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 24 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ एक बाप के संग से स्वयं को पारसबुधी बनाया ?

 

➢➢ "हम स्वदर्शन चक्रधारी सो नयी दुनिया के मालिक बनते हैं" - सदा इसी ख़ुशी में रहे ?

 

➢➢ निमित कोई भी सेवा करते बेहद की वृत्ति द्वारा वाइब्रेशन फैलाए ?

 

➢➢ ज्ञान के अस्त्र शास्त्रों से स्वयं का श्रृंगार किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  साधना वाले का आधार सदा बाप ही होता है और जहाँ बाप है वहाँ सदा बच्चों की उड़ती कला है। जो साधना द्वारा बाप के साथ हैं, उनके लिए संगमयुग पर सब नया ही नया अनुभव होता है। हर घड़ी में, हर संकल्प में नवीनता क्योंकि हर कदम में उड़ती कला अर्थात् प्राप्ति में प्राप्ति होती रहेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सफलता का सितारा हूँ"

 

  अपने आपको सफलता के सितारे हैं - ऐसे अनुभव करते हो? जहाँ सर्वशक्तियां हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है। कोई भी कार्य करते हो, चाहे शरीर निर्वाह अर्थ, चाहे ईश्वरीय सेवा अर्थ। कार्य में कार्य करने के पहले यह निश्चय रखो। निश्चय रखना अच्छी बात है लेकिन प्रैक्टिकल अनुभवी आत्मा बन 'निश्चय और नशे में रहो।' सर्व शक्तियां इस ब्राह्मण जीवन में सफलता के सहज साधन हैं। सर्व शक्तियों के मालिक हो इसलिए किसी भी शक्ति को जिस समय आर्डर करो, उस समय हाजिर हो।

 

  जैसे कोई सेवाधारी होते हैं, सेवाधारी का जिस समय आर्डर करते हैं तो सेवा के लिए तैयार होता है ऐसे सर्व शक्तियां आपके आर्डर में हो। जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट होंगे उतना सर्वशक्तियां सदा आर्डर में रहेंगी। थोड़ा भी स्मृति की सीट से नीचे आते हैं तो शक्तियां आर्डर नहीं मानेंगी। सर्वेन्ट भी होते है तो कोई ओबीडियेन्ट होते हैं, कोई थोड़ा नीचे-ऊपर करने वाले होते हैं। तो आपके आगे सर्वशक्तियां कैसे हैं? ओबिडियेन्ट हैं या थोड़े देर के बाद पहुँचती है।

 

  जैसे इन स्थूल कर्मेन्द्रियों को, जिस समय, जैसा आर्डर करते हो, उस समय वो आर्डर से चलती है? ऐसे ही ये सूक्ष्म शक्तियां भी आपके आर्डर पर चलने वाली हो। चेक करो कि सारे दिन में सर्वशक्तियां आर्डर में रहीं? क्योंकि जब ये सर्वशक्तियां अभी से आपके आर्डर पर होंगी तब ही अन्त में भी आप सफलता को प्राप्त कर सकेगे। इसके लिए बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। तो इस नये वर्ष में आर्डर पर चलाने का विशेष अभ्यास करना। क्योंकि विश्व का राज्य प्राप्त करना है ना। 'विश्व राज्य अधिकारी बनने के पहले स्वराज्य अधिकारी बनो।'

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  कर्तव्य करते हुए भी कि मैं फरिश्ता निमित्त इस कार्य अर्थ पृथ्वी पर पाँव रख रहा हूँ, लेकिन मैं हूँ अव्यक्त देश का वासी, अब इस स्मृति को ज्यादा बढाओ। मैं इस कार्य अर्थ अवतरित हुई हूँ अर्थात जैसे कि मैं इस कार्य - अर्थ पृथ्वी पर वतन से आई हूँ, कारोबार पूरी हुई, फिर वापस अपने वतन में।

 

✧  जैसे कि बाप आते हैं, तो बाप को स्मृति है ना कि हम वतन से आये हैं, कर्तव्य के निमित्त और फिर हमको वापिस जाना है। ऐसे ही आप सबकी भी यही स्मृति बढनी चाहिए कि मैं अवतार हूँ अर्थात मैं अवतरित हुई हूँ, अभी मैं ब्राह्मण हूँ और फिर मैं देवता बनूँगी - यह भी वास्तव में मोटा रूप है। यह स्टेज भी साकारी है।

     

✧  अभी आप लोगों की स्टेज आकारी चाहिए, क्योंकि आकारी से निराकारी सहज बनेंगे। जैसे बाप भी साकार से आकारी बना, आकारी से निराकारी फिर साकारी बनेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ पहला पाठ आत्मिक स्मृति का पक्का करो। आत्मा इस शरीर द्वारा किसको देखेगी? आत्मा-आत्मा को देखेगी न कि शरीर को, आत्मा कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कर रही है। तो अन्य आत्माओं का भी कर्म देखते हुए यह स्मृति रहेगी कि यह भी आत्मा कर्म कर रही है। ऐसे अलौकिक दृष्टि – जिसको देखो आत्मा रूप में देखो। इस अभ्यास की कमी होने के कारण कि पाठ पक्का नहीं किया। लेकिन औरों को पाठ पढ़ाने लग गए। इस कारण स्वयं प्रति अटेंशन कम रहता, दूसरों के प्रति अटेंशन ज्यादा रहता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- सूर्यवंशी घराने में ऊंच पद पाने के लिए धारणा करना"

 

_ ➳  मैं आत्मा स्वयं को हिस्ट्री हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं और साकार बाबा की मधुर वाणी को स्मरण कर रही हूं... शिव बाबा साकार बाबा द्वारा कैसे हम बच्चों को पालना देते थे, और दे रहे हैं... इन मधुर मधुर यादों में खोई मैं आत्मा पहुंच जाती हूं निर्वाणधाम यहाँ शिव बाबा की अलौकिक शक्ति चारों ओर लाल सुनहरे प्रकाश में बहती जा रही है... मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ उस दिव्य अलौकिक शक्ति को अपने में समाती जा रही हूं... शक्तियों के प्रवाह से मैं आत्मा बहुत हल्का महसूस कर रही हूं... जन्मों जन्मों के विकर्मों को विनाश कर मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र नन्हा फ़रिश्ता बन सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूं...

 

  बापदादा मुझे देख मुस्कुरा कर बोले:- "आओ मेरे नन्हें फ़रिश्ते... बाप तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं... मेरे फूल बच्चे तुम्हें ईश्वरीय बचपन को ना भूल, फुल पास होकर सूर्यवंशी घराने में राज्य लेना है... बाप की मत ही तुम्हें सूर्यवंशी राज्य अधिकारी बनाएगी इसलिए सदैव एक बाप की मत को धारण करो..."

 

_ ➳  बाबा से राज्य भाग्य का वरदान लेती मैं आत्मा अपने मीठे बाबा से कहती हूं:- "मेरे दिलाराम बाबा... आपकी मत से मेरा जीवन सभी दुखों से मुक्त हो गया है... मैं आत्मा दिव्य गुणों से सुसज्जित हो गयी हूं... ऐसा लगता है कि मैं अलौकिक प्रकाश की चमक से जगमगा रही हूं... अपने भाग्य का चिंतन कर मैं कभी कभी विस्मित हो जाती हूँ और दिल से आवाज़ आती है वाह बाबा वाह वाह मेरा भाग्य वाह..."

 

  मुझ नन्हे फ़रिश्ते को अपनी गोद में लेकर बाबा बहुत प्यार से कहते हैं:- "मेरे रूहे गुलाब बच्चे... बाप आये ही हैं तुम्हें विश्व की बादशाही देने, डबल ताजधारी विश्व महाराजन विश्व महारानी बनाने इसलिए अपने ईश्वरीय बचपन को सदैव याद रखो और एक बाप से योग लगायो... योग से ही तुम्हारी आत्मा की खाद निकलेगी और तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया मे मालिक बन जाएंगे..."

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने भाग्य को देख ख़ुशी में भाव विभोर होकर बाबा से कहती हूं:- "मेरे जीवन को ईश्वरीय ज्ञान, प्रेम और पवित्रता से सुसज्जित करने वाले मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी बातों को धारण कर मुझ आत्मा का जीवन निखर गया है... मेरे जादूगर बाबा आपकी जादूगरी ने मुझे पवित्रता की देवी बना दिया है... आप क्या से क्या बनाते हो मन इन बातों का चिंतन करता रहता है और खुशी के झूले में झूलता रहता है... मुझे अपार खुशिओं का खजाना देकर आपने मुझे कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया है..."

 

  अपना वरदानी हाथ मेरे सर पर रखकर बाबा मेरे सर को सहलाते हुए मुझसे बोले:- "मीठे बच्चे... ज्ञानी तू आत्मा बनने के लिए बाप की मत ही सहायक है... एक बात को पक्का करो मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इसी स्मृति से तुम अशरीरी अवस्था में टिक सकते हो... अशरीरी पन का अभ्यास ही अंत मति सो गति का आधार है... बाप के ज्ञान बाण ही तुम्हें अलौकिक एवं आत्मिक स्वरूप प्रदान करेंगे... अपनी ईश्वरीय बचपन की स्मृति में स्थित रहो... सदैव याद रखो तुम ईश्वर की सन्तान हो यही स्मृति तुम्हें फुल पास कराकर सूर्यवंशी घराने में राज्य अधिकारी का पद दिलाएगी... इस विकारी दुनिया से ममत्व मिटाकर एक बाप से बुद्धि योग लगाओ... बाप के गुणों को धारण कर दूसरों को कराने की सेवा करो..."

 

_ ➳  मैं फ़रिश्ता बाबा की मधुर वाणी की धुन में खोई हुई सी बाबा से कहती हूं:- " हाँ, मेरी जीवन नैया को भवसागर से पार लगाने वाले मेरे सतगुरु बाबा... आपकी वाणी ने मेरे जीवन का हर दुख हर लिया है... मेरा जीवन कितने विकारों, दुखों और संकटो से भरा हुआ था आपने आकर विघ्न विनाशक बन इन दुखों से मुझे छुड़ा लिया है... मोहबन्धन से मेरा मन छुड़ा कर अपनी याद में लीन कर दिया है... आप नही मिलते तो नाजाने कितने ही जन्म मैं यूँही इस भवसागर में गोते खाती रहती... मुझे ईश्वरीय प्रेम देने वाले बाबा मेरे आपको कोटि कोटि धन्यवाद... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से स्नेह भरा धन्यवाद कर अपने साकारी तन में लौट आती हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  सदा इसी खुशी में रहना है कि हम स्वदर्शन चक्रधारी सो नई दुनिया के मालिक चक्रवर्ती बनते हैं

 

_ ➳  हम सो, सो हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ का ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई भी मनुष्य आज तक बता नही सका। बड़े - बड़े वेद, ग्रंथ, और शास्त्र लिखने वालो ने तो हम सो, सो हम का अर्थ आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा बता कर, परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह सारी दुनिया को ही अज्ञान अंधकार में डाल दिया। मन ही मन यह चिंतन करती अपने प्यारे प्रभु का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर इस सत्यता का बोध कराया और हम सो, सो हम का यथार्थ अर्थ बताकर हमे हमारे 84 जन्मो के सर्वश्रेष्ठ पार्ट की स्मृति दिलाई।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता का मन ही मन धन्यवाद करके मैं हम सो, सो हम की स्मृति में जैसे ही स्थित होती हूँ, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र स्वत: ही फिरने लगता है और मेरे 84 जन्मो की कहानी भिन्न - भिन्न स्वरूपों में मेरी आँखों के आगे चित्रित होने लगती है। हम सो, सो हम अर्थात ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र, सो फिर से ब्राह्मण बनने के बीच का पूरा चक्र अब अलग - अलग स्वरूपों में बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ।

 

_ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बन बुद्धि में अपने 84 जन्मो का चक्र फिराते हुए, सबसे पहले मैं देख रही हूँ अपना अनादि स्वरूप जो परमधाम में एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में मुझे दिखाई दे रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सच्चे सोने के समान चमकता हुआ मेरा यह सत्य स्वरूप मन को लुभा रहा है। अपने इस स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में और अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

_ ➳  अपने इस अनादि स्वरूप में अपने अंदर निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो कर अब अपने आदि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मन बुद्धि से पहुँच गई हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जहाँ अपरमअपार सुख, शांति और सम्पन्नता है। दुख का यहाँ कोई नाम निशान नही। ऐसी सुखों से भरी अति सुंदर, मन भावन दुनिया में अपने आपको अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं देख रही हूँ जो 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम है।

 

_ ➳  सतोप्रधान प्रकृति के सुन्दर नज़ारो और स्वर्ग के सुखों का अनुभव करके अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ अपने पूज्य स्वरूप को जो पवित्रता की शक्ति से सम्पन्न है। अष्ट भुजाओं के रूप में अष्ट शक्तियों को धारण किये, अपने अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप में मैं मंदिर में विराजमान हूँ। असुरों का सँहार और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली असुर सँहारनी माँ दुर्गा के रूप में अपने भक्तो की मनोकामनाओं को मैं अपने वरदानी हस्तों से पूर्ण कर रही हूँ।

 

_ ➳  अपने परमपवित्र पूज्य स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम सौभागशाली ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। परम पिता परमात्मा की देन अपने, डायमंड तुल्य ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव, स्वयं भगवान द्वारा प्राप्त सर्व सम्बन्धो का सुख, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का सुखदाई अनुभव, आत्मा परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले परमआनन्द की अनुभूति, इन सभी प्राप्तियों का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर होकर अब अपने फ़रिश्ता स्वरूप को देखते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर रही हूँ।

 

_ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, मैं फ़रिश्ता देह और देह की दुनिया से हर रिश्ता तोड़, इस नश्वर दुनिया को छोड़ कर अब फरिश्तो की आकारी दुनिया की ओर जा रहा हूँ। पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, उससे और ऊपर उड़ते हुए मैं फ़रिश्ता अपने अव्यक्त वतन में पहुँच गया हूँ। सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनसे मीठी दृष्टि और वरदान ले रहा हूँ। उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। उनके साथ कम्बाइंड हो कर सारे विश्व को सकाश दे रहा हूँ। ऐसे अपने फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करके, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर कर्म करते, हम सो - सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते मन बुद्धि से अपने सभी स्वरूपों को देखते और उनका भरपूर आनन्द लेते हुए एक अलौकिक रूहानी नशे से अब मैं सदा भरपूर रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं निमित्त कोई भी सेवा करते बेहद की वृत्ति द्वारा वाइब्रेशन फैलाने वाली बेहद सेवाधारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं शिव बाप के साथ कंबाइंड रहकर ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र को श्रृंगार बनाने वाली शिवशक्ति हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ इसमें भी सेवा तो सभी करते ही हो लेकिन सच्चे दिल से, लगन से सेवा करना, सेवाधारी बन करके सेवा करना इसमें भी अन्तर हो जाता है। कोई सच्चे दिल से सेवा करते हैं और कोई दिमाग के आधार पर सेवा करते हैं। अन्तर तो होगा ना! दिमाग तेज है, प्वाइन्टस बहुत हैं, उसके आधार पर सेवा करना और सच्चे दिल से सेवा करना, इसमें रात-दिन का अन्तर है। दिल से सेवा करने वाला दिलाराम का बनायेगा। और दिमाग द्वारा सेवा करने वाला सिर्फ बोलना और बुलवाना सिखायेगा। वह मनन करता, वह वर्णन करता।

✺ "ड्रिल :- दिमाग के आधार पर सेवा न कर सच्चे दिल से सेवा करनें का अनुभव करना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा सवेरे-सवेरे उठकर, मन-बुद्धि से बाबा को साथ लेकर एक सुंदर से बगीचे में सैर करने जाती हूँ... चिड़ियों की चहचाहट, कोयल की मधुर आवाज और ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच मेरा तन मन आनंद से भर जाता है... जैसे-जैसे सूर्य उदय होने लगता है... फूलों की कलियाँ खिलने लगती है... और सारा बगीचा फूलों की खुशबू से महकने लगता है...

➳ _ ➳ ऐसा मनमोहक दृश्य देखकर मेरा अन्तर्मन भी फूल की तरह खिल जाता है... और मैं आत्मा अपने अंदर नयी ऊर्जा भरते हुए अनुभव करती हूँ... तभी अचानक मेरा ध्यान सूर्य की तरफ जाता है... और उसे देखकर मेरे मन में संकल्प आता है कि ये सूर्य बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ एक कर्तव्यनिष्ठ सेवाधारी बनकर इस सृष्टि की सेवा करता है... अगर सूर्य एकदिन भी उदय नहीं हो तो इस सृष्टि पर रहने वाले प्राणी और प्रकृति स्थिर हो जाये...

➳ _ ➳ सूर्य को अपनी अहमियत पता होने पर भी वो अपना कर्तव्य समझकर और दिल से सेवा करता है... यह सोचते हुए मेरा अन्तर्मन बाबा की तरफ रुख करता है... और बाबा को मैं आत्मा अपने सामने इमर्ज करती हूं और बाबा बिना देरी किये मेरे सामने आ जाते हैं... बाबा मेरे अंदर उमड़े हुए सवालों को और विचारों को समझते हुए मुझसे कहते हैं... मेरे मीठे बच्चे तुम्हें भी सूर्य की तरह अथक और निरन्तर दिल से सेवा करनी है....

➳ _ ➳ और बाबा मुझे ये भी समझाते हैं कि दिल और लगन से सेवा करने से तुम इसका भी अहसास नहीं कर सकते की तुमने कितनी और कितने समय वा किसके लिए सेवा की है... और जब दिल से सेवा होती है तो सेवा के साथ मनन भी चलता है... सेवाधारी हमेशा सेवा के आदेश का इन्तजार करता है... और दिल से सेवा करने वाले जब मन चाहे जैसी सेवा करता है... चाहे रात हो या दिन अपने मन से उसी समय सेवा में लग जाता है... दिमाग के आधार पर सेवा करेंगे तो तुम्हें हमेशा सेवा के लिए पॉइंट्स एकत्रित करनें पड़ेंगे... उसके लिए समय भी चाहिए...

➳ _ ➳ और जो लगन में मगन रहकर सेवा करता है... वह अपने दिलाराम शिवबाबा से दिल लगाकर बिना किसी पॉइंट्स के सेवा करेंगे... इतना सुनकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ... बाबा मैं अभी से ही दिल से सेवा करुँगी... क्योंकि जो दिल से सेवा करता है... वो दिलाराम का बनता है... और कहती हूँ कि मैं आत्मा आज से ही वर्णन को त्याग, मनन ही मनन करुँगी... पूरी सच्चाई -सफाई से सेवा करुँगी... क्योंकि "सच्चे दिल पर साहिब राजी" होते है... मैं सूर्य के समान निरन्तर अपनी दिल की सच्ची सेवा से मुरझाये हुए फूल रूपी आत्माओं को खिलते हुए फूल की तरह हँसता हुआ और सुखी बनाउंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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