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 05 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ अपनी उन्नति का चिंतन किया ?

 

➢➢ पतित आत्माओं से कोई लेन देन तो नहीं की ?

 

➢➢ योग द्वारा ऊंची स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ स्वयम को दुआओं के खाते से संपन्न किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  विशेष अमृतवेले पावरफुल स्थिति की सेटिंग करो। पॉवरफुल स्टेज अर्थात् बाप समान बीजरूप स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करो। जैसा श्रेष्ठ समय है, वैसी श्रेष्ठ स्थिति होनी चाहिए। साधारण स्थिति में तो कर्म करते भी रह सकते हो, लेकिन यह विशेष वरदान का समय है। इस समय को यथार्थ रीति यूज करो तो सारे दिन की याद की स्थिति पर उसका प्रभाव रहेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं प्रवृत्ति में रहते न्यारी और परमात्मा की प्यारी आत्मा हूँ"

 

✧  अपने को प्रवृत्ति में रहते न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? कि प्रवृत्ति में रहने से प्रवृत्ति के प्यारे हो जाते हो, न्यारे नहीं हो सकते हो? जो न्यारा रहता है वही हर कर्म में प्रभु प्यार अर्थात् बाप के प्यार का अनुभव करता है। अगर न्यारे नहीं रहते तो परमात्म प्यार का अनुभव भी नहीं करते और परमात्म प्यार ही ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है। वैसे भी कहा जाता है कि प्यार है तो जीवन है, प्यार नहीं तो जीवन नहीं। तो ब्राह्मण जीवन का आधार है ही परमात्म प्यार और वह तब मिलेगा जब न्यारे रहेंगे। लगाव है तो परमात्म प्यार नहीं। न्यारा है तो प्यार मिलेगा। इसीलिये गायन है जितना न्यारा उतना प्यारा।

 

✧  वैसे स्थूल रूप में लौकिक जीवन में अगर कोई न्यारा हो जाये तो कहेंगे कि ये प्यार का पात्र नहीं है। लेकिन यहाँ जितना न्यारा उतना प्यारा। जरा भी लगाव नहीं, लेकिन सेवाधारी। अगर प्रवृत्ति में रहते हो तो सेवा के लिये रहते हो। कभी भी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्म बन्धन है .. लेकिन सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्म-बन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता रहता है। बाप ने डायरेक्शन दिया है उसी श्रीमत पर रहे हुए हो, अपने हिसाब किताब से नहीं। कर्मबन्धन है या सेवा का बन्धन है .. उसकी निशानी है अगर कर्म बन्धन होगा तो दु:ख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो दु:ख की लहर नहीं आयेगी, खुशी होगी।

 

✧  तो कभी भी किसी भी समय अगर दु:ख की लहर आती है तो समझो कर्मबन्धन है। कर्मबन्धन को बदलकर सेवा का बन्धन नहीं बनाया है। परिवर्तन करना नहीं आया है। विश्व सेवाधारी हैं, तो विश्व में जहाँ भी हो तो विश्व सेवा अर्थ हो। यह पक्का याद रहता है या कभी कर्मबन्धन में फंस भी जाते हो? सेवाधारी कभी फंसेगा नहीं। वो न्यारा और प्यारा रहेगा। समझते तो हो कि न्यारे रहना है लेकिन जब कोई परिस्थिति आती है तो उस समय न्यारे रहो। कोई परिस्थिति नहीं है, उस समय तो लौकिक में भी न्यारे रहते हो। लेकिन अलौकिक जीवन में सदा ही न्यारे। कभी-कभी न्यारे नहीं, सदा ही न्यारे। कभी-कभी वाले तो राज्य भी कभी-कभी करेंगे। सदा राज्य करना है तो सदा न्यारा भी रहना है ना। इसलिए सदा शब्द को अन्डरलाइन करो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  हे शान्ति देवा श्रेष्ठ आत्मायें। इस शान्ति की शक्ति को अनुभव में लाओ। जैसे वाणी की प्रैक्टिस करते-करते वाणी के शक्तिशाली हो गये हो, ऐसे शान्ति की शक्ति के भी अभ्यासी बनते जाओ। आगे चल वाणी वा स्थूल साधनों के द्वारा सेवा का समय नहीं मिलेगा।

 

✧  ऐसे समय पर शान्ति की शक्ति के साधन आवश्यक होंगे। क्योंकि जितना जो महान शक्तिशाली शस्त्र होता है वह कम समय में कार्य ज्यादा करता है। और जितना जो महान शक्तिशाली होता है वह अति सूक्ष्म होता है। तो वाणी से शुद्धसंकल्प सूक्ष्म हैं, इसलिए सूक्ष्म का प्रभाव शक्तिशाली होगा।

 

✧  अभी भी अनुभवी हो, जहाँ वाणी द्वारा कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है तो कहते हो - यह वाणी से नहीं समझेंगे, शुभ भावना से परिवर्तन होंगे। जहाँ वाणी कार्य को सफल नहीं कर सकती, वहाँ साइलेन्स की शक्ति का साधन शुभ-संकल्प, शुभ-भावना, नयनों की भाषा द्वारा रहम और स्नेह की अनुभूति कार्य सिद्ध कर सकती है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बॉडी-कान्शियस होगा तो अभिमान आयेगा, आत्म-अभिमानी होंगे तो अभिमान नहीं आयेगा लेकिन रूहानी फखुर होगा और जहाँ रूहानी फखुर होता है वहाँ विघ्न नहीं हो सकता। या तो है फिक्र या है फखुर। दोनों साथ नही होते।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  अपने आपसे बातें कर पावन बनना, टाइम वेस्ट नहीं करना“
 
➳ _ ➳  मधुबन घर में डायमण्ड हॉल में अपने प्यारे बाबा को निहारती हुई मै आत्मा... कभी अपने महान भाग्य को, कभी इस ईश्वरीय मिलन के खुबसूरत समय को... देख रही हूँ... कि जीवन में अनगिनत दुखो की भोगना यूँ पीछे गुजर गयी... और मै आत्मा इस खुबसूरत समय पर भगवान के सम्मुख आ गयी... इस सुनहरे वक्त ने मुझे ईश्वर से मिलाकर... मेरा भविष्य सुनहरे अक्षरो में लिख दिया है... आज सतयुग मेरे कदमो की आहट लेने को आतुर है... सुख मेरी बाट जोह रहे है.. खुशियां मेरा रास्ता निहार रही है... अमीरी मुझे बाँहों में भर लेने को दीवानी है... सारे दुःख गायब हो गए है और अथाह सुख मेरी नजरो में प्रत्यक्ष हो रहे है... और कह रहे है... मीठे बाबा की यादो में गहरे डूब जाओ... ती हम सजीव बन आपकी सेवाओ में हाजिर है... वाह... कितना प्यारा यह, मीठे बाबा के साथ भरा समय है...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अमूल्य ज्ञान मणियो से सजाकर कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों को पाकर, यादो में सच्ची कमाई करने वाले महान भाग्यशाली बनो... संगम के वरदानी समय के हर पल को यादो में सफलकर सच्ची कमाई से भरपूर बनो... ईश्वर के साथ भरा यह मीठा समय... अब व्यर्थ बातो में नही गंवाओ... मीठे बाबा से सारी दौलत खजाने लेकर... सदा की अमीरी से सज जाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में सारी जागीर की मालिक बनकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में सुखी और अमीर जीवन को पाती जा रही हूँ... आपको पाकर अब मै आत्मा किसी भी व्यर्थ में स्वयं को उलझाती नही हूँ... बल्कि हर क्षण यादो में खोकर, अपने सारे विकर्मो से मुक्त होती जा रही हूँ... यादो की कमाई करके विश्व की अमीरी को पाती जा रही हूँ ..."
 
❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को समय का महत्व समझाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... यही वह कीमती पल है, जिसमे मीठे बाबा को याद करके... अथाह सम्पत्ति और सुख भरा भविष्य अपनी तकदीर में सजा सकते हो... इस सुनहरे समय को साधारण रीति या व्यर्थ में न बिताओ... हर पल याद का निरन्तर अभ्यास कर... स्वयं का महान भाग्य स्वयं लिखो... सच्ची कमाई के पीछे दीवाने होकर जुट जाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में गहरे उतार कर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह की और दुखो की दुनिया में जो घिरी तो... अपनी सारी खुशियां गुण और दौलत ही गंवा बेठी... अब आपने आकर मुझे पुनः दौलतमंद और खुशहाल बनने का सारा राज बता दिया है... मै आत्मा हर साँस आपकी यादो में डूबकर, सच्ची दौलत को अपनी बाँहों में बटोरती जा रही हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सर्वगुणों और शक्तियो से भरपूर करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस पुरानी दुनिया की विनाशी दौलत के पीछे बहुत खपे हो... अब मीठे बाबा से 21 जनमो की अमीरी लेकर विश्व के बादशाह बनो... एक एक पल कमाई से भरपूर हो, मन बुद्धि को मीठे बाबा की याद में पूरा झोंक दो... यादो में ही पुराने सारे विकर्म भस्म होंगे और सुखो भरा खुबसूरत जीवन आपके हाथो में होगा... इसलिए निरन्तर याद में खोये रहो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को मुझ आत्मा के सुख के लिए इस कदर आतुर देख कहती हूँ :- "मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितनी महान हूँ, और कितनी भाग्यशाली हूँ... कि भगवान बेठ मुझे यूँ अमीर बना रहा है... और मुझे विश्व का मालिकाना हक दिलवा रहा है... मै आत्मा इतनी अमीर बनूंगी, यह तो कभी ख्यालो में भी न था... आज आपकी सच्ची यादो में यह जीवन की खुबसूरत हकीकत बन रही है... और मै आत्मा हर साँस से यादो की कमाई कर, अमीर और अमीर होती जा रही हूँ..."प्यारे बाबा से यूँ मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी....
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- अब आप डायरेक्ट आये हैं इसलिए अपना सब कुछ युक्ति से ट्रांसफर कर देना है"

➳ _ ➳  अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे अपने निराकारी घर परमधाम में हूँ। मुझ आत्मा में पवित्रता की अनन्त शक्ति है। सर्व गुणों, सर्व शक्तियों से मैं आत्मा सम्पन्न हूँ। मेरा स्वरूप रीयल गोल्ड के समान अति चमकदार है। पवित्रता की लाइट मुझ आत्मा से निरन्तर निकल रही है।

➳ _ ➳  अपनी इसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा अपनी निराकारी दुनिया परमधाम को छोड़ इस सृष्टि रंगमंच रूपी कर्मभूमि पर पार्ट बजाने के लिए, सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप धारण कर सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई दुनिया मे अवतरित होती हूँ। एक ऐसी दुनिया जिसे स्वर्ग कहतें हैं, जो मेरे पिता परमात्मा ने मेरे लिए स्थापन की थी। जहां अपरमपार सुख, शांति और सम्पन्नता थी।

➳ _ ➳  लक्ष्मी नारायण के इस सुखमयी राज्य में दो युग अपरमपार सुख भोगने के बाद मैं आत्मा जब द्वापरयुग में आई तो देह भान में आ कर विकारो में गिरने से मुझ आत्मा की कलाये कम हो गई। मैं आत्मा जो सच्चा सोना थी, अब कॉपर की बन गई और अपने गुणों, अपनी शक्तियों को ही भूल गई। कलयुग अंत तक आते आते मै आत्मा बिल्कुल कला विहीन हो गई। सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से तमोप्रधान अवस्था मे पहुंच गई। किन्तु संगमयुग पर मेरे पिता परमात्मा ने आ कर मुझे स्वयं अपना और मेरा यथार्थ परिचय दे कर राजयोग द्वारा मुझे फिर से चढ़ती कला में जाने की यथार्थ विधि बता दी।

➳ _ ➳  बाबा ने आ कर यह स्पष्ट कर दिया कि अब यह सृष्टि का नाटक पूरा हुआ इसलिए मुझे वापिस अब उसी सतोप्रधान अवस्था मे अपनी उसी निराकारी दुनिया परमधाम लौटना है जहां से मैं आत्मा अपनी सपूर्ण सतोप्रधान अवस्था के साथ आई थी। अपने पिता परमात्मा के साथ वापिस अपने धाम जाने के लिए अब मुझे सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है इसके लिए पुराना कखपन बाबा को दे बैग बैगेज सब ट्रांसफर कर देना है।

➳ _ ➳  बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल कर अब मैं आत्मा राजयोग के द्वारा अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बन फिर से सतयुगी राजाई प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर रही हूं। देह भान में आने के कारण मुझ आत्मा पर विकारों की जो कट चढ़ गई थी उन विकारों की कट को अपने पिता परमात्मा की याद से, योगअग्नि द्वारा भस्म करने के लिए मैं आत्मा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, मन बुद्धि से अब जा रही हूँ परमधाम।

➳ _ ➳  अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने प्राणेश्वर शिव बाबा के सम्मुख देख रही हूं। मुझ पर निरन्तर मेरे प्राणेश्वर बाबा की शक्तिशाली किरणे पड़ रही हैं। इन शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं शक्ति स्वरूप बन रही हूं। अपने प्यारे परमपिता परमात्मा की सर्व शक्तियों से भरपूर हो कर और अमर भव का वरदान ले कर अब मैं धीरे - धीरे परमधाम से नीचे आ रही हूँ और प्रवेश कर रही हूँ अपनी साकारी देह में। मेरा मन अब परम आनन्द से भरपूर है। मेरा जीवन ईश्वरीय प्रेम से भर गया है।

➳ _ ➳  इस सत्यता को अब मैं जान गई हूं कि यह सृष्टि नाटक अब पूरा हुआ और इस नश्वर संसार को छोड़ अब मुझे अपने शिव पिता के साथ वापिस अपने धाम जाना है। इस विनाशी दुनिया का कोई भी सामान साथ नही जा सकता इसलिए बाबा के साथ वापिस जाने के लिए पुराना कखपन दे बैग बैगेज भविष्य नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देने में ही कल्याण है। इस बात को स्मृति में रख तीन स्मृतियों का तिलक सदा मस्तक पर लगाये अब मैं बिंदु बन बिंदु बाप की याद में रह, विकारों रूपी कखपन बाबा को दे,भविष्य नई दुनिया के लिए अपने जीवन को हीरे तुल्य बना रही हूं।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं योग द्वारा ऊंची स्थिति का अनुभव करने वाली डबल लाइट फरिश्ता आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं अभी दुआओं के खाते को संपन्न बनाकर अपने चित्रों द्वारा सबको अनेक जन्म दुआओं का अनुभव कराने वाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा ने देखा कि सेवा वा कर्म और स्व-पुरूषार्थ अर्थात् योगयुक्त तो दोनों का बैलेन्स रखने के लिए  विशेष एक ही शब्द याद रखो - वह कौनसाबाप 'करावनहारहै और मैं आत्मा, (मैं फलानी नहीं) आत्मा 'करनहारहूँ। तो करन-'करावनहार', यह एक शब्द आपका बैलेन्स बहुत सहज बनायेगा। स्व-पुरूषार्थ का बैलेन्स या गति कभी भी कम होती हैउसका कारण क्या? 'करनहारके बजाए मैं ही करने वाली या वाला हूँ, 'करनहारके बजाए अपने को 'करावनहारसमझ लेते हो। मैं कर रहा हूँजो भी जिस प्रकार की भी माया आती हैउसका गेट कौन सा हैमाया का सबसे अच्छा सहज गेट जानते तो हो ही - 'मैं'। तो यह गेट अभी पूरा बन्द नहीं किया है। ऐसा बन्द करते हो जो माया सहज ही खोल लेती है और आ जाती है। अगर 'करनहारहूँ तो कराने वाला अवश्य याद आयेगा। कर रही हूँकर रहा हूँलेकिन कराने वाला बाप है बिना 'करावनहार' के 'करनहारबन नहीं सकते हैं। डबल रूप से 'करावनहारकी स्मृति चाहिए। एक तो बाप 'करावनहारहै और दूसरा मैं आत्मा भी इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ। इससे क्या होगा कि कर्म करते भी कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं आयेंगे। इसको कहते हैं - कर्मातीत अवस्था।

 

 _ ➳  सेवा के अति में नहीं जाओ। बस मेरे को ही करनी हैमैं ही कर सकती हूँ, नहीं। कराने वाला करा रहा हैमैं निमित्त 'करनहारहूँ। तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी। कई बच्चे कहते हैं - बहुत सेवा की है ना तो थक गये हैंमाथा भारी हो गया है। तो माथा भारी नहीं होगा। और ही 'करावनहार' बाप बहुत अच्छा मसाज करेगा। और माथा और ही फ्रेश हो जायेगा। थकावट नहीं होगीएनर्जी एकस्ट्रा आयेगी। जब साइन्स की दवाइयों से शरीर में एनर्जी आ सकथी हैतो क्या बाप की याद से आत्मा में एनर्जी नहीं आ सकती? और आत्मा में एनर्जी आई तो शरीर में प्रभाव आटोमेटिकली पड़ता है। अनुभवी भी होकभी-कभी तो अनुभव होता है। फिर चलते-चलते लाइन बदली हो जाती है और पता नहीं पड़ता है। जब कोई उदासी, थकावट या माथा भारी होता है ना फिर होश आता है, क्या हुआ? क्यों हुआलेकिन सिर्फ एक शब्द 'करनहार' और 'करावनहार' याद करो।

 

✺   ड्रिल :-  "'करावनहार' की स्मृति से सेवा या कर्म करते सहज योगयुक्त रहने का अनुभव"

 

 _ ➳  मस्तक मणि मैं आत्मा... इस शरीर में विराजमान हूँ... एक दिव्य ज्योति पुंज समान मैं आत्मा... बैठी हूँ एक परमपिता परमात्मा की याद में... मन बुद्धि रूपी मन के द्वार को एक शिवबाबा की ओर ही खोलती मैं आत्मा... आह्वान करती हूँ... मेरे पिता परमेश्वर का... प्यार भरा आह्वान सुनकर मेरे पिता परमेश्वर अपने ब्रह्मा रथ में विराजमान  होकर पहुँच जाते हैं मेरे मन के पास... मन के द्वार पर खड़ी मैं आत्मा... बापदादा का फूलों से स्वागत करती हूँ... उनका हाथ पकड़कर मैं आत्मा उनको रत्नजड़ित सिंहासन पर बिठाती हूँ...  बापदादा को प्यार से भोग की थाली अर्पण कर मैं आत्मा भावपूर्ण हो जाती हूँ...

 

 _ ➳  अपने हाथों से बापदादा मुझे भी भोग ख़िला रहे हैं... और मैं आत्मा गदगद हो जाती हूँ... बापदादा से आती हुई वर्षा रूपी किरणों को अपने में धारण करती जा रही हूँ... जन्मों के विकारों को पिता को समर्पित कर मैं आत्मा हलकी फूल बनती जा रही हूँ... संगमयुगी ब्राह्मण के कड़े विकार "मैं" और "मेरेपन" को संपूर्ण रूप से बापदादा को दान में दे रही हूँ.... और मंद मंद बापदादा मुस्कुरा रहे हैं... "मैं" और "मेरेपन" के सूक्ष्म संकल्पों को भी पूर्णतः त्याग करती मैं आत्मा... बापदादा की दिलतख्तनशीन बन जाती हूँ... "करावनहार" सिर्फ एक बाप है और मैं आत्मा "करनहार" हूँ... इस स्मृति में झूमती मैं आत्मा...

 

 _ ➳  अपने कलियुगी संस्कारों को एक बाप पर बलि चढ़ाती जा रही हूँ... और मैं आत्मा "करनहार" की स्मृति में अपना अलौकिक पार्ट बजा रही हूँ... हर घड़ी हर पल "करावनहार" सिर्फ एक बाप की ही स्मृति से छलकती मैं आत्मा... सेवा या कर्म करते सहज योगयुक्त रहने का अनुभव कर रही हूँ... अब तो हर पल... बापदादा को साथ साथ महसूस कर रही हूँ... मेरे को तेरे में बदलती... मेरेपन को तेरेपन में समर्पित करती मैं आत्मा... बापदादा से... सेवा में... योग में... सफलतामूर्त का वरदानी तिलक लगवा रही हूँ... बापदादा के हाथों से डबल ताज धारण करती हूँ... फूलों की माला से बापदादा द्वारा साज श्रृंगार होता देख रही हूँ...

 

 _ ➳  कर्मातीत अवस्था की अधिकारी मैं आत्मा... कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं उलझती हूँ... जो पिता ने बोला वह किया... पिता ने जो करवाया वह मैं आत्मा अपने कर्मेन्द्रियों द्वारा करवा रही हूँ... हर कार्य को बापदादा को समर्पित करती मैं आत्मा.. "मेरेपन" के रावण रूपी विकार को अग्निदाह दे... अशोक वाटिका रूपी देहाभिमानी स्थिति से मुझ सीता रूपी आत्मा से... एक रामरूपी शिवबाबा को प्रत्यक्ष करती रहती हूँ... माया रूपी गेट को "करावनहार" रूपी चाबी से संपूर्ण लॉक करती मैं आत्मा... योग और सेवा को मेरेपन के विकारों से सुरक्षित रखती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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