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 02 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ माया की धुल में लिथडकर श्रृंगार बिगाड़ा तो नहीं ?

 

➢➢ इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझ अपनी अवस्था अचल अडोल बनायी ?

 

➢➢ संकल्प, बोल और कर्म के व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तित किया ?

 

➢➢ स्वय को इस देह रुपी मकान में मेहमान समझ निर्मोही अवस्था का अनुभव किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अन्त:वाहक अर्थात् अन्तिम स्थिति, पावरफुल स्थिति ही आपका अन्तिम वाहन है। अपना यह रूप सामने इमर्ज कर फरिश्ते रूप में चक्कर लगाओ, सकाश दो, तब गीत गायेंगे कि शक्तियां आ गई..... फिर शक्तियों द्वारा सर्वशक्तिवान स्वत: ही सिद्ध हो जायेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं ड्रामा में श्रेष्ठ पार्टधारी हूँ"

 

  सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है, ऐसे ऊंचे ते ऊंचा पार्ट बजाने वाली आप श्रेष्ठ आत्माएं हो। डबल हीरो हो। हीरे तुल्य जीवन भी है और हीरो पार्टधारी भी हो। तो कितना नशा हर कर्म में होना चाहिए!

 

  अगर स्मृति में यह श्रेष्ठ पार्ट है, तो जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है और जैसी स्थिति होगी वैसे कर्म होंगे। तो सदा यह स्मृति रहती है? जैसे शरीर रूप में जो भी हो, जैसा भी हो-वह सदा याद रहता है ना। तो आत्मा का आक्यूपेशन, आत्मा का स्वरूप जो है, जैसा है-वह भी याद रहना चाहिए ना। शरीर विनाशी है लेकिन उसकी याद अविनाशी रहती है। आत्मा अविनाशी है, तो उसकी याद भी अविनाशी रहती है? जैसे यह आदत पड़ गई है कि मैं शरीर हूँ। है उल्टा, रांग है। लेकिन आदत तो पक्की हो गई। तो भूलने चाहते भी नहीं भूलता। वैसे यथार्थ अपना स्वरूप भी ऐसे पक्का होना चाहिए।

 

  शरीर का आक्यूपेशन स्वप्न में भी याद रहता है। कोई क्लर्क है, कोई वकील है, बिजनेस करने वाला है-तो भूलता नहीं। ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन कि मैं हीरो पार्टधारी हूँ-यह पक्का होना चाहिए और नेचुरल होना चाहिए। तो चेक करो कि ऐसे नेचुरल जीवन है? जो नेचुरल चीज होती है वह सदा होती है और जो अननेचुरल (अस्वाभाविक) होती है वह कभी-कभी होती है। तो यह स्मृति सदा रहनी चाहिये कि हम डबल हीरो हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  माया का रॉयल रूप और उस पर विजय प्राप्त करने की विधि :- 'कर्मभोग है’, ‘कर्मबन्धन है’, ‘संस्कारों का बन्धन है’, ‘संगठन का बन्धन है' - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फंस जाते हो, फिर कहते हैं कि अभी छुडवाओ।

 

✧  बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए छोडो तो छूटे। अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। पहले ही शरीर छोड चुके हो, मरजीवा बन चुके हो। यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीर में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं।

 

✧  जिम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो। जिम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोडते भी नहीं हो। जिम्मेवारी छोड दो अर्थात मेरा-पन छोड दो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अशरीरी बनने के लिए विशेष ४ बातों का अटेन्शन रखो। १. कभी भी अपने आपको भुलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। प्रीत दुनिया को भुलाने का साधन है, देह को भुलाने का साधन है। २. दूसरी बात - सच्चा मीत भी दुनिया को भुलाने का साधन है। अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है। ३. तीसरी बात दिल के गीत- अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है। ४. चौथी बात - यथार्थ रीत। अगर यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है। रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है। तो एक हुआ प्रीत २- मीत ३गीत ४- रीत।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- ड्रामा की यथार्थ नालेज से अचल, अडोल और एकरस रहना"

➳ _ ➳ मधुबन पांडव भवन की बगियाँ में झूले पर बैठी मैं आत्मा मीठे रंगीले बाबा की रंगीली यादों में खो जाती हूँ... कि कैसे-कैसे रंगों से उसने मेरे बेरंग जीवन को रंगों से सजा कर खुबसूरत बनाया है... कितना उसने मुझे अपने बेपनाह प्यार से नवाजा है... किस कदर उसने बेपनाह प्यार मुझ पर लुटाया है... कितना शानदार श्रेष्ठ मुझ आत्मा का भाग्य बनाया है... तभी अचानक रंगीले बाबा झुले पर रूबरू हो ज्ञान के रंग से मुझ आत्मा को रंगने लगते है

❉ बेहद के महानायक मीठे बाबा ज्ञान की गोली देते हुए मुझ आत्मा से बोले :- "मीठे लाडले बच्चे मेरे... ड्रामा का यह राज इस संगम पर आकर बाबा ने तुम्हें है समझाया... इस ड्रामा के एक-एक पन्ने में है कल्याण समाया... इस ड्रामा में हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है यह गुह्य राज तुम बच्चों को है बताया इस राज को अब तुम प्रैक्टिकल जीवन में लाओ और इसका स्वरूप बन जाओ इसे बुद्धि में बिठाओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा से मिली इस ज्ञान की गोली को खाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे ओ लाडले बाबा... मेरे इस राज को जान कितना सुकुन मुझ आत्मा ने है पाया... इस खेल में हर पार्टधारी का पार्ट एक दुसरे से जुदा है वाह बाबा इस राज ने मुझे बड़ा निश्चित बनाया है... इस राज को मुझ आत्मा ने बुद्धि में बिठाया है"

❉ ज्ञान की किरणों की रिमझिम बारिश करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे मेरे... बेहद बाबा की दृष्टि से तुम भी इस ड्रामा पर नजर फिराओ... हर एक के अनादि पार्ट को जान अब तुम निश्चित अचल बन जाओ.."

➳ _ ➳ मैं आत्मा मीठे बाबा की हर बात को दिल में समाते हुए कहती हूँ :- "मीठे ज्ञान सागर बाबा मेरे... आपकी पनाहों में बैठ मैं आत्मा इस सृष्टि ड्रामा को आपकी नजर से देख रही हूँ... और हर के अनादि अविनाशी पार्ट को समझ निश्चित अवस्था में टिक गयी हूँ..."

❉ सर्व शक्तियों को मुझ आत्मा में भरते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :- "मेरे प्यारे राजदुलारे बच्चे... सबके अविनाशी, अनादि पार्ट को जान... साक्षी हो आगे बढ़ते जाओ... नथिग न्यू के पाठ को प्रैक्टिकल में लाओ... बनी बनाई बन बन रही है इस राज को जान अब सदा हर्षाओ हर सीन को देख वाह ड्रामा वाह के गीत गाओ..."

➳ _ ➳ इस बेहद ड्रामा के राज को जान नशे से मैं आत्मा कहती हूँ :- "मीठे प्यारे-प्यारे बाबा मेरे... कितना सुंदर और शानदार रूप से आपने इस आनादि खेल के राज को है समझाया... हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है इस राज को जान साक्षी भाव मुझ आत्मा में आया है... बेहद दृष्टि से देख रही इस ड्रामा को मैं आत्मा इसकी हर सीन में कल्याण समाया है... आपकी सुंदर सरल समझानी ने मुझे नथिग न्यू का पाठ है पक्का कराया... इस गुह्य राज को जान और मान मुझ आत्मा का है मन हर्षाया..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- कभी भी मूँझना नही है, सदैव हर्षित रहना है"

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अपने शिव परम पिता परमात्मा से होने वाली प्राप्तियों को स्मृति में लाते ही चेहरे पर एक दिव्य अलौकिक मुस्कराहट स्वत: ही आ जाती है और मन बुद्धि से मैं आत्मा उन सुंदर अनुभवों की मधुर स्मृतियों में खो जाती हूँ जो मेरे शिव पिता मुझे अक्सर करवाते रहते हैं, वो अनुभव जो मुझे अनुभवीमूर्त बना कर हर परिस्थिति में अचल और स्थिर रखते हैं।

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ज्ञान की मस्ती में डूबी मैं आत्मा उन सुंदर सलौने अनुभवों को स्मृति में लाकर अपने दिलाराम बाबा की अति मीठी याद में खो जाती हूँ और देह से न्यारी होकर, अपना दिव्य सतोगुणी, ज्योतिर्मय स्वरूप को धारण कर भृकुटि की कुटिया से बाहर निकल कर, ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ। अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, अपने दिलाराम बाबा से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, निरन्तर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ।

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आनन्द से भरपूर, रूहानी अलौकिक मस्ती में डूबी मैं आत्मा हर गम से अनजान, इस देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त, आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त हो कर पूरे भू लोक का भ्रमण करते हुए, नीले गगन को पार कर, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने घर निर्वाण धाम, में प्रवेश करती हूँ। गहन शांति की यह दुनिया जहां किसी भी प्रकार का कोई शोर नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ। गहन शांति की स्थिति का यह अनुभव एक दम निराला और अनोखा है।

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गहन शांन्त चित स्थिति में स्थित मैं आत्मा अब शांति के सागर अपने शिव पिता की ओर चल पड़ती हूँ। एक अखंड महाज्योति के रूप में मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलाते हुए मेरे सामने सुशोभित हो रहें हैं। उनके बिल्कुलसमीप पहुँच कर मैं आत्मा उनके पास जा कर उनके साथ अटैच हो जाती हूँ। उनकी सर्वशक्तियाँ फुल फोर्स के साथ मेरे ऊपर बरसने लगती है और मैं आत्मा अपने शिव पिता से आ रही समस्त शक्तियों को स्वयं में गहराई तक समाने लगती हूँ।

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ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्ति का एक तेज करेन्ट मेरे शिव पिता से आ रहा है और मुझ आत्मा में प्रवेश कर अपनी सारी ऊर्जा मेरे अन्दर प्रवाहित कर, मुझ असीम शक्तिवान बना रहा है। मेरी खोई हुई एनर्जी वापिस लौट रही है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं अपने परमधाम घर से वापिस नीचे की ओर लौटती हूँ और सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। अपनी चमकीलीे फ़रिशता ड्रेस को धारण कर, अब मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ।

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अपना वरदानी हाथ मेरे मस्तक पर रख कर, मुझे सदा अचल और स्थिर रहने का वरदान देते हुए, अपनी लाइट माइट से बाबा मुझे भरपूर कर देते हैं। ज्ञान के अथाह खजाने मुझ पर लुटा कर सर्व खजानों से बाबा मुझे सम्पन्न बना देते हैं। भरपूर हो कर, अपनी फ़रिशता ड्रेस को वहीं उतार कर अपने असीम ऊर्जावान, अचल, स्थिर और ज्ञानवान निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर, अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन से नीचे साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और पाँच तत्वों के बने अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाती हूँ।

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बाबा की लाइट माइट और सर्वशक्तियों से स्वयं को सदा भरपूर अनुभव करते हुए अब मैं हर परिस्थिति में सदा अचल और स्थिर रहती हूँ। सम्पूर्ण ज्ञानवान बन, ज्ञान की मस्ती में रहते हुए, सबको इस ज्ञान से परिचित करवाकर, यह अद्भुत ज्ञान देने वाले अपने ज्ञान सागर बाप का शो करते हुए, अब मैं सबको बाप से मिलाने का रूहानी धन्धा हर समय करते हुए सदा हर्षितमुख रह, सबके जीवन में खुशियां बिखेरती रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं संकल्प, बोल और कर्म के व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली होलीहंस आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं स्वयं को इस देह रूपी मकान में मेहमान समझ कर निर्मोही रहने वाली आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

 

➳ _ ➳  कोई शास्त्रार्थ करते शास्त्र में ही रह गये। कोई महात्मायें बन आत्मा और परमात्मा की छोटी सी भ्रान्ति में अपने भाग्य से रह गये। बच्चे बन बाप के अधिकार से वंचित रह गये। बड़े-बड़े वैज्ञानिक खोजना करते उसी में खो गये। राजनीतिज्ञ योजनायें बनाते-बनाते रह गये। भोले भक्त कण-कण में ढूँढते ही रह गये। लेकिन पाया किन्हों ने? भोलेनाथ के भोले बच्चों ने। बड़े दिमाग वालों ने नहीं पाया लेकिन सच्ची दिल वालों ने पाया। इसलिए कहावत है - सच्ची दिल पर साहब राजी।

 

➳ _ ➳  तो सभी सच्ची दिल से दिलतख्तनशीन बन सकते। सच्ची दिल से दिलाराम बाप को अपना बना सकते। दिलाराम बाप सच्ची दिल के सिवाए सेकण्ड भी याद के रूप में ठहर नहीं सकते। सच्ची दिल वाले की सर्वश्रेष्ठ संकल्प रूपी आशायें सहज सम्पन्न होती हैं। सच्ची दिल वाले सदा बाप के साथ का साकार, आकार, निराकार तीनों रूपों में सदा साथ का अनुभव करते हैं।

 

✺  "ड्रिल :- सच्ची दिल से दिलाराम को अपना बनाना।”

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा उद्यान में खडी सूरजमुखी के पुष्पों को देख रही हूँ... देखने में कितने आकर्षक लग रहे हैं... सारे उद्यान की शोभा बढ़ा रहे हैं... सूरजमुखी पुष्प दिनभर सूर्य के चारों ओर घूमता रहता है... जिस दिशा में सूर्य होता हैसूरजमुखी का फूल उसी दिशा में अपना मुँह कर लेता है... सूरजमुखी के फूल सूर्यादय पर खिलते हैं, तथा सूर्यास्त के समय बन्द हो जाते हैं... जैसे सूर्य ही उनके लिए सबकुछ हो... मैं आत्मा भी सूरजमुखी पुष्प बन परमधाम ज्ञान सूर्य बाबा के सम्मुख पहुँच जाती हूँ... 

 

➳ _ ➳  ज्ञान सूर्य बाबा से आती सुनहरी लाल प्रकाश की तेज रश्मियाँ मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म इन तेज रश्मियों में दग्ध हो रहे हैं... देह रूपी तितली, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ रूपी तितलियाँ मुझ आत्मा रूपी फूल को घेरे हुए थी, जिससे मैं आत्मा नीचे दबकर नीचे गिरती चली गई थी... पुराना देह, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ रूपी सभी तितलियाँ बाहर उड़ते जा रहे हैं... अब बची सिर्फ मैं बीजरूप आत्मा जो सब बोझों से मुक्त होकर सूरजमुखी पुष्प बन खिल रही हूँ... मैं आत्मा सूरजमुखी पुष्प समान ज्ञान सूर्य को ही निहार रही हूँ... ज्ञान सूर्य के सिवा सब कुछ भूल गई हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा ज्ञान सूर्य बाबा के साथ धीरे-धीरे निराकारी वतन से नीचे आती हूँ आकारी वतन में... जहाँ आकारी रूप में ब्रह्मा बाबा बैठे हुए हैं... निराकारी बाबा आकारी बाबा के मस्तक पर विराजमान होकर मुस्कुरा रहे हैं... परमात्मा के इस अवतरण को प्रत्यक्ष देख मुझ आत्मा के नैनों से परमात्म प्रेम की अश्रुधारा बहने लगती है... भक्तिमार्ग में भोले भक्त कण-कण में ढूँढते ही रह गये... बड़े-बड़े वेदांती, शास्त्री भी शास्त्र में ही रह गये... साधू, सन्यासी, महात्मा भी भगवान के असली स्वरूप को नहीं पहचान पाए... बड़े-बड़े वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ भी भगवान् को खोज नहीं पाये... किन्तु भोलेनाथ बाबा मिले भोले-भाले, सच्ची दिल वाले बच्चों को...     

 

➳ _ ➳  मैं कितनी ही भाग्यशाली आत्मा हूँ जो परमात्मा ने मुझे अपना बनाया... भक्तिमार्ग के आडम्बरों से बचा लिया, दर-दर भटकने से मुक्त कर दिया... मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती बाबा को ही एकटक देखती जा रही हूँ... मुझ आत्मा के नैनों से निकली अश्रुधारा में मेरे दिल की सारी गंदगी बाहर निकल रही है... सारा मैल खत्म होकर मुझ आत्मा का दिल का कोना-कोना बिल्कुल साफ़ और स्वच्छ हो गया है... मैं आत्मा सच्ची दिल वाली बन गई हूँ... जिसके दिल में सिर्फ और सिर्फ एक दिलाराम बाबा है...  

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा दिलाराम बाबा को अपने दिल में बिठाकर दिल भर-भर के मिलन मनाती रहती हूँ... मुझे अलग से बाबा को याद नहीं करना पड़ता क्योंकि बाबा सदैव मेरे दिल में ही रहते हैं... सहज याद से मुझ आत्मा के सभी सर्वश्रेष्ठ संकल्प सहज सम्पन्न हो रहे हैं... अमृतवेले से लेकर हर कर्म में बाबा मेरे साथ ही रहते हैं... हर पल मुझे साकार पालना का अनुभव कराते रहते हैं... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की राय लेकर श्रीमत अनुसार कर रही हूँ... मैं आत्मा साकार, आकारनिराकार तीनों रूपों में सदा बाबा के साथ का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सच्ची दिल से दिलाराम बाप को अपना बनाकर बाबा की दिलतख्तनशीन बन गई हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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