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❍ 11 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ बाप समान अथॉरिटी होते हुए भी निरहंकारी बनकर रहे ?
➢➢ याद में रहने व दैवी गुणों की धारणा करने की रेस की ?
➢➢ ईश्वरीय सेवा द्वारा वैरायटी मेवा प्राप्त किया ?
➢➢ बाप के साथ रहकर हर कर्म किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ मैजॉरिटी भक्तों की इच्छा सिर्फ एक सेकेण्ड के लिये भी लाइट देखने की है, इस इच्छा को पूर्ण करने का साधन आप बच्चों के नयन हैं। इन नयनों द्वारा बाप के ज्योतिस्वरुप का साक्षात्कार हो। यह नयन, नयन नहीं दिखाई दें लाइट का गोला दिखाई दे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं सहजयोगी, कर्मयोगी आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? सहज की निशानी क्या है? उसमें मेहनत नहीं होगी। वह सदा होगी, निरन्तर होगी। मुश्किल काम होता है तो सदा नहीं कर सकते। जो सहज होगा वह स्वत: और निरन्तर चलता रहेगा। तो सहज योगी अर्थात् निरन्तर योगी। कभी साधारण, कभी योगी, ऐसे नहीं? योगी जीवन है तो जीवन सदा होता है। इसलिए योग लगाने वाले नहीं, लेकिन योगी जीवन वाले।
〰✧ ब्राह्मण जीवन है तो योग कभी नीचे-ऊपर हो ही नहीं सकता। क्योंकि सिर्फ योगी नहीं हो लेकिन कर्मयोगी हो। तो कर्म के बिना एक सेकण्ड भी रह नहीं सकते। अगर सोये भी हो तो सोने का कर्म तो कर रहे हो ना। तो जैसे कर्म के बिना रह नहीं सकते ऐसे योगी जीवन वाले योग के बिना रह नहीं सकते। ऐसे अनुभव करते हो या योग टूटता है, फिर लगाना पड़ता है? फिर कभी लगता है, कभी टाइम लगता है-ऐसे तो नहीं है ना। योग का सहज अर्थ ही है याद। तो याद किसकी आती है? जो प्यारा लगता है। सारे दिन में देखो कि याद अगर आती है तो प्यारी चीज होती है। तो सबसे प्यारे से प्यारा कौन है? (बाबा) तो सहज और स्वत: याद आयेगा ना। अगर कहाँ भी, चाहे देह में, देह के सम्बन्ध में, पदार्थ में प्यार होगा तो बाप के बदले में वो याद आयेगा। कभी-कभी देह से प्यार हो जाता तो बॉडी कान्सेस हो जाते हो। तो चेक करना है कि सिवाय बाप के और कोई आकर्षित करने वाली वस्तु या व्यक्ति तो नहीं है?
〰✧ कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो कि योगयुक्त नहीं है। अगर साधारण कर्म होता, व्यर्थ कर्म हो जाता तो भी निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ है। तो सहज योगी अर्थात् कर्मयोगी और कर्मयोगी अर्थात् सहजयोगी। तो चेक करो कि सारे दिन में कोई साधारण कर्म तो नहीं होता? श्रेष्ठ हुआ? श्रेष्ठ कर्म की निशानी होगी-स्वयं सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसे नहीं-मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरे हों या नहीं हो। योगी जीवन वाले का प्रभाव स्वत: दूसरों के ऊपर पड़ेगा। अगर कोई स्वयं से असन्तुष्ट है वा और उससे असन्तुष्ट रहते हैं तो समझना चाहिये कि योगयुक्त बनने में कोई कमी है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ बेहद के वैराग्य वृत्ति का अर्थ ही है - वैराग्य अर्थात किनारा करना नहीं, लेकिन सर्व प्राप्ति होते हुए भी हद की आकर्षण मन को वा बुद्धि को आकर्षण में नहीं लावें। बेहद अर्थात मैं सम्पूर्ण सम्पन्न आत्मा बाप समान सदा सर्व कर्मेन्द्रियों की राज्य अधिकारी।
〰✧ इन सूक्ष्म शक्तियों, मन-बुद्धि-संस्कार के भी अधिकारी। संकल्प मात्र भी अधीनता न हो। इसको कहते हैं राजऋषि अर्थात बेहद की वैराग वृति। यह पुरानी देह वा देह की दुनिया वा व्यक्त भाव, वैभवों का भाव - इस सब आकर्षण से सदा और सहज दूर रहने वाले।
〰✧ जैसे साइन्स की शक्ति धरनी की आकर्षण से परे कर लेती है, ऐसे साइलेन्स की शक्ति इन सब हद की आकर्षणों से दूर ले जाती है। इसको कहते हैं - सम्पूर्ण सम्पन्न बाप समान स्थिति तो ऐसी स्थिति के अभ्यासी बने हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है। अनुभवी तो हो ना। एक सेकण्ड भी आवाज से परे हो स्वीट साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाओ। तो कितना प्यारा लगता है? साइलेन्स प्यारी क्यों लगती है? क्योंकि आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है, ओरिजनल देश भी शान्ति देश है। इसलिए आत्मा को स्वीट साइलेन्स बहुत प्यारी लगती है। एक सेकण्ड में भी आराम मिल जाता है। कितने भी मन से, तन से थके हुए हों, लेकिन अगर एक मिनट भी स्वीट साइलेन्स में चले जाओ तो तन और मन को आराम ऐसा अनुभव होगा जैसे बहुत समय आराम करके कोई उठता है तो कितना फ्रेश होता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- एक बाप को याद करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में सागर के किनारे बैठ सागर में उछलती लहरों को
देख रही हूँ... मेरे जीवन में उछलती दुःख-अशांति की लहरों को ख़त्म कर... सदा के
लिए सुख-शांति, प्रेम की लहरों में मुझे लहराने वाले... सर्व गुणों-शक्तियों के
सागर बाबा के पास पहुँच जाती हूँ शांतिधाम में... परमधाम की परम शांति का
अनुभव कर रही हूँ... बस एक बाबा और मैं... बाबा से निकलती किरणें मुझमें दिव्य
अलौकिक शक्तियों को भर रही हैं... फिर मैं आत्मा शांति की दुनिया से नीचे
उतरकर बिंदु रूप से फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर फरिश्तों की दुनिया में पहुँच जाती
हूँ... बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...
❉ सच्चे प्रेम के अहसासों में मुझे डुबोकर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-
"मेरे मीठे फूल बच्चे... सच्चे प्यार की मुस्कराती मदमाती यादो में रग रग को
डुबो दो... सच्चे माशूक के साथ अपनी प्रीत जोड़कर... प्यार के अहसासो में डूब
जाओ और प्राप्तियों के अनन्त खजाने अपने दामन में सजाओ... योग और पढ़ाई की
जादूगरी से सहज ही विश्व का अधिकार पाओ..."
➳ _ ➳ बाबा की यादों में पवित्र, निर्मल, ओजस्वी बनकर मैं आत्मा कहती
हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्यार को पाने वाली... ईश्वर
माशूक संग हर पल मुस्कराने वाली सच्ची आशिक हूँ... कभी मनुष्यो में प्यार की
बून्द खोजने वाली... आज प्यार के सागर को ही पाकर... अपने महान भाग्य पर धन्य
धन्य हो उठी हूँ... कितना प्यारा मेरा भाग्य है.."
❉ मीठे प्रेम के तराने सुनाकर मुझे मदमस्त करते हुए मीठे बाबा कहते
हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में अनन्त खजाने सहज ही पाकर...
सबसे महान भाग्य से भर जाओ... ईश्वर पिता के सारे खजानो को प्यार में सहज ही
लूट लो... प्यार के तार जोड़कर विश्व की अमीरी को बाहों में भर लो... आशिक बनकर
सच्चे माशूक को अपनी यादो का दीवाना बना दो..."
➳ _ ➳ एक बाबा के दिल की तिजोरी में चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे
प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा भगवान को ही माशूक रूप में पाकर सच्चे प्यार का
सुख हर पल हर साँस ले रही हूँ... भगवान मुझे यूँ मिल जायेगा यूँ प्यार करेगा,
और प्यार से भर जाएगा यह तो कल्पना में भी न था... प्यारे बाबा किन शब्दों में
आपका शुक्रिया करूँ..."
❉ महकता फूल बनाकर अपने गुलिस्तां में सजाते हुए प्यारे बाबा कहते
हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सत्य स्वरूप में डूबकर, सच्चे पिता
की मीठी महकती यादो में रोम रोम से भीग जाओ... इन सच्ची यादो में ही सच्चे सुखो
के भण्डार समाये है... यह यादे ही सच्चे प्यार का पर्याय है.. सारे सुख इन यादो
में निहित है... इन यादो और ज्ञान रत्नों से जीवन को अनन्त ऊंचाइयों पर ले जाओ..."
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी यादों में डूबकर बाबा की दीवानी बन मैं आत्मा
कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्रेम में खोयी हुई
अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ... मीठे बाबा आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया
है... सच्चे प्रेम को दामन में सजा लिया है... और इसकी मीठी अनुभूतियों में हर
पल खोयी खोयी सी हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- पावन बनकर पावन बनाने की सेवा करनी है"
➳ _ ➳ "अभी कयामत का समय है सब को कब्र से जगाना है"। बाबा के इन
महावाक्यों पर विचार करते ही मुस्लिम ग्रंथ कुरान में लिखे शब्द समृति में आते
है जिसमें कहा गया है कि "कयामत के दिन अल्लाह सभी लोगों को कब्र से निकाल उनके
अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार उनको फल देगा"। अपने आप से मैं सवाल करती हूं कि
क्या वह कयामत के दिन अब नहीं चल रहे? अंधकार रूपी गहरी निद्रा में सोए हुए
दुनिया के मनुष्य तो यह सोच रहे हैं कि वह कयामत का दिन आने में अभी बहुत वक्त
पड़ा है। यह घोर पापाचार, अत्याचार, विकारों की अग्नि में जल रही दुनिया यही
तो कयामत की निशानियां हैं, इससे ज्यादा अभी और कौन सी कयामत होनी बाकी है!
➳ _ ➳ यह सब चिंतन करते करते मैं अपने ब्राह्मण जीवन के बारे में सोचती
हूं कि कितनी पदमा पदम सौभाग्यशाली हूं मैं आत्मा जो घोर कलयुगी कयामत के समय
मेरे अल्लाह, मेरे भगवान शिव बाबा ने आ कर इस शरीर रूपी कब्र में सोई हुई मुझ
आत्मा को जगा कर अज्ञान अंधकार से निकाल लिया। ज्ञान का प्रकाश कर मुझे मेरे
सत्य स्वरूप से परिचित करा दिया। मेरा अनादि ज्योति बिंदु स्वरूप ही मेरा सत्य
स्वरूप है इस ज्ञान ने 63 जन्मो तक स्वयं को देह समझने के अज्ञान को मिटा दिया
और अब जबकि मैं यह जान गई हूं कि मेरा सत्य स्वरूप अति सुंदर, सम्पूर्ण पावन
स्वरूप है तो अब मुझे पावन बनने और बनाने का ही पुरुषार्थ करना है।
➳ _ ➳ स्वयं से यह प्रोमिस कर मैं अपने अनादि ज्योति बिंदु परम पवित्र
स्वरूप में स्थित होती हूँ और अनुभव करती हूं कि मुझ में पवित्रता की अनन्त
शक्ति है। इस शरीर में भृकुटि के मध्य विरजमान मैं एक परम पवित्र ज्योति बिंदु
आत्मा हूँ। पवित्रता की किरणें मुझ आत्मा से निकल कर चारों ओर फैल रही हैं। पवित्रता
की किरणों को चारों और फैलाते हुए मैं अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु आत्मा साकारी
देह को छोड़ ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ औऱ पहुंच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया
परमधाम में।
➳ _ ➳ अब मैं ब्रह्मलोक में हूँ। पवित्रता के सागर, मेरे प्राणेश्वर
ज्योति बिंदु शिवबाबा मेरे सम्मुख है। उनसे निकल रही पवित्रता की किरणें मुझ
में समा रही हैं। मेरा पवित्रता का प्रकाश बढ़ता जा रहा है। निरन्तर उनकी
शक्तिशाली किरणे मुझ पर पड़ रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे पवित्रता का शुद्ध भोजन
ग्रहण कर मैं तृप्त होती जा रही हूं, पवित्रता के सागर में मैं गहराई तक समाती
जा रही हूँ।
➳ _ ➳ भरपूर हो कर अब मैं परम पवित्र आत्मा लौट आती हूँ सूक्ष्मलोक में।
अपनी लाइट की फ़रिशता ड्रेस को धारण कर मैं पहुँच जाती हूँ बापदादा के सामने।
मेरे पवित्रता से भरपूर स्वरूप को देख बापदादा मुझ से कहते हैं:- "आओ मेरे मीठे
होली हंस बच्चे, सदैव याद रखो कि पवित्रता ही आपके जीवन का श्रृंगार है, इसलिए
सदा पवित्रता के श्रृंगार से सजे सजाये रहना"। यह कहकर बाबा मुझे अपनी बाहों
में भर लेते हैं और मुझ पर अपने पवित्र प्रेम की वर्षा करने लगते हैं। अपनी
सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करने लगते हैं। उनकी सर्वशक्तियां मेरे अंदर गहराई
तक समाती जा रही हैं। उनकी पावन दृष्टि से पवित्रता का झरना बह रहा है जिससे
निकल रही पवित्र फुहारें मुझ पर बरस रही हैं।
➳ _ ➳ पवित्रता की शक्ति से स्वयं को भरपूर कर, पवित्रता का फ़रिशता बन
बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं सूक्ष्म वतन से नीचे आ जाता हूँ और चल
पड़ता हूं सारे विश्व मे पवित्रता की किरणें फैलाने। कम्बाइंड स्वरूप में अब
मैं फ़रिश्ता सारे विश्व में भ्रमण कर रहा हूं और पवित्रता की किरणें चारों ओर
फैलाता जा रहा हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं ईश्वरीय सेवा द्वारा वैराइटी मेवा प्राप्त करने वाली अधिकारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं बाप के साथ रहकर कर्म करने वाला डबल लाइट फरिश्ता हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा बहुत बच्चों की रंगत देखते हैं - आज कहेंगे बाबा,ओ मेरे बाबा, ओ मीठा बाबा, क्या कहूं, क्या नहीं कहूं ...... आप ही मेरा संसार हो, बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं और दो चार घण्टे के बाद अगर कोई बात आ गई तो भूत आ जाता है। बात नहीं आती,भूत आता है। बापदादा के पास सभी का भूत वाला फोटो भी है। देखो, एक यादगार भी भूतनाथ का है। तो भूतों को भी बापदादा देखते हैं- कहाँ से आया, कैसे आया और कैसे भगा रहे हैं। यह खेल भी देखते रहते हैं। कोई तो घबराकर, दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। फिर बापदादा को यही शुभ संकल्प आता है कि इनको कोई द्वारा संजीवनी बूटी खिलाकर सुरजीत करें लेकिन वे मूर्छा में इतने मस्त होते हैं जो संजीवनी बूटी को देखते ही नहीं हैं। ऐसे नहीं करना। सारा होश नहीं गंवाना, थोड़ा रखना। थोड़ा भी होश होगा ना तो बच जायेंगे।
✺ ड्रिल :- "संजीवनी बूटी खाकर सदा सुरजीत रहना"
➳ _ ➳ इस शरीर रूपी डिब्बी के अन्दर हीरे समान चमकने वाली मैं आत्मा हूँ... मन-बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं के इस स्वरूप को स्पष्ट देख और अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को इस दुनिया के सबसे पावरफुल स्थान मधुबन पांडव भवन के हिस्ट्री हाल में बापदादा के सामने, एक संगठन में बैठा हुआ... ये वही स्थान है जहाँ स्वयं परम सत्ता शिव बाबा ने बहुत काल तक वास्तव्य किया है... कई महान आत्माओं ने यहाँ बहुत काल तपस्या की है जिस कारण ये स्थान प्रचंड उर्जा से परिपूर्ण है... यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा भी स्वयं में इस प्रचंड उर्जा का प्रवाह अनुभव कर रही हूँ... और सहज ही अशरीरी अनुभव कर रही हूँ... स्वयं को परमात्म-एनर्जी से भरा हुआ अनुभव कर रही हूँ... बेहद पावरफुल स्टेज का अनुभव हो रहा है... देह भान से ऊपर उठ देही अवस्था का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... देख रही हूँ मैं आत्मा हिस्ट्री हाल में बापदादा संदली पर बैठ संगठन में बैठी आत्माओं को दृष्टि योग करा रहे हैं...
➳ _ ➳ जैसे ही बाबा मुझ आत्मा को दृष्टि देते हैं... मुझ आत्मा के सामने एक दृश्य इमर्ज होता है... मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ... एक बहुत बड़ी नांव, एक विशाल सागर में जा रही है... जिस नांव पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है... "भगवान हमारा साथी है"... और इस नाव में बहुत सारे यात्री स्वार हैं... और स्वयं बाबा इस नैया के खिवैया बन इसे चला रहे हैं... सभी यात्रियों के चेहरे बड़े हर्षितमुख है... सभी यात्री प्रभु महिमा के गीत गाते हुए खुशी में झूमते हुए अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ रहे हैं... इन सभी यात्रियों को देख लग रहा है मानो बाबा ही इनका संसार है... प्रभु महिमा से फुल ये आत्माएं हर्षा रही है और इस प्रकार ये नांव आगे बढती जा रही है... कुछ समय बीत जाने के बाद एक बड़ा अजब दृश्य सामने आता है... सागर में अचानक तूफान आता है... सागर में लहरें उठने लगती है... तेज हवाएं चलने लगती है... और नाव डोलने लगती हैं... कुछ यात्री जिनके चेहरे पर कुछ समय पहले खुशी थी... ये सीन देख उनके चेहरे पर घबराहट, चिंता, कई प्रकार के प्रश्रों के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं... उनकी आँखों में डर और मुख से यह क्या, यह क्यों, यह कैसे शब्द निकल रहे हैं... और कुछ यात्री यह सीन देखते वैसे ही बैठे हैं जैसे पहले बैठे थे... बाबा भी इस नांव में बैठ ये अजब दृश्य देख रहे है...
➳ _ ➳ तभी वो दृश्य मुझ आत्मा की आँखों के सामने से गायब हो जाता है... मैं आत्मा सामने देखती हूँ... महान ज्ञान सागर बाबा मुझ आत्मा को दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की सागर जैसी आँखों से ज्ञान प्रकाश रूपी किरणें मुझ आत्मा के अन्दर समा रही है... जैसे-जैसे मुझ आत्मा में ये ज्ञान प्रकाश रुपी किरणें मेरे अन्दर समा रही है, इस दृश्य का राज मुझ आत्मा के सामने स्पष्ट होता जा रहा है... मैं आत्मा विचार कर रही हूँ... जिस जीवन रुपी नैया का खिवैया स्वयं सर्वशक्तिमान बाबा है... वह जीवन रुपी नैया में भल बातों रुपी कितने भी तूफान आएं... ये नैया कभी डूब नहीं सकती है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं से प्रश्र करती हूँ, अपने लक्ष्य की तरफ चलते-चलते, जब इस जीवन रूपी नैया में बातों रुपी भूत, बातों रुपी तूफान आते हैं तो कहीं मैं आत्मा लक्ष्य से भटक इन हलचल में तो नहीं आ जाती, घबरा तो नहीं जाती, बातों रूपी भूतों को देख भूतनाथ तो नहीं बन जाती ये जानते हुए भी की इस जीवन रुपी नैया का खिवैया स्वयं बाबा है... देखती हूँ सामने बाबा से शक्तिशाली किरणों की अविरल धाराएँ मुझ आत्मा पर पड़ कर मेरे अन्दर समा रही है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बेहद शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ... देख रही मैं आत्मा बाबा ने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया... बाबा के हाथों से ज्ञान प्रकाश की किरणें मेरे अन्दर समा रही हैं... जैसे-जैसे ये ज्ञान प्रकाश की किरणें अन्दर समा रही है... मैं आत्मा शक्तिशाली... अचल अडोल अवस्था का अनुभव कर रही हूँ, पहले से और ज्यादा शक्तिशाली स्वयं को अनुभव कर रही हूँ... अब देखती हूँ अपनी इस जीवन रूपी नैया को जिसका खिवैया स्वयं बाबा है... और मैं आत्मा बाबा संग आगे बढ़ रही हूँ... और देख रही हूँ... बातों रूपी भूत, कभी एक लहर कभी दूसरी लहर के रुप में सामने आ रहे हैं... लेकिन मैं स्मृति स्वरूप हूँ... महावीर हूँ... अब ये बातें आती है और चली जाती है... मैं आत्मा एकरस अचल-अडोल होकर बाबा संग अपने लक्ष्य की ओर अभय होकर बढ़ रही हूँ... मैं आत्मा अन्य आत्माओं को भी जो चलते-चलते, किसी-न-किसी बातों रूपी भूतों के कारण रुक गए हैं, बेहोश होकर अपने लक्ष्य से भटक गए है... उन्हें ज्ञान और याद रूपी संजीवनी बूटी से सुरजीत बना रही हूँ... देख रही हूँ अब वे सभी आत्माएं अचल-अडोल एकरस होकर इस जीवन रूपी नैया में बाबा संग अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही है... शुक्रिया लाडले बाबा शुक्रिया...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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