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❍ 06 / 11 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपने विकर्म बाप को सुनाकर हलके हुए ?
➢➢ "याद के समय बुधी कहाँ कहना गयी ?" - यह चेक किया ?
➢➢ अच्छाई पर प्रभावित होने की बजाये उसे स्वयं में धारण किया ?
➢➢ साइलेंस की शक्ति इमर्ज कर सेवा की गति को फ़ास्ट किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अव्यक्त स्थिति में रहने के लिए बाप की श्रीमत है बच्चे, ‘‘सोचो कम, कर्तव्य अधिक करो।’’ सर्व उलझनों को समाप्त कर उज्जवल बनो। पुरानी बातों अथवा पुराने संस्कारों रुपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा दो। पुरानी बातें ऐसे भूल जाएं जैसे पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं निमित्त सेवाधारी हूँ"
〰✧ अपने को बेहद के निमित्त सेवाधारी समझते हो? बेहद के सेवाधारी अर्थात् किसी भी मैं-पन के व मेरे पन की हद में आने वाले नहीं। बेहद में न मैं है, न मेरा है।
〰✧ सब बाप का है, मैं भी बाप का तो सेवा भी बाप की। इसको कहते हैं -बेहद सेवा। ऐसे बेहद के सेवाधारी हो याद हद में आ जाते हो?
〰✧ बेहद के सेवाधारी बेहद का राज्य प्राhत करते हैं। सदा बेहद बाप, बेहद सेवा और बेहद राज्य-भाग्य - यही स्मृति में रखो तो बेहद की खुशी रहेगी। हद में खुशी गायब हो जाती है, बेहद में सदा खुशी रहेगी।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ सभी अपने को सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत अनुभव करते हो? जितना-जितना सर्व शक्तियों को अपने ऑर्डर पर रखेंगे और समय पर कार्य में लायेंगे तो सहज मायाजीत हो जायेंगे।
〰✧ अगर सर्व शक्तियाँ अपने कन्ट्रोल में नहीं हैं तो कहाँ न कहाँ हार खानी पडेगी। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात कन्ट्रोलिंग पॉवर हो। जिस समय, जिस शक्ति को आह्वान करें वो हाजिर हो जाए, सहयोगी बने।
〰✧ ऐसे ऑर्डर में हैं? सर्व शक्तियाँ ऑर्डर में हैं या आगे-पीछे होती हैं? ऑर्डर करो अभी और आये घण्टे के बाद तो उसको मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ हर दिन का अलग-अलग अपने प्रति स्लोगन भी सामने रख सकते हो। जैसे यह स्लोगन है कि 'जो कर्म मैं करूंगा मुझे देख और करेंगे'। इस रीति दूसरे दिन फिर दूसरा स्लोगन सामने रखो। जैसे बापदादा ने सुनाया कि 'सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’। यह भी सुनाया था कि ‘मिटेंगे लेकिन हटेंगे नहीं'। इसी प्रकार हर रोज़ का कोई न कोई स्लोगन सामने रखो और उस स्लोगन को प्रेक्टिकल में लाओ। फिर देखो अव्यक्त स्थिति कितनी जल्दी हो जाती है!
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- बाप की स्मृति में रहना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अमृतवेले की अमृत घड़ियों में एकांत में बैठ स्वमानों का
अभ्यास करती हूँ... मैं चमकती हुई एक सितारा इस देह की मालिक हूँ... अविनाशी
आत्मा हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... स्वमान की सीट पर सेट होकर मैं आत्मा अपने
पिता का आह्वान करती हूँ... मेरे पिता तुरंत मेरे सामने आ जाते हैं और अपना
वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख, वरदानों की बरसात करते हैं... प्यारे बाबा के
स्पर्श से मैं आत्मा इस देह को भी भूल एक मीठे बाबा के प्यार में खो जाती हूँ..
❉ प्यारे बाबा मुझे अपने पलकों के झूले में झुलाते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे
बच्चे... ईश्वरीय गोद में खिले फूल हो... और अब समझ आ गई है तो सांसो को यादो
में खोकर पूरा फायदा उठाओ... जिस अमीरी से प्यारा बाबा भरने आया है... उसे
सांसो के रहते अपनी यादो में भर लो... अपने अमीर बनने के लक्ष्य को यादो से पूरा
करो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा अविनाशी कमाई से मालामाल होते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे
बाबा... मै आत्मा अब सत्य स्वरूप को जान गयी हूँ... और सतयुगी अमीरी को बाँहों
में भरने को आतुर हूँ... मीठी यादो में खो गयी हूँ... और अपनी कमाई को प्रतिपल
बढ़ाती ही जा रही हूँ...”
❉ मजेदार ज्ञान से वंडरफुल कमाई कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे
फूल बच्चे... हर पल हर घड़ी बाबा के प्यार में डूब जाओ... कमाई का नशा कभी न
उतरे ऐसी खुमारी से भर जाओ... भगवान खजाने लुटाने आया है तो उसे यादो से लूट कर
मालामाल हो जाओ... और सतयुगी सुखो के फूलो में विचरण कर अमीरी को जी लो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशियों के तराने गुनगुनाते हुए बाबा से कहती हूँ:- “मेरे
प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ कि प्यारा बाबा मुझे अमीर
बनाने परमधाम छोड़ धरती पर डेरा डाल दिया... मेरे लिए यादो की मीठी सौगात ले आया...
बाँहों में अथाह खजाने ले बलिहारी हो गया... ऐसे मीठे प्यारे बाबा को मै कितना
न याद करूँ...”
❉ अपने सर्व खजानों की मालिक बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे
मीठे बच्चे... विश्व पिता के बच्चे बने हो तो पूरे विश्व को बाँहों में समाओ...
खजानो की खानो पर खड़े हो तो यूँ खाली न रहो... हर पल मीठी यादो में खोकर महान
भाग्यशाली बन जाओ... अपने लक्ष्य पर दृढता से नजर रखकर अपनी कमाई कर लो...
भगवान से सारे खजाने ले लो और सदा के अमीर बन जाओ...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान खजाने के कलश से 21 जन्मों के लिए कमाई करते हुए कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में हर साँस को पिरोकर कमाई
कर अमीर हो गई हूँ... धरती आसमाँ सब अपने नाम कर रही हूँ... ज्ञानपरी बन उड़ रही
हूँ... और मीठे बाबा से सारे खजाने लेकर मालामाल हो रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अब कोई भी पाप का काम नहीं करना है"
➳ _ ➳ दुनिया मे हो रहे पापाचार, भ्रष्टाचार का दृश्य मैं देख रही हूँ और विचार
करती हूं कि यही दुनिया कभी स्वर्ग हुआ करती थी। एक दूसरे के प्रति सभी के
हृदय आपसी स्नेह और प्यार से लबालब थे किंतु आज वो स्नेह, वो प्यार कहाँ चला गया!
अकेले बैठे मैं स्वयं से ही ये सवाल जवाब कर रही हूं।
➳ _ ➳ तभी मैं एक दृश्य देखती हूँ जैसे कोई राजदरबार लगी है। सामने सिहांसन पर
कोई राजा बैठा है और उसके सामने उसके मंत्री बैठे हैं जिनके साथ वह कुछ विचार
विमर्श कर रहा है। मंत्री गलत सलाह दे कर राजा को गलत कामों के लिए उकसा रहें
है। राजा में इतनी समर्थता नही कि वो समझ सके क्या सही है और क्या गलत। उनके
बहकावे में आ कर वो गलत कर्म कर रहा है उसे गलत कर्म करते देख उसके राज्य के सभी
लोग भी गलत कर्म कर रहें हैं। मैं सोचती हूँ कि जिस देश का राजा ही भ्रष्ट है
तो उस देश में स्वत: ही भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देखते देखते एकाएक स्मृति आती है कि मैं आत्मा भी तो राजा
हूँ किन्तु कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों के बहकावे में आ कर जाने अनजाने में
मुझ से कितने विकर्म हुए जिनका बोझ मुझ आत्मा पर चढ़ता चला गया। 63 जन्मो के
विकर्मों का बोझ अब मुझ आत्मा को उतारना है और उसे उतारने के लिए मेरे पास केवल
यही एक जन्म है। मन में यह ख़्याल आते ही मैं आत्मा 63 जन्मो के विकर्मों की कट
को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ शिव बाबा
के पास।
➳ _ ➳ साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब
मैं स्वयं को अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। बुद्धि का योग उनसे
लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये
शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी
ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता
जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और
तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं। मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं।
सच्चा सोना बनती जा रही हूं। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का, पापमुक्त अनुभव कर रही
हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक
पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म
कर रही हूं। राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें
उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही
है। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है।
कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण होने और बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से अब
मैं आत्मा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने लगी हूँ।
➳ _ ➳ व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से अब मैं मुक्त हो गई हूं इसलिये परमात्म पालना
के झूले में झूलती रहती हूं। परमात्म शक्तियों से भरपूर होने के कारण शक्तिशाली
बन अब मैं सदा उड़ती कला में उड़ती रहती हूं। परम आनन्द से सदा भरपूर रहने के
कारण मास्टर दाता बन सर्व आत्माओं को देने की ही भावना अब मेरे मन मे निरन्तर
रहती है इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक
एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही
विकर्माजीत बनती जा रही हूं। तीन स्मृतियों का तिलक अब मेरे मस्तक पर सदैव लगा
रहता है जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि अब मुझे कर्मेन्द्रियों से ऐसा
कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं अच्छाई पर प्रभावित होने के बजाए उसे स्वयं में धारण करने वाली परमात्म स्नेही आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं साइलेंस की शक्ति इमर्ज करके सेवा की गति फास्ट करने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. एक दिन में कितना भी बड़े ते बड़ा मल्टी-मल्टी मिल्युनर हो लेकिन आप जैसा रिचेस्ट हो नहीं सकता। इतना रिचेस्ट बनने का साधन क्या है? बहुत छोटा सा साधन है। लोग रिचेस्ट बनने के लिए कितनी मेहनत करते हैं और आप कितना सहज मालामाल बनते जाते हो। जानते हो ना साधन! सिर्फ छोटी सी बिन्दी लगानी है बस। बिन्दी लगाई, कमाई हुई। आत्मा भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा फुलस्टाप लगाना, वह भी बिन्दी है। तो बिन्दी आत्मा को याद किया, कमाई बढ़ गई। वैसे लौकिक में भी देखो, बिन्दी से ही संख्या बढ़ती है। एक के आगे बिन्दी लगाओ तो क्या हो जाता? 10, दो बिन्दी लगाओ, तीन बिन्दी लगाओ, चार बिन्दी लगाओ, बढ़ता जाता है। तो आपका साधन कितना सहज है! 'मैं आत्मा हूँ' - यह स्मृति की बिन्दी लगाना अर्थात् खजाना जमा होना। फिर 'बाप' बिन्दी लगाओ और खजाना जमा। कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में ड्रामा का फुलस्टाप लगाओ, बीती को फुलस्टाप लगाया और खजाना बढ़ जाता। तो बताओ सारे दिन में कितने बार बिन्दी लगाते हो? और बिन्दी लगाना कितना सहज है! मुश्किल है क्या? बिन्दी खिसक जाती है क्या?बापदादा ने कमाई का साधन सिर्फ यही सिखाया है कि बिन्दी लगाते जाओ,
➳ _ ➳ 2. सबसे सहज बिन्दी लगाना है। कोई इस आंखों से ब्लाइन्ड भी हो, वह भी अगर कागज पर पेन्सिल रखेगा तो बिन्दी लग जाती है और आप तो त्रिनेत्री हो, इसलिए इन तीन बिन्दियों को सदा यूज करो। क्वेश्चन मार्क कितना टेढ़ा है, लिखकर देखो, टेढ़ा है ना?और बिन्दी कितनी सहज है। इसलिए बापदादा भिन्न-भिन्न रूप से बच्चों को समान बनाने की विधि सुनाते रहते हैं। विधि है ही बिन्दी। और कोई विधि नहीं है। अगर विदेही बनते हो तो भी विधि है - बिन्दी बनना। अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है।
✺ ड्रिल :- "बिन्दी लगाकर सहज खजाने जमा करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा मधुबन की मधुर स्मृतियों को स्मृति में रख पहुँच जाती हूँ पांडव भवन में... जहाँ का वातावरण एकदम, शांत है... इस शांत वातावरण में मैं आत्मा कुछ देर के लिए बाबा की कुटिया में चली जाती हूँ... वहाँ बैठ मैं आत्मा मीठी-मीठी रूहानी खुशबू का अनुभव करती हूँ... फिर, कुछ देर के लिए मैं आत्मा बाबा के कमरे में चली जाती हूँ... बाबा के नैनो से निकलती हुई शांति की दिव्य किरणों में मैं आत्मा समा जाती हूँ... अब मैं आत्मा धीरे-धीरे... आ जाती हूँ हिस्ट्री हॉल में, जहाँ हर चित्र मुझ आत्मा से कुछ कह रहा है... कैसे मुझ आत्मा ने पूरे 84 जन्म लिए... मैं आत्मा पूरे चक्र को अपने सामने फिरता हुआ अनुभव करती हूँ... और... अब, अंत में मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ शांति स्तम्भ... जहाँ, सफेद प्रकाश के बीच से प्यारे बापदादा मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा को दिखाई दे रहे है...
➳ _ ➳ बापदादा चमकीली सफेद रोशनी से निकलते हुए मुझ आत्मा के सामने आ जाते है... बाबा के हाथो में जगमगाता हुआ एक गोला है... जो धीरे धीरे घूम रहा...है, बाबा के मस्तक से वा नैनो से निकलती शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मैं आत्मा इन किरणों में समा एकदम हल्का अनुभव करती हूँ और... प्यारे बाबा से कहती हूँ बाबा- अब घर ले चलो... इस आवाज़ की दुनिया से पार... ले चलो... बापदादा बोले:- बच्चे, मैं अपने साथ ले जाने के लिए ही आया हूँ... साथ जाने के लिए एवररेडी बनो... बिंदु रूप में स्थित हो जाओ...
➳ _ ➳ बापदादा के हाथो में जो गोला है, उस गोले पर मुझ आत्मा के कई जन्मों के हिसाब-किताब दिखाई दे रहे है... मुझ आत्मा ने आत्म विस्मृति के कारण बहुत सी आत्माओ के साथ कई जन्मों में भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते हुए भिन्न-भिन्न रूप में अपना कर्मो का हिसाब-किताब बना लिया है, जिसे अब मुझ आत्मा को इस अंतिम जन्म में चुक्तु कर अपने घर वापिस जा, नयी पावन दुनिया में आना है... मैं आत्मा बाबा को निहारते हुए बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा की याद की लगन की अग्नि में मुझ आत्मा के सारे व्यर्थ संकल्प, सारी व्यर्थ बाते, सारे पुराने हिसाब-किताब जलकर भस्म हो रहे है... इस योग अग्नि में मुझ आत्मा के कई जन्मों के विकर्म दग्ध हो रहे हैं... मैं आत्मा सभी प्रकार के कर्मभोगों से मुक्त होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ अब सिर्फ बची मैं बीजरूप आत्मा जो कई जन्मों के कर्म-बंधनों के नीचे दबी पड़ी थी... मैं बीज स्वरुप, बिंदु रूप आत्मा हीरे समान चमक रही हूँ... मैं जगमगाती आत्मा कितना हल्का महसूस कर रही हूँ... मैं दिव्य सितारा, दिव्य ज्योति, दिव्य मणि, दिव्य प्रकाश का पुंज हूँ... मुझ आत्मा का वास्तविक स्वरुप कितना ही सुन्दर है... अब मैं आत्मा निराकार ज्योति बिंदु बाप को जान ड्रामा के हर सीन... को, हर परिस्थिति... को, बिंदी लगा हर दिन, हर समय निराकार ज्योति बिंदु परमात्मा शिव को याद करती क्या..., क्यों..., कैसे... सभी प्रकार के क्वेश्चन्स से न्यारी हो अपने पुरुषार्थी जीवन में एक बाप की याद में रह हर बात में बिंदी लगा... अविनाशी कमाई जमा करते हुए निरंतर आगे बढ़ती जा रही हूँ... यह अविनाशी कमाई मुझ आत्मा के साथ ही जायेगी...
➳ _ ➳ मैं आत्मा तीन बिंदी का तिलक लगा बिंदु बाप के साथ उड़ चली अपने मूलवतन... अपने असली घर में, अपने असली पिता के सामने मैं आत्मा दिव्य, अलौकिक अनुभूतियाँ कर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने निज गुणों को धारण कर अपने निज स्वरुप में स्थित हो इस देह में प्रवेश कर इस धरा पर विदेही बन अपना एक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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