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 03 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ याद की म्हणत और ज्ञान की धरना से कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ "हम आत्मा भाई भाई हैं" - यह अभ्यास किया ?

 

➢➢ प्यूरिटी की रॉयल्टी द्वारा श्रेष्ठ जीवन की झलक दिखाई ?

 

➢➢ सवा का दर्शन कर सदा प्रसन्नचित और सर्व प्राप्ति के अधिकारी बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अभी तो कुछ नहीं है, अभी तो सब कुछ होना है, डरना नहीं, खेल है। विनाश नहीं, परिवर्तन होना है। सबमें वैराग्य वृत्ति उत्पन्न होनी है इसलिए रहमदिल बन सर्व शक्तियों द्वारा परेशान आत्माओं को शक्ति की सकाश दे रहम करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बाप के हर कार्य का साथी हूँ"

 

   अपने को बाप के हर कार्य में सदा साथी समझते हो? जो बाप का कार्य है वह हमारा कार्य है। बाप का कार्य है-पुरानी सृष्टि को नया बनाना, सबको सुख-शान्ति का अनुभव कराना। यही बाप का कार्य है। तो जो बाप का कार्य है वह बच्चों का कार्य है। तो अपने को सदा बाप के हर कार्य में साथी समझने से सहज ही बाप याद आता है। कार्य को याद करने से कार्य- कर्ता की याद स्वत: ही आती है। इसी को ही कहा जाता है सहज याद। तो सदा याद रहती है या करना पड़ता है?

 

 जब कोई माया का विघ्न आता है फिर याद करना पड़ता है। वैसे देखो, आपका यादगार है विघ्न-विनाशक। गणेश को क्या कहते हैं? विघ्नविनाशक। तो विघ्न-विनाशक बन गये कि नहीं? विघ्न-विनाशक अर्थात् सारे विश्व के विघ्न-विनाशक। अपने ही विघ्नविनाशक नहीं, अपने में ही लगे रहे तो विश्व का कब करेंगे? तो सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। इतना नशा है? कि अपने ही विघ्नों के भाग-दौड़ में लगे रहते हो?

 

  विघ्न-विनाशक वही बन सकता है जो सदा सर्व शक्तियों से सम्पन्न होगा। कोई भी विघ्न विनाश करने के लिए क्या आवश्यकता है? शक्तियों की ना। अगर कोई शक्ति नहीं होगी तो विघ्न विनाश नहीं कर सकते। इसलिए सदा स्मृति रखो कि बाप के सदा साथी हैं और विश्व के विघ्न-विनाशक हैं। विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। अगर अपने पास ही आता रहेगा तो दूसरे का क्या विनाश करेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  मेरा पुरुषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं। मेरी हैन्डलिंग पॉवर बहुत अच्छी है, मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है, मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिंग में हैं। यह मेरा-मेरा आया कहाँ से?

 

✧  यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकण्ड में प्रकृतिजीत बन जायेंगे। प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्वजीत व जगतजीत है। फिर एक सेकण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जायेगा।

 

✧  खेल क्या देखा। तेरे को मेरे बनाने में बडे होशियार हैं। जैसे जादू मन्त्र से जो कोई कार्य करते हैं तो पता नहीं पडता कि हम क्या कर रहे हैं। यह रॉयल माया भी जादू-मन्त्र कर देती है जो पता नहीं पडता कि हम क्या कर रहे हैं।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ तो जहाँ प्रभु प्रीत है वहाँ अशरीरी बनना क्या लगता है? प्रीत के आगे अशरीरी बनना एक सेकण्ड के खेल के समान है। बाबा बोला और शरीर भूला। बाबा शब्द ही पुरानी दुनिया को भूलने का आत्मिक बाम्ब है। (बिजली बन्द हो गई) जैसे यह स्विच बदली होने का खेल देखा ऐसे वह स्मृति का स्विच है बाप का स्विच ऑन और देह और देह की दुनिया की स्मृति का स्विच ऑफ। यह है एक सेकण्ड का खेल। मुख से बाबा बोलने में भी टाइम लगता है लेकिन स्मृति में लाने में कितना समय लगता है। तो प्रीत में रहना अर्थात अशरीरी सहज बनना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- इस शरीर को ना देख आत्मा को देखना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा भृकुटी के भव्य भाल पर बैठकर स्वयं को देख रही हूँ... आसमान के सितारे से भी ज्यादा चमक रही हूँ... एक हीरे समान चमकती हुई मैं एक अति सुन्दर आत्मा हूँ... इस शरीर की मालिक हूँ... कर्मेन्द्रियों को सुचारू रूप से चलाने वाली राजा हूँ... स्वयं को देह समझ मैं आत्मा देहभान में आ गई और देह अभिमान के वश हो गई... विकारों के अधीन हो गई... स्वयं परमात्मा मेरे पिता ने आकर मुझे तीसरा नेत्र देकर सत्य ज्ञान दिया... मुझे मेरे असली स्वरुप का दर्शन कराया... मैं आत्मा इस देह को छोड़ उड़ चलती हूँ अव्यक्त वतन में... प्यारे बाबा के पास...

❉ प्यार का सागर प्यार की कश्ती में बिठाकर इस देह की दुनिया से दूर ले जाते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य पिता ने जो सत्य स्वरूप का सच्चा परिचय दिया है उस आत्म स्वरूप के नशे में प्रतिपल रहो... इस विनाशी देह को भूल अपने अविनाशी स्वरूप को ही यादो में बसाओ... जितना अपने चमकते भान के नशे में रहेंगे पिता के दिल में उतना गहरे उतरेंगे...”

➳ _ ➳ काँटों के जंगल से निकल रंग-बिरंगी तितली बन रूहानी फूलों के बगीचे में अमृत रस का पान करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब झूठ शरीर की अँधेरी दुखदायी गलियो से बाहर निकल कर... आत्मा होने के सत्य प्रकाश में चमक उठी हूँ... मीठे बाबा के प्यार में गहरे डूब गई हूँ... और प्रकाशित मणि बन गई हूँ...”

❉ मेरे मन मधुबन में प्यार की शीतल चांदनी को बिखेरते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे...खुद को शरीर समझकर जीने से कितने खाली और मायूस हो गए हो.... आवरण को सत्य समझ कर शक्तिहीन निष्प्राण से हो गए हो... अब आत्मा के सत्य भान में हर साँस को पिरो दो... इस सच्चाई को रोम रोम में भर दो... और मीठे बाबा की मीठी यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख को पा लो...”

➳ _ ➳ अपने प्रियतम बाबा के प्यार की छांव में अनंत सुखों के गीत गाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे अपना खोया सा स्वरूप... यूँ फिर से जानकर पुलकित हो गई हूँ... मै आत्मा हूँ, मै आत्मा हूँ इसकी अनन्त गहराइयो में डूबी हूँ... अपने खुबसूरत स्वरूप को जानकर आनन्द में झूम उठी हूँ...”

❉ मुझ आत्मा के अविनाशी स्वरुप के दर्शन कराकर मेरी तकदीर की तस्वीर को सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब इस देह को और याद न करो....यह देह गहरी ठगी सी है जो भाग्यहीन सा बना देगी... आत्मा होने के सुंदर नशे में खो जाओ... आत्मा की अनुभूति में जितना डूबेंगे उतना खजानो को तकदीर में भरेंगे और ईश्वर पिता की गहरी यादो में रहेंगे...”

➳ _ ➳ इस तन से न्यारी होकर ज्योति सितारा बन गगन में चमकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य भान में और मीठे बाबा की प्यारी सी यादो में खुशियो से भर उठी हूँ... शरीर की धुंध से निकल कर सत्यआत्मा के उजालो में आ गयी हूँ... और सत्य को बाँहों में भरकर विजेता सी मुस्करा रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- ज्ञान सागर की सम्पूर्ण नॉलेज स्वयं में धारण करनी है"

➳ _ ➳  "
चिड़ियाओं ने सागर को हप किया" भक्ति मार्ग में लिखी इन बातों पर एकांत में बैठ विचार सागर मंथन करते हुए मैं चिंतन करती हूँ कि वास्तव में ये उन चिड़ियाओं की बात नही बल्कि हम आत्मा रूपी चिड़ियाओं की बात है जो ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता परमात्मा का सारा ज्ञान इस समय हप कर रही हैं। संगमयुग की इस महादानी वरदानी वेला में जबकि स्वयं ज्ञान सागर भगवान ज्ञान के अखुट खजाने भर - भर कर हम बच्चो पर लुटा रहें हैं और हम बच्चे उस ज्ञान को अपने बुद्धि रूपी बर्तन में भरते जा रहे हैं और उसका सारा ज्ञान स्वयं में समा कर उसके समान मास्टर ज्ञान सागर बनते जा रहें हैं। तो इसी को ज्ञान सागर का सारा ज्ञान हप करना कहेंगे। वास्तव में यह सारा गायन तो इस समय संगमयुग का है जिसका वर्णन फिर भक्ति में किया है।

➳ _ ➳ 
इन्ही विचारों के साथ, स्वयं को ज्ञान सागर अपने पिता के ज्ञान के अखुट खजानो से भरपूर करने के लिये मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता की याद में मन बुद्धि को जैसे ही स्थिर करती हूँ, ऐसा अनुभव होता है जैसे परमधाम से ज्ञान सागर मेरे शिव पिता ज्ञान की रिमझिम फुहारों के रूप में गहरे नीले रंग की ज्ञान की शक्ति की किरणें मेरे ऊपर बरसा रहें हैं। बारिश की बूंदों की तरह ज्ञान की शक्ति की ये शीतल किरणे मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता की अनुभूति करवा रही है। मेरे मस्तक को छू कर ये किरणे मुझ आत्मा में समा रही हैं और मुझ आत्मा से निकल कर मेरे चारों और फैलती जा रही हैं। इन किरणों से मेरे चारों तरफ एक शक्तिशाली औरा निर्मित होने लगा है जो धीरे - धीरे मुझे मेरे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रहा है। मेरा स्थूल शरीर लाइट के सूक्ष्म शरीर में परिवर्तित हो गया है।

➳ _ ➳ 
अपने लाइट माइट स्वरूप में, प्रकाश के एक सुंदर कार्ब को धारण किये अब मैं धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। लाइट के इस कार्ब में मेरा फ़रिश्ता स्वरूप बहुत ही चमकदार दिखाई दे रहा है। लाइट के इस कार्ब से और मुझ फरिश्ते से निकल रहा प्रकाश बहुत दूर - दूर तक फैलता हुआ मुझे दिखाई दे रहा है। इस प्रकाश के साथ मुझ फ़रिश्ते में निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन भी धीरे - धीरे चारों तरफ फैल रहें हैं जो वायुमण्डल को दिव्य और अलौकिक बना रहे हैं। अपने गुणों और शक्तियों की किरणों को चारों तरफ फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता अब सारे विश्व की परिक्रमा करके, आकाश को पार करता हूँ और उससे भी ऊपर उड़ता हुआ सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर, अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के सामने जाकर उपस्थित हो जाता हूँ। ज्ञानसूर्य निराकार अपने प्यारे शिव पिता को मैं ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान होकर चमकता हुआ स्पष्ट देख रहा हूँ।

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धीरे - धीरे मैं फ़रिश्ता अपने प्यारे बापदादा के पास पहुँचता हूँ और जा कर उनके पास बैठ जाता हूँ। ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से ज्ञान सागर शिव बाबा के ज्ञान की शक्ति की किरणों को प्रकाश की अनन्त धाराओं के रूप में बाबा की भृकुटि से निकलता हुआ मैं देख रहा हूँ। प्रकाश की वो अनन्त धारायें बाबा की भृकुटि से निकल कर मुझ फरिश्ते को स्पर्श कर रही हैं और मुझ फ़रिश्ते में समाती जा रही हैं। ज्ञान सागर बाबा के ज्ञान की सम्पूर्ण शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। ज्ञान की चिड़िया बन ज्ञानसागर अपने प्यारे पिता के ज्ञान को मैं हप करती जा रही हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली किरणों के रूप में ज्ञान के अखुट खजाने बाबा मेरे ऊपर लुटाते जा रहें हैं। इन्हें अपने अंदर समाकर, अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब मैं ज्ञानसूर्य अपने प्यारे शिव पिता के पास उनके परमधाम घर की ओर जा रही हूँ।

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अपने निराकार बिंदु स्वरूप में अपने स्वीट साइलेन्स होम में आकर, मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने निराकार शिव पिता जो महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे बिल्कुल समीप मुझे दिखाई दे रहें हैं। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे सम्पूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।

➳ _ ➳ 
अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और परमशिक्षक के रूप में ज्ञानसागर अपने प्यारे शिव पिता से मुरली के माध्यम से मिलने वाला सारा ज्ञान स्वयं में हप करके बाप समान मास्टर ज्ञान का सागर बनती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं प्योरिटी की रॉयल्टी द्वारा श्रेष्ठ जीवन की झलक दिखाने वाली विशेषता सम्पन्न आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं स्व का दर्शन करके सदा प्रसन्नचित्त, सर्व प्राप्ति की अधिकारी रहने वाली आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

 

➳ _ ➳   संगमयुगी श्रेष्ठ दरबारभविष्य की राज्य दरबार दोनों में कितना अन्तर है! अब की दरबार जन्म-जन्मान्तर की दरबार का फाउन्डेशन है। अभी के दरबार की रूपरेखा भविष्य दरबार की रूपरेखा बनाने वाली है। तो अपने आपको देख सकते हो कि अभी के राज्य अधिकारी सहयोगी दरबार में हमारा स्थान कहाँ है? चेक करने का यन्त्र सभी के पास हैजब साइन्स वाले नये-नये यन्त्रों द्वारा धरनी से ऊपर के आकाशमण्डल के चित्र खींच सकते हैंवहाँ के वायुमण्डल के समाचार दे सकते हैंइनएडवांस प्रकृति के तत्वों की हलचल के समाचार दे सकते हैं तो आप सर्व शक्ति-सम्पन्न बाप के अथॉरिटी वाली श्रेष्ठ आत्मायें अपने दिव्य बुद्धि के यन्त्र द्वारा तीन काल की नॉलेज के आधार से अपना वर्तमान काल और भविष्य काल नहीं जान सकते?

 

➳ _ ➳  यन्त्र तो सभी के पास है नादिव्य बुद्धि तो सबको प्राप्त है। इस दिव्य बुद्धि रूपी यन्त्र को कैसे यूज़ करना हैकिस स्थान पर अर्थात् किस स्थिति पर स्थित हो करके यूज़ करना हैयह भी जानते हो त्रिकालदर्शी-पन की स्थिति के स्थान पर स्थित हो तीनों काल की नॉलेज के आधार पर यन्त्र को यूज़ करो! यूज़ करने आता हैपहले तो स्थान पर स्थित होने आता है अर्थात् स्थिति में स्थित होने आता हैतो इसी यन्त्र द्वारा अपने आपको देखो कि मेरा नम्बर कौन-सा हैसमझा!

 

✺  "ड्रिल :- दिव्य बुधी के यंत्र द्वारा खुद को चेक करना कि मेरा नंबर कौन सा है।”

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के कमरे में एकांत में बैठती हूँ... अपने मन को एकाग्र करने की कोशिश करती हूँ... अपने देह को देखती हूँ... ये देह जो अनेक कर्मेन्द्रियों के संगठन से बना है... पैरों से लेकर सिर तक के सभी कर्मेंर्दियों पर से ध्यान हटाते हुए अपनी सांसों पर मन को एकाग्र करती हूँ... भीतर आ रहीबाहर जा रही सांसों को ध्यान से अवलोकन करती हूँ... धीरे-धीरे मन शांत होता जा रहा है... बहिर्मुखी मन अंतर्मुखी हो रहा है... मन की आंखों से अंतर्मन की गहराईयों में झांकती हूँ... आत्मनिरीक्षण करती हूँ... जन्म-जन्मान्तर के विकारों और विकर्मों से अभिभूत आत्मा को देख रही हूँ...

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा और अन्दर गहराईयों में उतरकर जाती हूँ जब इसके कारण तक पहुँचती हूँ तो पाती हूँ कि मेरी बुद्धि रूपी यंत्र में व्यर्थ संकल्पों, विचारों की जंग लगी हुई है... जिसके कारण मेरी बुद्धि मेरे चंचल मन को कंट्रोल करने में असमर्थ होकर स्वयं ही विषय विकारों में आसक्त हो गई... मैं आत्मा परमप्रिय परमात्मा का आह्वान करती हूँ... बाबा के कमरे के छत से दिव्य प्रकाश की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं... सारा कमरा लाल सुनहरे प्रकाश की किरणों से भर गया है...    

 

➳ _ ➳  परमात्मा की दिव्य तेजस्वी किरणें बुद्धि रूपी यंत्र का ओइलिंग कर रही हैं... मुझ आत्मा के बुद्धि रूपी यंत्र से व्यर्थ संकल्पों, व्यर्थ विचारों, विकर्मों की जंग खत्म हो रही है... अब प्यारे बाबा के दिव्य ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा की बुद्धि रूपी यंत्र में समाते जा रहे हैं... मैं दिव्य बुद्धिधारी बन गई हूँ... दिव्य ज्ञान के पेट्रोल से मुझ आत्मा की दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र सुचारू रूप से श्रीमत प्रमाण कार्य करना शुरू कर दिया है... मैं आत्मा दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र द्वारा तीनों कालों की नॉलेज को प्राप्त कर त्रिकालदर्शी बन गई हूँ...    

 

➳ _ ➳  अब मैं आत्मा त्रिकालदर्शी-पन की स्थिति में स्थित होकर अपना राज्य दरबार लगाती हूँ... और दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र द्वारा चेक करती हूँ कि कौन-कौन से कर्मेन्द्रिय रूपी कर्मचारी अपना काम सच्चाई-सफाई से नहीं कर रहा है... सभी इंद्रियों को उकसाने वाले चंचल, उद्विग्न मन को प्यार से समझाती हूँ कि... ये देह, देह के पदार्थ, देह के संबंध सब विनाशी हैं इनमे आसक्ति दिखाने से दुःख-अशांति ही मिलेगी... एक बाबा से ही अविनाशी सम्बन्ध रखने से अतीन्द्रिय सुख, शांति मिलती है...    

 

➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने मन को समझानी देते हुए अपने सभी कर्मेन्द्रियों को अपने अधीन करने की रूपरेखा तैयार कर रही हूँ... इस संगमयुगी श्रेष्ठ राज्य दरबार में भविष्य की जन्म-जन्मान्तर की दरबार का फाउन्डेशन लगा रही हूँ... भविष्य दरबार की रूपरेखा बना रही हूँ... बाबा की ज्ञान मुरली को धारण कर अपने मन के विचारों को ज्ञानयुक्त बना रही हूँ... श्रेष्ठ और समर्थ संकल्पों से भर रही हूँ... अपने दिव्य बुद्धि रूपी यंत्र को मन की निगरानी के कार्य में बिजी कर दी हूँ... अब मैं आत्मा अपने दरबार की राज्याधिकारी बन पहला स्थान प्राप्त करने, भविष्य विश्व राज्याधिकारी बनने का श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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