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 15 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ इस दुनिया में किसी से दिल तो नहीं लगाई ?

 

➢➢ विशाल बुधी बन निडर होकर रहे ?

 

➢➢ सदा स्नेही बन उडती कला का वरदान प्राप्त किया ?

 

➢➢ नथिंग न्यू की स्मृति से सदा चल रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अभी ज्वालामुखी बन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव सब-कुछ भस्म करो। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से असुरों का संघार किया। असुर कोई व्यक्ति नहीं लेकिन आसुरी शक्तियों को खत्म किया। यह अभी आपकी ज्वाला-स्वरूप स्थिति का यादगार है। अब ऐसी योग की ज्वाला प्रज्जवलित करो जिसमें यह कलियुगी संसार जलकर भस्म हो जाये।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं राजयोगी आत्मा हूँ"

 

  अपने को राजयोगी अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन सा है? आसन किसको कहेंगे? भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं। कभी अपने स्वमान की स्थिति में स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है। कभी बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में स्थित होते तो वह दिलतख्त स्थिति आसन बन जाती है। जैसे आसन पर स्थित होते हैं, एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो। तो वेरायटी अच्छा लगता है ना। एक ही चीज कितनी भी बढिया हो, लेकिन वही चीज बार बार अगर यूज करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वेरायटी अच्छी लगेगी। तो बापदादा ने वेरायटी स्थितियों के वेरायटी आसन दे दिये है।

 

  सारे दिन में भिन्नभिन्न स्थितियों का अनुभव करो। कभी फरिश्ते स्थिति का, तो कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति का, कभी प्यार स्वरुप स्थिति अर्थात् लवलीन स्थिति के आसन पर बैठ जाओ। ओर अनुभव करते रहो। इतना अनुभवी बन जाओ, बस संकल्प किया फरिश्ता, सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। ऐसे नहीं , मेहनत करनी पड़े। सोचते रहो मैं फरिश्ता हूँ, और बार बार नीचे आ जाओ। ऐसी प्रैक्टिस है? संकल्प किया और अनुभव हुआ। जैसे स्थूल में जहाँ चाहते हो बैठ जाते हो ना। सोचा और बैठा कि युद्ध करनी पड़ती है - बैठँ या न बैठूँ?

 

  तो यह मन बुद्धि की बैठक भी ऐसी इजी होनी चाहिए। जब चाहो तब टिक जाओ। इसको कहा जाता है - राजयोगी राजा। राजा बनने का युग है। राजा क्या करता है? आर्डर करता है ना? राजयोगी जैसे मनबुद्धि को आर्डर करे, वैसे अनुभव करें। ऐसे नहीं कि मन-बुद्धि को आर्डर करो, फरिश्ता बनो और नीचे आ जाए। तो राजा का आर्डर नहीं माना ना। तो राजा वह जिसका प्रजा आर्डर माने। नहीं तो योग्य राजा नहीं कहा जायेगा। काम का राजा नहीं, नाम का राजा कहा जायेगा। तो आप कौन हो? सच्चे राजा हो। कर्मेन्द्रिया आर्डर मानती हैं? मन-बुद्धि संस्कार सब अपने आर्डर में हों। ऐसे नहीं, क्रोध काना नहीं चाहता लेकिन हो गया। बॉडी कान्सेस होना नहीं चाहता लेकिन हो जाता हूँ तो उसाके ताकत वाला राजा कहेंगे या कमजोर? तो सदैव यह चैक करो कि मैं राजयोगी आत्मा, राज्य अधिकारी हूँ? अधिकार चलता है? कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं देवे। आज्ञाकारी हों।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अभी विशेष काम क्या करेंगे। सुनाया था ना कि याद की यात्रा का, हर प्राप्ति का और भी अन्तरमुख हो, अति सूक्ष्म और गुह्य ते गुह्य अनुभव करो, रिसर्च करो, संकल्प धारण करो और फिर उसका परिणाम देखो, सिद्धि देखो - जो संकल्प किया वह सिद्ध हुआ या नहीं? जो शक्ति धारण की उस शक्ति की प्रैक्टिकल रिजल्ट कितने परसेन्ट रही?

 

✧  अभी अनुभवों की गुह्यता की प्रयोगशाला में रहना। ऐसे महसूस हो जैसे यह सब कोई विशेष लगन में मगन इस संसार से उपराम है। कर्म और योग का बैलेंस और आगे बढ़ाओ। कर्म करते योग की पावरफुल स्टेज रहे -  इसका अभ्यास बढ़ाओ। बैलेन्स रहना अर्थात तीव्र गति।

 

✧  बैलेन्स न होने के कारण चलते-चलते तीव्र गति की बजाए साधारण गति हो जाती है। तो अभी जैसे सेवा के लिए इन्वेंशन करते वैसे इन विशेष अनुभवों के अभ्यास के लिए समय निकालो और नवीनता लाकरके सबके आगे 'एक्जाम्पल' बनो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अगर अपनी सीट छोड़ते हो तो हार होती, सीट पर सेट होने वाले में शक्ति होती, सीट छोड़ी तो शक्तिहीन। तो मास्टर रचता की सीट पर सेट रहना है, सीट के आधार पर शक्तियाँ स्वत: आयेगी। नीचे नहीं आना, नीचे है ही देह अभिमान रूपी माया की धूल। नीचे आयेंगे तो धूल लग जायेगी अर्थात् शुद्ध आत्मा से अशुद्ध हो जायेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- देह सहित सब भूल जाना "

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की कुटिया में बैठ मीठे बाबा की यादों के झूले में झूल रही हूँ... बाबा अपने स्नेह भरे नैनों से मुझ पर स्नेह की वर्षा कर रहे हैं... प्यार भरे वरदानी हाथों से मुझ पर वरदानों की वर्षा कर रहे हैं... इस स्नेह, प्यार की बारिश में मुझ आत्मा का सारा मैल धुल रहा है... मुझ आत्मा का देह लोप होता जा रहा है... और मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होती जा रही हूँ... फिर बाबा मुझे फ़रिश्ता ड्रेस पहनाकर अपनी गोद में बिठाकर मीठी-मीठी शिक्षाएं देते हैं...

❉ प्यार की मीठी-मीठी रिमझिम करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... देहभान का त्यागकर सच्चे त्यागी बनकर, सदा का भाग्य बना लो... कर्मेन्द्रियों के आकर्षण से मुक्त होकर न्यारे और प्यारे होकर फ़रिश्ता बन उड़ जाओ... अपने हर कर्म से न्यारे हो... निराकारी स्वरूप में खो जाओ... इस धरा पर मेहमान होकर महानता से सज जाओ..."

➳ _ ➳ हद के वैभवों का त्याग कर बेहद बाबा के दिल की तिजोरी में बंद होकर मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा इस मटमैली दुनिया और मिटटी के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कराती जा रही हूँ और अपने तेजस्वी चमक को पाती जा रही हूँ... आपकी यादो में फ़रिश्ता रूप पाकर उड़ रही हूँ... देहभान से मुक्त होकर... अपनी खुबसूरत आत्मा छवि पर फ़िदा हो गयी हूँ..."

❉ यादों के विमान में बिठाकर ऊँचे आसमान की सैर कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में गहरे डूब जाओ... और शक्तियो से सम्पन्न होकर सभी के सहयोगी हो जाओ... सदा त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ... हर कदम पर फॉलो फादर कर... इस दुनिया में स्वयं को मेहमान समझ सदा के महान बन जाओ... बेहद के सन्यासी बनकर सतयुगी सुखो के अधिकारी बनो..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा गुल-गुल फूल बनकर अपनी रूहानियत से इस विश्व को महकाते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में स्वयं खिलकर सबकी सहयोगी बन गयी हूँ... इस धरा पर मेहमान होकर... महानता से भर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चलकर,फ़रिश्ता बन हदो से पार हो गयी हूँ..."

❉ अपने प्यार के ब्रश को गुण-शक्तियों के रंग में डुबोकर मुझे रंगते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय प्यार में स्वयं को इतना भर दो... की खुबसूरत स्थिति से परिस्थिति के पहाड़ो पर से सहज ही उड़ जाओ... सदा समर्थ आत्मा बन मुस्कराओ... निमित्त और निर्माणता से सजधज कर... सबको निर्विघ्न बनाने की सच्ची सेवा करते रहो..."

➳ _ ➳ खुशियों की परी बनकर विश्व धरा पर स्नेह के फूल बरसाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको मीठी खुशियो का पता देने वाली,ज्ञान बुलबुल बन, बाबा की दिल बगिया में मुस्करा रही हूँ... मीठे बाबा आपकी यादो में हल्की खुशनुमा हो, सदा की विजयी बन रही हूँ... और समर्थ संकल्पों से खुबसूरत दुनिया की मालिक बन रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- पुण्य आत्मा बनने के लिए कोई भी पाप अब नहीं करना है"

➳ _ ➳ जिस महान भूमि भारत मे परमात्मा का अवतरण हुआ उस भारत भूमि का भ्रमण करने की इच्छा से अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर मैं देह से बाहर निकलती हूँ और ऊपर आकाश में उड़ते हुए अपने उस महान भारत भूमि पर हो रही सभी गतिविधियों को देखने मे मगन हो जाती हूँ। एक बहुत बड़े धार्मिक स्थल के रूप में अपनी इस भारत भूमि को मैं देख रही हूँ। लोगों के मन मे परमात्मा के प्रति अगाध प्रेम और विश्वास देख रही हूँ। भगवान के नाम पर लोगो द्वारा किये जाने वाले उन कर्मकांडो को देख रही हूँ जिसे मनुष्य बहुत बड़ा पुण्य समझ कर करते जा रहें हैं। लेकिन उस परमात्मा की सही पहचान ना होने के कारण बेचारे पुण्य कमाने के लिए भक्ति के जो भी कर्मकांड पुण्य कार्य समझ कर रहें हैं उससे उन्हें प्राप्ति केवल अल्पकाल की ही मिल रही है।

➳ _ ➳ इन सभी दृश्यों को देखता हुआ मैं फ़रिश्ता मन ही मन विचार करता हूँ कि वास्तव में तो पुण्य का खाता जमा करने का केवल एक ही उपाय है और वो है परमात्मा की मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करना और सबसे बड़ा पुण्य है सबको परमात्मा का यथार्थ परिचय दे उन्हें इन व्यर्थ के कर्मकांडो से मुक्त करना। यही पुण्य का खाता अब मुझे जमा करना है, मन ही मन इस दृढ़ संकल्प के साथ अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में पूरे भारत का चक्कर लगाकर अब मैं फ़रिश्ता आकाश से ऊपर उड़ जाता हूँ और फरिश्तो की आकारी दुनिया अपने अव्यक्त वतन में पहुँच जाता हूँ। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित मैं देख रही हूँ इस पूरे वतन में चारों और फैले चाँदनी जैसे सफेद प्रकाश को जो मन को गहन सुकून दे रहा है। फरिश्तों की इस खूबसूरत दुनिया में चारों और अपनी श्वेत रश्मियाँ बिखरते हुए हजारों फरिश्ते एक साथ उड़ते हुए बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहें हैं।

➳ _ ➳ अपनी बाहों को फैलाये अव्यक्त बापदादा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में मेरे बिल्कुल सामने खड़े हैं। जिस भगवान की एक झलक पाने के लिए मैं भटक रही थी वो मेरे प्यारे प्रभु मेरे सामने, अपने आकारी रथ पर विराजमान अपनी बाहों में मुझे भरने के लिए जैसे व्याकुल है। उनसे बिछुड़ने की जन्म - जन्म की प्यास बुझाने के लिए, उनके समान लाइट की आकारी देह धारण किये मैं धीरे - धीरे उनके पास जा रही हूँ और उनकी बाहों में समाकर उनके असीम स्नेह से स्वयं को तृप्त कर रही हूँ। बापदादा की दृष्टि और उनके मस्तक से स्नेह की अनन्त धारायें निकल कर निरन्तर मेरे ऊपर प्रवाहित हो रही हैं। बाबा अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटा कर मुझे आप समान मास्टर स्नेह का सागर बना रहें हैं। अपने स्नेह की शीतल किरणे मुझ पर प्रवाहित करने के साथ - साथ बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ भी मेरे अंदर भरते जा रहें हैं।

➳ _ ➳ अपने प्यारे प्रभु से अव्यक्त मिलन मना कर, उनका अथाह स्नेह पाकर अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे भगवान से उनके निराकार स्वरूप में मिलन मनाने उनके निराकारी घर परमधाम की ओर जा रही हूँ। चमकते हुए चैतन्य सितारों की इस दुनिया में अब मैं स्वयं को देख रही हूँ ज्ञानसूर्य निराकार अपने शिव पिता के सम्मुख।जिनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें धीरे - धीरे मुझे स्पर्श कर रही हैं। मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियो की किरणों का स्पर्श मुझे मीठा - मीठा सुखद अनुभव करवा रहा है। एक अद्भुत रूहानी नशे से भरपूर होकर मैं आत्मा असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा की इन सर्वशक्तियों से मेरे चारों तरफ शक्तियों का एक अति सुंदर कार्ब बन गया है। प्रकाश के इस शक्तिशाली कार्ब के साथ मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट कर अपने साकारी तन में, भृकुटि के भव्यभाल पर आकर विराजमान हो गई हूँ।

➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और अपने प्यारे पिता की श्रेष्ठ मत पर चल, श्रेष्ठ कर्म करके पुण्य का खाता जमा करने का पुरुषार्थ कर रही हूँ। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परमात्म परिचय दे कर, उन्हें उनके पारलौकिक पिता से मिलवा कर मैं कदमो में पदमों की कमाई जमा कर रही हूँ। पूरे कल्प में केवल संगमयुग का यह थोड़ा सा समय ही मोस्ट वैल्यूबुल है जबकि भगवान स्वयं पुण्य का खाता जमा करने का सहज उपाय बता रहें हैं। उस उपाय को अच्छी रीति जान, उस पर चलकर, पुण्य जमा कर दूसरों को भी वह उपाय बताकर उनहे भी पुण्य का खाता जमा करने का रास्ता बता कर, अपने समय, संकल्प और श्वासों को अब मैं स्वयं भी अच्छी तरह सफल कर रही हूँ तथा औरों को भी करवा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सदा स्नेही बन उड़ती कला का वरदान प्राप्त करने वाली निश्चिन्त विजयी, निश्चिन्त आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ नथिंग न्यू की स्मृति से सदा अचल रह कर खुशी में नाचते रहने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ कुमार जीवन में बाप का बनना- कितने भाग्य की निशानी है! ऐसे अनुभव करते हो कि हम कितने बन्धनों में जाने से बच गये? कुमार जीवन अर्थात् अनेक बन्धनों से मुक्त जीवन। किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं। देह के भान का भी बन्धन न हो। इस देह के भान से सब बन्धन आ जाते हैं। तो सदा अपने को आत्मा भाई-भाई हैं - ऐसे ही समझकर चलते रहो। इसी स्मृति से कुमार जीवन सदा निर्विघ्न आगे बढ़ सकती है। संकल्प वा स्वप्न में भी कोई कमज़ोरी न हो इसको कहा जाता है - विघ्न विनाशक। बस चलते फिरते यह नैचरल स्मृति रहे कि हम आत्मा हैं। देखो तो भी आत्मा को, सुनो तो भी आत्मा होकर। यह पाठ कभी भी न भूले।

➳ _ ➳ कुमार सेवा में तो बहुत आगे चले जाते हैं लेकिन सेवा करते अगर स्व की सेवा भूले तो फिर विघ्न आ जाता है। कुमार अर्थात् हार्ड वर्कर तो हो ही लेकिन निर्विघ्न बनना है। स्व की सेवा और विश्व की सेवा दोनों का बैलेन्स हो। सेवा में इतने बिजी न हो जाओ जो स्व की सेवा में अलबेले हो जाओ। क्योंकि कुमार जितना अपने को आगे बढ़ाने चाहें बढ़ा सकते हैं। कुमारों में शारीरिक शक्ति भी है और साथ-साथ दृढ़ संकल्प की भी शक्ति है इसलिए जो चाहे कर सकते हैं, इन दोनों शक्तियों द्वारा आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन बैलेंस की कला चढ़ती कला में ले जाएगी। स्व सेवा और विश्व की सेवा, दोनों का बैलेंस हो तो निर्विघ्न वृद्धि होती रहेगी।

✺ "ड्रिल :- स्व की सेवा और विश्व की सेवा दोनों का बैलेंस बनाए रखना "

➳ _ ➳ बारिश की भीनी भीनी फुहार है, आसमान में निकला हुआ रंग बिरंगा इंद्रधनुष है और हरी-भरी सी प्रकृति है... इंद्रधनुष के रंगों से आसमान में रौनक है, रिमझिम फुहारों से पेड़ों के पत्तों पर मोतियों सी चमकती हुई बारिश की बूंदें हैं... मेरा मन इंद्रधनुष पे विराजमान है... इंद्रधनुष में अपने आपको देखकर मैं अत्यंत शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ... मैं बड़ी ही सरलता से इस विश्व को देख सकती हूं... इंद्रधनुष में बैठकर मैं अपनी सुनहरी किरणों से इस धरा पर देखती हूं और मुझे एक चित्र दिखाई देता है जहां मैं देखती हूं कि कुछ कुमार कुमारियाँ स्वतंत्र भाव से खेल रहे हैं और बहुत हर्षित हो रहे हैं...

➳ _ ➳ सभी कुमार कुमारियाँ निर्बंधन होकर आनंद भाव से खेल रहे हैं... अपनी युवा अवस्था का वह खेल-खेल कर भरपूर आनंद ले रहे हैं... जैसे ही उन्हें आसमान में इंद्रधनुष दिखाई देता है वह दौड़कर एक स्थान पर इकट्ठे हो जाते हैं और इंद्रधनुष को बहुत गहराई से देखते हैं... मैं भी फिर से इंद्रधनुष पर बैठकर उन्हें देखने लगती हूं... देखते-देखते हम एक दूसरे से बातें करने लगते हैं... मैं उन युवाओं से पूछती हूं... आप इस समय रोज खेलते हैं? तो वह युवा उछलते कूदते हुए मुझे उत्तर देते हैं... नहीं, हम किसी भी समय और किसी भी स्थान पर हमेशा खेलते हैं, हम इस युवा अवस्था में खेल खेल कर और निर्बंधन होकर आनंदित हो रहे हैं, हम भरपूर आनंद का अनुभव कर रहे हैं...

➳ _ ➳ मैं अपने रंग बिरंगी चमकीली किरणें उन पर डालते हुए उन्हें कहती हूं... क्या तुम अपने इस निर्बंधन और स्वतंत्र अवस्था में और भी आनंदित होना चाहते हो? अपनी और विश्व की सेवा करना चाहते हो? वह सभी बालक उछलते हुए मुझे हां बोलते हैं... तभी मैं उन सभी युवा को मन बुद्धि से एक ऊंची पहाड़ी पर ले जाती हूं... जैसे ही हम पहाड़ी पर पहुंचते हैं, मैं बाबा का आह्वान करती हूं... बाबा का आह्वान करते ही बाबा रंग बिरंगी किरणों को बिखेरते हुए ज्योति बिंदु स्वरूप में आ जाते हैं और उन सभी आत्माओं से बातें करते हैं... और बाबा कहते हैं... हे आत्माओं बहुत समय तुमने खेल-खेल कर व्यर्थ में गुजार दिए परंतु इससे तुम्हें अल्पकाल की खुशी ही प्राप्त हुई है... मैं तुम्हें अल्पकाल से अनादि काल तक खुशियों का अनुभव कराने आया हूं... जिससे तुम जन्मों-जन्मों तक खुशियों का भरपूर आनंद ले सकते हो...

➳ _ ➳ और परमात्मा कहते हैं... कि तुम्हारी यह युवा अवस्था ही तुम्हारे लिए उन्नति का और खुशियों का मार्ग है, तुम्हें अभी कोई किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है, ना कोई चिंता है इसलिए हे आत्माओं युवा अवस्था को तुम अपने लिए आगे बढ़ने का रास्ता बनाओ... परमात्मा द्वारा दिए हुए कार्यों से सेवा कर तुम स्वयं की और विश्व की सेवा बड़ी ही सरलता से और बैलेंस से कर सकते हो... आप सभी आत्माओं में दृढ़ संकल्प और बैलेंस करने की शक्ति है, इसलिए जो चाहे कर सकते हो, अपनी और विश्व की सेवा बड़ी ही सरलता से और निर्विघ्न होकर कर सकते हो... तुम्हारे रास्ते में कभी कोई विघ्न नहीं आ सकता...

➳ _ ➳ इतना सुनकर वह सभी आत्माएं बाबा को थैंक्स करती हैं और निर्विघ्न और बैलेंस बनाते हुए आगे बढ़ने का वादा करती हैं... और वह सभी आत्माएं फिर से मेरे साथ इंद्रधनुष पर बैठ कर वापस अपने कर्म भूमि पर आ पहुंचती हैं, जहां पहले वह सभी युवा खेल रहे थे... वहां अब सभी पहुंचकर आपस में स्वयं और विश्व की सेवा करने का वादा करते हैं और आगे बढ़ने का संकल्प करते हैं... सभी आत्माएं सेवा करने की नई नई योजनाएं बनाती हैं... उनका यह चित्र देखकर मैं आत्मा अति हर्षित होती हूं और इंद्रधनुष से अपने मन बुद्धि को निकाल कर वापस अपने कर्म भूमि पर और इस देह में वापस आ जाती हूं... और मैं भी अंदर ही अंदर यह दृढ़ संकल्प करती हूं कि आज से मैं हमेशा निर्विघ्न और निर्बंधन होकर सेवा करूंगी, जिससे मैं अपनी और इस विश्व की सेवा बड़ी ही सरलता से कर पाऊंगी और मैं भी निर्विघ्न स्थिति का आनंद ले पाऊंगी और चल देती हूं फिर मैं अपने इस पुरुषार्थ में...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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