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 21 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ बापदादा से दिल का जिगरी स्नेह अनुभव किया ?

 

➢➢ बाप से सर्ब संबंधों का अनुभव किया ?

 

➢➢ तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म से जितनी सेवा कर सकते थे, उतनी सेवा की ?

 

➢➢ सेवा दिल से की की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  आपके बोल, कर्म और वृत्ति से हल्केपन का अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विश्व पॉवर से उन्हों को भी पहचान दो। 95 परसेन्ट सबके दिलपसन्द बनो। आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ सहनशक्ति को धारण करने की आवश्यकता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं संगमयुगी कल्याणकारी आत्मा हूँ"

 

  अपने को सदा संगमयुगी कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? संगमयुग एक ही इस सृष्टि-चक्र में ऐसा युग है जो चढ़ती कला का युग है। और युग धीरे-धीरे नीचे उतारते हैं। सतयुग से कलियुग में आते हो तो कितनी कलायें कम हो जाती हैं? तो सभी युगों में उतरते हो और संगमयुग में चढ़ते हो। चढ़ने के लिए भी लिफ्ट मिलती है। सभी को लिफ्ट मिली है ना। बीच में अटक तो नहीं जाती है? ऐसे तो नहीं-कभी अटक जाओ, कभी लटक जाओ। ऐसी लिफ्ट मिलती है जो कभी भी न लटकाने वाली है, न अटकाने वाली है। देखो, कितने लक्की हो जो कल्याणकारी युग में आये और कल्याणकारी बाप मिला। आपका भी आक्यूपेशन है विश्व-कल्याणकारी। तो बाप भी कल्याणकारी, युग भी कल्याणकारी, आप भी कल्याणकारी और आपका आक्यूपेशन भी विश्व-कल्याणकारी।

 

  तो कितने लक्की हो! अच्छा, यह लक्क कितना समय चलेगा? सारा कल्प या आधा कल्प? जो कहते हैं आधा कल्प, वह हाथ उठाओ। जो कहते हैं सारा कल्प, वह हाथ उठाओ। सभी राइट हो। क्योंकि आधा कल्प राज्य करेंगे, आधा कल्प पूज्य बनेंगे। तो यह भी लक्क ही है। सदा मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ-इस स्मृति में रहने से जो भी कर्म करेंगे वह कल्याणकारी करेंगे। कल्याणकारी समझने से संगमयुग जो कल्याणकारी है वह भी याद आता है और कल्याणकारी बाप भी स्वत: याद आता है। सिर्फ कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनना है।

 

  सबसे बड़े भाग्य की निशानी यह है जो संगमयुग पर साधारण आत्मा बने हो। अगर साहूकार होते तो बाप के नहीं बनते, सिर्फ कलियुग की साहूकारी ही भाग्य में मिलती। तो साधारण बनना अच्छा है ना। स्थूल धन से साधारण हो लेकिन ज्ञान-धन से साहूकार हो। तो खुशी है ना कि बाप ने सारे विश्व में से हमें अपना बनाया। सारा दिन खुशी में रहते हो? मुरली रोज सुनते हो? कभी मिस तो नहीं करते? मिस करते हो तो फालो फादर नहीं हुआ ना। ब्रह्मा बाप ने एक दिन भी मुरली मिस नहीं की।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  ‘बापदादा, सदा हर कदम में, हर संकल्प में उडती कला वाले बच्चों को देख रहे हैं। सेकण्ड में अशरीरी भव का वरदान मिला और सेकण्ड में उडा।' अशरीरी अर्थात ऊँचा उडना। शरीर भान में आना अर्थात पिंजडे का पंछी बनना।

 

✧  इस समय सभी बच्चे अशरीरी भव के वरदानी, उडते पंछी बन गये हो। यह संगठन स्वतन्त्र आत्मायें अर्थात उडते पंछियों का है। सभी स्वतन्त्र हो ना? ऑर्डर मिले अपने स्वीट होम में चले जाओ तो कितने समय में जा सकते हो?

 

✧  सेकण्ड में जा सकते हो ना। आर्डर मिले, अपने मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज द्वारा, अपनी सर्वशक्तियों की किरणों द्वारा अंधकार में रोशनी लाओ, ज्ञान सूर्य बन, अंधकार को मिटा लो, तो सेकण्ड में यह बेहद की सेवा कर सकते हो? ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य बने हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ एक ही विश्व की हास्पिटल है तो चारों ओर के रोगी कहाँ जायेंगे? एमर्जेन्सी केसेज़ की लाइन होगी। उस समय क्या करेंगे? अमर भव का वरदान तो देंगे ना। स्व अभ्यास के आक्सीजन द्वारा साहस का श्वास देना पड़ेगा। होपलेस केस अर्थात् चारो ओर के दिल शिकस्त के केसेज़ ज्यादा आयेंगे। ऐसी होपलेस आत्मओं को साहस दिलाना यही श्वाँसस भरना है। तो फटाफट आक्सीजन देना पड़ेगा। उस स्व अभ्यास के आधार पर ऐसी आत्माओं को शक्तिशाली बना सकेंगे! इसलिए फुर्सत नहीं है, यह नहीं कहो। फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  सर्वोत्तम स्नेह, सम्बन्ध और सेवा"
 
➳ _ ➳  मैं चमकती हुई मणि आत्मा... शरीर के भृकुटि तख्त पर विराजित होकर... मीठे बाबा की यादो में खोयी... कानो की इंद्री से मीठे बाबा का मधुर गीत सुनती हूँ... कैसे करूँ मै बाबा तेरा शुक्रिया... और यह गीत सुनते ही, पलक झपकते मै आत्मा अपनी सूक्ष्म देह में फरिश्तों की नगरी उड़ चलती हूँ... मै आत्मा परमधाम में बैठे अपने मनमीत को आवाज देती हूँ... और अगले ही पल ब्रह्मा तन में मीठे बाबा विराजमान नजर आते है... प्रेम के चरमौतकर्ष में डूबी हुई, मै आत्मा रोम रोम से प्यारे बाबा का शुक्रिया कर रही हूँ...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी दिली बात बताते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठा बाबा अपने हर फूल को रूहानी गुलाब सा खिला हुआ देखने की चाह लिए... धरती पर कदम रखता है.. हर बच्चा बाप समान बनकर स्नेह में समा जाये... और दिलतख्तनशींन बनकर मुस्कराये... और सर्व बच्चे अधिकारी बन विश्व धरा पर इठलाये, यही चाहत विश्व पिता की है..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने प्यारे से दुलारे से बाबा की विशालता को देख फ़िदा हो कर कहती हूँ :- "प्यारे मीठे बाबा...  मै आत्मा आपके प्यार में रूहानी गुलाब बन मुस्करा रही हूँ... और बड़ी ही शान से आपके कलेजे पर सुशोभित हो रही हूँ... आपके स्नेह में डूबी हुई, ख़ुशी प्रेम और आनन्द के झूले में झूल रही हूँ...सेकण्ड में दिल का सौदा कर महान भाग्यवान हो गयी हूँ..."
 
❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को दुलारते हुए कह रहे है :- "मीठे लाडले बच्चे... अधिकारी बनने के लिए अधीनता के संस्कारो का त्याग करो...मीठे बाबा का दिल बेहद का बड़ा है... सारे विश्व की आत्माये उसमे समा सकती है... इसलिए सच्ची मुहोब्बत कर, दिलवाले बाबा को, एक धक से दिली सौदा कर, दिल सौंप दो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को देख मन्द मन्द मुस्कराते हुए कह रही हूँ :- "मीठे लाडले बाबा मेरे... कितनी दुआओ, कितनी पुकारो, कितनी मन्नतो के बाद मैंने आपको पाया है... अब दिल को धरती पर बिखराने की भूल मै आत्मा कदापि नही कर सकती... मीठे बाबा... सच्चा प्रियतम जो मैंने यूँ जनमो के बाद पाया है... यह दिल अब आपकी ही अमानत है..."
 
❉   मीठे प्यारे बाबा मुझे सच्ची प्रीत की रीत समझाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जितना दिल से ईश्वरीय दिल पर फ़िदा होंगे... उतनी मीठी अनुभूतियों से भरकर, सच्चे प्यार के सुखद अहसासो में जिएंगे... वरदानी समय है, जितना पाना है, अभी पा लो, जो करना है, अभी ही करलो, और मीठे बाबा के दिल पर अपना अधिकार जमाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा अपने मीठे बाबा को तहेदिल से शुक्रिया कहते हुए कह रही हूँ :- "ओ प्राण प्रिय बाबा मेरे... देह के रिश्तो में खपकर, टुकड़ो में बिखरे दिल को, आपके सच्चे प्यार ने सदा का जोड़ दिया है... और मैंने यह दिल सदा का, अपने सच्चे मनमीत को अर्पण कर दिया है... अब दो दीवानो के बीच किसी तीसरे की कोई जगह ही नही है..." अपने सच्चे प्रेम को... यूँ मीठे बाबा को बयान कर, मै आत्मा धरती की ओर रुख करती हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप से सर्व सम्बन्धों का अनुभव करना"

➳ _ ➳  अपने स्वीट साइलेन्स होम में बिंदु बन अपने बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का असीम सुख मैं आत्मा प्राप्त कर रही हूँ। मणियों से चमकते इस परमधाम घर में अपने बिंदु स्वरूप में स्थित मैं देह और देह की दुनिया के हर संकल्प, विकल्प से मुक्त एक अति सुंदर निरसंकल्प स्थिति में स्थित हो कर अपने बिंदु बाप को निहार रही हूँ। जैसे मैं आत्मा बिंदु हूँ वैसे मेरे पिता परमात्मा भी मेरे ही समान एक बिंदु हैं। अपने ही समान अपने पिता परमात्मा को पाकर मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। कभी मैं स्वयं को और कभी उन्हें देख रही हूँ। वो सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर हैं और मैं आत्मा सर्वगुण, सर्वशक्तिस्वरूप हूँ।

➳ _ ➳  अपने और अपने पिता परमात्मा के स्वरूप को निहारते - निहारते गहन आनन्द में खोई मैं बिंदु आत्मा सर्व गुणों और सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के गुणों और शक्तियों को स्वयं में समाकर उनके समान बनने के लिए अब धीरे - धीरे अपने बिंदु बाप के पास जा रही हूँ। उनके अति समीप पहुँच कर मैं देख रही हूँ उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों को जो चारों और फैल कर अति सुंदर लग रही है। एक - एक किरण को ज्ञान के दिव्य चक्षु से मैं देख रही हूँ।
 
➳ _ ➳  अपनी सुध - बुध खो कर इस अति सुंदर दृश्य को निहारते - निहारते मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा ने अपनी किरणों रूपी गोद मे मुझे बिठा लिया है और अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। जैसे - जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं मैं स्वयं में असीम बल भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ। अपने बिंदु बाप की शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति करते हुए अपने प्यारे बाबा के साथ इतना सुन्दर मधुर मंगल मिलन मनाने का सुख मैं प्राप्त कर रही हूँ।
 
➳ _ ➳  बिदु बन बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का यह सुख मुझे परम आनन्द प्रदान कर रहा है। मेरे शिव पिता से आ रहे सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे टच करके मेरे अंदर असीम ऊर्जा भर रहें हैं। परमात्म शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मेरा स्वरूप भी उनके समान अति तेजस्वी, पूर्ण प्रकाशित हो गया है।

➳ _ ➳  अपने सर्वशक्तिवान बिंदु बाप की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर शक्तियों का पुंज बन कर, बाबा को अपने संग लेकर अब मैं वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और हर समय बाबा के संग में रहते हुए सर्व सम्बन्ध और सर्व संपत्ति की प्राप्ति अपने एक बिंदु बाप द्वारा अनुभव कर रही हूँ। मैं भी बिंदु बाप भी बिंदु इस स्मृति से मेरा सारा संसार एक बिंदु बाप में समा गया है। सर्व सम्बन्धों का अनुभव एक से करते हुए, सर्व सम्पति की प्राप्ति अविनाशी खुशी, सुख, शांति का मैं सहज ही अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  बिंदु बन, बिंदु बाप के संग रहते हुए अब मैं सदा सुख - शांति के, खुशी के, ज्ञान के और आनन्द के झूले में झूलते हुए, सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे में रहते हुए, अपनी सम्पन्न स्थिति से सबको अपने बिंदु बाप के संग का अनुभव निरन्तर करवा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं परमात्म दुलार को प्राप्त करने वाली अब के सो भविष्य की राज दुलारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं अपनी सूरत से बाप की सीरत दिखाने वाली परमात्म स्नेही आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ब्रह्मा बाप को देखा - ब्रह्मा बाप ने अपने को कितना नीचे किया - इतना निर्मान होकर सेवाधारी बना जो बच्चों के पाँव दबाने के लिए भी तैयार। बच्चे मेरे से आगे हैंबच्चे मेरे से भी अच्छा भाषण कर सकते हैं। ‘‘पहले मैं'' कभी नहीं कहा। आगे बच्चे, पहले बच्चेबड़े बच्चे कहातो स्वयं को नीचे करना नीचे होना नहीं हैऊँचा जाना है। तो इसको कहा जाता है - ‘सच्चे नम्बरवन योग्य सेवाधारी'। लक्ष्य तो सभी का ऐसा ही है ना!

 

✺   "ड्रिल :- ब्रह्मा बाप समान निर्माणचित होकर सेवा करना।"

 

_ ➳  गुलाबी गुलाबी सा मौसम, सर्द ठंडी हवाएं, लम्बे से खजूर के पेड़ पर इठलाती हुई सर्द हवाएँ और गुलाबी समन्दर की अठखेलियां करती हुई लहरे... और उस स्थान पर मैं एक ऊँचे से मिट्टी के पहाड़ पर बैठी हुई हूँ... जहां से मैं ये वातावरण फील करती हूं... चारों तरफ भीनी भीनी मोगरे के फूलों की खुशबू फैल रही है... और जैसे-जैसे यह खुशबू हवाओं में बिखर रही है... यहां का वातावरण एकदम खुशनुमा और शीतलता पूर्वक लग रहा है... और मैं इस अवस्था में परमपिता से योग लगा रही हूं... हल्की खुली हुई आंखों से मैं अपने आपको आत्मिक रूप में देख रही हूं... और परमपिता से सीधा संपर्क में आने से मेरी आत्मा से अनेक रंग बिरंगी किरणें निकलकर इस वातावरण में फैल रही है...

 

_ ➳  और कुछ समय बाद मैं अपने आप को खुशबू में परिवर्तन कर उड जाती हूं... और एक ऐसे स्थान पर आ पहुँचती हूं... यहां से मुझे इस दृश्य का एकदम साफ नजारा दिखाई दे रहा है... मैं अपनी खुशबू को बहुत गहराई से अनुभव कर रही हूं... और अपनी खुशबू को एक ऐसे स्थान पर अनुभव करती हूं... जहां पर एक आश्रम में गुरु अपने शिष्यों को नई शिक्षा दे रहे हैं... जिसमे गुरु आश्रम में स्वयं झाड़ू निकाल रहे हैं और सभी विद्यार्थी खड़े होकर उन्हें देख रहे हैं... मैं अपनी खुशबू से और बाबा से साकाश लेते हुए उस आश्रम में अपनी पवित्र खुशबूनुमा किरणें फैला रही हूं...

 

_ ➳  मेरी खुशबू जैसे ही गुरूजी के पास जाकर उन्हें छूती है तो उन्हें मेरे वहां होने का आभास होता है... और मेरी भावनाओं को समझते हुए मुझे कहते हैं कि कई बार हमें दूसरों को उनसे नीचे दिखाना पड़ता है क्योंकि इससे उनकी स्थिति  हमसे ऊपर होती है... और वह अपने आप को और भी तीव्र पुरुषार्थी समझने लगते हैं... और इस आभास से वह आगे बढ़ने का रास्ता सहज ही खोज लेते हैं... इसलिए मैं आज यहां अपने शिष्यों को स्वयं आश्रम के छोटे-छोटे काम करना सिखा रहा हूं... मुझे देखकर उन्हें यह आभास हो रहा है कि ये हमसे ऊंची स्थिति में होने के कारण भी इतना छोटा काम कर रहे हैं... ताकि हमें कुछ सिखा सके... जिससे हम अपने आपको अब और आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे... 

 

_ ➳  इतना सुनकर मैं वहां से अपनी खुशबू बिखेरते हुए उसी स्थान पर आ जाती हूं... जहां पर गुलाबी गुलाबी मौसम हो रहा है... समुंद्र की गुलाबी लहरें हवाओं से अठखेलियां खेल रही है... मैं अभी खुली हुई आंखों से अपने परमपिता से योग लगा रही हूं और अपनी गुलाबी किरणें इस सुंदर वातावरण में बिखेर रही हूं... मैं बाबा से आती हुई किरणों को अपने अंदर समाती जा रही हूं... और बाबा से मन ही मन यह कह रही हूं... बाबा आपकी यह अद्भुत दी हुई अनमोल शिक्षाएं मैं अपने अंदर हमेशा के लिए संभाल लूंगी... और अपने चाल चलन और पुरुषार्थ से हमेशा आपका नाम बाला करूंगी... इन संकल्पों से मेरी आंतरिक उर्जा बढ़ती जा रही है... मेरा यह शरीर हवा के जैसा हल्का लग रहा है... और मुझे आभास हो रहा है... मानो मैं स्वयं परमपिता की कोमल गोद में बैठकर उनसे रूह रूहान कर रही हूं...

 

_ ➳  और मैं अपने सामने एक हवा के समान हल्की स्थिति को अनुभव करते हुए... ब्रह्मा बाबा को अपने सामने ईमर्ज करती हूं... और उनसे दृष्टि लेते हुए मैं अपने आप को पूर्ण रूप से सफेद प्रकाशमयी अवस्था को अनुभव करती हूं... और मैं हमेशा यह प्रयास करने का संकल्प लेती हूं... कि आज से जो भी आत्माएं मेरे सामने आएंगी मेरे साथ संपर्क में आएंगे उन्हें हमेशा परमात्मा के बच्चे कहकर संबोधित करूंगी... सदा निर्माणचित् अवस्था में स्थित रहूंगी... अपने में इन संस्कारों का निर्माण करूँगी... और इन कुछ संकल्पों के बाद मैं अपने आप को उस गुलाबी वातावरण के अंदर पूरी तरह समा लेती हूं... और परमात्मा की गोद में झूला झूलने लगती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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