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 02 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ ड्रामा कहकर ठहर तो नहीं गए ?

 

➢➢ ज्ञान के तीसरे नेत्र से देखने का अभ्यास किया ?

 

➢➢ सत्यता के फाउंडेशन से चलन और चेहरे से दिव्यता की अनुभूति करवाई ?

 

➢➢ बेहद की सेवा में बिजी रह बेहद का वैराग्य अनुभव किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अभी तीव्र पुरुषार्थ का यही लक्ष्य रखो कि मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ, चलते-फिरते फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति को बढ़ाओ। अशरीरीपन का अभ्यास करो। सेकण्ड में कोई भी संकल्पों को समाप्त करने में, संस्कार स्वभाव में डबल लाइट रहो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं 'एक बल, एक भरोसा' के अनुभवी आत्मा हूँ"

 

✧  सदा एक बल एक भरोसा-यह अनुभव करते रहते हो? जितना एक बाप में भरोसा अर्थात् निश्चय है तो बल भी मिलता है। क्योंकि एक बाप पर निश्चय रखने से बुद्धि एकाग्र हो जाती है, भटकने से छूट जाते हैं। एकाग्रता की शक्ति से जो भी कार्य करते हो उसमें सहज सफलता मिलती है। जहाँ एकाग्रता होती है वहाँ निर्णय बहुत सहज होता है। जहाँ हलचल होगी तो निर्णय यथार्थ नहीं होता है। तो 'एक बल, एक भरोसा' अर्थात् हर कार्य में सहज सफलता का अनुभव करना। कितना भी मुश्किल कार्य हो लेकिन 'एक बल, एक भरोसे' वाले को हर कार्य एक खेल लगता है। काम नहीं लगता है, खेल लगता है। तो खेल करने में खुशी होती है ना!

 

✧  चाहे कितनी भी मेहनत करने का खेल हो लेकिन खेल अर्थात् खुशी। देखो, मल्ल-युद्ध करते हैं तो उसमें भी कितनी मेहनत करनी पड़ती! लेकिन खेल समझ के करते हैं तो खुश होते हैं, मेहनत नहीं लगती। खुशी-खुशी से कार्य सहज सफल भी हो जाता है। अगर कोई कार्य करते भी हैं, लेकिन खुश नहीं, चिंता वा फिक्र में हैं-तो मुश्किल लगेगा ना! 'एक बल, एक भरोसा'-इसकी निशानी है कि खुश रहेंगे, मेहनत नहीं लगेगी। 'एक भरोसा, एक बल' द्वारा कितना भी असम्भव काम होगा तो वो सम्भव दिखाई देगा। ब्राह्मण जीवन में कोई भी-चाहे स्थूल काम, चाहे आत्मिक पुरुषार्थ का, लेकिन कोई भी असम्भव नहीं हो सकता।

 

  ब्राह्मण का अर्थ ही है-असम्भव को भी सम्भव करने वाले। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में 'असम्भव' शब्द है नहीं, मुश्किल शब्द है नहीं, मेहनत शब्द है नहीं। ऐसे ब्राह्मण हो ना। या कभी-कभी असम्भव लगता है? यह बहुत मुश्किल है, यह बदलता नहीं, गाली ही देता रहता है, यह काम होता ही नहीं, पता नहीं मेरा क्या भाग्य है-ऐसे नहीं समझते हो ना। या कोई काम मुश्किल लगता है? जब बाप का साथ छोड़ देते हो, अकेले करते हो तो बोझ भी लगेगा, मेहनत भी लगेगी, मुश्किल और असम्भव भी लगेगा और बाप को साथ रखा तो पहाड़ भी राई बन जायेगी। इसको कहा जाता है-एक बल, एक भरोसे में रहने वाले। 'एक बल, एक भरोसे' में जो रहता वो कभी भी संकल्प-मात्र भी नहीं सोच सकता कि क्या होगा, कैसे होगा? क्योंकि अगर क्वेश्चन-मार्क है तो बुद्धि ठीक निर्णय नहीं करेगी। क्लीयर नहीं है!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  उडती कला का उडन आसन सदा तैयार हो। जैसे आजकल के संसार में भी जब लडाई शुरू हो जाती है तो वहाँ के राजा हो वा प्रेजीडेन्ट हो उन्हों के लिए पहले से ही देश से निकलने के साधन तैयार होते हैं। उस समय यह तैयार करो, यह आर्डर करने की भी मार्जिन नहीं होती। लडाई का इशारा मिला और भागा। नहीं तो क्या हो जाए? प्रजीडेन्ट वा राजा के बदले जेल बर्ड बन जायेगा।

 

✧  आजकल की निमित बनी हुई अल्पकाल की अधिकारी आत्मायें भी पहले से अपनी तैयारी रखती हैं। तो अपना कौन हो? इस संगमयुग के हिरो पार्टधारी अर्थात विशेष आत्मायें, तो आप सबकी भी पहले से तैयारी चाहिए ना कि उस समय करेंगे? मार्जिन ही सेकण्ड की मिलनी है फिर क्या करेंगे? सोचने की भी मार्जिन नहीं मिलनी है। कहूँ, न कहूँ, यह कहूँ, वह कहूँ, ऐसे सोचने वाले साथी' के बजाए बाराती' बन जायेंगे।

 

✧  इसलिए अन्त:वाहक स्थिति अर्थात कर्म बन्धन मुक्त कर्मातीत - ऐसे कर्मातीत स्थिति का वाहन अर्थात अन्तिम वाहन, जिस द्वारा ही सेकण्ड में साथ में उडेगे। वाहन तैयार है? वा समय को गिनती कर रहे हो? अभी यह होना है, यह होना है, उसके बाद यह होगा, ऐसे तो नहीं सोचते हो? तैयारी सब करो। सेवा के साधन भी भल अपनाओ। नये-नये प्लैन भी भले बनाओ। लेकिन किनारों में रस्सी बांधकर छोड नहीं देना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ संकल्प शक्ति हर कदम में कमाई का आधार है। याद की यात्रा किस आधार से करते हो? संकल्प शक्ति के आधार से बाबा के पास पहुँचते हो ना। अशरीरी बन जाते हो। तो मन की शक्ति विशेष है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  योग द्वारा तत्वों को पावन बनाने की सेवा करना"
 
➳ _ ➳  मै चमकती सितारा आत्मा मीठे बाबा को एक प्यारा सा नगमा हमने तुझको प्यार किया है जितना, कौन करेगा इतना सुना रही हूँ... कि नगमा सुनते सुनते मीठे बाबा ने मुझे मधुबन घर के डायमण्ड हाल में बुला लिया... हाल में पहुंच कर दादी गुलजार के तन में बापदादा को मुस्कराते देखती हूँ... दृष्टि से दृष्टि का मिलन हुआ और मै आत्मा परमात्मा के प्रेम नयनों में खो गयी... प्रेम वर्षा में आत्म परमात्म दिल भीग गए... और ज्ञान के इंद्रधनुष ने छटा बिखेरी...
 
❉   मीठे बाबा मुझे मेरे उज्ज्वल भविष्य की सुगम राह बताते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जिन खुशियो भरी राहो पर चलकर आपने अपने जीवन को खुबसूरत और प्यारा बनाया है... उन्ही खुशियो से पूरे विश्व को भी महकाओ... और सहज ही मीठे बाबा के दिल में मणि सा सजकर मुस्कराओ... मीठे बाबा की तरहा हर दिल को पावनता से सजाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा, को असीम प्यार मुझ आत्मा पर बरसाते देख बोली :- "मेरे दुलारे बाबा... आपने बहुमूल्य ज्ञान रत्नों से सजाकर मुझे कितना धनवान् बनाया है... इन ज्ञान रत्नों की खनक को पूरे विश्व में गूंजा रही हूँ... सबको पावनता का खुबसूरत रास्ता दिखाने वाली महान भाग्य से सज गयी हूँ..."
 
❉   प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों के आगोश में लेते हुए वरदानी से भरते हुए बोले :- " मीठे सिकीलधे बच्चे... बाप समान विश्व कल्याणकारी बनकर, पूरे विश्व को खुबसूरत पावन दुनिया सा सजाओ... सब जगह सुख शांति और प्रेम की अविरल धारा बहे... ऐसा दिलकश मौसम बनाओ... हर दिल सुख और प्रेम से भरा हो, ऐसी पावन दुनिया इस धरती पर बसाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे बाबा को मुझ आत्मा की ओर इतनी उम्मीदों से देखते हुए बोली :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आप समान बनकर पूरे विश्व का कल्याण कर रही हूँ... सबको पतित से पावन बनाकर,आपसे विश्व का मालिकाना हक दिलवा रही हूँ... और आपकी आँखों का सितारा बनकर मुस्करा रही हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा सम्मुख बेठे मेरे जनमो के बिछड़ेपन की प्यास बुझाते हुए बोले :- " लाडले प्यारे मेरे बच्चे... सबके दामन को सच्चे सुखो से भरने वाले मा सुख सागर बनकर, ईश्वरीय दिल पर राज करो... पूरे विश्व को विकारो से मुक्त कर पावनता के सुखो से भरपूर करो... दिन रात यही धंधा कर, मीठे बाबा के नयनों में नूर बनकर इठलाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा भगवान पिता को रत्नों को दौलत से मुझ आत्मा को मालामाल करते देख असीम प्यार से भर उठी और बोली :- "मीठे प्यारे मेरे बाबा... आपने अथाह ज्ञान दौलत से मुझ आत्मा को इतना भरपूर कर दिया है... कि यह गागर हर दिल पर छलकती है... सब सुखी हो जाएँ पूरा विश्व पावन धरा बन... खुशियो की किलकारियों से भर जाएँ यही दिल की चाहत है..." ऐसी मीठी रुहरिहानं कर,मीठे बाबा परमधाम और मै आत्मा अपने खेल जगत में आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- पुरुषार्थ से ऊंच प्रालब्ध बनानी है, ड्रामा कहकर ठहर नही जाना है

➳ _ ➳  एकान्त में बैठ, बाबा द्वारा मिली ड्रामा की नॉलेज को स्मृति में लाकर, उस पर मन्थन करते हुए मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा ने ड्रामा का जो राज हम बच्चों को समझाया है अगर उसे यथार्थ रीति जानकर, उस ज्ञान को ब्राह्मण जीवन मे धारण किया जाए तो कोई भी ब्राह्मण आत्मा कभी भी अपने इस बहुमूल्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के बेहतरीन अनुभवों से वंचित नही रह सकती। ब्राह्मण बनकर भी अगर ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव आत्मा को नही हो रहा तो स्पष्ट सी बात है कि ड्रामा को यथार्थ रीति जाना ही नही। कितनी बदनसीब है वो ब्राह्मण आत्मायें जो ये सोच कर पुरुषार्थ ही नही करना चाहती कि मेरा तो ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है और कितनी महान सौभाग्यशाली है वो आत्मायें जो समय और परिस्थिति के अनुसार ड्रामा के ज्ञान को ढाल बनाकर उसे यथार्थ रीति यूज़ कर अपने तीव्र पुरुषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हैं।

➳ _ ➳  मन ही मन यह विचार सागर मंथन करते हुए अपने आप से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस सर्वश्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव करने के लिए और जन्म जन्मांतर की अपनी ऊँच प्रालब्ध बनाने के लिए मैं अपने पुरुषार्थ पर पूरा ध्यान दूँगी। "ड्रामा में होगा तो हो जायेगा" यह कहकर कभी भी थककर बैठूँगी नही, बल्कि उचित समय पर ड्रामा के ज्ञान को यथार्थ रीति यूज़ कर, बीती को बीती कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर आगे बढ़ने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर करती रहूँगी। इसी दृढ़ संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने पुरुषार्थ को सदा सहज और मेहनत से मुक्त बनाने का बल स्वयं में भरने के लिए अपने प्यारे पिता के पास जाने की अति सहज यात्रा पर चलने के लिए अपने मन और बुद्धि को मैं एकाग्र कर लेती हूँ और स्वयं को अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित कर लेती हूँ।

➳ _ ➳  आत्मिक स्मृति में स्थित होकर, स्वयं को देह से डिटैच करके, अपने गुणों और शक्तियों का अनुभव करते हुए थोड़ी देर के लिए मैं अपने अति सुंदर स्वरूप में खोकर उसका आनन्द लेने में तल्लीन हो जाती हूँ। भूल जाती हूँ नश्वर देह और देह से जुड़ी सभी बातों को। केवल एक ही स्मृति कि मैं आत्मा हूँ, महान आत्मा हूँ, विशेष आत्मा हूँ, परमात्मा की संतान हूँ, मेरे सर्व सम्बन्ध केवल उस एक मेरे पिता परमात्मा के साथ हैं। इस सृष्टि पर मैं केवल पार्ट बजाने आई हूँ। अब ये पार्ट पूरा हुआ और मुझे वापिस अपने पिता के पास जाना है इन्ही संकल्पो के साथ मैं आत्मा, एक चमकता हुआ सितारा अब देह से बाहर निकलती हूँ और चल पड़ती हूँ उनके पास उनकी निराकारी दुनिया उस पार वतन में जहाँ प्रकृति के पांचो तत्वों की कोई हलचल नही।

➳ _ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ कर, आत्माओं की उस सुन्दर दुनिया में जो मेरा परमधाम घर हैं, जहाँ मेरे पिता रहते हैं उस निर्वाणधाम घर में अब मैं पहुँच चुकी हूँ। चारों और फैले अनन्त लाल प्रकाश को मैं देख रही हूँ। एक सुंदर लालिमा चारों और बिखरी हुई है जो मन को सुकून दे रही हैं। एक ऐसा गहन सुकून जिससे मैं आत्मा आज दिन तक अनजान थी, वो सुकून, वो शांति, वो सुख पाकर मैं आत्मा जैसे तृप्त हो गई हूँ। मन में अपने पिता से मिलने की आश तीव्र होती जा रही है। अपने प्यारे पिता से मिलकर जन्म  जन्मांतर से उनसे बिछुड़ने की प्यास बुझाने के लिए अब मैं उनके पास जा रही हूँ। अपने सामने मैं देख रही हूँ सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर, महाज्योति अपने प्यारे पिता को जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। बिना एक पल भी व्यर्थ गवांए अपने पिता की किरणों रूपी बाहों में मैं जाकर समा जाती हूँ।

➳ _ ➳  उनकी बाहों में समाकर मैं ऐसा महसूस कर रही हूँ जैसे सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी लहरों में मैं डुबकी लगा रही हूँ। मेरे शिव पिता से रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे झरने की फुहारों की तरह निरन्तर मुझ पर बरस रही है और मुझे असीम सुख, शांति का अनुभव करवाने के साथ - साथ, मुझ में असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली भी बना रही हैं। स्वयं को सर्वशक्तिसम्पन्न बना कर अब मैं फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ। अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर ड्रामा के राज को यथार्थ रीति स्मृति में रखकर केवल अपने पुरुषार्थ द्वारा अपनी ऊँच प्रालब्ध बनाने पर अब मैं अपना पूरा ध्यान दे रही हूँ। कोई संदेह, कोई भी प्रश्न अब मेरे मन मे नही हैं। त्रिकालदर्शी बन ड्रामा की हर एक्ट को साक्षी होकर देखते हुए, अपने पुरुषार्थ को ड्रामा के ऊपर ना छोड़ कर, पूरी लगन के साथ भविष्य ऊँच प्रालब्ध बनाने के लिए अब मैं तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सत्यता के फॉउन्डेशन द्वारा चलन और चेहरे से दिव्यता की अनुभूति कराने वाली सत्यवादी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बेहद की सेवा में बिजी रहकर स्वतः बेहद के वैराग्य का अनुभव करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  समय प्रमाण बापदादा डायरेक्शन दे कि सेकण्ड में अब साथ चलो तो सेकण्ड मेंविस्तार को समा सकेंगे? शरीर की प्रवृत्ति, लौकिक प्रवृत्तिसेवा की प्रवृत्ति, अपने रहे हुए कमज़ोरी के संकल्प की और संस्कार प्रवृत्ति, सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते होवा कोई प्रवृत्ति अपने तरफ आकर्षित करेगीसब तरफ से सर्व प्रवृत्तियों का किनारा छोड़ चुके हो वा कोई भी किनारा अल्पकाल का सहारा बन बाप के सहारे वा साथ से दूर कर देंगे? संकल्प किया कि जाना हैडायरेक्शन मिला अब चलना है तो डबल लाइट के उड़न आसन पर स्थित हो उड़ जायेंगेऐसी तैयारी हैवा सोचेंगे कि अभी यह करना हैवह करना हैसमेटने की शक्ति अभी कार्य में ला सकते हो वा मेरी सेवामेरा सेन्टरमेरा जिज्ञासुमेरा लौकिक परिवार या लौकिक कार्य - यह विस्तार तो याद नहीं आयेगायह संकल्प तो नहीं आयेगा?

✺   "ड्रिल :- सेकंड में विस्तार को सार में समाना"

➳ _ ➳  परम प्यारे शिवबाबा की सुनहरी यादों मे खोई हुई मैं मन बुद्धि को एकाग्र कर पहुँच जाती हूँ उस पावन तीर्थ स्थल पर... जहाँ आत्मा परमात्मा का सच्चा मिलन होता है... जहाँ स्वयं भगवान साकार में आकर अपने बच्चों से रुबरु मिलन मनाते हैं... उन्हें प्यार भरी दृष्टि देकर निहाल करते हैं... सम्मुख बैठ कर उनसे बातें करते हैं... प्रभु मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई हुई मैं स्वयं को देख रही हूँ डायमण्ड हॉल में... हज़ारों की संख्या में ब्राह्मण बच्चे अपने परम प्यारे पिता से मिलन मनाने आये हैं... उन सभी के मुख मण्डल से रूहानियत स्पष्ट झलक रही है...

➳ _ ➳  सभी आत्माएं एकटक नज़र लगाये आतुर अवस्था में मिलन मनाने के लिये लालायित से हो रहे हैं... मीठे बापदादा महावाक्य उच्चारने से पहले बहुत देर तक सभी को स्नेह भरी दृष्टि से निहाल करने लगते हैं... आत्मिक स्थिति में स्थित होकर... बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से स्वयं को भरपूर करती हुई मैं अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर रही हूँ...

➳ _ ➳  सभी ब्राह्मण बच्चों को सम्बोधित करते बहुत ही मीठे स्वर में बापदादा महावाक्य उच्चारण करने लगते हैं... अब समय बहुत कम रह गया है, अचानक कुछ भी हो सकता है... अब किसी भी बात के विस्तार में नही जाओ... अपितु विस्तार को सार में समेटने का अभ्यास करो... फुलस्टॉप लगाने का अभ्यास करो... एक सेकंड में परिवर्तन कर फुलस्टॉप लगाना... इसकी कमी है, अब इसका अभ्यास कर पक्का करो...

➳ _ ➳  वहाँ बैठी सभी आत्माएं बाबा द्वारा उच्चारित महावाक्यों को बहुत ध्यान से सुन रहे हैं... फिर बाबा कहने लगते हैं... मेरे सिकीलधे प्यारे बच्चों... सर्व प्रकार की प्रवृतियों से, चाहे शरीर की प्रवृति हो... लौकिक प्रवृति हो... सेवा की प्रवृति हो... सब तरफ से न्यारे और प्यारे बन जाओ... कोई भी आकर्षण तुम्हें आकर्षित न कर सके... अब तुम्हें बाप समान न्यारे और सबके प्यारे बनना ही है...

➳ _ ➳  पूरे डायमण्ड हॉल में चारों ओर एक अलौकिक दिव्यता छा गई है... सभी की नज़र बाबा पर है... बाबा की शक्तिशाली किरणें चारों ओर फैल कर हम सभी बच्चों पर पड़ रही है.. प्यार के सागर शिवबाबा कहने लगे... मीठे बच्चों... अब मैं और मेरा खत्म करो... मेरी सेवा... मेरा सेंटर... मेरा जिज्ञासु... नहीं, अब तो बस "मैं बाबा की बाबा मेरा" यह याद रहे... जैसे ही डायरेक्शन मिले... अब चलना है, उसी समय फ़रिश्ता बन उड़ती कला के आसन पर स्थित हो जाओ... सभी बाबा के लव में लीन होकर असीम आनंद का अनुभव कर रहे हैं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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