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❍ 14 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ सदा बाप के साथ रह बाप समान स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ आत्माओं को नए ज्ञान और नए जीवन द्वारा नवीनता का अनुभव करवाया ?
➢➢ सदैव उमंग और उत्साह में रहने का दृढ़ संकल्प किया ?
➢➢ चारों और परमात्म प्रत्क्ष्यता की लाइट और माईट फैलाई ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ सबसे तीव्रगति की सेवा है–'वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलाना'। वृत्ति बहुत तीव्र राकेट से भी तेज है। वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हो। जहाँ चाहो, जितनी आत्माओं के प्रति चाहो वृत्ति द्वारा यहाँ बैठे-बैठे पहुंच सकते हो। वृत्ति द्वारा दृष्टि और सृष्टि परिवर्तन कर सकते हो। सिर्फ वृत्ति में सर्व के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं बालक सो मालिक हूँ"
〰✧ डबल नशा रहता है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा मालिक भी हूँ और फिर बालक भी हूँ? एक है मालिकपन का रूहानी नशा और दूसरा है बालकपन का रूहानी नशा। यह डबल नशा सदा रहता है या कभी-कभी रहता है? 'बालक' सदा हो या कभीकभी हो? बालक सदा बालक ही है ना। परमात्म-बालक हैं और फिर सारे आदि-मध्य-अन्त को जानने वाले मालिक हैं। तो ऐसा मालिकपन और ऐसा बालकपन सारे कल्प में और कोई समय नहीं रह सकता।
〰✧ सतयुग में भी परमात्म-बच्चे नहीं कहेंगे, देवात्माओंके बच्चे हो जायेंगे। तीनों कालों को जानने वाले मालिक-यह मालिकपन भी इस समय ही रहता है। तो जब इस समय ही है, बाद में मर्ज हो जायेगा, तो सदा रहना चाहिए ना। डबल नशा रखो। इस डबल नशे से डबल प्राप्ति होगी मालिकपन से अपनी अनुभूति होती है और बालकपन के नशे से अपनी प्राप्ति। भिन्न-भिन्न प्राप्तिया हैं ना। यह रूहानी नशा नुकसान वाला नहीं है। रूहानी है ना। देहभान के नशे नुकसान में लाते हैं। वो नशे भी अनेक हैं। देहभान के कितने नशे हैं? बहुत हैं ना-मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ.......। लेकिन सभी हैं नुकसान देने वाले, नीचे लाने वाले।
〰✧ यह रूहानी नशा ऊंचा ले जाता है, इसलिए नुकसान नहीं है। हैं ही बाप के। तो बाप कहने से बचपन याद आता है ना। बाप अर्थात् मैं बच्चा हूँ तभी बाप कहते हैं। तो सारा दिन क्या याद रहता है? 'मेरा बाबा'। या और कुछ याद रहता है? 'बाबा' कहने वाला कौन? बच्चा हुआ ना। तो सदा बच्चे हैं और सदा ही रहेंगे। सदा इस भाग्य को सामने रखो अर्थात् स्मृति में रखो-कौन हूँ, किसका हूँ और क्या मिला है! क्या मिला है-उसकी कितनी लम्बी लिस्ट है! लिस्ट को याद करते हो या सिर्फ कॉपी में रखते हो? कॉपी में तो सबके पास होगा लेकिन बुद्धि में इमर्ज हो-मैं कौन? तो कितने उत्तर आयेंगे? बहुत उत्तर हैं ना। उत्तर देने में, लिस्ट बताने में तो होशियार हो ना। अब सिर्फ स्मृतिस्वरूप बनो। स्मृति आने से सहज ही जैसी स्मृति वैसी स्थिति हो जाती है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ बापदादा आपस में बोले कि अशरीरी आत्मा को अशरीरी बनने में मेहनत क्यों? ब्रह्मा बाप बोले - '84 जन्म चोला धारण कर पार्ट बजाने के कारण पार्ट बजाते-बजाते शरीरधारी बन जाते हैं।' शिव बाप बोले - ‘पार्ट बजाया लेकिन अब समय कौन-सा है? समय की स्मृति प्रमाण कर्म भी स्वतः ही वैसे होता है। यह तो अभ्यास है ना?’
〰✧ बाप बोले - ‘‘अब पार्ट समाप्त कर घर जाना है। पार्ट की ड्रेस तो छोडनी पडेगी ना? घर जाना है तो भी यह पुराना शरीर छोडना पडेगा, राज्य में अर्थात स्वर्ग में जाना है तो भी यह पुरानी ड्रेस छोडनी पडेगी।
〰✧ तो जब जाना ही है तो भूलना मुश्किल क्यों? जाना है, क्या यह भूल जाते हो? आप सभी तो जाने के लिए एवररेडी हो ना कि अब भी कुछ रस्सियाँ बँधी हुई हैं? एवररेडी हो ना?’
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ 'बिन्दु' शब्द ही कमाल का शब्द है। जादू का शब्द है। बिन्दु बनो और आर्डर करो तो सब तैयार है। संकल्प की ताली बजाओ और सब तैयार हो जायेगा। लेकिन बिन्दु की ताली प्रकृति भी सुनेगी, सर्व कर्मइन्द्रियाँ भी सुनेंगी और सर्वसाथी भी सुनेंगे। बिन्दु बन करके ताली बजाने आती है?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- नये ज्ञान और नई जीवन द्वारा नवीनता की झलक दिखाना"
➳ _ ➳ डायमंड हॉल में बेहद परिवार के साथ मैं आत्मा अपने बेहद बाबा के साथ
अव्यक्त मिलन बना रही हूँ... दादी के तन में ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा
विराजमान है... बापदादा हम सभी को दृष्टि दे रहे हैं... दृष्टि लेते-लेते मैं
आत्मा अभिभूत हो रही हूँ... जैसे कि बापदादा मुझे अपने पास आने का इशारा कर रहे
है... मैं फरिश्ता मीठे बाबा के बिल्कुल सामने जाकर बैठ जाता हूँ... बाबा के
नैनों से असीम प्यार बरस रहा है... बाबा वरदानों से मुझे निहाल कर रहे हैं...
मेरे कान बापदादा के मीठे मीठे बोल सुनने के लिए लालायित हो रहे हैं...
❉ अपनी स्नेह सिक्त वाणी से जीवन में मिठास घोलते हुए बाबा कहते हैं:- "मेरे
प्यारे सिकीलधे बच्चे... बाबा तुम्हें जो सुहानी नॉलेज दे रहे हैं वह शास्त्रों
आदि के ज्ञान से बिल्कुल भिन्न है... यह नई नालेज नई दुनिया का आधार है... बाप
की पहले महिमा है उसे ज्ञान का सागर कहते हैं... तो क्या उस नये ज्ञान को दुनिया
के आगे प्रत्यक्ष किया है... जब तक यह नया ज्ञान ही प्रत्यक्ष नहीं होता है...
तो ज्ञान दाता बाप प्रत्यक्ष कैसे होगा..."
➳ _ ➳ बाबा की कही गई बातों पर गहराई से मनन करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे
सतगुरु बाबा... आप हमें यह नया ज्ञान देकर हमें भी आप समान मास्टर ज्ञान सागर
बना रहे हो... अब हम बच्चे भी ज्ञान गंगा बन ज्ञान जल से पूरे विश्व को हरा भरा
बना रहे हैं... सारे विश्व में ज्ञान की प्रत्यक्षता द्वारा ज्ञान दाता बाप की
प्रत्यक्षता के निमित्त बन रहे हैं... कि यह ऊँच ते ऊँच ज्ञान एक ज्ञान सागर
बाप द्वारा ही दिया गया है... वह एक ही ज्ञान दाता है... इसे हम इस नए ज्ञान
द्वारा अथॉरिटी से सिद्ध कर रहे हैं..."
❉ हम बच्चो के लिए बहिश्त, नई दुनिया की रचना करने वाले मीठे बाबा कहते हैं:-
"मेरे लाडले नयनों के नूर बच्चे... मैं तुम्हारे लिए जिस नई दुनिया की स्थापना
करता हूँ... उसकी धरनी तो बन गई है, वह आगे भी बनती रहेगी... लेकिन उसका
फाउंडेशन, उसका बीज है यह नया ज्ञान... दुनिया में आत्माएं रूहानी स्नेह का तो
अनुभव कर रही है... उन्हें अब साथ-साथ ज्ञान की अथॉरिटी का भी अनुभव कराओ...
कि यह नया ज्ञान है, सत्य ज्ञान है... जो बातें कही नहीं गई वे यहाँ सुन रहे
हैं... यह अथॉरिटी से सिद्ध करो..."
➳ _ ➳ बाबा से मिलने वाले वर्से की खुशी में पुलकित होती हुई मैं आत्मा कहती
हूँ:- "मेरे मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा आपसे मिलने वाले ज्ञान का स्वरुप बनती
जा रही हूँ... इस ज्ञान को, आपके संदेश को पूरी अथॉरिटी के साथ दुनिया की
आत्माओं तक पहुंचा रही हूँ... ज्ञान की अथॉरिटी से ऑलमाइटी अथॉरिटी को
प्रत्यक्ष कर रही हूँ... इस ज्ञान द्वारा आत्माएं ज्ञानदाता बाप के सहारे का
अनुभव कर रही है... और हद के बंधनों से मुक्त होती जा रही हैं..."
❉ कदम कदम पर राह दिखाने वाले रूहानी गाइड बाबा कहते हैं:- "मेरे प्यारे बच्चे...
मधुबन वरदान भूमि से थोड़े से भर के नहीं जाना... यहाँ ज्ञान सागर में डुबकियाँ
लगानी है... ज्ञान बादल बन पूरे विश्व में ज्ञान वर्षा करनी है... नये ज्ञान
को सिद्ध करना है... साथ ही यह ज्ञान देने वाला कौन है यह भी ज्ञान की अथॉरिटी
से ही सिद्ध होगा... अब नई दुनिया के लिए नया ज्ञान चारों और फैलाओ... तभी चारों
और आवाज निकलेगा... धूम मचेगी... अखबारों में आएगा कि यह बी.के. नया ज्ञान
सुनाती है... तभी ज्ञानदाता बाप की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा..."
➳ _ ➳ बाबा की हर आशा पर खरा उतरती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे मन की मीत
मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके हर डायरेक्शन का पालन कर रही हूँ... रूहानी स्नेह
के साथ-साथ सभी आत्माओं पर ज्ञान जल की शीतल वर्षा कर रही हूँ... इस नए और सत्य
ज्ञान को सर्व आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... और ज्ञान दाता बाप की... ऑलमाइटी
बाप की प्रत्यक्षता के निमित्त बनती जा रही हूँ... हर एक के दिल में ज्ञान
सागर बाप की महिमा की गीत बज रहे हैं... बाबा की प्रत्यक्षता हो रही है... नयी
सतयुगी सृष्टि की पुनः स्थापना हो रही है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- सदा बाप के साथ रह बाप समान स्थिति का अनुभव"
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा को साथ लिए, उनकी सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे,
मैं एक पार्क में टहल रही हूँ। टहलते - टहलते मैं कोने में रखे एक बेंच पर बैठ
जाती हूँ और अपनी आंखों को बंद करके अपने दिलाराम बाबा की सर्वशक्तियों की शीतल
छाया का आनन्द लेने लगती हूँ। उस मधुर आनन्द में खोई हुई मैं एक दृश्य देखती
हूँ कि जैसे मैं एक छोटी सी बच्ची बन पार्क में एक झूले पर बैठी झूला झूल रही
हूँ। झूला झूलने में मैं इतनी मगन हो जाती हूँ कि कब अंधेरा हो जाता है और सभी
पार्क से चले जाते हैं, पता ही नही पड़ता।
➳ _ ➳ अंधेरे में स्वयं को अकेला पाकर मैं डर से कांप रही हूँ, रो रही हूँ और
रोते - रोते बाबा - बाबा बोल रही हूँ। तभी दूर से मैं देखती हूँ एक बहुत तेज
लाइट तेजी से मेरी ओर आ रही है। वो लाइट मेरे बिल्कुल समीप आ कर रुक जाती है। देखते
ही देखते वो लाइट एक बहुत सुंदर आकार धारण कर लेती है और उसके मुख से मधुर आवाज
आती है:- "मेरे बच्चे डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ" यह कहकर वो लाइट का फ़रिशता
मुझे अपनी बाहों में उठा कर मुझे मेरे घर छोड़ देता है। इस दृश्य को देखते -
देखते मैं विस्मय से अपनी आंखें खोलती हूँ और इस दृश्य को याद करते हुए मन ही
मन स्वयं को स्मृति दिलाती हूँ कि मेरा बाबा सदा मेरे अंग - संग है।
➳ _ ➳ इस स्मृति में मैं जैसे ही स्थित होती हूँ मैं स्वयं को अपने निराकारी
ज्योति बिंदु स्वरूप में अपने निराकार शिव बाबा के साथ कम्बाइंड अनुभव करती
हूँ। कम्बाइन्ड स्वरूप की इस स्थिति में मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से पार्क
के खूबसूरत दृश्य को देख रही हूँ। मेरे दिलाराम बाबा की लाइट माइट पूरे पार्क
में फैली हुई है। उनकी शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे चारों और फैल कर परमधाम
जैसे अति सुंदर दृश्य का निर्माण कर रही है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे पार्क का वह दृश्य परमधाम का दृश्य बन गया है। वहां
उपस्थित सभी देहधारी मनुष्यों के साकार शरीर लुप्त हो गए हैं और चारों और चमकती
हुई निराकारी ज्योति बिंदु आत्मायें दिखाई दे रही हैं। मैं आत्मा स्वयं को
साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं संकल्प मात्र
भी देह से अटैच नही हूँ। कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है यह। आलौकिक सुखमय
स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। निर्संकल्प हो कर, बिंदु बन अपने
बिंदु बाप को मैं निहार रही हूँ। उन्हें देखने का यह सुख कितना आनन्द देने वाला
है। बहुत ही निराला और सुंदर अनुभव है यह।
➳ _ ➳ बिंदु बाप के सानिध्य में मैं बिंदु आत्मा उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं
में समा रही हूँ। उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे
असीम बल प्रदान कर रही हैं। उनकी शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की
अनुभूति कर रही हूँ। आत्मा और परमात्मा का यह मंगल मिलन चित को चैन और मन को
आराम दे रहा है। बाबा से आती सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं शक्तियों का
पुंज बन गई हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। यह सुखद
अनुभूति करके, अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, अपने बाबा को अपने
संग ले कर वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के संग में रह अब मैं निर्भय हो कर जीवन मे आने वाली हर परिस्थिति
को सहज रीति पार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ। "स्वयं भगवान मेरे संग है"
यह स्मृति मुझमे असीम बल भर देती है और मैं अचल अडोल बन माया के हर तूफान का
सामना कर, माया पर सहज ही विजय प्राप्त कर लेती हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं योग करने और कराने की योग्यता के साथ - साथ प्रयोगी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं वायुमण्डल वा संग के रंग में नहीं आने वाली अनुभवी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा ऐसे आदि रत्नों को लाख-लाख बधाईयाँ देते हैं क्योंकि आदि से सहन कर स्थापना के कार्य को साकार स्वरूप में वृद्धि को प्राप्त कराने के निमित्त बने हो। तो जो स्थापना के कार्य में सहन किया वह औरों ने नहीं किया है। आपके सहनशक्ति के बीज ने यह फल पैदा किये हैं। तो बापदादा आदि-मध्य- अन्त को देखते हैं - कि हरेक ने क्या-क्या सहन किया है और कैसे शक्ति रूप दिखाया है। और सहन भी खेल-खेल में किया। सहन के रूप में सहन नहीं किया, खेल-खेल में सहन का पार्ट बजाने के निमित्त बन अपना विशेष हीरो पार्ट नूँध लिया। इसलिए आदि रत्नों का यह निमित्त बनने का पार्ट बापदादा के सामने रहता है। और इसके फलस्वरूप आप सर्व आत्मायें सदा अमर हो। समझा अपना पार्ट? कितना भी कोई आगे चला जाये - लेकिन फिर भी... फिर भी कहेंगे। बापदादा को पुरानी वस्तु की वैल्यु का पता है।
✺ "ड्रिल :- खेल खेल में सहन करने का पार्ट बजाना"
➳ _ ➳ वर्षा ऋतु आने पर चारों तरफ फूल ही फूल खिल रहे हैं हरियाली छा रही है... यह प्रकृति बहुत ही मनमोहक लग रही है... इस दृश्य को देखकर मेरा मन अति आनंदित हो रहा है... जैसे ही वर्षा प्रारंभ होती है, मैं इस वर्षा ऋतु का आनंद लेने के लिए घर से बाहर आ जाती हूं और हरे भरे खेतों की तरफ दौड़ने लगती हूँ... बारिश में नहाते हुए मैं ऐसे स्थान पर आ पहुँचती हूँ... जहां फूल ही फूल खिल रहे हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो इन फूलों को प्रकृति नहलाने आई हो... इसी दौरान मैं खिले हुए फूलों से बातें करने लगती हूं... और मैं उन फूलों से कहती हूं, तुम कितने सुंदर प्रतीत हो रहे हो... तुम्हें ऐसा कौन बनाता है... जिससे तुम सबके दिलों को वश में कर लेते हो और उनके दिल पर राज करते हो...
➳ _ ➳ तभी उन फूलों में से कुछ फूल मुझे कहते हैं कि हम बहुत कुछ सहन करने पर ऐसे खिले हुए फूल बनते हैं... फिर वह फूल मुझे कहते हैं कि आओ हम तुम्हें अपना राज बताते हैं जिससे हम सबके दिलों पर राज करते हैं... वह फूल मेरे आगे औऱ मैं उनके पीछे पीछे चलने लगती हूं... और मुझे एक ऐसे स्थान पर ले आते हैं जहां एक किसान अपने खेत में बीज बो रहा होता है और मुझे यह दृश्य दिखाकर कहने लगते हैं... कि इस किसान को देख तुम्हें कैसा प्रतीत होता है, यह किसान अपने खेत में इन बीजों को कुछ इस तरह से डाल रहा है कि यह बड़े होकर हमें फूल फल दे सके... उसने अपना कर्तव्य करके छोड़ दिया बाकी अब सारा कार्यभार इन बीजों पर आ जाता है कि उन्हें अब आगे अपना कर्तव्य किस प्रकार निभाना है...
➳ _ ➳ फिर वह फूल मुझे कहते हैं कि आप इन बीजों को देखो कैसे यह मिट्टी में रहकर अपना बलिदान देते हैं और अपने आप को इस मिट्टी में छुपा कर रखते हैं... फिर यह कुछ दिनों तक इस मिट्टी में इसी प्रकार दबे रहते हैं और फिर कुछ दिनों बाद यह मिट्टी से अंकुरित होकर बाहर निकलने लगते हैं तो इन्हें सबसे पहले सूर्य की किरणों का सामना करना पड़ता है... ताकि यह सूर्य की तेज किरणों का सामना करके एक पौधे का निर्माण कर सकें... इसके बाद इन्हें तेज धूप और तेज हवाओं का सामना करना पड़ता है... तेज हवाएं इन्हें अपनी मंजिल से भटकाने की पूरी कोशिश करते हैं... परंतु ये मिट्टी में रहकर अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर लेते हैं कि इनका तेज हवा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती... और फिर तेज हवा को सहन करते-करते इसे अपनी आदत बना लेते हैं जिससे वह अपने आने वाले सुन्दर भविष्य का निर्माण करते हैं... तेज धूप से निडर होकर यह इस धूप को अपना साथी बना लेते हैं...
➳ _ ➳ और यह इस तरह इन प्रकृति रुपी कठिनाइयों का सामना कर लेते हैं और इन्हें अपना साथी बना लेते हैं... और यह एक मजबूत पौधे बन जाते हैं और धीरे-धीरे इनकी डालियों से कलियां निकलने लगती है... और उन कलियों से फिर रंग बिरंगे फूल खिलने लगते हैं... जिसे देखकर सभी अति आनंदित हो उठते है... जब फूलों ने मुझे यह दृश्य दिखाया तो मुझे भी सब समझ आने लगता है... और मैं उन फूलों को कहने लगती कि कैसे इन छोटी छोटी कठिनायों का डटकर सामना करने से तुम्हारा निर्माण हुआ है... ऐसे ही मैं भी अपने पुरुषार्थ से उज्जवल भविष्य का निर्माण करूंगी... इतना कहकर मैं बारिश में नहाती हुई आगे की ओर चल पड़ती हूं और ठंडी ठंडी बारिश की फुहारों का आनंद लेती हूं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमात्मा की याद में बैठती हूँ... परमात्मा से शक्तियों को ग्रहण कर अपनी स्थिति को और भी मजबूत बना रही हूँ... जो भी परिस्थितियां आती हैं, मैं आत्मा परिस्थिति का चिंतन नहीं करती हूँ बल्कि परमात्म चिंतन में रहकर.. सहन शक्ति के द्वारा, परिस्थिति को आगे बढ़ने का साधन समझ खेल-खेल में पार कर लेती हूँ... यह परिस्थिति मुझे और भी मजबूत बनाने आई है... इसलिए इन छोटी-छोटी परेशानियों का चिंतन करके और बड़ी परेशानी नहीं बनाती हूँ... बल्कि शक्ति स्वरूप बन खेल-खेल में सहन करने का पार्ट बजाती हूँ... और ड्रामा में अपना विशेष हीरो पार्ट नूँध रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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