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 04 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ अधिकारीपन के नशे में रहे ?

 

➢➢ दिलशिकस्त आत्माओं को दिल की ख़ुशी की अनुभूति करवाई ?

 

➢➢ हर कर्म करते हुए साधारणता में महानता का अनुभव किया ?

 

➢➢ आत्माओं के संपर्क में आते दृष्टि से , चहरे से न्यारापन अनुभव करवाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए किसी भी प्रकार के व्यर्थ और निगेटिव संकल्प, बोल वा कर्म से मुक्त बनो। व्यर्थ वा निगेटिव-यही बोझ सदाकाल के लिए डबल लाइट फरिश्ता बनने नहीं देता। तो ब्रह्मा बाप पूछते हैं-इस बोझ से सदा हल्के फरिश्ते बने हो?

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं राजयोगी आत्मा हूँ"

 

  एक सेकेण्ड में अशरीरी स्थिति का अनुभव कर सकते हो? या टाइम लगेगा? आप राजयोगी हो, राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना। तो शरीर आपका क्या है? कर्मचारी है ना! तो सेकेण्ड में अशरीरी क्यों नहीं हो सकते? र्डर करो- अभी शरीर-भान में नहीं आना है; तो नहीं मानेगा शरीर?

 

  राजयोगी अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान। मास्टर सर्वशक्तिवान कर्मबन्धन को भी नहीं तोड़ सकते तो मास्टर सर्वशक्तिवान कैसे कहला सकते? कहते तो यही हो ना कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। तो इसी अभ्यास को बढ़ाते चलो। राजयोगी अर्थात् राजा बन इन कर्मेन्द्रियों को अपने र्डर में चलाने वाले। क्योंकि अगर ऐसा अभ्यास नहीं होगा तो लास्ट टाइम 'पास विद् नर' कैसे बनेंगे!

 

  धक्के से पास होना है या 'पास विद् नर' बनना है? जैसे शरीर में आना सहज है, सेकेण्ड भी नहीं लगता है! क्योंकि बहुत समय का अभ्यास है। ऐसे शरीर से परे होने का भी अभ्यास चाहिए और बहुत समय का अभ्यास चाहिए। लक्ष्य श्रेष्ठ है तो लक्ष्य के प्रमाण पुरुषार्थ भी श्रेष्ठ करना है। सारे दिन में यह बार-बार प्रैक्टिस करो-अभी-अभी शरीर में हैं, अभी-अभी शरीर से न्यारे अशरीरी हैं! लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट आने के लिए फास्ट पुरुषार्थ करना पड़े।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आवाज से परे अपनी श्रेष्ठ स्थित को अनुभव करते हो? वह श्रेष्ठ स्थिति सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति है। एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो उसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे। 

 

✧  इसी स्थिति को - कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है। इसी स्थिति द्वारा हर कार्य में सफलता का अनुभव कर सकते हो। ऐसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया है? ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है - कर्मातीत स्थिति को पाना। तो लक्ष्य को प्राप्त करने के पहले अभी से इसी अभ्यास में रहेंगे तब ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।

 

✧  इसी लक्ष्य को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति आवश्यक है। क्योंकि विकारी जीवन वा भक्ति की जीवन दोनों में जन्म-जन्मांतर से बुद्धि का विस्तार में भटकने का संस्कार बहुत पक्का हो गया है। इसलिए ऐसे विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को सार रूप में स्थित करने के लिए इन दोनों शक्तियों की आवश्यकता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बाप तो कहते हैं बेगर बनो। यह शरीर रूपी घर भी मेरा नहीं। यह लोन मिला हुआ है। सिर्फ ईश्वरीय सेवा के लिए बाबा ने लोन दे करके 'ट्रस्टी' बनाया है। यह ईश्वरीय अमानत है। आपने तो सब कुछ तेरा कह करके बाप को दे दिया। यह वायदा किया ना वा भूल गये हो? वायदा किया है या आधा तेरा आधा मेरा। अगर तेरा कहा हुआ मेरा समझ कार्य में लगाते हो तो क्या होगा। उससे सुख मिलेगा? सफलता मिलेगी? इसलिए अमानत समझ तेरा समझ चलते तो बालक सो मालिकपन के खुशी में नशे में स्वतः ही रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- रूहानी पर्सनैलिटी में रहना"
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा मेरे जीवन को यूँ सुंदरता के रंगों से सजाने वाले... पवित्रता के सागर... शिवबाबा की यादों में खो जाती हूँ... प्यारे बाबा ने पवित्रता के रंग में डुबो कर... मुझ आत्मा को महकता हुआ फूल बना दिया है...  शिवपिता और ब्रह्मा माँ के आंगन में खिलने वाला... खूबसूरत... महकता गुलाब का फूल मैं आत्मा... ज्ञान और योग के पानी से निरन्तर खिली हुई... याद और सेवा से सनी हुई मैं आत्मा... पूरे विश्व की आत्माओं को अपनी रूहानियत की खुशबू से सरोबार कर रही हूँ...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा का रूहानी श्रृंगार करते हुए वरदान दिया और कहा :- "मीठे बच्चे... "पवित्र भव, योगी भव"... सदा पवित्रता की पर्सनैलिटी और रॉयलिटी से सजी रहना... यही पवित्रता की पर्सनैलिटी विश्व की अन्य आत्माओं को पवित्रता की ओर आकर्षित करेगी... अपनी चलन से आत्माओं को रूहानी रॉयलिटी का अनुभव कराओ... रूहानी दर्पण बन जाओ... जो भी देखे... बस देखता रह जाये..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत का पालन करते हुए कहती हूँ:- "मीठे प्यारे बाबा... मैं आपको पाकर रूहानी गुलाब बन निखर गई हूँ... अब मैं मात्र शरीर नहीं, अपितु प्यारी पवित्र आत्मा हूँ, आपने मेरे नीरस जीवन को रसीला बना दिया है... मैं आत्मा आपकी याद के नशे में मदमस्त... पूरे विश्व को अपनी रूहानियत की खुशबू से महका रही हूँ..."
 
❉  मीठे बाबा मुझ आत्मा को मेरे श्रेष्ठ भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हो तुम... जो स्वयं भगवान ने दिल की तिजोरी में छुपा कर रखा है... इसी तरह पवित्र जीवन अपना... अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाकर खुशियों के झूले में झूलते रहो और सबके जीवन आप समान खुशियो से महकाओ... महादानी, वरदानी बन सबकी आशायें पूरी करो..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के स्नेह प्यार की बरसात में रंगी हुई कहती हूँ :- "मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर... मुझ साधारण आत्मा को विशेष बना दिया... खूबसूरत ज्ञान परी बना दिया... चमकता हुआ हीरा बना दिया... ऐसे प्यार करने वाले "शिव साजन" को पाकर मैं आत्मा तो धन्य धन्य हो गई... और यह भाग्य हरेक के दिल पर सजा रही हूँ..."
 
❉  बाबा बड़े प्यार से संगमयुग में सबसे बड़ी सौगात सबसे बड़े खजाने का महत्व बताते हुए कहते हैं:- "मीठी बच्ची... खुशी का खजाना सबसे बड़ा है... इस खुशी के लिये लोग तरसते हैं... तड़पते हैं... बच्ची... आप सदा ख़ुशी के झूले में नाचने वाली हो... अमृतवेले से लेकर इस खुशी के खजाने को यूज़ करो... सारा दिन खुशी बनी रहेगी... और सारा दिन रूहानियत फैलाते रहोगे..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को गले लगाते हुए कहती हूँ :- "मेरे मन के मीत... मेरे सिकीलधे बाबा... मैं स्वयं भी खुश रहती हूँ और सबको खुशी बांटती हूँ... और अपनी वृति, दृष्टि, कृति और वाणी द्वारा सबको अपनी रूहानी रॉयलिटी का अनुभव करवा रही हूँ... मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आई..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- दिलशिकस्त आत्माओं को दिल की ख़ुशी का अनुभव करवाना"

➳ _ ➳  "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर आ कर स्थित हो गए हैं और उनकी सर्वशक्तियों से मेरे चारों और एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित हो गया है। इस औरे का विस्तार जैसे - जैसे बढ़ रहा है वैेसे - वैसे मेरे चारों और का वायुमण्डल बहुत ही शक्तिशाली बनता जा रहा है। एक - एक करके मेरी सभी शक्तियां इमर्ज रूप में मेरे सामने उपस्थित हो गई है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। अपनी इस शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर लेती हूँ।

➳ _ ➳  सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर, अपने सर्वशक्तिवान परम पिता परमात्मा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते, अब मैं फ़रिशता सारी दुनिया का चक्कर लगा रहा हूँ। सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा से निरन्तर सर्वशक्तियाँ निकल कर मुझ फ़रिश्ते में और मुझ फ़रिश्ते से सारे विश्व में फैलती जा रही हूँ। मैं देख रहा हूँ उन सभी तड़पती हुई, अशांत आत्माओं को जो पल भर की शांति की तलाश में भटक - भटक कर बिल्कुल निर्बल, शक्तिहीन हो चुकी हैं और मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियों को पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करने लगी है। मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियाँ उनमें शक्ति का संचार कर रही हैं।

➳ _ ➳  सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, विश्व की सर्व आत्माओं को शक्तियां प्रदान करता मैं फ़रिशता अब अपने सर्वशक्तिवान बाबा के साथ सूक्ष्म लोक की ओर जा रहा हूँ। सूक्ष्म लोक में पहुंच कर बाबा अपने निर्धारित रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं और मुझे अपने पास बिठा कर, शक्तिशाली दृष्टि दे कर अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करने लगते हैं। अपने हाथ मेरे हाथों पर रख कर बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल करने के बाद अपने निराकार स्वरूप में परमधाम की ओर प्रस्थान करते हैं। मैं भी अपनी फ़रिशता ड्रेस को वही उतार कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर उनके पीछे परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।

➳ _ ➳  परमधाम में पहुंच कर, सर्वशक्तिवान बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ।  ऐसा लग रहा है जैसे अपनी समस्त ऊर्जा का भंडार बाबा मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की समस्त आत्माओं का कल्याण करने के निमित बन बाबा के कार्य में मददगार बन सकूँ। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, शक्तियों का पुंज बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि अब मुझे मास्टर सर्व शक्तिवान आत्मा बन निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाना है।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं स्वयं को सदा इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रखती हूँ कि "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ"। इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में रहने से मैं स्वयं को सदैव अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करती हूँ। जिससे मुझ आत्मा की शक्तियाँ सदैव इमर्ज रहती है और मेरा शक्तिसम्पन्न स्वरूप मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली निर्बल और कमजोर आत्माओं को भी, उनके शक्तियों से सम्पन्न ओरिजनल स्वरूप का रीयलाईजेशन करवा कर उन्हें भी शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करवाता रहता है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सहन शक्त्ति की धारणा द्वारा सत्यता को अपनाने वाली सदा की विजयी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं प्रसन्न रहकर और प्रसन्न करके दुआएं देने और दुआएं लेने वाली प्रसन्नचित्त आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  एक हैं - आत्माओं को बाप का परिचय दे बाप के वर्से के अधिकारी बनाने के निमित्त सेवाधारी और दूसरे हैं - यज्ञ सेवाधारी। तो इस समय आप सभी यज्ञ सेवा का पार्ट बजाने वाले हो। यज्ञ सेवा का महत्व कितना बड़ा है - उसको अच्छी तरह से जानते होयज्ञ के एक-एक कणे का कितना महत्व हैएक-एक कणा मुहरों के समान है। अगर कोई एक कणें जितना भी सेवा करते हैं तो मुहरों के समान कमाई जमा हो जाती है। तो सेवा नहीं की लेकिन कमाई जमा की।

➳ _ ➳  सेवाधारियों को - वर्तमान समय एक तो मधुबन वरदान भूमि में रहने का चांस का भाग्य मिला और दूसरा सदा श्रेष्ठ वातावरण उसका भाग्य और तीसरा सदा कमाई जमा करने का भाग्य। तो कितने प्रकार के भाग्य सेवाधारियों को स्वत: प्राप्त हो जाते हैं। इतने भाग्यवान सेवाधारी आत्मायें समझकर सेवा करते हो? इतना रूहानी नशा स्मृति में रहता है या सेवा करते करते भूल जाते होसेवाधारी अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी उमंग उल्लास दिलाने के निमित्त बन सकते हैं।

✺   "ड्रिल :- यज्ञ सेवा के महत्व को समझना।"


➳ _ ➳  रंग बिरंगी किरणें मेरे मस्तिष्क से निकलते हुए मैं अपने आपको देख रही हूं... मेरे चारों तरफ सफेद प्रकाश का औरा चमक रहा है... मैं फरिश्ता रूप में आते हुए अपनी मन बुद्धि में उमंगों के पंख लगा कर उड़ी जा रही हूं... अपने वतन में... मेरे बाबा वतन में मेरा इंतजार कर रहे है... चारों तरफ लाल सुनहरा प्रकाश हीरों सी चमकती हुई आत्मा को अपने पास बुला रही है... उनके बीच में मैं अपने आप को देखती हूँ... और सामने मेरे पास ज्योतिस्वरूप के रुप में अपनी रंग बिरंगी अद्भुत किरणें बिखेरते हुए... मुझे अपनी शक्तिशाली किरणों से नहला रहे हैं... बाबा की इन शक्तियों को अपने अंदर भरते हुए चली आती हूं मैं... सूक्ष्मवतन में... यहां मैं ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा को विराजमान अनुभव करती हूं...

➳ _ ➳  अब मैं अनुभव करती हूं... बापदादा मेरे सामने खड़े होकर मुझे अपनी बाहों में झूला झुलाने को आतुर हो रहे हैं... मैं दौड़कर अपने बाबा के पास जाती हूं... और अपने आपको बापदादा की छत्रछाया में अनुभव करती हूं... बापदादा की बाहों के झूले झूलने पर... मैं अपने आपको इस दुनिया की सबसे शक्तिशाली और भाग्यशाली आत्मा अनुभव करती हूं... मैं फ़रिश्ता स्वरूप  में बापदादा से मिलन मना रही हूं... बापदादा मुझे अपनी बाहों के झूले झुलाते हुए मुझे अपने शुद्ध कर्मों का और कर्तव्यों का ध्यान दिला रहे है... मेरे बाबा मुझसे कहते हैं... मेरे मीठे बच्चे- तुम्हें ज्ञान रत्नों से सजाकर धनवान बना रहा हूं... तुम्हारा कर्तव्य भी अन्य आत्माओं को ज्ञान रत्नों से सजाना है... बाबा के इन वाक्यों को सुनकर मेरा मन गदगद हो रहा है...

➳ _ ➳  अब कुछ देर बाद बाबा मुझे अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाते हैं... जहां चारों तरफ सफेद वस्त्र धारण किये हुए आत्माएं फ़रिश्ते की भांति घूम रही है... मैं उन्हें उनकी सेवा करते बड़े ध्यान से देख रही हूं... और यह अनुभव करती हूं... कि इनका यह महान सौभाग्य है... कि जिन्होंने अपने सेवा का स्थान मधुबन पाया... यहाँ पर ये हर कदमों में पदमों की कमाई जमा कर रहे हैं... हर एक आत्मा श्रीमत की लकीर के अंदर रहकर काम कर रही है... और मैं यह देखती हूं... कि यह आत्माएं ज्ञान रत्नों से सुसज्जित होकर अपने आस पास रहने वाले सभी आत्माओं को ध्यान रखने से सजाने की सेवा कर रही हैं... उनका यह कर्म मुझे नया संदेश दे रहा है... मैं उसी समय अपने आप से और बाबा से अंदर ही अंदर अपनी मन बुद्धि के तारों से यह वादा करती हूं... कि मैं ब्राह्मण आत्मा अपने आप को अन्य ब्राह्मण आत्माओं के सामने एक सैंपल आत्मा बनकर दिखाऊंगी...

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा अपने आप को फूल की कली के अंदर अनुभव करती हूं... और परमात्मा रुपी सूर्य की किरणों से धीरे-धीरे उन फूल की कलियों से बाहर निकलते हुए अनुभव करती हूं... जैसे-जैसे मैं बाहर आती हूं... वैसे ही मुझे उस फूल के सेवा भाव के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि... यह छोटी सी कली परमात्मा रूपी सूर्य की किरणों से नहाकर अपने आपको खिले हुए फूल की भांति बनाकर इस पूरे संसार में पवित्र किरणों रूपी खुशबू फैला रही है... तभी मुझे अपने सामने कुछ फरिश्तों सी घूमती हुई आत्माएं नजर आती है... और मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी आत्माओं से अपनी मन बुद्धि के तारों को जोड़ते हुए कहती हूँ... हे आत्माओं आप की सेवा इस फूल की भांति है... जो अपने परमपिता से योग लगाकर इस संसार में अन्य आत्माओं को भी इस रुद्र ज्ञान यज्ञ का ज्ञान दे रहे हैं...

➳ _ ➳  अब मैं बनकर फरिश्ता चली जा रही हूं अन्य आत्माओं की रूहानी सेवा करने... मैं इस पृथ्वी के ऊपर अपने बाबा के साथ बैठी हूं... और इस संसार की सभी आत्माओं को बाबा से पवित्र और शांति की किरणें लेकर देती जा रही हूं... और मैं अनुभव कर रही हूं कि... इस सृष्टि की सभी आत्माएं शांति की अवस्था का आनंद ले रही है... उनको इस स्थिति में देख मुझे गहन शांति का अनुभव होता है... और मुझे सभी ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी की सेवा के बारे में और गहराई से ज्ञान प्राप्त होता है... और अपने भाग्य का भी स्मरण होता है... मुझे अहसास होता है कि मेरी एक एक कण की सेवा भी मेरी पदमों की कमाई है... ऐसी भावना को आगे बढ़ाते हुए जुट जाती हूँ... अपनी बेहद की सेवा में...  और परमात्मा की छत्रछाया में...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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