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 09 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ क्रिमिनल आई को सिविल आई बनाया ?

 

➢➢ सजाओं से छूटने के लिए बाप का व पढाई का रीगार्ड रखा ?

 

➢➢ चलते फिरते अपने द्वारा अष्ट शक्तियों का अनुभव करवाया ?

 

➢➢ हर कर्म सेवा को प्रेरणा देने वाला रहा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अगर अभी से स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लैन नहीं बनायेंगे तो विश्व सेवा में सकाश नहीं मिल सकेगी। इसलिए अभी सेवा में सकाश दें, बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा करो। फिर देखो सफलता आपके सामने स्वयं झुकेगी। मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्नों का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई देगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सारे चक्र में सबसे साहूकार आत्मा हूँ"

 

  सबसे साहूकार से साहूकार कौन है? जो समझते हैं कि सारे चक्र के अन्दर साहूकार से साहूकार हम आत्मा हैं, वो हाथ उठाओ। किसमें साहूकार हो? कितने प्रकार के धन मिले हैं? वो लिस्ट याद रहती है? बहुत खजाने मिले हैं! एक दिन में कितनी कमाई करते हो, मालूम है? पद्मों की कमाई करते हो। रहते गांव में हो और पद्मों की कमाई कर रहे हो! देखो, यही परमात्मा पिता की कमाल है जो देखने में साधारण लेकिन हैं सबसे साहूकार में साहूकार!

 

  तो अखबार में निकालेंगे-यहाँ सबसे साहूकार में साहूकार बैठे हैं। तो फिर सब आपके पीछे आयेंगे। आजकल आतंकवादी साहूकारों के पीछे पड़ते हैं ना। फिर आपके पीछे पड़ जायेंगे तो क्या करेंगे? उन्हों को भी साहूकार बना देंगे ना। हैं देखो कितने साधारण रूप में, कोई आपको देखकर समझेंगे कि ये सारे विश्व में साहूकार हैं या पद्मों की कमाई करने वाले हैं? लेकिन साधारणता में महानता समाई हुई है। जितने ही साधारण हो उतने ही अन्दर महान् हो! तो यह नशा रहता है-बाप ने क्या से क्या बना दिया और क्या-क्या दे दिया! दोनों ही बातें याद रहती हैं ना।

 

  तो अखबार में निकालेंगे ना-रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड (विश्व में सबसे अधिक धनवान)। और देखो, खजाना भी ऐसा है जिसको न चोर लूट सकता है, न आग जला सकती है, न पानी डूबो सकता है। ऐसा खजाना बाप ने दे दिया। अविनाशी खजाना है ना। अविनाशी खजाना कोई विनाश कर नहीं सकता। और कितना सहज मिल गया! जितना खजाना है उसके अन्तर में मेहनत की है कुछ? त्याग किया या भाग्य मिला? त्याग भी किया तो बुराई का किया ना। बुराई छोड़ना भी कोई छोड़ना हुआ क्या? दुनिया कहती है-त्याग किया और आप कहते हो-भाग्य मिला है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  समेटने की शक्ति बहुत अपने पास जमा करो। इसके लिए विशेष अभ्यास चाहिए। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। इन तीनों स्टेजेस में स्थित रहना इतना सहज हो जाए।

 

✧  जैसे साकार रूप में सहज ही स्थित हो जाते हो वैसे आकारी और निराकारी स्थिति भी मेरी स्थिति है, तो अपनी स्थिति में स्थित होना तो सहज होना चाहिए। जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो ऐसे यह स्वरूप की स्थिति परिवर्तन कर सको साकार स्वरूप की स्मृति को छोड आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ।

 

✧  तो फरिश्ते-पन की ड्रेस सेकण्ड में धारण कर ली। ड्रेस चेन्ज करना नहीं आताऐसे अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ऐसे समय पर पास हो जायेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बापदादा द्वारा सभी बच्चों को कौन सी नम्बरवन श्रीमत मिली हुई है? नम्बरवन श्रीमत है कि 'अपने को आत्मा समझो और आत्मा समझकर बाप को याद करो।' सिर्फ आत्मा समझने से भी बाप की शक्ति नहीं मिलेगी। याद न ठहरने का कारण ही है कि आत्मा समझकर याद नहीं करते हो। आत्मा के बजाए अपने को साधारण शरीरधारी समझकर याद करते हो। इसलिए याद टिकती नहीं। वैसे भी कोई दो चीज़ों को जब जोड़ा जाता है तो पहले समान बनाते हैं। ऐसे ही आत्मा समझकर याद करो तो याद सहज हो जायेगी, क्योंकि समान हो गये ना। यह पहली श्रीमत ही प्रैक्टिकल में सदा लाते रहो। यही मुख्य फाउण्डेशन है। अगर फाउण्डेशन कच्चा होगा तो आगे चढ़ती कला नहीं हो सकती।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- इस दुखधाम को भूल, शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना"

➳ _ ➳ मीठे मधुबन के प्रांगण में शांतिस्तम्भ में घूमते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा को याद कर रही हूँ कि प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा की उन्नति और सुखो के लिए क्या नही किया है... मुझे अपने भूले घर का पता बताकर, मुझे अपनी प्यारी सी गोद में बिठाकर, सदा का सनाथ कर दिया है... सच्चे सुखो की दुनिया मेरी हथेली पर लाकर रख दी है... और मुझे देवताई भाग्य देकर, मुझे इस विश्व धरा पर कितना अनोखा, कितना प्यारा, निराला सजा दिया है.... और याद करते करते मन के इन भावो को... मीठे बाबा को अर्पित करती हूँ...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को इस पुरानी दुनिया से उपराम बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता जब जीवन में आ गया है... तो मन बुद्धि के तारो को इस पुरानी दुनिया से निकाल, ईश्वरीय यादो में जोड़ो... सदा अपने मीठे घर परमधाम और सुखो की नगरी को ही यादो में बसाओ... अब इस दुःख भरी दुनिया में बुद्धि न फंसाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपने दिल में समाकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके प्यार के साये में कितनी सुखी हो गयी हूँ... दुखो के अंधियारे से निकल, ज्ञान और याद के सवेरे में सदा के लिए प्रकाशित हो गयी हूँ... सदा शान्तिधाम और सुखधाम की मीठी यादो में ही खोयी हुई हूँ..."

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने मीठे घर और सुखो की याद दिलाते हुए कहा :-"मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की श्रीमत और यादो रुपी हाथो को पकड़कर, इस दुख के घाट से निकल... मीठी सुख नगरी में चलो... सदा यादो में अपने प्यारे से घर और अथाह सुखो से भरे स्वर्ग को ही ताजा करो... अब दुखो को सदा के लिए भूल सुखद भविष्य की स्मृतियों में खो जाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से पायी सुखो की जागीर में डूबकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... आपने मुझे दुखो की तपन से छुड़ाकर...मुझे सुखो की शीतलता से भर दिया है... देह के भान ने मुझ आत्मा के वजूद को कितना निस्तेज बना दिया था... आपने आकर मेरा नूर लौटाया है... आपने सच्चे सुखो से मेरा दामन सजा दिया है... मै आत्मा असीम सुखो के आनन्द में झूल रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दुखो को भुला सुख की बहारो में ले जाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस दुःख की देह की दुनिया को अब भूल, देवताई सुख भरी दुनिया को याद करो... गुणो और शक्तियो से सजे अपने आत्मिक स्वरूप के नशे में खो जाओ... देहभान में पाये जनमो के दुखो को भूलकर, देवताई सुख भरे मीठे अहसासो में खो जाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में डूबकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके बिना दुखो के जंगल में कितना भटक रही थी... आपने जीवन में आकर, जीवन को सच्ची खुशियो से सजाया है... मै आत्मा जो घर तक भूल चली थी... आज अपने मीठे घर को जान गयी हूँ, और सच्चे सुखो की हकदार हो रही हूँ..." मीठे बाबा का रोम रोम से शुक्रिया कर मै आत्मा... अपने वतन में लौट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है"

➳ _ ➳ अपने आश्रम के बाबा रूम में ब्रह्मा बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठी मैं उन्हें निहार रही हूँ और उन्हें फॉलो कर, उनके समान बनने का संकल्प लेते हुए उनके द्वारा किये हुए श्रेष्ठ कर्मो को स्मृति में लाकर विचार कर रही हूँ कि कितनी विशेषताओं से सम्पन्न थे मेरे प्यारे ब्रह्मा बाबा! तभी तो भगवान ने ऐसी प्रतिभावान आत्मा को अपना रथ बनाया। सृष्टि परिवर्तन के महान कर्तव्य को करने के लिए उनके शरीर रूपी रथ का आधार लिया। ब्रह्मा बाबा की एक - एक विशेषता उनके द्वारा किये हुए कर्मो के रूप में चित्र बन कर मेरी आँखों के सामने ऐसे स्पष्ट हो रही है जैसे कोई मूवी चल रही है और मैं एक - एक सीन अपनी आँखों से स्पष्ट देख रही हूँ। दीदी, दादियों के साकार बाबा के साथ सुने हुए सारे अनुभव भिन्न - भिन्न दृश्यों के रूप मेरे सामने आ रहे हैं और मुझे भी उसी साकार पालना का अनुभव करवा रहे हैं।

➳ _ ➳ बाबा की एक - एक विशेषता चरित्र के रूप में मेरे सामने परिलक्षित हो रही है। भगवान पर सम्पूर्ण समर्पण होकर, उनके द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में अपना तन - मन - धन और जन सब कुछ स्वाहा कर,अर्पण होने के साथ - साथ विशाल बुद्धि बन इतने बड़े यज्ञ को संभालने की जो विशेषता ब्रह्मा बाबा में थी उसी विशेषता को उनके अव्यक्त होने के बाद दीदी दादियों ने अपने जीवन मे धारण कर इस ईश्वरीय यज्ञ को सम्भालते हुए इसका इतना विस्तार किया कि आज इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से प्रज्ववलित होने वाली ज्वाला विश्व के कोने - कोने में फैल कर भगवान की प्रत्यक्षता के कार्य मे सहयोगी बन रही है।

➳ _ ➳ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा और यज्ञ के पिल्लर अपनी दीदी दादियों के समान समपूर्ण समर्पण होने के साथ - साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाकर इस ईश्वरीय यज्ञ में बाबा का सहयोगी बनने का दृढ़ संकल्प लेकर मैं जैसे ही बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के ऊपर नजर डालती हूँ। ऐसा अनुभव करती हूँ जैसे ट्रांसलाइट के चित्र की जगह साक्षात अव्यक्त बापदादा मेरे सामने बैठे मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहें हैं और मेरे हर संकल्प को पढ़ कर उन्हें पूरा करने की हिम्मत मुझे दे रहें हैं। बापदादा से आ रही लाइट माइट सतरंगी प्रकाश के रूप में पूरे कमरे में फैल रही है और उस प्रकाश से बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन्स निकल - निकल कर रिमझिम फ़ुहारों का रूप लेकर मेरे ऊपर बरसते हुए मुझे अनुभव हो रहें हैं। जैसे - जैसे मेरे अंदर ये वायब्रेशन्स समा रहें हैं एक शक्ति का संचार मेरे अंदर करके मुझे बहुत ही शक्तिशाली बनाते जा रहें हैं।

➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरे हर संकल्प को पूरा करने का बल मुझमे लगातार भरते ही जा रहें हैं। अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अन्दर प्रवाहित करते जा रहें हैं। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर वरदानों से मुझे भरपूर करते हुए मेरे मस्तक पर विजय का तिलक दे कर बापदादा अदृश्य हो जाते हैं। फिर से बाबा के ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठी मैं स्वयं को बहुत ही बलशाली अनुभव करते हुए अब अपने बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बनाने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, भृकुटि के अकाल तख्त को छोड़ अपने पिता के पास उनकी निराकारी दुनिया की और रवाना हो जाती हूँ। सेकेण्ड में मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं आकाश को पार करती हूँ और सूक्ष्म वतन को भी क्रॉस करके अपनी निराकारी दुनिया मे पहुँच जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने निराकार शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके स्नेह से स्वयं को भरपूर करके कुछ क्षण उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ उनकी तेजस्वी किरणों से अपने बुद्धि रूपी बर्तन को शुद्ध और स्वच्छ बना कर वापिस साकारी दुनिया में फिर से अपने आश्रम में लौट आती हूँ और अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर फिर से विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पुनः कर्म करने के लिए अपने सेवा स्थान पर लौट आती हूँ और अपने कर्म क्षेत्र रूपी सेवा स्थान पर रहते तन - मन - धन से ईश्वरीय सेवा में अर्पण होने के साथ - साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाने के लिए, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर चल उनके समान बनाने के पुरुषार्थ में पूरी लगन के साथ लग जाती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं चलते - फिरते अपने द्वारा अष्ट शक्तियों की किरणों का अनुभव कराने वाली फरिश्ता रुप हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं अपना हर कर्म सर्व को प्रेरणा देने वाला करके प्रत्यक्ष प्रमाण देने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कई बच्चे बड़े होशियार हैं। अपने पुराने लोक की लाज भी रखने चाहते और ब्राह्मण लोक में भी श्रेष्ठ बनना चाहते हैं। बापदादा कहते लौकिक कुल की लोकलाज भल निभाओ उसकी मना नहीं है लेकिन धर्म कर्म को छोड़ करके लोकलाज रखनायह रांग है। और फिर होशियारी क्या करते हैंसमझते हैं किसको क्या पता? - बाप तो कहते ही हैं - कि मैं जानी जाननहार नहीं हूँ। निमित्त आत्माओं को भी क्या पताऐसे तो चलता है। और चल करके मधुबन में पहुँच भी जाते हैं। सेवाकेन्द्रों पर भी अपने आपको छिपाकर सेवा में नामीग्रामी भी बन जाते हैं। जरा सा सहयोग देकर सहयोग के आधार पर बहुत अच्छे सेवाधारी का टाइटल भी खरीद कर लेते हैं। लेकिन जन्म-जन्म का श्रेष्ठ टाइटल सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी... यह अविनाशी टाइटल गंवा देते हैं। तो यह सहयोग दिया नहीं लेकिन ‘‘अन्दर एकबाहर दूसरा'' इस धोखे द्वारा बोझ उठाया।

 

 _ ➳  सहयोगी आत्मा के बजाए बोझ उठाने वाले बन गये। कितना भी होशियारी से स्वयं को चलाओ लेकिन यह होशियारी का चलानाचलाना नहीं लेकिन चिल्लाना है। ऐसे नहीं समझना यह सेवाकेन्द्र कोई निमित्त आत्माओं के स्थान हैं। आत्माओं को तो चला लेते लेकिन परमात्मा के आगे एक का लाख गुणा हिसाब हर आत्मा के कर्म के खाते में जमा हो ही जाता है। उस खाते को चला नहीं सकते। इसलिए बापदादा को ऐसे होशियार बच्चों पर भी तरस पड़ता है। फिर भी एक बार बाप कहा तो बाप भी बच्चों के कल्याण के लिए सदा शिक्षा देते ही रहेंगे। तो ऐसे होशियार मत बनना। सदा ब्राह्मण लोक की लाज रखना।

 

✺  "ड्रिल :- “अन्दर एक, बाहर दूसरा'' - इस धोखे द्वारा बोझ नहीं उठाना।“

 

 _ ➳  इस दुनियावी समुन्दर के बीच देह रूपी सीप के अन्दर मैं आत्मा रूपी मोती चमक रही हूँ... कई जन्मों से अपने असली गुणों को भूलकर मैं आत्मा मोती इस देह रूपी सीप के अन्दर दबकर रह गई थी... दूर गगन से ज्ञान सूर्य की किरणें मुझ पर पड़ रही हैं... ज्ञान सूर्य की किरणों से देह रूपी सीप का आवरण टूट रहा है... देह रूपी सीप के आवरण को तोड़ मैं आत्मा रूपी मोती बाहर निकलती हूँ... पंच तत्वों की दुनिया से ऊपर उड रही हूँ... आकाश तत्व से भी पार और ऊपर उडती हुई पहुँच जाती हूँ अपने परमपिता के पास परमधाम...

 

 _ ➳  परमधाम में मैं आत्मा अपने स्व स्वरूप बिंदु रूप में चमक रही हूँ... अपने पिता की बाँहों में लिपट जाती हूँ... मेरे शिव पिता से निकलती दिव्य सतरंगी किरणों से मुझ आत्मा के सारे विकार काले धुंए के रूप में बाहर निकल रहे हैं... मैं आत्मा निर्विकारी बन रही हूँ... जन्म-जन्मान्तर के सभी अवगुण भस्म हो रहे हैं... रंग-बिरंगी किरणें एक-एक गुण के रूप में मुझ आत्मा में समा रहे हैं... मैं आत्मा अपने असली गुणों को धारण कर रही हूँ... सर्व गुण सम्पन्न बन रही हूँ... सभी कमी-कमजोरियां, पुराने आलस्य-अलबेलेपन के संस्कार समाप्त हो रहे हैं... मैं आत्मा शक्तियों को धारण कर शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... मैं कलाविहीन आत्मा अब 16 कलाओं से सम्पन्न बन गई हूँ...        

 

 _ ➳  मैं आत्मा जन्म-जन्म के श्रेष्ठ अविनाशी टाइटल से श्रृंगार कर नीचे अपने देह में अवतरित होती हूँ... मैं आत्मा सदैव अपने दिव्य गुणों, शक्तियों की स्मृति में रहकर हर कर्म कर रही हूँ... हर कर्म को बाबा की सेवा समझ कर रही हूँ... करावनहार करा रहा है मैं आत्मा निमित्त करनहार कर रही हूँ... मैं आत्मा ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं, धर्म, कर्म का पालन करते हुए लौकिक कुल की लोकलाज को निभा रही हूँ... मैं आत्मा ऐसा कोई भी कर्म नहीं करती हूँ जिससे ब्राह्मण कुल कलंकित हो... सदा ब्राह्मण लोक की लाज का ध्यान रखते हुए हर कर्म को करती हूँ... कभी भी डिस सर्विस नहीं करती हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अन्दर और बाहर एक समान रहती हूँ... ‘‘अन्दर एकबाहर दूसरा'' इस धोखे द्वारा बोझ नहीं उठाती हूँ... सहयोगी आत्मा बन सर्व का सहयोग करती हूँ... पुराने लोक की लाज रखने कोई भी होशियारी नहीं दिखाती हूँ... कर्म का खाता नहीं बढ़ाती हूँ... बाप से, निमित्त आत्माओं से सच्चाई और सफाई से रहती हूँ... सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बन, ब्राह्मण धर्म को धारण कर कर्म में लाती हूँ... बाबा की शिक्षाओं को धारण कर आचरण और व्यवहार में लाती हूँ... सदा अपने को बाबा के बगीचे का रूहानी पुष्प समझ अपने कर्तव्यों को निभाती हूँ... फिर से काँटों को धारण नहीं करती हूँ... सदा आत्मिक दृष्टि, वृत्ति रख लौकिक और अलौकिक का बैलेंस रखती हूँ... अल्पकाल के विनाशी टाइटल के पीछे अपना अविनाशी टाइटल नहीं गंवाती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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