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 31 / 03 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वयं को विधाता, वरदाता, विधि विधाता अनुभव किया ?*

 

➢➢ *स्वयं को संतोषीमूर्त अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सर्व प्राप्ति स्वरुप प्रसन्नचित अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है" - यह अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *आप अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को सिद्ध कर सकते हो।* वह रिद्धि सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी। *वह रिद्धि सिद्धि यूज करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्भय, निर्वैर हूँ"*

 

  आप सब बच्चे 'निर्भय' हो ना। क्यों? क्योंकि आप सदा 'निर्वैर' हो। *आपका किसी से भी वैर नहीं है। सभी आत्माओंके प्रति भाई-भाई की शुभ भावना, शुभ कामना है। ऐसी शुभ भावना, कामना वाली आत्मायें सदा निर्भय रहती हैं।* भयभीत होने वाले नहीं। स्वयं योगयुक्त स्थिति में स्थित हैं तो कैसी भी परिस्थिति में सेफ जरूर हैं1 तो सदा सेफ रहने वाले हो ना?

 

 

  *बाप की छत्रछाया में रहने वाले सदा सेफ है। छत्रछाया से बाहर निकले तोफिर भय है। छत्रछाया के अन्दर निर्भय हैं। कितना भी कोई कुछ भी करे लेकिन बाप की याद एक किला है।* जैसे किले के अन्दर कोई नहीं आ सकता, ऐसे याद के किले के अन्दर सेफ। हलचल में भी अचल। घबराने वाले नहीं। यह तो कुछ भी नहीं देखा। यह रिहर्सल है। रीयल तो और है। रिहर्सल पक्का कराने के लिए की जाती है। तो पक्के हो गये, बहादुर हो गये?

 

  बाप से लगन है तो कैसी भी समस्याओंमें पहुँच गये। *समस्या जीत बन गये लगन निर्विग्न बनने की शक्ति देती है। बस सिर्फ 'मेरा बाबा' यह महामंत्र याद रहे। यह भूला तो गये। यही याद रहा तो सदा सेफ हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अव्यक्त में सर्वीस कैसे होती है? यह अनुभव होता जाता है? अव्यक्त में सर्वीस का साथ कैसे सदैव रहता है। यह भी अनुभव होता है? जो वायदा किया है कि स्नेही आत्माओं के हर सेकण्ड साथ ही है। ऐसे सदैव साथ का अनुभव होता है? *सिर्फ रूप बदला है लेकिन कर्तव्य वही चल रहा है*।

 

✧  *जो भी स्नेही बच्चे है उन्हों के ऊपर छत्र रुप में नजर आता है* छत्रछाया के नीचे सभी कार्य चल रहा है। ऐसी भासना आती है।  व्यक्त से अव्यक्त, अव्यक्त से व्यक्त में आना यह सीढी उतरना और चढना जैसे आदत पड गयी है। अभी - अभी वहाँ , अभी - अभी यहाँ। जिसकी ऐसी स्थिती हो जाती है , अभ्यास हो जाता है जो उसको यह व्यक्त देश भी जैसे अव्यक्त भासता है। स्मृती और दृष्टी बदल जाती है।

 

✧  सभी एवररेडी बनर बैठे हुए हो? कोई भी देह के हिसाब - किताब से भी हल्का। वतन में शुरू - शुरू में पक्षियों कि खेल दिखलाते थे, पक्षीयों को उडाते थे। वैसे आत्मा भी पक्षी है, जब चाहे तब उड सकती है। वह तब हो सकता है जब अभ्यास हो। *जब खुद उडता पक्षी बनें तब औरों को भी एक सेकण्ड में उडा सकते है*। अभी तो समय  लगता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आकार को देखते निराकार को देखने का अभ्यास हो गया है? जैसे बाप आकार में निराकार आत्माओं को ही देखते हैं, वैसे ही बाप समान बने हो? *सदैव जो श्रेष्ठ बीज़ होता है उसी तरफ ही दृष्टि और वृत्ति जाती है। तो इस आकार के बीच श्रेष्ठ कौन-सी वस्तु है? निराकार आत्मा। तो रूप को देखते हो व रूह को देखते हो?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ब्राहमणों के हर कदम, संकल्प और कर्म से विधान का निर्माण"*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा को अपने दिल आँगन में बुलाकर... अपनी सारी मीठी भावनाये उंडेलती हुई... मीठे चिंतन में खो जाती हूँ... कि इस जीवन में मीठे बाबा ने आकर कितनी रौनक बिखेरी है... दुखो में कलुषित जीवन जीने वाली मै आत्मा.... आज मीठे बाबा के हाथ को पकड़े...उमंगो से भरी हुई... हर आत्मा को भी उजालो में ला रही हूँ...* मीठे बाबा की शक्तियो को स्वयं में समाकर... माया के हर दांव को निष्फल कर रही हूँ... और देखती हूँ, अपने प्यारे बाबा को जो... कब से खड़े, मेरी भावनाओ को निहार रहे है...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन की मल्लिका बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा विधि को अपनाने वाले सिद्धि स्वरूप बनकर मुस्कराओ... विधान से विश्व निर्माता बनो और वरदानों से वरदानी मूर्त बनकर, मीठे बाबा को जहान में प्रत्यक्ष करो... *मा विधाता बनकर सबको खुशियो भरे भाग्य से भरकर आप समान सुखी बनाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से पायी असीम खुशियो पर मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी प्यारी गोद में खिलकर तो मै आत्मा मा विधाता बन गयी हूँ... स्वयं को भी नही जानती थी, और *आज सारे विश्व का कल्याण करने वाला प्यारा दिल लिए घूम रही हूँ... मीठे बाबा कितनी प्यारी जादूगरी आपने सिखायी है.*.."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे स्नेह से सींचते हुए कहते है :-* " सदा मीठे बाबा का हाथ पकड़े कम्बाइंड रहो... और निमित्त भाव लिए खुशियो में झूमते रहो... मीठे बाबा के नयनों का नूर बनकर सदा आगे बढ़ते रहो... और *हजार हाथो की मदद बाबा से पाकर, हर कदम सफलता...पाने वाले महा भाग्यवान बनकर विश्व धरा पर इठलाओ.*.. लाइट हाऊस बनकर सबको सत्य रौशनी की राहे दिखाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा से शक्तियो को लेकर स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपके सत्य ज्ञान से ओजस्वी होकर मै आत्मा... हर दिल को अँधेरे से निकाल, सत्य के प्रकाश से भर रही हूँ... *आपके हजार हाथो में अपने हाथो को सौंपकर... कितनी निश्चिन्त सी और बेफिक्र बन झूम रही हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पर बिठाते हुए कहा :-* "मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे... मीठे बाबा का हाथ पकड़ कर महावीर बनकर... माया पर सहज ही जीत पाओ... बड़े बाप के संग रह, सदा विजय पताका फहराओ... *पहले आप के गुण से परमार्थ और व्यवहार में सर्व के प्रिय बनकर मुस्कराओ..*.

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा को दिल से असीम दुआए देते हुए कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... *आपके फूलो से हाथो को थाम कर.. जीवन कितनी अपार ख़ुशी की जागीर बन गया है.*.. जिस माया के गर्त में गहरे फंसी थी... आज आपकी यादो के सहारे, उस दलदल से निकलना कितना आसान हो गया है..."प्यारे बाबा से मीठी सी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने साकार वतन में लॉट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सर्व प्राप्ति स्वरुप प्रसन्नचित अवस्था का अनुभव*"

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों को स्मृति में लाकर, अपने सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्वरूप का अनुभव करते हुए, सुख के सागर अपने प्यारे पिता को मैं याद करती हूँ जिन्होंने मुझे ब्रह्मा मुख से एडॉप्ट कर अपना बच्चा बनाकर, सुख के अपरमअपार ख़ज़ानों से भरपूर कर दिया। *अपने सुख सागर शिव पिता के सुख की किरणों की छत्रछाया के नीचे मै हर पल ऐसे अनुभव करती हूँ जैसे हर गम, हर दुख से आजाद होकर मैं सुख की शैय्या पर विश्राम कर रही हूँ*। ऐसे अपने पिता के सानिध्य में मिलने वाले अथाह सुख को याद करते - करते, मन मे उनसे मिलने की तड़प पैदा हो उठती है और मैं आत्मा देह की दुनिया से किनारा कर, अशरीरी बन चल पड़ती हूँ अपने पिता परमात्मा के पास ले जाने वाली एक अति सुखदायी आंतरिक यात्रा पर।

 

_ ➳  अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर, इस अति न्यारी और प्यारी रूहानी यात्रा पर अब मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ती हूँ। *उस सुख के मधुर अहसास का, जो सुख के सागर मेरे पिता के पास जाकर मुझे मिलता है उसका आनन्द लेते - लेते मैं आकाश को पार कर, उससे ऊपर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन और सूक्ष्म वतन को भी क्रॉस कर अपनी रूहानी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए अपने पिता के पास उनके निर्वाण धाम घर मे प्रवेश करती हूँ*। वाणी से परे की यह दुनिया जहाँ ना कोई देह का बन्धन है और ना देह से जुड़ी किसी भी बात का कोई गम या दुख है। यहां तक कि देह से जुड़ा कोई संकल्प भी नही।

 

_ ➳  आत्माओं की यह निराकारी दुनिया जहाँ केवल आत्माओं का अपने पिता परमात्मा के साथ जुड़ा सच्चा सुखद स्नेही सम्बन्ध है। *ऐसे सुखद सम्बन्ध का अनुभव करने के लिए मैं आत्मा अब अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मंगल मिलन मनाने के लिए उनके पास पहुँचती हूँ*। सुख के सागर अपने शिव पिता की सुख की अनन्त किरणो को चारों ओर बिखरते हुए मैं देख रही हूँ। उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ और उनकी सुख की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने प्यारे मीठे शिव परम पिता परमात्मा के सानिध्य में बैठ मैं आत्मा अब उनसे आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की असीम किरणे मुझ आत्मा पर ऐसे पड़ रही हैं जैसे सुख का कोई झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ*। असीम सुख की अनुभूति करके, स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करके मैं आत्मा परमधाम से नीचे आती हूँ। सूक्ष्म वतन से होती हुई वापिस आकाश से नीचे साकार लोक में मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ और इस साकार सृष्टि पर फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए अपने शरीर रूपी रथ पर विराजमान हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, सुख के सागर अपने शिव पिता की छत्रछाया के नीचे स्वयं को सदा अनुभव करते हुए अब मैं हर पल गहन सुख की अनुभूति करती हूँ। *हर दुख, हर गम से अंजान, बेगमपुर का बादशाह बन मैं स्वयं को सदैव एक अद्भुत सुखमय संसार में महसूस करती हूँ जहाँ दुख का नाम निशान भी नही*। मुझ ब्राह्मण आत्मा के खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नही। सर्व प्राप्ति स्वरूप होने के कारण, सुख के साधन - सम्पति और सम्बन्ध से मैं सम्पन्न हूँ। *बाप के साथ अविनाशी सर्व सम्बन्ध और सर्व सम्पति के श्रेष्ठ खजाने, ज्ञान धन से स्वयं को सदा भरपूर अनुभव करते हुए मैं स्वयं को सदा सुख के संसार का बादशाह समझते हुए अपरमअपार खुशी से भरपूर रहती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं श्रीमत की लगान को टाइट कर मन को वश करने वाली बालक सो मालिक आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *जो हो रहा है वह भी अच्छा और जो होने वाला है वह और भी अच्छा- सदा यही निश्चय रखकर मैं अचल अडोल बनने वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मन में बहुत कुछ आपके भरा हुआ है, *बापदादा के पास मन को देखने का टी.वी. भी है।* यहाँ यह टी.वी. तो बाहर का शक्ल दिखाती है ना। लेकिन *बापदादा के पास हर एक के हर समय के मन के गति का यन्त्र है। तो मन में बहुत खजाने हैं, बहुत शक्तियाँ हैं। लेकिन कर्म में यथाशक्ति हो जाता है। अभी कर्म तक लाओ, वाणी तक लाओ, चेहरे तक लाओ, चलन में लाओ।* तभी सभी कहेंगे, जो आपका एक गीत है ना, शक्तियाँ आ गई...। *सब शिव की शक्तियाँ हैं। पाण्डव भी शक्तियाँ हो। फिर शक्तियाँ शिव बाप को प्रत्यक्ष करेंगी।* अभी छोटे-छोटे खेलपाल बन्द करो। अब वानप्रस्थ स्थिति को इमर्ज करो। तो *बापदादा सभी बच्चों को, इस समय बापदादा की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के सितारे देख रहे हैं। कोई भी बात आवे तो यह स्लोगन याद रखना - 'परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन'।*

 

✺   *ड्रिल :-  "मन के खजानों को कर्म में लाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं शिव की शक्ति शिव शक्ति हूँ... अपने आप को इस स्वमान में स्थित कर मैं आत्मा अपने प्राणप्यारे शिव बाबा की यादों में खो जाती हूं...* "यादों के आँचल में बाबा बसा लो किरणों के आँचल में हमको समा लो... तुमसे तनिक दूर जाएं ना हम... तुम बिन कहीं रह ना पाएं अब हम..." अब मैं पहुँचती हूं... अपने फरिश्ताई स्वरूप में... बापदादा के पास... बाबा बड़े प्यार से मेरा स्वागत करते हैं... बाबा के चमकते ललाट से अद्भुत किरणें निकल मेरी सूक्ष्म काया पर आकर उसे अलौकिक रूप दे रही हैं... *बाबा मेरे सर पर वरदानी हाथ रख वरदान देतें हैं... विश्व परिवर्तक भव! शक्ति स्वरूपा भव! और मैं आत्मा अपने में इन वरदानो को समाहित होता देखती हूँ...*

 

 _ ➳  *मेरे मन बुद्धि में जैसे जैसे यह वरदान समाहित होते जाते है.. वैसे वैसे मैं आत्मा अपने को बेहद शक्तिशाली अनुभव करती जा रही हूं...* बाबा ने मेरे मन के ख़ज़ानों को मेरे सामने रख दिया है... मेरे स्वमान का सही स्वरूप और कार्य बाबा ने मुझे दिखाया है... *मुझे शिव शक्ति बन परिवर्तन करना है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की आशाओं का चमकता सितारा हूं... मैं शिव की शक्ति हूं... इसी दृढ़ निश्चय को लेकर मैं शक्ति स्वरूपा बन बाबा की दी हुई मेरे मन के खजाने में भरी इन शक्तियों को अपने कर्म में ला रही हूं...* अब ये शक्तियां मेरी चलन, चेहरे और वाणी में प्रत्यक्ष होती जा रही हैं... इन्हें देख इनसे प्रभावित हो अन्य आत्मायें भी परिवर्तित होती जा रही हैं...

 

 _ ➳  *अब हम सब आत्मायें विश्व को परिवर्तन करती शिव शक्तियां बन शिव बाबा की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजा रही हैं...* हम सभी बाबा की आशाओं को पूर्ण करने वाले सितारे बन पूरे आकाश में आच्छादित होते जा रहे हैं... *सम्पूर्ण नभ बाबा की आशाओं के सितारों से जगमगा उठा है...*

 

 _ ➳  नभ में तभी एक दिव्यता का, एक अलौकिकता का आभास होता है... यकायक नभमंडल की चमक हज़ारों लाखों गुना बढ़ जाती है... उस चमक से सभी सितारे और भी ज्यादा शोभायमान हो गए हैं... *दिखता है इन सब के बीच एक दिव्य सितारा! जिसके प्रकाश से सम्पूर्ण आकाश परिवर्तित हो गया है... और ये और कोई नहीं ये मेरे बाबा हैं...* जो अपने प्यारे सितारों का हौसला अफजाई करने अपना धाम छोड़ यहाँ आए हैं...

 

 _ ➳  *वाह वाह रे! मेरे बाबा... वाह वाह! तुम्हारा क्या कहना... और बाबा की याद में... बाबा के सितारे... गुनगुनाने लगते हैं...* "चमक चम चम चमके है... सितारो में तू ही... चमक चम चम..."

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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