिया है उसे फिर से स्वर्ग बनाने का कर्तव्य करने वाले *अपने प्यारे बाबा का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करते हुए अब अपने आप से वायदा करती हूँ कि जिन विकारो ने मुझे कौड़ी तुल्य बनाया है वह कखपन अपने पिता को सौंप, इस विकारी देह और देह से जुड़े विकारी सम्बन्धो से ममत्व  मिटा कर केवल उन पर ही बलिहार जाना है*। उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर उनके समान बनना ही अब मेरे इस जीवन का लक्ष्य है।

 

_ ➳  इस लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प लेकर अपने प्यारे प्रभु की याद में बैठ स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करने और अपने ऊपर चढ़ी विकारो की कट को जलाकर भस्म करने के लिए अपने बीज रूप पिता के पास चलने की आंतरिक यात्रा को अब मैं शुरू करती हूँ। *अपने मन और बुद्धि को देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, हर संकल्प विकल्प से किनारा कर मन को एक ही शक्तिशाली संकल्प में मैं स्थित करती हूँ कि मैं परमपवित्र आत्मा हूँ, नष्टोमोहा हूँ*। इस संकल्प में स्थित होते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं देह से स्वत: ही डिटैच हो रही हूँ और देह को भूलती जा रही हूँ। देह में होते भी स्वयं को मैं देह से न्यारी एक चमकती हुई ज्योति के रूप में देख रही हूँ।

 

_ ➳  एक चैतन्य शक्ति जो इस देह में विराजमान होकर इस देह को चला रही है किन्तु देह से पूरी तरह अलग है, अपने इस स्वरूप में स्थित होकर अब मैं देख रही हूँ सितारे के समान चमक रहें अपने इस अद्भुत निराले स्वरूप को जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *इस सत्य स्वरूप में स्थित होते ही मैं महसूस कर रही हूँ जैसे पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा से निकल रहें हैं और मुझे विदेही बना कर पवित्रता के सागर मेरे प्यारे पिता की ओर ले जाने का मुझमे बल भर रहें हैं*। बाबा की पवित्रता की शक्ति एक मेग्नेटिक पॉवर की तरह मुझे अपनी ओर खींच रही है। बाबा मुझे कशिश कर रहें हैं। धीरे - धीरे देह से बाहर आकर अब मैं ऊपर की ओर उड़ रही हूँ।

 

_ ➳  मन को गहन सुकून दे रही है ये यात्रा। बहुत ही हल्केपन का मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ। *देह और देह के सम्बन्धो की जंजीरों में जकड़ी मैं आत्मा आज उन जंजीरो को तोड़ स्वयं को पूरी तरह आजाद महसूस कर रही हूँ और उन्मुक्त होकर इस आजादी का भरपूर आनन्द लेते हुए सारे विश्व की सैर करते हुए ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। प्रकृति के हर दृश्य को देखते हुए आकाश को पार कर मैं उससे भी ऊपर जा रही हूँ। सफेद प्रकाश की खूबसूरत फरिश्तो की दुनिया से होकर अब मैं पहुँच गई हूँ अपने मूलवतन परमधाम घर मे अपने प्यारे पिता के पास। यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा शन्ति के गहन अनुभवों का आनन्द ले रही हूँ।

 

_ ➳  कुछ क्षण शान्ति की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं अपने ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर स्वयं को पावन बनाने के लिए पवित्रता के सागर अपने पिता के पास पहुँच गई हूँ जो महाज्योति के रूप में मेरे सामने उपस्थित हैं। *उनके बिल्कुल समीप जाकर मैं आत्मा बैठ गई हूँ। उनसे निकल रही पवित्रता की किरणों की मीठी - मीठी फुहारें मुझ पर बरस रही है और मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर मुझे शुद्ध और पावन बना रही हैं*। उन किरणों का स्वरूप - धीरे - धीरे बदलकर योग अग्नि में परिवर्तित हो रहा है ऐसे लग रहा है जैसे मेरे चारों तरफ कोई ज्वाला दधक रही है जिसकी तपश मेरे विकर्मों को दग्ध कर रही है। *जैसे - जैसे मेरे विकर्म विनाश हो रहें हैं मैं सच्चे सोने के समान चमकदार बन रही हूँ*।

 

_ ➳  शुद्व, पवित्र, शक्तिशाली बन कर मैं आत्मा अब वापिस फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजाने के लिए लौट रही हूँ। अपने शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर, बाबा को विकारों रूपी कखपन दे, विकारों के ग्रहण से मैं धीरे - धीरे मुक्त होती जा रही हूँ। *एक बाबा को ही अपना संसार बना कर, देह और देह के सम्बन्धो, देह की दुनिया से मैं धीरे - धीरे ममत्व मिटाती जा रही हूँ। अपने जीवन को सुख शांति से सम्पन्न बनाने वाले अपने सुखदाता, शांतिदाता बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उन पर बलिहार जाकर, मैं हर समय उनकी सुखदाई यादों में समा कर अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ निर्विघ्न हो कर बिल्कुल सहज रीति कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मै आत्मा स्वयं को बाप हवाले कर बुद्धि से भी सरेन्डर होने वाली डबल लाइट    आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अडोलता के तख्त पर विराजमान हो, साक्षी दृष्टा बन पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *अपने बोल कैसे होयह अपशब्द, व्यर्थ शब्द, जोर से बोलना..... ये जोर से बोलना भी वास्तव में अनेकों को डिस्टर्ब करना है।* ये नहीं बोलो- मेरा तो आवाज ही बड़ा है। मायाजीत बन सकते हो और आवाज जीत नहीं बन सकते! तो ऐसे किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल और व्यर्थ बोल नहीं बोलो। बात होती है दो शब्दों की लेकिन आधा घण्टा उस बात को बोलते रहेंगेबोलते रहेंगे। तो ये जो लम्बा बोल बोलते होजो चार शब्दों में काम हो सकता है वो १२-१५ शब्द में नहीं बोलो।

➳ _ ➳  *आप लोगों का स्लोगन है कम बोलोधीरे बोलो।* तो जो कहते हैं ना हमारा आवाज बहुत बड़ा हैहम चाहते नहीं हैं लेकिन आवाज ही बड़ा हैतो वो गले में एक स्लोगन लगाकर डाल लेवे। होता क्या हैआप लोग तो अपनी धुन में जोर से बोल रहे हो लेकिन आने-जाने वाले सुन करके ये नहीं समझते हैं कि इसका आवाज बड़ा है। वो समझते हैं पता नहीं झगड़ा हो रहा है। तो ये भी डिससर्विस हुई।

➳ _ ➳  इसलिए आज का पाठ दे रहे हैं - व्यर्थ बोल या किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल से अपने को मुक्त करो। व्यर्थ बोल मुक्त। फिर देखो अव्यक्त फरिश्ता बनने में आपको बहुत मदद मिलेगी।  *बोल की इकानामी करोअपने बोल की वैल्यु रखो।* जैसे महात्माओं को कहते हैं ना-सत्य वचन महाराज तो आपके बोल सदा सत वचन अर्थात् कोई न कोई प्रीत कराने वाले वचन हो। किसको चलते-फिरते हंसी में कह देते हो - ये तो पागल हैये तो बेसमझ हैऐसे कई शब्द बापदादा अभी भूल गये हैं लेकिन सुनते हैं। तो *ब्राह्मणों के मुख से ऐसे शब्द निकलना ये मानों आप सतवचन महाराज वालेकिसी को श्राप देते हो। किसको श्रापित नहीं करो, सुख दो।*

➳ _ ➳  *युक्तियुक्त बोल बोलो और काम का बोलोव्यर्थ नहीं बोलो।* तो जब बोलना शुरु करते हो तो एक घण्टे में चेक करो कि कितने बोल व्यर्थ हुए और कितने सत वचन हुए? *आपको अपने बोल की वैल्यु का पता नहीं, तो बोल की वैल्यु समझो। अपशब्द नहीं बोलो, शुभ शब्द बोलो।*

✺   *ड्रिल :-  "व्यर्थ बोल मुक्त बन, युक्तियुक्त बोल बोलना"*

➳ _ ➳  *बाबा के महावाक्य हैं "मीठे बच्चे" यह बोल सुनते ही मन ख़ुशी में झूमने लगता हैं...* कितना प्यार भरा संबोधन बाबा के बच्चों के प्रति... मीठे बच्चे... लाडले बच्चे... सिकीलधे बच्चे... अनहद प्यार... प्यार के सागर में हम बच्चे हिंडोले लेते ही रहते है... प्यार का सागर मेरा पिता... मैं उनकी संतान... मास्टर प्यार की सागर... उनके गुणों को ग्रहण करती जा रही हूँ... मुरली रूपी महावाक्यों को अपने स्मृति पटल पर सुनहरे अक्षरों से अंकित करती मैं आत्मा... *संगमयुगी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ योगी आत्मा बनने के पुरुषार्थ में मंसा वाचा कर्मणा समर्पित होती जा रही हूँ...* कल्पवृक्ष के बीजरूप मैं आत्मा... अपने वचनों से सभी आत्माओं को सुख शांति का वर्सा देती जा रही हूँ...

➳ _ ➳  *बाबा के कमरे में... आशीर्वादों से परिपूर्ण होने की आशा लिए बैठी मैं आत्मा... एकाग्रचित होकर सिर्फ एक बाप को याद करती हूँ...* चंचल मन... व्यर्थ की... पास्ट की बातों में उलझ जाता है... मैं बार बार चंचल मन को कंट्रोल करने की कोशिश में असफल हो जाती हूँ... और दुःखी व्यथित नैनों से बापदादा को निहारती रहती हूँ... मन के भाव को जान बापदादा मुझे एक सीन दिखा रहे हैं... मैं आत्मा देखती हूँ अपने आपको गुस्से में लाल लाल... अपवित्र... असभ्य बोल युक्त वाणी... अपशब्दों की झड़ी लगाये हुए... *तलवार की धार के जैसी बोली... और सुनने वाला अश्रुओं से भीगा हुआ... अशांति का माहौल... दुःख का साम्राज्य छा गया था...*

➳ _ ➳  मैं आत्मा अश्रुभीनी आँखों से यह सीन देख रही थी... क्या मेरा ऐसा दुःव्यवहार था... क्या मैं ऐसे श्रापित बोल बोलती थी... *कहाँ मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा और कहाँ मैं गुस्से के विकारों में लथपथ...* बाबा के कमरे में बैठी मैं आत्मा... यह सीन देख कर आँखों से गंगा जमना बह रही थी... ऐसा मेरा विकारी रूप देख कर मैं आत्मा विचलित नजरों से बापदादा को देखती हूँ... और मन ही मन अपने दुष्कर्तव्यों की क्षमा याचना मांगती हूँ... *अश्रुभीनि आँखों से मैं आत्मा... भावपूर्ण... सच्चे मन से सभी आत्माओं से माफ़ी मांगती हूँ... और देखती हूँ बापदादा के चेहरे पर ख़ुशी की झलक दिखाई दे रही हैं...*

➳ _ ➳  बापदादा से प्यार भरी झरमर बरसती किरणों को अपने में धारण कर मैं आत्मा... अपने विकारों से मुक्त होती जा रही हूँ... गुस्से के... अपवित्र बोल के कड़े संस्कारों को बापदादा की परम पवित्र किरणों से स्वाहा करती जा रही हूँ... *मुरली रूपी ज्ञान धारा को अपने ब्राह्मण योगी जीवन में चरितार्थ करती जा रही हूँ... अपने ही कुसंस्कारों की अर्थी जलाकर मैं आत्मा पवित्रता... शांति के शिखर पर बैठ जाती हूँ...* मन की गहराईयों में भी अंश मात्र सूक्ष्म पाप के बीज न रहे ऐसे अपने आप को अग्नि परीक्षा रूपी योग अग्नि में स्वाहा करती जा रही हूँ...

➳ _ ➳  *बाबा के कमरे में बैठी मैं आत्मा... आज बापदादा से एक प्रॉमिस करती हूँ और कहती हूँ, "बाबा आज से जो बाप के बोल वह मेरे बोल... जो बाप का संकल्प वह मेरा संकल्प..."* संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा के मुख से सदा ही शुभ भावना रूपी मोती ही बरसेंगे... *अकल्याणकारी पर भी कल्याण की दृष्टि रख अपने पूर्वज होने का सबूत दूँगी...* विश्वकल्याणकारी स्टेज की उच्च शिखर पर विराजमान मैं सतयुगी आत्मा... आशीर्वादों... वरदानों से सब को भरपूर करती रहूँगी... *वरदानी मूर्त बन कर स्वयं में बापदादा की प्रत्यक्षता करवाती रहूँगी...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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