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 19 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप समान ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर बनकर रहे ?*

 

➢➢ *विदेही बनने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *प्राप्तियों की इच्छा से इच्छा मातरम् अविध्या बन सदा भरपूर रहे ?*

 

➢➢ *अपनी अव्यक्त स्थिति से अव्यक्त आनंद, अव्यक्त स्नेह व अव्यक्त शक्ति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *परमात्म प्यार इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है । कहते भी हैं प्यार - है तो जहान है, जान है । प्यार नहीं तो बेजान, बेजहान है । प्यार मिला अर्थात् जहान मिला । दुनिया एक बूँद की प्यासी है और आप बच्चों का यह प्रभु प्यार प्रापर्टी है ।* इसी प्रभु प्यार से पलते हो अर्थात् ब्राह्मण जीवन में आगे बढ़ते हो । तो सदा प्यार के सागर में लवलीन रहो ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बाप के वर्से के अधिकारी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के वर्से के अधिकारी अनुभव करते हो? अधिकारी अर्थात् शक्तिशाली आत्मा हैं - ऐसे समझते हुए कर्म करो। कोई भी प्रकार की कमजोरी रह तो नहीं गई है? *सदा स्वयं को जैसे बाप वेसे हम, बाप सर्व शक्तिवान है तो बच्चे मास्टर सर्व शक्तिवान हैं, इस स्मृति से सदा ही सहज आगे बढ़ते रहेंगे। यह खुशी सदा रहे क्योंकि अब की खुशी सारे कल्प में नहीं हो सकती।* अब बाप द्वारा प्राप्ति है, फिर आत्माओं द्वारा आत्माओंको प्राप्ति है। जो बाप द्वारा प्राप्ति होती है वह आत्माओंसे नहीं हो सकती। आत्मा स्वयं सर्वज्ञ नहीं है। इसलिए उससे जो प्राप्ति होती है वह अल्पकाल की होती है और बाप द्वारा सदाकाल की अविनाशी प्राप्ति होती है।

 

  अभी बाप द्वारा अविनाशी खुशी मिलती है। सदा खुशी में नाचते रहते हो ना! सदा खुशी के झूले में झलते रहो। नीचे आया और मैला हुआ। क्योंकि नीचे मिट्टी है। सदा झूले में तो सदा स्वच्छ। बिना स्वच्छ बने बाप से मिलन मना नहीं सकते। जैसे बाप स्वच्छ हैं उससे मिलने की विधि स्वच्छ बनना पड़े। तो सदा झूले में रहने वाले सदा स्वच्छ। *जब झूला मिलता है तो नीचे आते क्यों हो! झूले में ही खाओ, पियो, चलो... इतना बड़ा झूला है। नीचे आने के दिन समाप्त हुए। अभी झूलने के दिन हैं। तो सदा बाप के साथ सुख के झूले में, खुशी, प्रेम ज्ञान, आनन्द के झूले में झूलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं, यह सदा याद रखो।*

 

  *जब भी कोई बात आये तो यह वरदान याद करना तो फिर से वरदान के आधार पर साथ का, झूलने का अनुभव करेंगे। यह वरदान सदा सेफ्टी का साधन है। वरदान याद रहना अर्थात् वरदाता याद रहना। वरदान में कोई मेहनत नहीं होती। सर्व प्राप्तिया सहज हो जाती हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  हरेक चीज को लौकिक से अलौकिकता में परिवर्तन करना है, जिससे मालूम हो कि यह कोई विशेष अलौकिक आत्मा है। लौकिक में रहते हुए भी हम, लोगों से न्यारे हैँ। अपने को आत्मिक रूप से न्यारा समझना है। *कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रुप में कार्य करेंगे*। तो सिर्फ दुनिया की बातों से ही न्यारा नहीं बनना है, पहले तो अपने शरीर से न्यारा बनना है।

 

✧   *जब शरीर से न्यारे होगें तब प्यारे होंगें, अपने मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक - प्रिय भी बनेंगे*। अभी लोगों को क्यों नहीं प्रिय लगते है? क्योंकि अपने शरीर से न्यारे नहीं हुए हो। सिर्फ देह के सम्बन्धियों से न्यारे होने की कोशिश करते हो तो वह उलहने देते - खुद को क्या चेन्ज किया है।

 

✧  पहले देह के भान से न्यारे नहीं हुए हो, तब तक उलहना मिलता है। पहले देह से न्यारे होंगे तो उलहने नहीं मिलेंगे, और ही लोक - प्रिय बन जायेंगे। कई अपने को देख बाहर की बात को देख लेते हैँ और बातों को पहले चेन्ज कर लेते हैँ, अपने को पीछे चेन्ज करते हैँ। इसलिए प्रभाव नहीं पडता है। *प्रभाव डालने के लिए पहले अपने को परिवर्तन में लाओ, अपनी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति को, सम्पत्ति को, समय को परिवर्तन में लाओ, तब दुनिया को प्रिय लगेंगे*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *स्वार्थ के कारण लगाव और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते।* तो उसके लिए क्या करना पड़े? स्वार्थ का अर्थ क्या है? *स्वार्थ अर्थात् स्व के रथ को स्वाहा करो।* यह जो रथ अर्थात देह - अभिमान, देह की स्मृति, देह का लगाव लगा हुआ है। *इस स्वार्थ को कैसे खत्म करेंगे? उसका सहज पुरुषार्थ, 'स्वार्थ' शब्द के अर्थ को समझो। स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की याद से विकर्म विनाश करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की सुनहरी यादों में खोई हुई, अपना सुनहरा शरीर धारण कर उड़ चलती हूँ... मधुबन बाबा के कमरे में... अपनी मुस्कान बिखेरते बापदादा अपने तेजस्वी सुनहरी किरणों की बाँहों को फैलाते हुए मुझे अपने पास बुलाते हैं...* मैं आत्मा तुरंत उनकी बाँहों में समा जाती हूँ और उनके मखमली सपर्श से अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूँ... फिर बाबा मुझे बगीचे में लेकर जाते हैं... और सैर करते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...

 

  *अनंत शक्तियों से भरपूर कर सत्यता के प्रकाश से आलोकित करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने खुबसूरत फूल थे... पर देह के भान ने उजले स्वरूप को निस्तेज कर दिया... और विकर्मो से दामन भर दिया... *अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम रंग में रंग जाओ और सतयुगी सुखो के अधिकारी बन सदा के मुस्कराओ...”*

 

_ ➳  *अपने सत्य स्वरुप में स्थित होकर यादों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके सच्चे प्रेम को पाकर दुनियावी रिश्तो से उपराम हो गई हूँ... *विकारो से मुक्त होकर खुबसूरत जीवन की मालिक बन... मीठे बाबा आपकी गोद में फूलो सा मुस्करा रही हूँ...”*

 

  *विकारों रूपी काँटों को निकाल अपने बगीचे का महकता फूल बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले संग में आकर अपने सत्य मणि स्वरूप को ही भूल गए हो... *अब ईश्वर पिता की मीठी यादो में उसी ओज से भरकर सुखो की बहारो में झूम जाओ... सब संग तोड़ सच्चे साथी के संग सदा के जुड़ जाओ...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की यादों में समाकर खुशियों के आसमान में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के भान में विकर्मो का खाते को किस कदर बढ़ाती जा रही थी... *प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन खुशियो से भर दिया है... मेरे आत्मिक स्वरूप का परिचय कराकर मुझे गुणो से सजा दिया है...”*

 

  *अपनी किरणों की ज्वाला से जन्मजन्मान्तर के विकर्मों को भस्म कर दिव्य गुणों से सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस देह के भान ने जीवन विकारो की कालिमा से भरकर दारुण दुखो से भर दिया...  उसे छोड़ अब आत्मिक नशे में डूब जाओ... *मीठे बाबा के सच्चे संग में आनन्द के गीत गाओ... सब जगह से बुद्धि निकाल ईश्वर पिता के प्यार में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *मीठे बाबा की मीठी यादों की रश्मियों से ऊँचे आसमान में अपने भाग्य का झंडा लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पाकर सदा खुशनसीब हो गयी हूँ... *मीठे बाबा आपका प्यार पाकर मै आत्मा विकारो के जंजाल से निकल अपने खुबसूरत मणि रूप में खिल गयी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप समान ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर बनना है*"

 

_ ➳  ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर अपने प्यारे मीठे बाबा की शीतल सी मीठी याद में अपने मन और बुद्धि को लगाते ही एक अति प्यारे शीतल एहसास से मैं आत्मा भाव -विभोर हो जाती हूँ। *ऐसा लगता है जैसे 63 जन्मों से विकारों की अग्नि की जिस तपन में मैं आत्मा जल रही थी, सागर की लहरों की शीतलता पाकर वो तपन बुझने लगी है और मैं आत्मा एक अद्भुत सुकून का अनुभव करने लगी हूँ*। इस सुकून की गहन अनुभूति में डूब कर मैं जैसे हर चीज को भूल गई हूँ। देह, देह के सम्बंध, देह की दुनिया इन सबसे जैसे मेरा कोई सम्बन्ध नही।

 

_ ➳  केवल एक चमकता हुआ, चैतन्य सितारा मुझे दिखाई दे रहा है जो ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर अपने महाज्योति शिव पिता की शक्तियों की लहरों से खेलता हुआ एक अकल्पनीय रूहानी मौज का, आनन्द का अनुभव कर रहा है। *इस अनूठे अवर्णनीय आनन्द और मौज का अनुभव करते - करते मैं विचार करती हूँ कि जब सागर की लहरों से खेलने में इतना आनन्द समाया है तो सागर की गहराई में जाकर तो मैं खुशी के अथाह ख़ज़ाने प्राप्त कर सकती हूँ*। यही विचार करके अब मैं उस सागर की गहराई में उतरने के लिए अंदर की उस अति महीन रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जहां प्राप्तियाँ ही प्राप्तियाँ हैं, बेहद के अखुट ख़ज़ाने ही खजाने हैं।

 

_ ➳  अपने प्यारे प्रभु की याद रूपी पेट्रोल से अपनी बुद्धि को रिफाइन कर, मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ, पूरी एकाग्रता के साथ, *केवल अपने लक्ष्य पर अपने ध्यान को केंद्रित करके एक ऊँची उड़ान भरती हूँ और सेकेण्ड में साकार और सूक्ष्म लोक को पार कर, ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर उस अपने महाज्योति शिव पिता के अनन्त प्रकाशमय ज्योति के उस अति शांतमय लोक में पहुँच जाती हूँ जो वाणी से परे हैं, जहाँ संकल्पों की भी हलचल नही*। जैसे पानी के सागर के किनारे बैठ सागर को देखने से दूर - दूर तक केवल पानी ही पानी दिखाई देता है ऐसे ही इस अंतहीन ब्रह्माण्ड में ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर शिव पिता की शक्तियों की लहरें ही लहरें मुझे दिखाई दे रही हैं।

 

_ ➳  सागर के किनारे बैठ इन रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरों की शीतलता का आनन्द लेते - लेते अब मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ रही हूँ और सागर की गहराई में जा रही हूँ। *जितना मैं गहराई में जाती जा रही हूँ उतना खुशी, आनन्द और सुख के अथाह ख़ज़ानों से मैं भरपूर होती जा रही हूँ*। इन ख़ज़ानों को अपने अंदर समाते, आगे बढ़ते - बढ़ते अब मैं उस अंतिम छोर पर आकर रुक जाती हूँ जहां आकर ऐसा लग रहा है जैसे लहरों की हलचल बिल्कुल समाप्त हो गई है और एक अति गहन स्थिरता में मैं स्थित हो गई हूँ।

 

_ ➳  मेरे बिल्कुल समीप मेरे सामने मेरे शिव पिता जिनसे निकल रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की किरणों का प्रकाश मन को ऐसे तृप्त कर रहा है, जिसके बाद और कुछ पाने की इच्छा ही शेष नही रह जाती। *एक गहन अतीन्द्रीय सुख का मैं अनुभव कर रही हूँ। यह अतीन्द्रीय सुखमय अनुभूति मुझे बाप समान स्थिति में स्थित कर रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और सर्व शक्तियाँ मेरे अंदर गहराई तक समा गए है*। स्वयं को मैं बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  बाप समान मास्टर सागर बन कर मैं आत्मा अब विकारों की अग्नि में जल रही आत्माओं को शीतलता देने के लिए अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब पर  पहुँचती हूँ। *विश्व ग्लोब पर बैठ, बापदादा का आह्वान कर, कम्बाइंड स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं सारे विश्व की आत्माओं पर ज्ञान और पवित्रता की शीतल किरणें प्रवाहित कर, उनके अंदर विधमान विकारों की अग्नि को बुझा कर, उन्हें सुख और शांति का अनुभव करवा रही हूँ*। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ, सारे विश्व का चक्कर लगा कर, ज्ञान और पवित्रता के शीतल जल की वर्षा विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर करते - करते मैं फ़रिश्ता अब वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर जाता हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर अपने शिव पिता के साथ स्वयं को कम्बाइंड अनुभव करते हुए, *बाप समान ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर बन अब मैं दुखी और अशांत आत्माओं को अपने सुख, शांति, पवित्रता के शीतल वायब्रेशन द्वारा शीतलता का अनुभव कराकर उनके जीवन को सुख, शान्ति के मधुर अहसास से भर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं प्राप्तियों की इच्छा से इच्छा मात्रम अविद्या बन सदा भरपूर रहने वाली निष्काम सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी अव्यक्त स्थिति से अव्यक्त आनन्द, अव्यक्त स्नेह व अव्यक्त शक्ति प्राप्त करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा यही चाहते हैं कि यह पूरा वर्ष चाहे सीजन 6 मास चलती है लेकिन पूरा ही वर्ष सभी को *जब भी मिलो, जिससे भी मिलो, चाहे आपस में, चाहे और आत्माओं से लेकिन जब भी मिलो, जिससे भी मिलो उसको सन्तुष्टता का सहयोग दो।* स्वयं भी संतुष्ट रहो और दूसरे को भी सन्तुष्ट करो। *इस सीजन का स्वमान है - सन्तुष्टमणि। सदा सन्तुष्टमणि।* भाई भी मणि हैं, मणा नहीं होता है, मणि होता है। एक एक आत्मा हर समय सन्तुष्टमणि है। और *स्वयं संतुष्ट होंगे तो दूसरे को भी संतुष्ट करेंगे। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "हरेक को सन्तुष्टता का सहयोग देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  प्रातःकाल बाबा से मीठी मीठी रुहरिहान करते हुए मैं आत्मा... उद्यान में सैर कर रही हूँ... यहां प्रकृति की सुन्दरता देखते ही बनती है... चारों ओर हरियाली छाई हुई है... प्रकृति अपनी अनूठी छटा बिखरा रही है... पूरा उद्यान रंग बिरंगी फूलों की आभा बिखेर रहा है... फूलों की खुशबू समूचे वातावरण को महका रही है... *खिले फूलों को देख कर वह गीत याद आ जाता है... 'जिसकी रचना इतनी सुंदर वह कितना सुन्दर होगा...' और मन में बागबान बाबा की मधुर स्मृतियाँ छा जाती हैं...*

 

 _ ➳  मीठे बाबा ने हम कलयुगी कांटो को किस तरह से ज्ञान का जल, योग की धूप... दिव्य गुणों और वरदानों की धरनी में सींचकर फूल बना दिया है... *माली बनकर बाबा हम रूहों की रूहानी पालना कर रहे हैं... बाबा ने हमारे जीवन को दिव्य गुणों की खुशबू से सुवासित कर दिया है...* ये सब स्मृति में आते ही मन प्रभु के प्रेम में भीग जाता है...

 

 _ ➳  मैं स्वयं को ईश्वरीय स्नेह के अगाध सागर में डूबता हुआ अनुभव कर रही हूँ... इस *स्नेह सागर में गहरे, उथले डुबकी लगा कर... दिव्य गुणों, शक्तियों के माणिक रत्नों से खेल रही हूँ...* जितना जितना इस स्नेह सागर में गहरे उतरती जाती हूँ... उतना ही स्वयं को एक-एक इन गुणों की गहराई से अनुभूति कराती जा रही हूँ... *दिव्य गुणों के गहनो से सजे हुए अपने दिव्य स्वरूप को देख मैं मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ... और दृढ़ संकल्प कर रही हूँ... की अपने बाबा की हर चाहना मुझे पूरी करनी है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा की उम्मीदों का सितारा हूँ... उनकी हर आशा रुपी कसौटी पर खरा उतरने वाला सच्चा सोना हूँ... *मैं अब हर प्रकार से संतुष्ट, तृप्त आत्मा बन गई हूँ... 'पाना था सो पा लिया', 'स्वयं भगवान मिल गया और क्या चाहिए'... की खुमारी में मैं आत्मा सच्चे आत्मिक सुख का अनुभव कर रही हूँ...* साथ ही अपने संबंध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को संतुष्टता का सहयोग दे रही हूँ... *मैं स्वयं से सन्तुष्ट हूँ... साथ ही सर्व को भी सन्तुष्ट कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं संतुष्टमणि आत्मा हूँ... बाबा द्वारा दिए गए इस स्वमान का गहराई से अनुभव कर रही हूँ... *मैं न सिर्फ संतुष्टमणि आत्मा हूँ... जैसे कि बाबा कहते हैं कि सदा शब्द को पक्का करो... तो मैं सदा काल के लिए संतुष्टमणि आत्मा हूँ...* मैं ईश्वर प्राप्तियों और खजानों से स्वयं संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ... और मेरी यह सन्तुष्टता की स्थिति अन्य आत्माओं को भी सन्तुष्ट कर रही है... *मैं हर स्थिति में सन्तुष्ट रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ... और सर्व को सन्तुष्ट कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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