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❍ 22 / 03 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मण हैं" - इस नशे में रहे ?*
➢➢ *ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरकर दान दी ?*
➢➢ *बाप के प्यार में अपनी मूल कमजोरी कुर्बान की ?*
➢➢ *स्वमान की सीट पर सेट रह सर्व को सम्मान दिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ आप गोप-गोपियों के चरित्र गाये हुए हैं - बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख लेना और मग्न रहना अथवा सर्व-सम्बन्धों के लव में लवलीन रहना । *जब कोई अति स्नेह से मिलते हैं तो उस समय स्नेह के मिलन के यही शब्द होते कि एक दूसरे में समा गये या दोनों मिलकर एक हो गये । तो बाप के स्नेह में समा गये अर्थात् बाप का स्वरूप हो गये ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विशेष पार्टधारी हूँ"*
〰✧ सदा अपने विशेष पार्ट को देख हर्षित रहते हो? *ऊंचे ते ऊंचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी हो। विशेष पार्टधारी का हर कर्म स्व्त: ही विशेष होगा क्योंकि स्मृति में है कि-मैं विशेष पार्टधारी हूँ। जैसे स्मृति वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है। हर कर्म, हर बोल विशेष। साधारणता समाप्त हुई।*
〰✧ *विशेष पार्टधारी सभी को स्वत: आकर्षित करते हैं। सदा इस स्मृति में रहो कि हमारे इस विशेष पार्ट द्वारा अनेक आत्मायें अपनी विशेषता को जानेंगी। किसी भी विशेष आत्मा को देख स्वयं भी विशेष बनने का उमंग आता है।*
〰✧ कहाँ भी रहो, कितने भी मायावी वायुमण्डल में रहो लेकिन विशेष आत्मा हर स्थान पर विशेष दिखाई दे। जैसे हीरा मिट्टी के अन्दर भी चमकता दिखाई देता। हीरा- हीरा ही रहता है। *ऐसे कैसा भी वातावरण हो लेकिन विशेष आत्मा सदा ही अपनी विशेषता से आकर्षित करेगी। सदा याद रखना कि - हम विशेष युग की विशेष आत्मायें हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बहुत समय से न्यारा - पन नहीं होगा तो यही शरीर का प्यार पश्चाताप में लायेगा*। इसलिए इससे भी प्यारा नहीं बनना है। इससे जितना न्यारा होंगे उतना ही विश्व का प्यारा बनेंगे। इसलिए अब यही पुरुषार्थ करना है।
〰✧ *ऐसे नहीं समझना है कि कोई व्याधि आदि का रूप देखने में आयेगा तब जायेंगे, उस समय अपने को ठीक कर देंगे*। ऐसी कोई बात नहीं है। पीछे ऐसे - ऐसे अनोखे मृत्यु बच्चों के होने है जो ' सन शोज फादर ' करेगा। सभी का एक जैसा नहीं होगा।
〰✧ कई ऐसे बच्चे भी है जिन्हों का ड्रामा के अन्दर इस मृत्यु के अनोखे पार्ट का गायन ' सन शोज फादर ' करेगा। यह भी वही कर सकेंगे जिनमें एक विशेष गुण होगा। यह पार्ट भी बहुत थोंडों का है। अन्त घडी भी बाप का शो होता रहेगा। *ऐसी आत्मायें जरूर कोई पावरफुल होंगी जिनका बहुत समय से अशरीरी रहने का अभ्यास होगा वह एक सेकण्ड में अशरीरी हो जायेगा*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *मनन में रहने से, अन्तर्मुखी रहने से बाहरमुखता की बातें डिस्टर्ब नहीं करेगी। देह-अभिमान से गैर हाज़िर रहेंगे।* जैसे कोई अपनी सीट से गैर हाज़िर होगा तो लोग लौट जायेंगे ना। आप भी मनन में अथवा अन्तर्मुखी रहने से देह-अभिमान की सीट को छोड़ देते हो, *फिर माया लौट जायेगी, क्योंकि आप अन्तर्मुखी अर्थात् अन्डरग्राउण्ड हो।* आजकल अण्डरग्राउण्ड बहुत बनाते जाते हैं सेफ्टी के लिए। *तो आपके लिए भी सेफ्टी का साधन यही अन्तर्मुखता है अर्थात् देह-अभिमान से अण्डरग्राउण्ड।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर चमकती हुए मणि इस देह से निकलकर पहुँच जाती हूँ वतन में... पारसनाथ बाबा के पास... पारसनाथ बाबा के हाथों से निकलती सुनहरी किरणों से मुझ आत्मा के लौह समान विकारी संस्कार... सुनहरे दिव्य संस्कारों में परिवर्तित हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा, मुझ अविनाशी आत्मा की झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहे हैं...
❉ *प्यारे ज्ञान सागर बाबा ज्ञान की लहरों में मुझे लहराते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो... और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ...* ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक-एक ज्ञान रत्न को संजोकर दूसरों की झोली भरते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ... और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान की रोशनी से मेरे जीवन को जगमगाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो... ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते रहो...* और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार कर आनंद मगन होकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ...* सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सौभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...”
❉ *ज्ञान संजीवनी की खुशबू से मुझ आत्मा को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बैठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर जाओ... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर दो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल होकर औरों पर भी ज्ञान धन लुटाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... *मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ... मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बहुत - बहुत मीठा बनना है*"
➳ _ ➳ आप समान अति मीठा बनाने वाले, मेरे अति मीठे शिव बाबा की मीठी याद मेरे अंदर एक ऐसी मिठास घोल देती है जिसमे विकारों की कड़वाहट घुलने लगती है। *अपने ऐसे अति मीठे बाबा की मीठी याद में बैठी मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ परमधाम से सीधे अपने ऊपर गिरती उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों के मीठे झरने के नीचे स्वयं को अनुभव करती हूँ*। सातों गुणों की रंग बिरंगी किरणों का यह मधुर झरना मेरे तन - मन को शीतलता प्रदान कर रहा है। शीतलता की इसी गहन अनुभूति के बीच मैं अनुभव करती हूँ कि मुझ आत्मा को अपनी शीतल किरणों से शीतल बनाने वाले मेरे फर्स्टक्लास मीठे बाबा जैसे परमधाम से नीचे मेरे पास आ रहें हैं।
➳ _ ➳ उनकी उपस्थिति से उनकी समीपता का एहसास मुझे स्पष्ट अनुभव होने लगा है। अपने सिर के बिल्कुल ऊपर मुझे उनकी छत्रछाया की अनुभूति हो रही है। मेरे पूरे कमरे में जैसे शीतलता की मीठी लहर दौड़ रही है। पूरे घर मे मेरे मीठे शिव बाबा के शक्तिशाली वायब्रेशन फैल रहें हैं। *एक अति मीठी सुखदाई स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। यह स्थिति मुझे देह और देह के झूठे भान से मुक्त कर, लाइट माइट स्वरूप का अनुभव करवा रही है*। धीरे - धीरे मैं इस साकारी देह के बंधन से स्वयं को मुक्त कर अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर रही हूँ।
➳ _ ➳ मेरा यह लाइट का फ़रिशता स्वरूप मुझे धरती के आकर्षण से मुक्त कर, ऊपर की ओर ले जा रहा है। मैं स्वयं को धरती से ऊपर उड़ता हुआ अनुभव कर रहा हूँ। छत को पार करते हुए अब मैं खुले आकाश के नीचे पूरी दुनिया मे विचरण कर रहा हूँ। धीरे - धीरे अब मैं आकाश को भी पार करता हुआ लाइट की सूक्ष्म आकारी फरिश्तो की दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ। इस अति सुन्दर फरिश्तो की दुनिया मे विचरण करता हुआ अब मैं स्वय को अव्यक्त ब्रह्मा बाप के सामने देख रहा हूँ। *फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम बाला करने वाले अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के सामने बैठ मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करता हूँ कि मुझे भी ब्रह्मा बाप समान फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम अवश्य बाला करना है*।
➳ _ ➳ इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमें भरने के लिए अब परमधाम से मेरे अति मीठे शिव बाबा फरिश्तों की इस दुनिया मे प्रवेश करते हैं और आ कर ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं। *बाप दादा अपने वरदानी हस्तों से अब मुझे विजयी भव का वरदान देते हुए, अपनी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर प्रवाहित करते हुए मुझ आत्मा में बल भर रहें हैं ताकि कदम - कदम पर फॉलो फादर कर, अपने शिव बाबा का नाम मैं बाला कर सकूँ*। बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि से मेरे पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और उसके स्थान पर फर्स्टक्लास मीठा और बहुत - बहुत रॉयल बनने के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं।
➳ _ ➳ आसुरी संस्कारों का त्याग कर इन दैवी संस्कारों को ही अब मुझे अपने जीवन में धारण करने का पुरुषार्थ करना है, इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने लाइट माइट स्वरूप को अपने ब्राह्मण स्वरूप में मर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण जीवन के नियमो और मर्यादाओं पर चलते हुए अब मैं हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो कर रही हूँ। *अपने मीठे शिव बाबा की श्रीमत पर कदम - कदम चलते हुए अब मैं आसुरी अवगुणों का त्याग करती जा रही हूँ। मेरे मुख से अब किसी भी आत्मा को दुख देने वाले कड़वे बोल नही निकलते। बाप समान सबको सुख देने वाले मीठे बोल ही अपने मुख से बोलते हुए अब मैं सबके जीवन को खुशियों की मिठास से भर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप के प्यार में अपनी मूल कमजोरी कुर्बान करने वाली ज्ञानी तू आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं स्वमान की सीट पर स्थित रहकर सर्व को सम्मान देने वाली माननीय आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. वर्तमान समय मन की एकाग्रता, एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी। अभी रिजल्ट में देखा कि मन को एकाग्र करने चाहते हो लेकिन बीच-बीच में भटक जाता है। एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी। मन भटकता है, चाहे व्यर्थ बातों में, चाहे व्यर्थ संकल्पों में, चाहे व्यर्थ व्यवहार में। जैसे कोई-कोई को शरीर से भी एकाग्र होकर बैठने की आदत नहीं होती है, कोई को होती है। तो *मन जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा एकाग्र होना इसको कहा जाता है मन वश में। एकाग्रता की शक्ति, मालिकपन की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देती है। युद्ध नहीं करनी पड़ती है। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है। स्वतः होगी, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है।* ब्रह्मा बाप से प्यार है ना - तो ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति रहती है क्योंकि एकाग्रता अर्थात् स्वमपन की स्थिति। फरिश्ता स्थिति स्वमान है।
➳ _ ➳ 2. मन के एकाग्रता की शक्ति सहज फरिश्ता बना देगी।
➳ _ ➳ 3. *एकाग्रता की शक्ति को बढ़ओ। मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहो। जब सेट होते हैं तो अपसेट नहीं होते, सेट नहीं हैं तो अपसेट होते हैं। तो भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ स्थितियों की सीट पर सेट रहो, इसको कहते हैं एकाग्रता की शक्ति।*
✺ *ड्रिल :- "एकाग्रता की शक्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान चमकता हुआ सितारा हूँ... मैं मन-बृद्धि द्वारा एक नदी में पहुँचती हूँ... वहाँ मैं आत्मा रूपी नाविक एक नाव को चला रही हूँ... वह कमजोर होने के कारण काफी धीमी गति से चल रही हैं...* पानी की लहरे बहुत तेज़ हैं... धीरे-धीरे कलियुग रूपी रात्रि हो रही हैं... अचानक से आँधी तूफान आने शुरू हो रहे हैं... मेरी मन रूपी नाव स्थिर नहीं हो पा रही हैं...
➳ _ ➳ नदी की लहरें बहुत तेज़ हो चुकी हैं... अगर यह नाव डूब गई तो मैं भी डूब जाऊँगी... मैं चीख-चीखकर अपनी जान बचाने के लिये पुकार रही हूँ परन्तु दूर-दूर तक कोई नहीं हैं... *अचानक से एक बड़ी-सी नाव मेरे सामने से गुज़रती हैं... उस नाव को एक राजा चला रहे हैं... परन्तु उनकी नाव पर तूफान का कोई असर नहीं पड़ रहा हैं...*
➳ _ ➳ उन्होंने अपना हाथ मदद के लिए आगे बढ़ाया... मैंने इशारे से साफ इंकार कर दिया... उन्होंने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया... *मैंने मुड़कर देखा कि मेरी मन रूपी नाव उन्होंने अपनी नाव से बांध रखी हैं... मुझे यकीन हो गया कि यह कोई आम राजा नहीं हैं... उन्होंने बिना कुछ कहे अपना परिचय इशारों में दे दिया हैं... यह तो जरूर परमात्मा हैं... अब मुझे पाँच हज़ार साल पहले की स्मृतियाँ याद आ रही हैं...*
➳ _ ➳ *उनकी भृकुटी से तेज़ लाल रोशनी मुझ पर पड़ रही हैं... वह शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, शक्ति, आनंद और ज्ञान की किरणें मुझ पर न्यौछावर कर रहे हैं... मैं आठो शक्तियों को अपने अंदर महसूस कर रही हूँ...* चारों ओर प्रकाश होता जा रहा हैं... अब मेरी मन रूपी नाव स्थिर रहती हैं... अब मन व्यर्थ बातों में, व्यर्थ संकल्पों में, व्यर्थ व्यवहार में भटकता नहीं हैं... स्थिर रहता हैं...
➳ _ ➳ *मुझे अब मालिकपन का अहसास हो रहा हैं... विकारों से युद्ध नहीं करनी पड़ती हैं... एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है... अब मेहनत नहीं करनी पड़ती... स्वतः ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति होती हैं...* मैं मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहती हूँ... रोज़ाना भिन्न-भिन्न स्वमान को धारण करती हूँ... मुझे एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति हो रही हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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