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❍ 25 / 04 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपने पद्मापदम् भाग्य का सिमरन कर ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *आत्मा भाई भाई की दृष्टि को पक्का किया ?*
➢➢ *अपनी सूक्षम कमजोरियों का चिंतन कर उन्हें परिवर्तित किया ?*
➢➢ *करन-करावनहार बाप की याद में रह मैं पन का अभिमान समाप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योगबल वाली शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियां सदा प्राप्त होती हैं-एक परखने की और दूसरी निर्णय करने की।* यही दो विशेष शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं को हल करने का सहज साधन है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्वखजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सर्व खजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं वह जानते हो? गिनती कर सकते हो। अविनाशी हैं और अनगिनत हैं। *तो एक एक खजाने को स्मृति में लाओ। खजाने को स्मृति में लाने से खुशी होगी। जितना खजानों की स्मृति में रहेंगे उतना समर्थ बनते जायेंगे और जहाँ समर्थ हैं वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, व्यर्थ बोल सब बदल जाता है।* ऐसा अनुभव करते हो? परिवर्तन हो गया ना।
〰✧ *नई जीवन में आ गये। नई जीवन, नया उमंग, नया उत्साह हर घड़ी नई, हर समय नया। तो हर संकल्प में नया उमंग, नया उत्साह रहे। कल क्या थे आज क्या बन गये!* अभी पुराना संकल्प, पुराना संस्कार रहा तो नहीं है! थोड़ा भी नहीं तो सदा इसी उमंग में आगे बढ़ते चलो।
〰✧ जब सब कुछ पा लिया तो भरपूर हो गये ना। भरपूर चीज कभी हलचल में नहीं आती। *सम्पन्न बनना अर्थात् अचल बनना। तो अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खजाने से भरपूर भण्डार बन गये। जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दुख दूर हो गये।* जो जितना स्वयं खुश रहेंगे उतना दूसरों को खुश खबरी सुनायेंगे। तो खुश रहो और खुशखबरी सुनाते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ब्राह्मणों का अन्तिम सम्पूर्ण स्वरुप क्यों गाया जाता है, मालूम है? इस स्थिति का वर्णन है 'इच्छा मात्रम अविध्या'। *अब अपने से पूछो 'इच्छा मात्रम अविध्या' ऐसी स्थिति हम ब्राह्मणों की बनी है?* जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयाकार और हाहाकार भी होगी। यह है आप सब का अन्तिम स्वरूप।
〰✧ अपने स्वरूप का साक्षात्कार होता है सदैव अपने सम्पूर्ण और भविष्य स्वरूप ऐसे दिखाई दें जैसे शरीर छोडने वाले को बुद्धी में स्पष्ट रहता है कि अभी - अभी यह छोड नया शरीर धारण करना है। ऐसे सदैव बुद्धि में यही रहे कि अभी - अभी इस स्वरूप को धारण करना है। *जैसे स्थूल चोला बहुत जल्दी धारण कर लेते हो वैसे सम्पूर्ण स्वरूप धारण करो।* बहुत सुन्दर और श्रेष्ठ वस्त्र सामने देखते फिर पुराने वस्त्र को छोड नया धारण करना क्या मुश्किल होता है?
〰✧ ऐसे ही जब अपने श्रेष्ठ सम्पूर्ण स्वरूप वा स्थिति को जानते हो, सामने है तो फिर वह सम्पूर्ण श्रेष्ठ स्वरूप धारण करने में देरी क्यों? *कोई भी अहंकार है तो वह अलंकारहीन बना देता है।* इसलीए निरहंकारी और निराकारी फिर अलंकारी। इस स्थिति में स्थित होना सर्व आत्माओं के कल्याणकारी बनने वाले ही विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक देही अभिमानी स्थिति सर्व विकारों को सहज ही शांत कर देती है। यही बुद्धि की कला सर्व कलाओं को अपने में भरपूर कर सकती है व सर्व कला सम्पन्न बना सकती है। अभी-अभी सभी को डैरेक्शन मिले कि एक सेकण्ड में अशरीरी बन जाओ, तो बन सकते हो? सिर्फ एक सेकण्ड स्थित हो सकते हो? जब बहुत कर्म में व्यस्त हो ऐसे समय में डैरेक्शन मिले। *जैसे जब युद्ध प्रारम्भ होता है तो अचानक आर्डर निकलते हैं- अभी-अभी सभी घर छोड बाहर चले जाओ। फिर क्या करना पडता है? जरूर करना पड़े। तो बाप-दादा भी अचानक डायरेक्शन दे कि इस शरीर रूपी घर को छोड़, इस देह अभिमान की स्थित से देही अभिमानी बन जाओ, इस दुनिया से परे अपने स्वीटहोम में चले जाओ, तो कर सकेंगे?* ‘युद्ध स्थल में रुक तो नहीं जावेंगे? युद्ध करते-करते ही समय तो नहीं बिता देंगे कि - जावें न जावें ? जाना ठीक होगा व नहीं? यह ले जावे व छोड़ जावे?' इस सोच में समय गवा देते हैं। *ऐसे ही अशरीरी बनने में अगर युद्ध करने में ही समय लग गया तो अन्तिम पेपर में माक्र्स व डिविजन कौन-सा आवेगा? अगर युद्ध करते-करते रह गये तो क्या फस्ट डिविजन में आवेंगे? ऐसे उपराम, एवररेडी बने हो?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भाई-भाई की दृष्टि से देखना"*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे आत्मिक रूप का एहसास याद दिलाकर... जीवन को खुशियों से... फूलों की मादकता जैसे... महका दिया है... जीवन को नया आयाम दे दिया है... बाबा ने कौड़ी जैसे जीवन को हीरे तुल्य बना दिया... अब तो हर पल... हर कर्म मीठे बाबा की यादों से सज गया है... खुद को जानने की... और ईश्वर को पाने की खुशी ने जीवन को आलिशान... बेशकीमती... बना दिया है...* मैं आत्मा ईश्वरीय यादों से भरपूर हो हरपल मुस्करा रही हूँ... बाबा के प्यार की छत्रछाया में पलने वाली मैं आत्मा महान... सौभाग्यशाली हो गई हूँ... इस मीठे चिंतन में डुबी हुई मैं आत्मा... उड़ चलती हूँ... मीठे सूक्ष्म वतन में... अपने मीठे प्यारे बाबा के पास...
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को मेरे श्रेष्ठ भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *देही अभिमानी बन... सारा दिन आत्मिक दृष्टि का खूब अभ्यास करो... जिसे भी देखो... आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखो... कोई मित्र... सम्बन्धी... की देह न नजर आये... वह आत्मा ही दिखाई दे...* ऐसा अनुभव करो कि जैसे इस स्थूल दुनिया में रहते हुए... इन आत्माओं की दुनिया में रह रही हो... हर पल आत्म अभिमानी स्थिति की अनुभूति करो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बड़े प्यार से नशे से महकते हुए गुलाब की तरह रूहानियत भरे अंदाज़ में बाबा से कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपकी याद में रह... मैं आत्मा अपने पुराने स्वभाव संस्कार... दृष्टि... वृति... से निजात पा रही हूँ... अब मैं आत्मा... ब्रह्मा बाबा को अनुसरण करती हुई... साक्षीदृष्टा बनने का भरसक प्रयत्न कर रही हूँ... *किसी को गलत करते हुए या देखते हुए भी मैं आत्मा देही अभिमानी बन... एकरस स्थिति में... सभी मित्र... सम्बंधियों को... सभी मनुष्यों को आत्मा रूप में देखती हूँ... हर एक को आत्मा रूप में देखने से भाई-भाई की दृष्टि पक्की हो रही है..."*
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को साक्षीदृष्टा भव!! का वरदान देते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अपनी दृष्टि... वृति... अपने पुराने संस्कार स्वभाव को अब परिवर्तन कर साक्षी दृष्टा बनो... *किसी के अवगुणों को देखते हुए भी चित्त पर न धरो... आपकी चलन से रूहानियत झलके... अन्य मनुष्य आत्माऐं आपके चलन से प्रभावित हो... आपकी तरफ आकर्षित हो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा से वरदान पाकर और ईश्वरीय मत पाकर खुशनुमा जीवन की मालिक बनकर कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... *मैं आत्मा आपको पाकर... आप द्वारा ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी सुखी हो गई हूँ... विकर्मो की कालिमा से छूट कर पवित्रता से सज संवर रही हूँ...* मीठे बाबा... आप जैसे सच्चे साथी को साथ रखकर अपनी दृष्टि... वृति को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... मेरे जीवन के सहारे बाबा... अब एक पल के लिये भी... आपका श्रीमत रूपी हाथ कभी भी नहीं छोडूंगी..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने निराकारी रूप के नशे से भरते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सदा अपने चमकते हुए रूप के भान में रह... हर कर्म करो... सदा स्वयं को आत्मा निश्चय कर... दिव्य कर्मो से अपने दामन को स्वच्छ बनाओ... और दिल में सदा यादों में खोये हुए...* अपने महान भाग्य की खुमारी से ओतप्रोत... दिव्य दृष्टि... दिव्य कृति द्वारा हर कर्म करो... तभी तुम्हारी दृष्टि... वृति से रूहानियत स्पष्ट दिखाई देगी..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर स्नेह पर दिल से न्योछावर होकर कहती हूँ:-* "मीठे मीठे बाबा... *आपने अपना बनाकर... मुझ कमजोर आत्मा को मूल्यवान... अमूल्य बना दिया... आपने शुभ संकल्पों और शुभ भावना का जादू सिखा कर... मेरा जीवन हीरे जैसा बना दिया... अब मैं आत्मा आपके बताये मार्ग पर चलकर... अपनी दृष्टि... वृति द्वारा रूहानियत फैला रही हूँ...* मीठे प्यारे बाबा के उपकारों का यूँ रोम रोम से शुक्रिया कर... मैं आत्मा स्थूल जगत में लौट आयी..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भगवान ने हमें अडॉप्ट किया है, वही हमें टीचर बनकर पढ़ा रहे हैं, अपने पद्मापदम भाग्य का सिमरन कर खुशी में रहना है*
➳ _ ➳ स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और *अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ*। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। *अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ*। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। *बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है*।
➳ _ ➳ स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। *कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ*। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। *महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं*। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। *यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी सूक्ष्म कमजोरियों को चिंतन करके परिवर्तन करने वाली स्वचिंतक आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं हर समय करन करावनहार बाबा को याद रख कर मै पन के अभिमान से मुक्त होने वाली निर्मानचित्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ राज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी, अथार्टी स्वरूप। राज्य सत्ता वाली आत्मा अपने अधिकार द्वारा जब चाहे, जैसे चाहे वैसे अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को चला सकती है। यह अथार्टी राज्य सत्ता की निशानी है। दूसरी निशानी - राज्य सत्ता वाले हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकते हैं। राज्य सत्ता अर्थात् मात-पिता के स्वरूप में अपनी प्रजा की पालना करने की शक्ति वाला। *राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं भी सदा सर्व में सम्पन्न और औरों को भी सम्पन्नता में रखने वाले। राज्य सत्ता अर्थात् विशेष सर्व प्राप्तियाँ होंगी-सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों के खजानों से भरपूर। स्वयं भी और सर्व भी खजानों से भरपूर। राज्य सत्ता वाले अर्थात् अधिकारी आत्मायें बने हो?*
✺ *"ड्रिल :- राज्य सत्ता अधिकारी अर्थात् अथार्टी स्वरूप बनकर रहना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा माया की भूल-भुलैया से आजाद होकर बगीचे में विचरण करती हुई विचार करती हूँ...* कि कैसे मैं आत्मा माया का दास बनकर उदास होती गई... सृष्टि का चक्कर लगाते-लगाते माया के कुचक्र में फंसती चली गई... कैसे प्यारे बाबा ने आकर गम की अधीनता को खत्म कर संगम के सर्व सुखों का अधिकारी बना दिया... *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों, शक्तियों के खजानों से भरपूर कर दिया...* मेरा जीवन ही बदल दिया...
➳ _ ➳ *विचार करते-करते मैं आत्मा चेक करती हूँ कि क्या मैं आत्मा बाबा की दी हुई शक्तियों और खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे वैसे चला सकती हूँ...?* अथार्टी स्वरूप बनकर हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकती हूँ...? माया के अधीन बन कर्मेन्द्रियों के वश तो नहीं हो जाती हूँ...? *अभी मुझ आत्मा में राज्य सत्ता अधिकारी के संस्कार धारण होंगे तभी भविष्य में मैं विश्व राज्य-अधिकारी बनूँगी...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बापदादा का प्यार से आह्वान करती हूँ... सर्वशक्तिवान की किरणों से मैं आत्मा अपने अन्दर के सभी कमी-कमजोरियों, पुराने-स्वभाव संस्कारों को अंश सहित खत्म कर रही हूँ... मैं आत्मा आर्डर देकर कर्मेन्द्रियों को अपने अधीन कर रही हूँ... *दिव्य गुणों को धारण कर मन, बुद्धि, संस्कारों पर अथॉरिटी चला रही हूँ... और अपने राज्य सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी की सीट पर सदा सेट रहती हूँ...* अथॉरिटी स्वरूप बनकर माया के हर विघ्नों को समाप्त कर रही हूँ... माया के प्रभाव से परे हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा अधीनता के संस्कारों को खत्म कर अधिकारी बन रही हूँ...* सर्व खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे स्व के लिए और सर्व के लिए यूज करती हूँ... *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी बन स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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