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 15 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने आप से बातें की ?*

 

➢➢ *गुप्त रीति से बाप को याद करते रहे ?*

 

➢➢ *सूक्षम शक्तियों द्वारा स्थूल कर्मेन्द्रियों को संयम नियम में चलाया ?*

 

➢➢ *हार भुजाओं वाले बाप के साथ के अनुभव से कभी दिलशिकस्त तो नहीं हुए ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *सेवा में वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार ।* बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे । संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ, *ऐसी लवलीन स्थिति में रह एक शब्द भी बोलेंगे तो वह स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देंगे । ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू मंत्र का काम करेगा ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं शान्ति का पैगाम देने वाला खुदाई पैगम्बर हूँ"*

 

✧  *सदा अपने को शान्ति का सन्देश देने वाले, शान्ति का पैगाम देने वाले सन्देशी समझते हो? ब्राह्मण जीवन का कार्य है - सन्देश देना।* कभी इस कार्य को भूलते तो नहीं हो?

 

  *रोज चेक करो कि मुझ श्रेष्ठ आत्मा का श्रेष्ठ कार्य है वह कहाँ तक किया! कितनों को सन्देश दिया। कितनों को शान्ति का दान दिया। सन्देश देने वाले महादानी-वरदानी आत्मायें हो।* कितने टाइटल्स हैं आपके?

 

  आज की दुनिया में कितने भी बड़े ते बड़े टाइटल हों आपके आगे सब छोटे हैं। वह टाइटल देने वाली आत्मायें हैं लेकिन अब बाप बच्चों को टाइटल देते हैं। *तो अपने भिन्न-भिन्न टाइटल्स को स्मृति में रख उसी खुशी, उसी सेवा में सदा रहो। टाइटल की स्मृति से सेवा स्वत: स्मृति में आयेगी।* अच्छा-

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जब जैसे चाहो वैसे स्थिति बना सके। यह मन को ड्रिल करानी है। *यह जरूर प्रैक्टिस करो - एक सेकण्ड में आवाज में, एक सेकण्ड में फिर आवाज से परे, एक सेकण्ड में सर्विस के सकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जायें*। इस ड्रिल की बहुत आवश्यकता है।

 

✧  एक सेकण्ड में कार्य प्रति शारीरिक भान में आयें, फिर एक सेकण्ड में अशरीरि हो जायें। जिसकी यह ड्रिल पक्की होगी वह सभी परिस्थितियों का सामना कर सकते हैँ। *जैसे शारीरिक ड्रिल सुबह को कराई जाती है, वैसे यह अव्यक्त ड्रिर भी अमृतवेले विशेष रूप से करनी है*। करना तो सारा दिन है लेकिन विशेष प्राक्टीस करने का समय अमृतवेले है।

 

✧  *जब देखो बुद्धि बहुत बिजी है तै उसी समय यह प्रैक्टिस करो - परिस्थिति में होते हुए भी हम अपनी बुद्धि को न्यारा कर सकते हो*। लेकिन न्यारे तब हो सकेंगे जब जो भी कार्य करते हो वह न्यारी अवस्था में होकर करेंगे। अगर उस कार्य में अटैचमेन्ट होगी तो फिर एक सेकन्ट में डिटैच नहीं होगे। इसलिए यह प्रैक्टिस करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  एक तो साथी को सदैव साथ रखो। दूसरा - साक्षी बनकर हर कर्म करो। *तो साथी और साक्षी - ये दो शब्द प्रैक्टिस में लाओ तो यह बन्धन मुक्त की अवस्था बहुत जल्दी बन सकती है।* सर्वशक्तिवान का साथ होने से शक्तियाँ भी सर्वप्राप्त हो जाती हैं। और साथ-साथ साक्षी बनकर चलने से कोई भी बन्धन में फंसेंगे नहीं। तो बन्धनमुक्त हुए हो ना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- यह वंडरफुल पाठशाला है जहाँ ज्ञानसागर बाप ज्ञान अमृत पिलाकर पावन बनाते हैं"*

 

 _ ➳  *ये रूहानी पाठशाला  जहाँ देवत्व जन्म ले रहा है*... रेखाओं के त्रिकोण नही, हस्त रेखाओं में जहाँ सतयुगी भाग्य का वर्सा लिखा जा रहा है... *सतयुगी दुनिया की नींव ये रूहानी पाठ- शाला... ज्ञानसागर लुटा रहा जहाँ, भर भर ज्ञानमधु का प्याला*... *ज्ञान सागर की लहरों मे डूबती उतरती मैं आत्मा पढाने वाले की मुरीद हुई*... *निहार रही हूँ एकटक उसे*... *जैसे चातक पक्षी एकटक निहारता है बादलों की ओर*... परमधाम से आकर सामने बैठा है मेरा सतगुरू और मैं रूहानी शागिर्द उसकी, और उनका एक एक महावाक्य अन्तर की गहराईयों में उतारता हुआ...

 

  *रूहानी नयनों से रूह को स्नेह परम शान्ति और रूहानी स्नेह का अमृत पिलाते मेरे सच्चे सच्चे रूहानी सदगुरू बोलें:-* "मीठी बच्ची... *मनुष्य से देवता बनाने वाले इस ज्ञानामृत की सच्ची सच्ची हकदार, कोटो में कोई, कोई में भी कोई, आप बच्ची संगम पर प्रत्यक्ष हुए इस गुप्त ज्ञान अमृत का महत्व समझती हो ना?* इस वंडर फुल पाठशाला में पढने का अपना परम लक्ष्य याद है आप बच्ची को?... *क्या आपको मालूम है मेरे परमधाम को छोडकर इस पतित दुनिया में आने का लक्ष्य?...*"

 

 _ ➳  *सच्चे सच्चे सदगुरू की नजरों से निहाल, नयनों में उनकी सम्पूर्ण छवि को उतारती हुई मैं आत्मा बोली:-* "मीठा मीठा कहकर मुझे मीठे बनाने वाले प्यारे सदगुरू...  *आपने इसी रूहानी पाठशाला में, मुझे खुद की पहचान दिलाई है... मेरे भाग्य की लेखनी आपने मेरे ही हाथों में पकडा दी, आपके इस पतित दुनिया में आने का वो पावन सा मकसद मेरी ही खुशियों के इर्द गिर्द ही तो घूमता है... निज रूप को भूली आत्माए विषय वासनाओं के सागर में गोते लगाती हुई अपने स्वरूप को  पहचानने के लिए तडप रही थी... और फिर... आप आए, साथ में बहिश्त भी हथेली पर ले आए*... आपने नर से नारायण बनने का दिव्य लक्ष्य दिया और उन दिव्य लक्षणों से आप हर रोज मुझ आत्मा को संवार रहे है..."

 

 ❉  *कदम कदम पर मेरे मददगार, मुझे स्वयं ही आगे बढा शाबाशियों से नवाज़ने वाले मेरे रूहानी सतगुरू बोले:-* "स्वांसो स्वांस मुझे और स्वर्ग को याद कर सेवा करने वाली मेरी मददगार बच्ची... आप इस वन्डर फुल पाठशाला की खूबियाँ सबको बताओं, *आप रूहानी मैसेन्जर बच्ची हर आत्मा को खुद के समान भाग्यशाली बनाओं...* इन गुणों का दिव्य आईना बनकर हर एक को ये गुण धारण कराओं... *अपने चेहरे और चलन से विश्व की आत्माओं को अपने सच्चे सच्चे सदगुरू का चेहरा दिखाओं...*"

 

 ➳ _ ➳  *ज्ञान सूर्य शिव सदगुरू के  शीतल ज्ञान झरनों में सराबोर मैं आत्मा ज्ञान रत्नों की खानियाँ उँडेलने वाले सतगुरू से बोली:-* "स्वदर्शन चक्रधारी बनाने वाले मेरे रूहानी सतगुरू... *ये वंडर पाठशाला अब प्रत्यक्ष हो रही है... ज्ञान सागर से ज्ञान गंगाए निकलकर इस धरती के हर कोने में फैल रही है बाबा*... हर आत्मा बच्ची, ज्ञानगंगा और गऊमुख बनकर आपको प्रत्यक्ष कर रही है, *मैं आत्मा भी अंग अंग में ज्ञान रत्नों को सजाकर आपको प्रत्यक्ष करने निकली हूँ..."*     

 

  ❉  *ज्ञानामृत पिला पतितों को पावन बनाने वाले बापदादा बोले:-* "प्यारी बच्ची... मुँझारें में भटकती आत्माओं को अब सोझंरे में लाओं, *तीर्थ, व्रत, उपवास करती आत्माओं को ज्ञान सागर में डुबकियाँ लगवा पावन बनाने इस पाठशाला तक लाओ... परमधाम से आता है निराकार पढाने अब ये संदेश मनसा सेवा से हर रूह तक पहुँचाओ..."*

 

 _ ➳  *विश्व का मालिक बनाने वाले सच्चे सच्चे सौदागर बाप से मैं 21 जन्मों के लिए अखुट खजानों की मालिक आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... मेरे इस जीवन को आपने पारसमणि बनाया है... अब वो देखो! वो सैकडों आत्माए जो मुझ पारसमणि आत्मा के सकंल्पों को छूते ही स्वयं अपना जीवन हीरे तुल्य बना रही है... *आपकी ये बच्ची चलती फिरती रूहानी पाठशाला बन रही है बाबा ! और दूसरों को भी आप समान बना रही है...* और बापदादा मेरे सर पर वरदानों की बारिश करते मुझे सारी सूक्ष्म शक्तियाँ विल कर रहे है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- गुप्त रीति से बाप को याद कर श्रेष्ठ बनना है*"

 

_ ➳  अपनी एम ऑब्जेक्ट लक्ष्मी नारायण के चित्र के सामने खड़ी मैं बड़ी बारीकी और तन्मयता से भाव विभोर हो कर उस चित्र को देख रही हूँ और मन ही मन हर्षित हो रही हूँ। *उस चित्र की खूबसूरती को देखते - देखते एक सुन्दर गीत के वो शब्द याद आ जाते है कि "जिसकी रचना इतनी सुन्दर है, वो रचनाकार खुद कितना सुन्दर होगा"* इन्ही शब्दो पर विचार करते - करते मैं फिर से लक्ष्मी नारायण के उस चित्र पर नजर डालती हूँ और उनके अनुपम सौन्दर्य और तेजस्वी मुख मण्डल को निहारते हुए *उन्हें ऐसा श्रेष्ठ बनाने वाले श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ रचनाकार अपने शिव पिता को जैसे ही याद करती हूँ, मस्तिष्क के स्मृति पटल पर मेरे सुन्दर सलौने शिव पिता का मनमोहक स्वरूप उभर आता है और मन बुद्धि पूरी तरह से उनके स्वरूप पर एकाग्र हो जाते हैं*।

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया को भूल अपने प्यारे पिता के स्वरूप को निहारने में मैं आत्मा ऐसे मग्न हो जाती हूँ जैसे चात्रिक पक्षी स्वन्ति की एक बूंद के लिये बादलों की ओर टकटकी लगाए देखता रहता है। *अपने प्यारे प्रभु को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने सामने देखते हुए उनकी एक - एक किरण को एकटक निहारते हुए, मैं उनके अद्भुत सौंदर्य का रसपान कर रही हूँ*। शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे अपनी और आकर्षित कर रहा है। उनके पास जा कर उन्हें छूने की प्रबल इच्छा मेरे अंदर जागृत हो रही है। मेरे हर संकल्प को मेरे प्यारे प्रभु बिना कहे जैसे जान रहें हैं इसलिए बिल्कुल सहज रीति अपनी मैग्नेटिक पावर से मुझे अपनी और खींच रहें हैं।

 

_ ➳  मेरे प्यारे मीठे बाबा की सर्वशक्तियों का यह चुम्बकीय बल मुझे देह भान से पूरी तरह मुक्त कर, अशरीरी स्थिति में स्थित कर रहा है। देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु अब मुझे दिखाई नही दे रही। *मैं आत्मा स्वयं को एकदम साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ।  ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं संकल्प मात्र भी देह से अटैच नही हूँ। बहुत ही न्यारी और प्यारी, एक अलौकिक सुखमय स्थिति में मैं स्थित हो चुकी हूँ और इस अति न्यारी और प्यारी स्थिति में मैं सहजता से नश्वर देह को त्याग कर अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। सेकेण्ड में आकाश को पार कर, सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने प्यारे बाबा के पास और उनके पास जा कर बैठ जाती हूँ ।

 

_ ➳  बाबा से सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे निकलकर मुझ आत्मा पर बरस रही हैं और मुझे असीम आनन्द से भरपूर कर रही हैं। एक अलौकिक दिव्यता  मुझ आत्मा में भरती जा रही है। प्यार के सागर मेरे मीठे बाबा अपनी शक्तिशाली किरणो के रूप में अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। *उनके प्यार की शीतल किरणे मेरे अंदर गहराई तक समा कर, मुझे भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बना रही हैं। निरसंकल्प बीज रूप अवस्था में अपने बीज रूप शिव पिता को छू कर, उनके प्यार का सुखद एहसास करने के साथ - साथ उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे अपना पार्ट बजाने के लिए लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  नीचे साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ। बाबा के प्यार के सुखद एहसास को सदा स्मृति में रख, गुप्त रीति उन्हें याद कर, लक्ष्मी नारायण जैसा श्रेष्ठ बनने का अब मैं जी जान से पुरुषार्थ कर रही हूँ। *बाबा की श्रीमत पर चल, बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करते हुए अपने संकल्प, बोल और कर्म को योगयुक्त औऱ युक्तियुक्त बनाकर मैं सहज ही श्रेष्ठ बनती जा रही हूँ*। गुप्त रीति ईश्वरीय याद में रह योगबल से पुराने कर्मबन्धनों के हिसाब - किताब बिल्कुल सहज भाव से चुकतू करने के साथ - साथ *अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारो को भी योग अग्नि में भस्म कर, श्रेष्ठ दैवी गुणों को धारण करते हुए अपने लक्ष्य की ओर मैं निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सूक्ष्म शक्तियों द्वारा स्थूल कर्मेन्द्रियों को संयम नियम में चलाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं हज़ार भुजाओं वाले बाप का साथ सदा अनुभव कर कभी दिलशिकस्त नहीं होने वाली विजयीमूर्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳. *एक वाणी, दूसरा स्व शक्तिशाली स्थिति और तीसरा श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन जहाँ भी सेवा करो वहाँ ऐसा रूहानी वायब्रेशन फैलाओ जो वायब्रेशन के प्रभाव में सहज आकर्षित होते रहें।* देखो, अभी लास्ट जन्म में भी आप सबके जड़ चित्र कैसे सेवा कर रहे हैं? क्या वाणी से बोलते? वायब्रेशन ऐसा होता जो भक्तों की भावना का फल सहज मिल जाता है। *ऐसे वायब्रेशन शक्तिशाली हों, वायब्रेशन में सर्व शक्तियों की किरणें फैलती हों, वायुमण्डल बदल जाए। वायब्रेशन ऐसी चीज है जो दिल में छाप लग जाती है।* आप सबको अनुभव है किसी आत्मा के प्रति अगर कोई अच्छा या बुरा वायब्रेशन आपके दिल में बैठ जाता है तो कितना समय चलता है? बहुत समय चलता है ना! निकालने चाहे तो भी नहीं निकलता है, किसका बुरा वायब्रेशन बैठ जाता है तो सहज निकलता है? तो *आपका सर्व शक्तियों की किरणों का वायब्रेशन, छाप का काम करेगा। वाणी भूल सकती है, लेकिन वायब्रेशन की छाप सहज नहीं निकलती है।* अनुभव है ना!

 

 _ ➳. *अभी सेकण्ड में ज्ञान सूर्य स्थिति में स्थित हो चारों ओर के भयभीत, हलचल वाली आत्माओं को, सर्वशक्तियों की किरणें फैलाओ। बहुत भयभीत हैं। शक्ति दो। वायब्रेशन फैलाओ।* अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

 

✺   *ड्रिल :-  "श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन फैलाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  पावन अमृतवेला में बाबा को निहारती अपने भाग्य को सहारती इठलाती इतराती मैं आत्मा गुनगुनाती हूं..."जाने क्या देखा मुझमें मुझे प्यार कर लिया, मेरे लाडले कहा और मुझे बांहों में भर लिया" *मैं विशेष आत्मा हूं... मुझे स्वयं भगवान ने अपना बनाया है... इसी रूहानी नशे में अपने स्वमान में स्थित हो बाबा को साथ ले सृष्टि की सैर को निकलती हूं...*

 

 _ ➳  ऊँची ऊँची चोटियों के ऊपर से, कहीं कल-कल करती नदियां... ऊपर से नीचे गिरते झरने... ताल तालाब... लहलहाते पेड़ पौधे... चहचहाते पक्षियों के झुंड...उगते सूरज की लालिमा ये सब बड़ा ही सुखदायी लग रहा है... *परम कलाकार की बनाई ये तस्वीर एकदम अनोखी है मन को भाने वाली है...*

 

 _ ➳  तभी कोलाहल से मेरी तंद्रा टूटती है...नीचे देखती हूं, तो पाती हूँ कि *अनेक आत्मायें भयभीत होकर हलचल में हैं... शक्तिहीन स्थिति में होने के कारण बेचैन हैं...* इनकी इसी अवस्था को दिखाने के लिए ही बाबा ने आज मुझे इस सैर को प्रेरित किया है... *मेरे बाबा को हर एक आत्मा का कितना ध्यान रहता है... ये सोचकर ही मैं आत्मा कृतकृत्य हो जाती हूं... ये मेरे आत्मा भाई हैं, मुझे इनको इस अवस्था से बाहर निकालना ही है... मैं आत्मा सर्वशक्तिमान की संतान हूँ...*

 

 _ ➳  *अपने  सर्वशक्तिमान, ज्ञान सूर्य पिता को याद कर मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो इन आत्माओं को सर्व शक्तियों की किरणें दे रही हूं...* शुभभावना और शुभकामनाओं के वायब्रेशन्स दे रही हूं... *ईश्वर पिता से प्राप्त इन रूहानी वायब्रेशन्स से वायुमंडल बदल रहा है... शक्तियों की किरणों के वायब्रेशन फैलते ही इन आत्माओं की हलचल समाप्त हो रही है...* ये आत्मायें शान्ति की सुख की शक्तियों की तरंगों को अनुभव कर रही हैं... *वातावरण धीरे धीरे हल्का हो शान्त हो गया है सभी आत्माएँ प्रसन्नता पूर्वक इस सुख शान्ति के लिए ईश्वर पिता को मन ही मन धन्यवाद देती हैं...*

 

 _ ➳  *मैं भी बाबा को इस सेवा को कराने के लिये दिल से शुक्रिया अदा करती हूं...* बाबा आपका जितना भी शुक्रिया करूँ वो कम है... मेरे बाबा... मेरे बाबा... *"किस तरह सुनाएं ओ बाबा! जो तुमसे इतना पाएं हैं वो भूल कभी ना पाएंगे..."*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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