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❍ 23 / 11 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?
➢➢ याद का चार्ट रखा ?
➢➢ देह और देह की दुनिया की स्मृति से ऊंचा रहे ?
➢➢ वाणी के साथ चलन और चेहरे से बाप समान गुण दिखाई दिए ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ आपके सामने कोई कितना भी व्यर्थ बोले लेकिन आप व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक भी व्यर्थ बोल स्वीकार कर लिया तो एक व्यर्थ अनेक व्यर्थ को जन्म देगा। अपने बोल पर भी पूरा ध्यान दो, ‘‘कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो’’ तो अव्यक्त स्थिति सहज बन जायेगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं पुण्य का खाता जमा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ 'सदा पुण्य का खाता जमा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ' - ऐसे अनुभव होता हैं? यह सेवा - नाम सेवा का है, लेकिन पुण्य का खाता जमा करने का साधन है। तो पुण्य के खाते सदा भरपूर हैं और आगे भी भरपूर रहेंगे।
〰✧ जितनी सेवा करते हो, उतना पुण्य का खाता बढ़ता जाता है। तो पुण्य का खाता अविनाशी बन गया। यह पुण्य अनेक जन्म भरपूर करने वाला है।
〰✧ तो पुण्य आत्मा हो और सदा ही पुण्यात्मा बन औरों को भी पुण्य का रास्ता बताने वाले। यह पुण्य का खाता अनेक जन्म साथ रहेगा, अनेक जन्म मालामाल रहेंगे - इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते चलो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ (बापदादा ने ड़िल कराई) एक सेकण्ड में डॉट लगा सकते हो? अभी-अभी कर्म में और अभी-अभी कर्म से न्यारे, कर्म के सम्बन्ध से न्यारे हो सकते हो? यह एक्सरसाइज आती है?
〰✧ किसी भी कर्म में बहुत बिजी हो, मन-बुद्धि कर्म के सम्बन्ध में लगी हुई है, बन्धन में नहीं, सम्बन्ध में, लेकिन डायरेक्शन मिले - फुलस्टॉप। तो फुलस्टॉप लगा सकते हो कि कर्म के संकल्प चलते रहेंगे? यह करना है, यह नहीं करना है, यह ऐसे है, यह ऐसे है।
〰✧ तो यह प्रेक्टिस एक सेकण्ड के लिए भी करो लेकिन अभ्यास करते जाओ, क्योंकि अंतिम सर्टीफिकेट एक सेकण्ड के फुलस्टॉप लगाने पर ही मिलना है। सेकण्ड में विस्तार को समा ले, सार स्वरूप बन जाये। तो यह प्रैक्टिस जब भी चांस मिले, कर सकते हो तो करते रहो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ कर्मणा द्वारा गुणों का दान करने के कारण कौन-सी मूर्त बन जायेंगे? फ़रिश्ता। कर्म अर्थात् गुणों का दान करने से उनकी चलन और चेहरा दोनों ही फ़रिश्ते की तरह दिखाई देंगे। दोनों प्रकार की लाइट होंगी अर्थात् प्रकाशमय भी और हल्कापन भी। जो भी कदम उठेगा वह हल्का। बोझ महसूस नहीं करेंगे। जैसे कोई शक्ति चला रही है। हर कर्म में मदद की महसूसता करेंगे। हर कर्म में सर्व द्वारा प्राप्त हुआ वरदान अनुभव करेंगे। दूसरे, हर कर्म द्वारा महादानी बनने वाला सर्व की आशीर्वाद के पात्र बनने के कारण सर्व वरदान की प्राप्ति अपने जीवन में अनुभव करेंगे। मेहनत से नहीं, लेकिन वरदान के रूप में। तो कर्म में दान करने वाला एक तो फ़रिश्ता रूप नज़र आयेगा, दूसरा सर्व वरदानमूर्त अपने को अनुभव करेगा।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- संगम युग में तकदीरवान बनना"
➳ _ ➳ आँगन में कौड़ी खेलते बच्चों को देख मै आत्मा... मुस्कराती हूँ... और मुझे
भी कौड़ी से हीरे जैसा बनाने वाले... मीठे बाबा की यादो में डूब जाती हूँ...
अपने प्यारे बाबा से मीठी मीठी बाते करने... मीठे वतन में पहुंचती हूँ...
प्यारे बाबा रत्नागर को देख ख़ुशी से खिल जाती हूँ... और मीठे बाबा के प्यार में
डूबकर... अपनी ओज भरी चमक, मीठे बाबा को दिखा दिखाकर लुभाती हूँ... देखो मीठे
बाबा... मै आत्मा आपके साये में कितनी प्यारी, चमकदार और हीरे जैसी अमूल्य हो
गयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर अपने फूल बच्चों के लिए अमूल्य खजानो
और शक्तियो को हथेली पर सजा कर आये है... इस वरदानी समय पर कौड़ी से हीरो जैसा
सज जाते हो... और यादो की अमीरी से, देवताई सुखो की बहारो भरा जीवन सहज ही पाते
हो...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान खजाने से स्वयं को लबालब करते हुए कहती हूँ
:- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपको पाकर तो मुझ आत्मा ने जहान पा लिया है... देह
और दुखो की दुनिया में कितनी निस्तेज और मायूस थी... आपने आत्मा सितारा बताकर
मुझे नूरानी बना दिया है... फर्श उठाकर अर्श पर सजा दिया है.."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने नेह की धारा में भिगोते हुए कहते है :-
"मीठे लाडले प्यारे बच्चे... अपने प्यारे से भाग्य को सदा स्मर्तियो में रख
खुशियो में मुस्कराओ... ईश्वर पिता का साथ मिल गया... भगवान स्वयं गोद में
बिठाकर पढ़ा रहा... सतगुरु बनकर सदगति दे रहा... एक पिता को पाकर सब कुछ पा
किया है... निकृष्ट जीवन से श्रेष्ठतम देवताई भाग्य पा रहे हो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमीरी को अपनी बाँहों में भरकर मुस्कराते हुए
कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... आपने आकर मेरा सच्चा साथ निभाया है...
दुखो के दलदल से मुझे हाथ देकर सुखो के फूलो पर बिठाया है... सच्चे स्नेह की
धारा में मेरे कालेपन को धोकर... मुझे निर्मल, धवल बनाया है... मुझे गुणवान
बनाकर हीरे जैसा चमकाया है..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को काँटों से फूल बनाते हुए कहा :- " मीठे प्यारे
सिकीलधे बच्चे... भगवान के धरती पर उतर आने का पूरा फायदा उठाओ... ईश्वरीय
सम्पत्ति को अपना अधिकार बनाकर, सदा की अमीरी से भर जाओ... ईश्वर पिता के साये
में गुणवान, शक्तिवान बनकर, हीरे जैसा भाग्य सजा लो... और सतयुगी दुनिया में
अथाह सुख लुटने कीे सुंदर तकदीर को पाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने दुलारे बाबा को दिल से शुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मनमीत
बाबा मेरे... विकारो के संग में, मै आत्मा जो कौड़ी तुल्य हो गयी थी... आपने उस
कौड़ी को अपने गले से लगाकर, हीरे में बदल दिया है... मै आत्मा आपके प्यार की
रौशनी में, कितनी प्यारी चमकदार बन गयी हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पाकर निखर
गयी हूँ..."मुझे हीरे सा सजाने वाले खुबसूरत बनाने वाले रत्नागर बाबा... को दिल
से धन्यवाद देकर मै आत्मा.. स्थूल वतन में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- बाप को अपना बच्चा बनाये उन पर पूरा पूरा बलिहार जाना है"
➳ _ ➳ अपने शिव पिता परमात्मा के साथ अलग - अलग सम्बन्धों का सुख अनुभव करते
हुए मन बेहद खुशी से भर जाता है और मन मे विचार चलता है कि वो ऑल माइटी ऑथोरिटी
भगवान जिसकी भक्त लोग केवल अराधना करते हैं, स्वप्न में भी नही सोच सकते कि
भगवान उनका बाप, दोस्त, साजन, बच्चा, भी बन सकता है। लेकिन मैं कितनी खुशनसीब
हूँ जो हर रोज भगवान के साथ एक नया सम्बन्ध बना कर, उस सम्बन्ध का असीम सुख
प्राप्त करती हूँ। ऐसा सुख जो देह के सम्बन्धो में कभी मिल ही नही सकता।
क्योकि वो अनकंडीशनल प्यार केवल प्यार का सागर भगवान ही दे सकता हैं।
➳ _ ➳ यही विचार करते करते अपने शिव पिता परमात्मा को अपना बच्चा अपना वारिस
बनाने का संकल्प मन मे लिए मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर उनका आह्वान करती
हूँ। आह्वान करते ही सेकेंड में उनकी छत्रछाया को मैं अपने ऊपर अनुभव करती हूं।
अपने चारों और फैले सर्वशक्तियों के रंग बिरंगे प्रकाश को मैं मन बुद्धि की
आंखों से स्पष्ट देख रही हूँ। ये प्रकाश मन को असीम शांति और सुकून का अनुभव
करवा रहा है। सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और
वायुमण्डल में फैल कर मन को असीम आनन्द की अनुभूति करवा रहें हैं। इस असीम
आनन्द की अनुभूति करते करते अपने शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की किरणों
रूपी बाहों के झूले में बैठ, मैं आत्मा अपने लाइट के सूक्ष्म शरीर के साथ उड़
चलती हूँ। और उड़ते उड़ते एक बहुत सुंदर उपवन में पहुंच जाती हूँ।
➳ _ ➳ चारों और फैली हरियाली, रंग बिरंगे फूंलो की खुशबू मन को आनन्दित कर रही
है। उपवन में बैठी मैं प्रकृति के इस सुंदर नजारे का आनन्द ले रही हूं। तभी
कानो में बांसुरी की मधुर आवाज सुनाई देती है औऱ देखते ही देखते मेरे शिव पिता
परमात्मा नटखट कान्हा के रूप में बाँसुरी बजाते हुए मेरे सामने आ जाते हैं।
उनके इस स्वरूप को देख मैं चकित रह जाती हूँ। धीरे धीरे बाँसुरी बजाते हुए मेरे
नटखट गिरधर गोपाल मेरी गोदी में आ कर बैठ जाते हैं और अपने नन्हे हाथों को फैला
कर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। उनके नन्हे हाथों का कोमल स्पर्श पाकर मन
उनके प्रति वात्सलय और प्यार से भर जाता है। अपने नटखट कान्हा की माँ बन कर
मैं उन्हें प्यार कर रही हूँ, उनकी लीलाओं का आनन्द ले रही हूं।
➳ _ ➳ स्वयं भगवान नटखट गोपाल का रूप धारण कर, मेरा बच्चा बन मुझे मातृत्व सुख
का अनुभव करवा कर अपने लाइट माइट स्वरूप में अब मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं
और फिर से अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों को बाहों में समेटे मुझे ऊपर की और ले
कर चल पड़ते हैं। अपने सूक्ष्म आकारी फ़रिशता स्वरूप को सूक्ष्म वतन में छोड़,
निराकारी आत्मा बन अपने शिव पिता की बाहों के झूले में झूलते - झूलते मैं
पहुँच जाती हूँ परमधाम और उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया में जा कर
बैठ जाती हूँ। उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करके, तृप्त हो कर अब मैं
वापिस साकारी लोक की ओर आ जाती हूँ और अपने साकारी तन में आ कर भृकुटि पर
विराजमान हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ नटखट गिरधर गोपाल के रूप में मेरे शिव पिता परमात्मा ने बच्चा बन कर जिस
अविस्मरणीय सुख का मुझे आज अनुभव करवाया उसकी स्मृति बार बार मन को आनन्दित कर
रही है। उसी सुख को बार बार पाने की इच्छा से अब मैं शिव बाबा को अपना वारिस
बनाये, तन मन धन से उन पर पूरा पूरा बलिहार जा कर 21 जन्मो के लिए उनसे अविनाशी
सुख का वर्सा प्राप्त कर रही हूँ। जैसे सुदामा में मुट्ठी भर चावल दे कर महल
ले लिए ठीक उसी प्रकार इस एक जन्म में शिवबाबा को अपना वारिस बना कर उन पर
बलिहार जाने से, मैं जन्म जन्म के लिए उनकी बलिहारी की पात्र आत्मा बन गई हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
मैं आत्मा देह और देह की दुनिया की स्मृति से ऊंचा रहती हूँ।
✺ मैं सर्व बंधनों से मुक्त्त आत्मा हूँ।
✺ मैं आत्मा मुक्त्त फ़रिश्ता हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
मैं वाणी से बाप समान गुण प्रत्यक्ष करती हूँ ।
✺ मैं चलन और चेहरे से बाप समान गुण प्रत्यक्ष करती हूँ ।
✺ मैं सर्व गुण संपन्न आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। ब्राह्मण जीवन का महत्व बहुत बड़ा है। प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बनना, यह बड़े-से-बड़ा पदमगुणा भाग्य है। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खजाने का महत्व रखो। जैसे दूसरों को भाषण में संगमयुग की कितनी महिमा सुनाते हो। अगर आपको कोई टापिक देवें कि संगमयुग की महिमा करो तो कितना समय कर सकते हो? एक घण्टा कर सकते हो? टीचर्स बोलो। जो कर सकता है वह हाथ उठाओ। तो जैसे दूसरों को महत्व सुनाते हो, महत्व जानते बहुत अच्छा हो । बापदादा ऐसे नहीं कहेगा कि जानते नहीं हैं। जब सुना सकते हैं तो जानते हैं तब तो सुनाते हैं। सिर्फ है क्या कि मर्ज हो जाता है। इमर्ज रूप में स्मृति रहे - वह कभी कम हो जाता है, कभी ज्यादा। तो अपना ईश्वरीय नशा इमर्ज रखो। हाँ मैं तो हो गई, हो गया... नहीं। प्रैक्टिकल में हूँ... यह इमर्ज रूप में हो। निश्चय है लेकिन निश्चय की निशानी है - 'रूहानी नशा'। तो सारा समय नशा रहे। रूहानी नशा - मैं कौन! यह नशा इमर्ज रूप में होगा तो हर सेकण्ड जमा होता जायेगा।
✺ ड्रिल :- "संगमयुग की महिमा इमर्ज रूप में स्मृति में रखना"
➳ _ ➳ संसार रूपी भवसागर में हिचकोलें खाती मेरी जर्जर सी वो कश्ती... डूबने के भय से सँवरने के लिए भक्ति के खडताल बजाती हुई मैं भक्त आत्मा... और तभी अचानक किसी ने हाथ पकड कर बिठा लिया संगम रूपी जल पोत पर... और भक्त आत्मा से ज्ञानी तू आत्मा का परिचय भी दे दिया... भवसागर की हर लहर को तैरने के अनुकूल बनाते हुए मेरे शिव पिता खुद नाविक बन मेरी कश्ती को पार लगा रहे है... मैं कौन की पहेली की गहराई में जाकर मैं जितना खुद को जानने की कोशिश कर रही हूँ... उतना उतना रूहानी नशा चढता जा रहा है... मैं आत्मा स्वमानों की माला पहने अपने गुण और शक्तियों को इमर्ज करते हुए... एक एक गुण की गहराई से अनुभूति कर रही हूँ... संगम के ये खजाने... समय का खजाना... एक एक पल दूसरे युगों के सालों के बराबर, संकल्प का खजाना... बंध गया है मेरे संकल्पों की डोर से परमधाम में रहने वाला... गुणों और शक्तियों का खजाना... मास्टर सर्वशक्तिमान बनाकर बाप समान बनने का लक्ष्य दे डाला है उसने मुझे...
➳ _ ➳ हर पल किनारों की ओर ले जाता मुझे ये संगम रूपी जहाजी बेडा... पल पल बाप से सर्वसम्बन्धों का सुख देता हुआ... विभिन्न प्रकार की ड्रैसेस से सजा मेरा सुन्दर सा केबिन... देवताई ड्रैस फरिश्ता ड्रैस... फरिश्ता स्वरूप की ड्रैस पहन मैं आत्मा उड चली सूक्ष्म वतन की ओर... सूक्ष्म वतन में बापदादा के साथ कुछ पल के लिए साक्षी होकर देख रही हूँ मैं... संगम के बेडे पर सवार सभी देव कुल की आत्माओं को... पल पल सतयुगी सृष्टि के सृजन में लगी हुई... हर संकल्प से उसे और करीब लाती हुई बापदादा निरन्तर खुशियों से सम्पन्न कर रहे है इस पोत को... हर पल स्नेह की मीठी सी बारिश... शीतल फुहारें...
➳ _ ➳ खुशियों का अखूट खजाना भर के चला है ये संगम रूपी जलयान... और हर क्षण हर पल खुशियों की खुराक से भरपूर होती मैं आत्मा... अमृत वेले का वो रूहानी मिलन और मुरली... खुशियों के खजाने की चाबी मिली है मुझ आत्मा को... जितना घुमाती हूँ उतने खजाने खुलते जा रहे है मेरे सामने... खुशियों के झर झर बहते झरने... हर पल अनुभवों का पल... मेरे संकल्प की डोर से बंधकर आते शिव सूर्य ठीक मेरे मस्तिक के ऊपर स्थित हो गये है... मैं बिन्दु रूप धारण कर स्वयं को समाँ रहा हूँ शिव सूर्य की सुनहरी किरणों में... और आहिस्ता आहिस्ता एकाकार होता मैं शिव बिन्दु के साथ... मानों आभार व्यक्त करने के लिए ही मैं विनम्र होता हुआ मिटा देना चाहता हूँ अपने वजूद को उस परम बिन्दु में... संगम के इस महा मिलन की स्मृति को गहराई से अपनी स्मृति में संजोये मैं आत्मा लौट आई हूँ अपनी देह मैं... अखूट खजानों की चाबी को हाथ में लिए...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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