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 19 / 02 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"स्वयं भगवान हमारे ऊपर मेहरबान हुआ है" - इसी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *चलते फिरते देहि अभिमानी बन बाप की याद में रहे ?*

 

➢➢ *अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा विश्व का वातावरण परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *सर्वशक्तिवान बाप को अपना साथी बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे वाचा सेवा नेचुरल हो गई है, ऐसे मन्सा सेवा भी साथ-साथ और नेचुरल हो। *वाणी के साथ मन्सा सेवा भी करते रहो तो आपको बोलना कम पड़ेगा।* बोलने में जो एनर्जी लगाते हो वह मन्सा सेवा के सहयोग कारण वाणी की एनर्जी जमा होगी और मन्सा की शक्तिशाली सेवा सफलता ज्यादा अनुभव करायेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी हीरेतुल्य आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को संगमयुगी हीरे तुल्य आत्मायें अनुभव करते हो? आप सभी सच्चे हीरे हो ना! हीरे की बहुत वैल्यु होती है। आपके ब्रह्मण जीवन की कितनी वैल्यु है। इसीलिये ब्राह्मणों को सदा चोटी पर दिखाते हैं। चोटी अर्थात् ऊँचा स्थान। वैसे ऊँचे हैं देवता लेकिन देवताओंसे भी ऊँचे तुम ब्राह्मण हो - ऐसा नशा रहता है? *मैं बाप का, बाप मेरा यही ज्ञान है ना! यही एक बात याद रखनी है। सदा मन में यही गीत चलता रहे - जो पाना था वह पा लिया।* मुख का गीत तो एक घण्टा भी गायेंगे तो थक जायेंगे; लेकिन यह गीत गाने में थकावट नहीं होती।

 

✧  बाप का बनने से सब कुछ बन जाते हो, डांस करने वाले भी, गीत गाने वाले भी, चित्रकार भी, प्रैक्टिकल अपना फरिश्ते का चित्र बना रहे हो! बुद्धियोग द्वारा कितना अच्छा चित्र बना लेते हो। तो जो कहो वह सब कुछ हो। बड़े ते बड़े बिजनेसमेन भी हो, मिलों के मालिक भी हो, तो सदा अपने इस आक्यूपेशन को स्मृति में रखो। कभी खान के मालिक बन जाओ तो कभी आर्टिस्ट बन जाओ, कभी डांस करने वाले बन जाओ...बहुत रमणीक ज्ञान है, सूखा नहीं है। *कई कहते हैं क्या रोज वही आत्मा, परमात्मा का ज्ञान सुनते रहें, लेकिन यह आत्मा परमात्मा का सूखा ज्ञान नहीं है। बहुत रमणीक ज्ञान है, सिर्फ रोज अपना नया-नया टाइटिल याद रखो - मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन सी आत्मा हूँ? कभी आर्टिस्ट की आत्मा हूँ, कभी बिजनेसमैन की आत्मा हूँ... तो ऐसे रमणीकता से आगे बढ़ते रहो।*

 

  बाप भी रमणीक है ना! देखो कभी धोबी बन जाता तो कभी विश्व का रचयिता, कभी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट... तो जैसा बाप वैसे बच्चे... ऐसे ही इस रमणीक ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहो। वर्तमान समय के प्रमाण स्वयं और सेवा, दोनों की रफ्तार का बैलेन्स चाहिए। हरेक को सोचना चाहिए जितनी सेवा ली है उतना रिटर्न दे रहे हैं। अभी समय है सेवा करने का। जितना आगे बढ़ेंगे, सेवा के योग्य समय होता जायेगा लेकिन उस समय परिस्थितियाँ भी अनेक होंगी। उन परिस्थितियों में सेवा करने के लिए अभी से ही सेवा का अभ्यास चाहिए। उस समय आना जाना भी मुश्किल होगा। *मन्सा द्वारा ही आगे बढ़ाने की सेवा करनी पड़ेगी। वह देने का समय होगा, स्वयं में भरने का नहीं। इसलिए पहले से ही अपना स्टॉक चेक करो कि सर्वशक्तियों का स्टॉक भर लिया है। सर्वशक्तियाँ, सर्वगुण, सर्वज्ञान के खजाने, याद की शक्ति से सदा भरपूर। किसी भी चीज की कमी नहीं चाहिए।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अभी सेकण्ड में ज्ञान सूर्य स्थिति में स्थित हो चारों ओर के भयभीत, हलचल वाली आत्माओं को, सर्व शक्तियों की किरणें फलाओ।* बहुत भयभीत हैं। शक्ति दो। वायब्रेशन फैलाओ। अच्छा (बापदादा ने ड़िल कराई)

 

✧  *अभी सभी एक सेकण्ड में, एक सेकण्ड एक मिनट भी नहीं, एक सेकण्ड में मैं फरिश्ता सो देवता हूँ - यह मन्सा ड़ि्ल सेकण्ड में अनुभव करो।* ऐसी ड्रिल दिन में एक सेकण्ड में बार-बार करो। जैसे शरीरिक ड्रिल शरीर को शक्तिशाली बनाती, वैसे यह मन की ड्रिल मन को शक्तिशाली बनाने वाली है। *मैं फरिश्ता हूँ, इस पुरानी दुनिया, पुरानी देह, पुराने देह के संस्कार से न्यारी फरिश्ता आत्मा हूँ।* अच्छा।

 

✧  *अभी-अभी एक सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दु बाप को याद करो और जो भी कोई बातें हो उसको बिन्दु लगाओ। लगा सकतेहो? बस एक सेकण्ड में मैं बाबा का, बाबा मेरा।'* अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आप लोग भी ऐसे अनुभव करेंगे। सचमुच जैसे लोन लिया हुआ है, कर्तव्य के लिये मेहमान हैं। *जब तक अपने को मेहमान नहीं समझते हो तब तक न्यारी अवस्था नहीं हो सकती है।* जो ज्यादा न्यारी अवस्था में रहते हैं, उनकी स्थिति में विशेषता क्या होती है? उनकी बोली से उनके चलन से उपराम होते जायेंगे। शरीर में होते हुए भी इस उपराम अवस्था तक पहुँचना है। बिल्कुल देह और देही अलग महसूस हो। उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज व योग की प्रैक्टिकल सिद्धि। *बात करते-करते जैसे न्यारापन खींचे। बात सुनते भी जैसे कि सुनते नहीं। ऐसी भासना औरों को भी आये। ऐसी स्थिति की स्टेज को कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। कर्मातीत अर्थात् देह के बन्धन से भी मुक्त।* कर्म कर रहे हैं लेकिन उनके कमों का खाता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे रहेंगे, कोई अटैचमेंट नहीं होगी। कर्म करने वाला अलग और कर्म अलग हैं - ऐसे अनुभव दिन-प्रतिदिन होता जायेगा। इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है। *संकल्प उठा और जो होना है वही होगा। ऐसी स्थिति में सभी को आना होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पढाई में पास होना है तो टीचर की मत पर चलना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा कितनी ही तकदीरवान हूँ जो की स्वयं परमपिता परमात्मा, भाग्यविधाता बन मेरी सोई हुई तकदीर को जगाने परमधाम से आये हैं... *अविनाशी बेहद बाबा अविनाशी ज्ञान देकर इस एक जन्म में मुझे पढ़ाकर, 21 जन्मों के लिए मेरी ऊँची तकदीर बना रहे हैं...* यह पढ़ाई ही सोर्स ऑफ़ इनकम है... *मैं रूहानी आत्मा, रूहानी बाबा से, रूहानी पढ़ाई पढने चल पड़ती हूँ रूहानी कालेज सेंटर में...*  

 

  *पुरुषोत्तम संगम युग की पढाई से उत्तम ते उत्तम पुरुष बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता की बाँहो में झूलने वाला खुबसूरत समय जो हाथ आया है तो इस वरदानी युग में पिता से अथाह खजाने लूट लो... 21 जनमो के मीठे सुखो से अपना दामन सजा लो...* ईश्वरीय पढ़ाई से उत्तम पुरुष बन विश्व धरा के मालिक हो मुस्करा उठो...

 

_ ➳  *बाबा की मीठी मुरली की मधुर तान पर फिदा होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को देख देख निहाल हो गई हूँ... *मेरा मीठा भाग्य मुझे ईश्वर पिता की फूलो सी गोद लिए वरदानी संगम पर ले आया है... ईश्वरीय पढ़ाई से मै आत्मा मालामाल होती जा रही हूँ...”*

 

  *ज्ञान रत्नों के सरगम से मेरे मन मधुबन को सुरीला बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस महान मीठे समय का भरपूर फायदा उठाओ... *ईश्वरीय ज्ञान रत्नों से जीवन में खुशियो की फुलवारी सी लगाओ... जिस ईश्वर को दर दर खोजते थे कभी... आज सम्मुख पाकर ज्ञान खजाने से भरपूर हो जाओ... और 21 जनमो के सुखो की तकदीर बनाओ...”*

 

_ ➳  *दिव्यता से सजधज कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा संग ज्ञान और योग के पंख लिए असीम आनन्द में खो गयी हूँ... *ईश्वर पिता के सारे खजाने को बुद्धि तिजोरी में भरकर और दिव्य गुणो की धारणा से उत्तम पुरुष आत्मा सी सज रही हूँ...”*

 

  *इस संगमयुग में मेरे संग-संग चलते हुए सत्य ज्ञान की राह दिखाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा के साथ का संगम कितना मीठा प्यारा और सुहावना है...* सत्य के बिना असत्य गलियो में किस कदर भटके हुए थे... आज पिता की गोद में बैठे फूल से खिल रहे हो... *ईश्वरीय मिलन के इन मीठे पलों की सुनहरी यादो को रोम रोम में प्रवाहित कर देवता से सज जाओ...”*

 

_ ➳  *ईश्वरीय राहों पर चलकर ओजस्वी बन दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर श्रेष्ठ भाग्य को पा रही हूँ... इस वरदानी संगम युग में ईश्वर को शिक्षक रूप में पाकर अपने मीठे से भाग्य पर बलिहार हूँ...* और प्यारा सा देवताई भाग्य सजा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वयं भगवान हमारे पर मेहरबान हुआ है, वह हमें पढ़ा रहें हैं इस नशे में रहना है*

 

_ ➳  स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और *अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ*। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।

 

_ ➳  देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। *अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ*। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। *बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ*।

 

_ ➳  अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है*।

 

_ ➳  स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। *कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ*। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। *महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं*। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।

 

_ ➳  अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। *यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा विश्व का वातावरण परिवर्तन करने वाली आधारमूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सर्वशक्तिमान बाप को अपना साथी बनाकर सर्व विघ्नों को समाप्त करने वाली विघ्न रूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कोई दुःख देवे तो आप क्या करेंगे? दुःख देंगे? नहीं देंगे? बहुत दुःख देवे तो? बहुत गाली देवे, बहुत इन्सल्ट करे, तो थोड़ा तो फील करेंगे या नहीं? कुमारियाँ फील करेंगी? थोड़ा। *तो फालो फादर। यह सोचो मेरा कर्तव्य क्या है! उसका कर्तव्य देख अपना कर्तव्य भूलो नहीं। वह गाली दे रहा है, आप सहनशील देवी, सहनशील देव बन जाओ। आपकी सहनशक्ति से गाली देने वाले भी आपको गले लगायेंगे।* तो सहनशीलता के देव वा देवियाँ हो ना? हो? *सदा यही स्मृति रखो - मैं सहनशील का देवता हूँ, मैं सहनशीलता की देवी हूँ।* तो देवता अर्थात् देने वाले दाता, कोई गाली देता है, रिस्पेक्ट नहीं करता है तो किचड़ा है ना कि अच्छी चीज है? तो आप लेते क्यों हो? किचड़ा लिया जाता है क्या? कोई आपको किचड़ा देवे तो आप लेंगे? नहीं लेंगे ना! तो रिस्पेक्ट नहीं करता, इन्सल्ट करता, गाली देता, आपको डिस्टर्ब करता, तो यह क्या है? अच्छी चीजें हैं। फिर आप लेते क्यों हो? थोड़ा-थोड़ा तो ले लेते हो, पीछे सोचते हो नहीं लेना था। *तो अभी लेना नहीं। लेना अर्थात् मन में धारण करना, फील करना।*

 

 _ ➳  *तो अपने अनादिकाल, आदिकाल, मध्यकाल, संगम काल, सारे कल्प में प्युरिटी की रायल्टी, पर्सनालिटी याद करो।* कोई क्या भी करे आपकी पर्सनालिटी को कोई छीन नहीं सकता। यह रूहानी नशा है ना? और डबल फारेनर्स को तो डबल नशा है ना! डबल नशा है ना? सब बात का डबल नशा। *प्युरिटी का भी डबल नशा, सहनशील देवी-देवता बनने का भी डबल नशा। है ना डबल? सिर्फ अमर रहना। अमर भव का वरदान कभी नहीं भूलना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा अमर भव के वरदान में स्थित रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  भृकुटि सिहांसन पर विराजमान मैं महान तपस्वी आत्मा प्रकृति के सान्निध्य में बैठी, बाबा के महावाक्यों पर मनन कर रही हूँ... *"आप सहनशील देवी, सहनशील देव बन जाओ । आपकी सहनशक्ति से गाली देने वाले भी आपको गले लगायेंगे"...* मनन की एक मगन अवस्था में, मैं आत्मा स्थित हूँ... और इन महावाक्यों को पढ़ते हुए मैं अजर, अमर, अविनाशी आत्मा देह से कुछ देर के लिए न्यारी हो जाती हूँ... *मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी तार बाबा से जोड़ देती हूं... बाबा से निकलती तेजस्वी ज्ञान की किरणों की अविरल धाराएं मुझ आत्मा में समा रही है...* मुझ आत्मा में ज्ञान का प्रकाश बढ़ता जा रहा है... *मैं आत्मा ज्ञान स्वरूप बनती जा रही हूं... अब मैं आत्मा स्वयं में नव उर्जा का अनुभव कर रही हूं...*

 

 _ ➳  *ज्ञान प्रकाश से भरपूर मैं आत्मा प्रकृति के सानिध्य में बैठी सामने फलों से लदे वृक्ष को देख रही हूँ...* इस वृक्ष को देखते ही मुझ आत्मा के मन में संकल्प आता है... फलों से लदे इस वृक्ष को कोई चाहे पत्थर मारें... या कोई इसकी टहनियां तोड़ दे... कोई इसे कुछ दे या ना दे... *लेकिन ये अपना कर्तव्य नहीं भूलता सबको नम्र होकर मीठे फल ही देता है...* इस प्रकृति को मैं आत्मा देख रही हूँ... *कैसे दाता बन ये केवल देती ही जाती है... कोई क्या भी दे... लेकिन प्रकृति भी अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ती है...* मैं आत्मा स्वयं से प्रश्न करती हूँ... जब भी कोई भी आत्मा सामने आती है... कैसा भी व्यवहार करती है... चाहे कोई गाली दे... बहुत इन्सल्ट करें... दु:ख दे तो *क्या मैं आत्मा उनको सहनशीलता की देवी बन, मन में किचड़ा ना धारण कर, उन्हें भी बदले में रिसपेक्ट और दुआएं रूपी फल देती हूँ...*

 

 ➳ _ ➳  कहीं अपना कर्तव्य तो नहीं भूल जाती और फीलिंग में तो नहीं आ जाती हूँ... *मैं आत्मा तो प्रकृति की मालिक हूँ...* और रचना जब सहनशील बन केवल देती जा रही है... अपना कर्तव्य नहीं छोड़ती है... *तो मैं आत्मा तो पूर्वज हूँ मास्टर रचयिता हूँ... मैं आत्मा अपने अनादिकाल, आदिकाल, मध्यकाल, संगमकाल, सारे कल्प में प्योरिटी की रायल्टी, पर्सनालिटी को याद कर रही हूँ...* मैं आत्मा कुछ देर के लिए स्थित हो जाती हूँ... अपने अनादि ज्योति बिन्दु स्वरूप में... कुछ देर के लिए इस स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा स्थित हो जाती हूँ अपने आदि स्वरूप देवता स्वरूप में... कुछ देर के लिए इस स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ... अब *मैं आत्मा अपने मध्यकाल पूज्य स्वरूप, मां दुर्गा स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... और कुछ देर के लिए मैं आत्मा इस स्वरूप को अनुभव कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा संगमकाल के अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूं... *इन चारों स्वरूपों का गहराई से अनुभव कर मैं आत्मा सारे कल्प की प्युरिटी की रायल्टी, पर्सनैलिटी को अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा दिल से बाबा का शुक्रिया कर रही हूँ...* जो ज्ञान प्रकाश देकर इस ज्ञान को मुझ आत्मा के सामने और ही सहज रूप में स्पष्ट कर दिया... शुक्रिया मीठे बाबा... *मुझ आत्मा की यह पर्सनैलिटी अमर है... मेरा आदि, अनादि, पूज्य, ब्राह्मण स्वरूप को याद कर मैं आत्मा सहज ही अपने अमर भव के वरदान में स्थित हो जाती हूँ...* और अब मैं आत्मा इस अमर भव के वरदान को अपने जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को कर्मक्षेत्र में कार्य-व्यवहार में आते हुए...* अब मुझ आत्मा के सामने कैसे भी स्वभाव-संस्कार वाली आत्मा आती है...

 

 _ ➳  *कोई कुछ भी दे लेकिन मैं आत्मा अपने पूर्वज स्वरूप की समृति में रह रहमभाव धारण कर सहनशीलता की देवी बन, अपने पिता समान अपकार करने वाले पर भी दुआओं रूपी फूलों और सम्मान रूपी मालाएँ पहना रही हूँ...*  और मैं आत्मा दाता की बच्ची मास्टर दाता बन और ही उन आत्माओं को मीठे बोल रूपी फल प्रदान कर रही हूँ... *स्वमान में स्थित हो उन आत्माओं को भी श्रेष्ठ स्वमान की दृष्टि से देख, उन्हें भी सम्मान दे रही हूँ... फाॅलो फादर कर रही हूँ... और अब मैं आत्मा सदा, "मैं आत्मा सहनशीलता की देवी हूँ..." इसी डबल नशे में रहती हूँ...* और सदा अपने अमर भव के वरदान को स्मृति में रख सदा अमर अनुभव कर रही हूँ... आगे बढ़ रही हूँ... और *अन्य आत्मा को भी आगे बढ़ाने, आप समान बनाने के निमित्त बन रही हूँ... शुक्रिया लाडले बाबा शुक्रिया....*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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