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 16 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पवित्रता का अबल जमा किया ?*

 

➢➢ *एक मोस्ट बिलवेड बाबा पर पूरा पूरा बलि चडे ?*

 

➢➢ *ट्रस्टीपन की स्मृति से हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *संतुष्टता और सरलता का संतुलन रखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा शक्ति का दर्पण है - बोल और कर्म।* चाहे अज्ञानी आत्मायें, चाहे ज्ञानी आत्मायें - दोनों के सम्बन्ध-सम्पर्क में बोल और कर्म शुभ- भावना, शुभ-कामना वाले हों। *जिसकी मन्सा शक्तिशाली वा शुभ होगी उसकी वाचा और कर्मणा स्वत: ही शक्तिशाली शुद्ध होगी, शुभ-भावना वाली होगी। मन्सा शक्तिशाली अर्थात् याद की शक्ति श्रेष्ठ होगी, शक्तिशाली होगी, सहजयोगी होंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी ब्राह्मण चोटी महान आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें, पुरुषोत्तम आत्मायें वा ब्राह्मण चोटी महान आत्मायें समझते हो? अभी से पुरुषोत्तम बन गये ना। *दुनिया में और भी पुरुष हैं लेकिन उन्हों से न्यारे और बाप के प्यारे बन गये इसलिए पुरुषोत्तम बन गये। औरों के बीच में अपने को अलौकिक समझते हो ना! चाहे सम्पर्क में लौकिक आत्माओंके आते लेकिन उनके बीच में रहते हुए भी मैं अलौकिक न्यारी हूँ यह तो कभी नहीं भूलना है ना!*

 

  क्योंकि आप बन गये हो हंस, ज्ञान के मोती चुगने वाले 'होली हंस' हो। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते, गन्द ही बोलते...तो बगुलों के बीच में रहते हुए अपना होलीहंस जीवन कभी भूल तो नहीं जाते! कभी उसका प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? वैसे तो उसका प्रभाव है मायावी और आप हो मायाजीत तो आपका प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, उनका आप पर नहीं। तो सदा अपने को होलीहंस समझते हो? *होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। ब्रह्मण आत्मायें जो ऊँच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते। बगुले से होलीहंस बन गये। तो होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र।*

 

  पवित्रता ही स्वच्छता है। हंस सदा स्वच्छ है, सदा सफेद-सफेद। सफेद भी स्वच्छता वा पवित्रता की निशानी है। *आपकी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की निशानी है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता है तो होलीहंस नहीं। होलीहंस संकल्प भी अशुद्ध नहीं कर सकते। संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरुस्त नहीं रह सकते।* व्यर्थ चीज को फेका जाता, इक्क्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी।* चलते-फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियाँ करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा नहीं, स्मृति मे इमर्ज हो।

 

✧  मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलंग पॉवर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? *जैसे राजा अपने कर्मचारियों को ऑर्डर में रखते हैं, ऑर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियाँ ऑर्डर में रहेंगी।*

 

✧  माया के ऑर्डर में नहीं रहेंगी, आपके ऑर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया ऑर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के ऑर्डर में चल पडती है। इसलिए *सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे इस शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। वैसे ही जब चाहो तब शरीर का भान बिल्कुल छोड़कर अशरीरी बन जाना और जब चाहो तब शरीर का आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है? इस अनुभव को अब बढ़ना है। बिल्कुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए। सदैव यही याद रखो कि अब गये कि गये। सिर्फ़ सर्विस के निमित शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते है। *जैसे आप लोग कहाँ भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। डयूटी की ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहन लेते हो वैसे ही सर्विस प्रति यह शरीर रूपी वस्त्र का आधार लिया फिर सर्विस समाप्त हुई और इन वस्रों के बोझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो।* एक सेकेण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे। *कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्के होने से सहज ही अलग हो जाता है। वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी इज़ीपन नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान और योगबल से पवित्र बनना"*

 

_ ➳ मैं आत्मा मधुबन की पहाडी में बैठ उगते सूरज को  निहार रही हूँ... ठंडी-ठंडी हवाएं, सौन्दर्य से सजी प्रकृति मन को लुभा रही है... *मनभावन एहसासों में डूबी मैं आत्मा ज्ञान सूर्य बाबा का आह्वान करती हूँ... ज्ञान सूर्य बाबा तुरंत मेरे सम्मुख आकर बैठ जाते हैं... और मुस्कुराते हुए ज्ञान की बरसात कर, योग की अग्नि प्रज्वलित कर मेरे विकारों को स्वाहा करते जा रहे हैं... और मुझे पवित्रता के सौन्दर्य से निखारते जा रहे हैं...* 

 

   *ज्ञान योग से मेरा श्रृंगार करते हुए ज्ञान के सागर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... देह और दुखो की दुबन में फंसे लालो को हाथ से निकाल... ईश्वर पिता ज्ञान और योग से फिर से फूलो को महकाने आये है.. अपने खोये देवताई वजूद को फिर से दिलाने आये है... *अब इस खुबसूरत श्रृंगार को सदा ओढे रहो... माया की धूल इस श्रृंगार की चमक को धुंधला न करे, यह प्रतिपल ख्याल रखो...”*

 

_ ➳  *बाबा के ज्ञान की जादूगरी से पवित्र ज्ञान परी बन मैं आत्मा कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता के हाथो सुसज्जित महान भाग्यवान हूँ... कभी कल्पना में भी न था कि भगवान बैठ मुझे यूँ देवताओ सा संवारेगा... प्यारे बाबा आपने मुझ देह की धूल में लिपटी आत्मा को, मस्तक से लगा कर नूरानी बना दिया है...”*

 

   *दिव्य गुणों और शक्तियों से सजाकर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ज्ञान और योग ही वह खुबसूरत जादूगरी है जो ठाकुर सा सजाएगी... इसलिए सदा ज्ञान से छलकते रहो और योग की खुशबु से सुगन्धित रहो...* विकारो की कालिमा कहीं फिर यह देवताई श्रृंगार मटमैला न कर दे... सजग प्रहरी बन माया का प्रतिकार करो... और सहज ही सुखो के अधिकारी बन जाओ...

 

_ ➳  *ज्ञान-योग के बल से पवित्रता की सुगंध से महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी खुशनसीबी पर सदा की मुस्करा उठी हूँ... भगवान के हाथो देवताओ सी सज संवर, सतयुगी सुखो में आने को आतुर हूँ...* प्यारे बाबा आपने मुझे त्रिनेत्री बनाकर माया के हर दाँव से सजग और सुरक्षित किया है...

 

   *सच्चा-सच्चा नेचुरल श्रृंगार कर सतयुगी सुखों के धरोहर से मालामाल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सतयुगी स्वर्ग में अनन्त सुखो में झूमते हुए देव थे... आज देह भान में दुखो से घिरकर अपनी चमक को सम्पूर्ण खो दिए हो... *ईश्वर पिता वही दमक, वही सच्चा श्रंगार, वही ओज से पुनः दमकाने आया है...* तो माया के चंगुल से बचकर... मीठे बाबा के गले का हार बन मुस्कराओ... और असीम मीठे सुखो के नशे में खो जाओ...

 

_ ➳  *विकारों के आवरण से मुक्त होकर पावनता के सौंदर्य से चमकती हुई मणि बन खुशियों में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में दिव्य गुणो से चन्दन सी महक उठी हूँ... सुनहरा सजीला देवरूप पाकर अपने मीठे भाग्य पर इठला रही हूँ... *ज्ञान और योग की झनकार से जीवन खुशियो में नाच उठा है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- योगबल और पवित्रता का बल जमा करना है*"

 

_ ➳  कमल आसन पर विराजमान अपने परम पवित्र स्वरूप में स्थित होकर मैं ब्राह्मण आत्मा अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र करती हूँ और पतित पावन, एवर प्योर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में मग्न होकर बैठ जाती हूँ। *स्वयं को अपने प्राण प्रिय परम पिता परमात्मा की पवित्रता की शक्ति से भरपूर करने के लिए मैं बड़े प्रेम और सिक से उनका आह्वान करती हूँ*।  मेरी पुकार सुनते ही पवित्रता के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी पवित्रता की अनन्त किरणे सीधे परमधाम से मुझ आत्मा पर प्रवाहित करने लगते हैं।

 

_ ➳  एक बहुत तेज लाइट को मैं ऊपर से आते हुए महसूस करती हूँ जो मेरे मस्तक पर पड़ रही है। ये लाइट मुझ आत्मा के साथ कनेक्ट हो चुकी है। *पवित्रता की शक्ति का बहुत तेज प्रवाह इस लाइट के द्वारा मुझ आत्मा में आ रहा है और एक शक्तिशाली करेन्ट के रूप में मेरे सारे शरीर मे प्रवाहित हो रहा है*। मुझ आत्मा के साथ - साथ मेरे शरीर की अशुद्धियां भी इस शक्तिशाली करेन्ट के प्रभाव से जल कर भस्म हो रही हैं और मुझ आत्मा के साथ - साथ मेरा शरीर भी शुद्ध और पवित्र हो रहा है।

 

_ ➳  मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे रोम - रोम से पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन निकल - निकल कर चारों और फैल रहें हैं। मेरे चारों और पवित्रता का एक औरा निर्मित हो रहा है जो समस्त वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रहा है। *पवित्रता से भरपूर यह वायुमण्डल मुझे एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर रहा है। मेरा स्वरूप एकदम लाइट हो गया है*। स्वयं को अब मैं कमल आसन पर विराजमान अपने लाइट माइट फ़रिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ। इस लाइट माइट स्थिति में मैं फ़रिश्ता अब स्वयं को धरनी के आकर्षण से मुक्त अनुभव कर रहा हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे परमात्म लाइट मुझे ऊपर की ओर खींच रही है*।

 

_ ➳  इस लाइट के साथ - साथ मैं फ़रिश्ता अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर उड़ता जा रहा हूँ।  आकाश को पार करता हुआ, उससे और ऊपर ही ऊपर उड़ते - उड़ते अब मैं फ़रिश्ता एक ऐसी दुनिया मे प्रवेश करता हूँ जहाँ चारो और लाइट ही लाइट है। *ऐसा लग रहा है जैसे एक सफेद चाँदनी की चादर यहाँ बिछी हुई है। जो मन को गहन शीतलता से भरपूर कर रही है*। इस शीतलता का आनन्द लेता हुआ मैं फ़रिश्ता अब वहाँ पहुँच जाता हूँ जहाँ से ये प्रकाश मुझे आता हुआ दिखाई दे रहा है। *मैं देख रहा हूँ सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में खड़े हैं और उनकी भृकुटि में निराकार भगवान विराजमान है। जिनका अनन्त प्रकाश ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से निकल कर पूरे वतन को प्रकाशित कर रहा है*।

 

_ ➳  बापदादा के पास जाकर स्वयं को उनकी लाइट माइट से भरपूर करके और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों, तथा सर्व ख़ज़ानों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर अब मैं योग का बल अपने अन्दर भरने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, सूक्ष्म वतन से ऊपर स्थित अपने निराकार भगवान बाप के निराकारी वतन की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर यहाँ मैं अपने बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का भरपूर आनन्द ले रही हूँ। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को अपने अंदर गहराई तक समा कर, एक एक शक्ति का बल मैं अपने अंदर भर रही हूँ*।

 

_ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणे योग अग्नि बन कर मेरे विकर्मो को दग्ध कर करने के साथ - साथ मेरे अंदर योग का बल भी जमा कर रही हैं। विकर्मो को विनाश करके और योग का बल अपने अंदर भरकर अब मैं आत्मा निराकारी वतन से वापिस साकार वतन में आ जाती हूँ। *अपने साकार तन में आकर, ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, फिर से कमलआसन पर मैं विराजमान हो जाती हूँ और इस श्रेष्ठ आसन पर स्वयं को सदा स्थित रखते हुए, अभी - अभी साकारी, अभी - अभी आकारी और अभी - अभी निराकारी स्वरूप की ड्रिल बार - बार करते हुए अब मैं अपने अंदर हर समय योगबल और पवित्रता का बल जमा कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं ट्रस्टी पन की स्मृति से हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करने वाली न्यारी प्यारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं संतुष्टता और सरलता का संतुलन रखने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *स्वयं सदा स्वमान में रह उड़ते रहो। स्वमान को कभी नहीं छोड़ो, चाहे झाडू लगा रहे हो लेकन स्वमान क्या है? विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ। तो अपना रूहानी स्वमान कोई भी काम करते भूलना नहीं।* नशा रहता है ना, रूहानी नशा। हम किसके बन गये! भाग्य याद रहता है ना? भूलते तो नहीं हो? *जितना भी समय सेवा के लिए मिलता है उतना समय एक-एक सेकण्ड सफल करो।* व्यर्थ नहीं जाए, साधारण भी नहीं। *रूहानी नशे में रूहानी प्राप्तियों में समय जाए। ऐसा लक्ष्य रखते हो ना! अच्छा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा अपने रूहानी स्वमान में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा देख रही हूँ स्वयं को, एक बड़ी ऊंची पहाड़ी पर प्रकृति के सानिध्य में बैठे हुए...* मैं आत्मा उन अद्वितीय, अविस्मरणीय मीठे अद्भुत पलों को याद कर रही हूँ... *जब इस कलियुग रूपी अन्धेरे में ज्योति बिन्दु शिव बाबा रोशनी बन मेरे जीवन में आये... और मुझ दिव्य आत्मा को अज्ञान अन्धेरे से बाहर निकाल ज्ञान प्रकाश  दिया...* मुझ विशेष आत्मा को मेरा सत्य परिचय दिया... *मुझ आत्मा का हाथ थामा मुझे अपना बनाया...* मैं आत्मा इस पहाड़ी से इस पूरे विश्व की आत्माओं को देख रही हूँ और अपने भाग्य को देख रही हूँ... *कितना श्रेष्ठ भाग्य, मुझ श्रेष्ठ आत्मा ने पाया हैं... इस संसार की आत्माओं से चुनकर बाबा ने मुझ आत्मा को कितना विशेष बना दिया है...* वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो, स्वयं बाबा ने आकर अपना सत्य परिचय दिया... सत्यता का प्रकाश मुझे दिया... और जीवन में सवेरा लाया...

 

 _ ➳  *मूर्छित अवस्था से सुरजीत किया... वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो इस ब्रम्हांड की परमसत्ता से मेरा मिलन हुआ...* उसने आते ही मुझ आत्मा के स्वमान को जगाया... मुझ आत्मा को जागरण की अवस्था मे लाया... *मुझ आत्मा को भिन्न-भिन्न स्वमानों से सजाया...* जैसे ही ये विचार मैं आत्मा जनरेट करती हूँ... तभी अचानक एक सतरंगी रंग का कमल का फूल, मुझ आत्मा के सामने आता है... *मैं आत्मा उठकर इस कमल फूल पर विराजमान हो जाती हूँ...* मैं कमल आसनधारी आत्मा जैसे ही कमल फूल पर बैठती हूँ... मुझ आत्मा का स्वरूप परिवर्तन हो जाता है...

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा डबल लाइट फरिशता स्वरूप धारण करती हूँ...* और सामने फरिशतों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... *बाबा मुझ नन्हें फरिशते के पास आ जाते है... बाबा को सामने पाकर मैं आत्मा खुशी से भर गयी हूँ...* बाबा मुझ आत्मा पर रंग-बिरंगे फूलों रूपी शक्तियों की वर्षा कर रहे है... वाह मुझ आत्मा का भाग्य वाह, अपने भाग्य को देख-देख मैं आत्मा खुशी में झूम रही हूँ... *बापदादा मुझ आत्मा के सामने आकर बैठ जाते है... और मुझ आत्मा को भिन्न भिन्न स्वमानों की मालायें पहना रहे है...*

 

 _ ➳  *एक-एक स्वमान की माला अदभुत चमकीली है... भिन्न-भिन्न स्वमानों की माला से बाबा मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहे है...* अब मैं आत्मा भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाओं से सज गयी हूँ... फिर बाबा मेरे सिर पर हाथ रखते हैं... और *बाबा मुझ आत्मा को वरदान दे रहे "सदा स्वमानधारी" भव बच्चे...* मैं आत्मा अन्तर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में कर्मक्षेत्र पर... *मैं आत्मा हर कार्य करते भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाएँ धारण कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ... इस स्वमान के रूहानी नशे में रह हरदम उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा हर समय रूहानी नशे मे रह रूहानी प्राप्तियों में समय सफल कर रही हूँ... *स्वमान की भिन्न-भिन्न मालाओं से मैं आत्मा सजकर हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना एक-एक सेकेंड सफल कर रही हूँ... *मैं श्रेष्ठ आत्मा स्वमान में स्थित होकर हर सेवा कर रही हूँ...* मैं आत्मा किसकी बन गयी हूँ... *सदा इस रूहानी नशे में उड़ती रहती हूँ... स्वमान में स्थित रह सबको सम्मान देती हूँ...* और सभी आत्माओं को स्वमान की दृष्टि से देखती हूँ... *बाबा के द्वारा मिला सदा स्वमानधारी भव का वरदान प्रत्यक्ष हो रहा है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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