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 23 / 11 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह अभिमान छोड़ स्वयं पर रहम किया ?*

 

➢➢ *आज्ञाकारी होकर रहे ?*

 

➢➢ *आज्ञाकारी बन बाप की मदद व दुआओं का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *नए ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रह पुराने संस्कारों को इमर्ज होने से रोका ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *आपके सामने कोई कितना भी व्यर्थ बोले लेकिन आप व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक भी व्यर्थ बोल स्वीकार कर लिया तो एक व्यर्थ अनेक व्यर्थ को जन्म देगा।* अपने बोल पर भी पूरा ध्यान दो, ‘‘कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो’’ तो अव्यक्त स्थिति सहज बन जायेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पुण्य का खाता जमा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  *'सदा पुण्य का खाता जमा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ' - ऐसे अनुभव होता हैं? यह सेवा - नाम सेवा का है, लेकिन पुण्य का खाता जमा करने का साधन है। तो पुण्य के खाते सदा भरपूर हैं और आगे भी भरपूर रहेंगे।*

 

  *जितनी सेवा करते हो, उतना पुण्य का खाता बढ़ता जाता है। तो पुण्य का खाता अविनाशी बन गया। यह पुण्य अनेक जन्म भरपूर करने वाला है।*

 

  *तो पुण्य आत्मा हो और सदा ही पुण्यात्मा बन औरों को भी पुण्य का रास्ता बताने वाले। यह पुण्य का खाता अनेक जन्म साथ रहेगा, अनेक जन्म मालामाल रहेंगे - इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  (बापदादा ने ड़िल कराई) *एक सेकण्ड में डॉट लगा सकते हो?* अभी-अभी कर्म में और अभी-अभी कर्म से न्यारे, कर्म के सम्बन्ध से न्यारे हो सकते हो? यह एक्सरसाइज आती है?

 

✧  किसी भी कर्म में बहुत बिजी हो, मन-बुद्धि कर्म के सम्बन्ध में लगी हुई है, बन्धन में नहीं, सम्बन्ध में, लेकिन डायरेक्शन मिले - फुलस्टॉप। तो *फुलस्टॉप लगा सकते हो कि कर्म के संकल्प चलते रहेंगे?* यह करना है, यह नहीं करना है, यह ऐसे है, यह ऐसे है।

 

✧  तो यह प्रेक्टिस एक सेकण्ड के लिए भी करो लेकिन *अभ्यास करते जाओ, क्योंकि अंतिम सर्टीफिकेट एक सेकण्ड के फुलस्टॉप लगाने पर ही मिलना है।* सेकण्ड में विस्तार को समा ले, सार स्वरूप बन जाये। तो यह प्रैक्टिस जब भी चांस मिले, कर सकते हो तो करते रहो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *कर्मणा द्वारा गुणों का दान करने के कारण कौन-सी मूर्त बन जायेंगे? फ़रिश्ता। कर्म अर्थात् गुणों का दान करने से उनकी चलन और चेहरा दोनों ही फ़रिश्ते की तरह दिखाई देंगे। दोनों प्रकार की लाइट होंगी अर्थात् प्रकाशमय भी और हल्कापन भी। जो भी कदम उठेगा वह हल्का। बोझ महसूस नहीं करेंगे। जैसे कोई शक्ति चला रही है।* हर कर्म में मदद की महसूसता करेंगे। हर कर्म में सर्व द्वारा प्राप्त हुआ वरदान अनुभव करेंगे। दूसरे, हर कर्म द्वारा महादानी बनने वाला सर्व की आशीर्वाद के पात्र बनने के कारण सर्व वरदान की प्राप्ति अपने जीवन में अनुभव करेंगे। मेहनत से नहीं, लेकिन वरदान के रूप में। *तो कर्म में दान करने वाला एक तो फ़रिश्ता रूप नज़र आयेगा, दूसरा सर्व वरदानमूर्त अपने को अनुभव करेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

*✺   "ड्रिल :- सावधान हो पढाई पर पूरा ध्यान देना"*

 

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मन-बुद्धि को बाह्य सभी बातों से हटाकर भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... इस देह रूपी ड्रेस से मैं आत्मा बाहर निकल फ़रिश्ता ड्रेस धारण करती हूँ... और इस धरा से ऊपर उड़ते हुए, सागर, नदियों, जंगलों, पहाड़ों को पार करती हुई आसमान में बादलों के ऊपर बैठ जाती हूँ...* आसमान में चाँद, सितारों से मिलकर और ऊपर उड़कर सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ राजयोग की पढाई पढने...

 

  *मुझे डबल सिरताज बनाकर विश्व की राजाई मेरे नाम करने के लिए अमूल्य ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... यह ईश्वरीय पढ़ाई वह जागीर, वह दौलत है जो विश्व का राज्य भाग्य दिलायेगी... *इसलिये इस महान पढ़ाई में रग रग से जुट जाओ... ईश्वर पिता की गोद में बैठ पढ़ते हो और यादो से विश्व अधिकारी सहज ही बन जाते हो... कितना प्यारा और मीठा सा यह भाग्य है... इसके नशे में डूब जाओ...”*

 

_ ➳  *बाबा के मोहब्बत की रोशनी में सच्ची कमाई कर हीरे समान चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी छाँव में, *सुखो भरी गोद में बैठ राजाई भाग्य पा रही हूँ... देवताई संस्कारो से सजकर मीठा सा मुस्करा रही हूँ, और सुनहरे सुखो की ओर कदम बढ़ाती जा रही हूँ...”*

 

  *अपने पलकों में बिठाकर यादों के समुन्दर की गहराईयों में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सच्ची पढ़ाई को दिल जान से पढ़कर अधिकारी बन जाओ... अमूल्य खजानो को और अथाह सुखो की दौलत से मालामाल बन जाओ...* ईश्वर पिता से सब कुछ लेकर देवताओ सा खुबसूरत जीवन बाँहों में भरकर खिलखिलाओ... डबल सिरताज बन सदा की मुस्कान से सज जाओ...

 

_ ➳  *रूहानी नशे में खोकर बाबा को अपने नैनों में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो और अमूल्य ज्ञान रत्नों से अथाह सुखो की मालकिन और देवताओ सा रूप रंग पा रही हूँ...* कभी दुखो में गरीब सी... मै आत्मा आज शिव बाबा आपकी बाँहों में पूरे विश्व धरा का अधिकार पा रही हूँ...

 

  *अमूल्य ज्ञान रत्नों की निधियों से मुझे मालामाल करते हुए मेरे रत्नाकर बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय पढ़ाई ही सारे सच्चे सुखो का आधार है... सारा मदार इस पढ़ाई पर ही है... जितना ज्ञान रत्नों को मन और बुद्धि में समाओगे उतना ही प्यारा सतयुगी सुखो में इठलाओगे... इसलिए इस पढ़ाई में जीजान से जुट जाओ...* और डबल ताज धारी बन विश्वधरा पर राजाई का लुत्फ़ उठाओ...

 

_ ➳  *इस एक जन्म की पढाई से 21 जन्मों की ऊँची तकदीर बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई से अथाह अमीरी का खजाना पा रही हूँ... राजयोगी बनकर किस कदर धनवान् होती जा रही हूँ...* दुखो की मोहताज से मुक्त होकर ईश्वरीय बाँहों में अमीर और अमीर होती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अच्छे मैनर्स धारण करने है, सबको सुख देना है*"

 

_ ➳  अपने सुख सागर मीठे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की सुख देने वाली मीठी याद में बैठ, अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, *मैं अपने मन बुद्धि का कनेक्शन अपने सुख दाता निराकार बाप के साथ जैसे ही जोड़ती हूँ, सेकण्ड में बुद्धि की तार जुड़ जाती है परमधाम निवासी मेरे प्यारे अति मीठे सुख सागर शिव बाबा के साथ और परमधाम से सुख की असीम किरणे मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगती हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे सुख का कोई विशाल झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ।

 

_ ➳  इस असीम सुख का गहराई से अनुभव करके मैं विचार करती हूँ कि *इस सृष्टि पर रहने वाले सभी मनुष्य मात्र जो स्वयं को और अपने सुखदाता बाप को भूलने के कारण अपरमअपार दुख का अनुभव कर रहें हैं। वो सभी मेरे ही तो आत्मा भाई है। तो अपने उन आत्मा भाइयो को मास्टर सुख दाता बन सुख देना मेरा परम कर्तव्य भी है और यही मेरे सुखदाता बाप का फरमान भी है*। तो अपने बाप के फरमान पर चल सुख दाता के बच्चे मास्टर सुखदाता बन मुझे सबको सुख देना है। ऐसा कोई संकल्प नही करना, मुख से ऐसा कोई बोल नही बोलना और ऐसा कोई कर्म नही करना जो दूसरों को दुख देने के निमित बनें। बाप समान सबको सुख देना ही मेरा परम कर्तव्य है।

 

_ ➳  अपने इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को मैं आत्मा धारण करती हूँ और सुख का फ़रिश्ता बन सारे विश्व की तड़पती हुई दुखी अशांत आत्माओं को सुख की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ। *मैं फ़रिश्ता ऊपर की ओर उडते हुए नीचे पृथ्वी लोक के हर दृश्य को देख रहा  हूँ। विकारों की अग्नि में जलने के कारण गहन दुख की अनुभूति करती सर्व आत्माओं को रोते बिलखते, चीखते - चिल्लाते हुए मैं देख रहा हूँ*। इन दुख दाई दृश्यों को देख सुख के सागर अपने शिव पिता का मैं आह्वान करता हूँ और उनके साथ कनेक्शन जोड़ कर उनसे सुख की शक्तिशाली किरणे लेकर सारे विश्व में सुख के शक्तिशाली वायब्रेशन फैलाने लगता हूँ।

 

_ ➳  विकारों की अग्नि में जल रही दुखी अशांत आत्माओं पर सुख की ये शक्तिशाली किरणे शीतल जल बन कर, उन्हें विकारों की तपन से मुक्त कर, शीतलता का अनुभव करवा रही हैं। *विश्व की सभी दुखी अशांत आत्माओं को सुख देकर अब मैं फ़रिश्ता सूक्ष्म लोक में पहुँच कर, बापदादा को सारा समाचार दे कर, उनके साथ अव्यक्त मिलन मना कर, उनसे गुण, शक्तियाँ, वरदान और खजाने लेकर अपनी फ़रिश्ता ड्रेस को सूक्ष्म लोक में ही छोड़ कर, अपने निराकार स्वरुप को धारण कर अब परमधाम की ओर रवाना होती हूँ*।

 

_ ➳  अपने निराकार स्वरूप में, निराकार सुखदाता अपने शिव पिता की सर्व शक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ उनकी सुख की किरणों से स्वयं को भरपूर कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने साकारी ब्राह्मण तन में आ कर प्रवेश करती हूँ। *"सुखदाता की सन्तान मैं मास्टर सुखदाता हूँ" इस स्वमान की सीट पर सदा सेट रहते हुए, अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को अपने हर संकल्प, बोल और कर्म से सुख दे रही हूँ*। हर कर्म अपने सुख सागर बाबा की याद में रह कर करते हुए अब मैं इस बात पर पूरा अटेंशन रखती हूँ कि मनसा, वाचा, कर्मणा मुझ से ऐसा कोई कर्म ना हो जो दूसरों को दुख देने के निमित बने।

 

_ ➳  *स्वयं को सदा सुखदाता बाप के साथ कम्बाइंड अनुभव करते मास्टर सुखदाता बन कभी अपने आकारी तो कभी साकारी स्वरूप द्वारा, सबको सुख का अनुभव करवाते अब मैं बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बन सबको दुखों से छुड़ाने और सुखी बनाने का रूहानी धन्धा निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं आज्ञाकारी बन बाप की मदद वा दुआओं का अनुभव करने वाली सफलता मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं नये ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रहकर कोई भी पुराना संस्कार इमर्ज नहीं होने देने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। *ब्राह्मण जीवन का महत्व बहुत बड़ा है। प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बननायह बड़े-से-बड़ा पदमगुणा भाग्य है*। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खजाने का महत्व रखो। जैसे दूसरों को भाषण में संगमयुग की कितनी महिमा सुनाते हो। *अगर आपको कोई टापिक देवें कि संगमयुग की महिमा करो तो कितना समय कर सकते होएक घण्टा कर सकते हो*टीचर्स बोलो। *जो कर सकता है वह हाथ उठाओ। तो जैसे दूसरों को महत्व सुनाते हो,* महत्व जानते बहुत अच्छा हो । बापदादा ऐसे नहीं कहेगा कि जानते नहीं हैं। *जब सुना सकते हैं तो जानते हैं तब तो सुनाते हैं। सिर्फ है क्या कि मर्ज हो जाता है। इमर्ज रूप में स्मृति रहे* - वह कभी कम हो जाता हैकभी ज्यादा। तो *अपना ईश्वरीय नशा इमर्ज रखो*। हाँ मैं तो हो गईहो गया... नहीं। *प्रैक्टिकल में हूँ... यह इमर्ज रूप में हो*। *निश्चय है लेकिन निश्चय की निशानी है - 'रूहानी नशा'। तो सारा समय नशा रहे। रूहानी नशा - मैं कौन! यह नशा इमर्ज रूप में होगा तो हर सेकण्ड जमा होता जायेगा*। 

 

✺   *ड्रिल :-  "संगमयुग की महिमा इमर्ज रूप में स्मृति में रखना"*

 

 _ ➳  संसार रूपी भवसागर में हिचकोलें खाती मेरी जर्जर सी वो कश्ती... डूबने के भय से सँवरने के लिए भक्ति के खडताल बजाती हुई मैं भक्त आत्मा... *और तभी अचानक किसी ने हाथ पकड कर बिठा लिया संगम रूपी जल पोत पर*... और भक्त आत्मा से ज्ञानी तू आत्मा का परिचय भी दे दिया... भवसागर की हर लहर को तैरने के अनुकूल बनाते हुए मेरे शिव पिता खुद नाविक बन मेरी कश्ती को पार लगा रहे है... *मैं कौन की पहेली की गहराई में जाकर मैं जितना खुद को जानने की कोशिश कर रही हूँ... उतना उतना रूहानी नशा चढता जा रहा है... मैं आत्मा स्वमानों की माला पहने अपने गुण और शक्तियों को इमर्ज करते हुए... एक एक गुण की गहराई से अनुभूति कर रही हूँ... संगम के ये खजाने... समय का खजाना... एक एक पल दूसरे युगों के सालों के बराबर, संकल्प का खजाना... बंध गया है मेरे संकल्पों की डोर से परमधाम में रहने वाला... गुणों और शक्तियों का  खजाना... मास्टर सर्वशक्तिमान बनाकर बाप समान बनने का लक्ष्य दे डाला है उसने मुझे*...

 

 _ ➳  *हर पल किनारों की ओर ले जाता मुझे ये संगम रूपी जहाजी बेडा*... पल पल बाप से सर्वसम्बन्धों का सुख देता हुआ... विभिन्न प्रकार की ड्रैसेस से सजा मेरा सुन्दर सा केबिन... देवताई ड्रैस फरिश्ता ड्रैस... *फरिश्ता स्वरूप की ड्रैस पहन मैं आत्मा उड चली सूक्ष्म वतन की ओर*... सूक्ष्म वतन में बापदादा के साथ कुछ पल के लिए साक्षी होकर देख रही हूँ मैं... संगम के बेडे पर सवार सभी देव कुल की आत्माओं को... *पल पल सतयुगी सृष्टि के सृजन में लगी हुई*... हर संकल्प से उसे और करीब लाती हुई बापदादा निरन्तर खुशियों से सम्पन्न कर रहे है इस पोत को... हर पल स्नेह की मीठी सी बारिश... शीतल फुहारें...

 

 _ ➳  *खुशियों का अखूट खजाना भर के चला है ये संगम रूपी जलयान*... और हर क्षण हर पल खुशियों की खुराक से भरपूर होती मैं आत्मा... *अमृत वेले का वो रूहानी मिलन और मुरली... खुशियों के खजाने की चाबी मिली है मुझ आत्मा को... जितना घुमाती हूँ उतने खजाने खुलते जा रहे है मेरे सामने... खुशियों के झर झर बहते झरने... हर पल अनुभवों का पल*... मेरे संकल्प की डोर से बंधकर आते शिव सूर्य ठीक मेरे मस्तिक के ऊपर स्थित हो गये है... *मैं बिन्दु रूप धारण कर स्वयं को समाँ रहा हूँ शिव सूर्य की सुनहरी किरणों में*... और आहिस्ता आहिस्ता एकाकार होता मैं शिव बिन्दु के साथ... मानों आभार व्यक्त करने के लिए ही मैं विनम्र होता हुआ मिटा देना चाहता हूँ अपने वजूद को उस परम बिन्दु में... *संगम के इस महा मिलन की स्मृति को गहराई से अपनी स्मृति में संजोये मैं आत्मा लौट आई हूँ अपनी देह मैं... अखूट खजानों की चाबी को हाथ में लिए*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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