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❍ 30 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *जीते जी मरकर अपने को छोटा बच्चा समझा ?*
➢➢ *बाकी सब कुछ भूल एक बाप से ही सुना और सीखा ?*
➢➢ *असोच बन, बाप की शक्ति मदद के रूप में अनुभव की ?*
➢➢ *अपनी उपराम स्थिति द्वारा सर्व बातों से किनारा कर एक बाप के सहारे का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ बापदादा बच्चों को विशेष ईशारा दे रहे हैं-बच्चे अब तीव्र पुरुषार्थ की लगन को अग्नि रूप में लाओ, ज्वालामुखी बनो। *जो भी मन के, सम्बन्ध-सम्पर्क के हिसाब-किताब रहे हुए हैं-उन्हें ज्वाला स्वरूप की याद से भस्म करो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ संगमयुग की श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ इस ड्रामा के श्रेष्ठ युग संगम की श्रेष्ठ आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? संगमयुग की महिमा अच्छी तरह से स्मृति में रहती है? क्योंकि संगमयुग को वरदान मिला हुआ है - संगमयुग में ही वरदाता वरदानों से झोली भरते हैं। आप सबकी बुद्धि रूपी झोली वरदानों से भरी हुई है? खाली तो नहीं है? थोड़ी खाली है या इतना भरा हुआ है जो औरों को भी दे सकते हो? *क्योंकि वरदानों का खजाना ऐसा है, जो जितना औरों को देंगे, उतना आपमें भरता जायेगा। तो देते जाओ और बढ़ता जाता है। जितना बढ़ाने चाहते हो उतना देते जाओ।* देने की विधि आती है ना? क्योंकि जानते हो - यह सब अपना ही परिवार है। आपके ब्रदर्स है ना? अपने परिवार को खाली देख रह नहीं सकते हैं। ऐसा रहम आता है? क्योंकि जैसा बाप, वैसे बच्चे।
〰✧ तो सदैव यह चेक करो कि मैंने मर्सीफुल बाप का बच्चा बन कितनी आत्माओंपर रहम किया है? सिर्फ वाणी से नहीं, मन्सा अपनी वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा भी आत्माओंको बाप द्वारा मिली हुई शक्तियां दे सके। तो मन्सा सेवा करने आती है? *जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है तो तीव्र गति से सेवा करो। जितना स्वयं को सेवा में बिजी रखेंगे उतना स्वयं सहज मायाजीत बन जायेंगे। क्योंकि औरों को मायाजीत बनाने से उन आत्माओंकी दुवाएं आपको और सहज आगे बढ़ाती रहेगी।*
〰✧ मायाजीत बनना सहज लगता है या कठिन? आप जब कमजोर बन जाते हैं तब माया शक्तिशाली बनती है। आप कमजोर नहीं बनो। बाबा तो सदैव चाहते हैं कि हर एक बच्चा मायाजीत बनें। तो जिससे प्यार होता है, वो जो चाहता है, वही किया जाता है। बाप से तो प्यार है ना? तो करो। जब यह याद रहेगा कि बाप मेरे से यही चाहता है तो स्वत: ही शक्तिशाली हो जायेंगे और मायाजीत बन जायेगे। माया आती तब है, जब कमजोर बनते हो। इसलिए सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बनो। *मास्टर सर्वशक्तिवान बनने की विधि है - चलते-फिरते याद की शक्ति और सेवा की शक्ति देने में बिजी रहो। बिजी रहना अर्थात् मायाजीत रहना। रोज अपने मन का टाइमटेबुल बनाओ। मन बिजी होगा तो मनजीत मायाजीत हो ही जायेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ स्वयं को अशरीरी आत्मा अनुभव करते हो? *इस शरीर द्वारा जो चाहे वही कर्म कराने वाली तुम शक्तिशाली आत्मा हो - ऐसा अनुभव करते हो?* इस शरिर के मालिक कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाले, इन कर्मेन्द्रियों से जब चाहो तब न्यारे स्वरूप की स्थिति में स्थित हो सकते हो?
〰✧ अर्थात राजयोग की सिद्धि - कर्मेन्द्रियों के राजा बनने की शक्ति प्राप्त की है? *राजा वा मालिक कभी भी कोई कर्मेन्द्रियों के वशीभूत नहीं हो सकता।* वशीभूत होने वाले को मालिक नहीं कहा जाता।
〰✧ विश्व के मालिक की सन्तान होने के नाते, *जब बाप विश्व का मालिक हो और बच्चे अपनी कर्मेन्द्रियों के मालिक न हो, तो क्या कहेंगे? मालिक के बालक कहेंगे?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकण्ड के खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सको। अन्तिम पेपर सेकण्ड का ही होगा जो इस सेकण्ड के पेपर में पास हुआ वही पास-विद्-ऑनर होगा। अगर एक सेकण्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। *जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। कण्ट्रोलिंग पावर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे।* समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकण्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकण्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही है वण्डरफुल खेल।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- वारिस बनने के लिए वारी जाना अर्थात सबसे नष्टोमोहा बनना"*
➳ _ ➳. *मैं आत्मा मधुबन में कॉन्फ्रेंस हॉल के सामने पार्क में बैठी ये सोच रही हूं कि कितनी भाग्यशाली हूं मैं जो इस अति पावन धरा पर बैठी हूँ...* मन में अपार खुशी और दिल में बाबा की याद वाह क्या भाग्य है मेरा... *अपने आप से बातें करते करते मैं मेरे दिलाराम बाबा की स्नेह भरी यादों में खो जाती हूं , और पहुंच जाती हूं परमधाम... बाबा से प्रवाहित होती शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाने लगती हैं और मैं स्वयं को हर बंधन से मुक्त अनुभव कर रही हूं...* परमात्म शक्तिओं से भरपूर होकर मैं स्वयं को सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख खड़ा देख रही हूं... *बाबा मुझ नंन्हे फरिश्ते को अपनी बाहों में भरकर एक अदभुत नगरी में ले जाते हैं... यहाँ हर तरफ हरियाली है, और फूलों के सुंदर उपवन में रंगबिरंगे फूल महक रहे हैं...*
❉ *बाबा अपनी मधुर वाणी में मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे मीठे रूहानी फूल बच्चे... तुम इस नगरी के वारिस हो... *तुम्हें पुरुषार्थ कर सम्पन्न बन इस सतयुगी दुनिया का मालिक बनना है... एक बाप दूसरा न कोई के पाठ को पक्का कर स्वयं को सम्पन्न बनना है...* तभी देवताई स्वरूप को प्राप्त कर सकते हो और इस सुख भरी दुनियाँ के मालिक बन सकते हो..."
➳ _ ➳ *बाबा की प्यार भरी और दिल को आनंदित करने वाली मधुर वाणी को सुनकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे दिलाराम बाबा... *मैं अपने स्वरूप में अतीन्द्रिय सुख का आनन्द ले रही हूँ...* जब से आपने अपना बनाया है हर पल सुख के झूले में झूलती रहती हूं... *त्रिकाल दर्शी बन परमात्म पालना में पल रही हूँ... परमात्मा ने मुझे अपना वारिस बनाया है* इसी स्मृति में मैं आत्मा अपने *परम पिता की यादों में खोई* रहती हूं , और *अपने विशेष रूप ज्योति बिंदु की स्मृति से अपने विकर्मों का बोझा उतारती जा रही हूं..."*
❉ *परमात्म प्रेम के साक्षात्कार स्वरूप बनने की शिक्षा देते हुए बाबा कहते हैं:-* "लाडले बच्चे... स्वयं को इतना भरपूर करो कि आत्माओं के सम्पर्क में आते ही वह अनुभव करें कि वह एक अलौकिक शक्ति से बात कर रहे हैं... अपनी शक्तिओं को समय अनुसार प्रयोग में लाने वाले बनों... *नष्टोमोहा बनकर औरों को भी बनाने की सेवा करो... हर दिल को प्यार से सहलाओ, रहमदिल बन सबको खुशी के ख़ज़ाने का पता बताओ...* हर पल बाप के साथ योग में रहो... बहुत मीठे बनकर तुम्हें बाप का नाम बाला करना है एक बाप पर बलि होना है यही श्रीमत है..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में दीवानी होकर बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे खुदा दोस्त मेरे प्राणो से प्यारे बाबा... *श्रीमत ही मुझ आत्मा को गुलगुल बनाकर आपकी गोद में बिठाती है...* मेरी वीरान *ज़िन्दगी आपके आने से गले गुलशन बनकर महकने लगी है...* बाबा मेरे आपने मेरा जीवन खुशिओं से भर दिया है... *मैं आत्मा आपकी याद में नष्टोमोहा बनती जा रही हूं...* अपनी इस रूहानी स्थिति का असीम सुख मुझे आत्मविभोर करता जा रहा है..."
❉ *बाबा बहुत प्यार से मेरे सर को सहलाते हुए बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... सम्पूर्ण नष्टोमोहा बन तुम्हें बाप से पूरा पूरा वर्सा लेना है... बाप के बनने के बाद कोई भी विकर्म नहीं करना है... *बाप तुम्हे 21 जन्मों के लिए सुखी बनाने आये हैं बाप का वारिस बन इस पुरानी दुनिया को दिल से मिटाना है...* विश्व अधिकारी की सीट पर सेट होने के लिए इस दुनियाँ से ममत्व मिटाना है... संपूर्ण नष्टोमोहा बन बाप पर बलिहार जाना है... *बाप तुम्हें वारिस बनने के लिए श्रीमत देते हैं तुम्हें श्रीमत पर चल सतयुगी दुनियां का मालिक बनना है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा को बहुत ही प्यार से निहारते हुए कहती हूं:-* "मेरे जीवन को सुखों को खान बनाने वाले मीठे प्यारे बाबा मेरे... मैं आपकी अलौकिक गोद में बैठ कर रूहानी प्यार पाकर आनन्द के सागर में डुबकियां लगा रही हूं... आपने मेरे जीवन को क्या से क्या बना दिया ये विचार कर फूली नही समाती हूँ... *मेरी बुद्धि को ज्ञान रत्नों से, पत्थर से पारस बना दिया... वाह मेरा भाग्य वाह... मेरा जीवन ईश्वरीय गुणों से सम्पन्न बनाने वाले मेरे दिलाराम बाबा से वारिस बनने की युक्तियां लेकर स्वयं को परमात्म शक्तियोँ से भरपूर कर मैं आत्मा अपने साकारी तन में लौट आती हूँ...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अन्दर कोई भी विकल्प आये तो भी कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नही करना है*
➳ _ ➳ स्वराज्यअधिकारी की सीट पर सेट होकर, अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाकर मैं चेक कर रही हूँ कि सभी कर्मेन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं! *यह चेकिंग करते - करते मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि पूरे 63 जन्म इन कर्मेन्द्रियों ने मुझ आत्मा राजा को अपना गुलाम बना कर ना जाने मुझ से क्या - क्या विकर्म करवाये*। इन विकर्मो का बोझ मुझ आत्मा के ऊपर इतना अधिक हो गया कि मैं अपने सत्य स्वरुप को ही भूल गई। मैं आत्मा अपना ही स्वधर्म, जो कि सदा शान्त और सुखमय है, उसे भूल कितनी दुखी और अशांत हो गई। किन्तु अब जबकि मेरे प्यारे पिता ने आकर मुझे फिर से मेरे सत्य स्वरूप की पहचान दे दी है कि मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों की गुलाम नही हूँ, मैं तो राजा हूँ।
➳ _ ➳ इसलिए इस सत्य पहचान के साथ अब मुझे स्व स्वरूप में सदा स्थित रहकर, इन कर्मेन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखना है। *पुराने स्वभाव संस्कारो के कारण अगर कभी मन मे कोई विकल्प उतपन्न होता भी है तो भी मुझे कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नही होने देना है और यह तभी होगा जब मैं सदैव स्व स्वरूप की स्थिति में स्थित रहूँगी*। मन ही मन यह चिन्तन करते हुए अपने स्व स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने ही स्वरूप को देखने मे मगन हो जाती हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अपने अति सुन्दर निराकारी स्वरूप को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ। *दोनों आईब्रोज के बीच मस्तक पर चमकता हुए एक चैतन्य सितारे के रूप में मुझे मेरा यह स्वरूप बहुत ही लुभायमान लग रहा है*। देख रही हूँ 7 रंगों की रंगबिरंगी किरणों को मैं अपने मस्तक से निकलते हुए जिसका भीना - भीना प्रकाश मन को आनन्दित कर रहा है।
➳ _ ➳ इस प्रकाश में विद्यमान वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मस्तक से बाहर निकल कर मेरे चारो और फैल कर मेरे आस पास के वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रहे हैं। वातावरण में एक दिव्य रूहानी खुशबू फैलती जा रही है, जो मुझे देह से डिटैच कर रही है। *देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो को भूल अब मैं पूरी तरह से अपने स्वरूप में स्थित हो गई हूँ और बड़ी आसानी से अपने अकाल तख्त को छोड़, देह से बाहर आ गई हूँ*। देह से बाहर आकर देख रही हूँ अब मैं स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारे स्वरूप में। हर बन्धन से मुक्त इस डबल लाइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं धीरे - धीरे ऊपर की और जा रही हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते - चलते मैं पांचो तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर पहुँच गई हूँ आकाश से ऊपर और इससे भी ऊपर सौरमण्डल, तारामण्डल को पार करके, सूक्ष्म लोक से होकर अब मैं अपनी निराकारी दुनिया मे आ गई हूँ। *इस अनन्त प्रकाशमय अंतहीन निर्वाणधाम घर में अब मैं विचरण कर रही हूँ और यहाँ फैले शान्ति के वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर डीप साइलेन्स का अनुभव कर रही हूँ*। यह डीप साइलेन्स की अनुभूति मुझे ऐसा अनुभव करवा रही है जैसे मैं शांति की किसी गहरी गुफा में बैठी हूँ जहाँ संकल्पो की भी कोई हलचल नही। शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँचती हूँ । *एक अति प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ*।
➳ _ ➳ उनके सानिध्य में गहन सुख और शांति की अनुभूति करते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उन्हें टच करती हूँ। सर्वशक्तियों की तेज धारायें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगती है और मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मो की कट उतरने लगती है। *पुराने सभी स्वभाव संस्कार सर्वशक्तियों की तेज आंच से जलने लगते हैं और मैं आत्मा स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करने लगती हूँ*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मो की कट को उतारने के साथ - साथ, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाने के लिए बाबा अपनी सर्वशक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। सर्व शक्तियों से भरपूर होकर मैं आत्मा अब वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के भव्यभाल पर मैं आत्मा फिर से विराजमान हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। हर कर्म अब मैं बाबा को अपने साथ रखकर, कम्बाइंड होकर करती हूँ। *बाबा की याद मेरे चारों और शक्तियों का एक ऐसा सुरक्षा कवच बना कर रखती है जिससे मैं आत्मा माया के धोखे से सदा बची रहती हूँ*। अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति में अब मैं सदा स्थित रहती हूँ। मनसा में कोई विकल्प कभी आ भी जाये तो भी परमात्म बल के प्रयोग द्वारा, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाकर, उनसे कोई भी विकर्म अब मैं कभी भी नही होने देती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं असोच बन, बाप की शक्त्ति मदद के रूप में अनुभव करने वाली चिंतामुक्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी उपराम स्थिति द्वारा सर्व बातों से किनारा करके एक बाप के सहारे का अनुभव करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जैसे घर में घर की सामग्री (सामान) होती है,ऐसे इस देह रूपी घर में
भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ ही सामग्री हैं। तो घर का त्याग अर्थात् सर्व का
त्याग। घर को छोड़ा लेकिन कोई एक चीज में ममता रह गई तो उसको त्याग कहेंगे? *ऐसे
कोई भी कर्मेन्द्रिय अगर अपने तरफ आकर्षित करती है तो क्या उसको सम्पूर्ण त्याग
कहेंगे?इसी प्रकार अपनी चेकिंग करो। ऐसे अलबेले नहीं बनना कि और तो सब छोड़ दिया
बाकी कोई एक कर्मेन्द्रिय विचलित होती है वह भी समय पर ठीक हो जायेगी। लेकिन
कोई एक कर्मेन्द्रिय की आकर्षण भी एक बाप का बनने नहीं देगी।* एकरस स्थिति में
स्थित होने नहीं देगी। नम्बरवन में जाने नहीं देगी। अगर कोई
हीरेजवाहर,महल-माड़िया छोड़ दे और सिर्फ कोई मिट्टी के फूटे हुए बर्तन में भी मोह
रह जाए तो क्या होगा? जैसे हीरा अपनी तरफ आकर्षित करता वैसे हीरे से भी ज्यादा
वह फूटा हुआ बर्तन उसको अपनी तरफ बार-बार आकर्षित करेगा। न चाहते भी बुद्धि
बार-बार वहाँ भटकती रहेगी। ऐसे अगर कोई भी कर्मेन्द्रिय की आकर्षण रही हुई है
तो श्रेष्ठ पद पाने से बार-बार नीचे ले आयेगी। तो पुराने घर और पुरानी सामग्री
सबका त्याग चाहिए। ऐसे नहीं समझो यह तो बहुत थोड़ा है, लेकिन यह थोड़ा भी बहुत
कुछ गंवाने वाला है, सम्पूर्ण त्याग चाहिए।
✺ *"ड्रिल :- अपनी चेकिंग करना कि कोई भी एक कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित तो
नहीं कर पायी*”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेन्टर जाने के लिए घर की सीढियां उतरती हूँ... आखिरी सीढ़ी पर
कदम रखते ही मेरी आँखों के सामने सृष्टि चक्र की सीढ़ी का चित्र याद आ जाता
है... *मैं आत्मा अपने पिता से बिछुड़कर पार्ट बजाने इस सृष्टि में आई और सीढ़ी
उतरते-उतरते इस कलियुगी सृष्टि के आखिरी पायदान पर पहुँच गई... मैं आत्मा पीछे
मुड़कर देखती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे पहली सीढ़ी पर बाबा खड़े मुस्कुरा रहे
हैं...* फिर बाबा मेरे पास नीचे आते हैं... मैं आत्मा बाबा का हाथ पकड सेन्टर
पहुँच जाती हूँ...
➳ _ ➳ *बाबा मुझे मुरली सुनाकर कहते हैं बच्चे- आधे कल्प से तुम इस देह रूपी घर
को ही अपना समझ बैठे थे... देह रूपी घर में भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ ही
सामग्री हैं...* अपनी चेकिंग कर सभी कर्मेन्द्रियों की कचहरी लगाओ कि कोई भी
कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करती है? अगर एक भी कर्मेन्द्रिय
आकर्षित करती है तो उसको सम्पूर्ण त्याग नहीं कहेंगे... इसमें अलबेले नहीं बनो...
➳ _ ➳ *कोई एक कर्मेन्द्रिय का भी आकर्षण होगा तो बुद्धि बार-बार वहाँ भटकती
रहेगी... एक बाप का बनने नहीं देगी... एकरस स्थिति में स्थित होने नहीं देगी...*
नम्बरवन में जाने नहीं देगी... श्रेष्ठ पद पाने से वंचित रह जाओगे...
कर्मेन्द्रिय का आकर्षण नीचे की ओर खींचेगा ऊपर उड़ने नहीं देगा... पुराने देह
रूपी घर और पुराने कर्मेन्द्रियों रूपी सामग्री सबका त्याग कर सम्पूर्ण त्यागी
बनो...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ, एक-एक कर्मेन्द्रिय की कचहरी लगाती
हूँ... क्या मेरे मन-बुद्धि में किसी भी तरह के व्यर्थ संकल्प तो नहीं चलते
हैं...* क्या मैं आत्मा पुराने स्वभाव-संस्कार वश आलस्य, अलबेलेपन में तो नहीं
आती हूँ... क्या मैं अमृतवेले न उठकर मायावी नींद में अपना अमूल्य समय तो नही
गंवाती हूँ... क्या मेरी आँखें इस पुरानी विनाशी दुनिया के आकर्षण में तो नहीं...
➳ _ ➳ क्या मेरे कान इधर-उधर की व्यर्थ नकारात्मक बातों को सुनने में तो मजा नहीं
ले रहे... क्या मेरी जिव्हा अशुद्ध भोजन का रस तो नहीं ले रही... क्या मेरे हाथ
कोई ऐसे कार्य तो नहीं कर रहे जिससे विकर्म बने... क्या मेरे कदम सदा फालो फादर
करते हैं... *क्या मैं आत्मा अपने कर्मेन्द्रियों के आकर्षण में आकर बाबा की
श्रीमत का उल्लंघन तो नहीं करती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में बैठकर दिव्य शक्तिशाली किरणों को अपने में
ग्रहण करती हूँ... तेजस्वी किरणों में नहाकर मैं आत्मा अपने सभी कमी-कमजोरियों
को समाप्त कर रही हूँ... एक-एक कमजोरी को अंश सहित बाबा की ज्वालामुखी किरणों
में भस्म कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा सर्व कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त
होकर कर्मेन्द्रियजीत बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सम्पूर्ण त्याग कर श्रेष्ठ पद
पाने की अधिकारी बन गई हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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