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 16 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ जिस आत्मा को जिस प्रकार के क़र्ज़ का मर्ज़ लगा हुआ है, उसे उस प्राप्ति से भरपूर करवाया ?

 

➢➢ सदा प्रवृति में रहते अलोकिक वृत्ति में रहे ?

 

➢➢ सदा अपने को जगत माता समझा ?

 

➢➢ अपने को इस सृष्टि में कोटों में कोई और कोई में भी कोई विशेष आत्मा समझा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे दु:खी आत्माओं के मन में यह आवाज शुरु हुआ है कि अब विनाश हो, वैसे ही आप विश्व-कल्याणकारी आत्माओं के मन में यह संकल्प उत्पन्न हो कि अब जल्दी ही सर्व का कल्याण हो तब ही समाप्ति होगी। विनाशकारियों को कल्याणकारी आत्माओं के संकल्प का इशारा चाहिये इसलिए अपने एवर-रेडी बनने के पॉवरफुल संकल्प से ज्वाला रूप योग द्वारा विनाश ज्वाला को तेज करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ"

 

  अपने को ज्ञान सूर्य के बच्चे मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? सूर्य का कार्य क्या होता है? अन्धकार मिटाना, प्रकाश देना। ऐसे ही आप सभी भी अज्ञान अन्धेरा मिटाने वाले हो ना। कभी स्वयं भी अन्धियारे में तो नहीं आ जाते? स्वयं से अन्धियारा समाप्त हो गया। स्वयं भी आत्मा ज्योति अर्थात प्रकाश स्वरुप है और कार्य भी है प्रकाश फैलाना। अन्धकार में मनुष्य आत्माएं भटकती हैं - यहाँ जाएं, वहाँ जाएं, यह रास्ता ठीक है, यह स्थान ठीक है वा नहीं है, भटकते रहेंगे और रोशनी में सेकेण्ड में ठिकाना दिखाई देगा। तो सभी को रोशनी द्वारा अपना निजी ठिकाना दिखाने के निमित्त हो।

 

  भटकती हुई आत्माओंको ठिकाना देने वाले। अगर कोई बहुत समय भटकता रहे और उसको कोई द्वारा ठिकाना मिल जाये तो ठिकाना दिखाने वाले को कितनी दुआएं देगा! तो आप भी जब आत्माओंको रोशनी द्वारा ठिकाना दिखाते हो, दिखाने का अनुभव कराते हो तो आत्माओं द्वारा कितनी दुआएं निकलती हैं और जिसको दुआएं मिलती हैं वह सदा आगे बढ़ता जाता है। उसकी हर बात में प्रोग्रेस होती है क्योंकि दुआएं लिपÌट का काम करती हैं। सदा सहज आगे बढ़ते जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इसलिए भक्ति मार्ग में भी जब भटकते-भटकते थक जाते हैं तो बाप को कहते हैं - अभी कोई दुआ करो, कृपा करो। तो अनेक आत्माओंकी दुआएं आप आत्माओंको सहत उड़ती कला का अनुभव करायेंगी। एक बाप की दुआएं और आत्मा की भी दुआएं मिलती हैं। माँ-बाप बच्चों को दुआएं करते हैं - उड़ते रहो, बढ़ते रहो।

 

  लेकिन दुआएं लेने वाले पात्र होने चाहिए। बाप सभी को देता है लेकिन लेने वाले पात्र हैं तो अनुभवव करते हैं और पात्र नहीं है तो दाता देता है लेकिन लेने वाला नहीं लेता। पात्र बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि। स्वच्छ मन और स्वच्छ बुद्धि। जिसकी स्वच्छ बुद्धि स्वच्छ मन है वह हर समय बाप की, आत्माओंकी दुआएं स्वत: ही अनुभव करते हैं। लौकिक दुनिया में भी देखो अगर कोई ऐसे समय किसको सहारा देता है, मुश्किल के समय आधार बन जाता है तो मुख से दुआएं निकलती हैं ना - तुम सदा जीते रहो, तुम सदा जीवन में सफल रहो, यह दुआएं जरुर निकलती हैं। तो अपने से पूछो कि बाप की दुआएं, आत्माओंकी दुआएं अनुभव होती है या मेहनत बहुत करनी पड़ती है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अभी वर्णन सब करते योग अर्थात याद, योग अर्थात कनेक्शन। लेकिन कनेक्शन का प्रैक्टिकल रूप, प्रमाण क्या है, प्राप्ति क्या है, उसकी  महीन में जाओ।  मोटे रूप में नहीं, लेकिन रूहानियत की गुह्यता में जाओ। तब फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष होगा। 'प्रत्यक्षता का साधन ही है स्वयं में पहले सर्व अनुभव प्रत्यक्ष हो'

 

✧  जैसे विदेश की सेवा में भी रिजल्ट क्या सुनी? प्रभाव किसका पड़ता? दृष्टि का और रूहानियत की शक्ति का, चाहे भाषा ना समझे लेकिन जो छाप लगती है वह फरिश्ते-पन की, सूरत और नयनों द्वारा रूहानी दृष्टि की।  रिजल्ट में यही देखा ना। तो अन्त में न समय होगा, न इतनी शक्ति होगी।

 

✧  चलते-चलते बोलने की शक्ति भी कम होती जाएगी। लेकिन जो वाणी कर्म करती है उससे कई गुणा अधिक रूहानियत की शक्ति कार्य कर सकती है। जैसे वाणी में आने का अभ्यास हो गया है, वैसे रूहानियत का अभ्यास हो जाएगा तो वाणी में आने का दिल नहीं होगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व-कल्याण का कर्तव्य करने के लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा? जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म करेंगे, जो भी बोल बोलेंगे, जहाँ भी नज़र जायेगी, सर्व का कल्याण करते रहेंगे। यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्वशक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को रास्ता दिखाने का कार्य करें।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- विशेष आत्मा बन फर्ज निभाना"

➳ _ ➳ मै आत्मा तपस्या धाम में बैठी हुई... अपने मीठे बाबा से असीम वरदानों को ले रही हूँ... और अपने सुंदर सजीले भाग्य को निहारते हुए सोच रही हूँ... आज बाबा के हाथो में फूल बनकर खिल गयी हूँ... हर दिल को खुशबु से सुवासित कर, ईश्वरीय दौलत से भर रही हूँ... कभी देह भान ने, मुझे आत्मा को कितना संकीर्ण और तंगदिल बना दिया था... आज भगवान से मिलकर, सागर सा दिल लिए घूम रही हूँ... और सदा खुशियो की टोकरी हाथो में लिए... हर दिल पर दिलेरी से खुशियां बाँट रही हूँ... मीठे बाबा ने मुझे किस कदर दरिया दिल बनाकर मेरा यूँ कायाकल्प किया है... रोम रोम से मीठे बाबा को धन्यवाद कर मै आत्मा... प्यारे बाबा के प्यार में खो जाती हूँ...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली हो कि पूरे विष की नजरो में हो... तो सदा स्वयं में शक्तियो का स्टॉक भरपूर करो... और दाता के बच्चे बनकर सर्व को सहयोग दो... सदा शुभ भावना और समर्थ संकल्पों से भरपूर रहकर, सबके दिलो को सच्ची खुशियो से भर दो... गुणो और शक्तियो से सम्पन्न बनकर सच्चे सेवाधारी बनो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार को पाकर खुशियो में नाचते हुए कहती हूँ :- ”मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने मुझ आत्मा का भाग्य कितना सुंदर बना दिया है... सबके लिए प्रेम शुभ भावना सिखाकर, मुझे कितना सुखदायीं बना दिया है... मै आत्मा हर आत्मा में विशेषता के मोती देखने वाली आपके प्यार में होलिहंस बनकर मुस्करा रही हूँ..."

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा दिलाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... खुशियो के और प्राप्तियों के झूले में सदा झूलने वाले, खुशनसीब हो... इस नशे सदा डूबे रहो... निष्काम सेवाधारी बनकर निरन्तर ईश्वरीय पथ पर बढे चलो... सच्चे सेवा भावना से ओतप्रोत होकर, प्राप्तियों का प्रत्क्षय फल खाने वाले... खुशियो में सदा खिलते रहो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को पाकर, गुणो और शक्तियो से सजकर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपकी फूलो सी गोंद में आकर,मुझ आत्मा का जीवन, गुणो की सुगन्ध से भर गया है... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर... विश्व कल्याण की भावना दिल में लिए... सारे विश्व को आत्मिक मूल्यों से सजा रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता से मिली सर्व प्राप्तियों के नशे में रहकर... सदा सन्तुष्टमणि आत्मा बनो... सदा स्वयं को और वायुमण्डल को सेफ रखने वाले... सच्चे सेवाधारी बनकर... ईश्वर पिता के दिलतख्त पर मुस्कराओ... सदा निमित्त और निर्माण बनकर, डबल कमाई से मालामाल बनो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की ईश्वरीय दौलत से अमीर बनते हुए कहती हूँ :- "प्यारे बाबा मै आत्मा देह के भान में कितनी तंगदिल थी... और आज आपने आज अपनी बाँहों में लेकर... मुझे कितने विशाल ह्रदय से सजा दिया है... मै आत्मा सबके जीवन को खुशियो की बहारो से सजा रही हूँ... ईश्वरीय गुणो को पूरे विश्व पर छलका रही हूँ..." मीठे बाबा से मीठी रुह रिहान कर... मै आत्मा कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- प्रवृति में रहते अलौकिक वृत्ति का अनुभव"

➳ _ ➳ परमधाम में मैं आत्मा पतित पावन, पवित्रता के सागर अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा से पवित्रता की शक्तिशाली किरणे लेकर स्वयं को पावन बना रही हूं। बाबा से आ रही पवित्रता की श्वेत किरणों का ज्वालामुखी स्वरूप मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी 63 जन्मो के विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रहा है। विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा धीरे धीरे अपने उसी सम्पूर्ण निर्विकारी सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूं जिसे देहभान में आ कर, विकारों में लिप्त हो कर मैंने गंवा दिया था।

➳ _ ➳ परमधाम में बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाकर, योग की अग्नि में तपकर मेरा स्वरूप सच्चे सोने के समान बन गया है। सोने के समान उज्ज्वल बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ रही हूं और प्रवेश करती हूं सफेद प्रकाश की एक ऐसी दुनिया में जहां शिव बाबा अपने नन्दी अर्थात अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान हो कर हम बच्चों से अव्यक्त मिलन मनाते हैं। इस स्थान पर पहुंच कर अपने लाइट के सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप को धारण कर मैं पहुंच जाती हूँ बापदादा के सामने। मैं देख रही हूं ब्रह्माबाबा की भृकुटि में शिव बाबा को चमकते हुए। बाबा की भृकुटि से पवित्रता का अनन्त प्रकाश निकल रहा है जिसकी किरणे पूरे सूक्ष्म लोक में फैल रही हैं। बापदादा से आ रही पवित्रता की शक्तिशाली किरणें मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे पावन बना रही हैं।

➳ _ ➳ अब बाबा मेरे समीप आ कर अपने वरदानी हाथ से मेरे मस्तक को छूते हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बहुत तेज करंट मेरे अंदर प्रवाहित होने लगा है जिसने मेरे अंदर की कट को पूरी तरह जला कर भस्म करके मुझे डबल लाइट बना दिया है। मैं फ़रिशता जैसे पवित्रता का अवतार बन गया हूँ। अब बाबा अपना हाथ ऊपर उठाते हैं औऱ देखते ही देखते एक कमल का पुष्प बाबा के हाथ मे आ जाता है जो धीरे धीरे बढ़ने लगता है। बाबा उस कमल पुष्प को मेरे सामने रख देते हैं और मुझे उस कमल आसन पर बैठने का इशारा करते हैं। कमल आसन पर विराजमान हो कर, बापदादा से विजय का तिलक ले कर अब मैं फ़रिशता ईश्वरीय सेवा अर्थ नीचे पतित दुनिया मे लौट आता हूँ।

➳ _ ➳ ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर स्वयं को सदा कमल आसन पर विराजमान अनुभव करने से मुझे अपने मस्तक पर निरन्तर सफ़ेद मणि के समान चमकता हुआ पवित्रता का प्रकाश सदा अनुभव होता है जिससे निरन्तर पवित्रता के शक्तिशाली प्रकम्पन निकल कर चारों ओर फैलते रहते हैं। मेरे चारों ओर पवित्रता का एक ऐसा शक्तिशाली औरा बन चुका है जो मुझे हर प्रकार की अपवित्रता से बचा कर रखता है और गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे कमल पुष्प समान पवित्र जीवन जीने का बल देता है।

➳ _ ➳ घर गृहस्थ में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू अब मैं चारों और फैला रही हूं। लौकिक सम्बन्धों को अलौकिक बना कर, सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास मुझे प्रवृति में रहते हुए भी पर - वृति का अनुभव करवा रहा है। अपने लौकिक सम्बन्धियो को देख कर मैं यही अनुभव करती हूं कि ये सब भी शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान हैं। ये सब भी शिव बाबा के बच्चे और मेरे भाई हैं। संसार के सभी मनुष्य मात्र मेरे भाई बहन है। वे सब भी पवित्र आत्मायें हैं। इन्ही शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो के साथ, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्रता का श्रृंगार किये अब मैं सबको पवित्रता की राह पर चलने का रास्ता बता रही हूं।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सम्पन्नता द्वारा सन्तुष्टता का अनुभव करने वाली सम्पत्तिवान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं ज्ञान नेत्र से तीनों कालो और तीनों लोकों को जानने वाला मास्टर नॉलेजफुल हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ कुमार सदा अपने को बाप के साथ समझते हो? बाप और मैं सदा साथ-साथ हैं, ऐसे सदा के साथी बने हो? वैसे भी जीवन में सदा कोई न कोई साथी बनाते हैं। तो आपके जीवन का साथी कौन? (बाप) ऐसा सच्चा साथी कभी भी मिल नहीं सकता। कितना भी प्यारा साथी हो लेकिन देहधारी साथी सदा का साथ नहीं निभा सकते और यह रूहानी सच्चा साथी सदा साथ निभाने वाला है। तो कुमार अकेले हो या कम्बाइन्ड हो? (कम्बाइन्ड) फिर और किसको साथी बनाने का संकल्प तो नहीं आता है? कभी कोई मुश्किलात आये, बीमारी आये, खाना बनाने की मुश्किल हो तो साथी बनाने का संकल्प आयेगा या नहीं? कभी भी ऐसा संकल्प आये तो इसे ‘व्यर्थ संकल्प' समझ सदा के लिए सेकण्ड में समाप्त कर लेना। क्योंकि जिसे आज साथी समझकर साथी बनायेंगे कल उसका क्या भरोसा! इसलिए विनाशी साथी बनाने से फायदा ही क्या! तो सदा कम्बाइन्ड समझने से और संकल्प समाप्त हो जायेंगे क्योंकि सर्वशक्तिवान साथी है। जैसे सूर्य के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता वैसे सर्वशक्तिवान के आगे माया ठहर नहीं सकती। तो सब मायाजीत हो जायेंगे।

✺ "ड्रिल :- किसी भी मुश्किल में बीमारी में बाप को अपना साथी बना कर रखना"

➳ _ ➳ सुंदर से बगीचे में फूलों की महक में ओस की बूंदों से सजे एक बहुत ही प्यारे फूल पर मैं आत्मा तितली बन कर बैठी हूं... कभी इस फूल पर और कभी उस फूल पर मैं तितली उड़ती हुई नए-नए रस का आनंद ले रही हूं... मैं इतनी हल्की होकर उड़ रही हूं मानो मैं एक हवा का झोंका हूँ... और मानो जैसे मुझे कोई बंधन नहीं हो, अपने रंग बिरंगे पंखों से मैं इस प्रकृति की शोभा बढ़ा रही हूं... थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि उस बगीचे में एक बहुत ही सुंदर जोड़ा मोर मोरनी का नाच रहा है... और मैं उसे देख कर बहुत आनंदित हो रही हूं... उन्हें देख कर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हो और मानो हर पल एक दूसरे की याद में ही रहते हो...

➳ _ ➳ उनको देखते-देखते मैं तितली नाचती हुई मोरनी के पंखों पर जाकर बैठ जाती हूं... और उनके हृदय की गहराई को जानने का प्रयत्न करती हूं... जैसे ही मैं उनके पास पहुंचती हूं मुझे आभास होता है कि वह मोर मोरनी आपस में बात कर रहे हैं... मोर मोरनी से कहता है... तुम हमेशा किस खुशी में नाचती रहती हो? मेरा मन कई बार उदास हो जाता है परंतु तुम कभी उदास नहीं होती तुम्हारी खुशी का क्या कारण है मोरनी बहुत खुश होती है और मोर को कहती है... जब मेरा केवल देहधारियों से नाता था मैं केवल उनसे जुड़े रिश्ते नाते और बातें और सिर्फ उनको ही याद रखती थी... जब उनसे जुड़ी कोई खुशी की बात याद आती तो मैं खुश होती और जब उनसे जुड़ा कोई दुख मुझे याद आता तो मैं भी उदास और दुखी हो जाती थी...

➳ _ ➳ फिर थोड़ा समय रुकने के बाद मोरनी मोर को कहती है... जैसे ही मुझे ज्ञात हुआ की मुझ आत्मा के पिता परमात्मा जो मुझे हर पल याद करते हैं मैं उन्हें भूली हुई हूँ... जो मुझे सिर्फ खुशी देने के लिए आए हैं... हमेशा नाचते हुए देखने के लिए आए हैं... उनको मैं कभी याद भी नहीं करती तब मुझे सिर्फ दुख की अनुभूति ही हुई... जैसे ही मैंने देह धारियों से अपनी बुद्धि हटाकर हरपल परमपिता परमात्मा को अपना साथी बनाया, अपना दुख दर्द का हिस्सेदार बनाया, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा... अब मुझे सिर्फ परम् पिता से जुड़ी हुई खुशियां और अनुभव ही याद रहते हैं... हर पल उनका साथ महसूस करने के कारण मैं हमेशा खुशी का अनुभव करती हूँ और खुशी में नृत्य करती हूँ...

➳ _ ➳ उनकी बातें सुनकर मैं बहुत आनंदित हो उठती हूं... और मुझे भी ज्ञात होता है कि मैं अभी तक देहधारियों से नाता तोड़ नहीं पाई हूं... बुद्धि से कहीं ना कहीं अभी तक मैं उन में फंसी हुई हूं... मैंने अपने कर्तव्यों को मोह में बदलकर अशांति प्राप्त की है... अब मै और ऐसा नहीं होने दूंगी... मैं सिर्फ परमपिता परमात्मा को अपना साथी बना कर आगे बढूंगी... हर पल उनको अपने साथ अनुभव करूंगी... और मैं यह भी दृढ़ संकल्प करती हूं कि... मैं किसी भी सांसारिक रिश्ते में अपनी बुद्धि नहीं फसाऊंगी... सिर्फ परमात्मा की याद में आगे बढ़ती जाऊंगी... अगर मैं परमात्मा की याद में कोई भी संकल्प करूंगी तो वह संकल्प सिर्फ और सिर्फ पॉजिटिव ही होंगे... कोई भी व्यर्थ संकल्प मेरे दिमाग में नहीं आएगा... परमात्मा को अपना साथी और अपनी छत्रछाया बनाकर हमेशा अपने साथ रखूंगी... हमेशा परमात्मा के साथ कंबाइंड स्थिति का अनुभव करके अपनी शक्तियों को बढ़ाऊंगी और मास्टर सर्वशक्तिमान स्थिति का अनुभव करूंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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