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❍ 28 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ड्रामा के चक्र को यथार्थ रीति समझकर पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *बाप समान रहमदिल बन सभी पर रहम किया ?*
➢➢ *सर्व पुराने खातों को संकल्प और संस्कार रूप से भी समाप्त किया ?*
➢➢ *अपने परिवर्तन द्वारा संकल्प, बोल, सम्बन्ध, संपर्क में सफलता प्राप्त की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *आप क्षमा के सागर के बच्चे हो तो परवश आत्माओं को क्षमा दे दो।* अपनी शुभ वृत्ति से ऐसा वायुमण्डल बनाओ जो *कोई भी आपके सामने आये वह कुछ न कुछ स्नेह ले, सहयोग ले, क्षमा का अनुभव करे, हिम्मत का उमंग-उत्साह का अनुभव करे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*
〰✧ सभी अपने को डबल लाइट अर्थात् फरिश्ता समझते हो? *फरिश्ते की विशेष निशानी है-फरिश्ता अर्थात् न्यारा और बाप का प्यारा, पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं। देह से आत्मा का रिश्ता तो है, लेकिन लगाव का संबंध नहीं। एक है 'संबंध' और दूसरा है 'बंधन'। एक है कर्म-बन्धन और दूसरा है कर्म-सम्बन्ध।* तो संबंध तो रहना ही है। जब तक कर्मेन्द्रियां हैं तो कर्म का संबंध तो रहेगा लेकिन बंधन नहीं हो। बंधन की निशानी है-जिसके बंधन में जो रहता है उसके वश रहता है। जो संबंध में रहता है वह स्वतन्त्र रहता है, वश नहीं होता। कर्मेन्द्रियों से कर्म के संबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना।
〰✧ फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बंधन से मुक्त। ऐसे नहीं कि आज आंख कहे कि यह करना ही है, देखना ही है-तो वश होकर के देख लें। जैसे कोई जेल में बंधन में होता है, तो जेलर जैसे चाहे उसको बिठायेगा, चलायेगा, खिलायेगा। तो बंधन में होगा ना! वो चाहे मैं जेल से चला जाऊं, तो जा सकता है? बंधन है ना। ऐसे पुराने शरीर का बंधन न हो, सिर्फ सेवा प्रति संबंध हो। ऐसी अवस्था है? या कभी बंधन, कभी संबंध? बंधन बार-बार नीचे ले आयेगा। *तो फरिश्ता अर्थात् बंधनमुक्त। ऐसे नहीं-कोशिश करेंगे। 'कोशिश' शब्द ही सिद्ध करता है कि पुरानी दुनिया की कशिश है। 'कोशिश' शब्द नहीं। करना ही है, होना ही है। 'है'-'है' उड़ा देगा, 'गे'-'गे' नीचे ले आयेगा। तो 'कोशिश' शब्द समाप्त करो।*
〰✧ *फरिश्ता अर्थात् जीवन्मुक्त, जीवन-बंधन नहीं। न देह का बंधन, न देह के संबंध का बंधन, न देह के पदार्थ का बंधन। ऐसे जीवन्मुक्त हो? अव्यक्त वर्ष का अर्थ ही है फरिश्ता स्थिति में स्थित रहना।* चेक करो कि कौनसा लगाव नीचे ले आता है? अपनी देह का लगाव खत्म किया तो संबंध और पदार्थ के लगाव आपे ही खत्म हो जायेंगे। अपनी देह का लगाव अगर है तो संबंध और पदार्थ का लगाव भी अवश्य ही खींचेगा। इसलिए पहला पाठ पढ़ाते हो कि-देह-भान को छोड़ो, तुम देह नही, आत्मा हो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सारे विस्तार को बीज में समा दिया है वा अभी भी विस्तार है?* इस जडजड़ीभूत वृक्ष की किसी भी प्रकार की शाखा रह तो नहीं गई है? *संगमयुग है ही पुराने वृक्ष की समाप्ति का युग।* तो हे संगमयुगी ब्राह्मणों! पुराने वृक्ष को समाप्त किया है? जैसे पते-पते को पानी नहीं दे सकते। बीज को देना अर्थात सभी पत्तों को पानी मिलना। ऐसे इतने *84 जन्मों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हिसाब-किताब का वृक्ष समाप्त करना है।*
एक-एक शाखा को समाप्त करने का नहीं।
〰✧ आज देह के स्मृति की शाखा को समाप्त करो और कल देह के सम्बन्धों की शाखा को समाप्त करो, ऐसे एक-एक शाखा को समाप्त करने से समाप्ति नहीं होगी। लेकिन *बीज बाप से लगन लगाकर, लगन की अग्नि द्वारा सहज समाप्ति हो जायेगी।* काटना भी नहीं है लेकिन भस्म करना है। आज काटेंगे, कुछ समय के बाद फिर प्रकट हो जायेगा क्योंकि वायुमण्डल के द्वारा वृक्ष को नेचुरल पानी मिलता रहता है। जब वृक्ष बडा हो जाता है तो विशेष पानी देने की आवश्यकता नहीं होती।
〰✧ नैचरल वायुमण्डल से वृक्ष बढ़ता ही रहता है वा खडा हुआ रहता है तो इस विस्तार को पाये हुए जडजडीभूत वृक्ष को अभी पानी देने की आवश्यकता नहीं है। यह आटोमैटिक बढ़ता जाता है। *आप समझते हो कि पुरुषार्थ द्वारा आज से देह सम्बन्ध की स्मृति रूपी शाखा को खत्म कर दिया, लेकिन बिना भस्म किये हुए फिर से शाखा निकल आती है।* फिर स्वयं ही स्वयं से कहते हो वा बाप के आगे कहते हो कि यह तो हमने समाप्त कर दिया था फिर कैसे आ गया! पहले तो था नहीं फिर कैसे हुआ। कारण? *काटा, लेकिन भस्म नहीं किया।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ भाग्य विधाता बाप सभी बच्चों को भाग्य बनाने की अति सहज विधि बता रहे हैं। *सिर्फ बिन्दु के हिसाब को जानो। बिन्दु का हिसाब सबसे सहज है। बिन्दु के महत्व को जाना और महान बने।* सबसे सहज और महत्वशाली बिन्दु का हिसाब सभी अच्छी तरह से जान गये हो ना! बिन्दु कहना और बिन्दु बनना। बिन्दु बन बिन्दु बाप को याद करना है। *बिन्दु थे और अब बिन्दु स्थिति में स्थित हो बिन्दु बाप समान बन मिलन मनाना है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप को याद कर पतित से पावन बनना"*
➳ _ ➳ अमृतवेला का ये सुहानी पल रात के अँधेरे को ख़तम कर सुबह की रोशनी की ओर रुख कर रहा है... वैसे ही कलियुगी अंधियारे को चीरते हुए ये संगमयुग... सतयुग की ओर ले जा रहा है... *प्यारे बाबा जब से आयें हैं, संगम की हर घडी ही अमृतवेला बन गई है... जो सदा सुखों की ओर ले जाती है... हर पल ही कितना सुहावना हो गया है... इतनी पावन, सुन्दर वेला में मैं आत्मा प्यारे बाबा से प्यारी-प्यारी बातें करने पहुँच जाती हूँ पावन वतन में...*
❉ *मेरे मन मंदिर में अपनी मूरत बसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने मीठे खिले से महकते फूल से धरा पर उतरे थे पर खेलते खेलते काले पतित हो गए... *अब इस देह की दुनिया से निकल ईश्वर पिता की सोने सी यादो में स्वयं को उसी दिव्यता से दमकाओ क्योकि अब सुनहरी सुखो भरी दुनिया में चलना है...”*
➳ _ ➳ *निराकारी बाबा की यादों में स्वर्णिम सुखों को अपने नाम करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने खोये रूप को सौंदर्य को आपकी यादो में पुनः पा रही हूँ... *कंचन काया और कंचन महल की अधिकारी बन रही हूँ और इस दुनिया से उपराम हो रही हूँ...”*
❉ *अपने रूहानी नैनों से पावनता की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता के साथ का समय बहुत कीमती है... यादो में रहकर अपने सच्चे दमकते स्वरूप को पाकर सुखो की दुनिया में मुस्कराओ...* यादो में अपनी दिव्यता और शक्तियो को फिर से पाकर सुंदर तन और मन से सुन्दरतम दुनिया के रहवासी बनो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्रभु की यादों की धारा में बहकर सुन्दर कमल बन खिलते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी खोयी सुंदरता को पाकर मुस्करा रही हूँ...* दिव्य गुणो को धारण कर पवित्रता के श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में देवताओ की दुनिया घूम रही हूँ...”
❉ *रूहानी यादों में मेरे मन के चमन को खिलाकर मेरे रूहानी बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *सिर्फ बाबा की यादे ही एकमात्र उपाय है जो इस पतित तन और मन को खुबसूरत और पवित्र बना सकता है... तो इस समय को यादो में भर दो... अपने पुरुषार्थ को तीव्र कर स्वयं को निखारने में पूरी तन्मयता से जुट जाओ...* क्योकि अब पवित्र दुनिया में चलने और सुख लेने का समय हो गया है...
➳ _ ➳ *एक की लगन में मगन होकर जीवन में मिठास भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा जनमो के कालेपन को आपकी मीठी यादो में धो रही हूँ...* वही सुंदर देवताई स्वरूप पा रही हूँ और सुख और शांति की दुनिया की अधिकारी होकर मीठे सुखो में खिलखिला रही हूँ... *यादो में पावन बनकर खिल उठी हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप सचखण्ड स्थापन कर रहें है इसलिए सच्चा होकर रहना है*"
➳ _ ➳ इस दुख देने वाली कलयुगी दुनिया झूठखण्ड का विनाश कर उसे सचखण्ड बनाने का जो कर्तव्य करने के लिए भगवान इस धरा पर अवतरित हुए हैं उस *सचखण्ड का मालिक बनने के लिए अपने सच्चे पिता के साथ अंदर बाहर सदा सच्चे होकर रहने की मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और सचखण्ड की स्थापना करने वाले अपने प्यारे शिव भगवान का कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करते हुए, उनकी मन को सुकून देने वाली मीठी याद में जैसे ही बैठती हूँ, मेरे मीठे बाबा मुझे सेकण्ड में अपनी और खींच लेते हैं*। एक ही क्षण में देह के भान को भूल मैं अपने बिंदु स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने सच्चे बाप से सच्चा मिलन मनाने उनकी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ। देह, देह की दुनिया और देह के झूठे सम्बन्धो से किनारा करके, एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर अब मैं जा रही हूँ।
➳ _ ➳ मन मे अपने प्यारे पिता की मीठी यादों को समाये मन बुद्धि की इस यात्रा पर मैं आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ। मन बुद्धि के विमान पर सवार, अपने प्यारे पिता से मिलने की लगन के मगन मैं आत्मा आकाश को पार करती हूँ और फरिश्तों की एक बहुत ही सुंदर और निराली दुनिया मे पहुँच जाती हूँ। *यहाँ पहुंचते ही एक बहुत ही सुन्दर फ़रिश्ता ड्रेस मैं पहन लेती हूँ और फरिश्तों की इस दुनिया के सुंदर नजारों का आनन्द लेते हुए अपने प्राणप्रिय प्यारे बापदादा के पास पहुँचती हूँ*। बाबा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए अपनी बाहों में मुझे भर लेते हैं और अपना असीम स्नेह मेरे ऊपर बरसाने लगते हैं। *बाबा के नयनो में अपने लिए समाये अथाह प्यार को देख मैं खुशी में झूमने लगती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बापदादा से असीम स्नेह पाकर, उनसे मिलन मनाकर मैं जैसे ही वापिस आने के लिये मुड़ती हूँ बाबा सचखण्ड का एक खूबसूरत मॉडल मेरे हाथ पर सौगात के रूप में रख देते हैं। उसे अपने हाथ मे लेते ही मैं मन बुद्धि से उस खूबसूरत दुनिया मे पहुँच जाती हूँ। *देख रही हूँ मैं उस दुनिया के मन को लुभाने वाले बहुत ही सुंदर - सुन्दर नजारों को। चैतन्य देवी देवताओं की यह स्वर्णिम दुनिया जहाँ सुख शांति और सम्पन्नता की भरमार है। दुख देने वाली झूठी माया यहाँ है ही नही इसलिए राजा हो या प्रजा सभी सुखी और सम्पन्न हैं*। सन्तुष्टता का गहना पहने सभी अपने जीवन का आनन्द ले रहें हैं। इस सचखण्ड में प्रकृति भी दासी बन सबको सुख दे रही है। *सदाबहार मौसम, हरे भरे सुंदर खुशबूदार पेड़ पौधे, पेड़ो पर लगे रसीले सुन्दर फल और प्रकृति के बहुत ही खूबसूरत नज़ारे मैं इस दुनिया मे देख - देख कर आनन्दित हो रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने सत्य बाप द्वारा स्थापन की जा रही सतयुगी दुनिया के सुंदर नजारों का भरपूर आनन्द लेकर मैं ऐसी खूबसूरत सौगात देने वाले अपने सच्चे बाबा से सदा सच्चे होकर रहने का प्रोमिस करके अब अपनी फ़रिश्ता ड्रेस उतार कर, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने निराकार सत्य शिव बाबा से मिलने उनके परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ। *सेकेण्ड से भी कम समय मे मैं अपने इस मूल वतन घर मे प्रवेश करती हूँ और अपने प्यारे पिता के पास पहुँच जाती हूँ। सूर्य के समान अति तेजोमय, अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये सामने खड़े ज्ञानसूर्य अपने सच्चे पिता के सम्मुख जाकर मैं बैठ जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारों के नीचे बैठ, भरपूर आनन्द लेकर, स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर करके वापिस लौट आती हूँ फिर से फरिश्तो की उसी अव्यक्त दुनिया में*
➳ _ ➳ बापदादा से मिली सचखण्ड की सौगात को लेकर, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे आकर अपने स्थूल शरीर मे प्रवेश करती हूँ। और *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अपने सच्चे बाबा के साथ सदा सच्चे होकर रहने की अपनी प्रतिज्ञा को स्मृति के रखकर सचखण्ड का मालिक बनने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ*। इस झूठखण्ड मे रहते हुए भी माया के झूठे आकर्षणों से स्वयं को मुक्त रखते हुए, कदम - कदम पर अपने सच्चे बाबा से राय लेकर उनकी श्रीमत पर चलते हुए अब मैं हर कर्म कर रही हूँ।
➳ _ ➳ *जाने अनजाने में होने वाली छोटी से छोटी गलती को भी अपने सच्चे बाबा को बताकर, उनसे माफी मांग कर उस गलती को फिर ना दोहराने की स्वयं से और अपने सच्चे बाबा से प्रतिज्ञा करके, उस प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करते हुए, अपने सच्चे बाप द्वारा स्थापन किये जा रहे सचखण्ड का मालिक बनने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व पुराने खातों को संकल्प और संस्कार रूप से भी समाप्त करने वाली अंतर्मुखी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने परिवर्तन द्वारा संकल्प, बोल, संबंध संपर्क में सफलता प्राप्त करने वाली सफलता मूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सभी प्रवृत्ति में रहते, प्रवृत्ति के बन्धन से न्यारे और सदा बाप के प्यारे हो? किसी भी प्रवृत्ति के बन्धन में बंधे हुए तो नहीं हो? लोकलाज के बन्धन में, सम्बन्ध में बंधे हुए को बन्धनयुक्त आत्मा कहेंगे। तो कोई भी बन्धन न हो। मन का भी बन्धन नहीं। मन में भी यह संकल्प न आये कि हमारा कोई लौकिक सम्बन्ध है। *लौकिक सम्बन्ध में रहते अलौकिक सम्बन्ध की स्मृति रहे। निमित्त लौकिक सम्बन्ध लेकिन स्मृति में अलौकिक और पारलौकिक सम्बन्ध रहे। सदा कमल आसन पर विराजमान रहो। कभी भी पानी वा कीचड़ की बूँद स्पर्श न करे। कितनी भी आत्माओं के सम्पर्क में आते - सदा न्यारे और प्यारे रहो। सेवा के अर्थ सम्पर्क है। देह का सम्बन्ध नहीं है, सेवा का सम्बन्ध है। प्रवृत्ति में सम्बन्ध के कारण नहीं रहे हो, सेवा के कारण रहे हो। घर नहीं, सेवास्थान है।* सेवास्थान समझने से सदा सेवा की स्मृति रहेगी। अच्छा।
✺ *"ड्रिल :- प्रवृति के बन्धनों से मुक्त रहना।*"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने कमल आसन पर विराजमान होकर अपने मस्तक पर सफेद मणि के समान चमकते हुए प्रकाश को अनुभव करती हूं... *जैसे जैसे मेरे मस्तक पर यह आत्मिक मणी जगमगाती है... वैसे वैसे मैं कमल आसन पर विराजमान आत्मा अपने चारों ओर एक सफेद प्रकाश रूपी औरे को महसूस करती हूं... मैं इस औरे में अपने आप को सुरक्षित अवस्था में अनुभव करती हूं... जैसे जैसे मैं इस अवस्था की गहराई में जाती हूं... वैसे वैसे ही मैं अपने आप को परमात्मा के और करीब महसूस करती हूं...* मैं उन्हें हर समय अपने साथ लेकर चलने का संकल्प करती हूं... और मैं अपने कर्म में आगे बढ़ने लगती हूं...
➳ _ ➳ अब मैं अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती हूं... और हर कर्म में अपने आप को अलौकिक स्थिति में अनुभव करते हुए... और प्रवृत्ति मार्ग में रहते हुए भी मैं अपने आप को बेहद की वृत्ति में अनुभव करने का प्रयास करती हूं... और मैं अब अपने लौकिक परिवार के सभी सदस्यों को देखती हूं... और अनुभव करती हूं... कि यह सभी आत्माएं मेरे परम पिता की संतान हैं... और हम यहां पर परमात्मा द्वारा दिए गए महान कार्य को पूर्ण करने के लिए आए हैं... यह सभी आत्माएं बहुत महान और अलौकिक आत्माएं हैं... यह मेरी पूर्ण सहयोगी आत्माएं हैं... *सभी सदस्यों को मैं बेहद कि वृत्ति में अनुभव करती हूं... और ये अनुभव करती हूं... कि यह सभी आत्माएं शांतिधाम में रहने वाली मेरी प्रिय आत्माएं हैं... इस स्थिति का अनुभव करके मैं अपने आप को हर संबंध रूपी बेडी से आजाद अनुभव करती हूं...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने आपको बेहद की स्मृति में रखते हुए... इस लौकिक परिवार का हर कार्य निमित्त भाव से करती जा रही हूं... *मैं इस हलचल भरी दुनिया में भी अपने आप को शांति स्वरूप अवस्था में अनुभव कर रही हूं... और हर कार्य करते हुए मैं अपने आप को ऐसे व्यक्ति के रूप में अनुभव करती हूं... जैसे एक व्यक्ति फांसी पर लटका हुआ हो... अर्थात मैं अपने मन बुद्धि को परमधाम में प्रभु की याद में स्थित रखती हूं... और अपनी इस देह से सभी कर्म करती जा रही हूं...* मेरे इस स्थिति के कारण मेरे आसपास का वातावरण एकदम शांति से भरा हुआ प्रतीत हो रहा है... और मेरे आस पास रहने वाली सभी आत्माएं शांति की शक्ति का अनुभव कर रही है...
➳ _ ➳ अब मैं इस बेहद की वृत्ति को गहराई से अनुभव करते हुए... अपने आपसे यह वादा करती हूं... *कि अब मैं इस लौकिक जीवन में रहते हुए... अपने आपको सदा सभी लौकिक बंधनों से मुक्त करते हुए... उनके प्रति निमित्त भाव का अनुभव करूंगी... चाहे कैसी भी परिस्थिति हो मैं अपनी इस शांति और बेहद की वृत्ति में रहने वाली स्थिति को हलचल में नहीं आने दूंगी... और इन रिश्ते नातों रूपी बंधनों को अपने पुरुषार्थ की बेड़ी नहीं बनने दूंगी...* और अब मैं अपने आप को उसी कमल आसन पर बैठा हुआ और प्रवृत्ति मार्ग के बंधनों से मुक्त अवस्था का अनुभव करती जा रही हूं... और पुरुषार्थ की गति को और भी तीव्रता से आगे ले जा रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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