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❍ 25 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ अपनी होशियारी काया सी करने का अहंकार तो नहीं दिखाया ?
➢➢ योगबल से अपनी सब इच्छाएं समाप्त की ?
➢➢ हद की रॉयल इच्छाओं से मुक्त रह सेवा की ?
➢➢ वायदों को फाइल में न रख फाइनल बनकर दिखाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे किला बांधा जाता है, जिससे प्रजा किले के अन्दर सेफ रहे। एक राजा के लिए कोठरी नहीं बनाते, किला बनाते हैं। आप सभी भी स्वयं के लिए, साथियों के लिए, अन्य आत्माओं के लिए ज्वाला रूप याद का किला बांधो। याद के शक्ति की ज्वाला हो तो हर आत्मा सेफ्टी का अनुभव करेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं एक की याद द्वारा एकरस स्थिति में रहने वाली ट्रस्टी आत्मा हूँ"
〰✧ सदा एकरस स्थिति में स्थित रहने की सहज विधि क्या है? 'एक' की याद एकरस स्थिति बनाती है। एक बाबा, दूसरा न कोई। क्योंकि एक में सब समाये हुए हैं। जैसे बीज में सब समाया हुआ होता है ना। वृक्ष की एक-एक चीज को याद करना मुश्किल है लेकिन एक बीज को याद करो तो सब सहज है। तो बाप भी बीज है। जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार-स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई। यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है। ऐसे अनुभव करते हो? या प्रवृत्ति में रहते हो तो दूसरा-तीसरा तो होता है? मेरा बच्चा, मेरा परिवार- यह नहीं रहता है?
〰✧ फिर एक बाप तो नहीं हुआ ना। 'मेरा' परिवार है या 'तेरा' परिवार है? ट्रस्टी बनकर सम्भालते हो या गृहस्थी बनकर सम्भालते हो? ट्रस्टी अर्थात् तेरा और गृहस्थी अर्थात् मेरा। तो आप कौन हो? मेरा-मेरा मानते क्या मिला? 'मेरा ये, मेरा ये' ....- मेरे-मेरे के विस्तार से मिला क्या? कुछ मिला या गंवाया? जितना मेरा-मेरा कहा, उतना ही मेरा कोई नहीं रहा। तो ट्रस्टी जीवन कितनी प्यारी है!
〰✧ सम्भालते हुए भी कोई बोझ नहीं, सदा हल्के। देखो, गृहस्थी बन चलने से बोझ उठाते-उठाते क्या हाल हुआ-तन भी गंवाया, मन भी अशान्त किया और सच्चा धन भी गंवा दिया। तन को रोगी बना दिया, मन को अशान्त बना लिया और धन में कोई शक्ति नहीं रही।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ कर्म कर रहे हैं लेकिन एक ही समय पर कर्म और मन्सा दोनों सेवा का बैलेन्स हो। जैसे शुरू-शुरू में यह अभ्यास कराया था कर्म भल वहुत साधारण हो लेकिन स्थिति ऐसी महान हो जो साधारण काम होते हुए भी साक्षात्कार मूर्त दिखाई दें - कोई भी स्थूल कार्य धोवीघाट या सफाई आदि का कर रहे हैं, भण्डारे का कार्य कर रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी महन हो - ऐसा भी समय प्रैक्टिकल में आवेगा जो देखने वाले यही वर्णन करेंगे कि इतनी महान आत्मायें फरिश्ता रूप और कार्य क्या कर रही है।
〰✧ कार्य साधारण और स्थिति अति श्रेष्ठ। जैसे सतयुगी शहजादियों की आत्मायें जब आती थी तो वह भविष्य के रूप प्रैक्टिकल में देखते हुए आश्चर्य खाती थी ना कि इतने बड़े महाराजे और कार्य क्या कर रहे हैं। विश्व महाराजा और भोजन बना रहे हैं।
〰✧ वैसे ही आने वाली आत्मायें यह वर्णन करेंगी कि हमारे इतने श्रेष्ठ पूज्य ईष्ट देव और यह कार्य कर रहे हैं। चलते-फिरते ईष्ट देव या देवी का साक्षात्कार स्पष्ट दिखाई दे। अन्त में पूज्य स्वरूप प्रत्यक्ष देखने लगेंगे फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ तख्तनशीन होकर अपनी स्थूल शक्तियों और सूक्ष्म को अर्थात् कर्म इन्द्रियों को और मन, बुद्धि संस्कार सूक्ष्म इन शक्तियों को भी आर्डर सें चलाओ। तख्तनशीन होंगे तो आर्डर चला सकेंगे। तख्त से नीचे उतर आर्डर करते हो इसलिए कर्मेन्द्रियाँ भी मानती नहीं हैं। ईश्वरीय सेवा तख्त पर बैठे हुए भी कर सकते हो। नीचे आने की जरूरत नहीं।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- किसी चीज की इच्छा नहीं रखना"
➳ _ ➳ आज वतन में जब फ़रिश्ते रूप में मुझ आत्मा की प्यारे बाबा से... रुहरिहानं
हुई तो मीठे बाबा ने कहा :- "मीठे फूल बच्चे... भगवान जब जीवन में प्राप्त हो
गया है... तो जरूर जीवन में सुखो के जादू को प्रकट करेगा... ईश्वर प्राप्त हो
जाये और अनोखी बात न हो यह तो सम्भव ही नही... इसलिए सच्चे पिता के सच्चे
प्रेम रंग में इस कदर रंग जाओ कि... पुरानी दुनिया की कोई तमन्ना शेष न रहे और
दिल सदा गाता रहे... पाना था वो मैंने पा लिया है... मै आत्मा मुस्कराते हुए
अपनी मूक सहमति दे रही..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अनन्त सुखो का राज बताते हुए आगे कहने लगे :-
"मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस पुरानी दुनिया की हर शह से दिल लगाकर तो देख
लिया सिवाय दुखो के भला क्या पाया... विकारो भरा जीवन क्या कभी सच्ची शांति
दिला पाया... अब इस दुनिया की हर बात से उपराम हो चलो और सिवाय ईश्वर पिता की
यादो के कोई बात की तमन्ना न रखो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा को बड़े ध्यान से सुनकर बोली :- "हाँ मेरे
मीठे मीठे बाबा... आपसे बिछड़कर और सुखो की दुनिया से निकलकर अपनी यात्रा में जब
मै आत्मा इस अंतिम पड़ाव पर पहुंची... टूट कर थक कर बेहाल हो गयी थी... सुख
शांति की एक बून्द को प्यासी... मै आत्मा आपके प्रेम को दुनिया के रेगिस्तान
चहुँ ओर ढूंढ ही रही थी... ऐसे मै प्यार के सागर ने मुझे बाँहों में भर
लिया..."
❉ मीठे बाबा मुझे प्यार से गले लगाते बाँहों में भरकर बोले :- "लाडले प्यारे
मीठे बच्चे... जब दुखो के गहरे अनुभवी हो गए हो... तो इस दुनिया के झूठे
आकर्षणों से सहज ही परे हो जाओ... यह दुनिया अब ईश्वर पुत्रो के लायक नही है...
यहाँ हर इच्छा का त्यागकर, असीम सुखो से सजी स्वर्ग धरा पर चलकर, 21 जनमो तक
सुख भरा विश्राम करो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा इतना प्यार इतना ममत्व पाकर स्नेह से छलछला उठी और बोली :- "मेरे
दिल के मीत बाबा... स्वर्ग के सुखो में... मै आत्मा आपको जो भूल गई, तो दुःख भरी
नगरी में आकर ही आपकी यादो की सुध ली... पर आपने मेरा साथ कभी न छोड़ा... दूर
से ही सही पर मुझे निरन्तर देखते ही रहे... और दुखो में जब मै आत्मा गहरे धँस
गयी तो झट मुझे आवाज दी..."
❉ मीठे बाबा मेरे जज्बातों को सुनकर मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ फेरते हुए
बोले :- "मीठे फूल बच्चे... भगवान पिता का कलेजा लिये, बच्चों के सच्चे सुखो
की व्यवस्था में... धरा पर साजो सामान ले जुटा है... बस एक ही चाहत, एक ही
पुकार, लेकर बड़ी उम्मीदों से बच्चों को निहार रहा... कि पुरानी दुनिया की हर
बात से अनासक्त होकर ईश्वरीय यादो में हर साँस को पिरो दो... सब कुछ मै आपके
लिए करूँगा, पर इतना तो आप भी करो ना..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के हाथो में अपना हाथ देकर बोली :- "हाँ मेरे सच्चे
सच्चे बाबा... आपकी हर आज्ञा हम बच्चों के आँखों पर है... जिस भगवान को दर दर
ढूंढ रही थी... वह प्यारा पिता बन झोली फैलाये सामने खड़ा है... और कह रहा बच्चे...
बस अपनी चाहत, अपना प्यार, मुझे दे दो और मेरी सारी जागीरे आप ले लो... तो ऐसे
भाग्य पर क्यों न भला मै आत्मा इठलाऊँ... ऐसा कह, मुस्कराते हुए, मै आत्मा अपने
कर्मक्षेत्र पर शरीर की कुटिया आ गयी..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- सदा इसी खुशी वा नशे में रहना कि हम साहेबजादे सो शहजादे बनने वाले
हैं"
➳ _ ➳ अपनी पलकों को मूंदे,
अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर स्मृतियों में खोई मैं अपने
सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर,
मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हुई मन्द - मन्द
मुस्करा रही हूँ और सोच रही हूँ कि इस दुनिया की सबसे खुशनसीब आत्मा हूँ मैं
जिसे स्वयं भगवान ने अपनी चल और अचल प्रॉपर्टी का मालिक बनाया है। दुनिया मे
कोई कितना भी धनवान क्यों ना हो लेकिन मुझ से अधिक धनवान कोई भी नही। "वाह मेरा
भाग्य वाह" "वाह रे मैं खुशनसीब आत्मा वाह"।
➳ _ ➳ वाह - वाह के गीत गाते हुए,
अपार खुशी और नशे में डूबी मैं आत्मा मन ही मन अपने शिव पिता का दिल से
शुक्रिया अदा करती हूँ और अपने मन बुद्धि को देह की दुनिया से निकाल अपने शिव
पिता के पास ले चलती हूँ। अपने मन बुद्धि को शिव पिता पर एकाग्र करते ही मैं
अनुभव करती हूँ कि मेरे शिव पिता अपने रथ पर सवार हो कर मेरे सम्मुख आ कर खड़े
हो गए हैं और मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहें हैं। अपने लाइट माइट
स्वरूप में अपने स्नेह की शीतल छाया में बिठा कर मुझ पर अपने असीम प्रेम की
वर्षा कर रहें हैं।
➳ _ ➳ जन्म - जन्म से मेरी निगाहें जिसके दर्शनों की प्यासी थी। वो
भगवान,
मेरे शिव पिता मेरे बिल्कुल सामने खड़े हैं यह सोच कर ही मैं असीम आनन्द
का अनुभव कर रही हूँ। आंखों से खुशी के आँसू छलक रहें हैं और मेरे बाबा अपने
हाथ में उन आंसुओं को उठा कर कीमती मोती की तरह उन्हें अपने दिल की डिब्बी में
कैद कर रहें हैं। भगवान के साथ मुझ आत्मा का ऐसा सुन्दर मिलन होगा यह ख्याल तो
कभी स्वप्न में भी नही आया था। स्वयं भगवान मेरा हो जायेगा,
अपने सर्व खजाने वो मुझ पर लुटायेगा और अपनी चल - अचल प्रॉपर्टी का मुझे
मालिक बना देगा। मन ही मन स्वयं से बातें करती हुई मैं एकटक अपने शिव पिता को
निहार रही हूँ।
➳ _ ➳ बड़े प्यार से मुस्कराते हुए अब बाबा मेरे श्रेष्ठ भाग्य का
गुणगान करते हुए मुझ से कह रहें हैं:- तुम साधारण नही हो। मैंने तुम्हे संसार
की करोड़ो आत्माओं में से चुना है इसलिये तुम बहुत महान हो। अपनी सर्वशक्तियाँ,
सर्व खजाने मैंने तुम्हे दे दिए हैं। तुम मास्टर सर्वशक्तिवान हो।
मंदिरों में तुम्हारी ही पूजा हो रही है। तुम इष्ट देवी हो। सबके विघ्नों को
हरने वाले तुम ही विघ्न विनाशक गणेश हो। तुम पूर्वज हो। तुम विजय माला के मणके
हो। तुम्हारी माला सिमर कर आज भी भक्त समस्यायों से मुक्त हो रहें हैं। तुम
दुनिया की सभी आत्माओं को दुखो से छुड़ाने वाले फरिश्ते हो।
➳ _ ➳ भगवान के मुख से अपनी महिमा सुनकर मैं अलौकिक रूहानी नशे से
भरपूर,
अपने लाइट माइट स्वरुप में स्थित हो कर अब अपने शिव पिता का हाथ थामे
उनके साथ ऊपर की ओर जा रही हूँ। अपने शिव पिता की शक्तिशाली किरणों रूपी
छत्रछाया के नीचे गहन आनन्द की अनुभूति करते हुए मैं आत्मा अब पहुँच गई अपने घर
परमधाम। अपने शिव पिता के सम्मुख बैठ,
उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाने के बाद,
शक्ति शाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट
रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरुप में अब मैं स्थित हूँ और एक दिव्य अलौकिक
रूहानी मस्ती से स्वयं को भरपूर अनुभव कर रही हूँ। "भगवान बाप की चल - अचल
प्रॉपर्टी की मैं मालिक हूँ" इसी खुशी और नशे में रहते हुए मैं उड़ती कला का
सदा अनुभव करते हुए अब निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं हद की रॉयल इच्छाओं से मुक्त्त रह सेवा करने वाली नि:स्वार्थ सेवाधारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं वायदों को फाइल में नहीं रख, फाइनल बन कर दिखाने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘बापदादा सर्व ब्राह्मण आत्माओं में ‘सर्वस्व त्यागी' बच्चों को देख रहे हैं। तीन प्रकार के बच्चे हैं - एक हैं त्यागी, दूसरे हैं महात्यागी, तीसरे हैं सर्व त्यागी, तीनों हैं ही त्यागी लेकिन नम्बरवार हैं। त्यागी- जिन्होंने ज्ञान और योग के द्वारा अपने पुराने सम्बन्ध, पुरानी दुनिया, पुराने सम्पर्क द्वारा प्राप्त हुई अल्पकाल की प्राप्तियों को त्याग कर ब्राह्मण जीवन अर्थात् योगी जीवन संकल्प द्वारा अपनाया है अर्थात् यह सब धारणा की कि पुरानी जीवन से ‘यह योगी जीवन श्रेष्ठ है'। अल्पकाल की प्राप्ति से यह सदाकाल की प्राप्ति प्राप्त करना आवश्यक है। और उसे आवश्यक समझने के आधार पर ज्ञान योग के अभ्यासी बन गये। ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी कहलाने के अधिकारी बन गये। लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारी बनने के बाद भी पुराने सम्बन्ध, संकल्प और संस्कार सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं हुए लेकिन परिवर्तन करने के युद्ध में सदा तप्पर रहते। अभी-अभी ब्राह्मण संस्कार, अभी-अभी पुराने संस्कारों को परिवर्तन करने के युद्ध स्वरूप में। इसको कहा जाता है - त्यागी बने लेकिन सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं किया। सिर्फ सोचने और समझने वाले हैं कि त्याग करना ही महा भाग्यवान बनना है। करने की हिम्मत कम।
➳ _ ➳ अलबेलेपन के संस्कार बार बार इमर्ज होने से त्याग के साथ-साथ आराम पसन्द भी बन जाते हैं। समझ भी रहे हैं, चल भी रहे हैं, पुरूषार्थ कर भी रहे हैं,ब्राह्मण जीवन को छोड़ भी नहीं सकते, यह संकल्प भी दृढ़ है कि ब्राह्मण ही बनना है। चाहे माया वा मायावी सम्बन्धी पुरानी जीवन के लिए अपनी तरफ आकर्षित भी कर सकते हैं तो भी इस संकल्प में अटल हैं कि ब्राह्मण जीवन ही श्रेष्ठ है। इसमें निश्चय-बुद्धि पक्के हैं। लेकिन सम्पूर्ण त्यागी बनने के लिए दो प्रकार के विघ्न आगे बढ़ने नहीं देते। वह कौन से?
➳ _ ➳ एक - तो सदा हिम्मत नहीं रख सकते अर्थात् विघ्नों का सामना करने की शक्ति कम है। दूसरा - अलबेलेपन का स्वरूप आराम पसन्द बन चलना। पढ़ाई,याद, धारणा और सेवा सब सबजेक्ट में कर रहे हैं, चल रहे हैं, पढ़ रहे हैं लेकिन आराम से! सम्पूर्ण परिवर्तन करने के लिए शस्त्रधारी शक्ति-स्वरूप की कमी हो जाती है। स्नेही हैं लेकिन शक्ति स्वरूप नहीं। मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित नहीं हो सकते हैं। इसलिए महात्यागी नहीं बन सकते हैं। यह है त्यागी आत्मायें।
✺ "ड्रिल :- अलबेलेपन के संस्कार इमर्ज कर आराम पसंद नहीं बनना।”
➳ _ ➳ मैं आत्मा सावन के सुहावने मौसम में... सावन के झूले में झूलती हुई... सावन की पहली बारिश के इंतजार में गगन को निहार रही हूँ... मंद-मंद हवा चल रही है... काले-काले मेघ उमड़ते गरजते चले आ रहे हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर झूले में बैठ जाते हैं... थोड़ी ही देर में मेघ रिमझिम-रिमझिम झरने लगते हैं... झड़ी पर झड़ी बरसने लगती है... लग रहा जैसे आसमान से मोतियों की लड़ी गिर रही हों... मैं आत्मा इन बरसते मोतियों को अपनी हथेलियों में भर रही हूँ... ये पानी की बूंदे मुझसे कह रही हैं आओ पूरी तरह से भीग जाओं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा झूले से उतरकर बाबा का हाथ पकड़ बरसते पानी में पूरी तरह से भीगकर मजा ले रही हूँ... बाबा के साथ बारिश में खेल रही हूँ... पंछी भी खुश होकर नाच रहे हैं... पेड़-पौधे ख़ुशी में लहलहा रहे हैं... ज्ञान सागर बाबा के नैनों से दिव्य गुण शक्तियों से भरी किरणों की वर्षा हो रही है... एक तरफ मुझ आत्मा को बाबा ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति, पवित्रता की वर्षा से भिगो रहे हैं और एक तरफ ये पानी की बूंदे मेरे शरीर को भिगो रही हैं... ये तपती हुई धरती जैसे इस वर्षा से शीतल हो रही है वैसे ही विकारों की तपन खत्म होकर मैं आत्मा शांत और शीतल हो रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा पुराने सम्बन्ध, पुरानी दुनिया, पुराने सम्पर्क द्वारा प्राप्त हुई अल्पकाल की प्राप्तियों का त्याग कर रही हूँ... मुझ आत्मा से पुराने स्वभाव-संस्कार, कमी-कमजोरियां, आलस्य-अलबेलापन, सभी विकार ज्ञान सागर के किरणों की वर्षा में बहते चले जा रहे हैं... मैं आत्मा पुराने जीवन का त्याग कर श्रेष्ठ पवित्र योगी जीवन को अपना रही हूँ... अल्पकाल की विनाशी प्राप्तियों का त्याग कर सदाकाल की अविनाशी प्राप्तियों की अधिकारी बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा निश्चय-बुद्धि बन मनसा-वाचा-कर्मणा ब्राह्मण जीवन के संस्कारों को धारण कर रही हूँ... सर्वशक्तिवान बाबा से शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित होकर विघ्नों का सामना कर रही हूँ... पुराने मायावी जीवन की तरफ अब जरा भी आकर्षित नहीं होती हूँ... मैं आत्मा आलस्य-अलबेलेपन के संस्कार इमर्ज कर आराम पसंद नहीं बनती हूँ... बल्कि श्रीमत पर चलकर तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ... ज्ञान, योग, धारणा, सेवा सभी सब्जेक्ट्स में पास विद आनर बन रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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