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 16 / 12 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"सुनना, मिलना और बनना" - यही लगन रही ?*

 

➢➢ *स्व अटेंशन से अल्बेलेपन को दूर भगाया ?*

 

➢➢ *छोटी बात को बड़ा तो नहीं बनाया ?*

 

➢➢ *इच्छा मातरम् अविधा स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  आत्मिक स्वरूप में रहने से लौकिक में रहते भी अलौकिकता का अनुभव करेंगे। अपने को आत्मिक रूप में न्यारा समझना है। *कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रूप में कार्य करेंगे। इससे ही मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक प्रिय बनेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बापसमान शक्तिशाली आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा स्वयं को शक्तिशाली आत्मा अनुभव करते हो? शक्तिशाली आत्मा का हर संकल्प शक्तिशाली होगा। *हर संकल्प में सेवा समाई हुई हो। हर बोल में बाप की याद समाई हो। हर कर्म में बाप जैसा चरित्र समाया हुआ हो।* तो ऐसी शक्तिशाली आत्मा अपने को अनुभव करते हो?

 

✧  मुख में भी बाप, स्मृति में भी बाप और कर्म में भी बाप के चरित्र - इसको कहा जाता है बाप समान शक्तिशाली। ऐसे हैं? *एक शब्द 'बाबा' लेकिन यह एक ही शब्द जादू का शब्द है। जैसे जादू में स्वरूप परिवर्तन हो जाता वैसे एक बाप शब्द समर्थ स्वरूप बना देता है।*

 

  गुण बदल जाते, कर्म बदल जाते, कर्म बदल जाते, बोल बदल जाते। यह एक शब्द, जादू का शब्द है। तो सभी जादूगर बने हो ना। जादू लगाना आता है ना। *बाबा बोला और बाबा का बनाया, यह है जादू।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज बहुत बातें सुनाई है। अभी एक सेकण्ड में एकदम मन और बुद्धि को बिल्कुल प्लेन कर एक बाप से सर्व संबंधों

का, बाप ही संसार है - चाहे व्यक्ति संबंध, चाहे प्राप्तियाँ, यही संसार है। तो *एक ही बाप संसार है, इस बाप की याद में, इस रूप में, इस रस में, इस अनुभव मे लवलीन हो जाओ।* (बापदादा ने 3 मिनट ड़िल कराई) अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फरिश्ते अर्थात् अपने फ्युचर द्वारा अन्य आत्माओं के फ्युचर बनाने वाले सदा अपना फ्युचर सामने रहता है?* जितना निमित्त बनी हुई आत्मायें अपने फ्युचर को सदा सामने रखेंगी उतना अन्य आत्माओं को भी अपना फ्युचर बनाने की प्रेरणा दे सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट नहीं तो दूसरों को भी स्पष्ट बनाने का रास्ता नहीं बता सकेंगी। *अपना फ्युचर स्पष्ट है? महाराजा या महारानी- जो भी बने, लेकिन उससे पहले अपना भविष्य फ़रिश्तेपन का, कर्मातीत अवस्था का- वह सामने स्पष्ट आता है? ऐसा अनुभव होता है कि मैं हर कल्प में फ़रिश्ते स्वरूप में ये पार्ट बजा चुकी हूँ और अभी बजाना है? वो झलक सामने आती है? जैसे दर्पण में अपने स्वरूप की झलक देखते हो ऐसे नॉलेज के दर्पण में अपने पुरुषार्थ से फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है? जब तक फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई नहीं देगे तब तक भविष्य भी स्पष्ट नहीं होगा।* यह संकल्प आता ही रहेगा कि शायद मैं ये बनूँ या वो बनूँ? लेकिन फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देगी तो वह भी स्पष्ट दिखाई देगी। तो वह दिखाई देता है या अभी घूंघट में है? *जैसे चित्र का अनावरण कराते हो तो अपने फ़रिश्ते स्वरूप का अनावरण कब करेंगे? आपे ही करेंगे या चीफ़ गेस्ट को बुलायेंगे? यह पुरुषार्थ की कमज़ोरी का पर्दा हटाओ तो स्पष्ट फ़रिश्ता रूप हो जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  परिवर्तन को अविनाशी बनाना"*

 

_ ➳  आज ब्राह्मण जीवन की खूबसूरती को जब मै आत्मा... निहारती हूँ तो मीठे आनन्द से भर जाती हूँ... *मीठे बाबा ने मीठे बोल, मीठी चाल, स्नेह भरी दृष्टि और दिल की विशालता देकर...मुझे जन्नत की हूर सजा दिया है...* पहले यह जीवन देह के प्रभाव में कितना कड़वा और कँटीला था... मीठे बाबा ने प्यार का सोने का पानी डालकर... मेरे मन बुद्धि को कितना उजला सच्चा और खुबसूरत बना दिया है... *भगवान ही तो यह जादु कर सकता था... और भगवान ने आकर ही मुझे खुबसूरत कृति सा सजाया है.*.. मीठे बाबा की रोम रोम से आभारी मै आत्मा...शुकराना करने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो में आप समान बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *दिलाराम बाबा को दिल अर्पित करने वाले, महान भाग्य के धनी हो... सब कुछ मीठे बाबा को सौपने वाले, समर्थ और सच्चे आशिक हो... समर्थ की निशानी है...* हर संकल्प बोल कर्म संस्कार बाप समान होगा... यही निरन्तर याद की अवस्था है... मीठे बाबा की यादो में सदा खोये हुए सदा के मायाजीत बन मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा भगवान को अपने दिल में समाकर हर पल उसकी यादो में डूबकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे साथी बाबा... मै आत्मा देह के प्रभाव में अपने दिल के 100 टुकड़े करके जगह जगह बांटा करती थी... और *आज आपने मेरे सारे टुकड़ो को जोड़ कर, खुबसूरत दिल सजाकर, अपने दिल की तिजोरी में ही बन्द कर दिया है...* अब मुझे जिंदगी के दुःख तपन की कोई परवाह ही नही... मेरा जीवन भगवान के हाथो में सदा के लिए सुरक्षित हो गया है...

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सेवा के नये आयामो को समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा यह स्मृति रहे कि हम है ही फ़रिश्ते... सब कुछ बाबा का है... मेरा कुछ भी नही इस भाव में सदा हल्के फ़रिश्ते बन मुस्कराते रहो...* सदा निराकार आकर और साकार को फॉलो करने वाले स्वराज्य अधिकारी... किंग और क्वीन बनकर, बापदादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान मणियो को सुनकर मन्त्रमुग्ध झूमती हुई कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी यादो की छाँव में कितनी हल्की निश्चिन्त और बेफिक्री से भरी हुई फ़रिश्ता बन गयी हूँ... *स्वयं भगवान मेरा साथी हो गया है... तो मै आत्मा हर फ़िक्र से परे हो गयी हूँ... अपने हर संकल्प, बोल, कर्म को बाप समान सजाकर, किस कदर खुबसूरत हो गयी हूँ..."*

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने शानदार भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... कितना प्यारा और खुबसूरत भाग्य है कि स्वयं भगवान ने दिल की तिजोरी में छुपा कर रखा है... *पवित्रता की धरोहर से जीवन को श्रेष्ठ बनाकर क्या से क्या बन रहे हो... यह प्राप्ति औरो को भी कराओ... सबके जीवन आप समान खुशियो से महकाओ... सबकी आशाये पूर्ण करने वाले महादानी वरदानी बनो..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के प्यार की बरसात में भीगते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मनमीत बाबा... *आपने मेरा हाथ थामकर, मुझे देह के कंटीले जंगल से निकाल... खुबसूरत ज्ञान परी बना दिया है... मै आत्मा भगवान को वरने वाली... उसके दिल में सजने वाली, शिव प्रियतमा ही गयी हूँ... शिव साजन को चुनकर, सारा ब्रह्माण्ड बाँहो में भर रही हूँ... और यह भाग्य हर दिल पर सजा रही हूँ...* मीठे बाबा को अपने जज्बात अर्पित कर... मै आत्मा स्थूल धरा पर उतर आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इच्छा मातरम् अविध्या स्थिति का अनुभव*"

 

_ ➳  अपना लाइट का सूक्ष्म आकारी शरीर धारण किये मैं फ़रिशता एक ऊंचे स्थान पर बैठ, सारे विश्व में हो रही गतिविधियों को देख रहा हूँ और विचार करता हूँ कि सारी दुनिया के सभी मनुष्यों की बुद्धि की रग आज विभिन्न प्रकार की चीजों में उलझी हुई है। *साइंस के नए - नए साधनों की खोज ने मनुष्यों की बुद्धि को इतना विशाल तो बना दिया है किन्तु इस विशालता में उसने अपनी ही पहचान को कहीं खो दिया है और शायद इसलिए भौतिक सुख सुविधाएं होते हुए भी आज मनुष्य दुखी है*।

 

_ ➳  अगर प्रत्येक मनुष्य आज अपने वास्तविक स्वरूप को और अपने पिता परमात्मा को जान कर, *अपनी बुद्धि की रग को सांसारिक चीजों से निकाल कुछ क्षणों के लिए भी स्वयं पर और अपने पिता परमात्मा की याद में एकाग्र करना सीख जाएं तो यह एकाग्रता उसे वो सुख और शान्ति का अनुभव करवा सकती है* जो उसे भौतिक वस्तुएँ कभी नही करवा सकती।

 

_ ➳  कितने खुशनसीब है वो ब्राह्मण बच्चे जिन्होंने स्वयं को और भगवान को जान कर, अपनी बुद्धि की रग को केवल एक परमात्मा के साथ जोड़ना सीख लिया है। *मन ही मन यह विचार करता मैं फ़रिशता अब उस स्थान से उड़ कर मधुबन के शान्ति स्तम्भ पर पहुँचता हूँ* और देखता हूँ कि हजारों ब्राह्मण बच्चे अपनी बुद्धि को अपने शिव पिता पर एकाग्र कर गहन शान्ति की अनुभूति में खोए हुए हैं।

 

_ ➳  अपने फ़रिशता स्वरूप को अपने ब्राह्मण स्वरूप में मर्ज कर मैं भी उन हजारों ब्राह्मण आत्माओं के बीच मे जा कर बैठ जाती हूँ और *अपनी बुद्धि की रग हर चीज से निकाल कर जैसे ही स्वयं पर और अपने शिव पिता पर एकाग्र करती हूँ वैसे ही एक गहन शांन्तमय स्थिति में मैं स्वत: ही स्थित होती चली जाती हूँ* और इसी गहन शान्ति की स्थिति में अपने ब्राह्मण तन से निकल कर मैं आत्मा अशरीरी बन ऊपर अपने शिव पिता के पास परमधाम की और चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  इस परमधाम घर मे पहुँच कर अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की विशाल छत्रछाया के नीचे मैं जा कर बैठ जाती हूँ और अपने शिव पिता से आ रही सुख, शान्ति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, शक्ति और ज्ञान की सतरंगी किरणों की शीतल फ़ुहारों की शीतलता से स्वयं को तृप्त करने लगती हूँ। *सातों गुणों की इन सतरंगी किरणो के मुझ आत्मा पर पड़ने से मुझ आत्मा में निहित गुण और शक्तियाँ इमर्ज हो रहें है और मैं आत्मा पुनः अपने सतोगुणी स्वरूप को प्राप्त कर रही हूँ*। बाबा से सर्व गुण, सर्व शक्तियाँ और सर्व खजाने स्वयं में भरकर अब मैं वापिस शान्ति स्तम्भ पर पहुँच कर फिर से अपने ब्राह्मण तन में विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  मन बुद्धि की यह अति सुंदर यात्रा करके अब मैं अपने कार्य स्थल पर लौट आती हूँ। इस कर्म भूमि पर कर्म करते अपनी बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़ कर अब मैं हर कर्म करती हूँ। इस बात को अब मैं अच्छी रीति जान गई हूँ कि दुनियावी चीजों में बुद्धि को फंसा कर सिवाय दुःख अशांति के और कुछ प्राप्त नही हो सकता। *इसलिए अब इस अंतिम जन्म में अपनी बुद्धि की रग और किसी चीज में ना रखते हुए, बुद्धि को केवल एक बाबा की याद में एकाग्र रखते हुए अब मैं गहन सुख, शांति और आनन्द की स्थिति में सदैव स्थित रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मै परिस्थितियों को साइडसीन समझ पार करने वाली स्मृति स्वरूप समर्थ आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं दूसरों की करेक्शन करने के बजाए बाप से कनेक्शन जोड़ कर वरदानों की अनुभूति करने वाली योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. कौन-सी विशेष कमी है जिसके कारण आधी माला भी रूकी हुई हैतो चारों ओर के बच्चे हर एरियाएरिया के इमर्ज करते गयेजैसे आपके जोन हैं नाऐसे ही एक-एक जोन नहीं, ]जोन तो बहुत-बहुत बड़े हैं ना। तो एक-एक विशेष शहर को इमर्ज करते गये और सबके चेहरे देखते गयेदेखते-देखते *ब्रह्मा बाप ने कहा कि एकविशेषता अभी जल्दी-से-जल्दी सभी बच्चे धारण कर लेंगे तो माला तैयार हो जायेगी।* कौन सी विशेषतातो यही कहा कि जितनी सर्विस में उन्नति की हैसर्विस करते हुए आगे बढ़े हैं। अच्छे आगे बढ़े हैं *लेकिन एक बात का बैलेन्स कम है। वह यही बात कि निर्माण करने में तो अच्छे आगे बढ़ गये हैं लेकिन निर्माण के साथ निर्मान - वह है निर्माण और वह है निर्मान। मात्रा का अन्तर है।* लेकिन निर्माण और निर्मान दोनों के बैलेन्स में अन्तर है। सेवा की उन्नति में निर्मानता के बजाए कहाँ-कहाँकब-कब स्व-अभिमान भी मिक्स हो जाता है। *जितना सेवा में आगे बढ़ते हैंउतना ही वृत्ति मेंदृष्टि मेंबोल मेंचाल में निर्मानता दिखाई देइस बैलेन्स की अभी बहुत आवश्यकता है।*

 

 _ ➳  2. *ऐसे नहीं सोचो - यह तो है ही ऐसायह तो बदलना नहीं है। जब प्रकृति को बदल सकते होएडजेस्ट करेंगे ना प्रकृति कोतो क्या ब्राह्मण आत्मा को एडजेस्ट नहीं कर सकते हो?* अगेन्स्ट को एडजेस्ट करोयह है - निर्माण और निर्मान का बैलेन्स। सुना!

 

 _ ➳  अभी तक जो सभी सम्बन्ध-सम्पर्क वालों से ब्लैसिंग मिलनी चाहिए वह ब्लैसिंग नहीं मिलती है। और *पुरुषार्थ कोई कितना भी करता हैअच्छा है लेकिन पुरुषार्थ के साथ अगर दुआओं का खाता जमा नहीं है तो दाता-पन की स्टेजरहमदिल बनने की स्टेज की अनुभूति नहीं होगी।* आवश्यक है - स्व पुरुषार्थ और साथ-साथ बापदादा और परिवार के छोटे-बड़ों की दुआयें। यह दुआयें जो हैं - यह पुण्य का खाता जमा करना है। यह मार्क्स में एडीशन होती है। *कितनी भी सर्विस करोअपनी सर्विस की धुन में आगे बढ़ते चलो,लेकिन बापदादा सभी बच्चों में यह विशेषता देखने चाहते हैं कि सेवा के साथ निर्मानता, मिलनसार - यह पुण्य का खाता जमा होना बहुत-बहुत आवश्यक है।* फिर नहीं कहना कि मैंने तो बहुत सर्विस कीमैंने तो यह किया, मैने तो यह कियामैने तो यह किया, लेकिन नम्बर पीछे क्यों? इसलिए *बापदादा पहले से ही इशारा देते हैं कि वर्तमान समय यह पुण्य का खाता बहुत-बहुत जमा करो।*

 

✺   *ड्रिल :-  "निर्माणता और निर्मानता का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अमृतवेले मेरे मीठे बापदादा से मिलन मना रही हूँ... *बाबा मुझ आत्मा में ऐसे शक्तियां भर रहें हैं जैसे खाली गुब्बारे में गैस भर रहें हों... मैं आत्मा इन शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो स्वयं को बहुत ही पावरफुल और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना फरिश्ता रूप धारण कर ग्लोब पर बैठ जाती हूँ... योगयुक्त होकर... बाबा से प्राप्त इन शक्तिशाली किरणों को समस्त विश्व की आत्माओं पर... प्रकृति के पांचों तत्वों पर प्रवाहित कर रही हूँ... 

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा साकार वतन में... अपनी देह में प्रविष्ट होकर पार्ट बजा रही हूँ... इन आँखों से इस ड्रामा को देख रही हूँ... साक्षीपन के स्वमान में रह हरेक के पार्ट को देख रही हूँ... *याद आ रही है बापदादा की श्रीमत... बच्चे- बोल में निर्मान बनो... निर्माणता ही महानता है... मुख से ऐसे बोल बोलो जो सब कहे कि अभी और सुनाओ...* कभी भी अभिमान के बोल बोलकर... दूसरों को दुःख नहीं दो... कष्ट नहीं दो...  

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बापदादा की श्रीमत फॉलो कर... अपने स्वभाव को निर्मल... शांत बना रही हूँ... मुझे हर कार्य में सफलता प्राप्त हो रही है... शुद्ध... शीतल... निर्मल स्वभाव धारण कर... मैं आत्मा हरेक आत्मा की विशेषता को देख रही हूँ...* कभी भी मन में यह ख्याल नही लाती कि... यह आत्मा यह कार्य नहीं कर सकती... अपितु सकरात्मक सोच रखकर उस आत्मा को उमंग उत्साह दिलाती हूँ कि तुम यह कार्य बहुत अच्छे से कर सकते हो... सफलता तो तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है... 

 

 _ ➳  *निमित्तभाव... निर्माणभाव... और निर्मल वाणी रख सर्व आत्माओं को निर्मान और निर्माण स्थिति में रह मास्टर मुक्तिदाता बन सभी को मुक्ति... जीवनमुक्ति का रास्ता दिखा रही हूँ...* हरेक आत्मा के प्रति कल्याण की भावना... ऊँचा उठाने की भावना... मधुरता... निर्माणता का स्वभाव धारण कर... व्यवहार कर रही हूँ... सभी आत्माओं के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना... रहम की भावना कूट कूट कर भर गई है... मेरी दृष्टि... वृति... कृति में निर्मानता की रूहानियत झलक रही है... 

 

 _ ➳  *जो भी आत्माऐं मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आ रही हैं उन्हें मुझ आत्मा से पॉजिटिव वाइब्रेशनस मिल रही हैं... बहुत शांति की अनुभूति हो रही है... उनके मुख से मुझ आत्मा के लिये आर्शीवचन निकल रहें हैं... बहुत ब्लेसिंग्स मिल रहीं हैं... जिससे दुआओं का... पुण्य का खाता जमा हो रहा है...* मैं आत्मा बाबा के खजानों के अधिकार के नशे में रह... उमंग उत्साह के पंख लगा अपनी निर्मान स्थिति द्वारा बाबा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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