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 17 / 08 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप का पूरा पूरा मददगार बनकर रहे ?*

 

➢➢ *ज्ञान सागर का ज्ञान हप करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *श्रेष्ठ जीवन की स्मृति द्वारा विशाल स्टेज पर विशेष पार्ट बजाया ?*

 

➢➢ *बिंदु बन, बिंदु बाप को याद किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  सदा यही लक्ष्य याद रहे कि हमें बाप समान बनना है तो जैसे बाप लाइट है वैसे डबल लाइट। *औरों को देखते हो तो कमजोर होते हो, सी फादर, फालो फादर करो।* उड़ती कला का श्रेष्ठ साधन सिर्फ एक शब्द है- 'सब कुछ तेरा'। *'मेरा' शब्द बदल 'तेरा' कर दो। तेरा हूँ, तो आत्मा लाइट है। और जब सब कुछ तेरा है तो लाइट (हल्के) बन गये।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाबा का स्नेही, सहयोगी और सेवाधारी हूँ"*

 

〰✧  सदा अपने को बाप के स्नेही, सहयोगी और सदा सेवाधारी आत्मायें समझते हो? जैसे स्नेह अटूट है ना। परमात्म-स्नेह को कोई भी शक्ति तोड़ सकती है? असम्भव है ना कि थोड़ा-थोड़ा सम्भव है? यह अविनाशी स्नेह विनाश हो नहीं सकता। स्नेह के साथ-साथ सदा सहयोगी हैं। किस बात में सहयोगी हैं? *जो बाप के डायरेक्शन्स हैं उसमें सदा सहयोगी हैं। सदा श्रीमत पर चलने में सहयोगी हैं और सदा सेवाधारी हैं। ऐसे नहीं कि सेवा का चांस मिला तो सेवाधारी। सदा सेवाधारी। ब्राह्मण बनना अर्थात् सेवा की स्टेज पर ही रहना।* ब्राह्मणों का काम क्या है? सेवा करना।

 

✧  वो नामधारी ब्राह्मण धामा खाने वाले और आप सेवा करने वाले। तो हर सेकेण्ड सेवा की स्टेज पर हैं-ऐसे समझते हो? कि जब चांस मिलता है तब सेवा करते हो? चांस पर सेवा करने वाले हो वा सदा सेवाधारी हो? खाना बनाते भी सेवा करते हो? क्या सेवा करते हो? याद में खाना बनाते हो तो यह सेवा करते हो। कोई भी कार्य करते हो तो याद में रहने से वायुमण्डल शुद्ध बनता है। क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनता है। तो याद की वृत्ति से वायुमण्डल बनाते हो। *सेवाधारी अर्थात् हर समय अपने श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करने वाले। जिसको भी श्रेष्ठ दृष्टि से देखते हो तो श्रेष्ठ दृष्टि भी सेवा करती है। तो निरन्तर सेवाधारी हैं। ब्राह्मण आत्मा सेवा के बिना रह नहीं सकती। जैसे यह शरीर है ना तो श्वास के बिना नहीं रह सकता तो ब्रह्मण जीवन का श्वास है सेवा।* जैसे श्वास न चलने पर मूर्छित हो जाते हैं ऐसे अगर ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है। ऐसे पक्के सेवाधारी हो ना।

 

✧  तो जितना स्नेही हैं, उतना सहयोगी, उतना ही सेवाधारी हैं। सेवा का चांस तो बहुत है ना कि कभी किसको मिलता है, किसको नहीं मिलता? वाणी से सेवा का चांस नहीं मिलता लेकिन मन्सा से सेवा का चांस तो हर समय है ही। सबसे पावरफुल और सबसे बड़े से बड़ी सेवा मन्सा सेवा है। वाणी की सेवा सहज है या मन्सा सेवा सहज है? *मन्सा सेवा के लिये पहले अपने को पावरफुल बनाओ। वाणी की सेवा तो स्थिति नीचे-ऊपर होते हुए भी कर लेंगे। भाषण करके आ जायेंगे। कोई कोर्स करने वाला आयेगा तो भी कोर्स करा देंगे। लेकिन मन्सा सेवा ऐसे नहीं हो सकती। अगर मन्सा थोड़ा भी कमजोर है तो मन्सा सेवा नहीं हो सकती।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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पहले इस देह के सम्बन्ध और संस्कार के अधिकारी बनने के आधार पर ही मालिक-पन के संस्कार है। *सम्बन्ध में न्यारा और प्यारा-पन आना - यह निशानी है मालिक-पन की। संस्कारों में निर्मान और निर्माण, दोनों विशेषतायें मालिक-पन की निशानी हैं।* साथसाथ सर्व आत्माओं के सम्पर्क में आना, स्नेही बनना, दिलों के स्नेह की आशीर्वाद अर्थात शुभ भावना सर्व के अन्दर से उस आत्मा के प्रति निकले। चाहे जाने, चाहे न जाने। दूर का सम्बन्ध वा सम्पर्क हो लेकिन जो भी देखे वह स्नेह के कारण ऐसे ही अनुभव करे कि यह हमारा है स्नेह की पहचना से अपना-पन अनुभव करेगा। सम्बन्ध दूर का हो लेकिन स्नेह सम्पन्न का अनुभव करायेगा। विशेषता अनुभव में आयेगी कि वह जिसके भी सम्पर्क में आयेंगे उसको उस विशेष आत्मा से दाता-पन की अनुभूति होगी। यह किसी के संकल्प में भी नहीं आ सकता कि यह लेने वाले हैं। उस आत्मा से सुख की, दाता-पन की वा शान्ति, प्रेम, आनंद, खुशी, सहयोग, हिम्मत, उत्साह, उमंग - किसी न किसी विशेषता के दाता-पन की अनुभूति होगी। सदा विशाल बुद्धि और विशाल दिल, जिसको आप बडी दिल वाले कहते हो - ऐसी अनुभूति होगी। अब इन निशानियों से *अपने आपको चेक करो कि क्या बनने वाले हो?* दर्पण तो सभी के पास है। जितना स्वयं को स्वयं जान सकते उतना और कोई नहीं जान सकते। तो स्वयं को जानी। अच्छ

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ हम अवतार हैं, ऊपर से आये हैं - यह सदा स्मृति में रखो। *अवतार आत्मायें कभी शरीर के हिसाब-किताब के बन्धन में नहीं आयेंगी, विदेही बन करके कार्य करेंगी।* शरीर का आधार लेते हैं लेकिन शरीर के बंधन में नहीं बंधेते। तो ऐसे बने हो? *तो सदा अपने को शरीर के बंधन से न्यारा बनाने के लिए अवतार समझो। इस विधि से चलते रहो तो सदा बंधन-मुक्त न्यारे और सदा बाप के प्यारे बन जायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- माया की पीड़ा से बचने के लिए बाप की शरण में आना"*

 

 _ ➳  *प्रातः कालीन सूर्य की अरुणिम आभा में मैं आत्मा उपवन में सैर कर रही हूँ... फूलों की भीनी भीनी खुशबू... पक्षियों का मधुर कलरव... ऐसे सुरम्य वातावरण में मन सहज ही शिव बाबा की याद में खो जाता है...* मैं आत्मा अपने मीठे-मीठे बाबा को बुलाती हूँ... मेरी पुकार सुनते ही बाबा अपना दिव्य तेज सर्वत्र फैलाते हुए मेरे सामने आ जाते हैं... *बाबा मुझे विजयी भव का तिलक दे रहे हैं... प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिरा रहे हैं...*

 

  *मेरे कानों में दिव्य मिठास घोलते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे दिलतख्तनशीन बच्चे... तुम आधाकल्प से माया के चंगुल में फंसे हुए हो... दर-दर की ठोकरें खा रहे हो... भक्ति में तुम बच्चों ने कितने धक्के खाए हैं... *विकारों ने आधा कल्प से तुम्हें दु:खी कंगाल बना रखा है... माया की पीड़ा से बचने के लिए बाप की शरण में आ जाओ... ईश्वर की शरण में आने से 21 जन्मों के लिए माया के बंधनों से छूट जाओगे..."*

 

 _ ➳  *बाबा की मधुर वाणी सुनकर पुलकित होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणेश्वर बाबा... आप हम बच्चों से कितना स्नेह करते हैं... हमें दु:खी तड़पता हुआ देखकर हमें सभी दुखों से मुक्त कराने के लिए आप अपना धाम छोड़ कर स्वयं आ गए हैं... अब मुझे आत्मा ने आप की गोद ली है... *ईश्वरीय गोद में आकर माया के बंधनों से मुक्त होकर मैं आत्मा उन्मुक्त पंछी बनकर उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान के दिव्य आलोक से अज्ञान रूपी तिमिर का नाश करते हुए ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... अब तुम बच्चे ईश्वर की शरण में आए हो... *बाबा तुमको 21 जन्मों के लिए मायावी बंधनों से... दुखों से छुड़ा देते हैं... बाप तुम्हें पावन बनाते हैं... तुम्हें श्रीमत पर चलकर पतित मनुष्यों को पावन बनाने की सेवा करनी है... बाप के पुनीत कर्तव्य में पूरा-पूरा मददगार बनना है..."*

 

 _ ➳  *बाबा के ज्ञान को हृदयंगम करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "दिलाराम मीठे बाबा... आपके उपकारों का सिमरन करते ही आंखे नम हो उठती हैं... आप हम बच्चों के लिए कितनी मेहनत करते हैं... *आप हमें सभी दु:खों से मुक्त कराकर सुखों की दुनिया स्थापन कर रहे हैं... अब मैं आत्मा सभी को आप समान बनाने का ही पुरुषार्थ कर रही हूँ... और आपके दिव्य कर्तव्य में पूरी तरह सहयोगी बन रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान के गहनों से मुझ आत्मा का श्रंगार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मीठी सिकीलधे बच्चे... तुमने अब आकर परमपिता परमात्मा की गोद ली है... भविष्य देवी देवता बनने के लिए... आधाकल्प माया से पीड़ित हो कर तुमने बाप की शरण ली है... *मम्मा ने भी बाबा की शरण ली है... स्वयं ब्रह्मा बाबा ने भी शिव बाबा की शरण ली है... बाप की शरण में आने से तुम सभी बंधनों और पीड़ाओं से मुक्त हो जाते हो..."*

 

 _ ➳  *प्यारे बाबा को बड़े स्नेह से निहारती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मन के मीत प्यारे बाबा... मैं आत्मा कितनी भाग्यवान हूँ... जो स्वयं भगवान ने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया है... आपकी याद से मेरे सभी विकर्म दग्ध होते जा रहे हैं... *ज्ञान सागर बाबा के ज्ञान को हप कर मैं आत्मा उसे धारण कर रही हूँ... ईश्वरीय शरण में आकर सभी बंधनों, दुःखों और पीड़ाओं से मुक्त होती जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान सागर का सारा ज्ञान हप करना है*"

 

_ ➳  "चिड़ियाओं ने सागर को हप किया" भक्ति मार्ग में लिखी इन बातों पर एकांत में बैठ विचार सागर मंथन करते हुए मैं चिंतन करती हूँ कि वास्तव में ये उन चिड़ियाओं की बात नही बल्कि हम आत्मा रूपी चिड़ियाओं की बात है जो ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता परमात्मा का सारा ज्ञान इस समय हप कर रही हैं। *संगमयुग की इस महादानी वरदानी वेला में जबकि स्वयं ज्ञान सागर भगवान ज्ञान के अखुट खजाने भर - भर कर हम बच्चो पर लुटा रहें हैं और हम बच्चे उस ज्ञान को अपने बुद्धि रूपी बर्तन में भरते जा रहे हैं और उसका सारा ज्ञान स्वयं में समा कर उसके समान मास्टर ज्ञान सागर बनते जा रहें हैं*। तो इसी को ज्ञान सागर का सारा ज्ञान हप करना कहेंगे। वास्तव में यह सारा गायन तो इस समय संगमयुग का है जिसका वर्णन फिर भक्ति में किया है।

 

_ ➳  इन्ही विचारों के साथ, स्वयं को ज्ञान सागर अपने पिता के ज्ञान के अखुट खजानो से भरपूर करने के लिये मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता की याद में मन बुद्धि को जैसे ही स्थिर करती हूँ, ऐसा अनुभव होता है जैसे परमधाम से ज्ञान सागर मेरे शिव पिता ज्ञान की रिमझिम फुहारों के रूप में गहरे नीले रंग की ज्ञान की शक्ति की किरणें मेरे ऊपर बरसा रहें हैं। *बारिश की बूंदों की तरह ज्ञान की शक्ति की ये शीतल किरणे मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता की अनुभूति करवा रही है। मेरे मस्तक को छू कर ये किरणे मुझ आत्मा में समा रही हैं और मुझ आत्मा से निकल कर मेरे चारों और फैलती जा रही हैं*। इन किरणों से मेरे चारों तरफ एक शक्तिशाली औरा निर्मित होने लगा है जो धीरे - धीरे मुझे मेरे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रहा है। मेरा स्थूल शरीर लाइट के सूक्ष्म शरीर में परिवर्तित हो गया है।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में, प्रकाश के एक सुंदर कार्ब को धारण किये अब मैं धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *लाइट के इस कार्ब में मेरा फ़रिश्ता स्वरूप बहुत ही चमकदार दिखाई दे रहा है। लाइट के इस कार्ब से और मुझ फरिश्ते से निकल रहा प्रकाश बहुत दूर - दूर तक फैलता हुआ मुझे दिखाई दे रहा है। इस प्रकाश के साथ मुझ फ़रिश्ते में निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन भी धीरे - धीरे चारों तरफ फैल रहें हैं जो वायुमण्डल को दिव्य और अलौकिक बना रहे हैं*। अपने गुणों और शक्तियों की किरणों को चारों तरफ फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता अब सारे विश्व की परिक्रमा करके, आकाश को पार करता हूँ और उससे भी ऊपर उड़ता हुआ सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर, अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के सामने जाकर उपस्थित हो जाता हूँ। *ज्ञानसूर्य निराकार अपने प्यारे शिव पिता को मैं ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान होकर चमकता हुआ स्पष्ट देख रहा हूँ*।

 

_ ➳  धीरे - धीरे मैं फ़रिश्ता अपने प्यारे बापदादा के पास पहुँचता हूँ और जा कर उनके पास बैठ जाता हूँ। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से ज्ञान सागर शिव बाबा के ज्ञान की शक्ति की किरणों को प्रकाश की अनन्त धाराओं के रूप में बाबा की भृकुटि से निकलता हुआ मैं देख रहा हूँ। *प्रकाश की वो अनन्त धारायें बाबा की भृकुटि से निकल कर मुझ फरिश्ते को स्पर्श कर रही हैं और मुझ फ़रिश्ते में समाती जा रही हैं*। ज्ञान सागर बाबा के ज्ञान की सम्पूर्ण शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। *ज्ञान की चिड़िया बन ज्ञानसागर अपने प्यारे पिता के ज्ञान को मैं हप करती जा रही हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली किरणों के रूप में ज्ञान के अखुट खजाने बाबा मेरे ऊपर लुटाते जा रहें हैं*। इन्हें अपने अंदर समाकर, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब मैं ज्ञानसूर्य अपने प्यारे शिव पिता के पास उनके परमधाम घर की ओर जा रही हूँ।

 

_ ➳  अपने निराकार बिंदु स्वरूप में अपने स्वीट साइलेन्स होम में आकर, मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने निराकार शिव पिता जो महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे बिल्कुल समीप मुझे दिखाई दे रहें हैं। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है*। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे सम्पूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं। *मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ*।

 

_ ➳  *अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और परमशिक्षक के रूप में ज्ञानसागर अपने प्यारे शिव पिता से मुरली के माध्यम से मिलने वाला सारा ज्ञान स्वयं में हप करके बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बनती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं श्रेष्ठ जीवन की स्मृति द्वारा विशाल स्टेज पर विशेष पार्ट बजाने वाली हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बिंदू शब्द के महत्व को जान बिंदू बन बिंदू बाप को याद करने वाली योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  कोई को तख्त मिलता और किसको रायल फैमिली मिलती है। इसके भी गुह्य रहस्य हैं। *जो सदा संगम पर बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: और सदा रहता है,* कभी-कभी नहींजो सदा आदि से अन्त तक स्वप्न मात्र भीसंकल्प मात्र भी पवित्रता के व्रत में सदा रहा हैस्वप्न तक भी अवित्रता को टच नहीं किया है, *ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें तख्तनशीन हो सकती हैं।* 

➳ _ ➳  जिसने चारों ही सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लिये हैंआदि से अन्त तक अच्छे नम्बर से पास हुए हैंउसी को ही पास विद् आनर कहा जाता है। बीच-बीच में मार्क्स कम हुई हैं फिर मेकप किया है, मेकप वाला नहीं लेकिन *आदि से चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसन्द है वो तख्त ले सकता है।* 

➳ _ ➳  साथ-साथ जो ब्राह्मण संसार में सर्व के प्यारेसर्व के सहयोगी रहे हैंब्राह्मण परिवार हर एक दिल से सम्मान करता है, *ऐसा सम्मानधारी तख्त नशीन बन सकता है।* अगर इन बातों में किसी न किसी में कमी है तो वो नम्बरवार रायल फैमिली में आ सकता है। चाहे पहली में आवे, चाहे आठवीं में आए, चाहे त्रेता में आए। तो *अगर तख्तनशीन बनना है तो इन सभी बातों को चेक करो।*

✺   *ड्रिल :-  "सतयुग, त्रेतायुग में तख्तनशीन बनने का पुरुषार्थ करना"*

➳ _ ➳  भृकुटी की कुटिया में विराजमान मैं अविनाशी प्रकाश पुंज आत्मा हूँ... *अपने सत्य स्वरूप को और गहराई से अनुभव करते हुए* मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को मस्तक के भव्य भाल पर सूर्य के समान चमकते हुए... जैसे सूर्य अपनी शक्तिशाली किरणों से पूरे विश्व को प्रकाशित करता है... ठीक उसी प्रकार *मैं अविनाशी प्रकाश पुंज आत्मा अपनी शक्तिशाली किरणों से इस पूरे विश्व को प्रकाशित कर रही हूँ...* इस देह मे होते भी विदेही अवस्था का स्पष्ट अनुभव हो रहा है... मैं आत्मा एक खिचाव महसूस कर रही हूँ... जैसे कोई मुझे ऊपर की तरफ खींच रहा हो... धीरे-धीरे मैं आत्मा इस देह रूपी घर से निकल कर सूक्ष्म शरीर के साथ ऊपर की तरफ बादलों के बीच से होती हुई जा रही हूँ... पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में जहां *बाबा अपने फरिश्ते स्वरुप में बडे से रंग-बिरंगे फूलों के झूले पर बैठे मुस्कुरा रहे हैं...*

➳ _ ➳  ये दृश्य मन को मोह लेने वाला है... बाबा बाहें फैला कर मुझे अपने पास आने का इशारा करते हैं... मैं फरिश्ता बिना देर किए जल्दी से जाकर अपने मीठू बाबा के गले लग जाता हूँ... बाबा से गले लगते ही जैसे *बाबा की सर्व शक्तियाँ मुझ में समा रही है...* बाबा मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं आ गये मेरे लाडले बच्चे बाबा आपका ही इन्तजार कर रहा था... ये सुन कर मैं फरिश्ता गदगद हो जाता हूँ... प्यार से भर जाता हूँ... *मुझ फरिश्ते की चमक और बढ गई है...* अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी अपने साथ रंग-बिरंगे फूलों से बने झूले पर बिठा देते हैं... और मुझे सामने देखने का ईशारा करते हैं... बाबा मुझ फरिश्ते के सामने एक दृश्य इमर्ज करते हैं... मुझ फरिश्ते के सामने स्वर्णिम दृश्य इमर्ज हो रहे हैं... मैं फरिश्ता बहुत बडे-बडे सोने-हीरों से जड़ित महल देख रहा हूँ... सम्पूर्ण सतोप्रधान प्रकृति, कल-कल करते मीठे झरने बह रहे हैं... दूध की नदियां बह रही है... वाह कितने सुंदर-सुंदर फल और फूलों के बगीचे है... पंछी मधुर आवाज में गीत गा रहे हैं... ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति और ये पंछी मिलकर नये नये साज बजा रहे हों... ये सभी दृश्य बडे मनमोहक लग रहे हैं...

➳ _ ➳  इस मनभावन दृश्य को देखते-देखते मैं फरिश्ता एक बडे से हीरे-सोने से बने महल में प्रवेश करता हूँ... जहाँ मैं फरिश्ता देखता हूँ... सामने देवी-देवताओं की सभा लगी हुई है... जिसमें *डबल सिरताज देवी-देवताएँ बैठे हैं* और उनके बीच एक बहुत बडा सोने-हीरों से जड़ित तख्त है... उस तख्त पर भी डबल सिरताज देवी और देवता विराजमान हैं... *अलग-अलग रंगों के हीरे और सोने से बने तख्त पर विराजमान देवी और देवता अलग और बहुत मनमोहक नजर आ रहे हैं...* मैं फरिश्ता यहाँ वहाँ देखता हूँ... और सोचता हूँ... ये सभी तख्त पर क्यों नहीं बैठे हैं... सिर्फ यही दो देव आत्माएँ तख्त पर विराजमान हैं... अचानक से मुझ फरिश्ते को कंधे पर स्पर्श अनुभव होता है... जैसे ही मुड कर देखती हूँ... सामने बाबा को पाती हूँ... और फिर मैं बाबा को सारी बात बताती हूँ... और बाबा को कहती हूँ... बाबा वो तख्त बहुत ही सुंदर और मनमोहक था... हम भी भविष्य में वैसे ही तख्त पर बैठेंगे... लेकिन बाबा वहां सभी तख्त पर क्यों नहीं बैठे थे... इसका क्या रहस्य है बाबा, बाबा मुझे देख मुस्कुराते हैं और फिर इस बात के गुह्य रहस्य को बताते हैं... मैं एकटक होकर बाबा की एक-एक बात को बडे ध्यान से सुन रही हूँ...

➳ _ ➳  बाबा मुझे बताते हैं बच्चे भविष्य तख्त प्राप्त करने का आधार है... *सदा बाप के दिलतख्तनशीन हो रहना... अभी के दिलतख्तनशीन ही भविष्य तख्त प्राप्त कर सकते हैं...* चारों ही सब्जेक्ट में फुल मार्क्स लेने वाले पास विद आनर, चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसंद जो बनते हैं... और *अभी जो सम्मानधारी बनता वहीं तख्त नशीन बनता है...* वहीं भविष्य तख्त नशीन बनता है... अगर इनमें से किसी भी बात में कमी है तो वो नम्बरवार रायल फैमिली में आता है... समझा बच्चे, बाबा की सारी बात सुन मैं आत्मा स्व चैकिंग करती हूँ... बाबा की कही सभी बातों को सामने लाती हूँ... अपने आप से मैं प्रश्न पूछती हूँ... क्या मैं आत्मा बाबा द्वारा बताए तख्तनशीन के पुरुषार्थ अनुसार ही पुरूषार्थ कर रही हूँ...

 ➳ _ ➳  बाबा को देखते हुए मैं आत्मा कहती हूँ... बाबा मैं हूँ ही दिलतख्तनशीन सो भविष्य तख्तनशीन आत्मा... बाबा मुझ आत्मा को देखते हुए कहते हैं हाँ मेरे लाडले बच्चे हाँ बाबा मुझ आत्मा के सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे वरदान देते हैं... *बच्चे-सदा दिलतख्तनशीन भव !* मैं अंतर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... जैसे ही अंतर्मन से मैं आत्मा इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... वैसे ही मैं आत्मा अपने जीवन में इस वरदान को सहज फलीभूत होते देख रही हूँ... मैं आत्मा सदा स्वयं को बाबा के दिलतख्त पर अनुभव कर रही हूँ... *मैंने पहले नम्बर में आने का दृढ़ संकल्प किया है* बाबा के दिए वरदान को बार बार स्मृति में ला रही हूँ... जितना स्मृति में ला रही हूँ... उतना ही मैं इस वरदान को अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी सम्मानधारी स्थिति का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... हर आत्मा को सम्मान और सहयोग दे रही हूँ... *मैं आत्मा चारों ही सब्जेक्ट में बाप की दिल पंसद बनती जा रही हूँ...* इस प्रकार मैं आत्मा *तीव्र पुरषार्थ में जुट गई हूँ* और "सदा दिलतख्तनशीन भव" सो भविष्य तख्तनशीन भव के वरदान को सहज ही अपने जीवन में फलीभूत होते अनुभव कर रही हूँ... शुक्रिया मीठू बाबा, शुक्रिया

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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