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 07 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ "मैं आत्मा काल तख़्त नशीन हूँ" - इस स्मृति में रहे ?

 

➢➢ कर्म अकर्म विकर्म की गति को जान विकर्मों से बचकर रहे ?

 

➢➢ सेवा में स्नेह और सत्यता की अथॉरिटी का बैलेंस रखा ?

 

➢➢ मेरे को तेरे में परिवर्तित किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  एकान्तवासी अर्थात् कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होना। चाहे बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे लाइट-हाउस, माइट-हाउस स्थिति में स्थित हो जाओ अर्थात् विश्व को लाइट-माइट देने वाले-इस अनुभूति में स्थित हो जाओ। तो यह एक मिनट की स्थिति भी स्वयं को और औरों को भी बहुत लाभ दे सकती है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं नवजीवन वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ"

 

✧  अपने को नव जीवन अर्थात् ब्राह्मण जीवन वाली आत्मायें अनुभव करते हो? सभी ब्रह्मण आत्मायें हो? तो नये जीवन में आपकी जन्म पत्री बदल गयी है या थोड़ी-थोड़ी पुरानी भी है? तो ब्राह्मणों की जन्म पत्री क्या है? आदि देवी-देवता हो और अभी बी.के. हो ना, पक्के?

 

✧  तो आपकी रोज की जन्म पत्री क्या है? गुरुवार अच्छा है, बुद्धवार अच्छा नहीं है, क्या कहेंगे? (हर दिन अच्छा है) तो जन्म पत्री बदल गयी ना। ब्राह्मणों की जन्म पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छा है। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत-बहुत अच्छा।

 

✧  सिर्फ कहने मात्र नहीं लेकिन ब्राह्मण जीवन की जन्म पत्री सदा ही अच्छे से अच्छी है। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है। अपने तकदीर की लकीर देखी है? अच्छी है ना?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बाह्यमुखता में आना सहज है लेकिन अन्तर्मुखी का अभ्यास अभी समय प्रमाण बहुत चाहिए।

कई बच्चे कहते हैं - एकान्तवासी बनने का समय नहीं मिलता, अन्तर्मुखी स्थिति का अनुभव करने का समय नहीं मिलता क्योंकि सेवा की प्रवृत्ति, वाणी के शक्ति की प्रवृत्ति बहुत बढ़ गई है।

 

✧  लेकिन इसके लिए कोई इकट्ठा आधा वा एक घण्टा निकालने की आवश्यकता नहीं है। सेवा की प्रवृति में रहते भी बीच-बीच मे इतना समय मिल सकता है जो एकान्तवासी बनने का अनुभव करो। एकान्तवासी अर्थात कोई भी एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित होना चाहे बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे लाइटहाउस, माइट-हाउस स्थिति में स्थित हो जाओ अर्थात विश्व को लाइट-माइट देने वाले - इस अनुभूति में स्थित हो जाओ।

 

✧  चाहे फरिश्ते-पन की स्थिति द्वारा औरों को भी अव्यक्त स्थित का अनुभव कराओ। एक सेकण्ड वा एक मिनट अगर इस स्थिति में एकाग्र हो स्थित हो जाओ तो यह एक मिनट की स्थिति स्वयं आपको और औरों को भी वहुत लाभ दे सकती है। सिर्फ इसकी प्रैक्टिस चाहिए।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ किसी को भी देखते हो तो आत्मिक वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से मिलते हो। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अगर वृत्ति और दृष्टि में आत्मिक दृष्टि है तो सृष्टि कैसी लगेगी? आत्माओं की सृष्टि कितनी बढ़िया होगी। शरीर को देखते भी आत्मा को देखेंगे। शरीर तो साधन है। लेकिन इस साधन में विशेषता आत्मा की है ना। आत्मा निकल जाती है तो शरीर के साधन की क्या वैल्यु है। आत्मा नहीं है तो देखने से भी डर लगता है। तो विशेषता तो आत्मा की है। प्यारी भी आत्मा लगती है। तो ब्राह्मणों के संसार में स्वत: चलते-फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति है इसलिए कोई दु:ख का नाम-निशान नहीं। क्योंकि दु:ख होता है तो शरीर भान से। अगर शरीरभान को भूलकर आत्मिक-स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख-ही-सुख है। सुखदायी-सुखमय जीवन।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  सबको बाप का यथार्थ परिचय देना"
 
➳ _ ➳  अमृतवेले के मनमोहक मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए, सूर्य की, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली किरणों को निहार रही हूँ... और सोच रही हूँ कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को,गले लगाकर, मुझे गुणो और शक्तियो के श्रंगार से पुनः नई नवेली बना दिया है...और श्रंगारित करके, सीधे अपने दिल में सजा दिया है... भगवान के दिल की रानी बनकर, मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, भगवान के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ... इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मर्त कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... यही जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण कारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियो को, मीठे सुखो को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियो से हर दिल आँगन को भर आओ... सबके जीवन में सुखो की बहारो को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखो की अनुभूतियों से भरकर... यह अनुभव की दौलत, हर दिल पर, दिल खोलकर, लुटा रही हूँ... अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियो की अधिकारी बना रही हूँ...”
 
❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की देही अभिमानी स्थिति को पक्का कराते हुए कहा:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सतगुरु पिता से जो अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस सत्य को हर पल स्मर्तियो में बनाये रखो... तो हर साँस, हर संकल्प ईश्वरीय याद से खिल उठेगा... आत्मिक भाव में और सुखदायी पिता की याद में हर पल, समय सहज ही सफल हो जायेगा... और विकर्मो से सहज ही बचे रहेंगे...”
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी पालना में पलकर... असीम सुखो की मालिक बनकर... अपने प्यारे बाबा से, हर बिछड़े दिल को मिलाकर, असीम दुआओ की हकदार बन रही हूँ... देही अभिमानी बनकर, सबको सच्चे आनन्द की तरंगो लबालब कर रही हूँ... विकारो से मुक्त होकर, तेजस्वी बन रही हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सच्चे वजूद के नशे से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, अब हर साँस को ईश्वरीय यादो से पिरो दो... यह यादे ही, सच्चे सुखो का आधार है... जितना आत्मिक स्थिति को पक्का करेंगे... उतना विकर्मो से परे होते जायेंगे... देह के दलदल से सहज ही निकलकर, आत्मिक चमक से दमकेंगे... और ईश्वरीय यादो भरे, इन सच्चे अहसासो को,... ख़ुशी से हर दिल पर उंडेलेंगे...”
 
➳ _ ➳  मै आत्मा ईश्वरीय यादो के खजानो से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... मुझ आत्मा के जीवन में आकर, आपने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मै आत्मा हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिए हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनन्द और खुशियो के फूल खिला रही हूँ... सच्चे पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ..." मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनाये सुनाकर मै आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी...
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  कर्म - अकर्म - विकर्म की गति को जान विकर्मों से बचना है

➳ _ ➳  कर्मो की जिस गुह्य गति का ज्ञान भगवान से मुझे मिला है उस कर्म - अकर्म - विकर्म की गति को बुद्धि में रख अब मुझे अपने हर कर्म पर अटेंशन देते हुए इस बात का पूरा ध्यान रखना है कि अनजाने में भी मुझ से ऐसा कोई कर्म ना हो जो विकर्म बने। अपने हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए सबसे पहले मुझे अपने हर संकल्प को शुद्ध और श्रेष्ठ बनाना है। और इसके लिये अपने प्यारे पिता की आज्ञाओं को अपने जीवन मे धारण कर कदम - कदम श्रीमत पर चलने का मुझे पूरा अटेंशन रखना है। मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं अपने आप से और अपने प्यारे बाबा से प्रोमिस करती हूँ कि बिना सोचे समझे कोई भी कर्म अब मैं कभी नही करूँगी। हर कर्म करने से पहले चेक करूँगी कि वो श्रीमत प्रमाण है या नही!

➳ _ ➳  कर्म - अकर्म - विकर्म की गति को बुद्धि में रख अपने हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने की प्रतिज्ञा अपने प्यारे पिता से करके अब मैं कर्मो की अति गुह्य गति का ज्ञान देने वाले ज्ञानसागर अपने शिव बाबा की अति मीठी याद में मन बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ और अपने मन बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले अपने पिता से जोड़ लेती हूँ। जैसे बिजली का स्विच ऑन करते ही सारे घर मे प्रकाश फैल जाता है ऐसे ही स्मृति का स्विच ऑन करते ही परमधाम से परमात्म शक्तियों की लाइट सीधी मुझ आत्मा के ऊपर पड़नी शुरू हो जाती है और मेरे चारों तरफ एक अद्भुत दिव्य अलौकिक प्रकाश फैल जाता है। इस सतरंगी प्रकाश के खूबसूरत झरने के नीचे बैठी मैं महसूस करती हूँ जैसे धीरे - धीरे मैं शरीर के भान से मुक्त होकर एक बहुत ही न्यारी लाइट स्थिति में स्थित होती जा रही हैं। स्वयं को मैं बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  ये हल्केपन का निराला अनुभव मुझे देह के हर बंधन से मुक्त कर रहा है। देह रूपी डाली का आधार छोड़ मैं आत्मा पँछी बड़ी आसानी से ऊपर की ओर उड़ान भर रही हूँ और देह से निकल कर चमकती हुई अति सूक्ष्म ज्योति बन अपनी किरणों को बिखेरती हुई आकाश की ओर उड़ती जा रही हूँ। देह और देह की इस साकारी दुनिया को पार कर, मैं आकाश से ऊपर अब फरिश्तों की आकारी दुनिया से होकर अपनी निराकारी दुनिया में पहुँच गई हूँ। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया अपने इस शान्तिधाम घर मे आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। कुछ क्षणों के लिए गहन शांति के गहरे अनुभवों में खोकर, अब मैं शांति के सागर, सुख के सागर, प्रेम और पवित्रता के सागर अपने पिता के पास पहुँच कर, मन बुद्धि के नेत्रों से उन्हें निहार रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने पिता के अति सुन्दर मनभावन स्वरूप को मैं देख रही हूँ जो मेरे ही समान एक प्वाइंट ऑफ लाइट, एक अति सूक्ष्म बिंदु हैं किंतु गुणों में वो सिंधु हैं। उनके सानिध्य में, उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों के फव्वारे के नीचे बैठ मैं स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर कर रही हूँ। अपने परमधाम घर में अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा के सामने निराकारी, निर्विकारी और निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो कर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। बाबा से सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की अनन्त सतरंगी किरणे निकल कर मुझ आत्मा में समा रही हैं और मैं स्वयं में इन गुणों और शक्तियों को भरकर स्वयं को सर्वगुण और सर्वशक्तिसम्पन्न बना रही हूँ। बीज रूप अवस्था की मैं गहन अनुभूति कर रही हूँ जो मुझे अतीन्द्रिय सुख प्रदान कर रही है।

➳ _ ➳  अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का भरपूर आनन्द लेकर और शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो कर अब मैं पुनः लौट रही हूँ फिर से देहधारियों की साकारी दुनिया में। फिर से अपने साकार तन में, साकार दुनिया मे, साकार सम्बन्धो के बीच अपने ब्राह्मण स्वरुप में मैं स्थित होकर देह और देह की दुनिया मे फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ।किन्तु देह और देहधारियों के बीच में रहते हुए भी अपने सत्य स्वरूप में टिक कर अपनी दिव्यता और रूहानियत का अनुभव करते हुए अब मैं उपराम स्थिति में स्थित होकर, कर्म - अकर्म - विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख कर ही हर कर्म कर रही हूँ। कर्म - अकर्म - विकर्म की गति बुद्धि में रहने से अब हर कर्म मैं सोल कॉन्शियस होकर कर रही हूँ इसलिये मेरा हर कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ बनता जा रहा है।
 

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सेवा में स्नेह और सत्यता की अथॉरिटी के बैलेन्स द्वारा सफलतामूर्त आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं मेरे को तेरे में परिवर्तन करके भाग्य का अधिकार प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्राह्मण जीवन की मूड सदा चियरफुल और केयरफुल। मूड बदलना नहीं चाहिए। फिर रायल रूप में कहते हैं आज मुझे बड़ी एकान्त चाहिए। क्यों चाहिए? क्योंकि सेवा वा परिवार से किनारा करना चाहते हैंऔर कहते हैं शान्ति चाहिएएकान्त चाहिए। आज मूड मेरा ऐसा है। तो मूड नहीं बदली करो। कारण कुछ भी होलेकिन आप कारण को निवारण करने वाले होकि कारण में आने वाले हो? निवारण करने वाले। ठेका क्या लिया है? कान्ट्रैक्टर हो नातो क्या कान्ट्रैक्ट लिया हैकि प्रकृति की मूड भी चेंज करेंगे। प्रकृति को भी चेंज करना है ना? तो प्रकृति को परिवर्तन करने वाले अपने मूड को नहीं परिवर्तन कर सकते?

 

 _ ➳  मूड चेंज होती है कि नहींकभी-कभी होती है? फिर कहेंगे सागर के किनारे पर जाकर बैठते हैंज्ञान सागर नहींस्थूल सागर। फारेनर्स ऐसे करते हैं ना? या कहेंगे आज पता नहीं अकेला, अकेला लगता है। तो बाप का कम्बाइण्ड रूप कहाँ गयाअलग कर दिया? कम्बाइण्ड से अकेले हो गयेक्या इसी को प्यार कहाँ जाता हैंतो किसी भी प्रकार का मूडएक होता है - मूड आफवह है बड़ी बात, लेकिन मूड परिवर्तन होना यह भी ठीक नहीं। मूड आफ वाले तो बहुत भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल दिखाते हैं, बापदादा देखते हैंबड़ों को बहुत खेल दिखाते हैं या अपने साथियों को बहुत खेल दिखाते हैं। ऐसा खेल नहीं करो। क्योंकि बापदादा का सभी बच्चों से प्यार है। बापदादा यह नहीं चाहता कि जो विशेष निमित्त हैंवह बाप समान बन जाएं और बाकी बने या नहीं बनेंनहीं। सबको समान बनाना ही हैयही बापदादा का प्यार है। 

 

✺   ड्रिल :-  "बाप के साथ कम्बाइण्ड रह सदा चियरफुल और केयरफुल रहने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं आत्मा एक शांत स्थान पर प्रकृति के बीच बैठी हूँ... चारों ओर हरे भरे पेड़ दिखाई दे रहे हैं और यहां की शान्ति मुझ आत्मा में समा रही है... मैं आत्मा अब इस देह को छोड़कर अपने बापदादा के पास सूक्ष्म वतन में आकर ठहरी हूँ... मेरे बापदादा बेहद प्यार भरी दृष्टि मुझे दे रहे हैं और मैं आत्मा अपने बाबा की शक्तिशाली किरणों से चमक उठी हूँ...

 

 _ ➳  बाबा के सानिध्य में आकर मैं आत्मा एकदम चियरफुल हो गई हूं... बाबा की स्नेह भरी दृष्टि से ये समझ मुझ आत्मा में भर रही है कि मैं आत्मा हर परिस्थिति में चियरफुल हूँ... मैं आत्मा चाहे सबके साथ हूँ चाहे अकेले हूँ मेरा मूड सदा खुशनुमा है...

 

 _ ➳  मेरे मीठे बाबा आपने मुझे विश्व परिवर्तन की ज़िम्मेदारी सौंपी है... मुझे प्रकृति को भी श्रेष्ठ वाइब्रेशन दे उसे भी परिवर्तित करना है... इसके लिए मुझे सर्वप्रथम स्वयं को परिवर्तित करना है... बाबा आपकी ये शक्तिशाली किरणें मेरे पुराने स्वभाव संस्कार को भी परिवर्तित कर रही है... मेरे स्थूल और सूक्ष्म पुराने संस्कार स्वभाव आपकी शीतल किरणों से भस्म हो रहे हैं...

 

 _ ➳  मीठे बाबा आप अपना हज़ार भुजाओं वाला हाथ मेरे सिर पर रखते हैं और मैं आत्मा अब आपके साथ कंबाइंड रूप में हूँ... आपके साथ कंबाइंड हो मैं आत्मा अब बेहद शक्तिशाली हो गयी हूँ... आपके साथ कंबाइंड रूप का अनुभव करते हुए मैं आत्मा अब हर परिस्थिति में चियरफुल हूँ... और सर्व आत्माओं के प्रति केयरफुल हूँ... और मेरा मूड हर जगह हर समय चियरफुल है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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