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 22 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रूहानी सर्विस कर सदा हर्षित रहे ?*

 

➢➢ *नष्टोमोहा बनकर रहे ?*

 

➢➢ *कर्म और योग के बैलेंस द्वारा ब्लेस्सिंग का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सेकंड में संकल्पों को स्टॉप करने का अभ्यास किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी मन्सा की क्वालिटी को बढ़ाओ तो क्वालिटी वाली आत्मायें समीप आयेंगी। इसमें डबल सेवा है - स्व की भी और दूसरों की भी।* स्व के लिए अलग मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। प्रालब्ध प्राप्त है, ऐसी स्थिति अनुभव होगी। *इस समय की श्रेष्ठ प्रालब्ध है ‘‘सदा स्वयं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न रहना और सम्पन्न बनाना’’।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सारे विश्व के अंदर विशेष आत्मा हूँ"*

 

✧  सारे विश्व में विशेष आत्मायें हैं, यह स्मृति सदा रहती है? *विशेष आत्माएं सेकण्ड भी एक संकल्प, एक बोल भी साधारण नहीं कर सकती। तो यही स्मृति सदा समर्थ बनाने वाली है। समर्थ आत्मायें हैं, विशेष आत्मायें हैं यह नशा और खुशी सदा रहे। समर्थ माना व्यर्थ को समाप्त करने वाले।*

 

✧  जैसे सूर्य अन्धकार और गन्दगी को समाप्त कर देता है। *ऐसे समर्थ आत्मायें व्यर्थ को समाप्त कर देती हैं। व्यर्थ का खाता खत्म, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बोल, सम्पर्क और सम्बन्ध का खाता सदा बढ़ता रहे। ऐसा अनुभव है! हम हैं ही समर्थ आत्मायें यह स्मृति आते ही व्यर्थ खत्म हो जाता।* विस्मृति हुई तो व्यर्थ शुरू हो जायेगा। स्मृति स्थिति को स्वत: बनाती हैं। तो स्मृति स्वरूप हो जाओ। स्वरूप कभी भी भूलता नहीं। आपका स्वरूप है स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। बस यही अभ्यास और यही लगन। इसी लगन में सदा मग्न - यही जीवन है।

 

  कभी भी किसी परिस्थिति में वायुमण्डल में उमंग-उत्साह कम होने वाला नहीं। सदा आगे बढ़ने वाले। क्योंकि संगमयुग है ही उमंग-उत्साह प्राप्त कराने वाला। *यदि संगम पर उमंग-उत्साह नहीं होता तो सारे कल्प में नहीं हो सकता। अब नहीं तो कब नहीं। ब्राह्मण जीवन ही उमंग-उत्साह की जीवन है। जो मिला है वह सबको बाँटे यह उमंग रहे। और उत्साह सदा खुशी की निशानी है। उत्साह वाला सदा खुश रहेगा। उत्साह रहता - बस, पाना था वो पा लिया।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *मन के ऊपर ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर हो, जैसे यह स्थूल कर्मेन्द्रियाँ हाथ हैं, पाँव है, उसको जब चाहो जैसे चाहो वैसे कर सकते हो, टाइम लगता है क्या!* अभी सोचो हाथ ऊपर करना है, टाइम लगेगा? कर सकते हो ना! अभी बापदादा कहे हाथ ऊपर करो, तो कर लेंगे ना! करो नहीं, कर सकते हो।

 

✧  *ऐसे मन के ऊपर इतना कन्ट्रोल हो, जहाँ एकाग्र करने चाहो, वहाँ एकाग्र हो जाए।* मन चाहे हाथ, पाँव से सूक्ष्म है लेकिन है तो आपका ना! मेरा मन कहते हो ना, तेरा मन तो नहीं कहते हो ना! तो *जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियाँ कन्ट्रोल में रहती हैं, ऐसे ही मन-बुद्धि-संस्कार कन्ट्रोल में हो तब कहेंगे नम्बरवन विजयी।*

 

✧  साइन्स वाले तो राकेट द्वारा व अपने साधनों द्वारा इसी लोक तक पहुँचते हैं, ज्यादा में ज्यादा ग्रह तक पहुँचते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें तीनों लोक तक पहुँच सकते हो। सेकण्ड में सूक्ष्म लोक, निराकारी लोक और स्थूल में मधुबन तक तो पहुँच सकते हो ना! *अगर मन को ऑर्डर करो मधुबन में पहुँचना है तो सेकण्ड में पहुँच सकते हो? तन से नहीं, मन से।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दु खिसक जाता है। ऐसे यह छोटा बिन्दु भी हाथ से खिसक जाता है। *जितना-जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल?* इस रीति न्यारे होंगे तो शरीर के भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा। *अभी-अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी-अभी उतारा। मुख्य पुरुषार्थ इस विशेष बात पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आयेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने आप से बातें कर अपार ख़ुशी में रहना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा की यादो में खोयी... मै आत्मा अपनी खुशियो के खजाने को गिनने में मशगूल हूँ... और अपनी ईश्वरीय अमीरी को देख देख मुस्करा रही हूँ... *कितना प्यारा अनोखी खुशियो से भरा जीवन मीठे बाबा ने सौगात सा दे दिया है... तभी मीठे बाबा पलक झपकते ही वहाँ उपस्थित होकर... मुझे खुशहाल देख जेसे, नयनों से कह रहे... बच्चों की खुशियो में ही मुझ पिता की खुशियां समायी है...*

 

   *मीठे बाबा आज खुशियो की बरसात मेरे मन आँगन में बिखराते हुए बोले :-* " मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन खत्म हो गए है... *अब अथाह खुशियो भरे मीठे दिन आ गए है... अब ईश्वर पिता जीवन में आ गया है... चारो ओर खुशियो की बरसात है... इस नशे में सदा डूबे रहो कि सुख शांति प्रेम के मीठे पल आये की आये..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा के रूप में भगवान को सम्मुख देख देख पुलकित हूँ और कह रही हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... *ऐसा प्यारा ईश्वरीय साथ भरा जीवन तो कल्पनाओ में भी कभी न था... आज आपको पाने की ख़ुशी से छलक रहा मन...* जीवन की सच्चाई है... और मीठे सुख मुझे अपनी बाँहों में पुकार रहे है..."

 

   *प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में दुलारते हुए ज्ञान धारा को बहाते हुए बोले :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... जो देवताई सुख कल्पनाओ से परे थे... *ईश्वर पिता उन सुख भरे खजानो को आप बच्चों की राहो में फूलो सा बिखराया है... इस ख़ुशी में सदा झूमते रहो... अपने मीठे सुखो की यादो में खोये रहो..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों की छत्रछाया में स्वयं को भरपूर करते हुए बोली :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... दुखो के जंगल में सुख की एक बून्द को तरसती... *मै आत्मा आज स्वर्ग की बादशाही पा रही हूँ... कितना प्यारा मीठा और खुबसूरत भाग्य है... मै आत्मा आपके सारे खजानो की मालिक बन गयी हूँ..."*

 

   *मीठे बाबा रूहानी दृष्टि देते हुए और ज्ञान रत्नों से मुझे श्रुंगारते हुए बोले :-* "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर जो सुखो की दौलत पायी है... उसके नशे में खोये रहो... *संगम की यही खुशियां देवताई सुखो में बदल कर जीवन को खुशियो से महकायेंगी... *इन मीठे पलो के सुख को यादो में चिर स्थायी बनाओ..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी मुस्कराहट से जवाब देते हुए कहती हूँ :-* "मीठे बाबा सच्चे ज्ञान को पाकर सारी भटकन से छूट गयी हूँ और *आपकी छत्रछाया में गुणवान शक्तिवान बनकर सच्ची खुशियो में खिलखिला रही हूँ... देवताई सुखो भरा स्वर्ग अपनी तकदीर में लिखवा रही हूँ... अपनी खुशियो की चर्चा मीठे बाबा से कर मै आत्मा कार्य पर लौट आयी...* इन मीठी ईश्वरीय यादो को दिल में समेट कर मै आत्मा अपने जगत मे आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पुरानी दुनिया से दिल हटा लेनी है*

 

_ ➳  अंतिम समय के एक सेकेण्ड के पेपर के बारे में एकान्त में बैठी मैं विचार कर रही हूँ कि कैसा होगा अंत समय का वो एक सेकण्ड का पेपर! *साधारण पढ़ाई में भी जब स्टूडेंट्स का सरप्राइज टेस्ट होता है तो उस टेस्ट को देख कई स्टूडेंट्स के माथे पर तो पसीना आ जाता है*। यहाँ तो कल्प - कल्प की बाजी है। एक बार असफल होना माना कल्प - कल्प के लिए असफल हो जाना।

 

_ ➳  यही सब चिंतन करते हुए अब अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि क्या मैं ऐसी तैयारी कर रही हूँ! *क्या मेरी ऐसी ऊँची स्थिति बन रही है जो अंत समय के एक सेकण्ड के पेपर को देख मुझे पसीने ना आयें बल्कि खुशी और सफलता के दृढ़ विश्वास के साथ मैं वो पेपर दे सकूँ और पास विद ऑनर हो सकूँ*! ऐसा तभी हो सकता है जब अंत मति सो गति का मेरा बहुत अच्छा पुरुषार्थ होगा।

 

_ ➳  अंत मति सो गति ही, अंतिम समय के एक सेकण्ड के पेपर में पास विद ऑनर का खिताब दिलाये मेरे सतयुगी ऊँच पद की प्राप्ति का आधार बनेंगी। *इसलिए अब मुझे अंत मति सो गति के पुरुषार्थ में तीव्र गति से लग जाना है। इस पुरानी दुनिया से दिल हटाकर, अपना मुख मोड़ लेना है और हर बात से उपराम होकर बुद्धि को अपने परमधाम घर मे स्थित कर देना है*। केवल अल्फ और बे इन दो शब्दों को स्मृति में रख, अपने प्यारे प्रभु की याद से विकर्मो को दग्ध करना है और विश्व की बादशाही प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ करना है।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, इस प्रतिज्ञा को पूरा करने और इसमें सफल होने का वरदान अपने प्यारे प्रभु से प्राप्त करने करने के लिए और उनकी याद से विकर्मो को दग्ध करने के लिए अब मैं अशरीरी स्थिति में स्वयं को स्थित करती हूँ। *हर संकल्प विकल्प से अपने मन और बुद्धि को खाली करने के लिए अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर मैं एकाग्र कर लेती हूँ और अपने वास्तविक शान्त स्वरूप में स्थित होकर, शान्ति के एक अति सुखद अनुभव में कुछ पल के लिए खो जाती हूँ*।

 

_ ➳  अपने स्वधर्म में स्थित हो कर शांति की गहन अनुभूति करते हुए मेरी बुद्धि का कनेक्शन स्वत: ही शांति के सागर मेरे शिव पिता के साथ जुड़ जाता है और मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मुझे सेकेण्ड में अपनी ओर खींच लेती हैं। *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे मैं देह के अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और ऊपर अपने शिव पिता के पास उनकी निराकारी दुनिया की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ*।

 

_ ➳  साकार और सूक्ष्म लोक को पार कर मैं मूल वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले से नीचे उतर कर अपने इस ब्रह्मलोक, परमधाम घर की सैर करते हुए, इस अंतहीन ब्रह्मांड में फैले शांति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर गहन शांति की अनुभूति करते हुए अब बाबा के पास जा कर बैठ जाती हूँ। *उनकी सर्वशक्तियों की अथाह किरणे एक मीठे झरने के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं और मुझे सर्वशक्तियों से भरपूर करके आप समान शक्तिशाली बना देती है*। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं वापिस साकार लोक में लौट आती हूँ और फिर से अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन में शक्तिसम्पन्न स्वरूप के साथ, अब मैं अंत मति सो गति के लिए निरन्तर सर्वशक्तिवान बाप की याद में रहने का सहज पुरुषार्थ कर रही हूँ। सर्वसम्बन्धो से बाबा को अपना बनाकर, हर सम्बन्ध का सुख बाबा से लेते हुए, देह और देह की दुनिया से मैं नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ। *इस पुरानी दुनिया से मेरी दिल हटती जा रही है। अपना मुख इस विनाशी दुनिया से मोड़, नई आने वाली सतयुगी दुनिया की ओर करके,अंत मति सो गति द्वारा, अंतिम समय के पेपर में पास विद ऑनर होने का पुरुषार्थ मैं पूरी लग्न के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा ब्लेसिंग का अनुभव करने वाली कर्मयोगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सेकेण्ड में संकल्पों को स्टॉप करने के अभ्यास से कर्मातीत अवस्था को समीप लाने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है। तो सारे दिन में यह ड्रिल करो - मन की ड्रिल।* शरीर की ड्रिल तो शरीर के तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो क्योंकि आजकल दवाईयों से भी एक्सरसाइज आवश्यक है। वह तो करो और खूब करो टाइम पर। सेवा के टाइम एक्सरसाइज नहीं करते रहना। बाकी टाइम पर एक्सरसाइज करना। *जब बाप समान बनना है तो एक है - निराकार और दूसरा है - अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा।*

 

 _ ➳  *तो बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन एक्सरसाइज करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा - डबल लाइट। सेवा का बोझ नहीं।अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी।* अभी-अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो? (बापदादा ने ड्रिल कराई) यह अभ्यास और अटेन्शन चलते-फिरते, कर्म करते बीच-बीच में करते जाना। तो *यह प्रैक्टिस मन्सा सेवा करने में भी सहयोग देगी और पावरफुल योग की स्थिति में भी बहुत मदद मिलेगी।*

 

✺   *ड्रिल :-  "निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज करना"*

 

 _ ➳   नीले गगन में भोर से कुछ पहले चन्द्रमा की शीतल चांदनी के साथ टिमटिमाते इका दुक्का सितारे अभी भी नभ में छाए हुए हैं... मैं आत्मा एकटक एक चमकीले सितारे को निहार रही हूं... ये तेज चमकता सितारा कल्पना मे लाती हूं... *अपने पारलौकिक पिता का निराकारी स्वरूप समस्त ब्रह्मांड का इकलौता अलौकिक सितारा जिसके आगे नभ मण्डल के सब सितारे एक साथ आ जायें तो भी उनकी चमक फीकी है... ऐसा है मेरा प्यारा निराकारी शिव बाबा...*

 

 _ ➳  *स्थूल देह से निकल निराकारी स्वरूप में... बादलों से ऊपर... चांद सितारों से भी आगे... मैं आत्मा उड़ चली मूल वतन की ओर... मिलन मनाने अपने जन्म जन्मांतर के बिछड़े साथी से...* पहुँचती हूं, मैं आत्मा अपने घर में... कितनी अद्भुत छटा है इसकी! *बाबा अपनी किरणें फैलाये मेरा स्वागत करते हैं... इन किरणों रूपी बाहों से लिपट... मैं आत्मा उस अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूं... असीम शान्ति मेरे अंदर भरती जा रही है...*

 

 _ ➳  अपनी अनंत किरणें बाहें सा पसार कर... गुण शक्तियों की माला पहनाकर... *निराकार शिव पिता मुझे अपनी किरणों रूपी बाहों में समाए लेकर चलते हैं मुझे एक और अलौकिक अनुभव कराने पहुंचते हैं... सूक्ष्म वतन में जहाँ बापदादा मुझे सजाते हैं... फ़रिश्ताई ड्रेस में... जिसे पहन मैं फ़रिश्ता डबल लाइट स्थिति का अनुभव करती हूं...*

 

 _ ➳  *बाबा की छत्रछाया तले बैठ, मैं फ़रिश्ता अपने को बहुत शक्तिशाली पाता हूँ...* इस हल्केपन को प्राप्त कर... मैं फ़रिश्ता उड़ के जाता हूँ... साकारी दुनिया के ऊपर... और विश्व की सभी आत्माओं को बाबा से प्राप्त प्रेम, आनन्द और पवित्रता की किरणें दे रहा हूं... *बाबा की अनुभूति मात्र से ही समस्त आत्माएँ आनन्द विभोर हो उठी हैं...*

 

 _ ➳  *कितना आनन्दमयी अनुभव है ये निराकारी और फरिश्ते स्वरूप का... एकदम हल्का... निर्बोझ स्थिति... अंतर्मन में शांति ही शान्ति, मैं अपने आत्मिक स्वरूप में एकदम सरलचित्त आनंदचित्त अनुभव कर रही हूं...* और इसी स्वरूप में टिके रहना चाहती हूं बार बार... *पल में निराकारी पल में फ़रिश्ता बाप समान बनने का ये अनुभव बड़ा निराला है... अब मैं यह अभ्यास मन को लगातार करवाती हूं... और इसी अभ्यास से मनसा सेवा को  निर्विघ्न करती हूं... धन्यवाद मीठे बाबा प्यारे बाबा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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