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 25 / 10 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान का सिमरन कर त्रिकालदर्शी बने और बनाया ?*

 

➢➢ *21 जन्मो के लिए अपना सब कुछ इनश्योर किया ?*

 

➢➢ *अपसेट होने की बजाये हिसाब किताब को ख़ुशी ख़ुशी से चुक्तु किया ?*

 

➢➢ *"बाप ही संसार है" - सदा इस स्मृति में रह सहजयोगी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जब कर्मातीत स्थिति के समीप पहुंचेंगे तब किसी भी आत्मा तरफ बुद्धि का झुकाव, कर्म का बंधन नहीं बनायेगा।* आत्मा का आत्मा से लेन-देन का हिसाब भी नहीं बनेगा। वे कर्म के बन्धनों का भी त्याग कर देंगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं उड़ती कला वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को हर कदम में उड़ती कला वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *क्योंकि उड़ती कला में जाने का समय अब थोड़ा-सा है और गिरती कला का समय बहुत है। सारा कल्प गिरते ही आये हो। उड़ती कला का समय सिर्फ अब है। तो थोड़े से समय में सदा के लिए उड़ती कला द्वारा स्वयं का और सर्व का कल्याण करना है।*

 

✧  थोड़े समय में बहुत बड़ा काम करना है। तो इतनी रफ्तार से उड़ते रहेंगे तब यह सारा कार्य सम्पन्न कर सकेगे। *सिर्फ स्वयं का कल्याण नहीं करना है लेकिन प्रकृति सहित सर्व आत्माओंका कल्याण करना है। कितनी आत्मायें हैं! बहुत है ना। तो जब इतना स्वयं शक्तिशाली होंगे तब तो दूसरों को भी बना सकेगे। अगर स्वयं ही गिरते-चढ़ते रहेंगे तो दूसरों का कल्याण क्या करेंगे। इसलिए हर कदम में उड़ती कला।*

 

  चल तो रहे हैं, कर तो रहे हैं - ऐसे नहीं। जिस रफ्तार से चलना चाहिए, उस रफ्तार से चल रहे हैं? कर तो रहे हैं लेकिन जिस विधि से करना चाहिए, उस विधि से कर रहे हैं? कर तो सभी रहे हैं, किसी से पूछो - सेवा करते हो? तो सब कहेंगे - हाँ, कर रहे हैं। *लेकिन विधि वा गति कौनसी है - यह जानना और देखना है। समय तेज जा रहा है या स्वयं तीव्रगति से जा रहे हैं? सेवा की भी तीव्र विधि है या यथाशक्ति कर रहे हैं? इसलिए सदा उड़ते चलो। उड़ने वाले औरों को उड़ा सकते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  राजा बनने का युग है। राजा क्या करता है? ऑर्डर करता है ना? *राजयोगी जैसे मन-बुद्धि को ऑर्डर करे, वैसे अनुभव करें।* ऐसे नहीं कि मन-बुद्धि को ऑर्डर करो, फरिश्ता बनो और नीचे आ जाए तो राजा का आर्डर नहीं माना ना तो राजा वह जिसका प्रजा आर्डर माने।

 

✧  नहीं तो योग्य राजा नहीं कहा जायेगा। काम का राजा नहीं, नाम का राजा कहा जायेगा। तो आप कौन हो? सच्चे राजा हो। कर्मेन्द्रियाँ ऑर्डर मानती है? *मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने ऑर्डर में हों।* ऐसे नहीं, क्रोध करना नहीं चाहता लेकिन हो गया।

 

✧  बॉडी कान्सेस होना नहीं चाहता लेकिन हो जाता हूँ तो उसको ताकत वाला राजा कहेंगे या कमजोर? तो *सदैव यह चेक करो कि मैं राजयोगी आत्मा, राज्य अधिकारी हूँ?* अधिकार चलता है? कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं देवे। आज्ञाकारी हो। अच्छा। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जायें। दिल से रहम इमर्ज हो। *क्या जब साइंस की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा व संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती। जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पद का आधार पढाई पर है, इसलिए पढाई पर ध्यान देना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मन-बुद्धि को बाह्य सभी बातों से हटाकर भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... इस देह रूपी ड्रेस से मैं आत्मा बाहर निकल फ़रिश्ता ड्रेस धारण करती हूँ... और इस धरा से ऊपर उड़ते हुए, सागर, नदियों, जंगलों, पहाड़ों को पार करती हुई आसमान में बादलों के ऊपर बैठ जाती हूँ...* आसमान में चाँद, सितारों से मिलकर और ऊपर उड़कर सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ राजयोग की पढाई पढने...

 

  *मुझे डबल सिरताज बनाकर विश्व की राजाई मेरे नाम करने के लिए अमूल्य ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... यह ईश्वरीय पढ़ाई वह जागीर, वह दौलत है जो विश्व का राज्य भाग्य दिलायेगी... *इसलिये इस महान पढ़ाई में रग रग से जुट जाओ... ईश्वर पिता की गोद में बैठ पढ़ते हो और यादो से विश्व अधिकारी सहज ही बन जाते हो... कितना प्यारा और मीठा सा यह भाग्य है... इसके नशे में डूब जाओ...”*

 

_ ➳  *बाबा के मोहब्बत की रोशनी में सच्ची कमाई कर हीरे समान चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी छाँव में, *सुखो भरी गोद में बैठ राजाई भाग्य पा रही हूँ... देवताई संस्कारो से सजकर मीठा सा मुस्करा रही हूँ, और सुनहरे सुखो की ओर कदम बढ़ाती जा रही हूँ...”*

 

  *अपने पलकों में बिठाकर यादों के समुन्दर की गहराईयों में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सच्ची पढ़ाई को दिल जान से पढ़कर अधिकारी बन जाओ... अमूल्य खजानो को और अथाह सुखो की दौलत से मालामाल बन जाओ...* ईश्वर पिता से सब कुछ लेकर देवताओ सा खुबसूरत जीवन बाँहों में भरकर खिलखिलाओ... डबल सिरताज बन सदा की मुस्कान से सज जाओ...

 

_ ➳  *रूहानी नशे में खोकर बाबा को अपने नैनों में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो और अमूल्य ज्ञान रत्नों से अथाह सुखो की मालकिन और देवताओ सा रूप रंग पा रही हूँ...* कभी दुखो में गरीब सी... मै आत्मा आज शिव बाबा आपकी बाँहों में पूरे विश्व धरा का अधिकार पा रही हूँ...

 

  *अमूल्य ज्ञान रत्नों की निधियों से मुझे मालामाल करते हुए मेरे रत्नाकर बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय पढ़ाई ही सारे सच्चे सुखो का आधार है... सारा मदार इस पढ़ाई पर ही है... जितना ज्ञान रत्नों को मन और बुद्धि में समाओगे उतना ही प्यारा सतयुगी सुखो में इठलाओगे... इसलिए इस पढ़ाई में जीजान से जुट जाओ...* और डबल ताज धारी बन विश्वधरा पर राजाई का लुत्फ़ उठाओ...

 

_ ➳  *इस एक जन्म की पढाई से 21 जन्मों की ऊँची तकदीर बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई से अथाह अमीरी का खजाना पा रही हूँ... राजयोगी बनकर किस कदर धनवान् होती जा रही हूँ...* दुखो की मोहताज से मुक्त होकर ईश्वरीय बाँहों में अमीर और अमीर होती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अन्धो की लाठी बन उन्हें अज्ञान नींद से सुजाग करना है*

 

_ ➳  ज्ञान के नेत्र से वंचित सभी मनुष्य आत्मायें आज नयनहीन हो गई हैं और अज्ञान अंधकार में भटक कर दुखी और अशांत हो रही हैं इसलिए पुकार रही है "नयनहीन को राह दिखाओ प्रभु, दर - दर ठोकर खाऊँ मैं"। *तो उनकी पुकार सुन, उन पर रहम करने, उन्हें अज्ञान अंधकार से निकालने और ज्ञान नयनहीन आत्माओं को ज्ञान नेत्र देने के लिए ही भगवान आये हुए हैं और नयनहीनो को सच्ची राह दिखा रहें हैं*।

 

_ ➳  कितनी महान सौभाग्यशाली हैं वो आत्मायें जिन्होंने ज्ञान का दिव्य नेत्र प्रदान करने वाले अपने त्रिलोकीनाथ भगवान को पहचान, उनसे ज्ञान का दिव्य नेत्र प्राप्त कर लिया है और अज्ञान अंधकार से बाहर निकल कर ज्ञान के सोझरे में आ गई हैं। *उस सोझरे में आते ही आत्मा जो अज्ञानवश अनेक प्रकार के बंधनों में बंधी थी। वो सारे बन्धन एक - एक करके टूट रहे हैं और सारे सम्बन्ध केवल उस एक ज्ञान सागर भगवान के साथ जुड़ने से, जीवन जो नीरस हो चुका था वो परमात्म प्रेम के रस से आनन्दमय होने लगा है*।

 

_ ➳  एकांत में बैठ यह विचार करते हुए अपने भगवान बाप को मैं कोटि - कोटि धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने मुझे ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर मेरे जीवन मे उजाला ही उजाला कर दिया। उनके इस उपकार का रिटर्न अब मुझे उनका सहयोगी बन कर अवश्य देना है। *अपने पिता के फरमान पर चल अज्ञान अंधकार में भटक रही ज्ञान नयनहीन आत्माओं को ज्ञान नेत्र दे कर उन्हें भटकने से छुड़ाना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है*। इस लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प करके, अपने ज्ञान सागर बाबा की मीठी याद में बैठ अतीन्द्रिय सुख का आनन्द लेने के लिए मैं कर्मेंद्रिय के आकर्षण से स्वयं को मुक्त करती हूँ और *स्वराज्य अधिकारी बन मन को परमात्म प्रेम की लगन में मग्न हो जाने का आदेश देकर, अपना सारा ध्यान  अपने स्वरूप पर एकाग्र कर लेती हूँ*।

 

_ ➳  मन बुद्धि को पूरी तरह अपने स्वरूप पर फोकस करके अपने स्वरूप का आनन्द लेने में मैं मगन हो जाती हूँ। *अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों का अनुभव करते हुए, मनबुद्धि की लगाम को थामे, मैं निराकार चमकती हुई ज्योति अब भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर की ओर उड़ान भर कर सेकेण्ड में आकाश को पार कर लेती हूँ* और सूक्ष्म वतन से होती हुई लाल प्रकाश की एक खूबसूरत दुनिया में प्रवेश करती हूँ। आत्माओं की यह निराकारी दुनिया मेरे शिव पिता का घर परमधाम है जहाँ पहुँच कर मन को गहन सुकून मिल रहा है। अथाह शांति की अनुभूति हो रही है।

 

_ ➳  गहन शन्ति का सुखद अनुभव करके अब मैं अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट खजानों से भरपूर करने के लिए और ज्ञान की शक्ति स्वयं में भरने के लिए अपने ज्ञान सागर शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनसे आ रही सर्वशक्तियों और सर्वगुणों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *ज्ञान की शक्तिशाली किरणो का फव्वारा मेरे ज्ञान सागर शिव पिता से सीधा मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगता है। इस शक्ति को स्वयं में धारण कर, अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट अविनाशी खजानों से भरपूर करके ज्ञान नयनहीन आत्माओं को ज्ञान नेत्र देने की ईश्वरीय सेवा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अपने साकार तन में प्रवेश करके अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर रूहानी सेवाधारी बन अब मैं ज्ञान सागर अपने शिव पिता द्वारा मिले ज्ञान रत्नों को स्वयं में धारण कर *ज्ञान स्वरुप बन, अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली सभी ज्ञान नयनहीन आत्माओं को ज्ञान नेत्र देकर, उन्हें अज्ञान अंधकार से निकाल ज्ञान सोझरे में लाने की सेवा करते हुए अनेकों आत्माओं को मुक्ति जीवन मुक्ति का सच्चा रास्ता दिखाकर उनका कल्याण कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपसेट होने के बजाए हिसाब - किताब को खुशी खुशी से चुकतू करने वाली निश्चिन्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं "बाप ही संसार है" सदा इसी स्मृति में रहने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  हाथ तो बहुत सहज उठाते हैंबाबा को पता है हाथ उठवायेंगे तो बहुत प्रकार के हाथ उठेंगे लेकिन फिर भी बापदादा कहते हैं कि जिस चेकिंग से आप हाथ उठाने के लिए तैयार हैं, बापदादा को पता है कितने तैयार हैंकौन तैयार हैं। *अभी भी और अन्तर्मुखी बन सूक्ष्म चेकिंग करो। अच्छा कोई को दु:ख नहीं दिया, लेकिन जितना सुख का खाता जमा होना चाहिए उतना हुआनाराज नहीं कियाराजी कियाव्यर्थ नहीं सोचा लेकिन व्यर्थ के जगह पर श्रेष्ठ संकल्प इतने ही जमा हुए?* सबके प्रति शुभ भावना रखी लेकिन शुभ भावना का रेसपान्स मिलावह चाहे बदले नहीं बदलेलेकिन आप उससे सन्तुष्ट रहेऐसी सूक्ष्म चेकिंग फिर भी अपने आपकी करो और अगर ऐसी सूक्ष्म चेकिंग में पास हो तो बहुत अच्छे हो।

 

✺   *ड्रिल :-  "अन्तर्मुखी बन सूक्ष्म चेकिंग करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस देह की मालिक, देह में मस्तक के मध्य चमक रही हूँ... स्वयं को इस देह से अलग एक जगमगाते सितारे के रुप में देख रही हूँ... बाबा की याद में बैठी हूँ और और उनके प्यार में खो जाती हूँ... *बाबा से मिलने वाले सभी ख़ज़ानों और शक्तियों को याद कर रही हूँ... स्वयं को चेक भी कर रही हूँ कि इन सब ख़ज़ानों को कितना जमा किया है...*

 

 _ ➳  मैं कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ जो इस संगमयुग में अपने प्राण प्यारे बाबा से सम्मुख मिलन मनाती हूँ... बाबा ने जो मुझे अमूल्य ख़ज़ाने और शक्तियाँ दी हैं उन्हें अपने इस हीरे तुल्य जीवन मे यूज़ करते हुए निरंतर आगे बढ़ रही हूँ... बाबा का साथ और प्यार मुझे हर कदम पर महसूस होता है... मैं बाबा की छत्रछाया में रह हर कर्म करती हूँ... *हर आत्मा के प्रति शुभभावना रखती हूँ और मेरे प्योर वाइब्रेशन अन्य आत्मायें कैच करती हैं और मेरी ओर आकर्षित होती हैं और मैं आत्मा उन सभी को अपनी शीतल दृष्टि से संतुष्ट करती हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस सृष्टि के रंगमंच पर अपना पार्ट प्ले करते हुए अन्य बहुत सी आत्माओं के संपर्क में आती हूँ... और हर आत्मा अपने स्वभाव संस्कार के अनुसार व्यवहार करती है... क्योंकि इस सृष्टि के अंत में सभी आत्माओं की बैटरी डिस्चार्ज है... *मैं आत्मा अपने संपर्क में आने वाली हर आत्मा को शुभ वाइब्रेशन दे उनके संस्कार परिवर्तन में उन्हें मदद करती हूँ...*

 

 _ ➳  मेरे संपर्क में आने वाली आत्माएं शांति का अनुभव करती हैं... वो अपने दुखों को भूल सुख का अनुभव करती हैं क्योंकि मैं आत्मा सुख स्वरूप हूँ... *कोई आत्मा अपने कड़े संस्कारों के कारण मुझसे अच्छा व्यवहार नहीं करती या नाराज़ रहती है उसे भी मैं शुभ भावना देकर उसे भी राज़ी करती हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस संगमयुग पर अपने पुराने सभी कलियुगी संस्कारों को परिवर्तन कर रही हूँ... *बाबा के साथ से उनके सहयोग से तेज़ी से मेरे संस्कार परिवर्तन हो रहे हैं... मैं आत्मा स्वयं पर अटेंशन रखकर साथ साथ अपनी चेकिंग भी करती जाती हूँ...* मुझ आत्मा के किसी व्यवहार के कारण किसी को कोई दुख तो नहीं पहुंचा... मैं आत्मा अन्य आत्माओं के भी दुखों को दूर करती हूँ और अपना सुख का खाता जमा करती हूँ... *मैं आत्मा अंतर्मुखी बन अपनी सूक्ष्म चेकिंग करती हूँ... श्रेष्ठ संकल्पों का ख़ज़ाना जमा करती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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