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❍ 25 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *गोडली बुलबुल बन बाप का नाम बाला किया ?*
➢➢ *कभी भी तंग हो ब्राह्मण जीवन में थके तो नहीं ?*
➢➢ *मालिकपन की स्थिति में रह प्रकृति द्वारा सहयोग की माला प्राप्त की ?*
➢➢ *मनमनाभव की स्थिति में रह अलोकिक सुख व् मनरस का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योगबल वाली शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियां सदा प्राप्त होती हैं-एक परखने की और दूसरी निर्णय करने की।* यही दो विशेष शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं को हल करने का सहज साधन है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्वखजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सर्व खजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं वह जानते हो? गिनती कर सकते हो। अविनाशी हैं और अनगिनत हैं। *तो एक एक खजाने को स्मृति में लाओ। खजाने को स्मृति में लाने से खुशी होगी। जितना खजानों की स्मृति में रहेंगे उतना समर्थ बनते जायेंगे और जहाँ समर्थ हैं वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, व्यर्थ बोल सब बदल जाता है।* ऐसा अनुभव करते हो? परिवर्तन हो गया ना।
〰✧ *नई जीवन में आ गये। नई जीवन, नया उमंग, नया उत्साह हर घड़ी नई, हर समय नया। तो हर संकल्प में नया उमंग, नया उत्साह रहे। कल क्या थे आज क्या बन गये!* अभी पुराना संकल्प, पुराना संस्कार रहा तो नहीं है! थोड़ा भी नहीं तो सदा इसी उमंग में आगे बढ़ते चलो।
〰✧ जब सब कुछ पा लिया तो भरपूर हो गये ना। भरपूर चीज कभी हलचल में नहीं आती। *सम्पन्न बनना अर्थात् अचल बनना। तो अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खजाने से भरपूर भण्डार बन गये। जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दुख दूर हो गये।* जो जितना स्वयं खुश रहेंगे उतना दूसरों को खुश खबरी सुनायेंगे। तो खुश रहो और खुशखबरी सुनाते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ब्राह्मणों का अन्तिम सम्पूर्ण स्वरुप क्यों गाया जाता है, मालूम है? इस स्थिति का वर्णन है 'इच्छा मात्रम अविध्या'। *अब अपने से पूछो 'इच्छा मात्रम अविध्या' ऐसी स्थिति हम ब्राह्मणों की बनी है?* जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयाकार और हाहाकार भी होगी। यह है आप सब का अन्तिम स्वरूप।
〰✧ अपने स्वरूप का साक्षात्कार होता है सदैव अपने सम्पूर्ण और भविष्य स्वरूप ऐसे दिखाई दें जैसे शरीर छोडने वाले को बुद्धी में स्पष्ट रहता है कि अभी - अभी यह छोड नया शरीर धारण करना है। ऐसे सदैव बुद्धि में यही रहे कि अभी - अभी इस स्वरूप को धारण करना है। *जैसे स्थूल चोला बहुत जल्दी धारण कर लेते हो वैसे सम्पूर्ण स्वरूप धारण करो।* बहुत सुन्दर और श्रेष्ठ वस्त्र सामने देखते फिर पुराने वस्त्र को छोड नया धारण करना क्या मुश्किल होता है?
〰✧ ऐसे ही जब अपने श्रेष्ठ सम्पूर्ण स्वरूप वा स्थिति को जानते हो, सामने है तो फिर वह सम्पूर्ण श्रेष्ठ स्वरूप धारण करने में देरी क्यों? *कोई भी अहंकार है तो वह अलंकारहीन बना देता है।* इसलीए निरहंकारी और निराकारी फिर अलंकारी। इस स्थिति में स्थित होना सर्व आत्माओं के कल्याणकारी बनने वाले ही विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक देही अभिमानी स्थिति सर्व विकारों को सहज ही शांत कर देती है। यही बुद्धि की कला सर्व कलाओं को अपने में भरपूर कर सकती है व सर्व कला सम्पन्न बना सकती है। अभी-अभी सभी को डैरेक्शन मिले कि एक सेकण्ड में अशरीरी बन जाओ, तो बन सकते हो? सिर्फ एक सेकण्ड स्थित हो सकते हो? जब बहुत कर्म में व्यस्त हो ऐसे समय में डैरेक्शन मिले। *जैसे जब युद्ध प्रारम्भ होता है तो अचानक आर्डर निकलते हैं- अभी-अभी सभी घर छोड बाहर चले जाओ। फिर क्या करना पडता है? जरूर करना पड़े। तो बाप-दादा भी अचानक डायरेक्शन दे कि इस शरीर रूपी घर को छोड़, इस देह अभिमान की स्थित से देही अभिमानी बन जाओ, इस दुनिया से परे अपने स्वीटहोम में चले जाओ, तो कर सकेंगे?* ‘युद्ध स्थल में रुक तो नहीं जावेंगे? युद्ध करते-करते ही समय तो नहीं बिता देंगे कि - जावें न जावें ? जाना ठीक होगा व नहीं? यह ले जावे व छोड़ जावे?' इस सोच में समय गवा देते हैं। *ऐसे ही अशरीरी बनने में अगर युद्ध करने में ही समय लग गया तो अन्तिम पेपर में माक्र्स व डिविजन कौन-सा आवेगा? अगर युद्ध करते-करते रह गये तो क्या फस्ट डिविजन में आवेंगे? ऐसे उपराम, एवररेडी बने हो?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योग से ही ताकत आएगी, इसलिए जितना हो सके बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्रभु प्रेम की शीतल चांदनी में शीतलता का अनुभव करती, उनकी यादों में खोई हुई हूँ... जन्म-जन्मान्तर के पुराने-स्वभाव संस्कारों को योग अग्नि से भस्म कर रही हूँ... नए दैवीय गुणों की धारणा कर दिव्य गुणधारी बन रही हूँ...* प्यारे बाबा की प्यारी यादों से देह के भान से मुक्त होकर आत्मिक सौंदर्य के नशे से भर रही हूँ... प्यारे वरदानी बाबा मेरे सामने बैठ मुझे वरदानों से भरपूर करते हुए अपने वरदानी बोलों से भरपूर करते हैं...
❉ *यादों से मेरे जीवन को अमर बनाते हुए प्यारे मीठे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... सच्चे प्यारे पिता की यादो में इस कदर कमाई है.... अमीरी है कि सारे सुख कदमो में बिखरे बिखरे से है... *और यही यादे सुंदर जीवन तंदुरुस्ती सुंदर काया का भी जरिया बन महकती है... और अमरता को पाकर सदा का मुस्कराते हो...”*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों के सहारे सच्ची खुशियों को पाकर मैं खुशनसीब आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपने यादो भर से... सदा का अमीर सदा का तन्दुरुस्त सदा का अमर बना दिया है...* आपकी मीठी यादो में और खूबसूरत सुखधाम की स्मृति में खोकर मै आत्मा क्या से क्या हो गई हूँ...”
❉ *प्यारे बाबा अपनी नज़रों से मेरी जन्मों-जन्मों की तकदीर सजाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे.... *यादें कितना सुंदर फूलो भरा मखमली सा अहसास है कि यादों की पंखुड़ियों पर चलते चलते महा धनी बन सज जाते हो...* खूबसूरत जीवन को पाते हो... सारे भयों से मुक्त हो सदा के अमर बन सुखधाम में इठलाते हो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों से अपने जीवन को बसंत बहार बनाकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... अपने मीठे बाबा की सुखभरी याद और सुंदर सुखधाम से जीवन मधुमास हो गया है... *नश्वर समझ कर जी रही थी... आज अमरता के वरदानों से सज रही हूँ... सुंदर तन सुंदर मन से निखर उठी हूँ...”*
❉ *अपने प्रेम तरंगो से मुझे तरंगित करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के रिश्तो की यादों ने खाली और शक्तिहीन किया... अब सच्चा पिता सच्चे सुखो को सच्ची अमीरी को अमरत्व को उपहार सा ले आया है... *विश्व पिता सुनहरे सुखो को दामन में भर बच्चों पर लुटाने आया है... उसकी मीठी प्यारी यादो में खो जाओ... यह यादे अनोखा कमाल कर जीवन सुनहरा कर देंगी...”*
➳ _ ➳ *मेरे भाग्य को धन्य-धन्य करने वाले बाबा का धन्यवाद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दीन हीन सी... मृत्यु के भय से भयभीत सी... गरीब जीवन को अटल सत्य मान गई थी... *आपने आकर मुझे बाँहो में भर लिया... मुझे इतना प्यार कर अमर कर दिया... मै आपकी मीठी यादो में खोयी खोयी सी हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गॉडली बुलबुल बन बाप का नाम बाला करना है*"
➳ _ ➳ ममता की मूरत अपनी प्यारी मम्मा के जीवन चरित्र को स्मृति में लाकर उनकी विशेषताओं के बारे में मन ही मन विचार करती हुई अपने घर की छत पर मैं टहल रही हूँ और सोच रही हूँ जैसे *मम्मा ने ज्ञान की गहराई में जाकर, भगवान द्वारा दिये जा रहे इस सत्य ज्ञान को ना केवल समझ कर, उसे अपने जीवन मे धारण किया बल्कि गॉडली बुलबुल बन, सबको ज्ञान संगीत सुनाकर, सबके जीवन में बहार लाकर, सत्य गीता ज्ञानदाता भगवान बाप का नाम बाला किया* ऐसे मम्मा के समान गॉडली बुलबुल बन, सबके जीवन को इस सत्य ज्ञान के मधुर संगीत के खूबसूरत रंगों से भरकर, सबके जीवन को आनन्ददायी बनाना और अपने पिता परमात्मा का नाम बाला करना ही मेरे इस ईश्वरीय जीवन का लक्ष्य है। जिसे पाने का तीव्र पुरुषार्थ अब मुझे निरन्तर करना है।
➳ _ ➳ इन्ही विचारो के साथ, अपने ज्ञानसागर प्यारे पिता की शक्तियों के बल से, *अपनी ज्ञान तलवार में जौहर भरने के लिए, अब मैं सभी बातों से किनारा कर, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होती हूँ और अपने मन बुद्धि को विस्तार से सार में समाकर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को सर्वशक्तिदाता अपने निराकार शिव पिता पर एकाग्र कर लेती हूँ*। मन बुद्धि को अपने परमधाम घर मे ले जाते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे इस देह और देह से जुड़ी किसी भी वस्तु से मेरा कोई सम्बन्ध नही। मेरे सर्वसम्बन्ध तो केवल मेरे प्यारे पिता के साथ हैं। *उन सर्वसम्बन्धो का रस लेने के लिए, अब मैं बिंदु आत्मा देह का आधार छोड़, चल पड़ती हूँ अपने परमधाम घर की ओर*।
➳ _ ➳ एक चमकती हुई जगमग करती ज्योति अपनी शक्तियों का सुनहरी प्रकाश चारो और फैलाती हुई, एक चमकते हुए अति सूक्ष्म सितारे के रूप में भृकुटि के भव्यभाल को छोड़, ऊपर आकाश की ओर जा रही है। *अपनी शक्तियों के प्रकाश से एक अलौकिक दिव्य रूहानी वायुमण्डल का निर्माण करती मैं चैतन्य शक्ति आकाश को पार करती हुई उससे और ऊपर उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ, लाइट के आकारी फ़रिशतो की दुनिया सूक्ष्म वतन में*। देख रही हूँ सामने ब्रह्मा बाबा को उनके सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में और हाथ मे ज्ञान वीणा ले कर उनके साथ बैठी, अपनी सरस्वती माँ, मम्मा को। *उन दोनों के मनमोहक सुन्दर स्वरूप को निहारते हुए, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को मैं धारण करती हूँ और उनके पास पहुँचती हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी बाहों में भरकर, बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाते हैं और मेरी मीठी माँ मम्मा मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे बड़े प्यार से निहारते हुए अपने पास बिठा लेती हैं। *अपनी मीठी दृष्टि से अपनी शक्तियों का बल मुझे देते हुए मम्मा अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ाते हुए एक बहुत सुन्दर ज्ञान वीणा मुझे भेंट करती हैं। उस ज्ञान वीणा को अपने हाथ में लेते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे संगीत की मधुर झंकार, मधुर तरंगों के रूप में चारो और फैलने लगी है*। और उस ज्ञान संगीत की मधुर तरंगों के शक्तिशाली वायब्रेशन मेरे अंदर भरने लगें हैं। इन शक्तिशाली वायब्रेशन्स को अपने अन्दर समाते हुए, अखुट ज्ञानबल और योगबल से स्वयं को भरपूर करने के लिए अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञान की रंग बिरंगी तरंगों को चारों औऱ बिखेरती हुई, एक अद्भुत आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं चैतन्य ज्योति सेकण्ड में सूक्ष्म वतन को पार कर पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने ज्ञान सागर पिता के पास और उनके ज्ञान की शक्ति की शीतल फ़ुहारों के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *ज्ञान के झरने के नीचे बैठ ज्ञान स्नान कर, स्वयं को ज्ञान योगबल से पूरी तरह भरपूर करके मैं वापिस लौटती हूँ साकारी दुनिया में*। अपने साकार तन में प्रवेश कर भृकुटि के भव्यभाल पर फिर से विराजमान होकर, अपने शिव पिता का नाम बाला करने की, मम्मा बाबा से की हुई प्रतिज्ञा को अब मैं पूरी लगन के साथ पूरा करने के कर्तव्य में लग जाती हूँ।
➳ _ ➳ *मम्मा से उपहार में मिली ज्ञान वीणा को हर समय अपने साथ रखते हुए, उसकी मधुर झंकार को बार - बार सुनते हुए अब मैं गॉडली बुलबुल बन सबको ज्ञान का मधुर संगीत सुनाकर, सबके जीवन को खुशी और आनन्द से भरपूर करते हुए, अपने बाप का नाम बाला कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मालिकपन की स्थिति में रह प्रकृति द्वारा सहयोग की माला पहनने वाली प्रकृतिजीत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं मनमनाभव की स्थिति में रहकर अलौकिक सुख व मनरस का अनुभव करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ राज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी, अथार्टी स्वरूप। राज्य सत्ता वाली आत्मा अपने अधिकार द्वारा जब चाहे, जैसे चाहे वैसे अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को चला सकती है। यह अथार्टी राज्य सत्ता की निशानी है। दूसरी निशानी - राज्य सत्ता वाले हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकते हैं। राज्य सत्ता अर्थात् मात-पिता के स्वरूप में अपनी प्रजा की पालना करने की शक्ति वाला। *राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं भी सदा सर्व में सम्पन्न और औरों को भी सम्पन्नता में रखने वाले। राज्य सत्ता अर्थात् विशेष सर्व प्राप्तियाँ होंगी-सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों के खजानों से भरपूर। स्वयं भी और सर्व भी खजानों से भरपूर। राज्य सत्ता वाले अर्थात् अधिकारी आत्मायें बने हो?*
✺ *"ड्रिल :- राज्य सत्ता अधिकारी अर्थात् अथार्टी स्वरूप बनकर रहना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा माया की भूल-भुलैया से आजाद होकर बगीचे में विचरण करती हुई विचार करती हूँ...* कि कैसे मैं आत्मा माया का दास बनकर उदास होती गई... सृष्टि का चक्कर लगाते-लगाते माया के कुचक्र में फंसती चली गई... कैसे प्यारे बाबा ने आकर गम की अधीनता को खत्म कर संगम के सर्व सुखों का अधिकारी बना दिया... *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों, शक्तियों के खजानों से भरपूर कर दिया...* मेरा जीवन ही बदल दिया...
➳ _ ➳ *विचार करते-करते मैं आत्मा चेक करती हूँ कि क्या मैं आत्मा बाबा की दी हुई शक्तियों और खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे वैसे चला सकती हूँ...?* अथार्टी स्वरूप बनकर हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकती हूँ...? माया के अधीन बन कर्मेन्द्रियों के वश तो नहीं हो जाती हूँ...? *अभी मुझ आत्मा में राज्य सत्ता अधिकारी के संस्कार धारण होंगे तभी भविष्य में मैं विश्व राज्य-अधिकारी बनूँगी...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बापदादा का प्यार से आह्वान करती हूँ... सर्वशक्तिवान की किरणों से मैं आत्मा अपने अन्दर के सभी कमी-कमजोरियों, पुराने-स्वभाव संस्कारों को अंश सहित खत्म कर रही हूँ... मैं आत्मा आर्डर देकर कर्मेन्द्रियों को अपने अधीन कर रही हूँ... *दिव्य गुणों को धारण कर मन, बुद्धि, संस्कारों पर अथॉरिटी चला रही हूँ... और अपने राज्य सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी की सीट पर सदा सेट रहती हूँ...* अथॉरिटी स्वरूप बनकर माया के हर विघ्नों को समाप्त कर रही हूँ... माया के प्रभाव से परे हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा अधीनता के संस्कारों को खत्म कर अधिकारी बन रही हूँ...* सर्व खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे स्व के लिए और सर्व के लिए यूज करती हूँ... *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी बन स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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