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❍ 30 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आत्माओं को सुख, शांति, पवित्रता और ज्ञान की अंचली दी ?*
➢➢ *अपने भाइयों के ऊपर दया और रहम की दृष्टि डाली ?*
➢➢ *चमकती हुई संतुष्ट मणि सर्व आत्माओं को संतोष का दान दिया ?*
➢➢ *आत्माओं को इच्छा मातरम् अविधा स्थिति का अनुभव करवाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *कर्मातीत का अर्थ ही है-सर्व प्रकार के हद के स्वभाव-संस्कार से अतीत अर्थात् न्यारा। हद है बन्धन, बेहद है निर्बन्धन।* ब्रह्मा बाप समान अब हद के मेरे-मेरे से मुक्त होने का अर्थात् कर्मातीत होने का अव्यक्ति दिवस मनाओ। इसी को ही स्नेह का सबूत कहा जाता है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अविनाशी बाप के बगीचे का अविनाशी रूहानी गुलाब हूँ"*
〰✧ *सदा अपने को बाप के रूहानी बगीचे के रूहानी गुलाब समझते हो! सबसे खुशबू वाला पुष्प 'गुलाब' होता है। गुलाब का जल कितने काया में लगाते हैं, 'रंग-रूप' में भी गुलाब सर्व प्रिय है। तो आप सभी रूहानी गुलाब हो।* आपकी रूहानी खुशबू औरों को भी स्वत: ही आकर्षण करती है।
〰✧ *कहाँ भी कोई खुशबू की चीज होती है तो सबका अटेन्शन स्वत: ही जाता है तो आप रूहानी गुलाबों की खुशबू विश्व को आकर्षित करने वाली है, क्योंकि विश्व को इस रूहानी खुशबू की आवश्यकता है।*
〰✧ *इसलिए सदा स्मृति में रहे कि -'मैं अविनाशी बगीचे का अविनाशी गुलाब हूँ।' कभी मुरझाने वाला नहीं। सदा खिला हुआ। ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब सदा सेवा में स्वत: ही निमित्त बन जाते हैं।* याद की, शक्तियों की, गुणों की यह सब खुशबू सबको देते रहो। स्वयं बाप ने आकर आप फूलों को तैयार किया है तो कितने सिकीलधे हो!
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो? *साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में अपने स्वीट होम, शान्तिधाम में पहुँचा देती है।* साइंस वाले तो और फास्ट गति वाले यंत्र निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन *आपका यंत्र कितनी तीव्र गति का है!* सोचा और पहुँचा। ऐसा यंत्र साइंस में हैं जो इतना दूर बिना खर्च के पहुँच जाएँ?
〰✧ वो तो एक-एक यंत्र बनाने में कितना खर्च करते है, कितना समय और कितनी एनर्जी लगाते हैं, आपने क्या किया? बिना खर्चे मिल गया। *यह संकल्प की शक्ति सबसे फास्ट है।* आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि से पहुँच जाते हो। *जब चाहो तब लौट आओ, जब चाहो तब चले जाओ।*
〰✧ साइंस वालों को तो मौसम भी देखनी पडती है। आपको तो यह भी नहीं देखना पडता कि आज बादल है, नहीं जा सकेंगे। आजकल देखो - बादल तो क्या थोडी-सी फागी भी होती है तो भी प्लैन नहीं जा सकता। और *आपका विमान एवररेडी हैं या कभी फागी आती है?* एवररेडी है? सेकण्ड में जा सकते हैं - ऐसी तीव्र गति है? *माया कभी रुकावट तो नहीं डालती है?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बंधनों की लम्बी लिस्ट वर्णन करते हो, क्लासेज कराते हो तो बंधनों की बड़ी लम्बी लिस्ट निकालते हो *लेकिन बाप कहते हैं सब बन्धनों में पहल एक बंधन है-देह भान का बंधन। उससे मुक्त बनो। देह नहीं तो दूसरे बंधन स्वत: ही खत्म हो जायेंगे।* अपने को वर्तमान समय मैं टीचर हूँ, मैं स्टूडेंट हूँ मैं सेवाधारी हूँ, इस समझने के बजाए *अमृतवेले से यह अभ्यास करो कि मैं श्रेष्ठ आत्मा ऊपर से आई हूँ'- इस पुरानी दुनिया में, पुराने शरीर में सेवा के लिए। मैं आत्म हूँ-यह पाठ अभी और पक्का करो।* आप आत्मा का भान धारण करो तो यह आत्मिक भान, माया के भान को सदा के लिए समाप्त कर देगा। लेकिन आत्मा का भान - यह अभी चलते फिरते स्मृति में रहे, वह अभी और होना चाहिए। *ब्रह्म बाप ने आत्मा का पाठ आदि से कितना पक्का किया! दीवारों पर भी मैं आत्मा हूँ परिवार वाले आत्मा हैं, एक-एक के नाम से दीवारों में भी यह पाठ पक्का किया डायरियां भर दी-मैं आत्मा हूँ यह भी आत्मा है, यह भी आत्मा है। आपने आत्मा का पाठ इतना पक्का किया है? मैं सेवाधारी हूँ, यह पाठ कुछ पक्का लगता है लेकिन आत्मा सेवाधारी हूँ, तो जीवनमुक्त बन जायेंगे।* रोज़ शरीर में ऊपर से अवतरित हो, मैं अवतार हूँ इस शरीर में अवतरित आत्मा हूँ फिर *युद्ध नहीं करनी पड़ेगी। आत्मा बिन्दू है ना? तो सब बातों को बिंदु लग जायेगा। कौन सी आत्मा हूँ? रोज एक नया-नया टाइटल स्मृति में रखो।* आपके पास बहुत से टाइटल की लिस्ट तो हैना। रोज़ नया टाइटल स्मृति में रखो कि मैं ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। सहज है या मुश्किल है? आत्मा बिन्दु रूप में रहेगी, तो ड्रामा बिन्दु भी काम में आयेगा और समस्याओं को भी सेकण्ड में बिन्दु लगा सकेंगे और बिन्दु बन परमधाम में बिन्दु जायेगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- महादानी, वरदानी बनना"*
➳ _ ➳ मै आत्मा तपस्या धाम में बैठी हुई... अपने मीठे बाबा से असीम वरदानों को ले रही हूँ... और अपने सुंदर सजीले भाग्य को निहारते हुए सोच रही हूँ... *आज बाबा के हाथो में फूल बनकर खिल गयी हूँ... हर दिल को खुशबु से सुवासित कर, ईश्वरीय दौलत से भर रही हूँ..*. कभी देह भान ने, मुझे आत्मा को कितना संकीर्ण और तंगदिल बना दिया था... आज भगवान से मिलकर, सागर सा दिल लिए घूम रही हूँ... और सदा खुशियो की टोकरी हाथो में लिए... *हर दिल पर दिलेरी से खुशियां बाँट रही हूँ.*.. मीठे बाबा ने मुझे किस कदर दरिया दिल बनाकर मेरा यूँ कायाकल्प किया है... रोम रोम से मीठे बाबा को धन्यवाद कर मै आत्मा... प्यारे बाबा के प्यार में खो जाती हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो कि पूरे विष की नजरो में हो... तो सदा स्वयं में शक्तियो का स्टॉक भरपूर करो... और दाता के बच्चे बनकर सर्व को सहयोग दो... *सदा शुभ भावना और समर्थ संकल्पों से भरपूर रहकर, सबके दिलो को सच्ची खुशियो से भर दो.*.. गुणो और शक्तियो से सम्पन्न बनकर सच्चे सेवाधारी बनो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार को पाकर खुशियो में नाचते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने मुझ आत्मा का भाग्य कितना सुंदर बना दिया है... *सबके लिए प्रेम शुभ भावना सिखाकर, मुझे कितना सुखदायीं बना दिया है.*.. मै आत्मा हर आत्मा में विशेषता के मोती देखने वाली आपके प्यार में होलिहंस बनकर मुस्करा रही हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा दिलाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *खुशियो के और प्राप्तियों के झूले में सदा झूलने वाले, खुशनसीब हो... इस नशे सदा डूबे रहो..*.निष्काम सेवाधारी बनकर निरन्तर ईश्वरीय पथ पर बढे चलो... सच्चे सेवा भावना से ओतप्रोत होकर, प्राप्तियों का प्रत्क्षय फल खाने वाले... खुशियो में सदा खिलते रहो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को पाकर, गुणो और शक्तियो से सजकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *आपकी फूलो सी गोंद में आकर,मुझ आत्मा का जीवन, गुणो की सुगन्ध से भर गया है.*..मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर... विश्व कल्याण की भावना दिल में लिए... सारे विश्व को आत्मिक मूल्यों से सजा रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता से मिली सर्व प्राप्तियों के नशे में रहकर... सदा सन्तुष्टमणि आत्मा बनो... सदा स्वयं को और वायुमण्डल को सेफ रखने वाले... सच्चे सेवाधारी बनकर... ईश्वर पिता के दिलतख्त पर मुस्कराओ... *सदा निमित्त और निर्माण बनकर, डबल कमाई से मालामाल बनो.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की ईश्वरीय दौलत से अमीर बनते हुए कहती हूँ :-* "प्यारे बाबा मै आत्मा देह के भान में कितनी तंगदिल थी... और *आज आपने आज अपनी बाँहों में लेकर... मुझे कितने विशाल ह्रदय से सजा दिया है.*..मै आत्मा सबके जीवन को खुशियो की बहारो से सजा रही हूँ... ईश्वरीय गुणो को पूरे विश्व पर छलका रही हूँ..."मीठे बाबा से मीठी रुह रिहान कर... मै आत्मा कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- चमकती हुई सन्तुष्टमणि बन सर्व आत्माओं को सन्तुष्टता का दान देना*"
➳ _ ➳ संतुष्टमणि बन सदा संतुष्ट रहने और सर्व को संतुष्ट करने का जो लक्ष्य बाबा ने अपने हर एक ब्राह्मण बच्चे को दिया है उस लक्ष्य को पाने का आधार है स्वयं को सदा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करना। क्योकि सर्व प्राप्तियों की अनुभूति ही जीवन मे सन्तुष्टता ला सकती है। *इसलिए अपने इस ब्राह्मण जीवन में अब मुझे सदा निर्विघ्न, सदा विघ्न विनाशक और सदा सन्तुष्ट रह सर्व को संतुष्ट करने का सर्टिफिकेट हर समय लेते रहना है ताकि टेंशन की शिकार, विश्व की सर्व असन्तुष्ट आत्माओं को सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर उनकी टेंशन और परेशानियों को मैं समाप्त करके बापदादा से सन्तुष्टमणि आत्मा का सर्टिफिकेट प्राप्त कर बाबा का तख्तनशीन बन सकूँ*।
➳ _ ➳ इसी प्रतिज्ञा के साथ स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से भरपूर करने के लिए मैं श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होकर बैठ जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को स्थिर करती हूँ परमात्म याद में। *अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने निराकार बिंदु बाप पर एकाग्र करते ही, परमात्म प्राप्तियों की अनुभूति मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है*। परमात्म प्यार और परमात्म प्राप्तियों के अखुट खजाने से स्वयं को भरपूर करने के लिए मैं आत्मा विदेही बन देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर अब अपने विदेही पिता के पास जाने के लिए चल पड़ती हूँ एक सुखमयी, आनन्दमयी यात्रा पर।
➳ _ ➳ अंतर्मुखता की इस यात्रा पर एक - एक कदम बढ़ाती, परमात्म प्यार के सुखद पलों का मधुर एहसास करती मैं इस खूबसूरत यात्रा पर चलती जा रही हूँ। आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर यह यात्रा मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में ले आती है। *अपने शान्ति धाम घर मे शांति के सागर अपने निराकार बिंदु बाप के सामने मैं बिंदु आत्मा आकर बैठ जाती हूँ और स्वयं को परमात्म प्यार और परमात्म शक्तियों से भरपूर करने लगती हूँ*। प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा से अपने अंदर असीम प्यार और शक्तियाँ भरकर तृप्त होकर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर ईश्वरीय वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाने के लिए सूक्ष्म वतन में पहुँचती हूँ।
➳ _ ➳ सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख बैठ उनके वरदानी हस्तों से वरदान ले कर अब मैं फ़रिश्ता स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। *अपनी सर्वशक्तियों से और अपनी लाइट माइट मुझे भरपूर करने के साथ - साथ बाबा अपनी पावन दृष्टि से मुझे निहारते हुए मेरे अंदर असीम बल और शक्ति का संचार कर रहे हैं*। स्वयं को सर्व प्राप्तियों के अखुट खजाने से भरपूर करके, सर्वप्राप्ति सपन्न स्वरूप बन कर अब मैं सन्तुष्टमणि के श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बैठ, सर्व को संतुष्ट करने के लिये सूक्ष्म वतन से नीचे साकार लोक में आ जाता हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं सारे विश्व में चक्कर लगा रहा हूँ और चारों ओर रोती बिलखती दुखी, अशांत, निराश और हताश आत्माओं को देख रहा हूँ। इन सभी दुखी अशांत आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए अब मैं बाबा से सर्वशक्तियाँ लेकर इन आत्माओं तक पहुंचा रहा हूँ। *मैं देख रहा हूँ बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणें मुझ फ़रिश्ते में समा कर, रंग बिरंगी फ़ुहारों के रूप में मुझ से निकल कर उन सभी आत्माओं के ऊपर बरस रही हैं*। पवित्रता, सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, और शक्ति से सम्पन्न ये किरणे सभी आत्माओं छू कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही है। सबके मुरझाये हुए चेहरे खिल उठे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे परमात्म पालना का अनुभव करके वो सब तृप्त हो गई है।
➳ _ ➳ टेंशन भरी जिंदगी जीती, विश्व की सभी असन्तुष्ट आत्माओं को परमात्म प्यार के सुख की अनुभूति द्वारा उन्हें सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ। *स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से सदा भरपूर रखते हुए, सन्तुष्टमणि बन, स्व से, सेवा से और सम्बन्ध में संतुष्टता का अनुभव करते हुए, अब मैं अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म प्यार और ईश्वरीय अलौकिक स्नेह दे कर सबके जीवन को सन्तुष्टता से भरपूर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व सम्बन्ध एक बाप से जोड़कर माया को विदाई देने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सदा बिजी रहने वाली बिजनेस मैन बनकर कदम कदम में पदमों की कमाई करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. अभी समय प्रमाण सबको बेहद के वैराग्य वृत्ति में जाना ही होगा। लेकिन *बापदादा समझते हैं कि बच्चों का समय शिक्षक नहीं बनें*, जब बाप शिक्षक है तो समय पर बनना - यह समय को शिक्षक बनाना है।
➳ _ ➳ 2. ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनाया, बेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा। आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगाया, धन लगाया, लेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा। *तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है*। मेरा शरीर है, नहीं। बाबा का रथ है। बाबा के रथ को खिलाता हूँ, मैं खाता हूँ, नहीं। तन से भी बेहद का वैराग्य। मन तो मनमनाभव था ही। धन भी लगाया, लेकिन कभी यह संकल्प भी नहीं आया कि मेरा धन लग रहा है। *कभी वर्णन नहीं किया कि मेरा धन लग रहा है या मैंने धन लगाया है। बाबा का भण्डारा है, भोलेनाथ का भण्डारा है*। धन को मेरा समझकर पर्सनल अपने प्रति एक रूपये की चीज भी यूज नहीं की। कन्याओं, माताओं की जिम्मेवारी है, कन्याओं, माताओं को विल किया, मेरापन नहीं। समय, श्वांस अपने प्रति नहीं, उससे भी बेहद के वैरागी रहे। *इतना सब कुछ प्रकृति दासी होते हुए भी कोई एकस्ट्रा साधन यूज नहीं किया*। सदा साधारण लाइफ में रहे। कोई स्पेशल चीज अपने कार्य में नहीं लगाई। वस्त्र तक, एक ही प्रकार के वस्त्र अन्त तक रहे। चेंज नहीं किया। बच्चों के लिए मकान बनाये लेकिन स्वयं यूज नहीं किया, बच्चों के कहने पर भी सुनते हुए उपराम रहे। *सदा बच्चों का स्नेह देखते हुए भी यही शब्द रहे - सब बच्चों के लिए है*। तो इसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रत्यक्ष जीवन में रही। अन्त में देखो बच्चे सामने हैं, हाथ पकड़ा हुआ है लेकिन लगाव रहा? बेहद की वैराग्य वृत्ति। स्नेही बच्चे, अनन्य बच्चे सामने होते हुए फिर भी बेहद का वैराग्य रहा। *सेकण्ड में उपराम वृत्ति का, बेहद के वैराग्य का सबूत देखा*। एक ही लगन सेवा, सेवा और सेवा..... और सभी बातों से उपराम। इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य।
➳ _ ➳ 3. *साकार में सर्व प्राप्ति का साधन होते हुए, सर्व बच्चों की जिम्मेवारी होते हुए, सरकमस्टांश, समस्यायें आते हुए पास हो गये ना*! पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले लिया। विशेष कारण बेहद की वैराग्य वृत्ति।
✺ *ड्रिल :- "ब्रह्माबाप समान बेहद की वैराग्य वृत्ति का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप समान बेहद की वैराग्य वृति धारण करने का दृढ़ संकल्प मन में लिए मैं लाइट का सूक्ष्म शरीर धारण कर फरिश्ता बन पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन... *मेरे संकल्पों को पहले ही कैच कर चुके अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान शिव बाबा मुझे देखते ही अपनी बाहें फैला कर मुझे गले से लगा कर कहते हैं, आओ मेरे बच्चे:- "साकार ब्रह्मा बाप की गोद का सुख लेने आये हो"!* यह कह कर बाबा मुझे अपनी गोद में बिठा लेते हैं... बाबा की गोद में बैठते ही मैं जैसे एक छोटी बच्ची बन जाती हूँ और बाबा के साथ मधुबन में उस स्थान पर पहुंच जाती हूँ जहां ब्रह्मा बाबा ने दादियों के साथ 14 साल कठोर तपस्या करके इस स्थान को ऐसी तपोभूमि बना दिया कि *इस तपोभूमि पर पैर रखते ही हर मनुष्य आत्मा को गहन शांति की अनुभूति स्वत: ही होती है...*
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को इस तपोभूमि पर... यहां पहुंचते ही ब्रह्मा बाबा की वो सभी साकार यादें स्मृति में ताजा हो उठती है जो दीदी, दादियों ने ब्रह्मा बाबा के साथ अपने अनुभवों में कही हैं... *उन साकार यादों की स्मृति मुझे भी साकार पालना का अनुभव कराने लगती हैं*... उस खूबसूरत एहसास में मैं खो जाती हूँ... मेरी आँखों के सामने ब्रह्मा बाबा के हर कर्म का सीन स्पष्ट हो रहा है जिसमे ब्रह्मा बाप की बेहद की वैराग्य वृति की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है...
➳ _ ➳ बाबा के हर कर्म को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं... कैसे ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में समर्पित कर दिया... *तन के लिए मुख से सदा यही बोल निकला कि मेरा शरीर नही है, शिव बाबा का रथ है*... मन में भी सिवाए शिव बाबा के दूसरा कोई नही था... धन के लिए भी बाबा के मन में कभी यह संकल्प नही आया कि यज्ञ में मेरा धन लग रहा है... *मुख से सदा यही निकला कि शिव बाबा का भंडारा है, भोलेनाथ का भंडारा है*... अपना सारा धन कन्याओं, माताओं को विल कर ईश्वरीय सेवा में लगा दिया, अपने प्रति एक चीज भी यूज़ नही की... समय, संकल्प, श्वांसों को भी बेहद के वैरागी बन कर सफल किया... किसी भी चीज में कोई ममत्व, कोई लगाव नही रखा... सब कुछ होते हुए भी हर चीज से उपराम रहे...
➳ _ ➳ बाबा के हर कर्म में उनकी वैराग्य वृत्ति की छाप का मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा है... *उनके हर कर्म को देख कर मैं मन ही मन दृढ़ संकल्प करती हूं कि अब बस मुझे ब्रह्मा बाप समान बेहद का वैरागी बनना है*... इस संकल्प को दृढ़ता से मन में धारण करके जैसे ही मैं बाबा की ओर देखती हूँ... बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे "ब्रह्मा बाप समान बेहद के वैरागी भव" का वरदान देकर मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा देते हैं... *बाबा से वरदान ले कर, विजय का तिलक लगाए मैं फरिश्ता अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ*...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप समान बनने का लक्ष्य मन में लिए, अपने ब्राह्मण जीवन में अब मैं ब्रह्मा बाप के हर कर्म को फॉलो कर रही हूँ... *मेरा यह ब्राह्मण जीवन केवल ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे मिला है, इस बात को स्मृति में रख मैं अपना तन- मन - धन ईश्वरीय सेवा में सफल कर रही हूं*... चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते मन में केवल एक शिव बाबा की याद है...
➳ _ ➳ देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, पदार्थो में अब मेरा कोई ममत्व नही है... सर्व सम्बन्धो का सुख शिव बाबा से लेते हुए मैं जैसे सबसे उपराम हो गई हूं... *ब्रह्मा बाप समान देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप से देखने के अभ्यास ने मुझे मरजीवा बना दिया है*... इस देह में रहते स्वयं को मेहमान समझ, सर्व सम्बन्धो से मैं नष्टोमोहा हो गई हूं...
➳ _ ➳ मन में अब केवल यही अनहद नाद गूंजता रहता है "दिल का अब संकल्प यही है, बाबा तुमसा बनना ही है..." और *इस संकल्प को पूरा कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण बनने के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण कर, पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट लेना ही अब मेरे जीवन का लक्ष्य है*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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