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 15 / 06 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर सच्चा व्यापारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान डांस सीखी और सीखाई ?*

 

➢➢ *करन करावनहार की स्मृति से विघनो के बीज को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *बाप और पढाई से समान प्यार रख ज्ञान स्वरुप बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी ज्वालामुखी बन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव सब-कुछ भस्म करो। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से असुरों का संघार किया। असुर कोई व्यक्ति नहीं लेकिन आसुरी शक्तियों को खत्म किया।* यह अभी आपकी ज्वाला-स्वरूप स्थिति का यादगार है। अब ऐसी योग की ज्वाला प्रज्जवलित करो जिसमें यह कलियुगी संसार जलकर भस्म हो जाये।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी आत्मा हूँ"*

 

  अपने को राजयोगी अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन सा है? आसन किसको कहेंगे? भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं। कभी अपने स्वमान की स्थिति में स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है। कभी बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में स्थित होते तो वह दिलतख्त स्थिति आसन बन जाती है। *जैसे आसन पर स्थित होते हैं, एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो। तो वेरायटी अच्छा लगता है ना।* एक ही चीज कितनी भी बढिया हो, लेकिन वही चीज बार बार अगर यूज करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वेरायटी अच्छी लगेगी। तो बापदादा ने वेरायटी स्थितियों के वेरायटी आसन दे दिये है।

 

  सारे दिन में भिन्नभिन्न स्थितियों का अनुभव करो। *कभी फरिश्ते स्थिति का, तो कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति का, कभी प्यार स्वरुप स्थिति अर्थात् लवलीन स्थिति के आसन पर बैठ जाओ। ओर अनुभव करते रहो। इतना अनुभवी बन जाओ, बस संकल्प किया फरिश्ता, सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। ऐसे नहीं , मेहनत करनी पड़े।* सोचते रहो मैं फरिश्ता हूँ, और बार बार नीचे आ जाओ। ऐसी प्रैक्टिस है? संकल्प किया और अनुभव हुआ। जैसे स्थूल में जहाँ चाहते हो बैठ जाते हो ना। सोचा और बैठा कि युद्ध करनी पड़ती है - बैठँ या न बैठूँ?

 

  *तो यह मन बुद्धि की बैठक भी ऐसी इजी होनी चाहिए। जब चाहो तब टिक जाओ। इसको कहा जाता है - राजयोगी राजा। राजा बनने का युग है। राजा क्या करता है? आर्डर करता है ना? राजयोगी जैसे मनबुद्धि को आर्डर करे, वैसे अनुभव करें।* ऐसे नहीं कि मन-बुद्धि को आर्डर करो, फरिश्ता बनो और नीचे आ जाए। तो राजा का आर्डर नहीं माना ना। तो राजा वह जिसका प्रजा आर्डर माने। नहीं तो योग्य राजा नहीं कहा जायेगा। काम का राजा नहीं, नाम का राजा कहा जायेगा। तो आप कौन हो? सच्चे राजा हो। कर्मेन्द्रिया आर्डर मानती हैं? मन-बुद्धि संस्कार सब अपने आर्डर में हों। ऐसे नहीं, क्रोध काना नहीं चाहता लेकिन हो गया। बॉडी कान्सेस होना नहीं चाहता लेकिन हो जाता हूँ तो उसाके ताकत वाला राजा कहेंगे या कमजोर? तो सदैव यह चैक करो कि मैं राजयोगी आत्मा, राज्य अधिकारी हूँ? अधिकार चलता है? कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं देवे। आज्ञाकारी हों।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अभी विशेष काम क्या करेंगे। सुनाया था ना कि याद की यात्रा का, हर प्राप्ति का और भी अन्तरमुख हो, *अति सूक्ष्म और गुह्य ते गुह्य अनुभव करो*, रिसर्च करो, संकल्प धारण करो और फिर उसका परिणाम देखो, सिद्धि देखो - जो संकल्प किया वह सिद्ध हुआ या नहीं? *जो शक्ति धारण की उस शक्ति की प्रैक्टिकल रिजल्ट कितने परसेन्ट रही?*

 

✧  अभी अनुभवों की गुह्यता की प्रयोगशाला में रहना। ऐसे महसूस हो जैसे यह सब कोई विशेष लगन में मगन इस संसार से उपराम है। *कर्म और योग का बैलेंस और आगे बढ़ाओ।* कर्म करते योग की पावरफुल स्टेज रहे -  इसका अभ्यास बढ़ाओ। बैलेन्स रहना अर्थात तीव्र गति।

 

✧  *बैलेन्स न होने के कारण चलते-चलते तीव्र गति की बजाए साधारण गति हो जाती है।* तो अभी जैसे सेवा के लिए इन्वेंशन करते वैसे इन विशेष अनुभवों के अभ्यास के लिए समय निकालो और *नवीनता लाकरके सबके आगे 'एक्जाम्पल' बनो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *अगर अपनी सीट छोड़ते हो तो हार होती, सीट पर सेट होने वाले में शक्ति होती, सीट छोड़ी तो शक्तिहीन। तो मास्टर रचता की सीट पर सेट रहना है, सीट के आधार पर शक्तियाँ स्वत: आयेगी।* नीचे नहीं आना, नीचे है ही देह अभिमान रूपी माया की धूल। नीचे आयेंगे तो धूल लग जायेगी अर्थात् शुद्ध आत्मा से अशुद्ध हो जायेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बन पवित्रता, सुख, शांति का वर्सा लेना"*

 

 _ ➳  अमृतवेला के मनमोहक मिलन का आनंद ले, *बाबा से देही अभिमानी बन मिलन कर... मैं आत्मा बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ... बाबा ने मुझे गले लगा कर पवित्रता, सुख, शांति का वर्सा दिया हैं* ... कल्प कल्प से भटकती मुझ आत्मा को बाप ने अपना बना कर... हर तरह से तृप्त कर दिया हैं... भगवान के दिल की रानी बन मैं अपने भाग्य पर बलिहार जा रही हूँ... *देही अभिमानी बना कर बाप ने खुद से मिलने का रास्ता बता दिया हैं*... मैं आत्मा अपने आत्मिक रूप मे स्थित हो कर परमधाम, बाप से देही अभिमानी स्थिति मे रह कर मिलने जा रही हूँ...

 

  *मेरा पिता तो मेरे इन्तजार में ही बैठा था... मुझ पर अपनी प्रखर किरणों का सुख औऱ शांति का झरना डालते हुए बाबा बोले* :-"मेरे लाडले बच्चे आओ... अपनी देही अभिमानी स्थिति को भरपूर करो... तुम्हें इस अवस्था मे ही हर समय रहना हैं... *शरीर भान को दूर करना हैं... ये देही अभिमानी अवस्था ही तुम्हें पवित्रता, सुख, शांति के वरसे के लायक बना रही हैं* ...तुम्हें सम्पूर्ण देही अभिमानी बनना है..."

 

 _ ➳  *इतने बड़े वरसे की मालिक बनी मै आत्मा अपने भाग्य पर मन ही मन मुस्कुराते हुए अपने प्यारे बाप को कहती हूँ* :-" मेरे बाबा... मै आत्मा कुछ भी नही जानती थी... *आपने आकर मुझे अपना बनाया... आत्मा का पाठ पढ़ा कर पवित्रता, सुख, शांति का वर्सा दिया... मेरा भाग्य चमकाया... इतना प्यार बरसाया की मैं आत्मा धन्य धन्य हो गई* ... इतनी बड़ी मिलकियत की रानी बना दिया..."

 

  *बाबा मेरे प्यार में डूबे हुए सत्यवचन सुनकर अपनी किरणों से और भी प्यार बरसाते हुए कहते हैं* :-"मेरे प्यारे, मेरे वरसे के हकदार बच्चे... कल्प पहले भी मैंने तुम्हें ही चुना था... *तुम ही कल्प कल्प से देही अभिमानी बन कर वर्सा ले रहे हो... कभी भी अपनी इस अवस्था को मत छोड़ना... बाप पर पूरा पूरा बलिहार जाना है*... अपना पूरा वर्सा लेना है..."

 

 _ ➳  *बाबा के प्यार में सराबोर होती मै आत्मा भाव विभोर हो अपने न्यारे प्यारे बाबा को कहती हूँ* :-"मेरे बाबा, प्यारे बाबा... आपने आ कर तो मुझ पतित आत्मा को पावन बना दिया... *परमपिता का साथ औऱ सिर पर आपका हाथ... इस अहसास ने तो मुझ आत्मा में बल भर दिया हैं... देही अभिमानी बन मैं आत्मा अलौकिक आंनद में रहती हूँ* ..."

 

  *बाबा मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा को बड़े प्यार से देखते हुए कहते है* :-"वरसे के अधिकारी बच्चे... *तुम इस संगम युग पर देही अभिमानी अवस्था मे रहकर... जन्नत के नजारे लूटते हो... कभी भी बाप को छोड़ना नही* ... बाप तुम्हें वर्सा देंने, स्वर्ग में ले जाने ही तो आता हैं... आत्मा का पाठ ही तो पढ़ाने आता हैं... *तुम्हें आत्मिक स्थिति में स्थित रहकर पवित्रता, शांति, सुख का पूरा वर्सा लेना हैं* ..."

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा का सगा बच्चा बन, वरसे की अधिकारी आत्मा बन बहुत खुश होकर बाबा को कहती हूँ* :- "मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे वायदा करती हूँ... *मैं आपकी अधिकारी आत्मा बन अन्य आत्माओ को भी... अधिकारी बना रही हूँ... जो आत्मिक सत्य मैने जाना है... जो वर्सा मैने प्राप्त किया हैं... सबको उसकी खुशबू दे रही हूं* ... देही अभिमानी अवस्था को पक्का करती मै आत्मा... वापिस अपने लौकिक देह मे प्रवेश करती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान डांस सीखनी और सिखानी है*

 

_ ➳  मीठे मधुबन में बजने वाली मीठे बाबा की मीठी मुरली की स्मृति कानो में जैसे एक मधुर संगीत सुना रही है और उस संगीत की मीठी तान को सुन कर मुझ आत्मा गोपी के पाँव जैसे अपने आप थिरकने लगे है और मन ज्ञान की डांस करने लगा है। *ज्ञान डान्स करते - करते, मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपने मीठे मधुबन घर में और देख रही हूँ अपने आप को मधुबन की एक खूबसूरत सुंदर सी ऊंची पहाड़ी पर जहाँ बापदादा बच्चों के साथ पिकनिक मना रहें हैं उनके साथ खेल पाल कर रहें हैं*। बीच - बीच मे ज्ञान संगीत सुनाकर बच्चों का मनोरंजन भी कर रहें हैं।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे कान्हा की मीठी मुरली बज रही है और उस मुरली की मीठी तान को सुनकर गोपियाँ अपनी सुध - बुध खो कर, मुरली की उस मीठी धुन पर, मदमस्त होकर डान्स कर रही हैं। हर गोपी के साथ मैं कान्हा को देख रही हूँ। *मन को रोमांचित कर देने वाले इस दृश्य का आनन्द लेते हुए अब मै देख रही हूँ कैसे ज्ञान सागर शिव बाबा ब्रह्मा तन में आकर ज्ञान की मुरली सुना रहें हैं और उनके सामने बैठे सभी ब्राह्मण बच्चे सच्चे गोप गोपियाँ बन, एकटक बाबा के मुख मण्डल को निहारते हुए उस मुरली का आनन्द लेकर अतिन्द्रीय सुख के झूले में झूल रहें हैं*। ज्ञान की मस्ती में डूबे सभी ज्ञान डांस कर रहें हैं।

 

_ ➳  अपने मीठे मधुबन घर में मीठे बाबा की मीठी मुरली की मीठी तान को सुन, ज्ञान डान्स का भरपूर आनन्द लेकर मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं वापिस अपने कार्य स्थल पर लौटती हूँ और ज्ञान डान्स सिखाने वाले अपने ज्ञान सागर प्यारे पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ। *बाबा की याद मुझ आत्मा में एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझ आत्मा की टिमटिमाती लौ की ज्योति को जगाकर, मुझे देह से बिल्कुल न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर रही है*। देह के परधर्म से मुक्त अपने स्वधर्म में स्थित मैं आत्मा अब अपने आप को भृकुटि की कुटिया में जगमग करते हुए चैतन्य दीपक के रूप में देख रही हूँ जिसमे से निकल रही प्रकाश की लौ मेरे मन मन्दिर में उजाला कर रही है और मन को सुकून दे रही है।

 

_ ➳  प्रकाश की यह लौ मेरे अंदर समाये गुणों और शक्तियों को तरंगों के रूप में चारो और बिखेर कर वायुमण्डल को शान्त और सुखमय बना रही है। *एक दिव्य अलौकिक अनुभूति करते हुए मैं चैतन्य शक्ति अब भृकुटि की कुटिया को छोड़ देह से बाहर आकर, ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। सेकेंड में साकार और सूक्ष्म वतन को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ अपने ज्ञान सागर शिव पिता के पास उनके शांति धाम घर में। ज्ञान सागर अपने शिव पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ। उनसे आ रही ज्ञान की शीतल लहरें मुझे धीरे - धीरे छू रही हैं और एक बहुत ही मीठा सगींत उतपन्न कर रही हैं।

 

_ ➳  गहन शीतलता की अनुभूति के साथ - साथ ज्ञान सागर की लहरों के मधुर संगीत को सुन कर, मैं आत्मा भी उन लहरो के साथ लहरा रही हूँ। *ज्ञान डान्स करते हुए ज्ञान की रिमझिम फुहारों का असीम आनन्द ले कर मैं आत्मा अब सबको ज्ञान डान्स का अनुभव कराने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।ज्ञान सागर अपने प्यारे बाबा के ज्ञान की शीतल लहरो में ज्ञान डान्स करने के मधुर एहसास की मधुर स्मृतियों के साथ मैं आत्मा अब अपना ब्राह्मण चोला फिर से धारण कर लेती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मै सदा ज्ञान सागर अपने पिता के साथ कम्बाइंड रहते हुए, उनके ज्ञान की लहरों के मधुर संगीत को सुनते हुए स्वयं भी ज्ञान डान्स करती रहती हूँ* और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को भी ज्ञान सागर बाप की लहरों में लहराना सिखला कर उन्हें भी ज्ञान डान्स करवाती रहती हूँ

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं करन करावनहार की स्मृति से विघ्नों के बीज को समाप्त करने वाली समर्थ आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाप और पढ़ाई से समान प्यार करके ज्ञानस्वरूप बनने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ कुमार जीवन में बाप का बनना- कितने भाग्य की निशानी है! ऐसे अनुभव करते हो कि हम कितने बन्धनों में जाने से बच गये? कुमार जीवन अर्थात् अनेक बन्धनों से मुक्त जीवन। किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं। *देह के भान का भी बन्धन न हो। इस देह के भान से सब बन्धन आ जाते हैं। तो सदा अपने को आत्मा भाई-भाई हैं - ऐसे ही समझकर चलते रहो। इसी स्मृति से कुमार जीवन सदा निर्विघ्न आगे बढ़ सकती है। संकल्प वा स्वप्न में भी कोई कमज़ोरी न हो इसको कहा जाता है - विघ्न विनाशक।* बस चलते फिरते यह नैचरल स्मृति रहे कि हम आत्मा हैं। देखो तो भी आत्मा को, सुनो तो भी आत्मा होकर। यह पाठ कभी भी न भूले।

➳ _ ➳ कुमार सेवा में तो बहुत आगे चले जाते हैं लेकिन सेवा करते अगर स्व की सेवा भूले तो फिर विघ्न आ जाता है। *कुमार अर्थात् हार्ड वर्कर तो हो ही लेकिन निर्विघ्न बनना है। स्व की सेवा और विश्व की सेवा दोनों का बैलेन्स हो। सेवा में इतने बिजी न हो जाओ जो स्व की सेवा में अलबेले हो जाओ। क्योंकि कुमार जितना अपने को आगे बढ़ाने चाहें बढ़ा सकते हैं। कुमारों में शारीरिक शक्ति भी है और साथ-साथ दृढ़ संकल्प की भी शक्ति है इसलिए जो चाहे कर सकते हैं, इन दोनों शक्तियों द्वारा आगे बढ़ सकते हैं।* लेकिन बैलेंस की कला चढ़ती कला में ले जाएगी। स्व सेवा और विश्व की सेवा, दोनों का बैलेंस हो तो निर्विघ्न वृद्धि होती रहेगी।

✺ *"ड्रिल :- स्व की सेवा और विश्व की सेवा दोनों का बैलेंस बनाए रखना "*

➳ _ ➳ *बारिश की भीनी भीनी फुहार है, आसमान में निकला हुआ रंग बिरंगा इंद्रधनुष है और हरी-भरी सी प्रकृति है... इंद्रधनुष के रंगों से आसमान में रौनक है, रिमझिम फुहारों से पेड़ों के पत्तों पर मोतियों सी चमकती हुई बारिश की बूंदें हैं... मेरा मन इंद्रधनुष पे विराजमान है... इंद्रधनुष में अपने आपको देखकर मैं अत्यंत शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ...* मैं बड़ी ही सरलता से इस विश्व को देख सकती हूं... इंद्रधनुष में बैठकर मैं अपनी सुनहरी किरणों से इस धरा पर देखती हूं और मुझे एक चित्र दिखाई देता है जहां मैं देखती हूं कि कुछ कुमार कुमारियाँ स्वतंत्र भाव से खेल रहे हैं और बहुत हर्षित हो रहे हैं...

➳ _ ➳ *सभी कुमार कुमारियाँ निर्बंधन होकर आनंद भाव से खेल रहे हैं... अपनी युवा अवस्था का वह खेल-खेल कर भरपूर आनंद ले रहे हैं...* जैसे ही उन्हें आसमान में इंद्रधनुष दिखाई देता है वह दौड़कर एक स्थान पर इकट्ठे हो जाते हैं और इंद्रधनुष को बहुत गहराई से देखते हैं... मैं भी फिर से इंद्रधनुष पर बैठकर उन्हें देखने लगती हूं... देखते-देखते हम एक दूसरे से बातें करने लगते हैं... मैं उन युवाओं से पूछती हूं... आप इस समय रोज खेलते हैं? तो वह युवा उछलते कूदते हुए मुझे उत्तर देते हैं... नहीं, हम किसी भी समय और किसी भी स्थान पर हमेशा खेलते हैं, हम इस युवा अवस्था में खेल खेल कर और निर्बंधन होकर आनंदित हो रहे हैं, हम भरपूर आनंद का अनुभव कर रहे हैं...

➳ _ ➳ मैं अपने रंग बिरंगी चमकीली किरणें उन पर डालते हुए उन्हें कहती हूं... क्या तुम अपने इस निर्बंधन और स्वतंत्र अवस्था में और भी आनंदित होना चाहते हो? अपनी और विश्व की सेवा करना चाहते हो? वह सभी बालक उछलते हुए मुझे हां बोलते हैं... तभी मैं उन सभी युवा को मन बुद्धि से एक ऊंची पहाड़ी पर ले जाती हूं... जैसे ही हम पहाड़ी पर पहुंचते हैं, मैं बाबा का आह्वान करती हूं... बाबा का आह्वान करते ही बाबा रंग बिरंगी किरणों को बिखेरते हुए ज्योति बिंदु स्वरूप में आ जाते हैं और उन सभी आत्माओं से बातें करते हैं... और बाबा कहते हैं... *हे आत्माओं बहुत समय तुमने खेल-खेल कर व्यर्थ में गुजार दिए परंतु इससे तुम्हें अल्पकाल की खुशी ही प्राप्त हुई है... मैं तुम्हें अल्पकाल से अनादि काल तक खुशियों का अनुभव कराने आया हूं... जिससे तुम जन्मों-जन्मों तक खुशियों का भरपूर आनंद ले सकते हो...*

➳ _ ➳ *और परमात्मा कहते हैं... कि तुम्हारी यह युवा अवस्था ही तुम्हारे लिए उन्नति का और खुशियों का मार्ग है, तुम्हें अभी कोई किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है, ना कोई चिंता है इसलिए हे आत्माओं युवा अवस्था को तुम अपने लिए आगे बढ़ने का रास्ता बनाओ...* परमात्मा द्वारा दिए हुए कार्यों से सेवा कर तुम स्वयं की और विश्व की सेवा बड़ी ही सरलता से और बैलेंस से कर सकते हो... आप सभी आत्माओं में दृढ़ संकल्प और बैलेंस करने की शक्ति है, इसलिए जो चाहे कर सकते हो, अपनी और विश्व की सेवा बड़ी ही सरलता से और निर्विघ्न होकर कर सकते हो... तुम्हारे रास्ते में कभी कोई विघ्न नहीं आ सकता...

➳ _ ➳ इतना सुनकर वह सभी आत्माएं बाबा को थैंक्स करती हैं और निर्विघ्न और बैलेंस बनाते हुए आगे बढ़ने का वादा करती हैं... और वह सभी आत्माएं फिर से मेरे साथ इंद्रधनुष पर बैठ कर वापस अपने कर्म भूमि पर आ पहुंचती हैं, जहां पहले वह सभी युवा खेल रहे थे... वहां अब सभी पहुंचकर आपस में स्वयं और विश्व की सेवा करने का वादा करते हैं और आगे बढ़ने का संकल्प करते हैं... सभी आत्माएं सेवा करने की नई नई योजनाएं बनाती हैं... उनका यह चित्र देखकर मैं आत्मा अति हर्षित होती हूं और इंद्रधनुष से अपने मन बुद्धि को निकाल कर वापस अपने कर्म भूमि पर और इस देह में वापस आ जाती हूं... और *मैं भी अंदर ही अंदर यह दृढ़ संकल्प करती हूं कि आज से मैं हमेशा निर्विघ्न और निर्बंधन होकर सेवा करूंगी, जिससे मैं अपनी और इस विश्व की सेवा बड़ी ही सरलता से कर पाऊंगी और मैं भी निर्विघ्न स्थिति का आनंद ले पाऊंगी और चल देती हूं फिर मैं अपने इस पुरुषार्थ में...*
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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