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❍ 26 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *नया युग, नया संसार और नए जीवन का अनुभव किया ?*
➢➢ *श्रीमत रुपी हाथ बापदादा के हाथ में दिया ?*
➢➢ *दृढ़ संकल्प द्वारा फुल स्टॉप की बिंदी लगाई ?*
➢➢ *हलचल के स्थान पर सदा ख़ुशी की अचल स्थिति का झंडा लहराया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सदा इस स्मृति से डबल लाइट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दू।* बिन्दू में कोई बोझ नहीं। आखों के बीच में देखो तो बिन्दु ही है। बिन्दु ही देखता है, बिन्दु न हो तो आंख होते भी देख नहीं सकते। *तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं तपस्वी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को तपस्वी आत्मायें अनुभव करते हो? *तपस्वी अर्थात् सदा अपनी तपस्या में रहने वाले। तो तपस्या क्या है? एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे तपस्वी हो या दूसरा-तीसरा भी कोई है? तपस्वी सदा आसनधारी होते हैं, कोई न कोई आसन पर तपस्या करते हैं। तो आपका आसन कौनसा है? स्थिति आपका आसन है।* जैसे एकरस स्थिति यह आसन हो गया। फरिश्ता स्थिति यह आसन हो गया। तो आसन पर स्थित होते हैं ना, बैठते हैं अर्थात् स्थित हो जाते हैं। तो इन श्रेष्ठ स्थितियों में स्थित हो जाते हो, टिक जाते हो इसी को आसन कहा जाता है।
〰✧ स्थूल आसन पर स्थूल शरीर बैठता है लेकिन यह श्रेष्ठ स्थितियों के आसन पर मन-बुद्धि को बिठाना है। मन-बुद्धि द्वारा इन स्थितियों में स्थित हो जाते हो अर्थात् बैठ जाते हो - ऐसे तपस्वी हो? तो अच्छा आसन मिला है ना। यहाँ है आसन फिर भविष्य में मिलेगा सिंहासन। *तो जितना जो आसन पर स्थित रहता वो उतना ही सिंहासन पर भी स्थित रह सकता है। जितना समय चाहो, जब चाहो, तब आसन रूपी स्थिति में स्थित होते हो ना।* होते हो या हलचल होती है? क्या होता है? जैसे देखो शरीर आसन पर नहीं टिक सकता तो हलचल करेगा ना। ऐसे मन हलचल तो नहीं करता? अचल है या हलचल भी है कि दोनों है? सदा अचल अडोल। जरा भी हलचल नहीं हो। अगर कभी हलचल और कभी अचल है तो सिंहासन भी कभी मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा।
〰✧ तो सदा का राज्य भाग्य लेना है या कभी-कभी का और स्थित सदा होना है या कभी-कभी? कितना भी कोई हिलावे लेकिन आप अचल रहो। परिस्थिति श्रेष्ठ है या स्वस्थिति श्रेष्ठ है? कभी परिस्थिति वार कर लेती है? तो सोचो कि ये परिस्थिति पावरफुल या स्वस्थिति पावरफुल? तो इस स्थिति से कमजोर से शक्तिशाली बन जायेंगे। आप तपस्वी आत्माओंकी स्थिति का यादगार आजकल के तपस्वियों ने कॉपी की है लेकिन उल्टी की है। *आप तपस्वी एकरस स्थिति में एकाग्र होते हो और आजकल के क्या करते हैं? एक टांग पर खड़े हो जाते हैं। तो कहाँ एकरस स्थिति और कहाँ एक टांग पर स्थित रहना, फर्क हो गया ना। आपका कितना सहज है! और उन्हों का कितना मुश्किल है! तो सहजयोगी हो ना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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सब शुभ संकल्प तो यही रखते भी हैं और रखना भी है कि नम्बरवन आना ही है। तो *सब में चारों ओर की बातों में विन होंगे तभी वन आयेंगे। अगर एक बात में जरा भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय लग गया तो नम्बर पीछे हो जायेगा।* इसलिए सब चेक करो। चारों ही तरफ चेक करो। डबल विदेशी सब में तीव्र जाने चाहते हैं ना! इसलिए तीव्र पुरुषार्थ वा फुल अटेन्शन इस अभ्यास में अभी से देते रहो। समझा! *क्वेचन को भी जानते हो और टाइम को भी जातने हो। फिर तो सब पास होने चाहिए!* अगर पहले से पहले से क्वेचन का पता होता है तो तैयारी कर लेते हैं। फिर तो पास हो जाते हैं। आप सभी तो पास होने वाले ही ना! अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *सारथी अर्थात् आत्म-अभिमानी। क्योंकि आत्मा ही सारथी है। ब्रह्मा बाप ने इस विधि से नम्बरवन की सिद्धि प्राप्त की। इसलिए बाप भी इस रथ का सारथी बना।* सारथी बनने का यादगार बाप ने करके दिखाया। फालो फादर करो। सारथी बन सदा सारथी-जीवन में अति न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव कराया। *क्योंकि देह को अधीन कर बाप प्रवेश होते अर्थात् सारथी बनते हैं देह के अधीन नहीं बनते। इसलिए न्यारा और प्यारा है। ऐसे ही आप सभी ब्राह्मण आत्मायें भी बाप समान सारथी की स्थिति में रहो।* चलते-फिरते यह चेक करो कि मैं सारथी अर्थात् सर्व को चलाने वाली न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित हूँ। *बीच-बीच में यह चेक करो। ऐसे नहीं कि सारा दिन बीत जाए फिर रात को चेक करे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत रूपी हाथ सदा हाथ में है तो सारा युग हाथ में हाथ देकर चलते रहेंगे"*
➳ _ ➳ *नया युग, नया जन्म नया है हमसफर मेरा... लेकर हाथों में हाथ उसके गुजरता है हर लम्हा मेरा*... भक्ति में जिसकी एक झलक पाने को काशी कलवट खाये... वो इस समय बैठकर सम्मुख गुण मेरे गायें... उसकी श्रीमत का हाथ कभी वरदान बन मेरे सिर पर है तो कभी मन बुद्धि की डोर संभाले है... *आज सम्मुख बैठ महामिलन की बधाई दे रहे है वो रूहानी माशूक... और मेरे रोम रोम रूहानी उत्सव हिलोरें ले रहा है...*
❉ *संगम के महामिलन की बधाई देते हुए रूहानी आशिको के सच्चे माशूक बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... *संगम की ये सौभाग्य शाली घडियाँ पदमापदम प्राप्तियों की घडियाँ है... महामिलन की इन सौगातों से स्वयं को भरपूर करों... अविनाशी साथ और हाथ मिला है आपकों...* अब निश्चय बुद्धि हो संभालों इसे... अब मायावी साथ से खुद को दूर करों...*"
➳ _ ➳ *एक बाप पर अटूट निश्चय रखने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *बुद्धि दिव्य बुद्धि हो गई है जब से... श्रीमत की रोशनी इसमे जगमगाई है... इस अविनाशी साथ ने जीवन के दोराहो पर भी प्रीत निभाई है*... हर पल ये श्रीमत रूपी हाथ बुद्धि रूपी हाथ में रहा है बाबा... मायाजीत बन रही हूँ मैं... माया ने हर कदम पर मुहँ की खाई है..."
❉ *श्रीमत की गहराइयों की समझानी देते हुए बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... *संसार में हाथ और साथ अविनाशी नही हैं... सच्चा साथ बस केवल यहीं हैं*... इस साथ की महिमा को पूरी तरह पहचानों... जैसे बाप ने सच्चा सहारा दिया आपको... वैसे ही सब आत्माओं का सच्चा सहारा बनों... प्यार बाँटों सबको और देह से भी न्यारा बनों..."
➳ _ ➳ *श्रीमत की गहराईयों को स्वयं में समाती और स्वरूप बनती मैं आत्मा बापदादा से बोली*:- "कदम कदम पर आपकी ये समझानियाँ बडी ही अनमोल है बाबा... *संगम युगी नये उजालों में आत्मा अब ज्ञान सूर्य के प्रकाश से झिलमिला उठी है*... *माया के अंधेरों का बिस्तर सिमट रहा है... आपके साथ से लगता है कि उसकी परछाईयाँ भी झूठी है*"...
❉ *श्रेष्ठ श्रीमत से मायाजीत बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मीठी बच्ची... *संकल्पों की रचना करने से पहले भी श्रीमत का सहारा लो... आत्माओं की सेवा के लिए ही आप इस देह और देह के संसार में हों*... बाप ने साथीपन का सम्मान दिया है आपको... इस साथ और हाथ को गिरने न देना... युगों- युगों का साथ है ये... इस बात पर मन में कभी संशय मत आने देना"...
➳ _ ➳ *मन बुद्धि से सम्पूर्ण समर्पित मैं आत्मा मीठे बाबा से बोली*:- "बाबा... *अब तो ये श्रीमत रूपी हाथ... प्राणों का आधार है... श्रीमत से आपकी दिलोजान से मुझ आत्मा को प्यार है*... हर आत्मा को ये वफादारी सिखा रही हूँ... श्रीमत पर चलकर क्या से क्या बन रही हूँ ये प्रत्यक्ष और स्वरूप बन कर दिखा रही हूँ... और वरदानों की बारिश करते... बापदादा की आँखों से टपकता स्नेह मैं आत्मा महसूस कर रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- नए युग, नए संसार और नए जीवन का अनुभव करना*"
➳ _ ➳ संगमयुगी ब्राह्मण बन कर, नए युग, नए संसार और नए जीवन का अनुभव करते हुए मैं खो जाती हूँ उन अखुट प्राप्तियों की स्मृति में जो अपने इस नए जीवन मे मैं प्रतिपल कर रही हूँ। *ब्राह्मण बनते ही कलयुगी संसार नए संगमयुग में परिवर्तित हो गया और युग के परिवर्तन होते ही इस नए युग के साथ, नया संसार, नया दिन और नई राते भी शुरू हो गई। इस नए युग के नए जीवन की हर घड़ी पदमों तुल्य है, हीरे तुल्य है*। मन ही मन अपने आप से बातें करते हुए मैं विचार करती हूँ कि माया रावण की पुरानी दुनिया में माया ने बेहोश करके मेरे जिस जीवन को कौड़ी तुल्य बना दिया था, बाबा ने होश में लाकर उस कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया और बेहोश से होश में आते ही जीवन कैसे बदल सा गया!
➳ _ ➳ आँख खुलते ही नया सम्बन्ध और नया संसार देखा। ऐसा सुखमय संसार जहाँ आत्मा सजनी उठते ही अपने साजन परमात्मा के साथ मिलन मनाती है। *तो कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देकर मेरे जीवन को खुशियों के खजाने से भरपूर कर देते हैं। अपनी श्रेष्ठ मत देकर, हाथ मे हाथ मिलाये अंत मे भी साथ ले जाते हैं*। ऐसे मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करते हुए औऱ अपने ब्राह्मण जीवन की उपलब्धियों का आनन्द लेते हुए, अपने वरदाता बाप से मिलन मनाने की तीव्र इच्छा से अपने मन बुद्धि को सभी बातों से हटाकर सम्पूर्ण एकाग्र स्थिति में मैं स्थित हो जाती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति मुझे सेकेण्ड में मेरे ओरिजनल स्वरूप में स्थित कर, देह से न्यारा और प्यारा बना देती है*।
➳ _ ➳ सोने के समान चमकते हुए अपने अति न्यारे और प्यारे स्वरूप में स्थित होकर मैं चैतन्य शक्ति असीम ऊर्जा का भण्डार प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में भृकुटि के अकाल तख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और चल पड़ती हूँ अपनी मंजिल अपने निराकारी वतन की ओर जो सूर्य, चाँद, सितारों की दुनिया से दूर, सूक्ष्म लोक से भी परें हैं। *मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं उड़ती हुई इन सबको पार करके पहुँच गई हूँ आत्माओ की निराकारी दुनिया अपने मूलवतन शान्ति धाम घर में जहाँ गहन शान्ति ही शान्ति हैं। शान्ति के बहुत ही पावरफुल वायब्रेशन्स इस पूरे शान्तिधाम घर में फैले हुए है जो मुझ आत्मा में समा कर साइलेन्स का बल मेरे अंदर भरते ही जा रहें हैं*। एक बहुत ही निराली पीसफुल स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ इस गहन शांति का गहराई तक अनुभव करके अब मैं अपने ज्ञानसूर्य शिव पिता के पास जा रही हूँ जो अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में मेरे बिल्कुल सामने मुझे दिखाई दे रहें हैं। *उनसे निकल रहा सर्वशक्तियों का अथाह प्रकाश रंग बिरंगी किरणों के रूप में चारों और फैल कर एक अद्भुत छटा बिखेरता हुआ बहुत ही आकर्षणमय प्रतीत हो रहा है। उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए, उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा अब उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ*। इतना समीप कि उनकी किरणों का स्पर्श एक बहुत तेज करेण्ट के रूप में मुझ आत्मा में प्रवाहित होकर मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार करने लगा है। *इस करेण्ट के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी सारी विकारों की कट समाप्त होने लगी है और मेरा पुराना तमोप्रधान स्वरूप नए सतोप्रधान स्वरूप में परिवर्तित हो गया है*।
➳ _ ➳ अपने इस नए वास्तविक सतोप्रधान अनादि स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा अब वापिस कर्म करने के लिए फिर से साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर लौट आई हूँ और आकर फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो गई हूँ। *देह, देह की पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्धों से जीते जी मरकर, मरजीवा बन अपने नए संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की मौजों का मैं अब भरपूर आनन्द ले रही हूँ। बाबा के साथ अपना एक अलग संसार बसाकर, परमात्म पालना और परमात्म प्यार के झूले में मैं हर पल झूल रही हूँ*। अपने इस नए युग, नए संसार और नए जीवन के नए अनुभवों का आनन्द लेते हुए मेरा हर एक पल अब एक अद्भुत रूहानी नशे और खुशी में बीत रहा है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै अपने बचे हुए तन-मन-धन को ईश्वरीय कार्य में लगाकर जमा करने वाली सदा सहयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं निर्मान बनकर स्वतः सर्व का मान प्राप्त करने वाली निर्मानचित्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दो प्रकार से 'बाबा' शब्द कहने वाले हैं। एक है दिल से 'बाबा' कहने वाले और दूसरे हैं नालेज के दिमाग से कहने वाले। *जो दिल से 'बाबा' कहते हैं उनको सदा सहज दिल में बाबा द्वारा प्रत्यक्ष प्राप्ति खुशी और शक्ति मिलती है और जो सिर्फ दिमाग अच्छा होने के कारण नालेज के प्रमाण 'बाबा-बाबा' शब्द कहते हैं उन्हों को उस समय बोलने में अपने को भी खुशी होती और सुनने वालों को भी उस समय तक खुशी होती, अच्छा लगता लेकिन सदाकाल के लिए दिल में खुशी और शक्ति दोनों हो, वो सदा नहीं रहती, कभी रहती,* कभी नहीं, क्यों?दिल से 'बाबा' नहीं कहा।
✺ *ड्रिल :- "दिल से 'बाबा' कहना"*
➳ _ ➳ *भक्ति मार्ग की अठखेलियां चारों तरफ सजी हुई सुंदर सुंदर मनमोहक झांकियां और अद्भुत शोभनीय वस्त्र धारण किए हुए मनमोहक बालक बालिका बड़े ही रायल्टी से बैठकर शोभा यात्रा निकालने में मगन है...* मैं भी घर के बाहर निकलकर इस मनमोहक दृश्य को देख रही हूं... और देखती हूं कि एक सुंदर सी बालिका राधे के वस्त्र पहने देवी की भाँति खड़ी हुई है... और उनके पास ही कृष्ण रूप धारण किए हुए हाथों में मुरली सजाए हुए एक सुंदर बालक खड़ा है... उस बालक को मैं बहुत ही गहराई से देखती हूं... और देखते देखते मुझे अनुभव होता है कि वह बालक मानो मुरली बजा रहा है... और उसकी मुरली की तान पर सभी गोप गोपियां झूम रही हो... और साथ में मैं भी इस दृश्य में इतना डूबी जा रही हूं कि मैं भी झूमने लगती हूँ...
➳ _ ➳ कुछ देर झूमते झूमते मैं आत्मा अपनी मन बुद्धि में मुरली की तान समाए हुए... अपने प्यारे बाबा को गहनों से सजे हुए और हाथों में मुरली बजाए हुए अनुभव करती हूँ... *मुझे प्रतीत होता है मानो मेरे बाबा कृष्ण रूप धारण किए मेरे सामने विराजमान है... और मुरली बजा कर मुझे अपनी और आकर्षित कर रहे हैं... जैसे ही मुरली की तान मेरे कानों में पहुंचती है... मुझे अति आनंदित अवस्था का अनुभव होता है...* और इस आनंद से भरे हुए अपने मन को सूक्ष्म रुप देकर पहुंच जाती हूं परमधाम... जहां हजारों रंग बिखेरते हुए मेरे मीठे बाबा मेरा इंतजार कर रहे हैं और मैं बाबा की मस्त किरणों में झूलती जा रही हूं...
➳ _ ➳ जैसे-जैसे मैं किरणों रूपी झूलों में झूलती हूं... मेरा यह झूला तीव्र गति को प्राप्त होता है... और उसी तीव्रता के कारण मैं पहुंच जाती हूं अपने शिवबाबा के बिल्कुल पास... और मुझे आभास होता है... कि मानो बाबा मुझे कह रहे हो मेरे मीठे बच्चे... *जब जब तुम अपने दिल से मुझे याद करोगे तो हमेशा ही मुझे अपने करीब अनुभव कर पाओगे... परन्तु अगर सिर्फ जुबान से बाबा शब्द कहोगे तो मुझे अपने पास सदाकाल के लिए अनुभव नहीं कर पाओगे...* बाबा की ये बातें सुनकर मैं चिंतन करती हूं कि जब दिल से बाबा कहने से इतनी प्राप्तियां और सुख घनेरे मिलते है तो मैं इस क्यों ना करूँ...
➳ _ ➳ और बाबा से मीठी-मीठी बातें करके मैं आत्मा... अपने मन बुद्धि को बाबा शब्दों में समेटते हुए... अपने प्यारे बाबा के साथ आकर... एक चमकते हुए सितारे पर बैठ जाती हूँ... और अपने प्यारे बाबा की किरणों रूपी झूले में झूल कर अपनी सौभाग्यशाली स्थिति में डूब जाती हूं... और मैं आत्मा अब धीरे-धीरे अपने इस स्थूल देह में आकर विराजमान हो जाती हूँ... जैसे ही मैं अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूं... तो मुझे अपने मन में और बुद्धि में सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबा का ही नाम अनुभव होता है... मुझे अनुभव होता है... कि मेरे बाबा मेरे साथ है... और *बाबा की शक्तियां और सर्व खजाने मुझ आत्मा में समा रहे हैं... अब मैं हर पल हर घड़ी सिर्फ और सिर्फ अपने दिल में बाबा का रूप और बाबा का नाम स्मृति में रखती हूं... और हमेशा अपने आप को बाबा के करीब अनुभव करती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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