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❍ 23 / 08 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पुराने घर से मोह नष्ट करने का पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *ज्ञान की बुलबुल बन आप समान कांटो को फूल बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *समस्याओं रुपी पहाड़ को उडती कला द्वारा सेकंड में पार किया ?*
➢➢ *सबका आदर कर आदर्शमूर्त बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जिम्मावारी को निभाना यह भी आवश्यक है लेकिन जितनी बड़ी जिम्मेवारी उतना ही डबल लाइट।* जिम्मेवारी निभाते हुए जिम्मेवारी के बोझ से न्यारे रहो इसको कहते हैं बाप का प्यारा। *घबराओ नहीं क्या करूँ, बहुत जिम्मेवारी है। यह करूँ, वा नहीं यह तो बड़ा मुश्किल है। यह महसूसता अर्थात् बोझ है! डबल लाइट अर्थात् इससे भी न्यारा। कोई भी जिम्मेवारी के कर्म के हलचल का बोझ न हो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं वर्ल्ड ड्रामा में की स्टेज पर विशेष पार्टधारी हूँ"*
〰✧ सदा अपने को चलते-फिरते, खाते-पीते बेहद वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर विशेष पार्टधारी आत्मा अनुभव करते हो? *जो विशेष पार्टधारी होता है उसको सदा हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट के ऊपर अटेन्शन रहता है। क्योंकि सारे ड्रामा का आधार हीरो पार्टधारी होता है। तो इस सारे ड्रामा का आधार आप हो ना।* तो विशेष आत्माओंको वा विशेष पार्टधारियों को सदा इतना ही अटेन्शन रहता है? विशेष पार्टधारी कभी भी अलबेले नहीं होते। अलर्ट होते हैं। तो कभी अलबेलापन तो नहीं आ जाता? कर तो रहे हैं, पहुँच ही जायेंगे, ऐसे तो नहीं सोचते? कर रहे हैं लेकिन किस गति से कर रहे हैं? चल रहे हैं लेकिन किस गति से चल रहे हैं? गति में तो अन्तर होता है ना।
〰✧ कहाँ पैदल चलने वाला और कहाँ प्लेन में चलने वाला! कहने में तो आयेगा कि पैदल वाला भी चल रहा है और प्लेन वाला भी चल रहा है लेकिन फर्क कितना है? तो सिर्फ चल रहे हैं, ब्रह्माकुमार बन गये माना चल रहे हैं लेकिन किस गति से? *तीव्रगति वाला ही समय पर मंजिल पर पहुँचेगा। नहीं तो पीछे रह जायेगा। यहाँ भी प्राप्ति तो होती है लेकिन सूर्यवंशी की होती है या चन्द्रवंशी की होती है अन्तर तो होता है ना। तो सूर्यवंशी में आने के लिए हर संकल्प, हर बोल से साधारणता समाप्त हो।* अगर कोई हीरो एक्टर साधारण एक्ट करे तो सभी उस पर हंसेंगे ना।
〰✧ *तो यह सदा स्मृति रहे कि मैं विशेष पार्टधारी हूँ इसलिये हर कर्म विशेष हो, हर कदम विशेष हो, हर सेकेण्ड, हर समय, हर संकल्प श्रेष्ठ हो। ऐसे नहीं कि ये तो 5 मिनट साधारण हुआ। पांच मिनट, पांच मिनट नहीं है। संगमयुग के पांच मिनट बहुत महत्व वाले हैं, पांच मिनट पांच साल से भी ज्यादा हैं इसलिए इतना अटेन्शन रहे। इसको कहते हैं तीव्र पुरुषार्थी।* तीव्र पुरुषार्थियो का स्लोगन कौन-सा है? 'अब नहीं तो कब नहीं।' तो यह सदा याद रहता है? क्योंकि सदा का राज्य भाग्य प्राप्त करना चाहते हो तो अटेन्शन भी सदा। अब थोड़ा समय सदा का अटेन्शन बहुतकाल, सदा की प्राप्ति कराने वाला है। तो हर समय ये स्मृति रहे और चेकिंग हो कि चलते-चलते कभी साधारणता तो नहीं आ जाती? जैसे बाप को परम आत्मा कहा जाता है, तो परम है ना। तो जैसे बाप वैसे बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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चाहे अपनी कमजोरियों की हलचल हो, संस्कारों के व्यर्थ संकल्पों की हलचल हो *ऐसी हलचल के समय स्वयं को अचल बना सकते हो वा टाइम लगता है?* क्योंकि टाइम लगना यह कभी भी धोखा दे सकता है।
समाप्ति के समय में ज्यादा समय नहीं मिलना है। फाइनल रिजल्ट का पेपर कुछ सेकण्ड और मिनटों का ही होना है। लेकिन चारों ओर की हलचल के वातावरण में अचल रहने पर ही नम्बर मिलना है। अगर बहुतकाल हलचल की स्थिति से अचल बनने में समय लगने का अभ्यास होगा तो समाप्ति के समय क्या रिजल्ट होगी? इसलिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास करो। *मन को जहाँ और जितना समय स्थित करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित कर सको।* फाइनल पेपर है बहुत ही सहजा और पहले से ही बता देते हैं कि यह पेपर आना है। लेकिन नम्बर बहुत थोडे समय में मिलना है। स्टेज भी पॉवरफुल हो। देह, देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायब्रेशन, वायुमण्डल *सब होते हुए भी आकर्षित न करे। इसी को ही कहते हैं - ‘नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप'। तो ऐसी प्रैक्टिस है?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *बापदादा ने देखा कई बच्चे अपने से भी अप्रसन्न रहते हैं। छोटी-सी बात के कारण अप्रसन्न रहते हैं। पहला-पहला पाठ 'मैं कौन' इसको जानते हुए भी भूल जाते हैं। जो बाप ने बनाया है, दिया है - उसको भूल जाते है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद की दौड़ी से विजय माला में आना"*
➳ _ ➳ *‘तेरी याद का अमृत पीते हैं’... -अमृतवेले के समय ये गीत सुनते हुए मैं आत्मा यादों का अमृत पी रही हूँ... इस देह और देह की दुनिया के विनाशी यादों से मरकर प्यारे बाबा की अविनाशी यादों में जी रही हूँ... रूहानी बाबा के साथ रूहानी सैर कर रही हूँ...* परमधाम में अपने अनादि बिंदी स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ... फिर सतयुग में अपने देवताई स्वरूप पर फ़िदा होकर, मध्य काल में अपने पूज्य देवी स्वरुप के दर्शन करती हूँ... फिर रूहानी संगमयुग में ईश्वर की गोद में अपने पवित्र ब्राह्मण स्वरुप को देखती हूँ... फिर फ़रिश्ता बन बाबा के साथ सूक्ष्म वतन में पहुँच जाती हूँ... मीठी रूह-रिहान करने...
❉ *अपनी हजार भुजाओं की छत्रछाया में सच्चे प्रेम और साथ का एहसास कराते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *विजय माला में स्वयं को देखो... नम्बर वन में आने के लिए सदा बाप का हाथ और साथ पकड़े रहो... हर सेकण्ड बाबा के स्नेह और सहयोग की महसूसता ही नम्बर वन का आधार है...* और कभी कभी विघ्नो को हटाने की मेहनत दूसरे नम्बर में ले जायेगी...”
➳ _ ➳ *स्वदर्शन चक्रधारी बन यादों की सीढ़ियों पर चढ़कर विजय माला में आने की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ईश्वर पिता को पाकर सदा उड़ती कला की अनुभूतियों में हूँ... सदा बाबा के हाथ को पकड़े हुए... सहयोग को प्राप्त करते हुए... खुशियो के आसमान में उड़ती ही जा रही हूँ...* हर विघ्न से मुक्त सहजयोगी बन रही हूँ...”
❉ *दिव्यता के सुगंध से मुझे रूहे गुलाब बनाकर रूद्र माला में पिरोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... सदा याद में कंबाइंड न होना तीसरे नम्बर पर ले जायेगा... इसलिए अपनी चेंकिंग करो... बुद्धि की लाइन सदा क्लियर रखो... *संकल्प बोल और कर्म को बाप समान बनाते जाओ... चढ़ती कला नही अब सदा उड़ती कला का अनुभव करो... और विजय माला में समीप रत्न बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *याद की दौड़ी लगाकर बाबा की मखमली गोदी में बैठ अतीन्द्रिय सुखों का अनुभव करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा अपने पुरुषार्थ को तीवता से ऊंचाइयों पर ले जा रही हूँ... मन बुद्धि को एक बाबा में लगाकर उड़ती कला में जा रही हूँ...* सदा बाबा के साथ कम्बाइंड होकर बाप समान बनती जा रही हूँ...”
❉ *योग की अनंत किरणों से मेरे भाग्य को सुनहरा बनाकर मेरे भाग्यविधाता प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब सेवाओ में नवीनता की अनुभूति कराओ... रियल सुख रियल शांति का अनुभव सारे जहान को कराओ... निमित्त नम्रचित्त बन सफलता मूर्त बनो... *अपने सुंदर भाग्य के नशे में डूब जाओ... और व्यर्थ बोल संकल्प से परे समर्थ आत्मा बन मुस्कराओ... बाप को फॉलो कर 16 कलाओं से सम्पूर्ण बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *सर्वशक्तिवान बाबा की प्रीत में विजयी रतन बन चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो की छत्रछाया में समर्थ आत्मा बन रही हूँ... प्यारे बाबा सारे व्यर्थ खत्म हो रहे है...* और सबको सच्चे सुखो की अनुभूति कराती जा रही हूँ... 16 कलाओं से सजकर मुस्कराती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस पुराने घर से मोह नष्ट कर देना है*"
➳ _ ➳ मन बुद्धि के विमान द्वारा, दुनिया की हलचल से दूर, एक ऊंचे एकांत स्थान पर पहुँच कर मैं वहाँ बैठ प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द ले रही हूँ और इस ऊँचे स्थान से सारे विश्व को देख रही हूँ। *ऊँचे - ऊंचे टावर, बिल्डिंगों और साइंस द्वारा निर्मित ऊंची - ऊंची उपलब्धियों को देख मन ही मन मैं विचार कर रही हूँ कि साइंस की चकाचौंध अपना कितना कमाल दिखा रही है। मन को लुभाने वाली कितनी सुंदर - सुंदर कृत्रिम चीजें आज वैज्ञानिको ने इन्वेंट कर ली है किंतु वे शायद इस बात से सर्वथा अनजान है कि जल्दी ही एक ऐसी विनाश ज्वाला प्रज्ज्वलित होने वाली है जिसमे ये सब चीजें सेकण्ड में तबाह हो जाने वाली हैं* और वो समय अति शीघ्र आ रहा है। यह विचार करते - करते आंखों के सामने एकाएक महाविनाश का दृश्य उभर आता है।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ कहीं बॉम्ब फट रहें है और देश के देश तबाह हो रहें हैं, कहीं प्रकृतिक आपदाओं के कारण तबाही मची है, कहीं गृह युद्ध हो रहें हैं, समुन्द्र उछाल खा रहा है और शहर के शहर उसके अंदर समाकर जल मगन हो रहें हैं। *इस अति भयावह खून नाहेक खेल को मैं देख रही हूँ, चारों और लाशों के ढ़ेर लगे हैं और कोई उन लाशों को अग्नि देने वाला भी नही। विनाश के इस अति डरावने मंजर को देख मन मे स्वत: ही इस पुरानी नश्वर दुनिया से वैराग्य उतपन्न होने लगता है* और अपने आप से ही मैं सवाल करने लगती हूँ कि जब ये सब कुछ समाप्त होने वाला है, ये पुरानी दुनिया अब रहने वाली ही नही तो देह की इस झूठी दुनिया, झूठे सम्बन्धो से प्रीत रख कर मिलना भी क्या है! *ये दुनिया रूपी घर तो अब पुराना जडजड़ीभूत हो गया है इसलिए इस पुराने घर से मोह निकाल देने में ही समझदारी है*।
➳ _ ➳ इस घर से मोह नष्ट कर, नष्टोमोहा बनने का ही अब मुझे पुरुषार्थ करना है मन मे यह दृढ़ संकल्प धारण कर अपने खुदा दोस्त को मैं दिल से याद कर उनका आह्वान करती हूँ और देखती हूँ मेरे दिलाराम बाबा, मेरे खुदा दोस्त मेरे एक बुलावे पर कैसे मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं। *कुछ समय मेरे साथ बैठ कर, मीठी - मीठी रूह रिहान करके, इस पुरानी दुनिया, पुराने घर से ममत्व निकालने की युक्तियाँ मुझे समझाकर मेरे खुदा दोस्त वापिस लौट जाते हैं और मैं मन ही मन उनका शुक्रिया अदा करके, उनकी मन को सुकून देने वाली मीठी यादों में खो जाती हूँ*। मेरे निराकार शिव पिता की याद मुझे सेकेंड में उनके समान विदेही बना देती है और मैं देह से डिटैच अपनी निराकारी स्थिति में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, देह और देह की दुनिया को भूल मैं चल पड़ती हूँ एक अति सुन्दर मनभावन रूहानी यात्रा पर जिसमे ना कोई देह का बन्धन है और ना ही कोई समय की सीमा है। *हर बन्धन से मुक्त इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते हुए मैं ऊपर आकाश की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ। एक ही उड़ान में मैं आकाश को पार कर लेती हूँ और सफेद प्रकाश से आच्छादित फरिश्तो की एक बेहद खूबसूरत दुनिया में पहुँच जाती हूँ*। अपने इस अव्यक्त वतन में आकर देख रही हूँ मैं वतन का खूबसूरत नज़ारा।
➳ _ ➳ पूरा सूक्ष्म लोक सफ़ेद चांदनी के प्रकाश से नहाया हुआ बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहा है। सामने अपनी बाहों को फैलाये बापदादा खड़े हैं। उनकी बाहों में आकर, उनके नयनों में अपने लिए बरस रहे असीम स्नेह को अनुभव करके मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *बापदादा का असीम स्नेह और प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ पर बरस रहा है। बाबा की स्नेह भरी दृष्टि मुझ में असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है*। बापदादा से अथाह स्नेह पा कर, अपने निराकारी स्वरूप मे स्थित होकर अब मैं अपने धाम जा रही हूँ।
➳ _ ➳ अपनी निराकारी दुनिया में निराकारी स्वरूप में, अपने शिव पिता के साथ मंगल मिलन मनाने का सुखद अनुभव मुझे सेकण्ड में अपने इस स्वीट साइलेन्स होम में ले आया है। देख रही हूँ मैं अपने प्यारे बाबा को अपनी शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये अपने बिल्कुल सामने। *उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर, एक - एक किरण को स्पर्श करते हुए, उनके निस्वार्थ प्यार की गहराई में डूब कर, एक दिव्य अलौकिक आनन्द की अनुभूति करके, मैं लौट आती हूँ फिर से साकारी दुनिया, साकारी देह में अपना पार्ट बजाने के लिए*। किन्तु परमात्म प्यार प्राप्त करने का यह सुखद और आनन्ददायी अनुभव अब मुझे पुराने घर, पुरानी दुनिया में रहते हुए भी उनसे नष्टोमोहा बना कर हर समय परमात्म लव में लीन रखता है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समस्याओं रूपी पहाड़ को उड़ती कला द्वारा सेकण्ड में पार करने वाली सहज पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सबका आदर करने वाली आदर्श मूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *ब्रह्माकुमारीज इज रिचेस्ट इन धी वर्ल्ड चाहे डालर कहो, चाहे पौण्ड कहो, है तो पेपर ही, तो पेपर कहाँ तक चलेगा! सोने का मूल्य है, हीरे का मूल्य है, पेपर का क्या है?* मनी डाउन तो होनी ही है। और आपकी मनी सबसे ज्यादा मूल्यवान है। जैसे शुरु में अखबार में डलवाया था ना कि ओम मण्डली रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। कमाई का साधन कुछ नहीं था। *ब्रह्मा बाप के साथ एक-दो समर्पण हुए और अखबार में डाला रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड।*
➳ _ ➳ तो अभी भी जब चारों ओर ये स्थूल हलचल होगी फिर आपको अखबार में नहीं डालना पड़ेगा। *आपके पास अखबार वाले आयेंगे और खुद ही डालेंगे, टी.वी. में दिखायेंगे कि ब्रह्माकुमारीज रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। क्योंकि आपके चेहरे चमकते रहेंगे, कुछ भी हो जाये। दिन में खाने की रोटी भी नहीं मिले तो भी आपके चेहरे चमकते रहेंगे* तो चारों ओर होगा दुख और आप खुशी में नाचते रहेंगे। इसी को ही कहते हैं मिरुआ मौत मलू का शिकार।
➳ _ ➳ *हिम्मत है ना! क्या होगा, कैसा होगा, ये नहीं सोचो। अच्छा है, अच्छा होना ही है। जो श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करते हो वो सदा ही अच्छा है।* तो ये कभी नहीं सोचो पता नहीं क्या होगा, पता है अच्छा होगा समझा? *अच्छा है हिम्मत बहुत अच्छी रखी। जहाँ हिम्मत है वहाँ मदद है।*
✺ *ड्रिल :- "श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करना"*
➳ _ ➳ प्रकृति के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... मंद-मंद लहराते ठन्डे-ठन्डे पवन के झोंके... फूलों की खुशबू से महकी मैं आत्मा... बाप के याद रूपी पंख लगाकर उड़ चलती हूँ पांडव भवन में... *ज्ञान चक्षु से पांडव भवन में विहरति मैं आत्मा... बैठ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में...* सुख... शांति... पवित्रता से भरी बाबा की झोपड़ी... मीठी-मीठी फूलों की खुशबू फैला रहा है... और मैं आत्मा सिर्फ एक बाप की यादों में मग्न हो जाती हूँ... और मैं आत्मा मन की आँखों से देख रही हूँ सतयुगी दुनिया को... *पवित्रता का श्रृंगार किये खड़ी प्रकृति... सतोगुणी प्रकृति के सुखद आहलादक नज़ारे... सोने चांदी हीरों से सजे महल... 16 कला सम्पूर्ण... सम्पूर्ण निर्विकारी... सभी आत्मायें...* और मैं आत्मा खो जाती हूँ सतयुगी सृष्टि में...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी सतयुगी सफर का आनंद लेकर वापिस आ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में... पूर्णतः शांति... निःसंकल्पता की अवस्था में बैठी मैं आत्मा... एक और सीन देख रही हूँ... *कलियुगी विनाश के नज़ारे... प्राकृतिक आपदाओं से घेरा हुआ ब्रह्माण्ड... अग्नि ज्वालाओं में लपेटे हुए इमारतों के ढेर...* कहीं और समंदर का तांडव... दुःख दर्द से व्यथित धरती... अगन ज्वाला फेकता आग... त्राहिमाम अवस्था में भागती आत्मायें... *अपनों की खोज में ख़ुद को खो चूंकि आत्मायें...* चेतनहींन शरीर... दुःख... दर्द से भरा प्रकृति का साम्राज्य... दुःखी... हताश आत्मायें... मन विचलित हो उठा यह देख और आँखों से अश्रु धारा बहती जा रही हैं...
➳ _ ➳ और मन ही मन बाबा को पूछती हूँ "बाबा सतयुग की सुहानी सफर के बाद यह विनाश का नजारा क्यूँ दिखाया?" और अपने सवाल के जवाब की आश लिए देखती हूँ बापदादा को... शांत मन की गहराईओं में मैं आत्मा देख रही हूँ... *संगमयुगी ब्राह्मण आत्मायें जो इस विनाश की लपटों में भी अपनी अवस्था बनायें रखी हैं... साक्षीदृष्टा बन विनाशी पलों को देख रहे हैं... एक बाप की याद में रह अपने विनाशी देह से परमधाम की यात्रा कर रहे हैं... बापदादा की गोद में सुकून से समां रहे हैं...* मुरली रूपी शिक्षाओं को अपने में धारण कर पूरा संगमयुगी जीवन बाप को समर्पित कर श्रीमत का पालन करते करते अंतिम समय की तैयारी कर रहे हैं...
➳ _ ➳ अंतिम संगमयुगी जीवन में पवित्रता की धारणा कर शांति का श्रृंगार कर अपने साथ शांति और पवित्रता रूपी ख़ज़ाने को लेकर उड़ चलते हैं परमधाम की ओर... *न कलियुगी संस्कारों को साथ लेकर... न कलियुगी खजानों को साथ लेकर...* बस एक बाप के प्यार में मग्न होकर... बाप की शिक्षाओं को साथ लेकर... *योग बल से अपने विनाशी देह का त्याग करते हैं... रिचेस्ट बाप के रिचेस्ट बच्चे... संगमयुग में सतयुगी स्थापना की नींव रखते है...* संगमयुग में अविनाशी खजानों की प्राप्ति कर पुण्य का खाता श्रेष्ठ स्मृति रूपी कार्य से जमा करते रहते हैं...
➳ _ ➳ *योगयुक्त अवस्था की उच्च आत्मिक स्थिति में स्थित होकर के संगमयुगी कार्य को बाप की श्रीमत पर चल परिपूर्ण करते रहते हैं...* मैं आत्मा बापदादा से निकलते आशीर्वाद रूपी किरणों को अपने में धारण कर संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... *सतयुगी श्रेष्ठ स्मृति को अपने जीवन में चरितार्थ कर संगमयुग को ही सतयुग में परिवर्तित करती जा रही हूँ...* श्रेष्ठ संकल्प... श्रेष्ठ स्मृति के भाग्य को जान अब मैं आत्मा एक-एक संकल्प को तराजू में तोलती जा रही हूँ... ॐ शांति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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