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 13 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपनी अवस्था धैर्यवाट बनायी ?*

 

➢➢ *"हम भगवान के बच्चे हैं तो सर्वेंट भी हैं" - ईसिस स्मृति में रह सेवा पर तत्पर रहे ?*

 

➢➢ *हर घड़ी को अंतिम घड़ी समझ सदा रूहानी मौज में रहे ?*

 

➢➢ *व्यर्थ और अशुभ को समाप्त कर अचल अवस्था का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमको तो सेवा का चान्स नहीं है।* कोई बोल नहीं सकते तो मन्सा वायुमण्डल से सुख की वृत्ति, सुखमय स्थिति से सेवा करो। *तबियत ठीक नहीं है तो घर बैठे भी सहयोगी बनो, सिर्फ मन्सा में शुद्ध संकल्पों का स्टाक जमा करो, शुभ भावनाओं से सम्पन्न बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं आत्मिक स्मृति द्वारा कर्म करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧  सभी अपने को सदा श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? *श्रेष्ठ आत्मा अर्थात् हर संकल्प, बोल और कर्म सदा श्रेष्ठ हो। क्योंकि साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये। कलियुग से निकल संगमयुग पर आ गये। जब युग बदल गया, जीवन बदल गई, तो जीवन बदला अर्थात् सब कुछ बदल गया।* ऐसा परिवर्तन अपने जीवन में देखते हो? कोई भी कर्म, चलन, साधारण लोगों के माफिक न हो। वे हैं लौकिक और आप - अलौकिक। तो अलौकिक जीवन वाले लौकिक आत्माओंसे न्यारे होंगे। संकल्प को भी चेक करो कि साधारण है वा अलौकिक है? साधारण है तो साधारण को चेक करके चेन्ज कर लो।

 

  जैसे कोई चीज सामने आती है तो चेक करते हो यह खाने योग्य है, लेने योग्य है, अगर नहीं होती तो नहीं लेते, छोड़ देते हो ना। ऐसे कर्म करने के पहले कर्म को चेक करो। साधारण कर्म करते-करते साधारण जीवन बन जायेगी फिर तो जैसे दुनिया वाले वैसे आप लोग भी उसमें मिक्स हो जायेंगे। न्यारे नहीं लगेंगे। अगर न्यारापन नहीं तो बाप का प्यारा भी नहीं। *अगर कभी कभी समझते हो कि हमको बाप का प्यार  अनुभव नहीं हो रहा है तो समझो कहाँ न्यारेपन में कमी है, कहाँ लगाव है। न्यारे नहीं बने हो तब बाप का प्यार अनुभव नहीं होता। चाहे अपनी देह से, चाहे सम्बन्ध से, चाहे किसी वस्तु से...स्थूल वस्तु भी योग को तोड़ने के निमित बन जाती है।* सम्बन्ध में लगाव नहीं होगा लेकिन खाने की वस्तु में, पहनने की वस्तु में लगाव होगा, कोई छोटी चीज भी नुकसान बहुत बड़ा कर देती है।

 

  तो सदा न्यारापन अर्थात् अलौकिक जीवन। जैसे वह बोलते, चलते, गृहस्थी में रहते ऐसे आप भी रहो तो अन्तर क्या हुआ! तो अपने आपको देखो कि परिवर्तन कितना किया है चाहे लौकिक सम्बन्ध में बहू हो, सासू हो, लेकिन आत्मा को देखो। बहू नहीं है लेकिन आत्मा है। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान में है। मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊँगी। *अपनी वृत्ति, दृष्टि चेन्ज चाहिए। नहीं तो परिवार में प्रभाव नहीं पड़ता। तो वृत्ति और दृष्टि बदलना ही अलौकिक जीवन है। जो काम अज्ञानी करते वह आप नहीं कर सकते हो। संग का रंग आपका लगना चाहिए, न कि उन्हों के संग का रंग आपको लग जाए।* अपने को देखो मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मेरा प्रभाव अज्ञानी पर पड़ता है, अगर नहीं पड़ता तो शुभ भावना नहीं है। बोलने से प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन सूक्ष्म भावना जो होगी उसका फल मिलेगा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आपको मालूम पडा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पडा ना! *तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ।* यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है।

 

✧  *ऐसे नहीं सोचो कि अन्त मे देहभान छोड देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए।* अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है।

 

✧  इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। *चाहे कितनी भी प्रकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी। इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  इसलिए जैसे कोई भी बन्धन से मुक्त होते, वैसे ही सहज रीति शरीर के बन्धन से मुक्त हो सकें। नहीं तो शरीर के बन्धन से भी बड़ा मुश्किल मुक्त होंगे। *फाइनल पेपर है - अन्त मती सो गति। अन्त में सहज रीति शरीर के भान से मुक्त हो जायें - यह है 'पास विद ऑनर' की निशानी। लेकिन वह तब हो सकेगी जब अपना चोला टाइट नहीं होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा बाप की याद का चिन्तन और ज्ञान का विचार सागर मंथन करना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा ने जब से मेरा हाथ पकड़ा हैं, मुझे अपना बनाया हैं... *जीवन फूलो से महकने लगा है... चलते फिरते बस यही विचार रहता हैं कि कैसे मै ज्ञान रत्नों का अलग अलग तरह से विचार सागर मंथन करू...* जन्मो से प्यासी आत्मा को बाबा का हाथ और साथ मिलेगा... ये तो स्वप्नों में भी सोचा ना था... *आज मीठे बाबा को पाकर मैं आत्मा अमीर बन गईं हूँ सही मायने में... बाबा की प्रत्यक्षता की सर्विस की नई नई युक्तियाँ मन मे सजाकर... मैं आत्मा उड़ चली सूक्ष्म वतन बाबा को सब बताने... हाले दिल सुनाने* ...

 

  *मेरे प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विचार सागर मंथन के गहरे राज बताते हुए कहा:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... *मुझ बाप का संग बहुत वरदानी हैं... इसको हर हाल मे सफल बनाना है... चलते फ़िरते हर कर्म में बाप को याद रख, सर्विस की नई नई युक्तियाँ निकालनी हैं...* समर्थ चितंन से बाप को, बाप की याद को सफल बनाना है... सच्ची कमाई से देवताई अमीरी को पाना हैं..."

 

_ ➳  *मै आत्मा बाबा को पूरे हक से, अधिकार से कहती हूं :-* "मेरे प्यारे मीठे बाबा... *आपने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर, मुझे ज्ञानरत्नो से भरपूर किया हैं* ... नए नए सर्विस की युक्तिओ से नवाजा हैं... इस सच्ची कमाई को ग्रहण कर मैं पूरे विश्व मे बाँट रही हूं... सभी आत्माओ की रूहानी सर्विस कर रही हूँ..."

 

  *परमपिता ने मुझे स्वर्ग के सुखों को याद दिलाते हुए कहा:-* "मेरे प्यारे, नैनो के तारे बच्चे... *किस्मत ने अति उत्तम दिन दिखाया हैं... स्वयम भगवान को हर सम्बन्ध में मिलवाया हैं... तो अब सच्ची कमाई करो* ... चलते फिरते बस एक बाबा की याद... दूसरा न कोई... सार्थक कर लो ये जीवन, हर सांस मे पिरो लो बाबा का प्यार... इतनी सर्विस की युक्तियाँ निकालो की... 21जन्मो के लिए भरपूर हो जाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की वसीयत, वर्सा की हकदार बनते हुए बाबा को कहती हूं :-* "प्राणों से भी प्यारे मेरे बाबा... *मै आपकी याद में सदा खोई हुई... प्यार के झूले में झूलती हुई, हर क्षण बस आपको याद कर आनन्दित हो रही हूँ* ... हर पल अन्य आत्माओ को भी आप से जुड़ने की नई नई युक्तियाँ बता कर... खुद को भाग्यशाली बना रही हूँ..."

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को बड़े प्यार से निहारते हुए कहा:-* "मीठे मीठे बच्चे... इस संगम की मौज में, बाबा की सर्विस से... *धनवान बन जाओ... एक पल भी बाबा की याद ना छोड़ो... सच्ची कमाई करो और कराओ... यादों की कमाई से देवताओ की तरह सम्पन्न बन जाओ* ... भरपूर होकर 21 जन्मो तक मौज मनाओ... हर कर्म करते हुए बुद्धि योग मुझ बाप संग लगाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा बाबा से सम्पूर्ण ज्ञान खजाने बटोरते हुए, सारे विश्व की मालिक बन कहती हूं:-* प्यारे बाबा... "हमेशा से आपने मुझ आत्मा को महारानी का ताज पहनाया हैं... *मुझ आत्मा को चलते फिरते, रूहानी सर्विस करने के निमित्त बनाया हैं* ... कर्म करते आप को याद रखने की शक्ति दी हैं... इस तरह रूह रिहान कर मै आत्मा वापिस अपने लौकिक वतन आ जाती हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी अवस्था बहुत धैर्यवत बनानी है*"

 

_ ➳  बाबा के अव्यक्त इशारे बार - बार समय की समीपता को स्पष्ट कर रहें हैं। इन अव्यक्त इशारों को समझ अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि समय जिस रफ्तार से दौड़ रहा है उस रफ्तार से क्या मेरा पुरुषार्थ भी तीव्रता को पा रहा है! *क्या ज्ञान से मेरी अवस्था इतनी अचल, अडोल और एकरस हो चुकी है जो कोई भी बात मुझे हिला ना सके! माया का कोई भी वार मेरी अवस्था को डगमग ना कर सके!* इसलिए समय की समीपता को देखते हुए अब मुझे अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपनी अवस्था को जमाने मे लगाना है ताकि अंत समय के सेकण्ड के पेपर को पास कर मैं पास विद ऑनर का खिताब ले सकूँ और अपने प्यारे बाबा की आशाओं को पूरा कर सकूँ।

 

_ ➳  इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ ज्ञान को धारणा में ला कर अपनी अवस्था जमाने के लिए स्वयं में योग का बल जमा करने के लिए अब मैं स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित करती हूँ और अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ। *एकाग्रता की यह स्थिति सेकण्ड में मुझे देह और देह की दुनिया से न्यारा कर देती है और मैं आत्मा सहजता से देह से किनारा करभृकुटि सिहांसन को छोड़, देह की कुटिया से बाहर निकल आती हूँ*। देह से बाहर आकर अपने जड़ शरीर को मैं आत्मा साक्षी हो कर देख रही हूँ। इस देह और इससे जुड़ी किसी भी चीज का कोई भी आकर्षण अब मुझे आकर्षित नही कर रहा।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे हर बन्धन से मैं मुक्त हो चुकी हूँ। यह निर्बन्धन स्थिति मुझे एकदम हल्के पन का अनुभव करवा रही है। *इसी हल्केपन की अनुभूति में मैं आत्मा स्वयं को ऊपर की और उड़ता हुआ अनुभव कर रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कोई चीज मुझे ऊपर की ओर खींच रही है और मैं बरबस ऊपर की और खिंची चली जा रही हूँ*। यह हल्कापन मुझे असीम आनन्द से भरपूर कर रहा है। और इसी गहन आनन्द में डूबी मैं आत्मा आकाश और तारामण्डल को पार कर जाती हूँ। अंतरिक्ष के सुंदर नजारो को मन बुद्धि के दिव्य नेत्रों से देखती, सूक्ष्म वतन को पार कर अब मैं एक बहुत ही सुन्दर दुनिया में प्रवेश करती हूँ जहाँ अथाह शान्ति ही शान्ति है।

 

_ ➳  इस गहन शान्ति के अनुभव में गहराई तक खोकर स्वयं को तृप्त करके अब मैं इस अंतहीन निराकारी दुनिया मे विचरण करते - करते उस महाज्योति के पास पहुँच जाती हूँ जो मेरे परम पिता परमात्मा है। *जो मेरे ही समान बिन्दु किन्तु गुणों में सिंधु हैं। अपने ही जैसा अपने पिता का स्वरूप देखकर मैं आत्मा आनन्द मगन हो रही हूँ और उनसे मिलन मनाने के लिए उनके समीप जा रही हूँ*। उनके बिल्कुल समीप जा कर बड़े प्यार से उन्हें निहारते हुए उनके प्यार की किरणों की शीतल छाया में मैं आत्मा जाकर बैठ जाती हूँ और उनके प्यार की शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती हुए उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।

 

_ ➳  जैसे लौकिक में एक बच्चा अपने सिर पर अपने पिता का हाथ अनुभव करके स्वयं को हिम्मतवान अनुभव करता है ऐसे मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया मेरे अन्दर असीम ऊर्जा का संचार कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। *स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ। शक्तियों का पुंज बन कर अपने ब्राह्मण जीवन में ज्ञान को धारण कर अपनी अवस्था को जमाने का पुरुषार्थ करने के लिये अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ* और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन में अब मैं अपने परम शिक्षक शिव पिता की निरन्तर याद से स्वयं को बलशाली बनाकर उनसे मिलने वाले ज्ञान को अच्छी रीति समझ उसे अपने जीवन मे धारण करने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। *अपने शिव पिता से मिलने वाले ज्ञान और योग के बल से अपनी अवस्था को जमाने की मेहनत करते हुए अब मैं अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझ सदा रूहानी मौज में रहने वाली विशेष आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं व्यर्थ और अशुभ को समाप्त करके अचल बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सबसे विशेष बात है कि बाप को सारे विश्व में से कौन पसन्द आया? आप पसन्द आये ना! कितनी आत्मायें हैं लेकिन आप पसन्द आये। जिसको भगवान ने पसन्द कर लिया, उससे ज्यादा क्या होगा! तो *सदा बाप के साथ अपना भाग्य भी याद रखो। भगवान और भाग्य। सारे कल्प में ऐसी कोई आत्मा होगी जिसको रोज याद प्यार मिले, प्रभु प्यार मिले। रोज यादप्यार मिलता है ना।* सबसे ज्यादा लाडले कौन हैं? *आप ही लाडले हो ना। तो सदा अपने भाग्य को याद करने से व्यर्थ बातें भाग जायेंगी। भगाना नहीं पड़ेगा, सहज ही भाग जायेंगी।*

 

✺   *ड्रिल :-  "भगवान और भाग्य को सदा याद रखना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने देह से न्यारी होकर मन-बुद्धि द्वारा एक सुंदर से बड़े दरबार में पहुँचती हूँ... वहाँ का नज़ारा मन को लुभाने वाला हैं... सामने  शिव बाबा एक गद्दी पर विराजमान हैं... वहाँ बाबा का स्वयंवर हो रहा हैं...* स्वयंवर के लिए करोड़ो मनुष्यात्माएं रूपी कुमारियाँ आयीं हुईं हैं... सभी बहुत सुंदर-सुंदर लाल रंग के जोड़े में दुल्हन बनी हुई हैं...

 

_  ➳  सभी बड़े ही उत्साह में हैं कि कब शिव बाबा हमें मिल जायें और हमारा साजन बन जायें... *मुझ आत्मा को बिल्कुल उम्मीद नहीं हैं कि शिव बाबा मुझे चुनेंगे क्योंकि वह गुणों के भण्डार हैं, आनंद के सागर हैं, ब्रह्मलोक के वासी हैं, सुख-दुःख से न्यारे हैं, सदगति दाता हैं, ज्ञानामृत के सागर हैं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता त्रिमूर्ति हैं...*

 

_ ➳  उनमें से कुछ मनुष्यात्माएं रूपी कुमारियों का ध्यान देह की दुनिया रूपी दरबार की सजावटों में हैं, कुछ का ध्यान एक दूसरे के वस्त्रो में हैं, कुछ एक दूसरे को देखकर मन ही मन जल रही हैं... *स्वयंवर शुरू होते ही मेरी आँखों से खुशी के आँसू बह रहें हैं... बाबा धीरे-धीरे चलकर मेरी ओर आ रहें हैं और मुझे गुलाबों से बनी हुईं सुगंधित माला मेरे गले में डाल रहें हैं...* मुझे यकीन ही नहीं हो रहा हैं कि स्वयं शिव बाबा ने करोड़ो कुमारियों में से सिर्फ मुझ आत्मा को पसन्द किया...

 

 _ ➳  अब वह मेरे साजन हैं... कितना बड़ा भाग्य हैं मेरा जो शिव साजन ने मुझे अपनी सजनी बनाया... *अपने साजन के साथ मैं हवन कुण्ड की अग्नि में रावण के विकारों और व्यर्थ संकल्पों को स्वाहा कर रहीं हूँ... मेरे साजन अब मुझें बहुत सारी शिक्षाएं दे रहे हैं कि कैसे इस संगमयुग में रहना हैं, कैसे श्रीमत अनुसार चलना हैं... कैसे संकल्प चलाने हैं... अब शिव साजन मुझे हीरों का बना हुआ ताज तोहफ़े में भेंट कर रहें हैं...*

 

 _ ➳  *अब शिव साजन और मैं सूक्ष्मवतन पहुँचते हैं... वह मुझपर शांति और पवित्रता की किरणें डाल रहे हैं... मैं एकदम रिफ्रेश हो रही हूँ... अब मुझे बहन, भाई, माँ, बाप या अन्य किसी भी सम्बन्ध की कमी महसूस होती हैं तो शिव साजन तुरन्त उसी रूप में प्रकट हो जाते हैं...* कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ मैं... अब मैं किसी हद के बंधनों में नहीं फँसती हूँ... अब अपने भाग्य को याद करते ही व्यर्थ संकल्प अपने आप ही भाग जाते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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