━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 09 / 12 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ "तुम्ही से बैठूं... तुम्ही से खाऊँ" - यह वायदा निभाया ?
➢➢ विचार सागर मंथन कर ज्ञान की पॉइंट्स निकाली ?
➢➢ अपने शुभ चिंतन की शक्ति से आत्माओं को चिंता मुक्त किया ?
➢➢ मन बुधी की लाइन क्लियर रख बापदादा के डायरेक्शन को क्लियर कैच किया ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ ऐसा कोई भी ब्राह्मण नहीं होगा जो आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थी न हो। लेकिन निरन्तर आत्म-अभिमानी, जिससे कर्मेन्द्रियों के ऊपर विजय हो जाए, हरेक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जाए, देह के पुराने संस्कार और सम्बन्ध से सम्पूर्ण मरजीवा हो जाए, इस पुरुषार्थ से ही नम्बर बनते हैं।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ "
〰✧ अपने को सदा दिल तख्तनशीन समझते हो? यह दिलतख्त सारे कल्प में सिवाए इस संगम युग के कहाँ भी प्राप्त नहीं हो सकता। दिलतख्त पर कौन बैठ सकता है? जिसकी दिल सदा एक दिलाराम बाप के साथ है। एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में रहने वालों के लिए स्थान है - 'दिलतख्त'। तो किस स्थान पर रहते हो? अगर तख्त छोड़ देते हो तो फाँसी के तख्ते पर चले जाते। जन्म जन्मान्तर के लिए माया की फाँसी में फंस जाते हो। या तो है बाप का दिलतख्त या है माया की फाँसी का तख्ता।
〰✧ तो कहाँ रहना है? एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये, अपना शरीर भी नहीं। अगर देह याद आई तो देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। जरा संकल्प रूप में भी अगर सूक्ष्म धागा जुटा हुआ होगा तो वह अपनी तरफ खींच लेगा। इसलिए मंसा, वाचा कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी रस्सी न हो।
〰✧ सदा मुक्त रहो तब औरों को भी मुक्त कर सकेंगे। आजकल सारी दुनिया माया के जाल में फँसकर तड़प रही है, उन्हें इस जाल से मुक्त करने के लिए पहले स्वयं को मुक्त होना पड़े। सूक्ष्म संक्लप में भी बंधन न हो। जितना निर्बन्धन होंगे उतना अपनी ऊंची स्टेज पर स्थित हो सकोगे। बंधन होगा तो ऊँचा चाहते भी नीचे आ जायेंगे।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बापदादा वा ड्रामा दिखाता ही रहता है कि दिन-प्रतिदिन सेवा बढ़नी ही है, तो बैठ कैसे जायेंगे? जो एक साल पहले आपकी सेवा थी और इस साल जो सेवा की वह बढ़ी है या कम हुई है? बढ़ गई है ना!
〰✧ न चाहते भी सेवा के बंधन में बंधे हुए हो लेकिन बैलेन्स से सेवा का बन्धन, बन्धन नहीं संबंध होगा। जैसे लौकिक संबंध में समझते हो कि एक है कर्म बन्धन और एक है सेवा का संबंध तो बन्धन का अनुभव नहीं होगा, सेवा का स्वीट संबंध है। तो क्या अटेन्शन देंगे?
〰✧ सेवा और स्व-पुरुषार्थ का बैलेन्स सेवा के अति में नहीं जाओ। बस, मेरे को ही करनी है, मैं ही कर सकती हूँ, नहीं। कराने वाला करा रहा है, मैं निमित्त ‘करनहार' हूँ तो जिम्मेवारी होते भी थकावट कम होगी।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ सारे दिन में कितना समय फ़रिश्ते हो रहते और कितना समय फ़रिश्तों के बजाय मृत्युलोक के मानव होते हो? दैवी परिवार के रिश्तों में भी फ़रिश्ते नहीं आते। वह तो सदैव न्यारे रहते हैं। रिश्ते सब किससे हैं? अगर कोई को सखी बनाया तो बाप से वह सखीपन का रिश्ता कम हो जायेगा। कोई भी सम्बन्ध चाहे बहन का या भाई का या अन्य कोई भी रिश्ता जोड़ा तो एक से ज़रूर वह रिश्ता हल्का होगा। क्योंकि बँट जाता है ना? दिल का टुकड़ा टुकड़ा हो गया तो टूटा हुआ दिल हो गया। टूटे हुए दिल को बाप भी स्वीकार नहीं करते। यह भी गुह्य रिश्तों की फिलॉसॉफी है। सिवाय एक के और कोई से रिश्ता नहीं- न सखा, न सखी, न बहन, न भाई। तो उस सम्बन्ध में भी आत्मा ही याद आयेगी। फ़रिश्ता अर्थात् जिसका आत्माओं से कोई रिश्ता नहीं। प्रीत जुटाना सहज है, लेकिन निभाना मुश्किल है। निभाने में ही नम्बर होते हैं। जुटाने में नहीं होते। निभाना किसी-किसी को आता है, सब को नहीं आता। निभाने की लाइन बदली हो जाती है। लक्ष्य एक होता है लक्षण दूसरे हो जाते हैं। इसलिए निभाते कोई-कोई हैं, जुटाते सब हैं। भक्त भी जुटाते हैं लेकिन निभाते नहीं हैं। बच्चे निभाते हैं, लेकिन उसमें भी नम्बरवार। कोई एक सम्बन्ध में भी अगर निभाने में कमी हो गई या सम्बन्ध में ज़रा-सी कमी हुई, मानों ७५३ सम्बन्ध बाप से है और २५३ सम्बन्ध कोई एक आत्मा से है, तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं रखेंगे। बाप का साथ ७५३ रखते हैं और कभी-कभी २५३ कोई का साथ लिया तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं आयेंगे। निभाना तो निभाना। यही भी गुह्य गति है। संकल्प में भी कोई आत्मा न आये- इसको कहते हैं सम्पूर्ण निभाना। कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे मन की, तन की या सम्पर्क की- कोई भी आत्मा संकल्प में न आये। संकल्प में भी कोई आत्मा की स्मृति आई तो उसी सेकेण्ड का भी हिसाब बनता है। तभी तो आठ पास होते हैं। विशेष आठ का ही गायन है। ज़रूर इतनी गुह्य गति होगी। बड़ा कड़ा पेपर है। तो फ़रिश्ता उनको कहा जाता है जिसके संकल्प में भी कोई न रहे। कोई परिस्थिति में, मजबूरी में भी नहीं। सेकेण्ड के लिए संकल्प में भी न हो। मजबूरी में भी मजबूत रहे- तब है फ़रिश्ता।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- बाप के पास अपना सौभाग्य बनाना"
➳ _ ➳ भोली -सी पथिक, और डगर अनजान... जब से मिले, वो, मै बनी, चतुर सुजान...
संगम पर मेरे श्रेष्ठ भाग्य की अनोखी सी सौगात लेकर हाजिर हुए वो सच्चें-
सच्चे रूहानी रत्नाकर... मुझ आत्मा को सौदागरी सिखा रहे है... पदमापदम
भाग्यशाली हूँ मैं आत्मा, मेरे भाग्य का दर्पण दिखा रहे है, और इस भाग्य के
दर्पण में कोहिनूर की भाँति जगजगाती मैं आत्मा बैठी हूँ बापदादा के सम्मुख, और
दिलोजान से ग्रहण कर रही हूँ उनकी हर मीठी समझानी को...
❉ रत्नों के खजानों से मालामाल करने वाले चतुर सुजान बाप मुझ आत्मा से बोले:-
"दुनिया के हिसाब से भोली, मगर बाप को पहचानने की दिव्य नेत्रधारी मेरी
बच्ची... आपने मेरा बाबा कहकर पदमों की कमाई का अधिकार पा लिया,.. दिन रात
ज्ञान रत्नों से खेलते आप बच्ची स्वयं का महत्व समझी हो, बापदादा आप बच्ची को
जिस नजर से देखते है अब उन नजरों को साकार करों..."
➳ _ ➳ मुझ आत्मा को सच्चा सौदा सिखा सौदागर बनाने वाले बाप से मैं दिव्य नेत्र
धारी आत्मा बोली:- "मीठे बाबा... मुरीद हूँ मैं इन आँखों की, जिसने आपको
पहचाना है, हर शुक्रिया आपको ही जाता है, क्योंकि ये आँखें भी तो आपका ही
नजराना है... मीठे बाबा, ये बुद्धि अब दिव्य हो गई है, जीवन ही दिव्यता में ढल
रहा है, इस रूह के ताने बाने में आपके गुण और शक्तियों के रंग और भी गहरे हो
गये है... देखो, मेरा हर संस्कार बदल रहा है... आपकी आँखों मे मैं अपना
सम्पूर्ण स्वरूप देखती हूँ बाबा और हर पल उसी का स्वरूप बन रही हूँ..."
❉ हर पल उमंगो की बरसात कर मेरे रोम- रोम को उमंगों से भरपूर करने वाले
बापदादा बोले:- "इनोसैन्ट से सैन्ट बनी मेरी रायल बच्ची... देखो, अनेक बातों
को समझने वाले समझदार अरबों- खरबो की गिनती कर रहे है... समय स्वाँस और संकल्प
का खजाना कौडियों के भाव लुटा घाटे का सौदा कर रहे है... ये वैरी वैरी
इनोसैन्ट परसन है जो खुद को बहुत समझू सयाने समझ रहे है... अब इन सबको भी आप
समान सौदागर बनाओं... जो अपनी आँखों से पहचाना है उसकी पहचान इनको भी
कराओं..."
➳ _ ➳ अमृत वेले से अमृत का पान कर दिन भर ज्ञान रत्नों से खेलने वाली मैं
आत्मा रत्नागर बाप से बोलीं:- "मीठे बाबा... उंमगों के उडनखटोले में आपने संग
बैठाकर उडना सिखाया है... आपकी अनोखी पालना ने हर पल मुझे मेरे श्रेष्ठ भाग्य
का अनुभव कराया है... आपकी हर चाहत अब मेरी धडकन बन रही है... बैक बोन बने आप
निमित्त बन चला रहे हो, वैरी वैरी इनोसैन्ट इन आत्माओं को ज्ञान रत्नों का
अनोखा खेल भाने लगा है... सांइलेंस की जादूगरी से बाबा इनको खेल पदमों का समझ
आने लगा है..."
❉ हर प्रकार की माया से सेफ रख मायाजीत बनाने वाले रूहानी जादूगर मुझ आत्मा से
बोले:- "अपनी निर्विघ्न स्थिति द्वारा वायुमंडल को पावर फुल बनाने वाली मेरी
श्रेष्ठ ब्राह्मण बच्ची... एकता और दृढता के बल से सर्व के प्रति शुभसंकल्पों
की लहर फैलाओं, सब के प्रति शुभ संकल्पो से हर आत्मा को बदलकर अब बाप की
प्रत्यक्षता का झंडा फहराओं... संकल्पों के इस खजाने से अब हर आत्मा का परिचय
कराओं... संगठन की एकता में अब बस शुभभावो की लहर फैलाओं..."
➳ _ ➳ बाप को कदम हर कदम फालो करने वाली मैं मास्टरज्ञान सागर आत्मा, ज्ञान
सागर बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... संकल्पों की दृढता, संगठन की एकता और
साइलेंस के बल से आत्माओं को आपका निरन्तर संदेश जा रहा है... संगम युगी मुझ
श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा का भाग्य देखकर हर आत्मा परम सुख पा, इस ओर आ रही है...
बस एक बाबा कहकर पदमो की कमाई का सुख पाकर अपने भाग्य की सराहना करने वाली
ये भोली आत्माए बाप समान चतुर सुजान बनती जा रही है... और बापदादा मुझे गले से
लगाकर सफलता का वरदान दे रहे है..."
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अपने आप से प्रण करना है कि हम बाप की याद में ही भोजन खायेगें"
➳ _ ➳ शास्त्रों में ब्रह्मा भोजन की कितनी महिमा की गई है! कितना सच कहा गया
है कि देवता भी इस ब्रह्मा भोजन को तरसते थे! भले सतयुग में देवताओं का राज्य
होगा,अपरम अपार सुख होंगे, शांति और सम्पन्नता होगी। भोजन भी 56 प्रकार का होगा
किन्तु अपने हाथ से और साथ बैठ कर खाने वाला भगवान कहाँ होगा! जिस परमात्म
पालना में पलते हुए, अपने पिता परमात्मा के साथ बड़े प्यार के साथ भोजन स्वीकार
करने का जो आनन्द मैं अब ले रही हूँ वो आनन्द पूरे कल्प में फिर कहाँ मिलेगा!
बड़े प्यार के साथ बाबा का आह्वान कर, भोजन बनाना और फिर बाबा के साथ बैठ कर
भोजन खाने का आनन्द लेना! कितना सुख समाया है इसमें जिसका वर्णन भी नही हो
सकता।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने आप से बातें करती मैं रसोईघर, अपने प्यारे बाबा के भण्डारे
की ओर चल पड़ती हूँ। अपने परम पवित्र श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होकर मैं
बाबा के इस भण्डार गृह में प्रवेश करती हूँ, उसकी सफाई करती हूँ और बड़े प्यार
से बाबा का आह्वान करती हूँ। मेरा आह्वान सुनते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे
बाबा अपना घर परमधाम छोड़ कर नीचे उतर आयें है और इस भण्डारगृह में आकर मेरे सिर
के ठीक ऊपर स्थित हो गए हैं। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी छत्रछाया के
नीचे मैं स्वयं को अनुभव कर रही हूँ। उनकी याद में मग्न, उनकी सर्वशक्तियों को
स्वयं में भरते हुए मैं बड़ी शुद्धि से भोजन बना रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि
परमात्म शक्तियों से यह भोजन कितना शुद्ध और पवित्र बन रहा है।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा की याद में, उच्च स्वमान के साथ बड़ी शुद्धि से भोजन
बनाकर अब मैं बड़े प्यार के साथ भोग की थाली तैयार करती हूँ। आसन बिछा कर, भोग
की थाली को सामने रख मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होकर अपने लाइट के फ़रिश्ता
स्वरूप को धारण करती हूँ और बड़े प्यार से अपने हाथों में भोग की थाली उठाकर,
अपने प्यारे बापदादा को भोग स्वीकार कराने उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती
हूँ। सेकण्ड में सूर्य, चांद, तारागणों के विशाल समूह को पार कर मैं भोग की
थाली के साथ पहुँच जाती हूँ सफेद प्रकाश की, फरिश्तो से सजी दुनिया में। अपने
सामने अव्यक्त बापदादा को देखते हुए मैं उनके पास पहुँचती हूँ और भोग की थाली
उनके आगे रख उन्हें भोग स्वीकार कराती हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए कभी मुझे और कभी भोग की उस थाली को
देख रहें हैं। बाबा की याद में बने उस भोग में मेरी भावना को देख बापदादा
हर्षित होते हुए अपनी दृष्टि उस भोग के ऊपर डाल उसमें अपनी सारी शक्तियाँ
प्रवाहित कर रहें हैं। बापदादा की दृष्टि से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते
पर भी पड़ रही है और मुझ से होती हुई उस भोग में समा रही है। पवित्रता की सारी
शक्ति भोजन में समाती जा रही है। भोजन के एक - एक कण में अथाह शक्तियाँ भर गई
हैं। बड़े प्यार से अपने हाथ से मैं बाबा को भोग खिला रही हूँ। बाबा एकटक मुझे
निहार रहें हैं और मेरे हाथ से भोग स्वीकार कर अब अपने हाथ से मेरे मुख में
छोटी सी गिटी डाल रहें हैं। बाबा को भोग स्वीकार कराकर अब मैं वापिस आती हूँ।
➳ _ ➳ साकार लोक में अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हो जाती हूँ। अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अलग - अलग सम्बन्धों के रूप में बाबा को अनुभव
करते हुए बाबा के साथ बैठ कर अब मैं उस भोग को खाती हूँ। कभी मैं अनुभव करती
हूँ बाबा मेरे सामने मेरा छोटा सा नन्हा सा बच्चा बन कर बैठें हैं और मैं बड़े
प्यार से, उन पर बलिहार जाते हुए अपने हाथ से छोटी - छोटी गिटी तोड़ कर उन्हें
खिला रही हूँ। एक गिटी मैं उन्हें खिलाती हूँ और फिर एक गिटी अपने नन्हे हाथों
से वो मुझे खिलाते हैं। कभी मैं उन्हें अपने खुदा दोस्त के रूप में देखती हूँ।
मेरा सबसे अच्छा दोस्त जो मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार हैं उसके ऐसे
निस्वार्थ प्यार को देख खुशी में गदगद होकर मैं उसके साथ बैठकर भोजन खा रही
हूँ।
➳ _ ➳ कभी अपने अविनाशी साजन के रूप में, अपने जीवन के हर सुख - दुख में साथ
निभाने वाला सच्चा साथी अनुभव करते हुए उनके साथ बड़े प्यार से भोजन खा रही हूँ।
इस प्रकार हर दिन बड़े प्यार से बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर, सर्व सम्बन्धो से
बाबा को याद कर उनके साथ बैठकर खाने का भरपूर आनन्द लेते हुए, अपने ब्राह्मण
जीवन मे मैं हर पल परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव कर रही हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
मैं सब को चिंता मुक्त्त बनाने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं शुभचिंतक मणि हूँ।
✺ मैं शुभ-चिंतन की शक्ति स्वरूप आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
मैं आत्मा बापदादा के डायरेक्शन को क्लियर कैच करती हूँ ।
✺ मैं आत्मा सदा मन बुद्धि की लाईन को क्लियर रखती हूँ ।
✺ मैं शान्त आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा बच्चों को कहते हैं - सर्व शक्तियों का वर्सा इतना शक्तिशाली है जो कोई भी समस्या आपके आगे ठहर नहीं सकती है। समस्या-मुक्त बन सकते हो। सिर्फ सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो और समय पर कार्य में लगाओ। इसके लिए अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखो। जितनी बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन होगी उतना निर्णय शक्ति तीव्र होने के कारण जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता है वह कार्य में लगा सकेंगे। क्योंकि समय के प्रमाण बापदादा हर एक बच्चे को विघ्न-मुक्त, समस्या-मुक्त, मेहनत के पुरुषार्थ-मुक्त देखने चाहते हैं। बनना तो सब को है ही लेकिन बहुतकाल का यह अभ्यास आवश्यक है।
➳ _ ➳ फालो करना तो सहज है ना! जब फालो ही करना है तो क्यों, क्या, कैसे...
यह समाप्त हो जाता है। और सबको अनुभव है कि व्यर्थ संकल्प के निमित्त यह क्यों, क्या, कैसे... ही आधार बनते हैं। फालो फादर में यह शब्द समाप्त हो जाता है। कैसे नही, ऐसे। बुद्धि फौरन जज करती है ऐसे चलो, ऐसे करो। तो बापदादा आज विशेष सभी बच्चों को चाहे पहले बारी आये हैं, चाहे पुराने हैं, यही इशारा देते हैं कि अपने मन को स्वच्छ रखो। बहुतों के मन में अभी भी व्यर्थ और निगेटिव के दाग छोटे बड़े हैं। इसके कारण पुरुषार्थ की श्रेष्ठ स्पीड, तीव्रगति में रूकावट आती है। बाप दादा सदा श्रीमत देते हैं कि मन में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना और शुभ -कामना रखो - यह है स्वच्छ मन। अपकारी पर भी उपकार की वृत्ति रखना - यह है स्वच्छ मन। स्वयं के प्रति वा अन्य के प्रति व्यर्थ संकल्प आना - यह स्वच्छ मन नहीं है। तो स्वच्छ मन और क्लीन और क्लीयर बुद्धि। जज करो, अपने आपको अटेन्शन से देखो, ऊपर-ऊपर से नहीं, ठीक है, ठीक है। नहीं, सोच के देखो - मन और बुद्धि स्पष्ट है, श्रेष्ठ है? तब डबल लाइट स्थिति बन सकती है। बाप समान स्थिति बनाने का यही सहज साधन है। और यह अभ्यास अन्त में नही, बहुत काल का आवश्यक है।
✺ ड्रिल :- "समस्या मुक्त बनने के लिए बुद्धि की लाइन क्लीन और क्लीयर रखना"
➳ _ ➳ मन बुद्धि के पंख लगाये मैं आत्म पंछी आहिस्ता आहिस्ता इस देह से अलग होने का अभ्यास करता हुआ... देह से दूर स्थिर होकर मैं अपनी ही देह को साक्षी भाव से देख रहा हूँ... कुछ ही पल में इससे विदाई लेता हुआ मैं उड चला अनन्त की ओर... मैं फरिश्ता चार धाम की यात्रा पर... बैठ गया हूँ शान्ति स्तम्भ पर... शिव बिन्दु आज मेरे सम्मुख अपने विराट रूप में... मुझमें शक्तियों को भरते हुए... प्रकाश का घेरा मेरे चारों ओर... गहरा लाला प्रकाश और दूधिया रंग की आभा से सजा मैं फरिश्ता... मुझसे, मेरे जैसे ही आठ फरिश्ते प्रकट होकर मेरे चारों ओर मुझे घेर कर खडे हो गये है... उनके चारों ओर प्रकाश से झिलमिलाती आठ दिव्य शक्तियाँ... एक एक फरिश्ते के भीतर समाती हुई... और भी शक्तिशाली रूप धारण कर ये फरिश्ते एक एक कर मुझ फरिश्ते में समातें जा रहे है... अष्ट शक्तियों के वर्से से भरपूर होकर मैं फरिश्ता... बेहद की शक्तियों का प्रस्फुटन महसूस कर रहा हूँ स्वयं के भीतर से...
➳ _ ➳ उडता हुआ मैं फरिश्ता जा बैठा हूँ एक ऊँचे शिखर पर... सभी कुछ बहुत छोटा महसूस हो रहा है मेरी स्थिति के आगे... विस्तार लिए फैले गगन के समान विस्तृत होता मेरा मन... और इसमे समाँ गयी है विश्व की हर आत्मा गगन की गोद में पलते तारों के समान... और हर आत्मा के प्रति शुभकामना और शुभभावना की किरणें भेजता हुआ मैं... व्यर्थ और नैगेटिव संकल्प टूटते तारों के समान मेरे मन रूपी आकाश से विदाई ले रहे है...
➳ _ ➳ शिखर से बहता पावन झरना और झरने के निरन्तर बहाव से तलहटी में बनी झील... मेरे मन रूपी झील की ही तरह पावनता से भरपूर है... झील की तलहटी व किनारों पर जमी समस्या रूपी शैवाल... निरन्तर बहते झरने के बहाव से पानी की धारा के साथ दूर और दूर होती हुई जा रही है... निरन्तर बहता शिव प्यार का झरना... पावनता का झरना... ये शक्तियों और गुणों का झरना... और इस झरने के नीचे मगन रूप में मै फरिश्ता... बुद्धि की लगन बस एक शिव पिता से... मेरे मन रूपी स्वच्छ पावन झील में उभरता शिव का प्रतिबिम्ब.... जैसे ठहरे शान्त और स्वच्छ जल में उभरता चाँद का पूरा प्रतिबिम्ब... हर समस्या बहते पानी के साथ, बहती शैवाल के समान दूर हो रही है... समस्या से मुक्त होकर मैं अब समाधान स्वरूप बनती जा रही हूँ... बुद्धि रूपी प्यालें में शिव स्नेह की मधुशाला... समस्या ले रही विदाई... पग पग पर बस जीत का उजाला...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━