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 22 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बिना मेहनत के सहज बाप के स्नेह में समाये हुए सहयोगी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"छोडो तो छूटो" - यह बात सदा ब्रह्मा बाप के तावीज़ के रूप में याद रखी ?*

 

➢➢ *स्वयं में यज्ञ सेवा का बल अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सदा संतुष्ट रहे और दूसरों को संतुष्ट किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे साइन्स का बल अन्धकार के ऊपर विजय प्राप्त कर रोशनी कर देता है। ऐसे योगबल सदा के लिये माया पर विजयी बनाता है।* स्वयं में भी उन्हें माया हार नहीं खिला सकती। *स्वप्न में भी कमजोरी नहीं आ सकती। योगबल से प्रकृति के तत्व भी परिवर्तन हो जाते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सच्चा सेवाधारी हूँ "*

 

  याद की खुशी से अनेक आत्माओंको खुशी देने वाले सेवाधारी हो ना। *सच्चे सेवाधारी अर्थात् सदा स्वयं भी लगन में मगन रहें और दूसरों को भी लगन में मगन करने वाले।* हर स्थान की सेवा अपनी-अपनी है। फिर भी अगर स्वयं लक्ष्य रख आगे बढ़ते हैं तो यह आगे बढ़ना सबसे खुशी की बात है।

 

  वास्तव में यह लौकिक स्टडी आदि सब विनाशी हैं लेकिन अविनाशी प्राप्ति का साधन सिर्फ यह नालेज है। ऐसे अनुभव करते हो ना। देखो आप सेवाधारियों को ड्रामा में कितना गोल्डन चान्स मिला हुआ है। *इसी गोल्डन चांस को जितना आगे बढ़ाओ उतना आपके हाथ में है। ऐसा गोल्डन चांस सभी को नहीं मिलता है। कोटों में कोई को ही मिलता है।* आपको तो मिल गया। इतनी खुशी रहती है?

 

  दुनिया में जो किसी के पास नहीं वह हमारे पास है। ऐसे खुशी में सदा स्वयं भी रहो और दूसरों को भी लाओ। जितना स्वयं आगे बढ़ेंगे उतना औरों को बढ़ायेंगे। सदा आगे बढ़ने वाली, यहाँ वहाँ देखकर रुकने वाली नहीं। *सदा बाप और सेवा सामने हो, बस। फिर सदा उन्नति को पाती रहेंगी। सदा अपने को बाप के सिकीलधे हैं ऐसा समझकर चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *अभी जैसे समय की रफ्तार  चल रही है उसी प्रमाण अभी यह पाँव पृथ्वी पर नहीं रहने चाहिए।* कौन - सा पाँव? याद की यात्रा करते हो। कहालत है ना कि फरिश्तों के पाँव पृथ्वी पर नहीं होते। तो अभी यह बुद्धि पृथ्वी अर्थात प्रकृती के आकर्षण से परे हो जायेगी फिर कोई भी चीज़ नीचे नहीं ला सकती। फिर प्रकृती को अधीन करने वाले हो जायेंगे। न कि प्रकृति के अधीन होने वाले।

  

✧  जैसे साइन्स वाले आज प्रयत्न कर रहे हैं, पृथ्वी से परे जाने के लिये। वैसे ही साइलन्स की शक्ती से इस प्रकृती के आकर्षण से परे, जब चाहे तब अधीन कर दो। तो ऐसी स्थिती कहाँ तक बनी है? अभी तो बापदादा साथ चलने के लिये सूक्ष्मवतन में अपना कर्तव्य कर रहे हैं लेकिन यह भी कब तक? जाना तो अपने ही घर में है ना। इसलिए *अभी जल्दी - जल्दी अपने को ऊपर की स्थिति में स्थित करने का प्रयत्न करो।*

 

✧  साथ चलना, साथ रहना और फिर साथ में राज्य करना है ना। साथ कैसे होगा? समान बनने से। *समान नहीं बनेंगे तो साथ कैसे होगा।* अभी साथ उडना है, साथ रहना है। यह स्मृती में रखो तब अपने को जल्दी समान बना सकेंगे।नहीं तो कुछ दूर पड जायेंगे। वायदा भी है ना कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ ही राज्य करेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अपने आपको एक सेकण्ड में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा समझ आत्म-अभिमानी व देही-अभिमानी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* अर्थात् एक सेकण्ड में कर्म-इन्द्रियों का आधार लेकर कर्म किया और एक सेकण्ड में फिर कर्म-इन्द्रियों से न्यारा, ऐसी प्रेक्टिस हो गई है? कोई भी कर्म करते कर्म के बन्धन में तो नहीं फंस जाते हो? कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से न्यारा बन सकते हो वा अब तक भी कर्म-इन्द्रियों द्वारा कर्म के वशीभूत हो जाते हो? हर कर्म-इन्द्रिय को जैसे चलाना चाहो वैसे चला सकते हो व आप चाहते एक हो, कर्म इन्द्रियाँ दूसरा कर लेती हैं? रचयिता बनकर रचना को चलाते हो? *जड़ वस्तु चैतन्य के वश में है, चैतन्य आत्मा जैसे चलाना चाहे वैसे चला नहीं सकती?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- छोड़ो तो छूटो"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूपी पंछी इस संसार रूपी डाल को छोड़कर मीठे बाबा के प्यार के पंख लगाकर पहुँच जाती हूँ वतन में मीठे बाबा के पास...* प्यारे बाबा ने इस संसार रूपी डाल में कैद मुझ आत्मा को आजाद कराकर खुले आसमान में उड़ता पंछी बना दिया है... *अब मैं आत्मा इस देह, देह के बंधन, देह के वैभवों से न्यारी होकर एक बाबा के प्यार में डूब जाती हूँ...*

 

*प्यारा बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... सदा उड़ता पंछी बन बाप के समीप मिलन् का अनुभव करो... सदा बाप के कन्धों पर बैठ झूमते रहो... *पुराने सस्कारों की डाली को बुद्धि रुपी पांव से न पकड़ो... शक्तियो को स्वयं में जाग्रत कर बाप समान फॉलो फादर बनो...* सदा मीठा मिलन मनाओ... ब्रह्मा बाप समान नम्बर वन बन जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा रावण की जंजीरों से मुक्त होकर देवताई संस्कारों को धारण करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा अपने स्वभाव संस्कारो की डाली को छोड़ उड़ता पंछी बन झूम रही हूँ... सारे विघ्नो को पारकर उड़ रही हूँ...* सुंदर पंछी बनकर बाबा के सम्मुख मिलन् मना रही हूँ...

 

  *हद के बन्धनों से छुड़ाकर अपने प्रेम की बाँहों में समाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा बाबा की ऊँगली पकड़ नाचने वाले कन्धों पर नाचने वाले बन जाओ... *बेहद की सेवा करने वाले हर परिस्थिति रुपी डाली से मुक्त सुंदर पंछी बन जाओ...* सदा श्रीमत के हाथ को थामे संकल्प बोल कर्म को सफल करने वाली श्रेष्ठ आत्मा स्वतन्त्र पंछी बन उडते रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर मुस्कुराते खिलखिलाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा को नस नस में समा कर अति भाग्यशाली बन गयी हूँ... ईश्वर हो गया है मीत मेरा तो पुलकित सी झूम रही हूँ... *सदा मिलन के नृत्य में मशगूल सी... मै आत्मा सुंदर पंछी चहकता गीत गाता नृत्य करता.... बन बाबा के कन्धे पर इठला रही हूँ...”*

 

  *अपना असीम अनंत प्यार मुझ पर बरसाकर मुझे भरपूर करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच्ची सीताये बन नस नस में राम की याद समायी हो... *बाप समान कदमो में पदम् की कमाई कर मालामाल बनो... सदा समर्थ आत्मा बन व्यर्थ से मुक्त बनो...* सदा मीठे बाबा को दिल में बसाये उसकी यादो में खो जाओ... कम्बाइंड रह सच्चे प्यार में स्वयं को भरपूर करो...

 

_ ➳  *मीठे बाबा के प्यार के रंग में सज धज कर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा की यादो में श्रेष्ठ आत्मा बन सज गयी हूँ... *प्यारे बाबा को अपनी सांसो में समाकर दो दिल एक जान हो गयी हूँ... सदा बाबा के साथ कम्बाइंड रह परमात्म मिलन में झूम रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा ब्रह्मा बाप के स्नेह में समाये हुए सहयोगी बनकर रहे*"

 

_ ➳  अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के मधुबन घर में, बाबा के कमरे में बैठी मैं देख रही हूँ अपने सामने लगे बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र को जिसे देखते ही अनुभव होता है *जैसे बाबा साक्षात सामने बैठे हैं अपने हर नये बच्चे को भी वैसी ही साकार पालना का अहसास दिलाने के लिए जैसी साकार पालना हमारी वरिष्ठ दादियों ने साकार बाबा से ली है*। बाबा के उस चित्र को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे बाबा अपने नयनों में अथाह स्नेह को समाये एकटक मुझे देख रहें हैं। *बाबा के नयनों में अपने लिए समाये असीम स्नेह के साथ, अपने सहयोगी राइट हैंड के रूप में मुझे देखने की उनकी आश को भी उनके नयनों में मैं स्पष्ट पड़ रही हूँ*।

 

_ ➳  मन ही मन बाबा की इस आश को पूरा करने की मैं स्वयं से और बाबा से प्रतिज्ञा करते ही अनुभव करती हूँ जैसे बाबा मेरे हर संकल्प को पड़ रहे हैं और मन्द - मन्द मुस्करा भी रहें हैं। *एक अलौकिक दिव्य मुस्कराहट के साथ बाबा के वरदानी हाथ को मैं अपने सिर के ऊपर अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा "विजयी भव" का वरदान देकर मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भर रहें हैं। शक्तियों की रंग बिरंगी सुनहरी किरणो को बाबा के वरदानी हस्तों से निकल कर अपने अंदर समाते हुए मैं महसूस कर रही हूँ। *सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फुहारें मेरे मस्तक को स्पर्श करके सीधी मुझ आत्मा में प्रवाहित होकर मुझे बलशाली बना रही हैं*।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे आप समान बनाने के लिए बाबा अपनी शक्तियों का समस्त बल मुझमें भर रहें हैं। एक विशेष दिव्य शक्ति मैं अपने अंदर अनुभव कर रही हूँ। यह शक्ति मुझे बहुत ही लाइट और माइट स्थिति में स्थित कर रही है। *अपने साकार तन को मैं लाइट के शरीर मे परिवर्तित होते देख रही हूँ। सफेद लाइट के फरिश्ता स्वरूप में मैं स्थित हो चुकी हूँ और अपने इस डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप में मैं धरनी के आकर्षण से स्वयं को न्यारा होते हुए महसूस कर रही हूँ*। मेरे अंग - अंग से श्वेत रश्मियां निकल कर चारों और फैल रही हैं और इन रश्मियों को फैलाता हुआ अब मैं फरिश्ता धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ रहा हूँ।

 

_ ➳  सदा ब्रह्मा बाप के स्नेह में समाकर, उनका सहयोगी बनने का संकल्प लिए हुए अब मैं आकाश को पार कर, उससे ऊपर उनके अव्यक्त वतन की ओर बढ़ रहा हूँ। *देख रहा हूँ मैं सामने अपने अव्यक्त ब्रह्मा बाप के अव्यक्त वतन के खूबसूरत अव्यक्त नज़ारो को। सामने अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में ब्रह्मा बाबा अपने सहयोगी बच्चो का स्वागत करने के लिए अपनी बाहों को फैलाकर खड़े है*। बाबा के मस्तक से निकल रही स्नेह की धारायें पूरे वतन में फैल रही हैं और इनसे निकलने वाले स्नेह के वायब्रेशन्स आत्मा को छूकर उसे असीम स्नेह देकर अव्यक्त में भी साकार पालना का अनुभव करवा रहें हैं। *स्नेह के उस रूहानी वायुमण्डल में आकर असीम स्नेह पाकर मैं फरिश्ता स्वयं को तृप्त अनुभव कर रहा हूँ*।

 

_ ➳  बाबा के पास जाकर, बाबा की बाहों में समाकर उनके प्यार की गहराई में खोकर, उनके स्नेह का रिटर्न देने के लिए मैं फरिश्ता अब वापिस साकारी दुनिया मे आ रहा हूँ। *साकार सृष्टि पर अपने साकारी तन में प्रवेश कर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, ब्रह्मा बाप की सहयोगी बन कर, परमात्म कार्य को सम्पन्न करने और ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्णता को पाने का पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ*। नव सृष्टि की स्थापना के कार्य में निमित बन, ब्रह्मा बाप के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए मैं कदम - कदम पर उन्हें फॉलो कर रही हूँ। *उनके एक - एक कर्म को कॉपी करते हुए मैं स्वयं को अमूल्य बना कर, अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा औरों के जीवन को अमूल्य बनाने का लक्ष्य रख उनकी अमूल्य पालना का रिटर्न उनकी सहयोगी बन कर दे रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा मिलन के झूले में झूलने वाली तत्त्वम  के वरदानी बाप समान आत्मा हूँ।*  

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाए रहकर सेफ्टी का अनुभव करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ऐसे अगर अपनी बुद्धि में समझते रहें कि मैं शक्ति स्वरूप हूँ लेकिन परिस्थितियों के समय, सम्पर्क में आने के समय, जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है उस शक्ति को कर्म मे नहीं लाते तो कोई मानेगा कि यह शक्ति स्वरूप हैं? सिर्फ बुद्धि तक जानना वह हो गया घर बैठे अपने को होशियार समझना। *लेकिन समय पर स्वरूप न दिखाया, समय पर शक्ति को कार्य में नहीं लगाया, समय बीत जाने के बाद सोचा तो शक्ति स्वरूप कहा जायेगा? यही कर्म में श्रेष्ठता चाहिए। जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगावें। तो अपने आपको सारे दिन की कर्म लीला द्वारा चेक करो कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान कहाँ तक बने हैं!*

 

✺  *"ड्रिल :- मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठकर... साइंस के साधनों से डिटैच होती हुई... मन-बुद्धि को साधना में एकाग्र करती हूँ...* मैं आत्मा बाबा के तस्वीर को निहार रही हूँ... बाबा के तस्वीर से निकलती किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो रहा है... मैं आत्मा विदेही बन रही हूँ... *मैं आत्मा इस साकार शरीर को छोड़ते हुए आकारी फरिश्ता स्वरूप धारण कर... साकार लोक से ऊपर उड़ते हुए आकारी फरिश्तों की प्रकाश की दुनिया में पहुँच जाती हूँ...*

 

_ ➳  सर्व शक्तिवान बाबा मुझ फरिश्ते को अपने सामने प्यार से बिठाते हैं... *सर्व शक्तियों के सागर से सर्व शक्तियां फाउंटेन के रूप में मुझ फरिश्ते में समा रही हैं...* पवित्र किरणों से मैं फरिश्ता पवित्र बन रही हूँ... *अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ...* सर्वशक्तिवान बाबा की सर्व शक्तियों को धारण कर मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगा रही हूँ...* सिकोड़ने और फैलानी की शक्तिसे मैं आत्मा अपनी कर्मेंद्रियो के ऊपर राज्य कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म कराती हूँ फिर न्यारी हो जाती हूँ... अपने आत्मिक स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ... *मैं आत्मा समेटने की शक्तिको धारण कर देह, देह से संबंधित सभी विस्तारों को सार में समेटकर एवररेडी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  व्यक्ति और प्रकृति द्वारा कैसी भी परिस्थितियां आये मैं आत्मा सहन शक्तिसे सब कुछ सहन करती हूँ... *समाने की शक्तिसे मैं आत्मा सबके गुणों, विशेषताओं को अपने अन्दर समा रही हूँ... परखने की शक्तिको मैं आत्मा कर्म में प्रयोग कर सही गलत की परख करती हूँ...* और निर्णय शक्तिसे सही निर्णय कर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

_ ➳  *‘सामना करने की शक्तिको धारण कर मैं आत्मा माया के तूफानों का भी दृढ़ता से सामना कर रही हूँ...* पहाड़ जैसी परिस्थितियों को सहजता से पार कर रही हूँ... अब मैं आत्मा हर प्रकार के हलचल में भी अचल अडोल रहती हूँ... *सहयोग की शक्तिसे मैं आत्मा सर्व आत्माओं को स्नेह और सहयोग से भरपूर कर रही हूँ... सबके प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रख दुआओं का खाता बढा रही हूँ...*

 

_ ➳  *पवित्रता की शक्ति, शांति की शक्ति का प्रयोग कर मैं आत्मा चारों ओर के वायुमंडल को पवित्र और शांत कर रही हूँ... सतोप्रधान बना रही हूँ...* चारों ओर की अपवित्रता, तमोप्रधानता को खत्म कर रही हूँ... अब मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन समय पर शक्तियों को कार्य में लगाती हूँ... और श्रेष्ठ कर्म करती हूँ... *अब मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ऑर्डर प्रमाण चलाकर मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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