━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 13 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"यह हमारा अंतिम जन्म है, खेल पूरा होता है" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *बुधी योग ऊपर लटकाए रखा ?*
➢➢ *संस्कार मिटाने और मिलाने में एवर रेडी बनकर रहे ?*
➢➢ *प्यूरिटी की रॉयल्टी का अनुभव किया और कराया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमको तो सेवा का चान्स नहीं है।* कोई बोल नहीं सकते तो मन्सा वायुमण्डल से सुख की वृत्ति, सुखमय स्थिति से सेवा करो। *तबियत ठीक नहीं है तो घर बैठे भी सहयोगी बनो, सिर्फ मन्सा में शुद्ध संकल्पों का स्टाक जमा करो, शुभ भावनाओं से सम्पन्न बनो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं आत्मिक स्मृति द्वारा कर्म करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? *श्रेष्ठ आत्मा अर्थात् हर संकल्प, बोल और कर्म सदा श्रेष्ठ हो। क्योंकि साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये। कलियुग से निकल संगमयुग पर आ गये। जब युग बदल गया, जीवन बदल गई, तो जीवन बदला अर्थात् सब कुछ बदल गया।* ऐसा परिवर्तन अपने जीवन में देखते हो? कोई भी कर्म, चलन, साधारण लोगों के माफिक न हो। वे हैं लौकिक और आप - अलौकिक। तो अलौकिक जीवन वाले लौकिक आत्माओंसे न्यारे होंगे। संकल्प को भी चेक करो कि साधारण है वा अलौकिक है? साधारण है तो साधारण को चेक करके चेन्ज कर लो।
〰✧ जैसे कोई चीज सामने आती है तो चेक करते हो यह खाने योग्य है, लेने योग्य है, अगर नहीं होती तो नहीं लेते, छोड़ देते हो ना। ऐसे कर्म करने के पहले कर्म को चेक करो। साधारण कर्म करते-करते साधारण जीवन बन जायेगी फिर तो जैसे दुनिया वाले वैसे आप लोग भी उसमें मिक्स हो जायेंगे। न्यारे नहीं लगेंगे। अगर न्यारापन नहीं तो बाप का प्यारा भी नहीं। *अगर कभी कभी समझते हो कि हमको बाप का प्यार अनुभव नहीं हो रहा है तो समझो कहाँ न्यारेपन में कमी है, कहाँ लगाव है। न्यारे नहीं बने हो तब बाप का प्यार अनुभव नहीं होता। चाहे अपनी देह से, चाहे सम्बन्ध से, चाहे किसी वस्तु से...स्थूल वस्तु भी योग को तोड़ने के निमित बन जाती है।* सम्बन्ध में लगाव नहीं होगा लेकिन खाने की वस्तु में, पहनने की वस्तु में लगाव होगा, कोई छोटी चीज भी नुकसान बहुत बड़ा कर देती है।
〰✧ तो सदा न्यारापन अर्थात् अलौकिक जीवन। जैसे वह बोलते, चलते, गृहस्थी में रहते ऐसे आप भी रहो तो अन्तर क्या हुआ! तो अपने आपको देखो कि परिवर्तन कितना किया है चाहे लौकिक सम्बन्ध में बहू हो, सासू हो, लेकिन आत्मा को देखो। बहू नहीं है लेकिन आत्मा है। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान में है। मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊँगी। *अपनी वृत्ति, दृष्टि चेन्ज चाहिए। नहीं तो परिवार में प्रभाव नहीं पड़ता। तो वृत्ति और दृष्टि बदलना ही अलौकिक जीवन है। जो काम अज्ञानी करते वह आप नहीं कर सकते हो। संग का रंग आपका लगना चाहिए, न कि उन्हों के संग का रंग आपको लग जाए।* अपने को देखो मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मेरा प्रभाव अज्ञानी पर पड़ता है, अगर नहीं पड़ता तो शुभ भावना नहीं है। बोलने से प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन सूक्ष्म भावना जो होगी उसका फल मिलेगा।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ आपको मालूम पडा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पडा ना! *तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ।* यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है।
〰✧ *ऐसे नहीं सोचो कि अन्त मे देहभान छोड देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए।* अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है।
〰✧ इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। *चाहे कितनी भी प्रकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी। इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ इसलिए जैसे कोई भी बन्धन से मुक्त होते, वैसे ही सहज रीति शरीर के बन्धन से मुक्त हो सकें। नहीं तो शरीर के बन्धन से भी बड़ा मुश्किल मुक्त होंगे। *फाइनल पेपर है - अन्त मती सो गति। अन्त में सहज रीति शरीर के भान से मुक्त हो जायें - यह है 'पास विद ऑनर' की निशानी। लेकिन वह तब हो सकेगी जब अपना चोला टाइट नहीं होगा।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- यह अंतिम जन्म है, खेल पूरा होता है, इसलिए पावन बन घर जाना है"*
➳ _ ➳ चारों ओर महाशिवरात्रि की धूम मची है... मंदिरों में शिव भगवान की पूजा, अर्चना, यज्ञ, जप-तप हो रहें हैं... मैं आत्मा सेण्टर में सभी आत्माओं के संग पतंग उड़ाकर प्यारे बाबा का संदेश चारों और फैला रही हूँ- “मीठा बाबा आ गया है, अब घर चलना है...” *पूरे आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे बाबा का सन्देश लेकर मुस्कुराते हुए लहरा रही हैं... मैं आत्मा पतंग बन उड़ चलती हूँ मीठे वतन मीठे बाबा के पास...*
❉ *पवित्रता के सागर प्यारे बाबा पवित्रता के रूहानी रंग में मुझे रंगते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... अब यह खेल पूरा हो गया है... अपने चमकते मणि रूप में मीठे घर को जाना है... इसलिए यादो में गहरे खोकर, दुःख की दुनिया के सारे खाते समाप्त करो... *पवित्रता के रंग से सारे विश्व को रंग दो... सिर्फ मीठे बाबा के प्यार में खो जाओ और अपने घर को याद करो..."*
➳ _ ➳ *इस अंतिम जन्म में स्वीट बाबा और अपने स्वीट होम को याद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में सारे विकारो से मुक्त होकर, पावनता की सुंदरता से सजधज गयी हूँ... आपका साथी बनकर घर चलने को आतुर हूँ...* और अनन्त सतयुगी सुखो की अधिकारी बनने का भाग्य पाती जा रही हूँ..."
❉ *इस कलियुगी दुनिया से न्यारा और अपना प्यारा बनाकर घर का रास्ता दिखाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस देह की दुनिया से उपराम होकर, अपने घर असली घर शान्तिधाम चलने की तैयारी करो... इस समय सबकी वानप्रस्थ अवस्था है... *सारे हिसाब किताबो को समेटकर, पावनता का श्रंगार कर... मीठे बाबा की बाँहों में बाहें डाल... गुनगुनाते हुए घर चलने की तैयारी करो...”*
➳ _ ➳ *अपने भाग्य के सितारे को ऊँचे आसमान की बुलंदियों पर चमकते हुए देख मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ... ईश्वर पिता के साथ शान से घर चलने को तैयार हो रही हूँ... *मीठा बाबा मुझे कन्धों पर बिठाकर घर ले जाने आया है और मै आत्मा पवित्रता की चुनरिया ओढ़ शिव साजन संग उड़ रही हूँ..."*
❉ *अपने मखमली गोदी के झूले में झुलाकर पवित्रता के स्नेह सागर में डुबोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के प्यार भरी गोद में पावनता के फूल बन महक जाओ... *देह की मिटटी से परे अपनी आत्मिक रूहानियत से खिल उठो... देह की दुनिया से सारे बन्धन खत्म कर आत्मिक सम्बन्धो से भर जाओ...* मीठे बाबा की ऊँगली पकड़कर घर चलो और सज संवर कर पुनः सतयुगी धरा पर खिलखिलाओ..."
➳ _ ➳ *इस खेल के अंतिम पड़ाव में स्वयं भगवान के संग अपना हीरो पार्ट बजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी यादो में देह के सब बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ...* वाणी से परे हो, वानप्रस्थ अवस्था को पाकर घर की ओर रुख कर रही हूँ... आपके प्यार की छाँव तले दैहिक खातो से मुक्त होकर अशरीरी हो गयी हूँ..."
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कोई भी चित्र का सिमरण नही करना है*"
➳ _ ➳ अपने विचित्र निराकार भगवान बाप को जिसका कोई चित्र अर्थात शरीर नही उसके समान स्वयं को विचित्र बना कर, देह के भान से स्वयं को मुक्त कर, *अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर मैं जैसे ही बैठती हूँ अपने इस देह रूपी चित्र से स्वयं को बिल्कुल न्यारा अनुभव करते हुए, अपने निराकारी स्वरूप पर अपने ध्यान को फोकस करते ही एक अति सुखमय विचित्र अनुभूति से मैं आत्मा भर उठती हूँ*।
➳ _ ➳ चमकते हुए सितारे के समान अपने इस अति सुन्दर स्वरूप को निहारते - निहारते अब मैं इस चैतन्य शक्ति में समाये सातों गुणों का गहराई तक अनुभव कर रही हूँ और विचार करती हूँ कि आज दिन तक मैं आत्मा अपने अंदर छुपे अथाह ख़ज़ानों से ही अनभिज्ञ थी। *क्षण भर का सुख और शांति पाने के लिए मैं कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी। किन्तु मेरे विचित्र बाप ने आकर, देह रूपी चित्र के अंदर छुपे मेरे विचित्र स्वरूप का मुझे सत्य परिचय देकर, मेरे अंदर छुपे गुणों और शक्तियों का अनुभव करवाकर गहन सुख और शांति से मुझे भरपूर कर दिया*।
➳ _ ➳ अपने विचित्र बाप का शुक्रिया अदा करने के लिए मैं आत्मा विदेही बन अब देह रूपी चित्र से बाहर आ जाती हूँ। देह की कारा में बंद मैं आत्म पँछी देह से बाहर आते ही अब उड़ चलती हूँ ऊपर नीलगगन की ओर। *इस नीले अंतहीन पोलार में विचरण करते, उन्मुक्त होकर उड़ने का भरपूर आनन्द लेते हुए मैं आत्मा इस नीलगगन को पार करके, अब सूक्ष्म देहधारी फरिश्तो की दुनिया में प्रवेश कर इस दुनिया को भी पार कर पहुँच जाती हूँ आत्माओं की ऐसी विचित्र निराकारी दुनिया में* जहाँ ना स्थूल और ना ही सूक्ष्म देह रूपी चित्र का कोई भान है।
➳ _ ➳ लौकिक और अलौकिक हर प्रकार के भान से मुक्त इस पारलौकिक घर में अपने विचित्र पारलौकिक परम पिता परमात्मा के पास बैठ उनके सुंदर सजीले स्वरूप को निहारते हुए मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारें मुझ आत्मा पर औंस की बूंदों की तरह पड़ कर, गहन शीतलता की अनुभूति करवा रही हैं*। अपने प्रेम की किरणों रूपी बाहों में मुझे भरकर मेरे विचित्र दिलाराम बाबा मुझ विचित्र आत्मा पर अपना असीम प्रेम बरसा रहें हैं। अपनी सर्वशक्तियों और गुणों से मुझे भरपूर करके बाबा मुझे आप समान बना रहे हैं। *बाबा की सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर गहराई तक समाकर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं*।
➳ _ ➳ अपने विचित्र निराकार भगवान से उनके समान विचित्र बन मिलन मनाने का सुख ले कर, स्वयं को तृप्त करके, अब मैं विचित्र आत्मा सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजाने के लिए वापिस साकार दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने जिस देह रूपी चित्र को छोड़ मैं आत्मा अपने विचित्र बाप से मिलन मनाने गई थी, उसी देह रूपी चित्र में कर्म करने के लिए फिर से प्रवेश करती हूँ*। किन्तु विचित्र बनने का सुखद एहसास अब मुझे देह की दुनिया मे रहते हुए भी, देह से न्यारेपन की अनुभूति में सदा स्थित रखता है।
➳ _ ➳ इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अब मैं हर कर्म अपने विचित्र स्वरूप की स्मृति में रह कर करती हूँ। इस देह से जुड़े हर सम्बन्धी के चित्र को देखने के बजाए उसकी देह रूपी चित्र में विराजमान विचित्र आत्मा को ही अब मैं देखती हूँ। सभी को शिव पिता की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान के रूप में देखते हुए निस्वार्थ भाव से सभी को सच्चा रूहानी स्नेह मैं सदा देती रहती हूँ। *कोई भी चित्र का सिमरण ना करते हुए चित्र में विराजमान चरित्र अर्थात आत्मा को देखने का अभ्यास मुझे स्वत: ही सर्व से न्यारा और अपने विचित्र बाप का प्यारा बना रहा है*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं संस्कार मिटाने और मिलाने में एवर रेडी रहनेवाली रूहानी सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं प्योरिटी की रॉयल्टी का अनुभव करने और कराने वाली रॉयल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सबसे विशेष बात है कि बाप को सारे विश्व में से कौन पसन्द आया? आप पसन्द आये ना! कितनी आत्मायें हैं लेकिन आप पसन्द आये। जिसको भगवान ने पसन्द कर लिया, उससे ज्यादा क्या होगा! तो *सदा बाप के साथ अपना भाग्य भी याद रखो। भगवान और भाग्य। सारे कल्प में ऐसी कोई आत्मा होगी जिसको रोज याद प्यार मिले, प्रभु प्यार मिले। रोज यादप्यार मिलता है ना।* सबसे ज्यादा लाडले कौन हैं? *आप ही लाडले हो ना। तो सदा अपने भाग्य को याद करने से व्यर्थ बातें भाग जायेंगी। भगाना नहीं पड़ेगा, सहज ही भाग जायेंगी।*
✺ *ड्रिल :- "भगवान और भाग्य को सदा याद रखना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने देह से न्यारी होकर मन-बुद्धि द्वारा एक सुंदर से बड़े दरबार में पहुँचती हूँ... वहाँ का नज़ारा मन को लुभाने वाला हैं... सामने शिव बाबा एक गद्दी पर विराजमान हैं... वहाँ बाबा का स्वयंवर हो रहा हैं...* स्वयंवर के लिए करोड़ो मनुष्यात्माएं रूपी कुमारियाँ आयीं हुईं हैं... सभी बहुत सुंदर-सुंदर लाल रंग के जोड़े में दुल्हन बनी हुई हैं...
➳ _ ➳ सभी बड़े ही उत्साह में हैं कि कब शिव बाबा हमें मिल जायें और हमारा साजन बन जायें... *मुझ आत्मा को बिल्कुल उम्मीद नहीं हैं कि शिव बाबा मुझे चुनेंगे क्योंकि वह गुणों के भण्डार हैं, आनंद के सागर हैं, ब्रह्मलोक के वासी हैं, सुख-दुःख से न्यारे हैं, सदगति दाता हैं, ज्ञानामृत के सागर हैं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता त्रिमूर्ति हैं...*
➳ _ ➳ उनमें से कुछ मनुष्यात्माएं रूपी कुमारियों का ध्यान देह की दुनिया रूपी दरबार की सजावटों में हैं, कुछ का ध्यान एक दूसरे के वस्त्रो में हैं, कुछ एक दूसरे को देखकर मन ही मन जल रही हैं... *स्वयंवर शुरू होते ही मेरी आँखों से खुशी के आँसू बह रहें हैं... बाबा धीरे-धीरे चलकर मेरी ओर आ रहें हैं और मुझे गुलाबों से बनी हुईं सुगंधित माला मेरे गले में डाल रहें हैं...* मुझे यकीन ही नहीं हो रहा हैं कि स्वयं शिव बाबा ने करोड़ो कुमारियों में से सिर्फ मुझ आत्मा को पसन्द किया...
➳ _ ➳ अब वह मेरे साजन हैं... कितना बड़ा भाग्य हैं मेरा जो शिव साजन ने मुझे अपनी सजनी बनाया... *अपने साजन के साथ मैं हवन कुण्ड की अग्नि में रावण के विकारों और व्यर्थ संकल्पों को स्वाहा कर रहीं हूँ... मेरे साजन अब मुझें बहुत सारी शिक्षाएं दे रहे हैं कि कैसे इस संगमयुग में रहना हैं, कैसे श्रीमत अनुसार चलना हैं... कैसे संकल्प चलाने हैं... अब शिव साजन मुझे हीरों का बना हुआ ताज तोहफ़े में भेंट कर रहें हैं...*
➳ _ ➳ *अब शिव साजन और मैं सूक्ष्मवतन पहुँचते हैं... वह मुझपर शांति और पवित्रता की किरणें डाल रहे हैं... मैं एकदम रिफ्रेश हो रही हूँ... अब मुझे बहन, भाई, माँ, बाप या अन्य किसी भी सम्बन्ध की कमी महसूस होती हैं तो शिव साजन तुरन्त उसी रूप में प्रकट हो जाते हैं...* कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ मैं... अब मैं किसी हद के बंधनों में नहीं फँसती हूँ... अब अपने भाग्य को याद करते ही व्यर्थ संकल्प अपने आप ही भाग जाते हैं...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━