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❍ 15 / 11 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ उठते बैठते चलते ज्ञान का सिमरन किया ?
➢➢ अपने आप से बातें की ?
➢➢ सदा संतुष्ट रह अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृत्ति द्वारा संतुष्टता की अनुभूति की ?
➢➢ नेगेटिव और वेस्ट को समाप्त कर मेहनत मुक्त बने ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ किसी भी प्रकार का विघ्न बुद्धि को सताता हो तो योग के प्रयोग द्वारा पहले उस विघ्न को समाप्त करो। मन-बुद्धि में जरा भी डिस्टरबेन्स न हो। अव्यक्त स्थिति में स्थित होने का ऐसा अभ्यास हो जो रूह, रूह की बात को या किसी के भी मन के भावों को सहज ही जान जाये।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं रूहानी फरिश्ता हूँ"
〰✧ सदा अपना रुहानी फरिश्तास्वरूप स्मृति में रहता? ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता - यह पहली हल कर ली है ना! पहेलियाँ हल करना आता है! सेकण्ड में ब्राह्मण सो देवता, देवता सो चक्र लगाते ब्राह्मण, फिर देखता।
〰✧ तो 'हम सो, सो हम' की पहेली सदा बुद्धि में रहती है? जो पहेजी हल करते उनहें ही प्राइज मिलती है। तो प्राइज मिली है ना! जो अभी मिली है, वह भविष्य में भी नहीं मिलेगी! प्राइज में क्या मिला है? स्वयं बाप मिल गया, बाप के बन गये।
〰✧ भविष्य की राजाई के आगे यह प्राप्ति कितना ऊंची है! तो सदा प्राइज लेने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ - इसी नशे और खुशी से सदा आगे बढ़ते रहो। पहेली और प्राइज दोनों स्मृति में सदा रहें तो आगे स्वत: बढ़ते रहेंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ सभी आवाज से परे रहना सहज अनुभव करते हो वा आवाज में आना सहज अनुभव करते हो? सहज क्या है? आवाज में आना या आवाज से परे होना? आवाज से परे होना अर्थात अशरीरी स्थिति का अनुभव होना। तो शरीर के भान में आना जितना सहज है, उतना ही अशरीरी होना भी सहज है कि मेहनत करनी पडती है?
〰✧ सेकण्ड में आवाज में तो आ जाते हो लेकिन सेकण्ड में कितना भी आवाज में हो, चाहे स्वयं हो या वायुमण्डल आवाज का हो लेकिन सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा सकते हो कि कॉमा लगेगी, फुलस्टॉप नहीं? इसको कहा जाता है फरिश्ता वा अव्यक्त स्थिति की अनुभूति में रहना, व्यक्त भाव से सेकण्ड में परे हो जाना।
〰✧ इसके लिए ये नियम रखा हुआ है कि सारे दिन में ट्रैफिक ब्रेक का अभ्यास करो। ये क्यों करते हो? कि ऐसा अभ्यास पक्का हो जाये जो चारों ओर कितना भी आवाज का वातावरण हो लेकिन एकदम ब्रेक लग जाये।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ कोई भी सामने आये तो उनको यह नयन बल्ब दिखाई पड़े। ज्योति ही ज्योति दिखाई दे। जैसे अन्धियारे में सच्चे हीरे चमकते हैं ना? जैसे सर्च लाइट होती है बहुत फोर्स से और अच्छी रीति फैलाते हैं इस रीति से मस्तक के लाइट का साक्षात्कार एक-एक से होना है। तब कहेंगे यह तो जैसे फ़रिश्ता है। साकार में नयन, मस्तक और माथे के क्राउन के साक्षात्कार स्पष्ट होंगे। नयनों तरफ़ देखते देखते लाइट देखेंगे। तुम्हारी लाइट को देख दूसरे भी जैसे लाइट हो जायेंगे। कितना भी मन से वा स्थिति में भारीपन हो लेकिन आने से ही हल्का हो जाये। ऐसी स्टेज अब पकड़नी है। क्योंकि आप लोगों को देख कर और सभी भी अपनी स्थिति ऐसी करेंगे। अभी से ही अपना गायन सुनेंगे। द्वापर का गायन कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन ऐसे साक्षात्कारमूर्त और साक्षात् मूर्त बनने से अभी का गायन अपना सुनेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- शांति का गुण धारण करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में बैठ चिंतन करती हुई स्व की गहराइयों में उतरती जाती
हूँ... मैं ज्योतिबिन्दु स्वरूप आत्मा भृकुटि के सिंहासन पर चमकती हुई मणि
हूँ... इस देह में अवतरित होकर अपना पार्ट बजाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा
हूँ... मैं आत्मा और गहरे उतरती जाती हूँ... अंतर्मुखी होकर गहरी शांति का
अनुभव करती हुई शांति के सागर प्यारे बाबा के पास पहुंच जाती हूँ...
❉ शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा शांति की किरणों से सराबोर करते हुए कहते
हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं को देह समझ शांति के लिए बहुत बाहर भटक
चुके हो... अब अपने सच्चे वजूद के नशे में गहरे डूब जाओ... और भीतर मौजूद शांति
का गहरा आनंद लो... शांति का खजाना भीतर सदा साथ है, स्वधर्म है, बस परधर्म
छोड़ अपने स्वधर्म में खो जाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा गले मे शांति का हार पहन स्वधर्म में टिकती हुई कहती हूँ:-
"हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे पाये ज्ञान के तीसरे नेत्र से, स्वयं
के खजानो को देखने वाली नजर को पाकर निहाल हो गयी हूँ... प्यारे बाबा मै शांति
की बून्द भर को भी प्यासी थी... आपने तो मेरे भीतर समन्दर का पता दे दिया और
मुझे सदा के लिए तृप्त कर दिया है..."
❉ मीठे बाबा दुख, अशांति की दुनिया से निकाल शांति के समंदर में डुबोते हुए
कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने गुणवान और
शक्तियो से श्रंगारित थे... आत्मिक भान से परे, देह होने के अहसास ने सारे
प्राप्त खजानो से वंचित कर दिया... अब अपने आत्मिक स्वरूप की स्मृतियों में हर
साँस को भिगो दो... और असीम शांति की तरंगो से स्वयं और पूरे विश्व को तरंगित
कर दो..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर अतीन्द्रिय सुख, शांति की
अनुभूति में डूबकर कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा शांति के
सागर से मिलकर गुणो के सौंदर्य से खिल उठी हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझे मेरी
खोयी खुशियां लौटाकर, मुझे मालामाल कर दिया है... हर भटकन से मुक्त कराकर गुणो
के वैभव से पुनः सजा दिया है... और अथाह शांति के स्त्रोत को भीतर जगा दिया
है..."
❉ प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख सर्व ख़ज़ानों के वरदानों की
बरसात करते हुए कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने दमकते हुए मणि
स्वरूप की खुमारी में डूब जाओ... और सुख शांति से लबालब हो जाओ... ईश्वर पिता
से पाये गुणो और शक्तियो के खजानो का जीवन में भरपूर आनन्द लूटते हुए... सतयुगी
दुनिया के सुखो को बाँहों में भरो... सच्ची शांति जो भीतर निहित है उससे जीवन
को सजा लो..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा शांति कुंड बन शांति की किरणों से सारे विश्व को चमकाते हुए
कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आत्मिक गुणो से सजधज कर अप्रतिम
सौंदर्य से निखर उठी हूँ... मीठे बाबा आपकी यादो में पवित्र बन, सुख और शांति
के अखूट खजानो को पा रही हूँ... आपकी प्यारी यादो में मैंने अपना खोया रंगरूप
पुनः पा लिया है... सारे खजाने मेरी बाँहों में मुस्करा उठे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- उठते, बैठते, चलते ज्ञान का सिमरण कर मोती चुगने वाला हंस बनना है"
➳ _ ➳ अपने घर के आंगन में बैठी मैं बारिश की रिमझिम फुहारों को देख रही हूँ।
बारिश की इस हल्की - हल्की रिमझिम में गीली मिट्टी की भीनी - भीनी खुशबू और
मौसम में हल्की - हल्की ठंडक मन को लुभा रही है। मन ही मन मैं अपने दिलाराम
बाबा को याद करती हूँ और सोचती हूँ कि मौसम की ये बरसात तो कभी - कभी ही होती
है लेकिन मेरे ज्ञानसूर्य शिव पिया के ज्ञान रत्नों की बरसात तो निरन्तर मुझ पर
होती ही रहती है। तो कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो हर समय ज्ञान की
रिमझिम का आनन्द लेती रहती हूँ। मेरे शिव पिया के ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की
शीतलता मुझे सदा स्फूर्ति और ताजगी से भरपूर रखती है।
➳ _ ➳ यही विचार करते - करते एकाएक मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान की बारिश की
रिमझिम फुहारें मेरे ऊपर बरसने लगी है। इन फ़ुहारों की रिमझिम से एक अलौकिक
रूहानी मस्ती मुझ आत्मा में भरने लगी है। परमधाम से मेरे ज्ञानसूर्य शिव बाबा
के ज्ञान की रंग बिरंगी किरणों की बारिश मेरे अंग अंग को शीतल बना रही है। इन
रिमझिम फुहारों से शरीर की चेतनता जैसे सिमट रही है। कर्मेंद्रियां शांन्त और
स्थिर हो रही है। शरीर की सारी चेतनता सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र हो रही है और
शरीर रूपी गुफा में जगता हुआ एक चैतन्य दीपक स्पष्ट दिखाई देने लगा है। इस
चैतन्य दीपक को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ।
➳ _ ➳ इस चैतन्य दीपक की लौ से आ रहे प्रकाश में सात अलग - अलग रंगों को मैं
देख रही हूँ। सातों गुणों की सतरंगी किरणों का प्रकाश धीरे - धीरे बढ़ता जा रहा
है और ये किरणे धीरे - धीरे चारो और फैलने लगी है। परमधाम से मेरे ज्ञानसूर्य
निराकार बाबा से सर्वगुणों की सतरंगी किरणे अब सीधे मुझ आत्मा रूपी दीपक पर पड़
रही है। बाबा से आ रही इन सातों गुणों की सतरंगी किरणों के मुझ आत्मा पर पड़ने
से, मुझ आत्मा से निकल रही सतरंगी किरणों का प्रकाश कई गुणा बढ़ कर अब और भी दूर
- दूर तक फैल रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे पूरे घर मे ज्ञान का इंद्रधनुष बन गया
है। ज्ञानसूर्य के ज्ञान की बरसात से बने इस इंद्रधनुष के रंगों से चारों और
एक सुन्दर औरा निर्मित हो गया है जो मन को गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहा
है।
➳ _ ➳ अपने ज्ञानसूर्य शिव पिता परमात्मा के ज्ञान की किरणों को और भी समीप से
ग्रहण करने के लिए अब मैं आत्मा धीरे - धीरे अपनी साकार देह को छोड़ ऊपर की ओर
जा रही हूँ। इस साकार लोक से परे, सूक्ष्म लोक को पार करती हुई मैं पहुँच गई
ज्ञान के सागर अपने शिव पिया के पास उनके निजधाम, परमधाम घर में। ज्ञानसूर्य
शिव बाबा के ज्ञान की रिमझिम मुझे उनकी और आकर्षित कर रही है और उसी आकर्षण में
आकर्षित हो कर मैं अपने पिता परमात्मा के बिल्कुल समीप जा कर उनकी शक्तिशाली
किरणों रूपी छत्रछाया के नीचे स्थित हो जाती हूँ। ज्ञानसूर्य के ज्ञान की
बरसात निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रही है और मेरे चारों और निर्मित औरे को और भी
बड़ा और शक्तिशाली बना रही है।
➳ _ ➳ इस शक्तिशाली औरे के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से साकार लोक की ओर वापिस आ
रही हूँ। अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो कर मास्टर ज्ञानसूर्य बन अब
मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर ज्ञान की बरसात कर रही हूँ।
स्वयं को ज्ञानसूर्य शिव बाबा के साथ कम्बाइंड अनुभव करते, सदा ज्ञान की
रिमझिम में रहते, आनन्दमयी जीवन जीते मैं सबकी झोली ज्ञान रत्नों से भर रही हूँ
और सबको ज्ञान अमृत पिला कर उनकी जन्मों - जन्मो की प्यास बुझा कर उन्हें तृप्त
कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
मैं आत्मा सदा संतुष्ट रहती हूँ।
✺ मैं अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृति द्वारा सन्तुष्टता की अनुभूति कराने वाली
आत्मा हूँ।
✺ मैं आत्मा संतुष्टमणि हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
मैं आत्मा सर्व निगेटिव और वेस्ट से मुक्त हूँ
✺ मैं मेहनत मुक्त आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. यह सब साधन आप बच्चों की सेवा के सहयोग के लिए निकले हैं। ब्रह्मा बाप जब समाचार सुनते हैं - यह ई-मेल है, ये यह है, तो खुश होते हैं कि वाह बच्चे, वाह! इतना सहज साधन ब्रह्मा बाप को भी साकार में नहीं मिला लेकिन बच्चों के पास हैं। खुश होते हैं। सिर्फ सेवा का साधन समझकर यूज करना। सेवा के लिए साधन है क्योंकि विश्व-कल्याण करना है तो यह भी साधन सहयोग देते हैं। साधनों के वश नहीं होना। लेकिन साधन को सेवा में यूज करना। यह बीच का समय है जिसमें साधन मिले हैं। आदि में भी कोई इतने साधन नहीं थे और अन्त में भी नहीं रहेंगे। यह अभी के लिए हैं। सेवा बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन यह साधन हैं, साधना करने वाले आप हो। साधन के पीछे साधना कम नहीं हो। बाकी बापदादा खुश होते हैं। बच्चों की सीन भी देखते हैं। फटाफट काम कर रहे हैं। बापदादा आपके आफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं। बहुत बिजी रहते हैं ना! अच्छी तरह से आफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकालो। सेकण्ड भी निकालो।
➳ _ ➳ अभी साधन पर हाथ है और अभी अभी एक सेकण्ड साधना, बीच-बीच में अभ्यास करो। जैसे साधनों में जितनी प्रैक्टिस करते हो तो आटोमेटिक चलता रहता है ना। ऐसे एक सेकण्ड में साधना का भी अभ्यास हो। ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सारा दिन बहुत बिजी रहे। बापदादा यह बात नहीं मानते हैं। क्या एक घण्टा साधन को अपनाया, उसके बीच में क्या 5-6 सेकण्ड नहीं निकाल सकते? ऐसा कोई बिजी है जो 5 मिनट भी नहीं निकाल सके, 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके। ऐसा कोई है? निकाल सकते हैं तो निकालो। बापदादा जब सुनते हैं आज बहुत बिजी हैं, बहुत बिजी कह करके शक्ल भी बिजी कर देते हैं। बापदादा मानते नहीं हैं। जो चाहे वह कर सकते हो। अटेन्शन कम है। जैसे वह अटेन्शन रखते हो ना - 10 मिनट में यह लेटर पूरा करना है, इसीलिए बिजी होते हो ना - टाइम के कारण। ऐसे ही सोचो 10 मिनट में यह काम करना है, वह भी तो टाइम-टेबल बनाते हो ना। इसमें एक दो मिनट पहले से ही एड कर दो। 8 मिनट लगना है, 6 मिनट नहीं, 8 मिनट लगना है तो 2 मिनट साधना में लगाओ। यह हो सकता है?
✺ ड्रिल :- "साधन और साधना का बैलेन्स रखना"
➳ _ ➳ इस संगम युग की सुहानी बेला में... एकान्त में बैठी हुई मैं आत्मा... अपनी शांत स्वरूप स्थिति का आनंद ले रही हूँ... मैं शांत... घर शांत... शांत वातावरण... मेरा बाबा शांति का सागर... मेरे बाबा ऊपर से मुझ पर शांति और स्नेह की किरणें बरसा रहे हैं... मुझे बहुत ही प्रेम से अपने पास बुला रहे हैं... मैं आत्मा अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित हो जाता हूँ... अपने बाबा से दिव्य मिलन मनाने के लिए उड़ जाता हूँ...
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता स्वरूप आत्मा... फरिश्तों की दुनिया में... ब्रह्मा बाबा के सम्मुख पहुँच जाता हूँ... स्नेह भरी दृष्टि और दिव्य मुस्कान के साथ... बाबा मेरा स्वागत करते हैं... शिवबाबा भी परमधाम से आकर... उनकी भृकुटि पर विराजमान हो जाते हैं... बापदादा अपने वरदानी हस्त मेरे सिर पर रखते हैं... वरदानों के शक्तियों भरे फव्वारे से... मुझे भिगोकर सराबोर कर देते हैं... साधन तथा साधना का बैलेंस रखते हुए बाबा से सफलता स्वरूप भव का वरदान प्राप्त कर... मैं फरिश्ता अपने कर्म क्षेत्र में आ जाता हूं
➳ _ ➳ मैं आत्मा पांच तत्वों की इस देह में प्रवेश कर... साधनों को देख निश्चय कर रही हूँ... यह साधन तो विश्व कल्याण करने के लिए सेवा अर्थ हैं... सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिए हैं... सेवा करते करते भी अपनी साररूपी बीजस्वरूप की स्थिति की अनुभूति कर रही हूँ... औरों को भी सार स्वरूप की अनुभूति करा रही हूँ... आदि-अंत में तो यह साधन होंगे नहीं... मैं आत्मा अभी के समय में... यह सेवा अर्थ साधन पुरुषार्थ को तीव्र करने के लिए यूज़ कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अलौकिक सेवाओं में बिजी रहकर... मैं आत्मा व्यर्थ को पूर्ण रूप से त्याग कर... समर्थ आत्मा बन रही हूँ... हर सेकंड... हर संकल्प... हर बोल को सफल बनाकर... सफलतामूर्त बन रही हूँ... ज्ञान के अनमोल रत्नों को धारण कर... धारणा स्वरूप बन रही हूँ... एक पल सेवार्थ साधन... दूसरे ही पल साधना का उत्तम अभ्यास स्वतः ही हो रहा है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा ऑफिस में भी हर कर्म करते हुए... स्वस्थिति को चेक कर रही हूँ... मुझे ज्ञात है... बापदादा मेरे ऑफिस का भी चक्कर लगाते हैं... मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी सेवाओं के लिए साधनों को यूज़ कर रही हूँ... अलौकिक सेवा करते-करते... ईश्वरीय पढ़ाई में भी मग्न हो जाती हूँ... साधन तथा साधना का बैलेन्स रखते हुए... पुरुषार्थ में तीव्रता लाकर... मैं आत्मा साधना स्वरूप बन गई हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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