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❍ 09 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ हलचल के वातावरण में भी अचल अडोल स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ "मुझ आत्मा के हिसाब किताब चुक्तु हुए हैं या अभी भी कुछ बोझ रहा हुआ है ?" - यह चेक किया ?
➢➢ पुराने स्वभाव संस्कार या संगदोश या वायुमंडल के परवश तो नहीं हुए ?
➢➢ मायाजीत के साथ प्रकृतिजीत अवस्था का अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ योग में सदा लाइट हाउस और माइट हाउस की स्थिति का अनुभव करो। ज्ञान है लाइट और योग है माइट। ज्ञान और योग-दोनों शक्तियां लाइट और माइट सम्पन्न हो इसको कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिमान। ऐसी शक्तिशाली आत्मायें किसी भी परिस्थिति को सेकण्ड में पार कर लेती हैं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें हैं अनुभव करते हो? क्योंकि सर्वशक्तियां बाप का खजाना है और खजाना बच्चों का अधिकार है, बर्थ राइट है। तो बर्थ राइट को कार्य में लाना - यह तो बच्चों का कर्तव्य है। और खजाना होता ही किसलिए है? आपके पास स्थूल खजाना भी है, तो किसलिए है? खर्च करने के लिए, कि बैंक में रखने के लिए? बैंक में भी इसीलिए रखते हैं कि ऐसे समय पर कार्य में लगा सके। काम में लगाने का ही लक्ष्य होता है ना। तो सर्वशक्तियां भी जन्म सिद्ध अधिकार हैं ना। जिस चीज पर अधिकार होता है तो उसको स्नेह के सम्बन्ध से, अधिकार से चलाते हैं। एक अधिकार होता है आर्डर करना और दूसरा होता है स्नेह का। अधिकार वाले को तो जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। सर्वशक्तियां अधिकार में होनी चाहिएं। ऐसे नहीं - चार है दो नहीं है, सात है एक नहीं है।
〰✧ अगर एक भी शक्ति कम है तो समय पर धोखा मिल जायेगा। सर्व शक्तियां अधिकार में होंगी तभी विजयी बन नम्बर वन में आ सकेगे। तो चेक करो सर्व शक्तियां कहाँ तक अधिकार में चलती हैं। हर शक्ति समय पर काम में आती है या आधा सेकेण्ड के बाद कार्य में आती है। सेकेण्ड के बाद भी हुआ तो सेकेण्ड में फेल तो कहेंगे ना। अगर पेपर में फाइनल मार्क्स में दो मार्क भी कम है तो फेल कहेंगे ना। तो फेल वाला फुल तो नहीं हुआ ना? तो हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति से यूज करो, हर गुण को यूज करो। जिस परिस्थिति में धैर्यता चाहिए तो धैर्यता के गुण को यूज करो। ऐसा नहीं थोड़ा सा धैर्य कम हो गया। नहीं।
〰✧ अगर कोई दुश्मन वार करता है और एक सेकेण्ड भी कोई पीछे हो गया तो विजय किसकी हुई? इसीलिए ये दोनों चेकिंग करो। ऐसे नहीं सर्वशक्तियां तो हैं लेकिन समय पर यूज नहीं कर सकते। कोई बढिया चीज दे और उसको कार्य में लगाने नहीं आये तो उसके लिए वह बढिया चीज भी क्या होगी? काम की तो नहीं रही ना। तो सर्वशक्तियां यूज करने का बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। यदि बहुतकाल से कोई बच्चा आपकी आज्ञा पर नहीं चलता तो समय पर क्या करेगा? धोखा ही देगा ना। तो यह सर्वशक्तियां भी आपकी रचना है। रचना को बहुत काल से कार्य में लगाने का अभ्यास करो। हर परिस्थिति से अनुभवी तो हो गये ना। अनुभवी कभी दुबारा धोखा नहीं खाते। तो हर समय स्मृति से तीव्र गति से आगे बढ़ते चलो। सभी तपस्या की रेस में अच्छी तरह से चल रहे हो ना। सभी प्राइज लेंगे ना। सदा खुशी खुशी से सहज उड़ते चलो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाओ नहीं। कमजोरी मुश्किल बनाती है। सदा मुश्किल को सहज करते उड़ते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आज अमृतवेले बापदादा बच्चों की ड्रिल देख रहे थे, क्या देखा? ड्रिल करने के लिए समय की सीटी पर पहुँचने वाले नम्बरवार पहुँच रहे थे। पहुँचने वाले काफी थे लेकिन तीन प्रकार के बच्चे देखे।
〰✧ एक थे - समय बिताने वाले, दूसरे थे - संयम निभाने वाले, तीसरे थे - स्नेह निभाने वाले। हरेक का पोज अपना - अपना था। बुद्धि को ऊपर ले जाने वाले बाप से, बाप समान बन, मिलन मनाने वाले कम थे।
〰✧ रूहानी ड्रिल करने वाले ड्रिल करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पा रहे थे। कारण क्या होगा? जैसे आजकल स्थूल ड्रिल करने के लिए भी हल्का - पन चाहिए, मोटा - पन नहीं चाहिए, मोटा - पन भी बोझ होता है। वैसे रूहानी ड्रिल में भी भिन्न - भिन्न प्रकार के बोझ वाले अर्थात मोटी बुद्धि - ऐसे बहुत प्रकार के थे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन है एक्सरसाइज़। वैसे आत्मिक एक्सरसाइज़ योग अभ्यास द्वारा अभी-अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाना, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना- अभी-अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी-अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् वैकुण्ठवासी बन देवता रूप का अनुभव करना। ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज़ करो तो सदा हल्के हो जावेंगे। भारीपन खत्म हो जावेगा। पुरुषार्थ की गति तीव्र हो जावेगी। सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- पुराने खाते को समाप्त करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमधाम निवासी... परमधाम से आयी इस स्थूल धरा पर... अपना पार्ट
बजाने... सतयुग... त्रेतायुग... द्वापरयुग... कलियुग... पार्ट बजाते बजाते काली
हो गई... अपनी शक्तियों को भूल... अपने आप से अनजान... उस भगवान से भी अनजान...
जो मेरा पिता है... और मै उनकी संतान हूँ... मैं आत्मा हूँ... और ना ही यह शरीर...
इस सत्य से अनजान मैं आत्मा बैठी हूँ... शांत शीतल समुद्र के तट पर... खोई हुई...
उलझी हुई... मायूस सी मैं आत्मा बैठी हूँ... पुकार रहीं हूँ उस भगवान को जो
दुःखहर्ता... सुखकर्ता हैं... मेरी पुकार सुन.. मेरे पिता स्वयं धरती पर आगये...
ब्रह्माकुमारी संस्था में मुझ आत्मा को सच्चा गीता ज्ञान... परमपिता परमात्मा
का ज्ञान... आत्मा - परमात्मा का ज्ञान देने... और मैं आत्मा... अपने पिता की
पहचान को जान... द्रवित हो जाती हूँ... और पहुँच जाती हूँ उनके पास...
❉ अपने पिता का हाथ पकड़ कर मैं आत्मा सैर कर रही हूँ और बाबा ने कहा :- "मेरी
फूल बच्ची... क्यों मायूस हो जाती हो... मुझे जाना... पहचाना... अपना बनाकर
क्यों... उलझी हुई हो ? इस धरा पर तुझसे प्यारा अतिरिक्त मुझे और कोई नहीं
है... मासुमसी यह आँखों मे दुःख की लहर क्यों है...?"
➳ _ ➳ बाबा के प्यार और दुलार को देख मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :- "मेरे
बाबा... आप तो मेरे पिता हो... कल्प के बाद मिले हो... अब तक तो आप से अनजान
थी... अब मिले हो तो... खुशी में मन क्यों नहीं झूम रहा हैं... मन मे यह
अदृश्य... असहनीय वेदना क्यों हैं... क्यों मन बारबार उदास हो जाता है ? क्या
वह बात हैं जिससे मैं अनजान हूँ... क्या वह दुःख हैं जो मैं महसूस कर रही
हूँ..."
❉ शीतल पवन की लहरों समान मेरे बाबा बोले :- "मेरी राज दुलारी... मेरी लाडली
बच्ची... कल्प के संगमयुग में मुझे आना हैं... इतने युगों पश्चात यह बाप और
बच्चें का पवित्र मिलन हुआ हैं... यह जन्म अंतिम जन्म हैं... जिस घड़ी से मुझे
जाना... उस घड़ी से जो बीता उसको बिंदी लगाना सीख गई हो... लेकिन अपने 63 जन्मो
के विकर्मों को भस्म करना नहीं सीखी हो..."
➳ _ ➳ गुल गुल फूलों से महकते मेरे बाबा को मैं आत्मा कहती हूँ :- "मेरे
गुलाब बाबा... आपने अपना बनाया... 21 जन्मों के स्वराज्य भाग्य के अधिकारी बनाया...
दुःख की लहरों से दूर हमें आप सुख की ऊंची मंजिल पर ले आये हो... सर्व दोषो से
मुक्त्त कर सर्वगुण सम्पन्न बना दिया हैं... श्रीमत आपकी इस अंतिम जन्म में गले
का हार बन गई है... अंतर्मुखता की इस यात्रा में... मैं आत्मा... आप के नक़्शे
कदम पे चल रहीं हूँ..."
❉ सुख के सागर मेरे प्यारे बाबा बोले :- "रूहानी गुलाब सी मेरी प्यारी बच्ची...
अब समय हैं जन्मों के विकारों के खाते को खत्म करना... योगबल की शक्त्ति...
पवित्रता की शक्त्ति से अपने पुण्य के खाते को बढ़ाना हैं... अपने सूक्ष्म ते
सूक्ष्म विकर्मों के बोझ से मुक्त्त हो... सब को मुक्त्त करना हैं... सर्व
शक्तिसम्पन्न बन सर्व को शक्ति का दान करना हैं... शांति देवा बन शांति का दान
करना हैं... 63 जन्मों के विकर्मों को योग अग्नि की भट्टी में स्वाहा करना है
और कंचन वर्ण बनना हैं..."
➳ _ ➳ प्यार भरी आँखो से बाबा के हाथ चूमती मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :- "मीठे
बाबा... कल्प के संगमयुग में... इस महा मिलन के कुम्भ मेले में... मैं आत्मा...
इस सुवर्ण जन्म में... अपने जन्मों के विकारो को भस्म कर... आप समान बन रही
हूँ... योग अग्नि में तप कर खरा सोना बन रही हूँ... योग की ऊंची मंजिल पर बैठ
आप की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजा रही हूँ... हर गली... हर घर मे आप का ही झंडा
लहरा रहा है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- हलचल के वातावरण में भी अचल अडोल स्थिति का अनुभव"
➳ _ ➳ ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, इस बेहद के ड्रामा में वैरायटी आत्माओं के
वैरायटी पार्ट को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना वन्डरफुल है ये
ड्रामा! इस सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना - अपना पार्ट प्ले कर रही है और
एक का पार्ट भी दूसरे के पार्ट से मैच नही करता। हर आत्मा कल्प पहले मुआफ़िक अपना
पार्ट बिल्कुल ऐक्यूरेट बजा रही है। बाबा ने ड्रामा के इस राज को स्पष्ट करके
जीवन को कितना सहज बना दिया है। इस राज को जानने से क्या, क्यो और कैसे की क्यू
में उलझने की बजाए सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाना कितना सरल हो गया है। ड्रामा के
पट्टे पर खड़े होकर, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ लेने से जीवन को जैसे
एक नई दिशा मिल गई है।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन मे निरन्तर आगे बढ़ते हुए, ड्रामा के हर राज को अच्छी
रीति समझ अडोल रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अब मुझे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य
को जल्द से जल्द प्राप्त करना है मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, ड्रामा
के हर खूबसूरत पहलू से परिचित कराने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा से मीठी मीठी
रूहरिहान करने, उनसे मंगल मिलन मनाने और ड्रामा के पट्टे पर सदा अचल, अडोल रहने
का उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन और
बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और सेकेण्ड में अशरीरी होकर, देह से बिल्कुल न्यारा
एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आ जाता हूँ और अपने
बिंदु बाप के पास उनके धाम की ओर चल पड़ता हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में स्थित मेरे बिंदु बाप से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझ
बिंदु सितारे के साथ कनेक्ट होकर मुझे बिल्कुल सहज रीति ऊपर की ओर खींच रही है
और मैं चैतन्य सितारा, इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर, स्वयं को हर चीज
से उपराम अनुभव करते हुए, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ता जा रहा हूँ। मेरे
बिंदु पिता से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे अति शीघ्र 5 तत्वों की बनी
साकारी दुनिया को पार कराये, फरिश्तो की आकारी दुनिया से ऊपर, आत्माओं की उस
निराकारी दुनिया में ले आई है जहाँ पहुँच कर मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति
का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया में मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ ना साकार देह का कोई
बन्धन है और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है केवल चमकती हुई निराकारी बिंदु
आत्मायें अपने बिंदु बाप की अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर,
उनके प्यार और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बिंदु बाप के साथ
अपने बिंदु बच्चो का यह मंगल मिलन मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है। अपने
बिंदु पिता से मिलन मनाने के लिए मैं बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे उनके पास
पहुँचती हूँ ओर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती
हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की प्रवेशता के कारण मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो
अब परमात्म शक्तियों से चार्ज हो गई है और मैं आत्मा जैसे लाइट हाउस बन गई हूँ।
परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही
हूँ। शक्तियों का पुंज बनकर, बेहद के सृष्टि ड्रामा में अपना खूबसूरत पार्ट
बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ। फिर से 5 तत्वों की
साकारी दुनिया में, अपने साकारी तन में प्रवेश कर ड्रामा के पट्टे पर आकर खड़ी
हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ड्रामा के हर राज को गहराई से समझ,
साक्षी दृष्टा बन, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखते हुए, हर परिस्थिति
में अचल अडोल रहने का अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ। "सृष्टि का यह नाटक अब पूरा
हो रहा है" यह स्मृति मुझे हर आकर्षण से मुक्त और हर चीज से उपराम करके, ड्रामा
के राज को अच्छी रीति समझ, स्वयं को अचल, अडोल और एकरस बनाने में सहयोग दे रही
है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं एक बाप को अपना संसार बनाकर सदा एक की आकर्षण में रहने वाली कर्मबन्धन मुक्त्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं दृष्टि और वृत्ति बेहद की बनाने वाली महान आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ विशेष आत्मा बनने के लिए सर्व की विशेषताओं को देखो- बापदादा सदा बच्चों
की विशेषताओं के गुण गाते हैं। जैसे बाप सभी बच्चों की विशेषताओं को देखते
वैसे आप विशेष आत्मायें भी सर्व की विशेषताओं को देखते स्वयं को विशेष आत्मा
बनाते चलो। विशेष आत्माओं का कार्य है विशेषता देखना और विशेष बनना। कभी भी
किसी आत्मा के सम्पर्क में आते हो तो उसकी विशेषता पर ही नज़र जानी चाहिए। जैसे
मधुमक्खी की नज़र फूलों पर रहती ऐसे आपकी नज़र सर्व की विशेषताओं पर हो। हर
ब्राह्मण आत्मा को देख सदा यही गुण गाते रहो - ‘‘वाह श्रेष्ठ आत्मा वाह''! अगर
दूसरे की कमज़ोरी देखेंगे तो स्वयं भी कमजोर बन जायेंगे। तो आपकी नज़र किसी की
कमज़ोरी रूपी कंकर पर नहीं जानी चाहिए। आप होली हंस सदा गुण रूपी मोती चुगते
रहो।
✺ "ड्रिल :- सर्व आत्माओं की विशेषता को देखना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा सागर के किनारे सुहाने मौसम में ठंडी हवाओं के बीच बैठी हुई
हूं... ठंडी हवाओं के झोंके मेरे बालों को उड़ा रहे हैं... और समुंदर की लहरें
मेरे पास आकर मेरे पैरों को छूती हुई जा रही है... बैठे-बैठे मैं आत्मा सागर को
गहराई से देख रही हूँ... और जैसे ही सागर की लहरें शांत होती है तो मैं देखती
हूं सागर के किनारे कुछ हंस मुझे दिखाई देते हैं... उन्हें देखकर मैंने यह
अनुभव किया कि वह हंस उस सागर से सिर्फ और सिर्फ मोती ही चुगते हैं और दूसरी
तरफ मैंने देखा कि कुछ पक्षी है जो उसमें से सिर्फ कीड़े मकोड़े चुन रहे हैं...
यह दृश्य बड़ा ही विचित्र था... तभी मेरा अंतर्मन उस हंस के पास जाकर पूछता है
तुम और यह पक्षी एक ही जगह पर रहते हुए भी अलग-अलग वस्तुएं क्यों चुन रहे हो ?
हंस मुझे देख कर मुस्कुराने लगता है और कुछ सोचने लगता है...
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद हंस मुस्कुराते हुए मुझे कहता है... इसी स्थान पर अच्छी
और बुरी दोनों चीजें हैं परंतु मैं सिर्फ अच्छी चीजें ही चुनता हूं मेरी आदत
सिर्फ अच्छाई को देखना है और अन्य जीव जंतु सिर्फ बुराई को चुनते हैं सिर्फ
बुरी चीजों को चुनते हैं, अर्थात सिर्फ बुराई को चुनते हैं... इतना कहकर हंस
फिर से मोती चुगने लग जाता है और मेरा अंतर्मन मेरे इस शरीर में आकर विराजमान
हो जाता है फिर मैं सोचने लगती हूं... हम मनुष्य की फितरत भी शायद इन जीव
जंतुओं की तरह हो गई है जो सिर्फ एक दूसरे के अंदर बुराई ही देखते हैं... हम
किसी की हम किसी की बुराई देखते हैं तो उसकी सभी अच्छाइयां उसके अंदर दब कर रह
जाती है...
➳ _ ➳ और सोचते सोचते जब मैं हंस के बारे में सोचती हूँ तो मैं यह अनुभव करती
हूं कि बाबा ने आकर हम बच्चों को सिखाया है कि हम एक दूसरे की अच्छाइयों को
देखें ... और जब हम एक दूसरे की अच्छाइयों को देखते हैं तो उसकी सभी बुराइयां
धीरे धीरे समाप्त हो जाती है... इस दृश्य का अनुभव करने के बाद मैं चलते-चलते
एक बगीचे में आ जाती हूं जहां पर मैं देखती हूं अलग-अलग तरह के फूल खिले हुए
हैं... साथ ही मैं देखती हूं कि मधुमक्खी उन फूलों पर बैठ कर उनका रस पी रही
है... वैसे तो उस बगीचे में और भी पौधे थे... और परंतु मधुमक्खी सिर्फ और सिर्फ
खुशबूदार और रसीले फूलों पर ही बैठकर रस ले रहे हैं... इस दृश्य का आनंद लेने
के लिए मैं कुछ देर बैठ जाती हूं...
➳ _ ➳ पर बैठे-बैठे मैं यह आभास करती हूं कि मधुमक्खी मेरे कान के पास आकर कहती
है... मुझे सिर्फ फूलों के रस पीने की ही आदत है... इसलिए मैं सिर्फ यहां फूलों
पर ही बैठती हूं... इतना कहकर वह मधुमक्खी उड़ जाती है... और दूसरे फूल पर जाकर
बैठ जाती है और मैं अनुभव करती हूं कि यह मधुमक्खी फिर से मुझे वही गुण सिखा
गई... मधुमक्खी ने भी मुझे सिखाया कि हमेशा दूसरों के गुण ही देखो अगर दूसरों
के गुण देखोगे तो गुणग्राही कहलाओगे और अगर अवगुण देखने की चेष्टा करोगे तो
अवगुणी कहलाओगे... और मैं सोचती हूं कि अगर हम दूसरों की कमजोरियां देखते हैं
तो उनका चिंतन करते करते हमारे में भी धीरे धीरे वही कमजोरियाँ आने लगती हैं और
हमारी सभी शक्तियां कम होने लगती है...
➳ _ ➳ इतना सब सोचकर मैं अपने सामने मेरे बाबा को इमर्ज करती हूं... और कहती
हूं बाबा आप तो यह दृश्य लगातार देख रहे हो आपने मुझे बहुत समझाने का प्रयास
किया कि बच्चे गुणग्राही बनो... आज जैसे मैंने उस हंस को मोती चुगते हुए देखा
तो मुझे आभास हुआ कि इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनों हैं... परंतु हम सिर्फ
अच्छाई को देखेंगे तो आगे बढ़ते ही जाएंगे... मैं बाबा को बार-बार धन्यवाद कहती
हूं और बाबा से यह वादा करते हैं बाबा अब मैं हमेशा सभी आत्माओं का और अपना
कल्याण करने के लिए सिर्फ और सिर्फ उनका गुण ही देखूंगी, गुणग्राही बनूंगी...
कभी भी किसी आत्मा का अवगुण नहीं देखूंगी हमेशा उस आत्मा की सिर्फ और सिर्फ
अच्छाई ही और गुण ही देखूंगी... जब मैं बाबा से यह वादा करती हूं तो बाबा बहुत
खुश होते हैं और मेरे सर पर हाथ रखकर कहते हैं विजयी भव...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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