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 18 / 04 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *जो बात बीत गयी, उसका चिंतन तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *इश्वरीय संग और पढाई कभी छोड़ी तो नहीं ?*

 

➢➢ *वरदाता द्वारा सर्वश्रेष्ठ संपत्ति का वरदान प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *सच्ची साधना द्वारा हाय हाय को वाह वाह में परिवर्तित किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे कोई भी बात सामने आती है, तो स्थूल साधन फौरन ध्यान में आ जाते हैं *लेकिन स्थूल साधन होते हुए भी ट्रायल योगबल की ही करनी चाहिए। जैसे साइंस के यंत्रों द्वारा दूर का दृश्य सन्मुख अनुभव करते हो, वैसे साइलेंस की शक्ति से भी दूरी समाप्त हो सामने का अनुभव आप भी करेंगे और अन्य आत्मायें भी करेंगी, इसको ही योगबल कहा जाता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अमर बाप की अमर आत्मा हूँ"*

 

  सभी अमर बाप की अमर आत्मायें हो ना। अमर हो गई ना? शरीर छोड़ते हो तो भी अमर हो, क्यों? *क्योंकि भाग्य बना करके जाते हो। हाथ खाली नहीं जाते। इसलिए मरना नहीं है। भरपूर होकर जाना है। मरना अर्थात् हाथ खाली जाना। भरपूर होकर जाना माना चोला बदली करना।*

 

✧  तो अमर हो गये ना। *'अमर भव' का वरदान मिल गया। इसमें मृत्यु के वशीभूत नहीं होते। जानते हो जाना भी है फिर आना भी है। इसलिए अमर हैं। अमरकथा सुनते-सुनते अमर बन गये।* रोज-रोज प्यार से कथा सुनते हो ना।

 

  बाप अमरकथा सुनाकर अमरभव का वरदान दे देता है। *बस सदा इसी खुशी में रहो कि अमर बन गये। मालामाल बन गये। खाली थे, भरपूर हो गये। ऐसे भरपूर हो गये जो अनेक जन्म खाली नहीं हो सकते।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *दिन - प्रतिदिन सर्वीस बढती जानी है और समस्यायें भी बढती जानी हैं। और यह जो संकल्पों की स्पीड है वह भी दिन - प्रतिदिन बढेगी।* अभी एक सेकण्ड में जो दस संकल्प करते हो उसकी डबल - ट्रबल स्पीड तेज होगी। एक तरफ संकल्पों की, दूसरी तरफ ईविल स्प्रिटस (आत्माओं) की भी वृद्धि होगी। लेकिन *इसके लिए एक विशेष अटेन्शन रखना पडे, जिससे सर्व बातों का सामना कर सकेंगे।*

  

✧   वह यह है कि *जो भी बात होती है उसको स्पष्ट समझने के लिए दो शब्द याद रखना है। एक अन्तर और दूसरा मन्त्र।* जो भी बात होती है उसका अन्तर करो कि यह यथार्थ है या अयथार्थ है। बापदादा के सामने है वा नहीं है। बाप समान है वा नहीं? एक तो हर समय अन्तर (भेंट) करके उसका एक सेकण्ड में नाट या डाटा।करना नहीं है तो डाट देंगे, अगर करना है तो करने लग जायेंगे।

 

 

✧   *तो नाट और डाट यह भी स्मृति में रखना है।* अन्तर और मन्त्र यह दोनों प्रैक्टिकल में होंगे। दोनों को भूलेंगे नहीं तो कोई भी समस्या वा कोई भी ईविल स्प्रिटस सामना नहीं कर सकेगु। एक सेकण्ड में समस्या भस्म हो जायेगी। ईविल स्प्रिटस आपके सामने ठहर नहीं सकती है। तो यह पुरुषार्थ करना पडेँ। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  कभी भी शव को न देखो अर्थात् इस देह को न देखो। इनको देखने से अथवा शरीर के भान में रहने से ला ब्रेक होता है। *अगर इस ला में अपने आपको सदा कायम रखो कि शव को नहीं देखना है; शिव को देखना है तो कब भी कोई बात में हार नहीं होगी, माया वार नहीं करेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरुषोत्तम युग में पुरुषार्थ कर देवता बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा आत्म चिंतन करती हुई परमात्म चिंतन में डूब जाती हूँ... कितनी ही भाग्यशाली आत्मा हूँ मैं जो वंडरफुल बाबा वंडरफुल ज्ञान देकर मुझ आत्मा को मनुष्य से देवता बना रहे हैं... आदि-मध्य-अंत के राज बताकर राजयोग का ज्ञान देकर पतित दुनिया से पावन दुनिया में लेकर जा रहे हैं...* मैं आत्मा ऐसे भोलेनाथ बाबा के पास उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ...

 

   *प्यारे भोलेनाथ बाबा संगमयुग पर ब्राह्मण से देवता बनने के लिए अच्छी बुद्धि और श्रेष्ठ मत देते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *अपने खूबसूरत भाग्य के नशे में डूब जाओ... कितना सुंदर भाग्य है कि विकारो से मलिन बुद्धि... ईश्वरीय बुद्धि बन मुस्कराती है... पिता की श्रीमत का हाथ थाम मखमली जीवन जीते हो..*. और संगम के सुहावने पलों को जीते हुए देवता डबलताजधारी बन सजते हो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अवगुणों को निकाल सद्गुणों से श्रृंगार करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत से फूलो में मुस्करा रही हूँ... *वरदानी संगम पर ईश्वरीय हाथो में पल रही हूँ... प्यारे बाबा की यादो में भीगने का असीम सुख ले रही हूँ... और देवताई सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ...”*

 

   *ज्ञान सागर मेरा मीठा बाबा मेरे मन के गागर में समाता हुआ कहता है:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की पसन्द चुने हुए से फूल हो... ज्ञान रत्नों से दमकते हुए और दिव्य गुणो से सजते हुए ईश्वरीय सन्तान हो... जो पिता के पास है वह सब तुम बच्चों पर दिल खोल लुटाया है... *श्रेष्ठ बुद्धि पाकर ब्राह्मण से देवता रूप में सजकर खुशियो में खिलखिलाते हो... और असीम सुख की दुनिया में फूलो सा जीवन पाते हो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में असीम प्राप्तियों को पाकर खुशियों से हर्षाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा महान भाग्यशाली हूँ ईश्वर पिता को सम्मुख पाकर अपने भाग्य पर कुर्बान हूँ... *हर पल श्रीमत का हाथ थामे हर कर्म को श्रेष्ठता से सजा रही हूँ... हर साँस में बाबा को बसाकर आनंद के सागर में डूबी हुई हूँ...”*

 

   *मेरे बाबा ताज, तख़्त और तिलक मुझ आत्मा को सौगात में देते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *पिता के प्यार और श्रीमत के साये तले सारे दुःख दूर हो गए है... अब ब्राह्मण बन मुस्करा रहे हो... जनमो के दुखो को अब भूल गए हो और देवता बनने के नशे से भरपूर हो गए हो... क्या थे और संगम पर क्या बन गए हो...* ज्ञान और योग के पंख लिए दुखो की धरा छोड़ आनन्द के आसमाँ में उड़ रहे हो...

 

_ ➳  *बहते पवन के झोकों से बाबा के अविनाशी प्यार का एहसास करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपके प्यार की दौलत से लबालब हो रही हूँ... शानदार भाग्य ने ब्राह्मण बनाया है और भविष्य में देवता सा सजा देगा... यह अहसास रोम रोम को पुलकित कर रहा...* प्यारी सी बुद्धि और मीठा सा मन पाकर मै आत्मा आप पर बलिहार हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ✺   *"ड्रिल :- अब तक जो कुछ पढ़ा उसे भूलना है, एक बाप से सुनना है*"

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा, टीचर बाप से मधुर महावाक्य सुनने के लिए मैं मन, बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन में। जहां स्वयं भगवान टीचर बन अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं। *मधुबन के डायमण्ड हाल में मैं देख रही हूँ सभी ब्राह्मण आत्मायें गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित है और अपने टीचर शिव पिता परमात्मा का आह्वान कर रही हैं*। अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर मैं भी क्लास में आ कर बैठ जाती हूँ और अपने परम शिक्षक शिव बाबा का आह्वान करती हूँ।

 

_ ➳  अपने बच्चों का निमंत्रण मिलते ही शिव बाबा परमधाम से नीचे आ जाते हैं और सूक्ष्म लोक में पहुँच, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में बैठ सेकेंड में हम बच्चों के सामने उपस्थित हो जाते हैं। *अब मैं देख रही हूँ अपने सामने संदली पर अपने परमशिक्षक शिव बाबा को उनके लाइट माइट स्वरूप में। शिक्षक के रूप में बापदादा का स्वरूप अति लुभावना लग रहा है*। बापदादा की लाइट माइट चारों और फैल कर क्लासरूम के वातावरण को दिव्य और अलौकिक बना रही है। वायुमण्डल में फैली दिव्य अलौकिक आभा बुद्धि को एकाग्र कर रही है।

 

_ ➳  सभी एकाग्रचित हो कर, एकटक बाबा को निहारते हुए, ब्रह्मा मुख से उच्चारित बाबा के एक - एक महावाक्य को ध्यान से सुन रहे हैं। *सभी की बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके अब बापदादा वापिस अपने धाम लौट रहे हैं*। अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित, मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर नाज़ करती हुई अब मैं विचार करती हूँ कि विनाशी शास्त्रों के ज्ञान से सम्पन्न आत्मा को भी अपने ज्ञान का कितना नशा होता है। किन्तु *यहां तो स्वयं भगवान अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझे भरपूर कर रहें है*।

 

_ ➳  कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान टीचर बन मुझे पढ़ाने के लिए आते हैं, यह स्मृति मुझे असीम रूहानी नशे से भरपूर कर रही है। मैं सहज ही अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो रही है। अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर अब मैं सूक्ष्म लोक की ओर जा रही हूँ। *पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर मैं पहुँच गई सफेद प्रकाश की इस सुंदर दुनिया मे जहां मेरे सामने मेरे परम शिक्षक शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के लाइट के आकारी शरीर मे विराजमान है*। अपनी बाहें फैलाये वो मुझे अपने पास बुला रहें हैं। उनकी बाहों में समाकर मैं स्वयं को उनके प्यार से भरपूर कर रही हूँ।

 

_ ➳  उनके वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर हैं और उनके हस्तों से निकल रही शक्तियां मुझ आत्मा में समाकर मेरी बुद्धि को स्वच्छ और निर्मल बना रही हैं। *बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध और निर्मल बना कर अब बापदादा टीचर बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अथाह खजानों से मेरे इस बुद्धि रूपी बर्तन को भर रहें हैं*। अविनाशी ज्ञान के अखुट खजाने ले कर अब मैं फ़रिशता वापिस पांच तत्वों की बनी साकारी दुनिया में लौट रहा हूँ और अपने सूक्ष्म शरीर के साथ अपने साकारी शरीर मे प्रवेश कर रहा हूँ।

 

_ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और अपने परमशिक्षक शिव पिता के महावाक्यों को सदा स्मृति में रख, उनके द्वारा मिले अविनाशी ज्ञान को जीवन मे धारण कर अपने जीवन को ऊंच और महान बना रही हूँ। मेरे टीचर शिव बाबा द्वारा मिला सत्य ज्ञान अब मेरी बुद्धि में टपकता रहता है। *शास्त्रों का ज्ञान जो अब तक पढ़ा और सुना था वह सब कुछ भूल, एक बाप से ही सुनते और उसे अपने जीवन मे धारण करते हुए अब मैं अपने जीवन को पूजनीय और महिमा लायक बना रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं वरदाता द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति का वरदान प्राप्त करने वाली सम्पत्तिवान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सच्ची साधना द्वारा हाय-हाय को वाह-वाह में परिवर्तन करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  माया का आना यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन वह अपना रूप न दिखाये। *अगर माया की मेहमान-निवाजी करते हो तो चलते- चलते उदासी' का अनुभव होगा। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न आगे बढ़ रहे हैं न पीछे हट रहे हैं। पीछे भी नहीं हट सकते, आगे भी नहीं बढ़ सकते - यह माया का प्रभाव है। माया की आकर्षण उड़ने नहीं देती।* पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं लेकिन अगर आगे नहीं बढ़ते तो बीज को परखो और उसे भस्म करो। *ऐसे नहीं - चल रहे हैं, आ रहे हैं, सुन रहे हैं, यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं। लेकिन चेक करो कि अपनी स्पीड और स्टेज की उन्नति कहाँ तक है।*

 

✺  *"ड्रिल :- सदैव आगे बढते रहने का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सबेरे उठकर एकांत में बैठती हूँ... मैं आत्मा स्वयं को चार्ज करने मन-बुद्धि के तार को सुप्रीम चार्जर से कनेक्शन जोडती हूँ... सुप्रीम चार्जर से दिव्य किरणों रूपी करंट मुझमें प्रवाहित हो रहा है...* हाई वोल्टेज करंट से मुझ आत्मा के विकारों रूपी तार जलकर भस्म हो रहे हैं... *मैं आत्मा देह, देह के बन्धनों से डिस-कनेक्ट हो रही हूँ...* मायावी आकर्षणों से मुक्त हो रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा चार्ज होकर पावरफुल बन रही हूँ... मुझ आत्मा का एक बाबा से कनेक्शन जुड़ रहा है... *मैं आत्मा एक बाबा के मुहब्बत में लवलीन हो रही हूँ...* मैं आत्मा प्रेम के सागर में समा रही हूँ... मास्टर प्रेम का सागर बन रही हूँ... *सर्व शक्तिवान बाबा की सभी शक्तियों का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा माया के सभी रूपों पर अटेंशन रख हर कर्म कर रही हूँ...* मैं आत्मा चेक करती हूँ कि कहीं देह और कर्मेन्द्रियो का आकर्षण तो मुझे अपनी तरफ नहीं खींचता... मैं आत्मा हूँ, देह नहीं हूँ, मैं आत्मा करावनहार हूँ ये देह करनहार है... मै आत्मा इस देह से कर्म कराती हूँ... *आत्मिक स्मृति में रहने से मुझ आत्मा का देह का आकर्षण खत्म हो रहा है...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा से सर्व संबंधो का अनुभव कर देह के संबंधो के आकर्षण से मुक्त हो रही हूँ...* जब ये देह ही मेरा नहीं है तो ये देह के सम्बन्धी भी मेरे नहीं हैं... देह के बन्धनों में पड़ने से मुझ आत्मा को दुःख, अशांति की ही प्राप्ति हुई... *मैं आत्मा चेक करती हूँ कि कोई भी देह की वस्तुओं का आकर्षण तो नहीं हैं... जिनके लोभ में पड़कर मुझ आत्मा की पुरुषार्थ की गति आगे नहीं बढती...* ये सभी आकर्षण नश्वर हैं... विनाशी हैं...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सदा अटेंशन रख टेंशन रूपी माया से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के हाथ और साथ का अनुभव कर हर कर्म करती हूँ... सदा उमंग-उत्साह में रह उदास होने के संस्कारों को खत्म कर रही हूँ...* माया के सभी रूपों को परख कर बीज सहित भस्म कर रही हूँ... *अपने पुरुषार्थ की स्पीड को बढ़ाकर उन्नति कर रही हूँ...* और आगे बढती जा रही हूँ... माया के प्रभाव से मुक्त होकर उड रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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