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❍ 21 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इन आँखों से जो कुछ दिखाई देता है, उनसे ममत्व निकाल बाप और वर्से को याद किया ?*
➢➢ *मुरली पर बहुत बहुत ध्यान दिया ?*
➢➢ *ब्राह्मण जीवन में सदा आनंद व मनोरंजन का अनुभव किया ?*
➢➢ *सबके प्रति दया भाव और कृपा दृष्टि रखी ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ सदा खुशी में झूलने वाले *सर्व के विघ्न हर्ता वा सर्व की मुश्किल को सहज करने वाले तब बनेंगे जब संकल्पों में दृढ़ता होगी* और स्थिति में डबल लाइट होंगे। मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। *जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं। मेरा नहीं तो निर्विघ्न।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा हूँ"*
〰✧ अपने को कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे समझते हो? सदा न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो? वा कभीकभी करते हो? अगर किसी भी प्रकार की माया की परछाई भी पड़ गई तो कमल पुष्प कहेंगे? तो माया आती है या सभी मायाजीत हो? *क्योंकि सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिमान श्रेष्ठ आत्मा समझते हो तो मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे माया आ नहीं सकती।*
〰✧ माया चींटी है या शेर है? तो चींटी पर विजय प्राप्त करना बड़ी बात है क्या? *अपनी स्मृति की ऊंची स्टेज पर होते हो तो माया चींटी को जीतना सहज लगता है और जब कमजोर होते हो तो चींटी भी शेर माफिक लगती है। तो सदा अमृतवेले इस स्मृति को इमर्ज करो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ।* तो अमृतवेले की स्मृति सारा दिन सहयोग देती रहेगी।
〰✧ जैसे स्थूल पोजीशन वाले अपने पोजीशन को भूलते नहीं। आजकल का प्राइम मिनिस्टर अपने को भूल जायेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ? *आपका पोजीशन है-मास्टर सर्वशक्तिमान। तो भूल नहीं सकते। लेकिन भूल जाते हो इसलिए रोज अमृतवेले इस स्मृति को इमर्ज करने से निरन्तर याद हो जायेगी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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बापदादा सभी बच्चों की स्वीट साइलेन्स की स्थिति को देख रहे हैं। एक सेकण्ड में साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाना यह प्रैक्टिस कहाँ तक की है। इस स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकते हैं वा समय लगता है? क्योंकि अनादि स्वरूप ‘स्वीट साइलेन्स' है। *आदि स्वरूप आवाज में आने का है लेकिन अनादि अविनाशी संस्कार - ‘साइलेन्स' है।* तो अपने अनादि संस्कार, अनादि स्वरूप को, अनादि स्वभाव को जानते हुए जब चाहो तब उस स्वरूप में स्थित हो सकते हो? 84 जन्म आवाज में आने के हैं इसलिए ज्यादा अभ्यास आवाज में आने का है। लेकिन अनादि स्वरूप और फिर इस समय चक्र पूरा होने के कारण वापिस साइलेन्स होम में जाना है। *अब घर जाने का समय समीप है।* अब आदि-मध्य-अंत तीनों ही काल का पार्ट समाप्त कर *अपने अनादि स्वरूप, अनादि स्थिति में स्थित होने का समय है।* इसलिए इस समय यही अभ्यास ज्यादा आवश्यक है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ इतना श्रेष्ठ भाग्य कैसे प्राप्त किया! *मुख्य सिर्फ एक बात के त्याग का यह भाग्य है। कौन-सा त्याग किया? देह अभिमान का त्याग किया। क्योंकि देह अभिमान को त्याग किये बिना स्वमान में स्थित हो ही नहीं सकते।* इस त्याग के रिटर्न में भाग्यविधाता भगवान ने यह भाग्य का वरदान दिया है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप आयें हैं स्वर्ग की नई दुनिया स्थापन करने इसलिए इस नर्क से दिल ना लगाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा निराकार परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... परमधाम की रहने वाली मैं निराकार आत्मा इस सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते-बजाते इस दुनिया से ही दिल लगा बैठी... अपने असली पिता को भूल, अपने असली घर को भूल, अपने असली वजूद को ही भूल गई थी...* इस देह, देह के संबंधों, देह के वैभवों के आकर्षण में पड़ गई थी... प्यारे बाबा ने आकर मेरी अज्ञानता के परदे को उठाकर मुझे सत्य ज्ञान दिया... मैं आत्मा इस देह और इस दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास गुह्य राज जानने...
❉ *अपनी हथेली पर बहिश्त लाकर मुझे स्वर्ग की बादशाही देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपने खिलते हुए फूल बच्चों को पिता भला दुखो में तड़फता कैसे देख पाया... बाप भला बिना बच्चों के सुख के कैसे सुख और चैन पाये... मीठा बाबा हथेली पर स्वर्ग सौगात ले आया है...* बादशाह बनाने आया है... ऐसे सुखदायी सच्चे पिता की यादो में खो जाओ..."
➳ _ ➳ *हद की दुनिया से बुद्धि निकाल बेहद बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा प्यारे प्यारे पिता की यादो में सुखो से महकते हुए स्वर्ग को पा रही हूँ... कभी सोचा भी न था कि विश्व की मालिक बनूंगी और आज अपने शानदार भाग्य पर मुस्करा रही हूँ...* मीठे बाबा की यादो में तपते कदमो तले फूलो की छुअन आ रही है...”
❉ *नश्वर दुनिया के काँटों को निकाल मेरे जीवन में स्वर्ग सुखों के फूल खिलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले रिश्तो को याद करके दुखी होकर कितना थक गए हो... *अब ईश्वर पिता की यादो में सदा का आराम पाकर इस कदर खो जाओ... ईश्वर पिता की सारी जागीर बाँहों में भरकर सुखो के स्वर्ग में खिलखिलाओ...”*
➳ _ ➳ *खुशियों की पंछी बन सुखों के आसमान में विचरण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से ज्ञान रत्नों को पाकर सारे सत्य को जान ली हूँ... *दुखो के दलदल से निकल सुखो के स्वर्ग में कदम बढ़ा रही हूँ... मीठे बाबा के प्यार में खोकर अपनी देवताई गरिमा को पाती जा रही हूँ...”*
❉ *अपने निस्वार्थ अविनाशी प्रेम के फव्वारों में मुझे भिगोते हुए मेरे मनमीत प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिन बन्धनों को सत्य समझ अपने कीमती समय साँस संकल्पों को पानी सा बहा रहे वह ठग जायेंगे खोखला और खाली तन्हा सा बनायेगे... *इन सांसो और संकल्पों को ईश्वरीय प्रेम में लुटा दो... अपने निश्छल प्रेम को ईश्वर पिता पर अर्पण कर दो जो सच्चे सुखो का आधार बन खुशियो को लाएगा...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गोपिका बन मुरलीधर के मधुर तान में अपना सुध-बुध खोकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की छाँव तले सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... *मीठी मीठी यादो में जन्नत अपने नाम लिखवा रही हूँ... और पूरे विश्व धरा पर फूलो सा मुस्कराने वाली शहजादी बन रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पढ़ाई को अच्छी रीति धारण कर बुद्धि को सतोप्रधान बनाना है*"
➳ _ ➳ आज के इस तमोप्रधान माहौल में तमोप्रधान बन चुकी हर चीज को और इस तमोप्रधान दुनिया को फिर से सतोप्रधान बनाने के लिए ही भगवान इस धरा पर आयें है और इस श्रेष्ठ कर्तव्य को सम्पन्न करने के लिए तथा सभी आत्माओं की बुद्धि को स्वच्छ, सतोप्रधान बनाने के लिए परमपिता परमात्मा स्वयं परमशिक्षक बन जीवन को परिवर्तन करने वाली पढ़ाई हर रोज हमे पढ़ा रहें हैं। *तो कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो गॉडली स्टूडेंट बन भगवान से पढ़ रही हूँ। मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करते, मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने परमशिक्षक भगवान बाप द्वारा मिलने वाले ज्ञान को अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर, अपनी बुद्धि को सतोप्रधान बनाने का मैं पूरा पुरुषार्थ करूँगी*।
➳ _ ➳ अपने परमशिक्षक शिव बाबा द्वारा मिलने वाले ज्ञान के अखुट खजानों को बुद्धि में धारण कर बुद्धि को स्वच्छ और पावन बनाने के लिए अब मैं अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने बाबा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज मिलने वाले मधुर महावाक्यों पर विचार सागर मंथन करने बैठ जाती हूँ। *एकांत में बैठ मुरली की गुह्य प्वाइंट्स पर विचार सागर मन्थन करते हुए मैं महसूस करती हूँ कि जितना इस पढ़ाई पर मैं मन्थन कर रही हूँ मेरी बुद्धि उतनी ही खुल रही है और इस पढ़ाई को जीवन मे धारण करना बिल्कुल सहज लगने लगा है*। नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने वाली ये पढ़ाई ही परिवर्तन का आधार है जिसे मैं अपने जीवन मे स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। *जैसे - जैसे इस पढ़ाई को मैं अपने जीवन मे धारण करती जा रही हूँ वैसे - वैसे मेरी बुद्धि सतोप्रधान बनती जा रही है*।
➳ _ ➳ इस ईश्वरीय पढ़ाई से अपने जीवन मे आये परिवर्तन के बारे में विचार कर मन ही मन हर्षित होते हुए अपने परमशिक्षक शिव बाबा का मैं दिल से कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करती हूँ और उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ *जो मुझे सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित कर देती है और मन बुद्धि के विमान पर बिठा कर मुझे मधुबन की उस पावन धरनी पर ले जाती है जहाँ भगवान स्वयं परमशिक्षक बन साकार में बच्चों को आकर ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ाते हैं*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं स्वयं को अपने गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण स्वरूप में डायमंड हाल में, जहाँ भगवान अपने साकार रथ पर विराजमान होकर मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। *एकटक अपने परमशिक्षक भगवान बाप को निहारते हुए उनके मुख कमल से निकलने वाले अनमोल ज्ञान को सुनकर उसे बुद्धि में धारण करके मैं वापिस लौट आती हूँ और इस पढ़ाई से अपनी बुद्धि को सतोप्रधान बनाने वाले अपने परमशिक्षक निराकार शिव बाबा से उनके ही समान बन उनसे मिलने मनाने की इच्छा से अब अपने मन और बुद्धि को सब बातों से हटाकर मन बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र कर लेती हूँ*। एकाग्रता की शक्ति धीरे - धीरे देह भान से मुक्त कर, मेरे निराकारी सत्य स्वरूप में मुझे स्थित कर देती है और अपने सत्य स्वरूप में स्थित होते ही स्वयं को मैं देह से पूरी तरह अलग विदेही आत्मा महसूस करने लगती हूँ।
➳ _ ➳ देह के भान से मुक्त होकर अपने प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर मैं बड़ी आसानी से अपने शरीर रूपी रथ को छोड़ उससे बाहर आ जाती हूँ और हर बन्धन से मुक्त एक अद्भुत हल्केपन का अनुभव करते हुए, देह और देह की दुनिया से किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ। *मन बुद्धि से दुनिया के खूबसूरत नजारो को देखती, अपनी यात्रा पर चलते हुए, मैं आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन से परें आत्माओं की उस खूबसूरत निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं*।
➳ _ ➳ अपने इस शान्तिधाम, निर्वाणधाम घर मे आकर, गहन शांति की अनुभूति करते हुए इस अंतहीन ब्रह्मांड में विचरण करते - करते मैं पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के समीप जो अपनी सर्वशक्तियो की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। *अपने पिता परमात्मा के प्रेम की प्यासी मैं आत्मा स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने पिता के पास पहुँच कर उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे भरकर मेरे मीठे दिलाराम बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं*। अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को जिन्हें मैं देह भान में आकर भूल गई थी, उन्हें बाबा अपने गुणों और सर्वशक्तियों की अनन्त धाराओं के रूप में मुझ पर बरसाते हुए पुनः जागृत कर रहे हैं।
➳ _ ➳ अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त कर मैं आत्मा बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवा रही हैं। सर्वगुण और सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आई हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव बाबा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज पढ़ाई जाने वाली पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़कर, और अच्छी रीति धारण करके अपने बुद्धि रूपी बर्तन को मैं धीरे - धीरे साफ, स्वच्छ और सतोप्रधान बनाती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ब्राह्मण जीवन में सदा आनंद व मनोरंजन का अनुभव करने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सबके प्रति दया भाव और कृपा दृष्टि रखने वाली महान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ १.
*तन तो सबके पुराने हैं ही, चाहे
जवान हैं,
चाहे बड़े हैं,
छोटे और ही बड़ों से भी कहाँ-कहाँ कमजोर हैं*, चाहे
बीमारी बड़ी है *लेकिन बीमारी की महसूसता कि मैं कमजोर हूँ, मैं
बीमार हूँ - ये बीमारी को बढ़ा देती है। क्योंकि तन
का प्रभाव मन पर आ गया तो डबल बीमार हो गये*। तन और मन दोनों से डबल बीमार होने
के कारण बार-बार सोल
कान्सेस के बजाय बीमारी कान्सेस हो जाते हैं।
➳ _ ➳
२.
*तन से तो मैजारिटी, बीमार
कहो या हिसाब-किताब चुक्तु करना कहो, कर
रहे हैं*, लेकिन
५० परसेन्ट डबल
बीमार और ५० परसेन्ट सिंगल बीमार हैं।
➳ _ ➳
३.
कभी भी मन में बीमारी का संकल्प नहीं लाना चाहिये- मैं बीमार हूँ, मैं
बीमार हूँ... *लेकिन होता क्या है? ये
पाठ पक्का हो जाता है कि मैं बीमार हूँ*.... कभी-कभी किसी समय बीमार होते नहीं
हैं लेकिन मन में खुशी नहीं है तो
बहाना करेंगे कि मेरे कमर में दर्द है। क्योंकि मैजारिटी को या तो टांग दर्द, या
कमर का दर्द होता है, कई
बार दर्द होता
नहीं है फिर भी कहेंगे मेरे को कमर में दर्द है।
➳ _ ➳
आजकल के हिसाब से दवाइयाँ खाना ये बड़ी बात नहीं समझो। क्योंकि *कलियुग का
वर्तमान समय सबसे शक्तिशाली फ्रूट ये दवाइयाँ हैं।* देखो कोई रंग-बिरंगी तो हैं
ना। कलियुग के लास्ट का यही एक फ्रूट है तो खा लो प्यार से। दवाई खाना ये
बीमारी याद नहीं दिलाता। *अगर दवाई को मजबूरी से खाते हो तो मजबूरी की दवाई
बीमारी याद दिलाती है और शरीर को चलाने के लिये एक शक्ति भर रहे हैं, उस
स्मृति में खायेंगे तो दवाई बीमारी याद नहीं दिलायेगी,
खुशी दिलायेगी* तो बस दो-तीन दिन में दवाई से ठीक हो जायेंगे।
➳ _ ➳
आजकल के तो बहुत नये फैशन हैं, कलियुग
में सबसे ज्यादा इन्वेन्शन आजकल दवाइयाँ या अलग-अलग थेरापी निकाली है, आज
फलानी थेरापी है, आज
फलानी, *तो
ये कलियुग के सीजन का शक्तिशाली फल है। इसलिए घबराओ नहीं। लेकिन दवाई कांसेस,
बीमारी कांसेस होकर नहीं खाओ*। तो तन की बीमारी होनी ही है, नई
बात नहीं है। इसलिए बीमारी से कभी घबराना नहीं।
बीमारी आई और उसको फ्रूट थोड़ा खिला दो और विदाई दे दो।
✺
*ड्रिल :- "बीमारी कान्सेस के बजाय सोल कान्सेस में रहना"*
➳ _ ➳
शाखाओं पर झूलती पकी धान की सुनहरी बालियाँ... वातावरण को महकाती हुई... शाखाओं
से अलग होने के इन्तजार में है... *कलियुग का अन्तिम प्रहर और मैं आत्म पंछी
देहभान की शाखाओं से खुद को मुक्त कर उड चला एक अनोखी सी उडान पर...* दुखों से
मुक्ति की उडान... *मैं उडता जा रहा हूँ निरन्तर ऊँचाईयों की ओर*... सब कुछ
छोटा और छोटा प्रतीत हो रहा है मुझे... *वो सभी कुछ जो पीछे छोडता जा रहा हूँ
मैं...* देह की पीडा,
देह
के सुख,
संबधों में लगाव... जैसे सब कुछ बहुत ही छोटी छोटी बाते है... ये ऊँची
बिल्डिगें ये पर्वत,
ये
नदियाँ,
ये
झरने जैसे सब कुछ नन्हें खिलौने मात्र है... गहराई से महसूस कीजिए... उन सबकी
लघुता को...
➳ _ ➳
फरिश्ता रूप में मैं,
बापदादा के सामने हिस्ट्री हाॅल में... बापदादा आज चिकित्सक के रूप में है...
(दृश्य चित्र बनाकर देखे बाप दादा को एक चिकित्सक के रूप में) मैं देख रहा हूँ
गौर से उनकी एक एक भाव भंगिमा को... महसूस कर रहा हूँ उनके अन्दर किस कदर हम
बच्चों के प्रति कल्याण की भावना है... उनकी आज की वेशभूषा इस बात का प्रमाण
है... बापदादा के सामने रंग बिरंगी गोलियों का बडा ढेर है... *कलियुग का
शक्तिशाली फल*... और *आज वरदानों के साथ बाप दादा बच्चों को यही गोलियाँ टोली
के रूप में दे रहे हैं... शरीर के हिसाब चुक्तु करने की बडी लिफ्ट ये गोलियाँ
और देही अभिमानी बनने का वरदान*...
➳ _ ➳
मेरी बारी आती है... मैं मन में कुछ संकल्प विकल्प लिए बाबा के सामने हूँ... और
बाबा जैसे बिना बतायें ही सब कुछ समझ गये हैं... *स्नेह से हाथ पकड कर बिठा
लिया है उन्होने अपनी गोद में*... और मैं नन्हें बच्चे की तरह दुबक गया हूँ,
उनकी गोद में जैसे कोई नन्हा पंछी छिप जाता है,
अपनी माँ के पंखों के नीचे... *मेरे सर पर स्नेह से हाथ फेरते बापदादा अपने
स्नेह से ही मेरी मन के सभी विकल्पों का समाधान कर रहे है*... मैं महसूस कर रहा
हूँ कि *मेरा बीमारी काॅन्सेस हो जाना ही मुझे डबल बीमार कर देता है*... इसी
समझ के साथ बापदादा से मैं *कलियुग का शक्तिशाली फल खुशी खुशी ले लेता हूँ,
बापदादा सर पर हाथ रखकर मुझे आत्म अभिमानी बनने का वरदान दे रहें है*...
➳ _ ➳
वरदानों की शक्ति स्वयं में समाये हुए मैं राकेट की तेज गति से परमधाम में...
कुछ देर सारे संकल्पों को मर्ज करके... बस एक ही संकल्प में स्थित... *मैं आत्म
अभिमानी हूँ* संकल्प का स्वरूप बनने की शक्ति देते शिव बाबा... (देर तक महसूस
करें शक्तियों का वो झरना खुद के ऊपर) और इसी एक संकल्प मैं बल भरकर,
मैं
आत्मा लौट आयी हूँ अपनी उसी पुरानी देह में, *मगर
अब न कोई शिकवा है,
न
शिकायत... मैं सम्पूर्ण स्वस्थ और आत्मभिमानी अवस्था में...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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