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❍ 06 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अवस्था पक्की होने के बड ही सेवा में लगे ?*
➢➢ *दान बहुत खबरदारी से पात्र को देखकर किया ?*
➢➢ *शुद्ध फीलिंग द्वारा फ्लू की बीमारी को ख़तम किया ?*
➢➢ *संगमयुगी मर्यादा पुरुषोत्तम बनने का श्रेष्ठ लक्ष्य रखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व के बच्चों की पालना कर रहे हैं *ऐसे आप बच्चे भी एक स्थान पर बैठकर बाप समान बेहद की सेवा करो। फालो फादर करो। बेहद में सकाश दो। बेहद की सेवा में अपने को बिजी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वत: ही आयेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं भाग्यविधाता का बच्चा हूँ"*
〰✧ सदा अपने भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते रहते हो? भाग्य का सितारा कितना श्रेष्ठ चमक रहा है! सदा अपने भाग्य के गीत गाते रहते हो? क्या गीत है? *वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! यह गीत सदा बजता रहता है? आटोमेटिक है या मेहनत करनी पड़ती है? आटोमेटिक है ना। क्योंकि भाग्यविधाता बाप अपना बन गया। तो जब भाग्यविधाता के बच्चे बन गये, तो इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा! बस, यही स्मृति सदा रहे कि भाग्यविधाता के बच्चे हैं।*
〰✧ दुनिया वाले तो अपने भाग्य का वरदान लेने के लिए यहाँ-वहाँ भटकते रहते हैं और आप सभी को घर बैठे भाग्य का खजाना मिल गया। मेहनत करने से छूट गये ना। तो मेहनत भी नहीं और प्राप्ति भी ज्यादा। इसको ही भाग्य कहा जाता है, जो बिना मेहनत के प्राप्त हो जाये। *एक जन्म में 21 जन्म की प्राप्ति करना-यह कितना श्रेष्ठ हुआ! और प्राप्ति भी अविनाशी और अखण्ड है, कोई खण्डित नहीं कर सकता। माया भी सरेन्डर हो जाती है, इसलिए अखण्ड रहता है।* कोई लड़ाई करके विजय प्राप्त करना चाहे तो कर सकेगा? किसकी ताकत नहीं है। ऐसा अटल-अखण्ड भाग्य पा लिया! स्थिति भी अभी ऐसी अटल बनाओ।
〰✧ कैसी भी परिस्थिति आये लेकिन अपनी स्थिति को नीचे-ऊपर नहीं करो। अविनाशी बाप है, अविनाशी प्राप्तिया हैं। तो स्थिति भी क्या रहनी चाहिए? अविनाशी चाहिए ना। सभी निर्विग्न हो? या थोड़ा-थोड़ा विघ्न आता है? विघ्न-विनाशक गाये हुए हो ना। *कैसा भी विघ्न आये, याद रखो-मैं विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ। अपना यह टाइटल सदा याद है? जब मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, तो मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कितना भी बड़ा विघ्न कुछ भी नहीं है। जब कुछ है ही नहीं तो उसका प्रभाव क्या पड़ेगा?*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी स्वतन्त्र हो? बिगुल बजे और भाग आयें। ऐसे नष्टोमोहा हो? *जरा भी 5 परसेन्ट भी अगर मोह की रग होगी तो 5 मिनट देरी लगायेंगे और खत्म हो जायेगा।* क्योंकि सोचेंगे, निकलें या न निकलें।
〰✧ तो सोच में ही समय निकल जायेगा। *इसलिए सदा अपने को चेक करो कि किसी भी प्रकार का देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन तो नहीं है।*
〰✧ जहाँ बन्धन होगा वहाँ आकर्षण होगी। इसलिए *बिल्कुल स्वतन्त्र। इसको ही कहा जाता है- बाप समान कर्मातीत स्थिति।* सभी ऐसे हो ना?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सार स्वरूप में स्थित हो फिर विस्तार में आना यह बात भूल तो नहीं जाते हो? *सार स्वरूप में स्थित हो विस्तार में आने से कोई भी प्रकार के विस्तार की आकर्षण नहीं होगी। विस्तार को देखते, सुनते, वर्णन करते ऐसे अनुभव करेंगे जैसे एक खेल कर रहे हैं।* ऐसा अभ्यास सदा कायम रहे। इसको ही ‘सहज याद' कहा जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप, टीचर, सतगुरु- तीनों कंबाइंड है- यह याद रख ख़ुशी में रहना"*
➳ _ ➳ *मैं नन्हा फ़रिश्ता मधुबन के बगीचे में बाबा के साथ लुका-छिपी का खेल खेलता हुआ आनंद ले रहा हूँ... कभी मैं छिप जाता, बाबा मुझे ढूंढते... कभी बाबा छिप जाते , मैं उन्हें ढूंढता... बाबा को ढूंढते-ढूंढते एक मधुर मुरली की गूंज सुनाई देती है... मैं नन्हा फ़रिश्ता उस धुन के पीछे-पीछे चल पड़ता हूँ और पहुँच जाता हूँ हिस्ट्री हाल...* जहाँ बाबा शिक्षक बन मुरली बजा रहे हैं... फिर सतगुरु बन मनमनाभव का मन्त्र देकर अपनी यादों में समा लेते हैं... तीनों रूपों में बाबा को देख मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ... और बाबा से ज्ञान वर्षा की सौगात लेता हूँ...
❉ *मेरे जीवन को खुशनुमा, खुशबूदार बनाकर मुझे खुशनसीब बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर की खोज में दर दर कितना भटके हो... जितना भटके हो उतना ही उलझे हो... *अब सच्चा पिता सच्चा टीचर सच्चा सतगुरु सहज ही सम्मुख है... तो अब व्यर्थ समय सांसो को न गंवाकर सच्ची यादो में खो जाओ... हर पल सच्ची कमाई में जुट जाओ...”*
➳ _ ➳ *बाप, टीचर, सतगुरु के रूप में भगवान को पाकर खुशियों में झूमते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब भटकन से दूर होकर सत्य भरी बाँहों में आनन्द के झूले में हूँ... देहधारियों से मुक्त होकर सच्चे सतगुरु को पा ली हूँ... *प्यारा बाबा मुझे मिल गया है जीवन आनन्द से खिल उठा है... पाना था वो पा लिया है...”*
❉ *अविनाशी प्रेम से सिक्त कर अविनाशी सुखों की महारानी बनाते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *एक पिता में सब कुछ प्राप्त कर रहे हो... बच्चों को हर भटकन से मुक्त कराकर सच्चा पिता जीवन में आ गया है... फूलो सी गोद में बिठाकर, ज्ञान रत्नों से सजाकर, सतयुगी सुखो में खिलायेगा,...* ऐसे मीठे पिता को सांसो में बसा लो... सच्ची कमाई से दामन सदा का सजा लो...”
➳ _ ➳ *परमात्म प्रेम के स्वर्णिम झूले में झूलती हुई प्रेम रस का पान करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे से भाग्य से भरी हूँ... देहधारियों के पीछे लटककर सांसे खपाने वाली... *आज ईश्वर पिता को पाने वाली महान आत्मा बन गई हूँ... स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहा है... कितना प्यारा और शानदार मेरा यह भाग्य हो गया है...”*
❉ *अपने स्नेहमयी आगोश में समाकर अपना दीवाना बनाते हुए मेरी बगिया को सुन्दर सजाने वाले प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना सहज,कितना सरल, कितने साधारण रूप में भगवान मिला है... बच्चे अब एक तिनका भी तकलीफ न उठाये... यह भाव लिए सच्चा पिता जीवन में आ गया है... *सच्चे प्यार की महक लिए, ज्ञान रत्नों की खान लिए, सुखो भरे आलिशान महल लिए विश्व पिता धरा पर उतर गया है... इस मीठे नशे से भर जाओ और सच्ची यादो में झूम जाओ...”*
➳ _ ➳ *बाबा के असीम प्यार और अमूल्य शिक्षाओं से अविनाशी भाग्य बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सच्चे पिता, सच्चे शिक्षक, सच्चे सतगुरु को पाकर अपने मीठे भाग्य की मुरीद हूँ... कन्दराओं में,गुफाओ में, मनुष्यो में जिसे खोज रही थी... वह मीठा बाबा आज मेरे दिल में धड़कन बन समाया है...* और मै आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल हो गई हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस दुनिया से दिल का वैराग्य रख पवित्र बनने में बहादुर बनना है*
➳ _ ➳ स्वार्थ की नींव पर टिके नश्वर देह के सम्बंध और देह की झूठी दुनिया के बारे में एकांत में बैठ मैं विचार कर रही हूँ कि *अपना सारा जीवन मनुष्य जिस देह और देह से जुड़े नश्वर सम्बन्धों को निभाने में गंवा देता है अन्त समय ना तो वो देह काम आती है और ना देह के सम्बन्धी काम आते हैं*। ये विचार करते - करते मेरी ही मृत्यु का सीन मेरी आँखों के सामने उभर आता है।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ जैसे मैं आत्मा देह से बाहर हूँ और मेरा शरीर नीचे जमीन पर मृत पड़ा है। कोई हलचल नही एक दम जड़, सफेद वस्त्र से लिपटे अपने शरीर को मैं साक्षी होकर देख रही हूँ। *मेरी अर्थी सजाई जा रही है और मेरे शरीर का दाह संस्कार करने के लिए उसे अर्थी पर रख कर ले जाया जा रहा है। मैं देख रही हूँ अपने ही शरीर को लकड़ियों के ढ़ेर के ऊपर जिसे जलाया जा रहा है। और कुछ ही क्षणों में अपने उस शरीर को स्वाहा होते मैं देख रही हूँ*। शरीर जल चुका है और अब केवल उसकी राख ही मेरे सामने है।
➳ _ ➳ इस दृश्य की गहन अनुभूति मेरे अंदर इस नश्वर देह और दुनिया के प्रति वैराग्य उतपन्न कर रही है। *अपने प्यारे पिता की शिक्षाये मुझे सहज ही याद आ रही हैं जो बार - बार इस दुनिया से जीते जी मरने की प्रेरणा देती हैं, इस नश्वर संसार से ममत्व निकाल, बुद्धि से इस दुनिया का वैराग्य करने का पाठ पढ़ाती हैं*। वो सत्य परमात्मा इस समय स्वयं आकर, सत्य ज्ञान देकर उस सत्यता से हम आत्माओं को परिचित करवा रहें हैं जिससे हम आज दिन तक अनजान थे इसलिए झूठी देह और उससे जुड़े झूठे सम्बन्धो को ही सच मान बैठे थे। *किंतु अब जबकि बाबा ने आकर हर सच्चाई से हमे अवगत करा दिया है तो अब उनकी श्रीमत पर पूरी तरह चल कर इस दुनिया से दिल का वैराग्य रख, पावन बनने की उनसे की हुई प्रतिज्ञा को अब मुझे अवश्य पूरा करना हैं*।
➳ _ ➳ इसी दृढ़ संकल्प के साथ अपनी नश्वर देह के विनाश होने के सीन को पुनः स्मृति में लाकर, इस सत्यता को स्वीकार करके कि *"यह देह विनाशी है", मैं इस देह से जुड़ी सभी बातों से किनारा करके, हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर अपने सत्य अविनाशी स्वरूप पर एकाग्र कर लेती हूँ और सेकण्ड में अशरीरी स्थिति का अनुभव करते हुए अपने अति सुन्दर, सुखमय, शांत स्वरूप में खो जाती हूँ*। अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर गहन शांति और सुख का अनुभव करते हुए मैं देह का आधार छोड़ ऊपर खुले आसमान की ओर उड़ जाती हूँ। सारे पोलार का चक्कर लगाकर, सूर्य मण्डल और समस्त तारा मण्डल को पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मणियो का आगार है।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जगमग करते चमकते सितारों के रूप में जगमगाती चैतन्य मणियो को मैं देख रही हूँ। देह, देह की दुनिया का कोई संकल्प भी यहाँ नही है। गहन शांति ही शांति चारों और बिखरी हुई है। *गहन शांति की इस स्वीट दुनिया मे आकर, शांति के सागर अपने स्वीट बाबा के सानिध्य में बैठ, अब मैं आत्मा उनका सच्चा और निस्वार्थ प्रेम पा कर सपष्ट अनुभव कर रही हूँ कि झूठी देह और देह के सम्बन्धो से जुड़ा प्रेम केवल और केवल स्वार्थ से भरा है*।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम मीठे बाबा का निस्वार्थ प्यार पा कर मैं सहज ही स्वयं को नष्टोमोहा अनुभव कर रही हूँ। बाबा का असीम प्यार और दुलार बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों के रूप में निरन्तर मुझ आत्मा के ऊपर बरस रहा है। *सर्वशक्तियों की शीतल छत्रछाया के नीचे मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मीठी - मीठी फुहारें मेरे ऊपर निरन्तर बरस रही हैं। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ*। बाबा से असीम स्नेह पा कर, सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ अपनी साकारी देह में।
➳ _ ➳ बाबा के प्रेम के रंग में रंगी अब मैं आत्मा देह और देह की दुनिया में रहते हुए भी स्वयं को इस नश्वर दुनिया से न्यारा अनुभव कर रही हूँ। इस नश्वर देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बीच रहते भी उनसे तोड़ निभाते अब मैं अपनी बुद्धि का योग केवल अपने प्यारे पिता के साथ जोड़ कर रखती हूँ। *प्रवृति में रहते, ट्रस्टी हो कर अब मैं अपनी हर लौकिक जिम्मेवारी सम्भालते, इस दुनिया से दिल का वैराग्य रख, पवित्र बनने में बहादुर बन कर, कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा जीवन व्यतीत कर रही हूँ औऱ अपने अति मीठे प्यारे दिलाराम बाबा के साथ अपने पवित्र ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं शुद्ध फीलिंग द्वारा फ्लू की बीमारी को ख़त्म कर वरदानों से पलने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *संगमयुगी मर्यादा पुरुषोत्तम बनना- यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ लक्ष्य रखने वाली मैं ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आज बापदादा अपने राज्य दरबार वासी साथियों को देख रहे थे। सभी यहाँ पहुँच गये हैं। आज की सभा में विशेष स्नेही आत्मायें ज्यादा हैं तो स्नेही आत्माओं को बापदादा भी स्नेह के रिटर्न में स्नेह देने के लिए स्नेह ही दरबार में पहुँच गये हैं। मिलन मेला मनाने के उमंग उत्साह वाली आत्मायें हैं। *बापदादा भी मिलन मनाने के लिए बच्चों के उत्साह भरे उत्सव में पहुँच गये हैं। यह भी स्नेह के सागर और नदियों का मेला है*। तो मेला मनाना अर्थात् उत्सव मनाना। आज बापदादा भी मेले के उत्सव में आये हैं।
➳ _ ➳ बापदादा मेला मनाने वाले, स्नेह पाने के भाग्यशाली आत्माओं को देख हर्षित हो रहे हैं कि सारे इतने विशाल विश्व में अथाह संख्या के बीच कैसी-कैसी आत्माओं ने मिलन का भाग्य ले लिया! *विश्व के आगे ना उम्मीदवार आत्माओं ने अपनी सर्व उम्मीदें पूर्ण करने का भाग्य ले लिया*। और जो विश्व के आगे नामीग्रामी उम्मीदवार आत्मायें हैं वह सोचती और खोजती रह गई। *खोजना करते-करते खोज में ही खो गये*। और *आप स्नेही आत्माओं ने स्नेह के आधार पर पा लिया*। तो श्रेष्ठ कौन हुआ?
✺ *"ड्रिल :- अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में रहना*"
➳ _ ➳ *आकाश में पल-पल रूप बदलते बादलों के घूँघट से झाँकता पूनम का चाँद... और बिखरी हुई चाँदनी से पूरी तरह पारदर्शी हो चुके बादल... ठीक ऐसे ही इस नश्वर देह के भीतर अपनी आभा बिखेरती चन्द्रमा रूपी मणि के समान मैं आत्मा... शीतलता पावनता और प्रेम की किरणे फैलाती हुई देह को इन्द्रधनुषी आभा से भरपूर कर रही हूँ...* मेरा प्रकाश और दिव्यता बढती जा रही है... और बढते-बढते पहुँच गयी है उस स्तर पर जहाँ से देह रूपी बदली अपना घूँघट हटा लेने को मजबूर हो गयी है... देहभान से मुक्त मैं आत्मा मन बुद्धि के पंखों से उडती जा रही हूँ परम धाम की ओर... सब कुछ पीछे छोडती हुई... स्थूल और सूक्ष्म की टाल टालियाँ, तेरा मेरा, ऊँचा, नीचा की अट्टालिकाए और क्या, कब, क्यूँ, कहाँ जैसे शिखरों की घेरावलियाँ... *मैं आत्मा आज स्नेह निमन्त्रण देने जा रही हूँ अपने शिव प्रियतम को... बस एक ही संकल्प लिए, भेज रहे है स्नेह निमन्त्रण प्रियतम तुम्हें बुलाने को... हे मानस के राजहंस! तुम भूल न जाना आने को*...
➳ _ ➳ मैं आत्मा पहुँच गयी हूँ परमधाम में असंख्य फुलझडियों के बीच... शान्ति की रश्मियाँ प्रवाहित करती, ये फुलझडियाँ शिव बिन्दु के असीम स्नेह सागर में समाई हुई है... दो पल के लिए उस स्नेह को स्वयं में समाती हुई... और *संकल्पों से ही साकार मिलन का निमन्त्रण देती हुई, मैं उन्हें छूकर वापस लौट आयी हूँ डायमंड हाँल में*...
➳ _ ➳ डायंमड हाॅल, जिसमें बापदादा के इन्तजार में असंख्य फरिश्तें पलके बिछाए हुए है इस महामिलन के लिए... *संगम पर सागर और नदियों का मेला और मेले में भविष्य राज्यधिकारी स्नेही आत्माएं फरिश्ता रूप में*... हर किसी का स्नेह में डूबा संकल्प... *सखि! जब उतरें आज धरा पर वो तो, मैं अखियों में उतार लूँगी, गिराकर परदे पलकों के उनको न जाने दूँगी*...
➳ _ ➳ और तभी साकारी रथ में बापदादा की पधरामणि... अद्भुत नज़ारा है ये सदी का, गहन नीरवता... मगर... *मीठी-सी सरगम है, मौन भी गुनगुना रहा है*... *मेरा बाबा का गीत धडकनों को भा रहा है... दर-दर भटके है जिसकी एक झलक पाने को... सदियों की तलाश, सदियों की भटकन को एक नया आयाम मिल गया है, सौभाग्य बरसा है इस कदर मेहरबाँ होकर अब रहमतों का सिलसिला सा चल गया है*...
➳ _ ➳ *मैं अति श्रेष्ठ भाग्यशाली आत्मा अपने भाग्य का गीत गाती हुई मगन अवस्था में*... स्टेज से बाप दादा एक-एक आत्मा को दृष्टि देते हुए... और मुझ पर आते ही उनकी नजरों का ठहर जाना... जमाने भर का स्नेह, वात्सल्य, प्रेम सभी कुछ तो उडेल कर रख दिया है आज उन्होनें... दो नैनों से स्नेह की ऐसी धारा फूटी है कि सम्पूर्ण डायमंड हाॅल स्नेह सागर से भरपूर हो रहा है स्नेह का दरिया मानो उफन रहा है... सारे जग के पालन हार को स्टेज पर भोग स्वीकार कराया जा रहा है... अभोक्ता बाबा आज बच्चों के हाथों भोग स्वीकार रहा है...
➳ _ ➳ एक दृश्य मंच पर है और दूसरा मेरी आँखों के सामने... *मेरे बाबा चलकर आ गए है मेरे करीब और मुझे खिलाकर, मेरे हाथों से भोग स्वीकार कर रहे है मेले में भी हम दोनो अकेले है... मेरे बाबा सिर्फ मेरे साथ है*... मुझे स्वराज्य अधिकारी का तिलक दे रहे है... (मंच पर से बाबा के जाने की सूचना)... *मगर मैने तो पलके बन्द कर कैद कर लिया है उनको सदा सदा के लिए*... *मै जाने न दूँगी अब कैद हुए हो पलको में ठाकुर*... जाकर तो दिखाओं इस दिल और धडकन से दूर... और मैं मगन हूँ, अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में... ये नशा शाश्वत नशा है... दिल यही अनहद धुन गुनगुना रहा है... *जो चढती उतरती है मस्ती, वो हकीकत में मस्ती नही है, जिन नजरों में तुम हो बसते, वो नजर फिर तरसती नही है*... और मैं संगम पर सदा परमात्म मिलन मनाती हुई *अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में चूर आत्मा अपनी देह में वापस लौट आयी हूँ*... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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