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❍ 16 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ "हम कलयुगी रात से निकल दिन में आये हैं" - सदा यह नशा रहा ?
➢➢ यह रूहानी पढाई रोज़ पडी और पढाई ?
➢➢ धरनी, नब्ज़ और समय को सत्य ज्ञान को प्रतक्ष्य किया ?
➢➢ "तेरा" कह पहाड़ जैस बात को रुई बनाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अभी समय प्रमाण बेहद के वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। बिना बेहद के वैराग्य वृत्ति के सकाश की सेवा हो नहीं सकती। वर्तमान समय जबकि चारों ओर मन का दु:ख और अशान्ति, मन की परेशानियां बहुत तीव्रगति से बढ़ रही हैं। तो जितना तीव्रगति से दुःख ही लहर बढ़ रही हैं उतना ही आप सुख दाता के बच्चे अपने मन्सा शक्ति से, सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर सुख की अंचली का अनुभव कराओ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं विजय के तिलकधारी आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ अनुभव होता है? अविनाशी तिलक अविनाशी बाप द्वारा लगा हुआ है। तो तिलक है स्मृति की निशानी। तिलक सदा मस्तक पर लगाया जाता है। तो मस्तक की विशेषता क्या है? याद या स्मृति। तो विजय के तिलकधारी अर्थात् 'सदा विजय भव' के वरदानी। जो स्मृति-स्वरूप हैं वे सदा वरदानी हैं। वरदान आपको मांगने की आवश्यकता नहीं है। वरदान दे दो-मांगते हो?
〰✧ मांगना क्या चाहिए-यह भी आपको नहीं आता था। क्या मांगना चाहिए-वह भी बाप ही आकर सुनाते हैं। मांगना है तो पूरा वर्सा मांगो। बाकी हद का वरदान-एक बच्चा दे दो, एक बच्ची दे दो, एक मकान दे दो, अच्छी वाली कार दे दो, अच्छा पति दे दो - यही मांगते रहे ना। बेहद का मांगना क्या होता है- वो भी नहीं आता था। इसीलिए बाप जानते हैं कि इतने नीचे गिर गये जो मांगते भी हद का हैं, अल्पकाल का हैं। आज कार मिलती है, कल खराब हो जाती है, एक्सीडेन्ट हो जाता है। फिर क्या करेंगे? फिर और मांगेंगे-दूसरी कार दे दो!
〰✧ आप तो अधिकारी बन गये। बेहद के बाप के बेहद के वर्से के अधिकारी बन गये। अभी स्वत: ही वरदान प्राप्त हो ही गये। जब दाता के बच्चे बन गये, वरदाता के बच्चे बन गये-तो वरदान का खजाना बच्चों का हुआ ना। तो जब वरदानों का खजाना ही हमारा है तो मांगने की क्या आवश्यकता है! अभी खुशी में रहो कि 'मांगने से बच गये। जो सोच में भी नहीं था वह साकार रूप में मिल गया! हर बात में भरपूर हो गये, कोई कमी नहीं'।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ अशरीरी के लिए विशेष 4 बातों का अटेन्शन रखो :- 1. कभी भी अपने आपको भूलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। प्रीत दुनिया को भूलाने का साधन है, देह को भूलाने का साधन है।
〰✧ 2. दूसरी बात सच्चा मीत भी दुनिया को भूलाने का साधन है। अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है। 3. तीसरी बात दिल के गीत - अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है।
〰✧ 4. चौथी बात - यथार्थ रीत। अगर यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है। रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है। तो एक हुआ प्रीत, 2.- मीत, 3.- गीत, 4.- रीत।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे बहुत ऊँचे स्थान पर चले जाते हो तो चक्कर लगाना नहीं पड़ता लेकिन एक स्थान पर रहते सारा दिखाई देता है। ऐसे जब टॉप की स्टेज पर, बीजरूप स्टेज पर, विश्व-कल्याणकारी स्थिति में स्थित होंगे तो सारा विश्व ऐसे दिखाई देगा जैसे छोटा 'बाल' है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- दुःख हर्ता सुख कर्ता एक बाप है"
➳ _ ➳ सागर किनारे बैठी मैं आत्मा बाबा को स्नेह से याद कर रही हूँ... सागर की
कल कल करती लहरों को देखते-देखते, प्रकृति के सामीप्य में... सहज ही मन मीठे
बाबा की यादों में मगन हो रहा है... मैं अनुभव करती हूँ बापदादा ने पीछे से आकर
मेरे कंधे पर अपना मजबूत हाथ रख दिया है... पीछे मुड़ती हूँ तो अपने समीप अपने
मीठे बाबा को देखती हूँ... बाबा के चेहरे का प्रकाश चारों और दिव्यता फैला रहा
है... उनकी हंसी मुझे असीम आनंद से भर रही है... बाबा की मंद मंद मुस्कान,
दमकते चेहरे को देखकर यह महसूस हो रहा है कि... आज बाबा से बहुत सुंदर रुहरुहान
होने वाली है... मेरे मन में भी उत्सुकता हो रही है कि आज बाबा मुझे क्या कहने
वाले हैं...
❉ अपनी मीठी मुस्कान से आत्मा में आनंद रस घोलते हुए बाबा कहते हैं:- "मेरे
मीठे लाडले बच्चे... तुम आधाकल्प से अपने को भूले हुए माया के थपेड़े खाते भटकते
आए हो... अब मैं तुम्हें सच्चा रास्ता दिखाने आया हूँ... यह तुम्हारा अंतिम
जन्म है... इसलिए तुम एक मुझ में ही निश्चय रखो... परमत, मनमत का त्याग कर एक
मेरी ही श्रीमत पर चलो... जो सभी तरह से सुख देने वाली है..."
➳ _ ➳ बाबा के सच्चे स्नेह में लीन होती मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे दिलाराम
बाबा... आपने आकर मुझे सच्चा सुख दिया है... मुझे जन्म जन्म की भटकन से बचा
लिया है... अब मैं सिर्फ आपको ही अपनी यादों में समाया हुआ पाती हूँ... आपकी
बताई शिक्षाओं पर, आपके बताये मार्ग पर ही चल रही हूँ... मैं कितनी भाग्यवान
आत्मा हूँ... स्वयं भगवान सतगुरु बनकर आ गए हैं... मुझे मुक्ति और जीवनमुक्ति
का मार्ग दिखा रहे हैं..."
❉ मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पर बिठाके बेहद प्यार बरसाते हुए बाबा कहते
हैं:- "मीठे मीठे सपूत बच्चे... मैं तुम्हें कलियुगी दलदल से निकालकर पहले
मुक्तिधाम ले जाता हूँ... फिर वहाँ से सतयुगी सुखों की दुनिया में ले जाता
हूँ... इसके लिए मैं जो मत तुम्हें देता हूँ... वह सबसे न्यारी है... कोई भी
देहधारी गुरू, सन्त महात्मा यह मत नहीं दे सकते... इसलिए ही गाया जाता है...
तुम्हारी गत मत तुम ही जानो... तुम मेरी इस श्रेष्ठ मत को अपने जीवन में धारण
करो..."
➳ _ ➳ बाबा की गोद में बैठ पुलकित होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे मन के
मीत मीठे बाबा... आपकी श्रीमत मुझ आत्मा के लिए हर प्रकार से कल्याणकारी है...
मनमत, परमत पर चल के तो आधा कल्प दुःख पाया, भटकते रहे... अब मैं आपकी
शिक्षाएं ही धारण करूँगी... आपकी ही मत पर चलके भविष्य के लिए अपना श्रेष्ठ
भाग्य जमा करूँगी..."
❉ मुझे सभी चिंताओं से मुक्त कर बेगमपुर का बादशाह बनाते हुए बाबा कहते हैं:-
"मेरे लाडले सिकीलधे बच्चे... गति सदगति करने की मत मैं ही आकर बताता हूँ...
मनुष्य गुरु कोई भी सदगति नहीं कर सकते... वे कोई भी कह नहीं सकते कि... मैं
तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा... सर्व का सदगति दाता, लिबरेटर एक मैं ही हूँ...
तुम कदम कदम पर मुझ से राय लो... एक मेरी शिक्षाओं को ही अमल में लाओ..."
➳ _ ➳ बाबा के हाथ और साथ से संगम के हर पल में मौज मनाती मैं आत्मा कहती
हूँ:- "मेरे दिल के सहारे प्यारे बाबा... मैंने एक दिलाराम को ही अपने दिल में
बसा लिया है... आपकी शिक्षाएं ही मेरे जीवन का श्रृंगार कर रही हैं... आपकी
बाहों में ही मैंने सच्चा सुख पाया है... अब मैं सदा आपकी श्रीमत पर ही चल रही
हूँ... आप मुझे सर्व सुखों की जागीर देने आए हैं... उसे पाने के लिए मैं स्वयं
को हर प्रकार से योग्य बनाती जा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- राजयोग की पढ़ाई सोर्स ऑफ इन्कम है क्योंकि इससे ही हम राजाओं का राजा बनते
हैं"
➳ _ ➳ राजयोग के अभ्यास द्वारा अपनी सोई हुई शक्तियों को पुनः जागृत कर, स्वयं
को सर्व गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न करने के लिए मैं अशरीरी
बन बैठ जाती हूँ सर्व गुणों, सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की
याद मे। जैसे - जैसे मैं अपने शिव पिता परमात्मा की याद में गहराई तक डूबती जा
रही हूँ वैसे - वैसे देह का भान समाप्त होता जा रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे देह रूपी वस्त्र धीरे - धीरे उतर रहा है और उसके भीतर
छुपी जगमग करती चैतन्य शक्ति आत्मा अपने प्रकाश की रंग बिरंगी किरणे फैलाती
उजागर हो रही है। जैसे सूर्य की किरणें रात के अंधेरे को अपने प्रकाश से दिन
के उजाले में परिवर्तित कर देती है ऐसे सूर्य की किरणों के समान प्रकाश मुझ
आत्मा से निकल निकल कर मेरे चारों ओर फैल रहा है। यह प्रकाश निरन्तर बढ़ता हुआ
मुझ आत्मा के चारो और एक सुंदर औरे का निर्माण कर रहा है।
➳ _ ➳ अपने चारों और निर्मित प्रकाश के इस औरे के साथ अब मैं आत्मा धीरे - धीरे
देह रूपी वस्त्र का पूरी तरह त्याग कर ऊपर की बढ़ रही हूँ। शक्तियों के सागर
अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर उनके
समान बनने की इच्छा लिए अब मैं आकाश को पार कर, सूक्ष्मवतन से परें पहुँच गई
अपने शिव पिता परमात्मा के पास निर्वाण धाम। वाणी से परें मेरे शिव पिता
परमात्मा का यह धाम शांति की शक्तिशाली किरणों से भरपूर हैं। यहाँ पहुंच कर मैं
आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ सुख के सागर, प्रेम के सागर, आनन्द के सागर, पवित्रता, ज्ञान और शक्तियों
के सागर मेरे शिव पिता मेरे बिल्कुल सामने हैं और अपने इन सभी गुणों की
शक्तिशाली किरणों की वर्षा मुझ आत्मा पर करके मुझे इन सभी गुणों से सम्पन्न बना
रहे हैं। अपनी शक्तियों को मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे
हैं। बाबा के साथ टच हो कर मैं उनके सभी गुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों
को स्वयं में समाती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ भरपूर हो कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ और अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, तपस्वीमूर्त बन, राजयोग की तपस्या करने एक
ऊंचे खुले स्थान पर जाकर बैठ जाती हूँ और अपने पिता परमात्मा का आह्वान करती
हूँ। सेकेंड में मैं स्वयं को सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के साथ
कम्बाइंड अनुभव करती हूँ। सर्वशक्तिवान बाबा से सर्वशक्तियाँ ले कर मैं समस्त
वायुमण्डल में चारों ओर प्रवाहित कर रही हूँ और विश्व की सर्व आत्माओं को सुख
शांति की अनुभूति करवा कर अपने सेवा स्थल पर वापिस लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने तपस्वी स्वरूप को सदा इमर्ज रूप में रख, राजयोग की तपस्या करते, अब
मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को राजयोग द्वारा राजाई पद
प्राप्त कर उन्हें भी मुक्ति, जीवनमुक्ति का वर्सा पाने की अधिकारी आत्मा बना
रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं धरनी, नब्ज और समय को देख सत्य ज्ञान को प्रत्यक्ष करने वाली नॉलेजफुल आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं मेरा कहकर छोटी बात को बड़ा ना बनाकर, तेरा कहकर पहाड़ जैसी बात को रुई बनाने वाली महावीर आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवाधारी अर्थात् बड़ों के डायरेक्शन को फौरन अमल में लाने वाले। लोक संग्रह अर्थ कोई डायरेक्शन मिलता है तो भी सिद्ध नहीं करना चाहिए कि मैं राइट हूँ। भल राइट हो लेकिन लोकसंग्रह अर्थ निमित्त आत्माओं का डायरेक्शन मिलता है तो सदा - ‘जी हाँ', ‘जी हाजर', करना यही सेवाधारियों की विशेषता है, यह झुकना नहीं है, नीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है। कभी-कभी कोई समझते हैं अगर मैंने किया तो मैं नीचे हो जाऊँगी, मेरा नाम कम हो जायेगा, मेरी पर्सनैलिटी कम हो जायेगी, लेकिन नहीं। मानना अर्थात् माननीय बनना, बड़ों को मान देना अर्थात् स्वमान लेना। तो ऐसे सेवाधारी हो जो अपने मान शान का भी त्याग कर दो। अल्पकाल का मान और शान क्या करेंगे। आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है। तो अविनाशी लेना है या अभी-अभी का लेना है? तो सेवाधारी अर्थात् इन सब बातों के त्याग में सदा एवररेडी।
➳ _ ➳ बड़ों ने कहा और किया। ऐसे विशेष सेवाधारी, सर्व के और बाप के प्रिय होते हैं। झुकना अर्थात् सफलता या फलदायक बनना। यह झुकना छोटा बनना नहीं है लेकिन सफलता के फल सम्पन्न बनना है। उस समय भल ऐसे लगता है कि मेरा नाम नीचे जा रहा है, वह बड़ा बन गया, मैं छोटी बन गई। मेरे को नीचे किया गया उसको ऊपर किया गया। लेकिन होता सेकण्ड का खेल है। सेकण्ड में हार हो जाती और सेकण्ड में जीत हो जाती। सेकण्ड की हार सदा की हार है जो चन्द्रवंशी कमानधारी बना देती है और सेकण्ड की जीत सदा की खुशी प्राप्त कराती जिसकी निशानी श्रीकृष्ण को मुरली बजाते हुए दिखाया है। तो कहाँ चन्द्रवंशी कमानधारी और कहाँ मुरली बजाने वाले! ‘तो सेकण्ड की बात नहीं है लेकिन सेकण्ड का आधार सदा पर है'। तो इस राज़को समझते हुए सदा आगे चलते चलो।
✺ ड्रिल :- "बड़ों ने कहा और किया" - ऐसे विशेष सेवाधारी बनकर रहना।"
➳ _ ➳ भृकुटी सिंहासन पर विराजमान मैं आत्मा... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति... अपने निज् गुण... निज् स्वधर्म को जान... बैठी हूँ एक बाप की लगन में मग्न होकर... न देह का भान... न इस दैहिक दुनिया का भान... अपने आप में मस्त... बैठी हूँ तपस्या धाम में... तपस्या धाम... पवित्र भूमि... भगवान के अवतरण की भूमि जहाँ बापदादा से योग लगाना नहीं पड़ता... स्वतः ही लग जाता है... बापदादा से मन के तार को जुड़ने में पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता... वहाँ आप और बाप... बाप और आप ही दिखाई देते हैं...
➳ _ ➳ "तपस्या करनी हैं तो तपस्या धाम में जाओ..." और मैं आत्मा तपस्या धाम में बैठी बापदादा का आह्वान करती हूँ... मन बुद्धि रूपी घोड़े को बाप की याद रूपी लगाम से मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ परमधाम... सुनहरे किरणों के प्रकाश की दुनिया में... पवित्रता... शांति का साम्राज्य छाया हुआ हैं जहाँ... देह की दुनिया से परे... अपने ओरिजिनल स्वरुप में... मैं आत्मा बिन्दुरूप में बिन्दुरूपी बाप को और सभी आत्माओं को निहार रही हूँ... जो तन-मन-धन से... मंसा-वाचा-कर्मणा से एक बाप को प्रत्यक्ष करने पर लगे है...
➳ _ ➳ हम सभी आत्मायें एक बाप की लगन में और अपने आप को सदा बाप के प्यार के झूले में झूलता अनुभव करते... सर्व शक्तियों से भरपूर होते जा रहें हैं... रंग बिरंगी किरणों की फाउंटेन में हम सभी आत्मायें परिपूर्ण होते जा रहे हैं... और बाबा के साथ हम सभी आत्मायें पहुँचते हैं... सूक्ष्म वतन में... जहाँ ब्रह्मा बाबा हमारा इंतजार कर रहे थे... शिवबाबा का ब्रह्मा बाबा के सूक्ष्म शरीर में प्रवेश और हमारा बिन्दुरूप से फ़रिश्ता स्वरुप में परिवर्तन का यह नजारा सूक्ष्म वतन में पूनम के चाँद के जैसे चांदनी बिखेर रहा हैं...
➳ _ ➳ दिव्य स्वरूप वह ब्रह्मा बाबा का... अलौकिकता से भरे नयनों से प्यार की वर्षा.. हम सभी आत्माओ को भीगाता जा रहा हैं... ब्रह्मा तन में विराजमान शिवबाबा ने मुरली चलाई... "मेरे लाडले बच्चों..." और हम सभी फ़रिश्ते झूम उठे... बाबा ने कहा... "बच्चे सेवाधारी हो कि अथक सेवाधारी हो? सेवा में क्या मेरेपन की भावना और मैंने किया यह संकल्प तो हावी नहीं हो रहा है? बड़ों ने कहा और किया। ऐसे विशेष सेवाधारी, सर्व के और बाप के प्रिय होते हैं तो क्या विशेष सेवाधारी बन के रहते हो? ‘जी हाँ', ‘जी हाजर', करना यही सेवाधारियों की विशेषता है, यह झुकना नहीं है, नीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है।"
➳ _ ➳ "आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है... तो अविनाशी लेना है या अभी-अभी का लेना है? तो सेवाधारी अर्थात् इन सब बातों के त्याग में सदा एवररेडी..." बापदादा की यह अमूल्य शिक्षाओं को हम सभी फ़रिश्ते आत्मायें अपने में धारण करते जा रहें हैं और मेरेपन के त्याग से अपने पुरूषार्थ को उच्च शिखर पर पहुँचा रहे हैं... अमूल्य शिक्षाओं के खजानों से भरपूर हम आत्मायें वापिस अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करते हैं और हर कार्य चाहे लौकिक हो या अलौकिक सेवा हो... मेरेपन के भावना से परे हो करके करते जा रहे हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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