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 26 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ अपनी बुधी को हद से निकाल बेहद में ले गए ?

 

➢➢ याद के बल से आत्मा में भरे कीचड़े को साफ़ किया ?

 

➢➢ आत्मिक मुस्कराहट द्वारा चेहरे से प्रसन्नता की झलक दिखाई ?

 

➢➢ शीतल काय वाले योगी बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  यदि कोई संस्कार स्वभाव वाली आत्मा आपके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो तो उस आत्मा के प्रति भी सदा कल्याण का संकल्प वा भावना बनी रहे, आपके मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे, तब श्रेष्ठ शुभ वृत्तियों द्वारा मन्सा सेवा कर सकेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाली आत्मा हूँ"

 

  सभी अपने को हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले समझते हो? कितना जमा किया है? अरब, खरब कितना जमा किया है? हिसाब कर सकते हो? आजकल का कम्यूटर हिसाब कर सकता है? तो सारे कल्प में और सारे वर्ल्ड में ऐसा साहूकार कोई होगा? आप सभी हो? या कोई कम हो, कोई ज्यादा हो? सभी भरपूर हो? सदैव ये नशा रहे कि हर कदम में पद्मों की कमाई करने वाली आत्मा हूँ। लौकिक दुनिया में कहते हैं कि इतना कमा कर इकठ्ठा करें जो वंश के वंश खाते रहें। तो आपकी कितनी जनरेशन (पीढ़िया) खाती रहेंगी? एक जन्म में अनेक जन्मों की कमाई जमा कर ली है और अनेक जन्म आराम से खाते रहेंगे।

 

  सतयुग में अमृतवेले उठकर योग लगायेंगे? योग की सिध्धि प्राप्त करेंगे। जैसे-पढ़ाई तब तक पढ़ी जाती है जब तक पास नहीं हो जाते। तो अनेक जन्मों जितना जमा किया है? कभी भी विनाश हो जाये तो आपका जमा रहेगा ना। या कहेंगे थोड़ा समय मिले तो और कर लें? अभी और टाइम चाहिए? एवररेडी हो? आप यहाँ आये हो और यहीं विनाश शुरू हो जाए तो सेन्टर या सेन्टर का सामान याद आयेगा? कुछ याद नहीं आयेगा। इतने बेफिक्र बादशाह बने हो ना!

 

  जब देह भी अपनी नहीं तो और क्या अपना है! तन, मन, धन-सब दे दिया ना! जब संकल्प किया कि सब-कुछ तेरा, तो एवररेडी हो गये ना। सभी ने दृढ़ संकल्प कर लिया है कि मैं बाप की और बाप मेरा। संकल्प किया या दृढ़ संकल्प किया? कोई फिक्र नहीं है। कोई ऐसी खबर आ जाये तो फिक्र होगा? पÌलैट याद नहीं आयेगा? अच्छा है, पक्के हैं। जब ब्रह्मण बनना ही है तो पक्का बनना है, कच्चा बनने से क्या फायदा! जीते-जी मर गये कि थोड़ा-थोड़ा श्वांस चलता है? कहाँ श्वांस छिप तो नहीं गया है?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सेकण्ड में स्थापना का कार्य अर्थात सेकण्ड में दृष्टि दी और सृष्टि बन गई - ऐसी स्पीड है? तो सदा स्थापना के निमित आत्माओं को यह स्मृति रखनी चाहिए कि हमारी गति विनाशकारियों से तेज हो क्योंकि पुरानी दुनिया के विनाश का कनेक्शन नई दुनिया की स्थापना के साथ-साथ है। 

 

✧  पहले स्थापना होनी है या विनाश? स्थापना की गति पहले तेज होनी चाहिए ना!

 

✧  स्थापना की गति तेज करने का विशेष आधार है - सदा अपने को पॉवरफुल स्टेज पर रखो। नॉलेजफुल के साथ-साथ पॉवरफुल दोनों कम्बा हो। तब स्थापना का कार्य तीव्र गति से होगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ यह देह अब आपकी देह नहीं रही। देह भी बाप को दे दी। सब तेरा कहा अर्थात् मेरा कुछ नहीं। इस देह को सेवा के अर्थ बाप ने लोन में दी है। लोन में मिली हुई वस्तु पर मेरे-पन का अधिकार हो नहीं सकता। जब मेरी देह नहीं तो देह का भान कैसे आ सकता! आत्मा भी बाप की बन गई। देह भी बाप की हो गई तो मैं और मेरा अल्प का कहाँ से आया! मैं-पन सिर्फ एक बेहद का रहा। मैं बाप का हूँ। जैसा बाप वैसा मैं मास्टर हूँ। तो यह बेहद का मैं-पन रहा। हद का मैं-पन विघ्नों में लाता है। बेहद का मैं-पन निर्विघ्न, विघ्न विनाशक बनाता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- सच्चे बाप के साथ अन्दर बाहर सच्चा बनना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपनी चेतना सरोवर के तट पर बैठकर चिंतन करती हूँ... अभी इस सरोवर में शांति की लहरें उठ रही हैं... पहले इसी चेतना सरोवर में कितने ही प्रश्नों की लहरें उठती थी और मैं आत्मा उनका जवाब ना मिलने के कारण परेशान, दुखी हो जाती थी... मेरे बाबा ने आकर सारे प्रश्नों के जवाब देकर मेरे मन के सरोवर में कमल खिला दिया... अब मैं आत्मा एकांत में शांत मन से मीठे बाबा को शुक्रिया करने पहुँच जाती हूँ वतन में...        

❉  सच्ची कमाई के मार्ग को ज्ञान से रोशन करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं भगवान टीचर बनकर पढ़ा रहा है... तो देवताई संस्कारो को भरकर, श्रेष्ठतम जीवन के अधिकारी बन जाओ... पुरानी दुनिया के विकारी ख्यालातों को छोड़कर... सोने जैसा दमकता श्रेष्ठ जीवन अपनाओ... सुंदर संस्कारो को अपनाकर जीवन सुखो के फूलो में खिलाओ...”

➳ _ ➳  श्रीमत का हाथ थाम हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्ची शिक्षाओ को धारण कर.. सच्चाई से छलकता हुआ जीवन जीने वाली महान आत्मा बन गई हूँ... खुबसूरत ख्यालो वाली खुबसूरत आत्मा बनकर आपकी बाँहों में मुस्करा रही हूँ... जीवन कितना प्यारा और सुंदर हो गया है...”

❉   मीठे बाबा स्नेह प्यार की तरंगों में डुबोकर मेरे भाग्य के सितारे को चमकाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्ची कमाई करने के सुन्दरतम दिनों में सुंदर भाग्य की कहानी लिख लो... विकारो के ख्यालातों से इस मीठे भाग्य को दाग न लगाओ... ईश्वर पिता की खुशनुमा यादो में जीवन इस कदर गुणो से महका दो... की धर्मराज का कोई डर न रहे...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा झूठी माया की झूठी मत को छोड़ मीठे बाबा की मीठी मत पर चलते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा सच की कमाई से मालामाल होती जा रही हूँ... आपका हाथ पकड़ कर ज्ञान और योग से, मै आत्मा देवताई स्वभाव पाती जा रही हूँ... मीठे और सच्चे दिल को पाकर बापदादा के दिलतख्त पर मुस्करा रही हूँ...”

❉  ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से मालामाल कर पदमपति बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठा बाबा अपना धाम छोड़कर... धरा पर उतर, शिक्षक बन सुख और खुशियो भरी दुनिया का अधिकारी बना रहा है... तो हर साँस से सच्ची कमाई कर सदा के धनवान् हो जाओ... रोम रोम से सच्चाई को छलकाने वाले ईश्वरपुत्र बनकर ईश्वरीय अदा जहान में दिखाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा देह के मटमैले आवरण को निकाल आत्मिक स्वरुप में मणि समान चमकती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके मीठे प्यार की बाँहों में जीकर... दुखो के दुनिया में अपनाये हर विकार से मुक्त होती जा रही हूँ... सच्चाई भरा निर्मल और पवित्र जीवन जीने वाली... सच्ची सच्ची ब्राह्मण बन मुस्करा रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  रचयिता और रचना के राज को यथार्थ समझ आस्तिक बनना है"

➳ _ ➳  स्वयं को आस्तिक समझने वाले, भगवान को जानने का दावा करने वाले, भगवान की बड़ी - बड़ी महिमा करने वाले बड़े - बड़े महा मंडलेश्वर, साधू सन्यासी भी वास्तव में भगवान को ना जान सके और ना ही पहचान सके किन्तु अति साधारण दिखने वाली जिन चन्द आत्माओं ने भगवान बाप को पहचान लिया वास्तव में वो ब्राह्मण बच्चे ही सही अर्थ में आस्तिक हैं। एकांत में बैठ मन ही मन चिंतन करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की मैं सराहना करती हूँ कि कितनी पदमापदमा सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे भगवान ने स्वयं आकर ज्ञान का वो तीसरा नेत्र दिया जिससे भगवान को पहचान कर मैं सही मायने में आस्तिक बन गई।

➳ _ ➳  जैसे भगवान बाप ने ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर अज्ञान अन्धकार से मुझे निकाल कर आस्तिक बनाया ऐसे ही मुझे भी अज्ञान अन्धकार में भटक रही आत्माओ को परमात्म ज्ञान देकर सोझरे में लाना है ताकि वो भी परमात्मा को पहचान सकें और सही अर्थ में आस्तिक बन सके। मन ही मन स्वयं से मैं जैसे ही यह प्रतिज्ञा करती हूँ वैसे ही परमात्म ब्लैसिंग बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त शक्तिशाली किरणो के रूप में सीधे
परमधाम से मुझ आत्मा पर बरसने लगती हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा इस ईश्वरीय सेवा के लिए मुझ में असीम बल भर कर मुझे बलशाली बना रहे हैं। परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियों का मेरे अंदर गहराई तक समावेश हो रहा है।

➳ _ ➳  स्वयं को मैं बहुत ही लाइट और माइट अनुभव कर रही हूँ। मेरी यह लाइट और माइट स्थिति मुझे देह से डिटैच कर रही है। स्वयं को मैं देह में विराजमान किन्तु देह से एकदम अलग अनुभव कर रही हूँ। एक अति प्यारी साक्षी स्थिति में स्थित हो कर मैं अपने शरीर रूपी रथ को और अपने आस पास की हर वस्तु को देख रही हूँ किन्तु इन सबके आकर्षण से मैं पूर्णतया मुक्त हूँ। साक्षी हो कर इन सबको मन बुद्धि के नेत्रो से देखते हुए अब मै इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर उड़ चलती हूँ। कुछ सेकंड की एक अति सुंदर रूहानी यात्रा को पूरा करके मैं अपने पिता के घर, निराकारी आत्माओं की दुनिया में आ पहुँचती हूँ। यहाँ पहुंच कर मन को गहन शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है।

➳ _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपनी मंजिल पर पहुँच गई हूँ। मेरे बिल्कुल सामने, शांति, सुख, प्रेम, आनन्द, शक्ति, ज्ञान और पवित्रता के सागर मेरे शिव पिता विराजमान है और अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मेरा आह्वान कर रहें हैं। अपने शिव पिता की और तीव्र गति से बढ़ती हुई मैं आत्मा उनकी किरणो रूपी बाहों में जा कर समा जाती हूँ। अपनी किरणों रूपी बाहों के आगोश में लेकर बाबा अपनी असीम शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली, बहुत ही एनर्जेटिक अनुभव कर रही हूँ। बाबा अपने सर्व गुण, सर्व शक्तियाँ मेरे अंदर प्रवाहित कर मुझे आप समान बना रहें हैं।

➳ _ ➳  भरपूर होकर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपने ब्राह्मण तन में विराजमान हो कर अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को परमात्मा का सत्य ज्ञान, सत्य परिचय दे रही हूँ। वे आत्मायें जो भगवान को पाने के लिए भक्ति के व्यर्थ के कर्मकाण्डों में फंस कर अपने समय और एनर्जी को वेस्ट कर रही हैं उन्हें सत्य ईश्वरीय मार्ग दिखा कर, परमात्म पहचान दे कर, परमात्मा को याद करने की यथार्थ विधि बताकर उन्हें भक्ति के व्यर्थ के कर्मकांडो से मुक्ति दिलाकर  आस्तिक बना रही हूँ।

➳ _ ➳  स्वयं आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाना इसी ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे यह ब्राह्मण जीवन मिला है इस बात को स्मृति में रख यह परमात्म सेवा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं आत्मिक मुस्कुराहट द्वारा चेहरे से प्रसन्नता की झलक दिखाने वाली विशेष आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं शीतल काया वाला योगी स्वयं शीतल बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल करने वाला सहजयोगी हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सर्वंश त्यागीसदा विश्व-कल्याणकारी की विशेषता वाले होंगे। सदा दाता का बच्चा दाता बन सर्व को देने की भासना से भरपूर होंगे। ऐसे नहीं कि यह करे वा ऐसी परिस्थिति हो, वायुमण्डल हो तब मैं यह करूँ। दूसरे का सहयोग लेकर के अपने कल्याण के श्रेष्ठ कर्म करने वाले अर्थात् लेकर फिर देनेे वाले, सहयोग लिया फिर दियातो लेना और देना दोनों साथ-साथ हुआ। लेकिन सर्वंश त्यागी स्वयं मास्टर दाता बन परिस्थितियों को भी परिवर्तन करने काकमजोर को शक्तिशाली बनाने का, वायुमंडल वा वृत्ति को अपनी शक्तियों द्वारा परिवर्तन करने कासदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान देने का संकल्प करेंगे। यह हो तो यह करें, नहीं। मास्टर दाता बन परिवर्तन करने कीशुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात् देने का कार्य करता रहेगा। मुझे देना हैमुझे करना हैमुझे बदलना हैमुझे निर्मान बनना है। ऐसे ‘‘ओटे सो अर्जुन'' अर्थात् दातापन की विशेषता होगी।

 

✺   "ड्रिल :- सदा दाता का बच्चा बन सर्व को देने की भासना से भरपूर रहना।"

 

_ ➳  खुशनुमा संध्या की वेला में मैं आत्मा... मासूम... खिलखिलाते... महकते... चहकते बच्चों को एक गार्डन में खेलते... कूदते... मौज... मस्ती करते देख रही हूँ... अपनी ही खेल में व्यस्त... न देह का भान... न दुनियादारी का भान... अपनी अलौकिक मासूमियत से भरे सभी बच्चों को देख मन हर्षित हो उठा... छोटे छोटे बच्चे जो बोलना चलना भी ठीक से नहीं जानते वह बच्चे एक दूसरे के साथ खेल रहे हैं... पवित्रता और मासूमियत से छलकते गागर के जैसे यह बच्चे... न जान न पहचान... एक दूसरे से ऐसे घुलमिल गये हैं कि खुद का नास्ता... भी एक दूसरें को अपने हाथों से ख़िला रहे हैं...

 

_ ➳  एक दूसरे से गले मिलते... खेलते... कूदते बच्चों को देख मेरा मन भर आया... एक ही संकल्प चला... क्या मैं ऐसी नहीं बन सकती... क्या मैं इन बच्चों के जैसे निःस्वार्थ प्यार नहीं कर सकती.... क्या मेरा तेरा किये बिगर एक दिन भी नहीं गुजर सकता... कोई मेरा अच्छा करे तो ही क्या मैं उनका अच्छा करुं... मैं भी तो बचपन में ऐसी ही मासूम थी... पवित्रता और मासूमियत से भरे नयन... कहाँ गया सब... क्या बड़े होने का यह मतलब है कि पवित्रता... मासूमियत को अलविदा कह दो... अपने ही उलझन में उलझी मैं आत्मा... अपने इस सवाल के जवाब के लिए एक की ही ओर दृष्टि करती हूँ... और वह हैं मेरे बाबा... शिव पिता... जिन्हें मिलकर मेरी सारी उलझन सुलझ जाती हैं...

 

_ ➳  और मैं आत्मा... मन बुद्धि के पंख लगाकर पहुँच जाती हूँ मेरे पिता से मिलने... अपने सूक्ष्म शरीर में... पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... अपने ब्रह्मा बाबा के सामने... मंद मंद मुस्कुराते ब्रह्मा बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे और बाबा का आह्वान करते हैं... ब्रह्मा बाबा का आह्वान और शिवबाबा का सूक्ष्म वतन में आना... मैं आत्मा निहार रही हूँ यह अलौकिक संगमयुग का अकल्पनीय नजारा... शिवबाबा का अपने रथ... ब्रह्मा बाबा के तख़्त सिंहासन पर विराजमान होना... एक चमकती हुई दिव्य ज्योति का आगमन महसूस करने के लिये लाखों आत्मायें इंतजार कर रही हैं... और मैं सौभाग्यशाली आत्मा... यह प्रत्यक्ष देख रही हूँ...

 

_ ➳  बापदादा का कंबाइंड भव्य रूप देखकर मैं आत्मा... भावविभोर हो जाती हूँ... बापदादा से आती हुई शीतल मधुर किरणों को अपने सूक्ष्म शरीर में महसूस कर रही हूँ... और मेरा सूक्ष्म शरीर... पवित्र फ़रिश्ता ड्रैस धारण कर लेता है... बापदादा से आती हुई अनंत शक्तियों रूपी किरणों से मेरा फ़रिश्ता स्वरुप जगमगा रहा है... और बापदादा मुझे मेरा सतयुगी स्वरुप दिखा रहा है... सोलह कला संपूर्ण... संपूर्ण निर्विकारी... परम पवित्र... अलौकिक मासूमियत... स्वार्थ से परे मैं आत्मा अपना ही स्वरुप देखती रहती हूँ... बोलना... चलना... उठना... बैठना... सभी कार्य में अलौकिकता दिखाई दे रही हैं... स्वार्थ की भावना से परे यह मेरा ही रूप मैं देख रही हूँ...

 

_ ➳  मेरे दैवीय रूप से निकलती शक्तियों रूपी किरणें सारे ब्रह्माण्ड में फ़ैल रही हैं... और सभी अशांत... दुःखी... हताश आत्माओं तक पहुँच रही हैं... अपने आप निकलती यह किरणों की फव्वारे... बिना मांगे सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हैं... भक्ति मार्ग के मंदिर में पत्थर की मूर्त के रूप में सजा मेरा दैवीय रूप सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहा है... मैं आत्मा... मेरे फ़रिश्ते ड्रेस में अपने ही सतयुगी जन्म को देख रही थी... सतयुगी जन्म में अपने दातापन के संस्कारों को उजागर होता देख मैं आत्मा... दृढ संकल्प करती हूँ... दाता की बच्ची मैं आत्मा... संगमयुग में भी अपने दातापन के अधिकार को उजागर करुँगी...

 

_ ➳  सदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान वा वरदान देने का संकल्प करके मैं आत्मा बापदादा से विदाई लेकर पहुँच जाती हूँ अपने साकार लोक में... और मास्टर दाता बन निःस्वार्थ भावना से कोई भी परिस्थिति को परिवर्तित कर रही हूँ... मास्टर दाता बन परिवर्तन करने कीशुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात् देने के कार्य में जुड़ जाती हूँ... पवित्र और मासूमियत से भरे बच्चों के रूप में मैं आत्मा मेरा ही सतयुगी स्वरुप को महसूस कर रही हूँ... मैं आत्मा अपने दातापन के अधिकार से सज समस्त ब्रह्माण्ड में पवित्र... सुख... शांति के किरणों को फ़ैला रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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