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 27 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपना बुधीयोग बेहद से पार घर में लगाए रखा ?*

 

➢➢ *आत्मा भाई-भाई का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *हर गुण व् शक्ति को सपना स्वरुप बनाया ?*

 

➢➢ *सर्व खजानों की चाबी "बाबा" शब्द को संभाल कर रखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में झूलते *सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एक बल और एक भरोसा' स्थिति में रहने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*

 

  सदा एक बल और एक भरोसा' - इसी स्थिति में रहते हो? *एक में भरोसा अर्थात् बल की प्राप्ति। ऐसे अनुभव करते हो? निश्चयबुद्धि विजयी, इसी को दूसरे शब्दों में कहा जाता है - 'एक बल, एक भरोसा'। निश्चय बुद्धि की विजय न हो यह हो नहीं सकता।*

 

  *अपने में ही जरा-सा संकल्प मात्र भी संशय आता कि यह होगा या नहीं होगा, तो विजय नहीं। अपने में बाप में और ड्रामा में पूरा-पूरा निश्चय हो तो कभी विजय न मिले, यह हो नहीं सकता। अगर विजय नहीं होती तो जरूर कोई न कोई पाईन्ट में निश्चय की कमी है।*

 

  जब बाप में निश्चय है तो स्वयं में भी निश्चय है। मास्टर है ना। जब मास्टर सर्वशक्तिवान हैं तो ड्रामा की हर बात को भी निश्चयबुद्धि होकर देखेंगे! *ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चों के अन्दर सदा यही उमंग होगा कि मेरी विजय तो हुई पड़ी है। ऐसे विजयी ही - विजय माला के मणके बनते हैं। विजय उनका वर्सा है। जन्म-सिद्ध अधिकार में यह वर्सा प्राप्त हो जाता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *यह फरिश्ते पन में या पुरुषार्थ में विशेष जो रूकावट होती है, उसके दो शब्द ही हैं - जो कॉमन शब्द हैं, मुश्किल भी नहीं है और सभी अनेक बार यूज भी करते हैं। वह क्या है? मैं और मेरा।* बापदादा ने बहुत सहज विधि पहले भी बताई है, इस मैं और मेरे को परिवर्तन करने की, याद है? देखो, *जिस समय आप मैं शब्द बोलते हो ना, उस समय सामने आये कि मैं हूँ ही आत्मा, मैं शब्द बोलो और सामने आत्मा रूप को लाओ।*

 

✧   मैं शब्द ऐसे नहीं बोलो, मैं आत्मा। यह नेचरल स्मृति में लाओ। मैं शब्द के पीछे आत्मा लगा दी। मैं आत्मा। जब मेरा शब्द बोलते हो तो पहले कहो मेरा बाबा, मेरा रूमाल, मेरी साडी, मेरा यह। लेकिन पहले मेरा बाबा। मेरा शब्द बोला, बाबा सामने आया। *मैं शब्द बोला आत्मा सामने आई, यह नेचर और नेचरल बनाओ, सहज है ना या मुश्किल है?*

 

✧  जानते ही हो मैं आत्मा हूँ। सिर्फ उस समय मानते नहीं हो जानना 100 परसेन्ट है, मानना परसेन्टेज में है। *जब बॉडी कान्सेस नेचरल हो गया, याद करना पडता है क्या कि मैं बॉडी (शरीर) हूँ, नेचरल याद है ना तो मैं शब्द मुख के पहले तो संकल्प में आता है ना तो संकल्प में भी मैं शब्द आवे तो फौरन आत्मा स्वरूप सामने आये।* यह अभ्यास करना सहज नहीं है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *आप भी कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करना चाहिए।* एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करना चाहिए। अगर यह प्रैक्टिस नहीं करेंगे तो बिन्दू रूप की पावरफुल स्टेज कैसे और कब ला सकेंगे? इसलिए यह अभ्यास करना आवश्यक है। *बीच-बीच में यह प्रैक्टिस प्रैक्टिकल में करते रहेंगे तो जो आज यह बिन्दु रूप की स्थिति मुश्किल लगती है वह ऐसे सरल हो जायेगी जैसे अभी मैजारिटी को अव्यक्त स्थिति सहज लगती है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप हद और बेहद की नालेज देते हैं-सतयुग त्रेता है हद, द्वापर कलियुग है बेहद”*

 

 _ ➳  *अमृतवेले के समय... मैं आत्मा... अपने ज्ञान सूर्य शिवबाबा की यादों में खोई हुई... अपलक... अपने प्यारे बाबा को बहुत प्यार से निहार रही हूँ...* और मीठे चिंतन में खो गयी हूँ... मैं कितनी पद्मापदम सोभाग्यशाली आत्मा हूँ... *जो बाबा ने मुझे मेरे आत्मिक  स्वरूप का एहसास करा मुझे शांत... सुखी... हल्का और सच्चे आनंद से भर दिया है...* अपने प्यारे बाबा को याद करते करते मैं आत्मा... उड़ चली वतन में...

 

  *प्यारे मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को हद और बेहद की नॉलेज देते हुए कहा :- "मीठी प्यारी बच्ची... सतयुग त्रेता है... हद और द्वापर कलियुग है... बेहद...* मीठी बच्ची... हद का अर्थ समझती हो... हद अर्थात एक सीमा तक... सतयुग आदि में केवल 9 लाख मनुष्य आत्माऐं होती हैं... फिर धीरे-धीरे वृद्धि को पाती हैं... और द्वापर कलियुग में... बेहद में... सात सौ करोड़ से भी ज्यादा आत्माऐं होती हैं..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के इस अमूल्य ज्ञान को स्वयं में समाते हुए बहुत प्यार से कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... *आपने मुझ आत्मा के जीवन को... इस हद और बेहद का ज्ञान देकर सोने का पात्र बना दिया है...* मैं आत्मा आपकी ज्ञान रोशनी में... अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकल... खुशियो के गुलदस्ते समान मालामाल हो गयी हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य ज्ञान से भरपूर करते हुए कहा :-* "मीठी प्यारी फूल बच्ची... कोई भी मनुष्य रचयिता और रचना... और सृष्टि के आदि-मध्य-अंत के बारे में नही जानते... *मैं... स्वयं निराकार... ब्रह्मा तन का आधार ले... सृष्टि के इस गुह्य राज़ को समझाता हूँ...* इस समय सभी आत्माऐं दुःखी, अशांत, भ्रष्टाचारी, पतित बन पड़ी हैं... दैवी सभ्यता... गुणो को भूल... आसुरी गुणो वाली हो गयी हैं..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के इस अमूल्य ज्ञान को बुद्धि में समेटकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी छत्रछाया में... आपसे इन अनमोल ज्ञान रत्नों को पाकर... खुशियों की धनी हो गयी हूँ... *मैं आत्मा अब आपके प्यार से... इन दिव्य रत्नों से सतोगुणी बन... सच्चा सोना बन रही हूँ..."*

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को पवित्रता का सच्चा मार्ग दिखाते हुए कहा :- "मीठी, लाडली बच्ची... सारा मदार पवित्रता का है...* इस झूठे, असार संसार में... कमल फूल समान पवित्र रहते हुए मुझ एक बाप को याद करो तो पावन बन जायेगे... और जो इस सत्य मार्ग में चलते हुए केवल मुझे याद करेगें...वही इस *हद और बेहद की नॉलेज को जानगें..."*

 

 _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को गले लगाती हुई कहती हूँ :-* "मेरे सच्चे सहारे... मेरे मीठे बाबा... *आपने मुझ आत्मा को हद और बेहद का गहरा राज़ समझ कर... पवित्रता का सच्चा मार्ग दिखलाकर... मेरा जीवन सुखमय बना दिया है... मुझे अपने प्यार से पवित्र बनाकर... दिव्य गुणो से महका दिया है...* आपकी श्रीमत को पाकर मैं आत्मा तो सच्चा सोना बन रही हूँ... मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आई..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- उल्टे सुल्टे संकल्पो से मुक्त होने के लिए बुद्धियोग हद बेहद से पार घर में लगाना है*"

 

_ ➳  हर प्रकार के उल्टे सुल्टे संकल्पो से मुक्त, निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा के साथ मंगल मिलन मनाने की अतीन्द्रीय सुखमय स्थिति का सुखद अनुभव स्मृति में आते ही बुद्धियोग सहज ही हद से निकल अपने बेहद घर मे लग जाता है और मन फिर से उस सुख को पाने के लिए बेकरार हो उठता है। *और मैं मनमनाभव की स्थिति में स्थित होकर, अपने निराकारी स्वरूप में, सेकेण्ड में देह को छोड़, विदेही बन हद बेहद से पार अपने निर्वाण धाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*। वाणी से परें इस निर्वाण धाम घर मे पहुँच कर, निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर, बीज रूप अवस्था मे, मैं आत्मा सर्वशक्तियों और सर्वगुणों के सागर अपने बीज रूप शिव पिता के पास जाकर बैठ जाती हूँ और दिव्य बुद्धि के तीसरे नेत्र से उन्हें निहारने लगती हूँ।

 

_ ➳  अपने निराकार शिव पिता से आ रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए इस खूबसूरत और लुभावने दृश्य का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ। *हर संकल्प से मुक्त, निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर अपने प्यारे मीठे बाबा को एकटक निहारने का यह सुख बहुत ही निराला है*। मन बुद्धि रूपी नेत्र एक सेकण्ड के लिए भी अपने प्यारे बाबा के इस अति सुंदर सुखदायी स्वरूप से हटना नही चाहते। पूरे 5 हजार वर्ष मैं आत्मा अपने पिता परमात्मा से दूर रही, उनके एक दर्शन पाने के लिए मैं कहाँ - कहाँ नही भटकी! और *अब जबकि वो मेरे सामने है तो उनसे इतना लम्बा समय दूर रहने की सारी प्यास मैं आज ही बुझा लेना चाहती हूँ*। स्वयं को पूरी तरह से तृप्त कर लेना चाहती हूँ।

 

_ ➳  इसलिए अपने दिलाराम बाबा को बड़े प्रेम से निहारते हुए, उनके प्रेम की गहराई में मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ। स्वयं को मैं उनके ही समान अनुभव कर रही हूँ। *अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर, अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और धीरे - धीरे उनकी एक - एक किरण को अब मैं छू रही हूँ*। उनकी एक - एक किरण से मिल रही शक्ति का बल मुझे उनके समान तेजोमय बना रहा है। *संकल्प विकल्प से रहित मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर अपने बीज रूप बाप के साथ मंगल मिलन मनाने का सुख मुझे परम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है*।

 

_ ➳  सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन बाबा से निकल - निकल कर चारों ओर फैल रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा से सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की किरणो की मीठी - मीठी फुहारें मुझ आत्मा पर बरस रही हैं। ये फुहारें शीतलता के साथ - साथ असीम शक्ति भी मुझ आत्मा में भर रही हैं। *परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। निरसंकल्प बीज रूप स्थिति में बीज रूप अपने पिता परमात्मा से मिलने का आनन्दमयी, सुखदायी एहसास अपने साथ लेकर, शक्ति सम्पन्न बन कर अपने निराकारी स्वरूप में मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ* साकारी दुनिया में और अपने पांच तत्वों के बने शरीर में प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, उल्टे सुल्टे संकल्पो से मुक्त होने के लिए बुद्धियोग हद बेहद से पार अपने घर परमधाम में लगा कर, परमात्म बल से स्वयं को सदा भरपूर रखने के लिए मैं बार - बार साकारी सो निराकारी की ड्रिल करती रहती हूँ। *"हाथ कर डे, दिल यार डे" इस स्लोगन को अपने जीवन मे धारण कर, साकार तन में रहते हाथों से हर कर्म करते, बुद्धि योग ऊपर लटकाकर परमात्म शक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर करती रहती हूँ*।

 

_ ➳  *परमात्म बल मुझे समर्थ बनाकर समर्थ चिंतन में बिज़ी रहने में विशेष सहयोग दे रहा है। जब चाहे अपना बुद्धि योग हद बेहद से पार, अपने घर मे लगाकर, बाबा की याद से अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर उल्टे सुल्टे संकल्पों के बोझ से स्वयं को सहज ही मुक्त कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर गुण वा शक्त्ति को अपना स्वरूप बनाने वाली बाप समान सम्पन्न आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं "बाबा" शब्द की सर्व खजानों की चाबी को सदा सम्भालकर कर रखने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. कई बच्चे मुश्किल पुरुषार्थ क्यों करते? सिर्फ सोचते हैं बिन्दु सामने आ जाए, बिन्दु-बिन्दु-बिन्दु... और बिन्दु खिसक जाती है। *बिन्दु तो है लेकिन कौन-सी बिन्दु? मैं कौन हूँ, यह अपने स्वमान स्मृति में लाओ तो रमणीक पुरुषार्थ हो जायेगा सिर्फ ज्योति बिन्दु कहते हो ना तो मुश्किल हो जाता है। सहज पुरुषार्थ, मौज का पुरुषार्थ करो।*

 

 _ ➳  2. *सहज योगी का यह मतलब नहीं है कि यह अलबेलेपन का पुरुषार्थ हो। श्रेष्ठ भी हो और सहज भी हो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सहज पुरुषार्थ करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  कितनी सुंदर हैं संगम की अमूल्य घड़ियां... स्वयं भाग्यविधाता भाग्य बांटने के लिए इस धरा धाम पर पधारे हैं... भगवान मुझ आत्मा पर मेहरबान हो गए हैं... वे स्वयं कह रहे हैं कि सर्व संबंधों का रस मुझ एक बाप से लो... बाबा मेरा परमपिता, परम शिक्षक, परम सतगुरु है, मेरा साजन है, मेरा साथी, मेरा खुदादोस्त, गाइड है... *दुनिया के संबंध तो दुःख देने वाले हैं... सर्व संबंधों का सच्चा सुख, अविनाशी स्नेह एक बाबा से ही मिल सकता है...*

 

 _ ➳  परम सतगुरु बाबा मुझे वरदानों से निहाल कर रहे हैं... रोज नया वरदान देकर जीवन में अलौकिकता की खुशबू भर रहे हैं... ऐसी दिव्य, अलौकिक पालना अपने रूहानी बाबा से मुझ आत्मा को मिल रही है... जो पालना राजाओं, साहूकारों को भी नहीं मिल पाती... *परम शिक्षक बन रोज बाबा परमधाम से पढ़ाने के लिए आते हैं... ज्ञान के गुह्य रहस्यों को स्पष्ट करते हैं...* बाबा ने दिव्य बुद्धि के वरदान द्वारा मुझ आत्मा के जन्म जन्मांतर से बंद बुद्धि का ताला खोल दिया है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि के वरदान से संपन्न बन गई हूँ... *बाबा ने जन्म जन्म का अविनाशी भाग्य बनाने की कितनी सहज युक्तियाँ बताई हैं... मैं आत्मा बाबा की मोहब्बत में मगन होकर सर्व प्रकार की मेहनत से मुक्त हो गई हूँ...* मैं बाबा की शिक्षाओं का प्रैक्टिकल स्वरुप बन रही हूँ... बाबा की शब्दों को ही नहीं, शब्दों के साथ-साथ उनके पीछे के भाव को भी ग्रहण कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्योति बिंदु स्वरुप में स्वयं को स्थित कर बिंदु बाबा की याद से आत्मा की जन्मों की कालिख भस्म कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  बाबा ने मुझ आत्मा को कितने श्रेष्ठ  स्वमान दिए हैं... *मैं एक एक स्वमान को याद कर उस स्वमान का स्वरुप बन रही हूँ...* मैं आत्मा बिंदु हूँ... साथ में कौन सी आत्मा हूँ... मैं विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... मैं महान आत्मा हूँ... मैं बाबा का चुना हुआ अमूल्य रत्न हूँ... जैसे स्वमानों की स्मृति से मुझ आत्मा का पुरुषार्थ बिल्कुल सहज हो गया है... *मन वैरायटी स्वमानों के अभ्यास में रमणीकता और मौज का अनुभव कर रहा है... मैं आत्मा इस सहज, रमणीक पुरुषार्थ से नित्य नवीन, सुंदर अनुभव कर रही हूँ... बाबा के स्नेह की गहराइयों में समाती जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  मुझ आत्मा का पुरुषार्थ हठपूर्वक नहीं है... मैं स्वतः योगी, रमता योगी, सहज योगी, निरंतर योगी आत्मा हूँ... *सर्व प्रकार के आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त मैं अलर्ट और एवररेडी आत्मा हूँ...* समय की समीपता को देखते हुए मैं आत्मा उड़ती कला का पुरुषार्थ कर रही हूँ... मैं अपना हर सेकंड याद और यज्ञ सेवा में सफल कर रही हूँ... ईश्वरीय स्नेह में समाई हुई मैं आत्मा सहज योगी, श्रेष्ठ योगी आत्मा हूँ... *मैं आत्मा पुरुषार्थ में नित्य नूतनता का अनुभव करते हुए... संगम की मौज मना रही हूँ... अतीन्द्रिय सुख की रास मना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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