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❍ 09 / 12 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्व व अन्य आत्माओं की समस्या के लिए समाधान स्वरुप बनकर रहे ?*
➢➢ *कर्मातीत वानप्रस्थ अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *"हम बच्चे भी बाप समान श्रेष्ठ हैं" - सदा यह स्मृति रही ?*
➢➢ *संकल्प शक्ति को कण्ट्रोल करने का अभ्यास किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ ऐसा कोई भी ब्राह्मण नहीं होगा जो आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थी न हो। लेकिन निरन्तर आत्म-अभिमानी, जिससे कर्मेन्द्रियों के ऊपर विजय हो जाए, *हरेक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जाए, देह के पुराने संस्कार और सम्बन्ध से सम्पूर्ण मरजीवा हो जाए, इस पुरुषार्थ से ही नम्बर बनते हैं।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ "*
〰✧ अपने को सदा दिल तख्तनशीन समझते हो? यह दिलतख्त सारे कल्प में सिवाए इस संगम युग के कहाँ भी प्राप्त नहीं हो सकता। दिलतख्त पर कौन बैठ सकता है? *जिसकी दिल सदा एक दिलाराम बाप के साथ है। एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में रहने वालों के लिए स्थान है - 'दिलतख्त'।* तो किस स्थान पर रहते हो? अगर तख्त छोड़ देते हो तो फाँसी के तख्ते पर चले जाते। जन्म जन्मान्तर के लिए माया की फाँसी में फंस जाते हो। या तो है बाप का दिलतख्त या है माया की फाँसी का तख्ता।
〰✧ तो कहाँ रहना है? एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये, अपना शरीर भी नहीं। अगर देह याद आई तो देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। *जरा संकल्प रूप में भी अगर सूक्ष्म धागा जुटा हुआ होगा तो वह अपनी तरफ खींच लेगा। इसलिए मंसा, वाचा कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी रस्सी न हो।*
〰✧ सदा मुक्त रहो तब औरों को भी मुक्त कर सकेंगे। आजकल सारी दुनिया माया के जाल में फँसकर तड़प रही है, उन्हें इस जाल से मुक्त करने के लिए पहले स्वयं को मुक्त होना पड़े। सूक्ष्म संक्लप में भी बंधन न हो। *जितना निर्बन्धन होंगे उतना अपनी ऊंची स्टेज पर स्थित हो सकोगे। बंधन होगा तो ऊँचा चाहते भी नीचे आ जायेंगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बापदादा वा ड्रामा दिखाता ही रहता है कि दिन-प्रतिदिन सेवा बढ़नी ही है, तो बैठ कैसे जायेंगे?* जो एक साल पहले आपकी सेवा थी और इस साल जो सेवा की वह बढ़ी है या कम हुई है? बढ़ गई है ना!
〰✧ *न चाहते भी सेवा के बंधन में बंधे हुए हो लेकिन बैलेन्स से सेवा का बन्धन, बन्धन नहीं संबंध होगा।* जैसे लौकिक संबंध में समझते हो कि एक है कर्म बन्धन और एक है सेवा का संबंध तो बन्धन का अनुभव नहीं होगा, सेवा का स्वीट संबंध है। तो क्या अटेन्शन देंगे?
〰✧ सेवा और स्व-पुरुषार्थ का बैलेन्स सेवा के अति में नहीं जाओ। बस, मेरे को ही करनी है, मैं ही कर सकती हूँ, नहीं। *कराने वाला करा रहा है, मैं निमित्त ‘करनहार' हूँ तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सारे दिन में कितना समय फ़रिश्ते हो रहते और कितना समय फ़रिश्तों के बजाय मृत्युलोक के मानव होते हो? दैवी परिवार के रिश्तों में भी फ़रिश्ते नहीं आते। वह तो सदैव न्यारे रहते हैं। *रिश्ते सब किससे हैं? अगर कोई को सखी बनाया तो बाप से वह सखीपन का रिश्ता कम हो जायेगा।* कोई भी सम्बन्ध चाहे बहन का या भाई का या अन्य कोई भी रिश्ता जोड़ा तो एक से ज़रूर वह रिश्ता हल्का होगा। *क्योंकि बँट जाता है ना? दिल का टुकड़ा टुकड़ा हो गया तो टूटा हुआ दिल हो गया। टूटे हुए दिल को बाप भी स्वीकार नहीं करते।* यह भी गुह्य रिश्तों की फिलॉसॉफी है। *सिवाय एक के और कोई से रिश्ता नहीं- न सखा, न सखी, न बहन, न भाई। तो उस सम्बन्ध में भी आत्मा ही याद आयेगी। फ़रिश्ता अर्थात् जिसका आत्माओं से कोई रिश्ता नहीं। प्रीत जुटाना सहज है, लेकिन निभाना मुश्किल है। निभाने में ही नम्बर होते हैं। जुटाने में नहीं होते।* निभाना किसी-किसी को आता है, सब को नहीं आता। निभाने की लाइन बदली हो जाती है। लक्ष्य एक होता है लक्षण दूसरे हो जाते हैं। इसलिए निभाते कोई-कोई हैं, जुटाते सब हैं। *भक्त भी जुटाते हैं लेकिन निभाते नहीं हैं। बच्चे निभाते हैं, लेकिन उसमें भी नम्बरवार।* कोई एक सम्बन्ध में भी अगर निभाने में कमी हो गई या सम्बन्ध में ज़रा-सी कमी हुई, मानों ७५३ सम्बन्ध बाप से है और २५३ सम्बन्ध कोई एक आत्मा से है, तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं रखेंगे। बाप का साथ ७५३ रखते हैं और कभी-कभी २५३ कोई का साथ लिया तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं आयेंगे। निभाना तो निभाना। यही भी गुह्य गति है। *संकल्प में भी कोई आत्मा न आये- इसको कहते हैं सम्पूर्ण निभाना। कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे मन की, तन की या सम्पर्क की- कोई भी आत्मा संकल्प में न आये। संकल्प में भी कोई आत्मा की स्मृति आई तो उसी सेकेण्ड का भी हिसाब बनता है। तभी तो आठ पास होते हैं। विशेष आठ का ही गायन है।* ज़रूर इतनी गुह्य गति होगी। बड़ा कड़ा पेपर है। तो फ़रिश्ता उनको कहा जाता है जिसके संकल्प में भी कोई न रहे। कोई परिस्थिति में, मजबूरी में भी नहीं। सेकेण्ड के लिए संकल्प में भी न हो। मजबूरी में भी मजबूत रहे- तब है फ़रिश्ता।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
*✺ "ड्रिल :- कर्मातीत, वानप्रस्थी आत्माएं ही तीव्रगति की सेवा के निमित्त"*
➳ _ ➳ *अमृत की वेला में मनमोहक-मनभावन परम आन्दमय प्रभु मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए... सूर्य को, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली रंग-बिरंगी किरणों को निहार रही हूँ... और विचार कर रही हूँ... कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियो से कितना सजा दिया है...और श्रृंगारित करके मुझ आत्मा को सीधे अपने दिल में सजा दिया है...* बाबा के दिल की प्यारी राजदुलारी बनकर... मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, बाबा के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.... उस के साथ हंसती मुस्कुराती हूँ..... इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मृत कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... वाह मेरा भाग्य जो सपने में भी नहीं सोचा था उसे साकार में पाया है... यही मनभावन जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...
➳ _ ➳ *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान का प्रकाश मुझ आत्मा पर डालते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... समय की है अन्तिम वेला जरा गहरे से अब आप गौर फरमाओं... *समय की इस अन्तिम वेला में कर्मातीत तुम बन जाओ... बच्चे गफलत छोड़ इस सच्चे सच्चे पुरूषार्थ में जुट जाओ... कर्मातीत बनने की मंजिल पर पहुंचने के लिए उड़ान जरा जोर से लगाओ..."*
❉ *ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे-मीठे लाडले ओ बाबा मेरे... आप की इस गहरी सी समझानी को बुद्धि में बिठा रही हूँ... *कर्मातीत बनने के सच्चे-सच्चे पुरूषार्थ की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही हूँ... कर्मातीत स्थिति के प्रवाह में बहती जा रही हूँ...* उड़ता पंछी बन अन्दर से अब मुस्कुरा रही हूँ..."
➳ _ ➳ *ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा को सजाते हुए रत्नाकर बाबा बोले :-* "मीठे मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे मेरे... समाने और समेटने की शक्तियों को अब तुम कार्य में लगाओ... और कर्मातीत बन जाओ... *उड़ता पंछी बन खुले आसमा में बाहे फैलाओं... जरा अटेंशन देकर बच्चे तुम अब कर्मातीत स्थिति बनाने के पुरूषार्थ में लग जाओ..."*
❉ *ज्ञान रत्नों से सज-धज कर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "राजदुलारे प्यारे बाबा मेरे... अटेंशन से कर्मातीत स्थिति के पुरूषार्थ में जुट गई हूं... समाने और समेटने की शक्तियों को कार्य में लगाए रही हूँ... *अपनी स्थिति द्वारा सत्यता का प्रकाश फैला रही हूं... उड़ता पंछी बन आसमा में बाहें फैला रही हूँ... कर्मों के बन्धन से भी मुक्त होने का अनुभव औरों को करा रही हूँ... इस प्रकार अपनी कर्मातीत स्थिति की ओर कदम बढ़ा रही हूँ..."*
➳ _ ➳ *ज्ञान की रिमझिम वर्षा करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... कर्मातीत स्टेज को अब तुम नजदीक लाओ... बच्चे अटेंशन से अब इस पुरूषार्थ में लग जाओ... *अपनी इस अन्तिम अवस्था की तरफ अब तेजी से दौड़ी लगाओ... जीवन की प्रयोगशाला में समेटने और समाने की शक्ति को प्रयोग में ला कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ..."*
❉ *ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "लाडले ज्ञान सागर बाबा मेरे... सुन के आपकी ये गहरी सी समझानी अटेंशन से इस पुरुषार्थ में जुट गई हूँ... *जीवन रूपी प्रयोगशाला में समाने और समेटने की शक्ति को प्रयोग में लाकर कर्मातीत स्थिति को नजदीक ला रही हूँ... मुक्त पंछी बन उड़ती जा रही हूँ... तेजी से इस पुरूषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस पुरूषार्थ में सफलता पा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संकल्प शक्ति को कण्ट्रोल करने का अभ्यास करना*"
➳ _ ➳ "ब्राह्मणों के श्रेष्ठ और शक्तिशाली संकल्प से ही सृष्टि परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होगा" बाबा के इन महावाक्यों को स्मृति में ला कर मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि सृष्टि परिवर्तन के कार्य मे भगवान का मददगार बनने के लिए मुझे अपने मन मे उठने वाले हर संकल्प पर विशेष अटेंशन देना होगा। *संकल्प रूपी बीज को इतना शक्तिशाली बनाना होगा जो शुद्ध संकल्प की चमक मेरे चेहरे पर चमकती हुई सर्व आत्माओं को स्पष्ट दिखाई दे*। और चेहरे पर उमंग - उत्साह की चमक लाने के लिए जरूरी है स्वयं को हर गुण, हर शक्ति और हर ज्ञान के प्वाइंट के अनुभव से सम्पन्न बनाना।
➳ _ ➳ इसी चिंतन के साथ स्वयं को ज्ञान, गुण और शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब मैं *ज्ञान, गुण और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास जाने के लिए स्वयं को देह के भान से मुक्त कर देही अभिमानी स्थिति में स्थित होती हूँ*। इस स्थिति में स्थित होते ही अपने सत्य स्वरूप का अब मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने वास्तविक ज्योतिर्मय स्वरूप को मैं स्पष्ट देख रही हूँ।
➳ _ ➳ एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा जिसमे से निकल रहा प्रकाश धीरे - धीरे फैलता हुआ मेरे चारों और प्रकाश का एक बहुत ही सुंदर कार्ब निर्मित कर रहा है जिसमे मुझ आत्मा में निहित सातों गुण समाये हुए है जो मन को शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति करवा रहें हैं। *अपने सत्य स्वरूप और गुणों की यही अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ रही है*। मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है जो मुझे अपनी और खींच रहा है।
➳ _ ➳ मैं चैतन्य सितारा अब भृकुटि से निकल कर ज्ञान, गुण और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जा रहा हूँ। *एक जगमग करती ज्योति मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी ऊपर पहुँच गई लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं*। मेरे बिल्कुल सामने है महाज्योति मेरे शिव पिता जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की ये शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है और मैं धीरे - धीरे बाबा के पास जा रही हूँ। बाबा के पास पहुँच कर अब मैं बाबा को टच कर रही हूँ। *बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो कर अब मैं निरन्तर बाबा की याद में रह संकल्प रूपी बीज को शक्तिशाली बना रही हूँ*। शुभ और श्रेष्ठ संकल्प की चमक मेरे चेहरे पर उमंग उल्लास की रौनक के रूप में स्पष्ट दिखाई दे रही है। हर गुण, हर शक्ति और हर ज्ञान के प्वाइंट के अनुभवों से सम्पन्न अनुभवीमूर्त बन अनुभव की अथॉरिटी से स्वयं को भरपूर अनुभव करते हुए मैं अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को गुण, ज्ञान और शक्तियों के खजाने से भरपूर कर रही हूँ।
➳ _ ➳ *"सर्व अनुभवों की अथॉरिटी के आसन" पर सदा स्थित रहते हुए अपने सहज योगी, स्वत: योगी स्वरूप द्वारा मैं सर्व आत्माओं को परमात्म प्रेम का प्रत्यक्ष अनुभव करवा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मनसा और वाचा के मेल द्वारा जादूमंत्र करने वाली नवीनता और विशेषता सम्पन्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं पूरी पूरी वाइसलेस बनकर बुद्धि द्वारा यथार्थ निर्णय देने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा बच्चों को कहते हैं - *सर्व शक्तियों का वर्सा इतना शक्तिशाली है जो कोई भी समस्या आपके आगे ठहर नहीं सकती है*। समस्या-मुक्त बन सकते हो। *सिर्फ सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो और समय पर कार्य में लगाओ*। इसके लिए अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखो। *जितनी बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन होगी उतना निर्णय शक्ति तीव्र होने के कारण जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता है वह कार्य में लगा सकेंगे*। क्योंकि समय के प्रमाण बापदादा हर एक बच्चे को विघ्न-मुक्त, समस्या-मुक्त, मेहनत के पुरुषार्थ-मुक्त देखने चाहते हैं। बनना तो सब को है ही लेकिन बहुतकाल का यह अभ्यास आवश्यक है।
➳ _ ➳ फालो करना तो सहज है ना! जब फालो ही करना है तो क्यों, क्या, कैसे...
यह समाप्त हो जाता है। और सबको अनुभव है कि व्यर्थ संकल्प के निमित्त यह क्यों, क्या, कैसे... ही आधार बनते हैं। फालो फादर में यह शब्द समाप्त हो जाता है। कैसे नही, ऐसे। बुद्धि फौरन जज करती है ऐसे चलो, ऐसे करो। तो बापदादा आज विशेष सभी बच्चों को चाहे पहले बारी आये हैं, चाहे पुराने हैं, यही इशारा देते हैं कि *अपने मन को स्वच्छ रखो। बहुतों के मन में अभी भी व्यर्थ और निगेटिव के दाग छोटे बड़े हैं। इसके कारण पुरुषार्थ की श्रेष्ठ स्पीड, तीव्रगति में रूकावट आती है।* बाप दादा सदा श्रीमत देते हैं कि *मन में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना और शुभ -कामना रखो - यह है स्वच्छ मन। अपकारी पर भी उपकार की वृत्ति रखना - यह है स्वच्छ मन।* स्वयं के प्रति वा अन्य के प्रति व्यर्थ संकल्प आना - यह स्वच्छ मन नहीं है। तो *स्वच्छ मन और क्लीन और क्लीयर बुद्धि।* जज करो, अपने आपको अटेन्शन से देखो, ऊपर-ऊपर से नहीं, ठीक है, ठीक है। नहीं, सोच के देखो - मन और बुद्धि स्पष्ट है, श्रेष्ठ है? तब डबल लाइट स्थिति बन सकती है। बाप समान स्थिति बनाने का यही सहज साधन है। और यह अभ्यास अन्त में नही, बहुत काल का आवश्यक है।
✺ *ड्रिल :- "समस्या मुक्त बनने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीन और क्लीयर रखना"*
➳ _ ➳ *मन बुद्धि के पंख लगाये मैं आत्म पंछी आहिस्ता आहिस्ता इस देह से अलग होने का अभ्यास करता हुआ*... देह से दूर स्थिर होकर मैं अपनी ही देह को साक्षी भाव से देख रहा हूँ... कुछ ही पल में इससे विदाई लेता हुआ मैं उड चला अनन्त की ओर... *मैं फरिश्ता चार धाम की यात्रा पर... बैठ गया हूँ शान्ति स्तम्भ पर... शिव बिन्दु आज मेरे सम्मुख अपने विराट रूप में*... मुझमें शक्तियों को भरते हुए... प्रकाश का घेरा मेरे चारों ओर... गहरा लाला प्रकाश और दूधिया रंग की आभा से सजा मैं फरिश्ता... *मुझसे, मेरे जैसे ही आठ फरिश्ते प्रकट होकर मेरे चारों ओर मुझे घेर कर खडे हो गये है... उनके चारों ओर प्रकाश से झिलमिलाती आठ दिव्य शक्तियाँ... एक एक फरिश्ते के भीतर समाती हुई... और भी शक्तिशाली रूप धारण कर ये फरिश्ते एक एक कर मुझ फरिश्ते में समातें जा रहे है*... अष्ट शक्तियों के वर्से से भरपूर होकर मैं फरिश्ता... बेहद की शक्तियों का प्रस्फुटन महसूस कर रहा हूँ स्वयं के भीतर से...
➳ _ ➳ उडता हुआ मैं फरिश्ता जा बैठा हूँ एक ऊँचे शिखर पर... सभी कुछ बहुत छोटा महसूस हो रहा है मेरी स्थिति के आगे... *विस्तार लिए फैले गगन के समान विस्तृत होता मेरा मन... और इसमे समाँ गयी है विश्व की हर आत्मा गगन की गोद में पलते तारों के समान... और हर आत्मा के प्रति शुभकामना और शुभभावना की किरणें भेजता हुआ मैं... व्यर्थ और नैगेटिव संकल्प टूटते तारों के समान मेरे मन रूपी आकाश से विदाई ले रहे है*...
➳ _ ➳ शिखर से बहता पावन झरना और झरने के निरन्तर बहाव से तलहटी में बनी झील... *मेरे मन रूपी झील की ही तरह पावनता से भरपूर है... झील की तलहटी व किनारों पर जमी समस्या रूपी शैवाल... निरन्तर बहते झरने के बहाव से पानी की धारा के साथ दूर और दूर होती हुई जा रही है*... निरन्तर बहता शिव प्यार का झरना... पावनता का झरना... ये शक्तियों और गुणों का झरना... और इस झरने के नीचे मगन रूप में मै फरिश्ता... *बुद्धि की लगन बस एक शिव पिता से... मेरे मन रूपी स्वच्छ पावन झील में उभरता शिव का प्रतिबिम्ब*.... जैसे ठहरे शान्त और स्वच्छ जल में उभरता चाँद का पूरा प्रतिबिम्ब... हर समस्या बहते पानी के साथ, बहती शैवाल के समान दूर हो रही है... समस्या से मुक्त होकर मैं अब समाधान स्वरूप बनती जा रही हूँ... *बुद्धि रूपी प्यालें में शिव स्नेह की मधुशाला*... समस्या ले रही विदाई... पग पग पर बस जीत का उजाला...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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