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❍ 06 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हमें भगवान पढाते हैं" - इस स्मृति से अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया ?*
➢➢ *इस शरीर से भी पूरा बेगर बनकर रहे ?*
➢➢ *बाप समान रहमदिल बन सबको क्षमा कर स्नेह दिया ?*
➢➢ *"जहां चाह .. वहाँ राह" - इस स्लोगन को धारण कर तीव्र पुरुषार्थी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती वा अनुभव होती है। वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे।* हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? ब्राह्मणों को सदा ऊंचे ते ऊंची चोटी पर दिखाते हैं। चोटी का अर्थ ही है ऊंचा। *तो संगमयुगी अर्थात् ऊंचे ते ऊंची आत्मायें। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा गाया हुआ है, ऐसे बच्चे भी ऊंचे और संगमयुग भी ऊंचा है। सारे कल्प में संगमयुग जैसा ऊंचा कोई युग नहीं है क्योंकि इस युग में ही बाप और बच्चों का मिलना होता है।* और कोई युग में आत्मा और परमात्मा का मेला नहीं होता है।
〰✧ तो जहाँ आत्मा और परमात्मा का मेला है, वही श्रेष्ठ युग हुआ ना। ऐसे श्रेष्ठ युग की श्रेष्ठ आत्मायें हो! आप श्रेष्ठ ब्राह्मणों का कार्य क्या है? *ब्राह्मणों का काम है - पढ़ना और पढ़ाना। नामधारी ब्राह्मण भी शास्त्र पढ़ेंगे और दूसरों को सुनायेंगे। तो आप ब्राह्मणों का काम है ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ना और पढ़ाना जिससे ईश्वर के बन जाएं।*
〰✧ तो ऐसे करते हो? पढ़ते भी हो और पढ़ाते अर्थात् सेवा भी करते हो। *यह ईश्वरीय ज्ञान देना ही ईश्वरीय सेवा है। सेवा का सदा ही मेवा मिलता है। कहावत है ना - 'करो सेवा तो मिले मेवा'। तो ईश्वरीय सेवा करने से अतीन्द्रिय सुख का मेवा मिलता है, शक्तियों का मेवा मिलता है, खुशी का मेवा मिलता है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसै एक सेकण्ड में स्विच आँन और आँफ किया जाता हे, ऐसे ही एक सेकण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? *अभी - अभी शरीर में आये फिर अभी - अभी अशरीरी बन गये, यह प्रैक्टीस करनी है।* इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। ऐसे अनुभव होगा जब चाहे कोई कैसा वस्त्र धारण करना वा न करना यह अपने हाथ में रहेगा। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। एसे अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो।
〰✧ कर्म करते हुए भी अनुभव ऐसा ही होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर और कार्य कर रहे हैं। कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए। *शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते - फिरते भी अनुभव होना है।* जैसे कोई प्रैक्टिस हो जाती है ना। लेकिन यह प्रैक्टिस किनको हो सकती है?
〰✧ जो शरीर के साथ वा शरीर के संबन्ध में जो भी बातें है, शरीर की दुनिया, संबन्ध वा अनेक जो भी वस्तुएँ है उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, जरा भी लगाव नहीं होगा तब न्यारे हो सकेंगे। *अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्का - पन नहीं है, डिटैच नहीं हो सकते तो न्यारापन का अनुभव नहीं कर सकेंगे।* तो अब महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी है। बिल्कुल ही न्यारापन का अनुभव हो। इसी स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से न्यारे - पन का अनुभव होगा, लह भी महसूस करेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे प्रकृति के पांच रूप विकराल रूप धारण करेंगे, वैसे ही पांच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप धारण कर अन्तिम वार अति सूक्ष्म रूप में ट्रायल करेंगे अर्थात् माया और प्रकृति दोनों ही अपना फुल फोर्स का अन्तिम दाव लगायेंगे।* जैसे किसी भी स्थूल युद्ध में भी अन्तिम दृश्य हास पैदा करने वाला होता है और हिम्मत बढ़ाने वाला भी होता है, ऐसे ही कमजोर आत्माओं के लिए भी हास पैदा करने वाला दृश्य होगा - मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के लिए वह हिम्मत और हुल्लास देने वाला दृश्य होगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गृहस्थ व्यवहार में रहते ट्रस्टी बनना"*
➳ _ ➳ *भक्ति में, तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा* का गीत गाते मैं आत्मा सब कुछ भगवद् अर्पण करने के बजाय हमेशा मागँने वालों की कतार में ही दिखाई पडी... *देहभान ने मुझ दाता को न जाने कब भिखारियों की कतार में ला खडा किया*... पता ही न चला... *खोई स्मृतियों की लडियाँ चुन -चुन कर मुझ आत्मा को अमूल्य मोती बना अपने गले का हार बनाना चाहते है, शिव पिता*, और इसी खातिर आज सम्मुख बैठकर *देह सहित सब कुछ बलि चढाकर ट्रस्टी बन, संभालने की समझानी दे रहे है*...
❉ *आकारी रूप में मेरे सम्मुख बैठे सच्चे सच्चे ट्रस्टी शिव पिता मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... भक्ति मार्ग में बलि की परम्परा बहुत काल से चली आ रही है... मगर क्या *बलि का सच्चा -सच्चा अर्थ समझती हो? सब कुछ प्रभु अर्पण कर मेरा पन समाप्त किया है... ट्रस्टी बन प्रभु पैगामों को आसमानों से बरसाया*? देह से ममत्व निकाल बाप को अपना साथी बनाया?..."
➳ _ ➳ *सतयुगी बादशाही के नशे में चूर मैं विदेही, जन्म- जन्म की राजाई भेंट में देने वाले बापदादा से बोली:-* "मेरे मीठे बाबा... *आपके अतुलनीय स्नेह और श्रीमत पर कर्मेन्द्रियों की गुलामी से मुक्त हो मैं आत्मा स्वराज्यधिकारी बन रही हूँ, ज्ञान के नशे में चूर हो, ज्ञानसागर की गहराई में गोते लगाना सीखा है मैने*... विकारी तूफानो को समझा ही नही बल्कि उनसे बचने की युक्तियाँ भी आपसे सीख अब सबको सिखा रही हूँ..."
❉ *सर्वसम्बन्धों का सुख देने वाले बापदादा दृष्टि से सुखो की बारिश करते हुए मुझ आत्मा से बोले:- "मीठी बच्ची, देह के सब सम्बन्धों से ट्रस्टी हो एक बाप से सर्व सम्बन्ध बना कर सब लौकिक संबंधों को संभालों*... सेवा का मान, शान और अपने संस्कारो को भी बाप को अर्पण करो, तो हर संस्कार दिव्य हो, बापसमान बन जायेगा... *निमित्त पन का भाव ही आप हर आत्मा को परमात्म प्रेम से भरेगा..."*
➳ _ ➳ *व्यर्थ चक्रों से मुक्त रह निर्विघ्न सेवाधारी मैं आत्मा, अखण्ड सेवाधारी बाप से बोली:-* "मीठे बाबा... *आपसे स्व की सेवा का मूलमन्त्र पा विश्वसेवा करने के लिए चली हूँ मैं*... देह सहित सब कुछ एक बाप पर बलि चढाकर अब मैं केवल ट्रस्टी बन सब संभाल रही हूँ... *जीवन सुन्दर मधुबन बन रहा है, अब तो हर पल रूहानी मौजो में पल रही हूँ... उँगली पकड कर आपकी पग पग श्रीमत पर चल रही हूँ मैं*..."
❉ *सच्ची सच्ची रूहानी यात्रा सिखाने वाले रूहानी मुसाफिर शिव बाबा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरी रूहानी बच्ची... *इन रूहानी मौजो का अनुभव अब तीर्थो पर भटकते भक्तों को कराओं*... बहुत भटके है बेचारें, अब परमात्म प्रेम के पैगाम आसमानों से बरसाओं... *जो -जो आपने पाया है बाप से, चेहरे चलन से उसकी प्रत्यक्षता कराओं*... *मातृ शक्ति के दीदार को कतार बद्ध खडे इन प्यासो को अब मातृ शक्ति का दीदार तो कराओं*..."
➳ _ ➳ *बच्चों को प्रत्यक्ष कर खुद पीछे छिप जाने वाले शिव सूर्य से मैं आत्मा बोली:-* "प्यारे बाबा... मन बुद्धि की इस रूहानी यात्रा में शिव प्रियतम से मिलन मनाती मैं, हर आत्मा को प्रभु प्रेम का परिचय दे रही हूँ बाबा!.. *तीर्थों, मठो पर जाते भक्त संन्यासी अब एक बाप के नाम की अलख जगा रहे है... मधुबन तीर्थ के लिए हर तरफ यहीं है, यहीं है कि गूँज सुन सब हरस रहे है, आसमानो से देखों प्रभु प्रेम के मोती बरस रहे है*... और मैं आत्मा चुपचाप एक एक मोती को सहेजती गुणों को धारण करती... *बापदादा के वरदानों की छत्र छाया में पलती जा रही हूँ*..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अब वापस घर जाना है इसलिए इस शरीर से भी पूरा बेगर बनना है*
➳ _ ➳ एक खुले एकांत स्थान पर बैठ प्रकृति के सुन्दर नज़ारो का मैं आनन्द ले रही हूँ और अपने 5000 वर्ष के जीवन की लम्बी मुसाफिरी के बारे में विचार कर रही हूँ कि *जब मैंने अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में इस सृष्टि पर आकर अपनी जीवन यात्रा शुरू की थी उस समय मैं आत्मा कैसी थी! अपनी सम्पूर्ण जीवनयात्रा के हर सीन को मैं अब बुद्धि रूपी दिव्य नेत्र से देख रही हूँ*। अपना परमधाम घर छोड़ कर अपनी जीवन यात्रा की शुरुआत करने के उस सुहाने सफर को मैं देख रही हूँ।
➳ _ ➳ पहली बार अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अत्यंत तेजोमय, सर्वगुणों और सर्वशक्तियों से सम्पन्न स्वरूप के साथ सम्पूर्ण सतोप्रधान सृष्टि पर अवतरित होना और सुन्दर सतोप्रधान देवताई शरीर धारण कर *21 जन्म अपरमपार सुख, शान्ति, और सम्पन्नता से भरपूर जीवन का आनन्द लेने के बाद देह भान में आने से, इस अति सुखद जीवन यात्रा को विकारों का ग्रहण लगना और इस जीवन में दुःख, अशांति का समावेश होना*। अपनी सम्पूर्ण जीवन यात्रा के एक - एक सीन को देखते हुए मन ही मन अपने प्यारे पिता का मैं धन्यवाद करती हूँ जो मेरे जीवन की लम्बी मुसाफिरी के इस अंतिम पड़ाव पर स्वयं मेरे साथी बन मुझे सभी दुखों से छुड़ाकर वापिस अपने घर ले चलने के लिए आये हैं।
➳ _ ➳ "अब घर जाना है" यह स्मृति मुझे मन ही मन प्रफुल्लित कर रही है और मेरे स्वीट साइलेन्स होम की मीठी गहन शान्ति जैसे मेरा आह्वान कर रही है। *अपने स्वीट साइलेन्स होम की अति मीठी गहन शान्ति का अनुभव करने और शांति के सागर अपने प्यारे पिता का असीम प्यार पाने के लिए अब मैं मन बुद्धि की अति सुखमय यात्रा पर चलने के लिये तैयार हो जाती हूँ*। स्वयं को भृकुटि सिहांसन पर विराजमान अति सूक्ष्म चैतन्य सितारे के रूप में अनुभव करते हुए मैं उस अद्भुत शक्ति को देख रही हूँ जो इस शरीर को चलाने का आधार है, जिसके बिना ये शरीर आज भी जड़ है। *वो शक्ति जो इस शरीर मे विराजमान होकर आँखों से सुनती है, कानों से देखती है, मुख से बोलती है, स्थूल और सूक्ष्म कर्मेन्द्रियों से कर्म करती है*।
➳ _ ➳ उस चेतन सत्ता को जो सत, चित, आनन्द स्वरूप है, को मन बुद्धि रूपी दिव्य नेत्रों से निहारते हुए, मैं उसमे समाहित गुणों और शक्तियों का अनुभव कर, मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *एक गहन सुखद अनुभूति मुझे अपने इस स्वरूप को देख कर हो रही है। अपने उज्ज्वल स्वरूप को निहारते और उसमे समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करते - करते अब मैं आत्मा देह की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और ऊपर खुले आसमान की ओर चल पड़ती हूँ*। एक सेकण्ड में पूरे विश्व की परिक्रमा कर, मैं तारा मण्डल, सौर मण्डल को पार कर जाती हूँ और फ़रिशतों की आकारी दुनिया से होती हुई, चैतन्य सितारों की अपनी निरकारी दुनिया में पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ चमकती हुई मणियों की दुनिया, अपने इस घर में आकर मैं गहन शान्ति का अनुभव कर रही हूँ। लाल प्रकाश से प्रकाशित मेरे पिता का यह घर और यहाँ की गहन शांति मुझे असीम तृप्ति का अनुभव करवा रही है। *अपने प्यारे पिता से मिलने की उत्कंठा मन मे लिए मैं महाज्योति अपने शिव पिता के पास जा रही हूँ जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों में मुझे समाने के लिए आतुर हैं*। सम्पूर्ण समर्पण भाव से स्वयं को उनकी किरणो रूपी बाहों में छोड़ कर मैं स्वयं को हर बोझ से मुक्त अनुभव कर रही हूँ। मेरे प्यारे पिता का असीम स्नेह उनकी सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणो के रूप में मुझ पर बरस रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे स्नेह का कोई मीठा झरना मेरे ऊपर बह रहा है और अपना असीम प्यार मुझ पर बरसा कर मेरी जन्म - जन्म की प्यास बुझा रहा है*।
➳ _ ➳ अपने शन्तिधाम घर में अथाह सुकून और शांति पाकर और अपने प्यारे पिता का असीम स्नेह पाकर मैं वापिस कर्म करने के लिए फिर से अपनी कर्मभूमि पर लौट रही हूँ। देह रूपी रथ पर सवार होकर, कर्मेन्द्रियों से कर्म करते अब मैं इस स्मृति से सदा हर्षित रहती हूँ कि सृष्टि का ये नाटक अब पूरा हो रहा है और हम घर जा रहें हैं। *घर जाने की यह स्मृति मुझे देह और देह की दुनिया से उपराम करती जा रही है। देह में रहते हुए भी अपने लाइट स्वरूप और अपने परमधाम घर की स्मृति मुझे कर्म करते हुए भी देह से न्यारा कर, मन बुद्धि से बार - बार मेरे उस घर में ले जाती है और मुझे गहन शन्ति से भरपूर करके सदा प्रफुल्लित रखती है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप समान रहमदिल बन सबको क्षमा कर स्नेह देने वाली मास्टर दाता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं तीव्र पुरुषार्थी बनने की चाहना रखकर जहां चाह है वहां राह को पा लेने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सदा सुख की शैय्या पर सोई हुई आत्मा के लिए यह विकार भी छत्रछाया बन जाता हैं -दुश्मन बदल सेवाधारी बन जाते हैं। *अपना चित्र देखा है ना! तो ‘शेष शय्या' नहीं लेकिन ‘सुख-शय्या'। सदा सुखी और शान्त की निशानी है - सदा हर्षित रहना। सुलझी हुई आत्मा का स्वरूप सदा हर्षित रहेगा। उलझी हुई आत्मा कभी हर्षित नहीं देखेंगे। उसका सदा खोया हुआ चेहरा दिखाई देगा* और वह सब कुछ पाया हुआ चेहरा दिखाई देगा। जब कोई चीज खो जाती है तो उलझन की निशानी क्यों, क्या, कैसे ही होता है। तो रूहानी स्थिति में भी जो भी पवित्रता को खोता है, उसके अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन होती है। तो समझा कैसे चेक करना है? *सुख-शांति के प्राप्ति स्वरूप के आधार पर मंसा पवित्रता को चेक करो।*
✺ *"ड्रिल :- सदा सुख की शैय्या पर सोये हुए अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *"अमृतवेला शुद्ध पवन है, मेरे लाडले जागो..." मीठे बाबा की मीठी आवाज़ सुन मैं जाग जाती हूँ...* अमृतवेले अमृत पिलाने के लिए मीठे बाबा मुझे जगा रहे हैं... मैं प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उनकी गोदी में बैठ जाती हूँ... मेरी लाडली शहजादी कहकर बाबा मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हैं... मैं आत्मा रूहानी खिवैया की गोदी में बैठकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... *रूहानी खिवैया ने विषय सागर में डोलती हुई मेरे जीवन रूपी नैया को मझधार से निकालकर किनारे पर लगा दिया है...*
➳ _ ➳ अब बाबा ही मेरे जीवन के दाता हैं... मेरे सांसो के स्वामी हैं... अब मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार बाबा के हाथों सौंपती हूँ... *प्यारे बाबा ने ज्ञान अमृत पिलाकर नया ब्राह्मण जन्म दिया है... सर्व गुण, शक्तियों के खजाने दिए हैं... विकारों रूपी विष को खत्म कर पवित्रता की शक्ति दी है...* सर्व गुण सम्पन्न, 16 कलाओं से सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी बनाकर स्वर्ग सुखों का अविनाशी वरदान दिया है...
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा मुझे प्यार से अपनी गोदी में उठाकर ले चलते हैं परमधाम...* परमधाम में मैं आत्मा अपने बाबा में समाकर उनसे एक हो जाती हूँ... मैं आत्मा सर्व गुणों, शक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ... अखूट खजानों की मालिक बन रही हूँ... *पवित्रता के सागर में डुबकी लगाकर मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बन रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति से मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म दग्ध हो रहे हैं...
➳ _ ➳ *पवित्रता की शक्ति को धारण करने से मुझ आत्मा के अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन समाप्त हो रही है...* मैं आत्मा सदा सुख-शांति की अनुभूति कर रही हूँ... सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सबकुछ पाकर सदा हर्षित रहती हूँ... *अब मैं आत्मा उलझन की शय्या से निकल सदा सुख की शय्या पर रहती हूँ...*
➳ _ ➳ *सदा सुख की शय्या पर रहने से मुझ आत्मा के विकार भी छत्रछाया बन गए हैं...* दुश्मन भी बदलकर सेवाधारी बन गए हैं... जिस परमात्मा को जन्म-जन्म से ढूंढ रही थी उसने मुझे ढूंढकर अपना बना लिया... सर्व अधिकार देकर सर्व खजानों से सम्पन्न बना दिया... मेरे प्यारे बाबा मुझे उलझन और काँटों की शय्या से निकाल अपनी गोदी की सुख की शय्या पर सुलाते हैं... *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को 21 जन्मों का वर्सा देकर 21 जन्म तक सदा सुख की शय्या का वरदान देते हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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