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❍ 25 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ याद के बल से अपना स्वभाव मीठा और कर्मेन्द्रियाँ शांत की ?
➢➢ "अभी हम संगमयुगी हैं" - सदा इसी नशे में रहे ?
➢➢ श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति द्वारा सिद्धियाँ प्राप्त की ?
➢➢ विदेही स्थिति में स्थित रह परिस्थितियों की हलचल के प्रभाव से मुक्त रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ विदेही माना देह से न्यारा। स्वभाव, संस्कार, कमजोरियां सब देह के साथ है और देह से न्यारा हो गया तो सबसे न्यारा हो गया, इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं भाग्यवान आत्मा हूँ"
〰✧ सभी अपने को भाग्यवान समझते हो? वरदान भूमि पर आना यह महान भाग्य है। एक भाग्य वरदान भूमि पर पहुँचने का मिल गया, इसी भाग्य को जितना चाहो श्रेष्ठ बना सकते हो। श्रेष्ठ मत ही भाग्य की रेखा खींचने की कलम है।
〰✧ इसमें जितना भी अपनी श्रेष्ठ रेखा बनाते जायेंगे उतना श्रेष्ठ बन जायेंगे। सारे कल्प के अन्दर यही श्रेष्ठ समय भाग्य की रेखा बनाने का है। ऐसे समय पर और ऐसे स्थान पर पहुँच गये। तो थोड़े में खुश होने वाले नहीं। जब देने वाला दाता दे रहा है तो लेने वाला थके क्यों! बाप की याद ही श्रेष्ठ बनाती है।
〰✧ बाप को याद करना अर्थात् पावन बनना। जन्म-जन्म का सम्बन्ध है तो याद क्या मुश्किल है! सिर्फ स्नेह से और सम्बन्ध से याद करो। जहाँ स्नेह होता है वहाँ याद न आवे, यह हो नहीं सकता। भूलने की कोशिश करो तो भी याद आता।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ अधिकार की निशानी है - अपना-पना अपने बाप के पास आये हैं, अपने परिवार में आये हैं। मेहमान बन कर के नहीं आते लेकिन बच्चे आये हैं अपने घर में। चाहे चार दिन के लिए आते हो लेकिन समझते हो - मधुबन अपने स्थान पर पहुँचे हैं। तो यह आना और जाना। आप ब्राह्मणों की जो पढाई है वा मुरलीधर की जो मुरली है उसका सार यह दो शब्द ही हैं - ‘आना और जाना'।
〰✧ याद की यात्रा का अभ्यास क्या करते हो? कर्मयोगी का अर्थ ही है - मैं अशरीरी आत्मा शरीर के बंधन से न्यारी हूँ कर्म करने के लिए कर्म में आती हूँ और कर्म समाप्त कर कर्म-सम्बन्ध से न्यारी हो जाती हूँ सम्बन्ध में रहते हैं, बंधन में नहीं रहते।
〰✧ तो यह क्या हुआ? कर्म के लिए ‘आना' और फिर न्यारे हो ‘जाना'। कर्म के बन्धन वश कर्म में नहीं आते हो लेकिन कर्मेन्द्रियों को अधीन कर अधिकार से कर्म करने के लिए कर्मयोगी बनते हो। इन्द्रियों के कर्म के वशीभूत नहीं हो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ इस ड्रिल को दिन में जितना बार ज्यादा कर सको उतना करते रहना। चाहे एक मिनट करो। तीन मिनट, दो मिनट का टाइम न भी हो एक मिनट, आधा मिनट यह अभ्यास करने से लास्ट समय अशरीरी बनने में बहुत मदद मिलेगी। बन सकते हैं? अभी सभी अशरीरी हुए या युद्ध में, मेहनत करते-करते टाइम पूरा हो गया? सेकण्ड में बन सकते हो! बहुत काम है फिर भी बन सकते हो? मुश्किल नहीं है? यू.एन. में बहुत भाग दौड़ कर रही हो और अशरीरी बनने की कोशिश करो, होगा? अगर यह अभ्यास समय प्रति समय करेंगे तो ऐसे ही नेचुरल हो जायेगा जैसे शरीर भान में आना, मेहनत करते हो क्या? मैं फलानी हूँ यह मेहनत करते हो ? नेचुरल है। तो यह भी नेचुरल हो जायेगा। जब चाहो अशरीरी बनो, जब चाहो शरीर में आओ। अच्छा काम है आओ इस शरीर का आधार लो लेकिन आधार लेने वाली मैं आत्मा हूँ वह नहीं भूले। करने वाली नहीं हूँ कराने वाली हूँ। जैसे दूसरों से काम कराते हो ना। उस समय अपने को अलग समझते हो ना! वैसे शरीर से काम कराते हुए भी कराने वाली मैं अलग हूँ यह प्रैक्टिस करो तो कभी भी बॉडी कानसेस की बातों में नीचे ऊपर नहीं होंगे। समझा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- मनमनाभव के महामंत्र में रहना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा पंछी बन मन के द्वारे उड़ते हुए बाबा की कुटिया में बाबा के
सामने बैठ जाती हूँ... बापदादा अपनी मोहिनी सूरत से मुझ आत्मा को निहाल कर रहे
हैं... बाबा अपनी रंग बिरंगी किरणों की बारिश मुझ आत्मा पर बरसा रहे हैं...
मैं आत्मा इन सुंदर शीतल किरणों को अपने में समाती जा रही हूं... मैं बाबा की
किरणों को अपने में समाकर अंतर्मुखी होती जा रही हूँ... बाबा की ये किरणें मुझ
आत्मा के सभी विकार भस्म कर रहे हैं... मैं आत्मा संपूर्ण पवित्रता का अनुभव कर
रही हूँ... मैं आत्मा एक बाबा के प्यार में लवलीन होती जा रही हूँ...
❉ मनमनाभव का मन्त्र पक्का कराते हुए एक बाबा को सदा फॉलो करने की शिक्षा देते
हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे लाडले बच्चे... सदा दिल में पिता को समाये
रहो... उसे ही अपनी यादो में बसाये रहो... उसे ही चाहो और प्यार करो... मन ही
मन उससे प्रेम की बाते करो... उसका ही अनुसरण करो... तो यही सच्चा सहयोग है...
अपनी सुंदर स्थिति ही सर्वोत्तम सहयोग है...”
➳ _ ➳ मधुबन के चमन की बहार बनकर मीठे बाबा के गीतों को गुनगनाते हुए मैं आत्मा
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञानसागर बाबा के गुण और शक्तियो
को स्वयं में भर कर गुणवान शक्तिवान हो रही हूँ... और पूरी धरा को भी इन खजानो
से भरपूर कर मीठे बाबा की सहयोगी बन रही हूँ...”
❉ अपनी बगिया का फूल बना रूहानी सुगंध से महकाकर मुझे इस सृष्टि का श्रृंगार
बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान से
स्वयं को सजाओ संवारो और एक की लगन में मगन हो जाओ... प्यारे पिता को ही फॉलो
करो... तो यह अवस्था ही पिता का सहयोगी बनना है... अपनी सुंदर स्थिति और ईश्वर
पिता की यादो में डूबे रहना ही मनमनाभव अवस्था है...”
➳ _ ➳ वंडरफुल बाबा के वंडरफुल यादों में समाकर वंडरफुल स्थिति के अनुभवों में
डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मनमनाभव के
मन्त्र को प्राणों में बसाकर खूबसूरत भाग्य से राजरानी बन रही हूँ... प्यारे
बाबा की शिक्षाओ को आत्मसात कर उजली सी दमक उठी हूँ... अपनी खुशनुमा स्थिति की
तरंगे पूरे विश्व को दे रही हूँ...”
❉ दिव्य गुणों से चमकाकर मुझे इस जहाँ का नूर बना मेरी जिन्दगी की राहों में
सुखों के फूल बिछाकर मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने
हर साँस संकल्प को ईश्वरीय यादो में पिरो दो... यादो के मोतियो से हर पल
श्रृंगारित रहो... सच्चे पिता की यादो में खोये रहो... और पिता के ही नक्शे
कदम पर चल हर कदम पर पदम् बिछा दो... यही तो सच्चा सहयोगी बनना है... अपनी
श्रेष्ठ स्थिति ही सबसे बड़ा सहयोग है...”
➳ _ ➳ एक बाबा को ही मन का मीत बनाकर प्रीत की रीत निभाते हुए एक की लगन में
मगन होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने मन
और बुद्धि को आपके प्रेम में समर्पित कर आपकी मीठी यादो में महक उठी हूँ...
मीठे पिता के कदमो की छाप पर अपने कदमो में पदम् भर रही हूँ... ईश्वर पिता की
सहयोगी बन मुस्करा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- सदा इसी नशे में रहना है कि अभी हम संगमयुगी हैं, कलयुगी नहीं"
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा मन ही मन विचार करती हूँ कि
कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा कि जिस ब्राह्मण सम्प्रदाय को भक्ति
में सबसे ऊंच माना जाता है वो सच्ची ब्राह्मण आत्मा मैं हूँ जिसे स्वयं परम पिता
परमात्मा ने आ कर ब्रह्मा मुख से अडॉप्ट करके ईश्वरीय सम्प्रदाय का बनाया है।
मैं वो कोटो में कोई और कोई में भी कोई सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जिसे स्वयं भगवान
ने चुना है।
➳ _ ➳ बड़े - बड़े महा मण्डलेशवर, साधू सन्यासी जिस भगवान की महिमा के केवल गीत
गाते हैं लेकिन उसे जानते तक नही, वो भगवान रोज मेरे सम्मुख आकर मेरी महिमा के
गीत गाता है। रोज मुझे स्मृति दिलाता है कि "मैं महान आत्मा हूँ" "मैं विशेष
आत्मा हूँ" "मैं इस दुनिया की पूर्वज आत्मा हूँ"। "वाह मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य"
जो मुझे घर बैठे भगवान मिल गए और मेरे जीवन मे आकर मुझे नवजीवन दे दिया। उनका
निस्वार्थ असीम प्यार पा कर मेरा जीवन धन्य - धन्य हो गया। इस जीवन में अब कुछ
भी पाने की इच्छा शेष नही रही। जो मैंने पाना था वो अपने ईश्वर, बाप से मैंने
सब कुछ पा लिया है।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई हुई मैं अपने भाग्य को बदलने
वाले भाग्यविधाता बाप को जैसे ही याद करती हूँ वैसे ही मेरे भाग्यविधाता बाप
मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं। अपने लाइट माइट स्वरूप में भगवान जैसे ही मुझ
ब्राह्मण आत्मा पर दृष्टि डालते हैं उनकी पावन दृष्टि मुझे भी लाइट माइट स्वरूप
में स्थित कर देती है और डबल लाइट फ़रिश्ता बन मैं चल पड़ती हूँ बापदादा के साथ
इस साकारी लोक को छोड़ सूक्ष्म लोक में। बापदादा के सामने मैं फ़रिश्ता बैठ जाता
हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा की मीठी दृष्टि और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं कोभरपूर करके मैं
अपने जगमग करते ज्योतिर्मय स्वरूप को धारण कर अपने परमधाम घर की ओर चल पड़ती
हूँ। सेकण्ड में मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ अपने घर मुक्तिधाम में। यहां मैं
परम मुक्ति का अनुभव कर रही हूँ। मैं आत्मा शांति धाम में शांति के सागर अपने
शिव पिता परमात्मा के सम्मुख गहन शान्ति का अनुभव कर रही हूँ। मेरे शिव पिता
परमात्मा से सतरंगी किरणे निकल कर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और मैं स्वयं को सातों
गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। शिव बाबा से अनन्त शक्तियाँ निकल कर मुझ
में समाती जा रही हैं। कितना अतीन्द्रिय सुख समाया हुआ है इस अवस्था में।
➳ _ ➳ बीज रूप अवस्था की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं आत्मा वापिस लौट आती
हूँ अपने साकारी ब्राह्मण तन में और भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ। अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा अब सदा इसी नशे में रहती हूँ कि मैं सबसे
उंच चोटी की हूँ, ईश्वरीय सम्प्रदाय की हूँ। आज दिन तक मेरा यादगार भक्ति में
ब्राह्मणों को दिये जाने वाले सम्मान के रूप में प्रख्यात है। आज भी भक्ति में
ब्राह्मणों का इतना आदर और सम्मान किया जाता है कि उनकी उपस्थिति के बिना कोई
भी कार्य सम्पन्न नही माना जाता और वो सच्ची ब्राह्मण आत्मा वो कुख वंशवाली
ब्राह्मण नही बल्कि ब्रह्मा मुख वंशावली, ईश्वरीय पालना में पलने वाली, मैं
सौभाग्यशाली आत्मा हूँ"।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं श्रेष्ठ संकल्प की शक्त्ति द्वारा सिद्धिया प्राप्त करने वाली सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं विदेही स्थिति में रहने का अभ्यास करके परिस्थितियों की हलचल के प्रभाव से बचने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बापदादा यही चाहते हैं कि अब थोड़े समय के लिए पुरुषार्थ के प्रालब्ध स्वरूप बन जाओ। बन सकते हो कि पुरुषार्थ की मेहनत अच्छी लगती है? प्रालब्ध वाले बनेंगे? अभी पुरुषार्थ कर रहा हूँ, पुरुषार्थ हो जायेगा, करके दिखायेंगे, यह शब्द समाप्त हों। करके दिखायें क्या, दिखाओ। और कब दिखायेंगे? क्या विनाश के समय दिखायेंगे? इसकी बहुत सहज विधि है कि अब मास्टर दाता बनो। बाप से लिया है और लेते भी रहो लेकिन आत्माओं से लेने की भावना नहीं रखो - यह कर लें तो ऐसा हो। यह बदले तो मैं बदलूं, यह लेने की भावना है। ऐसा हो तो ऐसा हो। यह लेने की भावनायें हैं। ऐसा हो नहीं, ऐसा करके दिखाना है। हो जाए तो नहीं, लेकिन होना ही है और मुझे करना है। मुझे बायब्रेशन देना है। मुझे रहमदिल बनना है। मुझे गुणों का सहयोग देना है,मुझे शक्तियों का सहयोग देना है। मास्टर दाता बनो। लेना है तो एक बाप से लो। अगर और आत्माओं से भी मिलता है तो बाप का दिया हुआ ही मिलेगा। तो दाता बन फ्राकदिल बनो। देते रहो, देने आता है? या सिर्फ लेने आता है? अब जो जमा किया है वह दो। आपस में ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर दाता बनो। और दे तो मैं दूं,नहीं। मुझे देना है।
➳ _ ➳ 2. जब खजानों से भरपूर हो तो देते जाओ। यह क्यों करता? यह क्यों कहता? यह सोच नहीं करो। रहमदिल बन अपने गुणों का, अपनी शक्तियों का सहयोग दो - इसको कहा जाता है मास्टर दाता। महा सहयोगी। सहयोगी भी नहीं, महा सहयोगी बनो। महा दाता बनो।
✺ ड्रिल :- "महा सहयोगी, मास्टर दाता बनने का अनुभव"
➳ _ ➳ नवल रूप बिखराती हुई हरी-भरी सुन्दर धरती, गगन से स्वर्णिम किरणें लहराता हुआ सूर्य, मीठी मधुर कलरव करते पंछी, शरद ऋतु के आगमन से ख़ुशी में झूम रहे हैं, मधुर संगीत गा रहे हैं... चारों ओर की हरियाली मन को लुभा रही है... इस सुहावने मौसम में मैं आत्मा इन सतरंगी समाओं का आनंद लेते हुए सेंटर जा रही हूँ... प्यासी सूखी धरती की प्यास बुझ गई है... और एक तरफ प्यासी, तडपती आत्मायें मंदिरों में भटक रही हैं... शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में मंदिरों में भक्तों की लाइनें लगी हुई हैं... लाउडस्पीकर में माता के गीत गूंज रहे हैं... मंत्रोच्चार, भजन, कीर्तन हो रहे हैं... मंदिरों में पूजन, हवन, यज्ञ हो रहे हैं... चारों ओर देवियों की विधि-विधान से पूजा हो रही है... भक्त व्रत, उपवास, दान, पुण्य कर रहे हैं... मैं आत्मा सेंटर जाते-जाते इन भक्तों को देख रही हूँ... ये सभी अज्ञानी आत्माएं अभी भी इन आडम्बरों में फसें हुए हैं... कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ मैं जो स्वयं परमात्मा, सर्व खजानों का दाता, प्यार का सागर ही मुझे मिल गया...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सेंटर पहुंचकर बाबा के कमरे में बैठ जाती हूँ और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... अपने भाग्य पर नाज करती बाबा की याद में खो जाती हूँ... और अपने को फरिश्ते स्वरूप में सूक्ष्म वतन में पाती हूँ... प्यारे बाबा प्यार से मुझ फरिश्ते को अपनी गोदी में बिठा लेते हैं... प्यारे बाबा की जादुई भरी मुस्कान मुझ पर जादू चला रही है... सर्व गुण-शक्तियों के सागर के नैनों से निकलती तेजस्वी किरणें मुझ फरिश्ते पर पडकर मेरी चमक और बढ़ा रही हैं... बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ फेरते हैं... बाबा के वरदानी हाथों से वरदानों की बरसात हो रही है... मैं आत्मा अखूट खजानों से भरपूर हो रही हूँ... सर्व, गुण शक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ... मुझ फरिश्ते से अलौकिकता झलक रही है... मैं फरिश्ता बाप समान बन रही हूँ... दाता की संतान मास्टर दाता बन गई हूँ...
➳ _ ➳ बाबा अपने हाथों से एक सतरंगी हीरों से भरी एक सोने की थाली सजाते हैं... बाबा के हाथों से निकलती प्रेम, सुख, शांति, आनंद की किरणें हीरों का रूप लेकर थाली में भरते जा रहे हैं... और बाबा मेरे हाथ में थाली देते हैं और प्यार से मुझे दृष्टि देते हैं... मुझ फरिश्ते से अनेक फरिश्ते निकलते जा रहे हैं... मेरे चारों ओर मेरे ही रूप में अनगिनत फरिश्ते हाथों में हीरों से सजी सोने की थाली लेकर खड़े हैं... फिर बापदादा के साथ मुझ फरिश्ते के सभी रूप धरती पर उतरते हैं... चारों ओर की मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों के सभी दुखी, अज्ञानी आत्माओं के सामने खड़े हो जाते हैं... और हम फरिश्ते थाली से ज्ञान की नीले रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सभी अज्ञानी आत्माओं की अज्ञानता दूर हो रही है... सबको सत्य बाप का परिचय मिल रहा है...
➳ _ ➳ फिर प्रेम की हरे रंग के हीरे डालते हैं, सबके अन्दर की घृणा भावना खत्म होकर प्रेम और स्नेह भर रहा है... सुख की पीली रंग के हीरे डालते ही सबके दुख पीड़ा दूर हो रहे हैं... सबको अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है... शांति की आसमानी रंग के हीरों से सबके अन्दर से अशांति बाहर निकलती जा रही है... फिर हम फरिश्ते आनंद की बैंगनी रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबको सुख, शांति, आनंद का अनुभव हो रहा है... एक दूसरे प्रति सहयोग की भावना बढ़ रही है... फिर हम फरिश्ते शक्तियों की लाल रंग के हीरे सब पर डालते हैं... सबके अन्दर की कमी, कमजोरियां खत्म हो रही हैं... सभी अपने अन्दर अलौकिक शक्तियों का अनुभव कर रहे हैं... पवित्रता के सफेद हीरे सब पर डालते ही सबके अन्दर की अपवित्रता, विकारों रूपी कीचड़ बाहर निकल रहा है... रूहानियत की सुगंध से भरपूर हो रहे हैं... इन चमकते हीरों से सजकर सभी कौड़ी से हीरे तुल्य बन रहे हैं... चारों ओर खुशहाली छा गई है...
➳ _ ➳ अब मुझ फरिश्ते के सभी स्वरुप मुझमें एक हो गए हैं... और मैं देखती हूँ मेरे हाथों में रखी हीरों की थाली को जो और भी ज्यादा चमकते हुए हीरों से भर गई है... जितना मैं मास्टर दाता बन देते जा रही हूँ, मेरी थाली के हीरे बढ़ते जा रहे हैं... मेरे अविनाशी खजाने बढ़ते जा रहे हैं... मेरे खजानों के भंडार सदा भरपूर रहते हैं... बाबा ने मुझे वरदानी, महादानी बना दिया है... जो भी मुझे बाबा से मिलता है मैं आत्मा सबको देती जा रही हूँ... सदा रहमदिल बन अपने गुणों का, अपनी शक्तियों का सहयोग निःस्वार्थ भावना से देती रहती हूँ... शुभ भावनाओं, शुभ कामनाओं के वायब्रेशन्स चारों ओर फैलाती रहती हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक बाबा से ही लेती हूँ, अन्य आत्माओं से कभी भी लेने की भावना नहीं रखती हूँ... किसी से भी बिना अपेक्षा किए फ्राकदिल बन दे रही हूँ... सदा विश्व कल्याण के स्टेज पर सेट रहकर महा सहयोगी, महा दाता बन देती रहती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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