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❍ 08 / 04 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सुबह से लेकर रात तक मौजों के नजारों का अनुभव किया ?*
➢➢ *पड़ते, खेलते, चलते हुए स्वयम को महान आत्मा अनुभव किया ?*
➢➢ *पवित्र याद से औरों को भी पवित्र बनाने की सेवा में रहे ?*
➢➢ *"हम निमित सेवाधारी है" - सदा यह स्मृति में रहा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *कोई भी खजाना कम खर्च करके अधिक प्राप्ति कर लेना, यही योग का प्रयोग है।* मेहनत कम सफलता ज्यादा इस विधि से प्रयोग करो। जैसे समय वा संकल्प श्रेष्ठ खजाने हैं, तो संकल्प का खर्च कम हो लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो। *जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट संकल्प चलाने के बाद, सोचने के बाद सफलता या प्राप्ति कर सकता है वह आप एक दो सेकेण्ड में कर सकते हो, इसको कहते हैं कम खर्चा बाला नशीन। खर्च कम करो लेकिन प्राप्ति 100 गुणा हो इससे समय की वा संकल्प की जो बचत होगी वह औरों की सेवा में लगा सकेंगे, दान पुण्य कर सकेंगे, यही योग का प्रयोग है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कोटो में कोई हूँ"*
〰✧ सदा बाप और वर्सा दोनों की स्मृति रहती है? *बाप कौन और वर्सा क्या मिला है यह स्मृति स्वत: समर्थ बना देती है। ऐसा अविनाशी वर्सा जो एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनाने वाला है, ऐसा वर्सा कभी मिला है? अभी मिला है, सारे कल्प में नहीं।*
〰✧ *तो सदा बाप और वर्सा इसी स्मृति से आगे बढ़ते चलो। वर्से को याद करने से सदा खुशी रहेगी और बाप को याद करने से सदा शक्तिशाली रहेंगे। शक्तिशाली आत्मा सदा मायाजीत रहेगी और खुशी है तो जीवन है।* अगर खुशी नहीं तो जीवन क्या? जीवन होते भी ना के बराबर है। जीते हुए भी मृत्यु के समान है।
〰✧ *जितना वर्सा याद रहेगा उतनी खुशी। सदा खुशी रहती है? ऐसा वर्सा कोटो में कोई को मिलता है और हमें मिला है। यह स्मृति कभी भी भूलना नहीं। जितनी याद उतनी प्राप्ति। सदा याद और सदा प्राप्ति की खुशी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बीज में कौन - सी शक्ति है? वृक्ष के विस्तार को अपने में समाने की। *तो अब क्या पुरुषार्थ करना है? बीज स्वरूप स्थिती में स्थित होने का अर्थात अपने विस्तार को समाने का*। तो यह चेक करो।
〰✧ विस्तार करना तो सहज है लेकिन विस्तार को समाना सरल हुआ है? आजकल साइंस वाले भी विस्तार को समेटने का ही पुरुषार्थ कर रहे है। *साइंस पावर वाले भी तुम साइलेन्स की शक्तिवालों से काँपी करते है*। जैसे - जैसे साइलेन्स की शक्ति सेना इन्वेन्शन करती है फिर साइंस अपने रूप से इन्वेन्शन करती है।
〰✧ जैसे - जैसे यहाँ रिफाइन होते जाते है वैसे ही साइंस भी रिफाइन होती जाती है। जो बातें पहले उन्हों को भी असम्भव लगती थी वह अब सम्भव होती जा रही है। वैसे ही *यहाँ भी असम्भव बातें सरल और सम्भव होती जाती है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *ऐसे विशेष आत्माओं को अपने अव्यक्त स्थिति में, अपनी रूहानी लाइट और माइट की स्थिति द्वारा लाइट-हाउस और माइट-हाउस बन एक स्थान पर रहते हुए भी चारों ओर अलौकिक रूहानी सर्विस की भावना और वृत्ति द्वारा सर्विस करनी चाहिए। इसको कहते हैं बेहद की सर्विस।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगमयुग- मौजों के नजारों का युग"*
➳ _ ➳ *संगम का युग... मिलन का युग... मिलन, संगम... आत्मा परमात्मा का... सजनी साजन का... हसीन मुसाफिर और परिजादो का...शमा और परवानो का... सूरज, चांद, सितारों का...* कितना ही तो यह हसीन, खूबसूरत, सुहावना, मौजों का युग है...जहां फिर से एक बार कल्प पहले बिछड़े बच्चे अपने पिता से मिलते हैं...जहां फिर से आत्माओं को अपने कटे हुए पंखों की पुनः प्राप्ति होती हैं... जहां फिर से पतित नरक दुनिया को स्वर्ग बनाने एक बार धरा पर फिर से परमात्मा का अवतरण होता हैं...
❉ *खूबसूरत संगम युग की स्मृतियों में खोई... मुझ आत्मा को... पिताश्री प्यार से पुचकारते हुए बोले:-* "मीठी लाडली बच्ची... अब अपनी झोली पूर्ण रुप से भर लो... लूट लो संगम के सभी खजानों को... *यह वही लूटने का युग... मौजों का युग... भाग्य बनाने का युग हैं... इस समय भाग्य बनाने कि कलम मैंने तुम्हारे ही हाथों में सौपी हैं... तो जैसा चाहो वैसा भाग्य बना लो...* देखो कहीं समय बीत ना जाए..."
➳ _ ➳ *बाबा को संगम की श्रेष्ठ प्राप्तियों के लिए धन्यवाद करती मैं आत्मा बोली:-* "हां बाबा... मैं आत्मा आपसे पूरा वर्सा ले रही हूं... इतनी सब प्राप्तियों को पा मैं आत्मा... प्राप्ति स्वरूप हो गई हूं... किस-किस प्राप्ति का वर्णन में बयां करूं... *मन खुशियों के गीत गा रहा है बाबा... सर्व प्राप्तियों से भरपूर मैं आत्मा... मास्टर दाता बन... इन खजानों को लूटा बेहद की कमाई में व्यस्त हूं..."*
❉ *मीठी प्यार भरी मुस्कान देते बाबा बोले:-* "हां बच्चे... इसी तरह सदा भरपूर रहो... खुश रहो... और अविनाशी कमाई कमाते रहो... *सदैव स्मृति रहे... हम खुश नहीं रहेंगे तो और कौन रहेगा!... हम संगम की मौज हम नहीं लेंगे... तो फिर और कौन लेगा?... देवी-देवता सदा हर्षित दिखाते हैं... तुम्हें भी समृति रहे हम ही भविष्य में वह देवी-देवता बनने जा रहे है..."*
➳ _ ➳ *कंबाइंड स्वरुप में स्थित बाप के साथ का अनुभव करती मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "बाबा... खुशियों की लहरों में मैं आत्मा जैसे खो गई हूं बाबा... *आहा! कितनी आनंदमय ये स्तिथि हैं... दूर-दूर तक गम का कोई नाम निशान नही... पुरानी दुनिया जैसी भूल सी गई है बस याद है तो संगम की प्राप्तिया... जिसे अनुभव करते-करते मैं आत्मा बाबा अनुभवी मूर्त बन गई हूं..."*
❉ *मीठी प्यार भरी दृष्टि देते हुए बाबा बोले:-* *"मीठी बच्ची... गोप गोपियों के सुख के आगे सभी सुख फीके हैं बच्ची... यह वही सुख है जिसका भक्ति मार्ग में गायन है... यह वही रासलीला है जो इस समय मैं बाप तुम बच्चो संग... इस धरा पर कर रहा हूं...* यह वही कल्याणकारी युग है जहां फिर से तुम आत्माओं का श्रृंगार हो रहा हैं... तुम हसीन परिज़ादे बन रहे हो..."
➳ _ ➳ *उमंग उत्साह से उत्साहित मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* *"सचमुच बाबा... ऐसा सुहावना, अनोखा युग... पूरे कल्प में नहीं होगा... जहां परमात्मा बाप और आत्मा रूपी बच्चे साथ-साथ पाठ बजाते... साथ-साथ खाते... मौज लूटते... साथ-साथ घर जाते हैं...* कदम कदम पर बाप से श्रीमत लेते... बाप से पढ़ते... मीठी मुरली सुनते... वाह बाबा वाह मेरा भाग्य... वाह भाग्य विधाता..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सुबह से लेकर रात तक मौजों के नज़ारों का अनुभव करना*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान की पालना में पलने वाली मैं ब्राह्मण आत्मा कितनी पदमापदम सौभाग्य शाली हूँ जो मेरा एक - एक सेकेण्ड परमात्म पालना के झूले में झूलते हुए बीतता है। *जिस भगवान के दर्शनों की दुनिया प्यासी है वो भगवान मेरे हर दिन की शुरुआत से लेकर रात के सोने तक मेरे साथ रहता है*। अमृत वेले बड़े प्यार से मीठे बच्चे कहकर मुझे उठाता है। वरदानो से मेरी झोली भरता है। टीचर बन मुझे पढ़ाता है। चलते फिरते उठते बैठते हर कर्म करते मेरा साथी बन मेरे साथ रहता है। *अपनी श्रेष्ठ मत देकर मुझे श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाता है। सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देता है*।
➳ _ ➳ ऐसे अपने सर्वश्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अनमोल प्राप्तियों की स्मृति में खोई अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा उनसे मिलने के लिए आतुर हो उठती हूँ और *मन मे अपने प्यारे प्रियतम की मीठी सी सुखद याद को समाये, मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर उनसे मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्रियतम बाबा मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहें हैं और मैं देह, देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त होकर, बस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ।
➳ _ ➳ कुछ ही क्षणों की अद्भुत रूहानी यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे शिव पिता के पास। लाइट की एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है। इस परमधाम घर में मैं स्वयं को अपने प्यारे प्रभु के सम्मुख देख रही हूँ। *बाबा के साथ अटैच होकर उनसे आ रही लाइट, माइट से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमे असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है*। मैं डबल स्थिति में सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मैं स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता परमात्मा के सानिध्य में गहन सुख की अनुभूति करके, और उनकी लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ। *फिर से साकारी दुनिया मे आकर, अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, अपने प्यारे प्रभु के स्नेह के रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा बन, अब मैं सुबह से लेकर रात तक संगमयुग की मौजों के नजारों का अनुभव करते हुए अपने पिता परमात्मा के स्नेह में सदा समाई रहती हूँ*। मेरे शिव पिता का निस्वार्थ प्रेम देह और देह की दुनिया से मुझे नष्टोमोहा बना रहा है।
➳ _ ➳ अपनी हजारों भुजाओं के साथ बाबा चलते, फिरते, उठते, बैठते हर समय मुझे अपने साथ प्रतीत होते हैं। बाबा के प्रेम का रंग मुझ पर इतना गहरा चढ़ चुका है कि मेरे हर कर्म में बाबा अब सदा मेरे साथ रहते हैं। *अपने पिता परमात्मा के साथ, संगमयुग की मौजों के नजारों का अनुभव मुझे अतीन्द्रीय सुख के झूले सदा झुलाता रहता है। भोजन खाती हूँ तो बाबा के साथ मौज में खाती हूँ। चलती हूँ तो भाग्यविधाता बाप के हाथ मे हाथ देकर चलती हूँ*। ज्ञान अमृत पीती हूँ तो ज्ञानदाता बाप के साथ पीती हूँ। कर्म करती हूँ तो करावनहार बाप के साथ स्वयं को निमित समझ करती हूँ। सोती हूँ तो बाबा की याद की गोदी में सोती हूँ। उठती हूँ तो भी भगवान के साथ रूह - रिहान करके उठती हूँ।
➳ _ ➳ *सारी दिनचर्या में बाबा को साथ रख, खाते, पीते याद की मौज में रहते बेफ़िक्र बादशाह बन अपने निश्चिन्त ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं कर्मो की गुहय गति की ज्ञाता बन धर्मराज पुरी की सजाओ से बचने वाली विकर्माजीत आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं तन-मन-धन से बाप पर पूरा बलिहार जाकर गले का हार बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ मेहनत से छुटने की विधि- मेरा-पन समाप्त करोः- बापदादा सभी बच्चों को मेहनत से छुड़ाने आये हैं। आधाकल्प बहुत मेहनत की अब मेहनत समाप्त। उसकी सहज विधि सुनाई है, *सिर्फ एक शब्द याद करो - ‘मेरा बाबा'। मेरा बाबा कहने में कोई भी मेहनत नहीं। मेरा बाबा कहो तो, दुख देने वाला ‘मेरामेरा' सब समाप्त हो जायेगा। जब अनेक मेरा है तो मुश्किल है, एक मेरा हो गया तो सब सहज हो गया। बाबा-बाबा कहते चलो तो भी सतयुग में आ जायेंगे।* मेरा पोत्रा, मेरा धोत्रा, मेरा घर, मेरी बहू... अब यह जो मेरे-मेरे की लम्बी लिस्ट है इसे समाप्त करो। अनेकों को भुलाकर एक बाप को याद करो तो मेहनत से छूट आराम से खुशी के झूले में झूलते रहेंगे। सदा बाप की याद के आराम में रहो।
✺ *"ड्रिल :- मेरा बाबा शब्द की स्मृति से अनेको मेरा मेरा भूलने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *‘मेरा बाबा’ शब्द की रूहानी चुम्बकीय शक्ति से... मैं आत्मा प्यारे बाबा की याद में खींची चली जा रही हूँ...* मैं आत्मा मुक्त गगन की पंछी बन ऊपर उड रही हूँ... सांसारिक डाल की पकड को छोड रही हूँ... सर्व बन्धनों से छूट रही हूँ... *‘मेरा बाबा’ शब्द के जादू से मैं आत्मा डाल की पंछी से उड़ता पंछी बन रही हूँ...* मैं उड़ता पंछी पंच तत्वों की दुनिया से परे सूक्ष्मलोक पहुँच जाती हूँ...
➳ _ ➳ *‘मेरा बाबा’, ‘प्यारा बाबा’, ‘मीठा बाबा’ कहते-कहते... मैं आत्मा बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... बापदादा के रूहानी नैनों से अलौकिक, पारलौकिक रुहानी प्रेम छलक रहा है...* मुझ आत्मा का देहभान छूट रहा है... मैं आत्मा देही-अभिमानी बन रही हूँ... मुझ आत्मा का देह के सम्बन्धियों से मोह खत्म हो रहा है... *मुझ आत्मा का इस पुरानी दुनिया, पुरानी वस्तु-वैभव का आकर्षण ख़तम हो रहा है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कई जन्मों से मेरा तन, मेरा मन, मेरा धन करते-करते दुखी, अशांत हो गई थी...* मेरा-मेरा करते मैं स्वयं को ही भूल गई... अपने पिता को भूल गई... अपने असली घर को ही भूल गई थी... ‘मेरा बाबा’ शब्द की स्मृति से मैं आत्मा अपने स्व स्वरूप की स्मृति में टिक रही हूँ... *मुझ आत्मा को अपने असली पिता, असली घर, असली लक्ष्य स्पष्ट दिख रहा है...*
➳ _ ➳ *‘मेरा बाबा’ शब्द में अनेकों मेरा-मेरा समा रहा है...* मैं आत्मा सबकुछ भूल एक बाबा को ही याद करती हूँ... मैं आत्मा विनाशी चीजों के मेरे-मेरे से किनारा कर रही हूँ... अविनाशी वर्से की अधिकारी बन रही हूँ... मैं आत्मा मेहनत से छूट रही हूँ... सहजयोगी बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा ‘मेरा बाबा’ शब्द की स्मृति से अनेको मेरा मेरा भूलकर... सदा बाबा की याद की खुशी के झूले में झूलने का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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