━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 16 / 12 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ बुधी को विचार सागर मंथन में बिजी रखा ?
➢➢ अपने अवस्था चल अडोल बनायी ?
➢➢ सदा उमंग उत्साह में रह मन से ख़ुशी के गीत गाते रहे ?
➢➢ हर संकल्प पर अविनाशी गवर्नमेंट की स्टाम्प लगा अटल रहे ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ आत्मिक स्वरूप में रहने से लौकिक में रहते भी अलौकिकता का अनुभव करेंगे। अपने को आत्मिक रूप में न्यारा समझना है। कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रूप में कार्य करेंगे। इससे ही मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक प्रिय बनेंगे।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं बापसमान शक्तिशाली आत्मा हूँ"
〰✧ सदा स्वयं को शक्तिशाली आत्मा अनुभव करते हो? शक्तिशाली आत्मा का हर संकल्प शक्तिशाली होगा। हर संकल्प में सेवा समाई हुई हो। हर बोल में बाप की याद समाई हो। हर कर्म में बाप जैसा चरित्र समाया हुआ हो। तो ऐसी शक्तिशाली आत्मा अपने को अनुभव करते हो?
〰✧ मुख में भी बाप, स्मृति में भी बाप और कर्म में भी बाप के चरित्र - इसको कहा जाता है बाप समान शक्तिशाली। ऐसे हैं? एक शब्द 'बाबा' लेकिन यह एक ही शब्द जादू का शब्द है। जैसे जादू में स्वरूप परिवर्तन हो जाता वैसे एक बाप शब्द समर्थ स्वरूप बना देता है।
〰✧ गुण बदल जाते, कर्म बदल जाते, कर्म बदल जाते, बोल बदल जाते। यह एक शब्द, जादू का शब्द है। तो सभी जादूगर बने हो ना। जादू लगाना आता है ना। बाबा बोला और बाबा का बनाया, यह है जादू।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ आज बहुत बातें सुनाई है। अभी एक सेकण्ड में एकदम मन और बुद्धि को बिल्कुल प्लेन कर एक बाप से सर्व संबंधों
का, बाप ही संसार है - चाहे व्यक्ति संबंध, चाहे प्राप्तियाँ, यही संसार है। तो एक ही बाप संसार है, इस बाप की याद में, इस रूप में, इस रस में, इस अनुभव मे लवलीन हो जाओ। (बापदादा ने 3 मिनट ड़िल कराई) अच्छा।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ फरिश्ते अर्थात् अपने फ्युचर द्वारा अन्य आत्माओं के फ्युचर बनाने वाले सदा अपना फ्युचर सामने रहता है? जितना निमित्त बनी हुई आत्मायें अपने फ्युचर को सदा सामने रखेंगी उतना अन्य आत्माओं को भी अपना फ्युचर बनाने की प्रेरणा दे सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट नहीं तो दूसरों को भी स्पष्ट बनाने का रास्ता नहीं बता सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट है? महाराजा या महारानी- जो भी बने, लेकिन उससे पहले अपना भविष्य फ़रिश्तेपन का, कर्मातीत अवस्था का- वह सामने स्पष्ट आता है? ऐसा अनुभव होता है कि मैं हर कल्प में फ़रिश्ते स्वरूप में ये पार्ट बजा चुकी हूँ और अभी बजाना है? वो झलक सामने आती है? जैसे दर्पण में अपने स्वरूप की झलक देखते हो ऐसे नॉलेज के दर्पण में अपने पुरुषार्थ से फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है? जब तक फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई नहीं देगे तब तक भविष्य भी स्पष्ट नहीं होगा। यह संकल्प आता ही रहेगा कि शायद मैं ये बनूँ या वो बनूँ? लेकिन फ़रिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देगी तो वह भी स्पष्ट दिखाई देगी। तो वह दिखाई देता है या अभी घूंघट में है? जैसे चित्र का अनावरण कराते हो तो अपने फ़रिश्ते स्वरूप का अनावरण कब करेंगे? आपे ही करेंगे या चीफ़ गेस्ट को बुलायेंगे? यह पुरुषार्थ की कमज़ोरी का पर्दा हटाओ तो स्पष्ट फ़रिश्ता रूप हो जायेगा।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- देह-अभिमान की बीमारी छोड़ प्रीत बुद्धि रखना"
➳ _ ➳ परमधाम की ऊंची स्थिति में स्थित मैं आत्मा... बाबा के समीप पहुँच जाती
हूँ... सुनहरा लाल... तेजोमय प्रकाश छाया है जहाँ... वह निज धाम हैं मेरा...
बिंदुओ का घर... बिंदुओ का बाप बिन्दुरुप में स्थित है जहाँ... सर्वत्र शांति
ही शांति हैं... निःसंकल्पता अपना साम्राज्य फैलाएं हैं... अखुट शांति की किरणों
से परमधाम सजा हुआ हैं... और मैं आत्मा अखुट शांति के साम्राज्य की मालिक बन
गई हूँ... बिन्दुरूपी बाप की किरणों को अपने मे समाती मैं आत्मा... बाबा के
संग चलती हूँ... सूक्ष्म वतन की ओर... दो बिंदु का सफर... एक बाप... एक बच्चा...
पहुँचते हैं सूक्ष्म वतन में... बाबा का ब्रह्मा तन में प्रवेश का अलौकिक नजारा
देख कर मैं आत्मा भावविभोर हो जाती हूँ...
❉ बापदादा ने अपनी प्यार भरी दृष्टि से मुझ आत्मा को फरिश्ता स्वरूप में इमर्ज
कर बोले:- "बच्ची... कौनसी दुनिया मे खो गई हों ? क्या मेरे साथ हों ? साथ चलते
चलते कहीं साथ छूट तो नहीं गया ? बिंदु देश से स्थूल देश मे आकर अपनी पहचान को
ही भूला दिया ? मुझ को भी भूल गई ? अब विस्मृति रूपी निंद्रा को तोड़... उगते
सूरज की पहली किरणों रूपी ज्ञान को जान... मुझ एक बाप को जान... अपनी अस्तित्व
को जान... इस स्थूल जगत के मोह-माया से मुक्त्त हो जाओ..."
➳ _ ➳ बापदादा के हाथो में अपने हाथो को झुलाती... बाबा को देख मंद मंद
मुस्कुरा कर मैंने कहा :- "बाबा... पहले मैं इस मायावी जगत में खो गई थी... अब
तो बस आप मे ही खो रही हूँ... संसार रूपी हद के समुंदर को पार कर... बिन्दुरूपी
बेहद के महासागर में समा रही हूँ... अपने स्वधर्म... सुख... शांति... और
पवित्रता से... स्थूल जगत के मोह माया को... विकारों को... परास्त कर रही
हूँ..." बापदादा से आती हुई रंगबिरंगी किरणों के झरनों में अपने आप को सदा
बहार बनाती जा रही हूँ..."
❉ मुझ आत्मा को अपने किरणों से भरपूर करते बाबा बोले :- "मीठे बच्चे... संसार...
विषय वैतरणी नदी समान है... 63 जन्मो से इस नदी में डूब रहे हो... अब इस
संगमयुग में... सच्ची प्रीत सिर्फ मुझसे रखो... मनसा... वाचा... कर्मणा... मेरे
बन जाओ... पवित्रता की राह पर चलो... अपने स्वधर्म में टिक जाओ... अपने
स्वरूप को पहचानो... तुम यह शरीर नहीं... शरीर को चलाने वाली आत्मा हो...
शक्तियों की महा ज्योति हो..."
➳ _ ➳ अपने असली स्वधर्म... शक्तियो... को जान मैं आत्मा... अपने स्वरूप में
आपेही स्थित हो कर अपने संस्कारो को बापदादा की अमानत समझ कर... बाबा से कह रही
हूँ :- "संभाल कर जतन कर रही हूँ मेरे बाबा... तेरी श्रीमत का... कदम... कदम
पर तुझे ही पा रही हूँ मैं... तुझे ही महसूस कर रही हूँ... 63 जन्मों के विकारों
से माया के जंजीरो से... खुद को मुक्त्त कर रही हूँ... अपनी असली पहचान का
स्वरूप बन रही हूँ मेरे बाबा..."
❉ मेरी प्यार भरी बातों से बापदादा मुस्कुरा कर बोले :- "मेरी लाडली फूल बच्ची...
मेरे रूप में समा जाओ... देह अभिमान के चोले से बाहर निकल... आत्मिक स्थिति की
अधिकारी बन जाओ... सर्वस्व समर्पण कर... बेहद के सर्वस्व की साम्राज्ञी बन जाओ...
मैं आया हूँ तुम्हे ले जाने... दुःखो से छुड़ाने... मोह- माया से ... विकारों
से... मुक्त्त कर परिस्तान की परी बनाने... अपने असली धाम... परमधाम में स्थित
हो जाओ..."
➳ _ ➳ बापदादा के हाथों में अपना हाथ रखती में फरिश्ता... उसकी शक्तियों को...
अपने में समाती मैं आत्मा... बाबा से कहती हूँ :- "बाबा... आप से मिली शिक्षाओं
को... सर आँखों पर रख... नखशिख पालन कर रही हूँ... अपने स्वधर्म में स्थित हो
कर... अपने संगमयुग को... एक बाप की श्रीमत पर चल... आप की दिलतख्तनशीन बन रही
हूँ... अंतिम जन्म में... मोहजीत... मायाजीत... जगतजीत का वरदानी तिलक...
बापदादा के हाथों... लगवाया हैं... इस स्मृति को सदैव मैं आत्मा अपने मन मंदिर
में जागती ज्योत बनाकर रख रही हूँ..
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अपने आपको सदा सेफ रखने के लिए बुद्धि को विचार सागर मंथन में बिजी रखना
है"
➳ _ ➳ सागर के तले में छुपी अनमोल वस्तुयों जैसे सीप, मोती आदि को पाने के लिए
एक गोताखोर को पहले उसकी गहराई में तो जाना ही पड़ता है। जब तक गोताखोर पानी के
ऊपरी हिस्से पर तैरता रहता है तब तक तेज लहरों, पानी की थपेड़ों और तूफानों का
भी उसको सामना करना पड़ता है परन्तु यदि वह इन सबकी परवाह किये बिना पानी की
गहराई में उतरता चला जाता है तो नीचे गहराई में जा कर हर चीज शांन्त हो जाती है
और वह सागर के तले में छुपी उन चीजों को प्राप्त कर लेता है।
➳ _ ➳ इस दृश्य को मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देखते - देखते मैं विचार करती हूँ
कि जैसे स्थूल सागर की गहराई में अनमोल सीप, मोती आदि छुपे होते हैं इसी तरह से
स्वयं ज्ञान सागर भगवान द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान में भी कितने अनमोल खजाने
छुपे हैं बस आवश्यकता है इन खजानों को ढूंढने के लिए इस अनमोल ज्ञान की गहराई
में जाने की अर्थात विचार सागर मंथन करने की। मलाई से भी मक्खन तभी निकलता है
जब उसे पूरी मेहनत के साथ मथा जाता है तो यहां भी अगर विचार सागर मन्थन नही
करेंगे तो ज्ञान रूपी मक्खन का स्वाद भी नही ले सकेंगे। इसलिये विचार सागर
मन्थन कर, ज्ञान की गहराई में जा कर, फिर उसे धारणा में लाकर अनुभवी मूर्त बनना
ही ज्ञान सागर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का वास्तविक यूज़ है।
➳ _ ➳ हम बच्चो को यह ज्ञान दे कर, हमारे दुखदाई जीवन को सुखदाई, मनुष्य से
देवता बनाने के लिए स्वयं भगवान को इस पतित दुनिया, पतित तन में आना पड़ा। तो ऐसे
भगवान टीचर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का हमे कितना रिगार्ड रखना चाहिए। ज्ञान
की एक - एक प्वाइंट पर विचार सागर मंथन कर उसे धारणा में ले कर आना और फिर औरों
को धारण कराना ही भगवान के स्नेह का रिटर्न है। और भगवान के स्नेह का रिटर्न
देने के लिए ज्ञान का विचार सागर मन्थन कर, सेवा की नई - नई युक्तियाँ अब मुझे
निकाल औरों को भी यह ज्ञान देकर उनका भाग्य बनाना है मन ही मन स्वयं से यह दृढ़
प्रतिज्ञा कर ज्ञान सागर अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में मैं
अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान
सूर्य शिवबाबा मेरे सिर के ठीक ऊपर आ कर ज्ञान की शक्तिशाली किरणों से मुझे
भरपूर कर रहें हैं। बाबा से आ रही सर्वशक्तियो रूपी किरणों की मीठी फुहारें
जैसे ही मुझ पर पड़ती हैं मेरा साकारी शरीर धीरे - धीरे लाइट के सूक्ष्म आकारी
शरीर मे परिवर्तित हो जाता हैं और मास्टर ज्ञान सूर्य बन लाइट की सूक्ष्म आकारी
देह धारण किये मैं फ़रिशता ज्ञान की रोशनी चारों और फैलाता हुआ सूक्ष्म लोक में
पहुँच जाता हूँ और जा कर बापदादा के सम्मुख बैठ जाता हूँ।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों को मुझ में भरपूर करने के साथ - साथ अब बाबा मुझे
विचार सागर मन्थन का महत्व बताते हए कहते हैं कि "जितना विचार सागर मंथन करेंगे
उतना बुद्धिवान बनेंगें और अच्छी रीति धारणा कर औरों को करा सकेंगे"। बड़े
प्यार से यह बात समझा कर बाबा मीठी दृष्टि दे कर परमात्म बल से मुझे भरपूर कर
देते हैं। मैं फ़रिशता परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर औरों को आप समान बनाने
की सेवा करने के लिए अब वापिस अपने साकारी तन में लौट आता हूँ।
➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अपने परमशिक्षक ज्ञान
सागर शिव बाबा द्वारा दिये जा रहे ज्ञान को गहराई से समझने और उसे स्वयं में
धारण कर फिर औरों को धारण कराने के लिए अब मैं एकांत में बैठ विचार सागर मंथन
कर सेवा की नई - नई युक्तियाँ सदैव निकालती रहती हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
मैं सदा उमंग-उत्साह में रहने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं खुशी के गीत गाने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं अविनाशी खुशनसीब आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
मैं आत्मा हर संकल्प पर अविनाशी गवर्नमेंट की स्टैंप लगाती हूँ ।
✺ मैं आत्मा सदा अटल रहती हूँ ।
✺ मैं समर्थ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. कौन-सी विशेष कमी है जिसके कारण आधी माला भी रूकी हुई है? तो चारों ओर के बच्चे हर एरिया, एरिया के इमर्ज करते गये, जैसे आपके जोन हैं ना, ऐसे ही एक-एक जोन नहीं, ]जोन तो बहुत-बहुत बड़े हैं ना। तो एक-एक विशेष शहर को इमर्ज करते गये और सबके चेहरे देखते गये, देखते-देखते ब्रह्मा बाप ने कहा कि एकविशेषता अभी जल्दी-से-जल्दी सभी बच्चे धारण कर लेंगे तो माला तैयार हो जायेगी। कौन सी विशेषता? तो यही कहा कि जितनी सर्विस में उन्नति की है, सर्विस करते हुए आगे बढ़े हैं। अच्छे आगे बढ़े हैं लेकिन एक बात का बैलेन्स कम है। वह यही बात कि निर्माण करने में तो अच्छे आगे बढ़ गये हैं लेकिन निर्माण के साथ निर्मान - वह है निर्माण और वह है निर्मान। मात्रा का अन्तर है। लेकिन निर्माण और निर्मान दोनों के बैलेन्स में अन्तर है। सेवा की उन्नति में निर्मानता के बजाए कहाँ-कहाँ, कब-कब स्व-अभिमान भी मिक्स हो जाता है। जितना सेवा में आगे बढ़ते हैं, उतना ही वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, चाल में निर्मानता दिखाई दे, इस बैलेन्स की अभी बहुत आवश्यकता है।
➳ _ ➳ 2. ऐसे नहीं सोचो - यह तो है ही ऐसा, यह तो बदलना नहीं है। जब प्रकृति को बदल सकते हो, एडजेस्ट करेंगे ना प्रकृति को? तो क्या ब्राह्मण आत्मा को एडजेस्ट नहीं कर सकते हो? अगेन्स्ट को एडजेस्ट करो, यह है - निर्माण और निर्मान का बैलेन्स। सुना!
➳ _ ➳ अभी तक जो सभी सम्बन्ध-सम्पर्क वालों से ब्लैसिंग मिलनी चाहिए वह ब्लैसिंग नहीं मिलती है। और पुरुषार्थ कोई कितना भी करता है, अच्छा है लेकिन पुरुषार्थ के साथ अगर दुआओं का खाता जमा नहीं है तो दाता-पन की स्टेज, रहमदिल बनने की स्टेज की अनुभूति नहीं होगी। आवश्यक है - स्व पुरुषार्थ और साथ-साथ बापदादा और परिवार के छोटे-बड़ों की दुआयें। यह दुआयें जो हैं - यह पुण्य का खाता जमा करना है। यह मार्क्स में एडीशन होती है। कितनी भी सर्विस करो, अपनी सर्विस की धुन में आगे बढ़ते चलो,लेकिन बापदादा सभी बच्चों में यह विशेषता देखने चाहते हैं कि सेवा के साथ निर्मानता, मिलनसार - यह पुण्य का खाता जमा होना बहुत-बहुत आवश्यक है। फिर नहीं कहना कि मैंने तो बहुत सर्विस की, मैंने तो यह किया, मैने तो यह किया, मैने तो यह किया, लेकिन नम्बर पीछे क्यों? इसलिए बापदादा पहले से ही इशारा देते हैं कि वर्तमान समय यह पुण्य का खाता बहुत-बहुत जमा करो।
✺ ड्रिल :- "निर्माणता और निर्मानता का बैलेन्स रखना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अमृतवेले मेरे मीठे बापदादा से मिलन मना रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा में ऐसे शक्तियां भर रहें हैं जैसे खाली गुब्बारे में गैस भर रहें हों... मैं आत्मा इन शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो स्वयं को बहुत ही पावरफुल और हल्का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अपना फरिश्ता रूप धारण कर ग्लोब पर बैठ जाती हूँ... योगयुक्त होकर... बाबा से प्राप्त इन शक्तिशाली किरणों को समस्त विश्व की आत्माओं पर... प्रकृति के पांचों तत्वों पर प्रवाहित कर रही हूँ...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा साकार वतन में... अपनी देह में प्रविष्ट होकर पार्ट बजा रही हूँ... इन आँखों से इस ड्रामा को देख रही हूँ... साक्षीपन के स्वमान में रह हरेक के पार्ट को देख रही हूँ... याद आ रही है बापदादा की श्रीमत... बच्चे- बोल में निर्मान बनो... निर्माणता ही महानता है... मुख से ऐसे बोल बोलो जो सब कहे कि अभी और सुनाओ... कभी भी अभिमान के बोल बोलकर... दूसरों को दुःख नहीं दो... कष्ट नहीं दो...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बापदादा की श्रीमत फॉलो कर... अपने स्वभाव को निर्मल... शांत बना रही हूँ... मुझे हर कार्य में सफलता प्राप्त हो रही है... शुद्ध... शीतल... निर्मल स्वभाव धारण कर... मैं आत्मा हरेक आत्मा की विशेषता को देख रही हूँ... कभी भी मन में यह ख्याल नही लाती कि... यह आत्मा यह कार्य नहीं कर सकती... अपितु सकरात्मक सोच रखकर उस आत्मा को उमंग उत्साह दिलाती हूँ कि तुम यह कार्य बहुत अच्छे से कर सकते हो... सफलता तो तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है...
➳ _ ➳ निमित्तभाव... निर्माणभाव... और निर्मल वाणी रख सर्व आत्माओं को निर्मान और निर्माण स्थिति में रह मास्टर मुक्तिदाता बन सभी को मुक्ति... जीवनमुक्ति का रास्ता दिखा रही हूँ... हरेक आत्मा के प्रति कल्याण की भावना... ऊँचा उठाने की भावना... मधुरता... निर्माणता का स्वभाव धारण कर... व्यवहार कर रही हूँ... सभी आत्माओं के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना... रहम की भावना कूट कूट कर भर गई है... मेरी दृष्टि... वृति... कृति में निर्मानता की रूहानियत झलक रही है...
➳ _ ➳ जो भी आत्माऐं मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आ रही हैं उन्हें मुझ आत्मा से पॉजिटिव वाइब्रेशनस मिल रही हैं... बहुत शांति की अनुभूति हो रही है... उनके मुख से मुझ आत्मा के लिये आर्शीवचन निकल रहें हैं... बहुत ब्लेसिंग्स मिल रहीं हैं... जिससे दुआओं का... पुण्य का खाता जमा हो रहा है... मैं आत्मा बाबा के खजानों के अधिकार के नशे में रह... उमंग उत्साह के पंख लगा अपनी निर्मान स्थिति द्वारा बाबा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━