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 08 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ आँखों को अपने अधिकार में रखा ?

 

➢➢ जितना हो सके, शांत रहे ?

 

➢➢ अविनाशी प्राप्ति कके आधार पर सदा सम्पन्नता का अनुभव किया ?

 

➢➢ परमात्म प्यार के अनुभवी बन हर रुकावट को पार किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  आप ब्राह्मण आदि रत्न विशेष तना हो। तना से सबको सकाश पहुँचती है। तो कमजोरों को बल दो। अपने पुरुषार्थ का समय दूसरों को सहयोग देने में लगाओ। दूसरों को सहयोग देना अर्थात् अपना जमा करना। अभी ऐसी लहर फैलाओ-देना है, देना है, देना ही देना है। देने में लेना समाया हुआ है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   " मैं होली हँस हूँ"

 

  सदा अपने को होली हंस समझते हो? होली हंस का कर्तव्य क्या है? व्यर्थ और समर्थ को परखना। वो तो कंकड़ और रत्न को अलग करता लेकिन आप होली हंस समर्थ को धारण करते हो, व्यर्थ को समाप्त करते हो। तो समर्थ और व्यर्थ, इसको परखना और परिवर्तन करना-यह है होली हंस का कर्तव्य।

 

  सारे दिन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क जो भी होता है, उस व्यर्थ को समाप्त करना-यह है होली हंस। कोई कितना भी व्यर्थ बोले लेकिन आप व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म स्वीकार किया तो एक व्यर्थ अनेक व्यर्थ को जन्म देगा। एक व्यर्थ बोल भी स्पर्श हो गया तो वह अनेक व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसको आप लोग कहते हो-फीलिंग आ गई।

 

  एक व्यर्थ संकल्प की फीलिंग आई तो वह फीलिंग को बढ़ायेगी। इसीलिए व्यर्थ की पैदाइस बहुत फास्ट होती है-चाहे कर्म हो, चाहे क्या भी हो। एक व्यर्थ बोल बोलेंगे तो उसे सिद्ध करने के लिए कितने व्यर्थ बोल बोलने पड़ेंगे! जैसे लोग कहते हैं ना-एक झूठ को सिद्ध करने के लिए कितने झूठ बोलने पड़ते हैं! तो व्यर्थ का खाता समाप्त हो जाये और सदा समर्थ का खाता जमा होता रहे। वो व्यर्थ आपको दे लेकिन आप परिवर्तन कर समर्थ धारण करो। इतनी तीव्र परिवर्तन-शक्ति चाहिए।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  संस्कार का स्वरूप क्या होगा?किसी के पास कर्मभोग के रूप में आयेंगे, किसी के पास कर्म सम्बन्ध के बन्धन के रूप में आयेंगे। किसी के पास व्यर्थ संकल्प के रूप में आयेंगे। किसी के पास विशेष अलबेलेपन और आलस्य के रूप में आयेंगे। ऐसे चारों ओर का हलचल का वातावरण होगा।

 

✧  राज्यसत्ता, धर्मसत्ता, विज्ञानसता और अनेक प्रकार के बाहुबल सब अपनी सताओं की हलचल में होंगे। ऐसे समय पर फुलस्टॉप लगाना आयेगा या क्वेचन मार्क सामने आयेगा? क्या होगा? इतनी समेटने की शक्ति अनुभव करते हो।

 

✧  देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। प्रकृति की हलचल देख प्रकृतिपति बन प्रकृति को शान्त करो। अपने फुलस्टॉप की स्टेज से प्रकृति की हलचल को स्टॉप करो। तमोगुणी से सतीगुणी स्टेज में परिवर्तन करो। ऐसा अभ्यास है? ऐसे समय का आह्वान कर रहे हो ना?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अवतार अर्थात् ऊपर से आने वाली आत्मा। मूलवतन की स्थिति में स्थित हो ऊपर से नीचे आओ। नीचे से ऊपर नहीं जाओ। है ही परमधाम निवासी आत्मा, सतोप्रधान आत्मा। अपने आदि-अनादि स्वरूप की स्मृति में रहो फिर क्या हो जायेगा? स्वंय भी निर्बन्धन और जिन्हों की सेवा के निमित्त बने हो वह भी निर्बन्धन हो जायेंगे। जैसे साकार बाप को देखा, क्या याद रहा? बाप के साथ मैं भी कर्मातीत स्थिति में हूँ या देवताई बचपन रूप में। अनादि आदि रूप सदा स्मृति में रहा तो फ़ालो फ़ादर।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- देही-अभिमानी बनना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...

❉ बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:- "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो..."

➳ _ ➳ बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ..."

❉ बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:- "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया..."

❉ बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:- "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:- "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया... मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप से आशीर्वाद वा कृपा नही मांगनी है"

➳ _ ➳ एक एकांत स्थान पर बैठ मैं विचार कर रही हूँ कि सत्यता का बोध ना होंने के कारण सभी मनुष्य मात्र दैहिक सुखों को पाने की लालसा में भगवान से कृपा ही मांगते रहते हैं। बेचारे इस बात से सर्वथा अनजान है कि जिन सुखों को पाने के लिय परमात्मा की कृपा मांग रहें है उनसे मिलने वाला सुख और शांति तो विनाशी है, क्षण भंगुर है। सच्चा सुख और शांति तो परमात्मा द्वारा बताए उस सत्य मार्ग में चल कर ही मिल सकती है जो वो स्वयं इस समय आ कर बता रहें हैं। टीचर बन ऐसी पढ़ाई पढा रहें हैं जिसे पढ़ना स्वयं पर आपे ही कृपा करना है। क्योंकि राजयोग की जो पढ़ाई इस समय भगवान आ कर पढा रहें हैं उसे अच्छी रीति पढ़ना और जीवन मे धारण करना भविष्य 21 जन्मो के लिए ऐसी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाला है जिसके बाद किसी कृपा या आशीर्वाद की दरकार ही नही रहेगी।

➳ _ ➳ बाबा यह पढ़ाई पढ़ाकर 21 जन्मो के लिए जीवन को सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर कर देते हैं। तो कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो उस भगवान से पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिल रहा है। दुनिया उस भगवान के दर्शनों की प्यासी है और वो भगवान टीचर बन हर रोज मेरे सन्मुख आकर ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भर देता है। ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटाकर मुझे हर रोज मालामाल कर देता है। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते है मन मे यह विचार आते ही एक अनोखी खुशी और नशे से मैं आत्मा भरपूर होने लगती हूँ और अपने टीचर बाप से मिलने की लगन मन मे लेकर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳ मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं वैसे ही मैं आत्मा अशरीरी स्थिति में स्थित होने लगती है और देह भान से मुक्त, अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने सत्य स्वरूप में टिकते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं आत्मा देही इस देह में होते हुए भी इस देह से अटैच नही हूँ। देख रही हूँ मैं स्वयं को एक चैतन्य दीपक के रूप में जो भृकुटि की कुटिया में जगमग करता हुआ बहुत ही सुन्दर और लुभावना दिखाई दे रहा है। अपने इस स्वरूप में मैं अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके आनन्दविभोर हो रही हूँ। मेरे अंदर निहित गुण और शक्तियाँ प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ से निकल कर मेरे चारों और फैल रही हैं। औंस की रिमझिम फ़ुहारों की तरह मुझ आत्मा से निकल रहे गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स मेरे चारों और वायुमण्डल में फैल कर मेरे ही ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता प्रदान कर रहें हैं।

➳ _ ➳ अपने गुणों और शक्तियों की रिमझिम फ़ुहारों का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा अब देह की कुटिया से बाहर आ गई हूँ और देख रही हूँ अपने जड़ शरीर को जो जमीन पर लेटा हुआ है। जिसमे अब किसी भी प्रकार की कोई हलचल नही है। अपने इस शरीर को साक्षी होकर देखते हुए, इसके आकर्षण से मुक्त होकर अब मैं इससे दूर ऊपर आकाश की ओर उड़ रही हूँ। सेकण्ड में 5 तत्वों की साकारी और फरिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया मूल वतन में ज्ञानसागर अपने प्यारे शिव पिता के पास। उनकी शक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे ज्ञान सागर शिव बाबा से आ रही ज्ञान की रिमझिम फुहारें अति तीव्र वेग के साथ मेरे उपर बरस रही हैं और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रही हैं।

➳ _ ➳ विकारो की कट जैसे - जैसे उतर रही है मेरा स्वरूप परिवर्तित हो रहा है। मेरी चमक बढ़ रही है और दूर - दूर तक फैल रही है। अपने इस तेजोमय स्वरूप को देख मैं आत्मा आनन्द विभोर हो रही हूँ। ज्ञान की शीतल फुहारें निरन्तर मेरे ऊपर बरस रही है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान सागर बाबा की शीतल किरणो का स्पर्श पाकर मैं आत्मा भी बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बन गई हूँ। ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर, अपने साकार तन में मैं आत्मा प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो चुकी हूँ और पढ़ाई पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। टीचर बन मेरे प्यारे पिता मुरली के माध्यम से जो पढ़ाई मुझे हर रोज पढ़ाने आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़कर, जीवन मे धारण करके, बाप से कृपा मांगने के बजाए मैं आप ही स्वयं पर कृपा करती जा रही हूँ और सबको यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं अविनाशी प्राप्ति के आधार पर सदा सम्पन्नता का अनुभव करने वाली प्रसन्नचित आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं परमात्म प्यार की अनुभवी बनकर कोई भी रूकावट के रोकने से ना रुकने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳   कुमारी वा सेवाधारी के बजाय अपने को शक्ति स्वरूप समझो:- सदा अपना शिव-शक्ति स्वरूप स्मृति में रहता हैशक्ति स्वरूप समझने से सेवा में भी सदा शक्तिशाली आत्माओं की वृद्धि होती रहेगी। जैसी धरनी होती है वैसा फल निकलता है। तो जितनी अपनी स्वयं की शक्तिशाली स्टेज बनातेवायुमण्डल को शक्ति स्वरूप बनाते उतना आत्मायें भी ऐसी आती हैं। नहीं तो कमजोर आत्मायें आयेंगी और उनके पीछे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। तो सदा अपना ‘शिव-शक्ति स्वरूप' ‘स्मृति भव'। कुमारी नहींसेवाधारी नहीं - ‘शिव शक्ति'। सेवाधारी तो बहुत हैंयह टाइटल तो आजकल बहुतों को मिल जाता है लेकिन आपकी विशेषता है - ‘शिव शक्ति कम्बाइन्ड'। इसी विशेषता को याद रखो। सेवा की वृद्धि में सहज और श्रेष्ठ अनुभव होता रहेगा। सेवा करने के लिफ्ट की गिफ्ट जो मिली है उसका रिटर्न देना है। रिटर्न क्या हैशक्तिशाली - सफलता मूर्त्त।

 

✺   "ड्रिल :- सदा अपना शिव शक्ति स्वरुप स्मृति में रहना"

 

_ ➳  मैं आत्मा अपना फ़रिश्ता स्वरुप में बापदादा के साथ पूरे ब्रह्माण्ड में घूम रही हूँ... घूमते घूमते हम एक प्रदेश में पहुँच जाते हैं जहाँ हरियाली ही हरियाली हैं... चारो और प्रकृति का असीम सौंदर्य हैं... धरती नीली रंग की चुंदरी ओढ़े मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू फैला रही हैं... खुशबूदार रंग बिरंगी फूलों की खुशबू का साम्राज्य छाया हुआ हैं... और मैं आत्मा यह असीम सुखद नजारा देख कर हर्षित हो रही हूँ... सभी आत्मायें अपने-अपने लौकिक पार्ट को सुखरूप होकर निभा रहे थे...

 

_ ➳  बापदादा मेरा हाथ पकड़कर ले चलते हैं एक ऐसी जगह पर जहाँ मेरा मन बहुत ही विचलित हो जाता हैं... बंजर जमीन... न मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू न खुश्बूदार हवा का झोंका हैं... मानों बच्चे से बिछुड़ी हुई माँ बैठी हैं अपने बच्चे के इंतजार में... जैसे बारिश की इंतजार में बैठी हैं बंजर जमीन... और यह नजारा देखकर मन ही मन बाबा को पूछ रही हूँ बाबा यह सब क्या हैं और क्यूँ ऐसा हो रहा हैं... क्या यह भूमि का दोष हैं कि आत्माओं की शक्तियां क्षीण होती जा रही हैं...

 

_ ➳  बापदादा मेरी मनोस्थिति को जान कर मुझ आत्मा को अपने पास बिठाकर मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहा है... एक खेत में बैठे सभी आत्मायें बापदादा का आह्वान कर रहे हैं... खेत में अच्छी फसल हो जाये... खेत धन धान्य से भरपूर हो जाये... जमीन अखूट खजानों का भंडार बन जाये... बंजर जमीन से हीरे मोती तुल्य अनाज की हरियाली छा जाये... और मैं आत्मा देख रही हूँ कि बापदादा स्वयं इस खेत में खड़े हैं और पूरी धरती को प्यार से दृष्टि दे रहे हैं... और बंजर खेत को अपने रूहानी हाथों से प्यार से नहला रहे हैं...

 

_ ➳  और देखते ही देखते बंजर खेत हीरे मोती तुल्य धन धान्य से भरपूर हो गया... हरियाली ही हरियाली छा गयीं ... बंजर खेत फलद्रुप हो गया और सभी आत्मायें बापदादा का शुक्रिया कर रही हैं... और उनको देख के दूसरे खेत में भी सभी आत्मायें बापदादा का आह्वान करने लग गये हैं... धीरे धीरे पूरे बंजर प्रदेश में बापदादा की शक्तियों रूपी बारिश की वर्षा से बंजर प्रदेश को फलद्रुप बनता देख... सभी खेत में बापदादा का झंडा लहराता देख मैं आत्मा ख़ुशी से झूम उठती हूँ... बापदादा के सुनहरे बोल "अपने चहरे और चलन से बापदादा को प्रत्यक्ष करो... शक्ति स्वरुप हो... शक्तियों की वर्षा करो..."

 

_ ➳  मैं आत्मा यह सुनहरे बोल को अपने दिल में सुवर्ण अक्षरों में अंकित करके... सर्व शक्तियों को अपने में धारण कर... शक्ति स्वरूपा बन हर सेवा को बापदादा की श्रीमत पर परिपूर्ण करती जा रही हूँ... जैसी धरनी वैसा फल यह स्लोगन को यथार्थ रीति जान अपने आप की सभी कमी कमजोरियों को... विकारों को योग अग्नि में स्वाहा करती जा रही हूँ... अपने शक्ति स्वरुप से शक्तियों की वर्षा बापदादा के संग करती जा रही हूँ... पूरे वायुमंडल को शक्तिस्वरूप बनाती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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