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 07 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ कोई प्रकार की गफलत तो नहीं की ?

 

➢➢ अन्दर में जो भी दाग है, उन्हें जांच कर निकाला ?

 

➢➢ ब्राह्मण जीवन में सदा ख़ुशी की खुराक खायी ?

 

➢➢ स्वराज्य अधिकारी अवस्था का अनुभव किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  पावरफुल मन की निशानी है-सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुच जाए। मन को जब उड़ना आ गया, प्रैक्टिस हो गई तो सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुंच सकता है। अभी-अभी साकार वतन में, अभी-अभी परमधाम में, सेकण्ड की रफ़्तार है-अब इसी अभ्यास को बढ़ाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बाबा के ब्राह्मण परिवार का श्रेष्ठ ब्राह्मण हूँ"

 

  अपने को ब्राह्मण संसार का समझते हो। ब्राह्मण संसार ही हमारा संसार है, बाप ही हमारा संसार है - ऐसे अनुभव करते हो कि और भी कोई संसार है। बाप और छोटा सा परिवार यही संसार है। जब ऐसा अनुभव करेंगे तब न्यारे और प्यारे बनेंगे। अपना संसार ही न्यारा है। अपनी दृष्टि-वृत्ति सब न्यारी है। ब्राह्मणों की वृत्ति में क्या रहता है? किसी को भी देखते हो तो आत्मिक वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से मिलते हो। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अगर वृत्ति और दृष्टि में आत्मिक दृष्टि है तो सृष्टि कैसी लगेगी? आत्माओंकी सृष्टि कितनी बिढ़या होगी? शरीर को देखते भी आत्मा को देखेंगे। शरीर तो साधन है। लेकिन इस साधन में विशेषता आत्मा की है ना। आत्मा निकल जाती है तो शरीर के साधन की क्या वैल्यु है! आत्मा नहीं है तो देखने से भी डर लगता है। तो विशेषता तो आत्मा की है। प्यारी भी आत्मा लगती है। तो ब्राह्मणों के संसार में स्वत: चलते फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति है इसलिए कोई दु:ख का नाम- निशान नहीं। क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से।

 

  अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है। सुखदायी-सुखमय जीवन। क्योंकि बाप को कहते ही हैं - सुखदाता। तो सुखदाता द्वारा सर्व सुखों का वर्सा मिल गया। माँ बाप कहा और वर्सा मिला। तो सुख की शैया पर सोने वाले। चाहे स्थूल में बिस्तर पर सोते हो, लेकिन मन किस पर सोता है? चलते-फिरते क्या लगता है? सुख ही सुख है। संसार ही सुखमय है सुख ही सुख दिखाई देगा ना। दु:खधाम को छोड़ दिया। अभी भी दु:खधाम में रहते हो या कभी-कभी चक्कर लगाने जाते हो? दु:खधाम से किनारा कर दिया। संगम पर आ गये है ना। अभी संगमयुगी हो या कलियुगी हो?

 

  स्वप्न में भी दु:खधाम में नहीं जा सकते। नया जीवन है ना। युग भी बदल गया, जीवन भी बदल गया। अभी संगमयुगी श्रेष्ठ ब्रह्मण आत्मायें हैं - इसी नशे में सदा रहो। सुखमय संसार में रहने वाले सुख स्वरूप आत्मायें। दु:ख तो 63 जन्म देख लिया। अभी संगम पर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले हैं। यह बाहर का सुख नहीं है, अतीन्द्रिय सुख है। विनाशी सुख तो कलियुगी आत्मा को भी है। लेकिन आपको अतीन्द्रिय सुख है। तो सदा सुख के झूले में झूलते रहो। बाप कहते हैं - सदा बाप के साथ झुले में झूलते रहो। यही भक्ति का फल है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  विश्व की अधिकतर आत्मायें आप की और इष्ट देवताओं की प्रत्यक्षता का आह्वान ज्यादा कर रही है और इष्ट देव उनका आह्वान कम कर रहे हैं। इसका कारण क्या है? अपने हद के स्वभाव, संस्कारों की प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो।

 

✧  जैसे अज्ञानी आत्माओं को ज्ञान सुनने की फुर्सत नही हैं वैसे बहुत से ब्राह्मणों को भी इस पॉवरफुल स्टेज पर स्थित होने की फुर्सत नहीं मिलती है। इसलिए ज्वाला रूप बनने की आवश्यकता है।

 

✧  बापदादा हर एक की प्रवृत्ति को देख मुस्कुराते है कि कैसे टू - मच बिजी हो गए हैं। बहुत बिजी रहते हो ना वास्तविक स्टेज में सदा फ्री रहेंगे। सिद्धि भी होगी और फ्री भी रहेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सूर्यवंशी अपने वृत्ति और वायब्रेशन की किरणों द्वारा अनेक आत्माओं को स्वस्थ अर्थात स्वस्मृति में स्थित करने का अनुभव कराएंगे। सूर्यवंशी की विशेष दो निशनियाँ अनुभव होगी - एक तो सदा निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आना। दूसरा सदा स्थिति में स्वमान-बोल और कर्म में निर्माण अर्थात् निर्वाण और निर्माण दो निशानियाँ अनुभव होगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- "दुःख देने और दुःख लेने की गफलत नहीं करना”

➳ _ ➳ मैं आत्मा मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ बाबा के प्रेम तरगों में डूबी हुई हूँ... यह पावन भूमि बहुत ही मीठी भूमि है... जहाँ निराकार परमपिता परमात्मा ब्रह्मा तन में आकर नई दुनिया के लिए नया ज्ञान देते हैं... पतितों को पावन बनाते हैं... यहाँ की हवाओं में फैली मीठी-मीठी पावन खुशबू मन को आह्लादित कर रही है... फिर मीठे बाबा मेरा हाथ पकड बगीचे में ले जाते हैं और मुझे अपने हाथों से मीठे-मीठे अंगूर तोड़कर खिलाते हुए मीठी समझानी देते हैं...

❉ मनसा-वाचा-कर्मणा कभी किसी को भी दुःख ना देने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे लाडले बच्चे... प्यार के सागर के दिल की मणि हो तो मीठे बन प्यार से मुस्कराओ... हर दिल को पिता जैसे प्यार से सहलाओ... सबके सहयोगी बन सदा का दिल जीतो... मीठे बोलो की टोली खाते रहो और खिलाते रहो... और मीठी वाणी से मीठे पिता का पता दे आओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में दीवानी होकर सर्व पर प्यार के फूल बरसाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी मीठी और प्यारी बन गई हूँ... हर दिल की राहत हो गई हूँ... सारा विश्व मेरा परिवार है... सब मेरे अपने ही आत्मा भाई है... इस सुंदर भाव में डूबकर सदा की मीठी हो गयी हूँ...”

❉ प्यार के सागर प्यारे बाबा प्यार की मिठास का एहसास कराते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... सारी दुनिया दुखो में डूबी हुई निढाल हो गई है... आप प्यार भरी मिठास से उनमे नव जीवन का संचार करो... प्यार के मरहम से उनके दुखो को दूर करो... मनसा-वाचा-कर्मणा सुख देकर उनके थके तनमन को आनन्द से भर दो... मा. प्यार सागर बन प्यार का दरिया बहाओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रेम की बदली बन पूरे विश्व को प्रेम की वर्षा में भिगोते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में प्रेम से ओतप्रोत हो रही हूँ... सब पर प्यार लुटाती जा रही हूँ... सबपर सुखो की वर्षा कर दुखो से मुक्त कर रही हूँ.... मा. प्रेमसागर बन प्रेम के झरनो में सबको भिगो रही हूँ...”

❉ अपने प्रेम किरणों से विकारों को भस्म कर निर्विकारी बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप बड़े वाले देवता हो... आपको सबको प्यार देना है सबका ध्यान रखना है सबकी सम्भाल करनी है... ईश्वर के बच्चे हो सबको खुशियां देने के निमित्त हो... सारे विश्व को खुशियो से भर दो... हर आत्मा को प्रेम से सींच कर खुशहाली दो...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा डबल अहिंसक बन भाई-भाई की मीठी दृष्टि रख सब पर प्रेम लुटाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्रेम धारा बनकर सबकी मीठी पालना कर रही हूँ... मेरा पोर पोर प्यार में डूब रहा है और यह प्रेम तरंगे पूरे विश्व में फैला कर सुखो का कारवां ला रही हूँ.... चारो और सुख और प्रेम बिखरा है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- दैवी गुण धारण करने हैं"

➳ _ ➳ मनुष्य से देवता बनाने वाले अपने परम प्रिय परम पिता परमात्मा शिव बाबा को याद करते करते मैं एक रास्ते से गुजरती हूं और उस रास्ते पर चलते चलते एक मंदिर के पास भक्तों की बहुत भारी भीड़ देख कर रुक जाती हूँ। भक्तों की इतनी भीड़ देख कर मेरे कदम स्वत:ही मंदिर की ओर चल पड़ते हैं और मैं पहुंच जाती हूँ मन्दिर के अंदर जहां देवी देवताओं की बहुत सुंदर प्रतिमाएं स्थापित की हुई है, जिनके आगे भक्त हाथ जोड़ कर खड़े हैं।

➳ _ ➳ देवी देवताओं की सुंदर-सुंदर प्रतिमाओं को देख कर मैं विचार करती हूं कि चित्रकारों द्वारा बनाए हुए इन जड़ चित्रों में भी जब इतनी आकर्षणता है। इन जड़ चित्रों में भी देवी देवताओं के चेहरे से जब इतनी दिव्यता और पवित्रता की झलक दिखाई दे रही है तो चैतन्य में तो इन देवी देवताओं के चेहरों की दिव्यता और पवित्रता अवर्णनीय होगी।

➳ _ ➳ अपने ही जड़ चित्रों की सुंदरता को देखते देखते मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ सृष्टि के आदि अर्थात देव लोक में। अब मैं देख रही हूं स्वयं को अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में देवभूमि पर, जहां चारों ओर प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य है। हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणें। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख रही हूं।

➳ _ ➳ स्वर्ण धागों से बनी हीरे जड़ित अति शोभनीय ड्रेस पहने नन्हे नन्हे राजकुमार राजकुमारियां खेल रहे हैं। सोलह कलाओं से युक्त, मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवता इस स्वर्ग लोक में विचरण कर रहे हैं, अपने पुष्पक विमानों में विहार कर रहे हैं। लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में राजा हो या प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं। चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं। रमणीकता से भरपूर देवलोक के इन नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रही हूँ। 16 कला सम्पूर्ण, डबल सिरताज, पालनहार विष्णु के रूप में मैं स्वयं को स्पष्ट देख रही हूँ।

➳ _ ➳ अपने देवताई स्वरूप का भरपूर आनन्द ले कर मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में उसी मन्दिर में लौट आती हूँ और स्वयं को अपने पूज्य स्वरूप में स्थित करती हूं। अब मैं आत्मा कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न स्वयं को अष्ट भुजा धारी दुर्गा के रूप में देख रही हूं । असंख्य भक्त मेरे सामने भक्ति कर रहे हैं, मेरा गुणगान कर रहे हैं, तपस्या कर रहे हैं, मुझे पुकार रहे हैं, मेरा आवाहन कर रहे हैं। मैं उनकी सभी शुद्ध मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हूं। मेरे भक्तगण और मंदिर में विद्यमान समस्त आत्मायें सर्वशास्त्रों से श्रृंगारी हुई मां दुर्गा के रूप में मेरे दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार कर रहे हैं। मेरा अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित स्वरूप संपूर्ण मानवता को आत्म विभोर कर रहा है।

➳ _ ➳ अपने इष्ट देवी स्वरूप में भक्तों को अपना साक्षात्कार करवा कर फिर से अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर मैं मन्दिर से बाहर आ जाती हूँ और मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूं कि अब मुझे अपने इस ब्राह्मण जीवन में ही देवताई संस्कार धारण करने का पुरुषार्थ अवश्य करना है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं ब्राह्मण जीवन मे सदा खुशी की खुराक खाने और खुशी बाँटने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं संगमयुग की स्वराज्य अधिकारी बनकर विश्व की राज्य अधिकारी बनने वाली आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ‘‘बापदादा राजऋषियों की दरबार देख रहे हैं। राज अर्थात् अधिकारी और ऋषि अर्थात् सर्व त्यागी। त्यागी और तपस्वी। तो बापदादा सर्व ब्राह्मण बच्चों को देख रहें हैं कि कहाँ तक अधिकारी आत्मा और साथ-साथ महात्यागी आत्मादोनों का जीवन में प्रत्यक्ष स्वरूप कहाँ तक लाया है! अधिकारी और त्यागी दोनों का बैलेन्स हो। अधिकारी भी पूरा हो और त्यागी भी पूरा हो। दोनों ही इकट्ठे हो सकता है? इसको जाना है वा अनुभवी भी हो? बिना त्याग के राज्य पा सकते हो? स्व का अधिकार अर्थात् स्वराज्य पा सकते हो? त्याग किया तब स्वराज्य अधिकारी बने। यह तो अनुभव है ना! त्याग की परिभाषा पहले भी सुनाई है।

✺ "ड्रिल :- राजऋषि बनकर रहना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में ख्वाबों के बिस्तर पर गहरी नींद में सो रही थी। तभी मुझे गहरी नींद में मीठे से स्वपन की अनुभूति होती है... मैं अपने आप को बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में अनुभव करती हूँ... मैं अपने दिव्य चक्षु से देखती हूँ बाबा फरिश्तों का दरबार लगाये हुए हैं और सभी फ़रिश्ते सफ़ेद चमकीली पोशाक पहन कर बापदादा के सामने बैठे हुए हैं... और समझा रहे हैं और कुछ पूछ रहे हैं... क्या तुम सभी अपने आप को राजऋषि समझते हो? राज अर्थात अधिकारी! बापदादा द्वारा दिए हुए सर्वखजानों पर अपना पूर्ण अधिकार और बापदादा पर भी अपना पूर्ण अधिकार... जब चाहे पूरे अधिकार से सभी खज़ाने प्राप्त कर लो...

➳ _ ➳ और फ़िर बाबा उन फरिश्तों को समझाते हैं... मन में कभी ये संकोच न रहे कि ये खज़ाना मेरा है या नहीं... जैसे एक बच्चा अपने माता पिता से किसी भी प्रकार की चीज़ मांगता नहीं है बल्कि पूर्ण अधिकार से और प्रेम से हर चीज़ अपने माता पिता से प्राप्त करता है... उस बच्चे के मन में कभी किसी भी प्रकार का कोई संकोच न होने के कारण और गहरे प्रेम और निः स्वार्थ के कारण वो ज़िद से भी अपनी हर चीज़ को माता पिता से ही लेता है और माता पिता भी अपने बच्चों को कोई भी चीज़ देने से इंकार नहीं करते... ऐसे अधिकारी बनो...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद बाबा कहते हैं जिस तरह अपने ख़ज़ानों पर और अपने बाप पर पूर्ण अधिकार रखते हो उसी तरह अपनी कर्मेन्द्रियों पर भी पूरी तरह से राज़ करते हो? जब चाहे कर्मेन्द्रियों को वश में कर सकते हो? और जब चाहे स्वतंत्र कर सकते हो? क्या ऐसे राज़ अधिकारी बने हो? फिर बाबा कहते हैं जैसे कछुआ कर्म करते हुए अपनी गर्दन और पैरों को बहार निकाल लेता है और जब उसका कर्म समाप्त होता है तो वह अपनी कर्मेन्द्रियों को अंदर समेट लेता है... क्या ऐसे कर्मेन्द्रियों के अधिकारी बने हो? कुछ फ़रिश्ते खड़े हो कर बाबा से कहते हैं बाबा... सिर्फ कुछ ही कर्मेन्द्रियाँ हैं जिनको वश में करना बाकी है... काफी हद तक वश में हैं परंतु वश से बाहर हो जाती हैं...

➳ _ ➳ उस सूक्ष्म लोक में उस शीतल प्रकाश के बीच उन फरिश्तों को इस स्थिति में देख कर बाबा आश्चर्यचकित होते हैं और मुस्कुरा कर आगे बढ़ने का आदेश देते हैं... फिर बाबा पूछते हैं बच्चों क्या अपने आप को त्याग और बलिदान की स्मृति में रखते हुए ऋषि की भाँति त्यागी जीवन का अनुभव करते हो... जैसे ऋषि अपना सर्वस्व त्याग कर तपस्या करता है वैसे ही आप सर्वस्व त्याग कर त्यागमूर्त बने हो? तभी कुछ फ़रिश्ते बाबा को कहते हैं हाँ बाबा बस यह स्थिति भी पूरी होने ही वाली है बस कुछ समय और उनकी बात सुनकर बाबा फिर मुस्कुराते हैं और आगे बढ़ने का वरदान देते हैं...

➳ _ ➳ सूक्ष्म लोक के इस दृश्य को देखकर मेरे मन के सभी प्रश्न समाप्त हो गए और मैं आगे बढ़कर बापदादा के पास जाती हूँ और बाबा से कहती हूं बाबा सदा अधिकारी और त्यागी स्थिति में अपने आप को अनुभव करुँगी... दोनों स्थितियों का अपने पुरुषार्थ में बैलेंस रखूँगी... कभी भी पुरुषार्थ के मार्ग में नहीं डगमगाऊँगी अपनी कर्मेन्द्रियों पर राज करके स्वराज अधिकारी स्थिति का अनुभव करूँगी और स्वराज अधिकारी बनूँगी... और मैं बाबा से कहती हूं बाबा मुझे अच्छी तरह समझ आ गया है कि मैं बिना त्याग के राज्य पा नहीं सकती... इसलिए त्यागी मूर्त बनकर सेवा करुँगी... ये वादा कर के मैं वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर आ जाती हूँ और बाबा की बातों को स्मृति में रखते हुए गहरी निद्रा से जाग जाती हूँ... तथा बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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