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❍ 06 / 09 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *दिल से बाप को याद लार जायदाद की ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रहे ?*
➢➢ *बिंदु की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिंदु लगाया ?*
➢➢ *कर्मयोगी बन कर्म करते भी उपराम स्थिति में स्थित रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *बीजरूप को सदा साथ रखो तो माया का बीज ऐसा भस्म हो जायेगा जो फिर कभी भी उस बीज से अंश भी नहीं निकल सकेगा।* वैसे भी आग में जले हुए बीज से कभी फल नहीं निकलता इसलिए बीज को छोड़ *सिर्फ शाखाओं को काटने की मेहनत नहीं करो। बीजरूप द्वारा विकारों के बीज को खत्म कर दो तो बार-बार मेहनत करने से स्वत: ही छूट जायेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा अनुभव करते हो? स्व का दर्शन अर्थात् स्व की पहचान। अच्छी तरह से स्व को पहचान लिया कि मैं कौन हूँ? अपने को अच्छी तरह से पहचाना है? सिर्फ मैं आत्मा हूँ-यह जानना ही जानना नहीं है लेकिन मैं कौन-सी आत्मा हूँ? ये स्मृति रहती है? आपके कितने टाइटल हैं? (बहुत हैं) तो टाइटल याद रहते हैं या भूल जाते हैं? कभी याद रहते हैं, कभी भूल जाते हैं? माया हार भी खिलाती रहे और कहते रहो कि मैं महावीर हूँ, ऐसे तो नहीं? *क्योंकि जो टाइटल बाप द्वारा मिले हैं वह हैं ही स्थिति में स्थित होने के लिये। तो जैसे टाइटल याद आये वैसी स्थिति बन जाये। वैसी स्थिति बनती है या हिलती रहती है? जैसे लौकिक दुनिया में अगर कोई टाइटल मिलता है तो टाइटल के साथ-साथ वह सीट भी मिलती है ना।*
〰✧ समझो जज का टाइटल मिला, तो वह जज की सीट भी मिलेगी ना। अगर जज की सीट पर नहीं बैठे तो कौन मानेगा कि ये जज है। *अगर स्थिति नहीं है और सिर्फ बुद्धि में वर्णन करते रहते हो कि मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ और परदर्शन भी हो रहा है तो सीट पर सेट नहीं हुए ना। तो जो टाइटल स्मृति में लाते हो वैसी समर्थ स्थिति अवश्य चाहिये-तब कहेंगे कि हाँ यह स्वदर्शन चक्रधारी है, यह हीरो एक्टर है। एक्ट साधारण हो और कहे कि यह हीरो एक्टर है तो कौन मानेगा?* और सदा ये याद रखो कि ये टाइटल देने वाला कौन? दुनिया में कितना भी बड़ा टाइटल हो लेकिन आत्मा, आत्मा को देगी। चाहे प्रेजीडेन्ट है या प्राइम मिनिस्टर है, लेकिन है कौन? आत्मा है ना।
〰✧ संगम पर स्वयं बाप बच्चों को टाइटल देते हैं। कितना नशा चाहिये! यह रूहानी नशा रहता है? देहभान का नशा नहीं। क्रोध कर रहे हैं और कहे कि मैं तो हूँ ही नूरे रत्न, ऐसा नशा नहीं। ऐसे तो नहीं करते हो? मातायें क्या करती हैं? घर में खिटखिट कर रहे हो और कहो कि हम तो हैं ही बाबा की अचल-अडोल आत्मायें! ऐसे तो नहीं करते? *तो सदा अपने भिन्न-भिन्न टाइटल्स को स्मृति में रखो और उस स्थिति में स्थित होकर चलो फिर देखो कितना मजा आता है। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् सदा मायाजीत। स्वदर्शन चक्रधारी के आगे माया हिम्मत नहीं रख सकती।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे अभी भी कोई वाद-विवाद वाला आता है तो वाणी से और ज्यादा वाद-विवाद में आ जाता है। *उसको याद में बिठाए साइलेन्स की शक्ति का अनुभव कराते हो ना।*
〰✧ एक सेकण्ड भी अगर याद द्वारा शान्ति का अनुभव कर लेते हैं तो स्वयं ही अपनी वाद-विवाद की बुद्धि को साइलेन्स की अनुभूति के आगे सरेन्डर कर देते हैं तो इस *साइलेन्स की शक्ति का अनुभव बढ़ाते जाओ।* अभी यह साइलेन्स की शक्ति की अनुभूति बहुत कम है। साइलेन्स की शक्ति का रस अब तक मैजारिटी ने सिर्फ अंचली मात्र अनुभव किया है।
〰✧ हे शान्ति देवा! आपके भक्त आपके जड चित्रों से शान्ति का अल्पकाल का अनुभव करते हैं, ज्यादा करके मांगते भी शान्ति है क्योंकि शान्ति में सुख समाया हुआ है तो *बापदादा देख रहे थे कि शान्ति की शक्ति के अनुभवी आत्मायें कितनी हैं,* वर्णन करने वाली कितनी हैं और *प्रयोग करने वाली कितनी हैं।* इसके लिए - *'अन्तर्मुखता और एकान्तवासी' बनने की आवश्यकता है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ स्व-स्थिति की शक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकते हो ना! *स्व–स्थिति अर्थात् आत्मिक–स्थिति। पर-स्थिति व्यक्ति व प्रकृति द्वारा आती है। अगर स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो उसके आगे पर-स्थिति कुछ भी नहीं है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वयं को बिंदी समझ बिंदी रूप से बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *बिंदु समझ बिंदु बाप को याद करना... बिंदु अर्थात आत्मा, स्व स्वमान में स्थित हो बिंदु बाप को याद करना...* बाप भी बिंदु, बच्चे भी बिंदु... जैसा बाप वैसे बच्चे... तो वह जो है, जैसा है, उसे उसी रूप में पहचान और स्वयं भी उस समान स्थिति में स्थित हो, बाप को याद करने की *इस विधि को ही ज्वालामुखी याद कहेंगे...* फिर बाप ने भी कहा है, अब जहां जाना है वही आप स्वयं को स्थित कर मुझे बाप को याद करो, तो विकर्म विनाश हो तुम मेरे पास चले आएंगे... *मीठे बाबा की इन्ही स्मृतियों को स्मृति में रखते मैं आत्मा आ पहुंची हूं परमधाम में...*
❉ *मैं मीठे बाबा के सम्मुख, बाप मेरे सम्मुख, प्यार के सागर प्यार भरी दृष्टि देते मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... जिस प्रकार दो तारों से करंट पास करने लिए उन्हें जोड़ने से पहले, उनके ऊपर का रबड़ उतारना अति आवश्यक है, इसी प्रकार बाप से भी करंट लेने के लिए, *अब अपने ऊपर से देह अभिमान के रबड़ को उतारो... और निराकार मुझ बाप को याद करो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी को प्यार से समझते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... आपके कहे अनुसार अब मैं आत्मा अपना ज्यादा से ज्यादा समय स्वयं को विदेही स्थिति में टिकाने में तत्पर हूं...* मैं जानती हूं बाबा, मुझ आत्मा को ऐसी स्थिति में घर वापस जाना है... *अगर स्थिति नहीं तो मैं आत्मा नहीं उड़ पाऊंगी, इसलिए बाबा आगे का सोच अभी अपने वर्तमान पुरुषार्थ पर तत्पर हूं..."*
❉ *मीठे बाबा रूहानी शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा में भरते हुए बोले:- "मीठी बच्ची... अगर तुम तत्पर हो, तो बाप भी तत्पर है, एक कदम तुम्हारा, 1000 कदम बाप के... जितना-जितना तुम विदेही स्थिति में स्थित होने का प्रयत्न करोगी... बाप भी फिर तुम्हें स्थिति में टिकने में मदद करेगा...* अब समय है खुद में शक्तियां भर हल्के बनने का... हल्की वस्तु ही आसानी से आसमान में उड़ पाती हैं..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा से मिली शिक्षाओं को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "बाबा, मीठे बाबा... अभी पंख उड़ान भरने को तैयार हैं... अब कोई न देह, न संबंधों का बंधन है... न स्वयं के व्यर्थ संकल्पों का...* अब मैं आत्मा निरंतर स्वयं को बहुत हल्का, व्यर्थ से मुक्त विदेही स्थिति में स्थित देखती हूं... *मैं लाइट, लाइट के शरीर में रह अपना पार्ट बजा रही हूं..."*
❉ *मीठे बाबा प्यार भरी बौछार मुझ आत्मा पर करते बोले:- "मीठे बच्चे... बाप खुश है तुमसे, तुम कितनी भाग्यवान हो जिससे बाप, स्वयं भगवान प्रसन्न हैं! वाह तुम्हारा भाग्य!...* किसे प्रसन्न करने का सौभाग्य तुम्हें प्राप्त हुआ... तुम्हारे निरंतर पुरुषार्थ को देख, मुझे भी तुम्हारी संपन्न कर्मातीत अवस्था देखने में आती है..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा के प्यार भरे शब्दों से गदगद होते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "बस बाबा... अब आपने कह दिया, तो अब क्या देर... अब मैं सच में स्वयं को अपने संपूर्ण कर्मातीत अवस्था में, स्वयं को देख रही हूं... बस एक बिंदु मैं और एक बिंदु बाबा स्मृति है, दूसरा ना कोई...* बाबा यह अवस्था कितनी आनंदमय हैं... बाबा तुम सचमुच आनंद के सागर हो, जिसकी मैं प्यासी हूं..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विचार करना है आत्मा कितनी छोटी है और उसमें कितना अविनाशी पार्ट नुंधा हुआ है*"
➳ _ ➳ इस सत्यता का बोध होने पर, कि मैं एक आत्मा हूँ, परमधाम की रहने वाली हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने आई हूँ, एकांत में बैठ मैं विचार करती हूँ कि *मुझ अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु आत्मा में पूरे 84 जन्मो का अविनाशी पार्ट नुंधा हुआ है। पूरे 84 बार मैंने अलग - अलग मनुष्य देह धारण कर भिन्न - भिन्न नाम रूप देश और काल मे भिन्न - भिन्न सम्बन्धियो के साथ पार्ट बजाया है*। अब यह पार्ट पूरा हो रहा है और मुझे मेरे प्यारे पिता के साथ अब वापिस अपने घर लौटना है, अपने उस परमधाम घर मे जहाँ मैं आत्मा अपने पिता के साथ रहती थी। मेरा वो स्वीट साइलेन्स होम जहां से मैं आत्मा इस सृष्टि पर पार्ट बजाने के लिए आई। *अपने उस परमधाम घर की स्मृति मुझे सेकण्ड में मन बुद्धि से मेरे उस घर मे उस सत्य अनादि स्वरूप में स्थित कर देती है जो मेरा वास्तविक स्वरूप है*।
➳ _ ➳ एक चमकते हुए अति सूक्ष्म सितारे के रूप में मैं स्वयं को परमधाम से धीरे - धीरे नीचे उतरता हुआ देख रही हूँ। एक चैतन्य शक्ति जो पहली बार साकार सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट बजाने के लिए एक ऐसी सतोप्रधान दुनिया मे अवतरित होती है जहाँ अमरमअपार सुख है, शांति है और सम्पन्नता है। *इस सतोप्रधान दुनिया मे सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई शरीर रूपी वस्त्र धारण कर मेरा इस सृष्टि रंगमंच पर पार्ट शुरू होता है और इस तरह अलग - अलग शरीर धारण कर पार्ट बजाते - बजाते इस अंतिम जन्म तक आते - आते, सतो, रजो, तमो इन तीनो स्टेजिस को पार कर इस समय मैं आत्मा तमोप्रधान बन गई हूँ*। मुझ आत्मा में विकारो की खाद पड़ गई है और मैं आत्मा सच्चे सोने से आयरन एजेड बन गई हूँ। अपने सत्य स्वरूप को ही भूल गई हूँ और अपने गुणों और शक्तियों को भूलने के कारण कितनी दुखी और अशांत हो गई हूँ।
➳ _ ➳ किन्तु अब जबकि स्वयं मेरे प्यारे शिव पिता परमात्मा ने आकर मुझे यह स्मृति दिला दी है कि मैं आत्मा हूँ शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप, आनन्द स्वरूप, प्रेम स्वरुप, पवित्र स्वरूप, ज्ञान स्वरूप और शक्ति स्वरूप हूँ तो अपने इस वास्तविक स्वरूप को जान, अपने अंदर समाये इन गुणों का अनुभव करने के लिए मैं अपने मन और बुद्धि को अपने इस स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और देह से जुड़ी सभी बातों से किनारा करके अपने ध्यान को अपने मस्तक के बिल्कुल सेंटर मे केंद्रित करती हूँ। *कुछ ही सेकेण्ड में मुझे मेरा निराकारी बिंदु स्वरूप इस देह से बिल्कुल अलग मस्तक के बीच में एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में स्पष्ट अनुभव होने लगता है। देख रही हूँ अब मैं भृकुटि के भव्यभाल पर विराजमान एक चैतन्य शक्ति को जिसमें से निकल रहा प्रकाश मन को आनन्दित कर रहा है*। इस प्रकाश की रंगबिरंगी किरणों में समाये अपने सातों गुणों के सतरंगी वायब्रेशन्स को वायुमण्डल में चारों और फैलता हुआ मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ जैसे - जैसे मुझ आत्मा से निकल रहे वायब्रेशन्स चारों और फैल रहें है, वैसे - वैसे वायुमण्डल में एक गहन शान्ति का अनुभव स्वत: ही हो रहा है। शान्ति की यह गहन अनुभूति मुझे डीप साइलेन्स में लेकर जा रही है और यह डीप साइलेन्स की अनुभूति मुझे देह और देह की दुनिया से किनारा कर अपने शान्तिधाम घर की ओर चलने के लिए प्रेरित कर रही है। *शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ मंगल मिलन मनाने की इच्छा मेरे मन मे तीव्र रूप से जागृत होने लगी है। अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए मैं प्वाइंट ऑफ लाइट अब देह का आधार छोड़ ऊपर अपने उस शान्तिधाम घर की ओर जा रही हूँ जो साकारी और आकारी दोनों दुनियाओं से परे हैं*। सूर्य, चाँद, सितारों की दुनिया से परें, सूक्ष्म लोक से ऊपर अपने निर्वाणधाम घर मे मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियो की किरणों रूपी छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे प्यारे पिता का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फ़ुहारों के रूप में निरन्तर मेरे ऊपर बरस रहा है। उनकी सर्वशक्तियों की किरणें मेरे अंदर समाकर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं। *हर गुण, हर शक्ति से मैं भरपूर होती जा रही हूँ। अपने प्यारे पिता के साथ आनन्दमयी मंगल मिलन मनाकर, शक्ति स्वरूप बन कर मैं वापिस लौट आती हूँ और साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर मैं फिर से भृकुटि के भव्यभाल पर विराजमान हो जाती हूँ*। अपने अकालतख्त पर बैठ, शरीर रूपी रथ को चलाते हुए, हर कर्म अधिकारीपन की सीट पर सेट होकर करते हुए, अब मैं आत्मा बार - बार अपने स्वरूप को स्मृति में लाकर *अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का आनन्द लेती रहती हूँ और बार - बार अपने अति सूक्ष्म बिंदु स्वरूप में नुंधे हुए अविनाशी पार्ट को याद कर हर्षित होती रहती हूँ*
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बिन्दू की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगाने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं कर्मयोगी बन कर्म करते भी उपराम स्थिति में रहने वाला उड़ता पंछी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अपने भाई बहिनों के ऊपर रहमदिल बनो, और रहमदिल बन सेवा करेंगे तो उसमें निमित्त भाव स्वतः ही होगा।* किसी पर भी चाहे कितना भी बुरा हो लेकिन अगर आपको उस आत्मा के प्रति रहम है, तो आपको उसके प्रति कभी भी घृणा या ईर्ष्या या क्रोध की भावना नहीं आयेगी। *रहम की भावना सहज निमित्त भाव इमर्ज कर देती है।* मतलब का रहम नहीं, सच्चा रहम। मतलब का रहम भी होता है, किसी आत्मा के प्रति अन्दर लगाव होता है और समझते हैं रहम पड़ रहा है। तो वह हुआ मतलब का रहम। सच्चा रहम नहीं, *सच्चे रहम में कोई लगाव नहीं, कोई देह भान नहीं, आत्मा-आत्मा पर रहम कर रही है। देह अभिमान वा देह के किसी भी आकर्षण का नाम-निशान नहीं।* कोई का लगाव बाडी से होता है और कोई का लगाव गुणों से, विशेषता से भी होता है।
➳ _ ➳ लेकिन विशेषता वा गुण देने वाला कौन? *आत्मा तो फिर भी कितनी भी बड़ी हो लेकिन बाप से लेवता (लेने वाली) है। अपना नहीं है, बाप ने दिया है। तो क्यों नहीं डायरेक्ट दाता से लो।* इसीलिए कहा कि स्वार्थ का रहम नहीं। कई बच्चे ऐसे नाज-नखरे दिखाते हैं, होगा स्वार्थ और कहेंगे मुझे रहम पड़ता है। और कुछ भी नहीं है सिर्फ रहम है।
➳ _ ➳ *लेकिन चेक करो - निःस्वार्थ रहम है? लगावमुक्त रहम है? कोई अल्पकाल की प्राप्ति के कारण तो रहम नहीं है?* फिर कहेंगे बहुत अच्छी है ना, बहुत अच्छा है ना, इसीलिए थोड़ा.... थोड़े की छुट्टी नहीं है। अगर कर्मातीत बनना है तो यह सभी रूकावटें हैं जो बाडी कानसेस में ले आती हैं। अच्छा है, लेकिन बनाने वाला कौन? *अच्छाई भले धारण करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो। न्यारे और बाप के प्यारे। जो बाप के प्यारे हैं वह सदा सेफ हैं।* समझा!
✺ *ड्रिल :- "सच्चा और निःस्वार्थ रहम की भावना रख न्यारे और बाप के प्यारे बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने इस स्थूल शरीर से निकलकर फरिश्ता बनकर ऊपर उड़ती हूँ... *इस साकारी दुनिया से ऊपर चाँद सितारों को पीछे छोड़ते हुए सूक्ष्म वतन में आकर ठहरती हूँ...* चारों ओर चाँदनी सा प्रकाश बिखरा हुआ है... मेरे अंदर भी ये प्रकाश समाने लगता है... थोड़ा आगे चलकर अपने सामने ब्रह्मा बाबा को देखती हूँ और उनके सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगी हैं... *मेरे पुराने सब आसुरी संस्कार भस्म हो रहे हैं और दैवी संस्कार इमर्ज हो रहे हैं*... बाबा की शक्तिशाली किरणें मेरी सब कमी कमज़ोरियों को समाप्त कर रही हैं और अब मैं आत्मा बाबा का प्रकाश स्वयं में महसूस कर रही हूं... एक दम हल्की हो गयी हूँ...
➳ _ ➳ बाबा के प्यार की किरणें मेरे क्रोध के संस्कार को समाप्त कर रही हैं और मैं आत्मा अपने मूल स्वरूप शान्त स्वरूप में स्थित हो गयी हूँ... *किसी भी आत्मा के प्रति ईर्ष्या या घृणा के भाव समाप्त हो रहे हैं और रहम के संस्कार मुझ आत्मा में भर रहे हैं*... मेरे संपर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं स्नेह देती हूँ... कैसी भी आसुरी संस्कार वाली आत्मा हो मैं उससे घृणा नहीं करती उसे रहम के वाइब्रेशन दे उसके संस्कार परिवर्तन में सहयोग देती हूं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह के भान से न्यारी हूँ... देह अभिमान और देह के आकर्षण से मुक्त हूँ... *सर्व आत्माएं मेरे भाई बहन हैं और मैं अपने सभी भाई बहनों के प्रति रहम की भावना रखती हूँ...* बाबा का प्यार मुझमें वो अलौकिक ख़ुशी भर रहा है जिससे मैं किसी भी आत्मा से ईर्ष्या नहीं करती... सबको सहयोग दे आगे बढ़ाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के प्यार में समाती जा रही हूँ... *बाबा के साथ सर्व संबंध जोड़ कर मैं आत्मा इस संसार के लगाव से मुक्त होती जा रही हूँ*... संसार के वैभव, देह के संबंध सब कुछ पीछे छोड़ रही हूँ... *और मैं आत्मा बाबा की प्यारी बनती जा रही हूँ*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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