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❍ 16 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पुरुषार्थ के समय में अलबेले तो नहीं बने ?*
➢➢ *अपना सबा कुछ ट्रान्सफर किया ?*
➢➢ *स्नेह के सागर में समाकर मेरेपन की मेल को समाप्त किया ?*
➢➢ *बुधी में ज्ञान रत्नों को धारण कर होली हंस बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रुहानी नशे के आधार पर, निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब सफल कर दिया। अपने लिए कुछ नहीं रखा। *तो स्नेह की निशानी है सब कुछ सफल करो। सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्व की दुआयें लेने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ * सदा 'दृढ़ता सफलता की चाबी है' - इस विधि से वृद्धि को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ, ऐसा अनुभव होता है ना।*
〰✧ *दृढ़ संकल्प की विशेषता कार्य में सहज सफल बनाए विशेष आत्मा बना देती है और कोई भी कार्य में जब विशेष आत्मा बनते हैं तो सबकी दुआयें स्वत: ही मिलती हैं। स्थूल में कोई दुआयें नहीं देता लेकिन यह सूक्ष्म है जिससे आत्मा में शक्ति भरती है और स्व-उन्नति में सहज सफलता प्राप्त होती है।*
〰✧ *तो सदा दृढ़ता की महानता से सफलता को प्राप्त करने वाली और सर्व की दुआयें लेने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ - इस स्मृति से आगे बढ़ते चलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *आत्मा का आदि वा अनादि लक्षण तो शान्त है, तो सेकण्ड में ऑर्डर हो कि अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो जाओ तो हो सकते हो कि टाइम लगेगा?* सुनाया था ना कि लगाना चाहे बिन्दी और लग जाये क्वेचन मार्क तो क्या होगा? इसको किस अवस्था का अभ्यास कहेंगे? सभी फरिश्ते स्थिति का अभ्यास करते हो?
〰✧ *अभी और अभ्यास करना है कि जितना समय चाहे उतना समय उस विधि से स्थित हो जायें।* अभी देखो कोई भी प्रकृति की आपदा या परिस्थिति की आपदा आती है तो अचानक आती हैना, और दिन-प्रतिदिन अचानक यह प्रकृति अपनी हलचल बढ़ाती जाती है। यह कम नहीं होनी है, बढ़नी ही है। *अचानक आपदा आ जाती है।*
〰✧ *तो ऐसे समय पर समाने वा समेटने की शक्ति की आवश्यकता है।* और कहाँ भी बुद्धि नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाना चाहें वहाँ लग जाये। क्यों-क्या में नहीं जाये, ये क्या हुआ, ये कैसे होगा, होना तो नहीं चाहिये, हो कैसे गया - इसको ब्रेक कहेंगे?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *आप के आगे आने से लाइट ही लाइट देखने में आये। ऐसे होना है।* मधुबन ही लाइट का घर हो जायेगा। यह दीवे आदि देखते भी जैसे कि नहीं देखेंगे। जैसे वतन में लाइट ही लाइट देखने में आती है वैसे यह स्थूल वतन लाइट का हाउस हो जायेगा। *जब आप चैतन्य लाइट हाउस हो जायेंगे तो फिर यह मधुबन भी लाइट हाउस हो जायेगा।* अभी यह है लास्ट पढ़ाई की लास्ट सब्जेक्ट प्रैक्टिकल (उँमूम्त) में। थ्योरी (पदैब्) का कोर्स समाप्त हुआ। प्रैक्टिकल कोर्स की लास्ट सब्जेक्ट है। *इस लास्ट सब्जेक्ट में बहुत फास्ट पुरुषार्थ करना पड़ेगा। इसी स्टेज के लिए गायन है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूहानी पंडा बन यात्रा करनी और करानी है"*
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने सुंदर भाग्य का... मीठे बाबा से पायी असीम दौलत का... दिव्य गुण और शक्तियो का दुआओ का... इन खजानो को गिनते गिनते आनंद के चर्मोत्कृष् पर पहुंच कर... मीठे बाबा को दिल से पुकारती हूँ...* मीठे बाबा मेरे सम्मुख बाहें फैलाये हुए ‘जी हुजूर, मै आया’ कह हाजिर हो जाते है... अपने मीठे आराध्य को... अपने प्यार में इस कदर... साधारण और सरल सहज देख... मै आत्मा निशब्द हो मुस्कराती हूँ...*
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डुबाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ज्ञानसागर पिता को पाकर जो अथाह धन खजाने पाये है... उसे अपनी बुद्धि में सदैव गिनते रहो.*.. ज्ञान के चिंतन मनन से यादो का सैलाब और ज्यादा बढ़ेगा... रूहानी यात्री बन सदा यादो में खोये रहो... और सबको यह यात्रा सिखलाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की अतुलनीय धन सम्पदा की मालिक बनते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपके बिना मुझ आत्मा का जीवन कितना सूना कितना कंगाल सा था... *आपको पाकर मै आत्मा ईश्वरीय अमीरी से सम्पन्न हो गयी हूँ.*.. ज्ञान धन ने मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो से भरपूर कर दिया है..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी सम्पत्ति देते हुए कहा ;- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता की गहरी यादो में डूबकर, बुद्धि रुपी पात्र को ईश्वरीय रत्नों से सोने का बनादो.*.. और देहभान से छुड़ाने वाले रूहानी यात्री बनकर मुस्कराओ... अपने मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ... कि किसकी सम्पत्ति के वारिस बन रहे हो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने महान भाग्य की खुशियां मीठे बाबा संग बांटते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपको पाकर सारे जहान की खुशियो से दामन भर गया है*... आपके ज्ञान धन से जीवन कितना पवित्र और प्यारा हो गया है... ईश्वरीय साथ और साये में जीने वाली मै कितनी भाग्यंवान आत्मा हूँ... मेरे जैसा भाग्य भला किसी और का कहाँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को खुशियो की जागीर सौपते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता ने ज्ञान दौलत से भरपूर कर, मा नॉलेजफुल बनाया है... उस नशे में सदा खोये रहो... *ज्ञान के दिव्य नेत्र को पाकर, अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मर्तियो में सदा खोये रहो.*.. इन रत्नों को पूरे विश्व पर बरसाओ, और सबको आप समान रूहानी यात्रा कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे साथी भगवान को पाकर आनन्द में मगन होकर कहती हूँ :- "मीठे साथी बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हुई... ज्ञान चिंतन से गुणवान और शक्तिवान बनती जा रही हूँ... *हर पल, हर संकल्प को यादो में पिरो कर, दिव्यता से सजती जा रही हूँ.*.. और आप समान सबका भाग्य सुंदर बनाती जा रही हूँ..."प्यारे बाबा से अथाह ज्ञान धन से भरपूर होकर मै आत्मा... साकार वतन में लौट आती हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पुरुषार्थ के समय मे अलबेला नही बनना*"
➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप की स्मृति में स्थित हो कर अपने परमशिक्षक शिव पिता को याद करते ही मुझे अनुभव होता है जैसे शिव बाबा परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर, अपने रथ का आधार लेकर मेरे सामने उपस्थित हो गए हैं और अपने मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। *गॉडली स्टूडेंट बन आत्मिक स्मृति में स्थित होकर अपने परमशिक्षक द्वारा मिलने वाले ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न को मैं अपनी बुद्धि में धारण करते हुए मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान शिक्षक बन मुझे पढ़ाने के लिए आये हैं*।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर नाज करती, अपने परमशिक्षक शिव पिता परमात्मा को उनके लाइट माइट स्वरूप में देखते - देखते मैं अनुभव करती हूँ कि बाबा की लाइट माइट मुझे सहज ही लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रही है। *एक सुंदर दिव्य अलौकिक अनुभूति करते हुए अपने परमशिक्षक शिव पिता के लाइट माइट स्वरूप के सम्मुख अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होकर उनके अति मनमोहक मधुर महावाक्यों को सुनना, मेरे अंदर असीम आनन्द का संचार कर रहा है*। मेरा रोम - रोम बाबा के एक - एक महावाक्य को ग्रहण कर रहा है।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा के मधुर महावाक्यों का आनन्द लेती अब मैं विचार करती हूँ कि *जब स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपना घर परमधाम छोड़ कर यहाँ आये हैं तो ऐसे भगवान शिक्षक द्वारा पढ़ाई जाने वाली इस बेहद की पढ़ाई का मुझे कितना कद्र होना चाहिए*! यही विचार कर, स्वयं से मैं प्रोमिस करती हूँ कि अपने परमशिक्षक शिव परम पिता परमात्मा द्वारा मिलने वाले इन अमूल्य ज्ञान रत्नों को मुझे अपनी बुद्धि में अच्छी रीति धारण करना है और साथ ही साथ अपने पुरुषार्थ को तीव्र करने के लिए याद के सब्जेक्ट पर पूरा अटेंशन देने के लिए याद का चार्ट जरूर रखना है।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से यह प्रोमिस कर मैं जैसे ही बापदादा की ओर देखती हूँ ऐसा अनुभव होता है जैसे बाबा मेरे हर संकल्प को पढ़ कर उस संकल्प को पूरा करने का बल मुझे दे रहें हैं। *सूक्ष्म रूप में बाबा से मिलने वाला बल बाबा की लाइट माइट के रुप में मेरे ऊपर प्रवाहित होकर मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार कर रहा है*। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा की लाइट माइट ने मुझे सहज पुरुषार्थी बना दिया है और हर प्रकार की मेहनत से मुक्त कर दिया है।
➳ _ ➳ अब मैं हर समय अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को स्मृति में रखते हुए अपने परमशिक्षक शिव पिता परमात्मा द्वारा दिए जा रहे अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर, तीव्र पुरुषार्थ के लिए याद का एक्यूरेट चार्ट रख, अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ। *याद का एक्यूरेट चार्ट रखने से अपने पुरुषार्थ में तीव्रता का अनुभव अब मैं स्पष्ट कर रही हूँ। याद के बल से सहज पुरुषार्थी बन भविष्य 21 जन्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध पाने का तीव्र पुरुषार्थ मैं बिल्कुल सहज रीति कर रही हूँ*। सर्वसम्बधों के रुप में बाबा को हर घड़ी अपने साथ अनुभव करते, कभी साकारी, कभी आकारी और कभी निराकारी स्वरुप में बाबा से हर पल मिलन मनाने का सुख मैं प्राप्त कर रही हूँ।
➳ _ ➳ *"स्टूडेंट लाइफ इस दी बेस्ट लाइफ" इस स्लोगन का अनुभव अपनी इस ईश्वरीय स्टूडेंट लाइफ में हर समय करते हुए अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर, तीव्र पुरुषार्थी बन अपनी स्टूडेंट लाइफ का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्नेह के सागर में समाकर मेरे पन की मैल को समाप्त करने वाली पवित्र आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं बुद्धि में ज्ञान रत्नों को ग्रहण करने और कराने वाला होलीहंस हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. जब बाप के बने हैं तो सबसे पहले कौन-सा वायदा किया? बाबा तन-मन-धन जो भी है, कुमारों के पास धन तो ज्यादा होता नहीं फिर भी जो है, सब आपका है। यह वायदा किया है? तन भी, मन भी, धन भी और संबंध भी सब आपसे - यह भी वायदा पक्का किया है? *जब तन-मन-धन, सम्बन्ध सब आपका है तो मेरा क्या रहा!* फिर कुछ मेरा-पन है? होता ही क्या है? तन, मन, धन, जन.... सब बाप के हवाले कर लिया।
➳ _ ➳ 2. जब मन भी बाप का हुआ, मेरा मन तो नहीं है ना! या मन मेरा है? मेरा समझकर यूज करना है? *जब मन बाप को दे दिया तो यह भी आपके पास 'अमानत' है।* फिर युद्ध किसमें करते हो? मेरा मन परेशान है, मेरे मन में व्यर्थ संकल्प आते हैं, मेरा मन विचलित होता है...., जब मेरा है नहीं, अमानत है फिर अमानत को मेरा समझ कर यूज करना, क्या यह अमानत में ख्यानत नहीं है? *माया के दरवाजे हैं - 'मैं और मेरा'। तो तन भी आपका नहीं, फिर देह- अभिमान का मैं कहाँ से आया! *मन भी आपका नहीं, तो मेरा-मेरा कहाँ से आया? तेरा है या मेरा है?* बाप का है या सिर्फ कहना है, करना नहीं? कहना बाप का और मानना मेरा!
➳ _ ➳ *सिर्फ पहला वायदा याद करो कि न बाडी-कान्सेस की - 'मैं है, न मेरा'। तो जो बाप की आज्ञा है, तन को भी अमानत समझो। मन को भी अमानत समझो।* फिर मेहनत की जरूरत है क्या? *कोई भी कमजोरी आती है तो इन दो शब्दों से आती है - 'मैं और मेरा'। तो न आपका तन है, न बाडी-कान्सेस का मैं।* मन में जो भी संकल्प चलते हैं अगर आज्ञाकारी हो तो बाप की आज्ञा क्या है? पाजिटिव सोचो, शुभ भावना के संकल्प करो। फालतू संकल्प करो - यह बाप की आज्ञा है क्या? नहीं। तो जब आपका मन नहीं है फिर भी व्यर्थ संकल्प करते हो तो बाप की आज्ञा को प्रैक्टिकल में नहीं लाया ना! *सिर्फ एक शब्द याद करो कि-मैं 'परमात्म-आज्ञाकारी बच्चा हूँ'। बाप की यह आज्ञा है या नहीं है, वह सोचो। जो आज्ञाकारी बच्चा होता है वह सदा बाप को स्वत: ही याद होता है। स्वत: ही प्यारा होता है।* स्वत: ही बाप के समीप होता है। तो चेक करो मैं बाप के समीप, बाप का आज्ञाकारी हूँ? एक शब्द तो अमृतवेले याद कर सकते हो - 'मैं कौन?' आज्ञाकारी हूँ या कभी आज्ञाकारी और कभी आज्ञा से किनारा करने वाले?
✺ *ड्रिल :- "'परमात्म-आज्ञाकारी बच्चा होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अमृतवेले मीठे शिवबाबा की कोमल स्पर्श से आँखे खुली... बाबा की मीठी मुस्कान देख रोमांचित हो उठी... बाबा का हाथ माथे पर अनुभव कर अपना दोनों हाथ उनकी ओर बढा दिया... बाबा का हाथ पकड अशरीरी हो चल पड़ी अनंत की सैर करने... मीठे बाबा की मधुर मुस्कान से मन पुलकित हो गया... *इतनी सहज सच्ची थी बाबा संग प्रेम अनुभूति...* बाबा संग रहने का दिल ने वायदा जो किया है... मीठे बाबा ही है तन मन धन संबंध में...
➳ _ ➳ जहां बाबा बसे हो वो तन है पवित्र, वो मन है मंदिर, वो संबंध है स्वर्णिम... *बाबा की शिक्षाऐं और ज्ञान की वर्षा से यह तन मन धन जन की सुधि खोने लगी...* मीठे बाबा के संग सहज ही सब विस्मृत सा अनुभव करती हूँ... मैं कौन और मेरा क्या ? *मैैं बाबा का और मीठा बाबा मेरा...* बड़ा ही सुंदर सरल अनुभव हुआ... स्वयं को बाबा के सान्निध्य में देखकर असीम संतोष का अनुभव किया... बाबा की समीपता से अंदर के भराव को महसूस कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अपने पुराने जीर्ण शीर्ण देह और देह के परिचय के परत दर परत आवरण को अनायास चीरते हुए *अपने मूल स्वरूप के दर्शन कर हल्का महसूस कर रही हूँ... अंधकार की कालिमा से, समस्त व्यर्थ से मुक्ति को प्राप्त कर दीप्त आभामय हो गई हूँ... स्वयं को उज्जवल प्रकाश स्वरूप में देख पुराने मैं - पन, मेरा - पन से सहज भाव से किनारा कर समर्थ अनुभव करती हूँ... बाॅडी काॅन्शियस से वैराग महसूस हो रही है... बाबा की आज्ञाओं के पालन में रमता योगी बन आनंद ले रही हूँ...* कोई मेहनत नहीं, कोई परिश्रम नहीं केवल असीम शांति को महसूस कर भरपूर हो रही हूँ...
➳ _ ➳ सहज रीति से शुभ भावना व समर्थ संकल्प से परिपूर्ण हो तन मन धन के समर्पण से बोझ रहित प्रफुल्लित अनुभव कर रही हूँ... अपने इसी स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा अपने कर्म क्षेत्र पर वापिस लौट आती हूँ... और अपने सभी कर्तव्यों का पालन कर... बाबा की आज्ञानुसार अपने *सर्व आत्मा भाईयों की निःस्वार्थ सेवा में अपना संगम का अनमोल समय व्यतीत करती हूँ...* मैं औैर मेरा को ज्योति स्वरूप का चोला पहनाकर सदा समर्थ स्वरूप में रह *सर्व आत्माओं को शांति प्रदान करने की सेवा में जुट जाती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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