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 12 / 09 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अर्पण होने के साथ साथ अपनी बुधी को विशाल बनाया ?*

 

➢➢ *अहंकार छोड़ बाप से अति लव व रीगार्ड रखा ?*

 

➢➢ *हर कदम में पद्मों की कमाई जमा की ?*

 

➢➢ *बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ते रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी संगठित रूप में लाइट-हाउस, माइट-हाउस बन शक्तिशाली वायब्रेशन्स फैलाने की सेवा करो।* अभी अपनी वृत्ति को, वायब्रेशन, वायुमण्डल पावरफुल बनाओ। *चारों ओर का वायुमण्डल सम्पूर्ण निर्विघ्न रहमदिल, शुभ भावना, शुभ कामना वाला बने तब यह लाइट-माइट प्रत्यक्षता के निमित्त बनेंगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एक बल एक भरोसे वाली नष्टोमोहा आत्मा हूँ"*

 

〰✧  सभी एक बल एक भरोसे का अनुभव करते हो? एक बल, एक भरोसे वाले की निशानी क्या होगी? एक बल, एक भरोसे में रहने वाली आत्मा सदा एक रस स्थिति में स्थित होगी। एकरस स्थिति अर्थात् सदा अचल, हलचल नहीं। तो ऐसे रहते हो कि कभी हलचल, कभी अचल? हलचल के समय एक बल, एक भरोसा कहेंगे या अनेक बल, अनेक भरोसा कहेंगे? *जब एक बाप द्वारा सर्वशक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं तो एक बल, एक भरोसा चाहिये ना। एक को भूलते हो तभी हलचल होती है। तो अचल रहने वाले हो ना? यहाँ आपका यादगार कौन-सा है? अचल घर है या हलचल घर है? या अचल घर कभी हलचल घर हो जाता है! यादगार आपका ही है ना। फिर हलचल में क्यों आते हो?*

 

  प्रैक्टिकल का ही यादगार बना है ना। तो सदा ये याद करो कि एक बल एक भरोसे में रहने वाले हैं। क्योंकि भक्ति में अनेक के ऊपर भरोसा रखकरके अनुभव कर लिया ना तो क्या मिला? सब कुछ गंवा लिया ना। सतयुग का इतना सारा धन कहाँ गंवाया? भक्ति में गँवाया ना। अच्छी तरह से अनुभव कर लिया ना। *तो जब भी कोई ऐसे हलचल की परिस्थिति आती है तो अपने यादगार अचल घर को याद करो। जब यादगार ही अचल घर है तो मैं कैसे हलचल में आ सकती हूँ! ये तो सहज याद आयेगा ना। एकरस स्थिति का अर्थ ही है कि एक द्वारा सर्व सम्बन्ध, सर्व प्राप्तियों के रस का अनुभव करना।* तो अनुभव होता है कि बीच-बीच में और कोई सम्बन्ध भी खींचता है?

 

  जब सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव होता है तो दूसरे सम्बन्ध में आकर्षण होने की तो बात ही नहीं है। सर्व सम्बन्ध का अनुभव है कि कोई-कोई सम्बन्ध का अनुभव है? सर्व सम्बन्ध से बाप को अपना बनाया है कि कोई सम्बन्ध किनारे रख दिया है? सर्व हैं कि एक-दो में अटेन्शन जाता है? कोई का भाई में, कोई का बच्चे में, कोई का पोत्रे में! नहीं? *निभाना अलग चीज है, आकर्षित होना अलग चीज है। तो नष्टोमोहा हो? पाण्डवों को पैसे कमाने में मोह नहीं है? ट्रस्टी होकर कमाना अलग चीज है। लगाव से कमाना, मोह से कमाना अलग चीज है।* कभी धन में मोह जाता है? थोड़ा-थोड़ा जाता है? क्या होगा, कैसे होगा, जमा कर लें, कुछ कर लें, पता नहीं कितने वर्ष के बाद विनाश होता है, दस वर्ष लगते हैं या 50 वर्ष लगते हैं.. ये नहीं आता? नष्टोमोहा बनकर, ट्रस्टी बनकरके चलना और मोह से चलना कितना अन्तर है!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  स्थूल कर्मेन्द्रियाँ - यह तो बहुत मोटी बात है। कर्मेन्द्रिय-जीत बनना, यह फिर भी सहज है। लेकिन *मन-बुद्धि-संस्कार, इन सूक्ष्म शक्तियों पर विजयी बनना कहते हैं सूक्ष्म शक्तियों पर विजय अर्थात राजऋषि स्थिति।*

 

✧  जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को ऑर्डर करते हो कि यह करो, यह न करो। हाथ नीचे करो, ऊपर हो, तो ऊपर हो जाता है ना *ऐसे संकल्प और संस्कार और निर्णय शक्ति बुद्धि' ऐसे ही ऑर्डर पर चले।*

 

✧  आत्मा अर्थात राजा, मन को अर्थात संकल्प शक्ति को ऑर्डर करें कि *अभी-अभी एकाग्रचित हो जाओ, एक संकल्प में स्थित हो जाओ।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ क्योंकि अन्त में अशरीरीपन का अभ्यास ही काम में आयेगा। सेकण्ड में अशरीरी हो जायें। *चाहे अपना पार्ट भी कोई चल रहा हो लेकिन अशरीरी बन आत्मा साक्षी हो अपने शरीर का भी पार्ट देखें। मैं आत्मा न्यारी हूँ शरीर से यह पार्ट करा रही हूँ। यही न्यारेपन की अवस्था अन्त में विजयी या पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट देगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शिवबाबा से ज्ञान सुनकर दूसरों को सुनाना"*

 

➳ _ ➳  अपने *अमीर पिता भगवान को.... यूँ सहजता से पाकर, जो खुशियो की दौलत मुझ आत्मा ने पायी है.*.. वह दौलत गिनती हुई मै आत्मा... मधुबन में मीठे बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ... मुझे देख मेरा अमीर शनशाह बाबा प्यारी मुस्कान से भर उठा है... मीठे बाबा की गोंद में बड़े ही अधिकार से बेठ जाती हूँ... और अपनी अमीरी को मीठे बाबा को दिखाती हूँ... मेरा प्यारा बाबा... जिसने मुझे इतना दौलतमंद बनाया... निरहंकारी सा, मेरे दिल की सारी दास्ताँ... मुस्कराता हुआ सुनता जा रहा है...

 

❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी दौलत खजानो से भरपूर करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पुत्र बनने के महान भाग्य को पाया है वह नशा सदा छलकाते रहो... *ज्ञान रत्नों की जो अमीरी पायी है उस अमीरी को सदा दिलो पर बरसाते रहो..*. आत्माओ को दुखो के दलदल से निकाल कर सुखो के स्वर्ग में ले जाने की सेवा करो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को असीम धन का दिल से धन्यवाद देते हुए कहती हूँ :- "मेरे मीठे बाबा... आपने मेरा जीवन फूलो जैसा खिला दिया है... *ज्ञान रत्नों से भरकर मुझे कितना दौलतमंद बना दिया है.*.. मै आत्मा जहाँ भी जाती हूँ इस दौलत को बाँटती हूँ.. और देखती हूँ हर दिल इस अमीरी का दीवाना है..."

 

❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपना सच्चा धर्म और कर्म समझाते हुए कहा:- "मेरे लाडले मीठे बच्चे...  *संगम के वरदानी समय पर सच्चे ब्राह्मण के धर्म और कर्म को सदा यादो में बसाओ.*.. सदा ज्ञान रत्नों की चर्चा में मगन रहो... अपने समान ही भाग्यवान हर दिल को भी बनाओ... सबको इन उजली रौशन राहो का पता दे आओ कि... अथाह सुख उन्हें पुकार रहे है..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा अपने स्स्व्हे सहारे मीठे बाबा को पाकर धन्य हो कहती हूँ :- "मेरे जादूगर प्यारे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन को अपने हाथ में थामकर, कितने सुख और सुकून से भर दिया है... *मै आत्मा इस जहान में सबसे ज्यादा अमीर हूँ... क्योकि मेने भगवान को ही पा लिया है..*. अपनी यह ख़ुशी और ज्ञान रत्नों की झनकार मै हर दिल को सुना रही हूँ..."

 

❉   मीठे बाबा मुझ आत्मा पर वरदानों भरी किरणे उंडेलते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे :- " सदा श्रीमत के हाथो को थामकर, खुशियो भरी राहो पर मुस्कराते रहो... *रत्नागर बाबा को पाकर जिस खजानो के मालिक बने हो... उस दौलत को हर समय गिनते रहो, और सबको बांटते रहो..*. इस विश्व धरा से दुखो का नामोनिशान मिटाकर.. सुखो का साम्रज्य लाने की सेवा करो..."

 

➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की शिक्षाओ को दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... *आपने मेरा सहारा बनकर... मुझे मिटटी के भुरभुरे सहारो की मोहताजी से मुक्त कर दिया है.*.. मै आत्मा आपकी गोद और अथाह रत्न पाकर... सोभाग्य से भर गयी हूँ... और यह खुशनसीबी मै पूरे विश्व में बिखेर रही हूँ..."अपने प्यारे बाबा का दिल से आभार करके मै आत्मा... स्थूल धरा पर आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अर्पण होने के साथ - साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है*"

 

_ ➳  अपने आश्रम के बाबा रूम में ब्रह्मा बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठी मैं उन्हें निहार रही हूँ और उन्हें फॉलो कर, उनके समान बनने का संकल्प लेते हुए उनके द्वारा किये हुए श्रेष्ठ कर्मो को स्मृति में लाकर विचार कर रही हूँ कि कितनी विशेषताओं से सम्पन्न थे मेरे प्यारे ब्रह्मा बाबा! तभी तो भगवान ने ऐसी प्रतिभावान आत्मा को अपना रथ बनाया। *सृष्टि परिवर्तन के महान कर्तव्य को करने के लिए उनके शरीर रूपी रथ का आधार लिया। ब्रह्मा बाबा की एक - एक विशेषता उनके द्वारा किये हुए कर्मो के रूप में चित्र बन कर मेरी आँखों के सामने ऐसे स्पष्ट हो रही है जैसे कोई मूवी चल रही है और मैं एक - एक सीन अपनी आँखों से स्पष्ट देख रही हूँ*। दीदी, दादियों के साकार बाबा के साथ सुने हुए सारे अनुभव भिन्न - भिन्न दृश्यों के रूप मेरे सामने आ रहे हैं और मुझे भी उसी साकार पालना का अनुभव करवा रहे हैं।

 

_ ➳  बाबा की एक - एक विशेषता चरित्र के रूप में मेरे सामने परिलक्षित हो रही है। *भगवान पर सम्पूर्ण समर्पण होकर, उनके द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में अपना तन - मन - धन और जन सब कुछ स्वाहा कर,अर्पण होने के साथ - साथ विशाल बुद्धि बन इतने बड़े यज्ञ को संभालने की जो विशेषता ब्रह्मा बाबा में थी उसी विशेषता को उनके अव्यक्त होने के बाद दीदी दादियों ने अपने जीवन मे धारण कर इस ईश्वरीय यज्ञ को सम्भालते हुए इसका इतना विस्तार किया* कि आज इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से प्रज्ववलित होने वाली ज्वाला विश्व के कोने - कोने में फैल कर भगवान की प्रत्यक्षता के कार्य मे सहयोगी बन रही है।

 

_ ➳  अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा और यज्ञ के पिल्लर अपनी दीदी दादियों के समान समपूर्ण समर्पण होने के साथ - साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाकर इस ईश्वरीय यज्ञ में बाबा का सहयोगी बनने का दृढ़ संकल्प लेकर मैं जैसे ही बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के ऊपर नजर डालती हूँ। *ऐसा अनुभव करती हूँ जैसे ट्रांसलाइट के चित्र की जगह साक्षात अव्यक्त बापदादा मेरे सामने बैठे मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहें हैं और मेरे हर संकल्प को पढ़ कर उन्हें पूरा करने की हिम्मत मुझे दे रहें हैं*। बापदादा से आ रही लाइट माइट सतरंगी प्रकाश के रूप में पूरे कमरे में फैल रही है और उस प्रकाश से बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन्स निकल - निकल कर रिमझिम फ़ुहारों का रूप लेकर मेरे ऊपर बरसते हुए मुझे अनुभव हो रहें हैं। *जैसे - जैसे मेरे अंदर ये वायब्रेशन्स समा रहें हैं एक शक्ति का संचार मेरे अंदर करके मुझे बहुत ही शक्तिशाली बनाते जा रहें हैं*।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरे हर संकल्प को पूरा करने का बल मुझमे लगातार भरते ही जा रहें हैं। अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अन्दर प्रवाहित करते जा रहें हैं। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर वरदानों से मुझे भरपूर करते हुए मेरे मस्तक पर विजय का तिलक दे कर बापदादा अदृश्य हो जाते हैं। *फिर से बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठी मैं स्वयं को बहुत ही बलशाली अनुभव करते हुए अब अपने बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बनाने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, भृकुटि के अकाल तख्त को छोड़ अपने पिता के पास उनकी निराकारी दुनिया की और रवाना हो जाती हूँ*। सेकेण्ड में मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं आकाश को पार करती हूँ और सूक्ष्म वतन को भी क्रॉस करके अपनी निराकारी दुनिया मे पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने निराकार शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके स्नेह से स्वयं को भरपूर करके कुछ क्षण उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ उनकी तेजस्वी किरणों से अपने बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध और स्वच्छ बना कर वापिस साकारी दुनिया में फिर से अपने आश्रम में लौट आती हूँ और अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर फिर से विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पुनः कर्म करने के लिए अपने सेवा स्थान पर लौट आती हूँ और अपने कर्म क्षेत्र रूपी सेवा स्थान पर रहते तन - मन - धन से ईश्वरीय सेवा में अर्पण होने के साथ - साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाने के लिए, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चल उनके समान बनाने के पुरुषार्थ में पूरी लगन के साथ लग जाती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ने वाला उड़ता योगी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाली समझदार ज्ञानी तू आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ब्रह्मा बाप को देखाकैसा भी बच्चा होशिक्षादाता बन शिक्षा भी देते लेकिन शिक्षा के साथ प्यार भी दिल में रखते।* और प्यार कोई बाहों का नहीं, लेकिन प्यार की निशानी है - अपनी शुभ भावना सेशुभ कामना से कैसी भी माया के वश आत्मा को परिवर्तन करना। कोई भी हैकैसी भी हैघृणा भाव नहीं आवेयह तो बदलने वाले ही नहीं हैंयह तो हैं ही ऐसे। नहीं। *अभी आवश्यकता है रहमदिल बनने की क्योंकि कई बच्चे कमजोर होने के कारण अपनी शक्ति से कोई बड़ी समस्या से पार नहीं हो सकतेतो आप सहयोगी बनो।* किससे? सिर्फ शिक्षा से नहींआजकल शिक्षा, सिवाए प्यार या शुभ भावना के कोई नहीं सुन सकता। यह तो फाइनल रिजल्ट है, शिक्षा काम नहीं करती लेकिन शिक्षा के साथ शुभ भावना, रहमदिल यह सहज काम करता है। *जैसे ब्रह्मा बाप को देखामालूम भी होता कि आज इस बच्चे ने भूल की हैतो भी उस बच्चे को शिक्षा भी तरीके सेयुक्ति से देता और फिर उसको बहुत प्यार भी करता, जिससे वह समझ जाते कि बाबा का प्यार है और प्यार में गलती के महसूसता की शक्ति उसमें आ जाती।*

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्रह्माबाप समान प्यार से शिक्षा देना"*

 

 _ ➳  रिमझिम रिमझिम बारिश की हल्की हल्की फुहारों के साथ... मैं सागर के किनारे बैठ कर लहरों को आता जाता देख... मन के ताने बाने से... सागर की गहराई को नापने की कोशिश कर रही हूँ... तभी *बाबा की याद में खोया हुआ मन पहुँच जाता है सूक्ष्म वतन में... जहाँ बापदादा लाल रंग के कमल के फूल पर बैठे हुए मन्द मन्द मुस्कुरा रहें हैं...*  

 

 _ ➳  मैं दौड़ कर उनकी गोद में जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा कहते... आ जाओ बच्ची... मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था... फिर बाबा अपने कोमल हाथों द्वारा मेरे सिर पर प्यार भरा हाथ फिराते हैं... *बाबा के वरद हाथों से अनन्त शक्तिशाली किरणें मेरे शरीर के रोम रोम में फैल रही हैं... मैं बाबा से आती इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाती हुई अनुभव कर रही हूँ...* लहरों के समान दौड़ता हुआ मेरा मन शांत शीतल होता जा रहा है... और स्नेह के सागर... प्रेम के सागर... के प्रेम में... मैं आत्मा लवलीन हो गयी हूँ... मास्टर प्रेम का सागर बन गयी हूँ...  

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा बाबा की मीठी बच्ची सदा ब्रह्मा बाप समान... हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना... शुभ भावना शुभ कामना... रहम की भावना रखती हूँ... किसी भी आत्मा के प्रति नकरात्मक संकल्प नहीं रखती हूँ... सबके प्रति प्रेम की भावना... पॉजिटिव सोच रखती हूँ... क्योंकि संकल्पों से ही वायुमण्डल बनता है... *धारणा स्वरूप... याद स्वरूप बन... मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान रहमदिल बन सभी आत्माओं के प्रति शुभ भावना रख उन्हें ज्ञान की बातें सुना रही हूँ...* 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाप समान... रूहानी दृष्टि... वृत्ति रख... अन्य आत्माओं की कमी कमजोरी... अवगुणों को नज़र अंदाज़ करते हुए उन्हें बाबा का परिचय... सृष्टि के आदि-मध्य-अंत... के बारे में योगयुक्त... युक्तियुक्त... बहुत प्यार से समझा रही हूँ...* ज्ञान की बातें सुनकर उन आत्माओं के मन शांत हो रहें हैं... उनके मन में क्या... क्यों के प्रश्नों की झड़ियां समाप्त हो रही हैं... *ज्ञान की बातें उन्हें तीर की तरह लग रही हैं...*      

 

 _ ➳  हर आत्मा के प्रति यह एक ही शुभ संकल्प रहता कि हर आत्मा रूपी बच्चा सर्व खजानों से सम्पन्न हो जाये और अनेक जन्मों के लिये वर्से का अधिकारी बन जाये... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान सभी माया के वश आत्माओं को शुभ भावना... शुभ कामना से परिवर्तन कर उन्हें उमंग उत्साह से... प्यार से शिक्षा देते हुए खुशी का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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