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 26 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ अपने इस ब्राह्मण कुल को कलंकित तो नहीं किया ?

 

➢➢ बाप समान निराकारी, निरहंकारी बन अपनी फ़र्ज़ अदाई पूरी की ?

 

➢➢ सेवाओं की प्रवृत्ति में रहते बीच बीच में एकांतवासी बनकर रहे ?

 

➢➢ युद्ध करने की बजाये मौज मनाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच आन करने से अंधकार भाग जाता है, ऐसे स्वमान की स्मृति का स्विच आन करो तो भिन्न-भिन्न देह-अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। सहज आत्म अभिमानी स्थिति बन जायेगी। यही स्थिति रूहानी प्यार का अनुभव करायेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं निश्चयबुद्धि विजयन्ति आत्मा हूँ"

 

✧  निश्चयबुद्धि विजयन्ती हो ना! निश्चय में कभी डगमग तो नहीं होते हो? अचल, अडोल, महावीर हो ना? महावीर की विशेषता क्या है? सदा अचल अडोल, संकल्प वा स्वन में भी व्यर्थ संकल्प न आए इसको कहा जाता है अचल, अडोल  महावीर। तो ऐसे हो ना? जो कुछ होता है-उसमें कल्याण भरा हुआ है। जिसको अभी नहीं जानते लेकिन आगे चल करके जानते जायेंगे।

 

✧  कोई भी बात एक काल की दृष्टि से नहीं देखो, त्रिकालदर्शी हो करके देखो। अब यह क्यों? अब यह क्या? ऐसे  नहीं, त्रिकालदर्शी होकर देखने से सदा यही संकल्प रहेगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण है। ऐसे ही त्रिकालदर्शी होकर चलते  हो ना? सेवा के आधारमूर्त जितने मजबूत होंगे उतनी सेवा की बिल्डिंग भी मजबूत होगी।

 

✧  जो बाबा बोले वह करते चलो, फिर बाबा जाने बाबा का काम जाने। जैसे बाबा वैसे चलो तो उसमें कल्याण भरा हुआ है। बाबा कहे ऐसे चलो, ऐसे रहो-जी हाज़िर, ऐसे क्यों? नहीं। जी हाजिर। समझा-जी हजूर वा जी हाजिर। तो सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे। रूकेगे नहीं, उड़ते रहेंगे  क्योंकि हल्के हो जायेंगे ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगा, तो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ। युद्ध नहीं करनी पडे। ,युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे।

 

✧  लास्ट घडी भी युद्ध में ही जायेगी, अगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृति में, वायुमण्डल के प्रभाव में, जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जान-बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी।

 

✧  इसलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है। कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पडेगा। जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पडता ना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  फ़रिश्ते अर्थात् बापदादा समान और सम्पन्न। आज हरेक बच्चे का डबल स्वरूप देख रहे हैं। कौन-सा डबल रूप? एक वर्तमान पुरुषार्थी स्वरूप, दूसरा वर्तमान जन्म का अन्तिम सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप। इस समय ‘हम सो, सो हम' के मन्त्र में पहले हम सो फ़रिश्ता हैं फिर भविष्य में हम सो देवता हैं। इस समय सभी का लक्ष्य पहले फ़रिश्ता स्वरूप, फिर देवता रूप है। आज वतन में, सभी बच्चों के नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार, जो अन्तिम फ़रिश्ता स्वरूप बनना है, उस रूप को इमर्ज किया। जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा दोनों के अन्तर को देखते और अनुभव करते थे कि पुरुषार्थी और सम्पूर्ण में क्या अन्तर है। ऐसे आज बच्चों के अन्तर को देख रहे थे। दृश्य बहुत अच्छा था। नीचे तपस्वी पुरुषार्थी रूप और ऊपर खड़ा हुआ फ़रिश्ता रूप। अपना-अपना रूप इमर्ज कर सकते हो? अपना सम्पूर्ण रूप दिखाई देता है? सम्पूर्ण ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्राह्मण।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप का मददगार बनना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा अमृतवेले उठ मीठे बाबा से मिलने की तमन्ना में फ़रिश्ता बन उड़ चलती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... मीठे बाबा अपनी मीठी मुस्कान से मेरा स्वागत करते हैं और अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल करते हैं... बाबा की दृष्टि से मुझ आत्मा के सूक्ष्म विकार, पुराने स्वभाव-संस्कार दैवीय गुणों में परिवर्तित होने लगे हैं... मुझ आत्मा की काया दिव्यता से चमकने लगी है... फिर प्यारे बाबा मुझे अपने साथ रूहानी सैर पर ले जाते हैं और तीनों कालों के दर्शन कराते हैं... फिर ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात करते हैं...

❉  भारत को दैवी स्वराज्य बनाने में मददगार बन श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे...  ईश्वर पिता आप बच्चों के सुखो के लिए हथेली पर स्वर्ग धरोहर लाया है... स्वर्ग के फाउंडेशन में मददगार बन सदा का सुनहरा भाग्य बनाओ... ईश्वरीय राहो पर चलकर असीम खुशियो में मुस्कराओ... श्रीमत के हाथो में हाथ देकर, सदा के सुखो में झूम जाओ..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बेहद के सर्विस में जुटकर बाबा की राईट हैण्ड बन विश्व का कल्याण करते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ... ईश्वर पिता की मदद कर, मीठा प्यारा भाग्य सजा रही हूँ... श्रीमत के साये में विकारो की कालिमा से महफूज होकर,सदा की निश्चिन्त हो गयी हूँ..."

❉  मेरे भाग्य के सितारे को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  ईश्वर पिता को खोज खोज कर थक से निकले थे कभी, आज उसकी मदद करने वाले खुबसूरत भाग्य के मालिक हो गए हो... श्रेष्ठ भाग्य को लिखने की कलम पा गए हो... और अनन्त खुशियो को बाँहों में भरकर मुस्करा रहे हो... भगवान की मदद करने वाले महान हो गए हो..."

➳ _ ➳  मीठे बाबा के प्यार के फव्वारे में खुशियों की चरमसीमा पर पहुंचकर मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी ही मदद को बेजार थी कभी... आपकी मदद को हर पल तरस रही थी... आज आपका सारा प्यार आँचल में भरकर मुस्करा रही हूँ... मीठे बाबा भाग्य से युँ सम्मुख पाकर आपके प्यार में बावरी हो गयी हूँ... और असीम खुशियो में नाच रही हूँ..."

❉  काँटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाकर रूहानी फूलों का गुलदस्ता तैयार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता की श्रीमत पर चलकर जीवन को नये आयामो पर पहुँचाओ... मनुष्य मत ने कितना निस्तेज और बेहाल किया है... अब श्रीमत के हाथो में पलकर फूलो सा खिलखिलाओ... दिव्य गुणो से सज संवर कर देवताई सौभाग्य को पाओ... सदा खुशियो में गुनगुनाओ..."

➳ _ ➳  करावनहार के हाथों को थाम श्रीमत के मार्ग पर चलते हुए मंजिल के समीप पहुंचती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अदनी सी, भगवान की कभी मददगार बनूंगी, ऐसा तो मीठे बाबा ख्वाबो में भी न सोचा था... आज आपकी मदद का भाग्य पाकर, सतयुगी सुखो का हक पा रही हूँ... श्रीमत का हाथ और ईश्वरीय प्यार पाकर, अपना भाग्य शानदार बना रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  बाप समान निराकारी, निरहंकारी बन अपनी फर्ज - अदाई पूरी करनी है

➳ _ ➳  अपने प्यारे बाबा के मीठे मधुर महावाक्यों को पढ़ते हुए मैं विचार करती हूँ कि कितने निरहंकारी है बाबा। कैसे हम बच्चों की गुप्त रीति पालना कर रहें हैं! कितना सम्मान देते हैं हमे! सब कुछ खुद कर रहें हैं और मान हम बच्चों को देते हैं! रोज मीठे बच्चे कहकर याद प्यार देते हैं, बच्चो को नमस्ते करते हैं। वाह मेरा भाग्य वाह जो ऐसे ईश्वर बाप की पालना में पलने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य मुझे प्राप्य हुआ। अपना असीम स्नेह बरसाने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद की मीठी सी मस्ती में डूबी मैं आत्मा मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर अब पहुँच जाती हूँ अपने उस मीठे से मधुबन घर में जहाँ भगवान स्वयं आकर अपने बच्चों के साथ उनके जैसा साकार रूप धारण करके उनसे मिलते हैं, उनसे रूह रिहान करते हैं और उनसे मंगल मिलन मनाकर, अपना प्यार उन पर बरसा कर वापिस अपने धाम लौट जाते हैं।

➳ _ ➳  परमात्मा की इस दिव्य अवतरण भूमि अपने मीठे मधुबन घर में पहुंचते ही हवाओं में फैली रूहानी खुशबू को मैं महसूस कर रही हूँ। अपने इस घर के आंगन मे प्रवेश करते ही मैं देखती हूँ सामने ब्रह्मा बाबा के एक बहुत बड़े चित्र को जिसमे बाबा बाहें पसारे अपने बच्चों के स्वागत में खड़े हैं। अपने इस साकार रथ पर विराजमान होकर भगवान कैसे अपने बच्चों का आह्वान करते हैं यह देखकर मन में खुशी की लहर दौड़ रही है और मन खुशी में गा रहा है "वाह बाबा वाह"। अपने इस मीठे मधुबन घर मे आकर अब मैं देख रही हूँ यहाँ के कण - कण में समाई ब्रह्मा बाबा की साकार यादों को जिन्हें उनके हर कर्म के यादगार चित्रों के रूप में चित्रित किया गया है।

➳ _ ➳  हर चित्र में कर्म करते हुए बाबा का स्वरूप कितना न्यारा और प्यारा दिखाई दे रहा है। उनके ओरिजनल निराकारी स्वरुप की दिव्य चमक और निरहंकारिता की झलक उनके हर चित्र में मैं देख रही हूँ और उन चित्रों को देखते हुए उसी साकार पालना का अनुभव कर रही हूँ। बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प करके अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ बाबा के कमरे में जहाँ बाबा बैठे है अपने हर बच्चे को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने के लिए। बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने बैठ, बाबा को निहारते - निहारते मैं महसूस करती हूँ जैसे अपने लाइट माइट स्वरुप में मेरे सामने बैठ कर बाबा अपनी सारी लाइट माइट मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहें हैं।

➳ _ ➳  अपने लाइट माइट फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर मैं देख रही हूँ जैसे बाबा की भृकुटि से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर पूरे कमरे में फैल रही हैं और पूरा कमरा एक अलौकिक दिव्य आभा से जगमगा रहा है। इन दिव्य अलौकिक किरणों को स्वयं में समा कर मैं गहन आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा के मस्तक से निकल रही शक्तियों की धारायें और भी तीव्र होती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे ऊपर शक्तियों का कोई झरना बह रहा हो। रूहानी मस्ती में खो कर शक्तियों की इन किरणों को स्वयं में समाते हुए मैं स्वयं को बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करके, ब्रह्मा बाप समान निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी बनने का दृढ़ संकल्प करके मैं बापदादा से प्रोमिस करती हूँ कि जैसे ब्रह्मा बाप निराकारी सो साकारी बन सदा सर्व से न्यारे और शिव बाप के प्यारे बन कर रहे, वाणी से सदा निरहंकारी अर्थात् सदा रूहानी मधुरता और निर्मानता से भरपूर रहे और कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात् प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सदा सम्पन्न रहे ऐसा पुरुषार्थ ही अब मुझे करना है और बाप समान सम्पन्न बनना है। स्वयं से और बाबा से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे वरदान देकर, मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने की शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने का बल मेरे अंदर भरकर बाबा जैसे फिर से अपने उसी स्वरूप में स्थित हो गए है।

➳ _ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं भी अब फिर से अपनी कर्मभूमि पर लौट आई हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखते हुए, बाप समान निराकारी और निरहंकारी बनने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सेवाओं की प्रवृति में रहते बीच - बीच मे एकान्तवासी बनने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं अन्तर्मुखी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में युद्ध करने से सदा मुक्त हूँ  ।
✺   मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन में सदा मौज मनाती हूँ  ।
✺   मैं मुश्किल को सहज बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. बापदादा फिर भी मार्जिन देते हैं कि कम से कम इन 6 मास मेंजो बापदादा ने पहले भी सुनाया है और अगले सीझन में भी काम दिया थाकि अपने को जीवनमुक्त स्थिति के अनुभव में लाओ। सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज। कोई भी विघ्न, परिस्थितियाँसाधन वा मैं और मेरापनमैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस की सेवा का, इन सबके प्रभाव से मुक्त रहना। ऐसे नहीं कहना कि मैं तो मुक्त रहने चाहता था लेकिन यह विघ्न आ गया नायह बात ही बहुत बड़ी हो गई ना। छोटी बात तो चल जाती हैयह बहुत बड़ी बात थीयह बहुत बड़ा पेपर था, बड़ा विघ्न थाबड़ी परिस्थिति थी। कितनी भी बड़े ते बड़ी परिस्थिति, विघ्नसाधनों की आकर्षण सामना करेंसामना करेगी यह पहले ही बता देते हैं लेकिन कम से कम मास में 75 परसेन्ट मुक्त हो सकता है?

 

 _ ➳  2. शेर भी आयेगा, बिल्ली भी आयेगीसब आयेंगे। विघ्न भी आयेगा, परिस्थितियाँ भी आयेंगी, साधन भी बढ़ेंगे लेकिन साधन के प्रभाव से मुक्त रहना।

 

 _ ➳  3. यह नहीं कहना हमको तो बहुत मरना पड़ेगामरो या जीओ लेकिन बनना है। यह मरना मीठा मरना है, इस मरने में दुःख नहीं होता है। यह मरना अनेकों के कल्याण के लिए मरना है। इसीलिए इस मरने में मजा है। दुःख नहीं हैसुख है। कोई बहाना नहीं करनायह हो गया ना। इसीलिए हो गया। बहाने बाजी नहीं चलेगी। बहाने बाजी करेंगे क्यानहीं करेंगे ना! उड़ती कला की बाजी करना और कोई बाजी नहीं। गिरती कला की बाजी, बहाने बाजीकमजोरी की बाजी यह सब समाप्त। उड़ती कला की बाजी। ठीक है ना। सबके चेहरे तो खिल गये हैं। जब 6 मास के बाद मिलने आयेंगे तो कैसे चेहरे होंगे। तब भी फोटो निकालेंगे। 

 

✺   ड्रिल :-  "संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं इस संगमयुग की स्थिति के सर्व श्रेष्ठ आसन... नॉलेजफुल स्टेज पर स्थित विद्या की देवी सरस्वती... सफेद वस्त्रधारी जिसमे श्वेत रंग मेरी पवित्रता का प्रतीक है... ज्ञान की वीणा सदा बजाते रहने वाली अर्थात सदा सेवाधारी रहने वाली... सदा शुद्ध संकल्प का भोजन बुद्धि द्वारा ग्रहण करने वाली... सदा की सर्व आत्माओं द्वारा वा रचना द्वारा गुण धारण करने वाली... अर्थात मोती चुगने वाले हंस के आसन पर सूक्ष्मवतन में स्थित हूँ... सूक्ष्मवतन से नीचे बापदादा मुझे भेज रहे है अपने सेवा स्थान पर... मीठे बापदादा से विदाई लेकर... धीरे धीरे मैं अपने वाहन पर स्थित होकर स्थूलवतन में प्रवेश करती हूँ... बडे़ ही उमंग और उत्साह के साथ मैं अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही हूँ... धीरे धीरे... यहाँ मेरे सामने अनेक विघ्न... परिस्थितियाँ... साधन आते जा रहे है...

 

 _ ➳  मैं और मेरापन... भी पीछे नहीं हैं... मैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस सेवा का दिखाई दे रहा हैं... इन सबके प्रभाव के सूक्ष्म धागो से बंधी हुई मैं स्वयं को पाती हूँ... अनेक बार मुक्त रहना चाहने पर भी विघ्न आते जा रहे है... छोटी बड़ी बातें भी आ रही है... मुझे बापदादा के कहे हुए शब्द याद आ रहे है की बहुत बड़े ते बड़ी परिस्थितियां और विघ्न आएंगे ही... साधनों के आकर्षण सामना करेंगे ही... साथ ही साथ मुझे यह भी याद आ रहा है कि बापदादा ने मुझे कम से कम 6 मास की मार्जिन देते हुए भी कहा था की जीवन मुक्त स्थिति को अनुभव में लाना है... सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज को अनुभव में लाना है... जैसे जैसे आगे बढती जा रही हूँ वैसे वैसे बापदादा के कहने के अनुसार शेर भी आ रहा है और बिल्ली भी आ रही है... विध्न भी बढ़ रहे है... परिस्थितियाँ भी बढ़ रही है... साधन भी बढ़ रहे हैं...

 

 _ ➳  लेकिन इन सब प्रभावो से मुक्त रहने का मेरा लक्ष्य अभी भी बरकरार है... जैसे जैसे और ही आगे बढती जा रही हूँ तो लग रहा है कही पर तो कमी है... वो कमी यह है की मैं आत्मा अभी भी पूरी तरह से मरी नहीं... अभी भी मैं आधी अधूरी जिंदा हूँ... मुझे संपूर्ण मरना है... मरना है पुराने संस्कारों से... मरना है शुद्रपने से... मरना है देह अभिमान से... बापदादा सूक्ष्मवतन से मुझे निहार रहे है... मुझ आत्मा को इस स्थिति में देख वो अपना धाम छोडकर मेरे पास आ रहे है... मेरे पास आकर मुझ पर अपने हाथो से सफेद मोतियों की बारिश कर रहे हैं... उनका अनुपम तेज भी मुझमे समाता जा रहा है... इन मोतियों की बारिश की अनुभूति मेरे पूरे सूक्ष्म शरीर में हो रही है... इन सफेद पवित्र मोतियों की वर्सा होते ही अंदर से कमी कमजोरियां छोटे छोटे कंकड़ और रेत के रूप में बाहर निकलती जा रही है...

 

 _ ➳  जैसे ही कंकड़ और रेत के रूप में कमी और कमजोरियां बाहर निकलती जा रही हैं... मुझे निर्विध्न स्थिति की अनुभूति हो रही है... मुझे परिस्थितियाँ जो पहाड़ दिख रही थी वो तो रूई के समान दिखने लगी है... ऐसा लग रहा है की मानो वो है ही नहीं... इस पवित्र मोतियों की बारिश ने मुझे पूरा ही शुद्रपने से मार दिया... देह अभिमान से मैं पूरी तरह मर चुकी हूँ... साधनो की आकर्षण होती क्या है इसकी मुझे अविद्या हो चुकी है... बाडीकान्सेस का 'मैं' खतम होकर संपूर्ण और संपन्न आत्मा का 'मैं' इमर्ज हो चुका है... सेवा के बाडीकान्सेस 'मेरे' की जगह सब कुछ तेरा अर्थात बाबा का अनुभव हो रहा हैं... शेर और बिल्ली भी पेपर के प्रतीत हो रहे है... ये जो स्थिति है इसमे मैं विकारों की विद्या से संपूर्ण अनभिज्ञ हूँ... इस कारण मुझे संगमयुग में जीवन मुक्ति की अनुभूति हो रही हैं... चेहरा रूहानी चमक से भरपूर हो गया है... मेरा यह जो मीठा मरना है उसमें कोई दुःख अनुभव नहीं हो रहा है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा जहाँ पर भी जाती हूँ, वहाँ सबका कल्याण ही कल्याण हो रहा है... सबके दुःख, दर्द, पीडा़, तकलीफ मिटते जा रहे है... सबको अतिइन्द्रिय सुख की अनुभूति हो रही हैं... क्योंकि मैं आत्मा जिस किसी आत्मा के संबंध संपर्क में आती हूँ उन सभी को वही जीवनमुक्त अवस्था की अनुभूति हो रही है जो मैं कर रही हूँ... अब सारे बहाने खतम हो गए... की यह हो गया... इसलिए हो गया... यह बहाने बाजी की बातें ही खतम हो गई... गिरती कला की बाजी, बहाने बाजीकमजोरी की बाजी यह सब समाप्त... निरंतर उड़ती कला की बाजी शुरू हो गई है... चारो ओर सुख ही सुख, आनंद ही आनंद का मौसम छाया है... ऐसी कर्मातीत अवस्था और ऐसी जीवन मुक्त स्थिति की अनुभूति जिसमे शांति ही धर्म है... प्रेम ही भाषा है... एकता ही संस्कृति है... और सुख ही जीवन जीने की कला है... मेरे इस अनुभव से चेहरा एकदम खिल उठ़ा है... सारी आत्माएं मन ही मन मुझे शुक्रिया अदा कर रही है और मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बापदादा को ढेर सारा शुक्रिया कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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