━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 21 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *श्वासों श्वास बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *उस्ताद के हाथ में हाथ दे सम्पूरण पावन बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *एक बल एक भरोसे के आधार से सफलता प्राप्त की ?*

 

➢➢ *नयनो में पवित्रता की झलक और मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट रही ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *जब मन्सा में सदा शुभ भावना वा शुभ दुआयें देने का नेचुरल अभ्यास हो जायेगा तो मन्सा आपकी बिजी हो जायेगी। मन में जो हलचल होती है, उससे स्वत: ही किनारे हो जायेंगे।* अपने पुरुषार्थ में जो कभी दिलशिकस्त होते हो वह नहीं होंगे। जादूमन्त्र हो जायेगा।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं सदा खुशी के झूले में झूलने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा खुशी के झूले में झूलने वाले हो ना। कितना बढ़िया झूला बापदादा से प्राप्त हुआ है। यह झूला कभी टूट तो नहीं जाता? *याद और सेवा की दोनों रस्सियाँ टाइट हैं तो झूला सदा ही एकरस रहता है। नहीं तो एक रस्सी ढीली, एक टाइट तो झूला हिलता रहेगा।*

 

✧  *झूला हिलेगा तो झूलने वाला गिरेगा। अगर दोनों रस्सियाँ मजबूत हैं तो झूलने में मनोरंजन होगा। अगर गिरे तो मनोरंजन के बजाए दु:ख हो जायेगा।*

 

  *तो याद और सेवा दोनों रस्सियाँ समान रहें, फिर देखो ब्राह्मण जीवन का कितना आनन्द अनुभव करते हो। सर्वशक्तिवान बाप का साथ है, खुशियों का झूला है और चाहिए ही क्या!*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *भविष्य में जीवनमुक्ति तो प्राप्त होनी है लेकिन अब संगमयुग पर जीवनमुक्ति का अलौकिक आनंद और ही अलौकिक है।* जैसे ब्रह्मा बाप को देखा - कर्म करते कर्म के बन्धन से न्यारे। जीवन में होते कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे। इतने बडे परिवार की जिम्मेवारी, जीवन की जिम्मेवारी, योगी बनाने की जिम्मेवारी, फरिश्ता सो देवता बनाने की जिम्मेवारी होते हुए भी बेफिकर बादशाह।

 

✧  इसी को ही जीवनमुक्त स्थिति कहा जाता है। इसलिए भक्ति मार्ग में भी ब्रह्मा का आसन कमल पुष्प दिखाते हैं। कमल आसनधारी दिखाते हैं। तो *आप सभी बच्चों को भी संगम पर ही जीवनमुक्त का अनुभव करना ही है।* बापदादा से मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा इस समय ही प्राप्त होता है।

 

✧  इस समय ही मास्टर मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता बनना है। बने हैं और बनना है। *मुक्ति-जीवनमुक्ति के मास्टर दाता बनने की विधि है - सेकण्ड में देहभान मुक्त बन जायें। इस अभ्यास की अभी आवश्यकता है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  सर्व प्वाइंट का सार व स्वरूप प्वाइंट (बिंदी) ही बनना है। *सर्व प्वाइंट का सार भी प्वाइंट में आता है तो प्वाइंट रूप बनना है।* प्वाइंट अति सूक्ष्म होता है जिसमें सभी समाया हुआ है। इस समय मुख्य पुरुषार्थ कौन सा चल रहा है? *अभी पुरुषार्थ है विस्तार को समाने का। जिसको विस्तार को समाने का तरीका आ जाता है वही बापदादा के समान बन जाते हैं।* पहले भी सुनाया था ना कि समाना और समेटना है। *जिसको समेटना आता है उनको समाना भी आता है।* बीज में कौन-सी शक्ति है? वृक्ष के विस्तार को अपने में समाने की । *तो अब क्या पुरुषार्थ करना है? बीज स्वरूप स्थिति में स्थित होने का अर्थात् अपने विस्तार को समाने का।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- और सबसे बुद्धि की प्रीत निकाल मामेकम याद करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मेरी एक पुकार सुन तुरन्त आ जाते हैं और मुझे अपने साथ ले चलते हैं वतन में... और ज्ञान की बरसात करते हैं... *ज्ञान सागर बाबा मुझे ज्ञान की नौका में बिठाकर विषय सागर को पार करा रहे हैं... मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार रूहानी खिवैया के हाथों में सौम्पकर निश्चिन्त होकर बाबा की यादों में खो जाती हूँ...*

 

   *काँटों के जंगल से निकाल फूलों की बगिया में मुस्कुराता हुआ फूल बनाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... इस पुरानी खत्म होने के कगार पर खड़ी दुनिया से रगो को बाहर निकालो... सारा ममत्व मिटा दो... *देह और देह के नातो से निकल आत्मा के भान में आ जाओ... सिर्फ मीठे बाबा की यादो में खो जाओ...* यही यादे सदा का साथ निभाएगी और सुखो की दुनिया में ले जाएँगी...

 

_ ➳  *सर्व संबंधों का रस एक बाबा से लेते हुए एक बाबा को ही अपनी दुनिया बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस विकारी दुनिया से मन और बुद्धि को निकाल कर निर्मोही हो गई हूँ... *आपकी मीठी यादो में खोकर इस विनाशी दुनिया को भूल गई हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है...”*

 

   *यादों की महफिल सजाकर अमृत पान कराकर अमर बनाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब देह व देह के भान में लिपटे नातो से उपराम बनो... और आत्मिक सुंदरता से सज जाओ... *इस विनाशी संसार में दिल न फंसाओ... वक्त से पहले देवताई गुणी शक्तियो से सज जाओ... मीठे बाबा की याद को हर साँस में पिरो दो...* वही सच्चा सहारा है... और स्वर्ग में ले जाने वाला है...

 

_ ➳  *सत्य ज्ञान से दमकती अपने निज स्वरुप में मणि समान चमकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप और सतयुगी सुखो को जानकर झूठ के जंजालों से परे होती जा रही हूँ... समय और सांसो को मीठे बाबा पर ही लुटा रही हूँ...* और विनाशी संसार के मोहपाश से मुक्त हो रही हूँ...

 

   *अंतर्मन में ज्ञान की ज्योत जगाकर अविनाशी सुखों के राह को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह शरीर के रिश्ते और ही गहरे गिराएंगे और गहरे दुखो के दलदल में उलझायेंगे... इनसे मन बुद्धि को बाहर निकाल ईश्वरीय यादो में स्वयं को पावन बनाओ...* और ज्ञान और योग से सजकर देवताई स्वराज्य पा जाओ... इस विकारी विनाशी दुनिया से दिल न लगाओ...

 

_ ➳  *इस देह की दुनिया से न्यारी होकर प्रभु पिता के दिल में सदा के लिए सजकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार में मै आत्मा मोह से मुक्त होती जा रही हूँ... *इन देह के खोखले नातो के प्रभाव से आजाद होती जा रही हूँ... और सच्ची मीठी यादो में झूम रही हूँ... और सतयुगी सुनहरे संसार में खोती जा रही हूँ...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- उस्ताद के हाथ मे हाथ दे सम्पूर्ण पावन बनना है*"

 

_ ➳  भगवान के साथ सर्व सम्बन्धो का सुख सारे कल्प में केवल इस समय ही मिलता है इसका प्रेक्टिकल अनुभव करती हुई मैं नन्ही सी परी बन अपने खुदा दोस्त के साथ स्वयं को एक बहुत खूबसूरत दुनिया में देख रही हूँ। *इस खूबसूरत दुनिया मे रंग बिरंगे खुशबूदार फूलों के एक अति सुंदर बगीचे में अपने खुदा दोस्त के साथ टहलते हुए मैं उनसे मीठी - मीठी बातें कर रही हूँ*। मेरे खुदा दोस्त मेरे साथ अनेक प्रकार से खेल पाल कर रहें है। उनके साथ मैं इस खूबसूरत दुनिया के खूबसूरत नज़ारे देख रही हूँ।

 

_ ➳  मन को लुभाने वाली इस बहुत निराली और अद्भुत पिकनिक का आनन्द लेने के बाद मैं जैसे ही अपनी स्व स्वरूप में स्थित होती हूँ, *मैं अनुभव करती हूँ कि अपने जिस सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में मैं पहली बार अपने परमधाम घर से इस कर्मभूमि पर आई थी, उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को पुनः पाने के लिए, पवित्रता के सागर, मेरे पतित पावन परम पिता परमात्मा मुझे अपने पास बुला रहें हैं*। यह अनुभव करते ही मैं देखती हूँ जैसे पतित पावन मेरे शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के लाइट के तन में विराजमान होकर मेरे सामने आ गए हैं और मेरा हाथ थामने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा रहे हैं।

 

_ ➳  अपने भगवान उस्ताद के हाथ मे हाथ देते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे एक बहुत तेज करेन्ट मेरे सारे शरीर मे दौड़ने लगा है। *पवित्रता की किरणों का अनन्त प्रवाह बापदादा के हाथों से मेरे शरीर के अंग - अंग में प्रवाहित हो रहा है*। शक्तियों का यह तीव्र प्रवाह शरीर के भान को जैसे समाप्त कर रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरा शरीर प्रकाश का बन गया है और इतना हल्का हो गया है कि धरती के आकर्षण को छोड़ ऊपर उड़ने लगा है। *अपने उस्ताद के हाथ मे हाथ देकर, इस दुनिया से मैं बहुत दूर ऊपर आकाश में आ गई हूँ*।

 

_ ➳  नीचे धरती के नजारों को देखते हुए, इस खूबसूरत यात्रा का आनन्द लेते - लेते मैं आकाश को भी पार करके अपने उस्ताद के साथ अब उनके अव्यक्त वतन में पहुँच गई हूँ। *अपने ही समान लाइट के शरीर वाले फरिश्तो को मैं इस वतन में यहाँ वहाँ उड़ते हुए देख रही हूँ जो अपने उस्ताद की इस खूबसूरत दुनिया में मेरे ही समान उनके पास मिलन मेला मनाने आये हैं*। अपने इस अव्यक्त वतन के सुंदर नजारो को देखते - देखते अब मैं स्वयं को पवित्रता की शक्ति से भरपूर करने के लिए बापदादा के सामने जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपनी पावन दृष्टि से मुझे निहारते हुए मेरे उस्ताद पवित्रता की किरणें मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बापदादा की पावन दृष्टि से पवित्रता का झरना बह रहा है जिससे निकल रही पवित्र फुहारें मुझ पर बरस रही हैं। *बाबा के मस्तक से आ रही पवित्रता की तेज लाइट मुझे गहराई तक छूकर, पवित्रता की शक्ति से मुझे भरपूर कर रही है*। अपने उस्ताद से पवित्रता का बल अपने अंदर भरकर अब मैं अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का अनुभव करने के लिए अपने लाइट के आकारी शरीर को इस अव्यक्त वतन में छोड़, अपने निराकारी स्वरूप को धारण कर निराकारी वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  आत्माओं की इस निराकारी दुनिया मे मैं बिंदु आत्मा अब अपने पतित पावन बिंदु बाप के बिल्कुल समीप जा कर बैठ जाती हूँ। *बिंदु बाप से आ रही पवित्रता की अनन्त किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं और मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को भस्म कर मुझे पावन बना रही है*। मेरा पवित्रता का औरा बढ़ता जा रहा है। मैं रीयल गोल्ड बनती जा रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा पवित्रता की खुराक खिलाकर मुझे बहुत शक्तिशाली बना रहे हैं।

 

_ ➳  रीयल गोल्ड के समान शुद्ध बन कर अब मैं आत्मा वापिस साकार वतन में लौटती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, सम्पूर्ण पावन बनने के अपने लक्ष्य को पाने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपने अनादि सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त करने के लिए और उसी स्वरूप में वापिस अपने घर जाने के लिए, अपना बुद्धि रूपी हाथ उस्ताद के हाथ मे देकर, उनकी याद से अब मैं स्वयं को पावन बना रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक बल एक भरोसे के आधार से सफलता प्राप्त करने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं नयनों में पवित्रता की झलक और मुख पर पवित्रता की मुस्कुराहट से  पर्सनैलिटी को श्रेष्ठ बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  स्वयं में निश्चय - *बाप में निश्चय सभी बच्चों का है तब तो यहाँ आये हैं।* *बाप का भी आप सब में निश्चय है तब अपना बनाया है।* लेकिन ब्राह्मण जीवन में सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने के लिए *स्व में भी निश्चय आवश्यक है।* बापदादा के द्वारा प्राप्त हुए श्रेष्ठ आत्मा के स्वमान सदा स्मृति में रहे कि *मैं परमात्मा द्वारा स्वमानधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ।* *साधारण आत्मा नहीं, परमात्म स्वमानधारी आत्मा।* *तो स्वमान हर संकल्प में, हर कर्म में सफलता अवश्य दिलाता है।* साधारण कर्म करने वाली आत्मा नहीं, स्वमानधारी आत्मा हूँ। *तो हर कर्म में स्वमान आपको सफलता सहज ही दिलायेगा।* तो *स्व में निश्चयबुद्धि की निशानी है - सफलता वा विजय।*

 

 _ ➳  बाप में निश्चय - *बाप में तो पक्का निश्चय है, उसकी विशेषता है -* *'निरन्तर मैं बाप का और बाप मेरा'।* यह निरंतर विजय का आधार है। *'मेरा बाबा' सिर्फ बाबा नहीं, मेरा बाबा।* मेरे के ऊपर अधिकार होता है। तो *मेरा बाबा, ऐसी निश्चयबुद्धि आत्मा सदा अधिकारी है -* *सफलता की, विजय की।*

 

 _ ➳  ड्रामा में निश्चय -  *ड्रामा में भी पूरा-पूरा निश्चय चाहिए।* सफलता और समस्या दोनों प्रकार की बातें ड्रामा में आती है *लेकिन समस्या के समय निश्चयबुद्धि की निशानी है - समाधान स्वरूप।* *समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप द्वारा परिवर्तन कर देना।* समस्या का काम है आना, *निश्चयबुद्धि आत्मा का काम है समाधान स्वरूप से समस्या को परिवर्तन करना।* क्यों? आप हर ब्राह्मण आत्मा ने ब्राह्मण जन्म लेते माया को चैलेन्ज किया है। किया है ना या भूल गये हो? *चैलेन्ज है कि हम मायाजीत बनने वाले हैं।* तो समस्या का स्वरूप, माया का स्वरूप है। जब चैलेन्ज किया है तो माया सामना तो करेगी ना! वह भिन्न-भिन्न समस्याओं के रूप में आपकी चैलेन्ज को पूरा करने के लिए आती है। *आपको निश्चयबुद्धि विजयी स्वरूप से पार करना है,* *क्यों? नथिंग न्यु।* कितने बार विजयी बने हो? अभी एक बार संगम पर विजयी बन रहे हो वा अनेक बार बने हुए को रिपीट कर रहे हो? *इसलिए समस्या आपके लिए नई बात नहीं है, नथिंगन्यु।* *अनेक बार विजयी बने हैं, बन रहे हैं और आगे भी बनते रहेंगे।* *यह है ड्रामा में निश्चयबुद्धि विजयी।*

 

 _ ➳  ब्राह्मण परिवार में निश्चय -1. ब्राह्मण परिवार का अर्थ ही है संगठन। छोटा परिवार नहीं है, *ब्रह्मा बाप का ब्राह्मण परिवार सर्व परिवारों से श्रेष्ठ और बड़ा है।* *तो परिवार के बची, परिवार के प्रीत की रीति निभाने में भी विजयी।* ऐसा नहीं *कि बाप मेरा, मैं बाबा का, सब कुछ हो गया, बाबा से काम है, परिवार से क्या काम!* *लेकिन यह भी निश्चय की विशेषता है। चार ही बातों में निश्चय, विजय आवश्यक है।* परिवार भी सभी को कई बातों में मजबूत बनाता है। *सिर्फ परिवार में यह स्मृति रहे कि सब अपने-अपने नम्बरवार धारणा स्वरूप हैं।* वैरायटी है। इसका यादगार 108 की माला है। सोचो - कहाँ एक नम्बर और कहाँ 108वाँ नम्बर, क्यों बना? सब एक नम्बर क्यों नहीं बने? 16 हजार क्यों बना? कारण? *वैरायटी संस्कार को समझ नालेजफुल बन चलना, निभाना,* *यही सक्सेसफुल स्टेज है।* चलना तो पड़ता ही है। परिवार को छोड़कर कहाँ जायेंगे। *नशा भी है ना कि हमारा इतना बड़ा परिवार है।* *तो बड़े परिवार में बड़ी दिल से हर एक के संस्कार को जानते हुए चलना, निर्माण होके चलना, शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से चलना...* *यही परिवार के निश्चबुद्धि विजयी की निशानी है।*

 

 _ ➳  2. *इक्कीस जन्म का कनेक्शन परिवार से है। इसलिए जो परिवार में पास है, वह सब में पास है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "स्वयं में, बाप में, ड्रामा में, ब्राह्मण परिवार में निश्चय होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मै आत्मा बहुत ही भाग्यशाली हूँ... जो स्वयं *परमपिता परमात्मा भगवान ने खुद आकर कोटो में कोई, कोई में भी कोई आत्माओं में मुझे चुना और मै क्या हूँ...* उसका ज्ञान दिया... मै आत्मा अभी तक खुद को एक शरीर समझती आ रही थी... *परमपिता ने बताया कि मैं शरीर नहीं एक अविनाशी आत्मा हूँ... परमपिता परमात्मा ने मुझे बताया कि मैं एक श्रेष्ठ आत्मा हूँ... मै एक पवित्र, सुख स्वरुप आत्मा हूँ...* ये निश्चय मुझ आत्मा को है... जो हर कल्प अपना पार्ट बजाती हूँ... *इस कल्प में भी अपना हीरो पार्ट बजा रही हूँ...* बाबा का भी मुझ आत्मा में सम्पूर्ण निश्चय हैं... जो उन्होने मुझे अपना बनाया है... वाह मेरा भाग्य... मै भगवान द्वारा बनाये गए ब्राह्मण कुल की आत्मा हूँ... और इस ब्राह्मण जीवन में *मै आत्मा सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के लिए आई हूँ...* और मुझ आत्मा को स्वयं में निश्चय हैं... कि मै संपूर्ण और सम्पन्न बन रही हूँ...

 

 _ ➳  परमपिता परमात्मा द्वारा दिए गए श्रेष्ठ स्वमान मेरे लिए है... *मैं आत्मा देह अभिमान को भूल कर स्वमान में रहती हूँ...* श्रेष्ठ स्वमान हर पल मेरी स्मृति में रहते हैं... जैसी परिस्थिति वैसे ही स्वमान में मै आत्मा स्थित रहती हूँ... *मै परमात्मा द्वारा स्वमान धारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ...* मै आत्मा सारे कल्प में श्रेष्ठ पार्ट बजाती हूँ... *मै हीरो पार्ट धारी आत्मा हूँ...* स्वयं भगवान ने मुझे चुना हैं... तो मै साधारण कैसे हो सकती हूँ... मुझ आत्मा को  शुद्ध अभिमान है कि परमात्मा की याद में हर कार्य करती हूँ... *मेरे हर संकल्प श्रेष्ठ हैं... हर कार्य और हर संकल्प में श्रेष्ठ स्वमान होने से मुझे हर कार्य में सफ़लता मिलती हैं...* मै सफ़लता मूर्त आत्मा हूँ... *मेरे हर कदम में सफ़लता समाई हुई है... मै आत्मा साधारण कर्म करते हुए भी श्रेष्ठ स्वमान धारी आत्मा हूँ...* श्रेष्ठ स्वमान से मुझ आत्मा को शक्ति मिलती हैं... जिससे हर कार्य में सफ़लता निश्चित है... *मुझे निश्चय है कि सफ़लता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है...*

 

 _ ➳  *मै आत्मा निरंतर अपने परमपिता की याद में खोई हुई हूँ... हर कार्य में मै आत्मा उनकी याद में हूँ, जिससे मुझ आत्मा को हर कार्य में सफ़लता मिलती जा रही है... मै आत्मा निश्चय बुद्धि हूँ कि मेरे पिता मेरे साथ है...* वो मेरा है और मै उसकी हूँ... *मुझ आत्मा को सम्पूर्ण निश्चय है कि उस पर मेरा संपूर्ण अधिकार है...* उसकी सारी शक्तियां, सारे ख़जाने मेरे है... मेरा बाबा, सिर्फ मेरा बाबा... उसने मुझे अपना बनाया है... *मै आत्मा एकदम निश्चिंत हूँ कि परमपिता मेरे साथ है...* वो हर पल साथ है... और *मै आत्मा सदा की अधिकारी आत्मा हूँ...* और *मै सदा की विजयी आत्मा हूँ...*

 

 _ ➳  मै आत्मा ड्रामा में अटल हूँ... *बाबा ने ड्रामा का ज्ञान दे करके मुझ आत्मा को निश्चिंत बनाया है... चाहे सफ़लता हो या समस्या... मै आत्मा साक्षी होकर उसे देख रही हूँ... नथिंग न्यू...* हर कल्प ये ड्रामा हुबहु फिरता है... *चाहे ख़ुशी हो या दुःख मै आत्मा ड्रामा समझ उसे पार करती हूँ...* और समस्या के समय मै आत्मा एकदम निश्चित हो जाती हूँ कि ये समस्या भी चली जाएगी... हर समस्या का समाधान है... *श्रेष्ठ स्वमान और बाबा की दी हुई शिक्षाओ से मै आत्मा समाधान स्वरुप बन करके हर समस्या को पार कर लेती हूँ...* ब्राह्मण जीवन में समस्या का आना स्वाभाविक है... पर मै आत्मा समाधान स्वरुप हूँ... *माया मुझ आत्मा के सामने चाहे कितने भी रूप दिखाए पर मै मायाजीत आत्मा हूँ...* माया भिन्न भिन्न रूप से समस्या लेकर आती है... सामना करती हैं... पर मै आत्मा परखने की शक्ति के द्वारा उस पर विजय प्राप्त करती हूँ... *मै निश्चय बुद्धि आत्मा हर कल्प की विजयी आत्मा हूँ...* इस स्मृति से मै माया के हर रूप पर विजय प्राप्त कर लेती हूँ... नथिंग न्यू... कोई भी समस्या आये मै आत्मा उस पर विजय प्राप्त कर लेती हूँ... कोई भी बात मेरे लिए नई नहीं है... *कल्प कल्प मैंने इन्हें पार करके विजय प्राप्त की है... और इस कल्प में भी मै विजयी आत्मा हूँ...* और आगे भी मै आत्मा विजयी बनूँगी... *इस ड्रामा में मुझ आत्मा को संपूर्ण निश्चय है...*

 

 _ ➳  परमपिता ने मुझ आत्मा को शूद्र से ब्राह्मण बनाया है... साथ में *बहुत सुंदर ब्राह्मण परिवार दिया है...* यह एक शक्तिशाली संगठन है... *यह बेहद का परिवार स्वयं ब्रह्मा बाप ने बनाया है...* यह परिवार बहुत ही सुंदर और अनोखा है... *यह श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परिवार है...* मै सर्व स्नेही आत्मा हूँ... *ब्राह्मण परिवार का प्यार, सम्मान, सहयोग मुझ आत्मा को मिल रहा है...* सभी आत्माओ की जो प्रीत है उसे मै आत्मा सच्चे मन से सभी को दिल की मुबारक दे रही हूँ... मै आत्मा भी रिटर्न में सभी को सहयोग दे रही हूँ... *मै ब्राह्मण परिवार में प्रीत निभाने में भी विजयी आत्मा हूँ...* बाबा के साथ साथ मुझ आत्मा को इस बेहद के परिवार से भी बहुत प्यार है... बाबा ने कहाँ कहाँ से सभी बच्चो को अपना बनाया है... *हर एक ब्राह्मण में कोई ना कोई विशेषता बाबा ने दी है... सब भगवान के बच्चे है...* सभी दैवीय कुल की आत्माये है... सभी विजयी आत्मा है मुझे निश्चय है... मुझ आत्मा को इस बेहद के परिवार से मजबूत सहयोग मिल रहा है... आगे बढ़ने में, सेवा में, स्व पुरुषार्थ में हर बात में मुझ आत्मा को इस बेहद के परिवार से सहयोग मिल रहा है... *मै आत्मा किसी भी आत्मा की कमी कमज़ोरी ना देखते हुए गुणग्राहक हूँ...* सभी नंबरवार आत्माये है... *सभी में कोई न कोई गुण अवश्य है...* बाबा के रूहानी बगीचे के सभी भिन्न भिन्न प्रकार के फूल है... सभी के अपने अपने संस्कार है... मै आत्मा सभी के संस्कारों को समझ के सबके साथ हूँ...

 

 _ ➳  *बाबा ने मुझ आत्मा को नॉलेज दिया है कि सभी नंबर वार है तो मै आत्मा सभी के संस्कार को समझ कर उनसे तोड़ निभाते हुए चल रही हूँ...* और मुझ आत्मा को ब्राह्मण परिवार में भी सफ़लता मिल रही है... इस बेहद के परिवार में मुझ आत्मा का संपूर्ण निश्चय है... मुझ आत्मा को इतना बड़ा परिवार मिला है... *यह रूहानी नशा मुझे है कि यह परिवार मेरा है...* इस बेहद के परिवार में सभी आत्माओ के अपने अलग अलग संस्कार है... *हर एक के संस्कार को देखते हुए मै आत्मा सब के साथ हूँ...* सब के साथ निर्माण हूँ... सभी को प्यार से चला रही हूँ... *सभी के लिए मेरे मन में शुभ कामना, शुभ भावना की वृत्ति है... बेहद के ब्राह्मण परिवार की प्रीत में मै आत्मा विजयी हूँ... इक्कीस जन्म हम आत्माये किसी ना किसी रूप में एक दुसरे के साथ जुड़ीं हुई हैं...* अभी संगम में हम सभी बाबा के बच्चे फिर से मिले हैं... *पूरे कल्प में किसी ना किसी रूप में भी साथ हैं...* मै आत्मा भी इस संगम में सब आत्माओ के साथ हूँ... *इस बेहद के ब्रह्मा बाप के परिवार के साथ हूँ... और बाबा के पास हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━