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 13 / 12 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आत्माओं को प्राण देने की सेवा की ?*

 

➢➢ *नींद को जीत याद को बढाया ?*

 

➢➢ *समय प्रमाण रूप बसंत अर्थात ग्यानी व् योगी आत्मा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *तूफ़ान मचाने वाले को भी शांति का तोहफा दिया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *सदा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई-भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं, दिलशिकस्त भी नहीं बनो।* निश्चयबुद्धि हो, मेरेपन के सम्बन्ध से न्यारे हो शान्ति और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं निर्बन्धन आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अपने को निर्बन्धन आत्मा महसूस करते हो? किसी भी प्रकार का बन्धन तो नहीं महसूस करते? *नालेजफुल की शक्ति से बन्धनों को खत्म नहीं कर सकते हो? नालेज में लाइट और माइट दोनो हैं ना।* नालेजफुल बन्धन में कैसे रह सकते हैं? 

 

✧  *जैसे दिन और रात इक्ठ्ठा नहीं रह सकते, वैसे मास्टर नालेजफुल और बन्धन, यह दोनों इक्ठ्ठा कैसे हो सकते?* नालेजफुल अर्थात् निर्बन्धन। बीती सो बीती। जब नया जन्म हो गया तो पास्ट के संस्कार अभी क्यों इमर्ज करते हो?

 

✧  जब ब्रह्माकुमारकुमारी बन गये तो बन्धन कैसे हो सकता? ब्रहमा बाप निर्बन्धन है तो बच्चे बन्धन में कैसे रह सकते? *इसलिए सदा यह स्मृति में रखो कि हम मास्टर नालेजफुल हैं। तो जैसा बाप वैसे बच्चे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  (बापदादा ने ड़िल कराई) मन के मालिक हो ना! तो सेकण्ड में स्टॉप, तो स्टॉप हो जाए। ऐसा नहीं आप कहो स्टॉप और मन चलता रहे, इससे सिद्ध है कि मालिक-पन की शक्ति कम है। *अगर मालिक शक्तिशाली है तो मालिक के डायरेक्शन बिना मन एक संकल्प भी नहीं कर सकता।*

स्टॉप, तो स्टॉप। चलो, तो चले।

 

✧   जहाँ चलाने चाहो वहाँ चले। ऐसे नहीं कि मन को बहुत समय की व्यर्थ तरफ चलने की आदत है, तो आप चलाओ शुद्ध संकल्प की तरफ और मन जाये व्यर्थ की तरफ तो यह मालिक को मालिक-पन में चलाना नहीं आता। यह अभ्यास करो। *चेक करो स्टॉप कहने से, स्टॉप होता है?*

 

✧  या कुछ चलकर फिर स्टॉप होता है? अगर गाडी में ब्रेक लगानी हो लेकिन कुछ समय चलकर फिर ब्रेक लगे, तो वह गाडी काम की है? ड्राइव करने वाला योग्य है कि एक्सीडेन्ट करने वाला है? *ब्रेक, तो फौरन सेकण्ड मे ब्रेक लगनी चाहिए।* यही अभ्यास कर्मातीत अवस्था के समीप लायेगा। संकल्प करने के कर्म में भी फुल पास।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे साइंस के यन्त्र दूरबीन द्वारा दूर की सीन को नज़दीक में देखते हैं ऐसे ही याद के नेत्र द्वारा, अपने फ़रिश्तेपन की स्टेज द्वारा दूर का दृश्य भी ऐसे ही अनुभव करेंगे जैसे साकार नेत्रों द्वारा कोई दृश्य देख आये। बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देंगे अर्थात् अनुभव होगा।* साइंस का मूल आधार है लाइट। लाइट के आधार से साइंस का जलवा है। लाइट की ही शक्ति है। ऐसे ही सालेन्स की शक्ति का आधार है डिवाइन इनसाइट । इन द्वारा साइलेन्स की शक्ति के बहुत वन्डरफुल अनुभव कर सकते हो। यह भी अनुभव होंगे। जैसे स्थूल साधन द्वारा सैर कर सकते हैं वैसे ही जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ का अनुभव कर सकते हो। *न सिर्फ इतना जो सिर्फ आपको अनुभव हो लेकिन जहाँ आप पहुँचो उन्हों को भी अनुभव होगा कि आज जैसे प्रैक्टिकल मिलन हुआ। यह है सफलतामूर्त की सिद्धि।* वह तो रिवाजी आत्माओं को भी सिद्धि प्राप्त होती है। एक ही समय अनेक स्थानों पर अपना रूप प्रकट कर सकते और अनुभव करा सकते हैं। वह तो अल्प काल की सिद्धि है, लेकिन यह है ज्ञानयुक्त सिद्धि। ऐसे अनुभव भी बहुत होंगे। आगे चल कर कई नई बातें भी तो होंगी ना? *जैसे शुरू में घर बैठे ब्रह्मा रूप का साक्षात्कार होता था जैसे कि प्रैक्टिकल कोई बोल रहा है, इशारा कर रहा है, ऐसे ही अन्त में भी निमित्त बनी हुई शक्ति सेना का अनुभव होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  *"ड्रिल :- बुद्धियोग देह सहित देह के सब संबंधो से तोडना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा देह, देह के संबंधो के, देह की दुनिया, वस्तु, वैभवों के जाल में फसी हुई थी... दुनियावी संबंधों के ताने-बाने में उलझ कर इधर-उधर भटक रही थी... इन जीवन बन्धनों में बंधी मैं आत्मा छटपटा रही थी... कोटो में से मेरी पुकार सुनकर मेरे सच्चे पिता ने ज्ञान-योग की कैंची से मुझ आत्मा के बन्धनों की रस्सियों को काटकर मुझे इस जाल से आजाद कराया...* गुण-शक्तियों का बल देकर आजाद पंछी की तरह मुझे उड़ना सिखाया... मैं आत्मा इस देह रूपी वस्त्र को छोडकर प्रकाश का वस्त्र धारण कर... उड़ चलती हूँ प्रकाश की दुनिया में... जहाँ बापदादा बैठे मेरा इन्जार कर रहे हैं...

 

  *प्यारे बाबा दैहिक बन्धनों में भटकते हुए मेरे मन-बुद्धि को अपने स्नेह के सम्बन्ध में बांधते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... अब देह के मटमैले रिश्तो में स्वयं को मैला न करो... आत्मा के भान में रह आत्मिक अनुभूतियों का आनंद लो... श्रीमत के साये में फूलो सा जीवन संवार चलो... *विनाशी सम्बन्धो से निकलकर अविनाशी आत्मा के नशे में खो जाओ... एक बाप से बुद्धियोग लगाकर सब बंधन समाप्त करो... ईश्वरीय साथ के अमूल्य पलों में खुद को कहीं भी न उलझाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बापदादा की बाँहों में समाकर बाबा के लाड-प्यार में खुश होती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा सच्चे प्यार को पाकर प्रेम दीवानी हो गयी हूँ... प्यारे बाबा... सच्चे प्यार की बून्द को तरसती मै आत्मा... आज सागर को पाकर तृप्त हो गयी हूँ...* आपके साथ और श्रीमत के हाथ को पकड़कर असीम खुशियो से भर गयी हूँ...

 

  *मीठे बाबा अपनी मीठी-मीठी दुआओं से मेरा दामन सजाते हुए कहते हूँ:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्ची प्रीत सच्चे माशूक संग रखकर प्रेम के पर्याय बन सदा के खुशनुमा हो जाओ... *श्रीमत को रोम रोम में बसाकर देह के बन्धनों से मुक्त हो जाओ... संगम के सुनहरे पलों को ईश्वर पिता की यादो में समाकर असीम खुशियो से भरे भाग्य को पा लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा विनाशी बन्धनों से मुक्त होकर बाबा के अविनाशी स्नेह के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा देह के बन्धनों में कितनी उलझी सी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे उलझनों से निकाल श्रीमत पर सदा का सुखी बनाया है... मेरा जीवन फूलो जैसा हल्का और खुशनुमा बनाया है...* मै आत्मा इन मीठी यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख पा रही हूँ...

 

  *मेरे बाबा हद के दुखों से छुड़ाकर बेहद के सुख की दुनिया में ले जाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *इस झूठ की दुनिया में सच्चे प्यार की बून्द की आस भी छलावा है... इसलिए प्यार के सागर में, प्रेम की अनन्त गहराइयो में डूब जाओ... और अतृप्त मन की प्यास बुझाओ...* और प्रेम अमृत में अमरता को पाकर अथाह सुखो में मुस्कराओ... सच्चे प्रियतम से जुड़कर प्रेम तरंगो से भर जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के पारलौकिक प्रेम के सागर की गहराइयों में डूबती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को देह के रिश्तो में सच्चा प्यार कभी न मिला... हर रिश्ते ने ठगा और खोखला किया... *अब आपकी यादो की छत्रछाया में कितनी शीतल, कितनी सुखी और प्रेममय हो गयी हूँ... देह के सारे भ्रम से निकल अपने और पिता के स्वरूप पर मन्त्रमुग्ध हो गयी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धियोग भटकाना नही है*"

 

_ ➳  अपने मन बुद्धि को जैसे ही अपने सुंदर सलौने निराकार भगवान पर एकाग्र करती हूँ मेरे भगवान बाप का मन को लुभाने वाला सुन्दर सलौना स्वरूप आंखों के सामने उभर आता है और उनके इस अति सुंदर विचित्र स्वरूप को निहारते - निहारते मैं एक दम अशरीरी होकर अपने निज स्वरूप में टिक जाती हूँ। *इस देह में होते हुए भी अब मुझे केवल मेरा ज्योति बिंदु स्वरूप ही दिखाई दे रहा है। मेरा यह स्वरूप असीम आनन्दमयी सुकून देने वाला है*। इस स्वरूप में स्थित होते ही मेरे अंदर निहित गुण और शक्तियाँ इमर्ज हो जाती हैं और मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का सहज अनुभव होने लगता है।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं अपने सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति से सम्पन्न अपने इस स्वरुप को जो मुझे उस सत्यता का बोध करवा रहा है जिस सत्यता से मैं आज दिन तक अनजान थी। *63 जन्मो से स्वयं को देह समझ अपनी बुद्धि को यहाँ - वहाँ भटका कर दुख और निराशा भरा जीवन जी रही थी*। किन्तु अपने इस सत्य स्वरूप का बोध होते ही सारी भटकन समाप्त हो गई। मन उस बिंदु पर एकाग्र हो गया जहाँ गहन शांति ही शांति है। मन मे कोई भटकाव, कोई उलझन कोई संशय नही। *अपने निज स्वरूप में खो कर हर संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुन्दर सुखमय स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ*।

 

_ ➳  भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान अपने असीम आनन्दमयी स्वरूप का गहराई तक अनुभव करके अब मैं भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने विदेही पिता से मिलन मनाने एक खूबसूरत रूहानी यात्रा की ओर चल पड़ती हूँ। *मन को इस अति सुंदर रूहानी यात्रा पर एकाग्र कर, बुद्धि से इस रूहानी यात्रा के खूबसूरत नज़ारों का आनन्द लेती मैं मन बुद्धि की इस सुंदर यात्रा पर निरन्तर बढ़ती जा रही हूँ*। अपनी मंजिल को स्पष्ट अपने सामने देखती हुई अपने मन बुद्धि को इधर - इधर भटकाये बिना मैं सीधे अपनी मंजिल की ओर जा रही हूँ। कुछ ही पलों की इस रूहानी यात्रा को पूरा कर अब मैं अपनी मंजिल अपने घर शान्तिधाम में पहुँच चुकी हूँ।

 

_ ➳  अथाह शांति से भरपूर इस शान्तिधाम घर मे फैले शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे उस वास्तविक शांति का अनुभव करवा रहें हैं जिसकी तलाश में मैं आज दिन तक भटक रही थी। *शांति की इस अनोखी जादुई शक्ति का अनुभव करते - करते इस शक्ति के जन्मदाता, शांति के सागर अपने शिव पिता के मैं समीप पहुँचती हूँ और अपने मन बुद्धि को पूरी तरह उनके ऊपर एकाग्र कर लेती हूँ*। उनके समीप बैठ उनके सर्व गुणों, सर्व शक्तियों की एक - एक किरण को गहराई तक मैं स्वयं में आत्मसात करती जा रही हूँ। *बाबा के अनन्त गुण, अनन्त शक्तियाँ मेरे अंदर समाकर मेरे अंदर निहित गुणों और शक्तियों को कई गुना बढ़ा रहें हैं। सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से मैं स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*।

 

_ ➳  शक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर अब मै आत्मा फिर से साकार सृष्टि पर अपना पार्ट बजाने के लिए अपनी साकार देह में प्रवेश करती हूँ। और सृष्टि रंगमंच पर अपना हीरो पार्ट बजाने के लिए भृकुटि के अकालतख्त पर फिर से विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं सदैव अपने निराकारी स्वरूप की स्मृति में रहती हूँ*। स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सदा सेट रहकर अपनी कर्मेन्द्रियों की मालिक बन अपनी इच्छा से हर कर्मेन्द्रिय को चलाते हुए, *अपने मन बुद्धि को इधर - उधर भटकने से बचा कर, अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने सत्य स्वरूप पर और अपने पिता परमात्मा पर एकाग्र कर, उनके सानिध्य में रहते हुए, उनसे मिलने वाले अतीन्द्रीय सुख का रसपान सदैव करती रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं समय प्रमाण रूप-बसन्त अर्थात ज्ञानी तू योगी आत्मा बनने वाली स्व शासक     आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं तूफान मचाने वालों को भी शान्ति का तोहफा देने वाला शान्तिदूत हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. डबल फारेनर्स के फेवरेट दो शब्द कौन से हैं? (कम्पैनियन और कम्पनी) यह दोनों पसन्द हैं। अगर पसन्द हैं तो एक हाथ उठाओ। भारत वालों को पसन्द हैं? *कम्पैनियन भी जरूरी है और कम्पनी भी जरूरी है। कम्पनी बिना भी नहीं रह सकते और कम्पैनियन बिना भी नहीं रह सकते।* तो आप सबको क्या मिला है? कम्पैनियन मिला हैबोलो हाँ जी या ना जी? (हाँ जी) कम्पनी मिली है? (हाँ जी) ऐसी कम्पनी और ऐसा कम्पैनियन सारे कल्प में मिला था? कल्प पहले मिला थाऐसा कम्पैनियन जो कभी भी किनारा नहीं करताकितना भी नटखट हो जाओ लेकिन वह फिर भी सहारा ही बनता है। और जो आपके दिल की प्राप्तियां हैंवह सर्व प्राप्तियां पूर्ण करता है।

 

 _ ➳  2. तो बापदादा सभी बच्चों को यही रिवाइज करा रहे हैं कि सदा बाप के कम्पनी में रहो। बाप ने सर्व सम्बन्धों का अनुभव कराया है। कहते भी हो कि बाप ही सर्व सम्बन्धी है। *जब सर्व सम्बन्धी है तो जैसा समय वैसे सम्बन्ध को कार्य में क्यों नहीं लगाते! और यही सर्व सम्बन्ध का समय प्रति समय अनुभव करते रहो तो कम्पैनियन भी होगा, कम्पनी भी होगी। और कोई साथियों के तरफ मन और बुद्धि जा नहीं सकती। बापदादा आफर कर रहे हैं - जब सर्व सम्बन्ध आफर कर रहे हैं तो सर्व सम्बन्धों का सुख लो। सम्बन्धों को कार्य में लगाओ।* बापदादा जब देखते हैं - कोई- कोई बच्चे कोई-कोई समय अपने को अकेला वा थोड़ा सा नीरस अनुभव करते हैं तो बापदादा को रहम आता है कि ऐसी श्रेष्ठ कम्पनी होते, कम्पनी को कार्य में क्यों नहीं लगातेफिर क्या कहते? *व्हाई-व्हाई बापदादा ने कहा व्हाई नहीं कहो, जब यह शब्द आता है, व्हाई निगेटिव है और पाजिटिव है 'फ्लाई', तो व्हाई-व्हाई कभी नहीं करनाफ्लाई याद रखो। बाप को साथ साथी बनाए फ्लाई करो तो बड़ा मजा आयेगा।* वह कम्पनी और कम्पैनियन दोनों रूप से सारा दिन कार्य में लाओ। ऐसा कम्पैनियन फिर मिलेगा? बापदादा इतने तक कहते हैं - अगर आप दिमाग से वा शरीर से दोनों प्रकार से थक भी जाओ तो कम्पैनियन आपकी दोनों प्रकार से मालिश करने के लिए भी तैयार है। मनोरंजन कराने लिए भी एवररेडी हैं। फिर हद के मनोरंजन की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। ऐसा यूज करना आता है वा समझते हो बड़े से बड़ा बाबा हैटीचर हैसतगुरू है...लेकिन सर्व सम्बन्ध हैं। 

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप को कम्पेनियन और कम्पनी दोनों रूप से यूज करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा रूपी बच्ची मन-बुद्धि द्वारा एक सुंदर से घर में पहुँचती हूँ... वहाँ मैं अकेली हूँ ,उदास हूँ... वहाँ बहुत सन्नाटा हैं... अचानक से दरवाजा खुलते ही बाबा माँ के रूप में आते हैं और मैं तेज़ी से दौड़कर अपनी माँ के गले लग जाती हूँ...* ऐसा सुकून मैंने आज तक महसूस नहीं किया जैसा अब कर रही हूँ... फिर माँ मुझे बड़े प्यार से नहलाती हैं और सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनाती हैं... प्यारे कोमल हाथों से मेरे बालों की मालिश करती हैं...

 

_ ➳  माँ मुझे अपने हाथों से खाना बनाकर मुझे खिलाती हैं... फिर हम मनोरंजन करते है... हम दोनों छुपन-छुपाई का खेल खेलते हैं... *माँ मुझे बड़े ही प्यार से मखमल चादर ओढ़कर अपने पास सुला लेतीं है और मैं उनकी बाहों से लिपटकर सो जाती हूँ... मुझे सपनों में भी माँ ही दिखाई दे रहीं हैं...*

 

_ ➳  *फिर वह मुझे बड़े प्यार से शांति और पवित्रता की किरणें न्यौछावर कर रहीं हैं... मैं सर्व खजानों का अनुभव कर रहीं हूँ... वह मेरी माँ ही नहीं बल्कि सतगुरु, बाप, भाई, बहन, सब कुछ हैं...* सतगुरु के रूप में वह मुझे सदगति देते हैं, बाप के रूप में वह मुझे सूक्ष्म और स्थूल चीज़े देते हैं, भाई के रूप में रक्षा करते हैं, बहन के रूप में सारी बातें मैं उनसे शेयर करती हूँ...

 

_ ➳  मेरा अकेलापन अब दूर हो चुका हैं... *बाबा मेरे सच्चे कम्पैनियन हैं... वह मुझे रोज़ कम्पनी देते हैं... अब कोई साथियों की तरफ मन और बुद्धि नहीं जाती हैं... अब मेरे मुख से व्हाई नाम का शब्द तक नहीं निकलता... अब पूरा दिन बाबा की गोदी में फ्लाई करती रहती हूँ...* झूमती ही रहती हूँ... बाबा के प्यार में ही खोई रहती हूँ... उन्हीं की कम्पनी का सहारा लेकर सारी बाते उनसे शेयर करती हूँ...

 

 _ ➳  अब मैं हद के मनोरंजन का सहारा नहीं लेती हूँ... बाबा के साथ ही खेलती हूँ... अगर हद के मनोरंजन में जाना भी पड़ जाए तो बाबा को साथी बनाकर ले जाती हूँ... *जब कभी मैं दिमाग व शरीर से थक जाऊँ तब वह मेरी दोनों प्रकार से मालिश करते है... मैं कितना भी नटखट हो जाऊँ परन्तु वह मेरा सहारा बनकर हर कदम में मेरा साथ देते हैं...* अब दुःख आते हुए भी दुःख की महसूसता नहीं होती हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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