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 02 / 05 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह तथा देह के सर्व सम्बन्ध भूलने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *"रात दिन एक बाबा की ही याद में रहूँगा और बाबा जो कहेंगे वह अवश्य करूंगा" - यह दृढ़ संकल्प किया ?*

 

➢➢ *कोई भी ड्यूटी बजाते स्वयं को सेवाधारी समझ सेवा कर डबल फल के अधिकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सदा खुशहाल रह स्वायक के और सर्व के प्रिय बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *वह आत्म-ज्ञानी भी जिस्मानी, अल्पकाल की तपस्या से अल्पकाल की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। आप रूहानी तपस्वी परमात्म ज्ञानी हो, तो आपका संकल्प आपको विजयी रत्न बना देगा।* अनेक प्रकार के विघ्न ऐसे समाप्त हो जायेंगे जैसे कुछ था ही नहीं। माया के विघ्नों का नाम-निशान भी नहीं रहेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं राजऋषि हूँ"*

 

〰✧  अपने को राजऋषि, श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *राजऋषि अर्थात् राज्य होते हुए भी ऋषि अर्थात् सदा बेहद के वैरागी। स्थूल देश का राज्य नहीं है लेकिन स्व का राज्य है। स्व-राज्य करते हुए बेहद के वैरागी भी हो, तपस्वी भी हो क्योंकि जानते हो पुरानी दुनिया में है ही क्या।*

 

  *वैराग अर्थात् लगाव न हो। अगर लगाव होता है तो बुद्धि का झुकाव होता है। जिस तरफ लगाव होगा, बुद्धि उसी तरफ जायेगी। इसलिए राजऋषि हो, राजे भी हो और साथ-साथ बेहद के वैरागी भी हो। ऋषि तपस्वी होते हैं। किसी भी आकर्षण में आकर्षित नहीं होने वाले।* स्वराज्य के आगे यह हद की आकर्षण क्या है? कुछ भी नहीं। तो अपनेको क्या समझते हो? राजऋषि। किसी भी प्रकार का लगाव ऋषि बनने नहीं देगा, तपस्वी बन नहीं सकेंगे। तपस्या में ‘लगाव’ ही विघ्न-रूप बन कर आता है। तपस्या भंग हो जाती है।

 

  लेकिन जो बाप की लग्न में रहते हैं, वह लगाव में नहीं रहते, उसको सब सहज प्राप्त होता है। ब्राह्मण जीवन में 10 रूपया भी 100 बन जाता है। इतना धन में वृद्धि हो जाती है! प्रगति पड़ने से 10,100 का काम करता है, वहाँ 100,10 का काम करेगा। *क्योंकि अभी एकानामी के अवतार हो गये ना। व्यर्थ बच गया और समर्थ पैसा, ताकत वाला पैसा है। काला पैसा नहीं है, सफेद है, इसलिए शक्ति है। तो राजऋषि आत्मायें हैं - इस वरदान को सदा याद रखना। कहा लगाव में नहीं फँस जाना। न फँसो, न निकलने की मेहनत करो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  लास्ट पढाई का कौन -सा पाठ है और फर्स्ट पाठ कौन - सा है? फर्स्ट पाठ और लास्ट पाठ यही अभ्यास है। जैसे बच्चे का लौकिक जन्म होता है तो पहले - पहले उनको एक शब्द दिलाया जाता है वा सिखलाया जाता है ना। यहाँ भी अलौकिक जन्म लेते पहला शब्द क्या सीखा? बाप को याद करो। *तो जन्म का पहला शब्द लौकिक का भी, अलौकिक का भी वही याद रखना है।* यह मुश्किल हो सकता है क्या?

 

✧  अपने आपको ड्रिल करने का अभ्यास नहीं डालते हो। यह है बुद्धि की ड्रिल। *ड्रिल के अभ्यासी जो होते हैं तो पहले - पहले दर्द भी बहुत महसूस होता है और मुश्किल लगता है लेकिन जो अभ्यासी बन जाते हैं वह फिर ड्रिल करने के सिवाए रह नहीं सकते।* तो यह भी बुद्धि की ड्रिल करने का अभ्यास कम होने कारण पहले मुश्किल लगता है। फिर माथा भारी रहने का वा कोई न कोई विघ्न सामने बन आने का अनुभव होता रहता है।

 

✧  तो ऐसे अभ्यासी बनना ही है। इसके सिवाए राज्य - भाग्य के प्राप्ति होना मुश्किल है। जिन्हों को यह अभ्यास मुश्किल लगता है तो प्राप्ति भी मुश्किल है। इसलिए इस मुख्य अभ्यास को सहज और निरंतर बनाओ। *ऐसे अभ्यासी अनेक आत्माओं को साक्षात्कार कराने वाले साक्षात बापदादा दिखाई दे।* जैसे वाणी में आना कितना सहज है। वैसे यह वाणी से परे जान भी इतना सहज होना है। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ ऐसी महीनता और महानता की स्टेज अपनाई हैं? हलचल थी या अचल थे? *फाईनल पेपर में चारों ओर की हलचल होगी। एक तरफ वायुमण्डल व वातावरण की हलचल। दूसरी तरफ व्यक्तियों की हलचल। तीसरी तरफ सर्व सम्बन्धों में हलचल और चौथी तरफ आवश्यक साधनों की अप्राप्ति की हलचल ऐसे चारों तरफ की हलचल के बीच अचल रहना, यही फाईनल पेपर होना है।* किसी भी आधार द्वारा अधिकारीपन की स्टेज पर स्थित रहना - ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर के समय सफलता-मूर्त बनने नही देगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पहले अपने ऊपर रहम कर, फिर अपने परिवार को स्वर्ग में चलने का सही रास्ता बताना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा राज योग प्रदर्शनी में लगे चित्रों पर समझा रही हूँ... सबको सत्य पिता का परिचय दे रही हूँ... सच्चे घर का पता बता रही हूँ... इस दुःख की नगरी से सुख, शांति की नगरी में जाने का रास्ता दिखा रही हूँ... अपनी जगी हुई ज्योति से सबकी बुझी ज्योति को जगा रही हूँ...* मैं देख रही हूँ सामने बाबा के खड़े मुस्कुरा रहे हैं... हर पल मेरे साथ खड़े होकर प्यारे बाबा ही सेवा करवा रहे हैं... फिर बाबा मुझे अपनी गोदी में लेकर उड़ चलते हैं वतन में...

 

  *प्यारे बाबा मुझे अपना राईट हैण्ड बनाकर सबके जीवन को प्रकाशमय करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... अब यह खेल पूरा हुआ और घर चलने के दिन आ गए है... सबकी वानप्रस्थ अवस्था है... यह खबर हर दिल आत्मा को सुनाओ... और ईश्वरीय यादो में पवित्र बनईश्वर पिता के साथी बन साथ चलने का भाग्य दिलाओ... *सबको घर चलने का रास्ता बताने वाले सच्चे  सहयोगी बनो*..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान परी बन सबको बाप के वर्से का अधिकारी बनाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो के प्रकाश का हाथ थाम... देह के भान और दुखो के घने जंगल से बाहर निकल गई हूँ... *आपकी यादो में निखर कर सम्पूर्ण पवित्रता से सजकर घर चलने को तैयार हो रही हूँ... और सबको घर का रास्ता बता रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान प्रकाश से अंधियारे को मिटाकर स्वर्ग का मालिक बनने का राह उज्जवल करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस समय संकल्प को यादो में पिरोकर... सम्पूर्ण पवित्रता से सज संवर कर वाणी से परे अपने घर में जाना है... यह आहट हर आत्मा दिल को देते जाओ... *और ईश्वरीय यादो में सजधज कर घर चलने का खुबसूरत रास्ता सबको बताओ... विकारो के दलदल से हर आत्मा को मुक्त कराओ...."*

 

_ ➳  *शिव पिता को अपने यादों में बसाकर हर आत्मा के अरमानों को सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पाकर... आपकी यादो में दिव्यता और शक्तियो से सम्पन्न होकर... *आपका हाथ पकड़ अपने सच्चे घर चलने को आमादा हूँ... और सबको साथी बनाकरबाबा संग घर चलने का निमन्त्रण दे रही हूँ..."*

 

  *ज्ञान सूर्य प्यारे बाबा भटकते हुओं को राह दिखाने इस धरा पर आकर कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... धरा पर जब खेलने आये थेकितने खुबसूरत महके फूल थे... देह के भान ने गुणहीन और शक्तिहीन बनाकर दुखो के दरिया में डुबो दिया... अब प्यारा बाबा कुम्हलाये फूलो को पुनः खिलाने आया है... प्यार और ज्ञान से पुर्नजीवन देने आया है... *यादो के समन्दर में गहरे डूबकरअपनी खोयी रूहानियत को पा लो... और खुबसूरत पवित्र मणि बन घर चलने की तैयारी करो..."*

 

_ ➳  *अपनी मंजिल को पाकर मन मधुबन में खुशियों में नाचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा घर से जो निकली थी... किस कदर गजब की खुबसूरत थी... *मेरे रोम रोम से पवित्रता छनकर मेरे सौंदर्य में चार चाँद लगा रही थी... देह के भान ने मेरी खूबसूरती को नष्ट कर दिया... अब मै आत्मा आपकी यादो मेंअपनी खोयी पवित्रता को पाकर फिर से खिल रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  रात दिन एक बाबा की ही याद में रह, जो बाबा कहे वही करने का दृढ़ संकल्प करना*

 

_ ➳  प्यारे बाबा की मीठी याद मन को कितना सुकून और आराम देती है इस बात का अनुभव बार - बार करते हुए मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि रात दिन एक बाबा की ही याद में अब मुझे रहना है और जो बाबा कहे वही करना है। *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे देह और देह से जुड़े सम्बन्धियों की याद स्वत: ही भूलती जा रही है और प्यारे पिता की मीठी याद उनके पास जाकर उनके प्रेम का मधुर अहसास करने का जैसे मुझे निमन्त्रण दे रही है*।

 

_ ➳  वतन में अपनी दोनों बाहों को पसारे खड़े हुए बापदादा का स्वरूप बार -बार आँखों के सामने आ रहा है और बार -बार कानो में जैसे एक मीठी अव्यक्त आवाज सुनाई दे रही है:- "आओ मेरे मीठे लाडले बच्चे मेरे पास आओ"। *भगवान का ये प्यारा सा मीठा सा निमन्त्रण मुझे उनके पास जाने और उनकी बाहों में समाकर उनके प्रेम के सुखद एहसास में डूब जाने के लिये व्याकुल कर रहा है*। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन के मीठे मधुर एहसास का आनन्द लेने के लिए अब मैं स्वयं को हर संकल्प विकल्प से मुक्त कर, लाइट स्थिति में स्थित करती हूँ और सेकेंड में अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  लाइट की फ़रिश्ता ड्रेस धारण किये अपनी श्वेत रश्मियाँ चारों और फैलाते हुए, स्थूल देह और देह के हर बन्धन से मुक्त होकर, अपने प्यारे प्रभु से मिलन मनाने की लगन में मग्न मैं स्थूल दुनिया से किनारा कर, सूक्ष्म लोक की ओर बिल्कुल सहज और उन्मुक्त भाव से उड़ी चली जा रही हूँ। *अपनी बाहों में समा लेने के लिए व्याकुल बापदादा का स्वरूप बार - बार आँखों के सामने आकर, मुझे उमंग उत्साह के पंख लगाकर मेरी गति को जैसे तीव्र कर रहा है* और मैं अति तीव्र गति से उड़ते हुए स्थूल दुनिया को पार कर, उससे भी ऊपर उड़ते हुए अब अपने अव्यक्त वतन में प्रवेश कर रही हूँ।

 

_ ➳  यहाँ पहुँच कर बिना एक पल की भी देरी किये प्यारे बापदादा की बाहों में मैं समा जाती हूँ। उनकी बाहों में समाकर, उनके निस्वार्थ प्यार की गहराई में जाकर उनके साथ स्नेह मिलन करके अब मैं उनके पास बैठ जाती हूँ और उनकी मीठी दृष्टि से मिलने वाली शक्ति से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ। *बाबा की दृष्टि से मिल रही शक्ति मेरे अंदर एक बल भर रही है जिसे मैं स्पष्ट महसूस कर रही हूँ*। बाबा के मस्तक से स्नेह की अनन्त धाराएं निकल रही हैं जो मुझे छू कर एक तेज करेन्ट के रूप में मेरे सारे शरीर में प्रवाहित होकर मुझमें एक विशेष ऊर्जा का संचार कर रही हैं।

 

_ ➳  परमात्म शक्तियों के बल से, बाबा के हर फरमान का पालन करने की बाबा से प्रतिज्ञा करके, बीज रूप स्थिति की शक्तिशाली याद का अनुभव करने के लिए अपनी फरिश्ता ड्रेस को उतार, *अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा अब सूक्ष्म वतन से ऊपर परमधाम  की ओर चल पड़ती हूँ और अपने इस निर्वाणधाम घर में पहुँच कर, मास्टर बीज रूप बन अपने बीजरूप शिव पिता के पास जा कर बैठ जाती हूँ*। इस अति प्यारी निरसंकल्प स्थिति में बीज रूप अपने शिव पिता को निहारते हुए उनकी शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाने का सुखद अनुभव मुझ आत्मा को परमआनन्द से भरपूर कर देता है।

 

_ ➳  अपने प्यारे प्रभु की याद में मग्न, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए आत्मा परमात्मा के लव में जैसे लीन हो जाती है। इस लवलीन स्थिति का भरपूर आनन्द लेकर मैं आत्मा अब वापिस ईश्वरीय सेवा अर्थ साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, दिल को सुकून देने वाली बाबा की याद में दिन रात रहते हुए, बाबा जो कहे वो करते हुए, बाबा के हाथ और साथ का अनुभव अब मैं प्रतिपल कर रही हूँ और अपने इस सुकून भरे ईश्वरीय जीवन का भरपूर आनंद ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं कोई भी ड्युटी बजाते हुए स्वयं को सेवाधारी समझ सेवा करने वाली डबल फल की अधिकारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा खुशहाल रह कर स्वयं को और सर्व को प्रिय लगने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  वर्तमान समय के प्रमाण फरिश्ते-पन की सम्पन्न स्टेज के वा बाप समान स्टेज के समीप आ रहे हो, उसी प्रमाण पवित्रता की परिभाषा भी अति सूक्ष्म समझो। सिर्फ *ब्रह्मचारी बनना भविष्य पवित्रता नहीं लेकिन ब्रह्मचारी के साथ ब्रह्मा आचार्य' भी चाहिए। शिव आचार्य भी चाहिए। अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला। शिव बाप के उच्चारण किये हुए बोल पर चलनेवाला।* फुट स्टैप अर्थात् ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रखने वाले। इसको कहा जाता है - ब्रह्मा आचार्य'। तो ऐसी सूक्ष्म रूप से चैंकिग करो कि सदा पवित्रता की प्राप्ति, सुख-शांति की अनुभूति हो रही है? सदा सुख की शैय्या पर आराम से अर्थात् शांति स्वरूप में विराजमान रहते हो? यह ब्रह्मा आचार्य का चित्र है।

 

✺  *"ड्रिल :- ब्रह्मचारी के साथ साथ ब्रह्मा आचारी और शिव आचारी बनकर रहना*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा याद और सेवा की रस्सियों में झूलते हुए सूक्ष्म वतन पहुँच जाती हूँ...* वतन में बापदादा संग बैठ जाती हूँ... पारलौकिक बाप अलौकिक बाप के मस्तक पर विराजमान होकर मुझे भी अलौकिक बना रहे हैं... बापदादा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं... *मैं आत्मा अपनी साधारणता को छोड़ विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में विराजमान होकर अनमोल वाक्यों का उच्चारण कर रहे हैं...* आदि, मध्य, अंत का सत्य ज्ञान सुना रहे हैं... प्यारे बाबा आत्मा, परमात्मा और ड्रामा का नालेज देकर मुझे नालेजफुल बना रहे हैं... मैं आत्मा अपने असली स्वरुप को जान अपने निज गुणों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा पवित्र फरिश्ते का स्वरूप धारण कर रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा प्यूरिटी की पर्सनालिटी धारण कर सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा कैसी भी परिस्थितियां आयें कभी दुःख, अशांति का अनुभव नहीं करती हूँ... सदा सुख की शैय्या पर आराम से विराजमान रहती हूँ... सदा अपने शांत स्वरुप के स्टेज में स्थित रहती हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति से दुःख को सुख में परिवर्तित कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा दृष्टि, वृत्ति, चलन, संकल्प, वाणी में ब्रह्मा बाप समान पवित्रता को धारण कर रही हूँ...* मैं आत्मा ब्रह्मचारी बनने के साथ-साथ ब्रह्मा आचार्य' भी बन रही हूँ... *ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रख फालो फादर कर रही हूँ...* ब्रह्मा बाप के आदर्शों पर चल बाप समान बन रही हूँ... *शिव बाप के उच्चारण किये हुए बोल पर चलकर शिव आचार्यबन रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की सभी नियम, मर्यादाओं का पालन करती हूँ... अब मैं आत्मा हर कर्म को चेक करती हूँ कि ये ब्रह्मा बाप समान है या नहीं... शिव बाबा द्वारा उच्चारित अमृत वाणी को धारण कर हर प्वाइंट का स्वरुप बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा ब्रह्मचारी के साथ-साथ ब्रह्मा आचारी और शिव आचारी होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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