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 29 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *20 नाखुनो का जोर देकर बाप से पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *शिवबाबा की याद से खुशबूदार फूल बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *करावनहार की स्मृति द्वारा सदा बेफिक्र बादशाह बनकर रहे ?*

 

➢➢ *बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण कर अपनी सर्व कमजोरियों से किनारा किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *याद को शक्तिशाली बनाने के लिए विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार भूल न जाये।*खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो। साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। *साधना इसको नहीं कहते कि सिर्फ योग में बैठ गये लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन, बुद्धि एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए। ऐसी एकाग्रता ही ज्वाला को प्रज्जवलित करेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा के समीप आत्मा हूँ"*

 

   बापदादा के समीप आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? जो समीप आत्माएं होती हैं तो समीप की निशानी क्या होती है? समीपता की निशानी है - समान। तो सदा हर कर्म में अपने को बाप समान अनुभव करते हो? ब्रह्मा बाप का श्रेष्ठ संकल्प क्या था? जो बाप कहते हैं, वह करना। तो आपका भी संकल्प ऐसा है? हर संकल्प में दृढ़ता है? या किसमे है, किसमें नहीं है? *क्योंकि जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, तो दृढ़ता सफलता का आधार बना। ऐसे फालो फादर करो* उनके बोल की विशेषता क्या थी? तो अपने में चेक करो - वह विशेषताएं हमारे में हैं? ऐसे ही कर्म में विशेषता क्या रही? कर्म और योग साथ-साथ रहा? ऐसे कर्म में भी चेक करो? फिर देखो - संकल्प, बोल और कर्म में कितना समीप हैं? जितना समीप होंगे उतना ही समान होंगे।

 

  *जैसे ब्रह्मा बाप ने एक बाप, दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। ऐसे बाप समान बनने वालों को भी इसी कर्म को फालो करना है। तब कहेंगे बाप समान।* इतनी हिम्मत है? कभी दिलशिकस्त तो नहीं बनते? पास्ट इज पास्ट, फ्यूचर नहीं करना। फ्यूचर के लिए यही ब्रह्मा बाप के समान दृढ़ संकल्प करना कि कभी दिलशिकस्त नहीं बनना है, सदा दिलखुश रहना है। फ्यूचर के लिए इतनी हिम्मत है ना? माया हिलाये तो भी नहीं हिलना।

 

  अगर मायाजीत बनने का दृढ़ संकल्प होगा तो माया कुछ नहीं करेगी। सदैव यह स्मृति रखो कि कितने भी बड़े रूप से माया आये लेकिन नथिंग न्यु। कितने बार विजयी बने हो? तो फिर से बनना बड़ी बात नहीं होगी। अगर माया हिमालय जितने बड़े रूप से आये तो क्या करेंगे? उस समय रास्ता नहीं निकालना, उड़ जाना। *सेकेण्ड में उड़ती कला वाले के लिए पहाड़ भी रुई बन जायेगी। तो कितना भी बड़ा पहाड़ का रूप हो, लेकिन डरना नहीं, घबराना नहीं। यह कागज का शेर है, कागज का पहाड़ है। ऐसे पावरफुल आत्माएं ब्रह्मा बाप को फालो कर समीप और समान बन जायेंगी।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *नाम हो मास्टर सर्वशक्तिवान और स्वयं को मालिक समझ कर नहीं चल सके तो क्या मास्टर सर्वशक्तिवान हुए?* हम मास्टर सर्वशक्तिवान है - यह तो पक्का निश्चय है ना, कि यह निश्चय भी अभी हो रहा है?

 

✧  *निश्चय में कभी परसेन्टेज होती है क्या?* बाप के बच्चे तो है ही ना? ऐसे थोडे ही 90 परसेन्ट है और 10 परसेन्ट नहीं है। ऐसा बच्चा कभी देखा है? *निश्चय अर्थात 100 परसेन्ट निश्चय।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बाप के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ होगा। *सत के संग का रंग है रूहानियत। तो समीप रतन सदा रूहानी स्थिति में स्थित होंगे।* शरीर में रहते हुए न्यारे, रूहानियत में स्थित रहेंगे। शरीर को देखते हुए भी न देखें और आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है। वह प्रत्यक्ष दिखाई दे यही कमाल है। *रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी बना सकते, क्योंकि बाप रूह है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- 20 नाखूनों का जोर दे पुरुषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लेना"*

 

 _ ➳  खुबसूरत बगीचे मे टहलते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की याद में डूबी हुई हूँ... प्यारे बाबा की याद में मगन मै आत्मा... *बाबा से वर्सा मिलने की खुशी मे अपने पुरुषार्थ को बढ़ाने की प्रतिज्ञा कर रही हूँ*... बाबा के बिना जीवन कितना नीरस औऱ बेकार था... *बाबा ने आकर ये जीवन पुष्प सा महका दिया... रंग भर दिया इस जीवन में, मैं आत्मा... बाबा को अपने 20 नाखूनों का जोर देकर पुरुषार्थ करने के जज़्बात बताने के लिए सूक्ष्म वतन मे पहुचती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने ज्ञानधन से पूरे वरसे का मालिक बनाते हुए कहा*:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता तो अतुलनीय खज़ाने औऱ ज्ञान रत्नों का भंडार तुम बच्चों के लिए लाए हैं... *उस ज्ञान धन को पाकर सदा अपने पुरुषार्थ को बढ़ाते जाओ... ईश्वरीय शक्तियों को पाकर, अमीरी से भरपूर होकर, वर्सा लेने के लिये पूरी तरह से तैयार होकर, पुरुषार्थ पर पूरा पूरा ध्यान देना है*..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा से प्राप्त वरसे की अधिकारी आत्मा बन कहती हूँ*:- "मीठे बाबा मैं आत्मा... आपकी छत्रछाया में पल रही, *आपके वरसे की अधिकारी, गुणों औऱ शक्तियों से सज कर... पूरी ताकत अर्थात 20 नाखूनों का जोर लगा कर दिन पर दिन अपना पुरुषार्थ बढ़ा रही हूँ*... ज्ञान रत्नों से मालामाल हो गई हूं... आपके प्यार के साये के नीचे रूहानी गुलाब बन मुस्कुरा रही हूँ..."

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए कहा*:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *भगवान पिता बन कर, आप बच्चों के लिये ही तो धरा पर उतरा हैं... अपनी सारी जागीर, पूरा वर्सा आपको ही तो देने आया हैं*... रूहानी अमीरी से आपकी झोली भरने आया हैं... *ऐसे पिता की याद में रहकर... सम्पूर्ण वरसे के अधिकारी बन अपना पुरुषार्थ बढ़ाओ... औऱ मुझ पिता से सारी मेरी मालकियत ले लो*..." 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा परमपिता को बाप के रूप में देख पुलकित हो कर कहती हूं*:- "प्यारे बाबा... मेरे जीवन मे आकर आपने तो मुझ आत्मा को भाग्यशाली बना दिया... *जिस परमात्मा को पाने के लिए मनुष्य दर दर भटकते है... उस पिता ने तो मुझ आत्मा को अपना वारिस ही बना दिया*... देह के भान ने मुझ को सब कुछ भुला दिया था... आपने आकर मुझ आत्मा को मेरा खोया राज्य लौटा दिया... *मुझे रूहानी प्रिंस बना दिया*..."

 

  *प्यारे बाबा ने मुझे गुण, शक्तियों, वरसे से मालामाल करते हुए कहा*:- "सिकीलधे बच्चे... ज्ञानधन ही सच्ची अमीरी हैं... *ये धन और तुम्हारा पुरुषार्थ ही तुम्हें वरसे का अधिकारी बनाता हैं... कभी भी इस ज्ञान धन से विमुख  ना होना*... प्यारे बाबा को हर पल यादों में बसा कर, निरन्तर याद में रह कर अपना सम्पूर्ण वर्सा प्राप्त करना... बाप समान बन कर खुशियों के झूले में सदा झूलना..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की मनोहर छवि को प्यार से निहारते हुए कहती हूँ*:- "मेरे जादूगर प्राण प्यारे बाबा... *आपने अपनी गोद मे बिठाकर, मुझको देवताई सौंदर्य से निखारा हैं... मुझ आत्मा को अपनी जागीर का वारिस बनाया है*... मैं आत्मा एडी चोटी का जोर लगा कर अपना पुरुषार्थ बढा रही हूँ... *आप पर पूरी तरह से बलिहार जा रही हूँ*... आपको पाकर मेरा जीवन पूरा महक उठा हैं... *बाबा के सामने पुरुषार्थ बढ़ाने की प्रतिज्ञा कर मै आत्मा वापिस अपने शरीर मे, इस लौकिक वतन में लौट आती हूँ*..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाबा हमको वर्सा देने आये हैं तो 20 नाखूनों का जोर देकर भी बाप से वर्सा जरूर लेना है*

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता और उनसे मिलने वाली सुख शांति के अविनाशी वर्से को याद करते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की मधुर स्मृतियों में खो कर, मुख से वाह - वाह के गीत गाते, अपने भाग्य की सराहना करते हुए मैं विचार करती हूँ कि मेरे जैसा भाग्यवान इस दुनिया मे कोई नही। *जिस भगवान को बड़े - बड़े साधु सन्यासी, महा मण्डलेश्वर भी पा ना सके वो भगवान कैसे घर बैठे बिल्कुल सहज रीति मुझे मिल गया! अपनी हथेली पर कैसे वो मेरे लिए स्वर्ग की बादशाही लेकर मेरे पास चला आया*! कितनी महान पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो भगवान स्वयं 21 जन्मो का वर्सा मुझे देकर मेरी श्रेष्ठ तकदीर बनाने के लिए मेरे सम्मुख आयें है। ऐसे बाप से तो 20 नाखूनों का जोर देकर भी मुझे वर्सा जरूर प्राप्त करना चाहिए।

 

_ ➳  अपने शिव पिता से स्वर्ग का वर्सा पाने की स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ और स्वर्ग के रचयिता अपने पिता से मिलने का संकल्प लेकर अपने मन और बुद्धि को हर संकल्प, विकल्प से मुक्त कर अपने ध्यान को केवल अपने और अपने पिता के स्वरूप पर पूरी तरह से केंद्रित कर लेती हूँ। *अपने स्वरूप पर मन बुद्धि को एकाग्र करते ही एक अलौकिक रूहानी मस्ती का मैं अनुभव करने लगती हूँ और इस मस्ती में डूबे - डूबे ही महसूस करती हूँ जैसे एक तेज लाइट बार बार आ कर मुझे छूती है और फिर अदृश्य हो जाती है*। किंतु हर बार मुझे छूकर अपनी अनन्त फुहारे मुझ पर बरसा कर मुझे एक अति सुखदाई अनुभूति करवा जाती है और साथ - साथ मेरे एक - एक अंग को शीतल करती जाती है।

 

_ ➳  इन शीतल फ़ुहारों के स्पर्श से अब मैं महसूस कर रही हूँ जैसे मेरा पूरा शरीर बिल्कुल शीतल हो गया है। हर कर्मेन्द्रिय जैसे बिल्कुल शांत और शिथिल हो गई है और मेरा स्थूल शरीर जैसे धीरे - धीरे लाइट की काया में परिवर्तित हो गया है जो रुई की तरह एक दम हल्का है। *इस प्रकाश की काया के साथ मेरे पाँव धीरे - धीरे धरती से ऊपर उठ रहे है और मैं धरती के हर आकर्षण से मुक्त होकर जैसे ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ*। इस अवस्था मे एक गहन सुख और आनन्द का मैं अनुभव कर रही हूँ। एकदम हल्के हो कर उड़ने का यह अनुभव बहुत ही निराला और प्यारा है। *इसी खूबसूरत सुखमयी एहसास के साथ उड़ते उड़ते मैं आकाश को पार कर जाती हूँ और उससे भी ऊपर श्वेत प्रकाश की दुनिया में पहुँच जाती हूँ*।

 

_ ➳  अपने ही समान प्रकाश की काया वाले चमकते हुए फरिश्तो को मैं देख रही हूँ जो इस श्वेत प्रकाश की दुनिया में इधर - उधर विचरण कर रहें हैं और अपने प्रकाश से इस दुनिया को अति प्रकाशमय बना रहे हैं। *अपने बिल्कुल सामने मैं देख रही हूँ एक अति प्रकाशवान सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में विराजमान अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को जिनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहें है*। बाबा के मस्तक से प्रकाश की अनन्त धारायें निकल कर पूरे वतन में फैल रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बापदादा अपनी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। *धीरे - धीरे मैं फरिश्ता जैसे - जैसे बापदादा के पास जा रहा हूँ मैं महसूस कर रहा हूँ जैसे वतन में विचरण कर रहे सभी फ़रिश्ते भी बाबा के सामने आ कर बैठ गए है और मुस्कराते हुए मेरा स्वागत कर रहें हैं*।

 

_ ➳  उन फरिश्तो के वेष में मैं मम्मा, बाबा, यज्ञ की महान तपस्विमूर्त वरिष्ठ दादियों, वरिष्ठ भाइयों और एडवांस पार्टी की आत्माओं को देख रही हूँ जो अपनी दुआयें देकर मुझे आप समान बनने का बल दे रहें हैं। *उनकी दुआयों से और बापदादा की लाइट माइट से मिलने वाला बल मेरे अंदर श्रीमत पर ऐक्यूरेट चलने और बाबा से पूरा वर्सा लेने की शक्ति जागृत कर रहा है*। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर बापदादा मुझे स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी का वरदान दे रहें हैं। बाबा के वरदानी हस्तों से एक तेज लाइट निकलकर मेरे अंदर समाती जा रही है। *बापदादा से वरदान और शक्तियाँ लेकर अब मैं अपनी सूक्ष्म प्रकाश की काया के साथ फिर से साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ और अपने शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  बाबा हमको वर्सा देने आये हैं इस बात को स्मृति में रखकर अब मैं कदम - कदम बाबा की श्रीमत को फॉलो करके, 20 नाखूनों का जोर देकर बाबा से सतयुगी दुनिया का वर्सा लेने का पुरुषार्थ पूरी दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं करावनहार की स्मृति द्वारा सदा बेफिक्र बादशाह बनने वाली निश्चयबुद्धि निश्चिन्त आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण कर अपनी सर्व कमजोरियों से किनारा करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ त्याग का अर्थ है किसी भी चीज को वा बात को छोड़ दिया, अपनेपन से किनारा कर लिया, अपना अधिकार समाप्त हुआ। जिसके प्रति त्याग किया वह वस्तु उसकी हो गई। जिस बात का त्याग किया उसका फिर संकल्प भी नहीं कर सकते - क्योंकि त्याग की हुई बात, संकल्प द्वारा प्रतिज्ञा की हुई बात फिर से वापिस नहीं ले सकते हो। जैसे हद के संन्यासी अपने घर का,सम्बन्ध का त्याग करके जाते हैं और अगर फिर वापिस आ जाएँ तो उसको क्या कहा जायेगा! नियम प्रमाण वापिस नहीं आ सकते। ऐसे आप ब्राह्मण बेहद के संन्यासी वा त्यागी हो। *आप त्याग मूर्तियों ने अपने इस पुराने घर अर्थात् पुराने शरीर, पुराने देह का भान त्याग किया, संकल्प किया कि बुद्धि द्वारा फिर से कब इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होंगे। संकल्प द्वारा भी फिर से वापिस नहीं आयेंगे। पहला-पहला यह त्याग किया। इसलिए तो कहते हो - देह सहित देह के सम्बन्ध का त्याग। देह के भान का त्याग।* तो त्याग किए हुए पुराने घर में फिर से वापिस तो नहीं आते जाते हो! वायदा क्या किया है? तन भी तेरा कहा वा सिर्फ मन तेरा कहा?पहला शब्द ‘‘तन'' आता है। जैसे तन-मन-धन कहते हो,देह और देह के सम्बन्ध कहते हो। तो पहला त्याग क्या हुआ? इस पुराने देह के भान से विस्मृति अर्थात् किनारा। यह पहला कदम है त्याग का।

✺ *"ड्रिल :- देह सहित देह के सर्व संबंधो का त्याग करना*"

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सेंटर में शांत स्वरूप स्थिति में बैठकर परम कल्याणकारी, परम सद्गुरु परमात्मा शिव के अनमोल महावाक्यों को सुन रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को सुनते-सुनते देह से न्यारी होती जा रही हूँ... विदेही बन मैं आत्मा आनंदानुभूति से सराबोर हो रही हूँ... मैं आत्मा स्थूल देह को छोड़ प्रकाश के शरीर को धारण कर उड़ चलती हूँ सफेद प्रकाश की दुनिया में...

➳ _ ➳ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने बैठ जाती हूँ... *बापदादा के प्रकाशमय काया से दिव्य प्रकाश निकलकर मुझ आत्मा के प्रकाश के शरीर को और भी चमकीला बना रहा है...* मैं आत्मा देहभान से मुक्त हो रही हूँ... पुराने देह के भान से विस्मृत होकर एक सुन्दर फरिश्ते स्वरुप में चमक रही हूँ...

➳ _ ➳ ये देह नश्वर है... देह के सब सम्बन्ध नश्वर हैं... देह के पुराने स्वभाव-संस्कार ओझल हो रहे हैं... *देह भान का त्याग करते ही मुझ आत्मा का देह के संबंधों से ममत्व मिट रहा है... नए, पवित्र, स्वर्णिम युग के संस्कार अंकुरित हो रहे हैं...* बाबा की रूहानी दृष्टि, स्नेह भरी दृष्टि से मैं फरिश्ता देह की स्मृति से न्यारी और बाबा की दुलारी बन गई हूँ...

➳ _ ➳ *मैं बाबा को कहती हूँ बाबा ये तन-मन-धन सब कुछ तेरा... सबकुछ आपको समर्पित करती हूँ... देह सहित देह के सर्व संबंधो का त्याग करती हूँ...* इन पर अब मेरा अधिकार नहीं है... मैं प्रतिज्ञा करती हूँ बाबा- कि त्याग की हुई पुराने तन-मन-धन को संकल्प द्वारा भी फिर से वापिस नहीं लुंगी... बुद्धि द्वारा फिर से कभी भी इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होउंगी... संकल्प द्वारा भी फिर से इस पुराने शरीर में वापिस नहीं आउंगी... बाबा से पक्का वायदा करते हुए मैं आत्मा बाबा के प्यार में मगन हो जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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