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 08 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ अपने शक्तिशाली नेत्र से अपने फ़रिश्ता और देवता स्वरुप को देखा ?

 

➢➢ सदा बाप के सर्व संबंधो के स्नेह में समाये हुए रहे ?

 

➢➢ ऊंची स्थिति पर स्थित हो विघनो के प्रभाव से मुक्त रहे ?

 

➢➢ सर्व के शुभचिन्तक बन सर्व का सहयोग प्राप्त किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  बीजरूप स्थिति का अनुभव करने के लिए एक तो मन और बुद्धि दोनों को पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए। इसी को ही याद की शक्ति वा अव्यक्ति शक्ति कहा जाता है। अगर ब्रेक नहीं दे सके तो भी ठीक नहीं। अगर टर्न नहीं कर सके तो भी ठीक नहीं। तो ब्रेक देने और मोड़ने की शक्ति से बुद्धि की शक्ति व्यर्थ नहीं जायेगी। इनर्जी जितना जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं ऊँचे से ऊँची श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ"

 

✧  जैसे ऊंचे से ऊंचा बाप है ऐसे हम आत्मायें भी ऊंचे से ऊंची श्रेष्ठ आत्मायें हैं-यह अनुभव करते हुए चलते हो? क्योंकि दुनिया वालों के लिये तो सबसे श्रेष्ठ, ऊंचे से ऊंचे हैं बाप के बाद देवतायें। लेकिन देवताओंसे ऊंचे आप ब्राह्मण आत्मायें हो, फरिश्ते हो-ये दुनिया वाले नहीं जानते। देवता पद को इस ब्राह्मण जीवन से ऊंचा नहीं कहेंगे। ऊंचा अभी का ब्राह्मण जीवन है। देवताओंसे भी ऊंचे क्यों हो, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो ना।

 

✧  देवता रूप में बाप का ज्ञान इमर्ज नहीं होगा। परमात्म मिलन का अनुभव इस ब्राह्मण जीवन में करते हो, देवताई जीवन में नहीं। ब्राह्मण ही देवता बनते हैं लेकिन इस समय देवताई जीवन से भी ऊंच हो, तो इतना नशा सदा रहे, कभी-कभी नहीं। क्योंकि बाप अविनाशी है और अविनाशी बाप जो ज्ञान देते हैं वह भी अविनाशी है, जो स्मृति दिलाते हैं वह भी अविनाशी है, कभी-कभी नहीं। तो यह चेक करो कि सदा यह नशा रहता है वा कभी-कभी रहता है? मजा तो तब आयेगा जब सदा रहेगा। कभी रहा, कभी नहीं रहा तो कभी मजे में होंगे, कभी मूँझे हुए रहेंगे। तो अभी-अभी मजा, अभी-अभी मूँझ नहीं, सदा रहे। जैसे यह श्वास सदा ही चलता है ना। यदि एक सेकण्ड भी श्वास रुक जाये या कभी-कभी चले तो उसे जीवन कहेंगे? तो इस ब्राह्मण जीवन में निरन्तर मजे में हो? अगर मजा नहीं होगा तो मूँझेंगे जरूर।

 

✧  आधा कल्प हार खाई, अभी विजय प्राप्त करने का समय है तो विजय के समय पर भी यदि हार खायेंगे तो विजयी कब बनेंगे? इसलिये इस समय सदा विजयी। विजय जन्म-सिद्ध अधिकार है। अधिकार को कोई छोड़ते नहीं, लड़ाई-झगड़ा करके भी लेते हैं और यहाँ तो सहज मिलता है। विजय अपना जन्म-सिद्ध अधिकार है। अधिकार का नशा वा खुशी रहती है ना? हद के अधिकार का भी कितना नशा रहता है! प्राइम मिनिस्टर को भूल जायेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ? सोयेगा, खायेगा तो भूलेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ? तो हद का अधिकार और बेहद का अधिकार कितना भी कोई भुलाये भूल नहीं सकता। माया का काम है भुलाना और आपका काम है विजयी बनना क्योंकि समझ है ना कि विजय और हार क्या है? हार के भी अनुभवी हैं और विजय के भी अनुभवी हैं। तो हार खाने से क्या हुआ और विजय प्राप्त करने से क्या हुआ-दोनों के अन्तर को जानते हो इसलिये सदा विजयी हैं और सदा रहेंगे। क्योंकि अविनाशी बाप और अविनाशी प्राप्ति के अधिकारी हम आत्मायें हैं-यह सदा इमर्ज रूप में रहे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अब ऐसा कौन है जिसको एक मिनट भी फुर्सत नहीं मिल सकती? जैसे पहले ट्रैफिक कन्ट्रोल का प्रोग्राम बना तो कई सोचते थे - यह कैसे हो सकता? सेवा की प्रवृति बहुत बडी है, बिजी रहते हैं। लेकिन लक्ष्य रखा तो हो रहा है ना प्रोग्राम चला रहा है ना।

 

✧  सेन्टर्स पर यह ट्रैफिक कन्ट्रोल का प्रोग्राम चलाते हो वा कभी मिस करते, कभी चलाते? यह एक ब्राह्मण कुल की रीति-रसम है, नियम है। जैसे और नियम आवश्यक समझते हो, ऐसे यह भी स्व-उन्नति के लिए वा सेवा की सफलता के लिए, सेवाकेन्द्र के वातावरण के लिए आवश्यक है।

 

✧  ऐसे अन्तर्मुखी, एकान्तवासी बनने के अभ्यास के लक्ष्य को लेकर अपने दिल की लगन से बीच-बीच में समय निकाली। महत्व जानने वाले को समय स्वत: ही मिल जात है। महत्व नहीं है तो समय भी नहीं मिलता। एक पॉवरफुल स्थिति में अपने मन को, बुद्धि को स्थित करना ही एकान्तवासी बनना है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ लास्ट समय चारों ओर व्यक्तियों का, प्रकृति का हलचल और आवाज़ होगा - चिल्लाने का, हिलाने का - यही वायुमण्डल होगा। ऐसे समय पर ही सेकण्ड में अव्यक्त फरिश्ता सो निराकारी अशरीरी आत्मा हूँ - यह अभ्यास ही विजयी बनायेगा। यह स्मृति सिमरणी अर्थात् विजय माला में लायेगी। इसलिये यह अभ्यास अभी से अति आवश्यक है। इसको कहते हैं- प्रकृतिजीत, मायाजीत।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- दिव्य जन्म की गिफ्ट-दिव्य नेत्र"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन पहाड़ी पर बैठ स्वदर्शन चक्र फिरा रही हूँ... चक्र फिराते-फिराते अपने सभी स्वरूपों में खो जाती हूँ... कलयुगी अज्ञानता के अंधकार में सोई हुई मुझ आत्मा को परमात्मा ने ज्ञान के चक्षु देकर त्रिनेत्री बना दिया... सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देकर बुद्धिवान बना दिया... पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बना दिया... मीठे बाबा को स्मृतियों में लाते ही तुरंत बाबा सामने हाजिर हो जाते हैं और मेरे बाजू में बैठ सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहते हैं... 

❉  ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर मेरी आत्म ज्योति को जगाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... शरीर नही खुबसूरत मणि हो सदा अपने अविनाशी स्वरूप के नशे में रहो... ज्ञान के तीसरे नेत्र से सदा दमकते स्वरूप आत्मा पर ही नजर डालो... शरीर के भ्रम से निकल कर सदा अपने सत्य चमकते स्वरूप को ही निहारो... अपने सच्चे वजूद और सत्य पिता को ही हर पल यादो में बसाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा दिव्य चक्षुओं से तीनों कालों का ज्ञान पाकर दिव्यता से सजते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ज्ञान के तीसरे नेत्र से पूरे विश्व को मणियो से दमकता हुआ निहार रही हूँ... मीठे बाबा के सारे खुबसूरत सितारे धरा पर जगमगा रहे है... प्यारे बाबा आपने ज्ञान के तीसरे नेत्र से मुझे त्रिकालदर्शी बना कर... मेरी दुनिया कितनी खुबसूरत प्यारी बना दी है...”

❉  मीठा बाबा सभी खजानों से भरपूर कर मुझे मालामाल करते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान के तीसरे नेत्र से सदा मीठे बाबा को निहारते रहो और बाबा की सारी शक्तियाँ अथाह खजानो से स्वयं को भरपूर करते रहो... सारी ईश्वरीय खानो पर अपना नाम लिख डालो... यह ईश्वर पिता के मीठे साथ का,भाग्य बनाने का खुबसूरत समय... स्वयं को मात्र शरीर समझ हाथ से यूँ जाने न दो...”

➳ _ ➳  मीठे बाबा के यादों में समाकर सर्व शक्तियों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हूँ... मेरा रोम रोम आँखे बन गया है.. और हर पल हर साँस से आपको ही निहार रही हूँ... मै आत्मा अनन्त शक्तियो से भरती जा रही हूँ... और बस एक के ही रंग में रंगी सी हूँ... मीठा बाबा ही मेरी यादो में समाया है...”

❉  मेरे मनमीत बाबा अपनी बाँहों के झूले में झुलाते हुए सत्यता की राह दिखाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खुबसूरत स्वरूप और सच्चे पिता की यादो में खो जाओ... देह की दुनिया से निकल अपने अविनाशी आत्मा और शिव पिता की मीठी यादो में स्थिर हो जाओ... शरीर होने के भान से परे होकर चमकते ओजस्वी स्वरूप के नशे से भर जाओ... और सच्चे पिता को यादकर उसकी प्यारी सी बाँहों में स्नेह से झूल जाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान अंजन लगाकर खुशियों के बगिया में मुस्कुराते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा शरीर के मायाजाल से मुक्त होकर आपकी प्यार भरी बातो में यादो में खो गई हूँ... आपके सच्चे प्यार को पाकर जीवन कितना मीठा खुशियो भरा हो गया है... चारो ओर सुख और खुशियो के फूल खिल उठे है... जीवन प्रेम और शांति का पर्याय बन महक उठा है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- सर्व के शुभचिंतक बन सर्व का सहयोग प्राप्त करना"
 
➳ _ ➳  अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अमूल्य प्राप्तियों को स्मृति में ला कर मैं विचार करती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा। जिस भगवान को आज दिन तक दुनिया ढूंढ रही है। पहाड़ो पर, कन्दराओं में, गुफाओं में ना जाने कहाँ - कहाँ उसे पाने की कोशिश में भटक रही है वो भगवान मुझे घर बैठे मिल गया। मेरे तो दिन की शुरुवात ही भगवान के उठाने से होती है, दिन में भी हर कर्म करते वो निरन्तर मेरे साथ रहते हैं और रात को अपनी सुखमय मीठी गोद मे सुला कर, मेरी दिन भर की सारी थकान हर लेते हैं। एकांत में बैठी अपने इस सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य को याद करके मैं आनन्दित हो रही हूँ ।
 
➳ _ ➳  किन्तु तभी एक - एक करके अनेक मुरझाए हुए, निराश, दुख से पीड़ित आत्माओं के चेहरे मेरी आँखों के सामने आने लगते हैं जो मेरे ही सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली अनेक आत्माओं के चेहरे हैं। उनके मायूस चेहरों को देख कर मन मे संकल्प आता है कि इन्हें भी अगर भगवान मिल जाये तो इनके मुरझाए चेहरे भी खिल उठेंगे। जो जीवन इनके लिए बोझ बन चुका है अपने उस जीवन को ये भी आनन्द से जी सकेंगे और बाबा का फरमान भी है कि मेरे बिछुड़े हुए बच्चों को मुझ से मिलवाना तुम ब्राह्मणों का कर्तव्य है। इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए मैं अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण करती हूं और ईश्वरीय वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाने के लिए अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ।
 
➳ _ ➳  अब मैं फ़रिशता सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख हूँ और उनके वरदानी हस्तों से वरदान ले कर स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। अपनी सर्वशक्तियों से, अपनी लाइट माइट से वो मुझे भरपूर कर रहें हैं। उनकी पावन दृष्टि मुझ में असीम बल और शक्ति का संचार कर रही है। स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर करके, सर्वशक्ति सपन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने प्यारे मीठे बाबा को अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को भी परमात्म पालना का अनुभव कराने का आग्रह करता हूँ। बाबा मुस्कराते हुए अब उन सभी आत्माओं को वतन में इमर्ज कर देते हैं।
 
➳ _ ➳  मैं देख रहा हूँ अपने सामने उन सभी हताश, निराश आत्माओं को और उन्हें धैर्य दे रहा हूँ कि अब वो भी परमात्म पालना में पलने का सुख प्राप्त करके अपने हर दुख और पीड़ा से मुक्त हो जायेंगी। अब मैं फ़रिशता उन आत्माओं के बीच मे बैठ जाता हूँ और अपने सिर के ऊपर प्यारे बापदादा की छत्रछाया को स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ। बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ते ही सर्वशक्तियों का झरना जैसे फुल फोर्स से मुझ फ़रिश्ते के ऊपर बरसने लगा है। मैं देख रहा हूँ बाबा से आ रही ये सर्वशक्तियों की किरणें मुझ फ़रिश्ते पर पड़ कर, छोटे छोटे चमकीले सितारों के रूप में फिर मुझ से निकल कर उन सभी आत्माओं के ऊपर बरस रही हैं।
 
➳ _ ➳  मेरे श्वेत प्रकाश की काया से निकलते यह छोटे छोटे चमकीले सितारे ऐसे लग रहे हैं जैसे बाबा मुझ फरिश्ते को निमित्त बनाकर मेरे द्वारा इन सर्वशक्तियों को अपने सभी बच्चों तक पहुंचा कर उन्हें संपूर्ण पावन और सर्वगुणसंपन्न बना रहे हैं। मुझ से निकल रही पवित्रता, सुख शांति, शक्ति सम्पन्न किरणे मेरे सामने बैठी इन सभी आत्माओं के चित को छू कर उन्हें पवित्र बना रही हैं। सुख, शांति का अनुभव करवा रही हैं। मैं देख रहा हूँ सबके मुरझाये हुए चेहरों पर अब एक रौनक आ गई है। परमात्म पालना का अनुभव करके वो सब जैसे तृप्त हो गई है।
 
➳ _ ➳  उन सभी आत्माओं को परमात्म प्यार के सुख की अनुभूति करवा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ । अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को अब मैं परमात्म परिचय दे कर और उन्हें ईश्वरीय अलौकिक स्नेह, शक्ति, गुण और सहयोग की लिफ्ट की गिफ्ट द्वारा उन्हें उनके लंबे काल से बिछुड़े परमात्मा बाप से मिलवाकर उन्हें भी सुख, शांति के वर्से की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं धरनी, नब्ज और समय को देख सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष करने वाली नॉलेजफुल आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं मेरा कहकर छोटी बात को बड़ी बनाने के बजाय तेरा कहकर पहाड़ जैसी बात को रुई बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कभी-कभी सक्सेसफुल क्यों नहीं होतेउसका कारण क्या है? जब अपना जन्म सिद्ध अधिकार हैतो अधिकार प्राप्त होने में, अनुभव होने में कमी क्योंकारण क्या?बापदादा ने देखा है - मैजारिटी अपने कमजोर संकल्प पहले ही इमर्ज करते हैंपता नहीं होगा या नहीं! तो यह अपना ही कमजोर संकल्प प्रसन्नचित्त नहीं लेकिन प्रश्नचित्त बनाता है। होगानहीं होगाक्या होगापता नहीं..... यह संकल्प दीवार बन जाती है और सफलता उस दीवार के अन्दर छिप जाती है।

 

 _ ➳  निश्चयबुद्धि विजयी - यह आपका स्लोगन है ना! जब यह स्लोगन अभी का हैभविष्य का नहीं हैवर्तमान का है तो सदा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए या प्रश्नचित्त? तो माया अपने ही कमजोर संकल्प की जाल बिछा लेती है और अपने ही जाल में फँस जाते हो। विजयी हैं ही - इससे इस कमजोर जाल को समाप्त करो। फँसो नहीं, लेकिन समाप्त करो। समाप्त करने की शक्ति है? धीरे-धीरे नहीं करो, फट से सेकण्ड में इस जाल को बढ़ने नहीं दो। अगर एक बार भी इस जाल में फँस गये ना तो निकलना बहुत मुश्किल है। विजय मेरा बर्थराइट हैसफलता मेरा बर्थराइट है। यह बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट हैइसको कोई छीन नहीं सकता - ऐसा निश्चयबुद्धिसदा प्रसन्नचित्त सहज और स्वतः रहेगा। मेहनत करने की भी जरूरत नहीं। 

 

✺   ड्रिल :-  "निश्चयबुद्धि विजयी बन सदा प्रसन्नचित्त रहने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं शिव शक्ति आत्मा हूँ... मैं परमपिता शिव बाबा की संतान हूँ... मैं आत्मा इस साकारी तन से निकल... उड़ कर पहुंच गयी हूँ... अपने परमपिता की छत्रछाया के नीचे... जैसे ही बाबा ने मुझे देखा... वैसे ही उन्होंने मुझे करीब बुलाया... और मुझे अपनी प्यार भरी गोद में बिठा लिया... बाबा ने मेरे मस्तक पर अपना वरदानी हाथ रख दिया... और कहा बच्ची निश्चय बुद्धि सदा विजयन्ती...

 

 _ ➳  बाबा ने कहा बच्चे- सफलता तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है... बाबा के इतना कहते ही... मैंने अपने सारे कमजोर संकल्पों को बाबा की झोली में डाल दिया... क्या, क्यूँ, होगा या नहीं होगा ऐसे कमजोर संकल्पों को बाबा के सम्मुख रख दिया... बाबा मुझे हाथ पकड़कर एक दीवार के पास ले गए... जो मेरे ही कमजोर संकल्पों से बनी थी... बाबा ने इस दीवार को तोड़ दिया...

 

 _ ➳  फिर बाबा ने कहा देखो बच्ची तुम्हारी सफलता के बीच... ये तुम्हारे कमजोर संकल्पों की दीवार थी... मैं अपनी सफलता को देख नाचने लगी... और बाबा से वादा किया... बाबा आज के बाद मैं हमेशा दृढ़ निश्चयी बन कर... हमेशा सफलता को प्राप्त करूंगी... इन कमजोर संकल्पों का जाल अब कभी नहीं बनने दूँगी... और ना इन कमजोर संकल्पों के जाल में कभी फसुंगी... सारे जाल एक सेकंड में फट से समाप्त हो गए...

 

 _ ➳  जब से मेरा ईश्वरीय जनम हुआ... तब से ही विजय मेरा बर्थराइट है... यह मेरा बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट है... इसको अब मुझसे कोई छीन नहीं सकता है... मैं परमपिता की संतान हूँ... इस दृढ़ निश्चय के नशे को अब कभी उतरने नहीं दूँगी... मैं आत्मा अब सदा प्रसन्न चित्त रहूँगी... आज से यह सहज और स्वत: ही होगा... इसके लिए अब मुझे मेहनत की जरूरत नहीं है... मैं सफलता के सागर शिवपिता की संतान हूँ... सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है... इसका नशा मुझे हमेशा रहेगा...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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