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 31 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ शरीर को न देखते हुए आत्मा निश्चय कट आत्मा से बात की ?

 

➢➢ आप समान बनाने की सेवा की ?

 

➢➢ श्रेष्ठ कर्म द्वारा दिव्य गुण रुपी प्रभु प्रसाद बांटा ?

 

➢➢ योग रुपी कवच से माया रुपी दुश्मन से स्वयं की सुरक्षा की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  हर बात में, वृत्ति में, दृष्टि में, कर्म में न्यारापन अनुभव हो, यह बोल रहा है लेकिन न्यारा-न्यारा, प्यारा-प्यारा लगता है। आत्मिक प्यारा। नम्बरवन ब्रह्मा की आत्मा के साथ आप सभी को भी फरिश्ता बन परमधाम में चलना है, तो मन की एकाग्रता पर अटेंशन दो, ऑर्डर से मन को चलाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं श्रेष्ठ स्वमानधारी आत्मा हूँ"

 

  स्वयं को श्रेष्ठ स्वमानधारी आत्मा अनुभव करते हो? जितना स्वमान में स्थित होते हो, तो 'स्वमान' देहभान को भुला देता है। आधा कल्प देहभान में रहे और देह-भान के कारण अल्पकाल के मान प्राप्त करने के भिखारी रहे। अभी बाप ने आकर स्वमानधारी बना दिया। स्वमान में स्थित रहते हो या कभी हद के मान की इच्छा रखते हो? जो स्वमान में रहता उसे हद के मान प्राप्त करने की कभी इच्छा नहीं होती, इच्छा मात्रम् अविद्या हो जाते। एक स्वमान में सर्व हद की इच्छायें समा जाती हैं, मांगने की आवश्यकता नहीं रहती। क्योंकि यह हद की इच्छायें कभी भी पूर्ण नहीं होती हैं। एक हद की इच्छा अनेक इच्छा को उत्पन्न करती है, सम्पन्न नहीं करती लेकिन पैदा करती है।

 

  स्वमान सर्व इच्छाओंको सहज ही सम्पन्न कर देता है। तो जब बाप सदा के लिए स्वमान देता है, तो कभी-कभी क्यों लेवें! स्वमानधारी सदा बेफिक्र बादशाह होता है, सर्व प्राप्ति-स्वरूप होता है। उसे अप्राप्ति की अविद्या होती है। तो सदा स्वमानधारी आत्मा हूँ-यह याद रखो। स्वमानधारी सदा बाप के दिलतख्त-नशीन होता है क्योंकि बेफिक्र बादशाह है! बादशाह का जीवन कितना श्रेष्ठ है! दुनिया वालों के जीवन में कितनी फिक्र रहती हैं-उठना तो भी फिक्र, सोयेंगे तो भी फिक्र। और आप सदा बेफिक्र हो। पाण्डवों को फिक्र रहता है? कल व्यापार ठीक होगा या नहीं, कल देश में शान्ति होगी या अशान्ति........-यह फिक्र रहता है?कल बच्चे अच्छी तरह से सम्भाल सकोगे या नहीं-यह फिक्र माताओंको रहता है?

 

  दुनिया में कुछ भी हो लेकिन अशान्ति के वायुमण्डल में आप तो शान्तस्वरूप आत्मायें ता औरों को भी शान्ति देने वाले। या अशान्ति होगी तो आप भी घबरा जायेंगे? आपके घर के बाहर बहुत हंगामा हो रहा हो, तो आप उस समय क्या करते हो? याद में बैठ जाते हो ना! बाप को याद करके शान्ति लेकर औरों को देना-यह सेवा करो। क्योंकि जो अच्छी चीज अपने पास है और दूसरों को उसकी आवश्यकता है, तो देनी चाहिए ना! तो अशान्ति के समय पर मास्टर शान्ति-दाता बन औरों को भी शान्ति दो, घबराओ नहीं। क्योंकि जानते हो कि-जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बापदादा इस साकारी देह और दुनिया में आते हैं, सभी को इस देह और दुनिया से दूर ले जाने के लिए दूर-देश वासी सभी को दूर-देश निवासी बनाने के लिए आते हैं। दूर-देश में यह देह नहीं चलेगी। पावन आत्मा अपने देश में बाप के साथ-साथ चलेगी।

 

✧  तो चलने के लिए तैयार हो गये हो वा अभी तक कुछ समेटने के लिए रह गया है? जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो तो विस्तार को समेट परिवर्तन करते हो। तो दूर-देश वा अपने स्वीट होम में जाने के लिए तैयारी करनी पडेगी? सर्व विस्तार को बिन्दी में समाना पडे। इतनी समाने की शक्ति, समेटने की शक्ति धारण कर ली है?

 

 

✧  समय प्रमाण बापदादा डायरेक्शन दे कि सेकण्ड में अब साथ चलो तो सेकण्ड में, विस्तार को समा सकेंगे? शरीर की प्रवृति, लौकिक प्रवृति, सेवा की प्रवृति, अपने रहे हुए कमजोरी के संकल्प की और संस्कारों की प्रवृत्ति, सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते हो? वा कोई प्रवृति अपने तरफ आकर्षित करेगी?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सदा इस स्मृति में डबल लाईट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दु। बिन्दु में कोई बोझ नही। यह स्मृति-स्वरूप सदा आगे बढ़ाता रहेगा। आँखों में बीच में देखो तो बिन्दु ही है। बिन्दु ही देखता है। बिन्दु न हो तो आँख होते भी देख नहीं सकते। तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- रक्षाबंधन पर पवित्र बनने और बनाने की प्रतिज्ञा करना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठी हुई बाबा को निहार रही हूं... आज भी बाबा की साकार भासना मुझे मन्त्रमुग्ध कर देती है...  बाबा जैसे आसपास हैं और कदम कदम पर  समझानी देते हुए मुझे सतयुगी दुनिया के योग्य बना रहे हैं... बाबा कैसे मुझे पालना देकर मेरे जीवन को निखार रहे हैं इन्ही बातों का चिंतन करते करते मैं स्वयं को बाबा के पास मणियों के देश में चमकता हुआ अनुभव कर रही हूं...  बाबा से प्रवाहित होती शक्तिओं को स्वयं में भरकर वतन में बापदादा के सम्मुख पहुँच जाती हूँ...

❉  बाबा मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा को अपने पास बिठा कर बहुत प्यार से मुझ आत्मा से बोले:- "मेरे सिकीलधे बच्चे... पवित्र रहने की कसम लेना ही सच्चा  रक्षाबंधन है... इस दुनिया में कोई को नही पता कि रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है... तुम बच्चे जानते हो हमने बाबा के बनकर एक दो को पवित्रता की राखी बांधी है... बाप से तुमने पवित्र रहने की प्रतिज्ञा की है, तुम्हें पवित्र बन औरों को भी पवित्र बनाने की सेवा करनी है..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के मुख से निकलते ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरती हुई बाबा से बोली:- "हाँ मेरे जादूगर बाबा... आपने ही मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे पतित से पावन बनाया है... मेरी पत्थर बुद्धि को पारस बुद्धि बनाया है...  ज्ञान स्नान से ही मैं आत्मा इतनी पावन बनी हूँ, मेरे जन्मों जन्मों के पाप योग अग्नि से भस्म होते जा रहे हैं... आपने मुझे इस विकारी दल दल से निकाल कर अत्यंत पवित्र और स्नेही बना दिया है..."

❉  मुझ आत्मा को अपनी गोद में बिठा कर बाबा मुझ आत्मा से बोले:- "मेरे लाडले फूल बच्चे... बाप का बनकर कभी भी विकारों के वशीभूत नही होना इसलिए श्रीमत को पूरा पूरा धारण करना,  श्रीमत का उलंघन करने से माया नाक से पकड़ लेगी... निरंतर एक बाप की याद में रहो तो माया भी व्यस्त देखकर अपना रास्ता बदल लेगी... तुम ब्राह्मण बच्चों को अमृतवेले से लेकर रात तक कि श्रीमत मिली हुई है... ब्राह्मण जीवन है ही मर्यादाओं का जीवन है..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा की बातों को सुनकर बाबा से बोली:- "प्राणों से प्यारे बाबा मेरे... मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं जो मुझे  परमात्मा की श्रीमत पर जीवन जीने का शुभ अवसर मिला... दुनिया में कोई जानते ही नही की हम बच्चे परमात्मा की गोद में पल रहे हैं... वाह मेरा भाग्य दुनिया में दुख और अशांति है और मैं आत्मा सुखों के झूले में झूल रही हूं... आपके आने से जीवन अत्यंत सुंदर हो गया है..."

❉  बाबा मेरे सर को सहलाते हुए अपनी मधुर वाणी में मुझ आत्मा से बोले:- "मीठे बच्चे... अब बाप का बने हो तो सच्चा सच्चा रक्षाबंधन मनाओ और एक दो को पवित्रता की राखी बांध कर बाप के इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में बाप के सहयोगी बनो...  यही धारणा तुम्हारे लिए स्वर्ग के द्वार खोलेगी... बाप तुम्हारे लिए ही इस पतित दुनिया में आते हैं अब बाप पर पूरा पूरा बलिहार जाओ..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के प्यार में खोई हुई बाबा से कहती हूँ:- "हाँ मेरे दिलाराम बाबा... जब तक ये शरीर है तब तक बाप की श्रीमत पर ही जीना है... आपने इतना अमूल्य जीवन देकर मुझ आत्मा की झोली सुखों और वरदानों से भर दी है,  मैं आत्मा आपका जितना भी आभार प्रकट करूँ कम ही लगता है... आपने मुझ आत्मा को मेरे कखपन के बदले जन्मों जन्मों का सुख दे दिया है... आपकी रहमतों के आगे शुक्रिया शब्द भी बहुत छोटा लगता है... मैं आत्मा अपने अंतर्मन की गहराइयों से बाबा को शुक्रिया कर लौट आती हूँ अपने साकारी तन में..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- योगबल इतना जमा करना है जो अपना हर काम सहज हो जाये

➳ _ ➳  एकांत में बैठ प्रभू चिन्तन करते हुए मैं अंतिम समय के बारे में विचार करती हूँ कि अन्त के समय जब सारी दुनिया मे हाहाकार हो रही होगी उस समय केवल वो चन्द आत्मायें उस हाहाकार में भी एकरस, अचल और अडोल होंगी जिन्होंने लम्बे समय से ज्ञान की धारणा और योग का बल जमा किया होगा। बाबा के अव्यक्त इशारे बार - बार समय की समीपता का संकेत दे रहें हैं। तो बाबा के उन अव्यक्त इशारों को देखते हुए मैं स्वयं से ही सवाल करती हूँ कि क्या मैने अपने अंदर इतना योगबल जमा कर लिया कि अंत के समय, हलचल की परिस्थिति भी मेरी स्थिति को हिला ना सके!

➳ _ ➳  इसी के साथ - साथ बाबा के महावाक्य स्मृति में आते हैं कि:- "आगे चल कर आप मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के पास सब भिखारी बन कर आयेंगे। तो जब स्टॉक होगा तब तो देंगे ना! दान वही दे सकता जिसके पास अपने से ज्यादा हो। अगर अपने ही जितना होगा तो दान क्या करेगें "। बाबा के इन महावाक्यों के स्मृति में आते ही मैं स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस संगमयुग पर अब मुझे अपने एक - एक सेकण्ड पर अटेंशन देते हुए अपने अंदर इतना योगबल जमा करना है कि अंत समय स्वयं के साथ - साथ मैं औरों का भी कल्याण कर सकूँ और बाबा के विश्व परिवर्तन के कार्य मे बाबा की मददगार बन बाबा का नाम बाला कर सकूँ।

➳ _ ➳  इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ स्वयं को बलशाली बनाने के लिए अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर, सर्वशक्तिवान अपने शिव पिता परमात्मा को मैं याद करती हूँ और अपने मन बुद्धि को पूर्ण रूप से अपने मीठे प्यारे बाबा पर एकाग्र करती हूँ। इस एकाग्रचित अवस्था मे मैं बाबा को अपने अति समीप अनुभव करती हूँ और इस समीपता का अनुभव करते - करते अपनी नश्वर देह का त्याग कर मैं चल पड़ती हूँ अपने प्राणेश्वर बाबा के पास, उनके प्यार की शीतल छाया में बैठ स्वयं को तृप्त करने के लिए। अपने शिव पिता परमात्मा के निराकारी धाम की ओर मैं निरन्तर बढ़ती जा रही हूँ।

➳ _ ➳  साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख। मेरे दिलाराम बाबा की समीपता मुझे परमआनन्द का अनुभव करवा रही है। सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सुंदर सलोना स्वरूप मन को जैसे तृप्त कर रहा है। उनसे निकल रही शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बहते हुए झरने के समान मुझ पर पड़ रही है और मन को गहन शीतलता दे रही है। गहन शांति के गहरे अनुभवों में मैं डूब रही हूँ और बाबा से आ रही सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ।
 
➳ _ ➳  भरपूर हो कर अब मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट कर, कर्म करने के लिए फ़िर से अपने पांच तत्वों के बने भौतिक शरीर मे प्रवेश करती हूँ। अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और हर घड़ी बाबा को अपने समीप अनुभव कर रही हूँ। अब मेरे हर श्वांस में केवल मेरे दिलराम बाबा की याद बसी है। मेरा रोम - रोम उनकी याद से पुलकित हो रहा है। मेरे मनबुद्धि की तार अब निरन्तर उनके साथ ही जुड़ी हुई है। मैं हर पल उनके लव में लीन होकर संगमयुग के एक - एक पल को उनकी याद में सफल करते हुए, अंतिम समय के लिए, अपने अंदर ज्ञान और योगबल जमा कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं  श्रेष्ठ कर्म द्वारा दिव्य गुण रूपी प्रभू प्रसाद बांटने वाली फरिश्ता सो देवता हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं योग रूपी कवच को पहन कर माया रूपी दुश्मन के वार से सेफ रहने वाली मायाजीत आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  वर्तमान समय सेवा की रिजल्ट में क्वान्टिटी बहुत अच्छी है लेकिन अब उस क्वान्टिटी में क्वालिटीज भरो। क्वान्टिटी की भी स्थापना के कार्य में आवश्यकता है। लेकिन वृक्ष के पत्तों का विस्तार हो और फल न हो तो क्या पसन्द करेंगेपत्ते भी हो और फल भी हों या सिर्फ पत्ते होंपत्ते वृक्ष का श्रृंगार हैं और फल सदाकाल के जीवन का सोर्स हैं।

✺   "ड्रिल :- सेवा में क्वान्टिटी के साथ साथ क्वालिटी पर भी अटेंशन देना।"

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्मा को याद करते हुए अपने मन बुद्धि से एक बुलबुले के अंदर अपने आप को इमर्ज करती हूं... और मैं अनुभव करती हूँ कि मैं उस बुलबुले में बैठी हूं... और उड़ती जा रही हूं... खुले आसमान में उड़ते हुए मैं अपने आपको इस दुनिया में सबसे अद्भुत अनुभव करती हूं... मैं अनुभव करती हूँ... कि उड़ने की शक्ति परमात्मा ने केवल मुझे ही दी है... मैं आत्मा यह सोचते हुए अपने आप को उस बुलबुले की सहायता से और भी ऊंची अवस्था में महसूस करती हूं... और कुछ समय बाद मैं अपनी मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं अपने घर परमधाम... वहाँ पहुंचकर मैं देखती हूं कि वहां का वातावरण इस इस स्थूल वतन से बिल्कुल ही न्यारा है...

➳ _ ➳  जैसे जैसे मैं परमधाम में समय व्यतीत करती हूं... मुझे आभास होता है कि उस लाल सुनहरे प्रकाश के बीच मैं बुलबुले के आकार की चमकती हुई मणि के समान प्रतीत हो रही हूं... और मैं अपने सामने परमात्मा को अनुभव करती हूँ... जिनसे अनेक रंग बिरंगी किरणें निकल रही है... और मुझमें समाती जा रही है... जैसे जैसे वह शक्तिशाली किरणें मुझमें प्रवेश करने लगती है... वैसे वैसे ही मैं फिर से एक बुलबुले के रूप में परिवर्तित होती जा रही हूं... और मुझे ये आभास होता है कि परमात्मा मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से भर रहे हैं... और इन किरणों से अपने आप को भरपूर कर मैं अब बन जाती हूँ एक शक्तिशाली बुलबुला...

➳ _ ➳  और मैं आत्मा अपनी मन बुद्धि से बुलबुले की आकृति में धीरे-धीरे नीचे उतरती जाती हूं... जैसे जैसे मैं नीचे उतरते जाती हूं... मैं प्रकृति के पांचो तत्वों को अपनी पॉजिटिव किरणों से पवित्र बनाती जा रही हूं... और मैं यह फील करती हूं... कि मुझ आत्मा रूपी बुलबुले से यह पवित्र किरणें निकलकर प्रकृति के पांचो तत्वों को पवित्र बना रही है... और मैं उनको पवित्र बनते हुए अनुभव कर रही हूं... और जैसे ही मैं आत्मा इस धरा पर आती हूं... तो मैं अपने आप को इस कल्पवृक्ष की जड़ों में स्थित कर लेती हूं... मैं अपनी शक्तिशाली किरणों से इस पूरी सृष्टि को शांति की किरणें देती जा रही हूँ... और जैसे-जैसे मैं अपनी शांति की किरणें सारे कल्पवृक्ष में फैलाती जा रही हूं... वैसे ही मैं अनुभव करती हूँ... कि यह कल्पवृक्ष एकदम भरपूर हो रहा है... कल्पवृक्ष की एक-एक शाखाएं शांति को अनुभव करते हुए हरियाली से भरपूर हो रही हैं...

➳ _ ➳  और जैसे-जैसे मुझसे किरणें निकलती जा रही है... मैं बुलबुले के आकार से धीरे-धीरे अपने असली स्वरुप में आ रही हूं... मैं उस बुलबुले से अब चमकती हुई मणि रूपी आत्मा का आभास कर रही हूं... और अपने आपसे एकाग्रचित अवस्था में स्थित होकर यह संकल्प कर रही हूँ... कि मैं आत्मा अपने आपको सातों गुणों से भरपूर अनुभव करते हुए और परमात्मा द्वारा दिए हुए हर खजाने को अपने अंदर समाते हुए... इस सृष्टि की सेवाधारी बन कर रहूँगी... मैं आत्मा अपने आपको विश्व सेवाधारी की स्टेज पर अनुभव करती हूँ... और अपने अंदर सभी खजानों को भी गहराई से अनुभव करती हूँ... तथा मैं अपनी सभी कमी कमजोरियों को बारीकी से चेक करते हुए... इन्हें समाप्त करती जा रही हूं... जैसे जैसे मैं अपनी कमी कमजोरियों को समाप्त करती जाती हूं... मैं अपनी शांति भरी स्थिति का आनंद लेती जा रही हूँ... और अपनी शक्तियों को पहचानते हुए, जानते हुए मैं अन्य दुखी आत्माओं को परमात्मा का परिचय देकर उन्हें सही मार्ग पर लाती जा रही हूँ...  

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा परमात्मा द्वारा दिए हुए... ज्ञान रत्नों और शक्तियों से श्रृंगारित होती जा रही हूं... इन अविनाशी रत्नों से सज संवर कर अन्य आत्माओं को भी ज्ञान रत्नों से सजाती जा रही हूं... मैं यह देख रही हूं... कि सभी आत्माएं श्रृंगारित होकर बहुत ही आनंदित हो रही है... और बार-बार अपने आपको सजा सँवरा देखकर हर्षित हो रही है... उनके हर्षित मुख के कारण मुझ आत्मा की चमक और भी बढ़ती जा रही है... जैसे-जैसे मैं अपने आप को शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करती हूं... वैसे वैसे ही मैं अपने आपके और भी करीब होती जा रही हूँ... और अपनी छुपी हुई शक्तियों को पहचानती जा रही हूं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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