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 28 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रजिस्टर खराब तो नहीं होने दिया ?*

 

➢➢ *नींद को जीत अमृतवेला विशेष रूप से बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *सदा साक्षी स्थिति में स्थित रह निर्लेप अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा सूक्षम सेवा की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योगबल द्वारा मन्सा सेवा करने के लिए अपने मन-वचन-कर्म की पवित्रता से साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तब किसी भी आत्मा की वृत्ति, दृष्टि को परिवर्तन कर सकते हो।* स्थूल में कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, उनको सन्मुख का अनुभव करा सकते हो, इसको ही योगबल कहा जाता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कर्मयोगी न्यारा और प्यारा हूँ"*

 

  सदा स्वयं को कर्मयोगी अनुभव करते हो? *कर्मयोगी जीवन अर्थात् हर कार्य करते याद की यात्रा में सदा रहे। यह श्रेष्ठ कार्य श्रेष्ठ बाप के बच्चे ही करते हैं और सदा सफल होते हैं। आप सभी कर्मयोगी आत्मायें हो ना! कर्म में रहते 'न्यारा और प्यारा' सदा इसी अभ्यास से स्वयं को आगे बढ़ाना है।*

 

  स्वयं के साथ-साथ विश्व की जिम्मेवारी सभी के ऊपर है। लेकिन यह सब स्थूल साधन हैं। *कर्मयोगी जीवन द्वारा आगे बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। यही जीवन अति प्रिय जीवन है। सेवा भी और खुशी भी हो। दोनों साथ-साथ, ठीक हैं ना!*

 

  *गोल्डन अर्थात् सतोप्रधान स्थिति में स्थित रहने वाले। तो सदा अपने को इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा आगे बढ़ाते चलो।* सभी ने सेवा अच्छी तरह से की ना! सेवा का चांस भी अभी ही मिलता है फिर यह चांस समाप्त हो जाता है। तो सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति में रहने का अभ्यास अभी सहज हो गया है। जब जहाँ अपनी बुद्धि को लगाना चाहे तो लगा सके। इसी अभ्यास को बढाने के लिए अपने घर में अथवा भट्ठी में आते हो। तो यहाँ के थोडे समय का अनुभव सदा काल बनाने का प्रयत्न करना है। *जैसे यहाँ भट्ठी वा मधुपन में चलते - फिरते अपने को अव्यक्त फरिश्ता समझते हो वैसे कर्मक्षेत्र वा सर्वीस भूमी पर भी यह अभ्यास अपने साथ ही रखना है।*

  

✧    *एक बार का किया हुआ अनुभव कहाँ भी याद कर सकते हैं।* तो यहाँ का अनुभव वहाँ भी याद रखने से वा यहाँ कि स्थिति में वहाँ भी स्थित रहने से बुद्धि को आदत पड जायेगी। जैसे लौकिक जीवन में न चाहते हुए भी आदत अफनी तरफ खींच लेती है, वैसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होने की आदण बन जाने के बाद यह आदत स्वतः ही अपनी तरफ खींचेगी।

 

✧  इतना पुरुषार्थ करते हुए कई ऐसी आत्मायें है जो अब भी यही कहती है कि मेरी आदत है। कमज़ोरी क्यों है, क्रोध क्यों किया, कोमल क्यों बने, कहेंगे मेरी आदत है। ऐसे जवाब अभी देते हैं। *तो ऐसे ही यह स्थिति वा इस अभ्यास की भी आदत बन जाये तो फिर न चाहते हुए भी यह अव्यक्त स्थिति की आदत अपनी तरफ आकर्षित करेगी।* यह आदत आपको अदालत में जाने से बचायेगी। समझा। जब बुरी - बुरी आदतें अपना सकते हो तो क्या यह आदत नहीं डाल सकते हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज की सम्पूर्णता को समीप लायेगी। *तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करें कि जैसे पहले अपने पुरूषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है।* अपनी बॉडी-कॉनशेस देह-अभिमान नेचुरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जायेगा। *ऑटोमेटिकली सोल-कॉनशेस होंगे। कार्य में लगना अर्थात् सोल-कॉनशेस होना। बगैर सोल:कॉनशेस के कार्य सफल नही होगा।* तो निरन्तर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वत: ही हो जायेगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- लक्ष्य सोप से आत्मा रूपी वस्त्र को साफ़ करना"*

 

 _ ➳  *स्वयं भगवान परमधाम से आकर, मेरे दामन में सुख रूपी फूल बिखेरेंगे... मुझे अपनी गोद की पालना दे स्वयं मेरा ख्याल रखेंगे... मुझे पढ़ायेंगे... अपनी श्रीमत देकर... दुःखों भरी जिंदगी से निकाल, सुखों की सेज सजाकर... मुझे खिलता रूहानी गुलाब की तरह महकायेंगे... ऐसा ख्वाब तो कभी भी नहीं संजोया था...* बस ईश्वर को एक बार देखने की ललक जरूर मन में थी... मुझे चलना, फिरना, रहना... यहाँ तक की प्यार करना भी भगवान ने सिखाया है... बस इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलकें लिये प्यार के सागर शिवबाबा को निहारने मैं आत्मा... वतन में उड़ चली...

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची कमाई के गहरे राज़ समझाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे...* शिवबाबा ने धरा पर आकर, आप बच्चों को अपनी पलकों से चुनकर, जो रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है... उस यज्ञ के आप सच्चे सच्चे ब्राह्मण हो... *अपने लक्ष्य को... अर्थात नर से "श्री नारायण" और नारी से "श्री लक्ष्मी" बनने के लक्ष्य को सदा बुद्धि में याद रख... पवित्र जीवन जीओ... तो आपकी अनेक जन्मों की कट उतर जायेगी... और तुम सच्चा सोना बन जाओगे..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मेरे मीठे मीठे बाबा...* मैं आत्मा आपसे प्राप्त इस मीठी श्रीमत से... सत्य की चमक से निखर गयी हूँ... *आपने मेरा जीवन सत्य की रोशनी से भर दिया है... अब मैं आत्मा सत्य की राह पर चल... पवित्र जीवन जीने की कला सीख रही हूँ...* और अपने हर कर्म को सुकर्म बनाती जा रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को कर्मो की गुह्य गति समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *कर्मो की गुह्य गति बहुत न्यारी है, आत्मा पर अनेक जन्मों के पाप कर्मो का बोझा चढ़ा हुआ है...* और हर आत्मा के संस्कार इतने कड़े हो गये हैं कि आसानी से नहीं छूटने वाले... *इन कड़े संस्कारों को मिटाने के लिये योग की... बाबा की याद की... कड़ी मेहनत करनी पड़े..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को अपने मन बुद्धि में सजाकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे...* मैं आत्मा आपकी मीठी गोद में आकर दैवीय गुणों और खजानों से सज रही हूँ... *मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर कितना ना नाज़ करूँ... कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी फूलों सी गोद में बिठाकर, यूँ खुशियों में फिर से खिलाया है... सारे विकर्मो से छुड़ाकर, मुझे देवताई श्रृंगार से सजाया है...* निखारा है..."

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य के साये तले सुरक्षित करते हुए कहा :- "मीठे सिकिलधे राजा बच्चे... मीठे बाबा को पाकर ज्ञान खजानों से विमुख न होना...* क्योकि आत्मा पाप कर्म करते करते बिलकुल मैली हो चुकी है... इसलिये इसको साफ करने की कड़ी मेहनत करनी है... *पावन जरूर बनना है... अगर पावन बन मेरी याद में नहीं रहोगे तो अनेक जन्मों के किये पाप कर्मो का बोझा नही उतरेगा और सजायें भी खानी पड़ेगी..."*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे प्यारे बाबा के प्यार में सुखी होते हुए कहती हूँ :-"मेरे दिल के सहारेदाता... मेरे प्यारे प्यारे बाबा... आपको पाकर मै आत्मा... पदमापदम सोभाग्यशाली गई हूँ...* आप मेरे जीवन को काँटों से फूलों जैसा महका रहे हो... सुखों के फूल मेरे जीवन में खिला रहे हो... *अब मैं आत्मा पवित्र बन... आपकी याद में रह... लक्ष्य रूपी सोप से आत्मा रूपी वस्त्र को साफ करुँगी... मीठे बाबा को दिल की गहराईयो से शुक्रिया कर मैं आत्मा... साकार वतन में लौट आयी...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  रजिस्टर खराब होने नही देना है*"

 

_ ➳  बाबा के कमरे में बैठी, बाबा के चित्र को बड़े प्यार से निहारते हुए, मैं उनकी देन अपने इस ईश्वरीय ब्राह्मण जीवन के लिए मन ही मन उन्हें शुक्रिया अदा करते हुए उन अखुट प्राप्तियों को याद कर रही हूँ जो बाबा ने मुझे दी है। *उन अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाकर अपने बेरंग जीवन में खुशियों के रंग भरने वाले अपने दिलाराम बाबा के चित्र को निहारते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा के मुख मण्डल पर फैली मीठी मधुर मुस्कान मुझे कोई इशारा दे रही हैं और बाबा आंखों ही आंखों में मुझ से कुछ कह रहे हैं*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझने का प्रयास करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा की अव्यक्त आवाज धीरे - धीरे मेरे कानों में सुनाई पड़ रही है।

 

_ ➳  बाबा कह रहे हैं, बच्चे-: "कभी कोई विकर्म करके अपने इस अमूल्य जीवन रूपी रजिस्टर पर दाग मत लगने देना। इसे कभी खराब नही होने देना। *जैसे एक विद्यार्थी अपनी स्टूडेंट लाइफ में पूरा ध्यान रखता है कि उससे ऐसा कोई भी गलत कर्म ना हो जिससे उसके चरित्र पर कोई आंच आये और उसका रजिस्टर खराब हो। ऐसे ही तुम्हारा ये ईश्वरीय जीवन पुरुषार्थी जीवन है जहाँ कदम - कदम पर सम्भल कर चलना पड़े एक छोटे से छोटी गलती भी रजिस्टर को दागी बना सकती है इसलिए अपनी बहुत सम्भल रखनी है*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझ कर, बाबा से ऐसा कोई भी कर्म ना करने का मैं प्रोमिस करती हूँ जो मेरे रजिस्टर को खराब करने के निमित बने।

 

_ ➳  अपने रजिस्टर को सदा साफ, स्वच्छ रखने का बाबा से वायदा करके, परमात्म बल से स्वयं को बलशाली बनाने के लिए अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने मस्तक पर एकाग्र कर, अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों की अनुभूति करते हुए, अपने पिता परमात्मा के पास  जाने वाली आंतरिक यात्रा पर चलने के लिए तैयार होती हूँ। *देह भान से न्यारी, मन बुद्धि की इस सुहावनी यात्रा पर चलने के लिए, मैं आत्मा भृकुटि के सिहांसन से उतर कर, देह रूपी मंदिर की गुफा से बाहर आती हूँ और एक दिव्य प्रकाश चारों ओर फैलाती हुई ऊपर नीले गगन की ओर चल पड़ती हूँ*।

 

_ ➳  अपने चारों और एक दिव्य प्रकाश के कार्ब को धारण किये हुए, मैं जगती ज्योति सेकण्ड में आकाश को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके, मणियों की उस खूबसूरत दुनिया, अपने पिता परमात्मा के शान्तिधाम घर मे प्रवेश करती हूँ जहाँ चारो और शांति के अथाह वायब्रेशन्स फैले हुए हैं। *इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समा कर गहन शान्ति की अनुभूति करती हुई मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उनकी किरणो रूपी बाहों के आगोश में समा जाती हूँ*। अपनी किरणों रूपी बाहों में भरकर, अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर बाबा मुझे तृप्त कर देते हैं और अपनी समस्त शक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना देते हैं।

 

_ ➳  बाबा का असीम स्नेह पाकर, बाबा की शक्तियों को स्वयं में समाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, बाबा से किये हुए वायदे को पूरा करने के लिए मैं वापिस अपनी साकारी दुनिया में फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए लौट आती हूँ। *अपने साकार शरीर रूपी रथ में भृकुटि के भव्य भाल पर बैठ, कर्मेन्द्रियों से कर्म करते, इस बात का अब मैं विशेष ध्यान देती हूँ कि जाने - अनजाने में भी मुझ से ऐसा कोई विकर्म ना हो जिससे मेरा रजिस्टर खराब हो*। अपने रजिस्टर को साफ स्वच्छ रखने के बाबा से किये हए अपने वायदे को निभाने के लिए, हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने पर मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *कदम - कदम पर मम्मा, बाबा को फॉलो कर, मनसा - वाचा - कर्मणा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर, अपने रजिस्टर को कभी भी खराब ना होने देने की अपनी प्रतिज्ञा का पालन पूरी दृढ़ता और लग्न के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा साक्षी स्थिति में स्थित रह निर्लेप अवस्था का अनुभव करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा  सूक्ष्म सेवा करने वाली महान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  इसी रीति - धर्म सत्ता अर्थात् हर धारणा की शक्ति स्वयं में अनुभव करने वाली आत्मा। जैसे पवित्रता के धारणा की शक्ति अनुभव करने वाली। *पवित्रता की शक्ति से सदा परमपूज्य बन जाते। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन कर लेते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। पवित्रता की शक्ति आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता की शक्ति नेत्रहीन को तीसरा नेत्र दे देती है।* पवित्रता की शक्ति से इस सारे सृष्टि रूपी मकान को गिरने से थमा सकते हैं। पवित्रता पिलर्स हैं - जिसके आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। पवित्रता लाइट का क्राउन है। ऐसे पवित्रता की धारणा - यह है धर्म सत्ता'। इसी प्रकार हर गुण की धारणा, हर गुण की विशेषता आत्मा में समाई हुई हो। इसको कहा जाता है धर्म सत्ता'। *धर्म सत्ता अर्थात् धारणा की सत्ता। ऐसी धर्म सत्ता वाली आत्मायें बने हो?*

 

✺  *"ड्रिल :- पवित्रता की शक्ति का अनुभव करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ...* आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...

 

_ ➳  परमपिता परमात्मा नई सृष्टि की स्थापना हेतु रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं... *प्यारे शिवबाबा रूहानी पंडा बन बेहद का यज्ञ कुंड रचते हैं...* बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... *बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है...* मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की पवित्र किरणों को ग्रहण कर रही हूँ...

 

_ ➳  बेहद के यज्ञ कुंड की पवित्र अग्नि में मैं आत्मा अपना सबकुछ स्वाहा कर रही हूँ... *योग अग्नि से निकलती पवित्र ज्वाला रूपी किरणों में मुझ आत्मा की अनेक जन्मों की अपवित्रता भस्म हो रही है...* मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं...

 

_ ➳  *अनेक जन्मों से विकारों की अग्नि में जलती हुई मैं आत्मा योग अग्नि में जलकर शीतल, शांत स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति को धारण करते ही मैं आत्मा त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... पवित्रता की शक्ति से मैं आत्मा पवित्रता का फरिश्ता बन रही हूँ... प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्म वतन में ले जाते हैं...

 

_ ➳  *सूक्ष्म वतन में मम्मा, दीदी, दादियाँ, सभी एडवांस पार्टी की आत्माएं मेरा वेलकम कर रही हैं...* मेरे चारों ओर दिव्य फरिश्ते खड़े हैं... सभी अपनी पवित्रता की शक्ति से मुझे भर रहे हैं... *सभी मुझ फरिश्ते को बीच में बिठाकर पवित्रता का ताज पहनाते हैं... चमकीले हीरों की पुष्प वर्षा कर रहे हैं...* मुझ फरिश्ते का ड्रेस जगमगा रहा है... और भी ज्यादा चमक रहा है...

 

_ ➳  *बापदादा और सभी आधारमूर्त आत्माओं से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ...* मैं आत्मा पवित्रता की शक्तियों को चारों ओर फैलाकर वायुमंडल को पवित्र बना रही हूँ... तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति का स्वयं में अनुभव कर... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को अपने पवित्र स्वरुप का अनुभव करा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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