━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 17 / 01 / 18  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *साक्षी होकर स्वयं के पार्ट को देखा ?*

 

➢➢ *सफल करने की विधि से सफलता का वरदान प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *व्यर्थ और नेगेटिव को अवॉयड कर परमात्म अवार्ड लिया ?*

 

➢➢ *किसी भी बात के विस्तार में न जाकर विस्तार को बिंदी लगाया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *जो भी आत्मायें वाणी द्वारा व प्रैक्टिकल लाईफ के प्रभाव द्वारा सम्पर्क में आई हैं, वा सम्पर्क में आने के उम्मींदवार हैं, उन आत्माओं को रुहानी शक्ति का अनुभव कराओ।* जैसे भक्त लोग स्थूल भोजन का व्रत रखते हैं, तो सर्विसएबल ज्ञानी तू आत्माओं को व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म की हलचल से परे एकाग्रता अर्थात् रुहानियत में रहने का व्रत लेना है तब आत्माओं को ज्ञान सूर्य का चमत्कार दिखा सकोगें।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं भगवान के साथ पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

   *कितने भाग्यवान हो जो भगवान के साथ पिकनिक कर रहे हो! ऐसा कब सोचा था - कि ऐसा दिन भी आयेगा जो साकार रूप में भगवान के साथ खायेंगे, खेलेंगे, हंसेंगे... यह सवप्न में भी नहीं आ सकता लेकिन इतना श्रेष्ठ भाग्य है जो साकार में अनुभव कर रहे हो।*

 

  *कितनी श्रेष्ठ तकदीर की लकीर है - जो सर्व प्राप्ति सम्पन्न हो। वैसे जब किसी को तकदीर दिखाते हैं तो कहेंगे इसके पास पुत्र है, धन है, आयु है लेकिन थोड़ी छोटी आयु है... कुछ होगा कुछ नहीं। लेकिन आपके तकदीर की लकीर कितनी लम्बी है।*

 

  21 जन्म तक सर्व प्राप्तियो के तकदीर की लकीर है। 21 जन्म गेरेंटी है और बाद में भी इतना दुख नहीं होगा। सारे कल्प का पौना हिस्सा तो सुख ही प्राप्त होता है। *इस लास्ट जन्म में भी अति दुखी की लिस्ट में नहीं हो। तो कितने श्रेष्ठ तकदीरवान हुए! इसी श्रेष्ठ तकदीर को देख सदा हर्षित रहो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  तो 5 ही रूप याद आ गये?

*अच्छा एक सेकण्ड में यह 5 ही रूपों में अपने को अनुभव कर सकते हो?* वन, टू, त्री, फोर, फाइव तो कर सकते हो! यह 5 ही स्वरूप कितने प्यारे हैं?

 

✧  *जब चाहे, जिस भी रूप में स्थित होने चाहो, सोचा और अनुभव किया। यही रूहानी मन की एक्सरसाइज है।* आजकल सभी क्या करते हैं? एक्सरसाइज करते हैं ना। जैसे आदि में भी आपकी दुनिया में (सतयुग में) नेचुरल चलते-फिरते की एक्सरसाइज थी

 

✧  खडे होकर के वन, टु, थ्री एक्सरसाइज नहीं तो *अभी अंत में भी बापदादा मन की एक्सरसाइज कराते हैं।* जैसे स्थूल एक्सरसाइज से तन भी दुरुस्त रहता है ना! तो *चलते-फिरते यह मन की एक्सरसाइज करते रहो। इसके लिए टाइम चाहिए।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  *अव्यक्त स्थिति में महान बनने के लिए एक बात जो कहते रहते हैं -वह धारण कर ली तो बहुत जल्दी और सहज अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जायेंगे। वह कौन-सी बात? अभी मेहमान हैं।* क्योंकि आप सभी को भी वाया सूक्ष्मवतन होकर घर चलना है। *हम मेहमान हैं - ऐसा समझने से महान स्थिति में स्तिथ रहेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वंडर खाना चाहिए की हमें कैसा मीठा बाप मिला है जिसे कोई भी लेने की आश नहीं"*

 

_ ➳  *प्रेम के सागर से बिछुडी मैं स्नेह की एक नन्हीं सी बूँद... स्वार्थ के इस सूखे और कंटीले रेगिस्तान में अपने वजूद को बचानें की कोशिशों में जिस राह चली, वो राहें ही मेरे लिए लिए दलदली होती चली*... प्यार के नाम पर स्वार्थ को पाया और स्वार्थ ही अपनाया... मगर अब लौट चली इन राहों से, जब निस्वार्थ प्यार का तोहफा लेकर वो मेरे प्रेम सागर मेरे दर पर आया...  *कल्प कल्प का स्नेह बरसाता वो प्रेम का सागर बैठा है मेरे सामने... और चातक के समान प्यासी मैं आत्मा उस स्नेह की बूँद-बूँद को निरन्तर पिये जा रही हूँ*...

 

  *नयनों से अविरल स्नेह बरसाते स्नेह के सागर बाप मुझ लवलीन आत्मा से बोलें:-* "स्नेह सरिता मेरी मीठी बच्ची... जन्म-जन्म की पुकार का प्रत्यक्ष फल ये परमात्म प्यार अब आपने पाया है... *ब्राह्मण जीवन के आधार परमात्म प्यार से तीनो मंजिलों को पार किया... इस प्रेम में डूबकर क्या देहभान की विस्मृति हुई है? सर्वसबंधो का रस एक बाप में पाया है? और दुनियावी आकर्षणों से छुटकारा पाया... ?*"

 

_ ➳  *निस्वार्थ प्रेम से भरपूर हो कर दैहिक सम्बन्धों के मोहपाश से मुक्त मैं आत्मा रूहानी स्नेह सागर से बोली:-* " मीठे बाबा... *आपके अनोखे स्नेह ने सब कुछ सहज ही भूलाया है... त्याग करना नही पडा... स्वतः ही त्याग  कराया है, चत्तियाँ लगी ये अन्तिम जन्म की जर्जर काया, क्या मोल रह गया इसका... बदले में में इसके जब ये चमचमाता फरिश्ता रूप पाया...* सबंध संस्कार दैवी हो रहे... जीवन में दिव्यता को पाया..."

 

  *ईश्वरीय मर्यादाओं का कंगन बाँध कर हर बंधन से छुडाने वाले मुक्तिदाता बाप मुझ आत्मा से बोले:-*" सर्व सम्बन्धों का सुख मुझ बाप से पाने वाली मेरी मीठी बच्ची... निस्वार्थ प्रेम के लिए तरसती संसार की आत्माओं को भी अब *परमात्म स्नेह का अनुभव कराओं*... सदा ही स्नेह माँगने वालो की कतार में खडे इन स्नेह के प्यासों पर परमात्म स्नेह का मीठा झरना बन बरस जाओं... *दैहिक संबन्धों में बूँद बूँद स्नेह तलाशते इन प्यासों को परमात्म संबन्धों का अनुभव कराओं...*"

 

_ ➳  *एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति से सब कुछ विस्मृत करने वाली मैं आत्मा दिलाराम बाप से बोली:-* "मीठे बाबा... आपकी स्मृति से सर्व समर्थियाँ पायी है मैने... स्नेह सागर को स्वयं में समाँकर अब उसी के रूप में ढलती जा रही हूँ... *परमात्म स्नेह का ये झरना मेरे स्वरूप से बेहद में बरस रहा है... प्रकृति भी परमात्म प्रेम से भरपूर हो गयी है... इस कल्प वृक्ष का तना भी भरपूर हुआ, पत्ता पत्ता प्रभु प्रेम से हरष रहा है...*"

 

  *अव्यक्त रूप में बेहद के सेवाधारी विश्व कल्याणी बाप मुझ आत्मा से बोलें:-* "समर्थ संकल्पों के द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाली मेरी होली हंस बच्ची!... अब ये प्यार शान्ति सुख की किरणें बेहद में फैलाओं... अपने अन्तिम स्थिति के अन्तःवाहक स्वरूप से अब सबको उडती कला का अनुभव कराओं... *नाजुक समय की नाजुकता को पहचानों और एक एक सेकेन्ड का अभ्यास बढाओं... अपने शक्ति स्वरूप से शक्तिमान का दीदार कराओं...*"

 

_ ➳  *फालो फादर कर मनसा सेवा से कमजोरों में बल भरने वाली मैं आत्मा स्नेह सागर बापदादा से  बोली:-*" मीठे बाबा... आपके निस्वार्थ प्रेम ने मँगतों से देने वालों की कतार में खडा किया है... रोम रोम आपके स्नेह में डूबा है, *जो निस्वार्थ स्नेह आपसे पाया है अब औरों पर लुटा रही हूँ... इस असीम स्नेह का कण कण मैं आप समान मनसा सेवा से चुका रही हूँ*... स्नेह के अविरल झरने अब दोनो ओर से ही झर झर बह रहे है,.. और *मैं आत्मा इस बहते स्नेह के दरिया में फिर से डूबी जा रही हूँ*...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप समान रहमदिल जरूर बनना है*"

 

_ ➳  एकांत में बैठी अपने ब्राह्मण जीवन की अमूल्य प्राप्तियों के बारे में विचार करते हुए, दया के सागर अपने प्यारे परम पिता परमात्मा का मैं दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने मुझे मेरे घर का रास्ता बता कर भटकने से बचा लिया। *जिस भगवान को पाने के लिए मैं कहाँ - कहाँ नही भटक रही थी, किस - किस से उनका पता नही पूछ रही थी, किन्तु कोई भी मुझे उनका पता नही बता पाया*। मेरे उस भगवान बाप ने स्वयं आ कर न केवल मुझे मेरा और अपना परिचय ही दिया बल्कि अपने उस घर का भी पता बता दिया जहां अथाह शांति का अखुट भण्डार है।

 

_ ➳  जिस शान्ति की तलाश में मैं भटक रही थी, अपने उस शान्ति धाम घर में जाने का रास्ता बता कर, उस गहन शान्ति का अनुभव करवाकर मेरे पिता परमात्मा ने सदा के लिए मेरी उस भटकन को समाप्त कर दिया। *दिल से अपने प्यारे भगवान का कोटि - कोटि धन्यवाद करती हुई मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करती हूँ कि जैसे दया के सागर मेरे बाबा ने मुझे भटकने से छुड़ाया है ऐसे ही मुझे भी उनके समान रहमदिल बनकर भटकने वाले अपने आत्मा भाइयो को घर का रास्ता बता कर उन्हें दर - दर की ठोकरें खाने से बचाना है*।

 

_ ➳  अपने भगवान बाप की सहयोगी बन उनके इस कार्य को सम्पन्न करना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य और कर्तव्य है। इस लक्ष्य को पाने और *इस कर्तव्य को पूरा करने का संकल्प लेकर मैं घर से निकलती हूँ और एक पार्क में पहुँचती हूँ जहाँ लोगों की बहुत भीड़ है*। यहाँ पहुँच कर अपने प्यारे पिता परमात्मा का मैं आह्वान करती हूँ और स्वयं को अपने प्यारे बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते हुए वहां उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को परमात्म सन्देश देने का कर्तव्य पूरा कर, परमात्म याद में मगन हो कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  मन बुद्धि का कनेक्शन अपने प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही उनकी शक्तियों का तेज प्रवाह मेरे ऊपर होने लगता है और मेरे चारों तरफ शक्तियों का एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित होने लगता है। *मैं देख रही हूँ मेरे चारों और शक्तियों का एक सुंदर आभामंडल निर्मित होकर दूर - दूर तक फैलता जा रहा है। शक्तियों के वायब्रेशन वहां उपस्थित सभी आत्माओं तक पहुंच कर उन्हें आनन्द से भरपूर कर रहें हैं*। सर्वशक्तियों के दिव्य कार्ब के साथ मैं आत्मा अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर उड़ रही हूँ। *मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे चारों और निर्मित दिव्य कार्ब वहाँ उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को आकर्षित कर उन्हें ऊपर खींच रहा है और सभी निराकारी आत्मायें बन मेरे साथ ऊपर अपने निजधाम, शिव पिता के पास जा रही हैं*।

 

_ ➳  मच्छरों सदृश चमकती हुई मणियों का झुंड, अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे असीम आनन्द और सुख की अनुभूति करता हुआ साकार लोक को पार कर, सूक्ष्म वतन से होता हुआ पहुँच गया अपने घर परमधाम। *सामने महाज्योति

शिव पिता परमात्मा और उनके सामने उपस्थित असंख्य चमकते हुए सितारे बहुत ही शोभायमान लग रहे हैं। अपने सभी आत्मा भाइयों को अपने घर पहुँच कर अपने पिता परमात्मा से मंगल मिलन मनाते देख मैं बहुत हर्षित हो रही हूँ*। बिंदु बाप अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में अपने सभी बिंदु बच्चों को समाकर उन पर अपने असीम स्नेह की वर्षा कर रहें हैं।

 

_ ➳  अपने पिता परमात्मा का असीम दुलार पाकर और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर, *अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ने की जन्म - जन्म की प्यास बुझाकर, तृप्त होकर अब सभी आत्माये वापिस लौट रही है और साकारी दुनिया मे आ कर फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हैं*। मैं भी वापिस अपने साकारी तन में प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्तिथ हो जाती हूँ। अपने पिता परमात्मा से मिलन मनाने का सुख सभी के चेहरे से स्पष्ट दिखाई दे रहा हैं। *सभी के चेहरों की दिव्य मुस्कराहट बयां कर रही है कि "पाना था सो पा लिया अब और बाकी क्या रहा"*।

 

_ ➳  *अपने सभी आत्मा भाइयों को घर का रास्ता बताने और उन्हें सदा के लिए भटकने से छुड़ाने के अपने कर्तव्य को पूरा कर, अब मैं वापिस शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं सफल करने की विधि से सफलता का वरदान प्राप्त करने वाली वरदानी मूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं व्यर्थ और निगेटिव को अवाइड करके परमात्मा अवार्ड प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा सभी बच्चों को बहुत सहज पुरुषार्थ की विधि सुना रहे हैं। माताओं को सहज चाहिए ना! तो बापदादा सब माताओं, बच्चों को कहते हैंलेकिन *सबसे सहज पुरुषार्थ का साधन है - 'सिर्फ चलते-फिरते सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हर एक आत्मा को दिल से शुभ भावना की दुआयें दो और दूसरों से भी दुआयें लो'। चाहे आपको कोई कुछ भी देबददुआ भी दे लेकिन आप उस बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर दो।* आप द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो। उस समय अनुभव करो जो बददुआ दे रहा है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है। *वशीभूत आत्मा के प्रति वा परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकलेगी। उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ निकलेगी।*

 

 _ ➳  सिर्फ एक ही बात याद रखो कि *हमें निरन्तर एक ही कार्य करना है - 'संकल्प द्वाराबोल द्वाराकर्मणा द्वारासम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआ देना और दुआ लेना'।* अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ वा निगेटिव संकल्प आवे भी तो यह याद रखो मेरा कर्तव्य क्या है! जैसे कहाँ आग लग रही हो तो आग बुझाने वाले होते हैं तो वह आग को देख जल डालने का अपना कार्य भूलते नहींउन्हों को याद रहता है कि हम जल डालने वाले हैंआग बुझाने वाले हैंऐसे अगर कोई भी विकार की आग वश कोई भी ऐसा कार्य करता है जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो *आप अपना कर्तव्य याद रखो कि मेरा कर्तव्य क्या है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने कादुआ देने का। शुभ भावन की भावना का सहयोग देने का।* बस एक अक्षर याद रखोमाताओं को सहज एक शब्द याद रखना है - 'दुआ देनादुआ लेना'  

 

✺   *ड्रिल :-  "सबसे सहज पुरुषार्थ की विधि का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस देह में भ्रूकुटी के मध्य विराजमान हूँ... मैं इस देह से अलग हो फरिश्ता रूप में स्थित हो गयी हूँ... *मेरा ये लाइट का शरीर एक दम हल्का है... मैं आत्मा फरिश्ता रूप में कही भी पहुँच जाती हूँ... मैं फरिश्ता आबू तीरथ की यात्रा पे निकल पड़ी हूँ... यहाँ ऊंचे - ऊंचे पहाड़ों से होते हुए, नाचते - गाते, झूमते हुए पहुँच जाती हूँ... बाबा की तपस्या भूमि पाण्डव भवन में...* सबसे पहले मैं फरिश्ता हिस्ट्री हॉल में जाता हूँ... यहाँ में *अपने सारे व्यर्थ और कमजोर संकल्प बाबा की झोली में डाल देती हूँ... बाबा मुझे दृष्टि दे रहे हैं... जिससे मेरे अशुद्ध और व्यर्थ विचार जल कर भस्म हो गए हैं...* मैं फरिश्ता सम्पूर्ण पवित्र बन गया हूँ... अब मैं शांति स्तंभ पे पहुंच कर बाप समान मास्टर शक्तिशाली बन गया हूँ... बाबा ने मुझे सर्व शक्तियों से भरपूर कर दिया है... *बाबा ने मेरा हाथ पकड़ के अपने कमरे में बिठा लिया और अपने समान निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी बना दिया...* अब मैं फरिश्ता उड़ कर पहुँच जाता हूँ... बाबा की झोपड़ी में जहाँ मैं बाबा से रूह - रिहान कर रही हूँ... *मेरे मन की जितनी भी उदासी, दुख और ग्लानि है सब निकल रही है... और आनंद और खुशी से भरपूर हो रही हूँ... मैं फरिश्ता बापदादा से सर्व शक्तियां लेकर कर सम्पूर्ण फरिश्ता बन गयी हूँ...*

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता वापस अपने स्थान पर पहुँच जाता हूँ... *मैं फरिश्ता सहज पुरुषार्थी हूँ... चलते - फिरते और कर्म करते हुए निरंतर बाबा को याद कर रहा हूँ... मुझ फरिश्ते के सम्बन्ध-सम्पर्क में जो भी आत्मा आती है उन सब को दिल से शुभ भावना की दुआयें दे रही हूँ...* जिससे मुझे स्वतः दुआयें मिल रही है... चाहे मुझ आत्मा को कोई कुछ भी दे... बददुआ भी दे... *लेकिन मैं आत्मा उस आत्मा की बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर रही हूँ...* मुझ आत्मा द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो रही है...

 

 _ ➳  जब भी मुझ आत्मा को कोई आत्मा भला बुरा बोलती है... उस समय मैं आत्मा अनुभव करती हूँ जो आत्मा बददुआ दे रही है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है... *मैं आत्मा बाबा के कहे अनुसार उस वशीभूत आत्मा के प्रति या परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकालती हूँ... उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ ही निकाल रही हूँ... उसको शुभ भावना की बौछार देकर परिवर्तित कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा सदैव सिर्फ एक ही बात याद रखती हूँ कि... *मुझे निरन्तर सिर्फ बाबा की छत्र छाया में रहना है... जिसके अंदर में आत्मा सम्पूर्ण सुरक्षित हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक ही कार्य कर रही हूँ... संकल्प द्वारा... बोल द्वारा... कर्म द्वारा... सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा... दुआ दे रही हूँ और दुआ ले रही हूँ...* अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ या निगेटिव संकल्प आता भी है तो उसे बाबा को समर्पित कर हल्का हो रही हूँ... मुझ आत्मा को हमेशा स्मृति रहती है... कि मेरा कर्तव्य है... लगी हुई आग को बुझाना... मैं आत्मा हमेशा याद रखती है कि मेरा कार्य जल डालने का है... और *मैं आत्मा अपना यही कार्य कर रही हूँ... विकारों की लगी हुई आग बुझा रही हूँ...*

 

 _ ➳  अगर कोई आत्मा विकार की आग वश होकर... कोई भी ऐसा कार्य करती है जो मुझ आत्मा को अच्छा नहीं लगता है... *तो मैं आत्मा ऐसी परवश आत्मा को शुभ भावना और दुआएँ देकर उसके विकारों की आग ठंडा कर रही हूँ...* उस आत्मा को शुभ भावना का सहयोग दे रही हूँ... जिससे वो स्वत: परिवर्तित हो रही है... *बाबा ने माताओं को सहज पुरुषार्थ करने के लिए एक शब्द याद रखने को कहा कि दुआ देना है... और दुआ लेना है... अब मैं आत्मा चलते - फिरते सिर्फ दुआ देने और लेने का ही काम कर रही हूँ... यही सहज पुरुषार्थ की विधि है...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━