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 25 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भाई भाई की दृष्टि परिवर्तित की ?*

 

➢➢ *त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो हर कर्म किया ?*

 

➢➢ *सर्व शक्ति व् ज्ञान संपन्न अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बीज रूप स्थिति में रह अनेक आत्माओं में बाप की पहचान का बीज डाला ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  एकाग्रता अर्थात् एक ही श्रेष्ठ संकल्प में सदा स्थित रहना। जिस एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है। एकाग्रता को बढ़ाओ तो सर्व प्रकार की हलचल समाप्त हो जायेगी। *एकाग्रता के आधार पर जो वस्तु जैसी है, वैसी स्पष्ट देखने में आयेगी। ऐसी एकाग्र स्थिति में स्थित होने वाला स्वयं जो है, जैसा है अथवा जो वस्तु जैसी है वैसी स्पष्ट अनुभव होगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं ब्राह्मण सो फरिश्ता हूँ"*

 

   सभी अपने को ब्राह्मण सो फरिश्ता समझते हो? अभी ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण से फरिश्ता बनने वाले हैं फिर फरिश्ता सो देवता बनेंगे -वह याद रहता है? *फरिश्ता बनना अर्थात् साकार शरीरधारी होते हुए लाइट रूप में रहना अर्थात् सदा बुद्धि द्वारा ऊपर की स्टेज पर रहना। फरिश्ते के पांव धरनी पर नहीं रहते।* ऊपर कैसे रहेंगे? बुद्धि द्वारा। बुद्धि रूपी पांव सदा ऊँची स्टेज पर। ऐसे फरिश्ते बन रहे हो या बन गये हो?

 

  ब्राह्मण तो हो ही - अगर ब्राह्मण न होते तो यहाँ आने की छुट्टी भी नहीं मिलती। लेकिन ब्राह्मण ने फरिश्तेपन की स्टेज कहाँ तक अपनाई है? *फरिश्तों को ज्योति की काया दिखाते हैं। प्रकाश की काया वाले। जितना अपने को प्रकाश स्वरूप आत्मा समझेंगे - प्रकाशमय तो चलते फिरते अनुभव करेंगे जैसे प्रकाश की काया वाले फरिश्ते बनकर चल रहे हैं।*

 

 *फरिश्ता अर्थात् अपनी देह के भान का भी रिश्ता नहीं, देहभान से रिश्ता टूटना अर्थात् फरिश्ता। देह से नहीं, देह के भान से। देह से रिश्ता खत्म होगा तब तो चले जायेंगे लेकिन देहभान का रिश्ता खत्म हो।* तो यह जीवन बहुत प्यारी लगेगी। फिर कोई माया भी आकर्षण नहीं करेगी।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  तो हे विश्व कल्याणी, विश्व परिवर्तक आत्मायें सर्व साधन एवररेडी हैं? सर्वशक्तियाँ आपके ऑर्डर में हैं? ऑर्डर किया अर्थात संकल्प किया- निर्णय शक्तिा तो सेकण्ड से भी कम समय मं निर्णय शक्ति हाजिर हो जाए, कहे स्वराज्य अधिकारी हाजिर।

 

✧  ऐसे ऑर्डर में है? या एक मिनट अपने में लाने में लगेगा फिर दूसरे को दे सकेंगे? *अगर समय पर किसको जो चाहिए वह नहीं दे सके तो क्या होगा?* तो सभी बच्चों के दिल में यह संकल्प तो चल ही रहा है - आगे क्या होना है और क्या करना है?

 

✧  होना तो बहुत कुछ है। सुनाया ना यह तो रिहर्सल है। यह 6 मास के तैयारी की घण्टी बजी है, घण्टा नहीं बजा है। *पहले घण्टा बजेगा, फिर नगाडा बजेगा। डरेंगे? थोडा-थोडा डरेंगे?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *हर वक्त अव्यक्त स्थिति में रहें उसके लिए क्या पुरुषार्थ करना है? सिर्फ एक अक्षर बताओ, जिस एक अक्षर से अव्यक्त स्थिति रहे।* जितना -जितना अव्यक्त स्थिति में स्थित होंगे - कोई मुख से बोले, न बोले लेकिन उनके अन्दर का भाव पहले से ही जान लेंगे। ऐसा समय आयेगा। इसलिए यह प्रैक्टिस कराते हैं। *अपने को मेहमान समझना। अगर मेहमान समझेंगे तो फिर जो अन्तिम सम्पूर्ण स्थिति का वर्णन है वह इस मेहमान बनने से होगी।* अपने को मेहमान समझेंगे तो फिर व्यक्त में होते हुए भी अव्यक्त में रहेंगे। *मेहमान का किसके साथ भी लगाव नहीं होता है,* हम इस शरीर में भी मेहमान हैं, इस पुरानी दुनिया में भी मेहमान हैं। *जब शरीर में ही मेहमान हैं तो शरीर से भी क्या लगन रखें। सिर्फ थोड़े समय के लिए यह शरीर काम में लाना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सारा दिन सर्विस करना"*

 

_ ➳  शीत ऋतु की ठंडी ठंडी हवाओं की शीतल सुबह मैं आत्मा बगीचे में टहलती सूरज का इन्तजार कर रही हूँ... सूरज की किरणों के मधुर स्पर्श से पौधों पर पड़ी ओस की बूंदे मोतियों समान चमक रहे हैं... इन ओस की मोतियों को निहारती मैं आत्मा मोती बन ज्ञान सूर्य बाबा के पास परमधाम पहुँच जाती हूँ... *ज्ञान सूर्य बाबा से निकलती ज्ञान की किरणों को मैं आत्मा स्वयं में ग्रहण करती हूँ... ज्ञान किरणों की आभा में लिपटी मैं आत्मा ज्ञान सूर्य बाबा के साथ सूक्ष्मवतन में ज्ञान की रूह-रिहान करने बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

   

   *रूहानी सेवा का शौक रख सबको ज्ञान धन का दान करने की शिक्षा देते हुए प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... भाग्य ने जो ईश्वरीय मदद का खूबसूरत मौका दिया है... तो ईश्वर पिता के मददगार बन अपनी तकदीर को ऊँचा बना लो... *रूहानी सेवा कर सबके दुःख दूर कर अनन्त दुआओ को बाँहों में भर मुस्कराओ... ज्ञान धन के रत्नों को खुले दिल से लुटाओ और सबके दिल आँगन को खुशियो से भर आओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान मोती बन चमकती हुई चारों ओर ज्ञान मोतियों को बिखेरते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आपसे पाये बेशकीमती खजानो को हर दिल पर लुटा रही हूँ... अपने जैसा अमीर हर दिल को बना रही हूँ...* मीठे बाबा का पता हर दिल तक पहुंचा रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा मीठी ज्ञान की मुरली बजाकर ज्ञान वर्षा करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *इस वरदानी संगम पर ईश्वर पिता के आव्हान पर दौड़ आये हो तो औरो के भी भाग्य को ऐसा ही खूबसूरत बनाओ... उनके दामन में भी ज्ञान हीरो को सजा आओ...* सच्चे सुखो के फूल उनकी मन बगिया में महका आओ... और अपनी शानदार तकदीर में चार चाँद से लगाकर सदा का मुस्कराओ...

 

_ ➳  *बाबा की प्रीत में बंधकर अनमोल खजानों को सबपर लुटाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा रूहानी सेवा में जीजान से जुटी हूँ... *अपनी ऊँची तकदीर की झलक हर दिल को दिखा रही हूँ... प्यारे बाबा से पाया धन सबकी झोली में उड़ेल रही हूँ... और आप समान भाग्यवान बना रही हूँ...”*

 

   *अज्ञानता की रात को ख़त्म कर ज्ञान की भोर से रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के साथी बनकर रूहानी सेवा को बढ़ाओ... और अपने भाग्य के सितारे को शिखर सी ऊंचाइयों पर पहुंचा आओ... *ज्ञान रत्नों की बरसात लिए सुख भरे बादल बन बरसते रहो... ज्ञान खजाने से हर दिल को भर आओ... और आप समान धनवान् बनाकर पूरे विश्व में खुशियो की मीठी सी सुगन्ध फैलाओ...”*

 

_ ➳  *दिव्य गुणों से सजकर ज्ञान वीणा से दसों दिशाओं को महकाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ज्ञान रत्नों से मालामाल होकर सबको धनवान् बना कर खुशियो में महका रही हूँ... *रूहानी सेवाधारी बनकर बापदादा के दिलतख्त में सजकर... अपने मीठे से भाग्य पर शान से इतरा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप जब ज्ञान खजाना देते है तो याद में बैठ बुद्धि रूपी झोली में खजाना भरना है*"

 

_ ➳  अपने आश्रम के क्लास रूम में, अपने परम शिक्षक शिव पिता परमात्मा के मधुर महावाक्य सुनने के बाद, ज्ञान के सागर, अपने प्यारे बाबा से मिलने वाले *अविनाशी ज्ञान रत्नों के बारे में विचार सागर मन्थन करते हुए, एकाएक शास्त्रों में लिखी एक बात स्वत: ही स्मृति में आने लगती है जिसमे कहा गया है "कि समुंद्र मन्थन में, समुंद्र को मथने से जो अमृत निकला था उसे पीकर देवता सदा के लिए अमर बन गए थे"*। भक्ति में कही हुई यह बात स्मृति आते ही मैं विचार करती हूँ कि वास्तव में वो अमृत तो यह ज्ञान अमृत है जो इस समय भगवान द्वारा दिये जा रहे ज्ञान का मंथन करके हम ब्राह्मण बच्चे प्राप्त कर रहें है और इस अमृत को पीकर भविष्य 21 जन्मो के लिए "सदा अमर भव" के वरदान के अधिकारी बन रहें हैं।

 

_ ➳  तो कितने पदमापदम सौभाग्यशाली है हम ब्राह्मण बच्चे जो इस ज्ञान अमृत को पीकर अमर बन रहें हैं। *मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करती, ज्ञान अमृत पिला कर, सदा के लिए अमर बनाने वाले, ज्ञान के सागर अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करके, मैं उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और ज्ञान सागर में डुबकी लगाने के लिए, एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपने अकाल तख्त को छोड़, देह की कुटिया से बाहर आकर, सीधा ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  आकाश को पार करके, मैं सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ और इस लोक को भी पार करके ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम में पहुँच जाती हूँ। *इस शान्ति धाम घर में आकर मुझे ऐसा लग रहा हूँ जैसे शांति की शीतल लहरें बार - बार आकर मुझ आत्मा को छू रही हैं और मुझे गहन शीतलता और असीम सुकून दे रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे एक छोटा बच्चा सागर के किनारे खड़ा, सागर की लहरों के साथ खेल रहा है और उस खेल का भरपूर आनन्द ले रहा हैं, *ऐसे ही मैं आत्मा शान्ति के सागर अपने शिव पिता की शान्ति की लहरों से खेलते हुए असीम आनन्द ले रही हूँ*

 

_ ➳  शान्ति की गहन अनुभूति करते - करते, मैं आत्मा ज्ञान, गुणों और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता से ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने अपनी बुद्धि रूपी झोली में भरने के लिए और स्वयं को गुणों और शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब बिल्कुल उनके समीप पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर शिव बाबा से ज्ञान की नीले रंग की फुहारे, और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों की इंद्रधनुषी रंगों की शीतल फुहारे मुझ पर बरस रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान, गुण और शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं।

 

_ ➳  सर्वगुण, सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर, अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरकर मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *"मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" सदा इस स्मृति में रहते हुए मैं आत्मा अब अपने ब्राह्मण जीवन मे ज्ञान के सागर शिवबाबा से प्रतिदिन मुरली के माध्यम से प्राप्त ज्ञानधन को जीवन मे धारण कर ज्ञानस्वरूप आत्मा बनती जा रही हूँ*। ज्ञान ख़ज़ानों से सम्पन्न होकर, परमात्म ज्ञान को मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  *बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द  का अनुभव करते, ज्ञान की हर प्वाइंट को अपने जीवन मे धारण कर मैं आत्मा ज्ञान सम्पन्न बनती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो हर कर्म करने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं सर्व शक्ति व ज्ञान संपन्न बनकर संगमयुग की प्रालब्ध को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. बापदादा प्रत्यक्षता वर्ष के पहले इस वर्ष को 'सफलता भव का वर्ष' कहते हैं। *सफलता का आधार हर खजाने को सफल करना। सफल करो, सफलता प्राप्त करो। सफलता प्रत्यक्षता को स्वतः ही प्रत्यक्ष करेगी।* वाचा की सेवा बहुत अच्छी की लेकिन *अब सफलता के वरदान द्वारा बाप की, स्वयं की प्रत्यक्षता को समीप लाओ। हर एक ब्राह्मणों की जीवन में सर्व खजानों की सम्पन्नता का आत्माओं को अनुभव हो।* आजकल की आत्मायें आपके अनुभवी मूर्त द्वारा अनुभूति करने चाहती है। सुनने कम चाहती हैं, अनुभूति ज्यादा चाहती हैं। *'अनुभूति का आधार है - खजानों का जमा खाता'।* अभी सारे दिन में बीच-बीच में यह अपना चार्ट चेक करो, सर्व खजाने जमा कितने किये? *जमा का खाता निकालो, पोतामेल निकालो।* एक मिनट में कितने संकल्प चलते हैं? संकल्प की फास्ट गति है ना। कितने सफल हुए, कितने व्यर्थ हुए? कितने समर्थ रहे, कितने साधारण रहे?

 

 _ ➳  2. *अब ऐसे एवररेडी बनो जो हर संकल्प, हर सेकण्ड, हर श्वांस जो बीते वह वाह, वाह हो।* व्हाई नहीं हो, वाह, वाह हो। अभी कोई समय वाह-वाह होता है, कोई समय वाह के बजाए व्हाई हो जाता है। कोई समय बिन्दी लगाते हैं, कोई समय क्वेश्चन मार्क और आश्चर्य की मात्रा लग जाती है। *आप सबका मन भी कहे वाह! और जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो, चाहे ब्राह्मणों के, चाहे सेवा करने वालों के वाह! वाह! शब्द निकले। अच्छा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सर्व खजानों को सफल करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *पीस पार्क में बाबा की याद की छत्रछाया में बैठी मैं पीसफुल आत्मा बड़ी गहराई से बाबा के महावाक्यों पर मनन कर रही हूँ...* मैं पीसफुल आत्मा मनन की लगन में एक मगन अवस्था में स्थित हूँ... ज्ञान की एक-एक प्वाइंट पर बड़ी गहराई से मंथन कर रही हूँ... बाबा के कहे महावाक्य मन रुपी स्लेट पर प्रत्यक्ष हो रहे है... *"सफलता का आधार हर खजाने को सफल करना। सफल करो, सफलता प्राप्त करो"* मैं आत्मा बाबा से मिले सर्व अखूट खजानों को सामने लाती हूँ... *वाह बाबा वाह कितने सारे अखूट अविनाशी खजाने बाबा ने मुझ आत्मा को दिए है...* एक-एक खजाना अविनाशी है... *जितना बांटो उतना ही बढ़ता जाता है...*

 

 _ ➳  वाह कितने अखूट खजाने बाबा ने मुझ आत्मा को दिए है... *जिन्हें मुझ से कोई छीन नहीं सकता जो कभी खुटते नहीं है... मैं सर्व खजानों की मालिक आत्मा हूँ...* तभी मुझ आत्मा के कानों में बाबा के कहे महावाक्य गूंजने लगते है... *"सफलता का आधार हर खजाने को सफल करना"* तभी मैं आत्मा अन्तर्मन से प्रश्न करती हूँ... क्या मैं आत्मा बाबा से मिले हर खजाने को सफल कर हमेशा सफलता प्राप्त कर रही हूं ? *मैं आत्मा स्व चेकिंग करती हूँ... सारे दिन में, मैं आत्मा कितने खजाने जमा कर रही हूँ... कहीं कोई खजाना व्यर्थ तो नहीं जा रहा है ?* मैं आत्मा अपना पोतामेल निकाल रही हूँ... और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को मधुबन पांड़व भवन बाबा की कुटिया में...

 

 _ ➳  *सम्मुख ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... मैं आत्मा सच्चाई से बाबा को अपना खजानों के जमा खाते का पोतामेल दे रही हूँ...* बापदादा मुझे दृष्टि दे रहे है... बाबा की दृष्टि से निकलती शक्तिशाली अविरल धाराएं मुझ आत्मा में समा रही है... *बाबा ने अपना वरदानी हाथ मुझ आत्मा के सिर पर रख दिया है... बाबा मुझे "सफलतामूर्त भव" का वरदान दे रहे है... मैं आत्मा अन्तर्मन से इस वरदान को स्वीकार कर रही हूँ...* बाबा सर्व शक्तियों से मुझ आत्मा को भरपूर रहे है... *मैं आत्मा बेहद शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* और बहुत हल्का फील कर रही हूँ...

 

 _ ➳  सर्व शक्तियों और वरदानों से भरपूर हो *मैं आत्मा अब देख रही हूँ... स्वयं को कर्मक्षेत्र पर शिव बाबा की याद में कर्म करते हुए... अब मैं आत्मा बाबा से मिले हर खजाने को सफल कर रही हूँ... और निरंतर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* मैं आत्मा एवररेडी बन हर संकल्प, हर सेकंड, हर श्वांस को मैं आत्मा सफल कर, वाह वाह कर रही हूँ... सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *बाबा से मिला सफलता भव का वरदान प्रत्यक्ष हो रहा है... मैं आत्मा जिन भी आत्माओं के सम्पर्क में आ रही हूँ... वे सभी आत्माएँ मुझ आत्मा से सर्व खजानों की सम्पन्नता का अनुभव कर रही है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा खजानों की मालिक खजानों से मालामाल आत्मा, *सभी आत्माओं को भी खजानों से मालामाल सम्पन्न बना रही हूँ... वे सभी भी वाह वाह के गीत गा रहे है... सभी सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माएँ सन्तुष्ट हो रही है...* हर खजाने को सफल कर मैं आत्मा सफलता प्राप्त कर बाप की प्रत्यक्षता को समीप ला रही हूँ... *सफलता प्रत्यक्षता को स्वतः ही प्रत्यक्ष कर रही है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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