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 04 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रूहानी यात्रा की और कराई ?*

 

➢➢ *सृष्टि चक्र का ज्ञान बुधी में रख स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *महावीर बन संजीवनी बूटी द्वारा मूर्छित को सुरजीत किया ?*

 

➢➢ *दिल सदा एक दिलाराम में लगा सच्ची तपस्या का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग में जब और सब संकल्प शान्त हो जाते हैं, एक ही संकल्प रहता 'बाप और मैं' इसी को ही पावरफुल योग कहते हैं।* बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जायें तब कहेंगे ज्वाला रूप की याद, जिससे परिवर्तन होता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहजयोगी, सहज ज्ञानी हूँ"*

 

✧  सदा अपने को सहजयोगी, सहज ज्ञानी समझते हो? सहज है या मेहनत है? जब माया बड़े रूप में आती है तो मुश्किल नहीं लगता? मधुबन में बैठे हो तो सहज है, वहाँ प्रवृति में रहते जब माया आती है फिर मुश्किल लगता है? कभी-कभी क्यों लगता है, उसका कारण? मार्ग कभी मुश्किल, कभी सहज है - ऐसे नहीं कहेंगे। *मार्ग सदा सहज है, लेकिन आप कमजोर हो जाते हो इसीलिए सहज भी मुश्किल लगता है। कमजोर के लिए कोई छोटा सा भी कार्य भी मुश्किल लगता है। अपनी कमजोरी मुश्किल बना देती है, बाकी मुश्किल है नहीं।*

 

  कमजोर क्यों होते हैं? *क्योंकि कोई न कोई विकारों के संग दोष में आ जाते हैं। सत का संग किनारे हो जाता है और दूसरा संग दोष लग जाता है। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं कि सदा सतसंग में रहो। सतसंग अर्थात् सत बाप के संग में रहना।* तो आप सदा सतसंग में रहते हो या और संग में भी चक्कर लगाते हो? सतसंग की कितनी महिमा है! और आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है। क्योंकि समीप का सम्बन्ध है।

 

  सबसे समीप सम्बन्ध है बाप और बच्चे का। यह सम्बन्ध सहज भी है और साथ-साथ प्राप्ति कराने वाला भी है। तो आप सभी सदा सतसंग में रहने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी है। *सदैव यह सोचो कि हम औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो दूसरों की मुश्किल को सहज करने वाला होता वह स्वयं मुश्किल में नहीं आ सकता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी आवाज़ से परे अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बहुत समय से कर सकते हो? *आवाज़ में आने का अनुभव ज्यादा कर सकते हो वा आवाज़ से परे रहने का अनुभव ज्यादा समय कर सकते हो?*

 

✧  *जितना लास्ट स्टेज अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जाएगी उतना आवाज़ से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी* इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूती हो।

 

✧   *इस अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आह्वान कर सके़गे।* यह पाँवरफुल स्थिति 'विश्व - कल्याणकारी स्थिति' कही जाती है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अपने निजस्वरूप और निजधाम की स्थिति सदा याद रहती है? निराकारी दुनिया और निराकारी रूप दोनों की स्मृति इस पुरानी दुनिया में रहते भी सदा न्यारा और प्यारा बना देती है। *इस दुनिया के हैं ही नहीं। हैं ही निराकारी दुनिया के निवासी, यहाँ सेवा अर्थ अवतरित हुए हैं- तो जो अवतार होते हैं उन्हों को क्या याद रहता है? जिस कार्य अर्थ अवतार लेते हैं वही कार्य याद रहता है ना!* अवतार अवतरित होते ही हैं धर्म की स्थापना के लिए तो आप सभी भी अवतरित अर्थात् अवतार हो तो क्या याद रहता है? यही धर्म स्थापन करने का कार्य।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देवी-देवता बनने के कालेज में पढ़कर भगवान-भगवती बनना"*

 

 _ ➳  *मैं सौभाग्यशाली आत्मा भगवान के बगीचे में रूहानी फूल बन खिलखिला रही हूँ... भगवान की गोदी में पल रही हूँ... उनके प्यार के आँगन में रूहानी शिक्षाएं ग्रहण कर रही हूँ... अपने पुराने स्वभाव-संस्कारों को परिवर्तन कर दैवीय संस्कारों को धारण कर रही हूँ...* स्वयं भगवान शिक्षक बनकर मुझे पढ़ा रहे हैं और तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाकर, पतित से पावन बनाकर पावन दुनिया में भगवान-भगवती बना रहे हैं... मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मीठे बाबा से पढ़ाई पढने मधुबन के हिस्ट्री हाल में...

 

  *राजयोग द्वारा सृष्टि के गुह्यतम राजों को समझाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है तो हर बच्चे को कृष्ण जैसा प्रिन्स बनाने की ही चाहत दिल में ले आया है... *ईश्वर पिता की नजर... प्यार... दुलार... पढ़ाई... सबके लिए एक समान है... कितने मीठे भाग्य के मालिक हो कि भगवान गोद में बिठा प्यार से गहरे राज समझा रहा है...”*

 

_ ➳  *ज्ञान रत्नों से अपने जीवन को अमूल्य बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ यह तो ख्वाबो में भी न सोचा था कभी कि भगवान धरा पर उतर आएगा यूँ... मुझे प्यार करने और पढ़ाने...* और मै आत्मा कृष्ण जैसी खूबसूरत प्रिन्स बन मुस्कराऊंगी...

 

  *अपने दिल में बसाकर मुझे वरदानों से सजाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... *भगवान पिता तो हर बच्चे को खूबसूरत देवता सा ही सजाना चाहे... हर बच्चा खूबसूरत गुलाब सा महक उठे... विश्व पिता यही एक अरमान दिल में अपने सजाये...* और ऐसे देवताई स्वरूप सजाने को भगवान परमधाम छोड़ धरती पर डेरा जमाये... और प्रिन्स सा मनभावन बनाये...

 

_ ➳  *गॉड फादरली स्टूडेंट बन प्रिंस-प्रिंसेज बनने की पढ़ाई पढ़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वर पिता से देवताई पढ़ाई पढ़कर... सुखो की नगरी को अपनी बाँहों में भर रही हूँ... चारों ओर सुख ही सुख और उनमे मै आत्मा झूम रही हूँ...* मीठे बाबा के साथ से देवताओ सा सज रही हूँ...

 

  *सारे सुखों को मेरी झोली में डालकर अपनी बाँहों में समाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... भगवान को पाकर उसका सारा खजाना अपने दिल में भर लो... उसके दिल में छुपे हर राज के राजदार बन जाओ... सारी नालेज को स्वयं में भरकर सुंदर कृष्ण जैसा सज जाओ... *ज्ञानसागर बाबा से पढ़कर... मा. ज्ञानसागर बन मुस्कराओ और सुख शांति आनन्द की दुनिया के मालिक बन जाओ...”*

 

_ ➳  *अनंत सुखों को अपने भाग्य में सजाकर खुशहाली का दामन ओढ़कर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा भगवान को टीचर रूप में पाने वाली अत्यंत भाग्यशाली आत्मा हूँ... ज्ञान सागर बाबा ने मुझे पढ़ाकर आप समान खूबसूरत बना दिया है...* और मै आत्मा यूँ भगवान को पाकर अपने मीठे भाग्य पर मोहित हो गई हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  नई नॉलेज पढ़नी और पढ़ानी है*

 

_ ➳  जिस सत्य नॉलेज को पाकर मेरे जीवन में छाया अज्ञान अंधकार मिट गया और अज्ञान अंधकार से निकल ज्ञान के सोझरे में आकर जिस आनन्दमयी जीवन का अनुभव मैं आज कर रही हूँ, वो सत्य ज्ञान देने वाले जीवनदाता अपने प्यारे पिता का मैं मन ही मन शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने ने आकर मुझे सत्यता का बोध करवाया। *याद करती हूँ मैं उस समय को जब भगवान को पाने के लिए मैं भटक रही थी। भक्ति के व्यर्थ के कर्मकांडो में उलझ कर अपना समय, संकल्प और श्वांस सब व्यर्थ गंवा रही थी किन्तु ज्ञान सागर मेरे प्यारे भगवान ने आकर मुझे ऐसी नई नॉलेज दी जिससे मेरे मन के सभी बन्द कपाट खुल गए* और उनके खुलते ही मेरे प्यारे प्रभु साक्षात मुझे मेरे सामने खड़े दिखाई दिए।

 

_ ➳  मन मे चल रहे इन सभी विचारों को दृश्यों के रूप में देखते हुए मैं महसूस कर रही हूँ जैसे जीवन को बदलने वाला सत्य ज्ञान देने वाले ज्ञान सागर मेरे पिता साक्षात मेरे सामने आ कर खड़े हो गए है और ज्ञान सूर्य बन ज्ञान की अनन्त किरणो का प्रकाश मेरे ऊपर डाल रहें हैं। *मन को आनन्दित करने वाला ये प्रकाश देह रूपी पिंजरे में फंसी मुझ आत्मा को छू रहा है और मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पहचान उस स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ*। स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ मैं अपने उस सतोगुणी स्वरूप को जो सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति से भरपूर है।

 

_ ➳  अपने अंदर समाये ये सातों गुण मुझे मेरे मस्तक से प्रकाश की रंग बिरंगी किरणो के रूप में निकलते हुए दिखाई दे रहे हैं। *मुझ आत्मा से निकल रहे प्रकाश की इन रंग बिरंगी किरणों के साथ इन सातों गुणों के वायब्रेशन्स को मैं धीरे - धीरे अपने चारो और फैलता हुआ महसूस कर रही हूँ*। एक दिव्य अलौकिक आभामंडल मेरे चारों और निर्मित होने लगा है जो देह रूपी पिंजरे को तोड़, मुझे उससे बाहर निकलने में मदद कर रहा है। प्रकाश के दिव्य कार्ब के साथ मैं आत्मा भृकुटि की कुटिया से बाहर निकल रही हूँ और अब अपने ही शरीर को साक्षी हो कर देख रही हूँ। *कोई लगाव, कोई मोह मुझे इस शरीर के साथ अब नही है। नए ज्ञान की नई रोशनी ने देह के हर बन्धन से जैसे मुझे मुक्त कर दिया है*।

 

_ ➳  एक अति सुंदर निर्बन्धन स्थिति में स्थित होकर अब मैं आत्मा ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के पास उनके वतन की ओर जा रही हूँ। *हर बन्धन से मुक्त, एकदम हल्केपन की स्थिति में स्थित होकर उड़ने का भरपूर आनन्द लेती हुई मैं नीले गगन को पार कर, उससे ऊपर फरिश्तो की दुनिया को पार कर पहुँच चुकी हूँ अपने उस निराकारी वतन में जहाँ ज्ञान के सागर मेरे निराकार पिता परमात्मा रहते हैं*। रंग बिरंगे सितारों की तरह चमकती आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में आकर मैं गहन शान्ति की अनुभूति कर रही हूँ। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने प्यारे पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ। *सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका मन को लुभाने वाला सुन्दर स्वरूप मुझे अपनी और खींच रहा है। उनके समीप जाकर अब मैं उनकी किरणो रूपी छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ गई हूँ*।

 

_ ➳  ज्ञानसूर्य मेरे शिव बाबा ज्ञान की अनन्त किरणो को अब मेरे ऊपर प्रवाहित कर, अज्ञानता के पुराने सभी संस्कारों को जलाकर भस्म कर मेरे अंदर अथाह ज्ञान का प्रकाश भर रहें हैं। *बाबा मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं ताकि अज्ञान अंधकार में भटक रही आत्माओं को ज्ञान का प्रकाश देकर उनके अंधेरे जीवन मे उजाला कर सकूँ*। ज्ञान की शक्ति स्वयं में भरकर अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता से मिली नई नॉलेज सबको देकर, सर्व का कल्याण करने के लिए वापिस साकारी दुनिया की ओर आ रही हूँ।

 

_ ➳  अपने साकार तन में भृकुटि सिहांसन पर अब मैं विराजमान हूँ और अपने प्यारे पिता द्वारा मिलने वाली नई नॉलेज को पढ़कर उसे दूसरों को पढ़ाने की सेवा कर रही हूँ। *जैसे बाबा ने नई नॉलेज देकर मेरे जीवन को परिवर्तित किया ऐसे बाबा से यह नॉलेज लेकर सबको यह नई नॉलेज देकर मैं सबके जीवन को परिवर्तन करने के बाबा के कार्य मे मददगार बन उनका पूरा सहयोग दे रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं महावीर बन संजीवनी बूटी द्वारा मूर्छित को सुरजीत करने वाली शक्तिवान  आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं दिल सदा एक दिलाराम में लगाकर  सच्ची तपस्या करने वाली तपस्वी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- बिंदु स्वरूप की स्मृति से ज्ञान गुण और धारणा में सिंधु बनने का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा इस नश्वर देह की दुनिया से किनारा कर... अब अपने घर की ओर चल पड़ती हूँ... इस साकारी दुनिया को पार करते हुए... मैं निरंतर ऊपर की ओर बढ़ती जा रही हूँ... चाँद-सितारों की दुनियां को पार करते हुए... अपने *निजधाम परमधाम में पहुँच जाती हूँ... जहाँ चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश नजर आ रहा है... शांति ही शांति अनुभव हो रही है*...

➳ _ ➳ यह शांतिधाम ही मेरा असली घर है... मैं आत्मा अपने पिता शिवबाबा... जो मेरी ही तरह ज्योतिपुंज है... प्वाइंट ऑफ़ लाइट है... ऐसे बाप के सम्मुख मैं आत्मा बैठी हूँ... *जिस शांति को सारी दुनिया ढूंढ रही है... वह शान्ति के सागर मेरे पिता... मेरे सामने बैठकर मुझे अपनी... सर्वशक्तियों से भरपूर करते जा रहे है*...

➳ _ ➳ बिंदु बीजरूप बाप की मास्टर बिंदु बीजरूप सन्तान मैं स्वयं को देख रही हूं... बाप और मैं कंबाइंड स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मैं बिंदु, बिंदु बाप में समा जाती हूँ... कुछ देर तक इसी स्थिति में स्थित हो... निर्संकल्प हो बाप के स्नेह की गहराई में समाती जा रही हूँ... *बिंदु बन सिंधु बाप में समा जाती हूँ... आहा!!कितना अलौकिक अनुभव हो रहा है... कितना पावरफुल भी... मैं आत्मा अब इसी अनुभव की गहराइयों में खोती जा रही हूँ*...

➳ _ ➳ यह स्थिति कितनी हल्की और... एक दम ऊंची भी अनुभव हो रही है... मीठे बाबा सर्व गुणों के सिंधु है... वे शांति के सागर है... मुझ आत्मा को उनसे शांति के प्रकम्पन मिल रहे है... ज्ञान का सागर मुझ आत्मा को भी ज्ञान का खजाना दे भरपूर करते जा रहे है... *बाप से सर्व सम्बन्ध की शक्ति... मुझ आत्मा को बहुत बड़ी प्राप्ति की अनुभूति करा रही है*...शुक्रिया बाबा... आपने सदा सफलता के वरदानों से मुझ आत्मा को श्रृंगार रहे है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप के समान मास्टर सिंधु बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चल... बाप द्वारा मिले ज्ञान को, गुणों को जीवन में अच्छी रीति धारण करती जा रही हूँ... *बिंदु बनते ही सभी विस्तार समाप्त हो गए... बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान के खजाने से भरपूर कर दिया*.. मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारण कर सम्पूर्ण बनना ही है... आज *मैं बाप से दृढ़ संकल्प करती हूँ*...

➳ _ ➳ *भगवान बाप ने मुझ आत्मा को इतनी अच्छी समझ दी है... जो सारे कल्प में मुझ आत्मा के काम आने वाली है*... इस समझ को यूज़ करते-करते... मैं आत्मा ज्ञान, गुण और धारणा में सिंधु बनती जा रही हूँ... *जो परमात्म पालन और पढ़ाई मुझ आत्मा को मिली है... वह मुझ में शक्ति भर... मुझ आत्मा को बिंदु रूप की स्मृति में स्थित होने का अनुभव करा रही है*..वाह!! मीठे बाबा वाह!!

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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