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 05 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ गुणवान बन सबको सुख दिया ?

 

➢➢ कोई भी क्रिमिनल आश तो नहीं रखी ?

 

➢➢ मैं पन को "बाबा" में समा दिया ?

 

➢➢ मैं मैं कर माया रुपी बिल्ली का आह्वान तो नहीं किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने के लिए ज्ञान सुनने सुनाने के साथ अब ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेंशन दो। जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले न्यारे और प्यारे रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। सेवा को वा कोई कर्म को छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की, ऐसे फालो फादर करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं रूहे गुलाब हूँ"

 

✧  अपने को इस रूहानी बगीचे के रूहानी रूहे-गुलाब समझते हो? जैसे सभी फूलों में गुलाब का पुष्प खुशबू के कारण प्यारा लगता है। तो वह है गुलाब और आप सभी हैं रूहे गुलाब। रूहे गुलाब अर्थात् जिसमें सदा रूहानी खुशबू हो। रूहानी खुशबू वाले जहाँ भी देखेंगे, जिसको भी देखेंगे तो रूह को देखेंगे, शरीर को नहीं देखेंगे। स्वयं भी सदा रूहानी स्थिति में रहेंगे और दूसरों की भी रूह को देखेंगे। इसको कहते हैं -'रूहानी गुलाब'। यह बाप का बगीचा है।

 

  जेसे बाप ऊंचे-ते-ऊंचा है, ऐसे बगीचा भी ऊंचे-ते-ऊंचा है जिस बगीचे का विशेष श्रृंगार रूहे गुलाब-आप सभी हो। और यह रूहानी खुशबू अनेक आत्माओ का कल्याण करने वाली है। आज विश्व में जो भी मुश्किलातें हैं, उसका कारण ही है कि एक-दो को रूह नहीं देखते। देह-अभिमान के कारण सब समस्यायें हैं। देही-अभिमानी बन जायें तो सब समस्यायें समाप्त हो जायें। तो आप रूहानी गुलाब विश्व पर रूहानी खुशबू फैलाने के निमित्त हो, ऐसे सदा नशा रहता है? कभी एक, कभी दूसरा नहीं। सदा एकरस स्थिति में शक्ति होती है। स्थिति बदलने से शक्ति कम हो जाती है। सदा बाप की याद में रह जहाँ भी सेवा का साधन है, चाँस लेकर आगे बढ़ते जाओ। परमात्म-बगीचे के रूहानी गुलाब समझ रूहानी खुशबू फैलाते रहो। कितनी मीठी रूहानी खुशबू है जिस खुशबू को सब चाहते हैं! यह रूहानी खुशबू अनेक आत्माओंके साथ-साथ अपना भी कल्याण कर लेती है। बापदादा देखते हैं कि कितनी रूहानी खुशबू कहाँ-कहाँ तक फैलाते रहते हैं? जरा भी कहाँ देह-अभिमान मिक्स हुआ तो रूहानी खुशबू ओरिजिनल नहीं होगी। सदा इस रूहानी खुशबू से औरों को भी खुशबूदार बनाते चलो।

 

  सदा अचल हो? कोई भी हलचल हिलाती तो नहीं? कुछ भी ह्रोता है, सुनते, देखते थोड़ा भी हलचल में तो नहीं आ जाते? जब 'नथिंग न्यू' है तो हलचल में क्यों आयें? कोई नई बात हो तो हलचल हो। यह 'क्या','क्यों' अनेक कल्प हुई है-इसको कहते हैं 'ड्रामा के ऊपर निश्चयबुद्धि'। सर्वशक्तिवान के साथी हैं, इसलिए बेपरवाह बादशाह हैं। सब फिकर बाप को दे दिये तो स्वयं सदा बेफिकर बादशाह। सदा रूहानी खुशबू फैलाते रहो तो सब विघ्न खत्म हो जायेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  तो आज बापदादा बच्चों के इस मूल आधार जन्म' को देख रहे थे। आदि से अब तक ब्राह्मण जीवन में रूलिंग पॉवर, कन्ट्रोलिंग पॉवर सदा और कितनी परसेन्टेज में रही है। इसमें भी पहले अपने ही सूक्ष्म शक्तियों की रिजल्ट को चेक करो।

 

✧  रिजल्ट में क्या दिखाई देता है? इस विशेष तीन शक्तियों - मन-बुद्धि-संस्कारपर कन्ट्रोल हो तो इसको ही स्वराज्य-अधिकारी' कहा जाता है। तो यह सूक्ष्म शक्तियाँ ही स्थूल कर्मेन्द्रियों को संयम और नियम में चला सकती है। रिजल्ट क्या देखी?

 

✧  जब, जहाँ, और जैसे - इन तीनों बातों में अभी यथाशक्ति हैं। सर्व-शक्ति नहीं हैं लेकिन यथाशक्ति। जिसको डबल विदेशी अपनी भाषा में समथिंग अक्षर यूज करते हैं। तो इसको ऑलमाइटी अथार्टी कहेंगे? माइटी तो है लेकिन ऑल है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अनादिकाल में जब परमधाम में हैं तो सोचना स्वरूप नहीं हैं, स्मृति स्वरूप हैं। मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ- यह भी सोचने का नहीं है, स्वरूप ही है। आदिकाल में भी इस समय के पुरुषार्थ का प्राप्लब्ध स्वरूप है। सोचना नहीं पड़ता - मैं देवता हूँ, मैं देवता हूँ स्वरूप है। तो जब अनादिकाल, आदिकाल में स्वरूप है तो अब भी अन्त में स्वरूप बनो। स्वरूप बनने से अपने गुण, शक्तियाँ स्वत: ही इमर्ज होते हैं। जैसे कोई भी आक्यूपेशन वाले जब अपने सीट पर सेट होते हैं तो वह आक्यूपेशन के गुण, कर्तव्य ऑटोमेटिक इमर्ज होते हैं। ऐसे आप सदा स्वरूप के सीट पर सेट रहो तो हर गुण, हर शक्ति, हर प्रकार का नशा स्वत: ही इमर्ज होगा। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इसको कहा जाता है ब्राह्मणपन की नेचुरल नेचर, जिसमें और सब अनेक जन्मों की नेचर्स समाप्त हो जाती हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  "ड्रिल :- कभी किसी को दुःख नहीं देना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन पीस पार्क में यहाँ के शांत, सुन्दर वातावरण में झूले में बैठी सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ... एक-एक फूल, पेड़, पौधे, पहाड़ों से होती हुई यहाँ की रूहानी हवाएं, प्यारे बाबा की रूहानियत की कहानी कहते हुए, जैसे ही मुझे छूती हैं, मैं आत्मा अतीन्द्रिय सुखों में डूब जाती हूँ... और अपने को इस देह से परे अव्यक्त वतन में प्यारे बाबा के गोदी के झूले में पाती हूँ...

❉  प्यारे दुखहर्ता सुखकर्ता बाबा मुझे मास्टर सुखकर्ता बनाते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पुत्र होकर सबको सुख शांति और आनन्द से भर दो... जनमो की दुखी थकी आत्माओ को सुख भरी अंजलि देते जाओ... सबके दुखो को हरने वाले और खुशियो से दामन सजाने वाले मा सुखकर्ता बन कर मुस्कराओ... विश्व धरा से दुखो का नामोनिशान मिटाने वाले दिव्य आत्मा बन जाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा सुख का नूर बन चारों ओर सुख की रौशनी फैलाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय साथ भरा खुबसूरत जीवन पाकर खुशनसीब बन गयी हूँ... और यह खुशनसीबी हर दिल पर लुटा रही हूँ... सबके दामन से दुखो के कांटे चुनकर सुखो के फूलो से भर रही हूँ... सबको सदा का सुखी बना रही हूँ...”

❉  मीठे बाबा दुखों का अंत कर सुख की दुनिया में ले जाने का मार्ग बताते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब कभी किसी को भी दुःख न दो... हर पल खुशियां और सुखो के सच्चे आधार बनकर, इस धरा से दुखो का नामोनिशान मिटा दो... थकी आत्माओ को सच्ची राहत देकर मीठी मुस्कराहटों से भर दो... जो सुख और खुशियो के खजाने ईश्वर पिता से पाये है उनसे हर दिल को भर दो...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा भाई-भाई की स्मृति से आत्मिक स्वरुप में टिककर रहमदिल बन सर्व को सुख की अंजली देते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मनसा वाचा कर्मणा सबको सुख पहुंचा रही हूँ... किसी को भी दुःख देने के ख्याल मात्र से भी अभूल हूँ... और सबको सच्चे सुखो का रास्ता बताने वाली रूहानी जादूगर हो गई हूँ... प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन ही दिव्यता से सजा दिया है...”

❉  मेरा बाबा सुख के सागर में मुझे डुबोकर रोम-रोम में सुख की अनुभूति कराते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता से पायी सुखो की दौलत हर दिल पर बिखरने वाले, मास्टर सुख सागर बन खिलखिलाओ... अधरों पर सच्ची मुस्कान सजाकर विश्व धरा पर सुखो की बहार सजा दो... जैसे अपने दुखो से मुक्त हो गए हो, वैसा ही सुख का जादू हर दिल पर चलाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा सुख का फ़रिश्ता बन विश्व ग्लोब पर बैठकर सबको सुख की किरणों का दान करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको आप समान सुखी बनाकर दुआओ को पाती जा रही हूँ... जिन सच्ची खुशियो से प्यारे बाबा आपने मुझे महकाया है वही सुख की रश्मियाँ में विश्व धरा पर बिखेर रही हूँ... हर पल खुशियो की बरसात करने वाली सुख बादल हो गई हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- विकारों के वश होकर कोई भी विकर्म नहीं करना है

➳ _ ➳  "मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ कि अपने इस ऊंचे आसन पर स्थित होते ही हर कर्मेन्द्रिय मेरी आज्ञा अनुसार कार्य कर रही है। आत्मा राजा बन अपनी हर कर्मेंद्रिय को मैं साक्षी होकर देख रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि कोई भी कर्मेंद्रिय चलायमान नही हो रही बल्कि मेरी सहयोगी बन ज्ञान और योग के मार्ग पर मुझे आगे बढ़ा रही हैं। कर्मेन्द्रियों की यह शान्त अवस्था मेरे मन और बुद्धि को एकाग्र होने में मदद कर रही हैं। मन रूपी घोड़े की लगाम मेरे हाथ मे है। जो श्रेष्ठ और शुभ संकल्प मैं करना चाहूँ केवल वही संकल्प मेरे मन मे उतपन्न हो रहें हैं और बुद्धि उन शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो को खूबसूरत चित्रों के रूप में अंकित कर, मन को एक सुखदाई दिशा की ओर ले जा रही है। स्वयं को मैं ऐसा अचलघर महसूस कर रही हूँ जहां कोई विकर्म नही हो सकता।

➳ _ ➳  एक ऐसी अचल अडोल स्थिति में मैं स्वयं को अनुभव कर रही हूँ जहाँ देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्ध, वैभव या देह से जुड़ा कोई संकल्प भी मुझे हिला नही सकता। सम्पूर्ण साक्षीभाव से हर चीज को देखते हुए, अपनी ऊँची स्थिति पर स्थित अब मैं सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अपने उस स्वरूप को देख रही हूँ जिसे देह भान में आकर मैं भूल गई थी। किन्तु देह भान की मिट्टी उतरते ही मेरा वो सुंदर स्वरूप निखर कर मेरे सामने आ गया है। प्रकाश की रंगबिरंगी किरणों के रूप में अपने सातों गुणों और आठो शक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से निकल कर अपने आस - पास चारो और फैलते हुए मैं देख रही हूँ जो वायुमण्डल में रुहानियत फैला कर मन को गहन शांति और सुकून का अनुभव करवा रहें हैं। अपने इस अति मनभावन स्वरूप का मैं भरपूर आनन्द ले रही  हूँ।

➳ _ ➳  स्वराज्य अधिकारी बन अपने मन की लगाम को थामे अब मैं अपने मन को सर्वशक्तिवान अपने प्यारे पिता के पास चलने का निर्देश देती हूँ और बुद्धि के विमान पर सवार होकर चल पड़ती हूँ अपने पिता के पास उनके उस निर्वाणधाम घर में जो अग्नि, आकाश, जल, वायु और पृथ्वी इन पांचों तत्वों से परे हैं। जहाँ ना कोई लौकिकता का भान है और ना अलौकिकता का कोई विघ्न है। लौकिक और अलौकिक दोनों भान से परे, निरसंकल्प पारलौकिक स्थिति में स्थित मैं जा रही हूँ उस पारलौकिक, पार वतन में जहां मेरे निराकार पारलौकिक शिव पिता रहते हैं। उस पारलौकिक निर्वाणधाम घर में अपनी सम्पूर्ण निराकारी बीज रूप अवस्था में मैं स्वयं को अपने बीज रूप शिव पिता के सम्मुख देख रही हूँ।

➳ _ ➳  विकर्मों को दग्ध करने और योग की अग्नि में तपाकर, स्वयं को अचलघर बनाने के लिए ज्ञानसूर्य अपने प्यारे बाबा के मैं बिल्कुल समीप जाकर बैठ जाती हूँ। मास्टर बीज रूप बन बीज रूप अपने पिता से आ रही सर्वशक्तियों को अब मैं स्वयं में समा रही हूँ और महसूस कर रही हूँ जैसे धीरे - धीरे इन शक्तियों का स्वरुप बदल रहा है। ये शक्तियां उग्र रूप धारण करती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे एक तेज ज्वाला मेरे सामने प्रज्ज्वलित हो रही है। स्वयं को अग्नि के एक विशाल घेरे के बीच मे मैं देख रही हूँ। उस अग्नि की लपटें मुझ आत्मा को छू कर मेरे ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट को जलाकर भस्म कर रही हैं। विकारों की कट उतर रही है और एक गहन शीतलता का अहसास मुझ आत्मा को हो रहा है। मेरे अंदर समाये सभी तमोगुणी संस्कार जल रहे हैं और मैं आत्मा हर बोझ से मुक्त हो रही हूँ।

➳ _ ➳  बिल्कुल हल्की होकर, अपने सम्पूर्ण लाइट और माइट स्वरूप में मैं आत्मा अब वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने साकार शरीर रूपी रथ पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और स्वयं को अचलघर बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ। कोई भी विकर्म मुझ से ना हो इसके लिए अब मैं स्वयं को स्वराज्य अधिकारी के श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सदा सेट रखकर मालिक बन हर कर्म कर रही हूँ। अपने जीवन रूपी शासन की बागड़ोर सुचारू रूप से चलाने के लिए राजा बन हर रोज मैं कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगाती हूँ और उन्हें उचित निर्देश देती हूँ। कर्मेंद्रियजीत बन हर कर्म करने से पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो विकर्म बनाने के निमित बन रहे थे वो सभी आसुरी स्वभाव संस्कार परिवर्तन होते जा रहें हैं और मैं अचल घर बन विकर्मों पर जीत पहन विकर्माजीत बनती जा रही हूँ

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं, मैं पन को बाबा में समा देने वाली निरन्तर योगी, सहजयोगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं- मैं कर माया रूपी बिल्ली का आह्वान करने के बजाय मैं ट्रस्टी बन रहने वाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. तन-मन-धनसम्बन्ध सभी त्याग किया अर्थात् परिवर्तन किया। तन मेरा के बजाए तेरा किया। मनधनसम्बन्ध एक शब्द परिवर्तन होने से मेरे के बजाए तेरा कियाहै एक शब्द का परिवर्तन लेकिन इसी त्याग से भाग्य के अधिकारी बन गये। तो भाग्य के आगे यह त्याग क्या हैछोटी बात है या थोड़ी बड़ी भी हैकभी-कभी बड़ी हो जाती है। तेरा कहना माना बड़ी बात को छोटा करना और मेरा कहना माना छोटी बात को बड़ी करना। क्या भी हो जाए,100 हिमालय से भी बड़ी समस्या आ जाए लेकिन तेरा कहना और पहाड़ को रूई बनानाराई भी नहींरुई। जो रूई सेकण्ड में उड़ जाए। सिर्फ तेरा कहना नहीं माननासिर्फ मानना भी नहीं चलना। एक शब्द का परिवर्तन सहज ही है ना! और फायदा ही हैनुकसान तो है नहीं। तेरा कहने से सारा बोझ बाप को दे दिया। तेरा तुम ही जानों। आप सिर्फ निमित्त-मात्र हो।

 

 _ ➳  2. न्यारे और परमात्मा के प्यारे बन गये। जो परमात्मा के प्यारे बनते हैं वह विश्व के प्यारे बनते हैं। सिर्फ भविष्य प्राप्ति नहीं हैवर्तमान भी है। एक सेकण्ड में अनुभव किया भी है और करके देखो। कोई भी बात आ जाए तेरा कह दोमान जाओ और तेरा समझकर करो तो देखो बोझ हल्का होता है या नहीं होता है। अनुभव है नासभी अनुभवी बैठे हो ना! सिर्फ क्या होता हैमेरा मेरा कहने की बहुत आदत है ना, 63 जन्मों की आदत है तो तेरा तेरा कहकर फिर मेरा कह देते हो और मेरा माना गयेफिर वह बात तो एक घण्टे मेंदो घण्टे मेंएक दिन में खत्म हो जाती है लेकिन जो तेरे से मेरा किया उसका फल लम्बा चलता है। बात आधे घण्टे की होगी लेकिन चाहे पश्चाताप के रूप मेंचाहे परिवर्तन करने के लक्ष्य सेवह बात बार-बार स्मृति में आती रहती है। इसलिए बाप सभी बच्चों को कहते हैं अगर 'मेरा शब्दसे प्यार है, आदत है, संस्कार हैकहना ही है तो मेरा बाबा कहो। आदत से मजबूर होते हैं ना। तो जब भी मेरा-मेरा आवे तो मेरा बाबा कहकर खत्म कर दो। अनेक मेरे को एक मेरा बाबा में समा दो।     

 

✺   ड्रिल :-  "अनेक मेरे को एक मेरा बाबा में समाने का अनुभव"

 

 _ ➳  मासूम... गले मिलते... खेलते... कूदते... चहकते बच्चों को एक गार्डन में देख मेरा मन भर आया... एक ही संकल्प चला... क्या मैं ऐसी नहीं बन सकती... क्या मैं इन बच्चों जैसे निःस्वार्थ प्यार नहीं कर सकती... क्या तेरा मेरा किये बगैर एक दिन भी नहीं गुजर सकता... जब सब कुछ बाबा को अर्पण कर दिया तो फिर मेरा... मेरा क्यों? और इस प्रश्न का जवाब पाने के लिये एक ही तरफ दृष्टि जाती है... वह हैं... शिव बाबा... मेरे प्यारे... मेरे अपने... अविनाशी पिता...

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि के पंख लगाकर पहुँच जाती हूँ... अपने प्यारे पिता से मिलने... सूक्ष्मवतन में... जहाँ मुस्कराते हुए ब्रह्मा बाबा... उनकी भृकुटि में चमकती हुई दिव्य ज्योति... प्यारे शिवबाबा विराजमान... जिनको एक क्षण देखने के लिये लाखों आत्माऐं इंतज़ार कर रहीं हैं... और मैं पद्मा पदम सौभाग्यशाली आत्मा... उन्हें प्रत्यक्ष देख रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं और मेरा... मन में बहुत गहराई तक जमा था... परन्तु बाबा ने मैं और मेरेपन का सही अर्थ समझाया... मैं हूँ...तो... आत्मा याद आये और जब मेरा... याद आये... तो "मेरा बाबा" याद आये... बाबा ने मैं और मेरे की गहरी जड़ों से मुक्त कर दिया... जीवन जीने की कला सिखा दी... जीवन दिव्य बना दिया... अब मैं आत्मा मेरे बाबा को सदा स्मृति में रख सर्वशक्तियों के भण्डार अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा सदा स्वयं को कल्याणार्थ... जिम्मेवार आत्मा समझ... मास्टर दाता बन... निःस्वार्थ भाव से... सबके प्रति शुभ भावना रख शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात देने के कार्य में जुड़ जाती हूँ... स्वार्थ की भावना से परे... मेरेपन की भावना से परे... छोटे बच्चों के मासूम दिल जैसे... मैं आत्मा बाबा से प्राप्त शक्तियों... सुख... शांति... पवित्रता की किरणों को फैला रही हूँ...  

 

 _ ➳  तन-मन-धन सब तेरा... तेरा तुझको अर्पण... मेरा तो सिर्फ एक शिवबाबा... यह शब्द निरन्तर स्मृति में गूंज रहें हैं... मेरा बाबा शब्द बोलते ही मुझ आत्मा की मैं और मेरेपन की भावना मिट रही है... सब बातों से न्यारी... और परमात्मा की प्यारी बन अब मैं आत्मा सदा उमंग उत्साह में रह उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ... और अनेक मेरे को एक मेरे बाबा में समाने का अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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