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 17 / 04 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मुरली में बेपरवाह तो नहीं बने ?*

 

➢➢ *किसी हद के सम्बन्ध में लव रख बुधीयोग लटकाया तो नहीं ?*

 

➢➢ *साक्षी स्थिति में स्थित रह परिस्थितियों के खेल को देखा ?*

 

➢➢ *ऐसे खुशनुमा बनकर रहे जो मन की ख़ुशी से सूरत स्पष्ट दिखाई दी ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब कोई भी आधार पर जीवन का आधार नहीं होना चाहिए अथवा पुरुषार्थ भी कोई आधार पर नहीं होना चाहिए,* इससे योगबल की शक्ति के प्रयोग में कमी हो जाती है। *जितना जो योगबल की शक्ति का प्रयोग करते हैं उतना उनमें वह शक्ति बढ़ती है। योगबल अभ्यास से बढ़ता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

   एक लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो? साधारण तो नहीं। *सदा श्रेष्ठ आत्मायें जो भी कर्म करेंगी वह श्रेष्ठ होगा। जब जन्म ही श्रेष्ठ है तो कर्म साधारण कैसे होगा! जब जन्म बदलता है तो कर्म भी बदलता है। नाम रूप, देश, कर्म सब बदल जाता है। तो सदा नया जन्म, नये जन्म की नवीनता के उमंग-उत्साह में रहते हो!* जो कभी-कभी रहने वाले हैं उन्हें राज्य भी कभी-कभी मिलेगा।

 

  जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हें निमित्त बनने का फल मिलता रहता है। और फल खाने वाली आत्मायें शक्तिशाली होती हैं। *यह प्रत्यक्षफल है, श्रेष्ठ युग का फल है। इसका फल खाने वाले सदा शक्तिशाली होंगे। ऐसे शक्तिशाली आत्मायें परिस्थितियों के ऊपर सहज ही विजय पा लेती हैं। परिस्थिति नीचे और वह ऊपर।*

 

  जैसे श्रीकृष्ण के लिए दिखाते हैं कि उसने साँप को भी जीता। उसके सिर पर पाँव रखकर नाचा। तो यह आपका चित्र है। कितने भी जहरीले साँप हों लेकिन आप उन पर भी विजय प्राप्त कर नाच करने वाले हो। यही श्रेष्ठ शक्तिशाली स्मृति सबको समर्थ बना देगी। *और जहाँ समर्थता है वहाँ व्यर्थ समाप्त हो जाता है। समर्थ बाप के साथ हैं, इसी स्मृति के वरदान से सदा आगे बढ़ते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *फरिश्ता रुप की स्थिति अर्थीत अव्यक्त स्थिति जिसकी सदा काल रहती है वह बिन्दु रुपों में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रुप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे।

 

✧  *वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच - बीच में समय निकाल करना चाहिए*। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति। इस स्थिति को पहूँचने के लिए एक बात का विशेष ध्यान रखना पडेगा। आजकल वह गवर्नमेन्ट कौन - सी स्कीम बनाती है? उन्हों के प्लैन्स भी सफल तब होते हैं जब पहले - पहले यह लक्ष्य रखते हैं कि सभी बातों में जितना हो सके इतनी बचत हो। बचत की योजना भी करते है ना।

 

✧   समय बचे, पैसे बचे, इनर्जी की भी बचत करना चाहते हैं। *इनर्जी कम लगे और कार्य ज्यादा हो*। सभी प्रकार की बचत की योजना करते हैं। अब पाण्डव गवर्नमेन्ट को कौन - सी स्कीम करनी पडे? *यह जो सुनाया कि बिन्दु रुप की सम्पूर्ण सिद्धि की अवस्था को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना पडे।* अभी जिस रीति चल रहे हैं उस हिसाब से तो सभी यही कहते हैं कि बहुत बिजी रहते हैं, एकान्त का समय कम मिलता हैं, अपने मनन का समय भी कम मिलता है। लेकिन समय कहाँ से आयेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *पुरुषार्थ शब्द का अर्थ क्या करते हो? इस रथ में रहते अपने को पुरुष अर्थात् आत्मा समझकर चलो, इसको कहते है पुरुषार्थी।* तो ऐसे पुरुषार्थ करने वाला अर्थात् आत्मिक स्थिति में रहने वाला इस रथ का पुरुष अर्थात् मालिक कौन है? आत्माना। *तो पुरुषार्थी माना अपने को रथी समझने वाला। ऐसा पुरुषार्थी कब हार नहीं खा सकता।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पतित से पावन बनने के लिए दो शब्द याद रखना- मनमनाभव और मध्याजीभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा पंछी बन मन के द्वारे उड़ते हुए बाबा की कुटिया में बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... बापदादा अपनी मोहिनी सूरत से मुझ आत्मा को निहाल कर रहे हैं... बाबा अपनी रंग बिरंगी किरणों की बारिश मुझ आत्मा पर बरसा रहे हैं... मैं आत्मा इन सुंदर शीतल किरणों को अपने में समाती जा रही हूं... मैं बाबा की किरणों को अपने में समाकर अंतर्मुखी होती जा रही हूँ...* बाबा की ये किरणें मुझ आत्मा के सभी विकार भस्म कर रहे हैं... मैं आत्मा संपूर्ण पवित्रता का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा एक बाबा के प्यार में लवलीन होती जा रही हूँ...           

 

   *मनमनाभव का मन्त्र पक्का कराते हुए एक बाबा को सदा फॉलो करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे लाडले बच्चे... *सदा दिल में पिता को समाये रहो... उसे ही अपनी यादो में बसाये रहो... उसे ही चाहो और प्यार करो... मन ही मन उससे प्रेम की बाते करो... उसका ही अनुसरण करो...* तो यही सच्चा सहयोग है... अपनी सुंदर स्थिति ही सर्वोत्तम सहयोग है...

 

_ ➳  *मधुबन के चमन की बहार बनकर मीठे बाबा के गीतों को गुनगनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ज्ञानसागर बाबा के गुण और शक्तियो को स्वयं में भर कर गुणवान शक्तिवान हो रही हूँ...* और पूरी धरा को भी इन खजानो से भरपूर कर मीठे बाबा की सहयोगी बन रही हूँ...

 

   *अपनी बगिया का फूल बना रूहानी सुगंध से महकाकर मुझे इस सृष्टि का श्रृंगार बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय ज्ञान से स्वयं को सजाओ संवारो और एक की लगन में मगन हो जाओ... *प्यारे पिता को ही फॉलो करो... तो यह अवस्था ही पिता का सहयोगी बनना है... अपनी सुंदर स्थिति और ईश्वर पिता की यादो में डूबे रहना ही मनमनाभव अवस्था है...”*

 

_ ➳  *वंडरफुल बाबा के वंडरफुल यादों में समाकर वंडरफुल स्थिति के अनुभवों में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मनमनाभव के मन्त्र को प्राणों में बसाकर खूबसूरत भाग्य से राजरानी बन रही हूँ... प्यारे बाबा की शिक्षाओ को आत्मसात कर उजली सी दमक उठी हूँ...* अपनी खुशनुमा स्थिति की तरंगे पूरे विश्व को दे रही हूँ...

 

   *दिव्य गुणों से चमकाकर मुझे इस जहाँ का नूर बना मेरी जिन्दगी की राहों में सुखों के फूल बिछाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने हर साँस संकल्प को ईश्वरीय यादो में पिरो दो... यादो के मोतियो से हर पल श्रृंगारित रहो... सच्चे पिता की यादो में खोये रहो...* और पिता के ही नक्शे कदम पर चल हर कदम पर पदम् बिछा दो... यही तो सच्चा सहयोगी बनना है... अपनी श्रेष्ठ स्थिति ही सबसे बड़ा सहयोग है...

 

_ ➳  *एक बाबा को ही मन का मीत बनाकर प्रीत की रीत निभाते हुए एक की लगन में मगन होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अपने मन और बुद्धि को आपके प्रेम में समर्पित कर आपकी मीठी यादो में महक उठी हूँ... मीठे पिता के कदमो की छाप पर अपने कदमो में पदम् भर रही हूँ...* ईश्वर पिता की सहयोगी बन मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मबन्धन से मुक्त होने के लिये संगमयुग पर अपने सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने है*"

 

_ ➳  अपनी आंखें बंद कर ,एकांत में बैठ मुरली में लिखे गीत "आज के इस इंसान को ये क्या हो गया" को सुनते सुनते मैं विचार करती हूं कि *पहले जब सम्बन्धों में स्नेह और मर्यादा थी तो सब कितने खुश, आनन्दित दिखाई देते थे* किंतु आज हर मनुष्य के चेहरे पर केवल निराशा और दुख की झलक ही दिखाई देती है।

 

_ ➳  यह विचार करते करते एक सीन मेरी आँखों के सामने दिखाई देता है। मैं देख रही हूं जैसे सारी दुनिया एक बहुत बड़ी जेल है। सबके हाथ, पैर जंजीरों से जकड़े हुए है। सब इन जंजीरो से छूटने के लिए छटपटा रहें हैं। कैदी बन अपने ही जीवन को एक बोझ की तरह ढो रहें हैं। ना जाने कितने समय से ऐसा ही जीवन जीते आ रहें हैं। *तभी अचानक बहुत तेज दिव्य प्रकाश के साथ एक ज्योति पुंज प्रकट होता है और उसकी अनंत किरणे चारों तरफ फैल जाती है*। उन किरणों की शक्ति से एक एक करके सबके हाथों, पैरों में बंधी बेड़ियां टूटने लगती हैं। जेल की सलाखें एक एक करके गिरने लगती हैं। सभी आजाद हो कर खुशी से नाचने लगते हैं, गाने लगते हैं।

 

_ ➳  इस दृश्य को देखते देखते जैसे ही अपनी चेतनता में लौटती हूं। उस देखे हुए दृश्य के बारे में विचार करती हूं कि आज वास्तव में सबका जीवन एक जेल की तरह ही तो बन गया है। इस *माया की नगरी, दुख धाम में देह और देह से जुड़े जो भी सम्बन्ध है वो सब जंजीरे ही तो हैं जिसमे सब जकड़े हुए हैं और सब दुखी हैं*। क्योंकि वो सभी सम्बन्ध माया रावण की आसुरी मत पर चल कर किये हुए विकर्मों के हिसाब किताब को चकुतू करने के लिए बने हैं। इसलिए ये सम्बन्ध नही बन्धन है और बन्धन में सदैव दुख की ही अनुभूति होती है।

 

_ ➳  इन दुख के बंधनों को सुख के सम्बंध में अगर कोई बदल सकता है तो वो केवल ज्योतिपुंज, परमपिता परमात्मा ही तो है। और वही निराकार, महाज्योति परमपिता परमात्मा सबको दुख के बंधनों से छुड़ा कर सुख के सम्बंध में ले जाने के लिए इस धरा पर आए हुए हैं। *कितनी पदमापदमा सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो दुख के बंधनों से निकल, ईश्वरीय सम्बन्ध में रहने का सौभाग्य मुझे मिला है*। मेरे मीठे शिव बाबा, मेरे परम पिता परमात्मा स्वयं हर सम्बन्ध का सुख मुझे प्रदान कर इन झूठे देह के बंधनों से मुझे मुक्त करा रहे हैं।

 

_ ➳  यह विचार आते ही मन मे अपने मीठे बाबा से मिलने की इच्छा जागृत हो उठती है और मैं निराकार ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निराकार शिव पिता से मिलने पहुंच जाती हूँ अपने निराकारी स्वीट साइलेन्स होम में। *अब मैं अपने शिव पिता के सम्मुख बैठ उनकी अनन्त शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं*। उनका असीम प्यार और दुलार उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप मे निरन्तर मुझ पर बरस रहा है जो मुझे गहन तृप्ति का अनुभव करवा रहा हैं। अब किसी भी देहधारी के झूठे प्यार की मुझे कोई आवश्यकता नही। *सर्व सम्बन्धों का सच्चा रूहानी प्यार मेरे मीठे शिव बाबा से मुझे निरन्तर प्राप्त हो रहा है*।

 

_ ➳  ईश्वरीय सम्बन्धों का सच्चा सुख प्राप्त कर अब मैं आत्मा साकारी दुनिया मे वापिस लौट रही हूं। अपनी साकारी देह में प्रवेश कर, देह में रहते भी, ईश्वरीय सम्बन्ध का अनुभव अब मुझे देह और देह से जुड़े बन्धनों से मुक्त कर रहा है। *ईश्वरीय याद में रह योगबल से पुराने कर्मबन्धनों के हिसाब किताब चुकतू हो रहें हैं*। मुक्ति में रहते जीवन मुक्ति का अनुभव करते हुए अब मैं आनन्दमयी बन्धन मुक्त जीवन जी रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं साक्षी स्थिति में स्थित हो परिस्थितियों के खेल को देखने वाली सन्तोषी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *जो मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई दे, मैं ऐसी खुशनुमः आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ‘‘आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं ने सर्वशक्तियों को कहाँ तक अपने में धारण किया है? *विशेष शक्तियों को अच्छी तरह से जानते हो और जानने के आधार पर चित्र बनाते हो। यह चित्र, चैतन्य स्वरूप की निशानी है - ‘‘श्रेष्ठता अथवा महानता।'' हर कर्म श्रेष्ठ, महान है इससे सिद्ध है कि शक्तियों को चरित्र अर्थात् कर्म में लाया है।* निर्बल आत्मा है वा शक्तिशाली आत्मा है, सर्वशक्ति सम्पन्न है वा शक्ति स्वरूप सम्पन्न है - यह सब पहचान कर्म से ही होती है *क्योंकि कर्म द्वारा ही व्यक्ति और परिस्थिति के सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हैं। इसलिए नाम ही है - ‘‘कर्म-क्षेत्र, कर्म-सम्बन्ध, कर्म-इन्द्रियां, कर्म भोग, कर्म योग।"*

 

✺  *"ड्रिल :- श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मन के संकल्पों, विकल्पों के बोझ से न्यारी होती हुई... परमधाम में सर्व शक्तियों के सागर के समीप बैठ जाती हूँ...* सर्व शक्तियों के सागर से असीम शीतल किरणें निकल रही हैं... मैं आत्मा इन किरणों की ठंडी छांव में बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इन किरणों को स्वयं में आत्मसात कर रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरुप बन रही हूँ...*

 

_ ➳  *सर्व शक्तिमान की किरणों से मुझ आत्मा की सभी कमी-कमजोरियां खत्म हो रही है... निर्बलता, संशय, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं...* मुझ आत्मा के कमजोर संकल्प दृढ़ संकल्पों में परिवर्तित हो रहे हैं... कमजोर कर्म खत्म हो रहे हैं... *मुझ आत्मा के सभी कर्म श्रेष्ठ बन रहे हैं...* अब मैं आत्मा अपने शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रह श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा के विकर्मो का खाता समाप्त हो रहा है...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान के पॉइंट्स की धारणा कर नालेजफुल बन रही हूँ...* नालेज को शक्ति रूप में यूज कर रही हूँ... और पावरफुल होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को अपने चरित्र में उतार रही हूँ... मैं आत्मा अपने चैतन्य स्वरूप का चित्र बना रही हूँ... *मैं आत्मा सदा कर्म रूपी दर्पण में अपने शक्ति स्वरूप का चित्र देखती हूँ*... जिस शक्ति की कमजोरी हो उसे पहचान कर उस शक्ति को स्वयं में भरती हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों और परिस्थितियों में... शक्तियों का प्रयोग कर रही हूँ... *श्रेष्ठ कर्मों की प्रत्यक्षता द्वारा विश्व की आत्माओं के आगे उदाहरणस्वरूप बन रही हूँ...* अपने कर्मों द्वारा अपने शक्ति स्वरूप का दर्शन करा रही हूँ... *वृत्ति द्वारा वृत्तियों को, वायुमंडल को परिवर्तित* कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा समय पर शक्तियों को कर्म में लगाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *मैं आत्मा शुभ भावना, शुभ कामनाओं के श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा... चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बना रही हूँ...* मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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