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 11 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ स्थूल सेवा के साथ साथ सूक्षम सेवा भी की ?

 

➢➢ दान दी हुई चीज़ वापिस तो नहीं ली ?

 

➢➢ कर्मयोगी बन हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ बनाया ?

 

➢➢ स्वयं प्रिय, लोक प्रिय और प्रभु प्रिय बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  सारथी अर्थात् आत्म-अभिमानी क्योंकि आत्मा ही सारथी है। ब्रह्मा बाप ने इस विधि से नम्बरवन की सिद्धि प्राप्त की, तो फॉलो फादर करो। जैसे बाप देह को अधीन कर प्रवेश होते अर्थात् सारथी बनते हैं देह के अधीन नहीं होते, इसलिए न्यारे और प्यारे हैं। ऐसे ही आप सभी ब्राह्मण आत्माएं भी बाप समान सारथी की स्थिति में रहो। सारथी स्वत: ही साक्षी हो कुछ भी करेंगे, देखेंगे, सुनेंगे और सब-कुछ करते भी माया की लेप-छेप से निर्लेप रहेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं महान आत्मा हूँ"

 

〰✧  भारत देश की महानता किसके कारण है? आप लोगों के कारण है। क्योंकि देश महान बनता है महान आत्मा द्वारा। तो भारत की सर्व महान आत्माओंमें से महान कौन? आप हैं कि दूसरे हैं? इतनी महान आत्मायें हैं जो अब चक्कर के समाप्ति में भी भारत महान, आप महान आत्माओंके कारण गाया जाता है। और कोई भी देश में इतनी महान आत्माओंका गायन या पूजन नहीं होता। चाहे कितने भी नामीग्रामी धर्मात्माएं हो गई हों या राजनेतायें होकर गये हों वा आजकल के जमाने के हिसाब से वैज्ञानिक भी नामीग्रामी हैं लेकिन किसी भी देश में उस देश की इतनी महान आत्माओंके मन्दिर हों, यादगार हों, पूजन हो, गायन हो - वह कहाँ भी नहीं होगा।

 

  चाहे विज्ञान में विदेश बहुत आगे है लेकिन गायन और पूजन में नहीं है। वैज्ञानिकों का या राजनीतिज्ञों का गायन भी होता है लेकिन उस गायन और देवात्माओंके गायन में कितना अन्तर है! ऐसा गायन वहाँ नहीं होता। तो इतनी भारत की महानता बढ़ाने वाले हम महान आत्मायें हैं - यह नशा कितना श्रेष्ठ है! यहाँ गलीगली में मन्दिर देखेंगे। तो इतना नशा सदा स्मृति में रखो। सुनाया ना आज कि कभी-कभी का भी शब्द समाप्त करो। अगर कभी-कभी बहुत अच्छे और कभी-कभी हलचल, तो आपके यादगार का पूजन भी कभी-कभी होगा। कई मन्दिरों में हर समय पूजन होता है, हर दिन होता है और कहाँ-कहाँ जब कोई तिथि-तारीख आती है तब होता है। तो कभी-कभी हो गया ना। लेकिन किसका सदा होता है, किसका कभी-कभी, क्यों होता है? क्योंकि इस समय के पुरुषार्थ में जो कभी-कभी लाता है उसका पूजन भी कभी-कभी होता है।

 

  जितना यहाँ विधिपूर्वक अपना श्रेष्ठ जीवन बनाते हैं उतना ही विधिपूर्वक पूजा होती है। तो मैं कौन? यह हरेक स्वयं से पूछे। अगर दूसरा कोई आपको कहेगा कि आपका पुरुषार्थ तेज नहीं लगता तो मानेंगे? या उसको इस बात से हटाने की कोशिश करेंगे। लेकिन अपने आपको तो जो हो जैसे हो वैसे जान सकते हो। इसलिए सदा अपने विधिपूर्वक पुरुषार्थ में लगे रहो। ऐसा नहीं कहो - पुरुषार्थ तो है ही। पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष स्वरूप अनुभव हो, दिखाई दे। ऐसे महान हो! भारत की महिमा को सुनते क्या सोचते हो? यह किसकी महिमा हो रही है? ऐसे महान अनेक बार बने हो तब तो गायन होता है। अब उसको रिपीट कर रहे हैं। बने थे और बनना ही है। सिर्फ रिपीट करना है। तो सहज है ना। चाहे सम्पर्क में आते हो, चाहे स्व के प्रति कर्म करते हो, दोनों में सहज हो। भारीपन न हो। जो मुश्किल काम होता है वह भारी होता है। भारी के कारण ही मुश्किल होता है और जहाँ सहज होगा वहाँ हल्कापन होगा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सदा ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ आसन कमल पुष्प सामान स्थिति में स्थित रहते हो? ब्राह्मणों का आसन सदा साथ रहता है तो आप सब ब्राहमण भी सदा आसन पर विराजमान रहते हो? कमल पुष्प समान स्थिति अर्थात सदा हर कर्मेंद्रियों द्वारा कर्म करते हुए  इंद्रियों के आकर्षण से न्यारे और प्यारे।

 

✧  सिर्फ स्मृति में न्यारा और प्यारा नहीं, लेकिन ,हर सेकेण्ड का सर्व कर्म न्यारे और प्यारे स्थिति में हो। इसी का यादगार आप सबके गायन में अब तक भी भक्त हर कर्म में इन्द्रिय के प्रति महिमा में नयन कमल, मुख कमल, हस्त कमल कह कर गायन करते हैं।

 

✧  तो यह किस समय की स्थिति का आसन है? इस ब्राह्मण जीवन का। अपने आपसे पूछो, हर कर्म इन्द्रिय कमल हासन बनी हैनयन कमल बने हैं? हस्त कमल बनी है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सभी अपने को देह से न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो ? जितना देह से न्यारे बनते जायेंगे उतना ही बाप के प्यारे बनेंगे। बाप प्यारा तब लगता है जब देह से न्यारे देही रूप में स्थित होते। तो सदा इसी अभ्यास में रहते हो? जैसे पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं ना, तो गुफायें कोई और नहीं हैं, लेकिन पाण्डव इन्हीं गुफाओं में रहते हैं। इसी को ही कहा जाता है अन्तर्मुखता। जैसे गुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे रहते हैं ऐसे अन्तुर्मुखी अर्थात् सदा देह से न्यारे और बाप के प्यारे रहने के अभ्यास की गुफा में रहने वाले दुनिया के वातावरण से परे होते, वह वातावरण के प्रभाव में नहीं आ सकते। तो सदा न्यारे रहो यही अभ्यास चलता रहे इसके सिवाए नीचे नहीं आओ।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप की याद में रहना और दूसरों को याद दिलाना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा पहाड़ी पर बैठकर मधुबन की हसीन वादियों को निहारते हुए आनंद ले रही हूँ... प्यारे बाबा भी मेरे सामने आकर बैठ जाते हैं... मैं आत्मा इन हसीन वादियों को छोड़ प्यारे बापदादा का हसीन चेहरा मंत्रमुग्ध होकर देखने लगती हूँ... बाबा के रूहानी नैनों से, मस्तक से ज्ञान, गुण, शक्तियों की किरणें निकलकर मुझ पर पड़ रही हैं... मैं आत्मा बाबा की याद में खोते हुए त्रिकालदर्शी, नालेजफुल बनकर बाबा के ज्ञान को धारण कर रही हूँ...

❉ प्यारे जादूगर बाबा ईश्वरीय ज्ञान का जादू चलाते हुए कहते हैं:- "मेरे लाडले बच्चे... बाप समान होकर वो जादूगर बनते हो की मात्र योग बल से दुखो को अथाह सुखो में बदल देते हो... हर संकल्प साँस को यादो में और रूहानी सेवा में लगा कर विश्व को खुशियो की जन्नत बना देते हो..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के ज्ञानामृत का अमृत पान करते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा मै आत्मा रूहानी सेवाधारी बन गई हूँ... आपकी मीठी यादो में डूबकर गुणवान शक्तिवान हो गई हूँ.... और दुखो भरी दुनिया को सुखो में बदल पाने में सक्षम हो गई हूँ..."

❉ प्यारे बाबा नवीन उत्साह और उमंग की लहरों को फैलाते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... यादो की बरसात में भीगकर सुनहरे देवताई स्वरूप में सज जाते हो... अनन्त खुशियां सुख बाँहो में भर पाते हो... पूरी दुनिया की कायापलट कर सुखो की सुगन्ध से महकाते हो... और सेवा में जुटकर सबके तन मन हर्षित कर आते हो..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा श्वांसो श्वांस बाबा की यादों में डुबोते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा समय रहते अपनी सांसो को पिता की यादो में भर पायी... यह कितनी बड़ी जागीर है जो मेरे पुण्यो से मिली है... और यही जागीर पूरे विश्व की झोली में डालने को आतुर हूँ..."

❉ मेरे बाबा अपने संग के रंग में मुझे रंगते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने जैसा सुंदर जीवन विश्व के सारे बच्चों का भी बनाओ... उनके घर आँगन भी खुशियो संग खिलाओ... सबके तपते हुए मनो को राहत दे आओ.... इस दुःख भरी दुनिया को सुखो का हँसता मुस्कराता स्वर्ग बनाओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा चारों ओर खुशहाली फैलाते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबके चेहरों को सुंदर मुस्कान से खिला कर खुशनुमा बना रही हूँ... सच्चे सुखो का रास्ता हर दिल को बता रही हूँ... पूरा विश्व महक रहा है ऐसी रूहानी सेवा की लहर फैला रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- सेन्सीबुल बन 5 विकारों रूपी भूतों पर विजय प्राप्त करनी है

➳ _ ➳ अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, अपने मन रूपी दर्पण में मैं अपने आपको निहार रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी पवित्र और सतोप्रधान थी और आदि स्वरूप में भी 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण गुणवान थी किन्तु देह भान में आकर मैं आत्मा पतित और कला विहीन हो गई इसलिए कोई भी गुण मुझ आत्मा में नही रहा। यह सोचते - सोचते कुछ क्षणों के लिए अपने अनादि और आदि स्वरूप की अति सुखदाई मधुर स्मृतियों में मैं खो जाती हूँ और मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने अनादि स्वरूप का आनन्द लेने के लिए अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में।

➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं अपने उस सम्पूर्ण सत्य स्वरूप को जो मैं आत्मा वास्तव में थी। सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने इस अति चमकदार, सच्चे सोने के समान दिव्य आभा से दमकते निराकार बिंदु स्वरूप को देख मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। लाल प्रकाश की एक अति खूबसूरत दुनिया मे, चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियों के बीच, अपना दिव्य प्रकाश फैलाते हुए एक अति तेजोमय चमकते हुए सितारे के रूप मे मैं स्वयं को देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप की स्मृति में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों का भरपूर आनन्द लेने के बाद अब मैं अपने आदि स्वरूप का आनन्द लेने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपनी सम्पूर्ण निर्विकारी सतयुगी दुनिया में पहुँच जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं स्वयं को एक अति सुंदर मनभावनी स्वर्णिम दुनिया मे देख रही हूँ। सोने के समान चमकती हुई कंचन काया, नयनों में समाई पवित्रता की एक दिव्य अलौकिक चमक और मस्तक पर एक अद्भुत रूहानी तेज से सजे अपने इस स्वरूप को देख मैं गदगद हो रही हूँ। पवित्रता और सम्पन्नता का डबल ताज मेरी सुन्दरता में चार चांद लगा रहा है। 16 कलाओं से सजे अपने इस सम्पूर्ण पवित्र, सर्व गुणों से सम्पन्न स्वरूप को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं अपने इस आदि स्वरूप का भरपूर आनन्द लेने के बाद फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप की स्मृति में स्थित हो जाती हूँ और मन ही मन विचार करती हूँ कि अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त करने का ही अब मुझे तीव्र पुरुषार्थ करना है।

➳ _ ➳ इसी संकल्प के साथ अब मैं अपने मन रूपी दर्पण में अपने आपको देखने का प्रयास करती हूँ और बड़ी महीनता के साथ अपनी चेकिंग करती हूँ कि कौन - कौन से भूतों की समावेशता अभी भी मेरे अन्दर है! कहीं ऐसा तो नही कि मोटे तौर पर स्थूल विकारो रूपी भूतों पर तो मैंने जीत पा ली हो किन्तु सूक्ष्म में अभी भी देह भान में आने से कुछ सूक्ष्म भूत मेरे अंदर प्रवेश कर जाते हो! यह चेकिंग करने के लिए अब मैं स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो जाती हूँ और आत्मा राजा बन अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाती हूँ कि कौन - कौन सी कर्मेन्द्रिय मुझे धोखा देती है और भूतों को प्रवेश होने में सहायक बनती है।

➳ _ ➳ अपनी एक - एक कर्मेन्द्रिय की महीन चेकिंग करते हुए और स्वयं को मन रूपी दर्पण में देखते हुए, अपने अंदर विद्यमान भूतों को दृढ़ता से बाहर निकालने का दृढ़ संकल्प लेकर, स्वयं को गुणवान बनाने के लिए अब मैं अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर गुणों के सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम की ओर रवाना हो जाती हूँ। सैकेंड में साकारी और आकारी दुनिया को पार कर आत्माओ की निराकारी दुनिया में पहुँच कर, गुणों की खान अपने गुणदाता बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। अपनी सारी विशेषताएं, सारे गुण बाबा अपनी शक्तियों की किरणों के रूप में मुझ आत्मा पर लुटाकर मुझे आप समान बना देते हैं।

➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा से सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ लेकर मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में। फिर से ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने पुरुषार्थ पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ। अपने प्यारे पिता की याद से विकर्मो को भस्म कर पावन बनने के साथ - साथ अपने अनादि और आदि गुणों को जीवन मे धारण कर, गुणवान बनने के लिए, अपने मन दर्पण में अपने आपको को देखते हुए अब मैं बार बार अपनी चेकिंग कर, भूतों को निकाल कर दिव्य गुणों को धारण करती जा रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं कर्मयोगी बन हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ बनाने वाली निरन्तर योगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं स्वयं प्रिय, लोकप्रिय और प्रभु प्रिय आत्मा बनने वाली वरदानी मूर्त हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ नष्टोमोहा की निशानी - दोनों सम्बन्धों में न किसी में घृणा होगी, न किसी में लगाव वा झुकाव होगा। अगर किसी से घृणा है तो उस आत्मा के अवगुण वा आपके दिलपसन्द न करने वाले कर्म बारबार आपकी बुद्धि को विचलित करेंगे, न चाहते भी संकल्प में, बोल में,स्वप्न में भी उसी का उल्टा चिन्तन स्वत: ही चलेगा। याद बाप को करेंगे और सामने आयेगी वह आत्मा। जैसे दिल के झुकाव में लगाव वाली आत्मा न चाहते भी अपने तरफ आकर्षित कर ही लेती है। वह गुण और स्नेह के रूप में बुद्धि को आकर्षित करती है और घृणा वाली आत्मा स्वार्थ की पूर्ति न होने के कारण, स्वार्थ बुद्धि को विचलित करता है। जब तक स्वार्थ पूरा नहीं होता तब तक उस आत्मा के साथ विरोधी संकल्प वा कर्म का हिसाब समाप्त नहीं होता।

➳ _ ➳ घृणा का बीज है स्वार्थ का रॉयल स्वरूप -‘‘चाहिए''। इसको यह करना चाहिए, यह न करना चाहिए,यह होना चाहिए। तो ‘चाहिए' की चाह उस आत्मा से व्यर्थ सम्बन्ध जोड़ देती है। घृणा वाली आत्मा के प्रति सदा व्यर्थ चिन्तन होने के कारण परदर्शन चक्रधारी बन जाते। लेकिन यह व्यर्थ सम्बन्ध भी ‘नष्टोमोहा' होने नहीं देंगे। मुहब्बत से मोह नहीं होगा लेकिन मजबूरी से। फिर क्या कहते हैं - मैं तो तंग हो गई हूँ। तो जो तंग करता है उसमें बुद्धि तो जायेगी ना। समय भी जायेगा, बुद्धि भी जायेगी और शक्तियाँ भी जायेंगी। तो एक है यह सम्बन्ध।

✺ "ड्रिल :- किसी से घृणा नहीं रखना”

➳ _ ➳ मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठकर बाबा को याद करती हूं... मैं आत्मा रूपी हीरा इन इन्द्रियों रूपी कमरों से बने इस शरीर रूपी मकान में, भृकुटी रूपी अलमारी के सुन्दर डिब्बे में चमक रही हूँ... मैं आत्मा अपने स्व स्वरुप का दर्शन करती हुई स्व चिंतन करती हूं कि मैं आत्मा कई जन्मों से परचिन्तन, परदर्शन करते-करते परतंत्र हो गई थी... व्यर्थ चिन्तन करते-करते परदर्शन चक्रधारी बन गई थी...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा से कनेक्शन जोड़ने की कोशिश करती हूँ... जैसे ही योग लगाती हूँ... वो आत्मायें मेरे सामने आने लगती हैं जिनसे मैं घृणा करती हूँ... जिनसे घृणा है उस आत्मा के अवगुण, मेरे दिलपसन्द न करने वाले कर्म बार-बार मेरी बुद्धि को विचलित करते हैं... मैं आत्मा घृणा के बीज को स्वार्थ का पानी देकर बढाती चली गई... स्व-परिवर्तन के बजाये दूसरों को परिवर्तित करने की चाह रख उस आत्मा से व्यर्थ सम्बन्ध जोड़कर अपना अमूल्य समय, बुद्धि और शक्तियों को गवां बैठी...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा का आह्वान करती हूँ... तुरंत प्यारे बाबा मेरे सामने आ जाते हैं... मुस्कुराते हुए बाबा मुझे दृष्टि देते हैं... बाबा से निकलती दिव्य शक्तिशाली किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ... बाबा की मीठी दृष्टि से मुझ आत्मा के अन्दर मिठास भर रहा है... घृणा का बीज खत्म हो रहा है... मैं आत्मा बाबा की शक्तियों से भरपूर हो रही हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मेरे सामने उन आत्माओं को इमर्ज करते हैं जिनसे मैं आत्मा घृणा करती थी... मैं आत्मा बाबा के सामने अपने किए कर्मों के लिए उन आत्माओं से क्षमा मांगती हूँ... उनके किए कर्मों को अंतर्मन की गहराईयों से क्षमा करती हूँ... बाबा से मीठी किरणों को लेकर उन आत्माओं को भेजती हूँ... वो आत्मायें भी धीरे-धीरे शांत और मीठे होते जा रहे हैं... अब उन आत्माओं के साथ विरोधी संकल्प वा कर्म का हिसाब समाप्त हो गया है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बिल्कुल हल्का और स्वतंत्र अनुभव कर रही हूँ... अब मुझ आत्मा के संकल्प में, बोल में, स्वप्न में भी किसी के प्रति घृणा का भाव नहीं है... अब मैं आत्मा सबके प्रति शुभ भावना रखती हूँ... सर्व के लिए मंगल कामना करती हूँ... किसी के पार्ट के प्रति व्यर्थ चिन्तन नहीं करती हूँ... अब मैं आत्मा ज्ञान की समझ और ड्रामा की समझ से दूसरों के व्यवहार को क्यों, क्या, कैसे के क्वेश्चन्स से जज नहीं करती हूँ... परचिंतन, परदर्शन छोड़ मैं आत्मा स्वचिंतन, स्वदर्शन कर नष्टोमोहा बन गई हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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