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❍ 23 / 12 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं से, बाप से व ब्राह्मण परिवार से संतुष्टता का सर्टिफिकेट प्राप्त किया ?*
➢➢ *प्रशनचित न रह प्रसन्नचित बनकर रहे ?*
➢➢ *सदा दूसरों की विशेषता देखने का चश्मा पहने रखा ?*
➢➢ *निर्मानता द्वारा सेवा में सहज ही सफलता प्राप्त की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *आत्मा बोल रही है। आत्मा के यह संस्कार हैं.... यह पहला पाठ पक्का करो।* आत्मा शब्द स्मृति में आते ही रुहानियत - शुभ भावना आ जायेगी। *दृष्टि पवित्र हो जायेगी। सर्व के स्नेही, सहयोगी बन जायेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप समान सर्व गुण सम्पन्न आत्मा हूँ"*
〰✧ जैसे बाप के गुणों का वर्णन करते हो वैसे स्वयं में भी वे सर्व गुण अनुभव करते हो? *जैसे बाप ज्ञान का सागर, सुख का सागर है वैसे ही स्वयं को भी ज्ञान स्वरूप सुख स्वरूप अनुभव करते हो? हर गुण का अनुभव - सिर्फ वर्णन नहीं लेकिन अनुभव।*
〰✧ जब सुख स्वरूप बन जायेंगे तो सुख स्वरूप आत्मा द्वारा सुख की किरणें विश्व में फैलेंगी क्योंकि मास्टर ज्ञान सूर्य हो। *तो जैसे सूर्य की किरणें सारे विश्व में जाती हैं वैसे आप ज्ञान सूर्य के बच्चों का ज्ञान, सुख, आनन्द की किरणें सर्व आत्माओ तक पहुँचेंगी।*
〰✧ जितने ऊँचे स्थान और स्थिति पर होंगे उतना चारों और स्वत: फैलती रहेंगी। तो ऐसे अनुभवी मूर्त हो? *सुनना सुनाना तो बहुत हो गया अभी अनुभव को बढ़ाओ। बोलना अर्थात् स्वरूप बनाना, सुनना अर्थात स्वरूप बनना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ तो बापदादा देख रहे थे कि हिसाब के अनुसार यह सेकण्ड स्टेज है जीवनमुक्त, लास्ट स्टेज तो है - देह से न्यारे विदेही-पन की। *उस स्टेज और जो स्टेज सुनाई उसके लिए और बहुत-बहुत-बहुत अटेन्शन चाहिए।*
〰✧ सभी बच्चे पूछते हैं 99 आयेगा क्या होगा? क्या करें? क्या करें, क्या नहीं करें? बापदादा कहते हैं 99 के चक्कर को छोडो। *अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए।* जो भी परिस्थितियाँ आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए।
〰✧ इसलिए और सभी बातों को छोड यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा। क्या होगा, इस क्वेचन को छोड दो। *विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *चलते-फिरते सदैव अपने को निराकारी आत्मा या कर्म करते अव्यक्त फ़रिश्ता समझो। तो सदा ऊपर रहेंगे, उड़ते रहेंगे खुशी में। फ़रिश्ते सदैव उड़ते हुए दिखाते हैं। फ़रिश्ते का चित्र भी पहाड़ी के ऊपर दिखायेंगे।* फ़रिश्ता अर्थात् ऊँची स्टेज पर रहने वाला। *कुछ भी इस देह की दुनिया में होता रहे, लेकिन फ़रिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखता रहे और सकाश देता रहे।* सकाश भी देना है क्योंकि कल्याण के प्रति निमित है। *साक्षी हो देखते सकाश अर्थात् सहयोग देना है। सीट से उतर कर सकाश नहीं दी जाती। सकाश देना ही निभाना है। निभाना अर्थात् कल्याण की सकाश देना, लेकिन ऊँची स्टेज पर स्थित होकर देना इसका अटेन्शन हो। निभाना अर्थात् मिक्स नहीं हो जाना, लेकिन निभाना अर्थात् वृत्ति, दृष्टि से सहयोग की सकाश देना।* फिर सदा किसी भी प्रकार के वातावरण के सेक में नहीं आयेगा। अगर सेक आता तो समझना चाहिए साक्षीपन की स्टेज पर नहीं है। *कार्य के साथी नहीं बनना है, बाप के साथी बनना है। जहाँ साक्षी बनना चाहिए वहाँ साथी बन जाते तो सेक लगता। ऐसे निभाना सीखेंगे तो दुनिया के आगे लाइट-हाउस बन के प्रख्यात होंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूहानियत की सहज विधि - संतुष्टता”*
➳ _ ➳ *हृदय में बाबा की मीठी यादें संजोए हुए... मैं आत्मा मधुबन के प्रांगण में हूँ... दिल में एक दिलाराम बाबा की याद है... नैनों में दिला राम की मूरत समाई हुई है...* मधुबन के प्रांगण में बिल्कुल शांति है... कम्पलीट सायलेंस है... मैं आत्मा सहज ही हिस्ट्री होल की ओर बढ़ती जा रही हूँ... यहां आते ही मैं देखती हूँ... *मेरे मीठे बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में विराजमान है... पूरा हॉल बाबा की शक्तिशाली किरणों से चार्ज हो गया है...* मुझे देखते ही सतगुरु बाबा कहते हैं... आओ मेरे लाडले बच्चे... मैं आत्मा बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से मुझ आत्मा पर... अनवरत रूप से शक्तियां बरसती जा रही हैं...
❉ *अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से मेरे जीवन को संवारते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:-* "मीठे फरमानबरदार बच्चे... अब संपूर्ण स्थिति को प्राप्त करना ही है... संपन्न बने बिना आत्मा कर्मातीत बनकर बाप के साथ नहीं जा सकेगी... *तुम्हें शिव की बारात में पीछे पीछे नहीं आना... शिव के साथ साथ चलना है तो अब अपनी संपन्न स्थिति का आह्वान करो... बाप समान बनने वाले बच्चे ही बाप के साथ जाएंगे..."*
➳ _ ➳ *बाबा की शिक्षाओं को जीवन में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे सतगुरु बाबा... मैं आत्मा हर कदम में फॉलो फादर कर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा ने संपूर्ण बनने का जो पुरुषार्थ किया... मैं आत्मा भी बाबा के नक्शे कदम पर चल रही हूँ... *ब्रह्मा बाबा को फॉलो करते करते... मैं बाप समान संपन्न और संपूर्ण बनने की यात्रा पर... तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही हूँ..."*
❉ *योग ज्वाला में मुझ आत्मा की अलाय को जला सच्चा सोना बनाने वाले पारसनाथ बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... क्या अपने पुरुषार्थ की गति से संतुष्ट हो... क्या संबंध संपर्क में आने वाली आत्माओं से... संतुष्टता का सर्टिफिकेट मिल गया है... जो भी सेवा करते हो क्या उस से आप संतुष्ट हो... *यथार्थ विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है... संपन्न बनने वाली आत्मा स्वयं से संतुष्ट होगी... और सर्व आत्माएं भी उससे संतुष्ट होंगी... ऐसी अपनी सूक्ष्म में चेकिंग करो..."*
➳ _ ➳ *पारसनाथ बाबा द्वारा दी गई एक एक कसौटी पर स्वयं को कसकर खरा सोना बनती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... आप करावनहार हो... हम बच्चे तो निमित्त मात्र कर्म कर रहे हैं... *यज्ञ सेवाओं से मैं आत्मा असीम खुशी... अतींद्रिय सुख को प्राप्त करती हुई... सर्व आत्माओं को आप का संदेश दे रही हूँ... ज्ञानगंगा बनकर आप का ज्ञान सबको सुनाती हुई... मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ... व हर्षित स्थिति का अनुभव कर रही हूँ..."*
❉ *अपने हाथ में मेरा हाथ थामे मुझे सतयुगी दुनिया की सैर कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे बच्चे... *राजधानी में ब्रह्मा बाप के साथ साथ आप बच्चों को आना है... बात तो न्यारा और प्यारा ही होगा...* अपने राज्य की वैराइटी प्रकार की आत्माओं को... राज्य अधिकारी, रॉयल फैमिली की अधिकारी, रॉयल प्रजा की अधिकारी, साधारण प्रजा की अधिकारी... *क्या सर्व प्रकार की... वैराइटी आत्माओं को तैयार कर लिया है... ऐसा करने के लिए संपूर्ण पवित्र व निरंतर योगी बनो..."*
➳ _ ➳ *सतयुग में कृष्ण के साथ रास रचाती, झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा निरंतर आपकी यादों में समाए हुए हूँ... निरंतर योगयुक्त स्थिति में हूँ... करावनहार बाप की स्मृति में... ट्रस्टी बनकर सेवा किए जा रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ... *निमित्त बन कर की गई सेवा से सब आत्माएं संतुष्ट हैं... और मैं आत्मा स्वयं भी हलकी व खुश हूँ... निरंतर उड़ती कला में जाते हुए... मैं संपन्न और संपूर्ण मूर्त बनती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निर्मानता द्वारा सेवा में सहज सफलता प्राप्त करने का अनुभव*"
➳ _ ➳ स्वयं का त्याग कर जो दूसरों की सेवा में हर्षित रहते हैं वही सर्व की दुआयों के और परमात्म दुआओ के अधिकारी बनते हैं। इस बात को स्मृति में लाकर मैं मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस अनमोल संगमयुगी ब्राह्मण जीवन, जो मेरे शिव पिता की देन है, को अब मुझे परमात्म श्रीमत पर चलकर, ईश्वरीय सेवा में सफल करना है। *बाप समान निरहंकारी बन सर्व आत्माओं की सेवा ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है। इसलिये अपना सम्पूर्ण ब्राह्मण जीवन अब मुझे इसी लक्ष्य पर चल कर, परमात्मा बाप के दिल रूपी तख्त पर सदा विराजमान रहते, संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द लेते हुए बिताना है*।
➳ _ ➳ यही श्रेष्ठ संकल्प करते मन में मीठे प्यारे बाबा की मीठी सी याद सहज ही आने लगती है और साथ ही उनके सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य स्वत: ही स्मृति में आने लगते हैं, कि कैसे बाबा आ कर निरहंकारी बन हम बच्चों की सेवा करते हैं। *सब कुछ करते स्वयं गुप्त रह कर बच्चों को आगे करते हैं। कल्प कल्प के लिए बच्चों का भाग्य श्रेष्ठ बना देते हैं। बच्चो के लिए नई दुनिया स्थापन करते हैं लेकिन स्वयं उस दुनिया मे नही आते। अपने प्यारे बाबा के इन अनगिनत उपकारों की स्मृति मन में उनसे मिलने की तड़प पैदा कर देती है*। मन में अपने प्यारे बाबा से मिलने की लग्न लिए अब मैं हर प्रकार के चिन्तन से मन बुद्धि को हटाकर, अपने पिता से मिलने की रूहानी यात्रा पर चलने के लिए केवल अपने स्वरूप पर मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।
➳ _ ➳ मनबुद्धि की एकाग्रता अब मुझ आत्मा को उस दिव्य अलौकिक रूहानी यात्रा पर ले कर चल पड़ती है जो यात्रा मुझे मेरे शिव पिता से मिलाने वाली है। *मन बुद्धि की इस रूहानी यात्रा पर चलते हुए मैं आत्मा अब देह का आधार छोड़ कर इससे बाहर आ जाती हूँ और उमंग उत्साह के पंख लगा कर ऊपर की और उड़ चलती हूँ*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से इस साकार दुनिया के वन्डरफुल नजारों को देखते हुए अपने पिता परमात्मा से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा वाणी से परे की इस आंतरिक यात्रा पर निरंतर बढ़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ साकार लोक को पार कर, सूक्षम लोक से भी परें अब मैं पहुंच गई निर्वाणधाम अपने शिव पिता परमात्मा के पास। *देह और देह की दुनिया के संकल्प मात्र से भी मुक्त इस निर्वाणधाम घर में मैं चारों और फैले दिव्य लाल प्रकाश और चमकती हुई जगमग करती अति सुंदर मणियों को देख रही हूँ*। शन्ति का शक्तिशाली वायुमण्डल मुझे अपने चारों ओर अनुभव हो रहा है। शांति की गहन अनुभूति करते हुए इस विशाल परमधाम घर में विचरण करते - करते अब मैं शांति के सागर अपने शिव पिता के पास जा रही हूँ। *बाबा से आ रहे शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं*। इनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं आत्मा अब अपने शिव पिता के पास जा कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ इस कम्बाइंड बीज स्वरूप में मुझे ऐसा लग रहा है जैसे सर्व शक्तियों के फवारे के नीचे मैं आत्मा बैठी हूँ और बाबा से आ रही अनन्त सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। *असीम परम आनन्द की मैं आत्मा अनुभूति कर रही हूँ। एक अलौकिक दिव्यता से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ। प्यार के सागर मेरे शिव पिता अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं*। अपने प्रेम की शीतल किरणों को मुझ पर बरसाते हुए बाबा मुझे आप समान मास्टर प्यार का सागर बना रहें हैं। ताकि बाप समान मास्टर दाता बन विश्व की सर्व आत्माओं को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर मैं उनके जीवन को सुखमय बना सकूँ।
➳ _ ➳ मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो, गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करके स्वयं को अथाह परमात्म स्नेह से भरपूर करके मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर सच्ची रूहानी सेवा में लग जाती हूँ। *त्याग और तपस्या भगवान के दिल रूपी तख्त पर विराजमान रहने का मुख्य साधन है इस बात को स्मृति में रखते हुए बाप समान निरहंकारी बन स्वयं का त्याग कर दूसरों की सेवा में अब मैं सदा हर्षित रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं व्यर्थ संकल्पों को समर्थ में परिवर्तित कर सहजयोगी बनने वाली समर्थ आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं शुभ भावनाओं की शक्ति से दूसरों की व्यर्थ भावनाओं को भी परिवर्तन करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा सदा ही बच्चों को सम्पन्न स्वरूप में देखने चाहते हैं*। जब कहते ही हो, बाप ही मेरा संसार है। यह तो सब कहते हो ना! दूसरा भी कोई संसार है क्या? बाप ही संसार है, तो संसार के बाहर और क्या है? *सिर्फ संस्कार परिवर्तन करने की बात है। ब्राह्मणों के जीवन में मैजारिटी विघ्न रूप बनता है - संस्कार। चाहे अपना संस्कार, चाहे दूसरों का संस्कार। ज्ञान सभी में है, शक्तियां भी सभी के पास हैं। लेकिन कारण क्या होता है? जो शक्ति, जिस समय कार्य में लानी चाहिए, उस समय इमर्ज होने के बजाए थोड़ा पीछे इमर्ज होती हैं*। पीछे सोचते हैं कि यह न कहकर यह कहती तो बहुत अच्छा। यह करने के बजाए यह करती तो बहुत अच्छा। लेकिन जो समय पास होने का था वह तो निकल जाता है, वैसे सभी अपने में शक्तियों को सोचते भी रहते हो, सहनशक्ति यह है, निर्णय शक्ति यह है, ऐसे यूज करना चाहिए। सिर्फ थोड़े समय का अन्तर पड़ जाता है।
➳ _ ➳ *और दूसरी बात क्या होती है? चलो एक बार समय पर शक्ति कार्य में नहीं आई और बाद में महसूस भी किया कि यह न करके यह करना चाहिए था*। समझ में आ जाता है पीछे। लेकिन उस गलती को एक बार अनुभव करने के बाद आगे के लिए अनुभवी बन उसको अच्छी तरह से रियलाइज कर लें जो दुबारा नहीं हो। फिर भी प्रोग्रेस हो सकती है। *उस समय समझ में आता है - यह रांग है, यह राइट है। लेकिन वही गलती दुबारा नहीं हो, उसके लिए अपने आपसे अच्छी तरह से रियलाइजेशन करना, उसमें भी इतना फुल परसेन्ट पास नहीं होते*। और माया बड़ी चतुर है, वही बात मानो आपमें सहनशक्ति कम है, तो ऐसी ही बात जिसमें आपको सहनशक्ति यूज करना है, एक बार आपने रियलाइज कर लिया, लेकिन माया क्या करती है कि दूसरी बारी थोड़ा-सा रूप बदली करके आती है। होती वही बात है लेकिन जैसे आजकल के जमाने में चीज वही पुरानी होती है लेकिन पालिश ऐसी कर देते हैं जो नई से भी नई दिखाई दे। तो माया भी ऐसे पालिश करके आती है जो बात का रहस्य वही होता है *मानों आपमें ईर्ष्या आ गई। ईर्ष्या भी भिन्न-भिन्न रूप की है, एक रूप की नहीं है। तो बीज ईर्ष्या का ही होगा लेकिन और रूप में आयेगी। उसी रूप में नहीं आती है। तो कई बार सोचते हैं कि यह बात पहलेवाली तो वह थी ना, यह तो बात ही दूसरी हुई ना। लेकिन बीज वही होता है सिर्फ रूप परिवर्तित होता है।उसके लिए कौन-सी शक्ति चाहिए? - 'परखने की शक्ति'*।
➳ _ ➳ *इसके लिए बापदादा ने पहले भी कहा है कि दो बातों का अटेन्शन रखो। एक - सच्ची दिल। सच्चाई। अन्दर नहीं रखो*। अन्दर रखने से गैस का गुब्बारा भर जाता है और आखिर क्या होगा? फटेगा ना! तो सच्ची दिल - चलो आत्माओं के आगे थोड़ा संकोच होता है,थोड़ा शर्म-सा आता है - पता नहीं मुझे किस दृष्टि से देखेंगे। लेकिन सच्ची दिल से, महसूसता से बापदादा के आगे रखो *ऐसे नहीं मैंने बापदादा को कह दिया, यह गलती हो गई। जैसे आर्डर चलाते हैं - हाँ, मेरे से यह गलती हो गई, ऐसे नहीं।महसूसता की शक्ति से, सच्ची दिल से, सिर्फ दिमाग से नहीं लेकिन दिल से अगर बापदादा के आगे महसूस करते हैं तो दिल खाली हो जायेगी, किचड़ा खत्म। बातें बड़ी नहीं होती है, छोटी ही होती है लेकिन अगर आपकी दिल में छोटी-छोटी बातें भी इकट्ठी होती रहती हैं तो उनसे दिल भर जाती है। खाली तो नहीं रहती है ना! तो दिल खाली नहीं तो दिलाराम कहाँ बैठेगा*! बैठने की जगह तो हो ना! तो सच्ची दिल पर साहेब राजी। जो हूँ, जैसी हूँ, जो हूँ, जैसा हूँ, बाबा आपका हूँ।
✺ *ड्रिल :- "सच्ची दिल में दिलाराम को बिठाकर, समय पर शक्तियों को इमर्ज कर माया पर विजय प्राप्त करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ देह रूपी पिंजरें में कैद *मैं आत्म पंछी उड चला हूँ मन बुद्धि के पंख पसारे... एक बल एक भरोसा का तिनका अपनी नन्हीं सी चोच में सम्भालें*... गगन चुंबी इमारतों को, ऊँचे शैल शिखरों को पार करता हुआ... *बादलों के साथ खेलता, चाँद तारों को पीछे ढकेलता मैं पहुँच गया हूँ सूक्ष्म वतन में*... श्वेत प्रकाश का एक ऐसा लोक जो कुछ कुछ ग्लेशियर की अनुभूति करा रहा है... सब कुछ श्वेत... *झरने, शिखर, नदिया और उन में तैरती कश्तियाँ*... और कश्तियों पर सवार वों फरिश्ते... गरिमामयी सी चाल... मुस्कुराहटों में बरसता जीवन... आँखों में तैरता अपनत्व...
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता जाकर बैठ गया हूँ एक बहते झरने के नीचे*... शिव प्यार का झरना... मेरे रोम रोम में समाती जा रही है इसकी एक -एक बूँद... शीतलता पावनता और शक्तिस्वरूप बनकर... *मन के कोने कोने से हर कीचडे को बहाकर ले जा रही है इसकी हर धारा... पूरी महसूसता के साथ अपनी हर कमी कमजोरी को बाबा के सम्मुख रखता हुआ मैं... और अब दिल दर्पण चमक उठा है किसी चमचमाते हीरे की तरह*... हर बोझ हर भार शिव स्नेह की धाराओं में बह चला है... *सच्ची दिल में आकर चुपके से विराजमान हो गये है शिव सूर्य*... और प्रकाश से दमक उठा है मेरा रोम रोम... मेरे अभिषेक को उतावली सी अष्ट शक्तियाँ... जो मेरी सहचरी बनकर मुझमें समाती जा रही है...
➳ _ ➳ *अब मैं फरिश्ता सैकडों फरिश्तों के साथ उड चला विश्व सेवा पर*... अष्ट शक्तियों के सुरक्षा घेरें में... पाँचों तत्वों को सकाश देता हुआ... पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु... सन्तुष्ट नजर आ रहे है परम शान्ति की किरणें पाकर... और अब मैं उतर रहा हूँ सागर के किनारें... *सागर की लहरों पर डोलती खाली कश्तियाँ*... और मैं फरिश्ता सवार हो गया हूँ एक छोटी सी कश्ती पर... सभी दूसरी कश्तियों में भी मेरे हमसफ़र फरिश्ते... लहरों पर जगमगातें असंख्य दीपकों की भाँति...
➳ _ ➳ *आकाश में घिरते बादलों के साथ छाता घना अंधकार*... लहरों में सुनामी की आहट... मझधार में फँसी कश्ती... आँखों से ओझल होतें फरिश्ते... और *इन सब मायावी तूफानों से घिरा मैं आह्वान कर रहा हूँ अष्ट शक्तियों का... भय के सब संकल्प सिमटते जा रहे है*... और *सामना कर रहा हूँ मैं उन लहरों का*... कश्ती को छोडकर मैं लहरों पर ही सवार हो गया हूँ... *दिल में बैठे दिलाराम को दिल की बात बता मैं बेफिक्र होता जा रहा हूँ... ये सुनामी लहरें, शिव स्नेहीं लहरों में रूपान्तरित हो रही है... और अंधेरें को चीरता मैं निर्णय शक्ति के आह्वान पर खुद को छोड देता हूँ लहरों के अनुकूल दिशा में*...
➳ _ ➳ *दूर से आता लाईट हाऊस का प्रकाश... और उसी दिशा में मुझे लेकर जाती हुई लहरे*... आकाश में बादलों के पीछे से झाँकता चाँद... *चाँदनी की गागर भर कर उडेल रहा है मेरी ओर*... मेरे अनूकूल होता वातावरण मुझे अपनी जीत का एहसास करा रहा है... रात का अंधकार समाप्त हो गया है... शिव सूर्य बाहें फैलाए खडे है मेरे सामने... मैं फरिश्ता समाँ गया हूँ उनकी गोद में... अपने वजूद को समेटता सागर चरणों में झुक कर अभिनन्दन कर रहा है बापदादा का... और *मैं मुस्कुरा रहा हूँ उनकी गोद में... सम्पन्न स्वरूप में*... दुगुने उत्साह से शक्तियों को एक एक संस्कार के परिवर्तन का दायित्व देता हुआ मैं लौट आया हूँ अपनी देह में... *माया के तूफानों पर जीत का गहरा अनुभव लिए*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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