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 13 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ आत्म अभिमानी बन आपार ख़ुशी का अनुभव किया ?

 

➢➢ बाप द्वारा मिले अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान किया ?

 

➢➢ सेवा और स्व पुरुषार्थ के बैलेंस द्वारा ब्लेसिंग प्राप्त की ?

 

➢➢ बापदादा को अपनी नज़रों में समा नज़र से निहाल करने की सेवा की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  डबल लाइट अर्थात् आत्मिक स्वरुप में स्थित होने से हल्कापन स्वत: हो जाता है। ऐसे डबल लाइट को ही फरिश्ता कहा जाता है। डबल लाइट अर्थात् सदा उड़ती कला का अनुभव करने वाले।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बाबा के साथ सदा कम्बाइण्ड रहने वाली आत्मा हूँ"

 

〰✧  सभी अपने को सदा बाप और आप कम्बाइण्ड हैं-ऐसा अनुभव करते हो? जो कम्बाइण्ड होता है उसे कभी भी, कोई भी अलग नहीं कर सकता। आप अनेक बार कम्बाइण्ड रहे हो, अभी भी हो और आगे भी सदा रहेंगे। ये पक्का है? तो इतना पक्का कम्बाइण्ड रहना। तो सदैव स्मृति रखो कि- 'कम्बाइण्ड थे, कम्बाइण्ड हैं और कम्बाइण्ड रहेंगे। कोई की ताकत नहीं जो अनेक बार के कम्बाइण्ड स्वरूप को अलग कर सके।' तो प्यार की निशानी क्या होती है? (कम्बाइण्ड रहना) क्योंकि शरीर से तो मजबूरी में भी कहाँ-कहाँ अलग रहना पड़ता है। प्यार भी हो लेकिन मजबूरी से कहाँ अलग रहना भी पड़ता है। लेकिन यहाँ तो शरीर की बात ही नहीं। एक सेकेण्ड में कहाँ से कहाँ पहुंच सकते हो!

 

✧  आत्मा और परमात्मा का साथ है। परमात्मा तो कहाँ भी साथ निभाता है और हर एक से कम्बाइण्ड रूप से प्रीत की रीति निभाने वाले हैं। हरेक क्या कहेंगे-मेरा बाबा है। या कहेंगे-तेरा बाबा है? हरेक कहेगा-मेरा बाबा है! तो मेरा क्यों कहते हो? अधिकार है तब ही तो कहते हो। प्यार भी है और अधिकार भी है। जहाँ प्यार होता है वहाँ अधिकार भी होता है। अधिकार का नशा है ना। कितना बड़ा अधिकार मिला है! इतना बड़ा अधिकार सतयुग में भी नहीं मिलेगा! किसी जन्म में परमात्म-अधिकार नहीं मिलता। प्राप्ति यहाँ है। प्रालब्ध सतयुग में है लेकिन प्राप्ति का समय अभी है। तो जिस समय प्राप्ति होती है उस समय कितनी खुशी होती है! प्राप्त हो गया-फिर तो कॉमन बात हो जाती है।

 

✧  लेकिन जब प्राप्त हो रहा है, उस समय का नशा और खुशी अलौकिक होती है! तो कितनी खुशी और नशा है! क्योंकि देने वाला भी बेहद का है। तो दाता भी बेहद का है और मिलता भी बेहद का है। तो मालिक किसके हो-हद के या बेहद के? तीनों लोक अपने बना दिये हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन हमारा घर है और स्थूल वतन में तो हमारा राज्य आने वाला ही है। तीनों लोकों के अधिकारी बन गये! तो क्या कहेंगे- अधिकारी आत्मायें। कोई अप्राप्ति है? तो क्या गीत गाते हो? (पाना था वह पा लिया) पाना था वह पा लिया, अभी कुछ पाने को नहीं रहा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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छोडना भी नहीं चाहते और उडना भी नहीं चाहते। तो क्या करना पडेगा? चलना पडेगा। चलने में तो जरूर मेहनत लगेगी ना। इसलिए अब कमजोर रचना बन्द करो तो मन की मेहनत से छूट जायेंगे। फिर हँसी की बात क्या कहते हैं? बाप कहते यह रचना क्यों करते, तो जैसे आजकल के लोग कहते हैं ना - क्या करें ईश्वर दे देता है। दोष सारा ईश्वर पर लगाते हैं, ऐसे यह व्यर्थ रचना पर क्या कहते? हम चाहते नहीं है लेकिन माया आ जाती है। हमारी चाहना नहीं है लेकिन हो जाता है। इसलिए सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे मालिक बनो। राजा बनो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ रूहे गुलाब अर्थात् जिसमें सदा रूहानी खुशबू हो। रूहानी खुशबू वाले जहाँ भी देखेंगे, जिसको भी देखेंगे तो रूह को देखेंगे, शरीर को नहीं देखेंगे। स्वयं भी सदा रूहानी स्थिति में रहेंगे और दूसरों की भी रूह को देखेंगे। इसको कहते हैं रूहानी गुलाब।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- अविनाशी बाप से प्यार करना"

➳ _ ➳  विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...

❉  अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...”

➳ _ ➳  प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”

❉  मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी...”

➳ _ ➳  शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...”

❉  देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- शरीरों से मोह निकाल सदा हर्षित रहना है, मोहजीत बनना है"

➳ _ ➳  "मैं अजर, अमर, अविनाशी आत्मा हूँ, देह नही" इस सत्य को स्वीकार करते ही यह देह और इस देह से जुड़ी हर चीज से ममत्व निकलने लगता है और मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्वत: ही स्थित हो जाती हूँ। देख रही हूँ अब मैं केवल अपने अनादि सत्य स्वरूप को जो बहुत ही न्यारा और प्यारा है। एक चैतन्य सितारा जिसमे से रंग बिरंगी शक्तियो की किरणें निकल रही है, इस देह रूपी गुफा में, मस्तक रूपी दरवाजे पर चमकता हुआ, अपने प्रकाश से इस देह रूपी गुफा में प्रकाश करता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एक ऐसा प्रकाश जिसमे ऐसी हीलिंग पॉवर है जो पूरे शरीर को हील कर रही है।

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस देह रूपी गुफा में बैठी, अँखियों की खिड़कियों से अपने आस - पास फैले उस रूहानी वायुमण्डल को देख आनन्द विभोर हो रही हूँ जो मुझ आत्मा से निकलने वाले प्रकाश की हीलिंग पॉवर से बहुत ही शक्तिशाली बन रहा है। इस रूहानी वायुमण्डल के प्रभाव  से हर चीज मुझे रूहानियत से भरपूर दिखाई दे रही हैं। मुझ आत्मा में निहित सातों गुणों की सतरंगी किरणों के प्रकाश से बनने वाला औरा एक खूबसूरत इंद्रधनुष के रूप में मुझे अपने चारों और दिखाई दे रहा है जिसमे से सातों गुणों की सतरंगी किरणे फ़ुहारों के रूप में मेरे रोम - रोम को प्रफुलित कर रही हैं।

➳ _ ➳  ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे किसी सतरंगी झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और उससे आने वाली शीतल फ़ुहारों का आनन्द ले रही हूँ जो मेरे अंतर्मन को पूरी तरह से शांन्त और शीतल बना रही हैं। इस अति शांन्त और शीतल स्थिति में स्थित, अब मैं विचार करती हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी शांन्त और शीतल हूँ किन्तु देह का भान आते ही मेरे अंदर की शांति को जैसे ग्रहण लग जाता है और मैं कितनी दुखी और अशांत हो जाती हूँ। अगर मैं सदैव अपने इस अनादि स्वरूप की स्मृति में रहूँ तो कोई भी बात मुझे देह भान में ला कर दुखी और अशान्त नही कर सकती।

➳ _ ➳  केवल मेरा अनादि ज्योति बिंदु स्वरूप ही सत्य है, और सदा के लिए है। बाकी इन आँखों से जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो सब विनाश होने वाला है। यहां तक कि यह देह भी मेरी नही, यह भी विनाशी है। यह बात स्मृति में आते ही मैं आत्मा मोहजीत बन अब इस देह से ममत्व निकाल, इस नश्वर देह का त्याग कर एक अति सुन्दर रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ। कितनी सुंदर और आनन्द देने वाली है यह यात्रा। हर प्रकार के बंधन से मुक्त, एक आजाद पँछी की भांति मैं उन्मुक्त हो कर उड़ रही हूँ। उड़ते - उड़ते मैं विशाल नीलगगन को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, जगमग करते, चमकते सितारों की खूबसूरत दुनिया में प्रवेश करती हूँ।

➳ _ ➳  लाल प्रकाश से प्रकाशित यह सितारों की दुनिया गहन शांति की अनुभूति करवा कर मन को तृप्त कर रही है। अपने बिल्कुल सामने मैं अपने पिता शिव परमात्मा को एक ज्योतिपुंज के रूप में देख रही हूँ। अनन्त शक्तियों की किरणें बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मुझे स्वत: ही अपनी और खींच रहा है और उनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं उनके अति समीप पहुंच कर उनके साथ अटैच हो गई हूँ। मेरे शिव पिता की सारी शक्ति मुझ आत्मा में भरती जा रही है। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ। अपने शिव पिता की अथाह शक्ति से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस अपने शरीर रूपी गुफा में लौट रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण तन में, जो मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है, उस तन में भृकुटि पर विराजमान हो कर अब मैं इस सृष्टि रंगमंच पर अपना एक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ। देह से ममत्व निकाल, मोहजीत बन अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ। आत्मिक स्मृति में रह कर हर कर्म करने से मैं कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से मुक्त होकर, कर्मातीत अवस्था को सहज ही प्राप्त करती जा रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सेवा और स्व पुरुषार्थ के बैलेन्स द्वारा  ब्लेसिंग प्राप्त करने वाली कर्मयोगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बापदादा को अपनी नजरों में समाकर नजर से निहाल करने की सेवा करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  एक होती है कल्याण के भावना की सेवा और दूसरी होती है स्वार्थ से। मेरा नाम आ जायेगामेरा अखबार में फोटो आ जायेगा, मेरा टी.वी. में आ जायेगामेरा ब्राह्मणों में नाम हो जायेगाब्राह्मणी बहुत आगे रखेगीपूछेगी..... यह सब भाव स्वार्थी-सेवा के हैं। क्योंकि आजकल के हिसाब सेप्रत्यक्षता के हिसाब सेअभी सेवा आपके पास आयेगीशुरू में स्थापना की बात दूसरी थी लेकिन अभी आप सेवा के पिछाड़ी नहीं जायेंगे। आपके पास सेवा खुद चलकर आयेगी। तो जो सच्चा सेवाधारी है उस सेवाधारी को चलो और कोई सेवा नहीं मिली लेकिन बापदादा कहते हैं अपने चेहरे सेअपने चलन से सेवा करो। आपका चेहरा बाप का साक्षात्कार कराये। आपका चेहरा, आपकी चलन बाप की याद दिलावे। ये सेवा नम्बरवन है। ऐसे सेवाधारी जिनमें स्वार्थ भाव नहीं हो। ऐसे नहीं मुझे ही चांस मिलेमेरे को ही मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता, मिलना चाहिए - ऐसे संकल्प को भी स्वार्थ कहा जाता है।

➳ _ ➳  चाहे ब्राह्मण परिवार में आपका नाम नामीग्रामी नहीं है,सेवाधारी अच्छे हो फिर भी आपका नाम नहीं हैलेकिन बाप के पास तो नाम है ना, जब बाप के दिल पर नाम है तो और क्या चाहिए! और सिर्फ बाप के दिल पर नहीं लेकिन जब फाइनल में नम्बर मिलेंगे तो आपका नम्बर आगे होगा। क्योंकि बापदादा हिसाब रखते हैं। आपको चांस नहीं मिलाआप राइट हो लेकिन चांस नहीं मिला तो वो भी नोट होता है। और मांग कर चांस लियावो किया तो सही लेकिन वो भी मार्क्स कट होते हैं।

➳ _ ➳  ये धर्मराज का खाता कोई कम नहीं है। बहुत सूक्ष्म हिसाब-किताब है। इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनोअपना स्वार्थ नहीं हो। कल्याण का स्वार्थ हो। यदि आपको चांस है और दूसरा समझता है कि हमको भी मिले तो बहुत अच्छा और योग्य भी है तो अगर मानो आप अपना चांस उसको देते हो तो भी आपका शेयर उसमें जमा हो जाता है। चाहे आपने नहीं कियालेकिन किसको चांस दिया तो उसमें भी आपका शेयर जमा होता है। क्योंकि सच्चा डायमण्ड बनना है ना। तो हिसाब-किताब भी समझ लोऐसे अलबेले नहीं चलोठीक हैहो गया...... बहुत सूक्ष्म में हिसाब-किताब का चौपड़ा है। बाप को कुछ करना नहीं पड़ता हैआटोमेटिक है।

✺   ड्रिल :-  "नि:स्वार्थ सेवाधारी बन सच्चा डायमण्ड बनना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने ही धुन में तितली की भांति उड़ती चली जा रही हूँ... कभी इस फूल पे तो कभी किसी बादल की टुकड़ी पर... जो भी मुझे देख रहे खुश हो रहे, तारीफ कर रहे... मैं आत्मा देख रही हूँ हर बादल की टुकड़ी को... वो कभी टी.वी, तो कभी अखबार है... अपनी ऊंचाइयों को छूती जा रही हूँ... कितना सुकून है जहां सिर्फ मैं ही मैं हूँ... कितना ना आराम से बैठी हूँ बादल की टुकड़ी पर... और देखती हूँ कि दिव्य किरणें नीचे की ओर आ रही है... ये किरणें चारों ओर फैल रही है... देखती हूँ बाबा धीरे-धीरे किरणों से उतरते जा रहे हैं...

➳ _ ➳  बाबा मेरे हाथ थामे माउंट आबू की पहाड़ी पर ले जाते हैं... और बाबा के साथ बैठ जाती हूँ... बाबा कहते हैं बच्चे तुम अपने दिव्य बुद्धि से देखो, त्रिकालदर्शी बन अपनी हर एक पार्ट को देखो जो अंतिम जन्म तक भी श्रेष्ठ है... अपनी असली स्वरूप की स्मृति होते ही अल्पकाल की मान, प्रशंसा, नाम की जो भी संकल्प रहते थे उससे डिटैच होने लगी हूँ...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के सानिध्य में बैठी बाबा से पवित्रता की सफेद किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... जो मेरे देहभान को खत्म करता जा रहा है... ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान की नीली किरणें ग्रहण करती जा रही हूँ... मास्टर ज्ञान सूर्य बन मास्टर दाता बनती जा रही हूँ... स्नेह, सुख, शांति, शक्ति, आनंद की रंगबिरंगी किरणें मुझमें समाती जा रही है... सातों गुणों से भरपूर होकर मैं आत्मा इच्छा मात्रम अविद्या सी हो गयी हूँ... देहअभिमान से छूटती देहिअभिमानी होती जा रही हूँ... मैं आत्मा डायमंड जैसी बनती जा रही हूँ... बाबा ने कहा कि बच्चे सेवा तुम्हारे पास चल कर आएगी... तुम्हें सेवा मांगना नहीं है... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है...

➳ _ ➳  कल्प-कल्प मैं आत्मा ही निस्वार्थ सेवाधारी बनी हूँ... हर ब्राह्मण आत्मा को शुभभावना, शुभकामना की टचिंग हो रही है... हर ब्राह्मण आत्मा को सेवा का चांस मिलता जा रहा है... कोई न कोई सेवा का चांस बाबा मुझ आत्मा द्वारा औरों को भी दे रहे हैं... ये ब्राह्मण जीवन सफल होता जा रहा है... कल्प-कल्प के लिए श्रेष्ठ भाग्य का खाता नूँध हो गया है... वाह रे मैं आत्मा... वाह रे मेरा भाग्य...

➳ _ ➳  दिलाराम बापदादा की दिलतख़्तनशीन बन गई हूँ... सच्चा-सच्चा  डायमंड बनती जा रही हूँ... निस्वार्थ सेवाधारी बनना है... बाबा ने मुझ आत्मा को बेदाग, सच्चा डायमंड बना दिया है... एक चमकता हुआ डायमंड जो रोशनी से भरपूर होकर... औरों को भी अपने चेहरे और चलन से बाबा की प्रत्यक्षता करती जा रही है... शुक्रिया बाबा... बहुत बहुत शुक्रिया... जो धर्मराज के खाते में पुण्य जमा होता जा रहा है... सूक्ष्म हिसाब-किताब का चौपड़ा भी चमक रहा... शुक्रिया बाबा जो सच्चा डायमंड बन गई हूँ... ओम् शान्ति।

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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