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 25 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ बुधी ओ याद की यात्रा से सोने का बर्तन बनाया ?

 

➢➢ निंदक को अपना मित्र समझ उसकी भी सद्गति की ?

 

➢➢ रॉयल और सिंपल दोनों के बैलेंस से कार्य किया ?

 

➢➢ "जो कर्म हम करेंगे.. हमें देखकर और करेंगे" - सदैव यह स्मृति में रहा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  ज्ञान मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का, ट्रैफिक कण्ट्रोल का टाइम मुकरर करो। विशेष एकान्तवासी और खजानों के एकानामी का प्रोग्राम बनाओ। एकनामी और एकानामी वाले बनो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ"

 

  अपने को सदा विघ्न-विनाशक आत्मा अनुभव करते हो? या विघ्न आये तो घबराने वाले हो? विघ्न-विनाशक आत्मा सदा ही सर्व शक्तियों से सम्पन्न होती है। विघ्नों के वश होने वाले नहीं, विघ्न-विनाशक। कभी विघ्नों का थोड़ा प्रभाव पड़ता है? कभी भी किसी भी प्रकार का विघ्न आता है तो स्मृति रखो कि-विघ्न का काम है आना और हमारा काम है विघ्नविनाशक बनना। जब नाम है विघ्न-विनाशक, तो जब विघ्न आयेगा तब तो विनाश करेंगे ना। तो ऐसे कभी नहीं सोचना कि हमारे पास यह विघ्न क्यों आता है?

 

  विघ्न आना ही है और हमें विजयी बनना है। तो विघ्न-विनाशक आत्मा कभी विघ्न से न घबराती है, न हार खाती है। ऐसी हिम्मत है? क्योंकि जितनी हिम्मत रखते हैं, एक गुणा बच्चों की हिम्मत और हजार गुणा बाप की मदद। तो जब इतनी बाप की मदद है तो विघ्न क्या मुश्किल होगा? इसलिए कितना भी बड़ा विघ्न हो लेकिन अनुभव क्या होता है? विघ्न नहीं है लेकिन खेल है। तो खेल में कभी घबराया जाता है क्या? खेल करने में खुशी होती है ना! ऐसे खेल समझने से घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे।

 

  सदा ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न को 'नथिंग न्यु' समझेगा। नई बात नहीं, बहुत पुरानी है। कितने बार विजयी बने हो? (अनेक बार) याद है या ऐसे ही कहते हो? सुना है कि ड्रामा रिपीट होता है, इसीलिए कहते हो या समझते हो अनेक बार किया है? अगर ड्रामा की पॉइंट बुद्धि में क्लीयर है कि हू-ब-हू रिपीट होता है, तो उस निश्चय के प्रमाण हू-ब-हू जब रिपीट होता है, तो अनेक बार रिपीट हुआ है और अब रिपीट कर रहे हैं। लेकिन निश्चय की बात है। अगले कल्प में और कोई विजयी बने और इस कल्प में आप विजयी बनो-यह हो नहीं सकता। क्योंकि जब बना-बनाया ड्रामा कहते हैं, तो बना हुआ है और बना रहे हैं अर्थात् रिपीट कर रहे हैं। ऐसा निश्चयबुद्धि अचल-अडोल रहता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सभी ब्रह्माकुमार और कुमारियों का विशेष कर्तव्य क्या है? ब्रह्मा बाप का विशेष कर्तव्य क्या है? ब्रह्मा का कर्तव्य ही है - नई दुनिया की स्थापना। तो ब्रह्माकुमार और कुमारियों का विशेष कर्तव्य क्या हुआ?

 

✧  स्थापना के कार्य में सहयोगी। तो जैसे अमेरिका में विनाशकारियों के विनाश की स्पीड बढ़ती जा रही है। ऐसे स्थापना के निमित बच्चों की स्पीड भी तीव्र है? वे तो बहुत फास्ट गति से विनाश के लिए तैयार है।

 

✧  ऐसे आप सभी भी स्थापना के कार्य में इतने एवररेडी तीव्र गति से जा रहे हो? उन्हों की स्पीड तेज है या आपकी तेज है? वो 15 सेकण्ड में विनाश के लिए तैयार है और आप - एक सेकण्ड मेंक्या गति है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ आप प्रभु प्रेमी बच्चों ने त्याग किया वा भाग्य लिया? क्या त्याग किया? अनेक चतिया लगा हुआ वस्त्र, जड़जड़ीभूत पुरानी अन्तिम जन्म की देह का त्याग, यह त्याग है? जिसे स्वयं भी चलाने में मजबूर हो, उसके बदले फ़रिश्ता स्वरूप लाइट का आकार जिसमें कोई व्याधि नहीं, कोई पुराने संस्कार स्वभाव का अंश नहीं, कोई देह का रिश्ता नहीं, कोई मन की चंचलता नहीं, कोई बुद्धि के भटकने की आदत नहीं - ऐसा फ़रिश्ता स्वरूप, प्रकाशमय काया प्राप्त होने के बाद पुराना छोड़ना, यह छोड़ना हुआ? लिया क्या और दिया क्या?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- "अपकारियों पर भी उपकार करना”

➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ बाबा के प्रेम तरगों में डूबी हुई हूँ... यह पावन भूमि बहुत ही मीठी भूमि है... जहाँ निराकार परमपिता परमात्मा ब्रह्मा तन में आकर नई दुनिया के लिए नया  ज्ञान देते हैं... पतितों को पावन बनाते हैं... यहाँ की हवाओं में फैली मीठी-मीठी पावन खुशबू मन को आह्लादित कर रही है... फिर मीठे बाबा मेरा हाथ पकड बगीचे में ले जाते हैं और मुझे अपने हाथों से मीठे-मीठे अंगूर तोड़कर खिलाते हुए मीठी समझानी देते हैं...

❉  मनसा-वाचा-कर्मणा कभी किसी को भी दुःख ना देने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे लाडले बच्चे... प्यार के सागर के दिल की मणि हो तो मीठे बन प्यार से मुस्कराओ... हर दिल को पिता जैसे प्यार से सहलाओ... सबके सहयोगी बन सदा का दिल जीतो... मीठे बोलो की टोली खाते रहो और खिलाते रहो... और मीठी वाणी से मीठे पिता का पता दे आओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में दीवानी होकर सर्व पर प्यार के फूल बरसाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी मीठी और प्यारी बन गई हूँ... हर दिल की राहत हो गई हूँ... सारा विश्व मेरा परिवार है... सब मेरे अपने ही आत्मा भाई है... इस सुंदर भाव में डूबकर सदा की मीठी हो गयी हूँ...”

❉  प्यार के सागर प्यारे बाबा प्यार की मिठास का एहसास कराते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारी दुनिया दुखो में डूबी हुई निढाल हो गई है... आप प्यार भरी मिठास से उनमे नव जीवन का संचार करो... प्यार के मरहम से उनके दुखो को दूर करो... मनसा-वाचा-कर्मणा सुख देकर उनके थके तनमन को आनन्द से भर दो... मा. प्यार सागर बन प्यार का दरिया बहाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रेम की बदली बन पूरे विश्व को प्रेम की वर्षा में भिगोते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में प्रेम से ओतप्रोत हो रही हूँ... सब पर प्यार लुटाती जा रही हूँ... सबपर सुखो की वर्षा कर दुखो से मुक्त कर रही हूँ.... मा. प्रेमसागर बन प्रेम के झरनो में सबको भिगो रही हूँ...”

❉  अपने प्रेम किरणों से विकारों को भस्म कर निर्विकारी बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप बड़े वाले देवता हो... आपको सबको प्यार देना है सबका ध्यान रखना है सबकी सम्भाल करनी है... ईश्वर के बच्चे हो सबको खुशियां देने के निमित्त हो... सारे विश्व को खुशियो से भर दो... हर आत्मा को प्रेम से सींच कर खुशहाली दो...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा डबल अहिंसक बन भाई-भाई की मीठी दृष्टि रख सब पर प्रेम लुटाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्रेम धारा बनकर सबकी मीठी पालना कर रही हूँ... मेरा पोर पोर प्यार में डूब रहा है और यह प्रेम तरंगे पूरे विश्व में फैला कर सुखो का कारवां ला रही हूँ.... चारो और सुख और प्रेम बिखरा है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- इस गुह्य ज्ञान को समझने के लिए बुद्धि को याद की यात्रा से सोने का बर्तन बनाना है

➳ _ ➳  ज्ञान के सागर अपने शिव पिता से मुरली के माध्यम से हर रोज मिलने वाले ज्ञान के पोष्टिक भोजन को खाकर अपनी बुद्धि को स्वच्छ और शक्तिशाली बनाती जा रही मैं ब्राह्मण आत्मा एकान्त में बैठ उस ज्ञान रूपी भोजन को पचाने के लिए ज्ञान की प्वाइंट्स को स्मृति में लाकर, विचार सागर मंथन कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वक्षेष्ठ भाग्य की भी सराहना कर रही हूँ। मन ही मन अपने भगय का मैं गुणगान कर रही हूँ कि कितनी विशेष, कितनी महान और कितनी सौभागशाली हूँ मैं आत्मा जो मेरी बुद्धि को शक्तिशाली बनाने के लिए स्वयं भगवान हर रोज मुझे ज्ञान का शक्तिशाली भोजन खिलाते हैं। सवेरे आंख खुलते ही ज्ञान रत्नों की थालियां लेकर बाबा मेरे पास पहुँच जाते है और ज्ञान का वो भोजन सारा दिन मेरी बुद्धि को शक्तिशाली रखता है और माया के हर वार से मुझे बचा कर रखता है।

➳ _ ➳  मन ही मन यह विचार करते हुए अपने भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ और महसूस करती हूँ जैसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता अपने आकारी रथ पर विराजमान होकर ज्ञान रत्नों के अखुट ख़ज़ाने लेकर मेरे सामने खड़े हैं और मुस्कराते हुए उन ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भरने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं। ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता को अपने सामने पाकर मन ही मन मैं आत्म विभोर हो रही हूँ। उनकी लाइट माइट को मैं अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। बापदादा से आ रही लाइट माइट मुझे भी लाइट और माइट बना रही है। स्वयं को मैं पूरी तरह रिलेक्स महसूस कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कोई सवेंदना मेरी देह में नही हो रही और मैं देह से बिल्कुल न्यारी हो चुकी हूँ। अपनी लाइट की सूक्ष्म देह को मैं अपनी स्थूल देह से पूरी तरह अलग महसूस कर रही हूँ।

➳ _ ➳  लाइट के बहुत ही सुंदर फ़रिशता स्वरूप में मैं अब स्वयं को देख रही हूँ जिसमे से रंग बिरंगी श्वेत रश्मियां निकल रही है जो चारों और फैल कर सारे वायुमंडल को शुद्ध, दिव्य और अलौकिक बना रही हैं। अपनी लाइट माइट चारो और बिखेरता हुआ, अपनी रंग बिरंगी किरणो से वायुमण्डल को शुद्ध और पवित्र बनाता हुआ मैं फ़रिशता अब धरनी के आकर्षण से मुक्त होकर, अपने प्यारे बापदादा का हाथ थामे उनके साथ उनके अव्यक्त वतन की ओर जा रहा हूँ। सारे विश्व का चक्कर लगाकर, आकाश को पार कर, उससे ऊपर अब मैं पहुँच गया बापदादा के साथ एक ऐसी दुनिया में जहां चारों और सफेद चांदनी सा प्रकाश फैला हुआ है।

➳ _ ➳  लाइट के सूक्ष्म शरीर को धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते इस लोक में मुझे दिखाई दे रहें हैं जिनसे निकल रही प्रकाश की रश्मियां पूरे वतन में फैल रही हैं। इस अति सुन्दर दिव्य अलौकिक दुनिया में मैं फ़रिशता अब बापदादा के सम्मुख बैठ , स्वयं को बापदादा से आ रही सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहा हूँ। बाबा की भृकुटि से निकल रहे ज्ञान के प्रकाश की तेज धारायें मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही हैं और ज्ञान की शक्ति से मुझे भरपूर कर रही हैं। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा अपनी हजारों भुजायें मेरे ऊपर फैला कर ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं और मैं फ़रिश्ता इन खजानो को अपने अंदर समाता जा रहा हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली खुराक खाकर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अपने लाइट माइट स्वरूप के साथ अब मैं वापिस लौट रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने लाइट की सूक्ष्म देह के साथ, अपनी स्थूल देह में प्रवेश कर अब मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और ज्ञान की शक्तिशाली खुराक हर रोज अपनी बुद्धि को खिलाकर उससे प्राप्त होने वाली परमात्म शक्ति को मैं अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ। बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द  का अनुभव करते, बुद्धि को रोज ज्ञान का शक्तिशाली भोजन देकर उसे शक्तिशाली बना उस शक्ति के प्रयोग से माया पर भी मैं सहज ही विजय प्राप्त करती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं रॉयल और सिम्पल दोनों के बैलेन्स से कार्य करने वाली ब्रह्मा बाप समान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं दूसरों को देखने के बजाय स्वयं को देखने वाली और यह याद रखने वाली- "जो कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे" ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति से व्यर्थ के किचड़े को समाप्त करो:- सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा समझते होसर्वशक्तिवान अर्थात् समर्थ। जो समर्थ होगा वह व्यर्थ के किचड़े को समाप्त कर देगा। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् व्यर्थ का नाम निशान नहीं। सदा यह लक्ष्य रखो कि - ‘मैं व्यर्थ को समाप्त करने वाला समर्थ हूँ'। जैसे सूर्य का काम है किचड़े को भस्म करना। अंधकार को मिटानारोशनी देना। तो इसी रीति मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् - व्यर्थ किचड़े को समाप्त करने वाले अर्थात् अंधकार को मिटाने वाले।

 

 _ ➳  मास्टर सर्वशक्तिवान व्यर्थ के प्रभाव में कभी नहीं आयेगा। अगर प्रभाव में आ जाते तो कमजोर हुए। बाप सर्वशक्तिवान और बच्चे कमजोर! यह सुनना भी अच्छा नहीं लगता। कुछ भी हो - लेकिन सदा स्मृति रहे -‘‘मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ''। ऐसा नहीं समझो कि मैं अकेला क्या कर सकता हूँ.. एक भी अनेकों को बदल सकता है। तो स्वयं भी शक्तिशाली बनो और औरों को भी बनाओ। जब एक छोटा-सा दीपक अंधकार को मिटा सकता है तो आप क्या नहीं कर सकते! तो सदा वातावरण को बदलने का लक्ष्य रखो। विश्व परिवर्तक बनने के पहले सेवाकेन्द्र के वातावरण को परिवर्तन कर पावरफुल वायुमण्डल बनाओ।

 

✺   "ड्रिल :- व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित करना।"

 

 _ ➳  अष्ट शक्तियों के घेरे में सुरक्षित मैं आत्मा हीरा, देह सहित बैठ गयी हूँ, बाप दादा के चित्र के सामने... बापदादा की आँखों से बहती स्नेह की अविरल धारा प्रकाश की असंख्य धाराओं के रूप में मुझ तक आ रही है... आकाश में बादलों के पीछे से झाँकता सूरज जैसे बादलों को अपने सुनहरे रंग में रंग देता है उसी प्रकार रूहानी रंग से रंगी मेरी ये देह भी अपनी स्थूलता भूल चुकी है... बस रूह ही बाकी है यहाँ और रूहानियत के पैमाने है... उतर रहा नूर परमधाम से उसका, निर्बाध से ये मयखाने है... मैं आत्मा हीरा अपने कवच में सुरक्षित तेज गति से उडती हुई पहुँच गयी हूँ परम धाम... गुणों, शक्तियों का शान्त-सा सागर, शिव बिन्दु अनगिनत आत्मा मणियों का गुलदस्ता सजाये, किरणों रूपी लहरों से मानों मेरा आह्वान कर रहा है... मैं आत्मा मणि समाँ जाती हूँ उन किरणों के आगोश में, और आहिस्ता आहिस्ता एकरूप होती जा रही हूँ उन लहरों के साथ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता रूप में, बादलों के विमान पर सवार होकर बापदादा के साथ विश्व सेवा पर... आहिस्ता आहिस्ता ये विमान उतर गया है सुन्दर शान्त झील के किनारे... झील में मोती चुगते हंसों की पंक्ति... विवेक बुद्धि से व्यर्थ रूपी कंकड़ अलग कर केवल मोती चुग रहें है... देखते ही देखते मैं आत्मा हंस रूप धारण कर हंसों की पंक्ति का हिस्सा बन गयी हूँ... बापदादा मुझे देखकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे हैं... और धीरे से मेरे पास आकर मुझे सर्वशक्तिमान की स्मृति दिला रहे है... मैं फरिश्ता उडकर पहुँच गया हूँ आकाश में और एक ही प्रयास में हाथ बढाकर सूर्य का गोला किसी बाॅल की तरह उछालता हुआ बापदादा  के सम्मुख उपस्थित हो गया हूँ... कानों में गूँज रहे है बापदादा के वही महावाक्य एक छोटा सा दीपक अंधकार को मिटा सकता है तो आप क्या नही कर सकते...

 

 _ ➳  और मैं अकेला ही निकल गया हूँ संसार के किचडे को भस्म करने, व्यर्थ को समर्थ में बदलने... झील के उस तरफ देख रहा हूँ... सूखे झाड झाडियाँ, व्यर्थ के कँटीले घास फूस और अज्ञानता की गहन गुफाएँ... बापदादा का इशारा पाते ही सूर्य रूपी गेंद मैंने उछाल दी है उस तरफ... एक तेज विस्फोट और तेज ज्वाला के साथ भस्म होता वो सूखा किचडा, प्रकाश में नहा उठी है वो गुफाएँ... वो हृदय रूपी गुफाएँ... और मैं बापदादा के कन्धे पर बैठकर खुशी से झूमता हुआ... स्वयं की समर्थता का भी जश्न मनाता हुआ, वापस लौट आया हूँ उसी अष्ट शक्तियों के घेरे में सर्वशक्तिमान की गहरी स्मृति के साथ... अष्ट शक्तियों रूपी सेविकाएँ पग-पग पर मेरे इशारों पर मौन नर्तन करती हुई... हर व्यर्थ को समर्थ करने के पुरूषार्थ में पहले से ज्यादा तल्लीनता के साथ जुटी हुई है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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