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 27 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ काम काज करते एक बाप की याद में रहे ?

 

➢➢ मुरली मिस तो नहीं की ?

 

➢➢ कर्म और सम्बन्ध दोनों में स्वार्थ से मुक्त रहे ?

 

➢➢ सरलचित और सहज स्वभाव से सहजयोगी और भोलानाथ के प्रिय बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अभी निर्भय ज्वालामुखी बन प्रकृति और आत्माओं के अन्दर जो तमोगुण है उसे भस्म करो। तपस्या अर्थात् ज्वाला स्वरूप याद, इस याद द्वारा ही माया वा प्रकृति का विकराल रूप शीतल हो जायेगा। आपका तीसरा नेत्र, ज्वालामुखी नेत्र माया को शक्तिहीन कर देगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं खुशनसीब आत्मा हूँ"

 

✧  अपने को सदा खुशनसीब आत्माएं समझते हो? खुशनसीब आत्माओंकी निशानी क्या होगी? उनके चेहरे और चलन से सदा खुशी की झलक दिखाई देगी। चाहे कोई भी स्थूल कार्य कर रहे हों, साधारण काम कर रहे हों लेकिन हर कर्म करते खुशी की झलक दिखाई पड़े। इसको कहते हैं निरन्तर खुशी में मन नाचता रहे। ऐसे सदा रहते हो? या कभी बहुत खुश रहते हो, कभी कम?

 

✧  खुशी का खजाना अपना खजाना हो गया। तो अपना खजाना सदा साथ रहेगा ना। या कभी-कभी रहेगा? बाप के खजाने को अपना खजाना बनाया है या भूल जाता है अपना खजाना? अपनी स्थूल चीज तो याद रहती है ना। वह खजाना आंखों से दिखाई देता है लेकिन यह खजाना आंखों से नहीं दिखाई देता, दिल से अनुभव करते हो। तो अनुभव वाली बात कभी भूलती है क्या? तो सदा यह स्मृति में रखो कि हम खुशी के खजाने के मालिक हैं। जितना खजाना याद रहेगा उतना नशा रहेगा। तो यह रूहानी नशा औरों को भी अनुभव करायेगा कि इनके पास कुछ है। जब ब्राह्मण जीवन के लिए संसार ही एक बाप है, तो संसार के सिवाए और क्या याद आयेगा। सदा दिल में अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत गाते रहो।

 

✧  ऐसा श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में प्राप्त होगा? जो सारे कल्प में अभी प्राप्त होता है, तो अभी की खुशी, अभी का नशा सबसे श्रेष्ठ है। पाण्डव तो नष्टोमोहा हैं ना। व्यवहार में कुछ ऊपर-नीचे हो जाए, फिर नष्टोमोहा हैं? अभी भी बीच-बीच में माया पेपर तो लेती है ना। तो उसमें पास होते हो? या जब माया आती है तब थोड़ा ढीले हो जाते हो? तो सदा खुशी के गीत गाते रहो। समझा? कुछ भी चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। चाहे किसी भी रूप में माया आये लेकिन खुशी न जाये। ऐसे खुश रहने वाले ही सदा खुशनसीब हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  वर्तमान समय सर्व की एक ही पुकार कौन-सी है, वह जानते हो? धर्मिक नेताओं, राजनेताओं और सर्वश्रेष्ठ साइन्स वा और साथ-साथ आम जनता की एक ही पुकार है कि अब जल्दी में कुछ बदलना चाहिए। सर्व क्षेत्र की आत्मायें अब अपने को फेल अनुभव करने लगी हैं। अब कोई सुप्रीम पॉवर चाहिए। सबकी चाहना का दीपक वा इस आवश्यकता को महसूस करने के संकल्प का दीपक जग चुका है।

 

✧  अब उसको और तेज करने के लिए आप सर्व आत्माओं के संकल्प घृत चाहिए जिससे सर्व की पुकार के ऊपर उपकार कर सकी। (आज दो-चार बार बीच-बीच में बिजली जाती रहती थी) देखो यह लाइट भी शिक्षा दे रही है। जैसे लाइट एक सेकण्ड में आती और चली जाती है, ऐसे ही आप भी एक सेकण्ड में पुकार वालों के पास उपकारी बन पहुँच जाओ।

 

✧  ऐसा अभ्यास आने और जाने का हो। अभी-अभी पुकार सुनी और अभी-अभी पहुँचे। अब सर्व की पुकार मेहनत से छूट सहज प्राप्ति करने की है। साइन्स वाले भी बहुत मेहनत कर थक गए हैं। धर्मिक आत्मायें भी साधना करके थक गई है। राजनैतिक लोग अनेक दल-बदलुओं के चक्र से थक गये हैं। और आम जनता समस्याओं से थक गई है। अब सबकी थकावट उतारने वाला कौन?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ तो विजय प्राप्त करने का साधन है - स्व-स्थिति द्वारा परिस्थिति पर विजय। यह देह भी पर है, स्व नहीं। तो देह के भान में आना, यह भी स्वस्थिति नहीं है। तो चेक करो सारे दिन में स्व-स्थिति कितना समय रहती है? क्यों कि स्व-स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव करायेगा और प्रकृति-धर्म अर्थात् पर-धर्म या देह की स्मृति किसी-न-किसी प्रकार के दु:ख का अनुभव जरूर करायेगी। तो जो सदा स्वस्थिति में होगा वह सदा सुख का अनुभव करेगा। सदा सुख का अनुभव होता है कि दु:ख की लहर आती है। संकल्प में भी अगर दुख की लहर आई तो सिद्ध है स्व-स्थिति से, स्व-धर्म से नीचे आ गये।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप को बड़ी रूचि से याद करना"

➳ _ ➳ मीठे बाबा के कमरे में बैठी हुई मै आत्मा,.. मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर किये हुए अनन्त उपकारों को याद कर रही हूँ... प्यारे बाबा ने मुझ, देह की मिटटी में लथपथ आत्मा को... अपने प्यार भरे हाथो में लेकर, देवताई कृति बना दिया है... सच्ची खुशियो को मेरे जीवन में सजाकर... मुझे ख़ुशी और आनन्द का पर्याय बना दिया है... आज ईश्वरीय प्यार की बदौलत... मै आत्मा गुणवान, शक्तिवान बनकर हीरे जैसा दमक रही हूँ... और मेरी चमक पूरे विश्व को आकर्षित कर... मीठे बाबा का दीवाना बना रही है...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्ची खुशियो से महकाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... भगवान के दर्शन मात्र को कितने जतन करते रहे... आज भाग्य ने भगवान को ही सम्मुख ला दिया है... जो अपनी गोद में बिठाकर पढ़ा रहा... प्यार की पालना देकर, जीवन को हीरे जैसा चमका रहा... ऐसे मीठे प्यारे बाबा को असीम ख़ुशी के साथ याद कर सच्चे प्यार में डूब जाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वर को अपनी नजरो के सम्मुख पाकर, ख़ुशी से नाचते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा अपने भाग्य की जादूगरी पर फ़िदा हूँ, जिसने ईश्वर को मेरी बाँहों में दिलवाकर, मुझे असीम खुशियो से भर दिया है...मै आत्मा आपकी प्यारी बाँहों में बेफिक्र बादशाह बन गयी हूँ और हीरो सी दमक को पा रही हूँ...

❉ प्यारे बाबा ने मुझे अनन्त शक्तियो से भरकर शक्तिशाली बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय प्यार हीरे जैसा सज संवर कर, सदा सच्ची खुशियो में मुस्कराओ... गुणो और शक्तियो से भरपूर होकर, अनन्त सुख भरे सतयुग में देवताई सत्ता को पाओ... मीठे बाबा की यादो में इस कदर खो जाओ कि... जीवन सुखो का पर्याय बन, मीठे स्वर्ग की धरोहर को दिलवाये..."

➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के अथाह ज्ञान धन को दिल में समाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपके बिना मेरा जीवन दुखो का जंगल बन गया था... जिसमे मै आत्मा लहुलहानं, होकर बेहाल थी... मेरी दारुण पुकार सुन, आपने जो मेरा हाथ थामा... मेरा जीवन सुखो की बहार बनकर, मुस्कराने लगा है...अब मै आत्मा एक पल के लिए भी आपको भूलती नही हूँ..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देह की धूल से निकाल हीरे सा जगमगाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सदा ईश्वरीय यादो के नशे में डूबे रहो... यह यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से हर पल, हर साँस से याद करो... सदा यादो के समन्दर में डूबे रहो... यह यादे ही विकर्मो से मुक्त कराकर...जीवन को सुख की बगिया बनाएंगी...

➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर खुशियो में गुनगुनाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा आपको पाकर सारे जहान की खुशियो से भर गयी हूँ... देह के दलदल से निकाल कर... मुझे अपनी बाँहों में पावनता से महका रहे हो... दिव्य गुणो से मेरा दामन सजा रहे हो..."मै आत्मा रोम रोम से आपकी यादो में डूबी हुई हूँ... मीठे बाबा से रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपनी देह में लौट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- भगवान पढ़ाते हैं इसलिए मुरली एक दिन भी मिस नही करनी है"
 
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अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को जो मुझे हर रोज मुरली के माध्यम से प्राप्त होती है। जिसमे लिखे एक - एक शब्द में मेरे शिव प्रीतम का मेरे प्रति अथाह प्रेम समाया होता है, उस प्रेम भरी पाति को पढ़ कर मैं आत्मा सजनी अपने शिव प्रीतम के प्रेम की गहराई में डूबती जा रही हूँ। मुरली के एक - एक शब्द में अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। बाबा की मीठी याद प्रेम की मीठी मीठी फुहारों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसती हुई महसूस हो रही है जो मुझे एक बहुत ही न्यारी और प्यारी अवस्था की अनुभूति करवा रही है। यह न्यारी और प्यारी अवस्था मुझे देह और देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर रही है।
 
➳ _ ➳ 
देह और देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त, अशरीरी स्थिति में मैं स्थित होती जा रही हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही मेरे शिव पिता परमात्मा का प्रेम चुम्बक की तरह मुझे अपनी ओर खींच रहा है। अपने शिव प्रीतम के प्रेम की लग्न में मग्न हो कर मैं आत्मा सजनी विदेही बन, अपनी इस नश्वर देह का परित्याग कर चल पड़ी उनसे मिलने उनके ही धाम, परमधाम की ओर। परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही अपने शिव प्रीतम के प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अब पहुंच गई अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में।
 
➳ _ ➳ 
अब मैं स्वयं को आत्माओ की एक ऐसी निराकारी दुनिया मे देख रही हूँ जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही। हर तरफ चमकते हुए सितारे दिखाई दे रहें हैं और उन सभी चमकते सितारों के बीच मे एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं। उस ज्योतिपुंज शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली अनन्त किरणों का प्रकाश आत्मा को तृप्त कर रहा है। उस प्रकाश में सातों गुण और अष्ट शक्तियों का समावेश है जो शक्तिशाली वायब्रेशन के रूप में पूरे परमधाम में फैल रहा है। ये शक्तिशाली वायब्रेशन आत्मा को उसके ओरिजनल स्वरूप के स्थित करके उसे गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं।
 
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अपने शिव प्रीतम के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे आकर, फ़रिशतो की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ। अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को उनके ही मुख कमल से सुनने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर पहुंच जाती हूँ उनके सम्मुख। मेरे बिल्कुल सामने मेरे प्रीतम शिव बाबा अपने अव्यक्त आकारी रथ ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान है। ब्रह्मा मुख कमल से मेरे शिव साजन मीठे मधुर महावाक्य उच्चारण करते हुए, मुझ आत्मा सजनी से मीठी रूह - रिहान करते हुए अपनी प्रेम भरी दृष्टि से मुझे निहार रहें हैं।
 
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अपनी मीठी मधुर दृष्टि से मुझे भरपूर करके अब मेरे शिव प्रीतम ब्रह्मा मुख कमल द्वारा उच्चारित प्रेम भरे मधुर महावाक्यों को मुरली के रूप में मुझे भेंट कर अपने धाम लौट रहे हैं। मैं आत्मा अपने प्यारे शिव परम पिता परमात्मा की उस प्रेम भरी पाति को अपने साथ लिए अब वापिस अपनी साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने निराकार स्वरूप में अब मैं आत्मा अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हूँ और फिर से अपने अकाल तख्त पर आकर विराजमान हो गई हूँ।
 
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अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को अब हर रोज मुरली के माध्यम से पढ़ कर, स्वयं को उनके प्रेम से भरपूर कर मैं आनन्द विभोर हो जाती हूँ। मुरली में लिखे मेरे शिव प्रीतम के मधुर महावाक्य मुझे माया के हर तूफान से लड़ने का बल देते हैं। अपने शिव प्रीतम के प्रेम पत्र मुरली को अपने दिल से लगाये, उनके प्रेम में खोई मैं हर बात से जैसे उपराम हो गई हूँ और इसी उपराम स्थिति ने मुझे मायाजीत बना दिया है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं कर्म और संबंध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त्त रहने वाली बाप समान कर्मातीत आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं सरलचित और सहज स्वभाव वाली सहजयोगी, भोलानाथ की प्रिय आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

  अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  महात्यागी- सदा सम्बन्धसंकल्प और संस्कार सभी के परिवर्तन करने के सदा हिम्मत और उल्लास में रहते। पुरानी दुनियापुराने सम्बन्ध से सदा न्यारे हैं। महात्यागी आत्मायें सदा यह अनुभव करती कि यह पुरानी दुनिया वा सम्बन्धी मरे ही पड़े हैं। इसके लिए युद्ध नहीं करनी पड़ती है। सदा स्नेहीसहयोगीसेवाधारी शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रहते हैंबाकी क्या रह जाता है! महात्यागी के फलस्वरूप जो त्याग का भाग्य है - महाज्ञानीमहायोगीश्रेष्ठ सेवाधारी बन जाते हैं! इस भाग्य के अधिकार को कहाँ-कहाँ उल्टे नशे के रूप में यूज़ कर लेते हैं। पास्ट जीवन का सम्पूर्ण त्याग है लेकिनत्याग का भी त्याग नहीं है'  लोहे की जंजीरे तो तोड़ दींआइरन एजड से गोल्डन एजड तो बन गयेलेकिन कहाँ-कहाँ परिवर्तन सुनहरी जीवन के सोने की जंजीर में बंध जाता है। वह सोने की जंजीरें क्या है? ‘‘मैं'' और‘मेरा''। मैं अच्छा ज्ञानी हूँमैं ज्ञानी तू आत्मायोगी तू आत्मा हूँ। यह सुनहरी जंजीर कहाँ-कहाँ सदा बन्धनमुक्त बनने नहीं देती।

 

✺  "ड्रिल :- लोहे की जंजीरों को तोड़ स्वयं को सोने की जंजीरों में नहीं बाँधना।”

 

 _ ➳  मैं आत्मा झील के किनारे प्रकृति की गोद में बैठकर उसकी हरियाली का आनंद ले रही हूँ... खिली-खिली सुहानी धूप में तेज रूहानी हवायें गीत गुनगुना रही हैं... रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर अपना रंग-बिरंगी आँचल बिछाकर मुस्कुरा रहे हैं... चीं-चीं करती चिड़िया, कूं-कूं करती कोयल, भूं-भूं करते भंवरे, झर-झर बहते झरने मेरे ह्रदय को प्रफुल्ल्ति कर रहे हैं... इतने में एक प्यासा हिरन झील का पानी पीने आता है और फुदक-फुदक कर इधर से उधर भागता है... मैं आत्मा उसके पीछे जाने की कोशिश करती हूँ... इतने में प्यारे बाबा मेरे सामने आ जाते हैं...      

 

 _ ➳  प्यारे बाबा कहते हैं- मेरी मीठी बच्ची कहाँ भाग रही हो... मैं कहती हूँ मेरे प्यारे बाबा मैं आत्मा उस हिरन को पकड़ने की कोशिश कर रही हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मुझे अपने सामने बिठाकर कहते हैं- मेरी लाडली तुमने ये कहानी तो सुनी होगी... सीता वनवास के समय अपने राजमहल के सभी ठाठ-भाट छोड़कर वन में आई... पर वन में सोने के हिरन को पाने के लिए रावण के चंगुल में फंस गई... और राम से दूर होकर मायावी रावण के अधीन हो गई... वैसे ही बच्ची चेक करो कि तुम भी सोने की जंजीरों में पड़कर फिर से मायावी रावण के चंगुल में तो नहीं फंस रही हो?     

 

 _ ➳  बाबा कहते हैं:- बच्ची- श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन अपनाकर तुमने पुरानी दुनियापुराने सम्बन्ध सबसे सदा न्यारे तो हो गए हो... पुराने जीवन का सम्पूर्ण त्याग किया है, लेकिन  ‘त्याग का भी त्याग किए हो? लोहे की जंजीरे तो तोड़ दींसोने की जंजीरों में तो नहीं बंधे हो?‘‘मैं'' और ‘‘मेराये ऐसी सुनहरी जंजीरें हैं जो बन्धनमुक्त बनने नहीं देती हैं... महाज्ञानी, महायोगी, श्रेष्ठ सेवाधारी बनकर महात्यागी तो बन गए हो लेकिन सर्वस्व त्यागी बने हो? बाबा मुझे समझानी देते हुए वरदान देते हैं- बच्चे सदा फालो फादर करते हुए बाप समान सर्वस्व त्यागी बनो, महादानी बनो...

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को धारण कर फालो फादर कर रही हूँ... बाबा दृष्टि देते हुए मुझे सर्व शक्तियों से सम्पन्न बना रहे हैं... मैं आत्मा पुराने सम्बन्ध, सम्पर्क, पुरानी दुनिया का पूरी तरह त्याग कर चुकी हूँ... ‘‘मैं'' और ‘‘मेरा'' की सोने की जंजीरें बाबा की किरणों में भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा सर्व प्रकार के बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ... अब मैं आत्मा शिव शक्ति बन बाबा के साथ कंबाइंड रहकर हर कर्म करती हूँ... और कर्म के फल को भी बाबा को समर्पित कर देती हूँ... नाम, मान, शान की कभी भी अपेक्षा नहीं करती हूँ... करन करावनहार बाबा है मैं आत्मा निमित्त हूँ...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा ‘‘मैं'' और ‘‘मेरा'' के स्वार्थ भावों को ‘‘मैं आत्मा'' और ‘‘मेरा बाबा'' में परिवर्तित कर चुकी हूँ... अब मैं आत्मा ज्ञानीयोगी होने का अहंकार नहीं करती हूँ... ये ज्ञानसागर बाबा का दिया ज्ञान है... जिसने मुझे राजयोग सिखाकर ज्ञानी, योगी बनाया... मैं आत्मा निष्काम भाव से सर्व की सेवा कर रही हूँ... मैं आत्मा वफादार, फरमानबरदार बन इस महायज्ञ में तन, मन, धन से अपना सबकुछ सम्पूर्ण स्वाहा कर सर्वस्व त्यागी बन गई हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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