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 02 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आत्माओं को तीन बाप का परिचय दिया ?*

 

➢➢ *"पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे" - आत्माओं को एक बाप का आर्डिनेंस सुनाया ?*

 

➢➢ *सर्वशक्तिमान के साथ की अनुभूति द्वारा सर्व प्राप्तियों का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बुधी में सदैव शिव पिता की याद समाई रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग की शक्ति जमा करने के लिए कर्म और योग का बैलेंस और बढ़ाओ।* कर्म करते योग की पॉवरफुल स्टेज रहे-इसका अभ्यास बढ़ाओ। *जैसे सेवा के लिए इन्वेंशन करते वैसे इन विशेष अनुभवों के अभ्यास के लिए समय निकालो और नवीनता लाकर के सबके आगे एक्जाम्पुल बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*

 

  सदा स्वयं को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करते हो। *फरिश्ता अर्थात् जिसकी दुनिया ही 'एक बाप' हो। ऐसे फरिश्ते सदा बाप के प्यारे हैं। फरिश्ता अर्थात् देह और देह के सम्बन्धों से आकर्षण का रिश्ता नहीं। निमित्त मात्र देह में हैं और देह के सम्बन्धियों से कार्य में आते हैं लेकिन लगाव नहीं। क्योंकि फरिश्तों के और कोई से रिश्ते नहीं होते। फरिश्ते के रिश्ते एक बाप के साथ हैं।* ऐसे फरिश्ते हो ना।

 

  *अभी-अभी देह में कर्म करने के लिए आते और अभी-अभी देह से न्यारे! फरिश्ते सेकण्ड में यहाँ, सेकण्ड में वहाँ। क्योंकि उड़ाने वाले हैं। कर्म करने के लिए देह का आधार लिया और फिर ऊपर।* ऐसे अनुभव करते हो? अगर कहाँ भी लगाव है, बन्धन है तो बन्धन वाला ऊपर नहीं उड़ सकता। वह नीचे आ जायेगा।

 

  *फरिश्ते अर्थात् सदा उड़ती कला वाले। नीचे ऊपर होने वाले नहीं। सदा ऊपर की स्थिति में रहने वाले। फरिश्तों के संसार में रहने वाले। तो फरिश्ता स्मृति स्वरूप बने तो सब रिश्ते खत्म। ऐसे अभ्यासी हो ना। कर्म किया और फिर न्यारे।* लिफ्ट में क्या करते हैं? अभी-अभी नीचे अभी-अभी ऊपर। नीचे आये कर्म किया और फिर स्विच दबाया और ऊपर। ऐसे अभ्यासी।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे  बापदादा व्यक्त में आते भी है तो भी अव्यक्त रुप में अव्यक्त देश की अव्यक्त प्रभाव में रहते हैं। वही बच्चों को अनुभव कराने लिए आते हैं। ऐसे आप सभी भी अपने अव्यक्त स्थिती का अनुभव औरों को कराओ। *जब अव्यक्त स्थिती की स्टेज सम्पूर्ण होंगी तब ही अपने राज्य में साथ चलना होंगा*।

 

✧  *एक आँख में अव्यक्त सम्पूर्ण स्थिती दूसरी आँख में राज्य पद*। ऐसे ही स्पष्ठ देखने में आयेंगे जैसे साकार रूप में दिखाई पडता है। बचपन रूप भी और सम्पूर्ण रूप भी। बस यह बनकर फिर यह बनेंगे। यह स्मृती रहती है।

 

✧  भविष्य की रूपरेखा भी जैसे सम्पूर्ण देखने में आती है। *जितना - जितना फरिश्ते लाइफ के नजदीक होंगे उतना - उतना राजपद को भी सामने देखेंगे*। दोनों ही सामने। आजकल कई ऐसे होते है जिनको अपने पास्ट की पूरी स्मृती रहती है। तो यह भविष्य भी ऐसे ही स्मृती में रहे यह बनना हैं। वह भविष्य के संस्कार इमर्ज होते रहेंगे।मर्ज नहीं। इमर्ज होंगे।अच्छा

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आकार में निराकार देखने की बात पहला पाठ पूछ रहे हैं। अभी आकार को देखते निराकार को देखते हो? बातचीत किस से करते हो? (निराकार से) *आकार में निराकार देखने आये - इसमें अन्त तक भी अगर अभ्यासी रहेंगे तो देही-अभिमानी का अथवा अपने असली स्वरूप का जो आनन्द व सुख है वह संगमयुग पर नहीं करेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- श्रेष्ठ बनने के लिए सदा श्रीमत पर चलते रहना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बगीचे में बागवानी करते हुए पौधों के आसपास के खरपतवार को निकाल रही हूँ... जो पौधों के पोषक तत्वों को शोषित कर उनके विकास की गति को धीमी कर रहे हैं...* खरपतवार को निकालने के बाद फूल-पौधे बहुत ही सुन्दर दिख रहे हैं... मुस्कुरा रहे हैं... *ऐसे ही परम बागबान ने मुझ आत्मा के अन्दर के विकारों रूपी खरपतवार को निकालकर मुझे रूहानी फूल बना दिया है... मेरे जीवन के आंगन को खुशियों से खिला दिया है...* मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले प्यारे बागबान बाबा के पास...

 

  *पावन दुनिया की राजाई के लिए श्रेष्ठ श्रीमत देते हुए पतित पावन प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर पावन बनते हो इसलिए पावन दुनिया के सारे सुखो के अधिकारी बनते हो...* मनुष्य की मत सम्पूर्ण पावन न बन सकते हो न ही सतयुगी दुनिया के मालिक बन सकते हो... यह कार्य ईश्वर पिता के सिवाय कोई कर ही न सके...

 

_ ➳  *श्रीमत की बाँहों में झूलते हुए सतयुगी सुखों के आसमान को छूते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत और दूसरो की मत से अपनी गिरती अवस्था की बेहतर अनुभवी हूँ... *अब श्रीमत का हाथ थाम खुशियो के संसार में बसेरा हुआ है... प्यारा बाबा मुझे पावन बनाने आ गया है...”*

 

  *प्यार भरी नज़रों से मुझे निहाल कर लक्ष्मी नारायण समान श्रेष्ठ बनाते हुए मीठे-मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... पतित पावन सिर्फ बाबा है जो स्वयं पावन है वही पावन बना भी सकता है... मनुष्य खुद इस चक्र में आता है वह दूसरो को पावनता से कैसे सजाएगा भला... *ईश्वर की मत ही सर्व प्राप्तियों का आधार है... श्रीमत ही मनुष्य को देवता श्रृंगार देकर सजाती है...”*

 

_ ➳  *अपने जीवन की गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए मंजिल के करीब पहुँचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ कि श्रीमत मेरे भाग्य में है... श्रीमत की ऊँगली पकड़ मै आत्मा पावनता की सुंदरता से दमक रही हूँ...* और श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बन सतयुग की राजाई की अधिकारी बन रही हूँ...

 

  *पवित्रता की खुशबू से महकाकर खुशियों के झूले में झुलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर लो... *यादो को सांसो सा जीवन में भर लो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आह्लादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान कलश को सिर पर धारण कर हीरे समान चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत पर चलकर और परमत का अनुसरण कर निराश मायूस हो गई थी... दुखो को ही अपनी नियति मान बैठी थी... *प्यारे बाबा आपकी श्रीमत ने दुखो से निकाल... मीठे सुखो से दामन सजा दिया है... प्यारी सी श्रीमत ने मुझे पावन बनाकर महका दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सबको एक बाप का ऑर्डिनेंस सुनाना है कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे*"

 

_ ➳  जिस पवित्र दुनिया की स्थापना करने के लिए भगवान स्वयं इस धरा पर आये हैं उस पवित्र दुनिया की मैं मालिक बनने वाली हूँ, मन मे यह विचार आते ही उस पवित्र दुनिया की खूबसूरत तस्वीर स्वत: ही आँखों के सामने उभर आती है और मन उस दुनिया में विचरण करने लगता है। *लक्ष्मी नारायण की उस पवित्र दुनिया को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ जहाँ सुख, शांति, सम्पन्नता अखुट है। देवी देवताओं की वो सुन्दर दुनिया जहाँ हर मनुष्य दैवी गुणों से सम्पन्न,16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं*। हर घर मंदिर है। जहाँ चैतन्य में देवी देवता निवास करते हैं। नफरत, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष का वहाँ कोई नाम निशान ही नही। सभी के हृदय शुद्ध पवित्र प्रेम से परिपूर्ण हैं।

 

_ ➳  ना किसी को अपने ऊँच पद का अभिमान है और ना किसी को अपने छोटे पद का मलाल। राजा हो या प्रजा सभी दैहिक भान से मुक्त, अपने जीवन से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं। *ऐसी अति सुन्दर पवित्र दुनिया में प्रकृति भी सुख देने वाली है, सदा बहार मौसम, वातावरण में गूंजती सुन्दर - सुन्दर पक्षियों की मधुर संगीत सुनाती मधुर आवाजें। उद्यानों में खिलें रंग बिरंगे खुशबूदार वैरायटी फूल और उनकी सुंगन्ध से महकते राजमहलों के बड़े - बड़े आँगन और उन आंगन में खेलते नन्हे - नन्हे प्रिंस प्रिंसेज*। ये सभी खूबसूरत मन को मोहने वाले दृश्य एक - एक करके मेरी आँखों के सामने आ रहें हैं जो मन को एक सुखद एहसास करा रहे हैं।

 

_ ➳  ऐसे पवित्र दुनिया के अति सुन्दर नजारों का भरपूर आनन्द लेकर मैं दिल की गहराइयों से अपने प्यारे भगवान बाप का शुक्रिया अदा करती हूँ जो *अपने बच्चों के लिए ऐसी खूबसूरत सौगात हथेली पर ले कर आयें हैं और अपने बच्चों को फरमान कर रहें हैं कि पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनो*। ऐसी पवित्र दुनिया के रचयिता अपने भगवान बाप से मैं मन ही मन प्रोमिस करती हूँ कि पवित्र बनने के उनके इस फरमान पर मैं अवश्य चलूँगी और साथ ही साथ मैं सबको बाप का यह ऑर्डिनेंस भी सुनाऊँगी कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा से यह प्रोमिस करके, पवित्रता की शक्ति से स्वयं को भरपूर करने के लिए मैं अपने अनादि पवित्र निराकार स्वरूप में स्थित होकर मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ पवित्रता के सागर अपने प्यारे पिता के पास उनकी निर्विकारी दुनिया परमधाम में। *पवित्रता की अनन्त किरणे बिखेरते अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ। स्वयं को पवित्रता की शक्ति से भरपूर करने के लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास जाती हूँ उनकी अनन्त किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ*। मैं देख रही हूँ बाबा से आ रही वो अनन्त पवित्र किरणें जैसे - जैसे मेरे ऊपर पड़ रही है, जवाला स्वरूप धारण करती जा रही हैं और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारो की कट को जलाकर भस्म कर रही हैं।

 

_ ➳  विकारो की कट ने मेरे पवित्रता के जिस निजी गुण को मर्ज कर दिया था वो पतित पावन मेरे प्यारे पिता की पवित्रता की शक्ति पाकर पुनः इमर्ज हो गया है और मैं आत्मा फिर से अपने अनादि सम्पूर्ण पवित्र स्वरूप को प्राप्त कर रही हूँ। *पवित्रता की शक्ति से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने पवित्र फरिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब पर पहुँच, अपने प्यारे बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर, सारे विश्व मे पवित्रता के वायब्रेशन्स फैलाते हुए, विश्व की सर्व आत्माओ को मनसा सकाश देते, सबको पवित्र रहने का परमात्म फरमान सुना कर, अब मैं अपने निराकारी स्वरूप को धारण कर वापिस साकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को, *पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनने का अपने प्यारे पिता का ऑर्डिनेंस  सुना कर मैं अपने भगवान बाप से किये हर प्रोमिस को पूरा करने का पुरुषार्थ करते हुए इस परमात्म कार्य मे अब सदा तत्पर हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्वशक्तिमान के साथ की अनुभूति द्वारा सर्व प्राप्तियों का अनुभव करने वाली तृप्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *नयनों में जैसे नूर समाया हुआ है ऐसे ही बुद्धि में शिव पिता की याद को समाने वाली मैं सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  जमा के खाते को चेक करने की निशानी क्या है? *मन्सा, वाचा, कर्म द्वारा सेवा तो की लेकिन जमा की निशानी है - सेवा करते हुए पहले स्वयं की संतुष्टता।* साथ-साथ जिन्हों की सेवा करते, उन आत्माओं में खुशी की संतुष्टता आई? *अगर दोनों तरफ सन्तुष्टता नहीं तो समझो सेवा के खाते में आपकी सेवा का फल जमा नहीं हुआ।*

 

 _ ➳  *सहज जमा का खाता भरपूर करने की गोल्डन चाबी है - कोई भी मन्सा-वाचा-कर्म, किसी में भी सेवा करने के समय एक तो अपने अन्दर निमित्त भाव की स्मृति।* निमित्त भाव, निर्माण भाव, शुभ भाव, आत्मिक स्नेह का भाव, अगर इस भाव की स्थिति में स्थित होकर सेवा करते हो तो सहज आपके इस भाव से आत्माओं की भावना पूर्ण हो जाती है। आज के लोग हर एक का भाव क्या है, वह नोट करते हैं। क्या निमित्त भाव से कर रहे हैं, वा अभिमान के भाव से! *जहाँ निमित्त भाव है वहाँ निर्मान भाव आटोमेटिकली आ जाता है।* तो चेक करो - क्या जमा हुआ? कितना जमा हुआ? क्योंकि *इस समय संगमयुग ही जमा करने का युग है। फिर तो सारा कल्प जमा की प्रलब्ध है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "निमित्त भाव की स्मृति से सहज जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने प्यारे बापदादा से मीठी मीठी रूह रिहान करते हुए सुबह सैर कर रही हूँ... *प्रकृति के मोहक दृश्यों का आनंद ले रही हूँ... प्रकृति हमारी कितनी बड़ी टीचर है...* फलों से लदी हुई वृक्षों की झुकती डालियाँ विनम्र, सहनशील बनने का पाठ पढ़ा रही हैं... जगमगाता हुआ सूरज अपनी आभा से सारे विश्व को प्रकाशित करने की प्रेरणा दे रहा है... झरनों की शीतल जल धारा प्यासी, तड़पती आत्माओं की सुख शांति की प्यास बुझाने की सीख दे रहा है...

 

 _ ➳  यह सब देख कर मैं आत्मा चिंतन करती हूँ... कि प्रकृति में सब परिवर्तन नियमित रूप से होते हैं... प्रकृति कभी भी हमसे बदले की कामना नहीं करती... उसका स्वधर्म है देना... किस तरह से वह निर्माण बन देती जाती है... *मैं आत्मा अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर रही हूँ... कि बाबा ने मुझे सेवाओं के निमित्त तो बनाया है... लेकिन क्या इतना निमित्त और निर्माण भाव मेरी सेवा में है..* मीठे बाबा ने अपनी सहस्त्र भुजाएं मेरे सिर पर छत्रछाया के रूप में फैला दी हैं... अपने बाबा से अनवरत आती हुई किरणों से मैं स्वयं को संपन्न बना रही हूँ...

 

 _ ➳  ईश्वरीय सेवाओं में स्वयं भगवान ने मुझे अपना सहयोगी बनाया है... कितना श्रेष्ठ भाग्य है मुझ आत्मा का... *मैं सर्व प्रकार से संतुष्टमणि आत्मा हूँ... सेवा करते हुए स्वयं संतुष्ट स्थिति में स्थित हूँ... साथ ही जिन आत्माओं की सेवा करती हूँ... उनमें भी खुशी और संतुष्टि देख रही हूँ... क्योंकि दोनों तरफ जब संतुष्टि होगी तभी तो मुझ आत्मा के सेवा के खाते में सेवा का फल जमा होगा...* मैं स्वयं संतुष्ट हूँ... साथ ही सर्व को संतुष्ट रखने वाली बाबा की संतुष्टमणि आत्मा हूँ...

 

 _ ➳  बाबा ने मुझे जमा का खाता बढ़ाने की बहुत ही सुंदर, सहज युक्ति बताई है... *मैं निमित्त भाव से सेवा कर रही हूँ... मनसा वाचा कर्मणा कैसी भी सेवा हो हर सेवा में बाबा शब्द की स्मृति से सेवा कर रही हूँ...* मैं निमित्त हूँ, लेकिन मुझे निमित्त बनाने वाला कौन... सेवा किसकी है, इस सेवा के लिए शक्तियां, सहयोग देने वाला कौन है... *उस करावनहार बाबा को हर क्षण आगे रखती हूँ... मैं आत्मा हर प्रकार के मान शान की कामना से मुक्त हूँ... सर्व के प्रति आत्मिक स्नेह और शुभ भावना से युक्त हूँ...*

 

 _ ➳  इस श्रेष्ठ भाव में स्थित होकर सेवा करने से आत्माओं की कामना पूर्ण करने के निमित्त बन रही हूँ... मैं आत्मा *मैंने किया, मैं ही कर सकती हूँ... इस अभिमान से ही पूरी तरह मुक्त हो रही हूँ... हर विशेषता बाबा की देन है, उस दाता पिता की स्मृति से मैं सेवा कर रही हूँ...* इस निमित्त भाव से निर्माण स्थिति स्वतः ही बन रही है... अब मुझ आत्मा का जमा का खाता बढ़ रहा है... यह संगम युग सारे कल्प की प्रालब्ध जमा करने का अमूल्य समय है... *इस श्रेष्ठ संगम के समय में मैं निमित्त और निर्माण भाव से अपनी कल्प कल्प की प्रारब्ध बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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