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 16 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कांटे से फूल बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *श्रीमत पर चल मायाजीत जगतजीत अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *हर एक के स्वभाव संस्कार को जान, टकराने की बजाये सेफ रहे ?*

 

➢➢ *सदा भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति में रह उडती कला का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे दु:खी आत्माओं के मन में यह आवाज शुरु हुआ है कि अब विनाश हो, वैसे ही आप विश्व-कल्याणकारी आत्माओं के मन में यह संकल्प उत्पन्न हो कि अब जल्दी ही सर्व का कल्याण हो तब ही समाप्ति होगी। *विनाशकारियों को कल्याणकारी आत्माओं के संकल्प का इशारा चाहिये इसलिए अपने एवर-रेडी बनने के पॉवरफुल संकल्प से ज्वाला रूप योग द्वारा विनाश ज्वाला को तेज करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ"*

 

  अपने को ज्ञान सूर्य के बच्चे मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? सूर्य का कार्य क्या होता है? अन्धकार मिटाना, प्रकाश देना। ऐसे ही आप सभी भी अज्ञान अन्धेरा मिटाने वाले हो ना। कभी स्वयं भी अन्धियारे में तो नहीं आ जाते? स्वयं से अन्धियारा समाप्त हो गया। स्वयं भी आत्मा ज्योति अर्थात प्रकाश स्वरुप है और कार्य भी है प्रकाश फैलाना। *अन्धकार में मनुष्य आत्माएं भटकती हैं - यहाँ जाएं, वहाँ जाएं, यह रास्ता ठीक है, यह स्थान ठीक है वा नहीं है, भटकते रहेंगे और रोशनी में सेकेण्ड में ठिकाना दिखाई देगा। तो सभी को रोशनी द्वारा अपना निजी ठिकाना दिखाने के निमित्त हो।*

 

  भटकती हुई आत्माओंको ठिकाना देने वाले। अगर कोई बहुत समय भटकता रहे और उसको कोई द्वारा ठिकाना मिल जाये तो ठिकाना दिखाने वाले को कितनी दुआएं देगा! *तो आप भी जब आत्माओंको रोशनी द्वारा ठिकाना दिखाते हो, दिखाने का अनुभव कराते हो तो आत्माओं द्वारा कितनी दुआएं निकलती हैं और जिसको दुआएं मिलती हैं वह सदा आगे बढ़ता जाता है। उसकी हर बात में प्रोग्रेस होती है क्योंकि दुआएं लिपÌट का काम करती हैं। सदा सहज आगे बढ़ते जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।* इसलिए भक्ति मार्ग में भी जब भटकते-भटकते थक जाते हैं तो बाप को कहते हैं - अभी कोई दुआ करो, कृपा करो। तो अनेक आत्माओंकी दुआएं आप आत्माओंको सहत उड़ती कला का अनुभव करायेंगी। एक बाप की दुआएं और आत्मा की भी दुआएं मिलती हैं। माँ-बाप बच्चों को दुआएं करते हैं - उड़ते रहो, बढ़ते रहो।

 

  लेकिन दुआएं लेने वाले पात्र होने चाहिए। बाप सभी को देता है लेकिन लेने वाले पात्र हैं तो अनुभवव करते हैं और पात्र नहीं है तो दाता देता है लेकिन लेने वाला नहीं लेता। *पात्र बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि। स्वच्छ मन और स्वच्छ बुद्धि। जिसकी स्वच्छ बुद्धि स्वच्छ मन है वह हर समय बाप की, आत्माओंकी दुआएं स्वत: ही अनुभव करते हैं।* लौकिक दुनिया में भी देखो अगर कोई ऐसे समय किसको सहारा देता है, मुश्किल के समय आधार बन जाता है तो मुख से दुआएं निकलती हैं ना - तुम सदा जीते रहो, तुम सदा जीवन में सफल रहो, यह दुआएं जरुर निकलती हैं। तो अपने से पूछो कि बाप की दुआएं, आत्माओंकी दुआएं अनुभव होती है या मेहनत बहुत करनी पड़ती है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अभी वर्णन सब करते योग अर्थात याद, योग अर्थात कनेक्शन। लेकिन *कनेक्शन का प्रैक्टिकल रूप, प्रमाण क्या है, प्राप्ति क्या है, उसकी  महीन में जाओ।*  मोटे रूप में नहीं, लेकिन रूहानियत की गुह्यता में जाओ। तब फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष होगा। *'प्रत्यक्षता का साधन ही है स्वयं में पहले सर्व अनुभव प्रत्यक्ष हो'।*

 

✧  जैसे विदेश की सेवा में भी रिजल्ट क्या सुनी? प्रभाव किसका पड़ता? दृष्टि का और रूहानियत की शक्ति का, चाहे भाषा ना समझे लेकिन जो छाप लगती है वह फरिश्ते-पन की, सूरत और नयनों द्वारा रूहानी दृष्टि की।  रिजल्ट में यही देखा ना। तो *अन्त में न समय होगा, न इतनी शक्ति होगी।*

 

✧  चलते-चलते बोलने की शक्ति भी कम होती जाएगी। लेकिन *जो वाणी कर्म करती है उससे कई गुणा अधिक रूहानियत की शक्ति कार्य कर सकती है।* जैसे वाणी में आने का अभ्यास हो गया है, वैसे रूहानियत का अभ्यास हो जाएगा तो वाणी में आने का दिल नहीं होगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व-कल्याण का कर्तव्य करने के लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा? जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म करेंगे, जो भी बोल बोलेंगे, जहाँ भी नज़र जायेगी, सर्व का कल्याण करते रहेंगे।* यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्वशक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को रास्ता दिखाने का कार्य करें।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जैसे बाप सबको सुख देते हैं, वैसे ही फूल बन सबको सुख देना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की कुटिया में बैठी हूँ... कुटिया चारों तरफ से रंग बिरंगे फूलों से सजी हुई बहुत सुंदर लग रही है...* बाबा से अलौकिक प्रकाश निकल कर मुझ में समाता जा रहा है, मैं आत्मा बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं...* बाबा अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर मुझे सैर पर ले जाते हैं , और एक सुंदर बगीचे में मेरे साथ टहलने लगते हैं... मैं आत्मा मन ही मन ये विचार कर रही हूं कि कितना सुंदर बाग है और ये फूल चारों तरफ अपनी खुशबु बिखेरते कितने प्यारे लग रहे हैं...

 

   *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोले:-* "मीठे बच्चे... जैसे बाप सबको सुख देते हैं वैसे ही सबको फूल बन सुख देना है... सुख दाता बाप के बच्चे कभी किसी को दुख नहीं दे सकते... *बाप की श्रीमत है, ना दुख दो न दुख लो* रूहे गुलाब बन सबको सुख  देना है और दुआओं का खाता जमा करना है... *बाप की श्रीमत को धारण कर बाप से  21 जन्म की प्रालब्ध लेनी है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की प्यार भरी समझानी को अपने में समाते हुए बाबा से बोली:-* " हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे प्यार और दुलार पाकर स्वयं को दिव्य ज्ञान से सुसज्जित देख कर आनंद के सागर में डुबकियाँ लगा रही हूं... *आपकी श्रीमत पाकर मेरा जीवन अलौकिक शक्ति से और दिव्यता से चमक उठा है... मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूं जिसको परमात्मा की पालना मिली... अपने भाग्य को देख मैं आत्मा असीम सुख का अनुभव कर रही हूं...*

 

  *बाबा एक बहुत सुंदर गुलाब को अपने हाथ में लेकर मुझे दिखाते हुए बोले:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... इस फूल में कितने कांटे हैं फिर भी सबकी नजर इस फूल पर ही पड़ती है क्योंकि फूल की सुंदरता, महक और मन को मोहने वाले सौंदर्य को देख कर सबका मन खिल जाता है ऐसे ही तुम्हें भी सुख देने वाला फूल बन सबको बाप समान सुख देना है... *बाप तुम्हें ज्ञान के खज़ानों से माला माल करने आये हैं,* इस ज्ञान को धारण कर तुम्हें दूसरों को भी कराने की सेवा करनी है... *इस पतित दुनिया से उपराम बनने के लिए इस ज्ञान सागर में रोज़ स्नान करो... निरंतर ज्ञान स्नान से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएंगे और तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जाएंगे...*

 

 _ ➳  *ज्ञान रत्नों से अलंकृत होकर बाबा की मधुर वाणी को दिल में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* " प्राण प्यारे बाबा मेरे... मैं जन्मों जन्मों से भटकती हुई आज अपने दिलाराम बाबा को पाकर खुशी से झूम रही हूं... *अपने स्वरूप को निखरता हुआ देख कर मन में अपार खुशी का अनुभव कर रही हूं...* जीवन इतना खूबसूरत हो जाएगा कभी सोचा न था... *मेरी मंज़िल मुझे मिल गयी है आपकी श्रीमत को धारण कर मैं आत्मा निखर गयी हूं... आपका स्नेह और साथ पाकर मैं अतीन्द्रिय सुख के झूले में निरंतर झूल रही हूं...*

 

  *बाबा मेरे सर पर बहुत प्यार से हाथ फेरते हुए कहते हैं:-* " मेरे नैनों के नूर मेरे लाडले बच्चे... तुम्हारा भाग्य तुम्हारे ही हाथों में है जितना चाहे उतना बना सकते हो... दुनिया में कितनी आत्माएं भटक रही है उनको ठिकाना मिल जाये ऐसा अपना स्वरूप बनाओ... तुम्हें देख दूसरे भी अपने जीवन को परमात्म प्रेम से भरें ऐसा आत्मिक स्वरूप प्रत्यक्ष करो... एक बाप दूसरा न कोई इस मंत्र को सदैव स्मृति में रखो... *एक बाप से योग लगाकर अपने विकर्मों को भस्म कर मेरे साथ चलने की तैयारी करो... पवित्र बने बिना तुम मेरे साथ जा नही सकते इसलिए अशरीरी पन का निरंतर अभ्यास करो... सम्पूर्ण पवित्र बन बाप से पूरा वर्सा लो...*

 

 _ ➳  *बाबा की मीठी मीठी बातों को स्वयं में धारण करते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "मेरे मीठे जादूगर बाबा... आपने तो मेरा जीवन सचमुच कितना दिव्य बना दिया है... मैं क्या से क्या हो गयी हूँ ,अपने भाग्य को देख कर मेरा मन खुशी के गीत गा रहा है और झूम झूम कर नाच रहा है... मैं आत्मा कितना भी शुक्रिया करूं कम ही लगता है... आपकी रहमतों के आगे तो शुक्रिया शब्द भी बहुत छोटा लग रहा है... *मेरी बुद्धि को पत्थर से पारस बुद्धि बना दिया है... ज्ञान रत्नों से आपने मेरा श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को निखार दिया है... आपकी श्रीमत पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ... मीठे बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा अपने साकार तन में लौट आती हूं...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- समर्थ उस्ताद की सुमत पर चल मायाजीत जगतजीत बनना है*

 

_ ➳  सारे विश्व पर जीत पहनने वाली माया के ऊपर जीत पहन मायाजीत जगतजीत बनने के लिए अपने समर्थ उस्ताद की सुमत पर सदा चलने की स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ और मन ही मन विचार करती हूँ कि माया ने कैसे सभी को भ्रम में डाल कर उलझा रखा है! *आज सारी दुनिया माया के धोखे में आकर कैसे उसकी मुरीद बन गई है! माया ने सबकी आंखों पर ऐसी पट्टी बांध दी है कि मनुष्य सही और गलत की पहचान करना ही भूल गए हैं*। किन्तु कितनी महान भाग्यवान हूँ मै आत्मा जो स्वयं भगवान समर्थ उस्ताद के रूप में मुझे मिले है और अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा मुझे माया के चंगुल से छूटने का सहज उपाय बता रहें हैं।

 

_ ➳  अपने समर्थ उस्ताद से उनकी सुमत पर चल मायाजीत बनने का मैं प्रोमिस करती हूँ और अंतर्मुखी होकर, बड़ी सूक्ष्म रीति अपनी चेकिंग करती हूँ कि माया कौन - कौन से रॉयल रूप धारण करके मेरे पुरुषार्थ में बाधा डालने का प्रयास करती है। *अपनी महीन चेकिंग करते हुए मैं अनुभव करती हूँ कि माया के हर वार से स्वयं को बचाने का शक्तिशाली शस्त्र एक ही है और वो है मेरे उस्ताद की सुमत जो अमृतवेले से लेकर रात्रि सोने तक मेरे उस्ताद ने मुझे दी है*। और इसलिए अब कदम - कदम अपने उस्ताद की सुमत पर चलते हुए मुझे माया पर जीत पाने का पुरुषार्थ कर जगतजीत बनना है।

 

_ ➳  इसी दृढ़ संकल्प के साथ माया को पहचानने और उसे परखने की शक्ति स्वयं में धारण करने के लिए अपने सर्वशक्तिवान उस्ताद की याद में मैं अपने मन और बुद्धि को स्थिर करती हूँ और *अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर चल पड़ती हूँ उनके पास। देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर मैं आत्मा ऊपर की और उड़ रही हूँ*। इस निर्बन्धन स्थिति में स्वयं को एक दम हल्का अनुभव करते हुए मैं आत्मा गहन आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ।

 

_ ➳  ज्ञान और योग के अपने खूबसूरत पँखो को फैला कर एक आजाद पंछी की भांति उड़ने का भरपूर आनन्द लेते - लेते मैं आकाश को पार कर, फरिश्तो की दुनिया से होती हुई लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया मे प्रवेश करती हूँ। *चमकते हुए चैतन्य सितारों की निराकारी दुनिया अपने पिता परमात्मा के परमधाम घर मे अब मैं स्वयं को अपने निराकार शिव पिता के सामने देख रही हूँ। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ शांति, सुख, प्रेम, आनन्द की अनुभूति करते हुए गहन अतीन्द्रिय सुख में मैं डूबती जा रही हूँ*। मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता के स्नेह की शीतल छाया और उनकी सर्वशक्तियाँ मुझे मायाजीत बनाने के लिए मेरी सोई हुई शक्तियों को जागृत कर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं।

 

_ ➳  63 जन्मों तक माया के जाल में फँस कर, अपनी शक्तियों को भूलने के कारण, दुखी होने की जो पीड़ा मैं सहन कर रही थी, वो पीड़ा अपने प्यारे पिता का स्नेह पाकर समाप्त हो गई है और मैं फिर से स्वयं को शक्तियों से सम्पन्न अनुभव करने लगी हूँ। *सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर अब मैं माया पर जीत पाने के लिए फिर से साकार सृष्टि रूपी माया की नगरी में लौट रही हूँ। अपने साकार तन का आधार लेकर मैं फिर से इस माया नगरी में अपना पार्ट बजा रही हूँ लेकिन सर्वशक्तिवान समर्थ उस्ताद को सदा अपने साथ कम्बाइंड रखकर अब मैं कदम - कदम उनकी सुमत पर चल माया के हर वार को पहचान कर, निडर होकर उसका सामना कर रही हूँ*। मेरे समर्थ उस्ताद की सर्वशक्तियों की छत्रछाया सेफ्टी का किला बन कर मुझे माया के जाल में फंसने से बचाकर मायाजीत जगतजीत बना रही है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं  हर एक के स्वभाव - संस्कारो को जान टकराने के बजाए सेफ रहने वाली मास्टर नॉलेजफूल आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति में रहकर उड़ती कला का अनुभव करने वाला फरिश्ता हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ कुमार सदा अपने को बाप के साथ समझते हो? बाप और मैं सदा साथ-साथ हैं, ऐसे सदा के साथी बने हो? वैसे भी जीवन में सदा कोई न कोई साथी बनाते हैं। तो आपके जीवन का साथी कौन? (बाप) ऐसा सच्चा साथी कभी भी मिल नहीं सकता। *कितना भी प्यारा साथी हो लेकिन देहधारी साथी सदा का साथ नहीं निभा सकते और यह रूहानी सच्चा साथी सदा साथ निभाने वाला है।* तो कुमार अकेले हो या कम्बाइन्ड हो? (कम्बाइन्ड) फिर और किसको साथी बनाने का संकल्प तो नहीं आता है? कभी कोई मुश्किलात आये, बीमारी आये, खाना बनाने की मुश्किल हो तो साथी बनाने का संकल्प आयेगा या नहीं? कभी भी ऐसा संकल्प आये तो इसे ‘व्यर्थ संकल्प' समझ सदा के लिए सेकण्ड में समाप्त कर लेना। क्योंकि जिसे आज साथी समझकर साथी बनायेंगे कल उसका क्या भरोसा! इसलिए विनाशी साथी बनाने से फायदा ही क्या! तो सदा कम्बाइन्ड समझने से और संकल्प समाप्त हो जायेंगे क्योंकि सर्वशक्तिवान साथी है। जैसे सूर्य के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता वैसे सर्वशक्तिवान के आगे माया ठहर नहीं सकती। तो सब मायाजीत हो जायेंगे।

✺ *"ड्रिल :- किसी भी मुश्किल में बीमारी में बाप को अपना साथी बना कर रखना"*

➳ _ ➳ सुंदर से बगीचे में फूलों की महक में ओस की बूंदों से सजे एक बहुत ही प्यारे फूल पर मैं आत्मा तितली बन कर बैठी हूं... कभी इस फूल पर और कभी उस फूल पर मैं तितली उड़ती हुई नए-नए रस का आनंद ले रही हूं... मैं इतनी हल्की होकर उड़ रही हूं मानो मैं एक हवा का झोंका हूँ... और मानो जैसे मुझे कोई बंधन नहीं हो, अपने रंग बिरंगे पंखों से मैं इस प्रकृति की शोभा बढ़ा रही हूं... थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि उस बगीचे में एक बहुत ही सुंदर जोड़ा मोर मोरनी का नाच रहा है... और मैं उसे देख कर बहुत आनंदित हो रही हूं... *उन्हें देख कर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हो और मानो हर पल एक दूसरे की याद में ही रहते हो...*

➳ _ ➳ उनको देखते-देखते मैं तितली नाचती हुई मोरनी के पंखों पर जाकर बैठ जाती हूं... और उनके हृदय की गहराई को जानने का प्रयत्न करती हूं... जैसे ही मैं उनके पास पहुंचती हूं मुझे आभास होता है कि वह मोर मोरनी आपस में बात कर रहे हैं... मोर मोरनी से कहता है... तुम हमेशा किस खुशी में नाचती रहती हो? मेरा मन कई बार उदास हो जाता है परंतु तुम कभी उदास नहीं होती तुम्हारी खुशी का क्या कारण है मोरनी बहुत खुश होती है और मोर को कहती है... *जब मेरा केवल देहधारियों से नाता था मैं केवल उनसे जुड़े रिश्ते नाते और बातें और सिर्फ उनको ही याद रखती थी... जब उनसे जुड़ी कोई खुशी की बात याद आती तो मैं खुश होती और जब उनसे जुड़ा कोई दुख मुझे याद आता तो मैं भी उदास और दुखी हो जाती थी...*

➳ _ ➳ फिर थोड़ा समय रुकने के बाद मोरनी मोर को कहती है... जैसे ही मुझे ज्ञात हुआ की मुझ आत्मा के पिता परमात्मा *जो मुझे हर पल याद करते हैं मैं उन्हें भूली हुई हूँ... जो मुझे सिर्फ खुशी देने के लिए आए हैं... हमेशा नाचते हुए देखने के लिए आए हैं... उनको मैं कभी याद भी नहीं करती तब मुझे सिर्फ दुख की अनुभूति ही हुई... जैसे ही मैंने देह धारियों से अपनी बुद्धि हटाकर हरपल परमपिता परमात्मा को अपना साथी बनाया, अपना दुख दर्द का हिस्सेदार बनाया, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा...* अब मुझे सिर्फ परम् पिता से जुड़ी हुई खुशियां और अनुभव ही याद रहते हैं... हर पल उनका साथ महसूस करने के कारण मैं हमेशा खुशी का अनुभव करती हूँ और खुशी में नृत्य करती हूँ...

➳ _ ➳ उनकी बातें सुनकर मैं बहुत आनंदित हो उठती हूं... और मुझे भी ज्ञात होता है कि मैं अभी तक देहधारियों से नाता तोड़ नहीं पाई हूं... बुद्धि से कहीं ना कहीं अभी तक मैं उन में फंसी हुई हूं... मैंने अपने कर्तव्यों को मोह में बदलकर अशांति प्राप्त की है... अब मै और ऐसा नहीं होने दूंगी... मैं सिर्फ परमपिता परमात्मा को अपना साथी बना कर आगे बढूंगी... हर पल उनको अपने साथ अनुभव करूंगी... और मैं यह भी दृढ़ संकल्प करती हूं कि... मैं किसी भी सांसारिक रिश्ते में अपनी बुद्धि नहीं फसाऊंगी... सिर्फ परमात्मा की याद में आगे बढ़ती जाऊंगी... *अगर मैं परमात्मा की याद में कोई भी संकल्प करूंगी तो वह संकल्प सिर्फ और सिर्फ पॉजिटिव ही होंगे... कोई भी व्यर्थ संकल्प मेरे दिमाग में नहीं आएगा... परमात्मा को अपना साथी और अपनी छत्रछाया बनाकर हमेशा अपने साथ रखूंगी... हमेशा परमात्मा के साथ कंबाइंड स्थिति का अनुभव करके अपनी शक्तियों को बढ़ाऊंगी और मास्टर सर्वशक्तिमान स्थिति का अनुभव करूंगी...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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