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❍ 15 / 01 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपनी जांच की की हमारे अन्दर क्या क्या खामी है ?*
➢➢ *बीजरूप स्टेज का विशेष अभ्यास कर पूरे विश्व को साकाश दी ?*
➢➢ *महसूसता की शक्ति द्वारा मीठे अनुभव किये ?*
➢➢ *सर्व के दिल की दुआएं ले अपने पुरुषार्थ को सहज बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे शक्तियों के जड़ चित्रों में वरदान देने का स्थूल रूप हस्तों के रूप में दिखाया है, हस्त भी एकाग्र रूप दिखाते हैं। *वरदान का पोज हस्त, दृष्टि और संकल्प एकाग्र दिखाते हैं, ऐसे चैतन्य रूप में एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ, तब रूह, रूह का आह्वान करके रुहानी सेवा कर सकेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें समझते हो? हर समय कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकाल सकते हो? सारे कल्प के अन्दर ऐसा कोई बिजनेसमैन होगा जो इतनी कमाई करे! सदा यह खुशी की याद रहती है कि हम ही कल्प-कल्प ऐसे श्रेष्ठ आत्मा बने हैं? *तो सदा यही समझो कि इतने बड़े बिजनेसमैन हैं और इतनी ही कमाई में बिजी रहो। सदा बिजी रहने से किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी क्योंकि बिजी होंगे तो माया बिजी देखकर लौट जायेगी, वार नहीं करेगी।*
〰✧ सहज मायाजीत बनने का यही साधन है कि सदा कमाई करते रहो और कराते रहो। *जैसे-जैसे माया के अनेक प्रकारों के नालेजफुल होते जायेंगे तो माया किनारा करती जायेगी। दूसरी बात एक सेकण्ड भी अकेले नहीं हो, सदा बाप के साथ रहो तो बाप के साथ को देखते हुए माया आ नहीं सकती क्योंकि माया पहले बाप से अकेला करती है तब आती है।* तो जब अकेले होंगे ही नहीं फिर माया क्या करेगी?
〰✧ बाप अति प्रिय है, यह तो अनुभव है ना? तो प्यारी चीज भूल कैसे सकती! तो सदा यह स्मृति में रखो कि प्यारे ते प्यारा कौन? जहाँ मन होगा वहाँ तन और धन स्वत: होगा। तो 'मन्मनाभव' का मन्त्र याद है ना! *जहाँ भी मन जाए तो पहले यह चेक करो कि इससे बिढ़या, इससे श्रेष्ठ और कोई चीज है या जहाँ मन जाता है वही श्रेष्ठ है! उसी घड़ी चेक करो तो चेक करने से चेंज हो जायेंगे। हर कर्म, हर संकल्प करने के पहले चेक करो।* करने के बाद नहीं। पहले चेकिंग पीछे प्रैक्टिकल।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ 21वीं सदी तो आप लोगों ने चैलेन्ज की है, ढिंढोरा पीटा है, याद है? चैलेन्ज किया है - गोल्डन एजड दुनिया आयेगी या वातावरण बनायेंगे। चैलेन्ज किया है ना! तो इतने तक तो बहुत टाइम है। *जितना स्व पर अटेन्शन दे सको, दे सको भी नहीं, देना ही है।*
〰✧ जैसे देह-भान में आने में कितना टाइम लगता है? दो सेकण्ड? *जब चाहते भी नहीं हो लेकिन देह भान में आ जाते हो, तो कितना टाइम लगता है?* एक सेकण्ड या उससे भी कम लगता है? *पता ही नहीं पडता है कि देह भान में आ भी गये हैं।*
〰✧ ऐसे ही यह अभ्यास करो - कुछ भी हो, क्या भी कर रहे हो लेकिन यह भी पता ही नहीं पडे कि मैं सोल-कान्सेस, पॉवरफुल स्थिति में नेचुरल हो गया हूँ। *फरिश्ता स्थिति भी नेचुरल होनी चाहिए।* जितनी अपनी नेचर फरिश्ते-पन की बनायेंगे तो नेचर स्थिति
को नेचुरल कर देगी। तो बापदादा कितने समय के बाद पूछे? कितना समय चाहिए?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *आप क्या समझते हो, देह के अभिमान से भी सम्पूर्ण समर्पण बने हो ?* मर गये हो व मरते रहते हो देह के सम्बन्ध और मन के संकल्पों से भी? तुम देही हो ? *यह देह का अभिमान बिल्कुल ही टूट जाए, तब कहा जाए सर्व समर्पणमय जीवन।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वीट बाप और वर्से को याद कर मोस्ट स्वीट बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में पेड़ के नीचे बैठ मीठे बाबा को याद करती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत मेरे सामने आ जाते हैं और अपनी गोदी में बिठाकर मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए गुणों और शक्तियों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हैं...* मैं आत्मा एक-एक गुण और शक्ति को स्वयं में धारण करती जा रही हूँ... एक-एक वरदान को अपने में समाती जा रही हूँ... फिर मीठे बाबा दृष्टि देते हुए मुझ आत्मा से मीठी-मीठी रूह-रिहान करते हैं...
❉ *स्वीट बाबा अपनी स्वीट शिक्षाओं से मुझ आत्मा को अपने समान स्वीट बनाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... फूल बनाने वाले प्यारे पिता की यादो में डूब जाओ, मीठे बाबा को हर साँस के तार में पिरो दो... *ईश्वरीय यादो से प्राप्त सतयुगी सुखो को याद करो तो... मीठे संस्कारो से सज जायेंगे... और मीठे बाबा समान मीठे हो जायेंगे... हर लम्हा मिठास लुटाने वाले बन जायेंगे..."*
➳ _ ➳ *स्वीट फादर और स्वीट राजधानी को याद कर बहुत बहुत स्वीट बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा अपने मीठे बाबा की बाँहों में झूल रही हूँ... यादो में डूबी अतीन्द्रिय सुख में खोयी हूँ... मीठे बाबा की यादो में प्रेम की नदिया बन गई हूँ...* ईश्वरीय प्रेम की लहरे पूरे विश्व में फैला रही हूँ... अपने मीठे सुखो की यादो में मुस्करा रही हूँ..."
❉ *मुझ आत्मा को रूहानियत के रंगों से सजाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर पिता जो धरा पर उतर आया है तो उसकी यादो में डूब अथाह खजानो को लूटकर मालामाल हो जाओ... यादो में दिव्य गुणो और शक्तियो से सजकर देवताई श्रृंगार कर लो...* यह यादे मीठेपन से खिला देंगी और पवित्रता से संवार कर विश्व का मालिक सा सजायेंगी..."
➳ _ ➳ *खुशियों के अम्बर में उड़ान भरकर खुशी के गीत गुनगुनाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देहधारियों की यादो में कितनी कड़वी हो गई थी... दुखो में कितनी कलुषित हो गई थी... *अब आपकी मीठी मीठी यादो में कितनी प्यारी मीठी और खुशनुमा होती जा रही हूँ... अपने सुखमय संसार को यादकर ख़ुशी से पुलकित होती जा रही हूँ..."*
❉ *अपनी मधुर वाणी से मेरे जीवन को मधुबन बनाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब अपने दुखो के सारे बोझ मीठे पिता को सौंप हल्के मीठे होकर मुस्कराओ... पिता के प्यार में खो जाओ... *अपने सत्य स्वरूप के नशे में इतराओ... और अथाह सुखो की राजधानी को यादकर प्रेम और मीठेपन से महक उठो... और पूरे विश्व को इन मीठी तरंगो से भर दो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा के हाथों मधुरस का पान कर मिठास से भरपूर होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में डूबकर कितनी मीठी प्यारी सतोगुणी होकर खिलखिला रही हूँ... *प्यारे बाबा ने अपनी खुशनुमा यादो में मुझे कितना मीठा खुबसूरत बना दिया है... पवित्रता से महकाकर बेशकीमती बना दिया है..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- जितना हो सके अन्तर्मुख हो, शांत में रहना है, जास्ती बोलना नही है*"
➳ _ ➳ अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, एकांतवासी बन अपने शिव पिता के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते, असीम आनन्द का अनुभव करके मैं रियलाइज करती हूँ कि कितना सुकून है इस अंतर्मुखता में! *आज दिन तक मैं इस बात से कितनी अनभिज्ञ थी। इसलिए बाहरमुखता में, भौतिक संसधानों में सुख तलाश कर रही थी*। शुक्रिया मेरे शिव पिता का जिन्होंने आ कर मुझे अंदर की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलना सिखा कर ऐसे अथाह सुख का अनुभव करवाया। *तो अब मुझे अंतर्मुखी बन केवल अपने शिव पिता से ही सुनते, उनसे सदा मीठी - मीठी रूहरिहान करते इस असीम आनन्द का अनुभव निरन्तर करते रहना है*। बाहरमुखता में नही आना है।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से बातें करती अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने सत्य स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और *अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव करते, अंतर्मुखता की एक ऐसी असीम आनन्दमयी शांन्तचित स्थिति में स्थित हो जाती हूँ जहां किसी भी प्रकार की कोई आवाज, शोरगुल यहां तक की संकल्पों की भी हलचल नही*। इस गहन शांति की अवस्था में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन निकल कर चारों ओर वायुमंडल में फैल रहें है और आस - पास के वायुमंडल को शांत बना रहे हैं। *शांति की शक्तिशाली किरणों का एक शक्तिशाली औरा मेरे चारों तरफ निर्मित होता जा रहा है*।
➳ _ ➳ शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन चारों और फैलाती मैं चैतन्य शक्ति आत्मा अब सहजता से देह का आधार छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अंतरिक्ष को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परें मैं जागती ज्योति अब स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हैं जहां लाल प्रकाश ही प्रकाश है। चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियां दिखाई दे रही हैं*। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु का यहां अभाव है। केवल रूहें ही रूहें हैं इसलिए रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से। सम्बन्ध भी आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा।
➳ _ ➳ चैतन्य मणियों की जगमग करती इस अति सुंदर दुनिया में अब मैं स्वयं को महाज्योति अपने शिव पिता के सम्मुख देख रही हूँ जिनसे निकल रही प्रकाश की अनन्त किरणे पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही है। *मन्त्रमुग्ध हो कर इस अति सुंदर नजारे को मैं देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि महाज्योति मेरे शिव पिता से आ रही अनन्त गुणों और शक्तियों की ये किरणें मुझे अपनी ओर खींच रही हैं*। धीरे - धीरे मैं आत्मा अब उनकी ओर बढ़ रही हूँ। उनके समीप पहुंच कर उन्हें टच करके उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को अब मैं स्वयं में भर रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरकर मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ और सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ और फिर से अपनी साकार देह का आधार ले कर इस कर्मभूमि पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। किन्तु अब मैं सदैव अंतर्मुखता में रहते केवल अपने शिव पिता से सुनते, हर सेकण्ड उन्हें अपने साथ अनुभव करती हूँ।
➳ _ ➳ *सर्व सम्बन्धो का सुख बाबा से लेते अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में बाबा की याद को बसा कर, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ एकांतवासी बन अपने प्यारे बाबा के सानिध्य में अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति अब मैं सदैव कर रही हूँ और बाहरमुखता से सहज ही दूर होती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं महसूसता की शक्त्ति द्वारा मीठे अनुभव करने वाली सदा शक्तिशाली आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व के दिल की दुआएं लेकर स्वयं का पुरुषार्थ सहज करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा आज से सभी बच्चों को, चाहे यहाँ बैठे हैं, चाहे सेन्टर्स पर बैठे हैं, चाहे देश में हैं, चाहे विदेश में हैं लेकिन रहमदिल भावना से इशारा दे रहे हैं - *बापदादा हर बच्चे की हद की बातें, हद के स्वभाव-संस्कार, नटखट वा चतुराई के संस्कार, अलबेलेपन के संस्कार बहुत समय से देख रहे हैं, कई बच्चे समझते हैं सब चल रहा है, कौन देखता है, कौन जानता है लेकिन अभी तक बापदादा रहमदिल है, इसलिए देखते हुए भी, सुनते हुए भी रहम कर रहा है। लेकिन बापदादा पूछते है आखिर भी रहमदिल कब तक?* कब तक? क्या और टाइम चाहिए? बाप से समय भी पूछता है, आखिर कब तक? प्रकृति भी पूछती है। जवाब दो आप। जवाब दो। *अभी तो सिर्फ बाप का रूप चल रहा है, शिक्षक और सतगुरु तो है ही। लेकिन बाप का रूप चल रहा है। क्षमा के सागर का पार्ट चल रहा है।*
➳ _ ➳ *लेकिन धर्मराज का पार्ट चला तो?* क्या करेंगे? *बापदादा यही चाहते हैं कि धर्मराज के पार्ट में भी वाह! बच्चे वाह! का आवाज कानों में गूँजे।* फिर बाप को उलहना नहीं देना। बाबा, आपने सुनाया नहीं, हम तैयार हो जाते थे ना! इसलिए *अभी हद की छोटी-छोटी बातों में, स्वभाव में, संस्कारों में समय नहीं गँवाओ।* चल रहे हैं, चलता है, नहीं, जमा होता जाता है। दुगुना, तीनगुना, सौगुना जमा होता जाता है, चलता है नहीं। इसलिए इस *दृढ़ संकल्प का दिल में दीप जगाओ। हद से बेहद में वृत्ति, दृष्टि, कृति बनानी है। इसीलिए बापदादा कहते हैं बनानी पड़ेगी।* आज यह कह रहे हैं बनानी पड़ेगी फिर क्या कहेंगे? टू लेट। समय को देखो, सेवा को देखो, सेवा बढ़ रही है, समय आगे दौड़ रहा है। लेकिन स्वयं हद में हैं या बेहद में हैं? *हद की बातों के पीछे आप नहीं दौड़ो। तो बेहद की वृत्ति, स्वमान की स्थिति आपके पीछे दौड़ेगी।*
✺ *ड्रिल :- "बेहद की वृत्ति, दृष्टि, कृति से हद की बातों से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा याद और सेवा की रस्सियों में झूलते हुए पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... वतन में बापदादा के पास बैठ जाती हूँ... *पारलौकिक बाप अलौकिक बाप के मस्तक पर विराजमान होकर मुझे भी अलौकिक बना रहें हैं... बापदादा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहें हैं... मैं आत्मा अपनी साधारणता को छोड़ विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को आदि मध्य अंत का सत्य ज्ञान सुना रहें हैं... हद और बेहद के बारे में बता रहें हैं... मैं आत्मा अपने असली स्वरूप को... असली घर को... और इस सृष्टि रंगमंच पर अपने पार्ट को समझ गई हूँ... *मैं आत्मा बेहद बाबा के साथ की अनुभूति में रह... अपनी दृष्टि... वृति... कृति को हद से निकाल बेहद की बना रही हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की वृति... दृष्टि... कृति... बेहद की हो गई है... मैं आत्मा हद की बातों से मुक्त हो गई हूँ... मैं... मेरा... मेरी देह... मेरे सम्बन्धी... अब मेरा किसी में मोह नहीं फंसता... अब ऐसा लगता है कि ये सब आत्माऐं भगवान के बच्चे हैं...जो भी मनुष्य सम्पर्क में आता है... उसे आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... सबका कल्याण हो... सब सुख पाएं... बस यही चिंतन चलता है... इससे मन बहुत हल्का रहता है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दृढ़ संकल्प की चाबी लगा कर अपनी दृष्टि, वृति, कृति को ब्रह्मा बाप समान पवित्र बना रही हूँ... हर कर्म को विशाल हृदय से... बेहद की दृष्टि द्वारा कर रही हूँ... ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख फॉलो फादर कर बाप समान बन रही हूँ...* अब मैं उड़ता पंछी... आजाद पंछी... मुक्त गगन में फरिश्ता बन उड़ती रहती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने हर कर्म को चेक करती हूँ कि जो कर्म मैं कर रही हूँ... वह बाप समान... बेहद का है या नहीं... *मैं आत्मा बाबा द्वारा दी गई हर श्रीमत... हर मर्यादा का पालन कर रही हूँ*, मैं आत्मा बाप समान रहमदिल... मास्टर प्यार का सागर बन अपने स्वमान में स्थित रहती हूँ... *मैं... मेरा... तेरा से उपराम... हद की बातों से उपराम हो गई हूँ... अब मैं आत्मा स्वयं के बारे में नही सोचती... मेरी दृष्टि... वृति... कृति बेहद की हो गयी है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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