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❍ 28 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ सच्ची गीता सुनी और सुनायी ?
➢➢ अपना सबा कुछ सफल किया ?
➢➢ दृढ़ संकल्प की तीली से आत्मिक बोम्ब की आतिशबाजी जलाई ?
➢➢ विशेष कार्य में मददगार बन दुआओं की लिफ्ट ली ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ कर्मातीत स्थिति को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति धारण करना आवश्यक है। कर्मबन्धनी आत्माएं जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं और कर्मातीत आत्मायें एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं क्योंकि कर्मातीत हैं। उनकी स्पीड बहुत तीव्र होती है, सेकण्ड में जहाँ चाहे वहॉ पहुँच सकती हैं, तो इस अनुभूति को बढ़ाओ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं राजऋषि हूँ"
〰✧ सदा अपने को 'राजऋषि' समझते हो? एक तरफ है राज्य, दूसरे तरफ है वैराग - दोनों का बैलेन्स हो। बेहद का वैराग, वैराग नहीं लेकिन प्राप्तिस्वरूप बना देता है क्योंकि पुरानी दुनिया से वैराग लाते हो और नई दुनिया के मालिक बन जाते हो।
〰✧ तो नाम वैराग है लेकिन मिलती प्राप्ति है। छोड़ने में ही लेना है। एक देते हो और पदम् लेते हो! तो बेहद का वैराग राज्य भाग्य दिलाने वाला है। एक जन्म के लिए वैराग अनेक जन्मों के लिए सदा श्रेष्ठ भाग्य। ऐसे राजऋषि हो?
〰✧ राजऋषि कुमार और कुमारियों का ही गायन है। ऐसी राजऋषि आत्माओंको विश्व की आत्मायें दिल से प्यार करती है। चैतन्य से भी ज्यादा आपके जड़ चित्रों को प्यार से याद करते हैं। क्योंकि त्याग का भाग्य प्राप्त हुआ है। तो ऐसे राजऋषि आत्मायें हैं - इस नशे में सदा रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आवाज में आना सहज लगात है ना। ऐसे ही आवाज से परे होना इतना ही सहज लगता है? आवाज में आना सहज है वा आवाज से परे होना सहज है? आवाज में आना सहज है और आवाज से परे होने में मेहनत लगती है? वैसे आप आत्माओं का आदि स्वरूप क्या है? आवाज से परे रहना या आवाज में आना?
〰✧ तो अभी मुश्किल क्यों लगता है? 63 जन्मों ने आदि संस्कार भूला दिया है। जब अनादि स्थान 'परमधाम' आवाज से परे है, वहाँ आवाज नहीं है और आदि स्वरूप आत्मा में भी आवाज नहीं है - तो फिर आवाज से परे होना मुश्किल क्यों?
〰✧ यह मध्य-काल का उल्टा प्रभाव कितना पक्का हो गया है। ब्राह्मण जीवन अर्थात जैसे आवाज में आना सहज वैसे आवाज से परे हो जाना - यह भी अभ्यास सहज हो जाये। इसकी विधि है - राजा होकर के चलना और कर्मन्द्रियों को चलाना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ मीठे बच्चे, अपने चलन और चेहरे से फ़रिश्ते स्वरूप को प्रत्यक्ष करो ! बापदादा नवीनता देखने चाहते हैं। सब अच्छे हो, विशेष भी हो, महान भी हो लेकिन बाप की प्रत्यक्षता का आधार है- साधारण कार्य में रहते हुए भी फ़रिश्ते की चाल और हाल हो। बापदादा यह नहीं देखने चाहते कि बात ऐसी थी, काम ऐसा था, सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी, इसीलिए साधारणता आ गई।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- योगबल से विश्व का राज्य लेना"
➳ _ ➳ मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा अपने स्व सिंहासन पर बैठकर मन बुद्धि रूपी
नेत्रों से चमकती हुई मणि को देख रही हूँ... मैं आत्मा भृकुटि के मध्य में
प्रज्ज्वलित एक दिव्य ज्योति हूँ... एक चमकती हुई दीपशिखा हूँ... एक जगमगाता
सितारा हूँ... कितना ही भव्य स्वरूप है मेरा... अपने स्व स्वरुप के स्वमान में
टिककर मैं आत्मा अपने परमपिता को याद करती हूँ... प्यारे पिता परमात्मा दूरदेश
से आकर सारे चक्र का राज समझाकर श्रीमत देते हैं...
❉ एक धर्म, एक राज्य स्थापन करने की जादूगरी सिखाते हुए प्यारे बाबा कहते
हैं:- “मेरे लाडले बच्चे... यादो में बैठकर जो सत्य स्वरूप को दमकाओगे तो
भारत स्वर्ग हुआ पड़ा है... योग बल के दम पर भारत को सुखो का स्वर्ग बना कर एक
राज्य एक धर्म का जादू करने वाले जादूगर हो... ईश्वरीय यादे धरा को सुखो का
स्वर्ग बना देंगी यह गैरन्टी है...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा से हर घडी यादों के सागर में मिलन मनाती हुई
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके सागर समान प्रेम को पाकर
प्रेम स्वरूप हो गयी हूँ... मेरा रोम रोम प्रेम से भरा हुआ है... सबको ख़ुशी और
सुखो की सौगात दिए चली जा रही हूँ...”
❉ प्यारे बाबा शिक्षाएं देकर, श्रीमत पर चलना सिखाकर स्वर्ग सुखों का वरदान
देते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... आप ईश्वरीय बच्चों के सिवाय
कोई भी यह गैरन्टी कर न सके कि विश्व में रामराज्य फिर आएगा... एकता से महकता
जहान होगा और हर दिल खुशियो में गायेगा मुस्करायेगा और भारत सोने की चिड़िया बन
इठलायेगा...”
➳ _ ➳ योगबल से भारत को स्वर्ग बनाने की गैरन्टी करते हुए योग की शीतल
फुहारों में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा
योगबल से कितनी खूबसूरत होती जा रही हूँ... अपने सुंदर सजीले स्वरूप और प्यारे
बाबा पर फ़िदा होती जा रही हूँ... पूरे भारत को सुखो की खान बनाकर विजयी हो
मुस्करा रही हूँ...”
❉ मेरा बाबा संगमयुग पर कदम कदम पर पद्मों का वरदान देते हुए कहते हैं:-
“प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय यादो के बल से भारत को स्वर्ग बनाने में
सक्षम हो... सतयुगी सुख और आनन्द को फिर से बाँहो में भरने का बूता ईश्वरीय
बच्चों का ही है... यादो में रहकर खुद भी मुस्कराते हो और पूरे विश्व को
मुस्कराहटों से सजा आते हो... सुखो की यह गेरेंटी आप ही दे सकते हो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा तकदीर की लम्बी लकीर खींचने की कलम प्यारे बाबा से पाकर कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खुद भी निखरती हूँ
और पूरे भारत को भी सुखो से सजाती हूँ... सत्य स्वरूप को धारणाओं में जीकर...
सारा जहान खुशियो की बगिया बनाकर महकाती हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- कलियुगी संबंध जो कि इस समय बंधन है, उन्हें भूल स्वयं को संगमयुगी ब्राह्मण
समझना है"
➳ _ ➳ संगमयुग पर प्रीत की रीत निभाने के लिए भगवान स्वयं आकर, सर्व सम्बन्धों
का सुख देते हैं और मृत्यु लोक के आसुरी बन्धनों से छुड़ा कर सुख के सम्बन्ध में
ले जाते हैं। इसका प्रेक्टिकल अनुभव बाबा अपने हर ब्राह्मण बच्चे को करवाते
हैं। कितने सौभाग्य शाली हैं वो ब्राह्मण बच्चे जो सारी सृष्टि के रचयिता, ऑल
माइटी अथॉरिटी भगवान के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ कर हर सम्बन्ध का भरपूर सुख लेते
हैं। यह विचार करते - करते अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज होता है। और
अपने भाग्य की सराहना करती, अपने प्यारे बाबा की दिल को सुकून देने वाली मीठी
यादों में मैं खो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने दिलराम बाबा की मीठी यादों में खोई हुई मैं अनुभव करती हूँ जैसे
मेरे मीठे बाबा ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान, अपने लाइट माइट स्वरूप
में मेरे बिल्कुल सामने खड़े हैं और बड़े प्यार से मुझे निहारते हुए मन्द - मन्द
मुस्करा रहें हैं और मुस्कराते हुए जैसे मुझ से पूछ रहे हैं:- "कभी सोचा था कि
भगवान ऐसे मिलेंगे! साकार में आकर पालना करेंगे! सर्व सम्बन्धों का सुख देंगे!
➳ _ ➳ मन ही मन अपने प्यारे बाबा के सवालों का जवाब देते हुए मैं बाबा की तरफ
मुस्कराते हुए देखती हूँ और कहती हूँ:- प्राणों से प्यारे मेरे बाबा, कभी
स्वप्न में भी नही सोचा था कि आप मुझे ऐसे मिल जाओगे। अपने प्यार से मेरे जीवन
में खुशियां भर दोगे। मृत्युलोक के बन्धनों में रहते सुख के सम्बन्ध का अनुभव
करवाकर इन बन्धनों से मुक्त होने का मुझे रास्ता दिखाओगे। मेरे बेरंग जीवन मे
अपने प्रेम का रंग भर कर मेरे जीवन को रंगीन बना दोगे।
➳ _ ➳ बाबा को एकटक निहारती मैं मन ही मन बाबा के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान
करते - करते अनुभव करती हूँ कि बाबा के मस्तक से बहुत तेज लाइट निकल कर जैसे -
जैसे मेरे ऊपर पड़ रही है मेरा स्वरूप एक दम लाइट होता जा रहा है। बाप समान
लाइट माइट बन कर अपने फ़रिशता स्वरूप में अब मैं बाबा का हाथ थामे अव्यक्त वतन
की ओर जा रही हूँ। स्वयं भगवान मेरा साथी, मेरा साजन, मेरा दोस्त बन मेरा हाथ
थामे मुझे सारे भू लोक की सैर करवा रहा है, यह विचार ही मुझे एक अलौकिक रूहानी
मस्ती से भरपूर कर रहा है।
➳ _ ➳ बाबा के साथ पूरे विश्व की सैर करते - करते आकाश को पार कर मैं पहुँच
जाती हूँ अव्यक्त वतन में जो सफेद चांदनी में डूबा बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा
है। इस अव्यक्त वतन में पहुँच कर बाबा के प्रेम की शीतल छाया में बैठ स्वयं को
तृप्त करने के बाद, प्वाइंट ऑफ लाइट बन मैं आत्मा अव्यक्त वतन से ऊपर की ओर उड़
चलती हूँ और पहुँच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया शान्ति धाम में। बीजरूप
निराकार शिव बाबा से मिलन मना कर, उनके साथ सम्बन्ध जोड़ कर, उनकी अनन्त
शक्तियों को स्वयं में समा कर, शक्तिस्वरूप बन मैं वापिस साकार लोक में लौट आती
हूँ।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे, साकारी ब्राह्मण तन मे भृकुटी सिहांसन पर बैठ अब मैं
इस मृत्यलोक के बन्धनों में रहते हुए भी सुख के सम्बन्ध को याद कर, स्वयं को
निर्बन्धन अनुभव करती हूँ और अपार खुशी में रहती हूँ। सर्व सम्बन्धों का सच्चा
रूहानी प्यार अपने दिलाराम बाबा से लेते देहधारियो के झूठे प्यार की झूठी आश से
अब मैं सदा मुक्त रहती हूँ। देह में रहते भी, ईश्वरीय सम्बन्ध का अनुभव अब
मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है। ईश्वरीय याद में रह योगबल
से पुराने कर्मबन्धनों के हिसाब किताब चुकतू हो रहें हैं और साथ ही साथ ईश्वरीय
सुख के सम्बन्ध का अनुभव, मुक्ति में रहते भी जीवनमुक्त स्थिति की अनुभूति
करवाकर मेरे जीवन को आनन्दमयी बना रहा है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं दृढ संकल्प की तीली से आत्मिक बाम्ब की आतिशबाजी जलाने वाली सदा विजयी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं किसी विशेष कार्य में मददगार बनकर दुआओं की लिफ्ट लेने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ संगमयुग पर ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं हो सकते। इसलिए सिर्फ जब सेवा में, कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते हो ना तो साथ भी भूल जाते हो और फिर थक जाते हो। फिर कहते हो थक गये, अभी क्या करें! थको नहीं, जब बापदादा आपको सदा साथ देने के लिए आये हैं, परमधाम छोड़कर क्यों आये हैं? सोते, जागते, कर्म करते, सेवा करते, साथ देने के लिए ही तो आये हैं। ब्रह्मा बाप भी आप सबको सहयोग देने के लिए अव्यक्त बनें। व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ़्तार बहुत तीव्र है, इसलिए ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज कर दिया। तो शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय आप सबको सहयोग देने के लिए सदा हाजिर हैं। आपने सोचा बाबा और सहयोग अनुभव करेंगे। अगर सेवा, सेवा, सेवा सिर्फ वही याद है, बाप को किनारे बैठ देखने के लिए अलग कर देते हो, तो बाप भी साक्षी होकर देखते हैं, देखें कहाँ तक अकेले करते हैं। फिर भी आने तो यहाँ ही हैं। तो साथ नहीं छोड़ो। अपने अधिकार और प्रेम की सूक्ष्म रस्सी से बांधकर रखो। ढीला छोड़ देते हो। स्नेह को ढीला कर देते हो, अधिकार को थोड़ा सा स्मृति से किनारा कर देते हो। तो ऐसे नहीं करना।
➳ _ ➳ जब सर्वशक्तिवान साथ का आफर कर रहा है तो ऐसी आफर सारे कल्प में मिलेगी? नहीं मिलेगी ना? तो बापदादा भी साक्षी होकर देखते हैं, अच्छा देखें कहाँ तक अकेले करते हैं! तो संगमयुग के सुख और सुहेजों को इमर्ज रखो। बुद्धि बिजी रहती है ना तो बिजी होने के कारण स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सोचो सारे दिन में किसी से भी पूछें कि बाप याद रहता है या बाप की याद भूलती है? तो क्या कहेंगे? नहीं। यह तो राइट है कि याद रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहता है या मर्ज रहता है? स्थिति क्या होती है? इमर्ज रूप की स्थिति या मर्ज रूप की स्थिति, इसमें क्या अन्तर है? इमर्ज रूप में याद क्यों नहीं रखते? इमर्ज रूप का नशा शक्ति, सहयोग, सफलता बहुत बड़ी है। याद तो भूल नहीं सकते क्योंकि एक जन्म का नाता नहीं है, लेकिन प्रिंसिपल चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होगा लेकिन नाता तो यही रहेगा ना ! भूल नहीं सकता है, यह राइट है। हाँ कोई विघ्न के वश हो जाते हो तो भूल भी जाता है लेकिन वैसे जब नेचरल रूप में रहते हो तो भूलता नहीं है लेकिन मर्ज रहता है। इसलिए बापदादा कहते हैं - बार-बार चेक करो कि साथ का अनुभव मर्ज रूप में है या इमर्ज रूप में? प्यार तो है ही। प्यार टूट सकता है? नहीं टूट सकता है ना? I तो प्यार जब टूट नहीं सकता तो प्यार का फायदा तो उठाओ। फायदा उठाने का तरीका सीखो।
✺ ड्रिल :- "सर्वशक्तिवान के साथ का इमर्ज रूप में अनुभव"
➳ _ ➳ मैं संगमयुगी ब्रह्मकुमारी... ब्रह्मा मुखवंशावली... श्रेष्ठ आत्मा हूँ... बाबा ने कहा है संगमयुग पर... ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं है... बापदादा ने हमेशा साथ देने का वादा किया है... लेकिन बच्चे ही बापदादा के साथ को भूल जाते हैं... जब सेवा में... कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते है... तो साथ को भूल जाते... फिर थक जाते है... बच्चे थकते ही तब हैं... जब साथ का अनुभव नहीं करते हैं... जब बाबा को साथ लेकर नहीं चलते हैं... फिर कहते हैं... बाबा अब क्या करें... तो बाबा ने कहा है... बच्चे थको नहीं... बच्चे बाबा तो आए ही हैं... आपको सदा साथ देने के लिए... अपना परमधाम छोड़कर... मैं आत्मा बाबा की इस बात को अब हमेशा याद रखती हूं... और हर पल बाबा के साथ रहती हूँ... कैसी भी सेवा हो... बिना विघ्न और थकावट के पूर्ण करती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सोते... जागते... कर्म करते... सेवा करते... बाबा के साथ को हमेशा यूज करती हूं...क्योंकि मुझे पता चल गया है... बाबा साथ देने के लिए ही तो आये हैं... ब्रह्मा बाप भी मुझ आत्मा को... सहयोग देने के लिए ही अव्यक्त बनें... ब्रह्मा बाबा के व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ़्तार बहुत तीव्र है... अव्यक्त रूप में सेवा ज्यादा देने के लिए ही... ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज किया है... अब तो मुझ आत्मा को... शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय... सहयोग देने के लिए सदा हाजिर है... जब भी मैं आत्मा सोचती हूँ.... बाबा मेरे साथी मेरे पास आ जाओ तो... बाबा मेरे सामने हाजिर - नाजिर होते जाते हैं... मैं आत्मा बाबा के सहयोग और साथ का अनुभव करने लगती हूँ... कभी - कभी मुझ आत्मा को सेवा... और सिर्फ सेवा ही याद रहती है... मैं आत्मा बाबा को किनारे कर देती हूँ... बाप भी किनारे बैठ कर... देखते रहते हैं और मुस्कुराते रहते हैं... की बच्ची किस तरह मेहनत कर रही है... ये सब कुछ बाबा साक्षी होकर... दूर बैठे देखते रहते हैं कि... बच्चे कहाँ तक अकेले करते... बाबा भी जानते हैं कि अंत में थक हार के... आना मेरे पास ही हैं... इसलिए मैं आत्मा अब... हर छोटे से छोटे कार्य में पहले बाबा को रखती हूँ... मैं आत्मा तो सिर्फ निमित्त मात्र हूँ... करनहार तो मेरे सर्व शक्तिमान बाबा है...
➳ _ ➳ वाह मैं आत्मा कितनी धन्य हूँ... जिसके साथ के लिए तपस्वी इतनी कठिन तपस्या करते हैं... वो सर्वशक्तिवान परम पिता स्वयं मुझे साथ का आफर कर रहे हैं... ऐसी आफर सारे कल्प में... सिर्फ संगमयुग पर ही मिलती है... संगमयुग में बाप के साथ के... ऐसे आनंदमय सुखों को सहेज कर... मैं आत्मा इमर्ज रूप में... हमेशा सामने रखती हूँ... मैं आत्मा अपनी बुद्धि को कभी भी बिजी नहीं रखती हूं... बुद्धि बिजी होना माना बापदादा की... स्मृति मर्ज होना है... मैं आत्मा स्वयं चेक करती हूँ कि... मुझ आत्मा को बाबा की याद... इमर्ज रूप में रहती है या मर्ज रूप में रहती है... अगर याद मर्ज रूप में होगी तो... याद में मिलावट होगी... जिससे बाप के साथ और शक्तियों का अनुभव नहीं होगा... बाबा ने कहा है... इमर्ज रूप का नशा... शक्ति... सहयोग... और... सफलता दिलाता है... मुझ आत्मा को... बाबा की याद कभी भूल नहीं सकती है... क्योंकि बाबा से मेरा एक जन्म का नाता नहीं है... मेरा और उनका नाता तो कल्प - कल्प का है... चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होंगे... लेकिन मेरा और उनका नाता तो हमेशा रहेगा...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं को निमित्त समझ कर... सारे बोझ करनहार बाबा पे छोड़ के... निश्चिंत हो जाती हूँ... अब मैं आत्मा कभी भी... अपने सर्व शक्तिमान शिव बाबा का साथ नहीं छोड़ती हूँ... मैं आत्मा शक्तिमान शिव बाबा की संतान हूँ... इस अधिकार और प्रेम की... सूक्ष्म रस्सी से हमेशा बाबा को बांधकर रखती हूं... इस प्रेम की डोर को... मैं आत्मा स्नेह की इस डोर को कभी ढीला नहीं होने देती हूँ... क्योंकि मैं आत्मा जान चुकी हूँ... स्नेह के सागर मेरे शिव बाबा... इस डोर में बंधे हुए दौड़े चले आते हैं... बाबा ने कहा भी है कि... बच्चे बुलाए और बाप ना आए... ऐसा हो नहीं सकता है... मैं आत्मा सर्व शक्तिमान की संतान हूँ... अपने इस अधिकार को हमेशा स्मृति में रखती हूँ... अपने परम पिता से अब कभी भी किनारा नहीं करती हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का बाबा से मेरा ये नाता... कभी भूल नहीं सकता... लेकिन कभी - कभी... मैं आत्मा किसी विघ्न के वश हो जाती हूँ... तो याद भूलती नहीं है लेकिन मर्ज रूप में रहती है... इसलिए बापदादा के कहे अनुसार... मैं आत्मा बार-बार चेक करती हूँ कि... बाबा का साथ और शक्तियों का अनुभव मर्ज रूप में है... या इमर्ज रूप में... सर्व शक्तिमान बाप से मेरा प्यार अटूट है... और मैं आत्मा इस प्यार का फायदा.... हमेशा लेती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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