━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 17 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ड्रामा के हर राज़ को अच्छी रीति समझकर अडोल रहे ?*
➢➢ *अपने को अविनाशी आत्मा समझ इस शरीर से डीटेच हो अशरीरी बनने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *बाप के दिए हुए कह्जानो को मनन कर अपना बनाया ?*
➢➢ *"बदला नहीं लेना है... बदलकर दिखाना है" - सदा यह शुभ भावना इमर्ज रही ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *अब कोई भी आधार पर जीवन का आधार नहीं होना चाहिए अथवा पुरुषार्थ भी कोई आधार पर नहीं होना चाहिए,* इससे योगबल की शक्ति के प्रयोग में कमी हो जाती है। *जितना जो योगबल की शक्ति का प्रयोग करते हैं उतना उनमें वह शक्ति बढ़ती है। योगबल अभ्यास से बढ़ता है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ एक लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो? साधारण तो नहीं। *सदा श्रेष्ठ आत्मायें जो भी कर्म करेंगी वह श्रेष्ठ होगा। जब जन्म ही श्रेष्ठ है तो कर्म साधारण कैसे होगा! जब जन्म बदलता है तो कर्म भी बदलता है। नाम रूप, देश, कर्म सब बदल जाता है। तो सदा नया जन्म, नये जन्म की नवीनता के उमंग-उत्साह में रहते हो!* जो कभी-कभी रहने वाले हैं उन्हें राज्य भी कभी-कभी मिलेगा।
〰✧ जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हें निमित्त बनने का फल मिलता रहता है। और फल खाने वाली आत्मायें शक्तिशाली होती हैं। *यह प्रत्यक्षफल है, श्रेष्ठ युग का फल है। इसका फल खाने वाले सदा शक्तिशाली होंगे। ऐसे शक्तिशाली आत्मायें परिस्थितियों के ऊपर सहज ही विजय पा लेती हैं। परिस्थिति नीचे और वह ऊपर।*
〰✧ जैसे श्रीकृष्ण के लिए दिखाते हैं कि उसने साँप को भी जीता। उसके सिर पर पाँव रखकर नाचा। तो यह आपका चित्र है। कितने भी जहरीले साँप हों लेकिन आप उन पर भी विजय प्राप्त कर नाच करने वाले हो। यही श्रेष्ठ शक्तिशाली स्मृति सबको समर्थ बना देगी। *और जहाँ समर्थता है वहाँ व्यर्थ समाप्त हो जाता है। समर्थ बाप के साथ हैं, इसी स्मृति के वरदान से सदा आगे बढ़ते चलो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *फरिश्ता रुप की स्थिति अर्थीत अव्यक्त स्थिति जिसकी सदा काल रहती है वह बिन्दु रुपों में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रुप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे।
〰✧ *वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच - बीच में समय निकाल करना चाहिए*। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति। इस स्थिति को पहूँचने के लिए एक बात का विशेष ध्यान रखना पडेगा। आजकल वह गवर्नमेन्ट कौन - सी स्कीम बनाती है? उन्हों के प्लैन्स भी सफल तब होते हैं जब पहले - पहले यह लक्ष्य रखते हैं कि सभी बातों में जितना हो सके इतनी बचत हो। बचत की योजना भी करते है ना।
〰✧ समय बचे, पैसे बचे, इनर्जी की भी बचत करना चाहते हैं। *इनर्जी कम लगे और कार्य ज्यादा हो*। सभी प्रकार की बचत की योजना करते हैं। अब पाण्डव गवर्नमेन्ट को कौन - सी स्कीम करनी पडे? *यह जो सुनाया कि बिन्दु रुप की सम्पूर्ण सिद्धि की अवस्था को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना पडे।* अभी जिस रीति चल रहे हैं उस हिसाब से तो सभी यही कहते हैं कि बहुत बिजी रहते हैं, एकान्त का समय कम मिलता हैं, अपने मनन का समय भी कम मिलता है। लेकिन समय कहाँ से आयेगा।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *पुरुषार्थ शब्द का अर्थ क्या करते हो? इस रथ में रहते अपने को पुरुष अर्थात् आत्मा समझकर चलो, इसको कहते है पुरुषार्थी।* तो ऐसे पुरुषार्थ करने वाला अर्थात् आत्मिक स्थिति में रहने वाला इस रथ का पुरुष अर्थात् मालिक कौन है? आत्माना। *तो पुरुषार्थी माना अपने को रथी समझने वाला। ऐसा पुरुषार्थी कब हार नहीं खा सकता।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ऐसी कोई गफलत नहीं करना जिससे माया को थप्पड़ लगाने का चांस मिले"*
➳ _ ➳ *एक दौर था वो भी, जब खुद को भूले, खुदा को भूले, मगर झाँझ मंजीरे खूब बजाये, क्या कहिए उसकी रहनुमाई, कि, जो फिर खुद ही चलकर वो चौखट तक मेरी आये*, *वो आये, अपना परिचय देने, क्योकि न बाप का परिचय था न खुद का, बस देहभिमान की माया में लिपटे बिन एम ऑब्जेक्ट के ही उस रब के करीब होने की गफलत में थी मैं आत्मा*... माया के रूपों में उलझी, मैं शिवशक्ति... अधिकारी से भिखारी हो गयी और माया ने खबर भी न होने दी, मगर *दूर देश का वो मुसाफिर उतर आया है मेरी खातिर इस पतित दुनिया में... और सम्मुख बैठकर मुझे अपनी पहचान देकर, हर गफलत से निकाल, माया से सावधानी दे रहा है*...
❉ *सूर्यवंशी राजधानी में एयरकंडीशन टिकट दिलाने की गारन्टी देने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरी सूर्यवंशी बच्ची... मैने ही आप आत्मा को, आपके और बाप के सच्चे स्वरूप की पहचान दी है, मगर अपनी सूर्यवंशी राजधानी में *एयरकन्डीशन टिकट लेने का आधार भी क्या आपने बुद्धि में धारण किया है* ? क्या अपना सब कुछ बाप को अर्पण किया है? *हूबहू कल्प पहले की तरह से तुम फिर से अपनी सूर्यवंशी राजधानी में उच्च पद पाने के लिए सम्मुख पढ रहे हो? क्या आप बच्ची की बुद्धि में यह पूरा- पूरा निश्चय है?..."*
➳ _ ➳ *इस संगम युगी हीरें तुल्य जन्म को पाकर, ज्ञानरत्नों से खेलने वाली निश्चय बुद्धि मैं आत्मा, जानी जाननहार बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... अपनी मंजिल और खुद से भी अनजानी सी मैं आत्मा, भक्ति मार्ग की आडी टेढी पगडंडियों पर खूब भटकी, मगर न खुद को पाया न खुदा को, अब आपने मेरे हर सफर को मुकाम दिया है... बेआरामियों का था ये सफऱ बाबा, आकर आपने जन्मों -जन्मों का आराम दिया है... मन्मनाभव की चाबी आपने मुझे देकर बाबा सब खजानों का मालिक बनाया है... *अब हर पल बुद्धि में राजधानी भी रहती है और एयर कंडीशन का टिकट लेने का आधार श्रीमत भी...निश्चय की डोर पकडे मैं आत्मा हर पल ऊपर और ऊपर ही उडी जा रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान रत्नो की खानियाँ मुझ पर लुटाने वाले ज्ञानसागर बाप मुझ आत्मा से बोले:-* "ज्ञान रत्नों का मनन कर, इसे अपना बनाने वाली मेरी ज्ञानी तू आत्मा बच्ची... *जैसे इस ज्ञान का मनन कर आपने अपनी बुद्धि को दिव्य बुद्धि बनाया है, वैसे ही हर एक को ज्ञानमुक्तक चुगने वाला मानसरोवर का हंस बनाओं*, परचिन्तन से मुक्त हो कर हर आत्मा को विचार सागर मन्थन का महत्तव समझाओं... *बुद्धि को दिव्य बना कर अब सबको मायाजीत बनाओ, मनन सुमिरन में बुद्धि को बिजी कर विकारों की शैय्या पर निश्चिंत खुद के विष्णु रूप का स्वरूप बनाओं..."*
➳ _ ➳ *बाप के आशीर्वादों की छत्र छाया में श्रीमत की फूलों भरी राहों पर चलने वाली मैं आत्मा, बापदादा से बोली:-* "ज्ञान सागर से गुणों के मोती चुन- चुन कर मुझ आत्मा ने इस जीवन का श्रृंगार किया है बाबा!... *समय स्वाँस और संकल्पों को समर्पित कर, गुणों का दान कर, मैं आत्मा साहूकार बन रही हूँ*... ज्ञान मनन की पतवार से जैसे आपने माया की गफलत से मुझ आत्मा को निकाला है वैसे ही मैं हर आत्मा को ज्ञान घास जुगाली की युक्तियाँ सिखा रही हूँ... *कर्मों के बोझ में दबी हर आत्मा को उडती कला सिखा रही हूँ... जड मूर्तियों के सामने हाथ फैलाने वालों को दाता बना रही हूँ..."*
❉ *स्वपरिवर्तन से विश्वपरिवर्तन की अलख जगाने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "तेजी से बदलते समय चक्र के साथ खुद के संस्कारों को बदलने वाली मेरी विश्वपरिवर्तक बच्ची... शुभभावनाओ को इमर्ज कर स्थापना के कार्य में तेजी लाओं, *समय के महत्व को समझो अब, और शुभभावो से हर एक को दिव्यगुणो की धारणा कराओं.. बदला लेने की भावना वाली हर आत्मा को बदलकर दिखाओं..."*
➳ _ ➳ *बाप के स्नेह पर बलिहारी मैं आत्मा माया की गुलामी से छुडाने वाले बापदादा से बोली:-* "मेरे बाबा... *ज्ञान मोतियों का मनन कर जैसे मुझ आत्मा को आपने मायजीत बनाया है, वैसे ही देखों मेरे शुभसंकल्पों से सभी आत्माए माया जीत बन रही है*... अष्ठशक्तियों का किला हर पल और भी मजबूत होता जा रहा है, ड्रामा में माया का भी पार्ट बदल रहा है अब माया आती है बस झुककर सलामी देने के लिए... और *इसकी वजह बस आपके वरदानों की शक्ति है और श्रीमत का आधार है... हुई दिव्य बुद्धि मेरी, और बुद्धि में ज्ञान का सार है..."*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ अडोल रहना है*"
➳ _ ➳ ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, इस बेहद के ड्रामा में वैरायटी आत्माओं के वैरायटी पार्ट को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना वन्डरफुल है ये ड्रामा! *इस सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना - अपना पार्ट प्ले कर रही है और एक का पार्ट भी दूसरे के पार्ट से मैच नही करता। हर आत्मा कल्प पहले मुआफ़िक अपना पार्ट बिल्कुल ऐक्यूरेट बजा रही है*। बाबा ने ड्रामा के इस राज को स्पष्ट करके जीवन को कितना सहज बना दिया है। इस राज को जानने से क्या, क्यो और कैसे की क्यू में उलझने की बजाए सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाना कितना सरल हो गया है। *ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ लेने से जीवन को जैसे एक नई दिशा मिल गई है*।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन मे निरन्तर आगे बढ़ते हुए, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ अडोल रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अब मुझे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त करना है *मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, ड्रामा के हर खूबसूरत पहलू से परिचित कराने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा से मीठी मीठी रूहरिहान करने, उनसे मंगल मिलन मनाने और ड्रामा के पट्टे पर सदा अचल, अडोल रहने का उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और सेकेण्ड में अशरीरी होकर, देह से बिल्कुल न्यारा एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आ जाता हूँ और अपने बिंदु बाप के पास उनके धाम की ओर चल पड़ता हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में स्थित मेरे बिंदु बाप से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझ बिंदु सितारे के साथ कनेक्ट होकर मुझे बिल्कुल सहज रीति ऊपर की ओर खींच रही है और *मैं चैतन्य सितारा, इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर, स्वयं को हर चीज से उपराम अनुभव करते हुए, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ता जा रहा हूँ*। मेरे बिंदु पिता से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे अति शीघ्र 5 तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कराये, फरिश्तो की आकारी दुनिया से ऊपर, आत्माओं की उस निराकारी दुनिया में ले आई है जहाँ पहुँच कर मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया में मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ ना साकार देह का कोई बन्धन है और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है केवल चमकती हुई निराकारी बिंदु आत्मायें अपने बिंदु बाप की अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर, उनके प्यार और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *बिंदु बाप के साथ अपने बिंदु बच्चो का यह मंगल मिलन मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। अपने बिंदु पिता से मिलन मनाने के लिए मैं बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे उनके पास पहुँचती हूँ ओर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की प्रवेशता के कारण मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो अब परमात्म शक्तियों से चार्ज हो गई है और मैं आत्मा जैसे लाइट हाउस बन गई हूँ। *परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। शक्तियों का पुंज बनकर, बेहद के सृष्टि ड्रामा में अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ*। फिर से 5 तत्वों की साकारी दुनिया में, अपने साकारी तन में प्रवेश कर ड्रामा के पट्टे पर आकर खड़ी हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ड्रामा के हर राज को गहराई से समझ, साक्षी दृष्टा बन, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखते हुए, हर परिस्थिति में अचल अडोल रहने का अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ। *"सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे हर आकर्षण से मुक्त और हर चीज से उपराम करके, ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ, स्वयं को अचल, अडोल और एकरस बनाने में सहयोग दे रही है*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप के दिये हुए खजाने को मनन कर अपना बनाने वाली सदा हर्षित, सदा निश्चिन्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *'बदला नहीं लेना है बदलकर दिखाना है'-यह शुभ भावना इमर्ज कर स्व परिवर्तक बनने वाली मैं ब्राह्मण आत्मा हूं ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं ने सर्वशक्तियों को कहाँ तक अपने में धारण किया है? *विशेष शक्तियों को अच्छी तरह से जानते हो और जानने के आधार पर चित्र बनाते हो। यह चित्र, चैतन्य स्वरूप की निशानी है - ‘‘श्रेष्ठता अथवा महानता।'' हर कर्म श्रेष्ठ, महान है इससे सिद्ध है कि शक्तियों को चरित्र अर्थात् कर्म में लाया है।* निर्बल आत्मा है वा शक्तिशाली आत्मा है, सर्वशक्ति सम्पन्न है वा शक्ति स्वरूप सम्पन्न है - यह सब पहचान कर्म से ही होती है *क्योंकि कर्म द्वारा ही व्यक्ति और परिस्थिति के सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हैं। इसलिए नाम ही है - ‘‘कर्म-क्षेत्र, कर्म-सम्बन्ध, कर्म-इन्द्रियां, कर्म भोग, कर्म योग।"*
✺ *"ड्रिल :- श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने मन के संकल्पों, विकल्पों के बोझ से न्यारी होती हुई... परमधाम में सर्व शक्तियों के सागर के समीप बैठ जाती हूँ...* सर्व शक्तियों के सागर से असीम शीतल किरणें निकल रही हैं... मैं आत्मा इन किरणों की ठंडी छांव में बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इन किरणों को स्वयं में आत्मसात कर रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरुप बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ *सर्व शक्तिमान की किरणों से मुझ आत्मा की सभी कमी-कमजोरियां खत्म हो रही है... निर्बलता, संशय, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं...* मुझ आत्मा के कमजोर संकल्प दृढ़ संकल्पों में परिवर्तित हो रहे हैं... कमजोर कर्म खत्म हो रहे हैं... *मुझ आत्मा के सभी कर्म श्रेष्ठ बन रहे हैं...* अब मैं आत्मा अपने शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रह श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा के विकर्मो का खाता समाप्त हो रहा है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान के पॉइंट्स की धारणा कर नालेजफुल बन रही हूँ...* नालेज को शक्ति रूप में यूज कर रही हूँ... और पावरफुल होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को अपने चरित्र में उतार रही हूँ... मैं आत्मा अपने चैतन्य स्वरूप का चित्र बना रही हूँ... *मैं आत्मा सदा कर्म रूपी दर्पण में अपने शक्ति स्वरूप का चित्र देखती हूँ*... जिस शक्ति की कमजोरी हो उसे पहचान कर उस शक्ति को स्वयं में भरती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों और परिस्थितियों में... शक्तियों का प्रयोग कर रही हूँ... *श्रेष्ठ कर्मों की प्रत्यक्षता द्वारा विश्व की आत्माओं के आगे उदाहरणस्वरूप बन रही हूँ...* अपने कर्मों द्वारा अपने शक्ति स्वरूप का दर्शन करा रही हूँ... *वृत्ति द्वारा वृत्तियों को, वायुमंडल को परिवर्तित* कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा समय पर शक्तियों को कर्म में लगाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *मैं आत्मा शुभ भावना, शुभ कामनाओं के श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा... चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बना रही हूँ...* मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव कर रही हूँ...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━