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❍ 06 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपना तन मन धन सेवाओं में सफल किया ?
➢➢ संगम युग पर अपना समय सफल किया ?
➢➢ स्वयं को विशेष आत्मा अनुभव किया ?
➢➢ सदा अपने को माला का मनका समझा ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ सेवा का विस्तार भल कितना भी बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार भूल न जाये। खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ"
〰✧ हर कर्म करते 'कर्मयोगी आत्मा' अनुभव करते हो? कर्म और योग सदा साथ-साथ रहता है? कर्मयोगी हर कर्म में स्वत: ही सफलता को प्राप्त करता है। कर्मयोगी आत्मा कर्म का प्रत्यक्षफल उसी समय भी अनुभव करता और भविष्य भी जमा करता, तो डबल फायदा हो गया ना। ऐसे डबल फल लेने वाली आत्मायें हो। कर्मयोगी आत्मा कभी कर्म के बन्धन में नहीं फंसेगी। सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे।कर्म के बन्धन से मुक्त-इसको ही 'कर्मातीत' कहते हैं।
〰✧ कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे,इसको कहते हैं -कर्मातीत। कर्मयोगी स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है। तो किसी बंधन में बंधने वाले तो नहीं हो ना? औरों को भी बंधन से छुड़ाने वाले। जैसे बाप ने छुड़ाया, ऐसे बच्चों का भी काम है छुड़ाना, स्वयं कैसे बंधन में बंधेंगे?
〰✧ कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी है। इससे कोई कितना भी बड़ा कार्य हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं। चाहे कितना भी मेहनत का, सख्त खेल हो, फिर भी खेल में मजा आयेगा ना। जब मल्लयुद्ध करते हैं तो कितनी मेहनत करते हैं। लेकिन जब खेल समझकर करते हैं तो हंसते-हंसतक करते हैं। मेहनत नहीं लगती, मनोरंजन लगता है। तो कर्मयोगी के लिए कैसा भी कार्य हो लेकिन मनोरंजन है, संकल्प में भी मुश्किल का अनुभव नहीं होगा। तो कर्मयोगी ग्रुप अपने कर्म से अनेकों का कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले, इसी में बिजी रहो। कर्म और याद कम्बाइण्ड, अलग हो नहीं सकते।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ वास्तव में इसको ही ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन कहा जाता है। जिसका जितना स्व पर राज्य है अर्थात स्व को चलने और सर्व को चलाने की विधि आती है, वही नम्बर आगे लेता है। इस फाउण्डेशन में अगर यथाशक्ति है तो ऑटोमैटिकली नम्बर पीछे हो जाता है।
〰✧ जिसको स्वयं को चलाने और चलने आता है वह दूसरों को भी सहज चला सकता है अर्थात हैंडलिंग पॉवर आ जाती है। सिर्फ दूसरे को हैंडलिंग करने के लिए हैंडलिंग पॉवर नहीं चाहिए जो अपनी सूक्ष्म शक्तियों को हैंडिल कर सकता है। वह दूसरों को भी हैंडिल कर सकता है।
〰✧ तो स्व के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर सर्व के लिए यथार्थ हैंडलिंग पॉवर बन जाती है। चाहे अज्ञानी आत्माओं को सेवा द्वारा हैडल करो, चाहे ब्राह्मण परिवार में स्नेह सम्पन्न, संतुष्टता सम्पन्न व्यवहार करो - दोनों में सफल हो जायेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है? या सोचते - सोचते अशरीरी हो जाऊँ, अशरीरी हो जाऊँ, उसमें ही टाइम चला जायेगा? कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज़ बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं, आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? आपने मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है?कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कण्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है। अगर कण्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियाँ हलचल में ले आ सकती हैं।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- संगम युग में तन, मन, धन और समय सफल करना"
➳ _ ➳ एकांत में बैठी मैं आत्मा घडी की टिक-टिक को सुन रही हूँ... घडी
की टिक-टिक जैसे कह रही हो समय बड़ा अनमोल, समझो इसका मोल... कोई भी पल खो न
जाए, गया समय फिर हाथ न आए... हर घडी अंतिम घडी की स्मृति से मैं आत्मा इस
स्थूल देह को छोड़ सूक्ष्म शरीर धारण कर, इस स्थूल दुनिया को छोड़ सूक्ष्म वतन
में प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... मीठे मीठे बाबा संगमयुग के एक-एक
सेकंड के अनमोल समय के महत्व को समझा रहे हैं...
❉ प्यारे बाबा टाइम वेस्ट ना करने की समझानी देते हुए कहते हैं:- “मेरे
मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में महकने और खिलने के खुबसूरत लम्हों में सदा
ज्ञान के सुरीले नाद से आत्माओ को मन्त्रमुग्ध करना है... सबका जीवन खुशियो से
खिल उठे, सदा इस सुंदर चिंतन में ही रहना है... ईश्वर पिता के साथ भरे इस मीठे
समय को सदा यादो से ही संजोना है...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक बाप की याद में रह टाइम आबाद करते हुए कहती हूँ:-
“हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में दीवानी सी... ज्ञान
रत्नों की बौछार सदा साथ लिए, खुशियो के आसमाँ से, आत्माओ के दिल पर बरस रही
हूँ... सबको मीठे बाबा का परिचय देकर हर पल पुण्यो की कमाई में जीजान से जुटी
हूँ...”
❉ मीठे बाबा संगम युग की सुहावनी घड़ियों को सफल करने का राज बतलाते हुए
कहते है:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता के प्यार से लबालब, संगम
का यह अनोखा अदभुत समय. संसार की व्यर्थ बातो में, भाग्य के हाथो से, यूँ रेत
सा न फिसलाओ... ज्ञानी तू आत्मा बनकर ज्ञान की झनकार पूरे विश्व को सुनाओ...
ईश्वर पिता के साथ विश्व सेवा कर 21 जनमो का महाभाग्य पाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञानी तू आत्मा बन बाबा के ज्ञान रत्नों को चारों ओर
बांटते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये अमूल्य
रत्नों को पूरे विश्व में बिखेर कर सतयुगी बहार ला रही हूँ... हर पल यादो में
खोयी हुई खुशियो में चहक रही हूँ... और ज्ञानी आत्मा बनकर अपनी रूहानी रंगत से
बापदादा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...”
❉ मेरे बाबा मुझ पर वरदानों की रिमझिम बरसात करते हुए कहते हैं:-
“प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे कल्प का कीमती और वरदानी समय सम्मुख है...
जिसे कन्दराओं में जाकर ढूंढ रहे थे, दर्शन मात्र को व्याकुल थे... वो पिता
दिलजान से न्यौछावर सा दिल के इतना करीब है... जो चाहा भी न था वो भाग्य खिल
उठा है... इस मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ, सबको ऐसा भाग्यशाली बनाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सच्ची सच्ची रूहानी सेवाधारी बन सारे विश्व में खुशियों
को बाँटती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो
में सच्चा सुख पाकर 21 जनमो की खुशनसीब बन गयी हूँ... और यह ख़ुशी हर घर के आँगन
में उंडेल रही हूँ... सारा विश्व खुशियो से भर जाये... हर दिल ईश्वरीय प्यार
भरा मीठा और सच्चा सुख पाये... यह दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल :- संगम युग पर अपना समय सफल करना"
➳ _ ➳ "समय आपका शिक्षक बने, इससे पहले आप स्वयं ही स्वयं के शिक्षक बन
जाओ" इन ईश्वरीय महावाक्यों पर विचार सागर मंथन करते करते एक पार्क में मैं टहल
रही हूँ। टहलते - टहलते वही कोने में रखे एक बैंच पर मैं बैठ जाती हूँ और इधर
उधर देखने लगती हूँ। तभी सामने सड़क पर लगे एक बोर्ड पर मेरी निगाह जाती है, जिस
पर बड़े बड़े शब्दों में एक स्लोगन लिखा हुआ है "समय की पुकार को सुनो" इस
स्लोगन को पढ़ते ही मन फिर से विंचारो में खो जाता है और ऐसा अनुभव होता है जैसे
मेरे कानों में कोई इन्ही शब्दो को बार बार दोहरा रहा है। मैं इधर उधर देखती
हूँ कि आखिर मेरे कानों में ये आवाज कहाँ से आ रही है।
➳ _ ➳ फिर महसूस होता है कि ये आवाज तो ऊपर से आ रही है। मैं जैसे ही ऊपर
की और देखती हूँ एक तेज प्रकाश मुझे अपने ऊपर अनुभव होता है। मैं देख रही हूं
अपने सिर के ऊपर महाज्योति शिव बाबा को जिनसे निकल रही प्रकाश की किरणे मुझ पर
पड़ रही हैं और मैं देह के भान से मुक्त स्वयं को एक दम हल्का अनुभव कर रही
हूं। अपने शरीर को मैं देख रही हूं जो शिव बाबा की लाइट और माइट पा कर एकदम
लाइट का बन गया है। अब शिवबाबा ब्रह्माबाबा के आकारी रथ में विराजमान हो कर धीरे
धीरे नीचे आ रहें हैं। अपने बिल्कुल समीप बैंच पर बापदादा की उपस्थिति को मैं
स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहें
हैं। बाबा की सम्पूर्ण शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं गहराई से बाबा के नयनो
में देख रही हूँ। शक्ति लेते लेते एक विचित्र दृश्य देख कर मैं हैरान रह जाती
हूँ। एक पल के लिए मैं देखती हूँ दिल को दहलाने वाला दुनिया के विनाश का
विनाशकारी दृश्य और दूसरे ही पल बाबा के नयनो में समाए अपने प्रति असीम स्नेह
और बाबा की अपने प्रति वो आश जिसे बाबा जल्दी से जल्दी पूरा होते हुए देखना
चाहते हैं। अब मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं कि बाबा ने एक पल के लिए मुझे
दिव्य दृष्टि से विनाश का साक्षात्कार करा कर समय की समीपता की ओर ईशारा किया
है।
➳ _ ➳ इस रोमांचकारी दृश्य का अनुभव करवाकर बापदादा अदृश्य हो जाते हैं
और मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ और फिर से उसी स्लोगन पर
नजर डालते हुए विचार करती हूं कि संगमयुग का एक एक सेकेण्ड मेरे लिए
बहुमूल्य है। एक भी सेकेंड व्यर्थ गया तो बहुत बड़ा घाटा पड़ जायेगा। यह विचार
करते करते मैं घर लौट आती हूँ और संगमयुग के अनमोल पलो को सफल करने के
पुरुषार्थ में लग जाती हूँ। अपने हर सेकेंड, संकल्प, बोल और कर्म की वैल्यू को
स्मृति में रख अब मैं उन्हें ईश्वरीय याद और सेवा में सफल कर रही हूँ ।
➳ _ ➳ हर श्वांस में अपने प्यारे मीठे बाबा की यादों को समाये अपनी बुद्धि
को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके अब मैं इन ज्ञान रत्नों को उन आत्माओं
को दान कर रही हूं जो इस दान की पात्र आत्मायें हैं। अपने वरदानी स्वरूप में
स्थित हो कर, वरदानी बोल द्वारा उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बता
रही हूं। परखने की शक्ति का उचित प्रयोग करके, अपने सम्पर्क में आने वाली
आत्माओं को परख कर, पात्र देख कर ज्ञान दान देते हुए उन आत्माओं का कल्याण करने
के साथ साथ स्व - पुरुषार्थ करते हुए हर बात में मैं अपने समय को सफल कर रही
हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सेवा में विघ्नों को उन्नति की सीढ़ी समझ आगे बढ़ने वाली निर्विघ्न, सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं विघ्न रूप नहीं, विघ्न-विनाशक बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जैसे बाप अशरीरी है, अव्यक्त है वैसे अशरीरी पन का अनुभव करना वा अव्यक्त फरिश्ते पन का अनुभव करना - यह है रंग में रंग जाना। कर्म करो लेकिन अव्यक्त फरिश्ता बनके काम करो। अशरीरीपन की स्थिति का जब चाहो तब अनुभव करो। ऐसे मन और बुद्धि आपके कन्ट्रोल में हो। आर्डर करो - अशरीरी बन जाओ। आर्डर किया और हुआ। फरिश्ते बन जायें। जैसे मन को जहाँ जिस स्थिति में स्थित करने चाहो वहाँ सेकण्ड में स्थित हो जाओ। ऐसे नहीं ज्यादा टाइम नहीं लगा, 5 सेकण्ड लग गये, 2 सेकण्ड लग गये। आर्डर में तो नहीं हुआ, कन्ट्रोल में तो नहीं रहा। कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है? या सोचते - सोचते अशरीरी हो जाऊं, अशरीरी हो जाऊं, उसमें ही टाइम चला जायेगा?
➳ _ ➳ कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं,आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है... अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? आपने मन को आर्डर किया सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है? कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है। अगर कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियां हलचल में ले आ सकती हैं।
✺ ड्रिल :- "परमात्म रंग में रंग जाना अर्थात् सेकण्ड में अशरीरी बनने का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा, मन बुद्धि से बापदादा के कमरे में... बापदादा के चित्र के सामने... मधुशाला के प्यालों के समान बाबा की दोनों आँखें... एक पावनता और दूसरा रूहानियत से भरपूर... भर-भर कर छलक रहे है दोनों आँखों के प्याले... और उन पावन रूहानी एहसासों को मैं आत्मा, आँखों से ही घूँट- घूँट कर पिये जा रही हूँ... रूहानी नशे में चूर मैं, अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हुई... मन बुद्धि रूपी पंखों को फैलाये नन्हीं तितली के रूप में... नन्हें पंखों को हिलाती हुई मैं बापदादा की हथेली पर जाकर बैठ गयी हूँ... एक खूबसूरत सा एहसास... उनके इतने करीब होने का... अपनी नन्हीं नन्हीं आँखों से बाबा को टुकुर टुकुर देखती हुई... बेहद प्यार से दृष्टि दे रहे है बापदादा मुझे... और देखते ही देखते मैं चमचमाते हीरे के रूप में बदलती हुई... उनकी हथेली पर मैं आत्मा चमचमाते कोहिनूर हीरे के समान... मेरी आभा से भरपूर हो गया है आस पास का पूरा ही वातावरण... जैसे एक साथ असंख्य चाँद जमीन पर उतर आये हो...
➳ _ ➳ मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... बापदादा एक नये रूप में मेरे सम्मुख... विशाल और भव्य से टबनुमा बर्तन में भरा है अशरीरी पन का रंग, रूहानियत का रंग... और हाथों में पावनता की पिचकारी लिए एक एक आत्मा को उस रंग में भिगोतें हुए... पूरा रंगने में समय लग रहा है किसी- किसी आत्मा को... अलग अलग पोज़ बदलती हुई आत्माए... मगर मैं याद कर रहा हूँ बापदादा के महावाक्य... बच्चे सेकेंड में अशरीरी होना ही बाप के रंग में रंगना है... और ये निश्चय कर मैं उतर गया हूं पूरी तरह से उस विशाल से टब में एक ही सेकेंड में... बेहद खूबसूरत एहसास... अशरीरीपन का... हम दोनों एक ही रंग में रंगे... अब पहचान मुश्किल सी है, कौन दर्पण है और कौन है चेहरा... मेरी रंगत से मेल खा रहा है रंग रूप तेरा...
➳ _ ➳ बापदादा हाथ बढाकर मुझे निकाल रहें है उस टब से... मगर वो रंग अब पूरी तरह मुझे रंग चुका है... गले लगा रहे है बापदादा मुझे... और सेकेंड में कन्ट्रोलिंग पावर का वरदान दे रहे है मेरे सर पर हाथ रखकर... गहराई से महसूस कर रहा हूँ उन वरदानी हाथों की ऊष्मा को अपने सर पर... और बापदादा के सेकेंड के इशारें पर मैं बापदादा के साथ बिन्दु रूप धारण कर परम धाम की यात्रा पर... मैं और बापदादा परमधाम में बीज रूप अवस्था में... शिव बिन्दु के एकदम करीब... देर तक खुद को सेकेन्ड की कन्ट्रोलिंग पावर से सम्पन्न कर मैं लौट आया हूँ अपनी उसी देह में... मगर देह में भी विदेही और शरीर में अशरीरीपन का गहराई से एहसास समायें हुए... ओम शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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