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 10 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह के सब धर्मों और संबंधो को भूल स्वयं को देहि समझा ?*

 

➢➢ *बाप की जो शिक्षाएं मिली है, वह दूसरों को दी ?*

 

➢➢ *दृष्टि द्वारा शक्ति ली और शक्ति दी ?*

 

➢➢ *फीचर्स में सुख शांति और ख़ुशी की झलक रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जब कर्मों के हिसाब-किताब वा किसी भी व्यर्थ स्वभाव-संस्कार के वश होने से मुक्त बनेंगे तब कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर सकेंगे।* कोई भी सेवा, संगठन, प्रकृति की परिस्थिति स्वस्थिति वा श्रेष्ठ स्थिति को डगमग न करे। इस बंधन से भी मुक्त रहना ही कर्मातीत स्थिति की समीपता है। देती है? इस बन्धन से भी मुक्त हैं?

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

〰✧  स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मायें बन गये, ऐसे अनुभव करते हो? स्व का दर्शन हो गया ना? *अपने आपको जानना अर्थात् स्व का दर्शन होना और चक्र का ज्ञान जानना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना। जब स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं तो और सब चक्र समाप्त हो जाते हैं।* देहभान का चक्र, सम्बन्ध का चक्र समस्याओंका चक्र - माया के कितने चक्र हैं! लेकिन स्वदर्शन-चक्रधारी बनने से यह सब चक्र समाप्त हो जाते हैं, सब चक्रों से निकल आते हैं। नहीं तो जाल में फँस जाते हैं। तो पहले फँसे हुए थे, अब निकल गये।

 

  63 जन्म तो अनेक चक्रों में फँसते रहे और इस समय इन चक्रों से निकल आये, तो फिर फँसना नहीं है। अनुभव करके देख लिया ना? *अनेक चक्रों में फँसने से सब कुछ गँवा दिया और स्वदर्शन-चक्रधारी बनने से बाप मिला तो सब कुछ मिला। तो सदा स्वदर्शन-चक्रधारी बन, मायाजीत बन आगे बढ़ते चलो।*

 

  इससे सदा हल्के रहेंगे, किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव नहीं होगा। बोझ ही नीचे ले आता है और हल्का होने से ऊंचे उड़ते रहेंगे। तो उड़ने वाले हो ना? कमजोर तो नहीं? *अगर एक भी पंख कमजोर होगा तो नीचे ले आयेगा, उड़ने नहीं देगा। इसलिए, दोनों ही पंख मजबूत हों तो स्वत: उड़ते रहेंगे। स्वदर्शन-चक्रधारी बनना अर्थात् उड़ती कला में जाना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज बापदादा अपने सर्व स्वराज्य अधिकारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि *स्वराज्य अधिकारी ही अनेक जन्म विश्व-राज्य अधिकारी बनते हैं।* तो आज डबल विदेशी बच्चों से बापदादा स्वराज्य का समाचार पूछ रहे हैं।

 

✧  हर एक राज्य अधिकारी का राज्य अच्छी तरह से चल रहा है? आपके राज्य चलाने वाले साथी, सहयोगी साथी सदा समय पर यथार्थ रीति से सहयोग दे रहे हैं कि बीच-बीच में कभी धोखा भी देते हैं? जितने भी सहयोगी कर्मचारी कर्मेन्द्रियाँ, चाहे स्थूल हैं, चाहे सूक्ष्म हैं, *सभी आपके ऑर्डर में हैं? जिसको जिस समय जो ऑर्डर करो उसी समय उसी विधि से आपके मददगार बनते हैं?*

 

✧  रोज अपनी राज्य दरबार लगाते हो? राज्य कारोबारी सभी 100 प्रतिशत आज्ञाकारी, वफादार, एवररेडी हैं? क्या हालचाल है? अच्छा है व बहुत अच्छा है व बहुत, बहुत अच्छा है? *राज्य दरबार अच्छी तरह से सदा सफलता पूर्वक होती है वा कभी-कभी कोई सहयोगी कर्मचारी हलचल तो नहीं करते है?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *चलते-चलते अगर कमज़ोरी आती है तो उसका कारण क्या है? विशेष कारण है कि जो कहते हो, जो सुनते हो, उस एक-एक गुण का, शक्ति का, ज्ञान के पॉइन्ट्स का अनुभव कम है।* मानो सारे दिन में स्व-भी व दूसरे को भी कितने बार कहते हो - मैं आत्मा हूँ, आप आत्मा हो, शान्त स्वरूप हो, सुख स्वरूप हो, कितने बार स्व-भी सोचते हो और दूसरों को भी कहते हो। लेकिन चलते-फिरते आत्मिक-अनुभूति, ज्ञान-स्वरूप, प्रेम-स्वरूप, शान्त-स्वरूप की अनुभूति, वो कम होती है। *सुनना-कहना ज्यादा हैऔर अनुभूति कम है। लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की होती है तो उस अनुभव में खो जाओ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- बाप की गत-मत न्यारी है"*

 

 _ ➳  *सागर किनारे बैठी मैं आत्मा बाबा को स्नेह से याद कर रही हूँ... सागर की कल कल करती लहरों को देखते-देखतेप्रकृति के सामीप्य में... सहज ही मन मीठे बाबा की यादों में मगन हो रहा है... मैं अनुभव करती हूँ बापदादा ने पीछे से आकर मेरे कंधे पर अपना मजबूत हाथ रख दिया है... पीछे मुड़ती हूँ तो अपने समीप अपने मीठे बाबा को देखती हूँ... बाबा के चेहरे का प्रकाश चारों और दिव्यता फैला रहा है...* उनकी हंसी मुझे असीम आनंद से भर रही है... बाबा की मंद मंद मुस्कानदमकते चेहरे को देखकर यह महसूस हो रहा है कि... आज बाबा से बहुत सुंदर रुहरुहान होने वाली है... मेरे मन में भी उत्सुकता हो रही है कि आज बाबा मुझे क्या कहने वाले हैं...

 

  अपनी मीठी मुस्कान से आत्मा में आनंद रस घोलते हुए बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे लाडले बच्चे... तुम आधाकल्प से अपने को भूले हुए माया के थपेड़े खाते भटकते आए हो... *अब मैं तुम्हें सच्चा रास्ता दिखाने आया हूँ... यह तुम्हारा अंतिम जन्म है... इसलिए तुम एक मुझ में ही निश्चय रखो... परमतमनमत का त्याग कर एक मेरी ही श्रीमत पर चलो... जो सभी तरह से सुख देने वाली है..."*

 

 _ ➳  बाबा के सच्चे स्नेह में लीन होती मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे दिलाराम बाबा... आपने आकर मुझे सच्चा सुख दिया है... मुझे जन्म जन्म की भटकन से बचा लिया है... अब मैं सिर्फ आपको ही अपनी यादों में समाया हुआ पाती हूँ... *आपकी बताई शिक्षाओं पर,आपके बताये मार्ग पर ही चल रही हूँ... मैं कितनी भाग्यवान आत्मा हूँ... स्वयं भगवान सतगुरु बनकर आ गए हैं... मुझे मुक्ति और जीवनमुक्ति का मार्ग दिखा रहे हैं..."*

 

  मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पर बिठाके बेहद प्यार बरसाते हुए बाबा कहते हैं:- "मीठे मीठे सपूत बच्चे... मैं तुम्हें कलियुगी दलदल से निकालकर पहले मुक्तिधाम ले जाता हूँ... फिर वहाँ से सतयुगी सुखों की दुनिया में ले जाता हूँ... *इसके लिए मैं जो मत तुम्हें देता हूँ... वह सबसे न्यारी है... कोई भी देहधारी गुरूसन्त महात्मा यह मत नहीं दे सकते... इसलिए ही गाया जाता है... तुम्हारी गत मत तुम ही जानो... तुम मेरी इस श्रेष्ठ मत को अपने जीवन में धारण करो..."*

 

 _ ➳  बाबा की गोद में बैठ पुलकित होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे मन के मीत मीठे बाबा... आपकी श्रीमत मुझ आत्मा के लिए हर प्रकार से कल्याणकारी है... *मनमतपरमत पर चल के तो आधा कल्प दुःख पायाभटकते रहे... अब मैं आपकी शिक्षाएं ही धारण करूँगी... आपकी ही मत पर चलके भविष्य के लिए अपना श्रेष्ठ भाग्य जमा करूँगी..."*

 

  मुझे सभी चिंताओं से मुक्त कर बेगमपुर का बादशाह बनाते हुए बाबा कहते हैं:- "मेरे लाडले सिकीलधे बच्चे... *गति सदगति करने की मत मैं ही आकर बताता हूँ... मनुष्य गुरु कोई भी सदगति नहीं कर सकते... वे कोई भी कह नहीं सकते कि... मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा... सर्व का सदगति दातालिबरेटर एक मैं ही हूँ...* तुम कदम कदम पर मुझ से राय लो... एक मेरी शिक्षाओं को ही अमल में लाओ..."

 

 _ ➳  बाबा के हाथ और साथ से संगम के हर पल में मौज मनाती मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे दिल के सहारे प्यारे बाबा... मैंने एक दिलाराम को ही अपने दिल में बसा लिया है... आपकी शिक्षाएं ही मेरे जीवन का श्रृंगार कर रही हैं... आपकी बाहों में ही मैंने सच्चा सुख पाया है... *अब मैं सदा आपकी श्रीमत पर ही चल रही हूँ... आप मुझे सर्व सुखों की जागीर देने आए हैं... उसे पाने के लिए मैं स्वयं को हर प्रकार से योग्य बनाती जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- 8 घण्टे सर्विस जरूर करनी है*

 

_ ➳  इस पतित सृष्टि को पावन सतयुगी दुनिया मे परिवर्तन करने का जो कर्तव्य इस समय स्वयं भगवान इस धरा पर आकर कर रहें हैं उस ऑल माइटी अथॉरिटी, पाण्डव गवर्मेंट के साथ इस कर्तव्य में उसका मददगार बनना कितने महान सौभाग्य की बात है! *कितना श्रेष्ठ भाग्य है मेरा जो भगवान की मदद करने का गोल्डन चांस भगवान ने स्वयं मुझे दिया है। कोटो में कोई, कोई में भी कोई मैं वो महान सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जिसे भगवान ने स्वयं अपने सर्वश्रेष्ठ कार्य के लिए चुना है*। "वाह मैं आत्मा और वाह मेरा भाग्य"। अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाकर वाह - वाह के गीत गाती हुई मैं आत्मा अपने उस प्यारे पिता का कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करके उनसे वादा करती हूँ कि *अपनी हर रोज की दिनचर्या में मैं 8 घण्टे पांडव गवर्मेंट की मदद अवश्य करूँगी। तन मन धन से ईश्वरीय कार्य मे सहयोग जरूर दूँगी*।

 

_ ➳  अपने सर्वशक्तिवान, सृष्टि के रचयिता पिता से वादा करके मैं जैसे ही मन बुद्धि को उनकी याद में स्थिर करती हूँ मुझे आभास होता है जैसे मेरे पिता अपना असीम बल भरकर मुझे अथक और अचल अडोल बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं। *स्वयं भगवान मेरा आह्वान कर रहें हैं यह विचार कर मन ही मन गदगद होती हुई मैं सेकण्ड में देह भान का त्याग कर अपने अनादि बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को पूरी तरह अपने प्यारे पिता के स्वरूप पर फोकस कर लेती हूँ*। देख रही हूँ अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता को मैं फरिश्तो के अव्यक्त वतन में अपने अव्यक्त रथ में विराजमान होकर बाहें फैलाये अपना इंतजार करते हुए। अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में अनन्त प्रकाशवान अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो मुस्कारते हुए अव्यक्त इशारे से मुझे बुला रहें हैं।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर जागृत हो रही है जो मुझे धीरे - धीरे अव्यक्त स्थिति में स्थित कर रही है। मेरा साकार शरीर लाइट के शरीर मे परिवर्तित होता जा रहा है। *ऊपर से लेकर नीचे तक अब मैं स्वयं को एक सुंदर प्रकाश की काया में अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं इतना हल्का महसूस कर रही हूँ कि ऐसा लग रहा है जैसे मेरे पाँव धरती को स्पर्श ही नही कर रहे और धीरे - धीरे अपनी प्रकाश की काया के साथ मैं ऊपर उड़ रही हूँ*। एक बहुत ही सुंदर अनुभूति और लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए सारे विश्व का चक्कर लगा कर अब मैं आकाश से ऊपर जा रही हूँ। *निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए अब मैं सफेद प्रकाश की उस खूबसूरत दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ जहाँ अव्यक्त बापदादा मेरा इंतजार कर रहें हैं*।

 

_ ➳  फ़रिश्तों की इस लाइट की दुनिया में अपने सम्पूर्ण लाइट माइट स्वरूप में अपना अनन्त प्रकाश पूरे वतन में फैलाते हुए बापदादा को मैं सामने देख रही हूँ। अपनी दोनों बाहों को फैलाये अपने इंतजार में खड़े बापदादा के मुस्कारते हुए सुंदर मनभावन स्वरूप को निहारते हुए बापदादा के पास पहुंच कर मैं उनकी बाहों में समा जाती हूँ। *उनके नयनो में अथाह प्यार का सागर मेरे लिए उमड़ रहा है उस स्नेह सागर की गहराई में डूब कर मैं गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे बापदादा का अथाह प्यार पाकर तृप्त होकर अब मैं उनके सम्मुख बैठी हूँ और उनसे मीठी दृष्टि लेकर परमात्म शक्तियों को अपने अंदर भर रही हूँ*। बाबा के मस्तक से निकल रही तेज लाइट सीधी मुझ में प्रवाहित हो रही है। अथक सेवाधारी बन पाण्डव गवर्मेंट अर्थात ईश्वरीय कार्य मे मदद करने के लिए बाबा अपने हाथ मे मेरा हाथ लेकर अपनी सारी शक्तियों का बल मुझे दे रहें हैं। वरदानों से मेरी झोली भरकर मुझे भरपूर कर रहें हैं।

 

_ ➳  सर्व शक्तियों, सर्व वरदानों और सर्व खजानो से सम्पन्न होकर अब मैं अपनी लाइट की शक्तिशाली सूक्ष्म काया के साथ वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकार ब्राह्मण तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ। *भगवान की पाण्डव गवर्मेंट का सच्चा सेवक बन सृष्टि परिवर्तन के उनके कार्य मे मदद करने के लिए अब मैं सम्पूर्ण समर्पण भाव से भगवान द्वारा रचे रुद्र ज्ञान यज्ञ में पूरा सहयोग दे रही हूँ। शरीर निर्वाह अर्थ अपने सभी दैनिक कर्तव्यों को पूरा करने के साथ - साथ 8 घण्टा पाण्डव गवर्मेंट की सेवा में सहयोगी बन, परमात्म सेवा और परमात्म याद द्वारा अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को मैं श्वांसों श्वांस सफल कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दृष्टि द्वारा शक्त्ति लेने और शक्त्ति देने वाली महादानी, वरदानी मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं फीचर्स में सुख शांति और खुशी की झलक लाकर अनेक आत्माओं का फ्यूचर श्रेष्ठ बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि समय का परिवर्तन आप विश्व परिवर्तक आत्माओं के लिए इन्तजार कर रहा है।* प्रकृति आप प्रकृतिपति आत्माओं का विजय का हार लेके आवाह्न कर रही है। *समय विजय का घण्टा बजाने के लिए आप भविष्य राज्य अधिकारी आत्माओं को देख रहे हैं कि कब घण्टा बजायेंभक्त आत्मायें वह दिन सदा याद कर रही हैं कि कब हमारे पूज्य देव आत्मायें हमारे ऊपर प्रसन्न हो हमें मुक्ति का वरदान देंगी!* दु:खी आत्मायें पुकार रही हैं कि कब दु:ख हर्ता सुख कर्ता आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी! इसलिए यह सब आपके लिए इन्तजार वा आवाह्न कर रहे हैं।

 

 _ ➳  इसलिए हे रहमदिल, विश्व कल्याणकारी आत्मायें अभी इन्हों के इन्तजार को समाप्त करो। *आपके लिए सब रुके हैं। आप सब मुक्त हो जाओ तो सर्व आत्मायें, प्रकृति, भगत मुक्त हो जाएं।* तो मुक्त बनो, मुक्ति का दान देने वाले मास्टर दाता बनो। अभी विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी आत्मायें बनो। जिम्मेवार हो ना! बाप के साथ मददगार हो। क्या आपको रहम नहीं आतादिल में दु:ख के विलाप महसूस नहीं होते। *हे विश्व परिवर्तक आत्मायें अभी अपने जिम्मेवारी की ताजपोशी मनाओ।*

 

✺   *ड्रिल :-  "विश्व परिवर्तक आत्मा बन अपने जिम्मेवारी की ताजपोशी मनाना"*

 

 _ ➳  *बाबा के महावाक्य सुनते-सुनते... अचानक कानों में घंटे की  आवाज गूँजने लगती है...* और मैं आत्मा बिल्कुल अशरीरी हो जाती हूँ... एक तेज प्रकाश मेरी ओर आता हुआ मुझे उड़ा ले जाता है संगम रुपी घड़ी के ऊपर... जहाँ से मैं समय को देख रही हूँ जो समाप्ति की ओर है...

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता विश्व ग्लोब के ऊपर आ जाती हूँ... हर तरह के नजारे देख रही हूँ...  कि कैसे भगत, दुःखी आत्मायें हम पूज्य देव के प्रसन्न होने का इंतज़ार कर रही है... प्रकृति हम प्रकृतिपति आत्माओं का इंतजार कर रही है... समय विजय का घंटा बजाने अपने भविष्य राज्याधिकारी आत्माओं का इंतजार कर रहा है... *सभी दुखी आत्मायें विश्व कल्याणकारी, दुःख हर्ता, सुख करता का आह्वान कर रही हैं...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इन दृश्य को देखते हुए अपने स्वीट होम शांतिधाम आ जाती हूँ... परमात्मा शिव बाबा के समीप... बाबा से आती हुई शक्तियों की किरणें, पवित्रता की किरणें हर बन्धन से मुक्त करती जा रही हैं... *सूक्ष्म बन्धन लगाव के, मोह, दैहिक... इन सब से मुक्त होती जा रही हूँ... बिल्कुल ही न्यारी अवस्था... एक बाप दूसरा न कोई...* शिव बाबा जो रहमदिल है, दाता है, विश्व कल्याणकारी है... मैं आत्मा भी बाप समान बनती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा विश्व परिवर्तक का ताज पहन रही हूँ... ताजपोशी मना रही हूँ... ये ज़िम्मेवारी का ताज है जो बापदादा ने हम निम्मित आत्माओं को दिया है...* संगम युग जब बाप और बच्चों का महामिलन होता है... विश्व परिवर्तन का समय, बाप के साथ मददगार बन मुक्ति का दान देते जाना दुःख से विलाप करती हुई आत्माओं को... रहमदिल बन, विश्व कल्याणकारी... इष्टदेवी, शक्ति रूप में वरदानी मूर्त हूँ... *जिम्मेवारी की ताज पहन प्रत्यक्ष होती जा रही हूँ... ओम् शान्ति...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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