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 22 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पुरुषार्थ में मम्मा बाबा को फॉलो किया ?*

 

➢➢ *"हम राजयोग सीख भविष्य प्रिंस प्रिंसेस बनेंगे" - यह नशा रहा ?*

 

➢➢ *सदा अपने आप में शुभ उम्मीदें रख दिलशाह बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"आप और बाप" - दोनों ऐसे कंबाइंड रहे जो तीसरा कोई अलग न कर सके ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  आप गोप-गोपियों के चरित्र गाये हुए हैं - बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख लेना और मग्न रहना अथवा सर्व-सम्बन्धों के लव में लवलीन रहना । *जब कोई अति स्नेह से मिलते हैं तो उस समय स्नेह के मिलन के यही शब्द होते कि एक दूसरे में समा गये या दोनों मिलकर एक हो गये । तो बाप के स्नेह में समा गये अर्थात् बाप का स्वरूप हो गये ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विशेष पार्टधारी हूँ"*

 

  सदा अपने विशेष पार्ट को देख हर्षित रहते हो? *ऊंचे ते ऊंचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी हो। विशेष पार्टधारी का हर कर्म स्व्त: ही विशेष होगा क्योंकि स्मृति में है कि-मैं विशेष पार्टधारी हूँ। जैसे स्मृति वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है। हर कर्म, हर बोल विशेष। साधारणता समाप्त हुई।*

 

  *विशेष पार्टधारी सभी को स्वत: आकर्षित करते हैं। सदा इस स्मृति में रहो कि हमारे इस विशेष पार्ट द्वारा अनेक आत्मायें अपनी विशेषता को जानेंगी। किसी भी विशेष आत्मा को देख स्वयं भी विशेष बनने का उमंग आता है।*

 

  कहाँ भी रहो, कितने भी मायावी वायुमण्डल में रहो लेकिन विशेष आत्मा हर स्थान पर विशेष दिखाई दे। जैसे हीरा मिट्टी के अन्दर भी चमकता दिखाई देता। हीरा- हीरा ही रहता है। *ऐसे कैसा भी वातावरण हो लेकिन विशेष आत्मा सदा ही अपनी विशेषता से आकर्षित करेगी। सदा याद रखना कि - हम विशेष युग की विशेष आत्मायें हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *बहुत समय से न्यारा - पन नहीं होगा तो यही शरीर का प्यार पश्चाताप में लायेगा*। इसलिए इससे भी प्यारा नहीं बनना है। इससे जितना न्यारा होंगे उतना ही विश्व का प्यारा बनेंगे। इसलिए अब यही पुरुषार्थ करना है।

 

✧  *ऐसे नहीं समझना है कि कोई व्याधि आदि का रूप देखने में आयेगा तब जायेंगे, उस समय अपने को ठीक कर देंगे*। ऐसी कोई बात नहीं है। पीछे ऐसे - ऐसे अनोखे मृत्यु बच्चों के होने है जो ' सन शोज फादर ' करेगा। सभी का एक जैसा नहीं होगा।

 

✧  कई ऐसे बच्चे भी है जिन्हों का ड्रामा के अन्दर इस मृत्यु के अनोखे पार्ट का गायन ' सन शोज फादर ' करेगा। यह भी वही कर सकेंगे जिनमें एक विशेष गुण होगा। यह पार्ट भी बहुत थोंडों का है। अन्त घडी भी बाप का शो होता रहेगा। *ऐसी आत्मायें जरूर कोई पावरफुल होंगी जिनका बहुत समय से अशरीरी रहने का अभ्यास होगा वह एक सेकण्ड में अशरीरी हो जायेगा*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *मनन में रहने से, अन्तर्मुखी रहने से बाहरमुखता की बातें डिस्टर्ब नहीं करेगी। देह-अभिमान से गैर हाज़िर रहेंगे।* जैसे कोई अपनी सीट से गैर हाज़िर होगा तो लोग लौट जायेंगे ना। आप भी मनन में अथवा अन्तर्मुखी रहने से देह-अभिमान की सीट को छोड़ देते हो, *फिर माया लौट जायेगी, क्योंकि आप अन्तर्मुखी अर्थात् अन्डरग्राउण्ड हो।* आजकल अण्डरग्राउण्ड बहुत बनाते जाते हैं सेफ्टी के लिए। *तो आपके लिए भी सेफ्टी का साधन यही अन्तर्मुखता है अर्थात् देह-अभिमान से अण्डरग्राउण्ड।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मम्मा-बाबा को फालो कर फर्स्ट नंबर लाने का पुरुषार्थ करना"*

 

 _ ➳  प्रभात की नव वेला मे... सूर्य से आती किरणों को निहारते हुए मै आत्मा.... अपने ज्ञान सूर्य बाबा की यादो में खो जाती हूँ.. कितना *मीठे बाबा के ज्ञान प्रकाश ने... जीवन को दिव्य गुणो से सजाकर...  चमकदार और आत्मिक तेज-ओज से भर दिया है...* मुझ आत्मा के देह भान के विकर्मो को... अपनी यादो की किरणों में भस्म कर.... मुझे आप समान तेजस्वी बना दिया है... *अपनी शक्तियो की सारी दौलत को मेरे जीवन में बिखेर दिया है...* मुझे ज्ञान रंगों से सजा दिया है... ये चितंन करते मैं आत्मा उड़कर पंहुच जाती सूक्ष्मवतन में मीठे बाबा के पास...

 

  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को पढ़ाई पर गहरा अटेनशन दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे-मीठे प्यारे लाडले बच्चे मेरे... *परमधाम छोड़ शिव पिता टीचर बनकर है तुम्हें पढ़ाने आया... अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रख दिल से मुस्कुराओं...* देकर पढाई पर अटेंशन स्वयं को ऊंच पद के अधिकारी बनाओं... इन सुनहरे पलों को यूँ ना व्यर्थ गवाओं..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की हर शिक्षा को दिल में समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे ओ लाडले बाबा मेरे... आपने मुझे अपनी गोद में लेकर मेरा सुदंर भाग्य सजाया है... ईश्वर को ही शिक्षक रूप में पाने वाली मैं आत्मा... इस संसार में सबसे ज्यादा भाग्यशाली आत्मा हूँ... अपने श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रख दिल से मुस्कुरा रही हूँ... *आपकी अनमोल शिक्षाओं से जीवन को सजा रही हूँ... देकर पढाई पर अटेंशन खुद को श्रेष्ठ पद की अधिकारी बना रही हूँ..."*

 

  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादों के तारों में पिरोते हुए कहते है :-* "मीठे-मीठे कल्प पहले वाले बच्चे मेरे... ईश्वर पिता को टीचर रुप में पाने वाले, और उनकी सारी ज्ञान सम्पदा से सजने वाले आप महान भाग्यशाली आत्मा हो... *यह पढ़ाई ही सारे सच्चे सुखों का आधार है... इस पर अब निरंतर अपना अटेंशन बढ़ाओ...* मात-पिता को फालों कर नम्बर वन में आओं... इस सच्चे-सच्चे पुरुषार्थ में अब लग जाओ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सांसो के हर तार में बाबा की याद पिरोये हुए कहती हूं :-* "मीठे प्यारे दिलाराम बाबा मेरे... हर सांस से आपको और आपकी श्रीमत को पकड़े हुए हूँ... इस पढाई ने ही मेरे जीवन को आबाद बनाया है... इस पढाई ने मुझे कितना ना बेसमझ से समझदार बनाया है... मीठे बाबा अब मैं आत्मा एक पल के लिए भी आपका दामन नही छोडूंगी... *देकर पढाई पर खूब अटेंशन मात-पिता समान नम्बर वन में आने का अधिकारी स्वयं को बना रही हूँ...* चलकर आपकी श्रीमत पर आदर्श जीवन बना रही हूँ..."

 

  *लाडले बाबा ज्ञान के सुनहरे रंगों से सजाते हुए मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे राजदुलारे बच्चे मेरे... मीठे बाबा से ज्ञान रत्नों की सारी सम्पत्ति को लेकर... 21 जन्मों तक स्वर्ग का राज्य भाग्य पाओ... सदा गॉडली स्टुडेंट बनकर ज्ञान रत्नों में रमण कर अपना भविष्य उज्ज्वल बनाओ... *फालो कर मम्मा बाबा को उनके समान फर्स्ट नम्बर में आओ...* कभी भी पढाई में अलबेलापन नही लाओ... देकर स्टीक अटेंशन इस पढाई पर नम्बर वन मे बच्चे तुम आओ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान के सुनहरे रंगों में रंग कर कहती हूँ :-* "मीठे-मीठे जादूगर ओ बाबा मेरे... बनकर गॉडली स्टुडेंट इस पढाई पर अटेंशन बढ़ा रही हूँ... ज्ञान रत्नों में रमण कर अपना भविष्य उज्जवल बना रही हूँ... ईश्वरीय शिक्षाओं में, खुशियों से सजधज कर मुस्कुरा रही हूँ... *मम्मा बाबा को फॉलो कर स्वयं को नम्बर वन में लाने का पुरूषार्थ तीव्र गति से करती जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस नम्बरवन जन्म से कभी भी तंग नही होना है*"

 

_ ➳  अपने हीरे जैसे अनमोल ब्राह्मण जीवन की मधुर स्मृतियों में खोई हुई मैं परमात्म प्राप्तियों को याद करके मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *परमात्म प्यार का सुखद अहसास मन को एक अलौकिक सुख का अनुभव करवा रहा है। एक अलौकिक रूहानी मस्ती में डूबी अपने प्यारे पिता के दिये हुए इस ब्राह्मण जीवन रूपी अनुपम उपहार के लिए मैं उन्हें दिल से कोटि - कोटि धन्यवाद दे रही हूँ* और मन ही मन सोच रही हूँ कि अपने पिता परमात्मा की देन मेरे इस ब्राह्मण जन्म से पहले का मेरा जीवन कैसा था! पल भर की शांति पाने की तलाश में मैं कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी।

 

_ ➳  किन्तु मेरे प्यारे पिता ने स्वयं आकर अपरमअपार सुख, शान्ति के ख़ज़ानों से मुझे इतना सम्पन्न बना दिया कि मेरे पहले के जीवन के सभी दुख दर्द समाप्त होने के साथ - साथ मेरे इस ब्राह्मण जीवन मे भी आने वाले सभी पुराने हिसाब - किताब योगबल से कितनी सहज रीति चुकतू हो रहें हैं। *अपने इस नम्बरवन जन्म में कर्मभोग के रूप में आने वाले किसी भी पेपर से अब मैं ना घबराती हूँ और ना ही तंग  होती हूँ क्योकि मेरी हर कठिन से कठिन परिस्थिति में स्वयं भगवान साथी बन मेरा साथ दे रहें है*। कदम - कदम अपनी श्रेष्ठ श्रीमत से हर बात को बाबा कितना सहज बना रहे है! अपने भगवान साथी के सहयोग से अपने जीवन मे आने वाले माया के हर तूफान को मैं तोहफा समझ कैसे इतनी आसानी से पार करती जा रही हूँ।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करतीे, अपने इस नम्बरवन अमूल्य ब्राह्मण जीवन के जन्मदाता अपने प्यारे शिव पिता परमात्मा की मीठी मधुर यादों में मैं खो जाती हूँ। *चित को चैन और मन को सुकून देने वाली उनकी मीठी याद ऐसा अनुभव करवा रही है जैसे उनके प्यार की शीतल लहरें कहीं दूर से हल्के - हल्के मेरे पास आकर मेरे अन्तर्मन को गहराई तक छू रही हैं*। मेरे प्यारे प्रभु के प्यार का यह मीठा मधुर अहसास मुझे एकदम लाइट बना रहा है। स्वयं को मैं देह के बन्धन से मुक्त अपने प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में देख रही हूँ। *एक सूक्ष्म स्टार जिसमे से निकल रहा प्रकाश मेरे चारों और एक दिव्य आभामंडल निर्मित कर रहा है*।

 

_ ➳  इसी दिव्य कार्ब के साथ मैं अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु आत्मा अब देह की कुटिया से बाहर निकल आई हूँ। अपने सिर के ऊपर स्थित होकर अपनी देह को मैं बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ। *कोई लगाव, ममत्व या आकर्षण मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा। अपने आस - पास की हर चीज को साक्षी होकर देखते हुए अब मैं इन सबको छोड़ अपने प्यारे प्रभु के पास उनके धाम की ओर जा रही हूँ*। उनसे मिलन मनाने का मधुर एहसास मन को रोमांचित कर रहा है। उस मधुर अहसास का मधुर आनन्द लेती मैं धीरे - धीरे आकाश को पार कर जाती हूँ और उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार कर पहुँच जाती हूँ उस अनन्त ज्योति के देश में जो मेरे प्यारे पिता का धाम हैं।

 

_ ➳  चमकते हुए चैतन्य सितारों की इस निराकारी दुनिया अपने पिता के इस परमधाम घर में मैं स्वयं को अपने निराकार शिव पिता के सामने देख रही हूँ। मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से अपने प्यारे पिता को अपने सम्मुख देख मैं बहुत हर्षित हो रही हूँ। *अपने स्नेह की शीतल फुहारे मेरे ऊपर बरसा कर मेरे मीठे बाबा अपने निश्छल और निस्वार्थ प्रेम से मुझे भरपूर कर रहें हैं। अपने शिव पिता के स्नेह की किरणों की शीतल छत्रछाया के नीचे बैठ मैं हर दुख को जैसे भूल गई हूँ*। उनकी सर्वशक्तियों की शीतल छत्रछाया मुझे गहन शांति और आनन्द की अनुभूति करवा रही है। एक अद्भुत अतीन्द्रिय सुख में मैं डूबती जा रही हूँ।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता से असीम स्नेह और प्यार पाकर और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूँ। परमधाम से नीचे वापिस साकारी लोक में आकर अब मैं अपने शरीर रूपी रथ पर फिर से विराजमान हो गई हूँ। *मेरे प्यारे प्रभु का प्यार और उनकी शक्तियों का बल मेरी ताकत बन कर मुझे हर परिस्थिति में सहज ही विजयी बना रहा है इसलिए अब किसी भी समस्या या परिस्थिति के आने पर मैं ना तो तंग होती हूँ और ना ही विचलित होती हूँ बल्कि एकरस रह बड़ी सहजता से हर समस्या का समाधान कर लेती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा अपने आप मे शुभ उम्मीदे रख दिलशाह बनने वाली बड़ी दिल, फ्राकदिल          आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं "मैं और बाप" दोनों ऐसा कम्बाइन्ड रहने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ जो तीसरा कोई अलग कर न सके।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. वर्तमान समय मन की एकाग्रता, एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी। अभी रिजल्ट में देखा कि मन को एकाग्र करने चाहते हो लेकिन बीच-बीच में भटक जाता है। एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी। मन भटकता है, चाहे व्यर्थ बातों में, चाहे व्यर्थ संकल्पों में, चाहे व्यर्थ व्यवहार में। जैसे कोई-कोई को शरीर से भी एकाग्र होकर बैठने की आदत नहीं होती है, कोई को होती है। तो *मन जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा एकाग्र होना इसको कहा जाता है मन वश में। एकाग्रता की शक्ति, मालिकपन की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देती है। युद्ध नहीं करनी पड़ती है। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है। स्वतः होगी, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है।* ब्रह्मा बाप से प्यार है ना - तो ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति रहती है क्योंकि एकाग्रता अर्थात् स्वमपन की स्थिति। फरिश्ता स्थिति स्वमान है।

 

 _ ➳  2. मन के एकाग्रता की शक्ति सहज फरिश्ता बना देगी।

 

 _ ➳  3. *एकाग्रता की शक्ति को बढ़ओ। मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहो। जब सेट होते हैं तो अपसेट नहीं होते, सेट नहीं हैं तो अपसेट होते हैं। तो भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ स्थितियों की सीट पर सेट रहो, इसको कहते हैं एकाग्रता की शक्ति।*

 

✺   *ड्रिल :-  "एकाग्रता की शक्ति का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान चमकता हुआ सितारा हूँ... मैं मन-बृद्धि द्वारा एक नदी में पहुँचती हूँ... वहाँ मैं आत्मा रूपी नाविक एक नाव को चला रही हूँ... वह कमजोर होने के कारण काफी धीमी गति से चल रही हैं...*  पानी की लहरे बहुत तेज़ हैं... धीरे-धीरे कलियुग रूपी रात्रि हो रही हैं... अचानक से आँधी तूफान आने शुरू हो रहे हैं... मेरी मन रूपी नाव स्थिर नहीं हो पा रही हैं...

 

 _ ➳  नदी की लहरें बहुत तेज़ हो चुकी हैं... अगर यह नाव डूब गई तो मैं भी डूब जाऊँगी... मैं चीख-चीखकर अपनी जान बचाने के लिये पुकार रही हूँ परन्तु दूर-दूर तक कोई नहीं हैं... *अचानक से एक बड़ी-सी नाव मेरे सामने से गुज़रती हैं... उस नाव को एक राजा चला रहे हैं... परन्तु उनकी नाव पर तूफान का कोई असर नहीं पड़ रहा हैं...*

 

_ ➳  उन्होंने अपना हाथ मदद के लिए आगे बढ़ाया... मैंने इशारे से साफ इंकार कर दिया... उन्होंने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया... *मैंने मुड़कर देखा कि मेरी मन रूपी नाव उन्होंने अपनी नाव से बांध रखी हैं... मुझे यकीन हो गया कि यह कोई आम राजा नहीं हैं... उन्होंने बिना कुछ कहे अपना परिचय इशारों में दे दिया हैं... यह तो जरूर परमात्मा हैं... अब मुझे पाँच हज़ार साल पहले की स्मृतियाँ याद आ रही हैं...*

 

_ ➳  *उनकी भृकुटी से तेज़ लाल रोशनी मुझ पर पड़ रही हैं... वह शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, शक्ति, आनंद और  ज्ञान की किरणें मुझ पर न्यौछावर कर रहे हैं... मैं आठो शक्तियों को अपने अंदर महसूस कर रही हूँ...* चारों ओर प्रकाश होता जा रहा हैं... अब मेरी मन रूपी नाव स्थिर रहती हैं... अब मन व्यर्थ बातों में, व्यर्थ संकल्पों में, व्यर्थ व्यवहार में भटकता नहीं हैं... स्थिर रहता हैं...

 

_ ➳  *मुझे अब मालिकपन का अहसास हो रहा हैं... विकारों से युद्ध नहीं करनी पड़ती हैं... एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है... अब मेहनत नहीं करनी पड़ती... स्वतः ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति होती हैं...* मैं मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहती हूँ... रोज़ाना भिन्न-भिन्न स्वमान को धारण करती हूँ... मुझे एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति हो रही हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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