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❍ 01 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ अपवित्रता की गंदी आदतें मिटाने पर ध्यान दिया ?
➢➢ चलते फिरते अशरीरी रहने का अभ्यास किया ?
➢➢ बेहद की दृष्टि, वृत्ति और स्थिति द्वारा सर्व के प्रिय बनकर रहे ?
➢➢ आपकी सूरत से बाप की सीरत दिखाई दी ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ समय प्रमाण अब सर्व ब्राह्मण आत्माओं को समीप लाते हुए ज्वाला स्वरूप का वायुमण्डल बनाने की सेवा करो, उसके लिए चाहे भट्टियां करो या आपस में सगंठित होकर रूहरिहान करो लेकिन ज्वाला स्वरूप का अनुभव करो और कराओ, इस सेवा में लग जाओ तो छोटी-छोटी बाते सहज परिवर्तन हो जायेंगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं एकरस स्थिति वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपने को एकरस स्थिति में अनुभव करते हो? एकरस स्थिति है या और हद के रस आकर्षित करते हैं? निरन्तर योगी बन गये? सदा पावरफुल योग है या फर्क पड़ता है? निरन्तर अर्थात् अन्तर न हो। ऐसे शक्तिशाली बने हो या बन रहे हो? कितने तक बने हो? 75 परसेन्ट तक पहुँचे हो? क्योंकि सदा एकरस का अर्थ ही है एक के साथ सदा जैसे बाप, वैसे मैं, बाप समान। बनना तो बाप समान है। बाप तो शक्ति भरते ही हैं। रोज की मुरली क्या है? शक्ति भरती है ना! लेकिन भरने वाले भरते हैं।
〰✧ सदैव स्मृति रखो कि हम महावीर हैं, शिवशक्तियां हैं तो कभी भी निर्बल नहीं होंगे, कमजोर नहीं होंगे। क्योंकि कोई भी विघ्न तब आता है जब कमजोर बनते हैं। अगर कमजोर नहीं बनो तो विघ्न नहीं आ सकता। महावीर को कहते हैं विघ्न विनाशक। तो यह किसका टाइटल है? आप सभी विघ्न विनाशक हो या विघ्नों में घबराने वाले हो? कोई भी शक्ति की कमी हुई तो मास्टर सर्व शक्तिवान नहीं कहेंगे। इसलिए सदा याद रखो कि सर्व शक्तियां बाप का वर्सा है। वर्सा तो पूरा मिला है या थोड़ा मिला है? तो एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिए।
〰✧ इस समय सभी मधुबन निवासी हो ना! अभी मधुबन को साथ ले जाना। क्योंकि मधुबन अर्थात् मधुरता। मधुबन आपके साथ होगा तो सदा ही सम्पूर्ण और सदा ही सन्तुष्ट रहेंगे। ऐसे नहीं कहना कि मधुबन में तो बहुत अच्छा था। अभी बदल गये। मधुबन का बाबा भी साथ है। तो मधुबन की विशेषता भी साथ है। तो सदा अपने को मास्टर सर्व शक्तिवान अनुभव करेंगे। सभी तीव्र पुरुषार्थी हो या पुरुषार्थी हो? तीव्र पुरुषार्थी की निशानी क्या होती है? तीव्र पुरुषार्थी सदा उड़ती कला वाला होगा, सदा डबल लाइट होगा। कभी ऊपर, कभी नीचे नहीं, सदा उड़ती कला। जितना-जितना विचित्र बाप से प्यार है तो जिससे प्यार होता है वैसा ही बनना होता है। स्वयं भी विचित्र आत्मा रूप में स्थित होंगे तो उड़ती कला में रहेंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ वर्तमान समय माया ब्राह्मण बच्चों की बुद्धि पर ही पहला वार करती है। पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है। जैसे जब कोई दुश्मन वार करता है तो पहले टेलिफोन, रेडियों आदि के कनेक्शन तोड देते है।
〰✧ लाइट और पानी का कनेक्शन तोड देते है फिर वार करते हैं, ऐसे ही माया भी पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है जिससे लाइट, माइट शक्तियाँ और ज्ञान का संग आँटोमेटिकली बन्द हो जाता है। अर्थात मूर्छित बना देती है।
〰✧ अर्थात स्वयं के स्वरूप की स्मृति से वंचित कर देती है व बेहोश कर देती है। उसके लिए सदैव बुद्धि पर अटेन्शन का पहरा चाहिए। तब ही निरंतर कर्मयोगी सहज बन पायेंगे।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ आप पद्मापद्म भाग्यशाली सिकीलधे बच्चों का भी बुद्धि रूपी पाँव सदा देहभान या देह की दुनिया की स्मृति से ऊपर रहना चाहिए। जब बाप-दादा ने मिट्टी से ऊपर कर तख्तनशीन बना दिया तो तख्त छोड़कर मिटी में क्यों जाते। देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना। संगमयुग चढ़ती कला का युग है, अब गिरने का समय पूरा हुआ, अब थोड़ा सा समय ऊपर चढ़ने का है इसलिए नीचे क्यों आते, सदा ऊपर रहो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- आसुरी गुणों को निकाल दैवीगुण धारण करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख,
शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को
भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका में
जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी
ज्योति को जगाया... दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया...
मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास
पहुँच जाती हूँ...
❉ प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-
"मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे बाबा
की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... यह यादे ही आनन्द का दरिया
जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार
लाएंगी..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे
मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से
सज कर निखरती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही
हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."
❉ मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए
कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में
गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो
जाओ... दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से
अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:- "मेरे
प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... यह रोम
रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर
ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ... और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."
❉ मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:- "प्यारे
सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो
के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः
ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही
स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:- "हाँ
मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की
शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ... और विकारो से मुक्त होकर
अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- महान आत्मा बनने के लिए अपवित्रता की जो भी गंदी आदतें हैं वह मिटा देनी
है"
➳ _ ➳ जैसे सूर्य की ज्वलन्त किरणे हर प्रकार के किचड़े को जला कर भस्म कर देती
है ऐसे ज्ञानसूर्य अपने शिव पिता के साथ योग लगाकर उनकी शक्तिशाली किरणो से
अपने ऊपर चढ़े विकारों के किचड़े को समाप्त करने के लिए मैं आत्मा सर्वशक्तिवान,
ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों
की ज्वालास्वरूप किरणों की योगअग्नि में अपने 63 जन्मो के विकर्मों को दग्ध करने
के लिए उनके बिल्कुल समीप जा कर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर, शक्तियों के सागर अपने शिव पिता की
सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को निहारते हुए मैं स्पष्ट महसूस करती हूँ कि हर
किरण में से बहुत तेज अग्नि निकल रही है। इस अग्नि की तपन को मैं आत्मा स्पष्ट
महसूस कर रही हूँ और इस तपन के प्रभाव से अपने रूप को परिवर्तित होते हुए देख
रही हूँ। विकारों की अग्नि में जलने के कारण मेरा स्वरूप जो आयरन जैसा हो गया
था वो अब इस योग की अग्नि में निखर कर कुंदन जैसा बन रहा है।
➳ _ ➳ ज्ञान सूर्य बाबा से आ रही इन सर्वशक्तियों का स्वरूप प्रतिपल बदल रहा है
और इनकी तीव्रता भी बढ़ती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे शक्तियों का एक चक्र
मेरे चारों और निर्मित हो गया है जिसमे से अग्नि की लपटें निकल रही हैं और इन
लपटों की तेज गर्माहट से मुझ आत्मा द्वारा किये हुए विकर्मों की मैल पिघल रही
है। मेरे पुराने आसुरी स्वभाव, संस्कार इस योग अग्नि में जल कर भस्म हो रहें
हैं। जैसे - जैसे विकारों की कट उतर रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा लाइट होती जा
रही हूँ। मेरी चमक बढ़ती जा रही हैं। सच्चे सोने के समान मैं एक दम शुद्ध और
प्योर होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ देह भान में आने और अपने निज स्वरूप की विस्मृति के कारण मुझ आत्मा में
निहित वो सर्व गुण और सर्व शक्तियाँ जो मर्ज हो गए थे वो मेरे शिव पिता के
सहयोग से पुनः जागृत हो रहें हैं। अपने खोये हुए सातों गुणों और अष्ट शक्तियों
को पुनः प्राप्त कर मैं स्वयं को गुण स्वरूप और शक्ति स्वरूप अनुभव कर रही
हूँ। अपने सतोगुण और शक्तिसम्पन्न स्वरूप को पुनः प्राप्त कर मैं आत्मा अब
ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की और प्रस्थान करती हूँ। साकार सृष्टि रूपी
कर्मभूमि पर आकर अपने साकार तन में मैं आत्मा प्रवेश करती हूँ और भृकुटि पर
विराजमान हो कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं सदैव इस बात को स्मृति में रखती
हूँ कि मेरा यह ब्राह्मण जन्म ईश्वरीय देन है। खुद ईश्वर बाप ने ईश्वरीय सेवा
अर्थ मुझे यह अनमोल संगमयुगी ब्राह्मण जन्म गिफ्ट किया है। इसलिए मेरे इस
ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य और कर्तव्य सर्विसएबुल बन विश्व की सर्व आत्माओ का
कल्याण करना है। अपने इस कर्तव्य को पूरा करने और सर्विसएबुल बनने के लिए अब
मैं स्वयं पर पूरा अटेंशन देते हुए इस बात का पूरा ध्यान रखती हूँ कि मनसा, वाचा,
कर्मणा मुझ से ऐसा कोई कर्म ना हो जो विकर्म बनें।
➳ _ ➳ विकारों का अंशमात्र भी मुझ आत्मा में ना रहे इसके लिए योगबल से आत्मा को
तपाकर विकारों को भस्म करने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर कर रही हूँ। पुराने
विकारी स्वभाव संस्कारों को योग अग्नि में जलाकर भस्म करने के साथ - साथ नये
दैवी संस्कारो को अपने जीवन में धारण कर, सर्विसएबुल बन अपने संकल्प, बोल और
कर्म से अब मैं सबको आप समान बनाने की सेवा कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मै बेहद की दृष्टि, वृत्ति और स्थिति द्वारा सर्व के प्रिय बनने वाली डबल लाइट फरिश्ता हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं अपनी सूरत से बाप की सीरत दिखाकर समाप्ति कराने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ रोब को त्याग, रूहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी बनोः- सभी कुमार
सदा रूहानियत में रहते हो? रोब में तो नहीं आते? यूथ को रोब जल्दी आ जाता है।
यह समझते हैं हम सब कुछ जानते हैं, सब कर सकते हैं। जवानी का जोश रहता है।
लेकिन रूहानी यूथ अर्थात् सदा रूहाब में रहने वाले। सदा नम्रचित्त। क्योंकि
जितना नम्रचित्त होंगे उतना निर्माण करेंगे। जहाँ निर्मान होंगे वहाँ रोब नहीं
होगा, रूहानियत होगी। जैसे बाप कितना नम्रचित्त बनकर आते हैं, ऐसे फालो फादर।
अगर जरा भी सेवा में रोब आता तो वह सेवा समाप्त हो जाती है।
✺ "ड्रिल :- रोब को त्याग, रुहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी स्थिति का
अनुभव करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुहाने मौसम में, प्रकृति के बीच बहते हुए झरने के नीचे नहा रही
हूँ... अपने लंबे केश खोले, बालों को हवा में उछाल रही हूँ... और मैं एक जगह से
दूसरी जगह उछल-उछल कर अपनी खुशी का इजहार कर रही हूँ... तभी वहाँ मैं एक दृश्य
को देखती हूँ... एक माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार से नहला रही है... और बच्चा
बार बार माँ से हाथ छुडा रहा है... और माँ बार बार उस बालक को पकड़कर नहलाने लगती
है... मैं उनके इस दृश्य को और माँ के प्रयास को बड़े ध्यान से देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कुछ देर बाद मेरे मन में ये विचार आता है कि माँ कितनी विनम्र और
नम्रचित्त होती है बिना किसी रोब के अपना सारा जीवन बच्चे और परिवार की सेवा
में गुजार देती है... और बिना थके, बिना कुछ कहे बच्चे की हर तमन्ना पूरी करती
है... और बच्चे का सुंदर भविष्य का निर्माण करती है... ये सोचते-सोचते मेरा मन
अचानक एक बिंदु रूप लिए आकाश में उड़ जाता है... और मैं उड़ते-उड़ते मधुबन पहुँच
जाती हूँ... जहाँ सभी सेवाधारियों को बिना किसी रोब के रूहानियत से सेवा करते
हुए देखती हूँ... कुछ दूर जाने के बाद मैं बाबा के कमरे के पास आकर बैठ जाती
हूँ... और बाहर से ही बाबा के कमरे को निहारती हूँ...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरे पास बाबा आते हैं और बाबा मुझे छूते हैं... बाबा के छूते
ही मैं फ़रिश्ता रूप में आ जाती हूँ... बाबा मुझे अपने साथ हाथ पकड़कर अपने कमरे
में ले जाते है... मैं बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... और बाबा की आँखों को
निहारती हूँ... देखते देखते मैं अनुभव करती हूँ कि बाबा मुझे समझा रहे हैं...
बाबा मुझसे कहते हैं... बच्चे अगर सेवा में निरन्तर आगे जाना है और सच्चा
सेवाधारी स्थिति का अनुभव करना है तो हमेशा याद रहे... किसी भी प्रकार की सेवा
करते समय हमेशा रूहानियत में रहो... सेवा में कभी भी रोब नहीं आना चाहिए...
➳ _ ➳ और बाबा मुझसे कहते है... बच्चे आजकल के युवा जल्दी ही सेवा करते रोब में
आ जाते है... और अपने आपको सेवाधारी कहते है... नहीं, अगर सेवा में हर छोटी बात
पर रोब दिखाओगे तो ये सेवा नहीं मानी जायेगी... सेवा में सदा नम्रचित्त रहो...
विनम्रता से हम पत्थर रूपी कड़े संस्कारों वाली आत्मा को भी फूल के समान कोमल बना
सकते हैं... अगर सेवा में जरा भी रोब आया तो वो सेवा उसी समय समाप्त हो जायेगी...
बाबा की ये बातें सुनकर और अपने आपसे वा बाबा से ये वादा करके कि मैं आज से
हमेशा सभी प्रकार की सेवा सिर्फ और सिर्फ रूहानियत से करूँगी... हर आत्मा से
नम्रचित्त रहकर उन्हें रूहानियत का अनुभव कराउंगी... मैं वापिस झरने के नीचे आ
जाती हूँ... और सच्ची सेवाधारी की स्थिति के लिए तैयार हो जाती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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