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 28 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ मास्टर विधाता का पार्ट बजाया ?

 

➢➢ इच्छा मात्रम अविध्या स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ मेरे को तेरे में परिवर्तित किया ?

 

➢➢ लेवता न बन देने वाले देवता का पार्ट बजाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  आप क्षमा के सागर के बच्चे हो तो परवश आत्माओं को क्षमा दे दो। अपनी शुभ वृत्ति से ऐसा वायुमण्डल बनाओ जो कोई भी आपके सामने आये वह कुछ न कुछ स्नेह ले, सहयोग ले, क्षमा का अनुभव करे, हिम्मत का उमंग-उत्साह का अनुभव करे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"

 

  सभी अपने को डबल लाइट अर्थात् फरिश्ता समझते हो? फरिश्ते की विशेष निशानी है-फरिश्ता अर्थात् न्यारा और बाप का प्यारा, पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं। देह से आत्मा का रिश्ता तो है, लेकिन लगाव का संबंध नहीं। एक है 'संबंध' और दूसरा है 'बंधन'। एक है कर्म-बन्धन और दूसरा है कर्म-सम्बन्ध। तो संबंध तो रहना ही है। जब तक कर्मेन्द्रियां हैं तो कर्म का संबंध तो रहेगा लेकिन बंधन नहीं हो। बंधन की निशानी है-जिसके बंधन में जो रहता है उसके वश रहता है। जो संबंध में रहता है वह स्वतन्त्र रहता है, वश नहीं होता। कर्मेन्द्रियों से कर्म के संबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना।

 

  फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बंधन से मुक्त। ऐसे नहीं कि आज आंख कहे कि यह करना ही है, देखना ही है-तो वश होकर के देख लें। जैसे कोई जेल में बंधन में होता है, तो जेलर जैसे चाहे उसको बिठायेगा, चलायेगा, खिलायेगा। तो बंधन में होगा ना! वो चाहे मैं जेल से चला जाऊं, तो जा सकता है? बंधन है ना। ऐसे पुराने शरीर का बंधन न हो, सिर्फ सेवा प्रति संबंध हो। ऐसी अवस्था है? या कभी बंधन, कभी संबंध? बंधन बार-बार नीचे ले आयेगा। तो फरिश्ता अर्थात् बंधनमुक्त। ऐसे नहीं-कोशिश करेंगे। 'कोशिश' शब्द ही सिद्ध करता है कि पुरानी दुनिया की कशिश है। 'कोशिश' शब्द नहीं। करना ही है, होना ही है। 'है'-'है' उड़ा देगा, 'गे'-'गे' नीचे ले आयेगा। तो 'कोशिश' शब्द समाप्त करो।

 

  फरिश्ता अर्थात् जीवन्मुक्त, जीवन-बंधन नहीं। न देह का बंधन, न देह के संबंध का बंधन, न देह के पदार्थ का बंधन। ऐसे जीवन्मुक्त हो? अव्यक्त वर्ष का अर्थ ही है फरिश्ता स्थिति में स्थित रहना। चेक करो कि कौनसा लगाव नीचे ले आता है? अपनी देह का लगाव खत्म किया तो संबंध और पदार्थ के लगाव आपे ही खत्म हो जायेंगे। अपनी देह का लगाव अगर है तो संबंध और पदार्थ का लगाव भी अवश्य ही खींचेगा। इसलिए पहला पाठ पढ़ाते हो कि-देह-भान को छोड़ो, तुम देह नही, आत्मा हो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सारे विस्तार को बीज में समा दिया है वा अभी भी विस्तार है? इस जडजड़ीभूत वृक्ष की किसी भी प्रकार की शाखा रह तो नहीं गई है? संगमयुग है ही पुराने वृक्ष की समाप्ति का युग। तो हे संगमयुगी ब्राह्मणों! पुराने वृक्ष को समाप्त किया है? जैसे पते-पते को पानी नहीं दे सकते। बीज को देना अर्थात सभी पत्तों को पानी मिलना। ऐसे इतने 84 जन्मों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हिसाब-किताब का वृक्ष समाप्त करना है।

एक-एक शाखा को समाप्त करने का नहीं।

 

✧   आज देह के स्मृति की शाखा को समाप्त करो और कल देह के सम्बन्धों की शाखा को समाप्त करो, ऐसे एक-एक शाखा को समाप्त करने से समाप्ति नहीं होगी। लेकिन बीज बाप से लगन लगाकर, लगन की अग्नि द्वारा सहज समाप्ति हो जायेगी। काटना भी नहीं है लेकिन भस्म करना है। आज काटेंगे, कुछ समय के बाद फिर प्रकट हो जायेगा क्योंकि वायुमण्डल के द्वारा वृक्ष को नेचुरल पानी मिलता रहता है। जब वृक्ष बडा हो जाता है तो विशेष पानी देने की आवश्यकता नहीं होती।

 

✧  नैचरल वायुमण्डल से वृक्ष बढ़ता ही रहता है वा खडा हुआ रहता है तो इस विस्तार को पाये हुए जडजडीभूत वृक्ष को अभी पानी देने की आवश्यकता नहीं है। यह आटोमैटिक बढ़ता जाता है। आप समझते हो कि पुरुषार्थ द्वारा आज से देह सम्बन्ध की स्मृति रूपी शाखा को खत्म कर दिया, लेकिन बिना भस्म किये हुए फिर से शाखा निकल आती है। फिर स्वयं ही स्वयं से कहते हो वा बाप के आगे कहते हो कि यह तो हमने समाप्त कर दिया था फिर कैसे आ गया! पहले तो था नहीं फिर कैसे हुआ। कारण? काटा, लेकिन भस्म नहीं किया।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ भाग्य विधाता बाप सभी बच्चों को भाग्य बनाने की अति सहज विधि बता रहे हैं। सिर्फ बिन्दु के हिसाब को जानो। बिन्दु का हिसाब सबसे सहज है। बिन्दु के महत्व को जाना और महान बने। सबसे सहज और महत्वशाली बिन्दु का हिसाब सभी अच्छी तरह से जान गये हो ना! बिन्दु कहना और बिन्दु बनना। बिन्दु बन बिन्दु बाप को याद करना है। बिन्दु थे और अब बिन्दु स्थिति में स्थित हो बिन्दु बाप समान बन मिलन मनाना है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  मास्टर विधाता बनने का अनुभव करना"
 
➳ _ ➳  प्यारे बाबा को अपने दिल आँगन में बुलाकर... अपनी सारी मीठी भावनाये उंडेलती हुई... मीठे चिंतन में खो जाती हूँ... कि इस जीवन में मीठे बाबा ने आकर कितनी रौनक बिखेरी है... दुखो में कलुषित जीवन जीने वाली मै आत्मा.... आज मीठे बाबा के हाथ को पकड़े... उमंगो से भरी हुई... हर आत्मा को भी उजालो में ला रही हूँ... मीठे बाबा की शक्तियो को स्वयं में समाकर... माया के हर दांव को निष्फल कर रही हूँ... और देखती हूँ, अपने प्यारे बाबा को जो... कब से खड़े, मेरी भावनाओ को निहार रहे है...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन की मल्लिका बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा विधि को अपनाने वाले सिद्धि स्वरूप बनकर मुस्कराओ... विधान से विश्व निर्माता बनो और वरदानों से वरदानी मूर्त बनकर, मीठे बाबा को जहान में प्रत्यक्ष करो... मास्टर विधाता बनकर सबको खुशियो भरे भाग्य से भरकर आप समान सुखी बनाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से पायी असीम खुशियो पर मुस्कराते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी प्यारी गोद में खिलकर तो मै आत्मा मास्टर विधाता बन गयी हूँ... स्वयं को भी नही जानती थी, और आज सारे विश्व का कल्याण करने वाला प्यारा दिल लिए घूम रही हूँ... मीठे बाबा कितनी प्यारी जादूगरी आपने सिखायी है..."
 
❉   प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे स्नेह से सींचते हुए कहते है :- " सदा मीठे बाबा का हाथ पकड़े कम्बाइंड रहो... और निमित्त भाव लिए खुशियो में झूमते रहो... मीठे बाबा के नयनों का नूर बनकर सदा आगे बढ़ते रहो... और हजार हाथो की मदद बाबा से पाकर, हर कदम सफलता... पाने वाले महा भाग्यवान बनकर विश्व धरा पर इठलाओ... लाइट हाऊस बनकर सबको सत्य रौशनी की राहे दिखाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से शक्तियो को लेकर स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपके सत्य ज्ञान से ओजस्वी होकर मै आत्मा... हर दिल को अँधेरे से निकाल, सत्य के प्रकाश से भर रही हूँ... आपके हजार हाथो में अपने हाथो को सौंपकर... कितनी निश्चिन्त सी और बेफिक्र बन झूम रही हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने दिलतख्त पर बिठाते हुए कहा :- "मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे... मीठे बाबा का हाथ पकड़ कर महावीर बनकर... माया पर सहज ही जीत पाओ... बड़े बाप के संग रह, सदा विजय पताका फहराओ... पहले आप के गुण से परमार्थ और व्यवहार में सर्व के प्रिय बनकर मुस्कराओ...”
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा को दिल से असीम दुआए देते हुए कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपके फूलो से हाथो को थाम कर.. जीवन कितनी अपार ख़ुशी की जागीर बन गया है... जिस माया के गर्त में गहरे फंसी थी... आज आपकी यादो के सहारे, उस दलदल से निकलना कितना आसान हो गया है..." प्यारे बाबा से मीठी सी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने साकार वतन में लॉट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- इच्छा मातरम् अविध्या स्थिति का अनुभव"

➳ _ ➳  अपना लाइट का सूक्ष्म आकारी शरीर धारण किये मैं फ़रिशता एक ऊंचे स्थान पर बैठ, सारे विश्व में हो रही गतिविधियों को देख रहा हूँ और विचार करता हूँ कि सारी दुनिया के सभी मनुष्यों की बुद्धि की रग आज विभिन्न प्रकार की चीजों में उलझी हुई है। साइंस के नए - नए साधनों की खोज ने मनुष्यों की बुद्धि को इतना विशाल तो बना दिया है किन्तु इस विशालता में उसने अपनी ही पहचान को कहीं खो दिया है और शायद इसलिए भौतिक सुख सुविधाएं होते हुए भी आज मनुष्य दुखी है।
 
➳ _ ➳  अगर प्रत्येक मनुष्य आज अपने वास्तविक स्वरूप को और अपने पिता परमात्मा को जान कर, अपनी बुद्धि की रग को सांसारिक चीजों से निकाल कुछ क्षणों के लिए भी स्वयं पर और अपने पिता परमात्मा की याद में एकाग्र करना सीख जाएं तो यह एकाग्रता उसे वो सुख और शान्ति का अनुभव करवा सकती है जो उसे भौतिक वस्तुएँ कभी नही करवा सकती।
 
➳ _ ➳  कितने खुशनसीब है वो ब्राह्मण बच्चे जिन्होंने स्वयं को और भगवान को जान कर, अपनी बुद्धि की रग को केवल एक परमात्मा के साथ जोड़ना सीख लिया है। मन ही मन यह विचार करता मैं फ़रिशता अब उस स्थान से उड़ कर मधुबन के शान्ति स्तम्भ पर पहुँचता हूँ और देखता हूँ कि हजारों ब्राह्मण बच्चे अपनी बुद्धि को अपने शिव पिता पर एकाग्र कर गहन शान्ति की अनुभूति में खोए हुए हैं।
 
➳ _ ➳  अपने फ़रिशता स्वरूप को अपने ब्राह्मण स्वरूप में मर्ज कर मैं भी उन हजारों ब्राह्मण आत्माओं के बीच मे जा कर बैठ जाती हूँ और अपनी बुद्धि की रग हर चीज से निकाल कर जैसे ही स्वयं पर और अपने शिव पिता पर एकाग्र करती हूँ वैसे ही एक गहन शांन्तमय स्थिति में मैं स्वत: ही स्थित होती चली जाती हूँ और इसी गहन शान्ति की स्थिति में अपने ब्राह्मण तन से निकल कर मैं आत्मा अशरीरी बन ऊपर अपने शिव पिता के पास परमधाम की और चल पड़ती हूँ।
 
➳ _ ➳  इस परमधाम घर मे पहुँच कर अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों की विशाल छत्रछाया के नीचे मैं जा कर बैठ जाती हूँ और अपने शिव पिता से आ रही सुख, शान्ति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, शक्ति और ज्ञान की सतरंगी किरणों की शीतल फ़ुहारों की शीतलता से स्वयं को तृप्त करने लगती हूँ। सातों गुणों की इन सतरंगी किरणो के मुझ आत्मा पर पड़ने से मुझ आत्मा में निहित गुण और शक्तियाँ इमर्ज हो रहें है और मैं आत्मा पुनः अपने सतोगुणी स्वरूप को प्राप्त कर रही हूँ। बाबा से सर्व गुण, सर्व शक्तियाँ और सर्व खजाने स्वयं में भरकर अब मैं वापिस शान्ति स्तम्भ पर पहुँच कर फिर से अपने ब्राह्मण तन में विराजमान हो जाती हूँ।

➳ _ ➳  मन बुद्धि की यह अति सुंदर यात्रा करके अब मैं अपने कार्य स्थल पर लौट आती हूँ। इस कर्म भूमि पर कर्म करते अपनी बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़ कर अब मैं हर कर्म करती हूँ। इस बात को अब मैं अच्छी रीति जान गई हूँ कि दुनियावी चीजों में बुद्धि को फंसा कर सिवाय दुःख अशांति के और कुछ प्राप्त नही हो सकता। इसलिए अब इस अंतिम जन्म में अपनी बुद्धि की रग और किसी चीज में ना रखते हुए, बुद्धि को केवल एक बाबा की याद में एकाग्र रखते हुए अब मैं गहन सुख, शांति और आनन्द की स्थिति में सदैव स्थित रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं हिम्मत और उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ती कला में उड़ने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली कामधेनु आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सभी प्रवृत्ति में रहतेप्रवृत्ति के बन्धन से न्यारे और सदा बाप के प्यारे होकिसी भी प्रवृत्ति के बन्धन में बंधे हुए तो नहीं हो? लोकलाज के बन्धन में, सम्बन्ध में बंधे हुए को बन्धनयुक्त आत्मा कहेंगे। तो कोई भी बन्धन न हो। मन का भी बन्धन नहीं। मन में भी यह संकल्प न आये कि हमारा कोई लौकिक सम्बन्ध है। लौकिक सम्बन्ध में रहते अलौकिक सम्बन्ध की स्मृति रहे। निमित्त लौकिक सम्बन्ध लेकिन स्मृति में अलौकिक और पारलौकिक सम्बन्ध रहे। सदा कमल आसन पर विराजमान रहो। कभी भी पानी वा कीचड़ की बूँद स्पर्श न करे। कितनी भी आत्माओं के सम्पर्क में आते - सदा न्यारे और प्यारे रहो। सेवा के अर्थ सम्पर्क है। देह का सम्बन्ध नहीं हैसेवा का सम्बन्ध है। प्रवृत्ति में सम्बन्ध के कारण नहीं रहे होसेवा के कारण रहे हो। घर नहीं, सेवास्थान है। सेवास्थान समझने से सदा सेवा की स्मृति रहेगी। अच्छा।

 

✺   "ड्रिल :- प्रवृति के बन्धनों से मुक्त रहना।"

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने कमल आसन पर विराजमान होकर अपने मस्तक पर सफेद मणि के समान चमकते हुए प्रकाश को अनुभव करती हूं... जैसे जैसे मेरे मस्तक पर यह आत्मिक मणी जगमगाती है... वैसे वैसे मैं कमल आसन पर विराजमान आत्मा अपने चारों ओर एक सफेद प्रकाश रूपी औरे को महसूस करती हूं... मैं इस औरे में अपने आप को सुरक्षित अवस्था में अनुभव करती हूं... जैसे जैसे मैं इस अवस्था की गहराई में जाती हूं... वैसे वैसे ही मैं अपने आप को परमात्मा के और करीब महसूस करती हूं... मैं उन्हें हर समय अपने साथ लेकर चलने का संकल्प करती हूं... और मैं अपने कर्म में आगे बढ़ने लगती हूं...

 

 _ ➳  अब मैं अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती हूं... और हर कर्म में अपने आप को अलौकिक स्थिति में अनुभव करते हुए... और प्रवृत्ति मार्ग में रहते हुए भी मैं अपने आप को बेहद की वृत्ति में अनुभव करने का प्रयास करती हूं... और मैं अब अपने लौकिक परिवार के सभी सदस्यों को देखती हूं... और अनुभव करती हूं... कि यह सभी आत्माएं मेरे परम पिता की संतान हैं... और हम यहां पर परमात्मा द्वारा दिए गए महान कार्य को पूर्ण करने के लिए आए हैं... यह सभी आत्माएं बहुत महान और अलौकिक आत्माएं हैं... यह मेरी पूर्ण सहयोगी आत्माएं हैं... सभी सदस्यों को मैं बेहद कि वृत्ति में अनुभव करती हूं... और ये अनुभव करती हूं... कि यह सभी आत्माएं शांतिधाम में रहने वाली मेरी प्रिय आत्माएं हैं... इस स्थिति का अनुभव करके मैं अपने आप को हर संबंध रूपी बेडी से आजाद अनुभव करती हूं...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा अपने आपको बेहद की स्मृति में रखते हुए... इस लौकिक  परिवार का हर कार्य निमित्त भाव से करती जा रही हूं... मैं इस हलचल भरी दुनिया में भी अपने आप को शांति स्वरूप अवस्था में अनुभव कर रही हूं... और हर कार्य करते हुए मैं अपने आप को ऐसे व्यक्ति के रूप में अनुभव करती हूं... जैसे एक व्यक्ति फांसी पर लटका हुआ हो... अर्थात मैं अपने मन बुद्धि को परमधाम में प्रभु की याद में स्थित रखती हूं... और अपनी इस देह से सभी कर्म करती जा रही हूं... मेरे इस स्थिति के कारण मेरे आसपास का वातावरण एकदम शांति से भरा हुआ प्रतीत हो रहा है... और मेरे आस पास रहने वाली सभी आत्माएं शांति की शक्ति का अनुभव कर रही है...

 

 _ ➳  अब मैं इस बेहद की वृत्ति को गहराई से अनुभव करते हुए... अपने आपसे यह वादा करती हूं... कि अब मैं इस लौकिक जीवन में रहते हुए... अपने आपको सदा सभी लौकिक बंधनों से मुक्त करते हुए... उनके प्रति निमित्त भाव का अनुभव करूंगी... चाहे कैसी भी परिस्थिति हो मैं अपनी इस शांति और बेहद की वृत्ति में रहने वाली स्थिति को हलचल में नहीं आने दूंगी... और इन रिश्ते नातों रूपी बंधनों को अपने पुरुषार्थ की बेड़ी नहीं बनने दूंगी... और अब मैं अपने आप को उसी कमल आसन पर बैठा हुआ और प्रवृत्ति मार्ग के बंधनों से मुक्त अवस्था का अनुभव करती जा रही हूं... और पुरुषार्थ की गति को और भी तीव्रता से आगे ले जा रही हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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