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❍ 23 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी का अभी अवगुण तो नहीं देखा ?*
➢➢ *श्रीमत में कभी संशय तो नहीं उठाया ?*
➢➢ *नेचुरल अटेंशन व अभ्यास द्वारा नेचर को परिवर्तित किया ?*
➢➢ *व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज़ और अशरीरीपन की एक्सरसाइज की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *साधना अर्थात् शक्तिशाली याद।* निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। *सिर्फ योग में बैठ जाना यही साधना नहीं है लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन और बुद्धि चारों ही एक बाप की तरफ बाप के साथ समान स्थिति में बैठ जाएं-तब कहेंगे यथार्थ साधना।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मुझे ऊँचे ते ऊँचे बाप ने सर्वश्रेष्ठ बनाया है"*
〰✧ *विश्व में जितनी भी श्रेष्ठ आत्माएं गाई जाती हैं उनसे आप कितने श्रेष्ठ हो। बाप आपका बन गया। तो आप कितने श्रेष्ठ बन गये! सर्वश्रेष्ठ हो गये।*
〰✧ *सदैव यह स्मृति में रखो - ऊंचे ते ऊंचे बाप ने सर्वश्रेष्ठ आत्मा बना दिया। दृष्टि कितनी ऊंची हो गई, वृत्ति कितनी ऊंची हो गई! सब बदल गया। अब किसी को देखेंगे तो आत्मिक दृष्टि से देखेंगे और सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति हो गई।*
〰✧ *ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर आत्मा के प्रति दृष्टि और वृत्ति श्रेष्ठ बन गई।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सूर्य की लाइट तो है, लेकिन उसके चारों ओर भी सूर्य की लाइट परछाई के रूप में फैली हुई दिखाई देती है। और लाइट में विशेष लाइट दिखाई देती है। इसी प्रकार से, *मैं आत्मा ज्योति रूप हूँ - यह तो लक्ष्य है ही। लेकिन मैं आकार में भी कार्ब में हूँ।*
〰✧ चारों ओर अपना स्वरूप लाइट ही लाइट के बीच में स्मृति में रहे और दिखाई भी दे तो ऐसा अनुभव हो। *जैसे कि आइने में देखते हो तो स्पष्ट रूप दिखाई देता है, वैसे ही नाँलेज रूपी दर्पण में, अपना यह रूप स्पष्ट दिखाई दे और अनुभव हो।*
〰✧. *चलते - फिरते और बात करते, ऐसे महसूस हो कि 'मैं लाइट - रूप हूँ, मैं फरिश्ता चल रहा हूँ।'* तो ही आप लोगों की स्मृति और स्थिति का प्रभाव औरों पर पडेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ साधारण आत्मा जो भी कर्म करेगी वह देह अभिमान से। *विशेष आत्मा देही अभिमानी बन कर्म करेगी। देही अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले की रिजल्ट क्या होगी? वह स्वयं भी सन्तुष्ट और सर्व भी उनसे संतुष्ट होंगे।* जो अच्छा पार्ट बजाते तो देखने वाले वंस मोर (एक बार और) करते। *तो सर्व का संतुष्ट रहना अर्थात् वंस मोर करना। सिर्फ स्वयं से संतुष्ट रहना बड़ी बात नही लेकिन 'स्वयं सन्तुष्ट रहकर दूसरों को भी सन्तुष्ट करना' - यह है पूरा स्लोगन। वह तब हो सकता जब देही अभिमानी होकर विशेष पार्ट बजाओ।* ऐसा पार्ट बजाने में मजा आएगा, खुशी भी होगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शिवबाबा को अपना पुराना बैग-बैगेज ट्रान्सफर कर सतयुग में सब नया लेना"*
➳ _ ➳ *ये पतित दुनिया, ये बेगाना घर, मेरी खातिर चले आये वो परमधाम छोडकर... लम्हा दर लम्हा बदल रही जिन्दगी, हदों से निकल कर हुई, अब बेहद में मेरी नज़र*... हद की दुनिया में पुरानी कीचड पट्टी संभाले मैं आत्मा, बोझिल कदमों से हर जन्म में उनको ढूँढती... और खुद के वजूद को भूलाती गयी... मगर ढूँढने पर न वो मिले और न मेरा वजूद... *अब वो मिलें... तो जमाने भर की खुशियाँ मेरे पहलूँ मे मचलने लगी है*... *ईश्वरीय सन्तान के रूतबे से नवाजकर सम्मुख बैठे बापदादा, आज मुझ आत्मा को पुराना बैग बैगेज ट्रांसफर कर सतयुग में सब कुछ नया लेने के बारे में समझानी दे रहे है*...
❉ *मेरी सदकामनाओं को पूरा करने वाले सच्चे सच्चे निष्कामी बाप मुझ आत्मा से बोले*:- "हद की कामनाओं से मन बुद्धि को समेटने वाली मेरी निश्चय बुद्धि बच्ची... *बाप की मत पर क्या पूरा पूरा निश्चय रखती हो? ये परायी दुनिया और पराया घर मन बुद्धि को बाँधते तो नही*?... *सतयुगी वर्सा और नई दुनिया की बादशाही अब साकार होते देख रही हो*?"
➳ _ ➳ *एक बाप दूसरा न कोई ऐसी अटूट निश्चय बुद्धि वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली*:- "प्यारे बाबा.. *सिर हथेली पर रख आप की बनी हूँ बाबा*, *ये देह दुनिया ये झूठी शानो शौकत, ये देह के सम्बन्ध, ये पुराने संस्कार, आप की श्रीमत पर सब सतयुगी संस्कार और संबंधों में बदल रहे है*... साक्षी हो देख रही हूँ एक एक संस्कार को... जो पल पल योगज्वाला में जल रहे है..."
❉ *ज्ञान की गहराईयों में उतार मुझ आत्मा को मास्टर ज्ञान सागर बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मेरी मास्टर ज्ञान सागर बच्ची... देखते ही देखते इस विनाशी दुनिया का सब कुछ स्वाहा होने वाला है... *पूरी तरह ट्रस्टी बन अब हर चीज से ममत्व निकालते जाना है, ये ज्ञान के शास्त्र ये मुरली ये ज्ञान के चित्र सब यही विनाश हो जायेगे... इनमें भी मोह न रख बस अपने संस्कारों को दिव्य बनाओं..."*
➳ _ ➳ *एक शिव बाप से कनेक्शन रख तन, मन, धन सब इन्श्योर करने वाली मैं निश्चय बुद्धि आत्मा बोली:-* "मेरे बाबा... हर कदम आपकी श्रीमत पर चल चल बाप की राय लेती मैं आत्मा नैचुरल अटैन्शन से अपनी नेचर को बदल रही हूँ... *पुराने संस्कारों को भस्म कर दिव्यता की चैतन्य मूरत बन रही हूँ, अशरीरीपन का अभ्यास व्यर्थ से दूर कर रहा है... सब कुछ बाप को सौंपकर मैं ट्रस्टी बन रही हूँ*..."
❉ *हथेली पर बहिश्त रख दूसरे हाथ से पुरानी कीचड पट्टी ले सच्चा सौदा करने वाले सौदागर बाप बोले:-* "मेरी विश्व कल्याणी बच्ची... बाप की पालना का रिटर्न चुकाओ... *पुरानी कीचड पट्टी संभाले, सुखो की खोज में भटकती हर आत्मा को भी सच्चे सौदागर की खूबियों से परिचय कराओं*... चेहरे से, चलन से सबको अपनी सतयुगी झलक दिखाओं..."
➳ _ ➳ *निमित्त और निर्माण भाव से सम्पन्न मैं आत्मा करन करावन हार बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... आपकी श्रेष्ठ पालना का उपहार ये असंख्य आत्माए सतयुगी झलक और फलक नयनो में समाये विश्व के कोने कोने में फैल गयी है... *तन, मन, धन से ट्रस्टी ये आत्माए नई दुनिया के लिए नये संस्कारों का जागरण कर रही है.. जगह जगह मोह की होली जल रही है*... *सतयुगी दुनिया की ख्वाहिश अब हर आँख में पल रही है* और अपनी पालना का रिटर्न पाकर बापदादा वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक शिव बाबा से कनेक्शन रख उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ चलते रहना है*
➳ _ ➳ मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। *मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं*। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। *ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।
➳ _ ➳ एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। *परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं*। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।
➳ _ ➳ बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। *कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं नेचुरल अटेंशन वा अभ्यास द्वारा नेचर को परिवर्तन करने वाली सिद्धि-स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अशरीरीपन की एक्सरसाइज़ और व्यर्थ संकल्पों के भोजन का परहेज़ करके एवरहेल्दी रहने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ लेकिन प्राप्त हुए जन्म सिद्ध अधिकार को वा चमकते हुए भाग्य के सितारे को
कहाँ तक आगे बढ़ाते, कितना श्रेष्ठ बनाते जाते हैं वह हरेक के पुरूषार्थ पर है।
*मिले हुए भाग्य के अधिकार को जीवन में धारण कर कर्म में लाना अर्थात् मिली हुई
बाप की प्रॉपर्टी को कमाई द्वारा बढ़ाते रहना वा खा के खत्म कर देना, वह हरेक के
ऊपर है। जन्मते ही बापदादा सबको एक जैसा श्रेष्ठ ‘भाग्यवान-भव' का वरदान कहो वा
भाग्य की प्रॉपर्टी कहो, एक जैसी ही देते हैं। सब बच्चों को एक जैसा ही टाइटल
देते हैं- ‘सिकीलधे बच्चे, लाडले बच्चे', कोई को सिकीलधे - कोई को न सिकीलधे
नहीं कहते हैं।* लेकिन प्रॉपर्टी को सम्भालना और बढ़ाना इसमें नम्बर बन जाते
हैं। ऐसे नहीं कि सेवाधारियों को 10 पदम देते और ट्रस्टियों को 2 पदम देते हैं।
सबको पदमापदमपति कहते हैं। लेकिन भाग्य रूपी खजाने को सम्भालना अर्थात् स्व में
धारण करना और भाग्य के खजाने को बढ़ाना अर्थात् मन-वाणी-कर्म द्वारा सेवा में
लगाना। इसमें नम्बर बन जाते हैं।
✺ *"ड्रिल :- बाप से मिली हुई प्रॉपर्टी को सम्भालना और कमाई द्वारा बढ़ाना।*"
➳ _ ➳ *मैं कल्याणकारी आत्मा, कल्याणकारी बाबा की संतान, कल्याणकारी संगमयुग
में, कल्याणकारी ड्रामा में, कल्याणकारी पार्ट निभा रही हूँ...* वरदानी संगमयुग
में श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ वरदाता बाबा के
पास... बाबा के सामने बैठकर उनको निहारती हूँ... बाबा मुझे ‘सिकीलधे बच्चे,
लाडले बच्चे’ का टाइटल देकर अपने प्यार से भरपूर कर रहे हैं...
➳ _ ➳ बाबा मुझे श्रेष्ठ ‘भाग्यवान-भव' का वरदान देते हैं... *मैं आत्मा ज्ञान,
योग, धारणा, सेवा चारों ही सब्जेक्ट्स में पास विद आनर होने के लिए तीव्र
पुरुषार्थ कर रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा के दिव्य ज्ञान को पाकर त्रिकालदर्शी
बन गई हूँ... एक बाबा के साथ योग लगाकर योग अग्नि में अपने विकारों, विकर्मों
को भस्म कर रही हूँ...
➳ _ ➳ सर्व गुणों, शक्तियों को धारण कर धारणास्वरुप बन रही हूँ... पवित्रता की
शक्ति को धारण कर कई जन्मों की अपवित्रता को खत्म कर रही हूँ... *शूद्रपने के
संस्कारों से मुक्त होकर सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बन रही हूँ...* मैं आत्मा सारी
कमी-कमजोरियों से मुक्त होकर शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा बाबा की श्रीमत पर ही चलती हूँ... मिले हुए भाग्य के
अधिकार को जीवन में धारण कर कर्म में ला रही हूँ... *मैं आत्मा बाबा द्वारा
मिली हुई प्रॉपर्टी को कमाई द्वारा बढ़ाती जा रही हूँ...* और नम्बर बना रही
हूँ... सर्व के प्रति शुभ भावना-शुभ कामना रख विश्व कल्याण कर रही हूँ... सभी
को सुख, शांति, पवित्रता की शक्ति का अनुभव करवा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाकर औरों को भी प्रेरित कर रही
हूँ... मैं आत्मा एक का पदम गुना बढाकर पदमापदमपति होने का अनुभव कर रही हूँ...
*मैं आत्मा भाग्य रूपी खजाने को स्व में धारण कर सम्भाल रही हूँ और
मन-वाणी-कर्म द्वारा सेवा में लगाकर भाग्य के खजाने को बढ़ा भी रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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