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❍ 13 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पुरुषार्थ में थके तो नहीं ?*
➢➢ *पवित्र बनने और बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *अनासक्त बन लोकिक को संतुष्ट करते भी ईश्वरीय कमाई जमा की ?*
➢➢ *स्मृति स्वरुप बनकर हर कर्म किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के फलस्वरूप तन का रोग हो, मन के संस्कार अन्य आत्माओं के संस्कारों से टक्कर भी खाते हो लेकिन कर्मातीत, कर्मभोग के वश न होकर मालिक बन चुक्तू कराओ।* कर्मयोगी बन कर्मभोग चुक्तू करना-यह है कर्मातीत बनने की निशानी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप की छत्रछाया में रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को बाप की छत्रछाया में रहने वाली विशेष आत्माएं अनुभव करते हो? *जहाँ बाप की छत्रछाया है, वहाँ सदा माया से सेफ रहेंगे। छत्रछाया के अन्दर माया आ नहीं सकती। मेहनत से स्वत: ही दूर हो जायेंगे। सदा मौज में रहेंगे। क्योंकि जब मेहनत होती है, तो मेहनत मौज अनुभव नहीं कराती।*
〰✧ जैसे, बच्चों की पढ़ाई जब होती है तो पढ़ाई में मेहनत होती है ना। जब इम्तिहान के दिन होते हैं तो बहुत मेहनत करते हैं, मौज से खेलते नहीं हैं। और जब मेहनत खत्म हो जाती है, इम्तिहान खत्म हो जाते हैं तो मौज करते हैं। *तो जहाँ मेहनत है, वहाँ मौज नहीं। जहाँ मौज है, वहाँ मेहनत नहीं। छत्रछाया में रहने वाले अर्थात् सदा मौज में रहने वाले।* क्योंकि यहाँ पढ़ाई ऊंची पढ़ते हो लेकिन ऊंची पढ़ाई होते हुए भी निश्चय है कि हम विजयी हैं ही, पास हुए पड़े हैं। इसलिये मौज में रहते हैं।
〰✧ *कल्प-कल्प की पढ़ाई है, नयी बात नहीं है। तो सदा मोज् में रहो और दूसरों को भी मौज में रहने का सन्देश देते रहो, सेवा करते रहो। क्योंकि सेवा का ही फल इस समय भी और भविष्य में भी खाते रहेंगे। सेवा करेंगे तब तो फल मिलेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जो आत्मा स्वराज्य चलाने में सफल रहती है तो *सफल राज्य अधिकारी की निशानी है वह सदा अपने पुरुषार्थ से और साथ-साथ जो भी सम्पर्क में आने वाली आत्माएँ हैं वह भी सदा उस सफल आत्मा से सन्तुष्ट होंगी* और सदा दिल से उस आत्मा के प्रति शुक्रिया निकलता रहेगा।
〰✧ *सर्व के दिल से, सदा दिल के साज से वाह-वाह के गीत बजते रहेंगे, उनके कानों में सर्व द्वारा यह वाह-वाह का शुक्रिया का संगीत सुनाई देगा।* यह गीत ऑटोमेटिक है। इसके लिए टेपरिकार्डर बजाना नहीं पडता। इसके लिए कोई साधनों की आवश्यकता नहीं। यह अनहद गीत है। तो ऐसे सफल राज्य अधिकारी बने हो?
〰✧ क्योंकि *अभी के सफल राज्य अधिकारी भविष्य में सफलता का फल विश्व का राज्य प्राप्त करेंगे।* अगर सम्पूर्ण सफलता नहीं, कभी कैसे हैं, कभी कैसे हैं, कभी 100 परसेन्ट सफलता है, कभी सिर्फ सफलता है। कभी 100 परसेन्ट सफल नहीं हैं तो ऐसे राज्य अधिकारी आत्मा को विश्व का राज्य ताज प्राप्त नहीं होता लेकिन रॉयल फैमिली में आ जाता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *बापदादा भिन्न-भिन्न रूप से बच्चों को समान बनाने की विधि सुनाते रहते हैं। विधि है ही बिन्दी, और कोई विधि नहीं है।* अगर विदेही बनते हो तो भी विधि है बिन्दी बनना। अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है। *इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा है। अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूह-रूहान करते जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दिल में ख़ुशी के नगाड़े बजना"*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा, प्यारे बाबा, मेरे बाबा कह बाबा को पुकारती प्यार की धुन में सवार मैं आत्मा मधुबन बाबा के कमरे में पहुँच जाती हूँ... भक्ति मार्ग में जिसको पुकारती थी, महिमा गाती थी वही अब मेरे सामने हाजिर नाजिर है... जिसने सारे ग़मों को दूर कर खुशियों से जीवन को भर दिया...* मझधार में अटकी जीवन नैया को पार लगा दिया... मुस्कुराते हुए प्रेम के सागर बाबा मुझ पर अपनी प्रेम की गंगा बहाते हैं...
❉ गम के अंधेरों से निकाल खुशियों के आँगन में बिठाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को रोम रोम से पुकारा... कहाँ कहाँ जाकर उसे ढूंढा... और आज खुबसूरत भाग्य महा पिता को धरती पर बुला लाया है... *आज वह प्यारा पिता अपने खजानो को बाँहों में भरकर सामने हाजिर है... तो अब कुछ पाना शेष नही... ईश्वर पिता को बाँहों में ही भर लिया है तो सारे सुख कदमो में बिखर गए है...”*
➳ _ ➳ बाबा का रूहानी रूप देख खुशियों में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यवान हूँ ईश्वर पिता को सम्मुख पाकर निहाल हूँ... *जिसे दर दर ढूंढा करती थी आज उसकी मखमली गोद में फूलो सा सुकून पा रही हूँ... अपने मीठे भाग्य को देख ख़ुशी से निहाल हूँ...”*
❉ अपनी मीठी दृष्टि से दिल में स्नेह की बरसात करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर से मन्नंते किया करते थे दुआओ में बून्द सी ख्वाहिश किया करते थे... आज प्यार का सागर अथाह प्यार को दिल में लिए बच्चों के पास आया है...* अब ईश्वरीय खजानो के सच्चे अधिकारी हो... तो खुशियो में झूमो और नाचो गाओ...”
➳ _ ➳ मीठे वतन में बाबा की गोद में सितारा बन चमकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा एक बून्द ख़ुशी की प्यासी सी आज ईश्वर पिता को पाकर ज्ञानपरी बन चहक उठी हूँ... *महिमा कर करके जिसे पुकारा करती थी कभी आज उसके हाथो में हाथ देकर निश्चिन्त सी खुशियो में झूम रही हूँ...”*
❉ अति मन भावनी मीठी वाणी से मन को लुभाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता को रोम रोम से पुकारते रहे महिमा कर करके मनाते रहे... और आज भगवान सामने आ बैठा है... गोद में बिठा पढ़ा रहा... प्यार कर रहा खजाने लुटा रहा... *तो अब दिल से मुस्कराओ खुशियो में हँसो और खिलखिलाओ... और ईश्वर पिता मिल गया है तो रूहानियत भरी चमक अपने खुशनुमा चेहरों से छ्लकाओ...”*
➳ _ ➳ खुद को खुदा पर फ़िदा कर अनुभवों के सागर में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर अपने भाग्य की खूबसुरती पर फ़िदा हो गई हूँ... ईश्वर को पा लिया है...* उसके दिल में गहरे उतरने के सारे राजो को समझ लिया है... भक्त थी कभी... आज बच्चा बनकर उसके दिल तख्त पर अपना नाम सा लिख दिया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बड़ी सावधानी से श्रीमत पर चलते रहना है*
➳ _ ➳ मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। *मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं*। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। *ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।
➳ _ ➳ एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। *परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं*। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।
➳ _ ➳ बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। *कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अनासक्त बन लौकिक को सन्तुष्ट करते भी ईश्वरीय कमाई जमा करने वाली राजयुक्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्मृति स्वरूप बनकर हर कर्म करने वाला प्रकाश स्तम्भ (लाइट हाउस) हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *सतयुग में या मुक्तिधाम में मुक्ति व जीवनमुक्ति का अनुभव नहीं कर सकेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति के वर्से का अनुभव अभी संगम पर ही करना है।* जीवन में रहते, समय नाजुक होते, परिस्थितियाँ, समस्यायें, वायुमण्डल डबल दूषित होते हुए भी इन सब प्रभाव से मुक्त, जीवन में रहते इन सर्व भिन्न-भिन्न बन्धनों से मुक्त एक भी सूक्ष्म बन्धन नहीं हो - ऐसे जीवन मुक्त बने हो? वा अन्त में बनेंगे? अब बनेंगे या अन्त में बनेंगे?
➳ _ ➳ 2. *बापदादा अभी से स्पष्ट सुना रहे हैं, अटेन्शन प्लीज। हर एक ब्राह्मण बच्चे को बाप को बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त बनाना ही है।* चाहे किसी भी विधि से लेकिन बनाना जरूर है। जानते हो ना कि विधियाँ क्या हैं? इतने तो चतुर हो ना! तो बनना तो आपको पड़ेगा ही। चाहे चाहो, चाहे नहीं चाहो, बनना तो पड़ेगा ही। फिर क्या करेंगे? (अभी से बनेंगे) *आपके मुख में गुलाबजामुन। सबके मुख में गुलाबजामुन आ गया ना। लेकिन यह गुलाबजामुन है - अभी बन्धनमुक्त बनने का। ऐसे नहीं गुलाबजामुन खा जाओ।*
✺ *ड्रिल :- "संगम पर बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त बनने का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... मैं आत्मा अटेन्शन की शक्ति द्वारा परिस्थितियों, समस्याओें, वायुमण्डल के प्रभाव से मुक्त, शरीर में रहते इन सर्व बन्धनों से न्यारी एवं प्यारी होती जा रही हूँ... मोह के सूक्ष्म बन्धन सब समाप्त हो रहे है... बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्व को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा कलियुगी संस्कारों से मुक्त हो रही हूँ... और संगमयुगी श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... अब *मैं आत्मा श्रीमत अनुसार ब्राह्मण कुल की सर्व धारणाओं पर चल रही हूँ...* मैं आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा सर्व को परिवर्तित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परिपक्वता की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हूँ...* हर परिस्थिति में अचल अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ... कैसी भी परिस्थिति अब मुझ आत्मा को हिला नहीं सकती है... मैं आत्मा हर परिस्थिति में अटेंशन अपनी धारणा में परिपक्व रहती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख ‘परिवर्तन करने की कला’ से माया के सभी रूपों को परिवर्तित कर रही हूँ... ‘परिपक्वता’ की शक्ति से मैं आत्मा सर्व मर्यादाओं का पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी ‘निर्मान' स्थिति द्वारा हर गुण को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...* मैं आत्मा धर्म सत्ताधारी बन इन गुणों का अनुभव कर रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा से खुश हो कर मुझे गुलाबजामुन खिला रहे हैं...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ फ़रिश्ते से होती हई विश्व के कोने कोने में पहुँच रही है... और *विश्व की सर्व आत्माओं तक बाबा का सन्देश पहुंचा रही है... विश्व की हर आत्मा धरती पर आये भगवान को पहचान रही है और बाबा से अपना जन्म सिद्ध अधिकार मुक्ति और जीवन मुक्ति का वर्सा प्राप्त कर रही है...* मैं फरिश्ता सदैव इसी तरह बाबा की सेवा में तत्पर विश्व की सर्व आत्माओं को आप समान बनाने की सेवा कर अपनी झोली दुआओं से भर रहा हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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