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 03 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ पवित्रता को धारण कर अपनी चलन सुधारी ?

 

➢➢ अपने उंच भाग्य को कभी भूले तो नहीं ?

 

➢➢ साधनों की प्रवृति में रहते कमल फूल समान न्यारे और प्यारे रहे ?

 

➢➢ परेशान को अपनी शान में स्थित किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  कर्मातीत बनने के लिए कर्मों के हिसाब-किताब से मुक्त बनो। सेवा में भी सेवा के बंधन में बंधने वाले सेवाधारी नहीं। बन्धनमुक्त बन सेवा करो अर्थात् हद की रायॅल इच्छाओं से मुक्त बनो। जैसे देह का बन्धन, देह के सम्बन्ध का बन्धन, ऐसे सेवा में स्वार्थ-यह भी बन्धन कर्मातीत बनने में विघ्न डालता है। कर्मातीत बनना अर्थात् इस रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं महावीर आत्मा हूँ"

 

✧  सदैव अपने को महावीर अर्थात् महान् आत्मा अनुभव करते हो? महान् आत्मा सदा जो संकल्प करेंगे, बोल बोलेंगे वो साधारण नहीं होगा, महान् होगा। क्योंकि ऊंचे-ते-ऊंचे बाप के बच्चे भी ऊंचे, महान् हुए ना। जैसे कोई आजकल की दुनिया में वी.आई.पी. का बच्चा होगा तो वह अपने को भी वी.आई.पी. समझेगा ना। तो आप से ऊंचा तो कोई है ही नहीं।

 

✧  तो ऐसे, ऊंचे-ते-ऊंचे बाप की सन्तान ऊंचे-ते-ऊंची आत्मायें हैं-यह स्मृति सदा शक्तिशाली बनाती है। ऊंचा बाप, ऊंचे हम, ऊंचा कार्य-ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा बाप समान बन जाते हैं। तो बाप समान बने हो? बाप हर बच्चे को ऊंचा ही बनाते हैं। कोई ऊंचा, कोई नीचा नहीं, सब ऊंचे-ते-ऊंचे। अगर अपनी कमजोरी से कोई नीचे की स्थिति में रहता है तो उसकी कमजोरी है। बाकी बाप सबको ऊंचा बनाता है। सारे विश्व के आगे श्रेष्ठ और ऊंची आत्मायें आपके सिवाए कोई नहीं हैं, इसलिए तो आप आत्माओंका ही गायन और पूजन होता है।

 

✧  अभी तक गायन, पूजन हो रहा है। कभी भी कोई मन्दिर में जायेंगे तो क्या समझेंगे? कोई भी मन्दिर में मूर्ति देखकर क्या समझते हो? यह हमारी ही मूर्ति है। सिर्फ बाप नहीं पूजा जाता, बाप के साथ आप भी पूजे जाते हो। ऐसे महान् बन गये! एक बार नहीं, अनेक बार बने हैं-जहाँ यह नशा होगा वहाँ माया की आकर्षण अपने तरफ आकर्षित नहीं कर सकेगी, सदा न्यारे होंगे। सभी अपने आप से सन्तुष्ट हो? जैसे बाप सुनाते हैं, वैसे ही अनुभव करते हुए आगे बढ़ना-यह है अपने आप से सन्तुष्ट रहना। 'ऊंचे-ते-ऊंचे'-यही विशष बरदान याद रखना। याद करना सहज है या मुश्किल लगता है? सहज स्मृति स्वत: आती रहेगी। माया कहाँ रोक नहीं सकेगी, सदा आगे बढ़ते रहेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आज बच्चों के स्नेही बापदादा हर एक बच्चे को विशेष दो बातों में चेक कर रहे थे। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप बच्चों को सम्पन और सम्पूर्ण बनाना है। हर एक में रूलिंग पॉवर और कन्ट्रोलिंग पॉवर कहाँ तक आई है - आज यह देख रहे थे।

 

✧  जैसे आत्मा की स्थूल कर्मेन्द्रियाँ आत्मा के कन्ट्रोल से चलती है, जब चाहे, जैसे चाहे और जहाँ चाहे वैसे चला सकते हैं और चलाते रहते हैं। कन्ट्रोलिंग पॉवर भी है। जैसे हाथ-पाँव स्थूल शक्तियाँ हैं ऐसे मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की सूक्ष्म शक्तियाँ हैं।

 

✧  सूक्ष्म शक्तियों के ऊपर कन्ट्रोल करने की पॉवर अर्थात मन-बुद्धि को, संस्कारों को जब चाहें, जहाँ चाहे, जैसे चाहे, जितना समय चाहे - ऐसे कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर आई है? क्योंकि इस ब्राह्मण जीवन में मास्टर आलमाइटी अर्थार्टी बनते हो। इस समय की प्राप्ति सारा कल्प - राज्य रूप और पुजारी के रूप में चलती रहती है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ मन के मालिक हो ना! तो सेकण्ड में स्टॉप, तो स्टॉप हो जाए। ऐसा नहीं आप कहो स्टॉप और मन चलता रहे, इससे सिद्ध है कि मालिकपन की शक्ति कम है। अगर मालिक शक्तिशाली है तो मालिक के डायरेक्शन बिना मन एक संकल्प भी नहीं कर सकता। स्टॉप, तो स्टॉप। चलो, तो चले। जहाँ चलाने चाहो वहाँ चले। ऐसे नहीं कि मन को बहुत समय की व्यर्थ तरफ चलने की आदत है, तो आप चलाओ शुद्ध संकल्प की तरफ और मन जाये व्यर्थ की तरफ। तो यह मालिक को मालिकपन में चलाना नहीं आता। यह अभ्यास करो। चेक करो स्टॉप कहने से, स्टॉप होता है? या कुछ चलकर फिर स्टॉप होता है? अगर गाड़ी में ब्रेक लगानी हो लेकिन कुछ समय चलकर फिर ब्रेक लगे, तो वह गाड़ी काम की है? ड्राइव करने वाला योग्य है कि एक्सीडेंट करने वाला है? ब्रेक, तो फौरन सेकण्ड में ब्रेक लगनी चाहिए। यही अभ्यास कर्मातीत अवस्था के समीप लायेगा। संकल्प करने के कर्म में भी फुल पास। कर्मातीत का अर्थ ही है हर सबजेक्ट में फुल पास।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  "ड्रिल :- बाप घनेरे दुखों से निकाल घनेरे सुखों में ले जाते हैं"

➳ _ ➳  झील के किनारे बैठी मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा के आगमन से झील की लहरें ख़ुशी से उछल रही हैं... हवा और पानी साथ साथ खेल रहे हैं... पेड़ पौधे झुक झुककर सलाम कर रहे हैं... मौसम की मस्ती से मेरे मन में भी उमंग उल्लास की लहरें दौड़ रही हैं... ऐसा लग रहा पूरी प्रकृति प्रेम के सागर की आने की खुशी में प्रेम की कविताएं सुना रही हैं... इस दुख की दुनिया से निकाल सुख, शांति की दुनिया में ले जाने आए मेरे बाबा के सामने मैं आत्मा बैठ प्यार की बातें करती हूँ...

❉  सुख-शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा हथेली पर स्वर्ग की सौगात सजाकर कहते हैं:- "मेरे लाडले बच्चे... मै विश्व का पिता आप बच्चों की झोली सदा के लिए सुख से भरने आया हूँ... अमन ही अमन हो ऐसी चैन की दुनिया बसाने आया हूँ... सुख शांति भरपूर हो ऐसी मीठी सुखो की दुनिया बच्चों के लिए सौगात स्वरूप लाया हूँ..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा खुशियों के सागर में झूमती लहराती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर दुखमय जीवन को अपनी नियति समझ रही थी... आपने मीठे बाबा... मेरा दामन खुशियो से खिलाया है... सुख शांति से भरे जीवन का अधिकारी बना सजाया है..."

❉  प्यारे बाबा परमात्म माइट और परमात्म दिव्य लाइट से मुझे भरपूर करते हुए कहते है:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस घोर पाप की दुनिया से ईश्वर पिता के सिवाय कोई निकाल ही न सके... सुख भरा चैन सिर्फ पिता ही जीवन में ला सके... ऐसे मीठे बाबा को हर पल यादो में सजाओ... जो परमधाम से उतर आये और सुख शांति के सौगातों से लबालब कर जाय..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा शांतिधाम और सुखधाम की स्मृतियों को मन में बसाकर कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आप महा पिता मेरे लिए कितनी दूर से आते हो... सुनहरे सुखो से और शांतिमय जीवन से मेरी सदा के लिए दुनिया सजाते हो... अपनी मीठी यादो से मुझे आप समान सुंदर बनाते हो... जिंदगी को महकाते हो..."

❉  मेरे बाबा पाप की दुनिया से मुझे निकाल चैन की दुनिया में ले जाने दूर देश से आकर कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खिलते हुए खुशबूदार फूलो को इस कदर विकारो रुपी काँटों में झुलसता तो मै पिता देख ही न सकूँ... और बच्चों को मुस्कराहटों से सजाने महकाने धरती पर आऊं... बच्चे सुख शांति के जीवन में चैन से रहे तो मै पिता सदा का आराम पाऊँ..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने घर को, स्वर्णिम दुनिया के सुखों को याद कर आनंदोल्लास में डूबकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा पाप की दुनिया में गहरे धस गई थी... आपसे मेरी दारुण सी दशा देखी न गई... आप दौड़े से आये और मेरा जीवन सुखो की सौगातों से महका दिया... यूँ जीवन मीठा और प्यारा बना दिया..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- पवित्रता को धारण कर अपनी चलन सुधारनी है, सच्चे सुख शांति का अनुभव करना है"

➳ _ ➳  दिल को सुकून और चित को चैन देने वाली अपने प्यारे पिता की मीठी याद में मैं जैसे ही अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ एक सुखद अनुभूति से भर उठती हूँ और मन ही मन विचार करती हूँ कि आज दिन तक देह और देह के सम्बन्धियों को याद करके सिवाय दुख के और कुछ भी प्राप्त नही हुआ। स्वार्थ से भरे इन दैहिक सम्बन्धो में सारी दुनिया के मनुष्य मात्र सुख ढूंढने की कोशिश में लगे हुए हैं किंतु सुख इन दैहिक रिश्तों की याद में नही केवल एक प्यारे प्रभु की याद में हैं और इस बात का अनुभव मुझ आत्मा ने कर लिया है। कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो मेरे प्यारे प्रभु ने स्वयं आकर याद की इस सच्ची रूहानी यात्रा पर मुझे चलना सिखाया और ऐसे अतीन्द्रीय सुख का अनुभव करवाया जो देवतायों के भाग्य में भी नही।

➳ _ ➳  मन ही मन अपने प्यारे पिता का धन्यवाद करके, अपार सुख का अनुभव करने के लिए अपने मन बुद्धि को मैं देह और देह की दुनिया के हर संकल्प, विकल्प से मुक्त करके, और सब संग तोड़, प्रीत की रीत अपने उस एक प्यारे पिता के साथ जोड़ उनकी मीठी याद में बैठ जाती हूँ और सेकेण्ड में उनके स्नेह की मीठी फुहारों को अपने ऊपर पड़ते हुए स्पष्ट अनुभव करते एक विशेष सुखद अनुभूति में खो जाती हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे मीठी - मीठी सुखद फ़ुहारों के रूप में सुख का झरना मेरे ऊपर बह रहा है और निरन्तर मेरे ऊपर बरसता हुआ मुझे अपार सुख दे रहा है। एक ऐसे अवर्णनीय सुखमय संसार में मैं विचरण कर रही हूँ जहाँ देह और देह के दुख देने वाले सम्बन्ध नही, केवल एक निराकार के साथ जुड़ा ऐसा अटूट सम्बन्ध है जो सर्व सम्बन्धो का अविनाशी सुख प्रदान कर रहा है।

➳ _ ➳  ऐसे सुखमय संसार में विचरण करती मैं बिंदु आत्मा अपने सुख के सागर बिंदु पिता से मंगल मिलन मनाने अब देह का आधार छोड़ अपने पिता के निराकारी वतन की ओर चल पड़ती हूँ जहाँ सुख के सागर की शीतल लहरे निरन्तर प्रवाहित होती है और सुख, शांति की तलाश में भटक रही आत्माओं को अपार सुख से भरपूर कर, उनकी जन्म - जन्म की प्यास बुझा देती हैं। ऐसे सुख के सागर अपने सुखदाता बाप के पास जाने वाली मन बुद्धि की सुखमय यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए मैं धीरे - धीरे 5 तत्वों से पार, सूक्ष्म लोक से होती हुई उस दिव्य परमलोक, ब्रह्मलोक में प्रवेश करती हूँ जहाँ मेरे सुखदाता शिव पिता के सुख के गहन वायब्रेशन चारो ओर फैले हुए हैं।

➳ _ ➳  सुख, शांति के गहरे अनुभवों का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा धीरे - धीरे अपने प्यारे पिता के समीप पहुँच जाती हूँ और जा कर उन्हें टच करती हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का तेज करेन्ट सीधा मुझ आत्मा में प्रवाहित होता है और मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारो की कट को भस्म कर, मुझे एकदम हल्का लाइट माइट बना देता है। हर बोझ से मुक्त इस हल्की सुखदायी स्थिति में गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करते हुए मैं जैसे अपने आप को ही भूल जाती हूँ और बाबा में समाहित बाबा का ही स्वरूप बन जाती हूँ। सम्पूर्ण प्योर, सर्व गुणों, सर्वशक्तियो से भरपूर अपने इस स्वरूप के साथ अब मैं बाबा से अलग होकर वापिस अपनी साकारी दुनिया की ओर लौट आती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।

➳ _ ➳  इस संपूर्ण पवित्र और सुखदाई स्वरूप को सदा ऐसे ही बनाये रखने के लिए अपने प्यारे पिता से मैं अपने ब्राह्मण जीवन को सदा पवित्र रखने का वचन देती हूँ और सब सँग तोड़, एक बाप के याद में रहने की अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ। अपनी इस प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन करने के लिए मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में धारण करने का अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सम्पूर्ण पवित्र और शुद्ध बनाने के लिए, स्वयं को दैहिक भान से मुक्त रख,  सब सँग तोड़, एक बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में मैं अब निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं साधनों की प्रवृत्ति में रहते कमल फूल समान न्यारी और प्यारी रहने वाली बेहद की वैरागी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं परेशान को अपनी शान में स्थित करने की सबसे अच्छी सेवा करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कोई कैसा भी हो उनके साथ चलने की विधि सीखो। कोई क्या भी करता होबार-बार विघ्न रूप बन सामने आता हो लेकिन यह विघ्नों में समय लगाना, आखिर यह भी कब तक? इसका भी समाप्ति समारोह तो होना है नातो दूसरे को नहीं देखना। यह ऐसे करता हैमुझे क्या करना हैअगर वह पहाड़ है तो मुझे किनारा करना हैपहाड़ नहीं हटना है। यह बदले तो हम बदलें - यह है पहाड़ हटे तो मैं आगे बढूं। न पहाड़ हटेगा न आप मंजिल पर पहुंच सकेंगे। इसलिए अगर उस आत्मा के प्रति शुभ भावना हैतो इशारा दिया और मन-बुद्धि से खाली। खुद अपने को उस विघ्न स्वरूप बनने वाले के सोच-विचार में नहीं डालो। जब नम्बरवार हैं तो नम्बरवार में स्टेज भी नम्बरवार होनी ही है लेकिन हमको नम्बरवन बनना है।

 

 _ ➳  ऐसे विघ्न वा व्यर्थ संकल्प चलाने वाली आत्माओं के प्रति स्वयं परिवर्तन होकर उनके प्रति शुभ भावना रखते चलो। टाइम थोड़ा लगता हैमेहनत थोड़ी लगती है लेकिन आखिर जो स्व-परिवर्तन करता हैविजय की माला उसी के गले में पड़ती है। शुभ भावना से अगर उसको परिवर्तन कर सकते हो तो करो, नहीं तो इशारा दोअपनी रेसपान्सिबिल्टी खत्म कर दो और स्व परिवर्तन कर आगे उड़ते चलो। यह विघ्न रूप भी सोने का लगाव का धागा है। यह भी उड़ने नहीं देगा। यह बहुत महीन और बहुत सत्यता के पर्दे का धागा है। यही सोचते हैं यह तो सच्ची बात है ना। यह तो होता है ना। यह तो होना नहीं चाहिए ना। लेकिन कब तक देखतेकब तक रुकते रहेंगेअब तो स्वयं को महीन धागों से भी मुक्त करो। मुक्ति वर्ष मनाओ।

 

✺   ड्रिल :-  "विघ्न-विनाशक बन महीन धागों से मुक्त होने का अनुभव"

 

 _ ➳  अमृतवेला के सुंदर सुहावने समय में मैं आत्मा मीठे बाबा की याद में बैठी हुई हूँ... मेरा मन अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में झूम रहा है... कितनी खुशकिस्मत आत्मा हूँ मैं... स्वयं भगवान ने मुझे अपना बना लिया है... मेरे प्यारे बाबा ने मुझे स्वयं की सत्य पहचान दी... मेरे 84 जन्मों के चक्र के बारे में बताया... सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग में अनेक जन्म लेते लेते... अब मैं आत्मा कल्प के इस अंतिम पड़ाव पर आ गई हूँ... इस बेहद सुंदर, कल्याणकारी संगम के समय में... मेरे मीठे शिवबाबा मेरे साथी बन गए हैं...

 

 _ ➳  बाबा से अविरल स्नेह की धारा मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मीठे बाबा अपनी स्नेहिल दृष्टि से मुझे निहाल कर रहे हैं... उनकी भृकुटी से, नयनों से दिव्य तेज निकलकर मुझमें समाता जा रहा है... मैं आत्मा सशक्त बनती जा रही हूँ... मैं चिंतन कर रही हूँ कि... कितना सुंदर भाग्य है मेरा स्वयं भगवान ने मुझे अपना बना लिया है... सारा संसार जिसकी एक झलक पाने के लिए तरस रहा है उससे मैं सम्मुख मिलन मना रही हूँ... परमात्म मिलन और ईश्वरीय प्राप्तियों की चंद ही घड़ियाँ शेष रही हैं... इस बात को मैं आत्मा गहराई से स्वयं में समाती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा संगम के अपने एक-एक पल को सफल कर रही हूँ... भिन्न-भिन्न स्वभाव संस्कार वाली आत्माओं से संस्कार मिलन की रास मना रही हूँ... कैसी भी आत्मा हो, कोई कुछ भी करता रहे... मैं आत्मा सभी के प्रति शुभ भावना ही रखती हूँ... संस्कारों के टकराव में, विघ्नों में अपने अमूल्य समय को न गंवा कर... मैं ईश्वरीय फ़खुर में झूम रही हूँ... दूसरों के पार्ट पर ध्यान देने की बजाय मैं स्वचिंतन और स्व-परिवर्तन पर ध्यान दे रही हूँ...

 

 _ ➳  विघ्न रूपी पहाड़ों से टकराने में समय और शक्तियों को व्यर्थ ना करके... मैं किनारा करती जा रही हूँ... विघ्न रूपी पहाड़ हटे तो मैं मंजिल पर पहुँचूँ, इन कपोल कल्पना में एक पल भी ना गंवा कर... हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना ही रख रही हूँ... मेरे बाबा मुझे राजा बच्चा देखना चाहते हैं... तो जैसा लक्ष्य उसी अनुसार मैं लक्षण धारण कर रही हूँ... कोई भी आत्मा जो विघ्न डालने या व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित्त बनती है उनके प्रति भी मेरे मन में कल्याण की ही भावना है... मैं स्वयं को मोल्ड करती जा रही हूँ... क्योंकि स्व परिवर्तन करने वालों की विजय निश्चित होनी ही है...

 

 _ ➳  शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना रख उस आत्मा को इशारा देकर आगे बढ़ रही हूँ... स्व परिवर्तन द्वारा उड़ती कला के लक्ष्य की ओर अग्रसर हो रही हूँ... ये विघ्न सोने के लगाव के धागों के जैसे हैं... बहुत ही महीन धागे हैं ये... जो पुरुषार्थ में उड़ान भरने नहीं देते... बाबा के साथ और सहयोग से मैं आत्मा स्वयं को इन महीन धागों से मुक्त, स्वतंत्र करती जा रही हूँ... समय अब अपनी अंतिम घड़ियां गिन रहा है, ऐसे में मैं आत्मा... प्यारे बाबा के इशारे समझकर विघ्न विनाशक बन हर प्रकार के महीन धागों से मुक्त हो रही हूँ... संपन्नता की अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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