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 22 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पुराने घर, पुरानी दुनिया से बुधी दूर रही ?*

 

➢➢ *आत्माओं पर ज्ञान के छींटे डाल उनकी तपत बुझा उन्हें शीतल बनाया ?*

 

➢➢ *मन को अमन व दमन करने के बजाये सुमन बनाया ?*

 

➢➢ *सदा ख़ुशी की खुराक खाकर तंदरुस्त और खुशनुमा बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  साधनों को आधार नहीं बनाओ लेकिन साधना के आधार से साधनों को कार्य में लगाओ *यदि साधना की स्थिति में रह साधनों को कार्य में नहीं लगाते, कोई-न-कोई आधार को अपनी उन्नति का आधार बना देते हो तो जब वह आधार हिलता है, तो उमंग-उत्साह भी हिल जाता है। वैसे आधार लेना कोई बुरी चीज़ नहीं है लेकिन आधार को फाउण्डेशन नहीं बनाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अचल-अड़ोल आत्मा हूँ"*

 

    अचल-अडोल आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? एक तरफ है हलचल और दूसरी तरफ आप ब्राह्मण आत्माएं सदा अचल हैं। जितनी वहाँ हलचल है उतनी आपके अन्दर अचल-अडोल स्थिति का अनुभव बढ़ता जा रहा है। कुछ भी हो जाये, सबसे सहज युक्ति है - 'नथिंग न्यु'। कोई नई बात नहीं है। कभी आश्चर्य लगता है कि यह क्या हो रहा है, क्या होगा? आश्चर्य तब हो जब नई बात हो। कोई भी बात सोची नहीं हो, सुनी नहीं हो, समझी नहीं हो और अचानक होती है तो आश्चर्य लगता है। तो आश्चर्य नहीं लेकिन फुलस्टोप हो। *दुनिया मूँझने वाली और आप मौज में रहने वाले हो। दुनिया वाले छोटी-छोटी बात में मूँझेंगे - क्या करें, कैसे करें...। और आप सदा मौज में हो, मूँझना खत्म हो गया। ब्रह्मण अर्थात् मौज, क्षत्रिय अर्थात् मूँझना।* कभी मौज, कभी मूँझ।

 

  आप सभी अपना नाम ही कहते हो - ब्रह्माकुमार और कुमारियां। क्षत्रिय कुमार और क्षत्रिय कुमारी तो नहीं हो ना? सदा अपने भाग्य की खुशी में रहने वाले हो। *दिल में सदा, स्वत: एक गीत बजता रहता - 'वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य।' यह गीत बजता रहता है, इसको बजाने की आवश्यकता नहीं है। यह अनादि बजता ही रहता है। हाय हाय खत्म हो गई, अभी है 'वाह-वाह।'* हाय-हाय करने वाले तो बहुत मैजारिटी हैं और वाह वाह करने वाले बहुत थोड़े हो। तो नये वर्ष में क्या याद रखेंगे? 'वाह-वाह।' जो सामने देखा, जो सुना, जो बोला - सब वाह-वाह, हाय-हाय नहीं। हाय ये क्या हो गया! नहीं, वाह, ये बहुत अच्छा हुआ।

 

  कोई बुरा भी करे लेकिन आप अपनी शक्ति से बुरे को अच्छे में बदल दो। यही तो परिवर्तन है ना। अपने ब्राह्मण जीवन में बुरा होता ही नहीं। चाहे कोई गाली भी देता है तो बलिहारी गाली देने वाले की, जो सहन शक्ति का पाठ पढ़ाया। बलिहारी तो हुई ना, जो मास्टर बन गया आपका! मालूम तो पड़ा आपको कि सहन शक्ति कितनी है, तो बुरा हुआ या अच्छा हुआ? *ब्राह्मणों की दृष्टि में बुरा होता ही नहीं। ब्राह्मणों के कानों में बुरा सुनाई देता ही नहीं। इसलिए तो ब्राह्मण जीवन मौजों की जीवन है। अभी-अभी बुरा, अभी-अभी अच्छा तो मौज नहीं हो सकेगी। सदा मौज ही मौज है। सारे कल्प में ब्रह्माकुमार और कुमारी श्रेष्ठ हैं। देव आत्माएं भी ब्राह्मणों के आगे कुछ नहीं हैं। सदा इस नशे में रहो, सदा खुश रहो और दूसरों को भी सदा खुश रखो। रहो भी और रखो भी।* मैं तो खुश रहता हूँ, ये नहीं। मैं सबको खुश रखता हूँ - यह भी हो। मैं तो खुश रहता हूँ - यह भी स्वार्थ है। ब्राह्मणों की सेवा क्या है? ज्ञान देते ही हो खुशी के लिए।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *वह अन्तिम लक्ष्य पुरुषार्थ के लिए कौन - सा है? वह है - अव्यक्त फरिश्ता हो रहना।* अव्यक्त रूप क्या है? फरिश्तापन। उसमें भी लाइट रूप सामने है - अपना लक्ष्य। वह सामने रखने से जैसे लाइट के कार्ब में यह मेरा आकर है।

 

✧  जैसे वतन में भी अव्यक्त रूप देखते हो, तो अव्यक्त और व्यक्त में क्या अंतर देखते हो? *व्यक्त, पाँच तत्वों के कार्ब में है और अव्यक्त, लाइट के कार्ब में है।*

 

✧  *लाइट का रूप तो है, लेकिन आसपास चारों ओर लाइट ही लाइट है, जैसे कि लाइट के कार्ब में  यह आकर दिखाई देता है।* जैसे सूर्य देखते हो तो चारों ओर फैली सूर्य कि किरणों की लाइट के बीच में, सूर्य का रूप दिखाई देता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *लगाव की भी स्टेजस हैं। एक है सूक्ष्म लगाव, जिसको सूक्ष्म आत्मिक स्थिति में स्थित होकर ही जान सकते हैं।* दूसरे हैं स्थूल रूप के लगाव, जिसको सहज जान सकते हो। सूक्ष्म लगाव का भी विस्तार बहुत है। *बिना लगाव के, बुद्धि की आकर्षण वहाँ तक जा नही सकती। वा बुद्धि का झुकाव वहाँ जा नहीं सकता। तो लगाव की चेकिंग हुई झुकाव।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान के ठंडे छींटे डाल हरेक को शीतल बनाना"*

 

 _ ➳  *मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... सूर्य की नई नवेली किरणों को... धरती का आलिंगन करते हुए निहार रही हूँ...* और सोच रही हूँ कि *ज्ञान सूर्य शिवबाबा ने मुझ आत्मा को, गले लगाकर... गुणों और शक्तियों से श्रृंगारित कर दिया...* और अपने दिल में सजा लिया है... *भगवान के दिल की रानी बनकर, मैं आत्मा... अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मैं आत्मा भगवान के दिल में रहती हूँ, बाबा को अपने दिल की हर बात बताती हूँ...* इन मीठे अहसासों ने कई जन्मों के दुखों को विस्मृत कर दिया है... अब मेरे चारों और सुख ही सुख है... यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची कमाई के गहरे राज़ समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस समय सभी मनुष्य आत्माएं काम विकार की अग्नि में जल रहीं हैं... उन्हें काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाना है... हर आत्मा को पवित्र बनाने की सेवा करनी है... तुम्हें हर रूह को ज्ञान का इंजेक्शन लगाकर पवित्र बनाना है...* ईश्वर पिता का साथ भरा यह वरदानी समय ... बहुत कीमती है... इस कीमती समय को रूहानी सेवा में लगा... सच्ची कमाई करो..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा पर अपना अधिकार जमाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने अपना  प्यार भरा हाथ... मेरे हाथों में देकर, मुझे देवताओं की अमीरी से नवाज़ा है... *अब मैं आत्मा आपकी हर बात को श्रीमत मान कर सच्ची कमाई कर रही हूँ... और फिर से खोयी हुई बादशाही को प्राप्त कर रही हूँ..."*

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को वरदान देते हुए कहा :-* "मेरे मीठे सिकीलधे बच्चे... *तुम हो रूहानी सोशल वर्कर... तुम्हें सभी रूहों को ज्ञान के ठंडे छींटे डाल हरेक आत्मा को शीतल बनाने की सेवा करनी है... हर आत्मा पर ज्ञान के छींटे डाल... उनकी तपत बुझा... उन्हें शीतल बनाना है...* क्योंकि इस समय सभी आत्माएं विकारों रूपी अग्नि में जल रही हैं... और जली हुई आत्माएं... ज्ञान की ठंडी छांव पाकर तृप्त हो जायेगी..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा से ईश्वरीय मत पाकर खुशनुमा जीवन की मालिक होकर कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा *आपकी यादों में और ज्ञान रत्न रूपी धन पाकर बहुत सुखी हो गयी हूँ... मैं आत्मा आपसे प्राप्त इस ज्ञान के ठंडे छींटे डाल हरेक आत्मा को शीतल बना रही हूँ...* मीठे बाबा... आप सच्चे साथी को साथ रख... हर आत्मा के प्रति ज्ञान रूपी ठंडा जल बरसा रही हूँ..." 

 

*मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को प्यार से समझानी देते हुए कहा :-"मीठे लाडले बच्चे... अब तुम्हे अपनी एकाग्रचित्त अवस्था बनानी है... बुद्धि का योग सदा एक बाप से लगा रहे...* बाप  के सर्व गुण स्वयं में धारण करने हैं... सदा बाप की अपना साथी बना... साथ रखना है, पुराने घर... पुरानी दुनिया में बुद्धि न जाये... इस का विशेष ध्यान रखना..."

 

 _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में अतीन्द्रिय सुख पाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे दिल के राम बाबा... *मैं आत्मा आपसे प्राप्त हर श्रीमत को धारण कर... सदा आपके बताये मार्ग पर चल... हर आत्मा को ज्ञान रूपी जल पिला... उन्हें पवित्र बनाने की भरसक प्रयत्न कर रही हूँ...* मीठे बाबा... आपने मेरे जीवन को सुखों सा महका दिया है... मीठे बाबा को दिल की गहराईयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा... साकार वतन में लौट आयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बुद्धि योग सदा एक बाप से लगा रहे, पुराने घर पुरानी दुनिया मे बुद्धि ना जाये ऐसी एकाग्रचित अवस्था बनानी है*

 

_ ➳  हर संकल्प, विकल्प से मुक्त, सम्पूर्ण एकाग्र चित अवस्था में स्थित होकर अपने तपस्वी स्वरूप का मैं आह्वान करती हूँ। सेकण्ड में मेरा तपस्वी स्वरूप मेरी आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाता है। *देख रही हूँ अब मैं अपने उस स्वरूप को जो अपने प्यारे प्रभु की याद में मग्न है। नश्वर संसार की किसी भी बात से उसका कोई तैलूक नही। एक रस अवस्था। बुद्धि का योग केवल एक के साथ। सर्व सम्बन्ध केवल उस एक के साथ*। इंद्रियों के क्षण भंगुर सुख को छोड़, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलती आत्मा अपने प्यारे पिता के प्रेम की लगन में ऐसे मग्न हो चुकी है कि सिवाए परमात्म प्रेम के उसे और कुछ भी दिखाई नही दे रहा। *कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है यह! कितना सुख समाया है प्रभु प्रेम में मग्न इस अवस्था में*।

 

_ ➳  अपने इस अति सुख और आनन्दमयी तपस्वी स्वरूप में सदा स्थित रहने के लिए मुझे अपनी अवस्था को ऐसा एकाग्र चित बनाना है जो बुद्धि योग सदा एक बाप के साथ लगा रहे। पुराने घर, पुरानी दुनिया मे बुद्धि कभी ना जाये। *मन मे यह दृढ़ संकल्प करके, मैं फिर से अपनी बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपने निराकारी सत्य स्वरुप पर अपने ध्यान को केंद्रित कर लेती हूँ*। देख रही हूँ अब मैं अपने सर्व गुणों और सर्व शक्तियों से सम्पन्न अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप को जो एक प्वाइंट ऑफ लाइट, एक अति सूक्ष्म सितारे के रुप में भृकुटि पर चमक रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा से निकल कर धीरे - धीरे चारों और फैल कर मेरे आस - पास के वायुमण्डल को शान्त और सुखमय बना रही है। *गहन शान्ति की स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ*।

 

_ ➳  अपने मन और बुद्धि को अपने इस सत्य स्वरूप पर पूरी तरह एकाग्र करके, अपने स्वरूप की सुखद अनुभूति करते - करते अब मैं अपने मन बुद्धि को अपने शिव पिता के स्वरुप पर एकाग्र करती हूँ। *बिल्कुल मेरे ही समान एक चमकता हुआ स्टार मेरी आँखों के सामने मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अपने पिता को अपने ही समान पाकर एक गहन सुकून का अनुभव कर रही हूँ मैं*। कभी मैं अपने आप को देख रही हूँ और कभी अपने प्यारे पिता को निहार रही हूँ। प्रकाश की अनन्त किरणे बिखेरता हुआ उनका ये सुन्दर स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को फैलाये बाबा मुझे अपने साथ चलने के लिए बुला रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी बाहों में समा कर इस नश्वर देह और देह की दुनिया को भूल अब मैं उनके साथ उनकी निराकारी दुनिया मे जा रही हूँ। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुझे इस छी - छी विकारी दुनिया से दूर, अपनी निर्विकारी दुनिया मे ले जा रहें हैं। पांच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से भी पार अपने शिव पिता के साथ मैं पहुंच गई हूँ अपने निर्वाणधाम घर में*। संकल्पों -  विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त, वाणी से परे अपने इस निर्वाणधाम घर में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ*।

 

 _ ➳  परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो गई हूँ। परमात्म प्रेम का सुखदाई अनुभव, साकारी देह में रहते हुए भी अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है। *किसी भी देहधारी के झूठे प्यार का आकर्षण अब मुझे आकर्षित नही कर रहा। सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार अपने मीठे बाबा से निरन्तर प्राप्त करने से, पुराने घर, पुरानी दुनिया से मेरा बुद्धियोग टूट कर, केवल एक बाबा के साथ जुट रहा है जो मेरी अवस्था को एकाग्रचित बना कर मुझे हर पल परमात्म प्यार और परमात्मा पालना का सुख प्रदान कर रहा है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं मन को अमन वा दमन करने के बजाए सु-मन बनाने वाली दुरादेशी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा खुशी की खुराक खाते हुए सदा तंदुरुस्त और खुशनुमः रहने वाली  खुशनसीब आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *लेकिन श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का आधार है -’’श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म।'' चाहे ट्रस्टी आत्मा हो, चाहे सेवाधारी आत्मा हो, दोनों इसी आधार द्वारा नम्बर ले सकते हैं। दोनों को फुल अथार्टी है - भाग्य बनाने की। जो बनाने चाहें, जितना बनाना चाहें बना सकते हैं।* संगमयुग पर वरदाता द्वारा ड्रामा अनुसार समय को वरदान मिला हुआ है। जो चाहे वह श्रेष्ठ भाग्यवान बन सकता है। ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् जन्म से भाग्य ले ही आते हो। जन्मते ही भाग्य का सितारा सर्व के मस्तक पर चमकता हुआ है। यह तो ‘जन्म-सिद्ध' अधिकार हो गया। ब्राह्मण माना ही - ‘भाग्यवान'।

✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति का अनुभव करना।*"

➳ _ ➳ *अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृतियों का सिमरन करती हुई मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन अपने प्यारे बाबा के पास...* और बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की गोदी के झूले में झूलती हुई अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूँ... बाबा के कोमल स्पर्श से मुझ आत्मा में अलौकिक शक्तियों का संचार हो रहा है... मैं आत्मा देहभान से न्यारी हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... बाबा से एक होकर एकरस स्थिति में स्थित हो रही हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझ से मुक्त होकर हलकी हो रही हूँ... *सर्व बन्धनों से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता स्थिति में स्थित हो रही हूँ...* बाबा से निकलती दिव्य किरणों को अपने में ग्रहण कर रही हूँ... सर्व गुण, शक्तियों के खजानों से भरपूर हो रही हूँ... मैं आत्मा अपने मस्तक पर चमकते हुए भाग्य के सितारे को देख स्व-चिन्तन करती हूँ...

➳ _ ➳ कितना प्यारा है मेरा बाबा जिसने मुझे भाग्य बनाने की अथार्टी ही दे दी... *जितना चाहे जैसे चाहे मैं आत्मा अपना भाग्य बना सकती हूँ... अपने भाग्य की लम्बी लकीर खींच सकती हूँ...* कितनी ही श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ मैं जो स्वयं भगवान ने आकर मुझे शूद्र से ब्राहमण बना दिया... रावण के चंगुल से छुडाकर राम का बना दिया... ब्राह्मण जन्म लेते ही मुझ आत्मा के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक गया...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा संगमयुग पर वरदाता द्वारा समय को मिले वरदान का सदुपयोग कर वरदान को सिद्ध कर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर स्थित रहकर श्रेष्ठ संकल्पों के द्वारा श्रेष्ठ कर्म कर अपना श्रेष्ठ भाग्य बना रही हूँ... *मैं ब्राह्मण आत्मा ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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