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❍ 30 / 01 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप समान टीचर बन सबको सही रास्ता बताया ?*
➢➢ *खुशियों के खजाने से संपन्न बन दुखी आत्माओं को ख़ुशी का दान किया ?*
➢➢ *अनुभवों के आधार पर सदा विजयी बनकर रहे ?*
➢➢ *हर एक की राय को रीगार्ड दिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन एक्सरसाइज है वैसे *आत्मिक एक्सरसाइज योग अभ्यास द्वारा अभी-अभी कर्मयोगी अर्थात साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाना, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना - अभी-अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी-अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् बहकुंठ वासी बन देवता रूप का अनुभव करना, ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज करो तो सदा हल्के हो जायेंगे। पुरूषार्थ की गति तीव्र हो जायेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप की समीपता द्वारा समान बनने वाली विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को समीप आत्मा अनुभव करते हो? *समीप आत्माओंकी निशानी है - समान। जो जिसके समीप होता है, उस पर उसके संग का रंग स्वत: ही चढ़ता है। तो बाप के समीप अर्थात् बाप के समान।|*
〰✧ *जो बाप के गुण, वह बच्चों के गुण, जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चों का। जैसे बाप सदा विश्व-कल्याणकारी है ऐसे बच्चे भी विश्व-कल्याणकारी। तो हर समय यह चेक करो कि जो भी कर्म करते हैं, जो भी बोल बोलते हैं वह बाप समान हैं।*
〰✧ *बाप से मिलाते चलो और कदम उठाते चलो तो समान बन जायेंगे। जैसे बाप सदा सम्पन्न हैं, सर्वशक्तिवान हैं वैसे ही बच्चे भी मास्टर बन जायेंगे। किसी भी गुण और शक्ति की कमी नहीं रहेगी। सम्पन्न हैं तो अचल रहेंगे। डगमग नहीं होगे।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बापदादा ने देखा। सुना नहीं देखा कि इस बारी डबल फारेनर्स ने साइलेन्स के बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव किये।* सभी का सुन तो नहीं सकते हैं, लेकिन सुन लिया है।
〰✧ *अच्छे उमंग-उत्साह से प्रोगाम किया, और आगे भी अपने अपने देश में जाके भी यह साइलेन्स का अनुभव बीच-बीच में करते रहना चाहे जितना समय निकाल सको क्योंकि साइलेन्स का प्रभाव सेवा पर भी पडता ही है तो अच्छे प्रोग्राम किये।*
〰✧ बापदादा खुश है। आगे भी बढ़ाते रहना। उडते रहना, उडाते रहना। अच्छा। *अभी एक सेकण्ड में मन और बुद्धि को एकाग्र कर सकते हो? स्टॉप, बस स्टॉप हो जाए। अभी एक सेकण्ड के लिए मन और बुद्धि को एकदम एकाग्र बिन्दु, बिन्दु में समा जाओ।* (बापदादा ने ड़िल कराई)
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बाप तो तुम बच्चों को बिन्दी रूप बनाने आये हैं। मैं आत्मा बिन्दु रूप हूँ। बिन्दी कितनी छोटी होती है और बाप भी कितना छोटा है। इतनी छोटी-सी बात भी तुम बच्चों की बुद्धि में नहीं आती है? *बच्चे! अगर बिन्दी को ही भूल जायेंगे, तो बोलो, किस आधार पर चलेंगे?* आत्मा के ही तो आधार से शरीर भी चलता है। मैं आत्मा हूँ। *यह नशा होना चहिये कि मैं बिन्दु, बिन्दु की ही संतान हूँ। संतान कहने से ही स्नेह में आ जाते हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- तुम राजऋषि हो, तुम्हें राजाई प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना है"*
➳ _ ➳ *मैं ज्योति बिंदु आत्मा स्वयं को शिव बाबा के सम्मुख अनुभव कर रही हूँ... बाबा मीठी मुस्कान से मेरी ओर देख रहे हैं और मुझे अपनी पावन दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की पावन दृष्टि मुझे देह भान से मुक्त कर रही है... नश्वर देह को त्याग मैं आत्मा उड़ चलती हूँ... अपने शिव पिता के पास...* अगले ही क्षण मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने प्यारे बाबा के पास और बाबा के पास जा कर बैठ जाती हूँ... बाबा ज्ञान के सुनहरे रंग से मुझ आत्मा को भरने लगते है...
❉ *ज्ञान की अति गहरी समझानी देते हुए बेहद के पिता शिव बाबा कहते है :-* "मीठे लकी सितारें बच्चे मेरे... *ज्ञान सागर पिता ने है तुम्हें गहरा राज समझाया... तुम्हारे 84 जन्मों के राज से है पर्दा उठाया... इस पुरानी दुनिया का है अब अन्त आया... राजाई पद दिलाने 16 कला समपन्न बनाने अब तुम्हें शिव पिता है इस धरा पर आया..."*
➳ _ ➳ *ज्ञान की हर बात को गहराई से समझते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे प्राणप्रिय बाबा मेरे... *मैं आत्मा अपने अनोखे अद्भुत से भाग्य पर बलिहार हूँ... कितना सुंदर ड्रामा का यह राज आपने है समझाया...* ज्ञान रत्नों से मेरे जीवन को है सजाया... 84 जन्मों के राज को जान है कितना ना मेरा मन हर्षायाँ..."
❉ *राजऋषि की स्थिति का वर्णन करते हुए बाबा कहते है :-* "मीठे मीठे बच्चे मेरे... बेहद का पिता दे रहा है बेहद की समझानी... *हदों के ताने-बाने को छोड़ अब बेहद के सन्यासी तुम बन जाओ... राज और ऋषि की स्थिति के बैलेंस द्वारा तुम अब भविष्य नई दुनिया में राजाई पद पाओ..."*
➳ _ ➳ *बेहद के पिता की समझानी को दिल में गहरे से समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे ओ लाडले राजदुलारे बाबा मेरे... इस बेहद की समझानी में है कितना गहरा ज्ञान समाया... *आपकी बेहद की समझानी को दिल में समा रही हूँ... इस प्रकार मैं आत्मा बेहद का सन्यास धारण कर राजऋषि बनती जा रही हूँ..."*
❉ *मुझ आत्मा को दिलतख्तनशीन बना कर बाबा कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... इस कलियुगी दुनिया का अब है अन्त आया... ज्ञान सागर पिता है... नई दुनिया की सौगात तुम्हारे लिए लाया... *बन कर राजऋषि अब तुम अपने भविष्य को उज्जवल बनाओं... राजऋषि की इस स्थिति का अभी ही इस संगम पर आंनद उठाओ... खुबसुरत भाग्य को अपनी तकदीर में सजा दो..."*
➳ _ ➳ *राजऋषि की स्थिति में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मीठे सिकीलधे लाडले बाबा मेरे... चल कर आपकी श्रीमत पर अपना भविष्य उज्जवल बना रही हूँ... राज और ऋषि की स्थिति के बैलेंस द्वारा राजाई पद पा रही हूँ... *हर पल राजऋषि की स्थिति का आंनद उठा रही हूँ... देख कर अपना ये श्रेष्ठ शानदार भाग्य मंद-मंद मुस्कुरा रही हूँ... खुबसूरत भाग्य को अपनी तकदीर में सजा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपना दैवी करेक्टर बनाना है, दैवी गुण धारण कर अपना और सर्व का कल्याण करना है*"
➳ _ ➳ एकांत में अंतर्मुखी बन कर बैठी मैं ब्राह्मण आत्मा विचार करती हूँ कि मेरा यह जीवन जो कभी हीरे तुल्य था आज रावण की मत पर चलने से कैसा कौड़ी तुल्य बन गया है! *दैवी गुणों से सम्पन्न थी मैं आत्मा और आज आसुरी अवगुणों से भर गई हूँ। रावण रूपी 5 विकारों की प्रवेशता ने मेरे दैवी गुण छीन कर मेरे अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहँकार पैदा कर मेरे जीवन को ही श्रापित कर दिया है और अब जबकि स्वयं भगवान आकर मेरे इस श्रापित जीवन से मुझे छुड़ा कर फिर से पूज्य देवता बना रहे हैं तो मेरा भी यह परम कर्तव्य बनता है कि उनकी श्रेष्ठ मत पर चल कर, अपने जीवन मे दैवी गुणों को धारण कर अपने जीवन को पलटा कर भविष्य जन्म जन्मान्तर के लिए सुख, शांति और पवित्रता का वर्सा उनसे ले लूँ*। मन ही मन इन्ही विचारो के साथ अपने दैवी गुणों से सम्पन्न स्वरूप को मैं स्मृति में लाती हूँ और अपने उस अति सुन्दर दिव्य स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहारने मे मगन हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ दैवी गुणों से सजा मेरा पूज्य स्वरूप मेरे सामने है। लक्ष्मी नारायण जैसे अपने स्वरूप को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। अपने सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप में मैं बहुत ही शोभायमान लग रही हूँ। *मेरे चेहरे की हर्षितमुखता, नयनो की दिव्यता, मुख मण्डल पर पवित्रता की दिव्य आभा मेरे स्वरूप में चार चांद लगा रही है। अपने इस अति सुन्दर स्वरूप का भरपूर आनन्द मैं ले रही हूँ । मन ही मन अपनी इस ऐम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख, ऐसा बनने की मन मे दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने जीवन को पलटाने के लिए दैवी गुणों को धारण करने का संकल्प लेकर, पुजारी से पूज्य बनाने वाले अपने परमपिता परमात्मा का दिल की गहराइयों से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ* और 63 जन्मो के आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में दग्ध करने के लिए अपने प्यारे पिता की याद में अब सम्पूर्ण एकाग्रचित होकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति जैसे - जैसे बढ़ने लगती है मेरा वास्तविक स्वरूप मेरे सामने पारदर्शी शीशे के समान चमकने लगता है और अपने स्वरूप का मैं आनन्द लेने में व्यस्त हो जाती हूँ। एक चमकते हुए बहुत ही सुन्दर स्टार के रूप में मैं स्वयं को देख रही हूँ। *उसमे से निकल रही रंगबिरंगी किरणें चारों और फैलते हुए बहुत ही आकर्षक लग रही हैं। उन किरणों से मेरे अंदर समाये गुण और शक्तियों के वायब्रेशन्स जैसे - जैसे मेरे चारों और फैल रहें है, एक सतरंगी प्रकाश का खूबसूरत औरा मेरे चारो और बनता जा रहा है*। प्रकाश के इस खूबसूरत औरे के अंदर मैं स्वयं को ऐसे अनुभव कर रही हूँ जैसे किसी कीमती खूबसूरत जगमगाती डिब्बी के अंदर कोई बहुमूल्य हीरा चमक रहा हो और अपनी तेज चमक से उस डिब्बी की सुंदरता को भी बढ़ा रहा हो।
➳ _ ➳ सर्वगुणों औऱ सर्वशक्तियों की किरणें बिखेरते अपने इस सुन्दर स्वरूप का अनुभव करके और इसका भरपूर आनन्द लेकर अब मैं चमकती हुई चैतन्य शक्ति देह की कुटिया से निकल कर, स्वयं को कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे शिव बाबा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *प्रकाश के उसी खूबसूरत औरे के साथ मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपनी किरणे बिखेरती हुई अब धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश में पहुँच कर, उसे पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर मे पहुँच जाती हूँ*। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में चारों और चमकती जगमग करती मणियों के बीच मैं स्वयं को देख रही हूँ। चारों और फैला मणियो का आगार और उनके बीच मे चमक रही एक महाज्योति। ज्ञानसूर्य शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलाते हुए इन चमकते हुए सितारों के बीच बहुत ही लुभावने लग रहे हैं। *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों का तेज प्रकाश पूरे परमधाम घर मे फैल रहा है जो हम चैतन्य मणियों की चमक को कई गुणा बढ़ा रहा है*।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के इस सुंदर मनमनोहक स्वरूप को देखते हुए मैं चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे उनके नजदीक जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में ऐसे समा जाती हूँ जैसे एक बच्चा अपनी माँ के आंचल में समा जाता है। मेरे पिता का प्यार उनकी अथाह शक्तियों के रूप में मेरे ऊपर निरन्तर बरस रहा है। *मेरे पिता के निस्वार्थ, निष्काम प्यार का अनुभव, उनका प्यार पाने की मेरी जन्म - जन्म की प्यास को बुझाकर मुझे तृप्त कर रहा है। परमात्म प्यार से भरपूर होकर योग अग्नि में अपने विकर्मों को दग्ध करने के लिए अब मैं बाबा के बिल्कुल समीप जा रही हूँ और उनसे आ रही जवालास्वरूप शक्तियों की किरणों के नीचे बैठ, योग अग्नि में अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को जलाकर भस्म कर रही हूँ*। बाबा की शक्तिशाली किरणे आग की भयंकर लपटों का रूप धारण कर मेरे चारों और जल रही है, जिसमे मेरे 63 जन्मो के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं आत्मा शुद्ध पवित्र बन रही हूँ।
➳ _ ➳ सच्चे सोने के समान शुद्ध और स्वच्छ बनकर अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत पर चल कर, अब मैं अपने जीवन को पलटाने और श्रेष्ठ बनाने के लिए स्वयं में दैवी गुणों की धारणा करने के लिए फिर से साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूज्य बनने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। *अपने आदि पूज्य स्वरूप को सदा स्मृति में रखते हुए, बाबा की याद से पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को दग्ध कर, नए दैवी संस्कार बनाने का पुरुषार्थ करते हुए अब मैं स्वयं का परिवर्तन बड़ी सहजता से करती जा रही हूँ*
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं खुशियों के खजाने से सम्पन्न बन दुःखी आत्माओं को खुशी का दान देने वाली पुण्य आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं किसी भी बात में धोखे से मुक्त रहने वाली, सदा विजयी रहने वाली अनुभवी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *सबसे पहला खजाना है - ज्ञान का खजाना, जिस ज्ञान के खजाने से इस समय भी आप सभी मुक्ति और जीवनमुक्ति का अनुभव कर रहो हो।* जीवन में रहते, पुरानी दुनिया में रहते, तमोगुणी वायुमण्डल में रहते ज्ञान के खजाने के आधार से इन सब वायुमण्डल, वायब्रेशन से न्यारे मुक्त हो, कमल पुष्प समान न्यारे मुक्त आत्मायें दुःख से, चिंता से, अशान्ति से मुक्त हो। *जीवन में रहते बुराइयों के बन्धनों से मुक्त हो। व्यर्थ संकल्पों के तूफान से मुक्त हो। हैं मुक्त?* सभी हाथ हिला रहे हैं। तो मुक्ति और जीवनमुक्ति इस ज्ञान के खजाने का फल है, प्राप्ति है। चाहे व्यर्थ संकल्प आने की कोशिश करते हैं, निगेटिव भी आते हैं लेकिन ज्ञान अर्थात् समझ। *व्यर्थ संकल्प वा निगेटिव का काम है आना और आप ज्ञानी तू आत्माओं का काम है इनसे मुक्त, न्यारे और बाप के प्यारे रहना।* तो चेक करो - ज्ञान का खजाना प्राप्त है? भरपूर है? सम्पन्न है या कम है? *अगर कम है तो उसको जमा करो, खाली नहीं रहना।*
✺ *ड्रिल :- "ज्ञान के खजाने का महत्व अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अशरीरी स्वरूप में ऊंची पहाड़ी पर जाकर बैठी हूं... चारों ओर निर्मल प्रकृति की मनोरम छटा देख मन ही मन पुलकित अनुभव कर रही हुं... अमृतवेले की इस पावन मुहूर्त में मैं आत्मा प्रकृति की गोद मे बैठ स्वयं को स्वतन्त्र अनुभव कर रही हूं... यह खुला सा वातावरण सारे बन्धनों से मुक्त अनुभव करा रहा है... ठंडी ठंडी हवाएं आत्मा को शीतलता प्रदान कर रही है... *मैं आत्मा अशरीरी स्वरूप में उन्मुक्त हो विचरण कर रही हूं...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा मीठे शिवबाबा से मिलन मनाने अपने निवास परमधाम की ओर उड़ रही हूं... देह और देह की दुनिया से दूर , ग्रह नक्षत्रों के पार स्थित परमात्म निवास परमधाम की ओर बढ़ रही हूं... लाल प्रकाश से भरपूर इस परमधाम में सर्व शक्तिमान पिता विराजमान दिखाई दे रहे है... *मैं आत्मा मीठे बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूं... मीठे बाबा की मीठी दृष्टि पाकर मैं आत्मा निहाल हो रही हूं...* बाबा की मीठी किरणे मुझ आत्मा को परम् तृप्ति का अनुभव करा रही है...
➳ _ ➳ मीठे शिवबाबा की ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है... मैं आत्मा ज्ञान प्रकाश में नहाकर उज्ज्वल हो रही हूं... मुझ आत्मा के अज्ञानता के समस्त अंधकार को मिटा रहे है... दुःख, चिंता, अशांति से मुक्त अनुभव कर रही हूं... *मैं आत्मा परमात्मा पिता की शक्तिशाली प्रकाश ऊर्जा के नीचे बैठ स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं...* मुझ आत्मा को ज्ञान प्रकाश में स्थित होकर मुक्ति व जीवनमुक्ति की प्राप्ति बड़ी ही सहजता से हो रही है...
➳ _ ➳ मीठे बाबा से भरपूर हो अब मैं आत्मा अपने स्थूल वतन की ओर लौट रही हूं... ज्ञान प्रकाश से उज्ज्वल हो मैं ज्ञान की ऊर्जा सम्पूर्ण विश्व मे फैला रही हूं... *मैं आत्मा ज्ञान सूर्य से ज्ञान किरणे प्राप्त कर ज्ञान का खजाना भर रही हूं और सभी आत्माओं तक ज्ञान प्रकाश बांट रही हूं...* पुराने देह की दुनिया मे रहते हुए भी मैं आत्मा ज्ञान खजाने द्वारा स्वयं को और अन्य साथी आत्माओ को व्यर्थ निगेटिव से मुक्त कर रही हूं... *मैं आत्मा सर्व खजाने से सम्पन्न महसूस कर रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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