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❍ 07 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान हमें पदाने आते हैं" - इसी ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *"अब हमें वापिस स्वीट होम जाना है" - यह स्मृति रही ?*
➢➢ *संगमयुग पर श्रेष्ठ मत द्वारा श्रेष्ठ गति को प्राप्त किया ?*
➢➢ *दृढ़ संकल्प से हर कदम में बाप को फॉलो किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात, समय की बात.....* सब सहज हो जाती है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। *जब बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले भी ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विश्व-परिवर्तक आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को विश्व-परिवर्तक अनुभव करते हो? विश्व-परिवर्तन करने की विधि क्या है? स्व-परिवर्तन से विश्वपरिवर्तन। *बहुतकाल के स्व-परिवर्तन के आधार से ही बहुतकाल का राज्य-अधिकार मिलेगा। स्व-परिवर्तन बहुतकाल का चाहिए। अगर अन्त में स्व-परिवर्तन होगा तो विश्व-परिवर्तन के निमित्त भी अन्त में बनेंगे, फिर राज्य भी अन्त में मिलेगा।* तो अन्त में राज्य लेना है कि शुरू से लेना है? अच्छा, लेना शुरू से है और करना अन्त में है?
〰✧ अगर लेना बहुतकाल का है तो स्वपरिवर्तन भी बहुतकाल का चाहिए। क्योंकि संस्कार बनता है ना। तो बहुतकाल का संस्कार न चाहते हुए भी अपनी तरफ खींचता है। जैसे अभी भी कहते हो कि मेरा यह पुराना संस्कार है ना, इसीलिए न चाहते भी हो जाता है। तो वह खींचता है ना। *तो यह भी बहुत समय का पक्का पुरुषार्थ नहीं होगा, कच्चा होगा, तो कच्चा पुरुषार्थ भी अपनी तरफ खींचेगा और रिजल्ट क्या होगी? फुल पास नहीं हो सकेंगे ना। इसलिए अभी से स्व-परिवर्तन के संस्कार बनाओ। नेचुरल संस्कार बन जाये। जो नेचुरल संस्कार होते हैं उनके लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती।* स्व-परिवर्तन का विशेष संस्कार क्या है?
〰✧ जो ब्रह्मा बाप के संस्कार वो बच्चों के संस्कार। तो ब्रह्मा बाप ने अपना संस्कार क्या बनाया, जो साकार शरीर के अन्त में भी याद दिलाया? निराकारी, निर्विकारी, निरअहंकारी-ये हैं ब्रह्मा बाप के अर्थात् ब्राह्मणों के संस्कार। तो ये संस्कार नेचुरल हों। निराकार तो हो ही ना, ये तो निजी स्वरूप है ना। और कितने बार निर्विकारी बने हो! अनेक बार बने हो ना। ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही है निरहंकारी। तो ये ब्रह्मा के संस्कार अपने में देखो कि सचमुच ये संस्कार बने हैं? ऐसे नहीं-ये ब्रह्मा के संस्कार हैं, ये मेरे संस्कार हैं। फालो फादर है ना। पूरा फालो करना है ना। तो सदा ये श्रेष्ठ संस्कार सामने रखो। *सारे दिन में जो भी कर्म करते हो, तो हर कर्म के समय चेक करो कि तीनों ही संस्कार इमर्ज रूप में हैं? तो बहुत समय के संस्कार सहज बन जायेंगे। यही लक्ष्य है ना! पूरा बनना है तो जल्दी-जल्दी बनो ना।* समय आने पर नहीं बनना है, समय के पहले अपने को सम्पन्न बनाना है। समय रचना है और आप मास्टर रचयिता हैं। रचता शक्तिशाली होता है या रचना? तो अभी पूरा ही स्व-परिवर्तन करो। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में 'कब' 'कब' नहीं है। 'अब'। तो ऐसे पक्के ब्राह्मण हो ना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अन्तिम दृश्य और दृष्टा की स्थिति :- *चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हो फिर भी सेकण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ।* फुलस्टॉप लगाना आता है? फुलस्टॉप लागाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। *क्वेचन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा।*
〰✧ तो वर्तमान समय हलचल बढने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। *अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा।* एक तरफ प्रकृति का विकराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अंत होने के कारण अति विकराल रूप होगा।
〰✧ अपना लास्ट वार आजमाने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकारा चौथी तरफ क्या होगा? *पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *किस आधार पर रूहानी खुशबू सदाकाल एकरस और दूर दूर तक फैलती है अर्थात् प्रभाव डालती है? इसका मूल आधार है 'रूहानी वृति'। सदा वृत्ति में रूह, रूह को देख रहे हैं, रूह से ही बोल रहे हैं। रूह ही अलग अलग अपना पार्ट बजा रहे हैं। मैं रूह हूँ, सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में चल रहा हूँ।* मैं रूह हूँ- हर संकल्प भी सुप्रीम रूह की श्रीमत के बिना नही चल सकता है। मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है। करावनहार के आधार पर मैं निमित करने वाला हूँ। *मैं करनहार, वह करावनहार है। वह चला रहा, मैं चल रहा हूँ।* हर डायरेक्शन पर मुझ रूह के लिए संकल्प, बोल और कर्म में सदा हजूर हाजिर हैं।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की यही कृपा है-टीचर बन पढाना, सतगुरु बन साथ ले जाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को एक सुंदर उपवन मैं बैठा हुआ अनुभव कर रही हूँ और मन ही मन बाबा से मीठी मीठी बातें कर रही हूं... बाबा की यादों में खोई मैं आत्मा पहुंच जाती हूँ शान्तिधाम निराकारी दुनिया में...* बाबा से प्रवाहित होती समस्त शक्तियों को अपने भीतर समाती, स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं, परमात्म शक्तिओं से भरपूर मैं आत्मा पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म लोक ... मैं आत्मा बाबा को दूर से आता देख रही हूँ और देखते ही देखते बाबा मेरे बहुत समीप आकर खड़े हो जाते हैं... बाबा मुझे संकेत से एक अत्यंत सुंदर पुष्पक विमान पर बैठने को कहते हैं और मुझ आत्मा को एक सुंदर बाग़ में सेर पर लेजाते हैं... *आसपास सुंदर सुंदर झरने, पेड़,तालाब और मखमली हरि हरि घास, चारों ओर फूलों से लदी वृक्षों की टहनियां जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है...मैं आत्मा बाबा के साथ बाग़ में टहलने लगती हूँ...*
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोले:-* "मीठे फूल बच्चे... *बाप आये हैं तुमपर कृपा करने... टीचर बन तुम्हें पढ़ाने और सतगुरू बन साथ लेजाने... इस ईश्वरीय अलौकिक पढ़ाई को पढ़कर तुम अपनी दिव्य ऐम ऑब्जेक्ट से भविष्य में महाराजा महारानी बनते हो यही बाप की कृपा है...* बाप तुम्हें श्रीमत देते हैं *अब सम्पूर्ण पवित्र बनों इस आखरी जन्म में सम्पूर्ण पवित्र बन बाप की याद में रहो इससे ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जाएंगे...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को अपने में धारण करती हुई बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे जीवन आधार मेरे प्यारे बाबा... आपने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से सजाकर मेरे रूप को अलौकिकता से सम्पन्न बना दिया है... *मेरा जीवन तो नीरस हो चुका था आपने आकर उसे नई दिशा देकर उसमें अपने जादुई प्रेम से रस भर दिया है...*"
❉ *मुझ आत्मा के हाथों में गुलाब का फूल देकर बाबा बोले:-* "लाडली बच्ची... जैसे फूल टहनी से टूटने पर मुरझा जाता है, ऐसे ही तुम बच्चे भी बाप के बाग़ के फूल हो बाप की याद नहीं तो उदासी तुम्हें घेर लेती है और तुम्हारे चेहरे मुरझा जाते हैं... जब तक तुम मुझ बाप से जुड़े हुए हो उदासी तुम्हें छू भी नही सकती इसलिए बाप का साथ कभी मत छोड़ना...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के अनमोल वाक्यों को अपने में समाते हुए बाबा से बोली:-* "मीठे प्यारे बाबा... मेरे आपने आकर मेरे बेरंग जीवन में रंग भर दिए हैं... *कितने जन्मों से भटक रही थी आपने आकर मुझे इस दुखदाई दुनिया से निकाल लिया है... टीचर बनकर मुझे पवित्र जीवन का पाठ पढ़ाया है... मुझे पावन बना मुझ आत्मा को अपने ज्ञान रत्नों से अलंकृत कर दिया है...*"
❉ *मेरे सर को सहलाते हुए बहुत प्यार से बाबा मुझ आत्मा से बोले:-* " मीठे बच्चे... बाप टीचर भी है और सतगुरु भी, बाप ही गति सदगति दाता है, बाप के सिवाय कोई देहधारी तुम्हे गति सदगति दे नही सकता... तुम्ह हो गोडली स्टूडेंट ईश्वर तुम्हें परमधाम से पढाने आते हैं... बाप तुम्ह ब्राह्मण बच्चों की बहुत महिमा करते हैं...* इस ईश्वरीय पढ़ाई को कभी मिस नहीं करना... इस पढ़ाई से ही तुम्हें 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलेगा और तुम सतयुगी दुनिया के मालिक बनेंगे...*"
➳ _ ➳ *ज्ञान रत्नों से झोली भरकर मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे दिलाराम बाबा... मैं आत्मा आपको अपना बनाकर मालामाल हो गयी हूँ... *आपने मेरे जीवन में आकर मेरे संस्कारों को परिवर्तन कर मुझे विशेष बना दिया है... आपकी श्रीमत ने मुझे कर्मातीत बना दिया है... सभी दुखों से छुड़ाकर मेरे जीवन में खुशियों के रंग भर दिए हैं... बाबा आपने मुझे अपार शक्ति का मालिक बना दिया है... बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा अपने साकारी तन में लौट आती हूँ...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- खुशी में रहना है कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान हमे पढ़ाने आते हैं*
➳ _ ➳ स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और *अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ*। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। *अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ*। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। *बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है*।
➳ _ ➳ स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। *कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ*। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। *महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं*। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। *यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं संगमयुग पर श्रेष्ठ मत द्वारा श्रेष्ठ गति को प्राप्त करने वाली प्रत्यक्ष फल की अधिकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं दृढ़ संकल्प से हर कदम में बाप को फॉलो करने वाली संपन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवाधारियों को सदा सफलता स्वरूप रहने के लिए बाप समान बनना है। *एक ही शब्द याद रहे - फालो फादर। जो भी कर्म करते हो - चेक करो कि यह बाप का कार्य है? अगर बाप का है तो मेरा भी है, बाप का नहीं तो मेरा भी नहीं। यह चेकिंग की कसौटी सदा साथ रहे।* तो फालो फादर करने वाले अर्थात् -जो बाप का संकल्प वही मेरा संकल्प, जो बाप का बोल वही मेरा। इससे क्या होगा? जैसे बाप सदा सफलता स्वरूप है वैसे स्वयं भी सदा सफलता स्वरूप हो जायेंगे। तो बाप के कदम पर कदम रखते चलो। कोई चलता रहे उसके पीछेपीछे जाओ तो सहज ही पहुँच जायेंगे ना। तो फालो फादर करने वाले मेहनत से छूट जायेंगे और सदा सहज प्राप्ति की अनुभूति होती रहेगी।
✺ *"ड्रिल :- हर कर्म से पहले चेक करना कि क्या यह बाप का कार्य है।*"
➳ _ ➳ कलियुग की इस त्राहिमाम अवस्था में भगवान को पुकारती मैं आत्मा पहुँच गयी... ब्रह्माकुमारी के सेंटर पर... *जहाँ सच्चा सच्चा गीता का भगवान मिला... सच्चा सच्चा गीता ज्ञान मिला... स्वयं का... बाप का परिचय मिला... मैं कौन... मेरा कौन... का जवाब मिला... औऱ मैं बन गयी संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा...* अपने प्रालब्ध के सतयुगी भाग्य को जान... अपने पुरुषार्थ को उड़ती कला में स्थिर कर के मैं आत्मा... एक चमकता हुआ दिव्य सितारा... बैठी हूँ सिर्फ एक की ही याद में... भृकुटी सिंहासन पर... और मन के तार एक बाप से जुड़ते ही मन बुद्धि रूपी पुष्पक विमान में बैठ पहुँच जाती हूँ बापदादा के पास...
➳ _ ➳ अखूट शांति ही शांति हैं जहाँ... पवित्रता का साम्राज्य छाया हैं जहाँ वह निज धाम... निज घर... में पहुँचते ही... *शांति की पराकाष्ठा का अनुभव कर रही हूँ... सुनहरे प्रकाश की दुनिया... पवित्र... सतोप्रधान आत्माओं की दुनिया में अपने आप को भी पवित्र... सतोप्रधान अवस्था में देख रही हूँ...* परमपिता परमात्मा से आती हुई शक्तियों रूपी किरणों को अपने में धारण करती जा रही हूँ... बाप समान बनती जा रही हूँ... बापदादा की उंगली पकड़ कर मैं आत्मा झूमती हुई जा रही हूँ हर एक सेंटर पर... बापदादा के साथ मैं आत्मा भी सभी सेंटर के नज़ारे देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कोई सेंटर निर्विघ्न चल रहे हैं... तो कोई सेंटर पर सेवा ही सेवा का आनंदित माहौल छाया हुआ हैं... कोई सेंटर में योग भट्टी में सभी आत्माओं के विकारों को दहन होता हुआ और बाप समान बनने के पुरुषार्थ में जुडी आत्माओं को देख रही हूँ... बापदादा के रूहानी नैनो से निकलती किरणों की बौछारें सर्व सेंटर में समां रही हैं... और साथ साथ *बापदादा की दिव्य आकाशवाणी सुनाई दे रही हैं " बच्चे बाप समान बनो... अपनी सूक्ष्म चेकिंग करो कि क्या मेरा हर कार्य बाप समान हैं ? क्या मेरा हर बोल... संकल्प... में बाप की प्रत्यक्षता हो रही हैं ?"* बाबा की दिव्य और मधुर वाणी सभी सेंटर की आत्माओं... गहराई से धारण करती जा रही हैं...
➳ _ ➳ *बापदादा के सुनहरे बोल "फालो फादर करने वाले अर्थात् - जो बाप का संकल्प वही मेरा संकल्प, जो बाप का बोल वही मेरा।" हर एक सेंटर पर गूंज रहा हैं... और सभी ब्राह्मण आत्माएंं अपने आप में बापदादा की प्रत्यक्षता करने के लिए दैवीय संस्कार का आह्वान कर रहे हैं...* और मैं आत्मा इस अलौकिक दिव्य नज़ारे को साक्षी बन देख कर बापदादा की सर्व शक्तियों को अपने में धारण कर बापदादा का हाथ पकड़ कर कहती हूँ "बाबा आज से मेरा भी हर बोल... संकल्प और कर्म आप समान होगा..." और बापदादा के हाथों से मेरे हाथों में समाती हुई शक्तियों को महसूस करती मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने स्थूल शरीर में... अब तो हर बोल... संकल्प... और कर्म को सूक्ष्म चेकिंग रूपी अग्नि परीक्षा से पास विद ऑनर में आने का सर्टिफिकेट लेने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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