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 26 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ पढाई पर पूरा पूरा ध्यान दिया ?

 

➢➢ कभी भी विघन रूप तो नहीं बने ?

 

➢➢ निराकार और साकार दोनों रूपों के यादगार को विधिपूर्वक मनाया ?

 

➢➢ नेगेटिव को पॉजिटिव में चेंज करने के लिए अपनी भावनाओं को शुभ और बेहद का बनाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अन्त:वाहक स्थिति अर्थात् कर्मबन्धन मुक्त कर्मातीत स्थिति का वाहन अर्थात् अन्तिम वाहन, जिस द्वारा ही सेकण्ड में साथ में उड़ेंगे। इसके लिए सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बनो तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप के अनुभवी स्वरूप बनेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ"

 

  स्वयं को स्वराज्य अधिकारी, राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? स्वराज्य मिला है वा मिलना है? स्वराज्य अधिकारी अर्थात् राजयोगी आत्मा सदा ही स्वराज्य की अधिकारी होने के कारण शक्तिशाली है। राजा अर्थात् शक्तिशाली। अगर राजा हो और निर्बल हो, तो शक्तिहीन को राजा कौन मानेगा? प्रजा उनके ऊपर और ही राज्य करेगी। तो स्वराज्य अधिकारी अर्थात् सदा शक्तिशाली आत्मा ही कर्मेन्द्रियों पर अर्थात् अपने कर्मचारियों के ऊपर राज्य कर सकती है, जैसे चाहे चला सकती है। नहीं तो प्रजा, राजा को चलायेगी। प्रजा, राजा को चलाये तो प्रजा ही राजा हो गई ना।

 

  नियम प्रमाण राजा, प्रजा को चलाता है। अगर प्रजा का राज्य है तो राजा नहीं कहेंगे, प्रजा का प्रजा पर राज्य कहेंगे। किन्तु बाप आकर राजयोगी बनाता है, प्रजा का प्रजा पर राज्य नहीं सिखाता है। तो सभी राज्य अधिकारी हो ना? कभी अधीन, कभी अधिकारी - ऐसे तो नहीं? सदा अधिकारी, एक भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे। इसको कहते हैं - 'राजयोगी वा राज्य अधिकारी'। तो सदा इस स्वमान में स्थित रहो कि हम अधिकारी हैं, अधीन होने वाले नहीं! यह है ईश्वरीय नशा। यह नशा सदा रहता है या कभी-कभी? कभी है, कभी नहीं - ऐसा न हो।

 

  क्योंकि अभी के संस्कार अनेक जन्म चलेंगे। अगर अभी के संस्कार सदा के नहीं हैं, कभी-कभी के हैं, तो अनेक जन्म में भी कभी-कभी राज्य अधिकारी बनेंगे। सदा राज्य अधिकारी अर्थात् रॉयल फैमिली के नजदीक रहने वाले। तो संस्कार भरने का समय अभी है, जैसा भरेंगे वैसा चलता रहेगा। तो अटेन्शन किस समय देना होता? जब रिकार्ड भरते वा टेप भरते हैं। तो अटेन्शन भरने के समय देते हैं। चलने के समय तो चलता ही रहेगा लेकिन भरने के समय जैसा भरेंगे वैसे चलता रहेगा। तो भरने का समय अभी है। अभी नहीं तो कभी नहीं। फिर अटेन्शन देना चाहो तो भी नहीं दे सकेगे क्योंकि भरने का समय समाप्त हो जायेगा। फिर जो भरा वह चलता रहेगा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि कई बच्चे परखने में बहुत होशियार होते हैं। कोई भी गलती होती है, जो नीति प्रमाण नहीं है, तो समझते हैं कि यह नहीं करना चाहिए, यह सत्य नहीं है, यथार्थ नहीं है, अयथार्थ है, व्यर्थ है। लेकिन समझते हुए फिर भी करते रहते या कर लेते।

 

✧   तो इसको क्या कहेंगे? कौन-सी पॉवर की कमी है? कन्ट्रोलिंग पॉवर नहीं। जैसे आजकल कार चलाते हैं, देख भी रहे हैं कि एक्सीडेन्ट होने की सम्भावना है, ब्रेक लगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन ब्रेक लगे ही नहीं तो जरूर एक्सीडेन्ट होगा ना।

 

✧  ब्रेक है लेकिन पॉवरफुल नहीं है और यहाँ के बजाए वहाँ लग गई, तो भी क्या होगा? इतना समय तो परवश होगा ना चाहते हुए भी कर नहीं पाते। ब्रेक लगा नहीं सकते या ब्रेक पॉवरफुल न होने के कारण ठीक लग नहीं सकती। तो यह चेक करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ आप ग्रेट-ग्रेट-ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैं, आपके ही सभी बिरादरी हैं, शाखायें हैं, परिवार है, आप ही भक्तों के इष्टदेव हो, यह नशा है कि हम ही इष्टदेव हैं? तो भक्त चिल्ला रहे हैं, आप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं- हे इष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे हो, रेसपाण्ड नहीं करते हो उन्हों को? तो बापदादा कहते हैं हे भक्तों के इष्ट देव अभी पुकार सुनो, रेसपाण्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं। तो क्या रेसपाण्ड देगे? परिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  "ड्रिल :- एक बाप की याद में रहना"

➳ _ ➳  अमृतवेला का ये सुहानी पल रात के अँधेरे को ख़तम कर सुबह की रोशनी की ओर रुख कर रहा है... वैसे ही कलियुगी अंधियारे को चीरते हुए ये संगमयुग... सतयुग की ओर ले जा रहा है... प्यारे बाबा जब से आयें हैं, संगम की हर घडी ही अमृतवेला बन गई है... जो सदा सुखों की ओर ले जाती है... हर पल ही कितना सुहावना हो गया है... इतनी पावन, सुन्दर वेला में मैं आत्मा प्यारे बाबा से प्यारी-प्यारी बातें करने पहुँच जाती हूँ पावन वतन में...

❉  मेरे मन मंदिर में अपनी मूरत बसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... कितने मीठे खिले से महकते फूल से धरा पर उतरे थे पर खेलते खेलते काले पतित हो गए... अब इस देह की दुनिया से निकल ईश्वर पिता की सोने सी यादो में स्वयं को उसी दिव्यता से दमकाओ क्योकि अब सुनहरी सुखो भरी दुनिया में चलना है...”

➳ _ ➳  निराकारी बाबा की यादों में स्वर्णिम सुखों को अपने नाम करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने खोये रूप को सौंदर्य को आपकी यादो में पुनः पा रही हूँ... कंचन काया और कंचन महल की अधिकारी बन रही हूँ और इस दुनिया से उपराम हो रही हूँ...”

❉  अपने रूहानी नैनों से पावनता की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के साथ का समय बहुत कीमती है... यादो में रहकर अपने सच्चे दमकते स्वरूप को पाकर सुखो की दुनिया में मुस्कराओ... यादो में अपनी दिव्यता और शक्तियो को फिर से पाकर सुंदर तन और मन से सुन्दरतम दुनिया के रहवासी बनो...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रभु की यादों की धारा में बहकर सुन्दर कमल बन खिलते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी खोयी सुंदरता को पाकर मुस्करा रही हूँ... दिव्य गुणो को धारण कर पवित्रता के श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में देवताओ की दुनिया घूम रही हूँ...”

❉  रूहानी यादों में मेरे मन के चमन को खिलाकर मेरे रूहानी बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सिर्फ बाबा की यादे ही एकमात्र उपाय है जो इस पतित तन और मन को खुबसूरत और पवित्र बना सकता है... तो इस समय को यादो में भर दो... अपने पुरुषार्थ को तीव्र कर स्वयं को निखारने में पूरी तन्मयता से जुट जाओ... क्योकि अब पवित्र दुनिया में चलने और सुख लेने का समय हो गया है...

➳ _ ➳  एक की लगन में मगन होकर जीवन में मिठास भरकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जनमो के कालेपन को आपकी मीठी यादो में धो रही हूँ... वही सुंदर देवताई स्वरूप पा रही हूँ और सुख और शांति की दुनिया की अधिकारी होकर मीठे सुखो में खिलखिला रही हूँ... यादो में पावन बनकर खिल उठी हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप से जो ज्ञान मिलता है उस पर विचार सागर मंथन करना है"

➳ _ ➳  सागर के तले में छुपी अनमोल वस्तुयों जैसे सीप, मोती आदि को पाने के लिए एक गोताखोर को पहले उसकी गहराई में तो जाना ही पड़ता है। जब तक गोताखोर पानी के ऊपरी हिस्से पर तैरता रहता है तब तक तेज लहरों, पानी की थपेड़ों और तूफानों का भी उसको सामना करना पड़ता है परन्तु यदि वह इन सबकी परवाह किये बिना पानी की गहराई में उतरता चला जाता है तो नीचे गहराई में जा कर हर चीज शांन्त हो जाती है और वह सागर के तले में छुपी उन चीजों को प्राप्त कर लेता है।

➳ _ ➳  इस दृश्य को मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि जैसे स्थूल सागर की गहराई में अनमोल सीप, मोती आदि छुपे होते हैं इसी तरह से स्वयं ज्ञान सागर भगवान द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान में भी कितने अनमोल खजाने छुपे हैं बस आवश्यकता है इन खजानों को ढूंढने के लिए इस अनमोल ज्ञान की गहराई में जाने की अर्थात विचार सागर मंथन करने की। मलाई से भी मक्खन तभी निकलता है जब उसे पूरी मेहनत के साथ मथा जाता है तो यहां भी अगर विचार सागर मन्थन नही करेंगे तो ज्ञान रूपी मक्खन का स्वाद भी नही ले सकेंगे। इसलिये विचार सागर मन्थन कर, ज्ञान की गहराई में जा कर, फिर उसे धारणा में लाकर अनुभवी मूर्त बनना ही ज्ञान सागर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का वास्तविक यूज़ है।

➳ _ ➳  हम बच्चो को यह ज्ञान दे कर, हमारे दुखदाई जीवन को सुखदाई, मनुष्य से देवता बनाने के लिए स्वयं भगवान को इस पतित दुनिया, पतित तन में आना पड़ा। तो ऐसे भगवान टीचर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का हमे कितना रिगार्ड रखना चाहिए। ज्ञान की एक - एक प्वाइंट पर विचार सागर मंथन कर उसे धारणा में ले कर आना और फिर औरों को धारण कराना ही भगवान के स्नेह का रिटर्न है। और भगवान के स्नेह का रिटर्न देने के लिए ज्ञान का विचार सागर मन्थन कर, सेवा की नई - नई युक्तियाँ अब मुझे निकाल औरों को भी यह ज्ञान देकर उनका भाग्य बनाना है मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर ज्ञान सागर अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।
 
➳ _ ➳  मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान सूर्य शिवबाबा मेरे सिर के ठीक ऊपर आ कर ज्ञान की शक्तिशाली किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। बाबा से आ रही सर्वशक्तियो रूपी किरणों की मीठी फुहारें जैसे ही मुझ पर पड़ती हैं मेरा साकारी शरीर धीरे - धीरे लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर मे परिवर्तित हो जाता हैं और मास्टर ज्ञान सूर्य बन लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये मैं फ़रिशता ज्ञान की रोशनी चारों और फैलाता हुआ सूक्ष्म लोक में पहुँच जाता हूँ और जा कर बापदादा के सम्मुख बैठ जाता हूँ।
 
➳ _ ➳  अपनी सर्वशक्तियों को मुझ में भरपूर करने के साथ - साथ अब बाबा मुझे विचार सागर मन्थन का महत्व बताते हए कहते हैं कि "जितना विचार सागर मंथन करेंगे उतना बुद्धिवान बनेंगें और अच्छी रीति धारणा कर औरों को करा सकेंगे"। बड़े प्यार से यह बात समझा कर बाबा मीठी दृष्टि दे कर परमात्म बल से मुझे भरपूर कर देते हैं। मैं फ़रिशता परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर औरों को आप समान बनाने की सेवा करने के लिए अब वापिस अपने साकारी तन में लौट आता हूँ।
 
➳ _ ➳  अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अपने परमशिक्षक ज्ञान सागर शिव बाबा द्वारा दिये जा रहे ज्ञान को गहराई से समझने और उसे स्वयं में धारण कर फिर औरों को धारण कराने के लिए अब मैं एकांत में बैठ विचार सागर मंथन कर सेवा की नई - नई युक्तियाँ सदैव निकालती रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं निराकार और साकार दोनों रूपों के यादगार को विधिपूर्वक मनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं निगेटिव को पॉज़िटिव में चेंज करने के लिए अपनी भावनाओं को शुभ और बेहद की बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्राह्मणों का काम क्या हैयोग लगाना भी क्या है? मेहनत है क्यायोग का अर्थ ही है आत्मा और परमात्मा का मिलन। तो मिलन में क्या होता हैखुशी में नाचते हैं। बाप की महिमा के मीठे-मीठे गीत दिल आटोमेटिक गाती है। ब्राह्मणों का काम ही यह हैगाते रहो और नाचते रहो। यह मुश्किल हैनाचना गाना मुश्किल हैनहीं है ना। जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। आजकल तो नाचने गाने की सीजन हैतो आपको भी क्या करना है? नाचो, गाओ। सहज है नासहज है तो काँध तो हिलाओ। मुश्किल तो नहीं है ना?

 

 _ ➳  जान-बूझ कर सहज से हटकर मुश्किल में चले जाते हो। मुश्किल है नहीं, बहुत सहज है क्योंकि बाप जानते हैं कि आधाकल्प मुश्किल की जीवन व्यतीत की है इसलिए इस समय सहज है। मुश्किल वाला कोई हैकभी-कभी मुश्किल लगता हैजैसे कोई चलते- चलते रास्ता भूलकर और रास्ते में चला जाए तो मुश्किल लगेगा ना। ज्ञान का मार्ग मुश्किल नहीं है। ब्राह्मण जीवन मुश्किल नहीं है! ब्राह्मण के बजाए क्षत्रिय बन जाते हो तो क्षत्रिय का काम ही होता है लड़ना, झगड़ना... वह तो मुश्किल ही होगा ना! युद्ध करना तो मुश्किल होता हैमौज मनाना सहज होता है।

 

✺   ड्रिल :-  "ब्राह्मण जीवन में नाचते, गाते रह सहज मौज मनाने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं आत्मा झील के किनारे बैठ सूर्योदय के सुंदर नजारे का आनंद ले रही हूँ... पानी की कल-कल ध्वनि... समूचे वातावरण में गुंजायमान हो रही है... पक्षियों का कलरव सर्वत्र मधुर संगीत घोल रहा है... मैं आत्मा उगते हुए सूर्य को देख रही हूँ... उगते हुए सूर्य की अरुणिमा से जैसे प्रकृति भी सुनहरी लाल चादर ओढ़ी हुई प्रतीत हो रही है... प्रकृति की इस सुंदर छवि को देख मेरा मन आनंद विभोर हो रहा है...

 

 _ ➳  सहसा वह गीत याद आ जाता है- 'जिसकी रचना इतनी सुंदर वह कितना सुंदर होगा...' इस स्मृति मात्र से ही मन दर्पण में प्यारे शिवबाबा का सुंदर सलोना रूप छा जाता है... अपने प्रियतम की इस मोहिनी मूरत को निहारते-निहारते... मैं अपने बाबा को अपने बिल्कुल समीप ही देख रही हूँ... मीठे बाबा अपनी स्नेह भरी दृष्टि से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मेरा मन ईश्वरीय प्यार के झरने में भीगता जा रहा है... मेरे रोम-रोम से 'मेरा मीठा बाबा, मेरा प्यारा बाबा' का अनहद नाद सा गूँज रहा है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा मीठे बाबा से मिलन मना कर अति आनंदित हो रही हूँ... मुख से वाह वाह के ही बोल निकल रहे हैं... कितना सुंदर है मेरा यह ब्राह्मण जीवन... मैं आत्मा बाबा के स्नेह में, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ... परमात्मा की मोहब्बत में लीन होकर मैं हर प्रकार की मेहनत से मुक्त हो रही हूँ... योग लगाना नहीं पड़ता, मेहनत करनी नहीं पड़ती मेरा मन, मिलन के असीम सुख का अनुभव करने के लिए... स्वत: ही बाबा की मधुर स्मृतियों में समाया रहता है...

 

 _ ➳  परमात्मा से मिलन मनाते हुए मन मयूर खुशी में नाच रहा है... इस स्नेह में डूबकर आत्मा बाबा की महिमा के मीठे-मीठे गीत गुनगुना रही है... मेरे मीठे बाबा ने मुझे हर मेहनत से छुड़ा दिया है... अब मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ भाग्य के और प्यारे बाबा की महिमा के गीत गुनगुनाती रहती हूँ... और हर पल खुशी की रास मना रही हूँ... मुझ अति भाग्यवान श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा का काम ही है सदा ख़ुशी में नाचना और गाते रहना... बाबा ने मेरा यह ब्राह्मण जीवन कैसे मौजों से, आनंद से, खुशियों से भर दिया है...

 

 _ ➳  आधाकल्प मैं आत्मा भक्ति के विविध प्रपंचों में पड़ कर अनेक कष्ट भोगती रही... जैसे कोई पथिक रास्ता भटक जाता है तो उसे कितनी परेशानी होती है... बाबा ने मुझ ब्राह्मण आत्मा के सहज कर्तव्य, सहज धर्म की स्मृति दिलाई है... अब मैं आत्मा इस सुंदर ब्राह्मण जीवन में क्षत्रिय समान युद्ध नहीं करती हूँ... मैं आत्मा बाबा के बताए सहज मार्ग पर चलते हुए स्वयं को एक के लव में लवलीन कर रही हूँ... सदा ख़ुशी में नाचते, गाते सहज मौज का अनुभव कर रही हूँ... 'पाना था सो पा लिया' के सुंदर अनुभवों में मगन हो रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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