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 30 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ आत्माओं को दुखो से छुड़ा पतित से पावन बनाने की सेवा की ?

 

➢➢ किसी भी परिस्थिति में रोये तो नहीं ?

 

➢➢ परमपूज्य बन परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त किया ?

 

➢➢ हर समय, हर कर्म समझ से कर ज्ञानी तू आत्मा बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  बापदादा बच्चों को विशेष ईशारा दे रहे हैं-बच्चे अब तीव्र पुरुषार्थ की लगन को अग्नि रूप में लाओ, ज्वालामुखी बनो। जो भी मन के, सम्बन्ध-सम्पर्क के हिसाब-किताब रहे हुए हैं-उन्हें ज्वाला स्वरूप की याद से भस्म करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं श्रेष्ठ संगमयुग की श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

  इस ड्रामा के श्रेष्ठ युग संगम की श्रेष्ठ आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? संगमयुग की महिमा अच्छी तरह से स्मृति में रहती है? क्योंकि संगमयुग को वरदान मिला हुआ है - संगमयुग में ही वरदाता वरदानों से झोली भरते हैं। आप सबकी बुद्धि रूपी झोली वरदानों से भरी हुई है? खाली तो नहीं है? थोड़ी खाली है या इतना भरा हुआ है जो औरों को भी दे सकते हो? क्योंकि वरदानों का खजाना ऐसा है, जो जितना औरों को देंगे, उतना आपमें भरता जायेगा। तो देते जाओ और बढ़ता जाता है। जितना बढ़ाने चाहते हो उतना देते जाओ। देने की विधि आती है ना? क्योंकि जानते हो - यह सब अपना ही परिवार है। आपके ब्रदर्स है ना? अपने परिवार को खाली देख रह नहीं सकते हैं। ऐसा रहम आता है? क्योंकि जैसा बाप, वैसे बच्चे।

 

  तो सदैव यह चेक करो कि मैंने मर्सीफुल बाप का बच्चा बन कितनी आत्माओंपर रहम किया है? सिर्फ वाणी से नहीं, मन्सा अपनी वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा भी आत्माओंको बाप द्वारा मिली हुई शक्तियां दे सके। तो मन्सा सेवा करने आती है? जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है तो तीव्र गति से सेवा करो। जितना स्वयं को सेवा में बिजी रखेंगे उतना स्वयं सहज मायाजीत बन जायेंगे। क्योंकि औरों को मायाजीत बनाने से उन आत्माओंकी दुवाएं आपको और सहज आगे बढ़ाती रहेगी।

 

  मायाजीत बनना सहज लगता है या कठिन? आप जब कमजोर बन जाते हैं तब माया शक्तिशाली बनती है। आप कमजोर नहीं बनो। बाबा तो सदैव चाहते हैं कि हर एक बच्चा मायाजीत बनें। तो जिससे प्यार होता है, वो जो चाहता है, वही किया जाता है। बाप से तो प्यार है ना? तो करो। जब यह याद रहेगा कि बाप मेरे से यही चाहता है तो स्वत: ही शक्तिशाली हो जायेंगे और मायाजीत बन जायेगे। माया आती तब है, जब कमजोर बनते हो। इसलिए सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बनो। मास्टर सर्वशक्तिवान बनने की विधि है - चलते-फिरते याद की शक्ति और सेवा की शक्ति देने में बिजी रहो। बिजी रहना अर्थात् मायाजीत रहना। रोज अपने मन का टाइमटेबुल बनाओ। मन बिजी होगा तो मनजीत मायाजीत हो ही जायेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  स्वयं को अशरीरी आत्मा अनुभव करते हो? इस शरीर द्वारा जो चाहे वही कर्म कराने वाली तुम शक्तिशाली आत्मा हो - ऐसा अनुभव करते हो? इस शरिर के मालिक कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाले, इन कर्मेन्द्रियों से जब चाहो तब न्यारे स्वरूप की स्थिति में स्थित हो सकते हो?

 

✧  अर्थात राजयोग की सिद्धि - कर्मेन्द्रियों के राजा बनने की शक्ति प्राप्त की है? राजा वा मालिक कभी भी कोई कर्मेन्द्रियों के वशीभूत नहीं हो सकता। वशीभूत होने वाले को मालिक नहीं कहा जाता।

 

✧  विश्व के मालिक की सन्तान होने के नाते, जब बाप विश्व का मालिक हो और बच्चे अपनी कर्मेन्द्रियों के मालिक न हो, तो क्या कहेंगे? मालिक के बालक कहेंगे?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ एक सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकण्ड के खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सको। अन्तिम पेपर सेकण्ड का ही होगा जो इस सेकण्ड के पेपर में पास हुआ वही पास-विद्-ऑनर होगा। अगर एक सेकण्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। कण्ट्रोलिंग पावर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे। समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकण्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकण्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही है वण्डरफुल खेल।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप समान रहमदिल बनना"

➳ _ ➳ अपने दुःख भरे अतीत की तुलना में, सुंदर सजीले वर्तमान को देख... जब स्वयं निराकार भगवान ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को... अपना बना... मेरे जीवन को सुन्दर... रंग-बिरंगे रंगों से श्रृंगारित कर दिया... प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में रंगकर, मुझ आत्मा को शिखर पर सजा दिया... ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर गुणों... और शक्तियों की पंखुड़ियों से खिली मैं आत्मा... समस्त विश्व को अपनी रूहानियत की खुशबू से सराबोर कर रही हूँ...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य के नशे में डुबाते हुए कहा :- "मेरे प्यारे फूल बच्चे... स्वयं भगवान ने परमधाम से आकर, आप महान बच्चों को अपनी आँखों का तारा बनाया है... दुःख भरी जिंदगी से बाहर निकाल, सुख भरी गोद में बिठाया है... आप बच्चे निराकार और साकार पिता की अनूठी पालना में पलने वाले पद्मापद्म सौभाग्यशाली बच्चे हो... सदा इसी नशे में रहना... क्योंकि ऐसा प्यारा भाग्य तो देवताओं का भी नहीं है..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा ईश्वरीय पालना में सजे संवरे अपने महान भाग्य को देख पुलकित होते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा ने... आप... स्वंय भाग्यविधाता बाप को पा लिया, इससे अच्छी बात और क्या होगी... आपने मेरे कौड़ी जैसे जीवन को, हीरे जैसा... बेशकीमती बना दिया है... मैं आत्मा असीम सुखों की अनुभूतियों से भर गई हूँ... अलौकिक और पारलौकिक पिता को पाने वाली... मैं आत्मा देवताओं से भी ज्यादा भाग्यशाली हूँ..."

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की भावनाओं से सजाते हुए कहा :- "मीठे लाडले बच्चे... आप बच्चे बाप के मददगार हो... तुम पहले अपने पर रहम करो... फिर सभी आत्माओं के... विकारों रूपी गन्दगी को निकालने की सेवा करो... प्यारे पिता को पाकर, जो सच्चे अहसासों को आपने जिया है... उनकी अनुभूति हर दिल को कराओ... सबके जीवन में आप समान खुशियों की बहारों को सजाओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा मीठे बाबा से अमूल्य ज्ञान रत्नों को पाकर समस्त विश्व में इस ज्ञान धन की दौलत लुटाकर कहती हूँ :- "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे पायी इस अथाह ज्ञान सम्पदा की अपनी बाँहो में भरकर, हर दिल को आपकी ओर आकर्षित कर रही हूँ... मैं आत्मा... आपकी श्रीमत पर चल... आप सच्चे साथी को साथ रख... हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना... रहम की भावना रख, उनके प्रति सुख, शांति, प्रेम की किरणें फैला रही हूँ...

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में शुभ संकल्पों के संस्कारों को पक्का कराते हुए कहा :-"मेरे मीठे मीठे अथक सेवाधारी बच्चे... हर आत्मा के प्रति सदा शुभ भावना रख... मास्टर रहम का सागर बन... अपना बनाओ... किसी भी आत्मा के प्रति नफरत की भावना नहीं रखो... बल्कि उनके भी सोये भाग्य को जगाकर, खुशियों के दामन से सजाओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा के प्यार पर दिल से न्योछावर होकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... आपने शुभ संकल्पों और शुभ भावना का जादू मुझे सिखाकर, मेरा जीवन कितना निराला और अनोखा कर दिया है... मैं आत्मा शुभ भावना से भरकर, प्यारे और मीठे जीवन को सहज ही पा गयी हूँ... आपसे पाये असीम प्यार की तरंगे... पूरे विश्व पर बिखेरने वाली विश्व कल्याणकारी बन गयी हूँ... मीठे बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा... साकार वतन में लौट आयी..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप समान रहम दिल बनना है"

➳ _ ➳ एकांत में बैठी अपने ब्राह्मण जीवन की अमूल्य प्राप्तियों के बारे में विचार करते हुए, दया के सागर अपने प्यारे परम पिता परमात्मा का मैं दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने मुझे मेरे घर का रास्ता बता कर भटकने से बचा लिया। जिस भगवान को पाने के लिए मैं कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी, किस - किस से उनका पता नही पूछ रही थी, किन्तु कोई भी मुझे उनका पता नही बता पाया। मेरे उस भगवान बाप ने स्वयं आ कर न केवल मुझे मेरा और अपना परिचय ही दिया बल्कि अपने उस घर का भी पता बता दिया जहां अथाह शांति का अखुट भण्डार है।

➳ _ ➳ जिस शान्ति की तलाश में मैं भटक रही थी, अपने उस शान्ति धाम घर में जाने का रास्ता बता कर, उस गहन शान्ति का अनुभव करवाकर मेरे पिता परमात्मा ने सदा के लिए मेरी उस भटकन को समाप्त कर दिया। दिल से अपने प्यारे भगवान का कोटि - कोटि धन्यवाद करती हुई मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करती हूँ कि जैसे दया के सागर मेरे बाबा ने मुझे भटकने से छुड़ाया है ऐसे ही मुझे भी उनके समान रहमदिल बनकर भटकने वाले अपने आत्मा भाइयो को घर का रास्ता बता कर उन्हें दर - दर की ठोकरें खाने से बचाना है।

➳ _ ➳ अपने भगवान बाप की सहयोगी बन उनके इस कार्य को सम्पन्न करना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य और कर्तव्य है। इस लक्ष्य को पाने और इस कर्तव्य को पूरा करने का संकल्प लेकर मैं घर से निकलती हूँ और एक पार्क में पहुँचती हूँ जहाँ लोगों की बहुत भीड़ है। यहाँ पहुँच कर अपने प्यारे पिता परमात्मा का मैं आह्वान करती हूँ और स्वयं को अपने प्यारे बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हुए वहां उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को परमात्म सन्देश देने का कर्तव्य पूरा कर, परमात्म याद में मगन हो कर बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳ मन बुद्धि का कनेक्शन अपने प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही उनकी शक्तियों का तेज प्रवाह मेरे ऊपर होने लगता है और मेरे चारों तरफ शक्तियों का एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित होने लगता है। मैं देख रही हूँ मेरे चारों और शक्तियों का एक सुंदर आभामंडल निर्मित होकर दूर - दूर तक फैलता जा रहा है। शक्तियों के वायब्रेशन वहां उपस्थित सभी आत्माओं तक पहुंच कर उन्हें आनन्द से भरपूर कर रहें हैं। सर्वशक्तियों के दिव्य कार्ब के साथ मैं आत्मा अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर उड़ रही हूँ। मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे चारों और निर्मित दिव्य कार्ब वहाँ उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को आकर्षित कर उन्हें ऊपर खींच रहा है और सभी निराकारी आत्मायें बन मेरे साथ ऊपर अपने निजधाम, शिव पिता के पास जा रही हैं।

➳ _ ➳ मच्छरों सदृश चमकती हुई मणियों का झुंड, अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे असीम आनन्द और सुख की अनुभूति करता हुआ साकार लोक को पार कर, सूक्ष्म वतन से होता हुआ पहुँच गया अपने घर परमधाम। सामने महाज्योति
शिव पिता परमात्मा और उनके सामने उपस्थित असंख्य चमकते हुए सितारे बहुत ही शोभायमान लग रहे हैं। अपने सभी आत्मा भाइयों को अपने घर पहुँच कर अपने पिता परमात्मा से मंगल मिलन मनाते देख मैं बहुत हर्षित हो रही हूँ। बिंदु बाप अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में अपने सभी बिंदु बच्चों को समाकर उन पर अपने असीम स्नेह की वर्षा कर रहें हैं।

➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा का असीम दुलार पाकर और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर, अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ने की जन्म - जन्म की प्यास बुझाकर, तृप्त होकर अब सभी आत्माये वापिस लौट रही है और साकारी दुनिया मे आ कर फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हैं। मैं भी वापिस अपने साकारी तन में प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्तिथ हो जाती हूँ। अपने पिता परमात्मा से मिलन मनाने का सुख सभी के चेहरे से स्पष्ट दिखाई दे रहा हैं। सभी के चेहरों की दिव्य मुस्कराहट बयां कर रही है कि "पाना था सो पा लिया अब और बाकी क्या रहा"।

➳ _ ➳ अपने सभी आत्मा भाइयों को घर का रास्ता बताने और उन्हें सदा के लिए भटकने से छुड़ाने के अपने कर्तव्य को पूरा कर, अब मैं वापिस शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं परमपूज्य बन परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त करने वाली सम्पूर्ण स्वच्छ आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं ज्ञान के खजाने को स्वयं में धारण कर हर समय, हर कर्म समझ से करने वाली ज्ञानी-तू आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ जैसे घर में घर की सामग्री (सामान) होती है,ऐसे इस देह रूपी घर में भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ ही सामग्री हैं। तो घर का त्याग अर्थात् सर्व का त्याग। घर को छोड़ा लेकिन कोई एक चीज में ममता रह गई तो उसको त्याग कहेंगे? ऐसे कोई भी कर्मेन्द्रिय अगर अपने तरफ आकर्षित करती है तो क्या उसको सम्पूर्ण त्याग कहेंगे?इसी प्रकार अपनी चेकिंग करो। ऐसे अलबेले नहीं बनना कि और तो सब छोड़ दिया बाकी कोई एक कर्मेन्द्रिय विचलित होती है वह भी समय पर ठीक हो जायेगी। लेकिन कोई एक कर्मेन्द्रिय की आकर्षण भी एक बाप का बनने नहीं देगी। एकरस स्थिति में स्थित होने नहीं देगी। नम्बरवन में जाने नहीं देगी। अगर कोई हीरेजवाहर,महल-माड़िया छोड़ दे और सिर्फ कोई मिट्टी के फूटे हुए बर्तन में भी मोह रह जाए तो क्या होगा? जैसे हीरा अपनी तरफ आकर्षित करता वैसे हीरे से भी ज्यादा वह फूटा हुआ बर्तन उसको अपनी तरफ बार-बार आकर्षित करेगा। न चाहते भी बुद्धि बार-बार वहाँ भटकती रहेगी। ऐसे अगर कोई भी कर्मेन्द्रिय की आकर्षण रही हुई है तो श्रेष्ठ पद पाने से बार-बार नीचे ले आयेगी। तो पुराने घर और पुरानी सामग्री सबका त्याग चाहिए। ऐसे नहीं समझो यह तो बहुत थोड़ा है, लेकिन यह थोड़ा भी बहुत कुछ गंवाने वाला है, सम्पूर्ण त्याग चाहिए।

✺ "ड्रिल :- अपनी चेकिंग करना कि कोई भी एक कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं कर पायी”

➳ _ ➳ मैं आत्मा सेन्टर जाने के लिए घर की सीढियां उतरती हूँ... आखिरी सीढ़ी पर कदम रखते ही मेरी आँखों के सामने सृष्टि चक्र की सीढ़ी का चित्र याद आ जाता है... मैं आत्मा अपने पिता से बिछुड़कर पार्ट बजाने इस सृष्टि में आई और सीढ़ी उतरते-उतरते इस कलियुगी सृष्टि के आखिरी पायदान पर पहुँच गई... मैं आत्मा पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे पहली सीढ़ी पर बाबा खड़े मुस्कुरा रहे हैं... फिर बाबा मेरे पास नीचे आते हैं... मैं आत्मा बाबा का हाथ पकड सेन्टर पहुँच जाती हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मुझे मुरली सुनाकर कहते हैं बच्चे- आधे कल्प से तुम इस देह रूपी घर को ही अपना समझ बैठे थे... देह रूपी घर में भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ ही सामग्री हैं... अपनी चेकिंग कर सभी कर्मेन्द्रियों की कचहरी लगाओ कि कोई भी कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करती है? अगर एक भी कर्मेन्द्रिय आकर्षित करती है तो उसको सम्पूर्ण त्याग नहीं कहेंगे... इसमें अलबेले नहीं बनो...

➳ _ ➳ कोई एक कर्मेन्द्रिय का भी आकर्षण होगा तो बुद्धि बार-बार वहाँ भटकती रहेगी... एक बाप का बनने नहीं देगी... एकरस स्थिति में स्थित होने नहीं देगी... नम्बरवन में जाने नहीं देगी... श्रेष्ठ पद पाने से वंचित रह जाओगे... कर्मेन्द्रिय का आकर्षण नीचे की ओर खींचेगा ऊपर उड़ने नहीं देगा... पुराने देह रूपी घर और पुराने कर्मेन्द्रियों रूपी सामग्री सबका त्याग कर सम्पूर्ण त्यागी बनो...

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ, एक-एक कर्मेन्द्रिय की कचहरी लगाती हूँ... क्या मेरे मन-बुद्धि में किसी भी तरह के व्यर्थ संकल्प तो नहीं चलते हैं... क्या मैं आत्मा पुराने स्वभाव-संस्कार वश आलस्य, अलबेलेपन में तो नहीं आती हूँ... क्या मैं अमृतवेले न उठकर मायावी नींद में अपना अमूल्य समय तो नही गंवाती हूँ... क्या मेरी आँखें इस पुरानी विनाशी दुनिया के आकर्षण में तो नहीं...

➳ _ ➳ क्या मेरे कान इधर-उधर की व्यर्थ नकारात्मक बातों को सुनने में तो मजा नहीं ले रहे... क्या मेरी जिव्हा अशुद्ध भोजन का रस तो नहीं ले रही... क्या मेरे हाथ कोई ऐसे कार्य तो नहीं कर रहे जिससे विकर्म बने... क्या मेरे कदम सदा फालो फादर करते हैं... क्या मैं आत्मा अपने कर्मेन्द्रियों के आकर्षण में आकर बाबा की श्रीमत का उल्लंघन तो नहीं करती हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में बैठकर दिव्य शक्तिशाली किरणों को अपने में ग्रहण करती हूँ... तेजस्वी किरणों में नहाकर मैं आत्मा अपने सभी कमी-कमजोरियों को समाप्त कर रही हूँ... एक-एक कमजोरी को अंश सहित बाबा की ज्वालामुखी किरणों में भस्म कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सर्व कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त होकर कर्मेन्द्रियजीत बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सम्पूर्ण त्याग कर श्रेष्ठ पद पाने की अधिकारी बन गई हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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