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❍ 16 / 01 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान सागर से बदल भर ज्ञान वर्षा की ?*
➢➢ *सचखंड में चलने के लिए बहुत बहुत सच्चे बनकर रहे ?*
➢➢ *मास्टर नॉलेजफुल बन 5 हज़ार वर्ष की जन्मपत्री को जाना ?*
➢➢ *अपने साथियों को भी बाप के संग का रंग लगाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अभी तक वाचा और कर्मणा की सेवा में जो तेरी-मेरी का, नाम, मान, शान का, स्वभाव, संस्कार का टकराव होता है, समय व सम्पत्ति का अभाव होता है, यह *सर्व विघ्न एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन्सा सेवा करने से सहज समाप्त हो जायेंगे।* रुहानी सेवा का एक संस्कार बन जायेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं वृत्ति से वायुमण्डल बनाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान समझते हुए हर कार्य करते हो? *सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है क्योंकि वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है - 'वृति से वायुमण्डल बनाना'।*
〰✧ *आजकल की आत्माओंको अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है इसलिए अपने वाइब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएँ।*
〰✧ तो सेवा की वृद्धि का फाउण्डेशन यह है - बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं वह चारों ओर करने चाहिए। *सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज दूरदेशी बापदादा अपने साकार दुनिया के भिन्न-भिन्न देश वासी बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा भिन्न-भिन्न देश वासियों को एक देशवासी देख रहे हैं। चाहे कोई कहाँ से भी आये हो लेकिन सबसे पहले सभी एक देश से आये हो। तो *अपना अनादि देश याद है ना प्यारा लगता है ना! बाप के साथ-साथ अपना अनादि देश भी बहुत प्यारा लगता है ना!*
〰✧ बापदादा आज सभी बच्चों के पाँच स्वरूप देख रहे हैं, जानते हो पाँच स्वरूप कौन-से हैं? जानते हो ना! 5 मुखी ब्रह्मा का भी पूजन होता है। तो बापदादा सभी बच्चों के 5 स्वरूप देख रहे हैं। *पहला- अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप। याद है ना अपना स्वरूप?* भूल तो नहीं जाते?
〰✧ *दूसरा है - आदि देवता स्वरूप पहुँच गये देवता स्वरूप में? तीसरा - मध्य में पूज्य स्वरूप, वह भी याद है?* आप सबकी पूजा होती है या भारतवसियों की होती है? आपकी पूजा होती है? कुमार सुनाओ आपकी पूजा होती है? *तो तीसरा है पूज्य स्वरूप। चौथा है - संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप और लास्ट में है फरिश्ता स्वरूप।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे अज्ञान काल में भी कोई -कोई बच्चों में जैसे कि बाप ही नज़र आता है, उनके बोल-चाल से अनुभव होता है- जैसे कि बाप है। इसी रीति *से जो अनन्य बच्चे हैं उन एक - एक बच्चे द्वारा बाप के गुण प्रत्यक्ष होने चाहिए और होंगे। कैसे होंगे? उसका मुख्य प्रयत्न क्या है?* मुख्य बात यही है जो साकार रूप से भी सुनाई है कि - याद की यात्रा, *अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर हर कर्म करना है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप को याद करने की मेहनत कर सच्चा सोना बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सच्चे पिता को ढूंढते-ढूंढते सृष्टि चक्र का चक्कर लगाते रावण की दुनिया में पहुँच गई थी... रावण की पांच विकारों की जेल में कैद होकर दुखी, अशांत हो गई थी... *ज्ञान सागर बाबा आकर मुझे रावण की जेल से छुड़ाकर ज्ञान, योग की भट्टी में तपाकर मुझ आत्मा के ऊपर पड़ी हुई खाद को भस्म कर रहे हैं... और मुझे सच्चा सच्चा सोना बना रहे हैं...* मुझे स्वर्णिम दुनिया में जाने के लिए गुण, शक्तियों से सजा रहे हैं...
❉ *“सोने, हीरे, मोतियों रूपी सुख, शांति, आनंद की किरणों से मेरे जीवन का श्रृंगार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... दर दर भटक कर थक कर शक्तिहीन हो गए हो... अपनी सारी चमक को खोकर निस्तेज हो गए हो... मीठा बाबा वही अमूल्य छवि बनाने आया है... *वही सुंदरता वही अनोखापन भर कर जीवन फूलो सा खिलाने आया है... उसकी मीठी यादो में डूब जाओ जरा...”*
➳ _ ➳ *जीवन की नैया बाबा के हवाले कर प्यारे बाबा की सुनहरी यादों में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै निस्तेज सी आत्मा... आपकी सुनहरी यादो के प्रकाश में मूल्यों की रौशनी से भरती जा रही हूँ... अपनी खुशनुमा और सदा की खुशहाल स्थिति को पाकर अमूल्य होती जा रही हूँ...”
❉ *अंधियारे को मिटाकर मेरे जीवन की राहों में उजाले भरते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... आपने इंसानो को कितना प्यार किया और खुद को खाली और धूमिल ही किया... *अब प्यारे बाबा को प्यार करके देखो... उसे जरा बाँहो में भर कर ख़ुशी में मचलकर देखो... यह जीवन हीरे सा अमूल्य न बन जाय तो फिर कहना...”*
➳ _ ➳ *ज्योति सागर पिता को अपने दिल में बसाकर अविनाशी ज्योति बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा रिश्तो में नातो में भटक कर खुद की चमक खो दी थी... *अब आपकी मीठी यादो में वही श्रृंगार वही सुंदरता को पाती जा रही हूँ... जीवन को मूल्यवान बनाती जा रही हूँ...”*
❉ *अम्बर के सारे तारे मेरे आंचल में सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे बच्चे... *मेरी मीठी यादो के साये में सुख और शांति भरी छाँव में ही जीवन कीमती हो पायेगा... ये यादे ही जीवन को सुंदरता से सजायेंगी... ईश्वरीय यादो को गहरा करो...* जी भरकर बाबा को प्यार करो... और फिर इस सुंदर महकते जीवन में सुखमय रंगो की बहार देखो...”
➳ _ ➳ *मन के सरोवर में कमल खिलाकर पल पल प्रभु की सुहानी यादों के साए में बैठ मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके सुखभरे साये तले बैठ निखरती जा रही हूँ... *आपकी मीठी यादो में अलौकिकता से भरती जा रही हूँ.... सच्चे सुखो को पाकर अमूल्य होती जा रही हूँ...* आपकी यादो ने बाबा कमाल कर दिया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान सागर से बादल भर ज्ञान वर्षा करनी है*"
➳ _ ➳ एक पार्क में बैठी प्रकृति के सुन्दर नजारों और सवेरे की ताजी हवा का आनन्द लेती वहाँ लगे सुन्दर - सुन्दर फूलों को मैं देख रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि थोड़ी देर पहले हुई बारिश की रिम झिम फ़ुहारों ने पार्क की सुंदरता को कैसे चार चांद लगा दिए हैं। *एक - एक फूल खिला हुआ कितना सुन्दर दिखाई दे रहा है और पूरे उपवन की शोभा बढ़ा रहा है। हल्की गीली मिट्टी से आ रही भीनी - भीनी खुशबू मन को कितना लुभा रही है*। इस खूबसूरत दृश्य का आनन्द लेते हुए मैं मन ही मन स्वयं से बात करती हूँ कि वर्षा होते ही हर चीज कैसे खिल उठती है! *सूखे और मुरझाये हुए फूल, पत्ते, पेड़ पौधे आदि कैसे हरे भरे हो जाते हैं और प्रकृति में कैसे एक नई रौनक आ जाती है!*
➳ _ ➳ जैसे वर्षा की रिमझिम फुहारें प्रकृति में नवजीवन का संचार करती हैं ऐसे ही अज्ञान अंधकार में भटकने के कारण दुखी और अशांत आत्माओं पर यदि ज्ञान की शीतल छींटे पड़ जायें तो उन्हें भी नयां जीवन मिल सकता है। *जैसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता ने आकर ज्ञान बरसात कर मेरे रूखे सूखे जीवन को हरा - भरा बनाया है ऐसे ही अब मुझे भी उस ज्ञान सागर अपने शिव पिता से अपने अंदर ज्ञान का अखुट भण्डार जमा कर, बादल बन फिर औरों पर ज्ञान वर्षा कर अपने शिव पिता के कार्य मे उनका सहयोगी बन उनके स्नेह और प्यार का रिटर्न देना है*।
➳ _ ➳ मन ही मन जैसे ही मैं यह संकल्प करती हूँ मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा हो रही है जो रिमझिम फ़ुहारों के रूप में सीधी मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं। *ये रिमझिम फुहारें मुझ आत्मा को भिगो कर एक अति गहन शीतलता का मुझे एहसास करवा रही हैं*। मेरे अंग - अंग में समाकर ये किरणें मेरे शरीर से निकल -निकल कर पार्क में चारों और फैलती जा रही है। *सर्वशक्तियों के इन्द्रधनुषी रंगों का एक शक्तिशाली औरा पार्क के चारों और निर्मित हो गया है*।
➳ _ ➳ अपने फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर इन सतरँगी किरणो के प्रकाश के कार्ब में अब मैं फ़रिश्ता इस पूरे पार्क का चक्कर लगाते हुए ऊपर आकाश की और उड़ चलता हूँ। *मेरे चारों और निर्मित सतरँगी प्रकाश के औरे से निकल रहा प्रकाश बहुत दूर - दूर तक फैलता जा रहा है। इस प्रकाश के साथ - साथ मुझ फ़रिश्ते में निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन भी सब तरफ फैल रहें हैं*। अपने गुणों और शक्तियों की किरणों को चारों तरफ फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर उड़ता हुआ सूक्ष्म वतन में प्रवेश करता हूँ और अपने ज्ञान सागर शिव पिता के भाग्यशाली रथ ब्रह्मा बाबा के पास पहुँच जाता हूँ।
➳ _ ➳ देखते ही देखते ज्ञान सागर मेरे शिव बाबा परमधाम से नीचे आकर ब्रह्मा बाबा की भृकुटि पर विराजमान हो जाते हैं। मैं फरिश्ता धीरे - धीरे बापदादा के पास पहुँचता हूँ और जा कर उनके पास बैठ जाता हूँ। *मै देख रहा हूँ ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से ज्ञान सागर शिव बाबा के ज्ञान की अनन्त किरणे प्रकाश की एक तेज धारा के रूप में निकल रही है और प्रकाश की वो तेज धारा सीधे मुझ फ़रिश्ते के मस्तक पर आकर टच कर रही है*। ज्ञान सागर बाबा के ज्ञान की सम्पूर्ण शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। जैसे बादल भरकर फिर बरसते हैं ठीक इसी प्रकार बाबा अपनी शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान का भंडार मेरे अंदर भर रहें हैं। *स्वयं को मैं अविनाशी ज्ञान के अखुट खजाने से सम्पन्न अनुभव कर रहा हूँ*।
➳ _ ➳ ज्ञान सागर से बादल भर, ज्ञान वर्षा करने के लिए अब मैं फ़रिश्ता सूक्ष्म वतन से नीचे आ जाता हूँ और विश्व ग्लोब पर आकर बैठ जाता हूँ। बापदादा का आह्वान कर, बापदादा के साथ कम्बाइन्ड होकर अब मैं फ़रिश्ता ज्ञान सागर अपने शिव पिता से ज्ञान की अनन्त किरणे स्वयं में समाहित कर, फिर उन्हें चारों और फैलाता जा रहा हूँ। *ज्ञान सागर मेरे शिव पिता से ज्ञान की अनन्त किरणें निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समाकर, शीतल फ़ुहारों के रूप में मुझ फ़रिश्ते से निकल कर विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर पड़ रही है*। ज्ञान की यह वर्षा उन्हें विकारों की तपन से मुक्त कर, गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है।
➳ _ ➳ *विश्व की सर्व आत्माओं पर ज्ञान वर्षा करके, शरीर निर्वाह अर्थ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, कर्म करके, फिर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर परमधाम जाकर ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास बैठ उनके ज्ञान की शक्तिशाली किरणो से स्वयं को भरपूर करना और फिर अपने फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर सारे विश्व पर ज्ञान वर्षा करने की यह ड्रिल अब मैं निरन्तर करती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मास्टर नॉलेजफुल बन 5 हजार वर्ष की जन्मपत्री को जानने वाली स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने साथियों के संग का रंग स्वयं पर नहीं लगने देकर उन पर बाप के संग का रंग लगाने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा इस वर्ष में जो इस समय तक किया, उसमें संतुष्ट हैं, आफरीन भी देते हैं। लेकिन अभी सेवा में अनुभूति कराना, शमा के ऊपर परवाने बनाना, चाहे सहयोगी बनाओ, चाहे साथी बनाओ, कुछ बनें। अनुभूति की खान खोलो*। अच्छा है - यहाँ तक ठीक है। लेकिन सिर्फ चक्कर लगाने वाले परवाने नहीं बनें। पक्के परवाने बनेंगे -अनुभूति का कोर्स कराने से। इतने तक अनुभूति होती है - बहुत अच्छा है, स्वर्ग है। यही यथार्थ ज्ञान है, नालेज है, इतना सेवा का रिजल्ट अच्छा है। *अभी अनुभूति स्वरूप बन अनुभव कराओ। अनुभव करने वाले अर्थात् बाप से डायरेक्ट सम्बन्ध रखने वाले।* ऐसे अनुभवी परवाने तैयार करो। सहयोगी बनाये हैं, उसकी मुबारक है और बनाओ। यह स्थान है, यहाँ से ही प्राप्ति हो सकती है, इतने तक भी मानते हैं लेकिन बाप के साथ जरा-सा कनेक्शन तो जोड़ो, जो शमा के पीछे ही भागते रहें। तो *इस वर्ष विशेष बापदादा सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराना चाहते हैं। इससे ही साक्षात्कार भी होंगे और साक्षात बाप प्रत्यक्ष होंगे।* सुना, क्या करना है?
✺ *ड्रिल :- "सेवा में अनुभूति कराने का कोर्स कराना"*
➳ _ ➳ *मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूं... शान्त तन और मन लिए बापदादा के चित्र को देखते देखते उनसे बातें करते हुए बाबा के पास पहुँचती हूँ... अपने घर उस रूहानी लोक में, जहां है... असीम शान्ति, मेरा स्वीट होम* कितना प्यारा कितना न्यारा है... सब कुछ यहां... अपने रोम-रोम में मैं शान्ति का अनुभव कर रही हूं... *अपने बिंदु स्वरूप बाबा से मुझ बिंदु पर निरंतर किरणें आ रही हैं... इन प्रकाश की किरणों में ना जाने कौन सा जादू है... कि मैं आत्मा आनंद की लहरों में लहराने लगती हूँ...*
➳ _ ➳ *इस अनोखे अलौकिक आनंद में झूमती मैं उस ज्योतिर्बिन्दु के इर्द गिर्द घूमने लगती हूं जैसे परवाना शमा के इर्दगिर्द घूमता है* और चाहती हूं कि ये घड़ियां बस अब यहीं रुक जाए... *ये परमात्म आनंद ये अलौकिक सुख..."पाना था जो पा लिया अब और ना कुछ बाकी रहा"...* इसी अनुभूति में लहराती मैं अपनी पाँच तत्वों की काया में प्रवेश करती हूं... *इतने प्यारे इतने रूहानी अनुभव के लिए बाबा को मेरा रोम-रोम धन्यवाद देता है... तभी एक बात जेहन में आती है... जैसे बाबा कह रहे हों बच्चे ऐसी ही अनुभति तुम्हें औरों को भी करानी होगी सच्चे परवाने तैयार करने हैं... जी बाबा!* कह मैं इस सेवा कोर्स को अन्य आत्माओं को कराने की तैयारी में लग जाती हूं...
➳ _ ➳ *बापदादा का हाथ और साथ अपने साथ लिए मैं अपने सेवास्थल पर पहुँचती हूं...* जहाँ मेरे भाई बहन बाबा की याद में बैठे हैं... मुझे इन आत्माओं को वही अलौकिक अनुभव कराना है... *जिस रूहानी यात्रा में मैंने इतना असीम सुख पाया वो इन्हें भी दिलाना है...* मैं अपनी पूरी शुभ भावना और शुभ कामना उनको देती हूं...
➳ _ ➳ बाबा ने जो रूहानी दृष्टि मुझे दी वो मैं अब इन आत्माओं को दे रही हूं... इस दृष्टि को लेते ही सब आत्माएँ रूहानियत के पंख लगा कर बाबा के पास परमधाम में परवाने के जैसे पहुंच रही हैं... *आनंद उत्साह में डूबे ये परवाने उस अलौकिक शमा के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं... झूम रहे हैं... मर मिटने को तैयार हैं...* बाबा की किरणें इन आत्माओं को परम शांति... परम सुख... की अनुभूति करा रही हैं... *बाबा को प्रत्यक्ष अनुभव कर इनके मन सुख, चैन से भर गए हैं सभी इस आनंद रस में भीग रहे हैं...*
➳ _ ➳ वापिस अपनी साकारी दुनिया में आती सभी आत्माएं अपने को *प्रेमधन* से भरपूर कर गुनगुना रही हैं... *"क्या क्या ना पाया बाबा हमने तेरे प्यार में"* इनको प्रभुप्रेम से भरा देख मैं भी हर्षित होती हूं... और अपने प्यारे मीठे बाबा को इस सेवा इस अनुभव के लिए दिल से शुक्रिया अदा करती हूं... *वाह वाह मेरे बाबा वाह वाह* ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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