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❍ 30 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ पाप आत्माओं से लेन देन तो नहीं की ?
➢➢ क्रिमिनल दृष्टि को बदला ?
➢➢ सर्व खजानों से संपन्न बन निरंतर सेवा की ?
➢➢ स्वभाव में सरलता से अन्दर की सच्चाई सफाई प्रतक्ष्य की ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप को चलता-फिरता फरिश्ता, देह भान रहित अनुभव किया। कर्म करते, बातचीत करते, डायरेक्शन देते, उमंग-उत्साह बढ़ाते भी देह से न्यारा, सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति कराई, ऐसे फालो फादर करो। सदा देह-भान से न्यारे रहो, हर एक को न्यारा रूप दिखाई दे, इसको कहा जाता है देह में रहते फरिश्ता स्थिति।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को त्रिकालदर्शी अनुभव करते हो? संगमयुग पर बाप सभी आत्माओंको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। क्योंकि संगमयुग है श्रेष्ठ, ऊंचा। तो जो ऊंचा स्थान होता है वहाँ खड़ा होने से सब कुछ दिखाई देता है। तो संगमयुग पर खड़े होने से तीनों ही काल दिखाई देते हैं। एक तरफ दु:खधाम का ज्ञान है, दूसरे तरफ सुखधाम का ज्ञान है और वर्तमान काल संगमयुग का भी ज्ञान है। तो त्रिकालदर्शी बन गये ना! तीनों ही काल का ज्ञान इमर्ज है? तीनों ही काल स्मृति में रखो-कल दु:खधाम में थे, आज संगमयुग में हैं और कल सुखधाम में जायेंगे। जो भी कर्म करो वह त्रिकालदर्शी बनकर के करो तो हर कर्म श्रेष्ठ होगा। व्यर्थ नहीं होगा, समर्थ होगा! समर्थ कर्म का फल समर्थ मिलता है।
〰✧ त्रिकालदर्शी बनने से-यह क्यों हुआ, यह क्या हुआ, 'ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए'.......-यह सब क्वेश्चन-मार्क खत्म हो जाते हैं। नहीं तो बहुत क्वेश्चन उठते हैं। 'क्यों' का क्वेश्चन उठने से व्यर्थ संकल्पों की क्यू लग जाती है और त्रिकालदर्शी बनने से फुलस्टॉप लग जाता है। नथिंग न्यु - तो फुल स्टॉप लग गया ना! फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी लगाने से बिन्दु रूप सहज याद आ जाता है। बापदादा सदा कहते हैं कि अमृतवेले सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और जो हो गया, जो हो रहा है, नथिंगन्यु, तो फुलस्टॉप भी बिन्दी। यह तीन बिन्दी का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक। मस्तक स्मृति का स्थान है, इसलिए तिलक मस्तक पर ही लगाते हैं। तीन बिन्दियों का तिलक लगाना अर्थात् स्मृति में रखना। फिर सारा दिन अचल-अडोल रहेंगे। यह 'क्यूं' और 'क्या' ही हलचल है। तो अचल रहने का साधन है-अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। यह भूलो नहीं।
〰✧ जिस समय कोई बात होती है उस समय फुलस्टॉप लगाओ। ऐसे नहीं कि याद था लेकिन उस समय भूल गया। गाड़ी में यदि समय पर ब्रेक न लगे तो फायदा होगा या नुकसान? तो समय पर फुलस्टॉप लगाओ। नथिंग न्यु-होना था, हो रहा है। और साक्षी होकर के देखकर आगे बढ़ते चलो। तो त्रिकालदर्शी अर्थात् आदि, मध्य, अन्त-तीनों को जान जैसा समय, वैसा अपने को सदा सेफ रख सको। ऐसे नहीं कहो कि - 'यह समस्या बहुत बड़ी थी ना, छोटी होती तो मैं पास हो जाती लेकिन समस्या बहुत बड़ी थी!' कितनी भी बड़ी समस्या हो लेकिन आप तो मास्टर सर्वशक्तिवान हो ना!
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जैसे स्थूल शरीर के वस्त्र और वस्त्र धारण करने वाला शरीर अलग अनुभव होता है ऐसे मुझ आत्मा का यह शरीर वस्त्र है, मैं वस्त्र धारण करने वाली आत्मा हूँ। ऐसा स्पष्ट अनुभव हो। जब चाहे इस देह भान रूपी वस्त्र को धारण करें, जब चाहे इस वस्त्र से न्यारे अर्थात देहभान से न्यारे स्थिति में स्थित हो जायें।
〰✧ ऐसा न्यारे-पन का अनुभव होता है? वस्र को मैं धारण करता हूँ या वस्त्र मुझे धारण करता है? चैतन्य कौन? मालिक कौन? तो एक निशानी - ‘न्यारे-पन की अनुभूति।' अलग होना नहीं है लेकिन मैं हूँ ही अलग। तीसरी अनुभूति - ऐसी समान आत्मा अर्थात एवररेडी आत्मा - साकारी दुनिया और साकार शरीर में होते हुए भी बुद्धियोग की शक्ति द्वारा सदा ऐसा अनुभव करेगी कि मैं आत्मा चाहे सूक्ष्मवतन में, चाहे मूल वतन में, वहाँ ही वाप के साथ रहती हूँ।
〰✧ सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवनत वासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी हो कर्मयोगी बन कर्म का पार्ट वजाने वाली हूँ लेकिन अनेक बार अपने को बाप के साथ सूक्ष्मवतन और मूलवतन में रहने का अनुभव करेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ यह कमजोरी व पुरुषार्थहीन वा ढीला पुरुषार्थ देह-अभिमान की रचना है। स्व अर्थात् आत्म-अभिमानी। इस स्थिति में वह कमजोरी की बातें आ नहीं सकती। तो यह देह-अभिमान की रचना का चिन्तन करना यह भी स्व-चिन्तन नही। स्व-चिन्तन अर्थात् जैसा बाप वैसे मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ। ऐसा स्वचिन्तन वाला शुभ चिन्तन कर सकता है। शुभ चिन्तन अर्थात् ज्ञान रत्नों का मनन करना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- याद की यात्रा से अपने विकर्मों को भस्म करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा सजनी अपने साजन से मिलन मनाने सुन्दर से बगीचे में
पहुँच जाती हूँ... मैं आत्मा सजनी इस दुनिया में सजधज कर पार्ट बजा रही थी...
सुख, समृद्धि से भरपूर आनंदमय, सुखमय स्वर्णिम जीवन जी रही थी... फिर माया रावण
ने मुझे अपनी कैद में जकड़ लिया और अपने अधीन बनाकर मुझ आत्मा से कई विकर्म
कराए... मेरे शिव साजन ने आकर मुझ आत्मा सजनी को रावण की कैद से छुड़ाकर...
फिर से सतयुगी स्वर्णिम दुनिया में ले जाने के लिए शिक्षा और श्रीमत दे रहे
हैं...
❉ याद में रह अपने विकर्मो की प्रायश्चित्त कर विकर्माजीत बनने की
शिक्षा देते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर
पिता की मीठी सी यादो में सदा के मीठे प्यारे बनकर, सतयुगी दुनिया में फूलो सा
मुस्कराओ... इन यादो में जनमो की विकर्मो को खत्म कर, सदा के निर्मल पवित्र
होकर दिव्यता से भर जाओ... ईश्वरीय यादे ही सारे पापो से मुक्त कराकर,सच्चे
सौंदर्य से भरकर, देवता रूप में सजायेंगी..."
➳ _ ➳ बाबा की यादों के मधुर सरगम से हर गम को दूर कर मैं आत्मा कहती
हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा देह की यादो में जो दुखो के पहाड़ो
से घिर गई थी... आपकी प्यारी सी यादो में हर गम से मुक्त होकर, हल्की खुशनुमा
होती जा रही हूँ... विकारो की कालिख से छूटकर,उज्ज्वल दमकती मै आत्मा, पुनः
पुण्यो से सजती जा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा अपने रूहानी रूप से मेरे मन को खुशियों के सागर में
डुबोते हुए कहते हैं :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह धारियों की यादो में
किस कदर खाली होकर निस्तेज हो गए... अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम में देवताई
गुणो और शक्तियो से सजकर विश्व के मालिक बन खुशियो में खिलखिलाओ... अनन्त सुखो
को बाँहों में भरने वाले महान भाग्यशाली बन मुस्कराओ... मीठी यादो में सारे
विकर्मो से मुक्त होकर, देवताई अदाओ से सज जाओ..."
➳ _ ➳ दिल में बरसते स्नेह के सावन से मन के आँगन को महकाती हुई मैं
आत्मा कहती हूँ :- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को पाने
वाली,और उनकी गोद में बैठकर विकर्मो से छूटने वाली, देवताई भाग्य को सहज ही पा
रही हूँ... प्यारे बाबा... आप अपनी मीठी यादो में मुझ आत्मा की सारी मैल को
साफकर, सोने जैसा दमका रहे हो और विकर्माजीत सा सजा रहे हो..."
❉ मेरे ख्वाबों को पूरा कर सुख की किरणों से दुखों को भस्म करते
हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय यादे ही
सारे दुखो से छुड़ाकर, सच्चे सुखो का अधिकारी बनाएगी... इन यादो में हर साँस को
पिरो दो... मीठे बाबा संग प्यार करके, असीम सुखो को बाँहों में भर लो... विश्व
पिता से सब कुछ इन यादो की बदौलत ले लो... प्यार में पिता लुटने आया है बेपनाह
प्यार करके, उसकी सारी जागीर हथिया लो..."
➳ _ ➳ दिलाराम बाबा की सुहानी यादों की लगन में स्वर्गिक सुखों का आनंद
लेती मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को
प्रियतम सा पाऊँगी... उनकी प्यारी सी यादो में देवताई सुंदरता से भर जाउंगी...
सारी कालिमा से छूटकर सुखो के स्वर्ग में आउंगी... ऐसा तो बाबा कभी ख्वाबो में
भी न सोचा था मैंने... आपने यादो के जादू में सब कुछ मुझ पर लुटा दिया है...
और मुझे शिव दिलरुबा बना दिया है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- श्रीमत पर अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाना है
➳ _ ➳ भविष्य 21 जन्मों की अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध के बारे में विचार करते
ही एक सेकण्ड में आँखों के सामने एक अति सुन्दर मन को लुभाने वाली सतयुगी दुनिया
इमर्ज हो जाती है और मन उस सुंदर दुनिया के खूबसूरत दृश्य देखने मे मग्न हो जाता
है। देवी - देवताओं की एक ऐसी पावन दुनिया जहाँ चारों और खुशहाली है। सुख,
शांति और सम्पन्नता से भरपूर, सोने के महलों से सजी इस स्वर्णिम दुनिया में हर
चीज अपनी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे असीम सुख देने वाली है। रंग बिरंगे
प्रकृति के अनेक खूबसूरत नज़ारे मन को गहन आनन्द का अनुभव करवाने वाले हैं।
आत्मिक स्नेह से परिपूर्ण, हृदय में एक दूसरे के प्रति आदर भाव और सम्मान की
भावना इस दैवी संसार में रहने वाली आत्माओं की मुख्य विशेषता है।
➳ _ ➳ अपरम अपार सुखों से भरपूर, देवी देवताओं की यह अति सुंदर दुनिया जो
मेरी भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध है, मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से उस दुनिया का
आनन्द लेते - लेते, ऐसी अविनाशी प्रालब्ध बनाने वाले, स्वर्ग के रचयिता अपने
प्यारे पिता का मैं कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करती हूँ और बुद्धि का योग उनसे
लगाकर अब अपने मन और बुद्धि को उनकी मीठी मधुर याद में स्थिर कर लेती हूँ। मन
बुद्धि को अपने परमधाम घर मे ले जाकर, अपने पिता के स्वरूप पर अपने ध्यान को
केंद्रित करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे परमधाम से मेरे शिव पिता परमात्मा की
सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे नीचे साकार लोक में मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं
और धीरे - धीरे मुझे विदेही बना रही हैं।
➳ _ ➳ विनाशी देह और देह की दुनिया के हर संकल्प विकल्प से मुक्त, मेरा
मन और बुद्धि अब पूरी तरह से केवल अपने शांति धाम घर और इस शान्तिधाम घर मे रहने
वाले शांति के सागर मेरे शिव पिता पर एकाग्र है।सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी
किरणे चारों और बिखेरता हुआ मेरे पिता का अथाह तेजोमय स्वरूप मुझे अपनी खींच रहा
है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणे रूपी बाहें फैला कर बाबा
मुझे अपने पास बुला रहें हैं। उनकी किरणों रूपी बाहों को थामे मैं आत्मा अब उनके
पास, उनके निर्वाण धाम घर की ओर जा रही हूँ। अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी
बाहों के झूले में झूला झूलते हुए, गहन आनन्द की अनुभूति करते हुए, धीरे - धीरे
मैं साकार लोक को पार कर रही हूँ।
➳ _ ➳ प्रकृति के पांचों तत्वों से परे, सूक्ष्म लोक को पार कर अब मैं
पहुँच गई हूँ अपने शिव पिता के पास उनके निर्वाणधाम, शान्तिधाम घर में जहाँ
पहुंचते ही मैं अथाह शांति का अनुभव कर रही हूँ। अपने अनन्त प्रकाशमय,
महाज्योति शिव पिता को समीप से देखने और उनसे मिलने का अनुभव बहुत ही सुंदर और
निराला है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं सागर के किनारे बैठी हूँ और सागर से आ रही
सुख, शांति, आनन्द की मीठी - मीठी लहरें बार - बार मुझे छू रही हैं और मुझे
असीम सुख, शांति और आनन्द से भरपूर कर रही हैं। इन लहरों में लहराते - लहराते
मैं आत्मा धीरे - धीरे बाबा के बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और ऐसा अनुभव कर रही
हूँ जैसे मैं बाबा में समा गई हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के साथ अटैच इस अवस्था मे मैं आत्मा गहन सुख की अनुभूति कर रही
हूँ। बाबा से निरन्तर आ रही शक्तियों की शीतल फुहारें मेरे ऊपर बरस कर, मेरे मन
को तृप्त कर रही हैं। प्यार के सागर अपने प्यारे मीठे बाबा के प्यार में मैं
आत्मा गहराई तक समा कर स्वयं को धन्य - धन्य महसूस कर रही हूँ। मेरे ऊपर बरसता
हुआ बाबा का अथाह प्यार मुझे अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुला रहा है। अपने
प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाकर, अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति करके,
तृप्त होकर अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि पर विराजमान होकर अब मैं आविनाशी
प्रालब्ध बनाने के लिए, अपना बुद्धियोग केवल एक बाबा से लगाने का पूरा
पुरुषार्थ कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता के सानिध्य में, अपने वर्तमान
ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का भरपूर आनन्द लेने के साथ - साथ,
अपनी भविष्य अविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए कदम - कदम अपने पिता की शिक्षाओं को
अपने जीवन मे धारण करने का प्रण लेकर, उसे दृढ़ता से पूरा कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सर्व खजानों से सम्पन्न बन निरन्तर सेवा करने वाली अखुट, अखण्ड महादानी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं स्वभाव में सरलता को धारण कर अंदर की सच्चाई सफाई प्रत्यक्ष करने वाली सरल आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवा
के साधन भी भल अपनाओ। नये-नये प्लैन भी भले बनाओ। लेकिन किनारों में रस्सी
बांधकर छोड़ नहीं देना। प्रवृत्ति में आते ‘कमल' बनना
भूल न जाना। वापिस जाने की तैयारी नहीं भूल जाना। सदा अपनी अन्तिम स्थिति का
वाहन - न्यारे और प्यारे बनने का श्रेष्ठ साधन - सेवा के साधनों में भूल नहीं
जाना। खूब सेवा करो लेकिन न्यारेपन की खूबी को नहीं छोड़ना। अभी इसी अभ्यास की
आवश्यकता है। या तो बिल्कुल न्यारे हो जाते या तो बिल्कुल प्यारे हो जाते।
इसलिए ‘न्यारे
और प्यारेपन का बैलेन्स' रखो।
सेवा करो लेकिन ‘मेरेपन' से
न्यारे होकर करो। समझा क्या करना है? अब
नई-नई रस्सियाँ भी तैयार कर रहे हैं। पुरानी रस्सियाँ टूट रही हैं। समझते भी नई
रस्सियाँ बाँध रहे हैं क्योंकि चमकीली रस्सियाँ हैं। तो इस वर्ष क्या करना है? बापदादा
साक्षी होकर के बच्चों का खेल देखते हैं। रस्सियों के बंधने की रेस
में एक दो से बहुत आगे जा रहे हैं। इसलिए सदा विस्तार में जाते सार रूप में
रहो।
✺
"ड्रिल :- सेवा करते मेरेपन से न्यारे होकर रहना"
➳ _ ➳
मैं
आत्मा प्रकृति के मनमोहक छटाओं के बीच एक बहुत ही सुंदर सरोवर के किनारे स्वयं
को देख रही हूँ... बहुत शांत वातावरण है और सरोवर का जल भी बिलकुल शांत है...
सरोवर में खिले हुए कमल के पुष्प सरोवर की शोभा बढ़ा रहे है... उन कमल पुष्पों
को देखते हुए मैं विचारों में खो जाती हूँ... ये कमल के पुष्प सरोवर में होते
हुए भी कितने न्यारे और प्यारे हैं...
➳ _ ➳
अब
मैं पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मा स्वयं को देखती हूँ जिसे स्वयं परमात्मा पिता ने
अपना बच्चा बनाया और मुझे मेरी पहचान बतायी... विश्व कल्याणकारी परमात्मा पिता
ने मुझे विश्व कल्याण के निमित्त,
नयी
दुनिया के स्थापना हेतु मुझे अपना सहयोगी विश्व सेवाधारी बनाया है... साथ ही
अपने श्रेष्ठ भाग्य की रेखा खींचने की कलम मेरे हाथों में दे दी है...
➳ _ ➳
इन्ही विचारों में खोई मैं आत्मा सरोवर के तट पर टहलती जा रही थी कि तभी सामने
से बापदादा को अपनी ओर आते हुए देखती हूँ... बाबा की दिव्य मुस्कान और उनके
प्यार में खोई हुई मैं आत्मा मंत्रमुग्ध सी बापदादा की ओर बढ़ने लगती हूँ...
बाबा मेरे करीब आते ही मेरे सिर पर हाथ रख मुझे प्यार भरी दृष्टि से निहाल कर
रहे हैं... मैं आत्मा प्यार के सागर में गहरे डूबती जा रही हूँ...
➳ _ ➳
अब
बाबा भी सरोवर के तट पर मेरे साथ टहलने लगते हैं... सरोवर में खिले हुए कमल की
ओर इशारा करते हुए बाबा मुझसे कहते हैं- बच्चे तुम्हे इन कमल के फूलों की तरह
ही बनना है... भल प्रवृति में रहना है लेकिन इन कमल पुष्प के समान स्वयं को
न्यारे और प्यारे रखते हुए विश्व सेवा करते मेरेपन के भाव से,
सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे बनो... क्योंकि सेवा का लगाव भी सोने की
जंजीर है... यह बेहद से हद में ले आता है...
➳ _ ➳
इसीलिए देह की स्मृति से,
ईश्वरीय सम्बन्ध से,
सेवा के साधनों के लगाव से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सदा सफलता मिलती
रहेगी... मैं आत्मा बाबा के प्यार में मंत्रमुग्ध सी बाबा की बातों को सुनती जा
रही हूँ... बाबा की सारी बातें मेरे अंतर्मन में गहरे उतरती जा रही है... मैं
आत्मा स्वयं को अंदर से बहुत ही शक्तिशाली महसूस करते हुए बाबा की बहुत ही
न्यारी और प्यारी विश्व सेवाधारी के रूप में देख रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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