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 19 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ "हम आत्मा हैं..." - एकांत में बैठ यह अभ्यास किया ?

 

➢➢ बुधी से सब कुछ सन्यास कर एक बाप की याद में रहे ?

 

➢➢ पवित्रता के वरदान को निजी संस्कार बनाया?

 

➢➢ सेवा की शुद्ध भावना रख ट्रस्टी बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे साकार में आने जाने की सहज प्रैक्टिस हो गई है वैसे आत्मा को अपनी कर्मातीत अवस्था में रहने की भी प्रैक्टिस हो। अभी-अभी कर्मयोगी बन कर्म में आना, कर्म समाप्त हुआ फिर कर्मातीत अवस्था में रहना, इसका अनुभव सहज होता जाए। सदा लक्ष्य रहे कि कर्मातीत अवस्था में रहना है, निमित्त मात्र कर्म करने के लिए कर्मयोगी बने फिर कर्मातीत।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं अनेक बार की विजयी आत्मा हूँ"

 

  अनेक बार की विजयी आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? विजयी बनना मुश्किल लगता है या सहज? क्योंकि जो सहज बात होती है वह सदा हो सकती है, मुश्किल बात सदा नहीं होती। जो अनेक बार कार्य किया हुआ होता है, वह स्वत: ही सहज हो जाता है। कभी कोई नया काम किया जाता है तो पहले मुश्किल लगता है लेकिन जब कर लिया जाता है तो वही मुश्किल काम सहज लगता है।

 

  तो आप सभी इस एक बार के विजयी नहीं हो, अनेक बार के विजयी हो। अनेक बार के विजयी अर्थात् सदा सहज विजय का अनुभव करने वाले। जो सहज विजयी हैं उनको हर कदम में ऐसे ही अनुभव होता कि यह सब कार्य हुए ही पड़े हैं, हर कदम में विजयी हुई पड़ी है। होगी या नहीं - यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। जब निश्चय है कि अनेक बार के विजयी हैं तो होगी या नहीं होगी - यह क्वेश्चन नहीं। 'निश्चय की निशानी है नशा और नशे की निशानी है खुशी'। जिसको नशा होगा वह सदा खुशी में रहेगा। हद के विजयी में भी कितनी खुशी होती है। जब भी कहाँ विजय प्राप्त करते हैं, तो बाजे-गाजे बजाते हैं ना।

 

  तो जिसको निश्चय और नशा है तो खुशी जरूर होगी। वह सदा खुशी में नाचता रहेगा। शरीर से तो कोई नाच सकते हैं, कोई नहीं भी नाच सकते हैं लेकिन मन में खुशी का नाचना - यह तो बेड पर बीमार भी नाच सकता है। कोई भी हो, यह नाचना सबके लिए सहज है। क्योंकि विजयी होना अर्थात् स्वत: खुशी के बाजे बजना। जब बाजे बजते हैं तो पांव आपेही चलते रहते हैं। जो नहीं भी जानते होंगे, वह भी बैठे-बैठे नाचते रहेंगे। पांव हिलेगा, कांध हिलेगा। तो आप सभी अनेक बार के विजयी हो - इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते चलो। दुनिया में सबको आवश्यकता ही है खुशी की। चाहे सब प्राप्तियां हों लेकिन खुशी की प्राप्ति नहीं है। तो जो अविनाशी खुशी की आवश्यकता दुनिया को है, वह खुशी सदा बांटते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  ज्ञानी तू आत्मा हो ना? ज्ञानी का अर्थ ही है समझदारा और आप तो तीनों कालों के समझदार हो, इसलिए होली मनाना अर्थात इस गलती को जलाना। जो भूलना है वह सेकण्ड में भूल जाये और जो याद करना है वह सेकण्ड में याद आए। कारण सिर्फ बिन्दी के बजाए क्वेचन मार्क है।

 

✧  क्यों सोचा और क्यू शुरू हो जाती है। ऐसा, वैसा, क्यों, क्या बडी क्यू शुरू हो जाती है। सिर्फ क्वेचन मार्क लगाने से। और बिन्दी लगा दो तो क्या होगा? आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और व्यर्थ को भी बिन्दी, फुलस्टॉप स्टॉप भी नहीं, फुलस्टॉप। इसको कहा जाता है होली।

 

✧  और इस होली से सदा बाप के संग के रंग की होली, मिलन मानते रहेंगे। सबसे पक्का रंग कौन-सा है? यह स्थूल रंग भल कितने भी पक्के हो लेकिन सबसे पक्का रंग है बाप के संग का रंगा तो इस रंग से मनाओ।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बापदादा ने पहले भी समझाया है कि मुख्य ब्राह्मण जीवन के खज़ाने हैं- संकल्प, समय और वैसे श्वाँस भी बहुत अमूल्य है। एक श्वाँस भी कामन न हो। व्यर्थ नहीं हो। भक्ति में कहते हैं श्वाँसों-श्वाँस अपने इष्ट को याद करो। श्वाँस व्यर्थ नहीं जाये। मुख्य संकल्प, समय और श्वाँस - आज्ञा प्रमाण सफल होता है? व्यर्थ तो नहीं जाता क्योंकि व्यर्थ जाने से जमा नहीं होता।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करना”
 
➳ _ ➳  मै आत्मा कभी अपने शरीर भान में उलझे अतीत को देखती हूँ... तो सोचती हूँ, मीठे बाबा ने किस दलदल में से मुझे निकाल कर... कितनी खुबसूरत सुख भरी राहो पर ला दिया है... आज ईश्वरीय यादो में और ज्ञान रत्नों की खनक में गूंजता हुआ जीवन... कितना प्यारा प्यारा सा है... और मै आत्मा अपने प्यारे बाबा की प्यारी यादो में खोकर... दिल से शुक्रिया करने... मीठे वतन में उड़ चलती हूँ...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने सत्य रूप के अहसासो में डुबोते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान से निकल कर देही अभिमानी बनने की हरपल प्रेक्टिस करो... मै आत्मा हूँ... हर समय इस सत्य को यादो में भरो... और अब मुझे अपने मीठे बाबा संग घर को जाना है... यह बार बार स्मृति में लाओ... देह के आवरण से अब अछूते बन, आत्मिक भाव में आओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा को बड़ी ही प्यार भरी नजरो से देखते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे मेरे बाबा... खुद को देह मानकर मै आत्मा कितने दुखो से भरी थी... आपने मुझे मेरा सच आत्मा बताकर कितना सुकून दे दिया है... हर पल मै आत्मा अपने भान में खोयी हुई मुस्करा रही हूँ... और देही अभिमानी बनती जा रही हूँ...
 
❉   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अलौकिकता से सजाते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... जब घर से निकले थे, चमकती मणि स्वरूप थे... अपने उस सत्य के नशे में पुनः खो जाओ... देह को छोड़ देही अभिमानी बन मुस्कराओ... हर क्षण अपने आत्मिक भान में रहो... बार बार यही अभ्यास करो और पिता का हाथ पकड़ कर घर चलने की तैयारी में जुट जाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने सच्चे साथी बाबा से कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझे अपना बनाकर असीम खुशियो को मेरे दामन में सजा दिया है... मेरा जीवन सत्य की चमक से प्रकाशित हो गया है... मै आत्मा अपने नूरानी नशे में खोयी हुई घर चलने को अब आमादा हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य के प्रकाश से रौशन करते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर जो अपने खोये वजूद को पा लिया है उसकी सत्यता में हर साँस डूबे रहो... देह के आकर्षण से बाहर निकल अपने चमकते स्वरूप में गहरे खोकर आत्मिक तरंगे सदा फैलाओ... अपने मीठे बाबा संग घर चलने की तैयारी कर पुनः देवताई कुल में आओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से अनगिनत रत्नों को बटोर कर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...आपने मुझे मेरे सत्य का पता देकर मुझे कितना हल्का प्यारा और निश्चिन्त कर दिया है... मै आत्मा हूँ देह नही इस खुबसूरत सच ने मुझे खुशियो से भर दिया है... और मै आत्मा अब ख़ुशी ख़ुशी घर चलने की तैयारी में हूँ..." अपने मीठे बाबा से मीठा वादा करके मै आत्मा कर्म जगत पर आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बुद्धि से सब कुछ सन्यास कर एक बाप की याद में रहना है

➳ _ ➳  वाणी से परे अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर, वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करने के लिए, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, मन और मुख का मौन धारण कर, एकांतवासी बनते ही मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे सम्पूर्ण मौन की शक्ति धीरे - धीरे मेरे अन्दर एक अद्भुत आंतरिक बल का संचार कर रही है। यह आंतरिक बल मेरे शरीर के भिन्न - भिन्न अंगों में बिखरी हुई मेरी सारी चेतना को समेटने लगा है। शरीर का एक - एक अंग जैसे शिथिल होने लगा है और श्वांसों की गति बिल्कुल धीमी हो गई है। अपने शरीर मे आये इस परिवर्तन को महसूस करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे धीरे - धीरे मैं सवेंदना शून्य होती जा रही हूँ और देह के भान से परे एक अति आनन्दमयी स्थिति में स्थित हो गई हूँ।

➳ _ ➳  इस अति खूबसूरत स्थिति में मैं स्वयं को एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में देख रही हूँ जिसमे से निकल रही लाइट और माइट मन को तृप्त कर रही है। ये प्वाइंट ऑफ लाइट एक अति सूक्ष्म शाइनिंग स्टार के रूप में मेरे मस्तक पर चमकती हुई मुझे अनुभव हो रही है। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने इस अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए मैं गहन आनन्द के सुखद अनुभव में डूबती जा रही हूँ। देह के हर आकर्षण से मुक्त करता मेरा ये मन को लुभाने वाला स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी उस स्वरूप का अनुभव करवाने वाले अपने प्यारे पिता का दिल से मैं बार - बार शुक्राना करती हूँ और अपने इस स्वरूप का भरपूर आनन्द लेते - लेते उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ जो मुझे सेकण्ड में वाणी से परे मेरे निर्वाण धाम घर मे ले जाती है।

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता के इस निर्वाण धाम घर मे आकर मैं वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। एक गहन शांति, एक गहन निस्तब्धता इस शांतिधाम घर मे छाई  हुई है जो शांति की दिव्य अनुभूति करवाकर मेरी जन्म - जन्म से शांति की तलाश में भटकने की सारी वेदना को मिटाकर मुझे असीम सुकून दे रही है। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शीतल लहरें दूर - दूर से आकर बार - बार मुझ आत्मा को स्पर्श करके अपनी सारी शीतलता मेरे अंदर समाकर चली जाती हैं। इन शीतल लहरों की शीतलता को स्वयं में समाते - समाते अब मैं शान्ति के सागर अपने प्यारे पिता के समीप जा रही हूँ।

➳ _ ➳  वो शांति का सागर मेरा प्यारा पिता जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहा है। अपने उस शांति सागर प्यारे पिता के पास पहुँच उनकी किरणों रूपी बाहों में जा कर मैं समा जाती हूँ। उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में उनके अविरल प्रेम की अनन्त धाराएं मेरे ऊपर बरसने लगती हैं और अपने अथाह प्रेम से मुझे तृप्त करने लगती हैं। बीज रूप स्थिति में स्थित होकर बीज रूप अपने प्यारे बाबा से यह मंगल मिलन मनाना मन को एक गहन परमआनन्द की अनुभूति करवा रहा है। बाबा से आती सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता के निष्काम प्रेम और उनकी शक्तियों का बल स्वयं में भरकर, अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने प्यारे बाबा के साथ बिताए अनमोल पलों को मीठी यादो के रूप में अपने मन और बुद्धि में सँजो कर, अब मैं वापिस पार्ट बजाने के लिए आवाज की दुनिया में वापिस लौट आती हूँ और आकर अपनी देह में भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान हो जाती हूँ। देह का आधार लेकर, साकार सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते हुए इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि यह मेरी वानप्रस्थ अवस्था है और मुझे वाणी से परे स्वीट होम जाना है। यह स्मृति देह में रहते भी मुझे देह से न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है।

➳ _ ➳  देह और देही दोनों को अलग - अलग देखते हुए अशरीरी बनने का अभ्यास बार - बार करने से अब मैं देह और देह की दुनिया से सहज ही उपराम होती जा रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं पवित्रता के वरदान को निजी संस्कार बनाकर पवित्र जीवन बनाने वाली मेहनत मुक्त्त आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं सेवा की शुद्ध भावना रखने वाली ट्रस्टी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  (ड्रिल बहुत अच्छी लग रही थी) यह रोज हर एक को करनी चाहिए। ऐसे नहीं हम बिजी हैं। बीच में समय प्रति समय एक सेकण्ड चाहे कोई बैठा भी होबात भी कर रहा होलेकिन एक सेकण्ड उनको भी ड्रिल करा सकते हैं और स्वयं भी अभ्यास कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है। दो-चार सेकण्ड भी निकालना चाहिए इससे बहुत मदद मिलेगी। नहीं तो क्या होता हैसारा दिन बुद्धि चलती रहती है नातो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और बीच-बीच में अभ्यास होगा तो जब चाहें उसी समय हो जायेंगे क्योंकि अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेही पन का अभ्यास बहुत आवश्यक है। ऐसे नहीं बात पूरी हो जाए और विदेही बनने का पुरुषार्थ ही करते रहें। तो सूर्यवंशी तो नहीं हुए ना! इसलिए जितना जो बिजी हैउतना ही उसको बीच-बीच में यह अभ्यास करना जरूरी है। फिर सेवा में जो कभी-कभी थकावट होती है, कभी कुछ-न -कुछ आपस में हलचल हो जाती हैवह नहीं होगा। अभ्यासी होंगे ना। एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगातो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ।

 

 _ ➳  युद्ध नहीं करनी पड़े। युद्ध के संस्कारमेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे। लास्ट घड़ी भी युद्ध में ही जायेगीअगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगेचाहे स्वभाव मेंचाहे सम्बन्ध में आने मेंचाहे संकल्प शक्ति मेंवृत्ति में, वायुमण्डल के प्रभाव मेंजिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जानबूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी। इसीलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है। कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति होउसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ना। विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ हैंऔर देह से न्यारा हो गयातो सबसे न्यारा हो गया। इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। मन को कन्ट्रोल कर सकेंबुद्धि को एकाग्र कर सकें। नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। पहले एकाग्र करेंतब ही विदेही बनें। अच्छा। आप लोगों का तो अभ्यास 14 वर्ष किया हुआ है ना! (बाबा ने संस्कार डाल दिया है) फाउण्डेशन पक्का है।

 

✺   ड्रिल :-  "सारे दिन के बीच-बीच में सेकण्ड में विदेही बनने का अभ्यास करना"

 

 _ ➳  आवाज से परे, सुनहरी लाल प्रकाशमय निराकार दुनिया में, मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा स्थूल, सुक्ष्म देह से मुक्त, इस मुक्तिधाम के एकदम मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं सतचित आंनद स्वरूप आत्मा स्वधर्म में स्थित, स्वरूप में स्थित निजानंद में हूँ... सामने महाज्योती सर्वशक्तिमान... सर्वशक्तिमान से अनंत शक्तियाँ मुझ निराकार आत्मा में समा रही है... एक-एक शक्ति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा... अपने अंदर समाती एक-एक का स्वरूप बनती जा रही हूँ... शिवपिता की किरणों में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ मैं विदेही आत्मा... मैं आत्मा अंनत शक्तियों से सम्पन्नता भरपूरता का अनुभव कर रही हूँ... इसी नव उर्जा के साथ मैं आत्मा धरती की ओर प्रस्थान करती हूँ... साकारी दुनिया में साकारी देह में मैं आत्मा अवतरित होती हूँ... और मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को इस कर्म क्षेत्र पर भिन्न-भिन्न कार्यकलाप करते हुए...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अब स्वयं को गृह के कार्य करते हुए देख रही हूँ... सभी कार्य करते, मैं आत्मा एक सेकंड में समस्त चेतना को एकाग्र कर लेती हूँ भृकुटि के मध्य में... सामने आंनद का सागर मेरा बाबा है... आंनद के सागर से अंनत आंनद की किरणों की बारिश मुझ आत्मा पर हो रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को आंनद स्वरूप अनुभव कर रही हूँ... पूरे घर में आंनद की किरणों की बारिश मुझ आत्मा से हो रही है... आसपास की हर आत्मा आंनद की अनुभूति कर रही हैं...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... एक भीड़ भरे स्थान से गुजरते हुए... चारों तरफ शोर ही शोर हैं... अलग-अलग तरह के वायब्रेशन्स से वायुमंडल प्रभावित है... एक पावरफुल बेक्र के साथ मैं आत्मा मन में चल रहे संकल्पों को स्टाप करती हूँ... और स्थित हो जाती हूँ... अपने स्वधर्म में... और गहराई से अनुभव कर रही हूँ... मैं अपने इस शांत स्वरूप को, शांति के सागर की छत्रछाया में, मुझ शांत स्वरूप आत्मा से शांति की बारिश चारों ओर हो रही है... सभी आत्माएँ इस शांति की बारिश में भीगकर शांति की अनुभूति कर रही है...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को आफिस में वर्क करते हुए... इस व्यवस्था के बीच, मैं आत्मा मन में उठ रही विचारों रूपी लहरों को, अन्तरमुखता रूपी सागर के तल में जाकर कहती हूँ कीप क्वाइट... और सेकेंड में देह से न्यारी मैं विदेही आत्मा पहुंच जाती हूँ... बाबा की कुटिया में चारों तरफ लाल प्रकाश बीच में मैं आत्मा सुख के सागर बाबा की शक्तिशाली किरणों में स्वयं को सुख स्वरूप अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा से सुख की किरणें चारों ओर फैल रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा बगीचे में अन्य आत्माओं के साथ स्वयं को वार्तालाप करते हुए देख रही हूँ... ट्रैफिक की आवाज सुन मैं आत्मा एक दम एलर्ट मन में चल रही संकल्पों की धारा को एकाग्रता की शक्ति से मोड कर परमधाम में शिव पिता से जोड़ देती हूँ... प्रेम के सागर से प्रेम की बरसात मुझ आत्मा पर हो रही है... और मुझ से ये किरणें अन्य आत्माओं पर पड़ रही है... वे सभी भी ईशवरीय प्रेम का अनुभव कर रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा गाड़ी में बैठी हूँ... मैं आत्मा मन में चल रहे संकल्पों के ट्रैफिक को एक सेकंड में आत्मिक स्थिति रूपी लाल बत्ती जलाकर स्टाप करती हूँ... अनुभव कर रही हूँ, मैं निराकार आत्मा स्वयं को पवित्रता के सागर के झरने के नीचे... पवित्रता की अनंत किरणें मुझ आत्मा में समा रही हैं... और मुझ से निकल चारों ओर फैल रही है... सभी आत्माएं और प्रकृति भी इन किरणों को पाकर सुख-शांति का पवित्रता का अनुभव कर रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को खेतों में कार्य करते हुए... मैं आत्मा खेतों में बीज बो रही हूँ... तभी मैं आत्मा मन में उठ रही संकल्पों रूपी शाखाओं के विस्तार को एक सेकेंड में समेट परमधाम में अपनी मास्टर बीजरुप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... बीजरुप बाबा की शक्तिशाली किरणों के नीचे मैं आत्मा स्वयं को बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ... विदेही हूँ ये स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... देह से न्यारे होने से... सब से न्यारी हो गयी हूँ... अब एकाग्रता की शक्ति भी बढ़ गयीं है... कंट्रोलिंग पॉवर भी बढ़ गयी है... देह के कमजोर संस्कार स्वभाव धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे है... और बार-बार के विदेही होने के अभ्यास से, मैं आत्मा माया के किसी भी प्रकार के प्रभाव से मुक्त हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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