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 23 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ बाप की याद से आशीर्वाद ली ?

 

➢➢ विचित बन अपने स्वधर्म में टिके ?

 

➢➢ परमात्म लव में लीन व मिलन में मगन हुए ?

 

➢➢ व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन रखा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अब सेवा के कर्म के भी बन्धन में नहीं आओ। हमारा स्थान, हमारी सेवा, हमारे स्टूडेंट, हमारी सहयोगी आत्माएं, यह भी सेवा के कर्म का बन्धन है, इस कर्मबन्धन से कर्मातीत। तो कर्मातीत बनना है और 'यह वही हैं, यही सब कुछ हैं,' यह महसूसता दिलाए आत्माओं को समीप ठिकाने पर लाना है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ"

 

  अपने को इस विशाल ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? आप सबका हीरो पार्ट है। हीरो पार्टधारी क्यों बने? क्योंकि जो ऊंचे ते ऊंचा बाप जीरो है - उसके साथ पार्ट बजाने वाले हो। आप भी जीरो अर्थात् बिन्दी हो। लेकिन आप शरीरधारी बनते हो और बाप सदा जीरो है।

 

  तो जीरो के साथ पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर हैं - यह स्मृति रहे तो सदा ही यथार्थ पार्ट बजायेंगे, स्वत: ही अटेन्शन जायेगा। जैसे हद के ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी को कितना अटेन्शन रहता है! सबसे बड़े ते बड़ा हीरो पार्ट आप सबका है। सदा इस नशे और खुशी में रहो - वाह, मेरा हीरो पार्ट जो सारे विश्व की आत्मायें बार-बार हेयर-हेयर करती हैं!

 

  यह द्वापर से जो कीर्तन करते हैं यह आपके इस समय के हीरो पार्ट का ही यादगार है। कितना अच्छा यादगार बना हुआ है! आप स्वयं हीरो बने हो तब आपके पीछे अब तक भी आपका गायन चलता रहता है। अन्तिम जन्म में भी अपना गायन सुन रहे हैं। गोपीवल्लभ का भी गायन है तो ग्वाल बाप का भी गायन है, गोपिकाओंका भी गायन है। बाप का शिव के रूप में गायन है तो बच्चों का शक्तियों के रूप में गायन है। तो सदा हीरो पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं - इसी स्मृति में खुशी में आगे बढ़ते चलो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सभी अपने को राजयोगी अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन-सा है? आसन किसको कहेंगे? भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं। कभी अपने स्वमान की स्थिति में स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है।

 

✧  कभी बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में स्थित होते तो वह दिलतखत स्थिति आसन बन जाती है। जैसे आसन पर स्थित होते हैं, एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो।

 

✧  तो वेरायटी अच्छा लगता है ना। एक ही चीज कितनी भी बढिया हो, लेकिन वही चीज बार-बार अगर यूज करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वेरायटी अच्छी लगेगी। तो बापदादा ने वेरायटी स्थितियों के वेरायटी आसन दे दिये हैं।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ ब्राह्मण जीवन अर्थात वाह-वाह! हाय-हाय नहीं। शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहीं, वाह! यह भी बोझ उतरता है। अगर १० मन से आपका ३-४ मन बोझ उतर जाये तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है? वाह बोझ उतरा! हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? वाह-वाह! करते जाओ तो वाह-वाह! करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी। तो व्याधि को भी वाह-वाह! कहो। हाय यह मेरे पास ही क्यों आई, मेरा ही हिसाब है। प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। प्राप्तियाँ सामने रखो और हिसाब-किताब सामने रखो तो वह क्या है? क्या लगेगा? बहुत छोटी-सी चीज़ लगेगी। मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाये, पॉजिटिव रूप में देखो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  "ड्रिल :- बाप को प्यार से याद करना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा की सुनहरी यादों में खोई हुई,अपना सुनहरा शरीर धारण कर उड़ चलती हूँ... मधुबन बाबा के कमरे में... अपनी मुस्कान बिखेरते बापदादा अपने तेजस्वी सुनहरी किरणों की बाँहों को फैलाते हुए मुझे अपने पास बुलाते हैं... मैं आत्मा तुरंत उनकी बाँहों में समा जाती हूँ और उनके मखमली सपर्श से अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूँ... फिर बाबा मुझे बगीचे में लेकर जाते हैं... और सैर करते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...

❉  अनंत शक्तियों से भरपूर कर सत्यता के प्रकाश से आलोकित करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने खुबसूरत फूल थे... पर देह के भान ने उजले स्वरूप को निस्तेज कर दिया... और विकर्मो से दामन भर दिया... अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम रंग में रंग जाओ और सतयुगी सुखो के अधिकारी बन सदा के मुस्कराओ...”

➳ _ ➳  अपने सत्य स्वरुप में स्थित होकर यादों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके सच्चे प्रेम को पाकर दुनियावी रिश्तो से उपराम हो गई हूँ... विकारो से मुक्त होकर खुबसूरत जीवन की मालिक बन... मीठे बाबा आपकी गोद में फूलो सा मुस्करा रही हूँ...”

❉  विकारों रूपी काँटों को निकाल अपने बगीचे का महकता फूल बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले संग में आकर अपने सत्य मणि स्वरूप को ही भूल गए हो... अब ईश्वर पिता की मीठी यादो में उसी ओज से भरकर सुखो की बहारो में झूम जाओ... सब संग तोड़ सच्चे साथी के संग सदा के जुड़ जाओ...”

➳ _ ➳  प्यारे बाबा की यादों में समाकर खुशियों के आसमान में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के भान में विकर्मो का खाते को किस कदर बढ़ाती जा रही थी... प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन खुशियो से भर दिया है... मेरे आत्मिक स्वरूप का परिचय कराकर मुझे गुणो से सजा दिया है...”

❉  अपनी किरणों की ज्वाला से जन्मजन्मान्तर के विकर्मों को भस्म कर दिव्य गुणों से सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस देह के भान ने जीवन विकारो की कालिमा से भरकर दारुण दुखो से भर दिया...  उसे छोड़ अब आत्मिक नशे में डूब जाओ... मीठे बाबा के सच्चे संग में आनन्द के गीत गाओ... सब जगह से बुद्धि निकाल ईश्वर पिता के प्यार में खो जाओ...”

➳ _ ➳  मीठे बाबा की मीठी यादों की रश्मियों से ऊँचे आसमान में अपने भाग्य का झंडा लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पाकर सदा खुशनसीब हो गयी हूँ... मीठे बाबा आपका प्यार पाकर मै आत्मा विकारो के जंजाल से निकल अपने खुबसूरत मणि रूप में खिल गयी हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- रूहानी पढ़ाई में पास होने के लिए बाप की याद से आशीर्वाद लेनी है"

➳ _ ➳  एक एकांत स्थान पर बैठ मैं विचार कर रही हूँ कि सत्यता का बोध ना होंने के कारण सभी मनुष्य मात्र दैहिक सुखों को पाने की लालसा में भगवान से कृपा ही मांगते रहते हैं। बेचारे इस बात से सर्वथा अनजान है कि जिन सुखों को पाने के लिय परमात्मा की कृपा मांग रहें है उनसे मिलने वाला सुख और शांति तो विनाशी है, क्षण भंगुर है। सच्चा सुख और शांति तो परमात्मा द्वारा बताए उस सत्य मार्ग में चल कर ही मिल सकती है जो वो स्वयं इस समय आ कर बता रहें हैं। टीचर बन ऐसी पढ़ाई पढा रहें हैं जिसे पढ़ना स्वयं पर आपे ही कृपा करना है। क्योंकि राजयोग की जो पढ़ाई इस समय भगवान आ कर पढा रहें हैं उसे अच्छी रीति पढ़ना और जीवन मे धारण करना भविष्य 21 जन्मो के लिए ऐसी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाला है जिसके बाद किसी कृपा या आशीर्वाद की दरकार ही नही रहेगी।

➳ _ ➳  बाबा यह पढ़ाई पढ़ाकर 21 जन्मो के लिए जीवन को सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर कर देते हैं। तो कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो उस भगवान से पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिल रहा है। दुनिया उस भगवान के दर्शनों की प्यासी है और वो भगवान टीचर बन हर रोज मेरे सन्मुख आकर ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भर देता है। ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटाकर मुझे हर रोज मालामाल कर देता है। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते है मन मे यह विचार आते ही एक अनोखी खुशी और नशे से मैं आत्मा भरपूर होने लगती हूँ और अपने टीचर बाप से मिलने की लगन मन मे लेकर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को स्थिर करके बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳  मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं वैसे ही मैं आत्मा अशरीरी स्थिति में स्थित होने लगती है और देह भान से मुक्त, अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने सत्य स्वरूप में टिकते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं आत्मा देही इस देह में होते हुए भी इस देह से अटैच नही हूँ। देख रही हूँ मैं स्वयं को एक चैतन्य दीपक के रूप में जो भृकुटि की कुटिया में जगमग करता हुआ बहुत ही सुन्दर और लुभावना दिखाई दे रहा है। अपने इस स्वरूप में मैं अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके आनन्दविभोर हो रही हूँ। मेरे अंदर निहित गुण और शक्तियाँ प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ से निकल कर मेरे चारों और फैल रही हैं। औंस की रिमझिम फ़ुहारों की तरह मुझ आत्मा से निकल रहे गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स मेरे चारों और वायुमण्डल में फैल कर मेरे ही ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता प्रदान कर रहें हैं।

➳ _ ➳  अपने गुणों और शक्तियों की रिमझिम फ़ुहारों का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा अब देह की कुटिया से बाहर आ गई हूँ और देख रही हूँ अपने जड़ शरीर को जो जमीन पर लेटा हुआ है। जिसमे अब किसी भी प्रकार की कोई हलचल नही है। अपने इस शरीर को साक्षी होकर देखते हुए, इसके आकर्षण से मुक्त होकर अब मैं इससे दूर ऊपर आकाश की ओर उड़ रही हूँ। सेकण्ड में 5 तत्वों की साकारी और फरिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया मूल वतन में ज्ञानसागर अपने प्यारे शिव पिता के पास। उनकी शक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे ज्ञान सागर शिव बाबा से आ रही ज्ञान की रिमझिम फुहारें अति तीव्र वेग के साथ मेरे उपर बरस रही हैं और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रही हैं।

➳ _ ➳  विकारो की कट जैसे - जैसे उतर रही है मेरा स्वरूप परिवर्तित हो रहा है। मेरी चमक बढ़ रही है और दूर - दूर तक फैल रही है। अपने इस तेजोमय स्वरूप को देख मैं आत्मा आनन्द विभोर हो रही हूँ। ज्ञान की शीतल फुहारें निरन्तर मेरे ऊपर बरस रही है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान सागर बाबा की शीतल किरणो का स्पर्श पाकर मैं आत्मा भी बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बन गई हूँ। ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर, अपने साकार तन में मैं आत्मा प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो चुकी हूँ और पढ़ाई पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। टीचर बन मेरे प्यारे पिता मुरली के माध्यम से जो पढ़ाई मुझे हर रोज पढ़ाने आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़कर, जीवन मे धारण करके, बाप से कृपा मांगने के बजाए मैं आप ही स्वयं पर कृपा करती जा रही हूँ और सबको यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं परमात्म लव में लीन होने वा मिलन में मग्न होने वाली सच्ची स्नेही आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन रखने वाली अंतर्मुखी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. जिस भी बच्चे को देखेंजो भी मिलेसंबंध-सम्पर्क में आयेउन्हों को यह लक्षण दिखाई दें कि यह जैसे परमात्मा बाप, ब्रह्मा बाप के गुण हैंवह बच्चों के सूरत और मूरत से दिखाई दें। अनुभव करें कि इनके नयनइनके बोलइन्हों की वृत्ति वा वायब्रेशन न्यारे हैं।

 

 _ ➳  2. जो बच्चा जहाँ भी रहता हैजो भी कर्मक्षेत्र हैहर एक बच्चे से बाप समान गुणकर्म और श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल अनुभव में आयेइसको बापदादा कहते हैं - बाप समान बनना। जो अभी तक संकल्प है बाप समान बनना ही हैवह संकल्प अभी चेहरे और चलन से दिखाई दे। जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उनके दिल से यह आवाज निकले कि यह आत्मायें बाप समान हैं।

 

 _ ➳  बापदादा अभी सभी बच्चों से यह प्रत्यक्षता चाहते हैं। जैसे वाणी द्वारा प्रत्यक्षता करते हो तो वाणी का प्रभाव पड़ता हैउससे भी ज्यादा प्रभाव गुण और कर्म का पड़ता है। हर एक बच्चे के नयनों से यह अनुभव हो कि इन्हों के नयनों में कोई विशेषता है। साधारण नहीं अनुभव करें। अलौकिक हैं। उन्हों के मन में क्वेश्चन उठे कि यह कैसे बनेंकहाँ से बनें। स्वयं ही सोचें और पूछें कि बनाने वाला कौन? जैसे आजकल के समय में भी कोई बढ़िया चीज देखते हो तो दिल में उठता है कि यह बनाने वाला कौन है! ऐसे अपने बाप समान बनने की स्थिति द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो।

 

 _ ➳  आजकल मैजारिटी आत्मायें सोचती हैं कि क्या इस साकार सृष्टि मेंइस वातावरण में रहते हुए ऐसे भी कोई आत्मायें बन सकती हैं! तो आप उन्हों को यह प्रत्यक्ष में दिखाओ कि बन सकता है और हम बने हैं। आजकल प्रत्यक्ष प्रमाण को ज्यादा मानते हैं। सुनने से भी ज्यादा देखने चाहते हैं तो चारों ओर कितने बच्चे हैंहर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाए तो मानने और जानने में मेहनत नहीं लगेगी।

 

✺   ड्रिल :-  "बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बनने का अनुभव"

 

 _ ➳  अब तक मैं आत्मा झूठे जिस्मानी प्रेम की मृगतृष्णा में भटक रही थी... जिसके द्वारा जन्म जन्मांतर दुःख पाती रही... मेरे मीठे बाबा ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को दुःखों से छुड़ा... अपने स्नेह... प्यार की पालना देकर... अपने गले से लगा लिया... वाह रे मैं भाग्यशाली आत्मा!! जो परमात्मा स्वयं मुझे अपने जैसा बनने की पढ़ाई पढ़ाने रोज़ धरा पर आते हैं...   

 

 _ ➳  अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को देख कर गर्व करती मैं आत्मा... स्वयं भगवान मेरा है... उसका सबकुछ मेरा हो गया है... उसने अपने सर्व वरदान और सर्वशक्तियां मुझे दे दी हैं... आहा!! मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य... इस अंतिम जन्म में हर पल भगवान मेरे साथ है... स्वयं भगवान मुझ आत्मा को सर्व सम्बन्धों की पालना दे रहे हैं...  बाबा के सानिध्य से प्राप्त इन सर्व शक्तियों को धारण कर... मैं आत्मा धारणा स्वरूप बन गयी हूँ... 

 

 _ ➳  जैसे ही मैं आत्मा अपने पवित्र स्वरूप में टिकती हूँ... मुझ आत्मा के सम्पर्क में जो भी आत्माऐं आती हैं... वह मन-वचन-कर्म से पवित्रता का अनुभव करती हैं... मैं आत्मा स्वराज्य के धर्म और बाबा द्वारा दी गई सभी मर्यादाओं का पालन करती हूँ... संकल्प व स्वप्न में भी मेरे प्यारे शिवबाबा के सिवाय और कोई नही... मुझे बाबा को प्रत्यक्ष करना ही है... करना ही है... सभी आत्माओं को बाबा का बनाना ही है...

 

 _ ➳  कर्मक्षेत्र में जो भी आत्माऐं मुझ आत्मा के सम्बन्ध सम्पर्क में आती हैं... मुझ आत्मा की रूहानियत उन्हें बाबा की ओर आकर्षित करती हैं... मेरे मधुर बोल... उन्हें शांति का अनुभव कराते हैं... मेरे नयनों से उन्हें अलौकिकता... स्पष्ट दिखाई देती है... मेरे हर कर्म से... चाल चलन से... झलकती हुई दिव्यता उन्हें भरसक मेरी ओर आकर्षित करती है...   

 

 _ ➳  मेरा हर बोल बाप समान... जो बाबा का संकल्प... वही मुझ आत्मा का संकल्प... मेरी हर श्वांस... हर सेकंड... तन-मन-धन... बाप समान बन रहा है... मैं आत्मा जहाँ भी जाती हूँ... सारे वातावरण को रूहानियत की खुशबू से महका देती हूँ... बाबा से प्राप्त गुणों और शक्तियों का प्रभाव... हर कर्म से झलकती दिव्यता... अलौकिकता... सभी आत्माओं को सोचने में मजबूर कर देती है... आखिर इन ब्रह्माकुमारियों को ऐसा क्या मिला है जो ये सदा खुश रहती हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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