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❍ 07 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सारी दुनिया को भूलने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *अपना रजिस्टर स्वयं ही देखा ?*
➢➢ *तीन स्मृतियों के तिलक द्वारा श्रेष्ठ स्थिति बनायी ?*
➢➢ *दृष्टि को अलोकिक, मन को शीतल और बुधी को रहमदिल बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जो निरन्तर तपस्वी हैं उनके मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई नहीं देगा।* किसी भी संस्कार वा स्वभाव वाली आत्मा, उनके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो लेकिन हर आत्मा के प्रति सेवा अर्थात् कल्याण का संकल्प वा भावना ही रहेगी। दूसरी भावनायें उत्पन्न नहीं हो सकती।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा बाप की ब्लैसिंग अनुभव करने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा याद और सेवा के बैलेन्स से बाप की ब्लैसिंग अनुभव करते हो? *जहाँ याद और सेवा का बैलेन्स है अर्थात् समानता है, वहाँ बाप की विशेष मदद अनुभव होती है। तो मदद ही आशीर्वाद है।*
〰✧ *क्योंकि बापदादा, और अन्य आत्माओंके माफिक आशीर्वाद नहीं देते हैं। बाप तो है ही अशरीरी, तो बापदादा की आशीर्वाद है - सहज, स्वत: मदद मिलना जिससे जो असम्भव बात हो वह सम्भव हो जाए। यही मदद अर्थात् आशीर्वाद है।* लौकिक गुरूओंके पास भी आशीर्वाद के लिए जाते हैं। तो जो असम्भव बात होती, वह अगर सम्भव हो जाती तो समझते हैं यह गुरू की आशीर्वाद है। तो बाप भी असम्भव से सम्भव कर दिखाते हैं।
〰✧ *दुनिया वाले जिन बातों को असम्भव समझते हैं, उन्हीं बातों को आप सहज समझते हो। तो यही आशीर्वाद है। एक कदम उठाते हो और पद्मों की कमाई जमा हो जाती है। तो यह आशीर्वाद हुई ना।* तो ऐसे बाप की व सतगुरू की आशीर्वाद के पात्र आत्मायें हो। दुनिया वाले पुकारते रहते हैं और आप प्राप्ति स्वरूप बन गये।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *जैसे योग में बैठने के समय कई आत्माओं को अनुभव होता जाता - यह ड्रिल कराने वाले न्यारी स्टेज पर हैं, ऐसे चलते - फिरते फरिश्ते - पन के साक्षात्कार होगे।* यहाँ बैठे हुए भी अनेक आत्माओं को, जो भी आपके सतयुगी फैमिली में समीप आने वाले होंगे उन्हों को आप लोगों के फरिश्ते रूप और भविष्य राज्य पद के दोनों इकट्ठे साक्षात्कार होंगे। जैसे शुरू में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप और श्रीकृष्ण का दोनों का साथ - साथ साक्षात्कार करते थे, ऐसे अब उन्हों को तुम्हारे डबल रूप का साक्षात्कार होगा। जैसे - जैसे नम्बरवार इस न्यारे स्टेज पर आते जायेंगे तो आप लोगों के भी यह डबल साक्षात्कार होंगे।
〰✧ अभी यह पूरी प्रैक्टिस हो जाए तो यहाँ - वहाँ से यही समाचार आना शुरू हो जायेंगे। जैसे शुरू में घर बैठे भी अनेक समीप आनेवाली आत्माओं को साक्षात्कार हुए ना। वैसे अब भी साक्षात्कार होंगे। *यहाँ बैठे भी बेहद में आप लोगों का सूक्ष्म स्वरूप सर्विस करेगा।* अब यही सर्विस रही हुई हैं।
〰✧ साकार में भी एक्जाम्पल तो देख लिया। सभी बातें नम्बरवार ड्रामा अनुसार होनी है। *जितना - जितना स्वयं आकारी फरिश्ते स्वरूप में होंगे उतना आपका फरिश्ता रूप सर्विस करेगा।* आत्मा को सारे विश्व का चक्र लगाने में कितना समय लगता है? तो अभी आप के सूक्ष्म स्वरूप भी सर्विस करेंगे। लेकिन जो इसी न्यारी स्थिति में होंगे। स्वयं फरिश्ते रूप में स्थित होंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ऐसे समय में जैसी स्थिति सुनाई उसके लिए विशेष कौनसी शक्ति की आवश्यकता होगी? *सेकण्ड के हार-जीत के खेल में कौन-सी शक्ति चाहिए? ऐसे समय में समेटने की शक्ति आवश्यक है।* जो अपने देह-अभिमान के संकल्प को, देह की दुनिया की परिस्थितियों के संकल्प को, क्या होगा?- इस हलचल के संकल्प को भी समेटना है। शरीर औार शरीर के सर्व सम्पर्क की वस्तुओं को भी व अपनी आवश्यकताओं के साधनों की प्राप्ति के संकल्प को भी समेटना है। *घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य किसी संकल्प का विस्तार न हो – बस यही संकल्प हो। कि अब घर गया कि गया।* शरीर का कोई भी सम्बन्ध व सम्पर्क नीचे न ला सके। जैसे इस समय साक्षात्कार में जाने वाले साक्षात्कार के आधार पर अनुभव करते हैं कि मैं आत्मा इस आकाश तत्व से भी पार उड़ती हुई जा रही हूँ, ऐसे ही ज्ञानी एवं योगी आत्मायें ऐसा अनुभव करेंगी। उस समय ट्रान्स की मदद नहीं मिलेगी। ज्ञान और योग का आधार चाहिए। *इसके लिए अब से अकाल-तख्त-नशीन होने का अभ्यास चाहिए। जब चाहे अशरीरीपन का अनुभव कर सकें, बुद्धियोग द्वारा जब चाहे तब शरीर के आधार में आयें। 'अशरीरी भव।' का वरदान अपने कार्य में अब से लगाओ।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- याद की यात्रा में रहना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की यादों में खोई हुई मन-बुद्धि से पहुँच जाती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... बाबा के सामने बैठ जाती हूँ और बाबा को प्यार से निहारती रहती हूँ... मीठे बाबा भी मुझे अपनी मीठी दृष्टि से निहाल कर रहे हैं...* बस प्यार की तरंगे बहती जा रही हैं और मैं आत्मा इन प्यार की तरंगो में और गहरे, और गहरे डूबती जा रही हूँ... फिर मीठे बाबा मीठी शिक्षाओं से मुझे भरपूर करते हैं...
❉ *यादों के समुन्दर में डुबोकर हीरे मोतियों से मुझे सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *मीठे पिता की यादो के सिवाय कोई भी नाता सच्चा नही... ये यादे ही जादूगरी करके सुनहरा चमकीला रंग देकर सजायेंगी...* इसलिए इन यादो के मोतियो को अपनी सांसो में पिरो लो... यही पल सच्चे साथी बनेगे...”
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों की बाँहों में खूबसूरत फूल बन मुस्कुराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *आपकी मीठी यादो के साये में मै आत्मा कितनी खूबसूरत और प्यारी होती जा रही हूँ... इन यादो में अनन्त सुख को जी रही हूँ...* मै कितनी भाग्यशाली हूँ सच्चे पिता की गोद में सुरक्षित हूँ...”
❉ *अपने प्यार की छत्रछाया में मुझे अमूल्य सितारा बनाकर गगन में चमकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... *खुद को खूबसूरती से सजाने वाले इन मीठे पलों को यादो में बांध लो... सांसो को यादो में अमर कर दो...* ये यादे ही जनमो की कलुषिता को जलायेगी और सोने जैसी दमकती काया और आनन्द ख़ुशी से छलकता महकता जीवन कदमो में भर जाएँगी...”
➳ _ ➳ *खुद को भी भूल एक बाबा की यादों में समाकर मैं भाग्शाली आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर अधूरी सी थी... *आपने आकर जनमो के गहरे अँधेरे को सदा की रोशनी से रोशन किया है... ये पल आपकी यादो में भीगे भीगे से अनमोल है... जहाँ हम आप एक दूजे में खोये है...”*
❉ *सच्ची कमाई का राज समझाते हुए मेरे हर श्वांस को सफल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे बच्चे... *सारा मदार कीमती यादो और कीमती समय पर है... इस समय को मुट्ठी में बांध यादो में घोट दो... और सुर्ख योग अग्नि में सारी कालिमा को धो दो...* समय रहते बाबा के दिल को सदा का जीत लो... गफलत शब्द को सदा की विदाई दे अथक बन जाओ...”
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की यादों में सच्ची कमाई कर सतयुगी सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मुझ आत्मा ने इस सच्चे समय के महत्व को जान लिया है... आपकी यादो में भर देने का इसे ठान लिया है...* न होगी यादो में गफलत कोई... दिल को यूँ समझा दिया है... और आपको सदा का बाहों में जकड़ लिया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपना रजिस्टर स्वयं ही देखना है*"
➳ _ ➳ बाबा के कमरे में बैठी, बाबा के चित्र को बड़े प्यार से निहारते हुए, मैं उनकी देन अपने इस ईश्वरीय ब्राह्मण जीवन के लिए मन ही मन उन्हें शुक्रिया अदा करते हुए उन अखुट प्राप्तियों को याद कर रही हूँ जो बाबा ने मुझे दी है। *उन अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाकर अपने बेरंग जीवन में खुशियों के रंग भरने वाले अपने दिलाराम बाबा के चित्र को निहारते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा के मुख मण्डल पर फैली मीठी मधुर मुस्कान मुझे कोई इशारा दे रही हैं और बाबा आंखों ही आंखों में मुझ से कुछ कह रहे हैं*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझने का प्रयास करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा की अव्यक्त आवाज धीरे - धीरे मेरे कानों में सुनाई पड़ रही है।
➳ _ ➳ बाबा कह रहे हैं, बच्चे-: "कभी कोई विकर्म करके अपने इस अमूल्य जीवन रूपी रजिस्टर पर दाग मत लगने देना। इसे कभी खराब नही होने देना। *जैसे एक विद्यार्थी अपनी स्टूडेंट लाइफ में पूरा ध्यान रखता है कि उससे ऐसा कोई भी गलत कर्म ना हो जिससे उसके चरित्र पर कोई आंच आये और उसका रजिस्टर खराब हो। ऐसे ही तुम्हारा ये ईश्वरीय जीवन पुरुषार्थी जीवन है जहाँ कदम - कदम पर सम्भल कर चलना पड़े एक छोटे से छोटी गलती भी रजिस्टर को दागी बना सकती है इसलिए अपनी बहुत सम्भल रखनी है*। बाबा के अव्यक्त इशारे को समझ कर, बाबा से ऐसा कोई भी कर्म ना करने का मैं प्रोमिस करती हूँ जो मेरे रजिस्टर को खराब करने के निमित बने।
➳ _ ➳ अपने रजिस्टर को सदा साफ, स्वच्छ रखने का बाबा से वायदा करके, परमात्म बल से स्वयं को बलशाली बनाने के लिए अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने मस्तक पर एकाग्र कर, अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर, अपने गुणों और शक्तियों की अनुभूति करते हुए, अपने पिता परमात्मा के पास जाने वाली आंतरिक यात्रा पर चलने के लिए तैयार होती हूँ। *देह भान से न्यारी, मन बुद्धि की इस सुहावनी यात्रा पर चलने के लिए, मैं आत्मा भृकुटि के सिहांसन से उतर कर, देह रूपी मंदिर की गुफा से बाहर आती हूँ और एक दिव्य प्रकाश चारों ओर फैलाती हुई ऊपर नीले गगन की ओर चल पड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ अपने चारों और एक दिव्य प्रकाश के कार्ब को धारण किये हुए, मैं जगती ज्योति सेकण्ड में आकाश को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को भी पार करके, मणियों की उस खूबसूरत दुनिया, अपने पिता परमात्मा के शान्तिधाम घर मे प्रवेश करती हूँ जहाँ चारो और शांति के अथाह वायब्रेशन्स फैले हुए हैं। *इन वायब्रेशन्स को अपने अंदर समा कर गहन शान्ति की अनुभूति करती हुई मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उनकी किरणो रूपी बाहों के आगोश में समा जाती हूँ*। अपनी किरणों रूपी बाहों में भरकर, अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर बाबा मुझे तृप्त कर देते हैं और अपनी समस्त शक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना देते हैं।
➳ _ ➳ बाबा का असीम स्नेह पाकर, बाबा की शक्तियों को स्वयं में समाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, बाबा से किये हुए वायदे को पूरा करने के लिए मैं वापिस अपनी साकारी दुनिया में फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए लौट आती हूँ। *अपने साकार शरीर रूपी रथ में भृकुटि के भव्य भाल पर बैठ, कर्मेन्द्रियों से कर्म करते, इस बात का अब मैं विशेष ध्यान देती हूँ कि जाने - अनजाने में भी मुझ से ऐसा कोई विकर्म ना हो जिससे मेरा रजिस्टर खराब हो*। अपने रजिस्टर को साफ स्वच्छ रखने के बाबा से किये हए अपने वायदे को निभाने के लिए, हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने पर मैं पूरा अटेंशन दे रही हूँ। *कदम - कदम पर मम्मा, बाबा को फॉलो कर, मनसा - वाचा - कर्मणा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर, अपने रजिस्टर को कभी भी खराब ना होने देने की अपनी प्रतिज्ञा का पालन पूरी दृढ़ता और लग्न के साथ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं तीन स्मृतियों के तिलक द्वारा श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाली अचल-अडोल आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं दृष्टि को अलौकिक, मन को शीतल और बुद्धि को रहमदिल बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ दूसरी निशानी वा अनुभूति- जैसे भक्तों को वा आत्मज्ञानियों का व कोई-कोई परमात्म-ज्ञानियों को दिव्य दृष्टि द्वारा ज्योति बिन्दु आत्मा का साक्षात्कार होता है, तो साक्षात्कार अल्पकाल की चीज है, साक्षात्कार कोई अपने अभ्यास का फल नहीं है। यह तो ड्रामा में पार्ट वा वरदान है। *लेकिन एवररेडी अर्थात् साथ चलने के लिए समान बनी हुई आत्मा साक्षात्कार द्वारा आत्मा को नहीं देखेंगी लेकिन बुद्धियोग द्वारा सदा स्वयं को साक्षात् ‘ज्योति बिन्दु आत्मा' अनुभव करेगी। साक्षात् स्वरूप बनना सदाकाल है और साक्षात्कार अल्पकाल का है। साक्षात स्वरूप आत्मा कभी भी यह नहीं कह सकती कि मैंने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है। मैंने देखा नहीं है। लेकिन वह अनुभव द्वारा साक्षात् रूप की स्थिति में स्थित रहेंगी।* जहाँ साक्षात स्वरूप होगा वहाँ साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं। ऐसे साक्षात आत्मा स्वरूप की अनुभूति करने वाले अथार्टी से, निश्चय से कहेंगे कि मैंने आत्मा को देखा तो क्या लेकिन अनुभव किया है। क्योंकि देखने के बाद भी अनुभव नहीं किया तो फिर देखना कोई काम का नहीं। *तो ऐसे साक्षात् आत्म-अनुभवी चलते-फिरते अपने ज्योति स्वरूप का अनुभव करते रहेंगे।*
✺ *"ड्रिल :- बुद्धियोग द्वारा सदा स्वयं को साक्षात् 'ज्योति बिन्दु आत्मा' अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मधुबन की मधुर स्मृतियों को स्मृति में रख पहुँच जाती हूँ शांति स्तम्भ...* जहाँ प्यारे बापदादा बाहें पसारे खड़े मुस्कुरा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा की बाँहों में सिमट जाती हूँ... और बाबा को कहती हूँ बाबा- अब घर ले चलो... इस आवाज़ की दुनिया से पार ले चलो... बापदादा बोले:- बच्चे- मैं अपने साथ ले जाने के लिए ही आया हूँ... साथ जाने के लिए एवररेडी बनो... बिंदु रूप में स्थित हो जाओ...
➳ _ ➳ बापदादा मेरे सामने कई जन्मों के हिसाब-किताब के विस्तार रूपी वृक्ष को इमर्ज करते हैं... *मुझ आत्मा के देह के स्मृति की शाखाएं, देह के संबंधो की शाखाएं, देह के पदार्थो की शाखाएं, भक्ति मार्ग की शाखाएं, विकर्मों के बंधनों की शाखाएं, कर्मभोगों की शाखाएं ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के हिसाब-किताब का बहुत बड़ा वृक्ष मेरे सामने खड़ा है...* कई जन्मों से मुझ आत्मा ने इस वृक्ष को आत्म विस्मृति के कारण बड़ा कर दिया... *देहभान के पानी से, देह अभिमान के खाद से इस वृक्ष की कई शाखाएं निकल आईं हैं...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा को निहारते हुए बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के दोनों हाथों से, मस्तक से दिव्य तेजस्वी किरणें निकलकर मुझ पर पड़ रही हैं... *बाबा की याद की लगन की अग्नि प्रज्वलित हो रही है... इस अग्नि में सारा वृक्ष जलकर भस्म हो रहा है...* सारी शाखाएं टूटकर भस्म हो रही हैं... देह के, देह के संबंधो के, देह के पदार्थो के, सर्व प्रकार के विस्तार का वृक्ष भस्म हो रहा है... कई जन्मों के विकर्म दग्ध हो रहे हैं... मैं आत्मा सभी प्रकार के कर्मभोगों से मुक्त हो रही हूँ...
➳ _ ➳ *पूरा वृक्ष जलकर भस्म हो गया अब सिर्फ बची मैं बीजरूप आत्मा जो इस विस्तार रूपी वृक्ष के नीचे दबी पड़ी थी...* मैं बीज स्वरुप, बिंदु रूप आत्मा हीरे समान चमक रही हूँ... कितना ही हल्का महसूस कर रही हूँ... *मैं दिव्य सितारा, दिव्य ज्योति, दिव्य मणि, दिव्य प्रकाश का पुंज हूँ...* मुझ आत्मा का वास्तविक स्वरुप कितना ही सुन्दर है...
➳ _ ➳ *मैं बिंदु आत्मा बिंदु बाप के साथ उड़ चली अपने मूलवतन...* अपने असली घर में, अपने असली स्वरुप में, अपने असली पिता के सामने मैं आत्मा दिव्य, अलौकिक अनुभूतियाँ कर रही हूँ... मैं आत्मा अपने निज गुणों को धारण कर अपने निज स्वरुप की साक्षात अनुभूति कर रही हूँ... साक्षात् आत्मा स्वरूप की स्थिति में स्थित हो रही हूँ... *मैं आत्मा अपने स्वरुप का साक्षात्कार भी कर रही हूँ और साक्षात् आत्म-अनुभवी बन चलते-फिरते अपने ज्योति बिंदु स्वरूप का अनुभव भी कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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