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❍ 17 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ बाप से कुछ भी माँगा तो नहीं ?
➢➢ कर्मेन्द्रियों को शीतल बनाया ?
➢➢ स्वमान की सीट पर सेट हो परिस्थितियों को पार किया ?
➢➢ सर्व आसक्तियों पर विजय प्राप्त करने का पुरुषार्थ किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे सूर्य की किरणें फैलती हैं, वैसे ही मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज पर शक्तियों व विशेषताओं रुपी किरणें चारों ओर फैलती अनुभव करे, इसके लिए 'मैं मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ', इस स्वमान के स्मृति की सीट पर स्थित होकर कार्य करो तो विघ्न सामने तक भी नहीं आयेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं सदा खुश रहने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ"
〰✧ सभी खुश रहते हो? कैसी भी परिस्थिति आ जाए, कितना भी बड़ा विघ्न आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। विघ्न आता है तो चला जायेगा। लेकिन अपनी चीज क्यों चली जाए। वह आया, वह जाए। अपनी चीज तो नहीं जाए ना। आने वाला जायेगा या रहने वाला भी चला जायेगा? तो खुशी अपनी चीज है।
〰✧ बाप का वर्सा है ना खुशी। तो विघ्न आता और चला जाता है। जब भी विघ्न आये ना तो यह सोचो यह आया है चले जाने के लिए। कोई घर का मेहमान आता है तो ऐसे नहीं, मेहमान होकर आया और सारी चीजें लेकर जाये। ध्यान रखेंगे ना।
〰✧ तो विध्न आया और चला जायेगा। लेकिन आपकी खुशी तो नहीं ले जाये। सदा खुशी साथ रहे। बाप है अर्थात् खुशी है। अगर पाप है तो खुशी नहीं, बाप है तो खुशी है। तो सदा खुश रहो। हर एक समझे कि मैं खुश रहने वाला हूँ। खुश रहने वाले को देख दूसरा भी खुश हो जाता है। रोने वाले को देखेंगे तो दूसरे को भी रोना आ जाता है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकंड में आतार ने हैं। जब चाहे धारण करें, जब चाहे न्यारे हो जाएं। लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बंधन नहीं होगा। अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच हो नहीं सकेंगे।
〰✧ जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार मन्सा, वाचा, कर्मणा सम्बन्ध में अगर अटैचमेंट है लगाव है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे। ऐसा अभ्यास सहज कर सकते हो। जैसा संकल्प किया, वैसा स्वरूप हो जाए।
〰✧ संकल्प के साथ-साथ
स्वरूप बन जाते हो या संकल्प के बाद टाइम लगता है स्वरूप मैंने में? संकल्प किया और अशरीरी हो जाओ। संकल्प किया मास्टर प्रेम के सागर की स्थिति में स्थित हो जाओ और वह स्वरुप हो जाए। ऐसी प्रैक्टिस हैं? अब इसी प्रैक्टिस को बढ़ाओ। इसी प्रैक्टिस के आधार पर स्कॉलरशिप ले लेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते हैं, तो जैसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य हैं वैसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् महान आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं। जब चाहो कर्मयोगी बनो, जब चाहो परमधाम निवासी योगी बनो, जब चाहो सूक्ष्मवतनवासी योगी बनो। स्वतन्त्र हो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- आत्मा समझकर हर काम करना"
➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में बैठी हुई मै आत्मा... अपलक अपने प्यारे बाबा को
निहार रही हूँ... बाबा की वरदानी किरणों में शक्ति सम्पन्न बन रही हूँ... और
मीठे चिंतन में खो रही हूँ... कि प्यारे बाबा ने मुझे मेरे आत्मिक रूप का
अहसास देकर... जीवन को नये आयाम दे दिए है... स्वयं को शरीर समझकर जीना, कितना
बोझिल और दुखदायी था... और आत्मिक भाव ने मुझ आत्मा को किस कदर हल्का, प्यारा,
सुखी कर, सच्चे आनन्द से भर दिया है... अब देह के सारे बोझ काफूर हो गए है,..
और मै आत्मा परमात्मा शिव की यादो में मदमस्त हो गयी हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देह के आवरण से छुड़ाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे
फूल बच्चे... अब इस देह भान से निकल स्वयं के सत्य स्वरूप में खो जाओ... आप देह
नही हो, चमकती मणि हो, इसकी याद में गहरे डूब जाओ... हर कर्म को करते हुए, सदा
स्वयं को शिवबाबा का निराकारी बच्चा समझ, खुशियो में मुस्कराओ... अलौकिक पिता
ने हमे शिव बाबा से मिलवाया है... सदा इन मीठी यादो में रमण करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे
मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर, सत्य की चमक से निखर गयी हूँ... मै
मात्र शरीर नही, बल्कि प्यारी पवित्र आत्मा हूँ, इन मीठे अहसासो में हर पल झूम
रही हूँ... आपने मेरा जीवन सत्य की रौशनी से भर दिया है... और मै आत्मा आपकी
यादो में, हर कर्म को सुकर्म बनाती जा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यारे वजूद में गहरे डुबोते हुए कहा :-
"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की मीठी गोद में बैठ, देह के मटमैले
आकर्षण से निकलकर, अपनी आत्मिक तरंगो के आनंद में डूब जाओ... जो हो उस सत्य के
गहरे खो जाओ... दुनिया में रहते हुए... प्रवृति में कार्य को करते हुए, सदा
निराकारी पिता की यादो में खोये रहो... दिल से सदा यादो में खोये, अपने महान
भाग्य की खुमारी में दिव्य कर्म करते रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से देवताई संस्कार स्वयं में भरते हुए कहती हूँ
:- "मीठे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी ज्ञान रौशनी में अज्ञान के गहरे
अंधेरो से बाहर निकल रही हूँ... और अपने दमकते स्वरूप को पाकर, असीम ख़ुशी से भर
गयी हूँ... देह की नश्वरता और विकारो के दलदल से बाहर निकल गयी हूँ... अपने
खुबसूरत वजूद को पाकर मालामाल हो गयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने निराकारी रूप के नशे से भरते हुए कहा :- "मीठे
प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा अपने चमकते रूप के भान में रह, इस दुनिया में हर
कर्म को करो... सदा स्वयं को आत्मा निश्चय कर, दिव्य कर्मो से अपने दामन को
सुंदर बनाओ... और इन सच्ची मीठी आत्मिक खुशियो को, अपने दिल आँगन में सदा के
लिए पाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को गले लगाते हुए कहती हूँ :- "मेरे सच्चे
सहारे बाबा... मीठे बाबा आपने मुझ आत्मा का हाथ पकड़कर... मुझे कितना प्यारा
जीवन दे दिया है... आपकी श्रीमत को पाकर, मै आत्मा बेफिक्र बादशाह बन गयी
हूँ... हर कर्म आपकी श्रीमत प्रमाण कर, सच्चे आनन्द में झूम रही हूँ... मीठे
बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मै आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- कर्मेन्द्रियों को शीतल बनाना है"
➳ _ ➳ दुनिया मे हो रहे पापाचार, भ्रष्टाचार का दृश्य मैं देख रही हूँ और विचार
करती हूं कि यही दुनिया कभी स्वर्ग हुआ करती थी। एक दूसरे के प्रति सभी के
हृदय आपसी स्नेह और प्यार से लबालब थे किंतु आज वो स्नेह, वो प्यार कहाँ चला
गया! अकेले बैठे मैं स्वयं से ही ये सवाल जवाब कर रही हूं।
➳ _ ➳ तभी मैं एक दृश्य देखती हूँ जैसे कोई राजदरबार लगी है। सामने सिहांसन पर
कोई राजा बैठा है और उसके सामने उसके मंत्री बैठे हैं जिनके साथ वह कुछ विचार
विमर्श कर रहा है। मंत्री गलत सलाह दे कर राजा को गलत कामों के लिए उकसा रहें
है। राजा में इतनी समर्थता नही कि वो समझ सके क्या सही है और क्या गलत। उनके
बहकावे में आ कर वो गलत कर्म कर रहा है उसे गलत कर्म करते देख उसके राज्य के
सभी लोग भी गलत कर्म कर रहें हैं। मैं सोचती हूँ कि जिस देश का राजा ही भ्रष्ट
है तो उस देश में स्वत: ही भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखते देखते एकाएक स्मृति आती है कि मैं आत्मा भी तो राजा
हूँ किन्तु कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों के बहकावे में आ कर जाने अनजाने में
मुझ से कितने विकर्म हुए जिनका बोझ मुझ आत्मा पर चढ़ता चला गया। 63 जन्मो के
विकर्मों का बोझ अब मुझ आत्मा को उतारना है और उसे उतारने के लिए मेरे पास केवल
यही एक जन्म है। मन में यह ख़्याल आते ही मैं आत्मा 63 जन्मो के विकर्मों की कट
को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ शिव बाबा
के पास।
➳ _ ➳ साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब
मैं स्वयं को अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। बुद्धि का योग
उनसे लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे
ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी
ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता
जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और
तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं। मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं।
सच्चा सोना बनती जा रही हूं। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का, पापमुक्त अनुभव कर
रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक
पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म
कर रही हूं। राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा,
उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से
चल रही है। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही
है। कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण होने और बुद्धि की लाइन क्लीयर होने
से अब मैं आत्मा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने लगी हूँ।
➳ _ ➳ व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से अब मैं मुक्त हो गई हूं इसलिये परमात्म पालना
के झूले में झूलती रहती हूं। परमात्म शक्तियों से भरपूर होने के कारण शक्तिशाली
बन अब मैं सदा उड़ती कला में उड़ती रहती हूं। परम आनन्द से सदा भरपूर रहने के
कारण मास्टर दाता बन सर्व आत्माओं को देने की ही भावना अब मेरे मन मे निरन्तर
रहती है इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक
एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही
विकर्माजीत बनती जा रही हूं। तीन स्मृतियों का तिलक अब मेरे मस्तक पर सदैव लगा
रहता है जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि अब मुझे कर्मेन्द्रियों से
ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं स्वमान की सीट पर सेट हो हर परिस्थिति को पार करने वाली सदा विजयी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं सर्व आसक्तियों पर विजय प्राप्त करने वाली शिव शक्ति पांडव सेना हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ यह भी एक गुह्य कर्मों का हिसाब बुद्धि में रखो। कर्मों का हिसाब कितना
गुह्य है - इसको जानो। किसी भी आत्मा द्वारा अल्पकाल का सहारा लेते हो वा
प्राप्ति का आधार बनाते हो, उसी आत्मा के तरफ बुद्धि का झुकाव होने के कारण
कर्मातीत बनने के बजाए कर्मों का बन्धन बंध जाता है। एक ने दिया दूसरे ने लिया
- तो आत्मा का आत्मा से लेन-देन हुआ। तो लेन-देन का हिसाब बना वा समाप्त हुआ?
उस समय अनुभव ऐसे करेंगे जैसे कि हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन वह आगे बढ़ना, बढ़ना नहीं,
लेकिन कर्म बन्धन के हिसाब का खाता जमा किया। रिजल्ट क्या होगी! कर्म-बन्धनी
आत्मा, बाप से सम्बन्ध का अनुभव कर नहीं सकेगी। कर्मबन्धन के बोझ वाली आत्मा
याद की यात्रा में सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव कर नहीं सकेगी, वह याद के सबजेक्ट
में सदा कमजोर होगी। नॉलेज सुनने और सुनाने में भल होशियार, सेन्सीबुल होगी
लेकिन इसेन्सफुल नहीं होगी। सर्विसएबुल होगी लेकिन विघ्न विनाशक नहीं होगी। सेवा
की वृद्धि कर लेंगे लेकिन विधिपूर्वक वृद्धि नहीं होगी। इसलिए ऐसी आत्मायें
कर्म बन्धन के बोझ कारण स्पीकर बन सकती हैं लेकिन स्पीड में नहीं चल सकती
अर्थात् उड़ती कला की स्पीड का अनुभव नहीं कर सकती। तो यह भी दोनों प्रकार के
देह के सम्बन्ध हैं जो ‘महात्यागी' नहीं बनने देंगे।
➳ _ ➳ तो सिर्फ पहले इस देह के सम्बन्ध को चेक करो - किसी भी आत्मा से चाहे
घृणा के सम्बन्ध में, चाहे प्राप्ति वा सहारे के सम्बन्ध से लगाव तो नहीं है?
अर्थात् बुद्धि का झुकाव तो नहीं है? बार-बार बुद्धि का जाना वा झुकाव सिद्ध
करता है कि बोझ है। बोझ वाली चीज झुकती है। तो यह भी कर्मों का बोझ बनता है
इसलिए बुद्धि का झुकाव न चाहते भी वहाँ ही होता है।
✺ "ड्रिल :- आत्मा का आत्मा से लेनदेन कर कर्मों से नए बंधन नहीं बनाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा नुमाशाम योग में बैठी हूं... जैसे-जैसे मैं योग की गहराई में
जाती हूँ... मेरे शरीर की एक-एक नस खुलने लगती है... जो भी आज तक किसी कारणवश
बन्द थी वो सभी नसें खुलने लगती हैं... पवित्र सफेद प्रकाश से मेरा मस्तिष्क
एकदम सफेद लाइट रूपी बॉल के समान प्रतीत हो रहा है... और अब मैं धीरे-धीरे अपने
आपको सफेद प्रकाश रूपी शरीर में अनुभव करती हूं... मेरे शरीर से अद्भुत किरणें
निकल रही है... और यह पूरा स्थान सफेद किरणों से भरा हुआ प्रतीत होता है... मेरा
सूक्ष्म शरीर निकलकर प्रकृति के पास पहुंच जाता है... जहां मेरे बाबा मेरा हाथ
पकड़े मुझे यह नजारा दिखा रहे हैं... और मैं इस प्रकृति को और यहां रहने वाली
सभी आत्माओं को साकाश दे रही हूं...
➳ _ ➳ प्रकृति को साकाश देते समय मैं ऐसे स्थान पर पहुंच जाती हूं... जहां पर
एक मां अपने पुत्र को कहीं जाने से रोकती है, विलाप कर रही है जितना मैं उसके
पास जाती हूँ उतना ही मुझे उनकी स्थिति का अनुभव होता है... मुझे ज्ञात होता
है वह मां अपने पुत्र मोह के कारण अपने पुत्र को अपने से दूर नहीं कर रही है...
और पुत्र इस संसार की गतिविधियों को जानने के लिए वहां से जाना चाहता है... माँ
का बुद्धि का झुकाव अपने पुत्र में इस कदर हो जाता है... कि वह अपने आपको इस
पुत्रमोह में फंसा लेती है... इस कारण मां ना सो पाती है ना ही कुछ खा पाती
है... और ना ही किसी प्रकार की सेवा कर पाती है... जैसे ही वह किसी भी प्रकार
की सेवा करती है... उसका बुद्धियोग अपने पुत्र में चला जाता है...
➳ _ ➳ और अपना बुद्धि योग पुत्र में जाने के कारण कर्म बंधन में आ जाती है...
जिस कर्म को अभी तक अपना कर्तव्य और सेवा समझती थी... अब वह कर्म उसका बंधन बन
जाता है... अपने इस बंधन के कारण वह अपने आप को किसी भी प्रकार निस्वार्थ आगे
नहीं बढ़ा पाती है... और ना ही निमित्त भाव से सेवा करने का अनुभव कर पाती
है... इस संसार में वह स्वयं भी अपना यह बंधन नहीं देख पाती है... और ना ही
समझ पाती है... कुछ देर रुककर मैं आत्मा उस आत्मा को शांति का साकाश देती
हूं... जैसे ही वह आत्मा शांति का अनुभव करती है मैं आत्मा उसे समझाने लगती
हूं...
➳ _ ➳ और कहती हूँ... हे आत्मा अपने आप से इस मोह का और इस कर्म बंधन का पर्दा
हटा कर देखो... तुम धीरे-धीरे इस कर्म बंधन में फंसती जा रही हो... तुम्हारी इस
स्थिति के कारण तुम परमपिता परमात्मा से योग नहीं लगा पा रही हो... और ना ही
आत्मिक स्थिति का अनुभव कर पा रही हो... अगर ऐसा ही रहा तो तुम्हारा कर्मों का
खाता बढ़ता जाएगा और पुरुषार्थ की लगन कम होती जाएगी... जब-जब तुम याद की यात्रा
से उड़ती कला का अनुभव करने लगोगी तब तब तुम्हें यह कर्म बंधन अपनी और खींचेगा
और तुम्हें उड़ने नहीं देगा... मेरे यह वचन सुनकर उस आत्मा को सत्य का आभास
होता है और याद की यात्रा में और पुरुषार्थ में आगे बढ़ने का वचन देती है... इसी
तरह मैं सारी आत्माओं को साकाश देते हुए अपने इस शरीर में वापस विराजमान हो जाती
हूं... और मैं इस स्मृति में अपने पुरुषार्थ को आगे बढ़ाती हूं... कि मुझे कर्म
बंधन को चेक करते हुए आगे बढ़ना है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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