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 14 / 01 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हम अशरीरी आये थे.. अशरीरी बनकर वापिस जाना है" - यह अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *चतुरसुजान बाप से चतुराई करने की बजाये महसूसता की शक्ति द्वारा सर्व पापों से मुक्त होने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *जीवन में रहते भिन्न भिन्न बन्धनों से मुक्त रह जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *शरीर और कर्म के अधीन न हो सदा स्वतंत्र स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जब आत्मिक शक्ति वाली, सेमी प्योर आत्मायें अपनी साधना द्वारा आत्माओं का आह्वान कर सकती हैं,* अल्पकाल के साधनों द्वारा दूर बैठी हुई आत्माओं को चमत्कार दिखाकर अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं, *तो परमात्म शक्ति अर्थात् सर्व श्रेष्ठ शक्ति क्या नहीं कर सकती परन्तु इसके लिए विशेष एकाग्रता का अभ्यास चाहिए।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं समर्थ बाप और समर्थ युग की स्मृति द्वारा व्यर्थ को समाप्त करने वाली समर्थ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को समर्थ आत्माएं समझकर चलते हो? जब सर्वशक्तिवान की स्मृति है तो स्वत: समर्थ हो। समर्थ आत्मा की निशानी क्या होगी? *जहाँ समर्थी है वहाँ व्यर्थ सदा के लिए समाप्त हो जाता है। समर्थ आत्मा अर्थात् व्यर्थ से किनारा करने वाले। संकल्प में भी व्यर्थ नहीं। ऐसे समर्थ बाप के बच्चे सदा समर्थ।*

 

आधा कल्प तो व्यर्थ सोचा, व्यर्थ किया-अब संगमयुग है समर्थ युग। समर्थ युग, समर्थ बाप और समर्थ आत्माएं। तो व्यर्थ समाप्त हो गया ना। *सदा यह स्मृति मे रखो कि हम समर्थ युग के वासी, समर्थ बाप के बच्चे, समर्थ आत्मा हैं। जैसा समय, जैसा बाप वैसे बच्चे।*

 

*कलियुग है व्यर्थ। जब कलियुग का किनारा कर चुके, संगमयुगी बन गये तो व्यर्थ से किनारा हो ही गया। तो सिर्फ समय की याद रहे तो समय के प्रमाण स्वत: कर्म चलेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  यह पक्का है कि हम फरिश्ते हैं? ‘फरिश्ता भव' का वरदान सभी को मिला हुआ है? *एक सेकण्ड में फरिश्ता अर्थात डबल लाइट बन सकते हो?* एक सेकण्ड में, मिनट में नहीं, 10 सेकण्ड में नहीं, एक सेकण्ड में सोचा और बना, ऐसा अभ्यास है? अच्छा जो एक सेकण्ड में बन सकते हैं, दो सेकण्ड नहीं, एक सेकण्ड में बन सकते हैं, वह एक हाथ की ताली बजाओ।

 

✧  बन सकते हैं? ऐसे ही नहीं हाथ उठाना। डबल फारेनर नहीं उठा रहे हैं। टाइम लगता है क्या? अच्छा जो समझते हैं कि थोडा टाइम लगता है, एक सेकण्ड में नहीं, थोडा टाइम लगता है, वह हाथ उठाओ। (बहुतों ने हाथ उठाया) अच्छा है, लेकिन *लास्ट घडी का पेपर एक सेकण्ड में आना है, फिर क्या करेंगे?*

 

✧  *अचानक आना है और सेकण्ड का आना है।* हाथ उठाया, कोई हर्जा नहीं। महसूस किया, यह भी बहुत अच्छा। परंतु *यह अभ्यास करना ही है। करना ही पडेगा, नहीं, करना ही है।* यह अभ्यास बहुत-बहुत-बहुत आवश्यक है। चलो फिर भी बापदादा कुछ टाइम देते हैं। कितना टाइम चाहिए? दो हजार तक चाहिए।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *साइलेंस पॉवर प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अन्तिम पुरुषार्थ याद का ही है।* इसलिए याद की स्टेज वा अनुभव को भी बुद्धि में स्पष्ट समझना आवश्यक है। बिन्दु रुप की स्थिति क्या है और अव्यक्त स्थिति क्या है, दोनों का अनुभव क्या-क्या है? क्योंकि नाम दो  कहते हैं तो जरूर दोनों के अनुभव में भी अन्तर होगा। चलते-फिरते बिन्दु रूप की स्थिति इस समय कम भी नहीं लेकिन ना के बराबर ही कहें। इसका भी अभ्यास करना चाहिए। *बीच-बीच में एक दो मिनट भी निकाल कर इस बिन्दी रूप की प्रैक्टिस करनी चाहिए।* जैसे जब कोई ऐसा दिन होता है तो सारे चलते-फिरते हुए ट्रैफिक को भी रोक कर तीन मिनट साइलेन्स की प्रैक्टिस कराते हैं। सारे चलते हुए कार्य को स्टॉप कर लेते हैं।

〰✧  *आप भी कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करना चाहिए।* एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करना चाहिए। *अगर यह प्रैक्टिस नहीं करेंगे तो बिन्दु रूप की पावर फुल स्टेज कैसे और कब ला सकेंगे?* इसलिए यह अभ्यास करना आवश्यक है।

〰✧  बीच-बीच में यह प्रैक्टिस प्रैक्टिकल में करते रहेंगे तो जो आज यह बिन्दु रुप की स्थिति मुश्किल लगती है वह ऐसे सरल हो जायेगी जैसे अभी मैजारिटी को अव्यक्त स्थिति सहज लगती है। पहले जब अभ्यास शुरू किया तो व्यक्त में अव्यक्त स्थिति में रहना भी मुश्किल लगता था। *अभी अव्यक्त स्थिति में रह कार्य करना जैसे सरल होता जा रहा है वैसे ही यह बिन्दुरुप की स्थिति भी सहज हो जायेगी।* अभी महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी चाहिए।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सम्पूर्ण पावन बनना*

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सुमन हो गये... अपने मन को निहार कर, आनन्द के सागर में डूब जाती हूँ... और मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि *कैसे चलते चलते बाबा ने मेरे विकारी हाथो में, अपना पावन मखमली हाथ देकर, मेरा कायाकल्प कर दिया है.*.. इस अंतिम जनम में भगवान को पिता, टीचर और सतगुरु रूप में पाकर... जनमो की यात्रा ही जेसे सफल हो गयी है... सृस्टि जगत के इस खेल में मुझ आत्मा ने... अंत में भगवान को ही जीत लिया है.. सब कुछ मैंने पा लिया है...

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी देवताई शानोशौकत याद दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य के नशे में खोये रहो... और पावनता के रंग में रंगकर मनुष्य से देवता बनने का सदा का अधिकार पा लो...ईश्वर पिता के साथ का यह खुबसूरत वरदानी संगम है... *इसमे पवित्रता से सजकर पिता की सम्पूर्ण दौलत को पा लो.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को गहराई से दिल में समाकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *अपनी यादो भरा मदद का हाथ देकर, मेरे भाग्य को कितना ऊंचाइयों पर ले जा रहे हो.*.. मै क्या हूँ और क्या मुझे बना रहे हो... विकारो के पतितपन को जीकर मै कितनी निकृष्ट से हो गयी थी... आज पावनता से सजाकर मुझे देवता बना रहे हो..."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम के अहसासो से भरते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में पलने का महाभाग्य पाकर अब पवित्रता की तरंगे पूरे विश्व में फैलाओ... पावन बनकर, पावन दुनिया के मालिक बन सदा के लिए मुस्कराओ... *इस अंतिम जनम में ईश्वर पिता की श्रीमत के रंग में रंगकर, सुंदर देवता बन जाओ.*..

 

_ ➳ *मै आत्मा अपने मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर लुटाते हुए संकल्पों को देख कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मनुष्य मन और मनमत ने मुझ आत्मा को विकारो के दकदल में गहरे डुबो दिया... आपने आकर जो मात्र चोटी बची थी... खींच कर निकाला और ज्ञान अमृत से मुझे उजला बनाया है... *आपकी प्यारी यादो में डूबकर मै आत्मा अब पवित्रता का आँचल ओढ़ मुस्करा रही हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को वरदानों से सजाते हुए कहते है :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर अदा में ईश्वरीय झलक दिखाओ... इस पतित हो गयी दुनिया को अपनी पावनता से पुनः खुबसूरत पवित्र बनाओ... विकारो के कालेपन से निकल कर, ज्ञान धारा में धवल बन, और *यादो में तेजस्वी होकर, देवताई सौंदर्य से विश्व धरा पर जगमगाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने भाग्य के ऊपर, ईश्वरीय जादूगरी को देख, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* " मेरे सच्चे साथी बाबा... आपके सच्चे साथ और यादो के हाथ को पाकर मै आत्मा विकारो के घने जंगल से बाहर निकल रही हूँ... *अपनी खोयी हुई पावनता से पुनः सज संवर रही हूँ.*.. अपने साथ इस प्रकर्ति को भी पावन बनाकर, सुखो के स्वर्ग में बदल रही हूँ..." मीठे बाबा को अपने दिल की सारी बात सुनाकर मै आत्मा इस धरती पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा को कंचन बनाने के याद में जरूर रहना है*"

 

_ ➳  जब मैं आत्मा अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप में थी तो मेरा स्वरूप एक दम कंचन जैसा था, यह विचार मन मे आते ही *मेरी आँखों के सामने मेरा अति उज्ज्वल सोने के समान चमकता हुआ स्वरूप स्पष्ट दिखाई देने लगता है और मैं आत्मा मंत्रमुग्ध हो कर अपने अति सुंदर सितारे के समान चमकते हुए अपने स्वरूप को मन बुद्धि रूपी नेत्रो से निहारते - निहारते अपनी निराकारी चमकते सितारों की दुनिया परमधाम पहुँच जाती हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने संपूर्ण निर्विकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में पवित्रता के सागर, एवरप्योर अपने शिव पिता के सामने अपनी निराकारी, निर्विकारी दुनिया परमधाम में। *सच्चे सोने के समान चमकता मेरा दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप अति सुंदर मन को लुभाने वाला है*। चमकते सितारे की भांति सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की किरणे मुझ चैतन्य सितारे से निकलती हुई अति शोभायमान लग रही हैं।

 

_ ➳  अपनी अनन्त किरणो की छटा बिखेरता हुआ सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था में *मैं चमकता सितारा अब अपने शिव पिता से अलग हो कर परमधाम से नीचे आ जाता हूँ और अति सुंदर कंचन जैसी काया में प्रवेश कर, सम्पूर्ण देवताई स्वरूप में एक दैवी दुनिया मे प्रवेश करता हूँ* जहां सभी कन्चन जैसी काया वाले दैवी गुणों से सम्पन्न, सम्पूर्ण पवित्र मनुष्य है। देवी - देवताओं की यह सम्पूर्ण निर्विकारी पवित्र दुनिया अपरमअपार सुखों से भरपूर है।

 

_ ➳  सुख, शान्ति, सम्पन्नता से परिपूर्ण इस दैवी दुनिया मे अपार सुख भोगने के बाद, देह के भान में आ जाने से मेरा दैवी स्वरूप अति साधारण मनुष्य स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है। *श्रेष्ठ कर्म की बजाए साधारण कर्म करते - करते और ही गिरती कला में आ जाने से मेरा परम पूज्य पवित्र स्वरूप पतित हो जाता है*। मेरे सम्पूर्ण पतित तमोप्रधान स्वरूप को फिर से सम्पूर्ण पवित्र सतोप्रधान बनाने के लिए ही पतित पावन शिव पिता परमात्मा संगम युग पर आते हैं तथा राजयोग द्वारा मुझ आत्मा को फिर से सच्चा सोना बना कर वापिस अपने घर परमधाम ले जाते हैं।

 

_ ➳अपनी पूज्य से पुजारी, सपूर्ण सतोप्रधान से सम्पूर्ण तमोप्रधान स्वरूप की सम्पूर्ण प्रक्रिया को मन बुद्धि रूपी नेत्रो से देखते - देखते *मैं आत्मा अब स्वयं को सच्चा सोना बनाने के लिए इस अंतिम जन्म में पवित्र बन पतित पावन अपने शिव पिता की याद से आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को उतारने के लिए अशरीरी स्थिति के अभ्यास द्वारा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ* और अपना सम्पूर्ण ध्यान भृकुटि पर एकाग्र करके नष्टोमोहा बन, देह से न्यारी हो कर एक ऊंची उड़ान भर कर सेकेण्ड में अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  इस सम्पूर्ण सतोप्रधान निराकारी, निर्विकारी दुनिया में पहुँच कर अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों रूपी किरणो की छत्रछाया में जा कर मैं बैठ जाती हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे फुल फोर्स के साथ मुझ आत्मा पर पड़ रही है*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा इन ज्वलंत शक्तिशाली किरणों के पड़ने से भस्म हो रहा है। आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और सच्चे सोने के समान चमकदार बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, कर्मयोगी बन हर कर्म करते बाबा की याद से मैं स्वयं को पावन बना रही हूँ। *मनसा,वाचा कर्मणा सपूर्ण पवित्रता को जीवन में धारण कर, अपने इस अंतिम जन्म में बाबा की याद से सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं चतुरसुजान बाप से चतुराई करने के बजाए महसूसता की शक्त्ति द्वारा सर्व पापों से मुक्त्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं जीवन में रहते भिन्न-भिन्न बंधनों से मुक्त रहकर जीवनमुक्त स्थिति प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *इस समय आप हर एक को, आत्माओं प्रति रहमदिल और दाता बन कुछ न कुछ देना ही हैचाहे मन्सा सेवा द्वारा दो, चाहे शुभ भावना से दोश्रेष्ठ सकाश देने की वृत्ति से दोचाहे आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न बोल से दोचाहे अपने स्नेह सम्पन्न सम्बन्ध-सम्पर्क से दो लेकिन कोई भी आत्मा वंचित नहीं रहे।* दाता बनोरहमदिल बनो। चिल्ला रहे हैं। बाप के आगे अपनी-अपनी भाषा में चिल्ला रहे हैं - शान्ति दोस्नेह दोदिल का प्यार दो, सुख की किरणें दिखाओ। तो बाप कैसे देंगेआप बच्चों द्वारा ही देंगे ना! *बाप के आप सभी राइट हैण्ड हो। कोई को कुछ भी देना होता है तो हैण्ड द्वारा ही देते हैं ना! तो आप सभी बाप के राइट हैण्ड हो ना!*

 

 _ ➳  2. तो अभी बाप राइट हैण्डस द्वारा आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली तो दिलायेंगे ना! बिचारों को अंचली भी नहीं देंगे तो कितने तड़पेंगे। *अभी सभी हद की बातों से ऊँचे हो जाओ। हद की बातों मेंहद के संस्कारों में समय नहीं गँवाओ।*   

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप का राइट हैण्ड रहमदिल बनना"*

 

 _ ➳  ज्ञान सूर्य बाबा की संतान मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ... *बाबा के दिये ज्ञान को बुद्धि में बिठा कर मैं आत्मा उसका मनन चिन्तन कर रही हूँ...* इस दुनिया के कोलाहल से दूर शान्त स्थान पर जाकर मैं आत्मा बैठ गयी हूँ... स्वयं को देह से न्यारा कर आत्मिक स्वरूप में स्थित करती हूँ... कर्मेन्द्रियों से भी न्यारी हो रही हूँ और एक दम हल्कापन महसूस कर रही हूँ... अपने शांत स्वरूप में मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूँ

 

 _ ➳  अपनी इस शांत अवस्था में मैं आत्मा कुछ आवाज़ें सुनती हूँ... पहले ये आवाज़ें थोड़ी धीमी हैं फिर धीरे धीरे ये आवाज़ें तेज़ होने लगती हैं... ये समस्त आवाज़ें मैं अब सुन पा रही हूँ... *ये विश्व की उन सभी आत्माओ की आवाज़े हैं जो दुखी और परेशान हैं... अपने कष्टों से मुक्त होने के लिए ये आत्मायें चीख रही हैं, चिल्ला रही हैं...* कुछ आत्मायें शरीर के रोग से भयंकर दर्द में हैं तो कुछ आत्मायें मानसिक कष्ट में हैं... कोई संबंधों में धोखा मिलने से दुखी हैं... किसी के अपने प्रिय जन ने शरीर छोड़ा है...

 

 _ ➳  इस तरह असंख्य आत्मायें अपने अपने दुखों से दुखी हो इन समस्त कष्टों से मुक्ति पाने को चीख पुकार कर रही हैं... *मैं आत्मा इन सबकी ये करुण पुकार सुनकर अपने प्यारे बाबा को याद करती हूँ और बाबा की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में भरती हूँ...* बाबा की किरणें मुझमे समा गयी हैं... अब ये किरणें मुझसे निकल कर उन समस्त आत्माओ तक पहुच रही हैं... और वो आत्मायें जो अभी तक चीख पुकार कर रही थीं वो ये वाइब्रेशन को कैच कर रही हैं...

 

 _ ➳  मैं आत्मा पॉवरफुल सकाश इन सभी आत्माओ को दे रही हूँ... *सभी दुखी और अशांत आत्मायें मुझ आत्मा से सकाश को प्राप्त कर अपने दुखों को भूल रही हैं...* उनके कष्ट कम हो रहे हैं और ये समस्त आत्मायें आश्चर्य से सोच रही हैं कि ये शांति और शक्तियों की किरणें उन्हें कहाँ से मिल रही हैं... आत्मायें स्वतः ही सहज रूप से मेरी ओर आकर्षित हो रही हैं... और मैं आत्मा उन सभी को  निरंतर शक्तिशाली वाइब्रेशन देकर उनके सारे कष्टों से उन्हें मुक्त करती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने पिता परमात्मा की संतान उनकी हर श्रीमत का पालन करते हुए विश्व परिवर्तन के कार्य में उनकी सहयोगी बन रही हूँ... ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख कर मैं आत्मा उनको फॉलो करते हुए आगे बढ़ रही हूँ... हर आत्मा को सुख और शांति की किरणें दे उनके दुखों को दूर कर रही हूँ... *मनसा वाचा कर्मणा सेवा करते हुए बाबा का राइट हैंड बन मैं आत्मा सेवा कर रही हूँ...* हद के संस्कारों और हद की बातों से ऊपर उठ कर मैं आत्मा रहमदिल बन सर्व को सुख शांति की किरणें देकर उनके दुखों को कम करने में उन्हें मदद कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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