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 15 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ इस बेहद नाटक में एक्ट करते हुए सारे नाटक को साक्षी होकर देखा ?

 

➢➢ एक दो के मददगार होकर चले ?

 

➢➢ दिल में एक दिलाराम को समाकर एक से सर्व संबंधो की अनुभूति की ?

 

➢➢ अमृतवेले प्लेन बुधी होकर बैठे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। जब सर्व कर्मेन्द्रियों के कर्म की स्मृति से परे एक ही आत्मिक स्वरूप में स्थित हो जायेंगे तब कर्मातीत अवस्था का अनुभव होगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ"

 

  अपने को सदा स्वदर्शन-चक्रधारी समझते हो? स्व का दर्शन हो गया है ना? आत्मा का इस सृष्टि-चक्र में क्या-क्या पार्ट है, उनको जानना अर्थात् स्वदर्शन-चक्रधारी बनना। स्वदर्शन-चक्रधारी आत्मा सदा माया से मुक्त है।

 

  स्वदर्शन-चक्रधारी ही बाप के प्रिय हैं क्योंकि ज्ञानी तू आत्मा बन गये ना। स्व के चक्र को जानना अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बनना। जो स्वदर्शन चक्रधारी हैं, उनके आगे माया ठहर नहीं सकती। वह सहज ही माया को समाप्त कर देते हैं। तो सभी स्वदर्शन-चक्रधारी हो या कभी-कभी चक्र गिर जाता है?

 

  ज्ञान को बुद्धि में धारण करना अर्थात् स्वदर्शन-चक्र चलाना। 'स्वदर्शन चक्र ही भविष्य में चक्रवर्ती राजा बनायेगा'। तो यह वरदान सदा याद रखना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  कर्मातीत स्थिति के समीप आ रहे हैं। कर्म भी वृद्धि को प्राप्त होता रहता है। लेकिन कर्मातीत अर्थात कर्म के किसी भी बंधन के स्पर्श से न्यारे। ऐसा ही अनुभव बढ़ता रहे। जैसे मुझ आत्मा ने इस शरीर द्वारा कर्म किया ना, ऐसे ही न्यारा-पन रहे।

 

✧  न कार्य के स्पर्श करने का और करने के बाद जो रिजल्ट हुई - उस फल को प्राप्त करने में भी न्यारा-पना कर्म का फल अर्थात जो रिजल्ट निकलती है उसका भी स्पर्श न हो, बिल्कुल ही न्यारा-पन अनुभव होता रहे।

 

✧  जैसे कि दूसरे कोई ने कराया और मैंने किया। किसी ने कराया और मैं निमित बनी। लेकिन निमित बनने में भी न्यारा-पना ऐसी कर्मातीत स्थिति बढ़ती जाती है - ऐसा फील होता है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बापदादा आपके आफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं। बहुत बिजी रहते हैं ना। अच्छी तरह से आफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकालो। सेकण्ड भी निकालो। अभी साधन पर हाथ है और अभी-अभी एक सेकण्ड साधना बीच-बीच में अभ्यास करो। जैसे साधनों में जितनी प्रेक्टिस करते हो तो ऑटोमेटिक चलता रहता है ना। ऐसे एक सेकण्ड में साधना का भी अभ्यास हो। ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सारा दिन बहुत बिजी रहे। बापदादा यह बात नहीं मानते हैं। क्या एक घण्टा साधन को अपनाया, उसके बहुत में क्या ५६ सेकण्ड नहीं निकाल सकते? ऐसा कोई बिजी है जो ५ मिनट भी नहीं निकाल सके, ५ सेकण्ड भी नहीं निकाल सके। ऐसा कोई है? निकाल सकते हैं?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनना"
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ जाती हूँ... और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... प्यारे बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के नैनों से जादुई किरणें निकलकर मुझ पर पड रही हैं... बाबा की इन जादुई किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो गया है और मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ... प्यारे बाबा मुझे अपने साथ बाहर लेकर जाते हैं और झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हुए प्यार भरी बातें करते हैं...
 
❉   प्यारे बाबा अपनी प्यार भरी मुस्कान से मुझ आत्मा को निहाल करते हुए कहते है:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गई... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो... अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा देहभान से मुक्त होकर देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”
 
❉   मीठे बाबा मेरा सतरंगी श्रृंगार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैलेपन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... अब अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा सुन्दर कमल फूल समान खिलकर अपनी रंगत चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ...”
 
❉   मेरे बाबा मुझ आत्मा के 63 जन्मों के विकर्मों को भस्म कर सच्चा सोना बनाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते जायेंगे... और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...”
 
➳ _ ➳  मैं देही अभिमानी आत्मा देह के सर्व बन्धनों से मुक्त होकर खुशियों के गीत गाती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- इस बेहद नाटक में एक्ट करते हुए सारे नाटक को साक्षी होकर देखना है"
 
➳ _ ➳  इस सृष्टि रूपी विशाल रंगमंच पर चलने वाली सीन सीनरियो को देखने की इच्छा से अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फ़रिशता अपने साकारी शरीर से बाहर निकलता हूँ और सृष्टि रूपी भू लोक की सैर करने चल पड़ता हूँ। धरती के आकर्षण से परे काफी ऊंचाई से मैं फ़रिशता धरती के चारों ओर का नजारा अपनी आंखों से स्पष्ट देख रहा हूँ। इतनी ऊंचाई से देखने पर भू लोक का नज़ारा ऐसे लग रहा है जैसे मैं कोई बहुत बड़ा मंच देख रहा हूँ, जिस पर कोई ड्रामा अथवा नाटक चल रहा है। इस वैरायटी ड्रामा में वैरायटी एक्टर्स को वैरायटी पार्ट प्ले करते हुए मैं देख रहा हूँ।
 
➳ _ ➳  कोई गरीब है, कोई अमीर है। कोई दुखी है, कोई सुखी है। कोई हंस रहा है, कोई रो रहा है। कोई अत्याचार कर रहा है, कोई उस अत्याचार को सहने के लिए विवश है। ये सब दृश्य देख कर मन मे विचार आता है कि सभी एक समान क्यो नही है! क्यो कोई दुखी और कोई सुखी है! मन मे उठ रही इस दुविधा का हल जानने के लिए मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन अपने बाबा के पास। सूक्ष्म वतन में पहुंचते ही एक विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ सामने एक विशाल पर्दा है जिस पर वो सब सीन चल रही है जो मैं देखते हुए आ रहा था। जिसे देख कर मन मे विचार उठ रहे थे कि ऐसा क्यों? लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बाबा भी यही सब दृश्य यहाँ बैठ कर स्पष्ट देख रहें है लेकिन बाबा के चेहरे पर कोई दुविधा नही। बल्कि मुस्कराते हुए बाबा हर दृश्य को देख रहें हैं।
 
➳ _ ➳  तभी उस पर्दे पर और भी भयानक मंजर दिखाई देता है। कहीं बाढ़ के कारण तबाही का दृश्य, तो कहीं भूकम्प के कारण गिरती हुई बड़ी बड़ी बिल्डिंग, कही बॉम्ब फटने से तबाह होते शहर, कहीं गृह युद्ध। लाशों के ढेर लगे हैं, लोग चीख रहें हैं, चिल्ला रहे हैं लेकिन बाबा के चेहरे पर अभी भी वही गुह्य मुस्कराहट देख कर मैं हैरान हो रहा हूँ। बाबा मेरे मन की दुविधा जान कर अब मेरे पास आते हैं और मुझ से कहते हैं, बच्चे:- "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर सीन को देखोगे तो कभी कोई संदेह या प्रश्न मन मे पैदा नही होगा"। अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और मास्टर त्रिकालदर्शी भव का वरदान दे कर, तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक मेरे मस्तक पर लगा कर मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर देते हैं।
 
➳ _ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप धारण करके, मस्तक पर तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाये अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ और फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रहा हूँ। किन्तु अब मेरे मन मे कोई संदेह, कोई प्रश्न नही। ड्रामा की हर सीन को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं। त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर एक्ट को देखने से अब हर एक्ट एक खेल की भांति प्रतीत हो रही है और मनोरंजन का अनुभव हो रहा है।
 
➳ _ ➳  सृष्टि के आदि, मध्य, अंत के राज को जानने और स्वयं को केवल एक्टर समझ कर पार्ट बजाने से अब मैं हर फिक्र से मुक्त हो, बेफिक्र बादशाह बन जीवन का आनन्द ले रही हूं। इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूं कि इस विश्व नाटक में कोई किसी का मित्र/शत्रु नही है। सभी पार्टधारी है और सभी अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रहें हैं इसलिए क्या,क्यो और कैसे के सब सवालों से स्वयं को मुक्त कर, किसी भी बात में संशय ना उठाते हुए साक्षीदृष्टा बन इस सृष्टि ड्रामा में अपना पार्ट बजा रही हूं।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं दिल में एक दिलाराम को समाकर एक से सर्व संबंधों की अनुभूति करने वाली संतुष्ट आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं अमृतवेले प्लेन बुद्धि हो बैठकर सेवा की नई विधियों की टचिंग प्राप्त करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  चारों ओर की सेवाओं के समाचार बापदादा सुनते रहते हैं और दिल से सभी अथक सेवाधारियों को मुबारक भी देते हैं, सेवा बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से कर रहे हैं और आगे भी करते रहो लेकिन सेवा और स्थिति का बैलेन्स थोड़ा -सा कभी इस तरफ झुक जाता हैकभी उस तरफ इसलिए सेवा खूब करो, बापदादा सेवा के लिए मना नहीं करते और जोर-शोर से करो लेकिन सेवा और स्थिति का सदा बैलेन्स रखते चलो। स्थिति बनाने में थोड़ी मेहनत लगती है और सेवा तो सहज हो जाती है। इसलिए सेवा का बल थोड़ा स्थिति से ऊंचा हो जाता है। बैलेन्स रखो और बापदादा कीसर्व सेवा करने वाले आत्माओं कीसंबंध-सम्पर्क में आने वाले ब्राह्मण परिवार की ब्लैसिंग लेते चलो। यह दुआओं का खाता बहुत जमा करो।

 

 _ ➳  अभी की दुआओं का खाता आप आत्माओं में इतना सम्पन्न हो जाए जो द्वापर से आपके चित्रों द्वारा सभी को दुआयें मिलती रहेंगी। अनेक जन्म में दुआयें देनी हैं लेकिन जमा एक जन्म में करनी हैं। इसलिए क्या करेंगेस्थिति को सदा आगे रख सेवा में आगे बढ़ते चलो। क्या होगा, यह नहीं सोचो।ब्राह्मण ब्राह्मण आत्माओं के लिए अच्छा हैअच्छा ही होना है। लेकिन बैलेन्स वालों के लिए सदा अच्छा है। बैलेन्स कम तो कभी अच्छाकभी थोड़ा अच्छा। सुना क्या करना हैक्वेश्चन मार्क सोचने के हिसाब से आश्चर्यवत होके सोचने को फिनिश करो, यह तो नहीं होगायह तो नहीं होगा....। वह स्थिति को नीचे ऊपर करता है। समझा।

 

✺   ड्रिल :-  "सेवा और स्थिति का बैलेन्स करना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन और बुद्धि से शक्ति स्तम्भ पर... शक्तियों के सुरक्षित घेरे के अन्दर... शिव बिन्दु से आता लाल सुनहरें प्रकाश का तेजमेरी भृकुटी पर स्थित हो गया है... मेरे मस्तिष्क में फैलता नीले रंग का प्रकाश मेरे हृदय स्थल में हरे रंग व उदर भाग में जाकर पीले रंग में बदल रहा है... पूरी ही देह सतरंगी प्रकाश की आभा से दमक रही है... आहिस्ता आहिस्ता मैं आत्मा देह से अलग होती हुई... देहभान से मुक्त मैं आकारी फरिश्ता... सामने से मुस्कुराते आ रहे है बापदादा मेरी ही ओर... इन्तजार के लम्हों पर एकाएक विराम सा लग गया है... और मैं बापदादा संग उड चला सूक्ष्म वतन की ओर नन्हें हाथों में उनकी उगँली थामें हुए...

 

 _ ➳  सूक्ष्म वतन में बापदादा के सम्मुख बैठा हूँ मैं... और बापदादा समझा रहे है... सेवा और स्व स्थिति का बैलेन्स रखना है सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली ब्राह्मण आत्माओं से ब्लैसिंग लेनी है, अनेक जन्म में दुआए देनी है मगर इस जन्म में लेनी है... मैं फरिश्ता सब कुछ ध्यान पूर्वक सुनता हुआ... अब मैं और बापदादा विश्व सेवा पर... ग्लोब के ऊपर खडा हूँ मैं, ठीक मेरे पीछे मेरी छत्रछाया बने बापदादा... बापदादा के हाथों में मेरे दोनों हाथ, शान्ति की, पावनता की, शक्तिशाली किरणें बापदादा से लेकर ग्लोब पर बिखराता हुआ... प्रकृति को सकाश देता हुआ... और साक्षी होकर अपनी ऊँची स्थिति को देखता हुआ... मैं देख रहा हूँ पूरे ग्लोब पर प्रकाश का प्रसरण... सचमुच ऊँचाई पर स्थित होकर ही मैं ऐसा कर पा रहा हूँ...

 

 _ ➳  तभी सागर में उठती मनोरम लहरों से आकर्षित होता हुआ मैं उतर जाता हूँ सागर के किनारें पर मगर ये क्या? मेरी शक्तियाँ तो सीमित होती जा रही है, मैं स्वयं को अशक्त सा महसूस करने लगा हूँ... सागर में भयंकर लहरों का उत्पात... मैं शान्ति की किरणें भेज रहा हूँ... मगर मेरी कोशिशें असर हीन सी साबित हो रही है... घबराकर मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... ग्लोब पर खडे बापदादा मुस्कुरा रहे है मुझे देखकर... मगर ये मुस्कान मेरी गलती का एहसास कराने वाली मुस्कान है... मैं समझ गया हूँ, सेवा में स्व स्थिति का बैलैन्स कैसे रखना है... बापदादा के पास उडकर वापस लौटता हुआ मैं... फिर से ग्लोब पर, और फिर से बाबा के हाथों में मेरे हाथ... और शान्त होती सागर की लहरें...

 

 _ ➳  मेरे पास लौटकर आती हुई दुआएं, मैं भरपूर महसूस कर रहा हूँ स्वयं को मन के निर्मल गगन में विचरता द्वापर युगीन विमान... स्वयं को इस विमान पर सवार, द्वापर युग में देख रहा हूँ... भव्य राजमहलों और मन्दिरों को अपने आँगन में सजाये ये द्वापर युग... स्वर्ण कलश से सुशोभित सुनहरी आभा छिटकाता मेरा भव्य और विशाल मन्दिर... और मन्दिर के गर्भ गृह में दिव्य प्रकाश फैलाती मेरी पावन प्रतिमा... मगंल गायन करते भक्त जन... घन्टे और घडियाल बजाते पुजारी... और द्वार पर भक्तों की लंबी कतार... और मन्द मन्द मुस्कुरातें हुए एक एक भक्त की मनोकामनाओं को पूरा करता हुआ मैं... भक्तों की कतार कम होने का नाम नही ले रही... मगर मैं बडी उदारता से सबकी मनोकामनाएं पूरा करता जा रहा हूँ, और अब मैं आत्मा लौट आयी हूँ वापस उसी देह में... सेवा और स्वस्थिति का बैलेन्स का गहरा अनुभव लिए... ओम शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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