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 24 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ चलते फिरते एक बाप की याद में रहे ?

 

➢➢ "अभी घर जाना है" - यह बुधी में रहा ?

 

➢➢ स्वार्थ से न्यारे और समबंधो में प्यारे बन सेवा की ?

 

➢➢ शुभ व श्रेष्ठ भावना द्वारा नेगेटिव सीन क भी पॉजिटिव में परिवर्तित किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा रफ माल को भी बहुत सुन्दर रूप में बदल देते हैं। तो आपकी श्रेष्ठ वृत्ति निगेटिव अथवा व्यर्थ को पॉजिटिव में बदल दे। आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकण्ड में परिवर्तन हो जाये।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं खुशनसीब आत्मा हूँ"

 

  सभी अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? जो खुशनसीब आत्मायें हैं उनके मन में सदा खुशी के गीत बजते हैं। 'वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!'-यह गीत बजता है ना। यह खुशी का गीत गाना तो सभी को आता है ना। चाहे बूढ़ा हो, चाहे बच्चा हो, चाहे जवान हो-सभी गाते हैं।

 

  और मन में है ही क्या जो चले। यही खुशी के गीत बजेंगे ना। और सब बातें खत्म हो गई। बस, बाप और मैं, तीसरा न कोई। जब ऐसी स्थिति बन जाती है तब खुशी के गीत बजते हैं-'वाह बाबा वाह, वाह मेरा भाग्य वाह!' वैसे भी गाया हुआ है-'खुशी' सबसे बड़ी खुराक है, खुशी जैसी और कोई खुराक नहीं। जो खुशी की खुराक खाने वाले हैं वो सदा तन्दरुस्त रहेंगे, हेल्दी रहेंगे, कभी कमजोर नहीं होंगे।

 

  जो अच्छी खुराक खाते हैं वो शरीर से कमजोर नहीं होते हैं। खुशी है मन की खुराक। मन कभी कमजोर नहीं होगा, सदा शक्तिशाली। मन और बुद्धि सदा शक्तिशाली हैं तो स्थिति शक्तिशाली होगी। ऐसी शक्तिशाली स्थिति वाले सदा ही अचल-अडोल रहेंगे। तो खुशी की खुराक खाते हो? या कभी खाते हो, कभी भूल जाते हो? ऐसे होता है ना। शरीर के लिए भी ताकत की चीजें देते हैं तो कभी खाते हैं, कभी भूल जाते हैं। यह खुराक किस समय खाते हो? कभी खाओ, कभी न खाओ-ऐसे तो नहीं है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आवाज में आने के लिए वा आवाज को सुनने के लिए कितने साधन अपनाते हो? बापदादा को भी आवाज में आने के लिए शरीर के साधन को अपनाना पडता है। लेकिन आवाज से परे जाने के लिए इस साधनों की दुनिया से पार जाना पडे।

 

✧  साधन इस साकार दुनिया में है। बापदादा के सूक्ष्म वतन वा मूल वतन में कोई साधनों की आवश्यकता नहीं है। सेवा के अर्थ आवाज में आने के लिए कितने साधन अपनाते हो? लेकिन आवाज से परे स्थिति में स्थित होने के अभ्यासी सेकण्ड में इन सब से पार हो जाते है। ऐसे अभ्यासी बने हो?

 

✧  अभी-अभी आवाज में आये, अभी-अभी आवाज से परे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर अपने में अनुभव करते हो? संकल्प शक्ति को भी, जब चाहे तब संकल्प में आओ, विस्तार में आओ, जब चाहो तब विस्तार को फुल स्टॉप में समा दो। स्टार्ट करने की और स्टॉप करने की - दोनों ही शक्तियाँ समान रूप में हैं?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ ऐसे फ़रिश्ते - जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  बाप की याद से दैवीय गुण धारण करना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी ज्योति को जगाया... दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...

❉  प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... यह यादे ही आनन्द का दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार लाएंगी..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से सज कर निखरती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."

❉  मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो जाओ... दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... यह रोम रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ... और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."

❉  मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ... और विकारो से मुक्त होकर अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- ऐसा कोई कर्तव्य नही करना है जिससे बाप की निंदा हो"

➳ _ ➳  एक खुले स्थान पर, ठन्डी हवाओ का आनन्द लेती अपने खुदा दोस्त को अपने साथ अनुभव करती मैं अपने खुदा दोस्त का शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा मेरे जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना दिया। अपने ऐसे खुदा दोस्त, भगवान बाप को मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनकी निंदा कराने वाला कोई भी कर्म मैं कभी भी नही करूँगी। हर कदम उनकी श्रेष्ठ मत पर चलते हुए, उनके हर फरमान का पालन करते अपने श्रेष्ठ संकल्प, बोल और कर्म द्वारा उनका नाम बाला करूँगी।

➳ _ ➳  मन ही मन अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर पालना के झूले में स्वयं को झूलते हुए अनुभव करती मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में बाबा मेरे सहयोगी बन, मुझ में अपनी शक्तियाँ प्रवाहित कर, मुझे आप समान बलशाली बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं। परमधाम से अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की मीठी फ़ुहारों को अपने ऊपर गिरते हुए मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। ये रंग बिरंगी मीठी फुहारे मेरे अन्तर्मन को छू कर मुझे देह से न्यारी एक अति प्यारी अवस्था का अनुभव करवा रही हैं।

➳ _ ➳  इस न्यारी और प्यारी अवस्था मे मैं स्वयं को मस्तक के बीचों - बीच चमकते हुए एक अति सूक्ष्म गोल्डन स्टार के रूप में देख रही हूँ जिसकी रंग बिरंगी किरणों का प्रकाश चारों और फैलकर मन को बहुत ही सुखद अनुभूति करवा रहा है। इस प्रकाश में मुझ आत्मा के सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का मिश्रण समाया है जो मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करवा कर बहुत ही शक्तिशाली स्थिति में स्थित कर रहा है। स्वयं में से निकल रहे इस खूबसूरत प्रकाश को देखते और गहन आनन्द की अनुभूति करते - करते मैं गोल्डन स्टार अपनी रंग बिरंगी किरणो को फैलाता हुआ अब चमकते चैतन्य सितारों की उस गोल्डन दुनिया मे जा रहा हूँ जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं।

➳ _ ➳  अपने पिता के प्रेम की लग्न में मग्न, मैं जगमग करती ज्योति धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे ऊपर फरिश्तो की दुनिया को पार कर, अनन्त ज्योति के देश, अपने परमधाम घर मे प्रवेश कर जाती हूँ। सामने महाज्योति मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणो को फैलाये ऐसे लग रहे है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भरने के लिए व्याकुल हो रहें हैं। बिना कोई विलम्ब किये मैं चमकती हुई चैतन्य ज्योति अपने महाज्योति शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ।

➳ _ ➳  मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं। सर्वशक्तिवान मेरे प्यारे मीठे बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर बरसाते हुए अपनी सर्वशक्तियों से मुझे बलशाली बनाने के लिए अपनी लाइट माइट को फुल फोर्स के साथ मुझ में प्रवाहित करने लगते हैं। अपने प्यारे पिता की लाइट माइट पाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, अपने संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर, अपने प्यारे पिता का नाम बाला करने के लिए अब मैं साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ।

➳ _ ➳  अपने साकार तन का आधार लेकर, ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर अब मैं हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रहकर कर रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर पूरा अटेंशन देते हुए मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि देह भान में आकर, मेरे मन मे कोई भी गलत संकल्प भी कभी उतपन्न ना हो, मेरे मुख से कभी भी, कोई भी ऐसा बोल ना निकले जो किसी को आहत करे या ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जाये जो किसी को तकलीफ पहुँचे और मेरे प्यारे पिता की निंदा का कारण बनें। इसलिये इन सभी बातों पर पूरा अटेंशन दे, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं स्वार्थ से न्यारी और संबंधों में प्यारी बन सेवा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं अपने शुभ वा श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा निगेटिव सीन को भी पॉज़िटिव में बदलने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अच्छा - बाकी एक बारी मिलने का रहा हुआ है। वैसे तो साकार द्वारा मिलन मेले काइस रूपरेखा से मिलने का आज अन्तिम समय है। प्रोग्राम प्रमाण तो आज साकार मेले का समाप्ति समारोह है फिर तो आगे की बात आगे देखेंगे। एकस्ट्रा एक बाप का चुगा भी मिल जायेगा। लेकिन इस सारे मिलन मेले का स्व प्रति सार क्या लियासिर्फ सुना वा समाकर स्वरूप में लायाइस मिलन मेले की सीजन विशेष किस सीजन को लायेगी? इस सीजन का फल क्या निकलेगा? सीजन के फल का महत्व होता है ना! तो इस सीजन का फल क्या निकला! बापदादा मिला यह तो हुआ लेकिन मिलना अर्थात् समान बनना। तो सदा बाप समान बनने के दृढ़ संकल्प का फल बापदादा को दिखायेंगे ना! ऐसा फल तैयार किया है? अपने को तैयार किया हैवा अभी सिर्फ सुना हैबाकी तैयार होना हैसिर्फ मिलन मनाना है वा बनना है

 

 _ ➳  जैसे मिलन मनाने के लिए बहुत उमंग-उत्साह से भाग-भाग कर पहुँचते हो वैसे बनने के लिए भी उड़ान उड़ रहे होआने जाने के साधनों में तकलीफ भी लेते हो। लेकिन उड़ती कला में जाने के लिए कोई मेहनत नहीं है। जो हद की डालियाँ बनाकर डालियों को पकड़ बैठ गये होअभी हे उड़ते पंछीडालियों को छोड़ो। सोने की डाली को भी छोड़ो। सीता को सोने के हिरण ने शोक वाटिका में भेजा। यह मेरा मेरा हैमेरा नाममेरा मान, मेरा शानमेरा सेन्टर यह सब - सोने की डालियाँ हैं। बेहद का अधिकार छोड़हद के अधिकार लेने में आ जाते हो। मेरा अधिकार यह हैयह मेरा काम है - इस सबसे उड़ते पंछी बनो। इन हद के आधारों को छोड़ो। तोते तो नहीं हो ना जो चिल्लाते रहो कि छुड़ाओ। छोड़ते खुद नहीं और चिल्लाते हैं कि छुड़ाओ। तो ऐसे तोते नहीं बनना। छोड़ो और उड़ो। छोड़ेंगे तो छूटेगें ना! बापदादा ने पंख दे दिये हैं - पंखो का काम है उड़ना वा बैठनातो उड़ते पंछी बनो अर्थात् उड़ती कला में सदा उड़ते रहो। समझा - इसको कहा जाता है सीजन का फल देना।

 

✺   "ड्रिल :- सोने की डालियों को छोड़ उड़ता पंछी स्थिति का अनुभव करना।

 

 _ ➳  सफेद चमकीली ड्रेस पहने हुए मैं आत्मा अपने आप को देख रही हूं... और बाबा से पवित्रता की किरणें लेकर अपनी ड्रेस को और भी चमकीली अनुभव कर रही हूं... जैसे जैसे मैं अपनी सफेद चमकीली पोशाक को और भी चमकीला अनुभव करती हूं... वैसे वैसे मैं देखती हूं कि बाबा ने मुझे तो उड़ने के लिए पंख भी लगा दिए हैं... जो मुझे इस दुनिया से ऊपर की और उड़ा कर ले जाएंगे... और मैं अपने आपको इस हलचल भरी संकल्पों की इस दुनिया से दूर परमधाम में अनुभव करती हूँ... जैसे ही मैं वह पंख धारण करती हूं... मैं आकाश में उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते अपने आपको बहुत ही हल्के पक्षी के पंख के रूप में अनुभव करती हूं...

 

 _ ➳  और  इस हल्केपन की स्थिति को फील करते हुए... मैं अपने आप को एक मायावी पेड़ की शाखा पर अनुभव करती हूँ... तभी मैं सोचती हूं कि यह मायावी पेड़ जो मुझे आकर्षित कर रहा है... यह मुझे उड़ने से रोक रहा है... परंतु मैं इस पेड़ की शाखा में अपने आप को नहीं फंसने दूंगी... और अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उड़ने का प्रयास करुंगी... इतना संकल्प कर मैं फरिश्ते समान चमकीली ड्रेस पहनकर फिर से खुले वातावरण में और खुले आसमान में उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते सफेद पोशाक में मैं मधुबन बाबा मिलन में आकर बैठ जाती हूं... और अपने आप को बापदादा के सामने अनुभव करती हूँ... बापदादा मुझे अपनी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं... और मैं बापदादा द्वारा दी हुई दृष्टि को अपने अंदर समाती जा रही हूं...

 

 _ ➳  और उस दौरान मुझे यह आभास होता है कि... मानो बाबा मुझे कह रहे हो कि... आज तुम यहां से अपने आप को पके हुए फल की भांति समझकर जाओ... क्योंकि सभी पके हुए फल ही पसंद करते हैं... अर्थात यहां से सभी शक्तियों से परिपूर्ण होकर जाओ... ताकि तुम अपनी शक्तियों से सभी आत्माओं को तृप्त कर सको... और इस रूहानी मिलन का असल फल प्राप्त कर सको... मेरे मन में जैसे ही यह संकल्प उत्पन्न होता है... मेरा मन अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता है... और मैं अपने आपको शक्तियों से भरे हुए फल के समान अनुभव करती हूं... जो सभी शक्तियों रुपी मिठास प्राप्त किए हुए हैं... और अपने मन में यह भाव लेकर अपने अगले संकल्प की ओर प्रस्थान करती हूं... और अगला भाव जो मेरी मन बुद्धि में आता है... कि मेरेपन की भावना को समाप्त करते हुए मुझे निमित्त भाव से हर कर्म करना है...

 

 _ ➳  अब मैं अपने आपको इन रुहानी संकल्पों से परिपूर्ण करके फिर से उड़ जाती हूं... नीले आसमान में... और स्वतंत्र अवस्था में मैं अपने इन शुद्ध संकल्पों का इस सृष्टि पर रहने वाली आत्माओं पर उपयोग कर रही हूं... मैं उन्हें इन पवित्र संकल्पों के द्वारा उनके पुराने आसुरी संस्कारों को समाप्त करने का प्रयास कर रही हूं... और उन सभी आत्माओं को हंसते खिलखिलाते हुए देख रही हूं... जो पहले मेरेपन की बीमारी से पीड़ित थे... वह अब निमित्त भाव में रहकर खुशनुमा जीवन जी रहे हैं... अब मैं एक सफेद रंग की इस ड्रेस को गहराई से फील करते हुए... और इस हल्केपन की स्थिति को अनुभव करते हुए... धीरे-धीरे इस धरा पर आने का प्रयत्न करती हूं... और मेरे रास्ते में आती हुई हर छोटी बड़ी चीज को शांति की वाइब्रेशन देती जा रही हूं... हर चीज पवित्र होती जा रही है... और मेरी मन बुद्धि भी एकदम शांत अवस्था में इस भाव को अनुभव कर रहे हैं...

 

 _ ➳  और अब मैं जैसे-जैसे नीचे आती हूं... मुझे वह सभी पेड़ पौधे और शाखाएं दिखाई देती है... परंतु अब वह मुझे सोने के पिंजरे रूपी बेड़ियां दिखाई देती है... मैं उनकी सुंदरता को बस दूर से निहार कर आगे बढ़ जाती हूं... और प्रकृति को पवित्र वाइब्रेशन देती हुई नीचे की तरफ आती जा रही हूं... अपने आप को इस अवस्था में पाकर, मैं आत्मिक स्थिति से अपने आप को बहुत ही गहराई से अनुभव करती हूँ... इस स्थिति को पूर्ण रूप से समझ कर अब जब भी आसमान में उड़ता परिंदा देखती हूं... तो अपने आप को इसी अवस्था में फील करती हूं... और परमात्मा का बार-बार इस स्थिति के लिए धन्यवाद करती हूं... और फिर से अपने आपको स्वतन्त्र परिंदे रूपी फरिश्ते समान स्थिति में अनुभव करती हूं... और उड़ जाती हूँ प्रभु मिलन की चाह में...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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