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❍ 17 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पुराणी दुनिया से बेहद का वैराग्य कर एक बाप की याद में रहे ?*
➢➢ *भ्रमरी मिसाल ज्ञान रंग लगाने की सेवा की ?*
➢➢ *परमात्म प्यार की छत्रछाया में सदा सेफ रहे ?*
➢➢ *अपने श्रेष्ठ चरित्र द्वारा बापदादा तथा ब्राह्मण कुल का नाम रोशन किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ आप बच्चे जहाँ भी रहते हो, जो भी कर्मक्षेत्र है, आप हर एक बच्चे से बाप समान गुण, कर्म और श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल अनुभव में आये, यही है बाप समान बनना। *सब कुछ होते हुए, नॉलेज और विश्व कल्याण की भावना से, बाप को, स्वयं को प्रत्यक्ष करने की भावना से अभी बेहद की वैराग्य वृत्ति धारण करो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पुरुषार्थ में सदा आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को पुरुषार्थ में आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ-ऐसे अनुभव करते हो? पुरुषार्थ में कभी ठहरती कला, कभी उतरती कला-ऐसा नहीं होना चाहिए। कभी बहुत अच्छा, कभी अच्छा, कभी थोड़ा अच्छा-ऐसा नहीं। सदा बहुत अच्छा। क्योंकि समय कम है और सम्पूर्ण बनने की मंजिल श्रेष्ठ है। तो अपने भी पुरुषार्थ की गति तीव्र करनी पड़े। *पुरुषार्थ के तीव्र गति की निशानी है कि वह सदा डबल लाइट होगा, किसी भी प्रकार का बोझ नहीं अनुभव करेगा। चाहे प्रकृति द्वारा कोई परिस्थिति आये, चाहे व्यक्तियों द्वारा कोई परिस्थिति आये लेकिन हर परिस्थिति 'स्व-स्थिति' के आगे कुछ भी अनुभव नहीं होगी।*
〰✧ स्व-स्थिति की शक्ति पर-स्थिति से बहुत ऊंची है, क्यों? यह स्व है, वह पर है। *अपनी शक्ति भूल जाते हो तब ही परस्थिति बड़ी लगती है। सदा डबल लाइट का अर्थ ही है कि लाइट अर्थात् ऊंचे रहने वाले। हल्का सदा ऊंचा जाता है, बोझ वाला सदा नीचे जाता है।* आधा कल्प तो नीचे ही आते रहे ना। लेकिन अभी समय है ऊंचा जाने का। तो क्या करना है? सदा ऊपर।
〰✧ शरीर में भी देखो तो आत्मा का निवास-स्थान ऊपर है, ऊंचा है। पांव में तो नहीं है ना। *जैसे शरीर में आत्मा का स्थान ऊंचा है, ऐसे स्थिति भी सदा ऊंची रहे। ब्राह्मणों की निशानी भी ऊंची चोटी दिखाते हैं ना। चोटी का अर्थ है ऊंचा।* तो स्थूल निशानी इसीलिए दिखाई है कि स्थिति ऊंची है। शूद्र को नीचे दिखाते हैं, ब्रह्म को ऊंचा दिखाते हैं। तो ब्राह्मणों का स्थान और स्थिति-दोनों ऊंची। अगर स्थान की याद होगी तो स्थिति स्वत: ऊंची हो जायेगी।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *वरदानी रूप द्वारा सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए।* तथा अन्य संकल्पों को सेकण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए।
〰✧ सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराता रहे और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेंस स्वरूप हो जाए अर्थात ब्रेक पॉवरफुल हो। *संकल्प शक्ति अपने कन्ट्रोल में हो।*
〰✧ साथ-साथ आत्मा की और भी विशेष दो शक्तियाँ *बुद्धि और संस्कार*, तीनों ही अपने अधिकार में हो। *तीनों में से एक शक्ति के ऊपर भी अगर अधिकार कम है तो वरदानी स्वरूप की सेवा जितनी करनी चाहिए उतनी नहीं कर सकते।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *चलते फिरते, बैठते, बातचीत करते पहली अनुभूति- यह शरीर जो हिसाब-किताब के वृक्ष का मूल तना है जिससे यह शाखायें प्रकट होती हैं, यह देह और आत्मा रूपी बीज, दोनों ही बिल्कुल अलग हैं।* ऐसे आत्म न्यारेपन का चलते फिरते बार-बार अनुभव करेंगे। नालेज के हिसाब से नहीं कि आत्मा और शरीर अलग हैं। लेकिन शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ! यह अलग् वस्तु की अनुभूति हो। जैसे स्थूल शरीर के वस्त्र और वस्त्र धारण करने वाला शरीर अलग अनुभव होता है ऐसे मुझ आत्मा का यह शरीर वस्त्र है, मैं वस्त्र धारण करने वाली आत्मा हूँ। ऐसा स्पष्ट अनुभव हो। जब चाहे इस देह भान रूपी वस्त्र को धारण करें, जब चाहे इस वस्त्र से न्यारे अर्थात् देहभान से न्यारे स्थिति में स्थित हो जायें ऐसा न्यारेपन का अनुभव होता है? *वस्त्र को मैं धारण करता हूँ या वस्त्र मुझे धारण करता है? चैतन्य कौन? मालिक कौन? तो एक निशानी- 'न्यारेपन की अनुभूति’ अलग होना नहीं है लेकिन मैं हूँ ही अलग।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पावन बनने के लिए अपने स्वधर्म में रहना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा टेरिस पर बैठी बाबा की यादों में खोई हुई आसमान में सितारों को देख रही हूं... एक सितारा जिसके प्रकाश से ऐसा प्रतीत होता है जैसे मैं आत्मा बाबा के पास निराकारी दुनियाँ में बाबा के सम्मुख बैठी हूँ... इन्ही यादों में खोई मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम और बाबा से बहते हुए रंगबिरंगी किरणों के झरने के नीचे स्वयं को अनुभव कर रही हूं...* मैं आत्मा बाबा से आती किरणों को स्वयं में समाती जा रही हूं... समस्त पापों को भस्म करती हुई मैं स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... *समस्त शक्तिओं से भरकर मैं सूक्ष्म वतन में उतर आती हूँ यहाँ बाबा सफेद प्रकाश से ढके दिखाई पड़ रहे हैं...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपने पास बिठाते हुए बोले:-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये तुम्हें पतित से पावन बनाने... *पावन बनने के लिए अपने स्वधर्म में रहना ही बाप पर बलि चढ़ना है...* बाप की श्रीमत है कि अब पावन बनों और दूसरों को भी बनाने की सेवा करो... अब तुम्हें पवित्रता की उंगली देकर निराकारी बाप के सहायक बनना है... *बाप तुम बच्चों को पतित से पावन बनाकर साथ लेजाने आये हैं... अब पवित्र बन स्वयं को हल्का करो , योग और ज्ञान द्वारा अपने टूटे हुए पंखों को फिर से प्राप्त कर बाप के साथ चलने का पुरुषार्थ करो..."*
➳ _ ➳ *बाबा के महावाक्यों को सुनकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्राणप्यारे बाबा... *मैं आत्मा उड़ना ही भूल गयी थी, आपने आकर मुझे ज्ञान और योग के नए पंख दिए और उड़ना सिखाया... परमधाम में बाबा के संग बैठ नित्य नई अनुभूतियों से आनंदित होती हूँ... मैं आत्मा आपको पाकर कितनी भाग्यशाली बन गयी हूँ...* जीवन को नई दिशा मिली जिस दिशा का गाईड स्वयं भागवान बना... वाह मेरा भाग्य वाह..."
❉ *बाबा मुझ आत्मा में अपनी शक्तिओं का बल भरते हुए बोले:-* "सिकीलधे प्यारे फूल बच्चे... ब्राह्मण जीवन माना मर्यादाओं का जीवन... तुम्हें अलबेलेपन में नही आना है... *यही समय है स्वयं के भाग्य को ऊंच ते ऊंच बनाने का इसलिये बाप को फॉलो कर फॉलो फादर बन याद की दौड़ी लगाओ... योग से ही विकर्मों का विनाश होना है तो अब अपनी योग की अग्नि को बढ़ाओ... एक बाप से बुद्धि योग लगाओ और भविष्य में ऊंच पद की प्रालब्ध पाओ... बाप आये हैं स्वर्ग की बादशाहत देने..."*
➳ _ ➳ *बाबा के अनमोल वाक्यों को आत्मसात कर मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "बाबा मेरे... मैं तो सम्पूर्ण जीवन आपको समर्पित कर आपकी हो गयी हूँ... *आपकी श्रीमत ने मुझे कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है... पतित से पावन बना दिया है... देहिअभिमानी बन मैं आत्मा आनंद से भर गई हूं... इस ईश्वरीय वर्से की अधिकारी हो गयी हूँ...* कितने संत महात्मा आपको ढूंढ रहे हैं परंतु आपने मुझे चुना इस स्मृति में रह अपने सर्व दुखों को भूल गयी हूं... *हर पल अपने शिव पिता से मिलन मनाने वाली मैं आत्मा विशेष रत्न बन गयी हूं...* मुझे भगवान मिला इस बात के नशे में झूमती रहती हूं..."
❉ *अपनी मधुर वाणी में बाबा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे नूरे रत्न.. तुम पहले अशरीरी थे फिर ये शरीर लेकर पार्ट बजाया अब फिर से बाप आये हैं तुम्हें घर लेजाने कल्प पहले मुआफ़िक... *देहभान को भूल अब अशरीरी बनने का पुरषार्थ करो... तुम्हारी बुद्धि में है पहले हम मुक्ति में जाएंगे फिर जीवनमुक्ति में आएंगे परन्तु पावन बने कोई मुक्ति जीवनमुक्ति में जा नही सकते, तो अब पावन बनने लिए अपने स्वधर्म में रहना ही बाप की श्रीमत पर चलना है... सदा संतुष्ट मणि बन रहो तो स्वतः ही पावन बन जाएंगे...*"
➳ _ ➳ *बाबा के वचनों को बहुत प्रेम से सुनते हुए आत्मविभोर हो मैं आत्मा अपने दिलाराम बाबा से कहती हूँ:-* "ओ मेरे प्राणों से प्यारे मेरे दिलाराम बाबा... मुझे आपने कितना अनमोल बना दिया है... *अपने नए जीवन को देखकर मैं आत्मा अपने को बहुत विशेष अनुभव कर रही हूं कहाँ दुनिया की ठोकरों में पल रही थी और आपने आकर अपनी गोद देदी... मेरी किस्मत को देखकर मेरी आँखों से मोती गिरने लगते हैं... मैं कितनी सौभाग्यशाली की मुझे दुनिया का रचयिता अपनी गोद में झूलाने आया है... मेरा अहो भाग्य जो परमात्म प्रेम में पल रही हूं... मेरा रोम रोम आपका धन्यवाद करता है... शुक्रिया मेरे दिलाराम बाबा आपका बहुत बहुत शुक्रिया...* अपने अंतर्मन से बाबा का शुक्रिया कर मैं आत्मा लौट आती हूँ अपने साकारी तन में..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भ्रमरी मिसल ज्ञान रंग लगाने की सेवा करनी है*
➳ _ ➳ परमात्म प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सजनी अपने शिव साजन के प्यार की मीठी यादों में खोई एक सुंदर से उपवन में बैठी हूँ। *अपने साजन के प्यार के मधुर एहसास को याद कर मन ही मन मैं गद - गद हो रही है। मन मे खुशी की शहनाइयाँ बज रही है। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति भी मुझे अपने प्यारे पिया के साथ मिलन करता देख सुन्दर साज बजा रही है*। ठंडी - ठंडी हवायें भी जैसे मेरे साथ परमात्म मिलन के मधुर क्षणों का आनन्द ले रही हैं। हवाओं में भी जैसे परमात्म प्यार का रंग घुल गया है। चारों तरफ वायुमण्डल में एक रूहानी मस्ती छाई हुई है। *एक मीठी - मीठी खुमारी मुझ आत्मा पर छा रही है जो मुझे विदेही बनाती जा रही है। दैहिक आकर्षण से मुक्त होकर अपने अनादि बिंदु स्वरूप में मैं स्थित होने लगी हूँ*।
➳ _ ➳ निराकारी स्थिति में स्थित होकर, अपने निराकार स्वरूप को निहारते हुए, अपने सत्य स्वरूप का मैं आनन्द ले रही हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न मेरा वास्तविक स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी। *देह भान रूपी मायाजाल में उलझ कर अपने जिन अनादि गुणों और शक्तियों को भूल गई थी। आज अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर उनका अनुभव करके मैं जैसे तृप्त हो गई हूँ। देख रही हूँ अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को जो प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ आत्मा से निकल रहे हैं*। एक - एक रंग की किरण मेरे एक - एक गुण और शक्ति का मुझे गहन अनुभव करवा रही है। सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों की किरणों को चारों ओर फैलाते हुए मैं आत्मा अब धीरे - धीरे देह और देह की दुनिया को छोड़ अपने पिता के पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, अपनी निराकारी दुनिया की ओर उन्मुक्त होकर उड़ती जा रही हूँ। *सारे विश्व का चक्कर लगाकर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में मैं पहुँच गई हूँ। गहन शन्ति की इस दुनिया में कुछ क्षण गहन शांति का अनुभव करके अब मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ*।
➳ _ ➳ अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित करके मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं। ज्ञान की रिमझिम फुहारों का आनन्द लेने के साथ - साथ ज्ञान रत्नों को मैं अपने अंदर भरती जा रही हूँ। *मेरे शिव पिया के ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की शीतलता मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति और ताजगी पैदा कर रही है। इस ज्ञान बरसात से मेरे चारो और इंद्रधनुषी रंगों का एक सुन्दर औरा निर्मित हो रहा है जिसमे से सुख, शांति पवित्रता के वायब्रेशन्स निकल कर चारो और फैल रहें है जो मन को गहन सुख और शांति की अनुभूति करवा रहे है*। इस शक्तिशाली औरे के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से साकार लोक की ओर वापिस आ रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हूँ। मास्टर ज्ञान सागर बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर ज्ञान की बरसात कर रही हूँ। *स्वयं को ज्ञान सागर अपने शिव पिता के साथ कम्बाइंड अनुभव करते, सदा ज्ञान की रिमझिम में रहते, ज्ञान के रंग में स्वयं को रंगकर अब मैं भ्रमरी मिसल सबको ज्ञान रंग लगाने की सेवा कर रही हूँ। सबको परमात्म प्यार का रंग लगाकर उनके बेरंग जीवन को खुशी और आनन्द से भरकर उन्हें नवजीवन देने की ईश्वरीय सेवा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।*
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं परमात्म प्यार की छात्राछाया में सदा सेफ रहने वाली दुखों की लहरों से मुक्त्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने श्रेष्ठ चरित्र द्वारा बापदादा तथा ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करने वाला कुल दीपक हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *तो खुला चांस होते भी बाप नम्बरवार नहीं देते लेकिन स्वयं को नम्बरवार बना देते हैं।* बाप का दिलतख्त इतना बेहद का बड़ा है जो सारे विश्व की आत्माएं भी समा सकती हैं इतना विराट स्वरूप है लेकिन बैठने की हिम्मत रखने वाले कितने बनते हैं! क्योंकि दिलतख्तनशीन बनने के लिए दिल का सौदा करना पड़ता है। इसलिए *बाप का नाम ‘दिलवाला' पड़ा है। तो दिल लेता भी है, दिल देता भी है।*
➳ _ ➳ जब सौदा होने लगता है तो चतुराई बहुत करते हैं। पूरा सौदा नहीं करते, थोड़ा रख लेते हैं फिर क्या कहते? धीरे-धीरे करके देते जायेंगे। किश्तों में सौदा करना पसन्द करते हैं। *एक धक से सौदा करने वाले, एक के होने कारण सदा एकरस रहते हैं।* और सबमें नम्बर एक बन जाते हैं। बाकी जो थोड़ा-थोड़ा करके सौदा करते हैं - एक के बजाए दो नाव में पाँव रखने वाले, सदा कोई न कोई उलझन की हलचल में, एकरस नहीं बन सकते हैं। इसलिए *सौदा करना है तो सेकण्ड में करो। दिल के टुकड़े-टुकड़े नहीं करो।* आज अपने से दिल हटाकर बाप से लगाई, एक टुकड़ा दिया अर्थात् एक किश्त दी। फिर कल सम्बन्धियों से दिल हटाकर बाप को दी, दूसरी किश्त दी, दूसरा टुकड़ा दिया, इससे क्या होगा?
➳ _ ➳ *बाप की प्रॉपर्टी के अधिकार के भी टुकड़े के हकदार बनेंगे।* प्राप्ति के अनुभव में सर्व अनुभूतियों के अनुभव को पा नहीं सकेंगे। थोड़ा-थोड़ा अनुभव किया इससे सदा सम्पन्न, सदा सन्तुष्ट नहीं होंगे। *इसलिए कई बच्चे अब तक भी ऐसे ही वर्णन करते हैं कि जितना, जैसा होना चाहिए वह इतना नहीं है।* कोई कहते पूरा अनुभव नहीं होता, थोड़ा होता है। और कोई कहते - होता है लेकिन सदा नहीं होता। क्योंकि पूरा फुल सौदा नहीं किया तो अनुभव भी फुल नहीं होता है। *एक साथ सौदे का संकल्प नहीं किया। कभी-कभी करके करते हैं तो अनुभव भी कभी-कभी होता है। सदा नहीं होता।*
➳ _ ➳ *वैसे तो सौदा है कितना श्रेष्ठ प्राप्ति वाला। भटकी हुई दिल देना और दिलाराम बाप के दिलतख्त पर आराम से अधिकार पाना।* फिर भी सौदा करने की हिम्मत नहीं। जानते भी हैं, कहते भी हैं लेकिन फिर भी हिम्मतहीन भाग्य पा नहीं सकते। है तो सस्ता सौदा ना, या मुश्किल लगता है? कहने में सब कहते कि सस्ता है। जब करने लगते हैं तो मुश्किल बना देते हैं। वास्तव में तो देना, देना नहीं है। *लोहा दे करके हीरा लेना, तो यह देना हुआ वा लेना हुआ?* तो लेने की भी हिम्मत नहीं है क्या? *इसलिए कहा कि बेहद का बाप देता सबको एक जैसा है लेकिन लेने वाले खुला चांस होते भी नम्बरवार बन जाते हैं।*
✺ *ड्रिल :- "बाप के साथ एक धक के साथ दिल का सौदा कर बाप की सम्पूर्ण प्रॉपर्टी के अधिकारी बनना"*
➳ _ ➳ *स्व के स्वार्थ से परे मैं आत्मा... गहरी आत्म चिंतन में बैठी देख रही हूँ भक्ति मार्ग की भक्त शिरोमणि मीरा को...* असीम सौन्दर्य की मालिक... पवित्रता की देवी... शांत... शीतल... मधुर... स्वररागिनी की साम्राज्ञी... हाथों में श्रीकृष्ण की मूर्त... हर्षोल्लास में घूमती... अपने श्रीकृष्ण में ही सर्वस्व देखती मीरा... अनन्य भक्ति... अतुल्य... निःस्वार्थ प्यार केवल एक श्रीकृष्ण के प्रति... ऐसीे भक्ति... ऐसीे पवित्र प्यार के फूलों के खुशबू से भरी... मीरा... *अपना सर्वस्व समर्पण सिर्फ और सिर्फ श्रीकृष्ण को कर दिया... ऐसी भक्ति की हक़दार मीरा जो जहर भी श्रीकृष्ण के प्यार में पी गयी...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने आप से पूछ रही हूँ... क्या मेरी भक्ति ऐसी हैं ? निःस्वार्थ, अतुल्य... क्या मैं मंसा... वाचा... कर्मणा... सम्पूर्ण समर्पण सिर्फ और सिर्फ एक बाप को कर पाई हूँ ? *क्या मैं इस संगमयुग पर मीरा बन पाई हूँ ? मीरा के जैसे जहर का प्याला क्या मैं इस संगमयुग में बाप के नाम पे पी लूंगी?* क्या इतना विश्वास... इतनी श्रद्धा मुझ आत्मा को शिवबाबा पर हैं... क्या निश्चय बुद्धि विजयन्ती बन पाई हूँ ? *दिलवाला बाप दिल देता भी हैं तो दिल लेता भी हैं... क्या मैं दिल दे पाई हूँ...* इस सवाल ने मेरे दिल की गहराईओ में उतरकर मन के तार को झंझोड़ कर रख दिया...
➳ _ ➳ अपने इस सवालों के जवाब के लिए मन के तार को बिन्दुरूपी बाप की याद में उलझा देती हूँ... शरीर के भान से परे मैं आत्मा... पहुँचती हूँ अपने घर जहाँ मेरे पिता हैं... बाप के प्यार की अधिकारी मैं आत्मा... अपने आप को बाबा के स्नेहभरी किरणों से भरती जा रही हूँ... *बिंदु बन बिंदु रूपी बाप की समीपता का अनुभव कर रही हूँ... अपनी ज्योति को बाप की ज्योति से मिलता हुआ महसूस करती मैं आत्मा अपने फ़रिश्ते स्वरुप में परिवर्तित हो रही हूँ...* और बापदादा के साथ चल पड़ती हूँ... सभी सेंटर... सभी बाबा के बच्चों के घर पर पहुँच जाते हैं और देखते हैं वैरायटी बाबा के बच्चों को...
➳ _ ➳ कोई सुदामा है... कोई राधा हैं... कोई श्री गणेश, कोई हनुमान हैं तो कोई माँ अम्बा... माँ लक्ष्मी... माँ सरस्वती के रूप में हैं... *तो कोई कोई मीरा भी हैं... जो सम्पूर्ण समर्पित हैं...* गृहस्थी में रहकर कमल फूल समान कई बाबा के लाडले बच्चे हैं जो श्रीमत पर पूरा बलिहार जाते हैं... *कई बच्चे एक धक से सौदा करने वाले हैं...* एक के होने कारण सदा एकरस रहते हैं और सबमें नम्बर एक बन जाते हैं... और कोई-कोई बच्चे ऐसे भी हैं जो सब कुछ जानते भी हैं, कहते भी हैं *लेकिन फिर भी हिम्मतहीन भाग्य पा नहीं सकते... ऐसे बच्चे भी देखे जो किश्तों में सौदा करना पसन्द करते हैं...*
➳ _ ➳ और मैं आत्मा एक बात दिल की गहराईओं से जान गई कि *बेहद का बाप देता सबको एक जैसा है लेकिन लेने वाले खुला चांस होते भी नम्बरवार बन जाते हैं...* और मैं आत्मा अपने फ़रिश्ता स्वरुप में बापदादा से आती हुई सर्व शक्तियों को अपने में समेट कर... *निश्चय बुद्धि विजयन्ती का टीका बापदादा के हाथों से लगाकर...* अपने आप को सर्व दैहिक बंधनों से मुक्त कर... मन बुद्धि सिर्फ एक बाप में लगाये जा रही हूँ... सौगात रूपी शक्तियों को अपने में धारण कर मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने स्थूल देह में... *मीरा बनकर संगमयुग का एक-एक क्षण सिर्फ और सिर्फ एक बाप की यादों में व्यतीत कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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