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❍ 06 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"मैंने अच्छी मुरली चलाई" - इस अहंकार में तो नहीं आये?*
➢➢ *एक के साथ पक्की सगाई की ?*
➢➢ *न्यारेपन के अभ्यास द्वारा पास विद ऑनर होने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *स्वयं को शक्ति स्तम्भ बना अनेको को नयी जीवन बनाने की शक्ति प्रदान की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ सेवा का विस्तार भल कितना भी बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, *विस्तार में सार भूल न जाये। खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ"*
〰✧ हर कर्म करते 'कर्मयोगी आत्मा' अनुभव करते हो? कर्म और योग सदा साथ-साथ रहता है? कर्मयोगी हर कर्म में स्वत: ही सफलता को प्राप्त करता है। *कर्मयोगी आत्मा कर्म का प्रत्यक्षफल उसी समय भी अनुभव करता और भविष्य भी जमा करता, तो डबल फायदा हो गया ना। ऐसे डबल फल लेने वाली आत्मायें हो। कर्मयोगी आत्मा कभी कर्म के बन्धन में नहीं फंसेगी। सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे।कर्म के बन्धन से मुक्त-इसको ही 'कर्मातीत' कहते हैं।*
〰✧ *कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे,इसको कहते हैं -कर्मातीत। कर्मयोगी स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है।* तो किसी बंधन में बंधने वाले तो नहीं हो ना? औरों को भी बंधन से छुड़ाने वाले। जैसे बाप ने छुड़ाया, ऐसे बच्चों का भी काम है छुड़ाना, स्वयं कैसे बंधन में बंधेंगे?
〰✧ *कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी है। इससे कोई कितना भी बड़ा कार्य हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं। चाहे कितना भी मेहनत का, सख्त खेल हो, फिर भी खेल में मजा आयेगा ना। जब मल्लयुद्ध करते हैं तो कितनी मेहनत करते हैं। लेकिन जब खेल समझकर करते हैं तो हंसते-हंसतक करते हैं।* मेहनत नहीं लगती, मनोरंजन लगता है। तो कर्मयोगी के लिए कैसा भी कार्य हो लेकिन मनोरंजन है, संकल्प में भी मुश्किल का अनुभव नहीं होगा। तो कर्मयोगी ग्रुप अपने कर्म से अनेकों का कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले, इसी में बिजी रहो। कर्म और याद कम्बाइण्ड, अलग हो नहीं सकते।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ वास्तव में इसको ही ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन कहा जाता है। जिसका जितना स्व पर राज्य है अर्थात स्व को चलने और सर्व को चलाने की विधि आती है, वही नम्बर आगे लेता है। *इस फाउण्डेशन में अगर यथाशक्ति है तो ऑटोमैटिकली नम्बर पीछे हो जाता है।*
〰✧ जिसको स्वयं को चलाने और चलने आता है वह दूसरों को भी सहज चला सकता है अर्थात हैंडलिंग पॉवर आ जाती है। सिर्फ दूसरे को हैंडलिंग करने के लिए हैंडलिंग पॉवर नहीं चाहिए *जो अपनी सूक्ष्म शक्तियों को हैंडिल कर सकता है। वह दूसरों को भी हैंडिल कर सकता है।*
〰✧ तो *स्व के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर सर्व के लिए यथार्थ हैंडलिंग पॉवर बन जाती है।* चाहे अज्ञानी आत्माओं को सेवा द्वारा हैडल करो, चाहे ब्राह्मण परिवार में स्नेह सम्पन्न, संतुष्टता सम्पन्न व्यवहार करो - दोनों में सफल हो जायेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है? या सोचते - सोचते अशरीरी हो जाऊँ, अशरीरी हो जाऊँ, उसमें ही टाइम चला जायेगा? *कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज़ बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं, आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? आपने मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है?कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कण्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है। अगर कण्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियाँ हलचल में ले आ सकती हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह सहित सबकुछ भूल एक बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस देह की मालिक हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... अपने कर्मेन्द्रियों से कर्म करने वाली मैं कर्मेन्द्रियजीत आत्मा हूँ... मैं आत्मा इन स्वमानों का अभ्यास करते-करते इस देह से बाहर निकल जाती हूँ...* मैं अशरीरी आत्मा इस देह का भान छोड़, इस देह की दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में अपने मीठे प्यारे बापदादा के पास... बाबा के सम्मुख बैठ उनके मधुर वचनों को बड़े प्यार से सुनती हूँ...
❉ *पुरानी देह और देह के सम्बन्धी उन सबको भूल एक बाप को याद करने की श्रीमत देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे गुणो से महके और शक्तियो से सजे खुशबूदार फूल थे... *स्वयं को देह समझ मटमैले हो गए और दुखो के दलदल में धँस गए... अब वही खुबसूरत मणि सा रूप रंग याद करो... और श्रीमत का हाथ पकड़ इस देह के दलदल से मुक्त हो जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के श्रीमत रूपी हाथों में हाथ रख मणि बन मुस्कुराते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको भूल स्वयं को भूल दुखो के घने जंगल में उलझ गयी थी... *आज आपकी गोद में आकर फिर से फूलो जैसा खिलती जा रही हूँ... अपने अविनाशी पन के नशे में डूबती जा रही हूँ... आपकी यादो में मेरा कायाकल्प हो गया है...”*
❉ *इस विषय सागर से निकाल अपने स्नेह के सागर में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिन देह के रिश्तो को सत्य समझ समय,साँस, संकल्प खपा रहे.... वह मात्र छलावा है, यह देह के सम्बन्ध् विनाशी है... *श्रीमत के साये में आत्मिक स्नेह की धारा में खो जाओ... और सब विनाशी नातो को भूल एक पिता की सच्ची यादो में गहरे डूब जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की यादों में बेफिक्र बादशाह बन आजाद पंछी बनकर उड़ते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के सम्बन्धो से उपराम होकर आत्मिक सत्यता से छलक उठी हूँ... *प्यारे बाबा आपने ज्ञान के नेत्र से मुझे मेरे वजूद का पता देकर... मुझे कितना सुखी प्यारा और निश्चिन्त बना दिया है...* मै आत्मा श्रीमत को पाकर हर दुःख से उबर गयी हूँ...”
❉ *सत्यता के रंगों से रंगकर मेरे जीवन को खुशनुमा बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता ने जो सत्य भरी, श्रीमत की राहो का राही बनाया है... उस पर उमंगो और खुशियो के पंखो से सदा उड़ते रहो... *देह के विकारी नातो को भूल आत्मिक नशे में सच्चा स्नेह लुटाओ... सच्चे साथी ईश्वर पिता की यादो में... देवताओ सा मुस्कराता, सुखो से सजा जीवन पाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देह के भान से मुक्त होकर आत्मिक नशे में नूर बन चमकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मिटटी में लथपथ मिटटी के खिलोनो से खेल... दुखो के जीवन को ही अपनी तकदीर समझ रही थी... *प्यारे बाबा आपने तो मेरा भाग्य ही खिला दिया... मुझे कितना प्यारा नूरानी बना दिया और सतयुगी राजरानी सजा दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक के साथ सर्व सम्बन्ध रख बुद्धि योग अनेक बन्धनों से निकाल देना है*"
➳ _ ➳ सर्व सम्बन्धों का सुख देने वाले अपने दिलाराम भगवान शिव बाबा का मैं दिल की गहराइयों से धन्यवाद देते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि "वाह मेरा भाग्य वाह" दुनिया वाले जिस भगवान की केवल एक झलक पाने के लिए व्याकुल है वो भगवान मेरा सर्वसम्बन्धी बन कर, हर पल मेरे साथ रहता है। *मेरी पालना करने के लिए कभी माँ बन जाता है और अपनी ममता की मीठी छांव में मुझे बिठाकर, प्यार के पालने में मुझे झुलाता है। कभी बाप बन कर अपने कन्धे पर मुझे बिठाकर सारे जहां की सैर करवाता है, अपना सारा प्यार मुझ पर लुटाता है*। कभी मेरा सबसे प्यारा, सच्चा दोस्त बन कर हर मुश्किल घड़ी में मुझे मेरे पास नजर आता है और अपनी उपस्थिति से ही मुझ में असीम बल भर कर उस मुश्किल घड़ी में से मुझे बाहर निकाल लाता है। *कभी मेरा हमसफ़र बन, साये की तरह मेरे साथ रहते हुए हर सुख दुःख में मेरा साथ निभाता है*।
➳ _ ➳ ऐसे हर सम्बन्ध का जब मेरा बाबा मुझे अनुभव कराता है तो फिर देह और देहधारियों के झूठे स्वार्थी प्यार की मुझे जरूरत भी क्या है! *इन्ही विचारों के साथ अपने दिलाराम बाबा की मोहब्बत के झूले में झूलते हुए, उनसे ही सदा सर्व सम्बन्धो का सुख लेने का दृढ़ संकल्प मन मे करते हुए मैं अपने दिलाराम बाबा की दिल को सुकून देने वाली और मन को तृप्त कर देने वाली मीठी याद में खो जाती हूँ*। बाबा की याद का रुहानी नशा जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर चढ़ने लगता है मैं देहभान से बिल्कुल न्यारी एक अति प्यारी अशरीरी स्थिति में स्थित होने लगती हूँ।
➳ _ ➳ अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे देह रूपी वस्त्र बिल्कुल ढीला हो गया है और मैं जब चाहे सेकण्ड में इससे अलग हो सकती हूँ। इसी संकल्प के साथ देह रूपी वस्त्र का त्याग करके भृकुटि की कुटिया से मैं बाहर आ जाती हूँ। *देह से बाहर आते ही मैं ऐसा महसूस कर रही हूँ जैसे देह और देह की दुनिया से मैं पूरी तरह उपराम एक खूबसूरत साक्षी अवस्था में स्थित हूँ। किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव ना मुझे इस देह से और ना देह से जुड़ी किसी वस्तु से हो रहा है। एक बहुत अनोखा हल्कापन मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ*। यह हल्कापन मुझे ऊपर की ओर ले जा रहा है। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कोई चुम्बकीय आकर्षण मुझे अपनी ओर खींच रहा है। और मैं आत्मा उस आकर्षण में बंधी उसकी ओर खिंची चली जा रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के प्रेममय आकर्षण में बंधी मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, पहुंच गई हूँ अपने निराकार शिव पिता के पास उनकी निराकारी दुनिया में। आत्माओं की इस अद्भुत निराकारी दुनिया में, देह और देह की दुनिया के संकल्प से भी परें, जगमग करती चैतन्य मणियों के बीच में मैं स्वयं को देख रही हूँ। *मेरे बिल्कुल सामने ज्ञान सूर्य शिवबाबा चमक रहें हैं। उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें पूरे परमधाम में फैल रही हैं। अपने प्यारे बाबा को एकटक निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ और कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ *इस स्मृति के साथ कि मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ और मेरे सर्व सम्बन्ध केवल मेरे पिता परमात्मा के साथ है*। देह के सम्बन्ध तो केवल कर्मो के हिसाब किताब चुकतू करने के लिए हैं।
➳ _ ➳ यह स्मृति मुझे देह से न्यारी स्थिति का अनुभव करवाकर, देह की दुनिया से न्यारा बनाकर केवल एक की मोहब्बत में लवलीन रखती है। *इसलिए देह धारियों से प्रीत निकाल, सर्वसम्बन्ध बाबा से निभाते, दिल की मोहब्बत उनके साथ रखते, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए अपने ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द अब हर पल लेती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं न्यारेपन के अभ्यास द्वारा पास विद ऑनर होने वाली ब्रह्मा बाप समान आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं को शक्ति स्तम्भ बना कर अनेकों को नई जीवन बनाने की शक्ति प्राप्त करवाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *जैसे बाप अशरीरी है, अव्यक्त है वैसे अशरीरी पन का अनुभव करना वा अव्यक्त फरिश्ते पन का अनुभव करना - यह है रंग में रंग जाना*। कर्म करो लेकिन अव्यक्त फरिश्ता बनके काम करो। अशरीरीपन की स्थिति का जब चाहो तब अनुभव करो। ऐसे मन और बुद्धि आपके कन्ट्रोल में हो। आर्डर करो - अशरीरी बन जाओ। आर्डर किया और हुआ। फरिश्ते बन जायें। जैसे *मन को जहाँ जिस स्थिति में स्थित करने चाहो वहाँ सेकण्ड में स्थित हो जाओ*। ऐसे नहीं ज्यादा टाइम नहीं लगा, 5 सेकण्ड लग गये, 2 सेकण्ड लग गये। आर्डर में तो नहीं हुआ, कन्ट्रोल में तो नहीं रहा। *कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है?* या सोचते - सोचते अशरीरी हो जाऊं, अशरीरी हो जाऊं, उसमें ही टाइम चला जायेगा?
➳ _ ➳ कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं,आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है... अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? *आपने मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है? कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है।* अगर कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियां हलचल में ले आ सकती हैं।
✺ *ड्रिल :- "परमात्म रंग में रंग जाना अर्थात् सेकण्ड में अशरीरी बनने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा, मन बुद्धि से बापदादा के कमरे में... बापदादा के चित्र के सामने... *मधुशाला के प्यालों के समान बाबा की दोनों आँखें... एक पावनता और दूसरा रूहानियत से भरपूर...* भर-भर कर छलक रहे है दोनों आँखों के प्याले... और उन पावन रूहानी एहसासों को मैं आत्मा, आँखों से ही घूँट- घूँट कर पिये जा रही हूँ... *रूहानी नशे में चूर मैं, अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हुई...* मन बुद्धि रूपी पंखों को फैलाये नन्हीं तितली के रूप में... *नन्हें पंखों को हिलाती हुई मैं बापदादा की हथेली पर जाकर बैठ गयी हूँ... एक खूबसूरत सा एहसास... उनके इतने करीब होने का...* अपनी नन्हीं नन्हीं आँखों से बाबा को टुकुर टुकुर देखती हुई... बेहद प्यार से दृष्टि दे रहे है बापदादा मुझे... और देखते ही देखते मैं चमचमाते हीरे के रूप में बदलती हुई... *उनकी हथेली पर मैं आत्मा चमचमाते कोहिनूर हीरे के समान...* मेरी आभा से भरपूर हो गया है आस पास का पूरा ही वातावरण... जैसे एक साथ असंख्य चाँद जमीन पर उतर आये हो...
➳ _ ➳ मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... बापदादा एक नये रूप में मेरे सम्मुख... *विशाल और भव्य से टबनुमा बर्तन में भरा है अशरीरी पन का रंग, रूहानियत का रंग... और हाथों में पावनता की पिचकारी लिए एक एक आत्मा को उस रंग में भिगोतें हुए... पूरा रंगने में समय लग रहा है किसी- किसी आत्मा को... अलग अलग पोज़ बदलती हुई आत्माए... मगर मैं याद कर रहा हूँ बापदादा के महावाक्य... बच्चे सेकेंड में अशरीरी होना ही बाप के रंग में रंगना है...* और ये निश्चय कर मैं उतर गया हूं पूरी तरह से उस विशाल से टब में एक ही सेकेंड में... *बेहद खूबसूरत एहसास... अशरीरीपन का...* हम दोनों एक ही रंग में रंगे... *अब पहचान मुश्किल सी है, कौन दर्पण है और कौन है चेहरा... मेरी रंगत से मेल खा रहा है रंग रूप तेरा...*
➳ _ ➳ बापदादा हाथ बढाकर मुझे निकाल रहें है उस टब से... *मगर वो रंग अब पूरी तरह मुझे रंग चुका है...* गले लगा रहे है बापदादा मुझे... और *सेकेंड में कन्ट्रोलिंग पावर का वरदान दे रहे है मेरे सर पर हाथ रखकर...* गहराई से महसूस कर रहा हूँ उन वरदानी हाथों की ऊष्मा को अपने सर पर... और बापदादा के सेकेंड के इशारें पर मैं बापदादा के साथ बिन्दु रूप धारण कर परम धाम की यात्रा पर... मैं और बापदादा परमधाम में बीज रूप अवस्था में... शिव बिन्दु के एकदम करीब... देर तक खुद को सेकेन्ड की कन्ट्रोलिंग पावर से सम्पन्न कर मैं लौट आया हूँ अपनी उसी देह में... मगर देह में भी विदेही और शरीर में अशरीरीपन का गहराई से एहसास समायें हुए... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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