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❍ 27 / 01 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप को यथार्थ रीति से जान यथार्थ स्नेही बनकर रहे ?*
➢➢ *अपना बाप, अपना घर, अपना कार्य समझ सदा के लिए सहयोगी बनकर रहे ?*
➢➢ *मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वरुप में स्थित होकर रहे ?*
➢➢ *प्रीत बुधी विजयी रतन बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने का साधन है - माया को परखना और परखने के बाद निर्णय करना* क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया भी रायल ईश्वरीय रुप रच करके आती है, जिसको *परखने के लिए एकाग्रता अर्थात् साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हूँ"*
〰✧ *'सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं।' - इसी नशे में रहो। निश्चय का फाउन्डेशन सदा पक्का है! अपने आप में निश्चय, बाप में निश्चय और ड्रामा की हर सीन को देखते हुए उसमें भी पूरा निश्चय।* सदा इसी निश्चय के आधार पर आगे बढ़ते चलो।
〰✧ *अपनी जो भी विशेषतायें हैं, उनको सामने रखो, कमजोरियों को नहीं, तो अपने आप में फेथ रहेगा। कमजोरी की बात को ज्यादा नहीं सोचना तो फिर खुशी में आगे बढ़ते जायेंगे। बाप का हाथ लिया तो बाप का हाथ पकड़ने वाले सदा आगे बढ़ते हैं, यह निश्चय रखो।*
〰✧ जब बाप सर्वशक्तिवान है तो उसका हाथ पकड़ने वाले पार पहुँचे कि पहुँचे। चाहे खुद भले कमजोर भी हो लेकिन साथी तो मजबूत है ना। इसलिए पार हो ही जायेंगे। *सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न, इसी स्मृति में रहो। बीती सो बीती, बिन्दी लगाकर आगे बढ़ो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ऑर्डर करें मधुरता स्वरूप बनना है और समस्या अनुसार, परिस्थिति अनुसार क्रोध का महारूप नहीं लेकिन सूक्ष्म रूप भी आवेश वा चिडचिडापन आ रहा है, क्या यह ऑर्डर है? ऑर्डर में हुआ? *ऑर्डर करें हमें निर्मान बनना है और वायुमण्डल अनुसार सोचो कहाँ तक दबकर चलेंगे, कुछ तो दिखाना चाहिए।*
〰✧ क्या मुझे ही दबना है? मुझे ही मरना है! मुझे ही बदलना है? क्या यह लव ऑर ऑर्डर है? इसलिए *विश्व के ऊपर, चिल्लाने वाले दु:खी आत्माओं के ऊपर रहम करने के पहले अपने ऊपर रहम करो।* अपना अधिकार सम्भालो। *आगे चल आपको चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का बहुत कार्य करना है।*
〰✧ पहले भी सुनाया कि अभी तक जो जो जहाँ तक सेवा के निमित हैं, बहुत अच्छी की है और करेंगे भी लेकिन अभी समय प्रमाण तीव्र गति और बेहद सेवा की आवश्यकता है। तो *अभी पहले हर दिन को चेक करो ‘स्वराज्य अधिकार’ कहाँ तक रहा?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसे तो नहीं कि बहुत सुनते हो तो बिन्दु-स्वरूप में रहना मुश्किल हो जाता है? *परन्तु बिन्दु-रूप में स्थित रहने की कमी का कारण यही है कि पहला पाठ ही कच्चा है।* कर्म करते हुए अपने को अशरीरी आत्मा महसूस करें - यह सारे दिन में बहुत प्रैक्टिस चाहिए। *प्रैक्टिकल में न्यारा होकर कर्तव्य में आना - यह जितना-जितना अनुभव करेंगे उतना ही बिन्दु-रूप में स्थित होते जावेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्नेही, सहयोगी, शक्तिशाली बच्चों की तीन अवस्थाएं"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा *मधुबन भूमि पर शांति स्तम्भ के सामने बैठ अपने अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति कर रही हूँ... मैं स्वयं को सफेद लाइट के कार्ब में देख रही हूँ...* ऊपर से दिव्य प्रकाश फैलाते हुए अलौकिक फरिश्ता ब्रह्मा बाबा और उनके तन में शिवबाबा प्रकट होते हैं... *अव्यक्त बापदादा को अपने सामने पाकर मैं फरिश्ता नन्हा बच्चा बन उनकी गोद मे चला जाता हूँ... ब्रह्मा माँ अपने रूहानी स्नेह दुलार से मुझे निहाल कर रही हैं...*
❉ *निःस्वार्थ रूहानी स्नेह से मुझ आत्मा की जन्म जन्म की तड़पन को मिटाते हुए ब्रह्मा माँ कहते हैं:-* "मेरे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा अपने को सोचो कि बाप के हैं और बाप के ही सदा रहेंगे... यह दृढ़ संकल्प सदा आगे बढ़ाता रहेगा...* कमजोरियों के बारे में ज्यादा नहीं सोचना है... कमजोर चिंतन करते करते... कमजोरियों के बारे में सोचते सोचते कमजोर हो जाते हैं... मेरा योग नहीं लगता... मुझसे सेवा नहीं होती... इस तरह के कमजोर संकल्प नहीं करनी है... संकल्पों में दृढ़ता धारण करनी है..."
➳ _ ➳ *रूहानी स्नेह सागर की अनन्त लहरों में हिलोरे लेते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्राणेश्वर मीठे बाबा... कितना सुंदर दिव्य ज्ञान आप मुझ आत्मा को दे रहे हैं... अब मैं आत्मा *अपने हर संकल्प को सूक्ष्मता से... गहराई से चेक कर रही हूँ... कि कहीं मेरे संकल्प कमजोरी वाले तो नहीं हैं... इन संकल्पों को पहचान कर फिर मैं आत्मा उनके स्थान पर दृढ़ता के संकल्प... समर्थ संकल्प धारण कर रही हूँ... समर्थ संकल्पों से मैं आत्मा शक्तिशाली बनती जा रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान चिंगारी से मुझ आत्मा की बुझी हुई ज्योति को जगाते हुए बापदादा कहते हैं:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... माया कमजोर संकल्प के रूप में ही आती है... और माया के इस रूप को न समझ कर कमजोरियों का वर्णन करने... *सोचते रहने से माया के साथी बन जाते हैं... कमजोरों की साथी माया है... कभी भी कमजोर संकल्पों का बार-बार वर्णन नहीं करना और ना ही सोचना है... बार बार सोचने से भी स्वरूप बन जाते हैं...* सदा यह सोचो कि *मैं बाबा का नहीं बनूंगा तो और कौन बनेगा... कल्प कल्प मैं ही बाबा का बना था बना हूँ... और बनूंगा... यह संकल्प तंदुरुस्त और मायाजीत सहज ही बना देगा..."*
➳ _ ➳ *बाबा से मिले ज्ञान प्रकाश से जगमगाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे बाबा... आप मुझे माया के सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप की परख करा रहे हैं... इससे मैं सहज ही अपने संकल्पों की चेकिंग कर रही हूँ... *कमजोर संकल्पों को न मैं आत्मा सोच रही हूँ... न ही उनका वर्णन कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा समर्थ संकल्पों में ही रमण कर रही हूँ..."*
❉ *ज्ञान के दिव्य चक्षु देते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:-* "प्यारे फूल बच्चे... आप कभी भी कमजोरी के संकल्प नहीं कर सकते... *आप कमजोर नहीं हो... मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हो... बापदादा के चुने हुए रत्न हो... तो कमजोर कैसे हो सकते हो... आप सदा के महावीर, सदा के बहादुर हो... बाप के साथी हो... यही श्रेष्ठ संकल्प रखना है... जब बाप साथी है तो माया अपना साथी बना नहीं सकती..."*
➳ _ ➳ *बाबा के दिए हुए ज्ञान को आत्मसात करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "प्यारे बाबा... मैं आत्मा अब शुद्ध समर्थ और शक्तिशाली संकल्प कर रही हूँ... *मैं ही कल्प कल्प की वह भाग्यवान आत्मा हूँ... जिसे स्वयं भगवान ने चुना है... सदा बाबा की साथी सहयोगी स्नेही आत्मा हूँ... इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों से मैं ईश्वरीय साथ का अनुभव कर रही हूँ... और मायाजीत बनती जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- प्रीत बुधी विजयी रतन बनकर रहना*
➳ _ ➳ अपने बच्चों के प्रेम में बन्ध कर, प्रीत की रीत निभाने के लिए स्वयं भगवान कैसे बच्चों के बुलावे पर दौड़े आते हैं इसका प्रत्यक्ष अनुभव परमपिता परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन के डायमंड हॉल में बैठ कर मैं कर रही हूँ। *भक्ति में जो गायन है कि कान्हा के प्रेम की डोर से बंधी गोपियाँ उसकी मुरली की धुन सुनकर अपनी सुध - बुध खो कर, दौड़ती हुई उसके पास आ जाती थी*। मुरली की वही मीठी तान भगवान अपने साकार रथ पर विराजमान होकर डायमंड हॉल में सुना रहें है और उस मुरली के एक - एक महावाक्य को सुनकर उस डायमंड हॉल में उपस्थित सभी ब्राह्मण बच्चे, कान्हा की प्रीत में डूबी गोपियों की तरह, आंसू बहाते, सब कुछ भूल एक अद्भुत रूहानी मस्ती में जैसे झूम रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता परमात्मा के साथ इस साकार मधुर मिलन का आनन्द लेते हुए मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो इस विनाश काल के समय भगवान ने स्वयं आकर मुझ से अपनी प्रीत जुटाई है और माया की इस झूठी दुनिया के कालचक्र से मुझे बाहर निकाल लिया है। *अपने प्रीत की रीत निभाने में जब भगवान ने देरी नही की तो मुझे भी अब इस विनाश काल में प्रीत बुद्धि बन, अपने प्यारे पिता के साथ प्रीत की इस रीत को निभाना है*। मन ही मन स्वयं से और अपने निराकार भगवान बाप से मैं वायदा करती हूँ कि इस अंतिम समय में, बुद्धि की प्रीत और सब सँग तोड़ केवल उनके साथ जोड़ूँगी और मन वचन, कर्म से पूरी तरह उन पर कुर्बान जाऊँगी।
➳ _ ➳ अपने आप से यह प्रोमिस करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे पिता के अविनाशी प्रेम की मीठी फुहारें मेरे ऊपर बरस कर मुझे अपने प्रेम के रंग में रंगने लगी हैं। *ऐसा लग रहा है जिस देह और देहधारियों के झूठे प्रेम का रंग मुझ आत्मा पर लगा हुआ था वो मेरे प्यारे बाबा के अविनाशी प्रेम की मीठी फ़ुहारों से मिटने लगा है*। देह और देह की दुनिया को भूल अब मैं अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित होकर देख रही हूँ इस पूरे डायमंड हॉल को परमधाम के रूप में, जहाँ अपने चारों तरफ मुझे चमकती हुई निराकार ज्योति बिंदु आत्मायें दिखाई दे रही हैं और हमारे बिल्कुल सामने हैं हम आत्माओं के निराकार शिव पिता जो अपनी शक्तियों की अनन्त किरणो को फैलाये हुए, अपने शक्तिशाली महाज्योति स्वरूप में बहुत ही शोभायमान लग रहे हैं। *अपने निराकार स्वरूप में, निराकार शिव पिता के साथ अब मैं साकार में निराकार मिलन का आनन्द ले रही हूँ*।
➳ _ ➳ मेरे प्यारे पिता के प्रेम की मीठी फुहारें मेरे रोम - रोम को पुलकित कर रही हैं। प्रेम के सागर शिव पिता के प्रेम के लहरों की शीतलता पूरे डायमंड हॉल में शीतलता के शक्तिशाली वायब्रेशन्स प्रवाहित कर रही हैं और उस गहन शीतलता की अनुभूति में डूबी सभी आत्मायें अपने पिता परमात्मा के साथ के इस मंगल मिलन का भरपूर आनन्द ले रही हैं। *मन्त्रमुग्ध हो कर इस अति सुंदर नजारे को देखते हुए, अब मैं स्वयं को महाज्योति अपने शिव पिता के अनन्त गुणों और शक्तियों से भरपूर करने के लिए धीरे - धीरे उनके पास पहुँचती हूँ और उनके समीप पहुंच कर उन्हें टच करके उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भर कर, वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ ड्रामाअनुसार अपने कर्मक्षेत्र पर आकर अब मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। समय की समीपता को स्मृति में रख इस विनाश काल में प्रीत बुद्धि बन, प्रीत की रीत अपने प्यारे पिता के साथ निभाते, उन्हें हर घड़ी अपने साथ अनुभव करते हुए मैं उनके साथ अपने ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ। *सर्व सम्बन्धो का सुख बाबा से लेते अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में बाबा की याद को बसा कर, उनके प्यार की शीतल छाया को मैं प्रतिपल अपने ऊपर अनुभव कर रही हूँ। उनके प्रेम की लगन में मग्न होकर, उनके प्रति अपनी सच्ची प्रीत की रीत, अब मैं उनके हर फरमान पर अच्छी रीति चलकर, निभा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं समय और संकल्प रूपी खजानों पर अटेंशन दे जमा का खाता बढ़ाने वाली पदमापदम्पति आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं मनोबल से सेवा करके उसकी प्रालब्ध कई गुणा ज्यादा प्राप्त करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *आज समर्थ बाप अपने स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। आज विशेष चारों ओर के बच्चों में स्नेह की लहर लहरा रही हैं। विशेष ब्रह्मा बाप के स्नेह की यादों में समाये हुए हैं। यह स्नेह हर बच्चे के इस जीवन का वरदान है।* परमात्म स्नेह ने ही आप सबको नई जीवन दी है। हर एक बच्चे को स्नेह की शक्ति ने ही बाप का बनाया। यह स्नेह की शक्ति सब सहज कर देती है। जब स्नेह में समा जाते हो तो कोई भी परिस्थिति सहज अनुभव करते हो। *बापदादा भी कहते हैं कि सदा स्नेह के सागर में समाये रहो। स्नेह छत्रछाया है, जिस छत्रछाया के अन्दर कोई माया की परछाई भी नहीं पड़ सकती।* सहज मायाजीत बन जाते हो। *जो निरन्तर स्नेह में रहता है उसको किसी भी बात की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। स्नेह सहज बाप समान बना देता है।* स्नेह के पीछे कुछ भी समर्पित करना सहज होता है।
➳ _ ➳ 2. *जैसे इस विशेष स्मृति दिवस में अर्थात् स्नेह के दिन में स्नेह में समाये रहे ऐसे ही सदा समाये रहो, तो मेहनत का पुरुषार्थ करना नहीं पड़ेगा।*
✺ *ड्रिल :- "परमात्म स्नेह की शक्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *"आबू का तीर्थ तुमको पुकारे आजाओ ब्रह्मा बाबा हमारे, आना ही होगा, आना ही होगा, आना ही होगा"...* ये गीत सुनते सुनते मैं आत्मा अपने अलौकिक पिता *ब्रह्मा बाबा* के स्मृति दिवस को याद करती हूं... बाबा मेरे प्यारे बाबा कहाँ हो आप... उनकी यादों में खोई मैं पहुँचती हूं *पांडव भवन... अपने बाबा की तपस्या स्थली पर जहां मेरे अलौकिक पिता मेरे ब्रह्मा बाबा ने शिव पिता की याद में रह सम्पूर्णता प्राप्त की... ये भूमि कितनी पावन है...*
➳ _ ➳ स्मृति दिवस पर बाबा के सभी बच्चे बाबा से मिलन मनाने आए हुए हैं... सब बच्चे विशेष ब्रह्मा बाबा की याद में बैठे हैं... *आबू भूमि की इस धरती पर, इस पावन धरा पर चारों तरफ़ रूहानी खुशबू फैली हुई है... ये मेरे प्यारे बाबा के स्नेह की खुशबू है... और सुनाई दे रही है...* रूहानी स्नेह सरगम, इस सरगम की तरंगों में मैं आत्मा गुनगुनाने लगती हूं... *"स्नेह प्यार की तुझसे ओ बाबा बाँधी है जीवन डोर, बाँधी है जीवन ड़ोर"...*
➳ _ ➳ *मेरे पिता आदिदेव ब्रह्मा बाबा जो मुझ आत्मा की पालना कर रहे हैं... दिव्य गुणों से मुझे गुणवान बना रहे हैं... रोज़ शिव बाबा की श्रीमत को अपने मुख द्वारा सुना मुझे हीरे जैसे बना रहे हैं...* जहाँ कभी भी मैं अलबेलेपन में आती हूं बड़े प्यार से समझानी देते हैं... *बच्चे तुम्हें बाप समान बनना है...* उन्हीं मेरे स्नेही ब्रह्मा बाबा का आज स्मृति सो समर्थी दिवस है...
➳ _ ➳ *शान्ति स्तम्भ के आगे बैठते ही बाबा के स्नेह की छत्रछाया का अनुभव होने लगता है... बाबा अपने स्नेह पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं... बाबा का स्नेह ही मुझ आत्मा को समर्थ बना रहा है... ये परमात्म स्नेह ही मुझे मायाजीत बना रहा है...* बाबा का वरदानी हाथ मुझे अपने सर पर महसूस होता है... इसी स्नेह शक्ति के बल को अपने अंदर समाये मैं सहज होती जा रही हूं...
➳ _ ➳ *बाबा के प्यार से मैं बिना मेहनत तीव्र गति से अपना पुरुषार्थ कर रही हूं...* और अपने ऊपर अलौकिक और अपने पारलौकिक पिता की छत्रछाया का अनुभव करती हूं... *बाबादादा का स्नेह रूपी हाथ और साथ मुझे हर परिस्थिति को उड़ाते हुए पार करा रहा है... मैं आत्मा समर्थी स्वरूप बन रही हूं...* ये बाबा के स्नेह सुमन की बरसात ही है, जिसमें भीग मैं आत्मा निरंतर आगे बढ़ती जा रही हूं... *ये परमात्म स्नेह की शक्ति ही है जो मुझ आत्मा को सब कुछ सहज लग रहा है...* अहो सौभाग्य! मुझ आत्मा का जो ये वरदानी जीवन मिला... *बाबा के स्नेह में समाई मुझ आत्मा के अंदर एक ही धुन बज रही है... मैं बाबा की बाबा मेरा... मैं बाबा की बाबा मेरा...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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