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❍ 01 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी भी पुरानी आदत के वशीभूत हो उल्टा कर्म तो नहीं किया ?*
➢➢ *निश्चय में कभी हिले तो नहीं ?*
➢➢ *उडती कला द्वारा बाप समान आलराउंड पार्ट बजाया ?*
➢➢ *एक दो की विशेषताओं को स्मृति में रखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *फरिश्ता उड़ता है, चलता नहीं है। आप सभी भी उड़ती कला में उड़ते रहो इसके लिए डबल लाइट बनो।* जो किसी भी प्रकार का बोझ मन में, बुद्धि में है वह बाप को दे दो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं मायाजीत, प्रकृतिजीत आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत अनुभव करते हो? जितना-जितना सर्व शक्तियों को अपने ऑर्डर पर रखेंगे और समय पर कार्य में लगायेंगे तो सहज मायाजीत हो जायेंगे। *अगर सर्व शक्तियां अपने कन्ट्रोल में नहीं हैं तो कहाँ न कहाँ हार खानी पड़ेगी। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् कन्ट्रोलिंग पावर हो। जिस समय, जिस शक्ति को आह्वान करें वो हाजिर हो जाए, सहयोगी बने।* ऐसे ऑर्डर में हैं?
〰✧ सर्व शक्तियां ऑर्डर में हैं या आगे-पीछे होती हैं? ऑर्डर करो अभी और आये घण्टे के बाद-तो उसको मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे? *जब आप सभी का टाइटल है मास्टर सर्व शक्तिवान, तो जैसा टाइटल है वैसा ही कर्म होना चाहिए ना। है मास्टर और शक्ति समय पर काम में नहीं आये-तो कमजोर कहेंगे या मास्टर कहेंगे?* तो सदा चेक करो और फिर चेन्ज (परिवर्तन) करो- कौनसी-कौनसी शक्ति समय पर कार्य में लग सकती है और कौनसी शक्ति समय पर धोखा देती है?
〰✧ अगर सर्व शक्तियां अपने ऑर्डर पर नहीं चल सकतीं तो क्या विश्व-राज्य अधिकारी बनेंगे? *विश्व-राज्य अधिकारी वही बन सकता है जिसमें कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर हो। पहले स्व पर राज्य, फिर विश्व पर राज्य। स्वराज्य अधिकारी जब चाहें, जैसे चाहें वैसे कन्ट्रोल कर सकते हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सब तरफ से सर्व प्रवृत्तियों का किनारा छोड चुके हो* वा कोई भी किनारा अल्पकाल का सहारा बन बाप के सहारे वा साथ से दूर कर देंगे? संकल्प किया कि जाना है, *डायरेक्शन मिला अब चलना है तो डबल लाइट के उडन आसन पर स्थित हो उड जायेंगे?* ऐसी तैयारी है? वा सोचेंगे कि अभी यह करना है, वह करना है? समेटने की शक्ति अभी कार्य में ला सकते हो वा *मेरी सेवा, मेरा सेन्टर, मेरा जिज्ञासु, मेरा लौकिक परिवार या लौकिक कार्य - यह विस्तार तो याद नहीं आयेगा?*
〰✧ यह संकल्प तो नहीं आयेगा? जैसे आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो, ऐसे प्रकार के संकल्प - अभी यह करना है, फिर वापस जायेंगे - ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो, लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? वृक्ष भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है।
〰✧ तो अभी भी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है लेकिन *जितना विस्तार वृद्धि को पा रहा है उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे, यह बात नहीं भूल जाना।* कोई भी किनारे
में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हो। अर्थात सबसे छूट्टी लेकर रखो। जैसे आजकल यहाँ पहले से ही अपना मरण मना लेते है ना - तो छूट्टी ले ली ना। ऐसे सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। *समाप्ति समारोह मना ली।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ मेहनत करना ठीक लगता या मालिक बनना ठीक लगता? क्या अच्छा लगता है? सुनाया ना - इसके लिए सिर्फ यह एक अभ्यास सदा करते रहो - 'निराकार सो साकार के आधार से यह कार्य कर रहा हूँ' करावनहार बन कर्मेन्द्रियों से कराओ। अपने निराकारी वास्तविक स्वरूप को स्मृति में रखेंगे तो वास्तविक स्वरूप के गुण शक्तियाँ स्वत: इमर्ज होंगे। *जैसा स्वरूप होता है वैसे गुण और शक्तियाँ स्वत: ही कर्म में आते हैं। जैसे कन्या जब माँ बन जाती है तो माँ के स्वरूप में सेवा भाव, त्याग, स्नेह, अथक सेवा आदि गुण और शक्तियां स्वत: ही इमर्ज होती हैं ना।* तो अनादि-अविनाशी स्वरूप याद रहने से स्वत: ही यह गुण और शक्तियाँ इमर्ज होंगे। *स्वरूप स्मृति स्थिति को स्वतः ही बनाता है। समझा क्या करना है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निश्चय के आधार पर स्वर्ग की राजाई के लायक बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस संगमयुग के रूहानी यूनिवर्सिटी में बैठी हूँ... ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात कर रहे हैं... जिससे मुझ आत्मा की सारी अज्ञानता बाहर निकलती जा रही है... मैं आत्मा पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन रही हूँ... स्वयं भगवान टीचर बनकर मुझे आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दे रहे हैं...* मेरे जन्म-जन्म के अवगुणों को निकाल देवताई गुणों से श्रृंगार कर, स्वर्ग की राजाई के लायक बना रहे हैं... मैं आत्मा निश्चय बुद्धि बनकर, गॉडली स्टूडेंट के स्वमान में टिककर बैठ जाती हूँ, बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करने...
❉ *भविष्य की कमाई के लिए ज्ञान रत्नों से मुझे सजाते हुए मेरे सुप्रीम टीचर कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई और योग से ही सतयुगी बादशाही है... *इसलिए सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि होकर पढ़ाई से 21 जनमो का खुबसूरत भाग्य बनालो... संगम के वरदानी समय को याद और पढ़ाई से असीम कमाई की खान बना दो... ईश्वर पिता से पढ़कर अनन्त सुखो के मालिक बन जाओ...*
➳ _ ➳ *21 जन्मों के वर्सा की अधिकारी बनने का पुरुषार्थ करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में ज्ञान रत्नों को पाकर दौलत मन्द होती जा रही हूँ... *21 जनमो के लिए अथाह सुखो को जमा कर मीठा मुस्करा रही हूँ... प्यारे बाबा आपने अपनी गोद में बिठा,सच्चे सुखो से सजा मेरा सदा का भाग्य चमका दिया है...”*
❉ *अथाह ज्ञान रत्नों की खान मेरे नाम लिखते हुए प्रेम के सागर मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता स्वयं धरा पर उतर कर राजयोग सिखा रहे... *ज्ञान रत्नों से मालामाल कर स्वर्ग के मीठे सुखो का अधिकारी बना रहे... तो पूरे निश्चय और दिली लगन से पढ़ाई कर श्रेष्ठतम भाग्य को अपनी तकदीर बना लो...* इन सुनहरे पलों का पूरा फायदा उठाओ...”
➳ _ ➳ *ज्ञान योग से ईश्वरीय रंगत में रंगकर, सात रंगों से सजी इन्द्रधनुष बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपको पाकर कितनी धन्य धन्य हो गई हूँ... प्यारे बाबा... आपने मेरी देह की दासता छुड़वाकर... *मुझे दमकती मणि सा चमकाया है... और अपनी फूलो सी गोद में बिठा विश्व मालिक बनाया है... असीम खानो को मेरी तकदीर में सजा मुझे शहंशाह बनाया है...”*
❉ *अपने प्यार से मेरे मन में खुशियों के फूलों को खिलाकर मेरे बागबान बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सच्चे सुखो का आधार है और महा भाग्य बनाने वाली है... इसलिए इस पढ़ाई में हर साँस संकल्प से जुट जाओ... यह ज्ञान रत्न अथाह सुखो के भण्डार बनकर जीवन में खुशियो को छलकायेंगे...* ईश्वर पिता से सारी दौलत लेकर 21 जनमो की अमीरी के पर्याय बन मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *बाबा के स्नेह की रिमझिम से दिव्य मणि बन पुलकित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा संगम पर आपके हाथ और साथ को पाकर कितनी निखर गई हूँ...* मेरी कुरूपता खत्म हो गई है, और सच्चे सौंदर्य से रोम रोम छलक उठा है... *प्यारे बाबा आपने अपने जादुई स्पर्श से मुझे ज्ञानवान धनवान् बना विश्व में सजा दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निश्चय में कभी भी हिलना नही है*"
➳ _ ➳ मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बनाने वाले, सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देकर मेरे जीवन को खुशहाल बनाने वाले मेरे दिलाराम बाबा ने मेरे जीवन मे आकर जो अनगिनत उपकार मुझ पर किये हैं, उनका तो बदला चुकाया भी नही जा सकता। *लेकिन उनके स्नेह का रिटर्न देने के लिए मैं सदा उनकी वफादार फरमानबरदार बनकर रहूँगी। अपने ऐसे सच्चे बाबा के प्रति निश्चय में मैं कभी कमी नही आने दूँगी। चाहे दुनिया कितने भी इल्जाम लगाए लेकिन अपने दिलाराम बाबा का हाथ और साथ मैं कभी नही छोडूंगी*। मन ही मन स्वयं से बातें करते हुए मैं बाबा के प्रति निश्चय में कभी भी ना हिलने की दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के बारे में विचार करती हूँ जिन्होंने समाज का विरोध सहन करके भी सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन परमात्म कर्तव्य को सम्पूर्ण समर्पण भाव से पूरा किया और भगवान के दिल रूपी तख्त पर सदा के लिए विराजमान हो गए।
➳ _ ➳ ऐसे कदम - कदम पर फ़ॉलो फादर कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन, परमात्म कार्य मे सदा सहयोगी बनने का संकल्प लेकर मैं अपने दिलाराम बाबा की दिल को आराम देने वाली मीठी सी प्यारी सी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। *मन को शीतलता देने वाली सागर की मीठी - मीठी लहरों के समान मेरे मीठे बाबा की मीठी - मीठी याद मेरे मन और बुद्धि को भी शान्त और शीतल बना देती है और शरीर को पूरी तरह रिलैक्स कर देती है*। यह रिलैक्सेशन मेरे सारे शरीर से चेतना को धीरे - धीरे समेट कर मेरे सम्पूर्ण ध्यान को दोनों आईब्रोज के बीच भृकुटि के मध्य भाग पर केंद्रित कर देती है।
➳ _ ➳ मैं महसूस कर रही हूँ देह का भान पूरी तरह समाप्त हो गया है और स्वयं को मैं अशरीरी आत्मा देख रही हूँ। केवल एक अति सूक्ष्म चमकता हुआ शाइनिंग स्टार मुझे दिखाई दे रहा है। जिसमे से निकल रही किरणे मन को आनन्दित करती हुई चारों और फैल रही हैं। *देह भान से पूरी तरह मुक्त यह अशरीरी स्थिति मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न, ओरिजनल स्वरूप का स्पष्ट अनुभव करवा रही है। अपने स्वधर्म में मैं पूरी तरह स्थित हो कर अपने सत्य स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*। दुनियावी आकर्षणों से बोझ से मुक्त स्वयं को मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ और हल्की हो कर ऊपर की औऱ उड़ रही हूँ। *पाँच तत्वों से निर्मित इस भौतिक जगत को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक को भी पार करके मैं पहुँच गई हूँ ब्रह्मलोक में अपने दिलाराम शिव पिता के पास जिनके साथ मेरा जन्म - जन्म का अनादि सम्बन्ध है*।
➳ _ ➳ अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे मीठे शिव बाबा मेरे सामने खड़े हैं। बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये अपने प्यारे पिता के पास जाकर मैं उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे बिछड़ कर उनसे दूर रहने की सारी पीड़ा को मैं उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर, अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति में खोकर, भुला रही हूँ*। प्यार के सागर अपने शिव पिता के प्यार की गहराई में समाकर मैं स्वयं को उनके निस्वार्थ प्यार से भरपूर कर रही हूँ। मेरे शिव पिता का अविनाशी प्यार उनके स्नेह की किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। *उनसे आ रही स्नेह की किरणों की मीठी फुहारें मुझे रोमांचित कर रही हैं और मेरे निश्चय को दृढ़ रखने का बल मुझे दे रही हैं*।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा की सर्व शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, उनके प्यार के खूबसूरत मीठे मधुर अति सुखद एहसास के साथ अब मैं वापिस देह और देह की दुनिया में लौट रही हूँ। बड़े से बड़ी परिस्थितियां भी अब बाबा के प्रति मेरे निश्चय को डिगा नही पाती क्योंकि मेरे बाबा का प्यार ढाल बन कर मुझमें असीम शक्ति का संचार प्रतिपल करता रहता है। *अपने सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया को मैं सदा अपने ऊपर महसूस करते हुए, सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बन अब माया के हर पेपर को अपने पिता के सहयोग से सहज ही पार करती जा रही हूँ*। स्वयं पर, बाबा पर और ड्रामा पर सम्पूर्ण निश्चय मुझे व्यर्थ के हर संकल्प विकल्प से मुक्त रखते हुए, मेरी साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाकर मेरी स्थिति को एकरस और अचल अडोल बनाता जा रहा है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं उड़ती कला द्वारा बाप समान आलराउंड पार्ट बजाने वाली चक्रवर्ती आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं एक दो की विशेषताओं को स्मृति में रख फेथफुल बनकर संगठन को एकमत बनाने वाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘बापदादा
इस साकारी देह और दुनिया में आते हैं, सभी
को इस देह और दुनिया से दूर ले जाने के लिए। दूर-देश वासी सभी को दूर-देश
निवासी बनाने के लिए आते हैं। दूर-देश में यह देह नहीं चलेगी। पावन आत्मा अपने
देश में बाप के साथ-साथ चलेगी। तो चलने के लिए तैयार हो गये हो वा अभी तक कुछ
समेटने के लिए रह गया है? *जब
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो तो विस्तार को समेट परिवर्तन करते हो। तो
दूर-देश वा अपने स्वीट होम में जाने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी? सर्व
विस्तार को बिन्दी में समाना पड़े। इतनी समाने की शक्ति, समेटने
की शक्ति धारण करली है?*
✺
*"ड्रिल :- समाने की शक्ति और समेटने की शक्ति का अनुभव करना।*
➳ _ ➳
एकांत स्थान पर बैठकर मैं प्यारे बाबा से मीठी मीठी बातें कर रही हूं... बाबा
से अपने दिल की बातें और अपने अनुभव शेयर कर रही हूं... बाबा से बातें करते हुए
मैं आत्मा एकांत स्थान पर अपने आप को अन्य आत्माओं से दूर एक ऐसे स्थान पर
अनुभव करती हूं... जहां प्रकृति के पांचो तत्व मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे
हैं... और इस खुशनुमा मौसम में बाबा के साथ दूर बैठकर मैं आत्मा अपने लौकिक
परिवार की आत्माओं को निहार रही हूं... और *उनके साथ बिताए हुए हर एक लम्हों को
याद कर रही हूं... मुझे उनकी कही हुई हर छोटी बड़ी बात याद आने लगती है... और
उनके द्वारा किए हुए हर कर्म मुझे प्रभावित करते हैं... और साथ ही कुछ ऐसे उनके
कर्म जो मुझे दुख की अनुभूति कराते हैं...* जैसे जैसे मैं उन आत्माओं को
निहारती हूं... वैसे वैसे ही मेरी मन बुद्धि उनके अंदर समाने लगती है...
➳ _ ➳
कुछ
समय के बाद मैं अपने आप को उन आत्माओं मैं इतना डुबो देती हूं... कि मुझे उन के
अलावा कुछ ना तो सुनाई देता है... और ना ही दिखाई देता है... तभी अचानक मुझे
अनुभव होता है... कि मैं यह क्या कर रही हूं... मेरे साथ मेरे परम पिता
परमात्मा बैठे हुए हैं और मैं अपनी मन बुद्धि इन आत्माओं में समाकर यह अमूल्य
समय गंवा रही हूं... और मैं आत्मा यह सोचते हुए *अपने मन बुद्धि को उन आत्माओं
से हटाने का पूरा प्रयत्न करती हूं... और इसके लिए मैं सर्वप्रथम निर्णय लेती
हूं... कि मुझे इस संगम के शुभ अवसर पर सिर्फ और सिर्फ अपनी मन बुद्धि अपने
परमपिता परमात्मा में ही लगानी है... और उनके द्वारा दी हुई श्रीमत का मुझे
पूरा पूरा पालन करना है... मैं आत्मा जैसे ही यह निर्णय लेती हूं... तो मैं
अपने अंदर एक अद्भुत परिवर्तन अनुभव करती हूँ...*
➳ _ ➳
और
धीरे-धीरे मैं इस निर्णय शक्ति के आधार पर अपनी मन बुद्धि इन आत्माओं से हटाने
में पूर्णतया सफल हो जाती हूं... और पहुंच जाती हूं अपने प्यारे बाबा को साथ
लिए मूल वतन में... जहां चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश ही प्रकाश है... और वह
प्रकाश जैसे ही मुझ आत्मा को स्पर्श करता है... मुझे अपने अंदर गहन शांति का
अनुभव होता है... और *जैसे-जैसे मैं मूलवतन की शांति को अनुभव करती हूं... वैसे
ही मैं उस चमत्कारिक शांति को अपने अंदर समाने लगती हूं... और इस शांति को अपने
अंदर समाए हुए मुझे अपने सामने अपने रंग बिरंगी किरणें बिखेरते हुए मेरे परम
पिता नजर आते हैं...* जैसे ही मैं उनको अपने सामने अनुभव करती हूं... मेरा यह
ज्योति रूप और भी चमकीला हो जाता है...
➳ _ ➳
और
अपने इस चमकते हुए रूप को मैं बाबा की अद्भुत किरणों से अपने अंदर समाकर और भी
चमकदार और शक्तिशाली बना लेती हूं... कुछ समय इस स्थिति में रहने के बाद मैं
अपने साथ बाबा को लेकर सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूं... यहां का सफेद प्रकाश
मेरे अंदर अति शीतलता का अनुभव करा रहा है... *मेरा यह फरिश्ता स्वरूप एकदम
शीतल और शांत प्रतीत हो रहा है... और सामने बापदादा मुझे फरिश्ता रूप में बैठे
हुए निहार रहे हैं... मैं दौड़कर बाबा की बाहों में समा जाती हूं... जैसे ही
मैं बाबा को स्पर्श करती हूं... मुझे उनकी बाहें झूले के समान प्रतीत होती
है... और मेरा मन यह महसूस करता है... कि बाबा मुझे अपनी मीठी मीठी बाहों में
लेकर झूला झुला रहे हैं...* और मैं डूब जाती हूं... कुछ देर के लिए इस सुखद
अनुभूति में...
➳ _ ➳
अब
मैं आत्मा फरिश्ता रूप में बाबा की बाहों के झूले झूलते हुए बाबा से कहती
हूं... बाबा यह संगम का जो महत्वपूर्ण समय है... उसमें मैंने अपनी मन बुद्धि इस
संसार के रिश्ते नातों में कुछ समय के लिए फंसा रखी थी... जिसके कारण मुझे आज
तक सिर्फ और सिर्फ दुख दर्द ही मिला है... *मैंने अपने आप को अब परमात्मा को
सौंपने का दृढ़ संकल्प किया है... और अपने इस निर्णय से मुझे गहन शांति की
अनुभूति हो रही है... और मैं बाबा से कहती हूं... मेरे मीठे बाबा अब मैंने आपकी
श्रीमत के अनुसार यह निर्णय शक्ति का प्रयोग कर अपनी मन बुद्धि इन झूठे रिश्ते
नातों से निकालकर आप में पूरी तरह से लगा दी है... अब मैं आत्मा स्थूल वतन में
जो भी कर्म करूंगी... सिर्फ और सिर्फ फरिश्ता बनकर और निमित्त भाव से ही
करूंगी...* और इतना कहकर मैं अपने मन बुद्धि इन सांसारिक रिश्ते-नातों से समेट
कर और अपनी निर्णय
शक्ति को अपने अंदर समाकर... सब बाबा को सौंप देती हूं... और चली आती हूँ मैं
अपनी इन कर्मेंद्रियों पर राज करने के लिए... और फरिश्ता बनकर निमित्त भाव से
सेवा करने लगती हूं... बाबा की याद में...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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