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 24 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ योगबल से अच्छे संस्कार धारण किये ?

 

➢➢ किसी भी बात में मूंझे तो नहीं ?

 

➢➢ स्वमान की सीट पर स्थित हो शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाया ?

 

➢➢ "सफलता मुझ ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ जन्म सिद्ध अधिकार है" - यह स्मृति इमर्ज की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अगर सेकण्ड में विदेही बनने का अभ्यास नहीं होगा तो लास्ट घड़ी भी युद्ध में ही जायेगी और जिस बात में कमजोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृत्ति में, वायुमंडल के प्रभाव में, जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जान बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी इसीलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं विशेष आत्मा हूँ"

 

  अपने को विशेष आत्मायें समझते हो? विशेष आत्मा विशेष कार्य के निमित्त हैं और विशेषतायें दिखानी हैं - ऐसे सदा स्मृति में रहे। विशेष स्मृति साधारण स्मृति को भी शक्तिशाली बना देती है। व्यर्थ को भी समाप्त कर देती है। तो सदा यह 'विशेष' शब्द याद रखना।

 

  बोलना भी विशेष, देखना भी विशेष, करना भी विशेष, सोचना भी विशेष। हर बात में यह विशेष शब्द लाने से स्वत: ही बदल जायेंगे और इसी स्मृति से स्व-परिवर्तन तथा विश्व-परिवर्तन सहज हो जायेगा।

 

  हर बात में विशेष शब्द ऐड करते जाना। इसी से जो सम्पूर्णता को प्राप्त करने का लक्ष्य है, मंजिल है उसको प्राप्त कर लेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आज मुरलीधर बाप अपने मास्टर मुरलीधर बच्चों को देख रहे हैं। सभी बच्चे मुरली और मिलन के चात्रक हैं। ऐसे चात्रक सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के और कोई हो नहीं सकता। यह ज्ञान मुरली और परमात्म मिलन न्यारा और प्यारा है। दुनिया की अनेक आत्मायें परमात्म मिलन की प्यासी हैं, इन्तजार में हैं।

 

✧  लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें दुनिया के कोन में गुप्त रूप में अपना श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त कर रहे हो क्योंकि दिव्य बाप को जानने अथवा देखने के लिए दिव्य बुद्धि और दिव्य दृष्टि चाहिए जो बाप ने आप विशेष आत्माओं को दी है इसलिए आप ब्राह्मण ही जान सकते और मिलन माना सकते हो।

 

✧  दुनिया वाले तो पुकारते रहते - एक बूंद के प्यासे हम' और आप क्या कहते हो - हम वर्से के अधिकारी हैं, कितना अन्तर है - कहाँ प्यासी और कहाँ अधिकारी: अभी भी सभी अधिकारी बनकर अधिकार से आकर पहुँचे हो। दिल में यह नशा है कि हम अपने बाप के घर में अथवा अपने घर में आये हो। ऐसे नहीं कहेंगे कि हम आश्रम में आये हैं। अपने घर में आये हैं - ऐसे समझते हो ना?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ इसीलिए अलबेले मत बनना, रिवाइज करो। बार-बार रिवाइज करो। क्यों भूल जाते हो? जब कोई काम शुरू करते हो ना तो बहुत अच्छा सोचते हो - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, ये भी आत्मा है, आत्मा शरीर से ये काम करा रही है, शुरू ऐसे करते हो। लेकिन काम करते-करते आत्मा मर्ज हो जाती है। आप जो काम करते हो, उसमें हाथ तो चलता ही है लेकिन मन-बुद्धि सहित अपने को बिजी कर देते हो। भल बॉडी-कान्सेज कम होते हो लेकिन एक्शन कॉन्सेज ज्यादा हो जाते हो। फिर कहते हो बाबा मेरे से कुछ गलती नहीं हुई, मैंने किसको कुछ नहीं कहा, लेकिन बापदादा कहते हैं कि मानो आप बॉडी कान्सेस नहीं हो, एक्शन कान्सेस हो और उसी समय कुछ हो जाये तो रिजल्ट क्या होगी? सोल कान्सेज जितना तो नहीं मिलेगा। तो इसकी विधि है बार-बार रिवाइज करो, बार-बार चेक करो। जब काम पूरा होता है फिर आप सोचते हो, लेकिन नहीं, जब तक नेचरल सोल कान्सेज हो जाओ तब तक ये सहज विधि है बार-बार रिवाइज करना। रिवाइज करेंगे तो जो पीछे सोचना पड़ता है वो नहीं होगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- योगबल से बुरे संस्कारों को परिवर्तन करना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा सबेरे-सबेरे बगीचे की सैर करते हुए प्रकृति के सौन्दर्य को निहार रही हूँ... ठंडी-ठंडी हवाएं फूलों की खुशबू को पूरे बगीचे में फैला रही हैं... आम के पेड़ पर बैठी कोयल कुहू-कुहू करती मेरे स्वागत में मीठे गीत गा रही है... मेरे मन को लुभा रही है... एक छोटे से बीज से उत्पन्न ये पेड़ कितने बड़े हो गए हैं... इनको देख बीज रूपी परमात्मा और सृष्टि रूपी झाड़ स्मृति में आ जाते हैं... तुरंत मैं आत्मा उड़ चलती हूँ, परमधाम... बीजरूप बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से दिव्य शक्तिशाली किरणें निकल मुझ आत्मा पर पड़ती जा रही हैं... और मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं... फिर मैं आत्मा बिंदु, बिंदु बाबा के साथ सूक्ष्मवतन में आ जाती हूँ... ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर शिवबाबा विराजमान हो जाते हैं और मैं फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर उनसे प्यारी शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...

❉ ज्ञान और योगबल से विकर्मो को भस्म कर श्रेष्ठ कर्मो के लिए श्रीमत देते हुए ज्ञान के सागर मेरे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को दुखो में कितना पुकारा है... अब जो भगवान इतना सहज मिला है, तो श्रीमत पर चलकर अपने कर्मो को खुबसूरत बनाओ... यादो की खुमारी में खोकर अपने विकर्मो को खत्म कर, जमा का खाता बढ़ाओ... सच्चे प्रेम को हर घड़ी जीने वाले ईश्वरीय प्रेम के पर्याय बन जाओ..."

➳ _ ➳ अमूल्य ज्ञान रत्नों से मेरे भाग्य को अमूल्य बनाने वाले प्राण प्यारे बाबा को मैं भाग्यशाली आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की दुनिया में कितनी कर्म भ्रष्ट हो गयी थी... आपने श्रेष्ठ दिव्य कर्मो से मेरा जीवन सुगन्धित किया है... आपने देह में धूल धूसरित सी मुझ आत्मा को अपने दिल में सजाकर... अमूल्य मणि बना दिया है...”

❉ यादों के इंद्रधनुषी किरणों से मुझे एवरहेल्दी, एवर वेल्दी बनाते हुए सुख के सागर मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में इस कदर डूब जाओ कि विकर्मो की कालिमा सहज निकल जाये... और श्रीमत के हाथ को पकड़ देह के दलदल से सहज बाहर निकल... अपनी दिव्य सुंदरता से सज जाओ... मीठे बाबा की सुखदायी यादो में अनन्त सुखो से भर जाओ...”

➳ _ ➳ अनंत खुशियों के खजानों से मालामाल होकर दिव्यता से श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सारे किये विकर्मो से मुक्त होकर फूलो जैसी खिलती जा रही हूँ... पुण्यो का खाता बढ़ाकर भीतर की सुंदरता को हर पल निखार रही हूँ... आपकी यादो में सम्पूर्ण पवित्रता से सजधज कर सतयुगी स्वर्ग में आ रही हूँ...”

❉ अपने स्नेह भरी नजरों से मुझे निहाल कर विश्व का मालिक बनाते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय मत पर चलकर जीवन खुशियो से महकाओ... ईश्वर पिता की यादो में सारे पापो को खत्म कर... अपने तेजस्वी रूप को पुनः पाकर ईश्वरीय दिल में बस जाओ... एक के अंत में खो जाओ... और विश्व पिता से विश्व का राजभाग्य पाने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा पुराने सारे खाते खत्म कर नया पुण्य का खाता जमा कर नया भाग्य बनाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खूबसूरत भाग्य की धनी सी... ईश्वरीय बाँहो में मुस्करा रही हूँ... मुझे प्यार करने, सच्ची राहो पर ऊँगली पकड़ चलाने, ईश्वरीय दौलत से दामन सजाने भगवान धरा पर उतर आया है... मै आत्मा दिव्य मणि सी चमक रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बेहद सुख का वर्सा प्राप्त करने के लिए मनसा-वाचा-कर्मणा पवित्र जरूर बनना है"

➳ _ ➳ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने ब्राह्मण जीवन में धारण कर, उनके समान बनने का लक्ष्य अपने सामने लाते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मैं ब्राह्मण आत्मा ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि, और अपने प्राण प्रिय परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अवतरण भूमि मधुबन में हूँ। स्वयं को मैं साकार ब्रह्मा बाबा के सामने देख रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और कर्म से बाबा सबको सुख दे कर, सबको परमात्म पालना का अनुभव करवा रहे हैं। सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा की पालना में पलते हुए अपने ईश्वरीय जीवन का भरपूर आनन्द ले रहे हैं और फॉलो फादर कर बाप समान बनने का पुरुषार्थ भी कर रहें हैं।

➳ _ ➳ साकार बाबा की साकार पालना का यह खूबसूरत एहसास मुझे अव्यक्त बापदादा की याद दिला रहा है। उनसे मिलने के लिए मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि बाबा अपना धाम छोड़कर मुझ से मिलने के लिए नीचे आ रहें हैं। अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए परमधाम से नीचे उतरते, ज्ञान सूर्य अपने प्यारे बाबा को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। सूक्ष्म वतन में पहुँच कर शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सम्पूर्ण आकारी शरीर मे प्रवेश करते हैं और उनकी भृकुटि पर विराजमान हो कर अब नीचे साकार लोक में पहुँच कर मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं। बाबा के मस्तक से आती तेज लाइट को मैं अपने चारों और देख रही हूँ। यह लाइट मुझे सहज ही लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रही है।

➳ _ ➳ चारों ओर चांदनी सा सफेद प्रकाश फैलता जा रहा है। बापदादा अपना निस्वार्थ प्रेम और स्नेह अपनी अनन्त किरणो के रूप में मुझ पर बरसा रहें हैं। बाबा के निस्वार्थ प्यार की अनन्त किरणे और सर्वशक्तियां मेरे अंदर गहराई तक समाती जा रही हैं। उनकी पावन दृष्टि से पवित्रता का झरना बह रहा है जिससे निकल रही पवित्र फुहारें मुझ पर बरस रही हैं और मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रही हैं। यह पवित्रता का बल मुझे डबल लाइट बना रहा है। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा मुझे आप समान "मास्टर सुख दाता" भव का वरदान दे कर वापिस अपने अव्यक्त वतन की ओर लौट रहें हैं।

➳ _ ➳ बापदादा से मिले वरदान को फलीभूत करने के लिए मैं सुख का फ़रिश्ता बन सारे विश्व मे चक्कर लगाकर, विश्व की तड़पती हुई दुखी अशांत आत्माओं को सुख की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ। एक बहुत ऊंचे और खुले स्थान पर जाकर मैं फरिश्ता बैठ जाता हूँ और अपने सुख सागर परमपिता परमात्मा शिव बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ कर उनसे सुख की शक्तिशाली किरणे लेकर सारे विश्व में सुख के वायब्रेशन फैलाने लगता हूँ। अपनी श्रेष्ठ सुख दाई मनसा शक्ति से विश्व की सर्व आत्माओ को सुख प्रदान कर, अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो स्वरूपों से सबको सुख देने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण स्वरूप में आकर स्थित हो जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा अपनी सम्पूर्ण सुख स्वरूप अवस्था बनाने के लिए हर कर्म अपने प्राण प्रिय सुख सागर शिव बाबा की याद मे रहकर करती हूँ। चलते फिरते बुद्धि का योग केवल अपने शिवपिता के साथ जोड़ कर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर मैं सम्पूर्ण अटेंशन देती हूँ। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं मनसा - वाचा - कर्मणा सुख दे कर अपने प्यारे बाबा और समस्त ब्राह्मण परिवार की दुआयों की पात्र बन, दुआयों की लिफ्ट पर बैठ, बाप समान बनने के अपने संपूर्णता के लक्ष्य को प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ अब निरन्तर और अति सहज रीति कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं स्वमान की सीट पर स्थित हो शक्त्तियो को आर्डर प्रमाण चलाने वाली विशाल बुद्धि आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ 'सफलता मुझ श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा का जन्मसिद्ध अधिकार है'- मैं कोई भी कार्य शुरू करने के पहले विशेष यह स्मृति इमर्ज करने वाली श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आज भाग्य विधाता बाप अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य की रेखायें देखदेख भाग्य विधाता बाप भी हर्षित होते हैं क्योंकि सारे कल्प में चक्र लगाओ तो आप जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी धर्म आत्मा, महान आत्माराज्य अधिकारी आत्माकिसी का भी इतना बड़ा भाग्य नहीं हैजितना आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का है। मस्तक से अपने भाग्य की रेखाओं को देखते होबापदादा हर एक बच्चों के मस्तक में चमकती हुई ज्योति की श्रेष्ठ रेखा देख रहे हैं। आप सभी भी अपनी रेखायें देख रहे हो? नयनों में देखो तो स्नेह और शक्ति की रेखायें स्पष्ट हैं। मुख में देखो मधुर श्रेष्ठ वाणी की रेखायें चमक रही हैं। होठों पर देखो रूहानी मुस्कानरूहानी खुशी की झलक की रेखा दिखाई दे रही है। हृदय में देखो वा दिल में देखो तो दिलाराम के लव में लवलीन रहने की रेखा स्पष्ट है। हाथों में देखो दोनों ही हाथ सर्व खजानों से सम्पन्न होने की रेखा देखो, पांवों में देखो हर कदम में पदम की प्राप्ति की रेखा स्पष्ट है। कितना बड़ा भाग्य है!     

 

✺   ड्रिल :-  "अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखाओं को देख श्रेष्ठ भाग्यवान होने का अनुभव करना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा की याद में बैठी हूँ इस शरीर के भान से मुक्त हो, अपने चारों ओर के वातावरण से, देह के संबंधों से स्वयं को बुद्धि से मुक्त कर बाबा की याद में खो जाती हूँ... और इस देह के बंधन को छोड़, इस साकारी दुनिया को छोड़ बाबा के पास उड़ जाती हूँ... बाबा को देखते ही मेरे नयनों में प्रेम के आँसू छलक आते हैं और अपने भाग्य पर नाज़ होता है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ जो लाखों करोड़ों आत्माओं में से बाबा ने मुझे चुना है... मेरा भटकना बंद हो गया... ये  संसार की आत्माएं आपको पाने के लिए कितने प्रयत्न करती हैं कितने जप तप तीर्थ व्रत करती हैं परंतु फिर भी आपको पा नहीं पाती और मेरा कितना श्रेष्ठ भाग्य आप भाग्य विधाता बाप ने बना दिया है...

 

 _ ➳  इस संसार में मुझ जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसी का भी नहीं है  चाहे कोई धर्म आत्मा हो, महान आत्मा हो, राज्य अधिकारी आत्मा हो किसी का भी भाग्य इतना बड़ा इतना महान नहीं है... ये सारी दुनिया कलियुग में जी रही है दुख भोग रही है और मैं आत्मा इस संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्तियों के झूले में झूल रही हूँ...

 

 _ ➳  मेरे प्यारे बाबा ने श्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझे दे दी है मैं जैसा चाहूँ अपना भाग्य लिख सकती हूँ... मेरे नयनों से स्नेह और रूहानियत झलकती है... मेरा मुख मधुर वाणी बोलता है और होठों पर रूहानी मुस्कान रहती है जिसे देख अन्य आत्माएं भी सोचती हैं कि इन्हें ज़रूर कुछ मिला है और इस रूहानी प्रेम का अनुभव करने के लिए मेरी ओर खिंची चली आती हैं... मैं आत्मा उन आत्माओं को भी रूहानी दृष्टि से प्रेम के वाइब्रेशन दे उनके मन को भी ररूहानियत से भर देती हूँ...

 

 _ ➳  मेरा हृदय दिलाराम बाप के लव में लवलीन है... मैं आत्मा बाप द्वारा दिये सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न हूँ... मेरे बाबा विकारों के बदले मुझे अमूल्य रत्नों से भरपूर कर रहे हैं... मेरे हर कदम में पदम समाया हुआ है... मैं इस संसार की सबसे भाग्यशाली आत्मा हूँ... मेरे भाग्य की रेखा को देख मेरे बाबा भी हर्षित होते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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