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 30 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अवगुण निकाल देवताई गुण धारण करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *तन-मन-धन से पूरा मददगार बनकर रहे ?*

 

➢➢ *पुराने हिसाब किताब को समाप्त कर सम्पूरंता का समारोह मनाया ?*

 

➢➢ *अपने उमंग उत्साह के सहयोग और मीठे बोल से कमजोर को शक्तिशाली बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाता है, ऐसे लाइट हाउस बन, विश्व कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए।* जैसे स्थूल लाइट का बल्ब तेज पावर वाला होगा तो चारों ओर लाइट फैलेगी। जीरो पावर हद तक रहेगी। *तो अब लाइट हाउस बनो न कि बल्व।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं उमंग-उत्साह में उड़ने वाली आत्मा हूँ"*

 

✧  सभी अपने को सदा उमंग-उत्साह से उड़ने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? सदा उमंग-उत्साह बढ़ता रहता है या कभी कम होता है कभी बढ़ता है? क्योंकि जितना उमंग-उत्साह होगा उतना औरों को भी उमंग-उत्साह में उड़ायेंगे। सिर्फ स्वयं नहीं उड़ने वाले हो लेकिन औरों को भी उड़ाने वाले हो। *तो उमंग-उत्साह ये उड़ने के पंख हैं। अगर पंख मजबूत होते हैं तो तीव्र गति से उड़ सकते हैं। अगर पंख कमजोर होंगे और तीव्र गति से उड़ने की कोशिश भी करेंगे तो नहीं उड़ सकेंगे, बार-बार नीचे आयेंगे। तो उमंग-उत्साह के पंख सदा मजबूत हों। कभी कमजोर, कभी मजबूत नहीं, सदा मजबूत।*

 

✧  क्योंकि अनेक आत्माओंको उड़ाने की जिम्मेवार आत्मायें हो। विश्व कल्याण करने की जिम्मेवारी ली है ना? तो सदा इतनी बड़ी जिम्मेवारी स्मृति में रहे। *जब कोई भी जिम्मेवारी होती है तब जो भी काम करेंगे तो तीव्र गति से करेंगे और जिम्मेवारी नहीं होती है तो अलबेले होते हैं। तो हरेक के ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेवारी है!* सभी ने यह जिम्मेवारी का संकल्प लिया है? या सोचते हो कि यह बड़ों का काम है, हम तो छोटे हैं-ऐसे तो नहीं। यह तो पुराने जाने हम तो नये हैं-ऐसे तो नहीं। चाहे बड़े हों, चाहे छोटे हों, चाहे पुराने हों, चाहे नये हों, लेकिन ब्राह्मण बनना अर्थात् जिम्मेवारी लेना। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं लेकिन हैं तो बी.के.या और कुछ हैं? तो बी.के.अर्थात् ब्राह्मण बनना और ब्राह्मणों की जिम्मेवारी है ही। तो ये जिम्मेवारी की स्मृति कभी भी आपको अलबेला नहीं बनायेगी।

 

✧  लौकिक कार्य में भी जब कोई जिम्मेवारी बढ़ती है तो आलस्य और अलबेलापन आता है या चला जाता है? अगर कोई कहेगा भी ना कि चलो थोड़ा आराम कर लो, बैठ जाओ, क्या करना है, तो बैठ सकेगे? *तो जिम्मेवारी, आलस्य और अलबेलापन खत्म कर देती है। तो चेक करो कि कभी भी आलस्य या अलबेलापन तो नहीं आ जाता? चल तो रहे हैं, हो जायेगा-ये है अलबेलापन। आज नहीं तो कल हो जायेगा-ये आलस्य है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  लेकिन यह चेक करो - यह तीनों *स्व के अधिकार से चलते हैं?* इन *तीनों पर स्व का राज्य है* वा *इन्हों के अधिकार से आप चलते हो?*  *मन* आपको चलाता है या आप मन को चलाते हैं? जो चाहो, जब चाहो वैसा ही *संकल्प* कर सकते हो?

 

✧  जहाँ *बुद्धि* लगाने चाहो, वहाँ लगा सकते हो वा बुद्धि आप राजा को भटकाती है? *संस्कार* आपके वश है वा आप संस्कारों के वश हो?

 

✧  *राज्य अर्थात अधिकार।* राज्य अधिकारी जिस शक्ति को जिस समय जो ऑर्डर करे, वह उसी विधि पूर्वक कार्य करते वा आप कहो एक बात, वह करें दूसरी बात? क्योंकि निरंतर योगी अर्थात *स्वराज्य अधिकारी बनने का विशेष साधन ही मन और बुद्धि है।* मन्त्र ही मन्मनाभव' का है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन खुशी से कौन जायेगा? जिसका सदा यह 'आने' और 'जाने' का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मयोगी बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए।* ऐसे न हो कि आप अशरीरी बनने चाहो और शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित करें, कोई भी बंधन अशरीर बनने नहीं देगा। जैसे कोई टाइट ड्रेस पहनते हैं तो समय पर सेकण्ड में उतारने चाहें तो उतार नहीं सकेंगे, खिंचावट होती है क्योंकि शरीर से पहले चिपटा हुआ है। ऐसे कोई भी बंधन का खिंचाव अपनी तरफ खींचेगा। बंधन आत्मा को टाइट कर देता है। इसलिए बापदादा सदैव यह पाठ पढ़ाते हैं - निर्लिप्त अर्थात् न्यारे और अति प्यारे। यह बहुतकाल का अभ्यास चाहिए।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्म, अकर्म, विकर्म की गति को ध्यान में रख इन कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म नहीं करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... बाहरी सभी बातों से अपने मन को हटाकर एक बाबा में लगाने की कोशिश करती हूँ... धीरे-धीरे सभी कर्मेन्द्रियाँ शांत होती जा रही हैं... भटकता हुआ मन स्थिर होने लगा है... मैं आत्मा अपना बुद्धि योग एक बाबा से कनेक्ट करती हूँ...* इस शरीर को भी भूल एक बाबा की लगन में मगन होने लगती हूँ... बाबा मेरे सम्मुख आकर बैठ जाते हैं... मैं आत्मा गहन शांति की अनुभूति कर रही हूँ... मैं और मेरा बाबा बस और कोई भी नहीं...

 

  *कदम-कदम पर बाप की श्रीमत लेकर कर्म में आने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... मीठे से भाग्य ने जो ईश्वर पिता का साथ दिलवाया है... उस महान भाग्य को सदा का सुखो भरा सौभाग्य बना लो... *हर पल मीठे बाबा की श्रीमत का हाथ पकड़कर सुखी और निश्चिन्त हो जाओ... जिन विकारो ने हर कर्म को विकर्म बनाकर जीवन को गर्त बना डाला... श्रीमत के साये में उनसे हर पल सुरक्षित रहो...”*

 

 _ ➳  *प्यारे बाबा को विकारों का दान देकर माया के ग्रहण से मुक्त होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर कर्मो की गुह्य गति जान गई हूँ... *आपकी श्रीमत पर चलकर जीवन पुण्य कर्मो से सजा रही हूँ... आपके मीठे साथ ने जीवन को फूलो सा महका दिया है... सुकर्मो से दामन सजता जा रहा है...”*

 

  *हर कदम में मेरा साथ देकर मेरे भाग्य को श्रेष्ठ बनाते हुए खुदा दोस्त बन मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... श्रीमत ही वह सच्चा आधार है जो जीवन को खुशियो का पर्याय बनाता है... *स्वयं भगवान साथी बन हर कर्म में सलाह और साथ दे रहा है... तो इस महाभाग्य से रोम रोम सजा लो... सच्चे साथी की श्रीमत पर चलकर सुखदायी जीवन का भाग्य अपने नाम करालो...”*

 

 _ ➳  *सदा श्रेष्ठ संकल्प और कर्मों से अपने जीवन को सदा के लिए खुशहाल बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मनुष्य मत के पीछे लटककर कितनी दुखी हो गई थी... अब आपकी छत्रछाया में कितनी सुखी कितनी बेफिक्र जिंदगी को पा रही हूँ... आपका साथ पाकर मै आत्मा सतयुगी सुखो की मालकिन बनती जा रही हूँ...* मेरे जीवन की बागडोर को थाम आपने मुझे सच्चा सहारा दिया है...

 

  *अपने मीठे वरदानों की बारिश कर मुझे अपने दिल तख़्त पर बिठाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह वरदानी संगम सुकर्मो से दामन सजाने वाला खुबसूरत समय है कि मीठा बाबा बच्चों के सम्मुख है... *इसलिए हर कर्म को श्रीमत प्रमाण कर बाबा का दिल सदा का जीत लो... जब बाबा साथ है तो जीवन के पथ पर अकेले न चलो... सच्चे साथ का हाथ पकड़कर अनन्त खुशियो में उड़ जाओ...”*

 

 _ ➳  *ईश्वरीय प्रेम के साये में श्रेष्ठ कर्मों से व्यर्थ से मुक्त होकर समर्थ बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुशनुमा हो गई हूँ... *हर कदम पर श्रीमत के साथ अपने जीवन में खुशियो के फूल खिला रही हूँ... ईश्वर पिता के सच्चे साथ को पाकरमै आत्मा हर कर्म को सुकर्म बनाती जा रही हूँ... और बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्करा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ईश्वरीय जन्म ले कोई भी अकर्तव्य नही करना है*"

 

_ ➳  अंतर्मुखी बन एकांत में बैठी मैं मन ही मन विचार कर रही हूँ कि मेरा यह ब्राह्मण जीवन कितना अनमोल है जो स्वयं ईश्वर बाप ने मुझे दिया है। *जिस जन्म का शास्त्रो में भी गायन है कि मानुष जन्म दुर्लभ है। लेकिन आज ईश्वर बाप का बन कर इस रहस्य को जाना कि मानुष जन्म दुर्लभ नही है बल्कि यह ईश्वरीय जन्म दुर्लभ है जो पूरे कल्प में एक केवल एक ही बार मिलता है वो भी उन चन्द सौभाग्यशाली आत्माओं को जिन्हें भगवान स्वयं वो दिव्य बुद्धि रूपी ज्ञान का तीसरा नेत्र देते है* जिससे वो सौभाग्यशाली आत्माये उन्हें पहचान लेती हैं।

 

_ ➳  तो कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो भगवान ने मुझे वो समझ दी स्वयं को जानने की और खुद उस भगवान को जानने और पहचानने की दिव्य बुद्धि दे कर अपना बना लिया। *स्वयं भगवान मेरा हो गया इससे बड़ी सौभाग्य की बात भला और क्या हो सकती है। इन्ही विचारों के साथ दिल की गहराइयों से अपने ईश्वर बाबा का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ और स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ईश्वरीय जीवन को अपने भगवान बाप की देन समझ सदा उनकी मत पर चल श्रेष्ठ और महान कर्म ही करूँगी*। कभी भी कोई अकर्तव्य का कर्म मुझ से ना हो इसका मैं सदैव ध्यान रखूँगी।

 

_ ➳  मन ही मन यह प्रतिज्ञा करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे प्यारे प्रभु इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिये मुझे परमात्म ब्लैसिंग दे रहें हैं। *मैं महसूस कर रही हूँ जैसे ईश्वरीय ब्लैसिंग के रूप में परमधाम से मेरे ईश्वर बाप की सर्वशक्तियो की किरणें ठण्डी - ठण्डी शीतल फ़ुहारों के रूप में मेरे ऊपर बरसने लगी है। अपने अंदर मैं एक अद्भुत शक्ति का संचार होता हुआ महसूस कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे भगवान मेरे सम्मुख बैठ अपनी सारी शक्तियों का बल मेरे अंदर भरते जा रहें हैं। जैसे - जैसे इन शक्तियों को मैं अपने अन्दर भरता हुआ महसूस कर रही हूँ वैसे - वैसे मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मैं बहुत ही लाइट बनती जा रही हूँ। *इतनी लाइट कि अब मुझे अपनी साकार देह का भी अनुभव नही हो रहा। लाइट बन अपने चारों तरफ फैली लाइट को ही मैं देख रही हूँ*।

 

_ ➳  मेरा यह लाइट स्वरूप मुझे बहुत ही विशेष एक अति न्यारी और प्यारी फीलिंग करवा रहा है। ऐसे लग रहा है जैसे एक लम्बे समय से मैं देह रूपी जेल की सलाखों में बंद थी जिसे मेरे ईश्वर बाप ने आकर तोड़ा और मुझे उस जेल से मुक्त कर दिया। *कितना सुकून मिल रहा है इस उन्मुक्त आजाद अवस्था में। अपने लाइट स्वरूप का भरपूर आनन्द लेती, चारों तरफ अपने गुणों और शक्तियों की लाइट फैलाती हुई मैं जा रही हूँ अब अपने ईश्वर बाप से मिलने उनकी उस खूबसूरत निराकारी दुनिया में जहाँ लाइट ही लाइट है*। आत्माओं की वो बेहद की दुनिया जहाँ सभी आत्मायें अपने मूल अनादि स्वरूप में अपने पिता के साथ रहती है।

 

_ ➳  भृकुटि की कुटिया से बाहर आकर मैं ज्योति बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे ऊपर की और उड़ान भरकर आकाश को पार करती हूँ और उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को पार कर अपनी उस बेहद की दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ और जा कर अपने ईश्वर बाप के पास बैठ जाती हूँ। ज्ञानसूर्य महाज्योति अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ मैं स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर कर रही हूँ। *शक्तियों की रंग बिरंगी किरणों के रूप में बाबा का अथाह स्नेह निरन्तर मुझ आत्मा के ऊपर बरस रहा है। असीम परम आनन्द की अनुभूति करते हुए मैं अपने प्यारे पिता के साथ मंगल मिलन मना रही हूँ*। स्वयं को परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियों से सम्पन्न बना कर मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ।

 

_ ➳  अपने साकार शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर अब मैं इस स्मृति के साथ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ कि मेरा यह ब्राह्मण जन्म स्वयं परम पिता परमात्मा की देन है इसलिए इस ईश्वरीय जीवन मे मुझे कोई अकर्तव्य का कार्य नही करना है। *ऐसा कोई कर्म मुझे नही करना है जिससे मेरे ईश्वर बाप की ग्लानि हो। अपने इस ईश्वरीय जन्म को स्मृति में रखते हुए अब मैं अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत पर चलने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*। अपने पिता की शिक्षाओं को दृढ़ता के साथ अपने जीवन मे धारण कर अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं पुराने हिसाब-किताब को समाप्त कर सम्पूर्णता का समारोह मनाने वाली बन्धनमुक्त्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने उमंग-उत्साह के सहयोग और मीठे बोल से कमजोर को शक्तिशाली बना देने वाली शुभचिंतक आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा के पास कोई न कोई, चाहे छोटा सा नेकलेस बना के लाओचाहे कंगन बना के लाओचाहे बड़ा हार बना के लाओ, लेकिन लाना जरूर है। हाथ खाली नहीं आना है। हिम्मत है ना? बनायेंगे नाबापदादा तो कहेंगे चलो कंगन ही लाओ। क्योंकि बहुत आत्मायें अन्दर टेन्शन से बहुत दुखी हैं। सिर्फ बिचारों में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं है। *तो आप मास्टर सर्वशक्तिमान उन्हों को हिम्मत दो, तो आ जायेंगे।* जैसे किसको टांग नहीं होती है ना तो लकड़ी की टांग बनाकर देते हैं तो चलता तो है ना! तो आप हिम्मत की टांग दे दो। लकड़ी की नहीं देनाहिम्मत की दो। बहुत दुखी हैंरहम दिल बनो। बापदादा तो अज्ञानी बच्चों को भी देखता रहता है ना कि अन्दर क्या हालत है! बाहर का शो तो बहुत अच्छा टिपटाप है लेकिन अन्दर बहुत-बहुत दुखी हैं। *आप बहुत अच्छे समय पर बच्चा बने अर्थात् बच गये।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "अज्ञानी आत्माओं को हिम्मत की टाँग देना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा बापदादा की ऊँगली पकड़ ऊपर आसमान में उड़ रही हूँ... तभी बाबा मेरा ध्यान नीचे धरती की ओर खिंचवाते हैं... और मुझे धरती के भिन्न-भिन्न सीन दिखाते हैं... एक बड़े से हॉस्पिटल के अंदर का दृश्य की ओर बाबा इशारा करते हैं... देखती हूँ की हर आत्मा दुखी, नीरस दिखाई दे रही है... कोई मौत की भीख मांग रही है... तो कोई दर्द से बुरी तरह कराह रही हैं... *ऐसे असहनीय दर्द से पीड़ित आत्माओं को देख मन कांप उठा...* 

 

 _ ➳  दूसरा सीन बाबा ने एक कम्पनी का दिखाया जहाँ पर बड़े-बड़े ऑफिसर से लेकर हर पद पर काम करने वाली आत्मा टेंशन से ग्रसित हैं... ऊपर से तो बड़े टिप-टॉप दिखाई दे रहे... झूठी हंसी भी हंस रहे पर अंदर से कितने दुखी है... और *ये दुःख, ये टेंशन एक दूसरे के व्यवहार में न चाहते भी दिखाई दे रहा है...*

 

 _ ➳  मैंने बाबा से पूछा बाबा इनके दुःखो से छुटकारा कैसे हो... बाबा बोले मीठे बच्चे पूरी दुनिया ही विकारों में जल रही हैं... *दुनिया की सभी आत्मायें अभी परेशान हैं... और तुमको ही रहमदिल बन सभी आत्माओं को इन दुःखों से छुड़ाना हैं...* इनको चलने की हिम्मत नहीं बची... बाप आया है फिर भी बाप के पास आने की उसे पहचानने की हिम्मत अब इनमें बाकी नहीं रही हैं... तो आपको ही इन्हें हिम्मत की टांग दे हिम्मत देना होगा...

 

 _ ➳  ये सुनते ही मैं आत्मा एक होनहार बच्चे समान सभी आत्माओं को शक्तियों का दान करने लगी... मैं फ़रिश्ता शिवबाबा की शक्तियों के झरने के नीचे हूँ... और सम्पूर्ण विश्व मुझ से निकलती शक्तियों के नीचे हैं... मुझ से निकलती हुई शक्तियों का अविरल प्रवाह... हर आत्मा को शक्तियों से भर रहा हैं... *परमात्म शक्ति से उनके चेहरे पर चमक आ रही हैं... सभी आत्माओं को हिम्मत की टांग मिलने से झूम रही है... उन्होंने भी अपने पिता को पहचान लिया हैं...*

 

 _ ➳  *सभी आत्मायें बाबा से मिल कर बहुत खुश हैं... प्रेम के अश्रु अविरल बह रहे हैं...* कब के बिछड़े, अब मिले हैं... मैं आत्मा भी इस चिर मिलन को देख गदगद् हो रही हूँ... और बाबा को देखती हूँ... तो बाबा हल्के से मुझे देख मुस्कराते हैं... मानो मुझे सराह रहे हो... और कह रहे हो वाह मेरे बच्चे वाह... तुम तो बाबा के गले का हार लेकर आई हो... मैं आत्मा कहती हूँ बाबा शुक्रिया आपका... करनकरावनहार तो आप ही हैं, हम बस ऊँगली ही लगाते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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