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 07 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मुख की टाली तो नहीं बजायी ?*

 

➢➢ *आत्माओं को रूहानी ड्रिल करवाई ?*

 

➢➢ *समाने और समेटने की शक्ति द्वारा एकाग्रता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सदा रूहानियत की स्थिति में स्थित रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जहाँ वाणी द्वारा कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है तो कहते हो-यह वाणी से नहीं समझेंगे, शुभ भावना से परिवर्तन होंगे। *जहाँ वाणी कार्य को सफल नहीं कर सकती, वहाँ साइलेन्स की शक्ति का साधन शुभ-संकल्प,शुभ-भावना, नयनों की भाषा द्वारा रहम और स्नेह की अनुभूति कार्य सिद्ध कर सकती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहज योगी हूँ"*

 

✧  सदा सहयोगी, कर्मयोगी, स्वत: योगी, निरन्तर योगी - ऐसी स्थिति का अनुभव करते हो? जहाँ सहज है वहाँ निरंतर है। सहज नहीं तो निरंतर नहीं। तो निरंतर योगी हो या अन्तर पड़ जाता है? *योगी अर्थात् सदा याद में मगन रहने वाले। जब सर्व सम्बन्ध बाप से हो गये तो जहाँ सर्व सम्बन्ध हैं वहाँ याद स्वत: होगी और सर्व सम्बन्ध हैं तो एक की ही याद होगी।* है ही एक तो सदा याद रहेगी ना।

 

✧  तो सदा सर्व सम्बन्ध से एक बाप दूसरा न कोई। सर्व सम्बन्ध से एक बाप... यही सहज विधि है, निरंतर योगी बनने की। जब दूसरा सम्बन्ध ही नहीं तो याद कहाँ जायेगी। *सर्व सम्बन्धों से सहजयोगी आत्मायें यह सदा स्मृति रखो। सदा बाप समान हर कदम में स्नेह और शक्ति दोनों का बैलेंस रखने से सफलता स्वत: ही सामने आती है। सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है।*

 

  बिजी रहने के लिए काम तो करना ही है लेकिन एक है मेहनत का काम, दूसरा है खेल के समान। जब बाप द्वारा शक्तियों का वरदान मिला है तो जहाँ शक्ति है वहाँ सब सहज है। *सिर्फ परिवार और बाप का बैलेंस हो तो स्वत: ही ब्लैसिंग प्राप्त हो जाती है। जहाँ ब्लैसिंग है वहाँ उड़ती कला है। न चाहते हुए भी सहज सफलता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी सुनना चाहते हो वा सम्पूर्ण बनने चाहते हो? सम्पूर्ण बनने के बाद सुनना होता होगा? *पहले है सुनना फिर है सम्पूर्ण बन जाना*। इतनी सभी प्वाइंट सुनी है उन सभी प्वाइंट का स्वरूप क्या है जो बनना है? सर्व सुने हुए प्वाइंट का स्वरुप क्या बनना है?

 

✧  *सर्व प्वाइंट का सार वा स्वरूप प्वाइंट (बिन्दी) ही बनना है*। सर्व प्वाइंट का सार भी प्वाइंट में आता है तो प्वाइंट रूप बनना है। प्वाइंट अति सुक्ष्म होता है जिसमे सभी समाया हुआ है।

 

✧  इस समय मुख्य पुरुषार्थ कोन - सा चल रहा है? अभी पुरुषार्थ है विस्तार को समाने का। *जिसको विस्तार को समाने का तरीका आ जाता है वही बापदादा के समान बन जाते है*। पहले भी सुनाया था ना कि समाना और समेटना है। जिसको समेटना आता है उनको समाना भी आता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अगर निराकारी स्थिति में स्थित होकर निरहंकारी बनी तो निर्विकारी आटोमेटिकली हो ही जायेंगे। निरहंकारी बनते ज़रूर हो लेकिन निराकार होकर निरहंकारी नहीं बनते हो।* युक्तियों से अपने को अल्प समय के लिए निरहंकारी बनाते हो, लेकिन निरन्तर निराकारी स्थिति में स्थित होकर साकार में आकर यह कार्य कर रहा हूँ - यह स्मृति व अभ्यास नेचरल व नेचर न बनने के कारण निरन्तर निरहंकारी स्थिति में स्थित नहीं हो पाते हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा खुशमौज में रहना और ख़ुशी बांटना, यही है जबरदस्त खातिरी करना"*

 

 _ ➳  *भरपूर हुई है, मन की गागर*... *छलछल अब छलक रही है*... *मौजे परमात्म प्रेम की अंग अंग से अब झलक रही है*, *बाँट रही मै, भर भर आँचल, फिर भी मै भरपूर हूँ*... मौजों में रहती हरदम खुशियों का मै नूर हूँ... और प्रभु प्रेम का उपहार, इन खुशियों का नूर बनकर मैं आत्मा बैठी हूँ , खुशियों के सागर के पहलू में... खुशियों की तरंगे मेरे रोम रोम से बही जा रही हैं... ये धरती,ये गगन, ये बहती पवन सब मुझसे खुशनुमा मस्तियों की सौगात लिये जा रही है... *उनकी आँखो से बरसती खुशियों की चाँदनी अभी भी मुझे नख शिख नहला रही है*...

 

  *ज्ञान चन्द्रमा बापदादा आँखों ही आँखों में खुशियों की चाँदनी में नहलाते स्नेह से भरपूर हो मुझ आत्मा से बोले:-* "सदा रूहानियत की स्थिति में रहने वाली मेरी रूहे  गुलाब बच्ची... *सारे ज्ञान का सार मन्मनाभव को क्या आपने बुद्धि में धारण किया है*? क्या जन्मों जन्मों के लिए खुशी की खुराक से भरपूर हुए हो? *समाने और समेटने की शक्ति द्वारा एकाग्रता का अनुभव करने वाले सार स्वरूप बने हो*? ऊँचे ते ऊँचे बाप की बच्ची, *अब बाप समान ऊँची स्थिति बनाओं*... *समेटकर संकल्पों को अपने, इस लगाव की रस्सी को जलाओं..."*

 

 _ ➳   *ज्ञान का तीसरा नेत्र दे कर सृष्टि के आदि मध्य अन्त का सम्पूर्ण सार मेरी बुद्धि में समाँ, मुझे त्रिनेत्री बनाने वाले बापदादा से, मैं आत्मा बोली:-* "मीठे से मीठा ज्ञान का एक ही अक्षर बुद्धि में धारण कर मैं धन्य हुई हूँ बाबा!... *जन्मों जन्मों की मिठास अब तो जीवन में इस कदर घुली कि कोशिशों के बिना ही दिशाओं में भी घुलने लगी है... गैर नही रहा कोई अब, हर रूह अपनी- सी  लगने लगी है...जाम खुशियों का अब भर- भर कर उँडेल रही हूँ*... *गमों की दुनिया भूली हूँ बाबा! अब बस खुशियों से खेल रही हूँ..."*

 

   *इस दुनियावी जहाजी बेडे को इस पतित भवसागर से पार ले जाने वाले मेरे खिवैय्या सतगुरू मुझ आत्मा से बोलें:-* "रूहानी बच्ची... संगम के इन गलियारों से इस ज्ञान की मीठी सेक्रीन, *मन्मनाभव* का सबको अनुभव कराओं, *ज्ञान और योग की ये फर्स्ट क्लास वन्डरफुल खुराक, खुशी के एक -एक लम्हें के लिए तरसती हर आत्मा को पिलाओं*, इस अनमोल खुराक के सर्जन का अब हर रूह से परिचय कराओ..."

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा से सब डिफेक्ट निकाल, मुझे प्युअर डायमण्ड बनाने वाले रत्नाकर बाप से, मैं आत्मा बोली:- "मीठे बाबा... एक बाप के डायरेक्शन प्रमाण चलने वाली मै महावीर आत्मा, मन्मनाभव की स्मृति से सबको समर्थ  बना रही हूँ*... आत्मा भाई -भाई की स्मृति से बाप के वर्से की ये अधिकारी आत्माए देखो, अपने भाग्य पर किस कदर इठला रही है, निमित्त बन, कर जो  दिया इनको अखुट खजाना, अब  त्रिकाल दर्शी बन ये भी सबको लुटा रही है, बाबा! *विकारों की खोट आपने मुझ आत्मा से जैसे निकाली है, वैसे ही मैं अब हर आत्मा को प्योर डायमंड बनने के तमाम हुनर सिखा रही हूँ..."* 

 

  *अतीन्द्रिय सुखों की रिमझिम सी बरसातों में भिगो देने वाले ज्ञानसागर बाप, शिक्षक और सतगुरू बोले:-* "सबको सुख देने वाली मेरी खुशबूदार फूल बच्ची... अपने *दिव्य गुणों की खुशबू से अब सतयुगी नजारें साकार करो*, *खुशियों के रंगों से जो बेरंग नजारें है, अब उनमे भी परमात्म प्यार भरों*... सदा खुश मौज में रहों खुद, फिर औरो, को खुशियाँ बाँट दो, प्यारें बन कर संसार के मोह के बंधन काट दों... *अन्तिम समय, सेकेन्ड का समय और नष्टोमोहा का पेपर, इस पेपर में पास सबको पास कराओं..."*

 

 _ ➳  *वन्डरफुल ज्ञान देने वाले  वन्डरफुल बाप से इस वन्डरफुल समझानी को पाकर मैं आत्मा धन्य हो बोली*:- "प्यारे मीठे बापदादा... *इस ज्ञान का सार, वर्से का सार, ये अखुट खुशी और आपका पावन प्यार*... जो भर भर आपने लुटाया है... *इस पालना का रिटर्न मैने भी हर आत्मा को आप का परिचय देकर चुकाया है*... घर घर मन्दिर बन रहा है बाबा ! हर नर में नारायण नजर आते है... आप मौजों का सागर हो, ये सुनकर हर रूह आपके पहलू में आ चुकी है... *और  विश्व कल्याणकारी मैं आत्मा, निमित्त भाव से खुशियों के अखुट खजाने लुटाये जा रही हूँ... वरदानों से भरपूर कर रहे है बापदादा मुझे और मै मन्द मन्द मुस्कुराये जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूहानी ड्रिल करनी और करानी है*"

 

_ ➳  स्वयं को रिफ़्रेश करने के लिए, अपने प्यारे बाबा की याद में, एक पार्क में मैं टहल रही हूँ। बाबा के मधुर संगीत सुनती, बाबा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करती, एक अलौकिक मस्ती में डूबी प्रकृति के इस खूबसूरत नज़ारे का मैं आनन्द ले रही हूँ। *पार्क में खिले खुशबूदार फूल मन को लुभा रहें हैं। अपनी अलौकिक रूहानी मस्ती में खोई हुई टहलते हुए मैं मन ही मन संकल्प करती हूँ कि कितना अच्छा हो अगर यहां पार्क में उपस्थित मेरे सभी आत्मा भाई भी इस अलौकिक अद्भुत आनन्द का रसपान कर सकें जो मैं इस समय कर रही हूँ*। अपने प्यारे प्रभु के साथ जिस्मानी और रूहानी दोनों यात्राओं का जैसे मैं आनन्द ले रही हूँ वैसे ये सब भी इस आनन्द का अनुभव कर लें तो इनका जीवन भी कितना आनन्दमयी हो जाएगा।

 

_ ➳  इस संकल्प के मन मे पैदा होते ही मैं इस संकल्प को पूरा करने के लिए, एक कोने में रखे बेंच पर जा कर बैठ जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को एकाग्र करके, स्वयं को अशरीरी स्थिति में स्थित कर लेती हूँ। *अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरे अंदर निहित सर्वगुण और सर्वशक्तियाँ जागृत हो रहें हैं और प्रकाश की रंग बिरंगी किरणो के रूप में मेरे मस्तक से निकल कर धीरे - धीरे चारों और फैल रहें हैं*। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से निकलते हुए मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। जैसे - जैसे मुझसे निकल रहे सुख, शान्ति, पवित्रता, आनन्द, प्रेम, ज्ञान और शक्ति के वायब्रेशन्स पूरे पार्क में फैल रहें हैं मेरे चारो और एक इन्द्रधनुषी आभामंडल का निर्माण होता जा रहा है।

 

_ ➳  सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की रंगबिरंगी किरणो का एक आवरण जैसे मेरे चारो और बन गया है और पार्क में विधमान आत्माओं को अपनी और आकर्षित कर रहा है। *मैं देख रही हूँ एक - एक करके सभी मनुष्य आत्माये मेरे सामने आकर बैठती जा रही है। अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित, मैं उन सबको भी उनके आत्मिक स्वरूप में देखते हुए, अपनी बुद्धि का कनेक्शन अपने प्यारे पिता के साथ जोड़ उनका आह्वान करती हूँ*। मेरे आह्वान पर सेकेण्ड में बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हर परमधाम से नीचे आ जाते हैं और आकर मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर स्थित हो जाते हैं।

 

_ ➳  बाबा से सर्वशक्तियों की तेज लाइट निकल कर सीधी मुझ आत्मा में समाने लगती है और मेरे मस्तक से प्रकाश की रंग बिरंगी अनन्त धारायें निकल - निकल कर मेरे सामने बैठी सभी मनुष्य आत्माओ के ऊपर पड़ने लगती हैं। *देखते ही देखते सभी दैहिक भान से मुक्त अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाते हैं। एक बहुत ही खूबसूरत नजारा मैं मन बुध्दि के नेत्रों से देख रही हूँ*। मुझ चैतन्य सितारे के ऊपर अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते महाज्योति शिव पिता और मेरे सामने मेरे ही समान चमकते अनगिनत चैतन्य सितारे मेरे आत्मा भाई। सभी अपने प्यारे प्रभु से अद्भुत मंगल मिलन मना रहे हैं। *परमात्म शक्तियाँ परमात्म प्यार के रूप में सभी आत्माओ पर निरन्तर बरस रही हैं*।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूँ बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सभी आत्माओं को अपने साथ अपने परमधाम घर ले जा रहें हैं। *सभी चमकते चैतन्य सितारे महाज्योति अपने शिव पिता के साथ धीरे धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रहें हैं। आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर, अपनी रूहानी यात्रा पर आगे बढ़ते हुए अब सभी अपने पिता के साथ अपने शांति धाम घर में प्रवेश करते हैं* और इस शान्ति धाम घर मे फैले शांति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर गहन शान्ति के अनुभव में खो जाते हैं। शांति के सागर अपने प्यारे पिता के समीप बैठ उनसे आ रही शांति की अथाह लहरों की शीतलता का डीप अनुभव करके, सभी चैतन्य सितारे अब वापिस उसी पार्क में लौट आते हैं और पुनः अपने - अपने साकारी शरीर धारण कर लेते हैं।

 

_ ➳  इस रूहानी ड्रिल का भरपूर आनन्द लेकर और पार्क में उपस्थित अपने सभी आत्मा भाइयो को इस रूहानी ड्रिल द्वारा गहन शांति का अनुभव करवाकर अब मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और फिर से वही पार्क में टहलते हुए उन *सभी के खिले हुए चेहरों को देख मन ही मन हर्षित होते हुए अपने प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ कि कैसे सभी के मुरझाये हुए चेहरे परमात्म प्यार पाकर खिल उठे हैं। ऐसी रूहानी ड्रिल निरन्तर करने और सबको करवाकर उन्हें शान्ति का अनुभव कराने की स्वयं से प्रतिज्ञा कर अब मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं समाने और समेटने की शक्ति द्वारा एकाग्रता का अनुभव करने वाली सार स्वरूप          आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा रूहानियत की स्थिति में स्थित रहने वाला रूहानी गुलाब हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  वरदाता कहो, विधाता कहो, भाग्यदाता कहो, ऐसे बाप द्वारा आप श्रेष्ठ आत्माओं को कितने टाइटल मिले हुए हैं! *दुनिया में कितने भी बड़े-बड़े टाइटल हों लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं के एक टाइटिल के आगे वह अनेक टाइटिल्स भी कुछ नहीं हैं। ऐसी खुशी रहती है?*

 

✺  *"ड्रिल :- बाप द्वारा दिए गए भिन्न भिन्न टाइटल्स की स्मृति से ख़ुशी का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं आत्मा एकांत में बैठकर स्व चिंतन करती हूँ... मैं आत्मा अंतर्मन की गहराईयों में उतर रही हूँ... *मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ भाग्य का चिंतन कर रही हूँ... कितनी ही भाग्यवान आत्मा हूँ मैं... जो स्वयं भाग्यविधाता ही मुझे मिल गया...* सर्व खजानों का वरदाता ही मिल गया... जो मुझ आत्मा को शूद्र से ब्राह्मण बनाकर देवता बनने के लायक बना रहे हैं...

 

_ ➳  *प्यारे बाबा रोज मुझ आत्मा को भिन्न-भिन्न टाइटल्स से सुशोभित करते हैं...* मैं आत्मा प्यारे बाबा द्वारा दिए टाइटल्स को स्मृति में लाती हूँ... *मीठे बाबा रोज मुझ आत्मा को मीठे बच्चे, सिकीलधे बच्चे, लाडले बच्चे का टाइटल देते हैं...* ये टाइटल स्मृति में लाते ही मुझ आत्मा में मिठास भर जाता है... स्वयं भगवान की लाडली होने के एहसास से मैं आत्मा बाबा के प्यार दुलार के झूले में झूल रही हूँ... अतीन्द्रिय सुख की गहराईयों में डूब रही हूँ...

 

_ ➳  *‘मास्टर सर्व शक्तिमानके टाइटल में स्थित होते ही मैं आत्मा सर्व गुणों, शक्तियों की अनुभूति कर रही हूँ...* मुझ आत्मा की सभी कमी-कमजोरियां खत्म हो रही हैं... मैं आत्मा हलकी हो रही हूँ... मैं आत्मा हर प्रकार की परिस्थिति में विजयी होने का अनुभव कर रही हूँ... *विघ्न-विनाशकके टाइटल की स्मृति से मैं आत्मा निर्विघ्न बन रही हूँ... विघ्नों को तोहफा समझ आगे बढ रही हूँ...*

 

_ ➳  *‘त्रिकालदर्शीके टाइटल में स्थित होते ही मुझ आत्मा को तीनों कालों का दर्शन हो रहा है... मैं आत्मा साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो रही हूँ...* विश्व कल्याणकारी, आधारमूर्त, उद्धारमूर्त' के टाइटल्स में स्थित होकर मैं आत्मा फरिश्ता बन... *सुख, शांति की शक्तियों को पूरे विश्व में फैला रही हूँ... बेहद का कल्याण कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *बाबा के दिए एक-एक टाइटिल के आगे अल्पकालिक दुनियावी टाइटल्स कुछ भी नहीं हैं...* अब मैं आत्मा समय सन्दर्भ प्रमाण टाइटल्स को यूज कर उनका स्वरुप बन रही हूँ... अनुभवी मूर्त बन रही हूँ... हर कदम में सफलता प्राप्त कर विजय पताका लहरा रही हूँ... *अब मैं आत्मा बाबा द्वारा दिए भिन्न भिन्न टाइटल्स की स्मृति से सदा ख़ुशी का अनुभव करती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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