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❍ 06 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पढाई पर पूरा ध्यान दिया ?*
➢➢ *याद की यात्रा से आत्मा को पावन बनाने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *ज्वाला रूप की याद द्वारा स्वयं को परिवर्तित किया ?*
➢➢ *जब चाहे शीतल स्वरुप और जब चाहे ज्वाला रूप धारण किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *शक्तिशाली ज्वाला स्वरूप की याद तब रहेगी जब याद का लिंक सदा जुटा रहेगा।* अगर बार-बार लिंक टूटता है, तो उसे जोड़ने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ पदमापदम भाग्यवान आत्मायें अनुभव करते हो! इतना श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में किसी भी आत्मा का नहीं है। चाहे कितने भी नामीग्रामी आत्मायें हों, लेकिन आपके भाग्य के आगे उन्हों का भाग्य क्या है? *वह है अल्पकाल का भाग्य और ब्राह्मण आत्माओंका है - अविनाशी भाग्य। सिर्फ इस एक जन्म का नहीं है, जन्म-जन्म का है। बाप का बनना अर्थात् भाग्य का वर्सा अधिकार में मिलना। तो अधिकार तो मिल गया ना। बच्चा अर्थात् अधिकार, वर्सा।* अधिकार का नशा है कि उतरता चढ़ता है? आधाकल्प तो नीचे ही उतरे, अभी क्या करना है? चलना है, चढ़ना है या उड़ना है? उड़ने वाली चीज बीच में कभी रुकती नहीं। रुकेंगे तो नीचे आयेंगे। थोड़े से समय में भी रुकेंगे फिर उड़ेंगे तो मंजिल पर कैसे पहुँचेंगे? इसलिए उड़ते रहो। लेकिन सदा उड़ेगा कौन? जो हल्का होगा। तो हल्के हो ना? या तन का, मन का, सम्बन्ध का बोझ है? अगर बोझ नहीं है तो रुकते क्यों हैं? जो बोझ वाली चीज है वो नीचे आती है और जो हल्की होती है वह सदा ऊपर रहती है।
〰✧ आप सब तो डबल लाइट हो ना? तो सदा अपने भाग्य को स्मृति में रखने से भाग्य विधाता बाप स्वत: ही याद आयेगा। भाग्य विधाता को याद करना अर्थात् भाग्य को याद करना और भाग्य को याद करना अर्थात् भाग्य विधाता को याद करना। दोनों का सम्बन्ध है। कोई भी एक को याद करो तो दोनों याद आ जाते हैं। *तो चलते-फिरते वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! जो संकल्प में भी न था लेकिन साकार स्वरूप में प्राप्त कर रहे हैं। इतना सहज भाग्य और प्राप्त कितना सहज हो गया!* किसी भी महान आत्मा के पास जाते हैं तो हद की प्राप्ति के लिए - चाहे बच्चा चाहिए, चाहे धन चाहिए, चाहे तन की तन्दरुस्ती चाहिए, तो एक प्राप्ति के लिए भी कितनी मेहनत कराते हैं और आपको क्या करना पड़ा? मेहनत करनी पड़ी? या आंख खुली, तीसरा नेत्र खुला और देखा भाग्य का नजारा।
〰✧ घर बैठे परिचय मिल गया। आप लोगों को ढूंढना नहीं पड़ा। कोई हद के खान से भी हद का खजाना लेना हो तो कितनी भागदौड़ करनी पड़ती है। ये तो सहज ही आपको घर बैठे हाथ में मिल गया। एक बाप एक परिवार। अनेकता खत्म हो गई और सभी एक हो गये। *अपना बाप, अपना परिवार। अपना लगता है ना। चाहे कितना भी दूर हो लेकिन स्नेह समीप ले आता है। स्नेह नहीं तो साथ रहते भी दूर लगता है। तो ईश्वरीय स्नेह वाले परिवार में आ गये। इसलिए सदा याद रखो - ओहो मेरा श्रेष्ठ भाग्य! भाग्य विधाता द्वारा श्रेष्ठ भाग्य पा लिया।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ 'साइलेन्स इज गोल्ड', यही गोल्डन ऐज्ड स्टेज कही जाती है।*इस स्टेज पर स्थित रहने से 'कम खर्च बाला नशीन' बनेंगे।* समय रूपी खजाना, एनर्जी का खजाना और स्थूल खजाना में 'कम खर्च बाला नशीन' हो जायेंगे। *इसके लिए एक शब्द याद रखो। वह कौन सा हे? 'बैलेन्स'।*
〰✧ *हर कर्म में, हर संकल्प और बोल, सम्बन्ध वा सम्पर्क में बैलेन्स हो।* तो बोल, कर्म, संकल्प, सम्बन्ध वा सम्पर्क साधारण के बजाए अलौकिक दिखाई देगा अर्थात चमत्कारी दिखाई देगा।
〰✧ हर एक के मुख से, मन से यही आवाज निकलेगा कि यह तो चमत्कार है। *समय के प्रमाण स्वयं के पुरुषार्थ की स्पीड और विश्व सेवा की स्पीड तीव्र गति की चाहिए तब विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सूर्यवंशी सदा मास्टर ज्ञान-सूर्य अर्थात् पावरफुल स्टेज बीजरूप में रहते अथवा सेकण्ड स्टेज अव्यक्त फरिश्ते में ज़्यादा समय स्थित रहते। *चन्द्रवंशी ज्ञान-सूर्य समान बीज़रूप स्टेज में कम ठहर सकते लेकिन फरिश्ते स्वरूप में और अनेक प्रकार के माया के विघ्नों से युद्ध कर विजयी बनने की स्टेज में ज़्यादा रहते हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पढाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है, जिससे 21 जन्मों के लिए तकदीर जगाना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा कितनी ही तकदीरवान हूँ जो की स्वयं परमपिता परमात्मा, भाग्यविधाता बन मेरी सोई हुई तकदीर को जगाने परमधाम से आये हैं... *अविनाशी बेहद बाबा अविनाशी ज्ञान देकर इस एक जन्म में मुझे पढ़ाकर, 21 जन्मों के लिए मेरी ऊँची तकदीर बना रहे हैं...* यह पढ़ाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है... *मैं रूहानी आत्मा, रूहानी बाबा से, रूहानी पढ़ाई पढने चल पड़ती हूँ रूहानी कालेज सेंटर में...*
❉ *पुरुषोत्तम संगम युग की पढाई से उत्तम ते उत्तम पुरुष बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता की बाँहो में झूलने वाला खुबसूरत समय जो हाथ आया है तो इस वरदानी युग में पिता से अथाह खजाने लूट लो... 21 जनमो के मीठे सुखो से अपना दामन सजा लो...* ईश्वरीय पढ़ाई से उत्तम पुरुष बन विश्व धरा के मालिक हो मुस्करा उठो...”
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी मुरली की मधुर तान पर फिदा होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख निहाल हो गई हूँ... *मेरा मीठा भाग्य मुझे ईश्वर पिता की फूलो सी गोद लिए वरदानी संगम पर ले आया है... ईश्वरीय पढ़ाई से मै आत्मा मालामाल होती जा रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान रत्नों के सरगम से मेरे मन मधुबन को सुरीला बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस महान मीठे समय का भरपूर फायदा उठाओ... *ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से जीवन में खुशियो की फुलवारी सी लगाओ... जिस ईश्वर को दर दर खोजते थे कभी... आज सम्मुख पाकर ज्ञान खजाने से भरपूर हो जाओ... और 21 जनमो के सुखो की तकदीर बनाओ...”*
➳ _ ➳ *दिव्यता से सजधज कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा संग ज्ञान और योग के पंख लिए असीम आनन्द में खो गयी हूँ... *ईश्वर पिता के सारे खजाने को बुद्धि तिजोरी में भरकर और दिव्य गुणो की धारणा से उत्तम पुरुष आत्मा सी सज रही हूँ...”*
❉ *इस संगमयुग में मेरे संग-संग चलते हुए सत्य ज्ञान की राह दिखाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा के साथ का संगम कितना मीठा प्यारा और सुहावना है...* सत्य के बिना असत्य गलियो में किस कदर भटके हुए थे... आज पिता की गोद में बैठे फूल से खिल रहे हो... *ईश्वरीय मिलन के इन मीठे पलों की सुनहरी यादो को रोम रोम में प्रवाहित कर देवता से सज जाओ...”*
➳ _ ➳ *ईश्वरीय राहों पर चलकर ओजस्वी बन दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर श्रेष्ठ भाग्य को पा रही हूँ... इस वरदानी संगम युग में ईश्वर को शिक्षक रूप में पाकर अपने मीठे से भाग्य पर बलिहार हूँ...* और प्यारा सा देवताई भाग्य सजा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप की मत पर चल अपना खाना आबाद करना है*
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की श्रेष्ठ मत और उनकी अनमोल शिक्षाओं को स्मृति में लाकर, मैं एकान्त में बैठ विचार करती हूँ कि भगवान की मत को ना जानने के कारण आज सारी दुनिया के सभी मनुष्य मात्र रावण की मत पर चल कर कैसे अपना खाना बर्बाद कर रहें हैं। *इस बात से भी बेचारे अनजान है कि उनका खाना अगर आबाद हो सकता है तो वो केवल एक भगवान की श्रेष्ठ मत से। और वो भगवान इस समय स्वयं इस सृष्टि पर हमारे सम्मुख आकर, अपनी सर्वश्रेष्ठ मत देकर हम सबका खाना आबाद कर रहें हैं*। धन्य है वो ब्राह्मण आत्मायें जिन्होंने उस भगवान को पहचाना है और उसकी श्रीमत को दिल से स्वीकार किया है। उनकी शिक्षाओं को इस समय जो अपने जीवन मे धारण कर रहें हैं केवल वही अपना खाना आबाद कर रहें हैं बाकी तो सब रावण की मत पर चल अपना खाना बर्बाद कर रहें हैं।
➳ _ ➳ यह विचार करते - करते आखों के सामने आज के संसार की कटु तस्वीर उभर आती है और मैं सोचती हूँ कि जो संसार कभी हीरे तुल्य था। देवताओ की नगरी था। सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर था वही संसार आज कैसे कौड़ी तुल्य बन गया है। *घर - घर मे दुख, पीड़ा और अशांति व्याप्त है। संसार की ऐसी दुर्दशा करने वाली माया रावण ने कैसे सभी को भ्रमित कर दिया है कि चाह कर भी मनुष्य बेचारे उसके चंगुल से स्वयं को मुक्त नही कर पा रहे*। रावण की मत पर चल अपने ही हाथों अपना खाना बर्बाद कर दुखी हो रहें हैं।
➳ _ ➳ संसार की इस तस्वीर को देखते हुए, रावण की मत पर कभी ना चलने की, और अपने प्यारे पिता की मत पर चल अपना और दूसरों का खाना आबाद करने की मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और अपनी श्रेष्ठ मत देकर हमारे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे प्रभु की याद में मन बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ। *अपने मन को मैं श्रेष्ठ संकल्प देती हूँ कि कितनी महान पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो भगवान के साथ डायरेक्ट मेरा मिलन हो रहा है। वो निराकार ज्योति बिंदु मेरा पिता स्वयं मेरा आह्वान कर रहा है*। "वाह मैं आत्मा वाह" "वाह मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य वाह"। वाह - वाह के गीत गाती हुई अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लग्न में मैं मगन हो जाती हूँ और यह लग्न मुझे सेकेण्ड में उनके समान मेरे निराकारी स्वरूप में स्थित कर, देह के भान से मुक्त कर देती है।
➳ _ ➳ अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकार बिंदु बाप से मिलने के लिए अब मैं चल पड़ती हूँ मन बुद्धि की एक अति आनन्दमयी यात्रा पर। *एक ऐसी यात्रा जो मन को तृप्त करने वाली है, जन्म - जन्म की प्यास बुझाने वाली है। मन बुद्धि की इस खूबसूरत यात्रा पर चलने के लिए देह का आधार छोड़, भृकुटि की कुटिया से मैं बाहर आ जाती हूँ और उड़ चलती हूँ देह की दुनिया के पार जो प्रकृति के पांचों तत्वों से परें हैं*। जहाँ देह और देह की दुनिया का संकल्प भी नही। आत्माओं की ऐसी निराकारी दुनिया, अपने स्वीट साइलेन्स होम में मैं पहुँचती हूँ, जहाँ अनन्त प्रकाश ही प्रकाश है और इस प्रकाश की रोशनी मन को गहन सुकून दे रही है। *एक खुमारी सी आत्मा पर जैसे चढ़ती जा रही है और आत्मा ऐसे सुख का अनुभव कर रही है जिसका वर्णन ही नही किया जा सकता*।
➳ _ ➳ अपने इस परमधाम घर में गहन सुकून का अनुभव करते हुए अब मैं अपने प्यारे पिता से मिलन मनाने उनके सम्मुख पहुँचती हूँ। देख रही हूँ अपने निराकार पिता को जो अपनी शक्तियों की अनन्त किरणो रूपी बाहों को फैलाये खड़े है। *बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये अपने पिता की किरणो रूपी बाहो में जा कर मैं समा जाती हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ने अपनी किरणों रूपी गोद में मुझे बिठा लिया है और अपना सारा प्यार अपनी किरणो के रूप में मेरे ऊपर बरसा रहें हैं*।
➳ _ ➳ बाबा की सर्वशक्तियो की किरणो रूपी गोद मे बैठ, उनके असीम स्नेह की गहन अनुभूति करके मैं तृप्त हो जाती हूँ और लौट आती हूँ वापिस देह की साकारी दुनिया में फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए। मन मे यह दृढ़ संकल्प लेकर कि हर कदम अब मुझे अपने पिता की श्रेष्ठ मत पर चलकर अपना सर्वश्रेष्ठ पार्ट बजाना है और अपना खाना आबाद करना है। *इस प्रतिज्ञा को हर समय बुद्धि में रख, बार - बार अब मैं अटेंशन देकर चेक करती हूँ कि मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म श्रीमत प्रमाण है या नही। ऐसे बार - बार अपनी सूक्ष्म चेकिंग करते हुए अपने इस संकल्प को दृढ़ता के साथ अब मैं पूरा कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ज्वाला रूप की याद द्वारा स्वयं को परिवर्तन कर ब्राह्मण से फ़रिश्ता, सो देवता आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं जब चाहे तब शीतल स्वरूप और जब चाहे तब ज्वाला रूप धारण करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा दास आत्माओं की कर्मलीला देख रहम के साथ-साथ मुस्कराते हैं।
साकार में भी एक हँसी की कहानी सुनाते थे। दास आत्मायें क्या करत भई! कहानी याद
है? सुनाया था कि *चूहा आता, चूहे को निकालते तो बिल्ली आ जाती, बिल्ली को
निकालते तो कुत्ता आ जाता। एक निकालते दूसरा आता, दूसरे को निकालते तो तीसरा आ
जाता। इसी कर्म-लीला में बिजी रहते हैं। क्योंकि दास आत्मा है ना।* तो कभी आँख
रूपी चूहा धोखा दे देता, कभी कान रूपी बिल्ली धोखा दे देती। कभी बुरे संस्कार
रूपी शेर वार कर लेता, और बिचारी दास आत्मा उन्हों को निकालते-निकालते उदास रह
जाती है। *इसलिए बापदादा को रहम भी आता और मुस्कराहट भी आती। तख्त छोड़ते ही क्यों
हो,आटोमेटिक खिसक जाते हो क्या? याद के चुम्बक से अपने को सेट कर दो तो खिसकेंगे
नहीं। फिर क्या करते हैं?*
➳ _ ➳ बापदादा के आगे आर्जियों के लम्बे-चौड़े फाइल रख देते हैं। कोई अर्जी डालते
कि एक मास से परेशान हूँ, कोई कहते 3 मास से नीचे ऊपर हो रहा हूँ। कोई कहते 6
मास से सोच रहा था लेकिन ऐसे ही था। इतनी आर्जियाँ मिलकर फाईल हो जाती - लेकिन
यह भी सोच लो जितनी बड़ी फाइल है उतना फाइन देना पड़ेगा। *इसलिए अर्जी को खत्म
करने का सहज साधन है - सदा बाप की मर्ज़ी पर चलो। ‘‘मेरी मर्ज़ी यह है'' तो वह
मनमर्ज़ी अर्जी की फाइल बना देती है। जो बाप की मर्ज़ी वह मेरी मर्ज़ी।* बाप की
मर्ज़ी क्या है?
➳ _ ➳ *हरेक आत्मा सदा शुभचिंतन करने वाली,सर्व के प्रति सदा शुभचिंतक रहने वाली,
स्व कल्याणी और विश्व-कल्याणी बनें। इसी मर्ज़ी को सदा स्मृति में रखते हुए बिना
मेहनत के चलते चलो।* जैसे कहा जाता है - आँख बन्द करके चलते चलो। ऐसा तो नहीं,
वैसा तो नहीं होगा? यह आँख नहीं खोलो। यह व्यर्थ चिंतन की आँख बन्द कर बाप की
मर्ज़ी अर्थात् बाप के कदम पीछे कदम रखते चलो। पाँव के ऊपर पाँव रखकर चलना
मुश्किल होता है वा सहज होता है? तो ऐसे सदा फालो फादर करो। फालो सिस्टर, फालो
ब्रदर यह नया स्टेप नहीं उठाओ। इससे मंजल से वंचित हो जायेंगे। रिगार्ड
दो,लेकिन फालो नहीं करो। विशेषता और गुण को स्वीकार करो लेकिन फुटस्टेप बाप के
फुटस्टेप पर हो। समय पर मतलब की बातें नहीं उठाओ। मतलब की बातें भी बड़ी मनोरंजन
की करते हैं। वह डायलॉग फिर सुनायेंगे,क्योंकि बापदादा के पास तो सब सेवा
स्टेशन्स की न्यूज आती है। आल वर्ल्ड की न्यूज आती है। तो दास आत्मा मत बनो।
✺ *"ड्रिल :- बाप की मर्ज़ी पर चल भिन्न भिन्न प्रकार की अर्जी को समाप्त करना”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सभी लौकिक व्यक्त बातों से मन बुद्धि को समेट कर अलौकिकता को
धारण कर अव्यक्त फरिश्ता बन अव्यक्त वतन पहुंच जाती हूं… अव्यक्त बापदादा के
सम्मुख बैठ जाती हूं...* वहां मैं देखती हूं बापदादा बहुत सारे फाइलें चेक कर
रहे थे... मैं बाबा को पूछती हूं- बाबा ये सब फाइलें क्या हैं? बाबा बोले बच्ची
ये सबकी अर्जियों की लंबी चौड़ी फाइलें हैं... जब बाप की मर्ज़ी को छोड़ मनमर्ज़ी
करते हैं तो वह मनमर्ज़ी अर्जी की फाइल बना देती है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा को कहती हूँ:- जी बाबा क्या करें, *एक के बाद एक माया रूप
बदल कर आती है, कभी चूहा, कभी बिल्ली, कभी शेर बनकर आती है, तो हम आत्मायें
उसका सामना नहीं कर पाते फिर परेशान होकर नीचे ऊपर होते रहते हैं...* एक
निकालते तो दूसरा आ जाता, दूसरे को निकालते तो तीसरा आ जाता... इसी कर्म-लीला
में बिजी रहकर उदास रहते हैं... दुखी हो जाते हैं...
➳ _ ➳ बापदादा मुस्कुराते हुए बोले:- बच्ची- तख्त छोड़ते ही माया तुम पर वार
करती है... *जब तख्त पर विराजमान रहते हो तो सदा सेफ रहते हो... याद के चुम्बक
से अपने को सदा के लिए सेट कर दो तो तख्त से कभी भी खिसकेंगे नहीं...* बाप की
मर्ज़ी को अपनी मर्जी बना लो... सदा बाप की मर्ज़ी पर चलोगे तो सारी अर्जियां सहज
ही खत्म हो जायेंगी... बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर वरदान देते हैं-
सदा शुभचिंतन कर, सर्व के प्रति सदा शुभचिंतक बन स्व कल्याणी और विश्व-कल्याणी
बनो...
➳ _ ➳ बाबा के वरदानों, खजानों से भरपूर होकर मैं आत्मा अपने को सम्पन्न महसूस
कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा बाबा की मर्जी को अपनी मर्ज़ी बनाकर चल रही हूँ...
बिना मेहनत के, व्यर्थ चिंतन की आँख बन्द करके चल रही हूँ...* बाबा के हर कदम
में कदम रख चल रही हूँ... फालो फादर करती हुई हर कर्म में सफलता प्राप्त कर रही
हूँ... अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी को फालो नहीं करती हूँ... बाप के फुटस्टेप
पर फुटस्टेप रख मंजिल की तरफ बढती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सबको रिगार्ड देकर सबकी विशेषताओं और गुणों को स्वीकार करती
हूँ... व्यर्थ बातें, व्यर्थ चिंतन छोड़ स्मृति स्वरुप, समर्थी स्वरुप बन रही
हूँ... बाबा की याद के चुम्बक से अपने को तख्त पर सेट कर अब मैं आत्मा सदा
तख्तनशीन बनकर रहती हूँ... शुभ भावनाओं और शुभ कामनाओं से सर्व का कल्याण कर
रही हूँ... अब मैं आत्मा कभी भी मनमत वा परमत पर नहीं चलती हूँ... सदा ही बाबा
की श्रीमत का पालन करती हूँ... *बाबा की मर्जी ही अब मेरी मर्जी है... बाबा के
बताए एक-एक शब्द को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा बाप की मर्ज़ी
पर चलकर भिन्न भिन्न प्रकार की अर्जी को समाप्त कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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