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 20 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ "हमारे में कोई भूत तो नहीं ?" - यह अपने आप से पुछा ?

 

➢➢ किसी भी देहधारी से दिल तो नहीं लगाया ?

 

➢➢ निर्मानता के गुण को धारण कर सबको सुख देने वाले सुख देवा बनकर रहे ?

 

➢➢ आत्मा अभिमानी स्थिति में स्थित रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जितना स्थापना के निमित्त बने हुए ज्वाला-रुप होंगे उतना ही विनाश-ज्वाला प्रत्यक्ष होगी। संगठन रुप में ज्वाला-रुप की याद विश्व के विनाश का कार्य सम्पन्न करेगी। इसके लिए हर सेवाकेन्द्र पर विशेष योग के प्रोग्राम चलते रहे तो विनाश ज्वाला को पंखा लगेगा। योग-अग्नि से विनाश की अग्नि जलेगी, ज्वाला से ज्वाला प्रज्जवलित होगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं एक बल, एक भरोसा वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"

 

  सभी अपने को एक बल एक भरोसा-ऐसे अनुभव करते हो? एक बाबा दूसरा न कोई-यह पक्का है ना। या बाबा भी है तो बच्चे भी हैं, सम्बन्धी भी हैं? जब बच्चे हैं, पति है, सासू-ससुर हैं - इतने सारे हैं तो एक कैसे हुआ? सामने हैं, देख रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, फिर एक कैसे हुआ? ये मेरे नहीं हैं लेकिन बाप ने सेवा के लिये दिये हैं-ऐसी दृष्टि-वृत्ति रखने से एक ही याद रहेगा। चाहे कितने भी हों, कौन भी हों, लेकिन सभी बाप के बच्चे हैं और हमको सेवा के लिये ये आत्मायें मिली हैं। बाप ने सेवा अर्थ निमित्त बनाया है। घर में नही रहे हुए हो लेकिन सेवा-स्थान पर रहे हुए हो।

 

  मेरा सब तेरा हो गया। मेरा कुछ नहीं, शरीर भी मेरा नहीं। जब मेरा है ही नहीं तो बोडी-कोन्सेस कैसे हो सक्ता है।मेरे में ही आकर्षण होती है। जब मेरा समाप्त हो जाता है तो मन और बुद्धि को अपनी तरफ खींच नहीं सकते हैं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् मेरे को तेरे में बदलना। तो बार-बार यह चेक करो कि तेरा, मेरा तो नहीं बन गया? अगर मेरापन नहीं होगा, तेरा ही है तो डबल लाइट होंगे। अगर थोड़ा भी बोझ अनुभव करते हो तो समझो-मेरापन मिक्स हो गया है। भक्ति में कहते हैं कि सब-कुछ तेरा।

 

  ब्राह्मण जीवन में कहना नहीं है, करना है। यह करना सहज है ना। बोझ देना सहज होता है या लेना सहज होता है? तेरा कहना माना बोझ देना और मेरा कहना माना बोझ लेना। तो अभी एक बल एक भरोसा। बस, एक ही एक। एक लिखना सहज है ना। तो यह तेरा-तेरा कहने वाला ग्रुप है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अभी समय अनुसार अनेक प्रकार के लोग चेकिंग करने आयेंगे। संगठित रूप में जो चैलेन्ज करते हो कि हम सब ब्राह्मण एक की याद में एकरस स्थिति में स्थित होने वाले हैं - तो ब्राह्मण संगठन की चेकिंग होगी।

 

✧  इन्डीविज्युवल तो कोई बडी बात नहीं है लेकिन आप सब विश्व कल्याणकारी विश्व परिवर्तक हो - विश्व संगठन, विश्व कल्याणकारी संगठन विश्व को अपनी वृत्ति वा वायब्रेशन द्वारा वा अपने स्मृति स्वरूप के समर्थी द्वारा कैसे सेवा करते हैं - उसकी चेकिंग करने बहुत आयेंगे। आज की साइंस द्वारा साइलेन्स शक्ति का नाम बाला होगा।

 

✧  योग द्वारा शक्तियाँ कौन-सी और कहाँ तक फैलती है उनकी विधि और गति क्या होती है यह सब प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। ऐसे संगठन तैयार हैं? समय प्रमाण अब व्यर्थ की वातों को छोड समर्थी स्वरूप वनो। ऐसे विश्व सेवाधारी बनो। इतना बडा कार्य जिसके लिए निमित बने हुए हो उसको स्मृति में रखो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ 'कर्मभोग है', 'कर्मबन्धन है', 'संस्कारों का बन्धन है', ‘संगठन का बन्धन है' - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फंस जाते हो, फ़िर कहते है कि अभी छुड़वाओ। बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए। छोड़ो तो छूटो। अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। पहले ही शरीर छोड़ चुके हो, मरजीवा बन चुके हो। यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीरों में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं। ज़िम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो। ज़िम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोड़ते भी नहीं हो। ज़िम्मेवारी छोड़ दो अर्थात् मेरा-पन छोड़ दो। मेरा पुरुषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं, मेरी हैन्डलिंग-पॉवर बहुत अच्छी है। मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है। मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिग में हैं। यह मेरा-मेरा आया कहाँ से? यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकेण्ड में प्रकृति जीत बन जावेंगे। प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्व जीत व जगतजीत है। फिर एक सेकेण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जावेगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अंतर्मुखी बन हर कार्य शांति से करना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने को एक बहुत सुंदर पार्क में बैठा हुआ देख रही हूं... पार्क में हर तरफ रंग बिरंगे फूल खिले हुए हैं... पूरा पार्क खुशबु से महक रहा है... मीठे बाबा की यादों में मगन मैं आत्मा ये विचार करती हूं की कितना अलग हो गया है मेरा ये जीवन... पहले मैं अज्ञान में परमात्मा को मंदिरों में ढूंढती थी और तड़पती थी उससे मिलने के लिए और अब वो पास बहुत पास है... इन्ही यादों के झूले में झूलती मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं परमधाम निराकारी दुनिया में... मेरे सामने शिव बाबा प्रकाश पुंज में दिखाई दे रहे हैं और उनसे शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में बहने लगता है... मैं परमात्म शक्तिओं से भरपूर होकर सुक्ष्म वतन मैं उतर आती हूं यहां बाप दादा बाहें फैलाये खड़े हैं... और मैं फ़रिश्ता समा जाती हूँ अपने अलौकिक पिता की बाहों में...

❉ बाबा मुझ आत्मा को प्यार भरी दृष्टि देते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस विकारी दुनिया से उपराम होने के लिए मुह में मुलहरा डालना अर्थात अपने शांति स्वधर्म में स्थित करना ही श्रीमत पर चलना है... ये विकार तुम्हें अपने स्वधर्म में टिकने नही देते इनको योग अग्नि से विनाश कर बाप के हाथ में हाथ दे दो तो माया तुम्हें छू भी नहीं सकेगी... शांति की शक्ति से ही इनपर विजय प्राप्त कर सकते हैं..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के मधुर वाक्यों को अपने अंदर समाते हुए बाबा से बोली:- "हां मेरे जीवन को सवारने वाले मेरे दिलाराम बाबा... मैं आत्मा आपके कहे वाक्यों को धारण कर अपने को अत्यंत सुखी अनुभव कर रही हूं... मेरा जीवन घोर अंधियारे में था आपने आकर उसे ज्ञान की रोशनी दी है... मैं नाजाने कब से आपको पुकार रही थी अब आपने आकर मेरे अशांत मन को शान्त कर दिया है..."

❉ बाबा मुझ नन्ही परी को अपनी गोद में लेकर बहुत प्यार से बोले:- "मेरे नैनों के तारे मेरे प्यारे बच्चे... स्वयं शांति में स्थित होकर दूसरों को शांत बनाने की सेवा करो... अशान्त आत्माओं को शांति के सागर बाप से मिलाओ... यही सुकर्म तुम्हें 21 जन्मों की बादशाहत का मालिक बनाएंगे... दुनिया में हर दुखी और अशान्त आत्मा अपने पिता परमात्मा को ढूंढ रही है तुम फ़रिश्ता बन उन आत्माओं को परमात्म प्यार से भरपूर करने में बाप के सहयोगी बनो..."

➳ _ ➳ बाबा से ज्ञान मोतियों को लेकर अपनी झोली भरती मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:- "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने ज्ञान के खजाने से मेरी झोली भर दी है... मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हूं जो दुनिया को बनाने वाले इस दुनिया के मालिक ने मुझे अपनी गोद में जगह दी है... आपका अथाह प्यार पाकर मैं धन्य धन्य हो गयी हूँ... असीम सुख की लहरें मेरे दिल में हिंडोले मार रही हैं... मैं ये विचार कर फूली नही समाती कि मैं कितनी सुखी हो गयी हूँ..."

❉ मेरी बातों को बहुत प्यार से सुनकर बाबा मेरे सर पर अपना वरदानी हाथ रखकर सहलाते हुए बोले:- "मेरे नूरे रत्न, प्यारे प्यारे सिकीलधे बच्चे... शांत स्वरूप में स्थित रहकर भटकते हूओं को सहारा देना ही बाप समान बनना है... एक बाप की याद में रह अपने को शांति के स्वधर्म में टिकाना है... बाप से वर्सा लेकर 21 जन्म की प्रालब्ध पानी है... आत्मा में जो खाद पड़ी है उसको योग अग्नि से भस्म करना है..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं परमात्मा के सानिध्य में बैठी अनन्त सुखों से भरपूर हो बाबा से कहती हूं:- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मैं परमात्मा की संतान प्रेम और शांति से भरपूर हूँ , दुनिया जिस भगवान को पुकारती है वो मुझे मिल गया है मुझसे भाग्यशाली कोई और नही... मैं आत्मा हर रोज परमात्म गुणों से संपन्न बन प्रभु की यादों में खोई रहती हूं... जन्म जन्म जिसे पाने को दिल तड़पता था उसने आकर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया अब और क्या पाना बाकी रह गया बस इस मधुर यादों में समाई मैं अपने को शांत कर जीने का आनंद ले रही हूं... बाबा आपने मुझे क्या से क्या बना दिया ये विचार कर मन खुशी के सागर में डुबकियां लगा रहा है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराईयों से शुक्रिया कर अपने साकारी तन मैं लौट आती हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- एक बार भूतों को भगाकर आधाकल्प के लिए छुटकारा पाना है

➳ _ ➳ अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, अपने मन रूपी दर्पण में मैं अपने आपको निहार रही हूँ और विचार कर रही हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी पवित्र और सतोप्रधान थी और आदि स्वरूप में भी 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण गुणवान थी किन्तु देह भान में आकर मैं आत्मा पतित और कला विहीन हो गई इसलिए कोई भी गुण मुझ आत्मा में नही रहा। यह सोचते - सोचते कुछ क्षणों के लिए अपने अनादि और आदि स्वरूप की अति सुखदाई मधुर स्मृतियों में मैं खो जाती हूँ और मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ अपने अनादि स्वरूप का आनन्द लेने के लिए अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में।

➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं अपने उस सम्पूर्ण सत्य स्वरूप को जो मैं आत्मा वास्तव में थी। सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने इस अति चमकदार, सच्चे सोने के समान दिव्य आभा से दमकते निराकार बिंदु स्वरूप को देख मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। लाल प्रकाश की एक अति खूबसूरत दुनिया मे, चारों और चमकती हुई जगमग करती मणियों के बीच, अपना दिव्य प्रकाश फैलाते हुए एक अति तेजोमय चमकते हुए सितारे के रूप मे मैं स्वयं को देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप की स्मृति में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों का भरपूर आनन्द लेने के बाद अब मैं अपने आदि स्वरूप का आनन्द लेने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपनी सम्पूर्ण निर्विकारी सतयुगी दुनिया में पहुँच जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं स्वयं को एक अति सुंदर मनभावनी स्वर्णिम दुनिया मे देख रही हूँ। सोने के समान चमकती हुई कंचन काया, नयनों में समाई पवित्रता की एक दिव्य अलौकिक चमक और मस्तक पर एक अद्भुत रूहानी तेज से सजे अपने इस स्वरूप को देख मैं गदगद हो रही हूँ। पवित्रता और सम्पन्नता का डबल ताज मेरी सुन्दरता में चार चांद लगा रहा है। 16 कलाओं से सजे अपने इस सम्पूर्ण पवित्र, सर्व गुणों से सम्पन्न स्वरूप को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं अपने इस आदि स्वरूप का भरपूर आनन्द लेने के बाद फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप की स्मृति में स्थित हो जाती हूँ और मन ही मन विचार करती हूँ कि अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त करने का ही अब मुझे तीव्र पुरुषार्थ करना है।

➳ _ ➳ इसी संकल्प के साथ अब मैं अपने मन रूपी दर्पण में अपने आपको देखने का प्रयास करती हूँ और बड़ी महीनता के साथ अपनी चेकिंग करती हूँ कि कौन - कौन से भूतों की समावेशता अभी भी मेरे अन्दर है! कहीं ऐसा तो नही कि मोटे तौर पर स्थूल विकारो रूपी भूतों पर तो मैंने जीत पा ली हो किन्तु सूक्ष्म में अभी भी देह भान में आने से कुछ सूक्ष्म भूत मेरे अंदर प्रवेश कर जाते हो! यह चेकिंग करने के लिए अब मैं स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो जाती हूँ और आत्मा राजा बन अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाती हूँ कि कौन - कौन सी कर्मेन्द्रिय मुझे धोखा देती है और भूतों को प्रवेश होने में सहायक बनती है।

➳ _ ➳ अपनी एक - एक कर्मेन्द्रिय की महीन चेकिंग करते हुए और स्वयं को मन रूपी दर्पण में देखते हुए, अपने अंदर विद्यमान भूतों को दृढ़ता से बाहर निकालने का दृढ़ संकल्प लेकर, स्वयं को गुणवान बनाने के लिए अब मैं अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर गुणों के सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम की ओर रवाना हो जाती हूँ। सैकेंड में साकारी और आकारी दुनिया को पार कर आत्माओ की निराकारी दुनिया में पहुँच कर, गुणों की खान अपने गुणदाता बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। अपनी सारी विशेषताएं, सारे गुण बाबा अपनी शक्तियों की किरणों के रूप में मुझ आत्मा पर लुटाकर मुझे आप समान बना देते हैं।

➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा से सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ लेकर मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में। फिर से ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने पुरुषार्थ पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ। अपने प्यारे पिता की याद से विकर्मो को भस्म कर पावन बनने के साथ - साथ अपने अनादि और आदि गुणों को जीवन मे धारण कर, गुणवान बनने के लिए, अपने मन दर्पण में अपने आपको को देखते हुए अब मैं बार बार अपनी चेकिंग कर, भूतों को निकाल कर दिव्य गुणों को धारण करती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं निर्माणता के गुण को धारण कर सब को सुख देने वाली सुख देवा, सुख स्वरूप आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्म-अभिमानी रहने वाली सबसे बड़ी ज्ञानी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ जैसे लौकिक दुनिया में भी उच्च रॉयल कुल की आत्मायें कोई साधारण चलन नहीं कर सकतीं वैसे आप सुकर्मी आत्मायें विकर्म कर नहीं सकतीं। जैसे हद के वैष्णव लोग कोई भी तामसी चीज स्वीकार कर नहीं सकते, ऐसे विकर्माजीत विष्णुवंशी - विकर्म वा विकल्प का तमोगुणी कर्म वा संकल्प नहीं कर सकते। यह ब्राह्मण धर्म के हिसाब से निषेध है। आने वाली जिज्ञासु आत्माओं के लिए भी डायरेक्शन लिखते हो ना कि सहज योगी के लिए यह-यह बातें निषेध हैं तो ऐसे ब्राह्मणों के लिए वा अपने लिए क्या-क्या निषेध हैं वह अच्छी तरह से जानते हो? जानते तो सभी हैं और मानते भी सभी हैं लेकिन चलते नम्बरवार हैं।

✺ "ड्रिल :- अच्छे से मनन करना कि मुझ ब्राह्मण आत्मा के लिए क्या क्या निषेध है।”

➳ _ ➳ मैं आत्मा इंद्रियों की विषयासक्ति में फंसे हुए चंचल मन को खींचकर आत्म चिंतन में लगाती हूं... भृकुटी के अकाल तख्त पर विराजमान बिंदु रूप-ज्योति स्वरुप आत्मा पर मन को एकाग्र करती हूं... व्यर्थ विचारों के आवेग पर अंकुश लगाकर मैं आत्मा बाबा का आह्वान करती हूं... बाबा मुझे अपने साथ हिस्ट्री हॉल लेकर चलते हैं... बाबा हिस्ट्री हॉल में संदली पर बैठकर मुरली चला रहे हैं... बाबा मुरली के माध्यम से मुझे गुह्य-गुह्य बातें समझा रहे हैं...

➳ _ ➳ बाबा कहते हैं कि बच्चे इस लौकिक दुनिया में भी उच्च रॉयल कुल की आत्मायें हमेशा उच्च रॉयल चलन ही चलती हैं वो कभी भी साधारण चलन नहीं चलते हैं... वैसे तुम तो विकर्माजीत विष्णुवंशी कुल की आत्मायें हो तो तुम कभी कोई भी विकर्म वा विकल्प का तमोगुणी कर्म वा संकल्प नहीं कर सकते... तुम श्रेष्ठ, ऊँचे ते ऊँचे ब्राह्मण कुल की आत्मा हो... विकारों के वश होकर कोई भी तमोगुणी कर्म करना ब्राह्मण धर्म के हिसाब से निषेध है... सहज योगी आत्मा बनना है तो सम्पूर्ण पवित्र बनो... सतोगुणी संस्कारों को धारण करो...

➳ _ ➳ बाबा मुरली चलाते हुए साथ-साथ मुझे दृष्टि देते जा रहे हैं... मैं आत्मा मगन होकर बाबा की मुरली के एक-एक महावाक्य ध्यान से सुन रही हूँ... और स्वयं में धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा चेक करती हूँ कि अमृतवेले से लेकर रात तक मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ या कोई व्यर्थ कर्म करती हूँ... क्या मैं आत्मा जो भी ब्राह्मणों के लिए निषेध है उन कार्यों को तो नहीं कर रही हूँ... क्या मैं श्रीमत पर चल रही हूँ? या मैं परमत, मनमत में आ जाती हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने एक-एक कर्मेन्द्रिय को चेक करती हूँ... क्या मेरी आंखे न देखने वाली चीजों को तो नहीं देखती हैं... क्या मेरा मुख दूसरों के अवगुणों का वर्णन तो नहीं करती है... मेरे कान व्यर्थ बातों को तो नहीं सुन रहा... क्या मेरी जिह्वा निषेधित पदार्थों को खाने में, बाहर के खाने का लोभ तो नहीं रखती... काम, क्रोध, अंहकार जैसे विकारों का अंश तो बाकी नहीं है... परचिन्तन, परदर्शन में पड़कर क्या मैं आत्मा अपना अमूल्य समय व्यर्थ तो नहीं गंवा रही हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं की चेकिंग करती हुई साथ-साथ चेंज करती जाती हूँ... बाबा की दृष्टि से, मस्तक से दिव्य किरणों रूपी फव्वारे मुझ पर पड़ रहे हैं... मुझ आत्मा से सारी नकारात्मक एनर्जी बाहर निकल रही है... मुझ आत्मा की दृष्टि, वृत्ति, बोल, कर्म, चलन से साधारणता खत्म हो रही है... मैं आत्मा बाबा के दिव्य किरणों से दैवीय गुणों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों पर अपना अधिकार जमाकर स्वराज्य अधिकारी बन गई हूँ... और उनको अपने आर्डर और श्रीमत प्रमाण चला रही हूँ... अब मैं आत्मा जो भी ब्राह्मणों के लिए श्रीमत रूपी मर्यादाएं हैं उन पर ख़ुशी-ख़ुशी चल रही हूँ... और बाबा का हाथ और साथ पाकर हर कर्म को सुकर्म बनाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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