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❍ 15 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कोई भी हिसाब - किताब व कर्जा है तो उसे उतार हल्का होकर रहे ?*
➢➢ *कर्मयोगी बन कर्म किया ?*
➢➢ *अपने अनादी स्वरुप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल किया ?*
➢➢ *अपनी दृष्टि , वृत्ति और स्मृति की शक्ति से आत्माओं को शांति का अनुभव करवाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *विदेही बनने में 'हे अर्जुन बनो'। अर्जुन की विशेषता-सदा बिन्दी में स्मृति स्वरुप बन विजयी बनो।* ऐसे नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप बनने वाले अर्जुन। सदा गीता ज्ञान सुनने और मनन करने वाले अर्जुन। *ऐसा विदेही, जीते जी सब मरे पड़े हैं, ऐसे बेहद की वैराग्य वृत्ति वाले अर्जुन बनो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं तख्त नशीन आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को तख्त नशीन आत्मायें अनुभव करते हो? इस समय भी तख्तनशीन हो कि भविष्य में बनना है? अभी कौन-सा तख्त है? एक अकाल तख्त, दूसरा दिल तख्त। तो दोनों तख्त स्मृति में रहते हैं? *तख्तनशीन आत्मा अर्थात् राज्य अधिकारी आत्मा। तख्त पर वही बैठता जिसका राज्य होता है। अगर राज्य नहीं तो तख्त भी नहीं। तो जब अकाल तख्तनशीन हैं तो भी स्वराज्य अधिकारी हैं और बाप के दिल तख्तनशीन हैं तो भी बाप के वर्से के अधिकारी। जिसमें राज्य- भाग्य सब आ जाता है। तो तख्तनशीन अर्थात् राज्य अधिकारी।* राज्य अधिकारी हो कि कभी-कभी तख्त से नीचे उतर आते हो? सदा तख्त नशीन हो कि कभी-कभी के हो? कभी तख्त पर बैठकर थक जाये तो नीचे आ जायें! नहीं।
〰✧ दिल तख्त इतना बड़ा है जो सब-कुछ करते भी तख्तनशीन। कर्मयोगी अर्थात् दोनों तख्तनशीन। अकाल तख्त पर बैठ कर्म करते हो तो वो कर्म भी कितने श्रेष्ठ होते हैं! क्योंकि हर कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं। अगर कोई तख्त पर ठीक न हो तो लॉ और ऑर्डर चल नहीं सकता। अभी देखो प्रजा का प्रजा पर राज्य है तो लॉ और ऑर्डर चल सकता है? *एक लॉ पास करेगा तो दूसरा लॉ ब्रेक करेगा। तो तख्तनशीन आत्मा अर्थात् सदा यथार्थ कर्म और यथार्थ कर्म का प्रत्यक्षफल खाने वाली। श्रेष्ठ कर्म का प्रत्यक्षफल भी मिलता है और भविष्य भी जमा होता है-डबल है।*
〰✧ तो प्रत्यक्षफल क्या मिला है? खुशी मिलती है, शक्ति मिलती है। कोई भी श्रेष्ठ कर्म करते हो तो सबसे पहले खुशी होती है। और दिल खुश तो जहान खुश। तो दिल सदा खुश रहता है या कभी संकल्प मात्र भी दु:ख की लहर आ जाती है? कभी भी नहीं आती या कभी-कभी चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाती है? दु:खधाम से किनारा कर लिया। किया है या एक पांव इधर है, एक पांव उधर है? एक दु:खधाम में, एक सुखधाम में-ऐसे तो नहीं? आप कलियुग निवासी हो या संगम निवासी हो? कि कभी-कभी कलियुग में भी चले जाते हो? *संगमयुगी ब्राह्मण अर्थात् दु:ख का नाम-निशान नहीं। क्योंकि सुखदाता के बच्चे हो। तो सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता होंगे। जो मास्टर सुखदाता है वो स्वयं दु:ख में कैसे आ सकता है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बापदादा देख रहे हैं - बच्चों में उमंग बहुत है, इसलिए शरीर का भी नहीं सोचते। *उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं।* आगे बढ़ना बापदादा को अच्छा लगता है, *फिर भी बैलेन्स अवश्य चाहिए।*
〰✧ भल करते रहते हो, चलते रहते हो लेकिन कभीकभी जेसे बहुत काम होता है तो बहुत काम में एक तो *बुद्धि की थकावट होने के कारण जितना चाहते उतना नहीं कर पाते* और दूसरा - बहुत कम होने के कारण थोडा-सा भी *किसी द्वारा थोडी हलचल होगी तो थकावट के कारण चिडचिडापन हो जाता।*
〰✧ उससे खुशी कम हो जाती है। वैसे अंदर ठीक रहते हो, सेवा का बल भी मिल रहा है, खुशी भी मिल रही है, फिर भी शरीर तो पुराना है ना। इसलिए *टू मच में नहीं जाओ। बैलेन्स रखो।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं। न्यारा किससे? पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा। जितना देह की स्मृति से न्यारे होंगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात् आत्म-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारापन खत्म हो जाता है। इसलिए बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो। *आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यार पैदा होगा ना। और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे - कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन आत्मिक भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृत्ति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद से विकर्मों का बोझा ख़तम करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेंटर में बाबा कमरे में बैठ ड्रिल कर रही हूँ... चारों ओर की आवाजों, व्यक्ति, वस्तुओं और अपने इस देह से अपना सारा ध्यान हटाकर भृकुटी पर केंद्रित करती हूँ...* धीरे-धीरे इस भृकुटी से बाहर निकल... फरिश्ते स्वरूप में... नीले आसमान की ऊंचाइयों को छूते हुए और ऊपर सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूँ... बापदादा की दृष्टि लेकर फिर बिंदु रूप धरकर उड़ते हुए परमधाम पहुंच जाती हूँ... *बाबा की किरणों से सराबोर होकर फिर से सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*
❉ *योग अग्नि की किरणों से मेरे विकर्मो का बोझा भस्म करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... घर से निकले थे तो खुबसूरत फूल से महके थे... देहभान की मिटटी ने मटमैला कर विकर्मो से लद दिया है... *अब मीठे बाबा की यादो में स्वयं को पुनः उसी ओज से भर लो... और कर्मातीत अवस्था को पाकर कर्मभोगो से सदा के मुक्त हो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी यादों में जीवन को सुनहरा सजाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके बिना दारुण दुखो को जीते जीते किस कदर टूट गई थी... *आपके मीठे प्यार ने दुःख भरे घावो को सुखाया है और जीवन खुशनुमा बनाया है... योगाग्नि में मै आत्मा विकर्मो से मुक्त होती जा रही हूँ..."*
❉ *मीठा बाबा अपनी वरदानी छत्रछाया के आगोश में मेरे हर श्वांस को खुशनुमा बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर पल हर साँस हर संकल्प में ईश्वरीय यादो को पिरोकर कर्मभोगो से मुक्त हो कर्मातीत बन जाओ... *मीठे बाबा की यादे ही वह छत्रछाया है, जो सारे विकर्मो के बोझों को छुड़वायेगी... सच्चे पिता की यादो में खो जाओ और सदा के निरोगी बन मुस्कराओ"...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने सिर पर से विकर्मों के बोझ से मुक्त होकर, सिर पर बाबा का वरदानी हाथ अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में सारे दुखो से निकल कर... सुखो के बगीचे की ओर रुख कर रही हूँ... *जीवन अब सुख शांति और खुशियो का पर्याय बन गया है... मै आत्मा निरोगी काया और सुनहरे स्वर्ग के सुखो की... अधिकारी बन मुस्करा रही हूँ..."*
❉ *विकर्मों की कालिमा को रूहानी यादों की पवित्रता से खुशबूदार बनाते हुए मेरा बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... धरती पर प्यारा सा खेल खेलने आये थे.... पर खुद को मात्र शरीर समझ दुखो के, विकारो के दलदल में फंस गए हो.... *अब ईश्वर पिता की महकती यादो में अपनी रूहानी अदा को पुनः पाओ... खुशनुमा रूहानी गुलाब सा बन सदा सुखो की बगिया में मुस्कराओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा योग की ज्वाला में विकर्मों के खाद को भस्म कर सच्चा सोना बनते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा यादो की प्रचण्ड अग्नि में स्वयं को दमकता सोना बना रही हूँ... वही सुनहरी ओज वही तेज वही रंगत पाकर...* शरीर में मटमैले पन को धो रही हूँ... और कर्मातीत अवस्था को पा कर, मीठे सुखो में खुशियो के गीत गा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कोई भी हिसाब किताब वा कर्जा है तो उसे उतार हल्का बन वारिस बन जाना है*"
➳ _ ➳ आत्माओ के साथ बनाये हुए पूरे 63 जन्मों के हिसाब किताब को चुकतू करने का समय केवल सँगमयुग का यह थोड़ा सा ही समय है, *अपने प्यारे पिता द्वारा कर्मो की गुह्य गति के इस राज को जानकर अब मुझे जल्दी से जल्दी जो भी हिसाब किताब वा कर्जा है उसे उतारने का पूरा पुरुषार्थ करना है ताकि मैं हल्का बन कर वारिस बन सकूँ और 21 जन्मो का वर्सा अपने प्यारे पिता से ले सकूँ*। यह विचार करते हुए मैं मन ही मन चिंतन करती हूँ कि समय की समीपता को देखते हुए पुराने सभी हिसाब किताब को योग बल से चुकतू करने के साथ - साथ अब मुझे इस बात का पूरा ध्यान रखना है कि मुझ से ऐसा कोई विकर्म ना हो जो कोई नया हिसाब किताब बने या मुझ पर कोई कर्जा चढ़े, क्योंकि *अगर थोड़ा सा भी हिसाब किताब या कर्जा रह गया तो बाबा धर्मराज बन सजाओं द्वारा उस हिसाब किताब को चुकतू करवाएगा और वारिस बनने का अधिकार भी मुझे नही मिल पायेगा*।
➳ _ ➳ मन मे यह संकल्प आते ही बाबा का धर्मराज का भयानक स्वरूप एक दम आंखों के सामने आ जाता है और उस *स्वरूप को वास्तविकता में ना देखने के लिए, आलस्य अलबेलेपन का त्याग कर, बाबा की याद में निरन्तर रह, योग अग्नि से पुराने हिसाब किताब को चुकतू करने की मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ*। और इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए योगबल द्वारा दृढ़ता की शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं सभी संकल्पों विकल्पों से अपने मन बुद्धि को हटा लेती हूँ और उन्हें बाबा की याद में स्थिर कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ बाबा की याद में मन बुद्धि को स्थिर करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे शरीर की सभी आंतरिक क्रियायें स्लो हो रही है और मैं रिलैक्स होने लगी हूँ। संकल्पो की गति भी जैसे थमने लगी है और एक आनन्दमयी स्थिति में मैं स्थित होने लगी हूँ। *यह आनन्दमयी स्थिति मुझे देह और देह की दुनिया से धीरे - धीरे डिटैच कर रही है। देह में होते हुए भी मैं स्वयं को देह से अलग विदेही आत्मा देख रही हूँ*। एक रूहानी मस्ती मुझ पर छाने लगी है जो मुझे देह के बंधन को तोड़ अपने पिता के पास चलने के लिए उत्साहित कर रही है।
➳ _ ➳ बड़े आराम से मैं चैतन्य शक्ति आत्मा देह से बाहर निकल रही हूँ। देह से बाहर आकर मैं अपनी ही देह को साक्षी होकर देख रही हूँ। *अपनी देह से भी अब मुझे कोई लगाव अनुभव नही हो रहा बल्कि देह से बाहर निकल कर, देह के बंधन से मुक्त इस अवस्था मे मैं एक अति न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*। यह न्यारी और प्यारी स्थिति मुझे नश्वर दुनिया के आकर्षण से छुड़ा कर अपने अविनाशी पिता के पास लेकर जा रही है।
➳ _ ➳ निराकारी आत्माओं की दुनिया जहाँ मेरे पिता रहते हैं उस दुनिया की और मेरी यात्रा आरम्भ हो चुकी है। मन बुद्धि के विमान पर बैठ, अपने पिता के प्रेम की लगन में मगन मैं आत्मा अब आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से परे पहुँच चुकी हूँ अपने परमधाम घर मे जहाँ चारों और चमकती हुई चैतन्य मणियो का आगार है। *चारों और जगमगाते हुए चैतन्य सितारों से सजा मेरा ये घर जहाँ पहुँच कर मैं डीप साइलेन्स का अनुभव कर रही हूँ। कुछ क्षणों के लिए गहन शांति के गहन अनुभवों का आनन्द लेकर अब मैं अपने ऊपर चढ़े हुए विकर्मों को दग्ध करने के लिए और पुराने सभी हिसाब किताब को योगबल से चुकतू करने के लिए ज्ञानसूर्य अपने प्यारे पिता के पास जा रही हूँ*। अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये वो मुझे अपनी बाहों में भरने के लिए उत्सुक हो रहें हैं।
➳ _ ➳ धीरे - धीरे अपने प्यारे पिता के पास पहुंच उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर, उनके प्यार की किरणों की शीतल छाया में बैठ, मैं परमानन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा अपनी किरणों रूपी बाहों को धीरे - धीरे समेट रहें हैं और मैं उनकी बाहों के घेरे में सिमटते - सिमटते उनके बिल्कुल नजदीक पहुँच गई हूँ। देख रही हूँ मैं बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों को जवालास्वरूप धारण करते हुए। *ऐसा लग रहा है जैसे चारों तरफ एक तेज आग दधक रही है और मेरे चारों तरफ अग्नि का एक विशाल घेरा बन गया है। उस घेरे के अंदर मैं बैठी हूँ और आग की लपटों को धीरे - धीरे अपने पास आता हुआ महसूस कर रही हूँ। ये लपटे मुझे छू रही है और मेरे विकर्मों को दग्ध कर पुराने सभी हिसाब - किताब को समाप्त कर रही है*।
➳ _ ➳ अपने विकर्म विनाश कर, हल्की होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *साकार सृष्टि पर वापिस आकर, अब मैं आत्मा अपने साकारी शरीर में प्रवेश कर चुकी हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो चुकी हूँ। अपने ब्राह्मण तन में बैठ मैं आत्मा जो भी पुराने हिसाब किताब का कर्जा मेरे ऊपर है उसे योग बल से उतार कर हल्का बन वारिस बनने का पुरुषार्थ दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से शान्ति का अनुभव कराने वाली महादानी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाली एकान्तवासी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *बापदादा ने पहले भी दो शब्द सुनाये हैं - साथी और साक्षी। जब बापदादा साथ है तो साक्षीपन की सीट सदा मजबूत रहती है*। कहते सभी हो बापदादा साथ है, बापदादा साथ है लेकिन माया का प्रभाव भी पड़ता रहता और कहते भी रहते हो बापदादा साथ है, बापदादा साथ है। साथ है, लेकिन साथ को ऐसे समय पर यूज नहीं करते हो, किनारे कर देते हो। जैसे कोई साथ में होता है ना, कोई बहुत ऐसा काम पड़ जाता है या कोई ऐसी बात होती है तो साथ कभी ख्याल नहीं होता, बातों में पड़ जाते हैं। ऐसे साथ है यह मानते भी हो, अनुभव भी करते हो। कोई है जो कहेगा साथ नहीं है? कोई नहीं कहता। सब कहते हैं मेरे साथ है, यह भी नहीं कहते कि तेरे साथ है। हर एक कहता है मेरे साथ है। मेरा साथी है। मन से कहते हो या मुख से? मन से कहते हो?
➳ _ ➳ 2. *बापदादा तो खेल देखते हैं, बाप साथ बैठे हैं और अपनी परिस्थिति में, उसको सामना करने में इतना मस्त हो जाते हैं जो देखते नहीं हैं कि साथ में कौन हैं*। *तो बाप भी क्या करते? बाप भी साथी से साक्षी बनकर खेल देखते हैं*। ऐसे तो नहीं करो ना। *जब साथी कहते हो तो साथ तो निभाओ, किनारा क्यों करते हो? बाप को अच्छा नहीं लगता*।
➳ _ ➳ 3. *साक्षीपन का तख्त छोड़ो नहीं। जो अलग-अलग पुरूषार्थ करते हो उसमें थक जाते हो।* आज मन्सा का किया, कल वाचा का किया, सम्बन्ध-सम्पर्क का किया तो थक जाते हो। *एक ही पुरुषार्थ करो कि साक्षी और खुशनुम: तख्तनशीन रहना है*। यह तख्त कभी नहीं छोड़ना है।
➳ _ ➳ 4. *साक्षीपन के तख्तनशीन आत्मा कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती*। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और *कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा ना*।
✺ *ड्रिल :- "साथी और साक्षीपन से माया के प्रभाव से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *देह रूपी कमल में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ पदमासन् लगाए... और देख रही हूँ स्वयं की देह को साक्षी होकर*... कमल की दो आधार पत्तियाँ, ये मेरे दोनो पैर... उदर भाग कमल का आधार तना है...ये दोनों भुजाएँ कमल की नीचे को झुकी दो बडी शाखाएँ, ये मस्तक मध्य की पंखुरी और मेरी दो आँखे, दोनों कान, मुख नासिका सभी उस कमल की नन्ही- नन्हीं पंखुरियाँ... *मैं आत्मा सुनहरा पराग बन बैठी हूँ शीर्ष पंखुरी पर*... मेरे ठीक ऊपर शिव सूर्य अपनी नम किरणों से मुझे भरपूर करते हुए... *शिव सूर्य से प्रकाश शक्ति ग्रहण कर मैं कमल की एक एक पंखुरी को देखते हुए... खिल उठा है ये देह रूपी कमल*... और मैं आत्मा पराग बन शिव किरणों के साथ उड चली हूँ परम धाम की ओर...
➳ _ ➳ *परम धाम में मैं आत्मा साक्षी होकर एक एक आत्मा मणि को देखती हुई एकदम साक्षी भाव से*... एक से बढकर रूहानी चमक लिए ये सुनहरी मणियाँ, शान्ति के सागर में, गहरी अनुभूतियों में मगन... और शान्ति की सुनहरी धाराओं से सींचते शिव सूर्य... कुछ देर साक्षी होकर देखती हुई मैं आत्मा भी, लीन हो गयी हूँ उसी परमानन्द में... *कुछ मणियों को सूक्ष्म वतन की ओर जाते देख मैं भी चल पडी हूँ उनके पीछे*... आगे आगे मम्मा बाबा और पीछे कुछ महारथी आत्माएँ... और मैं भी उमंगों से भरकर उनके साथ साथ... मम्मा के साथ वो सब जा रहे है सूक्ष्म वतन की ओर...
➳ _ ➳ और बापदादा मेरे संग उतर गये है, विशाल हरे-भरे से मैदान में... पर्वत शिखरों से घिरा ये मैदान खूबसूरती का बेजोड सा नमूना... बापदादा और मैं नन्हा फरिश्ता... *खुशी से फूला नही समाँ रहा हूँ, उनको साथी के रूप में पाकर... मैं और बापदादा पतंग उडाते हुए... मेरे हाथों में पतंग और बाबा के हाथों मे डोर*... सहसा उछाल देता हूँ मैं हवा की दिशा में उसको... और देखते ही देखते आकाश से बातें करती... *ये मेरी स्थिति की और महत्वकांक्षाओं की पतंग*... और बापदादा अब पतंग की डोर मेरे हाथों में थमाकर बैठ गये है मुझ से थोडी दूरी पर... *आनन्द से इठलाता हुआ मैं... एक नजर बाबा पर और दूसरी नजर पतंग पर जमाये...* और भी ऊँचाईयों पर उसे ले जा रहा हूँ...
➳ _ ➳ *और अब मेरा ध्यान केवल पतंग पर... ऊँचाईयों को छूती हुई ये पतंग मेरे मन का प्रतिबिम्ब लग रही है मुझे... मेरी ऊँची स्थिति का प्रतीक, ये हवा से बातें करती सबसे ऊँची उडती मेरी पतंग... मैं भूल गया हूँ बापदादा को भी... कुछ पल के लिए* सहसा कहीं से उडकर आता हुआ बाज पक्षी का झुण्ड और मेरी डोर को काटने का प्रयास करता हुआ... मैं भरपूर कोशिश कर रहा हूँ उसे बचाने की... मगर हर कोशिश मेरी व्यर्थ जा रही है... *हवा में बाज रूपी माया से लडता हुआ मैं अकेला* और पास में ही बैठे बापदादा साथी से साक्षी होते हुए...
➳ _ ➳ सहसा कानों में मधुर सी संगीतमय आवाज... *साक्षी और खुशनुमः तख्तनशीन रहना है, जब साथी कहते हो, तो किनारा क्यों करते हो? भूलों नहीं बापदादा को! बाबा को, ये बिल्कुल अच्छा नही लगता*... और मैं फरिश्ता अचानक लौट आता हूँ बापदादा के साथ की स्मृति में... और दौडकर बापदादा के हाथों में डोर थमा देता हूँ... और खुद बैठ गया हूँ साक्षी होकर, *आहिस्ता आहिस्ता आकाश में गुम होता वो बाज पक्षियों का झुण्ड* और फिर से मैं खुशी में उमंगों से भरपूर अपनी मन बुद्धि रूपी पंतग को ऊँचे संकल्पों में विचरण कराता हुआ... मैं फरिश्ता लौट आया हूँ अपनी उसी कमल पुष्प समान देह में, जो अभी भी पदमासन् लगाए बैठी है मेरे इन्तजार में... *मगर अब बापदादा हर पल मेरे साथ है इस स्मृति को पक्का करते हुए... पहले से ज्यादा साक्षी और माया के प्रभाव से मुक्त*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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