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 17 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ *योगबल से कर्मेन्द्रियजीत बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *"हम ही ब्राह्मण सो देवता थे" - यह बुधी में रहा ?*

 

➢➢ सर्व प्राप्तियों को स्मृति में इमर्ज रख सदा संपन्न अवस्था का अनुभव किया ?

 

➢➢ मोहब्बत के झूले में बैठ मेहनत से मुक्त रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  किसी भी स्थान के वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने के लिए अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना चाहिए, इसका बार-बार अटेंशन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है। अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार वही अटेंशन रहेगा। तो यह साधना अर्थात् बार-बार अटेंशन की तपस्या।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बड़े-ते-बड़ा बिजनेसमैन हूँ"

 

  सभी बिजी रहते हो ना! जो बिजी होता है उसके पास माया नहीं आती। क्योंकि आपके पास उसे रिसीव करने का टाइम ही नहीं है। तो इतने बिजी रहते हो या कभी-कभी रिसीव कर लेते हो? ब्राह्मण बने ही क्यों? बिजी रहने के लिए ना। बापदादा हंसी में कहते हैं कि बिजी रहने वाले ही बड़े-ते-बड़े बिजनिसमैन हैं। सारे दिन में कितना बड़ा बिजनेस करते हो!

 

  जानते हो हिसाब? हिसाब रखना आता है? हर कदमों में पद्मों की कमाई है। कदम में पद्म - सारे कल्प में ऐसा बिजनेस कोई नहीं कर सकता। तो जितना जमा होता है उस जमा की खुशी होती है। सबसे ज्यादा खुशी किसको रहती है? नशे से कहो - 'हम नहीं खुश होंगे तो कौन होगा!' यह नशा भी हो किन्तु निर्मान। जैसे अच्छे वृक्ष की निशानी है-फल वाला होगा लेकिन झुका होगा। ऐसा नशा है? तो दोनों साथ-साथ हों।

 

  आप सबकी नैचुरल जीवन ही यह हो गई है - किसी को भी देखेंगे तो उसी स्मृति से देखेंगे कि यह एक ही परिवार की आत्माएं हैं। इसलिए नुकसान वाला नशा नहीं है। हर आत्मा के प्रति दिल का प्यार स्वत: ही इमर्ज होता है। कभी किसी के प्रति घृणा नहीं आ सकती। कभी कोई गाली देवे तो भी घृणा नहीं आ सकती, क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहां क्वेश्चनमार्क होगा वहां हलचल जरुर होगी। फुलस्टॉप लगाने वाले फुल पास होते हैं। फुलस्टॉप वही लगा सकते हैं। जिनके पास शक्तियों का फुलस्टॉक हो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बाप समान तीन स्टेज नम्बरवार हैं। एक है समान, दूसरी है समीप, तीसरी है सामने। तो कहाँ तक पहूँचे हैंसमान वाले की निशानी एक सेकण्ड में जहाँ और जैसे चाहें , जो चाहें वह कर सकते हैं व करते हैं।

  

✧   सेकण्ड स्टेज - एक सेकण्ड में बजाय कुछ घडियों में, स्वयं को सेट कर सकते हैं। तीसरी स्टेज - कुछ घण्टों व दिनों तक स्वयं को सेट कर सकते हैं।

 

✧  समान वाले, सदा बाप समान, स्वयं के महत्व को, स्वयं की सर्वशक्तियों के महत्व को और हर पुरुषार्थी की नम्बरवार स्टेज को, गुणदान, ज्ञानधन दान और स्वयं को समय का दान, इन सबके महत्व को जानने वाले और चलने वाले होते हैं। वे कर्मों को, संस्कार और स्वभाव को जानने वाले ज्ञान स्वरूप होते हैं। क्या ऐसे ज्ञान स्वरूप बने हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सदैव यह समझ कर चलो कि मैं विदेशी हूँ। पराये देश और पुराने शरीर में विश्व-कल्याण का पार्ट बजाने के लिए आया हूँ। तो पहला पाठ कमजोर होने के कारण सेन्सीबल बने हैं, लेकिन इसैन्स कम है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बाप को प्यार से याद करना"

 

_ ➳  विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...

 

  अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...

 

_ ➳  प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...

 

  मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:- मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी...

 

_ ➳  शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...

 

  देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...

 

_ ➳  मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन करते हुए कहती हूँ:- हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- योग बल से कर्मेन्द्रिय जीत बन संपूर्ण पवित्र बनना है

 

_ ➳  स्व स्थिति के आसन पर विराजमान होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे कोई राजा अपने सिहांसन पर विराजमान होकर, अपने अधिकारों का प्रयोग करता है और अपने राज्य की कारोबार को चलाने के लिए अपने मंत्रियों को आदेश देकर अपने शासन की बागडोर को अच्छी रीति सम्भलाता है ठीक उसी तरह मैं आत्मा भी अब स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हूँ और महसूस कर रही हूँ कि मैं आत्मा राजा हूँ और हर कर्मेंद्रिय मेरे ऑर्डर प्रमाण कार्य कर रही है।

 

_ ➳  अपने ऊँचे ते ऊँचे अधिकारीपन के आसन पर सेट होकर अब मैं अपनी सभी कर्मेन्द्रियों को समेट, मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर शांति में बैठने का अभ्यास करती हूँ और धीरे - धीरे महसूस करती हूँ जैसे मैं आत्मा अंतर्मुखता की एक ऐसी गुफा में जा रही हूँ जहाँ कोई आवाज, कोई शोर नही यहां तक कि संकल्पो की भी हलचल नही। अंतर्मुखता का यह अवस्था मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही है। अपने मस्तक से निकल रहे शांति के वायब्रेशन्स को मैं अपने चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ। शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स धीरे - धीरे चारों ओर फैलते जा रहें हैं और मेरे आस पास के वायुमंडल को शांत बना रहे हैं। मैं महसूस कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से निकल रहे शांति के वायब्रेशन्स से एक शक्तिशाली आभामण्डल मेरे चारों तरफ बन गया है जो बाहरी वातावरण के हर प्रभाव से मुझे मुक्त कर रहा है।

 

_ ➳  अंतर्मुखी बन, शांति की गहन अनुभूति करते हुए, शांति के सागर अपने प्यारे पिता को अब मैं याद करती हूँ और महसूस करती हूँ कि उन्हें याद करते ही मेरे मन बुद्धि का कनेक्शन शांति धाम में रहने वाले शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ जुड़ गया है और यह कनेक्शन मुझे अपनी और खींच रहा है। मन बुद्धि के विमान पर बैठ सेकण्ड में मैं साकार और सूक्ष्म लोक को पार करके अपने शांतिधाम घर मे पहुँच जाती हूँ। शांति के बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन इस शांति धाम घर में फैले हुए हैं। जो मुझे गहन शांति से भरपूर कर रहे हैं। गहन शांति की गहन अनुभूति करते हुए मैं आत्मा धीरे - धीरे शांति के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शांति दाता शिव बाबा के समीप बैठ अब मैं उनके सर्व गुणों, सर्व शक्तियों की एक - एक किरण को गहराई तक स्वयं में समाती जा रही हूँ। जैसे - जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं मैं स्वयं में असीम बल भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ। अपने बिंदु बाप की शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति करते हुए अपने प्यारे बाबा के साथ इतना सुन्दर मधुर मंगल मिलन मनाने का सुख मैं प्राप्त कर रही हूँ। मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप बाप के साथ मंगल मिलन मनाने का यह सुख मुझे परम आनन्द प्रदान कर रहा है। परमात्म शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  अपने बीज रूप शिव पिता के सानिध्य में बैठ, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं मास्टर बीज रूप आत्मा उनके समान अति तेजस्वी, सर्वशक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर, अब वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करके फिर अपने को देह से न्यारी मास्टर बीज रूप आत्मा समझ, कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठने का अभ्यास निरन्तर करते हुए, गहन शांति की अनुभूति मैं हर पल स्वयं भी कर रही हूँ और दूसरों को करा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं सर्व प्राप्तियों को स्मृति में इमर्ज रख सदा सम्पन्न रहने वाली सन्तुष्ट आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं मुहब्बत के झूले में बैठ कर मेहनत से आपेही छूटने वाली सहजयोगी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ किसी भी प्रकार के विकारों के वशीभूत हो अपनी उल्टी होशियारी नहीं दिखाओ। यह उल्टी होशियारी अब अल्पकाल के लिए अपने को खुश कर लेगी वा ऐसे साथी भी आपकी होशियारी के गीत गाते रहेंगे लेकिन कर्म की गति को भी स्मृति में रखो। उल्टी होशियारी उल्टा लटकायेगी। अभी अल्पकाल के लिए काम चलाने की होशियारी दिखायेंगे, इतना ही चलाने के बजाए चिल्लाना भी पड़ेगा। कई ऐसी होशियारी दिखाते हैं कि बापदादा दीदी दादी को भी चला लेंगे। यह सब तरीके आते हैं। अल्पकाल की उल्टी प्राप्ति के लिए मना भी लिया, चला भी लिया लेकिन पाया क्या और गंवाया क्या! दो तीन वर्ष नाम भी पा लिया लेकिन अनेक जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद से नाम गंवा लिया। तो पाना हुआ या गंवाना हुआ?

✺ "ड्रिल :- विकारों के वशीभूत हो उल्टी होशियारी नहीं दिखाना”

➳ _ ➳ अपने उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए मैं आत्मा ज्योति सुप्रीम ज्योतिषी के पास पहुँच जाती हूँ... अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने के उपाय जानने की इच्छा जाहिर करती हुई... मैं आत्मा सुप्रीम ज्योतिषी बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... सुप्रीम ज्योतिषी बाबा मेरे भाग्य की रेखाओं को देख रहे हैं...

➳ _ ➳ बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथों में अविनाशी भाग्य बनाने की कलम दे देते हैं और कहते हैं- बच्चे श्रेष्ठ कर्म कर जितना चाहे उतना अपना ऊँचा भाग्य बनाओ... पुरुषार्थ कर श्रेष्ठ कर्म की कलम से सर्व प्राप्तियों की भाग्य रेखायें खींच लो... वर्तमान में जैसे कर्म करोगे वैसे ही भविष्य प्रालब्ध प्राप्त करोगे...

➳ _ ➳ बाबा कर्मों की गुह्य गति का ज्ञान देते हुए मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख अमर भव का वरदान देते हैं... बाबा के हाथों से, मस्तक से सर्व गुण, शक्तियां निकलकर मुझ आत्मा में समा रही हैं... मैं आत्मा विकारों से मुक्त होकर सर्व खजानों से सम्पन्न हो रही हूँ... बाबा मेरे मस्तक में चमकती हुई ज्योति की रेखा खींचते हैं...

➳ _ ➳ बाबा मेरे नयनों में रूहानियत की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे मुख में श्रेष्ठ मीठी वाणी की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे होंठो में रूहानी मुस्कुराहट की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे हाथों में सर्व परमात्म-खजाने की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे कदमों में पद्मों की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे ह्रदय में बाप के लव की लवलीन रेखा खींचते हैं...

➳ _ ➳ मैं आत्मा अब वर्तमान में अपना तन, मन, धन, हर स्वांस को सफल कर रही हूँ... संगमयुग के समय के महत्व को जान हर घडी को सफल कर रही हूँ... बाबा से प्राप्त ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों को सफल कर रही हूँ... राज्य सत्ता और धर्म सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ... तीव्र पुरुषार्थ कर अनेक जन्मों की प्रालब्ध बना रही हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अल्पकाल की उल्टी प्राप्ति के लिए विकारों के वशीभूत होकर कोई भी उल्टा कर्म नहीं करती हूँ... मन, वचन, कर्म, संकल्पों से सदा श्रेष्ठ कर्म ही करती हूँ... और अनेक जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद पाने की अधिकारी बन गई हूँ... अविनाशी बाबा ने अविनाशी भाग्य की रेखायें खींचकर मुझ अविनाशी आत्मा को श्रेष्ठ भाग्यशाली बना दिया है...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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