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❍ 18 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ "भगवान और भाग्य" - यह दो शब्द स्मृति में रखे ?
➢➢ "श्रेष्ठ कर्म रुपी कलम" से अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाया ?
➢➢ बाप रूप से वर्सा और सतगुरु रूप से वरदान प्राप्त किया ?
➢➢ सर्व बोझ बाप को दे डबल लाइट स्थिति का अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे शुरु-शुरू में अभ्यास करते थे-चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी जो दूसरे समझते कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई नहीं देता था, इसी अभ्यास से हर प्रकार के पेपर में पास हुए। तो अभी जबकि समय बहुत खराब आ रहा है तो डबल लाइट रहने का अभ्यास बढ़ाओ। दूसरों को सदैव आपका लाइट रुप दिखाई दे-यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"
〰✧ अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिमान् अनुभव करते हो? मास्टर का अर्थ है कि हर शक्ति को जिस समय आह्वान करो तो वो शक्ति प्रैक्टिकल स्वरूप में अनुभव हो। जिस समय, जिस शक्ति की आवश्यकता हो, उस समय वो शक्ति सहयोगी बने-ऐसे है? जिस समय सहनशक्ति चाहिये उस समय स्वरूप में आती है कि थोड़े समय के बाद आती है? अगर मानो शस्त्र एक मिनट पीछे काम में आया तो विजयी होंगे? विजय नहीं हो सकेगी ना। तो मास्टर सर्वशक्तिमान अर्थात् शक्ति को ऑर्डर किया और हाजिर। ऐसे नहीं कि आर्डर करो सहन शक्ति को और आये सामना करने की शक्ति। तो उसको मास्टर सर्वशक्तिमान कहेंगे? जैसे कई परिस्थिति में सोचते हो कि किनारा नहीं करना है, सहन करना है लेकिन फिर सहन करते-करते सामना करने की शक्ति में आ जाते हो।
〰✧ ऐसे ही निर्णय शक्ति की आवश्यकता है। लेकिन निर्णय शक्ति यथार्थ समय पर यथार्थ निर्णय नहीं ले तो उसको क्या कहेंगे? मास्टर सर्वशक्तिमान् या कमजोर? तो ऐसे ट्रायल करो कि जिस समय जो शक्ति आवश्यक है उस समय वो शक्ति कार्य में आती है? एक सेकेण्ड का भी फर्क पड़ा तो जीत के बजाय हार हो जाती है। सेकेण्ड की बात है ना। निर्णय करना हाँ या ना। और हाँ के बजाय अगर ना कर लिया तो सेकेण्ड का नुकसान सदा के लिये हार खिलाने के निमित्त बन जाता है। इसलिये मास्टर सर्वशक्तिमान् का अर्थ ही है जो हर शक्ति ऑर्डर में हो। जैसे ये शरीर की कर्मेन्द्रियां ऑर्डर में हैं ना। हाथ पांव जब चलाओ, जैसे चलाओ वैसे चलाते हो ना ऐसे सर्वशक्तियां इतना ऑर्डर में चलें। जितना यूज करते जायेंगे उतना अनुभव करते जायेंगे।
〰✧ सदा अपना ये स्वमान स्मृति में रखो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान हैं। इस स्वमान की सीट पर सदा स्थित रहो। जैसी सीट होती है वैसे लक्षण आते हैं। कोई भी ऐसी परिस्थिति सामने आये तो सेकेण्ड में अपने इस सीट पर सेट हो जाओ। सीट पर सेट नहीं होते तो शक्तियां भी ऑर्डर नहीं मानती। सीट वाले का ऑर्डर माना जाता है। तो सेट होना आता है ना। सीट पर बैठने वाले कभी अपसेट नहीं होते। या तो है सीट या तो है अपसेट। लक्ष्य अच्छा है, लक्षण भी अच्छे हैं। सभी महावीर हैं। कभी-कभी सिर्फ थोड़ा माया से खेल करते हो। अब के विजयी ही सदा के विजयी बनेंगे। अब विजयी नहीं तो फिर कभी भी विजयी नहीं बनेंगे। इसलिये संगमयुग है ही सदा विजयी बनने का युग। द्वापर-कलियुग हार खाने का युग है और संगम विजय प्राप्त करने का युग है। इस युग को वरदान है। तो वरदानी बन विजयी बनो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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आज सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह का रेस्पाण्ड करने के लिए बापदादा मिलन मनाने के लिए आये हैं। विदेही बापदाद को देह का आधार लेना पडता है। किसलिए? बच्चों को विदेही बनाने के लिए। जैसे बाप विदेही, देह में आते हुए भी विदेही स्वरूप में, विदेही-पन का अनुभव कराते हैं। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते विदेही आत्म-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। यह देह करनहार है। आप देही करावनहार हो। इसी स्थिति को विदेही स्थिति कहते है। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ कई सोचते हैं - बीजरूप स्थिति या शक्तिशाली याद की स्थिति कम रहती है या बहुत अटेन्शन देने के बाद अनुभव होती है। इसका कारण अगले बार भी सुनाया कि लीकेज है, बुद्धि की शक्ति व्यर्थ तरफ बंट जाती है। कभी व्यर्थ संकल्प चलेंगे, कभी साधारण संकल्प चलेंगे। मनन करने वाले अभ्यास होने के कारण जिस समय जो स्थिति बनाने चाहें वह बना सकेंगे। लिंक रहने से लीकेज खत्म हो जायेगी और जिस समय जो अनुभूति – चाहे बीजरूप स्थिति की, चाहे फरिश्ते रूप की, जो करना चाहो वह सहज कर सकेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- भाग्यवान युग में भगवान् द्वारा वर्से और वरदानों की प्राप्ति करना"
➳ _ ➳ संगम का युग... मिलन का युग... मिलन, संगम... आत्मा परमात्मा
का... सजनी साजन का... हसीन मुसाफिर और परिजादो का...शमा और परवानो का... सूरज,
चांद, सितारों का... कितना ही तो यह हसीन, खूबसूरत, सुहावना, मौजों का युग
है...जहां फिर से एक बार कल्प पहले बिछड़े बच्चे अपने पिता से मिलते हैं...जहां
फिर से आत्माओं को अपने कटे हुए पंखों की पुनः प्राप्ति होती हैं... जहां फिर
से पतित नरक दुनिया को स्वर्ग बनाने एक बार धरा पर फिर से परमात्मा का अवतरण
होता हैं...
❉ खूबसूरत संगम युग की स्मृतियों में खोई... मुझ आत्मा को...
पिताश्री प्यार से पुचकारते हुए बोले:- "मीठी लाडली बच्ची... अब अपनी झोली
पूर्ण रुप से भर लो... लूट लो संगम के सभी खजानों को... यह वही लूटने का युग...
मौजों का युग... भाग्य बनाने का युग हैं... इस समय भाग्य बनाने कि कलम मैंने
तुम्हारे ही हाथों में सौपी हैं... तो जैसा चाहो वैसा भाग्य बना लो... देखो कहीं
समय बीत ना जाए..."
➳ _ ➳ बाबा को संगम की श्रेष्ठ प्राप्तियों के लिए धन्यवाद करती मैं
आत्मा बोली:- "हां बाबा... मैं आत्मा आपसे पूरा वर्सा ले रही हूं... इतनी सब
प्राप्तियों को पा मैं आत्मा... प्राप्ति स्वरूप हो गई हूं... किस-किस प्राप्ति
का वर्णन में बयां करूं... मन खुशियों के गीत गा रहा है बाबा... सर्व
प्राप्तियों से भरपूर मैं आत्मा... मास्टर दाता बन... इन खजानों को लूटा बेहद
की कमाई में व्यस्त हूं..."
❉ मीठी प्यार भरी मुस्कान देते बाबा बोले:- "हां बच्चे... इसी
तरह सदा भरपूर रहो... खुश रहो... और अविनाशी कमाई कमाते रहो... सदैव स्मृति रहे...
हम खुश नहीं रहेंगे तो और कौन रहेगा!... हम संगम की मौज हम नहीं लेंगे... तो
फिर और कौन लेगा?... देवी-देवता सदा हर्षित दिखाते हैं... तुम्हें भी समृति रहे
हम ही भविष्य में वह देवी-देवता बनने जा रहे है..."
➳ _ ➳ कंबाइंड स्वरुप में स्थित बाप के साथ का अनुभव करती मैं
आत्मा बाबा से बोली:- "बाबा... खुशियों की लहरों में मैं आत्मा जैसे खो गई हूं
बाबा... आहा! कितनी आनंदमय ये स्तिथि हैं... दूर-दूर तक गम का कोई नाम निशान
नही... पुरानी दुनिया जैसी भूल सी गई है बस याद है तो संगम की प्राप्तिया...
जिसे अनुभव करते-करते मैं आत्मा बाबा अनुभवी मूर्त बन गई हूं..."
❉ मीठी प्यार भरी दृष्टि देते हुए बाबा बोले:- "मीठी बच्ची...
गोप गोपियों के सुख के आगे सभी सुख फीके हैं बच्ची... यह वही सुख है जिसका भक्ति
मार्ग में गायन है... यह वही रासलीला है जो इस समय मैं बाप तुम बच्चो संग... इस
धरा पर कर रहा हूं... यह वही कल्याणकारी युग है जहां फिर से तुम आत्माओं का
श्रृंगार हो रहा हैं... तुम हसीन परिज़ादे बन रहे हो..."
➳ _ ➳ उमंग उत्साह से उत्साहित मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:- "सचमुच
बाबा... ऐसा सुहावना, अनोखा युग... पूरे कल्प में नहीं होगा... जहां परमात्मा
बाप और आत्मा रूपी बच्चे साथ-साथ पार्ट बजाते... साथ-साथ खाते... मौज लूटते...
साथ-साथ घर जाते हैं... कदम कदम पर बाप से श्रीमत लेते... बाप से पढ़ते... मीठी
मुरली सुनते... वाह बाबा वाह मेरा भाग्य... वाह भाग्य विधाता..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- सर्व बोझ बाप को दे डबल लाइट स्थिति का अनुभव"
➳ _ ➳ बापदादा की मत पर चल, अपने सभी बोझ बापदादा को सौंपते ही मैं अनुभव
करती हूँ जैसे मैं बेफ़िक्र बादशाह बन, उमंग उत्साह के पंख लगा कर उड़ रही हूँ। निश्चिन्त
स्थिति का यह अनुभव मुझे उड़ती कला का अनुभव करवा रहा है। स्वयं को मैं एकदम
हल्का अनुभव कर रही हूँ। इस हल्की और निश्चिन्त स्थिति का भरपूर आनन्द लेते
हुए मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम
सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो मुझे कदम - कदम पर श्रेष्ठ मत देकर मेरे जीवन को
श्रेष्ठ बनाने वाले बाप और दादा मुझे मिले।
➳ _ ➳ कितनी भाग्यवान है वो ब्राह्मण आत्मायें जो इस समय भगवान को यथार्थ
रीति पहचान कर, उनकी मत पर चल रही हैं। जिस ब्रह्मा की मत को भक्ति में मशहूर
माना जाता है वो ब्रह्मा बाप इस समय सम्मुख बैठ अपनी श्रेष्ठ मत हम बच्चों को
दे रहें है और उनके तन में विराजमान स्वयं निराकार शिव भगवान भी साकार में आकर
अपनी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत द्वारा कल्प - कल्प के लिए हम ब्राह्मण बच्चों का
सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहें हैं।
➳ _ ➳ ऐसे बापदादा की मत पर चल अपना भाग्य बनाने वाली आत्मायें कोटो में
कोई हैं। और उन कोई में भी कोई मैं हूँ वो सौभाग्यशाली आत्मा। अपने
सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में चिंतन करती अब मैं उन पलों को याद करती हूँ जब
किसी भी बात का मन पर बोझ हुआ तो बापदादा ने कैसे सामने आकर हमेशा ये अहसास
दिलाया कि "बच्चे आप चिन्ता क्यो करते हो, मैं बैठा हूँ ना"। और जब बापदादा की
मत पर चल, सब कुछ उन्हें सौंप दिया तो वो बोझ जो मन को भारी कर रहा था, इतना
हल्का हो गया जैसे कि था ही नही।
➳ _ ➳ ऐसे कदम - कदम पर अपने प्यारे बाप और दादा की मत पर सदा चलने और
अपने सभी बोझ उन्हें देकर, सदा हल्के रहने की स्वयं से प्रतिज्ञा कर, अपने
भाग्यनिर्माता बापदादा से मिलने का मैं जैसे ही संकल्प करती हूँ अव्यक्त बापदादा
की अव्यक्त आवाज मुझे सुनाई देती है जैसे बाबा कह रहे हैं "आओ बच्चे, मेरे पास
आओ"। यह अव्यक्त आवाज़ मुझे अव्यक्त स्थिति में स्थित कर, अव्यक्त फ़रिश्ता बनाये,
बापदादा के अव्यक्त वतन की ओर लेकर चल पड़ती है।
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर मैं फ़रिश्ता साकार
दुनिया को पार करता हूँ और उससे ऊपर अंतरिक्ष को पार करके लाइट के सूक्ष्म
देहधारी फ़रिशतो की दुनिया मे पहुँच जाता हूँ। अव्यक्त बापदादा के इस अव्यक्त
वतन में मैं देख रहा हूँ अपने सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा को उनके सम्पूर्ण
फ़रिशता स्वरुप में और उनकी भृकुटि में विराजमान शिव बाबा को। इस कम्बाइन्ड
स्वरूप में बापदादा के मस्तक से बहुत तेज लाइट और माइट निकल रही है जो चारों और
फैल कर पूरे सूक्ष्म वतन को प्रकाशमय बना रही है। सर्वशक्तियों के शक्तिशाली
वायब्रेशन बापदादा से निकल कर चारों और फैल रहे हैं।
➳ _ ➳ इन शक्तिशाली वायब्रेशन का आकर्षण मुझे बापदादा के बिलुक़ल समीप ले
कर जा रहा हैं। मैं फ़रिशता बापदादा के पास पहुँच कर, उनके सामने जाकर बैठ जाता
हूँ। बापदादा के मस्तक से आ रही शक्तियों की लाइट और माइट अब सीधी मुझ फ़रिश्ते
पर पड़ रही है और मैं फ़रिशता सर्वशक्तियों से भरपूर हो रहा हूँ। अपना वरदानी
हाथ मेरे सिर पर रख कर बाबा मुझे हर बोझ से सदा मुक्त रहने का वरदान दे रहें
हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से वरदान लेकर और सर्वशक्तियो से सम्पन्न बन कर मैं फ़रिशता
अब वापिस साकार लोक की ओर प्रस्थान करता हूँ। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन के
साथ मैं अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में
स्थित होकर, अब मैं कदम - कदम पर बाप और दादा की मत पर चल कर, अपने सब बोझ
बापदादा को दे कर, डबल लाइट स्थिति का अनुभव सदैव कर रही हूँ और इस डबल लाइट
स्थिति में स्थित होकर, बापदादा को सदा अपने साथ अनुभव करते हुए, अपने संगमयुगी
ब्राह्मण जीवन और संगमयुग की मौजों का अब मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं ब्राह्मण जीवन मे एक बाप को अपना संसार बनाने वाली स्वतः और सहजयोगी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं बाप समान अव्यक्त वा विदेही बनकर अव्यक्त पालना का सबूत प्रत्यक्ष करने वाली वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ सहन
करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो? क्योंकि
समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करें? लेकिन
सहन करने की आज्ञा किसने दी है? झूठ
बोलने वाले ने दी है? कई
बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मजबूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना,
इसमें अन्तर है।
➳ _ ➳ बात
के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो। तो बाप की आज्ञा
मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मजबूरी है? तो
कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता है, मोहब्बत
भी होती है,
मजबूरी भी होती है। सहन कर ही रहे
हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मजबूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता
है ना तो मजबूरी लगती है और बाप
सामने आवे, कि
बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्ब्त लगेगी, मजबूरी
नहीं। तो ये शब्द नहीं सोचो।
➳ _ ➳
आजकल ये थोड़ा कामन हो गया है - मरना पड़ेगा, मरना
पड़ेगा, कब
तक मरना पड़ेगा, अन्त
तक या दो साल,
एक
साल,
६
मास, फिर
तो अच्छा मर जायें... लेकिन कब तक मरना है। लेकिन
यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या
करेंगे?
मरेंगे? यह
मरना शब्द खत्म कर दो।
✺
ड्रिल :- "बाप की आज्ञा प्रमाण खुशी से सहन करना"
➳ _ ➳ बाबा
और मैं एक बहुत सुंदर बगीचे में बैठे हुए हैं... चारों ओर हरियाली ही हरियाली
है... किस्म किस्म के रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ लगी हुई हैं... जिनसे
बहुत मनमोहक... भीनी-भीनी महक आ रही है... यह ताज़गी मेरे मन को मोह रही है...
➳ _ ➳
इस
खुशनुमा वातावरण को देखकर... मेरा मन खुशी से झूमने लगा... तभी मेरी नज़र एक
फलों से लदे हुए वृक्ष पर पड़ती है... बाबा मुझे उस वृक्ष को दिखाते हुए कहते
हैं... देखो बच्ची... यह वृक्ष फलों से कितना भरा हुआ है... कितनी छाया दे रहा
है... फिर भी इसे बहुत सहन करना पड़ता है... बाबा मुझे यह दिखा कर सहनशीलता का
पाठ पक्का करा रहे थे...
➳ _ ➳ बाबा
मुझसे कहते हैं... बच्ची... कभी कोई छोटी... बड़ी बात या झूठी बात भी सामने आ
जाये तो सहन करो... सहन करने में घबराओ मत... खुशी से सहन करो... मजबूरी से
नहीं... बाबा की याद में रहकर... आज्ञा समझ कर... कोई भी कर्म करोगे तो बोझ
या... सहन करना नहीं लगेगा... फिर बाबा कहने लगे... बच्ची... सृष्टि चक्र का
नियम है... जो हो गया वह फिर से रिपीट होगा... इसलिये नथिंग न्यू का पाठ भी
पक्का करो... सहनशील बनो...
➳ _ ➳
मैं
बाबा से कहती हूँ... बाबा... आपसे प्राप्त गुणों और शक्तियों को धारण कर अपने
प्रैक्टिकल जीवन में... हर कर्म में... लाऊंगी... किसी भी परिस्थिति में मुझे
सहन करना भी पड़े तो मैं खुशी खुशी सहन करुँगी... उसका वर्णन फिर कभी नहीं
करुँगी... मन-वाणी और कर्म में सहनशील बनूंगी...
➳ _ ➳ मुझे
ही मरना पड़ता है... मुझे ही सहन करना पड़ता है... बाबा... इन शब्दों को मैं
आत्मा अब कभी नहीं कहूँगी... इस बेहद की स्क्रीन पर हर सीन को मैं आत्मा साक्षी
भाव से देखूँगी... कोई भी परिस्थिति मुझे डगमग नहीं कर सकेगी... मैं आत्मा
सर्व के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रख अपना रोल प्ले करुँगी... दिल व जान से
आपकी बच्ची होने का सबूत हर आत्मा को कराऊँगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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