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 08 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ संतुष्टता के आधार पर मायाजीत स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ स्वयं से, ब्राह्मण परिवार से, अपने संस्कारों से व वायुमंडल से सदा संतुष्ट रहे ?

 

➢➢ संतुष्टता के आधार पर सर्व ब्राह्मण परिवार के सहयोगी बनकर रहे ?

 

➢➢ बीज को छोड़ सिर्फ शाखाओं को काटने की मेहनत तो नहीं की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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〰✧  जैसे एटम बम एक स्थान पर छोड़ने से चारों ओर उसके अंश फैल जाते हैं - वह एटम बम है और यह आत्मिक बम है। इसका प्रभाव अनेक आत्माओं को आकर्षित करेगा और सहज ही प्रजा की वृद्धि हो जायेगी इसलिए संगठित रुप में आत्मिक स्वरूप के अभ्यास को बढ़ाओ, स्मृति स्वरुप बनो तो वायुमण्डल पॉवरफुल हो जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"

 

✧  जो कुछ भी ड्रामा में होता है उसमें कल्याण ही भरा हुआ है, अगर यह स्मृति में सदा रहे तो कमाई जमा होती रहेगी। समझदार बच्चे यही सोचेंगे कि जो कुछ होता है वह कल्याणकारी है। क्यों, क्या का क्वेशचन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। अगर स्मृति रहे कि यह संगमयुग कल्याणकारी युग है, बाप भी कल्याणकारी है तो श्रेष्ठ स्टेज बनती जायेगी। चाहे बाहर की रीति से नुकसान भी दिखाई दे लेकिन उस नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा निश्चय हो। जब बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता।

 

✧  अभी पेपर बहुत आयेंगे, उसमें क्या, क्यों का क्वेशचन न उठे। कुछ भी होता है होने दो। बाप हमारा, हम बाप के तो कोई कुछ नहीं सकता, इसको कहा जाता है 'निश्चय बुद्धि'। बात बदल जाए लेकिन आप न बदलो - यह है निश्चय। कभी भी माया से परेशान तो नहीं होते हो? कभी वातावरण से, कभी घर वालों से, कभी ब्रह्मणों से परेशान होते हो? अगर अपने शान से परे होते तो परेशान होते हो। 'शान की सीट पर रहो'।

 

✧  साक्षीपन की सीट शान की सीट है इससे परे न हो तो परेशानी खत्म हो जायेगी। प्रतिज्ञा करो कि 'कभी भी कोई बात में न परेशान होंगे, न करेंगे'। जब नालेजफुल बाप के बच्चे बन गये, त्रिकालदर्शी बन गये, तो परेशान कैसे हो सकते? संकल्प में भी परेशानी न हो। 'क्यों' शब्द को समाप्त करो। 'क्यों' शब्द के पीछे बड़ी क्यू है।  

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  नाम सेवा लेकिन होता है स्वार्थी अपने को आगे बढाना है लेकिन बढ़ाते हुए बैलेन्स को नहीं भूलना है क्योंकि सेवा में ही स्वभाव, संबंध का विस्तार होता है और माया चांस भी लेती है। थोडा-सा बैलेन्स कम हुआ और माया नया रूप धारण कर लेती है, पुराने रूप में नहीं आयेगी।

 

✧  नये-नये रूप में, नई-नई परिस्थिति के रूप में, सम्पर्क के रूप में आती है। तो अलग में सेवा को छोडकर अगर बापदादा बिठा दे, एक मास बिठाये, 15 दिन बिठाये तो कर्मातीत हो जायेंगे? एक मास दें, बस कुछ नहीं करो, बैठे रहो, तपस्या करो, खाना भी एक बार बनाओ बसा फिर कर्मातीत बन जायेंगे? नहीं बनेंगे?

 

✧  अगर बैलेन्स का अभ्यास नहीं है तो कितना भी एक मास क्या, दो मास भी बैठ जाओ लेकिन मन नहीं बैठेगा, तन बैठ जायेगा। और बिठाना है मन को, न कि तन को। तन के साथ मन को भी बिठाना है, बैठ जाए बस, बाप और मैं, दूसरा न कोई। तो एक मास ऐसी तपस्या कर सकते हो या सेवा याद आयेगी?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  ‘वाह रे मैं!' का नशा याद है? वह दिन, वह झलक और फलक स्मृति आती है? वह नशे के दिन अलौकिक थे। ऐसे नशे के दिन स्मृति में आते ही नशा चढ़ जाता है- इतना नशा, इतनी खुशी जो स्थूल पाँव भी चलते-फिरते नैचुरल डांस करते हैं- प्रोग्राम से डांस नहीं। मन में भी नाच और तन भी नैचुरल नाचता रहे। यह नैचुरल डांस तो निरन्तर हो सकता है? आँखों का देखना, हाथों का हिलना और पाँव का चलना सब खुशी में नैचुरल डांस करते हैं। उनको फ़रिश्तों का डांस कहते हैं- ऐसे नैचुरल डांस चलता रहता है? जैसे कहते हैं कि फ़रिश्तों के पाँव धरती पर नहीं टिकते। ऐसे फ़रिश्ते बनने वाली आत्मायें भी इस देह अर्थात् धरती- जैसे वह धरती मिट्टी है वैसे यह देह भी मिट्टी है ना? तो फ़रिश्तों के पाँव धरती पर नहीं रहते अर्थात् फ़रिश्ते बनने वाली आत्माओं के पाँव अर्थात् बुद्धि इस देह रूपी धरती पर नहीं रह सकती। यही निशानी है फ़रिश्तेपन की। जितना फ़रिश्तेपन की स्थिति के समीप जाते रहते, उतना देह रूपी धरती से पाँव स्वत: ही ऊपर होंगे। अगर ऊपर नहीं हैं, धरती पर रहते हैं तो समझो बोझ है। बोझ वाली वस्तु ऊपर नहीं रह सकती। हल्कापन न है, बोझ है तो इस देह रूपी धरती पर बार-बार पाँव आ जायेंगे, फ़रिश्ता अर्थात् हल्का नहीं बनेंगे। फ़रिश्तों के पाँव धरती से ऊँचे स्वत: ही रहते हैं, करते नहीं हैं। जो हल्का होता है उनके लिए कहते हैं कि यह तो जैसे हवा में उड़ता रहता है। चलता नहीं है, उड़ता है। ऐसे ही फ़रिश्ते भी ऊँची स्थिति में उड़ते हैं। ऐसे नैचुरल फ़रिश्तों का डांस देखने और करने में भी मजा आता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- सदा संतुष्ट रहना”

➳ _ ➳  हृदय में बाबा की मीठी यादें संजोए हुए... मैं आत्मा मधुबन के प्रांगण में हूँ... दिल में एक दिलाराम बाबा की याद है... नैनों में दिला राम की मूरत समाई हुई है... मधुबन के प्रांगण में बिल्कुल शांति है... कम्पलीट सायलेंस है... मैं आत्मा सहज ही हिस्ट्री होल की ओर बढ़ती जा रही हूँ... यहां आते ही मैं देखती हूँ... मेरे मीठे बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में विराजमान है... पूरा हॉल बाबा की शक्तिशाली किरणों से चार्ज हो गया है... मुझे देखते ही सतगुरु बाबा कहते हैं... आओ मेरे लाडले बच्चे... मैं आत्मा बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से मुझ आत्मा पर... अनवरत रूप से शक्तियां बरसती जा रही हैं...

❉  अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से मेरे जीवन को संवारते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:- "मीठे फरमानबरदार बच्चे... अब संपूर्ण स्थिति को प्राप्त करना ही है... संपन्न बने बिना आत्मा कर्मातीत बनकर बाप के साथ नहीं जा सकेगी... तुम्हें शिव की बारात में पीछे पीछे नहीं आना... शिव के साथ साथ चलना है तो अब अपनी संपन्न स्थिति का आह्वान करो... बाप समान बनने वाले बच्चे ही बाप के साथ जाएंगे..."

➳ _ ➳  बाबा की शिक्षाओं को जीवन में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्यारे सतगुरु बाबा... मैं आत्मा हर कदम में फॉलो फादर कर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा ने संपूर्ण बनने का जो पुरुषार्थ किया... मैं आत्मा भी बाबा के नक्शे कदम पर चल रही हूँ... ब्रह्मा बाबा को फॉलो करते करते... मैं बाप समान संपन्न और संपूर्ण बनने की यात्रा पर... तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही हूँ..."

❉  योग ज्वाला में मुझ आत्मा की अलाय को जला सच्चा सोना बनाने वाले पारसनाथ बाबा कहते हैं:- "मेरे प्यारे फूल बच्चे... क्या अपने पुरुषार्थ की गति से संतुष्ट हो... क्या संबंध संपर्क में आने वाली आत्माओं से... संतुष्टता का सर्टिफिकेट मिल गया है... जो भी सेवा करते हो क्या उस से आप संतुष्ट हो... यथार्थ विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है... संपन्न बनने वाली आत्मा स्वयं से संतुष्ट होगी... और सर्व आत्माएं भी उससे संतुष्ट होंगी... ऐसी अपनी सूक्ष्म में चेकिंग करो..."

➳ _ ➳  पारसनाथ बाबा द्वारा दी गई एक एक कसौटी पर स्वयं को कसकर खरा सोना बनती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मीठे प्यारे बाबा... आप करावनहार हो... हम बच्चे तो निमित्त मात्र कर्म कर रहे हैं... यज्ञ सेवाओं से मैं आत्मा असीम खुशी... अतींद्रिय सुख को प्राप्त करती हुई... सर्व आत्माओं को आप का संदेश दे रही हूँ... ज्ञानगंगा बनकर आप का ज्ञान सबको सुनाती हुई... मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ... व हर्षित स्थिति का अनुभव कर रही हूँ..."

❉  अपने हाथ में मेरा हाथ थामे मुझे सतयुगी  दुनिया की सैर कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे बच्चे... राजधानी में ब्रह्मा बाप के साथ साथ आप बच्चों को आना है... बात तो न्यारा और प्यारा ही होगा... अपने राज्य की वैराइटी प्रकार की आत्माओं को... राज्य अधिकारी, रॉयल फैमिली की अधिकारी, रॉयल प्रजा की अधिकारी, साधारण प्रजा की अधिकारी... क्या सर्व प्रकार की... वैराइटी आत्माओं को तैयार कर लिया है... ऐसा करने के लिए संपूर्ण पवित्र व निरंतर योगी बनो..."

➳ _ ➳  सतयुग में कृष्ण के साथ रास रचाती, झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा निरंतर आपकी यादों में समाए हुए हूँ... निरंतर योगयुक्त स्थिति में हूँ... करावनहार बाप की स्मृति में... ट्रस्टी बनकर सेवा किए जा रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ... निमित्त बन कर की गई सेवा से सब आत्माएं संतुष्ट हैं... और मैं आत्मा स्वयं भी हलकी व खुश हूँ... निरंतर उड़ती कला में जाते हुए... मैं संपन्न और संपूर्ण मूर्त बनती जा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  संतुष्टता के आधार पर मायजीत स्थिति का अनुभव"

➳ _ ➳  संतुष्टमणि बन सदा संतुष्ट रहने और सर्व को संतुष्ट करने का जो लक्ष्य बाबा ने अपने हर एक ब्राह्मण बच्चे को दिया है उस लक्ष्य को पाने का आधार है स्वयं को सदा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करना। क्योकि सर्व प्राप्तियों की अनुभूति ही जीवन मे सन्तुष्टता ला सकती है। इसलिए अपने इस ब्राह्मण जीवन में अब मुझे सदा निर्विघ्न, सदा विघ्न विनाशक और सदा सन्तुष्ट रह सर्व को संतुष्ट करने का सर्टिफिकेट हर समय लेते रहना है ताकि टेंशन की शिकार, विश्व की सर्व असन्तुष्ट आत्माओं को सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर उनकी टेंशन और परेशानियों को मैं समाप्त करके बापदादा से सन्तुष्टमणि आत्मा का सर्टिफिकेट प्राप्त कर बाबा का तख्तनशीन बन सकूँ।

➳ _ ➳  इसी प्रतिज्ञा के साथ स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से भरपूर करने के लिए मैं श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होकर बैठ जाती हूँ और अपने मन बुद्धि को स्थिर करती हूँ परमात्म याद में। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने निराकार बिंदु बाप पर एकाग्र करते ही, परमात्म प्राप्तियों की अनुभूति मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है। परमात्म प्यार और परमात्म प्राप्तियों के अखुट खजाने से स्वयं को भरपूर करने के लिए मैं आत्मा विदेही बन देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर अब अपने विदेही पिता के पास जाने के लिए चल पड़ती हूँ एक सुखमयी, आनन्दमयी यात्रा पर।

➳ _ ➳  अंतर्मुखता की इस यात्रा पर एक - एक कदम बढ़ाती, परमात्म प्यार के सुखद पलों का मधुर एहसास करती मैं इस खूबसूरत यात्रा पर चलती जा रही हूँ। आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर यह यात्रा मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में ले आती है। अपने शान्ति धाम घर मे शांति के सागर अपने निराकार बिंदु बाप के सामने मैं बिंदु आत्मा आकर बैठ जाती हूँ और स्वयं को परमात्म प्यार और परमात्म शक्तियों से भरपूर करने लगती हूँ। प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा से अपने अंदर असीम प्यार और शक्तियाँ भरकर तृप्त होकर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर ईश्वरीय वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाने के लिए सूक्ष्म वतन में पहुँचती हूँ।

➳ _ ➳  सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सम्मुख बैठ उनके वरदानी हस्तों से वरदान ले कर अब मैं फ़रिश्ता स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। अपनी सर्वशक्तियों से और अपनी लाइट माइट मुझे भरपूर करने के साथ - साथ बाबा अपनी पावन दृष्टि से मुझे निहारते हुए मेरे अंदर असीम बल और शक्ति का संचार कर रहे हैं। स्वयं को सर्व प्राप्तियों के अखुट खजाने से भरपूर करके, सर्वप्राप्ति सपन्न स्वरूप बन कर अब मैं सन्तुष्टमणि के श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर बैठ, सर्व को संतुष्ट करने
के लिये सूक्ष्म वतन से नीचे साकार लोक में आ जाता हूँ।

➳ _ ➳  बापदादा का आह्वान कर, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं सारे विश्व में चक्कर लगा रहा हूँ और चारों ओर रोती बिलखती दुखी, अशांत, निराश और हताश आत्माओं को देख रहा हूँ। इन सभी दुखी अशांत आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए अब मैं बाबा से सर्वशक्तियाँ लेकर इन आत्माओं तक  पहुंचा रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणें मुझ फ़रिश्ते में समा कर, रंग बिरंगी फ़ुहारों के रूप में मुझ से निकल कर उन सभी आत्माओं के ऊपर बरस रही हैं। पवित्रता, सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, और शक्ति से सम्पन्न ये किरणे सभी आत्माओं छू कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही है। सबके मुरझाये हुए चेहरे खिल उठे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे परमात्म पालना का अनुभव करके वो सब तृप्त हो गई है।

➳ _ ➳  टेंशन भरी जिंदगी जीती, विश्व की सभी असन्तुष्ट आत्माओं को परमात्म प्यार के सुख की अनुभूति द्वारा उन्हें सन्तुष्टता का अनुभव करवा कर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही हूँ। स्वयं को परमात्म प्राप्तियों से सदा भरपूर रखते हुए, सन्तुष्टमणि बन, स्व से, सेवा से और सम्बन्ध में संतुष्टता का अनुभव करते हुए, अब मैं अपने संपर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्म प्यार और ईश्वरीय अलौकिक स्नेह दे कर सबके जीवन को सन्तुष्टता से भरपूर कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं साधनों को निर्लेप वा न्यारी बन कार्य में लगाने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं न्यारी आत्मा हूँ।
✺   मैं बेहद की वैरागी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं दिल की सच्चाई-सफाई रखने वाली आत्मा हूँ  ।
✺   मैं आत्मा सदैव साहेब को राज़ी रखती हूँ  ।
✺   मैं सच्ची-साफदिल आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़ संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहिनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जाएं। दिल से रहम इमर्ज हो। क्या जब साइन्स की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्तिरहमदिल भावना द्वारा वा संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती! जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैंआपके ही सभी बिरादरी हैंशाखायें हैं, परिवार हैआप ही भक्तों के ईष्ट देव हो। यह नशा है कि हम ही ईष्ट देव हैंतो भक्त चिल्ला रहे हैंआप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे ईष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे होउन्हों को रेसपान्ड नहीं करते होतो बापदादा कहते हैं हे भक्तों के ईष्ट देव अभी पुकार सुनोरेसपान्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं। क्या रेसपान्ड देंगेपरिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ। आपका रेसपान्ड उन्हों को नहीं मिलता तो वह भी अलबेले हो जाते हैं। चिल्लाते हैं फिर चुप हो जाते हैं।   

 

✺   ड्रिल :-  "साइलेन्स की शक्ति और रहमदिल भावना से हलचल को परिवर्तन करना"

 

 _ ➳  अमृतवेले बाबा की यादों में खोई मुझ आत्मा को ये सुहानी वेला ऐसे लगती है जैसे प्यासा अपनी प्यास बुझा रहा है... अमृत की बूंदें ऊपर से टप टप कर मुझ आत्मा को तृप्त कर रही हैं... ये रूहानी अमृत और इसका नशा वाह वाह क्या कहने! मैं मन ही मन बाबा से कहती हूँ कि क्यों अब तक दूर रखा मुझे इस अमृत से... 

 

 _ ➳  बाबा की याद में डूबी मैं आत्मा वापिस आती हूं साकारी लोक में, तभी एक दृश्य सामने आता है "भक्त आत्माएँ मंदिर जा रही हैं सुख चैन की तलाश में उनको देख तरस आता है, कि ये कहाँ जड़ चित्रों में सुख शांति ढूंढ रही हैं ये मेरे भाई बहन इनके चित्त को कैसे आराम मिले... मैंने जो अमृत पान किया है, वो ये भी अगर चख लें तो इनके चित्त को भी आराम मिल जाये... बाबा ने मुझे जो दिया है, वो मुझे अपने इन भाई बहनों को भी देना है...

 

 _ ➳  इसी भावना के साथ बाबा को याद कर एकाग्रचित्त हो मैं आत्मा समा जाती हूं जड़ मूर्ति में... देखती हूँ उन भक्त आत्माओं को जो अपने दुःख में दुखी इन मूर्तियों के आगे माथा टिका रहे हैं कि कैसे भी दो पल का सुख चैन मिल जाये...

 

 _ ➳  मैं ईष्टदेवी हूँ... इस स्वमान में सैट होकर रहमदिल बन मैं इन आत्माओं को सुख शान्ति की किरणें दे रही हूं... बाबा से निरंतर किरणें मुझ पर आ रही हैं... और मुझ से होती हुई उन भक्त आत्माओं तक पहुंच रही हैं... सभी आत्माऐं प्रसन्न हो रही हैं... उनके अंदर की हलचल समाप्त हो गई है, और उनके मन शांत हो गए हैं... वो सब अपने ईष्टदेवी की जय-जय कार कर रहे हैं... इन आत्माओं का अलबेलापन हलचल सब समाप्त हो गई है... वातावरण पूरी तरह से परिवर्तन हो गया है... बाबा के प्यार की किरणें चारों और फैली हुईं हैं जो सबके दिलों को छू रही हैं...

 

 _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मुरझाए पड़े वृक्ष को पानी मिल गया है... पत्ता-पत्ता... शाखा-शाखा... हर टहनी लहलहाने... खिलखिलाने लग गई है वाह वाह रे मेरे बाबा क्या अद्धभुत तेरा कमाल "करते हो तुम बाबा मेरा नाम हो रहा है"

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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