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❍ 17 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *रमता योगी बन सेवा की ?*
➢➢ *मुरली किसी भी परिस्थिति में जरूर पडी ?*
➢➢ *समेटने की शक्ति द्वारा पेटी बिस्तरा बंद किया ?*
➢➢ *परमात्मा के गुणों और शक्तियों को स्वयं में धारण करने का पुरुषार्थ किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अपने को शरीर के बंधन से न्यारा बनाने के लिए अवतार समझो। अवतार हूँ, इस स्मृति में रह शरीर का आधार ले कर्म करो।* कर्म के बंधन में नहीं बंधो। देह में होते भी विदेही अवस्था का अनुभव करो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाबा के साथ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को बाप के साथ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *सदा साथ रहने वाले वा कभी-कभी साथ रहने वाले? क्या समझते हो? जब बाप का साथ छूटता है तो और कोई साथी बनते हैं? माया तो साथी बनती है ना!* कितने जन्म माया के साथी रहे? बहुत रहे ना। और बाप का साथ प्रैक्टिकल में कितने समय का है? संगमयुग है ना और संगमयुग है भी सबसे छोटा युग। तो क्या करना चाहिये? सदा होना चाहिये।
〰✧ क्योंकि सारे कल्प में कितना भी पुरुषार्थ करो तो भी साथ का अनुभव कर सकेंगे? (नहीं) तो इसका स्लोगन क्या है? (अभी नहीं तो कभी नहीं) यह याद रहता है? समय का भी महत्व याद रहे और स्वयं का भी महत्व याद रहे। दोनों महत्व वाले हैं ना! *इस संगमयुग के समय को, जीवन को-दोनों को हीरे तुल्य कहा जाता है। हीरे का मूल्य कितना होता है! तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी संगमयुग के साथ को छोड़ना नहीं है। सेकण्ड गया, तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया।* ऐसी स्मृति रहती है?
〰✧ *सारे कल्प की प्रालब्ध जमा करने का समय अब है। अगर सीजन पर सीजन को महत्व नहीं देते तो सदा के लिये वंचित रह जाते हैं। तो इस समय का महत्व है, जमा करने का समय है। अगर राज्य अधिकारी भी बनते हो तो भी अभी के जमा के हिसाब से और पूज्य भी बनते हो तो इस समय के जमा के हिसाब से। एक छोटे से जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध जमा करना है।* ये याद रहता है कि कभी-कभी? सम टाइम है? तो ये सम टाइम शब्द कब खत्म करेंगे? समाप्ति समारोह कब मनायेंगे? रावण को भी मारने के बाद जलाकर खत्म कर देते हैं? तो अभी मारा है, जलाया नहीं है!
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ विस्मृति तो हो नहीं सकती, याद रहती है। लेकिन *सदा शक्तिशाली याद स्वत: रहे उसके लिए यह लिंक तूटना नहीं चाहिए।* हर समय बुद्धि में याद का लिंक जूट रहे - उसकी विधि यह है। यह भी आवश्यक समझो जैसे वह काम समझते हो कि आवश्यक है यह प्लैन पूरा करके ही उठना है। इसलिए समय भी देते हो, एनर्जी भी लगाते हो।
〰✧ वैसे यह भी आवश्यक है, इनको पीछे नहीं करो कि *यह काम पहले पूरा करके फिर याद कर लेंगे। नहीं।* इसका समय अपने प्रोग्राम में पहले ऐड करो। जैसे सेवा के प्लैन किये दो घण्टे का टाइम निकाल फिक्स करते हो - चाहे मीटिंग करते हो, चाहे प्रेक्टिकल करते हो, तो दो घण्टे के साथ-साथ यह भी बीच-बीच में करना ही है - यह ऐड करो।
〰✧ जो एक घण्टे में प्लैन बनायेंगे, वह आधा घण्टे में हो जायेगा। करके देखो। आपे ही फ्रेशनेस से दो बजे आँख खुलती है, वह दूसरी बात है। लेकिन कार्य के कारण जागना पडता है तो उसका इफैक्ट (प्रभाव) शरीर पर आता है। इसलिए *बैलेन्स के ऊपर सदा अटेन्शन रखो।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सबसे विशेष कहने में भल एक शब्द 'देह-अभिमान' है। लेकिन देह-अभिमान का विस्तार बहुत है। एक है मोटे रूप में देह-अभिमान, जो कई बच्चों में नहीं भी है। *चाहे स्वयं की देह, चाहे औरों की देह, अगर औरों की देह का भी आकर्षण है तो वह भी देह-अभिमान है। कई बच्चे इस मोटे रूप में पास थे।* मोटे रूप से देह के आकार में लगाव व अभिमान नहीं है। *परन्तु इसके साथ-साथ देह के सम्बन्ध से अपनी संस्कार विशेष कोई शक्ति विशेष है, उसका अभिमान अर्थात् अहंकार, नशा, रोब यह सूक्ष्म देह-अभिमान है।* अगर इन सूक्ष्म देह-अभिमान में से कोई भी अभिमान है तो न आकारी फरिश्ता नैचुरल बन सकते, न निराकारी बन सकते। क्योंकि आकारी फरिश्ते में भी देह-भान नहीं है, डबल लाइट है। *देह-अहंकार निराकारी बनने नहीं देता।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- पद का आधार पढाई पर है, पढकर फिर पढाना"
➳ _ ➳ मैं रूहानी गॉडली स्टूडेंट रूहानी शिक्षक से रूहानी पढाई पढने रूहानी स्कूल सेंटर पहुँच जाती हूँ... प्यारे बाबा का प्यार से आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा अपने रंग-बिरंगी ज्ञान-योग की किरणों को फैलाते हुए मेरे सम्मुख आ जाते हैं और प्यार से मुझे रूहानी पढाई पढ़ाकर रूहानी शिक्षाएं देते हैं...
❉ मीठा बाबा अवतरित होकर मेरा भाग्य बनाते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... मीठा बाबा धरती पर उतरकर शिक्षक बनकर पढ़ा रहा... विकारो के काँटों से निकाल दिव्यता का फूल बनाकर सुनहरे सुखो में खिला रहा है... तो इस बहुमूल्य पढ़ाई में माया रावण के हर विघ्नो से सावधान होकर... सच्चे स्टूडेंट बनकर अपना हर पल ख्याल रखो...”
➳ _ ➳ ईश्वर को हर कदम में अपने साथ पाकर उनकी गोद में सुख पाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:– “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से ज्ञान रत्नों को पाकर देवताओ सी धनवान्, निर्मल और पवित्र बनती जा रही हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझे अपनी मखमली गोद में बिठाया है, और खूबसूरती से सजाया है... रत्नों से मालामाल बना दिया है...”
❉ प्यारे बाबा मायावी विघ्नों से सावधान करते हुए इस ऊँची पढाई का महत्व समझाते हुए कहते हैं:- “मेरे प्यारे बच्चे... यह पढ़ाई असाधारण है जो मनुष्य से देवताओ सा दिव्य सहज ही बना देती है... इस सच्ची खुशियो को दिलाने वाली पढ़ाई के रोम रोम से कद्रदान बनो... माया के हर वार की दूर से ही पहचान शक्तिशाली बनकर हरा दो... हर साँस, संकल्प में याद और पढ़ाई समायी हो ऐसा जुनूनी बन जाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा हीरे जैसा भाग्य पाकर अपने जीवन की बागडोर प्यारे बाबा के हाथों में सौंपकर कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे अमूल्य खजानो को ज्ञान रत्नों को पाने वाली महान भाग्यवान मणि हूँ... कभी सोचा भी न था कि... यूँ भगवान सुध लेगा और मुझे बैठ पढ़ायेगा, निखारेगा... कितना प्यारा मीठा यह भाग्य मीठे दिन ले आया है...”
❉ मेरे बाबा इस अमूल्य ज्ञान से मेरे जीवन की नैया को पार लगाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथ के इन कीमती पलो में... यादो से और ज्ञान रत्नों से बेशुमार दौलत को बाँहों में भरकर, सदा का खुशियो में मुस्कराओ... यह पढ़ाई ही खुशियो का सच्चा आधार है... इसमे हर साँस को डुबो दो... और विघ्नो से परे रहकर, हर पल इस कीमती पढ़ाई में जुट जाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा बेहद के बाप से सर्व खजानों की चाबी इस ऊँची पढाई को पाकर कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई से असीम दौलत को पाने वाली जादूगरी को स्वयं में भर रही हूँ... मै ज्ञान बुलबुल बनकर खुशियो की बगिया में चहक रही हूँ... हर दिल को सच्ची पढ़ाई का गीत सुनाकर माया रावण को रफादफा कर रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल : मन्सा, वाचा, कर्मणा किसी भी प्रकार की सेवा मे बिजी जरूर रहना है*"
➳ _ ➳ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने ब्राह्मण जीवन में धारण कर, उनके समान बनने का लक्ष्य अपने सामने लाते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मैं ब्राह्मण आत्मा ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि, और अपने प्राण प्रिय परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अवतरण भूमि मधुबन में हूँ। स्वयं को मैं साकार ब्रह्मा बाबा के सामने देख रही हूँ। *अपने हर संकल्प, बोल और कर्म से बाबा सबको सुख दे कर, सबको परमात्म पालना का अनुभव करवा रहे हैं। सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा की पालना में पलते हुए अपने ईश्वरीय जीवन का भरपूर आनन्द ले रहे हैं और फॉलो फादर कर बाप समान बनने का पुरुषार्थ भी कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ साकार बाबा की साकार पालना का यह खूबसूरत एहसास मुझे अव्यक्त बापदादा की याद दिला रहा है। उनसे मिलने के लिए मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि बाबा अपना धाम छोड़कर मुझ से मिलने के लिए नीचे आ रहें हैं। *अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए परमधाम से नीचे उतरते, ज्ञान सूर्य अपने प्यारे बाबा को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। सूक्ष्म वतन में पहुँच कर शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सम्पूर्ण आकारी शरीर मे प्रवेश करते हैं और उनकी भृकुटि पर विराजमान हो कर अब नीचे साकार लोक में पहुँच कर मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं*। बाबा के मस्तक से आती तेज लाइट को मैं अपने चारों और देख रही हूँ। यह लाइट मुझे सहज ही लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रही है।
➳ _ ➳ चारों ओर चांदनी सा सफेद प्रकाश फैलता जा रहा है। बापदादा अपना निस्वार्थ प्रेम और स्नेह अपनी अनन्त किरणो के रूप में मुझ पर बरसा रहें हैं। बाबा के निस्वार्थ प्यार की अनन्त किरणे और सर्वशक्तियां मेरे अंदर गहराई तक समाती जा रही हैं। *उनकी पावन दृष्टि से पवित्रता का झरना बह रहा है जिससे निकल रही पवित्र फुहारें मुझ पर बरस रही हैं और मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रही हैं*। यह पवित्रता का बल मुझे डबल लाइट बना रहा है। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा मुझे आप समान "मास्टर सुख दाता" भव का वरदान दे कर वापिस अपने अव्यक्त वतन की ओर लौट रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से मिले वरदान को फलीभूत करने के लिए मैं सुख का फ़रिश्ता बन सारे विश्व मे चक्कर लगाकर, विश्व की तड़पती हुई दुखी अशांत आत्माओं को सुख की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ। *एक बहुत ऊंचे और खुले स्थान पर जाकर मैं फरिश्ता बैठ जाता हूँ और अपने सुख सागर परमपिता परमात्मा शिव बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ कर उनसे सुख की शक्तिशाली किरणे लेकर सारे विश्व में सुख के वायब्रेशन फैलाने लगता हूँ*। अपनी श्रेष्ठ सुख दाई मनसा शक्ति से विश्व की सर्व आत्माओ को सुख प्रदान कर, अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो स्वरूपों से सबको सुख देने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण स्वरूप में आकर स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा अपनी सम्पूर्ण सुख स्वरूप अवस्था बनाने के लिए हर कर्म अपने प्राण प्रिय सुख सागर शिव बाबा की याद मे रहकर करती हूँ। चलते फिरते बुद्धि का योग केवल अपने शिवपिता के साथ जोड़ कर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर मैं सम्पूर्ण अटेंशन देती हूँ। *अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं मनसा - वाचा - कर्मणा सुख दे कर अपने प्यारे बाबा और समस्त ब्राह्मण परिवार की दुआयों की पात्र बन, दुआयों की लिफ्ट पर बैठ, बाप समान बनने के अपने संपूर्णता के लक्ष्य को प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ अब निरन्तर और अति सहज रीति कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मै समेटने की शक्त्ति द्वारा पेटी बिस्तरा बंद करने वाली समय पर एवररेडी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं परमात्मा के गुणों और शक्तियों को स्वयं में धारण करने की महान तपस्या करने वाली तपस्वी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आप लोग यह नहीं सोचना कि हम लौकिक काम क्यों करें! यह तो आपकी सेवा का साधन है। *लौकिक कार्य नहीं करते हो लेकिन अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए लौकिक कार्य करते हो।* जहाँ भी जाते हो वहाँ सेन्टर खोलने का उमंग रहता है ना। तो लौकिक कार्य कब तक करेंगे-यह नहीं सोचो। *लौकिक कार्य अलौकिक कार्य निमित्त करते हो तो आप सरेन्डर हो।* लौकिकपन नहीं हो, अलौकिकपन है तो लौकिक कार्य में भी समर्पण हो।लौकिक कार्य को छोड़कर समर्पण समारोह मनाना है - यह बात नहीं है। ऐसा करने से वृद्धि कैसे होगी! इसीलिए निमित्त बनते हो, तो जो निमित्त लौकिक समझते हैं और रहते अलौकिकता में हैं, ऐसी आत्माओं को डबल क्या, पदम मुबारक है। समझा। इसीलिए यह नहीं कहना-दादी हमको छुड़ाओ, हमको छुड़ाओ। नहीं, और ही डबल प्रालब्ध बना रहे हो।
➳ _ ➳ हाँ आवश्यकता अगर समझेंगे तो आपेही छुड़ायेंगे, आपको क्या है! जिम्मेवार दादियां हैं, *आप अपने लौकिकता में अलौकिकता लाओ।* थको नहीं। लौकिक काम करके थक कर आते हैं तो कहते हैं क्या करें! नहीं खुशी-खुशी में दोनों निभाओ क्योंकि देखा गया है कि डबल विदेशी आत्माओं में दोनों तरफ कार्य करने की शक्ति है। तो अपनी शक्ति को कार्य में लगाओ। कब छोड़ेंगे, क्या होगा.... *यह बाप और जो दादियां निमित्त हैं उनके ऊपर छोड़ दो, आप नहीं सोचो।* कौन-कौन हैं जो लौकिक कार्य भी करते हैं और सेन्टर भी सम्भालते हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। आप निश्चिंत रहो। नम्बर आप लोगों को वैसे ही मिलेंगे, जो सारा दिन करते हैं उन्हों जितना ही मिलेगा। *सिर्फ ट्रस्टी होकर करना, मैं-पन में नहीं आना। मैं इतना काम करती हूँ, मैं-पन नहीं। करावनहार करा रहा है। मैं इन्स्ट्रुमेंट हूँ। पावर के आधार पर चल रही हूँ।*
✺ *ड्रिल :- "अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए ट्रस्टी होकर लौकिक कार्य करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *सुबह की ठंडी-ठंडी हवाओं में, उगते सुरज की सुनहरी रोशनी की पनाहों में, मैं कमल पुष्प समान आत्मा बगीचे में बैठ, मीठे बाबा की मीठी-मीठी यादों में विचरण कर रही हूँ...* मैं रुहे गुलाब आत्मा अपनी रूहानी खुशबू फैलाती, सुख-शांति की किरणों से इस प्रकृति को सजाती, *बाबा की यादों की लहरों में समा जाती हूँ...* खो जाती हूँ अपने शिव पिता की यादों में... तभी मुझ आत्मा की नजर सामने वाले वृक्ष पर पड़ती है... जिसमें गहरे नीले रंग की एक चिडिय़ा अपने घौंसले में बैठे बच्चों के मुख में दाना डाल रही है... उन्हें उड़ना सिखा रही है... इस दृश्य को देख मुझ आत्मा के मानस पटल पर पर बाबा के कहे महावाक्य सामने आ रहे हैं... बच्चे *गृहस्थ व्यवहार में रहते न्यारे और प्यारे हो रहो... स्वयं को निमित समझ कर रहो...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सामने चल रहे इस दृश्य को देख विचार करती हूँ... ये चिडिय़ा अपने बच्चों को सम्भालती है... उन्हें दाना देती है उड़ना सिखाती है... और एक दिन ये सभी अपने ही द्वारा बनाए गए, तिनका-तिनका इकठ्ठा कर तैयार किए घौंसले को छोड़ उड़ान भरते हैं अपनी-अपनी मंजिल की तरफ... कितने न्यारे होकर रहते है... अपने इस घौंसले में... मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों द्वारा सामने लौकिक घर को देखती हूँ... बाबा के कहें महावाक्य एक बार फिर मुझ आत्मा के मानस पटल पर आते हैं... बच्चे *ये आपका लौकिक घर नहीं बल्कि सेवास्थान है...* और फिर मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों द्वारा लौकिक कार्य क्षेत्र को देखती हूँ... इसे देखते ही मुझ आत्मा को बाबा के महावाक्य याद आते हैं... बच्चे *यह तो आपकी सेवा का साधन हैं...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेवास्थान ( लौकिक घर ) के अन्दर प्रवेश करती हूँ... और एक संकल्प क्रिएट करती हूँ... *ये बाबा का घर है... ये सेवास्थान है... ये संकल्प क्रिएट करते ही बाबा से करंट मिलती है... और पूरे बाबा के इस घर में ईश्वरीय एनर्जी का फ्लो होना शुरु हो जाता है...* मैं आत्मा बापदादा की छत्रछाया की स्पष्ट अनुभूति कर रही हूँ... मुझ आत्मा में एक नयी उर्जा का संचार हो रहा है... अब *मैं आत्मा हर कार्य खुशी से बाबा की याद में कर रही हूँ...* इस स्पष्ट समृति के साथ की बाबा ने मुझे इस सेवा स्थान के निमित्त बनाया है... यहाँ अनेक आत्माओं के कल्याण अर्थ भेजा है... *इसी स्मृति द्वारा मैं आत्मा लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करने में सहज ही सफल हो रही हूँ...* हर कार्य मैं आत्मा निमित्त भाव से कर रही हूँ... ट्रस्टी भाव धारण कर हर कार्य करते मैं आत्मा बहुत हल्कापन महसूस कर रही हूँ... कोई बन्धन नहीं कोई बोझ नहीं... कमल पुष्प समान *मैं आत्मा न्यारी और प्यारी होकर हर कर्म कर रही हूँ...निमित मात्र हूँ बाबा का इंस्ट्रूमेंट हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को कार्य क्षेत्र पर जहाँ मैं आत्मा हर कार्य खुशी से बाबा की याद में कर रही हूँ... इस स्पष्ट स्मृति के साथ की *ये लौकिक कार्य क्षेत्र अलौकिक सेवा का साधन हैं... मैं आत्मा हर पल बाबा के हाथ और साथ का सहज अनुभव कर रही हूँ...* ये कार्य मैं आत्मा इस भाव से कर रही हूँ कि ये बाबा ने मुझ आत्मा को सेवा दी हैं... बाबा ने मुझे निमित्त बनाया हैं... *मैं आत्मा करनहार हूँ और मेरा बाबा करावनहार है... बाबा की शक्ति मुझे चला रही है... ये स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* इससे मैं आत्मा सहज ही हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... और *ये सेवास्थान भी अब अनेक आत्माओं के कल्याण अर्थ निमित्त बन गया है... मैं आत्मा देख रही हूँ कई आत्माओं को बाबा का सन्देश मिल रहा है... उनका कल्याण हो रहा है...*बाबा की अलौकिक सेवा में वृद्धि हो गयी है... जो आत्माएं यह ज्ञान सुन रही है वो भी लौकिकता को अलौकिकता में परिवर्तन कर हल्के हो चल रहे हैं... *वे भी बंधनमुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हैं... और वे ट्रस्टी बन गए हैं... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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