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 31 / 01 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सभी को मनमनाभव का वशीकरण मन्त्र सुनाया ?*

 

➢➢ *हर श्रेष्ठ संकल्प को कर्म में लाये ?*

 

➢➢ *ज्ञानी तू आत्मा बन क्रोध पर विजय प्राप्त की ?*

 

➢➢ *हर विघन को एक खेल अनुभव किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *भल शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो, सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा।* मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं याद और सेवा द्वारा पद्मों की कमाई जमा करने वाला पद्मापद्म भाग्यवान हूँ"*

 

  सभी अपने को हर कदम में याद और सेवा द्वारा पद्मों की कमाई जमा करने वाले पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? *कमाई का कितना सहज तरीका मिला है! आराम से बैठे-बैठे बाप को याद करो और कमाई जमा करते जाओ।*

 

  *मंसा द्वारा बहुत कमाई कर सकते हो, लेकिन बीच-बीच में जो सेवा के साधनों में भाग-दौड़ करनी पड़ती है - यह तो एक मनोरंजन है।*

 

  वैसे भी जीवन में चेन्ज चाहते हैं तो यह चेन्ज हो जाती है। *वैसे कमाई का साधन बहुत सहज है, सेकण्ड में पद्म जमा हो जाते हैं, याद किया और बिन्दी बढ़ गई। तो सहज अविनाशी कमाई में बिजी रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जो ब्रह्माबाप ने आज के दिन तीन शब्दों में शिक्षा दी, (निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी) इन तीनों शब्दों के शिक्षा स्वरूप बनो। *मन्सा में निराकारी, वाचा में निरहंकारी, कर्मणा में निर्विकारी। सेकण्ड में साकार स्वरूप में आओ, सेकण्ड में निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बार-बार करो।*

 

✧  ऐसे नहीं सिर्फ याद में बैठने के टाइम निराकारी स्टेज में स्थित रही लेकिन बीच-बीच में समय निकाल इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्म स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करो। *कोई भी कार्य करो, कार्य करते भी यह अभ्यास करो कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है।*

 

✧  कर्मेन्द्रियाँ करनहार हैं, आत्मा करावनहार हैं। तो *निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वतः ही याद आता है। जैसे बाप करावनहार है ऐसे मैं आत्मा भी करावनहार हूँ। इसलिए कर्म के बन्धन में बंधेगे नहीं, न्यारे रहेंगे क्योंकि कर्म के बंधन में फंसने से ही समस्यायें आती हैं। सारे दिन में चेक करो - करावनहार आत्मा बन कर्म करा रही हूँ?* अच्छा! अभी मुक्ति दिलाने की मशीनरी तीव्र करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  मैं आत्मा हूँ - इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है। जैसे मुझ बाप को भूलने की ज़रूरत पड़ती है? *यह पहली-पहली बात है जो कि तुम सभी को बताते हो कि - मैं आत्मा हूँ, न कि शरीर।* जब आत्मा होकर बिठाते हो तभी उनको फिर शरीर भी भूलता है। अगर आत्मा होकर नहीं बिठाते, तो क्या फिर देह सहित देह के सभी सम्बन्ध भूल जाते! *जब उनको भुलाते हो, तो क्या अपने शरीर से न्यारा होकर, जो न्यारा बाप है उनकी याद में नहीं बैठ सकते हो ?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ जाती हूँ... और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... प्यारे बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के नैनों से जादुई किरणें निकलकर मुझ पर पड रही हैं... बाबा की इन जादुई किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो गया है और मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ...* प्यारे बाबा मुझे अपने साथ बाहर लेकर जाते हैं और झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हुए प्यार भरी बातें करते हैं...

 

   *प्यारे बाबा अपनी प्यार भरी मुस्कान से मुझ आत्मा को निहाल करते हुए कहते है:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गई... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो...* अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा देहभान से मुक्त होकर देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ...* और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...

 

   *मीठे बाबा मेरा सतरंगी श्रृंगार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैलेपन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... *अब अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सुन्दर कमल फूल समान खिलकर अपनी रंगत चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ...”*

 

   *मेरे बाबा मुझ आत्मा के 63 जन्मों के विकर्मों को भस्म कर सच्चा सोना बनाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते जायेंगे...* और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...

 

_ ➳  *मैं देही अभिमानी आत्मा देह के सर्व बन्धनों से मुक्त होकर खुशियों के गीत गाती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... *मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ऐसा महावीर बनना है जो माया हिला ना सके*"

 

_ ➳  "सर्व शक्तियों को समय पर कार्य मे लगाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के सामने माया के तूफान तोहफा बन जाते हैं" *बाबा के इन महावाक्यों को स्मृति में ला कर मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट हो कर सर्वशक्तियों का आह्वान करने और स्वयं को सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिये मैं सर्वशक्तिवान शिव बाबा की याद में मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ*। अशरीरी बन बाबा की याद में बैठते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो कर मेरे सामने आ गए हैं

 

_ ➳  बाबा की लाइट, माइट जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही है वैसे - वैसे मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ। *अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अनुभव कर रही हूँ कि जैसे बाबा मुझे अपनी और खींच रहें हैं और मैं डबल लाइट फ़रिशता बन स्वत: ही ऊपर की ओर उड़ रहा हूँ*। सूर्य, चांद, तारागणों से पार अन्तरिक्ष को भी पार करता हुआ उससे भी ऊपर मैं पहुंच गया फ़रिशतो की आकारी दुनिया सूक्ष्म लोक में।

 

_ ➳  अब मैं देख रहा हूँ स्वयं को सूक्ष्म वतन में। मेरे सामने अव्यक्त बापदादा अष्ट शक्तियों के अलग - अलग स्वरूप में मुझे दिखाई दे रहें हैं। *अष्ट शक्तियों को मुझ में समाहित कर मुझे सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिए अब बापदादा एक - एक शक्ति से भरपूर अपनी शक्तिशाली किरणे मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित कर रहें हैं*।

 

_ ➳  अपना सम्पूर्ण ध्यान इस नश्वर दुनिया से समेट कर मैं अपना संसार केवल एक शिव बाबा को बना सकूँ इसके लिए समेटने की शक्तिशाली किरणों से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं। *अपनी सहनशक्ति से हर बात को सहन करते हुए हिम्मतवान बन हर परिस्थिति को मैं सहजता से पार कर सकूँ इसके लिए बाबा अब सहनशक्ति से भरपूर किरणे मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं*।

 

_ ➳  जैसे बापदादा सभी बच्चों की सभी बातों को स्वयं में समा लेते हैं। वैसे समाने की शक्ति से भरपूर किरणे मुझ में समाहित कर बाबा मुझमे हर बात को स्वयं में समाने का बल भर रहें हैं। *अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परख कर हर प्रकार के धोखे से मैं स्वयं को बचा सकूँ इसके लिए बाबा परखने की शक्ति से भरपूर किरणो से मुझे सम्पन्न बना रहे हैं*। माया के अति सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप को पहचान कर उचित समय पर मैं उचित निर्णय ले सकूँ इसके लिए बाबा निर्णय करने की शक्ति से सपन्न किरणे अब मुझमे भर रहें हैं।

 

_ ➳  विपरीत परिस्थिति में घबराने के बजाए उसका डटकर सामना करने के लिए बाबा अब सामना करने की शक्ति से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *एक दो को सहयोग दे, संगठन को निर्विघ्न चलाने के लिए बाबा सहयोग की शक्ति से भरपूर किरणे मुझ में प्रवाहित कर मुझे सहयोगी आत्मा बना रहें हैं*। देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप में देखने का पाठ पक्का हो इसके लिए विस्तार को सार में समाने की शक्ति बाबा मुझे दे रहें है।

 

_ ➳  अपने आठ स्वरूपों से अष्ट शक्तियों को मेरे अंदर भरकर बाबा ने मुझे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न कर दिया हैं। देह अभिमान में आने के कारण मुझ आत्मा में निहित अष्ट शक्तियाँ जो मर्ज हो गई थी वो आठों शक्तियाँ अब इमर्ज हो गई हैं। *बापदादा के आठों स्वरूपों से अष्टशक्तियों को स्वयं में भरपूर करके अब मैं सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ।

 

_ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सदा सेट रहते हुए, माया के तूफानों में मुरझाने के बजाए अब मैं समय और परिस्थिति के अनुसार उचित शक्ति का प्रयोग करके सहज ही माया के हर वार का सामना कर, माया पर विजय प्राप्त कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर श्रेष्ठ संकल्प को कर्म में लाने वाली मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं क्रोध से मुक्त होकर कभी भी बाप के नाम की ग्लानि नहीं होने देने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आत्मिक खुशी सेवा द्वारा सभी को अनुभव है, *जब भी मनसा सेवा या वाणी द्वारा वा कर्म द्वारा भी सेवा करते हो तो उसकी प्रप्ति आत्मिक खुशी मिलती है*। तो चेक करो सेवा द्वारा खुशी की अनुभूति कहाँ तक की है? *अगर सेवा की और खुशी नहीं हुई, तो वह सेवा यथार्थ सेवा नहीं है*। सेवा में कोई न कोई कमी है, इसलिए खुशी नहीं मिलती। *सेवा का अर्थ है आत्मा अपने को खुशनुमः, खिला हुआ रूहानी गुलाब, खुशी के झूले में झूलने वाला अनुभव करेगी*। तो चेक करो - *सारा दिन सेवा की लेकिन सारे दिन की सेवा की तुलना में इतनी खुशी हुई या सोच-विचार ही चलते रहे*, यह नहीं ये, यह नहीं ये...? और *आपकी खुशी का प्रभाव एक तो सेवा स्थान पर, दूसरा सेवा साथियों पर, तीसरा जिन आत्माओं की सेवा की उन आत्माओं पर पड़े, वायुमण्डल भी खुश हो जाए। यह है सेवा का खजाना खुशी*।

 

✺   *ड्रिल :-  "यथार्थ, सच्ची सेवा की प्राप्ति का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  संगम पर खुशियों का अखुट खजाना... *दूर दूर तक बिखरी हुई उमंग उत्साह की स्वर्ण अशर्फियाँ*... इसी खजाने को मन बुद्धि के आँचल में समेटती हुई... स्वयं को खुशियों के खजानों से भरपूर करती हुई मैं आत्मा... *चार विशेष पारस मणियों को देख रही हूँ स्वयं के श्रृंगार के लिए ... ज्ञान, योग, धारणा और सेवा की विशेष मणियाँ*... संगम के खजाने से मैं आत्मा सेवा मणि को चुनकर धारण कर रही हूँ, पद्मों की कमाई के लिए...

 

 _ ➳  *सेवा का उमंग और उत्साह रग-रग में समाता जा रहा है मुझ आत्मा के*... मनोरंजन और पदमों की कमाई का ये अनूठा सा साधन... *सेवा की चमचमाती इस मणि का त्रिकोणीय स्वरूप... मनसा, वाचा और कर्मणा... हर एक कोने से फैलता अलग रंग का प्रकाश हर पल मुझे खुशियों से भरपूर कर रहा है*... सेवा के निमित्त परमधाम से अवतरित *देह और देह की दुनिया में विराजमान मैं आत्मा सेवा के निमित्त हर अंग को उमंग व उत्साह से भरपूर कर रही हूँ*...

 

 _ ➳  *आत्मिक स्वरूप में टिक कर, किया जा रहा, मेरा हर कर्म सेवा बनता जा रहा है*... मेरा देखना, मेरा बोलना, मेरा चलना, सभी कुछ... भृकुटी के मध्य में तिलक के समान स्थित मै आत्मा साक्षी भाव से देख रही हूँ स्वयं को... मुझसे फैल रहा आत्मिक गुणों का प्रकाश... सम्पूर्ण देह में फैलकर चारों ओर के वातावरण को प्रकाशित कर रहा है... *प्रकृति और सभी आत्माओं को शुभकामना और शुभ भावना का दान देती मुझ आत्मा से सुख स्वरूप की किरणें सम्पूर्ण वातावरण को खुशनुमः बना रही है*...

 

 _ ➳  *इस वातावरण में प्रवेश करने वाली हर आत्मा स्वयं को इन खुश नुमः किरणों से भरपूर कर रही है*... कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति से मैं देख रही हूँ स्वयं को शिव बाबा के साथ... ठीक मेरे सिर के ऊपर स्थित शिव ज्योति... अपना वरदानी हाथ मेरे ऊपर हमेशा के लिए रख दिया है बाबा ने... मुझमें हर पल शक्तियों का संचार करते, मेरा मार्ग दर्शन करते, निमित्त भाव से भरपूर करते... हर पल मेरे भाग्य की रेखा को गहरी करते जा रहे है...

 

 _ ➳  *यथार्थ स्वरूप में की जा रही यथार्थ सेवा मुझे हर पल यथार्थ खुशी से भरपूर कर रही है*... देह में रहने का अभिप्राय मैं आत्मा समझ गयी हूँ... स्वयं को शक्तियों से भरपूर करती हुई अपनी भृकुटी में ही शिव पिता के साथ परमधाम की बीज रूप स्थिति का गहराई से अनुभव कर रही हूँ... 

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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