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 05 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ स्वयं को स्वयं ही सुधारा ?

 

➢➢ कभी भी किसी की निंदा व परचिन्तन तो नहीं किया ?

 

➢➢ स्वराज्य अधिकार के नशे और निश्चय से सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ लाइट हाउस बन मन बुधी से लाइट फैलाने में बिजी रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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〰✧  किसी कमजोर आत्मा की कमजोरी को न देखो। यह स्मृति में रहे कि वैराइटी आत्मायें हैं। सबके प्रति आत्मिक दृष्टि रहे। आत्मा के रुप में उनको स्मृति में लाने से पावर दे सकोगे। आत्मा बोल रही है, आत्मा के यह संस्कार हैं, यह पार्ट पक्का करो तो सबके प्रति स्वत: शुभ भावना रहेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺  "मैं बापदादा की छत्रछाया के अन्दर रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"

 

✧  अपने को सदा बाप की याद की छत्रछाया के अन्दर अनुभव करते हो? जितना-जितना याद में रहेंगे उतना अनुभव करेंगे कि मैं अकेली नहीं लेकिन बाप-दादा सदा साथ है। कोई भी समस्या सामने आयेगी तो अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करेंगे, इसलिए घबरायेंगे नहीं। कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य सहज हो जायेगा। 

 

✧  कभी भी कोई ऐसी बात सामने आवे तो बाप-दादा की स्मृति रखते अपना बोझ बाप के ऊपर रख दो तो हल्के हो जायेंगे। क्योंकि बाप बड़ा है और आप छोटे बच्चे हो। बड़ों पर ही बोझ रखते हैं। बोझ बाप पर रख दिया तो सदा अपने को खुश अनुभव करेंगे। फरिश्ते के समान नाचते रहेंगे। दिन रात 24 ही घंटे मन से डाँस करते रहेंगे।

 

✧  देह अभिमान में आना अर्थात् मानव बनना। देही अभिमानी बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। सदैव सवेरे उठते ही अपने फरिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहो और खुशी में नाचते रहो तो कोई भी बात सामने आयेगी उसे खुशी-खुशी से क्रास कर लेंगे। जैसे दिखाते हैं - देवियों ने असुरों पर डाँस किया। तो फरिश्ते स्वरूप की स्थिति में रहने से आसुरी बातों पर खुशी की डाँस करते रहेंगे। फरिश्ते बन फरिश्तों की दुनिया में चले जायेंगे। फरिश्तों की दुनिया सदा स्मृति में रहेगी।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आप सबका लक्ष्य क्या है? कर्मातीत बनना है ना! या थोडा-थोडा कर्मबन्धन रहा तो कोई हर्जा नहीं? रहना चाहिए या नहीं रहना चाहिए? कर्मातीत बनना है? बाप से प्यार की निशानी है - कर्मातीत बनना। तो करावनहार' होकर कर्म करो, कराओ, कर्मेन्द्रियाँ आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ।

 

✧  बिल्कुल अपने को न्यारा समझ कर्म कराना - यह कान्सेसनेस इमर्ज रूप में हो। मर्ज रूप में नहीं। मर्ज रूप में कभी करावनहार' के बजाए कर्मेन्द्रियों के अर्थात मन के, बुद्धि के, संस्कार के वश हो जाते हैं। कारण? ‘करावनहार' आत्मा हूँ मालिक हूँ विशेष आत्मा, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ यह स्मृति मालिक-पन की स्मृति दिलाती है।

 

✧  नहीं तो कभी मन आपको चलाता और कभी आप मन को चलाते। इसलिए सदा नेचुरल मनमनाभव की स्थिति नहीं रहती। मैं अलग हूँ बिल्कुल, और सिर्फ अलग नहीं लेकिन मालिक हूँ, बाप को याद करने से मैं बालक हूँ और मैं आत्मा कराने वाली हूँ तो मालिक हूँ। अभी यह अभ्यास अटेन्शन में कम है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  अब आपका गोपीपन का पार्ट समाप्त हुआ। महारथी जो आगे बढ़ते जा रहे हैं, उनका इस रीति सर्विस करने का पार्ट भी ऑटोमेटिकली बदली होता जाता है। पहले आप लोग भाषण आदि करती थीं और कोर्स कराती थीं। अभी चेयरमैन के रूप में थोड़ा बोलती हो, कोर्स आदि आपके जो साथी हैं वह कराते हैं। अभी इस समय कोई को आकषर्ण करना, हिम्मत और हुल्लास में लाना, यह सर्विस रह गई है, तो फ़र्क आ जाता है ना? इससे भी आगे बढ़ कर यह अनुभव होगा जैसे कि आकाशवाणी हो रही है। कहेंगे यह कोई अवतार हैं और यह कोई साधारण शरीरधारी नहीं हैं। अवतार प्रगट हुए हैं, जैसे कि साक्षात्कार में अनुभव करते-करते देवी प्रगट हुई है। महावाक्य बोले और प्राय: लोप। अभी की स्टेज व पुरुषार्थ का लक्ष्य यह होना हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- अपने लक्ष्य और लक्ष्य-दाता बाप को याद करना"

➳ _ ➳  हीरें तुल्य ये ब्राह्मण जन्म और माया के हर वार से बचाने वाला ये प्रभु परिवार... सुखों की घनेरी छाया और संबंधो का ये सुखद सा संसार... लक्ष्य हीन से जीवन को अब कोई लक्ष्य मिला है, घनघोर दुखों से तार तार बेरंग सी और दागदार ये आत्मा चदरियाँ... मगर अब महका है रेशा रेशा और गुलाबों सा खिला है... मुझ आत्मा रूपी चदरियाँ के हर दाग को बडी शिद्दत से एक एक कर निकाल रहा है वो... बैठ कर मेरे सामने रेशे -रेशे में सद्गुणों के मोती पिरों रहा है वो....

❉  ऊँचे ते ऊँचे, मगर निरंहकारी बाप मुझ आत्मा से बोलें:- "पदमापदम भाग्यशाली श्रेष्ठ आत्मा बच्ची... यह ईश्वरीय जन्म कल्प में केवल एक बार मिलता है... देवताई जन्म से भी श्रेष्ठ इस अमूल्य जन्म में स्वयं बाप आत्मा को जन्मों जन्मों की भटकन से छुडाने आये है... एक एक सेकेन्ड सालों के बराबर है यहाँ... क्या आपने इस अमूल्य जन्म का महत्व यथार्थ समझा है... स्वाँस स्वाँस में अखुट कमाई छोडकर कही मन व्यर्थ में तो नही उलझा है...?"

➳ _ ➳  इस अमूल्य जन्म की सर्वश्रेष्ठ सौगात दिव्य नेत्र धारी मैं आत्मा ज्ञानसागर बाप से बोली:- "मीठे बाबा... प्रभु पालना में पल रही हूँ, हर पल आपके रूपरंग में ढल रही हूँ, इस अमूल्य जन्म की प्राप्तियों से मैं काँटों में भी अब गुलाबों सी खिल रही हूँ... छोटे से जीवन के ये थोडे से पल और हर पल को सींचता आपका स्नेह, देखो... अब मुझे उडना आ गया है... दिशाहीन नही है अब मेरी उडान... मुझे अपना परम लक्ष्य पा गया है..."

❉  उमंगों के पंख लगा जीवन का परम लक्ष्य देकर फरिश्ता बनाने वाले बाप मुझ आत्मा से बोलें:- "मीठी बच्ची... जन्म जन्म बिना किसी लक्ष्य के ही दर दर भटकते अपना नाम, रूप सब गवाँया है आपने... अब इस अन्तिम जन्म में खोया अस्तित्व पाया है आपने... लक्ष्मी नारायण सा बनना है और और सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप भी पाना है ... बहुत संभाल करो इन ज्ञान रत्नों की... ये बहुत ही अनमोल खज़ाना है..."

➳ _ ➳  सर्व सम्बन्धों का सुख एक बाप से लेने वाली मैं दिलतख्तनशीन आत्मा करनकरावनहार बापदादा से बोली:- "मीठे बाबा... मेरी खातिर परमधाम छोडकर आपका इस पतित दुनिया में आना, और जन्मों जन्मों की मैली हुई चादर को यूँ पावन बनाना... दिल आभारी है आपका और रोम रोम गाता है शुकराना... आपको पाकर मै इस अमूल्य जन्म और अपने पावन लक्ष्य को जान चुकी हूँ...  हर पल ऊँचाईयों की ओर ले जाती इन श्रीमत की पगडंडियों को पहचान चुकी हूँ..."

❉  अखंड सेवाधारी बाप मुझ आत्मा से बोले:- "मीठी बच्ची... कल्प कल्प का अब अपना भाग्य बनाओं... अमूल्य जन्म का अमूल्य लक्ष्य हर आत्मा तक पहुँचाओं... विषय विकारों के दल दल में धँसी रूहों की चादर को लक्ष्र्य रूपी सोप से अब उजला बनाओं, जिसे ढूँढ रहे है वो मन्दिरों में तीर्थों पर... वो अब परमधाम से खुद धरा पर आ चुके है... गंगा में नहाने से जन्मो जन्मों की मैल नही जायेगी... अब ज्ञान गंगा से संसार की आत्माओं को स्नान कराओं"....

➳ _ ➳  बाप समान बनती जा रही मैं अखंड सेवाधारी आत्मा बापदादा से बोली: "मीठे बाबा... संगम का ये धोबी घाट अब आत्मा रूपी वस्त्रों से भरपूर हो रहा है... पावन रूहों की मणियों का मेला सा दिख रहा है चारों ओर... लग रहा है, मानों संसार ही कोहिनूर हो गया है... देखों... फरिश्ते ही फरिश्ते घूम रहे है हर तरफ, जमघट माया का बहुत ही दूर हो गया है... और बापदादा अपने वरदानी नजरों से मुझे निहाल किये जा रहे है"...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- कोई भी बेकायदे, श्रीमत के विरुद्ध चलन नही चलनी है"
 
➳ _ ➳  अपने श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परम पिता परमात्मा शिव बाबा की श्रेष्ठ मत पर चल अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा अपने मीठे शिव बाबा का शुक्रिया अदा करने के लिए उन्हें बड़े प्यार से एक खत लिखती हूँ और उस खत को ले कर उड़ चलती हूँ अपने सूक्ष्म आकारी फ़रिशता स्वरूप को धारण कर सूक्ष्म वतन की ओर जहां मेरे दिलाराम शिव बाबा अपने रथ पर विराजमान हो कर मेरी राह देख रहें हैं।
 
➳ _ ➳  वतन में पहुंच कर मैं देख रही हूँ वतन का खूबसूरत नज़ारा। पूरा सूक्ष्म लोक सफ़ेद चांदनी के प्रकाश से नहाया हुआ, रंग बिरंगे फूलो की खुशबू से महक रहा है। प्रभु दर्शन की प्यासी मेरी निगाहें अपने दिलाराम बाबा को तलाश रही हैं ताकि जल्दी से जल्दी अपने दिल के जज्बात जो मैंने खत में अपने प्यारे बाबा के लिये लिखे हैं वो उन्हें दिखा सकूँ। लेकिन ऐसा लगता है जैसे आज बाबा मेरे साथ आंख - मिचौली खेल रहें हैं। मायूस हो कर उस खत को वही रख मैं वापिस लौटने के लिए जैसे ही मुड़ती हूँ सामने बाबा दिखाई देते हैं।
 
➳ _ ➳  मंद - मंद मुस्कराते हुए बाबा की मीठी मधुर मुस्कराहट को देख मेरी सारी मायूसी पल भर में गायब हो जाती हूँ और मैं दौड़ कर बाबा की बाहों में समा जाती हूँ। बाबा के नयनों में अपने लिए समाये असीम स्नेह को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। बाबा का स्नेह, बाबा का प्यार बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में अब मुझ पर बरस रहा है। बाबा की स्नेह भरी दृष्टि मुझ में असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है। स्नेह के सागर बाबा से अथाह स्नेह पा कर मेरी जन्म जन्म की प्यास जैसे बुझ गई है। तृप्त हो कर अब मैं वापिस कर्म करने हेतू साकारी लोक में आने के लिए बाबा से विदाई लेती हूँ।
 
➳ _ ➳  बाबा अपने दोनों हाथ मेरे आगे करते है। मैं देख रही हूं बाबा के एक हाथ मे एक छोटी सी खूबसूरत डिब्बी और दूसरे हाथ मे एक बहुत सुंदर सजा हुआ कार्ड हैं। बाबा उस खूबसूरत डिब्बी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं:- "ये बाबा के दिल की डिब्बी है जिसमे बाबा ने आपके दिल के जज्बात, जो आपने खत में लिखे है वो सम्भाल कर रखें है। दूसरा ये श्रीमत का कार्ड है जिस पर बाबा की वो सारी श्रीमत लिखी हैं जिन पर अब आपको चल कर बाबा के स्नेह का रिटर्न देना है।
 
➳ _ ➳  श्रीमत के उस खूबसूरत कार्ड को ले कर अब मैं लौट आती हूँ साकारी दुनिया मे और अपने साकारी तन में विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म करने से पहले चेक करती हूं कि वो श्रीमत प्रमाण है या नही! बाबा की आज्ञानुसार आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर हर कर्म करने से अब मुझसे कोई भी कर्म ऐसा नही होता जो विकारों के वश हो। बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने से मेरा जीवन हीरे तुल्य बन रहा है। हर कर्म में मम्मा, बाबा को फ़ॉलो करके अपने हर कर्म को मै श्रेष्ठ बना रही हूँ। सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा अब मैं सबको श्रेष्ठता का अनुभव करवा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं स्वराज्य अधिकार के नशे और निश्चय से सदा शक्तिशाली आत्मा हूँ।
✺   मैं सहजयोगी आत्मा हूँ।
✺   मैं निरन्तर योगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं मन-बुद्धि से लाइट फैलाने वाला लाइट हाउस हूँ  ।
✺   मैं आत्मा लाइट फैलाने में सदैव बिजी रहती हूँ  ।
✺   मैं आत्मा किसी भी बात में भय से मुक्त हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  देखोबापदादा 'मैजारिटीशब्द कह रहा हैसर्व नहीं कह रहा हैमैजारिटी कह रहा है। तो दूसरी बात क्या देखीक्योंकि कारण को निवारण करेंगे तब नव-निर्माण होगा। तो दूसरा कारण - अलबेलापन भिन्न-भिन्न रूप में देखा। कोई-कोई में बहुत रायल रूप का भी अलबेलापन देखा। एक शब्द अलबेलेपन का कारण - सब चलता है। क्योंकि साकार में तो हर एक के हर कर्म को कोई देख नहीं सकता हैसाकार ब्रह्मा भी साकार में नहीं देख सके लेकिन अब अव्यक्त रूप में अगर चाहे तो किसी के भी हर कर्म को देख सकते हैं। जो गाया हुआ है कि परमात्मा की हजार आंखे हैंलाखों आंखें हैं,लाखों कान हैं। वह अभी निराकार और अव्यक्त ब्रह्मा दोनों साथ-साथ देख सकते हैं। कितना भी कोई छिपायेछिपाते भी रायल्टी से हैंसाधारण नहीं। तो अलबेलापन एक मोटा रूप हैएक महीन रूप हैशब्द दोनों में एक ही है 'सब चलता हैदेख लिया है क्या होता है! कुछ नहीं होता। अभी तो चला लोफिर देखा जायेगा!यह अलबेलेपन के संकल्प हैं।

 

 _ ➳  बापदादा चाहे तो सभी को सुना भी सकते हैं लेकिन आप लोग कहते हो ना थोड़ी लाज-पत रख दो। तो बापदादा भी लाज पत रख देते हैं लेकिन यह अलबेलापन पुरुषार्थ को तीव्र नहीं बनासकता। पास विद आनर नहीं बना सकता। जैसे स्वयं सोचते हैं ना'सब चलता है'। तो रिजल्ट में भी चल जायेंगे लेकिन उड़ेंगे नहीं। तो सुना क्या दो बातें देखी! परिवर्तन में किसी न किसी रूप सेहर एक में अलग-अलग रूप से अलबेलापन है। तो बापदादा उस समय मुस्कराते हैंबच्चे कहते हैं देख लेंगे क्या होता है! तो बापदादा भी कहते हैं देख लेना क्या होता है! तो आज यह क्यों सुना रहे हैं?क्योंकि चाहो या नहीं चाहोजबरदस्ती भी आपको बनाना तो है ही और आपको बनना तो पड़ेगा ही। आज थोड़ा सख्त सुना दिया है क्योंकि आप लोग प्लैन बना रहे होयह करेंगे, यह करेंगे... लेकिन कारण का निवारण नहीं होगा तो टैम्प्रेरी हो जायेगाफिर कोई बात आयेगी तो कहेंगे बात ही ऐसी थी ना! कारण ही ऐसा था! मेरा हिसाब-किताब ही ऐसा है। इसलिए बनना ही पड़ेगा। मंजूर है ना! 

 

✺   ड्रिल :-  "'सब चलता है'- यह अलबेलापन समाप्त करना"

 

 _ ➳  आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त, तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाली मैं आत्मा अपने शिव पिता परमात्मा की मधुर याद में बैठी, संगमयुग की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का आनन्द लेते हुए स्वयं पर नाज कर रही हूं... और साथ ही साथ यह भी विचार कर रही हूं कि कितनी बदनसीब हैं वो आत्मायें जो भगवान को पहचानने के बाद भी आलस्य अलबेलेपन में अपने समय को व्यर्थ गंवा रही हैं... यह सोच कर कि सब चलता है... यही विचार करते करते मेरी आँखों के सामने एक दृश्य उभर आता है...

 

 _ ➳  मैं देख रही हूँ एक तरफ भविष्य नई दुनिया सतयुग का गेट और दूसरी तरफ़ संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों की दुनिया... जहां बाबा के वैरायटी ब्राह्मण बच्चे बाबा की श्रीमत अनुसार इस सतयुगी दुनिया के गेट का पास प्राप्त कर इस दुनिया मे ऊंच पद पाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रहें हैं... वही दूसरी ओर अनेक ब्राह्मण बच्चे ऐसे भी है जो आलस्य अलबेलेपन में संगमयुग के अनमोल पलो को व्यर्थ गंवा रहें हैं... गफलत कर रहें हैं... बड़े बड़े प्लैन बना रहें हैं कि यह करेंगे, वह करेंगे... लेकिन उस प्लैन को दृढ़तापूर्वक प्रेक्टिकल में नही ला रहे... फिर सोचते हैं कि "सब चलता है... अभी बाकी कौन से सम्पूर्ण बने हैं... लास्ट में बन जायेंगें..."

 

 _ ➳  ऐसे तीव्र पुरुषार्थ करने वाले, और आलस्य अलबेलेपन में समय व्यर्थ गवाने वाले वैरायटी ब्राह्मण बच्चो को मैं देख रही हूँ... इस दृश्य को देख कर मैं मन ही मन स्वयं से प्रोमिस करती हूं कि मुझे आलस्य अलबेलेपन में भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले संगमयुग के बहुमूल्य पलो को व्यर्थ नही गंवाना है... बल्कि अपना हर सेकेंड, हर श्वांस परमात्म याद और सेवा में रह कर सफल कर, अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है...

 

 _ ➳  यही संकल्प करके अब मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर, अपने प्यारे मीठे शिव बाबा की याद में बैठ जाती हूँ... और सेकण्ड में अपने सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, अव्यक्त फरिश्ता बन पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में, बापदादा के पास... यहां पहुंच कर एक और विचित्र दृश्य मैं देखती हूँ कि आज बापदादा की एक नही बल्कि हज़ारों आंखे हैं जिनसे वो अपने एक - एक ब्राह्मण बच्चे को देख रहें हैं...

 

 _ ➳  बाबा के मन के भावों को, बाबा की हजारों आंखों में जैसे मैं स्पष्ट पढ़ रही हूं... जो बच्चे सोचते है कि अभी तो चला लो, कुछ नही होता, आगे देख लेंगे... बच्चो की इस बात को सुनकर, कि देख लेंगे क्या होता है, बापदादा भी जैसे मुस्करा रहें है कि देख लेना क्या होता है और चेतावनी दे रहें हैं कि आप चाहो ना चाहो जबरदस्ती भी आपको बनाना तो है और आपको बनना तो पड़ेगा ही... इस दृश्य के समाप्त होते ही अब मैं देख रही हूं बाहें पसारे बापदादा का पहले जैसा लाइट माइट स्वरूप जो मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है... बाबा की बाहों में अब मैं फरिश्ता समा रहा हूँ... अपनी शक्तिशाली दृष्टि से बाबा मेरे अंदर आलस्य अलबेलेपन से सदा मुक्त रहने का बल भर रहें हैं...

 

 _ ➳  बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपने फरिश्ता स्वरूप को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर पहुंच जाती हूँ परमधाम अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के पास उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, स्वयं को शक्तिसम्पन्न बनाने... बिंदु स्वरूप में अब मैं स्वय को देख रही हूं अपने बिंदु बाप के बिल्कुल सामने... उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उतार कर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं... बाबा से आ रही एक एक किरण मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार कर रही है...

 

 _ ➳  स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है... मन पर अब किसी भी प्रकार का कोई बोझ नही... आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए, उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूं... दृढ़तापूर्वक हर प्लैन को प्रेक्टीकल में लाने से, कदम कदम पर परमात्म मदद का अनुभव मुझे सहज ही सफ़लतामूर्त बना रहा है... "कर लेंगे, हो जायेगा" के बजाए "करना ही है" इस पाठ को पक्का कर बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के लक्ष्य की ओर अब मैं अपने कदम बढ़ा रही हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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