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 20 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ विचार सगर मंथन कर ज्ञान की नयी नयी पॉइंट्स निकाल सर्विस की ?

 

➢➢ अशांति फैलाने वालों के साथ भी शांत रहे ?

 

➢➢ समय प्रमाण हर शक्ति का अनुभव प्रैक्टिकल स्वरुप में किया ?

 

➢➢ बुधी में ईश्वरीय नशा और कर्म में नम्रता रही ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अभी आप बच्चों को दो प्रकार के कार्य करने हैं-एक तो आत्माओं को योग्य और योगी बनाना है, दूसरा धरणी को भी तैयार करना है। इसके लिए विशेष वाणी के साथ-साथ वृत्ति को और तीव्र गति देनी पड़ेगी क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा, तब तैयार होंगे। वाणी और वृत्ति दोनों साथ-साथ सेवा में लगे रहें।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं मालिकपन और बालकपन के नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

  सदा मालिकपन और बालकपन के नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? जब चाहो मालिकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तो बालकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसा अनुभव है? या जिस समय बालक बनना हो उस समय मालिक बन जाते और जिस समय मालिक बनना हो उस समय बालक बन जाते? जब चाहो, जैसे चाहो वैसी स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसे है? क्योंकि यह डबल नशा सदा ही निर्विग्न बनाने वाला है। जब भी कोई विघ्न आता है तो उस समय जिस स्थिति में स्थित होना चाहिए, उसमें स्थित न होने कारण विघ्न आता है।

 

  विघ्न-विनाशक आत्मायें हो या विघ्न के वश होने वाली हो? सदैव यह स्मृति में रखो कि हमारा टाइटल ही है 'विघ्नविनाशक'। विघ्न-विनाशक आत्मा स्वयं कैसे विघ्न में आयेगी? चाहे कोई कितना भी विघ्न रूप बनकर आये लेकिन आप विघ्न विनाश करेंगे। सिर्फ अपने लिये विघ्न-विनाशक नहीं हो लेकिन सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। विश्व-परिवर्तक हो। तो विश्व-परिवर्तक शक्तिशाली होते हैं ना। विघ्न को कमजोर बनाने वाले हो, स्वयं कमजोर बनने वाले नहीं। अगर स्वयं कमजोर बनते हो तो विघ्न शक्तिशाली बन जाता है और स्वयं शक्तिशाली हो तो विघ्न कमजोर बन जाता है।

 

  तो सदा अपने मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप की स्मृति में रहो। सुना तो बहुत है, बाकी क्या रहा? बनना। सुनने का अर्थ ही है बनना। तो बन गये हो? बाप भी ऐसे शक्तिशाली बच्चों को देख हर्षित होते हैं। लौकिक में भी बाप को कौनसे बच्चे प्यारे लगते हैं? जो आज्ञाकारी, फालो फादर करने वाले होंगे। तो आप कौन हो? फालो फादर करने वाले हो। फालो करना सहज होता है ना। बाप ने कहा और बच्चों ने किया। सोचने की भी आवश्यकता नहीं। करें, नहीं करें, अच्छा होगा, नहीं होगा-यह सोचने की भी आवश्यकता नहीं। फालो करना सहज है ना। हर कर्म में क्या-क्या फालो करो और कैसे करो-यह भी सभी को स्पष्ट है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧    साइंस की शक्ति के अनुभव हो? साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना। तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित है तो स्वयं साइलेंस रूप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेंगे। अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता।  की शक्ति के अनुभवी हो?

 

✧  कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जाए। शान्ति स्वरूप रहना अर्थात शान्ति की किरणें सबको देना। यही काम है। विशेष शान्ति की शक्ति को बढाओ। स्वयं के लिए भी औरों के लिए भी शान्ति के दाता बनो। भक्त लोग शान्ति देव कहकर याद करते हैं ना? देव यानी देने वाले। जैसे बाप की महिमा है शान्ति दाता, वैसे आप भी शान्ति देवा हो। यही सबसे बड़े ते बडा महादान है।

 

✧  जहाँ शान्ति होगी वहाँ सब बातें होंगी। तो सभी शान्ति देवा हो, अशान्त वातावरण में रहते स्वयं भी शान्त स्वरूप और सबको शान्त बनाने वाले, जो बापदादा का काम है, वही बच्चों का काम है। वापदादा अशान्त आत्माओं को शान्ति देते हैं तो वच्चों को भी फॉलो फादर करना है। व्राह्मणों का धन्धा ही यही है। अच्छा। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ यह (अपसेट होना) निशानी है तख्तनशीन अर्थात् तख्त पर सेट न होने की। तख्तनशीन आत्मा को व्यक्ति तो क्या लेकिन प्रकृति भी अपसेट नहीं कर सकती। माया का तो नाम निशान ही नहीं। तो ऐसे तख्तनशीन ताजधारी वरदानी आत्मायें होना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अपनी अवस्था अचल अडोल बनाना"

➳ _ ➳ वाह बाबा वाह आपने तो सचमुच मुझ आत्मा को सच्चा सच्चा राजाओं का भी राजा बना दिया... वह राजा तो कभी सीट पर बैठते कभी उतरते... लेकिन बाबा आपने तो मुझ आत्मा को सदा काल के लिए साक्षी पन के तख्त पर बिठा दिया... वह तख्त जहां बैठ में आत्मा विश्व नाटक को हर्षित हो देख रही हूं... न कोई डर... न कोई चिंता मुझ आत्मा को सता रही है... चाहे प्रकृति की हलचल हो, या कोई भी कर्म भोग सामने आ जाए... मैं आत्मा साक्षी पन की सीट पर स्थित हूं... बाबा आपने तो बिल्कुल ही मुझ आत्मा को आप समान निडर बना दिया... कितने ही अनुभव है बाबा जहां मुझ आत्मा ने साक्षी हो विजय पन का पार्ट बजाया... उन अनुभवों की स्मृति में खोई मैं आत्मा स्मृति स्वरूप हो चली हूं... स्मृतियों के सागर में समाई मैं आत्मा उड़ चलती हूं अपने बाबा के घर...

❉ मीठे बाबा निराकारी दुनिया में मुझ आत्मा का सच्चा सच्चा रूहानी श्रृंगार करते हुए कहते :- मीठे बच्चे... "काफी समय हुआ अपने साक्षी पन की सीट को छोड़ें... लो संभालो बच्चे अपने अविनाशी तख्त को... जहां के मालिक बन तुम आत्मा खुद पर, पूरे विश्व पर राज्य करती... यही तो वह स्थिति थी जिसने आधा कल तुम्हें विजय बनाए रखा... यही वह तख्त है जहां बैठे खुशियों की कशिश तुम्हारे चेहरे से झलकती..."

➳ _ ➳ बाबा की आंखों में अपने प्रति इतना स्नेह इतनी फिक्र देख मैं आत्मा स्नेह सागर के सागर में समाई मीठे बाबा से बोली:- "हां मेरे सच्चे सच्चे गुरु शुक्रिया... धन्यवाद बाबा मुझे सच्चा सच्चा राज्य दिलाने के लिए... एक वह समय था मेरे सतगुरु जब मैं आत्मा परिस्थितियों के आगे जीरो थी... लेकिन आपके बिठाए साक्षी पन के तख्त पर मैं आत्मा जीरो से हीरो बन गई... कोटि कोटि धन्यवाद मेरे सतगुरु... कोटि-कोटि धन्यवाद..."

❉ मीठे बाबा ज्ञान बरसात करते, उमंग उत्साह की पिचकारी मारते मुझ आत्मा से बोले :- "मेरे रूहानी गुलाब... अब बीती सो बीती कर... आगे देखो... खुशियों का सागर बाहें फैलाए तुम्हें बुला रहा है... अब दुख के बादल हट सुखों का स्वर्णिम पहाड़ तुम्हारे लिए मीठे मीठे गीत गा रहा है... स्वर्ग के गेट बाहें फैलाए तुम्हारे स्वागत में खड़े हैं... चारों ओर प्रत्यक्षता के नगाड़े बज रहे हैं... देखो बच्चे देखो ज्ञान का तीसरा नेत्र खोले, दिव्य बुद्धि द्वारा इस विश्व नाटक का भरपूर आनंद लो..."

➳ _ ➳ शिव शक्ति मैं आत्मा बाप के साथ कंबाइंड रूप में स्थित बाबा से बोलती हूं :- "हां मीठे बाबा... देख रही हूं मैं आत्मा... चारों तरफ का नजारा देख रही हूं... सचमुच बाबा यह वही महाभारी लड़ाई है, जिससे अनेक धर्मों का विनाश हो एक सत्य धर्म की स्थापना हो रही है... दुनिया वालों के लिए बाबा यह दुखों का पहाड़ है, मगर साक्षी पन की स्थिति में स्थित मैं आत्मा आपको अपना साथी बनाएं इन पहाड़ों को सुख का पहाड़ अनुभव कर रही हूं... वाह बाबा वाह इतना तो एक ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है, जो पांव जमीन पर नहीं..."

❉ मीठी मुस्कुराती दृष्टि देते हुए बाप दादा बोले :- "हां बच्चे... ऐसे ही सदा उड़ती रहो... तुम हो ही फरिश्ता... फरिश्तों के पांव भी कभी धरती पर पड़े हैं क्या! तुम तो हो ही अवतरित इस पुरानी देह, पुरानी दुनिया में... यह दुनिया, यह देह, सब झूठ है... नाटक है... साक्षी हो इस विश्व नाटक को देखते रहो उड़ते रहो... पूरे कल्प का यही वह समय है जब स्मृति है, ज्ञान है, बाप है... तो बस उड़ती रहो..."

➳ _ ➳ उड़ती कला के विमान में बाप के साथ स्थित मैं आत्मा बाबा के कंधे पर सिर रखे बाबा से कहती हूं :- "हां बाबा... ये स्थिति... कोई शब्द नहीं... बस महसूसता है... आप और मैं इस संगम पर एक साथ पार्ट बजा रहे हैं... क्या तो मेरा सौभाग्य है! स्वयं भाग्य विधाता मुझे मिल गया! मेरे बाबा शुक्रिया... क्या तो मैं बोलूं... बस अब यह पल है आप हो और मैं हूं और यह सारी कायनात जो मुझे आपसे मिलाने की साजिश में लगी है... और दिल यही गीत गुनगुना रहा है, तुमको पाया है तो जैसे खोया हूं... कहना चाहूं भी तो तुमसे क्या कहूँ... मैं अगर कहूं कि तुमसा हसीन कायनात में नहीं है कोई, तारीफ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- विचार सागर मन्थन कर ज्ञान की नई - नई प्वाइंट्स निकाल सर्विस करनी है"

➳ _ ➳ सागर के तले में छुपी अनमोल वस्तुयों जैसे सीप, मोती आदि को पाने के लिए एक गोताखोर को पहले उसकी गहराई में तो जाना ही पड़ता है। जब तक गोताखोर पानी के ऊपरी हिस्से पर तैरता रहता है तब तक तेज लहरों, पानी की थपेड़ों और तूफानों का भी उसको सामना करना पड़ता है परन्तु यदि वह इन सबकी परवाह किये बिना पानी की गहराई में उतरता चला जाता है तो नीचे गहराई में जा कर हर चीज शांन्त हो जाती है और वह सागर के तले में छुपी उन चीजों को प्राप्त कर लेता है।

➳ _ ➳ इस दृश्य को मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि जैसे स्थूल सागर की गहराई में अनमोल सीप, मोती आदि छुपे होते हैं इसी तरह से स्वयं ज्ञान सागर भगवान द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान में भी कितने अनमोल खजाने छुपे हैं बस आवश्यकता है इन खजानों को ढूंढने के लिए इस अनमोल ज्ञान की गहराई में जाने की अर्थात विचार सागर मंथन करने की। मलाई से भी मक्खन तभी निकलता है जब उसे पूरी मेहनत के साथ मथा जाता है तो यहां भी अगर विचार सागर मन्थन नही करेंगे तो ज्ञान रूपी मक्खन का स्वाद भी नही ले सकेंगे। इसलिये विचार सागर मन्थन कर, ज्ञान की गहराई में जा कर, फिर उसे धारणा में लाकर अनुभवी मूर्त बनना ही ज्ञान सागर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का वास्तविक यूज़ है।

➳ _ ➳ हम बच्चो को यह ज्ञान दे कर, हमारे दुखदाई जीवन को सुखदाई, मनुष्य से देवता बनाने के लिए स्वयं भगवान को इस पतित दुनिया, पतित तन में आना पड़ा। तो ऐसे भगवान टीचर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का हमे कितना रिगार्ड रखना चाहिए। ज्ञान की एक - एक प्वाइंट पर विचार सागर मंथन कर उसे धारणा में ले कर आना और फिर औरों को धारण कराना ही भगवान के स्नेह का रिटर्न है। और भगवान के स्नेह का रिटर्न देने के लिए ज्ञान का विचार सागर मन्थन कर, सेवा की नई - नई युक्तियाँ अब मुझे निकाल औरों को भी यह ज्ञान देकर उनका भाग्य बनाना है मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर ज्ञान सागर अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।

➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान सूर्य शिवबाबा मेरे सिर के ठीक ऊपर आ कर ज्ञान की शक्तिशाली किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। बाबा से आ रही सर्वशक्तियो रूपी किरणों की मीठी फुहारें जैसे ही मुझ पर पड़ती हैं मेरा साकारी शरीर धीरे - धीरे लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर मे परिवर्तित हो जाता हैं और मास्टर ज्ञान सूर्य बन लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये मैं फ़रिशता ज्ञान की रोशनी चारों और फैलाता हुआ सूक्ष्म लोक में पहुँच जाता हूँ और जा कर बापदादा के सम्मुख बैठ जाता हूँ।

➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों को मुझ में भरपूर करने के साथ - साथ अब बाबा मुझे विचार सागर मन्थन का महत्व बताते हए कहते हैं कि "जितना विचार सागर मंथन करेंगे उतना बुद्धिवान बनेंगें और अच्छी रीति धारणा कर औरों को करा सकेंगे"। बड़े प्यार से यह बात समझा कर बाबा मीठी दृष्टि दे कर परमात्म बल से मुझे भरपूर कर देते हैं। मैं फ़रिशता परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर औरों को आप समान बनाने की सेवा करने के लिए अब वापिस अपने साकारी तन में लौट आता हूँ।

➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अपने परमशिक्षक ज्ञान सागर शिव बाबा द्वारा दिये जा रहे ज्ञान को गहराई से समझने और उसे स्वयं में धारण कर फिर औरों को धारण कराने के लिए अब मैं एकांत में बैठ विचार सागर मंथन कर सेवा की नई - नई युक्तियाँ सदैव निकालती रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं समय प्रमाण हर शक्ति का अनुभव प्रैक्टिकल स्वरूप में करने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ बुद्धि में जितना ईश्वरीय नशा है, मैं कर्म में उतनी ही नम्रता लाने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  बेहद का बापबेहद का संकल्प रखने वाला है कि सर्व बच्चे बाप समान बनें। ऐसे नहीं कि मैं गुरू बनूँ और यह शिष्य बनें। नहींबाप समान बन बाप के दिलतख्तनशीन बनें। यहाँ कोई गद्दीनशीन नहीं बनना है। वह तो एक दो बनेंगे लेकिन बेहद का बाप बेहद के दिलतख्तनशीन बनाते हैं। जो सर्व बच्चे अधिकारी बन सकते हैं। सभी को एक ही जैसा गोल्डन चांस है। चाहे आदि में आने वाले हैंचाहे मध्य में वा अभी आने वाले हैं। सभी को पूरा अधिकार है - समान बनने का अर्थात् दिलतख्तनशीन बनने का। ऐसे नहीं कि पीछे वाले आगे नहीं जा सकते हैं। कोई भी आगे जा सकता है - क्योंकि यह बेहद की प्रॉपर्टी है। इसलिए ऐसा नहीं कि पहले वालों ने ले लिया तो समाप्त हो गई। इतनी अखुट प्रॉपर्टी है जो अब के बाद और भी लेने चाहें तो ले सकते हैं। लेकिन अधिकार लेने वाले के ऊपर है।

 

_ ➳  क्योंकि अधिकार लेने के साथ-साथ अधीनता के संस्कार को छोड़ना पड़ता है। कुछ भी नहीं सिर्फ अधीनता है लेकिन जब छोड़ने की बात आती हो तो अपनी कमज़ोरी के कारण इस बात में रह जाते हैं और कहते हैं कि छूटता नहीं। दोष संस्कारों को देते कि संस्कार नहीं छूटता। लेकिन स्वयं नहीं छोड़ते हैं। क्योंकि चैतन्य शक्तिशाली स्वयं आत्मा है वा संस्कार है? संस्कार ने आत्मा को धारण किया वा आत्मा ने संस्कार को धारण कियाआत्मा की चैतन्य शक्ति संस्कार हैं वा संस्कार की शक्ति आत्मा हैजब धारण करने वाली आत्मा है तो छोड़ना भी आत्मा को हैन कि संस्कार स्वयं छूटेंगे। फिर भिन्न-भिन्न नाम देते - संस्कार हैंस्वभाव हैआदत है वा नेचर है। लेकिन कहने वाली शक्ति कौन सी हैआदत बोलती है वा आत्मा बोलती हैतो मालिक है या गुलाम हैंतो अधिकार को अर्थात् मालिकपन को धारण करना इसमें बेहद का चांस होते हुए भी यथा शक्ति लेने वाले बन जाते हैं। कारण क्या हुआकहते - मेरी आदतमेरे संस्कारमेरी नेचर। लेकिन मेरा कहते हुए भी मालिकपन नहीं है। अगर मेरा है तो स्वयं मालिक हुआ ना! ऐसा मालिक जो चाहे वह कर न सकेपरिवर्तन कर न सके, अधिकार रख न सकेउसको क्या कहेंगे? क्या ऐसी कमजोर आत्मा को अधिकारी आत्मा कहेंगे?

 

✺   "ड्रिल :- मालिकपन की स्मृति से अधीनता के संस्कारों को छोड़ बाप के दिलतख़्तनशीन बनकर रहना।"

 

_ ➳  देह रूपी रथ का रथी मैं आत्मा, देह सहित बैठ जाती हूँ बापदादा के चित्र के सामने... और निहार रही हूँ अपलक उनकी आँखो में... अखुट खजानों का द्वार खोलती उनकी आँखे, दिलतख्तनशीन बनने का आह्वान कर रही है... धीरे धीरे मैं आत्मा अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हुई... देह से अलग स्थित होकर साक्षी भाव से देख रही हूँ अपनी इस देह को... जो संगम पर पदमों की कमाई के निमित्त मुझे मिली है... मैं बाप के अखुट खजानों की अधिकारी आत्मा मन बुद्धि से बैठ गयी हूँ शान्ति स्तम्भ पर... ज्योति पुंज से आती शान्ति की किरणें मुझ आत्मा को शान्ति एवं गुणों के खजानों से भरपूर कर रही है...

 

_ ➳  सूक्ष्मलोक के उडनखटोलें में बैठकर बापदादा आज उतर आये हैं उसी शान्ति स्तम्भ पर... मेरे चारों ओर घूमते असंख्य फरिश्ते... पाण्डव भवन ही आज फरिश्तों का लोक नजर आ रहा है... नीचे नीचे घूमते फरिश्तों से टकराते बादल... और ये फरिश्ते खडे है मेरे चारों ओर घेरा बनाये... श्वेत बादलों का उडनखटोला पूनी के आकार में यहाँ वहाँ उडते बादल... और उडनखटोले की ध्वजा पर लहराते ज्ञान सूर्य शिव बाबा... अब बापदादा चलकर आ रहे है मेरे करीब... मन्त्रमुग्ध सा होता हुआ मैं फरिश्ता खडा हो गया हूँ उनके अभिवादन में... आगे बढकर मेरे हाथ में सुन्दर उपहार थमा देते है, मैं मन ही मन सोच रहा हूँ उस उपहार के बारें में... तभी बापदादा मुझे उसी उडन खटोले में बैठने का आह्वान कर रहे हैं...

 

_ ➳  हवा में उडते उडनखटोले में मैं और बापदादा सवार है... बापदादा के सामने स्वच्छ ताजे खुशबूदार फूलों का गुलदस्ता और उनके ऊपर मंडराती तितलियाँ देखकर मेरे मन में विचार उठते है... फूल अपनी खुशबू के मालिक है और तितली अपनी पंखों की, तो मैं आत्मा भी अपने संस्कारों की मालिक हूँ... अपने कमजोर संस्कारों की, आदतों की... तन पर पहने वस्त्रों को, गले में पहने हार को जब मैं उतार सकता हूँ तो मैं अपने संस्कारों को कमजोरियों को भी तो छोड सकता हूँ... उडनखटोलें की ध्वजा पर स्थित ज्ञान सूर्य से आती तेज किरणें और मेरा दृढ होता संकल्प... इसी संकल्प के साथ गले में पहना कमी कमजोरियों का पुराना हार उतालकर दूर फेक देता हूँ मैं... खुश होकर बापदादा मुझे विजय माला पहनाकर मेरी ताजपोशी कर रहे हैं...

 

_ ➳  सूक्ष्मवतन का ये बादलों रूपी उडनखटोला बदल गया है पुष्पक विमान के रूप में... मैं देवता इस विमान पर सवार सैर कर रहा हूँ अपनी सतयुगी राजधानी की... स्वर्णाभूषणों से सजी हुई मैं अधिकारी आत्मा मालिकपन की स्मृति से अधीनता के सर्व संस्कारों को छोड बाप के दिलतख्तनशीन बन वापस लौट आयी हूँ अपनी उसी देह में, जहाँ से मैं चली थी... अब गहराई से समझ लिया है कि जिन संस्कारों की मैं मालिक हूँ उनको बदलना और छोडना मेरे लिए सहज है... क्योंकि चेतना मैं हूँ संस्कार नही...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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