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 25 / 12 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *योग में रहर भोजन बनाया, खाया और खिलाया ?*

 

➢➢ *बाप ने जो समझाया है, उस पर अच्छी रीति विचार सागर मंथन कर योगयुक्त हो औरों को समझाया ?*

 

➢➢ *बाप समान हर आत्मा पर कृपा व रहम की ?*

 

➢➢ *मास्टर ज्ञान सूर्य बन शक्तियों रुपी कीचड़े को भस्म किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पहला पाठ आत्मिक स्मृति का पक्का करो। आत्मा इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कर रही है। तो अन्य आत्माओं का भी कर्म देखते हुए यह स्मृति रहेगी कि यह भी आत्मा कर्म कर रही है।* ऐसे अलौकिक दृष्टि, जिसको देखो आत्मा रूप में देखो। *इससे हर एक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जायेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं वरदानी आत्मा हूँ"*

 

  सब वरदानी आत्मायें हो ना? इस समय विशेष भारत में किसकी याद चल रही है? वरदानियों की। *देवी अर्थात् वरदानी, देवियों को विशेष वरदानी के रूप में याद करते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि हमें याद कर रहें है? अनुभव होता है?* भक्तों की पुकार महसूस होती है कि सिर्फ नालेज के आधार से जानते हो?

 

✧  एक है जानना दूसरा है अनुभव होना। तो अनुभव होता है? वरदानी मूर्त बनने के लिए विशेषता कौन सी चाहिए? आप सब वरदानी हो ना। तो वरदानी की विशेषता क्या है? *वे सदा बाप के समान और समीप रहने वाले होगें। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरूषाथी तो वरदानी नहीं बन सकते।*

 

✧  क्योंकि बाप पुरूषार्थ नहीं करता लेकिन सदा सम्पन्न स्वरूप में है तो अगर बहुत पुरूषार्थ करते हैं तो पुरूषार्थी छोटे बच्चे हैं, बाप समान नहीं। *समान अर्थात् सम्पन्न। ऐसे सदा समान रहने वाले सदा वरदानी होगें।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  (ड्रिल बहुत अच्छी लग रही थी) यह रोज हर एक को करनी चाहिए। ऐसे नहीं हम बिजी है। बीच में समय प्रति समय एक सेकण्ड चाहे कोई बैठा भी हो, बात भी कर रहा हो, लेकिन एक सेकण्ड उनको भी ड़िल करा सकते हैं और स्वयं भी अभ्यास कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है। *दो-चार सेकण्ड भी निकालना चाहिए इससे बहुत मदद मिलगी।*

 

✧   नहीं तो क्या होता है, सारा दिन बुद्धि चलती रहती है ना, तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और बीच-बीच में अभ्यास होगा तो जब चाहे उसी समय हो जायेंगे क्योंकि अंत में सब अचानक होना है। तो *अचानक के पेपर में यह विदेही-पन का अभ्यास वहुत आवश्यक है।*

 

✧  ऐसे नहीं बात पूरी हो जाए और विदेही बनने का पुरुषार्थ की करते रहें। तो सूर्यवंशी तो नहीं हुए ना! इसलिए *जितना जो बिजी है, उतना ही उसको बीच-बीच में यह अभ्यास करना जरूरी है।* फिर सेवा में जो कभी-कभी थकावट होती है, कभी कुछ-न-कुछ आपस में हलचल हो जाती है, वह नहीं होगा। अभ्यासी होंगे ना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सारे दिन में सूक्ष्म वतनवासी कितना समय होकर रहती हो कि स्थूल सेवा ज़्यादा है? आप लोग कितना भी बिज़ रही, बाप तो अपना कार्य करा ही लेते हैं। अपने सम्पूर्ण आकार का अनुभव किया है? *जैसे साकार आकार हो गये, आप सबका भी सम्पूर्ण आकारी स्वरूप है।* जो नम्बरवार हरेक साकार-आकार बन जायेंगे। आकार बन करके सेवा करना अच्छा है या साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा करना अच्छा है? *एडवान्स पार्टी तो साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा कर रही है।* लेकिन कोई-कोई का पार्ट अन्त तक साकारी और आकारी रूप द्वारा भी चलता है। आपका क्या पार्ट है? किसका एडवान्स पार्टी का पार्ट है, किसका अन्त:वाहक शरीर द्वारा सेवा का पार्ट है। दोनों पार्ट का अपना-अपना महत्व है। फस्र्ट, सेकेण्ड की बात नहीं। वैराइटी पार्ट का महत्व है। एडवान्स पार्टी का भी कार्य कोई कम नहीं है। सुनाया ना वह ज़ोर-शोर से अपने प्लैन बना रहे हैं। वहाँ भी नामीग्रामी हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान सागर के पास आकर ज्ञान रत्नों का वखर भरना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मुझे पत्थरबुद्धि से पारस बुद्धि बनाने वाले ज्ञान सागर बाबा के पास परमधाम में पहुँच जाती हूँ... ज्ञान सागर बाबा से निकलती ज्ञान की किरणों से मुझ आत्मा से अज्ञानता का आवरण हटता जा रहा है... ज्ञान की किरणें मुझमें सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान भर रही हैं...* मेरे बाबा ने मेरे असली स्वरुप, मेरे असली पिता, मेरे असली घर का स्पष्ट ज्ञान देकर मुझे त्रिकालदर्शी बना दिया... *मैं आत्मा इन किरणों से सराबोर होकर बाबा के साथ धीरे-धीरे नीचे उतरती जाती हूँ और पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में...* जहाँ शिवबाबा ब्रह्मा बाबा के मस्तक में विराजमान हो जाते हैं और मुझे ज्ञान रत्नों से सजाते हैं...

 

  *मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा रूप बसन्त बनाकर ज्ञान रत्नों से मेरी पालना करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... आप ईश्वरीय फूल हो गॉडली स्टूडेंट हो... *कितना प्यारा और मीठा सा भाग्य है कि धरती पर आकर ईश्वर की गोद में पढ़ाई पढ़ रहे हो... तो भाग्य की इस अमीरी को ज्ञान रत्नों से छ्लकाओ... रूप और बसन्त बन अपनी योगी छटा का जहान को दीवाना बनाओ...”*

 

_ ➳  *गॉडली स्टूडेंट बन ज्ञान बरसात में नहाकर ज्ञान रत्नों को धारण करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञान की अमीरी में मुस्करा उठी हूँ... *अपने शानदार भाग्य को पाकर निहाल हो गई हूँ... रत्नों से भरपूर होकर... सुनहरा रूप पाकर बसन्त सी खिल उठी हूँ...”*

 

  *अपनी यादों की फुलवारी में मेरी ऊँची तकदीर बनाते हुए मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय स्टूडेंट हो तो हर बात हर चाल रूहानी हो... हर कर्म असाधारण हो... *सदा मुख से रत्नों की बरसात हो कि हर दिल सुख की भासना से पुलकित हो उठे... सच्चे पिता और सच्चे ज्ञान की चमक का पूरे विश्व को दीवाना बना आओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान बदली बन आसमान में चमकते हुए, ज्ञान की बूंदों से विश्व को सराबोर करते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा बाबा से ज्ञान रत्नों का अथाह खजाना पाकर हर दिल पर लुटा रही हूँ... कौन मिला है मुझे इस रूहानी नूर से हर दिल को रौशन कर रही हूँ...* और टीचर बाबा के पते की दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...

 

  *अपने मधुर महावाक्यों से मेरी पालना करते हुए मेरे मीठे प्यारे पारलौकिक बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर ने पसन्द किया और अपना स्टूडेंट बनाया है... *यह भाग्य विरलो को ही नसीब होता है... तो जो खूबसूरत भाग्य हाथ आया है... उस की खूबसूरती को छ्लकाओ... भगवान बैठ पढ़ा रहा और सुंदर देवता सा सजा रहा... इस नशे में झूम जाओ... सबको ज्ञान रत्नों से मालामाल कर आओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सागर बन ज्ञान की सरगम से पूरे विश्व में मिठास फैलाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपसे पाये ज्ञान रत्नों की झनकार हर दिल को सुना रही हूँ... सच्चा रूप बसन्त बन मीठा मुस्करा रही हूँ...* ईश्वरीय स्टूडेंट हूँ... इस खुमारी में खोती जा रही हूँ... अपने मीठे भाग्य पर मन्द मन्द मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अच्छी रीति विचार सागर मन्थन कर योगयुक्त हो औरों को भी समझाना है*"

 

_ ➳  अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे,एक झील के किनारे बैठी हुई मैं शीतल हवाओं का आनन्द ले रही हूँ औऱ अपने प्यारे बाबा के साथ सर्व सम्बन्धो के गहन सुख का अनुभव करके मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *अपने निराकार भगवान को कभी अपने प्यारे पिता के रूप में आप समान बनाने की समझानी देते हुए तो कभी माँ के रूप में अपनी किरणों रूपी बाहों में समाकर अपने ऊपर असीम स्नेह बरसाते हुए, कभी सच्चे दोस्त के रूप में अपने साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते हुए और कभी साजन बन ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार करते हुए मैं देख रही हूँ*।

 

_ ➳  हर सम्बन्ध के सुख का अनुभव बाबा के साथ करते हुए मैं दिल से अपने प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ और बाबा के असीम प्यार का, उनके उपकारों का रिटर्न उन्हें देने के लिए उनसे और स्वयं से ये प्रोमिस करती हूँ कि *जैसे रूप बसन्त मेरे प्यारे बाबा ने मेरे जीवन मे आकर ज्ञान और योग के चन्दन से मेरे जीवन की फुलवारी को महका दिया है, जीवन को सरस और आनन्दमयी बनाने वाला सत्य ज्ञान देकर मुझे जीने का नया ढंग सिखा दिया है ऐसे ही अपने अति मीठे और प्यारे रूप बसन्त बाबा के समान बन कर अब मैं भी औरों के जीवन को महकाऊंगीं*। अपने ज्ञान सागर शिव पिता द्वारा दिये ज्ञान का अच्छी तरह विचार सागर मन्थन कर उनके समान रूप बसन्त बन कर अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन को खुशहाल बनाऊंगी।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करके परमात्म बल से स्वयं को भरपूर करने के लिए अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की याद में अपने मन औऱ बुद्धि को मैं स्थिर करती हूँ और एक अद्भुत रूहानी यात्रा पर चलने के लिए तैयार हो जाती हूँ। *मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं मेरी ये रूहानी यात्रा शुरू हो जाती है। देख रही हूँ अब मै स्वयं को देह, देह की दुनिया और देह के सर्व सम्बन्धो से एकदम अलग एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर चमकते हुए*। मुझ बिंदु आत्मा से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मन को सुकून दे रहा है। अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से निहारते हुए मैं अपने इस स्वरूप का आनन्द लेते हुए *अब एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में भृकुटि सिहांसन को छोड़ देह की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और धीरे - धीरे इस यात्रा पर आगे बढ़ने लगती हूँ*।

 

_ ➳  मुझ चैतन्य शक्ति आत्मा से निकल रहा प्रकाश मेरे चारों और एक दिव्य कार्ब का निर्माण कर रहा है और इस दिव्य कार्ब के साथ अपने सातों गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों और फैलाती हुई मैं ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *सेकेंड में आकाश को पार कर, उससे ऊपर अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन में पहुँच कर, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, ज्ञान श्रृंगार करने के लिए मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ*। बड़े प्यार से अपनी बाहों में भरकर बाबा अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटाकर, मुझे मीठी दृष्टि देते हुए मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और बड़े प्यार से अपने हाथों से मेरा श्रृंगार करते हैं।

 

_ ➳  *ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से बाबा मुझे सजाते हुए मुझ पर बलिहार जा रहें हैं। मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए मेरे गले मे दिव्य गुणों की माला और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना रहें हैं*। ज्ञान, गुण और शक्तियों से मेरा श्रृंगार कर एक दुल्हन की तरह बाबा मुझे सजा रहें हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर अब मैं स्वयं को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरपूर करने के लिए अपने निराकार बिंदु

स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिए उनके समीप जाकर उन्हें टच करती हूँ। *बाबा को छूते ही ज्ञान की मीठी फुहारों का झरना मेरे ऊपर बरसने लगता है और परमात्म ज्ञान की शक्ति से मैं आत्मा भरपूर हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों का स्पर्श पाकर, बाबा के समान रूप बसन्त बन कर मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकार लोक में प्रवेश कर अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा ज्ञान रत्न निकालते हुए, मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ*। ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते,अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, रूप बसन्त बन, विचार सागर मन्थन कर, अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन की फुलवारी को महकाने की सेवा दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाप समान हर आत्मा पर कृपा वा रहम करने वाली मास्टर रहमदिल आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं शक्तियों रुपी किरणों से कमज़ोरी रुपी किचड़े को भस्म कर देने वाला मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बस खुश रहनाकभी भी मूड आफ नहीं करना। सदा एकरस खुशनुम: चेहरा हो। जो भी देखे उसे रूहानी खुशी की अनुभूति हो। यह सेवा का साधन है।  *चेहरे पर रूहानी खुशी हो, साधारण खुशी नहींरूहानी खुशी। फेस चेंज नहीं हो। जैसे एकरस स्थितिवैसे ही एकरस चेहरा हो।* हो सकता हैएकरस मूड होहो सकता है या होना ही हैहोगा ना अभीकभी भी कोई भी अचानक आपका फोटो निकाले तो और कोई फोटो नहीं आवेरूहानी मुस्कराहट का फोटो हो। *चाहे कामकाज भी कर रहे होसर्विस का बहुत टेन्शन हो लेकिन चेहरे पर खुशी हो। फिर आपको ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। एक घण्टा बोलने के बजाए अगर आपका रूहानी मुस्कान का चेहरा होगा तो वह एक घण्टे के बोलने की सेवा एक सेकण्ड में करेगा क्योंकि प्रत्यक्ष को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होती है।* जो भी मिलेजैसा भी मिले, गाली देने वाला मिले, इनसल्ट करने वाला मिले, इज्जत न रखने वाला मिले, मान-शान न देने वाला मिले, लेकिन आपका एकरस चेहरा, रूहानी मुस्कान। हो सकता है? कुमार हो सकता हैपाण्डव हो सकता है? और पुरुषार्थ से बच जायेंगे। मेहनत नहीं लगेगी। मुझे रूहानी मुस्कान ही मुस्कराना है। कुछ भी हो जाएमुझे अपनी मुस्कान छोड़नी नहीं हैहो सकता हैसोच रहे हैं? (करके दिखायेंगे) बहुत अच्छामुबारक हो!

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा रूहानी मुस्कान ही मुस्कराना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपनी साकारी देह से उपराम हो, स्वयं को मस्तक के बीचोंबीच एक चमकता हुआ सितारा देख रही हूँ... टिमटिमाता मैं नन्हा सा सितारा इस देह में चैतन्य शक्ति हूँ जो इस स्थूल देह को चलाती हूँ... *मैं चैतन्य शक्ति आत्मा इस देह को छोड़, इस साकारी दुनिया को भी पीछे छोड़ ऊपर की ओर उड़ जाती हूँ... और सूक्ष्म वतन में अपने बाबा के पास आकर बैठ जाती हूँ...*

 

 _ ➳  आज मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ कर अपने ब्राह्मण जीवन की प्राप्तियों को याद कर रही हूँ... जब से बाबा ने मुझे अपना बच्चा बनाया तब से मैं आत्मा अपने हर दुख को भूल खुशियों के झूले में झूल रही हूँ... हर पल मीठे बाबा की छत्रछाया में रह मैं आत्मा साक्षी हो कर हर सीन को देख रही हूँ... *कैसी भी परिस्थिति हो मैं आत्मा बाबा के ये महावाक्य याद रखती हूँ कि बच्चे सदा खुश रहना, कभी भी मूड ऑफ मत करना...* मैं आत्मा बाबा की इस बात को बुद्धि में बिठाकर सदा खुश रहती हूँ... कभी किसी बात से मेरा मूड थोड़ा ठीक नहीं भी होता तो बाबा ये महावाक्य मुझमें नया उमंग उत्साह भर देते हैं...

 

 _ ➳  मेरा खुशनुमा चेहरा अन्य आत्माओ के चेहरे पर भी ख़ुशी ले आता है... *ये साधारण ख़ुशी नहीं रूहानी ख़ुशी है जो मेरे बाबा से इस ब्राह्मण जीवन मे मुझे सौगात मिली है...* अपने चेहरे पर रूहानी मुस्कान के साथ मैं आत्मा बिना एक भी शब्द कहे सहज रूप से सभी के चेहरों पर भी मुस्कान ले आती हूँ... 

 

 _ ➳  बाबा ने हम बच्चों से कहा है कि कैसी भी परिस्थिति हो पर स्वस्थिति हमेशा एक रस हो... परिस्थिति ऊपर नीचे होने से स्वस्थिति ऊपर नीचे ना हो... मैं आत्मा बाबा का फरमानबरदार बच्चा बाबा की इस बात को मन में बिठा जीवन की हर उलझन को हँसते हँसते सुलझा रही हूँ... *कार्य व्यवहार में आते या लौकिक संबंधों को निभाते हुए कोई पेपर भी आता है तो भी मेरे चेहरे से रूहानी खुशी गायब नहीं होती... मैं आत्मा अपने चेहरे की खुशी और मुस्कान से सेवा करती हूँ... मेरी रूहानी मुस्कान देख अन्य आत्माएं भी अपने दुखों को भूल जाती हैं...*

 

 _ ➳  कितना प्यार दिया मेरे बाबा ने मुझे जो अब किसी संबंध से प्यार मिले न मिले तो भी मैं आत्मा सदा खुश हूँ... *कोई मान दे या ना दे, कोई इंसल्ट करे या अपमान करे तो भी मुझ आत्मा के चेहरे से रूहानी मुस्कान कभी गायब नहीं होती...* बाबा के प्यार में खोयी मैं आत्मा मेहनत से छूटती जा रही  हूँ... अब मुझे पुरूषार्थ में  मेहनत नहीं करनी पड़ती... मैं सहज पुरुषार्थी बनती जा रही हूँ... अपने बाबा का दिल से शुक्रिया कर रही हूँ और वापिस अपने मस्तक के मध्य आकर बैठ जाती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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