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 29 / 04 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *शमा पर जीते जी मरने वाले परवाने बनकर रहे ?*

 

➢➢ *एक की याद से स्वयं को निहाल किया ?*

 

➢➢ *मनमनाभाव के मन्त्र द्वारा मन के बंधन से छूटे ?*

 

➢➢ *उदासी को अपना दास बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *तपस्या अर्थात् एक बाप की लगन में रहना। किसी भी कार्य में सफलता-मूर्त बनने के लिये त्याग और तपस्या चाहिए।* त्याग में महिमा का भी त्याग, मान का भी त्याग और प्रकृति दासी का भी त्याग-जब ऐसा त्याग हो तब तपस्या द्वारा सफलता स्वरूप बनेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ"*

 

   सदा बाप और वर्से की स्मृति में रहते हो! श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव होता है। *स्थिति का आधार है - 'स्मृति'। स्मृति कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर हो जाती है। स्मृति सदा शक्तिशाली रहे। वह शक्तिशाली स्मृति है - 'मैं बाप का और बाप मेरा'।* इसी स्मृति से स्थिति शक्तिशाली रहेगी और दूसरों को भी शक्तिशाली बनायेंगे। तो सदा स्मृति के ऊपर विशेष अटेन्शन रहे।

 

  *समर्थ स्मृति, समर्थ स्थिति, समर्थ सेवा स्वत: होती रहे। स्मृति, स्थिति और सेवा तीनों ही समर्थ हों। जैसे स्विच आन करो तो रोशनी हो जाती, आफ करो तो अंधियारा हो जाता, ऐसे ही यह स्मृति भी एक 'स्विच' है।*

 

  *स्मृति का स्विच अगर कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर है। सदा 'स्मृति रूपी स्विच का अटेन्शन'। इसी से ही स्वयं का और सर्व का कल्याण है। नया जन्म हुआ तो नई स्मृति हो। पुरानी स्मृतियाँ सब समाप्त। तो इसी विधि से सदा सिद्धि को प्राप्त करते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *दो - चार बारी भी कोई बात प्रेक्टिकल में लाई जाती है तो प्रैक्टिकल में लाने से प्रैक्टीस हो जाती है।* यहाँ इस भट्ठी में अथवा मधुपन में इस अभ्यास को प्रैक्टिकल में लाते हो ना। जब यहाँ प्रैक्टिकल में लाते हो और प्रैक्टीस हो जाती है तो वह प्रैक्टीस की हुई चीज़ क्या बन जानी चाहिए? नेचरुल और नेचर बन जानी चाहिए। समझा।

 

✧  जैसे कहते हैं ना यह मेरी नेचर है। तो यह अभ्यास प्रैक्टीस में नेचुरल और नेचर बन जान चाहिए। यह स्थिति जब नेचर बन जायेगी फिर क्या होगा। नेचुरल केलेमिटीज हो जायेगी। *आपकी नेचर न बनने के कारण यह नेचुरल केलेमिटीज रुकी हुई है।* क्योंकि अगर सामना करने वाले अपने स्व - स्थिति से उन परिस्थितियों को पार नहीं कर सकेंगे तो फिर वह परिस्थितियाँ आयेंगी कैसे।

 

✧   *सामना करने वाले अभी तैेयार नहीं हैं। इसलिए यह पर्दा खुलने में देरी पड रही है।* अभी तक इन पुरानी आदतों से, पुरानी संस्कारों से , पुरानी बातों से, पुरानी दुनिया से, पुरानी देह के सम्बन्धियों से वैराग्य नहीं हुआ है। कहाँ भी जाना होता है तो जिन चीजों को छोडना होता है उनसे पीठ करनी होती है। तो अभी पीठ करना नहीं आता है। एक तो पीठ नहीं करते हो, दूसरा जो साधन मिलता है उसकी पीठ नहीं करते हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे अभी सभी का एक संकल्प चल रहा था, वैसे ही सभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही 'अशरीरी-भव' बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ। तो सभी के संगठन रूप का शुद्ध-संकल्प क्या कर सकता है। किसी के भी ओर दूसरे संकल्प न हों। *सभी एक-रस स्थिति में स्थित हों तो बताओ वह एक सेकण्ड के शुद्ध-संकल्प की शक्ति क्या कमाल कर देती है तो ऐसे संगठित रूप में एक ही शुद्ध संकल्प अर्थात् एक-रस स्थिति बनाने का अभ्यास करना है। तब ही विश्व के अंदर शक्ति सेना का नाम बाला होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप को प्यार से याद कर निहाल हो जाना"*

 

_ ➳  मै आत्मा अपने मनमीत बाबा को याद करते करते उड़ चली... और शांतिवन के कमरे में पहुंची... मीठे बाबा, ब्रह्मा तन में मुस्कराते बाहें फैलाये कहने लगे... आओ मेरे मीठे बच्चे... मै आत्मा मीठे बाबा के स्नेह वचनो की प्यासी... यह मधुर वाक्य सुनते ही तृप्त सी हो गयी... *प्यारे बाबा मुझे अपनी अनन्त शक्तियो से लबालब कर रहे है... और मै आत्मा दीवानी अपलक सी... अपने प्यारे दीवाने बाबा को निहारती जा रही हूँ... मीठे बाबा का कमरा हमारे मधुर मिलन की स्थली बन गया...*

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को नई दुनिया का मालिक बनाने को आतुर हो बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे...  ईश्वर पिता के सिवाय कोई और इस धरती पर सदा के सुखो की जागीर दे नही सकता... *ईश्वर ही सतगुरु बन नजरो से निहाल करता है... और खुशियो भरे जीवन को गढ़ने का राज समझाता है... ऐसे जादूगर पिता को हर पल यादो में बसा लो..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी बुद्धि रुपी झोली में समाते हुए बोली :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *ईश्वर को ही सतगुरु रूप में पा लिया... ऐसा प्यारा भाग्य पाकर, अपने मीठे भाग्य की भी मै आत्मा  शुक्रगुजार हूँ...* कब सोचा था कि यूँ कारुन का खजाना मेरे हाथ आ जायेगा.*.. और ईश्वरीय दौलत से मै मालामाल हो जाउंगी..."

 

   *प्यारे बाबा मुस्कराते हुए और बड़ी ही उम्मीदों से मुझे निहारते हुए बोले :-* "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न बनकर, सदा के समझदार बन जाओ... *ईश्वर पिता ने अपनी सारी खाने आप बच्चों के लिए खोल दी है... जितनी चाहे उतनी दौलत बटोर लो... और अशरीरी बनकर मीठी प्यारी यादो में डूब जाओ..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने मीठे भाग्य को निहारते हुए बाबा से कह रही हूँ :-* "ओ प्यारे प्यारे बाबा मेरे...  देह और देह की दुनिया से दिल लगाकर, मुझ आत्मा ने खुद को कितना ठगा सा है... *अब जो आपने जीवन में आकर ज्ञान और योग की खुबसूरत बहार खिलाई है... मै आत्मा अपने खोये खजाने पुनः पाती जा रही हूँ..."*

 

   *मीठे प्यारे बाबा गुणो और शक्तियो की वर्षा से मेरे मन बुद्धि को भिगोते हुए बोले :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... शरीर के अहसासो से अछूते बन, अशरीरी का अभ्यास कर, निरन्तर यादो में रहो... *अपने मीठे घर की स्मृतियों में खोये हुए, सदा साइलेन्स की स्थिति का अनुभव करो... और सदा मीठे बाबा के सम्मुख रह नजरो से निहाल बनो..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा का रोम रोम से शुक्रगुजार करते हुए बोली :-* "मेरे मन के मीत बाबा... *आपने सच्चे प्रेम को देकर मेरे जीवन को कितना प्यारा और गुणो से सुगन्धित बना दिया है... मै आत्मा आपकी नजरो के साये में रह, खुबसूरत सुखो की स्वामिन् होती जा रही हूँ... अपना खोया साम्राज्य पाकर पुनः विश्व की मालिक सी सज रही हूँ...*" ऐसी प्यारी बाते करके, तृप्त होकर मै आत्मा धरती पर आ गई...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- और सब संग तोड़ एक बाप के संग में रहना है*"

 

_ ➳  दिल को सुकून और चित को चैन देने वाली अपने प्यारे पिता की मीठी याद में मैं जैसे ही अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ एक सुखद अनुभूति से भर उठती हूँ और *मन ही मन विचार करती हूँ कि आज दिन तक देह और देह के सम्बन्धियों को याद करके सिवाय दुख के और कुछ भी प्राप्त नही हुआ। स्वार्थ से भरे इन दैहिक सम्बन्धो में सारी दुनिया के मनुष्य मात्र सुख ढूंढने की कोशिश में लगे हुए हैं किंतु सुख इन दैहिक रिश्तों की याद में नही केवल एक प्यारे प्रभु की याद में हैं और इस बात का अनुभव मुझ आत्मा ने कर लिया है*। कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो मेरे प्यारे प्रभु ने स्वयं आकर याद की इस सच्ची रूहानी यात्रा पर मुझे चलना सिखाया और ऐसे अतीन्द्रीय सुख का अनुभव करवाया जो देवतायों के भाग्य में भी नही।

 

_ ➳  मन ही मन अपने प्यारे पिता का धन्यवाद करके, अपार सुख का अनुभव करने के लिए अपने मन बुद्धि को मैं *देह और देह की दुनिया के हर संकल्प, विकल्प से मुक्त करके, और सब संग तोड़, प्रीत की रीत अपने उस एक प्यारे पिता के साथ जोड़ उनकी मीठी याद में बैठ जाती हूँ और सेकेण्ड में उनके स्नेह की मीठी फुहारों को अपने ऊपर पड़ते हुए स्पष्ट अनुभव करते एक विशेष सुखद अनुभूति में खो जाती हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे मीठी - मीठी सुखद फ़ुहारों के रूप में सुख का झरना मेरे ऊपर बह रहा है और निरन्तर मेरे ऊपर बरसता हुआ मुझे अपार सुख दे रहा है। *एक ऐसे अवर्णनीय सुखमय संसार में मैं विचरण कर रही हूँ जहाँ देह और देह के दुख देने वाले सम्बन्ध नही, केवल एक निराकार के साथ जुड़ा ऐसा अटूट सम्बन्ध है जो सर्व सम्बन्धो का अविनाशी सुख प्रदान कर रहा है*।

 

_ ➳  ऐसे सुखमय संसार में विचरण करती मैं बिंदु आत्मा अपने सुख के सागर बिंदु पिता से मंगल मिलन मनाने अब देह का आधार छोड़ *अपने पिता के निराकारी वतन की ओर चल पड़ती हूँ जहाँ सुख के सागर की शीतल लहरे निरन्तर प्रवाहित होती है और सुख, शांति की तलाश में भटक रही आत्माओं को अपार सुख से भरपूर कर, उनकी जन्म - जन्म की प्यास बुझा देती हैं*। ऐसे सुख के सागर अपने सुखदाता बाप के पास जाने वाली मन बुद्धि की सुखमय यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए मैं धीरे - धीरे 5 तत्वों से पार, सूक्ष्म लोक से होती हुई उस दिव्य परमलोक, ब्रह्मलोक में प्रवेश करती हूँ जहाँ मेरे सुखदाता शिव पिता के सुख के गहन वायब्रेशन चारो ओर फैले हुए हैं।

 

_ ➳  सुख, शांति के गहरे अनुभवों का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा धीरे - धीरे अपने प्यारे पिता के समीप पहुँच जाती हूँ और जा कर उन्हें टच करती हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का तेज करेन्ट सीधा मुझ आत्मा में प्रवाहित होता है और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारो की कट को भस्म कर, मुझे एकदम हल्का लाइट माइट बना देता है*। हर बोझ से मुक्त इस हल्की सुखदायी स्थिति में गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करते हुए मैं जैसे अपने आप को ही भूल जाती हूँ और बाबा में समाहित बाबा का ही स्वरूप बन जाती हूँ। *सम्पूर्ण प्योर, सर्व गुणों, सर्वशक्तियो से भरपूर अपने इस स्वरूप के साथ अब मैं बाबा से अलग होकर वापिस अपनी साकारी दुनिया की ओर लौट आती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  इस संपूर्ण पवित्र और सुखदाई स्वरूप को सदा ऐसे ही बनाये रखने के लिए अपने प्यारे पिता से मैं अपने ब्राह्मण जीवन को सदा पवित्र रखने का वचन देती हूँ और सब सँग तोड़, एक बाप के याद में रहने की अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ। *अपनी इस प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन करने के लिए मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में धारण करने का अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सम्पूर्ण पवित्र और शुद्ध बनाने के लिए, स्वयं को दैहिक भान से मुक्त रखसब सँग तोड़, एक बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में मैं अब निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं मनमनाभव के मन्त्र द्वारा मन के बन्धन से छूटने वाली निर्बन्धन, ट्रस्टी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं उदासी को अपनी दासी बनाकर, सदा खुशी को चेहरे पर लाने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *समय के प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करो:- अभी समय के प्रमाण परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए।* जब समय तीव्रगति में जा रहा है और परिवर्तन करने वाले तीव्रगति में नहीं होंगे तो समय परिवर्तन हो जायेगा और स्वयं कमी वाले ही रह जायेंगे। कमी वाली आत्माओं की निशानी क्या दिखाई है? कमान। तो कमानधारी बनना है वा छत्रधारी बनना है? *सूर्यवंशी बनना है ना? तो सूर्य सदा तेज होता है और तीव्रगति में कार्य करता है। सूर्य के अन्तर में चन्द्रमा शीतल गाया जाता है। तो पुरूषार्थ में शीतल नहीं होना है। पुरूषार्थ में शीतल हुए तो चन्द्रवंशी हो जायेंगे। सूर्यवंशी की निशानी है - तीव्र पुरूषार्थ।* सोचा और किया। ऐसे नहीं, सोचा एक वर्ष पहले और किया दूसरे वर्ष में। तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला वाले। अभी चढ़ती कला का समय भी चला गया।

 

✺  *"ड्रिल :- तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी टाइम मशीन में बैठकर रूहानी सैर पर निकलती हूँ...* मैं आत्मा टाइम मशीन को सतयुगी दुनिया के समय में सेट करती हूँ... *बादलों के ऊपर से उड़ते हुए टाइम मशीन को लैंड करती हूँ स्वर्णिम युग में...* मैं आत्मा अति सुंदर, अवर्णनीय स्वर्णिम युग के नज़ारों को देखते हुए चल रही हूँ...

 

_ ➳  *चारों ओर की सतोप्रधान प्रकृति, सुन्दर-सुन्दर पहाड़ियां, सुंदर-सुंदर बाग-बगीचे , सोने-हीरे-जवाहरातों के बड़े-बड़े महल बहुत ही मनोहारी लग रहे हैं...* दूध की नदियाँ बह रही हैं... पंछियों की आवाज़ कानों में मधुर रस घोल रही है... *चारों ओर सुख, शांति, प्रेम, आनंद से भरी बहुत ही अद्वितीय स्वर्णिम दुनिया है...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मनमोहक नजारों को देखते-देखते एक बहुत बड़े सुन्दर से महल में प्रवेश करती हूँ...* मैं आत्मा स्वयं को रत्न-जडित सिंहासन पर विश्व के बादशाह के रूप में देख रही हूँ... *मैं आत्मा 16 कला सम्पूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम सम्पूर्ण देवताई स्वरुप में स्वयं को देख रही हूँ...* ऊँचे कद काठी, कंचन वर्ण, कानों में कुंडल, मस्तक पर चमकता हुआ मणि, हीरे, सोने के आभूषणों, सुंदर दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित मेरी ये छबि देखते ही बनती है...

 

_ ➳  *सूर्यवंशी घराने की मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ...* मुझ आत्मा ने श्रीकृष्ण के साथ पूरे 84 जन्मों का पार्ट निभाया है... सुख-समृद्धि से संम्पन्न जीवन व्यतीत किया है... *पुरुषार्थ में शीतल होकर चन्द्रवंशी बनना मतलब 1250 वर्षों की सुख, शांति, सम्पन्नता के जीवन से वंचित रहना...* मुझ आत्मा को फिर से सूर्यवंशी बनना है तो तीव्र पुरुषार्थ करना ही होगा...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्ष्य को सामने रख टाइम मशीन में बैठकर पहुँच जाती हूँ परमधाम...* ज्ञान सूर्य के सामने बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा ज्ञान सूर्य के तेज को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा के आलस्य, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं... *मैं आत्मा स्वयं में फुर्ती, उमंग-उत्साह का अनुभव कर रही हूँ...* अपनी सभी कमी-कमजोरियों को शक्ति रूप में परिवर्तित कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति को धारण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा समय की तीव्रगति के प्रमाण स्वयं की परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्षण धारण कर रही हूँ...* और समय को समीप लाकर विजय प्राप्त कर रही हूँ... अब मैं आत्मा संकल्प करते ही निश्चित समय पर हर कार्य को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा पुरूषार्थ में शीतल नहीं होती हूँ... तीव्र पुरुषार्थ करते हुए सदा उडती कला में रह सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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