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 15 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप का राईट हैण्ड बन बाप का राईटीयस बनकर रहे ?*

 

➢➢ *आज्ञाकारी बन मात - पिता की आशीर्वाद ली ?*

 

➢➢ *एकांत और एकाग्रता के अटेंशन द्वारा तीव्रगति से सूक्षम सेवा की ?*

 

➢➢ *ज्ञान के हर राज़ को समझकर राज़युक्त, युक्तियुक्त और योगयुक्त हो हर कर्म किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  सर्व प्राप्ति, सर्व साधन होते हुए भी साधनों में नहीं आओ, साधना में रहो। *साधन होते हुए भी त्याग वृत्ति में रहो तब थोड़े समय में अनेक आत्माओं का भाग्य बना सकेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयुक्त आत्मा हूँ"*

 

  सदा इस ब्रह्मण-जीचन में राजयुक्त, योगयुक्त और युक्तियुक्त तीनों ही विशेषतायें अपने को अनुभव करते हो? *ज्ञान के सब राज बुद्धि में स्पष्ट स्मृति में रहे - इसको कहते हैं 'राजयुक्त' और सदा रचना बाप को याद रखना - इसको कहते हैं 'योगयुक्त'। तो जो ज्ञानी और योगी आत्मा है - उसके हर कर्म स्वत: युक्तियुक्त होते हैं। युक्तियुक्त अर्थात सदा यर्थाथ श्रेष्ठ कर्म।*

 

  कोई भी कर्म रुपी बीज फल के सिवाए नहीं होता। उनके संकल्प भी युक्तियुक्त होंगे। जिस समय जो संकल्प चाहिए वही होगा। ऐसे नहीं - यह सोचना तो नहीं चाहिए था लेकिन सोच चलता ही रहा। इसे युक्तियुक्त नहीं कहेंगे। *जो युक्तियुक्त होगा वह जिस समय जो संकल्प, वाणी या कर्म चाहे - वह कर सकेगा। ऐसे नहीं - यह करना नहीं चाहता था, हो गया। तो जो राजयुक्त, योगयुक्त होगा उसकी निशानी वह 'युक्तियुक्त' होगा।* तो वह निशानी सदा दिखाई देती है?

 

  *अगर कभी-कभी दिखाई देती तो राज्य-भाग्य भी कभी-कभी मिल जायेगा, सदा नहीं मिलेगा। लेने में तो कहते हो- सदा चाहिए और करने में कभी-कभी। ऐसे नहीं करना। अभी परिवर्तन करके जाओ। कभी-कभी की लाइन में, सदा वाली लाइन में आ जाओ।* जब जान लिया अनुभव कर लिया कि अच्छे-अच्छी बीज है तो अच्छी बीज को छोड़ कोई घटिया चीज क्यों लेंगे। तो अविनाशी खान पर आकर लेने में कमी नहीं करना। लेना है तो पूरा लेना है। दाता के भण्डारे भरपूर हैं, जितना भी लो अखुट है। तो अखुट खजाने में मालिक बनो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जिसका अपनी आवश्यक और समीप की चेतन शक्तियों, संकल्पों और बुद्धि अथवा मन और बुद्धि पर कन्ट्रोल नहीं, अधिकार नहीं या विजय नहीं तो क्या, विश्व के अधिकारी व विजयी रत्न बन सकता है? *जिस राज्य के मुख्य अधिकारी अपने अधिकार में न हो, क्या वह राज्य अटल, अखण्ड और निर्विघ्न चल सकता है?* यह मन और बुद्धि आप आत्मा की समीप शक्तियाँ व मुख्य राज्य अधिकारी हैं, यदि वह भी वश में नहीं, तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? महान विजयी या महान कमजोर?

 

✧   *तो अपने आपको देखे कि क्या मेरे मुख्य राज्य - अधिकारी, मेरे अधिकार में हैं?* अगर नहीं, तो विश्वराज्य अधिकारी अथवा राजन कैसे बनेंगे? अपने ही छोटो- छोटे कार्यकर्ता अपने को धोखा दें, तो क्या ऐसे को महावीर कहा जायेगा? चैलेन्ज तो करते हो, कि हम लाँ और आँर्डर सम्पन्न राज्य स्थापित कर रहे हैं?

 

✧  तो चैलेन्ज करने वाले के यह छोटे - छोटे कार्यकर्ता अर्थात कर्मेन्द्रियाँ अपने ही लाँ और आँर्डर में नहीं और वे स्वयं ही कार्यकर्ता के वशीभूत हो तो क्या ऐसे वे विश्व में लाँ और आँर्डर स्थापित कर सकते हें? हर कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक अपने अधिकार में हैं? यह चेक करो और अभी से विजयी - पन के संस्कार धारण करो। *बापदादा का नाम बाला करने वाले ही बाप समान सम्पन्न होते हैं।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जितना लास्ट स्टेज अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जायेगी उतना आवाज से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति हो। इसी अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आहवान कर सकेंगे। यह पावरफुल स्थिति 'विश्व-कल्याणकारी स्थिति' कही जाती है।* जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा सब चीजें समीप अनुभव होती जाती हैं - दूर की आवाज टेलीफोन के साधन द्वारा समीप सुनने में आती है, टी.वी. द्वारा दूर का दृश्य समीप दिखाई देता है, ऐसे ही साइलेन्स की स्टेज द्वारा कितने भी दूर रहती हुई आत्मा को सन्देश पहुँचा सकते हो? *वो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में सम्मुख किसी ने सन्देश दिया है। दूर बैठे हुए भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के दर्शन और प्रभु के चरित्रों के दृश्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख देख रहे हैं। संकल्प के द्वारा दिखाई देगा अर्थात् आवाज से परे संकल्प की सिद्धि का पार्ट बजायेंगे। लेकिन इस सिद्धि की विधि ज्यादा-से-ज्यादा अपने शान्त स्वरूप में स्थित होना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-सपूत बन श्रीमत पर चल मात-पिता की आशीर्वाद ले आगे बढ़ते रहना"*

 

 _ ➳ ईश्वर शिक्षक के जीवन में आने से दिव्य गुणों की सुगन्ध का आनंद लेते हुऐ मैं आत्मा सोचती हूं... *श्रीमत ना होने के कारण मैं आत्मा देह भान से चूर थी... विकारो की मूर्खता से भरी हुई... किसी भी तरह से बाबा का सपूत बच्चा नही बन सकती थी... प्यारे बाबा ने मुझे आसमान से निहार कर... और अपना सपूत बच्चा बना कर... माता पिता दोनो की पालना दे कर... कितना प्यारा औऱ महान बना दिया हैं* ... यही प्यारी मीठी गुफ्तगू प्यारे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... मीठे बाबा के कमरे मैं पंहुचती हूँ...

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ सपूत बनी आत्मा को  बाप का असीम प्यार लुटाते हुए औऱ बहुत प्रसन्न होते हुऐ कहा* :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर को बाप के रूप में पाने वाले, महान भाग्यशाली हो... *सपूत बनकर अपने इस महान भाग्ये के नशे में झूलते ही रहो... एक दिन भी ऐसा कोई कार्य ना करना जिससे... माता पिता के आशीर्वाद से वंचित होना पड़े* ... यह आशीर्वाद ही एक दिन सतयुग में नवाब पद दिलाएगी..." 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा से सतयुगी सपूत बन कहती हूँ* :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *मैं आत्मा आपसे मिलने से पहले कितनी गरीब थी... सदा खुशियों को तरसती दुसरो में खोजती थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपना सपूत बच्चा बना कर... श्रीमत पर चलना सिखाकर... माता पिता का अलौकिक प्यार बरसा कर... मुझे प्यार के धन से भरपूर कर दिया* ... मैं आत्मा अब आपके प्यार में सतोगुणी बनकर... सतयुगी सपूत बन रही हूँ..." 

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ को अपने सारे आशीर्वाद, ज्ञान ख़ज़ाने देते हुए कहा* :-"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... 21 जन्मो तक स्वर्ग का राज्य भाग्य पाओ... यही ज्ञान खजाने, श्रीमत पर कायम रहना, तुम्हारा सपूत बन माता पिता का प्यार लेना... तुम्हें विश्व का मालिक बनायेंगे... *परमधाम से तुम्हारा असली बाप तुम्हें सपूत बना कर प्यार के खजाने देने आया हैं* ... यह बात कभी भी मत भूलना... बाप का हाथ और साथ कभी नही छोड़ना..."  

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के असीम प्यार को पूरी तरह से खुद में समेटते हुए कहती हूँ* :-"मेरे प्यारे बाबा... आपने अपना बना कर मुझ आत्मा का जीवन प्यार से भर दिया... दिव्य गुणों, शक्तियों से सजा कर... देवताई रूप दिया, सपूत बनाया... माता पिता बन कर आशीर्वाद लुटाए... *मेरा दामन खुशियों से भर दिया... मैं आत्मा सम्पूर्ण सन्तुष्टता को प्राप्त कर रही हूँ* ... मुश्किल से बाबा आप मिले हो... अब मैं आत्मा आपके साथ ही रहूँगी..."

 

*मीठे बाबा ने बहुत प्यार से, मुस्कुराते हुए कहा* :- "मेरे बच्चे... ईश्वर पिता, सारे ख़ज़ाने, दौलत, अपना भरपूर प्यार तुम बच्चों के लिए ही तो लाया है... *तुम्हें सपूत इसिलए ही तो बनाया हैं... की सारे ख़ज़ानों पर अपना अधिकार जमा लो* ... भगवान से सब कुछ प्राप्त कर... देवताओं की खूबसूरत दुनिया में सपूत, नवाब बन कर मुस्कुराओ... *सारे सुखों को अपनी बाँहों में समा लो* ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के इस कदर उपकारों से अभिभूत होकर कहती हूँ* :- "मेरे प्यारे दुलारे बाबा... *मैं आत्मा परमात्मा का सपूत बच्चा बन... खुशी से झूम रही हूँ... स्वयं दुनिया का मालिक मेरा बाप हैं* ... बाबा की श्रीमत ने जीवन को खुशहाल, सुखी बनाया हैं... *श्रीमत पर चलना बाबा ने सिखाकर जीवन का ढंग निराला ही कर दिया* ... मीठे बाबा से सपूत बन हर समय श्रीमत का पालन करने का वायदा कर... मैं आत्मा अपने साकारी तन मे वापिस आ जाती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप की श्रीमत पर पूरा चल बाप का राइट हैंड बन पूरा राइटियस बनना है*

 

_ ➳  अपने प्यारे शिव पिता की मीठी याद में बैठी, उनके प्यार की बाहों के झूले में झूलते हुए, उनके स्नेह की शीतल किरणो का मधुर आनन्द लेते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य की मैं सराहना कर रही हूँ और *मन ही मन वाह - वाह के गीत गा रही हूँ, कि "वाह मेरा भाग्य" जो स्वयं भगवान अपने स्नेह के पुष्पों की वर्षा मुझ पर कर रहें हैं। वो सर्वशक्तिवान ऑलमाइटी अथॉरिटी जिसके लिए गायन है कि उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नही हिलता, वो सर्वशक्तिवान भगवान कैसे मेरे प्यार में बंध कर अति साधारण बन कर, अपना सम्पूर्ण प्यार मुझ पर लुटाने के लिए मेरे पास आ गया है*। कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो अपनी श्रेष्ठ मत देकर वो मेरे जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना रहा है। अपने ऐसे भगवान बाप पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिये!

 

_ ➳  मन ही मन अपने आप से बातें करती, अपने प्यारे पिता के स्नेह का रिटर्न देने के लिए, उनकी श्रीमत पर पूरा चल, उनका राइट हैंड बन, पूरा राइटियस बनने की दृढ़ प्रतिज्ञा स्वयं से करके, अब मैं अपने प्यारे प्रभु की मीठी याद में फिर से खो जाती हूँ और *महसूस करती हूँ जैसे मेरे शिव पिता, मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, अपनी शक्तियों का बल देने, परमधाम से मेरे पास आ गए हैं और अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों से मुझे धीरे - धीरे स्पर्श कर, अपने स्नेह की शीतल किरणो की मीठी - मीठी हल्की - हल्की फुहारे मेरे ऊपर बरसा रहें हैं*। मेरे मीठे बाबा के स्नेह की शीतल फ़ुहारों की शीतलता, कर्मेन्द्रियों की चंचलता को शांत कर, मुझे शीतल बना रही है। एक दम रिलेक्स, शान्त अवस्था का मैं अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  शरीर का भान बिल्कुल समाप्त हो गया है और स्वयं को मैं एक नन्हे से टिमटिमाते हुए सितारे के रूप में अपने सुप्रीम स्टार शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में महसूस कर रही हूँ जो *अपनी बाहों में भरकर मुझे अपने साथ ले जा रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाई मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, चमकती हुई चैतन्य ज्योति भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ अब उनकी किरणों रूपी बाहो के झूले में झूलती उनके साथ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाते, उनके प्यार से स्वयं को तृप्त करते हुए, मैं कब आकाश को पार कर जाती हूँ, ये एहसास ही नही होता। सूर्य, चाँद, और विशाल तारामण्डल को पार कर, सूक्ष्म वतन से होती हुई, अपने प्यारे पिता के साथ अब मैं उनकी निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  उनकी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों से उतर कर, अब मैं इस निर्वाण धाम, शान्ति धाम घर मे चारों और फैले शक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाते हुए, अपने इस अंतहीन घर में विचरण कर रही हूँ। *अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों का मधुर स्पर्श मुझे इस पूरे परमधाम घर में महसूस हो रहा है। उनके स्नेह की शीतल वर्षा हर जगह निरन्तर मेरे ऊपर हो रही है और उनके लव में लीन होकर, उनकी स्नेह वर्षा से मिलने वाले परम आनन्द की अनुभूति मुझे उनमे समा कर, उनके समान बन जाने के लिए उत्साहित कर रही है*। धीेरे - धीरे अब मैं उनकी तरफ बढ़ रही हूँ और उनके बिल्कुल पास जा कर जैसे ही उन्हें स्पर्श करती हूँ, सर्वशक्तियों का एक तेज करेन्ट मुझ में प्रवाहित होने लगता है और सर्वशक्तियों की तेज धारायें मुझ आत्मा में समाने लगती हैं।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों में मुझे समा कर, अपनी सारी शक्तियाँ निरन्तर मुझ पर बरसाते हुए मुझे आप समान बना रहें है। *मैं अनुभव कर रही हूँ कि अपने शिव पिता की श्रेष्ठ मत पर चल, उनका राइट हैंड बन, पूरा राइटियस बनने का बल बाबा ने पूरी तरह मेरे अंदर भर दिया है*। परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर, स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता से की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस साकार लोक में लौट रही हूँ।

 

_ ➳  *साकार तन में आकर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं हर कदम, अपने प्यारे पिता की श्रीमत को फॉलो कर रही हूँ*। उनकी श्रीमत पर पूरा चल कर, उनका राइट हैंड बन ईश्वरीय सेवायों को निमित बन सम्भाल रही हूँ। *उनकी शिक्षाओं को जीवन मे धारण कर, राइटियस बन , सबको यह सत्य ज्ञान देकर उन्हें भी राइटियस बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एकान्त और एकाग्रता के अटेंशन द्वारा तीव्रगति से सूक्ष्म सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं ज्ञान के हर राज़ को समझ कर  राजयुक्त, युक्तियुक्त और योगयुक्त होकर कर्म करने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ऐसे जानने वाले से अवगुण को न जानने वाले बहुत अच्छे हैं। ब्राह्मण परिवार में आपस में ऐसी आत्माओं को हँसी में ‘बुद्धू' समझ लेते हैं। आपस में कहते हो ना कि तुम तो बुद्धू हो। कुछ जानते नहीं हो। लेकिन इस बात में बुद्धू बनना अच्छा है। *न अवगुण देखेंगे न धारण करेंगे, न वाणी द्वारा वर्णन कर परचिन्तन करने की लिस्ट में आयेंगे। अवगुण तो किचड़ा है ना। अगर देखते भी हो तो मास्टर ज्ञान सूर्य बन किचड़े को जलाने की शक्ति है, तो शुभ-चिन्तक बनो। बुद्धि में जरा भी किचड़ा होगा तो शुद्ध बाप की याद टिक नहीं सकेगी।* प्राप्ति कर नहीं सकेंगे। गन्दगी को धारण करने की एक बार अगर आदत डाल दी तो बार-बार बुद्धि गन्दगी की तरफ न चाहते भी जाती रहेगी। और रिजल्ट क्या होगी? वह नैचुरल संस्कार बन जायेंगे। फिर उन संस्कारों को परिवर्तन करने में मेहनत और समय लग जाता है। दूसरे का अवगुण वर्णन करना अर्थात् स्वयं भी परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत होना है। लेकिन यह समझते नहीं हो - दूसरे की कमज़ोरी वर्णन करना, अपने समाने की शक्ति की कमज़ोरी जाहिर करना है। किसी भी आत्मा को सदा गुणमूर्त से देखो।

✺ *"ड्रिल :- दूसरे के अवगुण का वर्णन कर स्वयं परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत न होना*"

➳ _ ➳ *इस भीड़ भरी दुनिया में अकेले बैठी हुई मुझ आत्मा को अपने साजन से मिलन मनाने की इच्छा जाग्रत होती है...* मैं आत्मा अपने मन उपवन में अपने साजन से मिलन मनाने साजन को निमंत्रण भेजती हूँ... मैं आत्मा साजन के आने की तैयारियां करती हूँ... मेरे मन उपवन में देखती हूँ अवगुण रूपी काँटों की झाड़ियाँ भरी हुई है... किचड़ा भरा हुआ है... मैं आत्मा कई जन्मों से परचिन्तन कर, दूसरों के अवगुणों का वाणी द्वारा वर्णन कर गन्दगी को धारण करने की आदत डाल ली थी... इसको अपना नैचुरल संस्कार बना ली थी... और परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत हो गई थी...

➳ _ ➳ मेरे उपवन में अपने साजन को बिठाने का, मिलन मनाने का जगह ही नहीं है... *मेरा साजन जो कि परम पवित्र है, गुणों का सागर है, जिसकी महिमा अपरम्पार है, उसको इस गन्दगी में नहीं बिठा सकती...* मैं आत्मा तुरंत ज्ञान सूर्य बाबा का आह्वान करती हूँ... ज्ञान सूर्य से निकलती ज्वाला रूपी किरणें मुझ पर पड़ रही हैं... ज्ञान सूर्य की किरणों से सारा किचड़ा भस्म हो रहा है... अवगुण रूपी काँटों की झाड़ियाँ योग अग्नि में जलकर भस्म हो रही हैं... सारी गंदगी समाप्त हो रही है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा गुण, शक्तियों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य बन किचड़े को जलाने की शक्ति को ग्रहण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा न अवगुण देखती हूँ, न धारण करती हूँ... मैं आत्मा समाने की शक्ति को धारण कर सबके अवगुणों को समा लेती हूँ... बिल्कुल भी वर्णन नहीं करती... *अब मैं आत्मा दूसरे के अवगुण का वर्णन कर स्वयं परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत नहीं होती हूँ...* मैं आत्मा दिव्य गुणधारी बन सबके गुणों को ही देखती हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने मन उपवन को, अपने साजन को सदा के लिए बिठाने लायक बना दी हूँ... अब मुझ आत्मा का मन उपवन मधुबन बन गया है... *मैं आत्मा अपने मन मधुबन को रंग-बिरंगी गुण-शक्तियों की फूल मालाओं से सजा रही हूँ... अब मेरा मन मधुबन ज्ञान-योग की रूहानी खुशबू से भर गया है...* मैं आत्मा रूहे गुलाब बन अपने दिलरुबा साजन को बुलाती हूँ... दिलाराम बाबा के आते ही उनकी बाँहों में समा जाती हूँ... अपने साजन के हाथों में हाथ डाल अपने मन मधुबन में सैर करती हूँ... उनकी यादों में खो जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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