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 25 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ मुरली सुनकर सुनायी ?

 

➢➢ बैज सदा लगाकर रखा ?

 

➢➢ हर आत्मा के सम्बन्ध संपर्क में आते सबको दान दिया ?

 

➢➢ चेहरे पर संतुष्टता, रूहानियत और प्रसन्नता की मुस्कराहट रही ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  बापदादा जानते हैं कि पुराने शरीर है तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। लेकिन ऐसा अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सी मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा। जैसे आदि सेवा के समय साधन नहीं थे, लेकिन साधना कितनी श्रेष्ठ रही। तो यह साधना है बीज, साधन है विस्तार। तो साधना का बीज छिपने नहीं दो, अभी फिर से बीज को प्रत्यक्ष करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं 'एक बाप, दूसरा न कोई' स्थिति वाली आत्मा हूँ"

 

   एक बाप, दूसरा न कोई - ऐसी स्थिति में सदा स्थित रहने वाली सहयोगी आत्मा हो? एक को याद करना सहज है। अनेकों को याद करना मुश्किल होता है। अनेक विस्तार को छोड़ सार स्वरूप एक बाप - इस अनुभव में कितनी खुशी होती है। खुशी जन्म सिद्ध अधिकार है, बाप का खजाना है तो बाप का खजाना बच्चों के लिए जन्म सिद्ध अधिकार होता है। अपना खजाना है तो अपने पर नाज होता है - अपना है। और मिला भी किससे है? अविनाशी बाप से।

 

  तो अविनाशी बाप जो देगा, अविनाशी देगा। अविनाशी खजाने का नशा भी अविनाशी है। यह नशा कोई छुड़ा नहीं सकता क्योंकि यह नुकसान वाला नशा नहीं है। यह प्राप्ति कराने वाला नशा है। वह प्राप्तियॉं गंवाने वाला नशा है। तो सदा क्या याद रहता?

 

  एक बाप, दूसरा न कोई। दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी। और एक बाप है तो एकरस स्थिति होगी। एक के रस में लवलीन रहना बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि आत्मा का ओरीजनल स्वरूप ही है - एकरस।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अब आप लोगों को भी अव्यक्त वतनवासी स्टेज तक पहूँचना है, तभी तो आप साथ चल सकेंगे। अभी यह साकार से अव्यक्त रूप का पार्ट क्यों हुआ? सबको अव्यक्त स्थिति में स्थित कराने क्योंकि अब तक उस स्टेज तक नहीं पहूँचे हैं।

 

✧  अभी अन्तिम पुरुषार्थ यह रह गया है। इसी से ही साक्षात्कार होंगे। साकार स्वरूप के नशे की प्वाइन्टस तो बहुत हैं कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ और मैं शक्ति हूँ। इस स्मृति से तो आपको नशे और खुशी का अनुभव होगा।

 

✧   लेकिन जब तक इस अव्यक्त स्वरूप में, लाइट के कर्ब में स्वयं को अनुभव नहीं किया है, तब तक औरों को आपका साक्षात्कार नहीं हो सकेगा। क्योंकि जो दैवी स्वरूप का साक्षात्कार भक्तों को होगा, यह लाइट रूप की कार्ब में चलते - फिरते रहने से ही होगा। साक्षात्कार भी लाइट के बिना नहीं होता है। स्वयं जब लाइट रूप में स्थित होंगे, आपके लाइट रूप के प्रभाव से ही उनको साक्षात्कार होगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ जो ट्रस्टी होगा उसका विशेष लक्षण सदैव स्वयं को हर बात में हल्का अनुभव करेगा। डबल लाइट अनुभव करेगा। शरीर के भान का भी बोझ न हो - इसको कहा जाता है - 'ट्रस्टी'। अगर देह के भान का बोझ है तो एक बोझ के साथ अनेक प्रकार के बोझ से परे रहने का यह साधन है। तो चैक करो बॉडी-कान्सेस में कितना समय रहते? जब बाप के बने, तो तन-मन-धन सहित बाप को बने ना?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- पिछले जन्मों के विकर्मों को योग अग्नि से समाप्त करना"

 

_ ➳  सारी एक की ही महिमा है, एक का ही गायन है... गाते भी हैं पतित पावन, जरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं... सतयुग में तो सुखी होते हैं, वहां कोई दुख नहीं, दुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती... अभी है घोर कलयुग, घोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन शुरू हुआ है... गाते भी है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन... तो अब बाप मिला है, मनमनाभव का मंत्र मिला है... तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़ एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोई' इसी तपस्या में मैं आत्मा तप रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...

 

   पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से कहते हैं:- "मीठी बच्ची... 21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं... बोझ चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी हो, अब तुम्हारे बुलाने पर क्योंकि मैं आया हूं... तो अब, मनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."

 

_ ➳  मीठे बाबा की मीठी समझानी को  सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा से बोली:-  "हां मेरे मीठे बाबा... आधाकल्प हुआ, माया ने बहुत कुतर कुतर की है... आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्माकाली और दुखी बन पड़ी थी बाबा... जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं... भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब चलते फिरते उठते बैठते  आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं बाबा..." 

 

  ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:- "देखो बच्चे... दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम काला, फिर काली का चित्र भी बैठ बनाया है, परंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के, नॉलेजफुल बच्चे बने हो... सारा मदार है याद पर... जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगे, बुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."

 

_ ➳  मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारती, तो कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा रही हूं... स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीक, खुद को देख रही हूं..."

 

  करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:- "मीठी बच्ची... अब ज्वालामुखी याद द्वारा, पूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी उत्साह में रख, अभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो... देखो ब्रह्मा बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."

 

_ ➳  मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुए, मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूं... मैं आत्मा देख रही हूं, कैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं... मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  कल्याणकारी बनना है"

 

_ ➳  सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति रखने वाले दया के सागर शिव परमपिता परमात्मा की सन्तान मैं आत्मा भी उनके समान सर्व आत्माओं पर रहम करने वाली मास्टर विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँइस स्मृति में स्थित हो कर विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने हेतू अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को मैं धारण कर लेती हूँ और स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करने के लिए सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के दाता अपने शिव बाप के पास चल पड़ती हूँ। अपने लाइट के सूक्ष्म शरीर में मैं स्वयं को साकारी देह से बिलकुल अलग एकदम हल्का और निर्बन्धन अनुभव कर रही हूँ। कितनी न्यारी और प्यारी अवस्था है। कोई भारीपन, कोई बोझ नही। हल्केपन की इस स्थिति में अब मैं धीरे - धीरे ऊपर उड़ रही हूँ।

 

_ ➳  पूरी दुनिया का भ्रमण करते, इस कलयुगी दुनिया के दिल को दहलाने वाले करुण दृश्यों को मैं देखती जा रही हूँ। विकारों के वशीभूत हो कर सभी एक दूसरे को दुःख दे रहें हैं। क्षण भर की शान्ति की तलाश में दर - दर भटक रहे है किंतु शान्ति से कोसों दूर है। रोती, बिलखती, दुःख से पीड़ित आत्माओं को देखता हुआ मैं फ़रिशता कलयुगी दुनिया से बाहर आ जाता हूँ औऱ आकाश को पार कर जाता हूँ। उससे भी ऊपर और ऊपर उड़ते हुए मैं सफेद प्रकाश की एक अति सुंदर मन को लुभाने वाली दुनिया में प्रवेश करता हूँ जहाँ चारों और प्रकाश की काया वाले फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते हैं। पाँच तत्वों से बनी कोई भी वस्तु यहाँ नही है।

 

_ ➳  अपने सामने मैं अव्यक्त बापदादा को देख रहा हूँ जो स्वागत की मुद्रा में अपनी दोनों बाहों को फैला कर खड़े हुए हैं। बाबा के अति तेजस्वी मुख मण्डल पर फैली दिव्य मुस्कराहट मुझे सहज ही अपनी और आकर्षित कर रही है। बिना एक क्षण की भी देरी किये मैं दौड़ कर बापदादा के पास जाता हूँ और उनकी बाहों में समा जाता हूँ। बाबा मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं और अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाने लगते हैं। अपनी सर्वशक्तियों से बाबा मुझे भरपूर कर देते हैं। परमात्म बल मेरे अंदर भर कर मुझे असीम ऊर्जावान और शक्तिवान बना कर अब बाबा मुझे विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने कीजिम्मेवारी दे कर अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख देते हैं।

 

_ ➳  परमात्म बल से भरपूर हो कर और बापदादा से वरदान ले कर मैं फ़रिशता विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने हेतु अब विश्व ग्लोब पर आ कर बैठ जाता हूँ और बापदादा का आह्वान करता हूँ। बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर, बाबा से आ रही सर्वशक्तियों को स्वयं में भर कर इन शक्तियों को अब मैं विश्व ग्लोब पर बैठ पूरे विश्व मे फैला रहा हूँ। विकारो की अग्नि में जलने के कारण दुखी और अशांत हो चुकी आत्माओं पर ये शक्तियाँ शीतल फुहारों के रूप में बरस रही हैं और उन्हें गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है। शीतलता की अनुभूति करवाने के साथ - साथ अब मैं फ़रिशता उन आत्माओं को परमात्म परिचय दे कर उन्हें सदा के लिए दुःखो से छूटने का उपाय बता रहा हूँ।

 

_ ➳  परमात्मा का परिचय पाकर और परमात्म प्यार का अनुभव करके सभी आत्मायें प्रसन्न हो रही हैं। उनके चेहरों की मुस्कराहट वापिस लौट आई है। हर आत्मा का चेहरा रूहानियत से चमकने लगा है।  ईश्वरीय ज्ञान के महत्व को सर्व आत्मायें स्वीकार कर रही है। परमात्म परिचय दे कर सर्व आत्माओं का कल्याण कर, अब मैं अपने सूक्ष्म शरीर के साथ वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ और अपने साकारी तन में विराजमान हो कर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ। सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी वृति रखते हुए, मास्टर विश्व कल्याणकारी बन अब मैं सबको बाप का परिचय दे कर उनका कल्याण हर समय करती रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं हर आत्मा के सम्बन्ध संपर्क में आते सबको दान देने वाली महादानी, वरदानी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं बापदादा और परिवार के समीप रहकर चेहरे पर संतुष्टता, रूहानियत और प्रसन्नता की मुस्कुराहट रखने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ एक है सेवाधारी बन सेवा करने वाले और दूसरे हैं नामधारी बनने के लिए सेवा करने वाले। फर्क हो गया ना। सच्चे सेवाधारी जिन आत्माओं की सेवा करेंगे उन्हों को प्राप्ति के प्रत्यक्षफल का अनुभव करायेंगे। नामधारी बनने वाले सेवाधारी उसी समय नामाचार को पायेंगे - बहुत अच्छा सुनाया, बहुत अच्छा बोला, लेकिन प्राप्ति के फल की अनुभूति नहीं करा सकेंगे। तो अन्तर हो गया ना! ऐसे एक है लगन से सेवा करना, एक है डयूटी के प्रमाण सेवा करना। लगन वाले हर आत्मा की लगन लगाने के बिना रह नहीं सकेंगे। डयूटी वाला अपना काम पूरा कर लेगा, सप्ताह कोर्स करा लेगा, योग शिविर भी करा लेगा, धारणा शिविर भी करा लेगा, मुरली सुनाने तक भी पहुँचा लेगा, लेकिन आत्मा की लगन लग जाए इसकी जिम्मेवारी अपनी नहीं समझेंगे। कोर्स के ऊपर कोर्स करा लेंगे लेकिन आत्मा में फोर्स नहीं भर सकेंगे। और सोचेंगे मैंने बहुत मेहनत कर ली। लेकिन यह नियम है कि सेवा की लगन वाला ही लगन लगा सकता है। तो अन्तर समझा? यह है मिली हुई प्रॉपर्टी को बढ़ाना।

✺ "ड्रिल :- आत्माओं की सेवा कर उन्हें प्राप्ति के प्रत्यक्ष फल का अनुभव करवाना"

➳ _ ➳ गोधूली सी शाम में ढलते हुए सूरज के सामने मौन अवस्था में इस आकर्षित करने वाले दृश्य को मैं आत्मा अपनी खुली आँखों से निहार रही हूँ... इस दृश्य को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो इस धरती रूपी दुल्हनिया ने लाल-सुनहरे रंग की चुनरिया ओढ़ रखी हो... और साँझ रूपी घूंघट मुख पर डाल कर शर्मा रही हो...

➳ _ ➳ उड़ते पंछी को वापिस अपने घोंसले में जाते हुए देख मेरा मन ये सोचने पर मजबूर हो रहा है कि किसनेे इन्हें निडर हो कर उड़ना सिखाया और इन्हें बिना किसी की ऊँगली पकडे हर तूफानों से लड़ना सिखाया... तभी मेरा अन्तर्मन पहनकर फरिश्ता चोला पहुँच गया आबू पर्वतों में... जहाँ बाबा कुटिया में बैठ कर मुझ आत्मा को अनमोल शिक्षाएं दे कर मुझे परिपूर्ण बना रहे हैं... बाबा मुझसे कहते हैं सेवा को ड्यूटी नहीं लगन बनाओ अगर सेवा ड्यूटी समझ कर करोगे तो आप समान और बाप समान कैसे बना पाओगे? कैसे, अपनी और उनकी परमात्मा से लगन लगा पाओगे ? ड्यूटी समझ कर तुम सेवा करोगे तो सेवाधारी बन कर रह जाओगे ? कैसे परमात्मा से प्रीत निभाओगे...

➳ _ ➳ इतना सुनकर मैं बाबा का धन्यवाद करते हुए फरिश्ते चाल चलते हुए वापिस उस स्थान पर आ जाती हूँ... और मैं अपने आप से ये वादा करती हूँ... अब से मैं हर आत्मा में कोर्स नहीं ज्ञान का फ़ोर्स भर दूँगी... एक सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को लगन की अनुभूति कराउंगी... जैसे एक चिड़िया अपने नवजात शिशु को सेवाधारी बनकर स्वतंत्र उड़ना सिखाती है... और स्वयं अलग दिशा में उड़ जाती है... वैसे ही मैं आत्मा अपनी सहयोगी आत्माओं में पुरुषार्थ की लगन लगाकर उन्हें संपूर्णता की मंजिल की राह दिखाउंगी...

➳ _ ➳ सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को सेवा के प्रत्यक्ष फल का अनुभव कराउंगी... नामधारी बन केवल नामाचार को नहीं पाऊंगी... उड़ते पक्षी की तरह सभी आत्माओं में तूफानों से लड़कर जीतना सिखाऊंगी... नहीं रोक पाये जिन्हें कोई आंधी -तूफ़ान ऐसा उड़ता परिन्दा बनाउंगी... केवल अच्छा ज्ञान नहीं सुनाकर... उन्हें ज्ञानी आत्मा बनाउंगी... हमेशा लगन से सेवा करके सभी आत्माओं को प्राप्ति का अनुभव कराउंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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