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❍ 06 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान बनकर रहे ?
➢➢ इस वैरायटी विराट लीला के राज़ को समझकर श्रेष्ठ कर्म किये ?
➢➢ रूहानी अथॉरिटी के साथ निरहंकारी बन सत्य ज्ञान का प्रतक्ष्य स्वरुप दिखाया ?
➢➢ त्याग से भाग्य प्राप्त किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ बीजरूप को सदा साथ रखो तो माया का बीज ऐसा भस्म हो जायेगा जो फिर कभी भी उस बीज से अंश भी नहीं निकल सकेगा। वैसे भी आग में जले हुए बीज से कभी फल नहीं निकलता इसलिए बीज को छोड़ सिर्फ शाखाओं को काटने की मेहनत नहीं करो। बीजरूप द्वारा विकारों के बीज को खत्म कर दो तो बार-बार मेहनत करने से स्वत: ही छूट जायेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को सदा स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा अनुभव करते हो? स्व का दर्शन अर्थात् स्व की पहचान। अच्छी तरह से स्व को पहचान लिया कि मैं कौन हूँ? अपने को अच्छी तरह से पहचाना है? सिर्फ मैं आत्मा हूँ-यह जानना ही जानना नहीं है लेकिन मैं कौन-सी आत्मा हूँ? ये स्मृति रहती है? आपके कितने टाइटल हैं? (बहुत हैं) तो टाइटल याद रहते हैं या भूल जाते हैं? कभी याद रहते हैं, कभी भूल जाते हैं? माया हार भी खिलाती रहे और कहते रहो कि मैं महावीर हूँ, ऐसे तो नहीं? क्योंकि जो टाइटल बाप द्वारा मिले हैं वह हैं ही स्थिति में स्थित होने के लिये। तो जैसे टाइटल याद आये वैसी स्थिति बन जाये। वैसी स्थिति बनती है या हिलती रहती है? जैसे लौकिक दुनिया में अगर कोई टाइटल मिलता है तो टाइटल के साथ-साथ वह सीट भी मिलती है ना।
〰✧ समझो जज का टाइटल मिला, तो वह जज की सीट भी मिलेगी ना। अगर जज की सीट पर नहीं बैठे तो कौन मानेगा कि ये जज है। अगर स्थिति नहीं है और सिर्फ बुद्धि में वर्णन करते रहते हो कि मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ और परदर्शन भी हो रहा है तो सीट पर सेट नहीं हुए ना। तो जो टाइटल स्मृति में लाते हो वैसी समर्थ स्थिति अवश्य चाहिये-तब कहेंगे कि हाँ यह स्वदर्शन चक्रधारी है, यह हीरो एक्टर है। एक्ट साधारण हो और कहे कि यह हीरो एक्टर है तो कौन मानेगा? और सदा ये याद रखो कि ये टाइटल देने वाला कौन? दुनिया में कितना भी बड़ा टाइटल हो लेकिन आत्मा, आत्मा को देगी। चाहे प्रेजीडेन्ट है या प्राइम मिनिस्टर है, लेकिन है कौन? आत्मा है ना।
〰✧ संगम पर स्वयं बाप बच्चों को टाइटल देते हैं। कितना नशा चाहिये! यह रूहानी नशा रहता है? देहभान का नशा नहीं। क्रोध कर रहे हैं और कहे कि मैं तो हूँ ही नूरे रत्न, ऐसा नशा नहीं। ऐसे तो नहीं करते हो? मातायें क्या करती हैं? घर में खिटखिट कर रहे हो और कहो कि हम तो हैं ही बाबा की अचल-अडोल आत्मायें! ऐसे तो नहीं करते? तो सदा अपने भिन्न-भिन्न टाइटल्स को स्मृति में रखो और उस स्थिति में स्थित होकर चलो फिर देखो कितना मजा आता है। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् सदा मायाजीत। स्वदर्शन चक्रधारी के आगे माया हिम्मत नहीं रख सकती।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जैसे अभी भी कोई वाद-विवाद वाला आता है तो वाणी से और ज्यादा वाद-विवाद में आ जाता है। उसको याद में बिठाए साइलेन्स की शक्ति का अनुभव कराते हो ना।
〰✧ एक सेकण्ड भी अगर याद द्वारा शान्ति का अनुभव कर लेते हैं तो स्वयं ही अपनी वाद-विवाद की बुद्धि को साइलेन्स की अनुभूति के आगे सरेन्डर कर देते हैं तो इस साइलेन्स की शक्ति का अनुभव बढ़ाते जाओ। अभी यह साइलेन्स की शक्ति की अनुभूति बहुत कम है। साइलेन्स की शक्ति का रस अब तक मैजारिटी ने सिर्फ अंचली मात्र अनुभव किया है।
〰✧ हे शान्ति देवा! आपके भक्त आपके जड चित्रों से शान्ति का अल्पकाल का अनुभव करते हैं, ज्यादा करके मांगते भी शान्ति है क्योंकि शान्ति में सुख समाया हुआ है तो बापदादा देख रहे थे कि शान्ति की शक्ति के अनुभवी आत्मायें कितनी हैं, वर्णन करने वाली कितनी हैं और प्रयोग करने वाली कितनी हैं। इसके लिए - 'अन्तर्मुखता और एकान्तवासी' बनने की आवश्यकता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ स्व-स्थिति की शक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकते हो ना! स्व–स्थिति अर्थात् आत्मिक–स्थिति। पर-स्थिति व्यक्ति व प्रकृति द्वारा आती है। अगर स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो उसके आगे पर-स्थिति कुछ भी नहीं है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप समान खुदाई खिदमतगार बनना"
➳ _ ➳ ओम शान्ति सेण्टर में बैठी मैं आत्मा बाबा के गीतों पर झूमते हुए
बाबा के प्यार में खो जाती हूँ... प्यारे बाबा दीदी के मस्तक में विराजमान होकर
मीठी मुरली सुना रहे हैं... बाबा के आते ही चारों ओर लाल प्रकाश छा गया है...
परमधाम जैसा नज़ारा अनुभव कर रही हूँ... सिर्फ मैं और मेरा बाबा दिख रहे हैं...
सुप्रीम टीचर मुझे सेवा का महत्व समझा रहे हैं... मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट के
स्वमान बैठकर बाबा की ज्ञान मुरली को सुन रही हूँ...
❉ खुद खुदा अपनी खुदाई जादू मुझ पर बिखरते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे
बच्चे... खुदाई खिदमतगार बच्चे हो तो सफलता तो कदमो में बिखरी पड़ी है... याद
और सेवा से सारे कार्य सिद्ध हो जाते है... महा भाग्यशाली हो की ईश्वर पिता के
सहयोगी हो... तो इस महान नशे को यादो में प्रतिपल गहरा करो... की ईश्वर पिता
हर कदम पर मेरा साथी है... और फिर कदम उठाओ तो जादू हुआ पड़ा है..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा की राईट हैण्ड होने का अनुभव करती हुई कहती
हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा के साथ से सफल हो रही हूँ...
बाबा के हाथ और साथ से विजयी बन मुस्करा रही हूँ... खुदा मेरी बाँहो में है और
मै सेवाओ के शिखर छूती जा रही हूँ..."
❉ मेरे प्यारे बाबा सेवाओं के सफलता की चाबी मुझे देते हुए कहते है:-
"मीठे प्यारे बच्चे... जब भगवान आसमान छोड़ धरती पर आ गया है तो अकेले भटकना
क्यों... यूँ मायूस होकर फिर जीना क्यों... साथी बनाकर देखो जरा... यादो में
डूबकर अधिकार जमा कर देखो जरा... खुदाई जादू आजमा कर देखो जरा... सफलताओ के
पहाड़ो पर विजयी पताका लिए सदा का मुस्कराओगे..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा विश्व कल्याण के स्टेज पर सफलता का झन्डा लहराते हुए
कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा भगवान को साथ लेकर उड़ रही हूँ
सफल हूँ विजेता हूँ इस नशे से भर गई हूँ... बाबा को साथ लिए सबके जीवन को
सुंदर बना रही हूँ... चारो ओर खुशियो भरे फूल खिला रही हूँ..."
❉ करन करावनहार मेरे बाबा मुझे सारे फिक्रों से फारिग करते हुए कहते
हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे बोझ बाबा को दे चलो... और हल्के होकर
उड़ते रहो... अभिमान और अपमान के जाल में न फंसो... पिता की मीठी यादो में जीकर
न्यारे और प्यारे बनो... एक बाबा और न कोई के नशे में डूब जाओ... निमित्त बन
पार्ट बजाओ... ईश्वरीय सेवा है... सारी फ़िक्र मीठे बाबा की है... आप याद के
आनन्द में भीगे कदम सुख की हवाओ में उठाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुदाई जादूगरी के समुन्दर में गोते लगाती हुई कहती
हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खुशियो के परम् आनन्द में हूँ...
निमित्त हूँ विघ्नो से मुक्त हूँ... और ईश्वरीय सेवाओ में न्यारी प्यारी
हूँ... इस नशे में गहरे समा रही हूँ... आपके मीठे साथ से उन्मुक्त हो खुशियो
के आसमान में उड़ रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- इस रावण राज्य में रहते पतित लोक लाज कुल की मर्यादा को छोड़ बेहद
बाप की बात माननी है"
➳ _ ➳ सर्व कर्मेंद्रियों से चेतनता को समेट अपने मन बुद्धि को अपने सत्य
स्वरूप में टिका कर, आत्म अभिमानी बन जैसे ही अपने मीठे प्यारे शिवबाबा की याद
में बैठती हूँ। ऐसा अनुभव होता है जैसे आज बाबा मुझ से कुछ विशेष रूह रिहान
करने के लिए मुझे जल्दी से जल्दी अपने पास बुला रहें हों। बाबा की याद आज
विशेष रूप से तीव्र गति से मुझे अपनी ओर खींच रही है और उनकी याद के आकर्षण में
बंधी मैं आत्मा साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूं उनके पास।
➳ _ ➳ देह और देह के सर्व बंधनों से मुक्त होकर, उड़ता पंछी बन मैं जा
रही ऊपर की ओर। पांच तत्वों की बनी देह रूपी प्रकृति का कोई भी आकर्षण मुझे
आकर्षित नहीं कर रहा और ना ही स्थूल प्रकृति की हलचल का कोई प्रभाव मुझ पर पड़
रहा है। मैं उन्मुक्त अवस्था मे बस ऊपर की और उड़ती जा रही हूं। इस साकारी लोक
और सूक्ष्म वतन को जल्दी ही पार कर मैं पहुंच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी
दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के पास।
➳ _ ➳ निराकार, महाज्योति अपने शिव पिता के सामने अब मैं ज्योति बिंदु
आत्मा स्वयं को देख रही हूं। उनके सानिध्य में मैं आत्मा गहन आनन्द की अनुभूति
कर रही हूं। उनसे निकल रही शक्तियों की शीतल फुहारें मन को तृप्त कर रही हैं।
प्यारे मीठे बाबा को अपलक निहारते-निहारते मैं बाबा के बिल्कुल समीप
पहुंच जाती हूँ और बाबा को टच करती हूं। शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ
बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगा है। मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली
व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप
परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा
है। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में
परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं।
➳ _ ➳ असीम सुख की अनुभूति करके, स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करके
मैं आत्मा परमधाम से वापिस सूक्ष्म वतन में आ जाती हूं। अपने लाइट के फरिश्ता
स्वरूप को धारण कर अब मैं फरिश्ता बापदादा के सम्मुख पहुंच जाता हूँ। मुझे
देखते ही बाबा दौड़कर मेरे समीप आते हैं और मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं।
➳ _ ➳ मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठाकर मुझसे मीठी मीठी रूह रिहान
करते हुए बाबा कहते हैं, मेरे मीठे सिकीलधे बच्चे:- "लौकिक लोकलाज के लिए कभी
भी ब्राह्मण कुल की लोकलाज को नही छोड़ना"। क्योकि लौकिक लोकलाज के पीछे अगर
कोई ब्राह्मण कुल की लोकलाज को छोड़ते है तो सिर्फ स्वयं को नुकसान नही पहुंचाते
लेकिन सारे ब्राह्मण कुल को बदनाम करने का बोझ आत्मा पर चढ़ जाता है। लौकिक
लोकलाज निभा कर अल्पज्ञ आत्माओं को तो खुश कर लिया लेकिन सर्वज्ञ बाप की आज्ञा
का उल्लंघन करके पाप के भागी बन जाते है।
➳ _ ➳ इसलिए मेरे बच्चे ब्राह्मण लोक की भी लाज सदा स्मृति में रखो।
हमेशा बुद्धि में रहे कि आप अकेले नहीं हो, बड़े कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी
लाज रखो। मीठी मीठी रूहरिहान करके बाबा कहते, मेरे सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण
कुलभूषण बच्चे:- "यही डायरेक्शन देने के लिए बाबा ने विशेष आपको बुलाया है"।
अपने प्रति बाबा का विशेष स्नेह और प्यार देख कर मैं अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा
करती हूं कि कभी भी लौकिक लोकलाज के पीछे अपने ब्राह्मण कुल की लोकलाज को नही
छोडूंगी। ब्राह्मण लोक की लाज रखना मेरा पहला फर्ज है इसलिये ब्राह्मण जीवन
के नियमो और मर्यादाओं को पूरी तरह निभाते हुए अपने श्रेष्ठ धर्म और कर्म पर
सदा अडिग रहूँगी। इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में
लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं को निभाते, हर कदम पर बाबा की मदद का
अनुभव करते अब मैं अपने लौकिक जीवन को भी अलौकिक में परिवर्तित कर परमात्मा
पालना में पलते हुए संगम युग की मौजों का आनन्द ले रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं रूहानी अथॉरिटी के साथ निरहंकारी बन सत्य ज्ञान का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं त्याग करके भाग्य प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ अपने भाई बहिनों के ऊपर रहमदिल बनो, और रहमदिल बन सेवा करेंगे तो उसमें निमित्त भाव स्वतः ही होगा। किसी पर भी चाहे कितना भी बुरा हो लेकिन अगर आपको उस आत्मा के प्रति रहम है, तो आपको उसके प्रति कभी भी घृणा या ईर्ष्या या क्रोध की भावना नहीं आयेगी। रहम की भावना सहज निमित्त भाव इमर्ज कर देती है। मतलब का रहम नहीं, सच्चा रहम। मतलब का रहम भी होता है, किसी आत्मा के प्रति अन्दर लगाव होता है और समझते हैं रहम पड़ रहा है। तो वह हुआ मतलब का रहम। सच्चा रहम नहीं, सच्चे रहम में कोई लगाव नहीं, कोई देह भान नहीं, आत्मा-आत्मा पर रहम कर रही है। देह अभिमान वा देह के किसी भी आकर्षण का नाम-निशान नहीं। कोई का लगाव बाडी से होता है और कोई का लगाव गुणों से, विशेषता से भी होता है।
➳ _ ➳ लेकिन विशेषता वा गुण देने वाला कौन? आत्मा तो फिर भी कितनी भी बड़ी हो लेकिन बाप से लेवता (लेने वाली) है। अपना नहीं है, बाप ने दिया है। तो क्यों नहीं डायरेक्ट दाता से लो। इसीलिए कहा कि स्वार्थ का रहम नहीं। कई बच्चे ऐसे नाज-नखरे दिखाते हैं, होगा स्वार्थ और कहेंगे मुझे रहम पड़ता है। और कुछ भी नहीं है सिर्फ रहम है।
➳ _ ➳ लेकिन चेक करो - निःस्वार्थ रहम है? लगावमुक्त रहम है? कोई अल्पकाल की प्राप्ति के कारण तो रहम नहीं है? फिर कहेंगे बहुत अच्छी है ना, बहुत अच्छा है ना, इसीलिए थोड़ा.... थोड़े की छुट्टी नहीं है। अगर कर्मातीत बनना है तो यह सभी रूकावटें हैं जो बाडी कानसेस में ले आती हैं। अच्छा है, लेकिन बनाने वाला कौन? अच्छाई भले धारण करो लेकिन अच्छाई में प्रभावित नहीं हो। न्यारे और बाप के प्यारे। जो बाप के प्यारे हैं वह सदा सेफ हैं। समझा!
✺ ड्रिल :- "सच्चा और निःस्वार्थ रहम की भावना रख न्यारे और बाप के प्यारे बनने का अनुभव"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने इस स्थूल शरीर से निकलकर फरिश्ता बनकर ऊपर उड़ती हूँ... इस साकारी दुनिया से ऊपर चाँद सितारों को पीछे छोड़ते हुए सूक्ष्म वतन में आकर ठहरती हूँ... चारों ओर चाँदनी सा प्रकाश बिखरा हुआ है... मेरे अंदर भी ये प्रकाश समाने लगता है... थोड़ा आगे चलकर अपने सामने ब्रह्मा बाबा को देखती हूँ और उनके सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की शक्तिशाली किरणें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगी हैं... मेरे पुराने सब आसुरी संस्कार भस्म हो रहे हैं और दैवी संस्कार इमर्ज हो रहे हैं... बाबा की शक्तिशाली किरणें मेरी सब कमी कमज़ोरियों को समाप्त कर रही हैं और अब मैं आत्मा बाबा का प्रकाश स्वयं में महसूस कर रही हूं... एक दम हल्की हो गयी हूँ...
➳ _ ➳ बाबा के प्यार की किरणें मेरे क्रोध के संस्कार को समाप्त कर रही हैं और मैं आत्मा अपने मूल स्वरूप शान्त स्वरूप में स्थित हो गयी हूँ... किसी भी आत्मा के प्रति ईर्ष्या या घृणा के भाव समाप्त हो रहे हैं और रहम के संस्कार मुझ आत्मा में भर रहे हैं... मेरे संपर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं स्नेह देती हूँ... कैसी भी आसुरी संस्कार वाली आत्मा हो मैं उससे घृणा नहीं करती उसे रहम के वाइब्रेशन दे उसके संस्कार परिवर्तन में सहयोग देती हूं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देह के भान से न्यारी हूँ... देह अभिमान और देह के आकर्षण से मुक्त हूँ... सर्व आत्माएं मेरे भाई बहन हैं और मैं अपने सभी भाई बहनों के प्रति रहम की भावना रखती हूँ... बाबा का प्यार मुझमें वो अलौकिक ख़ुशी भर रहा है जिससे मैं किसी भी आत्मा से ईर्ष्या नहीं करती... सबको सहयोग दे आगे बढ़ाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के प्यार में समाती जा रही हूँ... बाबा के साथ सर्व संबंध जोड़ कर मैं आत्मा इस संसार के लगाव से मुक्त होती जा रही हूँ... संसार के वैभव, देह के संबंध सब कुछ पीछे छोड़ रही हूँ... और मैं आत्मा बाबा की प्यारी बनती जा रही हूँ
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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