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 05 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ ज्ञान के तीसरे नेत्र से आत्मा देखने का अभ्यास किया ?

 

➢➢ अपने दिल से पुछा की हम कहाँ तक गुणवान बने हैं ?

 

➢➢ हलचल में दिलशिकस्त होने की बजाये बड़ी दिल रखी ?

 

➢➢ किसी की कमजोरी को देखने की आँखें बंद कर मन को अंतर्मुखी बनाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए अभी-अभी आवाज में आते, डिस्कस करते, कैसे भी वातावरण में संकल्प करो और आवाज से परे, न्यारे फरिश्ता स्थिति में टिक जाओ। अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी फरिश्ता अर्थात् आवाज से परे अव्यक्त स्थिति। यही अभ्यास लास्ट पेपर में विजयी बनायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं समर्थ आत्मा हूँ"

 

  सदा अपने को बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो? समर्थ आत्माओंकी निशानी क्या है? समर्थ आत्मायें कोई भी खजाने को व्यर्थ नहीं करेंगी। समर्थ अर्थात् व्यर्थ की समाप्तिसंगमयुग पर बाप ने कितने खजाने दिये हैं? सबसे बड़ा खजाना है श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना। संगम का समय-यह भी बड़े ते बड़ा खजाना है। सर्व शक्तियां-यह भी खजाना है; सर्व गुण-यह भी खजाना है। तो सभी खजानों को सफल करना-यह है समर्थ आत्मा की निशानी। सदा हर खजाने सफल होते हैं या व्यर्थ भी हो जाते हैं? कभी व्यर्थ भी होता है? जितना समर्थ बनते हैं तो व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है।

 

  जैसे-रोशनी का आना और अंधकार का जाना। क्योंकि जानते हो कि-हर खजाने की वैल्यु कितनी बड़ी है, संगमयुग के पुरुषार्थ के आधार पर सारे कल्प की प्रालब्ध है! तो एक सेकेण्ड, एक श्वास, एक गुण की कितनी वैल्यु है! अगर एक भी संकल्प वा सेकेण्ड व्यर्थ जाता है तो सारा कल्प उसका नुकसान होता है। तो इतना याद रहता है? एक सेकेण्ड कितना बड़ा हुआ! तो कभी भी ऐसे नहीं समझना कि सिर्फ एक सेकेण्ड ही तो व्यर्थ हुआ! लेकिन एक सेकेण्ड अनेक जन्मों की कमाई या नुकसान का आधार है। गाया हुआ है ना-कदम में पद्मों की कमाई है। एक कदम उठने में कितना टाइम लगता है? सेकेण्ड ही लगता है ना। सेकेण्ड गँवाना अर्थात् पद्मापद्म गँवाना। इस वैल्यु को सदा सामने रखते हुए सफल करते जाओ। चाहे स्वयं के प्रति, चाहे औरों के प्रति-सफल करते जाओ तो सफल करने से सफलतामूर्त अनुभव करेंगे। सफलता समर्थ आत्मा के लिए जन्मसिद्ध अधिकार है। बर्थ-राइट मिला है ना!

 

  कोई भी कर्म करते हो-ज्ञान-स्वरूप होकर के कर्म करने से सफलता अवश्य प्राप्त होती है। तो सफलता का आधार है- व्यर्थ न गँवाकर सफल करना। ऐसे नहीं-व्यर्थ नहीं गँवाया। लेकिन सफल भी किया? जितना कार्य में लगायेंगे उतना बढ़ता जायेगा। खजानों को बढ़ाना आता है? सफल करना अर्थात् लगाना। तो सदा कार्य में लगाते हो या जब चांस मिलता है तब लगाते हो? हर समय चेक करो-चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से सफल जरूर करना है। सारे दिन में कितनों की सेवा करते हो? अगर सेवाधारी सेवा नहीं करे तो अच्छा नहीं लगेगा ना। तो विश्व-सेवाधारी हो! हर दिन सेवा करनी ही है!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  शुरू से देखो - अपने देह के भान के कितने वैरायटी प्रकार के विस्तार है। उसको तो जानते हो ना! मैं बच्चा हूँ, मैं जवान हूँ, मैं बुजुर्ग हूँ मैं फलने-फलाने आक्यूपेशन वाला हूँ। इसी प्रकार के देह की स्मृति के विस्तार कितने हैं! फिर सम्बन्ध में आओ कितना विस्तार है।

 

✧  किसका बच्चा है तो किसका बाप है, कितने विस्तार के सम्बन्ध है। उसको वर्णन करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि जानते हो। इसी प्रकार देह के पदार्थों का भी कितना विस्तार है। भक्ति में अनेक देवताओं को सन्तुष्ट करने का कितना विस्तार है। लक्ष्य एक को पाने का है लेकिन भटकने के साधन अनेक है।

 

✧  इतने सभी प्रकार के विस्तार को सार रूप लाने के लिए समाने की वा समेटने की शक्ति चाहिए। सर्व विस्तार को एक शब्द से समा देते। वह क्या? - 'बिन्दू'। मैं भी बिन्दू बाप भी बिन्दू। एक बाप बिन्दू में सारा संसार समाया हुआ है। यह तो अच्छी तरह से अनुभवी हो ना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ आप सभी मास्टर रचयिता अपने रचतापन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं। आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है। इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचनापन विस्मृत तो नहीं कर देती है? मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? पहले-पहले इस देह के मालिकपन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है। अगर देह के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिकपन में भी सम्पन्न नही बन सकते हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- विदेही बाप से पढकर विदेही बनना"
 
➳ _ ➳  खुले आंगन में प्रकृति की गोद में मैं आत्मा बाबा की याद में बैठी हूँ... मन अपने श्रेष्ठ भाग्य की महिमा के गीत गुनगुना रहा है... बाबा ने मुझे अपना बनाकर क्या से क्या बना दिया... कहाँ भक्ति में उसकी एक झलक पाने के प्यासे थे... अब उससे हर पल मिलन मनाने का भाग्य मिल गया है... उसने अपने दिलतख्त पर बिठाके मुझे अपनी दिलरूबा बना दिया है... तभी बारिश की हल्की हल्की बूँदें मुझ पर बरसने लगती हैं... ये बूँदें ज्ञान सागर की ज्ञान वर्षा में भीगने और आनंदित होकर झुमने का अनुभव करा रही हैं...
 
❉  ज्ञान सागर बाबा अपनी ज्ञान की वर्षा करते हुए कहते हैं :- “मीठे मीठे फूल बच्चे... तुम्हें नशा होना चाहिए की तुम्हें... पढाने वाला टीचर कौन है... स्वयम भगवान, प्यार का सागर, आनंद का सागर, शांति का सागर बाबा तुम्हें पढ़ा रहे हैं... तुम भाग्यवान आत्माएं ज्ञान सूर्य के सम्मुख बैठ यह रूहानी पढाई पढ़ रहे हो... सदा अपने इस भाग्य के नशे में रहो...”
 
➳ _ ➳  बाबा की मधुर वाणी सुनकर आनंद विभोर होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :- “मेरे जीवन के आधार मीठे बाबा... संगम पर मुझ आत्मा को ज्ञान सूर्य बाप के सम्मुख बैठ... रूहानी पढ़ाई पढने का श्रेष्ठ भाग्य मिला है... मैं आत्मा सदैव इस खुमारी, नशे में स्थित हो रही हूँ... आपसे मिले हुए ज्ञान की हर पॉइंट की अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ...”
 
❉   ज्ञान के दिव्य खजानों से मुझे लबालब करते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं :- “मेरे मीठे सिकिलधे बच्चे... अब तुम्हारी हंस मण्डली बन गयी है... तुम बगुले से हंस बन गये हो... अब तुम अवगुणों का चिन्तन नहीं कर सकते... अब तुम ज्ञान मोती चुगने वाले हंस बुद्धि बन गये हो... तुम व्यर्थ और समर्थ में से सदा समर्थ को ही ग्रहण करो... श्रेष्ठ ज्ञान रत्नों को ही जीवन में धारण करो...”
 
➳ _ ➳  बाबा से मिल रहे असीम स्नेह से गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :- “मेरे मन के मीत मीठे बाबा... आप मुझे व्यर्थ और समर्थ, नीर और क्षीर, कंकड़ और मोती को अलग अलग परखने की शक्ति... दिव्य बुद्धि दे रहे हैं... मैं आत्मा होलीहंस बन... सदैव ज्ञान रत्नों को ही धारण कर रही हूँ... मैं ज्ञान मोती चुगने वाला... होलीहंस बनती जा रही हूँ...“
 
❉  अपनी मधुर दृष्टि से वरदानों की वर्षा करते हुए बाबा कहते हैं :- “मीठे प्यारे बच्चे... बाबा तुम्हें ज्ञान रत्नों की थालियाँ भर भर के दे रहे हैं... तुम उन्हीं ज्ञान रत्नों से सदा खेलते रहो... ज्ञान की नयी नई पॉइंट्स लेकर... उस पर विचार सागर मंथन करते रहो... बाबा तुम्हें ज्ञान खजाने से भरपूर कर रहे हैं... इस खजाने को विश्व की... सर्व आत्माओं को बांटते चलो... “
 
➳ _ ➳  बाबा की शिक्षाओं को स्वयम में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :- “मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझे ज्ञान खजानों का मालिक बना दिया है... मेरी बुद्धि को शुद्ध सोने का बर्तन बना दिया है... जिसमें मैं ज्ञान रत्नों को धारण कर रही हूँ... ज्ञान की एक एक पॉइंट पर... विचार सागर मंथन कर उसका स्वरूप बनती जा रही हूँ... ज्ञान खजानों का दान कर सर्व को... आप समान बनाने की सेवा कर रही हूँ... खजानों को बांटते बांटते मेरा यह खजाना... और भी बढ़ता जा रहा है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  अशरीरी बनने का अभ्यास करना है

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता के मधुर महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं एकांत में बैठ उन पर विचार सागर मंथन करते हुए, इस नश्वर देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बारे में चिंतन करते, अपने आप से ही सवाल करती हूँ कि जिस देह और देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, देह के पदार्थो के पीछे आज तक मैं भागती रही, उनसे मुझे क्या मिला! सिवाय दुख और अशांति के और कुछ भी इनसे मुझे प्राप्त नही हुआ। लेकिन मेरे प्यारे बाबा ने आकर मुझे एक ही सेकण्ड में उस अविनाशी सुख और शांति को पाने का कितना सहज रास्ता बता दिया। शरीर मे होते सब से तैलुक तोड़ अशरीरी बनने का अनुभव कितना निराला कितना सुखदाई है। सेकेण्ड में मन को सुकून और शांति देने वाला है। जिस विनाशी देह और दुनियावी सम्बन्धो में मैं रस ढूंढ रही थी उनमें कोई सार है ही नही। ये सारा संसार ही असार संसार है। अगर सार है तो केवल अपने स्वरूप में स्थित हो अशरीरी बन अपने प्यारे पिता की याद में है। इसलिए इस शरीर में होते हुए भी अब मुझे सबसे तैलुक तोड़, अशरीरी बनने का पुरुषार्थ निरन्तर करना है।

➳ _ ➳  मन ही मन इस संकल्प को दृढ़ता का ठप्पा लगा कर अब मैं सभी बातों से अपने मन और बुद्धि को हटाती हूँ और अपने ध्यान को एकाग्र करके अशरीरी बनने का अभ्यास करती हूँ। शरीर के सभी अंगों से धीरे - धीरे चेतना को समेट कर अपने ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं स्वयं को बोडिलेस अनुभव करने लगती हूँ। स्वयं को मैं इतना रिलेक्स अनुभव कर रही हूँ कि लगता है जैसे मैं देह में हूँ ही नही। भृकुटि के बीच चमकती एक अति सूक्ष्म ज्योति को मैं देख रही हूँ जो बहुत ही प्रकाशवान है। देह से न्यारे अपने इस अति सूक्ष्म, सुन्दर स्वरूप को देख, इसके अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे आनन्दविभोर कर रहा है। अपने इस स्वरूप से अनजान मैं आत्मा आज अपने इस सत्य स्वरुप का अनुभव करके तृप्त हो गई हूँ।

➳ _ ➳  मन ही मन अपने प्यारे पिता का मैं शुक्रिया अदा कर रही हूँ जिन्होंने आकर मेरे इस अति सुन्दर स्वरूप की पहचान मुझे दी। सबसे तैलुक तोड़ अशरीरी बन अपने इस सुंदर स्वरूप को देखने और अनुभव करने का
सहज तरीका यह राजयोग मुझे सिखलाकर मेरे प्यारे पिता ने मेरे जीवन को सुखमय, शांतिमय और आनन्दमय बना दिया। अपने प्यारे बाबा का बारम्बार धन्यवाद करते हुए अब मैं अशरीरी आत्मा नश्वर देह का भी आधार छोड़ उससे बाहर निकलती हूँ और देह से पूरी तरह अलग हो कर, अपने जड़ शरीर को अपने सामने पड़ा हुआ मैं देख रही हूँ किन्तु उससे अब कोई भी अटैचमेंट मुझे महसूस नही हो रही। साक्षी हो कर मैं उसे देख रही हूँ और धीरे - धीरे उससे दूर होती जा रही हूँ। ऊपर आकाश की ओर अब मैं उड़ रही हूँ और अपने प्यारे बाबा के पास उनके धाम जा रही हूँ।

➳ _ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो के आकर्षण से मुक्त होकर, निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए मैं आकाश को पार करती हूँ और उससे भी परें सूक्ष्म लोक को पार कर पहुँच जाती हूँ आत्माओं की उस निराकारी दुनिया मे जहाँ मेरे मीठे शिवबाबा रहते हैं। लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों से सजे अपने स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ। मेरे पिता मेरे बिल्कुल सामने है। उनसे मिलन मनाकर मैं असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा कर उनके अथाह निस्वार्थ प्यार से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ।

➳ _ ➳  प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा के प्रेम की गहराई में खोकर मैं उनके बिल्कुल समीप होती जा रही हूँ। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। यह समीपता मेरे अंदर मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ।  सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं फिर से कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ। फिर से देह रूपी रथ पर विराजमान होकर शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म अब मैं कर रही हूँ किन्तु इस स्मृति में स्थित होकर कि मैं देह से न्यारी हूँ। ईश्वरीय सेवा अर्थ मैंने ये शरीर रूपी चोला धारण किया है बुद्धि में यह धारण कर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए देह में आना और फिर कर्म करके देह में होते भी, देह से न्यारे अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर, अशरीरी हो जाना, यह अभ्यास अब मैं घड़ी - घड़ी करती रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं हलचल में दिलशिकस्त होने के बजाए बड़ी दिल रखने वाली हिम्मतवान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं किसी की कमजोरी को देखने की आंखें बंद करके मन को अंतर्मुखी बनाने वाली विशेष आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  जैसे आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो, ऐसे प्रकार के संकल्प - अभी यह करना है, फिर वापस जायेंगे - ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो, लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? वृक्ष भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है। तो अभी भी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है लेकिन जितना विस्तार वृद्धि को पा रहा है उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे, यह बात नहीं भूल जाना। कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों। अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो। जैसे आजकल यहाँ पहले से ही अपना मरण मना लेते हैं ना- तो छुट्टी ले ली ना। ऐसे सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। समाप्ति-समारोह मना लो। उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो।

✺  "ड्रिल :- सर्व प्रवृत्तियों के बन्धनों से विदाई ले समाप्ति समारोह मनाना।"

➳ _ ➳  आत्मिक स्थिति में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ एक बाप की याद में... मन को बाप में लगाने की तम्मना के साथ... जन्म-जन्म के विकर्मों को दहन करने के एक ही मार्ग पर चल पड़ी हूँ... एक ही संकल्प मन के तार को बापदादा से दूर करता जा रहा है... क्या विनाशी देह की भस्म को गंगा में बहाने से क्या सम्बन्ध पूरे होते हैं? और क्या उस सम्बन्ध से जुड़े पुराने तानेबाने ही ख़तम हो जाते हैं? क्या पुनर्जन्म में वह आत्मा अपने पुराने संस्कारो के वशीभूत जन्म लेगी ? मोह माया के रिश्तों में बंधे सभी आत्माओं का पुर्नजनम कैसा होगा ? अपने इन विचारों में खोयी मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी नयनों द्वारा देखती हूँ बापदादा को अपने समीप... अपने रूहानी वात्सल्य से भरे हाथों से मुझ आत्मा के मस्तक पर हाथ रखकर अपनी अनंत शक्तियों को मुझमें समाते जा रहे हैं... और मैं आत्मा आन्तरिक शांति को पाती जा रही हूँ... मन की चंचलता ख़त्म होती जा रही है... और बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं...

➳ _ ➳  झरमर झरमर बहती गंगा... शांत और शीतल पवन के झोंके... धूप दीप नैवेद्य से भरी थाली... एक कलश... लाल कपडे से बंधा हुआ... जिसमें विनाशी देह की भस्म भरी हुई है... विनाशी शरीर पंच महाभूतों में विलीन हो गया है...  विनाशी देह के सगे सम्बन्धी उस विनाशी देह की भस्म को गंगा की लहरों में समर्पित करते जा रहे हैं... और उस आत्मा से देह का रिश्ता पूरा होता है... और एक दृश्य बाबा दिखा रहा है जहां एक आत्मा का जन्म होता हैं... हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ है... सभी सगे सम्बन्धी खुशियों के झूले में खुद भी झूल रहे हैं और वह आत्मा के बालक स्वरुप को भी झुला रहे हैं... कहीं पर मरण के दुखदायी नज़ारे हैं तो कहीं पर जन्म की बधाइयां दी जा रही हैं... रिश्तों के ताने बाने से बंधी आत्मा... जन्म मरण के चक्कर में... मोह माया के बंधन में बंधती ही जा रही हैं...

➳ _ ➳  यह दृश्य देखती अपने आप से बातें करती मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का सिमरण करती हूँ... "अंत मती सो गतिऔर इस महावाक्य को समझने में उलझ जाती हूँ... बापदादा के संग उनके रूहानी रंगों में रंगी मैं आत्मा... अपने अंतर्मन को बापदादा की रूहानी शक्तियों से रंगती जा रही हूँ जन्म मरण के नजारों को साक्षी भाव से देख... सृष्टि चक्र को बापदादा की शक्तियों से फिरता देख... मैं आत्मा मन की चंचलता को समाप्त करती जा रही हूँ... और मन बुद्धि रूपी आँखों से बापदादा और एक सीन दिखा रहे हैं... हम ब्राह्मण आत्माओं का घर... वह ब्राह्मण आत्माएं जो बाप की प्रत्यक्षता को जान चुके हैं... भगवान की खोज को बापदादा की खोज में पूरा होता हुआ देख रहे हैं... वह ब्राह्मण आत्माएं जिन्होंने एक बाप से रूहानी रिश्ता जोड़ दुनियादारी के सम्बन्धों से मन से किनारा कर लिया है... देह भान से परे सभी ब्राह्मण आत्माओं का सम्बन्ध सिर्फ एक बाप से जुड़ा है...

➳ _ ➳  यही वह बी के ब्राह्मण आत्मायें हैं जिनके घर पर जन्म मरण के दृश्य भी देखने को मिलता है... यह वही ब्राह्मण आत्मायें हैं जो मन बुद्धि से लौकिक से किनारा कर अलौकिक पार्ट बजा रहे हैं... जन्म मरण में देही अभिमानी बन शरीर को न देख आत्मा को देखते हैं...  पंचमहाभूतों में विलीन शरीर की मालिक आत्मा को शांति की शक्तियों से भरपूर कर दूसरे जन्म के लिए सजाते हैं... बापदादा की पवित्रता... सुख... शांति के किरणों को दान कर लौकिकता को अलौकिकता में बदल देते हैं... संगमयुग की ब्राह्मण आत्मायें मृत्युशैया पर लेटी आत्मा को बापदादा की शक्तियों से उनके विकार भस्म करवा कर सुखरूप से पुराना चोला छोड़ नया धारण करने में मददरूप बनते हैं...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा द्वारा दिखाये दिए जा रहे सभी ब्राह्मण बी के आत्माओं के घर को सतयुगी राजमहल के रूप में देख रही हूँ... बापदादा के संगमयुग में इस धरा पर अवतरण का सुहावना नज़ारा देख रही हूँ... बापदादा के सुनहरे महावाक्य "कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए... किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों... अर्थात् सबसे छूट्टी लेकर रखो सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो... समाप्ति-समारोह मना लो... उड़ती कला का उड़ान आसन सदा तैयार हो" को प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... और बापदादा  से विदाई लेकर लौकिक के सभी कार्यों से... संबंधियों से... मन बुद्धि से विदाई लेकर समाप्ति समारोह मना रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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