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❍ 26 / 04 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी भी बता में समय बर्बाद तो नहीं किया ?*
➢➢ *एक बाप की याद में रह आपार ख़ुशी का अनुभव किया ?*
➢➢ *धारणा स्वरुप द्वारा सेवा कर ख़ुशी का प्रतक्ष्य फल प्राप्त किया ?*
➢➢ *सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी कर रूहानी मौज में रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने के लिए योगयुक्त बनकर साइलेन्स की शक्ति द्वारा परखने और निर्णय करने की शक्ति को अपनाओ। *यदि माया के भिन्न-भिन्न रूपों को परख नहीं सकेंगे तो उसे भगा भी नहीं सकेंगे क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया रॉयल ईश्वरीय रूप रच करके आती हैं जिसको परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए। एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही प्राप्त होती है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं रूहानी गुलाब हूँ"*
〰✧ सदा विस्तार को प्राप्त करने वाला रूहानी बगीचा है ना। और आप सभी रूहानी गुलाब हो ना। जैसे सभी फूलों में रूहे गुलाब श्रेष्ठ गाया जाता है। वह हुआ अल्पकाल की खुशबू देने वाला। आप कौन हो? *रूहानी गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। सदा रूहानियत की खुशबू में रहने वाले और रूहानी खुशबू देने वाले।* ऐसे बने हो?
〰✧ सभी रूहानी गुलाब हो या दूसरेदूसरे। और भी भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल होते हैं लेकिन जितना गुलाब के पुष्प की वैल्यु है उतनी औरों की नहीं। *परमात्म बगीचे के सदा खिले हुए पुष्प हो। कभी मुरझाने वाले नहीं। संकल्प में भी कभी माया से मुरझाना नहीं। माया आती है माना मुरझाते हो। मायाजीत हो तो सदा खिले हुए हो।*
〰✧ *जैसे बाप अविनाशी है ऐसे बच्चे भी सदा अविनाशी गुलाब हैं। पुरुषार्थ भी अविनाशी है तो प्राप्ति भी अविनाशी है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज आवाज़ से परे जाने का दिन रखा हुआ है। तो बापदादा भी आवाज़ में कैसे आयें? *आवाज़ से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है।* आवाज़ में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो उससे अधिक आवाज़ से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे।
〰✧ *अपनी अव्यक्त स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्ष फल स्वरूप आपके सम्मुख दिखाई देगा।* आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज़ में आने से वह आवाज़, आवाज़ नहीं लगेगा लेकिन उस आवाज़ में भी अव्यक्त वाय्ब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा। वह आवाज़ सुनते हुए उन्हों को आपकी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होने लगेगा।
〰✧ जैसे इन साकार सृष्टी में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज़ होता है लेकिन वह आवाज़, आवाज़ से परे ले जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। *एक सेकण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी संबन्ध में जोड सकता हे।* ऐसा अटूट संबन्ध जुड जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे स्थूल चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण करते हो और उतार देते हो, वैसे ही इस साकार देह रूपी चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण किया और न्यारा हुआ। *लेकिन जैसे स्थूल वस्त्र भी अगर टाइट होते हैं तो सहज उतरते नहीं हैं, ऐसे ही आत्मा का देह रूपी वस्त्र देह, दुनिया के माया के आकर्षण में टाइट अर्थात खींचा हुआ है तो सरल उतरेगा नहीं अर्थात सहज न्यारा नहीं हो सकेंगे।* समय लग जाता है। थकावट हो जाती है। कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो थकावट व परेशानी हो ही जाती है; परेशानी कभी एक टिकाने टिकने नहीं देती। *तो यह भक्ति का भटकना क्यों शुरु हुआ? जब आत्मा इस शरीर रूपी चोले को धारण करने व न्यारे होने में असमर्थ हो गयी। यह देह का भान अपने तरफ खेंच गया तब परेशान होकर भटकना शुरू किया।* लेकिन अब आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस शरीर की आकर्षण से परे एक सेकण्ड में हो सकते हो, ऐसी प्रेक्टिस है?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की याद में सदा हर्षित रहना"*
➳ _ ➳ मीठे बाबा की यादो में खोयी... मै आत्मा अपनी खुशियो के खजाने को गिनने में मशगूल हूँ... और अपनी ईश्वरीय अमीरी को देख देख मुस्करा रही हूँ... *कितना प्यारा अनोखी खुशियो से भरा जीवन मीठे बाबा ने सौगात सा दे दिया है... तभी मीठे बाबा पलक झपकते ही वहाँ उपस्थित होकर... मुझे खुशहाल देख जैसे, नयनों से कह रहे... बच्चों की खुशियो में ही मुझ पिता की खुशियां समायी है.*..
❉ *मीठे बाबा आज खुशियो की बरसात मेरे मन आँगन में बिखराते हुए बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन खत्म हो गए है... *अब अथाह खुशियो भरे मीठे दिन आ गए है... अब ईश्वर पिता जीवन में आ गया है... चारो ओर खुशियो की बरसात है...* इस नशे में सदा डूबे रहो कि सुख शांति प्रेम के मीठे पल आये की आये..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा के रूप में भगवान को सम्मुख देख देख पुलकित हूँ और कह रही हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... *ऐसा प्यारा ईश्वरीय साथ भरा जीवन तो कल्पनाओ में भी कभी न था... आज आपको पाने की ख़ुशी से छलक रहा मन...* जीवन की सच्चाई है... और मीठे सुख मुझे अपनी बाँहों में पुकार रहे है..."
❉ *प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में दुलारते हुए ज्ञान धारा को बहाते हुए बोले :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... जो देवताई सुख कल्पनाओ से परे थे... *ईश्वर पिता उन सुख भरे खजानो को आप बच्चों की राहो में फूलो सा बिखराया है... इस ख़ुशी में सदा झूमते रहो...* अपने मीठे सुखो की यादो में खोये रहो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों की छत्रछाया में स्वयं को भरपूर करते हुए बोली :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... दुखो के जंगल में सुख की एक बून्द को तरसती... *मै आत्मा आज स्वर्ग की बादशाही पा रही हूँ... कितना प्यारा मीठा और खुबसूरत भाग्य है... मै आत्मा आपके सारे खजानो की मालिक बन गयी हूँ..."*
❉ *मीठे बाबा रूहानी दृष्टि देते हुए और ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारते हुए बोले :-* "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर जो सुखो की दौलत पायी है... उसके नशे में खोये रहो... *संगम की यही खुशियां देवताई सुखो में बदल कर जीवन को खुशियो से महकायेंगी... इन मीठे पलो के सुख को यादो में चिर स्थायी बनाओ..."*
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी मुस्कराहट से जवाब देते हुए कहती हूँ :-* "मीठे बाबा सच्चे ज्ञान को पाकर सारी भटकन से छूट गयी हूँ और *आपकी छत्रछाया में गुणवान शक्तिवान बनकर सच्ची खुशियो में खिलखिला रही हूँ... देवताई सुखो भरा स्वर्ग अपनी तकदीर में लिखवा रही हूँ..."* अपनी खुशियो की चर्चा मीठे बाबा से कर मै आत्मा कार्य पर लौट आयी... इन मीठी ईश्वरीय यादो को दिल में समेट कर मै आत्मा अपने जगत मे आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बेहद के बाप से सर्च लाइट लेने के लिए उनका मददगार बनना है*"
➳ _ ➳ सृष्टि परिवर्तन के जिस कार्य को सम्पन्न करने के लिए भगवान स्वयं इस धरा पर अवतरित हुए हैं उनके इस कर्तव्य में जो ब्राह्मण आत्मायें मददगार बन इस ईश्वरीय कर्तव्य को सम्पन्न कर रही है वो आत्मायें कितनी पदमापमदम सौभाग्यशाली और कितने ऊँच पद की अधिकारी हैं। *मन ही मन एकांत में बैठी मैं अपने आप से बातें कर रही हूँ और उन महान सौभाग्यशाली आत्माओं के बारे में चिंतन कर रही हूँ जिन्होंने परमात्मा द्वारा रचे इस ईश्वरीय रुद्र ज्ञान यज्ञ में अपना तन - मन - धन सब कुछ स्वाहा कर दिया*।
➳ _ ➳ हम सबके सामने प्रत्क्षय उदाहरण हमारे प्यारे ब्रह्मा बाबा और मम्मा और उसके बाद यज्ञ स्नेही दीदी, दादियां और हमारे अनेक वरिष्ठ भाई, बहन जो आज भी सम्पूर्ण समर्पण भाव से भगवान के मददगार बन ईश्वरीय सेवाओ में तत्पर है। *उन सभी महान तपस्वीमूर्त आत्माओं के बारे में विचार करते हुए मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस ब्राह्मण जीवन मे फॉलो मदर फादर कर मुझे भी बाप का मददगार बन उनसे इजाफा ( प्राइज ) लेना है*।
➳ _ ➳ इसी दृढ़ प्रतिज्ञा और दृढ़ संकल्प के साथ अब मैं अपने मन बुद्धि को स्थिर करके उस प्राइज के बारे में विचार करती हूँ जो भगवान हम बच्चों के लिए ले कर आये हैं। *अपनी हथेली पर बहिश्त ले कर आये अपने हेविनली गॉड फादर द्वारा मिलने वाली ईश्वरीय सौगात की स्मृति मुझे मन बुद्धि के विमान पर बिठाकर उस खूबसूरत दुनिया में ले जाती हैं जिसकी रचना भगवान स्वयं आकर इस समय हम बच्चों के लिए कर रहें हैं*। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से उस नई दुनिया के नए मनभावन दृश्यों को मैं अब देख रही हूँ।
➳ _ ➳ हीरे जवाहरातों से सजी वो सुन्दर दुनिया मेरी आँखों के सामने हैं और उस दुनिया में विचरण करते हुए मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने अति सुंदर दैवी स्वरूप में। *मन को लुभाने वाले बहुत ही सुंदर - सुन्दर नजारों से सजी इस सतयुगी दुनिया में सुख, शान्ति और सम्पन्नता की भरमार है। दुख का यहाँ कोई नाम निशान भी नही। सभी सुखमय, शान्तमय जीवन का आनन्द ले रहें हैं*। इस पावन दुनिया मे प्रकृति भी दासी बन सुख दे रही है। सदाबहार मौसम, हरे भरे सुंदर खुशबूदार पेड़ पौधे, पेड़ो पर लगे रसीले सुन्दर फल और प्रकृति के बहुत ही खूबसूरत नज़ारे मैं इस दुनिया मे देख - देख कर आनन्दित हो रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता द्वारा इजाफे ( ईनाम ) के रूप में मिलने वाली स्वर्गिक दुनिया के सुंदर नजारों का भरपूर आनन्द लेकर, ऐसी खूबसूरत सौगात देने वाले अपने शिव पिता से सदा उनकी मददगार बन उनके कार्य मे सहयोगी बनने की प्रतिज्ञा करके अपने मीठे बाबा की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ और उनकी याद में बैठते ही मैं अनुभव करती हूँ *जैसे परमधाम से मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मेरे ऊपर पड़ कर चुम्बक के समान मुझे अपनी और खींच रही हैं*। देह का भान समाप्त होता जा रहा है और मैं स्वयं को देह से अलग अनुभव करते हुए, बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे देह से बाहर आ कर अब ऊपर आकाश की ओर उड़ने लगी हूँ।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के स्नेह की शीतल छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते,आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं पहुँच गई हूँ परे ते परे उस परलोक अर्थात ब्रह्मलोक में, जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं। यहाँ पहुंचते ही मैं महसूस करती हूँ स्वयं को हर संकल्प विकल्प से मुक्त एक अति सुन्दर शून्य अवस्था में। *शांति से भरपूर इस अति सुखदाई अवस्था मे स्थित होकर अब मैं अपने प्यारे पिता के साथ बहुत सुन्दर स्नेह मिलन मना रही हूँ*। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की सहस्त्रों धाराओं को मैं एक साथ अपने ऊपर पड़ता हुआ महसूस कर रही हूँ जो मुझे बहुत ही बलशाली बनाने के साथ - साथ मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को धोकर मुझ आत्मा को भी साफ और स्वच्छ बना रही हैं।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न, साफ स्वच्छ बनकर, बाबा का मददगार बनने के लिए अब मैं फिर से साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ और अपनी साकार देह में विराजमान होकर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, बाबा की शिक्षाओं पर चलकर, उनका मददगार बन उनसे इज़ाफा ( इनाम ) लेने के लिए अपने पुरुषार्थ पर अब मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं धारणा स्वरूप द्वारा सेवा करके खुशी का प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी करके रूहानी मौज में रहने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ धर्म में दो विशेषतायें होती हैं। धर्म सत्ता स्व को और सर्व को सहज परिवर्तन कर लेती है। परिवर्तन शक्ति स्पष्ट होगी। सारे चक्र में देखो जो भी धर्म सत्ता वाली आत्मायें आई हैं उन्हों की विशेषता है - मनुष्य आत्माओं को परिवर्तन करना। साधारण मनुष्य से परिवर्तन हो कोई बौद्धी, कोई क्रिश्चयन बना, कोई मठ पंथ वाले बने। लेकिन परिवर्तन तो हुए ना! तो धर्म सत्ता अर्थात् परिवर्तन करने की सत्ता। पहले स्वयं को फिर औरों को। धर्म सत्ता की दूसरी विशेषता है -‘परिपक्वता'। हिलने वाले नहीं। परिपक्वता की शक्ति द्वारा ही परिवर्तन कर सकेंगे। चाहे सितम हों, ग्लानी हो, आपोजिशन हो लेकिन अपनी धारणा में परिपक्व रहें। यह हैं धर्म सत्ता की विशेषतायें। धर्म सत्ता वाली हर कर्म में निर्मान। *जितना ही गुणों की धारणा सम्पन्न होगा अर्थात् गुणों रूपी फल स्वरूप होगा उतना ही फल सम्पन्न होते भी निर्मान होगा। अपनी ‘निर्मान' स्थिति द्वारा ही हर गुण को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। जो भी ब्राह्मण कुल की धारणायें हैं उन सर्व धारणाओं की शक्ति होना अर्थात् धर्म सत्ताधारी होना।*
✺ *"ड्रिल :- 'परिवर्तन करने की कला, परिपक्वता, निर्मानता' - इन 3 गुणों का विशेष रूप से अनुभव करना*"
➳ _ ➳ मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्व को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा कलियुगी संस्कारों से मुक्त हो रही हूँ... और संगमयुगी श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रीमत अनुसार ब्राह्मण कुल की सर्व धारणाओं पर चल रही हूँ...* मैं आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा सर्व को परिवर्तित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परिपक्वता की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हूँ...* हर परिस्थिति में अचल अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ... कैसी भी परिस्थिति अब मुझ आत्मा को हिला नहीं सकती है... मैं आत्मा हर परिस्थिति में अपनी धारणा में परिपक्व रहती हूँ... *हर प्रकार के मान-अपमान से परे होकर निर्मानता के गुण को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख ‘परिवर्तन करने की कला’ से माया के सभी रूपों को परिवर्तित कर रही हूँ...* ‘परिपक्वता’ की शक्ति से मैं आत्मा सर्व मर्यादाओं का पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी ‘निर्मान' स्थिति द्वारा हर गुण को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...* मैं आत्मा धर्म सत्ताधारी बन इन 3 गुणों का अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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