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❍ 29 / 06 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *मुख से कडवे वचन तो नहीं निकाले ?*
➢➢ *अमूल्य ज्ञान रत्नों की वैल्यू को समझ धारण किया ?*
➢➢ *बैलेंस द्वारा ब्लिसफुल जीवन जीवन का साक्षातकार करवाया ?*
➢➢ *हर मुश्किल को सहज कर पहाड़ को राई व रुई बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *इस कलियुगी तमोप्रधान जड़जड़ीभूत वृक्ष की दुर्दशा देखते हुए ब्रह्मा बाप को संकल्प आता है कि अभी-अभी बच्चों के तपस्वी रूप द्वारा, योग अग्नि द्वारा इस पुराने वृक्ष को भस्म कर दें,* परन्तु इसके लिए संगठन रूप में फुलफोर्स से योग ज्वाला प्रज्जवलित चाहिए। *तो ब्रह्मा बाप के इस संकल्प को अब साकार में लाओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप की समीपता द्वारा स्वप्न में भी मायाजीत आत्मा हूँ"*
〰✧ बाप के सदा समीप कौन रह सकता है? समीप रहने वाले की विशेषता क्या होगी? समान होंगे। *जो समान होता है वह समीप होता है। तो जैसे यह थोड़े समय की समीपता प्रिय लगती है, तो सदा समीप रहने वाले कितने प्रिय होंगे! तो सदा समीप रहते हो या सिर्फ थोड़े समय के लिए समीप हो?* समीप रहने के लिए भक्ति-मार्ग में भी सत्संग का बहुत महत्व है। संग रहो अर्थात् समीप रहो। वह तो सिर्फ सुनने वाले होते हैं और आप संग में रहने वाले हो।
〰✧ ऐसे हो? कभी मुख मोड़ तो नहीं लेते हो? माया आकर ऐसे मुख कर लेवे तो? सीता के माफिक माया को पहचान नहीं सको-ऐसे धोखा तो नहीं खाते हो? धोखा खाने वाले चन्द्रवंशी बन जाते हैं। तो अच्छी तरह से माया को पहचानने वाले हो ना। बाप को भी पहचाना और माया को भी अच्छी तरह से पहचाना। अभी वह नया रूप धारण करके आये तो भी पहचान लेंगे ना। या नया रूप देखकर के कहेंगे कि हमको क्या पता! शक्तियां पहचानती हो? या कभी-कभी घबरा जाती हो? *घबराते तब हैं जब बाप को किनारे कर देते हैं। अगर बाप के संग में हैं तो माया की हिम्मत नहीं जो समीप आ सके। तो पहचान ही लकीर है, इस पहचान की लकीर के अन्दर माया नहीं आ सकती।* तो लकीर के अन्दर रहते हो या कभी-कभी संकल्प से थोड़ा बाहर निकल आते हो?
〰✧ अगर संकल्प में भी साथ की लकीर से बाहर आ जाते हो तो माया के साथी बन जाते हो। संकल्प वा स्वप्न में भी बाप से किनारा नहीं। ऐसे नहीं कि स्वप्न तो मेरे वश में नहीं हैं। स्वप्न का भी आधार अपनी साकार जीवन है। अगर साकार जीवन में मायाजीत हो तो स्वप्न में भी माया अंश-मात्र में भी नहीं आ सकती। तो माया-प्रूफ हो जो स्वप्न में भी माया नहीं आ सकती? स्वप्न को भी हल्का नहीं समझो। क्योंकि जो स्वप्न में कमजोर होता है, तो उठने के बाद भी वह संकल्प जरूर चलेंगे और योग साधारण हो जायेगा। इसीलिए इतने विजयी बनो जो संकल्प से तो क्या लेकिन स्वप्न-मात्र भी माया वार नहीं कर सके। *सदा मायाजीत अर्थात् सदा बाप के समीप संग में रहने वाले। कोई की ताकत नहीं जो बाप के संग से अलग कर सके-ऐसे चैलेन्ज करने वाले हो ना। इतना दिल से आवाज निकले कि हम नहीं विजयी बनेंगे तो और कौन बनेंगे! कल्प पहले बने थे। सदा यह स्मृति में अनुभव हो-हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे *कोई भी सुगन्धित वस्तु सेकण्ड में अपना खुश्बू फैला देती है।* जैसे गुलाब का इसेन्स डालने से सेकण्ड में सारे वायुमण्डल में गुलाब की खुश्बू फैल जाती है। सभी अनुभव करते हैं कि गुलाब की खुश्बू बहुत अच्छी आ रही है। सभी का न चाहते भी अटेन्शन जाता है कि यह खुश्बू कहाँ से आ रही है।
〰✧ ऐसे ही *भिन्न-भिन्न शक्तियों का इसेन्स, शान्ति का, आनन्द का, प्रेम का, आप संगठित रूप में सेकण्ड में फैलाओ।* जिस इसेन्स का अकार्षण चारों ओर की आत्माओं को आये और अनुभव करें कि कहाँ से यह शान्ति का इसेन्स वा शान्ति के वायब्रेशन्स आ रहे हैं। जैसे अशान्त को अगर शान्ति मिल जाए वा प्यासे को पानी मिल जाए तो उनकी आँख खुल जाती है, बेहोशी से होश में आ जाते हैं।
〰✧ *ऐसे इस शान्ति वा आनन्द की इसेन्स के वायब्रेशन्स से अन्धे की औलाद अन्धे की तीसरी आँख खुल जाए।* अज्ञान की बेहोशी से इस होश में आ जाए कि यह कौन हैं, किसके बच्चे हैं, यह कौन-सी परम-पूज्य आत्मायें हैं। ऐसी रूहानी ड्रिल कर सकते हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आज बाप-दादा मिलने के लिए आये हैं। मुरली तो बहुत सुनी है। *सर्व मुरलियों का सार एक ही शब्द है - 'बिन्दु' जिसमें सारा विस्तार समया हुआ है।* बिन्दु तो बन गये हो ना? बिन्दु बनना, बिन्दु को याद करना और जो कुछ बीता उसको बिन्दु लगाना। यह सहज अनुभव होता है ना? *यह अतिसूक्ष्म और अति शक्तिशाली है। जिससे आप सब भी सूक्ष्म फरिश्ता बन, मास्टर सर्व शक्तिवान बन पार्ट बजाते हो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देवताओं समान स्वीट बनना और बनाना"*
➳ _ ➳ *मधुबन की पावन धरती... ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि पर विचरण करते हुए मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के अंग संग होने का दिव्य अनुभव कर रही हूँ...* यहां का कोना-कोना ब्रह्मा बाबा की जैसे गाथा, चरित्र गा रहा है... मेरे कदम शांति स्तंभ की ओर चले जाते हैं... यहां बैठते ही अव्यक्त परिस्थिति सहज ही बन रही है... *ऊपर से अव्यक्त बापदादा बाहें फैलाए मेरा इंतजार कर रहे हैं... उनके स्नेह भरी दृष्टि पाकर मैं आत्मा निहाल हो रही हूँ...*
❉ *दिव्य गुणों और शक्तियों के गहनों से मुझ आत्मा को श्रृंगारते हुए बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे बच्चे... स्वीटेस्ट बाप इस धरती पर आए हैं... तुम्हें स्वीट बनाने... तुम्हें अब देवताओं जैसा स्वीट बनना और बनाना है... *माया ने तुम्हें विकारी बनाकर कड़वा बना दिया है... शिव बाबा कितना स्वीटेस्ट है... उन जैसा स्वीट कोई हो नहीं सकता... अब बाप तुम्हें आप समान स्वीटेस्ट बना रहे हैं..."*
➳ _ ➳ *बाबा की स्नेह भरी वाणी सुन गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे बाबा... आप मुझसे कितना स्नेह करते हैं... माया और पांच विकारों के वश होकर मैं आत्मा कैसे दु:खों के जंगल में भटक रही थी... आप मुझे फूलों के बगीचे में ले जा रहे हैं... *अब मैं आत्मा आपके श्रीमत का पालन कर स्वयं को देवताओं समान स्वीट बना रही हूँ...*"
❉ *अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से मुझे भरपूर करते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:-* "मेरे लाडले बच्चे... *देवताओं की कितनी महिमा गाते हैं... उनको कितनी मीठी नजर से देखते हैं... कहां मंदिर खुले तो देवताओं का दर्शन करें... भल उनकी मूर्ति पत्थर की होती है, लेकिन समझते हैं कि यह स्वीट होकर गए हैं... बाबा उन्हीं देवताओं के समान तुम्हें स्वीटेस्ट बना रहे हैं...* इसलिए तुम्हें मुख से कभी कड़वे वचन नहीं बोलने हैं... सदैव स्वीट, मीठा बोलना है..."
➳ _ ➳ *बाबा की शिक्षाओं का स्वरूप बनती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे बाबा... आप मुझे स्मृति दिला रहे हैं... जब मैं आत्मा देवस्वरूप में थी, मेरा स्वरूप कितना दिव्य था... मैं कितनी स्वीट थी... अब मैं वही स्वरूप फिर से धारण कर रही हूँ... *मैं आत्मा सभी के प्रति मीठे बोल ही बोल रही हूँ... कभी भी कड़वे वचन नहीं बोल रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान की गुह्य बातों को सहज रीति समझाते हुए प्यार के सागर बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *जितना अशरीरी, देही अभिमानी बनेंगे और मीठे बाप को याद करेंगे...* उतना ही मीठा बनेंगे... देही अभिमानी बन बाप और वर्से को याद करना है... मुझे याद करेंगे तो मेरे जैसा मीठा बन जाएंगे... *बाबा तो जैसे मिठास का पहाड़ है... तो मीठा बनाने वाले बाप को कितना याद करना चाहिए..."*
➳ _ ➳ *रोम रोम में बाबा के प्यार को समाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणेश्वर बाबा... मैं आत्मा हर कदम पर आपकी श्रीमत का पालन कर रही हूँ... हर पल आपकी याद में मग्न होकर असीम सुख पा रही हूँ... *बाप और वर्से को याद कर खुशी में झूम रही हूँ... मैं आत्मा स्वीट बनती जा रही हूँ... देवताओं समान स्वीट बन सभी को आप समान स्वीट बना रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप समान स्वीटेस्ट बनना है*
➳ _ ➳ अपने मोस्ट स्वीटेस्ट बाप के समान स्वीटेस्ट बनने का संकल्प मन में लेकर, मैं अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और सेंकड में विदेही बन उनकी स्वीटेस्ट दुनिया की और चल पड़ती हूँ। *वो दुनिया जो सूर्य, चाँद, सितारों से परे हैं, जहाँ प्रकृति के पांचों तत्वों से जुड़ा कुछ भी नही। कोई आवाज, कोई संकल्प नही। वाणी से परें एक ऐसी बेहद खूबसूरत दुनिया जहाँ पहुँच कर आत्मा महसूस करती है जैसे उसकी जन्म - जन्म की प्यास बुझ गई है*। अपनी ऐसी स्वीट दुनिया की और अब मैं आत्मा चल पड़ती हूँ। मन बुद्धि के विमान पर बैठ, देह की दुनिया से किनारा कर अपने स्वीट होम में स्वीटेस्ट बाप से मिलने की लग्न मुझे बहुत ही तीव्र गति से ऊपर आकाश की ओर ले जा रही है। *सेकेण्ड में आकाश तत्व से ऊपर पहुँच कर, मैं सूक्ष्म लोक को भी पार करके पहुँच जाती हूँ अपने स्वीट घर में*।
➳ _ ➳ मेरा यह स्वीट घर जहाँ आकर मेरे चित को चैन और मन को आराम मिल गया है। एक गहन सुकून मैं आत्मा अपने इस घर मे आकर महसूस कर रही हूँ। *यहाँ चारों और फैले गहन शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मुझे विचार शून्य बनाते जा रहें है। हर संकल्प - विकल्प से मुक्त एक खूबसूरत निरसंकल्प स्थिति में मैं स्थित होती जा रही हूँ*। एक शक्तिशाली बीज रूप स्थिति में अब मैं स्थित हो चुकी हूँ और अपने स्वीटेस्ट बीज रूप बाबा से योग लगाकर उस विशाल योग अग्नि को प्रज्ज्वलित करने के लिए अब मैं उनके सम्मुख पहुँच गई हूँ, जिस *योग अग्नि द्वारा मैं अपने जन्म जन्मांतर के पापों को, पुराने सभी आसुरी स्वभाव संस्कारो को जलाकर भस्म करके अपने स्वीटेस्ट बाप के समान स्वीटेस्ट बन जाऊँगी*।
➳ _ ➳ मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप पिता के सामने अब मैं उपस्थित हूँ। उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और मुझे सर्वशक्तियों से सम्पन्न बना रही है। मैं महसूस कर रही हूँ धीरे - धीरे इन किरणों का प्रवाह बढ़ रहा है और ये किरणे ज्वाला स्वरूप धारण करती जा रही है। *योग की अग्नि प्रज्ज्वलित होकर अब मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रही है। आत्मा के ऊपर चढ़ी पुराने स्वभाव संस्कारो की सारी अशुद्धता खत्म होती जा रही है और मैं आत्मा एकदम हल्की, शुद्ध होती जा रही हूँ*। मेरा स्वरूप बहुत ही शक्तिशाली और चमकदार बनता जा रहा है। मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे स्वीटेस्ट बाबा मुझे आप समान स्वीटेस्ट बनाने के लिए अपने समस्त गुण और समस्त शक्तियाँ मुझे प्रदान कर रहें हैं।
➳ _ ➳ बीज रूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप पिता के साथ मिलन मनाकर, योग अग्नि में विकर्मों को दग्ध कर, अपने प्यारे पिता के सर्व गुणों, सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, परमधाम से नीचे आकर अब मैं सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण कर बापदादा के पास पहुँचती हूँ। *मैं देख रही हूँ मेरे बिल्कुल सामने बापदादा खड़े हैं और उनके मस्तक से, उनकी दृष्टि से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल रही हैं और उन धाराओं में समाई ज्ञान और योग की पावन किरणे मुझ फरिश्ते को छू रही हैं*। जैसे पारस के संग में पीतल भी सोना बन जाता है ऐसे ज्ञान और योग की पावन किरणे जैसे - जैसे मेरे ऊपर पड़ रही हैं, विकारों रूपी भूत एक - एक करके भाग रहें हैं और आसुरी अवगुण दैवी गुणों में बदल रहें हैं। *बाबा अपने सारे गुण और सारी शक्तियाँ मेरे अंदर समाहित कर मुझे आप समान स्वीटेस्ट बना रहें हैं*।
➳ _ ➳ परमात्म गुणों और शक्तियों को स्वयं में धारण कर बाप समान स्वीटेस्ट बन कर अब मैं फिर से अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर वतन से नीचे आ जाती हूँ। *साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार तन में मैं आत्मा वापिस प्रवेश करती हूँ और कर्मक्षेत्र पर कर्म करने के लिए तैयार हो जाती हूँ। किन्तु कर्म करते हुए अब मैं हर कर्म योगयुक्त स्थिति में स्थित रहकर करती हूँ*। किसी के भी सम्बन्ध सम्पर्क में आते, आत्मिक स्मृति में स्थित होकर उनको भी मैं आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ जिससे आत्मा के निजी गुण और शक्तियाँ इमर्ज रहते हैं। सबके प्रति आत्मिक दृष्टि मेरे अंदर साक्षीपन का भाव उतपन्न करके सबके पार्ट को साक्षी होकर देखने की मुझे प्रेरणा देती है इसलिये *हर आत्मा के पार्ट को साक्षी होकर देखने से अब मेरे हृदय से सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, शुभकामना स्वत: ही निकलती रहती है। अपने स्वीटेस्ट बाबा के प्यार की मिठास अपने अंदर भरकर, बाप समान स्वीटेस्ट बन अब मैं अपनी मीठी दृष्टि वृति से सबके जीवन को मिठास से भर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बैलेंस द्वारा ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार कराने वाली सर्व के ब्लैसिंग की पात्र आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर मुश्किल को सहज कर पहाड़ को राई व रूई बना देने वाली महावीर आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ तीन प्रकार की प्रवृत्ति है - (1) लौकिक सम्बन्ध वा कार्य की प्रवृत्ति (2) अपने शरीर की प्रवृत्ति और (3) सेवा की प्रवृत्ति। तो *त्यागी जो हैं वह लौकिक प्रवृत्ति से पार हो गये लेकिन देह की प्रवृत्ति अर्थात् अपने आपको ही चलाने और बनाने में व्यस्त रहना वा देह भान की नेचर के वशीभूत रहना* और उसी नेचर के कारण ही बार-बार हिम्मतहीन बन जाते हैं। जो स्वयं भी वर्णन करते कि समझते भी हैं, चाहते भी हैं लेकिन मेरी नेचर है। यह भी देह भान की, देह की प्रवृत्ति है। जिसमें शक्ति स्वरूप हो इस प्रवृत्ति से भी निवृत्त हो जाएँ - वह नहीं कर पाते। यह त्यागी की बात सुनाई
➳ _ ➳ लेकिन *महात्यागी लौकिक प्रृवृत्ति, देह की प्रवृत्ति दोनों से निवृत्त हो जाते* - लेकिन सेवा की प्रवृत्ति में कहाँ-कहाँ निवृत्त होने के बजाए फँस जाते हैं। ऐसी आत्माओं को अपनी देह का भान भी नहीं सताता क्योंकि दिन-रात सेवा में मगन हैं। *देह की प्रवृत्ति से तो पार हो गये। इस दोनों ही त्याग का भाग्य - ज्ञानी और योगी बन गये, शक्तियों की प्राप्ति, गुणों की प्राप्ति हो गई।* ब्राह्मण परिवार में प्रसिद्ध आत्मायें बन गये। सेवाधारियों में वी.आई.पी. बन गये। महिमा के पुष्पों की वर्षा शुरू हो गई। माननीय और गायन योग्य आत्मायें बन गये लेकिन यह जो सेवा की प्रवृत्ति का विस्तार हुआ, उस विस्तार में अटक जाते हैं।
✺ *"ड्रिल :- सेवा की प्रवृति के विस्तार में स्वयं को नहीं अटकाना"*
➳ _ ➳ सेवा की भावना तो मनुष्यात्मा में रही है व उस *सेवा को करते ही उसके पीछे मान शान व स्वार्थ होता है... अभिमान होता है*... और उसके गीत गाते रहते हैं... मैंने ये किया... वो किया... उस की गई सेवा से मान शान पाकर ऊंची सीट तो ले ली... अल्पकाल का सुख भी प्राप्त कर लिया... झूठी शान शौकत जो कांटो से भरी सीट है उसे पाने के लिए बस बाहरी दिखावट और सुंदरता पर मरते गए... गुप्त दान महादान जिसका भक्ति में भी गायन है उसके सही अर्थ को नही समझ पाए... गाते भी रहे ये तन मन धन सब अर्पण... पर फिर भी मैं और मेरी में फंसे रहे... ये सब जो मुझे बाहर से दिख रहा है वैसा नही हैं... *मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूं जो स्वयं भगवान ने मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा गीता ज्ञान सुनाकर घोर अज्ञानता से दूर किया... दिव्य ज्ञान रुपी तीसरा नेत्र, दिव्य दृष्टि देकर ज्ञानवान बना दिया... वाह रे भाग्यवान मैं आत्मा!!*
➳ _ ➳ ये सब चिंतन करते चलते चलते मैं आत्मा पहुंच जाती हूं अपने सेंटर में... *देह व देह के सर्व सम्बंधों से डिटैच कर अपने को आत्मा निश्चय कर बैठ जाती हूँ*... सामने संधली पर दीदी बैठी हैं व दीदीजी इन्स्ट्रूमेंट बन बाबा के महावाक्य सुना रही हैं व मैं आत्मा इन कानों द्वारा सुन रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा को समझानी दे रहे हैं - बच्चे महादानी महात्यागी बनना है... महादानी वरदानी बनने के लिए महात्यागी बनना है... महात्यागी बनने के लिए सबसे पहले *देहभान का त्याग करना है... देह व देह के सर्व सम्बंधों का त्याग करना है... कर्मेन्द्रियजीत बनना है... देहभान के नेचर में वशीभूत नही होना है... देहभान की, देह की प्रवृति से निवृत होकर शक्तिस्वरुप बनना है...*
➳ _ ➳ जैसे मेहमान आता है व उसकी चाहे जितनी सेवा कर लो उसे यही स्मृति रहती है कि घर वापिस जाना है... ऐसे आपको *ये शरीर सेवार्थ मिला है... सेवा के लिए शरीर में आओ... शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करो... फिर अव्यक्त स्थिति में स्थित है जाओ*... अपने घर में आ जाओ... सेवाओं के विस्तार में अपने को अटकाओ नही... कि ये सेवा तो कोई और कर ही नही सकता... नामधारी नही बनो... रुहानी सेवाधारी बनो... सेवाओं के विस्तार में आकर बस सेवाओं में तो मगन हो... पर सेवाओं के विस्तार से माननीय बन देह अभिमान में नही आना... मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को अच्छी रीति धारण कर बाबा से प्रोमिस करती हूँ... और अपने को *आत्मिक स्वरुप में टिकाकर बस निमित्त समझ सेवार्थ साकार वतन में आती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने को निमित्त और ट्रस्टी समझ मन बुद्धि से सब बाबा को अर्पण कर हल्का महसूस कर रही हूँ... *ये शरीर भी बाबा की अमानत है... इसे बाबा जहां चाहे जैसे चाहे यूज करावे... बाबा का ही इन्स्ट्रूमेंट है... करनकरावनहार बस बाबा है*... मैं आत्मा करनहार बन हर सेवा को करते हुए बस प्यारे बाबा को समर्पित करती जा रही हूँ... मैं आत्मा पदमापदम भाग्यशाली हूँ जो बाबा ने मुझ आत्मा में कोई विशेषता देखी... जो मुझ आत्मा को अपने कार्य मे मददगार बनाया... ईश्वरीय सेवा मिलना बहुत बड़ी लाटरी है... मैं आत्मा बिंदु बन
बिंदु बाप के साथ सेवाओं के विस्तार करने में मदद कर रही हूँ... *कराने वाला करा रहा है... करनहार बस मैं तो निमित्त मात्र हूँ*... शुक्रिया बाबा शुक्रिया...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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