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❍ 19 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ बाप की याद में बुधी ज़रा भी इधर उधर तो नहीं भटकी ?
➢➢ आपस में परचिन्तन तो नहीं किया ?
➢➢ समबन्ध सम्पर्क में संतुष्टता का अनुभव किया और कराया ?
➢➢ विघन विनाशक स्थिति का अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ कितना भी कोई भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव भी समझते हो लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर दे। सेवा में बेहद की वैराग्य वृत्ति अन्य आत्माओं को और समीप लायेगी। मुख की सेवा सम्पर्क में लाती है और वृत्ति से वायुमण्डल की सेवा समीप लायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं बाप समान निराकारी और आकारी स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मा हूँ"
〰✧ बाप समान निराकारी और आकारी-इसी स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। तो आप सभी भी साकारी होते हुए भी निराकारी और आकारी अर्थात् अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हो। या साकार में ज्यादा आ जाते हो?
〰✧ जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही 'मैं आकारी फरिश्ता हूँ'और 'निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ'-यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हों। क्योंकि जिससे प्यार होता है, तो प्यार की निशानी है समान बनना। बाप और दादा-निराकारी और आकारी हैं और दोनों से प्यार है तो समान बनना पड़ेगा ना। तो सदैव यह अभ्यास करो कि अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। साकार में आते भी आकारी और निराकारी स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकेंगे।
〰✧ जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां आपके कन्ट्रोल में हैं। आंख को वा मुख को बंद करना चाहो तो कर सकते हो। ऐसे मन और बुद्धि को उसी स्थिति में स्थित कर सको जिसमें चाहो। अगर फरिश्ता बनने चाहें तो सेकेण्ड में फरिश्ता बनो-ऐसा अभ्यास है या टाइम लगता है? क्योंकि हलचल जब बढ़ती है तो ऐसे समय पर कौनसी स्थिति बनानी पड़ेगी? आकारी या निराकारी। साकार देहधारी की स्थिति पास होने नहीं देगी, फेल कर देगी। अभी भी देखो-किसी भी हलचल के समय अचल बनने की स्थिति 'फरिश्ता स्वरूप' या 'आत्म-अभिमानी' स्थिति ही है। यही स्थिति हलचल में अचल बनाने वाली है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आवाज से परे जाने की युक्ति जानते हो? अशरीरी बनना अर्थात आवाज से परे हो जाना। शरीर है तो आवाज है। शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस। साइलेंस की शक्ति कितनी महान है, इसके अनुभवी हो ना? साइलेंस की शक्ति द्वारा सृष्टि की स्थापना कर रहे हो।
〰✧ साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना। तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित है तो स्वयं साइलेंस रूप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेंगे। अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता।
〰✧ विश्व में सबसे प्यारे से प्यारी चीज है - 'शान्ति अर्थात साइलेंस।” इसके लिए ही बडी-बडी कानफ्रेंस करते हैं। शान्ति प्राप्त करना ही सबका लक्ष्य है। यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। और आप समझते हो साइलेंसे तो हमारा ‘स्वधर्म' है। आवाज में आना जितना सहज लगता है उतना सेकण्ड में आवाज से परे जाना - यह अभ्यास है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- याद में रहकर पाप दग्ध करना"
➳ _ ➳ सारी एक की ही महिमा है, एक का ही गायन है... गाते भी हैं पतित पावन,
जरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं... सतयुग में तो सुखी होते हैं, वहां कोई दुख
नहीं, दुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती...
अभी है घोर कलयुग, घोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन
शुरू हुआ है... गाते भी है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन... तो अब बाप मिला
है, मनमनाभव का मंत्र मिला है... तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़
एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोई' इसी तपस्या में मैं आत्मा तप
रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...
❉ पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से
कहते हैं:- "मीठी बच्ची... 21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म
किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं... बोझ
चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी हो, अब तुम्हारे बुलाने पर
क्योंकि मैं आया हूं... तो अब, मनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी समझानी को सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा
से बोली:- "हां मेरे मीठे बाबा... आधाकल्प हुआ, माया ने बहुत कुतर कुतर की
है... आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्मा, काली और दुखी बन पड़ी थी बाबा...
जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल
अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं... भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब
चलते फिरते उठते बैठते आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं
बाबा..."
❉ ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:- "देखो
बच्चे... दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम काला, फिर काली का चित्र भी बैठ
बनाया है, परंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी
तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के, नॉलेजफुल बच्चे बने हो... सारा मदार है याद पर...
जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगे, बुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी
और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."
➳ _ ➳ मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:-
"मीठे बाबा... रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं
के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारती, तो
कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा
रही हूं... स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण
फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीक, खुद को देख रही हूं..."
❉ करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:-
"मीठी बच्ची... अब ज्वालामुखी याद द्वारा, पूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी
उत्साह में रख, अभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो... देखो ब्रह्मा
बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही
सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:-
"मीठे बाबा... ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई
देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुए, मैं आत्मा स्वयं को देख रही
हूं... मैं आत्मा देख रही हूं, कैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा
है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं... मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने
सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- जबान को शान्त में रख बाप को याद करने की रेस करनी है"
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता परमात्मा की मीठी याद से मिलने वाले अतींद्रिय सुख की
अनुभूति को याद करते हुए, उस सुख को गहराई तक अपने अंदर समा लेने के लिए मैं
अपनी आंखों को हल्के से बंद करती हूँ और परमात्म याद के अति मीठे मधुर आनन्द
में खो जाती हूँ। परमात्म याद का आनन्द लेते हुए एक ख़ूबसूरत दृश्य देखती हूँ
कि एक बहुत बड़े खुले एकान्त स्थान में श्वेत वस्त्र धारण किये असंख्य ब्राह्मण
आत्मायें परमात्म याद में मग्न बैठी हैं। आत्मिक स्मृति में स्थित सभी
ब्राह्मणों के मस्तक पर चमकती हुई मणियां ऐसी लग रही हैं जैसे आकाश से सितारे
टूट कर धरती पर बिखर गए हों और अपनी दिव्य आभा चारों और बिखेर रहें हो।
➳ _ ➳ इन चैतन्य चमकते सितारों से निकल रही रंग बिरंगी किरणें चारों और फैल कर
एक बहुत ही खूबसूरत मनमोहक दृश्य का निर्माण कर रही हैं। मन को आनन्दित करने
वाले इस दृश्य को मैं पूरी तन्मयता से देख रही हूँ। एकाएक मैं देखती हूँ जैसे
सभी चमकती हुई मणियां अपने अपने अकालतख्त को छोड़ अपनी साकार देह से बाहर निकल
रही हैं और ऊपर आकाश की ओर जा रही हैं। असंख्य चमकते सितारों को, अपना प्रकाश
फैलाते हुए ऊपर की ओर जाते हुए मैं देख रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कोई
रेस चल रही है। कभी आगे वाला सितारा पीछे हो जाता है तो कभी पीछे वाला सितारा
आगे निकल जाता है। सभी याद की इस रेस में निरन्तर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहें
हैं ओर अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।
➳ _ ➳ इस अति खूबसूरत दृश्य को देखते - देखते मैं भी याद की इस रेस में शामिल
हो जाती हूँ। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, चमकता हुआ चैतन्य
सितारा बन अपनी साकार देह से मैं बाहर निकलता हूँ और याद की यात्रा में उन
असंख्य चमकते सितारो के साथ रेस करते हुए अब ऊपर आकाश की ओर चल पड़ता हूँ। अपने
प्यारे प्रभु के प्रेम की लगन में मग्न सभी चमकती हुई मणियां याद की रेस में
दौड़ती हुई आकाश को पार कर उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को पार करके अब अपनी मंजिल
पर पहुँच रही हैं। चमकती मणियों की इस खूबसूरत दुनिया मूल वतन में भी जैसे रेस
चल रही है। मैं देख रही हूँ इस रेस में हर आत्मा अपने पुरुषार्थ अनुसार अपना
स्थान प्राप्त कररही है। कोई तो अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप है, कोई उनसे
थोड़ी दूरी पर है और कोई तो बहुत ही दूर है।
➳ _ ➳ याद की इस रेस को पूरा कर अब मैं अपने प्यारे मीठे बाबा के पास पहुँचती
हूँ और उनके सुन्दर स्वरूप को निहारते हुए उनके पास जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा
से आ रही सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं उन्हें
स्वयं में समाहित कर रही हूँ। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों के शक्तिशाली
वायब्रेशन्स बाबा से निकल कर चारों और फैल रहें हैं और मन को असीम सुख और आनन्द
का अनुभव करवा रहें हैं। इन शक्तियों के वायब्रेशन्स को अपने अंदर गहराई तक
समाते हुए, मैं धीरे - धीरे बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच जाती हूँ और जा कर जैसे
ही उन्हें टच करती हूँ, उनकी सारी शक्तियाँ मुझ में समाने लगती हैं।
➳ _ ➳ शक्तियों का एक सुनहरी फव्वारा जैसे मेरे ऊपर चलने लगता है और सर्वशक्तियों
की मीठी फुहारें मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगती हैं। रंग बिरंगी किरणो की मीठी
फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और
आकर अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ।
अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा अब स्वर्ग के रचयिता अपने प्यारे पिता
से पूरा वर्सा लेने के लिए याद की रेस हर समय कर रही हूँ। कर्म करने के लिए जब
चाहे शरीर का आधार लेना और कर्म करके शरीर से डिटैच हो जाना यही अभ्यास अब मैं
बार - बार करती रहती हूँ। सेकेण्ड में साकारी सो आकारी, आकारी सो निराकारी इस
ड्रिल के अभ्यास द्वारा याद की रेस मैं अब मैं सदा तत्पर रहती हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सम्बन्ध - सम्पर्क में सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा माला में पिरोने वाली संतुष्टमणी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ विघ्नों का काम है आना और मैं विघ्न विनाशक बनकर रहने वाली निर्विघ्न आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘आज ज्ञान गंगाओं और ज्ञान सागर का मिलन मेला है। जिस मेले में सभी बच्चे बाप से रूहानी मिलन का अनुभव करते। बाप भी रूहानी बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चे भी रूहानी बाप से मिल हर्षित होते हैं। क्योंकि कल्पकल्प की पहचानी हुई रूहानी रूह जब अपने बुद्धियोग द्वारा जानती हैं कि हम भी वो ही कल्प पहले वाली आत्माएं हैं और उसी बाप को फिर से पा लिया है तो उसी आनन्द, सुख के, प्रेम के, खुशी के झूले में झूलने का अनुभव करती हैं। ऐसा अनुभव कल्प पहले वाले बच्चे फिर से कर रहे हैं। वो ही पुरानी पहचान फिर से स्मृति में आ गई। ऐसे स्मृति स्वरूप स्नेही आत्मायें इस स्नेह के सागर में समाई हुई लवलीन आत्मायें ही इस विशेष अनुभव को जान सकती हैं।
➳ _ ➳ स्नेही आत्मायें तो सभी बच्चे हो, स्नेह के शुद्ध सम्बन्ध से यहाँ तक पहुँचे हो। फिर भी स्नेह में भी नम्बरवार हैं, कोई स्नेह में समाई हुई आत्मायें हैं और कोई मिलन मनाने के अनुभव को यथाशक्ति अनुभव करने वाले हैं। और कोई इस रूहानी मिलन मेले के आनन्द को समझने वाले, समझने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। फिर भी सभी को कहेंगे - ‘स्नेही आत्मायें'। स्नेह के सम्बन्ध के आधार पर आगे बढ़ते हुए समाये हुए स्वरूप तक भी पहुँच जायेंगे। समझना - समाप्त हो समाने का अनुभव हो ही जायेगा - क्योंकि समाने वाली आत्माएँ समान आत्माएँ हैं। तो समान बनना अर्थात् स्नेह में समा जाना।
➳ _ ➳ तो अपने आप को स्वयं ही जान सकते हो कि कहाँ तक बाप समान बने हैं? बाप का संकल्प क्या है? उसी संकल्प समान मुझ लवलीन आत्मा का संकल्प है? ऐसे वाणी, कर्म, सेवा सम्बन्ध सब में बाप समान बने हैं? वा अभी तक महान अन्तर है वा थोड़ा सा अन्तर है? अन्तर समाप्त होना ही - ‘मन्मनाभव का महामंत्र है'। इस महामंत्र को हर संकल्प और सेकण्ड में स्वरूप में लाना इसी को ही समान और समाई हुई आत्मा कहा जाता है।
✺ "ड्रिल :- मनमनाभव के महामंत्र से बाप के स्नेह में समा बाप के साथ रूहानी मिलन मनाना।"
➳ _ ➳ देह रूपी दीपक में, मैं जलती बाती के समान जगमग आत्मज्योति... अपने प्रकाश से अंधकार को पराजित करती हुई... (दृश्य चित्र बनाकर खुद को कुछ देर तक महसूस कीजिए इसी स्वरूप में) परमात्म स्नेह के तेल में पूरी तरह डूबी हुई, मुझ बाती का प्रकाश हर पल एक नई चेतना फैलाता हुआ, विघ्नों की तूफानी हवाओं में भी दूर दूर तक फैल रहा है... साक्षी भाव से मैं देख रही हूँ स्वयं को दीपक से अलग होती हुई... दीपक अपनी जगह पर स्थित है और मैं ज्योति आहिस्ता आहिस्ता उससे अलग होकर फरिश्तें की काया धारण कर लेती हूँ... दो मिनट रूक कर देख रही हूँ मैं उस दीपक को जो एकदम अचल अवस्था में है... और आहिस्ता आहिस्ता उड जाती हूँ अनन्त की ओर... मैं फरिश्ता उडता जा रहा हूँ, अपने पीछे मोह माया की अनेक ऊँची अट्टालिकाओं को छोडता हुआ... स्वयं से बातें करता हुआ... कल्प कल्प की पहचानी रूहानी रूह अब अपने बुद्धि योग से जान गयी है कि मैं वही कल्प पहले वाली आत्मा हूँ, मैने बाप को फिर से पा लिया है... बाप से स्नेह मिलन मनाने और बाप समान बनने के लिए मैं चार धाम की यात्रा पर जा रही हूँ... और मैं आत्मा पाण्डव भवन के मुख्य प्रवेश द्वार पर... फरिश्ता रूप में स्वयं बापदादा द्वार पर ही मेरा इन्तजार कर रहे हैं... दौडकर गले से लग गया हूँ मैं उनके... ये मिलन अनोखा मिलन है संगम पर... सागर की बाँहों में ज्ञान गंगा समा गयी हैं और अब दोनों एक समान... अन्तर करना नामुमकिन है कि सागर में गंगा की धारा कौन सी है?...
➳ _ ➳ बापदादा की उँगली पकडे मैं फरिश्ता बैठ गया हूँ उनके संग कुटिया के सामने झूले पर... अतिन्द्रिय सुख का ये झूला... मेरे एक ओर ब्रह्माबाबा तो दूसरी ओर धारणा शक्ति मम्मा, मुस्कुराती हुई... झूले के ऊपर वृक्ष की शाखाओं से झाँकते शिव सागर स्नेह की बारिश करते हुए... बाबा के कन्धे पर शीश झुकाये, मम्मा की आँखों से धारणा शक्ति स्वयं में समाता हुआ और शिव सागर की स्नेह रूपी बारिश में नहाता हुआ... अपने भाग्य पर इठला रहा हूँ आज... स्नेह की बारिश में भीगता मेरा रोम रोम... कुछ देर तक ऐसे ही निहारें स्वयं को साक्षी होकर... जन्मों की थकान मिटती जा रही है,आत्मा हीरें की तरह पारदर्शी होती जा रही है... मैं और मेरे पन के संस्कार, तू और तेरा में बदल रहें है... देहभान का त्याग, सेवा के विस्तार का त्याग और त्याग का भी त्याग, कितनी श्रेष्ठ स्थिति है मुझ आत्मा की इस समय... मैं देख रही हूँ इस स्नेह के सागर के तल को बढते हुए... सागर के जल का स्तर बढता ही जा रहा है... जल मेरे कन्धों तक आ गया है... बाबा की कुटिया, बाबा का कमरा शक्ति स्तम्भ और हिस्ट्री हाॅल... सभी हाऊस बोट की तरह तैर रहे है इस सागर पर...
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता बापदादा की कुटिया में बाबा से रूहरिहान करता हुआ... एक एक संकल्प बापदादा को समर्पित करता... बापदादा मुस्कुराकर मन्मनाभव का मन्त्र दे रहे है मुझे... उनका वरदानी हाथ मेरे सिर पर... गहराई से देर तक महसूस कर रहा हूँ उन उँगलियों के स्पर्श को... मेरा रोम रोम पुलकित हो रहा है... बापदादा के साथ मैं फरिश्ता बाबा के कमरें में... मैं बैठ गया हूँ घुटनों के बल बापदादा के ठीक एकदम करीब जाकर... और मुस्कुराते हुए बाबा मुझे आप समान बनने का वरदान दे रहे है... वरदान को गहराई में समाता हुआ मैं फरिश्ता... अब पँहुच गया हूँ शक्ति स्तम्भ पर, स्वयं में स्नेह और शक्तियों का बैलेन्स भरा हुआ... स्नेह की धाराए हाऊसबोट में मुझे भिगो कर जा रही है... हिस्ट्री हाॅल में मैं फरिश्ता... देख रहा हूँ सन्दली पर बैठे बापदादा एक एक आत्मा को दृष्टि से निहाल करते हुए... मैं बापदादा के ठीक सामने बापदादा से दृष्टि लेते हुए... उनकी आँखों से बरसता रूहानी नूर मेरे जन्मों जन्मों के विकर्मों को भस्म कर रहा है... मैं फरिश्ता स्थिर हो गया हूँ सिर्फ एक संकल्प में... जो बापदादा का संकल्प वही मेरा सकंल्प... मन्मनाभव का मन्त्र गहराई से धडकनों में गूँज रहा है...
➳ _ ➳ बाहर भीतर सब जगह बस स्नेह की बारिश और स्नेह का सागर लहरा रहा है... हाऊस बोट से उतरकर मैं बापदादा की उँगली पकडे सागर में तैरती हुई गहराई में डुबकियाँ लगाती हुई... किनारे खडी आत्माओं का आह्वान कर रही हूँ... और एक साथ किनारों पर खडी असंख्य आत्माए मेरे साथ उस सागर में समाती जा रही है... सागर में तैरती मणियों के समान... मैं आत्मा वापस झूले पर बापदादा के साथ... बापदादा से विदाई लेकर वापस उसी देह रूपी दीपक में... पहले से ज्यादा मिठास और स्नेह के साथ अंधकार को पराजित करने का संकल्प मन में समाए...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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