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❍ 28 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ वंडरफुल ज्ञान और ज्ञान दाता का सिमरन कर गयाना डांस की ?
➢➢ दूसरों के पार्ट को न देख अपने पार्ट का ही सिमरन किया ?
➢➢ सदा याद की छत्रछाया के नीचे मर्यादा की लकीर के अन्दर रहे ?
➢➢ सर्व खजानों को स्वयं में समा सम्पन्नता का अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अभी चारों ओर साधना का वायुमण्डल बनाओ। समय समीप के प्रमाण अभी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य। सेकंड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो, एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर लो, इसको कहा जाता है-साधना।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं होली हँस हूँ"
〰✧ अपने को होली हंस समझते हो? होलीहंस का विशेष कर्म क्या है? (हरेक ने सुनाया) जो विशेषताएं सुनाई वह प्रैक्टिकल में कर्म में आती हैं? क्योंकि सिवाए आप ब्राह्मणों के होलीहंस और कौन हो सकता है? इसलिए फलक से कहो। जैसे बाप सदा ही प्योर हैं, सदा सर्वशक्तियां कर्म में लाते हैं, ऐसे ही आप होलीहंस भी सर्वशक्तियां प्रैक्टिकल में लाने वाले और सदा पवित्र हैं। थे और सदा रहेंगे। तीनों ही काल याद है ना? बापदादा बच्चों का अनेक बार बजाया हुआ पार्ट देख हर्षित होते हैं। इसलिए मुश्किल नहीं लगता है ना।
〰✧ मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कभी मुश्किल शब्द स्वपन में भी नहीं आ सकता। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में मुश्किल अक्षर है? कहाँ छोटे अक्षरों में तो नहीं है? माया के भी नालेजफुल हो गये हो ना? जहाँ फुल है वहाँ फेल नहीं हो सकते। फेल होने का कारण क्या होता है? जानते हुए भी फेल क्यों होते हो? अगर कोई जानता भी हो और फेल भी होता है तो उसे क्या कहेंगे? कोई भी बात होती है तो फेल होने का कारण है कि कोई न कोई बात फील कर लेते हो। फीलिंग फ्लू हो जाता है। और फ्लू क्या करता है - पता है? कमजोर कर देता है। उससे बात छोटी होती है लेकिन बड़ी बन जाती है तो अभी फुल बनो। फेल नहीं होना है, पास होना है। जो भी बात होती है उसे पास करते चलो तो पास विथ ऑनर हो जायेंगे। तो पास करना है, पास होना है और पास रहना है।
〰✧ जब फलक से कहते हो कि बापदादा से जितना मेरा प्यार है उतना और किसी का नहीं है। तो जब प्यार है तो पास रहना है या दूर रहना है? तो पास रहना है और पास होना है। यू.के. वाले तो बापदादा की सर्व आशाओंको पूर्ण करने वाले हो ना। सबसे नम्बरवन बाप की शुभ आशा कौन सी है? खास यू.के. वालों के लिए कह रहे हैं। बड़े बड़े माइक लाने हैं। जो बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनें और बाप के नजदीक आएं। अभी यू.के. में, अमेरिका में और भी विदेश के देशों में माइक निकले जरूर है लेकिन एक हैं सहयोगी और दूसरे हैं सहयोगी-समीप वाले। तो ऐसे माइक तैयार करो। वैसे सेवा में वृद्धि अच्छी हो रही है, होती भी रहेगी। अच्छा- रशिया वाले छोटे बच्चे हैं लेकिन लकी हैं। आपका बाप से कितना प्यार है! अच्छा है बापदादा भी बच्चों की हिम्मत पर खुश हैं। अभी मेहनत भूल गई ना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ निराकारी, आकारी और साकारी - इन तीनों स्टेजिस को समान बनाया है? जितना साकारी रूप में स्थित होना सहज अनुभव करते हो, उतना ही आकारी स्वरूप अर्थात अपनी सम्पूर्ण स्टेज व अपने अनादि स्वरूप - निराकारी स्टेज - में स्थित होना सहज अनुभव होता है?
〰✧ साकारी स्वरूप आदि स्वरूप है, निराकारि अनादि स्वरूप है। तो आदि स्वरूप सहज लगता है या अनादि रूप में स्थित होना सहज लगता हे?
〰✧ वह अविनाशी स्वरूप है और साकारी स्वरूप परिवर्तन होने वाला स्वरूप है। तो सहज कौन - सा होना चाहिए? साकारी स्वरूप की स्मृति स्वतः रहती है या निराकारी स्वरूप की स्मृति यहती है या स्मृति लानी पडती है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकेण्ड में उतारने हैं। जब चाहें धारण करें, जब चाहें न्यारे हो जाएं। लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं होगा। अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच हो नहीं सकेंगे। जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार से मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध में अगर अटैचमेन्ट है, लगाव है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- विश्व की आत्माओं को बाप का परिचय देना"
➳ _ ➳ इस सुहानी संगम के अमृतवेले मेरे प्राण प्यारे बाबा अलौकिक जन्मदिन की
बधाई देते हुए मुझे प्यार से जगाते हैं... मैं आत्मा भी बाबा को जन्मदिन की
बधाई देती हूँ... कितना अनोखा संगम है इस अनोखे संगम युग पर... बाप और बच्चे का
जन्मदिन एक ही दिन... प्यारे बाबा मुझे गोदी में उठाकर वतन में लेकर जाते
हैं... जहाँ चारों ओर रंग बिरंगे हीरों से सजे हुए बैलून्स हैं... इन बैलून्स
से रंग बिरंगी किरणें निकलकर मुझ आत्मा की चमक और बढ़ा रही है... प्यारे बाबा
मीठी रूह-रिहान करते हुए मुझे ज्ञानामृत पिलाते हैं...
❉ सर्व आत्माओं को बाप का परिचय देने सर्विस की भिन्न भिन्न युक्तियाँ बतलाते
हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में
फूल सा खिलने का जो सुख पाया है उस सुख को दूसरो के दामन में भी सजाओ... दुखो
में तड़फ रहे पुकार रहे हताश और निराश हो गए भाई आत्माओ को सुख और शांति की राह
दिखाओ... सच्चे पिता से मिलाकर उनको भी खजानो से भरपूर कर दो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रभु प्यार की कश्ती में डूबकर अनंत अविनाशी खुशियों से
भरपूर होते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे अथाह
खुशियो को पाकर सबको इस खान का मालिक बना रही हूँ... पूरा विश्व खुशियो से गूंज
उठे ऐसी परमात्म लहर फैला रही हूँ... प्यारे बाबा से हर दिल का मिलन करवा रही
हूँ... और आप समान भाग्य सजा रही हूँ...”
❉ मीठे बाबा खिवैया बन काँटों के समुंदर से फूलों के बगीचे में ले जाते हुए
कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... आप समान सबके दुखो को दूर करो...
आनन्द प्रेम शांति से हर मन को भरपूर करो... सबको उजले सत्य स्वरूप के भान का
अहसास दिलाओ... प्यारा बाबा आ गया है यह दस्तक हर दिल पर दे आओ... सब बिछड़े
बच्चों को सच्चे पिता से मिलवाओ और दुआओ का खजाना पाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा फ़रिश्ता बन चारों ओर ‘मेरा बाबा आ गया’ के ज्ञान फूल बरसाते
हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये प्यार दुलार और
ज्ञान रत्नों को हर दिल को बाटने वाली दाता बन गई हूँ... सबको देह से अलग सच्ची
मणि आत्मा के नशे से भर रही हूँ... प्यारे बाबा का परिचय देकर उनके दुखो से
मुरझाये चेहरे को सुखो से खिला रही हूँ...”
❉ मेरे बाबा कलियुगी अंधकार को दूर कर अखंड ज्योति बन ज्ञान की लौ जलाते हुए
कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सबके जीवन
को खुशियो से भर दो... विचार सागर कर नई योजनाये बनाओ... और ईश्वरीय पैगाम हर
आत्मा तक पहुँचाओ... सबकी जनमो की पीड़ा को दूर कर ख़ुशी उल्लास उमंगो से जीवन
सजा आओ... पिता धरा पर उतर आया है... पुकारते बच्चों को जरा यह खबर सुना आओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को उमंग उत्साह के पंख
दे उड़ाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे पायी अनन्त
खुशियो की चमक सबको दिखा रही हूँ... प्यारा बाबा खुशियो की खान ले आया है खजानो
को लुटाने आया है... यह आहट हर दिल पर करती जा रही हूँ... भर लो अपनी झोलियाँ
यह आवाज सबको सुना रही हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- वन्डरफुल ज्ञान और ज्ञान दाता का सिमरण कर ज्ञान डांस करना है
➳ _ ➳ मीठे मधुबन में बजने वाली मीठे बाबा की मीठी मुरली की स्मृति कानो में
जैसे एक मधुर संगीत सुना रही है और उस संगीत की मीठी तान को सुन कर मुझ आत्मा
गोपी के पाँव जैसे अपने आप थिरकने लगे है और मन ज्ञान की डांस करने लगा है। ज्ञान
डान्स करते - करते, मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपने मीठे
मधुबन घर में और देख रही हूँ अपने आप को मधुबन की एक खूबसूरत सुंदर सी ऊंची
पहाड़ी पर जहाँ बापदादा बच्चों के साथ पिकनिक मना रहें हैं उनके साथ खेल पाल कर
रहें हैं। बीच - बीच मे ज्ञान संगीत सुनाकर बच्चों का मनोरंजन भी कर रहें हैं।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे कान्हा की मीठी मुरली बज रही है और उस मुरली की मीठी
तान को सुनकर गोपियाँ अपनी सुध - बुध खो कर, मुरली की उस मीठी धुन पर, मदमस्त
होकर डान्स कर रही हैं। हर गोपी के साथ मैं कान्हा को देख रही हूँ। मन को
रोमांचित कर देने वाले इस दृश्य का आनन्द लेते हुए अब मै देख रही हूँ कैसे
ज्ञान सागर शिव बाबा ब्रह्मा तन में आकर ज्ञान की मुरली सुना रहें हैं और उनके
सामने बैठे सभी ब्राह्मण बच्चे सच्चे गोप गोपियाँ बन, एकटक बाबा के मुख मण्डल
को निहारते हुए उस मुरली का आनन्द लेकर अतिन्द्रीय सुख के झूले में झूल रहें
हैं। ज्ञान की मस्ती में डूबे सभी ज्ञान डांस कर रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने मीठे मधुबन घर में मीठे बाबा की मीठी मुरली की मीठी तान को सुन,
ज्ञान डान्स का भरपूर आनन्द लेकर मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं वापिस अपने
कार्य स्थल पर लौटती हूँ और ज्ञान डान्स सिखाने वाले अपने ज्ञान सागर प्यारे
पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ। बाबा की याद मुझ
आत्मा में एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझ आत्मा की टिमटिमाती लौ की
ज्योति को जगाकर, मुझे देह से बिल्कुल न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर रही
है। देह के परधर्म से मुक्त अपने स्वधर्म में स्थित मैं आत्मा अब अपने आप को
भृकुटि की कुटिया में जगमग करते हुए चैतन्य दीपक के रूप में देख रही हूँ जिसमे
से निकल रही प्रकाश की लौ मेरे मन मन्दिर में उजाला कर रही है और मन को सुकून
दे रही है।
➳ _ ➳ प्रकाश की यह लौ मेरे अंदर समाये गुणों और शक्तियों को तरंगों के रूप में
चारो और बिखेर कर वायुमण्डल को शान्त और सुखमय बना रही है। एक दिव्य अलौकिक
अनुभूति करते हुए मैं चैतन्य शक्ति अब भृकुटि की कुटिया को छोड़ देह से बाहर आकर,
ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। सेकेंड में साकार और सूक्ष्म वतन को पार कर मैं
पहुँच जाती हूँ अपने ज्ञान सागर शिव पिता के पास उनके शांति धाम घर में। ज्ञान
सागर अपने शिव पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ। उनसे आ रही ज्ञान की शीतल
लहरें मुझे धीरे - धीरे छू रही हैं और एक बहुत ही मीठा सगींत उतपन्न कर रही
हैं।
➳ _ ➳ गहन शीतलता की अनुभूति के साथ - साथ ज्ञान सागर की लहरों के मधुर संगीत
को सुन कर, मैं आत्मा भी उन लहरो के साथ लहरा रही हूँ। ज्ञान डान्स करते हुए
ज्ञान की रिमझिम फुहारों का असीम आनन्द ले कर मैं आत्मा अब सबको ज्ञान डान्स का
अनुभव कराने के लिए वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ। ज्ञान सागर अपने प्यारे
बाबा के ज्ञान की शीतल लहरो में ज्ञान डान्स करने के मधुर एहसास की मधुर
स्मृतियों के साथ मैं आत्मा अब अपना ब्राह्मण चोला फिर से धारण कर लेती हूँ। अपने
ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अब मै सदा ज्ञान सागर अपने पिता के साथ
कम्बाइंड रहते हुए, उनके ज्ञान की लहरों के मधुर संगीत को सुनते हुए स्वयं भी
ज्ञान डान्स करती रहती हूँ और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं
को भी ज्ञान सागर बाप की लहरों में लहराना
सिखला कर उन्हें भी ज्ञान डान्स करवाती रहती हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सदा याद की छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने वाली मायाजीत विजयी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं सर्व खजाना को स्वयं में समाकर संपन्नता का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ शक्ति अर्थात् सहयोगी। अभिमान के सिर वाली शक्ति नहीं लेकिन सदा सर्व
भुजाधारी अर्थात् सर्व परिस्थिति में ‘सहयोगी'। रावण के 10 सिर वाली आत्मायें
हर छोटी-सी परिस्थिति में भी कभी सहयोगी नहीं बनेगी। क्यों, क्या, कैसे के सिर
द्वारा अपना उल्टा अभिमान प्रत्यक्ष करती रहेंगी। क्यों का क्वेश्चन हल करेंगी
तो फिर कैसे का सिर ऊँचा हो जायेगा अर्थात् एक बात को सुलझायेंगी तो फिर दुसरी
बात शुरू कर देंगी। दूसरी बात को ठीक करेंगी तो तीसरा सिर पैदा हो जायेगा।
बार-बार कहेंगे यह बात ठीक है लेकिन यह क्यों? वह क्यों? इसको कहा जाता है कि
एक बात के10 शीश लगाने वाली शक्ति। सहयोगी कभी नहीं बनेंगे,सदा हर बात में
अपोजीशन करेंगे। तो अपोजीशन करने वाले रावण सम्प्रदाय हो गये ना। चाहे ब्राह्मण
बन गये लेकिन उस समय के लिए आसुरी शक्ति का प्रभाव होता है, वशीभूत होते हैं।
और शक्ति स्वरूप हर परिस्थिति में,हर कार्य में सदा सहयोगी बन औरों को भी
सहयोगी बनायेंगे। चाहे स्वयं को सहन भी करना पड़े, त्याग भी करना पड़े लेकिन सदा
सहयोगी होंगे। सहयोग की निशानी भुजायें हैं, इसलिए कभी भी कोई संगठित कार्य
होता है तो क्या शब्द बोलते हो? अपनी-अपनी अँगुली दो, तो यह सहयोग देना हुआ ना।
अँगुली भी भुजा में है ना। तो भुजायें सहयोग की ही निशानी दिखाई हैं। तो समझा
शक्ति की भुजायें और रावण के सिर। तो अपने को देखो कि सदा के सहयोगी मूर्त बने
हैं?
✺ "ड्रिल :- शक्ति स्वरुप बन सहयोगी बन कर रहना तथा औरों को भी सहयोगी बनाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ कोयले के काले धुंए से बाहर उड़ते हुए पहुँच
जाती हूँ सूक्ष्मवतन चमकीले सफेद प्रकाश की दुनिया में... मैं आत्मा रावण राज्य
में कलियुगी रूपी कोयले के खदान में पड़ी थी... विकारों, विकर्मों की कालिख में
लिपटी थी... सुप्रीम जौहरी बाबा ने आकर मुझ आत्मा को कोयले की खदान से
निकाला... मुझे तराशकर कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया...
➳ _ ➳ बाबा मुझे अपने सम्मुख बिठाते हैं... बाबा ज्ञान-योग की किरणें मुझ आत्मा
पर प्रवाहित कर रहे हैं... मैं आत्मा इन किरणों के झरने में बैठ जाती हूँ...
मुझ आत्मा का अज्ञानता रूपी अन्धकार दूर हो रहा है... विकारों, विकर्मों रूपी
कालिख इन किरणों में बाहर बहता जा रहा है... मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्ध,
देह के पदार्थों के बंधन रूपी जंजीरों से मुक्त हो रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की आंखों से जन्म-जन्मान्तर के अज्ञानता रूपी परदे हट गए
हैं... मैं आत्मा त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... मैं आत्मा स्वयं के असली स्वरुप को
देख रही हूँ... एक चमकता हुआ हीरा, ज्योतिबिंदु, तेजोमय प्रकाश से भरपूर
जगमगाता हुआ एक सितारा हूँ... मैं आत्मा अपने असली पिता, असली घर को पहचान गई
हूँ... मैं आत्मा अपने पिता से लिपट जाती हूँ...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझे प्यार से अपनी गोदी में बिठाकर रंग-बिरंगी गुण,
शक्तियों की मालाओं से सजा रहे हैं... मैं आत्मा सर्व गुण, शक्तियों के खजानों
से भरपूर अनुभव कर रही हूँ... सर्व भुजाधारी शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो
रही हूँ... अब मैं आत्मा शक्ति स्वरुप बन रावण के 10 शीश का अंत कर रही
हूँ... क्यों, क्या,कैसे के रावण के सिर को अंश सहित खत्म कर रही हूँ... अब
मुझ आत्मा में आसुरी शक्तियों का कोई भी प्रभाव शेष नहीं है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा रावण के अभिमान के सिर का नाश कर रावण सम्प्रदाय को खत्म कर
चुकी हूँ... अब मैं आत्मा सदा सर्व भुजाधारी शक्ति बन सर्व परिस्थिति में सर्व
की सहयोगी बन रही हूँ... अब मैं शक्ति स्वरूप बन हर परिस्थिति में, हर कार्य
में सदा सहयोगी बन औरों को भी सहयोगी बना रही हूँ... चाहे मुझ आत्मा को सहन भी
करना पड़े, त्याग भी करना पड़े लेकिन सदा की सहयोगी मूर्त बनकर रहती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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