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❍ 19 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *वायुमंडल को शुद्ध बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *21 जन्मो के लिए अपना सब कुछ इनश्योर किया ?*
➢➢ *ज्ञान अमृत की वर्षा द्वारा मुर्दे से महान बने ?*
➢➢ *धर्म में स्थित हो हर कर्म किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे अभी सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय स्नेह, श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ चरित्रों का साक्षात्कार होता है, ऐसे अव्यक्त स्थिति का भी स्पष्ट साक्षात्कार हो। *जैसे साकार में ब्रह्मा बाप अन्य सब जिम्मेवारियाँ होते हुए भी आकारी और निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे, ऐसे आप बच्चे भी साकार रूप में रहते फरिश्तेपन का अनुभव कराओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं याद की शक्ति से आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ"*
〰✧ *याद की शक्ति सदा हर कार्य में आगे बढ़ाने वाली है। याद की शक्ति सदा के लिए शक्तिशाली बनाती है।*
〰✧ *याद के शक्ति की अनुभूति सर्व श्रेष्ठ अनुभूति है। यही शक्ति हर कार्य में सफलता का अनुभव कराती है।*
〰✧ *इसी शक्ति के अनुभव से आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ - यह स्मृति में रख जितना आगे बढ़ना चाहो बढ़ सकते हो। इसी शक्ति से विशेष सहयोग प्राप्त होता रहेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ दुनिया वाले तो अभी भी यही सोचते रहते हैं कि परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। और आप क्या कहेंगे? पा लिया। *वह कहेंगे कि परम आत्मा तो बहुत ऊँचा हजारों सूर्यों से भी तेजोमय है और आप कहेंगे वह तो बाप है। स्नेह का सागर है।* जलाने वाला नहीं है। हजारों सूर्य से तेजोमय तो जलायेगा ना और आप तो स्नेह के सागर के अनुभव में रहते हो, तो कितना फर्क हो गया।
〰✧ जो दुनिया ना कहती वह आप हाँ करते। फर्क हो गया ना। कल आप भी नास्तिक थे और आज आस्तिक बन गये। *कल माया से हार खाने वाले और आज मायाजीत बन गये।* फर्क है ना। मातायें जो कल पिंजड़े की मैना थी और आज उडती कला वाले पंछी है। तो *उडती कला वाले हो या कभीकभी वापिस पिंजडे में जाते हो?*
〰✧ कभी-कभी दिल होती है पिंजड़े में जाने की? *बंधन है पिंजडा और निर्बन्धन है उडना।* मन का बंधन नहीं होना चाहिए। अगर किसी को तन का बंधन है तो भी मन उडता पंछी है। तो मन का केाई बंधन है या थोडा-थोडा आ जाता है? *जो मनमनाभव हो गये वह मन के बंधन से सदा के लिए छूट गये।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *कभी अधीन नहीं बनना- चाहे संकल्पों के, चाहे माया के। और भी कोई रूपों के अधीन नहीं बनना। इस शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना और माया से भी अधिकारी बन उसको अपने अधीन करना है। सम्बन्ध की अधीनता में भी नहीं आना है। चाहे लौकिक, चाहे ईश्वरीय सम्बन्ध की भी अधीनता में न आना।* सदा अधिकारी बनना है। यह स्लोगन सदैव याद रखना। ऐसा बन कर के ही निकलना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
*✺ "ड्रिल :- स्वदर्शन चक्र से माया पर जीत पाना"*
➳ _ ➳ भक्ति मार्ग में दर्शनों के लिए दर- दर भटकती, जड चित्रो के दर्शन कर अपने जीवन को सार्थक समझती, मैं आत्मा खुद की खोज में खुदी से कितना दूर होती चली गयी, जडचित्रों के आगे हाथ पसारे हद की मन्नतो को पूरा करना ही ईश्वर भक्ति का मर्म समझती रही, धुल सकी न मन की चादर, नहाकर गंगा जमुना में... काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह खूब नाचते रहे मन के अँगना में... तीर्थों पर दर्शनो के लिए समय संकल्प और तन, मन, धन को गँवाना ही मेरे लिए पुण्यात्मा बनने का साधन था... *कल की उस यात्रा की तुलना आज की चारधाम की यात्रा से करती हुई मैं आत्मा बैठी हूँ बापदादा की कुटिया में, और कुटिया में बैठा वो रूहानी दिलबर मन्द मन्द मुस्कुरा रहा है मेरी ओर निहारकर... बेतहाशा बोलती- सी उसकी रूहानी आँखों में अपना भविष्य स्वरूप निहारती मैं आत्मा... एक एक अदा को गहराई से दिल में समाती हुई मैं...*
❉ *अपने रूहानी नयनों की मधुशाला से हर सम्बन्ध की सुखद अनुभूति कराते हुए मुझ आत्मा से बाबा कहते है:-* "मीठी बच्ची... स्वयं को देख पा रही हो मेरी आँखों में ? *स्व का दर्शन किया आपने कभी मेरे दिल में, मेरी नजरों से देखों स्वयं को, कितना ऊँचा और महान स्वरूप बसता है इनमें आप बच्ची का...* आप समान बनाने आया हूँ मैं आपको..."
➳ _ ➳ *स्नेह की एक एक बूँद को तरसती मैं आत्मा स्नेहसागर की आँखों में अपना दर्शन कर निहाल हो कर स्नेह के झरने को स्वयं में समाती भावो में डूबी बाबा से कह रही हूँ:-* "मीठे बाबा... *मेरे पदमापदम भाग्य का आईना दिखा दिया है आपने तो मुझे... यही तो वो पहचान थी मेरी, जो जन्म जन्मान्तर के सफर में मुझसे कहीं जुदा हो गयी थी...* यही कदमों के भटकन की वजह थी, यही वो अनबूझ सी प्यास थी... यही मंजिल और यही तलाश थी... इन आँखों में मैने आज अपना वजूद पा लिया है..."
❉ *करीब आकर अपनी शक्तियों का तेज मुझमें समाते, कुटिया के बाहर मुझ आत्मा को आनन्द के झूले में झूलाते हुए मुझ आत्मा से बाबा कहते है:-* "प्यारी बच्ची... *सृष्टि के चक्र में तुम्हारा हर जन्म बेशकीमती है... वो सतयुगी राजधानी और सतोप्रधान दुनिया, भक्तों की मनोकामना पूरी करते वो तुम्हारे जडचित्र, तुम्हारी महानताओं का कायल ये संगम, जब अपनी चाहतों में बाँधकर तुमने मजबूर कर दिया मुझ निर्बन्धन को, जमीन पर आने के लिए, उन महानताओं की स्मृति में रहों तो विकर्म विनाश होते जायेगे...* परदर्शन पर चिन्तन से बोझिल होते मुझसे अब मुझसे तुम देखे नही जाते..."
➳ _ ➳ *अन्तिम वाक्य में छुपे बापदादा के चिन्ता मिश्रित स्नेह से अपने निज स्वरूप मे स्थित हो बाबा से मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... *शुक्रिया मुझे धारणाओं के कमल पर आसीन करने और हंस बुद्धिबनाने के लिए, देखों! मेरे गले में चमचमाती ये दिव्य गुणों की माला... मैं इनकी चमक को कभी धुँधला नही होने दूँगी...* विकर्मों की इस पोटली को उतारकर फेंकने की तीव्र गाढी लौ अब मेरे हृदय में जग चुकी है..."
❉ *धैर्य के सागर बाप दादा स्नेह से महकती सीखनी देते हुए कहते है:-* "लाडली बच्ची... *विकर्मों की पोटली जब तक सर पर रहेगी ताज सुशोभित नही होगा... बडा ही सहज है स्वदर्शन चक्र फिराते हुए इस भार से मुक्त हो जाना...* और मैं देख रही हूँ बाप दादा की उम्मीदों का वो सुनहरा रतन जडित ताज जिसे बाबा आहिस्ता से हाथ में उठा धीरे से मेरे सर पर रख रहे है... बहुत कुछ कर गुजरने की चाह पैदा कर गया है मन में उनका ये ताज को उठाकर मेरे सर पर रख देना अनोखे आत्मविश्वास से लबालब कर गया है मुझे..."
➳ _ ➳ *ताज और तख्त की अधिकारी बन बाप दादा की हर उम्मीद को पूरा करने वाली मैं आत्मा बापदादा से कहती हूँ:-* "मेरे लाड़ले बाबा... मेरा परिचय, जो मैने आपसे पाया, प्रेम और पावनता का सागर जिसमें भरपूर नहलाया और स्वदर्शन चक्र का जादुई सा चिराग, बोझा विकर्मों भस्म करना सहज ही सिखाया... *मुझ आत्मा ने स्वदर्शन फिराकर जैसे खुद को ताजधारी बनाया .. वैसे ही अब हर एक आत्मा को इस ताज की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ... और बडे नाज से झूले से उतर सतयुगी रायल चाल चलती हुई मैं आत्मा चल पडी हूँ विश्व सेवा पर...* वो मुझे देख कर मुस्कुराये जा रहे है और वरदानी शक्तियाँ भरकर हाथ हिलाये जा रहे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का बनने के बाद कोई भी कुकर्म नही करना है*"
➳ _ ➳ बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है ये बात स्मृति में लाते ही मन मे विचार चलते हैं कि जब अंत समय होगा, बाबा का धर्मराज का रूप होगा और सभी आत्माओं के कर्मो का हिसाब किताब चुकतू होगा उस समय का दृश्य कैसा होगा! *इन्ही विचारों के साथ एक - एक करके आंखों के सामने कुछ दृश्य उभरने लगते हैं। मैं देख रही हूँ सूक्ष्म वतन में ट्रिब्यूनल लगी है। धर्मराज के रूप में बाबा सामने बैठे हैं*। एक - एक करके बाबा के सामने सभी ब्राह्मण आत्मायें आ रही है और बाबा उनके द्वारा किये हुए सभी अच्छे और बुरे कर्मो का पूरा लेखा - जोखा उन्हें एक बहुत बड़ी स्क्रीन पर दिखा रहें हैं।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ जो ब्राह्मण आत्मायें बाबा की श्रीमत को नजरअंदाज करके अपने कीमती समय को गफलत में बर्बाद करती रही थी वो अपराधी की तरह बाबा के सामने अपनी आंखें नीची किये खड़ी हैं। उनके अपराध के अनुसार धर्मराज के द्वारा उन्हें कड़ी सजाये सुनाई जा रही हैं। इतनी कड़ी सजायें सुनकर वो आत्मायें डर से कांप रही हैं और अपने किये हुए विकर्मों के लिए माफी मांग रही हैं। बहुत ही दयनीय स्थिति है उनकी। किंतु *बाप के रूप में बाबा का वो लाड, प्यार और दुलार अब धर्मराज की सजाओं का रूप ले चुका है। जिसके लिए कोई रियायत नही है*।
➳ _ ➳ इस भयानक दृश्य को देख मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि *बाबा की याद में रह मुझे जल्दी ही मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मों के बोझ को भस्म करना है और साथ ही साथ अब ऐसा कोई भी विकर्म नही करना जिससे मुझ आत्मा पर विकर्मों का कोई और बोझ चढ़े और मुझे बाबा का धर्मराज का रूप देखना पड़े*। यह प्रतिज्ञा करके मैं जैसे ही शिव बाबा को याद करती हूँ मेरे दिलाराम बाबा के स्नेह की डोर मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है। बाबा की लाइट माइट पड़ते ही मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता सूक्ष्म लोक में प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्म वतन के दिव्य अलौकिक नज़ारे को मैं फ़रिशता मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रहा हूँ। *बापदादा की दिव्य किरणे इस सूक्ष्म वतन में चारों ओर फैली हुई हैं। मैं बाबा के पास पहुंच कर बाबा के सामने खड़ा हो जाता हूँ*। बाबा मुझे दृष्टि दे रहें हैं। बाबा के नयनो से अथाह स्नेह की धाराएं बह रही हैं। बाबा के वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं। *अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रख कर मुझे विकर्माजीत भव का वरदान दे रहें हैं*।
➳ _ ➳ बापदादा से विकर्माजीत भव का वरदान और दृष्टि ले कर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ और 63 जन्मो के विकर्मों को भस्म करने के लिए परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने बीज रुप परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा जा कर विराजमान हो जाती है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे अब निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं जो धीरे - धीरे ज्वलन्त स्वरूप धारण करती जा रही है*। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझ आत्मा के विकारों रूपी किचड़े को अपनी जवलंत शक्तियों से भस्म कर रहे हैं।
➳ _ ➳ आंतरिक रूप से मैं शुद्ध बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आकर अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर हर कर्म करते अब मुझे सदा यह स्मृति रहती है कि बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है। और धर्मराज की सजायें मुझे ना खानी पड़े इसके लिए बाबा की याद में रह, हर कर्म करने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं आत्मा निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ज्ञान अमृत की वर्षा द्वारा मुर्दे से महान बनने वाली मरजीवा आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं धर्म में स्थित होकर कर्म करने वाली धर्मात्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *'विघ्न-विनाशक' किसका नाम है? आप लोगों का है ना! विघ्नों की हिम्मत नहीं हो जो कोई कुमार का सामना करे, तब कहेंगे 'विघ्न-विनाशक'।* विघ्न की हार भले हो, लेकिन वार नहीं करे। विघ्न-विनाशक बनने की हिम्मत है? या वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे दादी बहुत अच्छा था लेकिन पता नहीं क्या हो गया! ऐसे तो नहीं लिखेंगे? *यही खुशखबरी लिखो - ओ. के., वेरी गुड, विघ्न-विनाशक हूँ। बस एक अक्षर लिखो। ज्यादा लम्बा पत्र नहीं। ओ. के.।* लम्बा पत्र हो तो लिखने में भी आपको शर्म आयेगा। शर्म आयेगा ना कि कैसे लिखें,क्या लिखें! कई बच्चे कहते हैं पोतामेल लिखने चाहते हैं लेकिन जब सोचते हैं कि पोतामेल लिखें तो उस दिन कोई न कोई ऐसी बात हो जाती है जो लिखने की हिम्मत ही नहीं होती है। *बात हुई क्यो? विघ्न-विनाशक टाइटल नहीं है क्या? बाप कहते हैं लिखने से, बताने से आधा कट जाता है। फायदा है।*
➳ _ ➳ लेकिन लम्बा पत्र नहीं लिखो, ओ. के. बस। *अगर कभी कोई गलती हो जाती है तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख विघ्न-विनाशक बन फिर ओ. के. का लिखो।* लम्बी कथा नहीं लिखना। यह हुआ, यह हुआ... इसने यह कहा, उसने यह कहा.... यह रामायण और उनकी कथायें हैं। *ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर है, कौन सा अक्षर है?ओ. के.। जैसे शिवबाबा गोल-गोल होता है ना वैसे ओ भी लिखते हैं। और के अपनी किंगडम।* तो ओ.के. माना बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही। इसलिए ओ. के.... और ओ.के. लिखकर ऐसे नहीं रोज पोस्ट लिखो और पोस्ट का खर्चा बढ़ जाए। ओ.के. लिखकर अपने टीचर के पास जमा करो और टीचर फिर 15 दिन वा मास में एक साथ सबका समाचार लिखे। पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करना, बचाना है ना। और यहाँ पोस्ट इतनी हो जायेगी जो यहाँ समय ही नहीं होगा। आप रोज लिखो और टीचर जमा करे और टीचर एक ही कागज में लिखे - ओ.के. या नो। *इंगलिश नहीं आती लेकिन ओ.के. लिखना तो आयेगा, नो लिखना भी आयेगा। अगर नहीं आये तो बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा।*
✺ *ड्रिल :- "विघ्न विनाशक बन सदैव ओ. के. स्थिति का अनुभव करना*
➳ _ ➳ *वाह मैं खुशनसीब आत्मा... बाबा ने स्वयं आकर... मुझे अपनी शक्तियों से परिचय करवाया...* कि बच्चे तुम... अपार शक्तियों और गुणों के मालिक हो... *तुम सर्व शक्तिमान की संतान... मास्टर सर्व शक्तिमान हो... तुम ही शिव शक्ति हो... तुम ही लक्ष्मी... तुम ही सरस्वती... तुम ही दुर्गा हो... और तुम ही विघ्न विनाशक गणेश हो... विघ्न हर्ता हो... सुख कर्ता हो...*
➳ _ ➳ 'विघ्न-विनाशक' मुझ आत्मा का ही नाम है... *विघ्नों की हिम्मत नहीं है... जो मुझ विघ्न विनाशक गणेश कुमार का सामना करे...* विघ्नों पर विजय प्राप्त कर... मुझ आत्मा ने 'विघ्न-विनाशक' के इस टाइटल को सार्थक कर दिया है... मैं आत्मा हर विघ्न को पार कर... विघ्न को हराने वाली आत्मा हूँ... *विघ्नों के वार का मुझ आत्मा पर तनिक मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता है... बाबा से मेरा दृढ़ निश्चय है... और पक्का वादा है... विघ्नों पर... विघ्न-विनाशक बन वार करने की... मुझ आत्मा में अनंत हिम्मत है...*
➳ _ ➳ अब जब भी मैं आत्मा बाबा या दादी को पत्र लिखती हूँ... बस एक शब्द ओ.के. ही लिखती हूँ... अब मुझ आत्मा की कभी शिकायत नहीं होती है कि... सब कुछ अच्छा था... लेकिन कैसे ये सब हो गया... *मैं विघ्न विनाशक आत्मा... ऐसे कमजोर शब्दों का यूज कभी नहीं करती हूं... यही खुशखबरी लिखती हूँ... ओ. के... वेरी गुड... विघ्न-विनाशक हूँ...* बस एक अक्षर लिखती हूँ... ज्यादा लम्बा पत्र नहीं लिखती हूँ... ओ. के... अगर कभी लम्बा पत्र हो जाता है... विघ्न विनाशक का स्वमान... याद करती हूँ... तो पत्र छोटा हो जाता है... *और बाबा ने भी कहा है... बच्चे एक शब्द में अपनी बात कहो... कम खर्च बाला नशीन बनो... बाबा के इस महावाक्य को याद करते ही... लम्बा पत्र लिखने में शर्म महसूस होने लगती है...* अब मैं आत्मा निर्विघ्न रूप से... हर दिन का पोतामेल लिखती हूँ... अब मुझ आत्मा को कभी भी पोतामेल लिखने में... कोई विघ्न का सामना नहीं करना पड़ता है... विघ्न-विनाशक का टाइटल हमेशा स्मृति में रहता है... बाबा ने कहा भी है... *बच्ची पोतामेल देने से आधा कट जाता है... और फायदा यह होता है कि मेहनत कम लगती है... और बोझ आधा हो जाता है...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुद पर विशेष अटेन्शन देती हूँ... मुझ आत्मा से अगर कभी कोई गलती हो जाती है... तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख... विघ्न-विनाशक बन... बस ओ. के. लिखती हूँ अपनी लम्बी कथा नहीं लिखती हूँ... यह हुआ... वह हुआ... इसने यह कहा... उसने यह कहा... यह राम कथा भक्त लोगों की कथायें हैं... *मुझ विघ्न विनाशक गणेश की नहीं... ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर है... ओ. के...* जैसे शिवबाबा गोल-गोल है... वैसे ओ भी गोल - गोल है... और के. मेरी किंगडम... *ओ.के. माना बाप... और किंगडम माना याद... तो बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही... इसलिए अब सिर्फ एक शब्द ओ.के...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा रोज ओ.के. लिखकर... अपने टीचर के पास जमा करती हूँ... और टीचर फिर 15 दिन या एक मास में एक साथ... सबका समाचार लिख कर... पोस्ट करते हैं... पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करती... कम खर्च बाला नशीन करती हूँ...* टीचर एक ही कागज में - ओ.के. या नो लिखती हैं... इंग्लिश में लिखना नहीं भी आता है... तो बाबा ने आसान मार्ग सुझाया है... बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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