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❍ 01 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इस श्रेष्ठ प्रभु परिवार का वारिस सदस्य होने का नशा रहा ?*
➢➢ *बाबा से सर्व समबंधो का अनुभव कर साकार पालना का अनुभव किया ?*
➢➢ *"अप्राप्त नहीं कोई वस्तु हम ब्राह्मणों के खजाने में" - यह अनुभव किया ?*
➢➢ *विस्मृति - स्मृति के चक्र में तो नहीं आये ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अब अपनी उड़ती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाओ और जिसको शान्ति चाहिए, खुशी चाहिए, सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में उन्हें अनुभूति कराओ।* वह अनुभव करें कि इन फरिश्तों द्वारा शान्ति, शक्ति, खुशी मिल गई।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाली विश्व-परिवर्तक आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाली विश्व-परिवर्तक आत्माएं हो ना। इस ब्राह्मण जीवन का विशेष आक्यूपेशन क्या है? अपनी वृत्ति से, वाणी से और कर्म से विश्व-परिवर्तन करना। तो सभी ऐसी सेवा करते हो? या टाइम नहीं मिलता है? *वाणी के लिए समय नहीं है तो वृत्ति से, मन्सा-सेवा से परिवर्तन करने का समय तो है ना। सेवाधारी आत्माएं सेवा के बिना रह नहीं सकती। ब्राह्मण जन्म है ही सेवा के लिए। और जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना ही सहज मायाजीत बनेंगे। तो सेवा का फल भी मिल जाये और मायाजीत भी सहज बन जायें-डबल फायदा है ना।*
〰✧ *जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ। सेवा के सिवाए समय गँवाना नहीं है। निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बनो-चाहे संकल्प से करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से। अपने सम्पर्क से भी सेवा कर सकते हो। चलो, मन्सा-सेवा करना नहीं आवे लेकिन अपने सम्पर्क से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हो। यह तो सहज है ना।* तो चेक करो कि सदा सेवाधारी हैं वा कभी-कभी के सेवाधारी हैं? अगर कभी-कभी के सेवाधारी होंगे तो राज्य-भाग्य भी कभी-कभी मिलेगा।
〰✧ इस समय की सेवा भविष्य प्राप्ति का आधार है। कभी भी कोई यह बहाना नहीं दे सकते कि चाहते थे लेकिन समय नहीं है। कोई कहते हैं-शरीर नहीं चलता है, टांगें नहीं चलती हैं, क्या करें? कोई कहती हैं-कमर नहीं चलती, कोई कहती हैं-टांगे नहीं चलती। लेकिन बुद्धि तो चलती है ना! तो बुद्धि द्वारा सेवा करो। आराम से पलंग पर बैठकर सेवा करो। अगर कमर टेढ़ी है तो लेट जाओ लेकिन सेवा में बिजी रहो। *बिजी रहना ही सहज पुरुषार्थ है। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बार-बार माया आवे और भगाओ-तो मेहनत होती है, युद्ध होती है। बिजी रहने वाले युद्ध से छूट जाते हैं। बिजी रहेंगे तो माया की हिम्मत नहीं होगी आने की और जितना अपने को बिजी रखेंगे उतना ही आपकी वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होता रहेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे साइन्स के साधन एरोप्लेन जब उडते हैं तो पहले चेकिंग होती है फिर माल भरना होता है। जो भी उसमें चाहिए - जैसे पेट्रोल चाहिए, हवा चाहिए, खाना चाहिए, जो भी चाहिए, उसके बाद धरती को छोडना होता है फिर उडना होता है। *ब्राह्मण आत्मा रूपी विमान भी अपने स्थान पर तो आ ही गये।* लेकिन जो डायरेक्शन था अथवा है एक सेकण्ड में उडने का, उसमें *कोई चेकिंग करने में रह गये। मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं हूँ - इसी चेकिंग में रह गये और कोई ज्ञान के मनन द्वारा स्वयं को शक्तियों से सम्पन्न बनाने में रह गये।*
〰✧ मैं मास्टर ज्ञान स्वरूप हूँ मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ - इस शुद्ध संकल्प तक रहे, लेकिन स्वरूप नहीं बन पाये। *तो दूसरी स्टेज भरने तक रह गये और कोई भरने में बिजी होने के कारण उडने से रह गये।* क्योंकि शुद्ध संकल्प में तो रमण कर रहे थे लेकिन यह देह रूपी धरती को छोड नहीं सकते थे। अशरीरी स्टेज पर स्थित नहीं हो पाते थे। बहुत चुने हुए थोडे से बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेकण्ड में उडकर सूक्ष्मवतन या मूलवतन में पहुँचे।
〰✧ जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते हैं, तो जैेसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य हैं वैसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण आत्मायें अर्थात महान आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं। स्वतन्त्र हो। तीनों लोकों के मालिक हो। *इस समय त्रिलोकीनाथ हो। तो नाथ अपने स्थान पर जब चाहें तब जा सकते हैं।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *याद में निरन्तर रहने का सहज साधन है - 'प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना'। पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप।* ऐसे आत्मिक रूप में रहने वाला सदा न्यारा और बाप का प्यारा होगा। *कुछ भी करेगा लेकिन ऐसे महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है।* खेल में मज़ा आता है ना, इसलिए सहज लगता है। *तो प्रवृत्ति में रहते खेल कर रहे हो, बन्धन में नहीं। स्नेह और सहज योग के साथ-साथ शक्ति की और एडीशन करो तो तीनों के बैलेन्स से हाईजम्प लगा लेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- प्रभु परिवार-सर्वश्रेष्ठ परिवार"*
➳ _ ➳ *सम्बन्ध नयें, अनुबन्ध नये, पावनता का उपहार मिला, हुई हर वार से महफूज़ मैं, मुझे प्रभु परिवार मिला*... मैं आत्मा प्रभु सौगातों और स्मृतियों में खोई बैठी हूँ बापदादा के सम्मुख... अपने भाग्य की लकीरों को पढती हुई... *बापदादा का बनने के बाद भाग्य का सूर्य अपनी सम्पूर्ण आभा के साथ जीवन गगन पर झिलमिला रहा है*... *प्राप्तियों का नशा सर चढकर बोल रहा है, रोम- रोम प्रभु आभार से भरपूर है*... और बापदादा की गहरी मुस्कान के साथ मीठी और दिल में गहराई से उतर जाने वाली मधुर आवाज...
❉ *साकार रूप धारी बन, स्नेह और प्यार लुटाने वाले निराकारी बाप मुझ आत्मा से बोलें:-* "मेरी मीठी आत्मा बच्ची... संगम पर आपने इस ऊँचे ते ऊँचे ब्राह्मण परिवार और बाप के सच्चें रूहानी स्नेह का अनुभव किया है, आत्मा आत्मा भाई भाई के पावन धागों से सजे ये अलौकिक संम्बन्ध आपने पाये है... *जन्म- जन्म जिसको पर्वतो कन्दराओं में ढूँढा, वो इस तरह साकार रूप में आकर आप पर प्यार लुटायेगा... क्या आपने इसके बारें में कभी स्वप्न में भी सोचा था?*..."
➳ _ ➳ *अलौकिक प्राप्तियों के नशे में झूलती हुई मैं आत्मा, सुख सागर बाप से बोली:-* "मेरे जीवन के हर पल को खुशनुमा बहारों से सजाने वाले मेरे रूहानी बागवाँ... आपको पाकर सदा सदा के लिए प्राप्तियों के भण्डारें भरपूर हो गये है, प्रकृति चँवर डुलाती है और हम जहान का नूर हो गये है... *परिवार बदला है, कर्म बोल संकल्प सब बदल गये है... दुखों की घनी छाया से निकल हम अब कमल से खिल रहे है... सच तो यहीं है कि हकीकत की दुनिया अब सपनों से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है...*"
❉ *स्वराज्य अधिकारी का तिलक देने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोलें:-*"रूहानी तिलक धारी मेरी मीठी आत्मा बच्ची... भविष्य के ताज तख्त की अधिकारी आप बच्ची संगम पर ही इस श्रेष्ठ परिवार में सब प्राप्तियों का अनुभव कर रही हो... *देखों! अपनी महिमा में गाते नाचते भक्तों को... अपने दैवी स्वरूप और अपने सतयुगी ऐश्वर्य को... इस श्रेष्ठ जन्म और परिवार की बदौलत है सब कुछ... तो एक एक पल सफल करों और कराओ... दैवी पालना से भी श्रेष्ठ ईश्वरीय पालना का स्वरूप बन दिखाओं..."*
➳ _ ➳ *स्वदर्शन चक्रधारी बना माया के चक्रव्यूह से छुडाने वाले बाप दादा से मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... संगम पर गाॅडली स्टूडेन्ट मैं आत्मा, डायरेक्ट ईश्वरीय पालना में पल रही हूँ... *श्रीमत की फूलों बिछी पगडंडी और सर पर आपके आशीर्वचनों की छत्रछाया है.. हर सम्बन्ध में बहती पावन प्रेम की सरिता में रूह को मेरी डूबोया है... स्वर्ग में वो ऐश्वर्य, वो सुखों का साम्राज्य तो होगा... मगर आप नही होगे... मन बार- बार इस अप्राप्ति को दोहराता है... इस श्रेष्ठ परिवार को पाकर बस हर वक्त इठलाता है...*"
❉ *साकार से आकारी फरिश्ता रूपधारी बापदादा मुझ आत्मा से बोलें:-*"बाप को प्रत्यक्ष करने वाली मेरी रूहानी सेवाधारी बच्ची...!, ड्रामा के बन्धन में बंधायमान बाप की प्रत्यक्ष पालना का भरपूर फायदा उठाओं. *अथक सेवाधारी बाप के बच्चें हो आप भी, हर पल हर संकल्प अब बेहद की सेवा में लगाओं... देह में रहते विदेही बन अब इस श्रेष्ठ परिवार और बाप की पालना का रिटर्न चुकाओं...*"
➳ _ ➳ *दिलाराम बाप की याद से हर इच्छा को स्वाहा कर बाप की इच्छा को अपनी बनाने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:-*"मेरे मीठे बाबा... केवल समझानी ही नही दी आपने... हर कर्म प्रत्यक्ष कर दिखाया है, *सेवा का और त्याग का आप सा उदाहरण इस जहान में और दूसरा नही पाया है, आपके दिखाये मार्ग पर मैं कदम दर कदम चल रही हूँ, स्वाँस स्वाँस मन्मनाभव हुई जा रही है, अब निमित्त भाव से बाप समान पालना देकर मैं इस धरा को ही प्रभु प्रेम का पालना बना रही हूँ... प्रभु प्यार की छत्रछाया में वरदानों की सौगात पा रही हूँ...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस श्रेष्ठ प्रभु परिवार का वारिस सदस्य होने का नशा अनुभव करना*
➳ _ ➳ परमात्म पालना में पलने वाली मैं कितनी महान सौभाग्यशाली आत्मा हूँ कि भगवान ने स्वयं आकर अपने परिवार का मुझे वारिस सदस्य बनाया। *वो भगवान जिसके एक दर्शन मात्र की दुनिया प्यासी है उस भगवान की पालना में मैं पल रही हूँ। मेरा बाप, टीचर, गुरु बन अपना असीम प्यार वो हर पल मुझ पर लुटाता है, हर रोज़ मुझे पढ़ाने आता है, अविनाशी ज्ञान रत्नो से मेरी झोली भरकर मेरी बुद्धि को शुद्ध और पावन बनाता है और मुझे मुक्ति जीवनमुक्ति पाने का सत्य मार्ग बताता है*। ऐसे परमात्मा पिता और प्रभु परिवार की मैं वारिस हूँ यह स्मृति मुझे एक अलौकिक नशे से भरपूर कर देती है और मन अपने प्यारे बाबा से मिलने के लिए मचलने लगता है। *प्रभु मिलन की इच्छा मन मे जैसे ही जागृत होती है, एकाग्रता की शक्ति मन बुद्धि को विस्तार से सार में ले आती है और बुद्धि स्थिर हो जाती है उस एक ही स्वरूप में जो मेरा ओरिजनल स्वरूप है*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने निराकार बिंदु स्वरूप को। एक अति सूक्ष्म स्टार मुझे अपने मस्तक के बिल्कुल सेंटर में चमकता हुआ प्रतीत हो रहा है। *इस स्टार मे से हल्का - हल्का प्रकाश निकल रहा है जो सतरंगी किरणों के रूप में मेरे मस्तक से निकल कर मेरे पूरे शरीर मे फैलता जा रहा है और एक औरे का निर्माण कर रहा है*। धीरे - धीरे ये प्रकाश तीव्र हो रहा है और इस प्रकाश की तीव्रता के साथ - साथ इससे निर्मित होने वाला औरा भी बढ़ता जा रहा है। प्रकाश के इस औरे के साथ मेरे सातो गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन्स बड़ी तीव्र गति से चारो और फैलते जा रहें है और समस्त वायुमण्डल को बहुत ही पॉवरफुल बना रहे हैं। *वायुमण्डल में फैल रहे सर्व शक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मन को गहन सुख और शांति का अनुभव करवा रहें है*।
➳ _ ➳ अपने स्वरूप में स्थित होकर स्वयं के गुणों और शक्तियों को अनुभव करने के इस निराले अहसास से एक अद्भुत रूहानी मस्ती मुझ आत्मा पर छाने लगी है जो मुझे देह के हर बन्धन से मुक्त करके डबल लाइट बना रही है। *डबल लाइट स्थिति में स्थित होते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मुझ आत्मा को उमंग उत्साह के पंख लग गए है जो मुझे उड़ने के लिए उत्साहित कर रहें हैं। इन पँखो को फैलाकर अब मैं उड़ कर जा रही हूँ ऊपर आकाश से पार अपने निजधाम, परमधाम घर मे जो मेरे पिता का घर है, मेरा घर है*। अपने इस शान्तिधाम घर मे आकर मैं देख रही हूँ अपने सामने अनन्त प्रकाशमय, महाज्योति अपने प्यारे पिता को जो मुझे अपनी किरणों रूपी बाहों में भरकर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाने के लिए व्याकुल हो रहें हैं।
➳ _ ➳ उनके प्यार का मधुर एहसास मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्यार में बंधी मैं उनकी वारिस आत्मा उनके पास जाकर अब उनकी बाहों में समा गई हूँ। *बाबा का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की रिमझिम फुहारों के रूप में मैं अपने ऊपर बरसता हुआ महसूस कर रही हूँ। प्यार का सागर मेरा पिता अपना सारा प्यार मुझ पर उड़ेलता जा रहा है। पूरे 5 हजार वर्ष अपने प्यारे पिता से अलग होने के कारण जिस प्यार से मैं वंचित हो गई थी और उसे देह धारियों में ढूंढ रही थी वो प्यार मुझ पर लुटा कर मेरे पिता मेरी जन्म - जन्म की प्यास को जैसे बुझा रहें हैं*। अपने स्नेह की असीम धाराएं मुझ आत्मा पर प्रवाहित करने के साथ - साथ अपनी शक्तियों से भी बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं। बाबा के असीम स्नेह और उनकी शक्तियों के बल ने मुझे बहुत शक्तिशाली बना दिया है।
➳ _ ➳ प्रभु स्नेह के खूबसूरत अहसास और परमात्म शक्तियों का बल अपने साथ लेकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और पुनः अपने सँगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने जीवन मे मिलने वाली अखुट अविनाशी प्राप्तियों की मधुर स्मृतियों में खो जाती हैं। *मन ही मन स्वयं से बात करती हूँ कि कभी संकल्प में भी नही था कि स्वयं भगवान मेरे समान साकार रूपधारी बन बाप और बच्चे का वा सर्व सम्बन्धो का मुझे अनुभव करवायेगा*! इतने ऊँच प्रभु परिवार की मैं अधिकारी आत्मा बनूँगी! वाह मेरा भाग्य जो ऐसे प्रभु परिवार की मैं वारिस सदस्य बन गई जो मेरे सर्वप्राप्तियों के भंडारे सदा के लिए भरपूर हो गए। *ऐसे अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते, अपने ब्राह्मण जीवन की अनमोल प्राप्तियों को सदा स्मृति में रखकर एक अद्भुत रूहानी नशे से मैं आत्मा अब सदा भरपूर रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दिलाराम बाप की याद द्वारा तीनों कालों को अच्छा बनाने वाली इच्छा मुक्त्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं संस्कारों को शीतल बनाकर जोश वा रोब के संस्कारों को इमर्ज नहीं होने देने वाली शांत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा-:
➳ _ ➳ कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो। लवलीन आत्मा कर्म करते भी न्यारी रहेगी। *कर्मयोगी अर्थात् याद में रहते हुए कर्म करने वाला सदा कर्मबन्धन मुक्त रहता है। ऐसे अनुभव होगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं। किसी भी प्रकार का बोझ वा थकावट महसूस नहीं होगी।* तो कर्मयोगी अर्थात् कर्म को खेल की रीति से न्यारे होकर करने वाला। ऐसे न्यारे बच्चे कर्मेंन्द्रियों द्वारा कार्य करते बाप के प्यार में लवलीन रहने के कारण बन्धनमुक्त बन जाते हैं।
✺ *"ड्रिल :- याद में रह हर कर्म करते हुए कर्म को एक खेल बनाना"*
➳ _ ➳. दूर एकांत स्थान पर बैठकर *मैं आत्मा एक ऐसी आत्मा को देखती हूं... जो अपने सिर पर एक भारी सी गठरी लिए हुए चल रही है... वह अपने शरीर से और उस गठरी से अपने आपको इतना थका हुआ अनुभव कर रही है कि वह एक कदम भी सही तरह चल नहीं पा रही है...* उसे देख कर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह बहुत ही थकान से भरी हुई है... और एक तरफ मैं देखती हूं कि एक आत्मा अपने आनंद से चली जा रही है वह बहुत ही तेजी से और अपने ही धुन में चली जा रही है... जब मैं दूर बैठी उन दोनों आत्माओं को ध्यान से देखती हूं तो मुझे दोनों ही आत्माओं में अलग-अलग भाव दिखाई देता है...
➳ _ ➳ मैं उन आत्माओं के पास जाती हूं और जिस आत्मा ने अपने ऊपर एक भारी गठरी रखी हुई थी उससे पूछती हूं ? तुम इतनी थकान में और इस गठरी के बोझ से प्रभावित होकर कहां जा रही हो? तो वह आत्मा कहती है कि मैं अपने कर्म-क्षेत्र पर अपना कर्म कर रही हूं जिससे मुझे थकान का अनुभव हो रहा है... *मेरे कर्तव्य का बोझ और सेवा का बोझ मुझ पर इतना हो गया है कि मैं चल भी नहीं पा रही हूं और कहती हूँ परंतु मैं कितना भी थकान का अनुभव करूँ मुझे चलते जाना है... मुझे सेवा करते रहनी है* और मैं उस आत्मा को उसी स्थान पर रुकने के लिए कहती हूं और वह आत्मा अपने गठरी को नीचे रखती है और बैठ जाती है...
➳ _ ➳ और मैं दूसरी आत्मा को जो मगन अवस्था में तेजी से चल रही थी उसे अपने पास बुलाती हूँ और पूछती हूं... तुम इतनी तेजी से और मगन अवस्था में कहां जा रहे हो ? तो वह आत्मा मुझे कहती है कि मैं परमात्मा की याद में अपना कर्तव्य और सेवा करती हुई जा रही हूं... फिर मैं उन दोनों आत्माओं को एक स्थान पर बैठा कर उनका अनुभव सुनकर उन्हें एहसास दिलाती हूं कि *अगर हम किसी भी सेवा को परमात्मा की याद में रहकर करते हैं तो हमें उस सेवा को करते समय कोई भी थकावट नहीं होगी... वह सेवा कब पूरी हो जाएगी हमें एहसास भी नहीं होगा और वह सेवा हम खेल खेल में ही पूर्ण कर देंगे...*
➳ _ ➳ इतना कहकर मैं आत्मा रॉकेट बनकर अंतरिक्ष में पहुंच जाती हूं... जहां पर एक ग्रह के ऊपर मैं बाबा को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... यह नजारा देख कर मेरी आंखें बहुत ही सुख का अनुभव कर रही है... और बाबा मुझे कह रहे हैं, *बच्चे तुम्हे भी हर कर्म को परमात्मा की याद मे रहकर ही करना चाहिए... और हर कर्म को खेल समझकर करना चाहिए... जिससे तुम कब, कितना काम कर जाओगे तुम्हे अहसास भी नहीं होगा...* और साथ ही उन दोनों आत्माओं का उदाहरण भी देते हैं कि अगर हम हमारा सारा बोझ परमात्मा को दे देते हैं तो हमें उसकी याद में थकावट का अनुभव नहीं होगा...
➳ _ ➳ और बाबा की बातों को सुनकर मैं बाबा का धन्यवाद करती हूँ... और मन बुद्धि से रॉकेट में बैठकर वापिस मैं उसी स्थान पर आ जाती हूँ और उन दोनों आत्माओं को कहती हूँ... जो आत्मा गठरी उठाये थी उसे कहती हूँ, आप इस अपनी गठरी को एक खेल की प्रक्रिया समझते हुए उठाये और बाबा की याद में रहिये... जैसे *आप समझो की इस पोटली में बाबा के दिए हुए अनमोल खजाने है... जिसको स्वयं बाबा उठा रहे हैं आप तो सिर्फ निमित्त मात्र है... और साथ ही मैने कहा कि तुम इस खजानों की पोटली को लेकर भागते हुए ये अनुभव करो की तुम्हें पुरुषार्थ की दौड़ में इन खजानों से नंबर वन आना है... वह आत्मा फिर तेजी से और याद में मगन होकर चलने लगती है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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