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 12 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भिखारी बनने की बजाए अधिकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *अनेक चक्रों से छूट स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *प्रशनचित की बजाये प्रसन्नचित बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"सब कुछ पा लिया" - यही गीत गाते रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अब अपने दिल की शुभ भावनाएं अन्य आत्माओं तक पहुंचाओ। साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष करो। *हर एक ब्राह्मण बच्चे में यह साइलेन्स की शक्ति है। सिर्फ इस शक्ति को मन से, तन से इमर्ज करो। एक सेकण्ड में मन के संकल्पों को एकाग्र कर लो तब फरिश्ते रूप द्वारा वायुमण्डल में साइलेन्स की शक्ति के प्रकम्पन्न फैला सकेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बेफिक्र बादशाह हूँ"*

 

  सदा अपने को बेफिक्र बादशाह अनुभव करते हो? या थोड़ा-थोड़ा फिक्र है? *क्योंकि जब बाप ने आपकी जिम्मेवारी ले ली, तो जिम्मेवारी का फिक्र क्यों? अभी सिर्फ रेस्पान्सिबिल्टी है बाप के साथ-साथ चलते रहने की। वह भी बाप के साथसाथ है, अकेले नहीं।*

 

  तो क्या फिक्र है? कल क्या होगा-ये फिक्र है? जोब का फिक्र है? दुनिया में क्या होगा- ये फिक्र है? क्योंकि जानते हो कि-हमारे लिए जो भी होगा अच्छा होगा। निश्चय है ना। पक्का निश्चय है या हिलता है कभी ? *जहाँ निश्चय पक्का है, वहाँ निश्चय के साथ विजय भी निश्चित है। ये भी निश्चय है ना कि विजय हुई पड़ी है।*

 

  या कभी सोचते हो कि - पता नहीं होगी या नहीं? क्योंकि कल्प-कल्प के विजयी हैं और सदा रहेंगे-ये अपना यादगार कल्प पहले वाला अभी फिर से देख रहे हो। इतना निश्चय है ना कि कल्प-कल्प के विजयी हैं। इतना निश्चय है? कल्प पहले भी आप ही थे या दूसरे थे? *तो सदा यही याद रखना कि हम निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं। ऐसे रत्न हो जिन रत्नों को बापदादा भी याद करते हैं। ये खुशी है ना? बहुत मौज में रहते हो ना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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बापदादा बच्चों के मन की मेहनत नहीं देख सकते। 63 जन्म मेहनत की। अब एक जन्म मौजों का जन्म हैं, मुहब्बत का जन्म है, प्राप्तियों का जन्म है, वरदानों का जन्म हैं। मदद लेने का, मदद मिलने का जन्म हैं। फिर भी *इस जन्म में भी मेहनत क्यों? तो अब मेहनत को मुहब्बत में परिवर्तन करो।* महत्व से खत्म करो। आज बापदादा आपस में बहुत चिटचैट कर रहे थे, बच्चों की मेहनत परा क्या करते हैं, बापदादा मुस्करा रहे थे कि मन की मेहनत का कारण क्या बनता है, क्या करते हैं? टेढ़े बाँके, बच्चे पैदा करते, जिसका कभी मुँह नहीं होता, कभी टांग नहीं, कभी बांह नहीं होती। ऐसे व्यर्थ की वंशावली बहुत पैदा करते हैं और फिर जो रचना की तो क्या करेंगे? उसको पालने के कारण मेहनत करनी पडती। *ऐसी रचना रचने के कारण ज्यादा मेहनत कर थक जाते हैं और दिलशिकस्त भी हो जाते हैं।* बहुत मुश्किल लगता है। है अच्छा लेकिन है बडा मुश्किल।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *'बिन्दु' स्थिति में स्थित हो राज्य अधिकारी बन कार्य करना है। सर्व खजानों के 'बिन्दु' और 'सिंधु' यह दो बातें विशेष स्मृति में रख श्रेष्ठ सर्टिफिकेट लेना है। सदा ही श्रेष्ठ संकल्प की सफलता से आगे बढ़ते रहना। तो 'बिन्दु बनना, सिन्धु बनना' यही सर्व बच्चों प्रति वरदाता का वरदान है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- भिखारी नहीं सदा के अधिकारी बनना"*

 

 _ ➳  *अपने श्रेष्ठ भाग्य और प्राप्तियों के नशे में मगन मैं आत्मा अपने प्यारे शिव प्रियतम की याद में मगन हूँ...* बाबा से मिली प्राप्तियों का सिमरन करते करते मन प्रभु स्नेह में आनंद विभोर हो रहा है... *ईश्वरीय स्नेह में डूबी हुई मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा को बड़े प्यार से अपने पास बुला रही हूँ... मेरे दिल की आवाज सुनकर बाबा मेरे सामने आ गए हैं... बाबा का दिव्य तेज समूचे वातावरण को आलोकित कर रहा है...* मैं आत्मा अपने मीठे बाबा को बड़े स्नेह से एकटक नैनो से निहार रही हूँ...

 

  *अपनी दिव्य वाणी से सर्वत्र रूहानियत की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाबा बच्चों को सदा अधिकारी रुप में देखना चाहते हैं... *अधिकारी बच्चे 'यह दो यह दो' संकल्प में भी भीख नहीं मांगते... भिखारी का शब्द है दे दो... अधिकारी का शब्द है यह सब अधिकार है... दाता दाता बाप ने बिना मांगे ही सर्व अविनाशी प्राप्तियों का अधिकार दे दिया है... इसलिए सदा स्वराज्य अधिकारी की स्थिति में रहो..."*

 

 _ ➳  *ज्ञान सूर्य बाबा की किरणों का स्पर्श पाकर खुशी में खिली हुई सूरजमुखी रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणेश्वर बाबा... *आपने मुझे भक्ति के मांगने के संस्कारों से मुक्त कर दिया... आपसे मुझे अविनाशी प्राप्तियां हुई हैं... मैं आत्मा उन प्राप्तियों के नशे में मगन हूँ...* सदा अधिकारी पन की स्थिति में स्थित हूँ... सदा स्वराज्य अधिकारी बन ईश्वरीय प्राप्तियों की खुशी में मग्न हूँ..."

 

  *अपनी सतरंगी किरणों से मेरे जीवन को आलोकित करते हुए बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे बच्चे... बाबा का बनने के बाद *जब आपने स्नेह से मेरा बाबा कहा... तो बाप ने एक शब्द में ही सर्व खजानों का संसार आपको दे दिया... मेरा बाबा कहते ही सभी खजानों के मालिक... अधिकारी बन गए...  मेरा और तेरा यह शब्द सर्व विनाशी दु:ख में चक्र से छुड़ाकर सर्व प्राप्तियों का अधिकारी बना देता है...* सर्व खजानों से भरपूर आत्मा... अधिकारी आत्मा की स्थिति में रहो..."

 

 _ ➳  *बाबा के दिव्य ज्ञान को हृदय में आत्मसात करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "जीवन के आधार प्यारे बाबा... मैं आत्मा आप की श्रीमत अनुसार चल रही हूँ... *अब आप ही मेरे संसार हो... आपने मुझे सर्व खजानों का मालिक बना दिया है... अधिकारी बना दिया है... मैं आत्मा अब इसी स्मृति और खुमारी में स्थित हूँ..."*

 

  *अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से जीवन रूपी पुष्प को खिलाने वाले बाबा कहते हैं:-* "प्यारे बच्चे... सदा स्वदर्शन चक्र फिराते रहो... *स्वदर्शन द्वारा प्रसन्नचित अर्थात सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बन जाते हैं... स्वप्न में भी बाप के आगे भिखारी रूप नहीं रखना है...* जो स्वत: ही बिना आपके मांगने के अविनाशी और अथाह देने वाला दाता है... उसे कहने की क्या आवश्यकता है... *दाता के बच्चे हो इसी श्रेष्ठ स्मृति में रहो... कभी भिखारी कभी अधिकारी नहीं बनना है... सदा एक श्रेष्ठ संग में रहो... अधीनता वाले संस्कार नहीं हो सदा स्वराज्य अधिकारी के संस्कार हो..."*

 

 _ ➳  *बाबा की स्नेह वर्षा में मदमस्त होकर नाचते हुए मयूर रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे बाबा... मैं हर कदम पर आप की शिक्षाओं को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा स्वदर्शन चक्र फिराकर सदा प्रसन्न और सर्व प्राप्तियों की अधिकारी स्वरुप में स्थित हूँ... सर्व खजानों से भरपूर मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी की स्थिति में स्थित हूँ... *भिखारी और मांगने के संस्कारों से पूरी तरह से मुक्त होकर मैं आत्मा अविनाशी प्राप्तियों की अधिकारी बनती जा रही हूँ... और इसी श्रेष्ठ स्थिति में सदा भरपूर और आनंद मगन स्टेज का अनुभव कर रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- प्रश्नचित की बजाये प्रसन्नचित बनकर रहना*"

 

_ ➳  सभी प्रश्नों से पार, प्रसन्नचित अवस्था का अनुभव करने के लिए, मैं अपने मन और बुद्धि को हर संकल्प विकल्प से मुक्त कर, केवल एक ही संकल्प पर स्थित करती हूँ "मैं बाबा की बाबा मेरा"। *इस एक संकल्प में टिकते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं बाबा के सर्व खजानों की अधिकारी आत्मा बन गई हूँ क्योंकि बिना मांगे ही अविनाशी और अथाह खजाने देने वाला दाता भगवान स्वयं मेरा हो गया है। जिस भगवान को दुनिया आज भी कन्दराओं, गुफाओं, मंदिरों, गुरुद्वारों में तलाश कर रही है वो भगवान मेरा बनकर मुझ पर अखुट खजाने लुटा रहा है*। मन मे यह विचार आते ही एक खुमारी मुझ आत्मा पर चढ़ने लगती है। अपार खुशी और नशे से मैं भरपूर हो जाती हूँ। अपने पिता से प्राप्त होने वाले अखुट खजानों और सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति मुझे स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात स्व का दर्शन कर सदा प्रसन्नचित रहने वाला बना देती है।

 

_ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बनते ही सभी व्यर्थ के चक्रों से बुद्धि निकल कर अब स्वयं का दर्शन करने में बिजी हो जाती है और मैं आनन्द विभोर होकर अखुट प्राप्तियों से सम्पन्न अपने भिन्न - भिन्न स्वरूपो को देखने मे मगन हो जाती हूँ। *मेरा एक - एक स्वरूप मेरी आँखों के सामने मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। देख रही हूँ मैं सबसे पहले अपने अनादि स्वरूप में स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम परमधाम में। लाल प्रकाश से प्रकाशित आत्माओं की इस निराकारी दुनिया मे हीरे के समान चमकते, अपनी स्वर्णिम आभा चारों और बिखेरते अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप का मैं भरपूर आनन्द ले कर अब अपने आदि स्वरूप को स्मृति में लाती हूँ*।

 

_ ➳  अपने आदि स्वरूप में मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरुप में नई सतोप्रधान सतयुगी दुनिया में। *देव कुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में इस सतयुगी सृष्टि पर मैं स्वयं को विश्व महारानी के रूप में देख रही हूँ। असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस अति खूबसूरत सृष्टि पर अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के बाद अब मैं अपने पूज्य स्वरूप को देख रही हूँ जो कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में मेरी आँखों के सामने स्पष्ट दिखाई दे रहा है*। अपने इस पूज्य स्वरूप में मैं अपने सामने आराधना करते भक्तों को देख रही हूँ। अपने दिव्य नयनो से मैं अपने भक्तों को निहारते हुए उन्हें सुख, शांति की अनुभूति करवा रही हूँ। अपने वरदानी हस्तों से वरदान देकर उनकी हर मनोकामना को पूर्ण कर रही हूँ।

 

_ ➳  अपने इस पूज्य स्वरूप के बाद अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। स्वयं भगवान के मुख कमल से रचा मेरा ब्राह्मण स्वरुप जो अविनाशी प्राप्तियों और उपलब्धियों से सम्पन्न है अपने उस उच्चतम स्वरूप को देखते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की मैं सराहना कर रही हूँ। *अपने ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति में खोकर असीम आनन्द और अपरम अपार खुशी का अनुभव करके अब मैं अपने फ़रिश्ता स्वरूप का आनन्द ले रही हूँ। अपने अंग - अंग से श्वेत रश्मियों की किरणे फैलाता मेरा फ़रिश्ता स्वरूप प्रकाश के एक बहुत सुंदर कार्ब में मुझे दिखाई दे रहा है*। अपने फ़रिश्ता स्वरूप में मैं अपने प्यारे परमपिता परमात्मा का संदेशवाहक बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रही हूँ।

 

_ ➳  अपने हर स्वरूप का भरपूर आनन्द ले कर अब मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्तिथ हो जाती हूँ। *इस सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजाते, कर्म करते बीच - बीच मे कभी अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो कर परमधाम में अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था का अनुभव करना और फिर उसी सतोप्रधान स्वरूप में सतोप्रधान दुनिया मे आ कर अपने आदि स्वरूप में स्थित हो कर स्वर्ग के अपरमअपार सुखों का अनुभव करना*। कभी अपने पूज्य स्वरूप में स्थित होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करना और कभी अपने ब्राह्मण जीवन के सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य को स्मृति में ला कर, संगमयुग की प्राप्तियों में खो जाना और परमात्म पालना के सुखद अहसास में डूब जाना और कभी अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, सारे विश्व की आत्माओं की सेवा करना। *बार - बार इस स्वदर्शन चक्र को बुद्धि में फिराकर, प्रश्नो से परे जाकर, अब मैं अधीनता के सभी पुराने स्वभाव संस्कारो को छोड़ सदा प्रसन्नचित रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अमृतवेले के महत्व को जान महान बनने वाली विशेष सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं जीवन की महानता सत्यता की शक्ति को धारण कर सर्व आत्माओं को स्वतः झुकते हुए अनुभव करने वाली महान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  स्व-चिंतन का मतलब क्या है? स्वचिन्तन इसको नहीं कहा जाता है कि सिर्फ ज्ञान की पाइन्ट्स रिपीट कर दी या ज्ञान की पाइन्ट्स सुन लीसुना दी-सिर्फ यही स्वचिन्तन नहीं है। लेकिन *स्वचिन्तन अर्थात् अपनी सूक्ष्म कमजोरियों कोअपनी छोटी-छोटी गलतियों को चिन्तन करके मिटाना, परिवर्तन करनाये स्वचिन्तन है।*

➳ _ ➳  बाकी ज्ञान सुनना और सुनाना उसमें तो सभी होशियार हो। वो ज्ञान का चिन्तन हैमनन है लेकिन *स्वचिन्तन का महीन अर्थ अपने प्रति है। क्योंकि जब रिजल्ट निकलेगी तो रिजल्ट में यह नहीं देखा जायेगा कि इसने ज्ञान का मनन अच्छा किया या सेवा में ज्ञान को अच्छा यूज किया।* इस रिजल्ट के पहले स्वचिन्तन और परिवर्तन, *स्वचिन्तन करने का अर्थ ही है परिवर्तन करना।*

➳ _ ➳  तो *जब फाइनल रिजल्ट होगी, उसमें पहली मार्क्स प्रैक्टिकल धारणा स्वरूप को मिलेगी।* जो धारणा स्वरूप होगा वो नैचरल योगी तो होगा ही। *अगर मार्क्स ज्यादा लेनी है तो पहले जो दूसरों को सुनाते हो, आजकल वैल्यूज पर जो भाषण करते हो, उसकी पहले स्वयं में चेकिंग करो।* क्योंकि सेवा की एक मार्क तो धारणा स्वरूप की १० मार्क्स होती हैं, अगर आप ज्ञान नहीं दे सकते हो लेकिन अपनी धारणा से प्रभाव डालते हो तो आपके सेवा की मार्क्स जमा हो गई ना।  

✺   *ड्रिल :-  "स्वचिन्तन से अपनी सूक्ष्म कमजोरियों को मिटाना, परिवर्तन करना"*

➳ _ ➳  मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... सर्वशक्तियों के सागर... अपने प्यारे पिता... शिवबाबा के पास... परमधाम में... जहाँ ज्ञान सूर्य अपनी सर्वशक्तियाँ चारों ओर बिखेर रहे हैं... *मैं आत्मा शिवबाबा के सम्मुख... ज्ञान सूर्य के तेज़ को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...* फिर बाबा को साथ लेकर सूक्ष्म वतन में जाती हूँ...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा के सम्मुख... बाबा से कहती हूँ... बाबा मुझ आत्मा में अभी भी आलस्य, अलबेलेपन के सूक्ष्म संस्कार हैं... दूसरे की कमी कमजोरी दिखाई देती है... *बाबा... मैं आत्मा आपकी याद से... दृढ़ता की चाबी यूज़ करते हुए... इन सूक्ष्म संस्कारों पर विजय प्राप्त करुँगी...*

➳ _ ➳  बाबा... मुझ आत्मा को *"विजयी भव" का वरदान देते हुए कहने लगे... बच्ची... अब इन पुराने संस्कार... स्वभाव को  दृढ़ संकल्प की तीली द्वारा... चेक कर फिर चेंज करो...* यह समय उड़ती कला का है... इसलिये अब स्वचिंतन द्वारा स्वयं में परिवर्तन कर पुरुषार्थ को तीव्र करो...

➳ _ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की पेटी बाँध... स्व का चिंतन करती हूँ... *पुराने स्वभाव... संस्कार... बाबा की याद से परिवर्तित हो रहे हैं... मैं आत्मा बाप समान... मीठी बन रही हूँ...* दिव्य अलौकिक शक्तियां मुझ आत्मा में प्रवाहित हो रही हैं... अलबेलेपन और दूसरे की कमी कमजोरी देखने का संस्कार समाप्त हो गया है... *मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर... धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा समय की तीव्र गति के प्रमाण... स्वचिंतन द्वारा स्वयं के परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा संकल्प करते ही... निश्चित समय पर हर कर्म को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... बाबा द्वारा दी गयी *हर श्रीमत को फॉलो कर हर परिस्थिति में अचल, अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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