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❍ 03 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ "अब नाटक पूरा हो रहा है" - यह स्मृति रही ?
➢➢ इन आँखों से जो कुछ देखते हैं, यह सब ख़तम होना है" - यह स्मृति में रहा ?
➢➢ एक बाप के लव में लवलीन हो मंजिल पर पहुँचने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ अपनी खुशनसीबी का अनुभव चेहरे और चलन से करवाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ योग माना शान्ति की शक्ति। यह शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को और दूसरों को परिवर्तन करती है, इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी। व्यक्तियों को तो मुख का कोर्स करा लेते हो लेकिन प्रकृति को बदलने के लिए शान्ति की शक्ति अर्थात् योगबल ही चाहिए।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं तपस्वी आत्मा हूँ"
〰✧ तपस्वी आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? तपस्या अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे है या दूसरा कोई है अभी भी कोई है? कोई व्यक्ति या कोई वैभव? एक के सिवाए और कोई नहीं या थोड़ा लगाव है? निमित्त बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन लगाव जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ बुद्धि जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर। तो चेक करो कि सारे दिन में मन और बुद्धि कहाँ-कहाँ भागती है? सिवाए बाप और सेवा के और कहाँ तो मन-बुद्धि नहीं जाती? अगर जाती है तो लगाव है। अगर व्यवहार भी करते हो, जो भी करते हो, वो भी ट्रस्टी बनकर। मेरा नहीं, तेरा। मेरा काम है, मुझे ही देखना पड़ता है.. मेरी जिम्मेवारी है.. ऐसे कहते हो कभी? क्या करें, मेरी जिम्मेवारी है ना, निभाना पड़ता है ना, करना पड़ता है ना, कहते हो कभी? या तेरा तेरे अर्पण, मेरा कहां से आया? तो यह बोल भी नहीं बोल सकते हो? मुझे ही देखना पड़ता है, मुझे ही करना पड़ता है, मेरा ही है, निभाना ही पड़ेगा...। मेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं निमित्त हूँ तो हल्के। बोझ उठाने की आदत तो नहीं है? 63 जन्म बोझ उठाया ना। कइयों की आदत होती है बोझ उठाने की। बोझ उठाने बिना रह नहीं सकते। आदत से मजबूर हो जाते हैं।
〰✧ मेरा मानना माना बोझ उठाना। सभी तपस्या में सफलता को प्राप्त कर रहे हो ना। तपस्या में सन्तुष्ट हो? अपने चार्ट से सन्तुष्ट हो? या अभी होना है? यह भी एक लिफ्ट की गिफ्ट है। गिफ्ट जो होती है उसमें खर्चा नहीं करना पड़ता, खरीदने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। एक तो है अपना पुरुषार्थ और दूसरा है विशेष बाप द्वारा गिफ्ट मिलना। तो तपस्या वर्ष एक गिफ्ट है, सहज अनुभूति की गिफ्ट। जितना जो करना चाहे कर सकता है। मेहनत कम, निमित्त मात्र और प्राप्ति ज्यादा कर सकते हैं। अभी भी समय है, वर्ष पूरा नहीं हुआ है। अभी भी जो लेने चाहो ले सकते हो। इसलिए सफलता का सूर्य इस्ट में जगाओ। सदा सभी खुश हैं या कभी-कभी कुछ बातें होती तो नाखुश भी होते हो? खुशी बढ़ती जाती है, कम तो नहीं होती है?
〰✧ मायाजीत हो या माया रंग दिखा देती है? वह कितना भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ। माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले मनोरंजन समझकर देखो। देखते-देखते हार नहीं जाओ। साक्षी होकर के, न्यारे होकर के देखते चलो। सभी तपस्या में आगे बढ़ने वाले, गिफ्ट लेने वाले हो? सेवा अच्छी हो रही है? स्वयं के पुरुषार्थ में उड़ रहे हैं और सेवा में भी उड़ रहे हैं। सभी फर्स्ट हैं। सदा फर्स्ट रहना, सेकेण्ड में नहीं आना। फर्स्ट रहेंगे तो सूर्यवंशी बनेंगे, सेकेण्ड बनें तो चन्द्रवंशी। फर्स्ट नम्बर मायाजीत होंगे। कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् फास्ट पुरुषार्थ। जिसका फास्ट पुरुषार्थ है वो पीछे नहीं हो सकता। सदा साक्षी और सदा बाप के साथी - यही याद रखना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ अशरीरी भव - यह वरदान प्राप्त कर लिया है? जिस समय संकल्प करो कि 'मैं अशरीरी हूँ', उसी सेकण्ड स्वरूप बन जाओ। ऐसा अभ्यास सहज हो गया है? सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की निशानी है।
〰✧ कभी सहज, कभी मुश्किल, कभी सेकण्ड में, कभी मिनिट में या और भी ज्यादा समय में अशरीरी स्वरूप का अनुभव होना अर्थात सम्पूर्ण स्टेज से अभी दूर है। सदा सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की परख है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ रायल्टी किन बातों की व रीयल्टी किस बात की? पहले अपने स्वरूप की रीयल्टी। अगर रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति है तो स्वरूप की रीयल्टी से इस स्थूल सूरत में भी अलौकिक रायल्टी नज़र आयेगी। जो भी देखेंगे उनके मुख से यही निकलेगा कि यह इस दुनिया के नहीं हैं लेकिन अलौकिक दुनिया के फरिश्ते हैं अथवा यह स्वर्ग का कोई देवता उतरा है। ऐसे रायल्टी से अनुभव होगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- सम्पूर्ण बनना क्योंकि वापिस घर जाना है"
➳ _ ➳ चारों ओर महाशिवरात्रि की धूम मची है... मंदिरों में शिव भगवान की पूजा,
अर्चना, यज्ञ, जप-तप हो रहें हैं... मैं आत्मा सेण्टर में सभी आत्माओं के संग
पतंग उड़ाकर प्यारे बाबा का संदेश चारों और फैला रही हूँ- “मीठा बाबा आ गया है,
अब घर चलना है...” पूरे आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे बाबा का सन्देश लेकर
मुस्कुराते हुए लहरा रही हैं... मैं आत्मा पतंग बन उड़ चलती हूँ मीठे वतन मीठे
बाबा के पास...
❉ पवित्रता के सागर प्यारे बाबा पवित्रता के रूहानी रंग में मुझे रंगते हुए
कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... अब यह खेल पूरा हो गया है... अपने चमकते
मणि रूप में मीठे घर को जाना है... इसलिए यादो में गहरे खोकर, दुःख की दुनिया
के सारे खाते समाप्त करो... पवित्रता के रंग से सारे विश्व को रंग दो... सिर्फ
मीठे बाबा के प्यार में खो जाओ और अपने घर को याद करो..."
➳ _ ➳ इस अंतिम जन्म में स्वीट बाबा और अपने स्वीट होम को याद करते हुए मैं
आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया
में सारे विकारो से मुक्त होकर, पावनता की सुंदरता से सजधज गयी हूँ... आपका
साथी बनकर घर चलने को आतुर हूँ... और अनन्त सतयुगी सुखो की अधिकारी बनने का
भाग्य पाती जा रही हूँ..."
❉ इस कलियुगी दुनिया से न्यारा और अपना प्यारा बनाकर घर का रास्ता दिखाते हुए
मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस देह की दुनिया से उपराम
होकर, अपने घर असली घर शान्तिधाम चलने की तैयारी करो... इस समय सबकी वानप्रस्थ
अवस्था है... सारे हिसाब किताबो को समेटकर, पावनता का श्रंगार कर... मीठे बाबा
की बाँहों में बाहें डाल... गुनगुनाते हुए घर चलने की तैयारी करो...”
➳ _ ➳ अपने भाग्य के सितारे को ऊँचे आसमान की बुलंदियों पर चमकते हुए देख मैं
आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ...
ईश्वर पिता के साथ शान से घर चलने को तैयार हो रही हूँ... मीठा बाबा मुझे
कन्धों पर बिठाकर घर ले जाने आया है और मै आत्मा पवित्रता की चुनरिया ओढ़ शिव
साजन संग उड़ रही हूँ..."
❉ अपने मखमली गोदी के झूले में झुलाकर पवित्रता के स्नेह सागर में डुबोते हुए
प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के प्यार भरी
गोद में पावनता के फूल बन महक जाओ... देह की मिटटी से परे अपनी आत्मिक रूहानियत
से खिल उठो... देह की दुनिया से सारे बन्धन खत्म कर आत्मिक सम्बन्धो से भर
जाओ... मीठे बाबा की ऊँगली पकड़कर घर चलो और सज संवर कर पुनः सतयुगी धरा पर
खिलखिलाओ..."
➳ _ ➳ इस खेल के अंतिम पड़ाव में स्वयं भगवान के संग अपना हीरो पार्ट बजाते
हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में देह
के सब बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ... वाणी से परे हो, वानप्रस्थ अवस्था को
पाकर घर की ओर रुख कर रही हूँ... आपके प्यार की छाँव तले दैहिक खातो से मुक्त
होकर अशरीरी हो गयी हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अब नाटक पूरा हो रहा है हमें वापिस जाना है इसलिए आत्मा को बाप की याद से
स्तोप्रधान पावन जरूर बनाना है"
➳ _ ➳ साक्षीदृष्टा बन ज्ञान के दिव्य नेत्र से मैं जैसे ही इस सृष्टि को देखती
है यह सम्पूर्ण सृष्टि मुझे एक विशाल रंगमंच, एक नाटकशाला के रुप में दिखाई
देती है जिस पर बेहद का नाटक चल रहा है। मैं देख रही हूँ कि जैसे - जैसे इस
नाटक में जिसका पार्ट है अपने - अपने समय अनुसार वो आत्मा परमधाम से नीचे आ रही
है और मनुष्य शरीर धारण कर अपना पार्ट बजा रही है। जिस आत्मा को जैसा पार्ट
मिला है वो अपने उस पार्ट को एकदम एक्यूरेट बजा रही है।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि 5 हजार वर्ष से चल रहा
यह नाटक अब पूरा हो रहा है। सब पार्टधारियों को अपना पार्ट बजा कर अब वापिस
अपने धाम लौटना है और अब जबकि बाबा ने आकर हमे इस सत्यता का बोध करवा दिया है
कि यह पुरानी दुनिया अब जल्दी ही समाप्त होनी है तो अब हमें उनके फरमान पर चल
इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए नही तो देह और
देह की इस झूठी दुनिया के चक्रव्यूह में फंस कर अपनी तकदीर को लकीर लगा बैठेंगे
और इस बेहद नाटक में फिर कल्प - कल्प के लिए हमारा ऐसा ही पार्ट निर्धारित हो
जायेगा।
➳ _ ➳ यही वह समय है जबकि स्वयं भाग्य विधाता बाप आये हुए हैं और आकर श्रेष्ठ
मत देकर हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहें हैं। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर अच्छी
रीति चल इस अन्तिम समय मे अब मुझे इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का तीव्र
पुरुषार्थ अवश्य करना है। इस देह और देह की इस दुनिया से जुड़ा हर सम्बन्ध
नश्वर और दुख देने वाला ही तो है और भगवान के साथ जुड़ा हर सम्बन्ध अपरमअपार सुख
देने वाला है। यह स्मृति आते ही मन में इस पुरानी दुनिया के लिये वैराग्य
उतपन्न होने लगता है और मन अपने प्यारे बाबा की तरफ खिंचने लगता है। उनके
प्यार का वो एहसास याद आते ही मन बुद्धि देह और देह की दुनिया से उपराम हो कर
शिव पिता पर एकाग्र हो जाते हैं।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम
से परमात्म लाइट सीधी मुझ आत्मा के साथ आ कर कनेक्ट हो गई हैं। शक्तियों का
तेज करंट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगा है जो मुझे इस देह से उपराम कर, ऊपर
अपनी ओर खींच रहा है। इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर अब मैं आत्मा देह से
निकल कर इस लाइट के साथ - साथ ऊपर जा रही हूँ। यह परमात्म लाइट मुझे खींच कर 5
तत्वों की इस दुनिया से पार ले कर जा रही है। साकारी और आकारी दोनों दुनियाओं
को पार कर अब मैं अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की इस लाइट के साथ पहुँच गई
हूँ परमधाम उनके पास।
➳ _ ➳ अनन्त शक्तियों का पुंज, वो पॉवर हाउस मेरे शिव पिता परमात्मा अब मेरे
बिल्कुल समीप है उनकी समस्त पॉवर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ
आत्मा पर पड़ रही हैं। मुझ आत्मा की बैटरी चार्ज हो रही है और मैं लाइट हाउस
बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट स्वयं में भर कर मैं अपने आप को बहुत ही
शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। ऊर्जा का भण्डार बन, वापिस साकारी लोक में आ कर
अपने साकारी तन में विराजमान हो कर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अब मैं अपना पार्ट
फिर से बजा रही हूँ।
➳ _ ➳ "सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे देह और देह की
दुनिया से उपराम बनाती जा रही है। देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते,
उनसे तोड़ निभाते, बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़, मन बुद्धि से अब मैं
ऊपर वास करती रहती हूँ और अपने शिव पिता के प्यार से स्वयं को सदा भरपूर रखते
हुए, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन कर रहती हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं एक बाप के लव में लवलीन हो मंजिल पर पहुँचने वाली सर्व आकर्षण मुक्त्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं अपनी खुशनसीबी का अनुभव चेहरे और चलन से कराने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ इस पुरानी देह को बापदादा द्वारा मिली हुई ‘अमानत' समझो। सेवा अर्थ
कार्य में लगाना है। यह मेरी देह नहीं लेकिन सेवा अर्थ अमानत है। जैसे मेहमान
बन देह में रह रहे हैं। थोड़े समय के लिए बापदादा ने कार्य के लिए आपको यह तन
दिया है। तो आप क्या बन गये? मेहमान! मेरे-पन का त्याग और मेहमान समझ महान
कार्य में लगाओ। मेहमान को क्या याद रहता है? असली घर याद रहता है या उसी में
ही फँस जाते हो! तो आप सबका यह शरीर रूपी घर भी, यह फारिश्ता स्वरूप है, फिर
देवता स्वरूप है। उसको याद करो। इस पुराने शरीर में ऐसे ही निवास करो जैसे
बापदादा पुराने शरीर का आधार लेते हैं लेकिन शरीर में फँस नहीं जाते हैं। कर्म
के लिए आधार लिया और फिर अपने फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो जाओ। अपने निराकारी
स्वरूप में स्थित हो जाओ। न्यारेपन की ऊपर की ऊँची स्थिति से नीचे साकार
कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने लिए आओ, इसको कहा जाता है - ‘मेहमान अर्थात्
महान'। ऐसे रहते हो? त्याग का पहला कदम पूरा किया है?
✺ "ड्रिल :- स्वयं को इस देह में मेहमान समझ महान अवस्था का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में चली जा रही हूँ... बाबा तेज धूप में मुझपर अपनी
ठंडी छत्रछाया डाल रहे हैं... कुछ दूर चलते-चलते मुझे कुछ लोग दिखाई दिए...
उन्होंने मुझे रोका और किसी घर का पता पूछा... तभी मैने जाना तो वो मेरे ही
लौकिक घर का पता था... मैं उनको आदर भाव से घर ले गयी... और उसी समय से मैं
उन्हें ध्यान से देखने लगी... मैने देखा कि वो एक स्थान पर बैठे हैं... और इस
घर की किसी भी चीज को छू भी नहीं रहे है... और बार बार उस घर की बात कर रहे
हैं, जहाँ से वो आये है... हमने उनका बहुत आदर भाव और मान मनुहार किया... वो
बहुत खुश भी थे... परंतु बार बार अपने घर को याद करते है...
➳ _ ➳ उन्हें देखकर मैं सोचने लगती हूँ... कि इन्हे इतना मान सम्मान और प्यार
मिल रहा है तब भी ये अपने घर को नहीं भूल रहे... यहाँ की किसी भी चीज में ममत्व
नहीं है... हर कर्म करते भी अपनी बुद्धि से अपने घर को याद कर रहे है... इन्हे
मालूम है ये सिर्फ कुछ दिनो के लिए यहाँ आये है... फिर इन्हे वापिस अपने घर जाना
है... इसलिए जब ये मेहमान यहाँ से जाएंगे तब इन्हे यहाँ की चीजें याद नहीं
आएँगी... और ना ही इनमें इनका मोह होगा... क्योंकि इन्हे पता है कि ये कोई भी
चीज इनकी नहीं है... मेहमान यहाँ पूरे परिवार के साथ रहते भी मन बुद्धि से अपने
घर की याद में थे... इसलिए ये आसानी से बिना किसी दुःख के यहाँ से प्रस्थान कर
रहे है...
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखकर मैं मन बुद्धि से बाबा के पास चली जाती हूँ... और बाबा
से कहती हूँ... बाबा... मेरा मार्गदर्शन कीजिये... और बाबा मुझसे कहते है...
मेरे मीठे बच्चे, तुम्हारा यह शरीर भी तुम्हारा नहीं है... यह सिर्फ कर्म करने
के लिये तुम्हें मिला है... तुम हमेशा इस शरीर को समझो जैसे तुम इसमे मेहमान
हो... तुम्हे इस कमरे रूपी मकान में हमेशा नहीं रहना... इसमे रहकर अपना हर कर्म
निभाना है... मेहमान के बुद्धि में हमेशा अपना घर रहता है... ऐसे ही तुम्हारी
बुद्धि में भी हमेशा अपना असली स्वरूप रहना चाहिए... इस विनाशी शरीर से किसी भी
प्रकार का लगाव नहीं रखना है... अगर इससे लगाव रखोगे तो अंत में इससे आसानी से
नहीं निकल पाओगे... निकलते समय बहुत दुःख होगा...
➳ _ ➳ बाबा के वचन सुनकर मैं आत्मा बाबा से वादा करती हूँ... और कहती हूँ...
बाबा... मैं भी इस शरीर को सिर्फ़ कर्म करने का साधन मात्र समझूँगी... मैं हमेशा
यह याद रखूँगी कि मैं एक ज्योतिर्बिन्दु हूँ... मैं इस शरीर और इन कर्मेन्द्रियों
की मालिक हूँ... मैं यह याद रखूँगी कि ये शरीर मुझे इस कर्मक्षेत्र पर कर्म
करने के लिए मिला है... कर्म करते समय मैं अपने आपको चलता फिरता फ़रिश्ता
स्वरूप में ही अनुभव करूँगी... जब कार्य समाप्त होगा मैं ज्योतिर्बिन्दु बनकर
अपनी शक्तियां बढ़ाऊंगी... मैं आत्मा इस शरीर में मेहमान बनकर प्रवेश करूँगी...
और मेहमान बनकर ही प्रस्थान करूँगी... और जब भी मैं आत्मिक स्थिति में रहकर
कर्म करूँगी तो अपनी महान स्थिति का अवश्य ही अनुभव करूँगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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