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 05 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *परीक्षाएं व तूफ़ान आते भी कर्मेन्द्रियों से कोई भूल तो नहीं की ?*

 

➢➢ *दो बारी ज्ञान स्नान जरूर किया ?*

 

➢➢ *ब्राह्मण जीवन की विशेषता को जानकार उसे कार्य में लगाया ?*

 

➢➢ *मनमनाभव के मन्त्र द्वारा मन को भटकने से रोका ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  हरेक यही संकल्प लो कि हमें शान्ति की, शक्ति की किरणें विश्व में फैलानी है, तपस्वी मूर्त बनकर रहना है, *अब एक दूसरे को वाणी से सावधान करने का समय नहीं है, अब मन्सा शुभ भावना से एक दूसरे के सहयोगी बनकर आगे बढ़ो और बढ़ाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  अपने को बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्माये अनुभव करते हो? बाप के बन गये – यह ख़ुशी सदा रहती है? *दुःख की दुनिया से निकल सुख के संसार में आ गये। दुनिया दु:ख में चिल्ला रही है और आप सुख के संसार में, सुख के झूले में झूल रहे हो। कितना अंतर है! दुनिया ढूँढ़ रही है और आप मिलन मना रहे हो।*

 

  तो सदा अपनी सर्व प्राप्तियो को देख हर्षित रहो। क्या-क्या मिला है, उसकी लिस्ट निकालो तो बहुत लम्बी लिस्ट हो जायेगी। क्या-क्या मिला? *तन में खुशी मिली, तो तन की खुशी तन्दुरूस्ती है; मन में शान्ति मिली, तो शान्ति मन की विशेषता है और धन में इतनी शक्ति आई जो दाल-रोटी 36 प्रकार के समान अनुभव हो। ईश्वरीय याद में दाल-रोटी भी कितनी श्रेष्ठ लगती है!* दुनिया के 36 प्रकार हों और आप की दाल-रोटी हो तो श्रेष्ठ क्या लगेगा? दाल-रोटी अच्छी है ना। क्योंकि प्रसाद है ना।

 

  *जब भोजन बनाते हो तो याद में बनाते हो, याद में खाते हो तो प्रसाद हो गया। प्रसाद का महत्व होता है। आप सभी रोज प्रसाद खाते हो। प्रसाद में कितनी शक्ति होती है! तो तन-मन-धन सभी में शक्ति आ गई।* इसलिए कहते हैं - अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में। तो सदा इन प्राप्तियो को सामने रख खुश रहो, हर्षित रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए, चाहिए - चाहिए तो नहीं हैं?* चाहिए शब्द दाता, विधाता, वरदाता के बच्चों के आगे शोभता है? अभी तो विधाता और वरदाता बनकर विश्व के हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देना है न कि यह चाहिए, यह चाहिए का संकल्प अभी तक करते हो दाता के बच्चे सर्वशक्तियों से संपन्न होते हैं। यही संपन्न स्थिति सम्पूर्ण स्थिति को समीप लाती है।

 

✧  अपने को विश्व के अन्दर सर्व आत्माओं से न्यारे और बाप के प्यारे विशेष आत्माएं समझते हो? तो साधारण आत्माएँ और विशेष आत्माओं में अन्तर क्या होता है, इस अन्तर को जानते हो? *विशेष आत्माओं की विशेषता यही प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देनी चाहिए तो सदा अपने को सर्व शक्तियों से सम्पन्न अनुभव करें।* 

 

✧  जो गायन है अप्राप्ति नहीं कोई वस्तु, वह *इस समय जब सर्व शक्तियों से अपने को सम्पन्न करेंगे तब ही भविष्य में भी सदा सर्वगुणों से भी सम्पन्न, सर्व पदार्थों से भी सम्पन्न और सम्पूर्ण स्टेज को पा सकेंगे।* इसलिए अपने को ऐसे बनाने के लिए ही विशेष भट्ठी में आए हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  एक ही समय प्रकृति के सभी तत्व साथ-साथ और अचानक वार करेंगे। *किसी भी प्रकार के प्रकृति के साधन बचाव के काम के नहीं रहेंगे और ही साधन समस्या का रूप बनेंगे। ऐसे समय पर प्रकृति के विकराल रूप का सामना करने के लिए किस बात की आवश्यकता होगी? अपने अकाल-तख्त नशीन अकालमूर्त बनने से महाकाल बाप के साथ-साथ 'मास्टर महाकाल' स्वरूप में स्थित होंगे तब ही सामना कर सकगे।* महाविनाश देखने के लिए मास्टर महाकाल बनना पड़ेगा। मास्टर महाकाल बनने की सहज विधि कौन-सी है? *अकालमूर्त बनने की विधि है - हर समय अकाल-तख्त नशीन रहना। जरा-सा भी देहभान होगा, तो अकाले मृत्यु के समान अचानक के वार में हार खिला देगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं की संभाल करने के लिए रोज दो बार ज्ञान स्नान करना"*

 

 _ ➳  *चांदनी रात में मैं आत्मा खुले आसमान के नीचे बैठी आसमान की और निहारती हूँ, आसमान में चमकते सितारों को देखकर मैं आत्मा ऐसा अनुभव करती हूं कि जैसे मैं परमधाम में मणियों के बीच हूँ,* और शिव बाबा मुझे देख रहे हैं... आसमान में निहारते निहारते *मैं आत्मा खो जाती हूँ बाबा की मीठी मीठी यादों में* और मन बुद्धि के पंख लगाकर पहुंच जाती हूं परमधाम... *बाबा के समुख बैठ बाबा से प्रवाहित होती शक्तिओं को अपने में समाने लगती हूँ, इन शक्तियों से मेरे विकार भस्म हो रहे हैं, मैं आत्मा पावन बनती जा रही हूं, मेरी अशुद्धता लुप्त होती जा रही है... फिर मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूँ...*

 

  *सूक्ष्म वतन में बाबा मेरे सम्मुख बाहें फैलाये खड़े हैं... और मुझे देखकर कहते हैं:- "आओ मेरी लाडली बच्ची... मैं तुम्हारा ही इन्जार कर रहा था... बाबा मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर एक सुन्दर विमान में बिठाते हैं और हम आकाश में उड़ने लगते हैं...* हमारा विमान एक सुंदर बगीचे में उतरता है... बाबा मुझे संकेत करते हैं यहाँ बहुत से फूलों से टहनियाँ लदी हुई हैं... बाबा मुझे शिक्षा देते  हुए कहते हैं मीठी बच्ची... इस बगीचे में लगे फूलों की ही तरह तुम्हें भी हर तरह प्यार और शांति की खुशबू फैलानी है..."

 

 _ ➳  *बाबा के हाथ में हाथ लिए बगीचे की सैर करते हुए टहनियों पर लगे गुलाब के सुंदर फूलों को देखकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... मेरे इन सुन्दर मन मोहक फूलों के साथ ये कांटे क्यों हैं... *फूलों में गुलाब को तो फूलों का राजा कहते हैं फिर ये कांटों से घिरा हुआ क्यों है....* अपनी खुशबू चारों तरफ बिखेरता ये फूल इतने सारे कांटों में भी स्वयं को सुरक्षित रखे हुए है, *मेरे पथप्रदर्शक प्राण प्यारे बाबा इसका राज़ क्या है...*"

 

   *बाबा मुझे देखकर मुस्कुराते हैं और कहते हैं:-* "मीठी सिकीलधी बच्ची... *जैसे यह फूल कांटों में भी मुस्कुराना नही छोड़ता और अपनी खुशबू से चारों और मन मोहक सुगन्ध से खुशियां ही खुशियां बिखेरता है और एक समान स्थिति में स्थित रहता है उसी प्रकार तुम्हें भी कांटों रूपी परिस्थितियों से अपनी स्थिति को उपराम बनाना है...* तुम्हें भी वृत्ति में रहते हुए सबपर रहम की दृष्टि रख सबका कल्याण करना है... *ज्ञान गंगा में दो बार स्नान कर दूसरों को भी कराने का पुरूषार्थ करना है, इसी स्नान से तुम्हारे विकर्मों का बोझा उतरेगा...*"

 

 _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की बातें सुनकर भाव विभोर हो जाती हूँ, और बाबा की बाहों में समाकर बाबा से कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... आपसे मिल रहे प्यार और लाड से मैं आत्मा स्वयं को सृष्टि की सबसे भाग्यवान आत्मा अनुभव कर रही हूं... बाबा मेरे आपने मेरे जीवन उमंगों और तरंगों से भरपूर कर दिया है, *मुझे इन कांटों भारी दुनिया से निकाल कर सुखों के झूले में बिठा दिया है, आपकी बनकर मैं आत्मा फूली नहीं समाती... मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरे जीवन को भगवान ऐसे सवार देंगे और मुझे ज्ञान रत्नों से भरपूर कर देंगे...* ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर में आत्मा सभी दुखों से छूट गयी हूँ..."

 

  *बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सर पर रख देते हैं और मेरा वरदानों के अलंकारों से श्रृंगार कर, मुझे सुशोभित करते हुए बाबा कहते हैं:-* "मीठी मीठी प्यारी बच्ची... इसी ज्ञान स्नान से पावन बन तुम आत्मा नई दुनियां में चलेंगे... *दिन में दो बार ज्ञान सागर में डुबकी लगाओ और पावन बन पावन दुनिया के अधिकारी बनने का पुरूषार्थ करो, बाप के सत्य ज्ञान को धारण कर बाप की श्रीमत पर जरुर चलना है...* स्वयं की सभाल  करनी है , ज्ञान के प्रकाश से भविष्य उज्ज्वल बनाना है..."

 

 _ ➳  *बाबा की मीठी मीठी बातें सुनकर मैं आत्मा बहुत हल्का अनुभव करते हुए कहती हूं:-* "मीठे बाबा... *मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ जिसे भगवान की श्रीमत मिल रही है...* आज तक मैं आत्मा ना जाने कितने जन्मो से ठोकरें खा रही थी , आज मेरे परम पिता परमात्मा ने मुझे अपना बनाकर मेरी झोली खुशिओं से भर दी है... मैं भगवान का बच्चा बनकर अपने भाग्य को देख एक असीम आनंद का अनुभव कर रही हूं... वाह मेरा भाग्य वाह की मुझे ईश्वर की श्रीमत का परम सौभाग्य मिला... मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपकी श्रीमत पर चलकर मैं आत्मा बहुत न्यारा अनुभव कर रही हूं... वाह मेरा भाग्य जो मुझे आपका भरपूर स्नेह मिला और मेरा जीवन ही बदल दिया... *आपने मुझे कितना सुंदर बना दिया यह सोच सोच कर मेरा रोम रोम खिल रहा है...* मैं आत्मा दिल की गहराइयों से बाबा का शुक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  परीक्षायें वा तूफान आते भी कर्मेन्द्रियों से कोई भूल नही करनी है*

 

_ ➳  मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ कि भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान मैं आत्मा राजा इस शरीर रूपी रथ पर बैठ, कर्मेन्द्रियों रूपी घोड़े की लगाम थामे उसे जैसा ऑर्डर दे रही हूँ हर कर्मेन्द्रिय उसी ऑर्डर प्रमाण कार्य कर रही है। *जीवन मे आने वाली परीक्षायें और माया के तूफान भी मेरी स्व स्थिति के सामने जैसे हार खा कर भाग रहें हैं। हर कर्मेन्द्रिय मेरी सहयोगी बन मुझे हर परिस्थिति पर विजय दिला रही हैं*। किन्तु इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट से नीचे उतरते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मैं आत्मा राजा कर्मेन्द्रियों की गुलाम बन गई हूँ और हर कर्मेन्द्रिय मुझे धोखा दे रही है। *जीवन मे आने वाली छोटी - छोटी परिस्थितियाँ और माया के तूफान मुझे डरा धमका कर मुझ से विकर्म करवा रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर स्थित हो कर कर्म करने और सीट से नीचे उतर कर कर्म करने के अन्तर का स्पष्ट अनुभव करके मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि *पूरे 63 जन्म स्वयं को देह समझने की भूल ने मुझ आत्मा से जो विकर्म करवाये उन विकर्मो के बोझ ने मेरी शान्ति और सुख छीन कर मुझे कितना दुखी और अशांत बना दिया है। अपने स्वधर्म को भूल परधर्म में स्थित होकर कर्मेन्द्रियों से भूले करते - करते मेरी ऐसी दशा हो गई कि सही और गलत की पहचान करना ही मैं  भूल गई*। किन्तु अब जबकि मेरे शिव पिता परमात्मा ने आकर मुझे मेरी पहचान देकर यह स्मृति दिला दी है कि मैं आत्मा गुलाम नही राजा हूँ तो अब मुझे सदैव इस स्मृति में स्थित रहना है और स्वयं को कर्मेन्द्रियों के हर धोखे से बचा कर, ऐसी कोई भूल नही करनी जो विकर्म बने।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा कर, स्वराज्य अधिकारी बन, अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण कर, देह के परधर्म को भूल अपने स्वधर्म में स्थित होकर अब मैं अपने प्यारे प्रभु  की याद में अपने मन और बुद्धि को स्थित करती हूँ और ज्ञान, योग के पँख लगाकर, देह रूपी रथ का आधार छोड़ ऊपर की और उड़ान भरती हूँ। *भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आकर, अपने सिर के ऊपर स्थित होकर, मन बुद्धि के नेत्र से अपनी स्थूल देह को साक्षी होकर देखते हुए, इस देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त होकर अब मैं जा रही हूँ ऊपर आकाश की ओर*। निर्बन्धन होकर उड़ते हुए, इस रूहानी उड़ान का आनन्द लेते हुए, आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर उड़ते हुए, सूक्ष्म लोक को पार करके मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया, अपने स्वीट साइलेन्स होम में।

 

_ ➳  यहाँ पहुँच कर, कुछ क्षण डीप साइलेन्स की अनुभूति में खोकर गहन शान्ति का अनुभव करके अब मैं अपने सामने विराजमान सर्वशक्तिवान, महाज्योति अपने प्यारे शिव पिता के समीप पहुँचती हूँ और उन्हें निहारते हुए धीरे - धीरे उनके बिल्कुल पास जाकर उन्हें स्पर्श करती हूँ। *उन्हें स्पर्श करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में उनका स्नेह मुझ पर बरसने लगा है। उनके स्नेह की शीतल किरणें मेरे रोम - रोम को पुलकित कर रही हैं*। बाबा के स्नेही स्वरूप का अनुभव करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणें अग्नि का रूप धारण कर मेरे द्वारा किये हुए जन्म जन्मांतर के विकर्मो को दग्ध करने लगी है। *विकारो की मैल को अपने ऊपर से उतरता हुआ मैं देख रही हैं*।

 

_ ➳  एक तरफ बाबा का स्नेही स्वरूप मुझे अपने स्नेह की शक्ति से भरपूर कर शक्तिशाली बना रहा है और दूसरी तरफ बाबा का शक्तिस्वरूप सर्वशक्तियों की ज्वलन्त किरणों द्वारा मेरे जन्म - जन्म के पापों को भस्म कर मुझे शुद्ध और पावन बना रहा है। *शुद्ध, पवित्र और शक्ति स्वरूप बनकर मैं वापिस अपना पार्ट बजाने के लिए साकार लोक में लौट आती हूँ*। अपने साकार तन में प्रवेश कर, भृकुटि के भव्य भाल पर विराजमान हो कर, कर्मेन्द्रियों का आधार ले, सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिये मैं तैयार हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होकर हर कर्म कर रही हूँ। "मैं आत्मा राजा कर्मेन्द्रियों की मालिक हूँ" इस स्मृति में सदा रहते हुए अब मैं अपनी इच्छानुसार हर कर्मेन्द्रिय को चला रही हूँ। *कर्मेन्द्रियजीत बन हर कर्म करने से जीवन में आने वाली परिस्थितियां अब मुझे हलचल में लाकर  विचलित नहीे करती। इसलिए परीक्षायें वा तूफान आते भी कर्मेन्द्रियों से कोई भूल ना करते हुए, विकर्मो पर जीत पाकर, विकर्माजीत बनने का पुरुषार्थ मैं सहजता से कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ब्राह्मण जीवन की विशेषता को जानकर उसे कार्य मे लगाने वाली सर्व विशेषता सम्पन्न आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा मनमनाभव के मंत्र की स्मृति में रहकर मन का भटकना बंद करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  जैसे सूर्यवंशी अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज है। 16 कला अर्थात् फुल स्टेज है वैसे हर धारणा में सम्पन्न अर्थात् फुल स्टेज प्राप्त करना सूर्यवंशी' की निशानी है। तो इसमें भी फुल बनना पड़े। *कभी सुख की शय्या पर कभी उलझन की शय्या पर इसको सम्पन्न तो नहीं कहेंगे ना! कभी बिन्दी का तिलक लगाते, कभी क्यों, क्या का तिलक लगाते। तिलक का अर्थ ही है - स्मृति'। सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। तीन बिन्दियों का तिलक ही सम्पन्न स्वरूप है। यह लगाने नहीं आता!* लगाते हो लेकिन अटेन्शन रूपी हाथ हिल जाता है। अपने पर भी हंसी आती है ना! लक्ष्य पावरफुल है तो लक्षण सम्पूर्ण सहज हो जाते हैं। मेहनत से भी छूट जायेंगे। कमजोर होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। शक्ति स्वरूप बनो तो मेहनत समाप्त।

 

✺  *"ड्रिल :- स्वयं को तीन बिंदियों का तिलक लगाना*”

 

_ ➳  *मैं सजनी चली अपने साजन के पास... परवाना बन उड़ चली शमा के पास...* मैं परवाना शमा से निकलती लाइट में समा रही हूँ... इस देह, देह की दुनिया से न्यारी होकर शमा पर मर मिटने को तैयार हो रही हूँ... अपने दिल दर्पण में एक शिव साजन को ही बसा रही हूँ... *मैं आत्मा सजनी साजन के मुहब्बत में मोहित होती जा रही हूँ...*

 

_ ➳  *प्यारे साजन बड़े प्यार से मुझ सजनी का श्रृंगार कर रहे हैं... प्यारे साजन मुझे ज्ञान के घुंघरू बांध रहे हैं...* मैं सजनी शिव साजन के साथ ज्ञान डांस कर रही हूँ... ज्ञान डांस करते-करते मुझ सजनी का तीसरा नेत्र खुल जाता है... मैं आत्मा त्रिनेत्री स्मृति स्वरुप बन रही हूँ... मेरे साजन मेरे मस्तक पर आत्मा, परमात्मा, ड्रामा के तीन बिन्दियों का तिलक लगा रहे हैं...

 

_ ➳  *प्राण प्यारे साजन मुझ सजनी को दिव्य गुणों का कंगन पहना रहे हैं... अष्ट शक्तियों की अगूंठी पहनाकर मुझसे सगाई कर रहे हैं...* दिव्यता का काजल लगाकर मेरी दृष्टि, वृत्ति को दिव्य बना रहे हैं... कानों में ख़ुशी के झुमके लगा रहे हैं... *मीठे सजना मीठी वाणी का अमृत पिला रहे हैं...* अब मैं आत्मा सदा प्यारे साजन से ही सुनती हूँ... और सदा मीठी वाणी ही बोलती हूँ... *मैं सजनी श्रीमत रूपी बिछिया पहनकर सदा अपने साजन के कदम से कदम मिलाकर चलती हूँ...*

 

_ ➳  *प्यारे सजना रूहानियत का इत्र लगाकर मुझे महका रहे हैं...* फरिश्तों की चमकीली ड्रेस पहनाकर पवित्रता के ताज से सजा रहे हैं... *प्राण प्यारे साजन मुझ सजनी के गले में विजय की वरमाला पहनाकर मुझे वर लिए हैं...* अपना बना लिए हैं... मेरे शिव साजन 16 कलाओं से श्रृंगार कर मुझे सम्पन्न बना रहे हैं... मैं आत्मा हर धारणा में सम्पन्न बन सूर्यवंशी' बनने के लक्ष्य को सामने रख वैसे लक्षण धारण कर रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा रोज अमृतवेले उठकर अपने मन रूपी दर्पण में स्वयं को देखती हूँ और सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाकर श्रृंगार करती हूँ...* अब मैं आत्मा अपनी सभी कमी-कमजोरियों से मुक्त होकर शिव की शक्ति बन रही हूँ... मैं आत्मा सजनी सदा अपने साजन के मुहब्बत में रह मेहनत से छूट रही हूँ... अब मैं आत्मा कभी भी क्यों, क्या का तिलक नहीं लगाती हूँ... *अब मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन सदा सम्पूर्ण और सम्पन्नता के स्टेज में स्थित रहती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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