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❍ 14 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *ज्ञान अमृत धरा से सबको निरोगी व स्वर्गवासी बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *बाप समान मास्टर रहमदिल बनकर रहे ?*
➢➢ *बाप के स्नेह को दिल में धारण कर सर्व आकर्षणों से मुक्त रहे ?*
➢➢ *देह, देह की पुरानी दुनिया और संबंधो से ऊपर उड़ इंद्रप्रस्थ निवासी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अपनी शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वृति, श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा किसी भी स्थान पर रहते हुए मन्सा द्वारा अनेक आत्माओं की सेवा कर सकते हो। इसकी विधि है - लाइट हाउस, माइट हाउस बनना।* इसमें स्थूल साधन, चान्स वा समय की प्राब्लम नहीं है। सिर्फ लाइट-माइट से सम्पन्न बनने की आवश्यकता है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्वशक्तिवान बाप के साथ हूँ"*
〰✧ हर कदम में सर्वशक्तिवान बाप का साथ है, ऐसा अनुभव करते हो? *जहाँ सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ सर्व प्राप्तियाँ स्वत: होंगी। जैसे बीज है तो झाड़ समाया हुआ है। ऐसे सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो सदा मालामाल, सदा तृप्त, सदा सम्पन्न होंगे। कभी किसी बात में कमजोर नहीं होंगे। कभी कोई कम्पलेन्ट नहीं करेंगे। सदा कम्पलीट।*
〰✧ *क्या करें, कैसे करें...यह कम्पलेन्ट नहीं। साथ हैं तो सदा विजयी हैं। किनारा कर देते तो बहुत लम्बी लाइन है। एक क्यों, क्यू बना देती है। तो कभी क्यों की क्यू न लगे।* भक्तों की, प्रजा की क्यू भले लगे लेकिन क्यों की क्यू नहीं लगानी है।
〰✧ ऐसे सदा साथ रहने वाले चलेंगे भी साथ। सदा साथ हैं, साथ रहेंगे और साथ चलेंगे यही पक्का वायदा है ना! बहुत काल की कमी अन्त में धोखा दे देगी। अगर कोई भी कमी की रस्सी रह जायेगी तो उड़ नहीं सकेंगे। *तो सब रस्सियों को चेक करो। बस बुलावा आये, समय की सीटी बजे और चल पड़ें। हिम्मते बच्चे मददे बाप! जहाँ बाप की मदद है वहाँ कोई मुश्किल कार्य नहीं। हुआ ही पड़ा है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरी-पन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है।* बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्माबाप समान बनना अर्थात फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं।
〰✧ *कार्य को छोडकर अशरीरी बनना, यह तो थोडा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पॉवरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो।* आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार सन्देश लेने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो।
〰✧ *फरिश्ता अर्थात देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैबुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है।* देखा अनुभव किया। जो भी निमित हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नॉलेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। *तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात फरिश्ता बनना।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसी आत्मायें जरूर कोई पावरफुल होंगी जिनका बहुत समय से अशरीरी बनाने का अभ्यास होगा वह एक सेकण्ड में अशरीरी हो जायेंगे। मानो अभी आप याद में बैठते हो, कैसी भी विघ्नों की अवस्था में बैठते हो, कैसी भी परिस्थितियां सामने होते हुए भी बैठते हो - लेकिन एक सेकण्ड में सोचा और अशरीरी हो जायें। *वैसे तो एक सेकण्ड में अशरीरी होना बहुत सहज है। लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, कोई सर्विस के बहुत झंझट सामने हो - परंतु प्रैक्टिस ऐसी होनी चाइये जो एक सेकंड, सेकण्ड भी बहुत है, सोचना और करना साथ-साथ चले। सोचने के बाद पुरुषार्थ न करना पड़े।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भारतवासियों को सिद्ध कर बताना कि शिव जयंती ही गीता जयंती है"*
➳ _ ➳ *अपने आंगन के सुंदर से... छोटे से... बाग में टहलती हुई मैं आत्मा... काँटो के साथ शान से मुस्कराते खूबसूरत गुलाब के फूलों को देख... मीठे बाबा के संग अपने महकते जीवन के चिंतन में डूबी हुई...* मीठे बाबा के यादों की बाँहों में झूलने लगती हूँ... बाबा के बिना जीवन कितना दुःख भरे काँटो से सना हुआ था... आज देह भान में आये दुःख के सारे काँटे नीचे हो गये हैं... और *रूहानियत से भरी मैं आत्मा... महकता गुलाब बनकर, सब बातों से ऊपर उठकर... शिखर पर सजी हुई... पूरे विश्व को अपने गुणों की सुगंध से... बरबस दीवाना बना रही हूँ...* अपने मन के मीठे जज्बात मीठे बाबा को सुनाने... मैं आत्मा बाबा की यादों में खो जाती हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन से विश्व का मालिक सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान अंतर को समझ... विचार सागर मंथन करो... गीता का भगवान कौन है... शिव हैं या श्रीकृष्ण हैं... मुक्ति... जीवनमुक्ति दाता कौन हैं..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान धन की दौलत से शहंशाह बनकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मैं आत्मा आपकी प्यार भरी छत्रछाया में रह परमात्मा शिव और श्रीकृष्ण के महान अंतर को समझ गयी हूँ... *ज्ञान सागर "शिवबाबा" निराकार हैं... उनकी पधरामणि हुई है, किसी को भी उनकी प्रवेशता का पता नहीं... वे तो कभी बच्चा बने ही नहीं... जबकि श्रीकृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया... वह भी रात्रि के समय... और शिवबाबा... बूढ़े तन में प्रवेश कर... कल्प के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं... वह एक सेकेंड में जीवनमुक्ति में भेज देते हैं... घर बैठे ही दिव्य दृष्टि दे देते हैं... साक्षात्कार करा देते हैं..."*
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *शिवपिता के जन्म की कोई तिथि नही, श्रीकृष्ण की तो तिथि तारीख है... शिवभगवान पिता बनकर, आप बच्चों के लिये ही तो धरा पर उतर आया है... अपनी सारी जागीर आपको ही तो देने आया है...* सुखों की अमीरी में, सदा की खुशियों से, झोली भरने आया है... ऐसे प्यारे पिता की यादों में सदा के लिये... साहूकार बनकर मुस्कराओ... मीठे बाबा के प्यार की छाँव में, सहज ही बाप समान बन जाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा के मीठे प्यार में पुलकित होकर झूमते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने मुझ आत्मा के जीवन मे आकर, मुझे महान भाग्यशाली बना दिया है...* मैं आत्मा देह भान में आकर, गुणहीन, शक्तिहीन हो गयी थी... प्यारे बाबा... आपने मुझे पुनः मेरी खोयी हुई अमीरी से भर दिया है..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को "परमात्मा शिव" और श्रीकृष्ण के भेद को स्पष्ट करते हुए कहा :-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... शिवपिता... ज्ञान सागर का नाम तो कभी बदलता ही नहीं... उनका नाम तो "सदाशिव" है... बाबा गीता के भगवान के बारे में बताते हुए कहते... *कृष्ण गीता कैसे सुना सकता है... वह तो बच्चा है... गर्भ से आया है... रात और दिन तो ब्रह्मा का गाया जाता है, ब्रह्मा का दिन है... "कृष्ण"... और ब्रह्मा की रात है... "ब्रह्मा"... ब्रह्मा ही फिर सो कृष्ण बनता है... कृष्ण की तो 8 पीढ़ी चलती हैं... छोटेपन में उनको कृष्ण कहते हैं... फिर स्वयम्वर बाद श्रीकृष्ण ही "श्री नारायण"... बनते हैं..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारते हुए कहती हूँ :-* "मीठे जादूगर बाबा मेरे... आपने अपनी प्यार भरी गोद में मुझ आत्मा को बिठाकर... देवताई सौन्दर्य से निखार दिया है... *मैं आत्मा आपकी यादों के हाथ को पकड़कर, दुःखो के जंगल से निकल... सुखों की पगडण्डी पर आ गयी हूँ...* मेरा जीवन ईश्वरीय खुशियों से महक उठा है... मीठे बाबा से प्यार की अथाह धन दौलत को लेकर मैं आत्मा... स्थूल देह में आ गयी..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मनुष्यों को देवता बनाना है*
➳ _ ➳ एक खूबसरत बगीचे में बैठी मैं प्रकृति के ख़ूबसूरत नजारों का आनन्द ले रही हूँ। बगीचे में खिले रंग बिरंगे खुशबूदार फूल मन को आनन्दित कर रहें हैं। *उन खिले हुए फूलों की अद्भुत रंगत को देख मन मे सहज ही उस माली का विचार आता है जिसने इतनी खूबसूरती से इस पूरे झाड़ की कलम लगाई और ऐसा सुंदर बगीचा बनाया कि इस बगीचे में उगे वृक्षों की छाया के नीचे बैठ कर और इन अति सुंदर फूलो की सुगंध लेकर थके हारे मनुष्य एक अद्भुत ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव करते हैं*। मन ही मन यह चिंतन करते हुए, अब मैं विचार करती हूँ कि उस माली ने तो कलम लगाकर केवल यह फूलों का झाड़ तैयार किया है लेकिन मेरे बागवान शिव पिता तो आकर नए सृष्टि रूपी झाड़ की कलम लगा रहें हैं।
➳ _ ➳ दैवी गुणों से सजे मनुष्य रूपी फूलों का एक ऐसा चैतन्य बगीचा बना रहे है मेरे हेविनली गॉड फादर शिव पिता, जहाँ इससे करोड़ो गुना ज्यादा प्रकृति की खूबसूरती होगी। *दुख का नाम निशान भी नही होगा। चारों तरफ सुख, शन्ति और सम्पन्नता होगी। यह विचार करते - करते उस दैवी दुनिया के सुन्दर नज़ारे आंखों के सामने दिखाई देने लगते हैं और मैं उस अति मनभावनी, मन को लुभाने वाली स्वर्गिक दुनिया मे पहुँच जाती हूँ जहां चारों ओर ख़ुशी की शहनाइयाँ बज रही हैं*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं स्वयं को एक बहुत बड़े राजमहल में बने एक खूबसूरत उपवन में जहाँ चारों और प्रकृति के ख़ूबसूरत नज़ारे दिखाई दे रहें हैं। *हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणें*। ऐसा प्रकृति का सौंदर्य मैं अपनी आंखो से देख रही हूँ और रमणीकता से भरपूर सतयुगी नई दुनिया के इन नजारों को देख मंत्रमुग्घ हो रही हूँ।
➳ _ ➳ नए झाड़ की कलम लगा कर, अपने पिता द्वारा बनाई जा रही इस अति सुन्दर नई दैवी दुनिया के सुन्दर नजारों का भरपूर आनन्द लेकर अब मैं मन ही मन अपने पिता का कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करके, उन्हें नये झाड़ की कलम लगाने में उनका सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती हूँ और हर बात से अपने मन बुद्धि को हटाकर अब उनकी याद में स्वयं को स्थित करती हूँ। *सेकण्ड में विस्तार को सार में समाकर मैं बिंदु स्वरुप में स्थित होकर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने बिंदु पिता के ऊपर एकाग्र कर लेती हूँ। परमधाम में रहने वाले अपने महाज्योति शिव पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए मैं उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों को नीचे साकार सृष्टि पर, अपने ऊपर पड़ता हुआ महसूस करती हूँ*।
➳ _ ➳ परमधाम से आ रही मेरे सर्वशक्तिवान शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मुझे उनके समान विदेही बना कर अपनी और खींच रही हैं, यह अनुभव करते हुए, मैं आत्मा देह से अलग होकर, एक प्वाइंट ऑफ लाइट बन अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर जा रही हूँ। *एक आजाद पँछी की भांति मैं उड़ रही हूँ और रुई समान एकदम हल्की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। सारे विश्व मे चक्कर लगाकर, हर दृश्य का आनन्द लेती हुई मैं ऊपर आकाश में पहुँच गई हूँ और अब नीलगगन को छूकर इससे भी ऊपर जा रही हूँ*। एक अति सुंदर सफेद प्रकाश की फरिश्तो की दुनिया से होते हुए अब मैं पहुँच गई हूँ अपनी उस निराकारी दुनिया में जहाँ चारों और चमकती हुई चैतन्य मणियो का आगार है। *ना देह, ना देह की दुनिया से जुड़ा कोई संकल्प। इस इनकारपोरियल वर्ल्ड में केवल सोल का सोल के साथ कनेक्शन है*।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं सुप्रीम सोल, चैतन्य बीज रूप अपने शिव पिता को जो अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे सामने खड़े हैं। मास्टर बीज रूप अवस्था मे उनके सम्मुख हूँ। बिंदु का बिंदु से मिलन हो रहा है। कितना आलौकिक और दिव्य नजारा है। चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है। *एक बहुत ही न्यारी और प्यारी, आलौकिक सुखमय निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा बाप को निहारते हुए मैं असीम सुख का अनुभव कर रही हूँ। बीज रूप मेरे मीठे बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं*। मेरे अंदर जैसे एक शक्ति भरती जा रही है। सर्वशक्तियों से सम्पन्न, शक्ति स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, नए झाड़ की कलम लगाने में अपने पिता की सहयोगी बनने की अपनी प्रतिज्ञा को मैं दृढ़ता के साथ पूरा कर रही हूँ। *स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से सदा भरपूर रखते हुए, अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म प्यार और ईश्वरीय अलौकिक स्नेह दे कर सबको परमात्मा से जोड़ कर उन्हें भी खुशबूदार फूल बनाकर, दैवी दुनिया मे चलने का रास्ता बताकर, नए झाड़ की कलम लगाने के बाबा के कर्तव्य में उनका राइट हैंड बन मैं पूरा सहयोग दे रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप के स्नेह को दिल मे धारण कर सर्व आकर्षणों से मुक्त्त रहने वाली सच्ची स्नेही आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं देह, देह की पुरानी दुनिया और सम्बन्धों से ऊपर उड़ने वाला इंद्रप्रस्थ निवासी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ड्रामा अनुसार हर ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता प्राप्त है... ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो... तो अपनी विशेषता को सदा स्मृति में रखो और उसको सेवा में लगाओ... हरेक की विशेषता, उड़ती कला की बहुत तीव्र विधि बन जायेगी... सेवा में लगना, अभिमान में नहीं आना क्योंकि संगम पर हर विशेषता ड्रामा अनुसार परमात्म देन हे... परमात्म देन में अभिमान नहीं आयेगा... *जैसे प्रसाद होता है ना उसको कोई अपना नहीं कहेगा कि मेरा प्रसाद है, प्रभु प्रसाद है... ये विशेषतायें भी प्रभु प्रसाद हैं... प्रसाद सिर्फ अपने प्रति नहीं यूज किया जाता है, बाँटा जाता है...* बाँटते हो, महादानी हो, वरदानी भी हो... पाण्डव भी वरदानी है, महादानी है, शक्तियाँ भी महादानी हैं? एक घण्टे के महादानी नहीं, खुला भण्डार... इसीलिए बाप को भोला भण्डारी कहते हैं, खुला भण्डार है ना, आत्माओं को अंचली देते जाओ, कितनी बड़ी लाइन हैं भिखारियों की... और आपके पास कितना भरपूर भण्डार है? अखुट भण्डार है, खुटने वाला है क्या? बाँटने में एकानामी तो नहीं करते? इसमें फ्रॉख दिली से बाँटो... *व्यर्थ गँवाने में एकानामी करो लेकिन बाँटने में खुली दिल से बाँटो...*
✺ *ड्रिल :- "अपनी विशेषता को सदा स्मृति में रख, उसको सेवा में लगाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ ब्राह्मण बनते ही, परमात्म वर्से के रूप में प्राप्त हुई अपनी विशेषताओं को स्मृति में लाकर मैं स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस परमात्म देन अर्थात अपनी विशेषता को, अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल, ईश्वरीय सेवा में लगा कर बाबा के स्नेह का रिटर्न मुझे अवश्य देना है... *विशेषताओं की जो गिफ्ट बाबा ने मुझे दी है, निमित बन उस गिफ्ट को अनेको आत्माओं के कल्याणार्थ यूज़ करके, उनकी दुआओं की लिफ्ट प्राप्त कर विश्व कल्याण के कार्य मे बाबा का मददगार बनना ही मेरे ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है...*
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन के लक्ष्य को स्मृति में रख, अपनी विशेषताओं को सेवा में लगाकर, उसमे सफ़लतामूर्त बनने के लिए, अपने मीठे बापदादा से विजय का तिलक लेने के लिए मैं अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी स्वरूप को धारण करती हूँ और अपने साकारी शरीर से बाहर आ जाती हूँ... *अब मैं फ़रिशता अपनी श्वेत रश्मियों को चारों और फैलाता हुआ ऊपर आकाश की ओर बढ़ रहा हूँ... प्रकृति के सुंदर नजारों का आनन्द लेता, अपने प्यारे मीठे बापदादा से मिलने की लगन में मग्न मैं फ़रिशता अब आकाश को पार करता हुआ सूक्ष्म लोक में पहुँच गया हूँ...*
➳ _ ➳ बापदादा अपनी दोनों बाहों को पसारे मेरे ही इंतजार में खड़े मुझे अपने सामने दिखाई दे रहें हैं... बिना एक पल भी व्यर्थ गंवाये, मैं दौड़ कर बापदादा की बाहों में समा जाता हूँ... *बापदादा के असीम स्नेह और प्यार को मैं बापदादा की बाहों में स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ...* माँ समान बापदादा की ममतामयी गोद मे मैं बैठा हुआ हूँ... उनके ममतामयी आँचल का सुख मुझे अनेक दिव्य अलौकिक अनुभूतियां करवा रहा है... *बापदादा की स्नेह भरी दृष्टि मुझमे असीम स्नेह का संचार कर रही है... ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे स्नेह की धारा बाबा मुझमें प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर स्नेह का सागर बना रहे हैं...*
➳ _ ➳ अपनी स्नेह भरी दृष्टि से मुझे भरपूर करके अब बापदादा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने बिलुकल सामने बिठा कर, *अपने हाथ मे विशेषताओं के अनेक प्रकार के मोती लेकर, एक - एक मोती मेरे हाथ पर रखते जा रहें हैं...* एक - एक मोती पर अपनी शक्तिशाली दृष्टि डाल कर बाबा उसमे परमात्म बल और परमात्म शक्तियां भर रहें हैं... *मेरे दोनों हाथ विशेषताओं के रंग बिरंगे मोतियों से भर गए हैं...* अब बाबा मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा कर, अपना वरदानी हाथ मेरे मस्तक पर रख, मुझे "सदा विजयी भव", सदा "सफ़लतामूर्त भव" का वरदान दे रहें हैं...
➳ _ ➳ बापदादा के वरदानो और विशेषताओं से अपनी झोली भर कर अब मैं फ़रिशता, बापदादा से मिली विशेषताओं को ईश्वरीय सेवा में लगाने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ... *अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं विराजमान हूँ और बाबा द्वारा मिली विशेषताओं को अनेकों आत्माओं के कल्याणार्थ सेवा में लगा रही हूँ...* अपनी हर विशेषता को परमात्म देन मानकर, मैं उड़ती कला के अनुभव द्वारा अनेकों आत्माओं को भी उड़ती कला का अनुभव करवा रही हूँ... अपनी विशेषताओं को प्रभु प्रसाद के रूप में स्वीकार कर, मैं इस प्रसाद को अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को बांट कर उन्हें भी आप समान विशेष बना रही हूँ...
➳ _ ➳ अखुट खजानों के दाता अपने शिव पिता परमात्मा के अखुट भंडारे से स्वयं को भरपूर कर अब मैं महादानी, वरदानी बन, फ्रॉख दिली से सर्व खजानों को सर्व आत्माओ पर लुटा रही हूँ और *अपनी विशेषताओं को सदा स्मृति में रख, उनको सेवा में लगा कर सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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