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 13 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सहज शब्द प्रवृति में यूज़ न कर सर्व सिद्धि स्वरुप बनने में यूज़ किया ?*

 

➢➢ *आत्माओं को अनुभव कराने की रेस की ?*

 

➢➢ *किसी भी साइड सीन को देखकर घबराए तो नहीं ?*

 

➢➢ *दिन भर ख़ुशी की पॉइंट की मनन करते रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  समय की समीपता के प्रमाण अभी सच्चे तपस्वी बनो। *आपकी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य।* अभी चारों ओर पावरफुल तपस्या करनी है, *जो तपस्या मन्सा सेवा के निमित्त बनें, ऐसी पावरफुल सेवा अभी तपस्या द्वारा शुरू करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाली आत्मा हूँ"*

 

  अपने को रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाला अनुभव करते हो? *सुनते थे कि दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है लेकिन अभी अनुभवी बन गये। रूहानी दृष्टि से सृष्टि बदल गई ना! अभी आपके लिए बाप संसार है, तो सृष्टि बदल गई।* पहले की सृष्टि अर्थात् संसार और अभी के संसार में फर्क हो गया ना! पहले संसार में बुद्धि भटकती थी और अभी बाप ही संसार हो गया। तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया, एकाग्र हो गई। क्योंकि पहले की जीवन में, कभी देह के सम्बन्ध में, कभी देह के पदार्थ में - अनेकों में बुद्धि जाती थी। अभी यह सब बदल गया। अभी देह याद रहती या देही?

 

  अगर देह में कभी बुद्धि जाती है तो रांग समझते हो ना! फिर बदल लेते हो, देह के बजाय अपने को देही समझने का अभ्यास करते हो। तो संसार बदल गया ना! स्वयं भी बदल गये। बाप ही संसार है या अभी संसार में कुछ रहा हुआ है? विनाशी धन या विनाशी सम्बन्ध के तरफ बुद्धि तो नहीं जाती? *अभी मेरा रहा ही नहीं। 'मेरे पास बहुत धन है' - यह संकल्प या स्वप्न में भी नहीं होगा क्योंकि सब बाप के हवाले कर दिया। मेरे को तेरा बना लिया ना! या मेरा, मेरा ही है और बाप का भी मेरा है।* ऐसे तो नहीं समझते? यह विनाशी तन-धन, पुराना मन, मेरा नहीं, बाप को दे दिया।

 

  *पहला-पहला परिवर्तन होने का संकल्प ही यह किया कि सब कुछ तेरा और तेरा कहने से ही फायदा है। इसमें बाप का फायदा नहीं है, आपका फायदा है। क्योंकि मेरा कहने से फंसते हो, तेरा कहने से न्यारे हो जाते हो। मेरा कहने से बोझ वाले बन जाते हो और तेरा कहने से डबल लाइट 'ट्रस्टी' बन जाते हो।* तो क्या अच्छा है - हल्का बनना अच्छा है या भारी बनना अच्छा है? आजकल के जमाने में शरीर से भी कोई भारी होता तो अच्छा नहीं लगता। सभी अपने को हल्का करने का प्रयत्न करते हैं। क्योंकि भारी होना माना नुकसान है और हल्का होने से फायदा है। ऐसे ही मेरा-मेरा कहने से बुद्धि पर बोझ पड़ जाता है, तेरा-तेरा कहने से बुद्धि हल्की बन जाती है। जब तक हल्के नहीं बने तब तक ऊँची स्थिति तक पहुँच नहीं सकते। उड़ती कला ही आनन्द की अनुभूति कराने वाली है। हल्का रहने में ही मजा है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को एक सेकण्ड में जैसे और जहाँ करना चाहें वहाँ कर सकते हैं, अधिकार है न उन पर? *ऐसे बुद्धि के ऊपर और संकल्पों के ऊपर भी अधिकारी बने हो?* फुलस्टाँप करना चाहो तो कर सको क्या ऐसा अभ्यास है?

 

✧  विस्तार में जाने के बजाय एक सेकण्ड में फुलस्टाँप हो जाये ऐसी स्थिति समझते हो? जैसे ड्राइविंग का लाइसेन्स लेने जाते हैं तो जानबूझ कर भी उनसे तेज स्पीड करा के फिर फुलस्टाँप कराते हैं व ब्रेक कराते हैं। यह भी प्रैक्टिस है ना? *तो अपनी बुद्धि को चलाने और ठहराने की भी प्रैक्टिस करनी है।*

 

✧   *कमाल तब कहेंगे जब ऐसे समय पर एक सेकण्ड में स्टाँप हो जायें।* निरंतर विजयी वह जिसके युक्ति - युक्त संकल्प व युक्ति - युक्त बोल व युक्ति - युक्त कर्म हो या जिसका एक संकल्प व्यर्थ न हो। वह तब होगा जब यह प्रैक्टिस होगी मानो कोई ऐसी सर्विस है जिसमें फूल विजयी होना होता है तो ऐसे समय भी स्टाँप करने का अभ्यास करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ ऐसा अभ्यास करो जो जहाँ बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ स्थित हो जायें। संकल्प किया और स्थित हुआ। यह रूहानी डिल सदैव बुद्धि द्वारा करते रहो। *अभी-अभी परमधाम निवासी, अभी-अभी सूक्ष्म अव्यक्त फरिश्ता बन जायें और अभी-अभी साकार कर्मन्द्रियों का आधार लेकर कर्मयोगी बन जायें। इसको कहा जाता है - संकल्प शक्ति को कण्ट्रोल करना।* संकल्प को रचा कहेंगे और आप उसके रचयिता हो। जितना समय जो संकल्प चाहिए उतना ही समय वह चले। जहाँ बुद्धि लगाना चाहे, वहाँ ही लगे। इसको कहा जाता है - अधिकारी। *यह प्रेक्टिस अभी कम है। और चेक करो कि जितना समय निश्चित किया, क्या उतना समय वह स्टेज रही?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- साक्षात्कार मूर्त बनना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठी बाबा की यादों में मगन बाबा को स्वासों स्वास याद कर रही हूं...इन्ही यादों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में...* बाबा बाहें फैलाए जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रहें हैं... बाबा की मोहिनी सूरत में कितनी दिव्यता समाई हुई है... *बाबा की आंखों में  कितना स्नेह भरा है...* बाबा से प्रेम, पवित्रता और स्नेह की किरणें निकल चारों और फैल रही हैं... इन किरणों को मैं अपने भीतर सामने लगती हूँ और मन ही मन सोचती हूं मैं क्या थी और बाबा  ने मुझे क्या बना दिया ही... *बाबा मुझ फरिश्ता स्वरूप आत्मा को अपनी बाहों में भरकर प्यार करते हुए कहते हैं...*

 

  *बाबा मेरे सर को सहलाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने स्वरूप को ऐसा बनाओ की तुम्हारी दिव्यता के निखार को देख दूसरे भी बदलने लगें... *पवित्रता ही मनुष्य को देवस्वरूप बनाती है... अपनी पवित्रता के स्वरूप से साक्षात्कार स्वरूप बनों... तुम्हारी सूरत को देखकर आत्माओं को तीर लगे और और बाप का बन बाप से वर्सा पाने की हकदार बन जाएं..."*

 

 _ ➳  *बाबा की मीठी मीठी बातें सुनकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "हां मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... *मैं आपकी श्रीमत से कितनी दिव्य बन गयी हूँ... आपने मेरे जीवन में आकर मेरे जीवन को नई दिशा देकर मुझे इस दुखदाई दुनियां से उभार लिया है...* मैं आपकी उंगली पकड़ सभी मुश्किलों को सहज ही पार कर लेती हूं... आपने मुझे गुणों से सम्पन्न बना दिया है... *मैं आत्मा अपना खोया हुआ देवताई स्वरूप पाकर असीम आनंद का अनुभव कर रही हूं..."*

 

  *मुझे मेरे दिव्य स्वरूप में स्थित देख बाबा बोले:-* "मीठे लाडले बच्चे... *अपने आपको ज्ञान से सजाओ और याद की अग्नि में तपाओ इसी से तुम सतयुग में परम पद प्राप्त करेंगे... एक बाप को याद कर अपने विकर्मों के बोझे को समाप्त करो...* एक उज्ज्वल भविष्य तुम्हारा स्वागत करने को तैयार खड़ा है... लगन में मगन रहकर मुझसे पूरा वर्सा लो और 21 जन्मों के लिए सुखी हो जाओ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा के अनमोल वचन सुनते हुए कहती हूं:-* "बाबा मेरे... आपने अपना बच्चा बनाकर मेरी तकदीर को सवार दिया है... *अपने भाग्य को देखकर स्वयं को महान आत्मा के स्वरूप में देखती हूं... कितनी ही परिस्थितियों ने मुझे बार बार घेरा है परंतु कैसे आप मेरे हाथ को पकड़ लेते हो और मुझे सहज ही पार करवा देते हो... मैं आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ जो मुझे आपकी गोद मिली...*"

 

  *मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर प्यारे बाबा मुझसे बोले:-* "मीठे मीठे सिकीलधे बच्चे... *इस ज्ञान अमृत से तूम पावन बनते हो फिर औरों को भी बनाते हो...* यही ज्ञान अमृत तुम्हे स्वर्ग की बादशाही दिलाता है... *बाप ने आकर तुम्हें नया जीवन दिया है इसे वरदानों से अलंकृत कर दिव्य स्वरूप में स्थित करो... इस ज्ञान अमृत से दिव्य बन साक्षात्कार स्वरूप बनों..."*

 

 _ ➳  *बाबा के मधुर महावाक्यों को श्रवण करते करते मैं आत्मा लवलीनता का अनुभव करती हूं और बाबा से कहती हूं:-* "बाबा मेरे... *मैं तो कब से भटक रही थी आपकी ज्ञान की रोशनी मिली और मुझ आत्मा को जीने का मज़ा आने लगा...* नाजाने कितने जन्मों से ठोकरें खा रही थी आपने अपना बनाकर मुझे फरिश्ता बना दिया... *अपने स्वरूप को देखकर मैं आत्मा खुशी से नाचने लगती हूँ...* इस देवताई स्वरूप को पाकर मेरा जीवन धन्य धन्य हो गया है.... अपने दिलाराम बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा अपने साकारी तन में लौट आती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  आत्माओं को अनुभव कराने की रेस करनी है*

 

_ ➳  बापदादा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठी मैं बड़े प्यार से अपने प्यारे ब्रह्मा बाप को निहार रही हूँ और मन ही मन उनका धन्यवाद कर रही हूँ जिनके शरीर रूपी रथ का आधार स्वयं भगवान ने हम बच्चों से मिलने के लिए लिया। *बलिहारी ब्रह्मा बाप की जिन्होंने निश्चय बुद्धि बन सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपना तन - मन - धन सब कुछ ईश्वरीय सेवा में समर्पित कर दिया और परमात्मा की श्रीमत पर चल अपने संकल्प बोल और कर्म को इतना श्रेष्ठ बना लिया कि उनमे और भगवान में जैसे अन्तर ही समाप्त हो गया और वे स्वयं ही भगवान का स्वरूप बन गए*। इसलिए उनके सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को ये आभास होता था कि ये कोई साधारण व्यक्ति नही बल्कि कोई अद्भुत शक्ति बोल रही है। चलते - फिरते हर कर्म करते ब्रह्मा बाबा ऐसे दिखाई देते थे जैसे कोई फ़रिश्ता हो।

 

_ ➳  ऐसे ब्रह्मा बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प अपने मन मे करते हुए मैं अपने आप से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब मुझे हर कदम फॉलो फादर करते हुए, अपने संकल्प, बोल और कर्म को ऐसा श्रेष्ठ बनाना है जो मेरे श्रेष्ठ वायब्रेशन्स आत्माओं को परमात्म पालना का डायरेक्ट अनुभव करवायें ताकि *सभी के मुख से निकले कि हमने सिर्फ सुना नही लेकिन साक्षात बाप की झलक अनुभव की। अनुभव कराना है, अनुभवी बनाना है यही लहर चारों और फैलाकर भगवान बाप को प्रत्यक्ष करना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है*। इसी लक्ष्य को पाने का तीव्र और अंतिम पुरुषार्थ अब मुझे करना है।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा कर, उसे दृढ़ता का ठप्पा लगाने के लिए, स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करने के लिए मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होकर, अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन की और प्रस्थान करता हूँ। *सारे विश्व का चक्कर लगाता हुआ मैं फ़रिश्ता पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर, आकाश को पार करके उससे ऊपर पहुँच जाता हूँ अपने अव्यक्त बापदादा अव्यक्त वतन में*। देख रहा हूँ मैं अपने बिल्कुल सामने बापदादा को जो अपनी स्नेह भरी दृष्टि से निहारते हुए मुझ पर बलिहार जा रहें हैं। जिस भगवान पर दुनिया बलिहार जाती है वो भगवान अपने बच्चों पर कैसे बलिहार जाता है, यह देख कर मन खुशी से गदगद हो रहा है।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में मैं फ़रिश्ता अब बापदादा के पास पहुँचता हूँ और जा कर उनकी बाहों में समा जाता हूँ। *बाबा की बाहों के झूले में झूलते हुए  अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का मैं अनुभव कर रहा हूँ। जैसे एक छोटा बच्चा माँ की गोद मे स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है ऐसे ही बापदादा की ममतामयी गोद मे बैठ, उनके प्रेम की शीतल छाया में मैं गहन सुख का अनुभव कर रहा हूँ*। परमात्म गोद का सुख मुझे मेरे सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति दिला रहा है। अपने भाग्य पर नाज करता हुआ मैं फ़रिश्ता अब परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। *अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर सदा विजयी भव का वरदान देते हुए बापदादा अपनी शक्तियों से मुझे बलशाली बना रहे हैं*।

 

_ ➳  परमात्म शक्तियों और वरदानो से भरपूर होकर अपने लाइट माइट स्वरूप और निमितपन की स्मृति के साथ, ईश्वरीय कर्तव्य को पूरा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, मुख से सबको ज्ञान रत्नों का दान देने के साथ - साथ अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति स्व स्थिति द्वारा अनुभवीमूर्त बन अपने श्रेष्ठ वायब्रेशन्स द्वारा अब मैं सबको परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव बिल्कुल सहज रीति करवा रही हूँ। *अपने श्रेष्ठ संकल्प, बोल और कर्म द्वारा श्रेष्ठ योगी की लहर, महातपस्वीमूर्त की लहर, साक्षात्कारमूर्त बनने की लहर, और रूहानियत की लहर चारों और फैलाते हुए, आत्माओं को अनुभव कराने की रेस द्वारा बाबा की प्रत्यक्षता में सहयोगी बनने का गोल्डन चान्स लेकर अपनी ऊँच तकदीर मै सहजता से बनाती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं भाग्य की नई-नई स्मृतियों द्वारा पुरुषार्थ में रमणीकता का अनुभव करने वाली मन दुरुस्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं आगे पीछे सोच समझकर हर कर्म करके सफलता प्राप्त करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *तीसरी अनुभूति- ऐसी समान आत्मा अर्थात् एवररेडी आत्मा - साकारी दुनिया और साकारी शरीर में होते हुए भी बुद्धियोग की शक्ति द्वारा सदा ऐसा अनुभव करेगी कि मैं आत्मा चाहे सूक्ष्मवतन में, चाहे मूलवतन में, वहाँ ही बाप के साथ रहती हूँ। सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी हो कर्मयोगी बन कर्म का पार्ट बजाने वाली हूँ लेकिन अनेक बार अपने को बाप के साथ सूक्ष्मवतन और मूलवतन में रहने का अनुभव करेंगे।* फुर्सत मिली और सूक्ष्मवतन व मूलवतन में चले गये। ऐसे सूक्ष्मवतन वासी, मूलवतनवासी की अनुभूति करेंगे जैसे कार्य से फुर्सत मिलने के बाद घर में चले जाते हैं। दफ्तर का काम पूरा किया तो घर में जायेंगे वा दफ्तर में ही बैठे रहेंगे! ऐसे एवररेडी आत्मा बार-बार अपने को अपने घर के निवासी अनुभव करेंगी। जैसे कि घर सामने खड़ा है। *अभी-अभी यहाँ, अभी-अभी वहाँ। साकारी वतन के कमरे से निकल मूलवतन के कमरे में चले गये।*

 

✺  *"ड्रिल :- सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी होने का अनुभव करना”*

 

_ ➳  *“बाबा बुला रहे हैं बच्चों वतन में आओ, अब मुझको न बुलाओ तुम मेरे पास आओ”... ये गीत सुनते ही मैं आत्मा ऊपर खींची चली जा रही हूँ...* प्यारे बाबा दोनों हाथों को फैलाए मुझे वतन में बुला रहे हैं... मन-बुद्धि के तार बाबा से जुड़ते ही मुझ आत्मा का स्थूल शरीर गायब हो रहा है... मैं आत्मा सूक्ष्म शरीर धारण कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... *जहाँ ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा ऐसे लग रहे हैं जैसे हीरे की डिब्बी में हीरा चमक रहा हो...*

 

_ ➳  *सुप्रीम हीरे से दिव्य किरणों की बौछारें मुझ पर पड़ रही हैं... एक-एक किरण मुझ आत्मा के एक-एक विकार को भस्म कर रहा है...* सभी अवगुणों, कमी-कमजोरियों, विकारों से मुक्त होकर मैं आत्मा हलकी हो रही हूँ... फरिश्ते समान डबल लाइट हो गई हूँ... मैं आत्मा बेदाग हीरा बन रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन से भी ऊपर उड रही हूँ... फरिश्ते का ड्रेस लोप हो रहा है... मैं आत्मा धीरे-धीरे बिंदु बन रही हूँ... *बिंदु बन मैं आत्मा बिंदु बाबा के साथ ऊपर उड़ते हुए मूलवतन पहुँच जाती हूँ...* सुप्रीम बिंदु से एक हो जाती हूँ... एक होते ही बाबा से गुण, शक्तियां मुझमें ट्रान्सफर हो रही हैं... *मैं आत्मा सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  अब मुझ आत्मा को पूरी सृष्टि ही अपना घर लग रहा है... मैं आत्मा बेहद के घर में रह रही हूँ... मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ कि मैं अब तीन कमरे के घर में रह रही हूँ... *साकारी वतन के कमरे में कर्मयोगी बन कर्म करती हूँ... फिर सेकंड में सूक्ष्मवतन के कमरे में बापदादा के पास पहुंच जाती हूँ और सेकंड में मूलवतन के कमरे में बिंदु बाबा के पास चले जाती हूँ...* मैं आत्मा हर कर्म बाबा के साथ से करती हूँ फिर बाबा के साथ अपने वतन पहुँच जाती हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा अपने घर जाने के लिए सदा एवररेडी रहती हूँ... *जब चाहे तब मैं आत्मा अपने बुद्धियोग की शक्ति द्वारा कहीं भी जा सकती हूँ...* मैं आत्मा साकार वतन में सिर्फ कर्म करने आती हूँ... यहाँ की किसी वस्तु, व्यक्ति, वैभव में अपना मन नहीं लगाती हूँ... इस देह से भी मैं आत्मा डिटैच रहती हूँ... ये देह सिर्फ कर्म करने का साधन है... *अब मैं आत्मा एवररेडी बन सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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