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 31 / 03 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान धन का दान किया ?*

 

➢➢ *सबकी याद भुलाकर एक बाप को सत्य बाप, सत्य टीचर और सतगुरु के रूप में याद किया ?*

 

➢➢ *बिंदु रूप बाप की याद से हर सेकंड कमाई जमा की ?*

 

➢➢ *बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़ हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *आप अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को सिद्ध कर सकते हो।* वह रिद्धि सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी। *वह रिद्धि सिद्धि यूज करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्भय, निर्वैर हूँ"*

 

  आप सब बच्चे 'निर्भय' हो ना। क्यों? क्योंकि आप सदा 'निर्वैर' हो। *आपका किसी से भी वैर नहीं है। सभी आत्माओंके प्रति भाई-भाई की शुभ भावना, शुभ कामना है। ऐसी शुभ भावना, कामना वाली आत्मायें सदा निर्भय रहती हैं।* भयभीत होने वाले नहीं। स्वयं योगयुक्त स्थिति में स्थित हैं तो कैसी भी परिस्थिति में सेफ जरूर हैं1 तो सदा सेफ रहने वाले हो ना?

 

 

  *बाप की छत्रछाया में रहने वाले सदा सेफ है। छत्रछाया से बाहर निकले तोफिर भय है। छत्रछाया के अन्दर निर्भय हैं। कितना भी कोई कुछ भी करे लेकिन बाप की याद एक किला है।* जैसे किले के अन्दर कोई नहीं आ सकता, ऐसे याद के किले के अन्दर सेफ। हलचल में भी अचल। घबराने वाले नहीं। यह तो कुछ भी नहीं देखा। यह रिहर्सल है। रीयल तो और है। रिहर्सल पक्का कराने के लिए की जाती है। तो पक्के हो गये, बहादुर हो गये?

 

  बाप से लगन है तो कैसी भी समस्याओंमें पहुँच गये। *समस्या जीत बन गये लगन निर्विग्न बनने की शक्ति देती है। बस सिर्फ 'मेरा बाबा' यह महामंत्र याद रहे। यह भूला तो गये। यही याद रहा तो सदा सेफ हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अव्यक्त में सर्वीस कैसे होती है? यह अनुभव होता जाता है? अव्यक्त में सर्वीस का साथ कैसे सदैव रहता है। यह भी अनुभव होता है? जो वायदा किया है कि स्नेही आत्माओं के हर सेकण्ड साथ ही है। ऐसे सदैव साथ का अनुभव होता है? *सिर्फ रूप बदला है लेकिन कर्तव्य वही चल रहा है*।

 

✧  *जो भी स्नेही बच्चे है उन्हों के ऊपर छत्र रुप में नजर आता है* छत्रछाया के नीचे सभी कार्य चल रहा है। ऐसी भासना आती है।  व्यक्त से अव्यक्त, अव्यक्त से व्यक्त में आना यह सीढी उतरना और चढना जैसे आदत पड गयी है। अभी - अभी वहाँ , अभी - अभी यहाँ। जिसकी ऐसी स्थिती हो जाती है , अभ्यास हो जाता है जो उसको यह व्यक्त देश भी जैसे अव्यक्त भासता है। स्मृती और दृष्टी बदल जाती है।

 

✧  सभी एवररेडी बनर बैठे हुए हो? कोई भी देह के हिसाब - किताब से भी हल्का। वतन में शुरू - शुरू में पक्षियों कि खेल दिखलाते थे, पक्षीयों को उडाते थे। वैसे आत्मा भी पक्षी है, जब चाहे तब उड सकती है। वह तब हो सकता है जब अभ्यास हो। *जब खुद उडता पक्षी बनें तब औरों को भी एक सेकण्ड में उडा सकते है*। अभी तो समय  लगता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आकार को देखते निराकार को देखने का अभ्यास हो गया है? जैसे बाप आकार में निराकार आत्माओं को ही देखते हैं, वैसे ही बाप समान बने हो? *सदैव जो श्रेष्ठ बीज़ होता है उसी तरफ ही दृष्टि और वृत्ति जाती है। तो इस आकार के बीच श्रेष्ठ कौन-सी वस्तु है? निराकार आत्मा। तो रूप को देखते हो व रूह को देखते हो?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान और योगबल से पुराने पापों के खाते को चुक्तु कर नया पुण्य का खाता जमा करना"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सबेरे-सबेरे बगीचे की सैर करते हुए प्रकृति के सौन्दर्य को निहार रही हूँ...*  ठंडी-ठंडी हवाएं फूलों की खुशबू को पूरे बगीचे में फैला रही हैं... आम के पेड़ पर बैठी कोयल कुहू-कुहू करती मेरे स्वागत में मीठे गीत गा रही है... मेरे मन को लुभा रही है... एक छोटे से बीज से उत्पन्न ये पेड़ कितने बड़े हो गए हैं... इनको देख बीज रूपी परमात्मा और सृष्टि रूपी झाड़ स्मृति में आ जाते हैं... *तुरंत मैं आत्मा उड़ चलती हूँपरमधाम... बीजरूप बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से दिव्य शक्तिशाली किरणें निकल मुझ आत्मा पर पड़ती जा रही हैं... और मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं...* फिर मैं आत्मा बिंदु, बिंदु बाबा के साथ सूक्ष्मवतन में आ जाती हूँ... ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर शिवबाबा विराजमान हो जाते हैं और मैं फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर उनसे प्यारी शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...

 

  *ज्ञान और योगबल से विकर्मो को भस्म कर श्रेष्ठ कर्मो के लिए श्रीमत देते हुए ज्ञान के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को दुखो में कितना पुकारा है... *अब जो भगवान इतना सहज मिला हैतो श्रीमत पर चलकर अपने कर्मो को खुबसूरत बनाओ... यादो की खुमारी में खोकर अपने विकर्मो को खत्म करजमा का खाता बढ़ाओ...* सच्चे प्रेम को हर घड़ी जीने वाले ईश्वरीय प्रेम के पर्याय बन जाओ..."

 

 _ ➳  *अमूल्य ज्ञान रत्नों से मेरे भाग्य को अमूल्य बनाने वाले प्राण प्यारे बाबा को मैं भाग्यशाली आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की दुनिया में कितनी कर्म भ्रष्ट हो गयी थी... *आपने श्रेष्ठ दिव्य कर्मो से मेरा जीवन सुगन्धित किया है... आपने देह में धूल धूसरित सी मुझ आत्मा को अपने दिल में सजाकर... अमूल्य मणि बना दिया है...”*

 

  *यादों के इंद्रधनुषी किरणों से मुझे एवरहेल्दी, एवर वेल्दी बनाते हुए सुख के सागर मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय यादो में इस कदर डूब जाओ कि विकर्मो की कालिमा सहज निकल जाये...* और श्रीमत के हाथ को पकड़ देह के दलदल से सहज बाहर निकल... अपनी दिव्य सुंदरता से सज जाओ... मीठे बाबा की सुखदायी यादो में अनन्त सुखो से भर जाओ...

 

 _ ➳  *अनत खुशियों के खजानों से मालामाल होकर दिव्यता से श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सारे किये विकर्मो से मुक्त होकर फूलो जैसी खिलती जा रही हूँ... पुण्यो का खाता बढ़ाकर भीतर की सुंदरता को हर पल निखार रही हूँ... *आपकी यादो में सम्पूर्ण पवित्रता से सजधज कर सतयुगी स्वर्ग में आ रही हूँ...”*

 

  *अपने स्नेह भरी नजरों से मुझे निहाल कर विश्व का मालिक बनाते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय मत पर चलकर जीवन खुशियो से महकाओ... ईश्वर पिता की यादो में सारे पापो को खत्म कर... अपने तेजस्वी रूप को पुनः पाकर ईश्वरीय दिल में बस जाओ...*  एक के अंत में खो जाओ... और विश्व पिता से विश्व का राजभाग्य पाने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा पुराने सारे खाते खत्म कर नया पुण्य का खाता जमा कर नया भाग्य बनाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खूबसूरत भाग्य की धनी सी... ईश्वरीय बाँहो में मुस्करा रही हूँ... *मुझे प्यार करने, सच्ची राहो पर ऊँगली पकड़ चलानेईश्वरीय दौलत से दामन सजाने भगवान धरा पर उतर आया है... मै आत्मा दिव्य मणि सी चमक रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- और सबकी याद भुलाकर एक बाप को सत्य बाप, सत्य टीचर और सतगुरु के रूप में याद करना है*"

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया से किनारा कर, सभी देहधारियों की याद को भुलाकर मैं जैसे ही स्वयं को आत्मा निश्चय कर, आत्मिक स्मृति में स्थित हो जाती हूँ मन और बुद्धि केवल अपने शिव पिता परमात्मा की याद में मग्न हो जाते हैं। *उनके प्यार की उस मीठी सी लग्न में मग्न मैं आत्मा अब उनके तीन स्वरूपों को देख रही हूँ। पहला स्वरूप बाप के रूप में सोच कर मैं मन ही मन हर्षित होते हुए अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के गीत गा रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो डायरेक्ट उस ऑल माइटी अथॉरिटी, सारी सृष्टि को चलाने वाले भगवान की पालना में मैं पल रही हूँ* जिस भगवान के केवल एक दर्शन मात्र की सारी दुनिया प्यासी है।

 

_ ➳  यह विचार करते ही मेरे प्यारे बाबा का पिता का स्वरूप मेरे सामने आ जाता है और अपने प्यारे पिता के उस स्वरूप पर मन बुद्धि पूरी तरह से एकाग्र हो जाते हैं। *देख रही हूँ पिता के रूप में उनके उस मनोहारी स्वरूप को जो बिल्कुल मेरे ही समान एक चमकती हुई ज्योति के रूप में है*। केवल गुणों का अंतर है। वो सागर है और मैं स्वरूप हूँ। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अब मैं स्वयं को उनके पास परमधाम में देख रही हूँ।

 

_ ➳  जैसे एक छोटा बच्चा अपने पिता की छत्रछाया में अपने आपको सुरक्षित अनुभव करता है ऐसे मैं आत्मा बिंदु अपने बिंदु पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के अंदर स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर रही हूँ। *अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में भर कर एक पिता के समान वो अपना सम्पूर्ण स्नेह मुझ पर बरसा रहें हैं*। इस परमात्म स्नेह का अनुभव मुझे गहन अतीन्द्रीय सुख का अनुभव करवा रहा है। *पिता के स्वरूप में परमात्म पालना का सुखद अनुभव करके, पूरी तरह तृप्त होकर अब मैं अपने प्यारे बाबा का टीचर का स्वरूप देख रही हूँ*।

 

_ ➳  गॉडली स्टूडेंट के स्वरूप में स्थित मैं स्वयं को देख रही हूँ अपने प्यारे पिता परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन के हिस्ट्री हॉल में जहाँ भगवान अपने रथ, ब्रह्मा तन में विराजमान होकर ब्रह्मा मुख द्वारा अपने सामने विराजमान सभी गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण बच्चो को अविनाशी पढ़ाई पढा रहें हैं। *सभी स्टूडेंट शिव परमात्मा से अविनाशी ज्ञान रत्न लेकर अपने बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बना रहें हैं। जन्म जन्मांतर के लिए अपनी भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रहें हैं*। अपने प्यारे पिता की सत्य टीचर के रूप में मिलने वाली श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत पाकर अज्ञान अंधकार से निकल कर मैं आत्मा ज्ञान सोझरे में आ गई हूँ। हर प्रकार की भटकन से छूट गई हूँ।

 

_ ➳  यह विचार करते - करते अब मैं अपने प्यारे बाबा को सतगुरु के स्वरूप में देख रही हूँ। मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा देने वाले परम सतगुरु के रूप में अपने पिता परमात्मा का रूप मुझे हर भय से मुक्त कर रहा है। *मेरी जीवन रूपी नैया जो विषय सागर में गोते खा रही थी वो विषय सागर से निकल क्षीर सागर में जा रही है इस अहसास ने मेरे जीवन की हर दुविधा को समाप्त कर दिया है*। मेरे सच्चे सतगुरु की सच्ची शिक्षायें धर्मराज की सजाओ से मुक्त होने का मुझे सत्य मार्ग दिखा रही हैं इस अनुभूति के साथ अपने सच्चे सतगुरु पर मैं बलिहार जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा का बाप, टीचर और सतगुरु का स्वरूप अपने मन मे बसाये अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौटती हूँ।  अपने ब्राह्मण स्वरूप की स्मृति में स्थित होकर, देह और देहधारियों की याद भुलाकर अब केवल अपने प्यारे बाबा की याद में मैं हमेशा मगन रहती हूँ। *एक ही में तीनों स्वरूपों का अनुभव करते, बुद्धि को एक की ही याद में एकाग्र करके अब मैं हर पल परमात्म सँग में रहने का सौभाग्य प्राप्त कर अपने जीवन के हर पल को सफल कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं बिन्दुरुप बाप की याद में हर सेकन्ड कमाई जमा करने वाली पदमापदमपति आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक कर देने वाली श्रेष्ठ सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मन में बहुत कुछ आपके भरा हुआ है, *बापदादा के पास मन को देखने का टी.वी. भी है।* यहाँ यह टी.वी. तो बाहर का शक्ल दिखाती है ना। लेकिन *बापदादा के पास हर एक के हर समय के मन के गति का यन्त्र है। तो मन में बहुत खजाने हैं, बहुत शक्तियाँ हैं। लेकिन कर्म में यथाशक्ति हो जाता है। अभी कर्म तक लाओ, वाणी तक लाओ, चेहरे तक लाओ, चलन में लाओ।* तभी सभी कहेंगे, जो आपका एक गीत है ना, शक्तियाँ आ गई...। *सब शिव की शक्तियाँ हैं। पाण्डव भी शक्तियाँ हो। फिर शक्तियाँ शिव बाप को प्रत्यक्ष करेंगी।* अभी छोटे-छोटे खेलपाल बन्द करो। अब वानप्रस्थ स्थिति को इमर्ज करो। तो *बापदादा सभी बच्चों को, इस समय बापदादा की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के सितारे देख रहे हैं। कोई भी बात आवे तो यह स्लोगन याद रखना - 'परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन'।*

 

✺   *ड्रिल :-  "मन के खजानों को कर्म में लाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं शिव की शक्ति शिव शक्ति हूँ... अपने आप को इस स्वमान में स्थित कर मैं आत्मा अपने प्राणप्यारे शिव बाबा की यादों में खो जाती हूं...* "यादों के आँचल में बाबा बसा लो किरणों के आँचल में हमको समा लो... तुमसे तनिक दूर जाएं ना हम... तुम बिन कहीं रह ना पाएं अब हम..." अब मैं पहुँचती हूं... अपने फरिश्ताई स्वरूप में... बापदादा के पास... बाबा बड़े प्यार से मेरा स्वागत करते हैं... बाबा के चमकते ललाट से अद्भुत किरणें निकल मेरी सूक्ष्म काया पर आकर उसे अलौकिक रूप दे रही हैं... *बाबा मेरे सर पर वरदानी हाथ रख वरदान देतें हैं... विश्व परिवर्तक भव! शक्ति स्वरूपा भव! और मैं आत्मा अपने में इन वरदानो को समाहित होता देखती हूँ...*

 

 _ ➳  *मेरे मन बुद्धि में जैसे जैसे यह वरदान समाहित होते जाते है.. वैसे वैसे मैं आत्मा अपने को बेहद शक्तिशाली अनुभव करती जा रही हूं...* बाबा ने मेरे मन के ख़ज़ानों को मेरे सामने रख दिया है... मेरे स्वमान का सही स्वरूप और कार्य बाबा ने मुझे दिखाया है... *मुझे शिव शक्ति बन परिवर्तन करना है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की आशाओं का चमकता सितारा हूं... मैं शिव की शक्ति हूं... इसी दृढ़ निश्चय को लेकर मैं शक्ति स्वरूपा बन बाबा की दी हुई मेरे मन के खजाने में भरी इन शक्तियों को अपने कर्म में ला रही हूं...* अब ये शक्तियां मेरी चलन, चेहरे और वाणी में प्रत्यक्ष होती जा रही हैं... इन्हें देख इनसे प्रभावित हो अन्य आत्मायें भी परिवर्तित होती जा रही हैं...

 

 _ ➳  *अब हम सब आत्मायें विश्व को परिवर्तन करती शिव शक्तियां बन शिव बाबा की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजा रही हैं...* हम सभी बाबा की आशाओं को पूर्ण करने वाले सितारे बन पूरे आकाश में आच्छादित होते जा रहे हैं... *सम्पूर्ण नभ बाबा की आशाओं के सितारों से जगमगा उठा है...*

 

 _ ➳  नभ में तभी एक दिव्यता का, एक अलौकिकता का आभास होता है... यकायक नभमंडल की चमक हज़ारों लाखों गुना बढ़ जाती है... उस चमक से सभी सितारे और भी ज्यादा शोभायमान हो गए हैं... *दिखता है इन सब के बीच एक दिव्य सितारा! जिसके प्रकाश से सम्पूर्ण आकाश परिवर्तित हो गया है... और ये और कोई नहीं ये मेरे बाबा हैं...* जो अपने प्यारे सितारों का हौसला अफजाई करने अपना धाम छोड़ यहाँ आए हैं...

 

 _ ➳  *वाह वाह रे! मेरे बाबा... वाह वाह! तुम्हारा क्या कहना... और बाबा की याद में... बाबा के सितारे... गुनगुनाने लगते हैं...* "चमक चम चम चमके है... सितारो में तू ही... चमक चम चम..."

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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