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 15 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बने और बनाया ?*

 

➢➢ *याद की धुन में रहे ?*

 

➢➢ *भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति में रह भाग्य बांटने की सेवा की ?*

 

➢➢ *एकनामी और इकॉनमी में रह प्रभु प्रिय बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अपनी सब जिम्मेवारी बाप को दे दो अर्थात् अपना बोझ बाप को दे दो तो स्वयं हल्के हो जायेंगे, बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ। *अगर बुद्धि से सरेन्डर होंगे तो और कोई बात बुद्धि में नहीं आयेगी। बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं खुशनसीब हूँ"*

 

✧  अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? *खुशी का भाग्य जो स्वप्न में भी नहीं था वो प्राप्त कर लिया। तो सभी की दिल सदा यह गीत गाती है कि सबसे खुशनसीब हूँ तो मैं हूँ। यह है मन का गीत। मुख का गीत गाने के लिये मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मन का गीत सब गा सकते हैं।*

 

  *सबसे बड़े से बड़ा ख़जाना है खुशी का ख़जाना। क्योंकि खुशी तब होती है जब प्राप्ति होती है। अगर अप्राप्ति होगी तो कितना भी कोई किसी को खुश रहने के लिये कहे, कितना भी आर्टीफिशयल खुश रहने की कोशिश करे लेकिन रह नहीं सकते।* तो आप सदा खुश रहते हो या कभी-कभी रहते हो? जब चैलेन्ज करते हो कि हम भगवान के बच्चे हैं, तो जहाँ भगवान् है वहाँ कोई अप्राप्ति हो सकती है? तो खुशी भी सदा है क्योंकि सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। ब्रह्मा बाप का क्या गीत था? पा लिया-जो था पाना। तो यह सिर्फ ब्रह्मा बाप का गीत है या आप सबका? कभी-कभी थोड़ी दु:ख की लहर आ जाती है? कब तक आयेगी?

 

  अभी थोड़ा समय भी दु:ख की लहर नहीं आये। जब विश्व परिवर्तन करने के निमित्त हो तो अपना ये परिवर्तन नहीं कर सकते हो? *अभी भी टाइम चाहिये, फुल स्टॉप लगाओ। ऐसा श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ प्राप्तियाँ, श्रेष्ठ सम्बन्ध सारे कल्प में नहीं मिलेगा। तो पहले स्व-परिवर्तन करो। यह स्व-परिवर्तन का वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन करायेगा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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*अगर कोई भी शक्ति वा गुण समय पर इमर्ज नहीं होता है तो इससे सिद्ध है कि मालिक को समय का महत्व नहीं है।* क्या करना चाहिए? सिंहासन पर बैठना अच्छा या मेहनत करना अच्छा? अभी इसमें समय देने की आवश्यकता नहीं है। मेहनत करना ठीक लगता या मालिक बनना ठीक लगता? क्या अच्छा लगता है? सुनाया ना - इसके लिए सिर्फ *एक यह अभ्यास सदा करते रहो - निराकार सो साकार के आधार से यह कार्य करा रहा हूँ" करावनहार बन कर्मेन्द्रियों से कराओ।* अपने निराकारी वास्तविक स्वरूप को स्मृति में रखेंगे तो वास्तविक स्वरूप के गुण, शक्तियाँ स्वतः ही इमर्ज होंगे। जैसा स्वरूप होता है वैसे गुण और शक्तियाँ स्वतः ही कर्म में आते हैं। जैसे कन्या जब माँ बन जाती है तो माँ के स्वरूप में सेवा भाव, त्याग, स्नेह, अथक सेवा आदि गुण और शक्तियाँ स्वतः ही इमर्ज होती है ना तो *अनादि अविनाशी स्वरूप याद रहने से स्वतः ही यह गुण और शक्तियाँ इमर्ज होंगे।* स्वरूप की स्मृति स्थिति को स्वतः ही बनाता है। समझा क्या करना है। मेहनत शब्द को जीवन से समाप्त कर दो। मुश्किल मेहनत के कारण लगता है। *मेहनत समाप्त तो मुश्किल शब्द भी स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।* अच्छा -

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ इस देह के जो सर्व सम्बन्ध हैं, दृष्टि से, वृति से, कृत से उन सबसे न्यारा। *देह का सम्बन्ध देखते हुए भी स्वत: ही आत्मिक, देही सम्बन्ध स्मृति में रहे। इसलिए दीपावली के बाद भैया-दूज मनाया ना।* जब चमकता हुआ सितारा व जगतमाता अविनाशी दीपक बन जाते हो तो भाई-भाई का सम्बन्ध हो जाता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की गोद में आते ही यह दुनिया ख़त्म हो जाना"*

 

 _ ➳  *संगमयुगी अमृतवेले के रूहानी समय में माया की गोद में सो रही मुझ आत्मा को जगाकर परमात्मा ने अपनी गोद में बिठाया है... माया को ही अपना सबकुछ समझ मैं आत्मा इस दुनिया के दुखों के गर्त में धंसते चले गई थी... परमपिता ने मुझे अपनी गोद में बिठाकर मीठी पालना, मीठी शिक्षाएं देकर, वरदानों, खजानों से भरपूर कर दिया है...* अब मैं आत्मा इस पुरानी दुनिया से जीते जी मरकर, नई दुनिया में जाने के लिए श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ प्यारे बापदादा के पास...

 

  *अपने मखमली गोद में मुझे समाकर अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झुलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *जिस ईश्वर पिता के दर्शन मात्र को नयन व्याकुल थे... आज उनकी पावन गोद में फूलो सा खिल रहे और दिव्य गुणो की सुगन्ध से महक रहे हो...* अपने ऐसे मीठे महानतम भाग्य पर बलिहार जाओ... कि ब्रह्मा तन द्वारा स्वयं परमात्मा दिल फ़िदा हो गया है..."

 

 _ ➳  *बाबा के गले का हार बनकर अपने श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य के नशे में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा श्रेष्ठ भाग्य से सजी ईश्वरीय गोद में बैठी हूँ... भगवान को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... प्यारे बाबा मुझे अपने नयनों का नूर बनाकरप्रेम सुधा को मुझ आत्मा पर बरसाया है...* मै आत्मा रोम रोम से शुक्रगुजार हूँ..."

 

  *अपना धाम छोड़ ब्रह्मा तन में अवतरित होकर मुझे अपना बनाकर मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस विश्व धरा पर सबसे खुबसूरत भाग्य से सजे हुए आप ब्राह्मण बच्चे हो... दुखो से मुक्त होकर ईश्वरीय प्यार में पल रहे हो... स्वयं विश्व पिता ने अपनी दिली पसन्द बनाया है...* और ब्रह्मा तन में आकर हाले दिल सुनाया है... तो ऐसे प्यार के नशे की खुमारी में खो जाओ...

 

 _ ➳  *अपना सबकुछबाबा के हवाले कर उनकी छत्रछाया में बेफिक्र बादशाह बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा भगवान की छत्रछाया में पलकर कितनी निश्चिन्त और अनन्त सुखो की अधिकारी बन रही हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझ आत्मा को ब्रह्मा मुख से बेशकीमती ज्ञान रत्नों से सजाया है...* मै आत्मा इन मीठी खुशियो में पुलकित हो उठी हूँ..."

 

  *अपनी हजार भुजाओं के प्यार के छांव के तले सुखों की बगिया में मुझे फूल बनाकर खिलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के सच्चे प्यार और अमूल्य ज्ञान रत्नों से भरपूर होकर सदा के मालामाल हो जाओ... *सदा यादो में रहकर हर साँस को बाबामय कर लो... ब्रह्मा तन से मिली ईश्वरीय गोद में दिव्यता और पवित्रता से सजधज कर... देवताई सुखो को बाँहों में भर लो... सच्चे आनन्द के नशे में डूब जाओ..."*

 

 _ ➳  *बाबा के गुलिस्तां की रूहानी फूल बनकर सुखों के परिस्तान में मुस्कुराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा देह की मिटटी और दुखो के काँटों को ही अपनी नियति मानकर जीती रही... प्यारे बाबा आपने ब्रह्मा मुख से आवाज देकर मुझे गले लगाया... और अपनी मखमली गोद में गुलाबो सा खिलाया है...* मीठे बाबा भगवान यूँ अपने दिल में बिठाएगाचाहेगा और दुलार करेगा... मैंने भला कब यह सोचा था..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद की धुन में रहना है*"

 

_ ➳  "यादें तुम्हारी बाबा देती सुकून दिल को" मन ही मन ये गीत गुनगुनाते हुए बाबा की मीठी दिल को सुकून देने वाली याद में मैं खो जाती हूँ और अपने मीठे प्यारे बाबा के स्वरूप पर अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र कर देती हूँ। *परमधाम में मेरे ज्ञान सूर्य शिव बाबा का शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता हुआ सुन्दर मनोहर स्वरूप मेरी आँखों के सामने स्पष्ट दिखाई देने लगता है*। सूर्य के समान चमकते उस सुन्दर सलौने स्वरूप का आकर्षण मुझे सहज ही अपनी और खींचने लगता है और अपने प्यारे बाबा के उस सुन्दर स्वरूप को अपने नयनो में बसाये मैं अति शीघ्र उनके पास जाने की रूहानी यात्रा पर स्वत: ही चल पड़ती हूँ। *मन बुद्धि की एक ऐसी यात्रा जिसमें देह और देह से जुड़ी किसी भी वस्तु की कोई आवश्यकता नही केवल अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाना ही अपनी मंजिल को पाना है*।

 

_ ➳  अपनी उस मंजिल अर्थात अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाने के लिए अब मैं सभी बातों से किनारा कर अपने मन और बुद्धि को हर संकल्प, विकल्प से हटा लेती हूँ और अपने ध्यान को मस्तक के सेन्टर में एकाग्र कर, अपने स्वरूप पर केंद्रित कर लेती हूँ। *अपने स्वरूप में स्थित होते ही मन बुद्धि का कनेक्शन अब देह और देह की दुनिया से हट कर मेरे प्यारे पिता के साथ जुड़ जाता है और मन स्वत: ही उनकी तरफ खिंचने लगता है*। उनके प्यार के एहसास की मधुर स्मृति मुझे देह और देह की दुनिया से पूरी तरह उपराम कर देती हैं और मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की लाइट सीधी मुझ आत्मा के साथ आ कर कनेक्ट हो गई है।

 

_ ➳  परमात्म शक्तियों का तेज करेन्ट मुझ आत्मा में प्रवाहित होकर मुझे ऊपर अपनी ओर खींचने लगा है। इस लाइट के साथ मैं आत्मा अब देह से निकल कर ऊपर की ओर जा रही हूँ। 5 तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार करके फरिश्तो की आकारी दुनिया से होती हुई अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया मे प्रवेश कर चुकी हूँ और देख रही हूँ इस अन्तहीन ब्रह्माण्ड को जहाँ चारो और शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स फैले हुए हैं। *इस अन्तहीन ब्रह्माण्ड में जगमग करती चैतन्य मणियो में बीच अखण्ड ज्योतिर्मय शक्तियों के पुंज ज्ञानसूर्य अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ कर मैं उनकी सारी शक्तियों को अपने अंदर भर रही हूँ*। देह भान में आने के कारण, मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो परमात्म शक्तियों के बल से पुनः चार्ज हो रही है।

 

_ ➳  परमात्म लाइट मेरे अंदर समाती जा रही हैं और मैं स्वयं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर भरकर मुझे ऊर्जा का भण्डार बना रहें हैं। सर्वशक्तियों से सम्पन्न, ऊर्जावान बन कर अब मैं वापिस साकारी लोक में आ कर अपने साकारी तन में विराजमान हो कर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *किन्तु देह और देह की दुनिया में रहते हुए भी निरन्तर अपने प्यारे पिता की याद की धुन में ही अब मैं सदैव मगन रहती हूँ। सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है और मुझे वापिस अपने धाम जाना है इस बात को सदैव स्मृति में रख, देह और देह की दुनिया से स्वयं को उपराम रखने का मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

 

_ ➳  बाबा की मीठी याद की धुन में खोई स्वयं को उनके प्यार से मैं हर समय भरपूर अनुभव करने लगी हूँ इसलिए हर पल उनके प्यार के झूले में झूलते हुए, सर्व सम्बन्धो का सुख उनसे लेते हुए मैं देह और देह की दुनिया से अब नष्टोमोहा बनने लगी हूँ। *देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते, उनसे तोड़ निभाते, बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़, मन बुद्धि से ऊपर वास करते हुए अब मैं स्वयं को सदा परमात्म शक्तियों की छत्रछाया के नीचे अनुभव करती हूँ*। सदा बाबा की याद की धुन में रहने से बाबा की याद सुरक्षा कवच बन कर मुझे माया के हर वार से अब बचा कर रखती है। *बाबा की याद रूपी सेफ्टी के किले के अन्दर, हर पल बाबा के साथ रहते हुए, सदैव अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करते हुए, परमात्म प्यार के झूले में झूलते, परमात्म पालना में पलने का सुखद अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं भाग्य और भाग्य विधाता बाप की स्मृति ने रह भाग्य बांटने वाली फ्राकदिल महादानी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं एकनामी और एकॉनामी से चलते हुए प्रभुप्रिय बनने वाली ब्राम्हाण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  १. कई कहते हैं ज्ञान-योग बहुत अच्छा लगता हैअच्छा है वो तो ठीक है लेकिन कर्म में लाते होज्ञान माना आत्मापरमात्मा, ड्रामा.... यह कहना नहीं। *ज्ञान का अर्थ है समझ। समझदार जैसा समय होता है वैसे समझदारी से सदा सफल होता है*।

➳ _ ➳  २. समझदार की निशानी है *कभी धोखा नहीं खाना - ये है ज्ञानी की निशानी, और योगी की निशानी है - सदा क्लीन और क्लियर बुद्धि*। क्लीन भी हो और क्लियर भी हो। *योगी कभी नहीं कहेगा-पता नहीं, पता नहीं* उनकी बुद्धि सदा ही क्लियर है। और *धारणा स्वरूप की निशानी है सदा स्वयं भी डबल लाइट*। कितनी भी जिम्मेवारी हो लेकिन धारणामूर्तसदा डबल लाइट। चाहे मेला होचाहे झमेला हो-दोनों में डबल लाइट। और *सेवाधारी की निशानी है-सदा निमित्त और निर्माण भाव*। तो ये सभी अपने में चेक करो। कहने में तो सभी कहते हो ना कि चारों ही सब्जेक्ट के गाडली स्टूडेण्ट हैं। तो निशानी दिखाई देनी चाहिये।  

✺   *ड्रिल :-  "ज्ञानी, योगी, धारणा स्वरूप और सेवाधारी बनना"*

➳ _ ➳  *झील में खिले पावन कमल की कोमल पंखुरियों पर पडें ओस कणों के समान...* शिव सूर्य की किरणों से स्वर्ण मयी आभा बिखराती, मैं ज्योति बिन्दु उन्हीं किरणों पर सवार होकर पहुँच गयी हूँ परमधाम में... *असंख्य जगमगाते हीरों की मालाओं से जडी, जैसे कोई भव्य और विशाल पारदर्शी सुराही*... शान्ति और पावनता का मधुरस-सा झलकाती हुई... *सुराही के शीर्ष पर स्वयं अमृत के सागर, अनवरत अमृत धारा छलकाते हुए*... आत्माओं के उर को निरन्तर भरपूर किये जा रहे है... छलछलाती सुराही, शान्ति से, पावनता से, और भरपूर अवस्था में हर आत्मा मणि... मैं आत्मा शिवबाबा के एकदम करीब उनको पास से निहारती हुई... और *देखते ही देखते एक जादुई आकर्षण में बंधी समाँ गई हूँ उनकी परम पावन सी गोद में*... चिरकाल तक स्वयं को उस मधु से भरपूर करती हुई...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... सन्दली पर बैठे शिक्षक रूप में बापदादा, और असंख्य फरिश्तों की कतार उनके सामने बैठी है... आहिस्ता से पीछे जाकर बैठ गया हूँ मैं फरिश्ता भी... बापदादा की स्नेहमयी नजरें मेरा पीछा करती हुई... और *बापदादा हर एक फरिश्ते को ज्ञान, योग, सेवा और धारणा चारों विषयों में सम्पन्न बनने का वरदान दे रहे है*... वरदान पाकर सभी एक एक कर अपने अपने सेवा स्थानों को जाते हुए... मैं फरिश्ता मगन होकर देख रहा हूँ इस दृश्य को... सहसा चौक गया हूँ कोई स्नेहिल सा स्पर्श अपने कन्धे पर पाकर... *बापदादा सामने खडे हैं हाथो में उपहारों का थाल सजाये... मेरे सामने थाल को रख मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे ज्ञानी तू आत्मा का वरदान दे रहे है*... *सामने रखे स्वर्ण जडित थाल से स्वमानों की माला मेरे गले में पहनाते हुए, समझदारी की प्रतीक ज्ञान गदा सौंप रहे है मेरे हाथों में*... मैं देख रहा हूँ, गले मे पहनी स्वमानों की माला को... जो मेरी समझ और शक्ति को तीव्रता से बढा रही है... *योग का प्रतीक स्वदर्शन चक्र मेरी बुद्धि को क्लीन और क्लीयर कर रहा है*...

➳ _ ➳  *और अब धारणा का पावन कमल मैंने स्वयं ही उठा लिया बापदादा के सामने से... मेरी इस बालसुलभ उत्सुकता पर बापदादा मुस्कुरा रहे हैं आँखों में विशेष स्नेह भरकर... मानो कह रहे हो *बच्चे! अब ये सेवा का शंखनाद भी तुम्हें स्वतः ही करना है*... जैसे ही सेवा का शंख हाथ में उठाता हूँ... खुशी से भर गया हूँ सामने, अपना ही देवताई अलंकारों से सजा भव्य रूप देखकर... *गदा शंख चक्र और कमल देवताई अलंकारों से सुशोभित रूप अपने भविष्य रूप को देखकर उत्साह से भर गया हूँ मैं*... और चारों ही विषयों में सम्पूर्णता पाने की लगन अब पहले से तेज हो गयी है... सम्पूर्णता का दृढ निश्चय लिए मैं लौट आया हूँ अपने उसी ब्राह्मण शरीर में... *धारणाओं का कमल अब पहले से भी ज्यादा शोभा के साथ खिल रहा है उसी झील में*... *कोमल पत्तियों पर पडे ओस कण सुनहरे प्रतीत हो रहे है... मेरे सतयुगी भविष्य के समान*...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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