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 31 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *इस कब्रिस्तान को भूल बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाया ?*

 

➢➢ *रूहानी नशे द्वारा दुःख अशांति के नाम निशान को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *सदा एक की लगन में मगन रह निर्विघन स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी तक की रिजल्ट में मास्टर सूर्य के समान नॉलेज की लाईट देने के कर्त्तव्य में सफल हुए हो लेकिन अब किरणों की माइट से हरेक आत्मा के संस्कार रूपी कीटाणु को नाश करने का कर्त्तव्य करना है।* अभ्यास ऐसा हो जो चलते फिरते आपके मस्तिष्क से लाईट का गोला नज़र आये और चलन से, वाणी से नॉलेज रूपी माइट का गोला नजर आये अर्थात् बीज नजर आये। मास्टर बीजरुप, लाईट और माइट का गोला बनो तब साक्षात् वा साक्षात्कार मूर्त्त बन सकेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को कर्मयोगी आत्मायें अनुभव करते हो? *कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योगयुक्त हो। कर्म अलग, योग अलग नहीं। कर्म में योग, योग में कर्म। सदा दोनों साथ हैं तब कहते हैं कर्मयोगी। ऐसे नहीं, जब योग में बैठे तो योगी हैं और कर्म में जायें तो योग साधारण हो जाये और कर्म महान् हो जाये। सदा दोनों का साथ रहे, बैलेन्स रहे।* तो ऐसे कर्मयोगी हो या जब कर्म में लग जाते हो तो योग कम हो जाता है? और जब योग में बैठते हो तो लगता है कि बैठे ही रहें तो अच्छा है।

 

✧  *कर्मयोगी आत्मा सदा ही कर्म और योग का साथ रखने वाली अर्थात् बैलेन्स रखने वाली। कर्म और योग का बैलेन्स है तो हर कर्म में बाप द्वारा तो ब्लैसिंग मिलती ही है लेकिन जिसके सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें मिलती हैं। कोई अच्छा काम करता है तो दिल से उसके लिये दुआयें निकलती हैं ना कि बहुत अच्छा है।* तो बहुत अच्छा मानना-यह दुआयें है। और जो अच्छा कार्य करता है उसके संग में रहना सदा सभी को अच्छा लगता है। उसके सहयोगी बहुत बन जाते हैं। तो दुआयें भी मिलती हैं, सहयोग भी मिलता है। तो जहाँ दुआयें हैं, सहयोग है वहाँ सफलता तो है ही। तो कितनी प्राप्ति हैं? बहुत प्राप्ति हुई ना। इसलिये सदा कर्मयोगी।

 

✧  जब योग होगा तो कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होगा क्योंकि योग का अर्थ ही है श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहना और स्वयं भी श्रेष्ठ आत्मा हूँ-इस स्मृति में रहना। तो जब स्मृति श्रेष्ठ होगी तो स्थिति भी श्रेष्ठ होगी ना और स्थिति होने के कारण न चाहते भी वायुमण्डल श्रेष्ठ बन जाता है। तो कर्मयोगी अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल। कोई ज्ञान सुने, नहीं सुने, योग सीखे, नहीं सीखे लेकिन वायुमण्डल का प्रभाव स्वत: ही उनको आकर्षित करता है। मधुबन में क्या विशेष अनुभव करते हो? तपस्या का वायुमण्डल है ना। *तो जो भी आते हैं उनका योग बिना मेहनत के ही लग जाता है। योग लगाना नहीं पड़ता, योग लग ही जाता है। ऐसे होता है ना। मधुबन में योग लगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती क्योंकि वायुमण्डल तपस्या का है, संग तपस्वी आत्माओंका है।*  

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  योग को बुद्धियोग कहते हैं तो अगर यह विशेष आधर स्तम्भ अपने अधिकार में नहीं हैं वा कभी हैं, कभी नहीं है, अभीअभी हैं, अभी-अभी नहीं हैं, *तीनों में से एक भी कम अधिकार में हैं तो इससे ही चेक करो कि हम राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे?*

 

✧  *बहुतकाल के राज्य अधिकारी* बनने के संस्कार *बहुतकाल के भविष्य राज्य अधिकारी* बनायंगेे। अगर *कभी अधिकारी, कभी वशीभूत* हो जाते हो तो आधा कल्प अर्थात *पूरा राज्य-भाग्य का अधिकार प्राप्त नहीं कर सकेंगे।*

 

✧  *आधा समय के बाद त्रेतायुगी राजा बन सकते हो,* सारा समय राज्य अधिकारी अर्थात राज्य करने वाले रॉयल फैमिली के समीप सम्बन्ध में नहीं रह सकते। अगर वशीभूत बार-बार होते हो तो संस्कार अधिकारी बनने के नहीं लेकिन राज्य अधिकारियों के राज्य में रहने वाले हैं। वह कौन हो गये? वह हुई प्रजा तो समझा, राजा कौन बनेगा, प्रजा कौन बनेगा?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ पास-विद्-ऑनर बनना है तो इस अभ्यास में पास होना अति आवश्यक है। और इसी अभ्यास को अटेन्शन में डबल अण्डरलाइन करो, तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी बनेंगे। *ब्राह्मण बने, बाप के वर्से के अधिकारी बने, गॉडली स्टूडेंट बने, ज्ञानी तू आत्मा बने, विश्व सेवाधारी बने - यह भाग्य तो पा लिया लेकिन अब पास विद् ऑनर होने के लिए, कर्मातीत स्थिति के समीप जाने के लिए ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेन्शन।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है यह स्मृति में रख अपनी स्थिति साक्षी तथा हर्षित रखना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपनी शांत स्वरूप स्थिति में स्थित हूँ... सव स्वरुप में स्थित होकर असीम शांति का अनुभव कर रही हूँ... *शांति के सागर शिव बाबा मेरे सिर पर छत्रछाया है... उनसे शांति की अनंत किरणें मुझ पर बरस रही है... मैं आत्मा इस अनुपम शांति से स्वयं को भरपूर करती जा रही हूँ...* मैं स्वयं को बाबा की किरणों के औरे के बीच में देख रही हूँ... इस श्रेष्ठ स्थिति में *मेरे मन में बाबा की मधुर वाणी सुनने की ललक उठती है...*

 

  *अपनी दिव्य वाणी से वातावरण को गुंजायमान करते हुए बापदादा कहते हैं:-* "प्यारे फूल बच्चे... हर आत्मा के पार्ट को साक्षी होकर देखना है... हमेशा हर्षित रहना है... इसके लिए *हमेशा यह स्मृति में रहे कि इस ड्रामा में सभी आत्माएं एक्टर हैं... सभी आत्माओं का अपना-अपना पार्ट है... सभी आत्माएं अपना पार्ट निभा रही है... जो कुछ ड्रामा में फिक्स है वही हो रहा है... बनी बनाई बन रही... उसमें कुछ भी नया नहीं है... यह स्मृति में रहने से सदा हर्षित रहोगे..."*

 

 _ ➳  *बाबा के दिए हुए ज्ञान को स्वयं में आत्मसात करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणेश्वर मीठे बाबा... आप हमें ड्रामा का श्रेष्ठ ज्ञान दे रहे हो... *आत्मा का 84 जन्मों का पार्ट अब मेरी बुद्धि में स्पष्ट हो रहा है... सभी आत्माओं के पार्ट को मैं आत्मा साक्षी होकर देख रही हूँ... इससे मेरी स्थिति एकरस और हर्षित बनती जा रही है..."*

 

  *ज्ञान का अनूठा प्रकाश फैलाते हुए ज्ञान सूर्य शिव बाबा कहते हैं:-* "मीठे मीठे सिकीलधे बच्चे... इस ड्रामा में जितने भी मनुष्य हैं उनकी आत्मा में स्थाई पार्ट भरा हुआ है... इसको कहा जाता है *बनी बनाई बन रही...* ड्रामा में जो कुछ भी हो रहा है उसे डिटेच होकर देखना है... इसमें रोने की दरकार नहीं है... चाहे किसी की मृत्यु हो चाहे किसी ने दूसरा जन्म लिया हो... उसके लिए रोने से क्या होगा... *तुम्हें हर स्थिति में प्रसन्न रहना है... तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कुछ भी दु:ख ना हो..."*

 

 _ ➳  *रूहानी ज्ञान वर्षा में ज्ञान स्नान करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "दिलाराम प्यारे बाबा... आपका दिया हुआ ज्ञान मेरी बुद्धि में स्पष्ट होता जा रहा है... *मैं आत्मा इस ड्रामा को खेल की तरह देख रही हूँ... नाटक की तरह देख रही हूँ... जिसमें एक्टर आ रहे हैं... अपना पार्ट निभा रहे हैं और जा रहे हैं... ड्रामा के इस ज्ञान से मेरी स्थिति अचल अडोल बनती जा रही है... मैं आत्मा एकरस होकर इस खेल को... इस नाटक को देख रही हूँ...'*

 

  *अपने दिलतख्त पर बिठाकर मुझ पर असीम प्यार लुटाते हुए शिव बाबा कहते हैं:-* "मेरे नैनों के नूर प्यारे बच्चे... तुम्हारी अवस्था अचल अडोल होनी चाहिए... *जिस प्रकार अंगद को रावण हिला नहीं सका था... इसी प्रकार माया के कितने भी तूफान आए तुम्हें घबराना नहीं है... डोंट केयर रहना है... माया के तूफान तुम्हारी स्थिति को हिला न सके... पुरुषार्थ करके तुम्हें अपनी अवस्था को जमाना है..."*

 

 _ ➳  *ज्ञान रूपी मानसरोवर में मोती चुगने वाली होली हंस रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:-* "जीवन के आधार प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके द्वारा दिए गए ज्ञान बिंदुओं का मनन चिंतन कर रही हूँ... *ड्रामा के इस दिव्य ज्ञान से मेरी स्थिति अचल अडोल बनती जा रही है... हर पल में मैं आत्मा हर्षित और अतींद्रिय सुख की स्थिति में स्थित हूँ...* माया का कोई भी तूफान अब मेरी स्थिति को हिला नहीं सकता... *हर स्थिति में मैं अतींद्रिय सुख का... आनंद का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस कब्रिस्तान को भूल बाप को याद करना है*"

 

_ ➳  देहभान रूपी कब्र से निकल कर मैं आत्मा जैसे ही अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होती हूँ ये सारी दुनिया मुझे एक कब्रिस्तान के रूप में दिखाई देने लगती है और इस कब्रिस्तान का दृश्य मेरी आंखों के आगे चित्रित होने लगता है। *देह भान रूपी कब्र में कैद मुर्दो की इस दुनिया को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखते हुए मैं विचार करती हूँ कि देह भान रूपी कब्र में सोए हुए बेचारे मनुष्य तो इस बात का अभी तक इन्तजार कर रहें है कि कयामत के समय खुदा आएगा और कब्रों में पड़ी हुई रूहों को जगाकर अपने साथ ले जाएगा*। बेचारे ये भी नही जानते कि वो कौन सी कब्र है और वो कौन सा कयामत का समय है।

 

_ ➳  कयामत का समय तो अब चल रहा है जबकि सृष्टि के महापरिवर्तन का समय समीप है और वो खुदा भी इस समय इस धरा पर आकर देहभान रूपी कब्र में कैद आत्माओं को ज्ञान देकर जगा रहा है। *कितनी सौभाग्यशाली है वो आत्मायें जिन्होंने उस खुदा को पहचाना है और उनकी मत पर चल देह भान रूपी कब्र से निकल कर, इस कब्रिस्तान को भूल अपने खुदा की याद से खुद को पावन बनाने का पुरुषार्थ कर रही हैं*। इस क़ब्रिस्तान को परिस्तान बनाने के कर्तव्य में भगवान की मददगार बन उनका सहयोग दे रही हैं।

 

_ ➳  खुदा को पहचान उनकी मत पर चलने वाली खुदाई खिदमतगार आत्माओं के बारे में विचार करते हुए अपने भाग्य की मैं सराहना करती हूँ कि "वाह मेरा भाग्य वाह" जो भगवान ने मुझ देहभान रूपी कब्र से निकाल, मेरे सुन्दर सुखद स्वरूप से मुझे अवगत करवा कर इस संसार रूपी कब्रिस्तान में कब्र दाखिल होने से मुझे बचा लिया। *अपने उस स्वरूप को जिसे मैं आज दिन तक भूली हुई थी उस शांतमय, सुखमय, आनन्दमय स्वरूप का अनुभव करने और अपने खुदा से मंगल मिलन मनाने के लिए अब मैं देह और देह की दुनिया के इस कब्रिस्तान को भूल अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर अंतर्मुखता की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*।

 

_ ➳  मन बुद्धि की इस सुंदर यात्रा पर चलते  हुए हुए अपने स्वरूप में स्थित होकर, अपने अन्दर समाये गुणों और शक्तियों का आनन्द लेने में मैं इतनी मगन हो जाती हूँ कि दुख देने वाली देह, देह की दुनिया, देह के झूठे नश्वर सम्बन्धो को मैं बिल्कुल भूल जाती हूँ। *मन को सुकून देने वाली देहीअभिमानी स्थिति में स्थित होकर मैं आत्मा विदेही बन देह से बाहर निकल आती हूँ और एक गहन हल्केपन का अनुभव करते हुए ऊपर की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ। एक ही उड़ान में सारी दुनिया का चक्कर लगाकर मैं आकाश में पहुँच जाती हूँ और कुछ क्षणों के लिए नील गगन में चमक रहे सूर्य, चाँद, तारागणों को देखते इस नील गगन में विचरण करके, इससे और ऊपर उड़ कर सफेद प्रकाश की एक बेहद खूबसूरत दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ*। सफेद चाँदनी के प्रकाश से सजे इस अव्यक्त वतन में अपने प्यारे बापदादा के पास जा कर उनसे दृष्टि लेकर उससे ऊपर अपने परमधाम घर में मैं पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  निराकारी आत्माओं की बेहद खूबसूरत दुनिया में जहाँ ना कोई साकार देह का बन्धन और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है। *एक आलौकिक सुखमय निर्संकल्प अवस्था जो बहुत ही न्यारी और प्यारी है, उस बीज रूप अवस्था मे स्थित हो कर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा बाप को निहारते हुए असीम सुख का अनुभव करके और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में*। देह और देह की इस दुनिया मे वापिस लौटकर, इस सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजाते हुए इस कब्रिस्तान को भूलने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

_ ➳  *यह दुनिया जल्दी ही कब्रदाखिल होने वाली है, इन आँखों से जो कुछ दिखाई दे रहा है वो सब मिट्टी में मिलने वाला है, सदा इस बात को स्मृति में रख, अपने प्यारे बाबा की याद से जल्दी से जल्दी अपने विकर्म विनाश कर, सम्पूर्ण पावन बनने के अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ अब मैं पूरी दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानी नशे द्वारा दुःख-अशान्ति के नाम निशान को समाप्त करने वाली सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा एक की लगन में मगन रहकर निर्विघ्न बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   १. माया तो लास्ट घड़ी तक आयेगी। ऐसे नहीं जायेगी। लेकिन माया का काम है आना और आपका काम है दूर से भगाना। आ जावे फिर भगाओये नहीं। ये टाइम अभी समाप्त हुआ। माया आवे और आपको हिलावे फिर आप भगाओटाइम तो गया ना! *लेकिन साइलेन्स के साधनों से आप दूर से ही पहचान सकते हो कि ये माया है। इसमें भी टाइम वेस्ट नहीं करो और माया भी देखती है ना कि चलो आने तो देते हैं नातो आदत पड़ जाती है आने की।* जैसे कोई पशु कोजानवर को अपने घर में आने की आदत डाल दो फिर तंग होकर भगाओ भी लेकिन आदत तो पड़ जाती है ना! *और बाप ने सुनाया था कि कई बच्चे तो माया को चाय-पानी भी पिलाते हैं।*

 

 _ ➳  *चाय-पानी कौन सी पिलाते हो? पता है नाक्या करूँकैसे करूँअभी तो पुरुषार्थी हूँअभी तो सम्पूर्ण नहीं बने हैंआखिर हो जायेंगे - ये संकल्प चाय-पानी हैं।* तो वो देखती है चाय-पानी तो मिलती है। किसी को भी अगर चाय-पानी पिलाओ तो वो जायेगा कि बैठ जायेगातो जब भी कोई परिस्थिति आती है तो क्योंक्याकैसे,कभी-कभी तो होता ही हैअभी कौन पास हुआ हैसबके पास है - ये है माया की खातिरी करना। कुछ नमकीनकुछ मीठा भी खिला देते हो। और फिर क्या करते होफिर तंग होकर कहते हो अभी बाबा आप ही भगाओ। आने आप देते हो और भगाये बाबा, क्यों?आने क्यों देते हो?

 

 ➳ _ ➳  माया बार-बार क्यों आती है? *हर समयहर कर्म करते, त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट नहीं होते हो। त्रिकालदर्शी अर्थात् पास्ट, प्रेजेन्ट और फ्यूचर को जानने वाले।* तो क्योंक्या नहीं करना पड़ेगा। त्रिकालदर्शी होने के कारण पहले से ही जान लेंगे कि ये बातें तो आनी हैंहोनी हैंचाहे स्वयं द्वाराचाहे औरों द्वाराचाहे माया द्वाराचाहे प्रकृति द्वारासब प्रकार से परिस्थितियाँ तो आयेंगीआनी ही हैं। लेकिन स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो पर-स्थिति उसके आगे कुछ भी नहीं है।

 

 _ ➳  २. इसका साधन है - *एक तो आदि-मध्य-अन्त तीनों काल चेक करके, समझ कर फिर कुछ भी करो। सिर्फ वर्तमान नहीं देखो।* सिर्फ वर्तमान देखते हो तो कभी परिस्थिति ऊंची हो जाती और कभी स्व-स्थिति ऊंची हो जाती। दुनिया में भी कहते हैं पहले सोचो फिर करो। नहीं तो जो सोच कर नहीं करते तो पीछे सोचना पश्चाताप् का रूप हो जाता है। *ऐसे नहीं करतेऐसे करतेतो पीछे सोचना अर्थात् पश्चाताप् का रूप और पहले सोचना ये ज्ञानी तू आत्मा का गुण है।*

 

 _ ➳  ३. *ऐसा अपने को बनाओ जो अपने आपमें भीमन में एक सेकण्ड भी पश्चाताप् नहीं हो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर माया को दूर से भगाना"*

 

 _ ➳  देह और देह की दुनिया के अनेक कर्म करते थक कर मैं आत्मा स्वयं को रिलैक्स करने के लिए अपने शिव पिता की गोद में सिर रख कर लेट जाती हूँ... *अपने शिव पिता की दिव्य अलौकिक गोद रूपी झूले में सिर रखते ही मैं गहन निद्रा की आगोश में खो कर स्वप्नों की एक बहुत सुंदर दुनिया में पहुंच जाती हूँ*... मैं देख रही हूं स्वयं को एक छोटे से बालक के रूप में अपने शिव पिता के साथ, मन को लुभाने वाली एक बहुत सुंदर दुनिया में, जहां अनेक प्रकार की सुंदर - सुंदर चीजें और अनेक प्रकार के सुंदर खिलौने रखे हैं... उन सुंदर - सुंदर खिलौनों को देख कर उनके साथ खेलने के लिए मेरा मन ललचा रहा है...

 

 _ ➳  एक बहुत सुंदर सोने के समान चमक रही फुटबॉल को देख कर मैं जैसे ही उसे उठाने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता हूँ, कानों में एक आवाज आती है नही बच्चे, इसे अपने हाथ में मत उठाना... *लेकिन उस बॉल का आकर्षण मुझे बार - बार उसे अपने हाथों में उठाने के लिए मजबूर कर रहा है*... स्वयं को मैं रोक नही पा रहा...  इसलिए फिर से उसे उठाने के लिए मैं जैसे ही अपने हाथ आगे बढ़ाता हूँ तभी पीछे से शिव बाबा आ कर उस बॉल को जोर से किक मारते हैं... वो बॉल बहुत दूर जा कर एक बहुत तेज धमाके के साथ फ़ट जाती है... अब बाबा मुझे अपनी गोद में उठा कर समझाते हुए कहते हैं, *मेरे बच्चे:- "हर आकर्षित करने वाली चीज सुख देने वाली हो यह जरूरी नही है"...*

 

 _ ➳  अपनी गोद में उठा कर बाबा अब मुझे उस चकाचौंध करने वाली, मन को लुभाने वाली दुनिया से निकाल कर अपने साथ ले जाते हैं... *मेरी निद्रा टूटते ही अब मैं स्वयं को उस स्वप्न लोक से बाहर, अपने फ़रिशता स्वरूप में बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में देख रही हूँ*... मेरे सामने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा बैठे हैं जो बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं...

 

 _ ➳  अपनी मीठी दृष्टि से मुझे भरपूर करते हुए बाबा उस स्वप्न का राज मुझे समझा रहे हैं, *मेरे बच्चे:- "उस स्वप्न लोक की भांति यह संसार भी एक बहुत बड़ी माया नगरी है"*... यहां मन को लुभाने और आकर्षित करने वाली हर चीज धोखा देने वाली है... इस लिए इस संसार रूपी माया नगरी के मोह जाल में कभी नही फंसना... यहां आपकोे कदम कदम पर सम्भल कर चलना है... माया के अति रॉयल रूप से कभी आकर्षित नही होना... क्योकि *माया के प्रति आकर्षण ही आपको उसके अधीन कर देगा फिर उसे भगाने में बहुत टाइम व्यर्थ चला जायेगा*... जैसे किसी जानवर या पशु को घर में आने की आदत डाल दी जाए और बाद में तंग हो कर यदि उसे भगाने का प्रयास किया जाए तो वह भागता नही... ठीक इसी प्रकार यदि समय पर माया को पहचान कर उसे नही भगाया तो गोया उसकी ख़ातिरी कर सदा के लिए उसका गुलाम बनना हुआ...

 

 _ ➳  जीवन में आने वाली परिस्थितियां भी माया का रूप है... *उस समय क्यों, क्या, कैसे ये संकल्प भी अगर मन में आते हैं तो समझो आप माया की ख़ातिरी कर रहे हो*... उसे चाय, पानी पिला रहे हो... इसलिए त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर माया के हर रॉयल रूप को पहले से ही पहचान कर सावधान रहो तो आपकी स्व स्थिति माया रूपी हर परिस्थिति पर आपको सहज ही विजय दिला देगी... यह कह कर बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख मुझे सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहने का वरदान देते हैं...

 

 _ ➳  बाबा से वरदान लेकर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर करती हूं... *आदि, मध्य, अंत तीनों काल चेक करके, समझ कर हर कर्म करने से माया के वार से हार खा कर पश्चाताप करने के बजाए अब मैं सफलतामूर्त बन हर कार्य में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूं*... मेरी शक्तिशाली स्व स्थिति अब मुझे हर परिस्थिति रूपी माया पर सहज ही विजय दिला कर मायाप्रूफ बना रही है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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