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❍ 20 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ कलयुगी दुनिया की रस्म रिवाज़ छोड़ सत्य मर्यादाओं का पालन किया ?
➢➢ खुदाई खिदमतगार बनकर रहे ?
➢➢ तूफ़ान को तोहफा समझ सहज क्रॉस किया ?
➢➢ स्व चिंतन में रहते हुए स्व की चेकिंग की ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ समय प्रति समय वैभवों के साधनों की प्राप्ति बढ़ती जा रही है। आराम के सब साधन बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन यह प्राप्तियां बाप के बनने का फल मिल रहा है। तो फल को खाते बीज को नहीं भूल जाना। आराम में आते राम को नहीं भूल जाना। सच्ची सीता रहना। मर्यादा की लकीर से संकल्प रूपी अंगूठा भी नहीं निकालना क्योंकि यह साधन बिना साधना के यूज करेंगे तो स्वर्ण-हिरण का काम कर लेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं सुखदाता का साथी हूँ"
〰✧ ऐसा अनुभव होता है कि सुखदाता बाप के साथ सुखी बच्चे बन गये हैं? बाप सुखदाता है तो बच्चे सुख स्वरुप होंगे ना? कभी दु:ख की लहर आती है? सुखदाता के बच्चों के पास दु:ख आ नहीं सकता। क्योंकि सुखदाता बाप का खजाना, अपना खजाना हो गया है। सुख अपनी प्रापर्टी हो गई। सुख, शान्ति, शक्ति, खुशी - आपका खजाना है। बाप का खजाना सो आपका खाजाना हो गया। बालक सो मालिक हो ना! अच्छा।
〰✧ भारत भी कम नहीं है। हर ग्रुप में पहुँच जाते हैं। बाप भी खुश होते हैं। पांच हजार वर्ष खोये हुए फिर से मिल जाएं तो किनती खुशी होगी। अगर कोई 10-12 वर्ष भी खोया हुआ भी फिर से मिलता है तो कितनी खुशी होती है! और यह 5 हजार वर्ष बाप और बच्चे अलग हो गये और अब फिर से मिल गये। इसलिए बहुत खुशी है ना। सबसे ज्यादा खुशी किसके पास है? सभी के पास है। क्योंकि यह खुशी का खजाना इतना बड़ा है जो कितने भी लेवें, जितने भी लेंवे, अखुट है। इसीलिए हर एक अधिकारी आत्मा है। ऐसे हैं ना? संगमयुग को कौन-सा युग कहते हैं? संगमयुग खुशी का युग है। खजाने-ही–खजाने हैं, जितने खजाने चाहो उतना भर सकते हो। धनवान भव का, सर्व खजाने भव का वरदान मिला हुआ है। सर्व खजानों का वरदान प्राप्त है। ब्राह्मण-जीवन में तो खुशियां-ही-खुशियां हैं। यह खुशी कभी गायब तो नहीं हो जाती है? माया चोरी तो नहीं करती है खजानों की?
〰✧ जो सावधान, होशियार होता है उसका खजाना कभी कोई लूट नहीं सकता। जो थोड़ा-सा अलबेला होता है उसका खजाना लूट लेते हैं। आप तो सावधान हो ना, या कभी-कभी सो जाते हो? कोई सो जाते हैं तो चोरी हो जाती है ना। अलबेले हो गये। सदा होशियार, सदा जागती ज्योति रहे तो माया की हिम्मत नहीं जो खजाना लूट कर ले जाऐ। अच्छा - जहां से भी आये हो सब पद्मापद्म भाग्यवान् हो! यही गीत गाते रहो - सब कुछ मिल गया। 21 जन्मों के लिए गारंटी है कि ये खजाने साथ रहेंगे। इतनी बड़ी गारंटी कोई दे नहीं सकता। तो यह गारंटी कार्ड ले लिया है ना! यह गारंटी कार्ड कोई रिवाजी आत्मा देने वाली नहीं है। दाता है, इसलिए कोई डर नहीं है, कोई शक नहीं है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आप, जैसा नाम वैसा काम करने वाले, जैसा संकल्प वैसा स्वरूप बनने वाले सच्चे वैष्णव हो, ऐसे सच्चे वैष्णवों को क्या कोई छू सकने का साहस कर सकता है? अगर छू लेते हैं, तो छोटे - मोटे पाप बनते जानते हैं।
〰✧ ऐसे सूक्ष्म पाप, आत्मा को ऊँच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं। क्योंकि पाप अर्थात बोझ, वह फरिश्ता बनना नहीं देते, बीज रूप स्थिति व वानप्रस्थ स्थिति में स्थित होने नहीं देते।
〰✧ आजकल मैजारिटी महारथी कहलाने वाले भी, अमृतवेले की रूह - रिहान में, वह कम्पलेन्ट करते हैं व प्रश्न पूछते हैं कि पाँवरफुल स्टेज जो होनी चाहिए, वह क्यों नहीं होती? थोड़ा समय वह स्टेज क्यों रहती है? इसका कारण यह सूक्ष्म पाप है, जो बाप समान बनने नहीं देते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ 'इच्छा मात्रम अविद्या' अर्थात् सम्पूर्ण शक्तिशाली बीज रूप स्थिति। जब तक मास्टर बीज रूप नहीं बनते, बीज के बिना पत्तों को कुछ प्राप्ति नहीं हो सकती। बीज रूप स्थिति द्वारा शक्तियों का दान दो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- देही अभिमानी बन याद से विकर्म विनाश करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ जाती हूँ... और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... प्यारे बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के नैनों से जादुई किरणें निकलकर मुझ पर पड रही हैं... बाबा की इन जादुई किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो गया है और मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ... प्यारे बाबा मुझे अपने साथ बाहर लेकर जाते हैं और झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हुए प्यार भरी बातें करते हैं...
❉ प्यारे बाबा अपनी प्यार भरी मुस्कान से मुझ आत्मा को निहाल करते हुए कहते है:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गई... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो... अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा देहभान से मुक्त होकर देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”
❉ मीठे बाबा मेरा सतरंगी श्रृंगार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैलेपन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... अब अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुन्दर कमल फूल समान खिलकर अपनी रंगत चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ...”
❉ मेरे बाबा मुझ आत्मा के 63 जन्मों के विकर्मों को भस्म कर सच्चा सोना बनाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते जायेंगे... और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...”
➳ _ ➳ मैं देही अभिमानी आत्मा देह के सर्व बन्धनों से मुक्त होकर खुशियों के गीत गाती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- खुदाई खिदमतगार बनना है"
➳ _ ➳ अपने खुदा दोस्त के साथ विश्व की सैर करने का ख्याल मन मे आते ही मैं अशरीरी हो निराकार ज्योति बिंदु आत्मा बन अपने निराकार खुदा दोस्त की याद में बैठ उनका आह्वान करती हूँ। मेरे बुलाते ही मेरे खुदा दोस्त अपनी निराकारी दुनिया परमधाम को छोड़, फरिश्तों की दुनिया सूक्ष्म लोक में पहुंच कर, अपने निर्धारित रथ अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो कर मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं और आ कर अपना हाथ जैसे ही मेरे मस्तक पर रखते हैं उनकी लाइट माइट से मेरा साकारी शरीर जैसे एक दम सुन्न हो जाता है और उस साकारी शरीर मे से अति सूक्ष्म लाइट का फ़रिशता स्वरूप बाहर निकल आता है।
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये अब मैं फ़रिशता अपने खुदा दोस्त के साथ चल पड़ता हूँ विश्व भ्रमण को। अपने मन की बातें अपने दिलाराम दोस्त के साथ करते करते, प्रकृति के खूबसूरत नजारो का आनन्द लेते लेते मैं सारे विश्व का चक्कर लगा रहा हूँ। प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेने के साथ साथ विश्व मे हो रही दुखदायी घटनाओं को भी मैं देख रहा हूँ। कहीं प्रकृतीक आपदाओं के कारण होने वाली तबाही, कहीं अकाले मृत्यु, कहीं गृहयुद्ध, कहीं विकारों की अग्नि में जल रही तड़पती हुई आत्मायें। इन सभी दृश्यों को देखते देखते विरक्त हो कर मैं अपने खुदा दोस्त से कहता हूं कि वो जल्दी ही दुःखो से भरी इस दुनिया को सुख की नगरी बना दे।
➳ _ ➳ मेरे खुदा दोस्त, मेरे दिलाराम बाबा मुस्कराते हुए अपना हाथ ऊपर उठाते है और विश्व ग्लोब को अपने हाथों में उठा लेते हैं। उनके हाथों से बहुत तेज लाइट और माइट निकल रही है जो उस विश्व ग्लोब पर पड़ रही है। देखते ही देखते पूरा विश्व एक बहिश्त बन जाता है। अब मैं देख रहा हूँ माया रावण की दुःखो से भरी दुनिया के स्थान पर अपरम अपार सुखों से भरपूर सोने की एक खूबसूरत दुनिया।
➳ _ ➳ खो जाता हूँ मैं उन स्वर्गिक सुखों में। स्वयं को मैं विश्व महाराजन के रूप में देख रहा हूँ। हीरे जवाहरातों से सजे महल। प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य। सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवतायों की अति मनभावन इस दुनिया में राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं। पुष्पक विमानों पर बैठ देवी देवता विश्व भ्रमण कर रहें हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। रमणीकता से भरपूर देवलोक के इन नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रहा हूँ। इन स्वर्गिक सुखों का अनुभव करवाकर मेरे खुदा दोस्त अब मुझे खुदाई खिदमतगार बन सबको बहिश्त में चलने का रास्ता बताने का फरमान देते हुए परमात्म बल और शक्तियों से मुझे भरपूर कर देते हैं।
➳ _ ➳ सतयुगी दुनिया के मनमोहक दृश्यों को अपनी आंखों में संजोए अब मैं फ़रिशता सच्चा सच्चा खुदाई खिदमतगार बन अपने खुदा दोस्त के इस फरमान का पालन करने के लिए उनके साथ कम्बाइंड हो कर उन सभी धार्मिक स्थानों पर जा रहा हूँ जहां भगवान को पाने के लिए मनुष्य भक्ति के कर्मकांडो में फंसे पड़े हैं। अपने खुदा दोस्त की छत्रछाया में बैठ, उनसे सर्वशक्तियाँ ले कर अब मैं वहां उपस्थित सभी आत्माओं में प्रवाहित कर रहा हूँ। उन्हें मुक्ति, जीवन मुक्ति पाने का सहज रास्ता बता रहा हूँ। मेरा कम्बाइंड स्वरूप उन्हें दिव्य अलौकिक सुख की अनुभूति करवा रहा है। परमात्म वर्से को पाने अर्थात बहिश्त में जाने का सत्य रास्ता जान कर सर्व आत्मायें आनन्द विभोर हो रही हैं।
➳ _ ➳ सर्व आत्माओं को बहिश्त में चलने का रास्ता बता कर अब मैं अपने सूक्ष्म आकारी स्वरूप के साथ अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ और इस स्मृति के साथ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाता हूँ कि "मैं खुदाई खिदमतगार हूँ"। इसी स्मृति में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रहा हूँ और अपने संकल्प, बोल और कर्म से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परमात्म प्रेम का अनुभव करवाकर उन्हें भी परमात्म वर्से को पाने का रास्ता बता रहा हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं तूफान को तोहफा (गिफ्ट) समझ सहज क्रॉस करने वाली सम्पूर्ण और सम्पन्न आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं स्वचिंतन में रहते हुए स्व की चेकिंग करके अलबेलेपन को समाप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳. बापदादा आज बच्चों की चतुराई के खेल देख रहे थे। याद आ रहे हैं ना अपने
खेल! सबसे बड़ी बात दूसरे के अवगुण को देखना, जानना इसको बहुत होशियारी समझते
हैं। इसको ही नालेजफुल समझ लेते हैं। लेकिन जानना अर्थात् बदलना। अगर जाना भी,
दो घड़ी के लिए नालेजफुल भी बन गये, लेकिन नालेजफुल बनकर क्या किया? नालेज को
लाइट और माइट कहा जाता है, जान तो लिया कि यह अवगुण है लेकिन नालेज की शक्ति
से अपने वा दूसरे के अवगुण को भस्म किया? परिवर्तन किया? बदल के वा बदला के
दिखाया वा बदला लिया? अगर नालेज की लाइट, माइट को कार्य में नहीं लाया तो क्या
उसको जानना कहेंगे, नालेजफुल कहेंगे? सिवाए नालेज के लाइट। माइट को यूज़ करने
के वह जानना ऐसे ही है जैसे द्वापरयुगी शास्त्रवादियों को शास्त्रं की नालेज
है।
✺ "ड्रिल :- नॉलेज की शक्ति से अपने व दूसरे के अवगुण को भस्म करना"
➳ _ ➳ ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच, हल्की-हल्की बारिश की फुहार के साथ... मैं सागर
के किनारे उसकी मचलती लहरों के पास बैठकर... मन के ताने-बाने से सागर की गहराई
को नापने की कोशिश कर रही हूँ... तभी मेरा अंतर्मन उमंगों के पंख लगाकर
सूक्ष्म वतन पहुँच जाता है... जहाँ बाप दादा पवित्रता का ताज पहने मेरे सामनें
बाहें फैलाये खड़े हैं...
➳ _ ➳ मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ... और बाबा के गले लग जाती हूँ... कुछ देर
बाद जैसे ही बाबा मेरे सिर पर हाथ रखते हैं... मेरा समन्दर की लहरों के समान
दौड़ता हुआ मन एकदम शान्त हो जाता है... और बाबा से आती हुई शक्तिशाली किरणों को
अपने अंदर समाने लगती हूँ... और बाबा मुझे अपनी शक्तियों द्वारा नॉलेजफुल बना
रहे हैं... मैं अंतर्मन की गहराई से सारा ज्ञान अपने अंदर समाती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ जैसे-जैसे मेरे अंदर बाबा द्वारा दिया ज्ञान समाता जा रहा है... मैं
अनुभव करती हूँ... मैं बिल्कुल हल्की हो गई... मुझे अपने आप में और सभी आत्माओं
में सिर्फ और सिर्फ गुण ही नज़र आ रहे हैं... मेरे अवगुण समाप्त होते जा रहे
हैं... अब मैं नॉलेजफुल बनकर उमंग-उत्साह के पंख लगाकर अपने आसपास रहने वाली
सभी आत्माओं के अवगुण नॉलेज की शक्ति द्वारा समाप्त करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ नॉलेज की लाइट और माईट द्वारा मैं अपना और अन्य आत्माओं का कल्याण करती
चली जा रही हूँ... बाबा ने मुझे जो ज्ञान दिया उसको मैं अपने जीवन में साक्षात
अनुभव कर रही हूँ... फिर इस संसार की दुःखी अन्य आत्मायें जो द्वापर युगी
शास्त्रों में फंसी हुई थी उन्हें नॉलेज द्वारा सही रास्ता दिखा रही हूँ...
हजारों आत्मायें अपने खोये हुए आत्मविश्वास को पाकर धन्य हो रही हैं... उनको
इतना खुश देखकर अति हर्षित हो रही हूँ... और अब मैं एकदम हल्की होकर इस अलौकिक
स्थिति का आनन्द ले रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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