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 16 / 04 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *जीवन की लम्बी मुसाफिरी में थके तो नहीं ?*

 

➢➢ *श्रेमत पर बुधी की यात्रा करते रहे ?*

 

➢➢ *साक्षीपन की स्थिति द्वारा हीरो पार्ट बजाया ?*

 

➢➢ *अपने सर्व रिश्ते एक प्रभु के साथ जोड़े ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब योगबल द्वारा आत्माओं को जगाने का कर्तव्य करो और सर्व शक्तिवान बाप की पालना का प्रत्यक्ष स्वरुप दिखाओ।* साकार रुप द्वारा भी बहुत पालना ली और अव्यक्त रुप द्वारा भी पालना ली, *अब अन्य आत्माओं की ज्ञान-योग से पालना करके उनको भी बाप के सम्मुख और समीप लाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ"*

 

  सेवा करते हुए सदा अपने को कर्मयोगी स्थिति में स्थित रहने का अनुभव करते हो कि कर्म करते हुए याद कम हो जाती है और कर्म में बुद्धि ज्यादा रहती है! *क्योंकि याद में रहकर कर्म करने से कर्म में कभी थकावट नहीं होती। याद में रहकर कर्म करने वाले कर्म करते सदा खुशी का अनुभव करेंगे।*

 

  कर्मयोगी बन कर्म अर्थात् सेवा करते हो ना! *कर्मयोग के अभ्यासी सदा ही हर कदम में वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाते हैं। भविष्य खाता सदा भरपूर और वर्तमान भी सदा श्रेष्ठ। ऐसे कर्मयोगी बन सेवा का पार्ट बजाते हो। भूल तो नहीं जाता।*

 

  मधुबन में सेवाधारी हैं तो मधुबन स्वत: ही बाप की याद दिलाता है। *सर्व शक्तियों का खजाना जमा किया है ना! इतना जमा किया है जो सदा भरपूर रहेंगे। संगमयुग पर बैटरी सदा चार्ज है। द्वापर से बैटरी ढीली होती। संगम पर सदा भरपूर, सदा चार्ज है।* तो मधुबन में बैटरी भरने नहीं आते हो, स्वेज मनाने आते हो। बाप और बच्चों का स्नेह है इसलिए मिलना, सुनना, यही संगमयुग के स्वेज हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आप कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच - बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टाँप करना चाहिए। *एक मिनिट के लिए भी मन के संकल्पों को चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टीस करनी चाहिए।*

 

✧  अगर यह प्रैक्टीस नहीं करेंगे तो बिन्दु रुप की पाँवरफुल स्टेज कैसे और कब ला सकेंगे? इसलिए यह अभ्यास करना आवश्यक है।

बीच - बीच में यह प्रैक्टीस प्रैक्टिकल में करते रहेंगे तो जो आज यह बिन्दु रुप की स्थिती मुश्किल लगती है वह ऐसे सरल हो जायेगी जैसे अभी मैजारिटी को अव्यक्त स्थिति सहज लगती है।

     

✧  पहले जब अभ्यास शुरु किया तो व्यक्त में अव्यक्त स्थिति में रहना मुश्किल लगता था। *अभी अव्यक्त स्थिति में रह कार्य करना जैसे सरल होता जा रहा है वैसे ही यह बिन्दु रुप की स्थिति भी सहज हो जायेगी*। अभी महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी चाहिए। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *यह सोचो कि अगर देहभान का त्याग नहीं करेंगे अर्थात् देही अभिमानी नहीं बनेंगे तो भाग्य भी अपना नहीं बना सकेंगे संगमयुग का जो श्रेष्ट भाग्य है उनसे वंचित रहेंगे।* तो चेक करो - संकल्प के रूप में व्यर्थ संकल्प का कहाँ तक त्याग किया है? वृत्ति सदा भाई-भाई की रहनी चाहिए; उस वृत्ति को कहां तक अपनाया है और देह में देहधारी पन की वृत्ति का कहां तक त्याग किया है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान धन का दान कर अपार ख़ुशी में रहना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा डायमण्ड हॉल में बैठी हूँ... मेरे सामने दादी के तन में अव्यक्त बापदादा विराजमान हैं... *पूरे हॉल में बस मैं और मेरा बाबा... बाबा की लगन में मैं फरिश्ता बड़े स्नेह से बापदादा को निहार रहा हूँ...*  उनसे दृष्टि ले रहा हूँ...  बापदादा की ने अपना प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिरा रहे हैं... बापदादा की दृष्टि और हाथ रखने से मेरे जन्म जन्म के विकर्म दग्ध हो गए हैं... मैं फरिश्ता बिल्कुल हल्का... डबल लाइट हो गया हूँ... *मेरे कान अव्यक्त बापदादा की मीठी आवाज... उनकी प्यार भरी शिक्षाएं सुनने को लालायित हो रहे हैं...*

 

  *ज्ञान की शीतल तरंगों में मुझ आत्मा को डुबोते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे प्यारे बच्चे... कलयुगी दु:ख तपन, कष्टों की दलदल से बाबा निकालने के लिए आये हैं और नवीन सतयुगी संपूर्ण सुखों की दुनिया की रचना करते हैं... जहां तुम अपार सुख पाते हो... *बाबा तुम्हें नॉलेज देकर नयी दुनिया के लायक बना रहे हैं... ज्ञान की इन पॉइंट्स का मन ही मन मनन चिंतन करते रहो... व दूसरों को भी यह ज्ञान सुनाते रहो..."*

 

 _ ➳  *बाबा के मीठे बोल सुनकर गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणेश्वर मीठे बाबा... आप का हम बच्चों से कितना प्यार है जो आप हमें हमारे कष्टों से छुड़ाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं... *आप हमें रूहानी ज्ञान रत्न देते हैं... बाबा मैं आपकी शिक्षाओं का स्वरुप बनती जा रही हूँ...  ज्ञान की हर पॉइंट पर मनन कर रही हूँ... तथा यह ज्ञान सभी तक पहुंचा रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान रुपी स्वाति नक्षत्र की बूंदें बरसाकर मुझे बहुमूल्य मोती बनाने वाले बाबा कहते हैं:-* "मीठे मीठे फूल बच्चे... बाबा जो तुम्हें ज्ञान देते हैं... जो तुम्हे समझानी देते हैं... उसे तुम औरो को समझाने की सर्विस करते रहो... *ज्ञान धन का दान करते रहो... इससे तुम्हे अपार खुशी रहेगी... सर्व की आशीर्वाद मिलेगी और बाबा की याद भी भूलेगी नहीं... निरंतर एक की लगन में मगन रहेंगे..."*

 

 _ ➳  *ज्ञान सागर के ज्ञान को सर्वत्र फैलाती हुई ज्ञान गंगा रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:-* "नयनों के नूर मीठे बाबा... आपके स्नेह और उपकारों को याद करते-करते मेरी आंखें नम हो जाती है... बाबा आपके इन ज्ञान रत्नों का मैं सभी आत्मा सभी को दान कर रही हूँ... अपार खुशी का अनुभव कर रही हूँ... इस *सर्विस में बिजी रहने से व्यर्थ से किनारा हो गया है... और मैं आत्मा निरंतर एक की ही याद में मगन होकर झूम रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान रत्नों से मुझे मालामाल बनाने वाले रत्नागर बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे प्यारे बच्चे... ज्ञान दिए धन न खुटे... इस ज्ञान धन की विशेषता है... जितना दान करोगे, उतना बढ़ता ही जाएगा... साथ ही खुशी का पारा भी चढ़ता जाएगा... *औरों की आशीर्वाद तुम्हारे सिर पर होगी... वे कहेंगे ऐसे पण्डे पर हम बलिहार जाएं... जिसने हमें स्वर्ग का रास्ता बताया... ज्ञान दान से तुम्हें सर्व की दुआयें और स्नेह मिलता रहेगा..."*

 

 _ ➳  *ज्ञान रूपी सच्चे मोती को चुगने वाली मैं हँसबुद्धि आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे दिलाराम मीठे बाबा... *मैं आत्मा आपके संदेश को विश्व में सभी आत्माओं तक पहुंचाने की सेवा कर रही हूँ... ज्ञान दान से यह ज्ञान धन बढ़ता ही जा रहा है...* और मैं आत्मा खुशी के झूले में झूल रही हूँ... *सर्व आत्माओं की मुझे दुआयें, स्नेह और सहयोग मिल रहा है...* सभी के दिलों में एक बाप की प्रत्यक्षता हो रही है... शुक्रिया बाबा, शुक्रिया..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जीवन की लम्बी मुसाफिरी में थकना नही है*"

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा की याद में, उन्हें अपने साथ अनुभव करते एक ट्रेन में मैं यात्रा कर रही हूँ। और अपनी पलको को बंद कर मैं विचार कर रही हूँ कि जैसे इस ट्रेन में सफर करने वाला हर यात्री मुसाफिर है, जहाँ जिसका स्टेशन आएगा उतर जाएगा। इसी तरह *ये दुनिया भी तो एक मुसाफिरखाना है जहाँ सभी आत्मायें परमधाम से यहाँ मुसाफिर बन कर आई है  सभी अपनी जीवन यात्रा पर चल रहे है। और इस समय सभी अपनी जीवन यात्रा के अन्तिम पड़ाव पर हैं*। सभी की वानप्रस्थ अवस्था है। सभी को अब अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर वापिस अपने धाम लौटना है।

 

_ ➳  मन ही मन अपने आप से बातें करती अब मैं एक दृश्य देख रही हूँ। अनेक प्रकार के चेहरे मेरी आँखों के सामने आ रहें हैं। *किसी के चेहरे पर दुख की लकीरें तो किसी के चेहरे पर अशान्ति के भाव मैं देख रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे जीवन की लम्बी मुसाफिरी को तय करते - करते सभी थक गए हैं*। इस दृश्य को देख अब मैं अपनी जीवन यात्रा और अपने श्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो मेरे जीवन की इस लम्बी मुसाफिरी में स्वयं भगवान मेरा साथी बन गया और उसके साथ का अनुभव इस मुसाफिरी में मुझे कभी थकावट का अनुभव नही होने देता। *जीवन की यात्रा में आने वाले परिस्थितयों के तूफ़ान भी बाबा के साथ के अनुभव से कैसे तोहफा बन मेरी इस लम्बी मुसाफिरी को बिना किसी बाधा के सहज रीति आगे बढ़ा रहें हैं*।

 

_ ➳  मेरे जीवन की इस मुसाफिरी में मेरे हमसफ़र बन मेरे साथ चलने वाले अपने प्यारे बाबा का मैं दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ और मन मे उनके लिए असीम प्यार समाये, उन्हें अपने पास बैठने का जैसे ही आग्रह करती हूँ, मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ, *अपने लाइट माइट स्वरूप में बाबा मेरे पास आ कर बैठ गए हैं। ट्रेन के उस डिब्बे में फैली बाबा की लाइट माइट को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ और उस लाइट माइट को पाकर मेरा स्वरूप भी जैसे लाइट का बन गया है*। बाबा मेरा हाथ थामे ट्रेन से बाहर निकलते हैं और मुझे अपने साथ लेकर, साकारी दुनिया से दूर ऊपर आकाश की ओर चल पड़ते हैं।

 

_ ➳  अपने फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा का हाथ थामे मैं आकाश में उड़ता हुआ सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ और प्रकृति के खूबसूरत नज़ारो का आनन्द ले रहा हूँ। *ऊपर आकाश से पृथ्वी लोक के नये - नये लुभावने दृश्य देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रहा हूँ। आकाश को पार करके उससे ऊपर उड़ते हुए अब मैं फरिश्ता बाबा के साथ पहुँच जाता हूँ फ़रिश्तों की दुनिया सूक्ष्म लोक में*। पूरे सूक्ष्म लोक की बाबा मुझे सैर करवा रहें हैं और अपने प्रकाश की लहरों में नहला कर मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं।

 

_ ➳  बाबा के नयनों से अथाह स्नेह की धाराएं और वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं। *अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रख कर मुझे अथक भव का वरदान दे रहें हैं। बाबा से वरदान लेकर और शक्तियों का बल अपने अन्दर भरकर मैं फ़रिश्ता अब वापिस साकारी दुनिया में लौट आता हूँ*। अपने साकार शरीर मे अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ प्रवेश कर मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो, फिर से अपने जीवन की यात्रा पर चल पड़ती हूँ। *अपने जीवन की इस लम्बी मुसाफिरी में बाबा को अपना साथी बनाये बिना थके, उमंग उत्साह के साथ अपने जीवन की इस यात्रा पर मैं कदम - कदम चल रही हूँ और अपनी इस यात्रा का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं साक्षीपन की स्थिति द्वारा हीरो पार्ट बजाने वाली सहज पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने सर्व रिश्ते एक प्रभु के साथ जोड़कर फरिश्ता बनने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  साधारण मैं-पन वा रायल मैं-पन दोनों का समर्पण किया है? किया है या कर रहे हैं? करना तो पड़ेगा ही... आप लोग आपस में हँसी में कहते हो ना, मरना तो पड़ेगा ही... *लेकिन यह मरना भगवान की गोदी में जीना है... यह मरना, मरना नहीं है... 21 जन्म देव आत्माओं के गोदी में जन्मना है...* इसीलिए खुशी-खुशी से समर्पित होते हो ना! चिल्ला के तो नहीं होते? नहीं। *भक्ति में भी चिल्लाया हुआ बलि स्वीकार नहीं होती है...* तो जो खुशी से समर्पित होते हैं, हद के मैं और मेरे में, वह जन्म-जन्म वर्से के अधिकारी बन जाते हैं...

 

✺   *ड्रिल :-  "मरना अर्थात भगवान की गोदी में जीने का अनुभव"*

 

 _ ➳  यह देह, देह की दुनिया और इस देह से जुड़े सम्बन्धों में लगाव, झुकाव और टकराव ही तो भगवान की गोद में जीने के सुख से वंचित करते हैं और *जो इस बात को अच्छी रीति जान जाते है कि देह और देह से जुड़ी कोई भी चीज हमे सच्चे सुख और शांति की अनुभूति कभी नही करवा सकती वो फिर इस दुनिया मे स्वयं को वंचित होने से बचा लेते हैं* और इस दुनिया से जीते जी मर कर भगवान की गोद मे जीने का सुख अनुभव करते हुए सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हैं... मन ही मन स्वयं से यह बातें करती मैं खो जाती हूँ अपने उस भगवान बाप की मीठी सी याद में जो मुझे सेकण्ड में परमात्म पालना का मीठा सा अनुभव करवा कर तृप्त कर देती है...

 

 _ ➳  मेरे संकल्प मात्र से ही मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी शक्तिशाली किरणों की छत्रछाया रूपी गोद मे मुझे बिठा लेते हैं... मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ परमधाम से मेरे मीठे बाबा की सर्वशक्तियाँ सीधे मुझ आत्मा पर पड़ रही है और *अपने भगवान बाप की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे बैठ मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ...* जैसे एक बच्चा माँ की गोद मे आते ही स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है और निश्चित हो जाता है ठीक उसी प्रकार परमात्म गोद में बैठ मैं आत्मा भी स्वयं को बेफिक्र अनुभव कर रही हूँ क्योकि *भगवान की गोद में बैठ कर मैं स्वयं को हर प्रकार के बोझ और बन्धन से मुक्त अनुभव कर रही हूँ...* यह बोझ मुक्त और निर्बन्धन स्थिति मुझे लाइट और माइट बना रही है...

 

 _ ➳  अपने भगवान बाप की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे बैठ अब मैं अपने निराकार लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ... *परमात्म गोद का सुख लेते हुए सेकेंड में मैं इस पांच तत्वों की दुनिया को पार कर अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ...* अपने शिव पिता परमात्मा की शक्तिशाली किरणों रूपी गोद से उतर कर अब मैं अपनी इस निराकारी दुनिया की सैर कर रही हूँ... इस पूरे परमधाम घर मे फैले मेरे शिव पिता से निरन्तर निकल रहे शांति के शक्तिशाली प्रकम्पन ऐसे लग रहे हैं जैसे *शांति की शीतल लहरे घड़ी - घड़ी पास कर मुझ आत्मा को गहन सुकून से भरपूर कर रही हैं...* जिस शांति की तलाश में आत्मा दो युगों से भटक रही थी वो गहन शांति पाकर अब जैसे मैं आत्मा तृप्त हो गई हूँ...

 

 _ ➳  अपने परमधाम घर की सैर करके, शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं वापिस अपने निराकार भगवान बाप की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे आ कर बैठ जाती हूँ और परमात्म गोद का सुख लेने लगती हूँ... *ऐसा लग रहा है जैेसे मेरी शिव माँ अपनी ममतामयी गोद मे मुझे बिठा कर, अपनी शक्तियों की शीतल छाया मुझ पर करते हुए मुझे धीरे - धीरे सहला रही है और अपनी शक्तियों से मुझे शक्तिशाली बना रही है...* परमात्म लाइट और माइट से मुझे भरपूर करके मेरे अंदर असीम बल भर रही है ताकि माया के किसी भी वार का मुझ पर कोई प्रभाव ना पड़ सके...

 

 _ ➳  परमात्म बल , परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर और परमात्म गोद के सुखद अनुभव के साथ अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ... फिर से पांच तत्वों की दुनिया मे प्रवेश कर मैं अपने साकारी तन में विराजमान होती हूँ... *मेरा यह ब्राह्मण जन्म मरजीवा जन्म है, मेरे भगवान बाप की देन है इस बात को सदा स्मृति में रख, इस दुनिया से जीते जी मर कर अब मैं सम्पूर्ण समर्पण भाव से, अपना तन - मन - धन सब कुछ भगवान बाप पर समर्पण कर, पदमापदम सौभाग्यशाली बन, भगवान की गोदी में जीने के सुख का आनन्द हर पल ले रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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