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 28 / 04 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बेहद की वैराग्य वृत्ति से सिद्धियों की प्राप्ति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *श्रेष्ठ संकल्पों के आधार से अलबेलेपन की नींद का त्याग किया ?*

 

➢➢ *उमंग और उत्साह के आधार से आलस्य की नींद का त्याग किया ?*

 

➢➢ *स्वयं आगे बड समय को समीप लाये ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योगबल द्वारा मन्सा सेवा करने के लिए अपने मन-वचन-कर्म की पवित्रता से साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तब किसी भी आत्मा की वृत्ति, दृष्टि को परिवर्तन कर सकते हो।* स्थूल में कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, उनको सन्मुख का अनुभव करा सकते हो, इसको ही योगबल कहा जाता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कर्मयोगी न्यारा और प्यारा हूँ"*

 

  सदा स्वयं को कर्मयोगी अनुभव करते हो? *कर्मयोगी जीवन अर्थात् हर कार्य करते याद की यात्रा में सदा रहे। यह श्रेष्ठ कार्य श्रेष्ठ बाप के बच्चे ही करते हैं और सदा सफल होते हैं। आप सभी कर्मयोगी आत्मायें हो ना! कर्म में रहते 'न्यारा और प्यारा' सदा इसी अभ्यास से स्वयं को आगे बढ़ाना है।*

 

  स्वयं के साथ-साथ विश्व की जिम्मेवारी सभी के ऊपर है। लेकिन यह सब स्थूल साधन हैं। *कर्मयोगी जीवन द्वारा आगे बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। यही जीवन अति प्रिय जीवन है। सेवा भी और खुशी भी हो। दोनों साथ-साथ, ठीक हैं ना!*

 

  *गोल्डन अर्थात् सतोप्रधान स्थिति में स्थित रहने वाले। तो सदा अपने को इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा आगे बढ़ाते चलो।* सभी ने सेवा अच्छी तरह से की ना! सेवा का चांस भी अभी ही मिलता है फिर यह चांस समाप्त हो जाता है। तो सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति में रहने का अभ्यास अभी सहज हो गया है। जब जहाँ अपनी बुद्धि को लगाना चाहे तो लगा सके। इसी अभ्यास को बढाने के लिए अपने घर में अथवा भट्ठी में आते हो। तो यहाँ के थोडे समय का अनुभव सदा काल बनाने का प्रयत्न करना है। *जैसे यहाँ भट्ठी वा मधुपन में चलते - फिरते अपने को अव्यक्त फरिश्ता समझते हो वैसे कर्मक्षेत्र वा सर्वीस भूमी पर भी यह अभ्यास अपने साथ ही रखना है।*

  

✧    *एक बार का किया हुआ अनुभव कहाँ भी याद कर सकते हैं।* तो यहाँ का अनुभव वहाँ भी याद रखने से वा यहाँ कि स्थिति में वहाँ भी स्थित रहने से बुद्धि को आदत पड जायेगी। जैसे लौकिक जीवन में न चाहते हुए भी आदत अफनी तरफ खींच लेती है, वैसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होने की आदण बन जाने के बाद यह आदत स्वतः ही अपनी तरफ खींचेगी।

 

✧  इतना पुरुषार्थ करते हुए कई ऐसी आत्मायें है जो अब भी यही कहती है कि मेरी आदत है। कमज़ोरी क्यों है, क्रोध क्यों किया, कोमल क्यों बने, कहेंगे मेरी आदत है। ऐसे जवाब अभी देते हैं। *तो ऐसे ही यह स्थिति वा इस अभ्यास की भी आदत बन जाये तो फिर न चाहते हुए भी यह अव्यक्त स्थिति की आदत अपनी तरफ आकर्षित करेगी।* यह आदत आपको अदालत में जाने से बचायेगी। समझा। जब बुरी - बुरी आदतें अपना सकते हो तो क्या यह आदत नहीं डाल सकते हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज की सम्पूर्णता को समीप लायेगी। *तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करें कि जैसे पहले अपने पुरूषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है।* अपनी बॉडी-कॉनशेस देह-अभिमान नेचुरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जायेगा। *ऑटोमेटिकली सोल-कॉनशेस होंगे। कार्य में लगना अर्थात् सोल-कॉनशेस होना। बगैर सोल:कॉनशेस के कार्य सफल नही होगा।* तो निरन्तर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वत: ही हो जायेगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बेहद की वैराग्य वृत्ति से सिद्धियों की प्राप्ति"*

 

_ ➳  सुबह की गुलाबी सी धूप में सूर्य की सुनहरी किरणों को... गुलाब के फूलो पर गिरते हुए देख रही हूँ... कि *ये किरणे किस तरहा गुलाब के सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है... उनका रूप लावण्य किस कदर चमक उठा है.*.. और फिर मै आत्मा अपने ज्ञान सूर्य बाबा की यादो में खो जाती हूँ... मुझ आत्मा के देह की संगति में कंटीले स्वरूप.... *कैसे मेरे बाबा ने अपनी शक्तियो और गुणो की किरणों में... रूहानियत से भर कर खिला हुआ, खुशबूदार फूल बना दिया है... कि आज मेरी सुगन्ध का विश्व मुरीद हो गया है..*. मुझे जो सौंदर्य मिला है वह स्वयं भगवान ने दिया है... जो पूरे विश्व में कहीं और मिल ही नही सकता है... सारा विश्व इस खूबसूरती को चाह रहा है... और *यह मेरी जागीर बन गया है क्योकि सिर्फ मेरे पास ही तो भगवान है.*..

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देहभान से न्यारा बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा के साथ की ऊँगली पकड़कर... इस देह भान से उबर कर... स्वयं को आत्मिक स्वरूप में स्थित करो... *इस पतित और विकारो से ग्रसित दुनिया में लिप्त रहकर... बुद्धि को और ज्यादा मलिन न करो... ईश्वर पिता की यादो भरे हाथ को पकड़कर, बेहद के सन्यासी बनकर मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से देवताई श्रृंगार पाकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी छत्रछाया में दुखो की दुनिया से निकलकर... सुखो भरी छाँव में आ गयी हूँ... *हद के दायरों से निकलकर, बेहद की सन्यासी बन, असीम खुशियो से भर गयी हूँ... मेरा जीवन खुशनुमा बहारो से भर गया है..."*

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को कांटे से खुशबूदार फूल बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... संगम के वरदानी समय में ईश्वरीय यादो की बहारो से सजे... खुशनुमा मौसम में अपने महान भाग्य के मीठे गीत गाओ... *पतित दुनिया की हदो से निकलकर... बेहद के गगन में, खुशियो भरा उन्मुक्त पंछी बन उड़ जाओ... बेहद के सन्यासी बन तपस्या में खो जाओ..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की बाँहों में अपना सतयुगी भाग्य सजाकर कहती हूँ :-* "ओ मेरे प्यारे बाबा... *आपने मेरा जीवन खुशियो का चमन बना दिया है... ज्ञान और याद की रौनक से झिलमिला कर, आत्मिक भाव में जगमगा दिया है...* मै आत्मा देह की सारी सीमाओ से निकल कर... बेहद के आसमाँ में खुशियो की परी बनकर उड़ रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया का मालिक बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो में खोये रहो... *भगवान को पाकर भी, अब देह की मिटटी में मनबुद्धि के हाथो को पुनः मटमैला न करो...* इस पतित दुनिया में स्वयं को और न फंसाओ... *बेहद के वैराग्य को अपनाकर, यादो में मन बुद्धि को निर्मलता से सजाकर... असीम सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल में समाकर जीवन को खुबसूरत बनाकर कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... *आपने मेरा जीवन बेहद के सन्यास से भरकर, कितना हल्का और प्यारा कर दिया है... मन और बुद्धि व्यर्थ से निकलकर... अब कितनी प्यारी और सुखदायी हो गयी है... मेरे सारे बोझ काफूर हो गए है, और मै आत्मा बेफ़िक्र बादशाह बनकर मुस्करा रही हूँ..."* मीठे बाबा को अपना प्यारा मन और बुद्धि की झलक दिखाकर, मै आत्मा... कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आलस्य और अल्बेलेपन की नींद का त्याग*"

 

_ ➳  पूरे कल्प में केवल संगमयुग का ही समय मोस्ट वैल्युबुल समय है जब स्वयं भगवान आ कर सर्व खजानों से अपने हर ब्राह्मण बच्चे को सम्पन्न बना देते हैं। *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जो परमात्मा बाप द्वारा मिले इन अनमोल खजानों को अपने परमात्मा बाप की श्रीमत प्रमाण यूज़ करके इन्हें सफल करते हैं औऱ कल्प - कल्प के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना लेते हैं*।

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं परमात्मा बाप द्वारा मिले सर्व खजानों को स्मृति में ला कर स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि समय, संकल्प और श्वांसों का जो अनमोल खजाना भगवान ने मुझे गिफ्ट के रूप में दिया है उसे किसी भी प्रकार की गफलत में व्यर्थ नही गंवाना। *समय, संकल्प और श्वांसों के अनमोल खजाने को सफल करना ही सर्व खजानों की प्राप्ति का आधार है इसलिए अपना समय, संकल्प और श्वांस अपने प्यारे बाबा की याद और ईश्वरीय सेवा में सफल करते हुए अब मुझे सर्व खजानों को जमा करना है और उन्हें सर्व आत्माओं को बाँटना है*।

 

_ ➳  स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने प्यारे बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हुई मैं जैसे ही उनकी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ *बाबा सहज ही मुझे अपनी और खींच लेते हैं और मैं आत्मा सेकण्ड में आजाद पँछी की भांति देह रूपी पिंजरे का दरवाजा खोल उड़ जाती हूँ ऊपर खुले आसमान की ओर*। नीले गगन में विचरण करते, सूर्य, चांद, सितारों रूपी बत्तियों की रिमझिम को निहारते मैं इन्हें पार करके, चैतन्य सितारों की दुनिया में प्रवेश करती हूँ। चमकते हुए चैतन्य सितारों की यह निराकारी दुनिया मेरे पिता परमात्मा का घर है।

 

_ ➳  अपने बिल्कुल सामने मैं देख रही हूँ अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता परमात्मा को। *उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे अब मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ*। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा प्रेम के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के प्यार में गहराई तक समाती जा रही हूँ। अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं गहन सुख, शांति और आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। *सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारें मन को असीम शीतलता प्रदान कर रही हैं*।

 

_ ➳  सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपनी लाइट की फ़रिशता ड्रेस को धारण कर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। जहां बाहें पसारे बापदादा का लाइट माइट स्वरूप मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है। *बाबा की बाहों में अब मैं फ़रिशता समा रहा हूँ। अपनी बाहों में भर कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर अब बाबा मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों से मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार करके गफलत से सदा मुक्त रहने का बल मुझमे भर रहें हैं*।

 

_ ➳  बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपनी फरिश्ता ड्रेस को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकारी तन में आ कर प्रवेश करती हूँ। *स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ*। बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है। हर प्रकार की गफलत से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए अब मैं उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं शान्ति की शक्ति द्वारा असम्भव को सम्भव करने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं वाणी द्वारा सबको सुख और शांति देकर गायन योग्य बनने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  इसी रीति - धर्म सत्ता अर्थात् हर धारणा की शक्ति स्वयं में अनुभव करने वाली आत्मा। जैसे पवित्रता के धारणा की शक्ति अनुभव करने वाली। *पवित्रता की शक्ति से सदा परमपूज्य बन जाते। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन कर लेते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। पवित्रता की शक्ति आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता की शक्ति नेत्रहीन को तीसरा नेत्र दे देती है।* पवित्रता की शक्ति से इस सारे सृष्टि रूपी मकान को गिरने से थमा सकते हैं। पवित्रता पिलर्स हैं - जिसके आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। पवित्रता लाइट का क्राउन है। ऐसे पवित्रता की धारणा - यह है धर्म सत्ता'। इसी प्रकार हर गुण की धारणा, हर गुण की विशेषता आत्मा में समाई हुई हो। इसको कहा जाता है धर्म सत्ता'। *धर्म सत्ता अर्थात् धारणा की सत्ता। ऐसी धर्म सत्ता वाली आत्मायें बने हो?*

 

✺  *"ड्रिल :- पवित्रता की शक्ति का अनुभव करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ...* आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...

 

_ ➳  परमपिता परमात्मा नई सृष्टि की स्थापना हेतु रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं... *प्यारे शिवबाबा रूहानी पंडा बन बेहद का यज्ञ कुंड रचते हैं...* बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... *बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है...* मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की पवित्र किरणों को ग्रहण कर रही हूँ...

 

_ ➳  बेहद के यज्ञ कुंड की पवित्र अग्नि में मैं आत्मा अपना सबकुछ स्वाहा कर रही हूँ... *योग अग्नि से निकलती पवित्र ज्वाला रूपी किरणों में मुझ आत्मा की अनेक जन्मों की अपवित्रता भस्म हो रही है...* मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं...

 

_ ➳  *अनेक जन्मों से विकारों की अग्नि में जलती हुई मैं आत्मा योग अग्नि में जलकर शीतल, शांत स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति को धारण करते ही मैं आत्मा त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... पवित्रता की शक्ति से मैं आत्मा पवित्रता का फरिश्ता बन रही हूँ... प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्म वतन में ले जाते हैं...

 

_ ➳  *सूक्ष्म वतन में मम्मा, दीदी, दादियाँ, सभी एडवांस पार्टी की आत्माएं मेरा वेलकम कर रही हैं...* मेरे चारों ओर दिव्य फरिश्ते खड़े हैं... सभी अपनी पवित्रता की शक्ति से मुझे भर रहे हैं... *सभी मुझ फरिश्ते को बीच में बिठाकर पवित्रता का ताज पहनाते हैं... चमकीले हीरों की पुष्प वर्षा कर रहे हैं...* मुझ फरिश्ते का ड्रेस जगमगा रहा है... और भी ज्यादा चमक रहा है...

 

_ ➳  *बापदादा और सभी आधारमूर्त आत्माओं से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ...* मैं आत्मा पवित्रता की शक्तियों को चारों ओर फैलाकर वायुमंडल को पवित्र बना रही हूँ... तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति का स्वयं में अनुभव कर... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को अपने पवित्र स्वरुप का अनुभव करा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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