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❍ 18 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्व से, सेवा में और सम्बन्ध में संतुष्ट रहे ?*
➢➢ *"कराने वाला करा रहा है" - इस स्मृति में रह सेवा की ?*
➢➢ *"अप्राप्त नहीं कोई वस्तु, हम ब्राह्मणों के खजाने में" - यह अनुभव किया ?*
➢➢ *माया को दोषी बनाने की बजाये मास्टर रचता और शक्तिशाली बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ हर समय, हर आत्मा के प्रति मन्सा स्वत: शुभभावना और शुभकामना के शुद्ध वायब्रेशन वाली स्वयं को और दूसरों को अनुभव हो। मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति दुआयें निकलती रहें। मन्सा सदा इसी सेवा में बिजी रहे। *जैसे वाचा की सेवा में बिजी रहने के अनुभवी हो गये हो। अगर सेवा नहीं मिलती तो अपने को खाली अनुभव करते हो। ऐसे हर समय वाणी के साथ साथ मन्सा सेवा स्वत: होती रहे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *" मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान अनुभव करते हो? जिसका बाप ही भाग्यविधाता हो वह कितना न भाग्यवान होगा! भाग्यविधाता बाप है तो वह वर्से में क्या देगा? जरूर श्रेष्ठ भाग्य ही देगा ना! सदा भाग्यविधाता बाप और भाग्य दोनों ही याद रहें। *जब अपना श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहेगा तब औरों को भी भाग्यवान बनाने का उमंग उत्साह रहेगा। क्योंकि दाता के बच्चे हो।* भाग्य विधाता बाप ने बह्मा द्वारा भाग्य बाँटा, तो आप ब्रह्मण भी क्या करेंगे?
〰✧ जो ब्रह्मा का काम, वह ब्रह्मणों का काम। तो ऐसे भाग्य बाँटने वाले। वे लोग कपड़ा बाँटेंगे, अनाज बाँटेंगे, पानी बाँटेंगे लेकिन श्रेष्ठ भाग्य तो भाग्य विधाता के बच्चे ही बाँट सकते। *तो भाग्य बाँटने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें हो। जिसे भाग्य प्राप्त है उसे सब कुछ प्राप्त है।* वैसे अगर आज किसी को कपड़ा देंगे तो कल अनाज की कमी पड़ जायेगी, कल अनाज देंगे तो पानी की कमी पड़ जायेगी। एक-एक चीज कहाँ तक बाँटेंगे। उससे तृप्त नहीं हो सकते। लेकिन अगर भाग्य बाँटा तो जहाँ भाग्य है वहाँ सब कुछ है।*
〰✧ *वैसे भी कोई को कुछ प्राप्त हो जाता है तो कहते हैं - वाह मेरा भाग्य! जहाँ भाग्य है वहाँ सब प्राप्त है। तो आप सब श्रेष्ठ भाग्य का दान करने वाले हो। ऐसे श्रेष्ठ महादानी, श्रेष्ठ भाग्यवान। यही स्मृति सदा उड़ती कला में ले जायेगी। जहाँ श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति होगी वहाँ सर्व प्राप्ति की स्मृति होगी।* इस भाग्य बाँटने में फ़राखदिल बनो। यह अखुट है। जब थोड़ी चीज होती है तो उसमें कन्जूसी की भावना आ सकती लेकिन यह अखुट है इसलिए बाँटते जाओ। सदा देते रहो, एक दिन भी दान देने के सिवाए न हो। सदा के दानी सारा समय अपना खजाना खुला रखते हैं। एक घण्टा भी दान बन्द नहीं करते। ब्रह्मणों का काम ही है सदा विधा लेना और विधा का दान करना। तो इसी कार्य में सदा तत्पर रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बापदादा देख रहे थे कि देहभान क स्मृति में रहने में क्या मेहनत की - मैं फलाना हूँ मैं फलाना हूँ यह मेहनत की? नेचरल रहा ना नेचर बन गई ना बॉडी कान्सेस की। *इतनी पक्की नेचर हो गई जो अभी भी कभी-कभी कई बच्चों को आत्मअभिमानी बनने के समय बॉडी कान्सेसनेस अपने तरफ आकर्षित कर लेती है।* सोचते हैं मैं आत्मा हूँ मैं आत्मा हूँ, लेकिन देहभान ऐसा नेचरल रहा है जो बार-बार न चाहते, न सोचते देहभान में आ जाते हैं।
〰✧ *बापदादा कहते हैं अब मरजीवा जन्म में आत्मअभिमान अर्थात देही-अभिमानी स्थिति भी ऐसे ही नेचर और नेचरल हो।* मेहनत नहीं करनी पडे - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। जैसे कोई भी बच्चा पैदा होता है और जब उसे थोडा समझ में आता है तो उसको परिचय देते हैं आप कौन हो, किसके हो, ऐसे ही जब ब्राह्मण जन्म लिया तो आप ब्राह्मण बच्चों को जन्मते ही क्या परिचय मिला?
〰✧ आप कौन हो? आत्मा का पाठ पक्का कराया गया ना! तो पहला परिचय नेचरल नेचर बन जाए। नेचर नेचरल और निरंतर रहती है, याद करना नहीं पडता। *ऐसे हर ब्राह्मण और नेचरल स्मृति स्वरूप बनना ही है। लास्ट अंतिम पेपर सभी व्राह्मणों का यही छोटा-सा है - ‘नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूपा?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ यह जो आजकल की सर्विस कर रहे हो उसमें विशेषता क्या चाहिए? *भाषण तो वर्षों कर ही रहे हो लेकिन अब भाषणों में भी क्या अव्यक्त स्थिति भरनी है?जो बात करते हुए भी सभी ऐसे अनुभव करें कि यह तो जैसे कि अशरीरी, आवाज़ से परे न्यारे स्थिति में स्थित होकर बोल रहे हैं।* अब इस सम्मेलन में यह नवीनता होनी चाहिए।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- माया को दोषी बनाने के बजाए मास्टर रचता बनना"*
➳ _ ➳ मैं ज्योति बिंदु आत्मा स्वयं को शिव बाबा के सम्मुख अनुभव कर रही हूँ... *बाबा मीठी मुस्कान से मेरी ओर देख रहे हैं..प. और मुझे अपनी पावन दृष्टि दे रहे हैं...* बाबा की पावन दृष्टि मुझे देह भान से मुक्त कर रही है... नश्वर देह को त्याग मैं आत्मा उड़ चलती हूँ.... अपने शिव पिता के पास... अगले ही क्षण मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम... अपने प्यारे बाबा के पास और बाबा के पास जा कर बैठ जाती हूँ...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को मास्टर रचयिता की सीट पर सेट करते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे मेरे... माया बड़ी प्रबल है इसके धोखे में ना आओ... बेशकीमती समय अब गफलत में ना गवाओ... *मास्टर रचता की शक्तिशाली स्थिति पर सेट हो जाओ... तो रचना दासी रुप में सहयोगी बन जायेगी...* माया तुम्हें इस सीट पर देख दूर से ही भाग जायेंगी..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मास्टर रचता की स्टेज पर सेट होकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे ओ लाडले बाबा मेरे... माया की इस चलाकी को अब जान पहचान गयी हूँ... सुन के आपकी ये समझानी अब सतर्क हो गयी हूँ... *इस बेशकीमती समय को मास्टर रचता बन सफल बना रही हूँ...* इस प्रकार माया पर दोषारोपण की आदत को मिटा रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा मास्टर रचयिता की स्टेज का वर्णन करते हुए मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... तुम हो मास्टर रचता इस स्मृति के अकॉर्डिंग अपने संकल्पो को तुम धैर्यवत बनाओ... अपने द्वारा ही रचे व्यर्थ संकल्पो की रचना से ना तुम घबराओं... *मास्टर रचता अर्थात बाप समान स्थिति के आसन पर बैठ अॉडर चलाओं...* हर शक्ति को अपनी इच्छा अनुसार जब चाहे तब कार्य में लगाओं..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मास्टर रचयिता बन रचना को सहयोगी बनाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे-प्यारे ओ बाबा मेरे... *मास्टर रचता बनहर संकल्प अपने अकॉर्डिंग चला रही हूँ...* इस प्रकार व्यर्थ से मुक्त होती जा रही हूँ... इस शक्तिशाली स्थिति से निरंतर संकल्पों को धैर्यवत बना रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ज्ञान और योग की किरणों से सजाते हुए मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे राजदुलारे बच्चे मेरे... ज्ञान और योग का स्वरूप बन मास्टर रचता की स्टेज पर आओ... माया के आने के गेट पर तुम ताला लगाओं... *मास्टर रचता के आसन पर अड़िग हो जाओ... इस शक्तिशाली स्थिति द्वारा सदा के लिए मायाजीत बन जाओं..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान और योग की किरणों को स्वयं में समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे-मीठे जादूगर ओ बाबा मेरे... बाप समान ज्ञानी तू योगी तू आत्मा बन हर कदम में सफलता पा रही हूँ... *मास्टर रचयिता की इस स्टेज से रचना को सहयोगी बना हर शक्ति को आर्डर प्रमाण चला रही हूँ...* सहज मायाजीत बनती जा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्व से, सेवा से और सम्बन्ध में संतुष्टता का अनुभव करना*"
➳ _ ➳ संतुष्टमणि बन सदा संतुष्ट रहने और सर्व को संतुष्ट करने का जो लक्ष्य बाबा ने अपने हर एक ब्राह्मण बच्चे को दिया है उस लक्ष्य को पाने का आधार है स्वयं को सदा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करना। क्योकि सर्व प्राप्तियों की अनुभूति ही जीवन मे सन्तुष्टता ला सकती है। *इसलिए अपने इस ब्राह्मण जीवन में अब मुझे सदा निर्विघ्न, सदा विघ्न विनाशक और सदा सन्तुष्ट रह सर्व को संतुष्ट करने का सर्टिफिकेट हर समय लेते रहना है ताकि टेंशन की शिकार, विश्व की सर्व असन्तुष्ट आत्माओं को सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर उनकी टेंशन और परेशानियों को मैं समाप्त करके बापदादा से सन्तुष्टमणि आत्मा का सर्टिफिकेट प्राप्त कर बाबा का तख्तनशीन बन सकूँ*।
➳ _ ➳ इसी प्रतिज्ञा के साथ स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से भरपूर करने के लिए मैं श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होकर बैठ जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को स्थिर करती हूँ परमात्म याद में। *अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने निराकार बिंदु बाप पर एकाग्र करते ही, परमात्म प्राप्तियों की अनुभूति मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है*। परमात्म प्यार और परमात्म प्राप्तियों के अखुट खजाने से स्वयं को भरपूर करने के लिए मैं आत्मा विदेही बन देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर अब अपने विदेही पिता के पास जाने के लिए चल पड़ती हूँ एक सुखमयी, आनन्दमयी यात्रा पर।
➳ _ ➳ अंतर्मुखता की इस यात्रा पर एक - एक कदम बढ़ाती, परमात्म प्यार के सुखद पलों का मधुर एहसास करती मैं इस खूबसूरत यात्रा पर चलती जा रही हूँ। आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर यह यात्रा मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में ले आती है। *अपने शान्ति धाम घर मे शांति के सागर अपने निराकार बिंदु बाप के सामने मैं बिंदु आत्मा आकर बैठ जाती हूँ और स्वयं को परमात्म प्यार और परमात्म शक्तियों से भरपूर करने लगती हूँ*। प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा से अपने अंदर असीम प्यार और शक्तियाँ भरकर तृप्त होकर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर ईश्वरीय वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाने के लिए सूक्ष्म वतन में पहुँचती हूँ।
➳ _ ➳ सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख बैठ उनके वरदानी हस्तों से वरदान ले कर अब मैं फ़रिश्ता स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। *अपनी सर्वशक्तियों से और अपनी लाइट माइट मुझे भरपूर करने के साथ - साथ बाबा अपनी पावन दृष्टि से मुझे निहारते हुए मेरे अंदर असीम बल और शक्ति का संचार कर रहे हैं*। स्वयं को सर्व प्राप्तियों के अखुट खजाने से भरपूर करके, सर्वप्राप्ति सपन्न स्वरूप बन कर अब मैं सन्तुष्टमणि के श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बैठ, सर्व को संतुष्ट करने के लिये सूक्ष्म वतन से नीचे साकार लोक में आ जाता हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं सारे विश्व में चक्कर लगा रहा हूँ और चारों ओर रोती बिलखती दुखी, अशांत, निराश और हताश आत्माओं को देख रहा हूँ। इन सभी दुखी अशांत आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए अब मैं बाबा से सर्वशक्तियाँ लेकर इन आत्माओं तक पहुंचा रहा हूँ। *मैं देख रहा हूँ बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणें मुझ फ़रिश्ते में समा कर, रंग बिरंगी फ़ुहारों के रूप में मुझ से निकल कर उन सभी आत्माओं के ऊपर बरस रही हैं*। पवित्रता, सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, और शक्ति से सम्पन्न ये किरणे सभी आत्माओं छू कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही है। सबके मुरझाये हुए चेहरे खिल उठे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे परमात्म पालना का अनुभव करके वो सब तृप्त हो गई है।
➳ _ ➳ टेंशन भरी जिंदगी जीती, विश्व की सभी असन्तुष्ट आत्माओं को परमात्म प्यार के सुख की अनुभूति द्वारा उन्हें सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ। *स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से सदा भरपूर रखते हुए, सन्तुष्टमणि बन, स्व से, सेवा से और सम्बन्ध में संतुष्टता का अनुभव करते हुए, अब मैं अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म प्यार और ईश्वरीय अलौकिक स्नेह दे कर सबके जीवन को सन्तुष्टता से भरपूर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दिव्य बुद्धि के वरदान द्वारा अपने रजिस्टर को बेदाग रखने वाली कर्मो की गति की ज्ञाता आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं पवित्रता की गहन धारणा से अतींद्रिय सुख की अनुभूति करने वाली पवित्र आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ प्युरिटी की वृत्ति है - शुभ भावना, शुभ कामना। कोई कैसा भी हो लेकिन पवित्र वृत्ति अर्थात् शुभ भावना, शुभ कामना और पवित्र दृष्टि अर्थात् सदा हर एक को आत्मिक रूप में देखना वा फरिश्ता रूप में देखना। तो वृत्ति, दृष्टि और तीसरा है कृति अर्थात् कर्म में, तो कर्म में भी सदा हर आत्मा को सुख देना और सुख लेना। यह है प्युरिटी की निशानी। वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में यह धारणा हो। *कोई क्या भी करता है, दुःख भी देता है, इन्सल्ट भी करता है, लेकिन हमारा कर्तव्य क्या है? क्या दुःख देने वाले को फालो करना है या बापदादा को फालो करना है? फालो फादर है ना! तो ब्रह्मा बाप ने दुःख दिया वा सुख दिया? सुख दिया ना! तो आप मास्टर ब्रह्मा अर्थात् ब्राह्मण आत्माओं को क्या करना है?*
✺ *ड्रिल :- "वृत्ति, दृष्टि, कृति में प्युरिटी का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ इस संसार सागर में रहते हुए कर्म करते हुए मैं आत्मा थक कर अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को समेट कर शान्त अवस्था में बैठी हूँ... *धीरे धीरे इस देह से हल्की होती जा रही हूँ और स्वयं को इस देह से अलग एक आत्मा देख रही हूँ...* मस्तक के मध्य एक सितारे की भांति चमक रही हूँ... अब इस स्थूल देह से निकल कर अपने फरिश्ता स्वरूप में आ गयी हूँ... और इस साकारी दुनिया से उड़ कर ऊपर की ओर जा रही हूँ... उड़ते उड़ते सूक्ष्मवतन में आकर ठहरती हूँ...
➳ _ ➳ यहां आकर असीम शांति का अनुभव कर रही हूँ... चारों ओर सफेद रंग का चमकीला प्रकाश फैला हुआ है... अब थोड़ा और आगे चलने पर अपने ब्रह्मा बाबा को अपने सामने पाती हूँ... *सफेद चांदनी में नहाये बाबा बाँहे फैलाये मेरा स्वागत कर रहे हैं और मैं उनके सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा की मीठी दृष्टि मुझ पर पड़ने से मैं फरिश्ता भी चमकने लगता हूँ...* और बाबा से निकल कर सफेद प्रकाश की ये चमकीली और शक्तिशाली किरणें मुझमें असीम ऊर्जा का संचार कर रही हैं...
➳ _ ➳ मैं बाबा के प्यार में समाती जा रही हूँ... बेहद सुख का अनुभव कर रही हूँ... *मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के रूहानी चेहरे को निहार रही हूँ, कितनी प्योरिटी उनके चेहरे में दिखाई दे रही है...* उनके नयनों में आत्मिक प्यार चमक रहा है... मैं आत्मा विचार करती हूँ कि मुझे भी अपने सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओ को ऐसी ही आत्मिक दृष्टि देनी है... आज सभी आत्मायें इस कलियुग के प्रभाव में आकर अपने मूल देवताई संस्कारों को भूल चुकी हैं... और आसुरी संस्कारों को अपने संस्कार बना चुकी हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने लौकिक जीवन से जुड़ी सभी आत्माओ को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... इन सभी को मैं यहाँ फरिश्ता रुप में देख रही हूँ मेरी आत्मिक दृष्टि इन सब पर पड़ रही है... *इनकी सभी कमी कमज़ोरियों को देखते हुए भी नहीं देखती और इन सबको प्योर वाइब्रेशन दे उनकी कमियों को दूर करने में उनकी मदद कर रही हूँ...* इन सभी आत्माओ के लिए मेरे मन में शुभभावना और शुभकामना है...
➳ _ ➳ कुछ आत्माओ के स्वभाव संस्कार के कारण मुझे कुछ परेशानी भी होती है तो भी मैं उनके प्रति मेरी वृति पवित्र है... *कोई दुख भी देता है तो भी मैं उसे सुख देती हूँ क्योंकि मेरे ब्रह्मा बाबा को मैं अपने इस संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में फॉलो कर रही हूँ...* मेरे ब्रह्मा बाबा ने भी कभी किसी को दुख नहीं दिया बल्कि दुख देने वालों को भी सुख दिया... मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखकर स्वयं को सम्पूर्णता की ओर बढ़ा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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