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❍ 20 / 03 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सवेरे सवेरे एकान्त में बैठ विचार सागर मंथन किया ?*
➢➢ *"ड्रामा की भावी निश्चित बनी हुई है" - इस स्मृति में रह सदा बेफिक्र रहे ?*
➢➢ *होली शब्द के अर्थ स्वरुप में स्थित रह सच्ची होली मनाई ?*
➢➢ *डायरेक्ट भगवान द्वारा पढाई और पालना का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *कर्म में, वाणी में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहना है, जो जितना लवली होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है ।* इस लवलीन स्थिति को मनुष्यात्माओं ने लीन की अवस्था कह दिया है । बाप में लव खत्म करके सिर्फ लीन शब्द को पकड़ लिया है । *आप बच्चे बाप के लव में लवलीन रहेंगे तो औरों को भी सहज आप-समान व बाप-समान बना सकेंगे ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा अनुभव करते हो? *सबसे बड़ा भाग्य-भाग्यविधाता अपना बन गया। सदा इस श्रेष्ठ भाग्य की खुशी और नशा रहे।* यह रुहानी नशा है जो सदा रह सकता है। विनाशी नशा सदा रहे तो नुकसान हो जाए।
〰✧ *जो इस रुहानी नशे में होगा उसको स्वत: ही इस पुरानी दुनिया की आकर्षण भूली हुई होगी। ना पुरानी देह, न पुराने देह के सम्बन्ध, सभी सहज भी भूल जाते हैं। भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती।* देह भान भी भूला हुआ होगा। आत्म अभिमानी होंगे। सदा देही-अभिमानी स्थिति ही सम्पूर्ण स्थिति है।
〰✧ *तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम भाग्यवान आत्मायें हैं, कोई साधारण भाग्यवान, कोई श्रेष्ठ भाग्यवान हैं। 'श्रेष्ठ'-शब्द सदा याद रखना, 'श्रेष्ठ आत्मा हूँ, श्रेष्ठ बाप का हूँ और श्रेष्ठ भाग्यवान हूँ' - यही वरदान सदा साथ रहे। जब श्रेष्ठ आत्मा, श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ कृत्ति हो जायेगी तो आप सबको देखकर अनेक आत्माओंको श्रेष्ठ बनने की शुभ आशा उत्पन्न होगी। इससे सेवा भी हो जायेगी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ यह फाइनल पेपर है जो समय पर निकलेगा - प्रैक्टिकल म़े। इस पेपर में अगर पास है गये तो और कोई बडी बात नहीं। *इस पेपर में पास होंगे अर्थात अव्यक्त स्थिति होंगी*। शरीर के भान से भी परे हुए तो बाकी क्या बडी बात है।
〰✧ इससे ही परखेंगे कि कहाँ तक अपने उस जीवन की नईया की रस्सियाँ छोडी हैँ। *एक है सोने की जंजीर, दूसरी है लोहे कि*। लोहे कि जंजीर तो छोडी, लेकिन अब सोने की भी महीन जंजीर है। यह फिर ऐसे है जो कोई को देखने में भी आ न सके।
〰✧ *इसलिए जैसे कोई भी बन्धन से मुक्त होते, वैसे ही सहज रीति शरीर के बन्धन से मुक्त हो सकें।* नहीं तो शरीर के बन्धन से भी बडा मुश्किल मुक्त होंगे। फाइनल पेपर है - अन्त मति सो गति।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जो टीचर्स बनती हैं उन्हों को सिर्फ प्वाइन्ट बुद्धि में नहीं रखनी है व वर्णन करनी है लेकिन प्वाइन्ट रूप बनकर प्वाइन्ट वर्णन करनी है। *अगर स्वयं प्वाइन्ट स्थिति में स्थित नहीं होंगे तो प्वाइन्ट का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए प्वाइन्ट् इकट्ठी करने के साथ अपना प्वाइन्ट रूप भी याद करते जाना।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विचार सागर मंथन करने की आदत डालना”*
➳ _ ➳ *खुले आंगन में प्रकृति की गोद में मैं आत्मा बाबा की याद में बैठी हूँ... मन अपने श्रेष्ठ भाग्य की महिमा के गीत गुनगुना रहा है... बाबा ने मुझे अपना बनाकर क्या से क्या बना दिया... कहाँ भक्ति में उसकी एक झलक पाने के प्यासे थे... अब उससे हर पल मिलन मनाने का भाग्य मिल गया है...* उसने अपने दिलतख्त पर बिठाके मुझे अपनी दिलरूबा बना दिया है... तभी बारिश की हल्की हल्की बूँदें मुझ पर बरसने लगती हैं... ये बूँदें ज्ञान सागर की ज्ञान वर्षा में भीगने और आनंदित होकर झुमने का अनुभव करा रही हैं...
❉ *ज्ञान सागर बाबा अपनी ज्ञान की वर्षा करते हुए कहते हैं :-* “मीठे मीठे फूल बच्चे... *तुम्हें नशा होना चाहिए की तुम्हें... पढाने वाला टीचर कौन है... स्वयम भगवान, प्यार का सागर, आनंद का सागर, शांति का सागर बाबा तुम्हें पढ़ा रहे हैं...* तुम भाग्यवान आत्माएं ज्ञान सूर्य के सम्मुख बैठ यह रूहानी पढाई पढ़ रहे हो... सदा अपने इस भाग्य के नशे में रहो...”
➳ _ ➳ *बाबा की मधुर वाणी सुनकर आनंद विभोर होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :-* “मेरे जीवन के आधार मीठे बाबा... *संगम पर मुझ आत्मा को ज्ञान सूर्य बाप के सम्मुख बैठ... रूहानी पढ़ाई पढने का श्रेष्ठ भाग्य मिला है... मैं आत्मा सदैव इस खुमारी, नशे में स्थित हो रही हूँ...* आपसे मिले हुए ज्ञान की हर पॉइंट की अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ...”
❉ *ज्ञान के दिव्य खजानों से मुझे लबालब करते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं :-* “मेरे मीठे सिकिलधे बच्चे... अब तुम्हारी हंस मण्डली बन गयी है... तुम बगुले से हंस बन गये हो... अब तुम अवगुणों का चिन्तन नहीं कर सकते... *अब तुम ज्ञान मोती चुगने वाले हंस बुद्धि बन गये हो... तुम व्यर्थ और समर्थ में से सदा समर्थ को ही ग्रहण करो... श्रेष्ठ ज्ञान रत्नों को ही जीवन में धारण करो...”*
➳ _ ➳ *बाबा से मिल रहे असीम स्नेह से गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :-* “मेरे मन के मीत मीठे बाबा... आप मुझे व्यर्थ और समर्थ, नीर और क्षीर, कंकड़ और मोती को अलग अलग परखने की शक्ति... दिव्य बुद्धि दे रहे हैं... *मैं आत्मा होलीहंस बन... सदैव ज्ञान रत्नों को ही धारण कर रही हूँ... मैं ज्ञान मोती चुगने वाला... होलीहंस बनती जा रही हूँ...”*
❉ *अपनी मधुर दृष्टि से वरदानों की वर्षा करते हुए बाबा कहते हैं :-* “मीठे प्यारे बच्चे... बाबा तुम्हें ज्ञान रत्नों की थालियाँ भर भर के दे रहे हैं... तुम उन्हीं ज्ञान रत्नों से सदा खेलते रहो... *ज्ञान की नयी नई पॉइंट्स लेकर... उस पर विचार सागर मंथन करते रहो... बाबा तुम्हें ज्ञान खजाने से भरपूर कर रहे हैं... इस खजाने को विश्व की... सर्व आत्माओं को बांटते चलो... “*
➳ _ ➳ *बाबा की शिक्षाओं को स्वयम में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :-* “मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझे ज्ञान खजानों का मालिक बना दिया है... मेरी बुद्धि को शुद्ध सोने का बर्तन बना दिया है... जिसमें मैं ज्ञान रत्नों को धारण कर रही हूँ... *ज्ञान की एक एक पॉइंट पर... विचार सागर मंथन कर उसका स्वरूप बनती जा रही हूँ... ज्ञान खजानों का दान कर सर्व को... आप समान बनाने की सेवा कर रही हूँ... खजानों को बांटते बांटते मेरा यह खजाना... और भी बढ़ता जा रहा है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ड्रामा की भावी निश्चित बनी हुई है इसलिए सदा बेफिक्र रहो*"
➳ _ ➳ ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, इस बेहद के ड्रामा में वैरायटी आत्माओं के वैरायटी पार्ट को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना वन्डरफुल है ये ड्रामा! *इस सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना - अपना पार्ट प्ले कर रही है और एक का पार्ट भी दूसरे के पार्ट से मैच नही करता। हर आत्मा कल्प पहले मुआफ़िक अपना पार्ट बिल्कुल ऐक्यूरेट बजा रही है*। बाबा ने ड्रामा के इस राज को स्पष्ट करके जीवन को कितना सहज बना दिया है। इस राज को जानने से क्या, क्यो और कैसे की क्यू में उलझने की बजाए सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाना कितना सरल हो गया है। *ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ लेने से जीवन को जैसे एक नई दिशा मिल गई है*।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन मे निरन्तर आगे बढ़ते हुए, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ अडोल रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अब मुझे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त करना है *मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, ड्रामा के हर खूबसूरत पहलू से परिचित कराने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा से मीठी मीठी रूहरिहान करने, उनसे मंगल मिलन मनाने और ड्रामा के पट्टे पर सदा अचल, अडोल रहने का उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और सेकेण्ड में अशरीरी होकर, देह से बिल्कुल न्यारा एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आ जाता हूँ और अपने बिंदु बाप के पास उनके धाम की ओर चल पड़ता हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में स्थित मेरे बिंदु बाप से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझ बिंदु सितारे के साथ कनेक्ट होकर मुझे बिल्कुल सहज रीति ऊपर की ओर खींच रही है और *मैं चैतन्य सितारा, इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर, स्वयं को हर चीज से उपराम अनुभव करते हुए, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ता जा रहा हूँ*। मेरे बिंदु पिता से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे अति शीघ्र 5 तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कराये, फरिश्तो की आकारी दुनिया से ऊपर, आत्माओं की उस निराकारी दुनिया में ले आई है जहाँ पहुँच कर मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया में मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ ना साकार देह का कोई बन्धन है और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है केवल चमकती हुई निराकारी बिंदु आत्मायें अपने बिंदु बाप की अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर, उनके प्यार और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *बिंदु बाप के साथ अपने बिंदु बच्चो का यह मंगल मिलन मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। अपने बिंदु पिता से मिलन मनाने के लिए मैं बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे उनके पास पहुँचती हूँ ओर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की प्रवेशता के कारण मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो अब परमात्म शक्तियों से चार्ज हो गई है और मैं आत्मा जैसे लाइट हाउस बन गई हूँ। *परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। शक्तियों का पुंज बनकर, बेहद के सृष्टि ड्रामा में अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ*। फिर से 5 तत्वों की साकारी दुनिया में, अपने साकारी तन में प्रवेश कर ड्रामा के पट्टे पर आकर खड़ी हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ड्रामा के हर राज को गहराई से समझ, साक्षी दृष्टा बन, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखते हुए, हर परिस्थिति में अचल अडोल रहने का अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ। *"सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे हर आकर्षण से मुक्त और हर चीज से उपराम करके, ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ, स्वयं को अचल, अडोल और एकरस बनाने में सहयोग दे रही है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं होली शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित रह सच्ची होली मनाने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं डायरेक्ट भगवान द्वारा पालना, पढ़ाई और श्रेष्ठ जीवन की श्रीमत लेकर सबसे श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. बादादा ने सुनाया था - तो आप सब अपने स्वमान के शान की सीट पर रहो तो परेशान नहीं होंगे। स्वमान की शान में नहीं रहते हो तो परेशान होते हो। *छोटा-सा पेपर टाइगर होता है लेकिन परेशान हो जाते हैं। तो इस वर्ष एकाग्र होके स्वमान की सीट पर रहना।*
➳ _ ➳ 2. कुछ भी हो जाए, अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो, भटको नहीं, कभी किस सीट पर, कभी किस सीट पर, नहीं। *अपने स्वमान की सीट पर एकाग्र रहो। और एकाग्र सीट पर सेट होके अगर कोई भी बात आती है ना तो एक कार्टून शो के मुआफिक देखो, कार्टून देखना अच्छा लगता है ना, तो यह समस्या नहीं है, कार्टून शो चल रहा है।* कोई शेर आता है, कोई बकरी आती है, कोई बिच्छू आता है, कोई छिपकली आती है गंदी - कार्टून शो है। अपनी सीट से अपसेट नहीं हो। मजा आयेगा। अच्छा - शेर भी आया, कुत्ता भी आया, बिल्ली भी आई, आने दो - देखते रहो।
✺ *ड्रिल :- "स्वमान की सीट पर एकाग्र रहकर समस्या को कार्टून शो अनुभव करना"*
➳ _ ➳ अपने बाप दादा की मीठी संतान मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा अपने हर कर्म में बाबा के ज्ञान को यूज़ करते हुए आगे बढ़ती जा रही हूँ... मेरा हर कर्म बाबा की याद में मैं आत्मा कर रही हूँ... इस कल्प के अंत में मेरे बाबा ने स्वयं इस सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान मुझे दिया है... *मैं आत्मा इस गुह्य ज्ञान को बुद्धि में बिठाकर बाबा की याद में बैठी हूँ... स्वयं को देह से अलग एक आत्मा देख रही हूँ...*इस देह से डिटैच होकर अपने जीवन की यात्रा को देख रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने इस जीवन में सुबह से लेकर रात तक अपने सभी कर्मों को करते हुए अपने पुरुषार्थ में भी आगे बढ़ती जा रही हूँ...* अन्य आत्माओं के सम्पर्क में आते कभी कभी मैं आत्मा भी परिस्थिति वश थोड़ा परेशान हो जाती हूँ... अपसेट हो जाती हूँ और अपने स्वमान की सीट से थोड़ा हट जाती हूँ... कभी वायुमंडल के प्रभाव में आकर स्वयं को देह के भान में ले आती हूँ... कभी कोई पेपर आता है तो उसमें मूँझ जाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने को इन सब परिस्थितियों में देख कर अपने प्यारे बाबा के पास उनके कमरे में आकर बैठ जाती हूँ... और बाबा को बहुत प्यार से निहार रही हूँ... *बाबा के महावाक्य मुझे याद आ रहे हैं... *बाबा ने कहा है कि बच्चे कैसी भी परिस्थिति आये कभी भी अपसेट मत होना... कितना भी बड़ा पेपर आये उसे पेपर टाइगर समझ कर पार कर लेना...* बाबा की कही बातें याद करते हुए मैं आत्मा एकदम हल्की हो गयी हूँ... इस देह से निकल कर निराकारी रूप में इस साकार दुनिया को छोड़ कर ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ... चाँद सितारों को भी पीछे छोड़ते हुए अपने घर परमधाम में आकर ठहरती हूँ...
➳ _ ➳ चारों ओर असीम शान्ति है और ये शान्ति मुझमे समाती जा रही है... मैं आत्मा भी अपने शान्त स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ... अब थोड़ा और आगे जाती हूँ और अपने पिता परमात्मा के सम्मुख पहुँच जाती हूँ... *बाबा से सुनहरी लाल रंग की किरणें निकल कर मुझ आत्मा में समा रही हैं... मैं बाबा के सानिध्य में आकर स्वयं को अत्यंत शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ...* बाबा का प्यार उनकी किरणों के रूप में मुझ पर बरस रहा है... और मैं आत्मा इस रूहानी प्यार में स्वयं को भरती जा रही हूँ... कितना सुख का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ... बाबा के प्यार को स्वयं में समा कर अब मैं आत्मा वापिस अपनी साकार देह में भृकुटि के बीच आकर बैठ गयी हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब अपने को बहुत पॉवरफुल महसूस कर रही हूँ... स्वमान की सीट पर स्वयं को एकाग्र कर रही हूँ और ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देख रही हूँ... कोई परिस्थिति आती भी है तो वो अब एक कार्टून शो की तरह लगती है... *परिस्थिति आने पर मैं आत्मा अब अपने स्वमान की सीट से डगमग नही होती और एकाग्रता और दृढ़ता से अपनी सीट पर सेट रहती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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