━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 22 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बीमारी में भी बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *सवेरे सवेरे उठ विचार सागर मंथन किया ?*

 

➢➢ *स्नेह और भावना के बंधन में भगवान को बाँधा ?*

 

➢➢ *स्वयं को हर परिस्थिति में मोल्ड कर सच्चे गौल्ड बनकर रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  सदा अपने को डबल लाइट समझकर सेवा करते चलो। *जितना सेवा में हल्कापन होगा उतना सहज उड़ेगे उड़ायेंगे।* डबल लाइट बन सेवा करना, याद में रहकर सेवा करना-यही सफलता का आधार है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं उड़ती कला में रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"*

 

  सदा उड़ती कला के लिये विशेष क्या स्मृति आवश्यक है? कभी भी नीचे नहीं आयें सदा ऊपर रहें उसके लिये क्या आवश्यक है? *उड़ने के लिये पंख चाहते हैं ना। तो उड़ती कला के दो पंख कौन से है? (ज्ञान और योग) ज्ञान और योग के साथ हिम्मत और उमंग-उत्साह।*

 

  अगर हिम्मत है तो हिम्मत से जो चाहे, जैसे चाहे वैसे कर सकते हैं। इसलिये गाया हुआ भी है हिम्मते बच्चे मददे बाप। तो हिम्मत और उमंग-उत्साह रहता है? *क्योंकि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उमंग उत्साह बहुत जरूरी है। अगर उमंग उत्साह नहीं होगा तो कार्य सफल नहीं हो सकता।* क्यों?

 

  *जहाँ उमंग-उत्साह नहीं होगा वहाँ थकावट बहुत ज्यादा होगी और थका हुआ कभी सफल नहीं होगा। तो हिम्मत और उमंग-उत्साह-इसी आधार पर सदा उड़ती कला का अनुभव कर सकते हो। वर्तमान समय के अनुसार उड़ती कला के सिवाए मंजिल पर पहुँच नहीं सकते।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

अपने आपको चेक करो कि कर्मेन्द्रिय-जीत बने हैं? आवाज में नहीं आना चाहे तो ये मुख का आवाज अपनी तरफ खींचता तो नहीं है? इसी को ही रूहानी ड़्रिल कहा जाता है। *जैसे वर्तमान समय के प्रमाण शरीर के लिए सर्व बीमारियों का इलाज 'एक्सरसाइज' सिखाते हैं, तो इस समय आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास चाहिए।* चारों ओर कितना भी वातावरण हो, हलचल हो लेकिन आवाज में रहते आवाज से परे स्थिति का अभ्यास अभी बहुत काल का चाहिए। शान्त वातावरण में शान्ति की स्थिति बनाना यह कोई बडी बात नहीं है। *अशान्ति के बीच आप शान्त रहो, यही अभ्यास चाहिए।* ऐसा अभ्यास जानते हो?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ *पहले संसार में बुद्धि भटकती थी और अभी बाप ही संसार हो गया। तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया, एकाग्र हो गई।* क्योंकि पहले की जीवन में कभी देह में, कभी देह के सम्बन्ध में, कभी देह के पदार्थ में - अनेकों में बुद्धि जाती थी। अभी यह सब बदल गया। अभी देह याद रहती या देही? *अगर देह में कभी बुद्धि जाती है तो रांग समझते हो ना! फिर बदल लेते हो, देह के बजाय अपने को देही समझने का अभ्यास करते हो। तो संसार बदल गया ना ! स्वयं भी बदल गये।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- टिवाटे पर खड़े होकर जज करना किधर जाना है- दुःखधाम, शांतिधाम या सुखधाम"*

 

 _ ➳  *दोजख की दलदल में डूबी मैं आत्मा... बाहर बचे थे बस केश मेरे...  वो चले आये इस दलदल तक भी... डूबे हुए स्नेह में मेरे*... नारकीय कीचड में सनी आँखो को स्वर्ग का सपना दिया... *जिन कानों से होती हुई बुद्धि तक नारकीय वासनाए पहुँच चुकी थी... उन कानों को मुरली का मधु चखाया... स्मृतियों की समर्थी दिलाकर मुझे कीचड में खिलता कमल बनाया*... कमलासन पर विराजमान मैं आत्मा... बैठी हूँ बापदादा के सम्मुख और *संगम के इस टिवाटे से देख रही हूँ  दुःखधाम, शांतिधाम या सुखधाम की झलक*...

 

  *विशाल बुद्धि बना सहज योगी बनाने वाले बापदादा मुझ निश्चय बुद्धि आत्मा से बोले:- "मेरी स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा... आपने बाप को पहचाना है आपकी जीवन नैय्या अब दुख के सागर के किनारों को छोड चुकी है*... सामने उस पार सुख धाम है... और एक तरफ शान्ति धाम... त्रिकालदर्शी बना बाप ने आपको तीनों का ही ज्ञान दे दिया है... अब किधर जाना है आप निर्णय करों"...

 

 _ ➳  *सदा बाप और चक्र की स्मृति में रहने वाली मैं हर्षित मुख आत्मा बापदादा से बोली:-*" *मीठे बाबा... दुख धाम में तो जन्मों- जन्म गुजारें है... आँखों में बस अब सुखधाम और शान्ति धाम के ही नजारें है*...  अब देह और देह की दुनिया से मर कर दिव्य गुणो का हार पहन रही हूँ... मर चुकी हूँ पुरानी दुनिया से... दिव्य कंचन काया में खुद को देख रही हूँ..."

 

  *सौतेले से मातेले बना एक बाप की याद में बुद्धि को लगाने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:- "मीठी बच्ची... बुद्धि में बस बाबा शब्द लगातार टपकता रहे*... दुनियावी सम्बन्धों में न्यारापन और प्यारापन हो बस सर्व सम्बन्धों की डोर एक बाप से ही जुडी रहें... *तीन गलियों के बीच ये टिवाटा, दुख की गली से निकाल कर बाप ने तुम्हें टिवाटे पर खडा किया है... बाप की आशाओ को पूरा करोगे... इसलिए ज्ञान की पालना से बडा किया है*"...

 

 _ ➳  *ज्ञान की बुलबुल बन आप समान बनाने की सेवा करने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... बाप की आशाओं को पूरा करना अब मेरा पहला सपना है*... तीन गलियों के बीच इस टिवाटे पर खडी मैं आत्मा *हर आत्मा को स्वदर्शन चक्रधारी बना शान्ति धाम सुख धाम का वर्सा दिला रही हूँ... परदर्शन है दुख धाम का रास्ता... सबको समझा रही हूँ"*...

 

  *उडती कला का अनुभवी बनाने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:- "मेरी तीव्र पुरूषार्थी बच्ची... सेवा के मार्ग में आने वाले विघ्नों को अब उडती कला से पार करों... शक्ति शाली बनने के लिए अपनी सब प्राप्तियों को इमर्ज करों*... अन्तिम समय अब लाइट हाऊस बन दोनो ओर का रास्ता दिखाओ... दुखधाम से मुक्त कर सबको सुख शान्ति का वर्सा दिलाओ"...

 

 _ ➳  *बाप की आज्ञाकारी मैं आदर्शमूर्त आत्मा बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... संगम पर लाइट हाऊस मैं आत्मा सभी को लाइट स्वरूप बना रही हूँ... मुझ आत्मा की लाइट माइट से हर आत्मा अब सुख शान्ति का वर्सा पा रही है*... दुख धाम से मुख मोड चुकी है सभी... अपनी अपनी विशेषता के अनुसार सुख धाम और शान्ति धाम जाने का पुरूषार्थ कर रही है... ये सुनते हुए बापदादा मधुर मुस्कान के साथ मुझे निहारें जा रहे है..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बीमारी में भी बाप की याद में रहना है और दूसरों को भी याद दिलाना है*"

 

_ ➳  शरीर की किसी भी बीमारी रूपी कर्मभोग के समय केवल बाबा की याद ही उस कर्मभोग को चुकतू करने का सहज उपाय है क्योंकि बाबा की याद आत्मा में बल भर कर उसे बीमारी से लड़ने की शक्ति देती है जिससे बीमारी रूपी कर्मभोग पर विजय पाना बिल्कुल सहज हो जाता है। *इसलिए कर्मभोग के रूप आने वाली शरीर की किसी भी बीमारी में, बाप की याद से उस पर सफलतापूर्वक विजय प्राप्त कर, हर कर्मभोग को योगबल द्वारा बिल्कुल सहज भाव से चुकतू करके, अपनी सम्पूर्ण कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरुषार्थ करते हुए मुझे निरन्तर आगे बढ़ते जाना है, मन ही मन दृढ़ता से यह संकल्प करके अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को मैं याद करती हूँ* जिन्होंने योगबल द्वारा कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने का प्रत्यक्षय उदाहरण हमारे सामने रखा।

 

_ ➳  योगबल और कर्मभोग के युद्ध का जो अनुभव अव्यक्त होने से पहले ब्रह्मा बाबा ने किया और बच्चों को जो कुछ सुनाया वो अनुभव दृश्य के रूप में मेरी आँखों के सामने उभर रहा है। *देख रही हूँ मैं मनबुद्धि से योगबल और कर्मभोग की उस युद्ध को जो बाबा अनुभव कर रहे थे। एक तरफ कर्मभोग फुल फोर्स से अपनी ओर खींच रहा था तो दूसरी तरफ योगबल भी फुल फोर्स में था। ऐसा लग रहा था जो भी शरीर के हिसाब किताब रहें हुए हैं वह फट से योग अग्नि में भस्म हो रहें हैं और बाबा साक्षी होकर इस युद्ध को देख रहें हैं*। कुछ समय बाद कर्मभोग तो बिल्कुल निर्बल हो गया। दर्द बिल्कुल गुम हो गया और योगबल ने कर्मभोग पर जीत पा ली।

 

_ ➳  योगबल से कर्मभोग पर जीत पाने के इस दृश्य को देख कर, ऐसे ही *हर कर्म में फॉलो फादर कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के लक्ष्य को पाने के लिये, बीमारी में भी बाबा की याद में रहने और दूसरों को भी याद दिलाने की स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ और हर कर्मभोग को योगबल द्वारा सहज भाव से चुकतू करने का बल अपने अंदर जमा करने के लिए अब अपने निराकार शिव पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को स्थिर कर लेती हूँ*। अपने मन बुद्धि को अपने निराकार बिंदु स्वरूप पर एकाग्र करते ही देह का भान जैसे धीरे - धीरे समाप्त होने लगता है और मन अपने अति सुंदर सत्य स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाता है।

 

_ ➳  सुख, शांति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता, शक्ति और ज्ञान के गुणों से सम्पन्न अपने सतोगुणी स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से मैं निहारने लगती हूँ और अपने मस्तक से प्रकाश की रंगबिरंगी किरणों के रूप में अपने इन गुणों के वायब्रेशन्स को धीरे - धीरे अपने चारों ओर वायुमण्डल में फैलता हुआ महसूस करती हूँ। *ये वायब्रेशन्स वायुमण्डल में फैल कर मेरे आस - पास के वातावरण को शुद्ध और पवित्र बना रहे हैं। मेरे चारों तरफ रूहानियत की एक ऐसी खुशबू फैल गई है जो मेरे मन को आनन्दित कर रही है और मुझे देह की कारा से मुक्त कर ऊपर की ओर ले जा रही है*। स्वयं को मैं पूरी तरह अशरीरी अनुभव कर रही हूँ और विदेही बन अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ।

 

_ ➳  मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने अति सुन्दर दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप को निहारते, अपने अंदर समाये सर्व गुणों का आनन्द लेते, अपने प्यारे पिता के प्रेम की लगन में मगन, मैं *निराकार ज्योति पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से होती हुई प्रकाश की एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करती हूँ जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है*। निराकार ज्योति बिंदु आत्माओ की इस दुनिया में आकर अपने प्यारे बाबा के समीप जाकर अब मैं उनके साथ अटैच होकर उनसे आ रही लाइट, माइट से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ और उनकी सर्वशक्तियों को अपने अंदर भर कर स्वयं को शक्तिशाली बना रही हूँ।

 

_ ➳  एक अति गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में करके, सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर, डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ। *साकारी दुनिया में अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर अब मैं सृष्टि रंगमंच पर फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ और अपने डबल लाइट स्वरूप में स्थित होकर, देह और देह की दुनिया में रहते हर कर्मभोग को योगबल से बिल्कुल सहज रीति चुकतू कर रही हूँ*। बीमारी में घबराने या दिलशिकस्त होने के बजाय बाबा की याद में रहकर औरों को भी बाबा की याद दिलाते हुए, उमंग उत्साह में रहते बीमारी के समय भी मैं निरोगी जीवन का अनुभव कर रही हूँ।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्नेह और भावना के बंधन में भगवान को भी बांधने वाली गायन योग्य आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वयं को हर परिस्थिति में मोल्ड कर लेने वाला सच्चा गोल्ड हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. *सेवा जो स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा नहीं हैस्वार्थ है।* और निमित्त कोई न कोई स्वार्थ ही होता है इसलिए नीचे-ऊपर होते हैं। चाहे अपनाचाहे *दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता है तब सेवा में डिस्टर्बेन्स होती है। इसलिए स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करो।*

 

 _ ➳  २. *चारों ओर अटेन्शन प्लीज।*

 

✺   *ड्रिल :-  "स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करना*

 

 _ ➳  *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित होकर पहुँच जाती हूँ... हिस्ट्री हॉल में... और बाबा के चित्र के आगे जाकर बैठ जाती हूँ...* बापदादा अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं... मैं बाबा को देख कर अति प्रसन्न होकर वाह बाबा वाह!! कह उनसे बातें करने लगती हूँ... तभी बाबा मुझे सेवा के महत्व के बारे में समझाते हुए कहते हैं...

 

 _ ➳  *बच्ची... हर कर्म को... हर सेवा को... निमित्त समझ कर... निःस्वार्थ भाव से... करो, कोई भी सेवा स्वार्थ वश नहीं करना...* चाहे उस सेवा से अपना स्वार्थ सिद्ध हो या दूसरे का... वो सेवा... सेवा नही, साधारण कर्म हो जायेगा... फिर बाबा समझाने लगे... *ऐसी सेवा भी नहीं करना जो दूसरों के लिये व्यवधान पैदा करे...*    

 

 _ ➳  *अपने को हर कर्म में निमित्त समझना... यही न्यारे और सर्व के प्यारे बनने का सहज साधन है...* निमित्त बन कर जब सेवा करते हैं तो वह सेवा निर्विघ्न... और अविनाशी कमाई जमा कराती है... बच्ची... *हर कदम ब्रह्मा बाबा को फॉलो करो... जैसे ब्रह्मा बाबा देह से न्यारे होकर कर्म करते थे... सदा अचल... अडोल... निश्चिन्त... उनके नक्शे कदम पर चलो...*      

 

 _ ➳  बाबा... मेरे मीठे मीठे बाबा... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के हर कदम पर... उनकी हर श्रीमत को पूरा पूरा फॉलो करुँगी...* जैसे बाबा हर सेवा में अटल... अचल... रहते थे... जैसे उन्हें पक्का निश्चय था कि सर्वशक्तिवान मेरे साथ है... करन करावनहार वही है... मैं निमित्त हूँ... वैसे ही *मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाबा की तरह... मनसा-वाचा-कर्मणा... हर सेवा को निमित्त समझ... स्वार्थ से परे... न्यारी और सर्व की प्यारी बनकर करुँगी...*   

 

 _ ➳  मैं बाबा से कहती हूँ... *बाबा... अब मैं आत्मा चलते फिरते... स्वार्थ से परे... सदा इसी न्यारेपन की स्थिति में स्थित रहकर हर सेवा करुँगी...* मैं आत्मा अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाकर दूसरों को भी स्वार्थ से परे रहने के लिये प्रेरित करुँगी...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━