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 12 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विहंग मार्ग में सर्विस करने की युक्तियाँ निकाली ?*

 

➢➢ *योग में रह बाप से ताकत ली ?*

 

➢➢ *ब्राह्मण जीवन में ख़ुशी के वरदान को सदा कायम रखा ?*

 

➢➢ *अनेक बातों को न देख अथक सेवा पर उपस्थित रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कर्मातीत अर्थात् कर्म के वश होने वाला नहीं लेकिन मालिक बन, अथॉरिटी बन कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध में आये, विनाशी कामना से न्यारा हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराये।* आत्मा मालिक को कर्म अपने अधीन न करे लेकिन अधिकारी बन कर्म कराता रहे। *कराने वाला बन कर्म कराना-इसको कहेंगे कर्म के सम्बन्ध में आना। कर्मातीत आत्मा सम्बन्ध में आती है, बन्धन में नहीं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजऋषि हूँ"*

 

  सभी राजऋषि हो ना? *राज अर्थात् अधिकारी और ऋषि अर्थात् तपस्वी। तपस्या का बल सहज परिवर्तन कराने का आधार है।*

 

  *परमात्म-लगन से स्वयं को और विश्व को सदा के लिये निर्विग्न बना सकते हैं। निर्विग्न बनना और निर्विग्न बनाना - यही सेवा करते हो ना।*

 

  *अनेक प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओंको मुक्त करने वाले हो। तो जीवनमुक्ति का वरदान बाप से लेकर औरों को दिलाने वाले हो ना। निर्बन्धन अर्थात् जीवनमुक्त।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *रोज दिन समाप्त होने अपने सहयोगी कर्मचारियों को चेक करो।* अगर कोई भी कमेंद्रियों से वा कर्मचारी से बार-बार गलती होती रहती है तो गलत कार्य करते-करते संस्कार पक्के हो जाते हैं। फिर चेज करने में समय और मेहनत भी लगती है।

 

✧  उसी समय चेक किया और चेंज करने की शक्ति दी तो सदा के लिए ठीक हो जायेंगे। सिर्फ बार-बार चेक करते रहो कि यह रांग है, यह ठीक नहीं है और उसको चेंज करने की युक्ति व नॉलेज की शक्ति नहीं दी तो सिर्फ बार-बार चेक करने से भी परिवर्तन नहीं होता। इसलिए *पहले सदा कर्मन्द्रियों को नॉलेज की शक्ति से चेज करो।*

 

✧  सिर्फ यह नहीं सोचो कि यह रांग है। लेकिन राइट क्या है और राइट पर चलने की विधि स्पष्ट हो। अगर किसी को कहते रहेंगे तो *कहने से परिवर्तन नहीं होगा लेकिन कहने के साथ-साथ विधि स्पष्ट करो तो सिद्धि हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ चारों ओर हलचल है, प्रकृति के सभी तत्व खूब हलचल मचा रहे हैं, एक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैं, व्यक्तियों की भी हलचल है, प्रकृति की भी हलचल है, *ऐसे समय पर जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगे? सेफ्टी का साधन कौन-सा है? सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी व आत्म-अभिमानी बना ली तो हलचल में अचल रह सकते हो।* इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगा? अभी ट्रायल करो- एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो? (ड्रिल) *इसको कहा जाता है – साधना।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- भयानक रात पूरी हो रही, दिन में चलना है*

 

 _ ➳  सारी एक की ही महिमा हैएक का ही गायन है... गाते भी हैं पतित पावनजरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं... सतयुग में तो सुखी होते हैंवहां कोई दुख नहींदुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती... *अभी है घोर कलयुगघोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन शुरू हुआ है... गाते भी है ब्रह्मा की रातब्रह्मा का दिन...* तो अब बाप मिला हैमनमनाभव का मंत्र मिला है... *तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़ एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोईइसी तपस्या में मैं आत्मा तप रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...* 

 

  *पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से कहते हैं:-* "मीठी बच्ची... *21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं...* बोझ चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी होअब तुम्हारे बुलाने पर क्योंकि मैं आया हूं... *तो अबमनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."*

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की मीठी समझानी को  सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा से बोली:-*  "हां मेरे मीठे बाबा... *आधाकल्प हुआमाया ने बहुत कुतर कुतर की है... आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्मा,  काली और दुखी बन पड़ी थी बाबा... जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं...* भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब चलते फिरते उठते बैठते  आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं बाबा..."  

 

  *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:-* "देखो बच्चे... *दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम कालाफिर काली का चित्र भी बैठ बनाया हैपरंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के,नॉलेजफुल बच्चे बने हो...* सारा मदार है याद पर... जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगेबुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारतीतो कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा रही हूं...* स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीकखुद को देख रही हूं..."

 

   *करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब ज्वालामुखी याद द्वारापूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी उत्साह में रखअभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो...* देखो ब्रह्मा बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुएमैं आत्मा स्वयं को देख रही हूं... मैं आत्मा देख रही हूंकैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं...* मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  योग में रह बाप से ताकत लेनी है*"

 

_ ➳  इस वर्ड ड्रामा की स्टेज पर खड़े होकर मैं इस सृष्टि रूपी रंगमंच और इस सृष्टि नाटक में पार्ट बजाने वाले करोड़ो पार्टधारियों को देख रही हूँ। *इस 5000 वर्ष के सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना पार्ट बजाते - बजाते आज उस पड़ाव पर पहुँच गई है जहाँ इस वर्ड ड्रामा का एन्ड होकर फिर से इसकी पुनरावृति होने वाली है*। सृष्टि ड्रामा का सारा चक्र मेरी आँखों के सामने घूम रहा है। सभी आत्माओं की सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से लेकर सम्पूर्ण तमोप्रधान अवस्था तक पहुँचने का सफर मैं दिव्य बुद्धि के नेत्र से देख रही हूँ।

 

_ ➳  सृष्टि के नए से पुराने होने के चक्र को देखते हुए मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि देहभान ने आज हर मनुष्य आत्मा को कितना शक्तिहीन बना दिया है। *अपने स्वधर्म को भूल परधर्म को अपनाकर आज आत्मायें कितनी दुखी और अशांत हो चुकी है। इस शरीर को अपना मान कर इसके साथ ममत्व रखकर, अपने गुणों और शक्तियों को ही भूल गई हैं इसलिए कितनी निर्बल और असहाय बन पड़ी है*। बलिहारी मेरे प्यारे प्रभु की जिन्होंने आकर सत्यता का बोध करवाने वाला यह सत्य ज्ञान हम मनुष्य आत्माओं को दिया।

 

_ ➳  परधर्म को छोड़ अर्थात देह से डिटैच हो कर, अशरीरी बन, अपने स्वधर्म में स्थित होकर, अपने प्यारे प्रभु को याद करके अपनी खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने का बाबा ने कितना सहज रास्ता बताकर जैसे हर मुश्किल को आसान कर दिया है। *यही चिंतन करते, मन ही मन अपने प्यारे प्रभु का धन्यवाद करके, स्वयं को मैं अशरीरी में स्थित करती हूँ और स्वयं को देह से डिटैच निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा निश्चय कर, अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ*।

 

_ ➳  मन बुद्धि की तार परमधाम निवासी मेरे प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता से समस्त शक्तियों की एक तेज लाइट मेरे मस्तक के ऊपर पड़ रही है और उस लाइट से निकल रहा करेन्ट मेरे अंदर नव शक्ति का संचार कर रहा है। *एक अनोखी शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है जो मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ एक दम लाइट स्थिति में स्थित कर रही है*। स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करते हुए मैं आत्मा अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। *देह और देह की दुनिया का आकर्षण जैसे पीछे छूटता जा रहा है और मैं बस एक पतंग की भांति अपने आप उस तरफ उड़ती जा रही हूँ जिसकी डोर बाबा के हाथ मे है और बाबा उसे अपनी ओर खींच रहें हैं*।

 

_ ➳  अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के आगोश में लेकर, आंधी, तूफान आदि सबसे मुझे बचाते हुए मेरे प्यारे पिता मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में पहुँचा देते हैं। *अपने इस शान्तिधाम घर में आकर, मन बुद्धि से सब कुछ भूल, निरसंकल्प होकर अब मैं केवल स्वयं को और अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ*। उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास जाने के लिए आगे बढ़ रही हूँ। जैसे मोर अपने पंख जब फैलाता है तो उसका सौंदर्य देखने वाले का मन मोह लेता है ऐसे ही *बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों ओर फैलकर, मन को लुभाते हुए अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं*।

 

_ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों से निकल रहे वायब्रेशन मन को एक अति सुखद अनुभूति करवा रहें हैं। एक गहन सुकून का अनुभव करते, धीरे - धीरे आगे बढ़ते हुए मैं अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप पहुँच कर अब उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ। *ये छुयन एक शक्तिशाली करन्ट की तरह मेरे रोम - रोम को पुलकित कर देती हैं और एक अद्भुत शक्ति से मुझे भर देती है*। बार -बार अपने सर्वशक्तिवान पिता की एक - एक शक्ति की अनन्त किरणों को छू कर, हर शक्ति से भरपूर होकर, मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  *फिर से वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर अपना पार्ट बजाते हुए, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते, बीच - बीच में शरीर से डिटैच होकर, बाबा की याद में बैठ, बाबा से शक्ति लेकर, स्वयं को सदा एनर्जेटिक महसूस करते हुए, अपने लौकिक और अलौकिक सभी कर्तव्यों को मैं अब बड़ी सहजता से खुशी - खुशी पूरा कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ब्राह्मण जीवन मे खुशी के वरदान को सदा कायम रखने वाली महान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अनेक बातों को न देख अथक सेवा पर उपस्थित रहकर बापदादा की दिल की मुबारक लेने वाली अथक सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *आज बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं* क्योंकि बाप जानते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा चाहे लास्ट पुरुषार्थी भी है फिर भी विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान है क्योंकि *भाग्य विधाता बाप को जानपहचान भाग्य विधाता के डायरेक्ट बच्चे बन गये। ऐसा भाग्य सारे कल्प में किसी आत्मा का न हैन हो सकता है।* साथ-साथ सारे विश्व में सबसे सम्पत्तिवान वा धनवान और कोई हो नहीं सकता। चाहे कितना भी पदमपति हो लेकिन *आप बच्चों के खजानों से कोई की भी तुलना नहीं है क्योंकि बच्चों के हर कदम में पदमों की कमाई है। सारे दिन में हर रोज चाहे एक दो कदम भी बाप की याद में रहे वा कदम उठायातो हर कदम में पदम...* तो सारे दिन में कितने पदम जमा हुए? ऐसा कोई होगा जो एक दिन में पदमों की कमाई करे! इसलिए *बापदादा कहते हैं अगर भाग्यवान देखना हो वा रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड आत्मा देखनी हो तो बाप के बच्चों को देखो।*  

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप के रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चे होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  ड्रामा की रील को रिवर्स कर... मैं भाग्यशाली आत्मा पहुँच जाती हूँ... *उस घड़ी, उस पल, उस समय में जब वो मेरे जीवन में आया... उसने मुझे अपना बनाया... मेरा हाथ थामा, मुझे गले लगाया... कितनी हंसीन वो घड़ी थी जब भाग्यविधाता, वरदाता, परमसत्ता ही मेरा हो गया...* वो विश्व का मालिक जिसकी एक झलक को भक्त तरसते, हिमालय पर बैठे वो तपस्वी उसको पाने के लिए तपस्या करते... और *वो दाता भाग्यविधाता मेरा हो गया, और मैं उसकी हो गयीं...* इस अदभुत, अविस्मरणीय डायंमड़ *अनमोल यादों में खोई मैं आत्मा प्रकृति के सानिध्य में बैठी हूँ...*

 

 _ ➳  और *इन पलों को एक बार फिर से जी रही हूँ... जैसे-जैसे ये एक-एक पल, सीन सामने आ रही है... मैं आत्मा एक बार फिर उसी खुशी, नशे, उमंग का अनुभव कर रही हूँ...* इन पलों को फिर से एक बार  जीती, अपने भाग्य पर इतराती, बलखाती, मैं पदमा-पदम भाग्यशाली आत्मा मन उपवन में नृत्य कर रही हूँ... तभी अचानक *मुझ आत्मा पर रिम-झिम लाइट की बारिश होने लगती हैं... ये लाइट की बारिश मुझे परमात्म-प्यार में भीगों रही हैं... मैं आत्मा ऊपर देखती हूँ... बापदादा बादलों के बीच से मुझे देख-देख हर्षित हो रहे है... और वाह बच्चे वाह के गीत गा रहे बाहें फैलाएँ मेरा आवाहन कर रहे हैं...* बाबा को देख मैं आत्मा फूल की तरह खिल जाती हूँ... जैसे मैं आत्मा आगे की तरफ कदम बढाती हूँ... तभी एक सुनहरी सीढी मुझ आत्मा के सामने आ जाती हैं... जिस पर लिखा है... *"ईश्वरीय संतान"*

 

 _ ➳  जैसे ही मैं आत्मा इस सीढी पर पांव रखती हूँ... *मुझ आत्मा की साकारी देह परिवर्तन होकर लाइट की हो जाती है...* ... मैं आत्मा ईशवरीय संतान हूँ... इस नशे से भर गयीं हूँ... *मेरे एक एक कदम आगे बढाने से मुझे खुशी और उमंग अनुभव होता है... अपने भाग्य पर नाज़ हो रहा है... मेरे कदम चढ़ती कला की और बढ़ रहे है... मेरे कदमों में पदमों की कमाई जमा हो रही है... अपने पार्ट पर, अपने भाग्य पर मुझ आत्मा को नाज हो रहा हैं...* परमात्म-प्यार, परमात्म-पालना, परमात्म-साथ का अनुभव कर रही हूँ... *परमात्मा की सर्व शक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ...* एक दूसरी सुनहरी सीढी मुझ आत्मा के सामने आ जाती हैं... जिस पर लिखा है... *"सर्व खजानों की अधिकारी आत्मा"* जैसे ही मैं आत्मा इस सीढी पर पांव रखती हूँ... यह सीढी परिवर्तन होकर एक दरवाजा बन जाती हैं... *बाबा मुझे एक चाबी देते है... जैसे ही मैं आत्मा दरवाजा खोलती हूँ... अन्दर अथाह खजाने है...*

 

 _ ➳  रंग-बिरंगे ढेर सारे खजाने है और *एक-एक खजाना करोड़ों का है अविनाशी हैं...* मैं आत्मा स्वयं को सर्व खजानों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी धनवान, सम्पतिवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* तभी बाबा मुझ आत्मा के सामने आते है और मुझ फरिश्ते के सिर पर हाथ फेरते है... *बापदादा भी मुझ आत्मा के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं... और मुझ आत्मा के भाग्य के गीत गा रहे है...* बाबा मुझ आत्मा को गोद में उठा लेते है... और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए... *वाह मेरे मोस्ट रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड पदमापदम भाग्यशाली बच्चे वाह...* मैं नन्हा फरिश्ता भी परमसत्ता की गोद में बैठी, अपने भाग्य को देख-देख हर्षा रही हूँ...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाप की मोस्ट रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चे होने का अनुभव कर रही हूँ...* वाह क्या श्रेष्ठ भाग्य मुझ आत्मा का हैं जो भाग्यविधाता, वरदाता मुझ आत्मा का हो गया है... कितने अथाह खजानों के मालिक बाबा ने मुझे बना दिया हैं... *परमसत्ता बाबा की गोदी से मैं नन्हा फरिश्ता पूरे विश्व को देख रहा हूँ... और मुझ आत्मा को अपने भाग्य पर नाज हो रहा हैं... और बाप के मोस्ट रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चे होने के नशे से भर गया हूँ...* अब मैं फरिश्ता साकारी दुनिया की तरफ इसी नशे अनुभव के साथ लौट रहा हूँ...

 

 _ ➳  अब देख रही हूँ मैं आत्मा स्वयं को अपनी ब्राह्मण ड्रेस को धारण कर *मैं आत्मा सारे दिन में हर कर्म बाबा की याद में कर... याद रुपी कदम में पदमों की कमाई जमा कर रही हूँ...* मोस्ट रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड इस नशे के साथ मैं महान धनवान, सम्पत्तिवान आत्मा सर्व खजानों को जो मुझ आत्मा के पास है... जो *एक-एक खजाना करोड़ों का हैं... उसे स्व और अन्य आत्माओं के प्रति यूज़ कर रही हूँ... उन्हें भी धनवान और सम्पतिवान बना रही हूँ... उन्हें आपसमान बना रही हूँ...* मैं बाप की मोस्ट रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चा हर कर्म इसी नशे में, बाबा की याद में कर रही हूँ... और यही अनुभव कर रही हूँ... *तुम्हें पा के हमनें जहाँ पा लिया हैं... जमी तो जमी आसमा पा लिया है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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