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 27 / 03 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भगवान ने जो पवित्र बनने का हुकुम दिया है, उसकी कभी अवज्ञा तो नहीं की ?*

 

➢➢ *"ड्रामा की भावी अटल बनी हुई है" - उसे जानकार सदा निश्चिंत रहे ?*

 

➢➢ *एक बाबा शब्द की स्मृति से याद और सेवा में बिजी रहे ?*

 

➢➢ *परमात्मा रुपी शमा पर फ़िदा होने वाले सच्चे परवाने बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जो नम्बरवन परवाने हैं उनको स्वयं का अर्थात् इस देह- भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, अपने सुख के साधनों का, आराम का, किसी भी बात का आधार नहीं । वे सब प्रकार की देह की स्मृति से खोये हुए अर्थात् निरन्तर शमा के लव में लवलीन रहते हैं ।* जैसे शमा ज्योति-स्वरुप है, लाइट माइट रुप है, वैसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रुप बन जाते हैं ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ"*

 

  स्वयं को सदा मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? ज्ञान सूर्य का कार्य है सर्व से अज्ञान अंधेरे का नाश करना। *सूर्य अपने प्रकाश से रात को दिन बना देता है, तो ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व से अंधकार मिटाने वाले, भटकती आत्माओंको रास्ता दिखाने वाले, रात को दिन बनाने वाले हो ना!* अपना यह कार्य सदा याद रहता है?

 

  जैसे लौकिक आक्यूपेशन भूलाने से भी नहीं भूलता। वह तो है एक जन्म का विनाशी कार्य, विनाशी आक्यूपेशन, यह है सदा का आक्यूपेशन कि हम मास्टर ज्ञान सूर्य हैं। *तो सदा अपना यह अविनाशी आक्यूपेशन या ड्यूटी समझ अंधकार मिटाकर रोशनी लानी है। इससे स्वयं से भी अंधकार समाप्त हो प्रकाश होगा।*

 

  कयोंकि रोशनी देने वाला स्वयं तो प्रकाशमय हो ही जाता है। *तो यह कार्य सदा याद रखो और अपने आपको रोज चेक करो कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य प्रकाशमय हूँ! जैसे आग बुझाने वाले स्वयं आग के सेक में नहीं आते ऐसे सदा अंधकार दूर करने वाले अंधकार में स्वयं नहीं आ सकते। तो 'मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ यह नशा व खुशी सदा रहे'।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  वह अनुभव, वह अन्तिम स्थिती की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अन्तिम स्थिति के नजदीक है। जैसे सूर्य अपने जब पूरे प्रकाश में आ जाता है तो हर चीज स्पष्ट देखने में आती है। जो अन्धकार है, धूंध है वह सभी खत्म हो जाते है। *इसी रीती जब सर्वशक्तिवान ज्गान सूर्य के साथ अटुट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आयेगी*।

 

✧  *जो चलते - चलते पुरुषार्थ में माया का अंधकार वा धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपाने वाले हैं, वह हट जायेंगे*। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज लेकर देते हैं।

 

✧  तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन - सी अनोखी चीज देंगे? *आज के इस मधुर मिलन के मेले का यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिंतक और शुभ चिंतन में रहना*। शुभ चिंतक और शुभ चिंतन। यह दो बातें सदैव याद रखना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  शुद्ध संकल्प स्वरूप स्थिति का अनुभव करते हो? जबकि अनेक संकल्पों की समाप्ति होकर एक शुद्ध संकल्प रह जाता है, इस स्थिति का अनुभव कर रही हो? इस स्थिति को ही शक्तिशाली, सर्व कर्म-बन्धनों से न्यारी और प्यारी स्थिति कहा जाता है। ऐसी न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित होकर फिर कर्म करने के लिए नीचे आते हैं। *जैसे कोई का निवास-स्थान ऊँचा होता है, लेकिन कोई कार्य के लिए नीचे उतरते हैं तो नीचे उतरते हुए भी अपना निजी स्थान नहीं भूलते हैं। ऐसे ही अपनी ऊँची स्थिति अर्थात् असली स्थान को क्यों भूल जाते हो? ऐसे ही समझकर चलो कि अभी-अभी अल्पकाल के लिए नीचे उतरे हैं कार्य करने अर्थ, लेकिन सदाकाल की ओरिजिनल स्थिति वही है।* फिर कितना भी कार्य करेंगे लेकिन कर्मयोगी के समान कर्म करते हुए भी अपनी निज़ी स्थिति और स्थान को भूलेंगे नहीं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वाणी से परे घर जाना है, इसलिए याद में रहकर पावन बनना"*

 

_ ➳  *अमृतवेले के रूहानी समय में मेरे लाडले बच्चेकह, मीठे बाबा अपनी मीठी आवाज से मुझे जगाते हैं... प्यारे बाबा के प्यारे मधुर स्वर कानों में गूंजते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ और प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उनकी बाँहों में सिमट जाती हूँ...* प्यारे बाबा मुझे अपनी गोद में उठाकर मधुबन की पहाड़ियों पर ले जाते हैं और आसमान में एक सीन इमर्ज कर इस सृष्टि नाटक को दिखाते हैं... कैसे मैं आत्मा परमधाम से इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आई...? सतोप्रधान से तमोप्रधान कैसे बनी...? और अब मुझे फिर से सतोप्रधान, पावन बनकर घर वापिस जाना है... 

 

  *वाणी से परे शांति की दुनिया शांतिधाम के नज़ारे दिखाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... अब ईश्वरीय गोद में बैठे हो... तो हर मेहनत से मुक्त हो... अब भक्त नही हो अधिकारी बच्चे हो... *अब मांगना नही है हक से अधिकार लेना है... महिमा गानी नही है महिमा योग्य बन कर बाप दादा को दिखाना है... अब आवाज नही आवाज से परे अपने निज स्वरूप का आनंद लेना है... और ख़ुशी से मुस्कराना है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा वानप्रस्थी बन मीठे बाबा की यादों में मगन होकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में देह भान से परे हो अतीन्द्रिय सुख में डूब गयी हूँ... *मन की गुफा में बैठी सीधे बापदादा के दिल पर मीठी सी दस्तक दे रही हूँ... और यादो में हर मेहनत से मुक्त होकर आसमानों में उड़ रही हूँ...”*

 

  *अपने प्यार की मीठी डोर से मुझे बांधकर अपने दिल में बिठाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *जब पिता परमधाम में था तो बहुत पुकारा अब जो पिता सम्मुख है इतना करीब है तो दूरियां खत्म होकर मीठी मीठी नजदीकियां है...* अब दिल का गहरा नाता है और यादो में इशारो की मूक अभियक्ति है... और भीतर ही भीतर सुनने सुनाने का दिल को नशा सा छाया है...

 

_ ➳  *मीठे बाबा की याद में डूबकर शांतिधाम की शांति को अपने अन्दर समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मुख के मौन में डूबी ईश्वरीय प्यार का आनन्द ले रही हूँ... *मीठे बाबा ने मुझे हर मेहनत से छुड़ा दिया है... हर थकान से छुड़ाकर मुझे मीठे सुख भरा सुकून का जीवन दे दिया है... और आवाज से परे पर दिल से करीब का राज सिखा दिया है...”*

 

  *वंडरफुल रूहानी धाम में ले जाने के लिए पुरुषार्थ की युक्तियाँ बताते हुए वंडरफुल रूहानी बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... हजार हाथो से ईश्वर पिता सामने है जितने चाहे उतने खजाने अपने नाम लिखवा सकते हो... *अब दया करुणा की बात नही अधिकारीपन का नशा है... तो फिर यह पुकार कैसी... अब तो दिल ही दिल में गुफ़्तुगू का ईश्वरीय मौसम छाया है... इस ईश्वरीय प्यार के समन्दर में बस डूब जाओ...”*

 

_ ➳  *सुहाने सफ़र की तैयारियों में जुटकर स्वयं को खजानों से सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय प्यार में इस कदर खोयी हूँ कि भीतर ही भीतर गहरी बाबा के दिल में समा गयी हूँ...* अब मै आत्मा इशारो में प्रियतम बाबा को प्यार करने का हुनर सीख गयी हूँ... पुकारो से मुक्त हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बापदादा दोनो की पालना का रिटर्न पवित्र बनकर दिखाना है*"

 

_ ➳  सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता परमपिता परमात्मा शिव बाबा के फरमान पर चल जैसे *मम्मा, बाबा ने मनसा,वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में धारण कर, अपने पवित्र योगी जीवन द्वारा, परमात्म कर्तव्य में मददगार बन, भगवान के दिल रूपी तख्त पर राज किया ऐसे अपने भगवान बाप के दिलतख्त पर सदा विराजमान रहने और मम्मा बाबा के गद्दी नशीन बनने के लिए मुझे भी अपने इस अंतिम जीवन में पवित्रता की धारणा जरूर करनी है* और ब्रह्माचारी बन ब्रह्मा बाप के आचरण को फॉलो करते हुए, परमात्म कर्तव्य में सहयोगी अवश्य बनना है। यही दृढ़ प्रतिज्ञा स्वयं से करके, अपने प्यारे शिव पिता को याद करते हुए, मम्मा, बाबा के सम्पूर्ण स्वरूप को मैं जैसे ही स्मृति में लाती हूँ, पवित्रता के तेज से चमक रहा उनका ओजस्वी चेहरा आँखों के सामने उभर आता है।

 

_ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के पास उनकी कुटिया में। *उनके ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठ उनकी मनमोहिनी सूरत को निहारते हुए मैं अनुभव करती हूँ जैसे ब्रह्मा बाबा और ममता की मूर्त मम्मा साक्षात मेरे सामने आकर बैठ गए है*। एक अलौकिक दिव्य आभा से दमकते उन दोनों के चेहरे पवित्रता की अद्भुत शक्ति से चमक रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे प्यूरिटी की रॉयल्टी से चमक रहे उनके नैन अपने अन्दर अथाह प्रेम को समाकर केवल मुझे निहार रहें हैं और अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं। *उनके नयनों में अपने लिए समाये असीम स्नेह को देख मैं आनन्द विभोर हो रही हूँ*।

 

_ ➳  पवित्रता को अपने जीवन में धारण कर, उनके समान बनने का संकल्प करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मम्मा बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख मुझे "पवित्र भव" का वरदान देते हुए अपनी पवित्र दृष्टि से पवित्रता की शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। *मम्मा बाबा से आ रही पवित्रता की शक्ति को स्वयं में धारण करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मैं पवित्रता का फरिश्ता बन रही हूँ और मेरे अंग -अंग से पवित्रता की श्वेत किरणें निकल कर चारों ओर फैल रही है*। पवित्रता का एक शक्तिशाली आभामंडल मेरे आस - पास निर्मित हो गया है जो दैहिक दुनिया के हर आकर्षण से मुझे मुक्त कर रहा है।

 

_ ➳  जैसे - जैसे देह की दुनिया का आकर्षण समाप्त हो रहा है वैसे - वैसे मैं फ़रिश्ता अपनी पवित्रता की श्वेत रश्मियाँ फैलाता हुआ ऊपर की ओर उड़ने लगा हूँ। *सारे विश्व में भ्रमण करता, दुनिया के खूबसूरत नज़ारो को देखता मैं फ़रिश्ता ऊपर आकाश को पार कर उससे भी ऊपर उड़ते हुए अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के पास उनके अव्यक्त वतन में प्रवेश करता हूँ*। देख रहा हूँ अपने सामने सम्पूर्ण अव्यक्त ब्रह्मा बाबा और मम्मा को जिनकी पवित्रता का प्रकाश पूरे वतन में फैला हुआ है। *पवित्रता की अनन्त शक्तिशाली किरणे दोनों के सम्पूर्ण स्वरूप से निकल कर मुझ फरिश्ते तक पहुँच रही है*।

 

_ ➳  मम्मा बाबा से मिल रही पवित्रता की शक्ति, मुझे अपने जीवन में सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करने का जैसे बल प्रदान कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपनी बाहों को फैलाये मुझे अपने पास बुला रहें हैं। *उनके समीप पहुँच कर, उनकी बाहों में समाकर, उनसे असीम स्नेह और प्यार पाकर, अब मैं फ़रिश्ता उनके सामने बैठ उनके वरदानी हस्तों से मिल रही पवित्रता की लाइट से स्वयं को शक्तिशाली बनाते हुए पवित्रता की शक्ति अपने अन्दर भरकर, वापिस साकार लोक की ओर लौट रहा हूँ*। अपने पवित्र लाइट माइट सूक्ष्म स्वरूप के साथ अपने साकार तन में प्रवेश कर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अपने इस ईश्वरीय जीवन को सम्पूर्ण पवित्र योगी जीवन बनाने की ही तपस्या कर रही हूँ।

 

_ ➳  *मात पिता के गद्दी नशीन बनने के लिए, पवित्रता को अपने जीवन मे धारण कर, कदम - कदम पर फॉलो मदर फादर करते हुए, उनके समान बनने का पुरुषार्थ अब मैं पूरी लगन के साथ कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं एक बाबा शब्द की स्मृति से याद और सेवा में रहने वाली सच्ची योगी सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं परमात्मा रूपी शमा पर फिदा होने वाला सच्चा परवाना हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा देखत है मातायें चाहे पाण्डव, बापदादा के सर्व सम्बन्धों से, प्यार तो सर्व संबंधों से हैं लेकिन किसको कौन-सा विशेष संबंध प्यारा है, वह भी देखते हैं। कई बच्चों को खुदा को दोस्त बनाना बहुत अच्छा लगता है। इसीलिए खुदा दोस्त की कहानी भी है। *बापदादा यही कहते, जिस समय जिस संबंध की आवश्यकता हो तो भगवान को उस संबंध में अपना बना सकते हो। सर्व संबंध निभा सकते हो। बच्चों ने कहा बाबा मेरा, और बाप ने क्या कहा, मैं तेरा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बापदादा के साथ सर्व सम्बन्धों का अनुभव"*

 

 _ ➳  स्थूल आँखों से बाबा के चित्र को निहारते निहारते मैं आत्मा अपने आप से बातें करती हूं... और सोचती हूं, कि आज जो भी कुछ हूं सब बाबा आपसे ही तो हूं... मेरे सब कुछ आप ही तो हो... *तपती धूप में छांव बनकर तूफानों में मांझी बनकर हर कदम पर मेरा हाथ पकड़ा है... और खो जाती हूं ईश्वर पिता से मिली प्राप्तियों में...*

 

 _ ➳  *"तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो..."* भक्ति मार्ग का ये गीत इस समय कितना सार्थक है..  *संगमयुग के इस स्वर्णिम समय में मैं आत्मा कितनी भाग्यवान हूँ... जिसे स्वयं भगवान ने अपना बनाया है... मुझे शिव पिता की छत्रछाया और ब्रह्मा मां की गोद मिली है...* वाह! वाह! "बनाया प्रभु ने है अपना, मिला सुख हमें है कितना..." *सर्वशक्तिमान की मैं संतान मास्टर सर्वशक्तिमान हूं...* इतना सोचने भर से ही रास्ते की सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं... *इतने शक्तिशाली पिता का हाथ मेरे सर पर है... अहो सौभाग्य!*

 

 _ ➳  *शिक्षक के रूप में बाबा हर पल मुझे समझानी देते हैं... मैं आत्मा उस श्रीमत पर चल अपना भाग्य बना रही हूं... और सतगुरू के रूप में मेरी जीवन नैया पार लगाने वाले हैं... मेरे खेवनहार... मेरे मांझी... मेरी पतवार... सब आप ही तो हो...* सतगुरू मैं तेरी पतंग हवा में उड़ती जाऊंगी बाबा ड़ोर  हाथों से छोड़ना मत नहीं तो कट जाऊँगी... और बाबा ये सुन मीठी मीठी मुस्कान दे देते हैं...

 

 _ ➳  *कभी सखा बन मेरे साथ खेलते हैं... कभी बड़ा भाई बन कदम कदम पर सम्भालते हैं...* मन की आँखों से जब भी देखती हूं उन्हें अपने साथ खड़ा पाती हूँ... *बालक के रूप में कोई भी कार्य सौपती हूं... तो आज्ञाकारी बालक के समान तुरंत पूरा करते हैं... और तो और मेरे शिव पिया सर्व गुणों से अपनी आत्मा सजनिया का श्रृंगार कर मुझे सम्पूर्ण बना रहे हैं...* अपने प्यार से मुझ आत्मा को हर सम्बंध से भरपूर कर रहे हैं...

 

 _ ➳  इन ईश्वरीय सम्बन्धों में जुडने के बाद, इनके रस को चखने के पश्चात मुझ आत्मा को सब दुनियावी सम्बन्द्ध खोखले नजर आ रहे हैं... *मैं आत्मा इसी ईश्वरीय नशे में रह अब अपने लौकिक अलौकिक सम्बंध निभा रही हूं... इससे मेरे सर्व सम्बन्धों में भी अलौकिकता झलकने लग गई है... उनमें एक मधुरता एक अलग सी मिठास आ गई है...* जिंदगी पहले तो कभी इतनी खूबसूरत नहीं लगी... बाबा आपने तो मुझे खूबसूरत बना दिया...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बगिया की रूहे गुलाब बन गई हूं... मुझसे अब सबको रूहानियत आती अनुभव हो रही है...*इतने सुंदर अनुभवों और प्राप्तियों के लिए, बाबा आपका जितना भी धन्यवाद करूं, वो कम

है... *मीठे मीठे बाबा... मेरे प्यारे बाबा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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