━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 14 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"आत्मा बोलती है, आत्मा इन ओरगन्स से सुनती है" - यह अभ्यास किया ?*
➢➢ *जीते जी मरकर पूरा परवाना बनकर रहे ?*
➢➢ *अशांति व हंगामो के बीच आत्माओं को शांति कुंड की अनुभूति कराई ?*
➢➢ *स्वयं की और सर्व की चिंताओं को मिटा शुभ चिन्तक बनकर रहे ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *जितना आप अपनी अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जायेंगे उतना बोलना कम होता जायेगा।* कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा फिर इस योग की शक्ति से सर्विस स्वत: होगी। *योगबल और ज्ञान-बल जब दोनों इकट्ठा होता है तो दोनों की समानता से सफलता मिलती है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"*
〰✧ सदा अपने को बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करते हो? *जैसा बाप वैसे बच्चे हैं ना! सर्वशक्तियों का वर्सा बच्चों का अधिकार है। तो जब भी जिस शक्ति को जिस रूप से कार्य में लगाने चाहो वैसे लगा सकते हो!*
〰✧ *मास्टर सर्वशक्तिवान की स्मृति शक्तियों को इमर्ज करती है। जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता होगी उस समय इस स्मृति से कार्य में लगा सकते हो।*
〰✧ *ऐसे अनुभव करेंगे जैसे यह शरीर की शक्तियाँ बाहें हैं, पाँव हैं, आँखें हैं... जिस समय जो शक्ति यूज करने चाहें वैसे कर सकते हैं, वैसे यह सूक्ष्म शक्तियाँ कार्य में लगा सकते हैं। क्योंकि यह भी अपना अधिकार है। लेकिन इसका अधिकार है मास्टर सर्वशक्तिवान की स्मृति।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ आप पुराने हो इसलिए आपको सामने रख समझा रहे हैं। सामने कौन रख जाता है? जो स्नेही होता है। *स्नेहियों को कहने में कभी संकोच नहीं आता है*। एक - एक ऐसे स्नेही हैं?
〰✧ सभी सोचते है बाबा बडा आवाज क्यों नहीं करते हैं। लेकिन बहुत समय के संस्कार से अव्यक्त रूप से व्यक्त में आते है तो आवाज़ से बोलना जैसे अच्छा नहीं लगता है। *आप लोगों को भी धीरे - धीरे आवाज़ से परे इशारों पर कारोबर चलानी है*। यह प्रैक्टीस करनी है। समझा।
〰✧ बापदादा बुद्धि की ड्रिल कराने आते है जिससे परखने की और दूरांदेशी बनने की क्वालिफिकेशन इमर्ज रूप में आ जाये। क्योंकि आगे चलकर के ऐसी सर्वीस होगी जिसमे दूरांदेशी बुद्धि और निर्णय शक्ति बहुत चाहिए। इसलिए यह ड्रिल करा रहे हैं।फिर पाँवरफुल हो जायेगी। ड्रिल से शरीर भी बलवान होता है। *तो यह बुद्धि की ड्रिल से बुद्धि शक्तिशाली होगी*।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ यह स्मृति में रहे कि वैराइटी आत्माएं है। आत्मिक दृष्टि रहे। आत्मा के रूप में उनको स्मृति में लाने से पावर दे सकेंगे। आत्मा बोल रही है। आत्मा के यह संस्कार हैं। यह पाठ पक्का करना है। *'आत्मा' शब्द स्मृति में आने से ही रूहानियत-शुभ भावना आ जाती है, पवित्र दृष्टि हो जाती है। चाहे भले कोई गाली भी दे रहा है लेकिन यह स्मृति रहे कि यह आत्मा तमोगुणी पार्ट बजा रही है।* अपने आप का स्वयं टीचर बन ऐसी प्रैक्टिस करनी है। यह पाठ पक्का करने लिए दूसरों से मदद नहीं मिल सकती। अपने पुरुषार्थ की ही मदद है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान की खुशबू फ़ैलाने वाले खुशबूदार फूल बन सदा अच्छी खुशबू फैलाते रहना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुबह-सुबह फूलों के बगीचे में झुला झूलती हुई फूलों... पंछियों... उगते सूरज की लालिमा... बहती हवाओं को देख मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... इतनी सुन्दर प्रकृति के रचनाकार को दिल ही दिल में शुक्रिया करती हुई... *सुप्रीम रचयिता का आह्वान करती हूँ... जिसने परमधाम से अवतरित होकर बागबान बन मेरे अन्दर के अवगुणों रूपी काँटों को निकाल दिया... और दिव्य गुणों रूपी खुशबू से भर दिया है... अब मैं आत्मा चैतन्य पुष्प बन अल्लाह के बगीचे में बैठ चारों ओर अपनी खुशबू फैला रही हूँ...*
❉ *प्यारे बाबा मेरे मन के फूलों को खिलाते हुए खुशबू से महकाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता बागबान के बगीचे में रूहानी पुष्प बन खिले हो... कितना महकता और खूबसूरती से सजा शानदार सा भाग्य है... *ज्ञान के सुंदर रंग में रंगे से... याद और दिव्य गुणो का महकता रूप और खुशबु लिए चैतन्य पुष्प बन मुस्करा रहे हो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बसंत बन ज्ञान पुष्पों को सब पर बरसाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कभी काँटों के जंगल का हिस्सा थी... आज ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल बन खिल रही हूँ... *दूर से सबको अपनी रूहानी रंगत रूप और खुशबु से दीवाना बनाकर... मीठे बाबा बागबान का पता दे रही हूँ...”*
❉ *देह के जाल से मुक्त कर ज्ञान योग के पंख देते हुए प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अल्लाह के बगीचे के जो फूल बन खिले हो... तो ज्ञान और योग का प्रेक्टिकल स्वरूप दिव्य गुणो की धारणा भी अपने स्वरूप से छ्लकाओ...* स्वयं प्रकाशित होकर सबके दिलो से अँधेरा दूर कर दो... विघ्नो से मुक्ति देने वाले विघ्न विनाशक मा. ज्ञान सूर्य से दमक उठो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मस्तक मणि बन अपनी चमक से चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल हूँ... मीठा बाबा इस समय मेरा बागवान है... *और योगी जीवन दिव्य गुणो की खुशबु से पूरा विश्व महका कर सुखो की बहार खिला रही हूँ... सबके दिलो की मलिनता और अँधेरा मिटा कर ज्ञान की रौशनी से जगमगा रही हूँ...”*
❉ *वरदानों से भरपूर कर मेरे भाग्य की लकीर लम्बी खींचते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *तन मन धन से सच्चे सेवाधारी बन ईश्वर पिता के दिल तख्त पर झूम जाओ...* वरदानी संगम युग में 84 जनमो का खूबसूरती से रिकार्ड भरकर... सदा सच्चे सुखो के मालिक बनो... प्राप्ति के समय में सच्ची कमाई के असीम खजानो को... बाँहों में भरकर खुशियो में मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपना सबकुछ समर्पण कर परवाना बन शमा पर फ़िदा होते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को वरदानी संगम पर खुशियो से सजा रही हूँ... *इतना प्यारा और खुबसूरत समय जो तकदीर ने थमाया है बलिहार हो गई हूँ...* हर जन्म की सुन्दरतम कहानी भाग्य की लकीरो में स्वयं बैठ लिखती जा रही हूँ...”
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- जीते जी मरकर पूरा परवाना बनना है*"
➳ _ ➳ जैसे शमा पर फिदा परवाना, अपनी सुध - बुध खो कर, उसकी लौ में जल कर भस्म हो जाता है ऐसे इस पुरानी दुनिया से जो जीते जी मरकर अपने भगवान बाप पर फिदा होने वाले परवाने बनते हैं वही उनके गले का हार बन रुद्र माला में पिरोए जाते हैं। *मन ही मन यह विचार करती अब मैं अपनी चेकिंग करते हुए अपने आप से सवाल करती हूँ कि क्या मैं जीते जी मरकर पूरा परवाना बनी हूँ*! इस देह, देह की दुनिया से क्या मैं मर चुकी हूँ! क्या अभी भी देह के सम्बन्धों में कोई लगाव, झुकाव या टकराव तो नही है! *अगर एक भी चीज में मेरा ममत्व बाकी है तो इसका अर्थ है कि मैं शमा पर मर मिटने वाला परवाना नही बल्कि चक्कर काटने वाला परवाना बनी हूँ और चक्कर काटने वाले माला का मणका कैसे बन सकते हैं*?
➳ _ ➳ इसलिए अगर मुझे बाबा के गले का हार बनना है तो मुझे जीते जी मरकर पूरा परवाना बनने का पुरुषार्थ करना होगा। मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, उसे पूरा करने का बल अपने अन्दर भरने के लिए अपने प्यारे पिता का मैं आह्वान करती हूँ। *उनकी मीठी याद में अपने मन बुद्धि को मैं जैसे ही स्थिर करती हूँ उनकी मीठी याद का प्रतिफल उनके स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसता हुआ अनुभव होता है*। मैं महसूस करती हूँ कि परमधाम से आ रही बाबा के स्नेह की अनन्त किरणे मुझे बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर रही है और यह न्यारी और प्यारी अवस्था मुझे देह और देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर रही है।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त, बिल्कुल अशरीरी स्थिति में अब मैं स्थित हो चुकी हूँ। *सच्चा परवाना बन अपनी शिव शमा पर फिदा होने के लिए उनके प्रेम की लग्न में मग्न हो कर मैं आत्मा सजनी विदेही बन, देह के हर बन्धन से मुक्त होकर, अब उनसे मिलने उनकी निराकारी दुनिया परमधाम की ओर जा रही हूँ*। परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अब पहुंच गई अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में *निराकारी आत्माओं की एक ऐसी दुनिया जहाँ देह और देह से जुड़ी किसी बात का संकल्प मात्र भी नही*।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में मैं देख रही हूँ चारों और चमकते चैतन्य सितारों को और उन चमकते सितारों के बीच एक चमकते हुए ज्योतिपुंज अपने शिव पिता को जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रहें हैं। *उस महाज्योति अपने शिव पिता परमात्मा से निकलने वाली अनन्त किरणों के प्रकाश से आकर्षित होकर सभी चैतन्य सितारे उनके समीप जा रहें हैं और उनके अनन्त प्रकाश में ऐसे विलीन होते हुए दिखाई दे रहें हैं जैसे शमा की लौ पर परवाना फिदा होता है*। इस खूबसूरत दृश्य को मैं देख रही हूँ और परवाना बन अब अपनी शिव शमा पर फिदा होने के लिए उनके समीप जा रही हूँ। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के अनन्त प्रकाश की किरणों रूपी बाहों ने मुझे अपने अन्दर समा लिया है और मैं उनका ही रूप बन गई हूँ।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर, उनके प्रेम, गुणों और उनकी शक्तियों से भरपूर होकर अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *परवाना बन शिव शमा पर फिदा होकर मिलने वाले परमआनन्द के एहसास को अपने साथ लिए अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ*। अपने सारे सम्बन्ध केवल अपने शिव पिता के साथ जोड़, इस देह और देह की दुनिया के नश्वर सम्बन्धो से अब मैं ममत्व निकालती जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी, बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर, हर चीज से अब मैं सहज ही उपराम होकर, इस दुनिया से जीते जी मरकर पूरा परवाना बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अशान्ति वा हंगामों के बीच शान्ति कुण्ड की अनुभूति कराने वाली शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं की और सर्व की चिंताओं को मिटाकर शुभचिंतक बनने वाला डबल लाइट फरिश्ता हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *जैसे साइन्स का बल अपना प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में दिखा रहा है ऐसे साइन्स की भी रचता साइलेन्स बल है। साइलेन्स बल को अभी प्रत्यक्ष दिखाने का समय है। साइलेन्स बल का वायब्रेशन तीव्रगति से फैलाने का साधन है - मन-बुद्धि की एकाग्रता। यह एकाग्रता का अभ्यास बढ़ना चाहिए।* एकाग्रता की शक्तियों द्वारा ही वायुमण्डल बना सकते हो। हलचल के कारण पावरफुल वायब्रेशन बन नहीं पाता। बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़ संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जाएँ। दिल से रहम इमर्ज हो। *क्या जब साइन्स की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा वा संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती!*
✺ *"ड्रिल :- एकाग्रता का अभ्यास"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में बैठती हूँ... *सभी बाह्य बातों से उपराम होती हुई अंतर्मुखी हो जाती हूँ...* मैं आत्मा मन को अन्य संकल्पों से हटाकर भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... मैं शांत स्वरूप आत्मा हूँ... मस्तक के मध्य चमकती हुई बिंदु हूँ... मैं आत्मा अपने बिंदु रूप में टिक जाती हूँ... *मैं आत्मा इस देह रूपी विनाशी घर से बाहर निकल पहुँच जाती हूँ अपने अविनाशी घर स्वीट साइलेंस होम में...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने स्वीट साइलेंस होम में स्वीट साइलेंस की अनुभूति कर रही हूँ...* शांति के सागर में डूब रही हूँ... आवाज़ से परे, हलचल से परे मैं आत्मा गहरी शांति को अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा की मन-बुद्धि की हलचल समाप्त हो रही है... मुझ आत्मा की एकाग्रता की शक्ति बढ रही है... *मैं आत्मा साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाती हूँ...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा साइलेन्स में रहकर... एकाग्रता की शक्ति से अंतर्मुखी हो रही हूँ... मैं आत्मा अंतर्मुखी होकर सदा सुखी और सन्तुष्टता का अनुभव कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा साइलेंस की शक्ति से सर्व समस्याओं का हल कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व प्रकार के हलचल में भी अचल रहती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा एक की लगन में मगन होकर एकाग्रता के अभ्यास को बढ़ाती हूँ... *लगन की अग्नि की ज्वाला से व्यर्थ को समाप्त कर रही हूँ... व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ कर्म, व्यर्थ बातों से मुक्त हो रही हूँ...* मुझ आत्मा के मन-बुद्धि सभी संकल्पों-विकल्पों से मुक्त हो रहे हैं... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप समर्थी स्वरुप बन रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मनमनाभव के मन्त्र में टिककर... शांति के सागर से शांति की किरणों को लेकर... चारों ओर फैला रही हूँ...* अशांत आत्माओं को शांति का दान कर रही हूँ... मैं आत्मा शांति के पावरफुल वायब्रेशन द्वारा सबके दुख की घटनाओं को परिवर्तित कर शांति का वायुमंडल बना रही हूँ... *मैं आत्मा साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा हलचल को परिवर्तित कर रही हूँ...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━