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 29 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *निरंतर ख़ुशी और उत्साह का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *ज्ञान अमृत का नशा चड़ा लवलीन अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"अप्राप्त कोई वस्तु नहीं, हम ब्राह्मणों के खजाने में" - यह अनुभव किया ?*

 

➢➢ *मन की, बेहद की मौज मनाई ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *फ़रिश्ता स्थिति डबल लाइट स्थिति है, इस स्थिति में कोई भी कार्य का बोझ नहीं रहता, इसके लिए कर्म करते बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप यह मन की एक्सरसाइज करो।* जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा, सदा डबल लाइट रहे, सेवा का भी बोझ नहीं रहा, ऐसे फालो फादर करो तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं तख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  अपने को तख्त-नशीन श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करते हो? आत्मा सदा किस तख्त पर विराजमान है, जानते हो? इसको कौनसा तख्त कहते हैं? अकाल है ना। *आत्मा अकाल है, इसलिए उसके तख्त का नाम भी अकालतख्त है। आत्मा शरीर में सदा भृकुटि के बीच अकालतख्त-नशीन है। तो तख्त नशीन जो होता है उसे राजा कहा जाता है। तख्त पर तो राजा ही बैठेगा ना। तो आप आत्मा भी अकालतख्त-नशीन राजा हो।* अकालतख्त-नशीन आत्माएं बाप के दिल का तख्त और विश्व के राज्य का तख्त भी प्राप्त करती हैं। तो तीनों ही तख्त कायम हैं? तख्त पर बैठना आता है? या घड़ी-घड़ी नीचे आ जाते हो?

 

  *जो पहले अकालतख्त-नशीन हो सकते हैं वही बाप के दिलतख्त-नशीन हो सकते हैं और जो दिलतख्त-नशीन हैं वही विश्व के राज्य के तख्त-नशीन हो सकते हैं। तो पहला आधार है-अकालतख्त। स्वराज्य है तो विश्व-राज्य है। जिसको स्वराज्य करना नहीं आता वह विश्व का राज्य नहीं कर सकता। तो स्वराज्य का तख्त है यह भृकुटि-अकालतख्त। बाप और बच्चे के सम्बन्ध का तख्त है बाप के दिल का तख्त। इन दो तख्त के आधार पर विश्व के राज्य का तख्त।* तो पहले फाउन्डेशन क्या हुआ? अकालतख्त। अकालतख्त-नशीन आत्मा सदा नशे में रहती है। तख्त का नशा तो होगा ना। लेकिन यह रूहानी नशा है। अल्पकाल का नशा नहीं, नुकसान वाला नशा नहीं। यह रूहानी नशा हद के नशों समाप्त कर देता है। हद के नशे तो अनेक प्रकार के हैं और रूहानी नशा एक है। मैं बाप का, बाप मेरा-यह रूहानी नशा है। बाप का बन गया-यह रूहानी नशा है। तो यह रूहानी नशा सदा रहता है? या उतरता-चढ़ता है-कभी ज्यादा चढ़ता, कभी कम चढ़ता?

 

  अगर कोई राजा हो, तख्त भी हो लेकिन तख्त का, राजाई का नशा नहीं हो तो वह राजा बिना नशे के राज्य चला सकेगा? अगर आत्मा रूहानी नशे में नहीं तो स्वराज्य कैसे कर सकेंगे? राज्य में हलचल होगी। *देखो, प्रजा का प्रजा पर राज्य है तो हलचल है ना। अगर आत्मा स्वराज्य के नशे में नहीं, तो प्रजा का प्रजा पर राज्य हो जाता है-यह कर्मेन्द्रियां ही राज्य करती हैं। तो प्रजा का राज्य हुआ ना। उसका नतीजा होगा-हलचल। तो सदा तख्त-नशीन आत्मा का रूहानी नशा रखो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आग में पडा हुआ बीज कभी फल नहीं देता। तो *इस हिसाब-किताब के विस्तार रूपी वृक्ष को लगन की अग्नि में समाप्त करो।* फिर क्या रह जायेगा? देह और देह के सम्बन्ध वा पदार्थ का विस्तार खत्म हो गया तो *बाकी रह जयेगा बिन्दु आत्मा वा बीज आत्मा'* जब ऐसे बिन्दु, बीज स्वरूप बन जाओ तब आवाज से परे बीजरूप बाप के साथ चल सको।

 

✧  इसलिए पूछा कि आवाज से परे जाने के लिए तैयार हो? विस्तार को समाप्त कर दिया है? बीजरूप बाप, बीज स्वरूप आत्माओं को ही ले जायेंगे। बीज स्वरूप बन गये हो? *जो एवररेडी होगा उसको अभी से अलौकिक अनुभूतियाँ होती रहेगी।* क्या होगी?

 

✧  चलते, फिरते, बैठते, बातचीत करते पहली अनुभूति - यह शरीर जो हिसाब-किताब के वृक्ष का मूल तना है जिससे यह शाखायें प्रकट होती हैं, *यह देह और आत्मा रूपी बीज, दोनों ही बिल्कुल अलग हैं।* ऐसे आत्मा न्यारे-पन का चलते-फिरते बारबार अनुभव करेंगे। नॉलेज के हिसाब से नहीं कि आत्मा और शरीर अलग है। लेकिन शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ। यह अलग वस्तु की अनुभूति हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ शुभ चिंतन का आधार हैं शुभ चिंतक बनने का। पहला कदम है स्व-चिंतन। *स्वःचिन्तन अर्थात् जो बापदादा ने 'मैं कौन' की पहेली बताई है उसको सदा स्मृति-स्वरूप में रखना।* जैसे बाप और दादा जो है, जैसा है - वैसा उसको जानना ही यथार्थ जानना है और दोनों को जानना ही जानना है। ऐसे स्व को भी - जो हूँ जैसा हूँ अर्थात् *जो आदि-अनादि श्रेष्ठ स्वरूप हूँ, उस रूप से अपने आपको जानना और उसी स्वचिन्तन में रहना इसको कहा जाता है - 'स्व-चिन्तन'।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगमयुग के दिन बड़े ते बड़े मौज मनाने के दिन"*

 

➳ _ ➳  *मिट्टी के खिलौने से खेले अब गुज़र गया इक जमाना, ज्ञान रत्नों से खेलना जब से उसने सिखाया है, नाज़ होने लगा है खुद पर अब तो, फरिश्ता और देवता रूप का दीदार कुछ यूँ कराया है*... ये ईश्वरीय जन्म, ये ईश्वर की गोद और हर सम्बन्ध में मेरे अंग संग रहता है अब वो... रूहानी मौजों का युग है ये संगम... अनुभवो में डूबी हर रूह का  अनुभव यही कहता है अब... *इसी ईश्वरीय बचपन की सलोनी सी पालना देते बापदादा बैठे है मेरे सम्मुख... और अनुभव करा रहे है संगमयुग की मौजों का*...

 

❉  *श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ स्वमानों की माला मेरे गले में पहनाते हुए बापदादा बोले:-* "ईश्वरीय पालना में पलने वाली मीठी बच्ची... *संगम युग के ये दिन बडे ते बडे मौज मनाने के दिन है... क्या इन दिनों का, ईश्वरीय जन्म और ईश्वरीय पालना का नशा रहता है आपको... सारें कल्प में ये सबसे भाग्यशाली समय है... एक एक संकल्प बेशकीमती हो गया है आपका*... आप प्रभु प्यार और दिल तख्त की अधिकारी हो गई हो... हद की दुनिया से निकल कर अब बेहद में भी प्यारी हो गई हो"...

 

➳ _ ➳  *ईश्वरीय स्वमानों का स्वरूप बनती, संगमयुगी मौजो में पलती मैं आत्मा, बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... आपके स्नेह ने बेहद का प्यारा बनाया है... कभी माँ की तरह उंगली पकड कर चलना सिखाया... तो सदगुरू बन मुक्ति की राह दिखाई है... हर संबंध सुखदायी हुआ है...  हर तरफ अब तो मौजो की शहनाई है... *सर्व सम्बन्धों का ये अविनाशी सुख सतयुगी सुखों से भी बढकर है... ये प्रभु मिलन के ये चन्द लम्हें और इन बडे ते बडे दिनो की सौगातें अनमोल है*"...

 

❉  *अनमोल खजानों से भरपूर कर मेरे हर दिन को बडा बनाने वाले बाप दादा मुझ आत्मा से बोलें:-* "मीठी बच्ची... कल्पवृक्ष के थुर में चमकती आप मणि पूरे कल्पवृक्ष को जगमगा रही हो, संगम युग की इस अमृत वेला में संकल्पों की सिद्धि का वरदान पाया है आपने... *कलयुगी घोर अंधेरी रात में नींद में सोई आत्माओं को इस संगम के अमृत वेले में लेकर आओं, बहुत सो चुकी है माया की नींद अब, इसी संकल्प  शक्ति से उनको भी जगाओं*"...

 

➳ _ ➳  *मौजों के संसार सदा रूहानी मौजों में रहने वाली मैं सन्तुष्ट मणि आत्मा बोली:-* "मेरे मीठे बाबा... *ये क्रिसमस का उत्सव ये कल्पवृक्ष का थुर, ये जगमगाते चैतन्य सितारों की झिलमिल... आपके आने से ही तो कायम है*... ये बडे दिन की सौगाते... और ये मौजो भरी बहारें... जिनमे अब हम दिन रात झूल रहे है... क्या होता है रंजो गम अब तो नामोनिशान तक भूल रहे है... *प्रभु मिलन के ये दिन कल्प में एक बार ही मिलें है... पाकर प्यार आपका... हम तो खिलें-खिलें है*..."

 

❉  *सेवा के निमित्त बना मेरा भाग्य बनाने वाले रहम दिल बापदादा मुझ आत्मा से बोलें:-* "मेरी श्रेष्ठ रूहानी बच्ची...  आपकी खुशियों के पैमाने अब भर कर लबालब हो गये है...  *बूँद बूँद सुख को तरसती आत्माओं के प्रति रहमभाव से कितना भरी हो, खुलकर बरसो इस सूखे रेगिस्तान पर... आप तो सुखो से भरपूर हो, रिमझिम बरसती सी बदरी हो*... जो पाया है उसको अब बढाते जाओं... रहम के फरिश्तें बन... अब औरों को भी देते जाओं"...  

 

➳ _ ➳  *शुभभावनाओं से भरपूर स्नेह की मीठी बरसात करती मैं आत्मा बापदादा से बोली:-* "बडे ते बडे दिन की सौगातो से मेरा दामन भरने वाले मीठे बाबा... आपकी प्रेरणा और आपका मार्गदर्शन पाकर मैं निमित्त आत्मा इस देह और दुनिया में रहने का उद्देश्य पा रही  हूँ... अकेली नही हूँ इन राहों पर मैं, अपने संग देवकुल की आत्माओं का विशाल काफिला ला रही हूँ... *ये कल्पवृक्ष का थुर, और संगम का ये बडे ते बडा दिन... अब हर आत्मा को लुभा रहा है... और मै देख रही हूँ बापदादा की नजरों से बरसते स्नेह के सागर को... जो मुझ आत्मा को  बाप समान फरिश्ता बना रहा है*"...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मन की, बेहद की मौज मनाना*"

 

 _ ➳  अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के बारे में विचार करते ही, मन संगमयुग की मौजों के आनन्द की मीठी यादों में खो जाता है। *स्वयं भगवान के साथ मौज मनाने के सुन्दर पलों की मधुर स्मृतियाँ यादगार बन कर विभिन दृश्यों के रूप में बार - बार आंखों के सामने चित्रित होने लगती है*।  मन्त्रमुग्ध होकर इन सभी दृश्यों का मैं आनन्द ले रही हूँ। कहीं परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन में भगवान के साथ साकार मिलन मनाने का खूबसूरत दृश्य, तो कही वतन में अव्यक्त बापदादा के साथ स्नेह मिलन मनाते उनसे मीठी - मीठी रूहरिहान करने वाले मनमोहक दृश्य, *कहीं सर्वसम्बन्धो का सुख देते बाबा के भिन्न भिन्न स्वरूप, और कही दाता बन परमात्म गुणों, शक्तियों और खजानो से मुझे भरपूर करते मेरे दिलाराम बाबा का अति सुन्दर लाइट माइट स्वरूप*।

 

 _ ➳  इन अनेक दृश्यों में खोई, संगमयुग की मौजो का आनन्द लेते हुए मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा! *दुनिया वाले तो बेचारे थोड़ी सी मौज मनाने के लिए  भी मौके की तलाश करते हैं। त्योहारों का सहारा लेते हैं किन्तु मेरा तो हर दिन मौजों से भरपूर है*। अपने प्यारे बाबा के साथ संगमयुग का हर दिन, हर पल, हर सेकेण्ड मेरे लिए मन की, बेहद की मौज मनाने का समय है। *मन ही मन अपने भाग्य का गुणगान करती, अपने भाग्यविधाता बाबा का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करती अब मैं उनकी यादों में खोकर, उनके साथ बेहद की मौज मनाने के लिए अंतर्मुखता की गुफा में चली जाती हूँ*।

 

 _ ➳  देह और देह की दुनिया की हर बात से किनारा कर, हर संकल्प विकल्प से अपना ध्यान हटाकर, अपने मन और बुद्धि को मैं पूरी तरह से एकाग्र कर लेती हूँ। *एकाग्रता की यह शक्ति सेकण्ड में मुझे बाबा के समान विदेही बना कर, देह के भान से मुक्त कर देती है। अपने आत्मिक स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने अति सुंदर सतोगुणी स्वरूप को निहारते हुए, उसमे से निकल रही रंग बिरंगी किरणों का आनन्द लेते हुए, देह रूपी पिंजरे से बाहर निकल आती हूँ*। देह से डिटैच यह अवस्था बहुत न्यारी और प्यारी है। हद की मौजों के आकर्षण से मुक्त इस अवस्था मे बेहद की मौजो का आनन्द लेने के लिए अब मैं चमकती हुई मणि जागती ज्योति बन ऊपर आकाश की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ।

 

 _ ➳  स्थूल और सूक्ष्म देह के हर प्रकार के बन्धन से मुक्त अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में मैं आत्मा तीव्र गति से ऊपर आकाश की और उड़ती जा रही हूँ। *अपने निराकार शिव पिता के सुंदर सलौने स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहारते हुए, उनके प्रेम की लग्न में मग्न मैं आत्मा आकाश और अंतरिक्ष को पार कर, फरिश्तो की आकारी दुनिया से परे, चमकते हुए चैतन्य सितारों की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ और निरसंकल्प होकर अपने बीज रूप प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल छाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ* और मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से उनकी एक - एक किरण को निहारने लगती हूँ। उन्हें बड़े प्यार से निहारते - निहारते मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ और जाकर उन्हें टच करती हूँ।

 

 _ ➳  बाबा को छूते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा ने अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे समा लिया है। और अपना असीम स्नेह और प्रेम अपनी ममतामयी किरणों के रूप में मुझ पर बरसा रहें हैं। *बाबा का यह अथाह प्यार मुझमे असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रहा है। अपने बीज रूप प्यारे पिता के सानिध्य में मास्टर बीज रूप बन, उनकी शक्तियों को स्वयं में भरकर, उनके साथ मनाए स्नेह मिलन की सुखद अनुभूति के साथ अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ*। स्वयं ईश्वर बाप से मिली अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अखुट सौगातों को स्मृति में रख, स्वयं को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समझते हुए, मैं मन की, बेहद की मौज मनाते हुए, अपने बुहमूल्य ब्राह्मण जीवन के एक - एक सेकण्ड का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं दिनचर्या की सेटिंग और बाप के साथ द्वारा हर कार्य एक्यूरेट करने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व आत्माओं प्रति शुद्ध संकल्प करने वाली वरदानी मूर्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  तीनों ही विशेषता सामने रख स्वयं से पूछो कि मैं कौन-सा ‘त्यागीहूँकहाँ तक पहुँचे हैंकितनी पौड़ियाँ चढ़ करके बाप समान की मंजिल पर पहुँचे हैं? फुल स्टैप तक पहुँचे हो या अभी कुछ स्टैप तक पहुँचे होया अभी कुछ स्टैप रह गये हैंत्याग की भी स्टैप सुनाई ना। तो किस स्टैप तक पहुँचे होसात कोर्स में से कितने कोर्स किये हैंसप्ताह पाठ का लास्ट में भोग पड़ता है - तो बापदादा भी अभी भोग डालेआप लोग तो हर गुरूवार को भोग लगाते हो लेकिन बापदादा तो महाभोग करेंगे ना। जैसे सन्देशियाँ ऊपर वतन में भोग ले जाती हैं - तो बापदादा भी कहाँ ले जायेंगे! *पहले स्वयं को भोग में समर्पण करो। भोग भी बाप के आगे समर्पण करते हो ना। अभी स्वयं को सदा प्रत्यक्ष फलस्वरूप बनाकर समर्पण करो। तब महाभोग होगा। अपने आपको सम्पन्न बनाकर आफर करो।* सिर्फ स्थूल भोग की आफर नहीं करो। सम्पन्न आत्मा बन स्वयं को आफर करो। समझा - बाकी क्या करना है वह समझ में आया?

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को भोग में समर्पण करना।"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने सेंटर पर अपनी प्यारी दीदी से मुरली सुन रही हूं... और मुरली सुनते समय मैं पूरी तरह से दीदी के हर एक शब्द को गहराई से अनुभव कर रही हूं... और मुरली के हर शब्द से मैं एक अलौकिक चित्र बनाकर उसमें भ्रमण कर रही हूं... और अपने परमपिता को कंबाइंड स्थिति मैं फील कर रही हूं... जब मुरली समाप्त होती है... तो मुझे याद आता है... कि आज वीरवार है... और *हमारी दीदी हमारे प्यारे बाबा को अनेक तरह के व्यंजनों का भोग लगाना आरंभ कर रहे हैं... हम सभी क्लास में बैठी आत्माएं योग प्रारंभ करती हैं... तभी मैं अपने आपको मन बुद्धि से अपनी प्यारी दीदी के साथ सूक्ष्म वतन में अनुभव करती हूं...*

 

 _ ➳  और मैं अपने आप को कुछ समय बाद बापदादा के सामने सूक्ष्म वतन में अनुभव करती हूं... मैं देखती हूं कि हमारी दीदी फरिश्ता स्वरूप में बाबा के सामने खड़े हैं... और *मैं भोजन की थाली लेकर उनके पास खड़ी हूं... जैसे जैसे बाबा को भोग लगना प्रारंभ होता है... तो मुझे आभास होता है कि बाबा कह रहे हो कि यह पकवान मुझे कुछ समय के लिए खुश कर सकते हैं... और इसका कुछ ही समय के लिए मैं आनंद ले सकता हूं... मैं कुछ ऐसा भोजन चाहता हूं... जिससे मेरी खुशी अपरम्पार हो जाए...* बाबा की बात सुनकर मैं कुछ सोच में पड़ जाती हूँ... और बापदादा से पूछती हूँ... बाबा आप हमें बताएं कि आपको कैसा भोजन ज्यादा प्रिय होगा? बाबा मुस्कुराते हैं... बाबा मुस्कुराते हुए और मुझे अपनी दृष्टि से निहाल करते हुए इशारे ही इशारों में मुझे समझाने लगते हैं...

 

 _ ➳  और मुझे बाबा की दृष्टि से यह एहसास होता है... कि मानो *बाबा मुझे कह रहे हो कि जब मेरे बच्चे अपने तीव्र पुरुषार्थ से और श्रीमत का पालन करते हुए... जो अभी कच्चे फल की भांति है... अपनी उस अवस्था को परिपक्व करते हुए... अपने आपको मेरे पास उपस्थित करेंगे... तो मैं उन्हें पके हुए फल की भांति स्वीकार करके अपनी इस भूख से तृप्त हो जाऊंगा... और बच्चों के इस परिपक्व भाव के कारण वह हमेशा मेरे दिल के पास रहेंगे...* और बाबा इसका मुझे आभास बहुत गहराई से कराने लगते हैं... मैं भी उनकी शक्तिशाली किरणों द्वारा दृष्टि द्वारा अपने अंदर यह अनुभव करती हूं... कि मैं जो अभी पुरुषार्थ कर रही हूं उसको आगे बढ़ाते हुए पके हुए फल की भांति परिपक्व स्थिति में आने का पूर्ण पुरुषार्थ करूंगी... और अपने इसी संकल्प को लेते हुए मैं दीदी के साथ वहां पर फरिश्ता स्वरुप में नीचे आ जाती हूं...

 

 _ ➳  जब मैं अपने आप को फिर से स्थूल वतन में सेंटर पर अपने इस शरीर में अनुभव करती हूं... और मुझे यहां आकर तो बापदादा की कही हर बात याद आती है... और मैं मन ही मन बापदादा से और अपने से वादा कर लेती हूं... और मैं सेंटर से मुरली सुनकर परमात्मा की याद में अपने आपको अनुभव करते हुए... वापस अपने इस लौकिक परिवार में आ जाती हूं... जब मैं रास्ते से गुजर कर अपने इस गृहस्थ आश्रम में आगमन करती हूं... *मैं ये संकल्प करती हूँ की उन सभी पुराने संस्कारों को रोज अपने बाबा को अर्पण करती चलूंगी... और साथ ही साथ स्वयं को पूर्ण रुप से पुरुषार्थ की परिपक्व अवस्था में... पके हुए फल की भांति बापदादा को अर्पण कर दूंगी... अपने इस संकल्प से मैं अपनी स्थिति को महान बनाते हुए... बाबा की याद में हर कर्म करना प्रारंभ कर देती हूँ...* इस दुनिया में रहते हुए... मैं स्वयं को परमात्मा की याद में समाने का अभ्यास करती चली जाती हूँ... 

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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