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 13 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ ज्ञान और योग से अपनी बुधी को रीफाइन बनाया ?

 

➢➢ पुरुषार्थ में कभी दिलशिकस्त तो नहीं हुए ?

 

➢➢ संकल्प रुपी बीज को सदा समर्थ बनाया ?

 

➢➢ योगी बन सूर्यवंशी में जाने का पुरुषार्थ किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  वर्तमान समय विश्व की आत्मायें बिल्कुल ही शक्तिहीन, दु:खी अशान्त हैं, वह चिल्ला रही हैं, पुकार रही हैं, कुछ घड़ियों के लिए सुख दे दो, शान्ति दे दो, हिम्मत दे दो, बाप बच्चा के दु:ख परेशानी देख नहीं सकते, आप पूज्य आत्माएं भी अपने रहमदिल दाता स्वरूप में स्थित हो, ऐसी आत्माओं को विशेष सकाश दो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं विजयी रत्न हूँ"

 

  अपने को विजयी रत्न अनुभव करते हो? विजय प्राप्त करना सहज लगता है या मुश्किल लगता है? मुश्किल है या मुश्किल बना देते हो, क्या कहेंगे? है सहज लेकिन मुश्किल बना देते हो। जब माया कमजोर बना देती है तो मुश्किल लगता है और बाप का साथ होता है तो सहज होता है। क्योंकि जो मुश्किल चीज होती है वह सदा ही मुश्किल लगनी चाहिए ना। कभी सहज, कभी मुश्किल-क्यों? सदा विजय का नशा स्मृति में रहे। क्योंकि विजय आप सब ब्राह्मण आत्माओंका जन्मसिद्ध अधिकार है। तो जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त करना मुश्किल होता है या सहज होता है? कितनी बार विजयी बने हो! तो कल्पकल्प की विजयी आत्माओंके लिए फिर से विजयी बनना मुश्किल होता है क्या?

 

  अमृतवेले सदा अपने मस्तक में विजय का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक लगाओ। भक्ति-मार्ग में तिलक लगाते हैं ना। भक्ति की निशानी भी तिलक है और सुहाग की निशानी भी तिलक है। राज्य प्राप्त करने की निशानी भी राजतिलक होता है। कभी भी कोई शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने जाते हैं तो जाने के पहले तिलक देते हैं। तो आपको राज्य प्राप्ति का राज्य-तिलक भी है और सदा श्रेष्ठ कार्य और सफलता है, इसलिए भी सदा तिलक है। सदा बाप के साथ का सुहाग है, इसलिए भी तिलक है। तो अविनाशी तिलक है। कभी मिट तो नहीं जाता है?

 

  जब अविनाशी बाप मिला तो अविनाशी बाप द्वारा तिलक भी अविनाशी मिल गया। सुनाया था ना-अभी स्वराज्य का तिलक है और भविष्य में विश्व के राज्य का तिलक है। स्वराज्य मिला है कि मिलना है? कभी गंवा भी देते हो? सदैव फलक से कहो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं ही!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जैसे विनाश का बटन दबाने की देरी है, सेकण्ड की बाजी पर बात बनी हुई है, ऐसे स्थापना के निमित बने हुए बच्चे एक सेकण्ड में तैयार हो जाए ऐसा स्मृति का समर्थ बटन तैयार है?

 

✧  जो संकल्प किया और अशरीरी हुए। संकल्प किया और सर्व के विश्व-कल्याणकारी ऊँची स्टेज पर स्थित हो गए और उसी स्टेज पर स्थित हो साक्षी दृष्टा हो विनाश लीला देख सकें।

 

✧  देह के सर्व आकर्षण अर्थात सम्बन्ध, पदार्थ, संस्कार इन सबकी आकर्षण से परे, प्रकृति की हलचल की आकर्षण से परे, फरिश्ता बन ऊपर की स्टेज पर स्थित हो शान्ति और शक्ति की किरणें सर्व आत्माओं के प्रति दे सकें - ऐसे स्मृति का समर्थ बटन तैयार है? जब दोनों बटन तैयार हो तब समाप्ति हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बिन्दु बन विस्तार में जाओ तो सार मिलेगा। बिन्दु को भूल विस्तार मे जाते हो तो जंगल में चले जाते हो। जहाँ कोई सार नहीं। बिन्दु रूप में स्थित रहने वाले सारयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप का अनुभव करेंगे। उन्हों की स्मृति, बोल और कर्म सदा समर्थ होंगे। बिना बिन्दु बनने के विस्तार में जाने वाले सदा क्यों क्या के व्यर्थ बोल और कर्म में समय और शक्तियाँ भी व्यर्थ गँवायेंगे क्योंकि जंगल से निकलना पड़ता है। तो सदा क्या याद रखेंगे? एक ही बात -'बिंदु'।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप समान रहमदिल और कल्याणकारी बनना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा बगीचे में झूले पर बैठी झूलते हुए फूलों पर बैठी तितली को देख रही हूं... फूलों के कानों में कुछ कहती तितली एक फूल से दूसरे फूल पर इधर से उधर उड़ रही है... कोयल अपनी मधुर आवाज़ में सुरीला सरगम सुना रही है... मैं आत्मा भी अपने मीठे बाबा से मीठी मीठी बातें करने, अपने दिल के जज्बातों को बयान करने बगीचे में बाबा का आह्वान करती हूँ... बापदादा झूले पर आकर बैठ मेरे कानों में मधुर ज्ञान की सरगम सुनाते हैं...

❉ प्यारे बाबा शांति की किरणों से मुझे शांति का दूत बनाकर सारे विश्व को शांति का दान करने की शिक्षा देते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... इस दुनिया में रहते, कर्म करते दिल से सदा ईश्वर पिता को याद करो... यह यादे ही सर्व सुखो की प्राप्ति का सच्चा आधार है... जितना जितना यादो में दिल से खोये रहोगे... सुख और शांति की किरणे स्वतः ही चहुँ ओर बिखरती रहेंगी... और ऐसा ही आप समान ईश्वरीय दीवाना सबको बनाओ..."

➳ _ ➳ अम्बर के सारे तारे आँचल में समेटकर सारे विश्व के सितारों को जगमग करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में खो कर सच्चे प्रेम के स्त्रोत में बह रही हूँ... सारे नाते आपसे जोड़कर हर रिश्ते का सच्चा सुख पा रही हूँ... यादो की गहराई में डूबकर प्रेम सुख शांति से पूरे विश्व को भर कर आप समान बना रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा अपनी यादों की तरगों में डुबोकर सच्ची खुशियों के गहनों से मेरा श्रृंगार करते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में दिल की गहराइयो से डूब जाओ... और खुद गहरे आनन्द की अनुभूतियों को प्राप्त कर... पूरे विश्व को भी इन तरंगो से लबालब कर दो... शांति की लहरो से विश्व धरा को शीतल कर दो... आप समान बनाकर, हर दिल को सच्चे सुखो का अनुभव कराओ..."

➳ _ ➳ बाप समान रहमदिल बन दुखी, तडपती आत्माओं को जीयदान देते हुए सुख की अनुभूति कर मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा हर पल आपकी यादो में खोकर, अपने भाग्य को आलिशान बना रही हूँ... सच्चे प्रेम में भीगी पावन प्रेम तरंगे... विश्व पर बरसाने वाली प्रेम बदली बन गई हूँ... और सबको इस सच्चे प्रेम के अहसासो में भिगो कर आप समान बना रही हूँ..."

❉ प्यारे बाबा मीठी रूहानी सुगंध से मुझ रूहानी गुलाब को महकाकर अपने गुलिस्तां की फूल बनाते कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... इन प्यारी सी यादो में अथाह सुख छिपा है... सब कुछ इन यादो में ही समाया है... इसलिए हर कर्म करते, मन के भीतरी तार् ईश्वर पिता से जोड़कर... सच्चे प्रेम को जी लो... और शांति से ओतप्रोत प्रेम लहरियों को पूरे विश्व पर फैला दो... आप समान मीठा,प्यारा और ईश्वरीय दिलवाला बनाने की सेवा करो..."

➳ _ ➳ सबको सच्चे खजानों का पता देकर मीठी मुस्कान से हर दिल को सजाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबको ईश्वरीय खजानो से भरपूर कर आप समान भाग्यशाली महा धनवान् बनाती जा रही हूँ... मीठे बाबा आपकी यादो की खुमारी में रोम रोम से डूबी हुई हूँ... और सारे विश्व को शांति के प्रकम्पन्न से भर रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- आशिक बन माशूक को याद करना है"

➳ _ ➳ दिल मे सच्चे प्यार की आश ले कर, अपने परमात्मा माशूक की सच्ची आशिक बन, मैं उनके प्रेम की लगन में मगन हो कर उन्हें याद कर रही हूँ। मेरी याद उन तक पहुंच रही है, मेरे प्यार की तड़प की वो महसूस कर रहें हैं तभी तो मेरे प्रेम के आकर्षण में आकर्षित हो कर वो मेरे पास आ रहें हैं। उनके आने का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। अपने प्रेम की शीतल फुहारें मुझ पर बरसाते हुए मेरे सच्चे माशूक शिव बाबा अपना घर परमधाम छोड़ मुझ से मिलने के लिए इस साकार लोक में आ रहें हैं।

➳ _ ➳ प्यार के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा मुझे मेरे सच्चे प्यार का प्रतिफल देने के लिए अब मेरे सम्मुख हैं। उनके प्रेम की शीतल किरणों की शीतलता मुझे अपने आस - पास उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मैं किसी विशाल सागर के किनारे बैठी हूँ और सागर की लहरों की शीतलता, शीतल हवाओं के झोंको के रूप में बार - बार आ कर मुझे स्पर्श कर रही हैं। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रहे सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे ऐसी ही शीतलता का अनुभव करवा रहें हैं। शीतल हवाओं के झोंको के रूप में मेरे शिव माशूक का प्यार निरन्तर मुझ पर बरस रहा है और मेरे मन को तृप्त कर रहा है।

➳ _ ➳ अपने प्रेम की किरणों के आगोश में भरकर मेरे शिव साजन अब मुझ आत्मा को इस देह के पिजड़े से निकाल, अपने साथ ले जा रहें हैं। देह के बन्धन से मुक्त हो कर मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। उन्मुक्त हो कर उड़ने का आनन्द कितना निराला, कितना लुभावना है। अपने सच्चे माशूक की बाहों के झूले में झूलती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर इतराती मैं आत्मा आशिक उनके साथ उनके धाम जा रही हूँ। देह और देह की दुनिया के झूठे रिश्तों के मोह की जंजीरो की कैद से निकल, अपने शिव पिया के साथ अब मैं पहुंच गई उनकी निराकारी दुनिया में।

➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने सच्चे माशूक शिव पिता परमात्मा के सामने। उनके प्यार की शीतल छाया के नीचे बैठी मैं आशिक आत्मा अपलक उन्हें निहार रही हूँ। 63 जन्मो से जिनके दर्शनों की आश मन में लिए इधर - उधर भटक रही थी। वो मेरे माशूक, मेरे शिव बाबा आज मेरे बिल्कुल सामने हैं। प्रभु दर्शन की प्यासी मैं आत्मा आज उन्हें अपने सामने पा कर तृप्त हो गई हूँ। उनके प्यार की शीतल फुहारे रिम - झिम करती बारिश की बूंदों की तरह निरन्तर मुझ पर पड़ रही हैं। उनकी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं। बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के साथ मैं मंगल मिलन मना रही हूँ। यह मंगल मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है।

➳ _ ➳ इस अतीन्द्रिय सुख का गहन अनुभव करने के बाद, अपने माशूक शिव पिता परमात्मा के इस अदभुत, अद्वितिय प्यार का सुखद एहसास अपने साथ ले कर मै उनकी आशिक आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अब मैं अपने साकारी तन में विराजमान हूँ और स्वयं को अपने शिव पिया के साथ कम्बाइंड अनुभव कर रही हूँ। उनके निस्वार्थ प्यार का मधुर एहसास मुझे हर पल उनकी उपस्थिति का अनुभव कराता रहता है। एक पल के लिए भी मैं उनसे अलग नही होती। चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते वो मुझे अपने साथ अनुभव होते हैं। अपने माशूक शिव परमात्मा की सच्ची आशिक बन अब मैं हर पल उनकी ही यादों में खोई रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं संकल्प रूपी बीज को सदा समर्थ बनाने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं योद्धा ना बन, योगी बनकर, सूर्यवंश में जाने वाली सूर्यवंशी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳   ब्रह्माकुमार-कुमारी बन अगर कोई भी साधारण चलन वा पुरानी चाल चलते हैं तो सिर्फ अकेला अपने को नुकसान नहीं पहुँचाते - क्योंकि अकेले ब्रह्माकुमार-कुमारी नहीं हो लेकिन ब्राह्मण कुल के भाती हो। स्वयं का नुकसान तो करते ही हैं लेकिन  कुल को बदनाम करने का बोझ भी उस आत्मा के ऊपर चढ़ता है। ब्राह्मण लोक की लाज रखना यह भी हर ब्राह्मण का फर्ज है। जैसे लौकिक लोकलाज का कितना ध्यान रखते हैं। लौकिक लोकलाज पद्मापद्मपति बनने से भी कहाँ वंचित कर देती है। स्वयं ही अनुभव भी करते हो और कहते भी हो कि चाहते तो बहुत हैं लेकिन लोकलाज को निभाना पड़ता है। ऐसे कहते हो नाजो लोकलाज अनेक जन्मों की प्राप्ति से वंचित करने वाली हैवर्तमान हीरे जैसा जन्म कौड़ी समान व्यर्थ बनाने वाली हैयह अच्छी तरह से जानते भी हो फिर भी उस लोकलाज को निभाने में अच्छी तरह ध्यान देते होसमय देते हो, एनर्जी लगाते हो। तो क्या इस ब्राह्मण लोकलाज की कोई विशेषता नहीं है!

 

_ ➳  उस लोक की लाज के पीछे अपना धर्म अर्थात् धारणायें और श्रेष्ठ कर्म याद कादोनों ही धर्म और कर्म छोड़ देते हो। कभी वृत्ति के परहेज की धारणा अर्थात् धर्म को छोड़ देते होंकभी शुद्ध दृष्टि के धर्म को छोड़ देते हो। कभी शुद्ध अन्न के धर्म को छोड़ देते हो। फिर अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए बातें बहुत बनाते हो। क्या कहते - कि करना ही पड़ता है! थोड़ी सी कमज़ोरी सदा के लिए धर्म और कर्म को छुड़ा देती है। जो धर्म और कर्म को छोड़ देता है उसको लौकिक कुल में भी क्या समझा जाता हैजानते हो नायह किसी साधारण कुल का धर्म और कर्म नहीं है। ब्राह्मण कुल ऊँचे ते ऊँची चोटी वाला कुल है। तो किस लोक वा किस कुल की लाज रखनी है?

 

✺   "ड्रिल :- लौकिक लोकलाज के लिए ब्राह्मण कुल की लोकलाज को नहीं छोड़ना।"

 

_ ➳  देह रूपी थाली में पूजा के पावन दीपक की भाति, मैं आत्मा अपने प्रकाश से आसपास के अज्ञान अंधकार को दूर कर रही हूँ... मेरी पावनता का प्रकाश आत्माओं की बुझती ज्योति में नवीन ऊर्जा का संचार कर रहा है... अंधकार से लडना और जीतना मेरे कुल की मर्यादा है और इस पर मुझे पूरा नाज़ है...

 

_ ➳  फरिश्ता रूप धारण कर मैं आत्मा, बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में, बापदादा के ठीक सामने... बापदादा के हाथो में फूलों की दो मालाएँ... एक में सुन्दर गुलाब और एक में अक के फूल गुँथे हुए है... साफ अन्तर नजर आ रहा है दोनों में एक का कुल साधारण है और एक का श्रेष्ठ... एक खुशबू से रहित है दूसरा खुशबूदार है, कोमल है... मैं हाथ बढाकर गुलाब के फूलों की माला स्वीकार करता हूँ... बापदादा मेरी समझ पर मुस्कुरा रहे हैं...

 

_ ➳  बापदादा के हाथों में हाथ लिए मैं आत्मा, द्वापर की यात्रा पर... सामने देख रही हूँ भव्य विशाल मन्दिर, मन्दिर के बाहर भक्तों की लम्बी कतार, मगर मन्दिर का दरवाजा बन्द है, क्योंकि दर्शनीय मूरत आत्माएं अभी श्रृंगार में ही लगी है... कभी लौकिक लोकलाज का श्रृंगार तो कभी देवताई श्रृंगार... मानो समय की महत्ता और संगम युगी जन्म का महत्व भूल गयी है... लम्बे इन्तजार के बाद भक्तों की निराश होकर लौटती भीड... एक बैचेनी सी पैदा कर रही है मेरे मन में... उनके चेहरों की निराशा देखकर मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... और बापदादा मेरी पीडा को देखकर आज मुस्कुरा रहे है... मानो आज मुझे मेरे धर्म व धारणाओं का आईना दिखा रहे है...

 

_ ➳  मुझे याद आ रहा है कब कब मुझ आत्मा की ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी बनकर  साधारण चाल चलन रही और कब कब मैने लौकिक कुल की लोक लाज निभाने के लिए ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं से समझौता किया... और इस हीरे तुल्य जन्म को कौडियों के समान समझा...

 

_ ➳  ब्राह्मण कुल की लोकलाज के प्रति अटूट श्रद्धा का भाव मन में लिए मैं आत्मा बापदादा के साथ एक नौका पर सवार हूँ... मेरे हाथों में लौकिक मर्यादाओं की पोटली है... मैं आत्मा देखते ही देखते फेंक देती हूँ इसे नदी की तेज धाराओं में... और देख रही हूँ अपने से आहिस्ता आहिस्ता दूर जाती हुई...  इतनी दूर कि वो पोटली आँखों से पूरी तरह ओझल हो गयी है...

 

_ ➳  मुक्ति का तीव्र एहसास... और बापदादा गले से लगा रहे है मुझे... मेरा बापदादा से हाथों में हाथ लेकर वादा- "अब कोई भक्त मेरे मन्दिर से निराश नही लौटेगा बाबा"... मैं बस ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं को ही जीवन में धारण करूँगी... अब ये दर्शनीय मूरत श्रृंगार करने में ज्यादा समय नही लगायेगी... गहरे निश्चय और दृढता के साथ मैं फरिश्ता वापस अपने उसी देह रूपी थाली में... इस बार मुझ दीपक की लौ गहरे आत्मविश्वास के साथ जगमगा रही है... ओम शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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