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❍ 29 / 03 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *शरीर छोड़ने के डर को निकाला ?*
➢➢ *याद की यात्रा का चार्ट बड़ी खबरदारी से बढ़ाते रहे ?*
➢➢ *मन और बुधी को व्यर्थ से मुक्त रखा ?*
➢➢ *दृढ़ प्रतिज्ञा से सर्व समस्याओं को सहज ही पार किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है, आशिक है, ऐसे *जिस समय स्टेज पर आते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना स्नेह का बाण औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कोटो में कोई, कोई में भी कोई विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को इस सृष्टि के अन्दर कोटों में कोई और कोई में भी कोई... ऐसी विशेष आत्मा समझते हो? जो गायन है कोटों में कोई बाप के बनते हैं, वह हम हैं। यह खुशी सदा रहती है? *विश्व की अनेक आत्मायें बाप को पाने का प्रयत्न कर रहीं हैं और हमने पा लिया! बाप का बनना अर्थात् बाप को पाना। दुनिया ढूंढ रही है और हम उनके बन गये।*
〰✧ *भक्तिमार्ग और ज्ञान मार्ग की प्राप्ति में बहुत अन्तर है। ज्ञान है पढ़ाई, भक्ति पढ़ाई नहीं है। वह थोड़े समय के लिए आध्यात्मिक मनोरंजन है। लेकिन सदा काल की प्राप्ति का साधन 'ज्ञान' है। तो सदा इसी स्मृति में रह औरों को भी समर्थ बनाओ।*
〰✧ *जो ख्याल ख्वाब में न था - वह प्रैक्टिकल में पा लिया। बाप ने हर कोने से बच्चों को निकाल अपना बना लिया। तो इसी खुशी में रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आपने पूछा ना कि वतन में बैठ क्या करते हो? यही देखते रहते हैं और अव्यक्त सहयोग देने की सर्वीस करते हैं। सभी समझते है कि बापदादा वतन में पता नहीं क्या बैठ करते होंगे। *लेकिन सर्वीस की स्पीड साकार वतन से वहाँ तेज है*। क्योंकि यहाँ तो साकार तन का भी हिसाब साथ था।
〰✧ अब तो इस बन्धन से भी मुक्त है, अपने प्रति नहीं है सर्व आत्माओं के प्रति है। जैसे इस शरीर को छोडना और शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। *वैसे ही जब चाहो शरीर का भान बिल्कुल छोडकर अशरीरी बन जाना और जब चाहे तब शरीर का आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है*? इस अनुभव को अब बढाना है।
〰✧ बिल्कुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए। *सदैव यह याद रखो कि अब गये कि गये*। सिर्फ सर्वीस के निमित्त शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्वीस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ यह शरीर बाप ने ईश्वरीय सर्विस के लिए दिया है। आप तो मर चुके हो ना। लेकिन यह पुराना शरीर सिर्फ ईश्वरीय सर्विस के लिए मिला हुआ है, ऐसे समझकर चलने से इस शरीर को भी अमानत समझेगे। *जैसे कोई की अमानत होती है तो अमानत में अपनापन नहीं होता है, ममता भी नहीं होती है। तो यह शरीर भी एक अमानत समझो। तो फिर देह की ममता भी नहीं होती है। तो यह शरीर भी एक अमानत समझो। तो फिर देह की ममता भी खत्म हो जायेगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- शरीर सहित सब चीजों से ममत्व निकालना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में घर में बाबा के कमरे में बैठी हूँ... इस देह और देह की दुनिया से अपना सारा ध्यान हटाकर भृकुटी के मध्य केन्द्रित करती हूँ... भृकुटी के भव्य सिंहासन पर बैठी मैं हीरे जैसे चमकती हुई मणि हूँ...* अविनाशी आत्मा हूँ... परमधाम में रहने वाले परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... धीरे-धीरे फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर आकाश मार्ग से होते हुए इस विनाशी दुनिया से परे सूक्ष्म वतन में पहुँच जाती हूँ... बापदादा के पास... और उनकी गोद में बैठ जाती हूँ... *प्यारे बाबा मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए प्यारी शिक्षाएं देते हैं...*
❉ *अपने प्यार की बरसात में मुझे भिगोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *अब ईश्वर पिता का मखमली हाथ थाम कर जो देह के मटमैलेपन से बाहर निकले हो तो इस मीठे भाग्य की मधुरता में खो जाओ... ईश्वर पिता से प्यार कर फिर देह की दुनिया की ओर रुख न करो...* इन मधुर यादो में खोकर अपना सुनहरा सतयुगी भाग्य सजाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की मीठी यादों में डूबकर बाबा से कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके हाथ और साथ को पाकर नये पवित्र जन्म को पा ली हूँ... *आपकी मीठी सी यादो में... देह की अपवित्र दुनिया से निकल कर सतयुगी खुबसूरत सुखो की मालकिन सी सज संवर रही हूँ...”*
❉ *मेरे हर श्वांस में अपना नाम लिखते हुए आप समान बनाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितने मीठे भाग्य से सज गए हो... मीठे बाबा की पसन्द बनकर धरा पर खुशनुमा इठला रहे हो... *इन प्यारी यादो में इस कदर खो जाओ कि... सिवाय बाबा के जेहन में कोई भी याद शेष न हो... ऐसे गहरे दिल के तार ईश्वर पिता से जोड़ लो कि वही दिल पर हमेशा छाया रहे...”*
➳ _ ➳ *विनाशी दुनिया से जीते जी मरकर अविनाशी सुखों में उड़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा दुखो की दुनिया से निकल कर सच्चे प्यार की छाँव में आ गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपकी सुखभरी छत्रछाया मे पुरानी दुनिया से मरकर नये ब्राह्मण जन्म को पा गयी हूँ...* और यहाँ से घर चलकर सुखो की नगरी में आने का मीठा भाग्य पा रही हूँ..."
❉ *इस दुनिया से न्यारी बनाकर अपनी मीठी गोद की छत्र छाया में बिठाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब पुरानी दुनिया की हर बात से उपराम होकर सच्ची यादो में अंतर्मन को छ्लकाओ... *सच्चे प्यार से सदा का नाता जोड़कर उसके प्रेम में प्रति पल भीग जाओ... इन यादो में इतने गहरे डूब जाओ कि... बस उसके सिवाय दुनिया भूली सी हो...*
➳ _ ➳ *मेरा तो एक शिव बाबा- इस स्वमान में टिककर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार में रोम रोम से भीगकर... *सच्चे प्रेम को जीने वाली महान भाग्य की धनी हो गयी हूँ... मीठे बाबा अब आप ही मेरा सच्चा सहारा हो...* और आपके संग साथी बनकर ही मुझे अपने घर चलना है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पावन बन बाप के साथ घर जाने के लिए इस 5 तत्वों के पुतले से ममत्व नही रखना है*"
➳ _ ➳ *देहभान में आने से विकारों का जो कखपन मुझ आत्मा में भर गया है उस कखपन को करनीघोर मेरे परमपिता परमात्मा स्वयं मुझसे मांग कर बदले में मुझे जन्म जन्मांतर के लिए प्योर और निरोगी बनाने का मेरे साथ सौदा कर रहें हैं तो ऐसे भगवान बाप पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए* जो मेरा कखपन लेकर मुझे विश्व की बादशाही दे रहें हैं। कितने रहमदिल दया के सागर हैं मेरे प्रभु जो सभी आत्माओं के ऊपर अपनी दयादृष्टि रखते हैं। सबको दुखों से लिबरेट कर सुख के संसार में ले जाते हैं।
➳ _ ➳ विकारो ने आज जिस भारत को कौड़ी तुल्य बना दिया है उसे फिर से स्वर्ग बनाने का कर्तव्य करने वाले *अपने प्यारे बाबा का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करते हुए अब अपने आप से वायदा करती हूँ कि जिन विकारो ने मुझे कौड़ी तुल्य बनाया है वह कखपन अपने पिता को सौंप, इस विकारी देह और देह से जुड़े विकारी सम्बन्धो से ममत्व मिटा कर केवल उन पर ही बलिहार जाना है*। उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर उनके समान बनना ही अब मेरे इस जीवन का लक्ष्य है।
➳ _ ➳ इस लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प लेकर अपने प्यारे प्रभु की याद में बैठ स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करने और अपने ऊपर चढ़ी विकारो की कट को जलाकर भस्म करने के लिए अपने बीज रूप पिता के पास चलने की आंतरिक यात्रा को अब मैं शुरू करती हूँ। *अपने मन और बुद्धि को देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, हर संकल्प विकल्प से किनारा कर मन को एक ही शक्तिशाली संकल्प में मैं स्थित करती हूँ कि मैं परमपवित्र आत्मा हूँ, नष्टोमोहा हूँ*। इस संकल्प में स्थित होते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं देह से स्वत: ही डिटैच हो रही हूँ और देह को भूलती जा रही हूँ। देह में होते भी स्वयं को मैं देह से न्यारी एक चमकती हुई ज्योति के रूप में देख रही हूँ।
➳ _ ➳ एक चैतन्य शक्ति जो इस देह में विराजमान होकर इस देह को चला रही है किन्तु देह से पूरी तरह अलग है, अपने इस स्वरूप में स्थित होकर अब मैं देख रही हूँ सितारे के समान चमक रहें अपने इस अद्भुत निराले स्वरूप को जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *इस सत्य स्वरूप में स्थित होते ही मैं महसूस कर रही हूँ जैसे पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा से निकल रहें हैं और मुझे विदेही बना कर पवित्रता के सागर मेरे प्यारे पिता की ओर ले जाने का मुझमे बल भर रहें हैं*। बाबा की पवित्रता की शक्ति एक मेग्नेटिक पॉवर की तरह मुझे अपनी ओर खींच रही है। बाबा मुझे कशिश कर रहें हैं। धीरे - धीरे देह से बाहर आकर अब मैं ऊपर की ओर उड़ रही हूँ।
➳ _ ➳ मन को गहन सुकून दे रही है ये यात्रा। बहुत ही हल्केपन का मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ। *देह और देह के सम्बन्धो की जंजीरों में जकड़ी मैं आत्मा आज उन जंजीरो को तोड़ स्वयं को पूरी तरह आजाद महसूस कर रही हूँ और उन्मुक्त होकर इस आजादी का भरपूर आनन्द लेते हुए सारे विश्व की सैर करते हुए ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। प्रकृति के हर दृश्य को देखते हुए आकाश को पार कर मैं उससे भी ऊपर जा रही हूँ। सफेद प्रकाश की खूबसूरत फरिश्तो की दुनिया से होकर अब मैं पहुँच गई हूँ अपने मूलवतन परमधाम घर मे अपने प्यारे पिता के पास। यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा शन्ति के गहन अनुभवों का आनन्द ले रही हूँ।
➳ _ ➳ कुछ क्षण शान्ति की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं अपने ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर स्वयं को पावन बनाने के लिए पवित्रता के सागर अपने पिता के पास पहुँच गई हूँ जो महाज्योति के रूप में मेरे सामने उपस्थित हैं। *उनके बिल्कुल समीप जाकर मैं आत्मा बैठ गई हूँ। उनसे निकल रही पवित्रता की किरणों की मीठी - मीठी फुहारें मुझ पर बरस रही है और मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर मुझे शुद्ध और पावन बना रही हैं*। उन किरणों का स्वरूप - धीरे - धीरे बदलकर योग अग्नि में परिवर्तित हो रहा है ऐसे लग रहा है जैसे मेरे चारों तरफ कोई ज्वाला दधक रही है जिसकी तपश मेरे विकर्मों को दग्ध कर रही है। *जैसे - जैसे मेरे विकर्म विनाश हो रहें हैं मैं सच्चे सोने के समान चमकदार बन रही हूँ*।
➳ _ ➳ शुद्व, पवित्र, शक्तिशाली बन कर मैं आत्मा अब वापिस फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजाने के लिए लौट रही हूँ। अपने शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर, बाबा को विकारों रूपी कखपन दे, विकारों के ग्रहण से मैं धीरे - धीरे मुक्त होती जा रही हूँ। *एक बाबा को ही अपना संसार बना कर, देह और देह के सम्बन्धो, देह की दुनिया से मैं धीरे - धीरे ममत्व मिटाती जा रही हूँ। अपने जीवन को सुख शांति से सम्पन्न बनाने वाले अपने सुखदाता, शांतिदाता बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उन पर बलिहार जाकर, मैं हर समय उनकी सुखदाई यादों में समा कर अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ निर्विघ्न हो कर बिल्कुल सहज रीति कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मन और बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त रख ब्राह्मण संस्कार बनाने वाली रूलर आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं दृढ़ प्रतिज्ञा से सर्व समस्याओं को सहज ही पार करने वाला मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अभी बापदादा नम्बरवन की स्टेज चलन और चेहरे पर देखना चाहते हैं*। अब समय अनुसार नम्बरवन कहने वालों को हर चलन में दर्शनीय मूर्ति दिखाई देनी चाहिए। *आपका चेहरा बतावे कि यह दर्शनीय मूर्त है*। *आपके जड़ चित्र अन्तिम जन्म तक भी, अन्तिम समय तक भी दर्शनीय मूर्त अनुभव होते हैं।* तो चैतन्य में भी जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, साकार स्वरूप में, फरिश्ता तो बाद में बना, लेकिन साकार स्वरूप में होते हुए आप सबको क्या दिखाई देता था? साधारण दिखाई देता था? अन्तिम 84वाँ जन्म, पुराना जन्म, 60 वर्ष के बाद की आयु, फिर भी आदि से अन्त तक दर्शनीय मूर्त अनुभव की। की ना? साकार रूप में की ना? ऐसे जिन्होंने नम्बरवन में हाथ उठाया, टी.वी. में निकाला है ना? बापदादा उनका फाइल देखेंगे, फाइल तो है ना बापदादा के पास। तो अब से *आपकी हर चलन से अनुभव हो, कर्म साधारण हो, चाहे कोई भी काम करते हो, बिजनेस करते हो, डाॅक्टरी करते हो, वकालत करते हो, जो कुछ भी करते हो लेकिन जिस स्थान पर आप सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो वह आपकी चलन से ऐसे महसूस करते हैं कि यह न्यारे और अलौकिक हैं?* या साधारण समझते हैं कि ऐसे तो लौकिक भी होते हैं? *काम की विशेषता नहीं लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ की विशेषता।*
➳ _ ➳ बहुत अच्छा बिजनेस है, बहुत अच्छा वकालत करता है, बहुत अच्छा डायरेक्टर है... यह तो बहुत हैं। एक बुक निकलता है जिसमें विशेष आत्माओं का नाम होता है। कितनों का नाम आता है, बहुत होते हैं। इसने यह विशेषता की, यह इसने विशेषता की, नाम आ गया। तो जिन्होंने भी हाथ उठाया, उठाना तो सबको चाहिए लेकिन जिन्होंने उठाया है और उठाना ही है। तो आपकी प्रैक्टिकल चलन में चेंज देखें। यह अभी आवाज नहीं निकला है, *चाहे इन्डस्ट्री में, चाहे कहाँ भी काम करते हो, एक-एक आत्मा कहे कि यह साधारण कर्म करते भी दर्शनीय मूर्त हैं*।
✺ *ड्रिल :- "साधारण कर्म करते भी दर्शनीय मूर्त दिखाई देने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *इस साधारण देह में मैं विशेष आत्मा*... महसूस कर रही हूँ अपनी विशेषताओं को... *दुनिया जिसकी एक-एक बूँद के लिए तरस रही है... मुझे वो पूरी मधुशाला ही हासिल है*... लम्हा लम्हा उनका साथ, मुझे उनके गुणों और शक्तियों से भर पूर कर रहा है... मैं आत्मा हर चलन में दर्शनीय मूरत बनती जा रही हूँ... मेरा लौकिक जीवन अलौकिक बनता जा रहा है... साक्षी होकर देख रही हूँ मैं अपने हर कर्म को...
➳ _ ➳ *शिव बिन्दु के साथ कम्बाइन्ड स्वरूप मैं आत्मा*... देह व कर्मेन्द्रियों को आॅर्डर प्रमाण कर्म में लीन कर... साक्षी भाव से देख रही हूँ... *भिन्न भिन्न व्यवसायों की मेरी वेशभूषा... भिन्न भिन्न कार्य स्थल... मगर उद्देश्य केवल एक... आत्माओं को सुख शान्ति, आनन्द की अनुभूति कराना*... मन में शुभभावना और शुभकामना, नयनों से रूहानी स्नेह बरसाती मैं आत्मा चेहरें से, चलन से दर्शनीय मूरत बनती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *शुभभावनाओं का बिजनेस, श्रीमत की वकालत, अपनी रूहानी चाल चलन से इस ड्रामा की आत्माओं को, डायरेक्ट करती हुई... रूहानी डायरेक्टर, देह अभिमान की सर्जरी करती मैं रूहानी सर्जन*... अपने लौकिक कार्यों को परमात्म याद में रहकर अलौकिक बना रही हूँ... *मैं आत्मा, ज्ञान, प्रेम पवित्रता सुख शान्ति आनन्द और शक्तियों का अविरल झरना बहाती... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपनी विशेषताओं का एहसास करा रही हूँ*...
➳ _ ➳ प्रेम, पवित्रता सुख, शान्ति की तलाश में भटकती इन आत्माओं के लिए, शिव पिता के साथ कम्बाइन्ड मैं आत्मा रूहानी प्रेम सुख शान्ति का लहराता सागर बन गयी हूँ... *मेरा हर संकल्प हर कर्म समय स्वाँस सफल हो रहा है... मुझसे अपनी समस्याओं का समाधान लेकर जाती ये आत्माऐं... मेरे चेहरें में, चलन में, बापदादा को प्रत्यक्ष देख रही है*...
➳ _ ➳ मेरे लौकिक कार्यों में रूहानियत की झलक पाती ये आत्माए मेरे साधारण कार्यों से असाधारण प्रेरणा ले रही हैं... *मेरा चलना, मेरा देखना, मेरा बोलना, सब कुछ रूहानी है... मेरे हर कर्म में सेवा भाव और भी गहरा होता जा रहा है*... देहभान से परे शिव पिता के निरन्तर साथ का सुनहरा एहसास मुझे दर्शनीय मूरत बनाता जा रहा है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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