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 25 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मीठी जुबान से सर्विस की ?*

 

➢➢ *कर्मों की गहन गति को समझ विकारों पर जीत प्राप्त की ?*

 

➢➢ *ब्राह्मण जन्म की जन्मपत्री को जान सदा खुश रहे ?*

 

➢➢ *एक बाप से सर्व संबंधो का रस ले एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा-सेवा बेहद की सेवा है।* जितना आप मन्सा से, वाणी से स्वयं सैम्पल बनेंगे, तो सैम्पल को देखकर के स्वत: ही आकर्षित होंगे। *सिर्फ दृढ़ संकल्प रखो तो सहज सेवा होती रहेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"*

 

  सदा अपने को डबल लाइट फरिश्ता समझते हो? *फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। जितना-जितना हल्कापन होगा उतना स्वयं को फरिश्ता अनुभव करेंगे। फरिश्ता सदा चमकता रहेगा, चमकने के कारण सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करता है।*

 

  *ऐसे फरिश्ते - जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है।* घर वहीं है, परिवार वही है, लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्मबन्ध के वशीभूत होकर नहीं रहते।

 

  सेवा के सम्बन्ध में क्या, क्यूँ नहीं होता। कैसी भी आत्माएँ हैं, सेवा का सम्बन्ध प्यारा है। जहाँ देह है वहाँ विकार हैं। देह के सम्बन्ध से विकार आते हैं, देह के सम्बन्ध नहीं तो विकार नहीं। *किसी भी आत्मा को सेवा के सम्बन्ध से देखो तो विकारों की उत्पत्ति नहीं होगी। ऐसे फरिश्ते होकर रहो। रिश्तेदार होकर नहीं। जहाँ सेवा का भाव रहता है वहाँ सदा शुभ भावना रहती है, और कोई भाव नहीं। इसको कहा जाता है - 'अति न्यारा और अति प्यारा, कमल समान'। सर्व पुरुषों से उतम फरिश्ता बनो तब देवता बनेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *जब चाहे, जैसे चाहे वैसे मन-बुद्धि-संस्कार को परिवर्तन कर सके।* टेन्शन फ्री लाइफ का अनुभव सदा इमर्ज हो। बापदादा देखते हैं कभी मर्ज हो जाता है। सोचते हैं यह नहीं करना है, यह राइट है, यह रांग है, लेकिन सोचते हैं स्वरूप में नहीं लाते हैं।

 

✧  *सोचना माना मर्ज रहना, स्वरूप में लाना अर्थात इमर्ज होना।* समय के लिए तो नहीं इन्तजार कर रहे हो ना! कभीकभी करते हैं। रूहरिहान करते है ना तो कई बच्चे कहते हैं, समय आने पर ठीक हो जायेंगे। *समय तो अपकी रचना है।*

 

✧  आप तो मास्टर रचता हो ना! तो मास्टर रचता, रचना के आधार पर नहीं चलते। *समय को समाप्ति के नजदीक आप मास्टर रचता को लाना है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *एक सेकंड भी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है तो उसका असर काफी समय तक रहता है।* अव्यक्त स्थिति का अनुभव पावरफुल होता है। जितना हो सके उतना अपना समय व्यक्त भाव से हटाकर अव्यक्त स्थिति में रहना है। *अव्यक्त स्थिति से सर्व संकल्प सिद्ध हो जाते हैं। इसमें मेहनत कम और प्राप्ति अधिक होती है।* और व्यक्त स्थिति में स्थित होकर पुरुषार्थ करने में मेहनत अधिक और प्राप्ति कम होती है। फिर चलते-चलते उलझन और निराशा आती है। *इसलिए अव्यक्त स्थिति से सर्व प्राप्ति का अनुभव बढ़ाओ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्म-अभिमानी बनने का अभ्यास करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठ ड्रिल करती हूँ... मैं एक आत्मा हूँ... ये शरीर नहीं हूँ... इस शरीर को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति हूँ... मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर बैठ राज करने वाली स्वराज्य अधिकारी हूँ...* धीरे-धीरे मैं आत्मा इस शरीर से बाहर निकल रही हूँ... चमकीले प्रकाश का सूक्ष्म शरीर धारण कर स्वदर्शन चक्र फिराती हूँ... *अपने पांचो स्वरूपों का दर्शन करती हुई पहुँच जाती हूँ मधुबन तपस्या धाम में... प्यारे बाबा से रूह रिहान करने...*

 

  *अपनी दुआओं और वरदानों से मुझे मालामाल करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... देह को सत्य समझ जीते आये और दुःख के गहरे दलदल में धँस चले... *अब अपने आत्मिक सत्य स्वरूप की हर पल प्रैक्टिस करो... और अपने अविनाशीपन के भान में डूब जाओ...* मीठे बाबा की मीठी यादो में इस कदर खो जाओ कि देह का भान ही न रहे...और यूँ यादो में खोये हुए से घर को चलें...

 

_ ➳  *मैं आत्मा देहभान को भूल अपने सत्य स्वरुप में टिककर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब शरीर के दायरे से ऊपर उठ अपने सत्य स्वरूप के भान में डूबी हुई आपकी यादो में... सच्चे प्यार के मीठे रंग में रंगी हुई हूँ.... *एक बाबा ही मेरा संसार है और मीठी यादे ही मेरे जीने का आधार है*...

 

  *अपनी श्रीमत से देवताई पद पाने की राह दिखाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह समझने के अनुभवी जनमो तक रहे हो... *अब आत्मिक स्थिति के गहरे अनुभवी बनकर जीवन में अथाह सुखो के जादू को महसूस करो...* शिवबाबा की मीठी यादो में खोकर स्वयं को दिव्य गुण और शक्तियो से भरपूर कर लो... अशरीरीपन के भान में डूब जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने निज स्वरुप में अविनाशी सुखों की अनुभूति करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप की पहचान को आपसे पाकर खुशनुमा हो चली हूँ... *मै नश्वर नही अविनाशी आत्मा हूँ इस अहसास ने जीवन में सुखो की बहार ला दी है... और आत्मिक स्थिति में डूबकर आपके प्यार को जीती जा रही हूँ...”*

 

  *पवित्रता की किरणों का ताज पहनाकर मुझे गले लगाते हुए मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह विनाशी देह नही हो खुबसूरत मणि हो... अपने अप्रतिम सौंदर्य में खो जाओ... दिव्य गुण और शक्तियो से सजकर देवताई सुंदरता को पाओ...* मीठे बाबा की यादो में अपनी खोयी शक्तियो और खजानो को पाकर मालामाल हो जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बाँहों में समाकर सबकुछ भूल एकरस स्थिति में स्थित होकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरे आगोश में कितनी सुखी कितनी महफूज हूँ... *इस देह के मटमैलेपन से मुक्त हो रही  हूँ और आपके प्यार भरे साये में देवताई गुणो से सज संवर रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बहुतों का कल्याण करने के लिये अपनी जबान बहुत मीठी बनानी है*

 

_ ➳  अपने मोस्ट स्वीटेस्ट बाप के समान स्वीटेस्ट बनने का संकल्प मन में लेकर, मैं अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और सेंकड में विदेही बन उनकी स्वीटेस्ट दुनिया की और चल पड़ती हूँ। *वो दुनिया जो सूर्य, चाँद, सितारों से परे हैं, जहाँ प्रकृति के पांचों तत्वों से जुड़ा कुछ भी नही। कोई आवाज, कोई संकल्प नही। वाणी से परें एक ऐसी बेहद खूबसूरत दुनिया जहाँ पहुँच कर आत्मा महसूस करती है जैसे उसकी जन्म - जन्म की प्यास बुझ गई है*। अपनी ऐसी स्वीट दुनिया की और अब मैं आत्मा चल पड़ती हूँ। मन बुद्धि के विमान पर बैठ, देह की दुनिया से किनारा कर अपने स्वीट होम में स्वीटेस्ट बाप से मिलने की लग्न मुझे बहुत ही तीव्र गति से ऊपर आकाश की ओर ले जा रही है। *सेकेण्ड में आकाश तत्व से ऊपर पहुँच कर, मैं सूक्ष्म लोक को भी पार करके पहुँच जाती हूँ अपने स्वीट घर में*।

 

_ ➳  मेरा यह स्वीट घर जहाँ आकर मेरे चित को चैन और मन को आराम मिल गया है। एक गहन सुकून मैं आत्मा अपने इस घर मे आकर महसूस कर रही हूँ। *यहाँ चारों और फैले गहन शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मुझे विचार शून्य बनाते जा रहें है। हर संकल्प - विकल्प से मुक्त एक खूबसूरत निरसंकल्प स्थिति में मैं स्थित होती जा रही हूँ*। एक शक्तिशाली बीज रूप स्थिति में अब मैं स्थित हो चुकी हूँ और अपने स्वीटेस्ट बीज रूप बाबा से योग लगाकर उस विशाल योग अग्नि को प्रज्ज्वलित करने के लिए अब मैं उनके सम्मुख पहुँच गई हूँ, जिस *योग अग्नि द्वारा मैं अपने जन्म जन्मांतर के पापों को, पुराने सभी आसुरी स्वभाव संस्कारो को जलाकर भस्म करके अपने स्वीटेस्ट बाप के समान स्वीटेस्ट बन जाऊँगी*।

 

_ ➳  मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप पिता के सामने अब मैं उपस्थित हूँ। उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणें मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और मुझे सर्वशक्तियों से सम्पन्न बना रही है। मैं महसूस कर रही हूँ धीरे - धीरे इन किरणों का प्रवाह बढ़ रहा है और ये किरणे ज्वाला स्वरूप धारण करती जा रही है। *योग की अग्नि प्रज्ज्वलित होकर अब मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रही है। आत्मा के ऊपर चढ़ी पुराने स्वभाव संस्कारो की सारी अशुद्धता खत्म होती जा रही है और मैं आत्मा एकदम हल्की, शुद्ध  होती जा रही हूँ*। मेरा स्वरूप बहुत ही शक्तिशाली और चमकदार बनता जा रहा है। मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे स्वीटेस्ट बाबा मुझे आप समान स्वीटेस्ट बनाने के लिए अपने समस्त गुण और समस्त शक्तियाँ मुझे प्रदान कर रहें हैं।

 

_ ➳  बीज रूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप पिता के साथ मिलन मनाकर, योग अग्नि में विकर्मों को दग्ध कर, अपने प्यारे पिता के सर्व गुणों, सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, परमधाम से नीचे आकर अब मैं सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण कर बापदादा के पास पहुँचती हूँ। *मैं देख रही हूँ मेरे बिल्कुल सामने बापदादा खड़े हैं और उनके मस्तक से, उनकी दृष्टि से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल रही हैं और उन धाराओं में समाई ज्ञान और योग की पावन किरणे मुझ फरिश्ते को छू रही हैं*। जैसे पारस के संग में पीतल भी सोना बन जाता है ऐसे ज्ञान और योग की पावन किरणे जैसे - जैसे मेरे ऊपर पड़ रही हैं, विकारों रूपी भूत एक - एक करके भाग रहें हैं और आसुरी अवगुण दैवी गुणों में बदल रहें हैं। *बाबा अपने सारे गुण और सारी शक्तियाँ मेरे अंदर समाहित कर मुझे आप समान स्वीटेस्ट बना रहें हैं*।

 

_ ➳  परमात्म गुणों और शक्तियों को स्वयं में धारण कर बाप समान स्वीटेस्ट बन कर अब मैं फिर से अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर वतन से नीचे आ जाती हूँ। *साकार सृष्टि पर आकर, अपने साकार तन में मैं आत्मा वापिस प्रवेश करती हूँ और कर्मक्षेत्र पर कर्म करने के लिए तैयार हो जाती हूँ। किन्तु कर्म करते हुए अब मैं हर कर्म योगयुक्त स्थिति में स्थित रहकर करती हूँ*। किसी के भी सम्बन्ध सम्पर्क में आते, आत्मिक स्मृति में स्थित होकर उनको भी मैं आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ जिससे आत्मा के निजी गुण और शक्तियाँ इमर्ज रहते हैं। सबके प्रति आत्मिक दृष्टि मेरे अंदर साक्षीपन का भाव उतपन्न करके सबके पार्ट को साक्षी होकर देखने की मुझे प्रेरणा देती है इसलिये *हर आत्मा के पार्ट को साक्षी होकर देखने से अब मेरे हृदय से सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, शुभकामना स्वत: ही निकलती रहती है। अपने स्वीटेस्ट बाबा के प्यार की मिठास अपने अंदर भरकर, बाप समान स्वीटेस्ट बन अब मैं अपनी मीठी दृष्टि वृति से सबके जीवन को मिठास से भर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ब्राह्मण जन्म की जन्मपत्री को जान सदा खुशी में रहने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान   आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं एक बाप से सर्व संबंधों का रस लेकर एकरस स्थिति का अनुभव करने वाली लवलीन आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *फरिश्ता बनना वा निराकारी, कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है  निरंहकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है*। इसलिए बाप ने ब्रह्मा द्वारा लास्ट मन्त्र निराकारी के साथ निरंहकारी कहा। *सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फँसना, इसको ही देह अहंकार या देहभान नहीं कहा जाता है*। देह अहंकार भी है, देह भान भी है। अपनी देह या दूसरे की देह के भान में रहना, लगाव में रहना - उसमें तो मैजारिटी पास हैं। *जो पुरुषार्थ की लगन में रहते हैं, सच्चे पुरुषार्थी हैं, वह इस मोटे रूप से परे हैं*। लेकिन *देह-भान के सूक्ष्म अनेक रूप हैं*, इसकी लिस्ट आपस में निकालना। बापदादा आज नहीं सुनाते हैं। आज इतना ही इशारा बहुत हैं क्योंकि सभी समझदार हैं। आप सब जानते हो ना, अगर सभी से पूछेंगे ना, तो सब बहुत होशियारी से सुनायेंगे। लेकिन *बापदादा सिर्फ छोटा-सा सहज पुरुषार्थ बताते हैं कि सदा मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लास्ट मन्त्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो*। संकल्प करते हो तो चेक करो - महामन्त्र सम्पन्न है? ऐसे ही *बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो*। यह तो सहज है ना? *सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामन्त्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा*।

 

✺   *ड्रिल :-  "तीन शब्दों के महामन्त्र (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) की स्मृति में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मन, वचन, कर्म एवं सम्बन्ध- सम्पर्क में तीन मन्त्रों की स्मृति संजोयें मैं आत्मा*... साक्षी भाव से देख रही हूँ... अपने हर संकल्प बोल और कर्म को.. *मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म बाप समान... बीजरूप और निराकारी... बस केवल एक की ही याद और उसी का स्वरूप बनती जा रही हूँ मैं... दूर दूर तक फैलता... मुझसे मेरे गुणों और शक्तियों का प्रकाश* मुझ आत्मा की विशेषताऐं सम्पूर्ण वातावरण को विशेष बना रही है...

 

 _ ➳  *प्रकाश की बदली बन... मेरी भृकुटि पर स्नेह और शक्तियों की बारिश करते शिव पिता*... और स्नेह की इस बारिश में मग्न... और पूरी तरह भीगी मैं आत्मा, चातक की तरह सम्पूर्ण स्नेह राशि को पीने की उत्कंठा मन में समायें... मैं उनके स्नेह को निरन्तर आत्मसात कर रही हूँ... *स्नेह का ये अटूट सा प्रवाह मेरे संकल्पों और बोल में समां रहा है...  संकल्प और बोल में निरंहकारी मैं आत्मा अपने गुणों व शक्तियों के प्रति एकदम निमित्त भाव, निरंहकारी भाव रख... प्रभु प्रसाद मानकर उसको सफल कर रही हूँ*... 

 

 _ ➳  मेरा हर संकल्प शुभ भाव और कर्म शुभ कामना बन सेवा कर रहा है... *मेरे हर बोल में निर्माणता आती जा रही है... सम्बन्ध सम्पर्क में शुभ वृत्ति मुझे प्यारा और न्यारा बना रही है... शिव पिता का स्नेह अब सागर का रूप लेता जा रहा है मेरे लिए*...  स्नेह सागर की गहराईयों में समाती हुई मैं झिलमिलाती मणि... देह भान के हर स्थूल रूप पर विजयी मैं आत्मा लगाव के सूक्ष्म रूपों की सूक्ष्म चैकिंग कर रही हूँ...

 

 _ ➳ *स्वयं को लगाव झुकाव के सभी स्वर्ण धागों मुक्त करती जा रही हूँ*... उन्मुक्त गगन में उडते पंछी की भाति... *देह में, संबन्धों में, सेवा में, गुणों और शक्तियों में "मेरापन" भी एक विकार है*...  मैं निराकारी निरंहकारी आत्मा इन सब "मैं" के विकारों से भी पूरी तरह मुक्त हो रही हूँ... फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं आत्मा बाप समान कर्मातीत अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख... आईना के समान सत्य दिखलाती उनकी आँखों में अपना स्वरूप निहार रही  हूँ...

 

 _ ➳  *और देख रही हूँ उनकी आँखों में स्वयं के लिए वो प्यार, वो प्रशंसा जो दुनिया के किसी शब्द कोश में नही है*... स्वयं को साक्षी होकर देखती हुई... *बाप समान ही मेरा ये निराकारी निरंहकारी और निर्विकारी रूप*...  और तभी प्रकाश का एक विशाल घेरा हम दोनों को बिन्दु बना ले चला परम धाम की ओर... *परमधाम में मैं और बाबा एक समान*... बीज रूप स्थिति में स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ... और अब लौट रहा हूँ अपनी देह में... *संकल्प, वाणी, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क में एक दम बाप समान... श्रेष्ठता निर्माणता सेवा भाव और शुभभावनाओं से भरपूर*...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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