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❍ 30 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ज्ञान के तीसरे नेत्र से देखने का अभ्यास किया ?
➢➢ अवस्था ऐसी बनायी जो अंतकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई याद तो नहीं आया ?
➢➢ अटेंशन और चेकिंग द्वारा सवा सेवा की ?
➢➢ शोर्ट और स्वीट बोला ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाता है, ऐसे लाइट हाउस बन, विश्व कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए। जैसे स्थूल लाइट का बल्ब तेज पावर वाला होगा तो चारों ओर लाइट फैलेगी। जीरो पावर हद तक रहेगी। तो अब लाइट हाउस बनो न कि बल्व।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं उमंग-उत्साह में उड़ने वाली आत्मा हूँ"
〰✧ सभी अपने को सदा उमंग-उत्साह से उड़ने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? सदा उमंग-उत्साह बढ़ता रहता है या कभी कम होता है कभी बढ़ता है? क्योंकि जितना उमंग-उत्साह होगा उतना औरों को भी उमंग-उत्साह में उड़ायेंगे। सिर्फ स्वयं नहीं उड़ने वाले हो लेकिन औरों को भी उड़ाने वाले हो। तो उमंग-उत्साह ये उड़ने के पंख हैं। अगर पंख मजबूत होते हैं तो तीव्र गति से उड़ सकते हैं। अगर पंख कमजोर होंगे और तीव्र गति से उड़ने की कोशिश भी करेंगे तो नहीं उड़ सकेंगे, बार-बार नीचे आयेंगे। तो उमंग-उत्साह के पंख सदा मजबूत हों। कभी कमजोर, कभी मजबूत नहीं, सदा मजबूत।
〰✧ क्योंकि अनेक आत्माओंको उड़ाने की जिम्मेवार आत्मायें हो। विश्व कल्याण करने की जिम्मेवारी ली है ना? तो सदा इतनी बड़ी जिम्मेवारी स्मृति में रहे। जब कोई भी जिम्मेवारी होती है तब जो भी काम करेंगे तो तीव्र गति से करेंगे और जिम्मेवारी नहीं होती है तो अलबेले होते हैं। तो हरेक के ऊपर कितनी बड़ी जिम्मेवारी है! सभी ने यह जिम्मेवारी का संकल्प लिया है? या सोचते हो कि यह बड़ों का काम है, हम तो छोटे हैं-ऐसे तो नहीं। यह तो पुराने जाने हम तो नये हैं-ऐसे तो नहीं। चाहे बड़े हों, चाहे छोटे हों, चाहे पुराने हों, चाहे नये हों, लेकिन ब्राह्मण बनना अर्थात् जिम्मेवारी लेना। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं लेकिन हैं तो बी.के.या और कुछ हैं? तो बी.के.अर्थात् ब्राह्मण बनना और ब्राह्मणों की जिम्मेवारी है ही। तो ये जिम्मेवारी की स्मृति कभी भी आपको अलबेला नहीं बनायेगी।
〰✧ लौकिक कार्य में भी जब कोई जिम्मेवारी बढ़ती है तो आलस्य और अलबेलापन आता है या चला जाता है? अगर कोई कहेगा भी ना कि चलो थोड़ा आराम कर लो, बैठ जाओ, क्या करना है, तो बैठ सकेगे? तो जिम्मेवारी, आलस्य और अलबेलापन खत्म कर देती है। तो चेक करो कि कभी भी आलस्य या अलबेलापन तो नहीं आ जाता? चल तो रहे हैं, हो जायेगा-ये है अलबेलापन। आज नहीं तो कल हो जायेगा-ये आलस्य है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ लेकिन यह चेक करो - यह तीनों स्व के अधिकार से चलते हैं? इन तीनों पर स्व का राज्य है वा इन्हों के अधिकार से आप चलते हो? मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते हैं? जो चाहो, जब चाहो वैसा ही संकल्प कर सकते हो?
〰✧ जहाँ बुद्धि लगाने चाहो, वहाँ लगा सकते हो वा बुद्धि आप राजा को भटकाती है? संस्कार आपके वश है वा आप संस्कारों के वश हो?
〰✧ राज्य अर्थात अधिकार। राज्य अधिकारी जिस शक्ति को जिस समय जो ऑर्डर करे, वह उसी विधि पूर्वक कार्य करते वा आप कहो एक बात, वह करें दूसरी बात? क्योंकि निरंतर योगी अर्थात स्वराज्य अधिकारी बनने का विशेष साधन ही मन और बुद्धि है। मन्त्र ही ‘मन्मनाभव' का है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन खुशी से कौन जायेगा? जिसका सदा यह 'आने' और 'जाने' का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मयोगी बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए। ऐसे न हो कि आप अशरीरी बनने चाहो और शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित करें, कोई भी बंधन अशरीर बनने नहीं देगा। जैसे कोई टाइट ड्रेस पहनते हैं तो समय पर सेकण्ड में उतारने चाहें तो उतार नहीं सकेंगे, खिंचावट होती है क्योंकि शरीर से पहले चिपटा हुआ है। ऐसे कोई भी बंधन का खिंचाव अपनी तरफ खींचेगा। बंधन आत्मा को टाइट कर देता है। इसलिए बापदादा सदैव यह पाठ पढ़ाते हैं - निर्लिप्त अर्थात् न्यारे और अति प्यारे। यह बहुतकाल का अभ्यास चाहिए।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- दुःख हर्ता सुख कर्ता बाप को याद करना"
➳ _ ➳ विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे
खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन...
विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट
बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और
रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण
मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और
मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती
हूँ...
❉ अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते
हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में
ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... इसलिए हर पल ईश्वरीय
यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की
याद में डुबो दो...”
➳ _ ➳ प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए
मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और
देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे
सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”
❉ मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे
भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा
पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... तो उनकी याद
में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो
से भरा दामन में ले आएँगी...”
➳ _ ➳ शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी
सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी
प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... मेरा जीवन खुशियो
का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही
हूँ...”
❉ देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल
बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस
संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... खुशियो भरे
जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के
आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को
रोशन करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली
हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... प्यारे
बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई
श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- अवस्था ऐसी जमानी है जो अंत काल में एक बाप के सिवाय दूसरा कुछ भी
याद ना आए"
➳ _ ➳ कितना वन्डरफुल है यह सृष्टि रूपी ड्रामा! और इस वैरायटी ड्रामा
में पार्ट बजाने वाले वैरायटी पार्टधारी! एकांत में बैठ सृष्टि के इस बेहद
ड्रामा पर चिंतन करते हुए मैं अपने जीवन के बारे में विचार करती हूँ कि इस बेहद
ड्रामा में पार्ट बजाते हुए पूरे 63 जन्म देहधारियों से प्रीत करके सिवाय दुख
और अशान्ति के और कुछ भी हासिल नही हो पाया। उस झूठी प्रीत की स्मृति मन में
देह और देह की झूठी दुनिया के प्रति वैराग्य की भावना उतपन्न कर रही है।
किन्तु इस हद की वैराग्य वृति को बेहद में बदलने के लिए अब मुझे अपने दिल की
प्रीत केवल एक दिलाराम बाबा से लगानी है ताकि अन्त समय सिवाय दिलाराम बाप के
ओर कोई भी याद ना आये। अब यही पुरुषार्थ मुझे अपने इस अंतिम जन्म में करना है।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए अपने दिलाराम बाबा की
दिल को सुकून देने वाली मीठी याद में मैं खो जाती हूँ। अपने दिलाराम बाबा को
याद करते ही मन बरबस ही उनकी ओर खिंचने लगता है और जैसे ही मेरे दिल की आवाज
मेरे दिलाराम बाबा तक पहुँचती है मेरे बाबा अपने प्यार का प्रतिफल अपनी
सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी फुहारों के रूप में परमधाम से सीधे मुझ आत्मा पर
बरसाने लगते हैं। बारिश की रिमझिम फुहारों की तरह मेरे दिलाराम बाबा के प्रेम
की मीठी फुहारें परमधाम से मेरे ऊपर पड़ रही हैं और मेरे मन को आनन्दित कर रही
हैं। एक दिव्य अलौकिक मस्ती से मैं सरोबार होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ मेरे मीठे दिलाराम बाबा का प्रेम एक जादुई शक्ति बन कर, मुझे उनके
समान अशरीरी बना कर अब अपनी ओर खींच रहा है। मुझे केवल अपना चमकता हुआ, अपने
दिलाराम बाबा के प्रेम में खोया हुआ जगमग करता दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप ही
दिखाई दे रहा है। अपने बाबा के प्रेम की डोर से बंधी मैं जगमग करती ज्योति अब
भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ देह से बाहर आ जाती हूँ और परमात्म प्यार के झूले
में झूलती हुई ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ परमात्म प्यार का यह सुन्दर, सुहावना झूला मुझे सेकण्ड में समस्त
तारामण्डल, सौरमण्डल और सूक्ष्म वतन को पार करवाकर उस अनन्त ज्योति के देश मे
ले आता है जहाँ पहुंचते ही शांति की लहरें मुझ आत्मा को छूने लगती है और मुझे
गहन शांति के गहरे अनुभव में ले जाती हैं। एक ऐसी अद्भुत शान्ति जिसकी मैंने
कभी कल्पना भी नही की थी उस अथाह शान्ति का अनुभव यहाँ पहुंच कर मैं आत्मा कर
रही हूँ। अथाह शान्ति का यह अनुभव मुझे शांति के सागर मेरे शिव पिता के समीप
ले कर जा रहा है।
➳ _ ➳ अब मैं धीरे - धीरे अपने दिलाराम बाबा के पास जा रही हूँ। उनके
अति समीप पहुँच कर मैं जैसे ही उन्हें छूती हूँ शक्तियों का एक तेज करेन्ट मुझ
आत्मा में प्रवाहित होने लगता है जो मुझे असीम आनन्द देने के साथ - साथ असीम
शक्ति से भर देता है। अपने बाबा के साथ टच रह कर स्वयं को पूरी तरह भरपूर करके
मैं आत्मा वापिस सृष्टि ड्रामा पर अपना पार्ट बजाने के लिए अब परमधाम से नीचे आ
जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने दिलाराम बाबा के सच्चे निस्वार्थ प्यार के अनुभव को अपने मन
रूपी दर्पण पर अंकित कर उस प्यार की गहराई में जब चाहे खोकर, उस सच्ची प्रीत को
अपने ब्राह्मण जीवन का आधार बना कर अब मैं अपने दिलाराम बाबा के प्यार के झूले
में सदैव झूलती रहती हूँ। देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों
से ममत्व निकाल, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने दिलाराम बाबा से लेते हुए, दिल की
सच्ची प्रीत बाबा से रखते हुए अब मैं ऐसा पुरुषार्थ कर रही हूँ जो अन्त समय
सिवाए दिल को आराम देने वाले मेरे दिलाराम बाबा के ओर कोई भी मुझे याद ना आये।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं अटेंशन और चेकिंग द्वारा स्व सेवा करने वाली सम्पन्न और सम्पूर्ण आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं ज्यादा बोलकर दिमाग की एनर्जी को कम करने के बजाए शॉर्ट और स्वीट बोलने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा के पास कोई न कोई, चाहे छोटा सा नेकलेस बना के लाओ, चाहे कंगन बना के लाओ, चाहे बड़ा हार बना के लाओ, लेकिन लाना जरूर है। हाथ खाली नहीं आना है। हिम्मत है ना? बनायेंगे ना? बापदादा तो कहेंगे चलो कंगन ही लाओ। क्योंकि बहुत आत्मायें अन्दर टेन्शन से बहुत दुखी हैं। सिर्फ बिचारों में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं है। तो आप मास्टर सर्वशक्तिमान उन्हों को हिम्मत दो, तो आ जायेंगे। जैसे किसको टांग नहीं होती है ना तो लकड़ी की टांग बनाकर देते हैं तो चलता तो है ना! तो आप हिम्मत की टांग दे दो। लकड़ी की नहीं देना, हिम्मत की दो। बहुत दुखी हैं, रहम दिल बनो। बापदादा तो अज्ञानी बच्चों को भी देखता रहता है ना कि अन्दर क्या हालत है! बाहर का शो तो बहुत अच्छा टिपटाप है लेकिन अन्दर बहुत-बहुत दुखी हैं। आप बहुत अच्छे समय पर बच्चा बने अर्थात् बच गये।
✺ ड्रिल :- "अज्ञानी आत्माओं को हिम्मत की टाँग देना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बापदादा की ऊँगली पकड़ ऊपर आसमान में उड़ रही हूँ... तभी बाबा मेरा ध्यान नीचे धरती की ओर खिंचवाते हैं... और मुझे धरती के भिन्न-भिन्न सीन दिखाते हैं... एक बड़े से हॉस्पिटल के अंदर का दृश्य की ओर बाबा इशारा करते हैं... देखती हूँ की हर आत्मा दुखी, नीरस दिखाई दे रही है... कोई मौत की भीख मांग रही है... तो कोई दर्द से बुरी तरह कराह रही हैं... ऐसे असहनीय दर्द से पीड़ित आत्माओं को देख मन कांप उठा...
➳ _ ➳ दूसरा सीन बाबा ने एक कम्पनी का दिखाया जहाँ पर बड़े-बड़े ऑफिसर से लेकर हर पद पर काम करने वाली आत्मा टेंशन से ग्रसित हैं... ऊपर से तो बड़े टिप-टॉप दिखाई दे रहे... झूठी हंसी भी हंस रहे पर अंदर से कितने दुखी है... और ये दुःख, ये टेंशन एक दूसरे के व्यवहार में न चाहते भी दिखाई दे रहा है...
➳ _ ➳ मैंने बाबा से पूछा बाबा इनके दुःखो से छुटकारा कैसे हो... बाबा बोले मीठे बच्चे पूरी दुनिया ही विकारों में जल रही हैं... दुनिया की सभी आत्मायें अभी परेशान हैं... और तुमको ही रहमदिल बन सभी आत्माओं को इन दुःखों से छुड़ाना हैं... इनको चलने की हिम्मत नहीं बची... बाप आया है फिर भी बाप के पास आने की उसे पहचानने की हिम्मत अब इनमें बाकी नहीं रही हैं... तो आपको ही इन्हें हिम्मत की टांग दे हिम्मत देना होगा...
➳ _ ➳ ये सुनते ही मैं आत्मा एक होनहार बच्चे समान सभी आत्माओं को शक्तियों का दान करने लगी... मैं फ़रिश्ता शिवबाबा की शक्तियों के झरने के नीचे हूँ... और सम्पूर्ण विश्व मुझ से निकलती शक्तियों के नीचे हैं... मुझ से निकलती हुई शक्तियों का अविरल प्रवाह... हर आत्मा को शक्तियों से भर रहा हैं... परमात्म शक्ति से उनके चेहरे पर चमक आ रही हैं... सभी आत्माओं को हिम्मत की टांग मिलने से झूम रही है... उन्होंने भी अपने पिता को पहचान लिया हैं...
➳ _ ➳ सभी आत्मायें बाबा से मिल कर बहुत खुश हैं... प्रेम के अश्रु अविरल बह रहे हैं... कब के बिछड़े, अब मिले हैं... मैं आत्मा भी इस चिर मिलन को देख गदगद् हो रही हूँ... और बाबा को देखती हूँ... तो बाबा हल्के से मुझे देख मुस्कराते हैं... मानो मुझे सराह रहे हो... और कह रहे हो वाह मेरे बच्चे वाह... तुम तो बाबा के गले का हार लेकर आई हो... मैं आत्मा कहती हूँ बाबा शुक्रिया आपका... करनकरावनहार तो आप ही हैं, हम बस ऊँगली ही लगाते हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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