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 21 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ साक्षी हो सब कुछ देखते हुए बुधी योग नयी दुनिया से लगाया ?

 

➢➢ "हम वापिस घर लौट रहे हैं" - यह बुधी में रहा ?

 

➢➢ अपने पोजीशन की स्मृति द्वारा माया पर विजय प्राप्त की ?

 

➢➢ आत्मा रुपी पुरुष को श्रेष्ठ बनाने वाले ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  लास्ट सो फास्ट पुरुषार्थ ज्वाला-रुप का ही रहा हुआ है। पाण्डवों के कारण यादव रुके हुए हैं। पाण्डवों की श्रेष्ठ शान, रुहानी शान की स्थिति यादवों के परेशानी वाली परिस्थिति को समाप्त करेगी। तो अपनी शान से परेशान आत्माओं को शान्ति और चैन का वरदान दो। ज्वाला स्वरुप अर्थात् लाइट हाउस और माइट हाउस स्थिति को समझते हुए इसी पुरुषार्थ में रहो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मा हूँ"

 

  सदा यह नशा रहता है कि हम कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मायें बनते हैं? कितनी बार आपकी पूजा हुई है? पूज्य आत्मा हूँ-यह पूज्यपन की अनुभूति क्या होती है? निशानी क्या है? किस विशेषता के आधार पर कोई पूज्य बनता है? लौकिक में भी देखो-किसको कहते हैं कि यह तो पूज्य है। पूज्य आत्मा की निशानी है-वह कभी भी किसी भी वस्तु के पीछे, व्यक्ति के पीछे झुकेगा नहीं। सब उसके आगे झुकेंगे लेकिन वह झुकेगा नहीं। नम्रता से झुकना-वह अलग चीज है। लेकिन झुकना अर्थात् प्रभावित होना। पूज्य के आगे सब झुकते हैं, पूज्य नहीं झुकता है।

 

  तो किसी भी प्रकार के व्यक्ति या वैभव की आकर्षण झुका लेवे-यह पूज्य की निशानी नहीं है। तो यह चेक करो कि कभी भी, किसी भी आकर्षण में मन और बुद्धि झुकती तो नहीं है, प्रभावित तो नहीं होते हो? सिवाए एक बाप के और कहाँ भी मन और बुद्धि का झुकाव नहीं। पूज्य अर्थात् झुकाने वाला, न कि झुकने वाला। जो कल्प-कल्प का पूज्य होगा उसकी निशानी क्या होगी? सिवाए बाप के, और कहाँ भी आंख नहीं डूबेगी। यह बहुत अच्छा है, यह बहुत अच्छी चीज है-नहीं। पूज्य आत्माओंके आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं। 

 

  लगाव तब होता है जब झुकाव होता है। बिना लगाव के झुकाव नहीं होता। आज के भक्तों का भी चाहे अल्पकाल की प्राप्ति की तरफ लगाव हो, तभी झुकाव होता है। आजकल पूज्य की तरफ लगाव नहीं है, अल्पकाल की प्राप्ति के तरफ लगाव है। लेकिन प्राप्ति कराने वाली पूज्य आत्मायें हैं, इसलिये झुकते उनकी तरफ ही हैं। तो समझा, पूज्य की निशानी क्या है? कल्प-कल्प की श्रेष्ठ पूज्य आत्मायें सदा स्वयं को सम्पन्न अनुभव करेंगी। जो सम्पन्न होता है उसकी आंख किसमें भी नहीं जाती। पूज्य आत्मा सम्पन्न होने के कारण सदा ही अपने रूहानी नशे में रहेगी। उनके मन-बुद्धि का झुकाव कहाँ भी नहीं होगान देह के सम्बन्ध में, न देह के पदार्थ में। सबसे न्यारा और सबसे प्यारा। ब्राह्मण जीवन का मजा जीवन्मुक्त स्थिति में है। न्यारा अर्थात् मुक्त। संस्कार के ऊपर भी झुकाव नहीं। जब कहते हो कि क्या करुँ, कैसे करुँ-तो उस समय जीवन्मुक्त हुए या जीवन-बन्ध? करना नहीं चाहते थे लेकिन हो गया-यह है जीवन-बन्ध बनना। इच्छा नहीं थी लेकिन अच्छा लग गया, शिक्षा देनी थी लेकिन क्रोध आ गया-यह है जीवन-बन्ध स्थिति। ब्राह्मण अर्थात् जीवन्मुक्त। कभी भी किसी बंधन में बंध नहीं सकते।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सदा अपनी स्मृति की समर्थी से अपने तीनों स्थान और तीनों स्थिति, निराकारी आकारी और साकारी तीनों स्थिति में सहज ही स्थित हो सकते हो?

 

✧  जैसे आदि स्थिति साकार स्वरुप में सहज ही स्थित रहते हो ऐसे अनादि निराकारि स्थिति इतनी ही सहज अनुभव होती है? अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो?

 

✧  जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अनेक बन्धनों से मुक्त एक बाप के सम्बन्ध में समझो तो सदा
एवर-रेडी रहेंगे। संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस करो। कितना भी सेवा में बिज़ी हों, कार्य की चारों ओर की खींचतान हो, बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिज़ी हो- ऐसे टाइम पर अशरीरी बनने का अभ्यास करके देखो। यथार्थ सेवा का कभी बन्धन होता ही नही। क्योंकि योग युक्त, युक्तियुक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं। ऐसे नहीं कि सेवा ज़्यादा है इसलिए अशरीरी नहीं बन सकते। याद रखो मेरी सेवा नहीं बाप ने दी है तो निर्बन्धन रहेंगे। 'ट्रस्टी हूँ, बन्धनमुक्त हूँ' ऐसी प्रैक्टिस करो। अति के समय अन्त की स्टेज, कर्मातीत अवस्था का अभ्यास करो तब कहेंगे तेरे को मेरे में नहीं लाया है। अमानत में ख्यानात नहीं की है समझा, अभी का अभ्यास क्या करना है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अब घर लौटना है इसलिए पुरानी दुनिया को भूल जाना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा घर की छत पर बैठी उड़ते हुए पंछियों को निहार रही हूँ... संध्या की सुमधुर वेला में सभी पंछी वापस अपने घोंसलों में लौट रहे हैं... इन पंछियों को देख मुझ आत्मा को अपना घर परमधाम याद आ गया... अब मुझे भी अपने घर वापस जाना है... पहले मैं आत्मा भगवान को पाने के लिए दर-दर भटक रही थी... मंदिरों में, तीर्थों पर ढूंढ रही थी... जप, तप, पूजा, पाठ, यज्ञ, व्रत करते-करते थक गई थी... स्वयं भगवान ने कोटों में से मुझे ढूंढकर अपना बनाया और मेरी भटकन को समाप्त कर दिया... अब मीठे बाबा रूहानी पंडा बन मुझ आत्मा को रूहानी यात्रा करा रहे हैं... मैं आत्मा चल पड़ती हूँ रूहानी यात्रा करती हुई रूहानी बाबा के पास...

❉ दर-दर की भटकन को खत्म कर स्वीट होम की याद दिलाते हुए स्वीट बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... खुबसूरत फूल से जो धरा पर खेलने आये थे... वह खेल अब अंतिम पड़ाव पर आ गया है... इसलिए अब पिता का हाथ पकड़कर घर चलने की तैयारी में जुटो... बुद्धि को समेटो और साजो सामान को बिन्दु कर अशरीरी हो जाओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होकर मीठे बाबा की बाहों में मुस्कुराती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोकर अथाह सुख भरी दुनिया की अधिकारी बन रही हूँ... अब हर भटकन से मुक्त होकर सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... प्यारे बाबा आप संग घर चलने को तैयार हो रही हूँ...”

❉ जीवन की राह से कांटो को निकाल दिव्य किरणों की राह दिखाते हुए मनमीत मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब बेहद की रात पूरी होने को है... मीठे सुख भरे दिन आये की आये... बेहद के खुबसूरत खिले दिन के सच्चे सुखो में फिर आना है... सच्चा हँसना और मुस्कराना है... इसलिए देह की दुनिया से उपराम हो सच्ची यादो में खो जाओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा रूहानी बाबा का हाथ थाम उनके संग रूहानी यात्रा करते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका हाथ थाम कर हर भटकन से मुक्त हो गई हूँ... ईश्वर पिता के सच्चे साथ में महफूज़ हो गयी हूँ... देह के दुखो से निजात पाकर अपने अविनाशी वजूद और निराकारी पिता की बाँहों में खो गयी हूँ..."

❉ मीठे यादों के जहाज में बिठाकर इस दुनियावी समंदर के पार ले जाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब स्वयं को कहीं भी उलझाने और भटकाने की जरूरत नही है... अब मन्नतो का फल खुदा को ही पा लिए हो... तो उसके प्यार में फूलो सा मुस्कराओ और इन मीठी महकती यादो में खोये हुए अपने घर चलने की तैयारी करो..."

➳ _ ➳ प्यारे बाबा की मधुर रागिनी से प्यार में डूबकर अशरीरी बन घर जाने को तैयार होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे तो स्वयं बाबा लेने आया है... मै आत्मा बाबा का हाथ पकड़कर सबसे आगे चलूंगी... और मीठे सुखो की नगरी में सबसे पहले मै ही तो उतरूंगी..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- दैवी गुण धारण करने और कराने हैं"

➳ _ ➳ एकांत में अंतर्मुखी बन कर बैठी मैं ब्राह्मण आत्मा विचार करती हूँ कि मेरा यह जीवन जो कभी हीरे तुल्य था आज रावण की मत पर चलने से कैसा कौड़ी तुल्य बन गया है! दैवी गुणों से सम्पन्न थी मैं आत्मा और आज आसुरी अवगुणों से भर गई हूँ। रावण रूपी 5 विकारों की प्रवेशता ने मेरे दैवी गुण छीन कर मेरे अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहँकार पैदा कर मेरे जीवन को ही श्रापित कर दिया है और अब जबकि स्वयं भगवान आकर मेरे इस श्रापित जीवन से मुझे छुड़ा कर फिर से पूज्य देवता बना रहे हैं तो मेरा भी यह परम कर्तव्य बनता है कि उनकी श्रेष्ठ मत पर चल कर, अपने जीवन मे दैवी गुणों को धारण कर अपने जीवन को पलटा कर भविष्य जन्म जन्मान्तर के लिए सुख, शांति और पवित्रता का वर्सा उनसे ले लूँ। मन ही मन इन्ही विचारो के साथ अपने दैवी गुणों से सम्पन्न स्वरूप को मैं स्मृति में लाती हूँ और अपने उस अति सुन्दर दिव्य स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहारने मे मगन हो जाती हूँ।

➳ _ ➳ दैवी गुणों से सजा मेरा पूज्य स्वरूप मेरे सामने है। लक्ष्मी नारायण जैसे अपने स्वरूप को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। अपने सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप में मैं बहुत ही शोभायमान लग रही हूँ। मेरे चेहरे की हर्षितमुखता, नयनो की दिव्यता, मुख मण्डल पर पवित्रता की दिव्य आभा मेरे स्वरूप में चार चांद लगा रही है। अपने इस अति सुन्दर स्वरूप का भरपूर आनन्द मैं ले रही हूँ । मन ही मन अपनी इस ऐम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख, ऐसा बनने की मन मे दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने जीवन को पलटाने के लिए दैवी गुणों को धारण करने का संकल्प लेकर, पुजारी से पूज्य बनाने वाले अपने परमपिता परमात्मा का दिल की गहराइयों से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ और 63 जन्मो के आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में दग्ध करने के लिए अपने प्यारे पिता की याद में अब सम्पूर्ण एकाग्रचित होकर बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति जैसे - जैसे बढ़ने लगती है मेरा वास्तविक स्वरूप मेरे सामने पारदर्शी शीशे के समान चमकने लगता है और अपने स्वरूप का मैं आनन्द लेने में व्यस्त हो जाती हूँ। एक चमकते हुए बहुत ही सुन्दर स्टार के रूप में मैं स्वयं को देख रही हूँ। उसमे से निकल रही रंगबिरंगी किरणें चारों और फैलते हुए बहुत ही आकर्षक लग रही हैं। उन किरणों से मेरे अंदर समाये गुण और शक्तियों के वायब्रेशन्स जैसे - जैसे मेरे चारों और फैल रहें है, एक सतरंगी प्रकाश का खूबसूरत औरा मेरे चारो और बनता जा रहा है। प्रकाश के इस खूबसूरत औरे के अंदर मैं स्वयं को ऐसे अनुभव कर रही हूँ जैसे किसी कीमती खूबसूरत जगमगाती डिब्बी के अंदर कोई बहुमूल्य हीरा चमक रहा हो और अपनी तेज चमक से उस डिब्बी की सुंदरता को भी बढ़ा रहा हो।

➳ _ ➳ सर्वगुणों औऱ सर्वशक्तियों की किरणें बिखेरते अपने इस सुन्दर स्वरूप का अनुभव करके और इसका भरपूर आनन्द लेकर अब मैं चमकती हुई चैतन्य शक्ति देह की कुटिया से निकल कर, स्वयं को कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे शिव बाबा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। प्रकाश के उसी खूबसूरत औरे के साथ मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपनी किरणे बिखेरती हुई अब धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश में पहुँच कर, उसे पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर मे पहुँच जाती हूँ। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में चारों और चमकती जगमग करती मणियों के बीच मैं स्वयं को देख रही हूँ। चारों और फैला मणियो का आगार और उनके बीच मे चमक रही एक महाज्योति। ज्ञानसूर्य शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलाते हुए इन चमकते हुए सितारों के बीच बहुत ही लुभावने लग रहे हैं। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों का तेज प्रकाश पूरे परमधाम घर मे फैल रहा है जो हम चैतन्य मणियों की चमक को कई गुणा बढ़ा रहा है।

➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के इस सुंदर मनमनोहक स्वरूप को देखते हुए मैं चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे उनके नजदीक जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में ऐसे समा जाती हूँ जैसे एक बच्चा अपनी माँ के आंचल में समा जाता है। मेरे पिता का प्यार उनकी अथाह शक्तियों के रूप में मेरे ऊपर निरन्तर बरस रहा है। मेरे पिता के निस्वार्थ, निष्काम प्यार का अनुभव, उनका प्यार पाने की मेरी जन्म - जन्म की प्यास को बुझाकर मुझे तृप्त कर रहा है। परमात्म प्यार से भरपूर होकर योग अग्नि में अपने विकर्मों को दग्ध करने के लिए अब मैं बाबा के बिल्कुल समीप जा रही हूँ और उनसे आ रही जवालास्वरूप शक्तियों की किरणों के नीचे बैठ, योग अग्नि में अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को जलाकर भस्म कर रही हूँ। बाबा की शक्तिशाली किरणे आग की भयंकर लपटों का रूप धारण कर मेरे चारों और जल रही है, जिसमे मेरे 63 जन्मो के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं आत्मा शुद्ध पवित्र बन रही हूँ।

➳ _ ➳ सच्चे सोने के समान शुद्ध और स्वच्छ बनकर अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत पर चल कर, अब मैं अपने जीवन को पलटाने और श्रेष्ठ बनाने के लिए स्वयं में दैवी गुणों की धारणा करने के लिए फिर से साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूज्य बनने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। अपने आदि पूज्य स्वरूप को सदा स्मृति में रखते हुए, बाबा की याद से पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को दग्ध कर, नए दैवी संस्कार बनाने का पुरुषार्थ करते हुए अब मैं स्वयं का परिवर्तन बड़ी सहजता से करती जा रही हूँ

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं अपने पोजीशन की स्मृति द्वारा माया पर विजय प्राप्त करने वाली निरन्तर योगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्मा रूपी पुरुष को श्रेष्ठ बनाने वाली सच्ची पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ क्योंकि आप सभी ब्राह्मण आत्माओं का विश्व के मंच पर हीरो और हीरोइन का पार्ट है। ऐसी हीरो पार्टधारी आत्माओं का एक-एक सेकण्ड, एक-एक संकल्प, एक-एक बोल, एक-एक कर्म, हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान है। अगर एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो जैसे हीरे को गँवाया। अगर कीमती से कीमती हीरा किसका गिर जाए, खो जाए तो वह सोचेगा ना - कुछ गँवाया है। ऐसे एक हीरे की बात नहीं। अनेक हीरों की कीमत का एक सेकण्ड है। इस हिसाब से सोचो। ऐसे नहीं कि साधारण रूप में बैठे-बैठे साधारण बातें करते-करते समय बिता दो। फिर क्या कहते - कोई बुरी बात तो नहीं की, ऐसे ही बातें कर रहे थे, ऐसे ही बैठे थे, बातें कर रहे थे। ऐसे ही चल रहे थे। यह ऐसे-ऐसे करते भी कितना समय चला जाता है। ऐसे ही नहीं लेकिन हीरे जैसे हैं। तो अपने मूल्य को जानो।

➳ _ ➳ आपके जड़ चित्रों का कितना मूल्य है। एक सेकण्ड के दर्शन का भी मूल्य है। आपके एक संकल्प का भी इतना मूल्य है जो आज तक उसको वरदान के रूप में माना जाता है। भक्त लोग यही कहते हैं कि एक सेकण्ड का सिर्फ दर्शन दे दो। तो दर्शन ‘समय' की वैल्यु है, वरदान ‘संकल्प' की वैल्यु, आपके बोल की वैल्यु - आज भी दो वचन सुनने के लिए तड़पते हैं। आपके दृष्टि की वैल्यु आज भी नज़र से निहाल कर लो, ऐसे पुकारते रहते हैं। आपके हर कर्म की वैल्यु है। बाप के साथ श्रेष्ठ कर्म का वर्णन करते गद्गद् होते हैं। तो इतना अमूल्य है आपका हर सेकण्ड, हर संकल्प। तो अपने मूल्य को जान व्यर्थ और विकर्म वा विकल्प का त्याग।

✺ "ड्रिल :- अपने हर सेकेंड, संकल्प, बोल और कर्म के मूल्य को समझना "

➳ _ ➳ मैं आत्मा कुछ कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए हुए नाटक को देखने के लिए आती हूं... जहां मुझे आकर अनेक तरह के भिन्न-भिन्न चित्र दिखाई पड़ते हैं... मैं वहां देखती हूं कि वहां पर बैठे सभी लोग जो सामने नाटक प्रस्तुत कर रहे हैं उस हीरो पार्ट धारी को बहुत गौर से देख रहे हैं... मेरी भी बार बार नजर नाटक के हीरो पर ही जाती है... मेरा सारा ध्यान नाटक के हीरो के हर छोटे बड़े एक्शन की तरफ जाता है... उनकी हर छोटी बड़ी बात मुझे प्रभावित करती है... यूं तो वहां और भी कलाकार थे परंतु हम सभी बार-बार मुख्य भूमिका वाले एक्टर को देखने के लिए प्रभावित हो रहे है... और हम सभी श्रोतागण उस ऐक्टर की भूमिका की सराहना कर रहे हैं...

➳ _ ➳ जब यह नाटक समाप्त होता है तो मैं अपने घर चली जाती हूं... और मुझे बार-बार उस हीरो पार्टधारी एक्टर की भूमिका याद आती है... बार-बार मेरी बुद्धि उधर ही चली जाती है... इससे मुझे ज्ञात होता है कि जैसे मेरी बुद्धि बार-बार उधर जा रही है, मैं चाहकर भी उस एक्ट को नहीं भुला पा रही हूं... उसके जैसा ही बनना चाहती हूं, उसके जैसा ही जीवन जीना चाहती हूं, उसकी कही हुई हर बात को अपने अंदर समाना चाहती हूं, उसकी हर कला को अपने अंदर समा कर उसके जैसी ही भूमिका अदा करना चाहती हूं... ऐसे ही सृष्टि रूपी रंगमंच पर सर्वश्रेष्ठ पार्ट निभाने वाले व्यक्ति को सभी लोग बड़ी गहराई से देखते हैं और उसकी कही हुई हर बात का अनुसरण करते हैं...

➳ _ ➳ कुछ देर तक विचार करने के बाद मैं एकांत अवस्था में जाकर बैठ जाती हूं... और विचार विमर्श करने लगती हूं... तभी मेरी नजर एक ऐसे चित्र पड़ जाती है जहां पर सभी ब्राह्मण आत्माएं कल्पवृक्ष की जड़ों में बैठकर इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष को साकाश दे रहे हैं... उस चित्र को देखकर मुझे यह ज्ञात होता है कि यह सभी ब्राह्मण आत्माएं अपने इस संगम युग के महत्वपूर्ण समय को सही तरीके से यूज कर उसका पूर्ण लाभ उठा रहे हैं... और अपना वा पूरे संसार का कल्याण कर रहे हैं... जैसे-जैसे मैं उन ब्राह्मण आत्माओं को जड़ चित्रों के रुप में देखती हूं वैसे वैसे ही मैं शिव बाबा को बीज रूप में अनुभव करती हूं... और कुछ देर के लिए मैं एकदम शांत अवस्था में बैठ जाती हूं...

➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं मन बुद्धि से फरिश्ता स्वरुप में आ जाती हूं और अपने आप को सफ़ेद प्रकाश रूपी शरीर में अनुभव करती हूं... और मैं अनुभव करती हूं कि मुझसे रंग बिरंगी किरणें निकल रही है... और साथ ही यह भी फील करती हूँ कि शिवबाबा बीज रुप में बैठे हुए हैं, और उनसे अद्भुत रंग बिरंगी किरणें मुझ पर आकर गिर रही हैं... और मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुझे कह रहे हैं कि बच्चे तुम भी उस नाटक के हीरो के समान हो... जैसे उस हीरो पार्टधारी को सभी मनुष्य देखते हैं और उसको फॉलो करने की कोशिश करते हैं... वैसे ही तुम्हारा भी चाल- चलन और हर कर्म संकल्प ऐसे होने चाहिए कि आपकी हर एक गतिविधि को अन्य आत्माएं फॉलो कर सके और श्रीमत की राह पर चल सके...

➳ _ ➳ बाबा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए मुझे कहते हैं कि जैसे नाटक में हीरो की समय अवधि निर्धारित होती है... वह कोशिश करता है कि इस समय में वह अपनी सबसे बेहतरीन भूमिका दे सके... वह अपना पूरा जोर लगा देता है... जिसके कारण वह अपना अभिनय सबसे अच्छा देने की कोशिश करता है और उस समय अवधि में वह अपने हर संकल्प बोल को बहुत ही सोच समझकर उपयोग मे लाता है... उसी कारण वह अपना अभिनय सबसे श्रेष्ठ कर पाते हैं... वैसे ही तुम्हें भी अपने समय संकल्प की महत्वपूर्णता को जानते हुए हर कर्म करना है... इन्हीं कर्मों के कारण आप अपनी स्थिति इतनी ऊंची कर सकते हैं की आपकी एक झलक के लिए इस संसार की अन्य आत्माएं तरसती हैं... उनके एक एक बोल को अपने लिए वरदान समझते हैं, और उस वरदान के कारण ही वह आपके आगे नतमस्तक हो जाते हैं इसलिए इस समय की महत्वपूर्णता को जानते हुए अपने संकल्प बोल और कर्मों को इतना महान बनाइए कि आपके वचन और बोल के लिए अन्य आत्माएं युगों-युगों तक आप की पुकार करने लगे और आप के दर्शन मात्र के लिए आपके इंतजार में बैठी रहे... और बाबा की यह बातें सुनकर मेरा मन गदगद हो उठता है... और मैं उसी समय से अपने आपको सृष्टि रूपी रंगमंच की हीरो पार्टधारी के रुप में अनुभव करने लगती हूं...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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