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❍ 20 / 05 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *नॉलेज की रौशनी द्वारा दुःख को सुख में परिवर्तित किया ?*
➢➢ *किसी भी परिस्थिति का शांति का स्वधर्म तो नहीं छोड़ा ?*
➢➢ *आत्माओं को चलन और चेहरे से प्यूरिटी की पर्सनालिटी व रॉयल्टी का अनुभव करवाया ?*
➢➢ *बाप के अटूट स्नेह व प्यार का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ समय प्रति समय वैभवों के साधनों की प्राप्ति बढ़ती जा रही है। *आराम के सब साधन बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन यह प्राप्तियां बाप के बनने का फल मिल रहा है। तो फल को खाते बीज को नहीं भूल जाना। आराम में आते राम को नहीं भूल जाना। सच्ची सीता रहना।* मर्यादा की लकीर से संकल्प रूपी अंगूठा भी नहीं निकालना *क्योंकि यह साधन बिना साधना के यूज करेंगे तो स्वर्ण-हिरण का काम कर लेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सुखदाता का साथी हूँ"*
〰✧ ऐसा अनुभव होता है कि सुखदाता बाप के साथ सुखी बच्चे बन गये हैं? बाप सुखदाता है तो बच्चे सुख स्वरुप होंगे ना? कभी दु:ख की लहर आती है? *सुखदाता के बच्चों के पास दु:ख आ नहीं सकता। क्योंकि सुखदाता बाप का खजाना, अपना खजाना हो गया है। सुख अपनी प्रापर्टी हो गई। सुख, शान्ति, शक्ति, खुशी - आपका खजाना है। बाप का खजाना सो आपका खाजाना हो गया। बालक सो मालिक हो ना!* अच्छा।
〰✧ भारत भी कम नहीं है। हर ग्रुप में पहुँच जाते हैं। बाप भी खुश होते हैं। पांच हजार वर्ष खोये हुए फिर से मिल जाएं तो किनती खुशी होगी। अगर कोई 10-12 वर्ष भी खोया हुआ भी फिर से मिलता है तो कितनी खुशी होती है! और यह 5 हजार वर्ष बाप और बच्चे अलग हो गये और अब फिर से मिल गये। इसलिए बहुत खुशी है ना। सबसे ज्यादा खुशी किसके पास है? सभी के पास है। क्योंकि यह खुशी का खजाना इतना बड़ा है जो कितने भी लेवें, जितने भी लेंवे, अखुट है। इसीलिए हर एक अधिकारी आत्मा है। ऐसे हैं ना? संगमयुग को कौन-सा युग कहते हैं? *संगमयुग खुशी का युग है। खजाने-ही–खजाने हैं, जितने खजाने चाहो उतना भर सकते हो। धनवान भव का, सर्व खजाने भव का वरदान मिला हुआ है। सर्व खजानों का वरदान प्राप्त है। ब्राह्मण-जीवन में तो खुशियां-ही-खुशियां हैं।* यह खुशी कभी गायब तो नहीं हो जाती है? माया चोरी तो नहीं करती है खजानों की?
〰✧ जो सावधान, होशियार होता है उसका खजाना कभी कोई लूट नहीं सकता। जो थोड़ा-सा अलबेला होता है उसका खजाना लूट लेते हैं। आप तो सावधान हो ना, या कभी-कभी सो जाते हो? कोई सो जाते हैं तो चोरी हो जाती है ना। अलबेले हो गये। सदा होशियार, सदा जागती ज्योति रहे तो माया की हिम्मत नहीं जो खजाना लूट कर ले जाऐ। अच्छा - जहां से भी आये हो सब पद्मापद्म भाग्यवान् हो! *यही गीत गाते रहो - सब कुछ मिल गया। 21 जन्मों के लिए गारंटी है कि ये खजाने साथ रहेंगे। इतनी बड़ी गारंटी कोई दे नहीं सकता। तो यह गारंटी कार्ड ले लिया है ना! यह गारंटी कार्ड कोई रिवाजी आत्मा देने वाली नहीं है। दाता है, इसलिए कोई डर नहीं है, कोई शक नहीं है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आप, जैसा नाम वैसा काम करने वाले, जैसा संकल्प वैसा स्वरूप बनने वाले सच्चे वैष्णव हो, ऐसे सच्चे वैष्णवों को क्या कोई छू सकने का साहस कर सकता है? *अगर छू लेते हैं, तो छोटे - मोटे पाप बनते जानते हैं।*
〰✧ ऐसे सूक्ष्म पाप, आत्मा को ऊँच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं। क्योंकि *पाप अर्थात बोझ, वह फरिश्ता बनना नहीं देते, बीज रूप स्थिति व वानप्रस्थ स्थिति में स्थित होने नहीं देते।*
〰✧ आजकल मैजारिटी महारथी कहलाने वाले भी, अमृतवेले की रूह - रिहान में, वह कम्पलेन्ट करते हैं व प्रश्न पूछते हैं कि *पाँवरफुल स्टेज जो होनी चाहिए, वह क्यों नहीं होती?* थोड़ा समय वह स्टेज क्यों रहती है? *इसका कारण यह सूक्ष्म पाप है, जो बाप समान बनने नहीं देते हैं।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *'इच्छा मात्रम अविद्या' अर्थात् सम्पूर्ण शक्तिशाली बीज रूप स्थिति। जब तक मास्टर बीज रूप नहीं बनते, बीज के बिना पत्तों को कुछ प्राप्ति नहीं हो सकती। बीज रूप स्थिति द्वारा शक्तियों का दान दो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सुख, शांति और पवित्रता के तीन अधिकार"*
➳ _ ➳ सेन्टर में बाबा के कमरे में, लवलीन अवस्था में बैठी मैं प्रभु पंसद आत्मा दिलाराम बाबा को दिल के मीठे जज्बात ब्या कर रही हूँ... *जो प्यार मिला मुझे तुमसे वर्णन करूँ मैं कैसे मुख से... ये दिल जानता है बाबा दिखता है जो नैनों के नूर से... वर्णन करूँ मैं कैसे मुख से...* सब कुछ भूल एक उसके प्यार में खो चुकी हूँ... बस एक बाबा... प्यार के सागर बाबा भी मुझ आत्मा पर प्रेम की किरणों की वर्षा कर रहे है... अतिइन्द्रिय सुख के झूले मे मैं आत्मा झूल रही हूँ... मुझ आत्मा की चमक ओज तेज बढ़ता जा रहा है... बेहद आंनद में मैं आत्मा झूम रही हूँ... और फिर बाबा मुझ आत्मा का हाथ पकड़ मुझे ज्ञान डांस कराने लगते है...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा पर ज्ञान वर्षा करते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले फूल बच्चे मेरे... माया मौसी ने किस कदर था तुम्हें देह और देह सम्बन्धों के जंजाल में फंसाया... झूठी आकर्षणों में था तुम्हें बहकाया... सुख-शांति पवित्रता के अधिकार से था तुम्हें वंचित कराया... ऐसी घड़ी में पुनः सुख का सागर है धरा पर आया... *स्वर्ग की स्थापना कर तुम्हें फिर से सुख-शांति पवित्रता के तीन अधिकार... है तुम्हें देने आया..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर कहती हूँ :-* "मीठे दिल के सच्चे सहारे बाबा मेरे... आपने स्मृतियों की रोशनी देकर माया के जंजाल से है मुझे बाहर निकाला... *आपकी श्रीमत पर चल पुनः अपने खोये अधिकार को पा रही हूँ... आप की आज्ञा पर चल स्वयं को पवित्र बना... ऐसे कमल समान जीवन से अनेक जन्मों के लिए सुख-शांति पवित्रता का अधिकारी स्वयं को बना रही हूँ...* इन सच्चे अपने मूल अधिकारों को पाकर सच्ची अमीरी से भरती जा रही हूँ..."
❉ *लाडले बाबा ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करते हुए कहते है :-* "प्यारे राजदुलारे बच्चे मेरे... रहमदिल बाबा माया की गुलामी से है तुम्हें छुडाने आया... *अब इस देह भान से निकल स्वयं के सत्य स्वरूप में खो जाओ... आप देह नहीं, चमकती मणि हो इसकी याद में गहरे डूब जाओ...* निराकार पिता की यादों मे खो जाओ... और इस प्रकार सुख-शांति पवित्रता के तीन अधिकार 21 जन्म के लिए पाओं..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से सज-धज कर कहती हूँ :-* "मीठे मनमीत बाबा मेरे... आपने मुझ आत्मा को माया की गुलामी से छुड़ा स्वतंत्र पंछी है बनाया... कितना बेशुमार कितना शानदार आपने मेरे भाग्य को है बनाया... खो कर आपकी मीठी यादों में सच्ची कमाई करती जा रही हूँ... *इस याद की बहार से ही 21 जन्मों के लिए स्वयं को सुख-शांति पवित्रता के अधिकारी बनाती जा रही हूँ..."*
❉ *मीठे बाबा ज्ञान की अथाह सम्पदा देकर मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे विश्व कल्याणकारी बच्चे मेरे... ईश्वर पिता की मीठी गोद में बैठ, देह के मटमैले आकर्षण से निकलकर, अपनी आत्मिक तरंगों के आनंद में डूब जाओ... सुख-शांति पवित्रता की किरणों से स्वयं को सजाओं... *इस प्रकार स्वयं सुख-शांति पवित्रता के अधिकारी बन दूसरों को भी बनाओं... सबको ये तीन अधिकार दिलाने की सेवा निरंतर करते जाओ...."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान की अथाह सम्पदा पाकर नशे से कहती हूँ :-* "प्यारे ज्ञान सागर बाबा मेरे... आप आये तो जीवन में बहार आ गयी... कितने रंगों से आपने मेरे जीवन को भर दिया है... *बनकर आप के समान मैं आत्मा सुख-शांति की अधिकारी बन, सबको बना रही हूँ...* सुख-शांति पवित्रता के ये तीन अधिकार सबको दिला रही हूँ... ऐसी सेवा कर मैं आत्मा आपको प्रत्यक्ष करती जा रही हूँ...."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- नॉलेज की रौशनी द्वारा दुःख को सुख में परिवर्तित करना*
➳ _ ➳ एक खुले स्थान पर एकान्त में बैठी मैं अपने मन मे चल रहे विचारों पर ध्यान केंद्रित करती हूँ और महसूस करती हूँ कि दिन भर कितनी परिस्थितियां, कितनी घटनाये हर पल घटित होती रहती है जो मुझे हलचल में ले आती हैं। *उन परिस्थितियों और घटनाओं के बारे में विचार करते हुए वो विभिन्न दृश्यों के रूप में सिनेमा की भांति एक - एक करके आँखो के सामने उभर आते हैं*। उनमे से कुछ दृश्य मन मे दुख की लहर उतपन्न कर रहें हैं। उनसे बचने का मैं प्रयास करती हूँ और उन्हें ना देखने के लिए अपनी आंखों को बंद कर लेती हूँ। किन्तु एकाएक *मेरे प्यारे पिता द्वारा दिया हुआ सत्य ज्ञान उस दुख रूपी अंधेरे में जैसे प्रकाश की किरण बन कर उस अंधेरे को चीरता हुआ उसे समाप्त कर देता है*।
➳ _ ➳ ज्ञान की रोशनी ढाल बन के मुझे उस दुख से बाहर निकाल लेती हैं और मन में खुशी का संगीत फिर से बजने लगता है। *दुख के वातावरण में भी सुख का अनुभव कराने वाले सुखदाता मेरे पिता द्वारा मिली हुई नॉलेज दुख को सुख में और क्यों, क्या, कैसे की क्यू को समाप्त कर उसे वाह - वाह में परिवर्तित कर देती है*। नॉलेज की रोशनी जो ज्ञान सागर शिव बाबा ने आकर दी है उसके लिए कोटि - कोटि दिल से मैं बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ और उन सभी घटनाओं को विस्मृत कर, गहन सुख का अनुभव करने के लिए अपने सुखसागर बाबा की मीठी याद में मन बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ अपने सत्य स्वरूप में स्थित होते ही देह से जुड़ी दुख देने वाली सभी बातों से मैं धीरे - धीरे स्वयं को उपराम अनुभव करने लगती हूँ और एक सुखद अहसास के साथ स्वयं को देह से डिटैच करके, भृकुटि की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ। *एक चमकती हुई ज्योति के रूप में, अपनी रंग बिरंगी किरणो को चारों और फैलाती हुई, अपनी दिव्य आभा द्वारा अपने आस - पास के वायुमण्डल को दिव्य और अलौकिक बनाती हुई मैं मस्तक मणि आत्मा ऊपर आकाश की ओर उड़ान भरती हूँ*। अपने सुख सागर बाबा से स्नेह मिलन मनाने की उत्कंठा मन मे लिए, उस मंगल मिलन के खूबसूरत अहसास को अपने समृति पटल पर लाकर, उसका अनुभव करती हुई मैं धीरे - धीरे आकाश को पार कर उससे ऊपर सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने प्यारे पिता के पास उनके परमधाम घर मे पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ चारों और जगमग करती, चमकती हुई चैतन्य मणियों के प्रकाश और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणों के अनन्त प्रकाश से प्रकाशित अपने इस परमधाम घर में पहुंच कर एक अद्भुत परमआनन्द की सुखद अनुभूति में मैं खो जाती हूँ। *गहन सुख और शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स को स्वयं में समाहित करती हुई, सुख के सागर अपने शिव पिता के सुख की शीतल लहरों का आनन्द लेने के लिए अब मैं धीरे - धीरे उनके पास जाती हूँ और जा कर उन्हें टच करती हूँ*। सुख की किरणो का शक्तिशाली झरना तेजी के साथ मुझ आत्मा के ऊपर प्रवाहित होने लगता है। ऐसा लग रहा है जैसे सुख सागर अपने शिव पिता के सुख की लहरों में गहराई तक समा कर मैं उनके समान मास्टर सुख का सागर बन गई हूँ।
➳ _ ➳ अपने इस मास्टर सुख सागर स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार शरीर रूपी रथ पर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण जीवन मे,अब मैं दुख की लहर उतपन्न करने वाली हर परिस्थिति पर, अपने वास्तविक सुख स्वरूप की स्मृति द्वारा सहज ही विजय प्राप्त करती जा रही हूँ*। दुख की हर परिस्थिति को अपने सुख सागर शिव पिता से प्राप्त अधिकार द्वारा दुख की परिस्थितियों में भी "वाह मीठा ड्रामा वाह" "वाह हर एक पार्टधारी का पार्ट" इस नॉलेज की रोशनी द्वारा दुख को सुख में परिवर्तित कर रही हूँ। *अधिकार की खुशी द्वारा दुख के अंधकार को समाप्त कर, मास्टर सुख दाता बन, सुख के झूले में झूलते हुए, अपने सुख के वायब्रेशन्स द्वारा दुखी आत्माओं के दुखों को हरकर, उन्हें भी सुख की अनुभूति करवा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर को जान मायाजीत बनने वाली मास्टर त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सरलता का गुण धारण कर संगठन में बहुत सहजता से चलने वाली सरल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳. बापदादा आज बच्चों की चतुराई के खेल देख रहे थे। याद आ रहे हैं ना अपने
खेल! *सबसे बड़ी बात दूसरे के अवगुण को देखना, जानना इसको बहुत होशियारी समझते
हैं। इसको ही नालेजफुल समझ लेते हैं। लेकिन जानना अर्थात् बदलना।* अगर जाना भी,
दो घड़ी के लिए नालेजफुल भी बन गये, लेकिन नालेजफुल बनकर क्या किया? *नालेज को
लाइट और माइट कहा जाता है,* जान तो लिया कि यह अवगुण है लेकिन नालेज की शक्ति
से अपने वा दूसरे के अवगुण को भस्म किया? परिवर्तन किया? बदल के वा बदला के
दिखाया वा बदला लिया? अगर नालेज की लाइट, माइट को कार्य में नहीं लाया तो क्या
उसको जानना कहेंगे, नालेजफुल कहेंगे? *सिवाए नालेज के लाइट। माइट को यूज़ करने
के वह जानना ऐसे ही है जैसे द्वापरयुगी शास्त्रवादियों को शास्त्रं की नालेज
है।*
✺ *"ड्रिल :- नॉलेज की शक्ति से अपने व दूसरे के अवगुण को भस्म करना"*
➳ _ ➳ ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच, हल्की-हल्की बारिश की फुहार के साथ... मैं सागर
के किनारे उसकी मचलती लहरों के पास बैठकर... मन के ताने-बाने से सागर की गहराई
को नापने की कोशिश कर रही हूँ... तभी *मेरा अंतर्मन उमंगों के पंख लगाकर
सूक्ष्म वतन पहुँच जाता है... जहाँ बाप दादा पवित्रता का ताज पहने मेरे सामनें
बाहें फैलाये खड़े हैं...*
➳ _ ➳ मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ... और बाबा के गले लग जाती हूँ... कुछ देर
बाद जैसे ही बाबा मेरे सिर पर हाथ रखते हैं... मेरा समन्दर की लहरों के समान
दौड़ता हुआ मन एकदम शान्त हो जाता है... और बाबा से आती हुई शक्तिशाली किरणों को
अपने अंदर समाने लगती हूँ... और *बाबा मुझे अपनी शक्तियों द्वारा नॉलेजफुल बना
रहे हैं... मैं अंतर्मन की गहराई से सारा ज्ञान अपने अंदर समाती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *जैसे-जैसे मेरे अंदर बाबा द्वारा दिया ज्ञान समाता जा रहा है... मैं
अनुभव करती हूँ... मैं बिल्कुल हल्की हो गई... मुझे अपने आप में और सभी आत्माओं
में सिर्फ और सिर्फ गुण ही नज़र आ रहे हैं...* मेरे अवगुण समाप्त होते जा रहे
हैं... अब मैं नॉलेजफुल बनकर उमंग-उत्साह के पंख लगाकर अपने आसपास रहने वाली
सभी आत्माओं के अवगुण नॉलेज की शक्ति द्वारा समाप्त करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *नॉलेज की लाइट और माईट द्वारा मैं अपना और अन्य आत्माओं का कल्याण करती
चली जा रही हूँ...* बाबा ने मुझे जो ज्ञान दिया उसको मैं अपने जीवन में साक्षात
अनुभव कर रही हूँ... फिर इस संसार की दुःखी अन्य आत्मायें जो द्वापर युगी
शास्त्रों में फंसी हुई थी उन्हें नॉलेज द्वारा सही रास्ता दिखा रही हूँ...
हजारों आत्मायें अपने खोये हुए आत्मविश्वास को पाकर धन्य हो रही हैं... उनको
इतना खुश देखकर अति हर्षित हो रही हूँ... और अब मैं एकदम हल्की होकर इस अलौकिक
स्थिति का आनन्द ले रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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