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❍ 17 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *विचित्र बाप द्वारा विचित्र पदाई पडी ?*
➢➢ *विचित्र बाप द्वारा विचित्र प्राप्तियों का अनुभव किया ?*
➢➢ *आत्म अभिमानी स्थिति द्वारा परमात्म प्यार का अनुभव किया ?*
➢➢ *ब्राह्मण जीवन को हीरे तुल्य अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करो तो कभी अपसेट नहीं होंगे। *जितना अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा। मन सदा सेट अर्थात् एकाग्र है तो स्वत: अच्छे वायब्रेशन फैलते हैं। सेवा होती है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विश्व के अंदर कोटो में से कोई विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को विश्व के अन्दर कोटो में से कोई हम हैं - ऐसे अनुभव करते हो? जब भी यह बात सुनते हो - कोटों से कोई, कोई में भी कोई तो वह स्वयं को समझते हो? जब हूबहू पार्ट रिपीट होता है तो उस रिपीट हुए पार्ट में हर कल्प आप लोग ही विशेष होंगे ना! ऐसे अटल विश्वास रहे। *सदा निश्चयबुद्धि सभी बातों में निश्चिन्त रहते हैं। निश्चय की निशानी है निश्चिन्त। चिन्तायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओंकी चिता से बचा लिया ना! चिंताओंकी चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया।* बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर लगन की अग्नि में चिन्तायें सब ऐसे समाप्त हो गई जैसे थी ही नहीं। एक सेकण्ड में समाप्त हो गई ना! ऐसे अपने को शुभचिन्तक आत्मायें अनुभव करते हो!
〰✧ कभी चिंता तो नहीं रहती! न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता। क्योंकि दाल रोटी तो खाना है और बाप के गुण गाना है। दाल रोटी तो मिलनी ही है। तो न धन की चिंता, न मन की परेशानी और न तन के कर्मभोग की भी चिंता। क्योंकि जानते हैं यह अन्तिम जन्म और अन्त का समय है इसमें सब चुक्तु होना है इसलिए सदा - 'शुभचिन्तक'। क्या होगा! कोई चिंता नहीं। ज्ञान की शक्ति से सब जान गये। जब सब कुछ जान गये तो क्या होगा, यह क्वेश्चन खत्म। क्योंकि ज्ञान है जो होगा वह अच्छे ते अच्छा होगा। तो सदा शुभचिन्तक, सदा चिन्ताओंसे परे निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त आत्मायें, यही तो जीवन है। अगर जीवन में निश्चिन्त नहीं तो वह जीवन ही क्या है! ऐसी श्रेष्ठ जीवन अनुभव कर रहे हो? परिवार की भी चिन्ता तो नहीं है? *हरेक आत्मा अपना हिसाब किताब चुक्तु भी कर रही है और बना भी रही है इसमें हम क्या चिंता करें! कोई चिंता नहीं। पहले चिता पर जल रहे थे अभी बाप ने अमृत डाल जलती चिता से मरजीवा बना दिया। जिंदा कर दिया।* जैसे कहते हैं मरे हुए को जिंदा कर दिया। तो बाप ने अमृत पिलाया और अमर बना दिया। मरे हुए मुर्दे के समान थे और अब देखो क्या बन गये। मुर्दे से महान बन गये। पहले कोई जान नहीं थी तो मुर्दे समान ही कहेंगे ना।
〰✧ भाषा भी क्या बोलते थे, अज्ञानी लोग भाषा में बोलते हैं - मर जाओ ना। या कहेंगे हम मर जाए तो बहुत अच्छा। अब तो मरजीवा हो गये, विशेष आत्मायें बन गये। यही खुशी है ना। *जलती हुई चिता से अमर हो गये, यह कोई कम बात है! पहले सुनते थे भगवान मुर्दे को भी जिंदा करता है, लेकिन कैसे करता यह नहीं समझते थे। अभी समझते हो हम ही जिंदा हो गये तो सदा नशे और खुशी में रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मन्द्रियाँ ऑर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके ऑर्डर में रहेगी।* जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप ऑर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे।
〰✧ हर शक्ति आपके ऑर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज हो गई। *तो अपनी चीज को जैसे भी यूज करो, जब भी यूज करो, ऐसे यह सर्व शक्तियाँ आपके ऑर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियाँ आपके ऑर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसे है पाण्डव?*
〰✧ मास्टर सर्वशक्तिवान भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं। *ऐसे नहीं कहना कि मुख से निकल गया, किसने ऑर्डर दिया जो निकल गया! देखने नहीं चाहते थे, देख लिया। करने नहीं चाहते थे, कर लिया।* यह किसके
ऑर्डर पर होता है? इसको अधिकारी कहेंगे या अधीन कहेंगे? तो अधिकारी बनी, अधीन नहीं। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक सेकण्ड में आवाज़ में आना एक सेकण्ड में आवाज़ से परे हो जाना ऐसा अभ्यास इस वर्तमान समय में बहुत आवश्यक है। *वह समय भी आयेगा। जैसे-जैसे अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे-वैसे नयनों के इशारों से किसके मन के भाव को जान जायेंगे। कोई से बोलने व सुनने की आवश्यकता नहीं होगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विचित्र बाप द्वारा विचित्र पढाई तथा विचित्र प्राप्ति"*
➳ _ ➳ खूबसूरत बगीचे मे टहलते हुए, *बाबा के चित्र को मन और बुद्धि में बसाकर मैं आत्मा... उस चित्र में छुपी विचित्रता को मन ही मन देख मुस्कुरा रही हूँ*... बाबा के बिना ये आत्मा क्या थी... औऱ अब क्या हूँ यही विचार कर रही हूँ... *बाबा ने तो मुझ आत्मा में हजारों रंग भर दिए हैं... उस बिंदु रूप विचित्र बाप को याद करते करते मै आत्मा सूक्ष्म वतन पहुँच जाती हूँ...*
❉ *बाबा तो मानो मुझ आत्मा का इंतजार ही कर रहा था, बाबा ने मुझ आत्मा को अपने बिंदु रूप पर मोहित होते देख कहा* :- "प्यारे बच्चे... मेरे मीठे बच्चे... तुम्हें इस चित्र मे छुपे विचित्र रूप वाले चित्र को ही याद रखना है... *ये विचित्र रूप ही तुम्हें इस दुनिया का मालिक बनाता हैं... जितना इस चित्र की विचित्रता में गहराई से उतरोगे उतना ही भरपूर होते जाओगे* ... मै तो तुम्हें भरपूर करने ही इस संगमयुग पर आता हूँ..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा को अपने से बात करता देख खुशी मे लवलीन हुई मैं आत्मा बाबा से कहती हूं*... मेरे प्यारे बाबा... आपके इस विचित्र रूप ने, *बिंदु रूप ने तो मुझे आप संग बांध ही दिया हैं... इस बिंदु से मिली शांति, प्रेम, आनंद का तो वर्णन ही नही किया जा सकता* ... कल्प कल्प तरसती आत्मा को अब इस बिंदु ने आकर भरपूर किया हैं..."
❉ *मीठे बाबा मेरे हर्षित मुख को देख कर बोले* :- "मेरे रूप मे डूबने वाले सिकीलधे बच्चे... *मैं तो तुम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने ही तो अपना धाम छोड़ कर आता हूँ... तुम्हें 21 जन्मो की बादशाही देता हूँ... तुम्हें विश्व का राजा बनाता हूँ* ... हमेशा इस मेरे विचित्र रूप से प्यार करते रहना... हमेशा आनंदित रहना और श्रीमत का पालन करना..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा बाबा की इतनी प्यारी मन को मोह लेने वाली बातों को सुन कर कहती हूँ* :- "मेरे प्यारे हम पर सर्वस्व लुटाने वाले बाबा... मैं आत्मा आपका प्यार पा कर धन्य हो गईं हूँ... *खुशियाँ क्या होती हैं मुझे पता ही नही था... आपने आते ही मुझ आत्मा को रंक से राजा बना दिया... तीनो लोक का मालिक बन दिया* ... बाबा आपके इस विचित्र रूप ने तो कमाल कर दिया..."
❉ *परमपिता मेरी बातों से खुश हो कहते है* :- "मेरे सपूत बच्चे... तुझे इस रूप मे इस कदर मगन देख बाप का प्यार और भी गहरा हो गया... *बस इसी तरह इस इस चित्र को देखते हुए अपने विचित्र बाप का हाथ पकड़े रहना... कभी भी मुझ को छोड़ना नही... ये विचित्र बाप ही तुम्हारी नैया का खिवैया हैं... इस को पूरा पूरा यूज़ करना घबराना नही* ..."
➳ _ ➳ *बाबा के इतने प्यार में डूबे अनमोल वचन सुनकर मैं आत्मा जैसे भावुक ही हो जाती हूँ औऱ बाबा को बोलती हूँ* :- "वाह मेरे सबसे प्यारे बाबा... तूने तो इस छोटे से बिंदु रूप में कमाल ही कर दिया... *इस छोटी सी मुझ आत्मा को मस्तक मणी ही बना दिया... मै आत्मा भी आज आप से वायदा कर रही हूं कि मै दिन पर दिन औऱ भी गहराई से, पूरी शिद्दत से... बाबा के इस विचित्र रूप में डूबती जा रही हूँ* ... विचित्र बाप की यादों को अपनी पूरी दिनचर्या बनाती जा रही हूँ... बाप से ये मीठा वायदा कर मैं आत्मा ख़ुशी ख़ुशी अपने साकार लोक में, साकार शरीर में वापिस आ जाती हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- वर्तमान ब्राह्मण जीवन को हीरे तुल्य अनुभव करना*"
➳ _ ➳ संगमयुगी ब्राह्मण बन कर, नए युग, नए संसार और नए जीवन का अनुभव करते हुए मैं खो जाती हूँ उन अखुट प्राप्तियों की स्मृति में जो अपने इस नए जीवन मे मैं प्रतिपल कर रही हूँ। *ब्राह्मण बनते ही कलयुगी संसार नए संगमयुग में परिवर्तित हो गया और युग के परिवर्तन होते ही इस नए युग के साथ, नया संसार, नया दिन और नई राते भी शुरू हो गई। इस नए युग के नए जीवन की हर घड़ी पदमों तुल्य है, हीरे तुल्य है*। मन ही मन अपने आप से बातें करते हुए मैं विचार करती हूँ कि माया रावण की पुरानी दुनिया में माया ने बेहोश करके मेरे जिस जीवन को कौड़ी तुल्य बना दिया था, बाबा ने होश में लाकर उस कौड़ी तुल्य जीवन को हीरे तुल्य बना दिया और बेहोश से होश में आते ही जीवन कैसे बदल सा गया!
➳ _ ➳ आँख खुलते ही नया सम्बन्ध और नया संसार देखा। ऐसा सुखमय संसार जहाँ आत्मा सजनी उठते ही अपने साजन परमात्मा के साथ मिलन मनाती है। *तो कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देकर मेरे जीवन को खुशियों के खजाने से भरपूर कर देते हैं। अपनी श्रेष्ठ मत देकर, हाथ मे हाथ मिलाये अंत मे भी साथ ले जाते हैं*। ऐसे मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करते हुए औऱ अपने ब्राह्मण जीवन की उपलब्धियों का आनन्द लेते हुए, अपने वरदाता बाप से मिलन मनाने की तीव्र इच्छा से अपने मन बुद्धि को सभी बातों से हटाकर सम्पूर्ण एकाग्र स्थिति में मैं स्थित हो जाती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति मुझे सेकेण्ड में मेरे ओरिजनल स्वरूप में स्थित कर, देह से न्यारा और प्यारा बना देती है*।
➳ _ ➳ सोने के समान चमकते हुए अपने अति न्यारे और प्यारे स्वरूप में स्थित होकर मैं चैतन्य शक्ति असीम ऊर्जा का भण्डार प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में भृकुटि के अकाल तख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और चल पड़ती हूँ अपनी मंजिल अपने निराकारी वतन की ओर जो सूर्य, चाँद, सितारों की दुनिया से दूर, सूक्ष्म लोक से भी परें हैं। *मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं उड़ती हुई इन सबको पार करके पहुँच गई हूँ आत्माओ की निराकारी दुनिया अपने मूलवतन शान्ति धाम घर में जहाँ गहन शान्ति ही शान्ति हैं। शान्ति के बहुत ही पावरफुल वायब्रेशन्स इस पूरे शान्तिधाम घर में फैले हुए है जो मुझ आत्मा में समा कर साइलेन्स का बल मेरे अंदर भरते ही जा रहें हैं*। एक बहुत ही निराली पीसफुल स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ इस गहन शांति का गहराई तक अनुभव करके अब मैं अपने ज्ञानसूर्य शिव पिता के पास जा रही हूँ जो अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में मेरे बिल्कुल सामने मुझे दिखाई दे रहें हैं। *उनसे निकल रहा सर्वशक्तियों का अथाह प्रकाश रंग बिरंगी किरणों के रूप में चारों और फैल कर एक अद्भुत छटा बिखेरता हुआ बहुत ही आकर्षणमय प्रतीत हो रहा है। उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए, उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा अब उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ*। इतना समीप कि उनकी किरणों का स्पर्श एक बहुत तेज करेण्ट के रूप में मुझ आत्मा में प्रवाहित होकर मेरे अंदर असीम ऊर्जा का संचार करने लगा है। *इस करेण्ट के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी सारी विकारों की कट समाप्त होने लगी है और मेरा पुराना तमोप्रधान स्वरूप नए सतोप्रधान स्वरूप में परिवर्तित हो गया है*।
➳ _ ➳ अपने इस नए वास्तविक सतोप्रधान अनादि स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा अब वापिस कर्म करने के लिए फिर से साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर लौट आई हूँ और आकर फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो गई हूँ। *देह, देह की पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्धों से जीते जी मरकर, मरजीवा बन अपने नए संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की मौजों का मैं अब भरपूर आनन्द ले रही हूँ। बाबा के साथ अपना एक अलग संसार बसाकर, परमात्म पालना और परमात्म प्यार के झूले में मैं हर पल झूल रही हूँ*। अपने इस नए युग, नए संसार और नए जीवन के नए अनुभवों का आनन्द लेते हुए मेरा हर एक पल अब एक अद्भुत रूहानी नशे और खुशी में बीत रहा है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सर्व शक्तिमान बाप को कम्बाइन्ड रूप में साथ रखने वाली सफलता - मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं विकारों रूपी गंदगी को छूने से भी मुक्त होने वाली सच्ची वैष्णव आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *अपने अनादि रायल्टी को याद करो, जब आप आत्मायें परमधाम में भी रहती हो तो आत्मा रूप में भी आपकी रूहानी रायल्टी विशेष है*। सर्व आत्मायें भी लाइट रूप में हैं लेकिन *आपकी चमक सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है*। याद आ रहा है परमधाम? अनादि काल से आपकी झलक फलक न्यारी है। जैसे आकाश में देखा होगा सितारे सभी चमकते हैं, सब लाइट ही हैं लेकिन सर्व सितारों में कोई विशेष सितारों की चमक न्यारी और प्यारी होती है। ऐसे ही सर्व आत्माओं के बीच आप आत्माओं की चमक रूहानी रायल्टी, प्युरिटी की चमक न्यारी है।
➳ _ ➳ याद आ रहा है ना? फिर आदिकाल में आओ, *आदिकाल को याद करो तो आदिकाल में भी देवता स्वरूप में रूहानी रायल्टी की पर्सनालिटी कितनी विशेष रही*? सारे कल्प में देवताई स्वरूप की रायल्टी और किसी की रही है? *रूहानी रायल्टी, प्युरीटी की पर्सनालिटी या है ना!* पाण्डवों को भी याद है? याद आ गया? *फिर मध्यकाल में आओ तो मध्यकाल द्वापर से लेकर आपके जो पूज्य चित्र बनाते हैं, उन चित्रों की रायल्टी और पूजा की रायल्टी द्वापर से अभी तक किसी चित्र की है? चित्र तो बहुतों के हैं लेकिन ऐसे विधिपूर्वक पूजा और किसी आत्माओं की है*? चाहे धर्म पितायें हैं, चाहे नेतायें है, चाहे अभिनेतायें हैं, चित्र तो सबके बनते लेकिन चित्रों की रायटी और पूजा की रायल्टी किसी की देखी है? डबल फारेनर्स ने अपनी पूजा देखी है? आप लोगों ने देखी है या सिर्फ सुना है? ऐसे विधिपूर्वक पूजा और चित्रों की चमक, रूहानियत और किसकी भी नहीं हुई है, न होगी। क्यों?
➳ _ ➳ *प्युरिटी की रायल्टी है। प्युरिटी की पर्सनाल्टी है*। अच्छा देख लिया अपनी पूजा? नहीं देखी हो तो देख लेना। *अभी लास्ट में संगमयुग पर आओ तो संगम पर भी सारे विश्व के अन्दर प्युरिटी की रायल्टी ब्राह्मण जीवन का आधार है। प्युरिटी नहीं तो प्रभु प्यार का अनुभव भी नहीं*। सर्व परमात्म प्राप्तियों का अनुभव नहीं। *ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी प्युरिटी है और प्युरिटी ही रूहानी रायल्टी है। तो आदि अनादि, आदि मध्य और अन्त सारे कल्प में यह रूहानी रायल्टी चलती है*।
✺ *ड्रिल :- "सारे कल्प में अपनी प्यूरिटी की रायल्टी का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ अनादि स्वरूप में मैं आत्मा परमधाम में... *देख रही हूँ अपनी रूहानी राॅयल्टी को*... मैं शिव पिता की किरणों के एकदम नीचे... *प्रकाश का सतरंगी इन्द्रधनुष मुझ राॅयल आत्मा की रूहानी चमक को और भी राॅयल बना रहा है*... सप्तरंगी प्रकाश की ये किरणे फूलझडियों की तरह अन्य चमकती आत्मा मणियों को भी राॅयल्टी से भरपूर कर रही है... *मेरे अस्तित्व से निरन्तर बहता पावनता का झरना...* और उस झरने के नीचे मुझ जैसी राॅयल्टी से भरपूर होने की चाहत में मेरी ओर निहारती अन्य असंख्य झिलमिलाती आत्माए...
➳ _ ➳ *आदिकाल में मै आत्मा देव स्वरूप में*... मेरी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था... *लाईट और माईट के ताज से सुसज्जित मैं विराजमान हूँ अपने शाही विमान पर*... घूमघूम कर देख रहा हूँ अपनी समस्त प्रजा और प्रकृति को... दोनो ही हर प्रकार से सन्तुष्ट और आनन्दित प्रतीत हो रही है... *फलों से लदे विनम्रता से झुके ये वृक्ष, मेरा अभिनन्दन करती पवन... मेरा अभिवादन करते बादल... मेरा अनुगमन करते चाँद और तारें... सब मेरी पावनता की ही विरासत है ये*...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा मध्य काल में... *ऊँचे शिखर पर विशाल भव्य मन्दिर*... भजन कीर्तन की मधुर झंकार... मन्दिर में मेरे दर्शनों के लिए लम्बी कतार... *मेरे जड चित्रों की विधि विधान से होती पूजा... भक्तों का अपार भक्ति भाव, पूरी होती उनकी कामनाए मेरी शक्तियों में पदम गुणा बढोतरी कर रही है... ये सब मेरी पावनता का ही पसारा है... मैं देख रही हूँ मेरे जडचित्रों की प्यूरिटी की राॅयल्टी से भक्त आत्माओं की मनोकामनाए पूरी हो रही है*...
➳ _ ➳ और मेरा अन्तिम जन्म... *संगम पर मैं ब्राह्मण आत्मा मनसा वाचा और कर्मणा अपनी पावनता से संसार की सभी आत्माओं को पावनता की अंजली दे रही हूँ*... प्रकृति मेरे वायब्रैशन्स से पावन होती जा रही है... *संकल्पों की पावनता से मैने बाँध लिया है अपने स्नेह में निर्बंधन रूहानी माशूक को*... हर पल मैं उसके प्यार का और साथ का अनुभव कर रही हूँ... पावनता का सूर्य मेरे मस्तिष्क के ऊपर... और मै आत्मा भरपूर कर रही हूँ स्वयं को उस पावनता और प्रेम की शक्तियों से...
➳ _ ➳ आदि, अनादि, मध्य और सारे कल्प में स्वयं की प्यूरिटी की राॅयल्टी का बारी बारी से दर्शन करती मैं आत्मा... *इमर्ज कर रही हूँ अपनी सम्पूर्ण पावनता के संस्कारो को... और अब बस एक ही संकल्प बार बार दृढ हो रहा है... इसी एक स्वमान में स्थित मैं आत्मा... मैं हूँ ही कल्प कल्प की प्योरिटी की राॅयल आत्मा... कल्प कल्प की महान पावन आत्मा... पावनता की गहरी अनुभूति कर उसका स्वरूप बनती मैं पावन आत्मा...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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