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 24 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ गृहस्थ व्यवहार में बहुत युक्ति से चले ?

 

➢➢ अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी बुधी रुपी झोली भरपूर रखी ?

 

➢➢ ब्राह्मण जीवन में वैरायटी अनुभूतियों द्वारा रमणीकता का अनुभव किया ?

 

➢➢ बाप समान अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  सदा डबल लाइट स्थिति में रहने वाले निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त होंगे। उड़ती कला में रहेंगे। उड़ती कला अर्थात् ऊंचे से ऊँची स्थिति। उनके बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं। धरनी अर्थात् देह भान से ऊपर। जो देह भान की धरनी से ऊपर रहते वह सदा फरिश्ते हैं।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा हूँ "

 

〰✧  स्वयं को सदा सर्व खजानों से भरपूर अर्थात् सम्पन्न आत्मा अनुभव करते हो? क्योंकि जो सम्पन्न होता है तो सम्पन्नता की निशानी है कि वो अचल होगा, हलचल में नहीं आयेगा। जितना खाली होता है उतनी हलचल होती है। तो किसी भी प्रकार की हलचल, चाहे संकल्प द्वारा, चाहे वाणी द्वारा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा, किसी भी प्रकार की हलचल अगर होती है तो सिद्ध है कि ख़जाने से सम्पन्न नहीं हैं। संकल्प में भी, स्वप्न में भी अचल। क्योंकि जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् स्वरूप की स्मृति इमर्ज होगी उतना ये हलचल मर्ज होती जायेगी। तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति प्रत्यक्ष रूप में इमर्ज हो।

 

✧  जैसे शरीर का आक्यूपेशन इमर्ज रहता है, मर्ज नहीं होता, ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन इमर्ज रूप में रहे। तो यह चेक करो-इमर्ज रहता है या मर्ज रहता है? इमर्ज रहता है तो उसकी निशानी है-हर कर्म में वह नशा होगा और दूसरों को भी अनुभव होगा कि यह शक्तिशाली आत्मा है। तो कहा जाता है हलचल से परे अचल। अचलघर आपका यादगार है। तो अपना आक्यूपेशन सदा याद रखो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं-क्योंकि आजकल सर्व आत्मायें अति कमजोर हैं तो कमजोर आत्माओंको शक्ति चाहिये। शक्ति कौन देगा? जो स्वयं मास्टर सर्वशक्तिमान् होगा।

 

✧  किसी भी आत्मा से मिलेंगे तो वो क्या अपनी बातें सुनायेंगे? कमजोरी की बातें सुनाते हैं ना? जो करना चाहते हैं वो कर नहीं सकते तो इसका प्रमाण है कि कम]जोर हैं और आप जो संकल्प करते हो वो कर्म में ला सकते हो। तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि संकल्प और कर्म दोनों समान होगा। ऐसे नहीं कि संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो और कर्म करने में वो श्रेष्ठ संकल्प नहीं कर सको, इसको मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहेंगे। तो चेक करो कि जो श्रेष्ठ संकल्प होते हैं वो कर्म तक आते हैं या नहीं आ सकते? मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि जो शक्ति जिस समय आवश्यक हो उस समय वो शक्ति कार्य में आये।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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लोग चिल्लाते रहें और आप अचल रहो। प्रकृति भी, माया भी सब लास्ट दाँव लगाने लिए अपने तरफ कितना भी खींचे लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रही। इसको कहा जाता - देखते हुए न देखो। सुनते हुए न सुनो। ऐसा अभ्यास हो। इसी को ही स्वीट साइलेन्स' स्वरूप की स्थिति कहा जाता है। फिर भी बापदादा समय दे रहा है। अगर कोई भी कमी है तो अब भी भर सकते हो। क्योंकि बहुतकाल का हिसाब सुनाया। तो अभी थोडा चांस है। इसलिए इस प्रैक्टिस की तरफ फुल अटेन्शन रखो। पास विद ऑनर बनना या पास होना इसका आधार इसी अभ्यास पर है। ऐसा अभ्यास है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना! इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। 'तख्तनशीन आत्मा हूँ।' इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियां स्वत: ही ऑर्डर पर चलेंगी। जो अकाल-तख्त-नशीन समझकर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, ने देह के सम्बन्ध है, न पदार्थ हैं एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप, टीचर और सतगुरु यह तीन अक्षर याद करना"

➳ _ ➳  मैं नन्हा फ़रिश्ता मधुबन के बगीचे में बाबा के साथ लुका-छिपी का खेल खेलता हुआ आनंद ले रहा हूँ... कभी मैं छिप जाता, बाबा मुझे ढूंढते... कभी बाबा छिप जाते , मैं उन्हें ढूंढता... बाबा को ढूंढते-ढूंढते एक मधुर मुरली की गूंज सुनाई देती है... मैं नन्हा फ़रिश्ता उस धुन के पीछे-पीछे चल पड़ता हूँ और पहुँच जाता हूँ हिस्ट्री हाल... जहाँ बाबा शिक्षक बन मुरली बजा रहे हैं... फिर सतगुरु बन मनमनाभव का मन्त्र देकर अपनी यादों में समा लेते हैं... तीनों रूपों में बाबा को देख मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ... और बाबा से ज्ञान वर्षा की सौगात लेता हूँ...

❉  मेरे जीवन को खुशनुमा, खुशबूदार बनाकर मुझे खुशनसीब बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर की खोज में दर दर कितना भटके हो... जितना भटके हो उतना ही उलझे हो... अब सच्चा पिता सच्चा टीचर सच्चा सतगुरु सहज ही सम्मुख है... तो अब व्यर्थ समय सांसो को न गंवाकर सच्ची यादो में खो जाओ... हर पल सच्ची कमाई में जुट जाओ...”

➳ _ ➳  बाप, टीचर, सतगुरु के रूप में भगवान को पाकर खुशियों में झूमते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब भटकन से दूर होकर सत्य भरी बाँहों में आनन्द के झूले में हूँ... देहधारियों से मुक्त होकर सच्चे सतगुरु को पा ली हूँ... प्यारा बाबा मुझे मिल गया है जीवन आनन्द से खिल उठा है... पाना था वो पा लिया है...”

❉  अविनाशी प्रेम से सिक्त कर अविनाशी सुखों की महारानी बनाते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... एक पिता में सब कुछ प्राप्त कर रहे हो... बच्चों को हर भटकन से मुक्त कराकर सच्चा पिता जीवन में आ गया है... फूलो सी गोद में बिठाकर, ज्ञान रत्नों से सजाकर, सतयुगी सुखो में खिलायेगा,... ऐसे मीठे पिता को सांसो में बसा लो... सच्ची कमाई से दामन सदा का सजा लो...”

➳ _ ➳  परमात्म प्रेम के स्वर्णिम झूले में झूलती हुई प्रेम रस का पान करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे से भाग्य से भरी हूँ... देहधारियों के पीछे लटककर सांसे खपाने वाली... आज ईश्वर पिता को पाने वाली महान आत्मा बन गई हूँ... स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहा है... कितना प्यारा और शानदार मेरा यह भाग्य हो गया है...”

❉  अपने स्नेहमयी आगोश में समाकर अपना दीवाना बनाते हुए मेरी बगिया को सुन्दर सजाने वाले प्यारे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना सहज,कितना सरल, कितने साधारण रूप में भगवान मिला है... बच्चे अब एक तिनका भी तकलीफ न उठाये... यह भाव लिए सच्चा पिता जीवन में आ गया है... सच्चे प्यार की महक लिए, ज्ञान रत्नों की खान लिए, सुखो भरे आलिशान महल लिए विश्व पिता धरा पर उतर गया है... इस मीठे नशे से भर जाओ और सच्ची यादो में झूम जाओ...”

➳ _ ➳  बाबा के असीम प्यार और अमूल्य शिक्षाओं से अविनाशी भाग्य बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे पिता, सच्चे शिक्षक, सच्चे सतगुरु को पाकर अपने मीठे भाग्य की मुरीद हूँ... कन्दराओं में,गुफाओ में, मनुष्यो में जिसे खोज रही थी... वह मीठा बाबा आज मेरे दिल में धड़कन बन समाया है... और मै आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल हो गई हूँ...”
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- एक बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान ले अपने बुद्धि रूपी झोली भरपूर रखनी है"
 
➳ _ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार कर, मुझे सजा सँवार कर अपने साथ ले जाने के लिए मेरे शिव पिया आने वाले हैं। उनके इंतजार में मैं आत्मा इस देह रूपी कुटिया में भृकुटि रूपी दरवाजे पर पलके बिछाये खड़ी हूँ। मेरे प्रेम की डोर से बंधे मेरे शिव पिया बिना कोई विलम्ब किए अपना धाम छोड़कर, अपने रथ पर विराजमान हो कर मेरे पास आ रहें हैं। हवाओं में फैली रूहानियत की खुशबू उनके आने का स्पष्ट संकेत दे रही है। मुझ आत्मा पर पड़ रही उनके प्रेम की शीतल फुहारें मुझे उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। फिजाओं में एक दिव्य अलौकिक रूहानी मस्ती छा गई है जिसमे मैं आत्मा डूबती जा रही हूं।
 
➳ _ ➳  अपने शिव पिया को मैं अब अपने बिल्कुल समीप देख रही हूं। अपनी किरणों रूपी बाहों को फैला कर वो मुझे अपने साथ चलने का इशारा दे रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों को थामे अब मैं आत्मा सजनी उनके साथ चली जा रही हूं। हर बन्धन से अब मैं मुक्त हो चुकी हूं। अपने शिव साजन का हाथ थामे मैं आत्मा सजनी इस दुख देने वाली दुनिया को छोड़ कर अपने शिव पिया के साथ उनके घर जा रही हूं। पांच तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार करते हुए, अपने शिव पिया के साथ मैं आत्मा पहुंच गई सूक्ष्म लोक में जहां मेरे शिव पिया मुझ आत्मा का ज्ञान रत्नों से सोलह श्रृंगार कर मुझे अपनी निराकारी दुनिया मे ले जायेंगे।
 
➳ _ ➳  अब मैं देख रही हूं अपने शिव पिया को उनके लाइट माइट स्वरूप में। उनका यह स्वरूप बहुत ही आकर्षक, लुभावना और मन को मोहने वाला है। अब मैं आत्मा भी अपनी फ़रिशता ड्रेस धारण कर लेती हूं और अविनाशी ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए अपने शिव पिया के सामने पहुंच जाती हूँ। मुझे अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से वो मुझे निहार रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं।
 
➳ _ ➳  मन ही मन मैं विचार कर रही हूं कि कितना लंबा समय मैं अपने अविनाशी साजन से अलग रही। उनसे अलग रहने के कारण मैं तो श्रृंगार करना ही भूल गई थी। अविनाशी खजानों से वंचित हो गई थी। किंतु अब बहुत काल के बाद मेरे शिव साजन मेरे सामने है और बहुत काल के बाद यह सुंदर मिलन हुआ है तो इस मिलन से अब मुझे सेकेंड भी वंचित नहीं रहना। यह विचार मन मे आते ही अपने शिव पिया के प्रति प्यार और भी गहरा हो उठता है और मैं आत्मा सजनी उनके और समीप पहुंच जाती हूँ।
 
➳ _ ➳  मेरे शिव पिया अब स्वयं ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर रहें हैं। मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर सर्व ख़ज़ानों से मेरी झोली भर रहें है। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके मेरे शिव पिया ने मुझे कितना सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर मेरे शिव पिया खुशी से फूले नही समा रहे। अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने इस रूप को मैं मन रूपी दर्पण में देख कर मन ही मन अपने भाग्य पर गर्व कर रही हूं जो ऐसा अनुपम श्रृंगार करने वाले अविनाशी साजन मुझे मिले। मन ही मन अपने शिव पिया से मैं प्रोमिस करती हूं कि इन अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी सजाई रहूँगी।
 
➳ _ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से सज - धज कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ कर अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो गई हूं। अपने शिव पिया से मिले सर्व ख़ज़ानों से अब मैं स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, अपना श्रृंगार करके मैं आत्मा वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजाने वाले उनके अविनाशी प्रीतम से मिलवाने के रूहानी धन्धे में लग गई हूं।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं ब्राह्मण जीवन में वैरायटी अनुभूतियों द्वारा रमणीकता का अनुभव करने वाली सम्पन्न आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बाप समान अव्यक्त रूपधारी बनकर प्रकृति के हर दृश्य को देखते हुए हलचल से मुक्त होने वाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  डबल विदेशी या भारत वाले अगर परसेन्टेज के बिना फुल पास हो गये तो ब्रह्मा बाबा पता है क्या करेगा? (शाबास देंगे) बस, सिर्फ शाबास दे देगा! और क्या करेगा? रोज आपको अमृतवेले अपनी बाहों में समा लेगा।आपको महसूसता होगी कि ब्रह्मा बाबा की बाहों मेंअतीन्द्रिय सुख में झूल रहे हैं। बड़ी-बड़ी भाकी मिलेगी। ब्रह्मा बाबा का बच्चों के साथ बहुत प्यार है ना तो अमृतवेले भाकी मिलेगी और सारा दिन क्या मिलेगाजैसे चित्रों में दिखाते हैं नाकि जब तूफान आयापानी बढ़ गया तो सांप छत्रछाया बन गया। उन्हों ने तो श्रीकष्ण के लिए स्थूल बात दिखा दी है लेकिन वास्तव में ये है रुहानी बात।

 

 _ ➳  तो जो फरिश्ता बनेगा उसके सामने अगर कोई भी परिस्थिति आई या कोई भी विघ्न आया तो बाप स्वयं आपकी छत्रछाया बन जायेंगे। करके देखो। क्योंकि ऐसे ही बापदादा नहीं कहते हैं। पार्टीशन के समय बाबा की छत्रछाया आप लोगों ने १४ वर्ष में योग तपस्या की तो विघ्न कितने आये लेकिन आपको कुछ हुआ? तो बापदादा छत्रछाया बना    नाकितनी बड़ी-बड़ी बातें हुई। सारी दुनियामुखीनेतायेंगुरु लोग सब एन्टी हो गयेएक ब्रह्माकुमारियाँ अटल रही, प्रैक्टिकल में बेगरी लाइफ भी देखीतपस्या के समय भिन्न-भिन्न विघ्न भी देखे। बन्दूक भी आई तो तलवारें भी आईसब आया लेकिन छत्रछाया रही ना। कोई नुकसान हुआ?

 

 _ ➳  जब पाकिस्तान हुआ तो लोग हंगामें में डरकर सब छोड़कर भाग गये। और आपका टेनिस कोर्ट सामान से भर गया। क्योंकि जो अच्छी चीज लगती थीवो छोड़ें कैसेउससे प्यार होता है नातो जो सिन्धी लोग उस समय एन्टी थे वो गाली भी देते थे और सामान भी दिया। जो बढ़िया- बढ़िया चीजें थी वो हाथ जोड़कर देकर गये कि आप ही यूज करो। तो दुनिया वालों के लिए हंगामा था और ब्रह्माकुमारियों के लिए पांच रूपये में सब्जियों की सारी बैलगाड़ी थी। पांच रुपये में सब्जियाँ। आप कितने मजे से सब्जियाँ खाते थे। तो दुनिया वाले डरते थे और आप लोग नाचते थे। तो प्रैक्टिकल में देखा कि ब्रह्मा बापदादा - दोनों ही छत्रछाया बन कितना सेफ्टी से स्थापना का कार्य किया।   

 

✺   ड्रिल :-  "फरिश्ता बन बाबा की छत्रछाया का अनुभव करना"

 

 _ ➳  अमृतवेला की महान वेला में, मैं महान आत्मा भृकुटी सिहांसन पर जगमगा रही हूँ... मैं आत्मा साकार देह में होते भी अपने निराकारी स्वरूप का सहज और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... अपने इस निराकारी स्वरूप की और गहराई में मैं आत्मा जाती हूँ... कितना सुंदर और न्यारा मुझ आत्मा का ये स्वरूप है... कितना भव्य और तेजोमय यह स्वरूप है... मैं निराकारी आत्मा इन आँखों द्वारा सामने दीवार पर लगे बाबा के चित्र को देख रही हूँ... जिसमें मीठू बाबा अपने फरिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाएं खड़े हैं... धीरे-धीरे उस चित्र से सफेद रंग की लाइट मुझ आत्मा की तरफ आती हुई प्रतीत हो रही है... ये सफेद लाइट मुझ आत्मा पर पड़ रही है... ऐसा लग रहा है जैसे सफेद रंग की अलौकिक लाइट की वर्षा मेरे ऊपर हो रही है... और जैसे-जैसे मुझ आत्मा पर ये सफेद लाइट पड़ रही है मैं आत्मा लाइट और माइट से भरपूर होती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  देखते ही देखते मुझ आत्मा से लाइट पूरे कमरे में फैल गई हैं... ऐसा लग रहा है जैसे मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में हूँ... तभी फरिश्तों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटी में विराजमान शिव बाबा चित्र से बाहर निकलते प्रतीत होते हैं... बाबा का ये रूप बड़ा ही मनमोहक और अलौकिक है... बाबा का ऐसा बेहद चमकीला स्वरूप देखकर मैं आत्मा खुशी से भर गई हूँ... अतीन्द्रिय  सुख के झूले में झूल रही हूँ... और बस एकटक बाबा को देखे जा रही हूँ... तभी मुझ आत्मा के कान में मधुर शब्द गुजते है... मीठे बच्चे, मेरे लाडले बच्चे... देखो तो लाडले बच्चे बाबा आपके लिए कुछ लाया है...  ये मीठे मिश्री की तरह शब्द बाबा के मुख से सुन मैं आत्मा उठ कर जल्दी से जाकर अपने बाबा से लिपट जाती हूँ...

 

 _ ➳  बाबा मुझ आत्मा के सिर पर हाथ रखते हैं और मुझे दृष्टि देते हुए कह रहे हैं, फरिश्ता स्वरूप भव बच्चे ! बस बाबा के इतना कहते ही धीरे-धीरे मुझ आत्मा का हड्डी-मांस खून से बनी देह परिवर्तन होकर लाइट की होती जा रही है... अनुभव कर रही हूँ, मैं आत्मा... बाबा के हाथ से निकल रही बेहद शक्तिशाली किरणें सिर से होते हुए पूरे शरीर में फैल रही है और साकारी देह परिवर्तन होकर लाइट की हो गई है... मैं आत्मा देह भान से न्यारा अनुभव कर रही हूँ... बन्धनमुक्त और बेहद हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा बाप समान फरिश्ता बन गई हूँ... मैं फरिश्ता बाबा से कहता हूँ बाबा ये गिफ्ट तो बहुत ही ज्यादा प्यारी हैं... और बाबा मुझ नन्हे फरिश्ते को अपनी गोद में उठा लेते हैं... और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं... मेरे लाडले बच्चे अब सारा दिन आप इस बाबा की दी हुई गिफ्ट को अपने पास रखना... तो सारा दिन बाबा की छत्रछाया आप हर पल अनुभव करते रहोगे... हर पल आपको बाबा का साथ अनुभव होगा... मैं फरिश्ता बाबा की तरफ देखते हुए कहता हूँ... हाँ हाँ मेरे मीठे-मीठे बाबा सारा दिन आपकी इस दी हुई गिफ्ट को साथ रखुंगा...

 

 _ ➳  और मुस्कुराते हुए बाबा मेरे सिर हाथ फेरते हुए कहते हैं... शाबास मीठे बच्चे विजयी भव... इस प्रकार मैं फरिश्ता अपनी दिनचर्या की शुरुआत करता हूँ... और कर्मक्षेत्र में निकलता हूँ... मैं फरिश्ता देख रहा हूँ... कई प्रकार की लहरों रूपी परिस्थितियाँ, पहाड़ रुपी विघ्न सामने आ रहे हैं... लेकिन बाबा की छत्रछाया से हर परिस्थिति को, विघ्न को मैं फरिश्ता सहज ही खेल की तरह पार कर रहा हूँ... जैसे कोई भी मुसीबत आने पर माँ अपने बच्चे की ढाल बनकर खड़ी हो जाती है अपने बच्चे की छत्रछाया बन जाती हैं... और बच्चे को सेफ रखती है ठीक उसी प्रकार मेरे बाबा भी हर पल मुझ नन्हे  फरिश्ते की छत्रछाया बनकर मुझे हर विघ्न परिस्थिति में सेफ रह सहज आगे बढा रहे हैं... मैं फरिश्ता हर पल योगयुक्त और बन्धनमुक्त अवस्था का अनुभव कर रहा हूँ... हर पल बाबा के साथ होने का स्पष्ट और सुखद अनुभव कर खुशी में गाते हँसते हुए आगे बढ रहा हूँ... धूप में कभी छांव बनकर, लहरों में कभी नांव बनकर, जब लड़खड़ाएँ कदम, थामा है हाथ मेरे बाबा है साथ मेरे बाबा है साथ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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