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 26 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ समय को अपना शिक्षक न बना बाप को अपना शिक्षक बनाया ?

 

➢➢ हर कदम में पद्मों की कमाई जमा की ?

 

➢➢ बहादुर बनकर रहे ?

 

➢➢ सदा हिम्मत और उल्लास के पंखों से उड़ते रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  वर्तमान समय के प्रमाण अभी अपनी सेवा वा सेवा-स्थानों की दिनचर्या बेहद के वैराग्य वृत्ति की बनाओ। अभी आराम की दिनचर्या मिक्स हो गई है। अलबेलापन शरीर की छोटी-छोटी बीमारियों के भी बहाने बनाता है। अगर किसी पदार्थ की, साधनों की आकर्षण हैं तो साधना खण्डित हो जाती है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं निश्चयबुद्धि विजयी आत्मा हूँ"

 

  निश्चय बुद्धि विजयी आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? सदा निश्चय अटल रहता है? वा कभी डगमग भी होते हो? निश्चयबुद्धि की निशानी है - वो हर कार्य में, चाहे व्यावहारिक हो, चाहे परमार्थी हो, लेकिन हर कार्य में विजय का अनुभव करेगा। कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन विजय का अधिकार उसको अवश्य प्राप्त होगा, क्योंकि ब्राह्मण जीवन का विशेष जन्म सिद्ध अधिकार विजय है।

 

  कोई भी कार्य में स्वयं से दिल शिकस्त नहीं होगा, क्योंकि उसे निश्चय है कि विजय जन्म सिद्ध अधिकार है। तो इतना अधिकार का नशा रहता है। जिसका भगवान मददगार है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! कल्प पहले का यादगार भी दिखाते हैं कि जहाँ भगवान है वहाँ विजय है। चाहे पांच पाण्डव दिखाते हैं, लेकिन विजय क्यों हुई? भगवान साथ है, तो जब कल्प पहले यादगार में विजयी बने हो तो अभी भी विजयी होंगे ना?

 

  कभी भी कोई कार्य में संकल्प नहीं उना चाहिए कि ये होगा, नहीं होगा, विजय होगी या नहीं, होगी.. - यह क्वेश्चन उठ नहीं सकता। कभी भी बाप के साथ वाले की हार हो नहीं सकती। यह कल्प-कल्प की नूंध निश्चित है। इस भावी को कोई टाल नहीं सकता। इतना दृढ़ निश्चय सदा आगे उड़ाता रहेगा। तो सदा विजय की खुशी में नाचते गाते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अभी तो फिर भी रात और दिन में आराम करने का टाइम मिलता है, लेकिन फिर तो यह रेस्ट लेना, यह भी समाप्त है जायेगा। लेकिन जितना अव्यक्त लाइट रूप में स्थित होंगे, उतना ही शरीर से परे का अभ्यास होने के कारण यदि दो - चार मिनिट अशरीरी बन जावेंगे, जैसे कि नींद से शरीर को खुराक मिल जाती है, वैसे ही यह भी खुराक मिल जायेगी।

 

✧  शरीर तो पुराने ही रहेंगे। हिसाब - किताब पुराना तो होगा ही। सिर्फ उसमें यह एडीशन होगी। लाइट स्वरूप के स्मृति को मजबूत करने के हिसाब - किताब चुक्त करने में भी लाइट रूप हो जावेंगे।

 

✧  जैसे इन्जेक्शन लगाने से पाँच मिनिट में ही फर्क पड जाता है, वैसे ही नींद की गोली लेने से भी परेशानी समाप्त हो जाती है। आप भी ऐसे ही समझो कि यह हम नींद की खुराक लेते हैं। ऐसी स्टेज लाने के लिये ही यह अभ्यास है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ क्या अपने को एक सेकण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो? जैसे वाणी में सहज ही आ जाते हो, क्या वैसे ही वाणी से परे, इतना ही सहज हो सकते हो? कैसी भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तूफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं है, लेकिन अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञान-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप, याद-स्वरूप और सर्वगुण-स्वरूप कहा जाता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- पुण्य आत्मा बनने के लिए परम शिक्षक की धारणाओं को धारण करना"

 

_ ➳  मैं आत्मा एकांत में बैठकर आसमान में उगते सूर्य को देख रही हूँ... अँधेरी रात खत्म होकर चारों ओर रोशनी हो गई है... खिलखिलाते हुए फूल, चहचहाते हुए पंछी अपने घोंसलों से निकल मुस्कुरा रहें हैं... ऐसे ही ज्ञान सूर्य बाबा ने मेरे जीवन को रोशन कर दिया है... अज्ञान अंधियारे को हरती हुई ये ज्ञान सूर्य की निर्मल किरणों ने मेरे जीवन में उजियारा कर दिया... और सदा के लिए मुस्कुराहट बिखेर दिया... मैं आत्मा उड़ चलती हूँ हिस्ट्री हाल में परम शिक्षक के पास... रूहानी पढाई पढ़ने... उनकी शिक्षाओं को धारण करने...

 

  अपनी मीठी शिक्षाओं से मेरी जिन्दगी को हसीन बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई ही विश्वधरा पर सुनहरे सुखो को दिलायेगीं... इसलिए इस असाधरण ज्ञान को दिल की गहराइयो में समा लो... जितना ज्ञान पर मन्थन करेंगे उतनी ही धारणा होगी और जीवन ज्ञान युक्त खूबसूरती से झलकेगा...

 

_ ➳  ज्ञान के सागर में डूबकर ज्ञान के हीरे-मोतियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय खजानो को पाने वाली अति धनवान् मालामाल हूँ... ज्ञान रत्नों को जीवन में सजाने वाली महान भाग्य की धनी हूँ... एकांत में बैठकर रत्नों को बुद्धि की तिजोरी में भर रही हूँ...

 

  मीठे बाबा परम शिक्षक बनकर श्रेष्ठ कर्म सिखलाकर मुझे पुण्य आत्मा बनाते हुए कहते हैं:- मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो कि स्वयं भगवान शिक्षक बनकर रत्नों को लुटा रहा... तो इन रत्नों की खानो को अपने नाम कर लो... जितना रत्नों के साथ खेलेंगे उतना ही मीठा इस विश्व धरा पर मुस्करायेंगे... ईश्वरीय पढ़ाई में जीजान से मेहनत कर ईश्वर पिता के दिल में बस जाओ...

 

_ ➳  मैं आत्मा ज्ञान रत्नों को धारण कर ज़माने की सारी खुशियों को बटोरकर बाबा से कहती हूँ:- मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई पर मेहनत करके...  सवेरे सवेरे उठकर मन्थन से तीव्र पुरुषार्थी बनकर...  बापदादा के आँखों का तारे सा मुस्करा रही हूँ... एकांत में ईश्वरीय पढ़ाई का गहन अध्ययन कर, ज्ञान रत्नों की चमक भरा ईश्वरीय जीवन जीती जा रही हूँ...

 

  अविनाशी बाबा अविनाशी खजानों को मुझ आत्मा पर लुटाते हुए कहते हैं:- प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान ही जीवन को जादू जैसा सुखमय और खुबसूरत बनाने वाला है... इस पढ़ाई को रोम रोम में उतार लो... और एकांत में जितना घोटेंगे उतनी ईश्वरीय खूबसूरती जीवन से स्वतः झलकेगी... इसलिए सवेरे सवेरे ज्ञान रत्नों का मनन करो...

 

_ ➳  अविनाशी कमाई पाकर आत्मिक ख़ुशी और नशे में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा स्वयं ईश्वर पिता के हाथो ज्ञान रत्नों से सजने वाली सौभाग्यवान आत्मा हूँ... स्वयं भगवान पढ़ा रहा और सतयुगी सुखो का हकदार बना रहा... ज्ञान रत्नों से मेरी जनमो की निर्धनता को खत्म कर विश्व अधिकारी सा सजा रहा है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  समय को अपना शिक्षक न बना बाप को अपना शिक्षक बनाना"

 

_ ➳  "समय आपका शिक्षक बने, इससे पहले आप स्वयं ही स्वयं के शिक्षक बन जाओ" इन ईश्वरीय महावाक्यों पर विचार सागर मंथन करते करते एक पार्क में मैं टहल रही हूँ। टहलते - टहलते वही कोने में रखे एक बैंच पर मैं बैठ जाती हूँ और इधर उधर देखने लगती हूँ। तभी सामने सड़क पर लगे एक बोर्ड पर मेरी निगाह जाती है, जिस पर बड़े बड़े शब्दों में एक स्लोगन लिखा हुआ है "समय की पुकार को सुनो" इस स्लोगन को पढ़ते ही मन फिर से विंचारो में खो जाता है और ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे कानों में कोई इन्ही शब्दो को बार बार दोहरा रहा है। मैं इधर उधर देखती हूँ कि आखिर मेरे कानों में ये आवाज कहाँ से आ रही है।

 

_ ➳  फिर महसूस होता है कि ये आवाज तो ऊपर से आ रही है। मैं जैसे ही ऊपर की और देखती हूँ एक तेज प्रकाश मुझे अपने ऊपर अनुभव होता है। मैं देख रही हूं अपने सिर के ऊपर महाज्योति शिव बाबा को जिनसे निकल रही प्रकाश की किरणे मुझ पर पड़ रही हैं और मैं देह के भान से मुक्त स्वयं को एक दम हल्का अनुभव कर रही हूं। अपने शरीर को मैं देख रही हूं जो शिव बाबा की लाइट और माइट पा कर एकदम लाइट का बन गया है। अब शिवबाबा ब्रह्माबाबा के आकारी रथ में विराजमान हो कर धीरे धीरे नीचे आ रहें हैं। अपने बिल्कुल समीप बैंच पर बापदादा की उपस्थिति को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  बापदादा मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहें हैं। बाबा की सम्पूर्ण शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं गहराई से बाबा के नयनो में देख रही हूँ। शक्ति लेते लेते एक विचित्र दृश्य देख कर मैं हैरान रह जाती हूँ। एक पल के लिए मैं देखती हूँ दिल को दहलाने वाला दुनिया के विनाश का विनाशकारी दृश्य और दूसरे ही पल बाबा के नयनो में समाए अपने प्रति असीम स्नेह और बाबा की अपने प्रति वो आश जिसे बाबा जल्दी से जल्दी पूरा होते हुए देखना चाहते हैं। अब मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं कि बाबा ने एक पल के लिए मुझे दिव्य दृष्टि से विनाश का साक्षात्कार करा कर समय की समीपता की ओर ईशारा किया है।

 

_ ➳  इस रोमांचकारी दृश्य का अनुभव करवाकर बापदादा अदृश्य हो जाते हैं और मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ और फिर से उसी स्लोगन पर नजर डालते हुए विचार करती हूं कि संगमयुग का एक एक  सेकेण्ड मेरे लिए बहुमूल्य है। एक भी सेकेंड व्यर्थ गया तो बहुत बड़ा घाटा पड़ जायेगा। यह विचार करते करते मैं घर लौट आती हूँ और संगमयुग के अनमोल पलो को सफल करने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। अपने हर सेकेंड, संकल्प, बोल और कर्म की वैल्यू को स्मृति में रख अब मैं उन्हें ईश्वरीय याद और सेवा में सफल कर रही हूँ ।

 

_ ➳  हर श्वांस में अपने प्यारे मीठे बाबा की यादों को समाये अपनी बुद्धि को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके अब मैं इन ज्ञान रत्नों को उन आत्माओं को दान कर रही हूं जो इस दान की पात्र आत्मायें हैं। अपने वरदानी स्वरूप में स्थित हो कर, वरदानी बोल द्वारा उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बता रही हूं। परखने की शक्ति का उचित प्रयोग करके, अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को परख कर, पात्र देख कर ज्ञान दान देते हुए उन आत्माओं का कल्याण करने के साथ साथ स्व - पुरुषार्थ करते हुए हर बात में मैं अपने समय को सफल कर रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं क्रोधी आत्मा को रहम के शीतल जल द्वारा गुण दान देने वाली वरदानी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं याद द्वारा सर्व शक्तियों का खजाना अनुभव करने वाली शक्ति संपन्न आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ सेवाधारी भी सब हो, धारणा मूर्त भी सब हो, परन्तु धारणा स्वरूप में नम्बरवार हो। कोई सर्वगुण सम्पन्न बने हैं, कोई गुण सम्पन्न बने हैं। कोई सदा धारणा स्वरूप हैं, कोई कभी धारणा स्वरूप, कभी डगमग स्वरूप। एक गुण को धारण करेंगे तो दूसरा समय पर कर्त्तव्य में ला नहीं सकेंगे। जैसे एक ही समय पर सहनशक्ति भी चाहिए और साथ-साथ समाने की शक्ति भी चाहिए। अगर एक शक्ति वा एक सहनशीलता के गुण को धारण कर लेंगे और समाने की शक्ति वा गुण को साथ-साथ यूज़ नहीं कर सकेंगे और कहेंगे कि इतना सहन तो किया ना? यह कोई कम किया क्या! यह भी मुझे मालूम है, मैंने कितना सहन किया,लेकिन सहन करने के बाद अगर समाया नहीं, समाने की शक्ति को यूज़ नहीं किया तो क्या होगा? यहाँ-वहाँ वर्णन होगा इसने यह किया, मैंने यह किया, तो सहन किया, यह कमाल जरूर की लेकिन कमाल का वर्णन कर कमाल को धमाल में चेन्ज कर लिया। क्योंकि वर्णन करने से एक तो देह अभिमान और दूसरा परचिन्तन दोनों ही स्वरूप कर्म में आ जाते हैं।

✺ "ड्रिल :- सहनशक्ति और समाने की शक्ति दोनों का समान रूप से अनुभव करना"

➳ _ ➳ चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है... सभी पेड़-पौधे फूल-पत्तियों से सजकर खुश हो रहे है... ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मानों इस जगह को घेरे हुए हैं... इस स्थान की ताजगी मेरे मन को मोह रही है... इस खुशनुमा वातावरण को मैं देखकर अति हर्षित हो रही हूँ... तभी मेरी नज़र एक वृक्ष पर पड़ती है, जो फलों से लदा हुआ है... उसे देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है... मानों ये मुझे अपने पास बुला रहा हो... मैं बिना कुछ देर किये उसके पास चली जाती हूँ... और महसूस करती हूँ की ये पेड़ मुझे कुछ कहने की कोशिश कर रहा है...

➳ _ ➳ कुछ समय रुकने के बाद मैं अपनी मन बुद्धि को एकाग्र कर, उस पेड़ की आवाज़ सुनने की कोशिश करती हूँ... मैं आत्मा महसूस करती हूँ... कि ये पेड़ मुझसे कह रहा है... अगर इस संसार का हर व्यक्ति अपने अंदर मेरे समान गुण धारण करें तो, सब सुखी होंगे... जैसे मैं सभी मनुष्यों को फल, छाँव, फूल, आदि सब देता हूँ... फिर भी इस सृष्टि के लोग अपने स्वार्थ के लिए मुझे कष्ट पहुंचाते हैं... फल प्राप्त करने के लिए मुझे पत्थर मारते हैं... मैं उस समय सहनशक्ति को प्रयोग में लाकर उन्हें उनके लिये फल देता हूँ... और साथ ही अपने कर्तव्य का पालन भी करता हूँ...

➳ _ ➳ और सहन शक्ति के प्रयोग के साथ ही मैं समानें की शक्ति का भी प्रयोग करता हूँ... जब लोग मुझे अपने स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाते हैं तब भी मैं उनके इस कार्य को भूलकर सब कुछ अपने अंदर समा लेता हूँ... और उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखते हुए उन्हें सदा फल-फूल देता ही रहता हूँ... और ना कभी इन्हें अपने कष्टों के बारे में बताता हूँ... बस सहनशक्ति और समाने की शक्ति को प्रयोग करते हुए अपना कर्तव्य निभाता रहता हूँ... इतने में मेरा अंतर्मन अपने सामने बाबा को देखता है... और मैं स्थिर होकर बाबा की बातें सुनती हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मुझसे कहते हैं मेरे मीठे-मीठे बच्चे तुम भी इस वृक्ष की तरह अपने जीवन को गुणों से सुसज्जित कर अपना कर्तव्य निभाते चलो... सभी गुणों का समय पर प्रयोग कर सदा उड़ती कला का अनुभव करो... एक समय पर कई शक्तियों का यूज़ करके सदा ऊंचाइयों की तरफ बढ़ते रहो... और अपने द्वारा किये हुए कार्य का कभी वर्णन नहीं करना... क्योंकि अगर सेवा का वर्णन करेंगे तो तुम्हारे अंदर देहभान आएगा... और अगर देहभान आया तो तुम सेवा नहीं कर पाओगे... सेवा करके तुम हमेशा कमाल करते रहो... परन्तु सेवा का वर्णन करके धमाल नहीं करना... सेवा का कमाल करते हुए सदा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते रहो...

➳ _ ➳ बाबा के ये वचन सुनकर मैं बाबा से कहती हूँ... बाबा- अब सेवा करते समय हमेशा समाने की शक्ति और सहनशीलता के गुण का यूज़ करूँगी... और शक्तियों औऱ गुणों का एक साथ प्रयोग कर सच्ची सेवा करूँगी... बिना किसी देहभान में आकर... अगर किसी परिस्थिति के कारण मुझे सहन करना भी पड़ा तो उसे वर्णन में नहीं लाऊंगी... और कभी भी परचिन्तन को अपने जीवन में शामिल नहीं करुँगी... क्योंकि अगर परचिन्तन आयेगा तो किसी भी गुण और शक्तियों को मैं सही तरह यूज़ नहीं कर पाऊंगी... इसलिए सदा एकसाथ सहनशीलता का गुण और समानें की शक्ति को प्रयोग में लाकर ही सेवा करूँगी... और आगे बढ़ती जाउंगी...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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