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 22 / 04 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *इस दुखधाम का बुधी से सन्यास कर शांतिधाम और सुखधाम स्मृति में रखा ?*

 

➢➢ *अन्दर से अजपाजाप करते रहे ?*

 

➢➢ *साइलेंस की शक्ति द्वारा आत्मा शक्ति की उड़ान को तीव्रगति दी ?*

 

➢➢ *शिक्षा दाता के सतह रहम दिल बन सहयोगी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे साइन्स का बल अन्धकार के ऊपर विजय प्राप्त कर रोशनी कर देता है। ऐसे योगबल सदा के लिये माया पर विजयी बनाता है।* स्वयं में भी उन्हें माया हार नहीं खिला सकती। *स्वप्न में भी कमजोरी नहीं आ सकती। योगबल से प्रकृति के तत्व भी परिवर्तन हो जाते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सच्चा सेवाधारी हूँ "*

 

  याद की खुशी से अनेक आत्माओंको खुशी देने वाले सेवाधारी हो ना। *सच्चे सेवाधारी अर्थात् सदा स्वयं भी लगन में मगन रहें और दूसरों को भी लगन में मगन करने वाले।* हर स्थान की सेवा अपनी-अपनी है। फिर भी अगर स्वयं लक्ष्य रख आगे बढ़ते हैं तो यह आगे बढ़ना सबसे खुशी की बात है।

 

  वास्तव में यह लौकिक स्टडी आदि सब विनाशी हैं लेकिन अविनाशी प्राप्ति का साधन सिर्फ यह नालेज है। ऐसे अनुभव करते हो ना। देखो आप सेवाधारियों को ड्रामा में कितना गोल्डन चान्स मिला हुआ है। *इसी गोल्डन चांस को जितना आगे बढ़ाओ उतना आपके हाथ में है। ऐसा गोल्डन चांस सभी को नहीं मिलता है। कोटों में कोई को ही मिलता है।* आपको तो मिल गया। इतनी खुशी रहती है?

 

  दुनिया में जो किसी के पास नहीं वह हमारे पास है। ऐसे खुशी में सदा स्वयं भी रहो और दूसरों को भी लाओ। जितना स्वयं आगे बढ़ेंगे उतना औरों को बढ़ायेंगे। सदा आगे बढ़ने वाली, यहाँ वहाँ देखकर रुकने वाली नहीं। *सदा बाप और सेवा सामने हो, बस। फिर सदा उन्नति को पाती रहेंगी। सदा अपने को बाप के सिकीलधे हैं ऐसा समझकर चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *अभी जैसे समय की रफ्तार  चल रही है उसी प्रमाण अभी यह पाँव पृथ्वी पर नहीं रहने चाहिए।* कौन - सा पाँव? याद की यात्रा करते हो। कहालत है ना कि फरिश्तों के पाँव पृथ्वी पर नहीं होते। तो अभी यह बुद्धि पृथ्वी अर्थात प्रकृती के आकर्षण से परे हो जायेगी फिर कोई भी चीज़ नीचे नहीं ला सकती। फिर प्रकृती को अधीन करने वाले हो जायेंगे। न कि प्रकृति के अधीन होने वाले।

  

✧  जैसे साइन्स वाले आज प्रयत्न कर रहे हैं, पृथ्वी से परे जाने के लिये। वैसे ही साइलन्स की शक्ती से इस प्रकृती के आकर्षण से परे, जब चाहे तब अधीन कर दो। तो ऐसी स्थिती कहाँ तक बनी है? अभी तो बापदादा साथ चलने के लिये सूक्ष्मवतन में अपना कर्तव्य कर रहे हैं लेकिन यह भी कब तक? जाना तो अपने ही घर में है ना। इसलिए *अभी जल्दी - जल्दी अपने को ऊपर की स्थिति में स्थित करने का प्रयत्न करो।*

 

✧  साथ चलना, साथ रहना और फिर साथ में राज्य करना है ना। साथ कैसे होगा? समान बनने से। *समान नहीं बनेंगे तो साथ कैसे होगा।* अभी साथ उडना है, साथ रहना है। यह स्मृती में रखो तब अपने को जल्दी समान बना सकेंगे।नहीं तो कुछ दूर पड जायेंगे। वायदा भी है ना कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ ही राज्य करेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अपने आपको एक सेकण्ड में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा समझ आत्म-अभिमानी व देही-अभिमानी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* अर्थात् एक सेकण्ड में कर्म-इन्द्रियों का आधार लेकर कर्म किया और एक सेकण्ड में फिर कर्म-इन्द्रियों से न्यारा, ऐसी प्रेक्टिस हो गई है? कोई भी कर्म करते कर्म के बन्धन में तो नहीं फंस जाते हो? कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से न्यारा बन सकते हो वा अब तक भी कर्म-इन्द्रियों द्वारा कर्म के वशीभूत हो जाते हो? हर कर्म-इन्द्रिय को जैसे चलाना चाहो वैसे चला सकते हो व आप चाहते एक हो, कर्म इन्द्रियाँ दूसरा कर लेती हैं? रचयिता बनकर रचना को चलाते हो? *जड़ वस्तु चैतन्य के वश में है, चैतन्य आत्मा जैसे चलाना चाहे वैसे चला नहीं सकती?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सत बाप का संग करना"*

 

_ ➳  मधुबन के तपस्या धाम में बैठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारती हुई सोचती हूँ... कि मीठे बाबा ने अगर मेरा हाथ न पकड़ा होता... मै आत्मा स्वयं को और प्यारे बाबा को कभी भी न जान पाती... *मीठे बाबा ने मुझे देह की मिटटी से निकाल कर... यादो में उजला खुबसूरत बना दिया है...* विकारी दुनिया में जंग लगी मुझ आत्मा को... अपने प्यार और गुणो रुपी पानी में सोने सा दमकाया है... पारस बाबा ने अपने साये में बिठाकर... *मुझे भी आप समान चमकीला बनाकर... मेरी दिव्यता और पवित्रता का सारे विश्व में डंका बजवाया है... आज पूरा विश्व मुझे और मेरी पवित्रता को सम्मानित कर रहा है.*.. ऐसे मीठे बाबा का मै आत्मा कितना न शुक्रिया करूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अमूल्य शिक्षाओ से हीरे जैसा सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो तक दुखो के दलदल में फंसे रहे... और विकारो में लिप्त रहकर अपनी खुबसूरत को खो बैठे... *अब जो मीठे बाबा का साथ और हाथ मिला है... तो यह सच्चा साथ, प्यार और पालना कभी छोड़ना... अपने संग की सदा सम्भाल कर... ईश्वरीय प्यार और पालना में... सदा रूहानी गुलाब बन महकना..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की छत्रछाया में फूलो जैसा मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी पालना में कितनी गुणवान और शक्तिवान बनकर... देवताई श्रृंगार से सज गयी हूँ... *आपने सच्चे ज्ञान और प्यार को देकर... मुझे देह की मिटटी से छुड़ाकर... सदा के लिए उजला खुबसूरत बना दिया है... आपकी श्रीमत के हाथो में माया के काले साये से महफूज हूँ...*

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी प्यार भरी गोद में लेकर माया से बचाते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा ने जो ज्ञान का प्रकाश देकर मा नॉलेजफुल बनाया है... उस ज्ञान प्रकाश में, मायावी आकर्षण को दूर से ही परख कर सदा दूर रहो...* अब जो ईश्वरीय साथ को पाया है... तो माया के साथ से किनारा करो.. *विकारी संग से सदा खबरदार रहो...*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को अपने दिल की गहराइयो में समाकर कहती हूँ:-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पायी ज्ञान धन की, असीम दौलत में मालामाल हो गयी हूँ... और तीसरे नेत्र को पाकर... *विवेक शक्ति से, बेहद की समझदार हो गयी हूँ... और आपकी यादो में देह के प्रभाव से मुक्त होकर...अपनी आत्मिक रूप में चमक रही हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया के सुख ऐश्वर्य से मेरी झोली सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... *सदा प्यारे बाबा संग यादो के झूले में झूलते रहो... और माया के हर झोंके से सुरक्षित रहकर... मीठे बाबा के प्यार भरे आँचल में छुपे रहो...* सदा ज्ञान और योग के पंख लिए... खुशियो के अनन्त आसमाँ में... इतना ऊँचा उड़ते रहो कि माया का संग छु भी न सके...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में बैठकर माया के चंगुल से सुरक्षित होकर कहती हूँ :-* "मीठे सच्चे साथी बाबा... *आपने मुझ आत्मा को अपने गले से लगाकर... अपनी अमूल्य शिक्षाओ से सजाकर... मेरा जीवन खुशियो की फुलवारी बना दिया है.*.. मेरा दिव्य गुणो और पवित्रता से श्रृंगार कर... मेरा कायाकल्प कर दिया है... *अब मै आत्मा माया के विकारी संग से सदा परे रह... इस सच्चे आनन्द में मगन रहूंगी...*मीठे बाबा को अपनी दिली दास्ताँ सुनाकर... मै आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस दुखधाम का बुद्धि से सन्यास कर शांतिधाम और सुखधाम समृति में रखना है*"

 

_ ➳  अपने आश्रम के क्लास रूम में अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर, अपने परम शिक्षक शिव बाबा के मधुर महावाक्य मैं सुन रही हूँ। *बाबा ने अपने सभी ब्राह्मण बच्चों को "तुम हो बेहद के सन्यासी" टाइटल देते हुए मुरली के माध्यम से अपने मधुर महावाक्य उच्चारण किये*। उन मधुर महावाक्यों की समाप्ति के बाद, अपने आश्रम के बाबा रूम मैं बैठ मैं बाबा के उन महावाक्यों को स्मृति में ला कर जैसे ही उन पर विचार सागर मंथन करने लगती हूँ *ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे सामने लगे ट्रांसलाइट के चित्र के स्थान पर साक्षात अव्यक्त बापदादा खड़े हैं और मुझे देख कर मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं*।

 

_ ➳  ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा के होंठ धीरे धीरे खुल रहें हैं और बाबा मुझ से कुछ कह रहे हैं। मैं एकटक बाबा को निहार रही हूँ। *बाबा के नयनों से एक बहुत तेज लाइट की धार निकलती है और मेरी भृकुटि से होती हुई सीधे मुझ आत्मा को टच करती है*। देखते ही देखते बाबा की वो लाइट माइट पा कर मैं अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होने लगती हूँ। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। *मुझे ऐसा लग रहा हूं जैसे मेरे पाँव धरती को नही छू रहे बल्कि धीरे - धीरे धरती से ऊपर उठ रहे हैं*। एक बहुत ही निराला अनुभव मैं आत्मा इस समय कर रही हूँ। मेरा यह लाइट स्वरूप मुझे असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है।

 

_ ➳  इस अति सुंदर अव्यक्त स्थिति में स्थित, मेरी निगाहें जैसे ही दोबारा बाबा की ओर जाती है। बाबा के अधखुले होंठो से निकल रही अव्यक्त आवाज को अब मैं बिल्कुल स्पष्ट सुन रही हूँ। बाबा के हर संकल्प को अब मेरी बुद्धि बिल्कुल क्लीयर कैच कर रही है। *मैं स्पष्ट समझ रही हूँ कि बाबा मुझ से कह रहें हैं, मेरे बच्चे:- इस पुरानी दुनिया का तुम्हे कम्प्लीट सन्यास करना है"*। हद के सन्यासी तो घर - बार छोड़ जंगलो में चले जाते हैं। लेकिन तुम्हे बेहद का सन्यासी बन, घर - गृहस्थ में रहते मन बुद्धि से इस पुरानी दुनिया का कम्प्लीट सन्यास करना है। *तुम्हे प्रवृत्ति में रहते पर - वृति में रह अपना जीवन कमल पुष्प समान बना कर, सबको अपनी रूहानियत की खुशबू से महकाना है*।

 

_ ➳  इस अव्यक्त मिलन का भरपूर आनन्द लेते - लेते मैं अनुभव करती हूँ जैसे अव्यक्त बापदादा अब अपने अव्यक्त वतन की ओर जा रहें हैं और मुझे भी अपने साथ चलने का ईशारा दे रहें हैं। बापदादा का हाथ थामे, मैं अव्यक्त फ़रिशता अब धीरे - धीरे ऊपर उड़ रहा हूँ। *छत को क्रॉस कर, ऊपर की और उड़ता हुआ, आकाश में विचरण करता हुआ, आकाश को भी पार कर अब मै फ़रिशता बापदादा के साथ पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन*। अपने पास बिठा कर, अपनी स्नेह भरी दृष्टि से बाबा मुझे निहार रहें हैं। बाबा की दृष्टि से बाबा के सभी गुण मुझ में समाते जा रहें हैं।

 

_ ➳  बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मुझमें एक अलौकिक रूहानी नशे का संचार कर रही हैं जिससे मैं फरिश्ता असीम रूहानी आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ। बाबा के हाथों का मीठा - मीठा स्पर्श मुझे बाबा के अपने प्रति अगाध प्रेम का स्पष्ट अनुभव करवा रहा है । मैं बाबा के नयनो में अपने लिए असीम स्नेह देख कर गद - गद हो रहा हूँ। *बाबा की दृष्टि से आ रही सर्वशक्तियों की लाइट माइट मुझमे असीम बल का संचार कर रही है*। स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करके अब मैं बापदादा को निहारते हुए "बेहद के सन्यासी" बनने के उनके फरमान का पालन करने की उनसे दृढ़ प्रतिज्ञा कर वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करता हूँ। *अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर बाबा के फरमान को धारणा में लाने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। देह और देह की दुनिया में रहते हुए भी मन बुद्धि से इस दुनिया का कम्प्लीट सन्यास कर मैं स्वयं को इस नश्वर दुनिया से न्यारा अनुभव कर रही हूं। *सर्व सम्बन्धों का सुख बाबा से लेते हुए मैं देह और देह से जुड़े सम्बन्धों से सहज ही उपराम होती जा रही हूँ*। मन बुद्धि से पुरानी दुनिया का सन्यास, मुझे प्रवृति में रहते भी हर प्रकार के बोझ से मुक्त, लाइट स्थिति का अनुभव हर समय करवा रहा है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं साइलेंस की शक्ति द्वारा आत्म शक्ति के उड़ान की तीव्रगति करने वाली विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं शिक्षा दाता के साथ रहमदिल बन सहयोगी बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ऐसे अगर अपनी बुद्धि में समझते रहें कि मैं शक्ति स्वरूप हूँ लेकिन परिस्थितियों के समय, सम्पर्क में आने के समय, जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है उस शक्ति को कर्म मे नहीं लाते तो कोई मानेगा कि यह शक्ति स्वरूप हैं? सिर्फ बुद्धि तक जानना वह हो गया घर बैठे अपने को होशियार समझना। *लेकिन समय पर स्वरूप न दिखाया, समय पर शक्ति को कार्य में नहीं लगाया, समय बीत जाने के बाद सोचा तो शक्ति स्वरूप कहा जायेगा? यही कर्म में श्रेष्ठता चाहिए। जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगावें। तो अपने आपको सारे दिन की कर्म लीला द्वारा चेक करो कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान कहाँ तक बने हैं!*

 

✺  *"ड्रिल :- मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठकर... साइंस के साधनों से डिटैच होती हुई... मन-बुद्धि को साधना में एकाग्र करती हूँ...* मैं आत्मा बाबा के तस्वीर को निहार रही हूँ... बाबा के तस्वीर से निकलती किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो रहा है... मैं आत्मा विदेही बन रही हूँ... *मैं आत्मा इस साकार शरीर को छोड़ते हुए आकारी फरिश्ता स्वरूप धारण कर... साकार लोक से ऊपर उड़ते हुए आकारी फरिश्तों की प्रकाश की दुनिया में पहुँच जाती हूँ...*

 

_ ➳  सर्व शक्तिवान बाबा मुझ फरिश्ते को अपने सामने प्यार से बिठाते हैं... *सर्व शक्तियों के सागर से सर्व शक्तियां फाउंटेन के रूप में मुझ फरिश्ते में समा रही हैं...* पवित्र किरणों से मैं फरिश्ता पवित्र बन रही हूँ... *अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ...* सर्वशक्तिवान बाबा की सर्व शक्तियों को धारण कर मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगा रही हूँ...* सिकोड़ने और फैलानी की शक्तिसे मैं आत्मा अपनी कर्मेंद्रियो के ऊपर राज्य कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म कराती हूँ फिर न्यारी हो जाती हूँ... अपने आत्मिक स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ... *मैं आत्मा समेटने की शक्तिको धारण कर देह, देह से संबंधित सभी विस्तारों को सार में समेटकर एवररेडी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  व्यक्ति और प्रकृति द्वारा कैसी भी परिस्थितियां आये मैं आत्मा सहन शक्तिसे सब कुछ सहन करती हूँ... *समाने की शक्तिसे मैं आत्मा सबके गुणों, विशेषताओं को अपने अन्दर समा रही हूँ... परखने की शक्तिको मैं आत्मा कर्म में प्रयोग कर सही गलत की परख करती हूँ...* और निर्णय शक्तिसे सही निर्णय कर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

_ ➳  *‘सामना करने की शक्तिको धारण कर मैं आत्मा माया के तूफानों का भी दृढ़ता से सामना कर रही हूँ...* पहाड़ जैसी परिस्थितियों को सहजता से पार कर रही हूँ... अब मैं आत्मा हर प्रकार के हलचल में भी अचल अडोल रहती हूँ... *सहयोग की शक्तिसे मैं आत्मा सर्व आत्माओं को स्नेह और सहयोग से भरपूर कर रही हूँ... सबके प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रख दुआओं का खाता बढा रही हूँ...*

 

_ ➳  *पवित्रता की शक्ति, शांति की शक्ति का प्रयोग कर मैं आत्मा चारों ओर के वायुमंडल को पवित्र और शांत कर रही हूँ... सतोप्रधान बना रही हूँ...* चारों ओर की अपवित्रता, तमोप्रधानता को खत्म कर रही हूँ... अब मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन समय पर शक्तियों को कार्य में लगाती हूँ... और श्रेष्ठ कर्म करती हूँ... *अब मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ऑर्डर प्रमाण चलाकर मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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