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❍ 29 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ "मैं दिव्य जीवन वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ" - यह श्रेष्ठ स्मृति रही ?
➢➢ हर श्वास में ख़ुशी की साज़ बजती रही ?
➢➢ सदा बाप का साथ और हाथ मेरे उपरे है" - यह अनुभव किया ?
➢➢ स्वयं को अधिकारी आत्मा अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे-इसको कहते हैं कर्मातीत। कर्मयोग की स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है। यह कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी स्थिति है, इससे कोई कितना भी बड़ा कार्य, मेहनत का हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं|
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं पदमों की कमाई जमा करने वाली अखुट खजानों का मालिक हूँ"
〰✧ हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले, अखुट खजाने के मालिक बन गये। ऐसे खुशी का अनुभव करते हो! क्योंकि आजकल की दुनिया है ही - 'धोखेबाज'। धोखेबाज दुनिया से किनारा कर लिया।
〰✧ धोखे वाली दुनिया से लगाव तो नहीं! सेवा अर्थ कनेक्शन दुसरी बात है लेकिन मन का लगाव नहीं होना चाहिए। तो सदा अपने को तुच्छ नहीं, साधारण नहीं लेकिन श्रेष्ठ आत्मा हैं, सदा बाप के प्यारे हैं, इस नशे में रहो।
〰✧ जैसा बाप वैसे बच्चा - कदम पर कदम रखते अर्थात् फालो करते चलो तो बाप समान बन जायेंगे। समान बनना अर्थात् सम्पन्न बनना। ब्राह्मण जीवन का यही तो कार्य है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ ब्राह्मण बने, बाप के वर्से के अधिकारी बने, गॉडली स्टूडेन्ट बने, ज्ञानी तू आत्मा बने, विश्व सेवाधारी बने - यह भाग्य तो पा लिया लेकिन अब पास विद ऑनर होने के लिए कर्मातीत स्थिति के समीप जाने के लिए ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेन्शन।
〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले ‘न्यारे और प्यारे’ रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। जो सभी बच्चे अनुभव सुनाते हो - सुनते हुए न्यारे, कार्य करते हुए न्यारे, बोलते हुए न्यारे रहते थे। सेवा को वा कोई कर्म को छोडा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की। न्यारा-पन हर कर्म मे सफलता सहज अनुभव कराता है। करके देखो।
〰✧ एक घण्टा किसको समझाने की भी मेहनत करके देखो और उसके अन्तर में 15 मिनट में सुनाते हुए, बोलते हुए न्यारे-पन की स्थिति में स्थित होके दूसरी आत्मा को भी न्यारे-पन की स्थिति का वायवेशन देकर देखो। जो 15 मिनट में सफलता होगी वह एक घण्टे में नहीं होगी। यही प्रैक्टिस ब्रह्मा बाप ने करके दिखाई। तो समझा क्या करना है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जो बापदादा कहते हैं, चाहते हैं सेकण्ड में अशरीरी हो जायें - उसका फाउण्डेशन यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है, नहीं तो कितनी भी कोशिश करेंगे लेकिन सेकण्ड में नहीं हो सकेंगे। युद्ध में ही चले जायेंगे और जहाँ वैराग्य है तो ये वैराग्य है योग्य धरनी, उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- हर श्वांस में ख़ुशी का साज बजना"
➳ _ ➳ मीठे बाबा की यादो में खोयी... मै आत्मा अपनी खुशियो के खजाने को गिनने
में मशगूल हूँ... और अपनी ईश्वरीय अमीरी को देख देख मुस्करा रही हूँ... कितना
प्यारा अनोखी खुशियो से भरा जीवन मीठे बाबा ने सौगात सा दे दिया है... तभी मीठे
बाबा पलक झपकते ही वहाँ उपस्थित होकर... मुझे खुशहाल देख जैसे, नयनों से कह रहे...
बच्चों की खुशियो में ही मुझ पिता की खुशियां समायी है...
❉ मीठे बाबा आज खुशियो की बरसात मेरे मन आँगन में बिखराते हुए बोले :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन खत्म हो गए है... अब अथाह खुशियो भरे मीठे
दिन आ गए है... अब ईश्वर पिता जीवन में आ गया है... चारो ओर खुशियो की बरसात
है... इस नशे में सदा डूबे रहो कि सुख शांति प्रेम के मीठे पल आये की आये..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के रूप में भगवान को सम्मुख देख देख पुलकित हूँ और
कह रही हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... ऐसा प्यारा ईश्वरीय साथ भरा जीवन तो
कल्पनाओ में भी कभी न था... आज आपको पाने की ख़ुशी से छलक रहा मन... जीवन की
सच्चाई है... और मीठे सुख मुझे अपनी बाँहों में पुकार रहे है..."
❉ प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में दुलारते हुए ज्ञान धारा को बहाते हुए बोले
:- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जो देवताई सुख कल्पनाओ से परे थे... ईश्वर पिता उन
सुख भरे खजानो को आप बच्चों की राहो में फूलो सा बिखराया है... इस ख़ुशी में सदा
झूमते रहो... अपने मीठे सुखो की यादो में खोये रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों की छत्रछाया में स्वयं को भरपूर करते हुए
बोली :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... दुखो के जंगल में सुख की एक बून्द को तरसती...
मै आत्मा आज स्वर्ग की बादशाही पा रही हूँ... कितना प्यारा मीठा और खुबसूरत
भाग्य है... मै आत्मा आपके सारे खजानो की मालिक बन गयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा रूहानी दृष्टि देते हुए और ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारते हुए
बोले :- "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर जो सुखो की दौलत पायी
है... उसके नशे में खोये रहो... संगम की यही खुशियां देवताई सुखो में बदल कर
जीवन को खुशियो से महकायेंगी... इन मीठे पलो के सुख को यादो में चिर स्थायी
बनाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी मुस्कराहट से जवाब देते हुए कहती हूँ :-
"मीठे बाबा सच्चे ज्ञान को पाकर सारी भटकन से छूट गयी हूँ और आपकी छत्रछाया
में गुणवान शक्तिवान बनकर सच्ची खुशियो में खिलखिला रही हूँ... देवताई सुखो भरा
स्वर्ग अपनी तकदीर में लिखवा रही हूँ..." अपनी खुशियो की चर्चा मीठे बाबा से
कर मै आत्मा कार्य पर लौट आयी... इन मीठी ईश्वरीय यादो को दिल में समेट कर मै
आत्मा अपने जगत मे आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- सदा रूहानी मौज में रहना है"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान की पालना में पलने वाली मैं ब्राह्मण आत्मा कितनी पदमापदम
सौभाग्य शाली हूँ जो मेरा एक - एक सेकेण्ड परमात्म पालना के झूले में झूलते हुए
बीतता है। जिस भगवान के दर्शनों की दुनिया प्यासी है वो भगवान मेरे हर दिन की
शुरुआत से लेकर रात के सोने तक मेरे साथ रहता है। अमृत वेले बड़े प्यार से मीठे
बच्चे कहकर मुझे उठाता है। वरदानो से मेरी झोली भरता है। टीचर बन मुझे पढ़ाता
है। चलते फिरते उठते बैठते हर कर्म करते मेरा साथी बन मेरे साथ रहता है। अपनी
श्रेष्ठ मत देकर मुझे श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाता है। सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख
देता है।
➳ _ ➳ ऐसे अपने सर्वश्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अनमोल प्राप्तियों की
स्मृति में खोई अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा उनसे
मिलने के लिए आतुर हो उठती हूँ और मन मे अपने प्यारे प्रियतम की मीठी सी सुखद
याद को समाये, मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर उनसे मिलने उनके धाम की ओर चल
पड़ती हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्रियतम बाबा मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहें
हैं और मैं देह, देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त होकर, बस उनकी ओर खिंचती चली
जा रही हूँ।
➳ _ ➳ कुछ ही क्षणों की अद्भुत रूहानी यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच जाती हूँ
अपने प्यारे शिव पिता के पास। लाइट की एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों और चमकती हुई
मणियां जगमग कर रही है। इस परमधाम घर में मैं स्वयं को अपने प्यारे प्रभु के
सम्मुख देख रही हूँ। बाबा के साथ अटैच होकर उनसे आ रही लाइट, माइट से मैं स्वयं
को भरपूर कर रही हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमे असीम बल भर कर मुझे
शक्तिशाली बना रही है। मैं डबल स्थिति में सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। हर
बोझ, हर बन्धन से मैं स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता परमात्मा के सानिध्य में गहन सुख की अनुभूति करके, और
उनकी लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ। फिर
से साकारी दुनिया मे आकर, अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, अपने प्यारे
प्रभु के स्नेह के रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा बन, अब मैं सुबह से लेकर
रात तक संगमयुग की मौजों के नजारों का अनुभव करते हुए अपने पिता परमात्मा के
स्नेह में सदा समाई रहती हूँ। मेरे शिव पिता का निस्वार्थ प्रेम देह और देह की
दुनिया से मुझे नष्टोमोहा बना रहा है।
➳ _ ➳ अपनी हजारों भुजाओं के साथ बाबा चलते, फिरते, उठते, बैठते हर समय मुझे
अपने साथ प्रतीत होते हैं। बाबा के प्रेम का रंग मुझ पर इतना गहरा चढ़ चुका है
कि मेरे हर कर्म में बाबा अब सदा मेरे साथ रहते हैं। अपने पिता परमात्मा के
साथ, संगमयुग की मौजों के नजारों का अनुभव मुझे अतीन्द्रीय सुख के झूले सदा
झुलाता रहता है। भोजन खाती हूँ तो बाबा के साथ मौज में खाती हूँ। चलती हूँ तो
भाग्यविधाता बाप के हाथ मे हाथ देकर चलती हूँ। ज्ञान अमृत पीती हूँ तो
ज्ञानदाता बाप के साथ पीती हूँ। कर्म करती हूँ तो करावनहार बाप के साथ स्वयं को
निमित समझ करती हूँ। सोती हूँ तो बाबा की याद की गोदी में सोती हूँ। उठती हूँ
तो भी भगवान के साथ रूह - रिहान करके उठती हूँ।
➳ _ ➳ सारी दिनचर्या में बाबा को साथ रख, खाते, पीते याद की मौज में रहते
बेफ़िक्र बादशाह बन अपने निश्चिन्त ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही
हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं महसूसता की शक्त्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं स्नेह के स्वरूप को साकार में इमर्ज कर ब्रह्मा बाप समान बनने वाली स्नेही आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. स्नेह ऐसी शक्ति है जो सब कुछ भुला देती है। न देह याद आती, न देह की दुनिया याद आती। स्नेह मेहनत से छुड़ा देता है। जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। स्नेह सदा सहज बापदादा का हाथ अपने ऊपर अनुभव कराता है। स्नेह छत्रछाया बन मायाजीत बना देता है। कितनी भी बड़ी समस्या रूपी पहाड़ हो, स्नेह पहाड़ को भी पानी जैसा हल्का बना देता है।
➳ _ ➳ 2. बाबा, बाबा और बाबा.... एक ही याद में लवलीन रहे। तो बापदादा कहते हैं और कोई पुरुषार्थ नहीं करो, स्नेह के सागर में समा जाओ।
➳ _ ➳ 3. समाये रहो, तो स्नेह की शक्ति सबसे सहज मुक्त कर देगी।
➳ _ ➳ 4. स्नेह सहज ही समान बना देगा क्योंकि जिसके साथ स्नेह है उस जैसा बनना, यह मुश्किल नहीं होता है।
✺ ड्रिल :- "स्नेह के सागर में समा, स्नेह की शक्ति का अनुभव"
➳ _ ➳ आराम की मुद्रा में, एकांत में बैठ, अपनी पलके मूंदे, मैं अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं और रोज़मर्रा की परिस्थितियों के बारे में विचार कर रही हूँ। तभी मुझे अनुभव होता है कि जैसे मैं एक रास्ते पर बड़े आराम से चलते हुए कहीं जा रही हूँ और अचानक चलते चलते मेरे सामने एक पहाड़ आ जाता है और आगे जाने का रास्ता बंद हो जाता है। इसलिए जैसे ही मैं वापिस पीछे मुड़ती हूँ तो देख कर हैरान रह जाती हूँ कि पीछे भी एक बहुत ऊंचा पहाड़ है। मेरे दाएं ओर बायें तरफ के भी दोनों रास्ते बंद है। चारों तरफ से बाहर निकलने का अब कोई रास्ता मुझे दिखाई नही दे रहा। घबरा कर बाहर निकलने के लिए मैं ज़ोर - ज़ोर से चिल्ला रही हूं किन्तु वहां मेरी आवाज़ सुनने वाला कोई भी नही।
➳ _ ➳ जब कहीं से कोई मदद मिलने की आश नही रह जाती तो मुख से स्वत: ही निकलने लगता है, हे भगवान मुझे बचाओ। भगवान को पुकारते - पुकारते अपने घुटनों में सिर रख कर मैं रो रही हूं। तभी जैसे कानों में एक मधुर आवाज सुनाई देती है,बच्चे:- "मैं हूँ ना"। इस आवाज के साथ - साथ बहुत तेज प्रकाश मेरे चारों तरफ फैल जाता है। और वो प्रकाश अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे उठा कर उस पहाड़ को पार करवा देता है।
➳ _ ➳ तेज प्रकाश की चकाचौंध से मेरी बन्द आंखे अपने आप खुल जाती हैं। सामने लाइट माइट स्वरुप में बापदादा को देख कर मैं अचंभित हो कर बाबा की और देखती हूँ और मेरे मुख से निकलता है, "बाबा वो पहाड़"। बाबा मुस्कराते हुए कहते हैं, बच्ची:- "वो पहाड़ नही थे"। वो तो जीवन में आने वाली छोटी - छोटी परिस्थितियां है, जिन्हें तुम सोच - सोच कर पहाड़ जैसा बना देते हो।
➳ _ ➳ आओ, मेरे बच्चे:- "अपनी लाइट माइट से मैं तुम्हे इतना शक्तिशाली बना देता हूँ कि जीवन में आने वाली ये परिस्थितियां पहाड़ से राई बन जाएंगी"। फिर तुम इन्हें जम्प देकर सेकेंड में पार कर जाओगे। यह कहकर बाबा अपनी शक्तिशाली किरणों को जैसे ही मुझ पर प्रवाहित करते है। मेरा साकारी शरीर जैसे लुप्त हो जाता है। और बाबा मुझ आत्मा को अपने साथ ऊपर की ओर लेकर चल पड़ते हैं।
➳ _ ➳ लाइट की एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है। इस परमधाम घर में बाबा मुझे ले आते हैं। अब मैं बाबा के सम्मुख हूँ। बाबा के साथ अटैच हूँ और उनसे आ रही लाइट, माइट से स्वयं को भरपूर कर रही हूं। उनसे आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमें असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। मैं डबल लाइट बनती जा रही हूँ। कोई बोझ, कोई बंधन नही। बिल्कुल उन्मुक्त और निर्बन्धन स्थिति में मैं स्थित हूँ। गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं कर रही हूं। बाबा की लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ अपनी साकारी देह में विराजमान होकर भी अब मैं निरन्तर आत्मिक स्मृति में रहते हुए अपने पिता परमात्मा के स्नेह में सदा समाई रहती हूं। अब मैं एक के स्नेह के रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा बन गई हूँ। देह और देह की दुनिया को अब मैं भूल चुकी हूं। अपने शिव पिता की मोहब्बत के झूले में झूलते हुए हर प्रकार की मेहनत से अब मैं मुक्त हो गई हूं। अपनी हजारों भुजाओं के साथ बाबा चलते, फिरते, उठते, बैठते हर कर्म करते मुझे अपने साथ प्रतीत होते हैं।
➳ _ ➳ अब कोई भी परिस्थिति मेरी स्व स्तिथि के आगे टिकती नही। क्योंकि बाबा की छत्रछाया हर परिस्थिति रूपी पहाड़ को पानी जैसा हल्का बना कर मुझे सहज ही उस परिस्थिति से बाहर निकाल लेती है। बाबा के प्रेम का रंग मुझ पर इतना गहरा चढ़ चुका है कि सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुआत करते बाबा, कर्मयोगी बन हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली लवलीन आत्मा बन गई हूं। स्नेह के सागर में सदा समाये रहने के अनुभव ने मुझे याद की मेहनत से मुक्त कर सहजयोगी, स्वत:योगी और निरन्तर योगी बना दिया है।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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