━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 12 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप को याद कर नींद को जीतने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *आपस में बाप और वर्से की याद दिला एक दो सावधान कर उन्नति को पाया ?*

 

➢➢ *अपने सहयोग के स्टॉक द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त की ?*

 

➢➢ *विश्व ड्रामा के हर सीन को साक्षी होकर देखा ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  जैसे बापदादा को रहम आता है, ऐसे आप बच्चे भी मास्टर रहमदिल बन मन्सा अपनी वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा आत्माओ को बाप द्वारा मिली हुई शक्तियां दो। *जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है, तत्वों सहित सबको पावन बनाना है तो तीव्र गति से सेवा करो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं संगमयुग की विशेषताओंकी स्मृति द्वारा समर्थ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? *संगमयुग श्रेष्ठ युग है, परिवर्तन युग है, आत्मा और परमात्मा के मिलन मेले का युग है। ऐसे संगमयुग के विशेषताओंको सोचो तो कितनी हैं। इन्हीं विशेषताओंके स्मृति में रह समर्थ बनो। जैसी स्मृति वैसा स्वरूप स्वत: बन जाता है।*

 

  तो सदा ज्ञान का मनन करते रहो। मनन करने से शक्ति भरती है। अगर मनन नहीं करते, सिर्फ सुनते सुनाते तो शक्ति स्वरूप नहीं। लेकिन सुनाने वाले स्पीकर बनेंगे। आप बच्चों के मनन का चित्र भक्ति में भी दिखाया है। कैसे मनन करो वह चित्र याद है! विष्णु का चित्र नहीं देखा है? आराम से लेटे हुए हैं और मनन कर रहे हैं, सिमरण कर रहे हैं। सिमरण कर, मनन कर हर्षित हो रहे हैं। तो यह किसका चित्र है? शैया देखो कैसी है! सांप को शैया बना दिया अर्थात् विकार अधीन हो गये। उसके ऊपर सोया है। *नीचे वाली चीज अधीन होती है, ऊपर मालिक होते हैं। मायाजीत बन गये तो निश्चिंत। माया से हार खाने की, युद्ध करने की कोई चिन्ता नहीं। तो निश्चिन्त और मनन करके हर्षित हो रहे हैं।*

 

  ऐसे अपने को देखो, मायाजीत बने हैं। कोई भी विकार वार न करे। रोज नई नई पाइंट स्मृति में रख मनन करो तो बड़ा मजा आयेगा, मौज में रहेंगे। क्योंकि बाप का दिया हुआ खजाना मनन करने से अपना अनुभव होता है। जैसे भोजन पहले अलग होता है, खाने वाला अलग होता है। लेकिन जब हजम कर लेते तो वही भोजन खून बन शक्ति के रूप में अपना बन जाता है। *ऐसे ज्ञान भी मनन करने से अपना बन जाता, अपना खजाना है यह महसूसता आयेगी।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू-शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। *सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा हैं, आत्मा हैं। यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया।* तो यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए। चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा।

 

✧  *अनुभव करे कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ करनहार अलग है, करावनहार अलग है।* ब्रह्मा बाप का दूसरा अनुभव भी सुना है कि यह कर्मेद्रियाँ, कर्मचारी हैं। तो रोज रात की कचहरी सुनी है ना! तो मालिक बन इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से हालचाल पूछा है ना!

 

✧  तो जैसे ब्रह्माबाप ने यह अभ्यास फाउण्डेशन बहुत पक्का किया, इसलिए जो बच्चे लास्ट में भी साथ रहे उन्होंने क्या अनुभव किया? कि बाप कार्य करते भी शरीर में होते हुए भी अशरीरी स्थिति में चलते-फिरते अनुभव होता रहा। *चाहे कर्म का हिसाब भी चुक्तू करना पडा लेकिन साक्षी हो, न स्वयं कर्म के हिसाब के वश रहे, न औरों को कर्म के हिसाब-किताब चुक्तू होने का अनुभव कराया।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  लौकिक में रहते हुए भी हम, लोगों से न्यारे हैं। अपने को आत्मिक-रूप में न्यारा समझना है। *कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा-रूप में कार्य करेंगे।* तो सिर्फ दुनिया की बातों से ही न्यारा नहीं बनना है, *अपने मन के प्रिय, प्रभु-प्रिय और लोक-प्रिय भी बनेंगे। अभी लोगों को क्यों नहीं प्रिय लगते हैं? क्योंकि अपने शरीर से न्यारे नहीं हुए हो। सिर्फ देह के सम्बन्धियों से न्यारे होनी की कोशिश करते हो तो वह उलहने देते - खुद को क्या चेन्ज किया है।* पहले देह के भान से न्यारे नहीं हुए हो, तब तक उलहना मिलता है। *पहले देह से न्यारे होंगे तो उलहने नहीं मिलेंगे, और ही लोकप्रिय बन जायेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक दो को बाप और वर्से की याद दिलाकर सावधान करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठ बाबा की यादों में मगन हूँ... बाबा मिला सबकुछ मिल गया... सर्व प्राप्तियों का अनुभव करती मैं आत्मा अपने को धन्य-धन्य महसूस कर रही हूँ... फिर मुझे 'मीठे बच्चे' की आवाज़ सुनाई देती है... मीठे बाबा बाहें पसारे वतन से मुझे बुला रहे हैं... *मैं आत्मा बाबा की पुकार सुन तुरंत इस देह से निकल चमकते प्रकाश के कार्ब में बैठ, देह की दुनिया से ऊपर उड़ते हुए वतन में पहुँच जाती हूँ, बाबा से मीठी-मीठी, प्यारी-प्यारी बातें करने...*   

 

   *एक दो को बाप और वर्से की याद दिलाकर सावधान करते उन्नति को पाते रहने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *इस संगम युग के वरदानी समय का एक एक पल कीमती है... यह सांसे भी अमूल्य है... अब इन्हे यूँ ही न गवाओ... याद में रहो और सबको याद दिलाओ...* समय से पूर्व सज जाओ ऐसा अनोखा पुरुषार्थ कर दिखाओ... और उन्नति को पाकर सदा की मुस्कान से सज जाओ...

 

_ ➳  *हर पल हर स्वांस में प्यारे बाबा की यादों को समाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा खुद भी सावधान होकर सबको भी सावधान कर मीठे बाबा की यादो में खोयी खोयी सी हूँ...* प्यारा बाबा मुझे हर पल निखार रहा है... मेरे सारे विकर्मो का विनाश हो रहा है... और मै खूबसूरत आत्मा बनती जा रही हूँ...

 

   *प्यार का सागर मेरा मीठा बाबा प्यार की बरसात में मुझे भिगोते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के नातो को बहुत चाह लिया निभा लिया और खालीपन को भी देख लिया... अब प्राप्ति के सागर में डुबकी लगाओ... *अपनी सांसो को ईश्वरीय यादो में भिगो दो... और महा प्रेम में मदमस्त हो जाओ... एक पल भी न गुजरे नजरो से... यादो के बिना ऐसा अटूट प्रेम का नाता निभाओ...”*

 

_ ➳  *मन के तारों को प्रभु से जोडकर प्रभु प्रेम रस का पान करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी यादो में खोकर मन्त्रमुग्ध हो गई हूँ... इन मीठी यादो के अनन्त सागर में डूब गयी हूँ... निरन्तर याद से अथाह ख़ुशी को पाती जा रही हूँ...* और हर दिल को ईश्वरीय प्रेम का पैगाम देकर निरन्तर उन्नति के अहसासो में डूबती जा रही हूँ...

 

   *अपना प्यारा धाम छोडकर काँटों भरी जीवन से निकाल फूलों की बगिया में ले जाते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर लो... *यादो को सांसो सा जीवन में भर लो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आल्हादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन जाओ...”*

 

_ ➳  *प्रभु प्रेम का उपहार पाकर सुखमय जीवन की बगिया में रूहानी गुलाब बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी सांसो पर आपका नाम लिख ली हूँ... ईश्वरीय नशे से भरकर झूम उठी हूँ... *सबको यादो भरा जाम पिलाती जा रही हूँ... और ईश्वरीय खुशबु से हर पल महकती जा रही हूँ... शिव बाबा याद है... यह अलख जगाती जा रही हूँ...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान सागर में डुबकी लगानी है*"

 

_ ➳  ज्ञान गंगा बन, ज्ञान सागर में डुबकी लगा कर, ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार करने के लिए मैं ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपनी बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही ये महसूस करती हूँ *जैसे ज्ञान सागर शिव बाबा अपनी समस्त शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणें चारों और फैलाते हुए परम धाम से नीचे आ रहे हैं और आकर मेरे सिर के ऊपर स्थित हो गए हैं*। ज्ञान सागर शिव बाबा से आ रही ज्ञान की शीतल लहरों की शीतलता मुझे अपने भीतर प्रवाहित होते स्पष्ट अनुभव हो रही है।

 

_ ➳  ज्ञान सागर की शीतल लहरों की शीतलता मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी देहभान की मिट्टी को हटाकर मुझे मेरे अति प्रकाशमय दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप में स्थित कर रही है। *अपने इस लाइट स्वरूप में स्थित होते ही मुझे ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता की शीतल लहरे मुझे बहा कर अपने साथ ले जा रही है*। अपने बाबा की शीतल लहरों की बाहों के झूले में झूलती, असीम आनन्द का अनुभव करती मैं आत्मा ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर स्वयं को भरपूर करने के लिए अब अपने ज्ञान सागर बाबा के साथ उनके धाम जा रही हूँ जो इस साकार मनुष्य लोक और आकारी फरिश्तो के लोक से परे हैं। इन दोनों लोकों को पार करके अब मैं अपने शिव पिता के साथ उनके निराकारी लोक में पहुँच गई हूँ।

 

_ ➳  मणियों के समान चमकती आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में ज्ञान सागर अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की शीतल किरणों की छत्रछाया में बैठ मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। *देह, देह की दुनिया का कोई भी संकल्प यहाँ नही है। हर बन्धन, हर बोझ से मुक्त एक बहुत प्यारी और न्यारी स्थिति में स्थित हो कर स्वयं को मैं बहुत हल्का अनुभव कर रही हूँ*। यह हल्कापन मुझे ज्ञान सागर की गहराई में ले कर जा रहा है। ज्ञान सागर में मैं डुबकी लगा रही हूँ और ज्ञान के शीतल जल से अपने ऊपर जमी विकारों की मैल को धोकर स्वयं को शुद्ध और पावन बना रही हूँ।

 

_ ➳  मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि ज्ञान सागर मेरे शिव पिता का एवर प्योर और स्वच्छ ज्ञान रूपी शीतल जल मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को उतार कर मुझे रीयल गोल्ड बना रहा है। *विकारों की कट उतरने से अपने स्वरूप में आये बदलाव को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। मेरा स्वरूप पहले से कई गुणा चमकदार बन गया है। मेरी चमक दूर दूर तक फैल रही है*। अपने इस तेजोमय स्वरूप को देख मैं आत्मा आनन्द विभोर हो रही हूँ। ज्ञान की शीतल किरणो की बरसात निरन्तर मेरे ऊपर हो रही है। *ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान सागर बाबा की शीतल किरणो का स्पर्श पाकर और ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर मैं आत्मा भी बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बन गई हूँ*। ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में आ जाती हूँ।

 

_ ➳  फरिश्तो की इस आकारी दुनिया में अव्यक्त बापदादा को उनके लाइट माइट स्वरूप में मैं अपने सामने देख रही हूँ। अपना लाइट माइट स्वरुप धारण कर मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ। *बड़े प्यार से बाबा मुझे अपने पास बिठाकर, प्यार भरी नजरों से मुझे निहारते हुए, अब ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर रहें हैं*। मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर सर्व ख़ज़ानों से मेरी झोली भर रहें है। सुख, शांति, पवित्रता, प्रेम, आनन्द, शक्ति और गुणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं।

 

_ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने सुन्दर सलौने स्वरूप को मन रूपी दर्पण में निहारते, अपने भाग्य पर नाज़ करते हुए अब मैं निराकारी स्वरूप में स्थित होकर सूक्ष्म लोक से नीचे वापिस साकार लोक में आ जाती हूँ। *साकार तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं नित्य प्रति ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर, हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, महादानी बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को ज्ञान रत्नों का दान दे कर, उन्हें भी आप समान बना रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने सहयोग के स्टॉक द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाली मास्टर दाता आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं विश्व ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखने से सदा हर्षित रहने वाली आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा यही चाहते हैं कि *वर्तमान समय प्रमाण लव और ला का बैलेन्स रखना पड़ता है, लेकिन ला और लव का बैलेन्स मिलकरके ला नहीं लगे। ला में भी लव महसूस हो।* जैसे साकार स्वरूप में बाप को देखा। ला के साथ लव इतना दिया जो हरेक के मुख से यही निकलता कि बाबा का मेरे से प्यार है। मेरा बाबा है। ला जरूर उठाओ लेकिन ला के साथ लव भी दो। सिर्फ ला नहीं। सिर्फ ला से कहाँ-कहाँ आत्मायें कमजोर होने के कारण दिलशिकस्त हो जाती हैं। *जब स्वयं आत्मिक प्यार की मूर्ति बनेंगे तब दूसरों के प्यार की, (आत्मिक प्यार, दूसरा प्यार नहीं) आत्मिक प्यार अर्थात् हर समस्या को हल करने में सहयोगी बनना।* सिर्फ शिक्षा देना नहीं, शिक्षा और सहयोग साथसाथ देना - ये है आत्मिक प्यार की मूर्ति बनना। तो आज विशेष बापदादा हर ब्राह्मण आत्मा को, चाहे देश, चाहे विदेश चारों ओर के सर्व बच्चों को यही विशेष अण्डरलाइन करते हैं कि *आत्मिक प्यार की मूर्ति बनो। और आत्माओं के आत्मिक प्यार की प्यास बुझाने वाले दाता-देवता बनो।* ठीक है ना। अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "ला में भी लव महसूस करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा लाइट के कार्ब में लाइट के तन में हूँ... मैं बिल्कुल हल्का फरिश्ता हूँ... *मैं स्वयं को सतरंगी प्रकाश की किरणों के बीच देख रही हूँ... मैं जगमगाता दिव्य फरिश्ता सतरंगी किरणों की आभा फैलाते हुए जाती हूँ... सफेद प्रकाश की दुनिया में...*  दिव्य फरिश्तों की यह कितनी प्यारी दुनिया है... चारों ओर अलौकिकता, दिव्यता ही दिव्यता है... आवाज से परे गहन शांति की दुनिया है... यहाँ हर कर्म संकल्पों से हो रहा है... यहाँ मैं फ़रिश्ता सर्व हदों से मुक्त रूहानियत की स्थिति में स्थित हूँ... मेरा सर्व के साथ आत्मिक भाव और आत्मिक चाल चलन है...

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता सामने मीठे बापदादा को देख रही हूँ... बाबा की दृष्टि मुझे भरपूर कर रही है... बापदादा मेरे सिर पर बहुत प्यार से हाथ फ़िराते हैं... मुझे वरदानों से भरपूर कर रहे हैं... *बापदादा मुझे 'जगतमाता भव' का वरदान देते हैं... बापदादा से प्राप्त इस श्रेष्ठ स्वमान के अर्थ स्वरुप में मैं स्वयं को स्थित कर रही हूँ...* जगतमाता के स्वमान में टिकते ही मेरे मन में विश्व की सर्व आत्माओं के लिए अपनेपन, रूहानी स्नेह की, निस्वार्थ प्यार की भावना जागृत हो रही है...

 

 _ ➳  जैसे एक माँ बच्चे की हर गलती को क्षमा करती है क्योंकि उसके मन में बच्चे के प्रति निस्वार्थ प्रेम है... इसलिए वह बच्चों की गलतियों के बाद भी उसे निर्मल अगाध स्नेह देती रहती है... ठीक इसी प्रकार *मैं आत्मा निःस्वार्थ भाव से... सभी आत्माओं पर ईश्वरीय स्नेह की... निर्मल स्नेह की वर्षा कर रही हूँ... ईश्वरीय स्नेह में मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ... यह ईश्वरीय स्नेह शक्ति का रूप बनता जा रहा है... और मैं आत्मा लव और ला का बैलेंस कर रही हूँ...* नियम मर्यादा के साथ चलते हुए भी... मैं निर्मल स्नेह का झरना बन रही हूँ... जिससे अगाध स्नेह अनवरत रूप से बहता जा रहा है...

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप ने लव और ला का बैलेंस करके दिखाया... जिससे हर एक को बाबा से रूहानी स्नेह की भासना आती थी...हर एक के मुख से, दिल से 'मेरा बाबा' यही बोल निकलते थे... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चल रही हूँ... मैं सर्व को नि:स्वार्थ प्यार से भरपूर कर रही हूँ... स्नेह की शक्ति पत्थर को भी पिघला सकती है... मैं आत्मिक प्यार की मूरत बनती जा रही हूँ... यह रूहानी स्नेह हर समस्या को सहज ही हल कर रहा है...* इस स्नेह से सर्व आत्माये सहयोगी बनती जा रही हैं...

 

 _ ➳  मैं दिव्य फ़रिश्ता सर्व दैहिक आकर्षणों से मुक्त हूँ... रुहानियत से भरपूर हूँ... *मैं आत्मिक स्नेह का साक्षात स्वरुप हूँ...* स्नेह की इस शक्ति से संपन्न मैं सर्व को समझानी और सहयोग दे रही हूँ... कोरी शिक्षा ही नहीं स्नेह और सहयोग भी दे रही हूँ... आज आत्माएं सच्चे प्यार की तलाश में भटक रही हैं, तड़प रही हैं... उन *भटकती, प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाली मैं आत्मिक प्यार की देवी हूँ... मैं दाता का बच्चा सर्व आत्माओं को सच्चे रूहानी, नि:स्वार्थ स्नेह की अनुभूति करा रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━