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❍ 14 / 11 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सच्चाई को धारण कर बाप की हर एक्ट को फॉलो किया ?*
➢➢ *"हम भगवान के बच्चे आपस में भाई भाई हैं" - इस स्मृति से अपनी दृष्टि वृत्ति को पवित्र बनाया ?*
➢➢ *विशेषताओ को सामने रख सदा ख़ुशी ख़ुशी से आगे बड़ते रहे ?*
➢➢ *प्यूरिटी की रॉयल्टी में रह हद की आकर्षणों से न्यारे रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करने का अभ्यास करो। *एक मिनट के लिए संकल्पों को, चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को रोककर बिन्दू रुप की प्रैक्टिस करो। यह एक सेकेण्ड का भी अनुभव सारा दिन अव्यक्त स्थिति बनाने में मदद करेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ *बाप की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ - यही अनुभूति होती है। जो अभी छत्रछाया में रहते, वही छत्रधारी बनते हैं।*
〰✧ *तो छत्रछाया में रहने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ - यह खुशी रहती है ना। छत्रछाया ही सेफ्टी का साधन है।*
〰✧ *इस छत्रछाया के अन्दर कोई आ नहीं सकता। बाप की छत्रछाया के अन्दर हूँ - यह चित्र सदा सामने रखो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ज्ञाता तो नम्बरवन हो गये हैं, *सिर्फ एक बात में अलबेले बन जाते हो, वो है - 'स्व को सेकण्ड में व्यर्थ सोचने, देखन, बोलने और करने में फुलस्टॉप लगाकर परिवर्तन करना।’* समझते भी हो कि यही कमजोरी सुख की अनुभूति में अन्तर लाती है, शाक्ति स्वरूप बनने में वा बाप समान बनने में विघ्न स्वरूप बनती है फिर भी क्या होता है? स्वयं को परिवर्तन नहीं कर सकते, फुलस्टॉप नहीं दे सकते।
〰✧ ठीक है, समझते हैं - का कॉमा (,) लगा देते हैं, वा दूसरों को देख आश्चर्य की निशानी(!) लगा देते हो कि ऐसा होता है क्या! ऐसा होना चाहिए! वा क्वेचन मार्क की क्यू (लाइन) लगा देते हो, क्यों की क्यू लगा देते हो। फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु (.)। तो *फुलस्टॉप तब लग सकता है जब बिन्दु स्वरूप बाप और बिन्दु स्वरूप आत्मा - दोनों की स्मृति हो।* यह स्मृति फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु लगाने में समर्थ बना देती है।
〰✧ उस समय कोई-कोई अन्दर सोचते भी हैं कि मुझे आत्मिक स्थिति में स्थित होना है लेकिन माया अपनी स्क्रीन द्वारा आत्मा के बजाय व्यक्ति वा बातें बार-बार सामने लाती है, जिससे आत्मा छिप जाती है और बार-बार व्यक्ति और बातें सामने स्पष्ट आती हैं। तो मूल कारण *स्व के ऊपर कन्ट्रोल करने की कन्ट्रलिंग पॉवर कम है।* दूसरों को कन्ट्रोल करना बहुत आता है लेकिन स्व पर कन्ट्रोल अर्थात परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाना कम आता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ब्राह्मणों को त्रिमूर्ति शिव वंशी कहते हो ना? त्रिमूर्ति बाप के बच्चे स्वयं भी त्रिमूर्ति हैं। बाप भी त्रिमूर्ति है। जैसे बाप त्रिमूर्ति है वैसे आप भी त्रिमूर्ति हो? *तीन प्रकार की लाइट्स साक्षात्कार की आती हैं? वह मालूम है कौन-सी हैं जो ब्राह्मणों के तीन प्रकार की लाइट्स साक्षात्कार होते रहते हैं?* आप लोगों से लाइट का साक्षत्कार होता मालूम पड़ता है? त्रिमूर्तिवंशी त्रिमूर्ति बच्चों की तीन प्रकार की लाइट्स का साक्षत्कार होता है। वह कौन-सी लाइट्स हैं? *एक तो लाइट का साक्षत्कार होता है नयनों से। कहते हैं ना कि नयनों की ज्योति! नयन ऐसे दिखाई पड़ेगे जैसे नयनों में दो बड़े बल्ब जल रहे हैं। दूसरी होती है मस्तक की लाइट। तीसरी होती है माथे पर लाइट का क्राउन।* अभी यह कोशिश करना है जो तीनों ही लाइट्स का साक्षात्कार हो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मन को एकाग्रचित करती हूँ... इस देह से अपना ध्यान हटाती हुई भृकुटी पर अपना ध्यान केन्द्रित करती हूँ... धीरे-धीरे इस देह से बाहर निकलती हूँ...* मैं आत्मा इस देह रूपी आवरण से निकल प्रकाश की काया धारण कर इस देह की दुनिया से न्यारी होती हुई उड़ चलती हूँ सफ़ेद प्रकाश की दुनिया में... जहाँ चारों ओर सफ़ेद चमकीला प्रकाश फैला हुआ है... बापदादा सफ़ेद प्रकाशमय चमकीली काया में मुस्कुराहट बिखेरते हुए सफ़ेद बादलों के झूले में बैठे हैं... *मुझे देख बापदादा अपने साथ बादलों के झूले में बिठाते हैं... और झुला झुलाते हुए मीठी रूह रिहान करते हैं...*
❉ *विजयी रतन होने का वरदान देकर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गए... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो...* अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सीपी से निकली मोती की तरह चमचमाती हुई अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ...* अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”
❉ *अपने सतरंगी किरणों से मेरे दिव्य स्वरूप को सजाते हुए मीठे जादूगर बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैले पन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... अब *अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कांटो के रेगिस्तान से निकल मीठे रूहानी खुशियों के झरने में नाचती हुई कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ..."*
❉ *सुखों के गगन में मुझे दिव्य सितारा बनाकर पूरे विश्व को रोशन करते हुए सुखों के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते चले जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते चले जायेंगे...* और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे..."
➳ _ ➳ *अपने निज धाम में निज पिता की गोद में अपने निज स्वरूप में जगमगाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और *शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निर्भय बनना है*"
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा को साथ लिए, उनकी सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, मैं एक पार्क में टहल रही हूँ। *टहलते - टहलते मैं कोने में रखे एक बेंच पर बैठ जाती हूँ और अपनी आंखों को बंद करके अपने दिलाराम बाबा की सर्वशक्तियों की शीतल छाया का आनन्द लेने लगती हूँ*। उस मधुर आनन्द में खोई हुई मैं एक दृश्य देखती हूँ कि जैसे मैं एक छोटी सी बच्ची बन पार्क में एक झूले पर बैठी झूला झूल रही हूँ। झूला झूलने में मैं इतनी मगन हो जाती हूँ कि कब अंधेरा हो जाता है और सभी पार्क से चले जाते हैं, पता ही नही पड़ता।
➳ _ ➳ अंधेरे में स्वयं को अकेला पाकर मैं डर से कांप रही हूँ, रो रही हूँ और रोते - रोते बाबा - बाबा बोल रही हूँ। तभी दूर से मैं देखती हूँ एक बहुत तेज लाइट तेजी से मेरी ओर आ रही है। वो लाइट मेरे बिल्कुल समीप आ कर रुक जाती है। *देखते ही देखते वो लाइट एक बहुत सुंदर आकार धारण कर लेती है और उसके मुख से मधुर आवाज आती है:- "मेरे बच्चे डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ"* यह कहकर वो लाइट का फ़रिशता मुझे अपनी बाहों में उठा कर मुझे मेरे घर छोड़ देता है। इस दृश्य को देखते - देखते मैं विस्मय से अपनी आंखें खोलती हूँ और इस दृश्य को याद करते हुए मन ही मन स्वयं को स्मृति दिलाती हूँ कि मेरा बाबा सदा मेरे अंग - संग है।
➳ _ ➳ इस स्मृति में मैं जैसे ही स्थित होती हूँ मैं स्वयं को अपने निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में अपने निराकार शिव बाबा के साथ कम्बाइंड अनुभव करती हूँ। *कम्बाइन्ड स्वरूप की इस स्थिति में मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से पार्क के खूबसूरत दृश्य को देख रही हूँ*। मेरे दिलाराम बाबा की लाइट माइट पूरे पार्क में फैली हुई है। उनकी शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे चारों और फैल कर परमधाम जैसे अति सुंदर दृश्य का निर्माण कर रही है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे पार्क का वह दृश्य परमधाम का दृश्य बन गया है। वहां उपस्थित सभी देहधारी मनुष्यों के साकार शरीर लुप्त हो गए हैं और चारों और चमकती हुई निराकारी ज्योति बिंदु आत्मायें दिखाई दे रही हैं। *मैं आत्मा स्वयं को साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं संकल्प मात्र भी देह से अटैच नही हूँ*। कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है यह। आलौकिक सुखमय स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। *निर्संकल्प हो कर, बिंदु बन अपने बिंदु बाप को मैं निहार रही हूँ। उन्हें देखने का यह सुख कितना आनन्द देने वाला है*। बहुत ही निराला और सुंदर अनुभव है यह।
➳ _ ➳ बिंदु बाप के सानिध्य में मैं बिंदु आत्मा उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समा रही हूँ। उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। उनकी शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति कर रही हूँ। *आत्मा और परमात्मा का यह मंगल मिलन चित को चैन और मन को आराम दे रहा है*। बाबा से आती सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं शक्तियों का पुंज बन गई हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। यह सुखद अनुभूति करके, अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, अपने बाबा को अपने संग ले कर वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के संग में रह अब मैं निर्भय हो कर जीवन मे आने वाली हर परिस्थिति को सहज रीति पार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ। *"स्वयं भगवान मेरे संग है" यह स्मृति मुझमे असीम बल भर देती है और मैं अचल अडोल बन माया के हर तूफान का सामना कर, माया पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं विशेषताओं को सामने रख सदा खुशी खुशी से आगे बढ़ने वाली निश्चयबुद्धि विजयी रत्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं प्योरिटी की रॉयल्टी में रहकर हद के आकर्षणों से न्यारे हो जाने वाली रॉयल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सिर्फ एक बात याद रखना कि सेवा और स्व-उन्नति के बैलेन्स में अन्तर नहीं आवे प्लैन प्रैक्टिकल करने के बाद यह नहीं कहना कि सर्विस में बिजी हो गये ना इसलिए स्व-उन्नति में अन्तर आ गया - यह नहीं कहना। दोनों का बैलेन्स सदा रखना। क्यों? *दूसरों की सेवा करो और स्व की सेवा नहीं तो यह अच्छा नहीं। दोनों का बैलेन्स रखना ही सफलता है*। समझा। अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "सेवा और स्व-उन्नति का बैलेन्स रखना"*
➳ _ ➳ सेवा और स्व उन्नति का बैलेंस रखने वाली मैं स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ। *स्वयं के परिवर्तन द्वारा विश्व का परिवर्तन करने की ईश्वरीय सेवा अर्थ बाबा ने मुझे यह संगमयुगी ब्राह्मण जीवन गिफ्ट किया है।* इस बात को स्मृति में लाकर मैं अपने प्यारे मीठे शिव बाबा की याद में अशरीरी हो कर जैसे ही बैठती हूँ। ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे मीठे प्यारे बाबा के प्रकाश की रश्मियां मुझे बुला रही हैं। मेरा आह्वान कर रही हैं। *ऐसा लग रहा है जैसे कोई मुझे ऊपर की ओर खींच रहा है।*
➳ _ ➳ प्रभु प्यार की किरणों के खिंचाव से मैं आत्मा स्वयं को सम्पूर्ण स्वच्छ और शक्तिशाली बनाने के लिए धीरे - धीरे वतन की ओर बढ़ रही हूँ। *ज्ञानसूर्य शिव बाबा से आ रहा प्रकाश मुझे उन तक पहुंचने का रास्ता दिखा रहा है*। सूर्य के प्रकाश से भी अधिक शक्तिशाली ये किरणे मुझे अपने वास्तविक स्वभाव और संस्कार की अनुभूति कराने के लिए उस ज्योति के देश में खींच रही है।
➳ _ ➳ फरिश्तों की दुनिया को पार करते हुए मैं जा रही हूं उस प्रकाश देश मे, उस ज्योति के देश मे जहां मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे स्वागत के लिए खड़े हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुंच गई हूं। *बस मैं और मेरा बाबा। परम प्रकाशमय बाबा के प्रकाश की एक - एक किरण मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के नकारात्मक स्वभाव संस्कार को धोकर मुझे शुद्ध बना रही है।* शक्तियों का प्रकाश मुझ आत्मा के चारो ओर बढ़ रहा है । प्रकाश का यह फ्लो मुझे फ्लालेस बना रहा है। मेरी कमजोरियां निकल रही हैं और मेरे अंदर शक्तियों का संचार हो रहा है। मैं बेदाग हीरा बन रही हूं।
➳ _ ➳ पवित्र, शुद्ध, ज्ञान प्रकाश स्वरूप में मैं आत्मा अनेकों को रास्ता दिखाने के लिए अब मूल वतन से फरिश्तो के वतन में प्रस्थान कर रही हूं। मेरे साथ - साथ मेरे मीठे प्यारे बाबा भी अव्यक्त वतन में चल रहे हैं। इस अव्यक्त वतन में मेरा सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप मेरे सामने खड़ा है। *अपने इस सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में मैं प्रवेश कर जाती हूँ। मेरे मीठे प्यारे शिव बाबा भी अव्यक्त ब्रह्मा के सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप में प्रवेश कर जाते हैं*। बापदादा की दृष्टि मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है। बाबा के साथ - साथ मीठी प्यारी मम्मा, एडवांस पार्टी की अनेक आत्मायें भी मुझे दृष्टि दे रही हैं।
➳ _ ➳ मेरा एक हाथ बाबा के हाथ मे है और दूसरा हाथ मम्मा के हाथ मे है। बाबा मम्मा का रूहानी प्यार सूक्ष्म सेवा के लिए मुझमें उत्साह और बल भर रहा है। समस्त विश्व की सेवा हेतू अब मैं फरिश्ता विश्व ग्लोब पर पहुंच गया हूँ। *मेरा बुद्धि का कनेक्शन बाबा के साथ जुटा हुआ है जिससे बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझ में संचारित हो रही हैं और मुझ से होती हुई सारे विश्व मे फैल रही हैं*। परमात्म प्रकाश के स्वरूप में विश्व की एक - एक आत्मा को परमात्मा के आने का संदेश मिल रहा है। विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्म सन्देश पहुंचा कर मैं फरिश्ता साकारी दुनिया की ओर बढ़ रहा हूँ।
➳ _ ➳ अपने फरिश्ता स्वरुप को अपने ब्राह्मण स्वरूप में मर्ज करके अब मैं ब्राह्मण आत्मा बाबा की याद से अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को ऐसा श्रेष्ठ बना रही हूं जो मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म सहज ही औरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहा है। *परमात्म याद में रहने से मनसा, वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बन सेवा के क्षेत्र में मैं सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूं*। सेवा और स्व उन्नति का बैलेंस मुझे स्वयं के साथ - साथ सर्व का कल्याणकारी बना कर सर्व की, और परमात्म दुआओं की अधिकारी आत्मा बना रहा है।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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