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 27 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सारे दिन में बाबा के साथ रत्नों का धंधा करते रहे ?*

 

➢➢ *"स्वयं भगवान भी मेरे गीत गाता है" - इस स्मृति से स्वयं को स्व अभिमान के नशे में स्थित किया ?*

 

➢➢ *"एकता और दृढ़ता" से आत्माओं को राह दिखाई ?*

 

➢➢ *हर कदम पर, हर कर्म विशेष रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  वर्तमान समय अनेक साधनों को देखते हुए साधना को भूल नहीं जाना क्योंकि *आखिर में साधना ही काम में आनी हैं। आज मन की खुशी के लिए मनोरंजन के कितने नये-नये साधन बनाते हैं। वह हैं अल्पकाल के साधन और आपकी है सदाकाल की सच्ची साधना। तो साधना द्वारा सर्व आत्माओं का परिवर्तन करो। हाय-हाय लेकर आये और वाह-वाह लेकर जाये।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं भाग्यविधाता का भाग्यवान बच्चा हूँ"*

 

  सदा अपने को भाग्य विधाता के भाग्यवान बच्चे हैं - ऐसा अनुभव करते हो? पद्मापद्म भाग्यवान हो या सौभाग्यवान हो? जिसका इतना श्रेष्ठ भाग्य है वह सदा हर्षित रहेंगे । क्योंकि भाग्यवान आत्मा को कोई अप्राप्ति है ही नहीं। तो जहाँ सर्व प्राप्ति होंगी, वहाँ सदा हर्षित होंगे। कोई को अल्पकाल की लोटरी भी मिलती है तो उसका चेहरा भी दिखाता है कि उसको कुछ मिला है। तो जिसको पद्मापद्म भाग्य प्राप्त हो जाए वह क्या रहेगा? सदा हर्षित। ऐसे हर्षित रहो जो कोई भी देखकर पूछे कि क्या मिला है? *जितना-जितना पुरुषार्थ में आगे बढ़ते जायेंगे उतना आपको बोलने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी। आपका चेहरा बोलेगा कि इनको कुछ मिला है, क्योंकि चेहरा दर्पण होता है। जैसे दर्पण में जो चीज जैसी होती है, वैसी दिखाई देती है। तो आपका चेहरा दर्पण का काम करे।*

 

  मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे वैसे कोई भी बड़ी बात नहीं है। दूसरी बात आपको निश्चय है कि हमारी विजय हुई ही पड़ी है। इसलिए कोई बड़ी बात नहीं है। *जिसके पास सर्वशक्तियों का खजाना है तो जिस भी शक्ति को आर्डर करेंगे वह शक्ति मददगार बनेगी। सिर्फ आर्डर करने वाला हिम्मत वाला चाहिए।* तो आर्डर करना आता है या आर्डर पर चलना आता है? कभी माया के आर्डर पर तो नहीं चलते हो? ऐसे तो नहीं कि कोई बात आती है और समाप्त हो जाती है? पीछे सोचते हो - ऐसे करते थे तो बहुत अच्छा होता। ऐसे तो नहीं? समय पर सर्वशक्तियां काम में आती हैं या थोड़ा पीछे से आती हैं? अगर मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट हो तो कोई भी शक्ति आर्डर नहीं माने - यह हो नहीं सकता। अगर सीट से नीचे आते हो और फिर आर्डर करते हो तो वो नहीं मानेंगे। लौकिक रीति से भी कोई कुर्सी से उतरता है तो उसका आर्डर कोई नहीं मानता।

 

  *अगर कोई शक्ति आर्डर नहीं मानती है तो अवश्य पोजीशन की सीट से नीचे आते हो। तो सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट रहो, सदा अचल अडोल रहो, हलचल में आने वाले नहीं। बापदादा कहते हैं शरीर भी चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये।* पैसा तो उसके आगे कुछ भी नहीं है। जिसके पास खुशी का खजाना है उसके आगे कोई बड़ी बात नहीं और बापदादा का सदा सहयोगी सेवाधारी बच्चों का साथ है। बच्चा बाप के साथ है तो बड़ी बात क्या है? इसलिए घबराने की कोई बात नहीं। बाप बैठा है, बच्चों को क्या फिकर है। बाप तो है ही मालामाल। किसी भी युक्ति से बच्चों की पालना करनी ही है, इसलिए बेफिकर। दु:खधाम में सुखधाम स्थापन कर रहे हो तो दु:खधाम में हलचल तो होगी ही। गर्मी की सीजन में गर्मी होगी ना! लेकिन बाप के बच्चे सदा ही सेफ हैं, क्योंकि बाप का साथ है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अमृतवेले भी जैसे यह अभ्यास करना है - हम जैसे कि अवतरित हुए हैं।* कभी ऐसे समझो कि मैं अशरीरी और परमधाम का निवासी हूँ अथवा अव्यक्त रूप में अवतरित हुई हूँ और फिर स्वयं को कभी निराकार समझो।

 

✧  यह तीनों स्टेजिस पर जाने की प्रैक्टिस हो जाए जैसे कि एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना होता है। *तो अमृतवेले यह विशेष अशरीरि - भव का वरदान लेना चाहिए अभी यह विशेष अनुभव हो।* अच्छा।

 

✧  *चढ़ती कला सर्व का भला।* चढ़ती कला का प्रैक्टिकल स्वरूप क्या होता है? उस में सर्व का भला होता है। इनसे ही चढ़ती कला का अपना पुरुषार्थ देख सकेंगे। सर्व का भला ही सिद्ध करना है कि चढ़ती कला है। वास्तव में यही थर्मामीटर है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जितनी वाणी सुनने सुनाने की जिज्ञासा रहती है, तड़प रहती हैं चॉन्स बनाते भी हो क्या ऐसे ही फिर वाणी से परे स्थिति में स्थित होने का चॉन्स बनाने ओर लेने के जिज्ञासु हो?* यह लगन स्वत: स्वयं में उत्पन्न होती है या समय प्रमाण, समस्या प्रमाण व प्रोग्राम प्रमाण यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है? *फर्स्ट स्टेज तक पहुँची हुई आत्माओं की पहली निशानी यह होगी।* ऐसी आत्मा को, इस अनुभूति की स्थिति में मग्न रहने के कारण, कोई भी विभूति व कोई भी हद की प्राप्ति की आकर्षण, संकल्प में भी छूने की हिम्मत रखती हैं, तो इसको क्या कहेंगे? क्या ऐसे को वैष्णव कहेंगे? जैसे आजकल के नामधारी वैष्णव, अनेक प्रकार की परहेज करते हैं - कई व्यक्तियों और कई प्रकार की वस्तुओं से, अपने को छूने नहीं देते हैं। अगर अकारणें कोई छू लेते हैं, तो वह पाप समझते हैं। *आप, जैसा नाम वैसा काम करने वाले, जैसा वैष्णवों को क्या कोई छू सकने का साहस कर सकता है? अगर छू लेते हैं, तो छोटे-मोटे पाप बनते जाते हैं। ऐसे सूक्ष्म पाप, आत्मा को ऊँच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित बन जाते हैं। क्योंकि पाप अर्थात् बोझा, वह फरिश्ता बनने नहीं देते।* बीज रूप स्थिति व वानप्रस्थ स्थिति में स्थित नही होने देते। *आजकल मैजारिटी महारथी कहलाने वाले भी, अमृतवेले की रूह-रिहान में, वह कम्पलेन्ट करते व प्रश्न पूछते हैं कि पावरफुल स्टेज जो होनी चाहिए, वह क्यों नहीं होती? थोड़ा समय वह स्टेज क्यों रहती है? इसका कारण यह सूक्ष्म पाप है, जो बाप-समान बनने नहीं देते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संगमयुगी ब्राह्मणों का श्रेष्ठ भाग्य"*

 

 _ ➳  *भोली -सी पथिक, और डगर अनजान... जब से मिले, वो, मै बनी, चतुर सुजान*... *संगम पर मेरे श्रेष्ठ भाग्य की अनोखी सी सौगात लेकर हाजिर हुए वो सच्चें- सच्चे रूहानी रत्नाकर*... मुझ आत्मा को सौदागरी सिखा रहे है... पदमापदम भाग्यशाली हूँ मैं आत्मा, मेरे भाग्य का दर्पण दिखा रहे है, और इस भाग्य के दर्पण में कोहिनूर की भाँति जगजगाती मैं आत्मा बैठी हूँ बापदादा के सम्मुख, *और दिलोजान से ग्रहण कर रही हूँ उनकी हर मीठी समझानी को*...

 

  *रत्नों के खजानों से मालामाल करने वाले चतुर सुजान बाप मुझ आत्मा से बोले:-* "दुनिया के हिसाब से भोली, मगर बाप को पहचानने की दिव्य नेत्रधारी मेरी बच्ची... आपने मेरा बाबा कहकर पदमों की कमाई का अधिकार पा लिया,.. *दिन रात ज्ञान रत्नों से खेलते आप बच्ची स्वयं का महत्व समझी हो, बापदादा आप बच्ची को जिस नजर से देखते है अब उन नजरों को साकार करों..."*

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा को सच्चा सौदा सिखा सौदागर बनाने वाले बाप से मैं दिव्य नेत्र धारी आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... *मुरीद हूँ मैं इन आँखों की, जिसने आपको पहचाना है, हर शुक्रिया आपको ही जाता है, क्योंकि ये आँखें भी तो आपका ही नजराना है*... मीठे बाबा, ये बुद्धि अब दिव्य हो गई है, जीवन ही दिव्यता में ढल रहा है, इस रूह के ताने बाने में आपके गुण और शक्तियों के रंग और भी गहरे हो गये है... देखो, मेरा हर संस्कार बदल रहा है... *आपकी आँखों मे मैं अपना सम्पूर्ण स्वरूप देखती हूँ बाबा और हर पल उसी का स्वरूप बन रही हूँ..."*

 

  *हर पल उमंगो की बरसात कर मेरे रोम- रोम को उमंगों से भरपूर करने वाले बापदादा बोले:-* "इनोसैन्ट से सैन्ट बनी मेरी राॅयल बच्ची... देखो, अनेक बातों को समझने वाले समझदार अरबों- खरबो की गिनती कर रहे है... समय स्वाँस और संकल्प का खजाना कौडियों के भाव लुटा घाटे का सौदा कर रहे है... *ये वैरी वैरी इनोसैन्ट परसन है जो खुद को बहुत समझू सयाने समझ रहे है... अब इन सबको भी आप समान सौदागर बनाओं... जो अपनी आँखों से पहचाना है उसकी पहचान इनको भी कराओं..."*

    

 _ ➳  *अमृत वेले से अमृत का पान कर दिन भर ज्ञान रत्नों से खेलने वाली मैं आत्मा रत्नागर बाप से बोलीं:-* "मीठे बाबा... *उंमगों के उडनखटोले में आपने संग बैठाकर उडना सिखाया है... आपकी अनोखी पालना ने हर पल मुझे मेरे श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कराया है*... आपकी हर चाहत अब मेरी धडकन बन रही है... *बैक बोन बने आप निमित्त बन चला रहे हो, वैरी वैरी इनोसैन्ट इन आत्माओं को ज्ञान रत्नों का अनोखा खेल भाने लगा है*... सांइलेंस की जादूगरी से बाबा इनको खेल पदमों का समझ आने लगा है..."

 

  *हर प्रकार की माया से सेफ रख मायाजीत बनाने वाले रूहानी जादूगर मुझ आत्मा से बोले:-* "अपनी निर्विघ्न स्थिति द्वारा वायुमंडल को पाॅवर फुल बनाने वाली मेरी श्रेष्ठ ब्राह्मण बच्ची... *एकता और दृढता के बल से सर्व के प्रति शुभसंकल्पों की लहर फैलाओं, सब के प्रति शुभ संकल्पो से हर आत्मा को बदलकर अब बाप की प्रत्यक्षता का झंडा फहराओं...* संकल्पों के इस खजाने से अब हर आत्मा का परिचय कराओं... संगठन की एकता में अब बस शुभभावो की लहर फैलाओं..."

 

 _ ➳ *बाप को कदम हर कदम फाॅलो करने वाली मैं मास्टरज्ञान सागर आत्मा, ज्ञान सागर बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... संकल्पों की दृढतासंगठन की एकता और साइलेंस के बल से आत्माओं को आपका निरन्तर संदेश जा रहा है...* संगम युगी मुझ श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा का भाग्य देखकर हर आत्मा परम सुख पा, इस ओर आ रही है... बस *एक बाबा* कहकर *पदमो की कमाई का सुख पाकर अपने भाग्य की सराहना करने वाली ये भोली आत्माए बाप समान चतुर सुजान बनती जा रही है...* और बापदादा मुझे गले से लगाकर सफलता का वरदान दे रहे है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सारे दिन में बाबा के साथ रत्नों का धंधा करते रहना*

 

_ ➳  ज्ञान के अविनाशी रत्नों की थालियां भर - भर कर लुटाने वाले अपने रत्नागर शिव पिता का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे मे मैं विचार करती हूँ कि कितनी महान पदमापदम सौभागशाली हूँ मैं आत्मा जो मुझे सृष्टि के सबसे बड़े, व्यापारी स्वयं भगवान के साथ व्यापार करने का गोल्डन चान्स मिला! *दुनिया वाले तो विनाशी रत्नों का व्यापार करके खुश होते है और समझते हैं कि ये विनाशी रत्न उन्हें सुख, शांति देंगे। किन्तु बेचारे इस बात से कितने अनजान है कि जिन रत्नों का धंधा करके वो खुश हो रहें है वो अल्प काल का सुख देने वाला धन तो विनाशी है जो यही समाप्त हो जाएगा*। लेकिन जिस अविनाशी ज्ञान रत्नों का धंधा मैं कर रही हूँ, वो ना तो कभी खुटेगा और ना कभी विनाश होगा। बल्कि जितना उसे यूज़ करेंगे, दूसरों को बाँटेंगे उतना बढ़ता जायेगा।

 

_ ➳  इन्ही विचारों के साथ, परमात्मा बाप द्वारा मिले ज्ञान रत्नों के अविनाशी ख़ज़ाने को सबमें बांटने और सारे दिन में बाबा के साथ रत्नों का धंधा कर, भविष्य 21 जन्मो के लिए अखुट कमाई जमा करने का दृढ़ संकल्प लेकर अपने ज्ञान सागर, रत्नागर शिव बाबा की याद में मैं अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। *विनाशी देह, और देह से जुड़ी हर बात से किनारा करके अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करके, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने मन और बुद्धि का कनेक्शन परमधाम निवासी ज्ञान सागर अपने निराकार शिव पिता से जोड़ती हूँ*। बुद्धि की तार अपने प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की बरसात मुझ पर हो रही है, जो अज्ञान अंधकार का विनाश कर मेरे चारों और ज्ञान का सुखद प्रकाश फैला रही है।

 

_ ➳  ज्ञान की शक्ति से परिपूर्ण हल्के नीले रंग का प्रकाश मुझे अपने चारों और दिखाई दे रहा है जो सारे वायुमण्डल में एक अलौकिक दिव्यता का संचार कर रहा है। इस प्रकाश में व्याप्त शीतलता से मेरा अंग - अंग शीतल हो गया है। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरा सारा शरीर प्रकाश की काया में परिवर्तित होकर, एक दिव्य आभा से चमकने लगा है। मेरी प्रकाश की उस काया से भी वही हल्के नीले रंग का प्रकाश निकल कर अब दूर - दूर तक फैल रहा है*। मेरे चारों और प्रकाश के हल्के नीले रंग का एक खूबसूरत औरा निर्मित हो गया है। इस नीले प्रकाश के कार्ब को धारण कर अब मैं फ़रिश्ता ज्ञान के अखुट खजानो से स्वयं को भरपूर करने के लिए अपने रत्नागर बाबा के पास जा रहा हूँ। *ज्ञान की हल्की नीली रश्मियाँ चारों और फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता अति शीघ्र आकाश को पार करके, उससे ऊपर अब सूक्ष्म वतन में प्रवेश करता हूँ*।

 

_ ➳  ज्ञान रत्नों का व्यापार कर, नम्बर वन पद पाने वाले अपने अव्यक्त ब्रह्मा बाप के इस अव्यक्त वतन में आकर, अब मैं उनके सम्मुख पहुँचता हूँ और ज्ञान के सागर अपने शिव पिता का आह्वान कर, ब्रह्मा बाबा के सामने जाकर बैठ जाता हूँ। *सेकण्ड में ज्ञान सागर अपने निराकार शिव पिता को ब्रह्मा बाबा की भृकुटि के बीच आकर विराजमान होते हुए मैं देखता हूँ। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से ज्ञान के नीले रंग के प्रकाश की एक बहुत तेज धारा निकल कर सीधी मेरे मस्तक पर पड़ने लगती है और ज्ञान की शक्ति से मैं फ़रिश्ता भरपूर होने लगता हूँ*। अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर जैसे ही रखते है मैं अनुभव करता हूँ जैसे बाबा अपनी हजारों भुजायें मेरे ऊपर फैला कर ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं और मैं फ़रिश्ता इन खजानो को अपने अंदर समाता जा रहा हूँ।

 

_ ➳  ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर और अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने अपनी बुद्धि रूपी झोली में भरकर, इन अविनाशी ज्ञान रत्नों का धंधा कर, अखुट कमाई जमा करने के लिए अपने प्यारे बापदादा से विदाई लेकर अब मैं सूक्ष्म वतन से नीचे आ जाता हूँ और आकर विश्व ग्लोब के ऊपर बैठ जाता हूँ। *ज्ञान सागर, अपने रत्नागर बाबा का आह्वान करके, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं सारे विश्व की आत्माओं पर ज्ञान के इस खजाने को लुटा रहा हूँ*।  ज्ञान की शीतल छींटे विश्व की सर्व आत्माओं पर डाल कर, विकारों की अग्नि में जल रही आत्माओं को शीतलता का अनुभव करवा रहा हूँ। सारे विश्व पर ज्ञान की रिमझिम फुहारें बरसाता हुआ मैं फरिश्ता अब स्थूल वतन में आ जाता हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने रत्नागर बाबा से ज्ञान रत्नों की थालियां भर - भर कर, अब मैं सारा दिन बाबा के साथ ज्ञान रत्नों का धन्धा कर रही हूँ। *सवेरे अमृतवेले आँख खोलते ही बाबा से मिलन मनाते, ज्ञान रत्नों से खेलते हुए अपने दिन की मैं शुरआत करती हूँ और दिन भर बुद्धि में ज्ञान की प्वाइंटस गिनते हुए अविनाशी ज्ञान रत्नों से मैं खेलती रहती हूँ*। सारा दिन बाबा के साथ ज्ञान रत्नों के व्यापार में बिजी रहने से माया भी मुझे बिजी देख वापिस लौट जाती है। *माया को बार - बार भगाने की मेहनत से मुक्त होकर, बिना किसी रुकावट के ज्ञान रत्नों का धन्धा करते हुए,  21 जन्मो के लिए मैं मालामाल बन रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं निर्विघ्न स्थिति द्वारा वायुमण्डल को पावरफुल बनाने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं रॉयल बाप की बच्ची बन कर अपनी हर चलन से रॉयल्टी को दिखाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता - यह लक्ष्य सदा स्मृति में रखो:- सभी अपने को ब्राह्मण सो फरिश्ता समझते हो? अभी ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण से फरिश्ता बनने वाले हैं फिर फरिश्ता सो देवता बनेंगे -वह याद रहता है? *फरिश्ता बनना अर्थात् साकार शरीरधारी होते हुए लाइट रूप में रहना अर्थात् सदा बुद्धि द्वारा ऊपर की स्टेज पर रहना। फरिश्ते के पांव धरनी पर नहीं रहते।* ऊपर कैसे रहेंगे? बुद्धि द्वारा। बुद्धि रूपी पांव सदा ऊँची स्टेज पर। ऐसे फरिश्ते बन रहे हो या बन गये हो? ब्राह्मण तो हो ही - अगर ब्राह्मण न होते तो यहाँ आने की छुट्टी भी नहीं मिलती। लेकिन ब्राह्मणों ने फरिश्तेपन की स्टेज कहाँ तक अपनाई है?फरिश्तों को ज्योति की काया दिखाते हैं। प्रकाश की काया वाले। जितना अपने को प्रकाश स्वरूप आत्मा समझेंगे - प्रकाशमय तो चलते फिरते अनुभव करेंगे जैसे प्रकाश की काया वाले फरिश्ते बनकर चल रहे हैं। *फरिश्ता अर्थात् अपनी देह के भान का भी रिश्ता नहीं, देहभान से रिश्ता टूटना अर्थात् फरिश्ता। देह से नहीं, देह के भान से। देह से रिश्ता खत्म होगा तब तो चले जायेंगे लेकिन देहभान का रिश्ता खत्म हो। तो यह जीवन बहुत प्यारी लगेगी।* फिर कोई माया भी आकर्षण नहीं करेगी।

✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता स्थिति का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा अमृतवेले मेरे मीठे बाबा से मिलन मना रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा में ऐसी शक्तियां भर रहे हैं मानो मैं एक खाली गुब्बारा हूँ... और बाबा मुझ आत्मा रूपी गुब्बारे को अपनी शक्तिशाली हवा रूपी किरणों से भर रहे हो... मैं आत्मा शक्तिशाली किरणों द्वारा भर कर बहुत ही पावरफुल और हल्का महसूस कर रही हूँ... मैं इतना हल्का महसूस कर रही हूँ कि मैं आसमान में उड़ने लगी हूँ... *जैसे-जैसे मैं ऊपर उड़ती जाती हूँ मैं महसूस करती हूँ कि मैं एक स्वतंत्र और शक्तियों से भरा हुआ गुब्बारा हूँ...* जिसकी मंज़िल मेरे बाबा हैं जिसका काम इस दुनिया के काँटों रूपी विकारों से दूर और ऊपर रहना है...

➳ _ ➳ उड़ते -उड़ते मैं एक ऐसे स्थान पर पहुँच जाती हूँ... जहाँ मेरे बाबा फरिश्ता रूपी शक्तियों से परिपूर्ण चोला पहन कर बैठे हैं जैसे ही बाबा मुझ गुब्बारे रूपी आत्मा पर दृष्टि डालते हैं, मैं सफ़ेद चमकीला फ़रिश्ता बन जाती हूँ... फिर मैं बाबा से कहती हूँ बाबा... मैं ब्राह्मण सो फ़रिश्ता और फ़रिश्ता सो देवता स्थिति का अनुभव कैसे और कब कर पाऊँगी? फिर बाबा मुझे समझाते हैं... बच्चे... *अपने आप को सदा फाँसी पर लटके हुए मनुष्य की तरह समझो... जैसे आप स्थूल दुनिया में इस विनाशी शरीर द्वारा कर्म कर रहे हों... और आपकी मन और बुद्धि परम धाम में बाबा के पास लगी हो... आप इस सृष्टि में रहते हुए भी विदेही अवस्था में रहते हो...*

➳ _ ➳ फ़रिश्ता बनकर उड़ते पँछी और चढ़ती कला का अनुभव करना है... और अपने चमकीले प्रकाश से विकारों रूपी काँटों को भस्म करना है... अगर तुम इन्हें भस्म नही कर पाओगे तो ये काँटे तुम्हें हवा रहित गुब्बारे की तहर व्यर्थ और लाचार बना देंगे और शक्तियों से परिपूर्ण फ़रिश्ता बनकर देवता रूपी स्थिति का सहज ही अनुभव कर पाओगे। और देवताई स्थिति का अनुभव कर के तुम सभी प्रश्नों से मुक्त हो पाओगे और *बाबा द्वारा दिये हुए अनमोल खजानों का गहराई से अनुभव कर पाओगे... और अन्य आत्माओं को भी कराओगे...*

➳ _ ➳ बाबा के ये वचन सुनकर मैं फ़रिश्ता फिर से हल्का गुब्बारा बनकर उड़ जाती हूँ... और वापिस अपने स्थान पर और अपनी इस देह में आकर अमृतवेला बाबा को अपने सामने पाती हूँ फिर बाबा से मैं ये वादा करती हूँ... मेरे मीठे बाबा... *मैं ब्राह्मण आत्मा सभी आत्माओं का ज्ञान और योग द्वारा सब आत्माओं का कल्याण करती जाउंगी... और ब्राह्मण से फ़रिश्ता बनकर देहभान में कभी नहीं आऊंगी हमेशा चढ़ती कला का ही अनुभव करूँगी और कराउंगी...* और फ़रिश्ता सो देवता बनकर हर व्यर्थ से मुक्त हो जाउंगी और बाबा और उनके द्वारा प्राप्तियों को मैं आत्मा गहराई से अनुभव करूँगी और कराउंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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