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 16 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ नए घर को याद किया ?

 

➢➢ ज्ञान स्नान कर सुंदर परीजादा बने ?

 

➢➢ बेहद की वैराग्य वृति द्वारा पुराने संस्कारों के वार से सेफ रहे ?

 

➢➢ माया से निर्भय और आपसी संबंधो में निर्माण बने ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  डबल लाइट अर्थात् संस्कार स्वभाव का भी बोझ नहीं, व्यर्थ संकल्प का भी बोझ नहीं-इसको कहा जाता है हल्का। जितने हल्के होंगे उतना सहज उड़ती कला का अनुभव करेंगे। अगर योग में जरा भी मेहनत करनी पड़ती है तो जरूर कोई बोझ है। तो बाबा-बाबा का आधार ले उड़ते रहो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सहजयोगी हूँ"

 

〰✧  सदा अपने को सहज योगी अनुभव करते हो? कितनी भी परिस्थितियां मुश्किल अनुभव कराने वाली हों लेकिन मुश्किल को भी सहज करने वाले सहजयोगी हैं-ऐसे हो या मुश्किल के समय मुश्किल का अनुभव होता है? सदा सहज है? मुश्किल होने का कारण है बाप का साथ छोड़ देते हो। जब अकेले बन जाते हो तो कमजोर पड़ जाते हो और कमजोर को तो सहज बात भी मुश्किल लगती है। इसलिये बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि सदा कम्बाइन्ड रूप में रहो। कम्बाइन्ड को कोई अलग नहीं कर सकता। जैसे इस समय आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है ऐसे बाप और आप कम्बाइन्ड रहो। मातायें क्या समझती हो? कम्बाइन्ड हो या कभी अलग, कभी कम्बाइन्ड? ऐसा साथ फिर कभी मिलना है? फिर क्यों साथ छोड़ देती हो? काम ही क्या दिया है?

 

✧  सिर्फ यह याद रखो कि 'मेरा बाबा'। इससे सहज काम क्या होगा? मुश्किल है? (63 जन्मों का संस्कार है) अभी तो नया जन्म हो गया ना। नया जन्म, नये संस्कार। अभी पुराने जन्म में हो या नये जन्म में? या आधा-आधा है? तो नये जन्म में स्मृति के संस्कार हैं या विस्मृति के? फिर नये को छोड़कर पुराने में क्यों जाते हो? नई चीज अच्छी लगती है या पुरानी चीज अच्छी लगती है? फिर पुराने में क्यों चले जाते हो? रोज अमृतवेले स्वयं को ब्राह्मण जीवन के स्मृति का तिलक लगाओ। जैसे भक्त लोग तिलक जरूर लगाते हैं तो आप स्मृति का तिलक लगाओ। वैसे भी देखो मातायें जो तिलक लगाती है वो साथ का तिलक लगाती हैं।

 

✧  तो सदा स्मृति रखो कि हम कम्बाइन्ड हैं तो इस साथ का तिलक सदा लगाओ। अगर युगल होगा तो तिलक लगायेंगे, अगर युगल नहीं होगा तो तिलक नहीं लगायेंगे। यह साथ का तिलक है। तो रोज स्मृति का तिलक लगाती हो या भूल जाता है? कभी लगाना भूल जाता, कभी मिट जाता! जो सुहाग होता है, साथ होता है वह कभी भूलता नहीं। तो साथी को सदा साथ रखो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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आज विश्व रचयिता बाप अपने मास्टर रचयिता बच्चों को देख रहे हैं। मास्टर रचयिता अपने रचना-पन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं। आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है। इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचना-पन विस्मृत तो नहीं करा देती है? मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? पहले-पहले इस देह के मालिक-पन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है। अगर देह के मालिक-पन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिक-पन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं। वर्तमान समय की यह जीवन - भविष्य का दर्पण है। इसी दर्पण द्वारा स्वयं का भविष्य स्पष्ट देख सकते हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ कर्मातीत स्थिति वाला देह के मालिक होने के कारण कर्मभोग होते हुए भी न्यारा बनने का अभ्यासी है। बीच-बीच में अशरीरी-स्थिति का अनुभव बिमारी से परे कर देता है। जैसे साइन्स के साधन द्वारा बेहोश कर देते हैं तो दर्द होते भी भूल जाते हैं, दर्द फील नहीं करते हैं क्योंकि दवाई का नशा होता है। तो कमतिीत अवस्था वाले अशरीरी बनने के अभ्यासी होने कारण बीच-बीच में यह रूहानी इन्जेक्शन लग जाता है। इस कारण सूली से कांटा अनुभव होता है। और बात-फालो फादर होने के कारण विशेष आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्ष फल बाप से विशेष दिल की दुआयें प्राप्त होती हैं। एक अपना अशरीरी बनने का अभ्यास दूसरा आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्षफल बाप की दुआयें, वह बीमारी अर्थात् कर्मभोग को सूली से कांटा बना देती है। कर्मातीत श्रेष्ठ आत्मा कर्मभोग को, कर्मयोग की स्थिति में परिवर्तन कर देगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  बाबा सुखधाम में ले जाने आया है, इस ख़ुशी में रहना"
 
➳ _ ➳  मीठे बाबा की यादो में खोयी... मै आत्मा अपनी खुशियो के खजाने को गिनने में मशगूल हूँ... और अपनी ईश्वरीय अमीरी को देख देख मुस्करा रही हूँ... कितना प्यारा अनोखी खुशियो से भरा जीवन मीठे बाबा ने सौगात सा दे दिया है... तभी मीठे बाबा पलक झपकते ही वहाँ उपस्थित होकर... मुझे खुशहाल देख जैसे, नयनों से कह रहे... बच्चों की खुशियो में ही मुझ पिता की खुशियां समायी है...
 
❉   मीठे बाबा आज खुशियो की बरसात मेरे मन आँगन में बिखराते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन खत्म हो गए है... अब अथाह खुशियो भरे मीठे दिन आ गए है... अब ईश्वर पिता जीवन में आ गया है... चारो ओर खुशियो की बरसात है... इस नशे में सदा डूबे रहो कि सुख शांति प्रेम के मीठे पल आये की आये..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा के रूप में भगवान को सम्मुख देख देख पुलकित हूँ और कह रही हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... ऐसा प्यारा ईश्वरीय साथ भरा जीवन तो कल्पनाओ में भी कभी न था... आज आपको पाने की ख़ुशी से छलक रहा मन... जीवन की सच्चाई है... और मीठे सुख मुझे अपनी बाँहों में पुकार रहे है..."
 
❉   प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में दुलारते हुए ज्ञान धारा को बहाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जो देवताई सुख कल्पनाओ से परे थे... ईश्वर पिता उन सुख भरे खजानो को आप बच्चों की राहो में फूलो सा बिखराया है... इस ख़ुशी में सदा झूमते रहो... अपने मीठे सुखो की यादो में खोये रहो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों की छत्रछाया में स्वयं को भरपूर करते हुए बोली :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... दुखो के जंगल में सुख की एक बून्द को तरसती... मै आत्मा आज स्वर्ग की बादशाही पा रही हूँ... कितना प्यारा मीठा और खुबसूरत भाग्य है... मै आत्मा आपके सारे खजानो की मालिक बन गयी हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा रूहानी दृष्टि देते हुए और ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारते हुए बोले :- "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर जो सुखो की दौलत पायी है... उसके नशे में खोये रहो... संगम की यही खुशियां देवताई सुखो में बदल कर जीवन को खुशियो से महकायेंगी... इन मीठे पलो के सुख को यादो में चिर स्थायी बनाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी मुस्कराहट से जवाब देते हुए कहती हूँ :- "मीठे बाबा सच्चे ज्ञान को पाकर सारी भटकन से छूट गयी हूँ और आपकी छत्रछाया में गुणवान शक्तिवान बनकर सच्ची खुशियो में खिलखिला रही हूँ... देवताई सुखो भरा स्वर्ग अपनी तकदीर में लिखवा रही हूँ..." अपनी खुशियो की चर्चा मीठे बाबा से कर मै आत्मा कार्य पर लौट आयी... इन मीठी ईश्वरीय यादो को दिल में समेट कर मै आत्मा अपने जगत मे आ गयी...
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- माया की युद्ध से डरना नहीं है, विजयी बनकर दिखाना है"

➳ _ ➳  "सर्व शक्तियों को समय पर कार्य मे लगाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के सामने माया के तूफान तोहफा बन जाते हैं" बाबा के इन महावाक्यों को स्मृति में ला कर मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट हो कर सर्वशक्तियों का आह्वान करने और स्वयं को सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिये मैं सर्वशक्तिवान शिव बाबा की याद में मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। अशरीरी बन बाबा की याद में बैठते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो कर मेरे सामने आ गए हैं

➳ _ ➳  बाबा की लाइट, माइट जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही है वैसे - वैसे मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अनुभव कर रही हूँ कि जैसे बाबा मुझे अपनी और खींच रहें हैं और मैं डबल लाइट फ़रिशता बन स्वत: ही ऊपर की ओर उड़ रहा हूँ। सूर्य, चांद, तारागणों से पार अन्तरिक्ष को भी पार करता हुआ उससे भी ऊपर मैं पहुंच गया फ़रिशतो की आकारी दुनिया सूक्ष्म लोक में।

➳ _ ➳  अब मैं देख रहा हूँ स्वयं को सूक्ष्म वतन में। मेरे सामने अव्यक्त बापदादा अष्ट शक्तियों के अलग - अलग स्वरूप में मुझे दिखाई दे रहें हैं। अष्ट शक्तियों को मुझ में समाहित कर मुझे सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिए अब बापदादा एक - एक शक्ति से भरपूर अपनी शक्तिशाली किरणे मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित कर रहें हैं।

➳ _ ➳  अपना सम्पूर्ण ध्यान इस नश्वर दुनिया से समेट कर मैं अपना संसार केवल एक शिव बाबा को बना सकूँ इसके लिए समेटने की शक्तिशाली किरणों से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं। अपनी सहनशक्ति से हर बात को सहन करते हुए हिम्मतवान बन हर परिस्थिति को मैं सहजता से पार कर सकूँ इसके लिए बाबा अब सहनशक्ति से भरपूर किरणे मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं।

➳ _ ➳  जैसे बापदादा सभी बच्चों की सभी बातों को स्वयं में समा लेते हैं। वैसे समाने की शक्ति से भरपूर किरणे मुझ में समाहित कर बाबा मुझमे हर बात को स्वयं में समाने का बल भर रहें हैं। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परख कर हर प्रकार के धोखे से मैं स्वयं को बचा सकूँ इसके लिए बाबा परखने की शक्ति से भरपूर किरणो से मुझे सम्पन्न बना रहे हैं। माया के अति सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप को पहचान कर उचित समय पर मैं उचित निर्णय ले सकूँ इसके लिए बाबा निर्णय करने की शक्ति से सपन्न किरणे अब मुझमे भर रहें हैं।

➳ _ ➳  विपरीत परिस्थिति में घबराने के बजाए उसका डटकर सामना करने के लिए बाबा अब सामना करने की शक्ति से मुझे भरपूर कर रहें हैं। एक दो को सहयोग दे, संगठन को निर्विघ्न चलाने के लिए बाबा सहयोग की शक्ति से भरपूर किरणे मुझ में प्रवाहित कर मुझे सहयोगी आत्मा बना रहें हैं। देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप में देखने का पाठ पक्का हो इसके लिए विस्तार को सार में समाने की शक्ति बाबा मुझे दे रहें है।

➳ _ ➳  अपने आठ स्वरूपों से अष्ट शक्तियों को मेरे अंदर भरकर बाबा ने मुझे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न कर दिया हैं। देह अभिमान में आने के कारण मुझ आत्मा में निहित अष्ट शक्तियाँ जो मर्ज हो गई थी वो आठों शक्तियाँ अब इमर्ज हो गई हैं। बापदादा के आठों स्वरूपों से अष्टशक्तियों को स्वयं में भरपूर करके अब मैं सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सदा सेट रहते हुए, माया के तूफानों में मुरझाने के बजाए अब मैं समय और परिस्थिति के अनुसार उचित शक्ति का प्रयोग करके सहज ही माया के हर वार का सामना कर, माया पर विजय प्राप्त कर रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा पुराने संस्कारों के वार से सेफ रहने वाली मास्टर नॉलेजफुल आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं माया से निर्भय बनने वाली और आपसी संबंधों में निर्माण बनने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  सबसे सहज है कि पहले स्वयं को झमेले मुक्त करो। दूसरे के पीछे नहीं पड़ो। ये स्टूडेन्ट ऐसा हैये साथी ऐसा हैये सरकमस्टांश ऐसे हैं- उसको नहीं देखो लेकिन अपने को झमेला मुक्त करो।

➳ _ ➳  जहाँ झमेला हो वहाँ अपने मन को, बुद्धि को किनारे कर लो। आप सोचते हो-ये झमेला पूरा होगा तो बहुत अच्छा हो जायेगा, हमारी सेवा भी अच्छीहमारी अवस्था भी अच्छी हो जायेगी। लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं। क्या पहाड़ से माथा टकराना हैपहाड़ हटेगा क्यास्वयं किनारा कर लो या उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ। तो पहाड़ भी आपको एकदम सहज अनुभव होगा।

➳ _ ➳  मुझे बनना है। अमृतवेले से ये स्वयं से संकल्प करो कि मुझे झमेला मुक्त बनना है। बाकी तो है ही झमेलों की दुनियाझमेले तो आयेंगे ही। आपकी दुनिया आपका सेवाकेन्द्र है तो आपकी दुनिया ही वो हैतो वहाँ ही आयेंगे ना। आप पेपर देने के लिए अमेरिका, लण्डन जायेंगी क्या? सेन्टर पर ही देंगी ना! तो झमेला नहीं आवे- यह नहीं सोचो। झमेला मुक्त बनना है-ये सोचो।

✺  

कर देखता हूं वैसे ही तुम भी देखो"... यह स्मृति आते ही मेरे मानस पटल पर विश्व ड्रामा  के सीन उभरने लगते हैं... सहज रुप से एक के बाद एक सीन आता है और चला जाता है... मैं आत्मा पूर्णत: डिटैच होकर हर सीन को देख रही हूं...

➳ _ ➳  इस साक्षी स्थिति में मैं क्या, क्यों के सभी प्रश्नों से मुक्त हूँ... प्रसन्नचित्त अवस्था में हूँ... मेरा मानस अब शांत होता जा रहा है... इस सुखदाई, आनंदमई स्थिति में मैं अपने प्यारे शिव बाबा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा से अनंत शक्तियां मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण नष्ट होते जा रहे हैं...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा स्वयं को सभी विकारों और विकृतियों की मैल से मुक्त देख रही हूं... मैं परदर्शन और परचिंतन की धूल से मुक्त होती जा रही हूं... सभी प्रकार के झमेलों से स्वयं को न्यारा करती जा रही हूं... मुझ आत्मा में स्वचिंतन और परमात्म चिंतन की लगन बढ़ती जा रही है... स्वदर्शन चक्र फ़िराते हुए माया के बंधनों से मैं मुक्त होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  मैं आत्मा अब उड़ती कला का अनुभव कर रही हूं... परिस्थितियों रूपी पहाड़ों से टकराने में अपना समय गंवाने की बजाय स्वयं को मोल्ड, स्वयं को परिवर्तित करती जा रही हूं... कोई बदले फिर मैं बदलू ऐसे झमेलों से मुक्त होकर एक बाबा की लगन में मगन होती जा रही हूं...

➳ _ ➳  सेवा केंद्र हो या कार्यक्षेत्र जो भी बातें आती हैं, विघ्न आते हैं... उन सभी विघ्नों को मैं एक बाबा की याद में रहकर पार करती जा रही हूं... हर पेपर को बाबा की याद में रह क्रॉस करती जा रही हूं... परिस्थितियां तो आनी ही है... विघ्न ना आए इस व्यर्थ चिंतन में समय को नष्ट ना कर मैं आत्मा अपने को सर्व झमेलों से मुक्त करती जा रही हूं... बाबा की शक्तियों और गुणों से मैं स्वयं को संपन्न अनुभव कर रही हूं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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