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❍ 30 / 10 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *देह का अहंकार छोड़ योग अग्नि से विकर्म विनाश किये ?*
➢➢ *बने बनाए ड्रामा को बुधी में रख स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*
➢➢ *संतुष्टता के सर्टिफिकेट द्वारा भविष्य राज्य भाग्य का तख़्त प्राप्त किया ?*
➢➢ *आपस में स्नेह और संतुष्टता संपन्न व्यवहार कर सफलता मूर्त बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ सारा दिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव को धारण करने का विशेष अटेन्शन रख अशुभ भाव को शुभ भाव में, *अशुभ भावना को शुभ भावना में परिवर्तन कर खुशनुमा स्थिति में रहना है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सहजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सहजयोगी, राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *सहजयोगी अर्थात् स्वत: योगी। योग लगाने से योग लगे नहीं, तो योगी के बजाए वियोगी बन जाएं इसको सहजयोगी नहीं कहेंगे। सहजयोगी जीवन है। तो जीवन सदा होती है। योगी जीवन अर्थात् सदा के योगी, दो घण्टे चार घण्टे योग लगाने वाले को योगी जीवन नहीं कहेंगे।* जब है ही एक बाप दूसरा न कोई, तो एक ही याद आएगा ना?
〰✧ *एक की याद में रहना-यही सहजयोगी जीवन है। सदा के योगी अर्थात् योगी जीवन वाले। दूसरे जो योग लगाते हैं, वह जब योग लगाते हैं तब लगता है और ब्राह्मण आत्माएं सदा ही योग में रहती हैं क्योंकि जीवन बना ली है। चलते-फिरते, खाते-पीते योगी। है ही बाप और मैं।* अगर दूसरा कोई छिपा हुआ होगा तो वह याद आएगा। सदा योगी जीवन है अर्थात् निरन्तर योगी हैं। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि योग लगता नहीं, कैसे लगाएं?
〰✧ सिवाए बाप के जब कुछ है ही नहीं, तो लगाएं कैसे-यह क्वेश्चन ही नहीं। जब दूसरे तरफ बुद्धि जाती है तो योग टूटता है और जब टूटता है तो लगाने की मेहनत करनी पड़ती है। *लगाने की मेहनत करनी ही न पड़े, सेकण्ड में बाबा कहा और यादस्वरूप हो गए। ऐसे तो कहने की भी आवश्यकता नहीं, हैं ही-ऐसा अनुभव करना योगी जीवन है। तो सदा सहजयोगी आत्माएं हैं-इस अनुभूति से आगे बढ़ते चलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ उन्हों के राज्य दरबार में तो खिटखट होती है। यहाँ तो खिटखट की बात ही नहीं है। आपोजिशन तो नहीं है ना। एक का ही कन्ट्रोल है। कभी-कभी अपने ही कर्मचारी आपोजिशन करने लग पडते हैं तो *राजयोगी अर्थात मास्टर सर्वशक्तिवान राजा आत्मा, एक भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं दे सकती।*
〰✧ स्टॉप कहा तो स्टॉप ऑर्डर पर चलने वाले हैं ना। क्योंकि *भविष्य में लाँ और ऑर्डर पर चलने वाला राज्य है।* तो स्थापना यहाँ से होनी है ना। यहाँ ही ‘आत्मा’ राजा अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को लाँ और ऑर्डर पर चलाने वाली बने, तभी विश्व-महाराजन बन विश्व का राज्य लाँ और ऑर्डर पर चला सकती है।
〰✧ *पहले स्व राज्य लॉ और ऑर्डर पर हो।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ परिवर्तन किस को कहा जाता है? प्रैक्टिकल लाइफ का सैम्पल किसको कहा जाता है? *जैसा समय, जैसा सरकमस्टांश वैसे स्वरूप बने- यह तो साधारण लोगों का भी होता है। लेकिन फ़रिश्ता अर्थात् जो पुराने या साधारण हाल-चाल से भी परे हो।* अभी आपकी टॉपिक है ना- समय की पुकार। तो अभी समय की पुकार आप विशेष महान आत्माओं के प्रति यही है कि अभी फ़रिश्ता अर्थात् अलौकिक जीवन स्वरूप में दिखाई दे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान से स्वर्ग का सदा सुख लेना"*
➳ _ ➳ भृकुटी सिंहासन पर बैठ अपने निज स्वरुप का अनुभव करती हुई मैं आत्मा... इस स्थूल देह को छोड़ लाइट का शरीर धारण कर उड़ चलती हूँ पांडव भवन बाबा की कुटिया में... *मीठे बाबा दूर देश परमधाम से मुझे ज्ञान देकर गति सदगति करने आयें हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ मीठी-प्यारी रूह-रिहान कर सुन्दर सा भाग्य बनाने...*
❉ मुझ आत्मा को गति सदगति का रूहानी ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... कितना पुकारा कितना खोजा... ईश्वर पिता ने आकर खुदको उजागर किया... *भक्ति का फल ज्ञान सिवाय परमात्मा के कोई दे न सके... भक्ति कभी भी सदगति दे नही सकती... विश्व पिता से मिला सच्चा ज्ञान ही सदगति का आधार है..."*
➳ _ ➳ सत्य ज्ञान पाकर ख़ज़ानों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... *ज्ञान रत्नों से लबालब होकर सबसे धनवान् हो गई हूँ... जनमो की कड़ी तपस्या का फल ज्ञान पाकर खुशियो में मुस्करा उठी हूँ..."*
❉ मुझ आत्मा को मीठे सुखों के आसमान में उड़ता पंछी बना उड़ाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान को पाने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हो... *ईश्वर पिता शिक्षक बन सारे खजानो को दामन में सजा रहा... यही ज्ञान रत्न सुनहरे सतयुगी सुखो की बहार जीवन में ले आएंगे... और देवताओ की दिव्यता और पवित्रता से महकायेंगे...*
➳ _ ➳ ज्ञान प्रकाश में तीनों लोकों की सैर करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के साये में ज्ञान स्वरूप हो दमक उठी हूँ... *ज्ञान के प्रकाश ने जीवन से दुखो के गहरे अंधकार को दूर कर सुखमय कर दिया है... मै आत्मा हर राज को जानने वाली मा त्रिलोकीनाथ बन गई हूँ..."*
❉ सत्य ज्ञान से सत्य स्वरूप की पहचान देकर मेरे सतगुरु बाबा कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच की गहरी चाह में और दुखो की इस कदर दारुण सी पुकार में... *सच्चे सतगुरु को धरा पर आकर सत्य ज्ञान देकर फूल बनाना पड़ा... यह ईश्वरीय ज्ञान ही सुखो का भण्डार है और सदगति का आधार है..."*
➳ _ ➳ मेरे जीवन के गुलशन में खुशियों के गुल खिलते हुए देख खुशियों में नाचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की खोज में किस कदर भटक रही थी... अपने दमकते सत्य स्वरूप को खोकर कितनी मैली सी हो गई थी... *मीठे बाबा ने आपने आकर सत्य ज्ञान देकर मेरा जीवन सदा का रौशन कर दिया है..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप पर पूरा बलिहार जाना है*"
➳ _ ➳ अपने शिव पिता परमात्मा के साथ अलग - अलग सम्बन्धों का सुख अनुभव करते हुए मन बेहद खुशी से भर जाता है और मन मे विचार चलता है कि वो ऑल माइटी ऑथोरिटी भगवान जिसकी भक्त लोग केवल अराधना करते हैं, स्वप्न में भी नही सोच सकते कि भगवान उनका बाप, दोस्त, साजन, बच्चा, भी बन सकता है। लेकिन *मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो हर रोज भगवान के साथ एक नया सम्बन्ध बना कर, उस सम्बन्ध का असीम सुख प्राप्त करती हूँ*। ऐसा सुख जो देह के सम्बन्धो में कभी मिल ही नही सकता। क्योकि वो *अनकंडीशनल प्यार केवल प्यार का सागर भगवान ही दे सकता हैं*।
➳ _ ➳ यही विचार करते करते अपने शिव पिता परमात्मा को अपना बच्चा अपना वारिस बनाने का संकल्प मन मे लिए मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर उनका आह्वान करती हूँ। आह्वान करते ही सेकेंड में उनकी छत्रछाया को मैं अपने ऊपर अनुभव करती हूं। *अपने चारों और फैले सर्वशक्तियों के रंग बिरंगे प्रकाश को मैं मन बुद्धि की आंखों से स्पष्ट देख रही हूँ*। ये प्रकाश मन को असीम शांति और सुकून का अनुभव करवा रहा है। सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और वायुमण्डल में फैल कर मन को असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहें हैं। *इस असीम आनन्द की अनुभूति करते करते अपने शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के झूले में बैठ, मैं आत्मा अपने लाइट के सूक्ष्म शरीर के साथ उड़ चलती हूँ*। और उड़ते उड़ते एक बहुत सुंदर उपवन में पहुंच जाती हूँ।
➳ _ ➳ चारों और फैली हरियाली, रंग बिरंगे फूंलो की खुशबू मन को आनन्दित कर रही है। उपवन में बैठी मैं प्रकृति के इस सुंदर नजारे का आनन्द ले रही हूं। तभी कानो में बांसुरी की मधुर आवाज सुनाई देती है औऱ *देखते ही देखते मेरे शिव पिता परमात्मा नटखट कान्हा के रूप में बाँसुरी बजाते हुए मेरे सामने आ जाते हैं*। उनके इस स्वरूप को देख मैं चकित रह जाती हूँ। धीरे धीरे बाँसुरी बजाते हुए मेरे नटखट गिरधर गोपाल मेरी गोदी में आ कर बैठ जाते हैं और अपने नन्हे हाथों को फैला कर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। *उनके नन्हे हाथों का कोमल स्पर्श पाकर मन उनके प्रति वात्सलय और प्यार से भर जाता है*। अपने नटखट कान्हा की माँ बन कर मैं उन्हें प्यार कर रही हूँ, उनकी लीलाओं का आनन्द ले रही हूं।
➳ _ ➳ स्वयं भगवान नटखट गोपाल का रूप धारण कर, मेरा बच्चा बन मुझे मातृत्व सुख का अनुभव करवा कर अपने लाइट माइट स्वरूप में अब मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं और फिर से अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों को बाहों में समेटे मुझे ऊपर की और ले कर चल पड़ते हैं। अपने सूक्ष्म आकारी फ़रिशता स्वरूप को सूक्ष्म वतन में छोड़, निराकारी आत्मा बन *अपने शिव पिता की बाहों के झूले में झूलते - झूलते मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम और उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया में जा कर बैठ जाती हूँ*। उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, तृप्त हो कर अब मैं वापिस साकारी लोक की ओर आ जाती हूँ और अपने साकारी तन में आ कर भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ नटखट गिरधर गोपाल के रूप में मेरे शिव पिता परमात्मा ने बच्चा बन कर जिस अविस्मरणीय सुख का मुझे आज अनुभव करवाया उसकी स्मृति बार बार मन को आनन्दित कर रही है। *उसी सुख को बार बार पाने की इच्छा से अब मैं शिव बाबा को अपना वारिस बनाये, तन मन धन से उन पर पूरा पूरा बलिहार जा कर 21 जन्मो के लिए उनसे अविनाशी सुख का वर्सा प्राप्त कर रही हूँ*। जैसे सुदामा में मुट्ठी भर चावल दे कर महल ले लिए ठीक उसी प्रकार इस एक जन्म में शिवबाबा को अपना वारिस बना कर उन पर बलिहार जाने से, मैं जन्म जन्म के लिए उनकी बलिहारी की पात्र आत्मा बन गई हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सन्तुष्टता के सर्टिफिकेट द्वारा भविष्य राज्य भाग्य का तख्त प्राप्त करने वाली सन्तुष्ट मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आपस में स्नेह और संतुष्टता सम्पन्न व्यवहार करने वाली सफलता मूर्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बाहर के साधनों द्वारा या सेवा द्वारा अपने आपको खुश करना - *यह भी अपने को धोखा देना है। बापदादा देखते हैं कभी-कभी बच्चे अपने को इसी आधार पर अच्छा समझ, खुश समझ धोखा दे देते हैं, दे भी रहे हैं।* दे देते हैं और दे भी रहे हैं। यह भी एक गुह्य राज है। क्या होता है, बाप दाता है, दाता के बच्चे हैं, तो सेवा युक्तियुक्त नहीं भी है, मिक्स है, कुछ याद और कुछ बाहर के साधनों वा खुशी के आधार पर है, *दिल* के आधार पर नहीं लेकिन *दिमाग* के आधार पर सेवा करते हैं तो सेवा का *प्रत्यक्ष फल* उन्हों को भी मिलता है; क्योंकि बाप *दाता* है और वह उसी में ही खुश रहते हैं कि *वाह हमको तो फल मिल गया, हमारी अच्छी सेवा है।* लेकिन वह *मन की सन्तुष्टता सदाकाल नहीं रहती और आत्मा योगयुक्त पावरफुल याद का अनुभव नहीं कर सकती, उससे वंचित रह जाते।*
➳ _ ➳ *बाकी कुछ भी नहीं मिलता हो, ऐसा नहीं है। कुछ-न-कुछ मिलता है लेकिन जमा नहीं होता।* कमाया, खाया और खत्म। इसलिए यह भी अटेन्शन रखना। सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं, फल भी अच्छा मिल गया, तो खाया और खत्म। *जमा क्या हुआ?* अच्छी सेवा की, अच्छी रिजल्ट निकली, लेकिन वह सेवा का फल मिला, जमा नहीं होता। इसलिए जमा करने की विधि है - *मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्रता। फाउन्डेशन पवित्रता है।* सेवा में भी फाउन्डेशन पवित्रता है। स्वच्छ हो, साफ हो। और कोई भी भाव मिक्स नहीं हो। *भाव में भी पवित्रता, भावना में भी पवित्रता।*
✺ *"ड्रिल :- मंसा में, चाहे वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में शुद्धि का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सूक्ष्मवतन में शिव बाबा के साथ एक रुहानी हाल में खडी हुई हूँ... जहाँ बहुत सुन्दर सुन्दर रूहानी रंगो से मूर्तियां रंगी हुई है एंव सफेद मोतियों से सजी हुई है मैने बाबा से पूछा *बाबा यह सुन्दर चित्र किसके है और किसने बनाये?* बाबा अपनी रूहानी नजरों से मुझ आत्मा को दिव्य साक्षात्कार करवा रहे कि *कैसे हम आत्मायें मोतियों से सजे हुए... हाथों में बासुरी लिये अपना दिव्य खेल खेल रहे है...* मुझ आत्मा को इन खूबसूरत चित्रों में खोया देख बाबा मुसकुरा कर कह रहे कि *यह रूहानी चित्र आप बच्चों के ही तो है जो बाबा दिन भर तैयार करता है इस उम्मीद के साथ कि एक दिन आप इन जैसे बन जाओगे...* मैं आत्मा अपने आँसूओं को चाहते हुए भी नही रोक पा रही और मन ही मन सोच रही कि *वाह मेरा भाग्य... वाह मेरे बाबा... कभी सपने में भी नही सोचा था कि तुम हमे मिल जाओगे और हमे विश्व की बादशाही दिलवाओगे... भला और किसी को क्या चाहिये, तुम मिल गए मानो सब मिल गया... शुक्रिया बाबा मुझे अपना बनाने के लिये...*
➳ _ ➳ कुछ देर बाद बाबा एक स्थान पर खड़े हो जाते हैं... और मैं आगे दौड़ जाती हूँ... जैसे ही मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो बाबा मुझसे दूर दिखाई देते हैं... मैं दौड़ते हुए बाबा के पास जा रही हूँ... बाबा ने कहा बच्ची पहले तुम सेवा करने के लिये तैयार हो जाओ... इतना कहकर बाबा सर्वप्रथम मुझे अपनी सतरंगी किरणों से नहलाकर सेवा करने के लिए तैयार कर रहे हैं... जैसे-जैसे ये सतरंगी किरणें मुझपर गिरती है... वैसे -वैसे मैं अपने आपको शक्तिशाली महसूस करने लगती हूँ... उनकी किरणों से नहाकर मैं अपने आपको संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... और *मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली आत्मा समझने लगी हूँ कि मुझे स्वयं भगवान ने विश्व परिवर्तन के कार्य में अपना सहयोगी बनाया है...*
➳ _ ➳ *अब मैं सर्व खजानों से भरपूर होकर विश्व परिवरतन के खेल में आगे बढ़ती चली जा रही हूँ... और अपने व्यर्थ संकल्पों को पीछे छोड़ती जा रही हूँ...* मेरा मन भी बच्चे की भांति एकदम निष्कपट और कोमल हो गया है... मैं खेल में और भी उत्साहित हो रही हूँ... उछल-कूद रही हूँ... मेरे मन में किसी के लिए भी कोई बैर-भाव नहीं है... बाबा के साथ खेल खेलते हुए मेरी मंसा, वाचा, कर्मणा सभी शुद्ध होते जा रहे हैं... मेरी स्थिति और भी ऊँची होती जा रही है... ये अनुभव करते हुए मैं और आगे दौड़ने लगती हूँ... बाबा मुझे फिर दूर खड़े होकर निहारने लगते हैं... और अपनी पलकों के इशारे से मुझे अपने पास बुलाते हैं...
➳ _ ➳ फिर दौड़कर मैं बाबा के पास जाती हूँ... और *बाबा मुझे संगम युग के महत्व के बारे में बता रहे हैं...* बाबा कहते हैं- "खेल-खेल में प्राप्त कर लो संगमयुग के सर्व खजाने, कहीं समय ना बीत जाये फिर बनाने लगो तुम बहाने..." मैं उछलती-कूदती हुई उनकी सभी कही गई बातों को अपने अंदर समां लेती हूँ... उनकी दी हुई सभी अनमोल शिक्षायें जीवन में उतार लेती हूँ... और गुलाब की तरह खिल जाती हूँ... मेरे जीवन में मैं संपूर्ण पवित्रता की झलक देखने लगती हूँ...
➳ _ ➳ तभी बाबा को मेरी नज़रे ढूंढ़ती है... बाबा खेल में मुझसे छुप जाते है... और मैं चुपके से उन्हें ढूंढ लेती हूँ... और मेरा मन बाबा के साथ खेलते हुए ये अनुभव कर रहा है... *मानों मैंने सबकुछ पा लिया हो...* मेरा मन अति आनंदित हो रहा है तथा अतिइंद्रिय सुख की अनुभूति करने लगती हूँ... और इसी आनंद और उत्साह से मैं अपने पुरुषार्थ में जुट जाती हूँ...
➳ _ ➳ मेरा मन एकदम बच्चे की तरह निष्कपट और कोमल बन गया है... मेरे संबंध-संपर्क में आने वाली सभी आत्माएं पावन बन रही हैं... *मैं मंसा, वाचा, कर्मणा, पवित्र बन चुकी हूँ...* मुझे सर्व खजाने के मालिक पन की अनुभूति हो रही है... अब मैं अन्य आत्माओं के प्रति शुभचिंतक बन उनको शुभ भावनाएं देती जा रही हूँ... मैं जितना-जितना सभी को शुभभावनाएँ देती जा रही हूँ... उतना ही मैं पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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