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❍ 11 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ स्वयं को अकालमूर्त आत्मा समझ बाप को याद किया ?
➢➢ "बाप हमारे साथ है" - यह बुधी में रहा ?
➢➢ अलबेलेपन की लहर को विदाई दे सदा उमंग उत्साह में रहे ?
➢➢ वारिस क्वालिटी तैयार की ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ साइन्स वाले भी सोचते हैं ऐसी इन्वेंशन निकाले जो दु:ख समाप्त हो जाए, साधन सुख के साथ दुःख भी देता है। सोचते जरूर है कि दु:ख न हो, सिर्फ सुख की प्राप्ति हो लेकिन स्वयं की आत्मा में अविनाशी सुख का अनुभव नहीं है तो दूसरों को कैसे दे सकते हैं। आप सबके पास तो सुख का, शान्ति का, निःस्वार्थ सच्चे प्यार का स्टॉक जमा है, तो उसका दान दो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं दिलाराम बाप की दिल में रहने वाली आत्मा हूँ"
〰✧ सदैव अपने को दिलाराम बाप की दिल में रहने वाले अनुभव करते हो? दिलाराम की दिल तख्त है ना। तो दिलतख्तनशीन आत्माएं हैं-ऐसे अपने को समझते हो? सदा तख्त पर रहते हो या कभी उतरते, कभी चढ़ते हो? अगर किसको तख्त मिल जाये तो तख्त कोई छोड़ेगा? यह तो श्रेष्ठ भाग्य है जो भगवान् के दिलतख्त-नशीन बनने का भाग्य मिला है। इससे बड़ा भाग्य कोई हो सकता है? ऐसे प्राप्त हुए श्रेष्ठ भाग्य को भूल तो नहीं जाते हो? तो सदैव तख्त-नशीन आत्माएं हैं-इस स्मृति में रहो।
〰✧ जो दिल में समाया हुआ रहेगा, परमात्म-दिल में समाए हुए को और कोई हिला सकता है? दिलतख्त-नशीन आत्माएं सदा सेफ हैं। माया के तूफान से भी और प्रकृति के तूफान से भी-दोनों तूफान से सेफ न माया की हलचल हिला सकती है और न प्रकृति की हलचल हिला सकती है। ऐसे अचल हो? या कभी-कभी अचल, कभी-कभी हिलते हो? यादगार अचलघर है। चंचल-घर तो बना ही नहीं। अनेक बार अचल बने हो। अभी भी अचल हो ना। हलचल में नुकसान होता है और अचल में फायदा है। कोई चीज हिलती रहे तो टूट जायेगी ना।
〰✧ सदा यह याद रखो कि हम दिलाराम के दिलतख्त-नशीन हैं। यह स्मृति ही तिलक है। तिलक है तो तख्त-नशीन भी हैं। इसीलिए जब तख्त पर बैठते हैं तो पहले राज्य-तिलक देते हैं। तो यह स्मृति का तिलक ही राज्य-तिलक है। तो तिलक भी लगा हुआ है। या मिट जाता है कभी? तिलक कभी आधा रह जाता है और कभी मिट भी जाता है-ऐसे तो नहीं। यह अविनाशी तिलक है, स्थूल तिलक नहीं है। जो तख्त-नशीन होता है, उसको कितनी खुशी होती है, कितना नशा होता है! आजकल के नेताओंको तख्त नहीं मिलता, कुर्सी मिलती है। तो भी कितना नशा रहता है-हमारी पार्टी का राज्य है! वो तो कुर्सी है, आपका तो तख्त है। तो स्मृति नशा दिलाती है। अगर स्मृति नहीं है तो नशा भी नहीं है। तिलक है तो तख्त है। तो चेक करो कि स्मृति का तिलक सदा लगा हुआ है अर्थात् सदा स्मृतिस्वरूप हैं?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आस्ट्रेलिया वालोंने सेवा तो बढाई है ना। अभी कितने स्थान हैं वहाँ (5) हरेक को राज्य करने के लिए अपनी-अपनी प्रजा तो जरूर बनानी ही है। (विनाश में हम लोगों का क्या होगा?) विनाश में आस्ट्रेलिया सारा एक टापू बन जायेगा। कुछ पानी
में आ जायेगा कुछ ऊपर रह जायेगा। आप लोग सेफ रहेंगे।
〰✧ विनाश के पहले ही आप लोगों को आवाज पहुँचेगा। जब तुम सभी सेफ स्थान पर पहुँच जायेंगे फिर विनाश होगा। जैसे गायन है भट्ठी में बिल्ली के पूंगरे सेफ रहे। तो जो बच्चे बाप की याद में रहने वाले हैं, वह विनाश में विनाश नहीं होंगे लेकिन स्वेच्छा से शरीर छोडेगे, न कि विनाश के सरकमस्टान्सेज के बीच में छोडेगे।
〰✧ इसके लिए एक बुद्धि की लाइन क्लियर हो और दूसरा अशरीरी बनने का अभ्यास बहुत हो। कोई भी बात हो तो आप अशरीरी हो जाओ। अपने आप शरीर छोडने का जब संकल्प होगा तो संकल्प किया और चले जायेंगे। इसके लिए बहुत समय से प्रैक्टिस चाहिए।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे साइंस के साधनों द्वारा दूर की वस्तु समीप अनुभव करते हैं। ऐसे दिव्य बुद्धि द्वारा कितनी ही दूर रहने वाली आत्माओं को समीप अनुभव करेंगे। जैसे स्थूल में साथ रहने वाली आत्मा को स्पष्ट देखते, बोलते, सहयोग देते और लेते हो, ऐसे चाहे अमेरिका में बैठी हुई आत्मा हो लेकिन दिव्य-दृष्टि, दिव्य दृष्टि ट्रान्स नहीं लेकिन रूहानियत भरी दिव्य दृष्टि - जिस दृष्टि द्वारा नैचुरल रूप में आत्मा और आत्माओं का बाप भी दिखाई देगा। आत्मा को देखूं। यह मेहनत नहीं होगी, पुरुषार्थ नहीं होगा लेकिन हूँ ही आत्मा, हैं ही सब आत्मायें। शरीर का भान ऐसे खोया हुआ होगा जैसे द्वापर से आत्मा का भान खो गया था। सिवाए आत्मा के कुछ दिखाई नहीं देगा। आत्मा चल रही है, आत्मा कर रहीं है। सदा मस्तक मणी के तरफ तन की आँखे वा मन की आँखे जायेंगी। बाप और आत्माएँ- यही स्मृति निरन्तर नैचुरल होगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- बाजोली का खेल याद करना"
➳ _ ➳ एक खुबसूरत उपवन में झूले में झूलती हुई मै आत्मा... झूले के ऊपर नीचे के
खेल को देख... मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि कैसे मीठे बाबा ने मुझे
ज्ञान और भक्ति के खेल को समझाकर... मझे जनमो की यात्रा का राज समझा दिया है...
मीठे बाबा की यादो में अपने आत्मिक वजूद को पाकर, मै आत्मा... पुनः पावनता की
खुशबु को स्वयं में भरकर... इस बेहद के स्टेज पर पूज्य बन मुस्करा रही
हूँ...अपने इस खुबसूरत भाग्य का सिमरन करते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की
बाँहों में झूलने वतन में पहुंचती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारी बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे
फूल बच्चे... ईश्वर पिता की सच्ची यादो में सतोप्रधान पूज्य बनने का पुरुषार्थ
करो... ज्ञान रत्नों से बुद्धि को भरपूर कर अथाह सम्पत्ति और सुखो के मालिक
बनो... मीठे बाबा की मीठी यादो में देहभान में लगे सारे दागो को मिटा दो... और
पूज्य देवता बन शान से मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से दिव्यता के वरदान को लेकर मुस्करा कर कहती हूँ
:- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह भान में आकर, अपनी सारी आत्मिक
सुंदरता को खो गयी थी... मै क्या थी, और क्या हो गयी हूँ... आपने मीठे बाबा
मुझे सच्ची यादो की राहो पर चलाकर, कितना दिव्य और प्यारा बनाया है... आपके
हाथ और सच्चे साथ ने पूज्य रूप में विश्व धरा पर सजा दिया है..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने अमूल्य रत्नों की जागीरों को सौंपते हुए कहते
है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में हर पल हर संकल्प से
डूबकर, सतोप्रधान पूज्य बन अनन्त सुखो का आनन्द उठाओ... यह ज्ञान और भक्ति का
वन्डरफुल खेल है, इसमे पुनः सतोप्रधान बन विश्व बादशाही को पाओ.. मीठे बाबा की
यादो में सारे विकारो को भस्म कर, पावनता से सज संवर कर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान मणियो को अपने दिल में समाते हुए कहती
हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में बैठकर, ज्ञान
रत्नों से मालामाल हो रही हूँ... इस प्यारे खेल में पुनः पावनता से खिलकर,
सतोप्रधान बन रही हूँ...आपकी यादो में विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, देवताई
चमक से भर रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रत्नों की दौलत से खुबसूरत बनाते हुए कहा :- "मीठे
प्यारे सिकीलधे बच्चे... ज्ञान और भक्ति के इस जादुई खेल में, ईश्वर पिता के
साथ से रत्नों से लबालब होकर, देवताई सौंदर्य को पा रहे हो... मीठे बाबा के
प्यार के साये तले अपने खोये ओज को पाकर... सच्चे सुखो में मुस्करा रहे हो...
पावन पिता के संग में सदा की पावनता को पा रहे हो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान की अतुलनीय धनसंपदा से सजकर कहती
हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा किस कदर देह भान में फंसी थी और
विकारो के दलदल में धँसी थी... मीठे बाबा आपने हाथ देकर... जो मुझे बाहर निकाला
है, मै आत्मा कितनी प्यारी पावन बनकर महक उठी हूँ... पूज्य बनकर निखर रही
हूँ..."मीठे बाबा से पावनता का वरदान लेकर मै आत्मा... अपने वतन लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- वृक्षपति बाप से सुख - शान्ति - पवित्रता का वर्सा लेने के लिए अपने आपको
अकालमूर्त आत्मा समझ बाप को याद करना है"
➳ _ ➳ स्वर्ग की स्थापना करने वाले अपने भगवान बाप और उनसे मिलने वाले स्वर्ग
के वर्से को एकांत में बैठ याद करते हुए मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरे मीठे बाबा
अपने रथ पर सवार होकर मेरे सामने आ गए हैं और अपनी दोनों बाहों को फैलाये बड़े
प्यार से मेरी और निहार रहें हैं। बापदादा की लाइट माइट जैसे - जैसे मुझे छू
रही है ऐसा लग रहा है जैसे मेरा साकार शरीर बिल्कुल जड़ होता जा रहा है और एक
लाइट का अति सूक्ष्म शरीर मेरे उस जड़ साकार शरीर से बाहर निकल रहा है।
➳ _ ➳ मैं आत्मा भी अपने साकार शरीर को छोड़ इस अति सूक्ष्म आकारी शरीर में
विरजमान हो गई हूँ। अपने इस अति सूक्ष्म लाइट के आकारी शरीर मे मैं स्वयं को
बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्कापन मुझे एक अद्भुत सुखद अनुभूति करवा
रहा है। धरती का आकर्षण जैसे समाप्त हो गया है और मैं डबल लाइट बन धीरे - धीरे
बापदादा की ओर जा रही हूँ। बापदादा के पास पहुंच कर मैं देख रही हूँ बाबा बाहें
फैलाये खड़े है। बाबा के एक हाथ में स्वर्ग का मॉडल है। उसे देखते ही बाबा के
महावाक्य स्मृति में आने लगते है कि "बच्चे मैं तुम्हारे लिए हथेली पर बहिश्त
ले कर आया हूँ"
➳ _ ➳ अचंभित होकर मैं बाबा की हथेली को देख रही हूँ। बाबा मुस्कराते हुए मुझे
इशारा कर अपने पास बुलाते हैं। जैसे - जैसे मैं बाबा के और नजदीक जा रही हूँ
मेरा सूक्ष्म शरीर और भी सूक्ष्म होता जा रहा है। इतना सूक्ष्म कि बाबा मुझे
अपनी हथेली पर उठा लेते हैं। देखते ही देखते उस स्वर्ग के मॉडल के अंदर मैं
प्रवेश कर जाती हूँ। इस मॉडल के अंदर प्रवेश करते ही मैं स्वयं को प्रकृतिक
सौंदर्य से भरपूर एक बहुत ही सुंदर स्वर्गिक दुनिया में पाती हूँ।
➳ _ ➳ देवी देवताओं की इस अति सुन्दर दुनिया देवलोक में अब मैं स्वयं को अपने
सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में देख रही हूँ। जहां चारों ओर प्रकृति का
अद्भुत सौंदर्य है। हरे भरे पेड़ पौधे और उन पेड़ पौधों की टालियों पर चहचहाते
रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर
इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित
मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष और चारों ओर अपनी सतरंगी छटा बिखेरती
सूर्य की किरणे। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख आनन्द विभोर हो
रही हूँ।
➳ _ ➳ इस देवपुरी में राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से
भरपूर हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। रमणीकता से भरपूर देवलोक के
इन खूबसूरत नजारों का भरपूर आनन्द लेने के बाद मैं स्वयं को फिर से अपने उसी अति
सूक्ष्म लाइट के शरीर में देखती हूँ और उस मॉडल से बाहर निकल आती हूँ। अपने
प्यारे बापदादा के मुख पर मैं फिर से वही गुह्य मुस्कराहट देख रही हूँ और उस
मुस्कराहट में छुपे राज को जानने का प्रयास कर रही हूँ। बाबा की यह अति गुह्य
मुस्कराहट बाबा के हर संकल्प को मेरे सामने स्पष्ट कर रही हैं। अपने संकल्प
द्वारा बाबा मुझे 21 पीढ़ी के लिए स्वर्ग का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करने का
इशारा दे रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा के हर इशारे को समझ, बाबा से 21 पीढ़ी का वर्सा लेने के लिए बाप
और वर्से को याद करने का पुरुषार्थ करने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा और बाबा से
प्रोमिस करके अब मैं वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ और इस
प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, विश्व महाराजन बनने के अपने लक्ष्य को सदा
स्मृति में रख, अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर बाप और वर्से को याद करने
का पुरुषार्थ अब मैं हर पल कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं अलबेलेपन की लहर को विदाई दे सदा उमंग-उत्साह में रहने वाली समझदार आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं वारिस क्वालिटी तैयार करके प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ और कई अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं - मेरी इच्छा नहीं थी लेकिन किसी को खुश करने के लिए किया! क्या अज्ञानी आत्मायें कभी सदा खुश रह सकती हैं? ऐसे अभी खुश, अभी नाराज़ रहने वाली आत्माओं के कारण अपना श्रेष्ठ कर्म और धर्म छोड़ देते हो जो धर्म के नहीं वह ब्राह्मण दुनिया के नहीं। अल्पज्ञ आत्माओं को खुश कर लिया लेकिन सर्वज्ञ बाप की आज्ञा का उल्लंघन किया ना! तो पाया क्या और गंवाया क्या! जो लोक अब खत्म हुआ ही पड़ा है। चारों ओर आग की लकड़ियाँ बहुत जोर शोर से इकट्ठी हो गई हैं। लकड़ियाँ अर्थात् तैयारियाँ। जितना सोचते हैं इन लकड़ियों को अलग-अलग कर आग की तैयारी को समाप्त कर दें उतना ही लकड़ियों का ढेर ऊँचा होता जाता है। जैसे होलिका को जलाते हैं तो बड़ों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी लकड़ियाँ इकट्ठी कर ले आते हैं। नहीं तो घर से ही लकड़ी ले आते। शौक होता है। तो आजकल भी देखो छोटे-छोटे शहर भी बड़े शौक से सहयोगी बन रहे हैं। तो ऐसे लोक की लाज के लिए अपने अविनाशी ब्राह्मण सो देवता लोक की लाज भूल जाते हो! कमाल करते हो! यह निभाना है या गंवाना है! इसलिए ब्राह्मण लोक की भी लाज स्मृति में रखो। अकेले नहीं हो, बड़े कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखो।
✺ "ड्रिल :- अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए बाप की आज्ञा का उल्लंघन नही करना"
➳ _ ➳ शान्त, मगर निश्चय में अडोल... नदी का किनारा उमंगों से भरपूर इठलाती... किनारों की मर्यादा में बहती नदी की धारा... अपने प्रियतम सागर से मिलने को आतुर
गुनगुनाती हुई बहती जा रही है... सफर लम्बा है, दुश्वारियों से भरा है, मगर प्रेम इन दुश्वारियों से कब डरा है... नदी की धारा में मोती चुगती दूधिया हंसो की टोली... और मैं आत्मा हंसिनी, उन्हीं किनारों पर सूर्य की किरणों के रथ पर सवार उतरते अपने शिव प्रियतम को निहारती हुई... सुनहरें प्रकाश से चमक उठी है नदी की धाराएँ... मन खुशी से मानो गा उठा है... यूँ खातिर मेरे तुम जो तशरीफ़ लाये, है मुझसे मोहब्बत, ये दिल मेरा गाये...
➳ _ ➳ सोना बरसाती हुई मेरे शिव प्रियतम की किरणें, गहन शान्ति की अनुभूति करा रही है... मेरा मन पूरी तरह शान्ति की चरम अनुभूतियों में डूबा हुआ... मैं आत्मा ड्रामा के इस चक्र में अपनी जन्म जन्मान्तर की यात्रा का दर्शन करती हुई... परम धाम में बिन्दु रूप में... शान्ति सागर में गहराई में गोते लगाती हुई... सभी आत्माओं को शान्ति के प्रकंम्पन प्रदान कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देवताई शरीर धारण कर सतयुगी सृष्टि में पार्ट बजा रही हूँ... सम्पूर्ण सुखों का उपभोग करते हुए अब मेरी गिरती कला की शुरूआत हो चुकी है... और मैं आत्मा, स्वयं को रावण की कैद में देख रही हूँ... मैं बन्दी कैसे बनी, मुझे आहिस्ता- आहिस्ता सब कुछ याद आ रहा है...
➳ _ ➳ मुझे याद आ रहा है... अज्ञानी रावण को खुश करने के लिए श्रीमत का उल्लंघन करना, मर्यादा की लकीर को लांघकर कुटिया से बाहर कदम रखना... और फिर मेरा मेरे ही वजूद से लम्बा वनवास... अशोक वाटिका से शोक वाटिका का मेरा आश्रय बन जाना...
➳ _ ➳ एक लम्बें इन्तज़ार और भटकन के बाद आज फिर से मेरे शिव प्रियतम ने मुझे ढूँढ लिया है... और मुझे याद दिलाई है मेरे शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप की... कानो में धीरे से आकर गुनगुना दिया है... अकेले नही हो तुम, बडे कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखना... मैं आत्मा प्रतिज्ञा कर रही हूँ... अज्ञानी आत्माओं को खुश करने के लिए मैं अब कभी बाप की आज्ञा का उल्लंघन नही करूँगी... कभी खुश कभी नाराज़ रहने वाली आत्माओं के लिए मैं अपनी ब्राह्मण कुल का श्रेष्ठ धर्म और कर्म नही छोडूगीँ, अल्पज्ञ के लिए मैं सर्वज्ञ की आज्ञा का उल्लघंन नही करूँगी..
➳ _ ➳ आकाश से फूलों की बारिश करते बाप दादा... मेरे मस्तक पर विजय तिलक लगाते हुए, मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे सफलता मूर्त का वरदान दे रहे है... नदी से निकलकर हंसों की टोली ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है... मानों मुझ में और मेरी प्रतिज्ञा में अपना निश्चय प्रकट कर अपनी खुशी जाहिर कर रहे हों... ये लहरे ये किनारें, ये हंसों की टोली मेरे बाबा की मीठी बोली मेरे श्रेष्ठ कुल का गुणगान कर रही है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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