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 07 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ पवित्रता की धारणा से अपना और सर्व का कल्याण किया ?

 

➢➢ ध्यान दीदार की कोई आश तो नहीं रखी ?

 

➢➢ बाप से शक्ति लेकर हर परिस्थिति को हल किया ?

 

➢➢ सब किनारे छोड़ घर चलने की तैयारी की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  'मेरा तो एक बाबा', और मेरा सब-कुछ इस 'एक मेरे' में समा जाए। तो एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी। जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा मन एकाग्र हो जाए इसको कहा जाता हैं मन वश में हैं। इस एकाग्रता की शक्ति से स्वत: ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ"

 

✧  सदा अपने को राजा समझते हो? सेल्फ पर राज्य है अर्थात् स्वराज्य अधिकारी हो। और दूसरे कौनसे राजा हो? बेफिक्र बादशाह। बेफिक्र बादशाह इस समय बनते हो। क्योंकि सतयुग में फिक्र वा बेफिक्र का ज्ञान ही नहीं है। कल क्या थे और आज क्या बने हो! बेफिक्र बादशाह बन गये ना! बेफिक्र बनने से भण्डारे भरपूर हो गये हैं।

 

✧  ब्राह्मण जीवन अर्थात् बेफिक्र बादशाह। स्वराज्य मिला-सब-कुछ मिला। स्वराज्य मिला है? कभी कोई कर्मेन्द्रियां तो धोखा नहीं देती? कभी-कभी थोड़ा खेल करती हैं तो कन्ट्रोलिंग पावर या रूलिंग पावर कम है। तो सदैव चलते-फिरते यह स्मृति सदा रहे कि-मैं स्वराज्य अधिकारी बेफिक्र बादशाह हूँ। बाप आया ही है आप सबके फिक्र लेने के लिए। तो फिक्र दे दिया ना। थोड़ा छिपाके तो नहीं रखा है?

 

✧  पॉकेट चेक करके देखो। बुद्धि रूपी, मन रूपी पॉकेट दोनों ही देखो। जब हैं ही बाप के बच्चे, तो बच्चे बेफिक्र होते हैं। क्योंकि बाप दाता है, तो दाता के बच्चों को क्या फिक्र है!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही - सार रूप में स्थित हो सदा सुख-शान्ति के, खुशी के, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूलना। सर्व प्राप्तियों के सम्पन स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहो। सदा चेहरे पर प्राप्ति ही प्राप्ति है - उस सम्पन स्थिति की झलक और फलक दिखाई दे। जब सिर्फ स्थूल धन से सम्पन विनाशी राजाई प्राप्त करने वाले राजाओं के चेहरे पर भी द्वापर के आदि में वह चमक थी। यहाँ तो अविनाशी प्राप्ति है तो कितनी रूहानी झलक और फलक चेहरे से दिखाई देगी!

 

✧  ऐसे अनुभव करते हो? वा सिर्फ अनुभव सुन करके खुश होते हो! पाण्डव सेना विशेष है ना! पाण्डव सेना को देख हर्षित जरूर होते हैं। लेकिन पाण्डवों की विशेषता है उन्हें सदा बहादुर दिखाते हैं, कमजोर नहीं। अपने यादगार चित्र देखे हैं ना। चित्रों में भी महावीर दिखाते हैं ना। तो बापदादा भी सभी पाण्डवों को विशेष रूप से, सदा विजयी, सदा बाप के साथी अर्थात पाण्डवपति के साथी, बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में सदा रहें, यही विशेष स्मृति का वरदान दे रहे हैं।

 

✧  भले नये भी आये हो लेकिन हो तो कल्प पहले के अधिकारी आत्मायें। इसलिए सदा अपने सम्पूर्ण अधिकार को पाना ही है - इस नशे और निश्चय में सदा रहना। समझा। अच्छा। सदा सेकण्ड में बुद्धि को एकाग्र कर, सर्व प्राप्तियों को अनुभव कर, सदा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण प्रयोग में लाते, सदा एक बाप में सारा संसार अनुभव करने वाले, ऐसे सम्पन और समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ 'सम्पूर्ण अर्थात् समाधान स्वरूप'। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, समस्या ले जाने वाला भी समस्या भूल जाता था। क्या लेकर आया और क्या ले करके गया। यह अनुभव किया ना। समस्या की बातें बोलने की हिम्मत नहीं रही। क्यों कि सम्पूर्ण स्थिति के आगे बचपन का खेल अनुभव करते थे। इसलिए समाप्त हो जाती थी। इसको कहते हैं - 'समाधान स्वरूप'।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- चैतन्य अवस्था में रह बाप को याद करना"

➳ _ ➳  सारी एक की ही महिमा है, एक का ही गायन है... गाते भी हैं पतित पावन, जरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं... सतयुग में तो सुखी होते हैं, वहां कोई दुख नहीं, दुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती... अभी है घोर कलयुग, घोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन शुरू हुआ है... गाते भी है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन... तो अब बाप मिला है, मनमनाभव का मंत्र मिला है... तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़ एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोई' इसी तपस्या में मैं आत्मा तप रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...

❉   पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से कहते हैं:- "मीठी बच्ची... 21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं... बोझ चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी हो, अब तुम्हारे बुलाने पर क्योंकि मैं आया हूं... तो अब, मनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."

➳ _ ➳  मीठे बाबा की मीठी समझानी को  सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा से बोली:-  "हां मेरे मीठे बाबा... आधाकल्प हुआ, माया ने बहुत कुतर कुतर की है... आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्मा,  काली और दुखी बन पड़ी थी बाबा... जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं... भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब चलते फिरते उठते बैठते  आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं बाबा..." 

❉  ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:- "देखो बच्चे... दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम काला, फिर काली का चित्र भी बैठ बनाया है, परंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के, नॉलेजफुल बच्चे बने हो... सारा मदार है याद पर... जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगे, बुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."

➳ _ ➳  मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारती, तो कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा रही हूं... स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीक, खुद को देख रही हूं..."

❉  करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:- "मीठी बच्ची... अब ज्वालामुखी याद द्वारा, पूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी उत्साह में रख, अभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो... देखो ब्रह्मा बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."

➳ _ ➳  मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:- "मीठे बाबा... ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुए, मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूं... मैं आत्मा देख रही हूं, कैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं... मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-   गफलत नही करनी है"

➳ _ ➳  पूरे कल्प में केवल संगमयुग का ही समय मोस्ट वैल्युबुल समय है जब स्वयं भगवान आ कर सर्व खजानों से अपने हर ब्राह्मण बच्चे को सम्पन्न बना देते हैं। कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जो परमात्मा बाप द्वारा मिले इन अनमोल खजानों को अपने परमात्मा बाप की श्रीमत प्रमाण यूज़ करके इन्हें सफल करते हैं औऱ कल्प - कल्प के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना लेते हैं।

➳ _ ➳  मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं परमात्मा बाप द्वारा मिले सर्व खजानों को स्मृति में ला कर स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि समय, संकल्प और श्वांसों का जो अनमोल खजाना भगवान ने मुझे गिफ्ट के रूप में दिया है उसे किसी भी प्रकार की गफलत में व्यर्थ नही गंवाना। समय, संकल्प और श्वांसों के अनमोल खजाने को सफल करना ही सर्व खजानों की प्राप्ति का आधार है इसलिए अपना समय, संकल्प और श्वांस अपने प्यारे बाबा की याद और ईश्वरीय सेवा में सफल करते हुए अब मुझे सर्व खजानों को जमा करना है और उन्हें सर्व आत्माओं को बाँटना है।

➳ _ ➳  स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने प्यारे बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हुई मैं जैसे ही उनकी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ बाबा सहज ही मुझे अपनी और खींच लेते हैं और मैं आत्मा सेकण्ड में आजाद पँछी की भांति देह रूपी पिंजरे का दरवाजा खोल उड़ जाती हूँ ऊपर खुले आसमान की ओर। नीले गगन में विचरण करते, सूर्य, चांद, सितारों रूपी बत्तियों की रिमझिम को निहारते मैं इन्हें पार करके, चैतन्य सितारों की दुनिया में प्रवेश करती हूँ। चमकते हुए चैतन्य सितारों की यह निराकारी दुनिया मेरे पिता परमात्मा का घर है।

➳ _ ➳  अपने बिल्कुल सामने मैं देख रही हूँ अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता परमात्मा को। उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे अब मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा प्रेम के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के प्यार में गहराई तक समाती जा रही हूँ। अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं गहन सुख, शांति और आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारें मन को असीम शीतलता प्रदान कर रही हैं।

➳ _ ➳  सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपनी लाइट की फ़रिशता ड्रेस को धारण कर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। जहां बाहें पसारे बापदादा का लाइट माइट स्वरूप मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है। बाबा की बाहों में अब मैं फ़रिशता समा रहा हूँ। अपनी बाहों में भर कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर अब बाबा मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों से मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार करके गफलत से सदा मुक्त रहने का बल मुझमे भर रहें हैं।

➳ _ ➳  बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपनी फरिश्ता ड्रेस को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकारी तन में आ कर प्रवेश करती हूँ। स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है। हर प्रकार की गफलत से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए अब मैं उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं बाप से शक्त्ति लेकर हर परिस्थिति को हल करने वाली साक्षी द्रष्टा आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं अब सब किनारे छोड़ घर चलने की तैयारी करने वाली एवररेडी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  अभी तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी विकार हो। ये क्योंये क्याऐसा होना नहीं चाहिएऐसा होना चाहिए... या कामन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने गुण काअपनी विशेषता का अभिमान आता है या तो जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात में कमी को देख करकेकमी अपने पुरुषार्थ की नहीं लेकिन नाम मेंमान मेंशान मेंपूछने मेंआगे आने मेंसेन्टर इन्चार्ज बनाने मेंसेवा मेंविशेष पार्ट देने में - ये कमीये व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है।

➳ _ ➳  तो आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान या दूसरे शब्दों में कहो अपमान - मेरे को कम क्योंमेरा भी ये पद होना चाहिएमेरे को भी आगे करना चाहिएतो ये अपमान समझते हो ना। तो ये दो बातें अभिमान और अपमान - यही दो आजकल व्यर्थ संकल्प का कारण है। इन दोनों को अगर न्योछावर कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है।

✺   ड्रिल :-  "अभिमान और अपमान के व्यर्थ संकल्प से मुक्त होने का अनुभव"

➳ _ ➳  सावन का महीना और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली खिलते हुए फूलों की महक के बीच मैं आज सावन का झूला झूल रही हूं... और मेरे आस-पास मेरी सहेलियां मुझे झूला झूला रहे हैं... आज हम सभी मिलकर मधुर गीत गुनगुना रही हैं... इस झूमते हुए मौसम में आज चारों तरफ खुशी के माहौल में मैं आत्मा झूला झूल रही हूं... झूला झूलते झूलते मैं अपने आप को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रही हूं... और धीरे-धीरे मेरा झूला गति को प्राप्त करता है... और मैं अपने आप को सबसे ऊंची स्थिति पर पाकर सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं... मुझे उस झूले से अन्य आत्माएं बहुत ही छोटी छोटी नजर आ रही हैं... मेरी ऊंचाई और आत्माओं से बहुत ऊंची हो गई है...

➳ _ ➳  और अब मैं कुछ देर अपनी इस ऊंची अवस्था में अपने आप को अनुभव करते-करते मैं हवाओं के साथ अपने मन बुद्धि से सूक्ष्म वतन पहुंच जाती हूँ... सूक्षम वतन का यह सफेद प्रकाश मेरे अंदर शीतलता उत्पन्न कर रहा है... सामने बापदादा मुझे अपनी बाहें फैलाए अपने पास बुला रहे हैं... मैं दौड़कर बापदादा के पास जाती हूँ... और अपने आप को उसी स्थिति का स्मरण कराते हुए बापदादा से कहती हूँ... बाबा आज मैं अपने आप को अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में अनुभव कर रही हूं... मुझे इस स्थिति में बहुत ही आनंद आ रहा है... बाबा मुझे उसी समय रोकते हुए कहते हैं... कि नहीं मेरे बच्चे बेशक तुम अपने पुरुषार्थ से अन्य आत्माओं से ऊंची स्थिति में पहुंच जाओ... लेकिन याद रहे कि अपने को कभी भी अभिमानी स्थिति का आभास भी नहीं होने देना है... अपने चाल चलन से अन्य आत्माओं के प्रति हमेशा विनम्र और सहज सरल स्वभाव ही रखना... अगर अपने पुरुषार्थ से तुम ऊंची स्थिति को पाकर किसी भी प्रकार का अभिमान करते हो तो तुम्हारी अन्य आत्माओं से यह ऊंची स्थिति नहीं कहलाएगी... सरल और सहज स्वभाव में रहते हुए विनम्रता का गुण अपने अंदर धारण करना होगा...

➳ _ ➳  बापदादा के इतना कहने पर मैं बाबा को कहती हूं... बाबा मुझे आपकी इस बात का हमेशा स्मरण रहेगा... बाबा मेरी यह बात सुनकर मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ रख देते हैं... और मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न होती हूँ... कुछ देर रुकने के बाद बाबा से असीम प्यार करते हुए जैसे ही मैं वापस प्रस्थान करने लगती हूँ... तो बाबा मुझे रोकते हुए मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझे कहते हैं... रुको बच्चे मैं तुम्हें एक बात और कहना चाहता हूँ... कि मीठे बच्चे तुम अगर कितना भी सेवा में ऊंची स्थिति पर चले जाओ... और सेवा में कभी कोई आत्मा आपको कुछ कठोर शब्द कहें तो उन शब्दों को प्रभु अर्पण कर दिया करें... और उस आत्मा को हमेशा शुभ भावना ही देते रहें... सेवार्थी भाव की स्थिति में कभी भी अपमान शब्द का संकल्प या अनुभव नहीं होना चाहिए... अगर हमें अपमान और मान का संदर्भ होगा तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे...

➳ _ ➳  मेरे मीठे बाबा के ये अनमोल शब्द सुनकर मैं आत्मा अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली अनुभव कर रही हूं... और अब मैं अपनी मन बुद्धि से वापस अपने इस स्थूल देह में अवतरित हो जाती हूं... इसलिए यहाँ आकर मैं बाबा की कही हुई हर बात को अपने अंदर समा लेती हूं... और सदा उसी स्मृति स्वरूप में रहती हूं... इस सुहाने मौसम में झूला झूलते हुए मैं आत्मा अपनी सहेलियों से अपना झूला मन्दगति पर करवाती हूं... और धीरे से उस झूले से उतरकर मैं अन्य आत्माओं को भी उस झूले पर बिठाकर उसके आनंद का अनुभव करा रही हूं... और बापदादा को बार-बार धन्यवाद कर रही हूं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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