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 17 / 03 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भाई भाई के समान स्वरुप की स्मृति से अविनाशी रंग का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *भरी हुई बुधी की पिचकारी से आत्माओं को दृष्टि, वृत्ति, मुख द्वारा रंग में रंगा ?*

 

➢➢ *सदा हैप्पी और होली मूड में रहे ?*

 

➢➢ *जीवन उत्साह और खुशियों से भरपूर रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *लवलीन स्थिति वाली समान आत्माएं सदा के योगी हैं । योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन । अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे!* स्वत: याद है ही । जहाँ साथ होता है तो याद स्वत : रहती है । *तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी सर्व प्रप्ति स्वरूप आत्मा हूँ"*

 

  *संगमयुग सदा सर्व प्राप्ति करने का युग है। संगमयुग श्रेष्ठ बनने और बनाने का युग है। ऐसे युग में पार्ट बजाने वाली आत्मायें कितनी श्रेष्ठ हो गई! तो सदा यह स्मृति रहती है- कि हम संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें हैं?* सर्व प्राप्तियो का अनुभव होता है? जो बाप से प्राप्ति होती है उस प्राप्ति के अधार पर सदा स्व्यं को सम्पन्न भरपूर आत्मा समझते हो? इतना भरपूर हो जो स्यवं भी खाते रहो और दूसरों को भी बांटो।

 

  जैसे बाप के लिए कहा जाता है भण्डारे भरपूर हैं, ऐसे आप बच्चों का भी सदा भण्डारा भरपूर है! कभी खाली नहीं हो सकता। जितना किसी को देंगे उतना और ही बढ़ता जयेगा। जो संगमयुग कि विशेषता है व आप की विशेषता है। *हम संगमयुगी सर्व प्राप्ति स्वरुप आत्मायें हैं, इसी स्मृति में रहो। संगमयुग पुरुषोत्तम युग है, इस युग में पार्ट बजाने वाले भी पुरुषोत्तम हुए ना।*

 

 दुनिया की सर्व आत्मायें आपके आगे साधारण हैं, आप अलौकिक और न्यारी आत्मायें हो! वह अज्ञानी हैं आप ज्ञानी हो। वह शूद्र हैं आप ब्रह्मण हो। वह दु:खधाम वाले हैं और आप संगमयुग वाले हो। संगमयुग भी सुखधाम है। कितने दु:खो से बच गये हो! अभी साक्षी होकर देखते हो कि दुनिया कितनी दु:खी है और उनकी भेंट में आप कितने सुखी हो। फर्क मालूम होता है ना! *तो सदा हम पुरुषोत्तम युग की पुरुषोत्तम आत्मायें, सुख स्वरुप श्रेष्ठ आत्मायें हैं, इसी स्मृति में रहो। अगर सुख नहीं, श्रेष्ठता नहीं तो जीवन नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज से परे जाना है वा बाप को भी आवाज में लाना है? आप सब आवाज से परे जा रहे हो। और बापदादा को फिर आवाज में ला रहे हो। *आवाज में आते भी अतीन्द्रिय सुख में रह सकते हो, तो फिर आवाज से परे रहने की कोशिश क्यों*?

 

✧  अगर आवाज से परे निराकार रूप में स्थित हो फिर साकार में आयेंगे, तो फिर औरों को भी उस अवस्था में ला सकेंगे। एक सेकण्ड में निराकार, एक सेकण्ड में साकार - ऐसी ड्रिल सीखनी है। *अभी - अभी निराकारी, अभी - अभी साकारी*। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब साकार रूप में हर एक को निराकार रुप का आप से साक्षात्कार हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  योगयुक्त का अर्थ ही है देह के आकर्षण के बन्धन से भी मुक्त। जब देह के बन्धन से मुक्त हो गये तो सर्व बन्धन मुक्त बन ही जाते हैं। *तो समर्पण अर्थात् सदा योगयुक्त और सर्व बन्धनमुक्त।* यह निशानी अपनी सदा कायम रखना। *अगर कोई भी बन्धन युक्त होंगे तो योगयुक्त नहीं कहलायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- होली उत्सव पवित्र बनने और बनाने का यादगार"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन-बुद्धि के विमान में बैठ मधुबन हिस्ट्री हाल में पहुँच जाती हूँ... यहाँ की तस्वीरों को देखते हुए बाबा की मीठी यादों में खो जाती हूँ...* सामने संदली पर बापदादा मुस्कुराते हुए बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा को प्यार से निहारती हुई बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी मुरली की मधुर तान छेड़ते हैं... जिसकी धुन में मैं आत्मा परवश हो जाती हूँ और बाबा के संग के रंग में रंग जाती हूँ...

 

  *अपने प्यार के रंग में रंगते हुए संगदोष से अपनी सम्भाल करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने जो अब अपने प्यार भरे हाथो में पाला है... तो बुरे संग की मिटटी में अपना उजला स्वरूप फिर से मटमैला न करो...* इस ईश्वरीय चमक को देहभान और बुरे संग में धुंधला न करो... ईश्वरीय गोद से नीचे उतरकर खुद को फिर से मलिन न करो... अपना हर पल ख्याल रखो...

 

_ ➳  *पवित्रता के सागर में डूबकर कौड़ी से हीरे तुल्य बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा देहभान और विकारो के संग में आकर अपने सत्य स्वरूप को खोकर किस कदर दुखी और मलिन से हो गई थी...* अब जो मीठे बाबा ने मुझे अपनी बाँहों में लेकर श्रृंगारा है... मै दमकती आत्मा यह ईश्वरीय चमक हर दिल पर सजा रही हूँ...

 

  *परमात्म प्रेम के सुगंध से मेरे जीवन के हर श्वांस को महकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर बागबान से जो खुशबूदार फूल बन महके हो तो अब फिर से काँटों का संग न करो...* अपनी बहुत सम्भाल करो... ईश्वर प्रेम में खिली मन बुद्धि की पंखुड़ियों को बुरे संग की तेज धूप में फिर से न कुम्हलाओ... अपनी ईश्वरीय खुशबु और रंगत महकेपन का हर साँस से ध्यान रखो...

 

_ ➳  *बाबा के संग में रूहे गुलाब बन सुखों के चमन में महकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा संग जो खिला फूल हो गई हूँ... इस रूहानियत की खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ...* संगदोष से दूर रह सबपर ईश्वरीय यादो का रंग चढ़ा रही हूँ... सबके जीवन में अपने जैसी बहार लाकर ऐसा ही खूबसूरत बना रही हूँ...

 

  *अपने प्रेम की तरंगो में तरंगित करते हुए ज्ञान रत्नों को चुगने वाला हंस बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सुंदर खिले हुए दामन में अब फिर संगदोष में आकर दाग न लगाओ... ईश्वरीय श्रीमत का हाथ थाम सदा हंसो के संग मुस्कराते रहो... *देहधारियों के प्रभाव से मुक्त रहकर सदा ज्ञान रत्नों से श्रृंगारित रहो... संगदोष फिर से विकारो की कालिमा से बेनूर कर देगा... इससे परे रहो...”*

 

_ ➳  *बाबा की श्रीमत रूपी जादू से अपना श्रृंगार कर रूहानी फूल बन खिलखिलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में समा कर प्रतिपल अपना ख्याल रख रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो समझ भरा तीसरा नेत्र दिया है उससे स्वयं को हर बुराई से परे रख हंसो संग झूम रही हूँ... और अपने उजले पन में मुस्करा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- भाई भाई के समान स्वरुप की स्मृति से अविनाशी रंग का अनुभव*"

 

_ ➳  एक साथी, एक दोस्त के रूप में अपने प्यारे मीठे शिव बाबा को याद करते ही मैं उन्हें अपने करीब पाती हूँ। अपने लाइट माइट स्वरूप में वो मेरे सामने खड़े हैं। *अपनी बाहों को फैलाये वो मुझे अपने साथ चलने का ईशारा कर रहें हैं। अपनी लाइट माइट से मुझे भी आप समान बना कर वो मेरा हाथ थामे मुझे इस दुनिया से दूर ले जा रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने दोस्त का हाथ थामे मैं पूरी दुनिया की सैर कर रही हूँ और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में सोच - सोच कर हर्षित हो रही हूँ। *जिस भगवान को लोग आज दिन तक तलाश कर रहें हैं, आज तक जिसकी एक झलक के लोग प्यासे हैं वो भगवान मेरा दोस्त बन मेरे साथ इस दुनिया की सैर कर रहा है*। "वाह मेरा भाग्य", "वाह मैं आत्मा" जो स्वयं भगवान मेरा साथी मेरा दोस्त बन गया।

 

_ ➳  मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करते, अपने सच्चे दोस्त के साथ मीठी मीठी रूह - रिहान करते मैं पहुंच गई सूक्ष्म वतन। *ऐसा लग रहा है जैसे पूरा वतन रंग बिरंगे फूंलो की खुशबू से महक रहा है। वतन के खूबसूरत नजारो को मैं देख रही हूँ*। इधर उधर उड़ते फरिश्तों के अंगों से निकलती श्वेत रश्मियां ऐसी लग रही है जैसे चारों और सफ़ेद प्रकाश के झरने फूट रहे हों। बापदादा की लाइट माइट से फ़रिशतो की चमक निरन्तर बढ़ती जा रही है। *पूरे वतन में सफेद चाँदनी की जैसे चादर बिछी हुई है। चारों और छिटकी चांदनी मन को अति सुखद अनुभूति करवा रही है*।

 

_ ➳  एक खूबसूरत फूंलो की झालरों से सजे झूले पर अपने सच्चे दोस्त के साथ बैठ, अब मैं अपने मन की हर बात उन्हें बता रही हूँ। *मेरे अंदर के जज़्बात मेरे संकल्पो के माध्यम से मेरे मनमीत, मेरे साथी तक पहुंच रहें हैं*। अपने जीवन मे बिताये सभी सुखद और दुखद पलों को अपने भाव और भावनाओं द्वारा मैं अपने इस वफादार साथी के साथ बाँट रही हूँ।

 

_ ➳  कितने प्यार से मेरे मन की हर बात को मेरा यह सच्चा दोस्त सुन और समझ रहा है और अपनी मीठी दृष्टि में समाये असीम प्यार को मुझ पर लुटाते हुए हर बात के प्रभाव से मुझे मुक्त कर रहा है। *अपनी स्नेह भरी दृष्टि से मुझ में बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रहा है ताकि जीवन की हर परिस्थिति का मैं अचल अडोल बन कर सामना कर सकूँ*।

 

_ ➳  अपने हाथ मे मेरा हाथ ले कर अपनी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर समाहित करके मेरे साथी शिव बाबा ने मुझे भी आप समान मास्टर प्यार का सागर बना दिया है। *जिस आत्मिक दृष्टि से बाबा अपने हर बच्चे को देखते है वही आत्मिक दृष्टि मुझे प्रदान कर सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने का मूल मंत्र मेरे सच्चे दोस्त शिव बाबा ने मुझे दे दिया है*। इस मूल मंत्र को ले कर, मास्टर प्यार का सागर बन अब मैं अपनी फ़रिशता ड्रेस को सूक्ष्म वतन में छोड़, निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ।

 

_ ➳  अब मैं अपने साकारी शरीर मे भृकुटि पर विराजमान हो कर इस वर्ल्ड ड्रामा में हीरो पार्ट बजा रही हूँ। *सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने के अभ्यास द्वारा अब हर एक के पार्ट को मैं साक्षी हो कर देख रही हूँ*।  किसी के भी पार्ट को देख कर अब मेरे मन मे कोई प्रश्न नही उठ रहा। हर एक के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रख, सबको सच्चा रूहानी स्नेह देने से मैं सबके स्नेह की पात्र आत्मा बन गई हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं दृढ़ता की शक्ति द्वारा सफलता प्राप्त करने वाली त्रिकालदर्शी आसनधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सदा संतुष्ट रह कर सर्व को संतुष्ट करने वाली संतुष्टमणि हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मन्सा-वाचा-कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति सब में प्युरिटी है? *मनसा प्युरिटी अर्थात् सदा सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना - सर्व प्रति।* वह आत्मा कैसी भी हो लेकिन प्युरिटी की रायल्टी की मन्सा है - सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, कल्याण की भावना, रहम की भावना, दातापन की भावना। और दृष्टि में या तो सदा हर एक के प्रति आत्मिक स्वरूप देखने में आये वा फरिश्ता रूप दिखाई दे। *चाहे वह फरिश्ता नहीं बना है, लेकिन मेरी दृष्टि में फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही हो और कृति अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क में, कर्म में आना, उसमें सदा ही सर्व प्रति स्नेह देना, सुख देना। चाहे दूसरा स्नेह दे, नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर स्नेही बनाना। सुख देना।*

 

 _ ➳  स्लोगन है ना - ना दुःख दो, ना दुःख लो। देना भी नहीं है, लेना भी नहीं है। देने वाले आपको कभी दुःख भी दे दें लेकिन आप उसको सुख की स्मृति से देखो। *गिरे हुए को गिराया नहीं जाता है, गिरे हुए को सदा ऊँचा उठाया जाता है। वह परवश होके दुःख दे रहा है।* गिर गया ना! तो उसको गिराना नहीं है और भी उस बिचारे को एक लात लगा लो, ऐसे नहीं। उसको स्नेह से ऊँचा उठाओ। उसमें भी फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम। *पहले तो चैरिटी बिगन्स होम है ना, अपने सर्व साथी, सेवा साथी, ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊँचा उठाओ। वह अपनी बुराई दिखावे भी लेकिन आप उनकी विशेषता देखो।*

 

 _ ➳  नम्बरवार तो हैं ना! देखो, माला आपका यादगार है। तो सब एक नम्बर तो नहीं है ना! 108 नम्बर हैं ना! तो नम्बरवार हैं और रहेंगे और मेरा फर्ज क्या है? यह नहीं सोचना अच्छा मैं 8 में तो हूँ ही नहीं, 108 में शायद आ जाऊँगी, आ जाऊँगा। तो 108 में लास्ट भी हो सकता है तो मेरे भी तो कुछ संस्कार होंगे ना, लेकिन नहीं। *दूसरे को सुख देते-देते, स्नेह देते-देते आपके संस्कार भी स्नेही, सुखी बन ही जाने हैं। यह सेवा है और सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम।*

 

✺   *ड्रिल :-  "मनसा, वाचा, कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति में प्युरिटी का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता हूँ... मेरा श्वेत चमकीला स्वरूप, श्वेत चमकीली आभा लिए हुए है... *मैं आत्मा इस फरिश्ता रूप में चारों तरफ विचरण कर रही हूँ... और विचरण करते - करते उड़ कर पहुँच जाता हूँ ब्रह्मा बाबा के पास... बाबा ने मुझे अपने गले से लगा लिया और अपनी पवित्र दृष्टि से पवित्रता के वाइब्रेशन देकर मेरे जन्म - जन्‍म के सारे विकर्म धो दिये हैं...* बाबा ने मुझ आत्मा को अपने वास्तविक रूप बिन्दु रूप में स्थिर कर दिया... और कहा जाओ बच्ची अपने सच्चे पिता से मिलकर आओ... मैं आत्मा बाबा की आज्ञा लेकर प्रस्थान करती हूँ और उड़ कर पहुँच जाती हूँ प्यारे बाबा से मिलन मनाने के लिए... *वाह मैं आत्मा अपने परमपिता के पास पहुँच कर बाबा की किरणों के नीचे असीम सुख, शांति और प्रेम का अनुभव कर रही हूँ...* बाबा से ज्वाला समान शक्ति की लाल रंग की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... *शक्ति की किरणें मुझ आत्मा में समा रही है... और मेरे सारे विकर्म दग्ध हो रहे हैं...* मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र और निर्विकारी आत्मा बन गयी हूँ... वाह श्रेष्ठ परमपिता की मैं श्रेष्ठ संतान... उनकी आज्ञाकारी संतान उनसे शक्तियों का भंडार भर के वापस मैं साकारी दुनिया मैं आ गयी हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्थूल वतन में अपना श्रेष्ठ पार्ट निभा रही हूँ... *मैं आत्मा मन्सा-वाचा-कर्मणा... वृत्ति, दृष्टि और कृति सब में पवित्रता लिये हुए हूँ... मैं आत्मा सर्व आत्मा भाइयों को मन्सा-वाचा-कर्मणा... वृत्ति, दृष्टि और कृति से सबको शुभ भावना और शुभकामना दे रही हूँ...* मेरे आत्मा भाई कैसे भी हो लेकिन मैं आत्मा सदा उनके प्रति मनसा से केवल पवित्रता से पूर्ण श्रेष्ठ शुभ भावना और शुभ कामना ही दे रही हूँ... *संस्कारों के वशीभूत आत्मा को मैं आत्मा सदा कल्याण की दृष्टि से ही देख रही हूँ... कमजोर आत्मा भाईयों के लिए सदा रहम की भावना... दातापन की भावना से देख रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर एक मेरे आत्मा भाइयों को सिर्फ आत्मिक दृष्टि से देख रही हूँ... सबकी भ्रकुटी में आत्मा स्वरूप को ही देख रही हूँ... मुझ आत्मा को सबका सिर्फ फरिश्ता रूप दिखायी दे रहा है... *चाहे कोई आत्म फरिश्ता नहीं भी बना है लेकिन मेरी दृष्टि में उस आत्मा का सिर्फ फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही दिखायी दे रहा है... मुझ आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क में जो भी आत्मा आती है उस आत्मा के प्रति मेरी मनसा - वाचा - कर्मणा तीनों एक समान ही है...* मुझ आत्मा के कर्म में सदा सर्व प्रति स्नेह और सुख ही रहता है... *चाहे कोई आत्मा स्नेह दे या नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर सर्व आत्मा भाइयों को स्नेही बनाना... सुख देकर सुखी बनाना...* मैं आत्मा बाबा से प्राप्त सुख और स्नेह की भासना सबको करा रही हूँ...

 

 _ ➳  *बाबा ने कहा और मैंने माना "ना दुःख दो और ना दुःख लो"... इसलिए अब मैं सुख स्वरूप आत्मा सबको सिर्फ सुख ही दे रही हूँ...* जो भी दुखी आत्माएँ मुझ आत्मा के संपर्क में आ रही है उनके सारे दुख दूर हो रहे हैं... *दुःख देने वाली आत्मा को भी मुझ फरिश्ते से सुख की अनुभूति हो रही है... संस्कारों से परवश होकर गिरी हुई आत्मा को बहुत प्यार से, स्नेह से ऊँचा उठा रही हूँ...* बाबा ने कहा है बच्ची पहले तो चैरिटी बिगन्स होम करो... मुझ आत्मा के सारे साथी... सेवा के साथी... ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊँचा उठा रही हूँ... *जो भी आत्मा अपनी बुराई दिखाते हैं फिर भी मैं आत्मा उनकी विशेषता को ही देख रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता अपने पुरुषार्थ अनुसार नंबर वार माला 108 नम्बर की माला में पिरोये जा रही हूँ... मैं आत्मा दृढ़ निश्चय के साथ 108 की माला में आने के लिए तैयार हो रही हूँ, इसके लिए मुझ आत्मा को एक रत्ती भर भी शंका नहीं है... *चाहे मैं आत्मा 108 में लास्ट का मनका हूँ फिर भी रहूँगी तो 108 की माला में ही अपने पुरुषार्थ अनुसार... दूसरे आत्मा भाइयों को सुख देते-देते... स्नेह देते-देते... मुझ आत्मा के संस्कार भी स्नेही... सुख स्वरुप बन रहे हैं...* यह सेवा है और सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम... और मैं आत्मा अपना यही कर्तव्य निभा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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