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 22 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ "अभी नहीं तो कभी नहीं" - सदा यह स्लोगन स्मृति में रहा ?

 

➢➢ शुभ संकल्प, शुभ कार्य के लिए "तुरंत दान महापुण्य" को अमल में लाये ?

 

➢➢ सदा बाप के साथ कंबाइंड स्वरुप का अनुभव किया ?

 

➢➢ ज्ञान, शक्तियों, श्रेष्ठ संकल्पों और समय का खजाना जमा किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे अनेक जन्म अपने देह के स्वरूप की स्मृति नेचुरल रही है, वैसे ही अपने असली स्वरूप की स्मृति का अनुभव होना चाहिए। इस आत्म - अभिमानी स्थिति से सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के निमित्त बनेंगे। यही स्थिति विजयी माला का दाना बना देगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं बाप के साथ द्वारा साक्षी स्थिति का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

✧   सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो, हर कर्म करते हो? जो साक्षी हो कर्म करते हैं उन्हें स्वत: ही बाप के साथी-पन का अनुभव भी होता है। साक्षी नहीं तो बाप भी साथी नहीं इसलिए सदा साक्षी अवस्था में स्थित रहो। देह से भी साक्षी जब देह के सम्बन्ध और देह के साक्षी बन जाते हो तो स्वत: ही इस पुरानी दुनिया से साक्षी हो जाते हो।

 

✧  देखते हुए, सम्पर्क में आते हुए सदा न्यारे और प्यारे। यही स्टेज सहज योगी का अनुभव कराती है - तो सदा साक्षी इसको कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। आत्मा निर्लेप नहीं है लेकिन आत्मअभिमानी स्टेज निर्लेप है अर्थात माया के लेप व आकर्षण से परे है। न्यारा अर्थात निर्लेप। तो सदा ऐसी अवस्था में स्थित रहते हो?

 

✧  किसी भी प्रकार की माया का वार न हो। बाप पर बलिहार जाने वाले माया के वार सदा बचे रहेंगे। बलिहार वालों वार नहीं हो सकता। तो ऐसे हो ना? जैसे फर्स्ट चाँस मिला है वैसे ही बलिहार और माया के बार से परे रहने में भी फर्स्ट। फर्स्ट का अर्थ ही है फास्ट जाना। तो इस स्थिति में सदा फर्स्ट। सदा खुश रहो, सदा खुश नशीब रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आप लोग एक चित्र दिखाते हो ना! साधारण अज्ञानी आत्मा को कितनी रस्सियों से बंधा हुआ दिखाते हो। वह है अज्ञानी आत्मा के लिए लोहे की जंजीरा मोटे-मोटे बंधन हैं। लेकिन ज्ञानी तू आत्मा बच्चों के बहुत महीन और आकर्षण करने वाले धागे हैं।

 

✧  लोहे की जंजीर अभी नहीं है, जो दिखाई देवे बहुत महीन भी है, रॉयल भी है। पर्सनैलिटी फील करने वाले भी है, लेकिन वह धागे देखने में नहीं आते, अपनी अच्छाई महसूस होती है।

 

✧  अच्छाई है नहीं लेकिन महसूस ऐसे होती है कि हम बहुत अच्छे हैं। हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। तो बापदादा देख रहे थे - यह जीवन बन्ध के धागे मैजारिटी में हैं। चाहे एक हो, चाहे आधा हो लेकिन जीवनमुक्त बहुत थोडे देखे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  अपने को चलते-फिरते लाइट के कार्ब के अन्दर आकारी फ़रिश्ते के रूप में अनुभव करते हो? जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त फ़रिश्ते के रूप में चारों ओर की सेवा के निमित्त बने हैं ऐसे बाप समान स्वयं को भी लाइट स्वरूप आत्मा और लाइट के आकारी स्वरूप फ़रिश्ते स्वरूप में अनुभव करते हो? बापदादा दोनों के समान बनना है ना? दोनों से स्नेह है ना? स्नेह का सबूत है- समान बनना। जिससे स्नेह होता है तो जैसे वह बोलेगा वैसे ही बोलेगा। स्नेह अर्थात् संस्कार मिलाना और संस्कार मिलन के आधार पर स्नेह भी होता। संस्कार नहीं मिलता तो कितना भी स्नेही बनाने की कोशिश करो, नहीं बनेगा। तो दोनों बाप के स्नेही हो ? बाप समान बनना अर्थात् लाइट रूप आत्मा स्वरूप में स्थित होना और दादा समान बनना अर्थात् फ़रिश्ता। दोनों बाप को स्नेह का रिटर्न देना पड़े। तो स्नेह का रिटर्न दे रहे हो? फ़रिश्ता बन कर चलते हो कि पाँच तत्वों से अर्थात् मिट्टी से बनी हुई देह अर्थात् धरनी अपने तरफ आकर्षित करती? जब आकारी हो जायेंगे तो यह देह (धरनी) आकर्षित नहीं करेगी। बाप समान बनना अर्थात् डबल लाइट बनना। दोनों ही लाइट हैं? वह आकारी रूप में, वह निराकारी रूप में। तो दोनों समान हो ना? समान बनेंगे तो सदा समर्थ और विजयी रहेंगे। समान नहीं तो कभी हार, कभी जीत- इसी हलचल में होंगे। अचल बनने का साधन है समान बनना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अब नहीं तो कब नहीं"

➳ _ ➳ मैं आत्मा अमृतवेले के रूहानी समय में, शांत सुनहरे वातावरण में अंतर्मुखी होकर बैठ जाती हूँ... अमृत बरसाते मीठे बाबा की यादों में खो जाती हूँ... यादों की मीठी उडान भरते हुए मैं आत्मा इस दुनिया को छोड़ वतन में पहुँच जाती हूँ... सफ़ेद प्रकाश से सजा हुआ प्यारा वतन अति मनमोहक लग रहा है... बापदादा बड़े प्यार से मुझे अपने समीप बुलाते हैं... वहां सुन्दर-सुन्दर सजे हुए फरिश्तों के चित्रों को दिखाते हैं... वहां मेरा ही सम्पूर्ण फ़रिश्ते स्वरुप का चित्र है जो अति मनभावन है... बाबा मेरे चित्र को दिखाकर मुझे इस स्वरुप में स्थित होने का गुह्य राज समझाते हैं...

❉ ज्ञान योग की पिचकारी से मुझे रंगते हुए प्यारे मीठे मेरे बाबा कहते हैं:– “मेरे मीठे बच्चे… आपके खूबसूरती से दमकते चित्र को देखो जरा... ज्ञान के सुनहरे रंग, यादो के लाल रंग, धारणा के सफेद रंग, और सेवा की हरियाली से भरी तकदीर देख मीठे बाबा मुस्करा रहे है... वतन के चित्रो से स्थूल के अंतर को समाप्त कर समान हो जाओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सम्पूर्ण स्वरुप में समाकर सम्पूर्णता का अनुभव करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने ही सुंदर रूप को वतन में देख मोहित हो गई हूँ... और संकल्पों में और करना एक कर समानता के रंग से रंगती जा रही हूँ...”

❉ तुरंत दान महापुण्य का मन्त्र मेरे कानों में गुंजाते हुएप्यारे बाबा कहते हैं:– “मीठे प्यारे बच्चे... अपने अंतर की समाप्ति के लिए संकल्पों को प्रैक्टिकल में कर दिखाओ... कथनी और करनी की समानता से भेद को मिटाओ... तुरन्त दान महा पुण्य से सदा की खूबसूरती से भर जाओ...”

➳ _ ➳ फालो फादर कर हर कर्म को श्रेष्ठ बनाकर महादानी बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो से कारण को निवारण में बदल चुकी हूँ... सारे विघ्नो समाप्त कर विघ्न विनाशक बन गई हूँ... चमकते रूप को पाकर मुस्करा रही हूँ...”

❉ मेरे हर सेकंड, हर संकल्प, हर बोल को सफल कराते हुए सर्व खजानों के दाता मेरे बाबा कहते हैं:–“मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने खूबसूरत तीर्थ की स्मृतियों से भर जाओ... और सुंदर भाग्य को सराहो... स्वदर्शन चक्रधारी की याद से सफलताओ को गले लगाओ... चैतन्य दीपक बन सबके अंधेरो को सदा का रौशन करो... और अंतर्मुखी बन विघ्नो पर विजयी बनो...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा तुरंत दान महापुण्य से ताजे फलों का रस पीकर एवरहेल्थी बनते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा संकल्पों की बचत से विघ्नो पर विजयी हो गई हूँ... सबके जीवन को रौशन कर सुख शांति के फूलो से हर दिल को महका रही हूँ... स्वदर्शन चक्रधारी बन मायाजीत हो गई हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- सदा बाप के साथ कंबाइंड स्वरुप का अनुभव"

➳ _ ➳ मधुबन के हिस्ट्री हाल में बैठी मैं साकार मिलन की यादों को ताजा कर रही हूँ और अपने सामने बापदादा के कम्बाइंड स्वरूप को देख विचार कर रही हूँ कि जैसे ब्रह्मा बाबा और शिवबाबा कम्बाइंड हैं उन्हें कोई अलग नही कर सकता। इसी तरह से भगवान बाप और हम ब्राह्मण आत्मायें भी कम्बाइंड हैं। पूरे कल्प में केवल संगमयुग का यह थोड़ा सा ही समय मिलता है जब स्वयं भगवान आ कर हर कर्म में कम्पैनियन बन कम्बाइंड स्वरूप का अनुभव कराते हैं। कोटो में कोई और कोई में भी कोई बहुत थोड़ी आत्मायें होती है जिन्हें भगवान का साथ मिलता है और वो कोटो में कोई, कोई में कोई मैं विशेष आत्मा हूँ।

➳ _ ➳ इसलिए पूरा संगमयुग अब मुझे भगवान बाप को अपना साथी बना कर, कम्बाइंड स्वरूप की स्मृति में रह, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का आनन्द लेते हुए स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से भरपूर करना है। स्वयं से बातें करते - करते मैं अनुभव करती हूँ जैसे बापदादा अपना हाथ आगे बढ़ा कर, मेरा कम्पैनियन बन, सदा मेरे अंग - संग रहने का मुझे ऑफर कर रहें हैं। बाबा की ऑफर को स्वीकार कर मैं अपना हाथ बापदादा के हाथ मे जैसे ही देती हूँ स्वयं को एकदम लाइट अनुभव करती हूँ। ऐसा लगता है जैसे मेरे मन के सभी बोझ बाबा ने ले कर मुझे एकदम लाइट माइट बना दिया है।

➳ _ ➳ अपना ये लाइट माइट स्वरूप मुझे बहुत ही प्यारा लग रहा है। अपने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा का हाथ थामे अब मैं सारी दुनिया की सैर कर रही हूँ। नये - नये लुभावने दृश्य देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। बाबा के साथ खेल रही हूँ, गा रही हूँ, नाच रही हूँ। प्रकृति के खूबसूरत नज़ारो का आनन्द ले रही हूँ। बापदादा के साथ सारे विश्व मे भ्रमण करते, आनन्द लेते अब मैं पहुंच गई सूक्ष्म लोक। बापदादा मुझे अपने पास बिठा कर अब अति स्नेह भरी, शक्तिशाली दृष्टि से मुझे भरपूर कर रहें हैं।

➳ _ ➳ मेरे प्यारे प्रभु मुझे प्रकाश की लहरों में नहला कर शक्तिशाली बना रहे हैं। बाबा से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर मुझ पर पड़ रही हैं। मेरे मस्तक पर मीठा सा स्पर्श करके अपनी सर्वशक्तियाँ बाबा मुझे प्रदान कर रहें हैं। उनके प्यार की शीतल छाया में मैं असीम सुख और आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बापदादा अपना वरदानीमूर्त हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे वरदानों से भरपूर कर रहे हैं। हर प्रकार की सिद्धि से बाबा मुझे सम्पन्न बना रहे हैं।

➳ _ ➳ सिद्धिस्वरूप बन कर अपने लाइट के आकारी शरीर को सूक्ष्म लोक में छोड़ अब मैं अपने निराकार स्वरूप में अपने परमधाम घर की और जा रही हूँ। यहां पहुंच कर अपने निराकार ज्योति बिंदु शिव पिता के साथ मैं आत्मा बिंदु अब कम्बाइंड हो कर बैठ जाती हूँ और बाबा की सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ। बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं स्वयं को बाप समान अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳ भरपूर हो कर वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में विराजमान हो कर, बाबा को अपना सच्चा कम्पैनियन बना कर अब मैं इस साकार सृष्टि पर रहते हर कर्म कर रही हूँ। कभी निराकार स्वरूप में तो कभी फ़रिशता स्वरूप में कम्बाइंड स्वरूप के अनुभव द्वारा हर परिस्थिति को सहजता से पार करते, बेफिक्र बादशाह बन, मैं बापदादा के साथ अपने ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं मधुरता द्वारा बाप के समीप रहने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं बाप की समीपता का साक्षात्कार कराने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं महान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्मा हर कार्य डबल लाइट बन कर करती हूँ ।
✺ मैं मनोरंजन का अनुभव करने वाली डबल लाइट आत्मा हूँ ।
✺ मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा को एक बात पर बच्चों को देख करके मीठी-मीठी हँसी आती है। किस बात परचैलेन्ज करते हैंपर्चा छपाते हैंभाषण करते हैंकोर्स कराते हैं। क्या कराते हैंहम विश्व को परिवर्तन करेंगे। यह तो सभी बोलते हैं ना! या नहींसभी बोलते हैं या सिर्फ भाषण करने वाले बोलते हैंतो एक तरफ कहते हैं विश्व को परिवर्तन करेंगे,मास्टर सर्वशक्तिवान हैं! और दूसरे तरफ अपने मन को मेरा मन कहते हैं, मालिक हैं मन के और मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। फिर भी कहते हैं मुश्किल हैतो हंसी नहीं आयेगी! आयेगी ना हंसी! तो जिस समय सोचते होमन नहीं मानताउस समय अपने ऊपर मुस्कराना।

 

 _ ➳  मन में कोई भी बात आती है तो बापदादा ने देखा है तीन लकीरें गाई हुई हैं। एक पानी पर लकीरपानी पर लकीर देखी है, लगाओ लकीर तो उसी समय मिट जायेगी। लगाते तो है ना! तो दूसरी है किसी भी कागज परस्लेट पर कहाँ भी लकीर लगाना और सबसे बड़ी लकीर है पत्थर पर लकीर। पत्थर की लकीर मिटती बहुत मुश्किल है। तो बापदादा देखते हैं कि कई बार बच्चे अपने ही मन में पत्थर की लकीर के मुआफिक पक्की लकीर लगा देते हैं। जो मिटाते हैं लेकिन मिटती नहीं है। ऐसी लकीर अच्छी है? कितना वारी प्रतिज्ञा भी करते हैं, अब से नहीं करेंगे। अब से नहीं होगा। लेकिन फिर-फिर परवश हो जाते हैं। इसलिए बापदादा को बच्चों पर घृणा नहीं आती हैरहम आता है। परवश हो जाते हैं। तो परवश पर रहम आता है। 

 

✺   ड्रिल :-  "अपने मन के मालिक होने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्व स्वरूप का गहराई से चिंतन कर रही हूँ... मैं अति सूक्ष्म जगमगाती, चमकती हुई प्रकाश की मणि हूँ... अपनी रूहानी दिव्य आभा फैलाती हुई, झिलमिल करती हुई मैं ज्योति का सितारा हूँ... मैं दिव्य बुद्धि के नेत्रों से स्वयं को देख रही हूँ... मेरा औरा चारों ओर बढ़ता जा रहा है... मैं आत्मा चलती हूँ... अपने रूहानी घर की ओर... अपने मीठे प्यारे वतन की ओर... लाल प्रकाश की दुनिया में... यहाँ मैं आत्मा सर्व बंधनों से, सर्व हदों से मुक्त हूँ, स्वतंत्र हूँ...

 

 _ ➳  निर्वाण धाम, शांति धाम की असीम शांति मैं स्वयं में समाती जा रही हूँ... मैं आत्मा के सातों गुणों का स्वरुप बनती जा रही हूँ... निराकारी आत्माओं के झाड़ को मैं निहार रही हूँ... हर एक आत्मा यहां अपने संपूर्ण प्रकाशमय स्वरुप में जगमगा रही है... झाड़ के बीज में मेरे प्यारे शिव बाबा बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा के बिल्कुल समीप चली जाती हूँ... बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ...

 

 _ ➳  सर्वशक्तिमान बाबा की शक्तियों रूपी सागर में... मैं आत्मा गहरे, गहरे और गहरे उतरती जा रही हूँ... परमात्म शक्तियां मुझ में समाती जा रही हैं... मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ... मैं स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक आत्मा हूँ... अपनी रूहानी स्थिति द्वारा समस्त विश्व में रूहानियत की खुशबू फैला रही हूँ... मैं सर्वशक्तिमान बाबा की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... भृकुटी तख्त पर विराजमान हूँ... मैं आत्मा राजा हूँ... मालिक हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्थूल कर्मेन्द्रियों की, मन-बुद्धि-संस्कारों की मालिक हूँ... मैं आत्मा राजा मन को श्रीमत प्रमाण चला रही हूँ... मैं आत्मा राजा अपनी शक्तिशाली स्थिति में मन मंत्री को आर्डर करती हूँ... और मन मंत्री मेरे आर्डर को सहर्ष स्वीकार कर रहा है... मेरा मन व्यर्थ और नेगेटिव से मुक्त होकर... समर्थ और श्रेष्ठ संकल्पों की रचना कर रहा है... मेरे हर संकल्प में मजबूती है, दृढ़ता है... मैं पत्थर की लकीर के समान अपने संस्कार परिवर्तन के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं शक्तिशाली आत्मा बाबा की शक्तियों के फव्वारे के नीचे हूँ... उनसे शक्तियों की लाल-लाल किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं संपूर्ण दृढ़ता से संस्कार परिवर्तन की रूहानी यात्रा पर आगे बढ़ रही हूँ... मैं आत्मा राजा अपने श्रेष्ठ, शुभ संकल्पों को दृढ़ संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञा के जल से सींच रही हूँ... उन्हें मजबूती प्रदान कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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