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❍ 06 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ इस वेश्यालय से दिल हटाया ?
➢➢ जो कुछ बीता, उसे ड्रामा समझ कोई भी विचार तो नहीं किया ?
➢➢ निश्चय के फाउंडेशन द्वारा सम्पूरंता तक पहुँचने का पुरुषार्थ किया ?
➢➢ अपने समय को, सुखों को, प्राप्ति की इच्छा को सर्व के प्रति दान किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व के बच्चों की पालना कर रहे हैं ऐसे आप बच्चे भी एक स्थान पर बैठकर बाप समान बेहद की सेवा करो। फालो फादर करो। बेहद में सकाश दो। बेहद की सेवा में अपने को बिजी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वत: ही आयेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं भाग्यविधाता का बच्चा हूँ"
〰✧ सदा अपने भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते रहते हो? भाग्य का सितारा कितना श्रेष्ठ चमक रहा है! सदा अपने भाग्य के गीत गाते रहते हो? क्या गीत है? वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! यह गीत सदा बजता रहता है? आटोमेटिक है या मेहनत करनी पड़ती है? आटोमेटिक है ना। क्योंकि भाग्यविधाता बाप अपना बन गया। तो जब भाग्यविधाता के बच्चे बन गये, तो इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा! बस, यही स्मृति सदा रहे कि भाग्यविधाता के बच्चे हैं।
〰✧ दुनिया वाले तो अपने भाग्य का वरदान लेने के लिए यहाँ-वहाँ भटकते रहते हैं और आप सभी को घर बैठे भाग्य का खजाना मिल गया। मेहनत करने से छूट गये ना। तो मेहनत भी नहीं और प्राप्ति भी ज्यादा। इसको ही भाग्य कहा जाता है, जो बिना मेहनत के प्राप्त हो जाये। एक जन्म में 21 जन्म की प्राप्ति करना-यह कितना श्रेष्ठ हुआ! और प्राप्ति भी अविनाशी और अखण्ड है, कोई खण्डित नहीं कर सकता। माया भी सरेन्डर हो जाती है, इसलिए अखण्ड रहता है। कोई लड़ाई करके विजय प्राप्त करना चाहे तो कर सकेगा? किसकी ताकत नहीं है। ऐसा अटल-अखण्ड भाग्य पा लिया! स्थिति भी अभी ऐसी अटल बनाओ।
〰✧ कैसी भी परिस्थिति आये लेकिन अपनी स्थिति को नीचे-ऊपर नहीं करो। अविनाशी बाप है, अविनाशी प्राप्तिया हैं। तो स्थिति भी क्या रहनी चाहिए? अविनाशी चाहिए ना। सभी निर्विग्न हो? या थोड़ा-थोड़ा विघ्न आता है? विघ्न-विनाशक गाये हुए हो ना। कैसा भी विघ्न आये, याद रखो-मैं विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ। अपना यह टाइटल सदा याद है? जब मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, तो मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कितना भी बड़ा विघ्न कुछ भी नहीं है। जब कुछ है ही नहीं तो उसका प्रभाव क्या पड़ेगा?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ सभी स्वतन्त्र हो? बिगुल बजे और भाग आयें। ऐसे नष्टोमोहा हो? जरा भी 5 परसेन्ट भी अगर मोह की रग होगी तो 5 मिनट देरी लगायेंगे और खत्म हो जायेगा। क्योंकि सोचेंगे, निकलें या न निकलें।
〰✧ तो सोच में ही समय निकल जायेगा। इसलिए सदा अपने को चेक करो कि किसी भी प्रकार का देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन तो नहीं है।
〰✧ जहाँ बन्धन होगा वहाँ आकर्षण होगी। इसलिए बिल्कुल स्वतन्त्र। इसको ही कहा जाता है- बाप समान कर्मातीत स्थिति। सभी ऐसे हो ना?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ सार स्वरूप में स्थित हो फिर विस्तार में आना यह बात भूल तो नहीं जाते हो? सार स्वरूप में स्थित हो विस्तार में आने से कोई भी प्रकार के विस्तार की आकर्षण नहीं होगी। विस्तार को देखते, सुनते, वर्णन करते ऐसे अनुभव करेंगे जैसे एक खेल कर रहे हैं। ऐसा अभ्यास सदा कायम रहे। इसको ही ‘सहज याद' कहा जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- फिर से पवित्र बनना
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सुमन हो गये... अपने मन को निहार कर,
आनन्द के सागर में डूब जाती हूँ... और मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि
कैसे चलते चलते बाबा ने मेरे विकारी हाथो में, अपना पावन मखमली हाथ देकर, मेरा
कायाकल्प कर दिया है... इस अंतिम जनम में भगवान को पिता, टीचर और सतगुरु रूप
में पाकर... जनमो की यात्रा ही जैसे सफल हो गयी है... सृष्टि जगत के इस खेल में
मुझ आत्मा ने... अंत में भगवान को ही जीत लिया है.. सब कुछ मैंने पा लिया है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी देवताई शानोशौकत याद दिलाते हुए कहते है :-
"मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य के नशे में खोये रहो... और
पावनता के रंग में रंगकर मनुष्य से देवता बनने का सदा का अधिकार पा लो...ईश्वर
पिता के साथ का यह खुबसूरत वरदानी संगम है... इसमे पवित्रता से सजकर पिता की
सम्पूर्ण दौलत को पा लो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को गहराई से दिल में समाकर कहती हूँ
:- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... अपनी यादो भरा मदद का हाथ देकर, मेरे भाग्य को
कितना ऊंचाइयों पर ले जा रहे हो... मै क्या हूँ और क्या मुझे बना रहे हो...
विकारो के पतितपन को जीकर मै कितनी निकृष्ट से हो गयी थी... आज पावनता से सजाकर
मुझे देवता बना रहे हो..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम के अहसासो से भरते हुए कहते है :-
"मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में पलने का महाभाग्य पाकर अब पवित्रता
की तरंगे पूरे विश्व में फैलाओ... पावन बनकर, पावन दुनिया के मालिक बन सदा के
लिए मुस्कराओ... इस अंतिम जनम में ईश्वर पिता की श्रीमत के रंग में रंगकर,
सुंदर देवता बन जाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर लुटाते हुए संकल्पों को देख
कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... मनुष्य मन और मनमत ने मुझ आत्मा को विकारो के
दकदल में गहरे डुबो दिया... आपने आकर जो मात्र चोटी बची थी... खींच कर निकाला
और ज्ञान अमृत से मुझे उजला बनाया है... आपकी प्यारी यादो में डूबकर मै आत्मा
अब पवित्रता का आँचल ओढ़ मुस्करा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को वरदानों से सजाते हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे
बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर अदा में ईश्वरीय झलक दिखाओ... इस
पतित हो गयी दुनिया को अपनी पावनता से पुनः खुबसूरत पवित्र बनाओ... विकारो के
कालेपन से निकल कर, ज्ञान धारा में धवल बन, और यादो में तेजस्वी होकर, देवताई
सौंदर्य से विश्व धरा पर जगमगाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य के ऊपर, ईश्वरीय जादूगरी को देख, मीठे बाबा से कहती
हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... आपके सच्चे साथ और यादो के हाथ को पाकर मै
आत्मा विकारो के घने जंगल से बाहर निकल रही हूँ... अपनी खोयी हुई पावनता से
पुनः सज संवर रही हूँ... अपने साथ इस प्रकर्ति को भी पावन बनाकर, सुखो के
स्वर्ग में बदल रही हूँ..." मीठे बाबा को अपने दिल की सारी बात सुनाकर मै आत्मा
इस धरती पर लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- शिवालय में जाने के लिए इन विकारों को निकालना है"
➳ _ ➳ बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर,
विकारों का सन्यास करके ही आत्मा रूपी सीता अपने प्रभु राम से मिल सकती
है,
मन ही मन यह विचार करती मैं आत्मा सीता उस समय को याद करती हूँ जब तक
मेरे प्रभु राम मुझे नही मिले थे। पाँच विकारों रूपी रावण की जेल में कैद मैं
आत्मा सीता कैसे अपने प्रभु राम के वियोग में तड़प रही थी।
➳ _ ➳ मेरा जीवन पिंजड़े में बन्द उस पंछी के समान बन गया था जो इस बात
का कभी अनुभव ही नही कर पाता कि आजाद हो कर उड़ने में कितना आनन्द समाया है?
अपने प्रभु राम का पता पाने के लिए मैं कितनी व्याकुल थी। कोई भी मुझे
उनका पता बताने वाला नही था। किंतु मेरे प्रभु राम,
मेरे दिलाराम शिव पिता परमात्मा ने स्वयं आ कर ना केवल मुझे रावण की कैद
से छुड़ाया बल्कि विकारों रूपी रावण ने जो मेरे पंख काट दिए थे वो ज्ञान और योग
के पंख लगा कर मुझे उड़ना भी सिखाया। इस उड़ने में जो परमआनन्द समाया है उसे मैं
जब चाहे तब अनुभव कर सकती हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञान और योग के पंख लगा कर मैं आत्मा सीता जब चाहे अपने प्रभु
राम से मिलन मनाने जा सकती हूँ। यही चिंतन करते - करते मैं आत्मा रूपी सीता
विदेही बन देह रूपी पिंजड़े को छोड़ इससे बाहर निकल आती हूँ और चल पड़ती हूँ ऊँची
उड़ान भरते हुए अपने प्रभु राम के पास। सेकण्ड में पाँच तत्वों से बनी साकारी
दुनिया को पार कर,
उससे परे सूक्ष्म वतन को भी पार कर मैं पहुंच जाती हूँ अपनी निराकारी
दुनिया परमधाम में।
➳ _ ➳ अब मैं परमधाम में अपनी निराकारी स्थिति में स्थित हो,
बिंदु बन,
अपने बिंदु शिव बाबा के साथ मिलन मना रही हूँ। मेरे शिव पिता से आ रही
अनन्त सर्वशक्तियों की किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं। इन किरणों के
पड़ने से मैं आत्मा एकदम हल्की होती जा रही हूँ। मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली
व चमकदार बनता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्रभु राम ने सर्वशक्तियों
को समाने की ताकत मुझे दे दी हो। अपने प्रभु राम की सर्वशक्तियों को स्वयं में
समा कर मैं शक्तियों का पुंज बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ में समा कर
मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित करती जा रही हैं ।
➳ _ ➳ अपने प्रभु राम के साथ मिलन मना कर परमात्म शक्तियों से मैं
भरपूर हो चुकी हूँ। बेहद की वैरागी बन,
विकारों का सन्यास करने का बल मेरे शिव पिता ने मेरे अंदर भर दिया है।
इस बल को अपने साथ लिए,
शक्तिशाली बन अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती
हूँ। साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में वापिस भृकुटि के भव्य भाल पर आ कर
मैं विराजमान हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे शिव पिता परमात्मा का बल अब मुझे बेहद का वैरागी बनने और
विकारों का सन्यास करने की शक्ति दे रहा है। देह,
देह की दुनिया और देह के सम्बन्धों से मैं नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ।
मेरे शिव पिता से मिल रहा पवित्रता का बल मुझे विकारों के ऊपर विजयी बनने में
मदद कर रहा है और विकारों का सन्यास करवा कर मुझे विकर्माजीत बना रहा है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं निश्चय के फॉउन्डेशन द्वारा सम्पूर्णता तक पहुँचने वाली निश्चयबुद्धि निश्चिन्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं अपने समय को, सुखों को, प्राप्ति की इच्छा को सर्व के प्रति दान करने वाली महादानी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आज बापदादा अपने राज्य दरबार वासी साथियों को देख रहे थे। सभी यहाँ पहुँच गये हैं। आज की सभा में विशेष स्नेही आत्मायें ज्यादा हैं तो स्नेही आत्माओं को बापदादा भी स्नेह के रिटर्न में स्नेह देने के लिए स्नेह ही दरबार में पहुँच गये हैं। मिलन मेला मनाने के उमंग उत्साह वाली आत्मायें हैं। बापदादा भी मिलन मनाने के लिए बच्चों के उत्साह भरे उत्सव में पहुँच गये हैं। यह भी स्नेह के सागर और नदियों का मेला है। तो मेला मनाना अर्थात् उत्सव मनाना। आज बापदादा भी मेले के उत्सव में आये हैं।
➳ _ ➳ बापदादा मेला मनाने वाले, स्नेह पाने के भाग्यशाली आत्माओं को देख हर्षित हो रहे हैं कि सारे इतने विशाल विश्व में अथाह संख्या के बीच कैसी-कैसी आत्माओं ने मिलन का भाग्य ले लिया! विश्व के आगे ना उम्मीदवार आत्माओं ने अपनी सर्व उम्मीदें पूर्ण करने का भाग्य ले लिया। और जो विश्व के आगे नामीग्रामी उम्मीदवार आत्मायें हैं वह सोचती और खोजती रह गई। खोजना करते-करते खोज में ही खो गये। और आप स्नेही आत्माओं ने स्नेह के आधार पर पा लिया। तो श्रेष्ठ कौन हुआ?
✺ "ड्रिल :- अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में रहना"
➳ _ ➳ आकाश में पल-पल रूप बदलते बादलों के घूँघट से झाँकता पूनम का चाँद... और बिखरी हुई चाँदनी से पूरी तरह पारदर्शी हो चुके बादल... ठीक ऐसे ही इस नश्वर देह के भीतर अपनी आभा बिखेरती चन्द्रमा रूपी मणि के समान मैं आत्मा... शीतलता पावनता और प्रेम की किरणे फैलाती हुई देह को इन्द्रधनुषी आभा से भरपूर कर रही हूँ... मेरा प्रकाश और दिव्यता बढती जा रही है... और बढते-बढते पहुँच गयी है उस स्तर पर जहाँ से देह रूपी बदली अपना घूँघट हटा लेने को मजबूर हो गयी है... देहभान से मुक्त मैं आत्मा मन बुद्धि के पंखों से उडती जा रही हूँ परम धाम की ओर... सब कुछ पीछे छोडती हुई... स्थूल और सूक्ष्म की टाल टालियाँ, तेरा मेरा, ऊँचा, नीचा की अट्टालिकाए और क्या, कब, क्यूँ, कहाँ जैसे शिखरों की घेरावलियाँ... मैं आत्मा आज स्नेह निमन्त्रण देने जा रही हूँ अपने शिव प्रियतम को... बस एक ही संकल्प लिए, भेज रहे है स्नेह निमन्त्रण प्रियतम तुम्हें बुलाने को... हे मानस के राजहंस! तुम भूल न जाना आने को...
➳ _ ➳ मैं आत्मा पहुँच गयी हूँ परमधाम में असंख्य फुलझडियों के बीच... शान्ति की रश्मियाँ प्रवाहित करती, ये फुलझडियाँ शिव बिन्दु के असीम स्नेह सागर में समाई हुई है... दो पल के लिए उस स्नेह को स्वयं में समाती हुई... और संकल्पों से ही साकार मिलन का निमन्त्रण देती हुई, मैं उन्हें छूकर वापस लौट आयी हूँ डायमंड हाँल में...
➳ _ ➳ डायंमड हाॅल, जिसमें बापदादा के इन्तजार में असंख्य फरिश्तें पलके बिछाए हुए है इस महामिलन के लिए... संगम पर सागर और नदियों का मेला और मेले में भविष्य राज्यधिकारी स्नेही आत्माएं फरिश्ता रूप में... हर किसी का स्नेह में डूबा संकल्प... सखि! जब उतरें आज धरा पर वो तो, मैं अखियों में उतार लूँगी, गिराकर परदे पलकों के उनको न जाने दूँगी...
➳ _ ➳ और तभी साकारी रथ में बापदादा की पधरामणि... अद्भुत नज़ारा है ये सदी का, गहन नीरवता... मगर... मीठी-सी सरगम है, मौन भी गुनगुना रहा है... मेरा बाबा का गीत धडकनों को भा रहा है... दर-दर भटके है जिसकी एक झलक पाने को... सदियों की तलाश, सदियों की भटकन को एक नया आयाम मिल गया है, सौभाग्य बरसा है इस कदर मेहरबाँ होकर अब रहमतों का सिलसिला सा चल गया है...
➳ _ ➳ मैं अति श्रेष्ठ भाग्यशाली आत्मा अपने भाग्य का गीत गाती हुई मगन अवस्था में... स्टेज से बाप दादा एक-एक आत्मा को दृष्टि देते हुए... और मुझ पर आते ही उनकी नजरों का ठहर जाना... जमाने भर का स्नेह, वात्सल्य, प्रेम सभी कुछ तो उडेल कर रख दिया है आज उन्होनें... दो नैनों से स्नेह की ऐसी धारा फूटी है कि सम्पूर्ण डायमंड हाॅल स्नेह सागर से भरपूर हो रहा है स्नेह का दरिया मानो उफन रहा है... सारे जग के पालन हार को स्टेज पर भोग स्वीकार कराया जा रहा है... अभोक्ता बाबा आज बच्चों के हाथों भोग स्वीकार रहा है...
➳ _ ➳ एक दृश्य मंच पर है और दूसरा मेरी आँखों के सामने... मेरे बाबा चलकर आ गए है मेरे करीब और मुझे खिलाकर, मेरे हाथों से भोग स्वीकार कर रहे है मेले में भी हम दोनो अकेले है... मेरे बाबा सिर्फ मेरे साथ है... मुझे स्वराज्य अधिकारी का तिलक दे रहे है... (मंच पर से बाबा के जाने की सूचना)... मगर मैने तो पलके बन्द कर कैद कर लिया है उनको सदा सदा के लिए... मै जाने न दूँगी अब कैद हुए हो पलको में ठाकुर... जाकर तो दिखाओं इस दिल और धडकन से दूर... और मैं मगन हूँ, अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में... ये नशा शाश्वत नशा है... दिल यही अनहद धुन गुनगुना रहा है... जो चढती उतरती है मस्ती, वो हकीकत में मस्ती नही है, जिन नजरों में तुम हो बसते, वो नजर फिर तरसती नही है... और मैं संगम पर सदा परमात्म मिलन मनाती हुई अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे में चूर आत्मा अपनी देह में वापस लौट आयी हूँ... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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