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 28 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरु की मत पर चल उनका रीगार्ड रखा ?*

 

➢➢ *घर का काम काज करते स्वयं को गोड फादर का स्टूडेंट समझा ?*

 

➢➢ *याद और सेवा के बैलेंस द्वारा सर्व की ब्लेसिंग प्राप्त की ?*

 

➢➢ *शीतलता से दूसरों के जलते हुए चित पर विजय प्राप्त की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *डबल लाइट बन दिव्य-बुद्धि रूपी विमान द्वारा सबसे ऊंची चोटी की स्थिति में स्थित हो,* अव्यक्त वतनवासी बन विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति *शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा अनुभव करते हो? *अनेक बार यह अधिकार प्राप्त किया है और आगे के लिये भी निश्चित है कि कल्प-कल्प करते ही रहेंगे। यह पक्का निश्चय है ना। क्योंकि निश्चय है इस ब्राह्मण जीवन का फाउन्डेशन। अगर निश्चय का फाउन्डेशन पक्का है तो कभी भी हिलेंगे नहीं। चाहे कितने भी तूफान आ जाये, चाहे कितने भी भूकम्प हो जायें लेकिन हिलेंगे नहीं।* क्योंकि फाउन्डेशन पक्का है। अभी भी देखो, प्रकृति का भूकम्प आता है तो कौन सी बिल्डिंग गिरती है? जो कच्ची होती है।

 

✧  पक्के फाउन्डेशन वाली नहीं गिरेगी। तो आपका फाउन्डेशन कितना पक्का है? हिलने वाला है क्या? हिलेगी नहीं लेकिन थोड़ी दरार आ जायेगी? थोड़ी भी नहीं। *क्योंकि कोई तो गिर जाते हैं कोई गिरते नहीं लेकिन थोड़ी दरार आ जाती है। तो आप उनसे भी पक्के हो। तो निश्चय की निशानी है-हर कार्य में मंसा में भी, वाणी में भी, कर्म में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी हर बात में सहज विजय हो। मेहनत करके विजयी बने, वह विजय नहीं है। सहज विजयी।* तो निशानी दिखाई देती है या विजय प्राप्त करने में मेहनत लगती है? कभी सहज, कभी मेहनत? लेकिन निश्चय की निशानी है सहज विजय। अगर मेहनत लगती है तो समझो कुछ मिक्स है। संशय नहीं भी हो लेकिन कुछ व्यर्थ मिक्स है इसलिये सहज विजय नहीं होती। नहीं तो विजय निश्चयबुद्धि आत्माओंके लिये तो सदा एवररेडी है। उसका स्थान ही वह है।

 

✧  *जहाँ निश्चय है, वहाँ विजय होगी। निश्चय वालों के पास ही जायेगी ना। तो निश्चय सब बातों में चाहिये। सिर्फ बाप में निश्चय नहीं। लेकिन अपने आपमें भी निश्चय, ब्राह्मण परिवार में भी निश्चय, ड्रामा के हर दृश्य में भी निश्चय। तभी कहेंगे कि सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि।* अगर बाप में निश्चय है लेकिन अपने में नहीं है, चलते-चलते अपने से दिलशिकस्त होते हैं तो निश्चय नहीं है तब तो होते हैं। तो वह भी अधूरा निश्चय हुआ। बाप में भी है, अपने आपमें भी है लेकिन परिवार में नहीं है। परिवार के कारण डगमग होते हैं। तो भी अधूरा निश्चय कहेंगे। ड्रामा में भी फुल निश्चय हो। जो हुआ सो अच्छा हुआ। इसको कहते हैं ड्रामा में निश्चय।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सदा अपने को डबल लाइट अनुभव करते हो? *जो डबल लाइट रहता है वह सदा उडती कला का अनुभव करता है।* क्योंकि जो हल्का होता है वह सदा ऊँचा उडता है, बोझ बाला नीचे जाता है। तो *डबल लाइट आत्मायें अर्थात सर्व बोझ से न्यारे बन गये।* बाप का बनने से 63 जन्मों का बोझ समाप्त हो गया।

 

✧  सिर्फ अपने पुराने संकल्प वा व्यर्थ संकल्प का बोझ न हो। क्योंकि *कोई भी बोझ होगा तो ऊँची स्थिति में उडने नहीं देगा।* तो डबल लाइट अर्थात आत्मिक स्वरूप में स्थित होने से हल्का-पन स्वत: हो जाता है। ऐसे *डबल लाइट को ही 'फरिश्ता' कहा जाता है।* फरिश्ता कभी किसी भी बन्धन में नहीं बाँधता।

 

✧  तो कोई भी बन्धन तो नहीं है। मन का भी बन्धन नहीं। *जब बाप से सर्व शक्तियाँ मिल गई तो सर्व शक्तियों से निर्बन्धन बनना सहज है।* फरिश्ता कभी भी इस पुरानी दुनिया के, पुरानी देह के आकर्षण में नहीं आता। क्योंकि है ही डबल लाइट तो सदा ऊँची स्थिति में रहने वाले। *उडती कला में जाने वाले 'फरिश्ते' हैं, यही स्मृति अपने लिए वरदान समझ, समर्थ बनते रहना।* अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ कोई-कोई टीचर्स भी कहती हैं - योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने बदले सेवा याद आती है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। *क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने की बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे।* उस समय सिवाय बाप के, निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी – और कुछ याद नहीं। ब्रह्मा बाप ने अंतिम स्टेज यह बनाई ना - बिल्कुल निराकारी। सेवा फिर भी साकार में आ जायेंगे। इसलिए यह अभ्यास करो - जिस समय जो चाहे स्थिति हो। नहीं तो धोखा मिल जायेगा। *ऐसे नहीं सोचो-सेवा का ही तो संकल्प आया, खराब संकल्प विकल्प तो नहीं आया। लेकिन कण्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना। कंट्रोओलिंग पावर नही तो रूलिंग पावर आ नही सकती, रूलर बन नहीं सकेंगे।* तो अभ्यास करो। अभी से बहुत काल का अभ्यास चाहिए। इसको हल्का नहीं छोड़ो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ईश्वर की गोद पाकर श्रीमत से हीरे जैसा बनना"*

 

 _ ➳  *माया की गोद से निकल ईश्वर पिता की गोद में मुस्कुराती हुई मैं आत्मा अपने भाग्य सितारा को देख रही हूँ... पहले माया के वश होकर गर्त में डूबा हुआ था लेकिन अब ऊँचे आसमान में झिलमिला रहा है...* मेरे भाग्य को ऊँचा उठाकर 21 जन्मों के लिए मुझे माया से सुरक्षित करने वाले मेरे प्राण प्यारे परमपिता परमात्मा के पास उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में... जहाँ सफ़ेद बादलों पर विराजमान होकर बापदादा मुझे अपनी बाँहों में भर लेते हैं और मीठी-मीठी श्रीमत देते हैं...

 

  *गति सद्गति के लिए श्रीमत देकर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... श्रीमत को दिल की गहराइयो से अमल में लाकर जीवन को सुखो की बहार बना दो... *ईश्वर पिता की श्रीमत ही पवित्रता के रंग में रंगकर देवताई ताज से सजाएगी... श्रीमत की ऊँगली पकड़ कर सहज ही सुखो के आँगन में पाँव रखेंगे...* और भारत कौड़ी से हीरे जैसा चमक उठेगा..."

 

 _ ➳  *बाबा की श्रीमत का हाथ और साथ पकड़कर अनन्य सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा श्रीमत के साये में खुबसूरत प्यारे जीवन को जीती जा रही हूँ... प्यारे बाबा आपकी छत्रछाया में कितनी सुखी और निश्चिन्त हूँ...* देह की मिटटी से बाहर निकलखुबसूरत मणि बन दमक रही हूँ..."

 

  *श्रीमत के विमान में बिठाकर स्वर्णिम युग की ओर ले जाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... रावण की मत और विकारी जीवन ने दुखो की तपिश से कितना जलाया है... *अब राम पिता की मत को थाम... फूलो के मखमल पर चलकर दुखो के छालो पर सदा का मरहम लगाओ.. श्रीमत ही अथाह सुखो से भरा भाग्य दिलायेगी... और असाधारण देवता बनाकर विश्व धरा पर चमकाएगी..."*

 

 _ ➳  *दिव्य गुणों के श्रृंगार से अमूल्य बेदाग हीरा बनकर चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हुई अपने मीठे भाग्य को देख पुलकित हूँ... *श्रीमत को पाकर श्रेष्ठ कर्मो से जीवन सुखो का पर्याय बनाती जा रही हूँ... प्यारे बाबा आपके प्यार के जादू में... मै आत्मा कौड़ी से हीरा बन दमक उठी हूँ..."*

 

  *मुझ आत्मा को अविनाशी ज्ञान रत्नों की मालिक बनाकर ज्ञान सागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता को कभी दर दर खोज रहे थे... *आज उसकी मखमली गोद में फूलो सा खिल रहे हो... यह मीठी यादे,यह ईश्वरीय अमूल्य रत्न और श्रीमत 21जनमो तक असीम सुख प्रेम और शांति से जीवन खुशनुमा बनाएगी...* इसलिए सदा श्रीमत को बाहों में भरकर खुशियो संग मुस्कराओ..."

 

 _ ➳  *हर कर्म श्रीमत प्रमाण करते हुए पारसमणि समान दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा श्रीमत के आँचल तले विकारो की छाया से सुरक्षित हूँ... प्यारे बाबा जीवन कितना धवल और प्रकाश से सराबोर हो गया है...* आपकी यादो और अमूल्य ज्ञान रत्नों ने मेरा कायाकल्प किया है... और देवताई सौंदर्य से मुझे सुसज्जित किया है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरु का रिगार्ड रखने के लिए उनकी मत पर चलना है*"

 

_ ➳  अपने प्यारे प्रभु की मीठी यादों में खोई उनके बाप, टीचर और सतगुरु तीनो स्वरूपों को मैं जैसे ही स्मृति में लाती हूँ यह सोच कर एक रूहानी नशा मुझ आत्मा पर चढ़ने लगता है कि *जिस भगवान को दुनिया नही जानती वो भगवान मेरा बाप बन मुझे 21 जन्मो का राज्य भाग्य दे रहा है, टीचर बन मुझे पढा रहा है और  सच्चा सतगुरु बन सचखण्ड में चलने का, मुक्ति जीवनमुक्ति पाने की सच्ची राह दिखा रहा है तो ऐसे सुख देने वाले बाप, टीचर और सतगुरु का मेरे मन मे कितना रिगार्ड होना चाहिए*! और उनका रिगार्ड रखना माना उनकी मत पर एक्यूरेट चलना, उनकी शिक्षाओं को जीवन मे धारण करना।

 

_ ➳  मन ही मन यह विचार करते हुए अब मैं पूरी तल्लीनता के साथ अपनी चेकिंग करती हूँ कि क्या मैं अपने बाप, टीचर, सतगुरु की मत पर एक्यूरेट चलती हूँ! जाने अनजाने मुझ से श्रीमत का उल्लंघन तो नही होता! ईश्वरीय नियम और मर्यादाये टूटती तो नही! *यह डीप चेकिंग करके, स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब मैं अपने प्यारे बाबा का रिगार्ड रखने के लिए उनकी मत पर चलने का पूरा अटेंशन दूँगी। अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सच्चा सुख देने वाले अपने बाप, टीचर और सतगुरु की मत पर चल कर श्रेष्ठ बनाना ही मेरे ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है और इस लक्ष्य को पाना ही उनका रिगार्ड है जो मुझे अवश्य करना है*।

 

_ ➳  इसी दृढ़ संकल्प के साथ अपने बाबा का कोटि - कोटि धन्यवाद करके मैं अपने मन और बुद्धि को स्थिर करती हूँ और अपने मीठे प्यारे बाबा की मीठी याद में बैठ मन बुद्धि का कनेक्शन जैसे ही परमधाम में उनके साथ जोड़ती हूँ, *वैसे ही बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मुझे अपनी बाहों में भर कर ऊपर खींच लेते हैं और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को थामे मैं नश्वर देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता के पास उनके परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*। उनकी किरणो रूपी बाहों के झूले में झूला झूलते और उनके स्नेह की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेते - लेते मैं पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, फरिश्तो की आकारी दुनिया से होती हुई अपने प्राण प्रिय शिव पिता की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  अपने इस स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर, इस अन्तहीन ब्रह्मांड में फैले सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन को गहराई तक अपने अंदर समाकर असीम सुख और शांति का अनुभव करतेे - करते, मैं अपने प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *बाबा का स्नेह उनकी शक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसता हुआ महसूस हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपनी शक्तियों का समस्त बल मुझमें प्रवाहित कर मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे हैं*। अपना असीम स्नेह, अपने सर्वगुण और सर्वशक्तियाँ बाबा मुझ पर निरन्तर बरसाते जा रहें हैं और मैं सर्वगुणों, सर्व शक्ति सम्पन्न बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  भरपूर होकर अब मैं वापिस साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए लौट आती हूँ और अपने शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं, अपने मीठे बाबा की मत पर चलने का पूरा अटेंशन दे रही हूँ। हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रह कर अब मैं कर रही हूँ ताकि ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जिससे मेरे प्यारे पिता का डिसरिगार्ड हो*। अपने सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरु का रिगार्ड रखने के लिए मुझे उनकी मत पर अवश्य चलना है, इस बात को दृढ़ता के साथ अपने जीवन मे धारण करते हुए, अपने पिता की श्रेष्ठ मत पर चल अपने हर कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा सर्व की ब्लैसिंग प्राप्त करने वाली सफलतामूर्त     आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं जीवन में शीतलता को धारण कर दूसरों के जलते हुए चित्त पर विजय प्राप्त करने वाली विजयी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. माया के हल्के-हल्के रूपों को तो आप भी जान गये हो और माया भी सोचती है कि ये जान गये हैं लेकिन जब कोई भी विकराल रूप की माया आवे तो सदा साक्षी होकर खेल करो। जैसे वो कुश्ती का खेल होता है नादेखा है कि दिखायेंयहाँ बच्चे करके दिखाते हैं ना! तो समझो कि ये कुश्ती का खेलखेल रहे हैंअच्छी तरह से मारो। घबराओ नहींखेल है। तो *साक्षी होकर खेल करने में मजा आता है और माया आ गईमाया आ गई तो घबरा जाते हैं। कुछ भी ताकत अभी माया में नहीं है। सिर्फ बाहर का शेर का रूप है लेकिन बिल्ली भी नहीं है।* सिर्फ आप लोगों को घबराने के लिए बड़ा रूप ले आती है फिर सोचते हो पता नहीं अब क्या होगा! तो यह कभी नहीं कहो - क्या करुँकैसे होगाक्या होगा..लेकिन बापदादा ने पहले भी यह पाठ पढ़ाया है कि जो हो रहा है वो अच्छा और जो होने वाला है वो और अच्छा।  ब्राह्मण बनना अर्थात् अच्छा ही अच्छा है। चाहे बातें ऐसी होती हैं जो कभी आपके स्वप्न में भी नहीं होती और कई बातें ऐसे होती हैं जो अज्ञान काल में नहीं होगी लेकिन ज्ञान के बाद हुई हैंअज्ञानकाल में कभी बिजनेस नीचे-ऊपर नहीं हुआ होगा और ज्ञान में आने के बाद हो गयाघबरा जाते हैं - हायज्ञान छोड़ दें! लेकिन कोई भी परिस्थिति आती है उस परिस्थिति को अपना थोड़े समय के लिये शिक्षक समझो।

 

 _ ➳  २. तो *परिस्थिति आपको विशेष दो शक्तियों के अनुभवी बनाती है - एक-सहनशक्ति, न्यारापननष्टोमोहा और दूसरा-सामना करने की शक्ति का पाठ पढ़ाती है* जिससे आगे के लिए आप सीख लो कि ये परिस्थितिये दो पाठ पढ़ाने आई है।

 

 _ ➳  ३. घबराते हो ना तो माया समझ जाती है कि ये घबरा गया हैमारो अच्छी तरह से। इसलिए घबराओ नहीं। ट्रस्टी हैं अर्थात् पहले से ही सब कुछ छूट गया। *ट्रस्टी माना सब बाप के हवाले कर दिया। मेरा क्या होगा! - बस गा गा आता है ना तो गड़बड़ होती है। सब अच्छा है और अच्छा होना ही हैनिश्चिन्त है - इसको कहा जाता है समर्थ स्वरूप।*

 

✺   *ड्रिल :-  "माया और परिस्थितियों का साक्षी होकर सामना करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा शांतिस्तंभ के सामने बैठी बाबा की यादों में मगन हूँ... मैं फरिश्ता अव्यक्त बापदादा की मधुर स्मृतियों में खोई हुई हूँ... *बादलों को चीरते हुए अति दिव्य फरिश्ता... संपन्न ब्रह्माबाबा प्रकट होते हैं... जिनके मस्तक पर ज्ञान सूर्य चमक रहे हैं... वे अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं और... मैं फरिश्ता बाबा का हाथ पकड़े बाबा के साथ आ जाती हूँ फरिश्तों की दुनिया में*... जहां हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश है... सफेद चांदनी सा प्रकाश छाया हुआ है...

 

 _ ➳  फरिश्तों की इस महफिल में मैं बापदादा को उनके अति तेजोमय, दिव्य स्वरुप में देख रही हूँ... बापदादा के नैनों से असीम प्यार, शक्तियां बरस रही हैं... *बाबा वरदानों से मुझ फरिश्ते को निहाल कर रहे हैं... बाबा वरदान देते हैं बच्चे साक्षीदृष्टा भव! नष्टोमोहा भव!...* वरदान देकर बाबा अपना हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं... बाबा के हाथ से शक्तियों का फव्वारा निकलकर... मुझ आत्मा में समाता जा रहा है...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा ड्रामा के हर सीन को साक्षी होकर देख रही हूँ... जैसे कि कोई खेल चल रहा है... और मैं आत्मा खेल को देखने का आनंद ले रही हूँ*... मैं डिटैच हो कर देख रही हूँ कि... यह ड्रामा संपूर्ण रुप से कल्याणकारी है... इसके हर सीन में कल्याण समाया हुआ है... जो हुआ वह भी अच्छा, जो हो रहा है वह भी अच्छा और जो होने वाला है वह भी अच्छा ही है... कल्याणकारी संगम युग के हर पल, हर क्षण में कल्याण ही कल्याण है...

 

 _ ➳  कोई भी सीन, कोई भी परिस्थिति जो... मुझ आत्मा के सामने आ रही है... अब मैं उससे परेशान नहीं हो रही... हलचल में नहीं आ रही हूँ... *मैं उसे एक शिक्षक के रूप में देख रही हूँ... जो मुझ आत्मा को अनुभवी बनाने का पाठ पढ़ाने के लिए आई है...* मुझ में सहनशक्ति, न्यारापन बढ़ाने के निमित्त बनकर आई है... मुझ आत्मा की सामना करने की शक्ति बढ़ती जा रही है...

 

 _ ➳  मुझ आत्मा में निमित्त भाव, समर्पण भाव बढ़ता जा रहा है... सब कुछ बाबा का है... मैं तो ट्रस्टी मात्र हूँ... सेवा अर्थ निमित्त मात्र हूँ... *मैंने अपने सभी बोझ, सब चिंताएं, सभी जिम्मेवारियाँ बाबा को दे दी हैं... अब मैं स्वयं को हर प्रकार से हल्का, निश्चिंत अनुभव कर रही हूँ...* ईश्वरीय नशा, फ़खुर, ख़ुमारी बढ़ती जा रही है... मैं अतींद्रिय सुख में समाती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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