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 23 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ड्रामा को अच्छी रीति समझा ?*

 

➢➢ *बाप का डिसरीगार्ड तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *ट्रस्टी बन लोकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए अथक रहे ?*

 

➢➢ *सगा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे अग्नि में कोई भी चीज डालो तो नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद के लगन की अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो।* मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। *लग्न की अग्नि से ऐसा परिवर्तन होता है जो अपनापन कुछ भी नहीं रहता, इसलिए याद को ही ज्वाला रूप कहा है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं 'मेरा बाबा' की स्मृति द्वारा सर्व प्राप्ति से भरपूर आत्मा हूँ"*

 

✧  सबसे सहज सदा शक्तिशाली रहने की विधि क्या है जिस विधि से सहज और सदा निर्विग्न भी रह सकते हैं और उड़ती कला का भी अनुभव कर सकते हैं? सबसे सहज विधि है-और कुछ भी भूल जाये लेकिन एक बात कभी नहीं भूले- 'मेरा बाबा'। *'मेरा बाबा' दिल से मानना-यही सबसे सहज विधि है आगे बढ़ने की। मेरा-मेरा मानने का संस्कार तो बहुत समय का है ही। उसी संस्कार को सिर्फ परिवर्तन करना है। 'अनेक' मेरे को 'एक' मेरा बाबा उसमें समाना है।* एक को याद करना सहज है ना और एक मेरे में सब-कुछ आ जाता है। तो सबसे सहज विधि है-”मेरा बाबा”। 'मेरा' शब्द ऐसा है जो न चाहते भी याद आती है। 'मेरे' को याद नहीं करना पड़ता लेकिन स्वत: याद आती है।

 

  भूलने की कोशिश करते भी 'मेरा' नहीं भूलता। *योग अगर कमजोर होता है तो भी कारण 'मेरा' है और योग शक्तिशाली होता है तो उसका भी कारण 'मेरा' ही है। 'मेरा बाबा'-तो योग शक्तिशाली हो जाता है और मेरा सम्बन्ध, मेरा पदार्थ-यह 'अनेक मेरा' याद आना अर्थात् योग कमजोर  होना।* तो क्यों नहीं सहज विधि से पुरुषार्थ में वृद्धि करो। विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है। रिद्धि-सिद्धि अल्पकाल की होती है लेकिन विधि से सिद्धि जो प्राhत होती है वह अविनाशी होती है। तो यहाँ रिद्धि-सिद्धि की बात नहीं है लेकिन विधि से सिद्धि प्राप्त करनी है। विधि को अपनाना आता है या मुश्किल लगता है?

 

  कमजोर बनना अर्थात् मुश्किल अनुभव होना। बिना कमजोरी के मुश्किल नहीं होता है। तो कमजोर हो क्या? या माया कभी-कभी कमजोर बना देती है? *अगर 'मेरा बाबा' याद आता है, तो बाप सर्वशक्तिवान है ना, तो जैसा बाप वैसे बच्चे। 'मेरा बाबा' याद आने से अपना मास्टर सर्वशक्तिवान का स्वरूप याद आता है। 'मेरा बाबा' कहने से ही 'बाप कौन है', वह स्मृति में आता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *सदा एक लक्ष्य हो की हमें दादा का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना है न कि लेना है*-  यह करें तो मैं करूँ, नहीं। हर एक दाता -  पन की भावना रखे तो सब देने वाले अर्थात सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे। सम्पन्न नहीं होंगे तो दे भी नहीं  सकेंगे। तो *जो सम्पन्न आत्मा होगी वह सदा तृप्त आत्मा ज़रूर होगी।* मैं देने वाले दादा का बच्चा हूँ - देना ही लेना है। जितना देना उतना लेना ही है। प्रैक्टिकल में लेने वाला नहीं लेकिन देने वाला बनना है।

 

✧  *दाता-पन की भावना सदा निर्विघ्न, इच्छा मात्रम्  अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है* - सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नजर रहे। वह लक्ष्य है बिन्दु। एक लक्ष्य अर्थात बिन्दी की तरफ सदा देखने वाले। अन्य कोई भी बातों को देखते हुए भी नहीं देखें। नजर एक बिन्दु की तरफ ही हो - जैसे यादगार रूप में भी दिखाया है कि मछली के तरफ नजर नहीं थी लेकिन आँख की भी बिन्दु में थी।

 

✧  तो मछली है विस्तार और सार है बिन्दु। तो *विस्तार को नहीं देखा लेकिन सार अर्थात एक बिन्दु को देखा।* इसी प्रकार अगर कोई भी बातों के विस्तार को देखते तो विघ्नों में आते - और सार अर्थात एक बिन्दु रूप स्थिति बन जाती और फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु लग जाती। *कर्म में भी फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु। स्मृति में भी बिन्दु अर्थात बीजरूप स्टेज हो जाती। यह विशेष अभ्यास करना है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सभी सदा प्रवृत्ति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो ? जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे। तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना। *जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृत्ति के बन्धन से भी न्यारा रहता है। निमित्त मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृत्ति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो लेकिन अभी-अभी आर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा। सभी स्वतन्त्र हो?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सपूत बन श्रीमत पर चल, पास विद आनर बनकर दिखाने की प्रतिज्ञा करना"*

 

 _ ➳  *84जन्म.... 84मात पिता... अनेक मते... जिन पर चलती चलती मैं आत्मा गोरी से काली बन  पड़ी... फिर आप आए... इतना निरहंकारीपन, कि स्वयं धोबी बन पड़े...* इस अंतिम जन्म आपके श्रीमत पर चल मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन रही हूं बाबा... अब यह महसूसता आती जाती है  बाबा, पहले क्या थे! और अब क्या बनते जा रहे हैं... *यह अलौकिक जीवन अच्छा लगने लगा है... अभी ही आपने मुझ आत्मा को... अलौकिक सीट की पहचान कराई... मैं आत्मा भृकुटि के मध्य विराजमान हूं!...* अब कुछ भी हो जाए बाबा यह सीट न छोड़ने की... माया जीत जगतजीत बनने की, 8 माला में आने की, पास विद आनर होने की मुझ आत्मा की दृढ़ प्रतिज्ञा बन गई है...  क्योंकि अब इच्छा है तो विजय निश्चित है...

 

  *मीठे बाबा अपनी प्यार भरी गोद में मीठी सी थपकी देते हुए बोलते हैं:- "रूहानी बच्चे... 84 जन्म तुमने 84 बाप बदले... मनमत परमत पर चली हो... अभी इस जन्म जो पिताओं का पिता मिला, अब उसकी मत पर चलो और 21 जन्मों के लिए अविनाशी कमाई जमा करो...* देखो कमाई के समय निंद्रा फिट जाती है, तो अब स्वयं को निंद्रा से मुक्त अब कमाई करो... जागो... *अब समय है तकदीर जगाने का..."*

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की गोद में प्यार भरे अनुभव में डूबी मैं आत्मा बाबा से बोली:- "हां मेरे रूहानी बाबा... अब तक तकदीर को लकीर लगी हुई थी....* आत्मा की ज्योति उझाई हुई थी... मगर अब आपकी याद रूपी घृत से मैं आत्मा फिर से जाग उठी हूं... *जीवन पहले जैसी नहीं... अब रातों को सोती हूं तो तुम्हारी ही मीठी यादों में... उठती हूं तो पहले पहले तुम ही याद आते हो..."*

 

  *मीठे बाबा मीठी लाडली मुस्कान देते हुए मुझ आत्मा से बोले:- "लाडली बच्ची... जीवन में बदलाव तो आएगा ही... जितना जितना तुम मेरी याद में रहे श्रीमत पर चल मेरा कहना मानोगी,* बदलाव तो आएंगे ही... बाप भी हर्षित होते हैं तुम्हारे इस नए मरजीवा जीवन को देख... *बाप को भी खुशी होती है बच्चे लायक बन रहे हैं और बाप को क्या चाहिए..."*

 

 _ ➳  *प्यार के सागर की लहरों की गहराइयों में खोते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... सच में मैं कितनी ही भाग्यवान आत्मा हूं जो परमात्म दुआओं की पात्र बनी...* स्वयं भगवान मुझ पर हर्षित हो प्यार लुटा रहे हैं, सचमुच बाबा अब यह बदलाव मुझ आत्मा को और ही दृढ़ करता जा रहा है... *सपूत बच्चा बन तुम्हारी आशा को पूरा करने का दीपक ज्वालामुखी रूप ले चुका है... अब नहीं तो कभी नहीं..."*

 

  *मीठे बाबा सन्मुख बैठे शक्तिशाली दृष्टि देते हुए बोले:- "मीठी बच्चे... दुनिया में देखो कैसे, चाहे कोई भी प्राइम मिनिस्टर हो अपनी सीट को छोड़ने नहीं चाहते... विनाशी कुर्सी के लिए कितनी मेहनत करते... अब तुम्हें तो अविनाशी कुर्सी मिली है,* स्मृति आई है मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूं, तो अब इस सीट को नहीं छोड़ अविनाशी पद का... भविष्य में चक्रवर्ती महाराजा महारानी बनो..."

 

 _ ➳  *मीठे बाबा की शिक्षाओं को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "हां मीठे बाबा... अब तो पास विद ऑनर की ट्रॉफी पर नज़र टिकी हुई है...* लक्ष्य सामने है... मैं आत्मा लक्ष्य स्वरूप हो गई हूं... स्मृति सो समर्थी मैं आत्मा स्व के साथ-साथ विश्व की सर्विस भी करती जा रही हूं... *विश्व कल्याणकारी मैं आत्मा स्वयं को एक जिम्मेवार सपूत बच्चे के रूप में देख रही हूं..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरुषार्थ करके प्रालब्ध बनानी है, ड्रामा कहकर बैठ नही जाना है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठ, बाबा द्वारा मिली ड्रामा की नॉलेज को स्मृति में लाकर, उस पर मन्थन करते हुए मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा ने ड्रामा का जो राज हम बच्चों को समझाया है अगर उसे यथार्थ रीति जानकर, उस ज्ञान को ब्राह्मण जीवन मे धारण किया जाए तो कोई भी ब्राह्मण आत्मा कभी भी अपने इस बहुमूल्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के बेहतरीन अनुभवों से वंचित नही रह सकती। *ब्राह्मण बनकर भी अगर ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव आत्मा को नही हो रहा तो स्पष्ट सी बात है कि ड्रामा को यथार्थ रीति जाना ही नही। कितनी बदनसीब है वो ब्राह्मण आत्मायें जो ये सोच कर पुरुषार्थ ही नही करना चाहती कि मेरा तो ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है और कितनी महान सौभाग्यशाली है वो आत्मायें जो समय और परिस्थिति के अनुसार ड्रामा के ज्ञान को ढाल बनाकर उसे यथार्थ रीति यूज़ कर अपने तीव्र पुरुषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हैं*।

 

_ ➳  मन ही मन यह विचार सागर मंथन करते हुए अपने आप से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस सर्वश्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव करने के लिए और जन्म जन्मांतर की अपनी ऊँच प्रालब्ध बनाने के लिए मैं अपने पुरुषार्थ पर पूरा ध्यान दूँगी। *"ड्रामा में होगा तो हो जायेगा" यह कहकर कभी भी थककर बैठूँगी नही, बल्कि उचित समय पर ड्रामा के ज्ञान को यथार्थ रीति यूज़ कर, बीती को बीती कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर आगे बढ़ने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर करती रहूँगी*। इसी दृढ़ संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने पुरुषार्थ को सदा सहज और मेहनत से मुक्त बनाने का बल स्वयं में भरने के लिए अपने प्यारे पिता के पास जाने की अति सहज यात्रा पर चलने के लिए अपने मन और बुद्धि को मैं एकाग्र कर लेती हूँ और स्वयं को अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित कर लेती हूँ।

 

_ ➳  आत्मिक स्मृति में स्थित होकर, स्वयं को देह से डिटैच करके, अपने गुणों और शक्तियों का अनुभव करते हुए थोड़ी देर के लिए मैं अपने अति सुंदर स्वरूप में खोकर उसका आनन्द लेने में तल्लीन हो जाती हूँ। *भूल जाती हूँ नश्वर देह और देह से जुड़ी सभी बातों को। केवल एक ही स्मृति कि मैं आत्मा हूँ, महान आत्मा हूँ, विशेष आत्मा हूँ, परमात्मा की संतान हूँ, मेरे सर्व सम्बन्ध केवल उस एक मेरे पिता परमात्मा के साथ हैं। इस सृष्टि पर मैं केवल पार्ट बजाने आई हूँ। अब ये पार्ट पूरा हुआ और मुझे वापिस अपने पिता के पास जाना है* इन्ही संकल्पो के साथ मैं आत्मा, एक चमकता हुआ सितारा अब देह से बाहर निकलती हूँ और चल पड़ती हूँ उनके पास उनकी निराकारी दुनिया उस पार वतन में जहाँ प्रकृति के पांचो तत्वों की कोई हलचल नही।

 

_ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ कर, आत्माओं की उस सुन्दर दुनिया में जो मेरा परमधाम घर हैं, जहाँ मेरे पिता रहते हैं उस निर्वाणधाम घर में अब मैं पहुँच चुकी हूँ। चारों और फैले अनन्त लाल प्रकाश को मैं देख रही हूँ। *एक सुंदर लालिमा चारों और बिखरी हुई है जो मन को सुकून दे रही हैं। एक ऐसा गहन सुकून जिससे मैं आत्मा आज दिन तक अनजान थी, वो सुकून, वो शांति, वो सुख पाकर मैं आत्मा जैसे तृप्त हो गई हूँ। मन में अपने पिता से मिलने की आश तीव्र होती जा रही है। अपने प्यारे पिता से मिलकर जन्म  जन्मांतर से उनसे बिछुड़ने की प्यास बुझाने के लिए अब मैं उनके पास जा रही हूँ*। अपने सामने मैं देख रही हूँ सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर, महाज्योति अपने प्यारे पिता को जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। बिना एक पल भी व्यर्थ गवांए अपने पिता की किरणों रूपी बाहों में मैं जाकर समा जाती हूँ।

 

_ ➳  उनकी बाहों में समाकर मैं ऐसा महसूस कर रही हूँ जैसे सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी लहरों में मैं डुबकी लगा रही हूँ। मेरे शिव पिता से रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे झरने की फुहारों की तरह निरन्तर मुझ पर बरस रही है और मुझे असीम सुख, शांति का अनुभव करवाने के साथ - साथ, मुझ में असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली भी बना रही हैं। *स्वयं को सर्वशक्तिसम्पन्न बना कर अब मैं फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ। अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर ड्रामा के राज को यथार्थ रीति स्मृति में रखकर केवल अपने पुरुषार्थ द्वारा अपनी ऊँच प्रालब्ध बनाने पर अब मैं अपना पूरा ध्यान दे रही हूँ*। कोई संदेह, कोई भी प्रश्न अब मेरे मन मे नही हैं। त्रिकालदर्शी बन ड्रामा की हर एक्ट को साक्षी होकर देखते हुए, अपने पुरुषार्थ को ड्रामा के ऊपर ना छोड़ कर, पूरी लगन के साथ भविष्य ऊँच प्रालब्ध बनाने के लिए अब मैं तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ट्रस्टी बन लौकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए अथक रहने वाली डबल लाइट आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहकर भाग्य रूपी परछाई को साथ रखने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ सेवा की भाग-दौड़ भी मनोरंजन का साधन है: सभी अपने को हर कदम में याद और सेवा द्वारा पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यवान समझते हो? कमाई का कितना सहज तरीका मिला है। *आराम से बैठे-बैठे बाप को याद करो और कमाई जमा करते जाओ। मन्सा द्वारा बहुत कमाई कर सकते हो, लेकिन बीच-बीच में जो सेवा के साधनों में भाग-दौड़ करनी पड़ती है, यह तो एक मनोरंजन है। वैसे भी जीवन में चेन्ज चाहते हैं तो चेन्ज हो जाती है। वैसे कमाई का साधन बहुत है, सेकेण्ड में पदम जमा हो जाते हैं, याद किया और बिन्दी बढ़ गई। तो सहज अविनाशी कमाई में बिजी रहो।*

✺ *"ड्रिल :- सेवा के भाग-दौड़ में भी मनोरंजन का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा रंग बिरंगे रंगों से एक चित्र बना रही हूं... इस चित्र में मैं एक ऐसी आत्मा का चित्र बनाती हूं, जो हाथ में माला लेकर राम राम जप रहा है... उस चित्र में मैं यह भी दर्शाती हूं कि वह व्यक्ति हर कर्म करते हुए राम राम जप रहा है... भिन्न भिन्न रंगों के द्वारा मैं यह भी दर्शाती हूं कि वह व्यक्ति हाथ में माला लेकर अनेक स्थानों पर जाकर अपना कर्म कर रहा है... वह चित्र बनाते समय मैं पूरी तरह से उस चित्र में डूब जाती हूं... और *मैं एक छोटा सा मोती बन कर उस व्यक्ति की माला में बैठ जाती हूं... और उस माला में बैठकर अब मैं उस व्यक्ति के और करीब हो जाती हूं और उसकी पूरी दिनचर्या करीब से देखती हूं... तभी मुझे आभास होता है कि इसी माला में ऊपर की ओर शिव बाबा बैठे हैं और मुझे देख कर मुस्कुरा रहे हैं...*

➳ _ ➳ जैसे ही मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुस्कुरा रहे हैं... तो मैं शिव बाबा से पूछती हूं... कि बाबा आपकी मुस्कुराहट का क्या कारण है? बाबा मुझे कहते हैं... *क्या तुमने इस व्यक्ति को ध्यान से देखा और समझा कि यह सारा दिन कितना व्यस्त रहता है फिर भी माला सिमरण करना नहीं भूलता, और ना ही यह अपना कोई भी कर्तव्य भूलता है, और साथ ही बाबा मुझे पूछते हैं... क्या तुम अपना कर्तव्य करते समय अपने परमात्मा को याद करते हो? कितना समय याद करते हो और कितना समय भूलते हो? क्या तुम्हें कुछ याद है? बाबा की यह बातें सुनकर मैं कुछ देर के लिए स्थिर हो जाती हूं...*

➳ _ ➳ कुछ समय उस चित्र में व्यतीत करने के बाद मैं बाहर निकलकर इस देह में विराजमान हो जाती हूं और फिर भी शिव बाबा की कही हुई बातों को नहीं भूलती हूं, और बार-बार अपने सामने शिवबाबा को अनुभव करती हूं... और मुझे यह आभास होता है कि मानो शिव बाबा बार-बार मुझे वही प्रश्न पूछ रहे हैं कि... क्या तुम्हें याद है तुम परमात्मा को कितना समय याद करती हो? और कितना समय भूलती हो? फिर *मैं एकांत मैं जाकर विचार सागर मंथन करती हूं और अपनी दिनचर्या बनाती हूं, जिसमें मैं सारा दिन परमात्मा को याद रख सकूं और मेरा मनोरंजन भी हो जाए व पुरुषार्थ में नवीनता भी आ जाए...*

➳ _ ➳ सबसे पहले मैं अमृतवेला में प्रभु मिलन कर अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती हूं... और जब मैं स्नान करने जाती हूं तो मैं यह अनुभव करती हूं कि मैं आत्मा शिव बाबा की किरणों रुपी झरने में नहा रही हूं... जिससे नहा कर मेरा फरिश्ता स्वरूप निखरता जा रहा है, और मैं बाबा को अपने साथ लेकर श्रृंगार करने बैठती हूं... और मुझे यह भी ध्यान रहता है कि मुझे परमात्मा को भी याद करना है और श्रृंगार भी करना है... मैं बैठ जाती हूं *शीशे के सामने और मैं श्रृंगार प्रारंभ करती हूं... जैसे ही मैं माथे पर बिंदिया लगाती हूं तो मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुझे कह रहे हैं... कि बच्चे तुम शरीर नहीं आत्मा हो, तुम आत्मिक स्थिति में हो... और मैं तुरंत अपने आपको आत्मिक स्थिति में ले आती हूं... फिर मैं अनुभव करती हूं कि मैं आत्मा शिव बाबा की सजनी हूं, शिव बाबा मुझे ज्ञान रत्नों से सजाने के लिए आए हैं...*

➳ _ ➳ और कुछ समय बाद जब मैं सुंदर वस्त्र पहनती हूं, तो मैं अनुभव करती हूं कि मैं सतयुगी देवी हूं और बाबा ने मुझे यह रुप दिया है... और जब मैं भोजन बनाती हूं तो मैं अनुभव करती हूं कि शिव बाबा मेरे सर के ऊपर हैं और अपनी शक्तिशाली और पवित्र किरणों से भोजन को शुद्ध बना रहे हैं... और जब मैं भोजन करके और अपना काम खत्म करके बाहर निकलती हूं तो मैं शिवबाबा को कहती हूं... बाबा इस कड़ी धूप में आप मेरी छत्रछाया बनकर मेरे साथ रहना और पूरे रास्ते भर मैं उनको अपनी छत्रछाया अनुभव करती हूं और उनसे बातें करते हुए चलती हूं... ऐसे ही जब मैं वापस घर लौटती हूं तो अपने सभी काम शिव बाबा की याद में खत्म करके रात को शिव बाबा की गोद में आकर सो जाती हूं... और मैं बाबा को कहती हूं... बाबा धन्यवाद आपने समय पर मुझे समझा दिया कि हम कितने भी व्यस्त हो, *अपने परमात्मा को व्यस्त रहते हुए भी याद कर सकते हैं और मनोरंजन भी हो जाता है... जिससे हमारे पुरुषार्थ में नवीनता आ जाती है और अलबेलापन भी नहीं आता, हमारी याद की यात्रा बढ़ती जाती है...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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