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❍ 27 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ इस शरीर रुपी कपडे से ममत्व निकाला ?
➢➢ दैवी गुण धारण करने पर विशेष अटेंशन रहा ?
➢➢ सिद्धि को स्वीकार करने की बजाये सिद्धि का प्रतक्ष्य स्वरुप दिखाया ?
➢➢ अव्यक्त स्थिति में स्थित हो मिलन मनाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ सेवा में स्वयं को निमित्त समझकर डबल लाइट रहना यह भी भाग्य है क्योंकि किसी भी प्रकार का बोझ खुशी की अनुभूति सदा नहीं करायेगा। जितना अपने को डबल लाइट अनुभव करेंगे उतना भाग्य पदमगुणा बढ़ता जायेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं विश्व कल्याण के कार्य अर्थ निमित्त आत्मा हूँ"
〰✧ मैं विश्व कल्याण के कार्य अर्थ निमित्त आत्मा हूँ, ऐसे निमित्त समझ हर कार्य करते हो? जो विश्व कल्याण के निमित्त आत्मा हैं वो स्वयं-स्वयं के प्रति अकल्याणकारी संकल्प भी नहीं कर सकते। क्योंकि विश्व की जिम्मेवार आप निमित्त आत्माओंकी वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होना है। तो जैसा संकल्प होगा वैसी वृत्ति जरूर होती है। कभी भी किसी के प्रति वा अपने प्रति कोई भी व्यर्थ संकल्प है तो वृत्ति में क्या होगा? वही भाव वृत्ति में होगा और वही कर्म स्वत: ही होगा।
〰✧ तो एक सेकेण्ड भी वृत्ति व्यर्थ नहीं बना सकते। एक सेकेण्ड भी व्यर्थ संकल्प नहीं कर सकते क्योंकि आपके पीछे विश्व की जिम्मेवारी है। ऐसे समझते हो? कि ये बाप की जिम्मेवारी है आपकी नहीं? ऐसा समझते हो या सोचते हो कि हम तो छोटे हैं तो छोटी जिम्मेवारी है। नहीं, बड़ी जिम्मेवारी उठाई है। तो विश्व कल्याणकारी। जैसे बाप, वैसे बच्चे। कैसी भी परिस्थिति हो, कोई भी व्यक्ति हो लेकिन स्व की भावना, स्व की वृत्ति कौन सी है? विश्व कल्याणकारी। इतना याद रहता है या अलबेले भी हो जाते हो? तो अलबेले नहीं होना।
〰✧ विश्व कल्याणकारी विश्व के राज्य अधिकारी बन सकते हो। अगर विश्व कल्याण की भावना नहीं तो विश्व राज्य का भी अधिकार नहीं। सम्बन्ध है ना। तो सदा सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना हो। हो सकती है? आपकी कोई ग्लानि करे तो भी शुभ कामना रख सकते हो? कोई गाली दे तो भी शुभ भावना रखेंगे? कि थोड़ा-सा मन में आयेगा? थोड़ा-सा तो आयेगा ना कि ये क्या करता है, ये क्या करती है? कोई आपका कल्याण करे और कोई आपका अकल्याण करे तो दोनों समान लगेगा? थोड़ा तो फर्क होगा ना? कोई रोज आपकी ग्लानि करे, एक साल तक करे और एक साल तक भी नहीं बदले तो आप कल्याण करेंगे? वो अकल्याण करे, आप कल्याण करेंगे? ऐसे करते हैं या थोड़ा-सा मुंह ऐसे (किनारा) हो जाता है? चलो, घृणा भाव नहीं हो लेकिन मन से किनारा करेंगे कि यह ठीक नहीं है या उसको ठीक करेंगे? क्या करेंगे? ठीक करेंगे? करेंगे - यह कहना तो सहज है लेकिन करते हो? अपकारी पर भी उपकार। यही ज्ञानी तू आत्मा का कर्तव्य है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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अभी समय दिया है विशेष फाइनल इम्तहान के पहले तैयारी करने के लिए फाइनल पेपर के पहले टाइम देते हैं। छूट्टी देते हैं ना! तो बापदादा अनेक राजों से यह विशेष समय दे रहे हैं। कुछ राज गुप्त हैं, कुछ राज प्रत्यक्ष हैं। लेनिक विशेष हर एक इतना अटेन्शन रखना कि सदा 'बिन्दु लगाना है अर्थात बीती को बीती करने का बिन्दु लगाना है। और ‘बिन्दु' स्थिति में स्थित हो राज्य अधिकारी बन कार्य करना है। सर्व खजानों के 'बिन्दु सर्व प्रति विधाता बन, सिन्धु बन सभी को भरपूर बनाना है। तो ‘बिन्दु' और 'सिन्धु यह दो बातें विशेष स्मृति में रख श्रेष्ठ सर्टीफिकेट लेना है। सदा ही श्रेष्ठ संकल्प की सफलता से आगे बढते रहना। तो ‘बिन्दु बनना, सिन्धु बनना’ यही सर्व बच्चों प्रति वरदाता का वरदान है। वरदान लेने के लिए भागे हो ना! यही वरदाता का वरदान स्मृति में रखना। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ सारथीपन की स्थिति स्वत: ही स्व-उन्नति के शुद्ध संस्कार इमर्ज करती हैं और नेचुरल समय प्रमाण सहज चेकिंग होती रहेगी। सारथी स्वत: ही साक्षी हो कुछ भी करेंगे, देखेंगे, सुनेंगे। साक्षी बन देखने, सोचने, करने सब में सब-कुछ करते भी निर्लेप रहेंगे अर्थात् माया के लेप से न्यारे रहेंगे। तो पाठ पक्का किया ना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- वापिस जाने बाप की याद से पवित्र बनना"
➳ _ ➳ मीठे प्यारे बाबा की यादो में डूबी हुई मै आत्मा... अपने
फ़रिश्ते प्रकाश को ओढ़कर सूक्ष्म वतन में पहुंचती हूँ... मीठे बाबा मुझे देख कर
मुस्कराते हुए वरदानों की बौछार में मुझे भिगोने लगते है... अपने आराध्य और मुझ
आत्मा के मिलन् की प्यारी घड़ियों में वक्त ही ठहर गया है... सारा आलम सुख और
सुकून भरा है... सुख और आनन्द चहुँ ओर बिखर रहा है... और मुझ आत्मा की सुख
अनुभूति से भरी सुख की किरणे स्थूल वतन तक फैल रही है... सारी प्रकृति और
आत्माये सुख की अनुभूतियों में खोयी हुई है...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को पवित्रता के श्रृंगार से सजाते हुए
कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... कभी तो भगवान के दर्शन की कामना रखते थे...
और आज ईश्वर ही पिता बनकर सम्मुख बेठा है.. तो पिता की यादो भरी गोद में
बैठकर, पवित्रता की खुशबु से भर जाओ... इस अंतिम जनम में पावनता के रंग में रंग
पवित्र बन... घर चलने की तैयारी करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा को मुझ आत्मा के भविष्य को सुनहरा करते देख
कहती हूँ :- "प्राणप्रिय बाबा मेरे... मनमत और परमत के प्रभाव में आकर मै
आत्मा कितनी पतित हो गयी थी... आपने अपनी प्यार भरी बाँहों में भरकर, मुझे
कितना पावन बना दिया है... मै आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बनकर मुस्करा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा से पवित्रता के पक्के व्रत का वादा
लेते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... मीठे बाबा के प्यारे साथ के, इस वरदानी
संगम में पवित्रता का पक्का व्रत रखकर पवित्र बनो... यह अन्तिम जनम प्यारे बाबा
के हाथो में सौंप दो... पावनता से जगमगाओ... यही पवित्रता सच्चे सुखो का आधार
है, जो अपार सुखो से दामन सजाएगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की गोद में ख़ुशी से झूमते हुए कहती हूँ :-
"मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन कितना प्यारा और अदभुत बना
दिया है... विकारी बनकर जो खुद की ही नजरो में गिर गयी थी... आज पावन बनकर फिर
से गर्वित हो गयी हूँ... पवित्रता ने मेरा खोया हुआ सम्मान दिलाकर, मुझे कितना
ऊँचा बना दिया है..."
❉ मीठे बाबा मुझे अपने ज्ञान और याद की रश्मियों से लबालब करते
हुए कहते है :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... देह भान को छोड़ मीठे बाबा की यादो के
नशे में डूबकर... पावन बन मुस्कराओ... पवित्रता का पक्का पक्का व्रत रखो... और
अपनी वही चमक दमक को पाकर, अपूर्व सुखो के मालिक बन, खुशियो में खिलखिलाओ...
पवित्र बन कर, ही पवित्र दुनिया में जाना है...."
➳ _ ➳ मै आत्मा पवित्रता से सजधज कर मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे
मीठे बाबा... आप जीवन में न थे तो मै आत्मा कितनी काली पतित बनकर बुझ गयी थी,
आपने आकर मेरी बुझी ज्योति को पुनः जगाया है... मुझे पावनता से सजाकर मुझे
कितना खुबसूरत बनाया है.. मेरा खोया श्रृंगार वापिस दिलाया है..."प्यारे बाबा
को दिल के सारे जज्बात सुनाकर मै आत्मा.. अपने साकारी तन में लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- अपने सब पुराने हिसाब किताब चुकतू करने हैं"
➳ _ ➳ देह भान में आ कर, जन्मजन्मांतर से किये हुए विकर्म जो कड़े हिसाब -
किताब के रूप में जीवन मे आते रहते हैं उन हिसाब - किताब को चुकतू करने का केवल
एक ही उपाय है योगबल। बाबा की याद ही वो योग अग्नि है जो विकर्मों को विनाश कर
सभी हिसाब - किताब को चुकतू कर सकती है। इसलिए अपने अब के जीवन मे किये हुए और
पिछले 63 जन्मों के किये हुए विकर्मों को भस्म करने के लिए मैं अशरीरी स्थिति
में स्थित हो कर अपने शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को स्थिर कर लेती
हूँ।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया से सम्बन्ध रखने वाले हर संकल्प, विकल्प, हर
विचार से अपने मन बुद्धि को हटा कर मैं अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने स्वरूप
पर और अपने शिव पिता पर एकाग्र करती हूँ। मन बुद्धि से अब मैं स्पष्ट देख रही
हूँ अपने दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप को और अपने महाज्योति शिव पिता के स्वरूप
को जो मेरे ही समान बिंदु है किंतु गुणों में सिंधु हैं। एक चैतन्य सितारे के
समान अपने जगमग करते स्वरूप को और सर्वशक्तियों, सर्व गुणों के सागर अपने शिव
पिता के अनन्त तेजोमय स्वरूप को मैं देख रही हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की कट ने मुझ आत्मा को आयरन एजेड बना दिया है इसलिए अपने
शिव पिता की सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों से अपने ऊपर चढ़ी विकारों की
कट को जला कर, योग अग्नि में अपने पापों को भस्म कर, स्वयं को गोल्डन एजेड
बनाने के लिए अब मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपने शरीर की कुटिया से बाहर निकलती
हूँ और अपने शिव पिता के पास ले जाने वाली एक ऐसी रूहानी यात्रा पर चल पड़ती
हूँ जो मन की असीम आनन्द देने वाली है। देह और देह के हर बन्धन से मुक्त इस अति
सुखमय आंतरिक यात्रा पर मैं आत्मा चलती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ इस रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ती अब मैं चमकती ज्योति प्रकृति
के पांचों तत्वों को पार कर जाती हूँ और आकाश से ऊपर फरिश्तों की दुनिया को पार
कर पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास उनके घर परमधाम। चैतन्य
सितारों की इस जगमग करती दुनिया में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा अब अपने बीज रूप
शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ। बिंदु का बिंदु से मिलन हो रहा है। एक बहुत
ही खूबसूरत दिव्य आलौकिक नजारा मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ।
➳ _ ➳ चारों ओर लाल सुनहरी प्रकाश ही प्रकाश है। बिंदु बाप से आ रही
सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं। मुझ
आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट इस योग अग्नि में जल कर भस्म हो रही है। आत्मा
पर चढ़ी विकारों की कट जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है वैसे - वैसे
विकर्मों का बोझ उतरने से मैं आत्मा हल्की और चमकदार बनती जा रही हूँ। विकर्मों
को भस्म करके, हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही
हूँ।
➳ _ ➳ अपनी साकार देह रूपी कुटिया में फिर से वापिस आ कर भृकुटि पर
विराजमान हो कर अब मैं फिर से इस सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ।
कर्मयोगी बन हर कर्म बाबा की याद में रह कर करते और कर्म करके सेकण्ड में देह
से उपराम, बीज स्वरूप में स्थित हो कर अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के पास
जा कर, स्वयं में योग का बल निरन्तर जमा कर, जीवन मे आने वाले हर कड़े से कड़े
हिसाब - किताब को भी अब मैं योगबल से बिल्कुल सहज रीति चुकतू कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सिद्धि को स्वीकार करने के बजाए सिद्धि का प्रत्यक्ष सबूत दिखाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं अव्यक्त स्थिति में स्थित हो मिलन मनाकर वरदानों का खुला भंडार प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. एक गलती बहुत करते हो उसके कारण भी संस्कार के ऊपर विजय नहीं प्राप्त कर सकते, बहुत टाइम लगता है समझते हैं कल से नहीं करेंगे लेकिन जब कल होता है तो आज से कल की बात बड़ी हो जाती है। तो कहते हैं कल छोटी बात थी ना आज तो बहुत बड़ी बात थी। तो बड़ी बात होने के कारण थोड़ा हो गया, फिर ठीक कर लेंगे-ये बड़ों को वा अपने दिल को दिलासा देते हो और ये दिलासा देते हुए चलते हो लेकिन ये दिलासा नहीं है, ये धोखा है। उस समय थोड़े समय के लिए अपने को या दूसरों को दिलासा देना-बस अभी ठीक हो जायेंगे, लेकिन ये स्वयं को धोखा देने की आदत पक्की करते जाते हो। जो उस समय पता नहीं पड़ता लेकिन जब प्रैक्टिकल में धोखा मिलता है तभी समझते हैं कि हाँ ये धोखा ही है।
➳ _ ➳ तो भूल क्या करते हो? जब बड़े या छोटे एक-दो को शिक्षा देते हैं तो क्या कहते हो? ये मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, कोई का फीलिंग का, कोई का किनारा करने का, कोई का बार-बार परचिन्तन करने का, कोई का परचिन्तन सुनने का, भिन्न-भिन्न हैं, उसको तो आप बाप से भी ज्यादा जानते हो। लेकिन बापदादा कहते हैं कि जिसको आपने मेरा संस्कार कहा वो मेरा है? किसका है? (रावण का) तो मेरा क्यों कहा? ये तो कभी नहीं कहते हो कि ये रावण के संस्कार हैं। कहते हो मेरे संस्कार हैं। तो ये 'मेरा' शब्द - यही पुरुषार्थ में ढीला करता है। ये रावण की चीज अन्दर छिपाकर क्यों रखी है? लोग तो रावण को मारने के बाद जलाते हैं, जलाने के बाद जो भी कुछ बचता है वो भी पानी में डाल देते हैं, और आपने मेरा बनाकर रख दिया है!
➳ _ ➳ तो जहाँ रावण की चीज होगी वहाँ अशुद्ध के साथ शुद्ध संस्कार इकट्ठे रहेंगे क्या? और राज्य किसका है? अशुद्ध का। शुद्ध का तो नहीं है ना! तो राज्य है अशुद्ध का और अशुद्ध चीज अपने पास सम्भाल कर रख दी है। जैसे सोना या हीरा सम्भाल के रखा हो। इसलिए अशुद्ध और शुद्ध दोनों की युद्ध चलती रहती है तो बार-बार ब्रह्मण से क्षत्रिय बन जाते हैं। मेरा संस्कार क्या है? जो बाप का संस्कार है, विशेष है ही विश्व कल्याणकारी, शुभ चिन्तनधारी। सबके शुभ भावना, शुभ कामनाधारी। ये हैं ओरिजिनल मेरे संस्कार। बाकी मेरे नहीं हैं। और यही अशुद्धि जो अन्दर छिपी हुई है ना, वो सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालती है। तो जो बनना चाहते हो, लक्ष्य रखते हो लेकिन प्रैक्टिकल में फर्क पड़ जाता है।
➳ _ ➳ २. ये रावण की चीज जो छिपाकर रखी है ना वो मन का मालिक बनने नहीं देती। मेरी आदत है, मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, मेरी नेचर है-ये सब रावण की जायदाद साथ में, दिल में रख दी है,तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! रावण के वर्से के ऊपर बैठे क्या! तो अभी इसको मिटाओ।
✺ ड्रिल :- "रावण के संस्कारों को मिटाकर बाप के संस्कारों को धारण करना"
➳ _ ➳ बाप के संस्कारों को धारण करना... मतलब बाप समान बनना... और बाबा कहते बाप समान बनना हो तो बैठ जाइए बापदादा के कमरे में... तो मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुँच गयी हूँ बापदादा के कमरे में... पावन दूधिया आभा से भरपूर ये कमरा गवाह है बापदादा की तपस्या और लगन का... संस्कार परिवर्तन की एक ऐसी इबारत जो यहाँ के चप्पे चप्पे के मौन संगीत में गूँजती है... उसी मौन संगीत की धुन पर नृत्य करती मैं आत्मा डूबती जा रही हूँ बापदादा की आँखों से छलकते स्नेह में... दोनों आँखो से बरसता स्नेह का ये झरना मुझे गुणों और शक्तियों से भरपूर करता जा रहा है...
➳ _ ➳ छलछलाते प्याले की भांति स्नेह और शक्तियों से छलकता मेरा रोम रोम... मैं आत्मा देह से अलग फरिश्ता रूप में... बापदादा के चित्र की जगह अब आकारी बापदादा... उनकी रूहानी आभा से पूरी तरह जगमगा गया है ये कक्ष... और बापदादा मेरा हाथ थामें चल दिये हैं, एक विशेष यात्रा पर... ये यात्रा है संस्कार परिवर्तन की यात्रा...
➳ _ ➳ कल्याणकारी बाप के साथ मैं शुभ भावना और शुभ चिन्तन की ध्वजा सम्भाले ऊँची पहाडी पर... संसार की सब दुखी आत्माओं को सुख शान्ति और पवित्रता की सकाश देते हुए... ध्वजा से निकलता प्रकाश का समुद्र दूर दूर तक फैलता हुआ... सामने दूसरी पहाडी पर अंधेरा देखकर मैं फरिश्ता बढ चला हूँ उस तरफ... उस पर भी प्रकाश का पसारा करने...
➳ _ ➳ मगर तभी कुछ कंटीली झाडियों में मेरे पंखों का उलझ जाना... परचिन्तन की, मेरे पन की, फीलिंग की, किनारा करने की ये नागफनी... मेरी उडान में बाधक बन गयी है... खुद को मुक्त करने के प्रयास में घायल होते मेरे पंख... और समय की बर्बादी... मुझे कोशिश करते बाबा दूर से ही साक्षी होकर देख रहे है... मानो कह रहे हों,- बच्चे अशुद्ध चीजे अपने पास छुपाकर रखी है... रावण के संस्कारो से मेरा पन! ... स्वयं से ही धोखा...
➳ _ ➳ और स्वयं की चैकिंग का जैसे ही ख्याल आता है... तुरन्त परिवर्तन की तीव्र ज्वाला का भडकना और देखते ही देखते भस्म हो जाना उन कटीली झाडियों का... मैं देख रहा हूँ रावण के एक एक संस्कार को उसमें भस्म होते हुए, परचिन्तन का संस्कार... किनारा करने का संस्कार, मेरे पन का संस्कार, सब एक एक कर भस्म हो रहे है... मेरे चेहरे पर विजयी मुस्कान... अब बापदादा चलकर आ रहे हैं मेरे पास... और हौले से मुझे कन्धे पर बिठा लेते है... मैं मन का मालिक दिलाराम को दिल को दिल में बिठाने का आग्रह करता हुआ... और हँसते हुए मैं और बाबा उड चले परमधाम की ओर... परमधाम से शक्तियाँ भरकर मैं लौट आया हूँ बापदादा के कमरे में... पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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