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 04 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *माया के विघनो से डरे तो नहीं ?*

 

➢➢ *बुधी से सब कुछ सरेंडर कर अशरीरी बन बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *निरंतर योगी और पवित्र बन सर्व विकारों को विदाई दी ?*

 

➢➢ *सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  शान्ति की शक्ति का प्रयोग पहले स्व के प्रति, तन की व्याधि के ऊपर करके देखो। इस शक्ति द्वारा कर्मबन्धन का रूप, मीठे सम्बन्ध के रूप में बदल जायेगा। *यह कर्मभोग, कर्म का कड़ा बन्धन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। भोगने वाला नहीं, भोगना भोग रही हूँ-यह नहीं लेकिन साक्षी दृष्टा हो इस हिसाब-किताब का दृश्य भी देखते रहेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पुण्य आत्मा हूँ"*

 

  पुण्य आत्मायें बने हो? *सबसे बड़ा पुण्य है - दूसरों को शक्ति देना। तो सदा सर्व आत्माओंके प्रति पुण्य आत्मा अर्थात् अपने मिले हुए खजाने के महादानी बनो।*

 

✧  *ऐसे दान करने वाले जितना दूसरों को देते हैं उतना पद्मगुणा बढ़ता है। तो यह देना अर्थात् लेना हो जाता है।* ऐसे उमंग रहता है? इस उमंग का प्रैक्टिकल स्वरूप है सेवा में सदा आगे बढ़ते रहो।

 

  *जितना भी तन-मन-धन सेवा में लगाते उतना वर्तमान भी महादानी पुण्य आत्मा बनते और भविष्य भी सदाकाल का जमा करते। यह भी ड्रामा में भाग्य है जो चांस मिलता है अपना सब कुछ जमा करने का।* तो यह गोल्डन चांस लेने वाले हो ना। सोचकर किया तो सिल्वर चांस, फराखदिल होकर किया तो गोल्डन चांस तो सब नम्बरवन चांसलर बनो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जो ज्यादा न्यारी अवस्था में रहते हैं, उनकी स्थिती में विशेषता क्या होती है? उनकी बोली से उनके चलन से उपराम स्थिती का औरों को अनुभव होंगा। *जितना ऊपर स्थिती जायेगी, उतना उपराम होते जायेंगे*। शरीर में होते हुए भी इस उपराम अवस्था तक पहूँचना है। बिल्कूल देह और देही अलग महसूस हो। उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज वा योग की प्राक्टिकल सिद्धि, बात करते - करते जैसे न्यारा - पन खींचे। बात सुनते भी जैसे कि सुनते नहीं।

 

✧  ऐसी भासना औरों को भी आये। ऐसी स्थिती की स्टेज को कर्मातीत अलस्था कहा जाता है। *कर्मातीत अर्थात देह के बन्धन से भी मुक्त*। कर्म कर रहे है लेकिन उनके कर्मों का खाता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे होकर, कोई अटैचमेन्ट नहीं होंगी। कर्म करने वाला अलग और कर्म अलग है - ऐसे अनुभव दिन - प्रतिदिन होता जायेगा। इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है। संकल्प उठा और जो होना है वही होगा। ऐसी स्थिती में सभी को आना होगा।

     

✧  मूलवतन जाने के पहले वाया सूक्ष्मवतन जायेंगे। *वहाँ सभी को आकर मिलना है फिर अपने घर चलकर फिर अपने राज्य में आ जायेंगे*। जैसे साकार वतन में मिला हुआ वैसे ही सूक्ष्मवतन में होगा। वह फरिश्तों का मेला नजदीक है। कहानियाँ बताते है ना। फरिश्ते आपस में मिलते थे। रूह रूहों से बात करते थे। वही अनुभव करेंगे। तो जो कहानियाँ गाई हुई है उसका प्रैक्टिकल में अनुभव होगा। उसी मेले के दिनों का इन्तजार है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *साक्षात्कारमूर्त तब बनेंगे जब आकार में होते निराकार अवस्था में होंगे। इस आत्म-अभिमानी की स्थिति में ही सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के निमित बनेंगे। तो यह अटेन्शन रखना पड़े।* आत्मा समझना - यह तो अपने स्वरूप की स्थिति में स्तिथ होना हैं ना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हम अशरीरी आत्मा हैं, यही पहला पाठ रोज पक्का करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठ आत्मचिंतन करती हूँ... मैं एक चैतन्य ज्योतिपुंज हूँ... जो इस शरीर में विराजमान होकर पार्ट बजा रही हूँ...* ना ये तन मेरा है, ना ये धन मेरा है, ना कोई वस्तु-वैभव मेरे हैं... ना ये संसार मेरा है... मेरे तो एक शिवबाबा हैं... और मेरा घर परमधाम है... *मैं तो एक अशरीरी आत्मा हूँ... चिंतन करते-करते मैं आत्मा इस देह और इस देह की दुनिया से निकलकर पहुँच जाती हूँ आकारी वतन में बापदादा के पास...*

 

  *प्यारे मीठे बाबा सत्य स्वरुप के ज्ञान की सच्चाई से मेरे जीवन को रोशन करते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *स्वयं को देह समझ और देहधारियों से दिल लगाकर दुखो के घने जंगल में भटक गए... अब ईश्वर पिता से सत्य को जान अपने ज्योति स्वरूप के भान में खो जाओ...* अपनी निराकारी सत्यता को हर साँस संकल्प में जीकर... सुनहरे सुखो के अधिकारी बन सदा का मुस्कराओ...

 

_ ➳  *शरीर के भान से मुक्त होकर खुशियों के आसमान में जगमगाती मैं आत्मा सितारा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा शरीर नही खुबसूरत मणि हूँ...* मीठे बाबा आप जैसी ही निराकार खुबसूरत हूँ इस सत्य को बाँहों में भर कर खुशियो के गगन में उड़ रही हूँ... और स्वयं के सत्य भान में टिक कर पुनः तेजस्वी बनती जा रही हूँ...

 

  *इस देह और देह की दुनिया से न्यारी बनाकर सत्यता के ओज से चमकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब इस देह की मिटटी में मन बुद्धि रुपी हाथो को और नही सानो... अपने ओजस्वी तेजस्वी स्वरूप को यादो में बसाओ... *ईश्वर पिता समान अशरीरी के भान में खो जाओ... देह के सब रिश्तो नातो से उपराम होकर... अशरीरी पन के नशे में गहरे उतर जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के यादों के दर्पण में अपने सत्य स्वरूप को निखारते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह भान के दलदल से निकल कर... ईश्वरीय प्यार की खुशबू से रंगती जा रही हूँ... मै अविनाशी आत्मा हूँ इस सत्य को हर पल अपनाती जा रही हूँ... *अपने असली अशरीरी सौंदर्य को यादो में बसाकर मीठे बाबा की ऊँगली पकड़ घर चलने की तैयारी कर रही हूँ...”*

 

  *मीठे जादूगर मेरे बाबा अपने प्यार के झरने में मुझे कमल फूल समान खिलाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से चले थे कितने महकते फूल थे... *धरा की मिटटी में खेलते खेलते अपने दमकते स्वरूप को भूल कर मात्र शरीरधारी हो गए... अब उसी महक उसी रंगत उसी नूर को यादो में ताजा करो...* अपने अविनाशी पन को हर साँस में पिरोकर पिता संग घर की ओर लौटने की तैयारी में जुट जाओ...

 

_ ➳  *माया के मायाजाल से मुक्त होकर सत्यपिता के सत्य ज्ञान से सत्य स्वरुप में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी सच्ची अशरीरी सुंदरता को पाती जा रही हूँ... इस देह के मायाजाल से निकल कर अविनाशी गौरव को यादो में बसा रही हूँ...* मै आत्मा मीठे बाबा के साथ घर चलने को सज संवर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि से सब कुछ सरेन्डर कर अशरीरी बन बाप को याद करना है*"

 

_ ➳  भगवान की पहचान मिलते ही ब्रह्मा बाबा ने जिस समर्पण भाव से अपना तन - मन - धन सब कुछ शिव बाबा के ऊपर बलिहार कर दिया और भगवान का मुरब्बी बच्चा बन, सभी ब्राह्मण बच्चों के लिए प्रेंरणा स्त्रोत बन गए, *ऐसे अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को फॉलो करने और बुद्धि से सब कुछ अपने भगवान बाप के आगे सरेन्डर करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होकर अपने अति प्यारे अति मीठे शिव बाबा की याद में मन बुद्धि को जैसे ही एकाग्र करती हूँ। मुझे बाबा की उपस्थिति का स्वत: ही अहसास होने लगता है*। बाबा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे एक महाज्योति जिसमे से अनन्त प्रकाश निकल रहा है, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर स्थित है।

 

_ ➳  उस महाज्योति से निकल रहे प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे एक खूबसूरत रंग बिरंगे इन्द्रधनुषी झरने के समान प्रतीत हो रही हैं। *जिनसे निकल रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी फ़ुहारों को मैं अपने ऊपर गिरता हुआ स्पष्ट कर रही हूँ। औंस की बूंदों की तरह ये फुहारें मुझ आत्मा के ऊपर गिरते हुए मुझे एक अद्भुत शीतलता की अनुभूति करवा रही हैं*। एक रूहानी नशा मेरे अंदर भरता जा रहा है जो मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े देह के आवरण को पारदर्शी बना रहा है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे देह नाम की कोई वस्तु है ही नही केवल एक प्वाइंट ऑफ लाइट मुझे दिखाई दे रही है। अशरीरीपन का यह अनुभव बहुत ही अद्भुत और निराला है। *हर बन्धन से मुक्त यह निर्बन्धन स्थिति मुझे बहुत ही सुखद अनुभव करवा रही है। एक गहन शन्ति मैं अपने आप मे महसूस कर रही हूँ*। एक ऐसी शान्ति जिसकी तलाश में मैं ना जाने आज तक कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी। लेकिन आज मुझे यह एहसास हो गया है कि वो शान्ति जिसे मैं बाहर ढूंढ रही थी वो तो मेरे ही अंदर समाई हुई है।

 

_ ➳  आज इस अशरीरी स्थिति में अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव करके मैंने ये जान लिया कि मेरा निजी गुण ही शांति है। इसलिए जब चाहे अशरीरी बन, अपने स्वधर्म में स्थित होकर मैं गहन शांति की अनुभूति कर सकती हूँ। *इसी संकल्प के साथ अपने स्वधर्म में टिक कर, शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाती हुई मैं शांति के सागर अपने शिव पिता के पास अपने शांति धाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*। झिल - मिल करती, जग - मग करती मैं चैतन्य शक्ति अपनी रूहानी यात्रा का आनन्द लेती, शीघ्र ही साकारी और आकारी दुनिया को पार कर अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ और शांति के सागर अपने शिव पिता के पास पहुँच कर, *उनसे आ रही शांति की शीतल लहरों का स्पर्श पाकर शन्ति के गहरे अनुभवों में डूब जाती हूँ*।

 

_ ➳  शान्ति के सुखद अनुभवों का असीम आनन्द लेकर अब मैं आत्मा अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप जा कर उन्हें टच करती हूँ और उनसे आ रही सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ। *सर्व शक्तियों को स्वयं में भर कर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर और अपने प्यारे पिता के साथ अद्भुत मंगलमयी मिलन मनाकर अब मैं आत्मा लौट आती हूँ फिर से उसी साकारी दुनिया मे अपना पार्ट बजाने*। अपने साकारी तन में प्रवेश कर, भृकुटि के अकालतख्त पर आ कर मैं आत्मा विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते, बुद्धि से सब कुछ सरेन्डर कर, बीच बीच मे अशरीरी बन अपने प्यारे पिता की याद से विकर्मो को दग्ध करने का पुरुषार्थ भी मैं अब साथ - साथ कर रही हूँ। *कर्मयोगी बन कर्म करते और फिर कर्म के समाप्त होते ही, अशरीरी बन बाप को याद करने का अभ्यास मुझे शान्ति का अनुभव करवाकर, मेरी स्थिति को शक्तिशाली बनाता जा रहा है। अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति के कारण अब हर परिस्थिति का सामना करना मुझे सहज अनुभव होने लगा है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं निरन्तर योगी और पवित्र बन सर्व विकारों को विदाई देने वाली शक्त्ति स्वरूप, पूज्य स्वरूप आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहकर भाग्य रूपी परछाई को साथ रखने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  संगमयुग का विशेष् वरदान कौन-सा है? अमर बाप द्वारा अमर भव'। *संगमयुग पर ही अमर भव' का वरदान मिलता है। इस वरदान को सदा याद रखते हो? नशा रहता है, खुशी रहती है, याद रहती है लेकिन अमर भव के वरदानी बने हो? जिस युग की जो विशेषता है, उस विशेषता को कार्य में लगाते हो? अगर अभी यह वरदान नहीं लिया तो फिर कभी भी यह वरदान मिल नहीं सकता।* इसलिए समय की विशेषता को जानकर सदा यह चेक करो कि अमर भव' के वरदानी बने हैं? अमर कहो, निरन्तर कहो इस विशेष शब्द को बार-बार अण्डरलाइन करो। अमरनाथ बाप के बच्चे अगर अमर भव' के वर्से के अधिकारी नहीं बने तो क्या कहा जायेगा? कहने की जरूरत है क्या!

 

✺  *"ड्रिल :- बापदादा से अमर भव का वरदान स्वीकार करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सृष्टि चक्र का चक्कर लगाते-लगाते संगम के ऊँची चोटी पर पहुँच जाती हूँ...* यहाँ ऊँचे-ते-ऊँचे सर्व शक्तिमान परमात्मा, सुप्रीम शिक्षक, अमरनाथ बाबा... मुझ आत्मा रूपी पार्वती का ऊँचा भाग्य बनाने... ऊँचे-ते-ऊँच शिक्षाओं की धारणा कराते हैं... बाबा मुझ आत्मा को संगम युग की घडी दिखाते हैं और कहते हैं- बच्चे- संगम युग का समय अब खत्म होने वाला है... थोड़े की भी थोड़ी रही... *इस संगम की अमृतवेला को अलबेला बन मत गवाओं... अभी नहीं तो कभी नहीं...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूपी पार्वती इस देह से निकल अमरनाथ बाबा के साथ उड़ चलती हूँ... * बाबा मुझ आत्मा को मधुबन की पहाड़ियों पर ले जाते हैं... अमरनाथ बाबा मुझ पार्वती को अमरकथा सुना रहे हैं... *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देकर, तीनों कालों का दर्शन करा रहे हैं... मैं आत्मा मास्टर त्रिकालदर्शी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  *अमरनाथ बाबा मुझ आत्मा को अमर भव'का वरदान दे रहे हैं... पूरे कल्प में संगमयुग पर ही अमरनाथ बाबा से अमर भव' का वरदान मिलता है...* विशेष वरदानी संगम युग में... प्यारे बाबा से विशेष वरदान प्राप्त कर मैं आत्मा विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ... पदमा पदम् भाग्यशाली होने का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  *प्यारे बाबा इस वरदानी संगमयुग में एक कदम का पदम् गुना दे रहे हैं...* मैं आत्मा समय की विशेषता को जानकर श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर रही हूँ... श्रेष्ठ आत्मा बन रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व गुण, शक्तियों को धारण कर... गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... सिद्धि स्वरुप बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा अपने श्रेष्ठ स्वमानों में ही स्थित रहती हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा ज्ञान-योग की शक्ति से पवित्र बन रही हूँ... निरंतर योगी बन रही हूँ... सदा एक की लगन में ही मगन रहती हूँ... *मैं आत्मा अमर भव के वरदान को सदा याद रख... इसी नशे और खुशी में रह हर कर्म श्रीमत प्रमाण कर रही हूँ...* और अमर भव' के वर्से की अधिकारी बन रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा संगमयुग के इस वरदानी समय का उपयोग कर-रही हूँ...* बाबा से प्राप्त विशेषताओं... सर्व खजानों को स्व प्रति और सर्व के प्रति... यूज कर रही हूँ... और अपना अविनाशी भाग्य बना रही हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरूप, समर्थी स्वरुप बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा सदा अमर भव' के वरदानी स्वरूप में स्थित होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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