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 18 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ सदा ज्ञान रतन चुगने वाले हंस बनकर रहे ?

 

➢➢ कमल फूल समान पवित्र रह आत्माओं को आप समान बनाया ?

 

➢➢ सहज योग की साधना द्वारा साधनों पर विजय प्राप्त की ?

 

➢➢ मेरे पन के अनेक रिश्तों को समाप्त किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं, उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा..... क्या होगा..., इस क्वेश्चन को छोड़ दो, अभी विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ। विदेही बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं होली हँस हूँ"

 

  सभी अपने को सदा होली हंस अनुभव करते हो? होली हंस का अर्थ है संकल्प, बोल और कर्म जो व्यर्थ होता है उसको समर्थ में बदलना। क्योंकि व्यर्थ जैसे पत्थर होता है, पत्थर की वैल्यु नहीं, रत्न की वैल्यु होती है। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होली हंस बनना। तो व्यर्थ आता है? होली हंस फौरन परख लेता है कि ये काम की चीज नहीं है, ये काम की है। तो आप होली हंस हो ना। तो व्यर्थ समाप्त हुआ?

 

  क्योंकि अभी नॉलेजफुल बने हो कि अगर अभी संकल्प, बोल या कर्म व्यर्थ गंवाते हैं तो सारे कल्प के लिये अपने जमा के खाते में कमी हो जाती है। जानते हो ना, नोलेजफुल हो? तो जानते हुए फिर व्यर्थ क्यों करते हो? चाहते नहीं हैं लेकिन हो जाता है-ऐसे कहेंगे? जो समझते हैं अभी भी हो सकता है वो हाथ उठाओ। आप हो कौन? (राजयोगी) राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना, तो मन को कन्ट्रोल नहीं कर सकते! किंग में तो रुलिंग पॉवर होती है ना! तो आप में रुलिंग पॉवर नहीं है? अमृतवेले और फिर सारे दिन में बीच-बीच में अपना आक्यूपेशन याद करो-मैं कौन हूँ?

 

  क्योंकि काम करते-करते यह स्मृति मर्ज हो जाती है कि मैं राजयोगी हूँ। इसलिये इमर्ज करो। ये नियम बनाओ। ऐसे नहीं समझो कि हम तो हैं ही राजयोगी। लेकिन राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। नहीं तो चलते-चलते कर्म में बिजी होने के कारण योग भूल जाता है, सिर्फ कर्म ही रह जाता है। लेकिन आप कर्मयोगी कम्बाइन्ड हो। योगी सदा ही रुलिंग पॉवर, कन्ट्रोलिंग पॉवर में रहें। फिर राजयोगी डबल पॉवर वाले कभी भी व्यर्थ सोच नहीं सकते। तो अभी कभी नहीं कहना, सोचना भी नहीं कि राजयोगी वेस्ट कर सकते हैं। तो ये कौन-सा ग्रुप है? बेस्ट ग्रुप। बापदादा को भी बेस्ट ग्रुप अति प्यारा है क्यों? 63 जन्म बहुत वेस्ट किया ना, अभी यह छोटा-सा जन्म बेस्ट ही बेस्ट।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सभी शान्ति की शक्ति के अनुभवी बन गये हो ना! शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को भी परिवर्तन करती और दूसरों को भी परिवर्तन करती है। याद के बल से विश्व को परिवर्तन करते हो। याद क्या है? शान्ति की शक्ति है ना! इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी। इतनी शान्ति की शक्ति अपने में जमा की है?

 

✧  व्यक्तियों को तो बदलना है ही लेकिन साथ में प्रकृति को भी बदलना है। प्रकृति को मुख का कोर्स तो नहीं करायेंगे ना! व्यक्तियों को तो कोर्स करा देते हो लेकिन प्रकृति को कैसे बदलेंगे? वाणी से वा शान्ति की शक्ति से? योगबल से बदलेंगे ना तो योग में जब बैठते हो तो क्या अनुभव करते हो?

 

✧  शान्ति का संकल्प भी जब शान्त हो जाते हैं, एक ही संकल्प - बाप और आप’, इसी को ही योग कहते हैं। अगर और भी संकल्प चलते रहेंगे तो उसकी योग नहीं कहेंगे, ज्ञान का मनन कहेंगे। तो जब पॉवरफुल योग में बैठते हो तो संकल्प भी शान्त हो जाते हैं, सिवाए एक बाप और आप। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जाते हैं - ऐसे अनुभव है ना?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ आपकी ओरीजिनल स्टेज तो निराकारी है ना। निराकार आत्मा ने इस शरीर में प्रवेश किया है। शरीर ने आत्मा में प्रवेश नहीं किया, आत्मा ने शरीर में प्रवेश किया तो अनादि ओरीजिनल स्वरूप तो निराकारी है ना कि शरीरधारी है? शरीर का आधार लिया, लेकिन लिया किसने? आप आत्मा ने, निराकार ने साकार शरीर का आधार लिया, तो ओरीजिनल क्या हुआ आत्मा या शरीर? आत्मा। यह पक्का है? तो ओरीजिनल स्थिति में स्थित होना सहज या आधार लेने वाली स्थिति में स्थित होना सहज?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  एक बाप से प्यार करना"
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ी पर बैठ चारों ओर की सुन्दरता को निहार रही हूँ... बर्फ की चादर ओढ़ी पहाड़ियां चांदी की परत जैसी चमक रही हैं... सूरज की किरणें ठंडी ठंडी हवाओं के साथ खेल रही हैं... मैं आत्मा इन पहाड़ियों को देख विचार करती हूँ की मैं आत्मा इस देह, और देहधारियों के चक्रव्यूह में कई जन्मों से फंसी हुई थी... मेरा प्यारा बाबा मुझे दुखों की पहाड़ियों से निकाल अपनी मखमली गोदी में बिठा दिया है... और मधुबन सा मेरा जीवन संवार दिया है... मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा पहाड़ी पर बैठ मुझसे मीठी मीठी रूह-रिहान करते हैं...
 
❉   किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंसने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने खुबसूरत मणि स्वरूप में स्थित होकर मीठे बाबा संग यादो में झूल जाओ... और अतीन्द्रिय सुख का आनन्द लो... अब इस मिटटी के मटमैले आवरण के आकर्षण में नही फंसो... अशरीरी बनकर पिता को याद करो तो सदा के आयुष्मान निरोगी और सर्व सुखो से भरपूर हो जाओगे..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा अशरीरी बनकर एक बाप की याद में डूबकर कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में देह के भान से मुक्त होकर चमकती मणि सी खिल उठी हूँ... प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन अनन्त खुशियो से सजीला कर दिया है... मै आत्मा अपने दमकते रूप को पाकर सदा के सुखो से सज संवर गयी हूँ..."
 
❉   ज्ञान के सागर ऑलमाइटी अथॉरिटी बेहद बाबा बेहद स्वर्ग का वर्सा देते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब इस देह की दुनिया से निकल, अपने आत्मिक अप्रतिम सौंदर्य को यादो में भर लो... अनन्त गुणो और शक्तियो से सम्पन्न प्यारी आत्मा हो, इस नशे से हर रग को भर लो... ईश्वर पिता की यादो में देह के मटमैले आवरण को त्याग दो... और आत्मिक खूबसूरती को पाकर प्रेम सुख शांति की दुनिया को बाँहों में भरो..."
 
➳ _ ➳  प्यारे बाबा की वाणी की वीणा से शक्तियों को भरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में किस कदर फूलो सी महक उठी हूँ... देह समझ जो खजाने खोई थी.... आत्मा के भान में आकर सब कुछ पुनः पा रही हूँ... हर दुःख से मुक्त होकर, सदा की सुखदायी और निरोगी बनकर मुस्करा रही हूँ..."
 
❉   प्यारे बाबा रूहानी यादों के रंगों से मेरे जीवन को उज्जवल बनाते हुए कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय साथ का यह प्यारा और अमूल्य समय किसी देहधारी की यादो में न खपाओ... हर बन्धन से मुक्त होकर, ईश्वरीय नशे में गहरे डूब जाओ... और मीठे बाबा की यादो में खोकर, विश्व की बादशाही, अथाह सुखो की दौलत और खुबसूरत निरोगी स्वस्थ जीवन पाओ..."
 
➳ _ ➳  प्यारे बाबा की यादों से जिन्दगी को हसीन बनाते हुए मैं आत्मा खुशियों में लहराते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने आपको जानकर, अपने मीठे बाबा को जानकर, सुखो की, खुशियो की, जादूगर हो गई हूँ... प्यारे बाबा... आपने तो सारे ब्रह्माण्ड की खुशियो से मुझे सजा दिया है... सब कुछ मेरे कदमो तले बिखेर दिया है... मुझे सत्य का पता देकर, सुखो की खान का मालिक बना दिया है...."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- कमल फूल समान पवित्र रह आप सामान बनाना है"  
 
➳ _ ➳  "मैं फ़रिशता पवित्रता का अवतार हूं"। इस सृष्टि पर मेरा जन्म ईश्वरीय सेवा अर्थ हुआ है। पतित पावन परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने इस पतित सृष्टि को पावन बनाने की बहुत बड़ी जिम्मेवारी मुझे सौंपी है। अपनी इसी जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए मैं स्वयं को पवित्रता की शक्तिशाली किरणों से भरपूर करने के लिए अपने अनादि परम पवित्र ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर चल पड़ती हूँ पवित्रता के सागर, पतित पावन अपने परम प्यारे परम पिता परमात्मा के पास उनके पावन धाम में जो इस साकारी लोक से परे, सूक्ष्म लोक से भी परे ते परे है।
 
➳ _ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को पतित पावन, पवित्रता के सागर अपने प्यारे पिता परमात्मा शिव बाबा के सम्मुख। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूं जैसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास मैं बुझा लेना चाहती हूं। भरपूर कर लेना चाहती हूं मैं स्वयं को। इस मिलन की आलौकिक मस्ती में मैं डूब जाना चाहती हूं। बाप के प्यार में समाकर बाप समान बन जाना चाहती हूं। बाबा को  अपलक निहारते निहारते मैं बाबा के बिल्कुल समीप पहुंच जाती हूँ और बाबा को टच करती हूं। शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगा है।
 
➳ _ ➳पवित्रता की शक्तिशाली किरणों से मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूं। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ जाती हूँ और  कमल आसन पर विराजमान परम पवित्र फ़रिशता स्वरूप धारण कर अब मैं फ़रिशता विश्व ग्लोब के ऊपर स्थित हो जाता हूँ और मन बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में अपने शिव पिता के साथ जोड़ता हूँ। बाबा के साथ कनेक्शन जुड़ते ही बाबा की सर्वशक्तियां मुझ फ़रिश्ते में समाने लगती हैं।
 
➳ _ ➳  ये सर्वशक्तियां रंग-बिरंगे मोतियों के रूप में मुझ फ़रिश्ते की प्रकाश की काया से निकल कर अब विश्व ग्लोब पर फैल रही हैं। श्वेत प्रकाश की काया से निकलते यह सतरंगी मोती ऐसे लग रहे हैं जैसे बाबा मुझ फरिश्ते को निमित्त बनाकर मेरे द्वारा इन सर्वशक्तियों से अपने सभी बच्चों तक पहुंचा कर उन्हें संपूर्ण पावन और सर्वगुणसंपन्न बना रहे हैं। मुझ से निकल रही पवित्रता, सुख शांति, शक्ति सम्पन्न किरणे सारे विश्व मे फैल रही हैं और सभी मनुष्य आत्माओं के चित को छू कर उन्हें पवित्र बना रही हैं। पवित्रता की शक्तिशाली किरणे सम्पूर्ण विश्व मे फैलाते हुए अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ।
 
➳ _ ➳  अपना ब्राह्मण स्वरूप धारण कर, पवित्रता का हथियाला बांध, घर गृहस्थ में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू अब मैं चारों और फैला रही हूं। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई भाई की दृष्टि मुझे प्रवर्ति में रहते भी पर वृति का अनुभव करवा रही है। पवित्रता ही मेरे ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार है। इस श्रृंगार से अब मैं सदैव सजी सजाई रहती हूं। संसार के सभी मनुष्य मात्र मेरे भाई बहन है। वे सब भी पवित्र आत्मायें हैं इस बात को सदा स्मृति में रख सभी को पवित्र नजरों से देखते हुए अब मैं पवित्रता की राह पर चल सबको पवित्र बना रही हूं।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सहज योग की साधना द्वारा साधनों पर विजय प्राप्त करने वाली प्रयोगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं मेरेपन के अनेक रिश्तों को समाप्त करने वाला डबल लाइट फरिश्ता हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय देखो ही नहीं। देखते हैं ना-इसने यह किया, इसने यह कहा -तो सफलता दूर हो जाती है। देखो ही नहीं। बहुत अच्छाबहुत अच्छा। हाँ जी और बहुत अच्छा, यह दो शब्द हर कार्य में यूज करो। स्वभाव वैरायटी हैं और रहने भी हैं। स्वभाव को देखा तो सेवा खत्म। बाबा करा रहा हैबाबा को देखो, बाबा का काम है। इसकी ड्यूटी नहीं हैबाबा की है। तो बाप में तो स्वभाव नहीं है ना। तो स्वभाव देखने नहीं आयेगा।

 

✺   ड्रिल :-  "दूसरों के स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय नहीं देखना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा आज अपने बाबा के सेंटर पर बाबा की मुरली हाथ में पकड़े... अपने सामने बैठी हुई कुछ आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारंभ करती हूं... और उससे पहले मैं देखती हूं... की इन सामने बैठी आत्माओं में सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार बिल्कुल अलग है... और इन आत्माओं के सामने मैं अपने आप को मुरली सुनाने की स्टेज पर अनुभव नहीं कर पाती हूँ... मैं देखती हूं कि कुछ आत्माएं ऐसी भी है... जो अपने पुराने स्वभाव संस्कारों के कारण हमेशा मुझे और अन्य आत्माओं को दुखी करने का प्रयास करती रहती हैं... और कुछ आत्माएं ऐसी हैं जो काफी समय से बाबा के बच्चे के रूप में पालना ले रही हैं और मुझ आत्मा को उन्होंने अपने ज्ञान से परिपूर्ण कर आज इस स्थिति पर विराजमान किया है...

 

 _ ➳  परंतु मेरी कुछ छोटी-छोटी गलतियों के कारण वह ज्ञानी आत्माएं मुझे क्रोध वश होकर मेरा कड़े शब्दों में अपमान कर देती है... जिस को मैं भुला नहीं पाती हूँ... और कुछ आत्माएं ऐसी भी थी जो हमेशा अपने आप को श्रीमत की लकीर के अंदर अनुभव करते हुए पुरुषार्थ कर रही थी... और इन सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार देखते-देखते मैं आत्मा बाबा की मुरली प्रारंभ नहीं कर पाती... तभी मेरा अंतर्मन मुझे श्रीमत का ज्ञान आभास कराता है... और मैं अपने आपको बाबा से जोड़ देती हूं... और महसूस करती हूं कि मैं आत्मा इस देह में विराजमान हूँ और शिव बाबा मुझे निमित्त बना कर इन आत्माओं को मुरली सुना रहे हैं...

 

 _ ➳  और जैसे ही मैं अपने आप को निमित्त आत्मा अनुभव करती हूँ... तो मुझे आभास होता है कि सामने बैठी हुई आत्माएं सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबा के रूहानी बच्चे हैं... मुझे सभी आत्माएं अपने सामने फ़रिश्ते की भांति नजर आ रही है... और मुझे किसी भी आत्मा के स्वभाव संस्कार का बिल्कुल आभास नहीं होता है... और मैं आत्मा अपनी इन कर्म इंद्रियों द्वारा सामने बैठी हुई आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारम्भ कर देती हूं... मुरली सुनाते सुनाते मैं अपने आप में एक अद्भुत परिवर्तन महसूस करती हूं... मुझे अनुभव होता है कि मैं आत्मा अब बिल्कुल हल्की और फरिश्ते की भांति इस उड़ती कला स्वरूप बन गई हूं...

 

 _ ➳  और अब मैं आत्मा बिल्कुल रमणीकता से बाबा की मुरली सुना रही हूं... और जैसे ही कुछ देर बाद मुरली समाप्त होती है... तो हम सभी आत्माएं एक संकल्प में बाबा को याद करते हैं... और अपनी बेहद की सेवा में जुट जाते हैं... जैसे-जैसे सभी आत्माएं मेरे साथ सेवा करते हैं तो मैं अनुभव करती हूं... कि ये बहुत अच्छी आत्माएं हैं... ये देवकुल की महान आत्माएं हैं... यह मेरी ईश्वरीय घराने की... मैं और ये सब आत्माएं सुखधाम में एक साथ मिलजुल कर रहेंगी... तो अब वह सभी आत्माएं मुझे बस अपने समान बाबा के बच्चे ही नजर आते हैं... और उनके प्रति मेरा रूहानी स्नेह बढ़ता जाता है..  अब सेवा के समय मुझे हमेशा अब दूसरी आत्माएं निमित्त सेवाधारी अनुभव हो रही है... और अपने आप को भी मैं निमित भावना से सजाकर सेवा में अग्रणी होती जा रही हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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