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❍ 05 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?
➢➢ अपने ऊपर आपेही कृपा की ?
➢➢ बातों रुपी बादलों को देख घबराने की बजाये सेकंड में क्रॉस किया ?
➢➢ किसी भी बात में क्वेश्चन मार्क उठा व्यर्थ का खाता प्रारम्भ तो नहीं किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ इस देह की दुनिया में कुछ भी होता रहे, लेकिन फरिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखते सकाश देता रहे। आप सब बेहद विश्व कल्याण के प्रति निमित्त हो तो साक्षी हो सब खेल देखते सकाश अर्थात् सहयोग देने की सेवा करो। सीट से उतर कर सकाश नहीं देना। ऊंची स्टेज पर स्थित होकर देना तो किसी भी प्रकार के वातावरण का सेक नहीं आयेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं परमात्मा-शमा का परवाना हूँ"
〰✧ सभी अपने को परमात्म-शमा के परवाने समझते हो? परवाने दो प्रकार के होते हैं-एक हैं चक्र लगाने वाले और दूसरे हैं सेकेण्ड में फिदा होने वाले। तो आप सभी कौनसे परवाने हो? फिदा हो गये हो या होने वाले हो? या अभी थोड़ा सोच रहे हो? सोचना अर्थात् चक्र लगाना। फिदा होने के बाद फिर चक्र नहीं काटना पड़ेगा। सभी हो गये?
〰✧ जब कोई अच्छी चीज मिल जाती है और समझ में आता है कि इससे अच्छी चीज कोई है ही नहीं-तो सोचने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही सौदा किया है ना। बापदादा को भी ऐसे निश्चयबुद्धि विजयी रत्नों को देख हर्ष होता है। ज्यादा खुशी किसको होती है-बाप को या आपको? बाप कहते हैं-बच्चों को ज्यादा खुशी है तो बाप को पहले है। बापदादा ने, देखो, कहाँ-कहाँ से चुनकर एक बगीचे के रूहानी गुलाब बना दिया। इसी एक परिवार का बनने में कितनी खुशी है! इतना परिवार किसी का भी होगा? फालोअर्स हो सकते हैं लेकिन परिवार नहीं। कितनी
〰✧ खुशियां हैं-बाप की खुशी, अपने भाग्य की खुशी, परिवार की खुशी! खुशियाँ ही खुशियाँ हैं ना। आंख खुलते ही अमृतवेले खुशी के झूले में झूलते हो और सोते हो तो भी खुशी के झूले में। अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो किससे पूछें? हर एक कहेगा-मेरे से पूछो। यह शुद्ध नशा है, यह देह-भान का नशा नहीं है। हर एक आत्मा को अपना-अपना रूहानी नशा है। सिर्फ रूहानी नशे को हद का नशा नहीं बनाना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ सभी सदा प्रवृति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो? जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे।
〰✧ तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना। जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृति के बन्धन से भी न्यारा रहता है।
〰✧ निमित मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो लेकिन अभी-अभी ऑर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे साकार में देखा बीच-बीच में कारोबार में रहते भी गुम अवस्था की अनुभूति होती थी ना। सुनते-सुनाते डायरेक्शन देते अण्डरग्राउण्ड हो जाते थे। तो अभी इस अभ्यास की लहर चाहिए। चलते-चलते देखें कि यह जैसे कि गायब है। इस दुनिया में है नहीं। यह फरिश्ता इस देह की दुनिया और देह के भान से परे हो गये। इसको ही सब साक्षात्कार कहेंगे। जो भी सामने आयेगा वह इसी स्टेज में साक्षात्कार का अनुभव करेगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- डबल सिरताज राजा बनने खूब सर्विस करना"
➳ _ ➳ जन्मते ही बाबा से मैं आत्मा 3 तिलक की अधिकारी बनी, स्वराज्य तिलक...
सर्विसएबुल का तिलक... सर्व ब्राह्मण परिवार, बापदादा के स्नेही सहयोगी पन का
तिलक... जैसे ही मुझ आत्मा को स्मृति आई, कि मैं कौन... और किसकी... तन मन धन
सब बाबा को अर्पित हो गया… बाबा ने बताया बच्ची यह सब तुम्हें सेवा निमित मिला
है, इसे सेवा अर्थ यूज करो... अपना सर्वस्व सफल कर भाग्य को उच्च बनाओ...
बाबा की शिक्षाओं पर अटेंशन रखते बापदादा और सर्व ब्राह्मण परिवार के सहयोग
द्वारा मैं आत्मा स्वयं को विश्व परिवर्तन करने की सेवा में बाबा का मददगार देख
रही हूं...
❉ सूक्ष्म वतन में मीठे बाबा मुझ आत्मा का हाथ थामे मुझ डबल लाइट फरिश्ते से
बोले:- "मीठी बच्ची... जिस प्रकार गोप गोपियों के सहयोग द्वारा श्री कृष्ण को
गोवर्धन पर्वत उठाते दिखाया है, अभी उसी सहयोग की आवश्यकता मुझ गोपी वल्लभ को
आप गोप गोपिकाओं से है... दुखों के पहाड़ को प्रभु परिवार द्वारा उठाने का यह
अभी समय है..."
➳ _ ➳ पतित पावन बाबा की शिक्षाओं को स्वयं में उतारते मैं आत्मा बाबा से बोली:-
"हां बाबा... स्वदर्शन चक्रधारी बन मुझ आत्मा का भाग्य जाग उठा है... अभी मैं
सर्विसएबुल आत्मा बन... सर्व को पावन बनाने की सेवा में तत्पर हूं... निशदिन
निशपल आप समान सेवा कर मैं आत्मा अपने भाग्य को उच्च बना रही हूं..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को समझानी देते हुए बोले:- "मीठी बच्ची... सेवा में
सफलता का मुख्य साधन निमित्त भाव है, मैं और मेरा अशुद्ध अहंकार हैं... इसलिए
जब मैं पन की स्मृति आये, तो खुद से पूछना मैं कौन?... और जब मेरा याद आये
तो... तो बस मुझे याद कर लेना... इन्ही स्मृतियों से निरन्तर सहजयोगी और
निरन्तर सेवाधारी रहोगे..."
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी समझानी को स्वयं में उतारते हुए मैं आत्मा बाबा से
बोली:- "हां मीठे बाबा... "मेरा बाबा" ये चाबी मुझ आत्मा को सभी हदों से पार
किए हुए हैं, बेहद में रह मैं आत्मा निर्विघ्न तन मन धन से सेवाएं देने में
तत्पर हूं... मुझ आत्मा का खुशनुमा चेहरा चलते-फिरते सेवा केंद्र का कार्य कर
रहा हैं... हर किसी से आवाज आ रही है बाबा- तुम्हें बनाने वाला कौन?..."
❉ मीठे बाबा प्यार भरी फुहार मुझ आत्मा पर बरसाते हुए बोले:- "प्यारी बच्ची...
यह वही रूद्र ज्ञान यज्ञ है जिसमें असुर विघ्न डालते हैं... लेकिन एक कर्म योगी
सेवाधारी के लिए यह माना जैसे खेल है... जैसे जैसे तुम इसमे पहलवान बनते जा रहे
हो, माया भी अपना वार जोरों से कर रही है... लेकिन यदि सदा सेवा में बिजी हो
तो माया का वार हो नहीं सकता..."
➳ _ ➳ मीठे बाबा से सुहानी प्यारी दृष्टि लेते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "हां
मीठे बाबा... मनसा वाचा कर्मणा तन मन धन संकल्प श्वांस सभी से मैं आत्मा सहयोगी
हो हर पल हर दिन मैं आत्मा इन सभी खजानों को सफल कर रही हूं... स्वर्णिम भारत
का वह दृश्य जिसमें सभी जीव आत्माएं, प्रकृति पूरी सृष्टि सतोप्रधान है...
दृश्य मुझ आत्मा की नजरों में घूम रहा है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- टाइम वेस्ट नही करना है"
➳ _ ➳ "समय आपका शिक्षक बने,
इससे पहले आप स्वयं ही स्वयं के शिक्षक बन जाओ" इन ईश्वरीय महावाक्यों
पर विचार सागर मंथन करते करते एक पार्क में मैं टहल रही हूँ। टहलते - टहलते वही
कोने में रखे एक बैंच पर मैं बैठ जाती हूँ और इधर उधर देखने लगती हूँ। तभी
सामने सड़क पर लगे एक बोर्ड पर मेरी निगाह जाती है,
जिस पर बड़े बड़े शब्दों में एक स्लोगन लिखा हुआ है "समय की पुकार को
सुनो" इस स्लोगन को पढ़ते ही मन फिर से विंचारो में खो जाता है और ऐसा अनुभव
होता है जैसे मेरे कानों में कोई इन्ही शब्दो को बार बार दोहरा रहा है। मैं
इधर उधर देखती हूँ कि आखिर मेरे कानों में ये आवाज कहाँ से आ रही है।
➳ _ ➳ फिर महसूस होता है कि ये आवाज तो ऊपर से आ रही है। मैं जैसे ही
ऊपर की और देखती हूँ एक तेज प्रकाश मुझे अपने ऊपर अनुभव होता है। मैं देख रही
हूं अपने सिर के ऊपर महाज्योति शिव बाबा को जिनसे निकल रही प्रकाश की किरणे मुझ
पर पड़ रही हैं और मैं देह के भान से मुक्त स्वयं को एक दम हल्का अनुभव कर रही
हूं। अपने शरीर को मैं देख रही हूं जो शिव बाबा की लाइट और माइट पा कर एकदम
लाइट का बन गया है। अब शिवबाबा ब्रह्माबाबा के आकारी रथ में विराजमान हो कर
धीरे धीरे नीचे आ रहें हैं। अपने बिल्कुल समीप बैंच पर बापदादा की उपस्थिति को
मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे
रहें हैं। बाबा की सम्पूर्ण शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं गहराई से बाबा के
नयनो में देख रही हूँ। शक्ति लेते लेते एक विचित्र दृश्य देख कर मैं हैरान रह
जाती हूँ। एक पल के लिए मैं देखती हूँ दिल को दहलाने वाला दुनिया के विनाश का
विनाशकारी दृश्य और दूसरे ही पल बाबा के नयनो में समाए अपने प्रति असीम स्नेह
और बाबा की अपने प्रति वो आश जिसे बाबा जल्दी से जल्दी पूरा होते हुए देखना
चाहते हैं। अब मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं कि बाबा ने एक पल के लिए मुझे
दिव्य दृष्टि से विनाश का साक्षात्कार करा कर समय की समीपता की ओर ईशारा किया
है।
➳ _ ➳ इस रोमांचकारी दृश्य का अनुभव करवाकर बापदादा अदृश्य हो जाते हैं
और मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ और फिर से उसी स्लोगन पर
नजर डालते हुए विचार करती हूं कि संगमयुग का एक एक सेकेण्ड मेरे लिए बहुमूल्य
है। एक भी सेकेंड व्यर्थ गया तो बहुत बड़ा घाटा पड़ जायेगा। यह विचार करते करते
मैं घर लौट आती हूँ और संगमयुग के अनमोल पलो को सफल करने के पुरुषार्थ में लग
जाती हूँ। अपने हर सेकेंड,
संकल्प,
बोल और कर्म की वैल्यू को स्मृति में रख अब मैं उन्हें ईश्वरीय याद और
सेवा में सफल कर रही हूँ ।
➳ _ ➳ हर श्वांस में अपने प्यारे मीठे बाबा की यादों को समाये अपनी
बुद्धि को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके अब मैं इन ज्ञान रत्नों को उन
आत्माओं को दान कर रही हूं जो इस दान की पात्र आत्मायें हैं। अपने वरदानी
स्वरूप में स्थित हो कर,
वरदानी बोल द्वारा उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बता रही
हूं। परखने की शक्ति का उचित प्रयोग करके,
अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को परख कर,
पात्र देख कर ज्ञान दान देते हुए उन आत्माओं का कल्याण करने के साथ साथ
स्व - पुरुषार्थ करते हुए हर बात में मैं अपने समय को सफल कर रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं बातों रूपी बादलों को देख घबराने के बजाए सेकन्ड में क्रॉस करने वाली सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं किसी भी बात में क्वेश्चन मार्क नहीं उठाकर व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाली समर्थ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवाधारियों को सदा बुद्धि में क्या याद रहता है? सिर्फ सेवा या याद और सेवा? जब याद और सेवा दोनों का बैलेन्स होगा तो वृद्धि स्वत: होती रहेगी । वृद्धि का सहज उपाय ही है - ‘‘बैलेन्स''। वर्तमान समय के हिसाब से सर्व आत्माओं को सबसे ज्यादा शान्ति की चाहना है, तो जहाँ भी देखो सर्विस वृद्धि को नहीं पाती, वैसे की वैसे रह जाती - वहाँ अपने सेवाकेन्द्र के वातावरण को ऐसा बनाओ जैसे ‘शान्ति-कुण्ड' हो। एक कमरा विशेष इस वायुमण्डल और रूपरेखा का बनाओ जैसे बाबा का कमरा बनाते हो ऐसे ढंग से बनाओ जो घमसान के बीच में शान्ति का कोना दिखाई दे। ऐसा वायुमण्डल बनाने से, शान्ति की अनुभूति कराने से वृद्धि सहज हो जायेगी। म्यूजियम ठीक है लेकिन यह सुनने और देखने का साधन है। सुनने और जानने वालों के लिए म्यूजियम ठीक है लेकिन जो सुन-सुन करके थक गये हैं उन्हों के लिए शान्ति का स्थान बनाओ।
➳ _ ➳ मैजारटी अभी यही कहते हैं कि आपका सब कुछ सुन लिया, सब देख लिया। लेकिन ‘‘पा लिया है'' - ऐसा कोई नहीं कहता। अनुभव किया, पाया यह अभी नहीं कहते हैं। तो अनुभव कराने का साधन है - याद में बिठाओ, शान्ति का अनुभव कराओ। दो मिनट भी शान्ति का अनुभव कर लें तो छोड़ नहीं सकते। तो दोनों ही साधन बनाने चाहिए। सिर्फ म्यूजियम नहीं लेकिन ‘शान्ति-कुण्ड' का स्थान भी। जैसे आबू में म्यूजियम भी अच्छा है लेकिन शान्ति का स्थान भी आकर्षण वाला है। अगर चित्रों द्वारा नहीं भी समझते तो ‘दो घड़ी' याद में बिठाने से इम्प्रेशन बदल जाता है। इच्छा बदल जाती है। समझते हैं कि कुछ मिल सकता है। प्राप्ति हो सकती है। जहाँ पाने की इच्छा उत्पन्न होती वहाँ आने के लिए भी कदम उठना सहज हो जाता। तो ऐसे वृद्धि के साधन अपनाओ।
✺ "ड्रिल :- आत्माओं को शांति का अनुभव करवाना"
➳ _ ➳ देह रूपी सुन्दर सीपी में जगमगाती मैं मुक्तक मणि... मेरे दिव्य प्रकाश से सराबोर ये देह रूपी सीपी पारदर्शी होती जा रही है... जैसे किसी शीशे की डिबियाँ में बन्द कोई झिलमिलाती मणि... मुझ आत्मा मणि की प्रकाश रश्मियाँ आसपास के वातावरण में फैलकर समस्त तमोप्रधानता को दूर कर रही है... मन और बुद्धि से मैं बैठ गयी हूँ शान्ति स्तम्भ पर, ज्योतिपुंज के ठीक सामने... ज्योतिपुंज से झलकता मेरे बाबा का रूहानी प्रतिबिबं... (दृश्य चित्र बनाकर कुछ देर निहारें उस रूहानी नूर की बारिश करते उस चेहरें को)...
➳ _ ➳ वो आँखें जो निरन्तर शान्ति, प्रेम और पावनता की मधुशाला बन गयी है... वो अपनापन बिखेरती मुस्कुराहट जो पल में आह्वान कर अपना बना लेती है दुखी अशान्त आत्माओं को... कुछ पल के लिए पलकों के परदें गिराकर कैद कर ले शान्ति के झर-झर झरते उस असीम सौन्दर्य को और उतर जाने दे दिल की गहराईयों में आहिस्ता आहिस्ता... हुए लबालब उर के पैमाने, मौन हुई संकल्पों की माला... रोम रोम में भरने मदिरा उन नैनों से निकली मधुशाला...
➳ _ ➳ अतिन्द्रिय सुख में डूबी हुई, मैं मुक्तक मणि अब नन्हें फरिश्तें की चमचमाती पोशाक में... बापदादा की उँगली पकडकर नन्हें नाटे से कदमों से मन्द मन्द चलती हुई... जानबूझकर चलने में देरी करती हुई... बापदादा मेरे मन की बात जानकर कन्धे पर बैठा लेते है मुझे... और मैं खुशी और नशे से झूमती हुई अपने सौभाग्य पर इतराती हुई बापदादा के गोद की अधिकारी आत्मा... मेरे सौभाग्य का कोई सानी नही है आज... उमंगों से भरकर उड चली मैं बापदादा के साथ विश्व सेवा पर...
➳ _ ➳ सुन्दर शान्त झील का किनारा, गहरा नीला, मगर पारदर्शी स्वच्छ जल... शान्त जल में हम दोनों का झलकता प्रतिबिम्ब... बापदादा मुझे लेकर उतर गये है इसी झील के किनारें... खिले हुए सुन्दर कमल और कुमुदिनियों के समूह... बाबा मुस्कुराते हुए बता रहें है बच्चे-देखो कितना शान्त है झील का पानी, कि हम दोनो का प्रतिबिम्ब स्वच्छ दर्पण की तरह से नजर आ रहा था इसमें... ऐसी ही शान्ति जब तुम्हारे अन्दर होती है तभी तुम अपने गुणों शक्तियों एवं सच्चे स्वरूप के दर्शन कर सकते हो...
➳ _ ➳ देखों उस खिले कमलदल को... कितना बैलेन्स है उसके जीवन में... जडें पूरी तरह पानी में है मगर फूल और पत्तियाँ पानी की नमी को खुद पर कभी हावी नही होने देती... कमल-सा बैलेन्स जीवन में जरूरी है... मैं आँखों ही आँखों में सहमति जताता हुआ, बाबा का मौन इशारा पाकर उड चला बापदादा के पीछे पीछे...
➳ _ ➳ बाबा एक सुन्दर बगीचे के ऊपर से गुज़रते हुए... बच्चे, देख रहे हो बगीचे की शोभा को... खुशबू और रंगों का सन्तुलन है इसमें... तभी तो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है... हर पौधे की वृद्धि में धूप और पानी का बैलेन्स जरूरी है तभी तो पौधा वृद्धि को पाया... तो बच्चे, याद की धूप और जल-रूपी सेवा का सदा बैलैन्स रखना तभी सेवा और पुरूषार्थ में विधि पूर्वक वृद्धि होगी...
➳ _ ➳ और बातों ही बातों मे विश्व को सकाश देते हुए बाबा की याद का ये सुहाना सफर कब पूरा हो गया पता ही नही चला... बापदादा समझानी देते हुए वापस पहुँच गये है शान्ति स्तम्भ पर... और ज्योति पुंज में समा गये है... ज्योति पुंज से शांति की किरणें निकल समस्त संसार में चारों ओर फैल रही हैं सभी आत्माओं के दुख अशांति समाप्त हो रही है सभी आत्माएं शांति का अनुभव करती पाना था सो पा लिया के गीत गा रही हैं... मैं मणि भी वापस उसी देह रूपी सीपी में समाँ जाती हूँ... शान्ति रूपी बारिश की अनुभूति और शान्ति की लहरे शान्ति स्तम्भ से टकराती हुई संसार की सभी आत्माओं को शान्ति की गहन अनुभूति कराती हुई...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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