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 23 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ व्यर्थ से मुक्त समर्थ स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ "हम महान पार्टधारी आत्माएं हैं" - यह नशा रहा ?

 

➢➢ हर समय मुरली के महावाक्यों का मनन करते रहे ?

 

➢➢ माया से घबराने वाले न बन माया को ललकारने वाले बने ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे अग्नि में कोई भी चीज डालो तो नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद के लगन की अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो। मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। लग्न की अग्नि से ऐसा परिवर्तन होता है जो अपनापन कुछ भी नहीं रहता, इसलिए याद को ही ज्वाला रूप कहा है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं 'मेरा बाबा' की स्मृति द्वारा सर्व प्राप्ति से भरपूर आत्मा हूँ"

 

✧  सबसे सहज सदा शक्तिशाली रहने की विधि क्या है जिस विधि से सहज और सदा निर्विग्न भी रह सकते हैं और उड़ती कला का भी अनुभव कर सकते हैं? सबसे सहज विधि है-और कुछ भी भूल जाये लेकिन एक बात कभी नहीं भूले- 'मेरा बाबा'। 'मेरा बाबा' दिल से मानना-यही सबसे सहज विधि है आगे बढ़ने की। मेरा-मेरा मानने का संस्कार तो बहुत समय का है ही। उसी संस्कार को सिर्फ परिवर्तन करना है। 'अनेक' मेरे को 'एक' मेरा बाबा उसमें समाना है। एक को याद करना सहज है ना और एक मेरे में सब-कुछ आ जाता है। तो सबसे सहज विधि है-”मेरा बाबा”। 'मेरा' शब्द ऐसा है जो न चाहते भी याद आती है। 'मेरे' को याद नहीं करना पड़ता लेकिन स्वत: याद आती है।

 

  भूलने की कोशिश करते भी 'मेरा' नहीं भूलता। योग अगर कमजोर होता है तो भी कारण 'मेरा' है और योग शक्तिशाली होता है तो उसका भी कारण 'मेरा' ही है। 'मेरा बाबा'-तो योग शक्तिशाली हो जाता है और मेरा सम्बन्ध, मेरा पदार्थ-यह 'अनेक मेरा' याद आना अर्थात् योग कमजोर  होना। तो क्यों नहीं सहज विधि से पुरुषार्थ में वृद्धि करो। विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है। रिद्धि-सिद्धि अल्पकाल की होती है लेकिन विधि से सिद्धि जो प्राhत होती है वह अविनाशी होती है। तो यहाँ रिद्धि-सिद्धि की बात नहीं है लेकिन विधि से सिद्धि प्राप्त करनी है। विधि को अपनाना आता है या मुश्किल लगता है?

 

  कमजोर बनना अर्थात् मुश्किल अनुभव होना। बिना कमजोरी के मुश्किल नहीं होता है। तो कमजोर हो क्या? या माया कभी-कभी कमजोर बना देती है? अगर 'मेरा बाबा' याद आता है, तो बाप सर्वशक्तिवान है ना, तो जैसा बाप वैसे बच्चे। 'मेरा बाबा' याद आने से अपना मास्टर सर्वशक्तिवान का स्वरूप याद आता है। 'मेरा बाबा' कहने से ही 'बाप कौन है', वह स्मृति में आता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सदा एक लक्ष्य हो की हमें दादा का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना है न कि लेना है-  यह करें तो मैं करूँ, नहीं। हर एक दाता -  पन की भावना रखे तो सब देने वाले अर्थात सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे। सम्पन्न नहीं होंगे तो दे भी नहीं  सकेंगे। तो जो सम्पन्न आत्मा होगी वह सदा तृप्त आत्मा ज़रूर होगी। मैं देने वाले दादा का बच्चा हूँ - देना ही लेना है। जितना देना उतना लेना ही है। प्रैक्टिकल में लेने वाला नहीं लेकिन देने वाला बनना है।

 

✧  दाता-पन की भावना सदा निर्विघ्न, इच्छा मात्रम्  अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है - सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नजर रहे। वह लक्ष्य है बिन्दु। एक लक्ष्य अर्थात बिन्दी की तरफ सदा देखने वाले। अन्य कोई भी बातों को देखते हुए भी नहीं देखें। नजर एक बिन्दु की तरफ ही हो - जैसे यादगार रूप में भी दिखाया है कि मछली के तरफ नजर नहीं थी लेकिन आँख की भी बिन्दु में थी।

 

✧  तो मछली है विस्तार और सार है बिन्दु। तो विस्तार को नहीं देखा लेकिन सार अर्थात एक बिन्दु को देखा। इसी प्रकार अगर कोई भी बातों के विस्तार को देखते तो विघ्नों में आते - और सार अर्थात एक बिन्दु रूप स्थिति बन जाती और फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु लग जाती। कर्म में भी फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु। स्मृति में भी बिन्दु अर्थात बीजरूप स्टेज हो जाती। यह विशेष अभ्यास करना है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सभी सदा प्रवृत्ति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो ? जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे। तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना। जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृत्ति के बन्धन से भी न्यारा रहता है। निमित्त मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृत्ति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो लेकिन अभी-अभी आर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा। सभी स्वतन्त्र हो?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाना"

➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहानं करने के लिए... जब मै आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुंचती हूँ... सुंदर सतयुग और मनमोहक श्री कृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ... भक्ति में यह चित्र, आज ज्ञान में मन की आँखों से देखकर... मै आत्मा आनन्द की चरमसीमा पर हूँ... मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखलाया है... भक्ति में सब कुछ कितना दूर था... और आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नजारा दिल के कितना करीब है... भगवान ने मेरी सोच बदल कर... सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नजारे मेरे नाम लिख दिए है... मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... कमरे की ओर बढ़ चलती हूँ...."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की ख़ुशी से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान को अपनी बाँहों में भरने वाले अति सौभाग्यशाली हो... इस मीठी ख़ुशी में सदा आनन्द के साथ झूमते रहो... व्यर्थ चिंतन से परे होकर, समर्थ मनन से शक्तिशाली बनो... भगवान को पाकर अब किस बात की चिंता है... मन की ख़ुशी तन पर भी स्वतः झलकेगी... सदा यह सोच कर मुस्कराओ...यह मन और तन दोनों ही प्यारे है, जो भगवान से मिलने का आधार बने हैं...”

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से ख़ुशी की खुराक लेकर शक्तिशाली बनकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के प्रपंच में कितना उलझी थी कि चहुँ ओर दुःख ही दुःख बिखरा था... व्यर्थ सोचना ही मुझ आत्मा का संस्कार था... आपने प्यारे बाबा, मुझे कितना प्यारा खुबसूरत जीवन दिया है... मै आत्मा अब सदा प्रफुल्लित हूँ... सदा उमंगो और खुशियो में चहकती हुई, हर दिल को आप समान बना रही हूँ..."

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में शुभ संकल्पों के संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय मिलन में सहयोगी, इस पुराने तन को... वाह वाह कर चलाओ... दिल शिकस्ती के संकल्प नही चलाओ... माया के तूफान को भी... शक्तियो और गुणो को बढ़ाने में, सहयोगी समझो... हर पल, हर स्थिति में सदा शुभ संकल्प के ऊँचे शिखर पर विराजमान रहो... कभी ख़ुशी, कभी गम, इस नेचर को बदल, सदा सदा के लिए, ख़ुशी के सम्राट बन जाओ...."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से, हर बात में कल्याण की भावना को, अपने दिल में भरकर कहती हूँ :- "सच्चे साथी बाबा मेरे... आप जीवन में आये हो बाबा... तो खुशियो की बहार संग लाये हो...मेरे दुखो के आँसू सुखाकर, खुशियो की चमक आँखों में लाये हो... मै आत्मा आपके प्यार के साये में, कितनी खुबसूरत होती जा रही हूँ... मेरी सुंदर सोच मुझे कितना सुख दे रही है... और सुखो भरी दुनिया, आने वाले कल में, मेरे लिए ही सज रही है..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरी सुंदर सोच में छिपे खुबसूरत खजानो को उजागर करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा शुभभावना रख, हर दिल को अपना बनाओ... मुझे अपने को बदलना है यह स्वयं को पक्का कराओ... हर बात में बीच में बाबा को लाओ... तो माया स्वतः ही काफूर हो जायेगी... सदा विशेषताओ के मोती चुगने वाले, होलिहंस बन,ख़ुशी से रेस कर, एक दूजे से आगे बढ़, सदा मुस्कराओ...

➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर दिल से न्यौछावर होकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... आपने शुभ संकल्पों, और शुभ भावना का जादु मुझे सिखाकर, मेरा जीवन कितना निराला और अनोखा कर दिया है... मै आत्मा शुभभावना से भरकर, प्यारे और मीठे जीवन को सहज ही पा गयी हूँ... आपसे पाये असीम प्यार की तरंगे... पूरे विश्व पर बिखरने वाली विश्व कल्याणकारी बन गयी हूँ... मीठे बाबा के उपकारों का यूँ रोम रोम से शुक्रिया कर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ ड्रिल :- व्यर्थ से मुक्त समर्थ स्थिति का अनुभव"

➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करने वाले ज्ञान सागर अपने प्यारे शिव प्रीतम से मिलने की जैसे ही मन में इच्छा जागृत होती है। वैसे ही मैं आत्मा सजनी ज्ञान रत्नों का सोलह श्रृंगार कर चल पड़ती हूँ ज्ञान के अखुट खजानो के सौदागर अपने शिव प्रीतम के पास। उनके साथ अपने प्यार की रीत निभाने के लिए देह और देह के साथ जुड़े सर्व संबंधों को तोड़, निर्बंधन बन, ज्ञान की पालकी में बैठ मैं आत्मा मन बुद्धि की यात्रा करते हुए अब जा रही हूं उनके पास।

➳ _ ➳ उनका प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं बरबस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ। उनके प्यार में अपनी सुध-बुध खो चुकी मैं आत्मा सजनी सेकंड में इस साकार वतन और सूक्ष्म वतन को पार कर पहुंच जाती हूं परमधाम अपने शिव साजन के पास। ऐसा लग रहा है जैसे वह अपनी किरणों रूपी बाहें फैलाए मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। उनके प्यार की किरणों रूपी बाहों में मैं समा जाती हूं। उनके निस्वार्थ और निश्छल प्यार से स्वयं को भरपूर कर, तृप्त होकर मैं आ जाती हूँ सूक्ष्म लोक।

➳ _ ➳ लाइट का फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूं अव्यक्त बापदादा के सामने। अव्यक्त बापदादा की आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही है। बाबा कह रहे हैं, हे आत्मा सजनी आओ:- "ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए मेरे पास आओ"। बाप दादा की आवाज सुनकर मैं फ़रिशता उनके पास पहुंचता हूं। बाबा अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगते हैं और अपनी सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर करने लगते हैं।

➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करके बाबा अब मुझे एक बहुत बड़े हॉल के पास ले आते हैं। जिसमें अमूल्य हीरे जवाहरात, मोती, रत्न आदि बिखरे पड़े हैं। किंतु उस पर कोई भी ताला चाबी नहीं है। उनकी चमक और सुंदरता को देखकर मैं आकर्षित होकर उस हॉल के बिल्कुल नजदीक पहुंच जाता हूं। बाबा मुझे उस हॉल के अंदर ले जाते हैं और मुझसे कहते हैं:- "ये अविनाशी ज्ञान रत्न है। इन अविनाशी रत्नों का ही आपको श्रृंगार करना है"। कितना लंबा समय अपने अविनाशी साथी से अलग रहे तो श्रृंगार करना ही भूल गए, अविनाशी खजानों से भी वंचित हो गए। किंतु अब बहुत काल के बाद जो सुंदर मेला हुआ है तो इस मेले से सेकेंड भी वंचित नहीं रहना।

➳ _ ➳ यह कहकर बाबा उन ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारने लगते हैं। मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर बाबा मुझे सर्व ख़ज़ानों से भरपूर करने लगते है। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से अब मैं फ़रिशता स्वयं को भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर बाबा खुशी से फूले नही समा रहे। बाबा जो मुझ से चाहते हैं, बाबा की उस आश को मैं आत्मा सजनी बाबा के नयनो में स्पष्ट देख रही हूं।

➳ _ ➳ मन ही मन अपने शिव प्रीतम से मैं वादा करती हूँ कि ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी हुई रहूँगी और मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालूंगी। अपने शिव साथी से यह वादा करके अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार अब धीरे-धीरे मैं आत्मा वापिस इस देह में अवतरित हो गयी हूँ। अब मैं बाबा से मिले सर्व ख़ज़ानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। जैसे मेरे अविनाशी साजन ने मुझ आत्मा को गुणों और शक्तियों के गहनों से सजाया है वैसे ही मैं आत्मा भी वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी परमात्म स्नेह और शक्तियों का अनुभव करवा रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं समर्थ स्थिति का स्विच ऑन कर व्यर्थ के अंधकार को समाप्त करने वाली अव्यक्त फरिश्ता आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं सत्यता के आधार से सर्व आत्माओं के दिल की दुआएं प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ सेवा की भाग-दौड़ भी मनोरंजन का साधन है: सभी अपने को हर कदम में याद और सेवा द्वारा पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यवान समझते हो? कमाई का कितना सहज तरीका मिला है। आराम से बैठे-बैठे बाप को याद करो और कमाई जमा करते जाओ। मन्सा द्वारा बहुत कमाई कर सकते हो, लेकिन बीच-बीच में जो सेवा के साधनों में भाग-दौड़ करनी पड़ती है, यह तो एक मनोरंजन है। वैसे भी जीवन में चेन्ज चाहते हैं तो चेन्ज हो जाती है। वैसे कमाई का साधन बहुत है, सेकेण्ड में पदम जमा हो जाते हैं, याद किया और बिन्दी बढ़ गई। तो सहज अविनाशी कमाई में बिजी रहो।

✺ "ड्रिल :- सेवा के भाग-दौड़ में भी मनोरंजन का अनुभव करना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा रंग बिरंगे रंगों से एक चित्र बना रही हूं... इस चित्र में मैं एक ऐसी आत्मा का चित्र बनाती हूं, जो हाथ में माला लेकर राम राम जप रहा है... उस चित्र में मैं यह भी दर्शाती हूं कि वह व्यक्ति हर कर्म करते हुए राम राम जप रहा है... भिन्न भिन्न रंगों के द्वारा मैं यह भी दर्शाती हूं कि वह व्यक्ति हाथ में माला लेकर अनेक स्थानों पर जाकर अपना कर्म कर रहा है... वह चित्र बनाते समय मैं पूरी तरह से उस चित्र में डूब जाती हूं... और मैं एक छोटा सा मोती बन कर उस व्यक्ति की माला में बैठ जाती हूं... और उस माला में बैठकर अब मैं उस व्यक्ति के और करीब हो जाती हूं और उसकी पूरी दिनचर्या करीब से देखती हूं... तभी मुझे आभास होता है कि इसी माला में ऊपर की ओर शिव बाबा बैठे हैं और मुझे देख कर मुस्कुरा रहे हैं...

➳ _ ➳ जैसे ही मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुस्कुरा रहे हैं... तो मैं शिव बाबा से पूछती हूं... कि बाबा आपकी मुस्कुराहट का क्या कारण है? बाबा मुझे कहते हैं... क्या तुमने इस व्यक्ति को ध्यान से देखा और समझा कि यह सारा दिन कितना व्यस्त रहता है फिर भी माला सिमरण करना नहीं भूलता, और ना ही यह अपना कोई भी कर्तव्य भूलता है, और साथ ही बाबा मुझे पूछते हैं... क्या तुम अपना कर्तव्य करते समय अपने परमात्मा को याद करते हो? कितना समय याद करते हो और कितना समय भूलते हो? क्या तुम्हें कुछ याद है? बाबा की यह बातें सुनकर मैं कुछ देर के लिए स्थिर हो जाती हूं...

➳ _ ➳ कुछ समय उस चित्र में व्यतीत करने के बाद मैं बाहर निकलकर इस देह में विराजमान हो जाती हूं और फिर भी शिव बाबा की कही हुई बातों को नहीं भूलती हूं, और बार-बार अपने सामने शिवबाबा को अनुभव करती हूं... और मुझे यह आभास होता है कि मानो शिव बाबा बार-बार मुझे वही प्रश्न पूछ रहे हैं कि... क्या तुम्हें याद है तुम परमात्मा को कितना समय याद करती हो? और कितना समय भूलती हो? फिर मैं एकांत मैं जाकर विचार सागर मंथन करती हूं और अपनी दिनचर्या बनाती हूं, जिसमें मैं सारा दिन परमात्मा को याद रख सकूं और मेरा मनोरंजन भी हो जाए व पुरुषार्थ में नवीनता भी आ जाए...

➳ _ ➳ सबसे पहले मैं अमृतवेला में प्रभु मिलन कर अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती हूं... और जब मैं स्नान करने जाती हूं तो मैं यह अनुभव करती हूं कि मैं आत्मा शिव बाबा की किरणों रुपी झरने में नहा रही हूं... जिससे नहा कर मेरा फरिश्ता स्वरूप निखरता जा रहा है, और मैं बाबा को अपने साथ लेकर श्रृंगार करने बैठती हूं... और मुझे यह भी ध्यान रहता है कि मुझे परमात्मा को भी याद करना है और श्रृंगार भी करना है... मैं बैठ जाती हूं शीशे के सामने और मैं श्रृंगार प्रारंभ करती हूं... जैसे ही मैं माथे पर बिंदिया लगाती हूं तो मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुझे कह रहे हैं... कि बच्चे तुम शरीर नहीं आत्मा हो, तुम आत्मिक स्थिति में हो... और मैं तुरंत अपने आपको आत्मिक स्थिति में ले आती हूं... फिर मैं अनुभव करती हूं कि मैं आत्मा शिव बाबा की सजनी हूं, शिव बाबा मुझे ज्ञान रत्नों से सजाने के लिए आए हैं...

➳ _ ➳ और कुछ समय बाद जब मैं सुंदर वस्त्र पहनती हूं, तो मैं अनुभव करती हूं कि मैं सतयुगी देवी हूं और बाबा ने मुझे यह रुप दिया है... और जब मैं भोजन बनाती हूं तो मैं अनुभव करती हूं कि शिव बाबा मेरे सर के ऊपर हैं और अपनी शक्तिशाली और पवित्र किरणों से भोजन को शुद्ध बना रहे हैं... और जब मैं भोजन करके और अपना काम खत्म करके बाहर निकलती हूं तो मैं शिवबाबा को कहती हूं... बाबा इस कड़ी धूप में आप मेरी छत्रछाया बनकर मेरे साथ रहना और पूरे रास्ते भर मैं उनको अपनी छत्रछाया अनुभव करती हूं और उनसे बातें करते हुए चलती हूं... ऐसे ही जब मैं वापस घर लौटती हूं तो अपने सभी काम शिव बाबा की याद में खत्म करके रात को शिव बाबा की गोद में आकर सो जाती हूं... और मैं बाबा को कहती हूं... बाबा धन्यवाद आपने समय पर मुझे समझा दिया कि हम कितने भी व्यस्त हो, अपने परमात्मा को व्यस्त रहते हुए भी याद कर सकते हैं और मनोरंजन भी हो जाता है... जिससे हमारे पुरुषार्थ में नवीनता आ जाती है और अलबेलापन भी नहीं आता, हमारी याद की यात्रा बढ़ती जाती है...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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