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❍ 05 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ अन्दर बाबा बाबा की उछाल आती रही ?
➢➢ सर्व आत्माओं पर उपकार किया ?
➢➢ नष्टोमोहा बन दुःख अशांति के नाम निशान को समाप्त किया ?
➢➢ रहमदिल बन सर्व को दुआएं देते रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जब योग में बैठते हो तो समाने की शक्ति सेकण्ड में यूज करो। सेवा के संकल्प भी समा जाएं इतनी शक्ति हो जो स्टॉप कहा और स्टॉप हो जाए। फुल ब्रेक लगे, ढीली ब्रेक नहीं। अगर एक सेकण्ड के बजाए ज्यादा समय लग जाता है तो समाने की शक्ति कमजोर कहेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं दिलवाले बाप को दिल देने वाली अचल आत्मा हूँ"
〰✧ आपका इस आबू पर्वत पर कौन सा यादगार है? अचलगढ़ कौन बन सकता है? जिसने दिलाराम को अपना बना लिया, वही अचल बन सकता है। इसलिए दोनों ही यादगार बहुत कायदे प्रमाण बने हुए हैं। अगर दिलवाला बाप को अपना नहीं बनाया तो अचल की बजाए हलचल होती है। कोई भी चीज में हलचल होती रहे तो वह टूट जायेगी और जो अचल होगी वो सदा कायम रहेगी। तो सदैव ये स्मृति में रखो कि हम दिलवाला बाप को दिल देने वाली अचल आत्मायें हैं। ये मेरा यादगार है - हरेक अनुभव करे। ऐसे नहीं - ये ब्रह्मा बाप का या महारथियों का है। नहीं, मेरा यादगार है। देखो ड्रामानुसार अपने यादगार स्थान पर ही पहुँच गये। नहीं तो पाकिस्तान से आबू में आना - यह तो स्वपन में भी नहीं आ सकता था। लेकिन ड्रामा में यादगार यहीं था तो कैसे पहुँच गये हैं। अपने ही यादगार को देख हर्षित होते रहते हो।
〰✧ अचल रहना - कोई मुश्किल बात नहीं है। कोई भी चीज को हिलाते रहो तो मेहनत भी और मुश्किल भी। सीधा रख दो तो वह सहज है। ऐसे ही मन-बुद्धि द्वारा हलचल में आना कितना मुश्किल होता है और मन बुद्धि एकाग्र हो जाती है तो कितना सहज होता है। अभी हलचल में आना पसन्द ही नहीं करेंगे। अच्छा नहीं लगेगा। आधाकल्प हलचल में आते थक गये। तन की भी हलचल, मन की भी हलचल, धन की भी हलचल। तन से भी भटकते रहे। कभी किस मन्दिर में। कभी किस यात्रा पर, तो कभी किस यात्रा पर और मन परेशानियों में, हलचल में आते रहा और धन में तो देखो- कभी लखपति तो कभी कखपति। तो अनेक जन्मों की हलचल का अनुभव होने के कारण अभी अचल अवस्था अति प्रिय लगती है। इसीलिए दूसरों के ऊपर रहम आता है। शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि ये भी अचल हो जाये।
〰✧ अचल स्थिति वालों का विशेष गुण होगा - रहमदिल। सदा हर एक आत्मा के प्रति दातापन की भावना। ऐसे मास्टर दाता बने हो कि दूसरे को देखकर घृणा आती है? रहम आता है, दया भाव आता है, दातापन की स्मृति आती है? या क्यों क्या उत्पन्न है? आप सबका विशेष टाइटल है - विश्व कल्याणकारी। जो विश्व कल्याणकारी है उसको हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना होगी। उसके अन्दर स्वत: ही किसी आत्मा के प्रति भी घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानि का भाव कभी उत्पन्न नहीं होगा। इसको कहा जाता है विश्व कल्याणकारी आत्मा। तो ऐसे हो? या कभीकभी दूसरे भाव भी आ जाते हैं? बस, सदा कल्याण का भाव हो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा सब चीज़ें समीप अनुभव होती जाती है - दूर की आवाज़ टेलिफोन के साधन द्वारा समीप सुनन में आती है, टी . वि. (दूरदर्शन) द्वारा दूर का दृश्य समीप दिखाई देता है, ऐसे ही साइलन्स की स्टेज द्वारा कितने भी दूर रहती हुई आत्मा को सन्देश पहुँचा सकते हो?
〰✧ वो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में सम्मुख किसी ने सन्देश दिया है। दूर बैठे हुए भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के दर्शन और प्रभु चरित्रों के दृश्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख देख रहे हैं।
〰✧ संकल्प द्वारा दिखाई देगा अर्थात आवाज से परे संकल्प की सिद्धि का पार्ट बजाएंगे। लेकिन इस सिद्धि की विधि ज्यादा - से - ज्यादा अपने शान्त स्वरूप में स्थित होना है। इसलिए कहा जाता है - 'साइलन्स इज गोल्ड', यही गोल्डन ऐजड स्टेज कही जाती है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ सिर्फ यह भी स्मृति रहे तो कितनी मीठी जीवन का अनुभव करेंगे। हम इस मृत्युलोक के नहीं लेकिन अवतार हैं। सिर्फ यह छोटी-सी बात याद रहे तो उपराम हो जायेंगे। अगर अपने को अवतार न समझ गृहस्थी समझते हो तो गृहस्थी की गाड़ी कीचड़ में फंसी रहती। गृहस्थी है ही बोझ की स्थिति और अवतार बिल्कुल हल्का। वह फैसा हुआ है वह बिल्कुल न्यारा। कभी अवतार कभी गृहस्थी यह चक्कर अगर चलता रहता तो संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन का, सुहावने सुख के जीवन का कभी-कभी अनुभव होगा, सदा नहीं।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- आत्मा समझ बाप को याद करना"
➳ _ ➳ प्रातः विचरण करते हुए मैं आत्मा एक उपवन में जाती हूँ... यहाँ पक्षी
मधुर कलरव कर रहे हैं... पास ही कल कल करता हुआ झरना बह रहा है... यहां का
वातावरण बहुत ही सुंदर और आकर्षक है... यहां के सुरम्य वातावरण में प्रकृति के
सामीप्य में बैठी... मैं आत्मा अपने शिव साजन की यादों में खो जाती हूँ...
बाबा के स्नेह का शीतल झऱना मुझ आत्मा पर बह रहा है... मेरा रोम रोम उस वर्षा
में भीग रहा है... अपने बाबा को मैं अपने सामने देख रही हूँ... और उनसे दृष्टि
ले रही हूँ...
❉ अपनी स्नेहसिक्त वाणी से मुझे आनंदमग्न करते हुए बाबा कहते हैं:- "मीठे
मीठे लाडले बच्चे... तुम मुझ एक बाप को याद करो... बाप की याद से सभी सुख
प्राप्त होते हैं... बाप की याद ही विश्व के लिए योगदान है... इसी से ही विश्व
पावन बनेगा... विश्व का बेड़ा पार हो जाएगा... तुम अपार सुखों की दुनिया में
चले जाओगे और असीम सुख प्राप्त करोगे..."
➳ _ ➳ बाबा की मधुर वाणी सुनकर खुशी में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे
मीठे प्यारे बाबा... आपकी याद मुझे अतींद्रिय सुख देने वाली है... कब से पुकारते
पुकारते अब संगम युग पर आप मुझे मिले हो... अब मैं आपको ही हर क्षण याद कर रही
हूँ... इस याद से समूचे विश्व को पावन बनाने में योगदान दे रही हूँ... मैं आत्मा
आपकी स्नेह वर्षा में मग्न हो खुशी में झूम रही हूँ..."
❉ ज्ञान की गहराइयों में ले जाते हुए ज्ञानसागर बाबा कहते हैं:- "मीठे फूल
बच्चे... इस संसार पर दु:खों के पहाड़ टूटने वाले हैं... बाप का बनने से एक
सेकंड में सुख का वर्सा मिल जाता है... तुम ईश्वर की गोद में आए हो... वही सबसे
मीठा सबसे प्यारा है... वही तुम्हारा ऊंचे से ऊंचा प्रीतम है, जिससे तुम
प्रीतमाओं को सुख घनेरे मिलते हैं... शिव बाबा खिवैया है, जो तुम्हें इस विषय
सागर से पार ले जाते हैं... आत्मा अज्ञान सागर से उस पार जा रही है..."
➳ _ ➳ ज्ञान सागर की लहरों में लहराते हुए ज्ञान गंगा रूपी मैं आत्मा कहती
हूँ:- "प्राणों के आधार मीठे बाबा... मैं आत्मा आप की सजनी बन अविनाशी साजन
की याद में समाई हुई हूँ... हर संबंध से अपने मीठे बाबा को याद कर रही हूँ...
मैं आत्मा ईश्वर पिता की गोद में आकर आपका बच्चा बन आपसे अविनाशी वर्सा
प्राप्त कर रही हूँ... आपको अपनी जीवन नैया का खिवैया बनाकर विषय सागर से सहज
ही पार होती जा रही हूँ..."
❉ मुझ आत्मा को अपनी गोदी में बिठाकर मुझ पर अपार स्नेह लुटाते हुए बाबा कहते
हैं:- "प्यारे सिकीलधे बच्चे... तुम्हें मुख से राम राम कहने की दरकार नहीं
है... बाबा अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं... तुम मीठी-मीठी लाडली
आत्माएं मुझ बाप को ही याद करो... यही बाप की याद विश्व के लिए योगदान है...
एक शिव बाबा को याद करो... बाप के बनोगे तब बाबा की मदद भी मिलेगी... बाप की
याद में रहना है और सबको याद दिलाना है... यही दान करते रहना है... बाप पर बलि
चढ़ जाना है और ट्रस्टी बन संभालना है..."
➳ _ ➳ बाबा की गोदी में बैठ अपने भाग्य पर इठलाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे
प्राणेश्वर मीठे बाबा... मैं आत्मा आपकी मधुर शिक्षाओं को अपने जीवन में
आत्मसात कर रही हूँ... आपका बच्चा बन आपसे वर्सा ले रही हूँ... हर क्षण आपकी
मीठी यादों में समाई हुई हूँ... सबको आपकी याद दिला रही हूँ... अपना तन मन धन
ईश्वर सेवा अर्थ बलिहार कर रही हूँ... आपकी याद से विश्व को पावन बनाने में
योगदान दे रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अतींद्रिय सुख का अनुभव करने के लिए अंदर बाबा - बाबा की उछाल आती रहे"
➳ _ ➳ "अतींद्रिय सुख पूछना है तो गोप गोपियों से पूछो" बाबा के ये महावाक्य
स्मृति में आते ही मैं खो जाती हूँ उस अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में जो अपने
गोपीवल्लभ बाप की याद में बैठते ही मैं आत्मा रूपी गोपी प्राप्त करती हूँ।
अपने गोपी वल्लभ बाप के साथ मनाई साकार मिलन की मीठी यादें अब एक - एक करके
अनेक चित्रों के रूप में मेरी आँखों के सामने स्पष्ट हो रही हैं। साकार मिलन
का वो सुख मुझे बार - बार उस पावन धरती की याद दिला रहा है और मन रूपी पँछी बार
- बार उड़ कर उस स्थान पर जा रहा है।
➳ _ ➳ देख रही हूँ अब मैं स्वयं को मधुबन के आंगन में। बाबा की कुटिया के बाहर
बने पार्क में मैं बैठी हूँ और एक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। सामने नटखट
कान्हा मुरली बजा रहें हैं और उस मुरली की मीठी तान सबको मदहोश कर रही है।
गोपियाँ मुरली की मीठी तान को सुन कर अपनी सुध - बुध गंवा कर दौड़ी चली आ रही
है। हर गोपी के साथ कान्हा रास करता हुआ दिखाई दे रहा है। सभी गोपिकाएं एक
अलौकिक मस्ती में मस्त हो कर अपने नटखट कान्हा के साथ, नृत्य कर रही हैं।
देखते ही देखते यह दृश्य एक और खूबसूरत दृश्य में परिवर्तित हो जाता है।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को डायमण्ड हाल में अपने गोपीवल्लभ बाबा के
सामने जो अपने निर्धारित रथ गुलजार दादी की भृकुटि में विराजमान हो कर, उनके
मुख से मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। वहां उपस्थित सभी आत्मा रूपी
गोपिकाएं उन मधुर महावाक्यों को सुन कर, देह के भान से मुक्त, एक अलौकिक रूहानी
मस्ती में डूबी हुई दिखाई दे रही हैं। अपने गोपीवल्लभ बाबा की मीठी मुरली के
मधुर महावाक्य मैं आत्मा गोपी एकाग्र हो कर सुन रही हूँ और इन मधुर महावाक्यो
के एक - एक शब्द में समाये अपने गोपी वल्लभ बाबा के प्रेम का मैं गहराई तक
अनुभव कर रही हूँ। उनके प्रेम का यह मधुर एहसास मुझे असीम सुख की अनुभूति करवा
रहा है।
➳ _ ➳ मुरली के मधुर महावाक्य उच्चारण करने के साथ - साथ अब मेरे गोपीवल्लभ
बाबा अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल कर रहें हैं। उनकी मीठी दृष्टि से आ रही
लाइट और माइट पाकर मैं भी लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, मास्टर बीजरूप
स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। और इस स्थिति में स्थित होते ही अब मै अपने
गोपीवल्लभ बाबा को उनके निराकार बीजरूप स्वरूप में अपने बिल्कुल सामने देख रही
हूँ। उनसे आ रही सर्वशक्तियाँ चारों और फैल रही है और उनसे निकल रहे वायब्रेशन
शांति की गहन अनुभूति करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ गहन शांति की अनुभूति में गहराई तक खोई मैं आत्मा गोपी धीरे धीरे अपने
गोपीवल्लभ बाप के बिल्कुल समीप पहुंच कर अब उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ। इस
कम्बाइंड स्थिति में स्थित होते ही अब मैं उनसे आ रही अनन्त शक्तियों को स्वयं
में समाता हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। परमात्म शक्तियां मुझ आत्मा में समाकर
मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। मेरे गोपीवल्लभ का प्रेम उनकी अनन्त
किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सुख का कोई
झरना मुझ आत्मा के ऊपर बह रहा है और मैं असीम सुख से भरपूर होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ इस अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहराई तक अनुभव करके अब मैं स्वयं को
वापिस अपने ब्राह्मण स्वरूप में और अपने गोपी वल्लभ बाप को उनके रथ पर विराजमान
देख रही हूँ। उनकी मीठी याद में समाये अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति को अपने साथ
लेकर अब मैं मधुबन से वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ। कर्मयोगी बन, हर
कर्म करते अपने मीठे बाबा की याद में रह अब मैं हर समय अतीन्द्रिय सुख का अनुभव
कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं नष्टोमोहा बन दुःख अशान्ति के नाम निशान को समाप्त करने वाली स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं रहमदिल बन सर्व को दुआएं देते रहने वाली क्षमाशील आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सदा सन्तुष्टता का फल खाते और खिलाते रहेंगे। तो मैं निमित्त हूँ- इससे
न्यारा और बाप का प्यारा अनुभव करेंगे। मैंने किया यह भी कभी वर्णन नहीं करेंगे।
मैं शब्द समाप्त हो जायेगा। ‘‘मैं'' के बजाए ‘‘बाबा बाबा''। तो बाबाबाबा कहने
से सबकी बुद्धि बाप की तरफ जायेगी। जिसने निमित्त बनाया उसके तरफ बुद्धि लगने
से आने वाली आत्माओं को विशेष शक्ति का अनुभव होगा क्योंकि सर्वशक्तिवान से योग
लग जायेगा। शक्ति स्वरूप का अनुभव करेंगे। नहीं तो कमजोर ही रह जाते हैं। तो
निमित्त समझकर चलना यही सेवाधारी की विशेषता है। देखो - सबसे बड़े ते बड़ा
सेवाधारी बाप है लेकिन उनकी विशेषता ही यह है - जो अपने को निमित्त समझा। मालिक
होते हुए भी निमित्त समझा। निमित्त समझने के कारण सबका प्रिय हो गया।
➳ _ ➳ तो निमित्त हूँ, न्यारी हूँ, प्यारी हूँ, यही सदा स्मृति में रखकर चलो। सेवा
तो सब कर रहे हो, यह लाटरी मिल गई लेकिन इस मिली हुई लाटरी को सदा आगे बढ़ाना या
कहाँ तक रखना यह आपके हाथ में है। बाप ने तो दे दी, बढ़ाना आपका काम है। भाग्य
सबको एक जैसा बांटा लेकिन कोई सम्भालता और बढ़ाता है, कोई नहीं। इसी से नम्बर बन
गये। तो सदा स्वयं को आगे बढ़ाते, औरों को भी आगे बढ़ाते चलो। औरों को आगे बढ़ाना
ही बढ़ना है। जैसे बाप को देखो, बाप ने माँ को आगे बढ़ाया फिर भी नम्बरवन नारायण
बना। वह सेकण्ड नम्बर लक्ष्मी बनी। लेकिन बढ़ाने से बढ़ा। बढ़ाना माना पीछे होना
नहीं, बढ़ाना माना बढ़ना।
✺ "ड्रिल :- “मैं निमित हूँ" - इस स्थिति का अनुभव करना”
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में बैठ मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान में स्थित होकर
सर्वशक्तिवान से योग लगाती हूं… मैं आत्मा इस दुनिया से न्यारी होती हुई
सर्वशक्तिवान की किरणों की रोशनी में रुहानी यात्रा करती हुई पहुंच जाती हूं
अपने प्यारे बाबा के पास… शक्तियों के सागर में डुबकी लगाती हुई मैं आत्मा
सर्व शक्तियों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूं… मैं आत्मा सारी कमी कमजोरियों से
मुक्त होकर शक्ति स्वरूप का अनुभव कर रही हूं…
➳ _ ➳ अब मुझ आत्मा से मैं मेरे मन की भावना खत्म हो रही है... शक्तियों के
सागर में मैं शब्द को डुबोकर समाप्त कर दी हूं... अब मैं आत्मा सिर्फ बाबा बाबा
करती रहती हूं... अपने को निमित्त समझकर सच्चे सेवाधारी की विशेषता को ग्रहण
कर रही हूं... प्यारे बाबा मालिक होते हुए भी अपने को बच्चों का सेवाधारी कहते
हैं... मैं आत्मा बाप के गुणों को धारण कर अपने को सेवाधारी बाप समान निमित्त
समझ कर चल रही हूं...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अल्पकाल के नाम मान शान के लिए कभी भी सेवा का वर्णन नहीं
करती हूं... निस्वार्थ भाव से अपने को निमित समझ सेवा कर रही हूं... करावनहार
करा रहा है मैं बस कर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपना बुद्धि योग सिर्फ प्यारे
बाबा से लगाती हूं... किसी भी देहधारी से नहीं जिससे मैं आत्मा विशेष शक्तियों
का स्वयं में अनुभव कर रही हूं... और आने वाली आत्माओं को भी विशेष शक्ति का
अनुभव करवा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा निमित्त हूँ, न्यारी हूँ, प्यारी हूँ, सदा इसी स्मृति में
रहकर सेवा करती हूं... बाबा से मिले श्रेष्ठ भाग्य के खजानों को स्वयं में धारण
कर संभाल रही हूं और समय प्रमाण यूज कर बढ़ाती जा रही हूं... मैं आत्मा बाप
समान बनकर औरों को आप समान बना रही हूं... स्वयं भी आगे बढ़ रही हूं और औरों को
भी आगे बढ़ाती जा रही हूं... जैसे ब्रह्मा बाप ने माँ को आगे बढ़ाकर नम्बरवन
नारायण बने... वैसे ही मैं आत्मा ब्रह्मा बाप सामान सर्व के कल्याण की भावना से
सर्व को आगे बढ़ा रही हूं और स्वतः आगे बढ़ती जा रही हूं और नंबर वन बन रही
हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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