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❍ 25 / 03 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इस शरीर और दुनिया से उपराम रहे ?*
➢➢ *बहुत धैर्य और प्यार से सबको बाप का परिचय दिया ?*
➢➢ *सेवा के उमंग उत्साह द्वारा सेफ्टी का अनुभव किया ?*
➢➢ *ज्ञान और योग को अपनी जीवन की नेचर बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जो सदा बाप की याद में लवलीन रह मैं-पन की त्याग-वृत्ति में रहते हैं उन्हों से ही बाप दिखाई देता है ।* आप बच्चे नॉलेज के आधार से बाप की याद में समा जाते हो तो यह समाना ही लवलीन स्थिति हैं, *जब लव में लीन हो जाते हो अर्थात् लगन में मग्न हो जाते हो तब बाप के समान बन जाते हो ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं याद की शक्ति द्वारा पदमों की कमाई जमा करने वाली आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा हर कदम में याद की शक्ति द्वारा पदमों की कमाई जमा करते हुए आगे बढ़ रहे हो ना? हर कदम में पदम भरे हुए हैं-यह चेक करते रहते हो? याद का कदम भरपूर है। बिना याद के कदम भरपूर नहीं, कमाई नहीं तो हर कदम में कमाई जमा करने वाले कमाऊ बच्चे हो ना! कमाने वाले कमाऊ बच्चे होते। एक हैं सिर्फ खाया पिया और उड़ाया और एक हैं कमाई जमा करने वाले। आप कौन से बच्चे हैं? वहाँ बच्चा कमाता है अपने लिए भी और बाप के लिए भी। यहाँ बाप को तो चाहिए नहीं। अपने लिए ही कमाते। *सदा हर कदम में जमा करने वाले, कमाई करने वाले बच्चे हैं, यह चेक करो। क्योंकि समय नाजुक होता जा रहा है। तो जितनी कमाई जमा होगी उतना आराम से श्रेष्ठ प्रालब्ध का अनुभव करते रहेंगे।*
〰✧ भविष्य में तो प्राप्ति है ही। तो इस कमाई की प्राप्ति अभी संगम पर भी होगी और भविष्य में भी होगी। तो सभी कमाने वाले हो या कमाया और खाया! जैसे बाप वैसे बच्चे। जैसे बाप सम्पन्न है, सम्पूर्ण है वैसे बच्चे भी सदा सम्पन्न रहने वाले। सभी बहादुर हो ना? डरने वाले तो नहीं हो? डरे तो नहीं? थोड़ा-सा डर की मात्रा संकल्प मात्र भी आई या नहीं? यह नथिंग न्यु है ना। कितने बार यह हुआ है, अनेक बार रिपीट हो चुका है। अभी हो रहा है इसलिए घबराने की बात नहीं। *शक्तियाँ भी निर्भय हैं ना। शक्तियाँ सदा विजयी सदा निर्भय। जब बाप की छत्रछाया के नीचे रहने वाले हैं तो निर्भय ही होंगे। जब अपने को अकेला समझते हो तो भय होता। छत्रछाया के अन्दर भय नहीं होता। सदा निर्भय।*
〰✧ शक्तियों की विजय सदा गाई हुई है। सभी विजयी शेर हो ना! शिव शक्तियों की, पाण्डवों की विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! पाण्डव और शक्तियाँ कल्प-कल्प के विजयी हैं। बच्चों से बाप का स्नेह है ना। बाप के स्नेही बच्चों को याद में रहने वाले बच्चों को कुछ भी हो नहीं सकता। याद की कमजोरी होगी तो थोड़ा सा सेक आ भी सकता है। *याद की छत्रछाया है तो कुछ भी हो नहीं सकता। बापदादा किसी न किसी साधन से बचा देते हैं। जब भक्त आत्माओंका भी सहारा है तो बच्चों का सहारा सदा ही है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी कहाँ बैठे हो और क्या देख रहे हो? अव्यक्त स्थिती में स्थित हो अव्यक्त रूप को देख रहे हो वा व्यक्त में अव्यक्त को देखने का प्रयत्न करते हो? इस दुनिया में आवाज है। अव्यक्त दुनिया में आवाज नहीं है। इसलिए बाप सभी बच्चों को आवाज से परे ले जाने की ड्रिल सिखला रहे है। *एक सेकण्ड में आवाज में आना एक सेकण्ड में आवाज से परे हो जाना ऐसा अभ्यास इस वर्तमान समय में बहुत आवश्यक है*।
〰✧ वह समय भी आयेगा। *जैसे - जैसे अव्यक्त स्थिती में स्थित होते जायेंगे वैसे - वैसे नयनों के इशारों से किसके मन के भाव को जान जायेंगे*। कोई से बोलने वा सुनने की आवश्यकता नहीं होगी। ऐसा समय अब आने वाला है। जैसे बापदादा के सामने जब आते हो तो बिना सुनाये हुए भी आप सभी के मन के संकल्प , मन के भावों को जान लेते हैं। वैसे ही आप बच्चों को भी यही अन्तिम कोर्स पढना है।
〰✧ जैसे मुख की भाषा कही जाती है वैसे ही फिर रूहों कि रूहानी होती है। जिसे रूह - रूहान कहते हैं। तो रूह भी रूह से बात करते है। लेकिन कैसे? क्या रूहों की बातें मुख से होती हैं? जैसे - जैसे रुहानी स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे - वैसे रूह रूह की बात को ऐसे ही सहज और और स्पष्ट जान लेंगे। जैसे इस दुनिया में मुख द्वारा वर्णन करने से एक - दो के भाव को जानते हो। तो इसके लिए किस बात की धारणा की आवश्यकता है? *विशेष इस बात की आवश्यकता है जो सदैव बुद्धी की लाइन क्लियर हो*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *आत्मिक स्तिथि में अपने को स्तिथ रखना, यह है अपनी सर्विस। पहले यह चेक करो कि अपनी सर्विस भी चल रही है? अपनी सर्विस नहीं होती तो दूसरों की सर्विस में सफलता नहीं होगी।* इसलिए जैसे दूसरों को सुनाते हो ना कि बाप की याद अर्थात् अपनी याद व अपनी याद अर्थात् बाप की याद। इस रीति से दूसरों की सर्विस अर्थात् अपनी सर्विस। *यह भी स्मृति में रखना।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- तुम रॉयल कुल के रॉयल स्टूडेंट हो, तुम्हारी चलन बहुत रॉयल होनी चाहिए"*
➳ _ ➳ जीवन में जब भाग्य ने भगवान को प्रकट नही किया था... यह जीवन कितना बोझिल और अंधकार से भरा लक्ष्य हीन था.... अपने दुःख भरे अतीत की तुलना में, सुंदर सजीले वर्तमान को देख.... मै आत्मा *मेरे जीवन को यूँ सुंदरता के रंगो से सजाने वाले... जादूगर बाबा की यादो में खो जाती हूँ..*. प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में रंगकर, मुझ आत्मा को शिखर पर सजा दिया है... *शिव पिता और ब्रह्मा मां के आँगन में खिलने वाला खुबसूरत गुलाब मै आत्मा.*.. ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर गुणो... और शक्तियो की पंखुड़ियों से खिली मै आत्मा... पूरे विश्व को अपनी रूहानियत की खशबू सराबोर कर रही हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य के नशे में डुबोते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे.... *परमधाम से भगवान ने आकर, आप महान बच्चों को अपनी आँखों का तारा बनाया है.*.. दुखो के कंटीले जंगल से बाहर निकाल, सुख भरी गोद में बिठाया है... निराकार और साकारी पिता की अनूठी पालना में पलने वाले सोभाग्यशाली हो... सदा इसी रायल्टी में रहो... क्योकि ऐसा प्यारा भाग्य तो देवताओ का भी नही है..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा ईश्वरीय पालना में सजे संवरे अपने महान भाग्य को देख पुलकित होते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे प्यारे बाबा... *मुझ आत्मा ने स्वयं भगवान को पा लिया है इससे प्यारी बात भला और क्या होगी.*.. आपने मेरे कौड़ी जेसे जीवन को, हीरे जैसा बेशकीमती बना दिया है... मै आत्मा असीम सुखो की अनुभूतियों से भर गयी हूँ... अलौकिक और पारलौकिक पिता को पाने वाली... देवताओ से भी ज्यादा भाग्यशाली हूँ..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सत्य ज्ञान से भरपूर करते हुए, और अपने सच्चे प्रेम की तरंगो से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय प्यार को पाकर, जो विकारो के काँटों से, दिव्य गुणो के फूल में परिवर्तित हुए हो... इन मीठी स्मर्तियो में सदा झूमते रहो... *अपनी रूहानियत भरी चाल से निराकार और साकार पिता की झलक... सारे विश्व को दिखाकर, सबको ईश्वरीय प्यार का दीवाना बनाओ*...
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य ज्ञान निधि से मन बुद्धि को शक्तिशाली बनते देख कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपके बिना तो मै आत्मा इस विकारी दुनिया में अनाथो जैसा भटक रही थी... खुशियो के लिए सदा तरसती ही रही... आपने प्यारे बाबा मुझे पिता का प्यार देकर फिर से सनाथ बना दिया है... *ब्रह्मा अलौकिक पिता संग निराकारी पालना ने मुझे हीरों सा सजा दिया है*...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने स्नेहिल आगोश में लेते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... आप देवताओ से भी ज्यादा खुशनसीब हो जो... भगवान के साये में सम्मुख बेठ, तीनो लोको और कालो को जान गए हो... *निराकार और साकार दोनों का प्यार पाने वाले, देवताओ से भी ऊँचे भाग्य के धनी हो.*.. सदा इस मीठी खुमारी में खोये रहो...
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा के स्नेह में डूबी, अपने भाग्य पर मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे मेरे बाबा... आपने आकर जीवन को मीठी बहारो सा सजाया है... मुझे देवताओ से भी ऊँच बनाकर, अपने गले लगाया है... वरदानों भरा हाथ मेरे सिर पर रखकर... मुझे सबसे खुशनसीब बनाया है... *ब्रह्मा मा के आँचल में और शिव पिता की छत्रछाया में पलने वाली मै आत्मा महानता से सज गयी हूँ...* प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं करके मै आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अन्त समय मे पास होने के लिए इस शरीर और दुनिया से उपराम रहना है*"
➳ _ ➳ कितना वन्डरफुल है यह सृष्टि रूपी ड्रामा! और इस वैरायटी ड्रामा में पार्ट बजाने वाले वैरायटी पार्टधारी! एकांत में बैठ सृष्टि के इस बेहद ड्रामा पर चिंतन करते हुए मैं अपने जीवन के बारे में विचार करती हूँ कि इस बेहद ड्रामा में पार्ट बजाते हुए पूरे 63 जन्म देहधारियों से प्रीत करके सिवाय दुख और अशान्ति के और कुछ भी हासिल नही हो पाया। *उस झूठी प्रीत की स्मृति मन में देह और देह की झूठी दुनिया के प्रति वैराग्य की भावना उतपन्न कर रही है*। किन्तु इस हद की वैराग्य वृति को बेहद में बदलने के लिए अब मुझे अपने दिल की प्रीत केवल एक दिलाराम बाबा से लगानी है ताकि *अन्त समय सिवाय दिलाराम बाप के ओर कोई भी याद ना आये। अब यही पुरुषार्थ मुझे अपने इस अंतिम जन्म में करना है*।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए अपने दिलाराम बाबा की दिल को सुकून देने वाली मीठी याद में मैं खो जाती हूँ। अपने दिलाराम बाबा को याद करते ही मन बरबस ही उनकी ओर खिंचने लगता है और *जैसे ही मेरे दिल की आवाज मेरे दिलाराम बाबा तक पहुँचती है मेरे बाबा अपने प्यार का प्रतिफल अपनी सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी फुहारों के रूप में परमधाम से सीधे मुझ आत्मा पर बरसाने लगते हैं*। बारिश की रिमझिम फुहारों की तरह मेरे दिलाराम बाबा के प्रेम की मीठी फुहारें परमधाम से मेरे ऊपर पड़ रही हैं और मेरे मन को आनन्दित कर रही हैं। *एक दिव्य अलौकिक मस्ती से मैं सरोबार होती जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ मेरे मीठे दिलाराम बाबा का प्रेम एक जादुई शक्ति बन कर, मुझे उनके समान अशरीरी बना कर अब अपनी ओर खींच रहा है। *मुझे केवल अपना चमकता हुआ, अपने दिलाराम बाबा के प्रेम में खोया हुआ जगमग करता दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप ही दिखाई दे रहा है*। अपने बाबा के प्रेम की डोर से बंधी मैं जगमग करती ज्योति अब भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और परमात्म प्यार के झूले में झूलती हुई ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ परमात्म प्यार का यह सुन्दर, सुहावना झूला मुझे सेकण्ड में समस्त तारामण्डल, सौरमण्डल और सूक्ष्म वतन को पार करवाकर उस अनन्त ज्योति के देश मे ले आता है जहाँ पहुंचते ही शांति की लहरें मुझ आत्मा को छूने लगती है और मुझे गहन शांति के गहरे अनुभव में ले जाती हैं। *एक ऐसी अद्भुत शान्ति जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नही की थी उस अथाह शान्ति का अनुभव यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा कर रही हूँ*। अथाह शान्ति का यह अनुभव मुझे शांति के सागर मेरे शिव पिता के समीप ले कर जा रहा है।
➳ _ ➳ अब मैं धीरे - धीरे अपने दिलाराम बाबा के पास जा रही हूँ। *उनके अति समीप पहुँच कर मैं जैसे ही उन्हें छूती हूँ शक्तियों का एक तेज करेन्ट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगता है जो मुझे असीम आनन्द देने के साथ - साथ असीम शक्ति से भर देता है*। अपने बाबा के साथ टच रह कर स्वयं को पूरी तरह भरपूर करके मैं आत्मा वापिस सृष्टि ड्रामा पर अपना पार्ट बजाने के लिए अब परमधाम से नीचे आ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा के सच्चे निस्वार्थ प्यार के अनुभव को अपने मन रूपी दर्पण पर अंकित कर उस प्यार की गहराई में जब चाहे खोकर, उस सच्ची प्रीत को अपने ब्राह्मण जीवन का आधार बना कर अब मैं अपने दिलाराम बाबा के प्यार के झूले में सदैव झूलती रहती हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों से ममत्व निकाल, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने दिलाराम बाबा से लेते हुए, दिल की सच्ची प्रीत बाबा से रखते हुए अब मैं ऐसा पुरुषार्थ कर रही हूँ जो अन्त समय सिवाए दिल को आराम देने वाले मेरे दिलाराम बाबा के ओर कोई भी मुझे याद ना आये*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सेवा के उमंग - उत्साह द्वारा सेफ्टी का अनुभव करने वाली मायाजीत आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं ज्ञान और योग को अपने जीवन की नेचर बनाकर पुरानी नेचर को बदलने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *स्वमान, अभिमान को खत्म कर देता है क्योंकि स्वमान है श्रेष्ठ अभिमान।* तो श्रेष्ठ अभिमान अशुद्ध भिन्न भिन्न देह-अभिमान को समाप्त कर देता है। जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच आन करने से अंधकार भाग जाता है, अंधकार को भगाया नहीं जाता है या अंधकार को निकालने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है लेकिन स्विच आन किया अंधकार स्वतः ही समाप्त हो जाता है। ऐसे *स्वमान की स्मृति का स्विच आन करो तो भिन्न-भिन्न देह-अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।* मेहनत तब तक करनी पड़ती है जब तक स्वमान के स्मृति स्वरूप नहीं बनते। बापदादा बच्चों का खेल देखते हैं - स्वमान को दिल में वर्णन करते हैं - 'मैं बापदादा का दिलतख्तनशीन हूँ', वर्णन भी कर रहे हैं, सोच भी रहे हैं लेकिन अनुभव की सीट पर सेट नहीं होते।
➳ _ ➳ *जो सोचते हैं वह अनुभव होना जरूरी है क्योंकि सबसे श्रेष्ठ अथारिटी अनुभव की अथारिटी है।* तो बापदादा देखते हैं - सुनते बहुत अच्छा हैं, सोचते भी बहुत अच्छा हैं लेकिन सुनना और सोचना अलग चीज है, *अनुभवी स्वरूप बनना - यही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठ अथारिटी है।* यही भक्ति और ज्ञान में अन्तर है। भक्ति में भी सुनने की मस्ती में बहुत मस्त होते हैं। सोचते भी हैं लेकिन अनुभव नहीं कर पाते हैं। ज्ञान का अर्थ ही है, ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् हर स्वमान के अनुभवी बनना। *अनुभवी स्वरूप रूहानी नशा चढ़ाता है।* अनुभव कभी भी जीवन में भूलता नहीं है, सुना हुआ, सोचा हुआ भूल सकता है लेकिन अनुभव की अथारिटी कभी कम नहीं होती है।
✺ *ड्रिल :- "हर स्वमान का अनुभवी बनना।"*
➳ _ ➳ भक्ति मार्ग में मन्नत के रूप में हज़ारों दीये मंदिर में जलाती मैं आत्मा... *ज्ञान मार्ग में... आत्मा में ज्ञान का दिया जलाती हूँ...* कलियुग में भगवान को पुकारती मैं आत्मा... मिट्टी के दीये द्वारा भगवान का आह्वान करती मैं आत्मा... *संगमयुग में स्वयं भगवान की छत्रछाया में ज्ञान रूपी दिये को जगमगाती हूँ...* अज्ञानता रूपी अंधकार को स्वमान की श्रीमत द्वारा ज्ञान के उजाले में बदलती हूँ...
➳ _ ➳ कलियुगी अंधकार को संगमयुगी दीये द्वारा सतयुग के उजाले में परिवर्तित होता देख रही हूँ... *खुद से बेखबर मैं आत्मा... ज्ञान रूपी दीये से अपने पूज्य देवताई स्वरुप को प्रत्यक्ष होता देख रही हूँ...* स्वमान की सीट पर सेट मैं आत्मा... देह अभिमान रूपीं पिंजरे से मुक्त उड़ता पंछी बन... अपने देवताई स्वरुप को प्रत्यक्ष कर रही हूँ... *स्वमान की अनुभवी... मेहनत मुक्त बन गई हूँ...*
➳ _ ➳ संगमयुग में देवताई गुणों का आह्वान कर... सतयुग के स्वराज्य अधिकारी के वर्से के अधिकारी बन गई हूँ... *स्वमान की स्मृति स्वरुप मैं आत्मा...* संगमयुग में स्वमान की सीट पर विराजमान होकर अपने सतयुगी वर्से को स्मृति स्वरुप बनती जा रही हूँ... प्रजापिता ईश्वरीय विश्व विद्यलाय रूहानी पाठशाला में... *स्वमान में स्थित रहना... स्वमान के स्मृति स्वरुप बनना... स्वमान के अनुभवी बनना* मुझ आत्मा को सिखा दिया हैं...
➳ _ ➳ सतयुगी स्वराज्य अधिकारी मैं आत्मा... संगमयुग में एक *शिवबाबा की ही श्रीमत का पालन करती...* उच्च स्वमान की सीट पर सेट हो गई हूँ... मिथ्या देहाभिमान से परे मैं आत्मा... स्वमान की नित्य स्मृति स्वरुप बन कर... अपने पुरुषार्थ को तीव्र पुरूषार्थी में परिवर्तित कर दिया हैं... *संगमयुग का गहना "स्वमान"* को सुनहरे अक्षरों में अपने मन बुद्धि में अंकित कर... शुभ भावना रूपी मोतियों की वर्षा पूरे ब्रह्माण्ड में मुझ आत्मा से हो रही हैं...
➳ _ ➳ संगमयुग में स्वमान की ही स्मृति स्वरुप बनना... मुझ आत्मा को हर कर्म बंधन से मुक्त कर रहा हैं... *अंधकार को उजाले में... निराशा को आशा में... कलियुग को सतयुग में परिवर्तित करने की बापदादा की श्रीमत "स्वमान में स्थित रहना" करवा रहा हैं...* संगमयुगी हर ब्राह्मण आत्मा श्रेष्ठ स्वमानधारी बन कर बापदादा के श्रीमत का पालन कर सतयुगी देवी देवता धर्म की स्थापना में सहयोगी बन रही हैं... *मैं आत्मा भी स्वमानधारी बन शिवबाबा के महायज्ञ को सफल कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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