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 30 / 12 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बिंदु बन बिंदु बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *मेरे को तेरे में परिवर्तित कर यह देह भी बाप को अर्पित किया ?*

 

➢➢ *किसी भी परिस्थिति और सेवा के बंधन से मुक्त रहे ?*

 

➢➢ *कर्मयोगी बन कर्मभोग को चुक्तु किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  वैसे अशरीरी होना सहज है लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, *कोई सर्विस के झंझट सामने हों, कोई हलचल में लाने वाली परिस्थितियां हों, ऐसे समय में सोचा और अशरीरी हो जाएं, इसके लिए बहुत समय का अभ्यास चाहिए।* सोचना और करना साथ-साथ चले तब अन्तिम पेपर में पास हो सकोगें।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं महान आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को महावीर अर्थात् महान् आत्मा समझकर चलते हो? *किसके बने हैं और क्या बने हैं सिर्फ यह भी सोचो तो कभी भी व्यक्त भाव में नहीं आ सकते। व्यक्त भाव से ऊपर रहो अर्थात् फरिश्ते बन सदा ऊपर उड़ते रहो। फरिश्ते नीचे नहीं आते, धरती पर पांव नहीं रखते।* यह व्यक्त भाव भी देह की धरनी है।

 

  तो जब फरिश्ते बन गये फिर देह की धरनी में कैसे आ सकते, फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाले। तो सभी उड़ता पंछी हो, पिंजड़ेवाले तो नहीं हो ना? *आधाकल्प तो पिंजरे के थे अब उड़ते पंछी हो गये। स्वतन्त्र हो गये। नीचे की आकर्षण अभी खींच नहीं सकती। नीचे होंगे तो शिकारी शिकार कर देंगे, ऊपर उड़ते रहेंगे तो कोई कुछ नहीं कर सकता।*

 

  तो सभी उड़ता पंछी हो ना? पिंजरा खत्म हो गया? चाहे कितना भी सुन्दर पिंजरा हो लेकिन है तो बंधन ना। *यह अलौकिक सम्बन्ध भी सोने का पिंजरा है, इसमें भी नहीं फंसना। स्वतन्त्र तो स्वतन्त्र। सदा बन्धनमुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव कर सकेगे। अच्छा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चारों ओर हलचल है, प्रकृति के सभी तत्व खूब हलचल मचा रहे हैं, एक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैं, व्यक्तियों की भी हलचल है, प्रकृति की भी हलचल है, ऐसे समय पर *जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगे?*

 

✧  सेफ्टी का साधन कौन-सा है? *सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो तो हलचल में अचल रह सकते हो।*

 

✧  इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगा? अभी टायल करो - *एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो?* (बाबा ने ड्रिल कराई) इसको कहा जाता है - 'साधना'। अन्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फरिश्ते अर्थात् सदा देही-अभिमानी अपने को सदा बाप की याद की छत्रछाया के अन्दर अनुभव करते हो?* जितना-जितना याद में रहेंगे उतना अनुभव करेंगे कि मैं अकेली नहीं लेकिन बाप-दादा सदा साथ हैं। कोई भी समस्या सामने आयेगी तो अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करेंगे, इसलिए घबरायेंगे नहीं। *कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य सहज हो जायेगा।* कभी भी कोई ऐसी बात सामने आवे तो बाप-दादा की स्मृति रखते अपना बोझ बाप के ऊपर रख दो तो हल्के हो जायेंगे। क्योंकि बाप बड़ा है और आप छोटे बच्चे हो। बड़ों पर ही बोझ रखते हैं। *बोझ बाप पर रख दिया तो सदा अपने को खुश अनुभव करेंगे।* फ़रिश्ते के समान नाचते रहेंगे। दिन-रात २४ ही घंटे मन से डाँस करते रहेंगे। देह-अभिमान में आना अर्थात् मानव बनना। देही-अभिमानी बनना अर्थात् फ़रिश्ता बनना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बिंदु का महत्व"*

 

_ ➳  *परमधाम की ऊंची स्थिति में स्थित मैं आत्मा...* बाबा के समीप पहुँच जाती हूँ... सुनहरा लाल... तेजोमय प्रकाश छाया है जहाँ... *वह निज धाम हैं मेरा... बिंदुओ का घर...  बिंदुओ का बाप बिन्दुरुप में स्थित है जहाँ...* सर्वत्र शांति ही शांति हैं... निःसंकल्पता अपना साम्राज्य फैलाएं हैं...   अखुट शांति की किरणों से परमधाम सजा हुआ हैं... और *मैं आत्मा अखुट शांति के साम्राज्य की मालिक बन गई हूँ...* बिन्दुरूपी बाप की किरणों को अपने मे समाती मैं आत्मा... बाबा के संग चलती हूँ... सूक्ष्म वतन की ओर... *दो बिंदु का सफर... एक बाप... एक बच्चा...* पहुँचते हैं सूक्ष्म वतन में... *बाबा का ब्रह्मा तन में प्रवेश का अलौकिक नजारा देख कर मैं आत्मा भावविभोर हो जाती हूँ...*

 

  *बापदादा ने अपनी प्यार भरी दृष्टि से मुझ आत्मा को फरिश्ता स्वरूप में इमर्ज कर बोले:-* "बच्ची... कौनसी दुनिया मे खो गई हों ? क्या मेरे साथ हों ? साथ चलते चलते कहीं साथ छूट तो नहीं गया ? बिंदु देश से स्थूल देश मे आकर अपनी पहचान को ही भूला दिया ? मुझ को भी भूल गई ? अब विस्मृति रूपी निंद्रा को तोड़... *उगते सूरज की पहली किरणों रूपी ज्ञान को जान... मुझ एक बाप को जान... अपनी अस्तित्व को जान...* इस स्थूल जगत के मोह-माया से मुक्त्त हो जाओ..."

 

_ ➳  *बापदादा के हाथो में अपने हाथो को झुलाती... बाबा को देख मंद मंद मुस्कुरा कर मैंने कहा :-* "बाबा... पहले मैं इस मायावी जगत में खो गई थी... अब तो बस आप मे ही खो रही हूँ... संसार रूपी हद के समुंदर को पार कर... बिन्दुरूपी बेहद के महासागर में समा रही हूँ... *अपने स्वधर्म... सुख... शांति... और पवित्रता से... स्थूल जगत के मोह माया को... विकारों को... परास्त कर रही हूँ..."* बापदादा से आती हुई रंगबिरंगी किरणों के झरनों में अपने आप को सदा बहार बनाती जा रही हूँ..."

 

  *मुझ आत्मा को अपने किरणों से भरपूर करते बाबा बोले :-* "मीठे बच्चे... संसार... विषय वैतरणी नदी समान है... 63 जन्मो से इस नदी में डूब रहे हो... अब इस संगमयुग में... *सच्ची प्रीत सिर्फ मुझसे रखो... मनसा... वाचा... कर्मणा... मेरे बन जाओ...* *पवित्रता की राह पर चलो...* अपने स्वधर्म में टिक जाओ... अपने स्वरूप को पहचानो... *तुम यह शरीर नहीं... शरीर को चलाने वाली आत्मा हो... शक्तियों की महा ज्योति हो..."*

 

_ ➳  *अपने असली स्वधर्म... शक्तियो... को जान मैं आत्मा... अपने स्वरूप में आपेही स्थित हो कर अपने संस्कारो को बापदादा की अमानत समझ कर... बाबा से कह रही हूँ :-* "संभाल कर जतन कर रही हूँ मेरे बाबा... तेरी श्रीमत का... कदम... कदम पर तुझे ही पा रही हूँ मैं... तुझे ही महसूस कर रही हूँ... 63 जन्मों के विकारों से माया के जंजीरो से... खुद को मुक्त्त कर रही हूँ... *अपनी असली पहचान का स्वरूप बन रही हूँ मेरे बाबा..."*

 

  *मेरी प्यार भरी बातों से बापदादा मुस्कुरा कर बोले :-* "मेरी लाडली फूल बच्ची... मेरे रूप में समा जाओ... देह अभिमान के चोले से बाहर निकल... आत्मिक स्थिति की अधिकारी बन जाओ... *सर्वस्व समर्पण कर... बेहद के सर्वस्व की साम्राज्ञी बन जाओ... मैं आया हूँ तुम्हे ले जाने...* दुःखो से छुड़ाने... मोह- माया से ... विकारों से... मुक्त्त कर *परिस्तान की परी बनाने... अपने असली धाम... परमधाम में स्थित हो जाओ..."*

 

_ ➳  *बापदादा के हाथों में अपना हाथ रखती में फरिश्ता... उसकी शक्तियों को... अपने में समाती मैं आत्मा... बाबा से कहती हूँ :-* "बाबा... आप से मिली शिक्षाओं को... सर आँखों पर रख... नखशिख पालन कर रही हूँ... *अपने स्वधर्म में स्थित हो कर...* अपने संगमयुग को... एक बाप की श्रीमत पर चल... आप की दिलतख्तनशीन बन रही हूँ... *अंतिम जन्म में... मोहजीत... मायाजीत... जगतजीत का वरदानी तिलक... बापदादा के हाथों... लगवाया हैं... इस स्मृति को सदैव मैं आत्मा अपने मन मंदिर में जागती ज्योत बनाकर रख रही हूँ..*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी परिस्थिति के बंधन से मुक्त रह कर्मातीत स्थिति का अनुभव करना*"

 

_ ➳  एक मकड़ी के जाल को देख मन में विचार चलता है कि जैसे एक मकड़ी खुद ही जाल बुनती है और खुद ही उसमे फंस जाती है, *ऐसे ही इस सृष्टि पर हर व्यक्ति अपने ही द्वारा किये हुए कर्मो के बन्धन में ता उम्र फ़ँसा रहता है और सारा जीवन उन बन्धनों से मुक्त होने की कोशिश में लगा रहता है* किंतु कर्मो की गुह्य गति को ना जानने के कारण और ही नए - नए कर्म बन्धन बनाकर उसमे और ही फंसता चला जाता है और दुखी होता रहता है।

 

_ ➳  यही विचार करते - करते मन ही मन मैं अपने आप से सवाल करती हूँ कि जाने अनजाने कर्मो के जो बन्धन मुझ आत्मा ने बांध लिए हैं क्या योग बल से वो सभी बन्धन मैं काट रही हूँ! *उन पुराने बन्धनों के काटने के साथ - साथ मुझ से अभी भी देह भान में आकर कोई विकर्म तो नही हो रहे! कर्मो की गुह्य गति को ध्यान में रखते हुए क्या मेरा हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त होता है*! कहीं ऐसा तो नही कि पुराने बन्धन कट रहें है और नए कर्म बन्धन में मैं फँसती जा रही हूँ!

 

_ ➳  अपने आप से ये सवाल कर, इनके उतर ढूंढने का प्रयास करते हुए अब मैं अपनी महीन चेकिंग करती हूँ और अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि समय की समीपता को सदा स्मृति में रखते हुए *अब मुझे अपने पिछले सभी कर्म बन्धनों को चुकतू करने औए नए कर्म बन्धनों में फंसने से स्वयं को बचाने के लिए अपने अंदर अधिक से अधिक  योग का बल जमा करना होगा*। ज्वालामुखी योग से पुराने कर्म बन्धन काट कर, अपने अंदर योग की ज्वाला को सदा प्रज्ज्वलित रखने के लिए अब मैं अपने ओरिजनल स्वरूप में स्थित होकर, एक ही सेकेण्ड में अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  बीजरूप बाप की मास्टर बीजरूप सन्तान मैं स्वयं को पांच तत्वों की दुनिया से पार आत्माओं की निराकारी दुनिया में देख रही हूँ। अपने बिंदु बाप से मैं बिंदु आत्मा एक अद्भुत विचित्र मिलन मना रही हूँ। *उनकी ज्वाला स्वरूप किरणो के नीचे बैठ योग अग्नि में अपने विकर्मो को दग्ध करके, जन्म जन्मांतर के कर्मबन्धनों को काट रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे कर्म बन्धन की अनेक जंजीरों में मैं आत्मा जकड़ी हुई थी वो सभी जंजीरे योग अग्नि की तपिश पाकर टूटती जा रही हैं। *कर्मो के बन्धन की एक - एक जंजीर जैसे - जैसे टूट रही है मैं बोझ से मुक्त एकदम हलकी होती जा रही हूँ*। ये हल्कापन मुझे एक निराले सुख का अनुभव करवा रहा है।

 

_ ➳  63 जन्मो के विकर्मो के बन्धन का बोझ जो मुझ आत्मा के ऊपर था और मुझे दुखी और अशांत कर रहा था, *चैन से जीने नही दे रहा था वो बोझ उतरते ही मैं एक अवर्णनीय सुख और शांति का अनुभव करके स्वयं को तृप्त महसूस कर रही हूँ*। डबल लाइट होकर अब मैं आत्मा कर्म करने के लिए वापिस कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ किन्तु इस स्मृति के साथ कि अब मुझे किसी भी नए कर्म बन्धन में कभी भी नही फँसना है।

 

_ ➳  इसी दृढ़ संकल्प के साथ मैं आत्मा अपनी उसी देह में फिर से प्रवेश करती हूँ जो मुझे कर्मो के हिसाब किताब चुकतू करने के लिए मिली है, किन्तु इस संकल्प के साथ कि "मैं आत्मा हूँ और इस देह से कर्म कर रही हूँ"। *यह स्मृति अब मुझे साक्षीपन की स्थिति में सहज ही स्थित कर रही है। हर आत्मा के पार्ट को साक्षी होकर देखने से अब नए कर्म बन्धन के जाल में फंसने से बचने के साथ - साथ, परिस्थितियों के रूप में और कर्मभोग के रूप में आने वाले कर्मबन्धनों को भी नथिंग न्यू की स्मृति से योगबल से मैं सहज ही चुकतू करती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं मेरे को तेरे में परिवर्तन कर उड़ती कला का अनुभव करने वाली डबल लाइट आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं कोई भी व्यक्ति वा प्रकृति के प्रभाव से मुक्त रहने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कई बच्चे सोचते हैं सफल तो करें लेकिन विनाश हो जाए कल परसों तोहमारा तो काम में आया ही नहीं। हमारा तो सेवा में लगा नहीं। तो करेंसोच कर करें। हिसाब से करेंथोड़ा-थोड़ा करके करें। यह संकल्प बाप के पास पहुँचते हैं। लेकिन मानों आज आप बच्चों ने अपना तन सेवा में समर्पण कियामन विश्व-परिवर्तन के वायब्रेशन में निरन्तर लगायाधन जो भी हैहै तो प्राप्ति के आगे कुछ नहीं लेकिन जो भी हैआज आपने किया और कल विनाश हो जाता है तो क्या आपका सफल हुआ या व्यर्थ गयासोचोसेवा में तो लगा नहींतो क्या सफल हुआ? आपने किसके प्रति सफल किया? *बापदादा के प्रति सफल किया नातो बापदादा तो अविनाशी हैवह तो विनाश नहीं होता! अविनाशी खाते में, अविनाशी बापदादा के पास आपने आज जमा कियाएक घण्टा पहले जमा कियातो अविनाशी बाप के पास आपका खाता एक का पदमगुणा जमा हो जायेगा ना!* पुरानी सृष्टि विनाश होगी ना! इसीलिए आपका दिल से किया हुआ, *मजबूरी से किया हुआदेखा-देखी में किया हुआ, उसका पूरा नहीं मिलता है। मिलता जरूर है क्योंकि दाता को दिया है लेकिन पूरा नहीं मिलता है।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "अविनाशी बाप के पास जमा कर अपना खाता एक का पदमगुणा बढ़ाना"*

 

 _ ➳  मधुबन तपोभूमि में तपस्या धाम में बैठी मैं तपस्या मूर्त आत्मा हूँ... समस्त चेतना को भृकुटि के मध्य केन्द्रित करती हूँ... *स्थूल देह में विराजमान यह ज्योतिमय किरण, यह चमकता प्रतिबिंब, यह जगमगाता ज्योति पुंज मैं आत्मा हूँ...* संकल्प विकल्पों से परे होकर मैं आत्मा रुपी बैटरी परमात्मा शिव बाबा पावरहाउस से कनेक्शन जोड़ती हूँ... *परमात्मा पावर हाऊस से आती किरणों से मैं आत्मा चार्ज हो रही हूँ... मुझ आत्मा की लाइट बढ़ रही है... सूरज के समान मैं आत्मा चमक रही हूँ...* एक नयी उर्जा का संचार मुझ आत्मा में हो रहा है... बेहद लाइट और माइट मैं आत्मा फील कर रही हूँ... *मुझ उर्जा बिन्दु से ऊर्जा की किरणें समस्त वायुमंडल में फैल रही है... इस वायुमंडल को पावरफुल बना रही है...*

 

 _ ➳  थोड़ी देर के इस अभ्यास के बाद मैं तपस्या मूर्त आत्मा शिव पिता की याद में तपस्या धाम से रोटी डिपार्टमेंट में स्थूल सेवा के लिए चल पड़ती हूँ... तभी अचानक कहीं एक गीत बजता है... *शुभ कर्म में ना देरी करो सांसों का भरोसा नहीं... जिन्दगी को सफल अब करो सांसों का भरोसा नहीं...* ये सुनते ही जैसे मन रूपी सागर में विचार रूपी लहरें उठती है... और मैं आत्मा अपने आप से प्रश्न करने लगती हूँ... मुझ आत्मा ने अपना जमा का खाता कितना बढाया है... अगर आज या कल ही विनाश हो जाएं तो... अगर जमा कर लिया और काम में नहीं आया सेवा में नहीं लगा तो वो सफल होगा या नहीं... *तभी अचानक ऊपर आती हुई एक तेज रोशनी मुझ आत्मा पर पड़ती है...* और एक दृश्य मुझ आत्मा के सामने आता है...

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... सामने एक बिल्ड़िग है जिस पर लिखा है... *"ईश्वरीय बैंक"* और बाहर एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है... *"एक का पदमगुणा"* मैं आत्मा देख रही हूँ, कुछ आत्माएँ इस ईश्वरीय बैंक की तरफ जा रही है... मैं आत्मा ये दृश्य बड़े ध्यान से देख रही हूँ... अन्दर एक बहुत बड़ी मशीन है जिसमें से एक स्टैम्प बाहर निकल रही है जो भी जमा करने के लिए आत्माएँ आ रही है उस पर ये स्टैम्प लग रही है... *इस स्टैम्प पर लिखा है "अविनाशी खाता"* और उसी मशीन पर एक स्क्रीन लगी है जो भी आत्मा कुछ भी जमा कर रही है ऊपर लिखा आ रहा है *"एक का पदमगुणा जमा"*

 

 _ ➳  लेकिन तभी मैं आत्मा देख रही हूँ... कुछ आत्माएँ ईश्वरीय बैंक में गई आत्माओं को देख, उनसे सुन देखा-देखी में मजबूरी में कुछ जमा करने के लिए अन्दर जाती है... लेकिन *जैसे वो आत्माएँ जमा करती है मशीन से वैसे ही स्टैम्प निकलती है उस जमा खाते पर वो अविनाशी सटैम्प लगती है... लेकिन मशीन की स्क्रीन पर अब एक का पदमगुणा लिखा नहीं आता...* तभी अचानक सारा दृश्य गायब हो जाता है *बाबा से ज्ञान प्रकाश मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... जिससे बाबा द्वारा दिखाए इस दृश्य का राज मुझ आत्मा के सामने स्पष्ट हो जाता है...* मन में चली संकल्पों की सब लहरें शांत हो गई है... और अब मैं आत्मा समझ गयी हूँ *दिल से जमा किया हुआ ईश्वरीय बैंक में एक का पदमगुणा जमा हो जाता है...*

 

 _ ➳  कभी व्यर्थ नहीं जाता कोई भी आत्मा चाहे देखा-देखी में जमा करे लेकिन अविनाशी बाप से उसका भी रिटर्न मिलता हैं... भले पूरा ना मिले मिलता जरूर है... *अविनाशी बापदादा के पास एक का पदमगुणा जमा हो जाता है...*  और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को कर्म करते हुए... पुरानी सृष्टि के विनाश से पहले टू लेट से पहले *सच्ची दिल से मैं आत्मा तन को ईश्वरीय सेवा में लगा तन को सफल कर रही हूँ... और बाबा को दिया हुआ धन और मन द्वारा सदा विश्व कल्याण के वायब्रेशनस फैला रही हूँ... मनसा सेवा कर रही हूँ... दिल से धन को ईश्वरीय कार्य में लगा रही हूँ... इस प्रकार मैं आत्मा सच्ची दिल से, अविनाशी बाप के पास हर रीति से तन, मन, धन सफल का एक का पदमगुणा जमा कर रही हूँ...* और निरंतर सच्ची खुशी का अनुभव कर रही हूँ... *इस जीवन को हर प्रकार से सफल कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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