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 23 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ "भ्रकुटी के बीच हमारा निवास है" - यह स्मृति में रहा ?

 

➢➢ धरमराज की सजाओ से छूटने के लिए अपने सब हिसाब किताब चुक्तु किये ?

 

➢➢ सदा अलर्ट रह सर्व की आशाओं को पूरण किया ?

 

➢➢ मुरलीधर की मुरली पर देह की भी सुध बुध भूलने वाले सच्चे गोप गोपियाँ बन कर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। सिर्फ योग में बैठ जाना यही साधना नहीं है लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन और बुद्धि चारों ही एक बाप की तरफ बाप के साथ समान स्थिति में बैठ जाएं-तब कहेंगे यथार्थ साधना।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मुझे ऊँचे ते ऊँचे बाप ने सर्वश्रेष्ठ बनाया है"

 

  विश्व में जितनी भी श्रेष्ठ आत्माएं गाई जाती हैं उनसे आप कितने श्रेष्ठ हो। बाप आपका बन गया। तो आप कितने श्रेष्ठ बन गये! सर्वश्रेष्ठ हो गये।

 

  सदैव यह स्मृति में रखो - ऊंचे ते ऊंचे बाप ने सर्वश्रेष्ठ आत्मा बना दिया। दृष्टि कितनी ऊंची हो गई, वृत्ति कितनी ऊंची हो गई! सब बदल गया। अब किसी को देखेंगे तो आत्मिक दृष्टि से देखेंगे और सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति हो गई।

 

〰✧  ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर आत्मा के प्रति दृष्टि और वृत्ति श्रेष्ठ बन गई।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧   सूर्य की लाइट तो है, लेकिन उसके चारों ओर भी सूर्य की लाइट परछाई के रूप में फैली हुई दिखाई देती है। और लाइट में विशेष लाइट दिखाई देती है। इसी प्रकार से, मैं आत्मा ज्योति रूप हूँ - यह तो लक्ष्य है ही। लेकिन मैं आकार में भी कार्ब में हूँ।

 

✧  चारों ओर अपना स्वरूप लाइट ही लाइट के बीच में स्मृति में रहे और दिखाई भी दे तो ऐसा अनुभव हो। जैसे कि आइने में देखते हो तो स्पष्ट रूप दिखाई देता है, वैसे ही नाँलेज रूपी दर्पण में, अपना यह रूप स्पष्ट दिखाई दे और अनुभव हो।

 

✧. चलते - फिरते और बात करते, ऐसे महसूस हो कि 'मैं लाइट - रूप हूँ, मैं फरिश्ता चल रहा हूँ।' तो ही आप लोगों की स्मृति और स्थिति का प्रभाव औरों पर पडेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ साधारण आत्मा जो भी कर्म करेगी वह देह अभिमान से। विशेष आत्मा देही अभिमानी बन कर्म करेगी। देही अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले की रिजल्ट क्या होगी? वह स्वयं भी सन्तुष्ट और सर्व भी उनसे संतुष्ट होंगे। जो अच्छा पार्ट बजाते तो देखने वाले वंस मोर (एक बार और) करते। तो सर्व का संतुष्ट रहना अर्थात् वंस मोर करना। सिर्फ स्वयं से संतुष्ट रहना बड़ी बात नही लेकिन 'स्वयं सन्तुष्ट रहकर दूसरों को भी सन्तुष्ट करना' - यह है पूरा स्लोगन। वह तब हो सकता जब देही अभिमानी होकर विशेष पार्ट बजाओ। ऐसा पार्ट बजाने में मजा आएगा, खुशी भी होगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  सुखधाम जाने के लिए इस दुःखधाम को तलाक देना"

 

_ ➳  मीठे मधुबन के प्रांगण में शांतिस्तम्भ में घूमते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा को याद कर रही हूँ कि प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की उन्नति और सुखो के लिए क्या नही किया है... मुझे अपने भूले घर का पता बताकर, मुझे अपनी प्यारी सी गोद में बिठाकर, सदा का सनाथ कर दिया है... सच्चे सुखो की दुनिया मेरी हथेली पर लाकर रख दी है...  और मुझे देवताई भाग्य देकर, मुझे इस विश्व धरा पर कितना अनोखा, कितना प्यारा, निराला सजा दिया है.... और याद करते करते मन के इन भावो को... मीठे बाबा को अर्पित करती हूँ...

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को इस पुरानी दुनिया से उपराम बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता जब जीवन में आ गया है... तो मन बुद्धि के तारो को इस पुरानी दुनिया से निकाल, ईश्वरीय यादो में जोड़ो... सदा अपने मीठे घर परमधाम और सुखो की नगरी को ही यादो में बसाओ... अब इस दुःख भरी दुनिया में बुद्धि न फंसाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में समाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके प्यार के साये में कितनी सुखी हो गयी हूँ... दुखो के अंधियारे से निकल, ज्ञान और याद के सवेरे में सदा के लिए प्रकाशित हो गयी हूँ... सदा शान्तिधाम और सुखधाम की मीठी यादो में ही खोयी हुई हूँ..."

 

   प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने मीठे घर और सुखो की याद दिलाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की श्रीमत और यादो रुपी हाथो को पकड़कर, इस दुख के घाट से निकल... मीठी सुख नगरी में चलो... सदा यादो में अपने प्यारे से घर और अथाह सुखो से भरे स्वर्ग को ही ताजा करो... अब दुखो को सदा के लिए भूल सुखद भविष्य की स्मृतियों में खो जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से पायी सुखो की जागीर में डूबकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपने मुझे दुखो की तपन से छुड़ाकर...मुझे सुखो की शीतलता से भर दिया है... देह के भान ने मुझ आत्मा के वजूद को कितना निस्तेज बना दिया था... आपने आकर मेरा नूर लौटाया है... आपने सच्चे सुखो से मेरा दामन सजा दिया है... मै आत्मा असीम सुखो के आनन्द में झूल रही हूँ..."

 

   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दुखो को भुला सुख की बहारो में ले जाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस दुःख की देह की दुनिया को अब भूल, देवताई सुख भरी दुनिया को याद करो... गुणो और शक्तियो से सजे अपने आत्मिक स्वरूप के नशे में खो जाओ... देहभान में पाये जनमो के दुखो को भूलकर, देवताई सुख भरे मीठे अहसासो में खो जाओ..."

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में डूबकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके बिना दुखो के जंगल में कितना भटक रही थी... आपने जीवन में आकर, जीवन को सच्ची खुशियो से सजाया है... मै आत्मा जो घर तक भूल चली थी... आज अपने मीठे घर को जान गयी हूँ, और सच्चे सुखो की हकदार हो रही हूँ..." मीठे बाबा का रोम रोम से शुक्रिया कर मै आत्मा... अपने वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- माया को वश करने का जो मंत्र मिला है, उसको याद रखते सतोप्रधान बनना है

 

_ ➳  एकान्त में बैठ परमात्म चिंतन करते हुए, बाबा के महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा बार - बार मुरलियों में माया से सावधान रहने का इशारा देते हैं। क्योंकि माया इतनी जबरदस्त है जो रॉयल से रॉयल रूप धारण करके ब्राह्मण बच्चो के जीवन मे प्रवेश कर उन्हें भगवान से भी बेमुख कर देती है। इसलिए माया के रॉयल से रॉयल रूप को भी परखने की शक्ति मुझे अपने अंदर जमा करनी है और उसके लिए बाबा ने जो अति सहज उपाय बताया है कि माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल लो अर्थात अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो जाओ। इस अभ्यास को ही अब मुझे बढ़ाना है।

 

_ ➳  माया के हर वार से स्वयं को बचाने के लिए साइलेन्स की शक्ति स्वयं में जमा करने का संकल्प लेकर, स्वयं को मैं अशरीरी स्थिति में स्थित करती हूँ और देह से डिटैच, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ। सेकेण्ड में मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तियों की तेज लाइट सीधी नीचे आ रही है और मेरे मस्तक को छू रही है। शक्तियों का एक तेज करेन्ट मेरे मस्तक से होता हुआ मेरे सारे शरीर मे दौड़ रहा है एक अद्भुत शक्ति जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है जो मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार करने के साथ - साथ मुझे लाइट स्थिति में भी स्थित करती जा रही है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मैं देह के बन्धन से मुक्त होकर एक दम हल्की हो गई हूँ और अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मैं जैसे पूरी तरह मुक्त हो गई हूँ और बस सीधी अपनी मंजिल की ओर बढ़ती ही चली जा रही हूँ। देह और देह की दुनिया पीछे छूटती जा रही है और मैं उस दुनिया से किनारा कर अब आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके स्वीट साइलेन्स होम में।अपने इस साइलेन्स होम में आकर गहन शान्ति की अनुभूति में जैसे मैं

स्वयं को भी भूल गई हूँ। हर

संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुंदर निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर मैं केवल अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ।

 

_ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों और फैली हुई बहुत ही लुभायमान लग रही है और मन को असीम आनन्द से भरपूर कर रही हैं। एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे बाबा के पास जाती हूँ और एक - एक किरण को बड़े प्यार से टच करती हूँ। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणो को छूते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे हर किरण में से शान्ति की शीतल फ़ुहारों का झरना फूट रहा है और उन शीतल फ़ुहारों से निकलने वाले शान्ति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे रोम - रोम को शांति की शक्ति से भर रहें हैं। साइलेन्स की शक्ति का बल स्वयं में भरकर, इस बल से माया को हराने के  लिए अब मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, मुख में मुहलरा डालने की अपने सर्वशक्तिवान पिता द्वारा बताई युक्ति द्वारा अब मैं माया के वार से स्वयं को बचाने में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ। माया अनेक प्रकार के रॉयल रूप धारण करके मेरे पास आती है किंतु मुझे मेरे शांत स्वधर्म में स्थित देख, मेरे साइलेन्स के बल को देख वापिस लौट जाती है। अपने शांत स्वधर्म में सदा स्थित रहकर, शांति के सागर अपने प्यारे पिता के साथ सदा स्वयं को कम्बाइंड रखने से माया का कोई भी वार अब मेरे ऊपर अपना कोई भी प्रभाव नही डालता। मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की सर्वशक्तियों का बल मुझे हर समय सर्व शक्तियों से भरपूर शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवाकर, मेरे चारों और हर समय एक शक्तिशाली सेफ्टी का किला बना कर मुझे माया से पूरी तरह सेफ रखता है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं सदा अलर्ट रह सर्व की आशाओं को पूर्ण करने वाली मास्टर मुक्त्ति-जीवनमुक्ति दाता आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं मुरलीधर की मुरली पर देह की भी सुध-बुध को भुलाने वाली सच्ची गोप गोपी हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ लेकिन प्राप्त हुए जन्म सिद्ध अधिकार को वा चमकते हुए भाग्य के सितारे को कहाँ तक आगे बढ़ाते, कितना श्रेष्ठ बनाते जाते हैं वह हरेक के पुरूषार्थ पर है। मिले हुए भाग्य के अधिकार को जीवन में धारण कर कर्म में लाना अर्थात् मिली हुई बाप की प्रॉपर्टी को कमाई द्वारा बढ़ाते रहना वा खा के खत्म कर देना, वह हरेक के ऊपर है। जन्मते ही बापदादा सबको एक जैसा श्रेष्ठ ‘भाग्यवान-भव' का वरदान कहो वा भाग्य की प्रॉपर्टी कहो, एक जैसी ही देते हैं। सब बच्चों को एक जैसा ही टाइटल देते हैं- ‘सिकीलधे बच्चे, लाडले बच्चे', कोई को सिकीलधे - कोई को न सिकीलधे नहीं कहते हैं। लेकिन प्रॉपर्टी को सम्भालना और बढ़ाना इसमें नम्बर बन जाते हैं। ऐसे नहीं कि सेवाधारियों को 10 पदम देते और ट्रस्टियों को 2 पदम देते हैं। सबको पदमापदमपति कहते हैं। लेकिन भाग्य रूपी खजाने को सम्भालना अर्थात् स्व में धारण करना और भाग्य के खजाने को बढ़ाना अर्थात् मन-वाणी-कर्म द्वारा सेवा में लगाना। इसमें नम्बर बन जाते हैं।

✺ "ड्रिल :- बाप से मिली हुई प्रॉपर्टी को सम्भालना और कमाई द्वारा बढ़ाना।"

➳ _ ➳ मैं कल्याणकारी आत्मा, कल्याणकारी बाबा की संतान, कल्याणकारी संगमयुग में, कल्याणकारी ड्रामा में, कल्याणकारी पार्ट निभा रही हूँ... वरदानी संगमयुग में श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ वरदाता बाबा के पास... बाबा के सामने बैठकर उनको निहारती हूँ... बाबा मुझे ‘सिकीलधे बच्चे, लाडले बच्चे’ का टाइटल देकर अपने प्यार से भरपूर कर रहे हैं...

➳ _ ➳ बाबा मुझे श्रेष्ठ ‘भाग्यवान-भव' का वरदान देते हैं... मैं आत्मा ज्ञान, योग, धारणा, सेवा चारों ही सब्जेक्ट्स में पास विद आनर होने के लिए तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के दिव्य ज्ञान को पाकर त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... एक बाबा के साथ योग लगाकर योग अग्नि में अपने विकारों, विकर्मों को भस्म कर रही हूँ...

➳ _ ➳ सर्व गुणों, शक्तियों को धारण कर धारणास्वरुप बन रही हूँ... पवित्रता की शक्ति को धारण कर कई जन्मों की अपवित्रता को खत्म कर रही हूँ... शूद्रपने के संस्कारों से मुक्त होकर सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बन रही हूँ... मैं आत्मा सारी कमी-कमजोरियों से मुक्त होकर शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा सदा बाबा की श्रीमत पर ही चलती हूँ... मिले हुए भाग्य के अधिकार को जीवन में धारण कर कर्म में ला रही हूँ... मैं आत्मा बाबा द्वारा मिली हुई प्रॉपर्टी को कमाई द्वारा बढ़ाती जा रही हूँ... और नम्बर बना रही हूँ... सर्व के प्रति शुभ भावना-शुभ कामना रख विश्व कल्याण कर रही हूँ... सभी को सुख, शांति, पवित्रता की शक्ति का अनुभव करवा रही हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाकर औरों को भी प्रेरित कर रही हूँ... मैं आत्मा एक का पदम गुना बढाकर पदमापदमपति होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा भाग्य रूपी खजाने को स्व में धारण कर सम्भाल रही हूँ और मन-वाणी-कर्म द्वारा सेवा में लगाकर भाग्य के खजाने को बढ़ा भी रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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