━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 11 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम ही थे, हम ही अब हैं, और कल्प कल्प हम ही फिर होंगे" - ऐसा सहज और स्पष्ट अनुभव किया ?*
➢➢ *जड़ चित्रों में अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षातकार किया ?*
➢➢ *सदा सहज स्नेह से विधिपूर्वक याद और सेवा का अनुभव किया ?*
➢➢ *ज्वाला स्वरुप, शक्ति स्वरुप याद का अनुभव किया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *मन को शक्तिशाली बनाने के लिए, सदा खुशी वा उमंग-उत्साह में रहने के लिए, उड़ती कला का अनुभव करने के लिए रोज यह मन की ड्रिल, एक्सरसाइज करते रहो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं स्वयं के रिगार्ड द्वारा सर्व को रिगार्ड देने वाली पूज्य आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को पूज्य आत्मायें अनुभव करते हो? *पुजारी से पूज्य बन गये ना! पूज्य को सदा ऊँचे स्थान पर रखते हैं। कोई भी पूजा की मूर्ति होगी तो नीचे धरती पर नहीं रखेंगे। तो आप पूज्य आत्मायें कहाँ रहती हो! ऊपर रहती हो!* भक्ति में भी पूज्य आत्माओंका कितना रिगार्ड रखते हैं। जब जड़ मूर्ति का इतना रिगार्ड है तो आपका कितना होगा?
〰✧ अपना रिगार्ड स्वयं जानते हो? क्योंकि जितना जो अपना रिगार्ड जानता है उतना दूसरे भी उनको रिगार्ड देते हैं। *अपना रिगार्ड रखना अर्थात् अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना।* तो कभी महान आत्मा से साधारण आत्मा तो नहीं बन जाते हो! पूज्य तो सदा पूज्य होगा ना! आज पूज्य कल अपूज्य नहीं - ऐसे तो नहीं हो ना। सदा पूज्य अर्थात् सदा महान। सदा विशेष।
〰✧ कई बच्चे सोचते हैं कि हम तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे हमको आगे बढ़ने का रिगार्ड नहीं देते हैं। इसका कारण क्या होता? सदा स्वयं अपने रिगार्ड में नहीं रहते हो। *जो अपने रिगार्ड में रहते वह रिगार्ड माँगते नहीं, स्वत: मिलता है। जो सदा पूज्य नहीं उन्हें सदा रिगार्ड नहीं मिल सकता।* अगर मूर्ति अपने आसन को छोड़ दे, या उसे जमीन में रख दें तो उसकी क्या वैल्यु होगी! मूर्ति को मन्दिर में रखें तो सब महान रूप में देखेंगे। तो सदा महान स्थान पर अर्थात् ऊँची स्थिति पर रहो, नीचे नहीं आओ।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन *कर्मयोगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड जाता है।* कारण क्या है? *कर्म करते, सोल कान्सेस और कर्म कान्सेस दोनों रहता है।*
〰✧ *इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन-सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी है लेकिन कर्मचारीयों से कर्म करानेवाली मैं करावनहार न्यारी हूँ। *
〰✧ क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, डयुटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो *अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ।* यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *जैसे कोई बहुत गूढ़ विचार में रहते हैं, कुछ भी करते हैं, चलते, खाते-पीते हैं, लेकिन उनको मालूम नहीं पड़ता है कि कहाँ तक आ पहुँचा हूँ, क्या खाया है। इसी रीति से जिस्म को देखते हुए भी नहीं देखेंगे और अपने उस रूह को देखने में ही बिज़ी होंगे, तो फिर ऐसी अवस्था हो जायेगी जो कोई भी आपसे पूछेगे - यह कैसी थी, तो आपको मालूम नहीं पड़ेगा। ऐसी अवस्था होगी।* लेकिन वह तब होगी जब जिस्मानी चीज को देखते हुए उस जिस्मानी लौकिक चीज को अलौकिक रूप में परिवर्तन करेंगे।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- परम पूज्य बनने का आधार"*
➳ _ ➳ बाबा के प्रेम में समाई हुई मैं आत्मा परमधाम में कंबाइंड स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... *अपने मीठे बाबा के साथ ड्रामा के खेल को साक्षी होकर देख रही हूँ...* कलियुगी दुख अशांति को... संगम युग पर बाबा के, ब्राह्मण बच्चों के पार्ट को बिल्कुल डिटैच होकर देख रही हूँ... नई सतयुगी सृष्टि इस धरा पर आती है... धीरे-धीरे त्रेता युग में चंद्रवंशी राजाई आती है... *समय बीतता जाता है और शुरू हो जाता है द्वापर युग... पूज्य सो पुजारी का पार्ट शुरू हो जाता है... बड़े-बड़े विशाल मंदिरों में इष्टदेव, इष्ट देवियों की धूमधाम से पूजा अर्चना हो रही है...*
❉ *साक्षीपन की मीठी अवस्था में मुझे स्थित करते हुए भोलेनाथ बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे बच्चे... बड़े बड़े मंदिरों में कुछ देवताओं की किस प्रकार से विधि पूर्वक पूजा हो रही है... हर कर्म का गायन पूजन हो रहा है... कुछ देवताओं की नियम प्रमाण पूजा हो रही है... कुछ की दिखावा मात्र, कुछ देवताओं की कभी-कभी और डर के मारे पूजा हो रही है... मीठे बच्चे... *तुम्हें पूज्य नहीं परम पूज्य बनना है... परम पूज्य बनने के लिए सदैव बाप की मोहब्बत में समाए हुए रहो..."*
➳ _ ➳ *बाबा की एक-एक बात को गहराई से स्वयं में समाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... आप मुझसे कितना स्नेह करते हैं... *मुझे पुरुषार्थ की सहज युक्तियां बताते हैं... जिससे सतयुग त्रेता में मैं आत्मा अपार सुख भोगती हूँ... और द्वापर से मेरे स्वरूप की करोड़ों भक्त आत्माएं पूजा कर मनवांछित फल प्राप्त करती है...* मैं आत्मा हर समय आपके स्नेह के, मोहब्बत के झूले में झूलती हुई अतींद्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ..."
❉ *मुझ नन्हे फरिश्ते को अपने स्नेह रूपी बाँहो में भरते हुए बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे... *परम पूज्य बनने का आधार है... चारों ही सब्जेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई और सफाई*... परम पूज्य बनने वाली आत्मा ईश्वरीय नियम व मर्यादाओं को नियम प्रमाण नहीं... लेकिन विधि पूर्वक पालन करती हैं... तुम बाबा के स्नेह में डूबे हुए विधि और सिद्धि के प्राप्ति स्वरूप बनो... *बाबा से यह स्नेह पुरुषार्थ को बिल्कुल सहज, रमणीक बना देता है..."*
➳ _ ➳ *बाबा की स्नेह रूपी किरणों के आलिंगन में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "स्नेह के सागर मीठे बाबा... *संगम युग पर आपने जो भी ईश्वरीय नियम व मर्यादाएं बताई हैं... उनका मैं विधि से पालन कर रही हूँ... आपसे मुझ आत्मा का स्नेह पुरुषार्थ के मार्ग को मेहनत से मुक्त, सहज, सरल करता जा रहा है...* मैं आत्मा अपने परम पूज्य स्वरूप को देख कर हर्षित हो रही हूँ... आपकी हर बात का, हर श्रीमत का सच्चे दिल से पालन कर रही हूँ..."
❉ *अपने स्नेह की वर्षा में मुझ आत्मा को भिगोते हुए बाबा कहते हैं:-* "मेरे नैनों के नूर मुरब्बी बच्चे... बाबा के स्नेह में समाई हुई आत्मा कभी भी मेहनत का अनुभव नहीं करेगी... *मोहब्बत मेहनत को खत्म कर देती है... बाबा से जिगरी प्यार स्वतः और सहज आगे बढ़ाता रहता है...* फिर *बापदादा भी स्नेह के फूलों से ऐसे बच्चों का पूजन अर्थात श्रेष्ठ मानते हैं...* तो सदा एक के लव में लीन रहो..."
➳ _ ➳ *अपने श्रेष्ठ भाग्य पर मुस्कुराती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे जीवन के आधार प्यारे बाबा... आपने मुझे परम पूज्य बनने की कितनी सहज युक्ति बताई है... अब मैं हर क्षण, हर पल आपके स्नेह में ही समाई हुई हूँ... मोहब्बत के झूले में झूलती हुई हर मेहनत, हर कठिनाई से मुक्त होती जा रही हूँ... आपसे दिल का *स्नेह शक्ति में परिवर्तित होकर मुझे निर्विघ्न बना रहा है... मैं आत्मा असीम सुख का अनुभव कर रही हूँ...* अपने परम पूज्य स्वरूप को... इसकी महिमा व गायन को देखकर हर्षित हो रही हूँ... शुक्रिया बाबा शुक्रिया..."
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने जड़ चित्रों में अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षात्कार करना*"
➳ _ ➳ एक मंदिर में खड़ी मैं अपने ही जड़ चित्रों को देख विचार करती हूँ कि कितना आकर्षण है मेरे इन जड़ चित्रों में जो आज भी इनके दर्शन मात्र से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण हो रही हैं। *इन जड़ चित्रों में भक्तों की कितनी आस्था है जो इनकी एक झलक पाने के लिए ये घण्टों लम्बी - लम्बी कतारों में खड़े हो कर कठोर तपस्या कर रहें हैं*। मन ही मन यह चिंतन करते - करते अपने जड़ चित्रों में अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षात्कार करते हुए अब मैं स्वयं को अपने चैतन्य देवताई स्वरूप में देख रही हूँ।
➳ _ ➳ अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के स्वरूप में मंदिर में खड़ी मैं अपने सामने असंख्य भक्तों की भीड़ को देख रही हूँ। *मेरी महिमा के गीत गाते, जयजयकार के नारे लगाते मेरे भक्त मस्ती में झूम रहें हैं*। मेरे दर्शन पाकर भाव विभोर हो रहें हैं। अपने जीवन मे सुख शांति की कामना के लिए मेरे सामने हाथ जोड़ कर अरदास कर रहें हैं। अपना वरदानी हाथ ऊपर उठाये मैं उनकी झोली वरदानो से भरकर उनकी हर मनोकामना को पूर्ण कर रही हूँ। *अपनी मनोकामना को पूर्ण होता देख वो खुशी से फूले नही समा रहे*।
➳ _ ➳ अपने भक्तों को दर्शन देकर, उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करके मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौटती हूँ और विचार करती हूँ कि अपने जड़ चित्रों में अपने श्रेष्ठ जीवन का जो साक्षात्कार अभी मैंने किया है वो मेरे अभी के ब्राह्मण जीवन के चैतन्य कर्मो का ही तो यादगार है। *मेरे द्वारा इस समय किये हुए हर एक कर्म को मेरे भक्त आज भी कॉपी कर रहें हैं। इस समय संगमयुग पर जिन दैवी गुणों को मैं धारण करने का पुरुषार्थ कर रही हूँ उनका ही भक्ति में पूजन और गायन हो रहा है*।
➳ _ ➳ तो इसलिए अपने भविष्य चैतन्य श्रेष्ठ देवताई जीवन का सुख पाने और कल्प - कल्प के लिए पूजनीय वा गायन योग्य बनने के लिए सभी विशेषताओं को मुझे अपने इस ब्राह्मण जन्म में अभी ही धारण करने का पुरुषार्थ करना है। *इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ ब्रह्मा बाप समान पुरुषार्थ करने का दृढ़ संकल्प कर, अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप से फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होती हूँ और अव्यक्त वतनवासी अपने प्यारे ब्रह्मा बाप से मिलने उनके वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। वतन में पहुँच कर अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में अत्यंत तेजोमय महाज्योति शिव बाबा को मैं देख रही हूँ।
➳ _ ➳ अपनी बाहों को फैलाये बापदादा मुझे अपने पास बुला रहें हैं। *अपनी बाहों में समाकर अपनी ममतामयी स्नेह की शीतल छाया में मुझे बिठा कर अब बापदादा अति स्नेह भरी, शक्तिशाली दृष्टि से मुझे भरपूर कर रहें हैं*। बाबा की भृकुटी से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर मुझ पर पड़ रही हैं। मेरे मस्तक पर मीठा सा स्पर्श करके अपनी सर्वशक्तियाँ बाबा मुझे प्रदान कर रहें हैं। उनके प्यार की शीतल छाया में मैं असीम सुख और आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। *बापदादा अपना वरदानीमूर्त हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे "पूज्य भव" का वरदान दे रहें हैं*।
➳ _ ➳ बापदादा से वरदान और सर्वशक्तियां लेकर, इस वरदान को फलीभूत करने के लिए अब मैं फ़रिश्ता स्वरूप से वापिस अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ और अपने भविष्य चैतन्य देवताई पूज्य पद को पाने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपने जड़ चित्रों को सदैव स्मृति में रख, अपने हर श्रेष्ठ कर्म के यादगार को चरित्रों और गीतों के रूप में देखते और सुनते, अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षात्कार करते हुए अब मैं अपने हर कर्म को श्रेष्ठ बना रही हूँ*। सहज स्नेह के साथ चारों सब्जेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई और सफाई को धारण कर मैं पूजन और गायन योग्य बनने के अपने लक्ष्य को पाने का तीव्र पुरुषार्थ अब निरन्तर कर रही हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्नेह की लिफ्ट द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाली अविनाशी स्नेही आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं शुभ संकल्प और दिव्य बुद्धि के यंत्र द्वारा तीव्र गति की उड़ान भरते रहने वाला डबल लाइट फरिश्ता हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अभी अपने मन का टाइमटेबुल फिक्स करो। मन को सदा बिजी रखो, खाली नहीं रखो। फिर मेहनत नहीं करनी पड़ती। ऊँचे-ते-ऊँचे भगवान के बच्चे हो, तो आपका एक-एक सेकण्ड का टाइमटेबुल फिक्स होना चाहिए।* क्यों नहीं बिन्दी लगती, उसका कारण क्या? ब्रेक पावरफुल नहीं है। शक्तियों का स्टाक जमा नहीं है इसीलिए सेकण्ड में स्टाप नहीं कर सकते। कई बच्चे कोशिश बहुत करते हैं, जब बापदादा देखते हैं मेहनत बहुत कर रहे हैं, यह नहीं हो, यह नहीं हो... कहते हैं नहीं हो लेकिन होता रहता है। *बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती।*
➳ _ ➳ कारण यह है, जैसे देखा रावण को मारते भी हैं, लेकिन सिर्फ मारने से छोड़ नहीं देते हैं, जलाते हैं और जलाके फिर हड्डियाँ जो हैं, वह आजकल तो नदी में डाल देते हैं। कोई भी मनुष्य मरता है तो हड्डियाँ भी नदी में डाल देते हैं तभी समाप्ति होती है। तो आप क्या करते हो? ज्ञान की प्वाइंटस से, धारणा की प्वाइंटस से उस बात रूपी रावण को मार तो देते हो लेकिन योग अग्नि में स्वाहा नहीं करते हो। और फिर जो कुछ बातों की हड्डियाँ बच जाती है ना - वह ज्ञान सागर बाप को अर्पण कर दो। तीन काम करो - एक काम नहीं करो। आप समझते हो पुरुषार्थ तो किया ना, मुरली भी पढ़ी, 10 बार मुरली पढ़ी फिर भी आ गई क्योंकि आपने योग अग्नि में जलाया नहीं, स्वाहा नहीं किया। अग्नि के बाद नाम निशान गुम हो जाता है फिर उसको भी बाप सागर में डाल दो, समाप्त। इसलिए *इस वर्ष में बापदादा हर बच्चे को व्यर्थ से मुक्त देखने चाहते हैं। मुक्त वर्ष मनाओ। जो भी कमी हो, उस कमी को मुक्ति दो, क्योंकि जब तक मुक्ति नहीं दी है ना, तो मुक्तिधाम में बाप के साथ नहीं चल सकेंगे।*
✺ *ड्रिल :- "पुराने संस्कारों को सम्पूर्ण रीति से समाप्त करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ संगमयुग पर मैं ब्राह्मण आत्मा स्वदर्शन चक्र फिराते हुए अपने देवताई स्वरूप को देखती हूँ... *कितना दिव्य... कितना मनमोहक... स्वरूप है ये मुझ आत्मा का... सूर्य समान तेजस्वी मुख... चंद्रमा समान शीतल काया... मनमोहक मुस्कान...* अपने इस स्वरूप को देख देख मैं बहुत हर्षित हो रही हूँ... फिर उनके गुण और कार्य व्यवहार के बारे में सोचती हूँ की जितना सुंदर रूप है वैसे ही गुण भी रहे होंगे...! फिर मैं आत्मा अपने आप से पूछती हूं कि जब ये मेरा सतयुगी स्वरूप है तो क्या मेरे में ये सब गुण हैं?
➳ _ ➳ जितना जितना मैं विचार मंथन करती जाती हूं... उतना उतना मुझ आत्मा को अपनी कमी कमजोरियों का पता चलता जा रहा है... तब मैं अपने प्यारे बापदादा के पास सूक्ष्म वतन में जाती हूं... बताती हूं... बाबा को अपनी कमी कमजोरियों के बारे में... *बाबा सुनते हैं और मुस्कुराने लगते हैं... मेरे सर पर अपना हाथ रख मुझे दृष्टि देते हैं... फिर बड़े प्यार से मेरे मस्तक पर बिंदु लगा देते हैं... और इस बिंदु के लगते ही जैसे सारी चेतना जागृत हो उठती है...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा में जागृति आती है... बाबा के ज्ञान के पॉइंटस की स्मृति आ जाती है... *मैं तो ऊँच ते ऊँच भगवान की बच्ची हूं... और भगवान के बच्चे मेहनत करें... ये बापदादा को अच्छा नहीं लगता...* अभी मेरे अंदर व्यर्थ भी चलता है, फुल स्टॉप नहीं लगता... मुझे इन सबसे मुक्त होना है... ये समझ में आते ही मैं बाबा से प्रतिज्ञा करती हूं... कि *बाबा अब चाहे जो कुछ भी हो मैं स्वयं को व्यर्थ से मुक्त करके रहूंगी... मुझे आपके साथ मुक्ति धाम में चलना ही है...*
➳ _ ➳ बापदादा से प्रतिज्ञा कर मैं आत्मा आती हूं... अपने कर्मक्षेत्र पर... अब मैं बाबा के कहे अनुसार अपने मन का टाईमटेबल फिक्स कर उसे बिजी रखने के अभ्यास में लग जाती हूं... उसे हर सेकंड बाबा से जोड़ कर रख रही हूं... पॉवरफुल ब्रेक लगा तुरंत नेगेटिव पर बिंदी लगाती हूं... *जो भी मुझ आत्मा के 63 जन्मों के पुराने संस्कार हैं... उन्हें ज्ञान और धारणा के शक्तिशाली पॉइंट्स द्वारा केवल खत्म नहीं करती बल्कि योगाग्नि में भस्म कर रही हूं... और उसकी भस्मी भी अपने पास ना रख बापसागर को दे रही हूं...*
➳ _ ➳ *पुराने स्वभाव और संस्कारों से मुक्त होने का ये अनुभव मुझ आत्मा को उमंग उत्साह से भरपूर कर रहा है...* निरन्तर इन प्रयासों में सफल हो, अब मैं अपने आप को बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... *मैं गुण और शक्तियों के स्टॉक से भरपूर होती जा रही हूं... मैं ऊँचे से ऊँचे भगवान की बच्ची हूं... अपने को इस ईश्वरीय नशे में रख मैं आत्मा सफलता की सीढ़ियां चढ़ती जा रही हूं... मैं बाप समान समर्थ होती जा रही हूं...* मुझे अपना देवताई स्वरूप साकार होता अनुभव हो रहा है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने अनुभव को अन्य आत्माओंं को बाँट कर उन्हें बाप समान बनता देख रही हूं... *सभी अपने पुराने स्वभाव संस्कार को भस्म कर बेहद शान्ति महसूस कर रही हैं... और व्यर्थ से मुक्त हो अपने को बाबा के बहुत करीब पाती हैं... इस के लिए सब बाबा को दिल से धन्यवाद देते हैं...* और बाबा की याद में खो जाते हैं... *मीठे बाबा... मीठे मीठे बाबा...* "मेरे प्यारे बाबा जितना भी शुक्रिया अदा करूं सब कम है..."
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━