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❍ 31 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ इस कब्रिस्तान से ममत्व निकाला ?
➢➢ ड्रामा में किसी को दोष तो नहीं दिया ?
➢➢ सर्व आत्माओं में अपनी शुभ भावना का बीज डाला ?
➢➢ सदा प्रेम, सुख, शांति और आनंद के सागर में समाये रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ पावरफुल योग अर्थात् लगन की अग्नि, ज्वाला रूप की याद ही भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि को समाप्त करेगी और सर्व आत्माओं को सहयोग देगी। इससे ही बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रज्वलित होगी। याद की अग्नि एक तरफ उस अग्नि को समाप्त करेगी दूसरी तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करोयगी। इससे ही आत्मायें पापों की आग से मुक्त हो सकेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं डबल तख्तनशीन आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को इस समय भी तख्तनशीन आत्माएं अनुभव करते हो? डबल तख्त है या सिंगल? आत्मा का अकालतख्त भी याद है और दिलतख्त भी याद है। अगर अकाल तख्त को भूलते हो तो बोडी कांशेस में आते हो। फिर परवश हो जाते हो।
〰✧ सदैव यही स्मृति रखो कि मैं इस समय इस शरीर का मालिक हूँ। तो मालिक अपनी रचना के वश कैसे हो सकता है? अगर मालिक अपनी रचना के वश हो गया तो मोहताज हो गया ना! तो अभ्यास करो और कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो कि मैं मालिकपन की सीट पर सेट हूँ? या नीचे तो नहीं आ जाता? सिर्फ रात को चेक नहीं करो। कर्म करते बीच-बीच में चेक करो।
〰✧ वैसे भी कहते हैं कि कर्म करने से पहले सोचो, फिर करो। ऐसे नहीं कि पहले करो, फिर सोचो। फिर निरन्तर मालिकपन की स्मृति और नशे में रहेंगे। संगमयुग पर बाप आकर मालिकपन की सीट पर सेट करता है। स्वयं भगवान आपको स्थिति की सीट पर बिठाता है। तो बैठना चाहिए ना!
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नजदीक अनुभव करते जा रहे हो? कर्मातीत अवस्था के समीप पहूँचने की निशानी जानते हो? समीपता की निशानी समानता है। किस बात में?
〰✧ आवाज़ में आना व आवाज़ से परे हो जाना, साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना, सुनाना और स्वरूप होना, मनन करना और मग्न रहना,रूह - रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना, सोचना और करना।
〰✧ कर्मेन्द्रियों का आधार लेना और कर्मेन्द्रियों से परे होना, प्रकृति द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकृती के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और देखते हुए न देखना, सम्पर्क में आते कमल पुष्प के समान रहना, इन सभी बातों में समानता। उसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था की समीपता।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ अभी-अभी अनादि, अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो? जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो। संकल्प किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण अवस्था, कर्मातीत अन्तिम स्टेज।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अपने आपको आत्मा समझना"
➳ _ ➳ मेरे आराध्य शिव को... पिता रूप में पाकर मै आत्मा खुशियो के आसमान पर...
ज्ञान परी बन उड़ रही हूँ... संगम पर मिले... नवजीवन के असीम आनन्द को जीते हुए,
और खुशियो में झूमते, गाते हुए... हर दिल को अपने भाग्य की मीठी दास्ताँ सुना
रही हूँ... पूरा विश्व मेरी तकदीर का दीवाना है... और मै आत्मा पूरे विश्व
को.. अपने समान भाग्यवान बनाकर. शिव दिल में मणि सा सजा रही हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अशरीरी पन का अभ्यास कराते हुए कहा :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... इस देह के भान से अब बुद्धि को बाहर निकाल कर... स्वयं को
हर पल आत्मा निश्चय करो... जिस सुंदर स्वरूप में घर से निकले थे, उसी को यादो
में पुनः लाओ... इस पुराने पतित शरीर से ममत्व निकाल कर... अशरीरी पन का
अभ्यास बढ़ाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारते हुए कहती हूँ :- "मीठे
प्यारे बाबा मेरे... आपने मुझे अपनी प्यारी बाँहों में भरकर... आत्मिक वजूद को
दिखलाया है... अब इस पुराने शरीर से मुझ आत्मा को कोई मोह नही... आपकी मीठी
प्यारी यादो में खोकर... मै आत्मा हर पल शरीर से न्यारी अवस्था का अनुभव कर रही
हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा पर अपना समय और संकल्प लुटाते हुए कहते है :- "मीठे
लाडले बच्चे... अपने दमकते स्वरूप के नशे में खो जाओ... इस पुराने विकारी शरीर
को भूल हर साँस से शिव पिता को याद करो... अशरीरी होने के अभ्यास को प्रतिपल
बढ़ाओ... मीठे बाबा संग चलने के लिए अपने वास्तविक रूप को हर पल याद करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा से असीम वरदानों को लेकर मुस्कराती हुई कहती
हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... जनमो से जिस पिता के दर्शन मात्र को मै प्यासी थी
..आज उसे सम्मुख पाकर हर आज्ञा पर बलिहार हूँ... आपकी श्रीमत ही मेरे जीवन की
साँस है... मै आत्मा देह से न्यारी और आपकी प्यारी बन मुस्करा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम की लहरों में भिगोते हुए कहते है :-
"मीठे सिकीलधे बच्चे... अब इस पुरानी दुनिया और देहभान से मन बुद्धि को निकाल...
ईश्वर पिता की यादो में अपने सुनहरे दमकते स्वरूप को स्मृति में सजाओ... पावनता
से सजकर, बिन्दु बन, पिता संग घर चलने की तैयारी में जुट जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से शक्तियो को लेकर स्वयं में समाकर कहती हूँ :-
"मेरे सच्चे साथी बाबा... मै आत्मा आपकी यादो के साये में अपनी खोयी सुंदरता
को पुनः पाती जा रही हूँ... इस पुराने घर को बुद्धि से पूरी तरहा से त्यागकर,
बिन्दु बन चमक रही हूँ... अब मीठे बाबा संग साथी बनकर, अपने मीठे घर जाना
है... यह यादो में खुद को समाये हुए हूँ..." मीठे बाबा की यादो में स्वयं को
भरपूर कर मै आत्मा अपने कार्य जगत में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- इस कब्रिस्तान से ममत्व निकाल देना है"
➳ _ ➳ देहभान रूपी कब्र से निकल कर मैं आत्मा जैसे ही अपने वास्तविक स्वरूप में
स्थित होती हूँ ये सारी दुनिया मुझे एक कब्रिस्तान के रूप में दिखाई देने लगती
है और इस कब्रिस्तान का दृश्य मेरी आंखों के आगे चित्रित होने लगता है। देह
भान रूपी कब्र में कैद मुर्दो की इस दुनिया को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से
देखते हुए मैं विचार करती हूँ कि देह भान रूपी कब्र में सोए हुए बेचारे मनुष्य
तो इस बात का अभी तक इन्तजार कर रहें है कि कयामत के समय खुदा आएगा और कब्रों
में पड़ी हुई रूहों को जगाकर अपने साथ ले जाएगा। बेचारे ये भी नही जानते कि वो
कौन सी कब्र है और वो कौन सा कयामत का समय है।
➳ _ ➳ कयामत का समय तो अब चल रहा है जबकि सृष्टि के महापरिवर्तन का समय समीप है
और वो खुदा भी इस समय इस धरा पर आकर देहभान रूपी कब्र में कैद आत्माओं को ज्ञान
देकर जगा रहा है। कितनी सौभाग्यशाली है वो आत्मायें जिन्होंने उस खुदा को
पहचाना है और उनकी मत पर चल देह भान रूपी कब्र से निकल कर, इस कब्रिस्तान को
भूल अपने खुदा की याद से खुद को पावन बनाने का पुरुषार्थ कर रही हैं। इस
क़ब्रिस्तान को परिस्तान बनाने के कर्तव्य में भगवान की मददगार बन उनका सहयोग दे
रही हैं।
➳ _ ➳ खुदा को पहचान उनकी मत पर चलने वाली खुदाई खिदमतगार आत्माओं के बारे में
विचार करते हुए अपने भाग्य की मैं सराहना करती हूँ कि "वाह मेरा भाग्य वाह" जो
भगवान ने मुझ देहभान रूपी कब्र से निकाल, मेरे सुन्दर सुखद स्वरूप से मुझे अवगत
करवा कर इस संसार रूपी कब्रिस्तान में कब्र दाखिल होने से मुझे बचा लिया। अपने
उस स्वरूप को जिसे मैं आज दिन तक भूली हुई थी उस शांतमय, सुखमय, आनन्दमय स्वरूप
का अनुभव करने और अपने खुदा से मंगल मिलन मनाने के लिए अब मैं देह और देह की
दुनिया के इस कब्रिस्तान को भूल अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपने
सत्य स्वरूप में स्थित होकर अंतर्मुखता की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती
हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की इस सुंदर यात्रा पर चलते हुए हुए अपने स्वरूप में स्थित
होकर, अपने अन्दर समाये गुणों और शक्तियों का आनन्द लेने में मैं इतनी मगन हो
जाती हूँ कि दुख देने वाली देह, देह की दुनिया, देह के झूठे नश्वर सम्बन्धो को
मैं बिल्कुल भूल जाती हूँ। मन को सुकून देने वाली देहीअभिमानी स्थिति में
स्थित होकर मैं आत्मा विदेही बन देह से बाहर निकल आती हूँ और एक गहन हल्केपन का
अनुभव करते हुए ऊपर की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ। एक ही उड़ान में सारी दुनिया का
चक्कर लगाकर मैं आकाश में पहुँच जाती हूँ और कुछ क्षणों के लिए नील गगन में चमक
रहे सूर्य, चाँद, तारागणों को देखते इस नील गगन में विचरण करके, इससे और ऊपर उड़
कर सफेद प्रकाश की एक बेहद खूबसूरत दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ। सफेद चाँदनी
के प्रकाश से सजे इस अव्यक्त वतन में अपने प्यारे बापदादा के पास जा कर उनसे
दृष्टि लेकर उससे ऊपर अपने परमधाम घर में मैं पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ निराकारी आत्माओं की बेहद खूबसूरत दुनिया में जहाँ ना कोई साकार देह का
बन्धन और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है। एक आलौकिक सुखमय निर्संकल्प अवस्था
जो बहुत ही न्यारी और प्यारी है, उस बीज रूप अवस्था मे स्थित हो कर अपने बीज
रूप परम पिता परमात्मा बाप को निहारते हुए असीम सुख का अनुभव करके और अपने
प्यारे पिता की सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी
दुनिया में। देह और देह की इस दुनिया मे वापिस लौटकर, इस सृष्टि रंग मंच पर
अपना पार्ट बजाते हुए इस कब्रिस्तान को भूलने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही
हूँ।
➳ _ ➳ यह दुनिया जल्दी ही कब्रदाखिल होने वाली है, इन आँखों से जो कुछ दिखाई
दे रहा है वो सब मिट्टी में मिलने वाला है, सदा इस बात को स्मृति में रख, अपने
प्यारे बाबा की याद से जल्दी से जल्दी अपने विकर्म विनाश कर, सम्पूर्ण पावन बनने
के अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ अब मैं पूरी दृढ़ता और लगन के साथ कर रही
हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सर्व आत्माओं में अपनी शुभ भावना का बीज डालने वाली मास्टर दाता हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं सदा प्रेम, सुख, शांति और आनंद के सागर में समाई हुई सच्ची तपस्वी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ परिस्थिति रूपी पहाड़ को स्वस्थिति से जम्प देकर पार करोः- अपने को सदा
समर्थ आत्मायें समझते हो! समर्थ आत्मा अर्थात् सदा माया को चेलेन्ज कर विजय
प्राप्त करने वाले। सदा समर्थ बाप के संग में रहने वाले। जैसे बाप
सर्वशक्तिवान है वैसे हम भी मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। सर्व शक्तियाँ शस्त्र
हैं, अलंकार हैं, ऐसे अलंकारधारी आत्मा समझते हो? जो सदा समर्थ हैं वे कभी
परिस्थितियों में डगमग नहीं होंगे। परिस्थिति से स्वस्थिति श्रेष्ठ है।
स्वस्थिति द्वारा कैसी भी परिस्थिति को पार कर सकते हो। जैसे विमान द्वारा उड़ते
हुए कितने पहाड़, कितने समुद्र पार कर लेते हैं, क्योंकि ऊँचाई पर उड़ते हैं। तो
ऊँची स्थिति से सेकण्ड में पार कर लेंगे। ऐसे लगेगा जैसे पहाड़ को वा समुद्र को
भी जम्प दे दिया। मेहनत का अनुभव नहीं होगा।
✺ "ड्रिल :- परिस्थिति रूपी पहाड़ को स्वस्थिति से जम्प देकर पार करने का अनुभव
करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्नान करने के बाद शीशे के सामने बैठ जाती हूँ... और अपने आपको
निहारती हूँ... और कुछ समय बाद अपने आपको श्रंगार रूपी अलंकारों से सुसज्जित
करना शुरू करती हूँ... जैसे -जैसे मैं श्रृंगार करती हूँ... वैसे-वैसे मैं अपने
आपको अलंकारों से सजे हुए अनुभव करती हूँ... जैसे, माथे पर जब बिंदिया लगाती
हूँ तो मैं अपने को आत्मिक स्थिति का तिलक लगाती हूँ... और जब मैं हाथों में
कंगना पहनती हूँ तो अपने द्वारा सत्कर्मों का अनुभव करती हूँ... और जैसे मैं
अपने पैरों में पायल पहनती हूँ तो मैं महसूस करती हूँ की मुझे हर पल श्रीमत के
मार्ग पर ही चलना है...
➳ _ ➳ और मैं आत्मा अपने आप को इन अद्भुत अलंकारों से सजा हुआ अनुभव करते हुए
घर से बाहर निकलता हुआ अनुभव करती हूँ... और तभी मुझे अचानक आसमान में हवाई
जहाज जाता हुआ दिखाई देता है... उसे देखकर मुझ आत्मा को ये विचार आता है... ये
विमान कितनी तेजी से कठिनाइयों रूपी पहाड़, समुद्र, नदियां, जंगल को पार कर रहा
है... इसने अपनी स्थिति कितनी ऊँची बना ली है... अपनी ऊँची स्थिति के कारण ये
किसी भी कठिनाई को छू भी नहीं सकता... ये अपनी मंजिल की तरफ कितनी आसानी और
तेजी से चला जा रहा है... ये सोचते -सोचते मैं मन बुद्धि से सूक्षम वतन मेरे
बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... औऱ बाबा को भी एक उमंगों रूपी विमान में बैठा
हुआ देखती हूँ...
➳ _ ➳ सूक्षम वतन के इस दृश्य को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो जाती हूँ और मैं बाबा
से पूछती हूँ... बाबा... आप इस विमान में बैठकर मुझे क्या शिक्षा देना चाहते
हो? तभी बाबा मुझे मुस्कुराते हुए कहते हैं... बच्चे मैं तुम्हें यह बताना चाहता
हूँ कि तुम्हें अपनें आपको शक्तियों रूपी अलंकारों से सुसज्जित करना है... जैसे
देवताओं को देखो वो किस तरह शक्तिशाली शस्त्रों रूपी अलंकारों से सजे हुए होते
हैं... इतना सुनकर मैं अपने आप को देवी दुर्गा के रूप में देखती हूँ... जो
अलंकारों से सजी हुई हैं... और फिर बाबा कहते हैं... साथ ही अपने आपको विमान
रूपी ऊँची स्थिति में बिठाकर रखो... क्योंकि अगर पुरुषार्थ के रास्ते में कोई
परिस्थिति आती है तो हमारी ऊँची स्थिति के कारण वो तुम्हें छू भी नहीं पायेगी...
और ना ही तुम्हारे पुरुषार्थ की गति कम होगी...
➳ _ ➳ बाबा के इन वचनों को सुनकर मेरा मन उत्साह से भर जाता है... और मैं बाबा
से कहती हूँ बाबा... आपने जो आज मुझे समझाया है वो मैं कभी नहीं भूलूंगी... और
हमेशा अपने आपको शक्तियों रूपी अलंकारों से सजाकर रखूंगी... अब मैं जब भी
श्रृंगार करूँगी इन अलंकारों से ही करूँगी... बाबा मैं अपनी स्थिति इस विमान की
तरह ऊँची बनाउंगी... जिसे कोई परिस्थिति रूपी अड़चन छू भी नहीं पाये... मैं हमेशा
अपने आपको एक विमान में बैठा हुआ ही अनुभव करूँगी... मैं किसी भी परिस्थिति में
डगमग नहीं होउंगी... बाबा से ये वादा करते हुए... मैं आत्मा पूरी उमंग उत्साह
से अनेक अलंकारों से सजकर औऱ ऊँची स्थिति रूपी विमान में बैठकर अपने
कर्मक्षेत्र में वापिस आ जाती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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