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 25 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप समान निराकारी, निरहंकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"शिव बाबा को देते हैं" - यह संकल्प तो नहीं आया ?*

 

➢➢ *अलोकिक रीति की लेन देन द्वारा सदा विशेषता संपन्न बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अपनी विशेषताओं का प्रयोग कर हर कदम में प्रगति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  बापदादा जानते हैं कि पुराने शरीर है तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। *लेकिन ऐसा अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सी मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा।* जैसे आदि सेवा के समय साधन नहीं थे, लेकिन साधना कितनी श्रेष्ठ रही। *तो यह साधना है बीज, साधन है विस्तार। तो साधना का बीज छिपने नहीं दो, अभी फिर से बीज को प्रत्यक्ष करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं 'एक बाप, दूसरा न कोई' स्थिति वाली आत्मा हूँ"*

 

   एक बाप, दूसरा न कोई - ऐसी स्थिति में सदा स्थित रहने वाली सहयोगी आत्मा हो? एक को याद करना सहज है। अनेकों को याद करना मुश्किल होता है। अनेक विस्तार को छोड़ सार स्वरूप एक बाप - इस अनुभव में कितनी खुशी होती है। *खुशी जन्म सिद्ध अधिकार है, बाप का खजाना है तो बाप का खजाना बच्चों के लिए जन्म सिद्ध अधिकार होता है। अपना खजाना है तो अपने पर नाज होता है - अपना है।* और मिला भी किससे है? अविनाशी बाप से।

 

  *तो अविनाशी बाप जो देगा, अविनाशी देगा। अविनाशी खजाने का नशा भी अविनाशी है। यह नशा कोई छुड़ा नहीं सकता क्योंकि यह नुकसान वाला नशा नहीं है। यह प्राप्ति कराने वाला नशा है।* वह प्राप्तियॉं गंवाने वाला नशा है। तो सदा क्या याद रहता?

 

  *एक बाप, दूसरा न कोई। दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी। और एक बाप है तो एकरस स्थिति होगी। एक के रस में लवलीन रहना बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि आत्मा का ओरीजनल स्वरूप ही है - एकरस।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अब आप लोगों को भी अव्यक्त वतनवासी स्टेज तक पहूँचना है, तभी तो आप साथ चल सकेंगे।* अभी यह साकार से अव्यक्त रूप का पार्ट क्यों हुआ? सबको अव्यक्त स्थिति में स्थित कराने क्योंकि अब तक उस स्टेज तक नहीं पहूँचे हैं।

 

✧  अभी अन्तिम पुरुषार्थ यह रह गया है। इसी से ही साक्षात्कार होंगे। *साकार स्वरूप के नशे की प्वाइन्टस तो बहुत हैं कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ और मैं शक्ति हूँ। इस स्मृति से तो आपको नशे और खुशी का अनुभव होगा।*

 

✧   *लेकिन जब तक इस अव्यक्त स्वरूप में, लाइट के कर्ब में स्वयं को अनुभव नहीं किया है, तब तक औरों को आपका साक्षात्कार नहीं हो सकेगा।* क्योंकि जो दैवी स्वरूप का साक्षात्कार भक्तों को होगा, यह लाइट रूप की कार्ब में चलते - फिरते रहने से ही होगा। साक्षात्कार भी लाइट के बिना नहीं होता है। *स्वयं जब लाइट रूप में स्थित होंगे, आपके लाइट रूप के प्रभाव से ही उनको साक्षात्कार होगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जो ट्रस्टी होगा उसका विशेष लक्षण सदैव स्वयं को हर बात में हल्का अनुभव करेगा।* डबल लाइट अनुभव करेगा। शरीर के भान का भी बोझ न हो - इसको कहा जाता है - 'ट्रस्टी'। *अगर देह के भान का बोझ है तो एक बोझ के साथ अनेक प्रकार के बोझ से परे रहने का यह साधन है।* तो चैक करो बॉडी-कान्सेस में कितना समय रहते? जब बाप के बने, तो तन-मन-धन सहित बाप को बने ना?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रात को जागकर मोस्ट बिलेवड बाप को याद कर देही-अभिमानी बनना"*

 

 _ ➳  *अपनी शीतल चांदनी के आँचल से आंगन को ढककर आसमान में चांद मुस्कुरा रहा है... अमृतवेले के इस रूहानी समय में मैं आत्मा घर के आंगन में... धीमें-धीमें चलती हवाओं के साथ... शीतल चांदनी का आंनद लेती हुई मीठे बाबा को याद करती हूँ...* आसमान से ज्ञान सूर्य बाबा नीचे उतरकर मेरे सामने आ जाते हैं... ज्ञान सूर्य बाबा को देख चाँद भी खुशियों में झूम रहा है... फिर बाबा मुझे आंगन में लगे झूले में बिठाकर... ज्ञान के झूले में झुलाते हैं...

 

  *नींद को जीतकर रात को जागकर ज्ञान चिंतन करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... जनमो की भटकन के बाद जो ईश्वर पिता मिला हैतो उसके प्यार में और अथाह ज्ञान रत्नों की प्राप्ति के आनंद में खो जाओ... *प्यार भरी यादो में इस कदर खो जाओ की आखों से नींद भी ओझल हो जाए... इतनी दौलत से भर कर सदा की खुशियो मे मुस्कराओ..."*

 

_ ➳  *मोस्ट बिलेवड बाप को अपने यादों की कोठरी में बंद कर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ईश्वरीय यादो में खोयी खोयी सी सारी सुधबुध भूली हुई हूँ... *मन की अंखियो में आपको बसाकर नींद भी काफूर हो गई है... पल पल आपकी यादो में झूम रही हूँ... और ज्ञान रत्नों से प्रतिपल खेल रही हूँ..."*

 

  *निद्रा जीत भव, देही अभिमानी भव का वरदान देते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सच्चे प्यार की गहराइयो में रोम रोम से भीग जाओ... *खुशियो के खजानो को बाँहों में भरकरसारे विश्व पर विजय पताका लहराओ... सच्चे ज्ञान की खनक से सदा गुंजन करो... और रात को जागकर प्रियतम की यादो में स्वयं को डुबो दो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान मंथन कर अपने हर स्वांस को सफल करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मैं आत्मा आपको पाकर अनन्त खुशियो के आसमान में उड़ रही हूँ... आपको पाकर सब कुछ मैंने सहज ही पा लिया है...* जीवन खुशियोउमंगो और ईश्वरीय नशे से भर गया है... रत्नों की खाने ही मेरी हो गई है..."

 

  *ज्ञान गंगा में डुबोकर मुझे पावन बनाते हुए ज्ञान सागर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सदा यादो में खोये हुए खुबसूरत जीवन के मालिक बनविश्व धरा का राज्य पाओ... ज्ञान रत्नों की झनकार से जीवन मूल्यों का पर्याय बनकरईश्वरीय अदा की झलक जमाने को दिखाओ... *रात को जागकरअपनी श्रेष्ठ कमाई में खो जाओ... और खुशहाली की दस्तक जीवन में लाओ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान सूर्य की किरणों में ज्ञान सितारा बन अपने सत्य स्वरूप में चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे रत्नों को पाकर कौड़ी से हीरे तुल्य हो गई हूँ... मीठे बाबा... *आपकी प्यारी सी यादो में खो रही हूँ... और रातो को जागकर दीवानो सीयादो की खुमारी में, अतुलनीय दौलत से आबाद हो रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप समान निराकारी, निरहंकारी बनना है*

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा के मीठे मधुर महावाक्यों को पढ़ते हुए मैं विचार करती हूँ कि कितने निरहंकारी है बाबा। कैसे हम बच्चों की गुप्त रीति पालना कर रहें हैं! कितना सम्मान देते हैं हमे! सब कुछ खुद कर रहें हैं और मान हम बच्चों को देते हैं! रोज मीठे बच्चे कहकर याद प्यार देते हैं, बच्चो को नमस्ते करते हैं। *वाह मेरा भाग्य वाह जो ऐसे ईश्वर बाप की पालना में पलने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य मुझे प्राप्य हुआ। अपना असीम स्नेह बरसाने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद की मीठी सी मस्ती में डूबी मैं आत्मा मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर अब पहुँच जाती हूँ अपने उस मीठे से मधुबन घर में जहाँ भगवान स्वयं आकर अपने बच्चों के साथ उनके जैसा साकार रूप धारण करके उनसे मिलते हैं*, उनसे रूह रिहान करते हैं और उनसे मंगल मिलन मनाकर, अपना प्यार उन पर बरसा कर वापिस अपने धाम लौट जाते हैं।

 

_ ➳  परमात्मा की इस दिव्य अवतरण भूमि अपने मीठे मधुबन घर में पहुंचते ही हवाओं में फैली रूहानी खुशबू को मैं महसूस कर रही हूँ। *अपने इस घर के आंगन मे प्रवेश करते ही मैं देखती हूँ सामने ब्रह्मा बाबा के एक बहुत बड़े चित्र को जिसमे बाबा बाहें पसारे अपने बच्चों के स्वागत में खड़े हैं*। अपने इस साकार रथ पर विराजमान होकर भगवान कैसे अपने बच्चों का आह्वान करते हैं यह देखकर मन में खुशी की लहर दौड़ रही है और मन खुशी में गा रहा है "वाह बाबा वाह"। *अपने इस मीठे मधुबन घर मे आकर अब मैं देख रही हूँ यहाँ के कण - कण में समाई ब्रह्मा बाबा की साकार यादों को जिन्हें उनके हर कर्म के यादगार चित्रों के रूप में चित्रित किया गया है*।

 

_ ➳  हर चित्र में कर्म करते हुए बाबा का स्वरूप कितना न्यारा और प्यारा दिखाई दे रहा है। उनके ओरिजनल निराकारी स्वरुप की दिव्य चमक और निरहंकारिता की झलक उनके हर चित्र में मैं देख रही हूँ और उन चित्रों को देखते हुए उसी साकार पालना का अनुभव कर रही हूँ। *बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प करके अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ बाबा के कमरे में जहाँ बाबा बैठे है अपने हर बच्चे को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने के लिए*। बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने बैठ, बाबा को निहारते - निहारते मैं महसूस करती हूँ जैसे अपने लाइट माइट स्वरुप में मेरे सामने बैठ कर बाबा अपनी सारी लाइट माइट मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहें हैं।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर मैं देख रही हूँ जैसे बाबा की भृकुटि से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर पूरे कमरे में फैल रही हैं और पूरा कमरा एक अलौकिक दिव्य आभा से जगमगा रहा है। *इन दिव्य अलौकिक किरणों को स्वयं में समा कर मैं गहन आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा के मस्तक से निकल रही शक्तियों की धारायें और भी तीव्र होती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे ऊपर शक्तियों का कोई झरना बह रहा हो*। रूहानी मस्ती में खो कर शक्तियों की इन किरणों को स्वयं में समाते हुए मैं स्वयं को बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करके, ब्रह्मा बाप समान निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी बनने का दृढ़ संकल्प करके मैं बापदादा से प्रोमिस करती हूँ कि *जैसे ब्रह्मा बाप निराकारी सो साकारी बन सदा सर्व से न्यारे और शिव बाप के प्यारे बन कर रहे, वाणी से सदा निरहंकारी अर्थात् सदा रूहानी मधुरता और निर्मानता से भरपूर रहे और कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात् प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सदा सम्पन्न रहे ऐसा पुरुषार्थ ही अब मुझे करना है और बाप समान सम्पन्न बनना है*। स्वयं से और बाबा से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे वरदान देकर, मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने की शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने का बल मेरे अंदर भरकर बाबा जैसे फिर से अपने उसी स्वरूप में स्थित हो गए है।

 

_ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं भी अब फिर से अपनी कर्मभूमि पर लौट आई हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखते हुए, बाप समान निराकारी और निरहंकारी बनने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अलौकिक रीति की लेनदेन द्वारा सदा विशेषता सम्पन्न बनने वाली फ्राकदिल     आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी विशेषताओं का प्रयोग कर हर कदम में प्रगति का अनुभव करने वाली विशेष आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ एक है सेवाधारी बन सेवा करने वाले और दूसरे हैं नामधारी बनने के लिए सेवा करने वाले। फर्क हो गया ना। *सच्चे सेवाधारी जिन आत्माओं की सेवा करेंगे उन्हों को प्राप्ति के प्रत्यक्षफल का अनुभव करायेंगे।* नामधारी बनने वाले सेवाधारी उसी समय नामाचार को पायेंगे - बहुत अच्छा सुनाया, बहुत अच्छा बोला, लेकिन प्राप्ति के फल की अनुभूति नहीं करा सकेंगे। तो अन्तर हो गया ना! ऐसे एक है लगन से सेवा करना, एक है डयूटी के प्रमाण सेवा करना। *लगन वाले हर आत्मा की लगन लगाने के बिना रह नहीं सकेंगे। डयूटी वाला अपना काम पूरा कर लेगा, सप्ताह कोर्स करा लेगा, योग शिविर भी करा लेगा, धारणा शिविर भी करा लेगा, मुरली सुनाने तक भी पहुँचा लेगा, लेकिन आत्मा की लगन लग जाए इसकी जिम्मेवारी अपनी नहीं समझेंगे।* कोर्स के ऊपर कोर्स करा लेंगे लेकिन आत्मा में फोर्स नहीं भर सकेंगे। और सोचेंगे मैंने बहुत मेहनत कर ली। लेकिन यह नियम है कि सेवा की लगन वाला ही लगन लगा सकता है। तो अन्तर समझा? यह है *मिली हुई प्रॉपर्टी को बढ़ाना।*

✺ *"ड्रिल :- आत्माओं की सेवा कर उन्हें प्राप्ति के प्रत्यक्ष फल का अनुभव करवाना"*

➳ _ ➳ गोधूली सी शाम में ढलते हुए सूरज के सामने मौन अवस्था में इस आकर्षित करने वाले दृश्य को मैं आत्मा अपनी खुली आँखों से निहार रही हूँ... इस दृश्य को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो *इस धरती रूपी दुल्हनिया ने लाल-सुनहरे रंग की चुनरिया ओढ़ रखी हो... और साँझ रूपी घूंघट मुख पर डाल कर शर्मा रही हो...*

➳ _ ➳ उड़ते पंछी को वापिस अपने घोंसले में जाते हुए देख मेरा मन ये सोचने पर मजबूर हो रहा है कि किसनेे इन्हें निडर हो कर उड़ना सिखाया और इन्हें बिना किसी की ऊँगली पकडे हर तूफानों से लड़ना सिखाया... तभी मेरा अन्तर्मन पहनकर फरिश्ता चोला पहुँच गया आबू पर्वतों में... जहाँ बाबा कुटिया में बैठ कर मुझ आत्मा को अनमोल शिक्षाएं दे कर मुझे परिपूर्ण बना रहे हैं... बाबा मुझसे कहते हैं *सेवा को ड्यूटी नहीं लगन बनाओ अगर सेवा ड्यूटी समझ कर करोगे तो आप समान और बाप समान कैसे बना पाओगे? कैसे, अपनी और उनकी परमात्मा से लगन लगा पाओगे ?* ड्यूटी समझ कर तुम सेवा करोगे तो सेवाधारी बन कर रह जाओगे ? कैसे परमात्मा से प्रीत निभाओगे...

➳ _ ➳ इतना सुनकर मैं बाबा का धन्यवाद करते हुए फरिश्ते चाल चलते हुए वापिस उस स्थान पर आ जाती हूँ... और मैं अपने आप से ये वादा करती हूँ... *अब से मैं हर आत्मा में कोर्स नहीं ज्ञान का फ़ोर्स भर दूँगी... एक सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को लगन की अनुभूति कराउंगी...* जैसे एक चिड़िया अपने नवजात शिशु को सेवाधारी बनकर स्वतंत्र उड़ना सिखाती है... और स्वयं अलग दिशा में उड़ जाती है... वैसे ही मैं आत्मा अपनी सहयोगी आत्माओं में पुरुषार्थ की लगन लगाकर उन्हें संपूर्णता की मंजिल की राह दिखाउंगी...

➳ _ ➳ *सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को सेवा के प्रत्यक्ष फल का अनुभव कराउंगी...* नामधारी बन केवल नामाचार को नहीं पाऊंगी... उड़ते पक्षी की तरह सभी आत्माओं में तूफानों से लड़कर जीतना सिखाऊंगी... नहीं रोक पाये जिन्हें कोई आंधी -तूफ़ान ऐसा उड़ता परिन्दा बनाउंगी... केवल अच्छा ज्ञान नहीं सुनाकर... उन्हें ज्ञानी आत्मा बनाउंगी... हमेशा लगन से सेवा करके सभी आत्माओं को प्राप्ति का अनुभव कराउंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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