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❍ 24 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ सिर्फ एक बाप को याद किया ?
➢➢ श्रेष्ठ कर्म करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ सदा उमंग उत्साह में रह मन से ख़ुशी के गीत गाते रहे ?
➢➢ अपने संकल्पों पर अविनाशी गवर्नमेंट की स्टैम्प लगवा सदा अटल रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अभी अच्छा-अच्छा कहते हैं, लेकिन अच्छा बनना है यह प्रेरणा नहीं मिल रही है। उसका एक ही साधन है-संगठित रुप में ज्वाला स्वरुप बनो। एक एक चैतन्य लाइट हाउस बनो। सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो, यह तो सब ठीक है, लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लगेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं मास्टर दाता हूँ"
〰✧ आप कौन हो? मास्टर दाता हो ना। वास्तव में देना अर्थात् बढ़ना। जितना देते हो उतना बढ़ता है। विनाशी खजाना देने से कम होता है और अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है-एक दो, हजार पाओ। तो देना आता है कि सिर्फ लेना आता है? दे कौन सकता है? जो स्वयं भरपूर है। अगर स्वयं में ही कमी है तो दे नहीं सकता।
〰✧ तो मास्टर दाता अर्थात् सदा भरपूर रहने वाले, सम्पन्न रहने वाले। तो सहज याद क्या हुई? 'प्यारा बाबा'। मतलब से याद नहीं करो। मतलब से याद करने में मुश्किल होता है, प्यार से याद करना सहज होता है। मतलब से याद करना याद नहीं, फरियाद होती है। तो फरियाद करते हो? ऐसा कर देना, ऐसा करो ना, ऐसा होना चाहिए ना....-ऐसे कहते हो?
〰✧ याद से सर्व कार्य स्वत: ही सफल हो जाते हैं, कहने की आवश्यकता नहीं। सफलता जन्मसिद्ध अधिकार है। अधिकार मांगने से नहीं मिलता, स्वत: मिलता है। तो अधिकारी हो या मांगने वाले हो? अधिकारी सदा नशे में रहते हैं-मेरा अधिकार है। मांगना तो बन्द हो गया ना। बाप से भी मांगना नहीं है। यह दे दो, थोड़ी खुशी दे दो, थोड़ी शान्ति दे दो....-ऐसे मांगते हो? बाप का खजाना मेरा खजाना है। जब मेरा खजाना है तो मांगने की क्या दरकार है। तो अधिकारी जीवन का अनुभव करने वाले हो ना। अनेक जन्म भिखारी बने, अभी अधिकारी बने हो। सदा इसी अधिकार के नशे में रहो। परमात्म-प्यार के अनुभवी आत्माएं हो। तो सदा इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते चलो। अधिकारी आत्मायें स्वप्न में भी मांग नहीं सकतीं। बालक सो मालिक हो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ विस्तार को देखते भी न देखें, सुनते हुए भी न सुनें - यह प्रैक्टिकल अभी से चाहिए। तब अंत के समय चारों ओर की हलचल की आवाज जो बडी दु:खदायी होगी, दृश्य भी अति भयानक होगे - अभी की बातें उसकी भेंट में तो कुछ भी नहीं है - अगर अभी से ही देखते हुए न देखना, सुनते हुए न सुनना यह अभ्यास नहीं होगा तो अंत में इस विकराल दृश्य को देखते एक घडी के पेपर में सदा के लिए फेल माक्र्स मिल जावेगी।
〰✧ इसलिए यह भी विशेष अभ्यास चाहिए। ऐसी स्टेज हो जिसमें साकार शरीर भी आकारी रूप में अनुभव हो। जैसे साकार रूप में देखा साकार शरीर भी आकरी फरिश्ता रूप अनुभव किया ना। चलते-फिरते कार्य करते आकारी फरिश्ता अनुभव करते थे।
〰✧ शरीर तो वही था ना - लेकिन स्थूल शरीर का भान निकल जाने कारण स्थूल शरीर होते भी आकारी रूप अनुभव करते थे। तो सर्व के सहयोग के वायब्रेशन का फैला हुआ हो - जिस भी स्थान पर जाए तो यह फरिश्ता रूप दिखाई दे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात मन और बुद्धि सदा मनमत से खाली रखो। मन को चलाने की आदत बहुत है ना। एकाग्र करते हो फिर भी चल पड़ता है। फिर मेहनत करते हो । चलाने से बचने का साधन है जैसे आजकल अगर कोई कन्ट्रोल में नहीं आता, बहुत तंग करता है, बहुत उछलता है, या पागल हो जाता है तो उनको ऐसा इन्जेक्शन लगा देते हैं जो वह शान्त हो जाता है। तो ऐसे अगर संकल्प शक्ति आपके कण्ट्रोल में नहीं आती तो अशरीरी भव का इन्जेक्शन लगा दो। बाप के पास बैठ जाओ। तो संकल्प शक्ति व्यर्थ नहीं उछलेगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- एक बाप को याद करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रभु प्रेम की शीतल चांदनी में शीतलता का अनुभव करती, उनकी
यादों में खोई हुई हूँ... जन्म-जन्मान्तर के पुराने-स्वभाव संस्कारों को योग
अग्नि से भस्म कर रही हूँ... नए दैवीय गुणों की धारणा कर दिव्य गुणधारी बन रही
हूँ... प्यारे बाबा की प्यारी यादों से देह के भान से मुक्त होकर आत्मिक
सौंदर्य के नशे से भर रही हूँ... प्यारे वरदानी बाबा मेरे सामने बैठ मुझे वरदानों
से भरपूर करते हुए अपने वरदानी बोलों से भरपूर करते हैं...
❉ यादों से मेरे जीवन को अमर बनाते हुए प्यारे मीठे बाबा कहते हैं:- “मेरे
मीठे बच्चे... सच्चे प्यारे पिता की यादो में इस कदर कमाई है.... अमीरी है कि
सारे सुख कदमो में बिखरे बिखरे से है... और यही यादे सुंदर जीवन तंदुरुस्ती
सुंदर काया का भी जरिया बन महकती है... और अमरता को पाकर सदा का मुस्कराते
हो...”
➳ _ ➳ प्यारे बाबा के यादों के सहारे सच्ची खुशियों को पाकर मैं खुशनसीब आत्मा
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने यादो भर से... सदा का अमीर सदा का
तन्दुरुस्त सदा का अमर बना दिया है... आपकी मीठी यादो में और खूबसूरत सुखधाम
की स्मृति में खोकर मै आत्मा क्या से क्या हो गई हूँ...”
❉ प्यारे बाबा अपनी नज़रों से मेरी जन्मों-जन्मों की तकदीर सजाते हुए कहते
हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे.... यादें कितना सुंदर फूलो भरा मखमली सा अहसास
है कि यादों की पंखुड़ियों पर चलते चलते महा धनी बन सज जाते हो... खूबसूरत जीवन
को पाते हो... सारे भयों से मुक्त हो सदा के अमर बन सुखधाम में इठलाते हो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों से अपने जीवन को बसंत बहार बनाकर कहती
हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... अपने मीठे बाबा की सुखभरी याद और सुंदर सुखधाम
से जीवन मधुमास हो गया है... नश्वर समझ कर जी रही थी... आज अमरता के वरदानों
से सज रही हूँ... सुंदर तन सुंदर मन से निखर उठी हूँ...”
❉ अपने प्रेम तरंगो से मुझे तरंगित करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-
“प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के रिश्तो की यादों ने खाली और शक्तिहीन किया...
अब सच्चा पिता सच्चे सुखो को सच्ची अमीरी को अमरत्व को उपहार सा ले आया है... विश्व
पिता सुनहरे सुखो को दामन में भर बच्चों पर लुटाने आया है... उसकी मीठी प्यारी
यादो में खो जाओ... यह यादे अनोखा कमाल कर जीवन सुनहरा कर देंगी...”
➳ _ ➳ मेरे भाग्य को धन्य-धन्य करने वाले बाबा का धन्यवाद करते हुए मैं आत्मा
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दीन हीन सी... मृत्यु के भय से
भयभीत सी... गरीब जीवन को अटल सत्य मान गई थी... आपने आकर मुझे बाँहो में भर
लिया... मुझे इतना प्यार कर अमर कर दिया... मै आपकी मीठी यादो में खोयी खोयी सी
हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- श्रेष्ठ कर्म करने पर विशेष अटेंशन देना"
➳ _ ➳ अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा,
श्रेष्ठ कर्म सिखला कर जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ
परम पिता परमात्मा शिव बाबा का दिल ही दिल मे मैं शुक्रिया अदा करती हूं
जिन्होंने मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा हीरे तुल्य बना दिया।
अपनी मनमत पर और आसुरी मनुष्यों की मत पर चल कर आज तक केवल दुख और निराशा का
ही अनुभव किया किन्तु मेरे दिलाराम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ शिव बाबा ने आ कर मेरे
जीवन को सुखी और शांतमय बना दिया। कदम कदम पर मेरे मीठे बाबा ने मुझे श्रीमत
दे कर मेरी हर मुश्किल को सहज बना दिया। अपने प्यारे बाबा की अपने ऊपर असीम
अनुकम्पा का अनुभव करते ही मैं खो जाती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा की मीठी यादों
में।
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी यादें दिल को असीम सुकून देने वाली है,
दुःखो से किनारा करवाकर सुखों से भरपूर करने वाली हैं। इस असीम सुख और
सुकून का अनुभव करते करते देह से न्यारी हो कर मैं आत्मा उमंग उत्साह के पंख
लगा कर,
ऊंची उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने दिलाराम शिव बाबा के पास
निर्वाणधाम जहां मेरे दिलाराम बाबा निवास करते हैं। शांति की ऐसी दुनिया जहां
पहुंचते ही आत्मा गहन शांति के अनुभव में खो कर तृप्त हो जाती है। उसी
शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में आ कर अब
मैं आत्मा उनका सच्चा और निस्वार्थ प्रेम पा कर सपष्ट अनुभव कर रही हूं कि झूठी
देह और देह के सम्बन्धो से जुड़ा प्रेम केवल और केवल स्वार्थ से भरा है।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम मीठे बाबा का निस्वार्थ प्यार पा कर अब मैं देह और
देह के सम्बन्धो से सहज ही नष्टोमोहा बनती जा रही हूं। बाबा का असीम प्यार और
दुलार बाबा से आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों के रूप में निरन्तर मुझ आत्मा पर
बरस रहा है। सर्वशक्तियों की शीतल छत्रछाया मुझ पर निरन्तर सर्वशक्तियों की
मीठी मीठी फुहारें बरसा रही है। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा झूल रही
हूं। बाबा से असीम स्नेह पा कर,
सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ अपनी साकारी
देह में।
➳ _ ➳ बाबा के प्रेम के रंग में रंगी अब मैं आत्मा देह और देह की दुनिया
में रहते हुए भी स्वयं को इस नश्वर दुनिया से न्यारा अनुभव कर रही हूं। अब मेरे
सर्व सम्बन्ध केवल मेरे दिलाराम बाबा के साथ हैं। उनसे सर्व सम्बन्धों का सुख
लेते हुए मैं देह और देह से जुड़े सम्बन्धों से सहज ही उपराम होती जा रही हूं।
देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बीच रहते भी उनसे तोड़ निभाते अब मेरा बुद्धि
योग केवल मेरे दिलाराम बाबा के साथ जुटा हुआ है। किसी भी प्रकार का कोई भी बोझ
अब मुझ आत्मा को भारी नही बना रहा। प्रवृति में रहते,
ट्रस्टी हो कर हर जिम्मेवारी सम्भालते अब मैं नष्टोमोहा बन हल्केपन का
अनुभव कर रही हूं। अपने प्यारे दिलाराम बाबा के साथ जीवन को जीने का मैं भरपूर
आनन्द ले रही हूं।
➳ _ ➳ श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ अपने शिव पिता परमात्मा की श्रेष्ठ मत पर हर
कदम चलते हुए अब मैं अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना रही हूं। बापदादा द्वारा
मिले ज्ञान,
गुणों और शक्तियों के श्रृंगार को धारण कर श्रृंगारीमूर्त आत्मा बन मैं
अनेकों आत्माओं को दिव्य गुणों का श्रृंगार कराए उनके कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे
तुल्य बनाने में सहयोगी बन रही हूं। बाबा की श्रीमत पर चल भविष्य श्रेष्ठ
प्रालब्ध बनाने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं आत्मा निरन्तर कर रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सदा उमंग - उत्साह में रह मन से खुशी के गीत गाने वाली अविनाशी खुशनसीब आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं जो संकल्प करती हूं उसे अविनाशी गवर्मेन्ट की स्टैम्प लगाकर अटल रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :
➳ _ ➳ मायाजीत बनने के लिए स्वमान की सीट पर रहो: सदा स्वयं को स्वमान की सीट
पर बैठा हुआ अनुभव करते हो? पुण्य आत्मा हैं, ऊंचे ते ऊंची ब्राह्मण आत्मा हैं,
श्रेष्ठ आत्मा हैं, महान आत्मा हैं, ऐसे अपने को श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर
अनुभव करते हो? कहाँ भी बैठना होता है तो सीट चाहिए ना! तो संगम पर बाप ने
श्रेष्ठ स्वमान की सीट दी है, उसी पर स्थित रहो। स्मृति में रहना ही सीट वा आसन
है। तो सदा स्मृति रहे कि मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ।
महान संकल्प, महान बोल, महान कर्म करने वाली महान आत्मा हूँ। कभी भी अपने को
साधारण नहीं समझो। किसके बन गये और क्या बन गये? इसी स्मृति के आसन पर सदा
स्थित रहो। इस आसन पर विराजमान होंगे तो कभी भी माया नहीं आ सकती। हिम्मत नहीं
रख सकती। आत्मा का आसन स्वमान का आसन है, उस पर बैठने वाले सहज ही मायाजीत हो
जाते हैं।
✺ "ड्रिल :- सदा स्वमान की सीट पर सेट रहना"
➳ _ ➳ मै आत्मा तालाब के किनारे बैठकर तालाब के पानी को अपने हाथों से उछाल रही
हूं... तभी अचानक मैं देखती हूं कि एक मछली मेरे पास आ जाती है और मछली के
मुंह से एक पानी का बुलबुला निकलता है... मैं उस बुलबुले में जाकर बैठ जाती हूं
और हवा में ऊपर उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते मैं बगीचे की घास पर जाकर बैठ
जाती हूं... सूरज की किरणें मुझ पर गिर रही है और मुझसे रंग-बिरंगी किरणे निकल
रही है... तभी मुझे आभास होता है कि सूरज की किरणे जो मुझ पर गिर रही है वह
मेरे बाबा की शक्तिशाली किरणे हैं... जैसे जैसे वह किरणे मुझ पर गिरती हैं
वैसे-वैसे मुझे अनुभव होता है कि मेरे बाबा मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहे
हैं... मैं बुलबुला ऊपर उड़ रही हूं और मेरे बाबा की किरणों पर जाकर बैठ जाती
हूं...
➳ _ ➳ और जब मैं बाबा की किरणों पर बैठकर झूलने लगती हूं तो मुझे आभास होता है
कि बाबा मुझे अपनी बाहों में झूला रहे हैं और झुलाते झुलाते शिक्षा दे रहे
हैं... मेरे बाबा मुझे कहते हैं कि तुम्हें हमेशा अपने स्वमान की सीट पर
विराजमान रहना चाहिए... जब तुम स्वमान में स्थित होकर कोई भी कार्य करोगे तो
तुम हमेशा अपनी स्थिति स्थिर रख सकते हो... तुम्हारी स्थिति में कोई भी हलचल
पैदा नहीं होगी... अगर तुम्हारे मन में हलचल पैदा हुई तो तुम इधर-उधर हवा में
उड़ने लगोगे और उड़ते उड़ते कई बार ऐसी जगह पर बैठ जाओगे जिसको छूते ही तुम
नष्ट हो जाओगे...
➳ _ ➳ बाबा ने मुझे कहा की अगर तुम ऐसे ही खुशियों की मौज में उड़ना चाहते हो
और हमेशा अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहते हो तो तुम्हें स्वमान में ही रहना
होगा अपने आप को ऐसा स्वमान दो... जैसे, मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं और उस
सर्वशक्तिमान सीट पर आप विराजमान हो... बाबा कहते हैं अपने आप को उस सीट पर
हमेशा बैठा कर रखोगे तो तुम बड़ी ही सरलता से किसी भी कठिनाई को पार कर लोगे और
वह कठिनाई या परिस्थिति तुम्हारी कुर्सी के नीचे से होकर गुजर जाएगी तुम्हें
एहसास भी नहीं होगा कि अभी तुम्हारे सामने कितनी बड़ी परिस्थिति आई थी... जब
जब तुम इस स्वमान की कुर्सी पर विराजमान रहोगे तब तब तुम अपने आप को श्रेष्ठ और
ऊंची अवस्था में अनुभव करोगे...
➳ _ ➳ बाबा की यह बातें सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगता है और मैं बाबा को कहती हूं
कि... बाबा मैं इस स्वमान की सीट को कभी नहीं छोडूंगी साथ ही कहती हूं... बाबा
अगर मैं कभी इस स्वमान की सीट को छोड़कर अपनी स्थिति हलचल में लाई तो यह
सांसारिक मोह-माया मुझे अपने अंदर समा लेगी... यह मोह माया रूपी मछली मुझे अपने
अंदर समा लेगी... इसलिए मैं हमेशा अपने आप को परिस्थिति के अनुसार स्वमान की
सीट पर विराजमान रखूंगी... अपनी इस सीट को कभी नहीं छोडूंगी...
➳ _ ➳ बाबा से यह बातें करके मैं वापिस अपनी दुनिया में आ पहुंचती हूं... नीचे
आते समय मुझे कई ऐसी चीजें छूने की कोशिश करती हैं जिससे मेरा अस्तित्व समाप्त
हो सकता है... परंतु मैं अपने स्वमान की सीट पर विराजमान थी... इसलिए वह
परिस्थिति रूपी वस्तुएं मुझे छू भी नहीं पाई और मेरे कुर्सी के नीचे से निकल गई...
और मैं जब नीचे आकर पहुंचती हूं तो उसी मछली को देखती हूं और उससे कहती हूं.. अब
तुम मुझे कभी भी अपने अंदर नहीं समा सकती हो... क्योंकि अब मैं तुमसे कहीं
शक्तिशाली स्थिति में विराजमान हूं... मछली दूर से ही मुझे निहारती है... लाख
प्रयास के कारण भी वह मुझे छू नहीं पाती है... और मैं इस स्थिति का दूर बैठे ही
आनंद लेती हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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