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❍ 16 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *विनाशी धन के पीछे अपनी तकदीर तो नहीं गंवाई ?*
➢➢ *अपना सब कुछ 21 जन्मो के लिए इन्श्योर किया ?*
➢➢ *सर्व योग्यताओं द्वारा स्वयं को वैल्युएबल बनाया ?*
➢➢ *एक बाप द्वारा सर्व रसो की अनुभूति कर एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *यह विनाश सर्व-आत्माओं की सर्व-कामनाएं पूर्ण करने का निमित्त साधन है। यह साधन आपकी साधना द्वारा पूरा होगा।* ऐसा संकल्प इमर्ज होना चाहिए कि अब सर्व-आत्माओं का कल्याण हो। *सर्व तड़पती हुई, दु:खी और अशान्त आत्माएं वरदाता बाप और बच्चों द्वारा वरदान प्राप्त कर सदा शान्त और सुखी बन जाए और अब घर चलें।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अमूल्य रत्न हूँ"*
〰✧ सभी अमूल्य रत्न हो। कितने अमूल्य हो? *इस दुनिया में ऐसा शब्द नहीं जो आपको कहें! बहुत श्रेष्ठ रत्न हो, इसलिए द्वापर से जब आपके मंदिर बनते हैं तो उसमे रत्न जड़ते हैं, जड़-चित्रों को भी रत्नों से सजाते हैं। तो जब जड़-चित्र इतने अमूल्य बने तो चैतन्य में कितने श्रेष्ठ हो, अमूल्य हो।* और अपने राज्य में जब होंगे तो यह रत्न क्या होंगे!
〰✧ जैसे यहाँ पत्थर सजाते हो वैसे वहां रत्न-जिड़त महल होंगे। याद है अपने राज्य में क्या-क्या किया था? अनगिनत बार की बात याद नहीं है! *अपने वर्तमान समय को ही देखो तो यह जीवन कौड़ी से क्या बन गई है? हीरे तुल्य जीवन है ना! यह हीरे-रत्न आपके लिए अनगिनत हो जायेंगे।*
〰✧ *सदा अपने वर्तमान श्रेष्ठ जीवन के आधार पर भविष्य सोचो कि कर्म का फल क्या मिलेगा, कितना शक्तिशाली कर्म रुपी बीज डाल रहे हो। तो फल भी अच्छा मिलेगा ना! इससे अच्छा फल और किसी को मिल नहीं सकता। यह नशा रहता है ना!*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *क्या अपने को एक सेकण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो?* जैसे वाणी में सहज ही आते हो, क्या वैसे वाणी से परे, इतना ही सहज हो ?
〰✧ कैसे भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तुफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बडी बात नहीं है, लेकिन *अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञान स्वरूप, शक्तिस्वरूप, याद स्वरूप और सर्वगुण स्वरूप कहा जाता है।*
〰✧ *भिन्न - भिन्न प्रकार के कारण होते हुए स्वयं निवारण रूप बने, इसको कहा जाता है पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष प्रमाण - रूप।* ऐसे महावीर बने हो या अब तक वीर बने हो? किस स्टेज तक पहूँचे हो? महावीर की स्टेज सामने दिखाई देती है या समीप दिखाई देती है अथवा बाप समान स्वयं को दिखाई देते हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *सेन्स के आधार पर सेवाधारी तो बन गए हैं, लेकिन रूहानी सेवाधारी बनें, - ऐसे कम हैं। कारण? जैसे बाप निराकार सो साकार बन सेवा का पार्ट बजाते हैं, वैसे बच्चों को इस 'मंत्र का यंत्र' भूल जाता है कि हम भी निराकार सो साकार रूप में पार्ट बजा रहे है।* 'निराकार सो साकार' - यह दोनों स्मृति साथ-साथ नहीं रहती हैं। या तो निराकार बन जाते और या साकारी हो जाते हैं। सदा यह मंत्र याद रहे कि 'निराकार सो साकार' - यह पार्ट बजा रहे हैं। *यह साकार सृष्टि, साकार शरीर स्टेज है। स्टेज और पार्टधारी दोनों अलग-अलग होते हैं। पार्टधारी स्वयं को कब स्टेज नहीं समझेंगे। स्टेज आधार है, पार्टधारी आधार मूर्त हैं, मालिक है। इस शरीर को स्टेज समझने से स्वयं को पार्टधारी स्वत: ही अनुभव करेंगे।* तो कारण क्या हुआ? स्वयं को न्यारा करना नहीं आता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी उन्नति के लिए अमृतवेले उठ बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *'अमृतवेला शुद्ध पवन है, मेरे लाडले जागो’- ये आवाज़ सुन मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ... सामने दोनों हाथों को फैलाए बापदादा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... स्वयं भगवान मुझे जगाने आया है...* मैं आत्मा प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कह उनकी बाहों में समा जाती हूँ... रूहानी बाबा, मुझे अपनी गोदी में उठाकर रूहानी यात्रा कराते हैं... *मीठे बाबा मुझ पर भरपूर प्यार और वरदानों को बरसाते हुए अमृत पान कराते हैं...*
❉ *मुझे अपनी यादों के आँचल में बसाते हुए प्यारे-प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ये ईश्वरीय यादो के सच्चे दिन सच्ची कमाई करने के है... इन मीठे पलों को दृढता से यादो में लगाओ...* भले ही कितने तूफान विपरीत से आये पर निडर हो निर्भय हो सदा आगे बढ़ते रहो... *अमृतवेले बरसते हुए अमृत का रसपान करो और शक्तिशाली बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के हाथों अमृत का रस पान करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अमृतवेले उठकर आपकी यादो की चाँदनी में निखर रही हूँ उजली धवल सी चमक रही हूँ...* माया के हर वार को पहचान कर शक्तिशाली बन अथक हो रही हूँ... और यादो में गहरे भीग रही हूँ...”
❉ *मेरे हर श्वांस को सफल कर मुझे मालामाल करते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सांसो के हर तार को ईश्वरीय यादो से जोड़ दो... यह सच्चे प्यार का सच्चा नाता ही सुखो की नींव है... *इसलिए अपनी कमाई पर प्रतिपल नजर रखो... बाते तो आएँगी और चली भी जाएँगी समझदार और अथक बन बढ़ते ही रहो... अमृतवेले यादो में बैठ रोम रोम को तृप्त कर लो...”*
➳ _ ➳ *जहाँ की सारी खुशियों को अपने दिल में समेटते हुए मैं खुशनसीब आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा देह की दुनिया की हर बात से उपराम हो मीठी यादो में खो रही हूँ... *तीव्र पुरुषार्थी होकर हर पल को ईश्वर पिता संग जी रही हूँ... अमृतवेले बाबा से अथाह प्यार पाकर पुलकित हो उठी हूँ... और मुस्कराती हुई लक्ष्य को पाती जा रही हूँ...”*
❉ *अमृतवेले के अमूल्य पलों को मेरे मन में बसाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब ईश्वर पिता का साया सर पर है तो माया से डरो नही... ईश्वरीय प्यार में थको नही... *अमृतवेले मीठी यादो में सच्चा सुकून पा लो... जनमो के थके से मन को सुख की अनुभूतियों में तरोताजा करो...* दिव्य गुण और शक्तियो से सम्पन्न बन मुस्करा उठो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परमात्म प्यार की अनुभूतियों को अपने मन में समाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अमृतवेले की मीठी यादो में अमरता को पाती जा रही हूँ... और शक्तिशाली बन हर कदम पर सफलता को पाती जा रही हूँ...* मीठे बाबा की यादो में हर साँस संकल्प को पिरोती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विनाशी धन के पीछे अपनी तकदीर नही गंवानी है*
➳ _ ➳ दुनिया की भीड़ से दूर, एक खूबसूरत टापू पर बैठ, *अपने प्यारे शिव पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हुए प्रकृति के खूबसूरत नजारो का मैं आनन्द ले रही हूँ और साथ ही साथ ज्ञान के सागर अपने शिव पिता द्वारा दिए जा रहे अविनाशी ज्ञान का मनन करते हुए अपार खुशी की अनुभूति करते हुए सोच रही हूँ कि कितनी दुर्भाग्यशाली हैं वो आत्मायें जो विनाशी धन प्राप्त करने की अंधी दौड़ में दिन रात भाग रही हैं*। अपना सुख चैन खोकर इस विनाशी धन को इक्कठा करके आखिर उन्हें क्या हासिल होगा! ये धन, ये वैभव, ये ऐशो आराम के साधन ये सब तो विनाश होने वाले हैं फिर इनके पीछे भागने का फायदा भी क्या!
➳ _ ➳ ज्ञान के सागर स्वयं भगवान जो इस समय आकर अविनाशी ज्ञान धन दे रहें है उसे छोड़ विनाशी धन के पीछे भागना स्वयं अपनी तकदीर को ही तो लकीर लगाना है। *ऐसे विनाशी धन के पीछे अपनी तकदीर गंवाने की मूर्खता मैं कभी नही करूँगी। अपने पिता द्वारा दिये जा रहे अविनाशी ज्ञान रत्नों को अपनी बुद्धि में धारण कर, औरों को दान कर, अविनाशी ज्ञान के अखुट खजाने जमा कर अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अब मैं हर संकल्प, विकल्प से अपनी बुद्धि को खाली कर, पूरी एकाग्रता के साथ अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने सत्य स्वरूप पर केंद्रित करती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकार शिव पिता का मैं आह्वान करती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में समाकर उनके साथ उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने प्यारे पिता की किरणो रूपी बाहों के झूले में झूलते, गहन सुकून का अनुभव करते हुए मैं पाँच तत्वों को पार कर, फरिश्तो की अव्यक्त दुनिया से परे, अपने उस परमधाम घर मे प्रवेश करती हूँ जहाँ चारों और लाल प्रकाश ही प्रकाश है*। चारों और चमकती हुई चैतन्य मणिया और उनके बीच में अनन्त प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे बिखेरते हुए महाज्योति अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ। *आत्माओं की एक ऐसी अद्भुत निराकारी दुनिया है यह, जहाँ ना तो लौकिक का कोई विघ्न है और ना अलौकिक का कोई भान है*।
➳ _ ➳ निरसंकल्प बीज रूप ज्योति बिंदु आत्माओं और परमात्मा का यह मंगल मिलन मन को गहन सुकून का अनुभव करवा रहा है। *आत्मा और परमात्मा के इस अद्भुत स्नेह मंगल मिलन का आनन्द लेते हुए मैं धीरे - धीरे अपने ज्ञान सागर शिव पिता के नजदीक जा रही हूँ स्वयं को ज्ञान की शक्ति से भरपूर करने के लिए*। अपनी बीज रूप स्थिति में स्थित मैं निराकार ज्योति अपने बीजरूप महाज्योति शिव पिता के पास पहुँच कर उन्हें जैसे ही स्पर्श करती हूँ, एक शक्तिशाली करेन्ट मेरे अंदर तेजी से प्रवाहित होने लगता है। *जैसे बिजली की तेज चमक के साथ बारिश शुरू होती है और वातावरण में ठंडक पैदा कर देती है, ऐसे ही एक शक्तिशाली तेज करेन्ट के साथ बाबा के ज्ञान की रिमझिम फुहारें मेरे ऊपर बरस रही हैं और मुझे गहन शीतलता का शीतल अनुभव करवा रही हैं*।
➳ _ ➳ हल्के नीले रंग की ज्ञान की शक्तिशाली किरणो की तेज फुहारें मेरे ऊपर ऐसे बरस रही हैं जैसे ज्ञान धन की वर्षा हो रही है औऱ ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने से मैं मालामाल हो रही हूँ। *ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर, मास्टर ज्ञान सागर बन कर, अब मैं अविनाशी ज्ञान धन जमा करने की सच्ची कमाई करने के लिए साकार लोक में वापिस लौट रही हूँ*। अपने साकार तन में भृकुटि के अकाल तख्त पर अब मैं विराजमान हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, *अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर, अविनाशी कमाई कर, अपनी श्रेष्ठ तकदीर बनाने का सहज पुरुषार्थ करते हुए, विनाशी धन के पीछे अपनी तकदीर ना गंवाने की अपने आप से की हुई प्रतिज्ञा को मैं दृढ़ता के साथ पूरा कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व योग्यताओ द्वारा स्वयं को वैल्युबल बनाने वाली बेफिक्र बादशाह आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं एक बाप द्वारा सर्व रसों की अनुभूति कर एकरस स्थिति का अनुभव करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ परमात्म-सन्तान, और कोई गुण न हो यह हो नहीं सकता। उसी गुण के आधार से ही
ब्राह्मण जन्म में जी रहे हैं अर्थात् जिन्दा हैं। ड्रामा अनुसार उसी गुण ने ही
ऊँचे ते ऊँचे बाप का बच्चा बनाया है। उसी गुण के कारण ही प्रभु पसन्द बने हैं।
इसलिए गुणों की माला बना रहे थे। ऐसे ही हर ब्राह्मण आत्मा के गुण को देखने से
श्रेष्ठ आत्मा का भाव सहज और स्वत: ही होगा क्योंकि गुण का आधार है ही -
श्रेष्ठ आत्मा। कई आत्मायें गुण को जानते हुए भी जन्म-जन्म की गन्दगी को देखने
के अभ्यासी होने कारण गुण को न देख अवगुण ही देखती हैं। लेकिन अवगुण को देखना,
अवगुण को धारण करना ऐसी ही भूल है जैसे स्थूल में अशुद्ध भोजन पान करना। स्थूल
भोजन में अगर कोई अशुद्ध भोजन स्वीकार करता है तो भूल महसूस करते हो ना! लिखते
हो ना कि खान-पान की धारणा में कमजोर हूँ। तो भूल समझते हो ना! *ऐसे अगर किसी
का अवगुण अथवा कमज़ोरी स्वयं में धारण करते हो तो समझो अशुद्ध भोजन खाने वाले
हो। सच्चे वैष्णव नहीं, विष्णु वंशी नहीं। लेकिन राम सेना हो जायेंगे। इसलिए सदा
गुण ग्रहण करने वाले - ‘गुण मूर्त' बनो।*
✺ *"ड्रिल :- सच्चे वैष्णव अर्थात सदा गुण ग्राहक बनकर रहना*”
➳ _ ➳ *कोहिनूर समान चमकती हुई मैं नूर भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हो जाती
हूँ...* मुझ नूर से चमकती हुई किरणें निकलकर चारों ओर फैल रही हैं... इस शरीर
से बाहर निकलकर चमकते हुए प्रकाश के कार्ब में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ
सूक्ष्म वतन... श्वेत प्रकाश की दुनिया में... जहाँ बापदादा गुणों की माला बना
रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के पास जाकर बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं बाबा से पूछती हूँ प्यारे बाबा- इस माला में मेरे भी गुण हैं क्या...
*बाबा बोले- हाँ मीठी बच्ची, तुम बाबा द्वारा चुनी गई कोटों में कोई, कोई में
भी कोई आत्मा हो...* बाबा ने गुणों के आधार पर ही तुमको चुना है... हाँ बाबा कब
से मैं आपको ढूंढ रही थी... पर आपने मुझे ढूंढ लिया... कितने समय के बाद बाबा
आप मिले हो कहकर मैं आत्मा बापदादा के गले लग जाती हूँ...
➳ _ ➳ मेरी सिकीलधी बच्ची कहते हुए बापदादा मुझे अपनी गोदी में बिठाकर... मुझ
पर अनंत प्यार बरसा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ...
*मुझ आत्मा का कितना ऊंचा भाग्य है जो ऊंचे से ऊंचे परमात्मा के साथ विशेष
पार्ट है...* अब मैं सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण
आत्मा गुणों के सागर की सन्तान हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप बन रही हूँ...
➳ _ ➳ *बाबा मुझे दिव्य गुणों की माला पहनाते हैं...मुझ आत्मा के सभी निजी गुण
जाग्रत हो रहे हैं...* मैं आत्मा हर गुण का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...
जितना एक-एक गुण की अनुभूति में समाती जा रही हूँ उतना प्रैक्टिकल स्वरूप बन
रही हूँ... अनुभवी मूर्त... गुण मूर्त बन रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं नूर दिव्य गुणों से भरपूर होकर बाबा की नूरे रतन बन गई हूँ...
प्रभु पसन्द बन गई हूँ... अब मैं सदा सबके गुणों, विशेषताओं को ही देख रही हूँ
और स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ... किसी के भी कमज़ोरी को स्वयं में धारण नहीं
करती हूँ... कभी भी अवगुण रूपी अशुद्ध भोजन नहीं खाती हूँ... *अब मैं आत्मा सदा
गुणों रूपी शुद्ध, पवित्र भोजन खाने वाली सच्ची वैष्णव, विष्णु वंशी होने का
अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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