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❍ 11 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ बाप से प्राप्त ख़ुशी का खजाना दिमाग में बिठाया ?
➢➢ बाप से प्रतिज्ञा कर कोई भी अपवित्र कर्म तो नहीं किया ?
➢➢ बीती की श्रेष्ठ विधि से बीती कर यादगार स्वरुप बनकर रहे ?
➢➢ सवा कल्याण का श्रेष्ठ प्लान बनाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ पुरानी दुनिया में पुराने अन्तिम शरीर में किसी भी प्रकार की व्याधि अपनी श्रेष्ठ स्थिति को हलचल में न लाये। स्वचिन्तन, ज्ञान-चिन्तन, शुभचिन्तक बनने का चिन्तन ही चले तब कहेंगे कर्मातीत स्थिति।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं विश्व में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ भाग्यवान हूँ"
〰✧ विश्व में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ भाग्यवान अपने को समझते हो? सारा विश्व जिस श्रेष्ठ भाग्य के लिए पुकार रहा है कि हमारा भाग्य खुल जाए... आपका भाग्य तो खुल गया। इससे बड़ी खुशी की बात और क्या होगी! भाग्यविधाता ही हमारा बाप है - ऐसा नशा है ना! जिसका नाम ही भाग्यविधाता है उसका भाग्य क्या होगा! इससे बड़ा भाग्य कोई हो सकता है? तो सदा यह खुशी रहे कि भाग्य तो हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हो गया। बाप के पास जो भी प्रापर्टी होती है, बच्चे उसके अधिकारी होते हैं। तो भाग्यविधाता के पास क्या है? भाग्य का खजाना। उस खजाने पर आपका अधिकार हो गया।
〰✧ तो सदैव 'वाह मेरा भाग्य और भाग्य-विधाता बाप'! - यही गीत गाते खुशी में उड़ते रहो। जिसका इतना श्रेष्ठ भाग्य हो गया उसको और क्या चाहिए? भाग्य में सब कुछ आ गया। भाग्यवान के पास तन-मन-धन-जन सब कुछ होता है। श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। कोई अप्राप्ति है? मकान अच्छा चाहिए, कार अच्छी चाहिए... नहीं। जिसको मन की खुशी मिल गई, उसे सर्व प्राप्तियाँ हो गई! कार तो क्या लेकिन कारून का खजाना मिल गया! कोई अप्राप्त वस्तु है ही नहीं। ऐसे भाग्यवान हो! विनाशी इच्छा क्या करेंगे। जो आज है, कल है ही नहीं - उसकी इच्छा क्या रखेंगे। इसलिए, सदा अविनाशी खजाने की खुशियों में रहो जो अब भी है और साथ में भी चलेगा। यह मकान, कार वा पैसे साथ नहीं चलेंगे लेकिन यह अविनाशी खजाना अनेक जन्म साथ रहेगा। कोई छीन नहीं सकता, कोई लूट नहीं सकता।
〰✧ स्वयं भी अमर बन गये और खजाने भी अविनाशी मिल गये! जन्म-जन्म यह श्रेष्ठ प्रालब्ध साथ रहेगी। कितना बड़ा भाग्य है! जहाँ कोई इच्छा नहीं, इच्छा मात्रम् अविद्या है - ऐसा श्रेष्ठ भाग्य भाग्यविधाता बाप द्वारा प्राप्त हो गया। मैं बेफिकर बादशाह हूँ सदा अपने को बेफिकर बादशाह अनुभव करते हो? प्रवृति का या कोई भी कार्य का फिकर तो नहीं रहता है? बेफिकर रहते हो? बेफिकर कैसे बने? सब कुछ तेरा करने से। मेरा कुछ नहीं, सब तेरा है। जब तेरा है तो फिकर किस बात का? जिन्होंने सब कुछ तेरा किया, वही बेफिकर बादशाह बनते हैं। ऐसे नहीं जो चीज मतलब की है वह मेरी है, जो चीज मतलब की नहीं वह तेरी। जीवन में हर एक बेफिकर रहना चाहता है। जहाँ फिकर नहीं, वहाँ सदा खुशी होगी। तो तेरा कहने से, बेफिकर बनने से खुशी के खजाने भरपूर हो जाते हैं। बादशाह के पास खजाना भरपूर होता है। तो आप बेफिकर बादशाहों के पास अनगिनत, अखुट, अविनाशी खजाने हैं जो सतयुग में नहीं होंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ इस पुरानी दुनिया की राज्य सभा का हालचाल तो अच्छी तरह से जानते हो - न लॉ है, न ऑर्डर है। लेकिन आपकी राज्य दरबार लाँ फुल भी है और सदा हाँ जी, जी हाजिर - इस ऑर्डर में चलती है।
〰✧ जितना राज्य अधिकारी शक्तिशाली है उतना राज्य सहयोगी कर्मचारी भी स्वत: भी सदा इशारे से चलते, राज्य अधिकारी ने ऑर्डर दिया कि यह नहीं सुनना है और यह नहीं करना है, नहीं बोलना है, तो सेकण्ड में इशारे प्रमाण कार्य करें। ऐसे नहीं कि आपने आर्डर
किया - नहीं देखो और वह देख करके फिर माफी मांगे कि मेरी गलती हो गई।
〰✧ करने के बाद सोचे तो उसको समझदार साथी कहेंगे? मन को ऑर्डर दिया कि व्यर्थ नहीं सोचो, सेकण्ड में फुलस्टॉप, दो सेकण्ड भी नहीं लगने चाहिए। इसको कहा जाता है - युक्ति-युक्त राज्य दरबार। ऐसे राज्य अधिकारी बने हो? रोज राज्य दरबार लगाते हो या जब याद आता है तब ऑर्डर देते हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ अनादि, आदि और अन्त - तीनों ही काल स्मृति स्वरूप हैं। विस्मृति तो बीच में आई। तो आदि, अनादि स्वरूप सहज होना चाइये या मध्य का स्वरूप? सोचते हो कि हाँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन स्मृति स्वरूप हो चलना, बोलना, देखना उसमें अन्तर पड़ जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाबा के साथ रह बेहद की अपार खुशी का अनुभव करना"
➳ _ ➳ संगमयुग की सुहानी घड़ी में... व्यक्त से परे... अव्यक्त इशारों
को मैं आत्मा अपने मे धारण कर तीव्र पुरुषार्थ की ऊँची उड़ान भर... बिंदु रूप
में परिवर्तन होकर पहुँच जाती हूँ... परमधाम... वो धाम जो मेरा है... वो धाम
जो मेरा घर है... वो धाम जो मेरे बाबा का है... मुझ आत्मा का घर जहाँ में रहती
हूँ... मेरे प्यारे बाबा के साथ... परमधाम की सुनहरी किरणों में मुझे सिर्फ
मेरे बाबा दिखाई दे रहे है... मैं आत्मा... शांति के सागर में तैरती अपनी नैया
को पार होता देख रही हूँ... मैं और मेरा बाबा... और कोई संकल्प नही... कोई
एहसास नहीं...
❉ पवित्र प्यार के एहसास से भरपूर मुझ आत्मा को देख प्यारे बाबा कहते
हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... मुद्दत से प्रतीक्षा कर रहा हूँ तुम्हारी...
अब आ ही गई... क्या मुझे भूली तो नहीं... अपने बाबा को प्यार से याद तो करती
हो न... बापदादा की छत्रछाया में सदा रहने वाली... मेरी गुल गुल बच्ची... आओ
मैं तुम्हे आप समान बना दूँ... प्यार से झोली भर दूँ... तुम्हारी नजर तो उतार
लूँ... और बाबा से आती हुई रंगबिरंगी किरणों को मुझ में समाता हुआ देख रही
हूँ... अपने ज्योति को उसकी ज्योति को मिलता देख रही हूँ..."
➳ _ ➳ प्यार भरे किरणों से भरपूर होकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :- "मेरे
प्यारे बाबा... तुम्हें तो मैं जन्मों से ढूंढ रही हूँ... कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा...
अब मिले हों... जी भर के देख लूँ... महसूस कर लूं... मेरे बाबा... तेरे ही
प्यार में खोई हूँ... तेरे ही प्यार में डूबी हुई हूँ... "बाबा बाबा" कहती
झूमती नाचती रहती हूँ... खुशी के नगाड़े बजाती रहती हूँ... बाबा बाबा कहती सब को
खुशियों के झूलो में झुलाती हूँ और खुद भी झूलती रहती हूँ..."
❉ प्यार के फूलों से मेरे बगीचे को संवारते हुए मेरे मीठे बाबा कहते
हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... प्यार से प्यार को निभाने वाली... पवित्र
सुखों की उत्तराधिकारी हो... स्वयं को और औरो को भी सुगन्धित फूलों से भरपूर
करने वाली मास्टर बागवान हो... "मेरा बाबा" शब्द के जादुई तरंगों
से सबको प्यार में तरबतर करने वाली... मेरी प्यारी फूल बच्ची हो... मेरी
प्रत्यक्षता करवाने वाली... संगमरमर की मूर्त हो..."
➳ _ ➳ बाबा के वचनों से मंत्रमुग्ध मैं आत्मा कहती हूँ :- "मेरे प्यारे
बाबा... आपने मुझ आत्मा को पतित से पावन बनाया है... स्वर्ग के सुखों की
भागीदार बनाया है... प्यार से इस मुरझे हुए पौधे को खुशबूदार... महकदार पौधा
बना दिया है... मैं साधारण आत्मा दिव्य आत्मा बन गई हूँ... सब कुछ पाया... जग
जीता... जो तुम्हे पाया..."
❉ अपने नयनो पर बिठाकर मुझ आत्मा को संवारते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते
हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... मुझ रूह की ताशिर हो तुम... मुझ में तुम
और तुझ में मैं नजर आये वो पवित्र दृष्टि हो तुम... अपने चेहरे और चलन से मुझ
को प्रत्यक्ष करने वाली... दीपशिखा हो तुम... खुशबूदार सुगंधित पुष्पों से भरा
बगीचा हो तुम..."
➳ _ ➳ बाबा के प्यार की तरंगों में समाती मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे
मीठे बाबा... मेरे प्राण प्यारे बाबा... कोटि बार धन्यवाद... पलकों पे बिठाने
वाले... मेरे प्यारे बाबा.... तुझे पाने की खुशी में... रोम रोम पुलकित हो उठा
है... इस संगमयुग में मैं ब्राह्मण आत्मा... नखशिख ... सुखों के झूलो में झूलती
जा रही हूँ और औरो को भी झुलाती जा रही हूँ.... शुक्रिया मेरे मीठे बाबा... शुक्रिया
जो प्यार से नवाजा..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप से प्रतिज्ञा करने के बाद कोई अपवित्र कर्म नही करना"
➳ _ ➳ बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है ये बात स्मृति में लाते ही मन मे
विचार चलते हैं कि जब अंत समय होगा, बाबा का धर्मराज का रूप होगा और सभी
आत्माओं के कर्मो का हिसाब किताब चुकतू होगा उस समय का दृश्य कैसा होगा! इन्ही
विचारों के साथ एक - एक करके आंखों के सामने कुछ दृश्य उभरने लगते हैं। मैं देख
रही हूँ सूक्ष्म वतन में ट्रिब्यूनल लगी है। धर्मराज के रूप में बाबा सामने
बैठे हैं। एक - एक करके बाबा के सामने सभी ब्राह्मण आत्मायें आ रही है और बाबा
उनके द्वारा किये हुए सभी अच्छे और बुरे कर्मो का पूरा लेखा - जोखा उन्हें एक
बहुत बड़ी स्क्रीन पर दिखा रहें हैं।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ जो ब्राह्मण आत्मायें बाबा की श्रीमत को नजरअंदाज
करके अपने कीमती समय को गफलत में बर्बाद करती रही थी वो अपराधी की तरह बाबा के
सामने अपनी आंखें नीची किये खड़ी हैं। उनके अपराध के अनुसार धर्मराज के द्वारा
उन्हें कड़ी सजाये सुनाई जा रही हैं। इतनी कड़ी सजायें सुनकर वो आत्मायें डर से
कांप रही हैं और अपने किये हुए विकर्मों के लिए माफी मांग रही हैं। बहुत ही
दयनीय स्थिति है उनकी। किंतु बाप के रूप में बाबा का वो लाड, प्यार और दुलार
अब धर्मराज की सजाओं का रूप ले चुका है। जिसके लिए कोई रियायत नही है।
➳ _ ➳ इस भयानक दृश्य को देख मैं मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ
कि बाबा की याद में रह मुझे जल्दी ही मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मों के बोझ को
भस्म करना है और साथ ही साथ अब ऐसा कोई भी विकर्म नही करना जिससे मुझ आत्मा पर
विकर्मों का कोई और बोझ चढ़े और मुझे बाबा का धर्मराज का रूप देखना पड़े। यह
प्रतिज्ञा करके मैं जैसे ही शिव बाबा को याद करती हूँ मेरे दिलाराम बाबा के
स्नेह की डोर मुझे सहज ही अपनी ओर खींचने लगती है। बाबा की लाइट माइट पड़ते ही
मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता सूक्ष्म लोक में
प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्म वतन के दिव्य अलौकिक नज़ारे को मैं फ़रिशता मन बुद्धि
रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रहा हूँ। बापदादा की दिव्य किरणे इस सूक्ष्म वतन
में चारों ओर फैली हुई हैं। मैं बाबा के पास पहुंच कर बाबा के सामने खड़ा हो जाता
हूँ। बाबा मुझे दृष्टि दे रहें हैं। बाबा के नयनो से अथाह स्नेह की धाराएं बह
रही हैं। बाबा के वरदानी हस्तों से गुण और शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर
मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं। अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रख कर मुझे
विकर्माजीत भव का वरदान दे रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से विकर्माजीत भव का वरदान और दृष्टि ले कर अब मैं अपने
निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ और 63 जन्मो के विकर्मों को भस्म करने के
लिए परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। अपने बीज रुप परमपिता परमात्मा शिव बाबा के
सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा जा कर विराजमान हो जाती है। बाबा से आ रही
सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे अब निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं जो धीरे - धीरे
ज्वलन्त स्वरूप धारण करती जा रही है। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझ
आत्मा के विकारों रूपी किचड़े को अपनी जवलंत शक्तियों से भस्म कर रहे हैं।
➳ _ ➳ आंतरिक रूप से मैं शुद्ध बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ आत्मा
में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति
कर रही हूं। शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आकर अपने साकारी तन में
प्रवेश कर रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर हर कर्म करते अब मुझे
सदा यह स्मृति रहती है कि बाबा का राइट हैण्ड धर्मराज है। और धर्मराज की सजायें
मुझे ना खानी पड़े इसके लिए बाबा की याद में रह, हर कर्म करने का तीव्र
पुरुषार्थ अब मैं आत्मा निरन्तर कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं बीती को श्रेष्ठ विधि से बीती कर यादगार स्वरूप बनाने वाली पास विथ ऑनर आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं स्व कल्याण का श्रेष्ठ प्लान बनाकर विश्व सेवा में सकाश प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जब काम मिलता है तो लिखने में भी मार्क्स जमा होती हैं। अगर नहीं लिखा तो मार्क्स एकस्ट्रा कम हो गई, नुकसान कर दिया। जो भी डायरेक्शन मिलते हैं, डायरेक्ट बाप द्वारा मिलते हैं, चाहे निमित्त आत्मायें दादियों द्वारा मिलते हैं, उसको रिगार्ड देना अति आवश्यक है। इसमें न बहाना देना, न अलबेलापन करना। आगे के लिए बापदादा बता देता है कि मार्क्स जमा नहीं हुई। इसलिए इसको महत्व देना अर्थात् महान बनना। हल्की बात नहीं करो। बच्चे बड़े चतुर हैं, कहेंगे बापदादा तो जानते ही हैं ना। जानते तो हैं लेकिन कहा क्यों? जानते हुए कहा ना! तो ऐसे छुड़ाना नहीं चाहिए, बहुत ऐसे कार्य हैं, छोटे-छोटे जिसको हाँ जी करने में एक्स्ट्रा मार्क्स जमा होती हैं।
➳ _ ➳ कई ऐसे स्टूडेन्टस हैं जो किसी भी पास्ट के संस्कार के वश बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में बढ़ते हैं लेकिन कोई न कोई सुनहरी धागा, बहुत महीन धागा उनको आगे बढ़ने नहीं देता। वह समझते भी हैं कि यह महीन धागा रहा हुआ है, लेकिन.... लेकिन ही कहेंगे। लेकिन ऐसे भी पुरुषार्थी हैं जो छोटी-छोटी कामन बातों में हाँ जी करने से मार्क्स ले लेते हैं। और हो सकता है कि वह थोड़ी-थोड़ी मार्क्स इकट्ठी होते हुए वह आगे भी निकल सकते हैं, ऐसे भी बापदादा के पास एक्जैम्पुल के रूप में हैं इसलिए सहज तरीका है छोटी-छोटी हाँ जी करने में मार्क्स जमा करते जाओ। कट नहीं करो, जमा करो।
✺ ड्रिल :- "छोटे-छोटे कार्यों में 'हाँ जी' कर मार्क्स जमा करना"
➳ _ ➳ ठंडी-ठंडी हवाओं में, धुन्ध भरे मौसम में नीलाम्बर के नीचे हरी-हरी घास पर विचरण करती मैं दिव्य प्रकाशमय आत्मा... अपने सुप्रीम टीचर की दी शिक्षाओं पर विचार करती, मैं आत्मा एक मगन अवस्था में स्थित हूँ... मानों मैं आत्मा ज्ञान सागर में डूबती, ज्ञान के रहस्यों में गोते खा रही हूँ... और समा गयी हूँ... ज्ञान के गहरे रहस्यों के तल में... एक-एक ज्ञान रत्न रूपी मोती इकट्ठा करती मैं दिव्य आत्मा... एकाएक मुझ आत्मा के सामने एक दृश्य उभरता हैं... मैं आत्मा देख रही हूँ... एक बहुत उबड़-खाबड रास्ता नजर आ रहा हैं... जिस पर कुछ यात्री अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ... इस राह पर बीच-बीच में कुछ पत्थर पड़े हुए है... जिन पर लिखा है... "हाँ जी" मैं प्रकाश पुंज आत्मा इस दृश्य को बड़े ध्यान से देख रही हूँ... कुछ आत्माएँ जिन पत्थर पर हाँ जी लिखा है... उसे रास्ते से अपनी जिम्मेदारी समझते रास्ते से हटाने में लग जाती हैं... और कुछ अन्य आत्माएं उसे देख कर अनदेखा कर उस से आगे बढ़ जाती है... अचानक एक अजब सीन सामने आता है... जो यात्री हाँ जी वाले पत्थर को हटाने में लगे थे... अचानक वो पत्थर बदलकर एक लिफ्ट बन जाती हैं... और उस लिफ्ट में वो यात्री बैठ बाकि यात्रियों से 4 कदम आगे बिना किसी मेहनत के, बिना थके एक नये उमंग के साथ पहुँच जाते है...
➳ _ ➳ और इस अजब दृश्य को देख मैं आत्मा अपने अनर्तमन की गहराइयों से धीरे-धीरे वापिस आती हूँ... और अब मैं ज्योति स्वरूप आत्मा अनुभव कर रही हूँ... स्वयं को पांच तत्वों से बने देह में... और मैं आत्मा ज्ञान की कुछ नयी बातों से, उनके रहस्यों की स्पष्टता को पाकर सुप्रीम टीचर की शिक्षाओं को धारणा करने में अपने को और परिपक्व अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा मम्मा और ब्रह्मा बाबा उनकी भृकुटि में शिव पिता को सामने पाती हूँ... लाइट की चमकीली ड्रेस में मम्मा दिव्य आलोक से भरपूर धीरे-धीरे मुझ आत्मा की तरफ आ रही है... और मम्मा अपना लाइट का हाथ जैसे ही मेरे सिर पर रखती है... मैं आत्मा दैहिक भान से परे हो जाती हूँ... इस देह और देह की दुनिया की सुध-बुध भूल जाती हूँ... देह से उपराम... अशरीरी हो जाती हूँ...
➳ _ ➳ मेरे चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश है... कभी सामने बीज रूप शिव बाबा निराकार स्वरूप में दिख रहे है... कभी ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमकते हुए दिखाई दे रही है... लग रहा है जैसे लाइट की बारिश मुझ पर हो रही हो... और मैं आत्मा इस लाइट में भीग कर इसमें समा गई हूँ... अतिइन्द्रिय सुख के झूले में मैं आत्मा स्वयं को अनुभव कर रही हूँ सर्व शक्तियों और सर्व गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ... तभी मेरे सामने मम्मा के जीवन के वृतांत आने लगते है... जिसमें मैं आत्मा स्पष्ट देख रही हूँ... कैसे मम्मा ने हर छोटी-छोटी बात में भी हाँ जी का पुरूषार्थ किया और कैसे आगे बढ़ी... और अचानक सभी दृश्य मुझ आत्मा के सामने से गायब हो जाते है... और इन सभी दृश्यों को देख एक नयी ज्ञान उर्जा का संचार मैं दिव्य आत्मा स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... पहले से ज्यादा दिव्यता और मुझ आत्मा का प्रकाश बढ़ गया है... सर्व शक्तियों से सम्पन्न मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब देख रही स्वयं को इस सृष्टि रंग मंच पर पार्ट प्ले करते हुए... अब मैं आत्मा इस धरा पर अपना पार्ट पले कर रही हूँ... मेरे सामने अंतर्मन की गहराइयों में जाकर जो दृश्य मैंने देखा, और मम्मा के जीवन के वृत्तांत मेरे सामने आ रहे है... मुझ आत्मा को इन सब से प्रेरणा मिल रही है... मैं दिव्य आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को मैं आत्मा मम्मा समान हर कार्य में, सभी छोटे-छोटे कार्य में भी निश्चय बुद्धि होकर सदा हाँ जी कर आगे बढ़ रही हूँ... मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हाँ जी रुपी लिफ्ट द्वारा तेजी से पुरूषार्थ में आगे बढने का अनुभव कर रही हूँ... हाँ जी रूपी लिफ्ट को यूज़ कर मैं आत्मा एक नयी आत्मिक उर्जा, और दुआओं की गिफ्ट से स्वयं को भरपूर, हल्का और स्वयं में महानता का अनुभव कर रही हूँ... मैं सन्तुष्ट महान आत्मा एक नये आत्मिक बल से, नये उंमग के साथ तीव्र गति से आगे बढ़ रही हूँ... बाबा द्वारा जो निमित्त आत्मा द्वारा जो डायरेक्शन मिल रहे है उसमें मेरा हांजी का पाठ पक्का हो गया है... इनको महत्व देते हुए, निमित्त को रिगार्ड देते हुए मैं स्वयं को एक महान आत्मा समझ रही हूं... ना कोई सूक्ष्म महीन बंधन है ना कोई पुराने संस्कारो की खिंचावट... मैं निश्चिन्तता से सरलता से उमंग-उत्साह से हांजी करते हए अपने मार्क्स जमा करते हुए भाग्य बनाती जा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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