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 23 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ हम सो का मन्त्र सदा याद रखा ?

 

➢➢ कदम कदम पर सावधानी रखी ?

 

➢➢ "बाबा" शब्द की चाबी से सर्व खजाने प्राप्त किये ?

 

➢➢ स्नेह में पुराने जहान को कुर्बान किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  आत्मा बोल रही है। आत्मा के यह संस्कार हैं.... यह पहला पाठ पक्का करो। आत्मा शब्द स्मृति में आते ही रुहानियत - शुभ भावना आ जायेगी। दृष्टि पवित्र हो जायेगी। सर्व के स्नेही, सहयोगी बन जायेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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✺   "मैं बाप समान सर्व गुण सम्पन्न आत्मा हूँ"

 

✧  जैसे बाप के गुणों का वर्णन करते हो वैसे स्वयं में भी वे सर्व गुण अनुभव करते हो? जैसे बाप ज्ञान का सागर, सुख का सागर है वैसे ही स्वयं को भी ज्ञान स्वरूप सुख स्वरूप अनुभव करते हो? हर गुण का अनुभव - सिर्फ वर्णन नहीं लेकिन अनुभव।

 

✧  जब सुख स्वरूप बन जायेंगे तो सुख स्वरूप आत्मा द्वारा सुख की किरणें विश्व में फैलेंगी क्योंकि मास्टर ज्ञान सूर्य हो। तो जैसे सूर्य की किरणें सारे विश्व में जाती हैं वैसे आप ज्ञान सूर्य के बच्चों का ज्ञान, सुख, आनन्द की किरणें सर्व आत्मा तक पहुँचेंगी।

 

✧  जितने ऊँचे स्थान और स्थिति पर होंगे उतना चारों और स्वत: फैलती रहेंगी। तो ऐसे अनुभवी मूर्त हो? सुनना सुनाना तो बहुत हो गया अभी अनुभव को बढ़ाओ। बोलना अर्थात् स्वरूप बनाना, सुनना अर्थात स्वरूप बनना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  तो बापदादा देख रहे थे कि हिसाब के अनुसार यह सेकण्ड स्टेज है जीवनमुक्त, लास्ट स्टेज तो है - देह से न्यारे विदेही-पन की। उस स्टेज और जो स्टेज सुनाई उसके लिए और बहुत-बहुत-बहुत अटेन्शन चाहिए। 

 

 

✧  सभी बच्चे पूछते हैं 99 आयेगा क्या होगा? क्या करें? क्या करें, क्या नहीं करें? बापदादा कहते हैं 99 के चक्कर को छोडो। अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए। जो भी परिस्थितियाँ आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए।

 

✧  इसलिए और सभी बातों को छोड यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा। क्या होगा, इस क्वेचन को छोड दो। विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  चलते-फिरते सदैव अपने को निराकारी आत्मा या कर्म करते अव्यक्त फ़रिश्ता समझो। तो सदा ऊपर रहेंगे, उड़ते रहेंगे खुशी में। फ़रिश्ते सदैव उड़ते हुए दिखाते हैं। फ़रिश्ते का चित्र भी पहाड़ी के ऊपर दिखायेंगे। फ़रिश्ता अर्थात् ऊँची स्टेज पर रहने वाला। कुछ भी इस देह की दुनिया में होता रहे, लेकिन फ़रिश्ता ऊपर से साक्षी हो सब पार्ट देखता रहे और सकाश देता रहे। सकाश भी देना है क्योंकि कल्याण के प्रति निमित है। साक्षी हो देखते सकाश अर्थात् सहयोग देना है। सीट से उतर कर सकाश नहीं दी जाती। सकाश देना ही निभाना है। निभाना अर्थात् कल्याण की सकाश देना, लेकिन ऊँची स्टेज पर स्थित होकर देना इसका अटेन्शन हो। निभाना अर्थात् मिक्स नहीं हो जाना, लेकिन निभाना अर्थात् वृत्ति, दृष्टि से सहयोग की सकाश देना। फिर सदा किसी भी प्रकार के वातावरण के सेक में नहीं आयेगा। अगर सेक आता तो समझना चाहिए साक्षीपन की स्टेज पर नहीं है। कार्य के साथी नहीं बनना है, बाप के साथी बनना है। जहाँ साक्षी बनना चाहिए वहाँ साथी बन जाते तो सेक लगता। ऐसे निभाना सीखेंगे तो दुनिया के आगे लाइट-हाउस बन के प्रख्यात होंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- कदम-कदम श्रीमत पर चलना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मुस्कुराते हुए भाग्य को देख रही हूँ... कितना सुन्दर भाग्य है मुझ आत्मा का... जो इस संगमयुग में हर पल भगवान के संग-संग रहती हूँ... सदा भगवान् की छत्रछाया, भगवान् का साथ, भगवान् की मदद का अनुभव करती हूँ... स्वयं भगवान अपना परमधाम छोडकर, मुझे परम ज्ञान देकर, परम योगी बनाकर, परम पद देने के लिए ब्रह्मा तन में अवतरित हुए हैं... मैं आत्मा अपना सब समाचार देने, बाबा से श्रीमत लेने पहुँच जाती हूँ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के पास... 

❉  कदम कदम पर श्रीमत पर चलने की शिक्षा देते हुए ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर चमकते हुए प्यारे शिव बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... इस पराये देश परायी सी दुनिया के भूल भुलैया के खेल में... स्वयं के सच्चे स्वरूप और असली घर को ही भूलकर... दुखो का पर्याय बन गए हो... अब सच्चे पिता की सच्ची श्रीमत पर चलकर... वही तेजस्वी स्वरूप को पुनः पा लो... और मीठे सुखो के मधुमास में खुशनुमा जीवन के अधिकारी बन मुस्कराओ...”

➳ _ ➳  बापदादा की शिक्षाओ को धारण कर खुशनुमा फूलों से सजते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझकर दुखो के दलदल में धँस गई थी... आपने प्यारे बाबा मुझे अपनी श्रीमत का हाथ देकर सदा का सुखी बनाया है... श्रीमत को बाँहों में लेकर मै आत्मा ख़ुशी के आसमान में उड़ रही हूँ...”

❉  मुझे अपने मखमली गोद में बिठाकर वरदानों से नवाजते हुए मीठे प्यारे बापदादा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर कदम को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत को रखकर... बेफिक्र बादशाह बनकर मुस्कराओ... बाबा की श्रीमत भरा हाथ हाथो में थामकर निश्चिन्त हो इठलाओ... अपनी हर साँस संकल्प को श्रीमत प्रमाण चलाओ... और सुंदर देवताई संस्कारो को दामन में सजाओ...”

➳ _ ➳  सच्चे प्यार के साये में बाबा के हर कदम में कदम रख चलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका साथ और साया पाकर कितनी भाग्यशाली बन गई हूँ... प्यारे बाबा आपके बिना मै आत्मा... कितनी निराश थकी और टूटी सी हो उठी थी... आपके प्यार और श्रीमत ने पुनः मुझे रूहानी फूल सा खिला दिया है...”

❉  निराकार बाबा, साकार बाबा के द्वारा अलौकिक दिव्य ज्ञान देते हुए मुझसे कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य मतो पर चलकर जीवन के खोखलेपन और शक्तिहीनता के गहरे अनुभवी हो गए हो... अब श्रीमत पर चलकर खुद ही खुद पर दया करो... ईश्वर पिता जो सुख और खजाने हाथो में ले आया है उनके अधिकारी बन सुन्दरतम जीवन को पाओ... हर कदम श्रीमत प्रमाण ही उठाओ...”

➳ _ ➳  बापदादा के प्यार में अतीन्द्रिय सुखों के झूलों में झूलते हुए मैं तकदीरवान आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान को पाकर कितनी मीठी ख़ुशी से भर उठी हूँ... प्यारे बाबा, जीवन कितना सरल प्यारा और श्रेष्ठ हो गया है... और ईश्वरीय हाथो में सदा का सुरक्षित हो गया है... आपकी श्रीमत ने मुझे दुखो की गुलामी से मुक्त करा दिया है...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- डेड साइलेन्स की सच्ची - सच्ची रूहानी यात्रा करनी है"

➳ _ ➳  अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो शांति की गहन अनुभूति करने के लिए शांति के सागर अपने शिव पिता की याद में मैं आत्मा अशरीरी होकर बैठ जाती हूं और पहुंच जाती हूँ अंतर्मुखता एक ऐसी गुफा में जहां किसी भी प्रकार की कोई आवाज, शोरगुल यहां तक की संकल्पों की भी हलचल नहीं। अंतर्मुखता की गुफा में बैठ एकांतवासी बन एक के अंत में खो जाने की यह अवस्था मन को गहन शांति की अनुभूति करवा रही है। इस गहन शांति की अवस्था में मुझे आत्मा से निकल रहे शांति के प्रकंपन चारों ओर वायुमंडल में फैल कर वायुमंडल को भी शांत बना रहे हैं। शांति की शक्तिशाली किरणों का एक ऐसा औरा मेरे चारों तरफ बन गया है कि बाहर की स्थूल आवाजों का प्रभाव भी अब मुझे प्रभावित नही कर रहा।

➳ _ ➳  शांति की गहन अनुभूति करते हुए अब मैं अपने मन बुद्धि का कनेक्शन शांति धाम में रहने वाले अपने शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ती हूं और मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ शांति धाम, शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास। शांति के बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन इस शांति धाम में फैले हुए हैं। जो मुझे असीम शांति से भरपूर कर रहे हैं। इस असीम शांति का अनुभव करते-करते मैं आत्मा पहुंच जाती हूं अपने शांति दाता मीठे शिव बाबा के पास। जिनसे सर्वशक्तियों की शक्तिशाली किरणे निकल रही हैं। इन शक्तिशाली किरणों के फव्वारे के नीचे बैठ मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूं।

➳ _ ➳  भरपूर हो कर अब मैं आत्मा लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में और अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो जाती हूं। साकार देह में होते हुए भी अब मैं स्वयं को शांति से भरपूर अनुभव कर रही हूं। और मन में विचार करती हूं कि काश संसार की हर आत्मा जो आज स्वयं को न जानने के कारण दुखी और अशांत हो चुकी है और शांति की तलाश में भटक रही है। वह भी इस गहन शांति का अनुभव कर पाती। जैसे ही यह संकल्प मन में उत्पन्न होता है तभी जैसे बाबा के महावाक्य कानों में गूंजने लगते हैं। ऐसे लगता है जैसे बाबा निर्देश दे रहे हैं:- "अपने शांत स्वधर्म में स्थित होकर शांति के लिए भटक रही आत्माओं को भटकने से छुड़ाओ"।
 
➳ _ ➳  बाबा के फरमान का पालन करने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर कल्प वृक्ष की जड़ों में जाकर बैठ जाता हूं और शांति के सागर अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा का आहवाहन करता हूं। मेरा आहवाहन सुनते ही परमधाम से बाबा की शक्तिशाली सतरंगी किरणे सीधी मुझ फ़रिश्ते पर पड़ने लगी हैं और मुझ से निकल कर कल्पवृक्ष की टाल टालियों और पत्ते-पत्ते तक पहुंच कर सर्व आत्माओं रुपी पत्तों को शांति का अनुभव करा रही है। मैं देख रहा हूँ कि मम्मा, बाबा, वरिष्ठ दादियां और समस्त ब्राह्मण परिवार की आत्माएं भी अब कल्पवृक्ष की जड़ों में आ कर बैठ गई हैं और बाबा से सर्वशक्तियाँ लेकर पूरे कल्प वृक्ष को साकाश दे रही हैं। धीरे-धीरे शक्तियों का प्रवाह निरंतर बढ़ता जा रहा है। कल्पवृक्ष की सभी आत्माएं अब स्वयं को शांति, शक्ति और सर्व गुणों से संपन्न अनुभव कर रही हैं।

➳ _ ➳  कल्प वृक्ष से अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब पर आ गया हूँ और बाबा से शांति की शक्तिशाली किरणे ले कर विश्व की सभी अशांत और दुखी आत्माओं में प्रवाहित कर रहा हूँ। मैं स्पष्ट देख रहा हूं कि सभी मनुष्य आत्माएं गहन शांति का आनंद ले रही है। अब मैं उन्हें उनका और परमात्मा का वास्तविक परिचय देकर, अपने शांत स्वधर्म में स्थित रहने और सच्ची शांति पाने का सहज रास्ता बता रहा हूं। सच्ची शांति को पाने का सहज और सत्य रास्ता जानकर सभी आत्माएं प्रसन्नचित्त मुद्रा में दिखाई दे रही है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं "बाबा" शब्द की चाबी से सर्व खजाने प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं भाग्यवान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बापदादा से सदैव स्नेह रखने वाली आत्मा हूँ  ।
✺   मैं आत्मा स्नेह में पुराने जहान को कुर्बान कर देती हूँ  ।
✺   मैं स्नेही आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सदा ही बच्चों को सम्पन्न स्वरूप में देखने चाहते हैं। जब कहते ही होबाप ही मेरा संसार है। यह तो सब कहते हो ना! दूसरा भी कोई संसार है क्याबाप ही संसार हैतो संसार के बाहर और क्या हैसिर्फ संस्कार परिवर्तन करने की बात है। ब्राह्मणों के जीवन में मैजारिटी विघ्न रूप बनता है - संस्कार। चाहे अपना संस्कार, चाहे दूसरों का संस्कार। ज्ञान सभी में है, शक्तियां भी सभी के पास हैं। लेकिन कारण क्या होता हैजो शक्तिजिस समय कार्य में लानी चाहिएउस समय इमर्ज होने के बजाए थोड़ा पीछे इमर्ज होती हैं। पीछे सोचते हैं कि यह न कहकर यह कहती तो बहुत अच्छा। यह करने के बजाए यह करती तो बहुत अच्छा। लेकिन जो समय पास होने का था वह तो निकल जाता हैवैसे सभी अपने में शक्तियों को सोचते भी रहते होसहनशक्ति यह हैनिर्णय शक्ति यह हैऐसे यूज करना चाहिए। सिर्फ थोड़े समय का अन्तर पड़ जाता है।

 

 _ ➳  और दूसरी बात क्या होती हैचलो एक बार समय पर शक्ति कार्य में नहीं आई और बाद में महसूस भी किया कि यह न करके यह करना चाहिए था। समझ में आ जाता है पीछे। लेकिन उस गलती को एक बार अनुभव करने के बाद आगे के लिए अनुभवी बन उसको अच्छी तरह से रियलाइज कर लें जो दुबारा नहीं हो। फिर भी प्रोग्रेस हो सकती है। उस समय समझ में आता है - यह रांग हैयह राइट है। लेकिन वही गलती दुबारा नहीं होउसके लिए अपने आपसे अच्छी तरह से रियलाइजेशन करना, उसमें भी इतना फुल परसेन्ट पास नहीं होते। और माया बड़ी चतुर हैवही बात मानो आपमें सहनशक्ति कम हैतो ऐसी ही बात जिसमें आपको सहनशक्ति यूज करना है, एक बार आपने रियलाइज कर लियालेकिन माया क्या करती है कि दूसरी बारी थोड़ा-सा रूप बदली करके आती है। होती वही बात है लेकिन जैसे आजकल के जमाने में चीज वही पुरानी होती है लेकिन पालिश ऐसी कर देते हैं जो नई से भी नई दिखाई दे। तो माया भी ऐसे पालिश करके आती है जो बात का रहस्य वही होता है मानों आपमें ईर्ष्या आ गई। ईर्ष्या भी भिन्न-भिन्न रूप की हैएक रूप की नहीं है। तो बीज ईर्ष्या का ही होगा लेकिन और रूप में आयेगी। उसी रूप में नहीं आती है। तो कई बार सोचते हैं कि यह बात पहलेवाली तो वह थी नायह तो बात ही दूसरी हुई ना। लेकिन बीज वही होता है सिर्फ रूप परिवर्तित होता है।उसके लिए कौन-सी शक्ति चाहिए? - 'परखने की शक्ति'

 

 _ ➳  इसके लिए बापदादा ने पहले भी कहा है कि दो बातों का अटेन्शन रखो। एक - सच्ची दिल। सच्चाई। अन्दर नहीं रखो। अन्दर रखने से गैस का गुब्बारा भर जाता है और आखिर क्या होगाफटेगा ना! तो सच्ची दिल - चलो आत्माओं के आगे थोड़ा संकोच होता है,थोड़ा शर्म-सा आता है - पता नहीं मुझे किस दृष्टि से देखेंगे। लेकिन सच्ची दिल सेमहसूसता से बापदादा के आगे रखो ऐसे नहीं मैंने बापदादा को कह दियायह गलती हो गई। जैसे आर्डर चलाते हैं - हाँ, मेरे से यह गलती हो गईऐसे नहीं।महसूसता की शक्ति सेसच्ची दिल सेसिर्फ दिमाग से नहीं लेकिन दिल से अगर बापदादा के आगे महसूस करते हैं तो दिल खाली हो जायेगी, किचड़ा खत्म। बातें बड़ी नहीं होती हैछोटी ही होती है लेकिन अगर आपकी दिल में छोटी-छोटी बातें भी इकट्ठी होती रहती हैं तो उनसे दिल भर जाती है। खाली तो नहीं रहती है ना! तो दिल खाली नहीं तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! बैठने की जगह तो हो ना! तो सच्ची दिल पर साहेब राजी। जो हूँ, जैसी हूँजो हूँजैसा हूँबाबा आपका हूँ। 

 

✺   ड्रिल :-  "सच्ची दिल में दिलाराम को बिठाकर, समय पर शक्तियों को इमर्ज कर माया पर विजय प्राप्त करने का अनुभव"

 

 _ ➳  देह रूपी पिंजरें में कैद मैं आत्म पंछी उड चला हूँ मन बुद्धि के पंख पसारे... एक बल एक भरोसा का तिनका अपनी नन्हीं सी चोच में सम्भालें... गगन चुंबी इमारतों को, ऊँचे शैल शिखरों को पार करता हुआ... बादलों के साथ खेलता, चाँद तारों को पीछे ढकेलता मैं पहुँच गया हूँ सूक्ष्म वतन में... श्वेत प्रकाश का एक ऐसा लोक जो कुछ कुछ ग्लेशियर की अनुभूति करा रहा है... सब कुछ श्वेत... झरने, शिखर, नदिया और उन में तैरती कश्तियाँ... और कश्तियों पर सवार वों फरिश्ते... गरिमामयी सी चाल... मुस्कुराहटों में बरसता जीवन... आँखों में तैरता अपनत्व... 

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता जाकर बैठ गया हूँ एक बहते झरने के नीचे... शिव प्यार का झरना... मेरे रोम रोम में समाती जा रही है इसकी एक -एक बूँद... शीतलता पावनता और शक्तिस्वरूप बनकर... मन के कोने कोने से हर कीचडे को बहाकर ले जा रही है इसकी हर धारा... पूरी महसूसता के साथ अपनी हर कमी कमजोरी को बाबा के सम्मुख रखता हुआ मैं... और अब दिल दर्पण चमक उठा है किसी चमचमाते हीरे की तरह... हर बोझ हर भार शिव स्नेह की धाराओं में बह चला है... सच्ची दिल में आकर चुपके से विराजमान हो गये है शिव सूर्य... और प्रकाश से दमक उठा है मेरा रोम रोम... मेरे अभिषेक को उतावली सी अष्ट शक्तियाँ... जो मेरी सहचरी बनकर मुझमें समाती जा रही है...

 

 _ ➳  अब मैं फरिश्ता सैकडों फरिश्तों के साथ उड चला विश्व सेवा पर... अष्ट शक्तियों के सुरक्षा घेरें में... पाँचों तत्वों को सकाश देता हुआ... पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु... सन्तुष्ट नजर आ रहे है  परम शान्ति की किरणें पाकर... और अब मैं उतर रहा हूँ सागर के किनारें... सागर की लहरों पर डोलती खाली कश्तियाँ... और मैं फरिश्ता सवार हो गया हूँ एक छोटी सी कश्ती पर... सभी दूसरी कश्तियों में भी मेरे हमसफ़र फरिश्ते... लहरों पर जगमगातें असंख्य दीपकों की भाँति... 

 

 _ ➳  आकाश में घिरते बादलों के साथ छाता घना अंधकार... लहरों में सुनामी की आहट... मझधार में फँसी कश्ती... आँखों से ओझल होतें फरिश्ते... और इन सब मायावी तूफानों से घिरा मैं आह्वान कर रहा हूँ अष्ट शक्तियों का... भय के सब संकल्प सिमटते जा रहे है... और सामना कर रहा हूँ मैं उन लहरों का... कश्ती को छोडकर मैं लहरों पर ही सवार हो गया हूँ... दिल में बैठे दिलाराम को दिल की बात बता मैं बेफिक्र होता जा रहा हूँ... ये सुनामी लहरें, शिव स्नेहीं लहरों में रूपान्तरित हो रही है... और अंधेरें को चीरता मैं निर्णय शक्ति के आह्वान पर खुद को छोड देता हूँ लहरों के अनुकूल दिशा में...

 

 _ ➳  दूर से आता लाईट हाऊस का प्रकाश... और उसी दिशा में मुझे लेकर जाती हुई लहरे... आकाश में बादलों के पीछे से झाँकता चाँद... चाँदनी की गागर भर कर उडेल रहा है मेरी ओर... मेरे अनूकूल होता वातावरण मुझे अपनी जीत का एहसास करा रहा है... रात का अंधकार समाप्त हो गया है... शिव सूर्य बाहें फैलाए खडे है मेरे सामने... मैं फरिश्ता समाँ गया हूँ उनकी गोद में... अपने वजूद को समेटता सागर चरणों में झुक कर अभिनन्दन कर रहा है बापदादा का... और मैं मुस्कुरा रहा हूँ उनकी गोद में... सम्पन्न स्वरूप में... दुगुने उत्साह से शक्तियों   को एक एक संस्कार के परिवर्तन का दायित्व देता हुआ मैं लौट आया हूँ अपनी देह में... माया के तूफानों पर जीत का गहरा अनुभव लिए...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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