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❍ 29 / 12 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ सर्व प्रकार के सूक्षम बन्धनों से मुक्त अवस्था का अनुभव किया ?
➢➢ साकार साधनों को सहारा तो नहीं बनाया ?
➢➢ एकाग्रता की शक्ति के आधार पर परखने की शक्ति को बढाया ?
➢➢ किसी भी बात को छिपा उसे बड़ा तो नहीं किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे बापदादा अशरीरी से शरीर में आते हैं वैसे ही बच्चों को भी अशरीरी हो करके शरीर में आना है। अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर फिर व्यक्त में आना है। जैसे इस शरीर को छोड़ना और शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। ऐसे ही जब चाहो तब शरीर का भान छोड़कर अशरीरी बन जाओ और जब चाहो तब शरीर का आधार लेकर कर्म करो। बिल्कुल ऐसे ही अनुभव हो जैसे यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली मैं आत्मा अलग हूँ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं परमात्मा बाप की स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ"
〰✧ सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर बाप के साथ स्नेही और सहयोगी आत्मायें हैं, ऐसा समझकर चलते हो? हम आत्माओंको इतना श्रेष्ठ भाग्य मिला है, यह आक्यूपेशन सदा याद रहता है? जैसे लौकिक आक्यूपेशन वाली आत्मा के साथ भी कार्य करने वाले को कितना ऊंचा समझते हैं लेकिन आपका पार्ट, आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है। तो कितना श्रेष्ठ पार्ट हो गया। ऐसे समझते हो?
〰✧ पहले तो सिर्फ पुकारते थे कि थोड़ी घड़ी के लिए दर्शन मिल जाए। यही इच्छा रखते थे ना। अधिकारी बनने की इच्छा वा संकल्प तो सोच भी नहीं सकते थे, असम्भव समझते थे। लेकिन अभी जो असम्भव बात थी वह सम्भव और साकार हो गई। तो यह स्मृति रहती है? सदा रहती है वा कभी-कभी। अगर कभी-कभी रहती है तो प्राप्ति क्या करेंगे?
〰✧ कभी-कभी राज्य मिलेगा। कभी राजा बनेंगे कभी प्रजा बनेंगे। जो सदा के राजयोगी हैं वही सदा के राजे हैं। अधिकार तो अविनाशी और सदाकाल का है। जितना समय बाप ने गैरन्टी दी है, आधाकल्प उसमें सदाकाल राज्य पद की प्राप्ति कर सकते हो। लेकिन राजयोगी नहीं तो राज्य भी नहीं। जब चांस सदा का है तो थोड़े समय का क्यों लेते।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ अभी एक सेकण्ड सभी पॉवरफुल संकल्प से, दृढता से पुराने वस्तुओं को, पुराने वर्ष को, पुरानी बातों को सदा के लिए विदाई दो। एक सेकण्ड सभी - ‘दृढ़ता सफलता है' - इस दृढ़ संकल्प में स्थित हो जाओ।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप साकार रूप की पालना दे रहे हैं, साकार रूप की पालना का अनुभव करा रहे हैं, वैसे आप व्यक्त में रहते अव्यक्त फ़रिश्ते रूप का अनुभव करो। सभी को यह अनुभव हो कि यह सब फ़रिश्ते कौन हैं और कहाँ से आये हुए हैं! जैसे अभी चारों ओर यह आवाज़ फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं! वैसे चारों ओर अब फ़रिश्ते रूप का साक्षात्कार हो। इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप। सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी। जिसको देख न चाहते भी आँख खुल जाए। जैसे अन्धकार में कोई बहुत तेज़ लाइट सामने आ जाती है तो अचानक आँख खुल जाती है ना कि यह क्या है, यह कौन है, कहाँ से आई! तो ऐसे अनोखी हलचल मचाओ। जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे चारों ओर फ़रिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ। इसको कहा जाता है- आध्यात्मिक जागृति। इतने सब जो देश-विदेश से आये हो, ब्रह्माकुमार-कुमारी स्वरूप की सेवा की! अवाज़ बुलन्द करने की जागृति का कार्य किया! संगठन का झण्डा लहराया। अब फिर नया प्लैन करेंगे ना! जहाँ भी देखें तो फ़रिश्ते दिखाई दें, लण्डन में देखें, इण्डिया में देखें जहाँ भी देखें फ़रिश्ते-ही-फ़रिश्ते नजर आयें।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- कर्मातीत अवस्था को पाना"
➳ _ ➳ अमृत की वेला में मनमोहक-मनभावन परम आन्दमय प्रभु मिलन का आनन्द
लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए...
सूर्य को, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली रंग-बिरंगी किरणों को निहार रही
हूँ... और विचार कर रही हूँ... कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले
लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियो से कितना सजा दिया है...और श्रृंगारित करके मुझ
आत्मा को सीधे अपने दिल में सजा दिया है... बाबा के दिल की प्यारी राजदुलारी
बनकर... मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, बाबा के दिल
में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.... उस के साथ
हंसती मुस्कुराती हूँ..... इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मृत कर दिए
है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... वाह मेरा भाग्य जो सपने में भी
नहीं सोचा था उसे साकार में पाया है... यही मनभावन जज्बात मीठे बाबा को सुनाने
वतन में उड़ चलती हूँ...
➳ _ ➳ ज्ञान सागर बाबा ज्ञान का प्रकाश मुझ आत्मा पर डालते हुए कहते है
:- "मीठे लाडले बच्चे मेरे... समय की है अन्तिम वेला जरा गहरे से अब आप गौर
फरमाओं... समय की इस अन्तिम वेला में कर्मातीत तुम बन जाओ... बच्चे गफलत छोड़
इस सच्चे सच्चे पुरूषार्थ में जुट जाओ... कर्मातीत बनने की मंजिल पर पहुंचने के
लिए उड़ान जरा जोर से लगाओ..."
❉ ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-
"मीठे-मीठे लाडले ओ बाबा मेरे... आप की इस गहरी सी समझानी को बुद्धि में बिठा
रही हूँ... कर्मातीत बनने के सच्चे-सच्चे पुरूषार्थ की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही
हूँ... कर्मातीत स्थिति के प्रवाह में बहती जा रही हूँ... उड़ता पंछी बन अन्दर
से अब मुस्कुरा रही हूँ..."
➳ _ ➳ ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा को सजाते हुए रत्नाकर बाबा बोले :-
"मीठे मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे मेरे... समाने और समेटने की शक्तियों को अब
तुम कार्य में लगाओ... और कर्मातीत बन जाओ... उड़ता पंछी बन खुले आसमा में बाहे
फैलाओं... जरा अटेंशन देकर बच्चे तुम अब कर्मातीत स्थिति बनाने के पुरूषार्थ
में लग जाओ..."
❉ ज्ञान रत्नों से सज-धज कर मैं आत्मा कहती हूँ :- "राजदुलारे प्यारे
बाबा मेरे... अटेंशन से कर्मातीत स्थिति के पुरूषार्थ में जुट गई हूं... समाने
और समेटने की शक्तियों को कार्य में लगाए रही हूँ... अपनी स्थिति द्वारा सत्यता
का प्रकाश फैला रही हूं... उड़ता पंछी बन आसमा में बाहें फैला रही हूँ...
कर्मों के बन्धन से भी मुक्त होने का अनुभव औरों को करा रही हूँ... इस प्रकार
अपनी कर्मातीत स्थिति की ओर कदम बढ़ा रही हूँ..."
➳ _ ➳ ज्ञान की रिमझिम वर्षा करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है
:- "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... कर्मातीत स्टेज को अब तुम नजदीक लाओ...
बच्चे अटेंशन से अब इस पुरूषार्थ में लग जाओ... अपनी इस अन्तिम अवस्था की तरफ
अब तेजी से दौड़ी लगाओ... जीवन की प्रयोगशाला में समेटने और समाने की शक्ति को
प्रयोग में ला कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ..."
❉ ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर मैं आत्मा कहती हूँ :- "लाडले ज्ञान
सागर बाबा मेरे... सुन के आपकी ये गहरी सी समझानी अटेंशन से इस पुरुषार्थ में
जुट गई हूँ... जीवन रूपी प्रयोगशाला में समाने और समेटने की शक्ति को प्रयोग
में लाकर कर्मातीत स्थिति को नजदीक ला रही हूँ... मुक्त पंछी बन उड़ती जा रही
हूँ... तेजी से इस पुरूषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस पुरूषार्थ में
सफलता पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- सर्व प्रकार के सूक्ष्म बन्धनों से मुक्त अवस्था का अनुभव करना"
➳ _ ➳ एक मकड़ी के जाल को देख मन में विचार चलता है कि जैसे एक मकड़ी खुद
ही जाल बुनती है और खुद ही उसमे फंस जाती है, ऐसे ही इस सृष्टि पर हर व्यक्ति
अपने ही द्वारा किये हुए कर्मो के बन्धन में ता उम्र फ़ँसा रहता है और सारा जीवन
उन बन्धनों से मुक्त होने की कोशिश में लगा रहता है किंतु कर्मो की गुह्य गति
को ना जानने के कारण और ही नए - नए कर्म बन्धन बनाकर उसमे और ही फंसता चला जाता
है और दुखी होता रहता है।
➳ _ ➳ यही विचार करते - करते मन ही मन मैं अपने आप से सवाल करती हूँ कि
जाने अनजाने कर्मो के जो बन्धन मुझ आत्मा ने बांध लिए हैं क्या योग बल से वो
सभी बन्धन मैं काट रही हूँ! उन पुराने बन्धनों के काटने के साथ - साथ मुझ से
अभी भी देह भान में आकर कोई विकर्म तो नही हो रहे! कर्मो की गुह्य गति को ध्यान
में रखते हुए क्या मेरा हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त होता है! कहीं ऐसा तो
नही कि पुराने बन्धन कट रहें है और नए कर्म बन्धन में मैं फँसती जा रही हूँ!
➳ _ ➳ अपने आप से ये सवाल कर, इनके उतर ढूंढने का प्रयास करते हुए अब मैं
अपनी महीन चेकिंग करती हूँ और अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि समय की
समीपता को सदा स्मृति में रखते हुए अब मुझे अपने पिछले सभी कर्म बन्धनों को
चुकतू करने औए नए कर्म बन्धनों में फंसने से स्वयं को बचाने के लिए अपने अंदर
अधिक से अधिक योग का बल जमा करना होगा। ज्वालामुखी योग से पुराने कर्म
बन्धन काट कर, अपने अंदर योग की ज्वाला को सदा प्रज्ज्वलित रखने के लिए अब मैं
अपने ओरिजनल स्वरूप में स्थित होकर, एक ही सेकेण्ड में अपने बीज रूप शिव पिता
परमात्मा के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ बीजरूप बाप की मास्टर बीजरूप सन्तान मैं स्वयं को पांच तत्वों की
दुनिया से पार आत्माओं की निराकारी दुनिया में देख रही हूँ। अपने बिंदु बाप से
मैं बिंदु आत्मा एक अद्भुत विचित्र मिलन मना रही हूँ। उनकी ज्वाला स्वरूप
किरणो के नीचे बैठ योग अग्नि में अपने विकर्मो को दग्ध करके, जन्म जन्मांतर के
कर्मबन्धनों को काट रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कर्म बन्धन की अनेक जंजीरों
में मैं आत्मा जकड़ी हुई थी वो सभी जंजीरे योग अग्नि की तपिश पाकर टूटती जा रही
हैं। कर्मो के बन्धन की एक - एक जंजीर जैसे - जैसे टूट रही है मैं बोझ से
मुक्त एकदम हलकी होती जा रही हूँ। ये हल्कापन मुझे एक निराले सुख का अनुभव
करवा रहा है।
➳ _ ➳ 63 जन्मो के विकर्मो के बन्धन का बोझ जो मुझ आत्मा के ऊपर था और
मुझे दुखी और अशांत कर रहा था, चैन से जीने नही दे रहा था वो बोझ उतरते ही मैं
एक अवर्णनीय सुख और शांति का अनुभव करके स्वयं को तृप्त महसूस कर रही हूँ। डबल
लाइट होकर अब मैं आत्मा कर्म करने के लिए वापिस कर्मक्षेत्र पर लौट रही हूँ
किन्तु इस स्मृति के साथ कि अब मुझे किसी भी नए कर्म बन्धन में कभी भी नही
फँसना है।
➳ _ ➳ इसी दृढ़ संकल्प के साथ मैं आत्मा अपनी उसी देह में फिर से प्रवेश
करती हूँ जो मुझे कर्मो के हिसाब किताब चुकतू करने के लिए मिली है, किन्तु इस
संकल्प के साथ कि "मैं आत्मा हूँ और इस देह से कर्म कर रही हूँ"। यह स्मृति अब
मुझे साक्षीपन की स्थिति में सहज ही स्थित कर रही है। हर आत्मा के पार्ट को
साक्षी होकर देखने से अब नए कर्म बन्धन के जाल में फंसने से बचने के साथ - साथ,
परिस्थितियों के रूप में और कर्मभोग के रूप में आने वाले कर्मबन्धनों को भी
नथिंग न्यू की स्मृति से योगबल से मैं सहज ही चुकतू करती जा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
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मैं ईश्वरीय विधान को समझने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं विधि से सिद्धि प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं फर्स्ट डिवीज़न की अधिकारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
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मैं आत्मा सदा संकल्प के खज़ानों को जमा करती हूँ ।
✺ मैं एकानामी का अवतार हूँ ।
✺ मैं सहजयोगी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ आजकल चाहे संसार में, चाहे ब्राह्मण संसार में हर एक को हिम्मत और सच्चा प्यार चाहिए। मतलब का प्यार नहीं, स्वार्थ का प्यार नहीं। एक सच्चा प्यार और दूसरी हिम्मत, मानो 95 परसेन्ट किसने संस्कार वश, परवश होके नीचे-ऊपर कर भी लिया लेकिन 5 परसेन्ट अच्छा किया, फिर भी अगर आप उसके 5 परसेन्ट अच्छाई को लेकर पहले उसमें हिम्मत भरो, यह बहुत अच्छा किया फिर उसको कहो बाकी यह ठीक कर लेना, उसको फील नहीं होगा। अगर आप कहेंगी यह क्यों किया, ऐसा थोड़ेही किया जाता है, यह नहीं करना होता है, तो पहले ही बिचारा संस्कार के वश है, कमजोर है, तो वह नरवश हो जाता है। प्रोग्रेस नहीं कर सकता है। 5 परसेन्ट की पहले हिम्मत दिलाओ, यह बात बहुत अच्छी है आपमें। यह आप बहुत अच्छा कर सकते हैं, फिर उसको अगर समय और उसके स्वरूप को समझकर बात देंगे तो वह परिवर्तन हो जायेगा। हिम्मत दो, परवश आत्मा में हिम्मत नहीं होती है। बाप ने आपको कैसे परिवर्तन किया?आपकी कमी सुनाई, आप विकारी हो, आप गन्दे हो, कहा? आपको स्मृति दिलाई आप आत्मा हो और इस श्रेष्ठ स्मृति से आपमें समर्थी आई, परिवर्तन किया। तो हिम्मत से स्मृति दिलाओ। स्मृति समर्थी स्वतः ही दिलायेगी। समझा।
✺ ड्रिल :- "हिम्मतहीन को हिम्मत दे आगे बढ़ाना"
➳ _ ➳ मैं प्रेम स्वरूप आत्मा हूँ... मैं प्रेम के सागर शिव बाबा से... वरदानी अमृतवेला में मिलन मना रही हूँ... यह वेला आत्मा और परमात्मा के मिलन की श्रेष्ठ वेला है... इस वेला में मैं आत्मा अपने ज्ञान सूर्य शिव बाबा से सर्व शक्तियां ग्रहण कर रही हूँ... मेरे ज्ञान सूर्य शिवबाबा मुझ आत्मा पर अपनी सर्व शक्तियों की बौछार कर रहे हैं... इन शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर हो रही हूँ... बाबा से विशेष प्रेम की हरे रंग की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... और एक शक्तिशाली हरे रंग का आभा मंडल मुझ आत्मा के चारों ओर बन रहा है... इस आभा मंडल का प्रभाव दूर - दूर तक फैल रहा है... इस आभा मंडल के संपर्क में जो भी आ रहा है वो गहरे और सच्चे प्रेम का अनुभव कर रहा है... मैं आत्मा अब उड़ कर अपने सूक्ष्म वतन में पहुँच जाता हूँ... फरिश्ता स्वरूप ब्रह्मा बाबा मेरे सामने अपने बाहें फैला कर मेरा आह्वान कर रहे हैं... मैं नन्हा प्रेम का फरिश्ता बाबा की बाहों में समा जाता हूँ... बाबा मुझे अपनी प्रेम भरी दृष्टि से सच्चे प्रेम की अनुभूति करवा रहे हैं... मैं सच्चे प्रेम से भरपूर हो गयी हूँ... बाबा मुझसे कह रहे हैं जाओ बच्ची इस अविनाशी और सच्चे प्रेम को अपने सेवा स्थान पे जाकर सबको बाटों... बाबा का आदेश मिलते ही मैं फरिश्ता उड़ चल पड़ता हूँ पंच तत्व की दुनिया में अपने सेवा स्थान की ओर...
➳ _ ➳ इस दुनिया में पहुँचते ही मैं आत्मा देखती हूँ कि यहाँ की सारे आत्माएँ सच्चे प्रेम की प्यासी है... यहाँ चारों तरफ झूठे और स्वार्थी प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं है... सब मतलब का प्रेम ही करते हैं... जिससे सब आत्माएँ हिम्मतहीन, उदास और परेशान है... सब आत्माएँ सच्चे प्रेम की तलाश में इधर - उधर भटक रही है... इन आत्माओं को देख कर मुझ आत्मा का हृदय विदीर्ण हो रहा है... मैं सच्चे प्रेम और हिम्मत का फरिश्ता विश्व के ग्लोब पे इन सब आत्माओं को इमर्ज करता हूँ... सच्चे प्रेम की तलाश में भटकती सारी आत्माएँ मुझ फरिश्ते के सामने विराजमान है... मैं प्रेम का फरिश्ता इन सारी आत्माओं पर प्रेम के हरे रंग की बरसात कर रही हूँ... जिससे ये सब आत्माएँ सच्चे प्रेम का अनुभव कर रही है... और इस प्रेम से भरपूर हो गयी है... इनकी सच्चे प्रेम की तलाश पूरी हो गयी है... सब के चेहरों पर सच्चे प्रेम की एक गहरी मुस्कान आ गयी है... सब आत्माएँ बहुत खुशनुमा नजर आ रही है...
➳ _ ➳ मैं प्रेम का फरिश्ता देखता हूँ कि कुछ ब्राह्मण परिवार की आत्माओं को भी हिम्मत और सच्चा प्यार चाहिए... मतलब का प्यार नहीं... स्वार्थ का प्यार नहीं... जबकि प्रेम के सागर का सच्चा प्यार चाहिए... मैं फरिश्ता उड़ कर पहुँच जाता हूँ अपने ब्राह्मण भाई - बहनों के पास... और उनको भी सच्चे... अविनाशी प्रेम से भरपूर कर रही हूँ... हिम्मतहीन आत्माओं को शक्ति की किरणें देकर हिम्मतवान बना रही हूँ... मैं आत्मा किसी भी आत्मा की कमी कमजोरी को नहीं देखती हूँ... उसमें एक गुण भी है तो ऐसी आत्माओं को प्रेम से सहारा देकर आगे बढ़ने की हिम्मत दे रही हूँ...
➳ _ ➳ अगर किसी आत्मा ने 95 परसेन्ट अपने पुराने संस्कार वश... परवश होकर नीचे-ऊपर कर लिया लेकिन 5 परसेन्ट अच्छा किया... तो मैं आत्मा उसकी 5 परसेन्ट अच्छाई को लेकर... पहले उसमें हिम्मत भर रही हूँ... उस आत्मा को कह रही हूँ... आप ने बहुत अच्छा किया... फिर उसको कहती हूँ बाकी जो बचा हुआ है उसको भी ठीक कर लेना... जिससे उस आत्मा को फील नहीं होता है... वो हिम्मत से और अच्छा करने लगती है... मैं आत्मा उस आत्मा की कमी को डायरेक्ट ना बोल के युक्ति से समझा कर बोल रही हो... यह क्यों किया... ऐसा थोड़े ही करते है... यह नहीं करना चाहिए था... ऐसा ना बोल पहले उस संस्कार के वश... कमजोर... आत्मा को युक्ति से समझाती हूँ... अगर मैं आत्मा उसकी कमी को बताती हूँ तो वह आत्मा नरवस हो जाएगी... प्रोग्रेस नहीं कर सकेगी... उस संस्कार के परवश आत्मा को पहले 5 परसेन्ट की हिम्मत दे रही हूँ... उसकी तारीफ कर आप में यह बात बहुत अच्छी है... आपमें यह गुण बहुत अच्छा है... आप और भी अच्छा कर सकते हैं... मैं आत्मा उसके समय और उसके स्वरूप को समझकर बता रही हूँ... जिससे वह आत्मा मोल्ड हो रही है... और स्वयं ही परिवर्तन कर रही है... वो आत्मा मुझ आत्मा से सच्चे सागर के सच्चे प्यार का अनुभव करके दिन पर दिन निखरती जा रही है...
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता हिम्मतहीन को हिम्मत दे आगे बढ़ा रही हूँ... अपने संस्कार से परवश आत्मा में हिम्मत नहीं होती है... जिस तरह से बाबा ने मुझ आत्मा को परिवर्तित किया है... जिस तरह से बाबा ने मुझ आत्मा की कमी नहीं सुनाई... मुझ आत्मा के विकार नहीं देखे... मुझ आत्मा को स्मृति दिलाई की आप महान आत्मा हो और इस श्रेष्ठ स्मृति से आपमें समर्थी आएगी... ऐसा समझा कर परिवर्तन किया... ऐसे ही मैं आत्मा भी परवश आत्मा को हिम्मत से स्मृति दिला रही हूँ कि स्मृति से समर्थी स्वतः ही आ जाएगी... वह हिम्मतहीन आत्मा भी हिम्मत से आगे बढ़ रही है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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