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 16 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ ज्ञान से अपनी दृष्टि का परिवर्तन किया ?

 

➢➢ "बेहद का बाप ही हमें पड़ाते हैं" - ऐसा पक्का निश्चय रहा ?

 

➢➢ पवित्रता के फाउंडेशन द्वारा सदा श्रेष्ठ कर्म किये ?

 

➢➢ "वाह रे मैं" - सदा इसी अलोकिक नशे में रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  यह विनाश सर्व-आत्माओं की सर्व-कामनाएं पूर्ण करने का निमित्त साधन है। यह साधन आपकी साधना द्वारा पूरा होगा। ऐसा संकल्प इमर्ज होना चाहिए कि अब सर्व-आत्माओं का कल्याण हो। सर्व तड़पती हुई, दु:खी और अशान्त आत्माएं वरदाता बाप और बच्चों द्वारा वरदान प्राप्त कर सदा शान्त और सुखी बन जाए और अब घर चलें।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं अमूल्य रत्न हूँ"

 

  सभी अमूल्य रत्न हो। कितने अमूल्य हो? इस दुनिया में ऐसा शब्द नहीं जो आपको कहें! बहुत श्रेष्ठ रत्न हो, इसलिए द्वापर से जब आपके मंदिर बनते हैं तो उसमे रत्न जड़ते हैं, जड़-चित्रों को भी रत्नों से सजाते हैं। तो जब जड़-चित्र इतने अमूल्य बने तो चैतन्य में कितने श्रेष्ठ हो, अमूल्य हो। और अपने राज्य में जब होंगे तो यह रत्न क्या होंगे!

 

  जैसे यहाँ पत्थर सजाते हो वैसे वहां रत्न-जिड़त महल होंगे। याद है अपने राज्य में क्या-क्या किया था? अनगिनत बार की बात याद नहीं है! अपने वर्तमान समय को ही देखो तो यह जीवन कौड़ी से क्या बन गई है? हीरे तुल्य जीवन है ना! यह हीरे-रत्न आपके लिए अनगिनत हो जायेंगे।

 

  सदा अपने वर्तमान श्रेष्ठ जीवन के आधार पर भविष्य सोचो कि कर्म का फल क्या मिलेगा, कितना शक्तिशाली कर्म रुपी बीज डाल रहे हो। तो फल भी अच्छा मिलेगा ना! इससे अच्छा फल और किसी को मिल नहीं सकता। यह नशा रहता है ना!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧   क्या अपने को एक सेकण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो? जैसे वाणी में सहज ही आते हो, क्या वैसे वाणी से परे, इतना ही सहज हो ?

 

✧  कैसे भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तुफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बडी बात नहीं है, लेकिन अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञान स्वरूप, शक्तिस्वरूप, याद स्वरूप और सर्वगुण स्वरूप कहा जाता है।

 

भिन्न - भिन्न प्रकार के कारण होते हुए स्वयं निवारण रूप बने, इसको कहा जाता है पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष प्रमाण - रूप। ऐसे महावीर बने हो या अब तक वीर बने हो? किस स्टेज तक पहूँचे हो? महावीर की स्टेज सामने दिखाई देती है या समीप दिखाई देती है अथवा बाप समान स्वयं को दिखाई देते हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सेन्स के आधार पर सेवाधारी तो बन गए हैं, लेकिन रूहानी सेवाधारी बनें, - ऐसे कम हैं। कारण? जैसे बाप निराकार सो साकार बन सेवा का पार्ट बजाते हैं, वैसे बच्चों को इस 'मंत्र का यंत्र' भूल जाता है कि हम भी निराकार सो साकार रूप में पार्ट बजा रहे है। 'निराकार सो साकार' - यह दोनों स्मृति साथ-साथ नहीं रहती हैं। या तो निराकार बन जाते और या साकारी हो जाते हैं। सदा यह मंत्र याद रहे कि 'निराकार सो साकार' - यह पार्ट बजा रहे हैं। यह साकार सृष्टि, साकार शरीर स्टेज है। स्टेज और पार्टधारी दोनों अलग-अलग होते हैं। पार्टधारी स्वयं को कब स्टेज नहीं समझेंगे। स्टेज आधार है, पार्टधारी आधार मूर्त हैं, मालिक है। इस शरीर को स्टेज समझने से स्वयं को पार्टधारी स्वत: ही अनुभव करेंगे। तो कारण क्या हुआ? स्वयं को न्यारा करना नहीं आता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- पढ़ाने वाला स्वयं शांति का सागर बाप है यह निश्चय रखना"

 

  _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ बाबा की यादों में खोई हुई हूँ... प्यारे बाबा इतने दूर से आकर मुझे रोज पढ़ाते हैं... ज्ञान-योग से श्रृंगार करते हैं... हाथ पकडकर मुझे सबकुछ सिखाते हैं... रोज मीठी-मीठी समझानी देकर आगे बढ़ा रहे हैं... वरदानों, खजानों से मालामाल कर रहे हैं... निराकारी बाबा मुझे पढ़ाकर आप समान निर्विकारी बना रहे हैं... मनुष्य से देवता बना रहे हैं... मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य का चिन्तन करती हुई पहुँच जाती हूँ मीठे बाबा के पास...

 

   विजय माला में आने के लिए निश्चयबुद्धि बनने की शिक्षा देते हुए निराकार बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता इस धरा पर उतरकर, हथेली पर खजाने लिए बच्चों पर लुटाने आये है... टीचर रूप में अमूल्य ज्ञान की धारा लिये, बच्चों को काँटों से फूल सा पुनः खिलाने आये है... सदा इस निश्चय से भरकर यादो में खोये रहो... और विजयमाला मे पिरोकर विश्व के मालिक सा सज जाओ..."

 

  _ ➳  मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन निराकार रूहानी बाबा से पढकर ज्ञान रत्नों को धारण करते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ईश्वर पिता से पढ़ने वाली खुबसूरत भाग्य की धनी हूँ... मेरी तकदीर जगाने विश्व पिता धरा पर उतर आया है... मै आत्मा निराकार पिता से मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा पाने वाली महान तकदीर पा रही हूँ..."

 

   सत्य ज्ञान देकर अपने सारे खजाने मेरे नाम विल करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा निश्चयबुद्धि बनकर, ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर, देवताई सुखो से भर जाओ... निराकार बाबा ज्ञान रत्नों से सजाकर दिव्यता और शक्तियो का पुंज बना रहा है... सदा इस खुमारी में डूबे रहो... और साथी बनकर घर चलने की तैयारी में जुट जाओ..."

 

  _ ➳  मैं आत्मा रूहानियत की झलक से भरपूर होकर खुशियों के आसमान में उडती हुई कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपका मेरे जीवन में आना... और जीवन सुखो की जन्नत बन जाना, न जाने कौनसे पुण्य ने यह खुबसूरत दिन मन की आँखों को दिखलाया है... आपने मुझ पत्थरबुद्धि आत्मा को ज्ञान परी सा सजा दिया है... प्यारे बाबा मै आत्मा रोम रोम से आपकी शुक्रगुजार हूँ..."

 

   अपने यादों के साये के तले मेरे दामन में खुशियों के फूल बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बनकर विजयमाला में आने का पुरुषार्थ करो... देह की दुनिया से परे अपने अविनाशी स्वरूप में खोकर ज्ञान रत्नों से मन बुद्धि को सजाओ... और देवताई सौंदर्य से सज धज कर... सुनहरे सुखो में जीवन मुक्त अवस्था को पाओ... ऐसे ईश्वरीय दीवाने बन मुस्कराओ..."

 

  _ ➳  मैं आत्मा सत्य ज्ञान की किरणों में मुस्कुराते हुए बाबा के प्रेम सागर में डूबकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में असीम खुशियो में नाच रही हूँ... जीवन कितना खुबसूरत प्यारा और ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न हो गया है... मै आत्मा निराकार पिता को पाकर, झूठ के दायरे से निकल सत्य की रौशनी से चमक उठी हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  आत्म - अभिमानी बन विकारी खयालात समाप्त करने हैं"

 

_ ➳  हंस कंकड़ पत्थर में से भी मोती चुग लेता है और कमल का पुष्प कीचड़ में उगकर भी कीचड़ की गंदगी से एकदम मुक्त, न्यारा और प्यारा रहता है। ऐसे होली हंस और कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा ही मुझे बनना है मन ही मन अपने आप से बातें करती मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि विकारी दुनिया में रहते हुए भी विकारो के प्रभाव से स्वयं को बचाते हुए सम्पूर्ण निर्विकारी बनने का मेरे प्यारे प्रभु ने जो लक्ष्य मुझे दिया है, उस लक्ष्य को पाने के लिए मुझे स्वयं पर पूरा अटेंशन देना है। और इसके लिए जरूरी है देह में रहते हुए, अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप की स्मृति में रह, सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का करना।

 

_ ➳  यह विचार करते - करते ही अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप की स्मृति में मैं जैसे खो जाती हूँ और स्वयं को देह से एकदम न्यारा अनुभव करने लगती हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ जैसे यह देह अलग है और इस देह को चलाने वाली मैं चैतन्य शक्ति इस देह से बिल्कुल अलग हूँ। अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप पर अब मेरा मन और बुद्धि पूरी तरह एकाग्र हैं। एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा जिसमे से निकल रहा प्रकाश मन को बहुत ही सुखद एहसास करा रहा है, ऐसा अपना स्वरूप देख कर मैं आनन्दित हो रही हूँ।

 

_ ➳  मुझ आत्मा सितारे से निकल रहे प्रकाश में मेरे अंदर निहित गुणों और शक्तियों का समावेश है जिन्हें मैं प्रकाश की रंग बिरंगी किरणो के रूप में स्वयं से निकलता हुआ देख रही हूँ और अपने इन सातों गुणों सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति का अनुभव करके तृप्त हो रही हूँ। अपने इस सत्य स्वरूप को देखने और अनुभव करने का सुखद अनुभव मुझे सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव पिता की याद दिला रहा है जिन्होंने आकर ना केवल मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप से परिचित करवाया बल्कि मुझे मेरे उस निराकारी घर का भी पता बताया जहाँ अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा अपने पिता के साथ रहती थी।

 

_ ➳  अपने उसी स्वीट साइलेन्स होम को याद करते ही, अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनसे मिलन मनाने का मधुर अहसास अब मुझे स्वत: ही मेरे उस परमधाम घर की ओर खींच रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्यारे पिता ने मुझे अपने पास बुलाने के लिए अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बाहें फैला ली है और अपनी बाहों में समाकर मुझे अपने घर ले जा रहें हैं। देह को छोड़ अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलती, असीम आनन्द का अनुभव करती मैं उनके साथ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। चाँद, सितारों से सजे नीलगगन को पार कर, सफेद प्रकाश से प्रकाशित अव्यक्त वतन से होती हुई चैतन्य सितारों की दुनिया अपने परमधाम घर में मैं पहुँचती हूँ।

 

_ ➳  लाल सुनहरी प्रकाश की यह दुनिया मूल वतन जहाँ चारों ओर चमकती हुई मणियों का आगार है, अपने इस वतन में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन सुकून का अनुभव कर रही हूँ। जैसे एक बच्चा अपनी माँ की गोद में सुख का अनुभव करता है ऐसे अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे मैं स्वयं को महसूस करते हुए अतीन्द्रीय सुख का अनुभव कर रही हूँ। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी शीतल किरणो के रूप में मेरे प्यारे पिता का अगाध प्रेम मुझ पर बरस रहा है। अपनी पवित्रता की किरणें मुझ पर प्रवाहित करके बाबा मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रहें हैं ताकि फिर से साकार वतन में लौट कर पार्ट बजाते हुए मैं हर प्रकार की अपवित्रता के प्रभाव से स्वयं को बचा सकूँ।

 

_ ➳  पवित्रता का बल स्वयं में भरकर औऱ अपने प्यारे पिता के प्यार की शक्ति अपने साथ लेकर अब मैं परमधाम से वापिस फिर से उसी अव्यक्त वतन से होती हुई, चांद, सितारों की दुनिया से नीचे साकारी दुनिया में आ जाती हूँ। पवित्रता का और मेरे प्यारे पिता के निस्वार्थ प्यार का बल अब मुझ होली हंस बनाकर, कमल पुष्प समान न्यारा रहने की शक्ति दे रहा है। कमल आसन पर सदा विराजमान रहते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को उनके अनादि निराकारी स्वरूप में ही देखती हूँ इसलिए विकारी दुनिया में रहते हुए भी विकारो के प्रभाव से अब मैं सहज ही मुक्त रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   मैं पवित्रता के फाउन्डेशन द्वारा सदा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पूज्य आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   मैं सदा "वाह रे मैं" के अलौकिक नशे में रहकर मन और तन से नेचुरल खुशी की डांस करने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ परमात्म-सन्तान, और कोई गुण न हो यह हो नहीं सकता। उसी गुण के आधार से ही ब्राह्मण जन्म में जी रहे हैं अर्थात् जिन्दा हैं। ड्रामा अनुसार उसी गुण ने ही ऊँचे ते ऊँचे बाप का बच्चा बनाया है। उसी गुण के कारण ही प्रभु पसन्द बने हैं। इसलिए गुणों की माला बना रहे थे। ऐसे ही हर ब्राह्मण आत्मा के गुण को देखने से श्रेष्ठ आत्मा का भाव सहज और स्वत: ही होगा क्योंकि गुण का आधार है ही - श्रेष्ठ आत्मा। कई आत्मायें गुण को जानते हुए भी जन्म-जन्म की गन्दगी को देखने के अभ्यासी होने कारण गुण को न देख अवगुण ही देखती हैं। लेकिन अवगुण को देखना, अवगुण को धारण करना ऐसी ही भूल है जैसे स्थूल में अशुद्ध भोजन पान करना। स्थूल भोजन में अगर कोई अशुद्ध भोजन स्वीकार करता है तो भूल महसूस करते हो ना! लिखते हो ना कि खान-पान की धारणा में कमजोर हूँ। तो भूल समझते हो ना! ऐसे अगर किसी का अवगुण अथवा कमज़ोरी स्वयं में धारण करते हो तो समझो अशुद्ध भोजन खाने वाले हो। सच्चे वैष्णव नहीं, विष्णु वंशी नहीं। लेकिन राम सेना हो जायेंगे। इसलिए सदा गुण ग्रहण करने वाले - ‘गुण मूर्त' बनो।

✺ "ड्रिल :- सच्चे वैष्णव अर्थात सदा गुण ग्राहक बनकर रहना”

➳ _ ➳ कोहिनूर समान चमकती हुई मैं नूर भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ... मुझ नूर से चमकती हुई किरणें निकलकर चारों ओर फैल रही हैं... इस शरीर से बाहर निकलकर चमकते हुए प्रकाश के कार्ब में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... श्वेत प्रकाश की दुनिया में... जहाँ बापदादा गुणों की माला बना रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के पास जाकर बैठ जाती हूँ...

➳ _ ➳ मैं बाबा से पूछती हूँ प्यारे बाबा- इस माला में मेरे भी गुण हैं क्या... बाबा बोले- हाँ मीठी बच्ची, तुम बाबा द्वारा चुनी गई कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हो... बाबा ने गुणों के आधार पर ही तुमको चुना है... हाँ बाबा कब से मैं आपको ढूंढ रही थी... पर आपने मुझे ढूंढ लिया... कितने समय के बाद बाबा आप मिले हो कहकर मैं आत्मा बापदादा के गले लग जाती हूँ...

➳ _ ➳ मेरी सिकीलधी बच्ची कहते हुए बापदादा मुझे अपनी गोदी में बिठाकर... मुझ पर अनंत प्यार बरसा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... मुझ आत्मा का कितना ऊंचा भाग्य है जो ऊंचे से ऊंचे परमात्मा के साथ विशेष पार्ट है... अब मैं सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा गुणों के सागर की सन्तान हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप बन रही हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मुझे दिव्य गुणों की माला पहनाते हैं...मुझ आत्मा के सभी निजी गुण जाग्रत हो रहे हैं... मैं आत्मा हर गुण का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... जितना एक-एक गुण की अनुभूति में समाती जा रही हूँ उतना प्रैक्टिकल स्वरूप बन रही हूँ... अनुभवी मूर्त... गुण मूर्त बन रही हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं नूर दिव्य गुणों से भरपूर होकर बाबा की नूरे रतन बन गई हूँ... प्रभु पसन्द बन गई हूँ... अब मैं सदा सबके गुणों, विशेषताओं को ही देख रही हूँ और स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ... किसी के भी कमज़ोरी को स्वयं में धारण नहीं करती हूँ... कभी भी अवगुण रूपी अशुद्ध भोजन नहीं खाती हूँ... अब मैं आत्मा सदा गुणों रूपी शुद्ध, पवित्र भोजन खाने वाली सच्ची वैष्णव, विष्णु वंशी होने का अनुभव कर रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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