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❍ 20 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ एक बाप से सर्व संबंधो का अनुभव किया ?
➢➢ स्वभाव और संस्कार शीतल और स्नेही रहे ?
➢➢ सच्ची कमाई की श्रेष्ठ सम्पत्ति जमा की ?
➢➢ प्रवृति में रहते सर्व बन्धनों से न्यारे और बाप के प्यारे बनकर रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे कर्म में आना स्वाभाविक हो गया है वैसे कर्मातीत होना भी स्वाभाविक हो जाए। कर्म भी करो और याद में भी रहो। जो सदा कर्मयोगी की स्टेज पर रहते हैं वह सहज ही कर्मातीत हो सकते हैं। जब चाहे कर्म में आये और जब चाहे न्यारे बन जायें।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को भाग्यवान समझ हर कदम में श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करते हो? क्योंकि इस समय बाप भाग्यविधाता बन भाग्य देने के लिए आये हैं। भाग्यविधाता भाग्य बांट रहा है। बांटने के समय जो जितना लेने चाहे उतना ले सकता है। सभी को अधिकार है। जो ले, जितना ले। तो ऐसे समय पर कितना भाग्य बनाया है, यह चेक करो। क्योंकि अब नहीं तो फिर कब नहीं।
〰✧ इसलिए हर कदम में भाग्य की लकीर खींचने का कलम बाप ने सभी बच्चों को दिया है। कलम हाथ में है और छुट्टी है - जितनी लकीर खींचना चाहो उतना खींच सकते हो। कितना बिढ़या चांस है! तो सदा इस भागयवान समय के महत्व को जान इतना ही जमा करते हो ना? ऐसे न हो कि चाहते तो बहुत थे लेकिन कर न सके, करना तो बहुत था लेकिन किया इतना। यह अपने प्रति उल्हना रह न जाए। समझा?
〰✧ तो सदा भाग्य की लकीर श्रेष्ठ बनाते चलो और औरों को भी इस श्रेष्ठ भाग्य की पहचान देते चलो। 'वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!' यही खुशी के गीत सदा गाते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जैसे आवाज में आना अति सहज लगता है ऐसे ही आवाज से परे जाना इतना सहज है? यह बुद्धि की एक्सरसाइज सदैव करते रहना चाहिए। जैसे शरीर की एक्सरसाइज शरीर को तन्दरुस्त बनाती है ऐसे आत्मा की एक्सरसाइज आत्मा को शक्तिशाली बनाती है। तो यह एक्सरसाइज आती है या आवाज में आने की प्रैक्टिस ज्यादा है?
〰✧ अभी-अभी आवाज में आना और अभी-अभी आवाज से परे हो जाना - जैसे वह सहज लगता है वैसे यह भी सहज अनुभव हो। क्योंकि आत्मा मालिक है। सभी राजयोगी हो, प्रजायोगी तो नहीं? राजा का काम है ऑर्डर पर चलाना। तो यह मुख भी आपके ऑर्डर पर हो - जब चाहो तब चलाओ और जब चाहो तब नहीं चलाओ आवाज से परे हो जाओ
〰✧ लेकिन इस रूहानी एक्सरसाइज में सिर्फ मुख की आवाज से परे नहीं होना है - मन से भी आवाज में आने के संकल्प से परे होना है। ऐसे नहीं मुख से चुप हो जाओ और मन में बातें करते रहो। आवाज से परे अर्थात मुख और मन दोनों की आवाज से परे, शान्ति के सागर में समा जायें। यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है! अनुभवी तो हो ना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ बापदादा का हर एक बच्चे से बहुत-बहुत-बहुत प्यार है। ऐसे नहीं समझे कि हमारे से बापदादा का प्यार कम है। आप चाहे भूल भी जाओ लेकिन बाप निरन्तर हर बच्चे की माला जपते रहते हैं क्योंकि बापदादा को हर बच्चे की विशेषता सदा सामने रहती है। कोई भी बच्चा विशेष न हो, यह नहीं है। हर बच्चा विशेष है। बाप कभी एक बच्चे को भी भूलता नहीं है, तो सभी अपने को विशेष आत्मा हैं और विशेष कार्य के लिए निमित हैं, ऐसे समझ के आगे बढ़ते चलो। बापदादा अगर एक-एक की महिमा करे तो सारी रात लग जाये।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- संगमयुग- सर्व श्रेष्ठ प्राप्तियों का युग"
➳ _ ➳ मधुबन तपस्या धाम में बैठी मैं तपस्वी मूर्त आत्मा एक की लगन में
मगन इस नशवर संसार की सर्व स्मृतियों से विस्मृत गहन याद की एकरस अवस्था में
स्थित हूँ... प्यारे बाबा की रंग-बिरंगी किरणों का एक पावरफुल कवच मुझ आत्मा के
चारों ओर बना है... इन किरणों से मुझ आत्मा के सारे विकर्म जलकर भस्म हो रहे
है... मैं मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के बेहद नजदीक
अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... ज्ञान सागर पिता ज्ञान प्रकाश मुझ आत्मा पर डाल
रहे है...
➳ _ ➳ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादों के तारों में पिरोते
हुए कहा :- "मीठे-मीठे लाडले बच्चे मेरे... संगम की इस महान बेला में भगवान
पिता बनकर, आप बच्चों के लिए इस धरा पर है आया... अपनी सारी जागीर आपको ही तो
है देने आया... सुखों की अमीरी में, सदा की खुशियों से झोली है भरने आया...
सर्व प्राप्तियों की आपके लिए है बहार लाया... सर्व प्राप्ति स्वरूप आप बच्चों
बनाने है बाबा आया..."
❉ याद की मस्ती में मस्त होकर मैं आत्मा कहती हूँ :- "मीठे लाडले
प्यारे बाबा मेरे... आपने संगम की इस महान बेला मे आकर कितना ना मुझे भाग्यशाली
बनाया है... इस संगम पर आकर आपने इस जीवन को कौड़ी से हीरे तुल्य है बनाया...
सर्व प्राप्तियों की ये बहार देख कितना ना मेरा मन है हर्षाया..."
➳ _ ➳ सुख के सागर बाबा सुखों की अमीरी से भरते हुए कहते है :- "मीठे
सिकीलधे बच्चे मेरे... संगमयुग की इस डायमंड बेला में खाकर अब तुम प्रभु फल...
सर्व प्राप्तियों का अनुभव पाओ... होकर सर्व प्राप्तियां सम्पन्न सदा के लिए
खिल-खिल जाओं... ईशवरीय प्राप्तियों से अपने जीवन में चार चाँद लगाओं..."
❉ सुख स्वरूप बनकर मैं आत्मा कहती हूँ :- "मीठे चाँद बाबा मेरे...
संगमयुग की इस महान डायमंड बेला में होकर सर्व प्राप्तियां सम्पन्न सदा के लिए
खिलखिला रही हूँ... एक-एक प्राप्ति की स्मृति से जीवन को उज्जवल बना रही
हूँ... देख कर इतनी ढेर प्राप्तियां अपने भाग्य पर इतरा रही हूँ... मुस्कुरा कर
खुशी के गीत गा रही हूँ..."
➳ _ ➳ ज्ञान की किरणों से ओत-प्रोत करते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते
है :- "मीठे-मीठे प्यारे राजदुलारे बच्चे मेरे... ईश्वर पिता के साथ यह वरदानी
संगमयुग का समय बेहद कीमती है... अब इसे कहीं भी व्यर्थ ना गवाओं... खाकर सर्व
प्राप्तियों का फल... सर्व प्राप्तियों का स्वरूप बन औरों को भी सर्व
प्राप्तियां समपन्न बनाओ... संगमयुग के महत्व को जान और पहचान, संगमयुग की महान
प्राप्तियो से अब अपने जीवन को महान बनाओ..."
❉ ज्ञान के रंग में रंग कर मैं आत्मा कहती हूँ :- "मीठे दिलाराम बाबा
मेरे... संगम की इन बेशकीमती घड़ियों को आपकी याद से सफल बना रही हूँ... हर पल
सर्व प्राप्ति सम्पन्न होने का अनुभव करती जा रही हूँ... खाकर सर्व प्राप्तियों
का प्रभु फल, सर्व प्राप्ति स्वरूप बन सबको आप समान सर्व प्राप्ति स्वरूप बना
रही हूँ... सही मायनों में संगमयुग के महत्व को जान और पहचान संगमयुग की सर्व
प्राप्तियो से अपने जीवन को महान बना रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- एक बाप से सर्व संबंधो का अनुभव करना"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान सर्व सम्बन्धों से जिसका हो जाये उससे भाग्यशाली और
भला कौन हो सकता है! यही विचार करती, मन ही मन स्वयं के भाग्य की सराहना करती,
अपने शिव पिता परमात्मा, अपने भगवान बाप का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया
अदा करती हूँ जिन्होंने ने मेरे जीवन मे आ कर सर्व सम्बन्धों का मुझे सुख देकर
मेरे जीवन को खुशियों से भर दिया।
➳ _ ➳ जब - जब जिस भी सम्बन्ध से अपने प्यारे मीठे बाबा को मैंने याद
किया उस सम्बन्ध का असीम सुख मैंने बाबा से प्राप्त किया। कभी बाप के रूप में
अपना असीम प्यार और दुलार दिया तो कभी माँ बन कर अपने ममता के आंचल की ठन्डी
छाँव में बिठाया, कभी दोस्त बन कर कदम - कदम पर मेरा साथ दिया तो कभी जीवन साथी
बन कर हर सुख - दुख में मेरा साथ निभाया। ऐसे मेरे शिव पिता परमात्मा ने हर एक
सम्बन्ध के सुख का मुझे अनुभव करवा कर मेरे बेरंग जीवन को अपने प्यार के रंग से
भर दिया।
➳ _ ➳ स्वयं भगवान से मिलने वाले सर्व सम्बन्धो के सुखद अनुभवों को याद
करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ और वो सभी अनुभव
अनेक चित्रों के रूप में मेरी आँखों के सामने एक - एक करके उभरने लगते हैं।
कहीं मैं स्वयं को एक छोटे बच्चे के रूप में देख रही हूँ। बाबा ने अपने हाथ मे
मेरा हाथ पकड़ा हुआ है और मुझे पूरे विश्व की सैर करवा रहें हैं। मेरे साथ अनेक
प्रकार से खेलपाल कर रहें हैं। फिर मैं देख रही हूँ स्वयं को ब्रह्मा माँ की
गोद मे। बाबा माँ बन कर अपनी ममता की मीठी छाँव में मुझे बिठा कर अपना असीम
स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं।
➳ _ ➳ कहीं मैं देखती हूँ अपने लाइट माइट स्वरूप में बाबा दोस्त बन मेरा
हाथ अपने हाथ मे ले कर बैठें हैं और अपने खुदा दोस्त से मैं अपने मन की सारी
बाते कह रही हूँ और वो बड़े प्यार से मुस्कराते हुए मेरी हर बात को ध्यान से सुन
रहें हैं और मेरी हर बात का जवाब दे रहें हैं। अब मैं देख रही हूँ बाबा को अपने
साजन के रूप में। अपने निराकार स्वरूप में शिव बाबा साजन बन मुझ निराकार आत्मा
सजनी को अपनी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया में बिठा कर अपने निश्छल
प्रेम की मीठी फुहारें मुझ पर निरन्तर बरसा रहें हैं।
➳ _ ➳ इन सर्व सम्बन्धो के अनुभवों का सुख लेकर, अपने भगवान बाप से मिलन
मनाने के लिए अब मैं अपने मन बुद्धि को सब बातों से हटा कर केवल अपने शिव पिता
पर एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में देह से न्यारी विदेही आत्मा बन चल पड़ती हूँ
उनके पास उनके धाम। आकाश से ऊपर, सूक्ष्म वतन को पार कर एक अति सुन्दर दिव्य
प्रकाशमयी अलौकिक दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ जो मेरे पिता परमात्मा का घर
है। इस स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर गहन शांति का मैं अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा के अति सुंदर दिव्य प्रकाशमय स्वरूप को निहारते
हुए, उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों के नीचे बैठ स्वयं को उनकी
सर्वशक्तियों से भरपूर करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ।
अपने साकारी तन में विराजमान हो कर सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाते हुए अब
मैं हर सम्बन्ध का सुख अपने प्यारे बाबा से लेते हुए, देह और देह के झूठे
सम्बन्धों से उपराम होती जा रही हूँ। सर्व सम्बन्धों से भगवान बाप को अपना बना
कर भगवान की पालना में पलने का सुख अब मैं हर पल ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं शुद्ध और समर्थ संकल्पों की शक्त्ति से व्यर्थ वाइब्रेशन को समाप्त करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं विघ्न रूपी सोने के महीन धागों से मुक्त होकर, मुक्ति वर्ष मनाने वाली मुक्त आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. चाहे विदेशी, चाहे भारतवासी दोनों ही भाग्य विधाता के बच्चे हैं इसलिए हर ब्राह्मण बच्चा विजयी है। सिर्फ हिम्मत को इमर्ज करो। हिम्मत समाई हुई है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो- ऐसे हो ना? (सभी हाथ हिला रहे हैं) हाथ तो बहुत अच्छा हिलाते हैं। अभी मन से भी सदा हिम्मत का हाथ हिलाते रहना। बापदादा को खुशी है, नाज है कि मेरा एक-एक बच्चा अनेक बार का विजयी है। एक बार नहीं, अनेक बार की विजयी आत्मायें हो। तो कभी यह नहीं सोचना, पता नहीं क्या होगा? होगा शब्द नहीं लाना। विजय है और सदा रहेगी।
➳ _ ➳ 2. मायाजीत हैं। हम नहीं होंगे तो और कौन होगा, यह रूहानी नशा इमर्ज करो। और-और कार्य में मन और बुद्धि बिजी हो जाती है ना तो नशा मर्ज हो जाता है। लेकिन बीच-बीच में चेक करो कि कर्म करते हुए भी यह विजयीपन का रूहानी नशा है? निश्चय होगा तो नशा जरूर होगा। निश्चय की निशानी नशा है और नशा है तो अवश्य निश्चय है। दोनों का सम्बन्ध है।
➳ _ ➳ बापदादा के पास बच्चों के पत्र वा चिटकियां बहुत अच्छे-अच्छे हिम्मत की आई हैं कि हम अब से 108 की माला में अवश्य आयेंगे। बहुतों के अच्छे-अच्छे उमंग के पत्र भी आये हैं और रूह-रिहान में भी बहुतों ने बापदादा को अपने निश्चय और हिम्मत का अच्छा समाचार दिया है। बापदादा ऐसे बच्चों को कहते हैं - बाप ने आप सबके बीती को बिन्दू लगा दिया। इसलिए बीती को सोचो नहीं, अब जो हिम्मत रखी है, हिम्मत और मदद से आगे बढ़ते चलो। बापदादा ऐसे बच्चों को यही वरदान देते हैं - इसी हिम्मत में, निश्चय में, नशे में अमर भव।
✺ ड्रिल :- "निश्चय बुद्धि बन विजयीपन के रूहानी नशे का अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता उड़ती हुई ऊंची पहाड़ी पर आकर बैठ जाती हूँ... और देखती हूँ कि दूर देश के फ़रिश्ते भी उड़ कर कभी पावन भारत भूमि पर आते तो कभी चले जाते... सबके मन खुशियों से, उमंग से भरे हुए हैं... हैं तो सभी भाग्य विधाता के बच्चे, ब्राह्मण बच्चे... कल-कल बहते पानी की मधुर आवाज से मन मगन हो जाता है... और बुद्धि के पटल पर चलचित्र चलने लगता है.... इसमें मेरी ही कल्प-कल्प की कहानी चल रही है...
➳ _ ➳ मैं विजयी आत्मा हूँ... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि हूँ... और इसी नशे का अनुभव कर रही हूँ की मैं आत्मा सिर्फ एक बार की नहीं... बल्कि अनेक बार की कल्प कल्प की विजयी आत्मा हूँ। बापदादा रूहानी दृष्टी देते हुए मुझ आत्मा को... विजयी भव का वरदान दे रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा से इस वरदान को पाकर मास्टर सर्वशक्तिवान की पॉवरफुल स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति मुझे मायाजीत बनाती जा रही है... माया के हर मुखौटे को परखने की कसौटी से उन पर जीत पाती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि की यह अवस्था मुझ आत्मा को अत्यंत ही सुखदायी रूहानी नशे का अनुभव करवा रही है... मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर अपना हर कर्म विजयी मूर्त आत्मा के इसी रूहानी नशे में स्थित होकर कर रही हूँ... और सदैव बापदादा की छत्रछाया में रहते हुए हर सेकंड अपने अलौकिक मार्ग में तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए हर कार्य में सफलता का अनुभव कर रही हूँ... स्वयं भगवान मेरा साथी है - यह रूहानी नशा मुझ आत्मा को निडर बना मायाजीत अवस्था का अनुभव करवा रहा है...
➳ _ ➳ मैं परम पवित्र आत्मा अपने में निश्चय और हिम्मत का बल अनुभव करती हूँ... बीती को बीती कर आगे बढ़ती जा रही हूँ... सभी सोच-फिकर बापदादा को देकर हल्की हो गयी हूँ... अब मैं आत्मा अपने हर कर्म में हर कदम पर हिम्मत का एक कदम उठा बापदादा की हज़ार गुना मदद का अनुभव कर रही हूँ... और मेरा यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन सम्पूर्ण निर्विघ्न होता जा रहा है... अब जबकि परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा की सभी बीती को बिंदु लगा दिया है... मैं आत्मा 108 की विजयमाला में होने का अनुभव कर रही हूँ... कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ... ओम् शान्ति।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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