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❍ 11 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ""मैं कौन ?" - इस स्मृति में रह स्व चिंतन किया ?
➢➢ ज्ञान रत्नों का मनन कर शुभ चिंतन किया ?
➢➢ सर्व आत्माओ के प्रति शुभचिंतक बनकर रहे ?
➢➢ समर्थ स्थिति में रह दूसरी आत्माओं को भी समर्थ स्थिति का अनुभव करवाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ फरिश्ता बनने के लिए चेक करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं! अगर नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं है। एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है ठिकाना। सदा अपना अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जायेगी
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं सहजयोगी आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? जो सहज बात होती है वो सदा सहज होती है। या कभी-कभी मुश्किल होती है? योग मुश्किल है या आप मुश्किल कर देते हो? तो मुश्किल क्यों करते हो? अच्छा लगता है मुश्किल? जब अपने में कोई न कोई कमजोरी लाते हो, तो मुश्किल हो जाता है। कमजोरी मुश्किल बनायेगी। तो कमजोरी आने क्यों देते हो? बच्चे किसके हो? आप अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान कहलाते हो या मास्टर कमजोर? मास्टर सर्वशक्तिवान! फिर कमजोर क्यों? अगर कमजोरी आ जाती है, चाहते नहीं हो लेकिन आ जाती है-तो आने-जाने का कारण क्या है? चेकिंग ठीक नहीं है। चलते-चलते कहाँ न कहाँ किसी बात में अलबेलापन आ जाता है, तब कमजोरी आ जाती है। तो सदा अटेन्शन रखो कि कहाँ भी, कभी भी अलबेलापन नहीं हो। अलबेलापन अनेक प्रकार से आता है। सबसे रा@यल रूप अलबेलेपन का है पुरुषार्थ कर रहे हैं, हो जायेगा, समय पर जरूर करके ही दिखायेंगे।
〰✧ पुरुषार्थ करते हैं लेकिन समय पर आधार रखते हैं, 'स्वयं' पर आधार नहीं रखते तो-अलबेले हो जाते हैं। तो आप कौन हो? अलबेले हो या तीव्र पुरुषार्थी? 'अनेकों' को याद करना मुश्किल होता है, 'एक' को याद करना तो सहज है। जब एक बाप के तरफ बुद्धि लग गई तो बाकी क्या करना है! यही तो पुरुषार्थ है। क्या मुश्किल है! जब है ही बाप याद, तो बाप की याद में माया तो कुछ नहीं कर सकती। आ सकती है क्या माया? एवररेडी होकर के सेवा करेंगे तो सेवा में भी और सहयोग मिलेगा, सहज होती जायेगी, सफलता मिलेगी।
〰✧ तो सदा ये स्मृति में रखो कि-है ही एक बाप, दूसरा कुछ है ही नहीं। अगर वन बाप है तो विन जरूर है। सहज योगी हो ना। मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे माया की हिम्मत नहीं जो वार कर सके। और ही माया सरेन्डर होगी, वार नहीं करेगी। जब सर्वशक्तिवान बाप साथ है तो सदा ही जहाँ बाप है वहाँ विजय है ही है। कल्प-कल्प के विजयी हैं, अभी भी हैं और सदा रहेंगे। ये स्मृति है ना। कितनी बार विजयी बने हो? तो अनेक बार किया हुआ कार्य फिर से करना, उसमें क्या मुश्किल है! नई बात तो नहीं है ना। तो नशे से कहो कि हम सहज योगी नहीं होंगे तो कौन होगा! ऐसा नशा है?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते ही फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पडेगी। समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है। ऐसे कहते ही ना! तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पडेगा।
〰✧ स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौन-सी? फुरी-फुरी तालाव (ढूंद-बूंद से तालाव) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड सेकण्ड करते कितना हो जायेगा!
〰✧ इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। ऐसे स्व-अभ्यासी चात्रक एकएक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे आप लोग कहते हो ना सेकण्ड में मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा लेना सभी का अधिकार है। तो समाप्ति के समय भी नम्बर मिलना थोड़े समय की बात है लेकिन जरा भी हलचल न हो। बस बिन्दी कहा और बिन्दी में टिक जायें। बिन्दी हिले नहीं ऐसे नहीं कि उस समय अभ्यास करना शुरू करो - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। यह नहीं चलेगा। क्योंकि सुनाया - वार भी चारों ओर का होगा। लास्ट ट्रायल सब करेंगे। प्रकृति में भी जितनी शक्ति होगी, माया में भी जितनी शक्ति होगी, ट्रायल करेगी। उनकी भी तरफ की बहुत पावरफुल सीन होगी। वह भी फुलफोर्स, यह भी फुलफोर्स। लेकिन सेकण्ड की विजय, विजय के नगाड़े बजायेगी। समझा लास्ट पेपर क्या है। सब शुभ संकल्प तो यही रखते भी हैं और रखना भी है कि नम्बरवन आना ही है। तो सबमें चारों ओर की बातों में विन होंगे तभी वन आयेंगे अगर एक बात में जरा भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय लग गया तो नम्बर पीछे हो जायेगा। इसलिए सब चेक करो। चारों ही तरफ चेक करो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- स्वचिन्तन और शुभ चिन्तन से शुभ चिंतक बनना"
➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहानं करने के लिए... जब मै आत्मा...
पांडव भवन के प्रांगण में पहुंचती हूँ... सुंदर सतयुग और मनमोहक श्री कृष्ण को
सामने देख पुलकित हो उठती हूँ... भक्ति में यह चित्र, आज ज्ञान में मन की आँखों
से देखकर... मै आत्मा आनन्द की चरमसीमा पर हूँ... मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे
नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखलाया है... भक्ति में सब
कुछ कितना दूर था... और आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नजारा दिल के कितना
करीब है... भगवान ने मेरी सोच बदल कर... सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नजारे मेरे
नाम लिख दिए है... मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... कमरे की
ओर बढ़ चलती हूँ...."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की ख़ुशी से भरते हुए
कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान को अपनी बाँहों में भरने वाले अति
सौभाग्यशाली हो... इस मीठी ख़ुशी में सदा आनन्द के साथ झूमते रहो... व्यर्थ
चिंतन से परे होकर, समर्थ मनन से शक्तिशाली बनो... भगवान को पाकर अब किस बात की
चिंता है... मन की ख़ुशी तन पर भी स्वतः झलकेगी... सदा यह सोच कर मुस्कराओ...यह
मन और तन दोनों ही प्यारे है, जो भगवान से मिलने का आधार बने हैं...”
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से ख़ुशी की खुराक लेकर शक्तिशाली बनकर कहती
हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के प्रपंच में कितना उलझी थी
कि चहुँ ओर दुःख ही दुःख बिखरा था... व्यर्थ सोचना ही मुझ आत्मा का संस्कार
था... आपने प्यारे बाबा, मुझे कितना प्यारा खुबसूरत जीवन दिया है... मै आत्मा
अब सदा प्रफुल्लित हूँ... सदा उमंगो और खुशियो में चहकती हुई, हर दिल को आप
समान बना रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में शुभ संकल्पों के संस्कारो को पक्का
कराते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय मिलन में सहयोगी, इस
पुराने तन को... वाह वाह कर चलाओ... दिल शिकस्ती के संकल्प नही चलाओ... माया के
तूफान को भी... शक्तियो और गुणो को बढ़ाने में, सहयोगी समझो... हर पल, हर स्थिति
में सदा शुभ संकल्प के ऊँचे शिखर पर विराजमान रहो... कभी ख़ुशी, कभी गम, इस
नेचर को बदल, सदा सदा के लिए, ख़ुशी के सम्राट बन जाओ...."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से, हर बात में कल्याण की भावना को, अपने दिल
में भरकर कहती हूँ :- "सच्चे साथी बाबा मेरे... आप जीवन में आये हो बाबा... तो
खुशियो की बहार संग लाये हो...मेरे दुखो के आँसू सुखाकर, खुशियो की चमक आँखों
में लाये हो... मै आत्मा आपके प्यार के साये में, कितनी खुबसूरत होती जा रही
हूँ... मेरी सुंदर सोच मुझे कितना सुख दे रही है... और सुखो भरी दुनिया, आने
वाले कल में, मेरे लिए ही सज रही है..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरी सुंदर सोच में छिपे खुबसूरत
खजानो को उजागर करते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा शुभभावना
रख, हर दिल को अपना बनाओ... मुझे अपने को बदलना है यह स्वयं को पक्का कराओ...
हर बात में बीच में बाबा को लाओ... तो माया स्वतः ही काफूर हो जायेगी... सदा
विशेषताओ के मोती चुगने वाले, होलिहंस बन,ख़ुशी से रेस कर, एक दूजे से आगे बढ़,
सदा मुस्कराओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर दिल से न्यौछावर होकर
कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... आपने शुभ संकल्पों, और शुभ भावना का जादु मुझे
सिखाकर, मेरा जीवन कितना निराला और अनोखा कर दिया है... मै आत्मा शुभभावना से
भरकर, प्यारे और मीठे जीवन को सहज ही पा गयी हूँ... आपसे पाये असीम प्यार की
तरंगे... पूरे विश्व पर बिखरने वाली विश्व कल्याणकारी बन गयी हूँ... मीठे बाबा
के उपकारों का यूँ रोम रोम से शुक्रिया कर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- सर्व आत्माओं के प्रति शुभचिंतक बनकर रहना
➳ _ ➳ अपने मोस्ट स्वीटेस्ट बाप के समान स्वीटेस्ट बनने का संकल्प मन में
लेकर, मैं अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती
हूँ और सेंकड में विदेही बन उनकी स्वीटेस्ट दुनिया की और चल पड़ती हूँ। वो
दुनिया जो सूर्य, चाँद, सितारों से परे हैं, जहाँ प्रकृति के पांचों तत्वों से
जुड़ा कुछ भी नही। कोई आवाज, कोई संकल्प नही। वाणी से परें एक ऐसी बेहद खूबसूरत
दुनिया जहाँ पहुँच कर आत्मा महसूस करती है जैसे उसकी जन्म - जन्म की प्यास बुझ
गई है। अपनी ऐसी स्वीट दुनिया की और अब मैं आत्मा चल पड़ती हूँ। मन बुद्धि के
विमान पर बैठ, देह की दुनिया से किनारा कर अपने स्वीट होम में स्वीटेस्ट बाप से
मिलने की लग्न मुझे बहुत ही तीव्र गति से ऊपर आकाश की ओर ले जा रही है। सेकेण्ड
में आकाश तत्व से ऊपर पहुँच कर, मैं सूक्ष्म लोक को भी पार करके पहुँच जाती हूँ
अपने स्वीट घर में।
➳ _ ➳ मेरा यह स्वीट घर जहाँ आकर मेरे चित को चैन और मन को आराम मिल गया
है। एक गहन सुकून मैं आत्मा अपने इस घर मे आकर महसूस कर रही हूँ। यहाँ चारों
और फैले गहन शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मुझे विचार शून्य बनाते
जा रहें है। हर संकल्प - विकल्प से मुक्त एक खूबसूरत निरसंकल्प स्थिति में मैं
स्थित होती जा रही हूँ। एक शक्तिशाली बीज रूप स्थिति में अब मैं स्थित हो चुकी
हूँ और अपने स्वीटेस्ट बीज रूप बाबा से योग लगाकर उस विशाल योग अग्नि को
प्रज्ज्वलित करने के लिए अब मैं उनके सम्मुख पहुँच गई हूँ, जिस योग अग्नि
द्वारा मैं अपने जन्म जन्मांतर के पापों को, पुराने सभी आसुरी स्वभाव संस्कारो
को जलाकर भस्म करके अपने स्वीटेस्ट बाप के समान स्वीटेस्ट बन जाऊँगी।
➳ _ ➳ मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप पिता के सामने अब मैं उपस्थित हूँ।
उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और
मुझे सर्वशक्तियों से सम्पन्न बना रही है। मैं महसूस कर रही हूँ धीरे - धीरे इन
किरणों का प्रवाह बढ़ रहा है और ये किरणे ज्वाला स्वरूप धारण करती जा रही है। योग
की अग्नि प्रज्ज्वलित होकर अब मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जलाकर
भस्म कर रही है। आत्मा के ऊपर चढ़ी पुराने स्वभाव संस्कारो की सारी अशुद्धता
खत्म होती जा रही है और मैं आत्मा एकदम हल्की, शुद्ध होती जा रही हूँ।
मेरा स्वरूप बहुत ही शक्तिशाली और चमकदार बनता जा रहा है। मैं अनुभव कर रही हूँ
जैसे मेरे स्वीटेस्ट बाबा मुझे आप समान स्वीटेस्ट बनाने के लिए अपने समस्त गुण
और समस्त शक्तियाँ मुझे प्रदान कर रहें हैं।
➳ _ ➳ बीज रूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप पिता के साथ मिलन
मनाकर, योग अग्नि में विकर्मों को दग्ध कर, अपने प्यारे पिता के सर्व गुणों,
सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, परमधाम से नीचे आकर अब मैं सूक्ष्म वतन में
प्रवेश करती हूँ और अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण कर बापदादा के पास पहुँचती
हूँ। मैं देख रही हूँ मेरे बिल्कुल सामने बापदादा खड़े हैं और उनके मस्तक से,
उनकी दृष्टि से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल रही हैं और उन धाराओं में समाई
ज्ञान और योग की पावन किरणे मुझ फरिश्ते को छू रही हैं। जैसे पारस के संग में
पीतल भी सोना बन जाता है ऐसे ज्ञान और योग की पावन किरणे जैसे - जैसे मेरे ऊपर
पड़ रही हैं, विकारों रूपी भूत एक - एक करके भाग रहें हैं और आसुरी अवगुण दैवी
गुणों में बदल रहें हैं। बाबा अपने सारे गुण और सारी शक्तियाँ मेरे अंदर
समाहित कर मुझे आप समान स्वीटेस्ट बना रहें हैं।
➳ _ ➳ परमात्म गुणों और शक्तियों को स्वयं में धारण कर बाप समान
स्वीटेस्ट बन कर अब मैं फिर से अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर वतन
से नीचे आ जाती हूँ। साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार तन में मैं आत्मा वापिस
प्रवेश करती हूँ और कर्मक्षेत्र पर कर्म करने के लिए तैयार हो जाती हूँ। किन्तु
कर्म करते हुए अब मैं हर कर्म योगयुक्त स्थिति में स्थित रहकर करती हूँ। किसी
के भी सम्बन्ध सम्पर्क में आते, आत्मिक स्मृति में स्थित होकर उनको भी मैं
आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ जिससे आत्मा के निजी गुण और शक्तियाँ इमर्ज रहते
हैं। सबके प्रति आत्मिक दृष्टि मेरे अंदर साक्षीपन का भाव उतपन्न करके सबके
पार्ट को साक्षी होकर देखने की मुझे प्रेरणा देती है इसलिये हर आत्मा के पार्ट
को साक्षी होकर देखने से अब मेरे हृदय से सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना,
शुभकामना स्वत: ही निकलती रहती है। अपने स्वीटेस्ट बाबा के प्यार की मिठास अपने
अंदर भरकर, बाप समान स्वीटेस्ट बन अब मैं अपनी मीठी दृष्टि वृति से सबके जीवन
को मिठास से भर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं श्रीमत प्रमाण सेवा में सन्तुष्टता की विशेषता का अनुभव करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं असमर्थ आत्माओं को समर्थी देकर देकर उनकी दुआएं प्राप्त करने वाली समर्थ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा
तो सबकी दिल की बातें सुनते भी हैं, देखते
भी हैं। कोई कितना
भी छिपाने की कोशिश करे सिर्फ बापदादा कहाँ-कहाँ लोक संग्रह के अर्थ खुला
इशारा नहीं देते, बाकी जानते
सब हैं,
देखते सब हैं। कोई कितना भी कहे कि नहीं, मैं
तो कभी नहीं करता,
बापदादा के पास रजिस्टर है, कितने
बार किया, क्या-क्या
किया,किस
समय किया, कितनों
से किया - यह सब रजिस्टर है। सिर्फ कहाँ-कहाँ चुप रहना
पड़ता है। तो दूसरी बात सुनाई-परचिन्तन।
➳ _ ➳
तीसरी बात है परदर्शन। दूसरे को देखने में मैजारिटी बहुत होशियार हैं। परदर्शन
–
जो
देखेंगे तो देखने के बाद
वह बात कहाँ जायेगी? बुद्धि
में ही तो जायेगी। और जो दूसरे को देखने में समय लगायेगा उसको अपने को देखने का
समय कहाँ मिलेगा? बातें
तो बहुत होती हैं ना, और
जो बातें होती हैं वो देखने में भी आती हैं, सुनने
में भी आती हैं, जितना
बड़ा संगठन उतनी बड़ी बातें होती हैं।
➳ _ ➳
और
ये बातें ही तो पेपर हैं। जितनी बड़ी पढ़ाई उतने बड़े पेपर भी होते हैं। यह
वायुमण्डल बनना - यह सबके
लिए पेपर भी है कि परमत या परदर्शन या परचिन्तन में कहाँ तक अपने को सेफ रखते
हैं? दो
बातें अलग हैं। एक
है जिम्मेवारी,
जिसके कारण सुनना भी पड़ता है, देखना
भी पड़ता है। तो उसमें कल्याण की भावना से सुनना और
देखना। जिम्मेवारी है, कल्याण
की भावना है, वो
ठीक है। लेकिन अपनी अवस्था को हलचल में लाकर देखना, सुनना
या सोचना - यह रांग है। अगर आप अपने को जिम्मेवार समझते हो तो जिम्मेवारी के
पहले अपनी ब्रेक को पावरफुल
बनाओ। जैसे पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले से ही सूचना देते हैं कि अपनी ब्रेक
को ठीक चेक करो। तो जिम्मेवारी
भी एक ऊंची स्थिति है, जिम्मेवारी
भले उठाओ लेकिन पहले यह चेक करो कि सेकण्ड में बिन्दी लगती है?
कि
लगाते हो बिन्दी और लग जाता है क्वेश्चनमार्क?
वो
रांग है। उसमें समय और इनर्जी वेस्ट जायेगी। इसलिए पहले अपना
ब्रेक पावरफुल करो। चलो - देखा, सुना, जहाँ
तक हो सका कल्याण किया और फुलस्टाप। अगर ऐसी स्थिति है
तो जिम्मेवारी लो, नहीं
तो देखते नहीं देखो, सुनते
नहीं सुनो,
स्वचिन्तन में रहो। फायदा इसमें है।
➳ _ ➳ परमत, परचिन्तन
और परदर्शन इन तीन बातों से मुक्त बनो और एक बात धारण करो, वो
एक बात है पर-उपकारी
बनो। तीन प्रकार की पर को खत्म करो और एक पर - पर-उपकारी बनो।
✺
ड्रिल :- "परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह पर-उपकारी बनना"
➳ _ ➳ देह
रूपी कश्ती की खेवनहार,
मैं
आत्मा,
मन
बुद्वि रूपी पतवार से संसार सागर की लहरों पर रूहानी मस्ती में तैरती जा रही
हूँ... दृश्य चित्र बनाकर देखे स्वयं को रूहानी मल्लाह के रूप में) बेहद
खूबसूरत है मेरी इस यात्रा का हर पडाव... पुरानी दुनिया के किनारों पर बंधे
लंगर पूरी तरह खोल दिये है मैंने... मेरी कश्ती चल पडी है किनारों की ओर...
साथ- साथ है मेरे शिव बाबा ज्योति रूप में मेरा मार्ग दर्शन करते हुए... लहरों
के बीच में बनी श्रीमत की सुनहरी-सी पगडंडियाँ,
जिन
पर मुझ आत्मा की कश्ती हौले- हौले अपने मुकाम की ओर बढती ही जा रही है निरन्तर
एक लय में... श्रीमत की सुनहरी पगडंडियों को रोशनी से नहलाते शिव सूर्य ऊपर
आकाश में मुस्कुरा रहे हैं... आहिस्ता-आहिस्ता झिलमिलाते प्रकाश में मैं आत्मा
हल्की होकर ऊपर की ओर उडती जा रही हूँ... शिव बाबा संग उडती हुई मैं आत्मा
बिन्दु रूप में परम धाम में,
शिवसागर के प्रकाश में नहाती हुई... और कुछ ही पलों में शिवसागर में समाँ गयी
हूँ लवलीन अवस्था में...
➳ _ ➳
फरिश्ता रूप में मैं अब सूक्ष्म लोक में,
स्वयं को देख रही हूँ बापदादा के ठीक सामने... घुटनों के बल बैठी मैं आत्मा
बापदादा से स्वराज्यधिकारी का तिलक ले रही हूँ,
मेरे सिर पर हाथ रखते हुए बाबा मुझे परमत,
परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त रह उपकारी बनने का वरदान दे रहे है... गहराई से
महसूस कर रही हूँ मैं उस वरदान की शक्ति को... अब बापदादा मेरा हाथ पकड मेरे
संग चल दिए है,
कुछ
गहरी अनुभूतियों के लिए... सागर में एक कश्ती पर सवार मैं और बापदादा...
बापदादा मुझे पार जाने के लिए मार्गदर्शन कर रहें है,
नीले साफ निर्मल आकाश में जगमगाते चाँद की बरसती चाँदनी में नहाते हुए हम दोनों
इस सुहाने सफर पर मगन अवस्था में बढे जा रहे हैं... आसपास दूसरी कश्तियाँ मगर
मेरा ध्यान पूरी तरह से बापदादा की ओर... कुछ कश्तियाँ मुझसे आगे और कुछ पीछे
दायें और बायें चल रही है...
➳ _ ➳
सहसा आकाश में बादलों के एक समूह ने चाँद को पूरी तरह से ढक लिया है... अंधेरा
होते देख मैंने कुछ घबराकर कश्ती की रफ्तार बढा दी... अब मैं आगे वाली कश्ती
के पीछे चल पडा हूँ... मेरा ध्यान कुछ पल के लिए उस कश्ती के खेवनहार की तरफ जो
बडी कुशलता से आगे बढता जा रहा है... मैं सोच रहा हूँ उसकी कुशलता के बारे
मैं... मैं देख रहा हूँ उसके नाव चलाने के तरीके को... पल भर के लिए मैं भूल ही
गया कि बापदादा भी मेरी कश्ती में सवार है... अचानक सागर में तूफानी लहरें और
मेरे हाथ से पतवार गिर गयी है... मेरी निगाह बापदादा को ढूँढ रही है मगर वो भी
अब वहाँ नजर नही आ रहे... तूफानी लहरों के बीच मैं अकेला,
जूझ
रहा हूँ उन लहरों के बीच में... चिल्ला चिल्लाकर पुकार रहा हूँ बापदादा को और
अपनी गलतियों का पश्चाताप कर रहा हूँ... बापदादा को भूलकर परमत,
परचिन्तन और परदर्शन का परिणाम आज मेरी आँखों के सामने है...
➳ _ ➳
अचानक आकाश में छाये बादल हट रहे है, चाँद
फिर से अपनी चाँदनी का तोहफा लिए खडा मुस्कुरा रहा है,
शान्त होती समुन्द्र की लहरें और हाथ में पतवार लिए मेरे सामने खडे मुस्कुरा
रहे हैं बापदादा... और अब पल भर में मैं समझ गया हूँ सारा दृश्य... परमत
परदर्शन और परचिन्तन का पेपर था मेरे लिए... मैं कितने अंको से पास हुआ ये तो
नही जानता मगर गहराई से अनुभव कर लिया है परमत परचिन्तन और परदर्शन का
परिणाम... बापदादा की ओर कृतज्ञता पूर्ण आँखों से देखते हुए मैं अनुभव कर रहा
हूँ... सीख भी दी और समझ भी,
अनुभव कराये और दिये वरदान भी,
वाह
मेरे सतगुरू! कश्ती तेरे हाथों में है और है,
अब
पतवार भी... अब मैं आत्मा पूरी तरह से अपनी कश्ती और पतवार बापदादा के हाथों
में सौपकर निश्चिन्त होकर बस मन्मनाभव होकर बढता जा रहा हूँ किनारों की ओर...
आगे पीछे दायें बायें की सभी कश्तियाँ सब मेरे पीछे है... इन सबके प्रति भी
उपकार की गहरी भावना मन में लिए मैं बढता जा रहा हूँ मेरे सतगुरू की महिमा करता
और कराता हुआ... इस भव सागर का किनारा कुछ ही दूर है... और दूसरी तरफ है मेरी
वो सतयुगी राजधानी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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