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❍ 14 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ पवित्र प्रवृति बनायी ?
➢➢ ड्रामा की पॉइंट को उल्टे रूप से यूज़ तो नहीं किया ?
➢➢ स्नेह की शक्ति से माया की शक्ति को समाप्त किया ?
➢➢ तन-मन-धन, मन-वाणी और कर्म से बाप के कर्तव्य में सदा सहयोगी बनकर रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ तपस्वी मूर्त का अर्थ है-तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारों ओर फैलती हुई अनुभव में आयें। यह तपस्वी स्वरुप औरों को देने का स्वरुप है। जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है। ऐसे महान तपस्वी आत्माएं ज्वाला रुप शक्तिशाली याद द्वारा प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराती हैं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं पूर्वज और पूज्य आत्मा हूँ"
〰✧ हम पूज्य और पूर्वज आत्मायें हैं - इतना नशा रहता है? आप सभी इस सृष्टि रुपी वृक्ष की जड़ में बैठे हो ना? आदि पिता के बच्चे आदि रत्न हो। तो इस वृक्ष के तना भी आप हो। जो भी डाल-डालियाँ निकलती है वह बीज के बाद तना से ही निकलती हैं। तो सबसे आदि धर्म की आप आत्माएं हो और सभी पीछे निकलते हैं इसलिए पूर्वज हो। तो आप फाउन्डेशन हो। जितना फाउन्डेशन पक्का होता है उतनी रचना भी पक्की होती है। तो इतना अटेन्शन अपने उपर रखना है।
〰✧ पूर्वज अर्थात तना होने के कारण डायरेक्ट बीज से कनेक्शन है। आप फलक से कह सकते हो कि हम डायरेक्ट परमात्मा द्वारा रचे हुए हैं। दुनिया वालों से पूछो कि किसने रचा? तो सुनी-सुनाई कह देंगे कि भगवान ने रचा। लेकिन कहने मात्र हैं और आप डायरेक्ट परम आत्मा की रचना हो।
〰✧ आजकल के ब्राह्मण भी कहते हैं कि हम ब्रह्मा के बच्चे हैं। लेकिन ब्रह्मा के बच्चे प्रैक्टिकल में आप हो। तो यह खुशी है कि हम डायरेक्ट रचना है। कोई महान आत्मा, धर्म आत्मा की रचना नहीं, डायरेक्ट परम आत्मा की रचना हैं। तो डायरेक्ट कितनी शक्ति है! दुनिया वाले ढूँढ़ रहे हैं कि कोई वेष में भगवान आ जायेगा और आप कहते मिल गया। तो कितनी खुशी हैं! तो इतनी खुशी रहती है कि आपको देख करके और भी खुश हो जाएं। क्योंकि खुश रहने वाले का चेहरा सदा ही खुशनुम: होगा ना?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ ऐसे भी कई होते जिन्हें एकान्त पसन्द आता, संगठन में रहना, हँसना, बोलना ज्यादा पसन्द नहीं आता, लेकिन यह हुआ बाहर मुखता में आना। अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अंतर्मुख बनो।
〰✧ अब समय ऐसा आ रहा है जो यही अभ्यास काम में आएगा। अगर बाहर के आकर्षण के वशीभूत होने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा दे देगा। सरकमस्टान्सेज ऐसे आयेंगे जो इस अभ्यास के सिवाए और कोई आधार ही नहीं दिखाई देगा।
〰✧ एकान्तवासी अर्थात् अनुभवी मूर्त। दिल्ली वाले सेवा के आदि के निमित बने हैं तो इस विशेषता में भी निमित्त बनो। तो इस स्थिति के अनुभव को दूसरे भी कॉपी करेंगे। यह सबसे बड़े ते बड़ी सेवा है। संगठित रूप में और इन्डिविजिवल रूप में दोनों ही रूप से ऐसे अभ्यास का वातावरण फैलाओ। (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ देह के बन्धन का कारण है देही का सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है। बाप की स्मृति और देही स्वरूप के स्मृति की धारणा नहीं हुई है। पहला पाठ कच्चा है। सेकेण्ड में देह से न्यारे बनने का अभ्यास सेकेण्ड में देह के बन्धन से मुक्त बना देता है। स्वीच आन हुआ और भस्म । जैसे साइन्स के साधनों द्वारा भी वस्तु सेकेण्ड में परिवर्तन हो जाती है वैसे साइलेन्स की शक्ति से, देही के सम्बन्ध से बंधन खत्म। अब तक भी अगर पहली स्टेज देह के बन्धन में हैं तो क्या कहेंगे! अभी तक पहले क्लास में हैं। जैसे कोई स्टूडेन्ट कमज़ोर होने के कारण कई वर्ष एक ही क्लास में रहते हैं- तो सोचो ईश्वरीय पढ़ाई का लास्ट टाइम चल रहा है और अब तक भी देह के सम्बन्ध की पहली चौपड़ी में हैं, ऐसे स्टूडेन्ट को क्या कहेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- आसुरी गुणों को बदल दैवी गुण धारण करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची
सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों
को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका
में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की
बुझी ज्योति को जगाया... दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को
शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे
बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...
❉ प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-
"मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे
बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... यह यादे ही आनन्द का
दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में
उतार लाएंगी..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे
मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से
सज कर निखरती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही
हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."
❉ मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए
कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में
गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो
जाओ... दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से
अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:- "मेरे
प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... यह रोम
रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर
ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ... और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."
❉ मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:- "प्यारे
सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो
के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः
ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही
स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:- "हाँ
मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की
शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ... और विकारो से मुक्त होकर
अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- श्रेष्ठ राज्य स्थापन करने के लिए श्रीमत पर चलकर बाप का मददगार बनना है
➳ _ ➳ प्योरिटी, पीस और प्रास्परटी से भरपूर अपने स्वर्णीम भारत की तस्वीर मन
बुद्धि के दिव्य नेत्र से मैं देख रही हूँ। वो स्वर्णिम दुनिया जो इस समय
भगवान स्वयं आकर अपने बच्चों के लिए स्थापन कर रहें हैं जहाँ दुख का नाम निशान
नही होगा। अथाह सुख ही सुख होगा। राजा होगा या प्रजा सभी के जीवन में
सन्तुष्टता होगी। कोई किसी से ईर्ष्या द्वेष नही करेगा। सभी के मन मे एक दूसरे
के लिए निस्वार्थ प्यार और स्नेह होगा।
➳ _ ➳ ऐसे स्वर्णिम भारत की तस्वीर अपनी इन खुली आँखों से देखते हुए मैं मन
बुद्धि से उस स्वर्गिक दुनिया के खूबसूरत नज़ारो का आनन्द ले रही हूँ और अपने
प्यारे पिता का दिल ही दिल मे शुक्रिया अदा कर रही हूँ जो अपने बच्चों के लिए
ऐसी दैवी दुनिया स्थापन कर रहें हैं। किन्तु उस दैवी दुनिया मे चलने की पीस
प्राईज पाने के हकदार वही बनेंगे जो भगवान की श्रीमत पर चल, अपने को सम्पूर्ण
पावन बना कर, अपनी पवित्रता का बल, इस ईश्वरीय कार्य मे ईश्वर के मददगार बन कर
देंगे।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने प्यारे पिता को मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनकी श्रीमत पर
पूरी रीति चलकर, सारे विश्व पर प्योरिटी पीस स्थापन करने के उनके इस महान
कर्तव्य में मैं मददगार अवश्य बनूँगी। अपनी पवित्रता की मदद इस श्रेष्ठ कार्य
में मैं अवश्य दूँगी। विकारो रूपी पांचों भूतों पर विजय प्राप्त कर, अपने
शांतिमय, सुखमय और पवित्र वायब्रेशन्स समस्त संसार मे फैलाते हुए, सारे विश्व
की आत्माओं को पाँच विकारों रूपी इन भूतों से छुड़ा कर, सबके जीवन को सुखी और
शांतमय बनाकर भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में मैं अवश्य सहयोगी बनूँगी।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने प्यारे पिता से यह प्रोमिस और स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करके,
परमात्म बल से अपने अंदर के विकारों रूपी भूतों को भगाने और आसुरी अवगुणों को
छोड़ दैवी गुणों को स्वयं में धारण करने के लिए, अब मैं पवित्रता के सागर अपने
प्यारे पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और उनकी शक्तियों
से स्वयं को भरपूर करने के लिए, उनकी निराकारी, एवर प्योर दुनिया की ओर चल पड़ती
हूँ। मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपने प्यारे पिता के उस परम पवित्र निर्वाण
धाम घर की ओर मैं उड़ती जा रही हूँ जो पाँच तत्वों से पार, सूक्ष्म देवताओं की
पुरी सूक्ष्म लोक से भी परे हैं।
➳ _ ➳ साकारी और आकारी इन दोनों दुनियाओं को पार कर मैं पहुँच गई हूँ अब
पवित्रता के सागर अपने शिव पिता के पास जो एक विशाल ज्योति पुंज के रूप में अपनी
शक्तियों की अनन्त किरणो को बिखेरते हुए मुझे अपने सामने दिखाई दे रहें हैं। ऐसा
लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को फैलाये वो बड़े प्यार
से मेरा आह्वान कर रहें हैं। बिना एक पल की भी देरी किये अपने प्यारे पिता की
किरणो रूपी बाहो में मैं जाकर समा जाती हूँ। अपने स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप
में बाबा अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहें हैं।
➳ _ ➳ बाबा के स्नेह की शीतल, मीठी फ़ुहारों का आनन्द लेती हुई मैं धीरे - धीरे
उनके पास पहुँच जाती हूँ और जा कर उन्हें टच करती हूँ। मेरे ऊपर चढ़ी विकारो की
कट को बाबा अपनी सर्वशक्तियों के तेज करेन्ट से जलाकर भस्म कर देते हैं और मुझे
एकदम हल्का लाइट माइट बना देते है। हर बोझ से मुक्त इस हल्की सुखदायी स्थिति
में गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करते हुए मैं स्वयं को बाबा के समान अनुभव
कर रही हूँ। सम्पूर्ण प्योर, सर्व गुणों, सर्वशक्तियो से भरपूर अपने इस स्वरूप
के साथ अब मैं बाबा से अलग होकर वापिस अपनी साकारी दुनिया की ओर लौट आती हूँ और
अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने इस संपूर्ण पवित्र और सुखदाई स्वरूप के साथ, सारे विश्व पर प्योरिटी
पीस स्थापन करने में अपने प्यारे पिता की मददगार बनने की, उनसे की हुई प्रतिज्ञा
को अब मैं उनकी हर श्रीमत पर चल, पूरा कर रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और
कर्म को सम्पूर्ण पवित्र और शुद्ध बनाने का पूरा पुरुषार्थ करते हुए, मनसा, वाचा,
कर्मणा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में धारण कर, अपनी पवित्रता की मदद से
सारे विश्व को पावन सतोप्रधान बनाने की ईश्वरीय सेवा में मैं बाबा का पूरा
सहयोग दे रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं स्नेह की शक्त्ति से माया की शक्त्ति को समाप्त करने वाली सम्पूर्ण ज्ञानी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं तन-मन-धन, मन वाणी और कर्म से बाप के कर्तव्य में सदा सहयोगी रहने वाला योगी हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ टीचर्स के साथ- सेवाधारी आत्माओं का सदा एक ही लक्ष्य रहता है कि बाप
समान बनना है? क्योंकि बाप समान सीट पर सेट हो। जैसे बाप शिक्षक बन, शिक्षा देने
के निमित्त बनते हैं वैसे सेवाधारी आत्मायें बाप समान कर्त्तव्य पर स्थित हो।
तो जैसे बाप के गुण वैसे निमित्त बने हुए सेवाधारी के गुण। तो सदा पहले यह चेक
करो - कि जो भी बोल बोलते हैं यह बाप समान हैं? जो भी संकल्प करते हैं यह बाप
समान है! अगर नहीं तो चेक करके चेन्ज कर लो। कर्म में नहीं जाओ। ऐसे चेक करने
के बाद प्रैक्टिकल में लाने से क्या होगा? जैसे बाप सदा सेवाधारी होते हुए सर्व
का प्यारा और सर्व से न्यारा है, ऐसे सेवा करते सर्व के रूहानी प्यारे भी रहेंगे
और साथ-साथ सर्व से न्यारे भी रहेंगे! बाप की मुख्य विशेषता ही है - ‘जितना
प्यारा उतना न्यारा'। ऐसे बाप समान सेवा में प्यारे और बुद्धियोग से सदा एक बाप
के प्यारे सर्व से न्यारे। इसको कहा जाता है - ‘बाप समान सेवाधारी'। तो शिक्षक
बनना अर्थात् बाप की विशेष इस विशेषता को फालो करना। सेवा में तो सभी बहुत अच्छी
मेहनत करते हो लेकिन कहाँ न्यारा बनना है और कहाँ प्यारा बनना है - इसके ऊपर
विशेष अटेन्शन।
➳ _ ➳ अगर प्यार से सेवा न करो तो भी ठीक नहीं और प्यार में फँसकर सेवा करो तो
भी ठीक नहीं। तो प्यार से सेवा करनी है लेकिन न्यारी स्थिति में स्थित होकर करनी
है तब सेवा में सफलता होगी। अगर मेहनत के हिसाब से सफलता कम मिलती है तो जरूर
प्यारे और न्यारे बनने के बैलेन्स में कमी है। इसलिए सेवाधारी अर्थात् बाप का
प्यारा और दुनिया से न्यारा। यही सबसे अच्छी स्थिति है। इसी को ही ‘कमल पुष्प
समान' जीवन कहा जाता है। इसलिए शक्तियों को कमल आसन भी देते हैं! कमल पुष्प पर
विराजमान दिखाते हैं। क्योंकि कमल समान न्यारे और प्यारे हैं। तो सभी सेवाधारी
कमल आसन पर विराजमान हो ना? आसन अर्थात् स्थिति। स्थिति को ही आसन का रूप दिया
है। बाकी कमल पर कोई बैठा हुआ तो नहीं है ना? तो सदा कमल आसन पर बैठो। कभी कमल
कीचड़ में न चला जाए इसका सदा ध्यान रहे!
✺ "ड्रिल :- सेवा करते सर्व के रूहानी प्यारे और साथ साथ से न्यारे बनकर रहना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा आज सेंटर पर दीदी के द्वारा मुरली सुन रही हूं... मैं देखती
हूं कि हमारी प्यारी दीदी हमें बड़े ही प्यार से मुरली सुना रही है... और मैं
यह भी अनुभव करती हूं कि हमारी प्यारी दीदी हमें रोज नई नई ज्ञान की गहरी बातों
को बताती हैं... हम चाहे कितनी भी क्वेश्चन दीदी से करें वह उनका बड़े प्यार से
उत्तर देती है... उनकी ज्ञान देने की भावना से हमें ऐसा प्रतीत होता है कि मानो
दीदी हमें अपने से भी ऊपर ले जाना चाहते हैं... वह चाहते हैं कि वह हम में इतना
ज्ञान भर दे कि हम बहुत ऊंचे जाए और बहुत अच्छा पद प्राप्त करें... वह हमें
रोज रूहानी भावना से पढ़ाते हैं और रोज हमें रुहानी प्यार का अनुभव कराती है...
➳ _ ➳ और फिर मुरली सुनाते हुए हमें दीदी ब्रहमा बाबा के बारे में बताते हैं...
उन्होंने बताया कि जैसे ब्रह्मा बाबा ने परमपिता परमात्मा के आदेश का आजीवन
पालन करते हुए अपना सारा जीवन सेवा के लिए और अन्य आत्माओं के भविष्य के लिए
समर्पित कर दिया... और एक सच्चे सेवाधारी बन कर रहे... बाबा सेवा करते थे तो वह
हमेशा रूहानी दृष्टि से और रुहानी प्यार से सेवा किया करते थे... सभी को उनकी
रुहानियत का बहुत गहराई से अनुभव होता था... वह सदा कमल फूल समान पवित्र न्यारे
और प्यारे बन कर रहे... उन्होंने हमेशा निमित्त भाव रखते हुए सेवा की... बाबा
की इन विशेषताओं को जानकर मुझे उनके द्वारा सेवा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली...
और मुझे बाप समान बनने की लालसा भी लगी...
➳ _ ➳ फिर दीदी ने हमें समझाया की सेवा अर्थात बाप का प्यारा और सबसे न्यारा...
जब हम सेवा करते हुए बाप को याद रखेंगे अर्थात निमित्त भाव से सेवा करेंगे...
तो हमें किसी भी सेवा में थकावट का अनुभव नहीं होगा... जब हम सेवा में निमित्त
भाव नहीं रखते हैं तो अक्सर हम सेवा में थकावट का अनुभव करते हैं... और जब हम
सेवा में बाप को याद रखते हैं तो कब सेवा हो जाती है और कितनी सेवा होती है इसका
हमें आभास भी नहीं होता... सेवा करते समय हमें चेकिंग करनी चाहिए कि हमसे सेवा
में कोई भूल तो नहीं हुई... हमें सदा यह स्मृति में रखना चाहिए की हम न्यारे और
प्यारे होकर सेवा करेंगे तो अपना और औरों का भी भविष्य खुशहाल बना सकेंगे... और
पुरुषार्थ में कभी रुकावट का अनुभव नहीं करेंगे...
➳ _ ➳ दीदी की मुरली सुनाने के बाद मैं बाबा के कमरे में आती हूं... और बाबा की
आंखों में देखती हूं... मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो बाबा मुझे कुछ समझाना
चाहते हो... तभी मुझे अनुभव होता है कि बाबा मुझे समझा रहे हैं कि बच्चे, मुझे
देखो मेरा चित्र हमेशा तुम्हें कमल आसन पर विराजमान हुआ दिखाई देगा... यह कमल
आसन मेरी स्थिति है... यह कमल मेरी इस स्थिति का प्रमाण है कि मैंने इस कीचड़
रुपी संसार में रहते हुए भी अपनी बुद्धि इस कीचड़ में नहीं फंसाई... हमेशा अपने
आपको अपने चौड़े चौड़े पत्ते रूपी बाप की याद और रुहानियत से अपने आप को इस
कीचड़ से बचा कर रखा... इसलिए अब तुम्हें भी अपना जीवन कमल फूल समान बनाना है
बाबा के यह वचन सुनकर मेरा मन फूल की तरह खिलता है और मैं बाबा से कहती हूं बाबा
मैं भी अब रुहानियत से सर्व से न्यारी और बाबा की प्यारी बनकर निमित्त भाव से
सेवा करूंगी और सच्ची सच्ची सेवाधारी बनूंगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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