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 26 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बुधी की दौड़ लगाई ?*

 

➢➢ *शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते स्वदर्शन चक्र फिराते रहे ?*

 

➢➢ *अपनी हिम्मत के आधार पर उमंग उत्साह के पंखो से उड़ते रहे ?*

 

➢➢ *हर एक की राय को सम्मान दिया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे कोई सागर में समा जाए तो उस समय सिवाय सागर के और कुछ नज़र नहीं आयेगा । *तो बाप अर्थात् सर्वगुणों के सागर में समा जाना, इसको कहा जाता है लवलीन स्थिति । तो बाप में नहीं समाना है, लेकिन बाप की याद में, स्नेह में समा जाना है ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं हिम्मत और हुल्लासे के पँखों से उड़ने वाला हूँ"*

 

✧  सदा हिम्मत और हुल्लास के पंखों से उड़ने वाले हो ना! *उमंग उत्साह के पंख सदा स्वयं को भी उड़ाते और दूसरों को भी उड़ाने का मार्ग बताते हैं। यह दोनों ही पंख सदा ही साथ रहें। एक पंख भी ढीला होगा तो ऊंचा उड़ नहीं सकेंगे।* इसलिए यह दोनों ही आवश्यक हैं। हिम्मत भी, उमंग हुल्लास भी।

 

  *हिम्मत ऐसी चीज है जो असम्भव को सम्भव कर सकती है हिम्मत मुश्किल को सहज बनाने वाली है। नीचे से ऊंचा उड़ाने वाली है।* तो सदा ऐसे उड़ने वाले अनुभवी आत्मायें हो ना!

 

  *नीचे में आने से तो देख लिया क्या प्राप्ति हुई! नीचे ही गिरते रहे लेकिन अब उड़ती कला का समय है। हाई जम्प का भी समय नहीं। सेकण्ड में संकल्प किया और उड़ा। ऐसी शक्ति बाप द्वारा सदा मिलती रहेगी।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कोई भी अपने बुद्धी में व मन में डीस्ट्रबेन्स होगा वा लाइन क्लियर न होने के कारण अपने संकल्पों कि मिक्सचेरिटी हो सकती है। *इसलिए हरेक को देखना चाहिए कि हमारी बुद्धी की लाइन क्लियर है*। बुद्धी में कोई भी किसी प्रकार का विघ्न तो नहीं सताता है? अटूट, अटल, अथक यह तीनों ही बातें जीवन में है। अगर इन तीनों में से एक बात में भी कमी है तो समझाना चाहिए कि बुद्धी की लाइन क्लियर नहीं है।

 

✧  जब बुद्धी की लाइन क्लियर हो जायेगी तो उसकी स्थिती, स्मृति क्या होगी? जितनी - जितनी बुद्धी की लाइन अर्थीत पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होगी उतना - उतना क्या स्मृती में रहेगा? *कोई भी बात में उनके सामने भविष्य ऐसा स्पष्ट होगा जैसे वर्तमान स्पष्ट  होता है*। उनके लिए वर्तमान और भविष्य एक समान हो जायोंगे।

 

✧  जैसे आजकल साइन्सदानों ने कहाँ - कहाँ की बातों को इतना स्पष्ट दिखाया है जो दूर की चीज भी नजदीक नजर आती है। *इसी रीती से जिनका पुरुषार्थ क्लियर होगा उनको भविष्य  की हर बात दूर होते भी नजदीक दिखाई पडेगी*। जैसे आजकल टेलिविजन में देखते है तो सभी स्पस्ट दिखाईढं पडता है ना। तो उनकी बुद्धी और उनकी दृष्टि टेलिविजन की भाँती में सभी बातें स्पष्ट देखेंगी और जानेंगी। और कोई भी बात में पुरुषार्थ की मुश्किलात नहीं रहेंगी।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो ना। अभी हाथ को ऊपर व नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। अभी हाथ को ऊपर वा नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। *तो जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों का मालिक बन जब चाहो कार्य में लगा सकते हो, वैसे ही संकल्प को व बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सकते हो इसको ही ईश्वरीय अथॉर्टी कहा जाता है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नई दुनिया के लिए नया ज्ञान लेकर सूर्यवंशी घराने के मालिक बनना"*

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की यादों में डूबी मैं आत्मा मधुबन पावन भूमि पर कदम रखती हूँ... चारों और पावनता की खुशबू से सराबोर यह भूमि मीठे बाबा की मधुर स्मृतियों को समेटे हुए है... मैं आत्मा बाबा के प्रेम में मन्त्रमुग्ध होकर बाबा के कमरे में पहुँच जाती हूँ...* और उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ... मीठे बाबा मुस्कुराते हुए मीठी दृष्टि देते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि से मुझे इस पुरानी दुनिया से न्यारी बना रहे हैं... नई दुनिया में जाने के लिए पुरानी दुनिया के सभी बातों को भूलकर मैं आत्मा प्यारे बाबा के नये ज्ञान को बहुत ही ध्यान से सुनकर धारण करती हूँ...

 

  *सूर्यवंशी राजपद लेने के लिए नया ज्ञान देकर मुझे सम्पूर्ण और सम्पन्न बनाते हुए ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... सारे बोझ सारी चिंताए मुझ पिता को देकर हल्के होकर उड़ते रहो... सब स्वाहा कर खुशियो से भर जाओ... *पिता बैठा है ना... सब उसको थमा दो... और निश्चिन्त हो आनन्द भरी उड़ान भरो... सदा सुखदायी दुनिया के मालिक बनो...”*

 

_ ➳  *बाबा के प्यार में दीवानी होकर अपने खूबसूरत भाग्य पर बलिहार जाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपना सबकुछ प्यारे बाबा को सौप रही हूँ... *अपना सब स्वाहा कर बाबा से खूबसूरत सुखो को ले रही हूँ... सारे मीठे सतयुगी सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ...”*

 

  *स्वर्ग सुखों को मेरे क़दमों तले सजाते हुए नई दुनिया के रचयिता मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... ऐसा पिता कहाँ मिलेगा भला जो पुराना लेकर सब नए में बदल लौटा दे... *सारे विश्व को बच्चों के कदमो तले ला दे... सतयुगी सुखो से जीवन खुशनुमा बना दे... सुकून भरी सच्ची खुशियां दामन में सजा दे...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अन्धकार भरे पुराने जीवन से निकल नए स्वर्णिम प्रकाश भरी दुनिया की मालिक बनते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *आपके बिना यह जीवन कितना दुखमय था... आपने आकर मुझ आत्मा को सच्चा सुकून सदा का दे दिया है...* मुझ आत्मा ने अपना सब आपको समर्पित कर सारे सुखो का टिकट ले लिया है...

 

  *सत्य ज्ञान का धरोहर देकर सतयुगी सुखों से मेरे भाग्य को ऊँचा बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... *सच्चे पिता से सारे सतयुगी सुख ले लो... सूर्यवंशी राजपद अपने नाम लिखवा लो... इस मिटटी के रिश्तो...  दारुण दुखो से निकल खूबसूरत दुनिया में चलो...* सदा की सुखो की ठंडक भरी छाँव वाली दुनिया को बाँहो में भरो...

 

_ ➳  *अपने भाग्य की झोली को सर्व वरदानों और सर्व सुखों से भरकर मैं भाग्यशाली आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मेरा सारा कालापन ले लो... मुझे सुनहरा सा कर खूबसूरत बना दो... *मुझे जन्नत की ठण्डी छाँव में बिठा दो... मै आत्मा अपना सबकुछ आपको सौप रही हूँ और सूर्यवंशी हो रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप के गले का हार बनने के लिए बुद्धि की दौड़ लगानी है*"

 

_ ➳  मधुबन के आंगन में बैठी, अपने पिताश्री ब्रह्मा बाबा की अव्यक्त पालना के झूले में झूलती, मन बुद्धि से मैं उन दृश्यों को देख रही हूँ जो हमारी वरिष्ठ दादियां अपने अनुभवों में अक्सर सुनाती रहती हैं। *उन अनुभवों की स्मृति मुझे भी उसी साकार पालना का अनुभव करवा रही है। साकार पालना केे ये अनुभव मुझे मन ही मन आनन्दित कर रहें हैं। उन खूबसूरत अनुभवों का सुखद अहसास मुझे मेरे सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति दिला रहा है*। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मैं नाज कर रही हूँ कि अव्यक्त होकर बाबा आज भी उसी साकार पालना का अनुभव कैसे अपने हर बच्चे को करवा रहें हैं! और कैसे उसे अपने पुरुषार्थ में आगे बढ़ने की लिफ्ट दे रहें हैं! *और शायद यही कारण है कि नई आने वाली आत्मायें अपने तीव्र पुरुषार्थ से लास्ट सो फ़ास्ट और फ़ास्ट सो फर्स्ट के स्लोगन को चरितार्थ कर रही हैं*।

 

_ ➳  अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के साथ के मधुर अनुभवों का आनन्द लेते - लेते मैं उन अनुभवों के मधुर एहसास को अपने अन्दर गहराई तक समाने के लिए अपनी पलकों को हल्के से बन्द कर लेती हूँ और गहन सुकून में डूब जाती हूँ। *मन को मिलने वाले इस अथाह सुकून का अनुभव करते - करते एक दृश्य मेरी आँखों के सामने उभरता है। मैं देख रही हूँ अपने सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा को अपने सम्पूर्ण स्वरूप में जिनकी भृकुटि में शिवबाबा विराजमान हैं*। श्वेत प्रकाश की सूक्ष्म काया जिसमे से अनन्त प्रकाश निकल रहा है और उस प्रकाश से निकल रही रश्मियाँ चारों और फैल रही हैं। अपनी श्वेत रश्मियो को फैलाते हुए बाबा मेरी ओर बढ़ रहे हैं और मेरे सामने आकर रुक गए हैं।

 

_ ➳  अब मैं बाबा को अपने अति समीप देख रही हूँ। एकाएक मेरी नज़र बाबा के गले में सजे हार पर जाती है। मैं देख रही हूँ चमकती हुई चैतन्य मणियों की एक बहुत ही सुंदर माला बाबा के गले मे सुशोभित हो रही हैं। *दीपराज बाबा के दिल रूपी तख्त पर राज करने वाले चैतन्य दीपक बाबा के गले का हार बन कर हर पल बाबा के नयनों में समाये हुए हैं*। उन चैतन्य दीपकों के उस हार को देखते - देखते मैं जैसे ही बाबा की ओर देखती हूँ बाबा की गुह्य मुस्कराहट में छुपी उस आश को अनुभव करती हूँ जो बाबा चाहते हैं कि उनका हर एक बच्चा उनके गले का हार बने।

 

_ ➳  बाबा के मन की आश को जान, बाबा के गले मे सजे उस हार का मणका बनने का लक्ष्य लेकर मैं अपने पुरुषार्थ को तीव्र करने की स्वयं से जैसे ही दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ, मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ जैसे बाबा अपनी समस्त ब्लैसिंग मुझे दे रहें हैं। *परमात्म शक्तियों के रूप में मिलने वाली परमात्म ब्लेसिंग मेरे अन्दर एक बल भर रही हैं। अपनी लाइट माइट मुझ में प्रवाहित कर, बाबा मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे हैं*। बाबा की लाइट माइट पाकर मैं स्वयं को उनके समान अनुभव कर रही हूँ। *डबल लाइट बन, अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाने के लिए, बुद्धि की दौड़ लगाकर, अब मैं विकर्म विनाश करने के लिए अपनी उस निराकारी दुनिया मे जा रही हूँ जहाँ पतित पावन मेरे शिव पिता रहते हैं*।

 

_ ➳  अपनी निराकारी मास्टर बीज रूप अवस्था में अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने बीज रूप शिव पिता के सम्मुख देख रही हूँ। अपने ऊपर चढ़े 63 जन्मो के विकर्मो को विनाश करने के लिए अब मैं ज्ञानसूर्य अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ और बाबा से आ रही सर्वशक्तियों को अपने अंदर समाने लगती हूँ। *मैं देख रही हूँ धीरे - धीरे इन सर्वशक्तियों का फोर्स बढ़ रहा है। और ये शक्तियाँ ज्वाला स्वरूप धारण करती जा रही हैं। इन ज्वाला स्वरूप किरणो के मुझ आत्मा पर पड़ने से मेरे जन्म - जन्म के पाप भस्म हो रहें हैं*। विकर्मो की कट जैेसे - जैसे मुझ आत्मा के ऊपर से उतर रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा सच्चे सोने के समान शुद्ध और चमकदार बन रही हूँ।

 

_ ➳  योग अग्नि में अपने विकर्मो को दग्ध कर, सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर मैं आत्मा अब कर्म करने के लिए वापिस साकार सृष्टि पर लौटती हूँ। *अपने साकार शरीर रूपी रथ में, भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान होकर, शरीर निर्वाह अर्थ, कर्मेन्द्रियों से हर कर्म करने के साथ - साथ, बुद्धि की दौड़ लगा कर, बाबा के गले का हार बनने का तीव्र पुरुषार्थ भी अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी हिम्मत के आधार पर उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ने वाली श्रेष्ठ तकदीरवान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं हरेक की राय को सम्मान देते हुए स्वतः सम्मान लेने वाली निर्मानचित आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _  ➳  *ज्ञान सुनना सुनाना तो सहज है लेकिन ज्ञान स्वरूप बनना है। ज्ञान को स्वरूप में लाया तो स्वतः ही हर कर्म नालेजफुल अर्थात् नालेज की लाइट माइट वाला होगा।* नालेज को कहा ही जाता है लाइट और माइट। *ऐसे ही योगी स्वरूप, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप।* धारणा स्वरूप अर्थात् हर कर्म, हर कर्मेन्द्रिय, हर गुण के धारणा स्वरूप होगी। सेवा के अनुभवी मूर्त, *सेवाधारी का अर्थ ही है निरन्तर स्वतः ही सेवाधारी, चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क हर कर्म में सेवा नेचुरल होती रहे,* इसको कहा जाता है चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप।

 

✺   *ड्रिल :-  "चारों ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना"*

 

 _ ➳  *भृकुटि में विराजमान मैं आत्मा... सभी बाहरी बातों से मन बुद्धि को हटाए स्वयं पर एकाग्र करती हूं... मैं चमकती हुई मणि... चैतन्य शक्ति हूं... सूक्ष्म शक्तियां मन बुद्धि संस्कार, कि मैं आत्मा मालिक हूं... मैं आत्मा राजा बन अपनी सम्पूर्ण राजधानी को नियन्त्रण किये हुए हूं...* मेरी सभी कर्मेन्द्रियां कर्मचारी बन मेरा आर्डर मान रही हैं... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी हूं... स्वयं की पहचान दे मुझ आत्मा को बाबा ने नॉलेजफुल बना दिया हैं... अब मैं आत्मा अंधेरे से ज्ञान सोझरे में स्वयं को अनुभव करती हूं... स्वयं की पहचान पाकर मैं आत्मा गदगद हो रही हूं...

 

 _ ➳  *बाबा ने, मुझे आत्मा, परमात्मा तथा ड्रामा का गुह्य राज बतलाकर, आप समान मास्टर नॉलेजफुल बना दिया हैं...* मैं आत्मा स्वयं को बेहद के अविनाशी ज्ञान रत्नों से श्रृंगारी हुई देखती हूं... मास्टर त्रिकालदर्शी, मास्टर नॉलेजफुल की स्टेज पर मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूं... *अब मैं आत्मा शिव पिता से बुद्धि का योग लगाए... अपने पापों को भस्म करती जा रही हूं... बाबा से ज्वाला स्वरूप किरणे मैं स्वयं पर महसूस करती हूं... इस योग अग्नि में मैं आत्मा अपने सम्पूर्ण पापों को भस्म होते देख रही हूं...*

 

 _ ➳  धीरे - धीरे मैं आत्मा सतोप्रधान अवस्था को पा रही हूं... मैं आत्मा पतित पावन बाबा की छत्रछाया में पतित से पावन बन रही हूं... मैं आत्मा देखती हूं... *जितना जितना मैं बाबा को याद करती हूं उतना उतना मैं आत्मा विकर्माजीत अवस्था को प्राप्त कर रही हूं...* मैं आत्मा संपूर्णता के अति निकट स्वयं को देखती हूं... मुझ आत्मा का  हर कार्य युक्तियुक्त, योगयुक्त अवस्था को प्राप्त हैं... *मुझ आत्मा का पुराना सारा हिसाब किताब चुक्तु होता जा रहा हैं... निरंतर योगयुक्त  स्थिती मुझ आत्मा को भविष्य कमाई में मदद कर रही है... मैं ज्ञानी तू योगी आत्मा बनती जा रही हूं...*

 

 _ ➳  योगयुक्त रहने से मैं स्वयं को बहुत ही हल्का और शक्तिशाली स्थिति में देखती हूं... *लाइट माइट स्थिति में स्थित मेरा हर कार्य नॉलेजफुल और योगयुक्त है...* मैं आत्मा स्वयं को धारणा स्वरुप स्थिति में अनुभव कर रही हूं... सारा दिन में मैं आत्मा देखती हूं, कि मेरा हर कर्म ईश्वर अर्थ सेवा में समर्पित हैं... *मनसा-वाचा-कर्मणा संबंध संपर्क में मैं आत्मा बाप समान पतितों को पावन बनाने का धंधा कर रही हूं... ये स्थिति मुझे अथक बना रही हैं...*

 

 _ ➳  बाबा की सर्वशक्तियो, खजानों से संपन्न मैं आत्मा, अथक हो संगम का हर सेकेंड, स्वांस, संकल्प सफल कर रही हूं... मैं देखती हूं जैसे जैसे मैं आत्मा तीव्र गति से बढ़ रही हूं वैसे-वैसे मेरी खुशी का पारा भी बढ़ता जा रहा हैं... मैं आत्मा अतींद्रिय सुखों के झूले में स्वयं को अनुभव कर रही हूं... *इस तरह से मैं आत्मा स्वयं को चारों सबजेक्ट में पास विद ऑनर देखती हूं... चारों ही सब्जेक्ट में मैं आत्मा अनुभवी मूरत होती जा रही हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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