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 30 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ देह के सब सम्बन्ध भुलाए ?

 

➢➢ क्रोध के वश होकर अवज्ञा तो नहीं की ?

 

➢➢ दिल की महसूसता से दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त की ?

 

➢➢ एवर रेडी बन हर कार्य में जी हुज़ूर हाज़िर किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  कर्मातीत का अर्थ ही है-सर्व प्रकार के हद के स्वभाव-संस्कार से अतीत अर्थात् न्यारा। हद है बन्धन, बेहद है निर्बन्धन। ब्रह्मा बाप समान अब हद के मेरे-मेरे से मुक्त होने का अर्थात् कर्मातीत होने का अव्यक्ति दिवस मनाओ। इसी को ही स्नेह का सबूत कहा जाता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं अविनाशी बाप के बगीचे का अविनाशी रूहानी गुलाब हूँ"

 

✧  सदा अपने को बाप के रूहानी बगीचे के रूहानी गुलाब समझते हो! सबसे खुशबू वाला पुष्प 'गुलाब' होता है। गुलाब का जल कितने काया में लगाते हैं, 'रंग-रूप' में भी गुलाब सर्व प्रिय है। तो आप सभी रूहानी गुलाब हो। आपकी रूहानी खुशबू औरों को भी स्वत: ही आकर्षण करती है।

 

✧  कहाँ भी कोई खुशबू की चीज होती है तो सबका अटेन्शन स्वत: ही जाता है तो आप रूहानी गुलाबों की खुशबू विश्व को आकर्षित करने वाली है, क्योंकि विश्व को इस रूहानी खुशबू की आवश्यकता है।

 

✧  इसलिए सदा स्मृति में रहे कि -'मैं अविनाशी बगीचे का अविनाशी गुलाब हूँ।' कभी मुरझाने वाला नहीं। सदा खिला हुआ। ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब सदा सेवा में स्वत: ही निमित्त बन जाते हैं। याद की, शक्तियों की, गुणों की यह सब खुशबू सबको देते रहो। स्वयं बाप ने आकर आप फूलों को तैयार किया है तो कितने सिकीलधे हो!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो? साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में अपने स्वीट होम, शान्तिधाम में पहुँचा देती है। साइंस वाले तो और फास्ट गति वाले यंत्र निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन आपका यंत्र कितनी तीव्र गति का है! सोचा और पहुँचा। ऐसा यंत्र साइंस में हैं जो इतना दूर बिना खर्च के पहुँच जाएँ?

 

✧  वो तो एक-एक यंत्र बनाने में कितना खर्च करते है, कितना समय और कितनी एनर्जी लगाते हैं, आपने क्या किया? बिना खर्चे मिल गया। यह संकल्प की शक्ति सबसे फास्ट है। आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि से पहुँच जाते हो। जब चाहो तब लौट आओ, जब चाहो तब चले जाओ।

 

✧  साइंस वालों को तो मौसम भी देखनी पडती है। आपको तो यह भी नहीं देखना पडता कि आज बादल है, नहीं जा सकेंगे। आजकल देखो - बादल तो क्या थोडी-सी फागी भी होती है तो भी प्लैन नहीं जा सकता। और आपका विमान एवररेडी हैं या कभी फागी आती है? एवररेडी है? सेकण्ड में जा सकते हैं - ऐसी तीव्र गति है? माया कभी रुकावट तो नहीं डालती है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बंधनों की लम्बी लिस्ट वर्णन करते हो, क्लासेज कराते हो तो बंधनों की बड़ी लम्बी लिस्ट निकालते हो लेकिन बाप कहते हैं सब बन्धनों में पहल एक बंधन है-देह भान का बंधन। उससे मुक्त बनो। देह नहीं तो दूसरे बंधन स्वत: ही खत्म हो जायेंगे। अपने को वर्तमान समय मैं टीचर हूँ, मैं स्टूडेंट हूँ मैं सेवाधारी हूँ, इस समझने के बजाए अमृतवेले से यह अभ्यास करो कि मैं श्रेष्ठ आत्मा ऊपर से आई हूँ'- इस पुरानी दुनिया में, पुराने शरीर में सेवा के लिए। मैं आत्म हूँ-यह पाठ अभी और पक्का करो। आप आत्मा का भान धारण करो तो यह आत्मिक भान, माया के भान को सदा के लिए समाप्त कर देगा। लेकिन आत्मा का भान - यह अभी चलते फिरते स्मृति में रहे, वह अभी और होना चाहिए। ब्रह्म बाप ने आत्मा का पाठ आदि से कितना पक्का किया! दीवारों पर भी मैं आत्मा हूँ परिवार वाले आत्मा हैं, एक-एक के नाम से दीवारों में भी यह पाठ पक्का किया डायरियां भर दी-मैं आत्मा हूँ यह भी आत्मा है, यह भी आत्मा है। आपने आत्मा का पाठ इतना पक्का किया है? मैं सेवाधारी हूँ, यह पाठ कुछ पक्का लगता है लेकिन आत्मा सेवाधारी हूँ, तो जीवनमुक्त बन जायेंगे। रोज़ शरीर में ऊपर से अवतरित हो, मैं अवतार हूँ इस शरीर में अवतरित आत्मा हूँ फिर युद्ध नहीं करनी पड़ेगी। आत्मा बिन्दू है ना? तो सब बातों को बिंदु लग जायेगा। कौन सी आत्मा हूँ? रोज एक नया-नया टाइटल स्मृति में रखो। आपके पास बहुत से टाइटल की लिस्ट तो हैना। रोज़ नया टाइटल स्मृति में रखो कि मैं ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। सहज है या मुश्किल है? आत्मा बिन्दु रूप में रहेगी, तो ड्रामा बिन्दु भी काम में आयेगा और समस्याओं को भी सेकण्ड में बिन्दु लगा सकेंगे और बिन्दु बन परमधाम में बिन्दु जायेगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺  "ड्रिल :- सदा श्रीमत पर चलना"
 
➳ _ ➳  सृष्टि चक्र का चक्कर लगाते-लगाते मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ, घोर कलियुग में... जहाँ चारों और अज्ञान अंधकार फैला हुआ था... मैं आत्मा माया को अपना समझ उसकी गोदी में सुखों को ढूंढ रही थी... और दुखों के गर्त में धंसती जा रही थी... मेरी ये हालत देख मेरे प्यारे पिता अपना धाम छोड़ इस धरती पर आ गया... मुझे दुखों से छुड़ाने, सुख की दुनिया में ले जाने... मेरा प्यारा बाबा कलियुगी काली दुनिया से मुझे निकाल सुहाने संगमयुग में लाकर ख़ज़ानों से भरपूर कर दिया... अविनाशी खुशियों से जीवन आबाद कर दिया... प्यारे बाबा शिक्षक बन मीठी शिक्षाएं दे रहा है... 
 
❉  प्यारे बाबा श्रीमत रूपी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देकर कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे किस कदर खिले खुशनुमा फूल थे... अब अपनी सारी रूहानियत की महक खो चुके हो... खत्म से खाली और निस्तेज बन गए हो... अब मीठा बाबा वही खिलता फूल बनाने आया है... अपनी गोद में बिठा पावनता से सजा धजा कर घर ले जाने आया है... इसलिए पिता की श्रीमत रुपी हाथ कभी न छोडो... श्रीमत पर चलकर हर डायरेक्शन अमल में लाओ..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके साये में प्रतिपल निखरती जा रही हूँ... दिव्य गुणो से सजकर खूबसूरत हो रही हूँ... आपकी यादो में डूबी हुई... श्रीमत को बाँहों में भरकर अनन्त सुखो को जी रही हूँ... आपके साथ से यह जीवन कितना मीठा प्यारा है..."
 
❉  मीठा बाबा मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए प्यार से कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... परमत और मनमत पर चलकर अंजाम को देख लिया... दुखो के दरिया में डूबकर भँवर को भी जी लिया... अब भाग्य ने ईश्वर पिता के हाथो में जो ऊँगली थमाई है... उसे कसकर पकड़े रहो... तो फूलो के गलीचे पर बैठकर सतयुग में पहुंच जायेंगे... मीठा बाबा कन्धों पर बिठाकर नई दुनिया में ले जायेगा..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान योग के पंखों से सजते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच्ची श्रीमत को पाकर फूलो सी खिल गयी हूँ... पतित जीवन को छोड़ पावनता से सजकर चमकीली परी हो गयी हूँ... आपकी मीठी यादो में मगन होकर मुस्कराती हुई... हाथ पकड़ कर घर साथ चलने की तैयारी में जुट गयी हूँ..."
 
❉  मेरे बाबा ब्लेस्सिंग्स देकर मुझे भरपूर करते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्वपिता की श्रीमत को सदा सर आँखों पर लगाये रहो... यह श्रीमत ही सच्चा साथी है जो दुखो के समन्दर से निकाल सुखो के बगीचे में बसायेगी... मीठे बाबा की श्रीमत ही सच्चा साथ निभाएगी... कदम कदम पर रक्षक बन सोने सा दमकायेगी... और पावनता से श्रंगारित कर मीठे सुख दिलाएगी..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यारे बाबा के हर डायरेक्शन को पालन करने का दृढ संकल्प लेते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा बिना ईश्वरीय मत के निर्रथक से जीवन की गहरी अनुभवी रही हूँ... अब मुझे सच्चा साथ और सच्चे सुखो से भरा जीवन मिला है... आपकी श्रीमत ने पावन बनाकर अनन्त सुखो से भर दिया है... बाबा... अब मैं आपका श्रीमत रूपी हाथ कभी नही छोडूंगी... और अब मै ईश्वर पिता की साथी बन गयी हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  ईश्वर की ही मत पर चलना है अपनी मत पर नहीं

➳ _ ➳  मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।

➳ _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।

➳ _ ➳  एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।

➳ _ ➳  दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।

➳ _ ➳  बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ  निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं दिल की महसूसता से दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली स्व परिवर्तक  आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं एवररेडी बन हर कार्य में जी हज़ूर हाज़िर कहने वाली वारिस आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. अभी समय प्रमाण सबको बेहद के वैराग्य वृत्ति में जाना ही होगा। लेकिन बापदादा समझते हैं कि बच्चों का समय शिक्षक नहीं बनेंजब बाप शिक्षक है तो समय पर बनना - यह समय को शिक्षक बनाना है।

 

 _ ➳  2. ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनायाबेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा। आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगायाधन लगायालेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा। तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है। मेरा शरीर हैनहीं। बाबा का रथ है। बाबा के रथ को खिलाता हूँमैं खाता हूँनहीं। तन से भी बेहद का वैराग्य। मन तो मनमनाभव था ही। धन भी लगाया, लेकिन कभी यह संकल्प भी नहीं आया कि मेरा धन लग रहा है। कभी वर्णन नहीं किया कि मेरा धन लग रहा है या मैंने धन लगाया है। बाबा का भण्डारा हैभोलेनाथ का भण्डारा है। धन को मेरा समझकर पर्सनल अपने प्रति एक रूपये की चीज भी यूज नहीं की। कन्याओं, माताओं की जिम्मेवारी है, कन्याओं, माताओं को विल कियामेरापन नहीं। समय, श्वांस अपने प्रति नहींउससे भी बेहद के वैरागी रहे। इतना सब कुछ प्रकृति दासी होते हुए भी कोई एकस्ट्रा साधन यूज नहीं किया। सदा साधारण लाइफ में रहे। कोई स्पेशल चीज अपने कार्य में नहीं लगाई। वस्त्र तकएक ही प्रकार के वस्त्र अन्त तक रहे। चेंज नहीं किया। बच्चों के लिए मकान बनाये लेकिन स्वयं यूज नहीं कियाबच्चों के कहने पर भी सुनते हुए उपराम रहे। सदा बच्चों का स्नेह देखते हुए भी यही शब्द रहे - सब बच्चों के लिए है। तो इसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रत्यक्ष जीवन में रही। अन्त में देखो बच्चे सामने हैंहाथ पकड़ा हुआ है लेकिन लगाव रहाबेहद की वैराग्य वृत्ति। स्नेही बच्चे, अनन्य बच्चे सामने होते हुए फिर भी बेहद का वैराग्य रहा। सेकण्ड में उपराम वृत्ति काबेहद के वैराग्य का सबूत देखा। एक ही लगन सेवासेवा और सेवा..... और सभी बातों से उपराम। इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य।

 

 _ ➳  3. साकार में सर्व प्राप्ति का साधन होते हुएसर्व बच्चों की जिम्मेवारी होते हुए, सरकमस्टांशसमस्यायें आते हुए पास हो गये ना! पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले लिया। विशेष कारण बेहद की वैराग्य वृत्ति। 

 

✺   ड्रिल :-  "ब्रह्माबाप समान बेहद की वैराग्य वृत्ति का अनुभव करना"

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप समान बेहद की वैराग्य वृति धारण करने का दृढ़ संकल्प मन में लिए मैं लाइट का सूक्ष्म शरीर धारण कर फरिश्ता बन पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन... मेरे संकल्पों को पहले ही कैच कर चुके अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान शिव बाबा मुझे देखते ही अपनी बाहें फैला कर मुझे गले से लगा कर कहते हैं, आओ मेरे बच्चे:- "साकार ब्रह्मा बाप की गोद का सुख लेने आये हो"! यह कह कर बाबा मुझे अपनी गोद में बिठा लेते हैं... बाबा की गोद में बैठते ही मैं जैसे एक छोटी बच्ची बन जाती हूँ और बाबा के साथ मधुबन में उस स्थान पर पहुंच जाती हूँ जहां ब्रह्मा बाबा ने दादियों के साथ 14 साल कठोर तपस्या करके इस स्थान को ऐसी तपोभूमि बना दिया कि इस तपोभूमि पर पैर रखते ही हर मनुष्य आत्मा को गहन शांति की अनुभूति स्वत: ही होती है...

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को इस तपोभूमि पर... यहां पहुंचते ही ब्रह्मा बाबा की वो सभी साकार यादें स्मृति में ताजा हो उठती है जो दीदी, दादियों ने ब्रह्मा बाबा के साथ अपने अनुभवों में कही हैं... उन साकार यादों की स्मृति मुझे भी साकार पालना का अनुभव कराने लगती हैं... उस खूबसूरत एहसास में मैं खो जाती हूँ... मेरी आँखों के सामने ब्रह्मा बाबा के हर कर्म का सीन स्पष्ट हो रहा है जिसमे ब्रह्मा बाप की बेहद की वैराग्य वृति की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है...

 

 _ ➳  बाबा के हर कर्म को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं... कैसे ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में समर्पित कर दिया... तन के लिए मुख से सदा यही बोल निकला कि मेरा शरीर नही है, शिव बाबा का रथ है... मन में भी सिवाए शिव बाबा के दूसरा कोई नही था... धन के लिए भी बाबा के मन में कभी यह संकल्प नही आया कि यज्ञ में मेरा धन लग रहा है... मुख से सदा यही निकला कि शिव बाबा का भंडारा है, भोलेनाथ का भंडारा है... अपना सारा धन कन्याओं, माताओं को विल कर ईश्वरीय सेवा में लगा दिया, अपने प्रति एक चीज भी यूज़ नही की... समय, संकल्प, श्वांसों को भी बेहद के वैरागी बन कर सफल किया... किसी भी चीज में कोई ममत्व, कोई लगाव नही रखा... सब कुछ होते हुए भी हर चीज से उपराम रहे...

 

 _ ➳  बाबा के हर कर्म में उनकी वैराग्य वृत्ति की छाप का मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा है... उनके हर कर्म को देख कर मैं मन ही मन दृढ़ संकल्प करती हूं कि अब बस मुझे ब्रह्मा बाप समान बेहद का वैरागी बनना है... इस संकल्प को दृढ़ता से मन में धारण करके जैसे ही मैं बाबा की ओर देखती हूँ... बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे "ब्रह्मा बाप समान बेहद के वैरागी भव" का वरदान देकर मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा देते हैं... बाबा से वरदान ले कर, विजय का तिलक लगाए मैं फरिश्ता अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ...

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप समान बनने का लक्ष्य मन में लिए, अपने ब्राह्मण जीवन में अब मैं ब्रह्मा बाप के हर कर्म को फॉलो कर रही हूँ... मेरा यह ब्राह्मण जीवन केवल ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे मिला है, इस बात को स्मृति में रख मैं अपना तन- मन - धन ईश्वरीय सेवा में सफल कर रही हूं... चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते मन में केवल एक शिव बाबा की याद है...

 

 _ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, पदार्थो में अब मेरा कोई ममत्व नही है... सर्व सम्बन्धो का सुख शिव बाबा से लेते हुए मैं जैसे सबसे उपराम हो गई हूं... ब्रह्मा बाप समान देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप से देखने के अभ्यास ने मुझे मरजीवा बना दिया है... इस देह में रहते स्वयं को मेहमान समझ, सर्व सम्बन्धो से मैं नष्टोमोहा हो गई हूं...

 

 _ ➳  मन में अब केवल यही अनहद नाद गूंजता रहता है "दिल का अब संकल्प यही है, बाबा तुमसा बनना ही है..." और इस संकल्प को पूरा कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण बनने के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण कर, पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट लेना ही अब मेरे जीवन का लक्ष्य है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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