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❍ 28 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ लक्ष्मी नारायण जैस श्रृंगारधारी बनने की धुन में रहे ?
➢➢ अपना वैल्युएबल टाइम कहीं वेस्ट तो नहीं किया ?
➢➢ स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य में दिल पसंद सफलता प्राप्त की ?
➢➢ बोल में स्नेह और संयम रहा ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे जोर-शोर की सेवा द्वारा सम्पूर्ण समाप्ति के समय को समीप ला रहे हो, ऐसे अब स्वयं को सम्पन्न बनाने का भी प्लैन बनाओ। अब धुन लगाओ कि कुछ भी हो जाए कर्मातीत बनना ही है। इसकी डेट अब फिक्स करो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं राजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपने को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् सर्व-कर्म-इन्द्रियों के राजा। राजा बन कर्म-इन्द्रियों को चलाने वाले, न कि कर्म-इन्द्रियों के वश चलने वाले। जो कर्म-इन्द्रियों के वश चलने वाले हैं उनको प्रजायोगी कहेंगे, राजयोगी नहीं। जब ज्ञान मिल गया कि यह कर्म-इन्द्रियाँ मेरे कर्मचारी हैं, मैं मालिक हूँ, तो मालिक कभी सेवाधारियों के वश नहीं हो सकता।
〰✧ कितना भी कोई प्रयत्न करे लेकिन राजयोगी आत्मायें सदा श्रेष्ठ रहेंगी। सदा राज्य करने के संस्कार अभी राजयोगी जीवन में भरने हैं। कुछ भी हो जाए - यह टाइटिल अपना सदा याद रखना कि - 'मैं राजयोगी हूँ'। सर्वशक्तिवान का बल है, भरोसा है तो सफलता अधिकार रूप में मिल जाता है।
〰✧ अधिकार सहज प्राप्त होता है, मुश्किल नहीं होता। सर्व शक्तियों के आधार से हर कार्य सफल हुआ ही पड़ा है। सदा फखुर रहे कि मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ। यह फखुर अनेक फिकरों से पार कर देता है। फखुर नहीं तो फिकर ही फिकर है। तो सदा फखुर में रह वरदानी बन वरदान बाँटते चलो। स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बनाना है। औरों को बनाना अर्थात् स्वर्ग के सीट का सर्टीफिकेट देते हो। कागज का सर्टीफिकेट नहीं, अधिकार का!
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ। और जब चाहे तब कर्मयोगी बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए। ऐसे न हो कि आप अशरीरी बनने चाहो और शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बंधन अपनी तरफ आकर्षित करे।
〰✧ कोई भी बंधन अशरीरी बनने नहीं देगा। जैसे कोई टाइट ड्रेस पहनते हैं तो समय पर सेकण्ड में उतारने चाहें तो उतार नहीं सकेंगे, खिंचावट होती है क्योंकि शरीर से चिपटा हुआ है। ऐसे कोई भी बंधन का खिंचाव अपनी तरफ खींचेगा। बंधन आत्मा को टाइट कर देता है।
〰✧इसलिए बापदादा सदैव यह पाठ पढाते हैं - निर्लिप्त अर्थात न्यारे और अति प्यारे। यह बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। ज्ञान सुनना सुनाना यह अलग चीज है लेकिन यह अभ्यास अति आवश्यक है। , पास विद ऑनर बनना है तो इस अभ्यास में पास होना अति आवश्यक है। और इसी अभ्यास पर अटेन्शन देने में डबल अण्डरलाइन करो, तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी बनेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन भिन्न-भिन्न रूपों को तो जानते हो ना? कितने देह-भान के रूप हैं, उसका विस्तार तो जानते हो लेकिन इस अनेक देह-भान के रूपों को जानकर, बेहद के वैराग्य में रहना। देह-भान, देही अभिमान में बदल जाए। जैसे देह-भान एक नेचुरल हो गया, ऐसे देही-अभिमान नेचुरल हो जाए क्योंकि हर बात में पहला शब्द देह ही आता है। चाहे सम्बन्ध तो भी देह का ही सम्बन्ध है, पदार्थ हैं तो देह के पदार्थ हैं। तो मूल आधार देहभान है। जब तक किसी भी रूप में देह-भान है तो वैराग्य वृत्ति नहीं हो सकती। और बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय जो देह-भान का विघ्न है उसका कारण है कि देह के जो पुराने संस्कार हैं, उससे वैराग्य नहीं है। पहले देह के पुराने संस्कारों से वैराग्य चाहिए। संस्कार स्थिति से नीचे ले आते हैं।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- बाप की श्रीमत पर चलकर अपना श्रृंगार करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के नजारों को देखती हूँ...
पहाड़ों के बीच से उगते हुए सूरज की लालिमा ने अपना सुनहरा आँचल फैलाकर पहाड़ों
को और ही खूबसूरत बना दिया है... ठंडी-ठंडी हवाओं के झोंकें मधुर संगीत सुना
रही हैं... इस मधुर पावन धरती की गाथा गा रही है... मैं आत्मा हद की दुनिया से
दूर बेहद के इस घर में बेहद बाबा को याद करती हूँ... तुरंत ही मीठे प्यारे बाबा
मेरे सम्मुख हाजिर होकर अपने प्यार की खुशबू मुझ पर बरसाते हैं...
❉ ऊँगली पकडकर श्रीमत की राह पर चलाकर श्रेष्ठ बनाते हुए प्यारे बाबा कहते
हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... अब यह विकारो से भरी दुनिया खत्म होने वाली है और
दिव्य गुणो के महक वाली सतयुगी दुनिया आने वाली है... तो ईश्वर पिता की श्रीमत
को जीवन का आधार बना लो... यही श्रीमत और पवित्रता देवी देवता के रूप में
श्रृंगारित कर सुखो के संसार में ले चलेगी...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने जीवन रूपी गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस पुरानी विकारी दुनिया से मन बुद्धि
को निकाल श्रीमत का हाथ पकड़ सतयुगी दुनिया की और बढ़ती चली जा रही हूँ... दिव्य
गुणो से सजती जा रही हूँ... प्यारे बाबा संग निखरती जा रही हूँ...”
❉ मीठा बाबा स्वर्ग सुखों से जीवन को आबाद कर खुशियों की शहजादी बनाते हुए कहते
हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस दुःख भरी दुनिया से उपराम होकर मेरी महकती
यादो में खो जाओ... श्रीमत का हाथ सदा पकड़े रहो... तो काँटों से महकते फूल बन
खिल उठेंगे... ईश्वर पिता का साथ सुखो के जन्नत में ले चलेगा... जहाँ देवता बन
मुस्करायेंगे...”
➳ _ ➳ रावण की दुनिया से निकल एक राम की यादों में महकते हुए मैं आत्मा कहती
हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे गुण और शक्तियो
से भरकर भरपूर हो गई हूँ... इस मिटटी के नातो से निकल कर अपने सत्य स्वरूप के
नशे में खो गई हूँ... और श्रेष्ठ कर्म से खिलती जा रही हूँ...”
❉ श्रीमत के झूले में झुलाकर दिव्यता से महकाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-
“प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस दुनिया सा इतना दिल लगाकर दुखी हुए... खाली
हो गए... अब उसका अंत आया की आया... अब समय साँस संकल्पों को मीठे बाबा की यादो
और श्रीमत के पालन में लगाओ... तो यह पवित्र जीवन सुख और शांति से खिल उठेगा...
घर आँगन सुखो से लहलहायेगा...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुन्दर परी बनकर पवित्रता की खुशबू चारों ओर फैलाते हुए कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत से खूबसूरत होती जा रही
हूँ... मन बुद्धि को इस संसार से उपराम बनाती जा रही हूँ... मीठे बाबा आपने जो
सुंदर कर्म सिखाये है... पवित्रता का दामन थाम सुन्दरतम होती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- दैवी स्वभाव धारण करना है"
➳ _ ➳ एकांत में अंतर्मुखी बन कर बैठी मैं ब्राह्मण आत्मा विचार करती हूँ कि
मेरा यह जीवन जो कभी हीरे तुल्य था आज रावण की मत पर चलने से कैसा कौड़ी तुल्य
बन गया है! दैवी गुणों से सम्पन्न थी मैं आत्मा और आज आसुरी अवगुणों से भर गई
हूँ। रावण रूपी 5 विकारों की प्रवेशता ने मेरे दैवी गुण छीन कर मेरे अंदर काम,
क्रोध, लोभ, मोह, अहँकार पैदा कर मेरे जीवन को ही श्रापित कर दिया है और अब जबकि
स्वयं भगवान आकर मेरे इस श्रापित जीवन से मुझे छुड़ा कर फिर से पूज्य देवता बना
रहे हैं तो मेरा भी यह परम कर्तव्य बनता है कि उनकी श्रेष्ठ मत पर चल कर, अपने
जीवन मे दैवी गुणों को धारण कर अपने जीवन को पलटा कर भविष्य जन्म जन्मान्तर के
लिए सुख, शांति और पवित्रता का वर्सा उनसे ले लूँ। मन ही मन इन्ही विचारो के
साथ अपने दैवी गुणों से सम्पन्न स्वरूप को मैं स्मृति में लाती हूँ और अपने उस
अति सुन्दर दिव्य स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से निहारने मे मगन हो जाती
हूँ।
➳ _ ➳ दैवी गुणों से सजा मेरा पूज्य स्वरूप मेरे सामने है। लक्ष्मी नारायण जैसे
अपने स्वरूप को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। अपने सर्वगुण सम्पन्न, 16
कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप में मैं बहुत ही
शोभायमान लग रही हूँ। मेरे चेहरे की हर्षितमुखता, नयनो की दिव्यता, मुख मण्डल
पर पवित्रता की दिव्य आभा मेरे स्वरूप में चार चांद लगा रही है। अपने इस अति
सुन्दर स्वरूप का भरपूर आनन्द मैं ले रही हूँ । मन ही मन अपनी इस ऐम ऑब्जेक्ट
को बुद्धि में रख, ऐसा बनने की मन मे दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने जीवन को पलटाने के
लिए दैवी गुणों को धारण करने का संकल्प लेकर, पुजारी से पूज्य बनाने वाले अपने
परमपिता परमात्मा का दिल की गहराइयों से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ और 63 जन्मो
के आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में दग्ध करने के लिए अपने प्यारे पिता की याद
में अब सम्पूर्ण एकाग्रचित होकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति जैसे - जैसे बढ़ने लगती है मेरा वास्तविक स्वरूप मेरे
सामने पारदर्शी शीशे के समान चमकने लगता है और अपने स्वरूप का मैं आनन्द लेने
में व्यस्त हो जाती हूँ। एक चमकते हुए बहुत ही सुन्दर स्टार के रूप में मैं
स्वयं को देख रही हूँ। उसमे से निकल रही रंगबिरंगी किरणें चारों और फैलते हुए
बहुत ही आकर्षक लग रही हैं। उन किरणों से मेरे अंदर समाये गुण और शक्तियों के
वायब्रेशन्स जैसे - जैसे मेरे चारों और फैल रहें है, एक सतरंगी प्रकाश का
खूबसूरत औरा मेरे चारो और बनता जा रहा है। प्रकाश के इस खूबसूरत औरे के अंदर
मैं स्वयं को ऐसे अनुभव कर रही हूँ जैसे किसी कीमती खूबसूरत जगमगाती डिब्बी के
अंदर कोई बहुमूल्य हीरा चमक रहा हो और अपनी तेज चमक से उस डिब्बी की सुंदरता को
भी बढ़ा रहा हो।
➳ _ ➳ सर्वगुणों औऱ सर्वशक्तियों की किरणें बिखेरते अपने इस सुन्दर स्वरूप का
अनुभव करके और इसका भरपूर आनन्द लेकर अब मैं चमकती हुई चैतन्य शक्ति देह की
कुटिया से निकल कर, स्वयं को कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे शिव
बाबा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। प्रकाश के उसी खूबसूरत औरे के साथ
मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपनी किरणे बिखेरती हुई अब धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए
आकाश में पहुँच कर, उसे पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर मे
पहुँच जाती हूँ। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में चारों और चमकती जगमग करती
मणियों के बीच मैं स्वयं को देख रही हूँ। चारों और फैला मणियो का आगार और उनके
बीच मे चमक रही एक महाज्योति। ज्ञानसूर्य शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त
किरणे फैलाते हुए इन चमकते हुए सितारों के बीच बहुत ही लुभावने लग रहे हैं। उनकी
सर्वशक्तियों की किरणों का तेज प्रकाश पूरे परमधाम घर मे फैल रहा है जो हम
चैतन्य मणियों की चमक को कई गुणा बढ़ा रहा है।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के इस सुंदर मनमनोहक स्वरूप को देखते हुए मैं चैतन्य
शक्ति धीरे - धीरे उनके नजदीक जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी
बाहों में ऐसे समा जाती हूँ जैसे एक बच्चा अपनी माँ के आंचल में समा जाता है।
मेरे पिता का प्यार उनकी अथाह शक्तियों के रूप में मेरे ऊपर निरन्तर बरस रहा
है। मेरे पिता के निस्वार्थ, निष्काम प्यार का अनुभव, उनका प्यार पाने की मेरी
जन्म - जन्म की प्यास को बुझाकर मुझे तृप्त कर रहा है। परमात्म प्यार से भरपूर
होकर योग अग्नि में अपने विकर्मों को दग्ध करने के लिए अब मैं बाबा के बिल्कुल
समीप जा रही हूँ और उनसे आ रही जवालास्वरूप शक्तियों की किरणों के नीचे बैठ,
योग अग्नि में अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को जलाकर भस्म कर रही हूँ।
बाबा की शक्तिशाली किरणे आग की भयंकर लपटों का रूप धारण कर मेरे चारों और जल रही
है, जिसमे मेरे 63 जन्मो के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं आत्मा शुद्ध
पवित्र बन रही हूँ।
➳ _ ➳ सच्चे सोने के समान शुद्ध और स्वच्छ बनकर अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत
पर चल कर, अब मैं अपने जीवन को पलटाने और श्रेष्ठ बनाने के लिए स्वयं में दैवी
गुणों की धारणा करने के लिए फिर से साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ और अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूज्य बनने के पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। अपने
आदि पूज्य स्वरूप को सदा स्मृति में रखते हुए, बाबा की याद से पुराने आसुरी
स्वभाव संस्कारों को दग्ध कर, नए दैवी संस्कार बनाने का पुरुषार्थ करते हुए अब
मैं स्वयं का परिवर्तन बड़ी सहजता से करती जा रही हूँ
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं स्व - परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के कार्य मे दिल - पसन्द सफलता प्राप्त करने वाली सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं बोल में स्नेह और संयम रखकर वाणी की एनर्जी जमा करने वाली स्नेही आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बेहद की सेवा में समय लगाने से समस्या सहज ही भाग जायेगी क्योंकि चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं लेकिन अगर समस्या में समय लगाते हैं वा दूसरों का समय लेते हैं तो सिद्ध है कि वह कमजोर आत्मायें हैं, अपनी शक्ति नहीं है। जिसको शक्ति नहीं हो, पांव लंगड़ा हो और उसको आप कहो दौड़ लगाओ, तो लगायेगा या गिरेगा? तो समस्या के वश आत्मायें चाहे ब्राह्मण भी हैं लेकिन कमजोर हैं, शक्ति नहीं है, तो वह कहाँ से शक्ति लायें? बाप से डायरेक्ट शक्ति ले नहीं सकता क्योंकि कमजोर आत्मा है। तो क्या करेंगे? कमजोर आत्मा को दूसरे कोई का ब्लड देकर ताकत में लाते हैं, कोई शक्तिशाली इन्जेक्शन देकर ताकत में लाते हैं तो आप सबमें शक्तियां हैं। तो शक्ति का सहयोग दो, गुण का सहयोग दो। उन्हों में है ही नहीं, अपना दो।
➳ _ ➳ पहले भी कहा ना - दाता बनो। वह असमर्थ हैं, उन्हों को समर्थी दो। गुण और शक्ति का सहयोग देने से आपको दुआयें मिलेंगी और दुआयें लिफ्ट से भी तेज राकेट हैं। आपको पुरुषार्थ में समय भी देना नहीं पड़ेगा, दुआओं के राकेट से उड़ते जायेंगे। पुरुषार्थ की मेहनत के बजाए संगम के प्रालब्ध का अनुभव करेंगे। दुआयें लेना - वह सीखो और सिखाओ। अपना नेचरल अटेन्शन और दुआयें, अटेन्शन भी टेन्शन मिक्स नहीं होना चाहिए, नेचरल हो। नालेज का दर्पण सदा सामने है ही। उसमें स्वत: सहज अपना चित्र दिखाई देता ही रहेगा। इसीलिए कहा कि पर्सनैलिटी की निशानी है प्रसन्नचित। यह क्यों, क्या, कैसे। यह के के की भाषा समाप्त। दुआयें लेना और देना सीखो। प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना - यह है दुआयें देना और दुआयें लेना। कैसा भी हो आपकी दिल से हर आत्मा के प्रति हर समय दुआयें निकलती रहें - इसका भी कल्याण हो। इसकी भी बुद्धि शान्त हो। यह ऐसा, यह वैसा - ऐसा नहीं। सब अच्छा।
✺ ड्रिल :- "बेहद की सेवा से दुआयें लेने और देने का अनुभव"
➳ _ ➳ अमृतवेले, मैं आत्मा एकांत में एक शांत स्थान पर बैठ जाती हूँ... सुबह की ठंडी- ठंडी हवाओं में, मैं आत्मा... एक के ही अंत में समा इस देह से बिल्कुल... न्यारी हो चाँद तारो को पार करती हुई... फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो फरिश्तो की दुनिया में चली जाती हूँ... जहाँ, चारो... ओर चाँदनी सा प्रकाश बिखरा हुआ है... मैं आत्मा, प्रकाश को चीरती हुई आगे बढ़ती हूँ... और अपने प्यारे बाबा को अपने सामने आता हुआ देखती हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मेरे सामने आ गए है...
➳ _ ➳ बाबा बाहे फैलाये... मुझ आत्मा का आह्वान करते है... आओ मेरे प्यारे, मीठे बच्चे आओ... मैं आत्मा झट से प्यारे बाबा की बाहों में समा जाती हूँ... बाबा के मस्तक वा नयनो से निकलती हुई दिव्य किरणे... मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मुझ आत्मा से कब, क्या, क्यों, कैसे????... सभी प्रश्न, सभी व्यर्थ संकल्प, आसुरी संस्कार निकलते जा रहे है... मैं आत्मा सर्व शक्तियों वा गुणों से भरपूर हो एकदम हल्की हो जाती हूँ...
➳ _ ➳ सर्व शक्तियों वा गुणों से भरपूर हो मैं आत्मा, ज्ञान के दर्पण में अपना आदि अनादि स्वरुप देखती हूँ... मैं शक्ति स्वरुप आत्मा हूँ... मुझे कोई सहयोग दे तो मैं कार्य करू, नही... मुझे सहयोग देना है... शक्तिहीन में ज्ञान का फ़ोर्स भर, गिरते को उठाना है... आत्मिक शक्ति को बढ़ाना है...
➳ _ ➳ दाता स्वरुप बन मैं आत्मा, कमजोर आत्माओ में शक्ति का बल भरती हूँ...संपर्क में आने वाली सभी आत्माओ को, चाहे अज्ञानी है, चाहे ब्राह्मण है... सभी को आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... गुणवान बन सर्व के गुणों वा विशेषताओं को देखती हूँ वा उनकी महिमा का बखान करती हूँ... उमंग-उत्साह के पंख लगा मैं आत्मा, बेहद की सेवा में समय सफल कर हर समस्या, हर परिस्थिति को पार करती जाती हूँ...
➳ _ ➳ महानता ही निर्माणता है... मैं आत्मा निर्माण भाव से सर्व का कल्याण करती हूँ... भल आत्मा कैसी भी हो, सभी को शुभ भावना, शुभ कामना देती हूँ... प्रसन्नचित रह सबको प्रसन्न करती हूँ... साक्षीद्रष्टा हो, बना बनाया खेल देखती हूँ... जो बीत गया वह भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और... जो होने वाला है वह और भी अच्छा... यह ऐसा, यह वैसा नही, सब कुछ अच्छा ही अच्छा... सर्व आत्माओं की दुआयें लिफ्ट का काम करती है... दुआयें देना ही लेना है... दुआयें प्राप्त कर मैं आत्मा पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस संगम पर पुरुषार्थ करना नही पड़ रहा, स्वतः होता जा रहा है... मैं आत्मा संगम पर प्रालब्ध का अनुभव करती हुई संगमयुग की मौजो में झूमती रहती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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