━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 21 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ एक बाप की ही कशिश में रहे ?
➢➢ ज्ञान की धारणा से अपनी बैटरी भरी ?
➢➢ "बाप और वरदाता" - इस डबल सम्बन्ध से डबल प्राप्ति का अनुभव किया ?
➢➢ देह के साथ पुराने स्वभाव, संस्कार व कमजोरियों स एन्यारे रहे ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त बन विदेही स्थिति द्वारा कर्मातीत बने, तो अव्यक्त ब्रह्मा की विशेष पालना के पात्र हो इसलिए अव्यक्त पालना का रेसपान्ड विदेही बनकर दो। सेवा और स्थिति का बैलेन्स रखो।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं संगमयुगी सच्चा ब्राह्मण हूँ"
〰✧ अपने को संगमयुगी सच्चे ब्राह्मण समझते हो! वह हैं नामधारी ब्राह्मण और आप हो पुण्य का काम करने वाले ब्राह्मण।
〰✧ ब्राह्मण अर्थात् स्वयं भी ऊँची स्थिति में रहने वाले और दूसरों को भी श्रेष्ठ बनाने के निमित्त बनने वाले। यही आपका काम है।
〰✧ सदा बेहद बाप के हैं बेहद की सेवा के निमित्त हैं, यही याद रखो। बेहद सेवा ही उड़ती कला में जाने का साधन है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बाप क्वेचन भी सुना रहे हैं, टाइम भी बता रहे है, फिर भी देखो कितने नम्बर बन जाते हैं। कहाँ 8 दाने का पहला नम्बर और कहाँ 16,000 का लास्ट नम्बर! कितना फर्क हुआ! क्वेचन सेकण्ड का वही होगा - पहले नम्बर के लिए भी तो 16,000 के लास्ट नम्बर वाले के लिए भी क्वेचन एक ही होगा।
〰✧ और कितने समय से सुना रहे हैं? तो सभी नम्बरवन आने चाहिए ना। इसी को ही अपने यादगार में ‘नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप' कहा है। बस, सेकण्ड में मेरा बाबा दूसरा न कोई। इस सोचने में भी समय लगता है लेकिन टिक जाएँ हिले नहीं। यह भी नहीं - सेकण्ड तो हो गया, यह सोचा तो भी फेल हो जायेंगे।
〰✧ कई बार जो पेपर देते हैं, वह इसी बात में ही फेल हो जाते हैं। क्वेचन पर जो लिखा हुआ होता है कि यह क्वेचन 5 मिनट का, यह 10 मिनट का, तो यही देखते हैं कि 5 मिनट, 10 मिनट हो तो नहीं गया। समय को देखते, क्वेचन का उतर देना भूल जाते हैं। तो यह अभ्यास चलते-फिरते, बीच-बीच मे करते रहो।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ तो जिस समय 'मैं' शब्द-यूज़ करते हो उस समय ये सोचो कि मैं कौन? मैं शरीर तो हूँ ही नहीं ना। बॉडी-कॉन्सेसनेस तब आवे जब मैं शरीर हूँ। शरीर तो मेरा कहते हो ना? कि मैं शरीर कहते हो? कभी ग़लती से कहते हो कि मैं शरीर हूँ? ग़लती से भी नहीं कहेंगे ना कि मैं शरीर हूँ। तो 'मैं' शब्द और ही स्मृति और समर्थी दिलाने वाला शब्द है, गिराने वाला नहीं है। तो परिवर्तन करो। विश्व-परिवर्तक पक्के हो ना? देखना कच्चे नहीं बनना। तो 'मैं' शब्द को भी अर्थ से परिवर्तन करो। जब भी 'मैं' शब्द बोलो, तो उस स्वरूप में टिक जाओ और जब ‘मेरा' शब्द-यूज़ करते हो तो सबसे पहले मेरा कौन?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- यह पढाई सोर्स ऑफ़ इनकम है, इससे 21 जन्मों के लिए कमाई का प्रबंध
करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कितनी ही तकदीरवान हूँ जो की स्वयं परमपिता परमात्मा,
भाग्यविधाता बन मेरी सोई हुई तकदीर को जगाने परमधाम से आये हैं... अविनाशी
बेहद बाबा अविनाशी ज्ञान देकर इस एक जन्म में मुझे पढ़ाकर, 21 जन्मों के लिए
मेरी ऊँची तकदीर बना रहे हैं... यह पढ़ाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है... मैं रूहानी
आत्मा, रूहानी बाबा से, रूहानी पढ़ाई पढने चल पड़ती हूँ रूहानी कालेज सेंटर
में...
❉ पुरुषोत्तम संगम युग की पढाई से उत्तम ते उत्तम पुरुष बनने की शिक्षा
देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की
बाँहो में झूलने वाला खुबसूरत समय जो हाथ आया है तो इस वरदानी युग में पिता से
अथाह खजाने लूट लो... 21 जनमो के मीठे सुखो से अपना दामन सजा लो... ईश्वरीय
पढ़ाई से उत्तम पुरुष बन विश्व धरा के मालिक हो मुस्करा उठो...”
➳ _ ➳ बाबा की मीठी मुरली की मधुर तान पर फिदा होते हुए मैं आत्मा कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख
निहाल हो गई हूँ... मेरा मीठा भाग्य मुझे ईश्वर पिता की फूलो सी गोद लिए
वरदानी संगम पर ले आया है... ईश्वरीय पढ़ाई से मै आत्मा मालामाल होती जा रही
हूँ...”
❉ ज्ञान रत्नों के सरगम से मेरे मन मधुबन को सुरीला बनाकर मीठे बाबा
कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस महान मीठे समय का भरपूर फायदा
उठाओ... ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से जीवन में खुशियो की फुलवारी सी लगाओ... जिस
ईश्वर को दर दर खोजते थे कभी... आज सम्मुख पाकर ज्ञान खजाने से भरपूर हो जाओ...
और 21 जनमो के सुखो की तकदीर बनाओ...”
➳ _ ➳ दिव्यता से सजधज कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती
हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा संग ज्ञान और योग के पंख
लिए असीम आनन्द में खो गयी हूँ... ईश्वर पिता के सारे खजाने को बुद्धि तिजोरी
में भरकर और दिव्य गुणो की धारणा से उत्तम पुरुष आत्मा सी सज रही हूँ...”
❉ इस संगमयुग में मेरे संग-संग चलते हुए सत्य ज्ञान की राह दिखाते हुए
मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे बाबा के साथ का
संगम कितना मीठा प्यारा और सुहावना है... सत्य के बिना असत्य गलियो में किस
कदर भटके हुए थे... आज पिता की गोद में बैठे फूल से खिल रहे हो... ईश्वरीय
मिलन के इन मीठे पलों की सुनहरी यादो को रोम रोम में प्रवाहित कर देवता से सज
जाओ...”
➳ _ ➳ ईश्वरीय राहों पर चलकर ओजस्वी बन दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-
“हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर
श्रेष्ठ भाग्य को पा रही हूँ... इस वरदानी संगम युग में ईश्वर को शिक्षक रूप
में पाकर अपने मीठे से भाग्य पर बलिहार हूँ... और प्यारा सा देवताई भाग्य सजा
रही हूँ...”
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- एक बाप की ही कशिश में रहना है"
➳ _ ➳ साकारी देह में भृकुटि के भव्य भाल पर विराजमान एक चैतन्य शक्ति मैं
आत्मा दुनिया की भीड़ से दूर एक पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के सौंदर्य का आनन्द ले
रही हूँ और अपने अविनाशी प्रीतम को याद कर रही हूँ। मेरी याद मेरे शिव प्रीतम
तक पहुँच रही है जिसका स्पष्ट अनुभव मेरे अविनाशी प्रीतम परमधाम से अपनी
सर्वशक्तियों की किरणे मुझ पर फैलाते हुए मुझे करवा रहें हैं। मेरे शिव पिया
के प्रेम का अविनाशी रंग मुझ पर चढ़ रहा है और अनन्त दिव्य प्रकाश की किरणों के
रूप में मुझ आत्मा से निकल कर चारों ओर फ़ैल रहा है।
➳ _ ➳ अपने अविनाशी प्रीतम के अविनाशी प्रेम में डूबी मैं आत्मा, प्रकृति के
मनोहर दृश्य और शांत वातावरण में गहन शांति का असीम आनन्द ले रही हूँ। अपने शिव
पिया के प्रेम में मग्न इस प्रेममयी अवस्था मे, मुझ आत्मा से निकल रही दिव्य
किरणे मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रही हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरा शरीर
दिव्य लाइट का बन गया है और ऊपर की ओर उड़ने लगा है। लाइट की दिव्य आकारी देह
धारण कर मैं आत्मा अब दूर बहुत दूर उड़ती जा रही हूँ। पांचो तत्वों से पार, आकाश
से भी परे मैं जा रही हूँ उस अव्यक्त वतन में जहां मैं अपने अविनाशी प्रीतम से
अव्यक्त मिलन मना सकती हूँ।
➳ _ ➳ लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये अपने अव्यक्त रूप में स्थित अब मैं
पहुँच गई फरिश्तो की अव्यक्त दुनिया में। देख रही हूँ अपने बिल्कुल सामने अपने
शिव पिया के भाग्यशाली रथ ब्रह्मा बाबा को और उनकी भृकुटि में सूर्य के समान
चमक रहे अपने अविनाशी शिव साजन को। जिनसे निकल रही दिव्य किरणे पूरे वतन में
चारों ओर फैली हुई हैं। देह और देह की दुनिया से अलग, सफेद प्रकाश से प्रकाशित
यह दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है।
➳ _ ➳ इस अति न्यारी और प्यारी दुनिया में अपने शिव पिया से मिलने का अनुभव भी
अति न्यारा और प्यारा है। अपनी मीठी दृष्टि से वो मुझे निहाल कर रहें हैं।
मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर अपने समस्त गुण और शक्तियां मुझ में प्रवाहित कर
रहें हैं। नज़रों ही नजरों में मुझ से मीठी - मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। अपने
मन के भावों को संकल्पो द्वारा मैं उनके समक्ष रख रही हूँ। उन्हें बता रही हूँ
कि उन्हें पा कर मेरा यह जीवन धन्य हो गया है, कौड़ी से हीरे तुल्य बन गया है।
जीवन में ऐसे प्रेम की अनुभूति मैंने आज तक नही की थी जो मैं अब कर रही हूँ। अब
मेरा यह जीवन केवल मेरे शिव प्रीतम के लिए है।
➳ _ ➳ मेरे प्रेम के उदगार को मेरे शिव पिया समझ रहें है और मुस्कराते हुए
अपने प्रेम की शीतल किरणे मेरे ऊपर बरसा कर अपना निश्छल प्रेम और स्नेह
प्रदर्शित कर रहें हैं। अपने अविनाशी प्रीतम से अव्यक्त मिलन मना कर अब मैं
उनसे निराकारी स्वरूप में मिलन मनाने के लिए अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरुप
को धारण कर निराकारी दुनिया परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। बीज रूप स्थिति में मैं
आत्मा अपने बीज रुप शिव पिया के साथ अब मंगल मिलन मना रही हूँ। उनसे निकलती
अनन्त सर्वशक्तियों की किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं और मेरा स्वरूप
अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अविनाशी साजन ने सर्वशक्तियों को समाने की ताकत
मुझे दे दी हो। अपने शिव पिया की सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर मैं
शक्तिशाली लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हैं। अपने प्रीतम के साथ
अविनाशी मिलन मना कर और स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करके मैं आत्मा लौट
रही हूँ अपने साकारी तन में। अपने अविनाशी प्रीतम से सच्चा लव रखते हुए अब मैं
हर समय केवल उनकी ही यादों में खोई रहती हूँ और एक ही गीत सदा गुनगुनाती रहती
हूँ। "स्नेह प्यार की तुझ से बाबा बाँधी है जीवन डोर, दिल मेरा लगा ही रहता अब
तो तेरी ओर"
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं बाप और वरदाता इस डबल सम्बन्ध से डबल प्राप्ति करने वाली सदा शक्तिशाली आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं देह और देह के साथ पुराने स्वभाव, संस्कार और कमजोरियों से न्यारी होने वाली विदेही आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है। ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ। मेरा निजी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो। वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया। पराये माल को अपना बना लिया। अब बाप के खजाने को अपना बनाओ। रावण की चीज को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है? कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है।
➳ _ ➳ जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं - बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है। बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज्यादा। बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं। फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है - कि दिल से अगर एक बार भी 'मेरा बाबा' बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला 'मेरा बाबा', तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो। ले तो जाना ही है। सिर्फ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सजनी बनकर चलना।
✺ ड्रिल :- "रावण की जायदाद को छोड़ बाप की जायदाद को सम्भालना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बहुत ही सुंदर बगीचे में बैठी हूं... जहां रंग बिरंगे फूल खिल रहे हैं... और फूलों पर तितलियां मंडरा रही है... और आस-पास बहुत ही मनमोहक हरियाली हो रही है... और इस हरियाली में अनेक तरह तरह के पक्षी चहचहा रहे हैं... मैं आत्मा एक स्थान पर बैठकर यह सारा नजारा अपने इन स्थूल नेत्रों से देख रही हूं... और देख रही हूं कुछ पक्षी आपस में लड़ रहे हैं... और कभी कभी आपस में प्रेम कर रहे हैं... उनका लड़ना झगड़ना देखकर मैं अब अपनी दृष्टि तितलियों पर डालती हूँ... तितली जिस फूल पर बैठी है उस फूल में से एक भंवरा बाहर निकल कर उस तितली को कस के पकड़ना चाह रहा है... और तितली उसके कसके पकड़ने से बहुत ही तड़प रही है...
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं देखती हूं... कि वह भंवरा तितली को तड़पता हुआ देखकर छोड़ देता है... और तितली फर से उड़ जाती है... यह प्रक्रिया वह भंवरा बार बार दोहरा रहा है... पर तितली बार-बार उड़ जाती है... फिर मैं देखती हूँ की वह भंवरा शांत स्वरुप स्थिति में आराम से उस फूल पर बड़े स्नेह से बैठ जाता है... और जब वह तितली आती है तो उसे छूने की कोशिश करता है... उस तितली को भँवरे के स्नेह का आभास होता है... और वह आराम से उस फूल पर बैठकर फूलों से रस निकालती है... यह दृश्य देखकर मुझे आभास होता है कि जब भँवरे के रावण के संस्कार थे तो तितली उससे दूर भाग रही थी... और जब वह अपने स्वधर्म में आया तो तितली उधर ही बैठ गयी...
➳ _ ➳ और मेरे अंतर्मन को आभास होता है... कि मेरे अंदर जो पुराने संस्कार हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार अगर इनके अंश भी है तो धीरे-धीरे इनका वंश बनने में समय नहीं लगेगा... और यह जो पुराने संस्कार है वह मेरे अपने संस्कार नहीं है... वह रावण के संस्कार हैं... रावण की मत पर चलकर मैंने इतने समय से सिर्फ अपने साथ और अन्य आत्माओं के साथ गलत कर्म ही किए हैं... और इन कर्मों के कारण मेरा विकर्मो का खाता बढ़ता ही जा रहा है... और तभी मुझे आभास होता है कि मुझे अब इन रावण के अंश विकारों का भी अपने मन बुद्धि से त्याग करना होगा...
➳ _ ➳ और यह विचार करते मैं आत्मा अब अपने मन बुद्धि से अपने आप को फरिश्ता स्वरुप में अनुभव करती हूं... और परमात्मा को अपने साथ ज्योतिर्बिन्दु रूप में अनुभव करती हूँ... और फील करती हूं मेरा पूरा शरीर सफेद किरणों से जगमगा रहा है... औऱ अनुभव करती हूँ... की परमात्मा मुझमें अद्भुत शक्ति भर रहे हैं... शक्तियों का झरना मुझपर कुछ तरह से गिरता है कि मुझे प्रतीत होता है मानों स्वयं मेरे बाबा मुझमें नये संस्कार भर रहे हो... और जैसे जैसे ये झरनों रूपी संस्कार मुझमें भरते हैं... मेरे पुराने संस्कार पानी के रूप में मेरे शरीर से निकलकर बहते जा रहे हैं... और अब मैं आत्मा एकदम पवित्र और हल्की बन गई हूं... अब मुझ आत्मा में सहनशक्ति के साथ साथ शांति की शक्ति का समावेश हो गया है... इस शांत और ऊंची स्थिति का मैं गहराई से आनंद ले रही हूं...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━