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❍ 02 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ सदा ईश्वरीय स्नेह का अनुभव करते रहे ?
➢➢ इस पुरानी दुनिया के आकर्षण से न्यारे और बाप के प्यारे बनकर रहे ?
➢➢ सभ्यता रुपी कल्चर को अपनाया ?
➢➢ क्रोधमुक्त स्थिति का अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ योग को ज्वाला रूप बनाने के लिए सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कंट्रोलिंग पावर सारे दिन में यूज करो। पावरफुल ब्रेक द्वारा मन-बुद्धि को कण्ट्रोल करो, जहाँ मन-बुद्धि को लगाना चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाए।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं होली हँस हूँ"
〰✧ सदा अपने को होलीहंस समझते हो? होलीहंस का कर्तव्य क्या होता है? होलीहंस अर्थात् जो सदा सत्य और असत्य का निर्णय कर सके। हंस में निर्णय शक्ति तीव्र होती है। जिस निर्णय शक्ति के आधार पर कंकड़ और रतन को अलग कर सकते हैं। रतन को ग्रहण करेगा और कंकड़ को छोड़ देगा। तो होलीहंस अर्थात् जो सदा निर्णय शक्ति में नम्बरवन हो। निगेटिव को छोड़ दे और पाजिटिव को धारण करे। देखते हुए सुनते हुए न देखे न सुने। यह है होलीहंस की विशेषता। तो ऐसे हो या कभी नगेटिव भी देख लेते हो? निगेटिव अर्थात् व्यर्थ बातें, व्यर्थ कर्म न सुने न करें और न बोलें । तो ऐसी शक्ति है जो व्यर्थ को समर्थ में चेंज कर दो। या व्यर्थ चलता है? चाहते नहीं हैं लेकिन चल पड़ता है ,ऐसे तो नहीं है? यदि व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने की शक्ति नहीं होगी तो अन्त में व्यर्थ का संस्कार धोखा दे देगा। इसलिए होलीहंस अर्थात् परिवर्तन करना।
〰✧ व्यर्थ को समर्थ में चेंज करने के लिए विशेष क्या अभ्यास चाहिए? कैसे चेंज करेंगे? संकल्प पावरफुल कैसे बनेगा? हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना अगर ऐसी विधि होगी तो परिवर्तन कर लेंगे। अगर किसी के प्रति शुभ भावना होती है तो उसकी उल्टी बात भी सुल्टी लगती है और शुभ भावना नहीं होगी तो सुल्टी बात भी उल्टी लगेगी। इसलिए हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना सदा आवश्यक है। तो यह रहती है या कभी कभी व्यर्थ भावना भी हो जाती है? अपनी शुभ भावना व्यर्थ वाले को भी चेंज कर देती है। वैसे भी गाया हुआ है कि भावना का फल मिलता है। जब भक्तों को भावना का फल मिलता है तो आपको शुभ भावना का फल नहीं मिलेगा? तो व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने का आधार है शुभ भावना, शुभ कामना। कैसा भी हो लेकिन आप शुभ भावना दो। कितना भी गंदा पानी इक्क्ठा हो लेकिन अच्छा डालते जायेंगे तो गंदा निकलता जायेगा।
〰✧ अगर कोई आत्मा में व्यर्थ को निकालने की समर्थी नहीं है तो आप अपनी शुभ भावना की समर्थी से उसके व्यर्थ को समर्थ कर दो। परिवर्तन कर दो। इतनी शक्ति है या कभी असर हो जाता है? जैसे बापदादा ने आपके व्यर्थ कर्म को देखकर परिवर्तन कर लिया ना। कैसे किया? शुभ भावना से मेरे बच्चे हैं। तो आपकी शुभ भावना कि मेरा परिवार है, ईश्वरीय परिवार है। कैसा भी है चाहे वह पत्थर है लेकिन आप पत्थर को भी पानी कर दो। ऐसी शुभ भावना और शुभ कामना वाले होलीहंस हो? हंस को सदा स्वच्छ दिखाते हैं। तो स्वच्छ बुद्धि हंस के समान परिवर्तन करेंगे। अपने में धारण नहीं करेंगे। तो संगमयुगी होलीहंस हैं यह स्मृति सदा रखनी है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ ऐसा अभ्यास करो जो जहाँ बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ स्थित हो जायें। संकल्प किया और स्थित हुआ। यह रूहानी ड्रिल सदैव बुद्धि द्वारा करते रहो।
〰✧ अभी - अभी परमधाम निवासी, अभी - अभी सूक्ष्म अव्यक्त फरिश्ता बन जायें और अभी - अभी साकार कर्मेन्द्रियों का आधार लेकर कर्मयोगी बन जायें। इसको कहा जाता है - संकल्प शक्ति को कन्ट्रोल करना। संकल्प को रचना कहेंगे और आप उसके रचयिता हो।
〰✧ जितना समय जो संकल्प चाहिए उतना ही समय वह चलो। जहाँ बुद्धि लगाना चाहे, वहाँ ही लगे। इसको कहा जाता है - अधिकारी। यह प्रैक्टीस अभी कम है। इसलिए यह अभ्यास करो, अपने आप ही अपना प्रोग्राम बनाओ और अपने को चेक करो कि जितना समय निश्चित किया, क्या उतना ही समय वह स्टेज रही?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ बाप-दादा एक सेकेण्ड का सहज साधन वा किसी भी विघ्न से मुक्त होने की युक्ति जो समय-प्रति-समय सुनाते रहते हैं वह भूल जाते हैं। सेकण्ड में स्वयं का स्वरूप अर्थात् आत्मिक ज्योति स्वरूप और कर्म में निमित भाव का स्वरूप - यह डबल लाइट स्वरूप सेकण्ड में हाई जम्प दिलाने वाला है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- ईश्वरीय स्नेह का महत्व"
➳ _ ➳ प्रेम के सागर से बिछुडी मैं स्नेह की एक नन्हीं सी बूँद... स्वार्थ के
इस सूखे और कंटीले रेगिस्तान में अपने वजूद को बचानें की कोशिशों में जिस राह
चली, वो राहें ही मेरे लिए लिए दलदली होती गई... प्यार के नाम पर स्वार्थ को
पाया और स्वार्थ ही अपनाया... मगर अब लौट चली इन राहों से, जब निस्वार्थ प्यार
का तोहफा लेकर वो मेरे प्रेम सागर मेरे दर पर आया... कल्प कल्प का स्नेह बरसाता
वो प्रेम का सागर बैठा है मेरे सामने... और चातक के समान प्यासी मैं आत्मा उस
स्नेह की बूँद-बूँद को निरन्तर पिये जा रही हूँ...
❉ नयनों से अविरल स्नेह बरसाते स्नेह के सागर बाप मुझ लवलीन आत्मा से बोलें:-
"स्नेह सरिता मेरी मीठी बच्ची... जन्म-जन्म की पुकार का प्रत्यक्ष फल ये
परमात्म प्यार अब आपने पाया है... ब्राह्मण जीवन के आधार परमात्म प्यार से तीनो
मंजिलों को पार किया... इस प्रेम में डूबकर क्या देहभान की विस्मृति हुई है?
सर्वसबंधो का रस एक बाप में पाया है? और दुनियावी आकर्षणों से छुटकारा पाया...
?"
➳ _ ➳ निस्वार्थ प्रेम से भरपूर हो कर दैहिक सम्बन्धों के मोहपाश से मुक्त मैं
आत्मा रूहानी स्नेह सागर से बोली:- "मीठे बाबा... आपके अनोखे स्नेह ने सब कुछ
सहज ही भूलाया है... त्याग करना नही पडा... स्वतः ही त्याग कराया है, चत्तियाँ
लगी ये अन्तिम जन्म की जर्जर काया, क्या मोल रह गया इसका... बदले में में इसके
जब ये चमचमाता फरिश्ता रूप पाया... सबंध संस्कार दैवी हो रहे... जीवन में
दिव्यता को पाया..."
❉ ईश्वरीय मर्यादाओं का कंगन बाँध कर हर बंधन से छुडाने वाले मुक्तिदाता बाप
मुझ आत्मा से बोले:- "सर्व सम्बन्धों का सुख मुझ बाप से पाने वाली मेरी मीठी
बच्ची... निस्वार्थ प्रेम के लिए तरसती संसार की आत्माओं को भी अब परमात्म
स्नेह का अनुभव कराओं... सदा ही स्नेह माँगने वालो की कतार में खडे इन स्नेह
के प्यासों पर परमात्म स्नेह का मीठा झरना बन बरस जाओं... दैहिक संबन्धों में
बूँद बूँद स्नेह तलाशते इन प्यासों को परमात्म संबन्धों का अनुभव कराओं..."
➳ _ ➳ एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति से सब कुछ विस्मृत करने वाली मैं आत्मा
दिलाराम बाप से बोली:- "मीठे बाबा... आपकी स्मृति से सर्व समर्थियाँ पायी है
मैने... स्नेह सागर को स्वयं में समाँकर अब उसी के रूप में ढलती जा रही हूँ...
परमात्म स्नेह का ये झरना मेरे स्वरूप से बेहद में बरस रहा है... प्रकृति भी
परमात्म प्रेम से भरपूर हो गयी है... इस कल्प वृक्ष का तना भी भरपूर हुआ, पत्ता
पत्ता प्रभु प्रेम से हरष रहा है..."
❉ अव्यक्त रूप में बेहद के सेवाधारी विश्व कल्याणी बाप मुझ आत्मा से बोलें:-
"समर्थ संकल्पों के द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाली मेरी होली हंस
बच्ची!... अब ये प्यार शान्ति सुख की किरणें बेहद में फैलाओं... अपने अन्तिम
स्थिति के अन्तःवाहक स्वरूप से अब सबको उडती कला का अनुभव कराओं... नाजुक समय
की नाजुकता को पहचानों और एक एक सेकेन्ड का अभ्यास बढाओं... अपने शक्ति स्वरूप
से शक्तिमान का दीदार कराओं..."
➳ _ ➳ फालो फादर कर मनसा सेवा से कमजोरों में बल भरने वाली मैं आत्मा स्नेह
सागर बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... आपके निस्वार्थ प्रेम ने मँगतों से देने
वालों की कतार में खडा किया है... रोम रोम आपके स्नेह में डूबा है, जो
निस्वार्थ स्नेह आपसे पाया है अब औरों पर लुटा रही हूँ... इस असीम स्नेह का कण
कण मैं आप समान मनसा सेवा से चुका रही हूँ... स्नेह के अविरल झरने अब दोनो ओर
से ही झर झर बह रहे है,.. और मैं आत्मा इस बहते स्नेह के दरिया में फिर से डूबी
जा रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- क्रोधमुक्त स्थिति का अनुभव
➳ _ ➳ मैं शान्त स्वरूप आत्मा, शांतिधाम की रहने वाली, शांति के सागर शिव पिता
की सन्तान हूँ यह स्मृति मुझे सेकण्ड में अपने शान्त स्वधर्म में स्थित कर देती
हैं और अपने इस शान्त स्वधर्म में स्थित होते ही शांति के शक्तिशाली
वायब्रेशन्स मेरे मस्तक से निकल कर तेजी से चारों और फैलने लगते हैं। मैं
अनुभव कर रही हूँ कि मेरे आस - पास का वायुमण्डल शांति के वायब्रेशन्स के
प्रभाव से पूरी तरह शांत और निस्तब्ध होने लगा है और मेरे चारों तरफ एक "विशाल
शांति कुंड" बनता जा रहा है जिसकी ज्वाला शांति की शक्तिशाली किरणों के रूप में
चारों और फैल कर अब दूर - दूर तक जा रही है और सारे वातावरण को भी शांत बनाती
जा रही है। साइलेन्स का बल मेरे अंदर भरता जा रहा है।
➳ _ ➳ साइलेन्स की यह शक्ति धीरे - धीरे मेरे अंदर जमा होकर मुझे शांति की ऐसी
गहरी गुफा में ले कर जा रही है जहाँ कोई आवाज नही, कोई हलचल नही, केवल एक गहन
चुप्पी है। बाहर की दुनिया में हो रहे शोर का भी अब मेरे ऊपर कोई प्रभाव नही पड़
रहा। शांति की गुफा में बैठ गहन शांति का अनुभव मुझे बहुत सुकून दे रहा है। इस
सुकून का सुखद आनन्द लेते - लेते मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि जिस शांति के
हार की तलाश में मैं भटक रही थी वो शांति का हार तो मेरे गले मे ही पड़ा था जिसे
आज अपने स्वधर्म में स्थित होकर कितनी सहजता से मैने प्राप्त कर लिया!
➳ _ ➳ शान्ति के इस हार को अब मैं कभी गुम नही होने दूँगी। इसे अपने गले मे
हमेशा पहने रखने के लिए अब मैं सदैव अपने स्वधर्म और स्वदेश की स्मृति में
रहूँगी। इसी संकल्प के साथ, अपने स्वधर्म में स्थित होकर मैं आत्मा अब इस पराई
देह और देह की पराई दुनिया से किनारा करके अपने स्वदेश जाने के लिए तैयार होती
हूँ। अपने उस देश, उस शान्तिधाम घर को स्मृति में लाते ही मैं महसूस करती हूँ
जैसे शान्तिधाम में रहने वाले शांति के सागर मेरे शिव पिता भी मुझ से मिलने के
लिए व्याकुल हैं।
➳ _ ➳ शांति के सागर अपने पिता के संकल्पों को कैच कर, मैं झट से भृकुटि की
कुटिया से बाहर निकलती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर सेकण्ड में आकाश
को पार करके, सूक्ष्म वतन से होकर अपने शान्ति धाम घर में पहुँच जाती हूँ। गहन
शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात, कोई संकल्प नही, ऐसे अपने
स्वदेश में आकर, यहां चारों और फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स को स्वयं
में समाकर मैं असीम शान्ति का अनुभव कर रही हूँ। शन्ति की गहन अनुभूति करते -
करते अब मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने शिव पिता के समीप पहुँच गई हूँ।
➳ _ ➳ अपने शांति धाम घर मे अपने शिव पिता के पास जाकर अब मैं उनके सानिध्य में
बैठ उनसे आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाहित कर रही हूँ। बाबा
से आ रही शांति की हल्की नीले रंग की किरणों का फव्वारा मुझ पर बरस रहा है और
मुझे रोमांचित कर रहा है। शांति की शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही हैं। ऐसा लग रहा
है जैसे नीले रंग की किरणों के किसी विशाल झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और शांति
की किरणें झर - झर करते पानी की तरह मेरे ऊपर बह रही हैं जिन्हें मैं गहराई तक
अपने अंदर समाती जा रही हूँ। शांति के सागर अपने शिव बाबा से शांति की अनन्त
शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती
हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर
शान्ति का अनुभव हर पल करते हुए शांति की शक्ति मैं अपने अंदर जमा कर रही हूँ
और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि शांति की शक्ति जैसे - जैसे मेरे अंदर भरती जा
रही है वैसे - वैसे हर समस्या का समाधान अपने आप होता जा रहा है। साइलेन्स के
बल से मेरे जीवन मे होने वाले अनेक चमत्कारिक परिवर्तन मेरे सम्बन्ध सम्पर्क
में आने वाली आत्माओं को भी अपने स्वधर्म और स्वदेश की याद दिला कर शान्ति का
अनुभव करने का रास्ता दिखा रहें हैं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं डायरेक्ट परमात्म लाइट के कनेक्शन द्वारा अंधकार को भगाने वाली लाइट हाउस हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं स्व पुरुषार्थ में तीव्र बनकर अपने वायब्रेशन से दूसरों की माया सहज भगाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ त्याग मुश्किल तो नहीं लगता? सबको छोड़ना पड़ेगा। अगर पुराने के बदले नया
मिल जाए तो मुश्किल है क्या! अभी-अभी मिलता है। भविष्य मिलना तो कोई बड़ी बात
नहीं लेकिन अभी-अभी पुराना भान छोड़ो, फरिश्ता स्वरूप लो। जब पुरानी दुनिया के
देह का भान छोड़ देते हो तो क्या बन जाते हो? डबल लाइट। अभी ही बनते हो। परन्तु
अगर न यहाँ के न वहाँ के रहते हो तो मुश्किल लगता है। न पूरा छोड़ते हो, न पूरा
लेते हो तो अधमरे हो जाते हो, इसलिए बार-बार लम्बा श्वांस उठाते हो। कोई भी बात
मुश्किल होती तो लम्बा श्वांस उठता है। मरने में जो मजा है - लेकिन पूरा मरो
तो। लेने में कहते हो पूरा लेंगे और छोड़ने में मिट्टी के बर्तन भी नहीं छोड़ेंगे।
इसलिए मुश्किल हो जाता है। वैसे तो अगर कोई मिट्टी का बर्तन रखता है तो बापदादा
रखने भी दें, बाप को क्या परवाह है! भल रखो। लेकिन स्वयं ही परेशान होते हो।
इसलिए बापदादा कहते हैं छोड़ो। अगर कोई भी पुरानी चीज रखते हो तो रिजल्ट क्या
होती है? बार-बार बुद्धि भी उन्हों की ही भटकती है। फरिश्ता बन नहीं सकते।
इसलिए बापदादा तो और भी हजारों मिट्टी के बर्तन दे सकते हैं - कितना इकट्ठे कर
लो। लेकिन जहाँ किचड़ा होगा वहाँ क्या पैदा होंगे? मच्छर! और मच्छर किसको काटेंगे?
तो बापदादा बच्चों के कल्याण के लिए ही कहते हैं - पुराना छोड़ दो। अधमरे नहीं
बनो। मरना है तो पूरा मरो, नहीं तो भले ही जिंदा रहो।
✺
"ड्रिल :- मिट्टी के बर्तनों में ममत्व न रख इस पुरानी दुनिया से पूरा पूरा
मरने का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि से उड़न खटोले पर बैठकर इस सॄष्टि का भ्रमण कर रही
हूँ... तेज हवाओं को चीरते हुए तेजी से इस प्रकृति की सॄष्टि की सुंदरता का
आनंद ले रही हूँ... पेड़-पौधे की टहनियों को छूते हुए मैं पेड़ों से फूल तोड़ते
हुए जा रही हूँ... हाथों में बहुत सारे फूल पत्तियाँ लेकर उड़ाती जा रही हूँ...
उड़न खटोले से जब मैं नीचे की ओर देखती हूँ तो बहुत ही मनमोहक दृश्य लगता है...
मैं थोड़ा नीचे आती हूँ और अपने उड़न खटोले की रफ़्तार को कम करती हूँ और नीचे
देखती हूँ... जहाँ एक व्यक्ति अपने हाथों से मिट्टी के बर्तन बना रहा है... मैं
ये देखकर रुक जाती हूँ... और नीचे उतर जाती हूँ... नीचे उतरकर मैं उन मिट्टी के
बर्तनों को अपने हाथ में उठा लेती हूँ... और गहराई से निहारती हूँ...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं उस बर्तन को लेकर तेज चलती हूँ... तभी वो बर्तन बनाने
वाला वो व्यक्ति मेरे पास आकर कहता है... ये बर्तन बहुत ही नाजुक है... छोटी सी
गलती से ये बर्तन टूट जायेगा... ये सुनकर मेरे कदम वहीँ रुक जाते हैं... और मैं
उस व्यक्ति से कहती हूँ... आप मुझे इस बर्तन के बारे में और गहराई से बताइये...
और फिर वो व्यक्ति मुझसे कहता है... जितना इसमे पानी शीतल होता है उतना ही ये
कच्चा भी होता है... इसे ये पता होते भी की एक दिन इसे मिट्टी में ही मिल जाना
है... ये अपना कर्तव्य नहीं भूलता... वो ना ही इस मिट्टी से लगाव रखता है...
चाहे ये कितने भी सुंदर और मनमोहक हो एक दिन इनकी मिट्टी ही हो जानी है...
➳ _ ➳ और फिर वो व्यक्ति मुझे कहता है... मनुष्य भी इस मिट्टी के बर्तन की तरह
ही है... चाहे वो कितना भी मनमोहक, कितना ही पद में ऊंच हो और कितना ही महान
हो... अंत में वो पंचतत्व में विलीन ही हो जाता है... इसलिए हर व्यक्ति को इस
देह रूपी मिट्टी के बर्तन से लगाव नहीं रखना चाहिए... जब हम अपने असली स्वरूप
को भूलते हैं तो देहभान में आ जाते है... और इससे जुड़े हर रिश्ते, हर बातें,
दुःख, दर्द में हम फंस कर रह जाएंगे... अगर इंसान किसी भी पुरानी चीज को अपने
पास रखता है तो उसे ये पुरानी चीज कभी बेफ़िक्र फ़रिश्ते के रुप में आगे बढ़ने नहीं
देगी... जब भी फ़रिश्ता बनकर उड़ना चाहेंगे... ये पुरानी विनाशी चीज अपनी तरफ
खींचेगी और तुरन्त नीचे उतार देगी...
➳ _ ➳ कुछ देर बाद मैं उस व्यक्ति की बातें सुनकर वापिस अपने उड़न खटोले पर
पहुँच जाती हूँ... और अपने बाबा को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... और फिर उड़ने
लगती हूँ... उसी समय मैं बाबा से ये वादा करती हूँ... बाबा... आज से मैं आत्मा
इस मिट्टी रूपी देह से कोई लगाव नहीं रखूँगी... और ना ही इससे संबंधित कोई बातें
भी याद रखूँगी... क्योंकि अगर मैं इन विनाशी चीजों को याद रखूँगी तो इससे मेरा
पुरुषार्थ रुक जाएगा... और ना ही मैं फरिश्ता बनकर आपके साथ उड़ पाऊंगी...
इसलिए अब मैं हमेशा अपने आपको आत्मिक स्थिति में अनुभव करुँगी... और अपने आसपास
रहने वाले सभी शरीर धारियों को सिर्फ और सिर्फ आत्मा के रूप में ही देखूंगी...
ये वचन सुनकर बाबा मुझ आत्मा से बहुत प्रसन्न होते हैं... और मुस्कुराने लगते
हैं... और हम तेज रफ्तार से उड़ने लगते हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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