━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 24 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मास्टर ज्ञान सागर बन पतितों को पावन बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *आत्माओं को बहुत युक्ति से समझाया ?*

 

➢➢ *नए ते नए, ऊंचे ते ऊंचे संकल्प द्वारा नयी दुनिया की झलक दिखाई ?*

 

➢➢ *एक बाप को ही अपना कम्पैनियन बना उसी की कंपनी में रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  जितना स्वयं को मन्सा सेवा में बिजी रखेंगे उतना सहज मायाजीत बन जायेंगे। *सिर्फ स्वयं के प्रति भावुक नहीं बनो लेकिन औरों को भी शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा परिवर्तित करने की सेवा करो। भावना और ज्ञान, स्नेह और योग दोनों का बैलेन्स हो। कल्याणकारी तो बने हो अब बेहद विश्व कल्याणकारी बनो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं हीरो पार्टधारी हूँ"*

 

✧  *अपने को सदा हीरो पार्टधारी समझते हुए हर कर्म करो।*

 

  *जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको कितनी खुशी होती है, वह तो हुआ हद का पार्ट। आप सबका बेहद का पार्ट है। किसके साथ पार्ट बजाने वाले हैं! किसके सहयोगी हैं, किस सेवा के निमित हैं, यह स्मृति सदा रहे तो सदा हर्षित, सदा सम्पन्न, सदा डबल लाइट रहेंगे।*

 

 *हर कदम में उन्नति होती रहेगी। क्या थे और क्या बन गये! 'वाह मैं और वाह मेरा भाग्य!' सदा यही गीत खूब गाओ और औरों को भी गाना सिखाओ। 5 हजार वर्ष की लम्बी लकीर खिंच गई तो खुशी में नाचो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  अभी एक सेकण्ड में मन को एकाग्र कर सकते हो? *सब एक सेकण्ड में बिन्दु रूप में स्थित हो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा - ऐसा अभ्यास चलते-फिरते करते रहो।*

 

✧  अभी बाप बच्चों से क्या चाहते हैं? पूछते हैं ना - बाप क्या चाहते हैं? *तो बापदादा यही मीठे-मीठे बच्चों से चाहते हैं कि एक-एक बच्चा स्वराज्य अधिकारी राजा हो।*  सभी राजा हो? स्वराज्य है? स्व पर राज्य तो है ना। जो समझते हैं स्वराज्य अधिकारी राजा बना हूँ, वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा।

 

✧  बापदादा को बच्चों को देखकर प्यार आता कि 63 जन्म बहुत मेहनत की है, दु:ख-अशान्ति से दूर होने की। *तो बाप यही चाहते हैं कि हर बच्चा अभी स्वराज्य अधिकारी बने। मन-बुद्धि-संस्कार का मालिक बने, राजा बने।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  *अव्यक्त स्थिति एक दर्पण है। जब आप अव्यक्त स्थिति में स्थित होते हो तो कोई भी व्यक्ति के भाव अव्यक्त स्थिति रूपी दर्पण में बिल्कुल स्पष्ट देखने में आयेगा।* फिर मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। दर्पण को मेहनत नहीं करनी पड़ती है कोई के भाव को समझने में। *जितनी-जितनी अव्यक्त स्थिति होती है, वह दर्पण साफ और शक्तिशाली होता है। इतना ही बहुत सहज एक-दो के भाव को स्पष्ट समझते हैं।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रचता और रचना के ज्ञान से मास्टर जानी जाननहार बनना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा पंछी बन उड़ चलती हूँ बाबा की कुटिया में... बाबा के सम्मुख बैठ मन की आँखों से हर पल उनको निहारती हुई स्नेह सागर में खो जाती हूँ... *इस सृष्टि के रचयिता ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा स्वयं आकर आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं... जिस राज को बड़े-बड़े सन्यासी भी नहीं जानते, वो राज मुझे बताकर प्यारे बाबा मुझे मास्टर जानी जाननहार बना रहे हैं...* अमरबाबा ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर तीनो कालो तीनो लोको का ज्ञान दे रहे हैं..."

 

 ❉   *ज्ञान किरणों की छाया में बिठाकर दिव्य गुणों की खुशबू से महकाते हुए प्यारा बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... अमर पिता अपने भूले बच्चों को सब कुछ याद दिलाने आया है... *ज्ञान के दिव्य चक्षु से सारे राज बताने आया है... खुद के सत्य को भूले बच्चे आज समझदार हो गए है... खुद को तो क्या तीनो कालो और तीनो लोको को जान मा ज्ञान सागर बन गए है...”*

 

_ ➳  *एक नज़र की प्यासी थी, अब बाबा की नजरों में समाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... कितना भटकी थी मै आत्मा इस दुखमय संसार के झूठे नातो में... सच्चे सुख की एक बून्द भी मेरे दामन में न थी... *आपने अपना हाथ मेरे सर पर रख मुझ आत्मा को ज्ञान परी बना दिया... मै सब जान गयी हूँ प्यारे बाबा... तीनो कालो तीनो लोको से भी वाकिफ हो गई हूँ...”*

 

 ❉   *ज्ञान चक्षु खोलकर अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरी झोली भरते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... हद के ज्ञान से सच्चे राजो को जान न सकोगे... बेहद के ज्ञान को अमर पिता के सिवाय तो कोई बता ही न सके... *ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर सदा के रौशन हो गए हो... खुद को जान... सृष्टि के चक्र को भी यादो में भर लिए हो, मा त्रिलोकीनाथ बन गए हो...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा से सबकुछ पाकर खुशियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे सिकीलधे प्यारे बाबा... मै आत्मा घर से जो निकली... खूबसूरत खेल खेलते खेलते दुःख के खेल में उलझ गई... स्थूल नेत्र की दुनिया को ही दिल में समा ली थी... *आपने आकर ज्ञान नेत्रो से जीवन सदा का रौशन किया है... आपने ज्ञान को मेरी बुद्धि में समाहित कर आप समान बना दिया है... प्यारे बाबा मै सब कुछ जान गयी हूँ...”*

 

 ❉   *उमंगो से जीवन को भरकर सदा के लिए खुशियों से मेरे दामन को सजाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... यह दुखमय संसार मेरे बच्चों के लिए नही है... सोने जैसी सुखो भरी धरती ही तुम बच्चों का आशियाना है... *विस्मृति के खेल से सब भूल गए हो... और अब अमर पिता के संग से अपनी वास्तविकता और खूबसूरत राजो के राजदार बन पड़े हो...”*

 

_ ➳  *त्रिकालदर्शी की सीट पर बैठ तीनों नेत्रों से इस सृष्टि के गुह्य राजों को जान, ज्ञान परी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* प्राणों से भी प्यारे बाबा... आपका किन शब्दों में शुक्रिया करूँ.... *कितना सुंदर मेरा भाग्य है कि स्वयं अमर पिता... मुझ आत्मा को ज्ञान के नेत्रो से बेहद के राजो को बताने... मेरी दुनिया में आ गया है... मुझे ज्ञानवान बना सदा का सुखी बना रहा है...* मीठे बाबा... इस खुशनसीबी की तो मैंने कल्पना भी न की थी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान को कण्ठ कर मास्टर ज्ञान सागर अथवा ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है*"

 

_ ➳  ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर, ज्ञान गंगा बन ज्ञान के शीतल जल से पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए मैं ज्ञान के सागर, *पतित पावन अपने शिव पिता परमात्मा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अंतर्मुखता की एक ऐसी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो मुझे सीधी ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के पास ले जायेगी*। अंतर्मुखता की इस अति सुन्दर लुभावनी यात्रा पर अनेक सुन्दर अनुभवों की खान अपने साथ लेकर मैं इस यात्रा का आनन्द लेते हुए देह के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कर विदेही बन अब नश्वर देह से बाहर निकलती हूँ और ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, उस रास्ते पर उड़ती जा रही हूँ जो मेरे स्वीट साइलेन्स होम को जाता है। *आनन्द से भरपूर, ज्ञान की रूहानी अलौकिक मस्ती में डूबी मैं आत्मा पंछी समस्त पृथ्वी लोक का चक्कर लगा कर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में प्रवेश करती हूँ*।

 

_ ➳  गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति का अनुभव करते - करते मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए अब अपने ज्ञान सागर बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं*। ज्ञान रत्नों से मैं भरपूर होती जा रही हूँ।

 

_ ➳  अपनी बुद्धि रूपी झोली में ज्ञान का अखुट भण्डार जमा कर, ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए अब मैं परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब पर बैठ बापदादा का आह्वान करती हूँ। *बापदादा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते हुए, बापदादा के साथ कम्बाइन्ड होकर अब ज्ञान सागर अपने शिव पिता से ज्ञान की अनन्त किरणों को स्वयं में भरकर, फिर उन्हें चारों और फैला रही हूँ*। मुझ ज्ञान गंगा से निकल रही ज्ञानअमृत की शीतल धारायें मुझ से निकल कर विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर पड़ रही है और उन्हें विकारों की तपन से मुक्त कर, गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं पर ज्ञान वर्षा करके, मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और ज्ञान गंगा बन सबको यह सच्चा ज्ञान देकर उन्हें पावन बनाने की सेवा के लिए चल पड़ती हूँ। *मुरली के माध्यम से बाबा जो अविनाशी ज्ञान रत्न हर रोज मुझे देते हैं उन अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर, उन्हें कण्ठ कर, सबको उन ज्ञान रत्नों का मैं दान करती रहती हूँ*। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को इस सत्य ज्ञान रूपी गंगा जल से पावन बनाने की सेवा करते हुए, सबको ज्ञान सागर उनके शिव पिता से मिलाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के पुरुषार्थ में अब मैं निरन्तर लगी रहती हूँ।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं नये ते नये, ऊंचे ते ऊंचे संकल्प द्वारा नई दुनिया की झलक दिखाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक बाप को ही अपना कम्पैनियन बनाकर उसी की कम्पनी में रहने वाली मायाजीत आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आज चारों ओर के सर्व स्वमानधारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। *इस संगम पर जो आप बच्चों को स्वमान मिलता है उससे बड़ा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को प्राप्त नहीं हो सकता है।* कितना बड़ा स्वमान है, इसको जानते हो? स्वमान का नशा कितना बड़ा है, यह स्मृति में रहता है? *स्वमान की माला बहुत बड़ी है। एक एक दाना गिनते जाओ और स्वमान के नशे में लवलीन हो जाओ।* यह स्वमान अर्थात् टाइटल्स स्वयं बापदादा द्वारा मिले हैं। परमात्मा द्वारा स्वमान प्राप्त हैं। इसलिए *इस स्वमान के रूहानी नशे को कोई अथारिटी नहीं जो हिला सके क्योंकि आलमाइटी अथारिटी द्वारा प्राप्त है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "आलमाइटी अथारिटी द्वारा प्राप्त स्वमान के रूहानी नशे में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा रात्रि में खुले आसमान के नीचे बैठ कर... आकाश में चांदनी रात के सौंदर्य को निहार रही हूँ... चंद्रमा अपने संपूर्ण रूप में चमक रहा है... चंद्रमा की शीतल चांदनी रात्रि के गहन अंधकार को चीरती जा रही है... *चंद्रमा के शीतल स्वरुप को देख मेरा मन सहज ही अपने बाबा की स्मृतियों में मगन हो जाता है...* मैं आत्मा मीठे बाबा को बुद्धि के नेत्रों से निहार रही हूँ... *प्रभु का चंद्रमा सा शीतल सलोना रूप मैं आत्मा एकटक ही निहार रही हूँ...* चन्द्रमा समान बाबा की शीतल किरणों को... स्वयं में समा कर मैं आत्मा चांदनी के जैसे सारे विश्व में ज्ञान का, स्नेह का, पवित्रता का शीतल प्रकाश फैला रही हूँ...

 

 _ ➳  अपने ऊँचे भाग्य को देख कर मैं मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ... अपना सुंदर भाग्य देख अति आनंदित हो रही हूँ... दुनिया में मनुष्य छोटा सा पद पाने के लिए क्या कुछ नहीं करते... साम, दाम, दंड, भेद हर तरीके अपनाते हैं जबकि वह पद प्रतिष्ठा तो अल्प काल की है, दुखदायी है... और *मुझ आत्मा को तो स्वयं भगवान ने अपने दिलतख्त पर बिठा लिया है...* इस तख्त के सामने दुनियावी ऊंचे से ऊंचा पद भी फीका महसूस हो रहा है... *कितना रूहानी स्नेह बाबा मुझ आत्मा पर बरसा रहे हैं... बाबा मुझे अपने सर्व खजानों का मालिक बना रहे हैं...*

 

 _ ➳  मीठे बाबा मुझे गुणों और शक्तियों के गहनो से सजा रहे हैं... कितने श्रेष्ठ टाइटल ऊंचे से ऊंचे स्वमान बाबा मुझे दे रहे हैं... मैं आत्मा हद के नाम-मान-शान इन सभी कामनाओं से मुक्त होती जा रही हूँ... *स्वयं भगवान जिसे मान दे रहा है, भगवान जिसकी महिमा के गुण गा रहे हैं, ऑलमाइटी बाबा जिस पर वरदान की वर्षा कर रहे हैं... वो भाग्यवान आत्मा हूँ मैं... अपने सुंदर भाग्य पर मैं मन ही मन इठला रही हूँ...* संगम पर बाबा से मुझ आत्मा को जो स्वमान मिले हैं उनसे बडा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को मिल नहीं सकता...

 

 _ ➳  स्वयं भगवान जो सर्व खजानों की चाबी है... वह कहते हैं बच्चे मैं तुम्हारा हूँ... तुम मेरे नयनों की नूर हो... मेरे मस्तक मणि हो... मेरे गले का हार हो... ऐसे श्रेष्ठ भाग्य के क्या कहने... मैं अपना 'वाह रे मैं, वाह मेरा बाबा, वाह मेरा भाग्य' के रूहानी नशे में झूम  रही हूँ... *बाबा से इतने ऊंचे स्वमान मुझ आत्मा को प्राप्त हुए हैं... मैं उन स्वमानो का स्वरुप बन गई हूँ... कितने स्वमान बाबा ने दिए हैं... कितनी बड़ी है ये स्वमानों की माला*... मैं आत्मा इस माला का एक-एक दाना गिन रही हूँ... और उस स्वमान में स्थित हो रही हूँ... ईश्वरीय स्नेह में लवलीन हो रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्वमान के नशे में, खुमारी में मगन हूँ... *ये स्वमान किसी मनुष्य या देहधारी ने नहीं, स्वयं भाग्य विधाता बाबा से, बापदादा से मुझ आत्मा को मिले हैं...* परमपिता परमात्मा मुझे ये स्वमान दे रहे हैं... स्वमानों के इस रूहानी नशे को दुनियावी कोई अथॉरिटी हिला नहीं सकती... आलमाइटी अथॉरिटी बाबा से ये श्रेष्ठ स्वमान मुझ आत्मा को प्राप्त हुए हैं... जो ऊंचे से ऊंची हस्ती है, ऊंचे से ऊंची अथॉरिटी है... *मैं स्वयं को ईश्वर पिता से प्राप्त स्वमानों के रूहानी नशे में देख रही हूँ... मैं स्वयं की ईश्वरीय खुमारी में, लवलीन अवस्था में मगन अनुभव कर रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━