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 13 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ ज्ञान का सिमरन कर स्वदर्शन चक्रधारी बने ?

 

➢➢ हम मनुष्य से देवता बनते हैं" - दिल में सदा यही ख़ुशी रही ?

 

➢➢ प्रतक्ष्यफल द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति की ?

 

➢➢ अपनी चलन द्वारा रूहानी रॉयल्टी की झलक और फलक का अनुभव करवाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  आप बच्चों के पास पवित्रता की जो महान शक्ति है, यह श्रेष्ठ शक्ति ही अग्नि का काम करती है जो सेकण्ड में विश्व के किचड़े को भस्म कर सकती है। जब आत्मा पवित्रता की सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होती है तो उस स्थिति के श्रेष्ठ संकल्प से लगन की अग्नि प्रज्वलित होती है और किचड़ा भस्म हो जाता है, वास्तव में यही योग ज्वाला है। अभी आप बच्चे अपनी इस श्रेष्ठ शक्ति को कार्य में लगाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त करने वाली सफलता स्वरूप आत्मा हूँ"

 

   सदा बाप की ब्लैसिंग स्वत: ही प्राप्त होती रहे - उसकी विधि क्या है? ब्लैसिंग प्राप्त करने के लिए हर समय, हर कर्म में बैलेन्स रखो। जिस समय कर्म और योग दोनों का बैलन्स होता है तो क्या अनुभव होता है? ब्लैसिंग मिलती है ना। ऐसे ही याद और सेवा दोनों का बैलेन्स है तो सेवा में सफलता की ब्लैसिंग मिलती है। अगर याद साधारण है और सेवा बहुत करते हैं तो ब्लैसिंग कम होने से सफलता कम मिलती है। तो हर समय अपने कर्म-योग का बैलेन्स चेक करो।

 

  दुनिया वाले तो यह समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ है लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ ह्रैं। ऐसे कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त करेंगे। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। क्योंकि योग का अर्थ ही है मन-बुद्धि की एकाग्रता। तो जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ कार्य की सफलता बंधी हुई है। अगर मन और बुद्धि एकाग्र नहीं हैं अर्थात् कर्म में योग नहीं है तो कर्म करने में मेहनत भी ज्यादा, समय भी ज्यादा और सफलता बहुत कम।

 

  कर्मयोगी आत्मा को सर्व प्रकार की मदद स्वत: ही बाप द्वारा मिलती है। ऐसे कभी नहीं सोचो कि इस काम में बहुत बिजी थे इसलिए योग भूल गया। ऐसे टाइम पर ही योग आवश्यक है। अगर कोई बीमार कहे कि बीमारी बहुत बड़ी है इसीलिए दवाई नहीं ले सकता तो क्या कहेंगे? बीमारी के समय दवाई चाहिए ना। तो जब कर्म में ऐसे बिजी हो, मुश्किल काम हो उस समय योग, मुश्किल कर्म को सहज करेगा। तो ऐसे नहीं सोचना कि यह काम पूरा करेंगे फिर योग लगायेंगे। कर्म के साथ-साथ योग को सदा साथ रखो। दिन-प्रतिदन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स नहीं होगा तो बुद्धि जजमेन्ट ठीक नहीं कर सकती। इसलिए योग और कर्म के बैलेन्स द्वारा अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाओ।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧   वर्तमान समय का पुरुषार्थ क्या है? सुनना, सुनाना चलता रहता, अभी अनुभवी बनना है। अनुभवी का प्रभाव ज्यादा होता। वही बात अनुभवी सुनावे और वही बात सुनी हुई सुनावे तो अन्तर पड़ेगा ना? लोग भी अभी अनुभव करना चाहते। योग शिविर में विशेष अनुभव क्यों करते?

 

✧  क्योंकि अनुभवी बनने का साधन है - सुनाने के साथ अनुभव कराया जाता है। इससे रिज़ल्ट अच्छी निकलती है। जब आत्माएँ अनुभव चाहती है तो आप भी अनुभवी बनकर अनुभव कराओ। अनुभव कैसे हो? उसके लिए कौन - सा साधन अपनाना है? जैसे कोई इन्वेन्टर वह कोई भी इनवेन्शन निकालने के लिए बिल्कुल एकान्त में रहते है। 

 

✧  तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है, तो बाहर के आकर्षण से एकान्त चाहिए। ऐसे नहीं सिर्फ कमरे में बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त हो। मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहनाएकाग्र होना यही एकान्त है।  एकान्त में जाकर इन्वेन्शन निकालते है न। चारों ओर के वायब्रेशन से परे चले जाते तो यहाँ भी स्वयं को आकर्षण से परे जाना पड़े।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्मबन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आवेंगे, बन्धन में नहीं। सदा कर्म करते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करेंगे ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अभी भी अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त अर्थात् एक्जैम्पुल बनते हैं- जिसको देखकर अनेक आत्मायें स्वयं भी कर्मयोगी बन जाती हैं और भविष्य में भी पूज्यनीय बन जाती हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- देवता बनने के पहले ब्राह्मण जरुर बनना"

➳ _ ➳ मधुबन घर में डायमण्ड हाल में अपने शिव पिता को निहार कर मै आत्मा.. घनेरे सुखो में खो जाती हूँ... सम्मुख बैठे भगवान को देख, ख़ुशी में बावरी हो रही हूँ... मन ही मन मीठे बाबा को प्यार कर रही हूँ... दुलार कर रही हूँ... ख़ुशी के अंसुवन से, दिल के भावो को, बयान कर रही हूँ... मेरे लिए धरती पर उतर आया है भगवान... मुझे संवारने, निखारने और देवताई शानो शौकत से सजाने... यह सोच सोचकर निहाल हुई जा रही हूँ... कितना दूर दूर ढूंढ रही थी.. इस मीठे भगवान् को... और मीठे बच्चे की आवाज सुनकर, जो मुड़कर निहारा... तो भगवान को अपने सम्मुख खड़ा पाया... अपने इस मीठे भाग्य को देख देख पुलकित हूँ... जिसने यूँ चुटकियो में मुझे भगवान से मिला दिया... मुझे क्या से क्या बना दिया...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा के महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... आपका भाग्य कितना प्यारा और महान है कि... परमधाम से स्वयं भगवान ने आकर आपको चुना है... अपनी मखमली गोद में बिठाकर, फूलो जैसा खिलाया है... अथाह ज्ञान रत्नों से सजाकर, पूरे विश्व में अनोखा बनाया है... अपने इस खुबसूरत भाग्य के नशे में रहकर... पुरुषार्थ के शिखर पर पहुंचकर मीठा सा मुस्कराओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी बाँहों में भरकर गले लगाती हुए कहती हूँ :- "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... आप जो जीवन में न थे बाबा तो यह जीवन दुखो की गठरी सा बोझिल था... मै अकेली किस कदर इसे उठाकर टूट गयी थी... आपने मीठे बाबा मेरे जीवन में आकर, गुणो की खुशबु से महके... सुख भरे फूल खिलाये है... मुझे अपना प्यारा बच्चा बनाकर मेरा सोया हुआ भाग्य जगा दिया है...

❉ प्यारे बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों से सजाकर विश्व की बादशाही देते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य की यादो में रहकर मीठे बाबा को याद करो... सोचो जरा, कितना शानदार भाग्य है कि शिव पिता और ब्रह्मा मां... जीवन को नये आयामो से सजाने के लिए मिली है... देह की मिटटी से उठकर, ईश्वरीय दिल में बस गए हो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा अपनी खुशनसीबी पर झूमते गाते हुए मीठे बाबा को गले लगाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने इस अनोखे भाग्य पर कितना ना इठलाऊँ झूमूँ, नाचू और मुस्कराऊ... कि भगवान को पाकर खुबसूरत देवता बन रही हूँ... गुणो और शक्तियो से सजधज कर विश्व की मालिक बन रही हूँ...

❉ मीठे बाबा मुझे अपने दिल में बसाकर, अप्रतिम सौंदर्य से सजाकर कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पा लेने की सच्ची खुशियो में सदा, सदा मुस्कराओ... अपने प्यारे भाग्य के गीत गाकर, मीठे बाबा की प्यारी प्यारी यादो में खो जाओ... शिव शिल्पकार पिता और ब्रह्मा सी माँ मिलकर देवताई सौंदर्य में ढाल रहे है... पावनता से भरकर विश्व का बादशाह बना रहे है... सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर जीवन को खुबसूरत बनाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे साथी मेरे... मै आत्मा आपकी यादो के साये में गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर... सतयुगी दुनिया की हकदार बन रही हूँ... शिव पिता और ब्रह्मा माँ का हाथ थामकर खुशियो की बगिया में घूम रही हूँ... साधारण मनुष्य से ऊँचा उठकर, खुबसूरत देवता बन रही हूँ..." प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर मै आत्मा... इस देह के भृकुटि सिहांसन पर लौट आयी...
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- ज्ञान का सिमरण कर स्वदर्शन चक्रधारी बनना है"

➳ _ ➳ स्वदर्शन चक्रधारी बन अपने 84 जन्मो के भिन्न - भिन्न स्वरूपों का गहराई से अनुभव करने के लिए मैं स्वयं को अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने शिव पिता परमात्मा के सामने परम धाम में देख रही हूँ। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। कितना निराला अनुभव है। कितना अतीन्द्रिय सुख समाया है इस अवस्था में।

➳ _ ➳ यही मेरा संपूर्ण अनादि स्वरुप है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को जो बहुत सुंदर, बहुत आकर्षक और बहुत ही प्यारा है। बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान मै आत्मा अपने अनादि स्वरूप में सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान अवस्था मे हूँ। एक दिव्य प्रकाशमयी दुनिया जहां हजारों चंद्रमा से भी अधिक उज्ज्वल प्रकाश है उस निराकारी पवित्र प्रकाश की दुनिया की मैं रहने वाली हूँ। सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर हूँ।

➳ _ ➳ अपने इसी अनादि सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से अब नीचे आ जाती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान देह धारण कर नई सतोप्रधान दुनिया में मैं प्रवेश करती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान चोले में अवतरित देवकुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रुप में इस सृष्टि चक्र पर मेरा पार्ट आरंभ होता है। अब मैं मन बुद्धि से देख रही हूँ अपने आदि स्वरूप में देव कुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में स्वयं को सतयुगी दुनिया में। 16 कला सम्पूर्ण, डबल सिरताज, पालनहार विष्णु के रूप में मैं स्वयं को स्पष्ट देख रही हूँ। लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में डबल ताज पहने देवी देवता विचरण कर रहें हैं। राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। प्राकृतिक सौंदर्य भी अवर्णनीय है।

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने पूज्य स्वरूप का अनुभव कर रही हूं। मैं देख रही हूं मंदिरों में, शिवालयों में भक्त गण मेरी भव्य प्रतिमा स्थापन कर रहे हैं। मेरी जड़ प्रतिमा से भी शांति, शक्ति और प्रेम की किरणे निकल रहीं हैं जो मेरे भक्तों को तृप्त कर रही हैं। अपने पूज्य स्वरूप में मैं आत्मा स्वयं को कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में देख रही हूं। असंख्य भक्त मेरे सामने भक्ति कर रहे हैं, मेरा गुणगान कर रहे हैं, तपस्या कर रहे हैं, मुझे पुकार रहे हैं, मेरा आवाहन कर रहे हैं। मैं उनकी सभी शुद्ध मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हूँ।

➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में। ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ। संगम युग की सबसे बड़ी प्रालब्ध स्वयं भाग्यविधाता भगवान मेरा हो गया। विश्व की सर्व आत्माएँ जिसे पाने का प्रयत्न कर रही है उसने स्वयं आ कर मुझे अपना बना लिया। कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे घर बैठे भगवान मिल गए। मेरा यह दिव्य आलौकिक जन्म स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा के कमल मुख द्वारा हुआ है। स्वयं परमात्मा ने मुझे कोटों में से चुन कर अपना बनाया है। अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों को देखते - देखते मुझे अपने ब्राह्मण जीवन के कर्तव्यों का भी ध्यान आने लगता है। उन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अब मैं स्वयं को अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित करती हूँ।

➳ _ ➳ अब मैं डबल लाइट फरिश्ता बन गया हूँ। मेरे अंग - अंग से श्वेत रश्मियाँ निकल रही हैं। मेरे चारों ओर प्रकाश का एक शक्तिशाली औरा बनता जा रहा है। मेरे सिर के चारों ओर सफेद प्रकाश का एक बहुत सुंदर चमकदार क्राउन दिखाई दे रहा है। ज्ञान और योग के चमकदार पंख मुझ फरिश्ते की सुंदरता को औऱ अधिक निखार रहे हैं। सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप धारण किये, परमपिता का संदेशवाहक बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश देने के लिए अब मैं सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं प्रत्यक्षफल द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाली निःस्वार्थ सेवाधारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं अपनी चलन द्वारा रूहानी रॉयल्टी की झलक और फलक का अनुभव कराने वाली विशेष आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ दूसरा है विनाशी स्नेह और प्राप्ति के आधार पर वा अल्पकाल के लिए सहारा बनने के कारण लगाव वा झुकाव। यह भी लौकिक, अलौकिक दोनों सम्बन्ध में बुद्धि को अपनी तरफ खींचता है। जैसे लौकिक में देह के सम्बन्धियों द्वारा स्नेह मिलता है, सहारा मिलता है,प्राप्ति होती है तो उस तरफ विशेष मोह जाता है ना। उस मोह को काटने के लिए पुरूषार्थ करते हो, लक्ष्य रखते हो कि किसी भी तरफ बुद्धि न जाए। लौकिक को छोड़ने के बाद अलौकिक सम्बन्ध में भी यही सब बातें बुद्धि को आकर्षित करती हैं। अर्थात् बुद्धि का झुकाव अपनी तरफ सहज कर लेती हैं। यह भी देहधारी के ही सम्बन्ध हैं। जब कोई समस्या जीवन में आयेगी, दिल में कोई उलझन की बात होगी तो न चाहते भी अल्पकाल के सहारे देने वाले वा अल्पकाल की प्राप्ति कराने वाले,लगाव वाली आत्मा ही याद आयेगी। बाप याद नहीं आयेगा।

➳ _ ➳ फिर से ऐसे लगाव लगाने वाली आत्मायें अपने आपको बचाने के लिए वा अपने को राइट सिद्ध करने के लिए क्या सोचती और बोलती हैं कि बाप तो निराकार और आकार है ना! साकार में कुछ चाहिए जरूर। लेकिन यह भूल जाती हैं अगर एक बाप से सर्व प्राप्ति का सम्बन्ध, सर्व सम्बन्धों का अनुभव और सदा सहारे दाता का अटल विश्वास है, निश्चय है तो बापदादा निराकार या आकार होते भी स्नेह के बन्धन में बाँधे हुए हैं। साकार रूप की भासना देते हैं। अनुभव न होने का कारण? नॉलेज द्वारा यह समझा है कि सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने हैं लेकिन जीवन में सर्व सम्बन्धों को नहीं लाया है। इसलिए साक्षात् सर्व सम्बन्ध की अनुभूति नहीं कर पाते हैं। जब भक्ति मार्ग में भक्त माला की शिरोमणी मीरा को भी साक्षात्कार नहीं लेकिन साक्षात् अनुभव हुआ तो क्या ज्ञान सागर के डायरेक्ट ज्ञान स्वरूप बच्चों को साकार रूप में सर्व प्राप्ति के आधार मूर्त, सदा सहारे दाता बाप का अनुभव नहीं हो सकता! तो फिर सर्वशक्तिवान को छोड़ यथा शक्ति आत्माओं को सहारा क्यों बनाते हो!

✺ "ड्रिल :- सर्वशक्तिवान को छोड़ यथा शक्ति आत्माओं को अपना सहारा नहीं बनाना”

➳ _ ➳ “मेरे परमपिता परमात्मा सदाशिव निराकार, ओ आनन्द के सागर तेरी महिमा अपरम्पार... तेरी महिमा अपरम्पार"... मैं आत्मा परमात्म प्यार में मगन होकर ये गीत गाती हुई झुला झूल रही हूँ... याद करते ही बापदादा मुस्कुराते हुए मेरे बाजू में झूले में बैठ जाते हैं... मैं आत्मा तुरंत बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की गोदी के झूले में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ...

➳ _ ➳ बाबा की गोदी में मैं आत्मा कितना सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ... कितना आराम, कितना सुकून मिल रहा है... बाबा के प्यार में, स्नेह में मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ... बाबा साकार रूप की भासना दे रहे हैं... मैं आत्मा एक बाबा से सर्व सम्बन्धों का अनुभव कर रही हूँ... बाबा ही मेरे मात-पिता, शिक्षक, सतगुरु, साथी, साजन हैं... बाबा से सर्व प्राप्तियों का अनुभव हो रहा है...

➳ _ ➳ बाबा के अविनाशी स्नेह में मुझ आत्मा का विनाशी संबंधो का स्नेह खत्म हो रहा है... मुझ आत्मा से लौकिक, अलौकिक दोनों संबंधो में आकर्षण मिट रहा है... ज्ञान सागर से प्राप्त ज्ञान को पाकर मैं आत्मा ज्ञान स्वरुप बन गई हूँ... मुझ आत्मा की बुद्धि अब देहधारियों के मोह में नहीं पड़ रही हैं... अब एक बाबा का प्यार ही मुझ आत्मा की बुद्धि को अपनी तरफ खींचता है... मैं आत्मा मन-बुद्धि से पूरी तरह बाबा को समर्पित हो चुकी हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है, सर्वस्व है...

➳ _ ➳ अब कोई भी समस्या जीवन में आये या दिल में कोई उलझन की बात हो तो मैं आत्मा अल्पकाल के लिए सहारा देने वाले देहधारियों को याद नहीं करती हूँ... एक बाबा को ही याद करती हूँ... बाबा से ही अपने दिल की हर बात को शेयर करती हूँ... अल्पकाल सहारा देने वाले आत्माओं को छोड़ एक सर्वशक्तिवान बाबा को ही दिल से अपना सहारा बनाती हूँ... मैं आत्मा बाबा में अटल विश्वास, सम्पूर्ण निश्चय रख हर परिस्थिति में बाबा की मदद का अनुभव कर रही हूँ... बड़ी से बड़ी परिस्थिति को भी सहज ही पार कर रही हूँ...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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