━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 30 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया को बुधी से भूलने का अभ्यास किया ?

 

➢➢ माया से हारे तो नहीं ?

 

➢➢ हद की नाज़ नखरों से निकल रूहानी नाज़ में रहे ?

 

➢➢ बाप, सेवा और परिवार से मोहब्बत अनुभव की ?

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  सारा दिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव को धारण करने का विशेष अटेन्शन रख अशुभ भाव को शुभ भाव में, अशुभ भावना को शुभ भावना में परिवर्तन कर खुशनुमा स्थिति में रहना है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   "मैं सहजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

✧  अपने को सहजयोगी, राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? सहजयोगी अर्थात् स्वत: योगी। योग लगाने से योग लगे नहीं, तो योगी के बजाए वियोगी बन जाएं इसको सहजयोगी नहीं कहेंगे। सहजयोगी जीवन है। तो जीवन सदा होती है। योगी जीवन अर्थात् सदा के योगी, दो घण्टे चार घण्टे योग लगाने वाले को योगी जीवन नहीं कहेंगे। जब है ही एक बाप दूसरा न कोई, तो एक ही याद आएगा ना?

 

  एक की याद में रहना-यही सहजयोगी जीवन है। सदा के योगी अर्थात् योगी जीवन वाले। दूसरे जो योग लगाते हैं, वह जब योग लगाते हैं तब लगता है और ब्राह्मण आत्माएं सदा ही योग में रहती हैं क्योंकि जीवन बना ली है। चलते-फिरते, खाते-पीते योगी। है ही बाप और मैं। अगर दूसरा कोई छिपा हुआ होगा तो वह याद आएगा। सदा योगी जीवन है अर्थात् निरन्तर योगी हैं। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि योग लगता नहीं, कैसे लगाएं?

 

  सिवाए बाप के जब कुछ है ही नहीं, तो लगाएं कैसे-यह क्वेश्चन ही नहीं। जब दूसरे तरफ बुद्धि जाती है तो योग टूटता है और जब टूटता है तो लगाने की मेहनत करनी पड़ती है। लगाने की मेहनत करनी ही न पड़े, सेकण्ड में बाबा कहा और यादस्वरूप हो गए। ऐसे तो कहने की भी आवश्यकता नहीं, हैं ही-ऐसा अनुभव करना योगी जीवन है। तो सदा सहजयोगी आत्माएं हैं-इस अनुभूति से आगे बढ़ते चलो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  उन्हों के राज्य दरबार में तो खिटखट होती है। यहाँ तो खिटखट की बात ही नहीं है। आपोजिशन तो नहीं है ना। एक का ही कन्ट्रोल है। कभी-कभी अपने ही कर्मचारी आपोजिशन करने लग पडते हैं तो राजयोगी अर्थात मास्टर सर्वशक्तिवान राजा आत्मा, एक भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं दे सकती।

 

✧  स्टॉप कहा तो स्टॉप ऑर्डर पर चलने वाले हैं ना। क्योंकि भविष्य में लाँ और ऑर्डर पर चलने वाला राज्य है। तो स्थापना यहाँ से होनी है ना। यहाँ ही आत्माराजा अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को लाँ और ऑर्डर पर चलाने वाली बने, तभी विश्व-महाराजन बन विश्व का राज्य लाँ और ऑर्डर पर चला सकती है।

 

✧  पहले स्व राज्य लॉ और ऑर्डर पर हो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  परिवर्तन किस को कहा जाता है? प्रैक्टिकल लाइफ का सैम्पल किसको कहा जाता है? जैसा समय, जैसा सरकमस्टांश वैसे स्वरूप बने- यह तो साधारण लोगों का भी होता है। लेकिन फ़रिश्ता अर्थात् जो पुराने या साधारण हाल-चाल से भी परे हो। अभी आपकी टॉपिक है ना- समय की पुकार। तो अभी समय की पुकार आप विशेष महान आत्माओं के प्रति यही है कि अभी फ़रिश्ता अर्थात् अलौकिक जीवन स्वरूप में दिखाई दे।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- एक बाप की याद में रहना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन प्यारे बाबा की कुटिया में बैठ विचित्र बाबा के चित्र को निहार रही हूँ... मीठे बाबा की मीठी यादों की मीठी फुहारों के बीच बैठ भीग रही हूँ... निराकार बाबा साकार बाबा के द्वारा मुझे दृष्टि देते जा रहे हैं... बाबा की मीठी दृष्टि से पवित्रता की सफ़ेद किरणें मुझमें समाती जा रही हैं... एक-एक किरण से मेरे अन्दर के विकारों की सारी मैल धुलती जा रही है... मैं आत्मा पावनता से सजधजकर मीठे बाबा के साथ रूह-रिहान करती हूँ...

❉  प्रेम के भावों में मुझे डुबोकर प्रेम की तरंगो में लहराते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... मीठे पिता के साये बैठे हो तो प्यार में डूब कर बैठो... यादो के अम्बार को लेकर बैठो... हर धड़कन को ईश्वरीय प्यार में भिगो कर बैठो... तो यह सारा आलम प्यार की तरंगो से खिल उठेगा... इन मीठी तरंगो को बातो में नातो में न बिखराओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा पावनता की खुशबू से महकते हुए प्यार के सागर बाबा से कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... आपकी मीठे अहसासो में डूबना कितना सुखद है ह्रदयस्पर्शी है... अपनी बुद्धि को बाहरी नातो में भटकाकर दुःख का स्वाद चख चुकी हूँ... अब इस मीठे प्यार सागर में खो जाना चाहती हूँ...”

❉  शीतल नैनों की फुलवारी से मेरे मन आँगन को सींचते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे बच्चे... मीठे पिता और बच्चे की समीपता ही सुंदर सत्य है... जिस संसार को बुद्धि में लिए घूम रहे वह भ्रम है... तो अब एक पल भी इस व्यर्थ में ना लगाओ... हर साँस को ईश्वरीय प्यार में पिरो दो... और अंतर्मुखी बन प्यार का समां बना दो...”

➳ _ ➳  प्रभु की यादों को श्वांसों में निरंतर बहाकर मन में बाबा को बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा हर साँस रुपी तार में आपको पिरो ली हूँ... ईश्वरीय प्यार में रंग कर अपनी खूबसूरती को पाकर खिल उठी हूँ... सब जगह से बुद्धि को हटाकर सारा आलम ईश्वरीय प्यार के रंग से भर ली हूँ...”

❉  सारे खजानों को मुझ पर लुटाते हुए सर्व खजानों के सागर मेरे मीठे बाबा कहते हैं:- “प्यारे बच्चे... विश्व पिता सामने आ बैठा है... सारे खजाने लेकर लुटाने बैठा है... पिता लुटने आया है तो सारा लूट लो... पास में बैठ कर बाहर न भटको वरना खजानो के प्राप्ति का समय हाथो से फिसल जाएगा... और खालीपन से दामन भर जाएगा... इतना डूब जाओ ईश्वरीय प्यार में कि हवा के कण कण में यह मीठे अहसास समा जाय...”

➳ _ ➳  सागर से खजानों को लूटकर खुशियों के अम्बर में अपने भाग्य के सितारे को चमकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी हो गई हूँ... सारा कचरा बुद्धि से निकाल ली हूँ... अंतर्मुखी बन यादो में डूब गयी हूँ... मुझे अपने सुनहरे स्वरूप और खूबसूरत पिता के सिवाय कुछ भी याद नही है...”

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- इस अनादि अविनाशी बने बनाये ड्रामा में हरेक के पार्ट को देही - अभिमानी बन साक्षी होकर देखना है"

➳ _ ➳ इस सृष्टि रूपी विशाल रंगमंच पर चलने वाली सीन सीनरियो को देखने की इच्छा से अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फ़रिशता अपने साकारी शरीर से बाहर निकलता हूँ और सृष्टि रूपी भू लोक की सैर करने चल पड़ता हूँ। धरती के आकर्षण से परे काफी ऊंचाई से मैं फ़रिशता धरती के चारों ओर का नजारा अपनी आंखों से स्पष्ट देख रहा हूँ। इतनी ऊंचाई से देखने पर भू लोक का नज़ारा ऐसे लग रहा है जैसे मैं कोई बहुत बड़ा मंच देख रहा हूँ, जिस पर कोई ड्रामा अथवा नाटक चल रहा है। इस वैरायटी ड्रामा में वैरायटी एक्टर्स को वैरायटी पार्ट प्ले करते हुए मैं देख रहा हूँ।

➳ _ ➳ कोई गरीब है, कोई अमीर है। कोई दुखी है, कोई सुखी है। कोई हंस रहा है, कोई रो रहा है। कोई अत्याचार कर रहा है, कोई उस अत्याचार को सहने के लिए विवश है। ये सब दृश्य देख कर मन मे विचार आता है कि सभी एक समान क्यो नही है! क्यो कोई दुखी और कोई सुखी है! मन मे उठ रही इस दुविधा का हल जानने के लिए मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन अपने बाबा के पास। सूक्ष्म वतन में पहुंचते ही एक विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ सामने एक विशाल पर्दा है जिस पर वो सब सीन चल रही है जो मैं देखते हुए आ रहा था। जिसे देख कर मन मे विचार उठ रहे थे कि ऐसा क्यों? लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बाबा भी यही सब दृश्य यहाँ बैठ कर स्पष्ट देख रहें है लेकिन बाबा के चेहरे पर कोई दुविधा नही। बल्कि मुस्कराते हुए बाबा हर दृश्य को देख रहें हैं।

➳ _ ➳ तभी उस पर्दे पर और भी भयानक मंजर दिखाई देता है। कहीं बाढ़ के कारण तबाही का दृश्य, तो कहीं भूकम्प के कारण गिरती हुई बड़ी बड़ी बिल्डिंग, कही बॉम्ब फटने से तबाह होते शहर, कहीं गृह युद्ध। लाशों के ढेर लगे हैं, लोग चीख रहें हैं, चिल्ला रहे हैं लेकिन बाबा के चेहरे पर अभी भी वही गुह्य मुस्कराहट देख कर मैं हैरान हो रहा हूँ। बाबा मेरे मन की दुविधा जान कर अब मेरे पास आते हैं और मुझ से कहते हैं, बच्चे:- "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर सीन को देखोगे तो कभी कोई संदेह या प्रश्न मन मे पैदा नही होगा"। अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और मास्टर त्रिकालदर्शी भव का वरदान दे कर, तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक मेरे मस्तक पर लगा कर मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर देते हैं।

➳ _ ➳ सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप धारण करके, मस्तक पर तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाये अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ और फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रहा हूँ। किन्तु अब मेरे मन मे कोई संदेह, कोई प्रश्न नही। ड्रामा की हर सीन को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं। त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर एक्ट को देखने से अब हर एक्ट एक खेल की भांति प्रतीत हो रही है और मनोरंजन का अनुभव हो रहा है।

➳ _ ➳ सृष्टि के आदि, मध्य, अंत के राज को जानने और स्वयं को केवल एक्टर समझ कर पार्ट बजाने से अब मैं हर फिक्र से मुक्त हो, बेफिक्र बादशाह बन जीवन का आनन्द ले रही हूं। इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूं कि इस विश्व नाटक में कोई किसी का मित्र/शत्रु नही है। सभी पार्टधारी है और सभी अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रहें हैं इसलिए क्या,क्यो और कैसे के सब सवालों से स्वयं को मुक्त कर, किसी भी बात में संशय ना उठाते हुए साक्षीदृष्टा बन इस सृष्टि ड्रामा में अपना पार्ट बजा रही हूं।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺  मैं हद के नाज-नखरों से निकल रूहानी नाज में रहने वाली प्रीत बुद्धि आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बाप से, सेवा से और परिवार से मुहब्बत रखकर मेहनत से छूटने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बाहर के साधनों द्वारा या सेवा द्वारा अपने आपको खुश करना - यह भी अपने को धोखा देना है। बापदादा देखते हैं कभी-कभी बच्चे अपने को इसी आधार पर अच्छा समझखुश समझ धोखा दे देते हैंदे भी रहे हैं। दे देते हैं और दे भी रहे हैं। यह भी एक गुह्य राज है। क्या होता हैबाप दाता हैदाता के बच्चे हैंतो सेवा युक्तियुक्त नहीं भी हैमिक्स हैकुछ याद और कुछ बाहर के साधनों वा खुशी के आधार पर है, दिल के आधार पर नहीं लेकिन दिमाग के आधार पर सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्ष फल उन्हों को भी मिलता हैक्योंकि बाप दाता है और वह उसी में ही खुश रहते हैं कि वाह हमको तो फल मिल गयाहमारी अच्छी सेवा है। लेकिन वह मन की सन्तुष्टता सदाकाल नहीं रहती और आत्मा योगयुक्त पावरफुल याद का अनुभव नहीं कर सकतीउससे वंचित रह जाते।

 

 _ ➳  बाकी कुछ भी नहीं मिलता होऐसा नहीं है। कुछ-न-कुछ मिलता है लेकिन जमा नहीं होता। कमायाखाया और खत्म। इसलिए यह भी अटेन्शन रखना। सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैंफल भी अच्छा मिल गयातो खाया और खत्म। जमा क्या हुआअच्छी सेवा कीअच्छी रिजल्ट निकली, लेकिन वह सेवा का फल मिला, जमा नहीं होता। इसलिए जमा करने की विधि है - मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्रता। फाउन्डेशन पवित्रता है। सेवा में भी फाउन्डेशन पवित्रता है। स्वच्छ होसाफ हो। और कोई भी भाव मिक्स नहीं हो। भाव में भी पवित्रताभावना में भी पवित्रता।

 

✺   "ड्रिल :-  मंसा में, चाहे वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में शुद्धि का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं आत्मा सूक्ष्मवतन में शिव बाबा के साथ एक रुहानी हाल में खडी हुई हूँ... जहाँ बहुत सुन्दर सुन्दर रूहानी रंगो से मूर्तियां रंगी हुई है एंव सफेद मोतियों से सजी हुई है मैने बाबा से पूछा बाबा यह सुन्दर चित्र किसके है और किसने बनाये? बाबा अपनी रूहानी नजरों से मुझ आत्मा को दिव्य साक्षात्कार करवा रहे कि कैसे हम आत्मायें मोतियों से सजे हुए... हाथों में बासुरी लिये अपना दिव्य खेल खेल रहे है... मुझ आत्मा को इन खूबसूरत चित्रों में खोया देख बाबा मुसकुरा कर कह रहे कि यह रूहानी चित्र आप बच्चों के ही तो है जो बाबा दिन भर तैयार करता है इस उम्मीद के साथ कि एक दिन आप इन जैसे बन जाओगे... मैं आत्मा अपने आँसूओं को चाहते हुए भी नही रोक पा रही और मन ही मन सोच रही कि वाह मेरा भाग्य... वाह मेरे बाबा... कभी सपने में भी नही सोचा था कि तुम हमे मिल जाओगे और  हमे विश्व की बादशाही दिलवाओगे... भला और किसी को क्या चाहिये, तुम मिल गए मानो सब मिल गया... शुक्रिया बाबा मुझे अपना बनाने के लिये...

 

 _ ➳  कुछ देर बाद बाबा एक स्थान पर खड़े हो जाते हैं... और मैं आगे दौड़ जाती हूँ... जैसे ही मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो बाबा मुझसे दूर दिखाई देते हैं... मैं दौड़ते हुए बाबा के पास जा रही हूँ... बाबा ने कहा बच्ची पहले तुम सेवा करने के लिये तैयार हो जाओ... इतना कहकर बाबा सर्वप्रथम मुझे अपनी सतरंगी किरणों से नहलाकर सेवा करने के लिए तैयार कर रहे हैं... जैसे-जैसे ये सतरंगी किरणें मुझपर गिरती है... वैसे -वैसे मैं अपने आपको शक्तिशाली महसूस करने लगती हूँ... उनकी किरणों से नहाकर मैं अपने आपको संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... और मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली आत्मा समझने लगी हूँ कि मुझे स्वयं भगवान ने विश्व परिवर्तन के कार्य में अपना सहयोगी बनाया है...

 

 _ ➳  अब मैं सर्व खजानों से भरपूर होकर विश्व परिवरतन के खेल में आगे बढ़ती चली जा रही हूँ... और अपने व्यर्थ संकल्पों को पीछे छोड़ती जा रही हूँ... मेरा मन भी बच्चे की भांति एकदम निष्कपट और कोमल हो गया है... मैं खेल में और भी उत्साहित हो रही हूँ... उछल-कूद रही हूँ... मेरे मन में किसी के लिए भी कोई बैर-भाव नहीं है... बाबा के साथ खेल खेलते हुए मेरी मंसा, वाचा, कर्मणा सभी शुद्ध होते जा रहे हैं... मेरी स्थिति और भी ऊँची होती जा रही है... ये अनुभव करते हुए मैं और आगे दौड़ने लगती हूँ... बाबा मुझे फिर दूर खड़े होकर निहारने लगते हैं... और अपनी पलकों के इशारे से मुझे अपने पास बुलाते हैं...

 

 _ ➳  फिर दौड़कर मैं बाबा के पास जाती हूँ... और बाबा मुझे संगम युग के महत्व के बारे में बता रहे हैं... बाबा कहते हैं- "खेल-खेल में प्राप्त कर लो संगमयुग के सर्व खजाने, कहीं समय ना बीत जाये फिर बनाने लगो तुम बहाने..." मैं उछलती-कूदती हुई उनकी सभी कही गई बातों को अपने अंदर समां लेती हूँ... उनकी दी हुई सभी अनमोल शिक्षायें जीवन में उतार लेती हूँ... और गुलाब की तरह खिल जाती हूँ... मेरे जीवन में मैं संपूर्ण पवित्रता की झलक देखने लगती हूँ...

 

 _ ➳  तभी बाबा को मेरी नज़रे ढूंढ़ती है... बाबा खेल में मुझसे छुप जाते है... और मैं चुपके से उन्हें ढूंढ लेती हूँ... और मेरा मन बाबा के साथ खेलते हुए ये अनुभव कर रहा है... मानों मैंने सबकुछ पा लिया हो... मेरा मन अति आनंदित हो रहा है तथा अतिइंद्रिय सुख की अनुभूति करने लगती हूँ... और इसी आनंद और उत्साह से मैं अपने पुरुषार्थ में जुट जाती हूँ...

 

 _ ➳  मेरा मन एकदम बच्चे की तरह निष्कपट और कोमल बन गया है... मेरे संबंध-संपर्क में आने वाली सभी आत्माएं पावन बन रही हैं... मैं मंसा, वाचा, कर्मणा, पवित्र बन चुकी हूँ... मुझे सर्व खजाने के मालिक पन की अनुभूति हो रही है... अब मैं अन्य आत्माओं के प्रति शुभचिंतक बन उनको शुभ भावनाएं देती जा रही हूँ... मैं जितना-जितना सभी को शुभभावनाएँ देती जा रही हूँ... उतना ही मैं पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━