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 24 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"विश्व रचयिता बाप हमें पडा रहे हैं" - इसी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *सर्विस की भिन्न युक्तियाँ निकाल उसमें बिजी रहे ?*

 

➢➢ *सुख के सागर बाप की स्मृति द्वारा दुःख की दुनिया में रहते भी सुख स्वरुप बनकर रहे ?*

 

➢➢ *मन और बुधी को एक ही पावरफुल स्थिति में स्थित करने का अभ्यास किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा रफ माल को भी बहुत सुन्दर रूप में बदल देते हैं। तो *आपकी श्रेष्ठ वृत्ति निगेटिव अथवा व्यर्थ को पॉजिटिव में बदल दे। आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकण्ड में परिवर्तन हो जाये।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं खुशनसीब आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? *जो खुशनसीब आत्मायें हैं उनके मन में सदा खुशी के गीत बजते हैं। 'वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!'-यह गीत बजता है ना। यह खुशी का गीत गाना तो सभी को आता है ना।* चाहे बूढ़ा हो, चाहे बच्चा हो, चाहे जवान हो-सभी गाते हैं।

 

  और मन में है ही क्या जो चले। यही खुशी के गीत बजेंगे ना। और सब बातें खत्म हो गई। *बस, बाप और मैं, तीसरा न कोई। जब ऐसी स्थिति बन जाती है तब खुशी के गीत बजते हैं-'वाह बाबा वाह, वाह मेरा भाग्य वाह!' वैसे भी गाया हुआ है-'खुशी' सबसे बड़ी खुराक है, खुशी जैसी और कोई खुराक नहीं। जो खुशी की खुराक खाने वाले हैं वो सदा तन्दरुस्त रहेंगे, हेल्दी रहेंगे, कभी कमजोर नहीं होंगे।*

 

  *जो अच्छी खुराक खाते हैं वो शरीर से कमजोर नहीं होते हैं। खुशी है मन की खुराक। मन कभी कमजोर नहीं होगा, सदा शक्तिशाली। मन और बुद्धि सदा शक्तिशाली हैं तो स्थिति शक्तिशाली होगी। ऐसी शक्तिशाली स्थिति वाले सदा ही अचल-अडोल रहेंगे।* तो खुशी की खुराक खाते हो? या कभी खाते हो, कभी भूल जाते हो? ऐसे होता है ना। शरीर के लिए भी ताकत की चीजें देते हैं तो कभी खाते हैं, कभी भूल जाते हैं। यह खुराक किस समय खाते हो? कभी खाओ, कभी न खाओ-ऐसे तो नहीं है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज में आने के लिए वा आवाज को सुनने के लिए कितने साधन अपनाते हो? बापदादा को भी आवाज में आने के लिए शरीर के साधन को अपनाना पडता है। लेकिन *आवाज से परे जाने के लिए इस साधनों की दुनिया से पार जाना पडे।*

 

✧  साधन इस साकार दुनिया में है। बापदादा के सूक्ष्म वतन वा मूल वतन में कोई साधनों की आवश्यकता नहीं है। सेवा के अर्थ आवाज में आने के लिए कितने साधन अपनाते हो? लेकिन *आवाज से परे स्थिति में स्थित होने के अभ्यासी सेकण्ड में इन सब से पार हो जाते है। ऐसे अभ्यासी बने हो?*

 

✧  *अभी-अभी आवाज में आये, अभी-अभी आवाज से परे।* ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर अपने में अनुभव करते हो? संकल्प शक्ति को भी, *जब चाहे तब संकल्प में आओ, विस्तार में आओ, जब चाहो तब विस्तार को फुल स्टॉप में समा दो।* स्टार्ट करने की और स्टॉप करने की - दोनों ही शक्तियाँ समान रूप में हैं?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ ऐसे फ़रिश्ते - जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। *शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर।* देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। *सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्विस की नई-नई इन्वेंशन निकालना, माताओं को आगे रखना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा... पवित्र भूमि में... परिवर्तन भूमि में... तपोभूमि में... बैठी हूँ... शांत चित्त हो कर... बुद्धि को एकाग्र कर... दादी प्रकाशमणि जी के सानिध्य में उनके स्तम्भ के पास... बातें कर रही हूँ *वो दादी से जिन्होंने पवित्र जीवन साकार बाबा के साथ बिताया... मम्मा बाबा की साकार में पालना लेनी वाली मेरी दादी... मेरी माँ हैं...* *दादी और मम्मा के सूक्ष्म स्वरूप में... पालना लेने वाली मैं सौभाग्यशाली आत्मा...* मम्मा-दादी की मीठी यादों के साथ पहुँच जाती हूँ... सूक्ष्म वतन में... जहाँ मेरे ब्रह्मा बाबा... मम्मा और दादी प्रकाशमणि जी को एक साथ मिलती हूँ... मम्मा और दादी जी ने मुझ आत्मा को प्यार से गले लगाया और हाथ पकड़ कर ले गए ब्रह्मा बाबा के पास... बाबा के अदभुत स्वरूप को देख मैं आत्मा भावविभोर हो जाती हूँ... *प्रकाश पुंज से निकलते प्रकाश की भांति तेजोमय स्वरूप तीनों का जगमगा रहा हैं...* और मैं आत्मा आशीर्वादों से झोली भर... उड़ चलती हूँ परमधाम में बाबा के पास... *बाबा को अपने साथ ले कर पहुँच जाती हूँ शांतिवन में...जहाँ माताओं की भट्टी चल रही हैं...*

 

❉  *हाथ पकड़ कर मेरा... मेरे मीठे बाबा के साथ में घूम रही हूँ और बाबा ने कहा :-* "मेरी फूल बच्ची... *रुद्र ज्ञान यज्ञ का कलश इन माताओ के सर पे रखा है...* यह वही मातायें है जो कल्प कल्प से मेरी राह देख रही हैं... जो कल्प कल्प से... दुःखी है... अशांत है... *भक्ति मार्ग में मेरी सब से ज्यादा भक्ति करने वाली... मुझे स्नेह से भोग खिलाने वाली...  यही तो वो मातायें है जिनका मैं ऋणी हूँ और ऋण का कर्ज अदा करने इन माताओ के साथ हूँ...*"

 

➳ _ ➳  *बाबा के प्यार और दुलार को देख मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे बाबा... अहोभाग्य मेरा जो तू मेरे साथ हैं... *तेरा साथ पाने वाली हर एक ब्राह्मण आत्मा सौभाग्यशाली हैं...* दर दर की ठोकरे खाती माताओं को तेरा सहारा मिल गया... तेरा साथ मिल गया... *साकार में तेरी पालना का फल मिल गया... ममता की मूर्त... माताओं को भगवान मिल गया...*"

 

❉  *ठंडे पवन की लहरों समान मेरे बाबा बोले :-* "मेरी राज दुलारी... मेरी लाडली बच्ची... प्यार और ममता की झूलो में झूलने वाली औऱ सभी को झुलाने वाली इन माताओं... को *मैं अपने पलको पे बिठाता हूँ...* उनके दिल के तार... मुझसे बंधे हुए है... *जन्म जन्म... जो मातायें मुझे पुकारती आयी है... उनकी भावना का भाड़ा देने मुझे आना ही है... उनके हाथों प्यार भरा भोग स्वीकार करना ही हैं...*"

 

➳ _ ➳  *गुल गुल फूलों से महकते मेरे बाबा को मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे गुलाब बाबा... अपनी पवित्रता की सुगन्ध से सभी को पावन बनाने वाले... *अनहद का नाद बजाने वाले... प्रभु मिलन के इस अंतिम जन्म मे... सतयुगी रूप रेखा को हाथ की लकीर  बनाने वाले मेरे बाबा...* जिन को सभी ने ठुकराया... उनको तूने सराहा है... तूने अपना बनाया हैं..."

 

❉  *सुख के सागर... मेरे प्यारे बाबा बोले :-* "मेरी बच्ची... "साइन्स की शक्त्ति से भी ज्यादा शक्त्ति है *साइलेंस में... साइलेंस... मन का मौन... मुख का मौन...* ही आत्माओं को मेरे पास लाता हैं... मेरा बनाता है... साइलेंस की शक्ति... संकल्प की शक्ति से तो में प्यार से बंधा हूँ... *प्यार से मुझे बांधने वाली इन माताओं को...  मैंने भी प्यार से बांध लिया हैं... उनकी सोई हुई अवचेतन मन की सचेत चेतना को जाग्रत किया है...*"

 

➳ _ ➳  *अश्रुभीनी आँखो से बाबा के हाथ चूमती मैं आत्मा... बाबा से कहती हूँ :-* "कोटि बार धन्यवाद मेरे बाबा... मुझ आत्मा को पलकों पे बिठाने वाले... दुखों से मुक्त्त कर... सुखों के झूलो में झुलाने वाले... *साइलेंस की ... संकल्प की शक्त्ति... से तुझे पा लिया है...* अब और कुछ बाकी नहीं रहा हैं... कलियुगी वातावरण से मुक्त्त कर... सतयुग में पहुंचाने वाले तेरा शुक्रिया... *माता बन माताओं की पालना करने वाले... सब के परम पिता परमात्मा... हर घड़ी... हर पल साथ रहना...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एम ऑब्जेक्ट को सामने रख पुरुषार्थ करना है*

 

➳ _ ➳  अपनी एम ऑब्जेक्ट लक्ष्मी नारायण के चित्र के सामने बैठी, उनके अनुपम सौंदर्य को देख मैं मन ही मन हर्षित हो रही हूँ और मंत्रमुग्ध होकर उनके इस अनुपम सौंदर्य को निहारते हुए अपने आप से बातें कर रही हूँ कि कितनी कशिश है इन चित्रों में, जो देखने वाले को अपनी और आकर्षित कर लेते हैं और मन करता है कि बस इनके सामने बैठ इन्हें निहारते ही रहें। *मन को कितना सुकून देती है इनके चेहरे की दिव्य मुस्कराहट, रूहानियत से छलकते नयन और अपने भक्तों की हर इच्छा, हर मनोकामना को पूर्ण करते इनके वरदानी हस्त। दिव्य गुणों से सजे इन लक्ष्मी नारायण जैसा बनना ही मेरी ऐम ऑब्जेक्ट है और इस एम ऑब्जेक्ट को सदा स्मृति में रखते हुए अब मुझे अपने अंदर इनके समान गुणों और विशेषताओ को स्वयं में धारण करने का ही पुरुषार्थ करना है*।

 

➳ _ ➳  मन को दृढ़ता के साथ यह संकल्प देकर, अब मैं लक्ष्मी नारायण को ऐसा बनाने वाले अपने प्यारे पिता को याद करती हूँ और अपने मन बुद्धि को सभी बातों के चिंतन से हटाकर, अशरीरी स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करते हुए पहुँच जाती हूँ अंतर्मुखता की गुफा में। *एकान्तवासी बन एक की याद को अपने मन मे बसाये मैं चल पड़ती हुई अंतर्मन की एक बहुत ही खूबसूरत रूहानी यात्रा पर जो बहुत ही आनन्द और सुख देने वाली है। मन बुद्धि की इस यात्रा पर मैं आत्मा ज्योति बन कर एक अति सूक्ष्म सितारे की भांति चमकती हुई, नश्वर देह का त्याग करके ऊपर खुले आसमान की ओर उड़ जाती हूँ*। प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेती मैं आत्मा खुले आसमान की सैर करते अब उसे पार कर अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त वतन में प्रवेश करती हूँ। सफेद प्रकाश से सजी फरिश्तो की इस दुनिया में पहुँच कर अपने फरिश्ता स्वरूप को मैं धारण करती हूँ।

 

➳ _ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होकर, अपनी इस आकारी दुनिया की सैर करते हुए, इस अव्यक्त वतन के सुन्दर नजारों का आनन्द लेते हुए अब मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के सामने पहुँच जाती हूँ। *बाबा की भृकुटि में चमक रहे अपने ज्ञानसूर्य शिव बाबा को मैं देख रही हूँ। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से निकल रहा प्रकाश का तेज प्रवाह पूरे वतन में अपनी लाइट और माइट फैला रहा है। बापदादा से आ रही इस लाइट माइट को अब मैं बापदादा के सामने बैठ स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ*। बापदादा से आ रही प्रकाश की किरणें मेरे मस्तक पर पड़ रही हैं और मुझ आत्मा को छू कर, मुझमे अपना असीम बल भर रही हैं। अपनी चमक को और अपनी शक्तियों को मैं कई गुणा बढ़ता हुआ महसूस कर रही हूँ। *बापदादा से अनन्त शक्तियाँ अपने अंदर भरते हुए मैं देख रही हूँ बापदादा के साथ उनके बिल्कुल समीप मम्मा, बाबा लक्ष्मी नारायण के स्वरूप में मेरे जैसे सामने आकर खड़े हो गए हैं*।

 

➳ _ ➳  मन को लुभाने वाला मम्मा बाबा का यह सम्पूर्ण देवताई स्वरूप देख कर मैं खुशी से फूली नही समा रही। दिव्य आभा से दमकते उनके मुखमण्डल पर फैली मुस्कराहट और नयनो में दिव्यता की झलक मन को जैसे गहन सुकून दे रही है। *अपने लक्ष्य को साक्षात अपने सामने देख कर, मेरे भविष्य देवताई स्वरूप का चित्र बार - बार मेरी आँखों के सामने आ रहा है। अपने अति सुंदर मनमोहक भविष्य देवताई स्वरूप को पाने के लिए स्वयं से मैं वैसा ही पुरुषार्थ करने की अपने मन में प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में भस्म करने और दैवी गुण धारण करने का परमात्म बल स्वयं में भरने के लिए अपनी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ*।

 

➳ _ ➳  सेकेण्ड में मैं वाणी से परे अपने निर्वाणधाम घर मे प्रवेश करती हूँ। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को अपने निराकार बिंदु बाप के सामने जिनसे सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे निकलकर पूरे परमधाम घर मे फैल रही हैं। इन किरणों में समाए सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन धीरे - धीरे मुझ आत्मा को स्पर्श करके मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। *ज्ञानसूर्य शिव बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों की इन शक्तिशाली किरणों से योग अग्नि प्रज्वलित हो रही है जो मेरे सभी पुराने स्वभाव, संस्कारो को जलाकर भस्म कर रही है। विकारों की कट उतरने से स्वयं को मैं बहुत हल्का अनुभव कर रही हूँ*। इसी हल्केपन के साथ, परमात्म बल से भरपूर होकर अब मैं अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ करने के लिए वापिस साकारी दुनिया में लौट कर, अपने साकार तन में प्रवेश करती हूँ।

 

➳ _ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और अपनी एम ऑब्जेक्ट को सामने रख, अपने उस लक्ष्य को पाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ। बाबा से मिली सर्वशक्तियों का बल मुझे मेरे पुराने स्वभाव संस्कारो को मिटाने और नए दैवी गुणों को धारण करने की विशेष शक्ति दे रहा है। *अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को अब मैं सहजता से छोड़ती जा रही हूँ। शूद्रपन के संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए अपने अनादि और आदि दैवी संस्कारों को सदैव बुद्धि में इमर्ज रखते हुए, उन्हें जीवन मे धारण कर, अपनी मंजिल की ओर मैं निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सुख के सागर बाप की स्मृति द्वारा दुख की दुनिया मे रहते भी सुख स्वरूप आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं मन और बुद्धि को एक ही पावरफुल स्थिति में स्थित कर एकान्तवासी बनने वाली पावरफुल आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अच्छा - बाकी एक बारी मिलने का रहा हुआ है। वैसे तो साकार द्वारा मिलन मेले काइस रूपरेखा से मिलने का आज अन्तिम समय है। प्रोग्राम प्रमाण तो आज साकार मेले का समाप्ति समारोह है फिर तो आगे की बात आगे देखेंगे। एकस्ट्रा एक बाप का चुगा भी मिल जायेगा। लेकिन इस सारे मिलन मेले का स्व प्रति सार क्या लियासिर्फ सुना वा समाकर स्वरूप में लायाइस मिलन मेले की सीजन विशेष किस सीजन को लायेगी? इस सीजन का फल क्या निकलेगा? *सीजन के फल का महत्व होता है ना! तो इस सीजन का फल क्या निकला! बापदादा मिला यह तो हुआ लेकिन मिलना अर्थात् समान बनना।* तो सदा बाप समान बनने के दृढ़ संकल्प का फल बापदादा को दिखायेंगे ना! ऐसा फल तैयार किया है? अपने को तैयार किया हैवा अभी सिर्फ सुना हैबाकी तैयार होना हैसिर्फ मिलन मनाना है वा बनना है

 

 _ ➳  जैसे मिलन मनाने के लिए बहुत उमंग-उत्साह से भाग-भाग कर पहुँचते हो वैसे बनने के लिए भी उड़ान उड़ रहे होआने जाने के साधनों में तकलीफ भी लेते हो। लेकिन उड़ती कला में जाने के लिए कोई मेहनत नहीं है। *जो हद की डालियाँ बनाकर डालियों को पकड़ बैठ गये होअभी हे उड़ते पंछीडालियों को छोड़ो। सोने की डाली को भी छोड़ो। सीता को सोने के हिरण ने शोक वाटिका में भेजा। यह मेरा मेरा हैमेरा नाममेरा मान, मेरा शानमेरा सेन्टर यह सब - सोने की डालियाँ हैं।* बेहद का अधिकार छोड़हद के अधिकार लेने में आ जाते हो। मेरा अधिकार यह हैयह मेरा काम है - इस सबसे उड़ते पंछी बनो। इन हद के आधारों को छोड़ो। तोते तो नहीं हो ना जो चिल्लाते रहो कि छुड़ाओ। छोड़ते खुद नहीं और चिल्लाते हैं कि छुड़ाओ। तो ऐसे तोते नहीं बनना। छोड़ो और उड़ो। छोड़ेंगे तो छूटेगें ना! बापदादा ने पंख दे दिये हैं - पंखो का काम है उड़ना वा बैठनातो उड़ते पंछी बनो अर्थात् उड़ती कला में सदा उड़ते रहो। समझा - इसको कहा जाता है सीजन का फल देना।

 

✺   *"ड्रिल :- सोने की डालियों को छोड़ उड़ता पंछी स्थिति का अनुभव करना।*

 

 _ ➳  सफेद चमकीली ड्रेस पहने हुए मैं आत्मा अपने आप को देख रही हूं... और *बाबा से पवित्रता की किरणें लेकर अपनी ड्रेस को और भी चमकीली अनुभव कर रही हूं... जैसे जैसे मैं अपनी सफेद चमकीली पोशाक को और भी चमकीला अनुभव करती हूं... वैसे वैसे मैं देखती हूं कि बाबा ने मुझे तो उड़ने के लिए पंख भी लगा दिए हैं... जो मुझे इस दुनिया से ऊपर की और उड़ा कर ले जाएंगे... और मैं अपने आपको इस हलचल भरी संकल्पों की इस दुनिया से दूर परमधाम में अनुभव करती हूँ...* जैसे ही मैं वह पंख धारण करती हूं... मैं आकाश में उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते अपने आपको बहुत ही हल्के पक्षी के पंख के रूप में अनुभव करती हूं...

 

 _ ➳  और  इस हल्केपन की स्थिति को फील करते हुए... मैं अपने आप को एक मायावी पेड़ की शाखा पर अनुभव करती हूँ... तभी मैं सोचती हूं कि यह मायावी पेड़ जो मुझे आकर्षित कर रहा है... यह मुझे उड़ने से रोक रहा है... परंतु मैं इस पेड़ की शाखा में अपने आप को नहीं फंसने दूंगी... और अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उड़ने का प्रयास करुंगी... इतना संकल्प कर मैं फरिश्ते समान चमकीली ड्रेस पहनकर फिर से खुले वातावरण में और खुले आसमान में उड़ने लगती हूं... और *उड़ते-उड़ते सफेद पोशाक में मैं मधुबन बाबा मिलन में आकर बैठ जाती हूं... और अपने आप को बापदादा के सामने अनुभव करती हूँ... बापदादा मुझे अपनी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं... और मैं बापदादा द्वारा दी हुई दृष्टि को अपने अंदर समाती जा रही हूं...*

 

 _ ➳  और उस दौरान मुझे यह आभास होता है कि... मानो बाबा मुझे कह रहे हो कि... आज तुम यहां से अपने आप को पके हुए फल की भांति समझकर जाओ... क्योंकि सभी पके हुए फल ही पसंद करते हैं... अर्थात यहां से सभी शक्तियों से परिपूर्ण होकर जाओ... ताकि तुम अपनी शक्तियों से सभी आत्माओं को तृप्त कर सको... और इस रूहानी मिलन का असल फल प्राप्त कर सको... मेरे मन में जैसे ही यह संकल्प उत्पन्न होता है... मेरा मन अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता है... और *मैं अपने आपको शक्तियों से भरे हुए फल के समान अनुभव करती हूं... जो सभी शक्तियों रुपी मिठास प्राप्त किए हुए हैं... और अपने मन में यह भाव लेकर अपने अगले संकल्प की ओर प्रस्थान करती हूं... और अगला भाव जो मेरी मन बुद्धि में आता है... कि मेरेपन की भावना को समाप्त करते हुए मुझे निमित्त भाव से हर कर्म करना है...*

 

 _ ➳  अब मैं अपने आपको इन रुहानी संकल्पों से परिपूर्ण करके फिर से उड़ जाती हूं... नीले आसमान में... और स्वतंत्र अवस्था में मैं अपने इन शुद्ध संकल्पों का इस सृष्टि पर रहने वाली आत्माओं पर उपयोग कर रही हूं... मैं उन्हें इन पवित्र संकल्पों के द्वारा उनके पुराने आसुरी संस्कारों को समाप्त करने का प्रयास कर रही हूं... और उन सभी आत्माओं को हंसते खिलखिलाते हुए देख रही हूं... जो पहले मेरेपन की बीमारी से पीड़ित थे... वह अब निमित्त भाव में रहकर खुशनुमा जीवन जी रहे हैं... अब मैं एक सफेद रंग की इस ड्रेस को गहराई से फील करते हुए... और इस हल्केपन की स्थिति को अनुभव करते हुए... धीरे-धीरे इस धरा पर आने का प्रयत्न करती हूं... और *मेरे रास्ते में आती हुई हर छोटी बड़ी चीज को शांति की वाइब्रेशन देती जा रही हूं... हर चीज पवित्र होती जा रही है... और मेरी मन बुद्धि भी एकदम शांत अवस्था में इस भाव को अनुभव कर रहे हैं...*

 

 _ ➳  और अब मैं जैसे-जैसे नीचे आती हूं... मुझे वह सभी पेड़ पौधे और शाखाएं दिखाई देती है... परंतु अब वह मुझे सोने के पिंजरे रूपी बेड़ियां दिखाई देती है... मैं उनकी सुंदरता को बस दूर से निहार कर आगे बढ़ जाती हूं... और प्रकृति को पवित्र वाइब्रेशन देती हुई नीचे की तरफ आती जा रही हूं... अपने आप को इस अवस्था में पाकर, मैं आत्मिक स्थिति से अपने आप को बहुत ही गहराई से अनुभव करती हूँ... इस स्थिति को पूर्ण रूप से समझ कर अब *जब भी आसमान में उड़ता परिंदा देखती हूं... तो अपने आप को इसी अवस्था में फील करती हूं... और परमात्मा का बार-बार इस स्थिति के लिए धन्यवाद करती हूं... और फिर से अपने आपको स्वतन्त्र परिंदे रूपी फरिश्ते समान स्थिति में अनुभव करती हूं... और उड़ जाती हूँ प्रभु मिलन की चाह में...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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