━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 07 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ सत्यता की शक्ति को स्वयं में धारण किया ?

 

➢➢ निर्भय स्थिति का अनुभव कर सदा ख़ुशी में नाचते गाते रहे ?

 

➢➢ माया को अपनी शैया बनाया ?

 

➢➢ याद को ज्वाला स्वरुप बनाया ?

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात, समय की बात..... सब सहज हो जाती है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। जब बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले भी ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   "मैं विश्व-परिवर्तक आत्मा हूँ"

 

✧  सदा अपने को विश्व-परिवर्तक अनुभव करते हो? विश्व-परिवर्तन करने की विधि क्या है? स्व-परिवर्तन से विश्वपरिवर्तन। बहुतकाल के स्व-परिवर्तन के आधार से ही बहुतकाल का राज्य-अधिकार मिलेगा। स्व-परिवर्तन बहुतकाल का चाहिए। अगर अन्त में स्व-परिवर्तन होगा तो विश्व-परिवर्तन के निमित्त भी अन्त में बनेंगे, फिर राज्य भी अन्त में मिलेगा। तो अन्त में राज्य लेना है कि शुरू से लेना है? अच्छा, लेना शुरू से है और करना अन्त में है?

 

  अगर लेना बहुतकाल का है तो स्वपरिवर्तन भी बहुतकाल का चाहिए। क्योंकि संस्कार बनता है ना। तो बहुतकाल का संस्कार न चाहते हुए भी अपनी तरफ खींचता है। जैसे अभी भी कहते हो कि मेरा यह पुराना संस्कार है ना, इसीलिए न चाहते भी हो जाता है। तो वह खींचता है ना। तो यह भी बहुत समय का पक्का पुरुषार्थ नहीं होगा, कच्चा होगा, तो कच्चा पुरुषार्थ भी अपनी तरफ खींचेगा और रिजल्ट क्या होगी? फुल पास नहीं हो सकेंगे ना। इसलिए अभी से स्व-परिवर्तन के संस्कार बनाओ। नेचुरल संस्कार बन जाये। जो नेचुरल संस्कार होते हैं उनके लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती। स्व-परिवर्तन का विशेष संस्कार क्या है?

 

  जो ब्रह्मा बाप के संस्कार वो बच्चों के संस्कार। तो ब्रह्मा बाप ने अपना संस्कार क्या बनाया, जो साकार शरीर के अन्त में भी याद दिलाया? निराकारी, निर्विकारी, निरअहंकारी-ये हैं ब्रह्मा बाप के अर्थात् ब्राह्मणों के संस्कार। तो ये संस्कार नेचुरल हों। निराकार तो हो ही ना, ये तो निजी स्वरूप है ना। और कितने बार निर्विकारी बने हो! अनेक बार बने हो ना। ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही है निरहंकारी। तो ये ब्रह्मा के संस्कार अपने में देखो कि सचमुच ये संस्कार बने हैं? ऐसे नहीं-ये ब्रह्मा के संस्कार हैं, ये मेरे संस्कार हैं। फालो फादर है ना। पूरा फालो करना है ना। तो सदा ये श्रेष्ठ संस्कार सामने रखो। सारे दिन में जो भी कर्म करते हो, तो हर कर्म के समय चेक करो कि तीनों ही संस्कार इमर्ज रूप में हैं? तो बहुत समय के संस्कार सहज बन जायेंगे। यही लक्ष्य है ना! पूरा बनना है तो जल्दी-जल्दी बनो ना। समय आने पर नहीं बनना है, समय के पहले अपने को सम्पन्न बनाना है। समय रचना है और आप मास्टर रचयिता हैं। रचता शक्तिशाली होता है या रचना? तो अभी पूरा ही स्व-परिवर्तन करो। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में 'कब' 'कब' नहीं है। 'अब'। तो ऐसे पक्के ब्राह्मण हो ना।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  अन्तिम दृश्य और दृष्टा की स्थिति :- चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हो फिर भी सेकण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ। फुलस्टॉप लगाना आता है? फुलस्टॉप लागाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। क्वेचन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा।

 

✧  तो वर्तमान समय हलचल बढने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा। एक तरफ प्रकृति का विकराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अंत होने के कारण अति विकराल रूप होगा।

 

✧  अपना लास्ट वार आजमाने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकारा चौथी तरफ क्या होगा? पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेगे।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ किस आधार पर रूहानी खुशबू सदाकाल एकरस और दूर दूर तक फैलती है अर्थात् प्रभाव डालती है? इसका मूल आधार है 'रूहानी वृति'। सदा वृत्ति में रूह, रूह को देख रहे हैं, रूह से ही बोल रहे हैं। रूह ही अलग अलग अपना पार्ट बजा रहे हैं। मैं रूह हूँ, सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में चल रहा हूँ। मैं रूह हूँ- हर संकल्प भी सुप्रीम रूह की श्रीमत के बिना नही चल सकता है। मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है। करावनहार के आधार पर मैं निमित करने वाला हूँ। मैं करनहार, वह करावनहार है। वह चला रहा, मैं चल रहा हूँ। हर डायरेक्शन पर मुझ रूह के लिए संकल्प, बोल और कर्म में सदा हजूर हाजिर हैं।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- सत्यता की शक्ति"

➳ _ ➳ मै आत्मा कभी अनुभवी थी, सिर्फ झूठ की ठोकरों की... मीठे बाबा ने जीवन में आकर सत्य का खुबसूरत सवेरा दिखाकर...मेरे जनमो के अंधकार को एक सेकण्ड में दूर कर दिया...और आज सच की खनक से जीवन गुंजायमान हो उठा है... अज्ञान के अंधेरो की आदी मै आत्मा... इसी को जीवन की नियति मानकर जीती जा रही थी... कि सहसा भगवान ने जीवन में प्रवेश कर... मेरे जीवन से हर झूठ का सफाया कर दिया... मुझे तीसरा नेत्र देकर मुझे त्रिनेत्री सजा दिया... इस नेत्र की बदौलत मै आत्मा अपने खुबसूरत सतयुग को निहार कर... आनन्द की चरमसीमा पर हूँ... और आनन्द की यही लहरे... हर दिल पर उछालने वाली, ज्ञान गंगा बन मुस्करा रही हूँ... दिल की यह बात मीठे बाबा को सुनाने मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में प्रवेश करती हूँ...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अथाह ज्ञान रत्नों की जागीर सौंपते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे...ईश्वर पिता ने मा नॉलेजफुल बनाकर ज्ञान के तीसरे नेत्र से रौशन किया है... तो सत्यता की इस रौशनी मे सच और झूठ का फर्क सिद्धकर दिखाओ... विश्व को ज्ञान की सत्य राहों का मुरीद बनाओ... अज्ञान के अंधेरो से हर दिल को निकाल कर... सत्य की चमकती मुस्कराती राहों पर चलाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में असीम ख़ुशी को पाकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा अज्ञान की फिसलती राहो पर चलती हुई गर्त में जा रही थी... आपने मेरा हाथ पकड़कर, मुझे इस दलदल से निकाल, अपने दिल में बसा लिया है... मै आत्मा इस सत्य का शंखनाद कर, हर दिल को जगा रही हूँ...और सच की चमक से भरे... जीवन की सौगात हर दिल को दिला रही हूँ..."

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी सम्पत्ति का मालिक बनाते हुए कहा:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सत्य पिता की सत्य भरी बाँहों में जो महके हो... उस ज्ञान की खशबू से हर मन को सुवासित करो... ईश्वर पिता द्वारा सुनी हुई सत्य की लहर को पूरे विश्व में बहाकर, अज्ञान का सूखापन मिटाओ... दुरांदेशी विशाल बुद्धि बनकर,सच और झूठ का भेद सिद्ध कर, अज्ञान का पर्दा उठाओ...

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से ज्ञान धन का अखूट खजाना अपनी बाँहों में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के भान में पतित होकर बुद्धि संग यहाँ वहाँ कितना भटक रही थी... आपने प्यारे बाबा अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर... मुझे पावनता से सजाया है... बेहद का ज्ञान देकर मुझे दुरांदेशी बना दिया है... अब यह ख़ुशी मै आत्मा.... हर मन को बाँट रही हूँ... भक्ति और ज्ञान का सच्चा फर्क समझा कर... आप समान बेहद का समझदार बना रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान की कूक सुनाने वाली ज्ञान बुलबुल बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता से जिन सच्ची खुशियो को बाँहों में समाकर... इस कदर खुशनुमा बने हो,.. यह सच्ची खुशियां सबके दामन में भी सजा आओ... झूठ के दायरे से बाहर निकाल सच के सूर्य का अहसास कराओ... हर दिल सच्चाई को ही तो ढूंढ रहा है... उनकी मदद करने वाले सच्चे रहनुमा बनकर... उन्हें भी आप समान ज्ञान का धनी बनाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से सारी शक्तियो को लेकर, शक्तिशाली बनकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सच की झनकार को पूरे विश्व में गूंजा रही हूँ... सबके मनो की उलझन को सुलझाकर, सच का सुनहरा सवेरा दिखा रही हूँ... मीठे बाबा आपने जो सत्य मुझ आत्मा को दिखाकर देह के जंजालों से छुड़ाया है... मै आत्मा सबके दामन में यह प्रकाश खिला रही हूँ... प्यारे बाबा से वरदानों की सौगात लेकर मै आत्मा कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- ज्वाला स्वरुप याद का अनुभव"
 
➳ _ ➳ 
सोने में पड़ी हुई खाद को निकालने के किये एक सुनार उसे अग्नि में कितनी अच्छी तरह तपाता है। ठीक उसी प्रकार मुझ आत्मा के ऊपर 63 जन्मो के विकारों की जो कट चढ़ चुकी है उसे भस्म करने के लिए उसे भी तो योग अग्नि में तपाना बहुत जरूरी है और यह योग अग्नि तभी प्रज्ज्वलित होगी जब सिवाय एक पतित पावन बाप की याद के और कोई की याद मन मे नही होगी। केवल एक बाबा की अव्यभिचारी याद ही, आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर सकती है और आत्मा को सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान बना सकती है। ये सब बातें मैं मन ही मन में सोच रही हूं।
 
➳ _ ➳ 
इन बातों पर विचार करते करते मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो जैसे ही अपने शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में बैठती हूँ मैं डीप साइलेन्स में पहुंच जाती हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही देह, देह से जुड़ी हर वस्तु से मैं स्वयं को पूर्णतया मुक्त अनुभव करने लगती हूं और इसी विमुक्त अवस्था में मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, पारसनाथ बाप के सामने परमधाम में पाती हूँ। उनसे आ रही अनन्त शक्तियों की किरणों से उतपन्न होने वाली योग अग्नि में अब मुझ आत्मा के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं सम्पूर्ण पावन सतोप्रधान बन रही हूं।
 
➳ _ ➳ 
अपने इसी अनादि सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से अब नीचे आ जाती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान देह धारण कर नई सतोप्रधान दुनिया में मैं प्रवेश करती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान चोले में अवतरित देवकुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रुप में इस सृष्टि चक्र पर मेरा पार्ट आरंभ होता है। अब मैं आत्मा अपने पूज्य स्वरूप का अनुभव कर रही हूं। मैं देख रही हूं मंदिरों में, शिवालयों में भक्त गण मेरी भव्य प्रतिमा स्थापन कर रहे हैं। मेरी जड़ प्रतिमा से भी शांति, शक्ति और प्रेम की किरणे निकल रहीं हैं जो मेरे भक्तों को तृप्त कर रही हैं।
 
➳ _ ➳ 
अपने देवताई और पूज्य स्वरूप का आनन्द ले कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ। इस स्वरूप में टिकते ही अपने ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति मुझे आनन्द विभोर कर देती है। इस बात की स्मृति आते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज़ होता है कि मेरा यह दिव्य आलौकिक जन्म स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा के कमल मुख द्वारा हुआ है। स्वयं परमात्मा ने मुझे कोटों में से चुन कर अपना बनाया है। तो अब मेरा भी यह फर्ज बनता है कि अपने प्यारे मीठे बाबा की श्रीमत पर चल कर मैं ब्राह्मण सो फ़रिशता बनने का पार्ट जल्दी ही समाप्त करूँ ताकि इस पार्ट को पूरा करके अति शीघ्र उसी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर, अपने धाम वापिस लौट सकूं जिस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आई थी।
 
➳ _ ➳ 
इसलिये एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह, आत्मा को सम्पूर्ण सतोप्रधान बनाने के लिए अब मैं अपने परमप्रिय परम पिता परमात्मा के प्रेम को ढाल बना कर, आसुरी दुनिया मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धो के लगाव, झुकाव और टकराव से स्वयं को मुक्त कर रही हूं। देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी मैं जैसे इस दुनिया मे नही हूँ। मैं आत्मा हूँ, परमपिता परमात्मा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान हूँ और मेरे सर्व सम्बन्ध एक के ही साथ हैं, इसी स्मृति में निरन्तर रह कर अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंस कर, केवल पतित पावन अपने परम पिता परमात्मा की याद में रह स्वयं को पावन बना रही हूं।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं अपने बोल की वैल्यू को समझ उसकी एकॉनामी करने वाली महान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं श्रीमत का हाथ सदा साथ रखकर सारा ही युग हाथ में हाथ देकर चलने वाली आज्ञाकारी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

 

➳ _ ➳  सेवाधारियों को सदा सफलता स्वरूप रहने के लिए बाप समान बनना है।  एक ही शब्द याद रहे - फालो फादर। जो भी कर्म करते हो - चेक करो कि यह बाप का कार्य हैअगर बाप का है तो मेरा भी हैबाप का नहीं तो मेरा भी नहीं। यह चेकिंग की कसौटी सदा साथ रहे। तो फालो फादर करने वाले अर्थात् -जो बाप का संकल्प वही मेरा संकल्पजो बाप का बोल वही मेरा। इससे क्या होगाजैसे बाप सदा सफलता स्वरूप है वैसे स्वयं भी सदा सफलता स्वरूप हो जायेंगे। तो बाप के कदम पर कदम रखते चलो। कोई चलता रहे उसके पीछेपीछे जाओ तो सहज ही पहुँच जायेंगे ना। तो फालो फादर करने वाले मेहनत से छूट जायेंगे और सदा सहज प्राप्ति की अनुभूति होती रहेगी।

 

✺   "ड्रिल :-  हर कर्म से पहले चेक करना कि क्या यह बाप का कार्य है।"

 

➳ _ ➳  कलियुग की इस त्राहिमाम अवस्था में भगवान को पुकारती मैं आत्मा पहुँच गयी... ब्रह्माकुमारी के सेंटर पर... जहाँ सच्चा सच्चा गीता का भगवान मिला... सच्चा सच्चा गीता ज्ञान मिला... स्वयं का... बाप का परिचय मिला... मैं कौन... मेरा कौन... का जवाब मिला... औऱ मैं बन गयी संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा... अपने प्रालब्ध के सतयुगी भाग्य को जान... अपने पुरुषार्थ को उड़ती कला में स्थिर कर के मैं आत्मा... एक चमकता हुआ दिव्य सितारा... बैठी हूँ सिर्फ एक की ही याद में... भृकुटी सिंहासन पर... और मन के तार एक बाप से जुड़ते ही मन बुद्धि रूपी पुष्पक विमान में बैठ पहुँच जाती हूँ बापदादा के पास...

 

➳ _ ➳  अखूट शांति ही शांति हैं जहाँ... पवित्रता का साम्राज्य छाया हैं जहाँ वह निज धाम... निज घर... में पहुँचते ही... शांति की पराकाष्ठा का अनुभव कर रही हूँ... सुनहरे प्रकाश की दुनिया... पवित्र... सतोप्रधान आत्माओं की दुनिया में अपने आप को भी पवित्र... सतोप्रधान अवस्था में देख रही हूँ... परमपिता परमात्मा से आती हुई शक्तियों रूपी किरणों को अपने में धारण करती जा रही हूँ... बाप समान बनती जा रही हूँ... बापदादा की उंगली पकड़ कर मैं आत्मा झूमती हुई जा रही हूँ हर एक सेंटर पर... बापदादा के साथ मैं आत्मा भी सभी सेंटर के नज़ारे देख रही हूँ...

 

➳ _ ➳  कोई सेंटर निर्विघ्न चल रहे हैं... तो कोई सेंटर पर सेवा ही सेवा का आनंदित माहौल छाया हुआ हैं... कोई सेंटर में योग भट्टी में सभी आत्माओं के विकारों को दहन होता हुआ और बाप समान बनने के पुरुषार्थ में जुडी आत्माओं को देख रही हूँ... बापदादा के रूहानी नैनो से निकलती किरणों की बौछारें सर्व सेंटर में समां रही हैं... और साथ साथ बापदादा की दिव्य आकाशवाणी सुनाई दे रही हैं " बच्चे बाप समान बनो... अपनी सूक्ष्म चेकिंग करो कि क्या मेरा हर कार्य बाप समान हैं ? क्या मेरा हर बोल... संकल्प... में बाप की प्रत्यक्षता हो रही हैं ?" बाबा की दिव्य और मधुर वाणी सभी सेंटर की आत्माओं... गहराई से धारण करती जा रही हैं...

 

➳ _ ➳  बापदादा के सुनहरे बोल "फालो फादर करने वाले अर्थात् - जो बाप का संकल्प वही मेरा संकल्पजो बाप का बोल वही मेरा।" हर एक सेंटर पर गूंज रहा हैं... और सभी ब्राह्मण आत्माएंं अपने आप में बापदादा की प्रत्यक्षता करने के लिए दैवीय संस्कार का आह्वान कर रहे हैं... और मैं आत्मा इस अलौकिक दिव्य नज़ारे को साक्षी बन देख कर बापदादा की सर्व शक्तियों को अपने में धारण कर बापदादा का हाथ पकड़ कर कहती हूँ "बाबा आज से मेरा भी हर बोल... संकल्प और कर्म आप समान होगा..." और बापदादा के हाथों से मेरे हाथों में समाती हुई शक्तियों को महसूस करती मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने स्थूल शरीर में... अब तो हर बोल... संकल्प... और कर्म को सूक्ष्म चेकिंग रूपी अग्नि परीक्षा से पास विद ऑनर में आने का सर्टिफिकेट लेने का पुरुषार्थ कर रही हूँ...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━