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 11 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ "हम आत्मा मेल हैं" - यह स्मृति रही ?

 

➢➢ "पुरुषार्थ के बिना' प्रालब्ध नहीं मिल सकती" - इस बात को अच्छी तरह समझा ?

 

➢➢ पवित्रता की गुहयता को जान सुख शांति संपन्न स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ ऊंची स्थिति में स्थित हो सर्व आत्माओं को रहम की दृष्टि दी ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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〰✧  याद में निरन्तर रहने का सहज साधन है - प्रवृत्ति में रहते पर - वृत्ति में रहना। पर - वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। ऐसे आत्मिक रूप में रहने वाला सदा न्यारा और बाप का प्यारा होगा। कुछ भी करेगा लेकिन ऐसे महसूस होगा जैसे काम नहीं किया लेकिन खेल किया है। यह रूहानी नयन, यह रूहानी मूर्त ऐसे दिव्य दर्पण बन जायेंगे जिस दर्पण में हर आत्मा बिना मेहनत के आत्मिक स्वरूप ही देखेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं विजयी रत्न हूँ"

 

✧  सब विजयी रत्न हो ना? विजय का झण्डा पक्का है ना। विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। यह मुख का नारा नहीं लेकिन प्रैक्टिकल जीवन का नारा है।

 

  कल्प-कल्प के विजय हैं, अब की बार नहीं, हर कल्प के, अनगिनत बार के विजयी हैं। ऐसे विजयी सदा हर्षित रहते हैं। हार के अन्दर दुख की लहर होती है।

 

  सदा विजयी जो होंगे वह सदा खुश रहेंगे, कभी भी किसी सरकमस्टांस में भी दुख की लहर नहीं आ सकती। दुख की दुनिया से किनारा हो गया, रात खत्म हुई, प्रभात में आ गये तो दुख की लहर कैसे आ सकती? विजय का झण्डा सदा लहराता रहे, नीचे न हो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  डायमण्ड जुबली वाले क्या करेंगे? लहर फैलायेंगे ना? आप लोग तो अनुभवी हैं। शुरू का अनुभव है ना! सब कुछ था, देशी घी खाओ जितना खा सकते, फिर भी बेहद की वैराग्य वृति। दुनिया वाले तो देशी घी खाते हैं लेकिन आप तो पीते थे। घी की नदियाँ देखी।

 

✧  तो डायमण्ड जुबली वालों को विशेष काम करना है - आपस में इकट्ठे हुए हो तो रूहरिहान करना। जैसे सेवा की मीटिंग करते हो वैसे इसकी मीटिंग करो। जो बापदादा कहते हैं, चाहते हैं सेकण्ड में अशरीरी हो जायें - उसका फाउण्डेशन यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है, नहीं तो कितनी भी कोशिश करेंगे लेकिन सेकण्ड में नहीं हो सकेंगे।

 

✧  युद्ध में ही चले जायेंगे और जहाँ वैराग्य है तो ये वैराग्य है योग्य धरनी, उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता। तो क्या करना है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  अपने को फ़रिश्तों की सभा में बैठने वाला फ़रिश्ता समझते हो? फ़रिश्ता अर्थात् जिसके सर्व सम्बन्ध वा सर्व रिश्ते एक के साथ हों। एक से सर्व रिश्ते और सदा एकरस स्थिति में स्थित हों। एक-एक सेकेण्ड, एक-एक बोल, एक की ही लगन में और एक की ही सेवा प्रति हों। चलते-फिरते, देखते-बोलते और कर्म करते हुए व्यक्त भाव से न्यारे अव्यक्त अर्थात् इस व्यक्त देह रूपी धरनी की स्मृति से बुद्धि रूपी पाँव सदा ऊपर रहे अर्थात् उपराम रहे। जैसे बाप ईश्वरीय सेवा-अर्थ वा बच्चों को साथ ले जाने की सेवा-अर्थ वा सच्चे भक्तों को बहुत समय के भक्ति का फल देने अर्थ, न्यारे और निराकार होते हुए भी अल्पकाल के लिए आधार लेते हैं वा अवतरित होते हैं ऐसे ही फ़रिश्ता अर्थात् सिर्फ ईश्वरीय सेवा अर्थ यह साकार ब्राह्मण जीवन मिला है। धर्म स्थापक धर्म स्थापना का पार्ट बजाने के लिए आये हैं- इसलिए नाम ही है शक्ति अवतार-इस समय अवतार हूँ, धर्म स्थापक हूँ। सिवाये धर्म स्थापन करने के कार्य के और कोई भी कार्य आप ब्राह्मण अर्थात् अवतरित हुई आत्माओं का है ही नहीं। सदा फ़रिश्ता डबल लाइट रूप है। एक लाइट अर्थात् सदा ज्योति स्वरूप, दूसरा लाइट अर्थात् कोई भी पिछले हिसाब-किताब के बोझ से न्यारा अर्थात् हल्का। ऐसे डबल लाइट स्वरूप अपने को अनुभव करते हो?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- पुरुषोत्तम संगमयुग में कनिष्ट से उत्तम बनना"

➳ _ ➳ आँगन में कौड़ी खेलते बच्चों को देख मै आत्मा... मुस्कराती हूँ... और मुझे भी कौड़ी से हीरे जैसा बनाने वाले... मीठे बाबा की यादो में डूब जाती हूँ... अपने प्यारे बाबा से मीठी मीठी बाते करने... मीठे वतन में पहुंचती हूँ... प्यारे बाबा रत्नागर को देख ख़ुशी से खिल जाती हूँ... और मीठे बाबा के प्यार में डूबकर... अपनी ओज भरी चमक, मीठे बाबा को दिखा दिखाकर लुभाती हूँ... देखो मीठे बाबा... मै आत्मा आपके साये में कितनी प्यारी, चमकदार और हीरे जैसी अमूल्य हो गयी हूँ..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य का नशा दिलाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर अपने फूल बच्चों के लिए अमूल्य खजानो और शक्तियो को हथेली पर सजा कर आये है... इस वरदानी समय पर कौड़ी से हीरो जैसा सज जाते हो... और यादो की अमीरी से, देवताई सुखो की बहारो भरा जीवन सहज ही पाते हो...

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान खजाने से स्वयं को लबालब करते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपको पाकर तो मुझ आत्मा ने जहान पा लिया है... देह और दुखो की दुनिया में कितनी निस्तेज और मायूस थी... आपने आत्मा सितारा बताकर मुझे नूरानी बना दिया है... फर्श उठाकर अर्श पर सजा दिया है.."

❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने नेह की धारा में भिगोते हुए कहते है :- "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... अपने प्यारे से भाग्य को सदा स्मर्तियो में रख खुशियो में मुस्कराओ... ईश्वर पिता का साथ मिल गया... भगवान स्वयं गोद में बिठाकर पढ़ा रहा... सतगुरु बनकर सदगति दे रहा... एक पिता को पाकर सब कुछ पा किया है... निकृष्ट जीवन से श्रेष्ठतम देवताई भाग्य पा रहे हो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमीरी को अपनी बाँहों में भरकर मुस्कराते हुए कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... आपने आकर मेरा सच्चा साथ निभाया है... दुखो के दलदल से मुझे हाथ देकर सुखो के फूलो पर बिठाया है... सच्चे स्नेह की धारा में मेरे कालेपन को धोकर... मुझे निर्मल, धवल बनाया है... मुझे गुणवान बनाकर हीरे जैसा चमकाया है..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को काँटों से फूल बनाते हुए कहा :- " मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... भगवान के धरती पर उतर आने का पूरा फायदा उठाओ... ईश्वरीय सम्पत्ति को अपना अधिकार बनाकर, सदा की अमीरी से भर जाओ... ईश्वर पिता के साये में गुणवान, शक्तिवान बनकर, हीरे जैसा भाग्य सजा लो... और सतयुगी दुनिया में अथाह सुख लुटने की सुंदर तकदीर को पाओ...

➳ _ ➳ मै आत्मा अपने दुलारे बाबा को दिल से शुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मनमीत बाबा मेरे... विकारो के संग में, मै आत्मा जो कौड़ी तुल्य हो गयी थी... आपने उस कौड़ी को अपने गले से लगाकर, हीरे में बदल दिया है... मै आत्मा आपके प्यार की रौशनी में, कितनी प्यारी चमकदार बन गयी हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पाकर निखर गयी हूँ..."मुझे हीरे सा सजाने वाले खुबसूरत बनाने वाले रत्नागर बाबा... को दिल से धन्यवाद देकर मै आत्मा.. स्थूल वतन में आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है"

➳ _ ➳ मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में लाकर अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में मैं जैसे ही स्थित होती हूँ मुझे अपनी ईश्वरीय पढ़ाई, पढ़ाने वाले अल्फ अर्थात अपने परम शिक्षक शिव बाबा और बे अर्थात इस मोस्ट वैल्युबुल पढ़ाई से मिलने वाली सतयुग की बादशाही भी स्वत: ही स्मृति में आने लगती है। मन मे विचार चलता है कि लौकिक रीति से विद्यार्थी अल्प काल के उंच विनाशी पद को पाने के लिए कितनी मुश्किल पढ़ाई पड़ते हैं। कैसे रात - दिन एक कर देते है। सिवाय पढ़ाई के उन्हें और कुछ सूझता नही। कितनी मेहनत करते है किंतु फिर भी प्राप्ति अल्प काल के लिए ही होती है।

➳ _ ➳ यहाँ तो अल्फ और बे को याद करने की कितनी सिम्पल पढ़ाई है और प्राप्ति जन्म - जन्म की है। मन ही मन मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि "वाह रे मैं खुशनसीब आत्मा" जो स्वयं भगवान शिक्षक बन मुझे इतनी सिम्पल पढ़ाई पढ़ा कर जन्म जन्मान्तर के लिए मेरा भाग्य बनाने आये हैं। ऐसे भगवान बाप, टीचर, सतगुरु पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए। मन में यह संकल्प आते ही अपने परम शिक्षक को मिलने के लिए मन बेचैन हो उठता है।

➳ _ ➳ अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं चल पड़ती हूँ अपने परम शिक्षक शिव बाबा के पास उनसे ज्ञान के अथाह खजाने लेने ताकि स्वयं को भरपूर कर, इस ईश्वरीय पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ कर औरों को भी पढ़ा सकूँ। अति तीव्र वेग से उड़ता हुआ मैं फ़रिशता सेकण्ड में साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक में प्रवेश करता हूँ। अपने सामने अपने परम शिक्षक शिव बाबा को ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में मैं स्पष्ट देख रही हूँ। बापदादा बड़े प्यार से मन्द - मन्द मुस्कराते हुए अपने नयनो से मुझे निहार रहे हैं। बाबा की भृकुटि से बहुत तेज प्रकाश निकल कर सीधा मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रहा है। यह प्रकाश स्नेह की मजबूत डोर बन कर मुझे अपनी और खींच रहा है।

➳ _ ➳ बाबा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित हो कर बाबा के सामने जा कर बैठ जाता हूँ। बाबा ज्ञान के अथाह खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं। मेरी बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहें हैं। अल्फ और बे को याद करने की अति सिम्पल पढ़ाई पढ़ा कर अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर, बाबा मुझे इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ने और दूसरों को पढ़ाने का वरदान दे रहें हैं।

➳ _ ➳ ज्ञान के अखुट खजानों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर करके, अपने फ़रिशता स्वरूप को सूक्ष्म लोक में छोड़, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा ज्ञान सूर्य शिव बाबा के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ और जा कर अपने परमशिक्षक ज्ञानसूर्य शिव बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया में बैठ जाती हूँ। ज्ञान की अनन्त किरणों से स्वयं को भरपूर करके मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और जा कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अब मैं अल्फ और बे को याद करने की इस अति सिम्पल पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ने और औरों को पढ़ाने की सेवा में लगी रहती हूँ। हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर, वरदानीमूर्त बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी अल्फ और बे को याद करने की यह सिम्पल पढ़ाई पढ़ने और उंच प्रालब्ध बनाने के लिए प्रेरित करती रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं आत्मा पवित्रता की गुह्यता को जानने वाली हूँ।
✺   मैं सुख शांति सम्पन्न आत्मा हूँ।
✺   मैं महान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्मा सदैव ऊंची स्थिति में स्थित रहती हूँ ।
✺ मैं आत्मा सर्व आत्माओं को रहम की दृष्टि देती हूँ ।
✺ मैं आत्मा सदा ऊंची स्थिति के वायब्रेशन फैलाती हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  हर गुण वा शक्ति का अनुभव कराने की रिसर्च करो यह बहुत बड़ा ग्रुप है। स्पार्क वाले रीसर्च करते हैं ना! स्पार्क वालों को विशेष यह अटेन्शन में रहे कि जैसे साइन्स प्रत्यक्ष अनुभव कराती है, मानो गर्मी है तो साइन्स के साधन ठण्डी का प्रत्यक्ष अनुभव कराते हैं। ऐसे रीसर्च वालों को विशेष ऐसा प्लैन बनाना चाहिए कि हर एक जो बाप की या आत्मा की विशेषतायें हैंज्ञान स्वरूप, शान्त स्वरूप, आनन्द स्वरूप, शक्ति स्वरूप... इस एक-एक विशेषता का प्रैक्टिकल में अनुभव क्या होता है। वह ऐसा सहज साधन निकालो जो कोई भी अनुभव करने चाहे तो चाहे थोड़े समय के लिए भी अनुभव कर सके कि शान्ति इसको कहते हैंशक्ति की अनुभूति इसको कहते हैं। एक सेकण्डदो सेकण्ड भी अनुभव कराने की विधि निकालो। तो एक सेकण्ड भी अगर किसको अनुभव हो गया तो वह अनुभव आकर्षित करता है। ऐसी कोई इन्वेन्शन निकालो। आपके सामने आवे और जिस विशेषता का अनुभव करने चाहे वह कर सके। क्या-क्या भिन्न-भिन्न स्थिति होती है, जैसे साधना करने वाले जो साधु हैं वह प्रैक्टिकल में उन्हों को अनुभव कराते हैंचक्र नाभी से शुरू हुआ फिरऊपर गयाफिर ऊपर जाके क्या अनुभूति होती है। ऐसे आप अपने विधि पूर्वकमन और बुद्धि द्वारा उनको अनुभव कराओ। लाइट बैठकर नहीं दिखाना है लेकिन लाइट का अनुभव करें।

 

 _ ➳  रीसर्च का अर्थ ही है - 'प्रत्यक्ष विधि द्वारा अनुभव करना, कराना'। तो ऐसा प्लैन बनाके प्रैक्टिकल में इसकी विधि निकालो। जैसे योग शिविर की विधि निकाली ना तो टैम्प्रेरी टाइम में योग शिविर में जो भी आते हैं वह उस समय तो अनुभव करते हैं ना! और उन्हों को वह अनुभव याद भी रहता है। ऐसे कोई-न-कोई गुणकोई-न-कोई शक्तिकोई-न -कोई अनादि संस्कार, उन्हों की अनुभूति कराओ। तो ऐसी रीसर्च वालों को पहले स्वयं अनुभूति करनी पड़ेगी फिर विधि बनाओ और दूसरों को अनुभूति कराओ। आजकल लोगों को भक्ति में जैसे चमत्कार चाहिए नामेहनत नहीं - 'चमत्कार'। ऐसे आध्यात्मिक रूप में अनुभव चाहिए। अनुभवी कभी बदल नहीं सकता। जल्दी-जल्दी अनुभव के आधार से बढ़ते जायेंगे सुना। अभी नई-नई विधि निकालो। आप कहते जाओ वह अनुभव करते जायें, इसके लिए बहुत पावरफुल अभ्यास करना पड़ेगा। 

 

✺   ड्रिल :-  "हर गुण वा शक्ति का प्रत्यक्ष विधि द्वारा अनुभव करना और कराना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा मस्तक मणि हूं... भ्रुकुटी में अपने सिंहासन पर विराजमान... मैं आत्मा अपने इस ब्राह्मण जीवन को देख हर्षित होती हूँ... बाबा ने मुझे अपनाया तो मुझे अपने रूप, काल, घर के बारे में पता चला है... नहीं तो कहां वो कलयुग का शूद्र जीवन और कहाँ यह संगमयुग का ब्राह्मण जीवन... बाबा ने दुःखों के जाल में फँसी मुझ आत्मा के बंधन काट मुक्त कराया... मुझे मेरा तारणहार मिल गया... मैं आत्मा नीलगगन में उन्मुक्त पंछी की भांति उड़ान भरती हुई गुनगुना रही हूं... कि तुम जो मिल गए हो तो जहान मिल गया...       

 

 _ ➳  पहुँचती हूं अपने घर परमधाम... जहां चहुँ ओर लाल प्रकाश फैला हुआ है... कितना सुंदर कितना सुनहरा प्रकाश है यह, कितनी शान्ति है यहां... खो जाती हूं मैं इस शांत वातावरण में... इन लाल प्रकाश की किरणों में मैं समा जाती हूँ... ज्योतिरबिन्दु शिव पिता मुझ को लेकर आते हैं सूक्ष्म वतन में... 

 

 _ ➳  सामने है मेरे पिता, मेरे ईश्वर, मेरे आराध्य, मेरे परमात्मा , मेरे बापदादा क्या बोलूं ! कैसे पुकारूँ! नहीं जानती बस इतना ही बोलती हूं... "मेरे बाबा मेरे प्राण मेरे जीवन मेरी जान" कब से बिछड़ी हुई थी आपसे... कहाँ थे आप? क्यों मुझे इस दुनिया की भीड़ में अकेला छोड़ दिया? जानते भी हैं? कि कैसे गुजारे मैंने ये बरस, ये सदियां आपके बिना... मेरी ये बातें सुन बाबा को मुझ पर बेहद प्यार आता है... बाबा मेरे सर पर बड़े प्यार से हाथ फिराते हैं... मुझे मनभावनी दृष्टि देते हैं... और मीठी मीठी वाणी में बड़े प्रेम से ड्रामा का राज़ बतलाते हैं... मैं आत्मा बाबा के प्रेम में डूबने लगती हूं... बाबा के मस्तक से आती सफ़ेद किरणें मेरे अंदर शीतलता भर रही हैं... इन निरंतर आती किरणों के प्रवाह से मैं अपने को बेहद शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... ये किरणों का झरना मुझे पवित्रता से, ज्ञान से, प्रेम से, आनंद से, सर्व शक्तियों से भरपूर कर रहा है।

 

 _ ➳  बाबा मुझ आत्मा को गुण और शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं... इन गुण शक्तियों को अपने अंदर भर मैं बाप समान बनती जा रही है... मैं अपने को पूरी तरह से तृप्त अनुभव कर रही हैं... इसके उपरांत मैं बाबा से विदाई लेकर वापिस आती हूं... बाबा से मिले गुण शक्तियों और वरदानों के निरंतर अभ्यास ने मुझे बहुत दिव्य और अलौकिक बना दिया है...

 

 _ ➳  अनुभव करती हूं कि मेरा प्रभामंडल अन्य आत्माओं को आकर्षित करने लगा है... मुझ आत्मा में भरा बाबा का स्नेह उन्हें चुम्बक की तरह आकर्षित कर रहा है उस स्नेह को पाने के लिए सब मेरी ओर खिंचीं चली आ रही हैं... दिव्य गुणों शक्तियों को धारण कर मैं आत्मा अपने संबंध सम्पर्क में आने वाली अन्य आत्माओं को भी सुख, शांति, प्रेम व आनन्द को दे रही हूं... मेरी बाप समान पवित्र दृष्टि पड़ते ही वे एक अलग ही आनंद में डूब रही हैं... शान्ति के सागर में लहरा रही हैं... इस सुख, शान्ति की अनुभूति होते ही सभी अपने आप को बेहद भाग्यवान महसूस कर रही हैं... जैसे डूबती किश्ती को किनारा मिल गया... मैं भी बाबा से मिले इस अखुट ख़जाने को पाकर और बांटकर असीम शान्ति और खुशी का अनुभव कर रही हूं... "धन्यवाद मेरे प्यारे बाबा, मेरे मीठे मीठे बाबा" आपका भी जवाब नहीं! कैसे अपने सब बच्चों के कल्याण का कार्य करते हो... "वाह मेरे करनकरावनहार बाबा..."

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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