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 03 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आपस में एक दो की ज्ञान से पालना की ?*

 

➢➢ *एस अकोई कार्य तो नहीं किया जिससे बाप की अवज्ञा हो ?*

 

➢➢ *विशेषता के बीज द्वारा संतुष्टता रुपी फल प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *अनुभूतियों का प्रसाद बांटकर असमर्थ को समर्थ बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *डबल लाइट रहने वाले की लाइट कभी छिप नहीं सकती।* जब छोटी सी स्थूल लाइट टार्च हो या माचिस की तीली हो, लाइट कहाँ भी जलेगी, छिपेगी नहीं, यह तो रूहानी लाइट है, तो इसका हर एक को अनुभव कराओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप के सर्व खजानों का मालिक हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के सर्व खजानों के मालिक हैं-ऐसा अनुभव करते हो? मालिक बन गये हो या बन रहे हो? *जब सभी बालक सो मालिक बन गये, तो बाप ने सभी को एक जैसा खजाना दिया है। या किसको कम दिया, किसको ज्यादा? एक जैसा दिया है।* जब मिला एक जैसा है, फिर नम्बरवार क्यों? खजाना सबको एक जैसा मिला, फिर भी कोई भरपूर, कोई कम। इसका कारण है कि खजाने को सम्भालना नहीं आता है।

 

  कोई बच्चे खजाने को बढ़ाते हैं और कोई बच्चे गँवाते हैं। बढ़ाने का तरीका है-बांटना। जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा। जो नहीं बांटते उनका बढ़ता नहीं। *अविनाशी खजाना है, इस खजाने को जितना बढ़ाना चाहें उतना बढ़ा सकते हो। सभी खजानों को सम्भालना अर्थात् बार-बार खजानों को चेक करना।* जैसे खजाने को सम्भालने के लिए कोई न कोई पहरे वाला रखा जाता है।

 

  तो इस खजाने को सदा सेफ रखने के लिए 'अटेन्शन' और 'चेकिंग'-यह पहरे वाले हों। तो जो अटेन्शन और चेकिंग करना जानता है उसका खजाना कभी कोई ले जा नहीं सकता, कोई खो नहीं सकता। तो पहरे वाले होशियार हैं या अलबेलेपन की नींद में सो जाते हैं? पहरेदार भी जब सो जाते हैं तो खजाना गँवा देते हैं। *इसलिए 'अटेन्शन' और 'चेकिंग'-दोनों ठीक हों तो कभी खजाने को कोई छू नहीं सकता! तो अनगिनत, अखुट, अखण्ड खजाना जमा है ना! खजानों को देख सदा हर्षित रहते हो?*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *प्रवृत्ति में आते 'कमल' बनना भूल न जाना।* वापिस जाने की तैयारी नहीं भूल जाना, *सदा अपनी अन्तिम स्थिति का वाहन - न्यारे और प्यारे बनने का श्रेष्ठ साधन - सेवा के साधनों में भूल नहीं जाना।* खूब सेवा करो लेकिन न्यारे-पन की खूबी को नहीं छोडना अभी इसी अभ्यास की आवश्यकता है।

 

✧  या तो बिल्कुल न्यारे हो जाते या तो बिल्कुल प्यारे हो जाते। इसलिए *न्यारे और प्यारे-पन का बैलेन्स' रखो।* सेवा करो लेकिन मेरे-पन' से न्यारे होकर करो। समझा क्या करना है? अब नई-नई रस्सियाँ भी तैयार कर रहे हैं। पुरानी रस्सियाँ टूट रही हैं।

 

✧  समझते भी है *नई रस्सियाँ बाँध रहे हैं क्योंकि चमकीली रस्सियाँ हैं।* तो इस वर्ष क्या करना है? बापदादा साक्षी होकर के बच्चों का खेल देखते हैं। रस्सियों के बंधन की रेस में एक-दो से बहुत आगे जा रहे हैं। इसलिए *सदा विस्तार में जाते सार रूप में रहो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ निश्चय का प्रमाण नशा और नशे का प्रमाण है 'खुशी'। नशे कितने प्रकार के हैं इसका विस्तार बहुत बड़ा है। *लेकिन सार रूप में एक नशा है - अशरीरी आत्मिक स्वरूप का।* इसका विस्तार जानते हो? आत्मा तो सभी हैं *लेकिन रूहानी नशा तब अनुभव होता जब यह स्मृति में रखते कि - 'मैं कौन-सी आत्मा हूँ?'* इसका और विस्तार आपस में निकालना वा स्वयं मनन करना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा के कार्य में कभी डिस्टर्ब नहीं करना"*

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा... शांतिवन में... बाबा के कमरे में... बाबा से मीठी मीठी बातें कर रही हूँ... कभी दुःख की तो कभी सुख की... कभी धूप की तो कभी छांव की... कभी रो रही हूँ तो कभी खुशी के मौजों में आखों से आँसू निकल आ रहे हैं... *बाबा मेरे बाबा कहती बाबा को अपना धाम छोड़ कर मेरे पास बुला रही हूँ... और पहुँच जाती हूँ परमधाम... बिंदु बन कर... और ले आती हूँ बापदादा को शांतिवन में... बाबा के कमरे में...* और बाबा के साथ बैठ जाती हूँ... सूक्ष्म स्वरूप में... मैं और बाबा सभी ब्राह्मण आत्माओ को देख रहे है... अज्ञानी... ज्ञानी... पुरुषार्थी... तीव्रपुरुषार्थी... सभी आत्माओं को बाबा एक ही दृष्टि से देख रहे हैं...

 

❉  *बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ बिठा कर बहुत प्यार से बोले:-* "मीठे फूल बच्चे... इस संगम युग में... पतित से पावन बनती दुनिया मे... नरक से स्वर्ग बनती दुनिया मे... सिर्फ और सिर्फ एक मैं ही हूँ  *जो परम पवित्र हूँ... अजन्मा... निराकार... सदगति दाता तुम्हारा बाप हूँ... अविनाशी... ज्ञान रुद्र यज्ञ का रचयिता हूँ... इस धरा पर अवतरित हुआ हूँ... कांटों को फूल बनाने... पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाने...* जो बच्चें मेरे कार्य मे...  मेरे संग संग चलते है... वो मेरी आँखो के तारे हैं... वो दिलतख्तनशीन बच्चें... स्वर्ग के राज्य अधिकारी बनते है..."

 

➳ _ ➳  *बाबा की बातों को मैं आत्मा एकाग्रचित हो कर सुनती हूँ और बाबा  से कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... *जन्मों के भी अंतिम जन्म में आप मुझे मिले हो... कोटो में कोई में वो आत्मा हूँ... जिस का हाथ तूने थामा हैं...* तूने मेरे जन्मों की भक्ति की लाज रख ली है... और अपना बनाया है... तेरे यह  रुद्र ज्ञान यज्ञ में हड्डी हड्डी... स्वाहा कर रही हूँ... *तेरे हर बोल को... अंतिम बोल समझ पूरे मन से इस संगमयुग में स्वीकार कर रही हूँ..."*

 

❉  *बाबा मुझ आत्मा को प्यार से देख कर कहते हैं:-* "लाडले बच्चे... *बाप आया ही है बच्चों के लिए...* बच्चों को अपने स्वरूप की... मेरे स्वरूप की पहचान कराने... मैं कौन हूँ... कहाँ रहता हूँ... मेरा कार्य क्या है... इसका परिचय देने... मेरा कार्य सिर्फ मेरा ही नहीं तुम बच्चों का भी है... *जितना में जिम्मेवार हूँ उतना तुम भी जिम्मेवार हो... मेरे इस कार्य को जाने अनजाने कभी भी अवज्ञा नहीं करना... संकल्प में भी संशय नहीं करना..."*

 

➳ _ ➳  *बाबा का हाथ अपने हाथ मे लेकर मैं कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... आप की हर श्रीमत सर आँखो पर रख रही हूँ... *तेरी पालना का अहसान... मैं आत्मा ... इस अंतिम जन्म में तेरा बन कर... चुका रही हूँ...  तुझे जैसा चाहिए ऐसा मैं बन रही हूँ... तेरे हर प्यार... हर दुलार... हर ममता का जवाब रूप में... मैं आत्मा... आप समान बन रही हूँ..."*

 

❉  *मेरी मीठी मीठी बातों को सुनकर... मंद मंद मुस्कुराते हुए बाबा बोले :-* " मेरी कल्प की बिछुड़ी हुई ... मेरी सिकीलधि बच्ची... *तू मेरी ही हैं और मेरी ही रहेगी....* मेरे हर कार्य मे तू... सहभागी है... मेरी राइट हैंड हो तुम... *मेरे रुद्र ज्ञान यज्ञ की तुम यज्ञ रक्षक हो... मेरे कार्य को डिस्टर्ब करने वाले मायारूपी रावण पर जीत पाने वाली... तुम... विजयी रत्न... मायाजीत आत्मा हो... कल्प कल्प की स्वराज्य अधिकारी आत्मा हो..."*

 

➳ _ ➳  *बाबा के आशीर्वाद रूपी अनमोल वचनों से भाव विभोर हो कर मैं आत्मा कहती हूँ:-*  "मेरे बाबा... आप के प्यार में हमे कितना सुख है... आप से तो हम हैं... वरना हम तो पत्थर हैं... इस पत्थर को टिप टिप कर पूजनीय बनाने वाले मेरे बाबा तेरा शुक्रिया... *इस कलियुग में... धरती पर आकर हर एक ज्योति जगाने वाले मेरे बाबा तेरा शुक्रिया...* तेरे इस महान यज्ञ में... मैं आत्मा... शिव शक्त्ति और पांडव सेना... बलिहार जा रहे हैं... आप के परिवर्तन के इस कार्य में... मनसा... वाचा... कर्मणा... स्वाहा हो रहे हैं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आपस में एक दो की ज्ञान से पालना करनी है*

 

_ ➳  अपने प्यारे से मीठे से मधुबन घर की याद आते ही मैं मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर सेकण्ड में पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे शिव पिता की अवतरण भूमि और उनके साकार रथ ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि मधुबन में। *अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप में अरावली की सुन्दर पहाड़ियों और अपने महान तीर्थ आबू की सैर करते हुए, प्रकृति के खूबसूरत नजारों का मैं आनन्द ले रही हूँ*। इस पावन धरनी में चारों और फैले पवित्र वायब्रेशन्स मन को गहन सुकून का अनुभव करवा रहें हैं। ये वायब्रेशन्स मेरे अंदर समाकर मुझे सहजयोगी बना रहे हैं। *कुछ क्षणों के लिए अपनी पलको को मूंद कर इस सहजयोगी स्थिति के आनन्द में मैं खो जाती हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे ये वायब्रेशन्स औंस की हल्की - हल्की बूंदों के रूप में मेरे ऊपर बरस रहें हैं और मुझे शीतलता प्रदान कर रहें हैं*।

 

_ ➳  इस शीतलता का भरपूर आनन्द लेकर अब मैं आबू की पहाड़ी से नीचे अपने मधुबन घर के आँगन में पहुँचती हूँ। देख रही हूँ मैं यहाँ अपने ईश्वरीय ब्राह्मण परिवार को। *एक दो को सहयोग देकर, उमंग उत्साह से आगे बढ़ते और बढ़ाते अपने ब्राह्मण भाई बहनों को देख अपने भाग्य पर मैं इठला रही हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं, जो इतना सुंदर ईश्वरीय परिवार मुझे मिला। जहाँ किसी के भी मन मे एक दूसरे के लिए कोई ईर्ष्या द्वेष नही, कोई रंजिश नही*। सभी के हृदय रूहानी स्नेह से परिपूर्ण हैं। सभी आपस में एक दो की ज्ञान से पालना कर एक दूसरे को ऊँचा उठा रहे हैं। ईश्वर बाप की पालना में पलने वाले अपने इस अति सुंदर ईश्वरीय परिवार की मैं सदस्य हूँ इसी श्रेष्ठ स्मृति में स्थित होकर, "वाह मैं ब्राह्मण आत्मा वाह" "वाह मेरा ईश्वरीय परिवार वाह" के गीत गाते हुए मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  ऐसे रूहानी परिवार का सदस्य बनाने वाले अपने प्यारे प्रभु का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करके उनकी मन को आनन्दित करने वाली मीठी याद में स्वयं को स्थिर करके जैसे ही बैठती हूँ। मेरे प्यारे प्रभु का मन को लुभाने वाला सुन्दर आकर्षणमय स्वरूप एक दम मेरे सामने आ जाता है। *आँखे जैसे स्थिर हो जाती है और कर्मेन्द्रियाँ पूरी तरह शान्त हो जाती हूँ। मन मे चलने वाले सभी संकल्प विकल्प गतिहीन होकर स्थिर हो जाते हैं और मन बुद्धि रूपी नयन उनके सुन्दर स्वरूप का रसपान करने में मग्न हो जाते हैं*। उनकी एक - एक किरण को मैं बड़े प्यार से निहारती जा रही हूँ और एक अद्भुत दिव्य अलौकिक सुख में डूबती जा रही हूँ।

 

_ ➳  यह अलौकिक सुखमय स्थिति देह के आकर्षण से मुझे मुक्त करके, मेरे प्यारे पिता के पास जाने के लिए प्रेरित कर रही है। ऐसे लग रहा है जैसे मेरे प्यारे प्रभु की प्रीत की डोर मुझे अपनी और खींच रही हैं। देह का आधार छोड़, उन्मुक्त होकर मैं ऊपर आकाश की ओर उड़ रही हूँ। *आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा अब आकाश को पार करके उससे ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया में पहुँच कर उसे भी पार कर जाती हूँ और पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम*। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में चारों और चमकती हुई मणियों को मैं देख रही हूँ जो जगमग करते दीपको के समान अपना प्रकाश चारों ओर बिखेर रही हैं। *सामने अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों से सुसज्जित दीपराज शिव बाबा मुझे दिखाई दे रहें हैं, जिनकी शक्तियों की किरणों से हर आत्मा दीपक की ज्योति जग रही है*।

 

_ ➳  आत्मा और परमात्मा के इस आनन्दमयी मधुर मिलन के अति सुन्दर नजारे को देख आनन्दविभोर होते हुए मैं आत्मा अब धीरे - धीरे महाज्योति अपने शिव पिता के पास पहुँच जाती हूँ। अपने निराकार बिंदु बाप के सामने मैं बिंदु आत्मा जाकर बैठ जाती हूँ और स्वयं को परमात्म प्यार और परमात्म शक्तियों से भरपूर करने लगती हूँ। *प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा से अपने अंदर असीम प्यार और शक्तियाँ भरकर तृप्त होकर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ*। प्यार के सागर अपने प्यारे पिता के समान मास्टर प्यार का सागर बनकर, सबको स्नेह देकर, आपस मे एक दो की ज्ञान से पालना करने के लिए मैं वापिस अपने सेवा स्थल पर लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं अब स्थित हूँ। ज्ञान योग के सुन्दर अनुभवों की लेन - देन करते, एक दो को सहयोग देकर आगे बढ़ाते हुए, परमात्म मदद से मैं इस परमात्म कार्य को बिल्कुल सहज रीति सम्पन्न कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं विशेषता के बीज द्वारा संतुष्ठता रूपी फल प्राप्त करने वाली विशेष आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अनुभूतियों का प्रसाद बांट कर असमर्थ को समर्थ बना देने का सबसे बड़ा गुण धारण करने वाली समर्थ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  *इसलिए हर आत्मा को प्रत्यक्षफल स्वरूप बनाओ अर्थात् विशेष गुणों के, शक्तियों के अनुभवी मूर्त बनाओ।* वृद्धि अच्छी है लेकिन सदा विघ्न-विनाशक, शक्तिशाली आत्मा बनने की विधि सिखाने के लिए विशेष अटेन्शन दो। वृद्धि के साथ-साथ विधि सिखाने कासिद्धिस्वरूप बनाने का भी विशेष अटेन्शन। *स्नेही सहयोगी तो यथाशक्ति बनने ही हैं लेकिन शक्तिशाली आत्माजो विघ्नों कापुराने संस्कारों का सामना कर महावीर बन जाएइस पर और विशेष अटेन्शन।* स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी ऐसे वारिस क्वालिटी को बढ़ाओ। सेवाधारी बहुत बने होलेकिन सर्व शक्तियों धारी ऐसी विशेषता सम्पन्न आत्माओं को विश्व की स्टेज पर लाओ।

➳ _ ➳  *इस वर्ष- हरेक आत्मा प्रति विशेष अनुभवी मूर्त बन विशेष अनुभवों की खान बनअनुभवी मूर्त बनाने का महादान करो। जिससे हर आत्मा अनुभव के आधार पर ‘अंगदसमान बन जाए।* चल रहे हैंकर रहे हैंसुन रहे हैं,-सुना रहे हैंनहीं। लेकिन अनुभवों का खजाना पा लिया - ऐसे गीत गाते खुशी के झूले में झूलते रहें।

➳ _ ➳  इस वर्ष- सेवा के उत्सवों के साथ उड़ती कला का उत्साह बढ़ता रहे। तो सेवा के उत्सव के साथ-साथ उत्साह अविनाशी रहेऐसे उत्सव भी मनाओ। समझा। *सदा उड़ती कला के उत्साह में रहना है और सर्व का उत्साह बढ़ाना है।*

✺   *ड्रिल :-  "आत्माओं को अनुभवी मूर्त बनाना"*

➳ _ ➳  अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृतियों का सिमरन करती हुई मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... अपने प्यारे मीठे बाबा के पास... बाबा मुझे अपनी गोद में बिठा कर प्यार से गले लगाते हैं... *बाबा के कोमल स्पर्श से मुझ आत्मा में अलौकिक शक्तियों का संचार हो रहा है...* मैं बाबा के प्यार में समाई हुई... अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ...

➳ _ ➳  बाबा मुझे *"अनुभवी मूर्त भव"* का वरदान देते हुए कहते हैं... बच्ची... हर कदम ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर तीव्र पुरषार्थ करो... उनके जैसे निमित्त भाव... शुभ भाव... निः स्वार्थ भाव रखने का अभ्यास करो... *मैं आत्मा मनमनाभव स्थिति में स्थित हो... योग अग्नि में अपने विकारों... अपने विकर्मों को भस्म कर रही हूँ...*

➳ _ ➳  सर्व गुणों और शक्तियों को धारण कर मैं आत्मा *धारणा स्वरूप... अनुभवी मूर्त... बन रही हूँ...* मुझसे सतरंगी किरणें निकल कर सभी आत्माओं पर पड़ रही हैं... वे सब भी इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में धारण करती जा रही हैं... *मेरे आचरण को... चाल चलन... को देख कर बहुत सी ब्राह्मण आत्माएं... मेरी ओर आकर्षित हो रही हैं...*  वे भी गुणों और शक्तियों के अनुभवी मूर्त बन रही हैं... उनकी शक्तिशाली स्थिति बनती जा रही है...
 
➳ _ ➳  सभी आत्माएं बाबा के स्नेह में खोई हुई... अनुभवी आत्माएं बन गई हैं... क्योंकि जहाँ स्नेह है वहाँ सब कुछ अनुभव करना सहज हो जाता है... *सभी स्नेही, सहयोगी आत्माएं "पाना था सो पा लिया... अब कुछ नहीं चाहिये... " के गीत गाते हुए ख़ुशी के झूले में झूल रही हैं...* फिर बाबा कहने लगे... बच्ची, स्वराज्य अधिकारी बन विश्व राज्य अधिकारी... वारिस आत्माएं बनाओ... मैं बाबा से कहती हूँ... जी बाबा... मैं स्वयं से कहती हूँ... अब मैं सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को अनुभवी मूर्त बनाऊँगी...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा से वायदा करती हूँ... बाबा, मेरे मीठे बाबा... *अनुभवी मूर्त बन हर आत्मा को सेवा के प्रत्यक्ष फल का अनुभव कराऊँगी... सदा उमंग उत्साह के पंख लगाकर उड़ती कला में उड़ते हुए सर्व आत्माओं के उत्साह को बढ़ाउंगी...* सदा लगन में मगन रह सभी आत्माओं को प्राप्ति का अनुभव कराऊँगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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