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❍ 04 / 07 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *दूरदेशी बन तीनो लोकों और तीनो कालों की जान बुधी से रेस की ?*
➢➢ *श्रीमत का उल्लंघन कर डिससर्विस तो नहीं की ?*
➢➢ *सर्व फरियादों के फाइल को समाप्त कर फाइन बनकर रहे ?*
➢➢ *हर समय करनकरावनहार बाप की याद में रह निरंतर योगी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे साकार रुप को देखा, कोई भी ऐसी लहर का समय जब आता था तो दिन-रात सकाश देने, निर्बल आत्माओं में बल भरने का विशेष अटेंशन रहता था, रात-रात को भी समय निकाल आत्माओं को सकाश भरने की सर्विस चलती थी। तो अभी आप सबको लाइट माइट हाउस बनकर यह सकाश देने की सर्विस खास करनी है* जो चारों ओर लाइट माइट का प्रभाव फैल जाए।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप की छत्रछाया में रहने वाली सेफ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को हर समय हर कर्म करते बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले अनुभव करते हो? *छत्रछाया सेफ्टी का साधन हो जाये। जैसे स्थूल दुनिया में धूप से वा बारिश से बचने के लिए छत्रछाया का आधार लेते हैं। तो वह तो है स्थूल छत्रछाया। यह है बाप की छत्रछाया जो आत्मा को हर समय सेफ रखती है-आत्मा कोई भी अल्पकाल की आकर्षण में आकर्षित नहीं होती, सेफ रहती है।* तो ऐसे अपने को सदा छत्रछाया में रहने वाली सेफ आत्मा समझते हो? सेफ हो या थोड़ा- थोड़ा सेक आ जाता है?
〰✧ *जरा भी इस साकारी दुनिया का माया के प्रभाव का सेक-मात्र भी नहीं आये। क्योंकि बाप ने ऐसा साधन दिया है जो सेक से बच सकते हो। वह सबसे सहज साधन है-छत्रछाया। सेकेण्ड भी नहीं लगता, 'बाबा' कहा और सेफ! मुख से नहीं, मुख से 'बाबा-बाबा' कहे और प्रभाव में खिंचता जाये-ऐसा कहना नहीं। मन से 'बाबा' कहा और सेफ।* तो ऐसे सेफ हो? क्योंकि आजकल की दुनिया में सभी सेफ्टी का रास्ता ढूँढते हैं। कोई भी बात करेंगे तो पहले सेफ्टी सोचेंगे, फिर करेंगे। तो आजकल सेफ्टी सब चाहते हैं-चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म। तो बाप ने भी सदा ब्राह्मण जीवन की सेफ्टी का साधन दे दिया है।
〰✧ चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाये लेकिन आप सदा सेफ रह सकते हो। ऐसे सेफ हो या कभी हलचल में आ जाते हो? कितना सहज साधन दिया है! मेहनत नहीं करनी पड़ी। *मार्ग मेहनत का नहीं है लेकिन अपनी कमजोरी मेहनत का अनुभव कराती है। जब कमजोर हो जाते हो तब मेहनत लगती है, जब शक्तिशाली होते हो तो सहज लगता है। है सहज लेकिन स्वयं ही मेहनत का अनुभव कराने के निमित्त बनते हो।* मेहनत में थकावट होती है और सहज में खुशी होती है। अगर कोई भी कार्य सहज सफल होता रहता है तो खुशी होगी ना। मेहनत करनी पड़ी तो थकावट होगी।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अब क्या करेंगे? *अब कर्म बन्धनी से कर्मयोगी समझो।* अनेक बन्धनों से मुक्त एक बाप के सम्बन्ध में समझो तो सदा एवररेडी रहेंगे। *संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस करो।* कितना भी सेवा में बिजी हो, कार्य की चारों ओर की खींचातान हो, बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिजी हो - ऐसे टाइम पर अशरीरी बनने का अभ्यास करके देखो।
〰✧ *यथार्थ सेवा का कभी बन्धन होता ही नहीं। क्योंकि योग-युक्त, युक्ति-युक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं।* ऐसे नहीं कि सेवा ज्यादा है इसलिए अशरीरी नहीं बन सकते। याद रखो मेरी सेवा नहीं, बाप ने दी है तो निर्वन्धन रहेंगे। ‘ट्रस्टी हूँ, वन्धन मुक्त हूँ ऐसी प्रैक्टिस करो।
〰✧ अभी के समय अंत की स्टेज, कर्मातीत अवस्था का अभ्यास करो तब कहेंगे तेरे को मेरे में नहीं लाया है। अमानत में ख्यानत नहीं की है समझा, अभी का अभ्यास क्या करना है? *जैसे बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक का कन्ट्रोल करते हो वैसे अभि के समय अंत की स्टेज का अनुभव करो तब अंत के समय पास विद ऑनर बन सकेंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *मैं अशरीरी आत्मा हूँ यह सबसे सहज यथार्थ रीत है।* सहज है ना। जैसे बाप की महिमा है कि वह मुश्किल को सहज करने वाला है। *ऐसे ही बाप समान बच्चे भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो विश्व की मुश्किल को सहज करने वाले हैं वह स्वयं मुश्किल अनुभव करें यह कैसे हो सकता है! इसलिए सदा सर्व सहजयोगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्र जीवात्मा बनना"*
➳ _ ➳ आंख खुलते ही बापदादा को अपने आंखों के सामने देख रही हूँ... *बापदादा के नैनों से असीम प्यार छलक रहा है... मेरा दिल परमात्म प्यार को पाकर... परमात्मा प्राप्तियों का सिमरन करते करते गदगद हो गया है... प्रभु के स्नेह में नैनों से अश्रु धारा बह रही है...* बाबा ने मुझे अपना कर मुझे क्या से क्या बना दिया है... कहाँ दर-दर की ठोकरें खाते भटक रहे थे, कहाँ प्रभु ने अपने दिलतख्त पर बिठा लिया... *मैं आत्मा सजल नैनो से मीठे बाबा को एकटक निहार रही हूँ...*
❉ *स्नेह सागर में मुझ आत्मा को भिगोते हुए स्नेह सागर बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे बच्चे... बाबा इस पतित दुनिया में तुम बच्चों के लिए ही आए हैं... तुम्हें पावन बनाने के लिए... *पतित दुनिया में कोई भी जीव आत्मा पवित्र नहीं है... पवित्र न होने के कारण अपने को महात्मा भी कहलवा नहीं सकती... प्यारे बच्चे, तुम्हें अभी पवित्र जीवात्मा बनना है..."*
➳ _ ➳ *रत्नागर बाबा से मिले एक एक ज्ञान रत्न को स्वयं में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे बाबा... हमारी जन्म जन्म की पुकार सुनकर आप हमें भक्ति के दलदल से निकालने आ गए हो... *मेरा मन आपके उपकारों का सिमरन करते करते रोमांचित हो उठा है... बाबा मैं आत्मा आपकी बताई गई युक्तियों और श्रीमत पर चलकर संपूर्ण पावन बन रही हूँ... पवित्रता की स्वयं में धारणा कर रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान के गुह्य राज समझाते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:-* "मेरे लाडले सपूत बच्चे... पतित दुनिया में सभी जीवात्माओं को पावन बनाने के लिए एक बाप ही आते हैं... *परमपिता परमात्मा एक ही है... उनको जीव नहीं कहा जा सकता... क्योंकि उनका स्थूल सूक्ष्म शरीर नहीं है... वह परमात्मा ही एवर प्योर है... सुप्रीम प्योर है...* वही आकर सबको पावन बनाते हैं... अब तुम्हें परमपिता परमात्मा की मत पर ही चलना है..."
➳ _ ➳ *ज्ञान के मीठे बोल सुनकर गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... ज्ञान के गुह्य राज मेरी बुद्धि में स्पष्ट होते जा रहे हैं... आपके बताए हुए ज्ञान को मैं आत्मा गहराई से समझ रही हूँ... *अब मैं आत्मा पूरी तरह से एक आपकी ही श्रीमत पर चल रही हूँ... आपके बताए हुए मार्ग को, शिक्षाओं को ही फॉलो कर रही हूँ..."*
❉ *मीठी मीठी समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे नैनों के नूर बच्चे... *सतयुग में पवित्र जीव आत्माएं ही होती हैं... वहां तो पावन बनाने की बात ही नहीं होती... वहां शरीर भी पावन तो आत्माएं भी पावन होती हैं... वहां जब तुम देवी देवता थे, तो संपूर्ण पावन थे...* तुम्हें इतना पावन बनाने वाले एक बाबा ही है... इसलिए उनकी मत पर चलकर संपूर्ण पवित्र जीवात्मा बनो..."
➳ _ ➳ *बाबा द्वारा दी गई शिक्षाओं का स्वरूप बनती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणेश्वर मीठे बाबा... आप हमारे लिए संपूर्ण पावन सतयुगी दुनिया की स्थापना कर रहे हो... उस दुनिया में ले जाने के लिए, हमें पावन बनाने के लिए कितनी मेहनत कर रहे हो... *अब मैं आत्मा आपके स्नेह में, आपकी याद में समाई हुई हूँ... आपकी शक्तिशाली पवित्र किरणों से मेरी जन्म जन्म की विकारों की मैल नष्ट होती जा रही है... और मैं आत्मा संपूर्ण पवित्र आत्मा बनती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दूरादेशी बन तीनो लोकों और तीनों कालों को जान बुद्धि से रेस करनी है*
➳ _ ➳ तीनों लोकों और तीनों कालों का ज्ञान देकर दूरादेशी बनाने वाले अपने त्रिलोकिनाथ, त्रिकालदर्शी प्यारे परम पिता परमात्मा को याद करके उन्हें मैं शुक्रिया अदा करती हूँ कि *जिस सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का ज्ञान अपने आपको बड़े - बड़े ब्रह्मज्ञानी कहलाने वाले महामंडलेश्वर भी नही जान पाए, परमात्मा को बेअन्त कहकर अंत मे नेति नेति कह दिया। उस भगवान ने स्वयं आकर ना मुझे केवल अपना और स्वयं का बल्कि सृष्टि के आदि, मध्य अंत का राज बता कर आप समान मास्टर त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी बना दिया*।
➳ _ ➳ अपने भाग्य का गुणगान करते हुए, तीनो लोको और तीनों कालों के ज्ञान को स्मृति में लाकर मैं जैसे ही अपने स्व स्वरूप में स्थित होती हूँ मन बुद्धि की रेस स्वत: ही शुरू हो जाती है और मैं आत्मा मन बुद्धि से अपने सर्वश्रेष्ठ तीनो कालों को देखते हुए चल पड़ती हूँ तीनो लोकों की सैर करने। *अपने पास्ट और अपने फ्यूचर को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से, अपने अति खूबसूरत सम्पूर्ण देवताई स्वरूप में देख रही हूँ। सोने की एक विशाल खूबसूरत नगरी जहाँ सुख, शांति, सम्पन्नता सबकी भरमार है। हर चीज यहाँ तक कि प्रकृति भी अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था में होने के कारण दासी बन देवताओ के चरण छू रही हैं*। ऐसे अपने अति सुन्दर, सुखमय पास्ट और फ्यूचर की तस्वीर देखते हुए अपने प्रेज़न्ट को मैं स्मृति में लाती हूँ और विचार करती हूँ कि कितनी अपरमअपार प्राप्तियों से सम्पन्न है मेरा आज।
➳ _ ➳ अपने प्रेज़न्ट के बारे मे सोचते ही अपने ब्राह्मण जीवन की मधुर स्मृतियों में मैं खो जाती हूँ। *उन सभी अखुट प्राप्तियों की स्मृति एक - एक करके मेरी आँखों के सामने आने लगती है जो ब्राह्मण बनते ही भगवान से मुझे उपहार स्वरूप प्राप्त हुई हैं*। बाप, टीचर और सतगुरु के साथ - साथ सर्व सम्बन्धो से भगवान को अपना बनाने और हर सम्बन्ध का सुख उनसे लेने का मधुर एहसास मन को असीम आनन्द से भरपूर कर देता हैं, और उस सुन्दर सलौने एहसास का अनुभव फिर से करने के लिए चल पड़ती हूँ मैं तीनो लोको की सैर करके उस ब्रह्मलोक में जहाँ मेरे पिता रहते हैं।
➳ _ ➳ साकार लोक में अपनी साकार देह में बैठ पार्ट बजाते हुए स्वयं को मैं साक्षी दृष्टि से देख रही हूँ। साक्षीपन का यह सहज भाव देह में होते हुए भी अब मुझे देह से न्यारा अनुभव करवा रहा है। *स्वयं को मैं देह से पूरी तरह डिटैच, एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में देख रही हूँ। एक ऐसी चैतन्य शक्ति, जिसकी ऊर्जा इस शरीर को चला रही है उस चैतन्य शक्ति को एक गोल्डन चमकते हुए स्टार के रूप में भृकुटि के बीच मे मैं स्थित देख रही हूँ*। शक्तियों की अनन्त रंग बिरंगी किरणों को उस चैतन्य सितारे में से मैं निकलते हुए अनुभव कर रही हूँ जो मुझे एक दिव्य अलौकिक आनन्द से भरपूर कर रही हैं।
➳ _ ➳ एक अलौकिक रूहानी मस्ती में डूब कर उसका गहन आनन्द ले कर अब मैं सूक्ष्म वतन की सैर के लिए चल पड़ती हूँ। श्वेत चाँदनीे के प्रकाश से जगमगाते सूक्ष्म लोक में प्रवेश करके अब मै पूरे सूक्ष्म लोक की सैर कर रही हूँ। *देख रही हूँ चारो औऱ सूक्ष्म प्रकाश की काया में चमकते फरिश्तो को जिनके अंग - अंग से निकल रहा श्वेत प्रकाश पूरे वतन को प्रकाशित कर रहा है। इन फरिश्तो के ऊपर पड़ रही बापदादा की लाइट माइट इनके स्वरूप को और भी चमकदार बना रही है*। बापदादा के पास जाकर उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके और फिर विश्व ग्लोब पर जाकर सारे विश्व को मनसा साकाश द्वारा शक्तियों का दान देते इन फरिश्तो को मैं देख रही हूँ। इन सुंदर नजारों को देख मैं आनन्दमग्न हो रही हूँ
➳ _ ➳ पूरे वतन की सैर करके अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनके गुणों, शक्तियों और खजानों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर ब्रह्मलोक की ओर जा रही हूँ। *अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में अब मैं अपनी निराकारी दुनिया की सैर कर रही हूँ। इस अंतहीन ब्रह्मांड में विचरण करते हुए, इस पूरे ब्रह्मांड में फैले शक्तिशाली वायब्रेशन्स को गहराई तक स्वयं में समाकर गहन सुख, शांति और आनन्द का अनुभव करते हुए अपने बिंदु बाप के सामने बैठ अब मैं उनसे मंगल मिलन मना रही हूँ*। अपना स्नेह, अपनी शक्तियाँ मुझ पर बरसाते हुए मेरे प्यारे पिता मुझे अनेक सुन्दर अनुभव करवाकर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूला रहे हैं। *अपने प्यारे पिता से मिलन मनाकर, शक्तियों से सम्पन्न बनकर, तीनो लोकों की सैर करके अब मैं कर्म करने के लिए फिर से वापिस साकार लोक में लौट रही हूँ*।
➳ _ ➳ *अपने साकार तन में, फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर बैठ, शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म करते हुए, साथ - साथ दूरादेशी बन तीनो लोकों और तीनों कालों के ज्ञान को स्मृति में लाकर बार - बार अपने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनो कालों के अपने श्रेष्ठ भाग्य को दिव्य बुद्धि से निहारने और बुद्धि से तीनो लोकों की सैर करने की रेस करते हुए, मास्टर त्रिकालदर्शी, त्रिलोकिनाथ बन इस सृष्टि ड्रामा में अपना श्रेष्ठ पार्ट मैं बड़ी खूबसूरती के साथ बजा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व फ़रियादो के फ़ाइल को समाप्त कर फाइन बनने वाली कर्मयोगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर समय करावनहार बाप को याद रखने वाली निरंतर योगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सभी कुमारियों ने बाप से पक्का सौदा किया है? क्या सौदा किया है? आपने कहा - बाबा हम आपके और बाप ने कहा बच्चे हमारे, यह पक्का सौदा किया?और सौदा तो नहीं करेंगी ना! दो नांव में पांव रखने वाले का क्या हाल होगा! न यहाँ के न वहाँ के? तो सौदा करने में होशियार हो ना! *देखो, देते क्या हो - पुराना शरीर जिसको सुईयों से सिलाई करते रहते, कमजोर मन जिसमें कोई शक्ति नहीं और काला धन... और लेते क्या हो? - 21 जन्म की गैरन्टी का राज्य। ऐसा सौदा तो सारे कल्प में कभी भी नहीं किया? तो पक्का सौदा किया? एग्रीमेंट लिख ली।*
✺ *"ड्रिल :- "बाबा हम आपके, और आप हमारे" - यह पक्का सौदा करना।”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कमल से भरे हुए ताल को देख रही हूँ... कितने मनोहारी लग रहे हैं ये कमल जो तालाब की ऊपरी सतह पर खिले हुए हैं... कमल पुष्प को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है...* पवित्र कमल का पुराणों में भी उल्लेख है... देवी-देवताओं को पवित्र कमल पर विराजमान हुए दिखाते हैं... मैं आत्मा पवित्र ब्राह्मण जन्म देने वाले मेरे जन्म दाता, मेरे प्यारे बाबा को याद करती हूं... *तुरंत प्यारे बाबा मेरे पास आते हैं और मुझे मधुबन की पहाड़ियों पर लेकर चलते हैं...*
➳ _ ➳ *बाबा अपने सामने सुंदर सी पहाड़ी पर बिठाकर मुझे दृष्टि देते हैं...* बाबा से दिव्य शक्तिशाली तेजस्वी किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा बाबा से आती शक्तिशाली किरणों को स्वयं में ग्रहण कर गुणों शक्तियों से भरपूर हो रही हूँ... मैं आत्मा देहभान से परे होती जा रही हूं... *मैं आत्मा इस पहाड़ की ऊंची चोटी पर बैठ पुरानी कलियुगी सृष्टि के सभी पुरानी चीजों को भूलती जा रही हूं...* देह के पुराने संबंधों से न्यारी हो रही हूं... और बाबा की प्यारी बन रही हूं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ियों पर बैठ सारे मधुबन के नजारों को देख रही हूं... बाबा मेरा हाथ पकड़ चार धाम की यात्रा कराते हैं... *मैं आत्मा शांति स्तंभ, बाबा की कुटिया, बाबा की झोपड़ी, हिस्ट्री हाल जैसे पवित्र चार धामों की यात्रा कर पावन बन रही हूं... डायमंड हॉल में प्यारे बाबा मुझे ज्ञान मुरली से ज्ञान स्नान कराते हैं...* मैं आत्मा संपूर्ण पवित्र और संपन्न बन रही हूं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा से सच्चा सच्चा सौदा कर रही हूं... बाबा मैं आपकी हूं आप मेरे हो... बाकी कुछ भी मेरा नहीं है...* ना यह देह मेरा है, ना इस देह की कर्मेंद्रियां मेरी हैं... ना इस देह के संबंध मेरे हैं... ना ही ये मन मेरा है... ना यह विनाशी धन मेरा है... कुछ भी मेरा नहीं है बाबा, सब आपका दिया हुआ है... आपका दिया सब आपको समर्पित करती हूं बाबा... और मैं आत्मा सबकुछ बाबा के कदमों में डालती जा रही हूँ... तन मन धन से सब कुछ अर्पण कर रही हूं... *सभी संबंधों को, कर्मबंधनों को बाबा के सामने इमर्ज कर उनके प्रति जो मोह है या घृणा है उसको बाबा की किरणों में भस्म कर रही हूं...*
➳ _ ➳ *मेरे प्राण प्यारे बाबा आप मेरे मात-पिता हो, मैं आपकी संतान... आप मेरे शिक्षक हो मैं आपकी गॉडली स्टूडेंट हूं...* आप मेरे सतगुरु हो, मैं आपकी सत शिष्य... *आप मेरे साजन हो, मैं आपकी सजनी... आप रूहानी बगीचे के माली हो, मैं रूहानी गुलाब हूँ...* बाबा आप सागर हो, मैं मास्टर सागर हूँ... आप रुद्र ज्ञान यज्ञ के रचयिता हो, मैं आपकी राइट हैंड हूँ... *आप शमा हो, मैं परवाना... आप दीपराज हो, मैं आपकी दीपक... आप मेरे खुदा दोस्त हो, आप ही मेरे सर्वस्व हो बाबा...*
➳ _ ➳ मैं और मेरा बाबा बस और कोई भी नहीं... *मैं आत्मा अविनाशी बाप से पक्का सौदा कर अविनाशी एग्रीमेंट साइन करती हूं... मेरे प्यारे भोले बाबा मेरा सब कुछ पुराना लेकर मुझे 21 जन्मों की नई स्वर्णिम दुनिया की सुख शांति के वर्सा की गारंटी देते हैं...* ऐसा पक्का सौदा पूरे कल्प में कभी भी किसी ने नहीं किया... मीठे बाबा फिर मुझे उसी तालाब के कमल फूल पर बिठा देते हैं... अब मैं आत्मा कभी भी अपने पांव दुनियावी कीचड़ में नहीं रखती हूं... वाह मेरा बाबा वाह, वाह मेरा भाग्य वाह के गुण गाती मैं आत्मा हर कर्म को बाबा की याद में कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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