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 02 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह सही जो भी कख्पन है, वह सब शिवबाबा की बैंक में जमा किया ?*

 

➢➢ *अशांति तो नहीं फैलाई ?*

 

➢➢ *स्व इच्छा और दृढ़ संकल्प से एक देकर पदम लिया ?*

 

➢➢ *साक्षी बन न्यारे होकर हर खेल को देख साक्षी दृष्ट स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग को ज्वाला रूप बनाने के लिए सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कंट्रोलिंग पावर सारे दिन में यूज करो।* पावरफुल ब्रेक द्वारा मन-बुद्धि को कण्ट्रोल करो, जहाँ मन-बुद्धि को लगाना चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाए।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं होली हँस हूँ"*

 

  सदा अपने को होलीहंस समझते हो? होलीहंस का कर्तव्य क्या होता है? *होलीहंस अर्थात् जो सदा सत्य और असत्य का निर्णय कर सके। हंस में निर्णय शक्ति तीव्र होती है। जिस निर्णय शक्ति के आधार पर कंकड़ और रतन को अलग कर सकते हैं। रतन को ग्रहण करेगा और कंकड़ को छोड़ देगा। तो होलीहंस अर्थात् जो सदा निर्णय शक्ति में नम्बरवन हो। निगेटिव को छोड़ दे और पाजिटिव को धारण करे। देखते हुए सुनते हुए न देखे न सुने। यह है होलीहंस की विशेषता।* तो ऐसे हो या कभी नगेटिव भी देख लेते हो? निगेटिव अर्थात् व्यर्थ बातें, व्यर्थ कर्म न सुने न करें और न बोलें । तो ऐसी शक्ति है जो व्यर्थ को समर्थ में चेंज कर दो। या व्यर्थ चलता है? चाहते नहीं हैं लेकिन चल पड़ता है ,ऐसे तो नहीं है? यदि व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने की शक्ति नहीं होगी तो अन्त में व्यर्थ का संस्कार धोखा दे देगा। इसलिए होलीहंस अर्थात् परिवर्तन करना।

 

  व्यर्थ को समर्थ में चेंज करने के लिए विशेष क्या अभ्यास चाहिए? कैसे चेंज करेंगे? संकल्प पावरफुल कैसे बनेगा? हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना अगर ऐसी विधि होगी तो परिवर्तन कर लेंगे। *अगर किसी के प्रति शुभ भावना होती है तो उसकी उल्टी बात भी सुल्टी लगती है और शुभ भावना नहीं होगी तो सुल्टी बात भी उल्टी लगेगी। इसलिए हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना सदा आवश्यक है।* तो यह रहती है या कभी कभी व्यर्थ भावना भी हो जाती है? अपनी शुभ भावना व्यर्थ वाले को भी चेंज कर देती है। वैसे भी गाया हुआ है कि भावना का फल मिलता है। जब भक्तों को भावना का फल मिलता है तो आपको शुभ भावना का फल नहीं मिलेगा? तो व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने का आधार है शुभ भावना, शुभ कामना। कैसा भी हो लेकिन आप शुभ भावना दो। कितना भी गंदा पानी इक्क्ठा हो लेकिन अच्छा डालते जायेंगे तो गंदा निकलता जायेगा।

 

  *अगर कोई आत्मा में व्यर्थ को निकालने की समर्थी नहीं है तो आप अपनी शुभ भावना की समर्थी से उसके व्यर्थ को समर्थ कर दो। परिवर्तन कर दो।* इतनी शक्ति है या कभी असर हो जाता है? जैसे बापदादा ने आपके व्यर्थ कर्म को देखकर परिवर्तन कर लिया ना। कैसे किया? शुभ भावना से मेरे बच्चे हैं। तो आपकी शुभ भावना कि मेरा परिवार है, ईश्वरीय परिवार है। कैसा भी है चाहे वह पत्थर है लेकिन आप पत्थर को भी पानी कर दो। ऐसी शुभ भावना और शुभ कामना वाले होलीहंस हो? हंस को सदा स्वच्छ दिखाते हैं। तो स्वच्छ बुद्धि हंस के समान परिवर्तन करेंगे। अपने में धारण नहीं करेंगे। तो संगमयुगी होलीहंस हैं यह स्मृति सदा रखनी है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧    *ऐसा अभ्यास करो जो जहाँ बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ स्थित हो जायें।* संकल्प किया और स्थित हुआ। यह रूहानी ड्रिल सदैव बुद्धि द्वारा करते रहो।

 

✧  अभी - अभी परमधाम निवासी, अभी - अभी सूक्ष्म अव्यक्त फरिश्ता बन जायें और अभी - अभी साकार कर्मेन्द्रियों का आधार लेकर कर्मयोगी बन जायें। इसको कहा जाता है - संकल्प शक्ति को कन्ट्रोल करना। *संकल्प को रचना कहेंगे और आप उसके रचयिता हो।*

 

✧  जितना समय जो संकल्प चाहिए उतना ही समय वह चलो। जहाँ बुद्धि लगाना चाहे, वहाँ ही लगे। इसको कहा जाता है - अधिकारी। यह प्रैक्टीस अभी कम है। इसलिए यह अभ्यास करो, *अपने आप ही अपना प्रोग्राम बनाओ और अपने को चेक करो कि जितना समय निश्चित किया, क्या उतना ही समय वह स्टेज रही?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बाप-दादा एक सेकेण्ड का सहज साधन वा किसी भी विघ्न से मुक्त होने की युक्ति जो समय-प्रति-समय सुनाते रहते हैं वह भूल जाते हैं। *सेकण्ड में स्वयं का स्वरूप अर्थात् आत्मिक ज्योति स्वरूप और कर्म में निमित भाव का स्वरूप - यह डबल लाइट स्वरूप सेकण्ड में हाई जम्प दिलाने वाला है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वीट बाप और वर्से को याद कर मोस्ट स्वीटेस्ट बनना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बगीचे में पेड़ के नीचे बैठ मीठे बाबा को याद करती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत मेरे सामने आ जाते हैं और अपनी गोदी में बिठाकर मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए गुणों और शक्तियों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हैं...* मैं आत्मा एक-एक गुण और शक्ति को स्वयं में धारण करती जा रही हूँ... एक-एक वरदान को अपने में समाती जा रही हूँ... फिर मीठे बाबा दृष्टि देते हुए मुझ आत्मा से मीठी-मीठी रूह-रिहान करते हैं...

 

  *स्वीट बाबा अपनी स्वीट शिक्षाओं से मुझ आत्मा को अपने समान स्वीट बनाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... फूल बनाने वाले प्यारे पिता की यादो में डूब जाओ, मीठे बाबा को हर साँस के तार में पिरो दो... *ईश्वरीय यादो से प्राप्त सतयुगी सुखो को याद करो तो... मीठे संस्कारो से सज जायेंगे... और मीठे बाबा समान मीठे हो जायेंगे... हर लम्हा मिठास लुटाने वाले बन जायेंगे..."*

 

_ ➳  *स्वीट फादर और स्वीट राजधानी को याद कर बहुत बहुत स्वीट बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा अपने मीठे बाबा की बाँहों में झूल रही हूँ... यादो में डूबी अतीन्द्रिय सुख में खोयी हूँ... मीठे बाबा की यादो में प्रेम की नदिया बन गई हूँ...* ईश्वरीय प्रेम की लहरे पूरे विश्व में फैला रही हूँ... अपने मीठे सुखो की यादो में मुस्करा रही हूँ..."

 

  *मुझ आत्मा को रूहानियत के रंगों से सजाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता जो धरा पर उतर आया है तो उसकी यादो में डूब अथाह खजानो को लूटकर मालामाल हो जाओ... यादो में दिव्य गुणो और शक्तियो से सजकर देवताई श्रृंगार कर लो...* यह यादे मीठेपन से खिला देंगी और पवित्रता से संवार कर विश्व का मालिक सा सजायेंगी..."

 

_ ➳  *खुशियों के अम्बर में उड़ान भरकर खुशी के गीत गुनगुनाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देहधारियों की यादो में कितनी कड़वी हो गई थी... दुखो में कितनी कलुषित हो गई थी... *अब आपकी मीठी मीठी यादो में कितनी प्यारी मीठी और खुशनुमा होती जा रही हूँ... अपने सुखमय संसार को यादकर ख़ुशी से पुलकित होती जा रही हूँ..."*

 

  *अपनी मधुर वाणी से मेरे जीवन को मधुबन बनाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब अपने दुखो के सारे बोझ मीठे पिता को सौंप हल्के मीठे होकर मुस्कराओ... पिता के प्यार में खो जाओ... *अपने सत्य स्वरूप के नशे में इतराओ... और अथाह सुखो की राजधानी को यादकर प्रेम और मीठेपन से महक उठो... और पूरे विश्व को इन मीठी तरंगो से भर दो..."*

 

_ ➳  *मीठे बाबा के हाथों मधुरस का पान कर मिठास से भरपूर होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में डूबकर कितनी मीठी प्यारी सतोगुणी होकर खिलखिला रही हूँ... *प्यारे बाबा ने अपनी खुशनुमा यादो में मुझे कितना मीठा खुबसूरत बना दिया है... पवित्रता से महकाकर बेशकीमती बना दिया है..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  देह सहित जो भी कखपन है वह सब शिवबाबा की बैंक में जमा कर भविष्य के लिए बेहद सुख का वर्सा लेना है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठ, अपने भगवान बाप के उपकारों को याद करते - करते मैं विचार करती हूँ कि कितने निरहंकारी है मेरे शिव पिता परमात्मा जो कखपन लेकर भविष्य के लिए बेहद सुख का वर्सा देते हैं। दुनिया मे एक भी मनुष्य ऐसा नही जो बेकार की चीज लेकर फायदे की चीज देता हो सिवाय एक भगवान के। *वो भगवान जिसे भक्ति में वायदा किया कि जब आप आयेंगे तो आप पर बलिहार जायेंगे। वही भगवान अब आकर हमसे क्या मांग रहा है! केवल कखपन ! पाँच विकार जिन्होंने हमे जन्म - जन्मान्तर दुखी किया, हमारे सुख, हमारी शांति को छीना*। अब वही भगवान आकर कितनी सहज रीति हमसे उन विकारो का दान मांग रहा है। मन ही मन अपने शिव बाबा के उपकारों को याद कर, स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि देह सहित जो भी कखपन है वह सब शिव बाबा की बैंक में जमा कर, उनसे भविष्य के लिए बेहद सुख का वर्सा मैं अवश्य लूँगी।

 

_ ➳  इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ, थोड़ी देर के लिए अपने मन और बुद्धि को सभी संकल्पो, विकल्पों से हटाकर मैं एकाग्रचित स्थिति में स्थित हो जाती हूँ। *स्वयं को अपनी साकारी देह से डिटैच कर, अपनी सूक्ष्म आकारी देह को धारण कर मैं अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित होकर अब ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ*। अपनी लाइट की सूक्ष्म काया में एक अद्भुत हल्केपन की अनुभूति करते हुए सारे विश्व का मैं चक्कर लगा रही हूँ। ऊपर से सारे विश्व का नजारा मैं स्पष्ट देख रही हूँ।

 

_ ➳  विनाशी धन कमाने की अंधी दौड़ में भाग रहें लोगो को देख रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि *जिस विनाशी धन को सारी दुनिया के मनुष्य अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बैंकों में जमा कर रहें हैं वो बेचारे इस बात से कितने अनजान है कि जहाँ हम सबको जाना है वहाँ यह विनाशी धन कोई काम नही आएगा*। यह तो यही विनाश हो जाएगा। साथ जायेंगे तो केवल अविनाशी कमाई के वो संस्कार जो इस समय भगवान की मत पर चलकर आत्मा अपने अंदर धारण करेगी।

 

_ ➳  जो इस समय भगवान की मत पर चलकर देह सहित अपना सारा कखपन शिव बाबा की बैंक में जमा करेंगे वही भविष्य के लिए बेहद सुख का वर्सा प्राप्त करेंगे। कितनी पदमापदम सौभागशाली हैं वो ब्राह्मण आत्माये जो इस समय यह अविनाशी कमाई कर, भविष्य जन्म जन्मान्तर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हैं। *इन्ही विचारो के साथ, मैं फ़रिश्ता सूक्ष्म वतन की ओर उड़ चलता हूँ। फरिश्तो की इस खूबसूरत आकारी दुनिया मे पहुंचते ही अपने ही समान सूक्ष्म लाइट के अनेकों फरिश्तो को और सामने अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरुप में विराजमान अपने प्यारे बापदादा को मैं देख रहा हूँ*।

 

_ ➳  अपने इस अव्यक्त वतन में, अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर अव्यक्त बापदादा के साथ मंगल मिलन मनाने का मैं फ़रिश्ता भरपूर आनन्द ले रहा हूँ। *अपनी लाइट माइट से मुझे डबल लाइट बनाते हुए बाबा अपनी शक्तिशाली दृष्टि से अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर भरते जा रहें है और मुझे आप समान शक्तिशाली बनाते जा रहे हैं*। अपनी वरदानी शक्तियों से मेरी बुद्धि रूपी झोली भरते हुए बाबा मुझे विकारों के ग्रहण से छूटने का वरदान दे रहें हैं। *बापदादा से वरदान और शक्तियाँ लेकर देह सहित पुराने स्वभाव संस्कारो के कखपन को योग अग्नि में स्वाहा करने के लिए अब मैं अपनी फ़रिश्ता ड्रेस बदली कर, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा के पास उनके परमधाम घर की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  एक सेकण्ड से भी कम समय की यह रूहानी यात्रा मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में पहुँचा देती है। अपने इस मुक्ति धाम घर मे आकर जीवन मुक्त स्थिति का अनुभव करते हुए मैं अपने प्यारे पिता के पास पहुँचती हूँ और उनके सानिध्य में बैठ, योग अग्नि को प्रज्ज्वलित कर, उनकी सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणो के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलन्त किरणें मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी जन्म - जन्मान्तर के विकारों की कट को जलाकर भस्म कर देती हैं*। योग अग्नि में अपने पुराने स्वभाव संस्कारो की आहुति देकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ।

 

_ ➳  अपने साकार शरीर रूपी रथ में, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए, देह सहित जो भी कखपन है वह सब शिव बाबा की बैंक में जमा करने की अपनी प्रतिज्ञा को परमात्म बल से मैं बिल्कुल सहज रीति पूरा करती जा रही हूँ। *कदम - कदम बाबा की श्रीमत पर चलते हुए अब मैं आसुरी अवगुण रूपी कखपन बाबा को दे, दिव्य गुणों को अपने जीवन मे धारण करके भविष्य के लिए बेहद सुख का वर्सा लेने की अधिकारी आत्मा बनती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वइच्छा और दृढ़ संकल्प से एक देकर पदम लेने वाली चतुरसुजान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं साक्षी बन न्यारे होकर हर खेल को देखते हुए साक्षी दृष्टा बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ त्याग मुश्किल तो नहीं लगता? सबको छोड़ना पड़ेगा। *अगर पुराने के बदले नया मिल जाए तो मुश्किल है क्या!* अभी-अभी मिलता है। भविष्य मिलना तो कोई बड़ी बात नहीं लेकिन अभी-अभी पुराना भान छोड़ो, फरिश्ता स्वरूप लो। जब पुरानी दुनिया के देह का भान छोड़ देते हो तो क्या बन जाते हो? डबल लाइट। अभी ही बनते हो। परन्तु अगर न यहाँ के न वहाँ के रहते हो तो मुश्किल लगता है। न पूरा छोड़ते हो, न पूरा लेते हो तो अधमरे हो जाते हो, इसलिए बार-बार लम्बा श्वांस उठाते हो। कोई भी बात मुश्किल होती तो लम्बा श्वांस उठता है। मरने में जो मजा है - लेकिन पूरा मरो तो। लेने में कहते हो पूरा लेंगे और छोड़ने में मिट्टी के बर्तन भी नहीं छोड़ेंगे। इसलिए मुश्किल हो जाता है। वैसे तो अगर कोई मिट्टी का बर्तन रखता है तो बापदादा रखने भी दें, बाप को क्या परवाह है! भल रखो। लेकिन स्वयं ही परेशान होते हो। इसलिए बापदादा कहते हैं छोड़ो। *अगर कोई भी पुरानी चीज रखते हो तो रिजल्ट क्या होती है? बार-बार बुद्धि भी उन्हों की ही भटकती है। फरिश्ता बन नहीं सकते।* इसलिए बापदादा तो और भी हजारों मिट्टी के बर्तन दे सकते हैं - कितना इकट्ठे कर लो। लेकिन जहाँ किचड़ा होगा वहाँ क्या पैदा होंगे? मच्छर! और मच्छर किसको काटेंगे? तो बापदादा बच्चों के कल्याण के लिए ही कहते हैं - पुराना छोड़ दो। अधमरे नहीं बनो। मरना है तो पूरा मरो, नहीं तो भले ही जिंदा रहो।

✺ *"ड्रिल :- मिट्टी के बर्तनों में ममत्व न रख इस पुरानी दुनिया से पूरा पूरा मरने का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि से उड़न खटोले पर बैठकर इस सॄष्टि का भ्रमण कर रही हूँ... *तेज हवाओं को चीरते हुए तेजी से इस प्रकृति की सॄष्टि की सुंदरता का आनंद ले रही हूँ... पेड़-पौधे की टहनियों को छूते हुए मैं पेड़ों से फूल तोड़ते हुए जा रही हूँ... हाथों में बहुत सारे फूल पत्तियाँ लेकर उड़ाती जा रही हूँ...* उड़न खटोले से जब मैं नीचे की ओर देखती हूँ तो बहुत ही मनमोहक दृश्य लगता है... मैं थोड़ा नीचे आती हूँ और अपने उड़न खटोले की रफ़्तार को कम करती हूँ और नीचे देखती हूँ... जहाँ एक व्यक्ति अपने हाथों से मिट्टी के बर्तन बना रहा है... मैं ये देखकर रुक जाती हूँ... और नीचे उतर जाती हूँ... नीचे उतरकर मैं उन मिट्टी के बर्तनों को अपने हाथ में उठा लेती हूँ... और गहराई से निहारती हूँ...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं उस बर्तन को लेकर तेज चलती हूँ... तभी वो बर्तन बनाने वाला वो व्यक्ति मेरे पास आकर कहता है... ये बर्तन बहुत ही नाजुक है... छोटी सी गलती से ये बर्तन टूट जायेगा... ये सुनकर मेरे कदम वहीँ रुक जाते हैं... और मैं उस व्यक्ति से कहती हूँ... आप मुझे इस बर्तन के बारे में और गहराई से बताइये... और फिर वो व्यक्ति मुझसे कहता है... जितना इसमे पानी शीतल होता है उतना ही ये कच्चा भी होता है... *इसे ये पता होते भी की एक दिन इसे मिट्टी में ही मिल जाना है... ये अपना कर्तव्य नहीं भूलता... वो ना ही इस मिट्टी से लगाव रखता है... चाहे ये कितने भी सुंदर और मनमोहक हो एक दिन इनकी मिट्टी ही हो जानी है...*

➳ _ ➳ और फिर वो व्यक्ति मुझे कहता है... मनुष्य भी इस मिट्टी के बर्तन की तरह ही है... चाहे वो कितना भी मनमोहक, कितना ही पद में ऊंच हो और कितना ही महान हो... अंत में वो पंचतत्व में विलीन ही हो जाता है... इसलिए हर व्यक्ति को इस देह रूपी मिट्टी के बर्तन से लगाव नहीं रखना चाहिए... *जब हम अपने असली स्वरूप को भूलते हैं तो देहभान में आ जाते है... और इससे जुड़े हर रिश्ते, हर बातें, दुःख, दर्द में हम फंस कर रह जाएंगे... अगर इंसान किसी भी पुरानी चीज को अपने पास रखता है तो उसे ये पुरानी चीज कभी बेफ़िक्र फ़रिश्ते के रुप में आगे बढ़ने नहीं देगी... जब भी फ़रिश्ता बनकर उड़ना चाहेंगे... ये पुरानी विनाशी चीज अपनी तरफ खींचेगी और तुरन्त नीचे उतार देगी...*

➳ _ ➳ कुछ देर बाद मैं उस व्यक्ति की बातें सुनकर वापिस अपने उड़न खटोले पर पहुँच जाती हूँ... और अपने बाबा को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... और फिर उड़ने लगती हूँ... उसी समय मैं बाबा से ये वादा करती हूँ... बाबा... *आज से मैं आत्मा इस मिट्टी रूपी देह से कोई लगाव नहीं रखूँगी... और ना ही इससे संबंधित कोई बातें भी याद रखूँगी... क्योंकि अगर मैं इन विनाशी चीजों को याद रखूँगी तो इससे मेरा पुरुषार्थ रुक जाएगा... और ना ही मैं फरिश्ता बनकर आपके साथ उड़ पाऊंगी*... इसलिए अब मैं हमेशा अपने आपको आत्मिक स्थिति में अनुभव करुँगी... और अपने आसपास रहने वाले सभी शरीर धारियों को सिर्फ और सिर्फ आत्मा के रूप में ही देखूंगी... ये वचन सुनकर बाबा मुझ आत्मा से बहुत प्रसन्न होते हैं... और मुस्कुराने लगते हैं... और हम तेज रफ्तार से उड़ने लगते हैं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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