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 10 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अंतर्मुखी हो अपनी कमियों की जांच की ?*

 

➢➢ *कांटो को फूल बनाने की सेवा में लगे रहे ?*

 

➢➢ *साद एक के स्नेह में समाये हुए एक बाप को सहारा बनाया ?*

 

➢➢ *अपने को निमित समझ सदा डबल लाइट रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जब तपस्वी तपस्या करते हैं तो वृक्ष के नीचे तपस्या करते हैं। इसका भी बेहद का रहस्य है, *इस सृष्टि रूपी वृक्ष में आप लोग भी नीचे जड़ में बैठकर तपस्या कर रहे हो। वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज बुद्धि में आ जाती है। यह जो आपकी स्टेज है, उसका यादगार भक्तिमार्ग में चलता आया है। यह है प्रैक्टिकल, भक्ति मार्ग में फिर स्थूल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं ईश्वरीय सुख के अधिकारी आत्मा हूँ"*

 

  अविनाशी सुख और अल्पकाल का सुख - दोनों के अनुभवी हो ना? *अल्पकाल का सुख है - स्थूल साधनों का सुख और अविनाशी सुख है - ईश्वरीय सुख। तो सबसे अच्छा सुख कौनसा हैं! ईश्वरीय सुख जब मिल जाता है तो विनाशी सुख आपे ही पीछे-पीछे आता है।* जैसे कोई धूप में चलता है तो उसके पीछे परछाई आपे ही आती है और अगर कोई परछाई के पीछे जाये तो कुछ नहीं मिलेगा।

 

  *तो जो ईश्वरीय सुख के तरफ जाता है, उसके पीछे अल्पकाल का सुख स्वत: ही परछाई की तरह आता रहेगा, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे कहते हैं - जहाँ परमार्थ होता है, वहाँ व्यवहार स्वत: सिद्ध हो जाता है। ऐसे ईश्वरीय सुख है 'परमार्थ' और विनाशी सुख है 'व्यवहार'।* तो परमार्थ के आगे व्यवहार आपे ही आता है।

 

  तो सदा इसी अनुभव में रहना जिससे दोनों मिल जाएं। नहीं तो, एक मिलेगा और वह भी विनाशी होगा। कभी मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा। क्योंकि चीज ही विनाशी है, उससे मिलेगा ही क्या? *जब ईश्वरीय सुख मिल जाता है तो सदा सुखी बन जाते हैं, दु:ख का नामनिशान नहीं रहता। ईश्वरीय सुख मिला माना सब कुछ मिला, कोई अप्राप्ति नहीं रहती। अविनाशी सुख में रहने वाले विनाशी चीजों को न्यारा होकर यूज करेगा, फंसेगा नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अपने आपको एक सेकण्ड में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा समझ आत्म - अभिमानी वा देही - अभिमानी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* अर्थात एक सेकण्ड में कर्मेन्द्रियों का आधार लेकर कर्म किया और एक सेकण्ड में फिर कर्मेंन्द्रियों से न्यारा, ऐसी प्रैक्टिस हो गई है? कोई भी कर्म करते कर्म के बन्धन में तो नहीं फंस जाते हो?

 

✧  *हर कर्मेन्द्रियों को जैसे चलाना चाहो वैसे चला सकते हो वा आप चाहते एक हो, कर्मेन्द्रियाँ दूसरा कर लेती है?* रचयिता बनकर रचना को चलाते हो? जैसे और कोई भी जड वस्तु को चैतन्य आत्मा वा चैतन्य मनुष्यात्मा जैसे चाहे वैसे कर्तव्य में लगा सकती है, जहाँ चाहे वहाँ रख सकती है।

 

✧  जड वस्तु चैतन्य के वश में है, चैतन्य जड वस्तु के वश में नहीं होता है। *ऐसे ही 5 तत्वों के जड शरीर को चैतन्य आत्मा जैसे चलाना चाहे वैसे नहीं चला सकती है?* जैसे जड वस्तु को किस भी रुप में परिवर्तन कर सकते हो वैसे कर्मेन्द्रियों को विकारी से निर्विकारी  वा विकारों के वश आग में जले हुए कर्मेन्द्रियों को शीतलता में नहीं ला सकते हो? क्या चैतन्य आत्मा में यह परिवर्तन की शक्ति नहीं आई हैं ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बाप-समान निराकारी, देह की स्मृति से न्यारे, आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हुए, साक्षी होकर अपना और सर्व आत्माओं का पार्ट देखने का अभ्यास मजबूत होता जाता है? सदा साक्षीपन की स्टेज स्मृति में रहती है? *जब तक साक्षी स्वरूप की स्मृति सदा नहीं रहती तो बाप-दादा को अपना साथी भी नहीं बना सकते। साक्षी अवस्था का अनुभव, बाप के साथीपन का अनुभव कराता है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मातीत बनकर जाने अपनी जांच कर कमियां निकालते जाना"*

 

_ ➳  *अमृत की वेला में मनमोहक-मनभावन परम आन्दमय प्रभु मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए... सूर्य को, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली रंग-बिरंगी किरणों को निहार रही हूँ... और विचार कर रही हूँ... कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियो से कितना सजा दिया है...और श्रृंगारित करके मुझ आत्मा को सीधे अपने दिल में सजा दिया है...* बाबा के दिल की प्यारी राजदुलारी बनकर... मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, बाबा के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.... उस के साथ हंसती मुस्कुराती हूँ..... इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मृत कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... वाह मेरा भाग्य जो सपने में भी नहीं सोचा था उसे साकार में पाया है... यही मनभावन जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

_ ➳  *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान का प्रकाश मुझ आत्मा पर डालते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... समय की है अन्तिम वेला जरा गहरे से अब आप गौर फरमाओं... *समय की इस अन्तिम वेला में कर्मातीत तुम बन जाओ... बच्चे गफलत छोड़ इस सच्चे सच्चे पुरूषार्थ में जुट जाओ... कर्मातीत बनने की मंजिल पर पहुंचने के लिए उड़ान जरा जोर से लगाओ..."*

 

  *ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-*  "मीठे-मीठे लाडले ओ बाबा मेरे... आप की इस गहरी सी समझानी को बुद्धि में बिठा रही हूँ... *कर्मातीत बनने के सच्चे-सच्चे पुरूषार्थ की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही हूँ... कर्मातीत स्थिति के प्रवाह में बहती जा रही हूँ... उड़ता पंछी बन अन्दर से अब मुस्कुरा रही हूँ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा को सजाते हुए रत्नाकर बाबा बोले :-* "मीठे मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे मेरे... समाने और समेटने की शक्तियों को अब तुम कार्य में लगाओ... और कर्मातीत बन जाओ... *उड़ता पंछी बन खुले आसमा में बाहे फैलाओं... जरा अटेंशन देकर बच्चे तुम अब कर्मातीत स्थिति बनाने के पुरूषार्थ में लग जाओ..."*

 

  *ज्ञान रत्नों से सज-धज कर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "राजदुलारे प्यारे बाबा मेरे... *अटेंशन से कर्मातीत स्थिति के पुरूषार्थ में जुट गई हूं...* समाने और समेटने की शक्तियों को कार्य में लगाए रही हूँ... अपनी स्थिति द्वारा सत्यता का प्रकाश फैला रही हूं... उड़ता पंछी बन आसमा में बाहें फैला रही हूँ... *कर्मों के बन्धन से भी मुक्त होने का अनुभव औरों को करा रही हूँ... इस प्रकार अपनी कर्मातीत स्थिति की ओर कदम बढ़ा रही हूँ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... *कर्मातीत स्टेज को अब तुम नजदीक लाओ... बच्चे अटेंशन से अब इस पुरूषार्थ में लग जाओ... अपनी इस अन्तिम अवस्था की तरफ अब तेजी से दौड़ी लगाओ...* जीवन की प्रयोगशाला में समेटने और समाने की शक्ति को प्रयोग में ला कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ..."

 

  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "लाडले ज्ञान सागर बाबा मेरे... *सुन के आपकी ये गहरी सी समझानी अटेंशन से इस पुरुषार्थ में जुट गई हूँ... जीवन रूपी प्रयोगशाला में समाने और समेटने की शक्ति को प्रयोग में लाकर कर्मातीत स्थिति को नजदीक ला रही हूँ...* मुक्त पंछी बन उड़ती जा रही हूँ... तेजी से इस पुरूषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस पुरूषार्थ में सफलता पा रही हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सभी से ममत्व निकाल एक लवली बाप को याद करना है*"

 

_ ➳  *देहभान में आने से विकारों का जो कखपन मुझ आत्मा में भर गया है उस कखपन को करनीघोर मेरे परमपिता परमात्मा स्वयं मुझसे मांग कर बदले में मुझे जन्म जन्मांतर के लिए प्योर और निरोगी बनाने का मेरे साथ सौदा कर रहें हैं तो ऐसे भगवान बाप पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए* जो मेरा कखपन लेकर मुझे विश्व की बादशाही दे रहें हैं। कितने रहमदिल दया के सागर हैं मेरे प्रभु जो सभी आत्माओं के ऊपर अपनी दयादृष्टि रखते हैं। सबको दुखों से लिबरेट कर सुख के संसार में ले जाते हैं।

 

_ ➳  विकारो ने आज जिस भारत को कौड़ी तुल्य बना दिया है उसे फिर से स्वर्ग बनाने का कर्तव्य करने वाले *अपने प्यारे बाबा का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करते हुए अब अपने आप से वायदा करती हूँ कि जिन विकारो ने मुझे कौड़ी तुल्य बनाया है वह कखपन अपने पिता को सौंप, इस विकारी देह और देह से जुड़े विकारी सम्बन्धो से ममत्व  मिटा कर केवल उन पर ही बलिहार जाना है*। उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर उनके समान बनना ही अब मेरे इस जीवन का लक्ष्य है।

 

_ ➳  इस लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प लेकर अपने प्यारे प्रभु की याद में बैठ स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करने और अपने ऊपर चढ़ी विकारो की कट को जलाकर भस्म करने के लिए अपने बीज रूप पिता के पास चलने की आंतरिक यात्रा को अब मैं शुरू करती हूँ। *अपने मन और बुद्धि को देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, हर संकल्प विकल्प से किनारा कर मन को एक ही शक्तिशाली संकल्प में मैं स्थित करती हूँ कि मैं परमपवित्र आत्मा हूँ, नष्टोमोहा हूँ*। इस संकल्प में स्थित होते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं देह से स्वत: ही डिटैच हो रही हूँ और देह को भूलती जा रही हूँ। देह में होते भी स्वयं को मैं देह से न्यारी एक चमकती हुई ज्योति के रूप में देख रही हूँ।

 

_ ➳  एक चैतन्य शक्ति जो इस देह में विराजमान होकर इस देह को चला रही है किन्तु देह से पूरी तरह अलग है, अपने इस स्वरूप में स्थित होकर अब मैं देख रही हूँ सितारे के समान चमक रहें अपने इस अद्भुत निराले स्वरूप को जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *इस सत्य स्वरूप में स्थित होते ही मैं महसूस कर रही हूँ जैसे पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा से निकल रहें हैं और मुझे विदेही बना कर पवित्रता के सागर मेरे प्यारे पिता की ओर ले जाने का मुझमे बल भर रहें हैं*। बाबा की पवित्रता की शक्ति एक मेग्नेटिक पॉवर की तरह मुझे अपनी ओर खींच रही है। बाबा मुझे कशिश कर रहें हैं। धीरे - धीरे देह से बाहर आकर अब मैं ऊपर की ओर उड़ रही हूँ।

 

_ ➳  मन को गहन सुकून दे रही है ये यात्रा। बहुत ही हल्केपन का मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ। *देह और देह के सम्बन्धो की जंजीरों में जकड़ी मैं आत्मा आज उन जंजीरो को तोड़ स्वयं को पूरी तरह आजाद महसूस कर रही हूँ और उन्मुक्त होकर इस आजादी का भरपूर आनन्द लेते हुए सारे विश्व की सैर करते हुए ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। प्रकृति के हर दृश्य को देखते हुए आकाश को पार कर मैं उससे भी ऊपर जा रही हूँ। सफेद प्रकाश की खूबसूरत फरिश्तो की दुनिया से होकर अब मैं पहुँच गई हूँ अपने मूलवतन परमधाम घर मे अपने प्यारे पिता के पास। यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा शन्ति के गहन अनुभवों का आनन्द ले रही हूँ।

 

_ ➳  कुछ क्षण शान्ति की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं अपने ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर स्वयं को पावन बनाने के लिए पवित्रता के सागर अपने पिता के पास पहुँच गई हूँ जो महाज्योति के रूप में मेरे सामने उपस्थित हैं। *उनके बिल्कुल समीप जाकर मैं आत्मा बैठ गई हूँ। उनसे निकल रही पवित्रता की किरणों की मीठी - मीठी फुहारें मुझ पर बरस रही है और मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर मुझे शुद्ध और पावन बना रही हैं*। उन किरणों का स्वरूप - धीरे - धीरे बदलकर योग अग्नि में परिवर्तित हो रहा है ऐसे लग रहा है जैसे मेरे चारों तरफ कोई ज्वाला दधक रही है जिसकी तपश मेरे विकर्मों को दग्ध कर रही है। *जैसे - जैसे मेरे विकर्म विनाश हो रहें हैं मैं सच्चे सोने के समान चमकदार बन रही हूँ*।

 

_ ➳  शुद्व, पवित्र, शक्तिशाली बन कर मैं आत्मा अब वापिस फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजाने के लिए लौट रही हूँ। अपने शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर, बाबा को विकारों रूपी कखपन दे, विकारों के ग्रहण से मैं धीरे - धीरे मुक्त होती जा रही हूँ। *एक बाबा को ही अपना संसार बना कर, देह और देह के सम्बन्धो, देह की दुनिया से मैं धीरे - धीरे ममत्व मिटाती जा रही हूँ। अपने जीवन को सुख शांति से सम्पन्न बनाने वाले अपने सुखदाता, शांतिदाता बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उन पर बलिहार जाकर, मैं हर समय उनकी सुखदाई यादों में समा कर अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ निर्विघ्न हो कर बिल्कुल सहज रीति कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सदा एक के स्नेह में समाये हुए एक बाप को सहारा बनाने वाली सर्व आकर्षण मुक्त्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं अपने को निमित्त समझकर सदा डबल लाइट रह खुशी की अनुभूति करने वाला फरिश्ता हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  माया की छाया से बचने के लिए छत्रछाया के अन्दर रहो:- सदा अपने ऊपर बाप के याद की छत्रछाया अनुभव करते हो? याद की छत्रछाया है। इस छत्रछाया को कभी छोड़ तो नहीं देते? *जो सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं वे सर्व प्रकार के माया के विघ्नों से सेफ रहते हैं। किसी भी प्रकार से माया की छाया पड़ नहीं सकती। यह 5 विकार, दुश्मन के बजाए दास बनकर सेवाधारी बन जाते हैं। जैसे विष्णु के चित्र में देखा है - कि सांप की शय्या और सांप ही छत्रछाया बन गये। यह है विजयी की निशानी।* तो यह किसका चित्र है? आप सबका चित्र है ना। जिसके ऊपर विजय होती है वह दुश्मन से सेवाधारी बन जाते हैं। ऐसे विजयी रत्न हो। शक्तियाँ भी गृहस्थी माताओं से, शक्ति सेना की शक्ति बन गई। शक्तियों के चित्र में रावण के वंश के दैत्यों को पांव के नीचे दिखाते हैं। शक्तियों ने असुरों को अपने शक्ति रूपी पाँव से दबा दिया। *शक्ति किसी भी विकारी संस्कार को ऊपर आने ही नहीं देगी।*

 

✺  *"ड्रिल :- अपने विष्णु स्वरुप का अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बगीचे में झूला झूलती हुई आसमान को निहार रही हूँ...* 16 कलाओं से परिपूर्ण पूर्णमासी का चाँद चारों ओर अपनी चांदनी बिखेर रहा है... आसमान में सितारे जगमग चमकते हुए अति सुंदर नजर आ रहे हैं... *सितारों की सुन्दरता को देखते हुए मैं आत्मा एकाएक चिंतन करने लगती हूँ कि मैं आत्मा भी एक सितारे मिसल हूँ...* आसमान के सितारों से भी ज्यादा चमक है मुझ आत्मा में...

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने भव्य स्वरूप को देखने लगती हूँ... *जैसे ही आत्मानुभूति करने लगती हूँ प्यारे बाबा की याद आ जाती है...* प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा को बुलाते ही चंद्रमा में बाबा मुस्कुराते हुए नज़र आने लगते हैं... परमधाम जैसा नज़ारा अनुभव हो रहा है... बाबा के चारों ओर आत्मा सितारे जगमगा रहे हैं... पूरा आसमान छत्रछाया लग रहा है...

 

_ ➳  *बाबा अपनी शीतल किरणों की वर्षा कर रहे हैं...* पूरे आसमान से दिव्य किरणों की बौछारें मुझ पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा से एक-एक विकार बाहर निकलते जा रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सभी विकार बाहर निकलकर माया रावण का पुतला बन सामने खड़े हो जाते हैं... *बाबा से निकलती दिव्य तेजोमय किरणों से रावण का पुतला बीज सहित भस्म हो रहा है...* मेरे सामने विकारों रूपी रावण का वंश सहित अंत हो चुका है...

 

_ ➳  मैं आत्मा माया की छाया से मुक्त हो चुकी हूँ... और सदा बाबा की छत्र छाया का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा सभी विकारों पर विजय प्राप्त कर विजयी रत्न होने का अनुभव कर रही हूँ...* माया के सभी विघ्नों से सेफ अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया के अन्दर ही रहती हूँ... पांचो विकार अब मुझ आत्मा के अधीन हो गए हैं... सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे वश हो गए हैं...

 

_ ➳  *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे पांचो विकारों रूपी नाग सेवाधारी बन मेरी सेवा कर रहे हैं...* मुझ आत्मा को ये झूला शेषशैया अनुभव हो रहा है जिस पर मैं आत्मा विष्णु स्वरुप में लेटी हुई हूँ... क्षीरसागर में लेटी मैं अपने विष्णु स्वरुप में मायाजीत, प्रकृतिजीत, जगतजीत होने का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपने विष्णु स्वरुप का अनुभव करती हुई बाबा की याद की गोदी में सो जाती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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