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 12 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ आँखे बंद कर बाप को याद तो नहीं किया ?

 

➢➢ माया की धुल में ज्ञान श्रृंगार बिगाड़ा तो नहीं ?

 

➢➢ साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले कर्तापन के भान से मुक्त रहे ?

 

➢➢ विश्व को साक्ष दे विश्व राजन बनने का पुरुषार्थ किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अब अपने दिल की शुभ भावनाएं अन्य आत्माओं तक पहुंचाओ। साइलेन्स की शक्ति को प्रत्यक्ष करो। हर एक ब्राह्मण बच्चे में यह साइलेन्स की शक्ति है। सिर्फ इस शक्ति को मन से, तन से इमर्ज करो। एक सेकण्ड में मन के संकल्पों को एकाग्र कर लो तब फरिश्ते रूप द्वारा वायुमण्डल में साइलेन्स की शक्ति के प्रकम्पन्न फैला सकेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बेफिक्र बादशाह हूँ"

 

  सदा अपने को बेफिक्र बादशाह अनुभव करते हो? या थोड़ा-थोड़ा फिक्र है? क्योंकि जब बाप ने आपकी जिम्मेवारी ले ली, तो जिम्मेवारी का फिक्र क्यों? अभी सिर्फ रेस्पान्सिबिल्टी है बाप के साथ-साथ चलते रहने की। वह भी बाप के साथसाथ है, अकेले नहीं।

 

  तो क्या फिक्र है? कल क्या होगा-ये फिक्र है? जोब का फिक्र है? दुनिया में क्या होगा- ये फिक्र है? क्योंकि जानते हो कि-हमारे लिए जो भी होगा अच्छा होगा। निश्चय है ना। पक्का निश्चय है या हिलता है कभी ? जहाँ निश्चय पक्का है, वहाँ निश्चय के साथ विजय भी निश्चित है। ये भी निश्चय है ना कि विजय हुई पड़ी है।

 

  या कभी सोचते हो कि - पता नहीं होगी या नहीं? क्योंकि कल्प-कल्प के विजयी हैं और सदा रहेंगे-ये अपना यादगार कल्प पहले वाला अभी फिर से देख रहे हो। इतना निश्चय है ना कि कल्प-कल्प के विजयी हैं। इतना निश्चय है? कल्प पहले भी आप ही थे या दूसरे थे? तो सदा यही याद रखना कि हम निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं। ऐसे रत्न हो जिन रत्नों को बापदादा भी याद करते हैं। ये खुशी है ना? बहुत मौज में रहते हो ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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बापदादा बच्चों के मन की मेहनत नहीं देख सकते। 63 जन्म मेहनत की। अब एक जन्म मौजों का जन्म हैं, मुहब्बत का जन्म है, प्राप्तियों का जन्म है, वरदानों का जन्म हैं। मदद लेने का, मदद मिलने का जन्म हैं। फिर भी इस जन्म में भी मेहनत क्यों? तो अब मेहनत को मुहब्बत में परिवर्तन करो। महत्व से खत्म करो। आज बापदादा आपस में बहुत चिटचैट कर रहे थे, बच्चों की मेहनत परा क्या करते हैं, बापदादा मुस्करा रहे थे कि मन की मेहनत का कारण क्या बनता है, क्या करते हैं? टेढ़े बाँके, बच्चे पैदा करते, जिसका कभी मुँह नहीं होता, कभी टांग नहीं, कभी बांह नहीं होती। ऐसे व्यर्थ की वंशावली बहुत पैदा करते हैं और फिर जो रचना की तो क्या करेंगे? उसको पालने के कारण मेहनत करनी पडती। ऐसी रचना रचने के कारण ज्यादा मेहनत कर थक जाते हैं और दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। बहुत मुश्किल लगता है। है अच्छा लेकिन है बडा मुश्किल।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ 'बिन्दु' स्थिति में स्थित हो राज्य अधिकारी बन कार्य करना है। सर्व खजानों के 'बिन्दु' और 'सिंधु' यह दो बातें विशेष स्मृति में रख श्रेष्ठ सर्टिफिकेट लेना है। सदा ही श्रेष्ठ संकल्प की सफलता से आगे बढ़ते रहना। तो 'बिन्दु बनना, सिन्धु बनना' यही सर्व बच्चों प्रति वरदाता का वरदान है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- आँख खोलकर पढाई पढना"

➳  _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ बाबा की यादों में खोई हुई हूँ... प्यारे बाबा इतने दूर से आकर मुझे रोज पढ़ाते हैं... ज्ञान-योग से श्रृंगार करते हैं... हाथ पकडकर मुझे सबकुछ सिखाते हैं... रोज मीठी-मीठी समझानी देकर आगे बढ़ा रहे हैं... वरदानों, खजानों से मालामाल कर रहे हैं... निराकारी बाबा मुझे पढ़ाकर आप समान निर्विकारी बना रहे हैं... मनुष्य से देवता बना रहे हैं... मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य का चिन्तन करती हुई पहुँच जाती हूँ मीठे बाबा के पास...
 
❉   विजय माला में आने के लिए निश्चयबुद्धि बनने की शिक्षा देते हुए निराकार बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता इस धरा पर उतरकर, हथेली पर खजाने लिए बच्चों पर लुटाने आये है... टीचर रूप में अमूल्य ज्ञान की धारा लिये, बच्चों को काँटों से फूल सा पुनः खिलाने आये है... सदा इस निश्चय से भरकर यादो में खोये रहो... और विजयमाला मे पिरोकर विश्व के मालिक सा सज जाओ..."
 
➳  _ ➳  मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन निराकार रूहानी बाबा से पढकर ज्ञान रत्नों को धारण करते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ईश्वर पिता से पढ़ने वाली खुबसूरत भाग्य की धनी हूँ... मेरी तकदीर जगाने विश्व पिता धरा पर उतर आया है... मै आत्मा निराकार पिता से मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा पाने वाली महान तकदीर पा रही हूँ..."
 
❉   सत्य ज्ञान देकर अपने सारे खजाने मेरे नाम विल करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा निश्चयबुद्धि बनकर, ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर, देवताई सुखो से भर जाओ... निराकार बाबा ज्ञान रत्नों से सजाकर दिव्यता और शक्तियो का पुंज बना रहा है... सदा इस खुमारी में डूबे रहो... और साथी बनकर घर चलने की तैयारी में जुट जाओ..."
 
➳  _ ➳  मैं आत्मा रूहानियत की झलक से भरपूर होकर खुशियों के आसमान में उडती हुई कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपका मेरे जीवन में आना... और जीवन सुखो की जन्नत बन जाना, न जाने कौनसे पुण्य ने यह खुबसूरत दिन मन की आँखों को दिखलाया है... आपने मुझ पत्थरबुद्धि आत्मा को ज्ञान परी सा सजा दिया है... प्यारे बाबा मै आत्मा रोम रोम से आपकी शुक्रगुजार हूँ..."
 
❉   अपने यादों के साये के तले मेरे दामन में खुशियों के फूल बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बनकर विजयमाला में आने का पुरुषार्थ करो... देह की दुनिया से परे अपने अविनाशी स्वरूप में खोकर ज्ञान रत्नों से मन बुद्धि को सजाओ... और देवताई सौंदर्य से सज धज कर... सुनहरे सुखो में जीवन मुक्त अवस्था को पाओ... ऐसे ईश्वरीय दीवाने बन मुस्कराओ..."
 
➳  _ ➳  मैं आत्मा सत्य ज्ञान की किरणों में मुस्कुराते हुए बाबा के प्रेम सागर में डूबकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में असीम खुशियो में नाच रही हूँ... जीवन कितना खुबसूरत प्यारा और ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न हो गया है... मै आत्मा निराकार पिता को पाकर, झूठ के दायरे से निकल सत्य की रौशनी से चमक उठी हूँ..."
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- इस चित्र अर्थात देहधारी को सामने देखते हुए बुद्धि से विचित्र बाप को याद करना है"

➳ _ ➳  इस शरीर रूपी चित्र में भृकुटि के भव्यभाल पर विराजमान मैं मस्तकमणि विचित्र आत्मा हूँ यह समृति में लाकर मैं जैसे ही अपने विचित्र देही स्वरूप में स्थित होने का प्रयास करती हूँ, मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ जैसे देह रूपी चित्र का भान समाप्त होने लगा है और मैं अपने उस सत्य विचित्र स्वरूप में टिकने लगी हूँ जो देह रूपी चित्र के अन्दर छुपी हुई थी। इन स्थूल आंखों से अपने उस विचित्र स्वरूप को ना देख पाने के कारण आज दिन तक देह रूपी चित्र को ही मैं सच माने बैठी थी और इसलिए अपने वास्तविक विचित्र स्वरूप से अनजान मैं आत्मा अपने विचित्र बाप को भी भूल गई थी। इसी विस्मृति ने मेरी सुख शांति छीन मुझे दुखी और अशांत बना दिया था।

➳ _ ➳  शुक्रिया मेरे विचित्र बाप का जिन्होंने आकर देह रूपी चित्र में छुपे मेरे सत्य विचित्र स्वरूप का और अपने सत्य स्वरूप का मुझे यथार्थ परिचय देकर, मेरे ही अंदर समाये गुणों और शक्तियों से मुझे अवगत कराकर, हर दुख, हर पीड़ा से मुझे मुक्त होने का अति सहज रास्ता बता दिया। मन ही मन अपने प्यारे पिता का शुक्रिया अदा करके अब मैं अपने देह रूपी चित्र को भूल अपने अति सूक्ष्म निराकारी ज्योति बिंदु विचित्र स्वरूप में स्थित होकर अपने विचित्र बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ। सेकण्ड में देह और देह की नश्वर दुनिया से किनारा कर अपने मूल स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने विचित्र स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाती हूँ।

➳ _ ➳  सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न मेरे विचित्र स्वरूप का अनुभव मुझे गहन सन्तुष्टता का अनुभव करवा रहा है। जिस सुख शान्ति और आनन्द को पाने के लिए मैं बाह्यमुखता में भटक रही थी वो सुख शान्ति तो मेरे अपने ही अंदर रची बसी हुई है जिसे महसूस करने का सत्य ज्ञान आज पाकर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ। अब जब चाहे अपने विचित्र स्वरूप में स्थित होकर मैं सेकण्ड में सुख शांति प्राप्त कर सकती हूँ। यही संकल्प करते - करते अपने विचित्र स्वरूप की गहन अनुभूति करने के लिए अब मैं अंतर्मुखता की गुफा में पहुँच जाती हूँ जहाँ मैं स्वयं को साकारी देह से अलग एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और हर चीज से स्वयं को उपराम अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  इस उपराम स्थिति में स्थित हो कर धीरे - धीरे अब मैं ऊपर की ओर जा रही है। आकाश को पार करके, सूक्ष्म लोक से परें, एक ऐसी दुनिया में मैं पहुँच गई हूँ जहाँ मैं अपने चारों तरफ अपने ही समान जगमग करते हुए चैतन्य सितारों को देख रही हैं। देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु इस निराकारी दुनिया में नही है। एक अति सुखद साक्षी स्थिति में स्थित होकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे देह से मैं संकल्प मात्र भी अटैच नही हूँ। देह से डिटैच होने का यह अनुभव बहुत ही न्यारा और प्यारा है।

➳ _ ➳  एक दिव्य अलौकिक सुखमय स्थिति का अनुभव करते हुए निर्संकल्प हो कर अब मैं अपने सामने उपस्थित अपने विचित्र बाप को निहार रही हूँ। उन्हें देखने का यह सुख असीम आनन्द देने वाला है। अपने विचित्र पिता को निहारते - निहारते अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर कर रही हूँ। मेरे विचित्र पिता से आ रही शक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं । सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ ।

➳ _ ➳  अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में । नीचे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि मैं विचित्र हूँ और अपने विचित्र बाप की सेवा अर्थ मैंने इस शरीर रूपी चित्र का आधार लिया है। यह स्मृति देह में रहते भी देह से मुझे न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है। चित्र और विचित्र दोनों को अलग - अलग देखते हुए, चित्र को भूल, विचित्र बन, विचित्र बाप की याद में रह, अनेक दिव्य अलौकिक अनुभूतियों का आनन्द अपने ब्राह्मण जीवन में मैं हर पल ले रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाली कर्तापन के भान से मुक्त्त, अशरीरी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं विश्व को सकाश देकर विश्व राजन बनने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  स्व-चिंतन का मतलब क्या है? स्वचिन्तन इसको नहीं कहा जाता है कि सिर्फ ज्ञान की पाइन्ट्स रिपीट कर दी या ज्ञान की पाइन्ट्स सुन लीसुना दी-सिर्फ यही स्वचिन्तन नहीं है। लेकिन स्वचिन्तन अर्थात् अपनी सूक्ष्म कमजोरियों कोअपनी छोटी-छोटी गलतियों को चिन्तन करके मिटाना, परिवर्तन करनाये स्वचिन्तन है।

➳ _ ➳  बाकी ज्ञान सुनना और सुनाना उसमें तो सभी होशियार हो। वो ज्ञान का चिन्तन हैमनन है लेकिन स्वचिन्तन का महीन अर्थ अपने प्रति है। क्योंकि जब रिजल्ट निकलेगी तो रिजल्ट में यह नहीं देखा जायेगा कि इसने ज्ञान का मनन अच्छा किया या सेवा में ज्ञान को अच्छा यूज किया। इस रिजल्ट के पहले स्वचिन्तन और परिवर्तन, स्वचिन्तन करने का अर्थ ही है परिवर्तन करना।

➳ _ ➳  तो जब फाइनल रिजल्ट होगी, उसमें पहली मार्क्स प्रैक्टिकल धारणा स्वरूप को मिलेगी। जो धारणा स्वरूप होगा वो नैचरल योगी तो होगा ही। अगर मार्क्स ज्यादा लेनी है तो पहले जो दूसरों को सुनाते हो, आजकल वैल्यूज पर जो भाषण करते हो, उसकी पहले स्वयं में चेकिंग करो। क्योंकि सेवा की एक मार्क तो धारणा स्वरूप की १० मार्क्स होती हैं, अगर आप ज्ञान नहीं दे सकते हो लेकिन अपनी धारणा से प्रभाव डालते हो तो आपके सेवा की मार्क्स जमा हो गई ना।  

✺   ड्रिल :-  "स्वचिन्तन से अपनी सूक्ष्म कमजोरियों को मिटाना, परिवर्तन करना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... सर्वशक्तियों के सागर... अपने प्यारे पिता... शिवबाबा के पास... परमधाम में... जहाँ ज्ञान सूर्य अपनी सर्वशक्तियाँ चारों ओर बिखेर रहे हैं... मैं आत्मा शिवबाबा के सम्मुख... ज्ञान सूर्य के तेज़ को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... फिर बाबा को साथ लेकर सूक्ष्म वतन में जाती हूँ...

➳ _ ➳  मैं आत्मा बापदादा के सम्मुख... बाबा से कहती हूँ... बाबा मुझ आत्मा में अभी भी आलस्य, अलबेलेपन के सूक्ष्म संस्कार हैं... दूसरे की कमी कमजोरी दिखाई देती है... बाबा... मैं आत्मा आपकी याद से... दृढ़ता की चाबी यूज़ करते हुए... इन सूक्ष्म संस्कारों पर विजय प्राप्त करुँगी...

➳ _ ➳  बाबा... मुझ आत्मा को "विजयी भव" का वरदान देते हुए कहने लगे... बच्ची... अब इन पुराने संस्कार... स्वभाव को  दृढ़ संकल्प की तीली द्वारा... चेक कर फिर चेंज करो... यह समय उड़ती कला का है... इसलिये अब स्वचिंतन द्वारा स्वयं में परिवर्तन कर पुरुषार्थ को तीव्र करो...

➳ _ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की पेटी बाँध... स्व का चिंतन करती हूँ... पुराने स्वभाव... संस्कार... बाबा की याद से परिवर्तित हो रहे हैं... मैं आत्मा बाप समान... मीठी बन रही हूँ... दिव्य अलौकिक शक्तियां मुझ आत्मा में प्रवाहित हो रही हैं... अलबेलेपन और दूसरे की कमी कमजोरी देखने का संस्कार समाप्त हो गया है... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर... धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा समय की तीव्र गति के प्रमाण... स्वचिंतन द्वारा स्वयं के परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा संकल्प करते ही... निश्चित समय पर हर कर्म को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... बाबा द्वारा दी गयी हर श्रीमत को फॉलो कर हर परिस्थिति में अचल, अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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