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 09 / 08 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ 84 के चक्र को याद किया ?

 

➢➢ क्रिमिनल आई को सिबिल आई बनाया ?

 

➢➢ टेंशन से परेशान दुखी आत्माओं को हिम्मत दी ?

 

➢➢ कोमल न बन निर्माण बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के साथ सर्व रिश्ता हो अर्थात् सर्व सम्बन्ध हो। एक बाप दूसरा न कोई जिसके सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ होंगे उसको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे। वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा हूँ"

 

✧  सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान अनुभव करते हो? क्योंकि बाप द्वारा वर्सा मिला है। तो वर्से में कितने अविनाशी खजाने मिले हैं? जब खजाने अविनाशी हैं तो भाग्य की स्मृति भी अविनाशी चाहिए। अविनाशी का अर्थ क्या है? सदा या कभी-कभी? सदा अपने को पद्मापद्म भाग्यवान आत्मायें हैं-यह स्मृति में रखो और खजानों को सदा सामने इमर्ज रूप में रखो। कितने खजाने मिले हैं? अगर सदा खजानों को सामने रखेंगे तो नशा वा खुशी भी सदा रहेगी और कभी भी कम-ज्यादा नहीं रहेगी, बेहद की रहेगी। तो खजाने को बढ़ाओ भी और इमर्ज रूप में भी रखो। बढ़ाने का साधन क्या है? जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा।

 

✧  सदा यह सोचो कि आज के दिन खजाने को बढ़ाया या जितना था उतना ही है? खजाना जितना बढ़ेगा, तो बढ़ने की निशानी है-खुशी बढ़ेगी। तो बढ़ते जाते हैं ना। क्योंकि यह खजाने सदा खुशी को बढ़ाने वाले हैं। इसलिए कभी भी खुशी कम नहीं होनी चाहिए। कितना भी बड़ा विघ्न आ जाये लेकिन विघ्न खुशी को कम ना करे। किसी भी प्रकार का विघ्न खुशी को कम तो नहीं करता है ? बापदादा ने पहले भी कहा है कि शरीर चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। इतनी अपने आपसे दृढ़ प्रतिज्ञा की है? तो सदा यह दृढ़ संकल्प करो कि-खुशी नहीं जायेगी।

 

✧  ब्राह्मण जीवन का आधार ही है 'खुशी'। अगर खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुश रहना और दूसरों को भी खुशी बांटना। वर्तमान समय में सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, खुशी के भिखारी हैं। और आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है-देना। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये-खुशी बांटते जाओ, देते जाओ। कोई खाली नहीं जाये। इतना भरपूर हो ना! हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर के कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हैं। जिस समय जिसको कोई भी चीज की आवश्यकता होती है और आवश्यकता के समय अगर कोई वही चीज उसको देता है, तो उसके दिल से दुआयें निकलती हैं। वो दुआयें भी आपको सहज पुरुषार्थी बनने में सहयोगी बन जायेंगी। तो आपका कर्तव्य है - दुआयें देना और दुआयें लेना। इसी में बिजी रहते हो ना! सारे विश्व को इसकी आवश्यकता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना।  सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो।

 

✧  एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरुषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है। अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो।

 

✧  इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अंत में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकांत का अनुभव करेंगे। लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी मूर्त बनना अति आवश्यक है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ चारों ओर कितना भी वातावरण हो, हलचल हो लेकिन आवाज में रहते आवाज से परे स्थिति का अभ्यास अभी बहुत काल का चाहिए। शान्त वातावरण में शान्ति की स्थिति बनाना यह कोई बड़ी बात नहीं है। अशान्ति के बीच आप शान्त रहो, यह अभ्यास चाहिए। ऐसा अभ्यास जानते हो? चाहे अपनी कमजोरियों की हलचल हो, संस्कारों के व्यर्थ संकल्पों की हलचल हो। ऐसी हलचल के समय स्वयं को अचल बना सकते हो वा टाइम लग जाता है? क्योंकि टाइम लगना यह कभी भी धोखा दे सकता है। समाप्ति के समय में ज्यादा समय नहीं मिलना है। फाइनल रिजल्ट का पेपर कुछ सेकण्ड और मिनटों का ही होना है। लेकिन चारों और की हलचल के वातावरण में अचल रहने पर ही नम्बर मिलना है। अगर बहुतकाल हलचल की स्थिति से अचल बनने में समय लगने का अभ्यास होगा तो समाप्ति के समय कया रिजल्ट होगी? इसलिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास करो। मन को जहाँ और जितना समय स्थित करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित कर सको। फाइनल पेपर है बहुत ही सहज। और पहले से ही बता देते हैं कि यह पेपर आना है। लेकिन नम्बर बहुत थोड़े समय में मिलना है। स्टेज भी पावरफुल हो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- सबको बाप का परिचय देना है"
 
➳ _ ➳  इस सुहानी संगम के अमृतवेले मेरे प्राण प्यारे बाबा अलौकिक जन्मदिन की बधाई देते हुए मुझे प्यार से जगाते हैं... मैं आत्मा भी बाबा को जन्मदिन की बधाई देती हूँ... कितना अनोखा संगम है इस अनोखे संगम युग पर... बाप और बच्चे का जन्मदिन एक ही दिन... प्यारे बाबा मुझे गोदी में उठाकर वतन में लेकर जाते हैं... जहाँ चारों ओर रंग बिरंगे हीरों से सजे हुए बैलून्स हैं... इन बैलून्स से रंग बिरंगी किरणें निकलकर मुझ आत्मा की चमक और बढ़ा रही है... प्यारे बाबा मीठी रूह-रिहान करते हुए मुझे ज्ञानामृत पिलाते हैं...
 
❉   सर्व आत्माओं को बाप का परिचय देने सर्विस की भिन्न भिन्न युक्तियाँ बतलाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में फूल सा खिलने का जो सुख पाया है उस सुख को दूसरो के दामन में भी सजाओ... दुखो में तड़फ रहे पुकार रहे हताश और निराश हो गए भाई आत्माओ को सुख और शांति की राह दिखाओ... सच्चे पिता से मिलाकर उनको भी खजानो से भरपूर कर दो...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रभु प्यार की कश्ती में डूबकर अनंत अविनाशी खुशियों से भरपूर होते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपसे अथाह खुशियो को पाकर सबको इस खान का मालिक बना रही हूँ... पूरा विश्व खुशियो से गूंज उठे ऐसी परमात्म लहर फैला रही हूँ... प्यारे बाबा से हर दिल का मिलन करवा रही हूँ... और आप समान भाग्य सजा रही हूँ...”
 
❉   मीठे बाबा खिवैया बन काँटों के समुंदर से फूलों के बगीचे में ले जाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... आप समान सबके दुखो को दूर करो... आनन्द प्रेम शांति से हर मन को भरपूर करो... सबको उजले सत्य स्वरूप के भान का अहसास दिलाओ... प्यारा बाबा आ गया है यह दस्तक हर दिल पर दे आओ... सब बिछड़े बच्चों को सच्चे पिता से मिलवाओ और दुआओ का खजाना पाओ...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा फ़रिश्ता बन चारों ओर ‘मेरा बाबा आ गया’ के ज्ञान फूल बरसाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये प्यार दुलार और ज्ञान रत्नों को हर दिल को बाटने वाली दाता बन गई हूँ... सबको देह से अलग सच्ची मणि आत्मा के नशे से भर रही हूँ... प्यारे बाबा का परिचय देकर उनके दुखो से मुरझाये चेहरे को सुखो से खिला रही हूँ...”
 
❉   मेरे बाबा कलियुगी अंधकार को दूर कर अखंड ज्योति बन ज्ञान की लौ जलाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सबके जीवन को खुशियो से भर दो... विचार सागर कर नई योजनाये बनाओ... और ईश्वरीय पैगाम हर आत्मा तक पहुँचाओ... सबकी जनमो की पीड़ा को दूर कर ख़ुशी उल्लास उमंगो से जीवन सजा आओ... पिता धरा पर उतर आया है... पुकारते बच्चों को जरा यह खबर सुना आओ...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को उमंग उत्साह के पंख दे उड़ाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे पायी अनन्त खुशियो की चमक सबको दिखा रही हूँ... प्यारा बाबा खुशियो की खान ले आया है खजानो को लुटाने आया है... यह आहट हर दिल पर करती जा रही हूँ... भर लो अपनी झोलियाँ यह आवाज सबको सुना रही हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  बाप की याद के साथ - साथ खुशी में रहने के लिए 84 के चक्र को भी याद करना है

➳ _ ➳  हम सो, सो हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ का ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई भी मनुष्य आज तक बता नही सका। बड़े - बड़े वेद, ग्रंथ, और शास्त्र लिखने वालो ने तो हम सो, सो हम का अर्थ आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा बता कर, परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह सारी दुनिया को ही अज्ञान अंधकार में डाल दिया। मन ही मन यह चिंतन करती अपने प्यारे प्रभु का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर इस सत्यता का बोध कराया और हम सो, सो हम का यथार्थ अर्थ बताकर हमे हमारे 84 जन्मो के सर्वश्रेष्ठ पार्ट की स्मृति दिलाई।

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता का मन ही मन धन्यवाद करके मैं हम सो, सो हम की स्मृति में जैसे ही स्थित होती हूँ, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र स्वत: ही फिरने लगता है और मेरे 84 जन्मो की कहानी भिन्न - भिन्न स्वरूपों में मेरी आँखों के आगे चित्रित होने लगती है। हम सो, सो हम अर्थात ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र, सो फिर से ब्राह्मण बनने के बीच का पूरा चक्र अब अलग - अलग स्वरूपों में बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ।

➳ _ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बन बुद्धि में अपने 84 जन्मो का चक्र फिराते हुए, सबसे पहले मैं देख रही हूँ अपना अनादि स्वरूप जो परमधाम में एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में मुझे दिखाई दे रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सच्चे सोने के समान चमकता हुआ मेरा यह सत्य स्वरूप मन को लुभा रहा है। अपने इस स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में और अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने इस अनादि स्वरूप में अपने अंदर निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो कर अब अपने आदि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मन बुद्धि से पहुँच गई हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जहाँ अपरमअपार सुख, शांति और सम्पन्नता है। दुख का यहाँ कोई नाम निशान नही। ऐसी सुखों से भरी अति सुंदर, मन भावन दुनिया में अपने आपको अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं देख रही हूँ जो 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम है।

➳ _ ➳  सतोप्रधान प्रकृति के सुन्दर नज़ारो और स्वर्ग के सुखों का अनुभव करके अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ अपने पूज्य स्वरूप को जो पवित्रता की शक्ति से सम्पन्न है। अष्ट भुजाओं के रूप में अष्ट शक्तियों को धारण किये, अपने अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप में मैं मंदिर में विराजमान हूँ। असुरों का सँहार और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली असुर सँहारनी माँ दुर्गा के रूप में अपने भक्तो की मनोकामनाओं को मैं अपने वरदानी हस्तों से पूर्ण कर रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने परमपवित्र पूज्य स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम सौभागशाली ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। परम पिता परमात्मा की देन अपने, डायमंड तुल्य ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव, स्वयं भगवान द्वारा प्राप्त सर्व सम्बन्धो का सुख, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का सुखदाई अनुभव, आत्मा परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले परमआनन्द की अनुभूति, इन सभी प्राप्तियों का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर होकर अब अपने फ़रिश्ता स्वरूप को देखते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर रही हूँ।

➳ _ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, मैं फ़रिश्ता देह और देह की दुनिया से हर रिश्ता तोड़, इस नश्वर दुनिया को छोड़ कर अब फरिश्तो की आकारी दुनिया की ओर जा रहा हूँ। पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, उससे और ऊपर उड़ते हुए मैं फ़रिश्ता अपने अव्यक्त वतन में पहुँच गया हूँ। सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनसे मीठी दृष्टि और वरदान ले रहा हूँ। उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। उनके साथ कम्बाइंड हो कर सारे विश्व को सकाश दे रहा हूँ। ऐसे अपने फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करके, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर कर्म करते, हम सो - सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते मन बुद्धि से अपने सभी स्वरूपों को देखते और उनका भरपूर आनन्द लेते हुए एक अलौकिक रूहानी नशे से अब मैं सदा भरपूर रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं टेन्शन से परेशान दुःखी आत्माओं को हिम्मत देकर आगे बढ़ाने वाली मास्टर रहमदिल आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   निर्माणता ही महानता है। मैं कोमल बनने के बदले निर्माण बनने वाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳  व्यक्ति भी क्या हैमिट्टी है ना! मिट्टी-मिट्टी में मिल जाती है। देखने में आपको बहुत सुन्दर आता हैचाहे सूरत सेचाहे कोई विशेषता सेचाहे कोई गुण सेतो कहते हैं कि और मुझे कोई लगाव नहीं हैस्नेह नहीं है लेकिन इनका ये गुण बहुत अच्छा है। तो गुण का प्रभाव थोड़ा पड़ जाता है या कहते हैं कि इसमें सेवा की विशेषता बहुत है तो सेवा की विशेषता के कारण थोड़ा सा स्नेह हैशब्द नहीं कहेंगे लेकिन अगर विशेष किसी भी व्यक्ति के तरफ या वैभव के तरफ बार-बार संकल्प भी जाता है-ये होता तो बहुत अच्छा.... ये भी आकर्षण है। व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौनवो व्यक्ति या बाप देता है? कौन देता हैतो व्यक्ति बहुत अच्छा हैअच्छा है वो ठीक है लेकिन जब कोई भी विशेषता को देखते हैंगुणों को देखते हैं, सेवा को देखते हैं तो दाता को नहीं भूलो। वह व्यक्ति भी लेवता है, दाता नहीं है।

➳ _ ➳  बिना बाप का बने उस व्यक्ति में ये सेवा का गुण या विशेषता आ सकती हैया वह विशेषता अज्ञान से ही ले आता है? ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती। अगर अज्ञान में भी कोई विशेषता या गुण है भी लेकिन ज्ञान में आने के बाद उस गुण वा विशेषता में ज्ञान नहीं भरा तो वो विशेषता वा गुण ज्ञान मार्ग के बाद इतनी सेवा नहीं कर सकता। नेचरल गुण में भी ज्ञान भरना ही पड़ेगा। तो ज्ञान भरने वाला कौनबाप। तो किसकी देन हुईदाता कौनतो आपको लेवता अच्छा लगता है या दाता अच्छा लगता है? तो लेवता के पीछे क्यों भागते हो?

✺   ड्रिल :-  "किसी भी व्यक्ति की विशेषता, गुणों व् सेवा को देखते हुए सदैव दाता को स्मृति में रखना"

➳ _ ➳  कृष्ण के रंग में रंगी... कृष्ण के प्यार में समर्पित राधा... कृष्णमयी राधा का दिव्य... अलौकिक जन्म... पवित्र प्रेम की साम्राज्ञी राधा... स्वार्थ से परे निर्मल प्रेम की अविरत बहती धारा राधा... सतयुगी प्रिन्स... प्रिन्सेस की दिव्य छबि देख मन हर्षित हो जाता हैं... संपूर्ण पवित्र... संपूर्ण समर्पित... राधा जो सिर्फ कृष्ण को ही देखती... कृष्ण को ही जानती... कृष्ण को ही महसूस करती... कृष्ण की ही यादों में खोयी... कृष्ण की ही स्नेह से बंधी सिर्फ कृष्ण की ही विशेषता को देखती... क्या मैं राधा बन पाई हूँ... क्या मेरे मन बुद्धि में शिव बाबा के प्रति दिव्य और अलौकिक... निःस्वार्थ प्रेम के झरने बहते हैं... क्या मेरा मन देह धारियो में और उनके प्रति आकर्षणों में तो बंधा नहीं हैं... क्या मेरा मन कोई विशेष व्यक्ति प्रति... उसकी सेवाओ प्रति तो स्नेहित नहीं हो रहा हैं...

➳ _ ➳  क्या मैं सेवा में विशेषता प्रदान कराने वाले दाता को न देख सेवाधारी को तो देखती नहीं हूँ... अपने इस मनः स्थिति से उलझी मैं आत्मा... राधा बनने की कतार में कोसो दूर खड़ी... बापदादा को पुकार रही हूँ... मेरा प्यार भरा आह्वान सुनकर बापदादा अपने रूहानी स्वरुप में मुझ आत्मा के सामने उपस्थित हो जाते हैं... मुझ आत्मा को अपनी अनंत शक्तियों से आच्छादित करते जा रहे हैं... प्यार भरी दृष्टि से भिगोते जा रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा के साथ... सूक्ष्म वतन की सैर पर चल पड़ती हूँ... सूक्ष्म वतन का रूहानी नजारा... एडवांस पार्टियों का रूहानी समारोह देख रही हूँ... मेरा और बापदादा का आगमन इस रूहानी समारोह में चार चांद लगा रहा हैं...

➳ _ ➳  बापदादा से आती हुई... चमकीली श्वेत किरणें सारे सूक्ष्म वतन में फ़ैल रही हैं... फूलों की रंग बिरंगी पंखुड़ियों से हमारा स्वागत हो रहा है... और बापदादा के समीप ही मुझ आत्मा के फ़रिश्ते स्वरुप को बिठाया जाता हैं... अचरज भरी नैनों से मैं आत्मा इस रूहानी सभागृह को देखती रहती हूँ... बापदादा सभी एडवांस पार्टियों की आत्माओं की विशेषता को मुझ आत्मा को बता रहे हैं... और मैं आत्मा ऐसी महान हस्तिओं को देख गर्व से फूली नहीं समाती हूँ... उनकी सेवा के प्रति लगन... बापदादा के प्रति सच्चा सच्चा रूहानी प्यार... सच्चा सच्चा समर्पण... निःस्वार्थ स्नेह का झरना प्रत्यक्ष बहता देख रही हूँ... न अपने सेवा के प्रति अभिमान... न मेरेपन के जंज़ीरों में बंधे और न ही किसी भी देहधारी के प्रति... उसकी सेवा के प्रति स्नेह पूर्ण लगाव...

➳ _ ➳  अपने अपने अलौकिक पार्ट को बापदादा की आशीर्वादों से परिपूर्ण कर बापदादा के दिलतख्तनशींन बन गए हैं... गुणों को देखा... सेवा को देखा... लेकिन दाता को नहीं भूले... दाता के बच्चे दाता को ही देखते हैं... दाता के बच्चे दाता को छोड़ लेवता में अपनी शक्तियों को व्यर्थ नहीं करते हैं... ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती... ऐसी महान एडवांस पार्टी की सभी आत्माओं का श्रृंगार आज बापदादा अपने हाथों से कर रहे थे... बिना बाप का बने  व्यक्ति में सेवा का गुण या विशेषता आ ही नहीं सकती हैं... सभी की विशेषताओ को रूहानी सभा में बापदादा संबोधित कर रहे थे और बाबा के यह महावाक्य सभी योगी... तपस्वी आत्माओं तक... विश्व के सभी सेंटर तक... पहुँच रहे थे...

➳ _ ➳  ज्ञान भरने वाला कौनबाप... सेवा की विशेषता में चार चांद लगाने वाला कौन ? बाप... व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौनबाप...  जब सब कुछ एक बाप का ही दिया हुआ हैं तो बुद्धि सिर्फ एक बाप में ही तो लगानी हैं... सच्ची सच्ची राधाओं का रूहानी मेला देखकर मैं आत्मा अपने आप को सच्ची राधा बनाने के रास्ते पर चल पड़ी हूँ... सेवा को देखती... सेवाधारियों को नहीं... सेवा की विशेषता को देखती... व्यक्ति की विशेषता को नहीं... और मैं आत्मा राधा बनने की कतार में पहली खड़ी हूँ... संगमयुग में बापदादा से सतयुगी स्वराज्य का राजतिलक लगा रही हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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