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❍ 10 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ तन-मन-धन सहित एक बाप पर पूरा कुर्बान गए ?
➢➢ "हम पद्मापदम् भाग्यशाली हैं" - सदा इसी ख़ुशी व नशे में रहे ?
➢➢ दृढ़ निश्चय के आधार पर सदा विजयी स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ परमात्म प्यार के अनुभवी बन सर्व खाजनाओ की चाबी प्राप्त की ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ ज्ञान के मनन के साथ शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प, सकाश देने का अभ्यास, यह मन के मौन का या ट्रैफिक कण्ट्रोल का बीच-बीच में दिन मुकरर करो। अगर किसको छुट्टी नहीं भी मिलती हो, सप्ताह में एक दिन तो छुट्टी मिलती है, उसी प्रमाण अपने-अपने स्थान के प्रोग्राम फिक्स करो। लेकिन विशेष एकान्तवासी और खजानों के एकानामी का प्रोग्राम अवश्य बनाओ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"
〰✧ अलबेलापन छोड़ दो। ठीक हैं, चल रहे हैं, पहुँच जायेंगे-यह अलबेलापन है। अलबेले को इस समय तो मौज लगती है। जो अलबेला होता है उसे कोई फिक्र नहीं होता है, वह आराम को ही सब-कुछ समझता है। तो अलबेलापन नहीं रखना। पाण्डव सेना हो ना। सेना अलबेली रहती है या अलर्ट रहती है? सेना माना अलर्ट, सावधान, खबरदार रहने वाले। अलबेला रहने वाले को सेना का सैनिक नहीं कहा जायेगा। तो अलबेलापन नहीं, अटेन्शन! लेकिन अटेन्शन भी नेचुरल विधि बन जाये।
〰✧ कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं। टेन्शन की लाइफ सदा तो नहीं चल सकती। टेन्शन की लाइफ थोड़ा समय चलेगी, नेचुरल नहीं चलेगी। तो अटेन्शन रखना है लेकिन 'नेचुरल अटेन्शन' आदत बन जाये। जैसे विस्मृति की आदत बन गई थी ना। नहीं चाहते भी हो जाता है। तो यह आदत बन गई ना, नेचुरल हो गई ना। ऐसे स्मृतिस्वरूप रहने की आदत हो जाये, अटेन्शन की आदत हो जाये। इसलिए कहा जाता है आदत से मनुष्यात्मा मजबूर हो जाती है। न चाहते भी हो जाता है-इसको कहते हैं मजबूर।
〰✧ तो ऐसे तीव्र पुरुषार्थी बने हो? तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् विजयी। तभी माला में आ सकते हैं। बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। सदैव अलर्ट माना सदा एवररेडी! आपको क्या निश्चय है-विनाश के समय तक रहेंगे या पहले भी जा सकते हैं? पहले भी जा सकते हैं ना। इसलिए एवररेडी। विनाश आपका इन्तजार करे, आप विनाश का इन्तजार नहीं करो। वह रचना है, आप रचता हो। सदा एवररेडी। क्या समझा? अटेन्शन रखना। जो भी कमी महसूस हो उसे बहुत जल्दी से जल्दी समाप्त करो। सम्पन्न बनना अर्थात् कमजोरी को खत्म करना। ऐसे नहीं-यहाँ आये तो यहाँ के, वहाँ गये तो वहाँ के। सभी तीव्र पुरुषार्थी बनकर जाना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ समझा, समय की गति कितनी विकराल रूप लेने वाली है। ऐसे सयम के लिए एवररेडी हो ना? या डेट बतायेंगे। तब तैयार होंगे। डेट का मालूम होने से सोल कान्सेस के बजाए डेट कान्सेस हो जायेंगे। फिर फुल पास हो नहीं सकेंगे। इसलिए डेट बताई नहीं जायेगी लेकिन डेट स्वयं ही आप सबको टच होगी।
〰✧ ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इन आँखों के आगे कोई दृश्य देखते हो तो कितना स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे इनएडवान्स भविष्य स्पष्ट रूप में अनुभव करेंगे।
〰✧ लेकिन इसके लिए जहान के नूरों की आँखें सदा खुली रहें। अगर माया की धूल होगी तो स्पष्ट देख नहीं सकेंगे। समझा, क्या अभ्यास करना है? ड्रेस बदली करने का अभ्यास करो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो, हर कर्म करते हो? जो साक्षी हो कर्म करते हैं। उन्हें स्वत: ही बाप के साथी-पन का अनुभव भी होता है। इसलिए सदा साक्षी अवस्था में स्थित रहो। देह से भी साक्षी जब देह के सम्बन्ध और देह के साक्षी बन जाते हो तो स्वत: ही इस पुरानी दुनिया से भी साक्षी हो जाते हो। यही स्टेज सहज योगी का अनुभव कराती है - तो सदा साक्षी इसको कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। आत्मा निर्लेप नही है लेकिन आत्मअभिमानी स्टेज निर्लेप है अर्थात माया के लेप व आकर्षण से परे है। न्यारा अर्थात निर्लेप। तो सदा ऐसी अवस्था में स्थित रहते हो? किसी भी प्रकार की माया का वार न हो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- मनमनाभव-अल्फ को याद करना और कराना"
➳ _ ➳ बरस रही है बाबा हम पर आपकी मेहरबानियाँ... प्यार में भीगे अफसाने है
कहती है जिन्दगियां... ये गीत गुनगाते हुए मैं आत्मा मधुबन घर पांडव भवन बाबा
की कुटिया में प्रवेश करती हूँ... और मन ही मन बाबा से मीठी-मीठी रूहरिहान करने
लगती हूँ... बाबा को अपने दिल का हाल सुनाने लगती हूँ... वाह मेरे मीठे बाबा
कितना सुदंर हीरे तुल्य आपने मेरे जीवन को बना दिया है... कितनी खुशियों से
जीवन को भर दिया है... जब से जीवन में आप आए हो बाबा जीवन में खुशियों की बहार
आ गयी है... जीवन जीने की कला आपने सिखा दी... आपने मुझे अपना बना कर गले से
लगाया मुस्कुराना सिखाया बाबा... बेसमझ से समझदार बनाया... वाह मीठे बाबा
वाह... मुझ आत्मा की बातों को बड़े ध्यान से और बड़े प्यार से सुनते हुए बाबा
अपनी स्नेह भरी दृष्टि मुझ आत्मा को रिस्पॉन्स दे रहे है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा में विश्व कल्याण की भावना भरते हुए कहते है :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे मेरे... ईश्वर पिता को पाकर... जिन सच्ची खुशियो को, मीठे
सुखो को, आपने पाया है... इन मीठी खुशियो से हर दिल आँगन को भर आओ... मनमनाभव
का मन्त्र जो तुम बच्चों को परम सतगुरु से मिला है... उसे सबको सुनाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा परम सतगुरु की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में गहरे समाकर कहती
हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके मीठे प्यार में... असीम सुखो
की अनुभूतियों से भरकर... यह अनुभव की दौलत, हर दिल पर, दिल खोलकर लुटा रही
हूँ... ये मनमनाभव का प्यारा सच्चा मन्त्र सबको सुना रही हूँ... सबको आप समान
खुशियो की अधिकारी बना रही हूँ..."
❉ लाडले बाबा मुझ को मनमनाभव के मन्त्र का स्वरूप बनाकर कहते है :- "मीठे
प्यारे लाडले बच्चे मेरे... सतगुरु पिता से जो आपने मनमनाभव मन्त्र को जाना
है... जरा गहरे से सबको सही मायनों में इसका अर्थ समझाओ... मनमनाभव के मन्त्र
की कमाल सबको सुनाओ... आत्मिक भाव में और सुखदायी पिता की याद में हर पल, समय
सहज ही सफल हो जायेगा खुशियों से सदाकाल के लिए जीवन भर जायेगा..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मनमनाभव के मन्त्र का स्वरुप बनकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे ओ
बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी मीठी पालना में पलकर... असीम सुखो की मालिक बनकर...
दिलो जान से मुस्कुरा रही हूँ... सही मायनों में मनमनाभव का अर्थ सबको समझा रही
हूँ... मनमनाभव की कमाल अपने प्रैक्टिकल जीवन से दिखला रही हूँ... अपने प्यारे
बाबा से हर बिछड़े दिल को मिलाकर... खुशियों के गीत गा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मनमनाभव के मन्त्र की खुराक खिलाते हुए कहते है
:- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे मेरे... ईश्वर पिता को पाकर अब हर साँस को
ईश्वरीय यादो से पिरो दो... यह यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... हर आत्मा को
भी मनमनाभव की खुराक खिलाकर सदाकाल के लिए स्वस्थ बनाओ... ईश्वरीय यादो भरे, इन
सच्चे अहसासो को... ख़ुशी को हर दिल तक पहुचाओं... मनमनाभव के मन्त्र का स्वरूप
बनकर सबको आप समान स्वरूप बनाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मनमनाभव मन्त्र की खुराक खाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे ओ बाबा
मेरे... मुझ आत्मा के जीवन में आकर, आपने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर
भावना से भर दिया है... मै आत्मा हर पल सबको सुख से सजा रही हूँ... सबको
मनमनाभव की खुराक खिला सदाकाल के लिए स्वस्थ रहने का राज सुना रही हूँ... सबके
जीवन में आनन्द और खुशियो के फूल खिला रही हूँ... स्वयं मनमनाभव का स्वरूप बनकर
आप समान मनमनाभव का स्वरूप बना रही हूँ... सबके जीवन को सुख-शांति भरी मुस्कान
से सजा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- बाप जो अविनाशी अनमोल खजाना देते हैं उससे अपनी झोली सदा भरपूर रखनी है"
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार कर, मुझे सजा सँवार
कर अपने साथ ले जाने के लिए मेरे शिव पिया आने वाले हैं। उनके इंतजार में मैं
आत्मा इस देह रूपी कुटिया में भृकुटि रूपी दरवाजे पर पलके बिछाये खड़ी हूँ। मेरे
प्रेम की डोर से बंधे मेरे शिव पिया बिना कोई विलम्ब किए अपना धाम छोड़कर, अपने
रथ पर विराजमान हो कर मेरे पास आ रहें हैं। हवाओं में फैली रूहानियत की खुशबू
उनके आने का स्पष्ट संकेत दे रही है। मुझ आत्मा पर पड़ रही उनके प्रेम की शीतल
फुहारें मुझे उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। फिजाओं में एक दिव्य
अलौकिक रूहानी मस्ती छा गई है जिसमे मैं आत्मा डूबती जा रही हूं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिया को मैं अब अपने बिल्कुल समीप देख रही हूं। अपनी किरणों रूपी
बाहों को फैला कर वो मुझे अपने साथ चलने का इशारा दे रहें हैं। उनकी किरणों रूपी
बाहों को थामे अब मैं आत्मा सजनी उनके साथ चली जा रही हूं। हर बन्धन से अब मैं
मुक्त हो चुकी हूं। अपने शिव साजन का हाथ थामे मैं आत्मा सजनी इस दुख देने वाली
दुनिया को छोड़ कर अपने शिव पिया के साथ उनके घर जा रही हूं। पांच तत्वों से बनी
साकारी दुनिया को पार करते हुए, अपने शिव पिया के साथ मैं आत्मा पहुंच गई
सूक्ष्म लोक में जहां मेरे शिव पिया मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से सोलह
श्रृंगार कर मुझे अपनी निराकारी दुनिया मे ले जायेंगे।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूं अपने शिव पिया को उनके लाइट माइट स्वरूप में। उनका यह
स्वरूप बहुत ही आकर्षक, लुभावना और मन को मोहने वाला है। अब मैं आत्मा भी अपनी
फ़रिशता ड्रेस धारण कर लेती हूं और अविनाशी ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के
लिए अपने शिव पिया के सामने पहुंच जाती हूँ। मुझे अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार
भरी नजरों से वो मुझे निहार रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों
से मुझे भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ मन ही मन मैं विचार कर रही हूं कि कितना लंबा समय मैं अपने अविनाशी साजन
से अलग रही। उनसे अलग रहने के कारण मैं तो श्रृंगार करना ही भूल गई थी। अविनाशी
खजानों से वंचित हो गई थी। किंतु अब बहुत काल के बाद मेरे शिव साजन मेरे सामने
है और बहुत काल के बाद यह सुंदर मिलन हुआ है तो इस मिलन से अब मुझे सेकेंड भी
वंचित नहीं रहना। यह विचार मन मे आते ही अपने शिव पिया के प्रति प्यार और भी
गहरा हो उठता है और मैं आत्मा सजनी उनके और समीप पहुंच जाती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे शिव पिया अब स्वयं ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर रहें हैं। मेरे
गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर सर्व ख़ज़ानों
से मेरी झोली भर रहें है। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से मुझे भरपूर
कर रहें हैं। ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके मेरे शिव पिया ने मुझे
कितना सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा
मेरा यह रूप देख कर मेरे शिव पिया खुशी से फूले नही समा रहे। अविनाशी ज्ञान
रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने इस रूप को मैं मन रूपी दर्पण में देख कर मन ही
मन अपने भाग्य पर गर्व कर रही हूं जो ऐसा अनुपम श्रृंगार करने वाले अविनाशी
साजन मुझे मिले। मन ही मन अपने शिव पिया से मैं प्रोमिस करती हूं कि इन अविनाशी
ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी सजाई रहूँगी।
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से सज - धज कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ
कर अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो गई हूं। अपने शिव पिया से मिले सर्व
ख़ज़ानों से अब मैं स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। हर रोज अपनी झोली
अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, अपना श्रृंगार करके मैं आत्मा वरदानीमूर्त बन अब
अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का
दान दे कर उन्हें भी अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजाने वाले उनके
अविनाशी प्रीतम से मिलवाने के रूहानी धन्धे में लग गई हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं दृढ़ निश्चय के आधार पर सदा विजयी बनने वाली ब्रह्मा बाप की स्नेही आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं परमात्म प्यार की अनुभवी बनकर सर्व खजानों की चाबी प्राप्त करने वाली संपन्न आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ लेकिन फिर भी सम्बन्ध जोड़ने के कारण सम्बन्ध के आधार पर स्वर्ग का अधिकार वर्से में पा ही लेते हैं - क्योंकि ब्राह्मण सो देवता, इसी विधि के प्रमाण देवपद की प्राप्ति का अधिकार पा ही लेते हैं। सतयुग को कहा ही जाता है - देवताओं का युग। चाहे राजा हो, चाहे प्रजा हो लेकिन धर्म देवता ही है - क्योंकि जब ऊँचे ते ऊँचे बाप ने बच्चा बनाया तो उँचे बाप के हर बच्चे को स्वर्ग के वर्से का अधिकार, देवता बनने का अधिकार, जन्म सिद्ध अधिकार में प्राप्त हो ही जाता है। ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी बनना अर्थात् स्वर्ग के वर्से के अधिकार की अविनाशी स्टैम्प लग जाना। सारे विश्व से ऐसा अधिकार पाने वाली सर्व आत्माओं में से कोई आत्मायें ही निकलती हैं। इसलिए ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना कोई साधारण बात नहीं समझना। ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना ही विशेषता है और इसी विशेषता के कारण विशेष आत्माओं की लिस्ट में आ जाते हैं। इसलिए ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् ब्राह्मण लोक के, ब्राह्मण संसार के,ब्राह्मण परिवार के बनना।
✺ "ड्रिल :- सतयुगी वर्से की स्मृति में रहना।"
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता प्रेम सागर की लहरों में लहराती हुई, खुशियों के झूले में झूलती हुई उमंग उत्साह के पंख लगाकर उड़ चलती हूँ और पहुंच जाती हूं इस धरती के स्वर्ग मधुबन पावन भूमि पर... मधुबन की शांति और सुकून का अनुभव करती पूरे मधुबन का चक्कर लगा रही हूँ... मैं आत्मा सभी सांसारिक झमेलों से मुक्त होकर कल्प के सबसे बड़े मिलन मेले में आई हूँ... मधुबन के डायमंड हाल में पहुंच जाती हूँ... चारों ओर सफेद पोश फरिश्तों के बीच मैं फरिश्ता योगयुक्त अवस्था में बैठ जाती हूँ... अव्यक्त बापदादा आते ही अपनी मीठी दृष्टि देकर नजरों से निहाल करते हैं... अव्यक्त बापदादा की पावन दृष्टि से मैं आत्मा अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाती हूँ... और स्टेज पर बाबा के सम्मुख पहुंच जाती हूँ...
➳ _ ➳ अव्यक्त बापदादा से अव्यक्त मिलन मनाते हुए अतीन्द्रिय सुखों में खो जाती हूँ... फिर बाबा मुझे दिव्य दर्पण सौगात में देते हैं... जैसे ही मैं आत्मा दिव्य दर्पण में देखती हूँ मुझे अपने तीनों काल स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं... मैं आत्मा उत्सुकतावश अपना भविष्य देखती हूँ... मैं फरिश्ता दिव्य दर्पण के रास्ते सतयुगी स्वर्णिम दुनिया में पहुँच जाती हूँ... जहाँ चारों ओर सोने, हीरों से सजे हुए भव्य जगमगाते हुए महल नजर आ रहे हैं... चारों ओर देवी-देवता नज़र आ रहे हैं... जो आजकल के देवी देवताओं के चित्र हैं उनसे भी अत्यंत सुन्दर, सम्पन्न, दैवीय गुणों से भरपूर दिख रहे हैं... सभी आत्मिक स्वरुप में स्थित हैं... न कोई माया है, न अपवित्रता है, न कोई विकार हैं... प्रकृति भी सतोप्रधान है... यहाँ की प्रजा भी कितनी सम्पन्न और सुखी हैं...
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता स्वयं को एक दिव्य अलौकिक शहजादी के रूप में महल में सोता हुआ देख रही हूँ... सर्वगुण संपन्न, 16 कलाओं से सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी अवस्था में मैं अति तेजस्वी, दिव्य शहजादी के रूप में स्वयं को अनुभव कर रही हूँ... अमृतवेले पंछियों की मधुर साज से उठ जाती हूँ... पंछी भिन्न-भिन्न सुन्दर आवाजों से मेरा मनोरंजन कर रहे हैं... नैचुरल पहाड़ों से क्रॉस करता हुआ झरना बह रहा है... सुगन्धित जडी-बूटियों वाले खुशबूदार झरने में नहाकर सुन्दर देवताई ड्रेस पहनती हूँ... सोने, हीरों के आभूषणों से दासियाँ मेरा श्रृंगार करती हैं... रत्नजडित ताज पहनकर मैं शहजादी देवताई परिवार के साथ वैरायटी प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाती हूँ... महल से बाहर निकलकर सुन्दर-सुन्दर फूलों और फलों से लदे हुए बगीचे में प्रवेश करती हूँ... एक फल तोड़कर उसका रस पीती हूँ... कितना मीठा, स्वादिष्ट और रसीला है... रत्नजडित झूले में सखियों संग झूल रही हूँ... खेल-खेल में पढाई कर रही हूँ... सुन्दर चित्रकारी कर रही हूँ... रतन जडित नैचुरल साज बजाकर मधुर गायन कर रही हूँ...
➳ _ ➳ फिर मैं देवता पुष्पक विमान में बैठकर आसमान में सैर करती हूँ... सैर करते-करते मैं फरिश्ता गोल्डन ऐज से फिर से डायमंड युग में डायमंड हाल में पहुँच जाती हूँ... सामने बापदादा मुझे देख मुस्कुरा रहे हैं... बाबा मुझे वरदानों से भरपूर कर रहे हैं... चारों ओर ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी भाई-बहनें अपने पिता से मिलन मनाकर खुशियों में नाच रहे हैं... मैं अपने श्रेष्ठ अविनाशी भाग्य पर नाज कर रही हूँ... मुझ आत्मा के दिव्य चक्षु खुल गए हैं, मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खुल गया है... मैं आत्मा ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी बनने की विशेषता को समझ गई हूँ... ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना कोई साधारण बात नहीं है... कोटो में कोई कोई में भी कोई आत्मायें ही निकलती हैं... ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् स्वर्ग के वर्से के अधिकार की अविनाशी स्टैम्प लग जाना...
➳ _ ➳ ब्राह्मण लोक की, ब्राह्मण संसार की, ब्राह्मण परिवार की बनकर स्वर्ग के वर्से के अधिकार की अविनाशी स्टैम्प लगाकर, मैं विशेष आत्माओं की लिस्ट में आ गई हूँ... बाबा को शुक्रिया करती हूँ कितना ऊंचा भाग्य बना दिया है मेरा... बाबा ने अपना बच्चा बनाकर स्वर्ग के वर्से का अधिकार, देवता बनने का जन्म सिद्ध अधिकार दे दिया है... बाबा मिल गया सब कुछ मिल गया... अलौकिक परिवार मिल गया, खुशियों का खजाना मिल गया... मैं आत्मा बाबा से दिव्य अनुभूतियों की सौगात लेकर वापस अपने अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ... और सदा सतयुगी वर्से की स्मृति में रहती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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