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 09 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी मुश्किल, थकावट व उलझन का अनुभव तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *बापदादा को खुशखबरी का समाचार पत्र लिखा ?*

 

➢➢ *सदैव सेवा में बिजी रह सहज ही मायाजीत अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *स्वयं के लिए, साथियों के लिए, अन्य आत्माओं के लिए ज्वाला का किला बांधा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बीजरूप स्थिति में रहने का अभ्यास तो करो* लेकिन कभी लाइट-हाउस के रूप में, कभी माइट-हाऊस के रूप में, कभी वृक्ष के ऊपर बीज के रूप में, कभी सृष्टि-चक्र के ऊपर टॉप पर खड़े होकर सभी को शक्ति दो। कभी मस्तकमणि बन, कभी तख्तनशीन बन.... *भिन्न-भिन्न स्वरूपों का अनुभव करो। वैराइटी करो तो रमणीकता आयेगी, बोर नहीं होंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*

 

✧  कोई भी मेरापन, मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी नेचर, कुछ भी मेरा है तो बोझ है और बोझ वाला उड़ नहीं सकता, फरिश्ता नहीं बन सकता। तो फरिश्ते हो या कोई न कोई बोझ अभी रहा हुआ है? आइवेल के लिये थोड़ा-थोड़ा छिपाकर रखा है? मेरा-मेरा कहते मैले हो गये थे, अभी तेरा-तेरा कहते स्वच्छ बन गये। *तो फरिश्ता अर्थात् मेरापन अंशमात्र भी नहीं। संकल्प में भी मेरे पन का भान आये तो समझो मैला हुआ। किसी भी चीज के ऊपर मैल चढ़ जाये तो मैल का बोझ हो जायेगा ना। तो ये मेरापन अर्थात् मैलापन। फरिश्ते हैं, पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं।*

 

✧  *सेवा अर्थ हैं, रिश्ता नहीं है। सेवा भाव से सम्बन्ध में आते हो। गृहस्थी बनकर सेवा नहीं करते हो, सेवाधारी बनकर सेवा करते हो। ऐसे सेवाधारी हो? सेवास्थान समझते हो या घर समझते हो? तो जैसे सेवा स्थान की विधि होती है उसी विधि प्रमाण चलते हो कि गृहस्थी प्रमाण चलते हो? सेवास्थान समझने की विधि है न्यारे और बाप के प्यारे।* जरा भी मेरेपन का प्रभाव नहीं पड़े। आग है लेकिन सेक नहीं आये। क्योंकि साधन हैं ना। जैसे आग बुझाने वाले आग में जाते हैं लेकिन खुद सेक में नहीं आते, सेफ रहते हैं क्योंकि साधन हैं, अगर आग बुझाने वाले ही जल जाये तो लोग हंसेंगे ना। तो चाहे वायुमण्डल में परिस्थितियों की आग हो लेकिन प्रभाव नहीं डाले, सेक नहीं आये। ऐसे नहीं कि परिस्थिति नहीं है तो बहुत अच्छे और परिस्थिति आ गई तो सेक लग गया। तो ऐसे फरिश्ते हो ना।

 

✧  फरिश्ता कितना प्यारा लगता है! अगर स्वप्न में भी किसके पास फरिश्ता आता है तो कितना खुश होते हैं। *फरिश्ता जीवन अर्थात् सदा प्यारा जीवन। बाप प्यारे से प्यारा है ना तो बच्चे भी सदा सर्व के प्यारे से प्यारे हैं। सिर्फ बाल बच्चे, पोत्रे धोत्रों के प्यारे नहीं, हद के प्यारे नहीं, बेहद के प्यारे।* क्योंकि सर्व आत्मायें आपका परिवार हैं, सिर्फ 10-12 का परिवार नहीं है। कितना बड़ा परिवार है? बेहद। सर्व के प्यारे। चाहे कैसी भी आत्मा हो, लेकिन आप सर्व के प्यारे हो। जो प्यार करे उसके प्यारे हो, ये नहीं। सर्व के प्यारे। लड़ाई करने वाले, कुछ बोलने वाले प्यारे नहीं। ऐसे नहीं, सर्व के प्यारे। आप लोगों ने द्वापर से बाप को कितनी गाली दी, फिर बाप ने प्यार किया या घृणा की? hयार किया ना। तो फालो फादर।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे साकार ब्रह्मा बाप को देखा, सम्पूर्णता की समीपता की निशानी - *सेवा में रहते, समाचार सुनते-सुनते एकान्तवासी बन जाते थे। यह अनुभव किया ना।* एक घण्टे के समाचार को भी 5 मिनट में सार समझ बच्चों को भी खुश किया और अपनी अन्तर्मुखी, एकान्तवासी स्थिति का भी अनुभव कराया।

 

✧  *सम्पूर्णता की निशानी - अन्तर्मुखी, एकान्तवासी स्थिति चलते-फिरते, सुनते, करते अनुभव किया।* तो फालो फादर नहीं कर सकते हो? व्रह्मा वाप से ज्यादा जिम्मेवारी और किसको है क्या? व्रह्मा वाप ने कभी नहीं कहा कि मैं वहुत विजी हूँ। लेकिन बच्चों के आगे एग्जाम्पल बने। ऐसे अभी समय प्रमाण इस अभ्यास की आवश्यकता है।

 

✧  सब सेवा के साधन होते हुए भी साइलेन्स की शक्ति के सेवा की आवश्यकता होगी क्योंकि *साइलेन्स की शक्ति अनुभूति कराने की शक्ति है।* वाणी की शक्ति का तीर वहुत करके दिमाग तक पहुँचता है और अनुभूति का तीर दिल तक पहुँचता है। तो *समय प्रमाण एक सेकण्ड में अनुभूति करा लो* - यही पुकार होगी। सुनने-सुनाने के थके हुए आयेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ प्रकृति-पति हो, इस प्रकृति के खेल को देख हर्षित होते हो। *चाहे प्रकृति हलचल करे,चाहे प्रकृति सुन्दर खेल दिखाए - दोनों में प्रकृति-पति आत्माएं साक्षी हो खेल देखती हो। खेल में मज़ा लेते हैं, घबराते नहीं हैं।* इसलिए बापदादा तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के आसन पर अचल अडोल स्थित रहने का विशेष अभ्यास करा रहे हैं। तो यह स्थिति का आसन सबको अच्छा लगता है या हलचल का आसन अच्छा लगता है? *अचल आसन अच्छा लगता है ना। कोई भी बात हो जाए चाहे प्रकृति की, चाहे व्यक्ति की, दोनों अचल स्थिति के आसन को ज़रा भी हिला नही सकते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मायाजीत अवस्था का अनुभव"*

 

➳ _ ➳  *परमधाम की ऊंची स्थिति में स्थित मैं आत्मा...* बाबा के समीप पहुँच जाती हूँ... सुनहरा लाल... तेजोमय प्रकाश छाया है जहाँ... *वह निज धाम हैं मेरा... बिंदुओ का घर...  बिंदुओ का बाप बिन्दुरुप में स्थित है जहाँ...* सर्वत्र शांति ही शांति हैं... निःसंकल्पता अपना साम्राज्य फैलाएं हैं...   अखुट शांति की किरणों से परमधाम सजा हुआ हैं... और *मैं आत्मा अखुट शांति के साम्राज्य की मालिक बन गई हूँ...* बिन्दुरूपी बाप की किरणों को अपने मे समाती मैं आत्मा... बाबा के संग चलती हूँ... सूक्ष्म वतन की ओर... *दो बिंदु का सफर... एक बाप... एक बच्चा...* पहुँचते हैं सूक्ष्म वतन में... *बाबा का ब्रह्मा तन में प्रवेश का अलौकिक नजारा देख कर मैं आत्मा भावविभोर हो जाती हूँ...*

 

❉  *बापदादा ने अपनी प्यार भरी दृष्टि से मुझ आत्मा को फरिश्ता स्वरूप में इमर्ज कर बोले:-* "बच्ची... कौनसी दुनिया मे खो गई हों ? क्या मेरे साथ हों ? साथ चलते चलते कहीं साथ छूट तो नहीं गया ? बिंदु देश से स्थूल देश मे आकर अपनी पहचान को ही भूला दिया ? मुझ को भी भूल गई ? अब विस्मृति रूपी निंद्रा को तोड़... *उगते सूरज की पहली किरणों रूपी ज्ञान को जान... मुझ एक बाप को जान... अपनी अस्तित्व को जान...* इस स्थूल जगत के मोह-माया से मुक्त्त हो जाओ..."

 

➳ _ ➳  *बापदादा के हाथो में अपने हाथो को झुलाती... बाबा को देख मंद मंद मुस्कुरा कर मैंने कहा :-* "बाबा... पहले मैं इस मायावी जगत में खो गई थी... अब तो बस आप मे ही खो रही हूँ... संसार रूपी हद के समुंदर को पार कर... बिन्दुरूपी बेहद के महासागर में समा रही हूँ... *अपने स्वधर्म... सुख... शांति... और पवित्रता से... स्थूल जगत के मोह माया को... विकारों को... परास्त कर रही हूँ..."* बापदादा से आती हुई रंगबिरंगी किरणों के झरनों में अपने आप को सदा बहार बनाती जा रही हूँ..." 

 

❉  *मुझ आत्मा को अपने किरणों से भरपूर करते बाबा बोले :-* "मीठे बच्चे... संसार... विषय वैतरणी नदी समान है... 63 जन्मो से इस नदी में डूब रहे हो... अब इस संगमयुग में... *सच्ची प्रीत सिर्फ मुझसे रखो... मनसा... वाचा... कर्मणा... मेरे बन जाओ...* *पवित्रता की राह पर चलो...* अपने स्वधर्म में टिक जाओ... अपने स्वरूप को पहचानो... *तुम यह शरीर नहीं... शरीर को चलाने वाली आत्मा हो... शक्तियों की महा ज्योति हो..."*

 

➳ _ ➳  *अपने असली स्वधर्म... शक्तियो... को जान मैं आत्मा... अपने स्वरूप में आपेही स्थित हो कर अपने संस्कारो को बापदादा की अमानत समझ कर... बाबा से कह रही हूँ :-* "संभाल कर जतन कर रही हूँ मेरे बाबा... तेरी श्रीमत का... कदम... कदम पर तुझे ही पा रही हूँ मैं... तुझे ही महसूस कर रही हूँ... 63 जन्मों के विकारों से माया के जंजीरो से... खुद को मुक्त्त कर रही हूँ... *अपनी असली पहचान का स्वरूप बन रही हूँ मेरे बाबा..."*

 

❉  *मेरी प्यार भरी बातों से बापदादा मुस्कुरा कर बोले :-* "मेरी लाडली फूल बच्ची... मेरे रूप में समा जाओ... देह अभिमान के चोले से बाहर निकल... आत्मिक स्थिति की अधिकारी बन जाओ... *सर्वस्व समर्पण कर... बेहद के सर्वस्व की साम्राज्ञी बन जाओ... मैं आया हूँ तुम्हे ले जाने...* दुःखो से छुड़ाने... मोह- माया से ... विकारों से... मुक्त्त कर *परिस्तान की परी बनाने... अपने असली धाम... परमधाम में स्थित हो जाओ..."*

 

➳ _ ➳  *बापदादा के हाथों में अपना हाथ रखती में फरिश्ता... उसकी शक्तियों को... अपने में समाती मैं आत्मा... बाबा से कहती हूँ :-* "बाबा... आप से मिली शिक्षाओं को... सर आँखों पर रख... नखशिख पालन कर रही हूँ... *अपने स्वधर्म में स्थित हो कर...* अपने संगमयुग को... एक बाप की श्रीमत पर चल... आप की दिलतख्तनशीन बन रही हूँ... *अंतिम जन्म में... मोहजीत... मायाजीत... जगतजीत का वरदानी तिलक... बापदादा के हाथों... लगवाया हैं... इस स्मृति को सदैव मैं आत्मा अपने मन मंदिर में जागती ज्योत बनाकर रख रही हूँ..*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बापदादा को खुशखबरी का समाचार पत्र लिखना*"

 

_ ➳  अपने प्यारे से मीठे से मधुबन की मीठी मधुर स्मृतियों में खोई मैं याद कर रही हूँ उन खूबसूरत पलो को जब साकार में भगवान के साथ मैं आत्मा उनकी अवतरण भूमि पर उसके साथ साकार मिलन मनाने का सुख प्राप्त करती हूँ। *वो भगवान जिसके दर्शन मात्र की दुनिया प्यासी है, वो मधबुन के इस मीठे से आँगन में मेरे सम्मुख आकर मुझे अपनी नजरो से कैसे निहाल करता है! यह सोचकर अपने भाग्य पर मुझे नाज होता है कि कितनी श्रेष्ठ और महान आत्मा हूँ मैं जिसके साथ सारी सृष्टि को चलाने वाले भगवान का डायरेक्ट मिलन होता है*। भगवान साकार में आकर कैसे मुझ पर अपना अथाह स्नेह लुटाते हैं! अपनी शक्तिशाली दृष्टि से कैसे मेरे अंदर विशेष बल भरते हैं! वरदानों से कैसे मेरी झोली भरते हैं और कैसे अपने हाथों से मुझे टोली खिलाते हैं! ये सभी दृश्य एक - एक करके मेरी आँखों के सामने स्पष्ट हो रहें हैं और इन दृश्यों को देखती मैं मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करती हूँ कि "वाह मैं खुशनसीब आत्मा वाह", "वाह मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य वाह"।

 

_ ➳  ऐसे अपने भाग्य की सराहना करती मैं मन बुद्धि से कब अपने मीठे मधुबन घर में पहुँच जाती हूँ, पता ही नही चलता। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को मधुबन के उस स्थान पर जहाँ भगवान अपने साकार रथ पर विराजमान होकर बच्चों के साथ मिलन मनाते है। *मधुबन के इस स्थान डायमंड हाल मे मैं मन बुद्धि से उपस्तिथ हूँ और देख रही हूँ डायमंड हाल की स्टेज पर परमात्मा के साकार रथ गुलजार दादी जी को जिनके शरीर रूपी रथ का आधार कुछ ही सेकेण्ड में भगवान अपने बच्चों के साथ मिलन मनाने के लिए लेने वाले हैं*। प्रभु प्रेम की मस्ती में दादी जी का मुखमण्डल एक दिव्य आभा से दमक रहा है और दादी जी एक सम्पूर्ण तपस्वीमूर्त आत्मा दिखाई दे रही हैं। कुछ ही सेकण्ड में दादी जी के शरीर मे बापदादा की पधरामणि होती है और बाबा वहाँ उपस्थिति अपने एक एक ब्राह्मण बच्चे को अपनी नजरों से निहाल करने लगते हैं।

 

_ ➳  पूरे डायमण्ड हॉल में बापदादा की दृष्टि चारों और घूम रही है और अपने एक - एक बच्चे को आत्म बल दे रही है। देख रही हूँ मैं प्रभु मिलन का ये सुंदर नजारा जो इस समय डायमण्ड हाल में चल रहा है। *अपने नयनों से सबको दृष्टि देकर, नजर से निहाल करते भगवान बाप के साथ अद्भुत मंगल मिलन मनाती हजारों ब्राह्मण आत्मायें परमात्म प्रेम में मग्न हो कर कैसे झूम रही हैं! कैसे बापदादा सभी को अपनी नजरो से निहाल करके, मधुर महावाक्य सुना रहे हैं* और उन महावाक्यों को सुन कैसे सभी आनन्द के झूले में झूला झूल रहें हैं!, इस अति खूबसूरत दृश्य को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। और इस परमात्म मिलन का असीम सुख ले रही हूँ।

 

_ ➳  इस सुन्दर नजारे को देखते हुए अपने भगवान बाप से और समीप जाकर मिलन मनाने की इच्छा मुझे डायमण्ड हाल की स्टेज पर ले आई है। देख रही हूँ मैं स्वयं को स्टेज पर बापदादा के बिल्कुल सामने। दादी जी के स्थान पर अपने सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में चमक रहे ज्ञान सूर्य  शिव बाबा को मैं अब देख रही हूँ। *बापदादा के सम्मुख बैठ उनसे दृष्टि लेते हुए मैं स्वयं को परमात्म शक्तियो से भरपूर कर रही हूँ। बापदादा के मस्तक से निकल रही सर्वशक्तियों की लाइट मुझे छू कर मेरे अंदर असीम बल भर रही है और मुझे उनके समान लाइट माइट बना रही है*। धीरे - धीरे मैं अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण करती जा रही हूँ। बापदादा की लाइट माइट पाकर, अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं बापदादा का हाथ थामे डायमण्ड हाल से निकल कर अपने अव्यक्त वतन की ओर जा रही हूँ।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं स्वयं को अपने अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने जिनकी लाइट माइट से पूरा वतन प्रकाशित हो रहा है। चारों और चांदनी सा सफेद प्रकाश फैला हुआ है, लाइट के सूक्ष्म शरीर धारण किये फरिश्ते ही फरिश्ते चारों और विचरण करते हुए मुझे दिखाई दे रहें हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे फरिश्तो की एक बहुत खूबसूरत दुनिया में मैं आ गई हूँ और इन फरिश्तो के साथ इस दुनिया की सैर कर रही हूँ। यहाँ के खूबसूरत नज़ारो को देख रही हूँ। थोड़ी देर वतन के खूबसूरत नज़ारो का आनन्द लेकर अब मैं अपने प्यारे बापदादा के साथ कुछ क्षण बैठ कर, उनके साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करके, उनसे वरदान लेकर, उनके गुणों और शक्तियो से भरपूर होकर अब वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर अपने कर्मक्षेत्र रूपी सेवा स्थल पर हर कार्य को सेवा समझ निमितपन की स्मृति में रहकर, हर कर्म अब मैं बाबा की याद में रहकर सम्पन्न कर रही हूँ। बापदादा को अपनी खुशखबरी का सारा समाचार उन्हें पत्र के माध्यम से लिख कर अब मैं बताती रहती हूँ। *आज मैंने यह विशेष सेवा की, यह विशेष अनुभव किया, मनसा के सेवा की अनुभूति की, किसी दिलशिकस्त आत्मा को दिलखुश बनाया, गिरे हुए को उठाया ऐसे हर समाचार बापदादा को सुनाकर, उमंग उत्साह में रहकर माया के विघ्नों से सदा सेफ रहते हुए, अपने खुशहाल ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपनी शुभ भावना से हर आत्मा को दुआ देने वाली और क्षमा करने वाली कल्याणकारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं रूहानियत में रहकर स्वमान की सीट पर बैठने वाली सदा सुखी, सर्व प्राप्ति स्वरूप    आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *साधन ही नहीं है और कहोहमको तो वैराग्य हैतो कौन मानेगासाधन हो और वैराग्य हो।* पहले के साधन और अभी के साधनों में कितना अन्तर हैसाधना छिप गई है और साधन प्रत्यक्ष हो गये हैं। अच्छा है साधन बड़े दिल से यूज करो क्योंकि साधन आपके लिए ही हैंलेकिन साधना को मर्ज नहीं करो। बैलेन्स पूरा होना चाहिए। जैसे दुनिया वालों को कहते हो कि कमल पुष्प समान बनो तो साधन होते हुए कमल पुष्प समान बनो। साधन बुरे नहीं हैं, साधन तो आपके कर्म कायोग का फल हैं। लेकिन वृत्ति की बात है। *ऐसे तो नहीं कि साधन के प्रवृत्ति मेंसाधनों के वश फंस तो नहीं जातेकमल पुष्प समान न्यारे और बाप के प्यारे। यूज करते हुए उन्हों के प्रभाव में नहीं आयेन्यारे।* साधनबेहद की वैराग्य वृत्ति को मर्ज नहीं करे। अभी विश्व अति में जा रही है तो अभी आवश्यकता है - सच्चे वैराग्य-वृत्ति की और वह वायुमण्डल बनाने वाले आप हो, पहले स्वयं मेंफिर विश्व में। 

 

✺   *ड्रिल :-  "साधन और साधनों का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता उड़ चली हूं... अपने प्यारे बाबा के पास... मेरे बाबा सिंहासन पर विराजमान है... उनकी नजर मुझ पर पड़ी और मेरी नजर उन पर हम दोनों एक दूसरे में समा गए हैं... *और मैं गहरी शांति का अनुभव कर रही हूं...* जैसे समुंदर में पानी है उसकी गहराई में समा जाते हैं... उसी तरह बाबा की यादों में समा गई हूं...

 

 _ ➳  बाबा मुझे कुछ कह रहे हैं... मैं बड़े प्यार से सुन रही हूं... मेरे मीठे प्यारे बच्चे-यह जो साधन है... आप को सहारा देने वाला है... आपकी मदद करने वाला है... *जब कभी आप उदास होते हो तो साधनों का उपयोग कर सकते हो... लेकिन मीठे प्यारे बच्चे साधन के सहारे कभी नहीं जीना...* जैसे बच्चा चलता है... उंगली पकड़कर उसे सहारा देते हैं... लेकिन जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है... तब उसका सहारा हट जाता है... ऐसे आप भी अपने पैरों पर खड़े होकर साधन के वश नहीं साधना के वश रहो... अपने मन की गहरी शांति के लिए किसी साधन को यूज़ करते हो... लेकिन आप तो शांत स्वरुप आत्मा हो... अपनी शक्तियों को इमर्ज करो और समय पर कार्य में लगाओ...

 

 _ ➳  जैसे आप कहते हो कमल पुष्प समान पवित्र बनो... जैसे कीचड़ में कमल होता है... लेकिन कीचड़ से उपराम रहता है... *आप भी बिना किसी साधन के इस भव सागर में कमल फूल समान पवित्र हो...* अब मैं समझ गई हूं... मुझे क्या करना है... साधनों का सहारा लेना है... लेकिन उस के सहारे नहीं जीना अपने साधन से कार्य करना है... मेरे प्राण प्यारे बाबा मुझे क्या-क्या सिखा रहे हो जो बाबा चाहे वही मैं कर रही हूं...

 

 _ ➳  बाबा मुझमें सर्व शक्तियां दे रहे हैं... और मैं सर्व शक्तियों को समाती जा रही हूं... मेरा एक रुप निखर गया है... मैं *संपूर्ण बाप समान बन गई हूं...* संपूर्ण फरिश्ता बन गई हूं... अब मैं धीरे-धीरे साकार वतन में आती हूं... और पवित्रता की किरणें पूरे वायुमंडल में फैला रही हूं... सारा वायुमंडल पवित्र शुद्ध बन गया है... *अब मैं सारे विश्व में बाबा की शक्तियों को फैला रही हूं...* इससे सारी विश्व की आत्माएं शांति अनुभव कर रही है... और सर्वात्मा बापदादा की तरफ आ रही है... समय प्रमाण इन आत्माओं को बापदादा की तरफ ले जाती हूं... बापदादा अपनी बाहों में समा लेते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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