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 22 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ "अब नाटक पूरा हुआ" - यह बुधी में रहा ?

 

➢➢ "हमें अतीन्द्रिय सुख कहाँ तक भासता है" - अपने आप से यह पुछा ?

 

➢➢ अपने टाइटल की स्मृति के सतह समर्थ स्थिति बनायी ?

 

➢➢ परखने की शक्ति को बड़ा भटकती हुई आत्माओं की चाहना पूरी की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  साधनों को आधार नहीं बनाओ लेकिन साधना के आधार से साधनों को कार्य में लगाओ यदि साधना की स्थिति में रह साधनों को कार्य में नहीं लगाते, कोई-न-कोई आधार को अपनी उन्नति का आधार बना देते हो तो जब वह आधार हिलता है, तो उमंग-उत्साह भी हिल जाता है। वैसे आधार लेना कोई बुरी चीज़ नहीं है लेकिन आधार को फाउण्डेशन नहीं बनाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं अचल-अड़ोल आत्मा हूँ"

 

    अचल-अडोल आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? एक तरफ है हलचल और दूसरी तरफ आप ब्राह्मण आत्माएं सदा अचल हैं। जितनी वहाँ हलचल है उतनी आपके अन्दर अचल-अडोल स्थिति का अनुभव बढ़ता जा रहा है। कुछ भी हो जाये, सबसे सहज युक्ति है - 'नथिंग न्यु'। कोई नई बात नहीं है। कभी आश्चर्य लगता है कि यह क्या हो रहा है, क्या होगा? आश्चर्य तब हो जब नई बात हो। कोई भी बात सोची नहीं हो, सुनी नहीं हो, समझी नहीं हो और अचानक होती है तो आश्चर्य लगता है। तो आश्चर्य नहीं लेकिन फुलस्टोप हो। दुनिया मूँझने वाली और आप मौज में रहने वाले हो। दुनिया वाले छोटी-छोटी बात में मूँझेंगे - क्या करें, कैसे करें...। और आप सदा मौज में हो, मूँझना खत्म हो गया। ब्रह्मण अर्थात् मौज, क्षत्रिय अर्थात् मूँझना। कभी मौज, कभी मूँझ।

 

  आप सभी अपना नाम ही कहते हो - ब्रह्माकुमार और कुमारियां। क्षत्रिय कुमार और क्षत्रिय कुमारी तो नहीं हो ना? सदा अपने भाग्य की खुशी में रहने वाले हो। दिल में सदा, स्वत: एक गीत बजता रहता - 'वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य।' यह गीत बजता रहता है, इसको बजाने की आवश्यकता नहीं है। यह अनादि बजता ही रहता है। हाय हाय खत्म हो गई, अभी है 'वाह-वाह।' हाय-हाय करने वाले तो बहुत मैजारिटी हैं और वाह वाह करने वाले बहुत थोड़े हो। तो नये वर्ष में क्या याद रखेंगे? 'वाह-वाह।' जो सामने देखा, जो सुना, जो बोला - सब वाह-वाह, हाय-हाय नहीं। हाय ये क्या हो गया! नहीं, वाह, ये बहुत अच्छा हुआ।

 

  कोई बुरा भी करे लेकिन आप अपनी शक्ति से बुरे को अच्छे में बदल दो। यही तो परिवर्तन है ना। अपने ब्राह्मण जीवन में बुरा होता ही नहीं। चाहे कोई गाली भी देता है तो बलिहारी गाली देने वाले की, जो सहन शक्ति का पाठ पढ़ाया। बलिहारी तो हुई ना, जो मास्टर बन गया आपका! मालूम तो पड़ा आपको कि सहन शक्ति कितनी है, तो बुरा हुआ या अच्छा हुआ? ब्राह्मणों की दृष्टि में बुरा होता ही नहीं। ब्राह्मणों के कानों में बुरा सुनाई देता ही नहीं। इसलिए तो ब्राह्मण जीवन मौजों की जीवन है। अभी-अभी बुरा, अभी-अभी अच्छा तो मौज नहीं हो सकेगी। सदा मौज ही मौज है। सारे कल्प में ब्रह्माकुमार और कुमारी श्रेष्ठ हैं। देव आत्माएं भी ब्राह्मणों के आगे कुछ नहीं हैं। सदा इस नशे में रहो, सदा खुश रहो और दूसरों को भी सदा खुश रखो। रहो भी और रखो भी। मैं तो खुश रहता हूँ, ये नहीं। मैं सबको खुश रखता हूँ - यह भी हो। मैं तो खुश रहता हूँ - यह भी स्वार्थ है। ब्राह्मणों की सेवा क्या है? ज्ञान देते ही हो खुशी के लिए।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  वह अन्तिम लक्ष्य पुरुषार्थ के लिए कौन - सा है? वह है - अव्यक्त फरिश्ता हो रहना। अव्यक्त रूप क्या है? फरिश्तापन। उसमें भी लाइट रूप सामने है - अपना लक्ष्य। वह सामने रखने से जैसे लाइट के कार्ब में यह मेरा आकर है।

 

✧  जैसे वतन में भी अव्यक्त रूप देखते हो, तो अव्यक्त और व्यक्त में क्या अंतर देखते हो? व्यक्त, पाँच तत्वों के कार्ब में है और अव्यक्त, लाइट के कार्ब में है।

 

✧  लाइट का रूप तो है, लेकिन आसपास चारों ओर लाइट ही लाइट है, जैसे कि लाइट के कार्ब में  यह आकर दिखाई देता है। जैसे सूर्य देखते हो तो चारों ओर फैली सूर्य कि किरणों की लाइट के बीच में, सूर्य का रूप दिखाई देता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ लगाव की भी स्टेजस हैं। एक है सूक्ष्म लगाव, जिसको सूक्ष्म आत्मिक स्थिति में स्थित होकर ही जान सकते हैं। दूसरे हैं स्थूल रूप के लगाव, जिसको सहज जान सकते हो। सूक्ष्म लगाव का भी विस्तार बहुत है। बिना लगाव के, बुद्धि की आकर्षण वहाँ तक जा नही सकती। वा बुद्धि का झुकाव वहाँ जा नहीं सकता। तो लगाव की चेकिंग हुई झुकाव।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  ज्ञान की बुलबुल बन आप समान बनाने की सेवा करना"

 

_ ➳  'अमृतवेला हो गई भोर चल रे मनवा वतन की ओर'- ये गाना सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ... प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उड़ चलती हूँ वतन की ओर... मेरा ही इन्तजार करते हुए बाबा बाहें फैलाए खड़े हैं... बाबा की बाँहों में मैं आत्मा सिमट जाती हूँ... बाबा के प्यार में लवलीन होकर मेरा दिल गा रहा है... अपने प्यार को उजागर कर रहा है -- 'सूरज से किरणें जैसे, सागर से लहरें जैसे करते प्यार हैं, फूलों से खुशबू जैसे, ओ बाबा तुमसे- ऐसे इस दिल का प्यार है...'

 

  मेरे प्यारे बाबा खुश होकर मुझ पर मीठे मीठे प्यार के फूल बरसाते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... जो मीठा सुखद जीवन आप बच्चों ने ईश्वरीय छाँव में पाया है वह सुखदायी बहार विश्व के कोने कोने में महका आओ... सच्चे ज्ञान से सबके दामन में खुशियो के फूल खिला आओ... सुखो की जन्नत भरी राह हर नजर में समा आओ... आप समान सबको खुशनुमा जीवन की सौगात दे आओ... ज्ञान की बुलबुल बनकर आप समान बनाने का धंधा करो..."

 

_ ➳  मैं आत्मा खुशियों के अम्बार से अपनी झोली भरते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा दुखो में कभी कांव कांव करने वाली आज खुबसूरत सी ज्ञान की बुलबुल हो गई हूँ... मीठा सा रूहानी रूप मीठी वाणी और सच्चे ज्ञान की झनकार लिये... खुशियो का पर्याय बन सबको आप समान मीठी मुस्कान से सजा रही हूँ..."

 

  मीठे सागर बाबा सुख, शांति की किरणों से रोशन करते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता ने अपनी गोद में बिठा प्यार के जादू भरे हाथो से ज्ञान बुलबुल के रूप में संवारा है... तो वह ज्ञान की मीठी सी कूक हर आत्मा दिल को सुना आओ... सबको जनमो के दुखो से सच्ची आथत राहत दे आओ... खुद को यादो के सागर में भिगोते हुए इन ज्ञान की सुखद लहरो से हर मन को शीतल कर आओ..."

 

_ ➳  मैं आत्मा सच्चे दिल से प्यारे बाबा को शुक्रिया अदा करते हुए कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपसे पाये सच्चे ज्ञान ने मेरा जीवन पारस सा कीमती बना दिया है... आपकी मीठी यादो में बुलबुल बन ज्ञान से चहक रही हूँ... सच्चे ज्ञान से पायी खुशियां हर दिल पर दिल खोलकर लुटा रही हूँ..."

 

  मेरे बाबा जन्म जन्म की मेरी प्यास को बुझाते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर के लिए जो दिल जनमो से व्याकुल था आज ईश्वर पिता को पाकर मीठी यादो में डूबा है, की नही अपने दिल से पूछो... यादो के समन्दर में गहरे खोया है या संसार में गोते लगा रहा... अपनी यादो के पैमाने को जांचते हुए ईश्वरीय यादो की खुशबु से पूरे विश्व को सुवासित कर आओ..."

 

_ ➳  मैं आत्मा अविनाशी खजानों को बटोरते हुए, सबको बांटते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे पाये सुख, ज्ञान खजाने और शक्तियो रुपी अपार दौलत से हर दिल को दीवाना बना रही हूँ... सबको सुखो का सच्चा रास्ता बताकर सदा का सुखी बना रही हूँ... सबके दिलो में सच्ची मुस्कराहट भर रही हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बुद्धि में रहे - अब नाटक पूरा हुआ, हम जाते हैं अपने स्वीट होम"

 

_ ➳  साक्षीदृष्टा बन ज्ञान के दिव्य नेत्र से मैं जैसे ही इस सृष्टि को देखती है यह सम्पूर्ण सृष्टि मुझे एक विशाल रंगमंच, एक नाटकशाला के रुप में दिखाई देती है जिस पर बेहद का नाटक चल रहा है। मैं देख रही हूँ कि जैसे - जैसे इस नाटक में जिसका पार्ट है अपने - अपने समय अनुसार वो आत्मा परमधाम से नीचे आ रही है और मनुष्य शरीर धारण कर अपना पार्ट बजा रही है। जिस आत्मा को जैसा पार्ट मिला है वो अपने उस पार्ट को एकदम एक्यूरेट बजा रही है।

 

_ ➳  इस दृश्य को देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि 5 हजार वर्ष से चल रहा यह नाटक अब पूरा हो रहा है। सब पार्टधारियों को अपना पार्ट बजा कर अब वापिस अपने धाम लौटना है और अब जबकि बाबा ने आकर हमे इस सत्यता का बोध करवा दिया है कि यह पुरानी दुनिया अब जल्दी ही समाप्त होनी है तो अब हमें उनके फरमान पर चल इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए नही तो देह और देह की इस झूठी दुनिया के चक्रव्यूह में फंस कर अपनी तकदीर को लकीर लगा बैठेंगे और इस बेहद नाटक में फिर कल्प - कल्प के लिए हमारा ऐसा ही पार्ट निर्धारित हो जायेगा।

 

_ ➳  यही वह समय है जबकि स्वयं भाग्य विधाता बाप आये हुए हैं और आकर श्रेष्ठ मत देकर हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहें हैं। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर अच्छी रीति चल इस अन्तिम समय मे अब मुझे इस पुरानी दुनिया से उपराम रहने का तीव्र पुरुषार्थ अवश्य करना है। इस देह और देह की इस दुनिया से जुड़ा हर सम्बन्ध नश्वर और दुख देने वाला ही तो है और भगवान के साथ जुड़ा हर सम्बन्ध अपरमअपार सुख देने वाला है। यह स्मृति आते ही मन में इस पुरानी दुनिया के लिये वैराग्य उतपन्न होने लगता है और मन अपने प्यारे बाबा की तरफ खिंचने लगता है। उनके प्यार का वो एहसास याद आते ही मन बुद्धि देह और देह की दुनिया से उपराम हो कर शिव पिता पर एकाग्र हो जाते हैं।

 

_ ➳  मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से परमात्म लाइट सीधी मुझ आत्मा के साथ आ कर कनेक्ट हो गई हैं। शक्तियों का तेज करंट मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगा है जो मुझे इस देह से उपराम कर, ऊपर अपनी ओर खींच रहा है। इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर अब मैं आत्मा देह से निकल कर इस लाइट के साथ - साथ ऊपर जा रही हूँ। यह परमात्म लाइट मुझे खींच कर 5 तत्वों की इस दुनिया से पार ले कर जा रही है। साकारी  और आकारी दोनों दुनियाओं को पार कर अब मैं अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की इस लाइट के साथ पहुँच गई हूँ परमधाम उनके पास।

 

_ ➳  अनन्त शक्तियों का पुंज, वो पॉवर हाउस मेरे शिव पिता परमात्मा अब मेरे बिल्कुल समीप है उनकी समस्त पॉवर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं। मुझ आत्मा की बैटरी चार्ज हो रही है और मैं लाइट हाउस बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट स्वयं में भर कर मैं अपने आप को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। ऊर्जा का भण्डार बन, वापिस साकारी लोक में आ कर अपने साकारी तन में विराजमान हो कर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अब मैं अपना पार्ट फिर से बजा रही हूँ।

 

_ ➳  "सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे देह और देह की दुनिया से उपराम बनाती जा रही है। देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते, उनसे तोड़ निभाते, बुद्धि का योग अपने शिव पिता के साथ जोड़, मन बुद्धि से अब मैं ऊपर वास करती रहती हूँ और अपने शिव पिता के प्यार से स्वयं को सदा भरपूर रखते हुए, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन कर रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं अपने टाइटल की स्मृति के साथ समर्थ स्थिति बनाने वाली स्वमानधारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं भटकती हुई आत्माओं की चाहना पूर्ण करने के लिए परखने की शक्ति को बढ़ाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ लेकिन श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का आधार है -’’श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म।'' चाहे ट्रस्टी आत्मा हो, चाहे सेवाधारी आत्मा हो, दोनों इसी आधार द्वारा नम्बर ले सकते हैं। दोनों को फुल अथार्टी है - भाग्य बनाने की। जो बनाने चाहें, जितना बनाना चाहें बना सकते हैं। संगमयुग पर वरदाता द्वारा ड्रामा अनुसार समय को वरदान मिला हुआ है। जो चाहे वह श्रेष्ठ भाग्यवान बन सकता है। ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् जन्म से भाग्य ले ही आते हो। जन्मते ही भाग्य का सितारा सर्व के मस्तक पर चमकता हुआ है। यह तो ‘जन्म-सिद्ध' अधिकार हो गया। ब्राह्मण माना ही - ‘भाग्यवान'।

✺ "ड्रिल :- ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति का अनुभव करना।"

➳ _ ➳ अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृतियों का सिमरन करती हुई मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन अपने प्यारे बाबा के पास... और बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की गोदी के झूले में झूलती हुई अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूँ... बाबा के कोमल स्पर्श से मुझ आत्मा में अलौकिक शक्तियों का संचार हो रहा है... मैं आत्मा देहभान से न्यारी हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... बाबा से एक होकर एकरस स्थिति में स्थित हो रही हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझ से मुक्त होकर हलकी हो रही हूँ... सर्व बन्धनों से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता स्थिति में स्थित हो रही हूँ... बाबा से निकलती दिव्य किरणों को अपने में ग्रहण कर रही हूँ... सर्व गुण, शक्तियों के खजानों से भरपूर हो रही हूँ... मैं आत्मा अपने मस्तक पर चमकते हुए भाग्य के सितारे को देख स्व-चिन्तन करती हूँ...

➳ _ ➳ कितना प्यारा है मेरा बाबा जिसने मुझे भाग्य बनाने की अथार्टी ही दे दी... जितना चाहे जैसे चाहे मैं आत्मा अपना भाग्य बना सकती हूँ... अपने भाग्य की लम्बी लकीर खींच सकती हूँ... कितनी ही श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ मैं जो स्वयं भगवान ने आकर मुझे शूद्र से ब्राहमण बना दिया... रावण के चंगुल से छुडाकर राम का बना दिया... ब्राह्मण जन्म लेते ही मुझ आत्मा के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक गया...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा संगमयुग पर वरदाता द्वारा समय को मिले वरदान का सदुपयोग कर वरदान को सिद्ध कर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर स्थित रहकर श्रेष्ठ संकल्पों के द्वारा श्रेष्ठ कर्म कर अपना श्रेष्ठ भाग्य बना रही हूँ... मैं ब्राह्मण आत्मा ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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