━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 26 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ किसी में भी आँख तो नहीं डूबी ?

 

➢➢ बपा और वर्सा याद रहा ?

 

➢➢ बाप और सेवा में मगन रहे ?

 

➢➢ प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव किया ?

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  सदा इस स्मृति से डबल लाइट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दू। बिन्दू में कोई बोझ नहीं। आखों के बीच में देखो तो बिन्दु ही है। बिन्दु ही देखता है, बिन्दु न हो तो आंख होते भी देख नहीं सकते। तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   "मैं तपस्वी आत्मा हूँ"

 

✧  अपने को तपस्वी आत्मायें अनुभव करते हो? तपस्वी अर्थात् सदा अपनी तपस्या में रहने वाले। तो तपस्या क्या है? एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे तपस्वी हो या दूसरा-तीसरा भी कोई है? तपस्वी सदा आसनधारी होते हैं, कोई न कोई आसन पर तपस्या करते हैं। तो आपका आसन कौनसा है? स्थिति आपका आसन है। जैसे एकरस स्थिति यह आसन हो गया। फरिश्ता स्थिति यह आसन हो गया। तो आसन पर स्थित होते हैं ना, बैठते हैं अर्थात् स्थित हो जाते हैं। तो इन श्रेष्ठ स्थितियों में स्थित हो जाते हो, टिक जाते हो इसी को आसन कहा जाता है।

 

✧  स्थूल आसन पर स्थूल शरीर बैठता है लेकिन यह श्रेष्ठ स्थितियों के आसन पर मन-बुद्धि को बिठाना है। मन-बुद्धि द्वारा इन स्थितियों में स्थित हो जाते हो अर्थात् बैठ जाते हो - ऐसे तपस्वी हो? तो अच्छा आसन मिला है ना। यहाँ है आसन फिर भविष्य में मिलेगा सिंहासन। तो जितना जो आसन पर स्थित रहता वो उतना ही सिंहासन पर भी स्थित रह सकता है। जितना समय चाहो, जब चाहो, तब आसन रूपी स्थिति में स्थित होते हो ना। होते हो या हलचल होती है? क्या होता है? जैसे देखो शरीर आसन पर नहीं टिक सकता तो हलचल करेगा ना। ऐसे मन हलचल तो नहीं करता? अचल है या हलचल भी है कि दोनों है? सदा अचल अडोल। जरा भी हलचल नहीं हो। अगर कभी हलचल और कभी अचल है तो सिंहासन भी कभी मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा।                         

 

✧  तो सदा का राज्य भाग्य लेना है या कभी-कभी का और स्थित सदा होना है या कभी-कभी? कितना भी कोई हिलावे लेकिन आप अचल रहो। परिस्थिति श्रेष्ठ है या स्वस्थिति श्रेष्ठ है? कभी परिस्थिति वार कर लेती है? तो सोचो कि ये परिस्थिति पावरफुल या स्वस्थिति पावरफुल? तो इस स्थिति से कमजोर से शक्तिशाली बन जायेंगे। आप तपस्वी आत्माओंकी स्थिति का यादगार आजकल के तपस्वियों ने कॉपी की है लेकिन उल्टी की है। आप तपस्वी एकरस स्थिति में एकाग्र होते हो और आजकल के क्या करते हैं? एक टांग पर खड़े हो जाते हैं। तो कहाँ एकरस स्थिति और कहाँ एक टांग पर स्थित रहना, फर्क हो गया ना। आपका कितना सहज है! और उन्हों का कितना मुश्किल है! तो सहजयोगी हो ना।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

सब शुभ संकल्प तो यही रखते भी हैं और रखना भी है कि नम्बरवन आना ही है। तो सब में चारों ओर की बातों में विन होंगे तभी वन आयेंगे। अगर एक बात में जरा भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय लग गया तो नम्बर पीछे हो जायेगा। इसलिए सब चेक करो। चारों ही तरफ चेक करो। डबल विदेशी सब में तीव्र जाने चाहते हैं ना! इसलिए तीव्र पुरुषार्थ वा फुल अटेन्शन इस अभ्यास में अभी से देते रहो। समझा! क्वेचन को भी जानते हो और टाइम को भी जातने हो। फिर तो सब पास होने चाहिए! अगर पहले से पहले से क्वेचन का पता होता है तो तैयारी कर लेते हैं। फिर तो पास हो जाते हैं। आप सभी तो पास होने वाले ही ना! अच्छा।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ सारथी अर्थात् आत्म-अभिमानी। क्योंकि आत्मा ही सारथी है। ब्रह्मा बाप ने इस विधि से नम्बरवन की सिद्धि प्राप्त की। इसलिए बाप भी इस रथ का सारथी बना। सारथी बनने का यादगार बाप ने करके दिखाया। फालो फादर करो। सारथी बन सदा सारथी-जीवन में अति न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव कराया। क्योंकि देह को अधीन कर बाप प्रवेश होते अर्थात् सारथी बनते हैं देह के अधीन नहीं बनते। इसलिए न्यारा और प्यारा है। ऐसे ही आप सभी ब्राह्मण आत्मायें भी बाप समान सारथी की स्थिति में रहो। चलते-फिरते यह चेक करो कि मैं सारथी अर्थात् सर्व को चलाने वाली न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित हूँ। बीच-बीच में यह चेक करो। ऐसे नहीं कि सारा दिन बीत जाए फिर रात को चेक करे।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप आयें हैं, तृप्त आत्मा बनाने"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन में बाबा के कमरे में बैठी बाबा की तस्वीर को निहार रही हूं... बाबा की आंखों में कितना प्रेम है, मन ही मन ये विचार कर रही हूं... बाबा से प्रेम भरी बातें करते करते पहुंच जाती हूँ परमधाम... शिव बाबा मेरे संमुख प्रकाशपुंज के स्वरूप में स्थित मुझ आत्मा में अपनी शक्तिशाली किरणों को प्रवाहित कर रहे हैं... मैं आत्मा बाबा से आती हुई अनंत किरणों को स्वयं में समाती जा रही हूँ... परमात्म शक्तिओं से भरपूर होती जा रही हूँ... परमात्म शक्तिओं को भरकर अब मैं आत्मा अपने को सूक्ष्म वतन में अनुभव कर रही हूं... चारों ओर सफेद प्रकाश फैला हुआ है और मैं फ़रिश्ता बापदादा के सामने हूँ... मैं आत्मा नन्ही परी बन बाबा की गोद में बैठ जाती हूँ और बाबा से मीठी मीठी बातें करने लगती हूँ...

❉  बाबा मुझ आत्मा को बहुत सारा प्यार देते हुए कहते हैं:- "मेरे लाडले दिलतख़्तनशीन बच्चे... भोलानाथ बाबा आये हैं भक्तों को भक्ति का फल देने... अब भक्त से बच्चे बन बाप से सुख और आनंद का वर्सा लो और बाप का हाथ पकड़कर इस भवसागर से पार हो जाओ... भगवान पढ़ाते हैं और भगवान फिर साथ भी ले जाएँगे... पुकारते भी हैं लिबरेटर गाइड आओ दुखों से छुड़ाओ... अब भोलानाथ बाबा आये हैं तुम्हें सर्व दुखों से छुड़ाकर सुखधाम में ले जाने...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के मधुर महावाक्यों को अपने भीतर समाते हुए बाबा से बोली:- "हाँ मेरे प्राणेश्वर बाबा... मैं आत्मा जन्मों जन्मों की प्यासी थी आपने अपना बनाकर मुझ आत्मा को तृप्ति के सागर में स्नान करा सन्तुष्ट कर दिया है... पहले जीवन कितना नीरस और असंतुष्टता से भरा हुआ था आपके आने भर से मानो सारी समस्याओं ने अपना रास्ता ही बदल लिया हो... मैं सुख और आंनद से भरपूर हो गयी हूँ... आपकी बनकर कितनी निखर गयी हूँ... ज्ञान रत्नों से अलंकृत हो कर अपने फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित हो गयी हूँ..."

❉  बाबा सर पर फूलों का ताज रखते हुए मुझ आत्मा से बोले:- "मीठे बच्चे... बाप की आश है कि अब बच्चे बाप को प्रत्यक्ष करें और बाप का बनकर बाप को पवित्रता का सहयोग दें... स्वयं पवित्र बन औरों को भी बनाने की सेवा करो... भक्तों को बाप से मिलाकर उनको शांति का रास्ता बताओ... एक बाप की सुनो एक बाप को ही अपना मानो एक से ही सर्व सम्बंध जोड़ो... इस दुनिया से ममत्व छोड़ एक बाप से जोड़ना है..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के शब्दों की मधुरता में डूबी हुई बाबा से कहती हूं:- "हां मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सदा श्रेष्ठ परिवार के नशे में रहने वाले प्रभु परिवार को पाकर धन्य धन्य हो गयी हूं... परमात्मा की बनकर मैं कितनी विशेष हो गयी हूं... बेहद का खज़ाना पाकर मैं आत्मा मालामाल हो गयी हूँ... नया जीवन मिला और इस दुःख भरी दुनिया से निकल कर अपने पिता परमात्मा की बाहों में ईश्वरीय पालना में झूल रही हूं... आपने मुझे ये अनमोल जीवन देकर मेरी झोली खुशिओं से भर दी है..."

❉  मेरे गालों को सहलाते हुए बाबा मुझ आत्मा से बोले:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जितना तुम श्रीमत पर चलेंगे उतना ही ऊंच पद पाएंगे... तुम्हारा टीचर कोई देहधारी नही हैं स्वयं भगवान है सदैव इस नशे में रहो तो माया वार नही करेगी... भोलानाथ अपने बच्चों को स्वर्ग की बादशाही देने आये हैं... अपने भक्तों को भक्ति का फल देकर अपने साथ ले जाने आये हैं..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा की बातों से अपने में उमंग उत्साह भर्ती हुई बाबा से बोली:- "मेरे प्राणों से प्यारे मेरे दिलाराम बाबा... भगवान मेरा टीचर है मुझे पढ़ाने परमधाम से आते हैं यह स्मृति आते ही मैं आत्मा गद गद हो जाती हूँ... शायद ही मुझ जैसा कोई भाग्यवान होगा जिसको स्वयं भगवान पढ़ाते हैं... अपने भाग्य को देखकर मैं आत्मा खुशी में झूम जाती हूँ और अपने दिल की गहराइयों से बाबा को बारम्बार शुक्रिया कर रही हूं... बाबा को आभार प्रकट कर मैं आत्मा पुनः अपने साकारी तन में लौट आती हूँ..."
 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बुद्धि हद से निकल सदा बेहद में रहे"

➳ _ ➳  हर प्रकार के उल्टे सुल्टे संकल्पो से मुक्त, निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा के साथ मंगल मिलन मनाने की अतीन्द्रीय सुखमय स्थिति का सुखद अनुभव स्मृति में आते ही बुद्धियोग सहज ही हद से निकल अपने बेहद घर मे लग जाता है और मन फिर से उस सुख को पाने के लिए बेकरार हो उठता है। और मैं मनमनाभव की स्थिति में स्थित होकर, अपने निराकारी स्वरूप में, सेकेण्ड में देह को छोड़, विदेही बन हद बेहद से पार अपने निर्वाण धाम घर की ओर चल पड़ती हूँ। वाणी से परें इस निर्वाण धाम घर मे पहुँच कर, निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर, बीज रूप अवस्था मे, मैं आत्मा सर्वशक्तियों और सर्वगुणों के सागर अपने बीज रूप शिव पिता के पास जाकर बैठ जाती हूँ और दिव्य बुद्धि के तीसरे नेत्र से उन्हें निहारने लगती हूँ।

➳ _ ➳  अपने निराकार शिव पिता से आ रही सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए इस खूबसूरत और लुभावने दृश्य का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ। हर संकल्प से मुक्त, निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर अपने प्यारे मीठे बाबा को एकटक निहारने का यह सुख बहुत ही निराला है। मन बुद्धि रूपी नेत्र एक सेकण्ड के लिए भी अपने प्यारे बाबा के इस अति सुंदर सुखदायी स्वरूप से हटना नही चाहते। पूरे 5 हजार वर्ष मैं आत्मा अपने पिता परमात्मा से दूर रही, उनके एक दर्शन पाने के लिए मैं कहाँ - कहाँ नही भटकी! और अब जबकि वो मेरे सामने है तो उनसे इतना लम्बा समय दूर रहने की सारी प्यास मैं आज ही बुझा लेना चाहती हूँ। स्वयं को पूरी तरह से तृप्त कर लेना चाहती हूँ।

➳ _ ➳  इसलिए अपने दिलाराम बाबा को बड़े प्रेम से निहारते हुए, उनके प्रेम की गहराई में मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ। स्वयं को मैं उनके ही समान अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर, अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और धीरे - धीरे उनकी एक - एक किरण को अब मैं छू रही हूँ। उनकी एक - एक किरण से मिल रही शक्ति का बल मुझे उनके समान तेजोमय बना रहा है। संकल्प विकल्प से रहित मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर अपने बीज रूप बाप के साथ मंगल मिलन मनाने का सुख मुझे परम आनन्द की अनुभूति करवा रहा है।

➳ _ ➳  सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन बाबा से निकल - निकल कर चारों ओर फैल रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा से सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की किरणो की मीठी - मीठी फुहारें मुझ आत्मा पर बरस रही हैं। ये फुहारें शीतलता के साथ - साथ असीम शक्ति भी मुझ आत्मा में भर रही हैं। परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। निरसंकल्प बीज रूप स्थिति में बीज रूप अपने पिता परमात्मा से मिलने का आनन्दमयी, सुखदायी एहसास अपने साथ लेकर, शक्ति सम्पन्न बन कर अपने निराकारी स्वरूप में मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ साकारी दुनिया में और अपने पांच तत्वों के बने शरीर में प्रवेश कर जाती हूँ।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, उल्टे सुल्टे संकल्पो से मुक्त होने के लिए बुद्धियोग हद बेहद से पार अपने घर परमधाम में लगा कर, परमात्म बल से स्वयं को सदा भरपूर रखने के लिए मैं बार - बार साकारी सो निराकारी की ड्रिल करती रहती हूँ। "हाथ कर डे, दिल यार डे" इस स्लोगन को अपने जीवन मे धारण कर, साकार तन में रहते हाथों से हर कर्म करते, बुद्धि योग ऊपर लटकाकर परमात्म शक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर करती रहती हूँ।

➳ _ ➳  परमात्म बल मुझे समर्थ बनाकर समर्थ चिंतन में बिज़ी रहने में विशेष सहयोग दे रहा है। जब चाहे अपना बुद्धि योग हद बेहद से पार, अपने घर मे लगाकर, बाबा की याद से अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर उल्टे सुल्टे संकल्पों के बोझ से स्वयं को सहज ही मुक्त कर रही हूँ।
 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं बाप और सेवा में मग्न रहने वाली निर्विघ्न, निरन्तर सेवाधारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं संपन्नता की स्थिति में स्थित हो, प्रकृति की हलचल को चलते बादलों समान अनुभव करने वाली संपन्न आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  दो प्रकार से 'बाबाशब्द कहने वाले हैं। एक है दिल से 'बाबाकहने वाले और दूसरे हैं नालेज के दिमाग से कहने वाले। जो दिल से 'बाबाकहते हैं उनको सदा सहज दिल में बाबा द्वारा प्रत्यक्ष प्राप्ति खुशी और शक्ति मिलती है और जो सिर्फ दिमाग अच्छा होने के कारण नालेज के प्रमाण 'बाबा-बाबाशब्द कहते हैं उन्हों को उस समय बोलने में अपने को भी खुशी होती और सुनने वालों को भी उस समय तक खुशी होती, अच्छा लगता लेकिन सदाकाल के लिए दिल में खुशी और शक्ति दोनों होवो सदा नहीं रहतीकभी रहती, कभी नहीं, क्यों?दिल से 'बाबानहीं कहा।  

 

✺   ड्रिल :-  "दिल से 'बाबा' कहना"

 

 _ ➳  भक्ति मार्ग की अठखेलियां चारों तरफ सजी हुई सुंदर सुंदर मनमोहक झांकियां और अद्भुत शोभनीय वस्त्र धारण किए हुए मनमोहक बालक बालिका बड़े ही रायल्टी से बैठकर शोभा यात्रा निकालने में मगन है... मैं भी घर के बाहर निकलकर इस मनमोहक दृश्य को देख रही हूं... और देखती हूं कि एक सुंदर सी बालिका राधे के वस्त्र पहने देवी की भाँति खड़ी हुई है... और उनके पास ही कृष्ण रूप धारण किए हुए हाथों में मुरली सजाए हुए एक सुंदर बालक खड़ा है... उस बालक को मैं बहुत ही गहराई से देखती हूं... और देखते देखते मुझे अनुभव होता है कि वह बालक मानो मुरली बजा रहा है... और उसकी मुरली की तान पर सभी गोप गोपियां झूम रही हो... और साथ में मैं भी इस दृश्य में इतना डूबी जा रही हूं कि मैं भी झूमने लगती हूँ...

 

 _ ➳  कुछ देर झूमते झूमते मैं आत्मा अपनी मन बुद्धि में मुरली की तान समाए हुए... अपने प्यारे बाबा को गहनों से सजे हुए और हाथों में मुरली बजाए हुए अनुभव करती हूँ... मुझे प्रतीत होता है मानो मेरे बाबा कृष्ण रूप धारण किए मेरे सामने विराजमान है... और मुरली बजा कर मुझे अपनी और आकर्षित कर रहे हैं... जैसे ही मुरली की तान मेरे कानों में पहुंचती है... मुझे अति आनंदित अवस्था का अनुभव होता है... और इस आनंद से भरे हुए अपने मन को सूक्ष्म रुप देकर पहुंच जाती हूं परमधाम... जहां हजारों रंग बिखेरते हुए मेरे मीठे बाबा मेरा इंतजार कर रहे हैं और मैं बाबा की मस्त किरणों में झूलती जा रही हूं...  

 

 _ ➳  जैसे-जैसे मैं किरणों रूपी झूलों में झूलती हूं... मेरा यह झूला तीव्र गति को प्राप्त होता है... और उसी तीव्रता के कारण मैं पहुंच जाती हूं अपने शिवबाबा के बिल्कुल पास... और मुझे आभास होता है... कि मानो बाबा मुझे कह रहे हो मेरे मीठे बच्चे... जब जब तुम अपने दिल से मुझे याद करोगे तो हमेशा ही मुझे अपने करीब अनुभव कर पाओगे... परन्तु अगर सिर्फ जुबान से बाबा शब्द कहोगे तो मुझे अपने पास सदाकाल के लिए अनुभव नहीं कर पाओगे... बाबा की ये बातें सुनकर मैं चिंतन करती हूं कि जब दिल से बाबा कहने से इतनी प्राप्तियां और सुख घनेरे मिलते है तो मैं इस क्यों ना करूँ...

 

 _ ➳  और बाबा से मीठी-मीठी बातें करके मैं आत्मा... अपने मन बुद्धि को बाबा शब्दों में समेटते हुए... अपने प्यारे बाबा के साथ आकर... एक चमकते हुए सितारे पर बैठ जाती हूँ... और अपने प्यारे बाबा की किरणों रूपी झूले में झूल कर अपनी सौभाग्यशाली स्थिति में डूब जाती हूं... और मैं आत्मा अब धीरे-धीरे अपने इस स्थूल देह में आकर विराजमान हो जाती हूँ... जैसे ही मैं अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूं... तो मुझे अपने मन में और बुद्धि में सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबा का ही नाम अनुभव होता है... मुझे अनुभव होता है... कि मेरे बाबा मेरे साथ है... और बाबा की शक्तियां और सर्व खजाने मुझ आत्मा में समा रहे हैं... अब मैं हर पल हर घड़ी सिर्फ और सिर्फ अपने दिल में बाबा का रूप और बाबा का नाम स्मृति में रखती हूं... और हमेशा अपने आप को बाबा के करीब अनुभव करती हूँ...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━