━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 16 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वराज्य अधिकारी स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"मैं कौन" - इस पहेली को अच्छी तरह से जान अपने टाइटल्स की माला का सिमरन किया ?*

 

➢➢ *अल्बेलेपन की नींद से धोखा तो नही खाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *बाप के समीप और समान बनने के लिए देह में रहते विदेही बनने का अभ्यास करो।* जैसे कर्मातीत बनने का एग्जैम्पल साकार में ब्रह्मा बाप को देखा, ऐसे फॉलो फादर करो। *जब तक यह देह है, कर्मेन्द्रियों के साथ इस कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजा रहे हो, तब तक कर्म करते कर्मेन्द्रियों का आधार लो और न्यारे बन जाओ।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ"*

 

  सभी अपने को विश्व कल्याणकारी बाप के बच्चे विश्व कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? विश्व कल्याणकारी आत्माओंकी विशेषता क्या होगी? *विश्व का कल्याण करने वाली आत्मा पहले स्वयं सर्व ख़जानों से सम्पन्न होगी। तो सर्व ख़जानों से भरपूर हो? कितने ख़जाने हैं? बहुत हैं ना! तो सब खजाने से भरपूर आत्मायें ही औरों को दे सकेंगी*

 

  अगर ज्ञान का ख़जाना है तो फुल ज्ञान हो, कोई भी कमी नहीं हो तब कहेंगे भरपूर। तो फुल है या कभी कोई कम भी हो जाता है? है लेकिन समय पर कार्य में लगा सके-ये चेकिंग सदा करते रहो। तो समय पर यूज कर सकते हो कि समय बीत जाता है पीछे सोचते हो? फिर क्या कहना पड़ता है-ऐसे करते थे, ऐसे होता था तो 'थे' और 'था' होता है। *क्या चेक करना है कि समय पर जो ख़जाना चाहिये वो ख़जाना कार्य में लगा या नहीं? विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा हर समय चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में, हर समय सेवा में बिजी रहती हैं।*

 

  तो इतने बिजी रहते हो? सबसे ज्यादा सेवा में बिजी कौन रहता है? *क्योंकि जब नाम ही है विश्व कल्याणकारी तो यह आक्यूपेशन हो गया ना। तो जो आक्यूपेशन होता है उसके बिना रह नहीं सकते। तो सदा बिजी हैं और सदा रहेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *याद के चार्ट पर थकावट का असर नहीं होना चाहिए।* जितना सेवा में बिजी

 रहते हो, भल कितना भी बिजी रहो लेकिन थकावट मिटाने का विशेष साधन *हर घण्टे वा दो घण्टे में एक मिनट भी शक्तिशाली याद का अवश्य निकालो।* जैसे कोई शरीर में कमजोर होता है तो शरीर को शक्ति देने के लिए डॉक्टर्स दो-दो घण्टे बाद ताकत की दवाई पीने लिए देते हैं।

 

✧   टाइम निकाल दवाई पीनी पडती हे ना तो *बीच-बीच में एक मिनट भी अगर शक्तिशाली याद का निकालो तो उसमें ए, बी, सी, - सब विटामिन्स आ जायेंगे।* सुनाया था ना कि शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती।

 

✧   जब हैं ही बाप के और बाप आपका, सर्व सम्बन्ध हैं, दिल का स्नहे हैं, नॉलेजफुल हो, प्राप्ति के अनुभवी हो, फिर भी शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती, उसका कारण क्या? अपनी याद का लिंक नहीं रखते। *लिंक टूटता है, इसलिए फिर जोडने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ चेक करो कि कौन सा लगाव नीचे ले आता है? अपनी देह का लगाव खत्म किया तो सम्बन्ध और पदार्थ के लगाव आपे ही खत्म हो जायेंगे। अपनी देह का लगाव अगर है तो सम्बन्ध और पदार्थ का लगाव भी अवश्य ही खीचेगा। इसलिए पहला पाठ पढ़ाते हो कि - देह-भान को छोड़ो, तुम देह नहीं, आत्मा हो। तो यह पाठ पहले अपने को पढ़ाया है? *देह-भान को छोड़ने का सहज से सहज तरीका क्या है? चलो, आत्मा 'बिन्दी' याद नहीं आती, खिसक जाती है। लेकिन यह तो वायदा है कि तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा..। जब देह मेरी है ही नहीं तो लगाव किससे? जब मेरा है ही नहीं तो ममता कहाँ से आई? मेरे में ममता होती है।* जब मैंने दे दिया तो लगाव खत्म हुआ। इस एक बात से ही सब लगाव सहज खत्म हो जायेंगे। अभी यह देह बाप की अमानत है - सेवा के लिए। *तो सदा फरिश्ता बनने के लिए पहले यह प्रेक्टिकल अभ्यास करो कि - सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ।* ट्रस्टी अगर ट्रस्ट की चीज में ट्रस्ट नहीं करे तो उसको क्या कहा जायेगा? इस बात को पक्का करो। *फिर देखो, फरिश्ता बनना कितना सहज लगता है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वराज्य अधिकारी बनना"*

 

➳ _ ➳  मै आत्मा भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ... मुझसे चारो ओर दिव्य प्रकाश फैल रहा है.. अपने प्रकाशित स्वरूप को देख रही हूँ और फ़रिश्ता बनकर सूक्ष्म लोक में मीठी ब्र्ह्मा माँ के पास पहुंचती हूँ... *मीठी माँ मुझे स्नेह से अपनी ममतामयी गोद में आलिंगन करती है.*.. और शिव पिता भी आतुर से हसीन नजारा देखने चले आये है... शिव पिता को देख... मै आत्मा उनके गले मै झूम जाती हूँ... प्यारे बाबा अपने वरदानी हाथो को सिर पर रख... आशीर्वादों की वर्षा कर रहे है...

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को विजय तिलक से आलोकित करते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मै पिता बच्चों को माया के बन्धनों से मुक्त कराकर 21 जनमो का स्वराज्य देने आया हूँ... इसलिए गुणो और शक्तियो के सागर पिता से सारे खजाने लेकर... *स्वयं को ईश्वरीय गुणो से लबालब कर, सुखो के अधिकारी बनो.*.. यादो की अग्नि में सारे विकारो को भस्म करो...."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानी महावाक्य सुनकर कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपकी यादो में खोकर में आत्मा सदा ही मौज में हूँ... दिव्य गुणो से सजधज कर देवताओ की धरती पर कदम रख रही हूँ... *आपकी यादो में अपनी दैहिक विकृतियों को खत्म कर पवित्रता की किरणों से भर गयी हूँ..*."

 

❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अतुल धन दौलत का मालिक बनाते हुए बोले ;- " मीठे लाडले बच्चे... रूहानी फूल बनकर गुणो की खशबू से महकने वाले गुलाब बनो... *अपने विकारो के काँटों को योग अग्नि में जलाकर निर्मल पवित्र बनो.*.. और पवित्रता के सौंदर्य पर मीठे बाबा को मोहित कर स्वर्ग का अधिकार प्राप्त करो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने खोये वजूद को मीठे बाबा से पाकर निहाल हो गयी और बोली :- "सच्चे साथी बाबा... *मेरे सुखो की चिंता स्वयं भगवान कर रहा है, यह कितना महान भाग्य है.*.. अपनी गोद में बिठाकर फूलो सा खिलाना... और स्वर्ग की जमी को मेरे नाम लिखना... यह ईश्वर पिता ही मेरे लिए कर सकता है कोई मनुष्य नही..."

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा को सुखो के नजारे दिखाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह धरती, आसमाँ सुखो से सजे, आप बच्चों के लिए ही है... बस श्रीमत का हाथ पकड़ देह के भान... और *विकारो के दलदल से बाहर निकल जाओ.*.. सारे अवगुण खत्म कर... स्वर्ग की बादशाही पर अपना हक जमाओ..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने भाग्य की जादूगरी पर मुस्करा कर मीठे बाबा से कहती हूँ ;- "प्यारे लाडले बाबा मेरे... दैहिक रिश्तो और देहभान ने मुझे विकारी और काला कर दिया... *आपने अपनी पसन्द बनाकर मुझे गोरा और उजला कर दिया है.*.. आपके प्यार की शीतलता में, मै आत्मा पुनः निखर उठी हूँ और दिव्यता में मुस्करा रही हूँ..." यूँ अपनी भावनाओ का हार... मीठे बाबा के गले में डाल, मै आत्मा सृस्टि रंगमंच पर आ गयी...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- "मैं कौन" इस पहेली को अच्छी तरह से जान अपने टाइटल्स की माला का सिमरण करना*"

 

_ ➳  अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति में खोई अपने भाग्य के बारे में मैं विचार कर रही हूँ और मन ही मन अपने आप से बातें कर रही हूँ कि इस दुनिया में मुझसे अधिक सौभाग्यशाली भला कोई हो सकता है। *जिसकी महिमा हर रोज स्वयं भगवान करता है, ऊंचे ते ऊंचे और श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ स्वमानो की माला स्वयं भगवान हर रोज जिसके गले मे पहनाता है वो कोटो में कोई, और कोई में भी कोई पदमापदम सौभागशाली आत्मा हूँ मैं*। मन ही मन अपने भाग्य को सराहते हुए मैं उन सभी टाइटल्स को स्मृति में लाती हूँ जिनकी माला वरदानों के रूप में बाबा हर रोज मेरे गले मे पहनाते हैं *"तुम मास्टर भगवान हो" "विश्व के पूर्वज हो" "मास्टर सर्वशक्तिवान", "मास्टर ऑल माइटी अथॉरिटी" हो, तुम "मास्टर त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ हो"* भक्तो द्वारा अपनी महिमा में गाये हुए इन सभी टाइटल्स की माला बना कर भगवान मेरे गले मे पहना देते हैं।

 

_ ➳  "वाह मैं आत्मा वाह" "वाह मेरा भाग्य वाह" खुशी में यह गीत गाते हुए मैं विचार करती हूँ कि आज दिन तक देवी देवताओ के जड़ चित्रों के सामने जा कर उनको श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ समझने वाली मैं आत्मा ये ही नही जान पाई थी कि "मैं कौन हूँ"। लेकिन *भगवान ने स्वयं आकर "मैं कौन" की इस पहेली को सुलझा कर मुझे स्मृति दिला दी कि मैं ही तो हूँ ये चैतन्य देव देवी जिसके जड़ चित्र के सामने खड़े होकर मैं उनसे दया मांग रही हूँ। जिन शब्दों को अपने मुख से बोल कर, इनकी महिमा गा रही हूँ वो महिमा, वो टाइटल्स मेरे ही तो हैं*। "मैं कौन" की इस पहेली को अच्छी तरह से जान अपने टाइटल्स की माला का सिमरण करते हुए, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं अपने प्यारे प्रभु का दिल की गहराइयों से धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने मुझे मेरे इस ऊँच और महान स्वरूप की स्मृति दिलाई और मुझे फिर से ऐसा बनने का लक्ष्य याद दिलाया।

 

_ ➳  अपने प्यारे मीठे बाबा का शुक्रिया अदा करके उनकी मीठी याद में मैं अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ और उनसे मिलने की लग्न में मग्न होकर बैठ जाती हूँ। अपने अति प्यारे मीठे बाबा से मिलने की लगन मुझे सेकण्ड में उनके समान विदेही स्थिति में स्थित कर देती है और इस अति न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को नश्वर देह और देह के हर सम्बन्ध से बिल्कुल न्यारा अनुभव करने लगती हूँ। *स्वयं को इन सबसे अलग एक अति तेजस्वी मणि के रूप में देखते हुए मैं इन सबसे किनारा कर अपने पिता से मिलने के लिए उनके वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। भृकुटि की कुटिया से बाहर आकर, मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं सीधे ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ और सेकण्ड में आकाश में पहुँच कर उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को पार कर आत्माओं की निराकारी दुनिया ब्रह्मलोक में पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  अथाह शान्ति से भरपूर अपने शान्तिधाम घर में आकर गहन शान्ति की अनुभूति करके मैं आत्मा जब पूरी तरह तृप्त और सन्तुष्ट हो जाती हूँ तो शांति के सागर अपने शिव पिता के पास जाकर उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ जाती हूँ। *थोड़ी देर अपने पिता की किरणों की छत्रछाया में आराम करके मैं धीरे - धीरे उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर अब उन्हें टच करती हूँ। उन्हें छूते ही उनकी सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणो का फव्वारा पूरे वेग से मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगता है*। ये शीतल फुहारें जैसे ही मुझ आत्मा के ऊपर पड़ती हैं एक गहन शीतलता की अति सुखद अनुभूति से मैं भर जाती हूँ। अतींद्रिय सुख के गहरे अनुभव में मैं खो जाती हूँ। *गहन सुखमय स्थिति का अनुभव करके, बाबा की सर्वशक्तियों से भरपूर होकर शक्तिशाली बन कर अब मैं कर्म करने के लिए वापिस कर्मभूमि पर लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  साकार सृष्टि रूपी कर्मक्षेत्र पर आकर, अपने शरीर रूपी रथ पर मैं फिर से विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हुए अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव हर समय कर रही हूँ। *"मैं कौन" की पहेली को अच्छी तरह से जानकर अब मैं सदैव अपने पिता द्वारा मिले श्रेष्ठ स्वमानो की सीट पर सदा सेट रहकर, अपने टाइटल्स की माला का सिमरण करते हुए इस अमूल्य जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ। अपने सर्वश्रेष्ठ टाइटल्स की माला का सिमरण मुझे सदैव ऊंचे ते ऊंची अधिकारी पन की स्थिति में स्थित रख कर माया के हर वार से बचाकर, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का अनुभव हर पल करवा रहा है*। में भटकती और तड़पती हुई आत्मायें भी शांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों से ऊपर देख रही है और शांति की किरणों की बरसात में नहा कर जैसे असीम शांति का अनुभव करके प्रसन्न हो रही हैं। *विश्व की सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाकर अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ फिर से सूक्ष्म लोक में पहुंचता हूँ*। अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार कर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा अपने शांत स्वरूप में स्थित हो कर वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूँ।

 

 _ ➳  साकारी दुनिया मे आ कर अब मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, निरन्तर अपने शांत स्वधर्म में रहकर शांति के वायब्रेशन चारों ओर फैला रही हूँ। सर्व आत्माओ को शांति के सागर बाप का परिचय दे कर, उन्हें भी अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो कर शांति पाने का सहज उपाय बता रही हूं। *स्वयं को शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ सदा कम्बाइंड अनुभव करने से मेरे सम्पर्क में आने वाली परेशान आत्मायें डेड साइलेन्स की अनुभूति करके सहज ही अपनी सर्व परेशानियों से मुक्त हो रही हैं*। "विश्व की सर्व आत्माओं को शांति का अनुभव कराना" यही मेरा कर्तव्य है। इस बात को सदा स्मृति में रख अब मैं इसी ईश्वरीय सेवा में निरन्तर लगी रहती हूँ।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्म अभिमानी स्थिति का व्रत धारण कर वृत्तियों को परिवर्तन करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं शान्ति की शक्त्ति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाली मास्टर शान्ति देवा आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ऐसे नहीं सोचना कि अभी कुछ समय तो पड़ा हैइतने में विनाश तो होना नहीं हैयह नहीं सोचना। विनाश होना है अचानक। पूछकर नहीं आयेगा कि हाँ तैयार हो! सब अचानक होना है। आप लोग भी  ब्राह्मण कैसे बनें? *अचानक ही सन्देश मिला, प्रदर्शनी देखी, सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ बदल गये। क्या सोचा था कि इस तारीख को ब्राह्मण बनेंगेअचानक हो गया ना! तो परिवर्तन भी अचानक होना है।* आपको पहले माया और ही अलबेला बनायेगीसोचेंगे हमने तो दो हजार सोचा था - वह भी पूरा हो गया, अभी तो थोड़ा रेस्ट कर लो। पहले माया अपना जादू फैलायेगी, अलबेला बनायेगी। किसी भी बात मेंचाहे सेवा मेंचाहे योग मेंचाहे धारणा मेंचाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में यह तो चलता ही हैयह तो होता ही है ....ऐसे पहले माया अलबेला बनाने की कोशिश करेगी।

 

 _ ➳  *फिर अचानक विनाश होगाफिर नहीं कहना कि बापदादा ने सुनाया ही नहींऐसा भी होना है क्या!* इसलिए पहले ही सुना देते हैं - अलबेले कभी भी किसी भी बात में नहीं बनना। *चार ही सबजेक्ट में अलर्ट, अभी भी कुछ हो जाए तो अलर्ट।* उस समय नहीं कहना बापदादा अभी आओअभी साथ निभाओअभी थोड़ी शक्ति दे दो, उस समय नहीं देंगे। *अभी जितनी शक्ति चाहिएजैसी चाहिए उतनी जमा कर लो। सबको खुली छुट्टी हैखुले भण्डार हैंजितनी शक्ति चाहिए, जो शक्ति चाहिए ले लो। पेपर के समय टीचर वा प्रिन्सीपाल मदद नहीं करता।*   

 

✺   *ड्रिल :-  "अचानक की स्मृति से अलर्ट होकर अलबेलेपन से मुक्त होने का अनुभव"*

 

 _ ➳  पहाड़ी की ऊँची चोटी पर खड़ी मैं आत्मा... देख रही हूँ प्रकृति के सौंदर्य को... आह्लादक नज़ारा...  हरियाली की चुनरी ओढ़े सजी धरती... नीला नीला आसमान... जरमर जरमर बहते झरनें... असीम शांति की आगोश में मैं आत्मा सिर्फ एक की ही यादों में खोई  हूँ... *वह हैं मेरे शिवबाबा... मेरे पिता परमेश्वर... ब्रह्माण्ड के स्वामी की मैं संतान... बिंदु रूपी बाप की यादों में बिंदु रूप बनती जा रही हूँ... देवकुल की मैं देव आत्मा... देवताई गुणों के स्वामी का आह्वान करती हूँ...*

 

 _ ➳  मेरे पिता परमेश्वर... अपनी राज दुलारी का दुलार भरा आह्वान सुन कर मेरे समीप आ जाते हैं... *ब्रह्मा तन में अवतरित मेरे पिता का भव्य रूप देख के मैं आत्मा भाव विभोर हो जाती हूँ...* अश्रुभीनी आँखों से मैं बापदादा के गले मिलती हूँ... बापदादा मुझे अपने पास बिठा कर मुझ आत्मा के सर पर आशीर्वादों से भरा रूहानी हाथ रख रहे हैं...  बापदादा से आती हुई शक्तियों को मैं आत्मा अपने में धारण करती जा रही हूँ... *और अचानक बापदादा का धर्मराज का रूप देख मैं आत्मा भयभीत हो जाती हूँ...* बापदादा मेरा हाथ पकड़ें ले चलते हैं सूक्ष्म वतन में... और मैं आत्मा डरी हुई... सहमी सहमी सी बापदादा को देखती रहती हूँ... आँखों में अश्रु की धारा बहती ही जा रही हैं...

 

 _ ➳  सूक्ष्म वतन में बापदादा मेरे सर पर अपना हाथ रख कर मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहे हैं... *मनुष्यलोक में चारों ओर विनाश का तांडव रचा हुआ हैं... प्रकृति के पाचों तत्व का विकराल रूप देख कर मैं आत्मा अचंभित हो जाती हूँ...* कहीं ओर आकाश अग्नि वर्षा कर रहा है तो कहीं ओर वरुण का रौद्र रूप दिखाई दे रहा है... कहीं ओर जलसमाधि लिये हुए शहरों को देख रही हूँ... तो कहीं ओर पूरी धरती अचेतन शरीरों का बोझ उठा रही हैं... *त्राहिमाम त्राहिमाम सारी सृष्टि हो गई हैं... और त्राहिमाम त्राहिमाम हर आत्मा बन गयी हैं...*

 

 _ ➳  और मैं आत्मा देख रही हूँ अपने आप को इस विनाशी दुनिया में... अपने अंतिम पलों को महसूस करती हूँ... *समाधि अवस्था में बैठी मैं आत्मा सिर्फ बाप को याद करती हूँ... अंतिम समय में बापदादा की गोदी का सहारा लेकर मैं आत्मा शांति का अनुभव कर रही हूँ...* अब तो अपने घर को जाना हैं... अपने पिता के घर... और फिर सतयुगी दुनिया में रहना हैं... यह बात याद करती मैं आत्मा मृत्यु शैया पर भी मुस्कुराती रहती हूँ... बाप के रंग में रंगी मैं आत्मा... अब मृत्यु को अपने गले का हार बना रही हूँ... अपने अंतिम समय में बापदादा का शुक्रिया अदा करती हूँ... कर्मातीत अवस्था की अंतिम स्टेज पर पहुँची मैं आत्मा... अपनी आँखों से बापदादा को ही देख रही थी... *अंतिम स्वांस लेती मैं आत्मा... बापदादा की बाहों में सदा के लिए समां जा रही हूँ...*

 

 _ ➳  बापदादा का रूहानी हाथ मेरे सर से उठते ही... मैं आत्मा वापिस स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूँ... और *मैं आत्मा यह नज़ारा देख मन ही मन अपने स्थूल देह को श्रद्धांजलि अर्पण करती हूँ... खुद के ही हाथों मंसा अग्निदाह दे रही हूँ...* और बापदादा को मुस्कुराते हुए देखती हूँ... उनका धर्मराज का रूप परिवर्तित हो कर मेरे बाबा का रूप दिखाई दे रहा है... और बापदादा द्वारा सतयुगी स्वराज्य अधिकार को प्राप्त करती हूँ... *अंत में ही आरम्भ को देखती मैं आत्मा कब बापदादा का सन्देश मिला... कैसे प्रदर्शनी देखी... कब सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ और अचानक ही बापदादा की बन गईं...  कभी सोचा भी नहीं था कि ब्राह्मण जन्म मिलेगा...* और ऐसा शानदार... वैभवी ठाठबाठ... से खुद के ही हाथों से खुद का अग्निदाह करने को मिलेगा... *बापदादा के महावाक्य "अंत मती सो गति" को सफल कर दिखाया...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━