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 19 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ उमंग के बीज को अटेंशन का पानी और चेकिंग की धुप देते रहे ?

 

➢➢ विघन विनाशक बन दुखी आत्माओं को सुख चैन की अनुभूति करवाई ?

 

➢➢ सर्वस्व त्यागी बन सरलता और सहनशीलता का गुण धारण किया ?

 

➢➢ बंधनो को योग अग्नि से भस्म किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे विशेष दिनों पर भक्त लोग व्रत रखते हैं, साधना करते हैं। एकाग्रता का विशेष अटेंशन रखते हैं। ऐसे सेवाधारी बच्चों को भी यह वायब्रेशन आने चाहिए। सहज योग की साधना, साधनों के ऊपर अर्थात् प्रकृति के ऊपर विजयी हो। ऐसा न हो इसके बिना तो रह नहीं सकते, यह साधन नहीं मिला इसलिए स्थिति डगमग हो गई... इसको भी न्यारी जीवन नहीं कहेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "नशा रहे - बाबा मेरे लिए आये हैं सदा यह खुशी रहती है कि बाप मेरे लिए आये हैं?"

 

✧  अनुभव होता है, इसलिए सभी खुशी और नशे से कहते हो- 'मेरा बाबा'। मेरा अर्थात अधिकार है। जहां अधिकार होता है वहां मेरा कहा जाता है। तो कितने समय का अधिकार है फिर-फिर प्राप्त करते हो। अनगिनत बार यह अधिकार प्राप्त किया है, जब यह सोचते हो तो कितनी खुशी होती है। यह खुशी खत्म हो सकती है? माया खत्म करे तो?

 

  वैसे भी नॉलेज को लाइट, माइट कहा जाता है। जिसमें फुल नॉलेज हैं अर्थात् फुल लाइट माइट है तो माया आ नहीं सकती। माया वार नहीं करेगी लेकिन बलिहार जायेगी।   

 

  अच्छा- सदा अपने को अविनाशी प्राप्ति के अधिकारी 'बालक को मालिक' समझते हो? बालकपन और मालिकपन का डबल नशा रहता है? इस समय स्व के मालिक हो, स्वराज्य-अधिकारी हो और फिर बनेंगे विश्व के मालिक। तो समय पर बालकपन का नशा, खुशी और समय पर मालिकपन का नशा और खुशी। ऐसे नहीं कि जिस समय मालिक बनना हो उस समय बालक बन जाओ और जिस समय बालक बनना हो उस समय मालिक बन जाओ, यह नहीं हो। जिस समय कोई ऐसी बात होती है जिसमें स्वयं को कमजोर समझते हो, बड़ी बात लगती है तो बालक बनकर जिम्मेवारी बाप को दे दो। जिस समय सेवा करते हो तो बालक सो मालिक बनकर बाप के खजाने सो मेरे खजाने समझ बांटो। समझा!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जितना वाणी सूनने और सुनाने की जिज्ञासा रहती है, तडप रहती है, चाँन्स बनाते भी हो क्या ऐसे ही फिर वाणी से परे स्थिति में स्थित होने का चाँन्स बनाने और लेने के जिज्ञासु हो? यह लगन स्वतः स्वयं में उत्पन्न होती है या समय प्रमाण, समस्या प्रमाण व प्रोग्राम प्रमाण यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है?

 

✧  फर्स्ट स्टेज तक पहुँँची हुई आत्माओं की पहली निशानी, यह होगी। ऐसी आत्मा को, इस अनुभूती की स्थिति में मग्न रहने के कारण कोई भी विभूती व कोई भी हद की प्राप्ति का आकर्षण, संकल्प में भी छू नहीं सकता।

 

✧  अगर कोई भी हद की प्राप्ती की आकर्षण उन्हें उनके संकल्प में भी छूने की हिम्मत रखती है, तो इसको क्या कहेंगे? क्या ऐसे को वैष्णव कहेंगे? जैसे आजकल के नामधारी वैष्णव, अनेक प्रकार की परहेज करते हैं - कई व्यक्तियों और कई प्रकार की वस्तुओं से, अपने को छूने नहीं देते हैं। अगर अकारणें कोई छू लेते हैं, तो वह पाप समझते हैं।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ आत्मा का भारीपन अर्थात् मोटापन। जैसे आजकल के डाक्टर्स मोटेपन को कम कराते हैं, वजन कम कराते हैं, हल्का बनाते हैं, वैसे ब्राह्मणों की भी आत्मा के ऊपर जो वजन अथवा बोझ हैं,उस बोझ को हटाकर 'महीन बुद्धि' बनो। वर्तमान समय यही विशेष परिवर्तन चाहिए। तब ही इन्द्रप्रस्थ की परियां बनेंगे। मोटेपन को मिटाने के लिए श्रेष्ठ साधन कौन-सा है? खान-पान का परहेज और एक्सरसाइज परहेज में भी अन्दाज फिक्स होता है। वैसे यहाँ भी बुद्धि द्वारा बार-बार अशरीरीपन की एक्सरसाइज करो और बुद्धि का भोजन संकल्प है उनकी परहेज रखो। जिस समय जो संकल्प रूपी भोजन स्वीकार करना हो उस समय वही स्वीकार करो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- संकल्प को सफल बनाने का सहज साधन"

 

_ ➳  मैं ज्योति परमज्योति के संग, नूर बेहद का बरसाती... मेहनत से मुक्त हुई... सुख उनकी मोहब्बतों में पाती... मैं ज्योर्तिबिन्दु आत्मा प्रकाश के शरीर में झिलमिलाती, ज्ञान, प्रेम, सुख, शान्ति, पवित्रता के बादलों संग इठलाती हुई बापदादा संग सूक्ष्म वतन में कमल आसन पर विराजमान हूँ... मेरे सामने मुस्कुराते हुए... आनन्द की बारिशो में मुझे नहलाते हुए बापदादा... संगम युग की सहज प्राप्तियों का अनुभव कराते हुए...

 

  हर फिक्र से फारिग करने वाले बापदादा मुझ फरिश्ता स्वरूप आत्मा से बोले:- "मेरी जहान की नूर, जागती ज्योति बच्ची... आपका ये संगमयुगी जीवन बेहद मूल्यवान है... क्या आपको इसकी सहज प्राप्तियों की भली प्रकार पहचान है? आप जागती हो तो जहान की आत्माए जाग जाती है... आपकी चढती कला से ये सभी कल्याण का वर्सा पाती है... संगम पर सुख शान्ति की अजंलि पाकर आपसे ये ही भक्ति में आपके गुण गाती है..."

 

_ ➳  लाइट के कार्ब में चमकती मैं आत्मा मणि बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... सब खजानों से आपने इतना भरपूर किया है दुख एक जन्म का नही जन्मो जन्मों का दूर किया है...  कुछ भी तो अप्राप्त नही रहा अब... संगम पर आपने त्रिलोकीनाथ और त्रिकालदर्शी बनाया है... आपका मिलना तो खुद में ही एक महामिलन था... फिर आपने स्वर्ग की सौगातों का भी अंबार लगाया है"...

 

  स्व का दर्शन करा चक्रधारी बनाने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:- "मेरी विघ्न विनाशक बच्ची...  विघ्नों को दूर करने का सहज उपाय जानते हो आप... हर दुविधा से बचने का उपाय बस श्रेष्ठ संकल्प को पहचानते हो आप... जैसे आप अपनी खुशियों के रचनाकार बन रहे हो... बाप के अंग संग रह हर प्राप्ति के हकदार बन रहे हो... अब सबको इस भाग्य का अधिकारी बनाओं... दुआओं से मालामाल हो जाओगें... बाप से उसके बिछुडे बच्चों को मिलाओं"...

 

_ ➳  स्व सेवा और सर्व की सेवा का बैलेन्स रखने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... आप समान सेवाधारी बनने की तात अब तो हर पल लगी रहती है... स्वयं के विघ्नों पर नही हर आत्मा के विघ्न दूर करने पर अब नजर लगी रहती है... दुआओ से डबल मालामाल हुई जा रही हूँ मैं... चहुँ ओर से ही खुशियों की अनूठी सौगात पा रही हूँ मैं..."

 

  एक बाबा शब्द की जादुई चाबी से सब प्राप्तियाँ सहज ही कराने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:- "मीठी बच्ची... अपने परमपद की ओर शीघ्रता से बढते हुए आप संगमयुग की सहज प्राप्तियों की डायरेक्ट अधिकारी बनी हो... आपकी बडी ते बडी विशेषता यही है कि आपने गुप्त वेशधारी बाप को पहचाना है... विशेषताओं के खजानों से भरपूर होते जा रहे हो आप... ये ही तो संगम युग का नजराना है..."

 

_ ➳  अपनी विशेषताओं के बीज को सर्वशक्तियों के जल से सींच कर फलदायक बनाने वाली मैं वरदानी आत्मा बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... संगम पर जो जो भी सौगातें पा रही हूँ... आप समान ही निमित्त बन हर सेवा में लगा रही हूँ... हर आत्मा संगमयुगी खजानों से अब भरपूर हो रही... निश्चय बढता ही जा रहा है उनमें, अब हर एक पावनता का नूर हो रही है... और मन्द मन्द मुस्कुराते हुए बापदादा की मीठी वरदानी दृष्टि मुझ आत्मा को मेरे सम्पूर्ण रूप का साक्षात्कार करा रही है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- सरलता और सहनशीलता का गुण धारण करना"

 

_ ➳  अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के बारे में चिंतन करते ही मन खुशी से झूम उठता है और मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के गीत गाती मैं अपने जीवन में आने वाली उन अनेक परिस्थितियों के बारे में विचार करती हूँ जिन्हें अपने प्यारे बाबा की मदद से मैंने सहज ही पार कर लिया। बस मेरे को जब तेरे में परिवर्तन किया तो बाबा ने कैसे हर परिस्थिति रूपी तूफान को तोहफा बना दिया!

 

_ ➳  यह विचार करते ही मन से अपने भगवान साथी के लिए कोटि - कोटि धन्यवाद निकलता है और मन ही मन अपने भगवान बाप से मैं प्रोमिस करती हूँ कि मेरे को तेरे में परिवर्तन कर, जीवन मे आने वाले हर हिसाब - किताब को चाहे वो शरीर की बीमारी के कर्मभोग के रूप में हो या लौकिक सम्बन्धों की तरफ से हो लेकिन सदा रूहानी नशे में रह खुशी - खुशी सहन करते हुए मैं साक्षी दृष्टा बन हर हिसाब - किताब को सहज भाव से चुकतू करूँगी। अपने प्यारे बाबा से यह प्रोमिस करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे सारे बोझ बाबा ने अपने ऊपर ले लिए हैं और मैं बिल्कुल हल्की हो गई हूँ। यह हल्कापन मुझे मेरे वास्तविक स्वरूप में स्थित होने में सहज ही मदद कर रहा है।

 

_ ➳  अपने मन को हर संकल्प, विकल्प से मुक्त कर अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो चुकी हूँ और अपने आप को देह से बिल्कुल न्यारी एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में भृकुटि के अकालतख्त पर चमकता हुआ देख रही हूँ। अपने इस स्वरूप में मुझे मेरे मस्तक से शक्तियों की किरणों के प्रकम्पन चारों ओर फैलते हुए स्पष्ट अनुभव हो रहें हैं जो धीरे - धीरे तीव्र होते हुए चारों ओर वायुमण्डल में फैल कर मेरे आस पास के वातावरण को दिव्य और अलौकिक बना रहे हैं। मेरे चारों और शक्तियों का एक सुन्दर औरा निर्मित हो रहा है जिसके अंदर मैं आत्मा असीम सुख, शांति का अनुभव करके आनन्दित हो रही हूँ।

 

_ ➳  अपने अंदर समाई शक्तियों और गुणों का अनुभव करते - करते मैं आत्मा अब अपने चारों और निर्मित प्रकाश के कार्ब को धारण कर, भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर आकाश की और जा रही हूँ। अपनी सर्वशक्तियों को चारों और बिखेरती हुई मैं ज्योति बिंदु आत्मा आकाश को पार कर, सूक्ष्म वतन से होती हुई पहुँच गई अपने घर परमधाम। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने निराकार शिव बाबा के सम्मुख जो अनन्त शक्तियों के पुंज के रूप में मेरे सामने विराजमान है। अपने शिव पिता के साथ अपने इस परमधाम घर मे मैं देख रही हूँ चारों और चमकते चैतन्य सितारे अपने आत्मा भाइयों को।

 

_ ➳  अपना सम्पूर्ण ध्यान अपने शिव पिता पर एकाग्र कर, मन बुद्धि रूपी नेत्रों से उनसे निकल रहे प्रकाश की एक - एक किरण को निहारते हए मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। धीरे - धीरे उन्हें निहारते हुए मैं आत्मा उनके समीप जाकर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे

जाकर बैठ जाती हूँ। बाबा की सर्वशक्तियाँ अब अनन्त किरणों के रूप में मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और मुझे गहन शीतलता की अनुभूति करवा रही हैं। एक दिव्य अलौकिक आनन्द और अथाह सुख का मैं अनुभव कर रही हूँ। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं झूल रही हूँ। बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझमे निरन्तर प्रवाहित होकर मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं।

 

_ ➳  असीम ऊर्जावान बन कर अब मैं  आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हूँ। अपने शिव पिता द्वारा अपने अंदर जमा किया हुआ बल मेरे अंदर सहनशक्ति विकसित कर रहा है। सहनशक्ति से मास्टर सर्वशक्तिवान बन जीवन मे आने वाले हर हिसाब - किताब को मैं हँसते - हँसते चुकतू कर रही हूँ। तन - मन - धन और जन सब कुछ बाबा को सौंप, बाबा की अमानत समझ, साक्षी दृष्टा हो, बेहद की शुभभावना हर आत्मा के प्रति रखते हुए, निमित बनसेवा करते हुए संगमयुग की मौजों का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ। मेरे को तेरे में बदल, रूहानी नशे में रह खुशी - खुशी सब सहन करते हुए अपने ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाकर स्वयं को परिवर्तन करने वाली सर्व के दुआओं की पात्र आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं संकल्प करके उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाने वाली विजयी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ जितना हो सके शुभ भावना से इशारा दे दो। न अपने मन में रखो और न औरों को मन्मनाभव होने में विघ्न रूप बनो। तो चतुराई का खेल क्या करते हैं? जिस बात को समाना चाहिए उसको फैलाते हैं, और जिस बात को फैलाना चाहिए उसको समा देते हैं कि यह तो सब में है। तो सदा स्वयं को अशुद्धि से दूर रखो। मंसा में, चाहे वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में अशुद्धि, संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति से वंचित बना देगी।समय बीत जायेगा। फिर ‘‘पाना था'' इस लिस्ट में खड़ा होना पड़ेगा। प्राप्ति स्वरूप की लिस्ट में नहीं होंगे। सर्व खजानों के मालिक के बालक और अप्राप्त करने वालों की लिस्ट में हों यह अच्छा लगेगा? इसलिए अपनी प्राप्ति में लग जाओ। शुभचिंतक बनो।

✺ "ड्रिल :- मंसा में, चाहे वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में शुद्धि का अनुभव"

➳ _ ➳ मैं आत्मा चाँदनी रात में खुले मैदान में आत्मा रूपी बच्चा बनकर शिव बाबा के साथ खेल, खेल रही हूँ... शिव बाबा भी बच्चा बनकर मेरा साथ दे रहे हैं... हम इधर-उधर भाग रहे हैं... कुछ देर बाद बाबा एक स्थान पर खड़े हो जाते हैं... और मैं आगे दौड़ जाती हूँ... और मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो बाबा मुझसे दूर दिखाई देते हैं... मैं दौड़ते हुए बाबा के पास जा रही हूँ... बाबा ने कहा बच्ची पहले तुम खेलने के लिये तैयार हो जाओ... इतना कहकर बाबा सर्वप्रथम मुझे अपनी सतरंगी किरणों से नहलाकर खेल के लिए तैयार कर रहे हैं... जैसे-जैसे ये सतरंगी किरणें मुझपर गिरती है... वैसे -वैसे मैं अपने आपको शक्तिशाली महसूस करने लगती हूँ... उनकी किरणों से नहाकर मैं अपने आपको संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... और मैं अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली आत्मा समझने लगी हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं सर्व खजानों से भरपूर होकर खेल में आगे बढ़ती चली जा रही हूँ... और अपने व्यर्थ संकल्पों को पीछे छोड़ती जा रही हूँ... मेरा मन भी बच्चे की भांति एकदम निष्कपट और कोमल हो गया है... मैं खेल में और भी उत्साहित हो रही हूँ... उछल-कूद रही हूँ... मेरे मन में किसी के लिए भी कोई बैर-भाव नहीं है... बाबा के साथ खेल खेलते हुए मेरी मंसा, वाचा, कर्मणा सभी शुद्ध होते जा रहे हैं... मेरी स्थिति और भी ऊँची होती जा रही है... ये अनुभव करते हुए मैं और आगे दौड़ने लगती हूँ... बाबा मुझे फिर दूर खड़े होकर निहारने लगते हैं... और अपनी पलकों के इशारे से मुझे अपने पास बुलाते हैं...

➳ _ ➳ फिर दौड़कर मैं बाबा के पास जाती हूँ... और बाबा मुझे संगम युग के महत्व के बारे में बता रहे हैं... बाबा कहते हैं- "खेल-खेल में प्राप्त कर लो संगमयुग के सर्व खजाने, कहीं समय ना बीत जाये फिर बनाने लगो तुम बहाने..." मैं उछलती-कूदती हुई उनकी सभी कही गई बातों को अपने अंदर समां लेती हूँ... उनकी दी हुई सभी अनमोल शिक्षायें जीवन में उतार लेती हूँ... और गुलाब की तरह खिल जाती हूँ... मेरे जीवन में मैं संपूर्ण पवित्रता की झलक देखने लगती हूँ...

➳ _ ➳ तभी बाबा को मेरी नज़रे ढूंढ़ती है... बाबा खेल में मुझसे छुप जाते है... और मैं चुपके से उन्हें ढूंढ लेती हूँ... और मेरा मन बाबा के साथ खेलते हुए ये अनुभव कर रहा है... मानों मैंने सबकुछ पा लिया हो... मेरा मन अति आनंदित हो रहा है तथा अतिइंद्रिय सुख की अनुभूति करने लगती हूँ... और इसी आनंद और उत्साह से मैं अपने पुरुषार्थ में जुट जाती हूँ...

➳ _ ➳ मेरा मन एकदम बच्चे की तरह निष्कपट और कोमल बन गया है... मेरे संबंध-संपर्क में आने वाली सभी आत्माएं पावन बन रही हैं... मैं मंसा, वाचा, कर्मणा, पवित्र बन चुकी हूँ... मुझे सर्व खजाने के मालिक पन की अनुभूति हो रही है... अब मैं अन्य आत्माओं के प्रति शुभचिंतक बन उनको शुभ भावनाएं देती जा रही हूँ... मैं जितना-जितना सभी को शुभभावनाएँ देती जा रही हूँ... उतना ही मैं पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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