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❍ 02 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान की आपस में रूहरिहान कर फिर दूसरों को समझाया ?*
➢➢ *देहि अभिमानी बन बड़े हुल्लास से बाप को याद किया ?*
➢➢ *मन बुधी द्वारा श्रेष्ठ स्थितियों रुपी आसन पर स्थित रहे ?*
➢➢ *प्रेम की भरपूर गंगा बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *वह आत्म-ज्ञानी भी जिस्मानी, अल्पकाल की तपस्या से अल्पकाल की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। आप रूहानी तपस्वी परमात्म ज्ञानी हो, तो आपका संकल्प आपको विजयी रत्न बना देगा।* अनेक प्रकार के विघ्न ऐसे समाप्त हो जायेंगे जैसे कुछ था ही नहीं। माया के विघ्नों का नाम-निशान भी नहीं रहेगा।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं राजऋषि हूँ"*
〰✧ अपने को राजऋषि, श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *राजऋषि अर्थात् राज्य होते हुए भी ऋषि अर्थात् सदा बेहद के वैरागी। स्थूल देश का राज्य नहीं है लेकिन स्व का राज्य है। स्व-राज्य करते हुए बेहद के वैरागी भी हो, तपस्वी भी हो क्योंकि जानते हो पुरानी दुनिया में है ही क्या।*
〰✧ *वैराग अर्थात् लगाव न हो। अगर लगाव होता है तो बुद्धि का झुकाव होता है। जिस तरफ लगाव होगा, बुद्धि उसी तरफ जायेगी। इसलिए राजऋषि हो, राजे भी हो और साथ-साथ बेहद के वैरागी भी हो। ऋषि तपस्वी होते हैं। किसी भी आकर्षण में आकर्षित नहीं होने वाले।* स्वराज्य के आगे यह हद की आकर्षण क्या है? कुछ भी नहीं। तो अपनेको क्या समझते हो? राजऋषि। किसी भी प्रकार का लगाव ऋषि बनने नहीं देगा, तपस्वी बन नहीं सकेंगे। तपस्या में ‘लगाव’ ही विघ्न-रूप बन कर आता है। तपस्या भंग हो जाती है।
〰✧ लेकिन जो बाप की लग्न में रहते हैं, वह लगाव में नहीं रहते, उसको सब सहज प्राप्त होता है। ब्राह्मण जीवन में 10 रूपया भी 100 बन जाता है। इतना धन में वृद्धि हो जाती है! प्रगति पड़ने से 10,100 का काम करता है, वहाँ 100,10 का काम करेगा। *क्योंकि अभी एकानामी के अवतार हो गये ना। व्यर्थ बच गया और समर्थ पैसा, ताकत वाला पैसा है। काला पैसा नहीं है, सफेद है, इसलिए शक्ति है। तो राजऋषि आत्मायें हैं - इस वरदान को सदा याद रखना। कहा लगाव में नहीं फँस जाना। न फँसो, न निकलने की मेहनत करो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ लास्ट पढाई का कौन -सा पाठ है और फर्स्ट पाठ कौन - सा है? फर्स्ट पाठ और लास्ट पाठ यही अभ्यास है। जैसे बच्चे का लौकिक जन्म होता है तो पहले - पहले उनको एक शब्द दिलाया जाता है वा सिखलाया जाता है ना। यहाँ भी अलौकिक जन्म लेते पहला शब्द क्या सीखा? बाप को याद करो। *तो जन्म का पहला शब्द लौकिक का भी, अलौकिक का भी वही याद रखना है।* यह मुश्किल हो सकता है क्या?
〰✧ अपने आपको ड्रिल करने का अभ्यास नहीं डालते हो। यह है बुद्धि की ड्रिल। *ड्रिल के अभ्यासी जो होते हैं तो पहले - पहले दर्द भी बहुत महसूस होता है और मुश्किल लगता है लेकिन जो अभ्यासी बन जाते हैं वह फिर ड्रिल करने के सिवाए रह नहीं सकते।* तो यह भी बुद्धि की ड्रिल करने का अभ्यास कम होने कारण पहले मुश्किल लगता है। फिर माथा भारी रहने का वा कोई न कोई विघ्न सामने बन आने का अनुभव होता रहता है।
〰✧ तो ऐसे अभ्यासी बनना ही है। इसके सिवाए राज्य - भाग्य के प्राप्ति होना मुश्किल है। जिन्हों को यह अभ्यास मुश्किल लगता है तो प्राप्ति भी मुश्किल है। इसलिए इस मुख्य अभ्यास को सहज और निरंतर बनाओ। *ऐसे अभ्यासी अनेक आत्माओं को साक्षात्कार कराने वाले साक्षात बापदादा दिखाई दे।* जैसे वाणी में आना कितना सहज है। वैसे यह वाणी से परे जान भी इतना सहज होना है। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसी महीनता और महानता की स्टेज अपनाई हैं? हलचल थी या अचल थे? *फाईनल पेपर में चारों ओर की हलचल होगी। एक तरफ वायुमण्डल व वातावरण की हलचल। दूसरी तरफ व्यक्तियों की हलचल। तीसरी तरफ सर्व सम्बन्धों में हलचल और चौथी तरफ आवश्यक साधनों की अप्राप्ति की हलचल ऐसे चारों तरफ की हलचल के बीच अचल रहना, यही फाईनल पेपर होना है।* किसी भी आधार द्वारा अधिकारीपन की स्टेज पर स्थित रहना - ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर के समय सफलता-मूर्त बनने नही देगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आत्म-अभिमानी बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठ आत्मचिंतन करती हूँ... मैं एक चैतन्य ज्योतिपुंज हूँ... जो इस शरीर में विराजमान होकर पार्ट बजा रही हूँ...* ना ये तन मेरा है, ना ये धन मेरा है, ना कोई वस्तु-वैभव मेरे हैं... ना ये संसार मेरा है... मेरे तो एक शिवबाबा हैं... और मेरा घर परमधाम है... *मैं तो एक अशरीरी आत्मा हूँ... चिंतन करते-करते मैं आत्मा इस देह और इस देह की दुनिया से निकलकर पहुँच जाती हूँ आकारी वतन में बापदादा के पास...*
❉ *प्यारे मीठे बाबा सत्य स्वरुप के ज्ञान की सच्चाई से मेरे जीवन को रोशन करते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *स्वयं को देह समझ और देहधारियों से दिल लगाकर दुखो के घने जंगल में भटक गए... अब ईश्वर पिता से सत्य को जान अपने ज्योति स्वरूप के भान में खो जाओ...* अपनी निराकारी सत्यता को हर साँस संकल्प में जीकर... सुनहरे सुखो के अधिकारी बन सदा का मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *शरीर के भान से मुक्त होकर खुशियों के आसमान में जगमगाती मैं आत्मा सितारा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा शरीर नही खुबसूरत मणि हूँ...* मीठे बाबा आप जैसी ही निराकार खुबसूरत हूँ इस सत्य को बाँहों में भर कर खुशियो के गगन में उड़ रही हूँ... और स्वयं के सत्य भान में टिक कर पुनः तेजस्वी बनती जा रही हूँ...”
❉ *इस देह और देह की दुनिया से न्यारी बनाकर सत्यता के ओज से चमकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब इस देह की मिटटी में मन बुद्धि रुपी हाथो को और नही सानो... अपने ओजस्वी तेजस्वी स्वरूप को यादो में बसाओ... *ईश्वर पिता समान अशरीरी के भान में खो जाओ... देह के सब रिश्तो नातो से उपराम होकर... अशरीरी पन के नशे में गहरे उतर जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा के यादों के दर्पण में अपने सत्य स्वरूप को निखारते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह भान के दलदल से निकल कर... ईश्वरीय प्यार की खुशबू से रंगती जा रही हूँ... मै अविनाशी आत्मा हूँ इस सत्य को हर पल अपनाती जा रही हूँ... *अपने असली अशरीरी सौंदर्य को यादो में बसाकर मीठे बाबा की ऊँगली पकड़ घर चलने की तैयारी कर रही हूँ...”*
❉ *मीठे जादूगर मेरे बाबा अपने प्यार के झरने में मुझे कमल फूल समान खिलाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे कितने महकते फूल थे... *धरा की मिटटी में खेलते खेलते अपने दमकते स्वरूप को भूल कर मात्र शरीरधारी हो गए... अब उसी महक उसी रंगत उसी नूर को यादो में ताजा करो...* अपने अविनाशी पन को हर साँस में पिरोकर पिता संग घर की ओर लौटने की तैयारी में जुट जाओ...”
➳ _ ➳ *माया के मायाजाल से मुक्त होकर सत्यपिता के सत्य ज्ञान से सत्य स्वरुप में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी सच्ची अशरीरी सुंदरता को पाती जा रही हूँ... इस देह के मायाजाल से निकल कर अविनाशी गौरव को यादो में बसा रही हूँ...* मै आत्मा मीठे बाबा के साथ घर चलने को सज संवर रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान को अन्दर घोटना है अर्थात विचार सागर मंथन करना है*"
➳ _ ➳ सागर के तले में छुपी अनमोल वस्तुयों जैसे सीप, मोती आदि को पाने के लिए एक गोताखोर को पहले उसकी गहराई में तो जाना ही पड़ता है। *जब तक गोताखोर पानी के ऊपरी हिस्से पर तैरता रहता है तब तक तेज लहरों, पानी की थपेड़ों और तूफानों का भी उसको सामना करना पड़ता है* परन्तु यदि वह इन सबकी परवाह किये बिना पानी की गहराई में उतरता चला जाता है तो नीचे गहराई में जा कर हर चीज शांन्त हो जाती है और वह सागर के तले में छुपी उन चीजों को प्राप्त कर लेता है।
➳ _ ➳ इस दृश्य को मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि जैसे स्थूल सागर की गहराई में अनमोल सीप, मोती आदि छुपे होते हैं इसी तरह से स्वयं *ज्ञान सागर भगवान द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान में भी कितने अनमोल खजाने छुपे हैं बस आवश्यकता है इन खजानों को ढूंढने के लिए इस अनमोल ज्ञान की गहराई में जाने की अर्थात विचार सागर मंथन करने की*। मलाई से भी मक्खन तभी निकलता है जब उसे पूरी मेहनत के साथ मथा जाता है तो यहां भी अगर विचार सागर मन्थन नही करेंगे तो ज्ञान रूपी मक्खन का स्वाद भी नही ले सकेंगे। *इसलिये विचार सागर मन्थन कर, ज्ञान की गहराई में जा कर, फिर उसे धारणा में लाकर अनुभवी मूर्त बनना ही ज्ञान सागर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का वास्तविक यूज़ है*।
➳ _ ➳ हम बच्चो को यह ज्ञान दे कर, हमारे दुखदाई जीवन को सुखदाई, मनुष्य से देवता बनाने के लिए स्वयं भगवान को इस पतित दुनिया, पतित तन में आना पड़ा। तो ऐसे भगवान टीचर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का हमे कितना रिगार्ड रखना चाहिए। *ज्ञान की एक - एक प्वाइंट पर विचार सागर मंथन कर उसे धारणा में ले कर आना और फिर औरों को धारण कराना ही भगवान के स्नेह का रिटर्न है*। और भगवान के स्नेह का रिटर्न देने के लिए ज्ञान का विचार सागर मन्थन कर, सेवा की नई - नई युक्तियाँ अब मुझे निकाल औरों को भी यह ज्ञान देकर उनका भाग्य बनाना है मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर ज्ञान सागर अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान सूर्य शिवबाबा मेरे सिर के ठीक ऊपर आ कर ज्ञान की शक्तिशाली किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियो रूपी किरणों की मीठी फुहारें जैसे ही मुझ पर पड़ती हैं मेरा साकारी शरीर धीरे - धीरे लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर मे परिवर्तित हो जाता हैं* और मास्टर ज्ञान सूर्य बन लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये मैं फ़रिशता ज्ञान की रोशनी चारों और फैलाता हुआ सूक्ष्म लोक में पहुँच जाता हूँ और जा कर बापदादा के सम्मुख बैठ जाता हूँ।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों को मुझ में भरपूर करने के साथ - साथ अब बाबा मुझे विचार सागर मन्थन का महत्व बताते हए कहते हैं कि *"जितना विचार सागर मंथन करेंगे उतना बुद्धिवान बनेंगें और अच्छी रीति धारणा कर औरों को करा सकेंगे"*। बड़े प्यार से यह बात समझा कर बाबा मीठी दृष्टि दे कर परमात्म बल से मुझे भरपूर कर देते हैं। मैं फ़रिशता परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर औरों को आप समान बनाने की सेवा करने के लिए अब वापिस अपने साकारी तन में लौट आता हूँ।
➳ _ ➳ *अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अपने परमशिक्षक ज्ञान सागर शिव बाबा द्वारा दिये जा रहे ज्ञान को गहराई से समझने और उसे स्वयं में धारण कर फिर औरों को धारण कराने के लिए अब मैं एकांत में बैठ विचार सागर मंथन कर सेवा की नई - नई युक्तियाँ सदैव निकालती रहती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मन-बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ स्थितियों रूपी आसन पर स्थित रहने वाली तपस्वीमूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं प्यार के सागर बाप की बच्ची प्रेम की भरपूर गंगा बनकर रहने वाली प्रेमस्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ वर्तमान समय के प्रमाण फरिश्ते-पन की सम्पन्न स्टेज के वा बाप समान स्टेज के समीप आ रहे हो, उसी प्रमाण पवित्रता की परिभाषा भी अति सूक्ष्म समझो। सिर्फ *ब्रह्मचारी बनना भविष्य पवित्रता नहीं लेकिन ब्रह्मचारी के साथ ‘ब्रह्मा आचार्य' भी चाहिए। शिव आचार्य भी चाहिए। अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला। शिव बाप के उच्चारण किये हुए बोल पर चलनेवाला।* फुट स्टैप अर्थात् ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रखने वाले। इसको कहा जाता है - ‘ब्रह्मा आचार्य'। तो ऐसी सूक्ष्म रूप से चैंकिग करो कि सदा पवित्रता की प्राप्ति, सुख-शांति की अनुभूति हो रही है? सदा सुख की शैय्या पर आराम से अर्थात् शांति स्वरूप में विराजमान रहते हो? यह ब्रह्मा आचार्य का चित्र है।
✺ *"ड्रिल :- ब्रह्मचारी के साथ साथ ब्रह्मा आचारी और शिव आचारी बनकर रहना*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा याद और सेवा की रस्सियों में झूलते हुए सूक्ष्म वतन पहुँच जाती हूँ...* वतन में बापदादा संग बैठ जाती हूँ... पारलौकिक बाप अलौकिक बाप के मस्तक पर विराजमान होकर मुझे भी अलौकिक बना रहे हैं... बापदादा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं... *मैं आत्मा अपनी साधारणता को छोड़ विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में विराजमान होकर अनमोल वाक्यों का उच्चारण कर रहे हैं...* आदि, मध्य, अंत का सत्य ज्ञान सुना रहे हैं... प्यारे बाबा आत्मा, परमात्मा और ड्रामा का नालेज देकर मुझे नालेजफुल बना रहे हैं... मैं आत्मा अपने असली स्वरुप को जान अपने निज गुणों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा पवित्र फरिश्ते का स्वरूप धारण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा सदा प्यूरिटी की पर्सनालिटी धारण कर सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा कैसी भी परिस्थितियां आयें कभी दुःख, अशांति का अनुभव नहीं करती हूँ... सदा सुख की शैय्या पर आराम से विराजमान रहती हूँ... सदा अपने शांत स्वरुप के स्टेज में स्थित रहती हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति से दुःख को सुख में परिवर्तित कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दृष्टि, वृत्ति, चलन, संकल्प, वाणी में ब्रह्मा बाप समान पवित्रता को धारण कर रही हूँ...* मैं आत्मा ब्रह्मचारी बनने के साथ-साथ ‘ब्रह्मा आचार्य' भी बन रही हूँ... *ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रख फालो फादर कर रही हूँ...* ब्रह्मा बाप के आदर्शों पर चल बाप समान बन रही हूँ... *शिव बाप के उच्चारण किये हुए बोल पर चलकर ‘शिव आचार्य’ बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा ब्राह्मण जीवन की सभी नियम, मर्यादाओं का पालन करती हूँ... अब मैं आत्मा हर कर्म को चेक करती हूँ कि ये ब्रह्मा बाप समान है या नहीं... शिव बाबा द्वारा उच्चारित अमृत वाणी को धारण कर हर प्वाइंट का स्वरुप बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा ब्रह्मचारी के साथ-साथ ब्रह्मा आचारी और शिव आचारी होने का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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