━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 16 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *विचार सागर मंथन कर स्वयं को ज्ञान रतनो से भरपूर किया ?*
➢➢ *"हम भाई भाई हैं" - यह अभ्यास किया ?*
➢➢ *सब कुछ बाप हवाले कर कमल पुष्प समान न्यारे बनकर रहे ?*
➢➢ *रूहानियत से रौब को समाप्त किया ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *मन्सा शक्ति का दर्पण है - बोल और कर्म।* चाहे अज्ञानी आत्मायें, चाहे ज्ञानी आत्मायें - दोनों के सम्बन्ध-सम्पर्क में बोल और कर्म शुभ- भावना, शुभ-कामना वाले हों। *जिसकी मन्सा शक्तिशाली वा शुभ होगी उसकी वाचा और कर्मणा स्वत: ही शक्तिशाली शुद्ध होगी, शुभ-भावना वाली होगी। मन्सा शक्तिशाली अर्थात् याद की शक्ति श्रेष्ठ होगी, शक्तिशाली होगी, सहजयोगी होंगे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं संगमयुगी ब्राह्मण चोटी महान आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें, पुरुषोत्तम आत्मायें वा ब्राह्मण चोटी महान आत्मायें समझते हो? अभी से पुरुषोत्तम बन गये ना। *दुनिया में और भी पुरुष हैं लेकिन उन्हों से न्यारे और बाप के प्यारे बन गये इसलिए पुरुषोत्तम बन गये। औरों के बीच में अपने को अलौकिक समझते हो ना! चाहे सम्पर्क में लौकिक आत्माओंके आते लेकिन उनके बीच में रहते हुए भी मैं अलौकिक न्यारी हूँ यह तो कभी नहीं भूलना है ना!*
〰✧ क्योंकि आप बन गये हो हंस, ज्ञान के मोती चुगने वाले 'होली हंस' हो। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते, गन्द ही बोलते...तो बगुलों के बीच में रहते हुए अपना होलीहंस जीवन कभी भूल तो नहीं जाते! कभी उसका प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? वैसे तो उसका प्रभाव है मायावी और आप हो मायाजीत तो आपका प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, उनका आप पर नहीं। तो सदा अपने को होलीहंस समझते हो? *होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। ब्रह्मण आत्मायें जो ऊँच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते। बगुले से होलीहंस बन गये। तो होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र।*
〰✧ पवित्रता ही स्वच्छता है। हंस सदा स्वच्छ है, सदा सफेद-सफेद। सफेद भी स्वच्छता वा पवित्रता की निशानी है। *आपकी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की निशानी है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता है तो होलीहंस नहीं। होलीहंस संकल्प भी अशुद्ध नहीं कर सकते। संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरुस्त नहीं रह सकते।* व्यर्थ चीज को फेका जाता, इक्क्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी।* चलते-फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियाँ करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा नहीं, स्मृति मे इमर्ज हो।
〰✧ मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलंग पॉवर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? *जैसे राजा अपने कर्मचारियों को ऑर्डर में रखते हैं, ऑर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियाँ ऑर्डर में रहेंगी।*
〰✧ माया के ऑर्डर में नहीं रहेंगी, आपके ऑर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया ऑर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के ऑर्डर में चल पडती है। इसलिए *सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जैसे इस शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। वैसे ही जब चाहो तब शरीर का भान बिल्कुल छोड़कर अशरीरी बन जाना और जब चाहो तब शरीर का आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है? इस अनुभव को अब बढ़ना है। बिल्कुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए। सदैव यही याद रखो कि अब गये कि गये। सिर्फ़ सर्विस के निमित शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते है। *जैसे आप लोग कहाँ भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। डयूटी की ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहन लेते हो वैसे ही सर्विस प्रति यह शरीर रूपी वस्त्र का आधार लिया फिर सर्विस समाप्त हुई और इन वस्रों के बोझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो।* एक सेकेण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे। *कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्के होने से सहज ही अलग हो जाता है। वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी इज़ीपन नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ऊंच पद पाने के लिए बाप जो पढ़ाते हैं उसे ज्यों का त्यों धारण करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठकर आसमान में उगते सूर्य को देख रही हूँ... अँधेरी रात खत्म होकर चारों ओर रोशनी हो गई है... खिलखिलाते हुए फूल, चहचहाते हुए पंछी अपने घोंसलों से निकल मुस्कुरा रहें हैं... ऐसे ही ज्ञान सूर्य बाबा ने मेरे जीवन को रोशन कर दिया है... अज्ञान अंधियारे को हरती हुई ये ज्ञान सूर्य की निर्मल किरणों ने मेरे जीवन में उजियारा कर दिया... और सदा के लिए मुस्कुराहट बिखेर दिया...* मैं आत्मा उड़ चलती हूँ हिस्ट्री हाल में परम शिक्षक के पास... रूहानी पढाई पढ़ने... उनकी शिक्षाओं को धारण करने...
❉ *अपनी मीठी शिक्षाओं से मेरी जिन्दगी को हसीन बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई ही विश्वधरा पर सुनहरे सुखो को दिलायेगीं... *इसलिए इस असाधरण ज्ञान को दिल की गहराइयो में समा लो... जितना ज्ञान पर मन्थन करेंगे उतनी ही धारणा होगी और जीवन ज्ञान युक्त खूबसूरती से झलकेगा...”*
➳ _ ➳ *ज्ञान के सागर में डूबकर ज्ञान के हीरे-मोतियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय खजानो को पाने वाली अति धनवान् मालामाल हूँ... *ज्ञान रत्नों को जीवन में सजाने वाली महान भाग्य की धनी हूँ... एकांत में बैठकर रत्नों को बुद्धि की तिजोरी में भर रही हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा परम शिक्षक बनकर श्रेष्ठ कर्म सिखलाकर मुझे पुण्य आत्मा बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *कितने महान भाग्यशाली हो कि स्वयं भगवान शिक्षक बनकर रत्नों को लुटा रहा... तो इन रत्नों की खानो को अपने नाम कर लो...* जितना रत्नों के साथ खेलेंगे उतना ही मीठा इस विश्व धरा पर मुस्करायेंगे... ईश्वरीय पढ़ाई में जीजान से मेहनत कर ईश्वर पिता के दिल में बस जाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों को धारण कर ज़माने की सारी खुशियों को बटोरकर बाबा से कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई पर मेहनत करके... सवेरे सवेरे उठकर मन्थन से तीव्र पुरुषार्थी बनकर... बापदादा के आँखों का तारे सा मुस्करा रही हूँ...* एकांत में ईश्वरीय पढ़ाई का गहन अध्ययन कर, ज्ञान रत्नों की चमक भरा ईश्वरीय जीवन जीती जा रही हूँ...”
❉ *अविनाशी बाबा अविनाशी खजानों को मुझ आत्मा पर लुटाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय ज्ञान ही जीवन को जादू जैसा सुखमय और खुबसूरत बनाने वाला है... इस पढ़ाई को रोम रोम में उतार लो...* और एकांत में जितना घोटेंगे उतनी ईश्वरीय खूबसूरती जीवन से स्वतः झलकेगी... इसलिए सवेरे सवेरे ज्ञान रत्नों का मनन करो...”
➳ _ ➳ *अविनाशी कमाई पाकर आत्मिक ख़ुशी और नशे में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा स्वयं ईश्वर पिता के हाथो ज्ञान रत्नों से सजने वाली सौभाग्यवान आत्मा हूँ... *स्वयं भगवान पढ़ा रहा और सतयुगी सुखो का हकदार बना रहा... ज्ञान रत्नों से मेरी जनमो की निर्धनता को खत्म कर विश्व अधिकारी सा सजा रहा है...”*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ कर दूसरों को समझाना है*"
➳ _ ➳ ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, इस बेहद के ड्रामा में वैरायटी आत्माओं के वैरायटी पार्ट को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना वन्डरफुल है ये ड्रामा! *इस सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना - अपना पार्ट प्ले कर रही है और एक का पार्ट भी दूसरे के पार्ट से मैच नही करता। हर आत्मा कल्प पहले मुआफ़िक अपना पार्ट बिल्कुल ऐक्यूरेट बजा रही है*। बाबा ने ड्रामा के इस राज को स्पष्ट करके जीवन को कितना सहज बना दिया है। इस राज को जानने से क्या, क्यो और कैसे की क्यू में उलझने की बजाए सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाना कितना सरल हो गया है। *ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ लेने से जीवन को जैसे एक नई दिशा मिल गई है*।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन मे निरन्तर आगे बढ़ते हुए, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ अडोल रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अब मुझे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त करना है *मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, ड्रामा के हर खूबसूरत पहलू से परिचित कराने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा से मीठी मीठी रूहरिहान करने, उनसे मंगल मिलन मनाने और ड्रामा के पट्टे पर सदा अचल, अडोल रहने का उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और सेकेण्ड में अशरीरी होकर, देह से बिल्कुल न्यारा एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आ जाता हूँ और अपने बिंदु बाप के पास उनके धाम की ओर चल पड़ता हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में स्थित मेरे बिंदु बाप से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझ बिंदु सितारे के साथ कनेक्ट होकर मुझे बिल्कुल सहज रीति ऊपर की ओर खींच रही है और *मैं चैतन्य सितारा, इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर, स्वयं को हर चीज से उपराम अनुभव करते हुए, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ता जा रहा हूँ*। मेरे बिंदु पिता से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे अति शीघ्र 5 तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कराये, फरिश्तो की आकारी दुनिया से ऊपर, आत्माओं की उस निराकारी दुनिया में ले आई है जहाँ पहुँच कर मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया में मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ ना साकार देह का कोई बन्धन है और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है केवल चमकती हुई निराकारी बिंदु आत्मायें अपने बिंदु बाप की अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर, उनके प्यार और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *बिंदु बाप के साथ अपने बिंदु बच्चो का यह मंगल मिलन मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। अपने बिंदु पिता से मिलन मनाने के लिए मैं बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे उनके पास पहुँचती हूँ ओर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की प्रवेशता के कारण मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो अब परमात्म शक्तियों से चार्ज हो गई है और मैं आत्मा जैसे लाइट हाउस बन गई हूँ। *परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। शक्तियों का पुंज बनकर, बेहद के सृष्टि ड्रामा में अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ*। फिर से 5 तत्वों की साकारी दुनिया में, अपने साकारी तन में प्रवेश कर ड्रामा के पट्टे पर आकर खड़ी हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ड्रामा के हर राज को गहराई से समझ, साक्षी दृष्टा बन, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखते हुए, हर परिस्थिति में अचल अडोल रहने का अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ। *"सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे हर आकर्षण से मुक्त और हर चीज से उपराम करके, ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ, स्वयं को अचल, अडोल और एकरस बनाने में सहयोग दे रही है*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सब कुछ बाप हवाले कर कमल पुष्प समान न्यारे प्यारे रहने वाली डबल लाइट आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं रूहानियत से रोब को समाप्त कर, स्वयं को शरीर की स्मृति से गलाने वाला सच्चा पाण्डव हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *स्वयं सदा स्वमान में रह उड़ते रहो। स्वमान को कभी नहीं छोड़ो, चाहे झाडू लगा रहे हो लेकन स्वमान क्या है? विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ। तो अपना रूहानी स्वमान कोई भी काम करते भूलना नहीं।* नशा रहता है ना, रूहानी नशा। हम किसके बन गये! भाग्य याद रहता है ना? भूलते तो नहीं हो? *जितना भी समय सेवा के लिए मिलता है उतना समय एक-एक सेकण्ड सफल करो।* व्यर्थ नहीं जाए, साधारण भी नहीं। *रूहानी नशे में रूहानी प्राप्तियों में समय जाए। ऐसा लक्ष्य रखते हो ना! अच्छा।*
✺ *ड्रिल :- "सदा अपने रूहानी स्वमान में रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा देख रही हूँ स्वयं को, एक बड़ी ऊंची पहाड़ी पर प्रकृति के सानिध्य में बैठे हुए...* मैं आत्मा उन अद्वितीय, अविस्मरणीय मीठे अद्भुत पलों को याद कर रही हूँ... *जब इस कलियुग रूपी अन्धेरे में ज्योति बिन्दु शिव बाबा रोशनी बन मेरे जीवन में आये... और मुझ दिव्य आत्मा को अज्ञान अन्धेरे से बाहर निकाल ज्ञान प्रकाश दिया...* मुझ विशेष आत्मा को मेरा सत्य परिचय दिया... *मुझ आत्मा का हाथ थामा मुझे अपना बनाया...* मैं आत्मा इस पहाड़ी से इस पूरे विश्व की आत्माओं को देख रही हूँ और अपने भाग्य को देख रही हूँ... *कितना श्रेष्ठ भाग्य, मुझ श्रेष्ठ आत्मा ने पाया हैं... इस संसार की आत्माओं से चुनकर बाबा ने मुझ आत्मा को कितना विशेष बना दिया है...* वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो, स्वयं बाबा ने आकर अपना सत्य परिचय दिया... सत्यता का प्रकाश मुझे दिया... और जीवन में सवेरा लाया...
➳ _ ➳ *मूर्छित अवस्था से सुरजीत किया... वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो इस ब्रम्हांड की परमसत्ता से मेरा मिलन हुआ...* उसने आते ही मुझ आत्मा के स्वमान को जगाया... मुझ आत्मा को जागरण की अवस्था मे लाया... *मुझ आत्मा को भिन्न-भिन्न स्वमानों से सजाया...* जैसे ही ये विचार मैं आत्मा जनरेट करती हूँ... तभी अचानक एक सतरंगी रंग का कमल का फूल, मुझ आत्मा के सामने आता है... *मैं आत्मा उठकर इस कमल फूल पर विराजमान हो जाती हूँ...* मैं कमल आसनधारी आत्मा जैसे ही कमल फूल पर बैठती हूँ... मुझ आत्मा का स्वरूप परिवर्तन हो जाता है...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा डबल लाइट फरिशता स्वरूप धारण करती हूँ...* और सामने फरिशतों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... *बाबा मुझ नन्हें फरिशते के पास आ जाते है... बाबा को सामने पाकर मैं आत्मा खुशी से भर गयी हूँ...* बाबा मुझ आत्मा पर रंग-बिरंगे फूलों रूपी शक्तियों की वर्षा कर रहे है... वाह मुझ आत्मा का भाग्य वाह, अपने भाग्य को देख-देख मैं आत्मा खुशी में झूम रही हूँ... *बापदादा मुझ आत्मा के सामने आकर बैठ जाते है... और मुझ आत्मा को भिन्न भिन्न स्वमानों की मालायें पहना रहे है...*
➳ _ ➳ *एक-एक स्वमान की माला अदभुत चमकीली है... भिन्न-भिन्न स्वमानों की माला से बाबा मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहे है...* अब मैं आत्मा भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाओं से सज गयी हूँ... फिर बाबा मेरे सिर पर हाथ रखते हैं... और *बाबा मुझ आत्मा को वरदान दे रहे "सदा स्वमानधारी" भव बच्चे...* मैं आत्मा अन्तर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में कर्मक्षेत्र पर... *मैं आत्मा हर कार्य करते भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाएँ धारण कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ... इस स्वमान के रूहानी नशे में रह हरदम उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा हर समय रूहानी नशे मे रह रूहानी प्राप्तियों में समय सफल कर रही हूँ... *स्वमान की भिन्न-भिन्न मालाओं से मैं आत्मा सजकर हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना एक-एक सेकेंड सफल कर रही हूँ... *मैं श्रेष्ठ आत्मा स्वमान में स्थित होकर हर सेवा कर रही हूँ...* मैं आत्मा किसकी बन गयी हूँ... *सदा इस रूहानी नशे में उड़ती रहती हूँ... स्वमान में स्थित रह सबको सम्मान देती हूँ...* और सभी आत्माओं को स्वमान की दृष्टि से देखती हूँ... *बाबा के द्वारा मिला सदा स्वमानधारी भव का वरदान प्रत्यक्ष हो रहा है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━