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❍ 08 / 01 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अविनाशी ज्ञान रत्नों के महादानी बनकर रहे ?*
➢➢ *कोई भी विनाशकारी कार्य तो नहीं किया ?*
➢➢ *दिल के सच्चे सम्बन्ध द्वारा यथार्थ साधना की ?*
➢➢ *"करावनहार बाप है" - इस स्मृति से बेफिक्र बादशाह बन उडती कला का अनुभव किया ?*
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❂ *योगी जीवन प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की शिक्षाएं* ✰
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〰✧ जितना अव्यक्त लाइट रुप में स्थित होंगे, उतना शरीर से परे का अभ्यास होने के कारण यदि दो-चार मिनट भी अशरीरी बन जायेंगे, तो मानों जैसे कि चार घण्टे का आराम कर लिया। *ऐसा समय आयेगा जो नींद के बजाए चार-पाँच मिनट अशरीरी बन जायेंगे और शरीर को आराम मिल जायेगा। लाइट स्वरूप के स्मृति को मजबूत करने से हिसाब-किताब चुक्त करने में भी लाइट रुप हो जायेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ योगी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *आज दिन भर इन शिक्षाओं को अमल में लाकर योगी जीवन का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अंधकार में रोशनी करने वाला चैतन्य दीपक हूँ"*
〰✧ अपने को सदा जगे हुए दीपक समझते हो? *आप विश्व के दीपक, अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार अभी भी 'दीपमाला' मनाई जाती है। तो यह निश्चय और नशा रहता है कि हम दीपमाला के दीपक हैं? अभी तक आपकी माला कितनी सिमरण करते रहते हैं?* क्यों सिमरण करते हैं? क्योंकि अधंकार को रोशन करने वाले बने हो। स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। टिमटिमाने वाले नहीं।
〰✧ *कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक। ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं।*
〰✧ टिमटिमाते दीपकों के साथ नही रहते। *बाप जैसे सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे बच्चे भी सदा अमरज्योति! अमर ज्योति के रुप में भी आपका यादगार है। चैतन्य में बैठे अपने सभी जड़यादगारों को देख रहे हो। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *स्वयं को इस स्वमान में स्थित कर अव्यक्त बापदादा से ऊपर दिए गए महावाक्यों पर आधारित रूह रिहान की ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जो एक सेकण्ड में अपने संकल्प को जहाँ चाहे, जो सोचना चाहे वही सोच चलता रहे, ऐसे जो समझते हैं, वह हाथ उठाओ। *एक सेकण्ड में माइण्ड कन्ट्रोल हो जाए, ऐसे सेकण्ड में हो सकता है?* अगर कर सकते हो तो हाथ उठाओ।
〰✧ ऐसे कहने से नहीं, अगर कन्ट्रोल होता है तो हाथ उठाओ?
अच्छा जिन्होंने नहीं हाथ उठाया उन्हों को क्या एक मिनट लगता है? या उससे भी ज्यादा लगता है? *अभी यह अभ्यास वहुत जरूरी है क्योंकि अंत के समय यह अभ्यास वहुत काम में आयेगा।*
〰✧ जैसे इस शरीर के आरगन्स को, बाँह है, पाँव है, इनको सेकण्ड में जहाँ लेकर जाने चाहो वहाँ ले जा सकते हो ना! ऐसे मन-बुद्धि को भी मेरी कहते हो ना। *जब मन के मालिक हो, यह सूक्ष्म आरगन्स हैं, तो इसके ऊपर कन्ट्रोल क्यों नहीं?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *आज इन महावाक्यों पर आधारित विशेष योग अभ्यास किया ?*
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∫∫ 5 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दूसरों को ज्ञान सुनाने की सर्विस करना"*
➳ _ ➳ *शीत ऋतु की ठंडी ठंडी हवाओं की शीतल सुबह मैं आत्मा बगीचे में टहलती सूरज का इन्तजार कर रही हूँ... सूरज की किरणों के मधुर स्पर्श से पौधों पर पड़ी ओस की बूंदे मोतियों समान चमक रहे हैं... इन ओस की मोतियों को निहारती मैं आत्मा मोती बन ज्ञान सूर्य बाबा के पास परमधाम पहुँच जाती हूँ...* ज्ञान सूर्य बाबा से निकलती ज्ञान की किरणों को मैं आत्मा स्वयं में ग्रहण करती हूँ... ज्ञान किरणों की आभा में लिपटी मैं आत्मा ज्ञान सूर्य बाबा के साथ सूक्ष्मवतन में ज्ञान की रूह-रिहान करने बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...
❉ *रूहानी सेवा का शौक रख सबको ज्ञान धन का दान करने की शिक्षा देते हुए प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... भाग्य ने जो ईश्वरीय मदद का खूबसूरत मौका दिया है... तो ईश्वर पिता के मददगार बन अपनी तकदीर को ऊँचा बना लो... *रूहानी सेवा कर सबके दुःख दूर कर अनन्त दुआओ को बाँहों में भर मुस्कराओ... ज्ञान धन के रत्नों को खुले दिल से लुटाओ और सबके दिल आँगन को खुशियो से भर आओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान मोती बन चमकती हुई चारों ओर ज्ञान मोतियों को बिखेरते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे पाये बेशकीमती खजानो को हर दिल पर लुटा रही हूँ... *अपने जैसा अमीर हर दिल को बना रही हूँ... मीठे बाबा का पता हर दिल तक पहुंचा रही हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा मीठी ज्ञान की मुरली बजाकर ज्ञान वर्षा करते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस वरदानी संगम पर ईश्वर पिता के आव्हान पर दौड़ आये हो तो औरो के भी भाग्य को ऐसा ही खूबसूरत बनाओ... *उनके दामन में भी ज्ञान हीरो को सजा आओ... सच्चे सुखो के फूल उनकी मन बगिया में महका आओ...* और अपनी शानदार तकदीर में चार चाँद से लगाकर सदा का मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *बाबा की प्रीत में बंधकर अनमोल खजानों को सबपर लुटाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा रूहानी सेवा में जीजान से जुटी हूँ... अपनी ऊँची तकदीर की झलक हर दिल को दिखा रही हूँ...* प्यारे बाबा से पाया धन सबकी झोली में उड़ेल रही हूँ... और आप समान भाग्यवान बना रही हूँ...”
❉ *अज्ञानता की रात को ख़त्म कर ज्ञान की भोर से रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथी बनकर रूहानी सेवा को बढ़ाओ... और अपने भाग्य के सितारे को शिखर सी ऊंचाइयों पर पहुंचा आओ... *ज्ञान रत्नों की बरसात लिए सुख भरे बादल बन बरसते रहो... ज्ञान खजाने से हर दिल को भर आओ...* और आप समान धनवान् बनाकर पूरे विश्व में खुशियो की मीठी सी सुगन्ध फैलाओ...”
➳ _ ➳ *दिव्य गुणों से सजकर ज्ञान वीणा से दसों दिशाओं को महकाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ज्ञान रत्नों से मालामाल होकर सबको धनवान् बना कर खुशियो में महका रही हूँ...* रूहानी सेवाधारी बनकर बापदादा के दिलतख्त में सजकर... अपने मीठे से भाग्य पर शान से इतरा रही हूँ...”
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∫∫ 6 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों का महादानी बनना है*"
➳ _ ➳ ज्ञान के सागर अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज प्राप्त होने वाले मधुर महावाक्यों को एकांत में बैठ मैं पढ़ रही हूँ और *पढ़ते - पढ़ते अनुभव कर रही हूँ कि ब्रह्मा मुख द्वारा अविनाशी ज्ञान के अखुट खजाने लुटाते मेरे शिव पिता परमात्मा परमधाम से नीचे साकार सृष्टि पर आकर मेरे सम्मुख विराजमान हो गए हैं*। अपने मुख कमल से मेरी रचना कर मुझे ब्राह्मण बनाने वाले मेरे परम शिक्षक शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि पर बैठ ज्ञान की गुह्य बातें मुझे सुना रहें हैं और *मैं ब्राह्मण आत्मा ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के सम्मुख बैठ, ब्रह्मा मुख से उच्चारित मधुर महावाक्यों को बड़े प्यार से सुन रही हूँ और ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ मुरली का एक - एक महावाक्य अमृत की धारा बन मेरे जीवन को परिवर्तित कर रहा है। *आज दिन तक अज्ञान अंधकार में मैं भटक रही थी और व्यर्थ के कर्मकांडो में उलझ कर अपने जीवन के अमूल्य पलों को व्यर्थ गंवा रही थी*। धन्यवाद मेरे शिव पिता परमात्मा का जिन्होंने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर मुझे अज्ञान अंधकार से निकाल मेरे जीवन मे सोझरा कर दिया। अपने शिव पिता परमात्मा के समान महादानी बन अब मुझे उनसे मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान सबको कर, सबको अज्ञान अंधकार से निकाल सोझरे में लाना है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के स्नेह का रिटर्न अब मुझे उनके फरमान पर चल, औरो को आप समान बनाने की सेवा करके अवश्य देना है। *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं देखती हूँ मेरे सामने बैठे बापदादा मुस्कराते हुए बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं। उनकी मीठी मधुर मुस्कान मेरे दिल मे गहराई तक समाती जा रही है*। उनके नयनों से और भृकुटि से बहुत तेज दिव्य प्रकाश निकल रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकाश की सहस्त्रो धारायें मेरे ऊपर पड़ रही है और उस दिव्य प्रकाश में नहाकर मेरा स्वरूप बहुत ही दिव्य और लाइट का बनता जा रहा है। *मैं देख रही हूँ बापदादा के समान मेरे लाइट के शरीर में से भी प्रकाश की अनन्त धारायें निकल रही हैं और चारों और फैलती जा रही हैं*।
➳ _ ➳ अब बापदादा मेरे पास आ कर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर अपने सभी अविनाशी खजाने, गुण और शक्तियां मुझे विल कर रहें हैं। *बाबा के हस्तों से निकल रहे सर्व ख़ज़ानों, सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। बापदादा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे "अविनाशी ज्ञान रत्नों के महादानी भव" का वरदान दे रहें हैं। वरदान दे कर, उस वरदान को फलीभूत कर, उसमे सफलता पाने के लिए बाबा अब मेरे मस्तक पर विजय का तिलक दे रहें हैं। *मैं अनुभव कर रही हूँ मेरे लाइट माइट स्वरूप में मेरे मस्तक पर जैसे ज्ञान का दिव्य चक्षु खुला गया है जिसमे से एक दिव्य प्रकाश निकल रहा है और उस प्रकाश में ज्ञान का अखुट भण्डार समाया है*।
➳ _ ➳ महादानी बन, अपने लाइट माइट स्वरूप में सारे विश्व की सर्व आत्माओ को अविनाशी ज्ञान रत्न देने के लिए अब मैं सारे विश्व मे चक्कर लगा रही हूँ। मेरे मस्तक पर खुले ज्ञान के दिव्य चक्षु से निकल रही लाइट से ज्ञान का प्रकाश चारों और फैल रहा है और सारे विश्व में फैल कर विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्म परिचय दे रहा हैं। *सर्व आत्माओं को परमात्म अवतरण का अनुभव हो रहा है। सभी आत्मायें अविनाशी ज्ञान रत्नों से स्वयं को भरपूर कर रही हैं*। सभी का बुद्धि रूपी बर्तन शुद्ध और पवित्र हो रहा है। ज्ञान रत्नों को बुद्धि में धारण कर सभी परमात्म पालना का आनन्द ले रहे हैं।
➳ _ ➳ लाइट माइट स्वरूप में विश्व की सर्व आत्माओं को अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे कर, अब मैं साकार रूप में अपने साकार ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर महादानी बन मुख द्वारा अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को आविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे कर, सभी को अपने पिता परमात्मा से मिलाने की सेवा निरन्तर कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते अपनी स्थिति से मैं अनेको आत्माओं को परमात्म प्यार का अनुभव करवा रही हूँ। परमात्म प्यार का अनुभव करके वो सभी आत्मायें अब परमात्मा द्वारा मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर अपने जीवन को खुशहाल बना रही हैं*।
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∫∫ 7 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दिल के सच्चे सम्बन्ध द्वारा यथार्थ साधना करने वाली निरन्तर योगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks-10)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *'करावनहार बाप है'- इस स्मृति से मैं बेफिक्र बादशाह बन उड़ती कला का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सदा शक्तियों को कोई को 4 भुजा, कोई को 6 भुजा, कोई को 8 भुजा, कोई को 16 भुजा, साधरण नही दिखाते है... यह *भुजाये सर्व शक्तियों का सूचक हैं... इसलिए सर्वशक्तिवान द्वारा प्राप्त अपनी शक्तियों को इमर्ज करो...* इसके लिए यह नही सोचो की समय आने पर इमर्ज हो जायेंगी लेकिन सारे दिन मे स्वयं प्रति भिन्न-भिन्न शक्तियाँ यूज करके देखो...
➳ _ ➳ सबसे पहला अभ्यास स्वराज्य अधिकार सारे दिन में कहाँ तक कार्य में लगता है? *मैं तो हूँ ही आत्मा मालिक, यह नही... मालिक हो के आर्डर करो और चेक करो कि हर कर्मेंन्द्रियां मुझ राजा के लव और ला में चलते है?* आर्डर करें 'मनमनाभव' और मन जाये निगेटिव और वेस्ट थाट्स में, क्या यह लव और ला रहा? आर्डर करें मधुरता स्वरूप बनना है और समस्या अनुसार, परिस्थिति अनुसार क्रोध का महारूप नही लेकिन सूक्ष्म रूप में भी आवेश वा चिड़चिड़ापन आ रहा है, क्या यह आर्डर है? आर्डर में हुआ? आर्डर करें *हमें निर्मान बनना है और वायुमण्डल अनुसार सोचो कहां तक दबकर चलेंगे, कुछ तो दिखाना चाहिए...* क्या मुझे ही दबना है? मुझे ही मरना है! मुझे ही बदलना है? क्या यह लव और आर्डर है?
➳ _ ➳ इसलिए विश्व के ऊपर, चिल्लाना वाले दुःखी आत्माओं के ऊपर रहम करने के पहले अपने ऊपर रहम करो... अपना अधिकार संम्भालो। *आगे चल आपको चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमंडल बनाने का बहुत कार्य करना है...* पहले भी सुनाया की अभी तक जो जो जहां तक सेवा के निमित्त है, बहुत अच्छी की है और करेंगे भी लेकिन अभी समय प्रमाण तीव्रगति और बेहद सेवा की आवश्यकता है...
➳ _ ➳ *तो अभी पहले हर दिन को चेक करो 'स्वराज्य अधिकार' कहाँ तक रहा?* आत्मा मालिक होके कर्मेन्द्रियों को चलाये... स्मृति स्वरूप रहे की मैं मालिक इन साथियों से, सहयोगियों से कार्य करा रहा हूँ... *स्वरूप नशा रहे तो स्वतः ही यह सब कर्मेन्द्रियां आपके आगे जी हाजिर, जी हजूर स्वतः ही करेंगी...* मेहनत नही करनी पडेगी... आज व्यर्थ संकल्प को मिटाओ, आज संस्कार को मिटाओ, आज निर्णय शक्ति को प्रगट करो... एक धक से सब कर्मेन्द्रियां और मन-बुद्धि-संस्कार जो आप चाहते है वह करेंगी...
✺ *ड्रिल :- "कर्मेन्द्रियों को लव और ला से चलाकर स्वराज्य अधिकारी बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अपनी सोई हुई सर्वशक्तियों को पुनः जागृत कर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनने के लिए मैं अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित हो कर, सर्वशक्तिवान शिव पिता परमात्मा की याद में बैठ जाती हूँ... और सेकण्ड में अशरीरी बन, अपनी साकारी देह से बाहर निकल कर, सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता परमात्मा के पास चल पड़ती हूँ... *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ एक ज्योति पुंज भृकुटि सिहांसन से निकल कर, चारों और प्रकाश फैलाता हुआ ऊपर आकाश की ओर जा रहा है...* आकाश को पार करके, उससे परे सूक्ष्म लोक को पार करके मैं ज्योति पुंज, प्वाइंट ऑफ लाइट पहुंच गई लाल प्रकाश की दुनिया परमधाम में...
➳ _ ➳ स्वयं को देख रही हूँ मैं सर्वशक्तिवान शिव पिता परमात्मा के सम्मुख जिनसे निकल रही सर्वशक्तियों का प्रकाश मुझ आत्मा पर पड़ रहा हैं... *सर्वशक्तियों के इस प्रकाश के मुझ आत्मा पर पड़ते ही, मेरी सोई हुई शक्तियां पुनः इमर्ज हो रही हैं...* स्वयं को मैं सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ... सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर अब मैं परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर रही हूँ और अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर मे विराजमान हो कर बापदादा के पास जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अब मैं बापदादा के सामने उपस्थित हूँ और देख रही हूं बापदादा से अलग - अलग शक्ति की अलग अलग - लाइट निकल रही है... एक - एक शक्ति की लाइट जैसे - जैसे मुझ पर पड़ रही है वैसे - वैसे मेरे सूक्ष्म शरीर पर उस शक्ति की सूचक भुजा निर्मित होती जा रही हैं... *देखते ही देखते अष्ट शक्तियों की अष्ट भुजायें मुझमें निर्मित हो गई है और मेरा स्वरूप अष्ट भुजाधारी दुर्गा का बन गया है...* अपने इसी अष्ट भुजाधारी स्वरूप के साथ अब मैं सूक्ष्म लोक से वापिस साकारी लोक में आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में प्रवेश कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अपने अष्ट भुजाधारी स्वरूप को सदैव स्मृति में रख समय और परिस्थिति के अनुसार उचित समय पर उचित शक्ति का प्रयोग करके सहज ही मायाजीत बन रही हूँ... *अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप को सदैव इमर्ज रखने के लिए अब मैं हर कर्म स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो कर कर रही हूँ...* "इस शरीर रूपी रथ पर विराजमान मैं आत्मा राजा हूँ" इस स्मृति में रहने से अब हर कर्मेन्द्रिय मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है... *सदा स्मृति स्वरूप रहने से अब हर कर्मेन्द्रिय मेरी साथी और सहयोगी बन गई है...*
➳ _ ➳ सदैव मालिक पन के नशे में रहने से सर्व कर्मेन्द्रियां मेरे आगे जी हाजिर, जी हजूर करने लगी है... *अब व्यर्थ संकल्पो, पुराने स्वभाव संस्कारों को मिटाने में मुझे मेहनत नही करनी पड़ रही, बल्कि स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट रहने से परखने और निर्णय करने की शक्ति सहज ही प्रगट हो रही है...* इसलिए परख कर उचित समय पर उचित निर्णय लेने से अब हर कार्य मे मैं सहज ही सफ़लतामूर्त बन रही हूँ... मन बुद्धि की लगाम अपने हाथ मे लेकर अब मैं अपने मन बुद्धि को जहां चाहूँ वहां लगा कर सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप बन गई हूँ... *अपने इस ब्राह्मण जीवन मे कर्मेन्द्रियों को लव और ला से चलाकर स्वराज्य अधिकारी बनने का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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