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 19 / 03 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने शांत स्वधर्म में स्थित रहे ?*

 

➢➢ *"हीयर नो ईविल" की धारणा को अपनाया ?*

 

➢➢ *विस्मय की दुनिया से निकल स्मृति स्वरुप रह हीरो पार्ट बजाया ?*

 

➢➢ *हिम्मत का पहला कदम आगे बड़ा बाप की सम्पूरण मदद के पात्र बने ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *परमात्म प्यार इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है । कहते भी हैं प्यार - है तो जहान है, जान है । प्यार नहीं तो बेजान, बेजहान है । प्यार मिला अर्थात् जहान मिला । दुनिया एक बूँद की प्यासी है और आप बच्चों का यह प्रभु प्यार प्रापर्टी है ।* इसी प्रभु प्यार से पलते हो अर्थात् ब्राह्मण जीवन में आगे बढ़ते हो । तो सदा प्यार के सागर में लवलीन रहो ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बाप के वर्से के अधिकारी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के वर्से के अधिकारी अनुभव करते हो? अधिकारी अर्थात् शक्तिशाली आत्मा हैं - ऐसे समझते हुए कर्म करो। कोई भी प्रकार की कमजोरी रह तो नहीं गई है? *सदा स्वयं को जैसे बाप वेसे हम, बाप सर्व शक्तिवान है तो बच्चे मास्टर सर्व शक्तिवान हैं, इस स्मृति से सदा ही सहज आगे बढ़ते रहेंगे। यह खुशी सदा रहे क्योंकि अब की खुशी सारे कल्प में नहीं हो सकती।* अब बाप द्वारा प्राप्ति है, फिर आत्माओं द्वारा आत्माओंको प्राप्ति है। जो बाप द्वारा प्राप्ति होती है वह आत्माओंसे नहीं हो सकती। आत्मा स्वयं सर्वज्ञ नहीं है। इसलिए उससे जो प्राप्ति होती है वह अल्पकाल की होती है और बाप द्वारा सदाकाल की अविनाशी प्राप्ति होती है।

 

  अभी बाप द्वारा अविनाशी खुशी मिलती है। सदा खुशी में नाचते रहते हो ना! सदा खुशी के झूले में झलते रहो। नीचे आया और मैला हुआ। क्योंकि नीचे मिट्टी है। सदा झूले में तो सदा स्वच्छ। बिना स्वच्छ बने बाप से मिलन मना नहीं सकते। जैसे बाप स्वच्छ हैं उससे मिलने की विधि स्वच्छ बनना पड़े। तो सदा झूले में रहने वाले सदा स्वच्छ। *जब झूला मिलता है तो नीचे आते क्यों हो! झूले में ही खाओ, पियो, चलो... इतना बड़ा झूला है। नीचे आने के दिन समाप्त हुए। अभी झूलने के दिन हैं। तो सदा बाप के साथ सुख के झूले में, खुशी, प्रेम ज्ञान, आनन्द के झूले में झूलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं, यह सदा याद रखो।*

 

  *जब भी कोई बात आये तो यह वरदान याद करना तो फिर से वरदान के आधार पर साथ का, झूलने का अनुभव करेंगे। यह वरदान सदा सेफ्टी का साधन है। वरदान याद रहना अर्थात् वरदाता याद रहना। वरदान में कोई मेहनत नहीं होती। सर्व प्राप्तिया सहज हो जाती हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  हरेक चीज को लौकिक से अलौकिकता में परिवर्तन करना है, जिससे मालूम हो कि यह कोई विशेष अलौकिक आत्मा है। लौकिक में रहते हुए भी हम, लोगों से न्यारे हैँ। अपने को आत्मिक रूप से न्यारा समझना है। *कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रुप में कार्य करेंगे*। तो सिर्फ दुनिया की बातों से ही न्यारा नहीं बनना है, पहले तो अपने शरीर से न्यारा बनना है।

 

✧   *जब शरीर से न्यारे होगें तब प्यारे होंगें, अपने मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक - प्रिय भी बनेंगे*। अभी लोगों को क्यों नहीं प्रिय लगते है? क्योंकि अपने शरीर से न्यारे नहीं हुए हो। सिर्फ देह के सम्बन्धियों से न्यारे होने की कोशिश करते हो तो वह उलहने देते - खुद को क्या चेन्ज किया है।

 

✧  पहले देह के भान से न्यारे नहीं हुए हो, तब तक उलहना मिलता है। पहले देह से न्यारे होंगे तो उलहने नहीं मिलेंगे, और ही लोक - प्रिय बन जायेंगे। कई अपने को देख बाहर की बात को देख लेते हैँ और बातों को पहले चेन्ज कर लेते हैँ, अपने को पीछे चेन्ज करते हैँ। इसलिए प्रभाव नहीं पडता है। *प्रभाव डालने के लिए पहले अपने को परिवर्तन में लाओ, अपनी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति को, सम्पत्ति को, समय को परिवर्तन में लाओ, तब दुनिया को प्रिय लगेंगे*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *स्वार्थ के कारण लगाव और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते।* तो उसके लिए क्या करना पड़े? स्वार्थ का अर्थ क्या है? *स्वार्थ अर्थात् स्व के रथ को स्वाहा करो।* यह जो रथ अर्थात देह - अभिमान, देह की स्मृति, देह का लगाव लगा हुआ है। *इस स्वार्थ को कैसे खत्म करेंगे? उसका सहज पुरुषार्थ, 'स्वार्थ' शब्द के अर्थ को समझो। स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग को भूलना नहीं"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वयं को मधुबन में डाइमंड हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं, और बाबा मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ शिव बाबा के पास परमधाम, यहाँ चारों तरफ फैला हुआ अलौकिक प्रकाश मुझे दिव्यता और परमानंद की अनुभूति करा रहा है... निराकारी दुनिया में मैं आत्मा स्वयं को बिंदु रूप में चमकता हुआ देख रही हूं... बाबा से शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में निरंतर बहता जा रहा और इस ज्ञान स्नान से मुझ आत्मा में पड़ी हुई खाद भस्म होती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत पवित्र और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* शक्तिओं से भरपूर हो अब मैं आत्मा नीचे उतर रही हूं और पहुंच जाती हूँ निज वतन... सफेद प्रकाश से ढका हुआ सूक्ष्म वतन यहाँ चारों तरफ शांति ही शांति और बापदादा मेरे सामने फ़रिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाये खड़े हैं... *नन्हा फ़रिश्ता बन मैं आत्मा दौड़ कर बाबा की गोद में सिमट जाती हूँ...*

 

  *बाबा मुझे गोद में लेकर मेरे गालों को प्यार से सहलाते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे नन्हे फूल बच्चे... *संगमयुग मौजों का युग है, बाप आये हैं अपने ब्राह्मण बच्चों का कल्याण करने* इसलिए तो मुझे तुम बच्चे शिव बाबा कहते हो... *शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी,* इसलिए सदा फखुर में रहो की विश्व के रचियता बाप ने तुम बच्चों को अपनी गोद दी है... *सारी दुनिया जिस भगवान को ढूंढ रही है तुम बच्चे उस भगवान की पालना में पल रहे हो...*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा आत्मविभोर होकर बाबा की मधुर वाणी को सुनते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे अपना बनाया है, वाह मेरा भाग्य... *आपकी गोद मिली मानों त्रिलोकी का राज्य मिल गया हो... मेरा जीवन इतना सुंदर पहले कभी न था* आपने आकर इसे दिव्य और अलौकिक बना दिया है... *ज्ञान सागर में स्नान कर अलौकिकता और दिव्यता का प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निरंतर विश्व में प्रवाहित हो रहा है...* ज्ञान और वरदानों से श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को और निखार दिया है..."

 

  *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुस्कुरा कर मुझ आत्मा से बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... जो भी इन आँखों से दिखाई देता है वो सब खाक होना है , *इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर बस एक बाप की याद में रहो* की अब वापस घर जाना है... बाप आए हैं तुम्हें विश्व की राजाई देने... माया ने तुम्हें कंगाल बना दिया है बाप फिर से तुम्हें सतयुगी वैभव देकर मालामाल करने आये हैं... *बाप एक ही बार आते हैं, संगम पर इस कल्याणकारी युग का लाभ उठाओ और पुरुषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लो...*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे जादूगर बाबा... *आपकी मीठी मीठी बातों ने ऐसा जादू किया है* जो मैं आत्मा जिधर भी देखती हूं बस बाबा ही बाबा दिखाई देते हैं... *जीवन सुखों से भरपूर हो गया है...* इस ब्राह्मण जीवन को धारण कर मैं आत्मा आनंदित हो गई हूं... *जिस परमात्मा को संसार का हर प्राणी पाने के लिए दर दर भटक रहा है वो परम पिता परमात्मा मुझ आत्मा को मिला है,* ये स्मृति आते ही मुझ आत्मा की खुशी का ठिकाना नही रहता... बाबा आपने मुझे कौड़ी से हीरा बना दिया है... वाह मेरा भाग्य..."

 

  *मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बाबा मुझे समझानी देते हुए बोले:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप को बहुत तरस पड़ता है जब बच्चे माया से हार खाते हैं... *बाप की श्रीमत पर हर कार्य करो तो माया कभी हरा नही सकती...* तुम्हें एक बाप की याद में रहकर स्वमान की सीट पर सेट रहना है... *बाप परम कल्याणकारी हैं और तुम बच्चे मास्टर कल्याणकारी बन बाप के सहयोगी बनते हो...* बाप को खुशी होती है कि बच्चे बाप में सहयोगी बने हैं... बाप और बच्चे मिलकर विश्व को स्वर्ग बना रहे हैं... ये संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कमाई करने का युग है जिसकी प्रालब्ध तुम बच्चे सतयुग में भोगेंगे... संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहो और निरंतर बाप को याद करो... बाप की श्रीमत को धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करो... *ब्राह्मणों को चोटी कहा जाता है दूसरों का कल्याण करना ब्राह्मणों का परम कर्तव्य है , तुम बच्चे भी बाप समान कल्याणकारी बनों...*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी श्रीमत मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है, *आपकी श्रीमत मिली अहो भाग्य...* मैं आत्मा कितने जन्मों से भटक रही थी आपने मुझे अपना बनाकर मेरा जीवन पवित्रता और परमात्म प्रेम से भर दिया है... *आपको पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मैं आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मेरे जीवन को सवार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले *बाबा का दिल की गहराई से शुक्रिया कर मैं आत्मा लौट आती हूँ अपने साकारी तन में...*"

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपने शान्त स्वधर्म में स्थित रहना है, अशान्ति नही फैलानी है*

 

_ ➳  मैं शान्त स्वरूप आत्मा, शांतिधाम की रहने वाली, शांति के सागर शिव पिता की सन्तान हूँ यह स्मृति मुझे सेकण्ड में अपने शान्त स्वधर्म में स्थित कर देती हैं और अपने इस शान्त स्वधर्म में स्थित होते ही शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे मस्तक से निकल कर तेजी से चारों और फैलने लगते हैं। *मैं अनुभव कर रही हूँ कि मेरे आस - पास का वायुमण्डल शांति के वायब्रेशन्स के प्रभाव से पूरी तरह शांत और निस्तब्ध होने लगा है और मेरे चारों तरफ एक "विशाल शांति कुंड" बनता जा रहा है जिसकी ज्वाला शांति की शक्तिशाली किरणों के रूप में चारों और फैल कर अब दूर - दूर तक जा रही है और सारे वातावरण को भी शांत बनाती जा रही है*। साइलेन्स का बल मेरे अंदर भरता जा रहा है।

 

_ ➳  साइलेन्स की यह शक्ति धीरे - धीरे मेरे अंदर जमा होकर मुझे शांति की ऐसी गहरी गुफा में ले कर जा रही है जहाँ कोई आवाज नही, कोई हलचल नही, केवल एक गहन चुप्पी है। बाहर की दुनिया में हो रहे शोर का भी अब मेरे ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ रहा। *शांति की गुफा में बैठ गहन शांति का अनुभव मुझे बहुत सुकून दे रहा है। इस सुकून का सुखद आनन्द लेते - लेते मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि जिस शांति के हार की तलाश में मैं भटक रही थी वो शांति का हार तो मेरे गले मे ही पड़ा था जिसे आज अपने स्वधर्म में स्थित होकर कितनी सहजता से मैने प्राप्त कर लिया*!

 

_ ➳  शान्ति के इस हार को अब मैं कभी गुम नही होने दूँगी। इसे अपने गले मे हमेशा पहने रखने के लिए अब मैं सदैव अपने स्वधर्म और स्वदेश की स्मृति में रहूँगी। *इसी संकल्प के साथ, अपने स्वधर्म में स्थित होकर मैं आत्मा अब इस पराई देह और देह की पराई दुनिया से किनारा करके अपने स्वदेश जाने के लिए तैयार होती हूँ*। अपने उस देश, उस शान्तिधाम घर को स्मृति में लाते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे शान्तिधाम में रहने वाले शांति के सागर मेरे शिव पिता भी मुझ से मिलने के लिए व्याकुल हैं।

 

_ ➳  शांति के सागर अपने पिता के संकल्पों को कैच कर, मैं झट से भृकुटि की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर सेकण्ड में आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होकर अपने शान्ति धाम घर में पहुँच जाती हूँ। *गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात, कोई संकल्प नही, ऐसे अपने स्वदेश में आकर, यहां चारों और फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर मैं असीम शान्ति का अनुभव कर रही हूँ*। शन्ति की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने शिव पिता के समीप पहुँच गई हूँ।

 

_ ➳  अपने शांति धाम घर मे अपने शिव पिता के पास जाकर अब मैं उनके सानिध्य में बैठ उनसे आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *बाबा से आ रही शांति की हल्की नीले रंग की किरणों का फव्वारा मुझ पर बरस रहा है और मुझे रोमांचित कर रहा है। शांति की शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नीले रंग की किरणों के किसी विशाल झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और शांति की किरणें झर - झर करते पानी की तरह मेरे ऊपर बह रही हैं जिन्हें मैं गहराई तक अपने अंदर समाती जा रही हूँ*। शांति के सागर अपने शिव बाबा से शांति की अनन्त शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव हर पल करते हुए शांति की शक्ति मैं अपने अंदर जमा कर रही हूँ और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि शांति की शक्ति जैसे - जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है वैसे - वैसे हर समस्या का समाधान अपने आप होता जा रहा है। *साइलेन्स के बल से मेरे जीवन मे होने वाले अनेक चमत्कारिक परिवर्तन मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी अपने स्वधर्म और स्वदेश की याद दिला कर शान्ति का अनुभव करने का रास्ता दिखा रहें हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं विस्मृति की दुनिया से निकल स्मृति स्वरूप रह हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं हिम्मत का पहला कदम बढ़ा कर बाप की संपूर्ण मदद प्राप्त करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा यही चाहते हैं कि यह पूरा वर्ष चाहे सीजन 6 मास चलती है लेकिन पूरा ही वर्ष सभी को *जब भी मिलो, जिससे भी मिलो, चाहे आपस में, चाहे और आत्माओं से लेकिन जब भी मिलो, जिससे भी मिलो उसको सन्तुष्टता का सहयोग दो।* स्वयं भी संतुष्ट रहो और दूसरे को भी सन्तुष्ट करो। *इस सीजन का स्वमान है - सन्तुष्टमणि। सदा सन्तुष्टमणि।* भाई भी मणि हैं, मणा नहीं होता है, मणि होता है। एक एक आत्मा हर समय सन्तुष्टमणि है। और *स्वयं संतुष्ट होंगे तो दूसरे को भी संतुष्ट करेंगे। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "हरेक को सन्तुष्टता का सहयोग देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  प्रातःकाल बाबा से मीठी मीठी रुहरिहान करते हुए मैं आत्मा... उद्यान में सैर कर रही हूँ... यहां प्रकृति की सुन्दरता देखते ही बनती है... चारों ओर हरियाली छाई हुई है... प्रकृति अपनी अनूठी छटा बिखरा रही है... पूरा उद्यान रंग बिरंगी फूलों की आभा बिखेर रहा है... फूलों की खुशबू समूचे वातावरण को महका रही है... *खिले फूलों को देख कर वह गीत याद आ जाता है... 'जिसकी रचना इतनी सुंदर वह कितना सुन्दर होगा...' और मन में बागबान बाबा की मधुर स्मृतियाँ छा जाती हैं...*

 

 _ ➳  मीठे बाबा ने हम कलयुगी कांटो को किस तरह से ज्ञान का जल, योग की धूप... दिव्य गुणों और वरदानों की धरनी में सींचकर फूल बना दिया है... *माली बनकर बाबा हम रूहों की रूहानी पालना कर रहे हैं... बाबा ने हमारे जीवन को दिव्य गुणों की खुशबू से सुवासित कर दिया है...* ये सब स्मृति में आते ही मन प्रभु के प्रेम में भीग जाता है...

 

 _ ➳  मैं स्वयं को ईश्वरीय स्नेह के अगाध सागर में डूबता हुआ अनुभव कर रही हूँ... इस *स्नेह सागर में गहरे, उथले डुबकी लगा कर... दिव्य गुणों, शक्तियों के माणिक रत्नों से खेल रही हूँ...* जितना जितना इस स्नेह सागर में गहरे उतरती जाती हूँ... उतना ही स्वयं को एक-एक इन गुणों की गहराई से अनुभूति कराती जा रही हूँ... *दिव्य गुणों के गहनो से सजे हुए अपने दिव्य स्वरूप को देख मैं मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ... और दृढ़ संकल्प कर रही हूँ... की अपने बाबा की हर चाहना मुझे पूरी करनी है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा की उम्मीदों का सितारा हूँ... उनकी हर आशा रुपी कसौटी पर खरा उतरने वाला सच्चा सोना हूँ... *मैं अब हर प्रकार से संतुष्ट, तृप्त आत्मा बन गई हूँ... 'पाना था सो पा लिया', 'स्वयं भगवान मिल गया और क्या चाहिए'... की खुमारी में मैं आत्मा सच्चे आत्मिक सुख का अनुभव कर रही हूँ...* साथ ही अपने संबंध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को संतुष्टता का सहयोग दे रही हूँ... *मैं स्वयं से सन्तुष्ट हूँ... साथ ही सर्व को भी सन्तुष्ट कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं संतुष्टमणि आत्मा हूँ... बाबा द्वारा दिए गए इस स्वमान का गहराई से अनुभव कर रही हूँ... *मैं न सिर्फ संतुष्टमणि आत्मा हूँ... जैसे कि बाबा कहते हैं कि सदा शब्द को पक्का करो... तो मैं सदा काल के लिए संतुष्टमणि आत्मा हूँ...* मैं ईश्वर प्राप्तियों और खजानों से स्वयं संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ... और मेरी यह सन्तुष्टता की स्थिति अन्य आत्माओं को भी सन्तुष्ट कर रही है... *मैं हर स्थिति में सन्तुष्ट रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ... और सर्व को सन्तुष्ट कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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