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 15 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ ज्ञान की पॉइंट्स को शक्ति के रूप में धारण किया  ?

 

➢➢ रूहानी याद की किरणों से आत्माओं को टच किया ?

 

➢➢ फ़ोर्स का कोर्स किया और कराया ?

 

➢➢ जोड़ने तोड़ने के संस्कार को समाप्त कर सदा काल के लिए निर्विघन स्थिति का अनुभव किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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〰✧  समय प्रमाण लव और ला का बैलेन्स रखो लेकिन ला में भी लव महसूस हो। इसके लिए आत्मिक प्यार की मूर्त बनो तब हर समस्या को हल करने में सहयोगी बन सकोगे। शिक्षा के साथ सहयोग देना ही आत्मिक प्यार की मूर्त बनना है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं बापदादा के समीप रत्न हूँ"

 

✧  सदा स्वयं बाप के समीप रत्न समझते हो? समीप रत्न की निशानी क्या होगी? समीप अर्थात् समान। समीप अर्थात् संग में रहने वाले। संग में रहने से क्या होता है? वह रंग लग जाता है ना। जो सदा बाप के समीप अर्थात् संग में रहने वाले हैं उनको बाप का रंग लगेगा तो बाप समान बन जायेंगे। समीप अर्थात् समान ऐसे अनुभव करते हो? हर गुण को सामने रखते हुए चेक करो कि क्या क्या बाप समान है? हर शक्ति को सामने रख चेक करो कि किस शक्ति में समान बने हैं। आपका टाइटल ही है 'मास्टर सर्वगुण सम्पन्न, मास्टर सर्व शक्तिवान'।

 

✧  तो सदा यह टाइटल याद रहता है? सर्वशक्तियाँ आ गई अर्थात् विजयी हो गये फिर कभी भी हार हो नहीं सकती। जो बाप के गले का हार बन गये उनकी कभी भी हार नहीं हो सकती। तो सदा यह स्मृति में रखो कि मैं बाप के गले का हार हूँ, इससे माया से हार खाना समाप्त हो जायेगा। हार खिलाने वाले होंगे, खाने वाले नहीं। ऐसा नशा रहता है?

 

✧  हुनमान को महावीर कहते हैं ना। महावीर ने क्या किया? लंका को जला दिया। खुद नहीं जला, पूंछ द्वारा लंका जलाई। तो लंका को जलाने वाले महावीर हो ना। माया अधिकार समझकर आये लेकिन आप उसके अधिकार को खत्म कर अधीन बना दो। हनूमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी था। अपने को सेवक समझता था। तो यहाँ जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं। जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते। हनुमान के दिल में सदा राम बसता था ना। एक राम दूसरा न कोई। तो बाप के सिवाए और कोई भी दिल में न हो। अपने देह की स्मृति भी दिल में नहीं। सुनाया ना कि देह भी पर है, जब देह ही पर होगई तो दूसरा दिल में कैसे आ सकता।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आसन ही सिंहासन प्राप्त कराता है। अब आसन है फिर सिंहासन है। हलचल वाला आसन पर एकाग्र होकर बैठ नहीं सकता। इसलिए कहा व्यर्थ समाप्त, अशुभ समाप्त - तो अचल हो जायेंगे और अचल स्थिति के आसन पर सहज और सदा स्थित हो सकेंगे। देखो, आप सबका यादगार यहाँ अचलघर है। अचलघर देखा है ना? यह किसका यादगार है?

 

✧  आप सबके स्थिति का यादगार यह अचलघर है। अनुभव करो, ट्रायल करते जाओ, यूज करते जाओ। ऐसे नहीं समझ लेना, हाँ, सर्व शक्तियाँ तो हैं ही। समय पर यूज हो। यूज नहीं करेंगे तो समय पर धोखा मिल सकता है। इसलिए छोटी-मोटी परिस्थिति में यूज करके देखो। परिस्थितियाँ तो आनी ही हैं, आती भी हैं। पहले भी बापदादा ने कहा है कि वर्तमान समय अनुभव करते हुए चलो।

 

✧  हर शक्ति का अनुभव करो, हर गुण का अनुभव करो। ऐसे अनुभवी मूर्त बनो जो कोई भी आवे तो आपके अनुभव की मदद से उस आत्मा को प्राप्ति हो जाए। दिन-प्रतिदिन आत्मायें शक्तिहीन हो रही हैं, होती रहेगी। ऐसी आत्माओं को आप अपनी शक्तियों की अनुभूतियों से सहारा बन अनुभव करायेंगे। अच्छा। मालिक है ना तो मालेकम सलाम, बाप कहते हैं - मालिकों को सलाम। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  सभी ने बाप से पूरा-पूरा अधिकार ले लिया है? पूरा अधिकार लेने के लिए पुराना सब कुछ देना पड़े। तो दोनों सौदे किये हैं ना? या तेरा सो मेरा लेकिन मेरे को हाथ नहीं लगाना- ऐसे तो नहीं है ना? जब एक शब्द बदल जाता है अर्थात् मेरा तेरे में बदल जाता तो डबल लाइट हो जाते हैं। ज़रा भी मेरापन आया तो ऊपर से नीचे आ जाते हैं। तेरा तेरे अर्पण तो सदा डबल लाइट और सदा ऊपर उड़ते रहेंगे अर्थात् ऊँची स्थिति में रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- स्वदर्शन चक्र फिराना"

➳ _ ➳ भक्ति मार्ग में दर्शनों के लिए दर- दर भटकती, जड चित्रो के दर्शन कर अपने जीवन को सार्थक समझती, मैं आत्मा खुद की खोज में खुदी से कितना दूर होती चली गयी, जडचित्रों के आगे हाथ पसारे हद की मन्नतो को पूरा करना ही ईश्वर भक्ति का मर्म समझती रही, धुल सकी न मन की चादर, नहाकर गंगा जमुना में... काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह खूब नाचते रहे मन के अँगना में... तीर्थों पर दर्शनो के लिए समय संकल्प और तन, मन, धन को गँवाना ही मेरे लिए पुण्यात्मा बनने का साधन था... कल की उस यात्रा की तुलना आज की चारधाम की यात्रा से करती हुई मैं आत्मा बैठी हूँ बापदादा की कुटिया में, और कुटिया में बैठा वो रूहानी दिलबर मन्द मन्द मुस्कुरा रहा है मेरी ओर निहारकर... बेतहाशा बोलती- सी उसकी रूहानी आँखों में अपना भविष्य स्वरूप निहारती मैं आत्मा... एक एक अदा को गहराई से दिल में समाती हुई मैं...

❉ अपने रूहानी नयनों की मधुशाला से हर सम्बन्ध की सुखद अनुभूति कराते हुए मुझ आत्मा से बाबा कहते है:- "मीठी बच्ची... स्वयं को देख पा रही हो मेरी आँखों में ? स्व का दर्शन किया आपने कभी मेरे दिल में, मेरी नजरों से देखों स्वयं को, कितना ऊँचा और महान स्वरूप बसता है इनमें आप बच्ची का... आप समान बनाने आया हूँ मैं आपको..."

➳ _ ➳ स्नेह की एक एक बूँद को तरसती मैं आत्मा स्नेहसागर की आँखों में अपना दर्शन कर निहाल हो कर स्नेह के झरने को स्वयं में समाती भावो में डूबी बाबा से कह रही हूँ:- "मीठे बाबा... मेरे पदमापदम भाग्य का आईना दिखा दिया है आपने तो मुझे... यही तो वो पहचान थी मेरी, जो जन्म जन्मान्तर के सफर में मुझसे कहीं जुदा हो गयी थी... यही कदमों के भटकन की वजह थी, यही वो अनबूझ सी प्यास थी... यही मंजिल और यही तलाश थी... इन आँखों में मैने आज अपना वजूद पा लिया है..."

❉ करीब आकर अपनी शक्तियों का तेज मुझमें समाते, कुटिया के बाहर मुझ आत्मा को आनन्द के झूले में झूलाते हुए मुझ आत्मा से बाबा कहते है:- "प्यारी बच्ची... सृष्टि के चक्र में तुम्हारा हर जन्म बेशकीमती है... वो सतयुगी राजधानी और सतोप्रधान दुनिया, भक्तों की मनोकामना पूरी करते वो तुम्हारे जडचित्र, तुम्हारी महानताओं का कायल ये संगम, जब अपनी चाहतों में बाँधकर तुमने मजबूर कर दिया मुझ निर्बन्धन को, जमीन पर आने के लिए, उन महानताओं की स्मृति में रहों तो विकर्म विनाश होते जायेगे... परदर्शन पर चिन्तन से बोझिल होते मुझसे अब मुझसे तुम देखे नही जाते..."

➳ _ ➳ अन्तिम वाक्य में छुपे बापदादा के चिन्ता मिश्रित स्नेह से अपने निज स्वरूप मे स्थित हो बाबा से मैं आत्मा कहती हूँ:- "प्यारे बाबा... शुक्रिया मुझे धारणाओं के कमल पर आसीन करने और हंस बुद्धिबनाने के लिए, देखों! मेरे गले में चमचमाती ये दिव्य गुणों की माला... मैं इनकी चमक को कभी धुँधला नही होने दूँगी ... विकर्मों की इस पोटली को उतारकर फेंकने की तीव्र गाढी लौ अब मेरे हृदय में जग चुकी है..."

❉ धैर्य के सागर बाप दादा स्नेह से महकती सीखनी देते हुए कहते है:- "लाडली बच्ची... विकर्मों की पोटली जब तक सर पर रहेगी ताज सुशोभित नही होगा... बडा ही सहज है स्वदर्शन चक्र फिराते हुए इस भार से मुक्त हो जाना"... और मैं देख रही हूँ बाप दादा की उम्मीदों का वो सुनहरा रतन जडित ताज जिसे बाबा आहिस्ता से हाथ में उठा धीरे से मेरे सर पर रख रहे है... बहुत कुछ कर गुजरने की चाह पैदा कर गया है मन में उनका ये ताज को उठाकर मेरे सर पर रख देना अनोखे आत्मविश्वास से लबालब कर गया है मुझे..."

➳ _ ➳ ताज और तख्त की अधिकारी बन बाप दादा की हर उम्मीद को पूरा करने वाली मैं आत्मा बापदादा से कहती हूँ:- "मेरे लाड़ले बाबा... मेरा परिचय, जो मैने आपसे पाया, प्रेम और पावनता का सागर जिसमें भरपूर नहलाया और स्वदर्शन चक्र का जादुई सा चिराग, बोझा विकर्मों भस्म करना सहज ही सिखाया... मुझ आत्मा ने स्वदर्शन फिराकर जैसे खुद को ताजधारी बनाया .. वैसे ही अब हर एक आत्मा को इस ताज की अधिकारी आत्मा बना रही हूँ..." और बडे नाज से झूले से उतर सतयुगी रायल चाल चलती हुई मैं आत्मा चल पडी हूँ विश्व सेवा पर... वो मुझे देख कर मुस्कुराये जा रहे है और वरदानी शक्तियाँ भरकर हाथ हिलाये जा रहे है..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- ज्ञान की पॉइंट्स को शक्ति के रूप में धारण करना"

➳ _ ➳ बाबा के अव्यक्त इशारे बार - बार समय की समीपता को स्पष्ट कर रहें हैं। इन अव्यक्त इशारों को समझ अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि समय जिस रफ्तार से दौड़ रहा है उस रफ्तार से क्या मेरा पुरुषार्थ भी तीव्रता को पा रहा है! क्या ज्ञान से मेरी अवस्था इतनी अचल, अडोल और एकरस हो चुकी है जो कोई भी बात मुझे हिला ना सके! माया का कोई भी वार मेरी अवस्था को डगमग ना कर सके! इसलिए समय की समीपता को देखते हुए अब मुझे अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपनी अवस्था को जमाने मे लगाना है ताकि अंत समय के सेकण्ड के पेपर को पास कर मैं पास विद ऑनर का खिताब ले सकूँ और अपने प्यारे बाबा की आशाओं को पूरा कर सकूँ।

➳ _ ➳ इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ ज्ञान को धारणा में ला कर अपनी अवस्था जमाने के लिए स्वयं में योग का बल जमा करने के लिए अब मैं स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित करती हूँ और अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ। एकाग्रता की यह स्थिति सेकण्ड में मुझे देह और देह की दुनिया से न्यारा कर देती है और मैं आत्मा सहजता से देह से किनारा कर, भृकुटि सिहांसन को छोड़, देह की कुटिया से बाहर निकल आती हूँ। देह से बाहर आकर अपने जड़ शरीर को मैं आत्मा साक्षी हो कर देख रही हूँ। इस देह और इससे जुड़ी किसी भी चीज का कोई भी आकर्षण अब मुझे आकर्षित नही कर रहा।

➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे हर बन्धन से मैं मुक्त हो चुकी हूँ। यह निर्बन्धन स्थिति मुझे एकदम हल्के पन का अनुभव करवा रही है। इसी हल्केपन की अनुभूति में मैं आत्मा स्वयं को ऊपर की और उड़ता हुआ अनुभव कर रही हूँ। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे कोई चीज मुझे ऊपर की ओर खींच रही है और मैं बरबस ऊपर की और खिंची चली जा रही हूँ। यह हल्कापन मुझे असीम आनन्द से भरपूर कर रहा है। और इसी गहन आनन्द में डूबी मैं आत्मा आकाश और तारामण्डल को पार कर जाती हूँ। अंतरिक्ष के सुंदर नजारो को मन बुद्धि के दिव्य नेत्रों से देखती, सूक्ष्म वतन को पार कर अब मैं एक बहुत ही सुन्दर दुनिया में प्रवेश करती हूँ जहाँ अथाह शान्ति ही शान्ति है।

➳ _ ➳ इस गहन शान्ति के अनुभव में गहराई तक खोकर स्वयं को तृप्त करके अब मैं इस अंतहीन निराकारी दुनिया मे विचरण करते - करते उस महाज्योति के पास पहुँच जाती हूँ जो मेरे परम पिता परमात्मा है। जो मेरे ही समान बिन्दु किन्तु गुणों में सिंधु हैं। अपने ही जैसा अपने पिता का स्वरूप देखकर मैं आत्मा आनन्द मगन हो रही हूँ और उनसे मिलन मनाने के लिए उनके समीप जा रही हूँ। उनके बिल्कुल समीप जा कर बड़े प्यार से उन्हें निहारते हुए उनके प्यार की किरणों की शीतल छाया में मैं आत्मा जाकर बैठ जाती हूँ और उनके प्यार की शीतल फ़ुहारों का आनन्द लेती हुए उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।

➳ _ ➳ जैसे लौकिक में एक बच्चा अपने सिर पर अपने पिता का हाथ अनुभव करके स्वयं को हिम्मतवान अनुभव करता है ऐसे मेरे शिव पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया मेरे अन्दर असीम ऊर्जा का संचार कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। स्वयं को मैं बहुत ही बलशाली अनुभव कर रही हूँ। शक्तियों का पुंज बन कर अपने ब्राह्मण जीवन में ज्ञान को धारण कर अपनी अवस्था को जमाने का पुरुषार्थ करने के लिये अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन में अब मैं अपने परम शिक्षक शिव पिता की निरन्तर याद से स्वयं को बलशाली बनाकर उनसे मिलने वाले ज्ञान को अच्छी रीति समझ उसे अपने जीवन मे धारण करने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ। अपने शिव पिता से मिलने वाले ज्ञान और योग के बल से अपनी अवस्था को जमाने की मेहनत करते हुए अब मैं अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं पवित्रता की शक्तिशाली दृष्टि वृति रखने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मा हूँ।
✺   मैं दुःख हर्ता सुख कर्ता आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्मा समय की समीपता प्रमाण सच्ची तपस्या करती हूँ ।
✺ मैं आत्मा बेहद के वैराग्य की साधना करती हूँ ।
✺ मैं सच्ची तपस्वी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  होलीहंसों की विशेषता को सभी अच्छी तरह से जानते हो। 'सदा होली हैपी हंस अर्थात् स्वच्छ और साफ दिल'। ऐसे होलीहंसों की स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण हर शुभ आशायें सहज पूर्ण होती हैं। सदा तृप्त आत्मा रहते हैं। श्रेष्ठ संकल्प किया और पूर्ण हुआ। मेहनत नहीं करनी पड़ती। क्यों? बापदादा को सबसे प्रिय, सबसे समीप साफ दिल प्यारे हैं। साफ दिल सदा बापदादा के दिलतख्त नशीन, सर्व श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होने के कारण वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सरल और स्पष्ट एक समान दिखाई देते हैं। सरलता की निशानी है - दिल, दिमाग, बोल एक समान। दिल में एक, बोल में और (दूसरा) - यह सरलता की निशानी नहीं है। सरल स्वभाव वाले सदा निर्माणचित, निरहंकारी, निर-स्वार्थी होते हैं। होलीहंस की विशेषता - सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि।

 

✺   ड्रिल :-  "होली हंस की विशेषता- सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि को स्वयं में अनुभव करना"

 

_ ➳  मैं होली हंस आत्मा हूँ... ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान गुण और शक्तियों की किरणें निरंतर मुझ आत्मा पर आ रही हैं... और मेरा जीवन दिव्यता से भरपूर हो रहा है... मेरा मन निर्मल हो रहा है, बुद्धि स्वच्छ बन रही है और संस्कार दिव्य हो रहे हैं...

 

_ ➳  मैं होली हंस आत्मा अवगुण रूपी कंकड़-पत्थर को अलग कर गुण रुपी मोती चुगने वाली हूँ... मैं होली हंस आत्मा सदा दूसरों के गुणों को देखती हूँ... और गुणों का ही वर्णन करती हूँ... मुझ होली हंस का दिल स्वच्छ और साफ है... मुझ आत्मा की सभी आशाएं सहज ही पूर्ण हो जाती है... मैं होली हंस आत्मा सदा बापदादा की सबसे प्रिय लाडली बच्ची हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा होली हंस हूँ...  इसलिए मैं किसी के अवगुणों को नहीं देखती हूँ... अब मेरी अवगुणी दृष्टि, गुणग्राही दृष्टि में परिवर्तन हो रही है... हर एक के गुणों व विशेषताओं को ही...  देखने का लक्ष्य रखने वाली मैं आत्मा होली हंस हूँ...

 

_ ➳  मैं होली हंस आत्मा किसी की निंदा, ग्लानि और परचिन्तन कभी नहीं करती... सदा फॉलो फादर करती हूँ... जैसे ब्रह्मा बाबा जितना नॉलेजफुल थे उतना ही उनका सरल स्वभाव भी था... मैं होली हंस आत्मा भी सफलतामूर्त बनने के लिए... सरलता और सहनशीलता के गुणों को धारण करती हूँ...

 

 ➳ _ ➳  स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण मैं होली हंस आत्मा सदा तृप्त रहती हूँ... जो भी श्रेष्ठ संकल्प करती हूँ... स्वतः ही सब पूर्ण हो जाते हैं... सदा मैं आत्मा बापदादा के दिलतख्तनशीन रहती हूँ... मैं निरहंकारी, निःस्वार्थी व  निर्माण चित्त आत्मा हूँ... मेरा दिल, दिमाग, बोल सब एक समान होते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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