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❍ 25 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इस बने बनाए ड्रामा पर चलते रहे ?*
➢➢ *ब्रह्मा की मददगार भुजा बन खुदाई खिदमतगार बनकर रहे ?*
➢➢ *अखंड स्मृति द्वारा विघनो को विदाई दी ?*
➢➢ *ईश्वरीय सेवा में खुद को ऑफर का बापदादा की आफरीन ली ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे किला बांधा जाता है, जिससे प्रजा किले के अन्दर सेफ रहे। एक राजा के लिए कोठरी नहीं बनाते, किला बनाते हैं। *आप सभी भी स्वयं के लिए, साथियों के लिए, अन्य आत्माओं के लिए ज्वाला रूप याद का किला बांधो। याद के शक्ति की ज्वाला हो तो हर आत्मा सेफ्टी का अनुभव करेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एक की याद द्वारा एकरस स्थिति में रहने वाली ट्रस्टी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा एकरस स्थिति में स्थित रहने की सहज विधि क्या है? 'एक' की याद एकरस स्थिति बनाती है। एक बाबा, दूसरा न कोई। क्योंकि एक में सब समाये हुए हैं। जैसे बीज में सब समाया हुआ होता है ना। वृक्ष की एक-एक चीज को याद करना मुश्किल है लेकिन एक बीज को याद करो तो सब सहज है। *तो बाप भी बीज है। जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार-स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई। यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है।* ऐसे अनुभव करते हो? या प्रवृत्ति में रहते हो तो दूसरा-तीसरा तो होता है? मेरा बच्चा, मेरा परिवार- यह नहीं रहता है?
〰✧ फिर एक बाप तो नहीं हुआ ना। 'मेरा' परिवार है या 'तेरा' परिवार है? ट्रस्टी बनकर सम्भालते हो या गृहस्थी बनकर सम्भालते हो? ट्रस्टी अर्थात् तेरा और गृहस्थी अर्थात् मेरा। तो आप कौन हो? मेरा-मेरा मानते क्या मिला? *'मेरा ये, मेरा ये' ....- मेरे-मेरे के विस्तार से मिला क्या? कुछ मिला या गंवाया? जितना मेरा-मेरा कहा, उतना ही मेरा कोई नहीं रहा। तो ट्रस्टी जीवन कितनी प्यारी है!*
〰✧ *सम्भालते हुए भी कोई बोझ नहीं, सदा हल्के। देखो, गृहस्थी बन चलने से बोझ उठाते-उठाते क्या हाल हुआ-तन भी गंवाया, मन भी अशान्त किया और सच्चा धन भी गंवा दिया। तन को रोगी बना दिया, मन को अशान्त बना लिया और धन में कोई शक्ति नहीं रही।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *कर्म कर रहे हैं लेकिन एक ही समय पर कर्म और मन्सा दोनों सेवा का बैलेन्स हो।* जैसे शुरू-शुरू में यह अभ्यास कराया था कर्म भल वहुत साधारण हो लेकिन स्थिति ऐसी महान हो जो साधारण काम होते हुए भी साक्षात्कार मूर्त दिखाई दें - कोई भी स्थूल कार्य धोवीघाट या सफाई आदि का कर रहे हैं, भण्डारे का कार्य कर रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी महन हो - *ऐसा भी समय प्रैक्टिकल में आवेगा जो देखने वाले यही वर्णन करेंगे कि इतनी महान आत्मायें फरिश्ता रूप और कार्य क्या कर रही है।*
〰✧ *कार्य साधारण और स्थिति अति श्रेष्ठ।* जैसे सतयुगी शहजादियों की आत्मायें जब आती थी तो वह भविष्य के रूप प्रैक्टिकल में देखते हुए आश्चर्य खाती थी ना कि इतने बड़े महाराजे और कार्य क्या कर रहे हैं। विश्व महाराजा और भोजन बना रहे हैं।
〰✧ वैसे ही आने वाली आत्मायें यह वर्णन करेंगी कि हमारे इतने श्रेष्ठ पूज्य ईष्ट देव और यह कार्य कर रहे हैं। चलते-फिरते ईष्ट देव या देवी का साक्षात्कार स्पष्ट दिखाई दे। *अन्त में पूज्य स्वरूप प्रत्यक्ष देखने लगेंगे फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ तख्तनशीन होकर अपनी स्थूल शक्तियों और सूक्ष्म को अर्थात् कर्म इन्द्रियों को और मन, बुद्धि संस्कार सूक्ष्म इन शक्तियों को भी आर्डर सें चलाओ। *तख्तनशीन होंगे तो आर्डर चला सकेंगे। तख्त से नीचे उतर आर्डर करते हो इसलिए कर्मेन्द्रियाँ भी मानती नहीं हैं। ईश्वरीय सेवा तख्त पर बैठे हुए भी कर सकते हो। नीचे आने की जरूरत नहीं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- वाणी से परे अब वापिस घर चलना है, इसलिए बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले के रूहानी समय में ‘मेरे लाडले बच्चे’ कह, मीठे बाबा अपनी मीठी आवाज से मुझे जगाते हैं... प्यारे बाबा के प्यारे मधुर स्वर कानों में गूंजते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ और प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उनकी बाँहों में सिमट जाती हूँ...* प्यारे बाबा मुझे अपनी गोद में उठाकर मधुबन की पहाड़ियों पर ले जाते हैं और आसमान में एक सीन इमर्ज कर इस सृष्टि नाटक को दिखाते हैं... कैसे मैं आत्मा परमधाम से इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आई...? सतोप्रधान से तमोप्रधान कैसे बनी...? और अब मुझे फिर से सतोप्रधान, पावन बनकर घर वापिस जाना है...
❉ *वाणी से परे शांति की दुनिया शांतिधाम के नज़ारे दिखाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... अब ईश्वरीय गोद में बैठे हो... तो हर मेहनत से मुक्त हो... अब भक्त नही हो अधिकारी बच्चे हो... *अब मांगना नही है हक से अधिकार लेना है... महिमा गानी नही है महिमा योग्य बन कर बाप दादा को दिखाना है... अब आवाज नही आवाज से परे अपने निज स्वरूप का आनंद लेना है... और ख़ुशी से मुस्कराना है...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा वानप्रस्थी बन मीठे बाबा की यादों में मगन होकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में देह भान से परे हो अतीन्द्रिय सुख में डूब गयी हूँ... *मन की गुफा में बैठी सीधे बापदादा के दिल पर मीठी सी दस्तक दे रही हूँ... और यादो में हर मेहनत से मुक्त होकर आसमानों में उड़ रही हूँ...”*
❉ *अपने प्यार की मीठी डोर से मुझे बांधकर अपने दिल में बिठाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *जब पिता परमधाम में था तो बहुत पुकारा अब जो पिता सम्मुख है इतना करीब है तो दूरियां खत्म होकर मीठी मीठी नजदीकियां है...* अब दिल का गहरा नाता है और यादो में इशारो की मूक अभियक्ति है... और भीतर ही भीतर सुनने सुनाने का दिल को नशा सा छाया है...”
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की याद में डूबकर शांतिधाम की शांति को अपने अन्दर समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मुख के मौन में डूबी ईश्वरीय प्यार का आनन्द ले रही हूँ... *मीठे बाबा ने मुझे हर मेहनत से छुड़ा दिया है... हर थकान से छुड़ाकर मुझे मीठे सुख भरा सुकून का जीवन दे दिया है... और आवाज से परे पर दिल से करीब का राज सिखा दिया है...”*
❉ *वंडरफुल रूहानी धाम में ले जाने के लिए पुरुषार्थ की युक्तियाँ बताते हुए वंडरफुल रूहानी बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... हजार हाथो से ईश्वर पिता सामने है जितने चाहे उतने खजाने अपने नाम लिखवा सकते हो... *अब दया करुणा की बात नही अधिकारीपन का नशा है... तो फिर यह पुकार कैसी... अब तो दिल ही दिल में गुफ़्तुगू का ईश्वरीय मौसम छाया है... इस ईश्वरीय प्यार के समन्दर में बस डूब जाओ...”*
➳ _ ➳ *सुहाने सफ़र की तैयारियों में जुटकर स्वयं को खजानों से सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय प्यार में इस कदर खोयी हूँ कि भीतर ही भीतर गहरी बाबा के दिल में समा गयी हूँ...* अब मै आत्मा इशारो में प्रियतम बाबा को प्यार करने का हुनर सीख गयी हूँ... पुकारो से मुक्त हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भक्तों को भगवान का सत्य परिचय देना है, उन्हें भटकने से छुड़ाना है*
➳ _ ➳ अपने तपस्वी ब्राह्मण स्वरूप में योगयुक्त होकर अपने प्यारे पिता की याद में मग्न मैं अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ और गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति करते हुए महसूस कर रही हूँ *जैसे भगवान मेरे सम्मुख खड़े मुझसे कह रहें हैं, हे मेरे इष्टदेव बच्चे भक्तों की पुकार सुनो, देखो भगवान को पाने के लिये बेचारे दर - दर भटक रहे हैं उन्हें जाकर भगवान का सत्य परिचय दो और भटकने से छुड़ाओ*। अपने पिता परमात्मा के इस फरमान को सुनकर मेरी आँखों के सामने अब एक - एक करके अनेक प्रकार के दृश्य स्पष्ट हो रहें हैं। देख रही हूँ मन्दिरो में देवी देवताओं के जड़ चित्रो के सामने लम्बी - लम्बी कतारों में खड़े भक्तो को जो भगवान के दर्शन मात्र की इच्छा से खड़े गर्मी, सर्दी बरसात सब सहन कर रहें हैं। *उपवास कर रहें हैं। अपने शरीर को कष्ट देकर पैदल लम्बी - लम्बी यात्राएं कर रहें हैं। हठयोग से कठोर तपस्या कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ इन सभी दृश्यों को देखते हुए मैं मन ही मन स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि भगवान की तलाश में भटक रहे इन भक्तो को भगवान का सत्य परिचय देकर उन्हें भटकने से छुड़ाने का मेरे प्यारे पिता ने मुझे जो फरमान दिया है उसे मैं अवश्य पूरा करूँगी। *अपने स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप द्वारा भक्तो को भगवान से मिलाने का सत्य मार्ग दिखाने की सेवा का संकल्प लेकर अपने तपस्वी ब्राह्मण स्वरूप में मैं फिर से स्थित हो जाती हूँ और मन बुद्धि को अपने पिता परमात्मा की याद में स्थिर कर लेती हूँ*। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिए अब मैं देह और देह की दुनिया के हर संकल्प, विकल्प को अपने मन बुद्धि से निकाल कर अपना सारा ध्यान स्वयं पर एकाग्र कर लेती हूँ और सेकण्ड में शरीर के अंगों में फैली अपनी सारी चेतना को समेटकर अपने ध्यान को भृकुटि के मध्य में केंद्रित कर लेती हूँ। *अपने ध्यान को भृकुटि के मध्य एकाग्र करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं अलग हूँ और यह शरीर अलग है*।
➳ _ ➳ देह और देही दोनों को मैं बिल्कुल अलग - अलग देख रही हूँ। यह अनुभव मुझे देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर रहा है। स्वयं को मैं एक प्रकाशमय ज्योति पुंज के रूप में देख रही हूँ जिसमे से अनन्त प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे निकल रही हैं। *ये रंग बिरंगी किरणे मेरे चारों और फैल कर मुझे एक अद्भुत सुखद अहसास करवा रही हैं। इस सुखद एहसास की सुखद अनुभूति करते हुए मैं अब भृकुटि सिहांसन को छोड़ कर ऊपर की और उड़ने लगी हूँ*। ज्ञान और योग के खूबसूरत पंख लगा कर मैं आत्मा ऊपर आकाश की ओर उड़ती ही जा रही हूँ। सूर्य, चांद, सितारों को पार करते हुए उससे परे सूक्ष्म लोक को भी पार करके आत्माओं की निराकारी दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं अपने सामने अपने प्यारे बाबा को जिनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे इस निराकारी दुनिया को एक दिव्य प्रकाश से प्रकाशित कर रही है। सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन इस पूरे ब्रह्मांड में चारों तरफ फैले हुए हैं और मन को असीम शान्ति और शक्ति से भरपूर करके आत्मा को शक्तिशाली बना रहे हैं। *गहन शान्ति की अनुभूति करते हुए अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनकी सर्वशक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणे मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर रही हैं। मेरा स्वरुप अति उज्ज्वल होता जा रहा है। स्वयं को मैं एकदम हल्का महसूस कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ बाबा से सर्वशक्तियों की लाइट माइट ले कर शक्ति स्वरूप बन कर मैं आत्मा परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब के ऊपर आकर बैठ जाती हूँ। *बाबा का आह्वान कर, कम्बाइंड स्वरूप में स्थित होकर अब मैं भक्तो को सकाश दे रही हूँ। अपनी शक्तिशाली मनसा वृति द्वारा भक्तो को भगवान का सत्य परिचय देने के साथ - साथ बाबा से सर्वशक्तियों को स्वयं में भर कर शक्तियों की शीतल फुहारे उन पर बरसाकर उन्हें परमात्म प्यार का अनुभव करवा रही हूँ*। परमात्म परिचय देकर उन्हें ब्रह्माकुमारीज़ सेवा स्थलों पर जाने का मार्ग बता रही हूँ।
➳ _ ➳ इस सूक्ष्म सेवा को करने के बाद मैं वापिस साकारी दुनिया मे अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के साथ - साथ समय निकाल कर मन्दिरों में जाकर भक्तो को भगवान का सत्य परिचय देकर उन्हें भटकने से छुड़ाने के अपने पिता के फरमान को भी मैं पूरी लगन और तन्मयता के साथ पूरा कर रही हूँ। कभी अपने सूक्ष्म फरिश्ता स्वरूप द्वारा तो कभी स्थूल ब्राह्मण स्वरूप द्वारा यह सेवा मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अखण्ड स्मृति द्वारा विघ्नों को विदाई देने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ईश्वरीय सेवा में खुद को ऑफर करके बापदादा की आफरीन लेने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *‘‘बापदादा सर्व ब्राह्मण आत्माओं में ‘सर्वस्व त्यागी' बच्चों को देख रहे हैं। तीन प्रकार के बच्चे हैं - एक हैं त्यागी, दूसरे हैं महात्यागी, तीसरे हैं सर्व त्यागी, तीनों हैं ही त्यागी लेकिन नम्बरवार हैं। त्यागी- जिन्होंने ज्ञान और योग के द्वारा अपने पुराने सम्बन्ध, पुरानी दुनिया, पुराने सम्पर्क द्वारा प्राप्त हुई अल्पकाल की प्राप्तियों को त्याग कर ब्राह्मण जीवन अर्थात् योगी जीवन संकल्प द्वारा अपनाया है अर्थात् यह सब धारणा की कि पुरानी जीवन से ‘यह योगी जीवन श्रेष्ठ है'।* अल्पकाल की प्राप्ति से यह सदाकाल की प्राप्ति प्राप्त करना आवश्यक है। और उसे आवश्यक समझने के आधार पर ज्ञान योग के अभ्यासी बन गये। ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी कहलाने के अधिकारी बन गये। लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारी बनने के बाद भी पुराने सम्बन्ध, संकल्प और संस्कार सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं हुए लेकिन परिवर्तन करने के युद्ध में सदा तप्पर रहते। अभी-अभी ब्राह्मण संस्कार, अभी-अभी पुराने संस्कारों को परिवर्तन करने के युद्ध स्वरूप में। इसको कहा जाता है - त्यागी बने लेकिन सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं किया। सिर्फ सोचने और समझने वाले हैं कि त्याग करना ही महा भाग्यवान बनना है। करने की हिम्मत कम।
➳ _ ➳ *अलबेलेपन के संस्कार बार बार इमर्ज होने से त्याग के साथ-साथ आराम पसन्द भी बन जाते हैं। समझ भी रहे हैं, चल भी रहे हैं, पुरूषार्थ कर भी रहे हैं,ब्राह्मण जीवन को छोड़ भी नहीं सकते, यह संकल्प भी दृढ़ है कि ब्राह्मण ही बनना है।* चाहे माया वा मायावी सम्बन्धी पुरानी जीवन के लिए अपनी तरफ आकर्षित भी कर सकते हैं तो भी इस संकल्प में अटल हैं कि ब्राह्मण जीवन ही श्रेष्ठ है। इसमें निश्चय-बुद्धि पक्के हैं। लेकिन सम्पूर्ण त्यागी बनने के लिए दो प्रकार के विघ्न आगे बढ़ने नहीं देते। वह कौन से?
➳ _ ➳ एक - तो सदा हिम्मत नहीं रख सकते अर्थात् विघ्नों का सामना करने की शक्ति कम है। दूसरा - अलबेलेपन का स्वरूप आराम पसन्द बन चलना। पढ़ाई,याद, धारणा और सेवा सब सबजेक्ट में कर रहे हैं, चल रहे हैं, पढ़ रहे हैं लेकिन आराम से! *सम्पूर्ण परिवर्तन करने के लिए शस्त्रधारी शक्ति-स्वरूप की कमी हो जाती है। स्नेही हैं लेकिन शक्ति स्वरूप नहीं। मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित नहीं हो सकते हैं। इसलिए महात्यागी नहीं बन सकते हैं। यह है त्यागी आत्मायें।*
✺ *"ड्रिल :- अलबेलेपन के संस्कार इमर्ज कर आराम पसंद नहीं बनना।”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सावन के सुहावने मौसम में... सावन के झूले में झूलती हुई... सावन की पहली बारिश के इंतजार में गगन को निहार रही हूँ... मंद-मंद हवा चल रही है... काले-काले मेघ उमड़ते गरजते चले आ रहे हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर झूले में बैठ जाते हैं...* थोड़ी ही देर में मेघ रिमझिम-रिमझिम झरने लगते हैं... झड़ी पर झड़ी बरसने लगती है... लग रहा जैसे आसमान से मोतियों की लड़ी गिर रही हों... मैं आत्मा इन बरसते मोतियों को अपनी हथेलियों में भर रही हूँ... ये पानी की बूंदे मुझसे कह रही हैं आओ पूरी तरह से भीग जाओं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा झूले से उतरकर बाबा का हाथ पकड़ बरसते पानी में पूरी तरह से भीगकर मजा ले रही हूँ... बाबा के साथ बारिश में खेल रही हूँ... पंछी भी खुश होकर नाच रहे हैं... पेड़-पौधे ख़ुशी में लहलहा रहे हैं... ज्ञान सागर बाबा के नैनों से दिव्य गुण शक्तियों से भरी किरणों की वर्षा हो रही है... *एक तरफ मुझ आत्मा को बाबा ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति, पवित्रता की वर्षा से भिगो रहे हैं और एक तरफ ये पानी की बूंदे मेरे शरीर को भिगो रही हैं... ये तपती हुई धरती जैसे इस वर्षा से शीतल हो रही है वैसे ही विकारों की तपन खत्म होकर मैं आत्मा शांत और शीतल हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा पुराने सम्बन्ध, पुरानी दुनिया, पुराने सम्पर्क द्वारा प्राप्त हुई अल्पकाल की प्राप्तियों का त्याग कर रही हूँ... मुझ आत्मा से पुराने स्वभाव-संस्कार, कमी-कमजोरियां, आलस्य-अलबेलापन, सभी विकार ज्ञान सागर के किरणों की वर्षा में बहते चले जा रहे हैं... *मैं आत्मा पुराने जीवन का त्याग कर श्रेष्ठ पवित्र योगी जीवन को अपना रही हूँ... अल्पकाल की विनाशी प्राप्तियों का त्याग कर सदाकाल की अविनाशी प्राप्तियों की अधिकारी बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा निश्चय-बुद्धि बन मनसा-वाचा-कर्मणा ब्राह्मण जीवन के संस्कारों को धारण कर रही हूँ... सर्वशक्तिवान बाबा से शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित होकर विघ्नों का सामना कर रही हूँ... पुराने मायावी जीवन की तरफ अब जरा भी आकर्षित नहीं होती हूँ... *मैं आत्मा आलस्य-अलबेलेपन के संस्कार इमर्ज कर आराम पसंद नहीं बनती हूँ... बल्कि श्रीमत पर चलकर तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ... ज्ञान, योग, धारणा, सेवा सभी सब्जेक्ट्स में पास विद आनर बन रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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