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 22 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ट्रस्टी और अनासक्त होकर रहे ?*

 

➢➢ *नॉलेजफुल बन सर्व व्यर्थ के प्रश्नों को यग्य में स्वाहा किया ?*

 

➢➢ *सदा उमंग उत्साह में रह दूसरों को उमंग उत्साह दिलाया ?*

 

➢➢ *मैं पन की वृत्ति का त्याग किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  एकाग्रता अर्थात् सदा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसे निरन्तर एकरस स्थिति में स्थित होने का विशेष अभ्यास करो। उसके लिए *एक तो व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तन करो। दूसरा माया के आने वाले अनेक प्रकार के विघ्नों को ईश्वरीय लग्न के आधार से सहज समाप्त करते, कदम को आगे बढ़ाते चलो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बुद्धि द्वारा ज्ञान सागर के कण्ठे पर रहने वाली अखूट खजाने की मालिक आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा बुद्धि द्वारा ज्ञान सागर के कण्ठे पर रहने वाले अर्थात् सागर के द्वारा मिले हुए अखुट खजाने के मालिक अपने को समझते हो? *सागर जैसे सम्पन्न है, अखुट है, अखण्ड है, ऐसे ही आत्मायें भी मास्टर, अखण्ड, अखुट खजानों के मालिक हैं। जो खजाने मिले हैं उसको महादानी बन औरों के प्रति कार्य में लगाते रहो।* जो भी सम्बन्ध में आने वाली भक्त वा साधारण आत्मायें हैं उनके प्रति सदा यही लगन रहे कि भक्तों को भक्ति का फल मिल जाए, बिचारे भटक रहे हैं, भटकना देखकर तरस आता है ना!

 

  जितना रहमदिल बनेंगे उतना भटकती हुई आत्माओंको सहज रास्ता बतायेंगे। सन्देश देते चलो - यह नहीं सोचो कि कोई निकलता ही नहीं है। *आप महादानी बनो, सन्देश देते रहो, उल्हना न रह जाए। अविनाशी ज्ञान का कभी विनाश नहीं होता। आज सुनेंगे, एक मास बाद सोचेंगे और सोचकर समीप आ जायेंगे।* इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनना। जो करता है उसका बनता है। और जिसकी करते हो वह भी आज नहीं तो कल मानेंगे जरूर।

 

  *तो अखुट सेवा अथक बनकर करते रहो। कभी भी थकना नहीं क्योंकि बापदादा के पास सबका जमा हो ही जाता है और जो करते हो उसका प्रत्यक्षफल खुशी भी मिल जाती है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *निरंतर हर कर्म करते हुए, लौकिक-अलौकिक कार्य करते हुए स्वराज्य अधिकारी का नशा कितना समय और किस परसेन्टेज में रहता है?* क्योंकि कई बच्चे अपने स्वराज्य के स्मृति को संकल्प रूप में याद करते हैं - मैं आत्मा अधिकारी हूँ, एक है संकल्प में सोचना। बार-बार स्मृति को रिफ्रेश करना - मैं हूँ।

 

✧  दूसरा है - *अधिकार के स्वरूप में स्वयं को अनुभव करना और इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारी तथा मन-बुद्धि-संस्कार रूपी सहयोगी साथियों पर राज्य करना, अधिकार से चलाना।* जैसे आप सभी बच्चे अनुभवी हो कि हर समय बापदादा श्रीमत पर चला रहा है और आप सभी श्रीमत प्रमाण चल रहे हो।

 

✧  चलाने वाला चला रहा है, चलने वाले चल रहे हो। ऐसे, *हे स्वराज्य अधिकारी आत्मायें, क्या आपके स्वराज्य में आपकी कर्मेन्द्रियाँ अर्थात कर्मचारी आपके मन-बुद्धि-संस्कार सहयोगी साथी सभी आपके ऑर्डर में चल रहे हैं?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *संगम पर पहले-पहले क्या बदली करते हैं? पहला पाठ क्या पढ़ाते हैं? भाई-भाई की दृष्टि से देखो। भाई-भाई की दृष्टि अर्थात पहले दृष्टि को बदलने से सब बातें बदल जाती है। इसलिए गायन है कि दृष्टि से सृष्टि बनती है।* जब आत्मा को देखते हैं तब यह सृष्टि पुरानी देखने में आती है। *पुरुषार्थ भी मुख्य इस चीज का ही है - दृष्टि बदलने का।* जब यह दृष्टि बदल जाती है तो स्थिति और परिस्थिति भी बदल जाती है। दृष्टि बदलने से गुण और कर्म आपेही बदल जाते हैं। *यह आत्मिक दृष्टि नैचुरल हो जाये।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मातीत बन घर चलना"*

 

_ ➳  *अमृत की वेला में मनमोहक-मनभावन परम आन्दमय प्रभु मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए... सूर्य को, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली रंग-बिरंगी किरणों को निहार रही हूँ... और विचार कर रही हूँ... कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियो से कितना सजा दिया है... और श्रृंगारित करके मुझ आत्मा को सीधे अपने दिल में सजा दिया है...* बाबा के दिल की प्यारी राजदुलारी बनकर... मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, बाबा के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.... उस के साथ हंसती मुस्कुराती हूँ..... इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मृत कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... वाह मेरा भाग्य जो सपने में भी नहीं सोचा था उसे साकार में पाया है... यही मनभावन जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

_ ➳  *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान का प्रकाश मुझ आत्मा पर डालते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... समय की है अन्तिम वेला जरा गहरे से अब आप गौर फरमाओं... *समय की इस अन्तिम वेला में कर्मातीत तुम बन जाओ... बच्चे गफलत छोड़ इस सच्चे सच्चे पुरूषार्थ में जुट जाओ... कर्मातीत बनने की मंजिल पर पहुंचने के लिए उड़ान जरा जोर से लगाओ..."*

 

  *ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-*  "मीठे-मीठे लाडले ओ बाबा मेरे... आप की इस गहरी सी समझानी को बुद्धि में बिठा रही हूँ... *कर्मातीत बनने के सच्चे-सच्चे पुरूषार्थ की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही हूँ... कर्मातीत स्थिति के प्रवाह में बहती जा रही हूँ... उड़ता पंछी बन अन्दर से अब मुस्कुरा रही हूँ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा को सजाते हुए रत्नाकर बाबा बोले :-* "मीठे मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे मेरे... समाने और समेटने की शक्तियों को अब तुम कार्य में लगाओ... और कर्मातीत बन जाओ... *उड़ता पंछी बन खुले आसमा में बाहे फैलाओं... जरा अटेंशन देकर बच्चे तुम अब कर्मातीत स्थिति बनाने के पुरूषार्थ में लग जाओ..."*

 

  *ज्ञान रत्नों से सज-धज कर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "राजदुलारे प्यारे बाबा मेरे... अटेंशन से कर्मातीत स्थिति के पुरूषार्थ में जुट गई हूं... समाने और समेटने की शक्तियों को कार्य में लगाए रही हूँ... अपनी स्थिति द्वारा सत्यता का प्रकाश फैला रही हूं... *उड़ता पंछी बन आसमा में बाहें फैला रही हूँ... कर्मों के बन्धन से भी मुक्त होने का अनुभव औरों को करा रही हूँ... इस प्रकार अपनी कर्मातीत स्थिति की ओर कदम बढ़ा रही हूँ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... कर्मातीत स्टेज को अब तुम नजदीक लाओ... *बच्चे अटेंशन से अब इस पुरूषार्थ में लग जाओ... अपनी इस अन्तिम अवस्था की तरफ अब तेजी से दौड़ी लगाओ... जीवन की प्रयोगशाला में समेटने और समाने की शक्ति को प्रयोग में ला कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ..."*

 

  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "लाडले ज्ञान सागर बाबा मेरे... सुन के आपकी ये गहरी सी समझानी अटेंशन से इस पुरुषार्थ में जुट गई हूँ... *जीवन रूपी प्रयोगशाला में समाने और समेटने की शक्ति को प्रयोग में लाकर कर्मातीत स्थिति को नजदीक ला रही हूँ... मुक्त पंछी बन उड़ती जा रही हूँ... तेजी से इस पुरूषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस पुरूषार्थ में सफलता पा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ट्रस्टी और अनासक्त बन कर रहना है*"

 

_ ➳  अपने सभी बोझ बाबा को देकर, लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा का आह्वान कर, बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के बाद, मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद में जैसे ही बैठती हूँ* मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए, अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।

 

_ ➳  हर बोझ से मुक्त, हर गम से अनजान सुंदर, सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। *अपनी पलको को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है*। संगमयुग पर परमात्म गोद मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है, तो *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे बोझ ले कर, अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा है*।

 

_ ➳  स्वयं से बातें करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती, अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर, विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *देह से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है*। ऐसे ही आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।

 

_ ➳  आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ*।

 

_ ➳  गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ*। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर करते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करवाती है। *ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते, हर पल, हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं नॉलेजफुल बन सर्व व्यर्थ के प्रश्नों को यज्ञ में स्वाहा करने वाली निर्विघ्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा उत्साह में रहना और दूसरों को उत्साह दिलाना - यही स्वयं का ऑक्यूपेशन बनाने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. रूहानियत नयनों से प्रत्यक्ष होती है... रूहानियत की शक्ति वाली आत्मा सदा नयनों से औरों को भी रूहानी शक्ति देती है... रूहानी मुस्कान औरों को भी खुशी की अनुभूति कराती है... उनकी चलनचेहरा फरिश्तों के समान डबल लाइट दिखाई देता है... ऐसी *रूहानियत का आधार है पवित्रता... जितनी-जितनी मन-वाणी-कर्म में पवित्रता होगी उतना ही रूहानियत दिखाई देगी...* पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है... पवित्रता ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है... तो बापदादा हर बच्चे की पवित्रता के आधार पर रूहानियत को देख रहे हैं... *रूहानी आत्मा इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक फरिश्ता दिखाई देगी...*

 

 _ ➳  2. रूहानी संकल्प अपने में भी शक्ति भरने वाले हैं और दूसरों को भी शक्ति देते हैं... जिसको दूसरे शब्दों में कहते हो रूहानी संकल्प मनसा सेवा के निमित्त बनते हैं... रूहानी बोल स्वयं को और दूसरे को सुख का अनुभव कराते हैं... शान्ति का अनुभव कराते हैं... *एक रूहानी बोल अन्य आत्माओं के जीवन में आगे बढ़ने का आधार बन जाता है...* रूहानी बोल बोलने वाला वरदानी आत्मा बन जाता है... *रूहानी कर्म सहज स्वयं को भी कर्मयोगी स्थिति का अनुभव कराते हैं और दूसरों को भी कर्मयोगी बनाने के सैम्पुल बन जाते हैं...* जो भी उनके सम्पर्क में आते हैं वह सहजयोगीकर्मयोगी जीवन का अनुभवी बन जाते हैं...

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मण जीवन में रूहानियत का अनुभव करना और कराना"*

 

 _ ➳  अपने सर्वोच्च ब्राह्मण जीवन के बारे में विचार करते ही मुझे मेरे ब्राह्मण जीवन के कर्तव्यों का बोध होने लगता हैं... *अपने ब्राह्मण जीवन को रूहानियत से भरपूर कर, औरों को रूहानियत का अनुभव करवा कर, उनके जीवन को भी रूहानियत से भरपूर करना ही मेरे ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है...* अपने इसी लक्ष्य को पाने के लिए, स्वयं में पवित्रता का बल जमा करने के लिए अब मैं अपने परम पवित्र सत्य स्वरूप में स्थित होती हूँ और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ...

 

 _ ➳  मैं परमपवित्र आत्मा इस देह रूपी मन्दिर में स्वयं को देख रही हूँ... भृकुटि सिहांसन पर विराजमान "मैं पवित्रता का देवता" एक चमकते हुए सितारे के रूप में विराजमान हूँ... *पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में मग्न, मैं स्वयं को उनकी छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रही हूँ...* उनसे निकल रही पवित्रता की श्वेत धारा निरन्तर मुझ आत्मा के ऊपर बरस रही है और मुझे अपनी और खींच रही है... रेशम की डोर की भांति पवित्रता की इस श्वेत धारा से बंधी मैं आत्मा ऊपर उड़ रही हूँ... नीले आकाश से परे, श्वेत चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित दिव्य अलौकिक लोक को पार कर मैं पहुंच गई पवित्रता के सागर, पतित पावन परम पिता परमात्मा के पावन लोक परमधाम में...

 

 _ ➳  पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख अब मैं स्वयं को देख रही हूँ... अपनी पवित्र किरणों की फुहारों से वो मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर मुझे शुद्ध, पवित्र बना रहे हैं... पवित्रता की शक्तिशाली किरणों से मैं स्वयं को भरपूर अनुभव कर रही हूँ... *पवित्रता का शक्तिशाली औरा मेरे चारों और निर्मित हो गया है... पवित्रता के इस शक्तिशाली औरे के साथ अब मैं परमधाम से वापिस नीचे आ रही हूँ...* अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं विराजमान हूँ... मेरा पवित्रता का औरा रूहानी शक्ति में परिवर्तित हो रहा है...

 

 _ ➳  रूहानी शक्ति से भरपूर आत्मा बन अपने नयनो से अब मैं सबको रूहानी दृष्टि दे रही हूँ... मेरी रूहानी मुस्कान सभी को खुशी का अनुभव करवा रही है... *पवित्रता का श्रृंगार कर, डबल लाइट फ़रिशता बन मैं औरों को भी लाइट माइट स्थिति का अनुभव करवा रही हूँ...* रूहानी संकल्पो से स्वयं में शक्ति भर कर मैं निर्बल आत्माओं को शक्ति सम्पन्न बना रही हूँ... मेरे रूहानी बोल सभी को सुख और शांति की अनुभूति करवा रहे हैं... *अपने रूहानी कर्मो द्वारा मैं अनेको आत्माओं के सामने सैम्पुल बन, कर्मयोगी स्थिति का अनुभव करवा कर उन्हें भी कर्मयोगी बना रही हूँ...*

 

 _ ➳  इस वर्ल्ड ड्रामा में मैं हाईएस्ट और होलीएस्ट हीरो एक्टर हूँ... सारे संसार की निगाहें मेरी ओर हैं... सभी मुझे संकल्प, बोल व कर्म में फॉलो कर रहे हैं... *विश्व रंगमंच पर अपना हीरो पार्ट बजाते हुए मैं सबको पवित्र रूहानी वायब्रेशन दे रही हूँ...* मेरे पवित्र स्वरूप को देख सभी पवित्र बनने की प्रेरणा ले रहे हैं... मेरी शक्तिशाली रूहानी मनसा वृति से अपवित्र वातावरण स्वत: ही पवित्र वातावरण में परिवर्तित हो रहा है... *जैसे पानी का फव्वारा अपने आस - पास की हर चीज को भिगो देता है ऐसे ही मुझ आत्मा से निकलने वाले रूहानी वायब्रेशन सबको रूहानियत के शीतल जल से भिगो कर उनमें भी रूहानियत की शक्ति भर रहें हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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