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 23 / 07 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बहुत बहुत मीठे बन सेवा की ?*

 

➢➢ *चलते फिरते कार्य करते बाप टीचर सतगुरु को याद किया ?*

 

➢➢ *त्याग और तपस्या के वातावरण द्वारा विघन विनाशक बनकर रहे ?*

 

➢➢ *स्व स्थिति की शक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *हर व्यक्ति को, बात को पॉजिटिव वृत्ति से देखो, सुनो या सोचो तो कभी जोश या क्रोध नहीं आयेगा।* आप मास्टर स्नेह के सागर हो तो आपके नयन, चैन, वृत्ति, दृष्टि में जरा भी और कोई भाव नहीं आ सकता, इसलिए चाहे कुछ भी हो जाये, *सारी दुनिया क्यों नहीं आप पर क्रोध करे लेकिन मास्टर स्नेह के सागर दुनिया की परवाह नहीं करो। बेपरवाह बादशाह बनो, तब आपकी श्रेष्ठ वृत्तियों से शक्तिशाली वायुमंडल बनेगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विजयी रत्न हूँ"*

 

  सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करते हो? सदा विजयी बनने का सहज साधन क्या है? *सदा विजयी बनने का सहज साधन है-एक बल एक भरोसा। एक में भरोसा और उसी एक भरोसे से एक बल मिलता है। निश्चय सदा ही निश्चिंत बनाता है।*

 

  अगर कोई समझते हैं कि मुझे निश्चय है, तो उसकी निशानी है कि वो सदा निश्चिंत होगा और निश्चिंत स्थिति से जो भी कार्य करेगा उसमें जरूर सफल होगा। *जब निश्चिंत होते हैं तो बुद्धि जजमेन्ट यथार्थ करती है। अगर कोई चिंता होगी, फिक्र होगा, हलचल होगी तो कभी जजमेन्ट ठीक नहीं होगी।*

 

  तराजू देखा है ना। तराजू की यथार्थ तौल तब होती है जब तराजू में हलचल नहीं हो। *अगर हलचल होगी तो यथार्थ नहीं कहा जायेगा। ऐसे ही, बुद्धि में अगर हलचल है, फिक्र है, चिन्ता है तो हलचल जरूर होगी। इसीलिए यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जो चैलेन्ज करते हो - सेकण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो, उसको प्रैक्टिकल में लाने लिए तैयार हो? *स्व-परिवर्तन की गति सेकण्ड तक पहुँची है?* क्या समझते हो? पुराना वर्ष समाप्त हो रहा है, नया वर्ष आ रहा है, अभी संगम पर बैठे हो।

 

✧  तो *पुराने वर्ष में स्व-परिवर्तन व विश्व परिवर्तन की गति कहाँ तक पहुँची है?* तीव्र गति रही? रिजल्ट तो निकालेंगे ना? तो इस वर्ष की रिजल्ट क्या रही? स्व-प्रति, सम्बन्ध और सम्पर्क प्रति वा विश्व की सेवा के प्रति।

 

✧  इस वर्ष का लक्ष्य मिला? जानते है ना। उडता पंछी वा उडती कलातो इसी लक्ष्य प्रमाण गति क्या रही? *जब सबकी गति सेकण्ड तक पहुँचेगी तो क्या होगा? अपना घर और अपना राज्य, अपने घर लौटकर राज्य में जायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *स्व अभ्यास में अलबेले मत बनो। क्योंकि अन्त में विशेष शक्तियों के अभ्यास की आवश्यकता है।* उसी प्रैक्टिकल पेपर्स द्वारा ही नम्बर मिलने हैं। *इसलिए फ़र्स्ट डिवीजन लेने के लिए स्व अभ्यास को फ़ास्ट करो। उसमें भी एकाग्रता के शक्ति की विशेष प्रैक्टिस करते रहो।* हंगामा हो और आप एकाग्र हो। साइलेन्स के स्थान और परिस्थिति में एकाग्र होना यह तो साधारण बात है, लेकिन चारों प्रकार की हलचल के बीच एक के अन्त में खो जाओ अर्थात् एकान्तवासी हो जाओ। *एकान्तवासी हो एकाग्र स्थिति में स्थित हो जाओ - यह है महारथियों का महान पुरुषार्थ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- तन-मन-धन से भारत को पावन बनाने की सर्विस करना"*

 

➳ _ ➳  *जन्मते ही बाबा से मैं आत्मा 3 तिलक की अधिकारी बनी, स्वराज्य तिलक... सर्विसएबुल का तिलक...  सर्व ब्राह्मण परिवार, बापदादा के स्नेही सहयोगी पन का तिलक...* जैसे ही मुझ आत्मा को स्मृति आई, कि मैं कौन... और किसकी... तन मन धन सब बाबा को अर्पित हो गया… *बाबा ने बताया बच्ची यह सब तुम्हें सेवा निमित मिला है, इसे सेवा अर्थ यूज करो...* अपना सर्वस्व सफल कर भाग्य को उच्च बनाओ... *बाबा की शिक्षाओं पर अटेंशन रखते बापदादा और सर्व ब्राह्मण परिवार के सहयोग द्वारा मैं आत्मा स्वयं को विश्व परिवर्तन करने की सेवा में बाबा का मददगार देख रही हूं...*  

 

❉  *सूक्ष्म वतन में मीठे बाबा मुझ आत्मा का हाथ थामे मुझ डबल लाइट फरिश्ते से बोले:-* "मीठी बच्ची... जिस प्रकार गोप गोपियों के सहयोग द्वारा श्री कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाते दिखाया है, अभी उसी सहयोग की आवश्यकता मुझ गोपी वल्लभ को आप गोप गोपिकाओं से है... *दुखों के पहाड़ को प्रभु परिवार द्वारा उठाने का यह अभी समय है..."*

 

➳ _ ➳  *पतित पावन बाबा की शिक्षाओं को स्वयं में उतारते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां बाबा... स्वदर्शन चक्रधारी बन मुझ आत्मा का भाग्य जाग उठा है... अभी मैं सर्विसएबुल आत्मा बन... सर्व को पावन बनाने की सेवा में तत्पर हूं... *निशदिन निशपल आप समान सेवा कर मैं आत्मा अपने भाग्य को उच्च बना रही हूं..."*

 

❉  *मीठे बाबा मुझ आत्मा को समझानी देते हुए बोले:- "मीठी बच्ची... सेवा में सफलता का मुख्य साधन निमित्त भाव है, मैं और मेरा अशुद्ध अहंकार हैं...* इसलिए जब मैं पन की स्मृति आये, तो खुद से पूछना मैं कौन?... और जब मेरा याद आये तो... तो बस मुझे याद कर लेना... इन्ही स्मृतियों से निरन्तर सहजयोगी और निरन्तर सेवाधारी रहोगे..."

 

➳ _ ➳  *मीठे बाबा की मीठी समझानी को स्वयं में उतारते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:- "हां मीठे बाबा... "मेरा बाबा" ये चाबी मुझ आत्मा को सभी हदों से पार किए हुए हैं,* बेहद में रह मैं आत्मा निर्विघ्न तन मन धन से सेवाएं देने में तत्पर हूं... *मुझ आत्मा का खुशनुमा चेहरा चलते-फिरते सेवा केंद्र का कार्य कर रहा हैं... हर किसी से आवाज आ रही है बाबा- तुम्हें बनाने वाला कौन?..."*

 

❉  *मीठे बाबा प्यार भरी फुहार मुझ आत्मा पर बरसाते हुए बोले:- "प्यारी बच्ची... यह वही रूद्र ज्ञान यज्ञ है जिसमें असुर विघ्न डालते हैं... लेकिन एक कर्म योगी सेवाधारी के लिए यह माना जैसे खेल है...* जैसे जैसे तुम इसमे पहलवान बनते जा रहे हो, माया भी अपना वार जोरों से कर रही है... लेकिन यदि *सदा सेवा में बिजी हो तो माया का वार हो नहीं सकता..."*

 

➳ _ ➳  *मीठे बाबा से सुहानी प्यारी दृष्टि लेते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "हां मीठे बाबा... मनसा वाचा कर्मणा तन मन धन संकल्प श्वांस सभी से मैं आत्मा सहयोगी हो हर पल हर दिन मैं आत्मा इन सभी खजानों को सफल कर रही हूं...* स्वर्णिम भारत का वह दृश्य जिसमें सभी जीव आत्माएं, प्रकृति पूरी सृष्टि सतोप्रधान है... दृश्य मुझ आत्मा की नजरों में घूम रहा है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- चलते फिरते कार्य करते बाप, टीचर सतगुरु को याद करना है*

 

➳ _ ➳  स्वयं भगवान की पालना में पलने वाली मैं कितनी महान, कितनी विशेष आत्मा हूँ, यह विचार करते, मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते हुए मैं अपने भगवान शिव बाबा का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करती हूँ और उनकी मीठी यादों में खो कर उनके बाप, टीचर और सतगुरु तीनो स्वरूपों को स्मृति में लाती हूँ। *बाप के रूप में उनसे मिलने वाले परमात्म प्यार को याद करते ही मन खुशी से झूमने लगता है और अपने भगय पर मुझे नाज़ होने लगता है कि जिस भगवान को दुनिया ढूंढ रही है वो मेरा बाप बन मुझ पर अपना अथाह स्नेह लुटा रहा है। टीचर के रूप में परमशिक्षक मेरे शिवबाबा मुझे परमधाम से आकर ऐसी अविनाशी पढ़ाई पढा रहे है जो भविष्य 21 जन्मों के लिए मेरी ऊँच प्रालब्ध बनाने वाली है और सतगुरु के रूप में मेरे बाबा की श्रीमत मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाकर, मुझे गति सदगति दिलाने वाली है*। अपने प्यारे भगवान के इन तीनो स्वरूपो को याद करते - करते, मेरी बुद्धि का योग परमधाम में रहने वाले मेरे बाबा के साथ सहज ही जुड़ने लगता है।

 

➳ _ ➳  मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरा मन बुद्धि धीरे - धीरे स्वत: ही एकाग्र होने लगे हैं। संकल्पो की गति धीमी हो गई है और मन में अपने प्यारे बाबा से मिलने की लगन तीव्र होने लगी है। *देह और देह की दुनिया से कनेक्शन टूट कर उस एक अपने प्यारे मीठे बाबा के साथ जुड़ गया है। मन बुद्धि का यह कनेक्शन जुड़ते ही मैं अनुभव कर रही हूँ उस परमात्म लाइट को अपने ऊपर पड़ते हुए जो परमधाम से नीचे आकर मेरे मस्तक को स्पर्श कर रही है*। यह परमात्म लाइट परमात्म शक्तियों को मेरे अंदर भरकर मुझे आप समान विदेही बना रही है। ऐसा लग रहा है जैसे देह और देह की दुनिया के साथ मेरा कोई रिश्ता, कोई सम्बन्ध नही। मेरा सम्बन्ध मेरा हर रिश्ता उस एक के साथ है जिसके साथ इस समय मेरी बुद्धि की तार जुड़ी हुई है। वो मेरे परम् पिता परमात्मा शिव बाबा ही मेरे जीवन का आधार है। *जीवन के सहारे अपने प्राणप्यारे बाबा के साथ कनेक्ट होकर, उनसे आ रही परमात्म लाइट की मैग्नेटिक पॉवर से आकर्षित हो कर मैं आत्मा अब उनके पास उनके परमधाम घर की ओर जा रही हूँ*।

 

➳ _ ➳  परमधाम से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे ऊपर खींच रही है और मैं आत्मा भृकुटि के भव्य भाल से निकल कर, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *हर बन्धन हर बोझ से मुक्त स्वयं को मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्कापन बहुत ही न्यारा और प्यारा है जो मन को गहन आनन्द प्रदान कर रहा है*। इस गहन आनन्द की अनुभूति करते - करते मैं आत्मा अब आकाश को पार करके, पहुँच गई हूँ सूक्ष्म देहधारी लाइट के फरिश्तो की दुनिया में जहां मैं देख रही हूँ *अपने सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप में अपनी बाहों को पसारे, बच्चो को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने की इंतजार में खड़े ब्रह्मा बाबा को। उन्हें देखते हुए, उनकी दृष्टि लेते हुए, मैं सूक्ष्म वतन को पार कर अब अपने परमधाम घर में पहुँच जाती हूँ*

 

➳ _ ➳  चारों और चमकती, जगमग करती चैतन्य मणियों की इस निराकारी दुनिया परमधाम में पहुँच कर मैं आत्मा असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, अपने बाप, टीचर, सतगुरु के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। हर संकल्प, विकल्प से मुक्त, एकदम निर्संकल्प अवस्था में मैं स्थित हूँ और बाबा को निहार रही हूँ। *मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर अपने बीज रूप पिता के सामने बैठ कर मैं आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ*।

 

➳ _ ➳  गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ*। चलते - फिरते हर कर्म करते अब मेरी बुद्धि का योग मेरे शिव पिता के साथ लगा रहता है। *बाप, टीचर सतगुरु के रूप में अपने प्यारे बाबा की  पालना, शिक्षाओं और श्रीमत को हर पल स्मृति में रखकर, उनकी याद में निरन्तर रहने का पुरुषार्थ अब मैं बिल्कुल सहज रीति करते हुए, अपने अनमोल संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्वांसों श्वांस सफल कर रही हूँ*

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं त्याग और तपस्या के वातावरण द्वारा  विघ्न विनाशक बनने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं स्वस्थिति की शक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सर्वंश त्यागी आत्मा किसी भी विकार के अंश के भी वशीभूत हो कोई कर्म नहीं करेगी। विकारों का रायल अंश स्वरूप पहले भी सुनाया है कि मोटे रूप में विकार समाप्त हो रायल रूप में अंश मात्र के रूप में रह जाते हैं। वह याद है ना! ब्राह्मणों की भाषा भी रायल बन गई है। अभी वह विस्तार तो बहुत लम्बा है। *मैं ही यथार्थ हूँ वा राइट हूँ - ऐसा अपने को सिद्ध करने के रायल भाषा के शब्द भी बहुत हैं। अपनी कमज़ोरी छिपाकर दूसरे की कमज़ोरी सिद्ध करने वा स्पष्ट करने का विस्तार करना, उसके भी बहुत रायल शब्द हैं। यह भी बड़ी डिक्शनरी हैं। जो वास्तविकता नहीं है लेकिन स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल हैं। वह विस्तार अच्छी तरह से सब जानते हो। सर्वन्श त्यागी की ऐसी भाषा नहीं होती - जिसमें किसी भी विकार का अंश मात्र भी समाया हुआ हो। तो मंसा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा विकारों के अंश मात्र से भी परेइसको कहा जाता है ‘सर्वंश त्यागी'। सर्व अंश का त्याग।*

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल नहीं बोलना।*

 

 _ ➳  बाबा को याद करते हुए मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं परमधाम... और बाबा से मिलकर बाबा को अपने साथ लेकर आ जाती हूं... *रिमझिम की एक फुहार बनकर नीचे आसमान में... मुझे वहां कुछ बादल दिखाई देते हैं... और मैं आ जाती हूं बादलों के अंदर... जैसे ही मैं बादल में प्रवेश करती हूं... बादल गहरे रंग के हो जाते हैं... और बादलों की गति बढ़ने लगती हैं... मैं बादलों में बैठकर उनकी गति को मन ही मन फील करती हूं... मुझे एहसास होता है... कि जैसे बाबा ने मुझमें इतनी शक्तियां भर दी हैं कि मैं अब इस धरा को अपने रिमझिम फुहार से हरी-भरी कर सकूं और बंजर जमीन से फसल का जीवन दान दे सकूं...और साथ ही उदास चेहरों पर हंसी ला सकूं...*

 

 _ ➳  *जैसे-जैसे बादलों की गति बढ़ती जाती है... वह आपस में एक दूसरे से टकराते हैं... और शिवबाबा बिजली बनकर चमकते हैं... और बाबा से शक्तियां लेकर मैं बारिश की फुहार बनकर इस धरा पर बरसने लगती हूं... और ऐसा प्रतीत हो रहा है... मानों सभी आत्माएं जन्म जन्म की प्यासी हो... और मुझसे वरदानों की बारिश करने के लिए कह रही हो...* मैं अपनी शक्तियों की वर्षा उन पर करने लगती हूं... तभी मैं अचानक देखती हूं कि... एक स्थान पर कुछ आत्माएं बैठी हुई है... और एक आत्मा आगे बैठकर उन्हें कुछ पढ़ा रही है... और मैं देखती हूं कि... वह सभी आत्माएं उस एक आत्मा की बातें बहुत गहराई से और प्यार से सुन रही है...

 

 _ ➳  परंतु कुछ समय बाद मैं देखती हूं कि... वह आत्मा अपने आप को देहभान में लाते हुए... बाबा की श्रीमत को पूरा फॉलो नहीं करते हुए... उन सभी आत्माओं को अपने ज्ञान अभिमान करते हुए... कुछ बातें बता रही है... वह अपनी मन बुद्धि में परमात्मा को शामिल नहीं करते हुए सिर्फ अपनी मनमत से आत्माओं को कुछ बातें बताने की चेष्टा कर रही है... परंतु उसके सामने बैठी सभी आत्माएं कुछ असंतुष्ट सी नजर आ रही है... मेरा जैसे ही ध्यान उन आत्माओं पर जाता है... मैं उनकी भावनाओं को समझ जाती हूँ... और *बाबा से लगातार शक्तियां लेते हुए बारिश की फुहार बनकर सामने बैठी उस आत्मा के मन बुद्धि में प्रवेश कर जाती हूँ... और मैं उस आत्मा के मुख मंडल द्वारा उन सभी आत्माओं को कहती हूं कि... मैं आज जो कुछ भी हूं जो कुछ भी मुझे ज्ञान मिला है वह सिर्फ परमात्मा के द्वारा ही मिला है...*

 

 _ ➳  और मैं कहती हूं कि मुझे परमात्मा रोज नया नया ज्ञान मुरली द्वारा देते हैं... जिससे मैं श्रीमत का पूर्ण रुप से पालन कर पाती हूं... मैं जो भी कुछ ज्ञान सुना रही हूं वह सिर्फ और सिर्फ परमात्मा द्वारा दिए हुए श्रीमत के कारण ही सुना पा रही हूं... इतना कहकर मैं उस आत्मा की मन बुद्धि से वापस बाहर निकल आती हूं... और मैं देखती हूं कि... वह आत्मा एकदम परिवर्तित हो चुकी है... और उस पर मेरे कहे हुए शब्दों का प्रभाव पड़ रहा है... और *वह परमात्मा का बार-बार धन्यवाद करते हुए उन आत्माओं को बाबा के ज्ञान द्वारा संतुष्ट करने का पुरुषार्थ कर रही है... वह अपने आप को सिद्ध करने के लिए किसी भी प्रकार के मनमत का साथ नहीं ले रही है... तथा मैं देखती हूं कि... वहां बैठी सभी आत्माएं एकदम शीतल भाव से, शांत भाव से संतुष्ट होकर उस आत्मा की बातें सुन रही है...*

 

 _ ➳  वहां का यह चित्र देखकर मेरा मन अति हर्षित हो रहा है... और मैं परमात्मा को लगातार अपने साथ अनुभव कर रही हूं... और रिमझिम फुहार से और परमात्मा द्वारा दी हुई शक्तियों को रिमझिम फुहार में परिवर्तन कर... इस पूरे संसार में फैला रही हूं... क्रोध में जलती हुई आत्माएं और सभी असंतुष्ट आत्माएं श्रीमत से बाहर जाती आत्माएं सभी अपने साथ परमात्मा को अनुभव करने लगती है... और मैं यह चित्र देखकर बाबा को धन्यवाद करती हूं... फिर से अपने आप को उस बादल से निकालकर इस देह में विराजमान कर लेती हूं... और इस देह में विराजमान होते-होते *मैं अपने आप से यह वादा करती हूं... कि मैं पुरुषार्थ की राह में कभी भी अपने आप को सिद्ध करने के लिए मनमत का सहारा नहीं लूंगी... और सदा पुरुषार्थ में श्रीमत की राह पर चलूंगी... इसी भाव से मैं इस सृष्टि पर अपनी वाइब्रेशन फैलाने लगती हूं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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