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❍ 09 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बुधी से सब कुछ सरेंडर कर ट्रस्टी होकर रहे ?*
➢➢ *बाप और वर्से को याद कर आपार ख़ुशी का अनुभव किया ?*
➢➢ *योग ज्वाला द्वारा विश्व के कीचड़े को भस्म किया ?*
➢➢ *मनमत, परमत से मुक्त रह सदा श्रीमत पर चले ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अगर अभी से स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन नहीं बनायेंगे तो विश्व सेवा में सकाश नहीं मिल सकेगी।* इसलिए अभी सेवा में सकाश दें, बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा करो। फिर देखो सफलता आपके सामने स्वयं झुकेगी। *मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्नों का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई देगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सारे चक्र में सबसे साहूकार आत्मा हूँ"*
〰✧ सबसे साहूकार से साहूकार कौन है? जो समझते हैं कि सारे चक्र के अन्दर साहूकार से साहूकार हम आत्मा हैं, वो हाथ उठाओ। किसमें साहूकार हो? कितने प्रकार के धन मिले हैं? वो लिस्ट याद रहती है? *बहुत खजाने मिले हैं! एक दिन में कितनी कमाई करते हो, मालूम है? पद्मों की कमाई करते हो। रहते गांव में हो और पद्मों की कमाई कर रहे हो! देखो, यही परमात्मा पिता की कमाल है जो देखने में साधारण लेकिन हैं सबसे साहूकार में साहूकार!*
〰✧ तो अखबार में निकालेंगे-यहाँ सबसे साहूकार में साहूकार बैठे हैं। तो फिर सब आपके पीछे आयेंगे। आजकल आतंकवादी साहूकारों के पीछे पड़ते हैं ना। फिर आपके पीछे पड़ जायेंगे तो क्या करेंगे? उन्हों को भी साहूकार बना देंगे ना। *हैं देखो कितने साधारण रूप में, कोई आपको देखकर समझेंगे कि ये सारे विश्व में साहूकार हैं या पद्मों की कमाई करने वाले हैं? लेकिन साधारणता में महानता समाई हुई है। जितने ही साधारण हो उतने ही अन्दर महान् हो! तो यह नशा रहता है-बाप ने क्या से क्या बना दिया और क्या-क्या दे दिया!* दोनों ही बातें याद रहती हैं ना।
〰✧ *तो अखबार में निकालेंगे ना-रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड (विश्व में सबसे अधिक धनवान)। और देखो, खजाना भी ऐसा है जिसको न चोर लूट सकता है, न आग जला सकती है, न पानी डूबो सकता है। ऐसा खजाना बाप ने दे दिया। अविनाशी खजाना है ना। अविनाशी खजाना कोई विनाश कर नहीं सकता। और कितना सहज मिल गया!* जितना खजाना है उसके अन्तर में मेहनत की है कुछ? त्याग किया या भाग्य मिला? त्याग भी किया तो बुराई का किया ना। बुराई छोड़ना भी कोई छोड़ना हुआ क्या? दुनिया कहती है-त्याग किया और आप कहते हो-भाग्य मिला है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *समेटने की शक्ति बहुत अपने पास जमा करो।* इसके लिए विशेष अभ्यास चाहिए। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। इन तीनों स्टेजेस में स्थित रहना इतना सहज हो जाए।
〰✧ *जैसे साकार रूप में सहज ही स्थित हो जाते हो वैसे आकारी और निराकारी स्थिति भी मेरी स्थिति है, तो अपनी स्थिति में स्थित होना तो सहज होना चाहिए।* जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो ऐसे यह स्वरूप की स्थिति परिवर्तन कर सको साकार स्वरूप की स्मृति को छोड आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ।
〰✧ तो *फरिश्ते-पन की ड्रेस सेकण्ड में धारण कर ली। ड्रेस चेन्ज करना नहीं आता?* ऐसे अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ऐसे समय पर पास हो जायेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बापदादा द्वारा सभी बच्चों को कौन सी नम्बरवन श्रीमत मिली हुई है? नम्बरवन श्रीमत है कि 'अपने को आत्मा समझो और आत्मा समझकर बाप को याद करो।' *सिर्फ आत्मा समझने से भी बाप की शक्ति नहीं मिलेगी। याद न ठहरने का कारण ही है कि आत्मा समझकर याद नहीं करते हो। आत्मा के बजाए अपने को साधारण शरीरधारी समझकर याद करते हो। इसलिए याद टिकती नहीं।* वैसे भी कोई दो चीज़ों को जब जोड़ा जाता है तो पहले समान बनाते हैं। ऐसे ही आत्मा समझकर याद करो तो याद सहज हो जायेगी, क्योंकि समान हो गये ना। यह पहली श्रीमत ही प्रैक्टिकल में सदा लाते रहो। यही मुख्य फाउण्डेशन है। अगर फाउण्डेशन कच्चा होगा तो आगे चढ़ती कला नहीं हो सकती।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धू से बुद्धिमान बनना अर्थात पवित्र बनने की पढाई पढना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को डायमंड हॉल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं और बाबा मिलन के दिवस की मीठी मीठी स्मृतियों को याद कर रही हूँ... *कितना पावन और मनमोहक दृश्य है जो मैं आत्मा अपने बाबा के समक्ष बैठी बाबा से मिलन मना रही हूं इन सुखद यादों के पंखों से उड़कर मैं आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम यहाँ चारों ओर शांति ही शांति है प्रकाश ही प्रकाश है...* मैं आत्मा शिव बाबा को स्पर्श करती हूं और परमात्म शक्तियों से भरपूर हो नीचे उतर आती हूँ सूक्ष्म वतन में यहाँ बाप दादा बाहें फैलाए खड़े हैं... *मैं नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ और असीम सुख का अनुभव कर रही हूं...*
❉ *बाबा मुझ नन्हें फ़रिश्ते को बाहों में उठा कर बहुत प्यार से बोले:-* "मीठे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें पतित से पावन बनाने, *एक बाप की श्रीमत पर चल तुम्हें बुद्धू से बुद्धिमान बनना अर्थात पवित्र बनने की पढ़ाई पढ़ना... परमात्म मत ही तुम्हें बुद्धिमान बनाएगी और तुम पतित से पावन बन जाएंगे...*"
➳ _ ➳ *बाप की श्रीमत को धारण कर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "प्राणों से प्यारे बाबा मेरे... आपके आने से मेरे जीवन में बहार आ गयी है, अब तो हर दिन नया लगता है कितना आनन्दमय हो गया है ये जीवन... *आपकी श्रीमत ही मेरा जीवन आधार है इसके बिना तो अब ये जीवन प्राणहीन लगता है... श्रीमत ही पतितों को पावन बनाती है और जीने का सुगम मार्ग दिखाती है... मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूं जो परमात्मा की श्रीमत मुझे मिली...*"
❉ *बाबा मुस्कुरा कर मुझ आत्मा से कहते हैं:-* "लाडले बच्चे... बाप स्मृति दिलाते हैं *तुम बच्चे ही कल्प कल्प मायाजीत बनते हो... तुम्हें माया के तूफानों से डरना नहीं है, कभी भी माया के वश होकर कुल कलंकित नहीं बनना है...* पवित्र बन औरों को भी बनाने की सेवा करनी है... *बुद्धू से बुद्धिमान बनना है... बाप तुम्हें 21 जन्मों का वर्सा देने आए हैं, बाप पर बलि चढ़ तुम्हें विश्व की राजाई लेनी है...* एक बाप दूसरा न कोई यही मन्त्र तुम्हें भविष्य में प्रालब्ध दिलाएगा, *इसलिए एक बाप से योग लगाओ...*"
➳ _ ➳ *अपने दिलाराम बाबा के महावाक्यों को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे दिलाराम बाबा... *आपने मुझे अल्पकाल के संस्कारों से छुड़ा कर महारथी बना दिया... मेरे कखपन के बदले मुझे विश्व का राज्य भाग्य दे दिया...* मेरी जीवन नैया जो बीच मझधार में फसी थी उसको किनारा देकर मुझे अपने बाग़ का फूल बना दिया... *आपकी श्रीमत को पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...*"
❉ *मेरी ओर बहुत प्यार से देखते हुए बाबा मुझ आत्मा से बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... बाप को बिंदु समझ निरंतर उसकी याद में रह तुम्हें अपने विकर्मों को भस्म करना है यही विधि है राज्य भाग्य पाने की... *तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है अब अंधों की लाठी बनों... निश्चयबुद्धि बन बाप की डायरेक्शन पर चलो तो स्वतः ही मायाजीत बन जाएंगे... बाप का फरमान है मामेकम याद करो और वर्से को याद करो... कुछ भी हो पर बाप को नहीं भूलना है, बाप ही सदगति दाता हैं बाप के बिना और कोई सदगति दे नहीं सकता ...*"
➳ _ ➳ *बाबा के मधुर मधुर महावाक्यों को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा मीठे बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके आने से मेरा भाग्य ही बदल गया, मैं क्या थी और आपने क्या बना दिया... *मुझ जैसा भाग्यशाली शायद ही कोई होगा जिसको परमात्म गोद मिली... जिस भगवान को दुनिया में बड़े बड़े साधु संत महात्मा ढूंढ रहे हैं मंदिरों मस्जिदों में ठोकरें खा रहे हैं, मैं आत्मा उस परमात्मा की पालना में पल रही हूँ वाह मेरा भाग्य वाह... कितना भी आभार प्रकट करूं कम ही लगता है... मेरे बाबा आपने मुझे मालामाल कर दिया मेरे जीवन में अलौकिक प्रकाश भर दिया है... शुक्रिया मेरे दिलाराम बाबा आपका बहुत बहुत शुक्रिया... मैं आत्मा मीठे प्यारे बाबा को अपने अंतर्मन की गहराइयों से शुक्रिया कर लौट आती हूँ अपने साकारी तन में...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाबा की याद में मौलाई बन जाना है*
➳ _ ➳ जिस मौलाई मस्ती का वर्णन पीरों - फकीरों ने किया, वो मौलाई मस्ती क्या है! उसका आनन्द कैसा है! उसका अनुभव मैं आत्मा जब चाहे तभी कर लेती हूँ। *तो कितना श्रेष्ठ सौभाग्य है मेरा कि उन फकीरों ने तो सिर्फ उस मस्ती का वर्णन किया लेकिन मैंने तो उसे जब चाहा तब अनुभव किया। कितना सुख समाया है बाबा की याद में। दिल को कितना सुकून, कितना आराम देती है मेरे मीठे बाबा की मीठी यादें*। मन ही मन अपने श्रेष्ठ भाग्य का गुणगान करती, उस मौलाई मस्ती का अनुभव करने के लिए मैं आत्मिक समृति में टिक कर, अपने सुख, शांत और आनन्दमय स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को सभी बातों से हटाकर सम्पूर्ण एकाग्रचित अवस्था में बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने सम्पूर्ण ध्यान को मैं केवल अपने निराकारी चमकते हुए ज्योति बिंदु स्वरूप पर और अपने प्यारे पिता के अनन्त प्रकाशमय निराकारी बिंदु स्वरूप पर पूरी तरह एकाग्र कर लेती हूँ। *अपने ही समान अपने पिता के स्वरूप को देख कर मन को जैसे एक सुकून मिल रहा है और बुद्धि सभी बातों से हटकर केवल अपने पिता के उस अति सुंदर स्वरूप को आंखों के सामने चित्रित कर रही हैं*। मेरे प्यारे पिता का स्वरूप मेरी आँखों के सामने ऐसे स्पष्ट हो रहा है जैसे वो मेरी आँखों में ही समाये हुए हैं। उनसे आ रहे परमात्म शक्तियों के करेंट को मैं अपने अंदर प्रवाहित होते हुए स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ जैसे मोबाइल को चार्जर से जोड़ते ही उसकी बैटरी चार्ज होने लगती है ऐसे ही मन बुद्धि से सर्वशक्तिवान अपने पिता के साथ कनेक्ट होकर, मैं भी स्वयं को परमात्म शक्तियों से चार्ज होता हुआ अनुभव कर रही हूँ। *मुझ आत्मा की सोई हुई शक्तियाँ परमात्म बल पा कर जागृत हो रही हैं और मैं स्वयं को सर्व शक्तियों से भरपूर होता हुआ महसूस कर रही हूँ। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर मेरे पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप से निकल रही सर्व गुणों और सर्व शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा को जैसे - जैसे गहराई तक छू रही है एक रूहानी सुरूर मुझ आत्मा के ऊपर छाने लगा है*। एक अद्भुत रूहानी नशे से मैं आत्मा स्वयं को भरपूर अनुभव करने लगी हूँ।
➳ _ ➳ चित को चैन और मन को आराम देने वाली रूहानी मस्ती में डूबी, *मौलाई बन अपने मौला अर्थात अपने मालिक से मिलने उनकी निराकारी दुनिया में चलने का मैं जैसे ही संकल्प करती हूँ मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे शिव पिता परमात्मा से निकल रही अनन्त शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मैगनेट की तरह मुझ आत्मा को अपनी तरफ खींच रही हैं और मैं आत्मा परमात्म शक्तियों के चुम्बकीय आकर्षण से आकर्षित हो कर अब नश्वर देह का त्याग कर ऊपर की और उड़ने लगी हूँ*। देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। तीव्र गति से उड़ते हुए मैं सेकेण्ड में आकाश को पार करती हूँ और अब आकाश से भी ऊपर, सूक्ष्म लोक को पार करके मैं पहुंच गई हूँ अपने शिव पिता परमात्मा की अनन्त शक्तियों की किरणों के बिल्कुल नीचे उनके परमधाम घर मे।
➳ _ ➳ अपने इस परमधाम घर मे अब मैं अपने शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल समीप हूँ और उनसे आ रही शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर असीम ऊर्जावान बन रही हूँ। *अपने प्यारे शिव बाबा के सर्वगुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को मैं अपने अंदर भरती जा रही हूँ। मौलाई बन उनके प्यार की मस्ती में डूब कर, स्नेह के सागर अपने प्यारे पिता के स्नेह की शीतल धाराओं में मैं बहती ही जा रही हूँ और उस स्नेह में डूबकर गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ*। एक दिव्य अलौकिक आनन्द और अथाह सुख की मैं अनुभूति कर रही हूँ। अपनी बीज रूप स्थिति में स्थित होकर बीज रूप अपने पिता परमात्मा से बेहद का असीम मौलाई सुख पाकर अब मैं आत्मा वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट आती हूँ और *अपने साकार तन का आधार लेकर मैं फिर से इस सृष्टि पर कर्म करने के लिए तैयार हो जाती हूँ*।
➳ _ ➳ *अपनी साकारी देह में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं विराजमान हूँ और शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी कर रही हूँ किन्तु हर कर्म अब मैं मौलाई बन बाबा की याद में रहकर कर रही हूँ इसलिए अब कर्म का अच्छा या बुरा कोई भी फल मुझे अपनी और नही खींचता बल्कि बाबा की याद की मौलाई मस्ती, कर्म के फल से मुझे धीरे - धीरे मुक्त कर कर्मातीत बनाती जा रही है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं योग ज्वाला द्वारा विश्व के किचड़े को भस्म करने वाली विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं मनमत, परमत से मुक्त रह सदा श्रीमत पर चलने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कई बच्चे बड़े होशियार हैं। अपने पुराने लोक की लाज भी रखने चाहते और ब्राह्मण लोक में भी श्रेष्ठ बनना चाहते हैं। *बापदादा कहते लौकिक कुल की लोकलाज भल निभाओ उसकी मना नहीं है लेकिन धर्म कर्म को छोड़ करके लोकलाज रखना, यह रांग है। और फिर होशियारी क्या करते हैं? समझते हैं किसको क्या पता? - बाप तो कहते ही हैं - कि मैं जानी जाननहार नहीं हूँ। निमित्त आत्माओं को भी क्या पता? ऐसे तो चलता है। और चल करके मधुबन में पहुँच भी जाते हैं।* सेवाकेन्द्रों पर भी अपने आपको छिपाकर सेवा में नामीग्रामी भी बन जाते हैं। जरा सा सहयोग देकर सहयोग के आधार पर बहुत अच्छे सेवाधारी का टाइटल भी खरीद कर लेते हैं। *लेकिन जन्म-जन्म का श्रेष्ठ टाइटल सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी... यह अविनाशी टाइटल गंवा देते हैं। तो यह सहयोग दिया नहीं लेकिन ‘‘अन्दर एक, बाहर दूसरा'' इस धोखे द्वारा बोझ उठाया।*
➳ _ ➳ *सहयोगी आत्मा के बजाए बोझ उठाने वाले बन गये। कितना भी होशियारी से स्वयं को चलाओ लेकिन यह होशियारी का चलाना, चलाना नहीं लेकिन चिल्लाना है।* ऐसे नहीं समझना यह सेवाकेन्द्र कोई निमित्त आत्माओं के स्थान हैं। *आत्माओं को तो चला लेते लेकिन परमात्मा के आगे एक का लाख गुणा हिसाब हर आत्मा के कर्म के खाते में जमा हो ही जाता है।* उस खाते को चला नहीं सकते। इसलिए बापदादा को ऐसे होशियार बच्चों पर भी तरस पड़ता है। फिर भी एक बार बाप कहा तो बाप भी बच्चों के कल्याण के लिए सदा शिक्षा देते ही रहेंगे। *तो ऐसे होशियार मत बनना। सदा ब्राह्मण लोक की लाज रखना।*
✺ *"ड्रिल :- “अन्दर एक, बाहर दूसरा'' - इस धोखे द्वारा बोझ नहीं उठाना।“*
➳ _ ➳ *इस दुनियावी समुन्दर के बीच देह रूपी सीप के अन्दर मैं आत्मा रूपी मोती चमक रही हूँ...* कई जन्मों से अपने असली गुणों को भूलकर मैं आत्मा मोती इस देह रूपी सीप के अन्दर दबकर रह गई थी... दूर गगन से ज्ञान सूर्य की किरणें मुझ पर पड़ रही हैं... *ज्ञान सूर्य की किरणों से देह रूपी सीप का आवरण टूट रहा है... देह रूपी सीप के आवरण को तोड़ मैं आत्मा रूपी मोती बाहर निकलती हूँ... पंच तत्वों की दुनिया से ऊपर उड रही हूँ...* आकाश तत्व से भी पार और ऊपर उडती हुई पहुँच जाती हूँ अपने परमपिता के पास परमधाम...
➳ _ ➳ *परमधाम में मैं आत्मा अपने स्व स्वरूप बिंदु रूप में चमक रही हूँ... अपने पिता की बाँहों में लिपट जाती हूँ...* मेरे शिव पिता से निकलती दिव्य सतरंगी किरणों से मुझ आत्मा के सारे विकार काले धुंए के रूप में बाहर निकल रहे हैं... मैं आत्मा निर्विकारी बन रही हूँ... जन्म-जन्मान्तर के सभी अवगुण भस्म हो रहे हैं... रंग-बिरंगी किरणें एक-एक गुण के रूप में मुझ आत्मा में समा रहे हैं... मैं आत्मा अपने असली गुणों को धारण कर रही हूँ... सर्व गुण सम्पन्न बन रही हूँ... सभी कमी-कमजोरियां, पुराने आलस्य-अलबेलेपन के संस्कार समाप्त हो रहे हैं... *मैं आत्मा शक्तियों को धारण कर शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... मैं कलाविहीन आत्मा अब 16 कलाओं से सम्पन्न बन गई हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा जन्म-जन्म के श्रेष्ठ अविनाशी टाइटल से श्रृंगार कर नीचे अपने देह में अवतरित होती हूँ... मैं आत्मा सदैव अपने दिव्य गुणों, शक्तियों की स्मृति में रहकर हर कर्म कर रही हूँ... हर कर्म को बाबा की सेवा समझ कर रही हूँ... करावनहार करा रहा है मैं आत्मा निमित्त करनहार कर रही हूँ... *मैं आत्मा ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं, धर्म, कर्म का पालन करते हुए लौकिक कुल की लोकलाज को निभा रही हूँ... मैं आत्मा ऐसा कोई भी कर्म नहीं करती हूँ जिससे ब्राह्मण कुल कलंकित हो... सदा ब्राह्मण लोक की लाज का ध्यान रखते हुए हर कर्म को करती हूँ... कभी भी डिस सर्विस नहीं करती हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अन्दर और बाहर एक समान रहती हूँ... ‘‘अन्दर एक, बाहर दूसरा'' इस धोखे द्वारा बोझ नहीं उठाती हूँ...* सहयोगी आत्मा बन सर्व का सहयोग करती हूँ... पुराने लोक की लाज रखने कोई भी होशियारी नहीं दिखाती हूँ... कर्म का खाता नहीं बढ़ाती हूँ... बाप से, निमित्त आत्माओं से सच्चाई और सफाई से रहती हूँ... सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बन, ब्राह्मण धर्म को धारण कर कर्म में लाती हूँ... बाबा की शिक्षाओं को धारण कर आचरण और व्यवहार में लाती हूँ... *सदा अपने को बाबा के बगीचे का रूहानी पुष्प समझ अपने कर्तव्यों को निभाती हूँ... फिर से काँटों को धारण नहीं करती हूँ... सदा आत्मिक दृष्टि, वृत्ति रख लौकिक और अलौकिक का बैलेंस रखती हूँ... अल्पकाल के विनाशी टाइटल के पीछे अपना अविनाशी टाइटल नहीं गंवाती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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