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 23 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ सर्वशक्तिमान बाप से अपना बुधीयोग लगाकर बैटरी चार्ज की ?

 

➢➢ बाप समान प्यार का सागर बनकर रहे ?

 

➢➢ दृढ़ता की शक्ति से मन-बुधी को सीट पर सेट किया ?

 

➢➢ शक्तियों को समय पट यूज़ कर अच्छे अच्छे अनुभव किये ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  हर व्यक्ति को, बात को पॉजिटिव वृत्ति से देखो, सुनो या सोचो तो कभी जोश या क्रोध नहीं आयेगा। आप मास्टर स्नेह के सागर हो तो आपके नयन, चैन, वृत्ति, दृष्टि में जरा भी और कोई भाव नहीं आ सकता, इसलिए चाहे कुछ भी हो जाये, सारी दुनिया क्यों नहीं आप पर क्रोध करे लेकिन मास्टर स्नेह के सागर दुनिया की परवाह नहीं करो। बेपरवाह बादशाह बनो, तब आपकी श्रेष्ठ वृत्तियों से शक्तिशाली वायुमंडल बनेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं विजयी रत्न हूँ"

 

  सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करते हो? सदा विजयी बनने का सहज साधन क्या है? सदा विजयी बनने का सहज साधन है-एक बल एक भरोसा। एक में भरोसा और उसी एक भरोसे से एक बल मिलता है। निश्चय सदा ही निश्चिंत बनाता है।

 

  अगर कोई समझते हैं कि मुझे निश्चय है, तो उसकी निशानी है कि वो सदा निश्चिंत होगा और निश्चिंत स्थिति से जो भी कार्य करेगा उसमें जरूर सफल होगा। जब निश्चिंत होते हैं तो बुद्धि जजमेन्ट यथार्थ करती है। अगर कोई चिंता होगी, फिक्र होगा, हलचल होगी तो कभी जजमेन्ट ठीक नहीं होगी।

 

  तराजू देखा है ना। तराजू की यथार्थ तौल तब होती है जब तराजू में हलचल नहीं हो। अगर हलचल होगी तो यथार्थ नहीं कहा जायेगा। ऐसे ही, बुद्धि में अगर हलचल है, फिक्र है, चिन्ता है तो हलचल जरूर होगी। इसीलिए यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जो चैलेन्ज करते हो - सेकण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो, उसको प्रैक्टिकल में लाने लिए तैयार हो? स्व-परिवर्तन की गति सेकण्ड तक पहुँची है? क्या समझते हो? पुराना वर्ष समाप्त हो रहा है, नया वर्ष आ रहा है, अभी संगम पर बैठे हो।

 

✧  तो पुराने वर्ष में स्व-परिवर्तन व विश्व परिवर्तन की गति कहाँ तक पहुँची है? तीव्र गति रही? रिजल्ट तो निकालेंगे ना? तो इस वर्ष की रिजल्ट क्या रही? स्व-प्रति, सम्बन्ध और सम्पर्क प्रति वा विश्व की सेवा के प्रति।

 

✧  इस वर्ष का लक्ष्य मिला? जानते है ना। उडता पंछी वा उडती कलातो इसी लक्ष्य प्रमाण गति क्या रही? जब सबकी गति सेकण्ड तक पहुँचेगी तो क्या होगा? अपना घर और अपना राज्य, अपने घर लौटकर राज्य में जायेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ स्व अभ्यास में अलबेले मत बनो। क्योंकि अन्त में विशेष शक्तियों के अभ्यास की आवश्यकता है। उसी प्रैक्टिकल पेपर्स द्वारा ही नम्बर मिलने हैं। इसलिए फ़र्स्ट डिवीजन लेने के लिए स्व अभ्यास को फ़ास्ट करो। उसमें भी एकाग्रता के शक्ति की विशेष प्रैक्टिस करते रहो। हंगामा हो और आप एकाग्र हो। साइलेन्स के स्थान और परिस्थिति में एकाग्र होना यह तो साधारण बात है, लेकिन चारों प्रकार की हलचल के बीच एक के अन्त में खो जाओ अर्थात् एकान्तवासी हो जाओ। एकान्तवासी हो एकाग्र स्थिति में स्थित हो जाओ - यह है महारथियों का महान पुरुषार्थ।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- याद की यात्रा पर विशेष अटेंशन देना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा की यादों में खोई हुई मन-बुद्धि से पहुँच जाती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... बाबा के सामने बैठ जाती हूँ और बाबा को प्यार से निहारती रहती हूँ... मीठे बाबा भी मुझे अपनी मीठी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं... बस प्यार की तरंगे बहती जा रही हैं और मैं आत्मा इन प्यार की तरंगो में और गहरे, और गहरे डूबती जा रही हूँ... फिर मीठे बाबा मीठी शिक्षाओं से मुझे भरपूर करते हैं...

❉  यादों के समुन्दर में डुबोकर हीरे मोतियों से मुझे सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... मीठे पिता की यादो के सिवाय कोई भी नाता सच्चा नही... ये यादे ही जादूगरी करके सुनहरा चमकीला रंग देकर सजायेंगी... इसलिए इन यादो के मोतियो को अपनी सांसो में पिरो लो... यही पल सच्चे साथी बनेगे...”

➳ _ ➳  प्यारे बाबा के यादों की बाँहों में खूबसूरत फूल बन मुस्कुराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी मीठी यादो के साये में मै आत्मा कितनी खूबसूरत और प्यारी होती जा रही हूँ... इन यादो में अनन्त सुख को जी रही हूँ... मै कितनी भाग्यशाली हूँ सच्चे पिता की गोद में सुरक्षित हूँ...”

❉  अपने प्यार की छत्रछाया में मुझे अमूल्य सितारा बनाकर गगन में चमकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे बच्चे... खुद को खूबसूरती से सजाने वाले इन मीठे पलों को यादो में बांध लो... सांसो को यादो में अमर कर दो... ये यादे ही जनमो की कलुषिता को जलायेगी और सोने जैसी दमकती काया और आनन्द ख़ुशी से छलकता महकता जीवन कदमो में भर जाएँगी...”

➳ _ ➳  खुद को भी भूल एक बाबा की यादों में समाकर मैं भाग्शाली आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर अधूरी सी थी... आपने आकर जनमो के गहरे अँधेरे को सदा की रोशनी से रोशन किया है... ये पल आपकी यादो में भीगे भीगे से अनमोल है... जहाँ हम आप एक दूजे में खोये है...”

❉  सच्ची कमाई का राज समझाते हुए मेरे हर श्वांस को सफल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे बच्चे... सारा मदार कीमती यादो और कीमती समय पर है... इस समय को मुट्ठी में बांध यादो में घोट दो... और सुर्ख योग अग्नि में सारी कालिमा को धो दो... समय रहते बाबा के दिल को सदा का जीत लो... गफलत शब्द को सदा की विदाई दे अथक बन जाओ...”

➳ _ ➳  मीठे बाबा की यादों में सच्ची कमाई कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने इस सच्चे समय के महत्व को जान लिया है... आपकी यादो में भर देने का इसे ठान लिया है... न होगी यादो में गफलत कोई... दिल को यूँ समझा दिया है... और आपको सदा का बाहों में जकड़ लिया है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप समान प्यार का सागर बनना है

➳ _ ➳  प्यार के सागर अपने प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर एहसास के बारे में विचार करते ही एक सिहरन सी पूरे शरीर मे दौड़ जाती है और मन व्याकुल हो उठता है फिर से उसी प्यार को पाने के लिए। जैसे ही मन में बाबा के निःस्वार्थ, निष्काम प्यार को पाने का संकल्प मन मे आता है मैं महसूस करती हूँ जैसे प्यार के सागर मेरे बाबा मेरे हर संकल्प को पूरा करने और अपने स्नेह की मीठी फुहारे मेरे ऊपर बरसाने के लिए मेरे पास आ रहें हैं। हवाओ में भी जैसे एक विचित्र रूहानी खुशबू फैल गई है जो उनके आने का मुझे पैगाम दे रही है। अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों के रूप में मेरे प्यार के सागर बाबा अपने प्यार की शीतल फुहारे मुझ पर बरसाते हुए परमधाम से उतरकर धीरे - धीरे नीचे आ रहें हैं।

➳ _ ➳  मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि शक्तियों का एक तेजोमय पुंज आकाश से नीचे आकर, अब सीधा मेरे सिर के ऊपर स्थित हो गया है और अपने स्नेह की अनन्त किरणे मेरे ऊपर बिखेर रहा है। बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह अपने ऊपर पड़ती अपने स्नेह के सागर पिता के स्नेह की किरणों के वायब्रेशन्स को मैं महसूस कर रही हूँ और उनके स्नेह में डूबती जा रही हूँ।प्यार का सागर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाता जा रहा है और उस प्यार के मधुर एहसास में मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ। देह और देह की दुनिया से जुड़े सम्बन्ध जैसे कहीं पीछे छूट रहें हैं और सारे सम्बन्ध उस एक के साथ जुड़ते जा रहें हैं। हर सम्बन्ध का अविनाशी सुख अपने प्यारे पिता के प्यार में खोकर मैं ले रही हूँ। उनके लव में लीन यह लवलीन स्थिति मुझे उनके समान स्थिति में स्थित करती जा रही है।

➳ _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे देह से मेरा कोई सम्बन्ध नही। अपने स्वरूप में पूरी तरह डूब कर केवल दो सितारों की उपस्थिति को ही मैं अनुभव कर रही हूँ। एक अति सूक्ष्म चैतन्य स्टार के रुप में मैं स्वयं को देख रही हूँ और अपने सामने स्थित सुपर स्टार के रूप में अपने पिता को देख रही हूँ। इन दोनों स्टार्स में ही जैसे सारी दुनिया समा गई है। अपने प्यार की अनन्त किरणों की वर्षा मुझ पर करते, प्यार के सागर मेरे सुपर स्टार शिव बाबा चुम्बक की तरह मुझे खींच कर अब अपने साथ ऊपर ले जा रहें हैं। बाबा की सर्वशक्तियों की मैग्नेटिक पॉवर, नश्वर संसार की हर चीज से किनारा करवाकर मुझे खींचती हुई अब आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर मेरे स्वीट साइलेन्स होम में मुझे ले आई है। अपने घर मे आकर मैं आत्मा शांति की गहन स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  इस शांतिधाम घर मे चारों और फैले शांति के वायब्रेशन्स मुझे गहन शांति की अनुभूति करवाकर एक अनोखी शक्ति का संचार मेरे अन्दर कर रहें हैं। साइलेन्स का बल अपने अंदर भरकर अब मैं सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास आकर बैठ गई हूँ और बड़े प्यार से उन्हें निहार रही हूँ। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे बाबा भी बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं और अपना प्यार शीतल लहरों के रूप में धीरे - धीरे मुझ तक पहुँचा रहें हैं। बाबा के अथाह प्यार की शीतल लहरों की शीतलता मन को गहन सुख प्रदान कर रही है। धीरे - धीरे ये लहरे बढ़ रही हैं और मुझे अपने अंदर समाती जा रही हैं।

➳ _ ➳  प्यार के सागर मेरे पिता के प्यार की लहरों का प्रवाह मुझे बहा कर अपने बिल्कुल समीप ले आया है। जहाँ पहुँच कर ऐसा लग रहा है जैसे प्यार का कोई सतरंगी झरना मेरे ऊपर बरस रहा है और उस झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्नान करके प्यार के सागर अपने पिता के समान बनती जा रही हूँ। नफरत, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा के पुराने स्वभाव संस्कार जैसे प्यार के सागर की गहराई में डूब गए हैं और उसके स्थान पर सबको प्रेम देने, सहयोग देने के संस्कार जैसे इमर्ज हो गए हैं। स्वयं को मैं बाप समान प्यार का सागर अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाकर, उनके समान बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।

➳ _ ➳  प्यार के सागर अपने पिता से प्राप्त किये हुए प्यार का मधुर एहसास मेरी शक्ति बनकर अब मुझे भी बाप समान प्यार का सागर बन सबको सच्चा रूहानी प्यार देने के लिए प्रेरित करता रहता है इसलिए अपने प्यारे पिता के प्यार से स्वयं को हरपल भरपूर रखते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को आत्मिक स्नेह देकर उन्हें तृप्त करती रहती हूँ

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं दृढ़ता की शक्त्ति से मन-बुद्धि को सीट पर सेट करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   जो भी शक्तियां हैं, मैं उन्हें समय पर यूज़ करके बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सर्वंश त्यागी आत्मा किसी भी विकार के अंश के भी वशीभूत हो कोई कर्म नहीं करेगी। विकारों का रायल अंश स्वरूप पहले भी सुनाया है कि मोटे रूप में विकार समाप्त हो रायल रूप में अंश मात्र के रूप में रह जाते हैं। वह याद है ना! ब्राह्मणों की भाषा भी रायल बन गई है। अभी वह विस्तार तो बहुत लम्बा है। मैं ही यथार्थ हूँ वा राइट हूँ - ऐसा अपने को सिद्ध करने के रायल भाषा के शब्द भी बहुत हैं। अपनी कमज़ोरी छिपाकर दूसरे की कमज़ोरी सिद्ध करने वा स्पष्ट करने का विस्तार करना, उसके भी बहुत रायल शब्द हैं। यह भी बड़ी डिक्शनरी हैं। जो वास्तविकता नहीं है लेकिन स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल हैं। वह विस्तार अच्छी तरह से सब जानते हो। सर्वन्श त्यागी की ऐसी भाषा नहीं होती - जिसमें किसी भी विकार का अंश मात्र भी समाया हुआ हो। तो मंसा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा विकारों के अंश मात्र से भी परेइसको कहा जाता है ‘सर्वंश त्यागी'। सर्व अंश का त्याग।

 

✺   "ड्रिल :- स्वयं को सिद्ध करने वा स्वयं की कमज़ोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल नहीं बोलना।

 

 _ ➳  बाबा को याद करते हुए मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं परमधाम... और बाबा से मिलकर बाबा को अपने साथ लेकर आ जाती हूं... रिमझिम की एक फुहार बनकर नीचे आसमान में... मुझे वहां कुछ बादल दिखाई देते हैं... और मैं आ जाती हूं बादलों के अंदर... जैसे ही मैं बादल में प्रवेश करती हूं... बादल गहरे रंग के हो जाते हैं... और बादलों की गति बढ़ने लगती हैं... मैं बादलों में बैठकर उनकी गति को मन ही मन फील करती हूं... मुझे एहसास होता है... कि जैसे बाबा ने मुझमें इतनी शक्तियां भर दी हैं कि मैं अब इस धरा को अपने रिमझिम फुहार से हरी-भरी कर सकूं और बंजर जमीन से फसल का जीवन दान दे सकूं...और साथ ही उदास चेहरों पर हंसी ला सकूं...

 

 _ ➳  जैसे-जैसे बादलों की गति बढ़ती जाती है... वह आपस में एक दूसरे से टकराते हैं... और शिवबाबा बिजली बनकर चमकते हैं... और बाबा से शक्तियां लेकर मैं बारिश की फुहार बनकर इस धरा पर बरसने लगती हूं... और ऐसा प्रतीत हो रहा है... मानों सभी आत्माएं जन्म जन्म की प्यासी हो... और मुझसे वरदानों की बारिश करने के लिए कह रही हो... मैं अपनी शक्तियों की वर्षा उन पर करने लगती हूं... तभी मैं अचानक देखती हूं कि... एक स्थान पर कुछ आत्माएं बैठी हुई है... और एक आत्मा आगे बैठकर उन्हें कुछ पढ़ा रही है... और मैं देखती हूं कि... वह सभी आत्माएं उस एक आत्मा की बातें बहुत गहराई से और प्यार से सुन रही है...

 

 _ ➳  परंतु कुछ समय बाद मैं देखती हूं कि... वह आत्मा अपने आप को देहभान में लाते हुए... बाबा की श्रीमत को पूरा फॉलो नहीं करते हुए... उन सभी आत्माओं को अपने ज्ञान अभिमान करते हुए... कुछ बातें बता रही है... वह अपनी मन बुद्धि में परमात्मा को शामिल नहीं करते हुए सिर्फ अपनी मनमत से आत्माओं को कुछ बातें बताने की चेष्टा कर रही है... परंतु उसके सामने बैठी सभी आत्माएं कुछ असंतुष्ट सी नजर आ रही है... मेरा जैसे ही ध्यान उन आत्माओं पर जाता है... मैं उनकी भावनाओं को समझ जाती हूँ... और बाबा से लगातार शक्तियां लेते हुए बारिश की फुहार बनकर सामने बैठी उस आत्मा के मन बुद्धि में प्रवेश कर जाती हूँ... और मैं उस आत्मा के मुख मंडल द्वारा उन सभी आत्माओं को कहती हूं कि... मैं आज जो कुछ भी हूं जो कुछ भी मुझे ज्ञान मिला है वह सिर्फ परमात्मा के द्वारा ही मिला है...

 

 _ ➳  और मैं कहती हूं कि मुझे परमात्मा रोज नया नया ज्ञान मुरली द्वारा देते हैं... जिससे मैं श्रीमत का पूर्ण रुप से पालन कर पाती हूं... मैं जो भी कुछ ज्ञान सुना रही हूं वह सिर्फ और सिर्फ परमात्मा द्वारा दिए हुए श्रीमत के कारण ही सुना पा रही हूं... इतना कहकर मैं उस आत्मा की मन बुद्धि से वापस बाहर निकल आती हूं... और मैं देखती हूं कि... वह आत्मा एकदम परिवर्तित हो चुकी है... और उस पर मेरे कहे हुए शब्दों का प्रभाव पड़ रहा है... और वह परमात्मा का बार-बार धन्यवाद करते हुए उन आत्माओं को बाबा के ज्ञान द्वारा संतुष्ट करने का पुरुषार्थ कर रही है... वह अपने आप को सिद्ध करने के लिए किसी भी प्रकार के मनमत का साथ नहीं ले रही है... तथा मैं देखती हूं कि... वहां बैठी सभी आत्माएं एकदम शीतल भाव से, शांत भाव से संतुष्ट होकर उस आत्मा की बातें सुन रही है...

 

 _ ➳  वहां का यह चित्र देखकर मेरा मन अति हर्षित हो रहा है... और मैं परमात्मा को लगातार अपने साथ अनुभव कर रही हूं... और रिमझिम फुहार से और परमात्मा द्वारा दी हुई शक्तियों को रिमझिम फुहार में परिवर्तन कर... इस पूरे संसार में फैला रही हूं... क्रोध में जलती हुई आत्माएं और सभी असंतुष्ट आत्माएं श्रीमत से बाहर जाती आत्माएं सभी अपने साथ परमात्मा को अनुभव करने लगती है... और मैं यह चित्र देखकर बाबा को धन्यवाद करती हूं... फिर से अपने आप को उस बादल से निकालकर इस देह में विराजमान कर लेती हूं... और इस देह में विराजमान होते-होते मैं अपने आप से यह वादा करती हूं... कि मैं पुरुषार्थ की राह में कभी भी अपने आप को सिद्ध करने के लिए मनमत का सहारा नहीं लूंगी... और सदा पुरुषार्थ में श्रीमत की राह पर चलूंगी... इसी भाव से मैं इस सृष्टि पर अपनी वाइब्रेशन फैलाने लगती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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