━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 12 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ बाप समान ज्ञान का सागर, शांति- सुख का सागर बनकर रहे ?

 

➢➢ निश्चयबुधी बन मनुष्य से देवता बनने का इम्तेहान पास किया ?

 

➢➢ त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा तीनो कालों का स्पष्ट अनुभव किया ?

 

➢➢ "हर समय अंतिम घड़ी है" - इस स्मृति से एवररेडी रहे ?

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  अब सर्व ब्राह्मण बच्चों को यह स्पेशल अटेंशन रखना है कि हमें चारों ओर पावरफुल याद के वायब्रेशन फैलाने हैं, क्योंकि आप सब ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर रहते हो। तो जो ऊंची टावर होती है, वह सकाश देती है, उससे लाइट माइट फैलाते हैं। तो रोज कम से कम 4 घण्टे ऐसे समझो हम ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर बैठ विश्व को लाइट और माइट दे रहा हूँ।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   "मैं परमात्म प्यारा रूहानी गुलाब हूँ"

 

  सदा अपने को रूहानी रूहे गुलाब समझते हो? रूहानी रूहे गुलाब अर्थात् सदा रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न आत्मा। जो रूहे गुलाब होता है उसका काम है सदा खुशबू देना, खुशबू फैलाना। गुलाब का पुष्प जितना खुशबूदार होता है उतने कांटे भी होते हैं, लेकिन कांटों के प्रभाव में नहीं आता। कभी कांटों के कारण गुलाब का पुष्प बिगड़ नहीं जाता है, सदा कायम रहता है। कांटे हैं लेकिन कांटों से न्यारा और सभी को प्यारा लगता है। स्वयं न्यारा है तब प्यारा लगता है।

 

  अगर खुद ही कांटों के प्रभाव में आ जाए तो उसे कोई हाथ भी नहीं लगायेगा। तो रूहानी गुलाब की विशेषता है, किसी भी प्रकार के कांटे हों-छोटे हों या बड़े हों, हल्के हों या तेज हों-लेकिन हो सदा न्यारा और बाप का प्यारा। प्यारा बनने के लिए क्या करना पड़े? न्यारापन प्यारा बनाता है।

 

अगर किसी भी प्रभाव में आ गये तो न बाप के प्यारे और न ब्राह्मण परिवार के। अगर सच्चा प्यार प्राप्त करना है तो उसके लिए न्यारा बनो-सभी हद की बातों से, अपनी देह से भी न्यारा। जो अपनी देह से न्यारा बन सकता है वही सबसे न्यारा बन सकता है। कई सोचते हैं-हमको इतना प्यार नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता? क्योंकि न्यारे नहीं हैं। नहीं तो परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है न्यारा बनना। विधि नहीं आती तो सिद्धि भी नहीं मिलती।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  जो बहुत समय के स्नेही और सहयोगी रहते हैं उनको अंत में मदद जरूर मिलती है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे स्थूल वस्त्र उतार रहे हैं। ऐसे ही शरीर छोड देंगे।

 

✧  सारा दिन में चलते-चलते बीच-बीच में अशरीरी बनने का अभ्यास जरूर करो। जैसे ट्रैफिक कन्ट्रोल का रिकार्ड बजता है तो वैसे वहाँ कार्य में रहते भी बीच-बीच में अपना प्रोग्राम आपे ही सेट करो तो लिंक जुटा रहेगा। इससे अभ्यास होता जाएगा।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ संगमयुग को नवयुग भी कह सकते हैं क्योंकि सब कुछ नया हो जाता है। बातें भी नई, मिलना भी नया, सब नया। देखेंगे तो भी आत्मा, आत्मा को देखेंगे! पहले शरीरधारी शरीर को देखते थे अब आत्मा को देखते हैं। पहले सम्पर्क में आते थे तो कई विकारी भावना से आते थे। अभी भाई-भाई की दृष्टि से सम्पर्क में आते हो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- ड्रामा को यथार्थ समझकर सदा हर्षित रहना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी शांत स्वरूप स्थिति में स्थित हूँ... सव स्वरुप में स्थित होकर असीम शांति का अनुभव कर रही हूँ... शांति के सागर शिव बाबा मेरे सिर पर छत्रछाया है... उनसे शांति की अनंत किरणें मुझ पर बरस रही है... मैं आत्मा इस अनुपम शांति से स्वयं को भरपूर करती जा रही हूँ... मैं स्वयं को बाबा की किरणों के औरे के बीच में देख रही हूँ... इस श्रेष्ठ स्थिति में मेरे मन में बाबा की मधुर वाणी सुनने की ललक उठती है...

❉ अपनी दिव्य वाणी से वातावरण को गुंजायमान करते हुए बापदादा कहते हैं:- "प्यारे फूल बच्चे... हर आत्मा के पार्ट को साक्षी होकर देखना है... हमेशा हर्षित रहना है... इसके लिए हमेशा यह स्मृति में रहे कि इस ड्रामा में सभी आत्माएं एक्टर हैं... सभी आत्माओं का अपना-अपना पार्ट है... सभी आत्माएं अपना पार्ट निभा रही है... जो कुछ ड्रामा में फिक्स है वही हो रहा है... बनी बनाई बन रही... उसमें कुछ भी नया नहीं है... यह स्मृति में रहने से सदा हर्षित रहोगे..."

➳ _ ➳ बाबा के दिए हुए ज्ञान को स्वयं में आत्मसात करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "प्राणेश्वर मीठे बाबा... आप हमें ड्रामा का श्रेष्ठ ज्ञान दे रहे हो... आत्मा का 84 जन्मों का पार्ट अब मेरी बुद्धि में स्पष्ट हो रहा है... सभी आत्माओं के पार्ट को मैं आत्मा साक्षी होकर देख रही हूँ... इससे मेरी स्थिति एकरस और हर्षित बनती जा रही है..."

❉ ज्ञान का अनूठा प्रकाश फैलाते हुए ज्ञान सूर्य शिव बाबा कहते हैं:- "मीठे मीठे सिकीलधे बच्चे... इस ड्रामा में जितने भी मनुष्य हैं उनकी आत्मा में स्थाई पार्ट भरा हुआ है... इसको कहा जाता है बनी बनाई बन रही... ड्रामा में जो कुछ भी हो रहा है उसे डिटेच होकर देखना है... इसमें रोने की दरकार नहीं है... चाहे किसी की मृत्यु हो चाहे किसी ने दूसरा जन्म लिया हो... उसके लिए रोने से क्या होगा... तुम्हें हर स्थिति में प्रसन्न रहना है... तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कुछ भी दु:ख ना हो..."

➳ _ ➳ रूहानी ज्ञान वर्षा में ज्ञान स्नान करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "दिलाराम प्यारे बाबा... आपका दिया हुआ ज्ञान मेरी बुद्धि में स्पष्ट होता जा रहा है... मैं आत्मा इस ड्रामा को खेल की तरह देख रही हूँ... नाटक की तरह देख रही हूँ... जिसमें एक्टर आ रहे हैं... अपना पार्ट निभा रहे हैं और जा रहे हैं... ड्रामा के इस ज्ञान से मेरी स्थिति अचल अडोल बनती जा रही है... मैं आत्मा एकरस होकर इस खेल को... इस नाटक को देख रही हूँ...'

❉ अपने दिलतख्त पर बिठाकर मुझ पर असीम प्यार लुटाते हुए शिव बाबा कहते हैं:- "मेरे नैनों के नूर प्यारे बच्चे... तुम्हारी अवस्था अचल अडोल होनी चाहिए... जिस प्रकार अंगद को रावण हिला नहीं सका था... इसी प्रकार माया के कितने भी तूफान आए तुम्हें घबराना नहीं है... डोंट केयर रहना है... माया के तूफान तुम्हारी स्थिति को हिला न सके... पुरुषार्थ करके तुम्हें अपनी अवस्था को जमाना है..."

➳ _ ➳ ज्ञान रूपी मानसरोवर में मोती चुगने वाली होली हंस रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:- "जीवन के आधार प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके द्वारा दिए गए ज्ञान बिंदुओं का मनन चिंतन कर रही हूँ... ड्रामा के इस दिव्य ज्ञान से मेरी स्थिति अचल अडोल बनती जा रही है... हर पल में मैं आत्मा हर्षित और अतींद्रिय सुख की स्थिति में स्थित हूँ... माया का कोई भी तूफान अब मेरी स्थिति को हिला नहीं सकता... हर स्थिति में मैं अतींद्रिय सुख का... आनंद का अनुभव कर रही हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बुद्धि को पारस बनाने के लिए पढ़ाई पर पूरा - पूरा ध्यान देना है"

➳ _ ➳ आज के इस तमोप्रधान माहौल में तमोप्रधान बन चुकी हर चीज को और इस तमोप्रधान दुनिया को फिर से सतोप्रधान बनाने के लिए ही भगवान इस धरा पर आयें है और इस श्रेष्ठ कर्तव्य को सम्पन्न करने के लिए तथा सभी आत्माओं की बुद्धि को स्वच्छ, सतोप्रधान बनाने के लिए परमपिता परमात्मा स्वयं परमशिक्षक बन जीवन को परिवर्तन करने वाली पढ़ाई हर रोज हमे पढ़ा रहें हैं। तो कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो गॉडली स्टूडेंट बन भगवान से पढ़ रही हूँ। मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करते, मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने परमशिक्षक भगवान बाप द्वारा मिलने वाले ज्ञान को अच्छी रीति बुद्धि में धारण कर, अपनी बुद्धि को सतोप्रधान बनाने का मैं पूरा पुरुषार्थ करूँगी।

➳ _ ➳ अपने परमशिक्षक शिव बाबा द्वारा मिलने वाले ज्ञान के अखुट खजानों को बुद्धि में धारण कर बुद्धि को स्वच्छ और पावन बनाने के लिए अब मैं अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने बाबा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज मिलने वाले मधुर महावाक्यों पर विचार सागर मंथन करने बैठ जाती हूँ। एकांत में बैठ मुरली की गुह्य प्वाइंट्स पर विचार सागर मन्थन करते हुए मैं महसूस करती हूँ कि जितना इस पढ़ाई पर मैं मन्थन कर रही हूँ मेरी बुद्धि उतनी ही खुल रही है और इस पढ़ाई को जीवन मे धारण करना बिल्कुल सहज लगने लगा है। नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनाने वाली ये पढ़ाई ही परिवर्तन का आधार है जिसे मैं अपने जीवन मे स्पष्ट महसूस कर रही हूँ। जैसे - जैसे इस पढ़ाई को मैं अपने जीवन मे धारण करती जा रही हूँ वैसे - वैसे मेरी बुद्धि सतोप्रधान बनती जा रही है।

➳ _ ➳ इस ईश्वरीय पढ़ाई से अपने जीवन मे आये परिवर्तन के बारे में विचार कर मन ही मन हर्षित होते हुए अपने परमशिक्षक शिव बाबा का मैं दिल से कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करती हूँ और उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ जो मुझे सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित कर देती है और मन बुद्धि के विमान पर बिठा कर मुझे मधुबन की उस पावन धरनी पर ले जाती है जहाँ भगवान स्वयं परमशिक्षक बन साकार में बच्चों को आकर ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ाते हैं।

➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं स्वयं को अपने गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण स्वरूप में डायमंड हाल में, जहाँ भगवान अपने साकार रथ पर विराजमान होकर मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं। एकटक अपने परमशिक्षक भगवान बाप को निहारते हुए उनके मुख कमल से निकलने वाले अनमोल ज्ञान को सुनकर उसे बुद्धि में धारण करके मैं वापिस लौट आती हूँ और इस पढ़ाई से अपनी बुद्धि को सतोप्रधान बनाने वाले अपने परमशिक्षक निराकार शिव बाबा से उनके ही समान बन उनसे मिलने मनाने की इच्छा से अब अपने मन और बुद्धि को सब बातों से हटाकर मन बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र कर लेती हूँ। एकाग्रता की शक्ति धीरे - धीरे देह भान से मुक्त कर, मेरे निराकारी सत्य स्वरूप में मुझे स्थित कर देती है और अपने सत्य स्वरूप में स्थित होते ही स्वयं को मैं देह से पूरी तरह अलग विदेही आत्मा महसूस करने लगती हूँ।

➳ _ ➳ देह के भान से मुक्त होकर अपने प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर मैं बड़ी आसानी से अपने शरीर रूपी रथ को छोड़ उससे बाहर आ जाती हूँ और हर बन्धन से मुक्त एक अद्भुत हल्केपन का अनुभव करते हुए, देह और देह की दुनिया से किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाती हूँ। मन बुद्धि से दुनिया के खूबसूरत नजारो को देखती, अपनी यात्रा पर चलते हुए, मैं आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन से परें आत्माओं की उस खूबसूरत निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ जहाँ मेरे शिव पिता रहते हैं।

➳ _ ➳ अपने इस शान्तिधाम, निर्वाणधाम घर मे आकर, गहन शांति की अनुभूति करते हुए इस अंतहीन ब्रह्मांड में विचरण करते - करते मैं पहुँच गई हूँ अपने प्यारे पिता के समीप जो अपनी सर्वशक्तियो की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। अपने पिता परमात्मा के प्रेम की प्यासी मैं आत्मा स्वयं को तृप्त करने के लिए अपने पिता के पास पहुँच कर उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे भरकर मेरे मीठे दिलाराम बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं। अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को जिन्हें मैं देह भान में आकर भूल गई थी, उन्हें बाबा अपने गुणों और सर्वशक्तियों की अनन्त धाराओं के रूप में मुझ पर बरसाते हुए पुनः जागृत कर रहे हैं।

➳ _ ➳ अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त कर मैं आत्मा बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवा रही हैं। सर्वगुण और सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आई हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव बाबा द्वारा मुरली के माध्यम से हर रोज पढ़ाई जाने वाली पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़कर, और अच्छी रीति धारण करके अपने बुद्धि रूपी बर्तन को मैं धीरे - धीरे साफ, स्वच्छ और सतोप्रधान बनाती जा रही हूँ।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा तीनों कालों का स्पष्ट अनुभव करने वाली मास्टर नॉलेजफुल आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ हर समय अंतिम घड़ी है, मैं इस स्मृति से एवररेडी बनने वाली आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ‘‘आज बापदादा सर्व स्नेही और मिलन की भावना वाली श्रेष्ठ आत्माओं को देख रहे हैं। बच्चों की मिलन भावना का प्रत्यक्षफल बापदादा को भी इस समय देना ही है। भक्ति की भावना का फल डायरेक्ट सम्मुख मिलन का नहीं मिलता। लेकिन एक बार परिचय अर्थात् ज्ञान के आधार पर बाप और बच्चे का सम्बन्ध जुटातो ऐसे ज्ञान स्वरूप बच्चों को अधिकार के आधार पर शुभ भावनाज्ञान स्वरूप भावनासम्बन्ध के आधार पर मिलन भावना का फल सम्मुख बाप को देना ही पड़ता है। तो आज ऐसे ज्ञानवान मिलन की भावना स्वरूप आत्माओं से मिलने के लिए बापदादा बच्चों के बीच आये हुए हैं।

 

_ ➳  कई ब्राह्मण आत्मायें शक्ति स्वरूप बनमहावीर बन सदा विजयी आत्मा बनने में वा इतनी हिम्मत रखने में स्वयं को कमजोर भी समझती हैं लेकिन एक विशेषता के कारण विशेष आत्माओं की लिस्ट में आ गई हैं। कौन-सी विशेषतासिर्फ बाप अच्छा लगता हैश्रेष्ठ जीवन अच्छा लगता है। ब्राह्मण परिवार का संगठननि:स्वार्थ स्नेह- मन को आकर्षित करता है। बस यही विशेषता है कि बाबा मिलापरिवार मिलापवित्र ठिकाना मिलाजीवन को श्रेष्ठ बनाने का सहज सहारा मिल गया। इसी आधार पर मिलन की भावना में स्नेह के सहारे में चलते जा रहे हैं।

 

✺   "ड्रिल :- स्वयं को विशेष आत्मा समझना।"

 

_ ➳  शुभभावनाओं की शाखाओं पर झूलता, स्नेह वात्सल्य के पलनों में पलता, मैं आत्मपंछी, मन बुद्धि की सुन्दर मणियों समान चमचमाती आँखों से इस देह रूपी पिंजरें को साक्षी भाव से देख रहा हूँ... पाँच तत्वों से बना ये देह रूपी पिंजरा... इसमे रहने का लम्बा अभ्यास और इसकी छदम् स्वर्ण मयी आभा मुझे लुभाती है, मगर दूर क्षितिज से आती और मेरे कानो में गुनगुनाती मीठी- सी मनुहार भी मुझे बुलाती है... मिलन की भावना में स्नेह के सहारें, उमंग उत्साह के पंखो से चले आओं मेरे पास... मानों कोई पुकार रहा है... आ जाओ लाडलों अब अव्यक्त है इशारें इन्तज़ार कर रहे है बाबा बाहें पसारे...

 

_ ➳  सप्तरंगों की इन्द्रधनुषी आभा से झिलमिलाती नन्हीं मणि के समान मैं आत्मा, उमंग उत्साह के पंखों से उडती जा रही हूँ परमधाम की ओर... और एक रूप होकर शिव पिता की गोद में समाँ गयी हूँ... वो स्नेहमयी गोद, उनका वो दुलार, शुभ संकल्पों की माला बनकर सिज़रें की सभी रूहानी मणियों को शुभ भावों से भरपूर कर रहा है... मैं आत्मा स्वयं को देर तक शान्ति प्रेम पवित्रता और शक्तियों से भरपूर करती जा रही हूँ...

 

_ ➳  बारिश के बाद जैसे- भरपूर होकर बहता कोई झरना, झरने के नीचे भरपूर होकर झलकता कोई घट... उसी तरह मेरे उर का घट भी छलक रहा है... छलछलाई उर में मधुशाला अंग अंग डूबा प्यार में, पाकर तेरी रहमते, खाक शेष इस संसार में... ज्ञान स्वरूप बनकर, मैं अधिकारी बन, शुभभावना और सर्वसम्बन्धों का सुख पाती हुई, स्नेह मिलन का प्रत्यक्ष फल पा रही हूँ... मिलन का ये सुख अनिर्वचनीय है... न बता सकूँ न छुपा सकूँ कुछ-कुछ हालत मदहोशी की, अल्फ़ाज नहीं मिलते लबों को, और बोल रही है खामोशी भी...

 

_ ➳  मैं आत्मा भरपूर होकर फरिश्ता रूप में बापदादा के संग विश्व सेवा पर... विश्व की सभी आत्माओं को मनसा सकाश दे रही हूँ... बापदादा के हाथों में मेरे दोनो हाथ... मैं फरिश्ता महसूस कर रही हूँ उन हाथों की वरदानी शक्तियों को, जो मुझ फरिश्ते को शक्ति स्वरूप और महावीर बनने का वरदान दे रहे हैं... बापदादा मुझे सदा विजयी बनने का तिलक लगा रहे हैं... उनकी उँगलियों का वो स्नेहिल सा जादुई स्पर्श मैं देर तक अपनी भृकुटी पर महसूस कर रही हूँ... ये स्पर्श मुझे पल पल विशेष आत्मा होने का गहराई से एहसास करा रहा है और मैं याद कर रही हूँ अपनी विशेषताओं को...

 

_ ➳  सिर्फ एक बाप को पहचाना है मैंने, सिर्फ एक बाप अच्छा लगता है... और इसी एक सम्बन्ध से सब सम्बन्ध पा लिए है... देखूँ आँचल को मैं अपने, ये सौगातो से भरपूर है, बन गयी मैं विशेष आत्मा ये तेरी रहमतों का नूर है... ये निशदिन स्नेह की बरसाते और सुख रूहानी रिश्तों का, मंजिले कदमों तले और संग मिला फरिश्तों का...

 

_ ➳  बाबा मिला, परिवार मिला, जीवन को श्रेष्ठ बनाने का सहारा मिल गया... पाना था जो पा लिया के नशे में चूर मैं आत्मपंछी लौट आयी हूँ फिर से उसी देह में... अब ये देह मेरे लिए पिंजरा नही है... ये विशेष साधन है संगम पर विशेष कमाई का... साक्षी भाव से देखती हुई मैं विशेष आत्मा बैठ गयी हूँ पंच तत्वो के इस विशेष रथ पर... अपनी विशेष सेवाओ के निमित्त... अपनी विशेषताओं के नशे में चूर... क्योंकि इस संगम पर मेरा अब हर पल विशेष है... ओम शान्ति...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━