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❍ 27 / 04 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सवेरे सवेरे उठ शरीर से न्यारा होने की ड्रिल की ?*
➢➢ *सब कुछ बाप पर न्योछावर कर फिर ट्रस्टी बन संभाला ?*
➢➢ *कोई भी बात कल्याण की भावना से देखी और सुनी ?*
➢➢ *अपने संतुष्ट खुशनुमा जीवन से हर कदम में सेवा कर सच्चे सेवाधारी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अब चारों ओर सेवाकेन्द्र वा प्रवृत्ति के स्थान को शान्ति कुण्ड बनाओ, इसके लिए योग का किला मजबूत करो। किले को मजबूत करने का साधन है-प्युरिटी।* जहाँ पवित्र आत्माएं रहती हैं वहाँ के वायब्रेशन विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति कराते हैं। *पवित्रता की शक्ति महान शक्ति है, उसकी महानता को जानकर मास्टर शान्ति देवा बनो। कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप, पवित्र स्वरूप में स्थित होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जायेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं राजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ स्वयं को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् राज्य अधिकारी तो राजा बने हो? या कभी राजा का राज्य, कभी प्रजा का? *राजयोगी माना सदा राजा बन राज्य चलाने वाले। कभी भी अधीन बनने वाले नहीं। राजयोगी कभी प्रजायोगी नहीं बन सकते। योगी का अर्थ ही है - निरन्तर याद में रहने वाले। तो योगी भी हो और राजा भी हो।*
〰✧ *योगी जीवन का अर्थ है याद कभी भूल नहीं सकती। योग लगाने वाले योगी नहीं। योगी जीवन वाले योगी हो। लगाने वाले का कब लगेगा कब नहीं लेकिन 'जीवन' सदा रहती है।* खाते-पीते, चलते जीवन होती है। या सिर्फ जब बैठते हो तब जीवन है चलते हो तब जीवन है?
〰✧ *हर कार्य करते जीवन है। तो यही स्मृति रहे कि हम 'योगी-जीवन' वाले हैं। अभी के भी राजे हैं और जन्मजन्म के भी राजे हैं। अभी राजे नहीं तो भविष्य में भी नहीं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सिर्फ आवाज़ द्वारा प्रभावित हुई आत्माएँ अनेक आवाज़ सुनने से आवागमन में आ जाती है। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए आवाज़ द्वारा अनुभवी आत्मायें आवागमन से छूट जाती हैं। ऐसी आत्मा के ऊपर किसी भी रूप का प्रभाव नहीं पड सकता। *सदैव अपने को कम्बाइन्ड समझ, कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस करो अर्थात अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज़।* दोनों की कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस वारिस बनायेगी।
〰✧ *सिर्फ आवाज़ द्वारा सर्वीस करने से प्रजा बनती जा रही है।* तो अब सर्वीस में नवीनता लाओ। ( इस प्रकार का सर्वीस करने का साधन कौन - सा है?) जिस समय सर्वीस करते हो उस समय मंथन चलता है, लेकिन याद में मगन यह स्टेज मंथन की स्टेज से कम होती है। दूसरे के तरफ ध्यान अधिक रहता है। अपनी अव्यक्त स्थिति की तरफ ध्यान कम रहता है। इस कारण ज्ञान के विस्तार का प्रभाव पडता है लेकिन लगन में मगन रहने का प्रभाव कम दिखाई देता है।
〰✧ रिजल्ट में यह कहते हैं कि यह ज्ञान बहुत ऊचा है। लेकिन मगन रहना है यह हिम्मत नहीं रखते। क्योंकि अव्यक्त स्थिति द्वारा लगन का अर्थात सम्बन्ध जोडने का अनुभव नहीं किया है। बाकी थोडा कणा - दाना लेने से प्रजा बन जाती है। *अब के सम्बन्ध जुटने से ही भविष्य सम्बन्ध में आयेंगे।* नहीं तो प्रजा में। तो नवीनता यही लानी है। जो एक सेकण्ड में अव्यक्त अनुभव द्वारा सम्बन्ध जोडना है। सम्बन्ध और सम्पर्क दोनों में फर्क है। सम्पर्क में आते हैं, सम्बन्ध में नहीं आते। समझा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *प्रेक्टिस की परीक्षा का समय कौन-सा होता है? जब कर्मभोग का ज़ोर होता है?* कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल कर्मभोग के वश अपने तरफ आकर्षण करें, जिसको कहा जाता है बहुत दर्द है। *कहते हैं ना - बहुत दर्द है, इसलिए थोड़ा भूल गयी।* लेकिन यह तो टग ऑफ वार (रस्सा कशी) का समय है, *ऐसे समय कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर कर्मेन्द्रियों को भोगवाने वाले जो होते उनको अष्ट रतन कहा जाता है, जो ऐसे समय विजयी बन दिखाते हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पारलौकिक बाप से पूरा वर्सा लेने अपना सबकुछ एक्सचेंज कर देना"*
➳ _ ➳ *ये पतित दुनिया, ये बेगाना घर, मेरी खातिर चले आये वो परमधाम छोडकर... लम्हा दर लम्हा बदल रही जिन्दगी, हदों से निकल कर हुई, अब बेहद में मेरी नज़र*... हद की दुनिया में पुरानी कीचड पट्टी संभाले मैं आत्मा, बोझिल कदमों से हर जन्म में उनको ढूँढती... और खुद के वजूद को भूलाती गयी... मगर ढूँढने पर न वो मिले और न मेरा वजूद... *अब वो मिलें... तो जमाने भर की खुशियाँ मेरे पहलूँ मे मचलने लगी है*... *ईश्वरीय सन्तान के रूतबे से नवाजकर सम्मुख बैठे बापदादा, आज मुझ आत्मा को पुराना बैग बैगेज ट्रांसफर कर सतयुग में सब कुछ नया लेने के बारे में समझानी दे रहे है*...
❉ *मेरी सदकामनाओं को पूरा करने वाले सच्चे सच्चे निष्कामी बाप मुझ आत्मा से बोले*:- "हद की कामनाओं से मन बुद्धि को समेटने वाली मेरी निश्चय बुद्धि बच्ची... *बाप की मत पर क्या पूरा पूरा निश्चय रखती हो? ये परायी दुनिया और पराया घर मन बुद्धि को बाँधते तो नही*?... *सतयुगी वर्सा और नई दुनिया की बादशाही अब साकार होते देख रही हो*?"
➳ _ ➳ *एक बाप दूसरा न कोई ऐसी अटूट निश्चय बुद्धि वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली*:- "प्यारे बाबा.. *सिर हथेली पर रख आप की बनी हूँ बाबा*, *ये देह दुनिया ये झूठी शानो शौकत, ये देह के सम्बन्ध, ये पुराने संस्कार, आप की श्रीमत पर सब सतयुगी संस्कार और संबंधों में बदल रहे है*... साक्षी हो देख रही हूँ एक एक संस्कार को... जो पल पल योगज्वाला में जल रहे है..."
❉ *ज्ञान की गहराईयों में उतार मुझ आत्मा को मास्टर ज्ञान सागर बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मेरी मास्टर ज्ञान सागर बच्ची... देखते ही देखते इस विनाशी दुनिया का सब कुछ स्वाहा होने वाला है... *पूरी तरह ट्रस्टी बन अब हर चीज से ममत्व निकालते जाना है, ये ज्ञान के शास्त्र ये मुरली ये ज्ञान के चित्र सब यही विनाश हो जायेगे... इनमें भी मोह न रख बस अपने संस्कारों को दिव्य बनाओं..."*
➳ _ ➳ *एक शिव बाप से कनेक्शन रख तन, मन, धन सब इन्श्योर करने वाली मैं निश्चय बुद्धि आत्मा बोली:-* "मेरे बाबा... हर कदम आपकी श्रीमत पर चल चल बाप की राय लेती मैं आत्मा नैचुरल अटैन्शन से अपनी नेचर को बदल रही हूँ... *पुराने संस्कारों को भस्म कर दिव्यता की चैतन्य मूरत बन रही हूँ, अशरीरीपन का अभ्यास व्यर्थ से दूर कर रहा है... सब कुछ बाप को सौंपकर मैं ट्रस्टी बन रही हूँ*..."
❉ *हथेली पर बहिश्त रख दूसरे हाथ से पुरानी कीचड पट्टी ले सच्चा सौदा करने वाले सौदागर बाप बोले:-* "मेरी विश्व कल्याणी बच्ची... बाप की पालना का रिटर्न चुकाओ... *पुरानी कीचड पट्टी संभाले, सुखो की खोज में भटकती हर आत्मा को भी सच्चे सौदागर की खूबियों से परिचय कराओं*... चेहरे से, चलन से सबको अपनी सतयुगी झलक दिखाओं..."
➳ _ ➳ *निमित्त और निर्माण भाव से सम्पन्न मैं आत्मा करन करावन हार बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... आपकी श्रेष्ठ पालना का उपहार ये असंख्य आत्माए सतयुगी झलक और फलक नयनो में समाये विश्व के कोने कोने में फैल गयी है... *तन, मन, धन से ट्रस्टी ये आत्माए नई दुनिया के लिए नये संस्कारों का जागरण कर रही है.. जगह जगह मोह की होली जल रही है*... *सतयुगी दुनिया की ख्वाहिश अब हर आँख में पल रही है* और अपनी पालना का रिटर्न पाकर बापदादा वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कर्मों का हिसाब किताब खुशी खुशी से चुकतू करना है*"
➳ _ ➳ कर्मो की गुह्य गति का ज्ञान देने वाले अपने प्यारे शिव पिता परमात्मा द्वारा उच्चारे महावाक्यों को स्मृति में लाकर, एकान्त में बैठ मैं उन पर विचार सागर मन्थन कर रही हूँ और सोच रही हूँ कितनी गुह्य है कर्मो की गति। *देह अभिमान में आकर मनुष्य द्वारा किया हुआ एक छोटा सा कर्म यहां तक कि मन मे किसी के प्रति चलने वाला एक गलत संकल्प भी कितना बड़ा हिसाब किताब बना देता है*! पूरे 63 जन्म ना जाने ऐसे कितने हिसाब - किताब जाने - अनजाने मुझ आत्मा से बने हैं। अज्ञानता के कारण ना जाने ऐसे कितने विकर्म मुझ आत्मा से होते आये जिनका बोझ मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ता गया।
➳ _ ➳ किन्तु अब जबकि बाबा ने आकर कर्मो की अति गुह्य गति का राज़ बिल्कुल स्पष्ट रीति समझा दिया है और साथ ही कर्मो का जो खाता जाने अनजाने में मुझ आत्मा से बन चुका है उसे साफ करने का भी कितना सहज उपाय मेरे दिलाराम बाबा ने आकर मुझे समझाया है। *सहज राजयोग द्वारा, योगबल से पुराने कर्मो के खाते को साफ करने की जो सुन्दर विधि मेरे बाबा ने आकर मुझे सिखाई है उसके लिए दिल से बाबा को शुक्रिया अदा करके, अब मैं अपने द्वारा किये हुए 63 जन्मो के विकर्मो को योगबल से भस्म करने के लिए स्वयं को अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित करती हूँ* और देह से न्यारी अशरीरी आत्मा बन देह से बाहर निकल आती हूँ।
➳ _ ➳ साक्षी होकर अपनी देह को और अपने आस - पास उपस्थित हर वस्तु को देखते हुए, इन सबके आकर्षण से स्वयं को मुक्त अनुभव करते हुए मैं चैतन्य शक्ति आत्मा निर्बन्धन होकर अब ऊपर आकाश को ओर चल पड़ती हूँ। *5 तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार कर, सूर्य, चांद, और समस्त तारामण्डल को क्रॉस करती हुई उससे ऊपर फरिश्तो की आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ और अपने निराकार शिव पिता के पास जाकर, उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहो में समा जाती हूँ*। अपने प्यारे प्रभु की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलती उनसे मंगल मिलन मनाकर अब मैं उनकी सर्वशक्तियों की जवालास्वरूप किरणों के नीचे बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपनी बीज रूप अवस्था में स्थित होकर, बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों के नीचे जा कर बैठते ही उन शक्तियों का प्रवाह तीव्र होने लगता है और देखते ही देखते अग्नि का रूप धारण कर लेता है। *योग की एक ऐसी अग्नि मेरे चारों और प्रज्वलित हो उठती है, जिसमे मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट जलने लगती है, विकर्म विनाश होने लगते है और जो भी पुराने कर्मो का खाता है वो साफ होने लगता है*। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ योग की अग्नि में जलकर जैसे - जैसे पुराने कर्मो का खाता साफ हो रहा है मेरी खोई हुई चमक पुनः लौट रही है। स्वयं को मैं बहुत ही लाइट और माइट अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ ईश्वरीय शक्तियों से भरपूर सूक्ष्म ऊर्जा का भण्डार बन, अपने चारों और सर्वशक्तियों के दिव्य कार्ब को धारण कर अब मैं आत्मा देह की दुनिया मे कर्म करने के लिए वापिस लौट रही हूँ। *साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार शरीर मे मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ और भृकुटी के अकाल तख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। विकर्मो का बोझ अंशमात्र भी मुझ आत्मा के ऊपर ना रहे इसके लिए अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं घड़ी - घड़ी साकारी सो निराकारी स्वरूप की ड्रिल करते हुए, योग का बल अपने अन्दर जमा कर रही हूँ।
➳ _ ➳ ईश्वरीय सेवा अर्थ साकार सृष्टि पर आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होना और सेवा से उपराम होकर, *अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो, परमधाम जाकर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर, बीज रूप परमात्मा की सर्वशक्तियों की जवालास्वरूप किरणों के नीचे बैठ, पुराने कर्मो के खाते को योगबल से साफ करने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं कोई भी बात कल्याण की भावना से देखने और सुनने वाली परदर्शन मुक्त्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपने संतुष्ट, खुशनुमः जीवन से हर कदम में सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अब तो आगे बढ़ने का बहुत सहज साधन मिला हुआ है सिर्फ एक शब्द की गिफ्ट है - वह कौन सी? ‘मेरा बाबा', यही एक शब्द ऐसी लिफ्ट है जो एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर जा सकते हो। क्या यह लिफ्ट यूज़ करने नहीं आती? अब लिफ्ट का जमाना है फिर सीढ़ी क्यों चढ़ते हो?* लिफ्ट में कोई थकावट नहीं होती। सोचा और पहुँचा। तो कौन हो? एक ही शब्द लिफ्ट है - ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं, एक शब्द एक नम्बर में पहुँचा देगा। ‘जब मेरा बाबा हुआ तो मैं उसमें समा गई।' इतनी सहज लिफ्ट यूज़ करो - यूज़ करने वाले पहुँच जाते और देखने वाले, सोचने वाले रह जाते। *तो अब एक शब्द के स्मृति स्वरूप होकर सदा समर्थ आत्मा बन जाओ।*
✺ *"ड्रिल :- ‘मेरा बाबा’ शब्द की लिफ्ट को यूज़ करना*”
➳ _ ➳ *अमृतवेले ‘मीठे, लाडले बच्चे’- ये मधुर साज सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* सामने प्राण प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... मैं आत्मा झट से बाबा के गले लग जाती हूँ... मैं आत्मा ‘मेरा बाबा’ कहते हुए बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की मखमली रुई जैसे गोदी में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है... *बाबा के स्पर्श से मैं आत्मा इस शरीर को भूल रही हूँ... और बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा भी रुई जैसे हलकी हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा हलकी होकर प्यारे बाबा के साथ उडती हुई अपने घर पहुँच जाती हूँ... *बाबा से निकलती दिव्य तेजस्वी किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ...* मैं आत्मा अलौकिकता को धारण कर अलौकिक बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ रहती हूँ... *मैं आत्मा सदा अविनाशी बाबा के अविनाशी प्रेम में एकरस रहती हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदा बेहद के नशे में रहती हूँ... मुझ आत्मा का हद का नशा पूरी तरह से बाहर निकल रहा है... *मैं आत्मा स्मृति स्वरुप होकर समर्थ आत्मा बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा ‘मेरा बाबा’ शब्द के जादू से उड़ता पंछी बन उडती रहती हूँ... किसी भी हद के बन्धनों में नहीं पड़ती हूँ... मैं आत्मा एक बाबा से सर्व सम्बन्ध निभाती हुई अविनाशी बन्धन में बंध गई हूँ...
➳ _ ➳ *‘मेरा बाबा' शब्द बोलते ही मुझ आत्मा की मैं, मेरेपन की भावना मिट रही है... मैं आत्मा ‘मेरा बाबा’ शब्द की जादुई चाबी लगाकर सर्व खजानों की अधिकारी बन रही हूँ...* संपत्तिवान बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह में रह उडती कला का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा बिना किसी थकावट या मेहनत के सफलता प्राप्त कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा *‘मेरा बाबा' शब्द की सहज लिफ्ट को यूज़ कर एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा ‘मेरा बाबा’ शब्द की लिफ्ट से बिना किसी रुकावट के आगे बढ रही हूँ... *मैं आत्मा जब चाहे तब ‘मेरा बाबा' शब्द की लिफ्ट में थर्ड फ्लोर से सेकंड फ्लोर सूक्ष्मवतन... और फर्स्ट फ्लोर मूलवतन पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा इस लिफ्ट से स्व-दर्शन चक्र फिराकर सदा अपने आदि, अनादि स्वरुप की स्मृति में रहती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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