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 21 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ अशरीरी होकर सुनने का अभ्यास पक्का किया ?

 

➢➢ "बेहद का बाप सर्वव्यापी नहीं है" - यह सिद्ध किया ?

 

➢➢ लोकिक अलोकिक जीवन में सदा न्यारे बन परमात्म साथ का अनुभव किया ?

 

➢➢ विकारों रुपी सांपो को अपनी शैया बनाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  एक बाप दूसरा न कोई-यही आपकी अखण्ड-अटल साधना है। यह अखण्ड-अटल साधना वहाँ अखण्ड राज्य का अधिकारी बना देती है। यहाँ का छोटा-सा संसार बापदादा, मात-पिता और बहन-भाई, वहाँ के छोटे संसार का आधार बनता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बापदादा के स्नेह की दुआओंसे पलने वाली आत्मा हूँ"

 

  हर समय ऐसा अनुभव करते हो कि बापदादा के स्नेह की दुआये हम ब्राह्मण-आत्माओंकी पालना कर आगे बढ़ा रही है। जहां दुआये होती है, वहां बाप का सर्व सम्बंध की प्रगति बहुत सहज और तीव्र होती है। तो सहज लगता है या कभी-कभी मुश्किल हो जाता है? जब मेहनत का अनुभव हो तो उस समय चेक करना चाहिए कि किस श्रीमत की लकीर से बाहर जा रहे हैं? चाहे संकल्प में, चाहे बोल में, चाहे कर्म वा सेवा की लकीर से बाहर निकलते हो तब माया की आकर्षण मेहनत कराती है। ब्राह्मण-जीवन की मर्यादाएं पसंद है या मुश्किल लगती है? कौन-सी मर्यादा मुश्किल लगती है? जो भी मार्यादाएं हैं, उससे देखो- इसमें फायदा क्या है? अगर फायदा सामने आयेगा तो मुश्किल नहीं लगेंगी। जब कोई कमजोरी आती है तब मुश्किल लगता है। यह मर्यादाएं बनाने वाला कौन है, किसने बनाई है? बाप ने बनाई है!

 

  बाप का बच्चों से बेहद का प्यार है, जिससे प्यार होता है उसके लिए हमेशा कोई भी उसकी मुश्किल होगी तो सहज की जायेगी। कोई सैलवेशन चाहिए तो ले सकते हो लेकिन मुश्किल है नहीं। जो निमित्त बने हैं, उनसे स्पष्ट बोलो, अपने दिल का भाव सुनाओ फिर अगर राइट होगा तो उसी प्रमाण सैलवेशन मिलेगी। क्योकि जिसे आप समझते हो कि यह होना चाहिए और वह नहीं होता तो मुश्किल लगता है लेकिन जिसे आप समझते हो - होना चाहिए, उससे कितना फायदा, कितना नुकशान है - वह बाप और अनुभवी आत्माएं ज्यादा जानती हैं। जहां प्यार होता है वहां कुछ मुश्किल नहीं होता है। और बापदादा ऐसी बात तो कहेंगे नहीं जिससे बच्चों का कोई नुकसान हो, इसलिए ये मर्यादाएं भी बाप का प्यार है, क्योंकि इसमें चलने से शक्ति आती है, सेफ रहते हो और खुशी होती है। बापदाद जानते हैं - आस्ट्रेलिया के बच्चे मैजारिटी पुराने, अनुभवी और मजबूत हैं। इसलिए जो मजबूत हैं, उसे सदा ही सहज अनुभव होता है।

 

  अगर शक्तियां आगे बढ़ती है तो पांडवों को खुशी होती है ना? किसको आगे बढ़ाना इसमें स्वयं को आगे बढ़ाना समाया हुआ है। जो सब बातों में विन करता है वह वन है। फलक से कहो 'हम नहीं विजयी होंगे तो कौन होगा!' भले दूसरे आयें लेकिन आप तो हो ना? सदा विजयी बन आगे बढ़ने और औरों को आगे बढ़ाने के वरदानी हो। बापदादा देखते हैं कि अच्छा औरों के लिए एग्जाम्पुल बने हुए हैं। एक-दो के प्रत्यक्ष जीवन को देखकर दूसरों में भी हिम्मत आ जाती है। तो यह सेवा भी बहुत श्रेष्ठ है। अपनी जीवन को सदा ही संतुष्ट और खुशनुमा बनाने वाले हर कदम में सेवा करते हैं। वाणी द्वारा तो सेवा करते रहेंगे, लेकिन वाणी के साथ-साथ अपने चेहरे और चलन से निरंतर सेवा करते रहना। जो भी संपर्क में आये, उसके दिल से स्वत: ही वाह-वाह के गीत निकलें।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧   आँर्डर हो कि मास्टर रचयिता बन अपनी रचना को शुभ भावना से व शुभ चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण सन्तुष्ट करो तथा महादानी और वरदानी बनो तो क्या सर्व को सन्तुष्ट कर सकते हो? या कोई सन्तुष्ट हैंगे और कोई वंचित रह जवेंगे?

 

✧  सर्व शक्तियों के भण्डारे से क्या स्वयं को भरपूर अनुभव करते हो? क्या सर्व शस्त्र आपके सदा साथ रहते हैं? सर्व शस्त्र अर्थात सर्व शक्तियाँ।

 

✧  अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है, तो क्या वह एवररेडी कहला सकेंगे? जैसे बाप एवरेडी अर्थात सर्व शक्तियों से सम्पन्न हैं, तो क्या वैसे फाँलो फादर हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बाप बच्चों की माला सुमरते हैं। माला सुमरने में नम्बर वन कौन आयेंगे? जो न्यारे अथवा समान होंगे। ऐसे नहीं - हम तो पीछे आये हैं हमको कोई जानते नहीं है। बाप तो सब बच्चों को जानते है। इसलिए प्यारा बनने का आधार न्यारा बनना है - यह पक्का करो। इसी पहले पाठ के पेपर में फुल माकर्स मिलने हैं। इसलिए चेक करो - चल रहा हूँ, बोल रहा हूँ जो भी कर रहा हूँ वह करते हुए, कराने वाला बन करके करा रहे हैं। आत्मा कराने वाली है और कर्मेन्द्रियां करने वाली हैं। इसी पाठ को पक्का करने से सदा सर्व खजाने के मालिकपन का नशा रहेगा। कोई अप्राप्त वस्तु अनुभव नहीं होगी। बाप मिला, सब मिला। सिर्फ कहने मात्र नहीं - उसे सर्व प्राप्ति का अनुभव होगा, सदा, खुशी, शान्ति, आनन्द में मग्न रहेगा। 'मिल गया, पा लिया' - यही नशा रहेगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बेहद का बाप हमारा बाप, टीचर, सतगुरु है"

 

_ ➳  मैं नन्हा फ़रिश्ता मधुबन के बगीचे में बाबा के साथ लुका-छिपी का खेल खेलता हुआ आनंद ले रहा हूँ... कभी मैं छिप जाता, बाबा मुझे ढूंढते... कभी बाबा छिप जाते , मैं उन्हें ढूंढता... बाबा को ढूंढते-ढूंढते एक मधुर मुरली की गूंज सुनाई देती है... मैं नन्हा फ़रिश्ता उस धुन के पीछे-पीछे चल पड़ता हूँ और पहुँच जाता हूँ हिस्ट्री हाल... जहाँ बाबा शिक्षक बन मुरली बजा रहे हैं... फिर सतगुरु बन मनमनाभव का मन्त्र देकर अपनी यादों में समा लेते हैं... तीनों रूपों में बाबा को देख मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ... और बाबा से ज्ञान वर्षा की सौगात लेता हूँ...

 

  मेरे जीवन को खुशनुमा, खुशबूदार बनाकर मुझे खुशनसीब बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर की खोज में दर दर कितना भटके हो... जितना भटके हो उतना ही उलझे हो... अब सच्चा पिता सच्चा टीचर सच्चा सतगुरु सहज ही सम्मुख है... तो अब व्यर्थ समय सांसो को न गंवाकर सच्ची यादो में खो जाओ... हर पल सच्ची कमाई में जुट जाओ...

 

_ ➳  बाप, टीचर, सतगुरु के रूप में भगवान को पाकर खुशियों में झूमते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब भटकन से दूर होकर सत्य भरी बाँहों में आनन्द के झूले में हूँ... देहधारियों से मुक्त होकर सच्चे सतगुरु को पा ली हूँ... प्यारा बाबा मुझे मिल गया है जीवन आनन्द से खिल उठा है... पाना था वो पा लिया है...

 

  अविनाशी प्रेम से सिक्त कर अविनाशी सुखों की महारानी बनाते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:- मीठे प्यारे लाडले बच्चे... एक पिता में सब कुछ प्राप्त कर रहे हो... बच्चों को हर भटकन से मुक्त कराकर सच्चा पिता जीवन में आ गया है... फूलो सी गोद में बिठाकर, ज्ञान रत्नों से सजाकर, सतयुगी सुखो में खिलायेगा,... ऐसे मीठे पिता को सांसो में बसा लो... सच्ची कमाई से दामन सदा का सजा लो...

 

_ ➳  परमात्म प्रेम के स्वर्णिम झूले में झूलती हुई प्रेम रस का पान करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे से भाग्य से भरी हूँ... देहधारियों के पीछे लटककर सांसे खपाने वाली... आज ईश्वर पिता को पाने वाली महान आत्मा बन गई हूँ... स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहा है... कितना प्यारा और शानदार मेरा यह भाग्य हो गया है...

 

  अपने स्नेहमयी आगोश में समाकर अपना दीवाना बनाते हुए मेरी बगिया को सुन्दर सजाने वाले प्यारे बाबा कहते हैं:- प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना सहज,कितना सरल, कितने साधारण रूप में भगवान मिला है... बच्चे अब एक तिनका भी तकलीफ न उठाये... यह भाव लिए सच्चा पिता जीवन में आ गया है... सच्चे प्यार की महक लिए, ज्ञान रत्नों की खान लिए, सुखो भरे आलिशान महल लिए विश्व पिता धरा पर उतर गया है... इस मीठे नशे से भर जाओ और सच्ची यादो में झूम जाओ...

 

_ ➳  बाबा के असीम प्यार और अमूल्य शिक्षाओं से अविनाशी भाग्य बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे पिता, सच्चे शिक्षक, सच्चे सतगुरु को पाकर अपने मीठे भाग्य की मुरीद हूँ... कन्दराओं में,गुफाओ में, मनुष्यो में जिसे खोज रही थी... वह मीठा बाबा आज मेरे दिल में धड़कन बन समाया है... और मै आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल हो गई हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  कलियुगी लोक लाज कुल की मर्यादा छोड़ ईश्वरीय कुल की मर्यादाओं को धारण करना है"

 

_ ➳  सर्व कर्मेंद्रियों से चेतनता को समेट अपने मन बुद्धि को अपने सत्य स्वरूप में टिका कर, आत्म अभिमानी बन जैसे ही अपने मीठे प्यारे शिवबाबा की याद में बैठती हूँ। ऐसा अनुभव होता है जैसे आज बाबा मुझ से कुछ विशेष रूह रिहान करने के लिए मुझे जल्दी से जल्दी अपने पास बुला रहें हों। बाबा की याद आज विशेष रूप से तीव्र गति से मुझे अपनी ओर खींच रही है और उनकी याद के आकर्षण में बंधी मैं आत्मा साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूं उनके पास।

 

_ ➳  देह और देह के सर्व बंधनों से मुक्त होकर, उड़ता पंछी बन मैं जा रही ऊपर की ओर। पांच तत्वों की बनी देह रूपी प्रकृति का कोई भी आकर्षण मुझे आकर्षित नहीं कर रहा और ना ही स्थूल प्रकृति की हलचल का कोई प्रभाव मुझ पर पड़ रहा है। मैं उन्मुक्त अवस्था मे बस ऊपर की और उड़ती जा रही हूं। इस साकारी लोक और सूक्ष्म वतन को जल्दी ही पार कर मैं पहुंच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के पास।

 

_ ➳  निराकार, महाज्योति अपने शिव पिता के सामने अब मैं ज्योति बिंदु आत्मा स्वयं को देख रही हूं। उनके सानिध्य में मैं आत्मा गहन आनन्द की अनुभूति कर रही हूं। उनसे निकल रही शक्तियों की शीतल फुहारें मन को तृप्त कर रही हैं। प्यारे मीठे बाबा को  अपलक निहारते-निहारते मैं बाबा के बिल्कुल समीप पहुंच जाती हूँ और बाबा को टच करती हूं। शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगा है। मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं।

 

_ ➳  असीम सुख की अनुभूति करके, स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न करके मैं आत्मा परमधाम से वापिस सूक्ष्म वतन में आ जाती हूं। अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर अब मैं फरिश्ता बापदादा के सम्मुख पहुंच जाता हूँ। मुझे देखते ही बाबा दौड़कर मेरे समीप आते हैं और मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं।

 

_ ➳  मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठाकर मुझसे मीठी मीठी रूह रिहान करते हुए बाबा कहते हैं, मेरे मीठे सिकीलधे बच्चे:- "लौकिक लोकलाज के लिए कभी भी ब्राह्मण कुल की लोकलाज को नही छोड़ना"। क्योकि लौकिक लोकलाज के पीछे अगर कोई ब्राह्मण कुल की लोकलाज को छोड़ते है तो सिर्फ स्वयं को नुकसान नही पहुंचाते लेकिन सारे ब्राह्मण कुल को बदनाम करने का बोझ आत्मा पर चढ़ जाता है। लौकिक लोकलाज निभा कर अल्पज्ञ आत्माओं को तो खुश कर लिया लेकिन सर्वज्ञ बाप की आज्ञा का उल्लंघन करके पाप के भागी बन जाते है।

 

_ ➳  इसलिए मेरे बच्चे ब्राह्मण लोक की भी लाज सदा स्मृति में रखो। हमेशा बुद्धि में रहे कि आप अकेले नहीं हो, बड़े कुल के हो तो श्रेष्ठ कुल की भी लाज रखो। मीठी मीठी रूहरिहान करके बाबा कहते, मेरे सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण कुलभूषण बच्चे:- "यही डायरेक्शन देने के लिए बाबा ने विशेष आपको बुलाया है"। अपने प्रति बाबा का विशेष स्नेह और प्यार देख कर मैं अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूं कि कभी भी लौकिक लोकलाज के पीछे अपने ब्राह्मण कुल की लोकलाज को नही छोडूंगी। ब्राह्मण लोक की लाज रखना मेरा पहला फर्ज है इसलिये ब्राह्मण जीवन के नियमो और मर्यादाओं को पूरी तरह निभाते हुए अपने श्रेष्ठ धर्म और कर्म पर सदा अडिग रहूँगी। इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ।

 

_ ➳  ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं को निभाते, हर कदम पर बाबा की मदद का अनुभव करते अब मैं अपने लौकिक जीवन को भी अलौकिक में परिवर्तित कर परमात्मा पालना में पलते हुए संगम युग की मौजों का आनन्द ले रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं लौकिक अलौकिक जीवन मे सदा न्यारी बन परमात्म साथ के अनुभव द्वारा नष्टोमोहा आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं विकारों रूपी सांपों को अपनी शैया बनाने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी तो सब कहलाते हो लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारियों में से ही कोई माला का नम्बरवन दाना बना, कोई लास्ट दाना बना - लेकिन हैं दोनों ही ब्रह्माकुमार-कुमारी। शूद्र जीवन सबने त्याग दी फिर भी नम्बरवन और लास्ट का अन्तर क्यों? चाहे प्रवृत्ति में रह ट्रस्टी बन चल रहे हो, चाहे प्रवृत्ति से निवृत्त हो सेवाधारी बन सदा सेवाकेन्द्र पर रहे हुए हो लेकिन दोनों ही प्रकार की ब्राह्मण आत्मायें चाहे ट्रस्टी, चाहे सेवाधारी, दोनों ही नाम एक ही ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हो। सरनेम दोनों का एक ही है लेकिन दोनों का त्याग के आधार पर भाग्य बना हुआ है। ऐसे नहीं कह सकते कि सेवाधारी बन सेवाकेन्द्र पर रहना यही श्रेष्ठ त्याग वा भाग्य है। ट्रस्टी आत्मायें भी त्याग वृत्ति द्वारा माला में अच्छा नम्बर ले सकती हैं। लेकिन सच्चे और साफ दिल वाला ट्रस्टी हो। भाग्य प्राप्त करने का दोनों को अधिकार है।

✺ "ड्रिल :- सच्चे और साफ़ दिल वाले ट्रस्टी बनकर रहना”

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना अलौकिक जन्मदिन मनाने पहुँच जाती हूँ वतन में प्यारे बाबा के पास... प्यारे बाबा ने मुझे गोद लेकर अपना बच्चा बनाया... शूद्र से ब्राह्मण बनाकर मेरा सरनेम चेंज कर दिया... अब मैं आत्मा शिववंशी प्रजापिता ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण कुलभूषण हूँ... कितना ऊँचा नाम है... कितनी ऊँची महिमा है ब्राह्मणों की... सबसे श्रेष्ठ जीवन ब्राहमण जीवन है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... प्यारे बाबा मुझे अलौकिक जन्मदिन की मुबारकबाद देते हैं... और कई वरदानों रूपी सौगातों से भरपूर करते हैं... ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों से सम्पन्न करते हैं... मैं आत्मा अपने पुराने जन्म के संस्कारों, विकारों, विकर्मों से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा अपने निजी गुणों को धारण कर रही हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा शूद्र जीवन के संस्कारों का सम्पूर्ण रूप से त्याग कर चुकी हूँ... मुझ आत्मा के मन-बुद्धि की अशुद्ता खत्म हो गई है... मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की पवित्रता, सच्चाई और सफाई को धारण कर रही हूँ... मुझ आत्मा के दिल में सबके प्रति प्रेम की भावना भर रही है... अब मैं आत्मा सर्व के प्रति बेहद की शुभ-भावना, शुभ-कामना रखती हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा निमित्त भाव से हर कर्म कर रही हूँ... मैं आत्मा तन, मन, धन सम्पूर्ण रूप से बाबा को समर्पित हो चुकी हूँ... इस पुरानी दुनिया में मेरा कुछ भी नहीं है... मैं सिर्फ ट्रस्टी हूँ... मैं आत्मा त्याग वृत्ति और निःस्वार्थ सेवा भावना द्वारा हर कर्म कर रही हूँ... सब कुछ बाबा को सौंप ट्रस्टी समझने से मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझों से मुक्त हो गई हूँ... हलकी होकर सदा उड़ते रहती हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा सच्ची और साफ़ दिल वाली ट्रस्टी बनकर माला का नम्बरवन दाना बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ... मैं आत्मा अब जरा भी अशुद्धता को ग्रहण नहीं करती हूँ... अब सदा मैं आत्मा उंच ते उंच ब्राह्मण होने की स्मृति में रहकर हर कदम में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... एक की याद में, एकरस स्थिति में रहकर मैं आत्मा एक नंबर में आने का भाग्य प्राप्त कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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