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❍ 20 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कोडी जैसे तन-मन-धन को बाप पर कुर्बान कर उसे ट्रस्टी होकर संभाला ?*
➢➢ *ज्ञान बल और बुधीयोग बल से माया पर विजय प्राप्त की ?*
➢➢ *सदा उमंग उत्साह के पंखों द्वारा उडती कला का अनुभव किया ?*
➢➢ *निर्माणचित, अथक और सदा जागती ज्योत बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे कर्म में आना स्वाभाविक हो गया है वैसे कर्मातीत होना भी स्वाभाविक हो जाए। कर्म भी करो और याद में भी रहो। *जो सदा कर्मयोगी की स्टेज पर रहते हैं वह सहज ही कर्मातीत हो सकते हैं। जब चाहे कर्म में आये और जब चाहे न्यारे बन जायें।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को भाग्यवान समझ हर कदम में श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करते हो? क्योंकि इस समय बाप भाग्यविधाता बन भाग्य देने के लिए आये हैं। *भाग्यविधाता भाग्य बांट रहा है। बांटने के समय जो जितना लेने चाहे उतना ले सकता है। सभी को अधिकार है। जो ले, जितना ले। तो ऐसे समय पर कितना भाग्य बनाया है, यह चेक करो। क्योंकि अब नहीं तो फिर कब नहीं।*
〰✧ *इसलिए हर कदम में भाग्य की लकीर खींचने का कलम बाप ने सभी बच्चों को दिया है। कलम हाथ में है और छुट्टी है - जितनी लकीर खींचना चाहो उतना खींच सकते हो। कितना बिढ़या चांस है! तो सदा इस भागयवान समय के महत्व को जान इतना ही जमा करते हो ना?* ऐसे न हो कि चाहते तो बहुत थे लेकिन कर न सके, करना तो बहुत था लेकिन किया इतना। यह अपने प्रति उल्हना रह न जाए। समझा?
〰✧ *तो सदा भाग्य की लकीर श्रेष्ठ बनाते चलो और औरों को भी इस श्रेष्ठ भाग्य की पहचान देते चलो। 'वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!' यही खुशी के गीत सदा गाते रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे आवाज में आना अति सहज लगता है ऐसे ही आवाज से परे जाना इतना सहज है? यह बुद्धि की एक्सरसाइज सदैव करते रहना चाहिए। जैसे शरीर की एक्सरसाइज शरीर को तन्दरुस्त बनाती है ऐसे *आत्मा की एक्सरसाइज आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।* तो यह एक्सरसाइज आती है या आवाज में आने की प्रैक्टिस ज्यादा है?
〰✧ *अभी-अभी आवाज में आना और अभी-अभी आवाज से परे हो जाना* - जैसे वह सहज लगता है वैसे यह भी सहज अनुभव हो। क्योंकि आत्मा मालिक है। सभी राजयोगी हो, प्रजायोगी तो नहीं? राजा का काम है ऑर्डर पर चलाना। तो *यह मुख भी आपके ऑर्डर पर हो* - जब चाहो तब चलाओ और जब चाहो तब नहीं चलाओ आवाज से परे हो जाओ
〰✧ लेकिन इस रूहानी एक्सरसाइज में सिर्फ मुख की आवाज से परे नहीं होना है - *मन से भी आवाज में आने के संकल्प से परे होना है।* ऐसे नहीं मुख से चुप हो जाओ और मन में बातें करते रहो। *आवाज से परे अर्थात मुख और मन दोनों की आवाज से परे, शान्ति के सागर में समा जायें।* यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है! अनुभवी तो हो ना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बापदादा का हर एक बच्चे से बहुत-बहुत-बहुत प्यार है। ऐसे नहीं समझे कि हमारे से बापदादा का प्यार कम है। *आप चाहे भूल भी जाओ लेकिन बाप निरन्तर हर बच्चे की माला जपते रहते हैं क्योंकि बापदादा को हर बच्चे की विशेषता सदा सामने रहती है। कोई भी बच्चा विशेष न हो, यह नहीं है।* हर बच्चा विशेष है। बाप कभी एक बच्चे को भी भूलता नहीं है, तो सभी अपने को विशेष आत्मा हैं और विशेष कार्य के लिए निमित हैं, ऐसे समझ के आगे बढ़ते चलो। *बापदादा अगर एक-एक की महिमा करे तो सारी रात लग जाये।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद में रहने की प्रैक्टिस करना"*
➳ _ ➳ विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...*
❉ *अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... *इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...”*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”*
❉ *मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... *तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी...”*
➳ _ ➳ *शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... *मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...”*
❉ *देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... *खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... *प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान बल और बुद्धि योग बल से माया पर विजय पानी है*"
➳ _ ➳ "मैं महावीर आत्मा हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बैठ अपने शक्तिशाली स्वरूप में स्थित होकर, सर्वशक्तिवान अपने प्रभु राम की याद में बैठते ही *मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरे प्रभु राम, मेरे शिव पिता परमात्मा माया की बेहोशी से मुझे बचाने के लिए, ज्ञान योग की संजीवनी बूटी देने के लिए मुझे अपने पास बुला रहें हैं*। परमधाम से मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मेरे ऊपर पड़ कर चुम्बक के समान मुझे अपनी और खींच रही हैं। देह का आकर्षण समाप्त हो रहा है और मैं स्वयं को इस देह से एकदम न्यारा अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की चुम्बकीय शक्ति ने मुझे अपनी और खींच लिया है और मैं आत्मा उन किरणों के साथ चिपक कर देह से बाहर निकल आई हूँ। देह के बन्धन से मुक्त इस अवस्था में मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। हल्केपन का यह अहसास मुझे असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है। *हर संकल्प, विकल्प से मुक्त स्वयं को मैं बिल्कुल शून्य अनुभव कर रही हूँ। अपनी इस न्यारी और प्यारी निर्बन्धन शून्य अवस्था का आनन्द लेते - लेते अब मैं अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे ऊपर आकाश की और जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे एक नवजात शिशु अपनी माँ की ममतामई गोद मे अपने आपको एक दम सुरक्षित अनुभव करता है। *इसी सुखद अनुभूति के साथ अपने शिव पिता के स्नेह की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते अब मैं आकाश को पार कर जाती हूँ* और उससे ऊपर की रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए सूक्ष्म वतन से होती हुई उस परलोक में पहुँच जाती हूँ जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं।
➳ _ ➳ निराकारी आत्माओ की इस दुनिया में प्रवेश करते ही *मैं देखती हूँ लाल प्रकाश की इस अदभुत दुनिया में अनन्त टिमटिमाते चैतन्य सितारे और उन सितारों के बीच विराजमान महाज्योति शिव पिता परमात्मा एक ज्योतिपुंज के रूप में अति शोभायेमान लग रहे हैं*। उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की सहस्त्रो धारायें सभी टिमटिमाते चैतन्य सितारों के ऊपर पड़ कर उनकी चमक को करोड़ो गुणा बढ़ा रही हैं।
➳ _ ➳ इस अति सुन्दर नज़ारे को देखते हुए अब मैं चमकता सितारा, मैं जगमग करती ज्योति धीरे - धीरे अपने शिव पिता के पास जा कर उनके साथ अटैच हो कर उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ और योग की अग्नि में अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर रही हूँ। *विकर्मों को भस्म कर, शक्तिशाली बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और फरिश्तो की आकारी दुनिया में प्रवेश कर जाती हूँ*। अपनी चमकीली फ़रिश्ता ड्रेस को धारण कर मैं बापदादा के पास पहुंचती हूँ। अपनी बाहों में समाकर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाते हुए बापदादा मुझे अपने पास बिठा लेते हैं।
➳ _ ➳ अब बाबा मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर, अपनी सर्वशक्तियों के रूप में, माया की बेहोशी से स्वयं को बचाने के लिए ज्ञान और योग की संजीवनी बूटी मुझे देते हैं। *इस संजीवनी बूटी को लेकर, फिर से अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ और अपने संगमयुगी ब्राह्मण चोले को धारण कर, माया के साथ युद्ध करने के लिए कर्मभूमि रूपी युद्ध स्थल पर पहुंच जाती हूँ*।
➳ _ ➳ कुरुक्षेत्र के इस मैदान अर्थात इस कर्मभूमि में आकर हर कर्म करते, *कदम - कदम पर माया के साथ युद्ध करते अब मैं हर समय अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता से मिली ज्ञान योग की संजीवनी बूटी से स्वयं को माया की बेहोशी से बचाते हुए महावीर बन माया के हर वार का सामना कर, माया जीत बन रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं उमंग उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती कला में उड़ने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं निर्माणचित, अथक और सदा जागती ज्योत बनने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *चाहे विदेशी, चाहे भारतवासी दोनों ही भाग्य विधाता के बच्चे हैं इसलिए हर ब्राह्मण बच्चा विजयी है।* सिर्फ हिम्मत को इमर्ज करो। हिम्मत समाई हुई है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो- ऐसे हो ना? (सभी हाथ हिला रहे हैं) हाथ तो बहुत अच्छा हिलाते हैं। *अभी मन से भी सदा हिम्मत का हाथ हिलाते रहना। बापदादा को खुशी है, नाज है कि मेरा एक-एक बच्चा अनेक बार का विजयी है। एक बार नहीं, अनेक बार की विजयी आत्मायें हो।* तो कभी यह नहीं सोचना, पता नहीं क्या होगा? होगा शब्द नहीं लाना। विजय है और सदा रहेगी।
➳ _ ➳ 2. *मायाजीत हैं। हम नहीं होंगे तो और कौन होगा, यह रूहानी नशा इमर्ज करो।* और-और कार्य में मन और बुद्धि बिजी हो जाती है ना तो नशा मर्ज हो जाता है। लेकिन बीच-बीच में चेक करो कि कर्म करते हुए भी यह विजयीपन का रूहानी नशा है? *निश्चय होगा तो नशा जरूर होगा।* *निश्चय की निशानी नशा है और नशा है तो अवश्य निश्चय है। दोनों का सम्बन्ध है।*
➳ _ ➳ बापदादा के पास बच्चों के पत्र वा चिटकियां बहुत अच्छे-अच्छे हिम्मत की आई हैं कि हम अब से 108 की माला में अवश्य आयेंगे। बहुतों के अच्छे-अच्छे उमंग के पत्र भी आये हैं और रूह-रिहान में भी बहुतों ने बापदादा को अपने निश्चय और हिम्मत का अच्छा समाचार दिया है। *बापदादा ऐसे बच्चों को कहते हैं - बाप ने आप सबके बीती को बिन्दू लगा दिया।* इसलिए बीती को सोचो नहीं, अब जो हिम्मत रखी है, हिम्मत और मदद से आगे बढ़ते चलो। *बापदादा ऐसे बच्चों को यही वरदान देते हैं - इसी हिम्मत में, निश्चय में, नशे में अमर भव।*
✺ *ड्रिल :- "निश्चय बुद्धि बन विजयीपन के रूहानी नशे का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता उड़ती हुई ऊंची पहाड़ी पर आकर बैठ जाती हूँ...* और देखती हूँ कि दूर देश के फ़रिश्ते भी उड़ कर कभी पावन भारत भूमि पर आते तो कभी चले जाते... सबके मन खुशियों से, उमंग से भरे हुए हैं... हैं तो सभी भाग्य विधाता के बच्चे, ब्राह्मण बच्चे... कल-कल बहते पानी की मधुर आवाज से मन मगन हो जाता है... और *बुद्धि के पटल पर चलचित्र चलने लगता है.... इसमें मेरी ही कल्प-कल्प की कहानी चल रही है...*
➳ _ ➳ *मैं विजयी आत्मा हूँ... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि हूँ... और इसी नशे का अनुभव कर रही हूँ की मैं आत्मा सिर्फ एक बार की नहीं... बल्कि अनेक बार की कल्प कल्प की विजयी आत्मा हूँ।* बापदादा रूहानी दृष्टी देते हुए मुझ आत्मा को... विजयी भव का वरदान दे रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा से इस वरदान को पाकर मास्टर सर्वशक्तिवान की पॉवरफुल स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति मुझे मायाजीत बनाती जा रही है... *माया के हर मुखौटे को परखने की कसौटी से उन पर जीत पाती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि की यह अवस्था मुझ आत्मा को अत्यंत ही सुखदायी रूहानी नशे का अनुभव करवा रही है...* मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर अपना हर कर्म विजयी मूर्त आत्मा के इसी रूहानी नशे में स्थित होकर कर रही हूँ... और सदैव बापदादा की छत्रछाया में रहते हुए हर सेकंड अपने अलौकिक मार्ग में तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए हर कार्य में सफलता का अनुभव कर रही हूँ... *स्वयं भगवान मेरा साथी है - यह रूहानी नशा मुझ आत्मा को निडर बना मायाजीत अवस्था का अनुभव करवा रहा है...*
➳ _ ➳ *मैं परम पवित्र आत्मा अपने में निश्चय और हिम्मत का बल अनुभव करती हूँ...* बीती को बीती कर आगे बढ़ती जा रही हूँ... सभी सोच-फिकर बापदादा को देकर हल्की हो गयी हूँ... अब मैं आत्मा अपने हर कर्म में हर कदम पर हिम्मत का एक कदम उठा बापदादा की हज़ार गुना मदद का अनुभव कर रही हूँ... और मेरा यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन सम्पूर्ण निर्विघ्न होता जा रहा है... अब जबकि परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा की सभी बीती को बिंदु लगा दिया है... मैं आत्मा 108 की विजयमाला में होने का अनुभव कर रही हूँ... *कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ... ओम् शान्ति।*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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