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 08 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ इस दुःखधामा से बुधी निकाल बाप को याद किया ?

 

➢➢ कर्म अकर्म और विकर्म की गति को जान श्रेष्ठ कर्म किये ?

 

➢➢ कैसे भी वायुमंडल में मन बुधी को सेकंड में एकाग्र किया ?

 

➢➢ विश्व कल्याण की जिम्मेवारी और पवित्रता की लाइट का ताज पहने रखा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  पावरफुल याद के लिए सच्चे दिल का प्यार चाहिए। सच्ची दिल वाले सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दु स्वरूप बाप को याद कर सकते हैं। सच्ची दिल वाले सच्चे साहेब को राजी करने के कारण, बाप की विशेष दुआयें प्राप्त करते हैं, जिससे सहज ही एक संकल्प में स्थित हो ज्वाला रूप की याद का अनुभव कर सकते हो, पावरफुल वायब्रेशन फैला सकते हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं रॉयल बाप का बच्चा हूँ"

 

  सदा रॉयल फैमिली वाले हो ना। रॉयल फैमली वाले सदा गलीचों में चलते, मिट्टी में नहीं। तो झूले में झूलो। नीचे आना अर्थात् मिट्टी में आना।

 

  यह देह भी मिट्टी है ना। तो देह भान में नीचे आना अर्थात् मिट्टी में पांव रखना। तो जब गलती से भी मिट्टी में पांव रखते हो उस समय अपने से पूछो कि हम रॉयल बाप के बच्चे और मिट्टी में पांव कैसे रखा?

 

  माँ बाप के जो लाडले बच्चे होते हैं तो कोशिश करते हैं सदा गोदी में खेलता रहे। नीचे नहीं रखेंगे। तो आप भी लाडले हो। जब बाप ने इतना सिकीलधा लाडला बना दिया तो लाडले होकर चलो ना, साधारण नहीं बनो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧    जब साइन्स के साधन धरती पर बैठे हुए स्पेस में गए हुए यन्त्र को कन्ट्रोल कर सकते हैं, जैसे चाहे जहाँ चाहे वहाँ मोड सकते हैं, तो साइलेन्स के शक्ति स्वरूप, इस साकार सृष्टी में श्रेष्ठ संकल्प के आधार से जो सेवा चाहे, जिस आत्मा की सेवा करना चाहे वो नहीं कर सकते? लेकिन अपनी - अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात  उपराम रहो।

 

✧  जो सभी खजाने सुनाए वह स्वयं के प्रति नहीं, विश्व कल्याण के प्रति यूज करो। समझा अब क्या करना है?

 

✧  आवाज़ द्वारा सर्विस, स्थूल साधनों द्वारा सर्विस और आवाज से परे 'सूक्ष्म साधन संकल्प' की श्रेष्ठता, संकल्प शक्ति द्वारा सर्विस का बैलेन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ तब विनाश का नगाडा बजेगा। समझा?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बीजरूप स्टेज सबसे पावर फुल स्टेज है, उसके बाद सब नम्बरवार स्टेज हैं, यहाँ स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है। सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हैं। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते तो आटोमेटिकली विश्व को लाइट का पानी मिलता रहता। जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाते हैं ऐसे लाइट हाउस बन विश्व-कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- एम ऑब्जेक्ट को सामने रख दैवी गुण धारण करना"

➳ _ ➳ मैं सौभाग्यशाली आत्मा भगवान के बगीचे में रूहानी फूल बन खिलखिला रही हूँ... भगवान की गोदी में पल रही हूँ... उनके प्यार के आँगन में रूहानी शिक्षाएं ग्रहण कर रही हूँ... अपने पुराने स्वभाव-संस्कारों को परिवर्तन कर दैवीय संस्कारों को धारण कर रही हूँ... स्वयं भगवान शिक्षक बनकर मुझे पढ़ा रहे हैं और तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाकर, पतित से पावन बनाकर पावन दुनिया में भगवान-भगवती बना रहे हैं... मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मीठे बाबा से पढ़ाई पढने मधुबन के हिस्ट्री हाल में...

❉ राजयोग द्वारा सृष्टि के गुह्यतम राजों को समझाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है तो हर बच्चे को कृष्ण जैसा प्रिन्स बनाने की ही चाहत दिल में ले आया है... ईश्वर पिता की नजर... प्यार... दुलार... पढ़ाई... सबके लिए एक समान है... कितने मीठे भाग्य के मालिक हो कि भगवान गोद में बिठा प्यार से गहरे राज समझा रहा है...”

➳ _ ➳ ज्ञान रत्नों से अपने जीवन को अमूल्य बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ यह तो ख्वाबो में भी न सोचा था कभी कि भगवान धरा पर उतर आएगा यूँ... मुझे प्यार करने और पढ़ाने... और मै आत्मा कृष्ण जैसी खूबसूरत प्रिन्स बन मुस्कराऊंगी...”

❉ अपने दिल में बसाकर मुझे वरदानों से सजाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान पिता तो हर बच्चे को खूबसूरत देवता सा ही सजाना चाहे... हर बच्चा खूबसूरत गुलाब सा महक उठे... विश्व पिता यही एक अरमान दिल में अपने सजाये... और ऐसे देवताई स्वरूप सजाने को भगवान परमधाम छोड़ धरती पर डेरा जमाये... और प्रिन्स सा मनभावन बनाये...”

➳ _ ➳ गॉड फादरली स्टूडेंट बन प्रिंस-प्रिंसेज बनने की पढ़ाई पढ़ते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से देवताई पढ़ाई पढ़कर... सुखो की नगरी को अपनी बाँहों में भर रही हूँ... चारों ओर सुख ही सुख और उनमे मै आत्मा झूम रही हूँ... मीठे बाबा के साथ से देवताओ सा सज रही हूँ...”

❉ सारे सुखों को मेरी झोली में डालकर अपनी बाँहों में समाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... भगवान को पाकर उसका सारा खजाना अपने दिल में भर लो... उसके दिल में छुपे हर राज के राजदार बन जाओ... सारी नालेज को स्वयं में भरकर सुंदर कृष्ण जैसा सज जाओ... ज्ञानसागर बाबा से पढ़कर... मा. ज्ञानसागर बन मुस्कराओ और सुख शांति आनन्द की दुनिया के मालिक बन जाओ...”

➳ _ ➳ अनंत सुखों को अपने भाग्य में सजाकर खुशहाली का दामन ओढ़कर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा भगवान को टीचर रूप में पाने वाली अत्यंत भाग्यशाली आत्मा हूँ... ज्ञान सागर बाबा ने मुझे पढ़ाकर आप समान खूबसूरत बना दिया है... और मै आत्मा यूँ भगवान को पाकर अपने मीठे भाग्य पर मोहित हो गई हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप समान प्रेम का सागर, शांति और सुख का सागर बनना है

➳ _ ➳ प्यार के सागर अपने प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर एहसास के बारे में विचार करते ही एक सिहरन सी पूरे शरीर मे दौड़ जाती है और मन व्याकुल हो उठता है फिर से उसी प्यार को पाने के लिए। जैसे ही मन में बाबा के निःस्वार्थ, निष्काम प्यार को पाने का संकल्प मन मे आता है मैं महसूस करती हूँ जैसे प्यार के सागर मेरे बाबा मेरे हर संकल्प को पूरा करने और अपने स्नेह की मीठी फुहारे मेरे ऊपर बरसाने के लिए मेरे पास आ रहें हैं। हवाओ में भी जैसे एक विचित्र रूहानी खुशबू फैल गई है जो उनके आने का मुझे पैगाम दे रही है। अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों के रूप में मेरे प्यार के सागर बाबा अपने प्यार की शीतल फुहारे मुझ पर बरसाते हुए परमधाम से उतरकर धीरे - धीरे नीचे आ रहें हैं।

➳ _ ➳ मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि शक्तियों का एक तेजोमय पुंज आकाश से नीचे आकर, अब सीधा मेरे सिर के ऊपर स्थित हो गया है और अपने स्नेह की अनन्त किरणे मेरे ऊपर बिखेर रहा है। बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह अपने ऊपर पड़ती अपने स्नेह के सागर पिता के स्नेह की किरणों के वायब्रेशन्स को मैं महसूस कर रही हूँ और उनके स्नेह में डूबती जा रही हूँ।प्यार का सागर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाता जा रहा है और उस प्यार के मधुर एहसास में मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ। देह और देह की दुनिया से जुड़े सम्बन्ध जैसे कहीं पीछे छूट रहें हैं और सारे सम्बन्ध उस एक के साथ जुड़ते जा रहें हैं। हर सम्बन्ध का अविनाशी सुख अपने प्यारे पिता के प्यार में खोकर मैं ले रही हूँ। उनके लव में लीन यह लवलीन स्थिति मुझे उनके समान स्थिति में स्थित करती जा रही है।

➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे देह से मेरा कोई सम्बन्ध नही। अपने स्वरूप में पूरी तरह डूब कर केवल दो सितारों की उपस्थिति को ही मैं अनुभव कर रही हूँ। एक अति सूक्ष्म चैतन्य स्टार के रुप में मैं स्वयं को देख रही हूँ और अपने सामने स्थित सुपर स्टार के रूप में अपने पिता को देख रही हूँ। इन दोनों स्टार्स में ही जैसे सारी दुनिया समा गई है। अपने प्यार की अनन्त किरणों की वर्षा मुझ पर करते, प्यार के सागर मेरे सुपर स्टार शिव बाबा चुम्बक की तरह मुझे खींच कर अब अपने साथ ऊपर ले जा रहें हैं। बाबा की सर्वशक्तियों की मैग्नेटिक पॉवर, नश्वर संसार की हर चीज से किनारा करवाकर मुझे खींचती हुई अब आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर मेरे स्वीट साइलेन्स होम में मुझे ले आई है। अपने घर मे आकर मैं आत्मा शांति की गहन स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳ इस शांतिधाम घर मे चारों और फैले शांति के वायब्रेशन्स मुझे गहन शांति की अनुभूति करवाकर एक अनोखी शक्ति का संचार मेरे अन्दर कर रहें हैं। साइलेन्स का बल अपने अंदर भरकर अब मैं सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास आकर बैठ गई हूँ और बड़े प्यार से उन्हें निहार रही हूँ। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे बाबा भी बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं और अपना प्यार शीतल लहरों के रूप में धीरे - धीरे मुझ तक पहुँचा रहें हैं। बाबा के अथाह प्यार की शीतल लहरों की शीतलता मन को गहन सुख प्रदान कर रही है। धीरे - धीरे ये लहरे बढ़ रही हैं और मुझे अपने अंदर समाती जा रही हैं।

➳ _ ➳ प्यार के सागर मेरे पिता के प्यार की लहरों का प्रवाह मुझे बहा कर अपने बिल्कुल समीप ले आया है। जहाँ पहुँच कर ऐसा लग रहा है जैसे प्यार का कोई सतरंगी झरना मेरे ऊपर बरस रहा है और उस झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्नान करके प्यार के सागर अपने पिता के समान बनती जा रही हूँ। नफरत, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा के पुराने स्वभाव संस्कार जैसे प्यार के सागर की गहराई में डूब गए हैं और उसके स्थान पर सबको प्रेम देने, सहयोग देने के संस्कार जैसे इमर्ज हो गए हैं। स्वयं को मैं बाप समान प्यार का सागर अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाकर, उनके समान बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।

➳ _ ➳ प्यार के सागर अपने पिता से प्राप्त किये हुए प्यार का मधुर एहसास मेरी शक्ति बनकर अब मुझे भी बाप समान प्यार का सागर बन सबको सच्चा रूहानी प्यार देने के लिए प्रेरित करता रहता है इसलिए अपने प्यारे पिता के प्यार से स्वयं को हरपल भरपूर रखते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को आत्मिक स्नेह देकर उन्हें तृप्त करती रहती हूँ

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं कैसे भी वायुमण्डल में मन-बुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र करने वाली सर्वशक्ति सम्पन्न आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं विश्व कल्याण की जिम्मेवारी और पवित्रता की लाइट का ताज पहनने वाली डबल ताजधारी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ यह हैं बहुत छोटी सी कर्मेन्द्रियाँ, आँख, कान कितने छोटे हैं लेकिन यह जाल बहुत बड़ी फैला देते हैं। जैसे छोटी सी मकड़ी देखी है ना! खुद कितनी छोटी होती। जाल कितनी बड़ी होती। यह भी हर कर्मेन्द्रिय का जाल इतना बड़ा है, ऐसे फँसा देगा जो मालूम ही नही पड़ेगा कि मैं फँसा हुआ हूँ। यह ऐसा जादू का जाल है जो ईश्वरीय होश से, ईश्वरीय मर्यादाओं से बेहोश कर देता है। जाल से निकली हुई आत्मायें कितना भी उन दास आत्माओं को महसूस करायें लेकिन बेहोश को महसूसता क्या होगी? स्थूल रूप में भी बेहोश को कितना भी हिलाओ, कितना भी समझाओ, बड़े-बड़े माइक कान में लगाओ लेकिन वह सुनेगा? तो यह जाल भी ऐसा बेहोश कर देता है और फिर क्या मजा होता है? बेहोशी में कई बोलते भी बहुत हैं। लेकिन वह बोल बेअर्थ होता है। ऐसे रूहानी बेहोशी की स्थिति में अपना स्पष्टीकरण भी बहुत देते हैं। लेकिन वह होता बेअर्थ है। दो मास की, 6 मास की पुरानी बात, यहाँ की बात, वहाँ की बात बोलते रहेंगे। ऐसी है यह रूहानी बेहोशी। तो है छोटी सी आँख लेकिन बेहोशी की जाल बहुत बड़ी है।

➳ _ ➳ इससे निकलने में भी टाइम बहुत लग जाता है क्योंकि जाल की एक-एक तार को काटने का प्रयत्न करते हैं। जाल कभी देखी है? आप लोगों के प्रदर्शनी के चित्रों में भी है। जाल खत्म करने का साधन है - सारी जाल को अपने में खा लो। खत्म कर लो। मकड़ी भी अपनी जाल को पूरा स्वयं ही खा लेती है। ऐसे विस्तार में न जाकर विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो। बिन्दी बन जाओ। बिन्दी लगा दो। बिन्दी में समा जाओ। तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी। और समय बच जायेगा। मेहनत से छूट जायेंगे। बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे। तो सोचों जाल में बेहोश होने की स्थिति अच्छी वा बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन होना अच्छा! तो बाप की मर्ज़ी क्या हुई? लवलीन हो जाओ।

➳ _ ➳ जबकि झाड़ को अभी परिवर्तन होना ही है। तो झाड़ के अन्त में क्या रह जाता है? आदि भी बीज, अन्त भी बीज ही रह जाता है। अभी इस पुराने वृक्ष के परिवर्तन के समय पर वृक्ष के ऊपर मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ। बीज है ही - ‘बिन्दु'। सारा ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबका सिन्धु व बिन्दु में समा जाता है। इसको ही कहा जाता है - बाप समान स्थिति। बाप सिन्धु होते भी बिन्दु है। ऐसे मास्टर बीज रूप स्थिति कितनी प्रिय है! इसी स्थिति में सदा स्थित रहो। समझा क्या करना है?

✺ "ड्रिल :- बिंदी बन बिंदी लगा विस्तार को सार में समाना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने लौकिक घर में बाबा की याद में मगन होकर घर की सफाई कर रही हूँ... सफाई करते समय मेरी नजर अचानक एक कोने में लगे मकड़ी के जाले पर पड़ती है... मैने देखा वह जाल दूर तक फैला हुआ है और मकड़ी उसमे फंसी हुई है... और मकड़ी चाह कर भी उस जाले से निकल नहीं पा रही है... मैंने उस जाले के पास जाकर उसे छुआ और बहुत आवाज करने लगी... परंतु उस मकड़ी को बिल्कुल भी यह आभास भी नहीं हुआ की उसको कोई छू रहा है अर्थात उसके जाले को कोई छूने की कोशिश कर रहा है... कुछ समय बाद मैं दूर खड़े होकर उस जाले को लगातार निहारने लगती हूं ... और मैं देखती हूं वह मकड़ी अपने उस बने हुए जाले को स्वयं ही खाने लगती है और वह धीरे-धीरे मेरे देखते देखते वह मकड़ी सारे जाले को खा जाती है... और अपने अंदर समा लेती है और वह मकड़ी एक बिंदु के रूप में स्थित हो जाती है...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं आत्मा उस मकड़ी को देख कर यह अनुभव करती हूँ कि कुछ समय पहले यह मकड़ी अपने ही द्वारा बने हुए जाले में कैद थी और वह चाहकर भी उस जाले से निकल नहीं पा रही थी... ना ही इस मकड़ी को किसी भी प्रकार का अनुभव हो पा रहा था... यह ऐसा प्रतीत हो रही था जैसे यह बेहोश अवस्था में लेटी हो जिससे इस दुनिया की कुछ खबर भी ना हो उसे इस अवस्था में देखकर मैं मन ही मन यह विचार करती हूं कि जैसे यह मकड़ी अपने ही बुने जाले को सेकंड में अपने अंदर समा लेती है वैसे ही मुझे आत्मा में भी यह गुण होना चाहिए... कि मैं विस्तार को एक सैकेंड में सार बनाकर व्यर्थ से सदा के लिए मुक्त हो जाऊं... जैसे मकड़ी कितनी छोटी होती है और वह जाला कितना बड़ा होता है फिर भी मकड़ी सेकंड में उस बड़े से जाले को अपने अंदर समा लेती है और बिंदु रूप में समा जाती है और मैं सोचती हूं क्या मैं भी इस मकड़ी की तरह अपनी कर्मेंद्रियों को अपने वश में कर सकती हूं सोचने लगती हूं...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरा अंतर्मन बाबा के पास सूक्ष्म वतन में पहुंच जाता है और मैं बाबा से कहती हूं बाबा मुझे इस दृश्य के बारे में समझाइए... बाबा बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ रखते हैं और कहते हैं... बच्चे जब तक तुम अपने घर में इंद्रियों के बस में होकर कार्य करोगे तब तक तुम ईश्वरीय मर्यादाओं में रहकर कार्य नहीं कर पाओगे... यह कर्मेंद्रियां बिल्कुल ही बेहोश कर देती है अगर कोई ईश्वरीय ज्ञान से होश में आई हुई आत्माएं कर्मेंद्रियों द्वारा बेहोश आत्माओं को जगाने का प्रयास करते हैं तो वह आत्माएं कितना भी जगाने पर जाग ही नहीं पाती है... कुछ कर्मेंद्रियों के इतने वश में हो जाते हैं कि वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होते और ना ही अपने असली स्वरूप को पहचान पाते है... सिर्फ और सिर्फ कर्मेंद्रियों के वश में हो कर रह जाते हैं...

➳ _ ➳ बाबा मुझसे कहते हैं बच्चे अगर तुम बिंदी बनकर हर विस्तार पर बिंदी लगाओगे तो इस मायाजाल में फंसने से बच जाओगे और जब बिंदु रूप स्थिति का अनुभव करोगे तो सहज ही बाप की याद में लवलीन हो पाओगे ... अगर तुम एक बार कर्मेंद्रिय रूपी जाल में फंस जाते हो तो फिर तुम्हें इस जाल को काटने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और जब तुम इस जाल को काटने में इतनी मेहनत लगाओगे तो तुम्हारा पुरुषार्थ धीरे हो जाएगा तुम पुरुषार्थ में आगे नहीं बढ़ पाओगे ... इसलिए तुम्हें हर कर्म, इंद्रियों को अपने वश में रखकर, करना होगा जिससे तुम्हारा समय भी बचेगा और पुरुषार्थ भी आगे बढ़ेगा और एक बाप की याद में बड़ी ही सरलता से रह पाएंगे...

➳ _ ➳ बाबा के यह वचन सुनकर मैं आत्मा बाबा को कोटि-कोटि धन्यवाद करती हूं और कहती हूं... बाबा अब से मैं जो भी कार्य करूंगी कर्मेंद्रियों को अपने वश में रखकर ही करूंगी... कर्म इंद्रियों के वश में होकर कोई कार्य नहीं करूंगी... हमेशा विस्तार से सार में आऊंगी... किसी भी बात के विस्तार में नहीं जाऊंगी सार रूपी बिंदी लगाकर अपने आपको बिंदु रूप स्थिति का अनुभव करूंगी और बिंदी बनकर परमात्मा रुपी बिंदी में लवलीन हो जाऊंगी... बिंदु रूप स्थिति में स्थित होकर ज्ञान गुण शक्तियों का अनुभव करूंगी और कराऊंगी... बाप समान बिंदु बनकर पुराने कल्पवृक्ष के ऊपर स्थित होकर मास्टर बीज रूप स्थिति का अनुभव करूंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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