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❍ 13 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ नाम रूप से बुधी निकाली ?
➢➢ याद की मेहनत की ?
➢➢ याद और सेवा के बैलेंस द्वारा बाप की मदद का अनुभव किया ?
➢➢ अविनाशी सुख, शांति व सच्चे प्यार का स्टॉक जमा किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे बाप को सर्व स्वरुपों से वा सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी जानना आवश्यक है। जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसे मानकर चलेंगे तो देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत स्थिति बन जायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मायें अनुभव करते हो? पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों में उत्तम पुरुष। तो अभी साधारण नहीं हो पुरुषोत्तम हो। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् श्रेष्ठ। ब्राह्मणों को सदा ऊंचा दिखाते हैं। मुख वंशावली दिखाते हैं ना। तो ब्राह्मण बन गये अर्थात् श्रेष्ठ बन गये। साधारण पुरुष आप पुरुषोत्तम आत्माओंकी पूजा करते हैं क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् पवित्र बन गये ना। तो पवित्रता की ही पूजा होती है। साधारण आत्मा भी पवित्रता को धारण करती है तो महान् आत्मा कहलाती है। तो आप सब पवित्र आत्मायें हो ना कि मिक्स आत्मा हो? थोड़ी-थोड़ी अपवित्रता, थोड़ी-थोड़ी पवित्रता! नहीं। पवित्र आत्मा बन गये। तो पवित्रता ही श्रेष्ठता है। पवित्रता ही पूज्य है। तो ये नशा रहता है कि हम पुजारी से पूज्य बन गये?
〰✧ ब्राह्मणों की पवित्रता का गायन है। कोई भी शुभ कार्य होगा तो ब्राह्मण से करायेंगे। अशुभ कार्य ब्राह्मण से नहीं करायेंगे। अशुभ कार्य ब्राह्मण करें तो कहेंगे ये नाम का ब्राह्मण है, काम का नहीं। तो आप नामधारी हो या कामधारी? नामधारी ब्राह्मण तो बहुत हैं। लेकिन आप जैसा नाम वैसा काम करने वाले हो। साधारण आत्मा नहीं हो, विशेष आत्मा हो। ये खुशी है ना। कल साधारण थे और आज विशेष बन गये। तो विशेष आत्मा समझने से जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी और जैसी स्थिति वैसे कर्म होंगे। चेक करो जब स्थिति कमजोर होती है तो कर्म कैसे होते हैं। कर्म में भी कमजोरी आ जायेगी और स्थिति शक्तिशाली तो कर्म भी शक्तिशाली होंगे।
〰✧ तो स्थिति का आधार है स्मृति। स्मृति खुशी की है तो स्थिति भी खुश। कर्म भी खुशी-खुशी से करेंगे। फाउन्डेशन है स्मृति। तो बाप ने स्मृति बदल ली। साधारण से विशेष आत्मा बने तो स्मृति चेंज हो गई। चाहे कर्म साधारण हों लेकिन साधारण कर्म में भी विशेषता हो। मानो खाना बना रहे हो तो ये तो साधारण कर्म है ना, सब करते हैं लेकिन आपका खाना बनाना और दूसरों के खाना बनाने में फर्क होगा ना। आपके याद का भोजन और साधारण भोजन में अन्तर है। वो प्रसाद है, वो खाना है। तो विशेषता आ गई ना। याद में जो खाना खाते हो या बनाते हो तो उसको ब्रह्मा भोजन कहते हैं। तो सदा याद रखना कि पुरुषोत्तम विशेष आत्मायें बन गये तो साधारण कर्म कर नहीं सकते।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ तो राजा का ऑर्डर उसी घडी उसी प्रकार से मानना - यह है राज्य-अधिकारी की निशानी। ऐसे नहीं कि तीन-चार मिनट के अभ्यास के बाद मन माने या एकाग्रता के बजाए हलचल के बाद एकाग बने, इसको क्या कहेंगे?
〰✧ अधिकारी कहेंगे? तो ऐसी चेकिंग करो। क्योंकि पहले से ही सुनाया है कि अंतिम समय की अंतिम रिजल्ट का समय एक सेकण्ड का क्वेचन एक ही होगा।
〰✧ इन सूक्ष्म शक्तियों के अधिकारी बनने का अभ्यास अगर नहीं होगा अर्थात आपका मन राजा का ऑर्डर एक घडी के बजाए तीनचार घडियों में मानता है तो राज्य अधिकारी कहलायेंगे वा एक सेकण्ड के अंतिम पेपर में पास होगे? कितने माक्र्स मिलेंगे?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ तो ब्राह्मणों का स्थान और स्थिति - दोनों ऊँची। अगर स्थान की याद होगी तो स्थिति स्वत: ऊँची हो जायेगी। ब्राह्मणों की दृष्टि भी सदा ऊपर रहती है। क्योंकि आत्मा 'आत्माओं' को देखती है, आत्मा ऊपर है तो दृष्टि भी ऊपर जायेगी। कभी भी किससे मिलते हो या बात करते हो तो आत्मा को देखकर बात करते हो, आत्मा से बात करते हो, आपकी दृष्टि आत्मा की तरफ जाती है। आत्मा मस्तक में है ना। तो ऊँची स्थिति में रहना सहज है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप को याद करने की मेहनत करना"
➳ _ ➳ विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे
खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन...
विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट
बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और
रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें
समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं
आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...
❉ अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते
हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में
ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... इसलिए हर पल ईश्वरीय
यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की
याद में डुबो दो...”
➳ _ ➳ प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए
मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और
देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे
सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”
❉ मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे
भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा
पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... तो उनकी याद
में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो
से भरा दामन में ले आएँगी...”
➳ _ ➳ शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी
सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी
प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... मेरा जीवन खुशियो
का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही
हूँ...”
❉ देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल
बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस
संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... खुशियो भरे
जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के
आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को
रोशन करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली
हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... प्यारे
बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई
श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- अब पिछाड़ी का समय है वापस घर चलना है इसलिए अपनी बुद्धि नाम रूप से
निकाल देनी है"
➳ _ ➳ मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में रखते हुए, देह और देह के सर्व
सम्बन्धों से किनारा कर, एक परमात्मा की अव्यभिचारी याद में मैं आत्मा अपने मन
बुद्धि को एकाग्र करती हूँ। उस एक अपने परम प्रिय प्रभु की अव्यभिचारी याद में
बैठते ही इस देह रूपी पिंजड़े में कैद मैं आत्मा रूपी पँछी इस देह के पिंजड़े के
हर बंधन को तोड़ उड़ चलती हूँ अपने उस परमप्रिय प्रभु, अपने स्वामी, शिव पिता
परमात्मा के पास जिनके साथ मेरा जन्म - जन्म का अनादि सम्बन्ध है। अपने सच्चे
शिव प्रीतम की याद मुझे उनसे मिलने के लिए बेचैन कर रही है इसलिए ज्ञान और योग
के पंख लगाए मैं आत्मा पँछी और भी तीव्र उड़ान भरते हुए पहुंच जाती हूँ अपने
प्रभु के धाम, शांति धाम, निर्वाणधाम में।
➳ _ ➳ अपने शिव प्रभु को अपने सामने पा कर बिना कोई विलम्ब किये मैं
पहुंच जाती हूँ उनके पास और उनकी किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ। जन्म
जन्मान्तर से अपने शिव पिता परमेश्वर से बिछुड़ी मैं आत्मा अपने शिव प्रभु की
किरणों रूपी बाहों में अतीन्द्रिय सुख की गहन अनुभूति में मैं इतना खो जाती हूँ
कि देह और देह की दुनिया संकल्प मात्र भी याद नही रहती। केवल मैं और मेरे प्रभु,
दूसरा कोई नही। प्रेम के सागर अपने परम प्रिय मीठे बाबा के अति प्यारे, अति
सुन्दर, चित को चैन देने वाले अनुपम स्वरूप को निहारते - निहारते मैं डूब जाती
हूँ उनके प्रेम की गहराई में और उनके सच्चे निस्वार्थ रूहानी प्रेम से स्वयं को
भरपूर करने लगती हूँ।
➳ _ ➳ मेरे शिव प्रीतम का प्यार उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में
निरन्तर मुझ पर बरस रहा है। उनसे आ रही सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी
फुहारें मन को रोमांचित कर रही हैं, तृप्त कर रही हैं और साथ ही साथ रावण की
जेल में कैद होने के कारण निर्बल हो चुकी मुझ आत्मा को बलशाली बना रही हैं।
अपने शिव प्रभु की सर्व शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, उनके प्यार को अपनी
छत्रछाया बना कर अब मैं वापिस देह और देह की दुनिया की में लौट रही हूं। किन्तु
अब मेरे शिव प्रभु का प्यार मेरे लिए ढाल बन चुका है जो मुझे इस आसुरी दुनिया
मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धों के लगाव से मुक्त कर रहा है।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी अब इस दुनिया से मेरा कोई
ममत्व नही रहा। यह तन - मन - धन मेरा नही, मेरे बाबा का है, यह सम्बन्धी भी मेरे
नही, बाबा ने मुझे इनकी सेवा अर्थ निमित बनाया हैं। इस स्मृति में रहने से मैं
और मेरे से अटैचमेन्ट समाप्त हो गई है। प्रवृति को ट्रस्टी बन कर सम्भालने से
अब मैं स्वयं को हर बन्धन से मुक्त, न्यारा और प्यारा अनुभव कर रही हूं।
परमात्म प्रीत से मेरे सभी लौकिक सम्बन्ध भी अलौकिक बन गए हैं इसलिए देह और
दैहिक सम्बन्धो में होने वाला लगाव, झुकाव और टकराव अब समाप्त हो गया है।
➳ _ ➳ साक्षी भाव से हर आत्मा के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही
हूं और हर कर्म साक्षी पन की सीट पर सेट हो कर करने से सदा बाप के साथीपन का
अनुभव कर रही हूं। देह और देह के सम्बन्धो के प्रति साक्षीभाव मुझे इस पुरानी
दुनिया से स्वत: ही उपराम बना रहा है। दैहिक दृष्टि और वृति परिवर्तित हो कर
रूहानी बन गई है। इसलिए अब सदैव यही अनुभव होता है कि मैं इस देह में मेहमान
हूँ। मैं रूह हूँ और मुझ रूह का करन करावनहार सुप्रीम रूह है। वह चला रहे हैं,
मैं चल रही हूं। सदा मैं रूह और सुप्रीम रूह कम्बाइंड हैं। निरन्तर इस स्मृति
में रहने से किसी भी देहधारी के नाम रूप की अब मुझे याद नही आती। केवल अपने शिव
प्रभु की अव्यभिचारी याद में रह, मैं उनके ही प्रेम का रसपान करते हुए सदा
अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलती रहती हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा बाप की मदद का अनुभव करने वाली ब्लैसिंग की पात्र आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं सकाश देने के लिए अविनाशी सुख, शांति वा सच्चे प्यार का स्टॉक जमा करने वाली सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ वर्तमान समय आप बच्चों की विश्व को इस सेवा की आवश्यकता है जो चेहरे से, नयनों से, दो शब्द से हर आत्मा के दु:ख को दूर कर खुशी दे दो। आपको देखते ही खुश हो जाएं। इसलिए खुशनुमा चेहरा या खुशनुमा मूर्त सदा रहे क्योंकि मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई देती है। कितना भी कोई भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव भी समझते हों लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर ले।
➳ _ ➳ आज मन की खुशी के लिए कितना खर्चा करते हैं, कितने मनोरंजन के नये-नये साधन बनाते हैं। वह हैं अल्पकाल के साधन और आपकी है सदाकाल की सच्ची साधना। तो साधना उन आत्माओं को परिवर्तन कर ले। हाय-हाय ले आवें और वाह-वाह लेकर जाये। वाह कमाल है - परमात्म आत्माओं की! तो यह सेवा करो। समय प्रति समय जितना अल्पकाल के साधनों से परेशान होते जायेंगे, ऐसे समय पर आपकी खुशी उन्हों को सहारा बन जायेगी क्योंकि आप हैं ही खुशनसीब।
✺ ड्रिल :- "सच्ची खुशी बाँटने की सेवा का अनुभव"
➳ _ ➳ रात्रि को पूरे दिन का चार्ट देकर मैं आत्मा... अपना स्थूल शरीर बिस्तर पर छोड़कर सूक्ष्म वतन में चली जाती हूँ... मीठी ब्रह्मा मां की स्नेह भरी गोदी में सो जाती हूँ... ब्रह्म मुहूर्त के सुनहरे समय में... मीठी माँ अपना प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए... मुझे मीठी वाणी से मीठे बच्चे, लाडले बच्चे कह कर जगा रही है... मीठी माँ गुणों और वरदानों से मुझ आत्मा को सजा रही है...
➳ _ ➳ पूरी तरह चार्ज होकर... अपनी सम्पन्न और भरपूर अवस्था में मैं आत्मा... अपने स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूँ... मैं स्वयं को ईश्वरीय खजानों से भरपूर देख रही हूँ... साक्षी होकर मैं देखती हूँ कि... आज संसार में चारों तरफ कितना दुःख, अशांति है... आत्मायें कष्टों और पीड़ाओं से कराह रही हैं... आत्माएं भिखारी की भांति तलाश रही हैं... कि उनके अंधकारमय जीवन में... कहीं से खुशी की हल्की सी रोशनी नज़र आ जाये...
➳ _ ➳ मैं आत्मा खुशियों के सागर पिता की संतान हूँ... मैं खुशी के खजाने की मालिक हूँ... मैं आत्मा खुशी के खजाने से भरपूर हूँ... लबालब हूँ... मैं आत्मा अपने मुस्कुराते चेहरे से, नयनों से, बोल से सर्व को यह खजाना बांटती जा रही हूँ... खुशियों के फव्वारे बाबा के नीचे स्थित मैं आत्मा... सर्व आत्माओं पर खुशी का खजाना बरसा रही हूँ...
➳ _ ➳ आत्माओं के कष्ट दूर हो रहे हैं... वे सच्ची खुशी प्राप्त कर स्वयं को धन्य धन्य महसूस रही हैं... मुझ फरिश्ते के वरदानी बोल, मधुर बोल आत्माओं को कष्टों से मुक्त करते जा रहे हैं... उनके जीवन में मिठास घोल रहे हैं... बाबा मुझे यह सबसे श्रेष्ठ सेवा कराने के निमित्त बना रहे हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा यह सच्ची सेवा कर रही हूँ... सर्व को खुशी का खजाना बांटती जा रही हूँ... आत्मायें, जो कि मनोरंजन के साधन आदि पर कितना खर्चा करके अल्पकाल की खुशी की तलाश कर रही हैं... लेकिन फिर भी उनको खुशी नहीं मिल पा रही है... वे दुःखी, अशांत आत्मायें परमपिता परमात्मा से प्राप्त सच्ची खुशी को प्राप्त कर वाह-वाह कर रही हैं... उन के जीवन की बगिया इस सच्ची खुशी के शीतल जल से लहलहा गयी हैं... सभी के दिलों में परमात्म प्रत्यक्षता हो रही है... चारों ओर वाह बाबा, वाह बाबा के मधुर बोल गूंज रहे हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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