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 31 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"मैं इस रथ पर विराजमान रथी आत्मा हूँ" - यह अभ्यास करते करते देहि अभिमानी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *इस अंतिम जन्म में सितम सहकर भी पावन बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सदा दिलखुश मिठाई खाई और खिलाई ?*

 

➢➢ *अपने संकल्पों से अनेकों को श्रेष्ठ जीवन बनाने की प्रेरणा दी ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पावरफुल योग अर्थात् लगन की अग्नि,* ज्वाला रूप की याद ही भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि को समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी। *इससे ही बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रज्वलित होगी। याद की अग्नि एक तरफ उस अग्नि को समाप्त करेगी दूसरी तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करोयगी। इससे ही आत्मायें पापों की आग से मुक्त हो सकेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल तख्तनशीन आत्मा हूँ"*

 

  अपने को इस समय भी तख्तनशीन आत्माएं अनुभव करते हो? डबल तख्त है या सिंगल? *आत्मा का अकालतख्त भी याद है और दिलतख्त भी याद है। अगर अकाल तख्त को भूलते हो तो बोडी कांशेस में आते हो। फिर परवश हो जाते हो।*

 

  *सदैव यही स्मृति रखो कि मैं इस समय इस शरीर का मालिक हूँ। तो मालिक अपनी रचना के वश कैसे हो सकता है? अगर मालिक अपनी रचना के वश हो गया तो मोहताज हो गया ना!* तो अभ्यास करो और कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो कि मैं मालिकपन की सीट पर सेट हूँ? या नीचे तो नहीं आ जाता? सिर्फ रात को चेक नहीं करो। कर्म करते बीच-बीच में चेक करो।

 

  *वैसे भी कहते हैं कि कर्म करने से पहले सोचो, फिर करो। ऐसे नहीं कि पहले करो, फिर सोचो। फिर निरन्तर मालिकपन की स्मृति और नशे में रहेंगे। संगमयुग पर बाप आकर मालिकपन की सीट पर सेट करता है। स्वयं भगवान आपको स्थिति की सीट पर बिठाता है। तो बैठना चाहिए ना!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नजदीक अनुभव करते जा रहे हो? कर्मातीत अवस्था के समीप पहूँचने की निशानी जानते हो? *समीपता की निशानी समानता है।* किस बात में?

 

✧  आवाज़ में आना व आवाज़ से परे हो जाना, *साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना,* सुनाना और स्वरूप होना, मनन करना और मग्न रहना,रूह - रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना, *सोचना और करना।*

 

✧   *कर्मेन्द्रियों का आधार लेना और कर्मेन्द्रियों से परे होना,* प्रकृति द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकृती के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और  देखते हुए न देखना, *सम्पर्क में आते कमल पुष्प के समान रहना*, इन सभी बातों में समानता। उसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था की समीपता।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अभी-अभी अनादि, अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो? *जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो।* संकल्प किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण अवस्था, कर्मातीत अन्तिम स्टेज।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जरा भी गफलत ना कर, देही-अभिमानी रहने की मेहनत करते रहना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मन-बुद्धि से सूक्ष्म वतन में बाबा के सम्मुख बैठ, बाबा को प्यार से निहार रही हूँ... मीठे बाबा अपनी पावन दृष्टि से मुझ आत्मा को निहाल कर रहे हैं... मैं आत्मा इस देह से डिटैच होकर सुन्दर प्रकाशमय काया को धारण करती हूँ...* बाबा अपने पवित्र किरणों को मुझ आत्मा पर बरसाकर मेरी काया को और चमका रहे हैं... मैं आत्मा चमकीला फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर मीठे बाबा की मीठी शिक्षाओं को धारण करती हूँ...

 

  *विकारों से मुक्त होकर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... देह और देहाभिमान ने जीवन दुखो का दलदल बना दिया है... अब अपने सच्चे वजूद के नशे में खो जाओ... *कितनी खुबसूरत असीम शक्तियो से लबालब जादूगर आत्मा हो इस भान में गहरे डूब जाओ... और माँ पिता का नाम रोशन करने वाले सपूत बन जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूहानी नूर बन खुशियों के आसमान में चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ईश्वर पिता की मीठी सुखदायी छाँव में विकारो के कांटे से खुशनुमा फूल हो गई हूँ*... मेरा खोया खुबसूरत वजूद पाकर मीठे बाबा पर फ़िदा हो गयी हूँ... माँ पिता के आदर्शो पर चलकर नूरानी सी चहक रही हूँ...

 

  *मुझ आत्मा को सर्व वरदानों और खजानों से मालामाल करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता जो अथाह खजाने हथेली पर सजाकर बच्चों के लिए लाये है उन खजानो से मालामाल हो जाओ... *विकारो की कालिमा से दूर होकर ईश्वरीय यादो में प्रकाश पुंज बन सबके दिलो को रोशन करो... माँ पिता के नक्शे कदम पर कदम रखते जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा विषय सागर से निकल ज्ञानसागर में लहराकर मोतियों को बटोरते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा दुखो में लहुलुहान करने वाले विकारी काँटों से निकल कर ईश्वर पिता की गोद में फूल बन मुस्करा रही हूँ...* मीठे बाबा की सारी दौलत अपने दामन में सजा रही हूँ... और अमीरी से भरपूर हो गई हूँ... वफादारी की खशबू से मीठे बाबा को रिझा रही हूँ...

 

  *अपने स्नेह के आँचल में मुझे समेटते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *देह के पराये से गुणो का त्यागकर ईश्वरीय गुणो से महक जाओ... अथाह सुखो से सजे मीठे से स्वर्ग के मालिक होकर सच्ची मुस्कराहटों के फूल जीवन की बगिया में खिलाओ...* अपनी सच्ची स्मृतियों में डूब जाओ और माता पिता को गौरवान्वित कराओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा देही-अभिमानी बन परमात्म प्यार की अधिकारी बनते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... ईश्वर पिता को विकारो का दान कर सारे ईश्वरीय खजाने की सहज ही अधिकारी हो गई हूँ...* धरती आसमाँ को बाँहों में भरकर मुस्कराने वाली मै आत्मा ईश्वर पिता की रोम रोम से ऋणी हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  इस अंतिम जन्म में सितम सहन करते भी पावन जरूर बनना है*

 

_ ➳  अपने मीठे मधुबन घर में, पीस पार्क में बैठी ईश्वरीय यज्ञ के इतिहास पर लिखी हुई एक पुस्तक मैं पढ़ रही हूँ जिसमे यज्ञ से जुड़ी उन महान विभूतियों का उल्लेख है जिन्होंने अपने लौकिक परिवार के अनेक प्रकार के सितम सहन करके भी भगवान का हाथ और साथ नही छोड़ा। *हर सितम सहन करके भी अपनी पवित्रता की प्रतिज्ञा को कायम रखते हुए, अपना सम्पूर्ण जीवन इस यज्ञ में स्वाहा कर दिया और अपने इस महान कर्म से वो महान आत्मायें, ईश्वरीय यज्ञ के इतिहास में सबके लिए प्रेंरणा स्त्रोत बनने के साथ - साथ  भगवान के दिल तख्त पर सदा के लिए विराजमान रहने का सौभाग्य पाने वाली महान पदमापदम सौभागशाली आत्मायें बन गई*।

 

_ ➳  ईश्वरीय यज्ञ में सब कुछ समर्पण कर देने वाली उन महान विभूतियों की जीवन गाथा को पढ़ते हुए स्वयं से मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनके नक्शे कदम पर चलते हुए इस अंतिम जन्म में सितम सहन करते भी मैं पावन अवश्य बनूँगी। *जैसे ही मैं स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हूँ मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे वो सभी महान आत्मायें मेरी इस प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करने के लिए मुझे सूक्ष्म रीति अपनी पवित्रता का बल दे रही हैं। एक अद्भुत शक्ति जैसे मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। मन में पावन बनने का दृढ़ संकल्प लेकर मैं पीस पार्क से उठकर अब पांडव भवन की ओर चल पड़ती हूँ और बाबा के समान सम्पन्न, सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य लेकर, बाबा के कमरे में पहुँच जाती हूँ और बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा साक्षात मेरे सामने बैठे हैं और बिना कहे मेरी हर बात को समझ रहें है। मन्द - मन्द मुस्कारते हुए बाबा मुझे निहार रहें हैं। बाबा के अधरों की मुस्कराहट मन को एक सुकून दे रही है। बाबा के नयनों में मेरे लिए समाया अथाह स्नेह मुझे अंदर ही अंदर रोमांचित कर रहा है। *बाबा की दृष्टि में समाई पवित्रता की लहर को मैं स्पष्ट देख रही हूँ जो धीरे - धीरे बाबा की दृष्टि से निकल कर मुझ आत्मा को छू रही है और मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रही है*।। बाबा की पवित्र दृष्टि के साथ - साथ बाबा के वरदानी हस्तों को भी मैं अपने ऊपर अनुभव कर रही हूँ जिनसे पवित्रता की सफेद किरणे निकल कर मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं। *पवित्रता की शक्ति से भरपूर करते हुए बाबा मुझे पवित्र भव, योगी भव का वरदान दे रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता से हर हाल में पावन बनने की दृढ़ प्रतिज्ञा करके अब मैं बाबा के कमरे से बाहर आ जाती हूँ और फूलों, पतियों और लताओं से सजी बाबा की कुटिया के बाहर पार्क में रखे एक बैंच पर आकर बैठ जाती हूँ। *पतित पावन अपने शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को मैं एकाग्र कर लेती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपने स्वीट साइलेन्स होम की तरफ रवाना हो जाती हूँ*। पवित्रता के सागर अपने पिता से पवित्रता की शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्कशक्तियो की किरणो की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *पवित्रता के सफेद प्रकाश से सम्पन्न किरणे पूरे वेग के साथ मुझ आत्मा के ऊपर प्रवाहित होने लगती हैं*।

 

_ ➳  मुझे एवर प्योर बनाने के लिए बाबा अपनी सारी पवित्रता की शक्ति मेरे अंदर भरते जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे पवित्रता के सफेद प्रकाश में नहाकर मैं अति उज्ज्वल बन गयी हूँ। अपने इस उज्ज्वल स्वरूप के साथ, पवित्रता की शक्ति को अपने अंदर धारण करके मैं आत्मा अब वापिस साकार वतन की और लौट रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और बाबा से की हुई पवित्रता की प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा कर रही हूँ*। इस अंतिम जन्म में सितम सहन करके भी पावन बनने के स्वयं से और अपने प्यारे पिता से किये हुए प्रॉमिस को हर हाल में निभाते हुए, उनसे मिले पवित्रता के बल से मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पावन बनने के लक्ष्य को मैं बिल्कुल सहज रीति प्राप्त कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा दिलखुश मिठाई खाने और खिलाने वाली सच्ची सेवाधारी खुशमिजाज आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने हर संकल्प से अनेकों को श्रेष्ठ जीवन बनाने की प्रेरणा प्राप्त करवाने वाली पुण्यात्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ परिस्थिति रूपी पहाड़ को स्वस्थिति से जम्प देकर पार करोः- अपने को सदा समर्थ आत्मायें समझते हो! *समर्थ आत्मा अर्थात् सदा माया को चेलेन्ज कर विजय प्राप्त करने वाले। सदा समर्थ बाप के संग में रहने वाले।* जैसे बाप सर्वशक्तिवान है वैसे हम भी मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। सर्व शक्तियाँ शस्त्र हैं, अलंकार हैं, ऐसे अलंकारधारी आत्मा समझते हो? जो सदा समर्थ हैं वे कभी परिस्थितियों में डगमग नहीं होंगे। *परिस्थिति से स्वस्थिति श्रेष्ठ है। स्वस्थिति द्वारा कैसी भी परिस्थिति को पार कर सकते हो।* जैसे विमान द्वारा उड़ते हुए कितने पहाड़, कितने समुद्र पार कर लेते हैं, क्योंकि ऊँचाई पर उड़ते हैं। तो ऊँची स्थिति से सेकण्ड में पार कर लेंगे। ऐसे लगेगा जैसे पहाड़ को वा समुद्र को भी जम्प दे दिया। मेहनत का अनुभव नहीं होगा।

✺ *"ड्रिल :- परिस्थिति रूपी पहाड़ को स्वस्थिति से जम्प देकर पार करने का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा स्नान करने के बाद शीशे के सामने बैठ जाती हूँ... और अपने आपको निहारती हूँ... और कुछ समय बाद अपने आपको श्रंगार रूपी अलंकारों से सुसज्जित करना शुरू करती हूँ... *जैसे -जैसे मैं श्रृंगार करती हूँ... वैसे-वैसे मैं अपने आपको अलंकारों से सजे हुए अनुभव करती हूँ...* जैसे, माथे पर जब बिंदिया लगाती हूँ तो मैं अपने को आत्मिक स्थिति का तिलक लगाती हूँ... और जब मैं हाथों में कंगना पहनती हूँ तो अपने द्वारा सत्कर्मों का अनुभव करती हूँ... और जैसे मैं अपने पैरों में पायल पहनती हूँ तो मैं महसूस करती हूँ की मुझे हर पल श्रीमत के मार्ग पर ही चलना है...

➳ _ ➳ और मैं आत्मा अपने आप को इन अद्भुत अलंकारों से सजा हुआ अनुभव करते हुए घर से बाहर निकलता हुआ अनुभव करती हूँ... और तभी मुझे अचानक आसमान में हवाई जहाज जाता हुआ दिखाई देता है... उसे देखकर मुझ आत्मा को ये विचार आता है... *ये विमान कितनी तेजी से कठिनाइयों रूपी पहाड़, समुद्र, नदियां, जंगल को पार कर रहा है... इसने अपनी स्थिति कितनी ऊँची बना ली है... अपनी ऊँची स्थिति के कारण ये किसी भी कठिनाई को छू भी नहीं सकता...* ये अपनी मंजिल की तरफ कितनी आसानी और तेजी से चला जा रहा है... ये सोचते -सोचते मैं मन बुद्धि से सूक्षम वतन मेरे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... औऱ बाबा को भी एक उमंगों रूपी विमान में बैठा हुआ देखती हूँ...

➳ _ ➳ सूक्षम वतन के इस दृश्य को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो जाती हूँ और मैं बाबा से पूछती हूँ... बाबा... आप इस विमान में बैठकर मुझे क्या शिक्षा देना चाहते हो? तभी बाबा मुझे मुस्कुराते हुए कहते हैं... बच्चे मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि तुम्हें अपनें आपको शक्तियों रूपी अलंकारों से सुसज्जित करना है... जैसे देवताओं को देखो वो किस तरह शक्तिशाली शस्त्रों रूपी अलंकारों से सजे हुए होते हैं... इतना सुनकर मैं अपने आप को देवी दुर्गा के रूप में देखती हूँ... जो अलंकारों से सजी हुई हैं... और फिर बाबा कहते हैं... *साथ ही अपने आपको विमान रूपी ऊँची स्थिति में बिठाकर रखो... क्योंकि अगर पुरुषार्थ के रास्ते में कोई परिस्थिति आती है तो हमारी ऊँची स्थिति के कारण वो तुम्हें छू भी नहीं पायेगी... और ना ही तुम्हारे पुरुषार्थ की गति कम होगी...*

➳ _ ➳ बाबा के इन वचनों को सुनकर मेरा मन उत्साह से भर जाता है... और मैं बाबा से कहती हूँ बाबा... आपने जो आज मुझे समझाया है वो मैं कभी नहीं भूलूंगी... और हमेशा अपने आपको शक्तियों रूपी अलंकारों से सजाकर रखूंगी... अब मैं जब भी श्रृंगार करूँगी इन अलंकारों से ही करूँगी... बाबा मैं अपनी स्थिति इस विमान की तरह ऊँची बनाउंगी... जिसे कोई परिस्थिति रूपी अड़चन छू भी नहीं पाये... मैं हमेशा अपने आपको एक विमान में बैठा हुआ ही अनुभव करूँगी... मैं किसी भी परिस्थिति में डगमग नहीं होउंगी... बाबा से ये वादा करते हुए... *मैं आत्मा पूरी उमंग उत्साह से अनेक अलंकारों से सजकर औऱ ऊँची स्थिति रूपी विमान में बैठकर अपने कर्मक्षेत्र में वापिस आ जाती हूँ...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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