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❍ 29 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपनी जांच की की आज मुझ आत्मा की वृत्ति कैसी रही ?
➢➢ ज्ञान तलवार में याद का जोहर भरा ?
➢➢ संगम युग के महत्व को जान हर समय विशेष अटेंशन रखा ?
➢➢ संकल्पों में दृढ़ता से हर कार्य संभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ फ़रिश्ता स्थिति डबल लाइट स्थिति है, इस स्थिति में कोई भी कार्य का बोझ नहीं रहता, इसके लिए कर्म करते बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप यह मन की एक्सरसाइज करो। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा, सदा डबल लाइट रहे, सेवा का भी बोझ नहीं रहा, ऐसे फालो फादर करो तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं तख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को तख्त-नशीन श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करते हो? आत्मा सदा किस तख्त पर विराजमान है, जानते हो? इसको कौनसा तख्त कहते हैं? अकाल है ना। आत्मा अकाल है, इसलिए उसके तख्त का नाम भी अकालतख्त है। आत्मा शरीर में सदा भृकुटि के बीच अकालतख्त-नशीन है। तो तख्त नशीन जो होता है उसे राजा कहा जाता है। तख्त पर तो राजा ही बैठेगा ना। तो आप आत्मा भी अकालतख्त-नशीन राजा हो। अकालतख्त-नशीन आत्माएं बाप के दिल का तख्त और विश्व के राज्य का तख्त भी प्राप्त करती हैं। तो तीनों ही तख्त कायम हैं? तख्त पर बैठना आता है? या घड़ी-घड़ी नीचे आ जाते हो?
〰✧ जो पहले अकालतख्त-नशीन हो सकते हैं वही बाप के दिलतख्त-नशीन हो सकते हैं और जो दिलतख्त-नशीन हैं वही विश्व के राज्य के तख्त-नशीन हो सकते हैं। तो पहला आधार है-अकालतख्त। स्वराज्य है तो विश्व-राज्य है। जिसको स्वराज्य करना नहीं आता वह विश्व का राज्य नहीं कर सकता। तो स्वराज्य का तख्त है यह भृकुटि-अकालतख्त। बाप और बच्चे के सम्बन्ध का तख्त है बाप के दिल का तख्त। इन दो तख्त के आधार पर विश्व के राज्य का तख्त। तो पहले फाउन्डेशन क्या हुआ? अकालतख्त। अकालतख्त-नशीन आत्मा सदा नशे में रहती है। तख्त का नशा तो होगा ना। लेकिन यह रूहानी नशा है। अल्पकाल का नशा नहीं, नुकसान वाला नशा नहीं। यह रूहानी नशा हद के नशों समाप्त कर देता है। हद के नशे तो अनेक प्रकार के हैं और रूहानी नशा एक है। मैं बाप का, बाप मेरा-यह रूहानी नशा है। बाप का बन गया-यह रूहानी नशा है। तो यह रूहानी नशा सदा रहता है? या उतरता-चढ़ता है-कभी ज्यादा चढ़ता, कभी कम चढ़ता?
〰✧ अगर कोई राजा हो, तख्त भी हो लेकिन तख्त का, राजाई का नशा नहीं हो तो वह राजा बिना नशे के राज्य चला सकेगा? अगर आत्मा रूहानी नशे में नहीं तो स्वराज्य कैसे कर सकेंगे? राज्य में हलचल होगी। देखो, प्रजा का प्रजा पर राज्य है तो हलचल है ना। अगर आत्मा स्वराज्य के नशे में नहीं, तो प्रजा का प्रजा पर राज्य हो जाता है-यह कर्मेन्द्रियां ही राज्य करती हैं। तो प्रजा का राज्य हुआ ना। उसका नतीजा होगा-हलचल। तो सदा तख्त-नशीन आत्मा का रूहानी नशा रखो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आग में पडा हुआ बीज कभी फल नहीं देता। तो इस हिसाब-किताब के विस्तार रूपी वृक्ष को लगन की अग्नि में समाप्त करो। फिर क्या रह जायेगा? देह और देह के सम्बन्ध वा पदार्थ का विस्तार खत्म हो गया तो बाकी रह जयेगा ‘बिन्दु आत्मा वा बीज आत्मा' जब ऐसे बिन्दु, बीज स्वरूप बन जाओ तब आवाज से परे बीजरूप बाप के साथ चल सको।
〰✧ इसलिए पूछा कि आवाज से परे जाने के लिए तैयार हो? विस्तार को समाप्त कर दिया है? बीजरूप बाप, बीज स्वरूप आत्माओं को ही ले जायेंगे। बीज स्वरूप बन गये हो? जो एवररेडी होगा उसको अभी से अलौकिक अनुभूतियाँ होती रहेगी। क्या होगी?
〰✧ चलते, फिरते, बैठते, बातचीत करते पहली अनुभूति - यह शरीर जो हिसाब-किताब के वृक्ष का मूल तना है जिससे यह शाखायें प्रकट होती हैं, यह देह और आत्मा रूपी बीज, दोनों ही बिल्कुल अलग हैं। ऐसे आत्मा न्यारे-पन का चलते-फिरते बारबार अनुभव करेंगे। नॉलेज के हिसाब से नहीं कि आत्मा और शरीर अलग है। लेकिन शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ। यह अलग वस्तु की अनुभूति हो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ शुभ चिंतन का आधार हैं शुभ चिंतक बनने का। पहला कदम है स्व-चिंतन। स्वःचिन्तन अर्थात् जो बापदादा ने 'मैं कौन' की पहेली बताई है उसको सदा स्मृति-स्वरूप में रखना। जैसे बाप और दादा जो है, जैसा है - वैसा उसको जानना ही यथार्थ जानना है और दोनों को जानना ही जानना है। ऐसे स्व को भी - जो हूँ जैसा हूँ अर्थात् जो आदि-अनादि श्रेष्ठ स्वरूप हूँ, उस रूप से अपने आपको जानना और उसी स्वचिन्तन में रहना इसको कहा जाता है - 'स्व-चिन्तन'।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- अशरीरी बनने का अभ्यास करना"
➳ _ ➳ अंधकार को छिपाकर रोशनी का स्वागत करती प्रकृति सूर्योदय की सुनहरी
आभा को ओढ़े मुस्कुरा रही है... मैं आत्मा भृकुटी में चमकती मणि इन स्वर्णिम
किरणों में बैठकर... इस स्थूल देह को स्थूल दुनिया में छोड़कर उड़ते हुए परमधाम
ज्ञान सूर्य के सम्मुख बैठ जाती हूँ... ज्ञान सूर्य की किरणों से अपनी आभा को
निखारकर... प्यारे बाबा संग रूहानी सैर करती हुई पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन...
❉ जीते जी इस शरीर से अलग होकर अशरीरी बन बाप को याद करने का पाठ
पढ़ाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... सत्य सारा भूल गए और
असत्य के प्रभाव में शक्तिहीन हो गए... अब स्वयं को इस झूठ के आवरण से अलग
करो... इस खोल में छुपे मणि को निहारो... अपने सच्चे पिता को निहारो...”
➳ _ ➳ जगमगाती चमचमाती ज्योतिबिंदु स्वरुप मैं आत्मा मणि कहती हूँ:-
“हाँ मेरे मीठे बाबा... मै शरीर तो नही पर शरीर के भान में ही सदा चिपकी रही...
नासमझी में दुखो को यूँ ही जीती रही... अब आपके याद दिलाने से मुझे अपना चमकता
मणि रूप याद आ गया है... और इस चमक में खो गयी हूँ...”
❉ प्यारे बाबा ज्ञान दर्पण में मुझ आत्मा का सत्य स्वरुप दिखाकर
कहते हैं:- “मीठे प्यारे बच्चे... कितना समय इस भूलभुलैया में जीये हो... सारी
जागीरों के स्वामी होकर यूँ निर्धन बन रोये हो... अब सच्चाई को बाहों में भरो
दिल में समालो... अशरीरी पन के अहसासो में डूब जाओ... वही अमीरी पुनः पा
लो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सत्य स्वरुप की गहराइयों में खोकर अशरीरीपन का
अनुभव करती हुई कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा निर्धन बन दीन
हीन हो गई थी... आपके स्पर्श ने मुझे शरीरी तन्द्रा से जगाया और बताया की मै
अशरीरी प्यारी सी खूबसूरत आत्मा हूँ... और अपने सुंदर रूप में मै खो सी गयी
हूँ...”
❉ मेरे बाबा गुण, शक्तियों के जादुई खजानों की चाबी सौगात में
देते हुए कहते हैं:- “प्यारे बच्चे... अशरीरी अवस्था ही सारे खजानो की
प्राप्ति का आधार है... डेड साइलेन्स में ही आत्मा शक्तियो को पुनः प्राप्त कर
शक्तिशाली बन पाती है... इस अहसास को यादो में पक्का कर खूबसूरत जादूगरी के
अनुभवी बन जाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा न्यारी और प्यारी होकर दिव्य अनुभूतियों को समेटते हुए
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो के खूबसूरत साये में
अशरीरी होकर बैठी हूँ... आपको अपलक देख रही हूँ और स्वयं को तेजस्वी अनुभव कर
रही हूँ... आपके प्यार में स्वयं को समेट रही हूँ... बिन्दु बन दमक रही
हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बुद्धि में अविनाशी ज्ञान धन धारण कर फिर दान करना है"
➳ _ ➳ ज्ञान के सागर अपने शिव पिता परमात्मा द्वारा मुरली के माध्यम से
हर रोज प्राप्त होने वाले मधुर महावाक्यों को एकांत में बैठ मैं पढ़ रही हूँ और
पढ़ते - पढ़ते अनुभव कर रही हूँ कि ब्रह्मा मुख द्वारा अविनाशी ज्ञान के अखुट
खजाने लुटाते मेरे शिव पिता परमात्मा परमधाम से नीचे साकार सृष्टि पर आकर मेरे
सम्मुख विराजमान हो गए हैं। अपने मुख कमल से मेरी रचना कर मुझे ब्राह्मण बनाने
वाले मेरे परम शिक्षक शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि पर बैठ ज्ञान की गुह्य
बातें मुझे सुना रहें हैं और मैं ब्राह्मण आत्मा ज्ञान के सागर अपने शिव पिता
के सम्मुख बैठ, ब्रह्मा मुख से उच्चारित मधुर महावाक्यों को बड़े प्यार से सुन
रही हूँ और ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर कर रही हूँ।
➳ _ ➳ मुरली का एक - एक महावाक्य अमृत की धारा बन मेरे जीवन को परिवर्तित
कर रहा है। आज दिन तक अज्ञान अंधकार में मैं भटक रही थी और व्यर्थ के कर्मकांडो
में उलझ कर अपने जीवन के अमूल्य पलों को व्यर्थ गंवा रही थी। धन्यवाद मेरे शिव
पिता परमात्मा का जिन्होंने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर मुझे अज्ञान अंधकार से
निकाल मेरे जीवन मे सोझरा कर दिया। अपने शिव पिता परमात्मा के समान महादानी बन
अब मुझे उनसे मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान सबको कर, सबको अज्ञान
अंधकार से निकाल सोझरे में लाना है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के स्नेह का रिटर्न अब मुझे उनके फरमान पर चल, औरो
को आप समान बनाने की सेवा करके अवश्य देना है। अपने आप से यह प्रतिज्ञा करते
हुए मैं देखती हूँ मेरे सामने बैठे बापदादा मुस्कराते हुए बड़े प्यार से मुझे
निहार रहें हैं। उनकी मीठी मधुर मुस्कान मेरे दिल मे गहराई तक समाती जा रही
है। उनके नयनों से और भृकुटि से बहुत तेज दिव्य प्रकाश निकल रहा है। ऐसा लग रहा
है जैसे प्रकाश की सहस्त्रो धारायें मेरे ऊपर पड़ रही है और उस दिव्य प्रकाश में
नहाकर मेरा स्वरूप बहुत ही दिव्य और लाइट का बनता जा रहा है। मैं देख रही हूँ
बापदादा के समान मेरे लाइट के शरीर में से भी प्रकाश की अनन्त धारायें निकल रही
हैं और चारों और फैलती जा रही हैं।
➳ _ ➳ अब बापदादा मेरे पास आ कर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर अपने सभी
अविनाशी खजाने, गुण और शक्तियां मुझे विल कर रहें हैं। बाबा के हस्तों से निकल
रहे सर्व ख़ज़ानों, सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही
हूँ। बापदादा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे "अविनाशी ज्ञान रत्नों के
महादानी भव" का वरदान दे रहें हैं। वरदान दे कर, उस वरदान को फलीभूत कर, उसमे
सफलता पाने के लिए बाबा अब मेरे मस्तक पर विजय का तिलक दे रहें हैं। मैं अनुभव
कर रही हूँ मेरे लाइट माइट स्वरूप में मेरे मस्तक पर जैसे ज्ञान का दिव्य चक्षु
खुला गया है जिसमे से एक दिव्य प्रकाश निकल रहा है और उस प्रकाश में ज्ञान का
अखुट भण्डार समाया है।
➳ _ ➳ महादानी बन, अपने लाइट माइट स्वरूप में सारे विश्व की सर्व आत्माओ
को अविनाशी ज्ञान रत्न देने के लिए अब मैं सारे विश्व मे चक्कर लगा रही हूँ।
मेरे मस्तक पर खुले ज्ञान के दिव्य चक्षु से निकल रही लाइट से ज्ञान का प्रकाश
चारों और फैल रहा है और सारे विश्व में फैल कर विश्व की सर्व आत्माओं को
परमात्म परिचय दे रहा हैं। सर्व आत्माओं को परमात्म अवतरण का अनुभव हो रहा है।
सभी आत्मायें अविनाशी ज्ञान रत्नों से स्वयं को भरपूर कर रही हैं। सभी का
बुद्धि रूपी बर्तन शुद्ध और पवित्र हो रहा है। ज्ञान रत्नों को बुद्धि में धारण
कर सभी परमात्म पालना का आनन्द ले रहे हैं।
➳ _ ➳ लाइट माइट स्वरूप में विश्व की सर्व आत्माओं को अविनाशी ज्ञान रत्नों
का दान दे कर, अब मैं साकार रूप में अपने साकार ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो
कर महादानी बन मुख द्वारा अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को
आविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे कर, सभी को अपने पिता परमात्मा से मिलाने की
सेवा निरन्तर कर रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में, डबल लाइट स्थिति का अनुभव
करते अपनी स्थिति से मैं अनेको आत्माओं को परमात्म प्यार का अनुभव करवा रही
हूँ। परमात्म प्यार का अनुभव करके वो सभी आत्मायें अब परमात्मा द्वारा मिलने
वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर अपने जीवन को खुशहाल बना रही हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं संगमयुग के महत्व को जान हर समय विशेष अटेंशन रखने वाली हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं संकल्प में दृढ़ता की शक्ति धारण कर, हर कार्य को संभव बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ तीनों ही विशेषता सामने रख स्वयं से पूछो कि मैं कौन-सा ‘त्यागी' हूँ? कहाँ तक पहुँचे हैं? कितनी पौड़ियाँ चढ़ करके बाप समान की मंजिल पर पहुँचे हैं? फुल स्टैप तक पहुँचे हो या अभी कुछ स्टैप तक पहुँचे हो? या अभी कुछ स्टैप रह गये हैं? त्याग की भी स्टैप सुनाई ना। तो किस स्टैप तक पहुँचे हो? सात कोर्स में से कितने कोर्स किये हैं? सप्ताह पाठ का लास्ट में भोग पड़ता है - तो बापदादा भी अभी भोग डाले? आप लोग तो हर गुरूवार को भोग लगाते हो लेकिन बापदादा तो महाभोग करेंगे ना। जैसे सन्देशियाँ ऊपर वतन में भोग ले जाती हैं - तो बापदादा भी कहाँ ले जायेंगे! पहले स्वयं को भोग में समर्पण करो। भोग भी बाप के आगे समर्पण करते हो ना। अभी स्वयं को सदा प्रत्यक्ष फलस्वरूप बनाकर समर्पण करो। तब महाभोग होगा। अपने आपको सम्पन्न बनाकर आफर करो। सिर्फ स्थूल भोग की आफर नहीं करो। सम्पन्न आत्मा बन स्वयं को आफर करो। समझा - बाकी क्या करना है वह समझ में आया?
✺ "ड्रिल :- स्वयं को भोग में समर्पण करना।"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सेंटर पर अपनी प्यारी दीदी से मुरली सुन रही हूं... और मुरली सुनते समय मैं पूरी तरह से दीदी के हर एक शब्द को गहराई से अनुभव कर रही हूं... और मुरली के हर शब्द से मैं एक अलौकिक चित्र बनाकर उसमें भ्रमण कर रही हूं... और अपने परमपिता को कंबाइंड स्थिति मैं फील कर रही हूं... जब मुरली समाप्त होती है... तो मुझे याद आता है... कि आज वीरवार है... और हमारी दीदी हमारे प्यारे बाबा को अनेक तरह के व्यंजनों का भोग लगाना आरंभ कर रहे हैं... हम सभी क्लास में बैठी आत्माएं योग प्रारंभ करती हैं... तभी मैं अपने आपको मन बुद्धि से अपनी प्यारी दीदी के साथ सूक्ष्म वतन में अनुभव करती हूं...
➳ _ ➳ और मैं अपने आप को कुछ समय बाद बापदादा के सामने सूक्ष्म वतन में अनुभव करती हूं... मैं देखती हूं कि हमारी दीदी फरिश्ता स्वरूप में बाबा के सामने खड़े हैं... और मैं भोजन की थाली लेकर उनके पास खड़ी हूं... जैसे जैसे बाबा को भोग लगना प्रारंभ होता है... तो मुझे आभास होता है कि बाबा कह रहे हो कि यह पकवान मुझे कुछ समय के लिए खुश कर सकते हैं... और इसका कुछ ही समय के लिए मैं आनंद ले सकता हूं... मैं कुछ ऐसा भोजन चाहता हूं... जिससे मेरी खुशी अपरम्पार हो जाए... बाबा की बात सुनकर मैं कुछ सोच में पड़ जाती हूँ... और बापदादा से पूछती हूँ... बाबा आप हमें बताएं कि आपको कैसा भोजन ज्यादा प्रिय होगा? बाबा मुस्कुराते हैं... बाबा मुस्कुराते हुए और मुझे अपनी दृष्टि से निहाल करते हुए इशारे ही इशारों में मुझे समझाने लगते हैं...
➳ _ ➳ और मुझे बाबा की दृष्टि से यह एहसास होता है... कि मानो बाबा मुझे कह रहे हो कि जब मेरे बच्चे अपने तीव्र पुरुषार्थ से और श्रीमत का पालन करते हुए... जो अभी कच्चे फल की भांति है... अपनी उस अवस्था को परिपक्व करते हुए... अपने आपको मेरे पास उपस्थित करेंगे... तो मैं उन्हें पके हुए फल की भांति स्वीकार करके अपनी इस भूख से तृप्त हो जाऊंगा... और बच्चों के इस परिपक्व भाव के कारण वह हमेशा मेरे दिल के पास रहेंगे... और बाबा इसका मुझे आभास बहुत गहराई से कराने लगते हैं... मैं भी उनकी शक्तिशाली किरणों द्वारा दृष्टि द्वारा अपने अंदर यह अनुभव करती हूं... कि मैं जो अभी पुरुषार्थ कर रही हूं उसको आगे बढ़ाते हुए पके हुए फल की भांति परिपक्व स्थिति में आने का पूर्ण पुरुषार्थ करूंगी... और अपने इसी संकल्प को लेते हुए मैं दीदी के साथ वहां पर फरिश्ता स्वरुप में नीचे आ जाती हूं...
➳ _ ➳ जब मैं अपने आप को फिर से स्थूल वतन में सेंटर पर अपने इस शरीर में अनुभव करती हूं... और मुझे यहां आकर तो बापदादा की कही हर बात याद आती है... और मैं मन ही मन बापदादा से और अपने से वादा कर लेती हूं... और मैं सेंटर से मुरली सुनकर परमात्मा की याद में अपने आपको अनुभव करते हुए... वापस अपने इस लौकिक परिवार में आ जाती हूं... जब मैं रास्ते से गुजर कर अपने इस गृहस्थ आश्रम में आगमन करती हूं... मैं ये संकल्प करती हूँ की उन सभी पुराने संस्कारों को रोज अपने बाबा को अर्पण करती चलूंगी... और साथ ही साथ स्वयं को पूर्ण रुप से पुरुषार्थ की परिपक्व अवस्था में... पके हुए फल की भांति बापदादा को अर्पण कर दूंगी... अपने इस संकल्प से मैं अपनी स्थिति को महान बनाते हुए... बाबा की याद में हर कर्म करना प्रारंभ कर देती हूँ... इस दुनिया में रहते हुए... मैं स्वयं को परमात्मा की याद में समाने का अभ्यास करती चली जाती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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