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❍ 13 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ सिवाए बाप के और किसी को तो याद नहीं किया ?
➢➢ सबसे क्षीरखंड होकर रहे ?
➢➢ हर कर्म में विजय का ताल निश्चय और नशा रहा ?
➢➢ बाप के स्नेह की छत्रछाया के नीचे रह विघनो से मुक्त रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ समय की समीपता के प्रमाण अभी सच्चे तपस्वी बनो। आपकी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य। अभी चारों ओर पावरफुल तपस्या करनी है, जो तपस्या मन्सा सेवा के निमित्त बनें, ऐसी पावरफुल सेवा अभी तपस्या द्वारा शुरू करो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाली आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाला अनुभव करते हो? सुनते थे कि दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है लेकिन अभी अनुभवी बन गये। रूहानी दृष्टि से सृष्टि बदल गई ना! अभी आपके लिए बाप संसार है, तो सृष्टि बदल गई। पहले की सृष्टि अर्थात् संसार और अभी के संसार में फर्क हो गया ना! पहले संसार में बुद्धि भटकती थी और अभी बाप ही संसार हो गया। तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया, एकाग्र हो गई। क्योंकि पहले की जीवन में, कभी देह के सम्बन्ध में, कभी देह के पदार्थ में - अनेकों में बुद्धि जाती थी। अभी यह सब बदल गया। अभी देह याद रहती या देही?
〰✧ अगर देह में कभी बुद्धि जाती है तो रांग समझते हो ना! फिर बदल लेते हो, देह के बजाय अपने को देही समझने का अभ्यास करते हो। तो संसार बदल गया ना! स्वयं भी बदल गये। बाप ही संसार है या अभी संसार में कुछ रहा हुआ है? विनाशी धन या विनाशी सम्बन्ध के तरफ बुद्धि तो नहीं जाती? अभी मेरा रहा ही नहीं। 'मेरे पास बहुत धन है' - यह संकल्प या स्वप्न में भी नहीं होगा क्योंकि सब बाप के हवाले कर दिया। मेरे को तेरा बना लिया ना! या मेरा, मेरा ही है और बाप का भी मेरा है। ऐसे तो नहीं समझते? यह विनाशी तन-धन, पुराना मन, मेरा नहीं, बाप को दे दिया।
〰✧ पहला-पहला परिवर्तन होने का संकल्प ही यह किया कि सब कुछ तेरा और तेरा कहने से ही फायदा है। इसमें बाप का फायदा नहीं है, आपका फायदा है। क्योंकि मेरा कहने से फंसते हो, तेरा कहने से न्यारे हो जाते हो। मेरा कहने से बोझ वाले बन जाते हो और तेरा कहने से डबल लाइट 'ट्रस्टी' बन जाते हो। तो क्या अच्छा है - हल्का बनना अच्छा है या भारी बनना अच्छा है? आजकल के जमाने में शरीर से भी कोई भारी होता तो अच्छा नहीं लगता। सभी अपने को हल्का करने का प्रयत्न करते हैं। क्योंकि भारी होना माना नुकसान है और हल्का होने से फायदा है। ऐसे ही मेरा-मेरा कहने से बुद्धि पर बोझ पड़ जाता है, तेरा-तेरा कहने से बुद्धि हल्की बन जाती है। जब तक हल्के नहीं बने तब तक ऊँची स्थिति तक पहुँच नहीं सकते। उड़ती कला ही आनन्द की अनुभूति कराने वाली है। हल्का रहने में ही मजा है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को एक सेकण्ड में जैसे और जहाँ करना चाहें वहाँ कर सकते हैं, अधिकार है न उन पर? ऐसे बुद्धि के ऊपर और संकल्पों के ऊपर भी अधिकारी बने हो? फुलस्टाँप करना चाहो तो कर सको क्या ऐसा अभ्यास है?
〰✧ विस्तार में जाने के बजाय एक सेकण्ड में फुलस्टाँप हो जाये ऐसी स्थिति समझते हो? जैसे ड्राइविंग का लाइसेन्स लेने जाते हैं तो जानबूझ कर भी उनसे तेज स्पीड करा के फिर फुलस्टाँप कराते हैं व ब्रेक कराते हैं। यह भी प्रैक्टिस है ना? तो अपनी बुद्धि को चलाने और ठहराने की भी प्रैक्टिस करनी है।
〰✧ कमाल तब कहेंगे जब ऐसे समय पर एक सेकण्ड में स्टाँप हो जायें। निरंतर विजयी वह जिसके युक्ति - युक्त संकल्प व युक्ति - युक्त बोल व युक्ति - युक्त कर्म हो या जिसका एक संकल्प व्यर्थ न हो। वह तब होगा जब यह प्रैक्टिस होगी मानो कोई ऐसी सर्विस है जिसमें फूल विजयी होना होता है तो ऐसे समय भी स्टाँप करने का अभ्यास करो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ ऐसा अभ्यास करो जो जहाँ बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ स्थित हो जायें। संकल्प किया और स्थित हुआ। यह रूहानी डिल सदैव बुद्धि द्वारा करते रहो। अभी-अभी परमधाम निवासी, अभी-अभी सूक्ष्म अव्यक्त फरिश्ता बन जायें और अभी-अभी साकार कर्मन्द्रियों का आधार लेकर कर्मयोगी बन जायें। इसको कहा जाता है - संकल्प शक्ति को कण्ट्रोल करना। संकल्प को रचा कहेंगे और आप उसके रचयिता हो। जितना समय जो संकल्प चाहिए उतना ही समय वह चले। जहाँ बुद्धि लगाना चाहे, वहाँ ही लगे। इसको कहा जाता है - अधिकारी। यह प्रेक्टिस अभी कम है। और चेक करो कि जितना समय निश्चित किया, क्या उतना समय वह स्टेज रही?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- देही अभिमानी बनने की प्रेक्टिस करना
➳ _ ➳ मै आत्मा कभी अपने शरीर भान में उलझे अतीत को देखती हूँ... तो सोचती हूँ, मीठे बाबा ने किस दलदल में से मुझे निकाल कर... कितनी खुबसूरत सुख भरी राहो पर ला दिया है... आज ईश्वरीय यादो में और ज्ञान रत्नों की खनक में गूंजता हुआ जीवन... कितना प्यारा प्यारा सा है... और मै आत्मा अपने प्यारे बाबा की प्यारी यादो में खोकर... दिल से शुक्रिया करने... मीठे वतन में उड़ चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सत्य रूप के अहसासो में डुबोते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान से निकल कर देही अभिमानी बनने की हरपल प्रेक्टिस करो... मै आत्मा हूँ... हर समय इस सत्य को यादो में भरो... और अब मुझे अपने मीठे बाबा संग घर को जाना है... यह बार बार स्मृति में लाओ... देह के आवरण से अब अछूते बन, आत्मिक भाव में आओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा को बड़ी ही प्यार भरी नजरो से देखते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे मेरे बाबा... खुद को देह मानकर मै आत्मा कितने दुखो से भरी थी... आपने मुझे मेरा सच आत्मा बताकर कितना सुकून दे दिया है... हर पल मै आत्मा अपने भान में खोयी हुई मुस्करा रही हूँ... और देही अभिमानी बनती जा रही हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अलौकिकता से सजाते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... जब घर से निकले थे, चमकती मणि स्वरूप थे... अपने उस सत्य के नशे में पुनः खो जाओ... देह को छोड़ देही अभिमानी बन मुस्कराओ... हर क्षण अपने आत्मिक भान में रहो... बार बार यही अभ्यास करो और पिता का हाथ पकड़ कर घर चलने की तैयारी में जुट जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने सच्चे साथी बाबा से कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझे अपना बनाकर असीम खुशियो को मेरे दामन में सजा दिया है... मेरा जीवन सत्य की चमक से प्रकाशित हो गया है... मै आत्मा अपने नूरानी नशे में खोयी हुई घर चलने को अब आमादा हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य के प्रकाश से रौशन करते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर जो अपने खोये वजूद को पा लिया है उसकी सत्यता में हर साँस डूबे रहो... देह के आकर्षण से बाहर निकल अपने चमकते स्वरूप में गहरे खोकर आत्मिक तरंगे सदा फैलाओ... अपने मीठे बाबा संग घर चलने की तैयारी कर पुनः देवताई कुल में आओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से अनगिनत रत्नों को बटोर कर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...आपने मुझे मेरे सत्य का पता देकर मुझे कितना हल्का प्यारा और निश्चिन्त कर दिया है... मै आत्मा हूँ देह नही इस खुबसूरत सच ने मुझे खुशियो से भर दिया है... और मै आत्मा अब ख़ुशी ख़ुशी घर चलने की तैयारी में हूँ..." अपने मीठे बाबा से मीठा वादा करके मै आत्मा कर्म जगत पर आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- देही अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है"
➳ _ ➳ देह के भान से मुक्त, देही अभिमानी स्थिति में स्थित होते ही मुझे मेरे सत्य स्वरूप का अनुभव हो रहा है। मेरा सत्य स्वरूप अति सुंदर, अति प्यारा है। अपने इस सत्य स्वरूप को अब मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ। एक ज्योति जो इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि पर विराजमान हो कर जगमग कर रही है। इस ज्योति से निकल रहे प्रकाश को मैं अपने चारों ओर महसूस कर रही हूँ। प्रकाश का एक सुंदर औरा मेरे चारों और निर्मित हो रहा है। इस प्रकाश से निर्मित औरे में मुझ आत्मा के सातों गुण समाये हैं जिससे मुझे शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति हो रही है।
➳ _ ➳ देही अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर, अपने वास्तविक गुणों की गहन अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ रही है। मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है। मैं अनुभव कर रही हूँ गुणों के सागर शिव पिता से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों को स्वयं पर पड़ते हुए।
➳ _ ➳ शिव पिता परमात्मा से आ रही सर्व गुणों की शक्तिशाली किरणों के मुझ आत्मा पर पड़ने से मेरे चारों और निर्मित प्रकाश का औरा भी धीरे - धीरे बढ़ने लगा है। प्रकाश के इस औरे के बढ़ने के साथ साथ इसमें समाये सातों गुण भी वायब्रेशन के रूप में चारों और फैलने लगे है। दूर - दूर तक ये वायब्रेशन फैल रहें हैं और शक्तिशाली वायुमण्डल निर्मित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सर्व गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और फैलाते हुए अब मैं जागती ज्योति इस शरीर रूपी मन्दिर से बाहर निकल कर गुणों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जा रही हूँ। एक प्वाइंट ऑफ लाइट, मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी ऊपर की ओर जा रही हूँ। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं। मेरे बिल्कुल सामने है महाज्योति शिव बाबा जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।
➳ _ ➳ जैसे शमा की लौ परवाने को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं ऐसे ही मेरे शिव पिता से आ रही शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है और मैं आत्मा परवाना बन शिव शमा के पास जा रही हूँ। धीरे - धीरे मैं बाबा के अति पास पहुंच कर बाबा को टच कर रही हूँ। बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आ कर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ किन्तु अब मैं हर कर्म करते देही अभिमानी स्थिति में स्थित हूँ। इस देह से जुड़े अपने हर सम्बन्धी को भी अब मैं देह नही देही रूप में देख रही हूँ। सभी को शिव पिता की अजर, अमर,अविनाशी सन्तान के रूप में देखते हुए निस्वार्थ भाव से सभी को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही हूँ। देह अभिमान के अवगुण को निकाल देही अभिमानी बन सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखते हुए उन्हें भी देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करवा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं हर कर्म में विजय का अटल निश्चय और नशा रखने वाली अधिकारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं बाप के स्नेह की छत्रछाया के नीचे रह कर हर विघ्न से मुक्त होने वाली विघ्न विनाशक आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ तीसरी अनुभूति- ऐसी समान आत्मा अर्थात् एवररेडी आत्मा - साकारी दुनिया और साकारी शरीर में होते हुए भी बुद्धियोग की शक्ति द्वारा सदा ऐसा अनुभव करेगी कि मैं आत्मा चाहे सूक्ष्मवतन में, चाहे मूलवतन में, वहाँ ही बाप के साथ रहती हूँ। सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी हो कर्मयोगी बन कर्म का पार्ट बजाने वाली हूँ लेकिन अनेक बार अपने को बाप के साथ सूक्ष्मवतन और मूलवतन में रहने का अनुभव करेंगे। फुर्सत मिली और सूक्ष्मवतन व मूलवतन में चले गये। ऐसे सूक्ष्मवतन वासी, मूलवतनवासी की अनुभूति करेंगे जैसे कार्य से फुर्सत मिलने के बाद घर में चले जाते हैं। दफ्तर का काम पूरा किया तो घर में जायेंगे वा दफ्तर में ही बैठे रहेंगे! ऐसे एवररेडी आत्मा बार-बार अपने को अपने घर के निवासी अनुभव करेंगी। जैसे कि घर सामने खड़ा है। अभी-अभी यहाँ, अभी-अभी वहाँ। साकारी वतन के कमरे से निकल मूलवतन के कमरे में चले गये।
✺ "ड्रिल :- सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी होने का अनुभव करना”
➳ _ ➳ “बाबा बुला रहे हैं बच्चों वतन में आओ, अब मुझको न बुलाओ तुम मेरे पास आओ”... ये गीत सुनते ही मैं आत्मा ऊपर खींची चली जा रही हूँ... प्यारे बाबा दोनों हाथों को फैलाए मुझे वतन में बुला रहे हैं... मन-बुद्धि के तार बाबा से जुड़ते ही मुझ आत्मा का स्थूल शरीर गायब हो रहा है... मैं आत्मा सूक्ष्म शरीर धारण कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... जहाँ ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा ऐसे लग रहे हैं जैसे हीरे की डिब्बी में हीरा चमक रहा हो...
➳ _ ➳ सुप्रीम हीरे से दिव्य किरणों की बौछारें मुझ पर पड़ रही हैं... एक-एक किरण मुझ आत्मा के एक-एक विकार को भस्म कर रहा है... सभी अवगुणों, कमी-कमजोरियों, विकारों से मुक्त होकर मैं आत्मा हलकी हो रही हूँ... फरिश्ते समान डबल लाइट हो गई हूँ... मैं आत्मा बेदाग हीरा बन रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन से भी ऊपर उड रही हूँ... फरिश्ते का ड्रेस लोप हो रहा है... मैं आत्मा धीरे-धीरे बिंदु बन रही हूँ... बिंदु बन मैं आत्मा बिंदु बाबा के साथ ऊपर उड़ते हुए मूलवतन पहुँच जाती हूँ... सुप्रीम बिंदु से एक हो जाती हूँ... एक होते ही बाबा से गुण, शक्तियां मुझमें ट्रान्सफर हो रही हैं... मैं आत्मा सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मुझ आत्मा को पूरी सृष्टि ही अपना घर लग रहा है... मैं आत्मा बेहद के घर में रह रही हूँ... मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ कि मैं अब तीन कमरे के घर में रह रही हूँ... साकारी वतन के कमरे में कर्मयोगी बन कर्म करती हूँ... फिर सेकंड में सूक्ष्मवतन के कमरे में बापदादा के पास पहुंच जाती हूँ और सेकंड में मूलवतन के कमरे में बिंदु बाबा के पास चले जाती हूँ... मैं आत्मा हर कर्म बाबा के साथ से करती हूँ फिर बाबा के साथ अपने वतन पहुँच जाती हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने घर जाने के लिए सदा एवररेडी रहती हूँ... जब चाहे तब मैं आत्मा अपने बुद्धियोग की शक्ति द्वारा कहीं भी जा सकती हूँ... मैं आत्मा साकार वतन में सिर्फ कर्म करने आती हूँ... यहाँ की किसी वस्तु, व्यक्ति, वैभव में अपना मन नहीं लगाती हूँ... इस देह से भी मैं आत्मा डिटैच रहती हूँ... ये देह सिर्फ कर्म करने का साधन है... अब मैं आत्मा एवररेडी बन सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी होने का अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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