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❍ 04 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पढाई पड़कर स्वयं पर आपेही कृपा की ?*
➢➢ *माया से डरे या घबराए तो नहीं ?*
➢➢ तीर्थ स्थान की स्मृति द्वारा सर्व पापों से मुक्त होने का पुरुषार्थ किया *?*
➢➢ *नॉलेज और अनुभव की डबल अथॉरिटी वाले बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जब आप अपनी बीजरूप स्थिति में स्थिति रहेंगे तो अनेक आत्माओं में समय की पहचान और बाप की पहचान का बीज पड़ेगा। अगर बीजरूप स्थिति में स्थित न रहे सिर्फ विस्तार में चले गये तो ज्यादा विस्तार से वैल्यु नहीं रहेगी, व्यर्थ हो जायेगा* इसलिए बीजरूप स्थिति में, बीजरूप की याद में स्थित हो फिर बीज डालो। फिर देखना उस बीज का फल कितना अच्छा और सहज निकलता है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पद्मापद्म भाग्यवान हूँ"*
〰✧ अपने को पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? हर कदम में पद्मों की कमाई जमा हो रही है? तो कितने पद्म जमा किये हैं? अनगिनत हैं? *क्योंकि जानते हैं कि जमा करने का समय अब है। सतयुग में जमा नहीं होगा। कर्म वहाँ भी होंगे लेकिन अकर्म होंगे। क्योंकि वहाँ के कर्म का सम्बन्ध भी यहाँ के कर्मे के फल के हिसाब में है। तो यहाँ है करने का समय और वहाँ है खाने का समय।* तो इतना अटेन्शन रहता है? कितने जन्मों के लिये जमा करना है? (84) जमा करने में खुशी होती है ना? मेहनत तो नहीं लगती? क्यों नहीं मेहनत महसूस होती है?
〰✧ क्योंकि प्रत्यक्षफल भी मिलता है। प्रत्यक्षफल मिलता है कि भविष्य के आधार पर चल रहे हो? भविष्य से भी प्रत्यक्षफल अति श्रेष्ठ है। सदा ही श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ प्रत्यक्षफल मिलने का साधन है कि सदा ये याद रखो कि 'अब नहीं तो कब नहीं'। जैसे नाम है डबल फारेनर्स, तो डबल का टाइटिल बहुत अच्छा है। *तो सबमें डबल-खुशी में, नशे में, पुरुषार्थ में, सबमें डबल। सेवा में भी डबल। और रहते भी सदा डबल हो, कम्बाइन्ड, सिंगल नहीं। कभी डबल होने का संकल्प तो नहीं आता?* कम्पनी चाहिये या कम्पैनियन चाहिये? चाहिये तो बता दो। ऐसे नहीं करना कि वहाँ जाकर कहो कम्पैनियन चाहिये। कितने भी कम्पैनियन करो लेकिन ऐसा कम्पैनियन नहीं मिल सकता। कितने भी अच्छे कम्पैनियन हो लेकिन सब लेने वाले होंगे, देने वाले नहीं। इस वर्ल्ड में ऐसा कम्पैनियन कोई है? अमेरिका, आस्ट्रेलिया, आफ्रीका आदि में थोड़ा ढूंढ कर आओ, मिलता है! क्योंकि मनुष्यात्मायें कितने भी देने वाले बनें फिर भी देते-देते लेंगे जरूर।
〰✧ *तो जब दाता कम्पैनियन मिले तो क्या करना चाहिये? कहाँ भी जाओ, फिर आना ही पड़ेगा। ये सब जाने वाले नहीं हैं। कोई कमजोर तो नहीं हैं? फोटो निकल रहा है। फिर आपको फोटो भेजेंगे कि आपने कहा था। कहो यह होना ही नहीं है। बापदादा भी आप सबके बिना अकेला नहीं रह सकता।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अपने देह भान से न्यारा - जैसे *साधारण दुनियावी आत्माओं को चलते-फिरते, हर कर्म करते स्वतः और सदा देह का भान रहता ही है,* मेहनत नहीं करते कि मैं देह हूँ न चाहते भी सहज स्मृति रहती ही है।
〰✧ *ऐसे कमल-आसनधारी ब्राह्मण आत्मायें भी इस देहभान से स्वतः ही ऐसे न्यारे रहें* जैसे अज्ञानी आत्म-अभिमान से न्यारे हैं। है ही आत्म-अभिमानी। शरीर का भान अपने तरफ आकर्षित न करें।
〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, चलते-फिरते फरिश्ता रूप वा देवता रूप स्वतः स्मृति में रहा। ऐसे *नैचुरल देहीअभिमानी स्थिति सदा रहे - इसको कहते हैं देहभान से न्यारे।* देहभान से न्यारा ही *परमात्म-प्यारा* बन जाता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बापदादा ने आप ब्राह्मण आत्माओं को परिवर्तन किस आधार पर किया? सिर्फ स्मृति दिलाई कि *आप आत्मा हो, न कि शरीर। इस स्मृति ने कितना अलौकिक परिवर्तन कर लिया! सब-कुछ बदल गया ना!* कितनी छोटी-सी बात का परिवर्तन किया कि तुम शरीर नही आत्मा हो - *इस परिवर्तन होते ही आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान होने कारण स्मृति आते ही समर्थ बन गई। अब यह समर्थ जीवन कितना प्यारा लगता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योग अग्नि से पाप भस्म कर स्वच्छ गोरा बन जाना"*
➳ _ ➳ सारी एक की ही महिमा है, एक का ही गायन है... *गाते भी हैं पतित पावन, जरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं...* सतयुग में तो सुखी होते हैं, वहां कोई दुख नहीं, दुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती... *अभी है घोर कलयुग, घोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन शुरू हुआ है...* गाते भी है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन... तो अब बाप मिला है, मनमनाभव का मंत्र मिला है... *तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़ एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोई' इसी तपस्या में मैं आत्मा तप रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...*
❉ *पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से कहते हैं:-* "मीठी बच्ची... *21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं...* बोझ चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी हो, अब तुम्हारे बुलाने पर क्योंकि मैं आया हूं... *तो अब, मनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी को सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा से बोली:-* "हां मेरे मीठे बाबा... *आधाकल्प हुआ, माया ने बहुत कुतर कुतर की है...* आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्मा, काली और दुखी बन पड़ी थी बाबा... जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं... *भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब चलते फिरते उठते बैठते आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं बाबा..."*
❉ *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:-* "देखो बच्चे... *दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम काला, फिर काली का चित्र भी बैठ बनाया है, परंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के, नॉलेजफुल बच्चे बने हो...* सारा मदार है याद पर... जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगे, बुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारती, तो कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा रही हूं...* स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीक, खुद को देख रही हूं..."
❉ *करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब ज्वालामुखी याद द्वारा, पूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी उत्साह में रख, अभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो...* देखो ब्रह्मा बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुए, मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूं... मैं आत्मा देख रही हूं, कैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं...* मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पढ़ाई पढ़ कर स्वयं पर आपे ही कृपा करनी है, बाप से कृपा मांगनी नही है*"
➳ _ ➳ एक एकांत स्थान पर बैठ मैं विचार कर रही हूँ कि सत्यता का बोध ना होंने के कारण सभी मनुष्य मात्र दैहिक सुखों को पाने की लालसा में भगवान से कृपा ही मांगते रहते हैं। *बेचारे इस बात से सर्वथा अनजान है कि जिन सुखों को पाने के लिय परमात्मा की कृपा मांग रहें है उनसे मिलने वाला सुख और शांति तो विनाशी है, क्षण भंगुर है। सच्चा सुख और शांति तो परमात्मा द्वारा बताए उस सत्य मार्ग में चल कर ही मिल सकती है जो वो स्वयं इस समय आ कर बता रहें हैं*। टीचर बन ऐसी पढ़ाई पढा रहें हैं जिसे पढ़ना स्वयं पर आपे ही कृपा करना है। क्योंकि राजयोग की जो पढ़ाई इस समय भगवान आ कर पढा रहें हैं उसे अच्छी रीति पढ़ना और जीवन मे धारण करना भविष्य 21 जन्मो के लिए ऐसी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाला है जिसके बाद किसी कृपा या आशीर्वाद की दरकार ही नही रहेगी।
➳ _ ➳ बाबा यह पढ़ाई पढ़ाकर 21 जन्मो के लिए जीवन को सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर कर देते हैं। तो कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो उस भगवान से पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिल रहा है। *दुनिया उस भगवान के दर्शनों की प्यासी है और वो भगवान टीचर बन हर रोज मेरे सन्मुख आकर ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भर देता है। ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटाकर मुझे हर रोज मालामाल कर देता है*। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते है मन मे यह विचार आते ही एक अनोखी खुशी और नशे से मैं आत्मा भरपूर होने लगती हूँ और अपने टीचर बाप से मिलने की लगन मन मे लेकर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं वैसे ही मैं आत्मा अशरीरी स्थिति में स्थित होने लगती है और देह भान से मुक्त, अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *अपने सत्य स्वरूप में टिकते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं आत्मा देही इस देह में होते हुए भी इस देह से अटैच नही हूँ। देख रही हूँ मैं स्वयं को एक चैतन्य दीपक के रूप में जो भृकुटि की कुटिया में जगमग करता हुआ बहुत ही सुन्दर और लुभावना दिखाई दे रहा है*। अपने इस स्वरूप में मैं अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके आनन्दविभोर हो रही हूँ। मेरे अंदर निहित गुण और शक्तियाँ प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ से निकल कर मेरे चारों और फैल रही हैं। *औंस की रिमझिम फ़ुहारों की तरह मुझ आत्मा से निकल रहे गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स मेरे चारों और वायुमण्डल में फैल कर मेरे ही ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता प्रदान कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपने गुणों और शक्तियों की रिमझिम फ़ुहारों का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा अब देह की कुटिया से बाहर आ गई हूँ और देख रही हूँ अपने जड़ शरीर को जो जमीन पर लेटा हुआ है। जिसमे अब किसी भी प्रकार की कोई हलचल नही है। अपने इस शरीर को साक्षी होकर देखते हुए, इसके आकर्षण से मुक्त होकर अब मैं इससे दूर ऊपर आकाश की ओर उड़ रही हूँ। *सेकण्ड में 5 तत्वों की साकारी और फरिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया मूल वतन में ज्ञानसागर अपने प्यारे शिव पिता के पास*। उनकी शक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे ज्ञान सागर शिव बाबा से आ रही ज्ञान की रिमझिम फुहारें अति तीव्र वेग के साथ मेरे उपर बरस रही हैं और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रही हैं।
➳ _ ➳ विकारो की कट जैसे - जैसे उतर रही है मेरा स्वरूप परिवर्तित हो रहा है। मेरी चमक बढ़ रही है और दूर - दूर तक फैल रही है। अपने इस तेजोमय स्वरूप को देख मैं आत्मा आनन्द विभोर हो रही हूँ। *ज्ञान की शीतल फुहारें निरन्तर मेरे ऊपर बरस रही है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान सागर बाबा की शीतल किरणो का स्पर्श पाकर मैं आत्मा भी बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बन गई हूँ। ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे लौट रही हूँ*। साकार सृष्टि पर, अपने साकार तन में मैं आत्मा प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो चुकी हूँ और पढ़ाई पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *टीचर बन मेरे प्यारे पिता मुरली के माध्यम से जो पढ़ाई मुझे हर रोज पढ़ाने आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़कर, जीवन मे धारण करके, बाप से कृपा मांगने के बजाए मैं आप ही स्वयं पर कृपा करती जा रही हूँ और सबको यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं तीर्थ स्थान की स्मृति द्वारा सर्व पापों से मुकत होने वाली पूण्य आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं नॉलेज और अनुभव की डबल अथॉरिटी वाली बनकर रमता योगी बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *सेवा में सफलता नहीं मिलती तो दिलशिकस्त मत बनो कुछ भी सेवा करो चाहे जिज्ञासू कोर्स वाले आवे या नहीं आवे लेकिन स्वयं, स्वयं से सन्तुष्ट रहो।* निश्चय रखो कि अगर मैं सन्तुष्ट हूँ तो आज नहीं तो कल यह मैसेज काम करेगा, करना ही है। इसमें थोड़ा सा उदास नहीं बनो। खर्चा तो किया.... प्रोग्राम भी किया.... लेकिन आया कोई नहीं। *स्टूडेन्ट नहीं बढ़े, कोई हर्जा नहीं आपने तो किया ना। आपके हिसाब-किताब में जमा हो गया* और उन्हों को भी सन्देश मिल गया। तो टाइम पर सभी को आना ही है, इसलिए करते जाओ। *खर्चा बहुत हुआ, उसको नहीं सोचो। अगर स्वयं सन्तुष्ट हो तो खर्चा सफल हुआ।* घबराओ नहीं, पता नहीं क्या हुआ!
➳ _ ➳ कई बच्चे ऐसे कहते हैं मेरा योग ठीक नहीं था, तभी यह हुआ। किससे योग था? और कोई है क्या जिससे योग था? *योग है और सदा रहेगा। बाकी कोई सीजन का फल है, कोई हर समय का फल है। तो अगर आया नहीं तो सीजन का फल है, सीजन आयेगी। दिलशिकस्त नहीं बनो।* क्योंकि श्रीमत को तो माना ना। श्रीमत प्रमाण कार्य किया। इसीलिए *श्रीमत को मानना यह भी एक सफलता है। बढ़ते जाओ, करते जाओ l* और ही पश्चाताप करके आपके पांव पड़ेंगे कि आपने कहा हमने नहीं माना। यहाँ ही आप देवियां बनेंगी। आपके पांव पर पड़ेंगे, तभी तो भक्ति में भी पांव पड़ेंगे ना। तो वह टाइम भी आना है जो सब आपके पांव पड़ेंगे कि आपने कितना अच्छा हमारा कल्याण किया।
➳ _ ➳ *जिस समय थकावट फील हो ना तो कहाँ भी जाकर डांस शुरू कर दो।* चाहे बाथरूम में। क्या है इससे मूड चेंज हो जायेगी। चाहे मन की खुशी में नाचो, अगर वह नहीं कर सकते हो तो स्थूल में गीत बजाओ और नाचो। फारेन में डांस तो सबको आता है। डांस करने में तो होशियार हैं। फरिश्ता डांस तो आता है। अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "निश्चय और सन्तुष्टता से सेवा करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सफलता का चमकता सितारा हूँ*... मैं आत्मा अपना फरिश्ता रूप धारण कर... उड़ कर पहुँच जाती हूँ... ज्ञान के सागर प्यारे बापदादा के पास... *उनसे ज्ञान की गुह्य से गुह्य बातों को अपने में धारण कर रही हूँ*... मैं आत्मा ज्ञान की देवी विश्व के ग्लोब पर विराजमान होकर... सारे विश्व की आत्माओं को... श्रेष्ठ ज्ञान का प्रकाश बांट रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं ज्ञान का फरिश्ता बन कर पहुँच जाती हूँ बाबा के प्रोग्राम में... और वहाँ पर मैं आत्मा जिज्ञासुओं को कोर्स करवा रही हूँ... इसमें कोई रेग्युलर स्टूडेंट नहीं भी बनता है... तो मैं आत्मा *दिलशिकस्त नहीं होती हूँ... क्योंकि बाबा ने समझाया है कि बच्चे... जो सीजन का फल है वो सीजन में ही आता है*... और कोई सदाबहार यानी हर समय का फल है... तो अगर नहीं आया माना सीजन का फल है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी सेवा श्रीमत के अनुसार कर रही हूँ... और *श्रीमत को मानना भी सफलता ही है*... और मैं आत्मा अपनी सेवा से सम्पूर्ण संतुष्ट हूँ... मुझे इस बात का सम्पूर्ण निश्चय है कि... *जो ज्ञान का बीज बोया है वो जरूर फलीभूत होगा...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी सेवा करते हुए निरंतर आगे बढ़ती जा रही हूँ... बाबा ने कहा है कि *बच्चे ऐसा दिन आएगा की सभी भक्त आत्माएँ... आप देवियों के पांव पड़ेंगे*... और वह समय आ गया है... मुझ आत्मा के सामने कुछ आत्माएँ पश्चाताप कर रही है... और मेरे पास आकर खड़ी है... मुझसे कह रही है... *आप ने हमें सत्य मार्ग दिखाया था... लेकिन हमने नहीं माना*... आप ने हमारा कितना अच्छा कल्याण किया है... कि आप ने हमें अपने परमपिता से मिला दिया... सारी भक्त आत्माएँ मेरा धन्यवाद कर रही है... और मैं बाबा का धन्यवाद कर रही हूँ कि... उन्होंने मुझ आत्मा को इतना ऊंचा उठा दिया...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दृढ़ निश्चय और सन्तुष्टता से सदा सफलता प्राप्त कर रही हूँ*... जब भी मैं आत्मा मैं थकावट महसूस करती हूँ... तो मैं आत्मा अपने मूड को चेंज करने के लिए... डांस करने लगती हूँ... या मन का डांस करती हूँ... या कोई अच्छा बाबा का गीत सुनती हूँ... जिससे मुझ आत्मा का मूड फट से चेंज हो जाता है... और थकावट भी नहीं रहती है... मैं आत्मा अब समझ चुकी हूँ... *सेवा में सदा सफलता के लिए... एक ही मंत्र है "बाबा में निश्चय और सेवा से सन्तुष्टता"*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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