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 20 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया से बेहद का सन्यास किया ?

 

➢➢ पढाई के समय बुधी इधर उधर तो नहीं भटकी ?

 

➢➢ समय प्रमाण स्वयं को चेक कर चेंज किया ?

 

➢➢ मन बुधी को कण्ट्रोल करने का अभ्यास किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  कोई भी सेवा के प्लैन्स बनाते हो, भले बनाओ, भले सोचो, लेकिन क्या होगा! उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोचो। सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो। अभी आवश्यकता स्थिति की है। यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। जैसे बादल आये, चले गये। विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सहजयोगी आत्मा हूँ"

 

  अपने को सहज योगी आत्मायें अनुभव करते हो? सहज योग का आधार क्या है? विशेष दो बातें हैं। कौन-सी? सहज का आधार है - स्नेह, लेकिन स्नेह का आधार सम्बन्ध है। सम्बन्ध से याद करना सहज होता है और सम्बन्ध से प्यार पैदा होता है। और दूसरी बात है प्राप्तियाँ। जहाँ प्राप्ति होगी, चाहे अल्पकाल की भी प्राप्ति हो तो मन और बुद्धि वहाँ सहज ही चली जायेगी। तो मुख्य दो बातें हैं-सम्बन्ध और प्राप्ति अनुभव है ना? वैसे भी देखो, 'बाबा' कहकर याद करो और 'मेरा बाबा' कहकर याद करो, तो फर्क पड़ता है? 'मेरा' कहने से सहज होता है ना। क्योंकि जहाँ मेरापन होता है वहाँ अधिकार होता है। और अधिकार होने के कारण अधिकारी को प्राप्ति जरूर होती है।

 

  तो सर्व सम्बन्ध है ना! कि एक-दो नहीं हैं, बाकी सब हैं! और प्राप्तियां कितनी हैं? सब हैं ना। जब देने वाला दे रहा है तो लेने में क्या हर्जा है? (कौन-सी प्राप्तियां?) जो बाप ने शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का ख़जाना दिया, सुख-शान्ति, आनन्द, प्रेम, सब ख़जाने दिये। तो कितनी प्राप्तियां हैं! क्योंकि बाप के पास ये खजाने हैं ही बच्चों के लिये। तो बच्चे नहीं लेंगे तो कौन लेंगे? तो बच्चे हैं या नहीं हैं-यह भी सोच रहे हो! फिर अधिकार लेने में क्यों कमी करते हो? अगर अभी अधिकार नहीं लिया तो कब लेंगे? जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियां हैं, उन प्राप्तियों को सामने रखो। प्राप्ति को इमर्ज करने से प्राप्ति की खुशी की अनुभूति होगी। सिर्फ बाप मेरा है, नहीं, लेकिन बाप के साथ वर्सा भी मेरा है। बच्चे को प्रापर्टी की खुशी होती है ना। तो यह बेहद की प्रापर्टी है। बालक सो मालिक हूँ-इस खुशी में सदा रहो।

 

  कोटों में कोई और कोई में भी कोई जो गायन है वह किसका है? आप कोटों में कोई हो ना? बापदादा सभी बच्चों को इतना श्रेष्ठ आत्मा के रूप में देखते हैं। दुनिया भटक रही है और आप मौज मना रहे हो। मौज में रहते हो ना कि अभी भी यहाँ वहाँ भटकते हो? ठिकाना मिल गया ना! तो दिन-रात खुशी में नाचते रहो, खुशी में सो जाओ। अगर जीवन है तो ब्राह्मण जीवन है। तो स्वयं के महत्व को सदा स्मृति में रखो। क्या थे और क्या बन गये! श्रेष्ठ बन गये ना। अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को कर्म करते हुए भी स्मृति में रखो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! दिल में यह आता है? जो भगवान के प्यारे हैं उसके जीवन में प्यार हर समय है। तो दिल से यही गीत गाते रहो-वाह बाबा वाह और वाह मेरा भाग्य वाह!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बहुत जन्म विस्तार में जाने की आदत पडी हुई है। इसलिए विस्तार में बहुत जल्दी चले जाते हैं लेकिन ब्रेक लगाने वा समेटने में टाइम लग जाता है तो टाइम नहीं लगना चाहिए। क्योंकि बापदादा ने सुनाया है - लास्ट में फाइनल पेपर का क्वेचन ही यह होगा - सेकण्ड में फुलस्टॉप, यही क्वेचन आयेगा।

 

✧  इसी में ही नम्बर मिलेंगे। तो इम्तिहान में पास होने के लिए तैयार हो? सेकण्ड से ज्यादा हो गया तो फेल हो जायेंगे। तो टाइम भी बता रहे हैं - 'एक सेकण्ड और क्वेचन भी सुना रहे हैं - और कोई याद नहीं आये बस फुलस्टॉप' एक बाप और मैं, तीसरी कोई बात नहीं।

 

✧  यह कर लूँ, यह देख लूँ. यह हुआ, नहीं हुआ। यह क्यों हुआ, यह क्या हुआ - कोई बात आई तो फेल। यह क्वेचन सहज है या मुश्किल?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ पहला विशेष परिवर्तन है स्वरूप का परिवर्तन। मै शरीर नहीं, लेकिन आत्मा हूँ -यह स्वरूप का परिवर्तन है। यह आदि परिवर्तन है। इसमें भी चेक करो तो जब देहभान का फोर्स होता है तो आत्म अभिमान के स्वरूप में टिक सकते हो या बह जाते हो? अगर सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति काम में आ जाए तो समय, संकल्प कितने बच जाते हैं। वेस्ट से बेस्ट में जमा हो जाते हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   “ड्रिल :- बाप से वर्सा लेना"
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा संगमयुग की ऊँची चोटी पर खडे होकर इस सृष्टि नाटक को देख रही हूँ... मुझ अनादि आत्मा ने अपने घर शांतिधाम से अवतरित होकर अपने आदि स्वरुप में स्वर्णिम सतयुग में बेहद सुख, समृद्धि से संपन्न रॉयल जीवन व्यतीत किया था... मैं आत्मा अपना रॉयल पार्ट बजाते बजाते रावण की नगरी में आ पहुंची और मेरी रॉयलटी, गुण, शक्तियों को खोकर विकारों के वश होते चली गई... और अपने घर, अपने पिता को भूलकर दुखी हो गई थी... अब मेरे प्राण प्रिय परमपिता परमात्मा इस संगम की ऊँची चोटी पर मेरे सम्मुख बैठकर स्वयं का परिचय देकर मुझे अपने साथ घर ले जाने आयें हैं... मुझे बेहद का वर्सा देने आएं हैं...
 
❉   मेरे प्यारे बेहद के बाबा मुझे बेहद के वर्से का अधिकारी बनाते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... यह खेल अब पूरा हो गया है... यह दुखधाम कुछ समय का है... इन सांसो के रहते सच्चे पिता से अपना अधिकार ले लो... सिवाय पिता के यह अधिकार कोई न देगा... सब खत्म हो जायेगा पर पिता के साथ की यादे अमर होकर सुखो का वर्सा दे जाएँगी...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा बेहद के बाप से बेहद के खजानों को झोली भर भरकर लूटते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा... मीठे प्यारे बाबा को यादो में समाकर अधिकारी बन रही हूँ... ये यादे सच्चा हक दिलाकर मुझे धनवान् बना रही है... सांसो को मै आत्मा बाबा की यादो में पिरो रही हूँ...”
 
❉   प्यारे बाबा भरमार सुख, शांति की दौलत की बरसात में मुझे भिगोते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे मेरे सिकीलधे बच्चे... ये बाते ये नाते ये रिश्ते ये दुनिया सब छूट जाना है... ये भुरभुरे से खोखले रिश्ते ठग जायेंगे... इसलिए समय रहते सच्ची यादो में डूबकर पिता से सारी सम्पत्ति ले लो... और मीठे सुखो को अपने पिता से अपने नाम लिखवा लो...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा यादों की मखमली चादर ओढ़कर प्यारे बाबा की गोद में सुख पाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा विनाश होने से पहले प्यारे बाबा से सारी जागीर अपने नाम लिखवा रही हूँ... और मुस्कराते सुखो की मालकिन बन इतरा रही हूँ... यादो में मैंने बाबा से सब कुछ ले लिया है...”
 
❉   मेरे बेहद के बाबा सारे अविनाशी खजानों की वसीयत मेरे नाम करते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे मेरे लाडले बच्चे... अब और देर न करो... वक्त से पहले वक्त को जीत लो... ईश्वर पिता पर पूरा अधिकार जमा लो... उसे अपनी यादो से सदा का खरीद लो खाली कर दो और सदा के अमीर बन जाओ... सारे गुण और शक्तियो को लेकर विश्व के मालिक बन जाओं...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा अंतर्मन में सदा के लिए अमर ज्योति जगाकर ज्योतिर्बिंदु बाबा से कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से पूरा वर्सा ले रही हूँ... समय पर जाग गई हूँ... और दिल में ईश्वरीय प्रेम की लौ जगा रही हूँ... ईश्वरीय धन को अपना धन बनाकर सदा के सुख अपने आँचल में भरवा रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- पढ़ाई पर पूरा अटेंशन देना है"

➳ _ ➳  जिस भगवान के दर्शन मात्र के लिए दुनिया प्यासी है वो भगवान शिक्षक बन मुझे पढ़ाने के लिए अपना धाम छोड़ कर आते हैं, यह ख्याल मन मे आते ही एक रूहानी नशे से मैं आत्मा भरपूर हो जाती हूँ और खो जाती हूँ उस परम शिक्षक अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में। उनकी मीठी सुखदायी याद मुझे असीम आनन्द से भरपूर करने लगती है। और ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे परम शिक्षक, मीठे शिव बाबा का प्यार उनकी अनंत शक्तियों की किरणों के रूप में परमधाम से सीधा मुझ आत्मा पर बरसने लगा है।

➳ _ ➳  इसी गहन आनन्द की अनुभूति में समाई हुई मैं आत्मा अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर, अपने मोस्ट बिलवेड परम शिक्षक शिव बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हुए घर से चल पड़ती हूँ उस ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर जहां मेरे परम शिक्षक, मेरे मीठे शिव बाबा हर रोज मुझे ऐसी अविनाशी पढ़ाई पढ़ाने आते हैं जिसे पढ़ कर मैं भविष्य विश्व महारानी बनूँगी। यह विचार मन मे आते ही एक दिव्य आलौकिक नशे से मैं भरपूर हो जाती हूँ और अपने परम शिक्षक की याद में तेज तेज़ कदमों से चलते हुए मैं पहुंच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और क्लासरूम में जा कर अपने परमप्रिय मीठे शिव बाबा की याद में बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳  मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं कैसे शिव बाबा परमधाम से नीचे सूक्ष्म वतन में पहुंच कर अपने रथ पर विराजमान हो कर नीचे आ रहे हैं और आ कर सामने संदली पर बैठ गए हैं। बापदादा के आते ही उनके शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे क्लास रूम में फैलने लगें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे क्लासरूम में एक अलौकिक दिव्य रूहानी मस्ती छा गई है। एक दिव्य आलौकिक वायुमण्डल बन गया है। अपने परम शिक्षक बापदादा की उपस्थिति को क्लास रूम में बैठी हुई सभी ब्राह्मण आत्मायें स्पष्ट महसूस कर रही हूं। बापदादा से लाइट माइट पा कर ब्राह्मण स्वरूप में स्थित सभी गॉडली स्टूडेंट्स भी जैसे अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो गए हैं।

➳ _ ➳  मीठे बच्चे कहकर सभी ब्राह्मण बच्चो को सम्बोधित करते हुए शिव बाबा ब्रह्मा मुख से अब मीठे मधुर महावाक्य उच्चारण कर रहें हैं और साथ साथ सभी को अपनी मीठी दृष्टि से निहाल भी कर रहें हैं। सभी गॉडली स्टूडेंट ब्राह्मण बच्चे आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर, बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से स्वयं को भरपूर करने के साथ साथ बाबा के मधुर महावाक्यों को भी बड़े प्रेम से सुन रहे हैं। सब अपलक बाबा को निहार रहे हैं। बाबा सभी बच्चों को पढ़ाई पर विशेष अटेंशन खिंचवाते हुए समझा रहे हैं कि ऊंच पद पाने के लिए पढ़ाई में सदा तत्पर रहना और एक दो को ज्ञान सुना कर उनका भी कल्याण करना।

➳ _ ➳  मैं मन ही मन "जी बाबा" कहते हुए बाबा के इस डायरेक्शन को अमल में लाने का दृढ़ संकल्प करती हुई विचार करती हूं कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं, जिसे स्वयं भगवान से पढ़ने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य प्राप्त हुआ। पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ने और एक दो को ज्ञान सुना कर उनका कल्याण करने का होमवर्क दे कर बाबा अपने धाम लौट जाते हैं। बाबा द्वारा मिले इस होमवर्क को पूरा करने के लिए मैं पूरी तन्मयता से अपनी ईश्वरीय पढ़ाई में लग जाती हूँ। ज्ञान रत्न धारण कर, ज्ञान की शंख ध्वनि द्वारा औरों का कल्याण करने हेतू अब मैं ईश्वरीय विश्वविद्यालय से बाहर आ जाती हूँ।

➳ _ ➳  चलते चलते रास्ते मे मिलने वाली आत्माओं को अब मैं सत्य ज्ञान सुनाती हुई, उन्हें परमात्मा का यथार्थ परिचय दे कर परमात्मा से मिलने का रास्ता बताती हुई अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ और कर्मयोगी बन अपने कर्म में लग जाती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं समय प्रमाण स्वयं को चेक कर चेन्ज करने वाली सदा विजयी श्रेष्ठ आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं मन-बुद्धि को कंट्रोल करने का अभ्यास करके सेकंड में विदेही बनने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. अगर कोई भी बच्चे थोड़ा भी नीचे-ऊपर होते हैंअचल से हलचल में आते हैं तो उसका कारण सिर्फ बातें मुख्य हैं, वही तीन बातें भिन्न-भिन्न समस्या या परिस्थिति बनकर आती हैं। वह तीन बातें क्या हैंअशुभ वा व्यर्थ सोचना। अशुभ वा व्यर्थ बोलना और अशुभ वा व्यर्थ करना। सोचना, बोलना और करना - इसमें टाइम वेस्टबहुत होता है। अभी विकर्म कम होते हैंव्यर्थ ज्यादा होते हैं। व्यर्थ का तूफान हिला देता है और पहले सोच में आता हैफिर बोल में आता हैफिर कर्म में आता है और रिजल्ट में देखा तो किसी का बोल और कर्म में नहीं आता है लेकिन सोचने में बहुत आता है। जो समय बनाने का हैवह सोचने में बीत जाता है। तो बापदादा आज यह तीन बातें सोचना, बोलना और करना - इनकी गिफ्ट सभी से लेने चाहते हैं। तैयार हैं?

 

 _ ➳  2. सभी ने यह दे दिया। वापस नहीं लेना। यह नहीं कहना कि मुख से निकल गया, क्या करेंमुख पर दृढ़ संकल्प का बटन लगा दो। दृढ़ संकल्प का बटन तो है ना?क्योंकि बापदादा को बच्चों से प्यार है ना। तो प्यार की निशानी हैप्यार वाले की मेहनत देख नहीं सकते। बापदादा तो उस समय यही सोचते कि बापदादा साकार में जाकर इनको कुछ बोलेलेकिन अब तो आकारीनिराकारी है। बिल्कुल सभी मेहनत से दूर मुहब्बत के झूले में झूलते रहो।  जब मुहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे तो मेहनत समाप्त हो जायेगी। मेहनत को खत्म करेंखत्म करें नहीं सोचो। सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ जाओ, मेहनत आपेही छूट जायेगी। छोड़ने की कोशिश नहीं करो, बैठने कीझूलने की कोशिश करो।

 

 _ ➳  3. बाप को भी बच्चों पर फेथ है। पता नहीं कैसे कोई-कोई किनारा कर लेते हैं जो बाप को भी पता नहीं पड़ता। छत्रछाया के अन्दर बैठे रहो। ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है झूलनामाया में नहीं।

 

 _ ➳  4. तो माया भी झूला झुलाती है लेकिन माया के झूले में नहीं झूलना।

 

 _ ➳  5. अभी अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलोखुशी के झूले में झूलो। शक्तियों की अनुभूतियों के झूले में झूलो। अभी प्रेम के झूले में झूलोअभी आनंद के झूले में झूलो। अभी ज्ञान के झूले में झूलो। तो झूले से उतरो नहीं।

 

✺   ड्रिल :-  "सदैव मुहब्बत के झूले में झूलते हुए मेहनत से मुक्त होने का अनुभव"

 

 _ ➳  परम सत्ता के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... डूब जाती हूँ उसकी ही यादों में... परम सत्ता... परम पिता मेरे... जिसकी यादों में दिल डूबा ही रहता हैं... जिसको भूलने की दरकार ही नहीं... हर घड़ी... हर पल अभुल बन के छाया है मुझ आत्मा के दिलों दिमाग पर... वह परम पवित्र आत्मा... मुझ आत्मा का पिता... जिस के सानिध्य में मैं आत्मा परम शांति का अनुभव करती हूँ... मनरूपी नाव पे सवार हो कर... समुन्दररूपी व्यर्थ के तूफानों को पार करती मैं आत्मा... पहुँच जाती हूँ परमधाम में... शांति के धाम में...

 

 _ ➳  बिंदु बन कर बिंदु रूपी बाप की छत्रछाया में समां रही हूँ... उसकी अनंत शक्ति रूपी किरणों को अपने में धारण कर मैं बिंदु आत्मा बिंदु बाप की परछाई बन रही हूँ... परमधाम में पिता के साथ चल मैं आत्मा पहुँचती हूँ सूक्ष्मवतन में... जहाँ मेरे ब्रह्माबाबा मेरा इंतजार कर रहे थे... शिवबाबा का ब्रह्माबाबा के भालतख्त पर विराजमान होने का ऐतहासिक नजारा मैं आत्मा साक्षी होकर के देख रही हूँ... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति पुंज का अवतरण ब्रह्मा तन में... प्रत्यक्ष होता हुआ देख रही हूँ... बापदादा का कंबाइंड स्वरुप नजर को निहाल कर रहा है...

 

 _ ➳  बापदादा के संग संग चलती मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... साकार मनुष्य लोक में... भक्ति मार्ग की रस्मों-रिवाज में उलझी हुई आत्माओं को देखा... जप-व्रत-तीर्थ आदि में स्वयं को भूली आत्मा... परमात्मा को भूली आत्मा... ढूंढ रही हैं भगवान को... परम शांति... परम सुख का मार्ग ढूंढती आत्मा... कभी ख़ुशी... कभी गम के झूले में... झूलती रहती हैं... ख़ुशी का पारा कभी ऊपर तो कभी नीचे होता ही रहता हैं... भगवान को पाने की मेहनत में संगमयुग व्यतीत कर रहे हैं... संगमयुग की अनमोल घड़ियों को मुहब्बत के बजाये मेहनत से तोल रहे हैं...

 

 _ ➳  बापदादा के संग संग... मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ... ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में... जहाँ हर ब्राह्मण आत्मा... अपने संगमयुग की ऐतिहासिक पलों को अपने ही यादगार बनाने में लगी हैं... भगवान को स्वयं जान... स्वयं महसूस करती हर ब्राह्मण आत्मा... अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती ही रहती हैं... बापदादा की यादों में अपने मन बुद्धि को सफल करती रहती हैं... सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ... मेहनत से मुक्त आत्मायें... बापदादा के दिलतख्तनशीन बन जाते हैं... मुहब्बत के झूले में झूल मेहनत को समाप्त करती हर एक ब्राह्मण आत्मा... शक्तियों की अनुभूतियों के झूले में... तो कभी प्रेम के झूले में... कभी आनंद के झूले में... कभी ज्ञान के झूले में झूलती ही रहती हैं...

 

 _ ➳  और मैं फ़रिश्ता आत्मा... अपने आप को भी देख रही हूँ मुहब्बत के झूले में झूलता हुआ... मेहनत से मुक्त... बापदादा के दिलतख़्त पर विराजमान होता हुआ... बापदादा अपनी शक्तियों रूपी किरणों को सभी सेंटर पर फैला रहें हैं और मैं आत्मा... सभी ब्राह्मण आत्माओं के साथ उस शक्ति रूपी किरणों की बारिश में भीग रही हूँ... पूर्णतः शक्तियों से भरपूर... सभी ब्राह्मण... संगमयुगी... आत्मायें... हर पल को यथार्थ रीति बापदादा की यादों में प्यार की वर्षा में बहाते जा रहे हैं... सोचना... बोलना... और करना... बाप समान बनते जाते हैं... बापदादा के नूरे रत्न बनते जा रहे हैं... ॐ शांति

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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