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 25 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ बापदादा से "समान भव" का वरदान स्वीकार किया ?

 

➢➢ बापदादा से की गयी प्रतिज्ञा को बार बार रीवाइज किया ?

 

➢➢ कर्म करते बीच बीच में स्वयं को चेक किया ?

 

➢➢ बापदादा से स्नेह के रीटर्न में सहयोग प्राप्त किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अब डबल लाइट बन दिव्य बुद्धि रूपी विमान द्वारा सबसे ऊंची चोटी की स्थिति में स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति लाइट और माइट की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ। इस विमान में बापदादा की रिफाइन श्रेष्ठ मत का साधन हो। उसमें जरा भी मन-मत, परमत का किचड़ा न हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं राजऋषि हूँ"

 

✧  अपने को राजऋषि समझते हो? राज भी और त्र+षि भी। स्वराज्य मिला तो राजा भी हो और साथ-साथ पुरानी दुनिया का ज्ञान मिला तो पुरानी दुनिया से बेहद के वैरागी भी हो इसलिये त्र+षि भी हो। एक तरफ राज्य, दूसरे तरफ त्र+षि अर्थात् बेहद के वैरागी। तो दोनों ही हो? बेहद का वैराग्य है या थोड़ा-थोड़ा लगाव है। अगर कहाँ भी, चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में कहाँ भी लगाव है तो राजत्र+षि नहीं। न राजा है, न त्र+षि है।

 

✧  क्योंकि स्वराज्य है तो मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने वश में है। लगाव हो नहीं सकता। अगर कहाँ भी संकल्प मात्र थोड़ा भी लगाव है, तो राजऋषि नहीं कहेंगे। अगर लगाव है तो दो नाव में पांव हुआ ना। थोड़ा पुरानी दुनिया में, थोड़ा नई दुनिया में। इसलिए एक बाप, दूसरा न कोई। क्योंकि दो नाव में पांव रखने वाले क्या होते हैं? न यहाँ के, न वहाँ के। इसलिये राजऋषि राजा बनो और बेहद के वैरागी भी बनो। 63 जन्म अनुभव करके देख लिया ना? तो अनुभवी हो गये फिर लगाव कैसा?

 

✧  अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते हैं। सुनने वाला, सुनाने वाला धोखा खा सकता है। लेकिन अनुभवी कभी धोखा नहीं खाता। तो दु:ख का अनुभव अच्छी तरह से कर लिया है ना फिर अब धोखा नहीं खाओ। यह पुरानी दुनिया का लगाव सोनी हिरण के समान है। यह शोक वाटिका में ले जाता है। तो क्या करना है? थोड़ा-थोड़ा लगाव रखना है? अच्छा नहीं लगता लेकिन छोड़ना मुश्किल है! खराब चीज को छोड़ना और अच्छी चीज को लेना मुश्किल होता है क्या? अगर कोई सोचता है कि छोड़ना है, तो मुश्किल लगता है। लेना है तो सहज लगता है। तो पहले लेते हो, पहले छोड़ते नहीं हो। लेने के आगे यह देना तो कुछ भी नहीं है। तो क्या-क्या मिला है वह लम्बी लिस्ट सामने रखो। सुनाया है ना कि गीत गाते रहो-पाना था वो पा लिया, काम क्या बाकी रहा? तो यह गीत गाना आता है? मुख का नहीं, मन का। मुख का गीत तो थोड़ा टाइम चलेगा। मन का गीत तो सदा चलेगा। अविनाशी गीत चलता ही रहता है। आटोमेटिक है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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समय की घण्टी बजे तो तैयार होंगे या अभी सोचते हो तैयार होना है। इसी अभ्यास के कारण अष्ट रत्नों की माला' विशेष छोटी बनी है। बहुत थोडे टाइम की है। जैसे आप लोग कहते हो ना सेकण्ड में मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा लेना सभी का अधिकार है। तो समाप्ति के समय भी नम्बर मिलना थोडे समय की बात है। लेकिन जरा भी हलचल न हो। बस बिन्दी कहा और बिन्दी में टिक जायें। बिन्दी हिले नहीं। ऐसे नहीं कि उस समय अभ्यास करना शुरू करो - मैं आत्मा हूँ. मैं आत्मा हूँ. यह नहीं चलेगा। क्योंकि सुनाया - वार भी चारों ओर का होगा। लास्ट ट्रायल सब करेंगे। प्रकृति में भी जितनी शक्ति होगी, माया में भी जितनी शक्ति होगी, ट्रायल करेगी। उनकी भी लास्ट ट्रायल और आपकी भी लास्ट कर्मातीत, कर्मबन्धन मुक्त स्थिति होगी। दोनों तरफ की बहुत पॉवरफुल सीन होगी। वह भी फुल फोर्स, यह भी फुल फोर्सी लेकिन सेकण्ड की विजय, विजय के नगाडे बजायेगी। समझा लास्ट पेपर क्या है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सदा योगयुक्त रहने की सहज विधि है - सदा अपने को 'सारथी' और 'साक्षी' समझ चलना। आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस रथ के सारथी हो। रथ को चलाने वाली आत्मा सारथी हो। यह स्मृति स्वत: ही इस रथ अथवा देह से न्यारा बना देती है, किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है। देहभान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म में योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वत: ही हो जाते है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कंट्रोल में रहती हैं अर्थात् सर्व कर्मेनिद्रयों को सदा लक्ष्य और लक्षण की मंजिल के समीप लाने की कण्ट्रोलिंग पावर आ जाती है। स्वयं 'सारथी' किसी भी कर्मन्द्रिय के वश नहीं हो सकता। क्योंकि माया जब किसी के ऊपर वार करती है तो माया के वार करने की विधि यही होती है कि कोई-न-कोई स्थूल कर्मेन्द्रियों अथवा सूक्ष्म शक्तियां - 'मन-बुद्धि-संस्कार' के परवश बना देती है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- प्रतिज्ञा द्वारा प्रत्यक्षता करना"

➳ _ ➳  डायमंड हॉल में बेहद परिवार के साथ मैं आत्मा अपने बेहद बाबा के साथ अव्यक्त मिलन बना रही हूँ... दादी के तन में ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा विराजमान है... बापदादा हम सभी को दृष्टि दे रहे हैं... दृष्टि लेते-लेते मैं आत्मा अभिभूत हो रही हूँ... जैसे कि बापदादा मुझे अपने पास आने का इशारा कर रहे है... मैं फरिश्ता मीठे बाबा के बिल्कुल सामने जाकर बैठ जाता हूँ... बाबा के नैनों से असीम प्यार बरस रहा है... बाबा वरदानों से मुझे निहाल कर रहे हैं... मेरे कान बापदादा के मीठे मीठे बोल सुनने के लिए लालायित हो रहे हैं...

❉  अपनी स्नेह सिक्त वाणी से जीवन में मिठास घोलते हुए बाबा कहते हैं:- "मेरे प्यारे सिकीलधे बच्चे... बाबा तुम्हें जो सुहानी नॉलेज दे रहे हैं वह शास्त्रों आदि के ज्ञान से बिल्कुल भिन्न है... यह नई नालेज नई दुनिया का आधार है... बाप की पहले महिमा है उसे ज्ञान का सागर कहते हैं... तो क्या उस नये ज्ञान को दुनिया के आगे प्रत्यक्ष किया है... जब तक यह नया ज्ञान ही प्रत्यक्ष नहीं होता है... तो ज्ञान दाता बाप प्रत्यक्ष कैसे होगा..."

➳ _ ➳  बाबा की कही गई बातों पर गहराई से मनन करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे सतगुरु बाबा... आप हमें यह नया ज्ञान देकर हमें भी आप समान मास्टर ज्ञान सागर बना रहे हो... अब हम बच्चे भी ज्ञान गंगा बन ज्ञान जल से पूरे विश्व को हरा भरा बना रहे हैं... सारे विश्व में ज्ञान की प्रत्यक्षता द्वारा ज्ञान दाता बाप की प्रत्यक्षता के निमित्त बन रहे हैं... कि यह ऊँच ते ऊँच ज्ञान एक ज्ञान सागर बाप द्वारा ही दिया गया है... वह एक ही ज्ञान दाता है... इसे हम इस नए ज्ञान द्वारा अथॉरिटी से सिद्ध कर रहे हैं..."

❉  हम बच्चो के लिए बहिश्त, नई दुनिया की रचना करने वाले मीठे बाबा कहते हैं:- "मेरे लाडले नयनों के नूर बच्चे... मैं तुम्हारे लिए जिस नई दुनिया की स्थापना करता हूँ... उसकी धरनी तो बन गई है, वह आगे भी बनती रहेगी... लेकिन उसका फाउंडेशन, उसका बीज है यह नया ज्ञान... दुनिया में आत्माएं रूहानी स्नेह का तो अनुभव कर रही है... उन्हें अब साथ-साथ ज्ञान की अथॉरिटी का भी अनुभव कराओ... कि यह नया ज्ञान है, सत्य ज्ञान है... जो बातें कही नहीं गई वे यहाँ सुन रहे हैं... यह अथॉरिटी से सिद्ध करो..."

➳ _ ➳  बाबा से मिलने वाले वर्से की खुशी में पुलकित होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा आपसे मिलने वाले ज्ञान का स्वरुप बनती जा रही हूँ... इस ज्ञान को, आपके संदेश को पूरी अथॉरिटी के साथ दुनिया की आत्माओं तक पहुंचा रही हूँ... ज्ञान की अथॉरिटी से ऑलमाइटी अथॉरिटी को प्रत्यक्ष कर रही हूँ... इस ज्ञान द्वारा आत्माएं ज्ञानदाता बाप के सहारे का अनुभव कर रही है... और हद के बंधनों से मुक्त होती जा रही हैं..."

❉  कदम कदम पर राह दिखाने वाले रूहानी गाइड बाबा कहते हैं:- "मेरे प्यारे बच्चे... मधुबन वरदान भूमि से थोड़े से भर के नहीं जाना... यहाँ ज्ञान सागर में डुबकियाँ लगानी है... ज्ञान बादल बन पूरे विश्व में ज्ञान वर्षा करनी है... नये ज्ञान को सिद्ध करना है... साथ ही यह ज्ञान देने वाला कौन है यह भी ज्ञान की अथॉरिटी से ही सिद्ध होगा... अब नई दुनिया के लिए नया ज्ञान चारों और फैलाओ... तभी चारों और आवाज निकलेगा... धूम मचेगी... अखबारों में आएगा कि यह बी.के. नया ज्ञान सुनाती है... तभी ज्ञानदाता बाप की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा..."

➳ _ ➳  बाबा की हर आशा पर खरा उतरती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे मन की मीत मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके हर डायरेक्शन का पालन कर रही हूँ... रूहानी स्नेह के साथ-साथ सभी आत्माओं पर ज्ञान जल की शीतल वर्षा कर रही हूँ... इस नए और सत्य ज्ञान को सर्व आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... और ज्ञान दाता बाप की... ऑलमाइटी बाप की प्रत्यक्षता के निमित्त बनती जा रही हूँ... हर एक के दिल में ज्ञान सागर बाप की महिमा की गीत बज रहे हैं... बाबा की प्रत्यक्षता हो रही है... नयी सतयुगी सृष्टि की पुनः स्थापना हो रही है..."
 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  बापदादा से "समान भव" का वरदान स्वीकार करना

➳ _ ➳  अपने प्यारे बाबा के मीठे मधुर महावाक्यों को पढ़ते हुए मैं विचार करती हूँ कि कितने निरहंकारी है बाबा। कैसे हम बच्चों की गुप्त रीति पालना कर रहें हैं! कितना सम्मान देते हैं हमे! सब कुछ खुद कर रहें हैं और मान हम बच्चों को देते हैं! रोज मीठे बच्चे कहकर याद प्यार देते हैं, बच्चो को नमस्ते करते हैं। वाह मेरा भाग्य वाह जो ऐसे ईश्वर बाप की पालना में पलने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य मुझे प्राप्य हुआ। अपना असीम स्नेह बरसाने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद की मीठी सी मस्ती में डूबी मैं आत्मा मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर अब पहुँच जाती हूँ अपने उस मीठे से मधुबन घर में जहाँ भगवान स्वयं आकर अपने बच्चों के साथ उनके जैसा साकार रूप धारण करके उनसे मिलते हैं, उनसे रूह रिहान करते हैं और उनसे मंगल मिलन मनाकर, अपना प्यार उन पर बरसा कर वापिस अपने धाम लौट जाते हैं।

➳ _ ➳  परमात्मा की इस दिव्य अवतरण भूमि अपने मीठे मधुबन घर में पहुंचते ही हवाओं में फैली रूहानी खुशबू को मैं महसूस कर रही हूँ। अपने इस घर के आंगन मे प्रवेश करते ही मैं देखती हूँ सामने ब्रह्मा बाबा के एक बहुत बड़े चित्र को जिसमे बाबा बाहें पसारे अपने बच्चों के स्वागत में खड़े हैं। अपने इस साकार रथ पर विराजमान होकर भगवान कैसे अपने बच्चों का आह्वान करते हैं यह देखकर मन में खुशी की लहर दौड़ रही है और मन खुशी में गा रहा है "वाह बाबा वाह"। अपने इस मीठे मधुबन घर मे आकर अब मैं देख रही हूँ यहाँ के कण - कण में समाई ब्रह्मा बाबा की साकार यादों को जिन्हें उनके हर कर्म के यादगार चित्रों के रूप में चित्रित किया गया है।

➳ _ ➳  हर चित्र में कर्म करते हुए बाबा का स्वरूप कितना न्यारा और प्यारा दिखाई दे रहा है। उनके ओरिजनल निराकारी स्वरुप की दिव्य चमक और निरहंकारिता की झलक उनके हर चित्र में मैं देख रही हूँ और उन चित्रों को देखते हुए उसी साकार पालना का अनुभव कर रही हूँ। बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प करके अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ बाबा के कमरे में जहाँ बाबा बैठे है अपने हर बच्चे को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने के लिए। बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने बैठ, बाबा को निहारते - निहारते मैं महसूस करती हूँ जैसे अपने लाइट माइट स्वरुप में मेरे सामने बैठ कर बाबा अपनी सारी लाइट माइट मुझ में प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहें हैं।

➳ _ ➳  अपने लाइट माइट फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर मैं देख रही हूँ जैसे बाबा की भृकुटि से प्रकाश की अनन्त धाराएं निकल कर पूरे कमरे में फैल रही हैं और पूरा कमरा एक अलौकिक दिव्य आभा से जगमगा रहा है। इन दिव्य अलौकिक किरणों को स्वयं में समा कर मैं गहन आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। बाबा के मस्तक से निकल रही शक्तियों की धारायें और भी तीव्र होती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे ऊपर शक्तियों का कोई झरना बह रहा हो। रूहानी मस्ती में खो कर शक्तियों की इन किरणों को स्वयं में समाते हुए मैं स्वयं को बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  स्वयं को परमात्म बल से भरपूर करके, ब्रह्मा बाप समान निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी बनने का दृढ़ संकल्प करके मैं बापदादा से प्रोमिस करती हूँ कि जैसे ब्रह्मा बाप निराकारी सो साकारी बन सदा सर्व से न्यारे और शिव बाप के प्यारे बन कर रहे, वाणी से सदा निरहंकारी अर्थात् सदा रूहानी मधुरता और निर्मानता से भरपूर रहे और कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात् प्युरिटी की पर्सनैलिटी से सदा सम्पन्न रहे ऐसा पुरुषार्थ ही अब मुझे करना है और बाप समान सम्पन्न बनना है। स्वयं से और बाबा से यह प्रतिज्ञा करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे वरदान देकर, मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने की शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने का बल मेरे अंदर भरकर बाबा जैसे फिर से अपने उसी स्वरूप में स्थित हो गए है।

➳ _ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं भी अब फिर से अपनी कर्मभूमि पर लौट आई हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होकर ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखते हुए, बाप समान निराकारी और निरहंकारी बनने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं परमात्म कार्य में सहयोगी बन सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाली सफलता स्वरूप आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं प्रकृति पति की सीट पर सेट होकर परिस्थितियों में अपसेट होने से मुक्त होने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  १. बापदादा ने देखा कि कमजोरी देते तो हो लेकिन फिर वापस ले लेते हो। देखोवो (वर्ष) अक्ल वाला है जो पांच हजार वर्ष के पहले वापस नहीं आयेगा और आप पुरानी चीजें वापस क्यों लेते होचिटकी लिखकर देंगे-हाँ.. बाबा, बस, क्रोध मुक्त हो जायेंगे.... बहुत अच्छा लिखते हैं और रुहरिहान भी करते हैं तो बहुत अच्छा कांध हिलाते हैं, हाँ, हाँ करते हैं। फिर पता नहीं क्यों वापस ले लेते हैं। पुरानी चीजों से प्रीत रखते हैं। फिर कहते हैं हमने तो छोड़ दिया वो हमको नहीं छोड़ती हैं।

 

 _ ➳  बाप कहते हैं आप चल रहे हो और चलते हुए कोई कांटा या ऐसी चीज आपके पीछे चिपक जाती है तो आप क्या करेंगेये सोचेंगे कि ये मुझे छोड़े या मैं छोडूँकौन छोड़ेगा? अच्छा, अगर फिर भी वो हवा में उड़ती हुई आपके पास आ जाये तो फिर क्या करेंगेफिर रख देंगे या फ़ेंक देंगेफेंकेंगे नातो ये चीज क्यों नहीं फेंकतेअगर गलती से आ भी गई तो जब आपको पसन्द नहीं है और वो चीज आपके पास फिर से आती है तो क्या आप वो चीज सम्भाल कर रखेंगेकोई भी किसको गलती से भी अगर कोई खराब चीज दे देवे तो क्या उसे आलमारी में सजाकर रखेंगे?  फ़ेंक देंगे ना? उसकी फिर से शक्ल भी नहीं दिखाई देऐसे फेंकेंगे । तो ये फिर क्यों वापस लेते हो? बापदादा की ये श्रीमत है क्या कि वापस लोफिर क्यों लेते हो? वो तो वापस आयेगी क्योंकि उसका आपसे प्यार है लेकिन आपका प्यार नहीं है। उसको आप अच्छे लगते हो और आपको वो अच्छा नहीं लगता है तो क्या करना पड़े?

 

 _ ➳  २. तो अभी जब वर्ष पांच हजार वर्ष के लिये विदाई लेता है तो आप कम से कम ये छोटा सा ब्राह्मण जन्म एक ही जन्म हैज्यादा नहीं हैएक ही है और उसमें भी कल का भरोसा नहीं तो वो पांच हजार की विदाई लेता है तो आप कम से कम एक जन्म के लिए तो विदाई दो। दे सकते होहाँ जी तो करते हो। लेकिन जिस समय वो वापस आती है तो सोचते हो - बड़ा मुश्किल लगता हैछूटता ही नहीं हैक्या करें! छोड़ो तो छूटें। वो नहीं छूटेगाआप छोड़ो तो छूटेगा। क्योंकि आपने उनसे प्यार बहुत कर लिया है तो वो नहीं छोड़ेगा, आपको छोड़ना पड़ेगा। तो पुराने वर्ष को इस विधि से दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चयइस ट्रे में ये आठ ही बातें सजा कर उसको दे दो तो फिर वापस नहीं आयेंगीनिश्चय को हिलाओ नहीं।

 

 _ ➳  ३. अलबेले मत बनना। रिवाइज करोबार-बार रिवाइज करो। बापदादा ने सबका चार्ट चेक किया तो टोटल ५० परसेन्ट बच्चे दूसरों को देख स्वयं अलबेले रहते हैं। कहाँ कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी अलबेलेपन में बहुत आते हैं। ये तो होता ही है..... ये तो चलता ही है.... चलने दो... सभी चलते हैं.... बापदादा को हंसी आती है कि क्या अगर एक ने ठोकर खाई तो उसको देखकर आप अलबेलेपन में आकर ठोकर खाते होये समझदारी हैतो इस अलबेलेपन का पश्चाताप् बहुत-बहुत-बहुत बड़ा है। अभी बड़ी बात नहीं लगती हैहाँ चलो... लेकिन बापदादा सब देखते हैं कि कितने अलबेले होते हैं, कितने औरों को नीचे जाने में फालो करते हैंतो बापदादा को बहुत रहम आता है कि पश्चाताप् की घड़ियाँ कितनी कठिन होगी। इसलिए अलबेलेपन की लहर को, दूसरों को देखने की लहर को इस पुराने वर्ष में मन से विदाई दो।

 

✺   ड्रिल :-  "दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरी, अलबेलेपन को मन से विदाई देना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन पर विराजमान... अपने स्वधर्म शांत स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... धीरे-धीरे बाहर की दुनिया से दूर डिटैच होती जा रही हूँ... सभी बाहर की आवाजें अब बंद हो गई है... और मैं आत्मा अपने इनर जर्नी पर चली जा रही हूँ... गहरे और गहरे एकदम शांत जहां मन की भी आवाज खत्म हो जाती है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने घर स्वीट होम परमधाम आ जाती हूँ... महाज्योति से दिव्य किरणें चारों ओर फैल रही है... और मुझ आत्मा में भी समाती जा रही है... मैं आत्मा बाबा के समीप आती जा रही हूँ... उनके किरणों रूपी गोद में बैठ जाती हूँ... पवित्रता, स्नेह, शक्ति की लाइट का फाऊँटेन आती हुई परम ज्योति से... मुझ आत्मा पर आती हुई मुझमें समाती जा रही है... भरपूर करती जा रही है...

 

 _ ➳  सर्वशक्तिमान से शक्तियों की किरणें मेरे कमजोरियों को अलबेलेपन को दग्ध कर रही है... कोई भी काँटा, गलती से भी आयी हुई चीज सभी समाप्त होती जा रही है... अंश के वंश को भी समाप्त कर रही है... जो बहुत प्यार से इन सब को पकड़ रखा था एक-एक को छोड़ती जा रही हूँ...  सब की विदाई कर दी है...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा धीरे-धीरे सूक्ष्म वतन आती हूँ अपने चमकते लाइट के ड्रेस में... बापदादा मेरा हाथ अपने हाथों में थाम लेते हैं... बाबा अपनी दृढ़ता, निश्चयबुद्धि मुझे विल करते जा रहे हैं... मैं आत्मा अपने अलबेलेपन के संस्कार से मुक्त होती जा रही हूँ... परचिंतन परदर्शन से मुक्त होती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  हाँ जी बाबा! अटेंशन रूपी पहरा रखती जा रही हूँ... यूँ ही अलबेलेपन में आकर ठोकर नहीं खाऊंगी... अपने अंदर  परिवर्तन को महसूस कर रही हूँ... अब सिर्फ सारी प्रीत एक आप से ही है बाबा... मुझ आत्मा के संकल्प दृढ़ हो गये हैं... समर्थ हो गए हैं... सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरियों अलबेलेपन को विदाई दे दी है... मैं आत्मा शक्तियों से भरपूर... खुद पर निश्चय रखती हुई अपने स्थूल शरीर में आ जाती हूँ... ओम् शान्ति।

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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