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 25 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सच्चाई से सब बाप को अर्पण कर नयी दुनिया के लिए ट्रान्सफर किया ?*

 

➢➢ *कदम कदम पर बाप से श्रीमत ली ?*

 

➢➢ *तक को आत्मा का मंदिर समझ उसे स्वच्छ बनाया ?*

 

➢➢ *रूहानियत में रहने का व्रत ले ज्ञानी तू आत्मा बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  विदेही माना देह से न्यारा। *स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ है और देह से न्यारा हो गया तो सबसे न्यारा हो गया,* इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को भाग्यवान समझते हो? *वरदान भूमि पर आना यह महान भाग्य है। एक भाग्य वरदान भूमि पर पहुँचने का मिल गया, इसी भाग्य को जितना चाहो श्रेष्ठ बना सकते हो। श्रेष्ठ मत ही भाग्य की रेखा खींचने की कलम है।*

 

  *इसमें जितना भी अपनी श्रेष्ठ रेखा बनाते जायेंगे उतना श्रेष्ठ बन जायेंगे। सारे कल्प के अन्दर यही श्रेष्ठ समय भाग्य की रेखा बनाने का है। ऐसे समय पर और ऐसे स्थान पर पहुँच गये। तो थोड़े में खुश होने वाले नहीं। जब देने वाला दाता दे रहा है तो लेने वाला थके क्यों! बाप की याद ही श्रेष्ठ बनाती है।*

 

  *बाप को याद करना अर्थात् पावन बनना। जन्म-जन्म का सम्बन्ध है तो याद क्या मुश्किल है! सिर्फ स्नेह से और सम्बन्ध से याद करो। जहाँ स्नेह होता है वहाँ याद न आवे, यह हो नहीं सकता। भूलने की कोशिश करो तो भी याद आता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अधिकार की निशानी है - अपना-पना अपने बाप के पास आये हैं, अपने परिवार में आये हैं। मेहमान बन कर के नहीं आते लेकिन *बच्चे आये हैं अपने घर में।* चाहे चार दिन के लिए आते हो लेकिन समझते हो - मधुबन अपने स्थान पर पहुँचे हैं। तो यह आना और जाना। आप ब्राह्मणों की जो पढाई है वा *मुरलीधर की जो मुरली है उसका सार यह दो शब्द ही हैं - आना और जाना'।*

 

✧  याद की यात्रा का अभ्यास क्या करते हो? कर्मयोगी का अर्थ ही है - मैं अशरीरी आत्मा शरीर के बंधन से न्यारी हूँ *कर्म करने के लिए कर्म में आती हूँ और कर्म समाप्त कर कर्म-सम्बन्ध से न्यारी हो जाती हूँ* सम्बन्ध में रहते हैं, बंधन में नहीं रहते।

 

✧  तो यह क्या हुआ? *कर्म के लिए आना' और फिर न्यारे हो जाना'।* कर्म के बन्धन वश कर्म में नहीं आते हो लेकिन कर्मेन्द्रियों को अधीन कर अधिकार से कर्म करने के लिए कर्मयोगी बनते हो। इन्द्रियों के कर्म के वशीभूत नहीं हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *इस ड्रिल को दिन में जितना बार ज्यादा कर सको उतना करते रहना। चाहे एक मिनट करो। तीन मिनट, दो मिनट का टाइम न भी हो एक मिनट, आधा मिनट यह अभ्यास करने से लास्ट समय अशरीरी बनने में बहुत मदद मिलेगी।* बन सकते हैं? अभी सभी अशरीरी हुए या युद्ध में, मेहनत करते-करते टाइम पूरा हो गया? सेकण्ड में बन सकते हो! बहुत काम है फिर भी बन सकते हो? मुश्किल नहीं है? यू.एन. में बहुत भाग दौड़ कर रही हो और अशरीरी बनने की कोशिश करो, होगा? अगर यह अभ्यास समय प्रति समय करेंगे तो ऐसे ही नेचुरल हो जायेगा जैसे शरीर भान में आना, मेहनत करते हो क्या? मैं फलानी हूँ यह मेहनत करते हो ? नेचुरल है। तो यह भी नेचुरल हो जायेगा। जब चाहो अशरीरी बनो, जब चाहो शरीर में आओ। अच्छा काम है आओ इस शरीर का आधार लो लेकिन आधार लेने वाली मैं आत्मा हूँ वह नहीं भूले। *करने वाली नहीं हूँ कराने वाली हूँ। जैसे दूसरों से काम कराते हो ना। उस समय अपने को अलग समझते हो ना! वैसे शरीर से काम कराते हुए भी कराने वाली मैं अलग हूँ यह प्रैक्टिस करो तो कभी भी बॉडी कानसेस की बातों में नीचे ऊपर नहीं होंगे। समझा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- निर्वाणधाम में रेस्ट करना"*

 

_ ➳  मुझ आत्मा को सच्ची शांति की अनुभूति करवाने के लिए मेरा बाबा... *मेरा परमपिता स्वयम परमधाम से आकर मुझे यू पालेगा... मेरा ख्याल रखेगा... ये तो मैंने कभी भी ना सोचा था*... इस शरीर से अलग होकर परमधाम में स्थित होना... गहन शांति का अनुभव करना... सब सपना सा लगता हैं... बस ईश्वर के दर्शन हो जाये ये ही तो मुझ आत्मा ने चाहा था... वो मुझ से प्यार करेगा हर सम्बन्ध निभाएगा... अपने साथ रहने के तरीके बताएगा... *इस मीठे चिंतन ने तो आंखों को ही भिगो दिया* ... इन भीगी पलको से मैं आत्मा प्यार के सागर बाबा को निहारने उड़ चली वतन...

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची शांति की अनुभूति कराते हुए, माया से सुरक्षित करते हुए कहा* :- "मीठे बच्चे... पिता से शांति की किरणें प्राप्त कर महानतम भाग्य के नशे में झूम जाओ... इस शांति की अनुभूति से कभी विमुख ना होना... *मीठे बाबा से शांति का खजाना पाकर इसको कभी ठुकराना मत* ... यह शांति ही तुम्हें सारे सुख दिलवाएगी..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा देही अभिमानी स्थिति मे स्थित होकर मीठे बाबा को कहती हूं* :- "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा शरीर को ही सब कुछ मानती रही... *आपने अपनी गोद के झूले में मुझ आत्मा को झुला कर... मेरा सूंदर भाग्य का निर्माण किया हैं*... इस शरीर से डिटैच होकर मै आत्मा ईश्वरीय खजानों से भरपूर होना सीख रही हूँ..." 

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार शरीर से डिटैच होना हैं बताते हुए कहा* :- "मीठे बाबा से जुड़ने के लिए... *ज्ञान धन एकत्रित करने के लिए... सदा अशरीरीपन में रहने का अभ्यास करो* ... किसी भी बात या देह अभिमान में आकर... बाप का हाथ और साथ कभी ना छोड़ो... माया के प्रभाव से दूर रहने के लिए... सच्ची शांति की अनुभूति... करते रहो, खुशी के नगमे गाते रहो अशरीरी बने रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में कुर्बान होकर कहती हूँ* :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मैं आत्मा तो आपके बिना कितनी अकेली थी... सच्ची शांति की अनुभूति, सच्चा सुख, सच्ची खुशियां मुझ आत्मा के लिए... सदा एक अनसुलझी पहेली थी... *आपने मेरे बाबा मुझ आत्मा को अशरीरीपन का अहसास करा कर... आबाद कर दिया...* मैं आत्मा... अब आपका साथ कभी भी ना छोडूंगी..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को शांति और अशरीरीपन में सदा स्थित होने की शक्तियों से नवाजते हुए कहा* :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *महान भाग्य सजाने वाली, देवताई सुखों से दामन को भरने वाली, परमात्म सुख की अनुभूति कराने वाली, इन अमूल्य शक्तियों को कभी मत छोड़ना*... यह शक्तियाँ बेहद के राज समझाएंगी... औऱ माया के विकारो से सुरक्षित रख, ईश्वरीय दिल की धड़कन बनाएंगी..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की प्यार भरी बाहों मे मुस्कुराते हुए कहती हूं* :- "प्यारे दुलारे बाबा मेरे... भला भगवान को पाकर औऱ मुझे क्या चाहिए... *शांति की शक्ति से भरपूर मै आत्मा... आपका दामन कभी भी ना छोडूंगी... हर समय अशरीरीपन में आपके साथ का अनुभव करती मै आत्मा... शांति की मूरत बन सदा आपकी बाहों के झूले में झुलूँगी* ... बाबा के संग सदा शांति से, और अशरीरीपन अर्थात शरीर से डिटैच रहने का वायदा कर ... मैं आत्मा भरपूर ज्ञान खजाने लिए वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर आ जाती हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कभी भी श्रीमत से रूठ मनमत पर नही चलना है*"

 

_ ➳  आबू की ऊँची पहाड़ी पर, अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ, प्रकृति के सुंदर नजारो का मैं आनन्द ले रही हूँ और प्यार के सागर बाबा के प्यार की किरणों रूपी बाहों के आगोश में समा कर बाबा के प्यार की गहराई को अनुभव कर, मन ही मन आनंदित हो रही हूँ। *जैसे एक माँ अपने बच्चे के ऊपर अपना सारा स्नेह उड़ेलती हुई बलिहार जाती है ऐसे अपने शिव पिता को भी माँ के रुप अनुभव करते, अपने ऊपर बरसने वाले उनके स्नेह में समाई ममता को मैं महसूस कर रही हूँ*। यह ममतामई स्नेह की अनुभूति मुझे देह से न्यारा बना रही है।

 

_ ➳  देह से बिल्कुल अलग एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलता हुआ अब मैं स्वयं को देख रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे शिव माँ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के झूले में झुलाती हुई मीठी लोरी देकर मुझे सुला रही है*। और मैं धीेरे - धीरे नींद के आगोश में समाती जा रही हूँ। *अर्धनिद्रा की अवस्था मे स्वयं को अब मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में एक नन्हे से छोटे से बच्चे के रूप में देख रही हूँ*।

 

_ ➳  बापदादा अपनी गोद मे मुझे बिठाकर बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अपने हाथ से मुझे टोली खिला रहें हैं। *मेरे साथ मीठी मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। मेरा हाथ थामे आबू की पहाड़ी की सैर करवा रहें हैं। मेरे साथ अलग - अलग तरह से खेल पाल कर रहें हैं*। बापदादा के कम्बाइंड स्वरूप में अपनी शिव माँ की शक्तियों की किरणों के आंचल में बैठ उनकी ममतामयी गोद का सुख और अपने ब्रह्मा बाप का लाड़ - प्यार पाकर मन ही मन अपने इस सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मैं गौरान्वित हो रहा हूँ।

 

_ ➳  अपने नन्हे बालक स्वरूप में बापदादा से माँ बाप दोनों की कम्बाइंड पालना का असीम सुख लेकर अपने बालक स्वरूप से अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं बापदादा के साथ उनके अव्यक्त वतन की ओर जा रहा हूँ। *आबू की पहाड़ी से उड़कर सारे विश्व का भ्रमण करते हुए बापदादा के साथ मैं फ़रिश्ता अब साकार लोक को पार कर, उससे और ऊपर फ़रिशतो की अव्यक्त दुनिया मे प्रवेश करता हूँ* और फ़रिशतो की दुनिया के अति सुंदर नजारों का आनन्द लेते हुए जा कर प्यारे बापदादा के साथ बैठ जाता हूँ।

 

_ ➳  अपनी शक्तिशाली दृष्टि से मुझे भरपूर करके बाबा मुझे "बालक सो मालिक" का टाइटल देते हुए बालक सो मालिकपन के बैलेंस द्वारा हर कार्य मे सदा सफलता प्राप्त करने का वरदान देते हैं। *बाबा से विजय का तिलक लेते हुए मन ही मन अब मैं बाबा को वचन देता हूँ कि सदा बालक सो मालिकपन की स्मृति में रहते हुए बालक बन बाबा की उंगली थामे कदम - कदम पर बाबा की मत पर चलते हुए, बाबा से मिले सर्व खजानों, सर्व गुणों और सर्व शक्तियों को मालिक बन यूज़ करूँगा*। अपनी मनमत पर कभी नही चलूँगा।

 

_ ➳  बाबा को मन ही मन यह वचन दे कर, उसे पूरा करने के लिए अब मैं अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ वापिस साकारी दुनिया में आ जाता हूँ और अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते हुए *अब मैं सदा बालक सो मालिकपन की स्मृति में रहते हुए हर कर्म कर रही हूँ। बालक बन हाँजी का पाठ पक्का कर बाबा की शिक्षाओं को मान कर, मालिक बन उन्हें अपने जीवन मे धारण कर रही हूँ। अपनी मनमत पर कभी ना चलते हुए केवल एक बाबा की मत पर चलकर, अपने कर्मो को श्रेष्ठ बना कर अब मैं स्वयं के साथ -साथ अनेकों आत्माओं का भी कल्याण कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं तन को आत्मा का मंदिर समझ उसे स्वच्छ बनाने वाली नम्बरवन श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानियत में रहने का व्रत लेने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *बापदादा यही चाहते हैं कि अब थोड़े समय के लिए पुरुषार्थ के प्रालब्ध स्वरूप बन जाओ।* बन सकते हो कि पुरुषार्थ की मेहनत अच्छी लगती है? प्रालब्ध वाले बनेंगे? अभी पुरुषार्थ कर रहा हूँपुरुषार्थ हो जायेगा, करके दिखायेंगे, यह शब्द समाप्त हों। करके दिखायें क्या, दिखाओ। और कब दिखायेंगेक्या विनाश के समय दिखायेंगेइसकी बहुत सहज विधि है कि अब मास्टर दाता बनो। *बाप से लिया है और लेते भी रहो लेकिन आत्माओं  से लेने की भावना नहीं रखो* - यह कर लें तो ऐसा हो। यह बदले तो मैं बदलूंयह लेने की भावना है। ऐसा हो तो ऐसा हो। यह लेने की भावनायें हैं। ऐसा हो नहींऐसा करके दिखाना है। हो जाए तो नहींलेकिन होना ही है और मुझे करना है। *मुझे बायब्रेशन देना है। मुझे रहमदिल बनना है। मुझे गुणों का सहयोग देना है,मुझे शक्तियों का सहयोग देना है। मास्टर दाता बनो। लेना है तो एक बाप से लो। अगर और आत्माओं से भी मिलता है तो बाप का दिया हुआ ही मिलेगा। तो दाता बन फ्राकदिल बनो।* देते रहोदेने आता हैया सिर्फ लेने आता हैअब जो जमा किया है वह दो। आपस में ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर दाता बनो। और दे तो मैं दूं,नहीं। मुझे देना है।

 

 _ ➳  2. जब खजानों से भरपूर हो तो देते जाओ। यह क्यों करतायह क्यों कहता? यह सोच नहीं करो। *रहमदिल बन अपने गुणों काअपनी शक्तियों का सहयोग दो - इसको कहा जाता है मास्टर दाता। महा सहयोगी। सहयोगी भी नहींमहा सहयोगी बनो। महा दाता बनो।*

  

✺   *ड्रिल :-  "महा सहयोगी, मास्टर दाता बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *नवल रूप बिखराती हुई हरी-भरी सुन्दर धरती, गगन से स्वर्णिम किरणें लहराता हुआ सूर्य, मीठी मधुर कलरव करते पंछी, शरद ऋतु के आगमन से ख़ुशी में झूम रहे हैं, मधुर संगीत गा रहे हैं... चारों ओर की हरियाली मन को लुभा रही है... इस सुहावने मौसम में मैं आत्मा इन सतरंगी समाओं का आनंद लेते हुए सेंटर जा रही हूँ...* प्यासी सूखी धरती की प्यास बुझ गई है... और एक तरफ प्यासी, तडपती आत्मायें मंदिरों में भटक रही हैं... शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में मंदिरों में भक्तों की लाइनें लगी हुई हैं... लाउडस्पीकर में माता के गीत गूंज रहे हैं... मंत्रोच्चार, भजनकीर्तन हो रहे हैं... मंदिरों में पूजन, हवनयज्ञ हो रहे हैं... चारों ओर देवियों की विधि-विधान से पूजा हो रही है... भक्त व्रत, उपवासदानपुण्य कर रहे हैं... मैं आत्मा सेंटर जाते-जाते इन भक्तों को देख रही हूँ... *ये सभी अज्ञानी आत्माएं अभी भी इन आडम्बरों में फसें हुए हैं... कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ मैं जो स्वयं परमात्मा, सर्व खजानों का दाता, प्यार का सागर ही मुझे मिल गया...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सेंटर पहुंचकर बाबा के कमरे में बैठ जाती हूँ और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... अपने भाग्य पर नाज करती बाबा की याद में खो जाती हूँ... और अपने को फरिश्ते स्वरूप में सूक्ष्म वतन में पाती हूँ... *प्यारे बाबा प्यार से मुझ फरिश्ते को अपनी गोदी में बिठा लेते हैं... प्यारे बाबा की जादुई भरी मुस्कान मुझ पर जादू चला रही है... सर्व गुण-शक्तियों के सागर के नैनों से निकलती तेजस्वी किरणें मुझ फरिश्ते पर पडकर मेरी चमक और बढ़ा रही हैं...* बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ फेरते हैं... बाबा के वरदानी हाथों से वरदानों की बरसात हो रही है... मैं आत्मा अखूट खजानों से भरपूर हो रही हूँ... सर्व, गुण शक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ... मुझ फरिश्ते से अलौकिकता झलक रही है... मैं फरिश्ता बाप समान बन रही हूँ... दाता की संतान मास्टर दाता बन गई हूँ...

 

 _ ➳  बाबा अपने हाथों से एक सतरंगी हीरों से भरी एक सोने की थाली सजाते हैं... *बाबा के हाथों से निकलती प्रेम, सुख, शांति, आनंद की किरणें हीरों का रूप लेकर थाली में भरते जा रहे हैं... और बाबा मेरे हाथ में थाली देते हैं और प्यार से मुझे दृष्टि देते हैं... मुझ फरिश्ते से अनेक फरिश्ते निकलते जा रहे हैं... मेरे चारों ओर मेरे ही रूप में अनगिनत फरिश्ते हाथों में हीरों से सजी सोने की थाली लेकर खड़े हैं...* फिर बापदादा के साथ मुझ फरिश्ते के सभी रूप धरती पर उतरते हैं... चारों ओर की मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों के सभी दुखी, अज्ञानी आत्माओं के सामने खड़े हो जाते हैं... और हम फरिश्ते थाली से ज्ञान की नीले रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सभी अज्ञानी आत्माओं की अज्ञानता दूर हो रही है... सबको सत्य बाप का परिचय मिल रहा है...

 

 _ ➳  *फिर प्रेम की हरे रंग के हीरे डालते हैं, सबके अन्दर की घृणा भावना खत्म होकर प्रेम और स्नेह भर रहा है... सुख की पीली रंग के हीरे डालते ही सबके दुख पीड़ा दूर हो रहे हैं... सबको अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है...* शांति की आसमानी रंग के हीरों से सबके अन्दर से अशांति बाहर निकलती जा रही है... फिर हम फरिश्ते आनंद की बैंगनी रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबको सुख, शांति, आनंद का अनुभव हो रहा है... एक दूसरे प्रति सहयोग की भावना बढ़ रही है... फिर हम फरिश्ते शक्तियों की लाल रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबके अन्दर की कमी, कमजोरियां खत्म हो रही हैं... सभी अपने अन्दर अलौकिक शक्तियों का अनुभव कर रहे हैं... *पवित्रता के सफेद हीरे सब पर डालते ही सबके अन्दर की अपवित्रता, विकारों रूपी कीचड़ बाहर निकल रहा है... रूहानियत की सुगंध से भरपूर हो रहे हैं... इन चमकते हीरों से सजकर सभी कौड़ी से हीरे तुल्य बन रहे हैं... चारों ओर खुशहाली छा गई है...*  

 

 _ ➳  अब मुझ फरिश्ते के सभी स्वरुप मुझमें एक हो गए हैं... और मैं देखती हूँ मेरे हाथों में रखी हीरों की थाली को जो और भी ज्यादा चमकते हुए हीरों से भर गई है... *जितना मैं मास्टर दाता बन देते जा रही हूँ, मेरी थाली के हीरे बढ़ते जा रहे हैं... मेरे अविनाशी खजाने बढ़ते जा रहे हैं...* मेरे खजानों के भंडार सदा भरपूर रहते हैं... बाबा ने मुझे वरदानी, महादानी बना दिया है... जो भी मुझे बाबा से मिलता है मैं आत्मा सबको देती जा रही हूँ... सदा रहमदिल बन अपने गुणों काअपनी शक्तियों का सहयोग निःस्वार्थ भावना से देती रहती हूँ... शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं के वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाती रहती हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक बाबा से ही लेती हूँ, अन्य आत्माओं से कभी भी लेने की भावना नहीं रखती हूँ... *किसी से भी बिना अपेक्षा किए फ्राकदिल बन दे रही हूँ... सदा विश्व कल्याण के स्टेज पर सेट रहकर महा सहयोगी, महा दाता बन देती रहती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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