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 29 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ ख़ुशी का नशा चड़ा रहा ?

 

➢➢ स्वीट बाप और स्वीट राजधानी के सिवाए कोइ याद तो नहीं आया ?

 

➢➢ सेवा द्वारा मेवा प्राप्त कर सर्व हद की चाहना से परे रहे ?

 

➢➢ सच्ची दिल से निस्वार्थ सेवा में आगे बड पुण्य का खाता जमा किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  कर्मातीत स्थिति को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति धारण करना आवश्यक है। कर्मबन्धनी आत्माएं जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं और कर्मातीत आत्मायें एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं क्योंकि कर्मातीत हैं। उनकी स्पीड बहुत तीव्र होती है, सेकण्ड में जहाँ चाहे वहॉ पहुँच सकती हैं, तो इस अनुभूति को बढ़ाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"

 

  स्वयं को तीव्र पुरूषार्थी आत्मायें अनुभव करते हो? क्योंकि समय बहुत तीव्रगति से आगे बढ़ रहा है। जैसे समय आगे बढ़ रहा है, तो समय पर मंजिल पर पहुँचने वाले को किस गति से चलना पड़े? समय कम है और प्राप्ति ज्यादा करनी है। तो थोड़े समय में अगर ज्यादा प्राप्ति करनी हो तो तीव्र करना पड़ेगा ना। समय को देख रहे हो और अपने पुरूषार्थ की गति को भी जानते हो। तो समय अगर तेज है और अपनी गति तेज नहीं है तो समय अर्थात् रचना आप रचता से भी तेज हुई।

 

  रचता से रचना तेज चली जाए तो उसे अच्छी बात कहेंगे? रचना से रचता आगे होना चाहिए। सदा तीव्र पुरूषार्थी आत्मायें बन आगे बढ़ने का समय है। अगर आगे बढ़ते कोई साइडसीन को भी देख रूकते हो, तो रूकने वाले ठीक समय पर पहुँच नहीं सकेंगे। कोई भी माया की आकर्षण साइडसीन है। साइडसीन पर रूकने वाला मंजिल पर कैसे पहुँचेगा? इसलिए सदैव तीव्र पुरूषार्थी बन आगे बढ़ते चलो।

 

  ऐसे नहीं समय पर पहुँच ही जायेंगे, अभी तो समय पड़ा है। ऐसे सोचकर आगर धीमी गति से चलेंगे तो समय पर धोखा मिल जायेगा। बहुत काल का तीव्र पुरूषार्थ का संस्कार अन्त में भी तीव्र पुरूषार्थ का अनुभव करायेगा। तो सदा तीव्र पुरूषार्थी। कभी तीव्र, कभी कमजोर नहीं। ऐसे नहीं थोड़ी-सी बात हुई कमजोर बन जाओ। इसको तीव्र पुरूषार्थी नहीं कहेंगे। तीव्र पुरूषार्थी कभी रूकते नहीं, उड़ते हैं। तो उड़ते पंछी बन उड़ती कला का अनुभव करते चलो। एक-दो को भी सहयोग दे तीव्र पुरूषार्थी बनाते चलो। जितनी औरों की सेवा करेंगे उतना स्वयं का उमंग-उत्साह बढ़ता रहेगा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  राजा ऑर्डर करे - यह काम नहीं होना है। तो प्रजा क्या करेगी? मानना पडेगा ना। आजकल तो राजा ही नहीं है, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। इसलिए कोई किसका मानता ही नहीं है। लेकिन आप लोग तो राजयोगी हो ना।

 

✧  आपके यहाँ प्रजा का प्रजा पर राज्य नहीं है ना राजा का राज्य है ना तो बाप कहते हैं - हे राजे! आपके कन्ट्रोल में आपकी प्रजा है? या कभी कन्ट्रोल से बाहर हो जाती है?

 

✧   रोज राज्य दरबार लगाते हो?' रोज रात्रि को राज्य दरबार लगाओ। अपने राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों' से हालचाल पूछो। जैसे राजा राज्य दरबार लगाता है ना तो आप अपनी राज्य दरबार लगाते हो? या भूल जाते हो, सो जाते हो? राज्य दरबार लगाने में कितना टाइम लगता है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  फ़रिश्ता स्वरूप अर्थात् स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ़ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं, स्वरूप में हो। ऐसा परिवर्तन, किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता हैं? जैसी बात वैसे अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- बुद्धि में ज्ञान रख अपार ख़ुशी में रहना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा डायमण्ड हॉल में बैठी हूँ... मेरे सामने दादी के तन में अव्यक्त बापदादा विराजमान हैं... पूरे हॉल में बस मैं और मेरा बाबा... बाबा की लगन में मैं फरिश्ता बड़े स्नेह से बापदादा को निहार रहा हूँ...  उनसे दृष्टि ले रहा हूँ...  बापदादा की ने अपना प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर फिरा रहे हैं... बापदादा की दृष्टि और हाथ रखने से मेरे जन्म जन्म के विकर्म दग्ध हो गए हैं... मैं फरिश्ता बिल्कुल हल्का... डबल लाइट हो गया हूँ... मेरे कान अव्यक्त बापदादा की मीठी आवाज... उनकी प्यार भरी शिक्षाएं सुनने को लालायित हो रहे हैं...

❉  ज्ञान की शीतल तरंगों में मुझ आत्मा को डुबोते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे प्यारे बच्चे... कलयुगी दु:ख तपन, कष्टों की दलदल से बाबा निकालने के लिए आये हैं और नवीन सतयुगी संपूर्ण सुखों की दुनिया की रचना करते हैं... जहां तुम अपार सुख पाते हो... बाबा तुम्हें नॉलेज देकर नयी दुनिया के लायक बना रहे हैं... ज्ञान की इन पॉइंट्स का मन ही मन मनन चिंतन करते रहो... व दूसरों को भी यह ज्ञान सुनाते रहो..."

➳ _ ➳  बाबा के मीठे बोल सुनकर गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणेश्वर मीठे बाबा... आप का हम बच्चों से कितना प्यार है जो आप हमें हमारे कष्टों से छुड़ाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं... आप हमें रूहानी ज्ञान रत्न देते हैं... बाबा मैं आपकी शिक्षाओं का स्वरुप बनती जा रही हूँ...  ज्ञान की हर पॉइंट पर मनन कर रही हूँ... तथा यह ज्ञान सभी तक पहुंचा रही हूँ..."

❉  ज्ञान रुपी स्वाति नक्षत्र की बूंदें बरसाकर मुझे बहुमूल्य मोती बनाने वाले बाबा कहते हैं:- "मीठे मीठे फूल बच्चे... बाबा जो तुम्हें ज्ञान देते हैं... जो तुम्हे समझानी देते हैं... उसे तुम औरो को समझाने की सर्विस करते रहो... ज्ञान धन का दान करते रहो... इससे तुम्हे अपार खुशी रहेगी... सर्व की आशीर्वाद मिलेगी और बाबा की याद भी भूलेगी नहीं... निरंतर एक की लगन में मगन रहेंगे..."

➳ _ ➳  ज्ञान सागर के ज्ञान को सर्वत्र फैलाती हुई ज्ञान गंगा रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:- "नयनों के नूर मीठे बाबा... आपके स्नेह और उपकारों को याद करते-करते मेरी आंखें नम हो जाती है... बाबा आपके इन ज्ञान रत्नों का मैं सभी आत्मा सभी को दान कर रही हूँ... अपार खुशी का अनुभव कर रही हूँ... इस सर्विस में बिजी रहने से व्यर्थ से किनारा हो गया है... और मैं आत्मा निरंतर एक की ही याद में मगन होकर झूम रही हूँ..."

❉  ज्ञान रत्नों से मुझे मालामाल बनाने वाले रत्नागर बाबा कहते हैं:- "मेरे प्यारे प्यारे बच्चे... ज्ञान दिए धन न खुटे... इस ज्ञान धन की विशेषता है... जितना दान करोगे, उतना बढ़ता ही जाएगा... साथ ही खुशी का पारा भी चढ़ता जाएगा... औरों की आशीर्वाद तुम्हारे सिर पर होगी... वे कहेंगे ऐसे पण्डे पर हम बलिहार जाएं... जिसने हमें स्वर्ग का रास्ता बताया... ज्ञान दान से तुम्हें सर्व की दुआयें और स्नेह मिलता रहेगा..."

➳ _ ➳  ज्ञान रूपी सच्चे मोती को चुगने वाली मैं हँसबुद्धि आत्मा कहती हूँ:- "मेरे दिलाराम मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके संदेश को विश्व में सभी आत्माओं तक पहुंचाने की सेवा कर रही हूँ... ज्ञान दान से यह ज्ञान धन बढ़ता ही जा रहा है... और मैं आत्मा खुशी के झूले में झूल रही हूँ... सर्व आत्माओं की मुझे दुआयें, स्नेह और सहयोग मिल रहा है... सभी के दिलों में एक बाप की प्रत्यक्षता हो रही है... शुक्रिया बाबा, शुक्रिया..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- यहां की कोई भी वस्तु में दिल नही लगानी है

➳ _ ➳ अंतिम समय के एक सेकेण्ड के पेपर के बारे में एकान्त में बैठी मैं विचार कर रही हूँ कि कैसा होगा अंत समय का वो एक सेकण्ड का पेपर! साधारण पढ़ाई में भी जब स्टूडेंट्स का सरप्राइज टेस्ट होता है तो उस टेस्ट को देख कई स्टूडेंट्स के माथे पर तो पसीना आ जाता है। यहाँ तो कल्प - कल्प की बाजी है। एक बार असफल होना माना कल्प - कल्प के लिए असफल हो जाना।

➳ _ ➳ यही सब चिंतन करते हुए अब अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि क्या मैं ऐसी तैयारी कर रही हूँ! क्या मेरी ऐसी ऊँची स्थिति बन रही है जो अंत समय के एक सेकण्ड के पेपर को देख मुझे पसीने ना आयें बल्कि खुशी और सफलता के दृढ़ विश्वास के साथ मैं वो पेपर दे सकूँ और पास विद ऑनर हो सकूँ! ऐसा तभी हो सकता है जब अंत मति सो गति का मेरा बहुत अच्छा पुरुषार्थ होगा।

➳ _ ➳ अंत मति सो गति ही, अंतिम समय के एक सेकण्ड के पेपर में पास विद ऑनर का खिताब दिलाये मेरे सतयुगी ऊँच पद की प्राप्ति का आधार बनेंगी। इसलिए अब मुझे अंत मति सो गति के पुरुषार्थ में तीव्र गति से लग जाना है। इस पुरानी दुनिया से दिल हटाकर, अपना मुख मोड़ लेना है और हर बात से उपराम होकर बुद्धि को अपने परमधाम घर मे स्थित कर देना है। केवल अल्फ और बे इन दो शब्दों को स्मृति में रख, अपने प्यारे प्रभु की याद से विकर्मो को दग्ध करना है और विश्व की बादशाही प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ करना है।

➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, इस प्रतिज्ञा को पूरा करने और इसमें सफल होने का वरदान अपने प्यारे प्रभु से प्राप्त करने करने के लिए और उनकी याद से विकर्मो को दग्ध करने के लिए अब मैं अशरीरी स्थिति में स्वयं को स्थित करती हूँ। हर संकल्प विकल्प से अपने मन और बुद्धि को खाली करने के लिए अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर मैं एकाग्र कर लेती हूँ और अपने वास्तविक शान्त स्वरूप में स्थित होकर, शान्ति के एक अति सुखद अनुभव में कुछ पल के लिए खो जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने स्वधर्म में स्थित हो कर शांति की गहन अनुभूति करते हुए मेरी बुद्धि का कनेक्शन स्वत: ही शांति के सागर मेरे शिव पिता के साथ जुड़ जाता है और मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें मुझे सेकेण्ड में अपनी ओर खींच लेती हैं। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे मैं देह के अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और ऊपर अपने शिव पिता के पास उनकी निराकारी दुनिया की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ।

➳ _ ➳ साकार और सूक्ष्म लोक को पार कर मैं मूल वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले से नीचे उतर कर अपने इस ब्रह्मलोक, परमधाम घर की सैर करते हुए, इस अंतहीन ब्रह्मांड में फैले शांति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर समाकर गहन शांति की अनुभूति करते हुए अब बाबा के पास जा कर बैठ जाती हूँ। उनकी सर्वशक्तियों की अथाह किरणे एक मीठे झरने के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं और मुझे सर्वशक्तियों से भरपूर करके आप समान शक्तिशाली बना देती है। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं वापिस साकार लोक में लौट आती हूँ और फिर से अपने साकार शरीर रूपी रथ पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।

➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन में शक्तिसम्पन्न स्वरूप के साथ, अब मैं अंत मति सो गति के लिए निरन्तर सर्वशक्तिवान बाप की याद में रहने का सहज पुरुषार्थ कर रही हूँ। सर्वसम्बन्धो से बाबा को अपना बनाकर, हर सम्बन्ध का सुख बाबा से लेते हुए, देह और देह की दुनिया से मैं नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ। इस पुरानी दुनिया से मेरी दिल हटती जा रही है। अपना मुख इस विनाशी दुनिया से मोड़, नई आने वाली सतयुगी दुनिया की ओर करके,अंत मति सो गति द्वारा, अंतिम समय के पेपर में पास विद ऑनर होने का पुरुषार्थ मैं पूरी लग्न के साथ कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺  मैं सेवा द्वारा मेवा प्राप्त करने वाली सर्व हद की चाहना से परे सदा सम्पन्न और समान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ने अर्थात पुण्य का खाता जमा करने वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  पवित्रता ही महानता है। पवित्रता ही योगी जीवन का आधार है। कभी-कभी बच्चे अनुभव करते हैं कि अगर चलते-चलते मन्सा में भी अपवित्रता अर्थात् वेस्ट वा निगेटिव, परचिंतन के संकल्प चलते हैं तो कितना भी योग पावरफुल चाहते हैंलेकिन होता नहीं है क्योंकि जरा भी अंशमात्र संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता है तो  जहाँ अपवित्रता का अंश है वहाँ पवित्र बाप की याद जो है, जैसा है वैसे नहीं आ सकती। जैसे दिन और रात इकट्ठा नहीं होता। इसीलिए बापदादा वर्तमान समय पवित्रता के ऊपर बार-बार अटेन्शन दिलाते हैं। कुछ समय पहले बापदादा सिर्फ कर्म में अपवित्रता के लिए इशारा देते थे लेकिन अभी समय सम्पूर्णता के समीप आ रहा है इसलिए मन्सा में भी अपवित्रता का अंश धोखा दे देगा। तो मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता अति आवश्यक है। मन्सा को हल्का नहीं करना क्योंकि मन्सा बाहर से दिखाई नहीं देती है लेकिन मन्सा धोखा बहुत देती है। ब्राह्मण जीवन का जो आन्तरिक वर्सा सदा सुख स्वरूपशान्त स्वरूपमन की सन्तुष्टता हैउसका अनुभव करने के लिए मन्सा की पवित्रता चाहिए। 

 

✺   ड्रिल :-  "ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महानता का अनुभव करना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा पवित्र स्वरूप हूँ... जन्म-पुनर्जन्म में आते-आते अपने ही असली स्वरूप को भूल गयी थी... सृष्टि नाटक के अन्त के भी अन्त समय बाप आकर हम आत्माओं को सूक्ष्म और स्थूल रीति से पवित्र बना रहे हैं... मैं आत्मा फरिशते रूप में एक झील किनारे आकर बैठ जाती हूँ... अपने ही  प्रतिबिंब को इस झील में देख रही हूँ...  कितने जन्मों से व्यर्थ संकल्पों का बोझ है... कर्मों में भी अपवित्रता... मन्सा में भी अपवित्रता, वेस्ट संकल्प, नेगेटिव संकल्पों का... परचिंतन के भी संकल्प चलते हैं... अनुभव कर रही हूँ कि मन जो दिखता नहीं, जो सूक्ष्म है... वो कितना धोखा देती है...

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता मधुबन तपोभूमि आ जाती हूँ... और हिस्ट्री हॉल में सोफे पर बैठ जाती हूँ... महसूस कर रही हूँ यहां की पवित्र तरंगे... शांति की, सुख की... जन्म जन्मांतर के सारे बोझ से हल्की होती जा रही हूँ... एक दिव्य ज्योति जैसे कि विस्फोटित होती है... रंग-बिरंगी किरणें चारों और फैलती हुई मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मेरे अनादि गुणों को इमर्ज करती जा रही है... मैं आत्मा दिव्य गुणों की स्वरूप बन गयी हूँ...

 

 _ ➳  बाप स्मृति दिलाते हैं की पवित्रता से ही सुख, शान्ति की अनुभूति होती है... पवित्रता मुझ आत्मा के ब्राह्मण जीवन का आधार है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में अपना निरंतर बाबा की याद में रह स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मन्सा में भी व्यर्थ संकल्प दग्ध हो रहे हैं... वाचा, कर्मणा से नेगेटिव, परचिन्तन करना समाप्त होते जा रहे है... अटेंशन रूपी पहरा से किसी भी तरह की अंश मात्र अपवित्रता समाप्त होती जा रही है...

 

 _ ➳  पवित्रता मुझ ब्राह्मण आत्मा का श्रृंगार है... संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ व महान बनाने वाला... सम्बन्ध-संपर्क में आने वाली हर ब्राह्मण आत्मा के प्रति भी पवित्र संकल्प होते जा रहे हैं... समय की संपूर्णता जैसे-जैसे समीप आती जा रही है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र होती जा रही हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता ही मन की संतुष्टि दे रही है... पवित्रता की शक्ति से मन निश्छल, निर्मल हो गया है... मैं आत्मा अपने ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महानता का अनुभव कर रही हूँ... ओम् शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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