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❍ 21 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *एम ऑब्जेक्ट सदा सामने रखी ?*
➢➢ *ज्ञान का तीसरा नेत्र खुला रहा ?*
➢➢ *संकल्प शक्ति द्वारा हर कार्य में सफल होने की सिद्धि प्राप्त की ?*
➢➢ *निरंतर ईश्वरीय सुखों का अनुभव कर बेफिक्र बादशाह बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *आपके बोल, कर्म और वृत्ति से हल्केपन का अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विश्व पॉवर से उन्हों को भी पहचान दो। 95 परसेन्ट सबके दिलपसन्द बनो।* आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ सहनशक्ति को धारण करने की आवश्यकता है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी कल्याणकारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा संगमयुगी कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? संगमयुग एक ही इस सृष्टि-चक्र में ऐसा युग है जो चढ़ती कला का युग है। और युग धीरे-धीरे नीचे उतारते हैं। सतयुग से कलियुग में आते हो तो कितनी कलायें कम हो जाती हैं? तो सभी युगों में उतरते हो और संगमयुग में चढ़ते हो। चढ़ने के लिए भी लिफ्ट मिलती है। सभी को लिफ्ट मिली है ना। बीच में अटक तो नहीं जाती है? ऐसे तो नहीं-कभी अटक जाओ, कभी लटक जाओ। ऐसी लिफ्ट मिलती है जो कभी भी न लटकाने वाली है, न अटकाने वाली है। *देखो, कितने लक्की हो जो कल्याणकारी युग में आये और कल्याणकारी बाप मिला। आपका भी आक्यूपेशन है विश्व-कल्याणकारी। तो बाप भी कल्याणकारी, युग भी कल्याणकारी, आप भी कल्याणकारी और आपका आक्यूपेशन भी विश्व-कल्याणकारी।*
〰✧ तो कितने लक्की हो! अच्छा, यह लक्क कितना समय चलेगा? सारा कल्प या आधा कल्प? जो कहते हैं आधा कल्प, वह हाथ उठाओ। जो कहते हैं सारा कल्प, वह हाथ उठाओ। सभी राइट हो। क्योंकि आधा कल्प राज्य करेंगे, आधा कल्प पूज्य बनेंगे। तो यह भी लक्क ही है। *सदा मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ-इस स्मृति में रहने से जो भी कर्म करेंगे वह कल्याणकारी करेंगे। कल्याणकारी समझने से संगमयुग जो कल्याणकारी है वह भी याद आता है और कल्याणकारी बाप भी स्वत: याद आता है। सिर्फ कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनना है।*
〰✧ सबसे बड़े भाग्य की निशानी यह है जो संगमयुग पर साधारण आत्मा बने हो। अगर साहूकार होते तो बाप के नहीं बनते, सिर्फ कलियुग की साहूकारी ही भाग्य में मिलती। तो साधारण बनना अच्छा है ना। *स्थूल धन से साधारण हो लेकिन ज्ञान-धन से साहूकार हो। तो खुशी है ना कि बाप ने सारे विश्व में से हमें अपना बनाया। सारा दिन खुशी में रहते हो? मुरली रोज सुनते हो? कभी मिस तो नहीं करते? मिस करते हो तो फालो फादर नहीं हुआ ना। ब्रह्मा बाप ने एक दिन भी मुरली मिस नहीं की।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ‘बापदादा, सदा हर कदम में, हर संकल्प में उडती कला वाले बच्चों को देख रहे हैं। सेकण्ड में अशरीरी भव का वरदान मिला और सेकण्ड में उडा।' *अशरीरी अर्थात ऊँचा उडना। शरीर भान में आना अर्थात पिंजडे का पंछी बनना।*
〰✧ इस समय सभी बच्चे अशरीरी भव के वरदानी, उडते पंछी बन गये हो। यह संगठन स्वतन्त्र आत्मायें अर्थात उडते पंछियों का है। सभी स्वतन्त्र हो ना? *ऑर्डर मिले अपने स्वीट होम में चले जाओ तो कितने समय में जा सकते हो?*
〰✧ सेकण्ड में जा सकते हो ना। *आर्डर मिले, अपने मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज द्वारा, अपनी सर्वशक्तियों की किरणों द्वारा अंधकार में रोशनी लाओ, ज्ञान सूर्य बन, अंधकार को मिटा लो,* तो सेकण्ड में यह बेहद की सेवा कर सकते हो? ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य बने हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *एक ही विश्व की हास्पिटल है तो चारों ओर के रोगी कहाँ जायेंगे? एमर्जेन्सी केसेज़ की लाइन होगी। उस समय क्या करेंगे? अमर भव का वरदान तो देंगे ना।* स्व अभ्यास के आक्सीजन द्वारा साहस का श्वास देना पड़ेगा। *होपलेस केस अर्थात् चारो ओर के दिल शिकस्त के केसेज़ ज्यादा आयेंगे। ऐसी होपलेस आत्मओं को साहस दिलाना यही श्वाँसस भरना है। तो फटाफट आक्सीजन देना पड़ेगा।* उस स्व अभ्यास के आधार पर ऐसी आत्माओं को शक्तिशाली बना सकेंगे! *इसलिए फुर्सत नहीं है, यह नहीं कहो। फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप के सिवाए और कुछ भी याद ना आना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में झूले में बैठ रिमझिम बरसात की फुहारों का मजा ले रही हूँ... और अपने रूहानी माशूक की यादों की ठंडी-ठंडी फुहारों में भीग रही हूँ... मुझ पर सुख-शांति की बरसात कर मेरे जीवन की कालिमा को मिटाने वाले मेरे माशूक बाबा के पास पहुँच जाती हूँ मधुबन बाबा के कमरे में...* मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए बाबा मुझे अपने साथ झूले में बिठाकर मीठी शिक्षाओं के झूले में झुलाते हैं...
❉ *अपने प्यार की लहरों में मुझे लहराते हुए प्यार के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... देहधारियों की याद तो अपवित्रता से भर देगी... मीठे बाबा की यादो में ही पावनता को पाएंगे... *जितना इन यादो में स्वयं को भिगोएंगे उतना पवित्र बन देवताई सुंदरता से छलकेंगे... इसलिए सच्चे आशिक बन एक माशूक की मीठी यादो में खो जाओ...”*
➳ _ ➳ *सच्ची-सच्ची रूहानी आशिक बन मीठे यादों के सागर में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्यार की बाँहों में सच्चे प्रेम की अनुभूतियों में खोयी हुई हूँ... *ईश्वर मनमीत को पाकर मीठे भाग्य के नशे में डूबी हूँ... देहधारियों की यादो में अपवित्र हो गई थी... अब पावनता से निखर रही हूँ...”*
❉ *अनेकों में फंसे हुए मेरे मन-बुद्धि को निकाल अपने दिल में कैद करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देहधारियों से जो इतनी प्रीत निभायी तो क्या पाया... अपना दामन विकारो की कालिमा से मैला कर दिया... *अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम के आनन्द में डूब जाओ... और जनमो की थकी अतृप्त आत्मा को प्रेम रस से सदा का सिक्त करो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के रूहानी चितवन में मीठी मुस्कान भरकर मीठे बाबा से कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच्चे को देह के मटमैले नातो में खोज रही थी और कलुषित हो गई... *आपने प्यारे बाबा मुझे अपने कलेजे से लगाया है और रोम रोम को सच्ची खुशियो से भर दिया है... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हूँ...”*
❉ *सच्चे सुखों की अविनाशी सौगात देकर मुझे मालामाल करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा को हर पल याद करो... यह यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... इन यादो में ही मीठे प्यार की खुशबु है जो आत्मा को गुणो और शक्तियो से पोषण करेगी... और 21 जनमो तक आत्मा प्रेम से भरपूर हो मुस्करायेगी...* देहधारियों की यादे तो ठगकर कंगाल बना जायेगी...”
➳ _ ➳ *मधुबन के आंगन की खुशबू से हर आत्मा के मन मंदिर को सुवासित करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्रेम में किस कदर खिल उठी हूँ... *मेरा रूहानी रंग रूप देख देख दुनिया चकित सी है... मीठे मनमीत का पता देकर मै आत्मा सबको ईश्वरीय दिलरुबा बना रही हूँ... प्यार के सागर से हर प्यासे दिल को सच्चा प्रेम दिलवा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप से जो ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है वह सदा खुला रहे*
➳ _ ➳ ज्ञान का तीसरा नेत्र जो भगवान से मुझे मिला है उस तीसरे नेत्र के खुलते ही मैं ना केवल अपने तीनो कालों को बल्कि इस सृष्टि के आदि मध्य अंत को भी जान गई हूँ। *जो भेद आज तक बड़े - बड़े साधू, महा मण्डलेश्वर भी नही जान पाए वो राज स्वयं भगवान ने आकर मेरे सामने स्पष्ट कर दिया और मुझे आप समान त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ बना दिया तो कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो ज्ञान के इस तीसरे नेत्र से सब कुछ देखते हुए इस वर्ल्ड ड्रामा में अपना पार्ट बजा रही हूँ*। ज्ञान के इस तीसरे नेत्र के खुलने से जीवन को जीना कितना सहज लगने लगा है! इस ज्ञान ने मुझे साक्षीदृष्टा बनाकर, हर बात को साक्षी होकर देखना सिखा कर जैसे एकदम लाइट बना दिया है। *हर बोझ हर बन्धन से अब मैं मुक्त हो गई हूँ और हल्केपन का अनुभव करके उमंग उत्साह के पँखो पर सवार होकर जैसे कि हर समय उड़ रही हूँ*।
➳ _ ➳ यह डबल लाइट स्थिति कितनी न्यारी और प्यारी है जो देह में रहते हुए भी देह के बंधन से मुझे धीरे - धीरे मुक्त करती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं जब चाहूँ देह रूपी पिजड़े को खोल, ज्ञान और योग के खूबसूरत पंख लगाकर जहाँ चाहे वहाँ जा सकती हूँ। *केवल इस स्थूल दुनिया मे ही नही बल्कि इससे परें उन लोको में भी जा सकती हूँ जिनके बारे में बड़े - बड़े साइंसदान भी नही जानते। इस आकाश से ऊपर के वो लोेक जिनके बारे में ना तो आज तक कोई जान स्का और ना ही वहाँ आज तक कोई पहुँच पाया*। किन्तु मेरे प्यारे पिता ने आकर ज्ञान का तीसरा नेत्र मुझे प्रदान कर, सेकण्ड में इस साकार लोक से ऊपर के दोनों लोको की सैर करना सिखला दिया।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करके, ज्ञान के इस तीसरे नेत्र को सदा खुले रखने और त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहकर हर कर्म करने की मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ और तीनो लोको की सैर करने के लिए, अपने मन बुद्धि के विमान में याद का पेट्रोल भरने के लिए, देह और देह की दुनिया से किनारा कर, अपने स्वरूप को एकाग्रचित होकर निहारने लगती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति सेकण्ड में मुझे देह और देह की दुनिया को भुला कर, मेरे सत्य स्वरूप में मुझे स्थित कर देती है। अपने निराकार स्वरुप में स्थित होकर अब मैं ज्ञान और योग के अपने खूबसूरत पँखो को खोल, ऊपर की ओर उड़ान भरती हूँ*।
➳ _ ➳ नश्वर देह और देह के हर बन्धन से मुक्त होकर अब मैं आजाद पँछी की भांति उड़ने का भरपूर आनन्द लेते हुए सारी दुनिया मे विचरण करके, आकाश को पार करती हूँ और सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर मे प्रवेश करती हूँ जो निराकारी आत्माओं का घर है जहाँ देह और देह से जुड़ी हर वस्तु का अभाव है। *आत्माओं की इस निराकारी दुनिया मे अपने निराकार शिव पिता के सामने मैं निराकारी आत्मा अब जा कर उपस्थित होती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ जाती हूँ*। अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ उनसे आ रही सर्वशक्तियों और सर्वगुणों की किरणों को मैं स्वयं में समाहित करने लगती हूँ। मैं महसूस करती हूँ जैसे शक्तियों के खूबसूरत रँगबिरंगे झरने के नीचे बैठी मैं स्नान कर रही हूँ और शक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द ले रही हूँ।
➳ _ ➳ शक्तियों की किरणों की ये मीठी - मीठी फुहारे मेरे ऊपर पड़कर मुझे गहन शीतलता और शांति दे रही हैं। एक अद्भुत शक्ति को स्वयं में भरने के साथ - साथ एक अति गहन सुखमय अतीन्द्रिय सुख का भी मैं अनुभव कर रही हूँ। *अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए बाबा की समस्त शक्तियों को अपने अंदर भरकर अब मैं वापिस उसी साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ जहाँ साकार तन का आधार लेकर इस बेहद के सृष्टि ड्रामा में मैं अपना पार्ट बजा रही थी*। अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर अब मैं भृकुटि सिहांसन पर फिर से विराजमान हूँ और त्रिकालदर्शी बन हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा ने ज्ञान का जो तीसरा नेत्र मुझे दिया है, वह सदा खुला रहे और उस खुले नेत्र से, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर मैं देख सकूँ और सम्पूर्णता के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकूँ यही संकल्प मन मे रख कर अपने पुरुषार्थ को अब मैं तीव्र बना रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं संकल्प शक्त्ति द्वारा हर कार्य मे सफल होने की सिद्धि प्राप्त करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं निरंतर ईश्वरीय सुखों का अनुभव करने वाला बेफिक्र बादशाह हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप को देखा - *ब्रह्मा बाप ने अपने को कितना नीचे किया - इतना निर्मान होकर सेवाधारी बना जो बच्चों के पाँव दबाने के लिए भी तैयार। बच्चे मेरे से आगे हैं, बच्चे मेरे से भी अच्छा भाषण कर सकते हैं।* ‘‘पहले मैं'' कभी नहीं कहा। आगे बच्चे, पहले बच्चे, बड़े बच्चे कहा, तो स्वयं को नीचे करना नीचे होना नहीं है, ऊँचा जाना है। तो इसको कहा जाता है - ‘सच्चे नम्बरवन योग्य सेवाधारी'। लक्ष्य तो सभी का ऐसा ही है ना!
✺ *"ड्रिल :- ब्रह्मा बाप समान निर्माणचित होकर सेवा करना।"*
➳ _ ➳ गुलाबी गुलाबी सा मौसम, सर्द ठंडी हवाएं, लम्बे से खजूर के पेड़ पर इठलाती हुई सर्द हवाएँ और गुलाबी समन्दर की अठखेलियां करती हुई लहरे... और उस स्थान पर मैं एक ऊँचे से मिट्टी के पहाड़ पर बैठी हुई हूँ... जहां से मैं ये वातावरण फील करती हूं... चारों तरफ भीनी भीनी मोगरे के फूलों की खुशबू फैल रही है... और जैसे-जैसे यह खुशबू हवाओं में बिखर रही है... यहां का वातावरण एकदम खुशनुमा और शीतलता पूर्वक लग रहा है... और मैं इस अवस्था में परमपिता से योग लगा रही हूं... *हल्की खुली हुई आंखों से मैं अपने आपको आत्मिक रूप में देख रही हूं... और परमपिता से सीधा संपर्क में आने से मेरी आत्मा से अनेक रंग बिरंगी किरणें निकलकर इस वातावरण में फैल रही है...*
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं अपने आप को खुशबू में परिवर्तन कर उड जाती हूं... और एक ऐसे स्थान पर आ पहुँचती हूं... यहां से मुझे इस दृश्य का एकदम साफ नजारा दिखाई दे रहा है... मैं अपनी खुशबू को बहुत गहराई से अनुभव कर रही हूं... और *अपनी खुशबू को एक ऐसे स्थान पर अनुभव करती हूं... जहां पर एक आश्रम में गुरु अपने शिष्यों को नई शिक्षा दे रहे हैं... जिसमे गुरु आश्रम में स्वयं झाड़ू निकाल रहे हैं और सभी विद्यार्थी खड़े होकर उन्हें देख रहे हैं... मैं अपनी खुशबू से और बाबा से साकाश लेते हुए उस आश्रम में अपनी पवित्र खुशबूनुमा किरणें फैला रही हूं...*
➳ _ ➳ मेरी खुशबू जैसे ही गुरूजी के पास जाकर उन्हें छूती है तो उन्हें मेरे वहां होने का आभास होता है... और मेरी भावनाओं को समझते हुए मुझे कहते हैं *कि कई बार हमें दूसरों को उनसे नीचे दिखाना पड़ता है क्योंकि इससे उनकी स्थिति हमसे ऊपर होती है... और वह अपने आप को और भी तीव्र पुरुषार्थी समझने लगते हैं... और इस आभास से वह आगे बढ़ने का रास्ता सहज ही खोज लेते हैं... इसलिए मैं आज यहां अपने शिष्यों को स्वयं आश्रम के छोटे-छोटे काम करना सिखा रहा हूं... मुझे देखकर उन्हें यह आभास हो रहा है कि ये हमसे ऊंची स्थिति में होने के कारण भी इतना छोटा काम कर रहे हैं... ताकि हमें कुछ सिखा सके... जिससे हम अपने आपको अब और आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे...*
➳ _ ➳ इतना सुनकर मैं वहां से अपनी खुशबू बिखेरते हुए उसी स्थान पर आ जाती हूं... जहां पर गुलाबी गुलाबी मौसम हो रहा है... समुंद्र की गुलाबी लहरें हवाओं से अठखेलियां खेल रही है... मैं अभी खुली हुई आंखों से अपने परमपिता से योग लगा रही हूं और अपनी गुलाबी किरणें इस सुंदर वातावरण में बिखेर रही हूं... *मैं बाबा से आती हुई किरणों को अपने अंदर समाती जा रही हूं... और बाबा से मन ही मन यह कह रही हूं... बाबा आपकी यह अद्भुत दी हुई अनमोल शिक्षाएं मैं अपने अंदर हमेशा के लिए संभाल लूंगी... और अपने चाल चलन और पुरुषार्थ से हमेशा आपका नाम बाला करूंगी... इन संकल्पों से मेरी आंतरिक उर्जा बढ़ती जा रही है... मेरा यह शरीर हवा के जैसा हल्का लग रहा है... और मुझे आभास हो रहा है... मानो मैं स्वयं परमपिता की कोमल गोद में बैठकर उनसे रूह रूहान कर रही हूं...*
➳ _ ➳ और मैं अपने सामने एक हवा के समान हल्की स्थिति को अनुभव करते हुए... ब्रह्मा बाबा को अपने सामने ईमर्ज करती हूं... और उनसे दृष्टि लेते हुए मैं अपने आप को पूर्ण रूप से सफेद प्रकाशमयी अवस्था को अनुभव करती हूं... और *मैं हमेशा यह प्रयास करने का संकल्प लेती हूं... कि आज से जो भी आत्माएं मेरे सामने आएंगी मेरे साथ संपर्क में आएंगे उन्हें हमेशा परमात्मा के बच्चे कहकर संबोधित करूंगी... सदा निर्माणचित् अवस्था में स्थित रहूंगी... अपने में इन संस्कारों का निर्माण करूँगी... और इन कुछ संकल्पों के बाद मैं अपने आप को उस गुलाबी वातावरण के अंदर पूरी तरह समा लेती हूं... और परमात्मा की गोद में झूला झूलने लगती हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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