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❍ 12 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप से जो प्रतिज्ञा की है, उस पर कायम रहे ?*
➢➢ *अपना और दूसरों का श्रृंगार किया ?*
➢➢ *हर सेकंड स्वयं को भरपूर अनुभव कर सदा सेफ रहे ?*
➢➢ *अपनी स्थिति निर्मानचित बनाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *इस अभ्यास को शक्तिशाली बनाने के लिये पहले अपने पर प्रयोग करके देखो। हर मास वा हर 15 दिन के लिये कोई न कोई विशेष गुण वा कोई न कोई विशेष शक्ति का स्व प्रति प्रयोग करके देखो* क्योंकि संगठन में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में पेपर तो आते ही हैं तो पहले अपने ऊपर प्रयोग करके चेक करो, कोई भी पेपर आया तो किस गुण वा शक्ति का प्रयोग करने से कितने समय में सफलता मिली? *जब स्व के प्रति सफलता अनुभव करेंगे तो आपके दिल में औरों के प्रति प्रयोग करने का उमंग-उत्साह स्वत: ही बढ़ता जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा के नयनों समाई हुई आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा बाप के नयनों में समाई हुई आत्मा स्वयं को अनुभव करते हो? नयनों में कौन समाता है? जो बहुत हल्का बिन्दु है। तो सदा हैं ही बिन्दु और बिन्दु बन बाप के नयनों में समाने वाले। *बापदादा आपके नयनों में समाये हुए हैं और आप सब बापदादा के नयनों में समाये हुए हो।*
〰✧ जब नयनों में है ही बापदादा तो और कुछ दिखाई नहीं देगा। *तो सदा इस स्मृति से डबल लाइट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दु। बिन्दु में कोई बोझ नहीं। यह स्मृति स्वरूप सदा आगे बढ़ाता रहेगा। आँखों में बीच में देखो तो बिन्दू ही है। बिन्दु ही देखता है। बिन्दू न हो तो आँख होते भी देख नहीं सकते।*
〰✧ तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो। बापदादा बच्चों के वर्तमान और भविष्य के भाग्य को देख हर्षित हैं, वर्तमान कलम है भविष्य के तकदीर बनाने की। *वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का साधन है - बड़ों के ईशारों को सदा स्वीकार करते हुए स्वयं को परिवर्तन कर लेना। इसी विशेष गुण से वर्तमान और भविष्य तकदीर श्रेष्ठ बन जाती है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बापदादा एक सेकण्ड में अव्यक्त से व्यक्त में आ गया वैसे ही बच्चे भी एक सेकण्ड में व्यक्त से अव्यक्त हो सकते हैं?* जैसे जब चाहे तब मुख से बोलो, जब चाहे तब मुख से बन्द कर दें। ऐसा होता है ना। वैसे ही बुद्धी को भी जब चाहें तब चलायें, जब न चाहे तब न चलो। ऐसा अभ्यास अपना समझते हो?
〰✧ मुख का आरगन्स कुछ मोटा है, बुद्धि मुख से सूक्ष्म है। *लेकिन मुख के माफिक बुद्धी को जब चाहो तब चलाओ, जब चाहो तब न चलाओ*। ऐसा अभ्यास है? यह ड्रिल जानते हो? अगर इस बात का अभ्यास मजबूत होगा तो अपनी स्थिती भी मज़बूत बना सकेंगे। यह है अपनी स्थिती की वृद्धी की विधी।
〰✧ कई बच्चों का संकल्प है वृद्धि कैसे हो? *वृद्धि विधी से होती है। अगर विधी नहीं जानते हो तो वृद्धि भी नहीं होगी*। आज बापदादा हरेक की वृद्धि और विधी दोनों देख रहे हैं। अब बताओ क्या दृश्य देखा होगा? हरेक अपने आपसे पूछे और देखे कि वृद्धि हो रही हैं? मैजोरिटी अपनी वृद्वि से सन्तुष्ट हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सभी अव्यक्त रूप में स्थित हो ? यह तो जानते हो - अव्यक्त मिलन अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने के अनुभवीमूर्त कहाँ तक बने हैं? *अव्यक्ति स्थिति में रहने वालों का सदा हर संकल्प, हर कार्य अलौकिक होता है। ऐसा अव्यक्ति भाव में, व्यक्ति देश और कर्तव्य में रहते हुए भी कमल पुष्प के समान न्यारा और एक बाप का सदा प्यारा रहता है। ऐसे अलौकिक अव्यक्ति स्थिति में सदा रहने वाले को कहा जाता है अल्लाह लोग।* टाइटिल तो और भी है। ऐसे को ही प्रीत बुद्धि कहा जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- किसी भी कारण से कुल कलंकित नहीं बनना"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले... मैं आत्मा... मीठे बाबा... अपने ज्ञान सूर्य बाबा की यादों में खो जाती हूँ कि... मीठे बाबा के ज्ञान प्रकाश ने मेरे जीवन को दिव्य बना दिया है...* दिव्य गुणों से सजाकर... कितना चमकदार और रूहानियत से भर दिया है... मुझे आप समान तेजस्वी बना दिया है... *अपनी सर्वशक्तियों को... सारी दौलत को... सहज ही मेरे कदमो में बिखेर दिया है... अब मैं ब्राह्मण आत्मा ऐसा कोई भी कर्म नहीं करुँगी जिससे मेरे ब्राह्मण कुल का... मेरे प्यारे बाबा का नाम बदनाम हो...*
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को श्रीमत देते हुए कहा :-"मेरे मीठे राजा बच्चे... सत्य बाबा से सत्य ज्ञान को पाकर, इस सच्ची के सच्चे मुसाफिर बनो...* कभी भी श्रीमत रूपी मेरे हाथ और साथ से बेमुख नहीं बनना... *कभी भी इस सच्चे कुल को कलंकित नहीं करना...* सदा निश्चय बुद्धि बन... मीठे बाबा की छत्रछाया में आगे बढ़ो... भूले से भी कोई विकर्म नहीं करना..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से ईश्वरीय मत पाकर खुश होती हुई बाबा से कहती हूँ :-"मेरे जीवन के सच्चे सहारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादों में और आपसे मिले अमूल्य ज्ञान रत्नों को सदा याद रखूँगी...* कभी भी आपकी श्रीमत के विरुद्ध हो ऐसा कोई भी कर्म नही करुँगी... *जिससे मेरे इस ब्राह्मण जीवन पर या मेरे प्यारे बाबा... आप पर कोई आंच भी आये...* आप सच्चे साथी को हरपल साथ रख... हर कर्म को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य और असत्य की समझ देकर बेहद का वैरागी बनाते हुए कहा :-"मीठे बच्चे... मीठे बाबा के संग... सदा सच की डोली में बैठ... इन खूबसूरत राहों पर चलते रहो...* सदा अचल... अडोल बन... हर कर्म को करो और दिव्य गुणों की धारणा से, अपने जीवन को खुशनुमा बनाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में अतीन्द्रिय सुख पाते हुए कहती हूँ :-"मेरे प्यारे सिकीलधे बाबा... आपने मुझ साधारण आत्मा को... दिव्य गुणों से आभूषित कर दिया है...* अब मैं आत्मा आपके द्वारा बताये गये... एक-एक गुण को अपने जीवन में धारण कर... *इस कुल का नाम रोशन करुँगी... कभी भी अपने इस कुल को दाग नहीं लगने दूँगी..."*
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरा उज्ज्वल भविष्य दिखाते हुए कहा :-"मेरी फूल बच्ची... मीठे बाबा के अतुलनीय ज्ञान धन को सदा बुद्धि में फिराते रहो...* और मीठी यादों के झूलों में बैठ सदा गुनगुनाते रहो... कभी भी किसी की बातों में न आकर... *ईश्वर पिता का हाथ और साथ न छोड़ना... वरना इस दुःख भरी दुनिया में तुम्हें कोई चैन से जीने नहीं देगा..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की प्यार भरी बाँहो में मुस्कराते हुए कहती हूँ :-मेरे प्यारे दुलारे बाबा... भला आपको... मेरे जीवनदाता... भगवान को पा लेने के बाद मुझे और क्या चाहिये...* कुछ भी नहीं... अब तो आपके बताये गये मार्ग पर चल... *हर कर्म श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ करुँगी... कभी भी आपके नाम को... व अपने नाम को कुल कलंकित नहीं होने दूँगी... आपसे ऐसा वायदा करती हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपना और दूसरों का ज्ञान श्रृंगार करना है*"
➳ _ ➳ ज्ञान के सागर, अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा दिये अविनाशी ज्ञान रत्नों को अपने जीवन मे धारण करने और ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार करने के लिए, अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर मैं ब्राह्मण आत्मा अपने गॉडली विश्व विद्यालय में पहुँचती हूँ और क्लास रूम में जाकर बैठ जाती हूँ। *कुछ ही क्षणों में ज्ञान सागर अपने शिव पिता को अपनी ब्रह्मा माँ के साथ, शिक्षक के रूप में अपने उस क्लासरूम में मैं प्रवेश करते हुए अनुभव करती हूँ*। उनकी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणो को ज्ञान की शीतल फ़ुहारों के रूप में अपने ऊपर बरसता हुआ मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ जो मेरे अन्दर एक अलौकिक रूहानी नशे का संचार कर रहा है।
➳ _ ➳ एक दिव्य अलौकिक मस्ती में डूबी ज्ञान के दिव्य चक्षु से मैं अपने सामने विराजमान बापदादा को देख रही हूँ और उनके मुख कमल से उच्चारित ज्ञान रत्नों को अपनी बुद्धि में धारण कर रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जिसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने मुझ पर लुटा रहें हैं और मेरी ब्रह्मा माँ ज्ञान के मोती चुन - चुन कर उनसे मेरा श्रृंगार कर रही है, दिव्य गुणों से मुझे सजा रही है*। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे अविनाशी ज्ञान रत्नों के साथ - साथ उनके मस्तक से निकल रहा शक्तियों का फव्वारा मेरे ऊपर बरस रहा है और मुझे ऐसे अनुभव करवा रहा है जैसे ज्ञान की रिमझिम फुहारें मेरे ऊपर पड़ रही हैं और इस ज्ञान बरसात में स्नान कर मैं ज्ञान रत्नों से सजी गुणमूर्त आत्मा बनती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर, अब बापदादा वापिस अपने अव्यक्त वतन लौट रहें हैं और मैं ब्राह्मण आत्मा ज्ञान की शक्ति से स्वयं को भरपूर करने के लिए अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर अब ऊपर परमधाम की ओर जा रही हूँ। *अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा उमंग - उत्साह के पंख लगा कर, ऊपर आकाश की ओर उड़ती जा रही हूँ*। ज्ञान की दिव्य अलौकिक रूहानी मस्ती से भरपूर मैं चैतन्य शक्ति अब नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने उस परमधाम घर में प्रवेश करती हूँ जहाँ पहुंचते ही गहन शान्ति का मैं अनुभव करने लगती हूँ।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया मे देह से जुड़ी मन को अशांत करने वाली कोई बात नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति का अनुभव करते - करते मैं आत्मा *अब अपने बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध बनाने और उसे ज्ञान की शक्ति से भरपूर करने के लिए अब अपने ज्ञान सागर शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनसे निकल रही ज्ञान की शक्ति के रंगीन फव्वारे के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ*। अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के ज्ञान की शक्ति को अपने अंदर समाकर मैं ज्ञान रत्नों से भरपूर होकर, मास्टर ज्ञान सागर बन गई हूँ।
➳ _ ➳ अपनी बुद्धि रूपी झोली में ज्ञान का अखुट भण्डार जमा कर, ज्ञान की शक्ति से सम्पन्न बनकर अब मैं अपना और दूसरों का ज्ञान श्रृंगार करने के लिए वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और ज्ञानसागर अपने शिव पिता के ज्ञान की शीतल लहरों के अहसास को अभी भी अनुभव कर रही हूँ। बाबा के ज्ञान की शक्ति से अपनी बुद्धि को रिफाइन कर, ज्ञान के अखुट खजाने को अब मैं अपने कर्मक्षेत्र और कार्य व्यवहार में प्रयोग कर, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं का ज्ञान श्रृंगार कर रही हूँ*। परमात्म ज्ञान को अपने जीवन मे हर जगह प्रयोग कर, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को व्यर्थ से मुक्त कर समर्थ आत्मा बन अब मैं सबको समर्थ बना रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं हर सेकन्ड स्वयं को भरपूर अनुभव कर सदा सेफ रहने वाली स्मृति सो समर्थ स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी स्थिति निर्मानचित्त बनाकर विश्व का नव निर्माण करने वाली निर्मानचित्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा की तपस्या का फल आप बच्चों को मिल रहा है। तपस्या का प्रभाव इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है। साथ में बच्चे भी हैं, बच्चों की भी तपस्या है लेकिन निमित्त तो ब्रह्मा बाप कहेंगे। *जो भी मधुबन तपस्वी भूमि में आते हैं तो ब्राह्मण बच्चे भी अनुभव करते हैं कि यहाँ का वायुमण्डल, यहाँ के वायब्रेशन सहजयोगी बना देते हैं। योग लगाने की मेहनत नहीं, सहज लग जाता है और कैसी भी आत्मायें आती हैं, वह कुछ न कुछ अनुभव करके ही जाती हैं। ज्ञान को नहीं भी समझते लेकिन अलौकिक प्यार और शान्ति का अनुभव करके ही जाते हैं।* कुछ न कुछ परिवर्तन करने का संकल्प करके ही जाते हैं। यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव।
✺ *"ड्रिल :- मधुबन तपोभूमि की स्मृति से अलौकिक प्यार और शांति का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा घर की छत पर बैठकर... चाँद सितारों को निहारती हुई... प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत मुझ आत्मा के सामने आ जाते हैं... मैं आत्मा बाबा से मधुबन की सैर कराने का आग्रह करती हूँ... प्यारे बाबा अपने साथ मुझ आत्मा को *बादलों के विमान में बिठाकर मधुबन लेकर जाते हैं...*
➳ _ ➳ *यहाँ की ठंडी-ठंडी हवाएं सुन्दर प्रकृति ऐसा लग रहा... मानों हमारा स्वागत कर रही हों...* मैं आत्मा बाबा का हाथ पकड मधुबन की सुन्दरता को निहार रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा को चार धामों की यात्रा करा रहे हैं... *बाबा का कमरा, बाबा की कुटिया, हिस्ट्री हॉल, शांति स्तम्भ में... कदम रखते ही मुझ आत्मा में रूहानियत की अनुभूति हो रही है...*
➳ _ ➳ *बाबा मुझ आत्मा के सामने साकार ब्रह्मा बाबा के... त्याग और तपस्यामय जीवन के दृश्यों को इमर्ज कर रहे हैं...* ब्रह्मा बाबा ने शिव बाबा के यज्ञ में अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था... *ब्रह्मा बाबा ज्ञान, पवित्रता एवं योग के साक्षात चैतन्य मूर्त थे...* निरंतर त्याग वृत्ति, और तपस्या मूर्त बनकर हर सेकेण्ड, हर संकल्प द्वारा विश्व कल्याण करते गए...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा का पारसमणि समान व्यक्तित्व लोहे को सोना बना देता था... ब्रह्मा बाबा जागती ज्योत थे... उनके सम्पर्क में आने से बुझे दीपक जग उठते थे... उनके निर्मल जीवन, दिव्यगुण सम्पन्न आचरण, मधुरता, सेवा-भाव से... भटकते हुए को जीवन पथ मिल जाता था... *ब्रह्मा बाबा ने साकार में मधुबन में रात-दिन अटल साधना... कठिन तपस्या कर... मधुबन को पावरफुल तपोभूमि के रूप में परिवर्तित कर दिया...*
➳ _ ➳ *बाबा की तपस्या का प्रभाव आज भी इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है...* इन दृश्यों को देखकर मैं आत्मा बाप के स्नेह में समा रही हूँ... ब्रह्मा बाबा की तपस्या के फल के प्रभाव से मैं आत्मा... प्रेम, सुख, आनंद, पवित्रता की अनुभूति कर रही हूँ... *मैं आत्मा बाप समान तपस्वीमूर्त बनने का दृढ़ संकल्प करती हूँ...*
➳ _ ➳ यहाँ का वायुमण्डल, यहाँ के वायब्रेशन मुझ आत्मा को सहजयोगी बना रहे हैं... *बिना मेहनत के बाप के मुहब्बत में समाकर... बाप समान स्वतः निरंतर योगी बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा इस वरदानी भूमि की स्मृति में रहकर वरदानी मूर्त बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा मधुबन तपोभूमि की स्मृति से ही अलोकिक प्यार और शांति का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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