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 02 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आवाज़ से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो बाप समान संपन्न स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *कण्ट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *क्वेश्चन मार्क बदलकर फुल स्टॉप लगाया ?*

 

➢➢ *हर समबन्ध, शक्ति और गुण का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे वृक्ष का रचयिता बीज, जब वृक्ष की अन्तिम स्टेज आती है तो वह फिर से ऊपर आ जाता है। ऐसे बेहद के मास्टर रचयिता सदा अपने को इस कल्प वृक्ष के ऊपर खड़ा हुआ अनुभव करो, बाप के साथ-साथ वृक्ष के ऊपर मास्टर बीजरूप बन शक्तियों की, गुणों की, शुभ भावना-शुभ कामना की, स्नेह की, सहयोग की किरणें फैलाओ।* जैसे सूर्य ऊंचा रहता है तो सारे विश्व में स्वत: ही किरणें फैलती हैं। ऐसे मास्टर रचयिता वा मास्टर बीजरूप बन सारे वृक्ष को किरणें वा पानी दे सकते हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सफलता का सितारा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को चमकता हुआ सितारा अनुभव करते हो? जैसे आकाश के सितारे सभी को रोशनी देते हैं ऐसे आप दिव्य सितारे विश्व को रोशनी देने वाले हो ना! सितारे कितने प्यारे लगते हैं! तो आप दिव्य सितारे भी कितने प्यारे हो! सितारों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के सितारे गाये जाते हैं। *एक हैं साधारण सितारे और दूसरे हैं लक्की सितारे और तीसरे हैं सफलता के सितारे। तो आप कौन-से सितारे हो? सभी सफलता के सितारे हो! सफलता मिलती है कि मेहनत करनी पड़ती है? कम्बाइन्ड कम रहते हो इसलिए सफलता भी कम मिलती है।*

 

✧  क्योंकि जब सर्वशक्तिमान् कम्बाइण्ड है तो शक्तियां कहाँ जायेंगी? साथ ही होगी ना। *और जहाँ सर्व शक्तियां हैं वहाँ सफलता न हो, यह असम्भव है। तो सदा बाप से कम्बाइन्ड रहने में कमी है इस कारण सफलता कम होती है या मेहनत करने के बाद सफलता होती है। क्योंकि जब बाप मिला तो बाप मिलना अर्थात् सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।* नाम ही अधिकार है तो अधिकार कम मिले, यह हो नहीं सकता। तो सफलता के सितारे, विश्व को ज्ञान की रोशनी देने वाले हैं। मास्टर सर्वशक्तिमान् के आगे सफलता तो आगे-पीछे घूमती है। तो कम्बाइन्ड रहते हो या कभी कम्बाइन्ड रहते हो, कभी माया अलग कर देती है। जब बाप कम्बाइन्ड बन गये तो ऐसे कम्बाइन्ड रूप को छोड़ना हो सकता है क्या? कोई अच्छा साथी लौकिक में भी मिल जाता है तो उसको छोड़ सकते हैं? ये तो अविनाशी साथी है। कभी धोखा देने वाला साथी नहीं है। सदा ही साथ निभाने वाला साथी है। तो ये नशा, खुशी है ना, जितना नशा होगा कि स्वयं बाप मेरा साथी है उतनी खुशी रहेगी। तो खुशी रहती है? (बहुत रहती है) बढ़ती रहती है या कम और ज्यादा होती रहती है? कोई बात आती है तो कम होती है? थोड़ा तो कम होती है! फिर सोचते हैं क्या करें, वैसे तो ठीक है, लेकिन बात ही ऐसी हो गई ना।

 

✧  कितनी भी बड़ी बात हो लेकिन आप तो मास्टर रचता हो, बात तो रचना हैं। तो रचता बड़ा होता है या रचना बड़ी होती है? कभी कोई बात में घबराने वाले तो नहीं हो? वहाँ जाकर कोई बात आ जाये तो घबरायेंगे नहीं? देखना, वहाँ जायेंगे तो माया आयेगी। फिर ऐसे तो नहीं कहेंगे कि मैंने तो समझा नहीं था, ऐसे भी हो सकता है! *नये-नये रूप में आयेगी, पुराने रूप में नहीं आयेगी। फिर भी बहादुर हो। निश्चय है कि अनेक बार बने हैं, अब भी हैं और आगे भी बनते रहेंगे। निश्चय की विजय है ही। मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति में रहने वाले कभी घबरा नहीं सकते।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  हर कर्म करते कर्मयोगी आत्मा' अनुभव करते हो? कर्म और योग सदा साथ-साथ रहता है? *कर्मयोगी हर कर्म में स्वतः ही सफलता को प्राप्त करता है।* कर्मयोगी आत्मा कर्म का प्रत्यक्ष फल उसी समय भी अनुभव करता और भविष्य भी जमा करता, तो डबल फायदा हो गया ना।

 

✧  ऐसे डबल फल लेने वाली आत्मायें हो। *कर्मयोगी आत्मा कभी कर्म के बंधन में नहीं फंसेगी।* सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे। *कर्म के बंधन से मुक्त - इसको ही कर्मातीतकहते हैं।* कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। *कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बंधन में फँसने से न्यारे,* इसको कहते हैं - कर्मातीत।

 

✧  *कर्मयोगी स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है।* तो किसी बंधन में बंधने वाले तो नहीं हो ना? औरों को भी बंधन से छुडाने वाले। *जैसे बाप ने छुडाया, ऐसे बच्चों का भी काम है छुडाना,* स्वयं कैसे बंधन में बंधेगे?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सेवा का विस्तार भल कितना भी बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, *विस्तार में सार भूल न जाये। खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नही भूलो। वाणी द्वारा भी कहां तक सेवा करेंगे, कितने की करेंगे! अब तो रूहानी वायब्रेशन, अशरीरीपन की स्थिति के वायब्रेशन, न्यारे और प्यारेपन के शक्तिशाली वायब्रेशन वायुमण्डल में फैलाओ। सेवा की तीव्रगति का साधन भी यही है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा समर्थ सोचना तथा वर्णन करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा *मधुबन भूमि पर शांति स्तम्भ के सामने बैठ अपने अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति कर रही हूँ... मैं स्वयं को सफेद लाइट के कार्ब में देख रही हूँ...* ऊपर से दिव्य प्रकाश फैलाते हुए अलौकिक फरिश्ता ब्रह्मा बाबा और उनके तन में शिवबाबा प्रकट होते हैं... *अव्यक्त बापदादा को अपने सामने पाकर मैं फरिश्ता नन्हा बच्चा बन उनकी गोद मे चला जाता हूँ... ब्रह्मा माँ अपने रूहानी स्नेह दुलार से मुझे निहाल कर रही हैं...*

 

  *निःस्वार्थ रूहानी स्नेह से मुझ आत्मा की जन्म जन्म की तड़पन को मिटाते हुए ब्रह्मा माँ कहते हैं:-* "मेरे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा अपने को सोचो कि बाप के हैं और बाप के ही सदा रहेंगे... यह दृढ़ संकल्प सदा आगे बढ़ाता रहेगा...* कमजोरियों के बारे में ज्यादा नहीं सोचना है... कमजोर चिंतन करते करते... कमजोरियों के बारे में सोचते सोचते कमजोर हो जाते हैं... मेरा योग नहीं लगता... मुझसे सेवा नहीं होती... इस तरह के कमजोर संकल्प नहीं करनी है... संकल्पों में दृढ़ता धारण करनी है..."

 

 _ ➳  *रूहानी स्नेह सागर की अनन्त लहरों में हिलोरे लेते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणेश्वर मीठे बाबा... कितना सुंदर दिव्य ज्ञान आप मुझ आत्मा को दे रहे हैं... अब मैं आत्मा *अपने हर संकल्प को सूक्ष्मता से... गहराई से चेक कर रही हूँ... कि कहीं मेरे संकल्प कमजोरी वाले तो नहीं हैं... इन संकल्पों को पहचान कर फिर मैं आत्मा उनके स्थान पर दृढ़ता के संकल्प... समर्थ संकल्प धारण कर रही हूँ... समर्थ संकल्पों से मैं आत्मा शक्तिशाली बनती जा रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान चिंगारी से मुझ आत्मा की बुझी हुई ज्योति को जगाते हुए बापदादा कहते हैं:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... माया कमजोर संकल्प के रूप में ही आती है... और माया के इस रूप को न समझ कर कमजोरियों का वर्णन करने... *सोचते रहने से माया के साथी बन जाते हैं... कमजोरों की साथी माया है... कभी भी कमजोर संकल्पों का बार-बार वर्णन नहीं करना और ना ही सोचना है... बार बार सोचने से भी स्वरूप बन जाते हैं...* सदा यह सोचो कि *मैं बाबा का नहीं बनूंगा तो और कौन बनेगा... कल्प कल्प मैं ही बाबा का बना था बना हूँ... और बनूंगा... यह संकल्प तंदुरुस्त और मायाजीत सहज ही बना देगा..."*

 

 _ ➳  *बाबा से मिले ज्ञान प्रकाश से जगमगाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... आप मुझे माया के सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप की परख करा रहे हैं... इससे मैं सहज ही अपने संकल्पों की चेकिंग कर रही हूँ... *कमजोर संकल्पों को न मैं आत्मा सोच रही हूँ... न ही उनका वर्णन कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा समर्थ संकल्पों में ही रमण कर रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान के दिव्य चक्षु देते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:-* "प्यारे फूल बच्चे... आप कभी भी कमजोरी के संकल्प नहीं कर सकते... *आप कमजोर नहीं हो... मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हो... बापदादा के चुने हुए रत्न हो... तो कमजोर कैसे हो सकते हो... आप सदा के महावीर, सदा के बहादुर हो... बाप के साथी हो... यही श्रेष्ठ संकल्प रखना है... जब बाप साथी है तो माया अपना साथी बना नहीं सकती..."*

 

 _ ➳  *बाबा के दिए हुए ज्ञान को आत्मसात करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... मैं आत्मा अब शुद्ध समर्थ और शक्तिशाली संकल्प कर रही हूँ... *मैं ही कल्प कल्प की वह भाग्यवान आत्मा हूँ... जिसे स्वयं भगवान ने चुना है... सदा बाबा की साथी सहयोगी स्नेही आत्मा हूँ... इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों से मैं ईश्वरीय साथ का अनुभव कर रही हूँ... और मायाजीत बनती जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कंट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर का अनुभव करना*"

 

_ ➳  स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होकर, अपनी कंट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर का अनुभव करने के लिए मैं अपने मन और बुद्धि को निर्देश देती हूँ कि सेकण्ड में आवाज से परे की स्थिति में स्थित हो जाये। *निर्देश देते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मन मे चल रहे संकल्प विकल्प धीरे - धीरे सिमटने लगें है और मन बुद्धि एकाग्र होकर एक बहुत ही प्यारी शांतचित्त स्थिति में स्थित होने लगें हैं*। जैसे - जैसे एकाग्रता की शक्ति बढ़ रही है शांति की गहन अनुभूति भी बढ़ रही है। धीरे - धीरे डीप साइलेन्स में मैं जा रही हूँ और महसूस कर रही हूँ *इस डीप साइलेन्स की अवस्था में शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मुझ से निकल - निकल कर चारों और फैल रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे सारा वायुमण्डल एक दम शांत हो गया है। एक गहन चुप्पी जैसे चारों तरफ छा गई है।

 

_ ➳  आवाज से परे स्थिति में स्थित हो कर गहन सुख और शांति की अनुभूति करके अब मैं *अपनी कंट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर की चेकिंग करने से लिये मन ही मन अपने आप से सवाल करती हूँ कि जैसे अभी मन बुद्धि को आवाज से परे स्थिति में स्थित होने का निर्देश देकर मैने सेकेण्ड में गहन सुख और शांति का अनुभव किया क्या ऐसी ही कंट्रोलिंग और रूलिंग पॉवर का अनुभव मैं विपरीत परिस्थितियों में भी करती हूँ*! जब चाहे कर्म में आना और जब चाहे कर्म से परे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाना क्या ऐसा अभ्यास मेरा पक्का हो गया! क्या मेरी सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे ऑर्डर प्रमाण कार्य करती है! *संकल्पों पर, मन, बुद्धि पर क्या मेरा कंट्रोल है! किसी भी परिस्थिति में क्या,क्यो कैसे की क्यू में फंसने की बजाय सेकण्ड में फुल स्टॉप लगता है*!

 

_ ➳  गम्भीरता के साथ यह सारी चेकिंग करके अपने अंदर कंट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर को बढ़ाने का दृढ़ संकल्प लेकर, स्वयं को सदा अधिकारीपन की सीट पर सेट रखने के लिए अपने अंदर परमात्म बल और शक्तियां भरने के लिए परमात्म याद में मैं अपने मन और बुद्धि को स्थिर करती हूँ *और अपने प्यारे पिता के पास जाने का संकल्प लेकर मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर उस यात्रा पर चल पड़ती हूँ। भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ देह की कुटिया से मैं बाहर आ जाती हूँ और हर चीज को साक्षी होकर देखते हुए, देह और देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त होकर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ*। इस अद्भुत रूहानी यात्रा का भरपूर आनन्द लेते हुए, आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परे मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया, अपने स्वीट साइलेन्स होम में।

 

_ ➳ अपने इस शांति धाम घर मे पहुँच कर कुछ क्षण डीप साइलेन्स की अनुभूति करते हुए, गहन शांति प्राप्त करके अब मैं शान्ति के सागर अपने प्यारे बाबा के समीप पहुँचती हूँ जो सूर्य के समान अपनी शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरते हुए बहुत ही लुभायमान लग रहे हैं। *उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए धीरे - धीरे मैं उनके बिल्कुल पास जाकर उन्हें स्पर्श करती हूँ। और अनुभव करती हूँ जैसे सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में उनका असीम स्नेह मेरे ऊपर बरसने लगा है*। उनके स्नेह की शीतल किरणें मेरे रोम - रोम को पुलकित कर रही हैं। स्नेह के सागर मेरे मीठे बाबा अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटाने के बाद मेरे विकर्मों को दग्ध करके, मुझे शुद्ध और पावन बनाने के लिए अब शक्तिस्वरूप बन शक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणे मेरे ऊपर प्रवाहित कर रहें हैं। *विकारो की मैल को अपने ऊपर से उतरता हुआ मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ*।

 

_ ➳  शुद्ध, पवित्र और शक्ति स्वरूप बनकर मैं वापिस अपना पार्ट बजाने के लिए साकार लोक में लौट आई हूँ और अपने साकार तन में प्रवेश कर, फिर से भृकुटि के भव्य भाल पर विराजमान हो कर, सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिये तैयार हो गई हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, स्वराज्य अधिकारी बन अब मैं हर कर्म कर रही हूँ। कर्मेन्द्रियों की मालिक बन अपनी इच्छानुसार हर कर्मेन्द्रिय को चला रही हूँ। सेकेण्ड में आवाज में आना और सेकेण्ड में आवाज से परे अपने शान्त स्वधर्म में स्थित हो जाना ऐसी प्रेक्टिस करते हुए कंट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर का बार - बार अनुभव करके, न्यारे और प्यारे रहने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सेवा का पार्ट बजाते पार्ट से न्यारे और बाप के प्यारे रहने वाली सहज योगी  आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं कारण शब्द को मर्ज कर हर बात का निवारण कर देने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. अभी भी समय और संकल्प - ना अच्छे मेंना बुरे में होते हैं। *तो बुरे में नहीं हुआ ये तो बच गये लेकिन अच्छे में जमा हुआ? समझा?* समय कोसंकल्प को बचाओजितना अभी बचत करेंगेजमा करेंगे तो सारा कल्प उसी प्रमाण राज्य भी करेंगे और पूज्य भी बनेंगे।

 

 _ ➳  २. लेकिन एक अटेन्शन रखना - अगर मानो आपका आज के दिन जमा का खाता बहुत कम हुआ तो कम देख करके दिलशिकस्त नहीं होना। और ही समझो कि अभी भी हमको चांस है जमा करने का। अपने को उमंग- उत्साह में लाओ। *अपने आपसे रेस करोदूसरे से नहीं। अपने आपसे रेस करो कि आज अगर ८ घण्टे जमा हुए तो कल १० घण्टे हो। दिलशिकस्त नहीं होना*। क्योंकि अभी फिर भी जमा करने का समय है। अभी टू लेट का बोर्ड नहीं लगा है। फाइनल रिजल्ट का टाइम अभी एनाउन्स नहीं हुआ है। जैसे लौकिक में पेपर की डेट फाइनल हो जाती है तो अच्छे पुरुषार्थी क्या करते हैं? दिलशिकस्त होते हैं या पुरुषार्थ में आगे बढ़ते हैंतो आप भी दिलशिकस्त नहीं बनना। और ही उमंग-उत्साह में आकरके दृढ़ संकल्प करो कि मुझे अपने जमा का खाता बढ़ाना ही है। समझा?दिलशिकस्त तो नहीं होंगेफिर बाप को मेहनत करनी पड़े! फिर बड़े-बड़े पत्र लिखना शुरु कर देंगे - बाबा क्या हो गया... ऐसा हो गया... ! बाबा बचाओबचाओ - ऐसे नहीं कहना। *देखो आपके जड़ चित्रों से जाकर मांगनी करते हैं कि हमको बचाओ। तो आप बचाने वाले होबचाओ-बचाओ कहने वाले नहीं*।

 

 _ ➳  ३.  ये अपने आप चेक करो और चेक करके चेंज करो। *दिलशिकस्त नहीं बनोचेंज करो। जब बाप साथ है तो बाप को यूज करो ना*! यूज कम करते होसिर्फ कहते हो बाबा साथ हैबाबा साथ है। यूज करो। *जब सर्वशक्तिमान साथ है तो सफलता तो आपके चरणों में दौड़नी है*। 

 

✺   *ड्रिल :-  "समय और संकल्प जमा करने में बापदादा को यूज करना"*

 

 _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी स्वरूप में मैं नन्हा सा फ़रिशता अपनी शिव माँ की किरणों रूपी गोद मे बैठा उनकी ममतामयी गोद का अनुपम सुख प्राप्त कर रहा हूँ। मेरी शिव माँ अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बाहों के झूले में मुझे झुला रही है। उनकी किरणों रूपी बाहों का कोमल स्पर्श मेरे मन को आनन्दित कर रहा है। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते - झुलाते मेरी शिव माँ अब मुझे अपनी गोद मे उठाये कहीं दूर ले कर चल पड़ती है*। एक बहुत खूबसूरत प्रकृतिक सौंदर्य से भरपूर, दुनिया की भीड़ से अलग बहुत खुले स्थान पर मेरी शिव माँ मुझे ले आती है और अपनी किरणों रूपी बाहों की गोद से मुझे नीचे उतार कर मेरे साथ खेलने लगती है।

 

 _ ➳  कभी मैं नन्हा फ़रिशता उड़ कर अपनी शिव माँ को पकड़ता हूँ और कभी मेरी शिव मां मुझे पकड़ती है। *अपनी शिव माँ के साथ अनेक प्रकार के खेल खेलने के बाद मैं उनकी गोद मे सिर रख कर सो जाता हूँ* और जब नींद से जागता हूँ तो स्वयं को परियों की एक बहुत सुंदर दुनिया मे देखता हूँ। जहां अथाह खजानों के ढेर लगे हुए हैं।

 

 _ ➳  तभी मेरी शिव माँ अव्यक्त ब्रह्मा माँ के आकारी रथ में विराजमान हो कर मेरे पास आती है और मेरे हाथ मे सर्व खजानों की चाबी रख देती है और मुझ से कहती है मेरे बच्चे इन सर्व खजानों के आप मालिक हो। जितना चाहे इन खजानों को यूज़ करो। जितना यूज़ करेंगे उतने यह खजाने बढ़ते जायेंगे। *अपनी शिव माँ से सर्व खजानों की चाबी ले कर मैं फ़रिशता सर्व खजानों को बढ़ाने का जो मुख्य आधार है "समय और संकल्प" उसे जमा करने के तीव्र पुरुषार्थ में लग जाता हूँ*।

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, *बापदादा को यूज़ करते हुए अब मैं शुद्ध संकल्पो की रूहानी लिफ्ट पर सवार हो कर कभी निराकारी स्थिति में, कभी आकारी स्थिति में और कभी साकारी स्थिति में स्थित हो कर स्वयं को शक्तिशाली बना रही हूँ*। समय के वरदानों को स्वयं प्रति और सर्व प्रति कार्य मे लगा कर मैं हर सेकण्ड को सफल कर रही हूं।

 

 _ ➳  मनबुध्दि को शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पो में बिजी रख अपनी स्वस्थिति को शक्तिशाली बना कर मैं मायाजीत बनती जा रही हूं। *सर्वशक्तिवान बाप की छत्रछाया के नीचे स्वयं को सदा अनुभव करने से, बापदादा की सर्वशक्तियों की अधिकारी बन मैं उचित समय पर उचित शक्ति का प्रयोग कर हर प्रकार की मेहनत से स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूं*। कोई भी परिस्थिति अब मुझे दिलशिकस्त नही बना सकती।

 

 _ ➳  कदम कदम पर बापदादा को अपने साथ अनुभव करने और बाबा की शिक्षाओं पर बार - बार मनन करने से मेरी बुद्धि समर्थ बनती जा रही है। *ज्ञान रत्नों को धारण कर अपनी बुद्धि को समर्थ बना कर, ज्ञान रत्नों की व्यापारी बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर सर्व खजानों के जमा का आधार "समय" और "संकल्प" के श्रेष्ठ खजाने को सफल करते हुए सदा और सहज सफ़लतामूर्त बनती जा रही हूं*।

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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