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 29 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ बुधी कहीं भी लटकाई तो नहीं ?

 

➢➢ शरीर से लगाव तो नहीं रखा ?

 

➢➢ कर्मबंधन को सेवा के बंधन में परिवर्तित किया ?

 

➢➢ स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति को पार किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  याद को शक्तिशाली बनाने के लिए विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार भूल न जाये।खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो। साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। साधना इसको नहीं कहते कि सिर्फ योग में बैठ गये लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन, बुद्धि एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए। ऐसी एकाग्रता ही ज्वाला को प्रज्जवलित करेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बापदादा के समीप आत्मा हूँ"

 

   बापदादा के समीप आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? जो समीप आत्माएं होती हैं तो समीप की निशानी क्या होती है? समीपता की निशानी है - समान। तो सदा हर कर्म में अपने को बाप समान अनुभव करते हो? ब्रह्मा बाप का श्रेष्ठ संकल्प क्या था? जो बाप कहते हैं, वह करना। तो आपका भी संकल्प ऐसा है? हर संकल्प में दृढ़ता है? या किसमे है, किसमें नहीं है? क्योंकि जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, तो दृढ़ता सफलता का आधार बना। ऐसे फालो फादर करो उनके बोल की विशेषता क्या थी? तो अपने में चेक करो - वह विशेषताएं हमारे में हैं? ऐसे ही कर्म में विशेषता क्या रही? कर्म और योग साथ-साथ रहा? ऐसे कर्म में भी चेक करो? फिर देखो - संकल्प, बोल और कर्म में कितना समीप हैं? जितना समीप होंगे उतना ही समान होंगे।

 

  जैसे ब्रह्मा बाप ने एक बाप, दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। ऐसे बाप समान बनने वालों को भी इसी कर्म को फालो करना है। तब कहेंगे बाप समान। इतनी हिम्मत है? कभी दिलशिकस्त तो नहीं बनते? पास्ट इज पास्ट, फ्यूचर नहीं करना। फ्यूचर के लिए यही ब्रह्मा बाप के समान दृढ़ संकल्प करना कि कभी दिलशिकस्त नहीं बनना है, सदा दिलखुश रहना है। फ्यूचर के लिए इतनी हिम्मत है ना? माया हिलाये तो भी नहीं हिलना।

 

  अगर मायाजीत बनने का दृढ़ संकल्प होगा तो माया कुछ नहीं करेगी। सदैव यह स्मृति रखो कि कितने भी बड़े रूप से माया आये लेकिन नथिंग न्यु। कितने बार विजयी बने हो? तो फिर से बनना बड़ी बात नहीं होगी। अगर माया हिमालय जितने बड़े रूप से आये तो क्या करेंगे? उस समय रास्ता नहीं निकालना, उड़ जाना। सेकेण्ड में उड़ती कला वाले के लिए पहाड़ भी रुई बन जायेगी। तो कितना भी बड़ा पहाड़ का रूप हो, लेकिन डरना नहीं, घबराना नहीं। यह कागज का शेर है, कागज का पहाड़ है। ऐसे पावरफुल आत्माएं ब्रह्मा बाप को फालो कर समीप और समान बन जायेंगी।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  नाम हो मास्टर सर्वशक्तिवान और स्वयं को मालिक समझ कर नहीं चल सके तो क्या मास्टर सर्वशक्तिवान हुए? हम मास्टर सर्वशक्तिवान है - यह तो पक्का निश्चय है ना, कि यह निश्चय भी अभी हो रहा है?

 

✧  निश्चय में कभी परसेन्टेज होती है क्या? बाप के बच्चे तो है ही ना? ऐसे थोडे ही 90 परसेन्ट है और 10 परसेन्ट नहीं है। ऐसा बच्चा कभी देखा है? निश्चय अर्थात 100 परसेन्ट निश्चय।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बाप के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ होगा। सत के संग का रंग है रूहानियत। तो समीप रतन सदा रूहानी स्थिति में स्थित होंगे। शरीर में रहते हुए न्यारे, रूहानियत में स्थित रहेंगे। शरीर को देखते हुए भी न देखें और आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है। वह प्रत्यक्ष दिखाई दे यही कमाल है। रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी बना सकते, क्योंकि बाप रूह है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- किसी के नाम रूप में फंसने की बीमारी से मुक्त बनना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मेरी एक पुकार सुन तुरन्त आ जाते हैं और मुझे अपने साथ ले चलते हैं वतन में... और ज्ञान की बरसात करते हैं... ज्ञान सागर बाबा मुझे ज्ञान की नौका में बिठाकर विषय सागर को पार करा रहे हैं... मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार रूहानी खिवैया के हाथों में सौम्पकर निश्चिन्त होकर बाबा की यादों में खो जाती हूँ...

❉ काँटों के जंगल से निकाल फूलों की बगिया में मुस्कुराता हुआ फूल बनाकर प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... इस पुरानी खत्म होने के कगार पर खड़ी दुनिया से रगो को बाहर निकालो... सारा ममत्व मिटा दो... देह और देह के नातो से निकल आत्मा के भान में आ जाओ... सिर्फ मीठे बाबा की यादो में खो जाओ... यही यादे सदा का साथ निभाएगी और सुखो की दुनिया में ले जाएँगी...”

➳ _ ➳ सर्व संबंधों का रस एक बाबा से लेते हुए एक बाबा को ही अपनी दुनिया बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस विकारी दुनिया से मन और बुद्धि को निकाल कर निर्मोही हो गई हूँ... आपकी मीठी यादो में खोकर इस विनाशी दुनिया को भूल गई हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है...”

❉ यादों की महफिल सजाकर अमृत पान कराकर अमर बनाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब देह व देह के भान में लिपटे नातो से उपराम बनो... और आत्मिक सुंदरता से सज जाओ... इस विनाशी संसार में दिल न फंसाओ... वक्त से पहले देवताई गुणी शक्तियो से सज जाओ... मीठे बाबा की याद को हर साँस में पिरो दो... वही सच्चा सहारा है... और स्वर्ग में ले जाने वाला है...”

➳ _ ➳ सत्य ज्ञान से दमकती अपने निज स्वरुप में मणि समान चमकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप और सतयुगी सुखो को जानकर झूठ के जंजालों से परे होती जा रही हूँ... समय और सांसो को मीठे बाबा पर ही लुटा रही हूँ... और विनाशी संसार के मोहपाश से मुक्त हो रही हूँ...”

❉ अंतर्मन में ज्ञान की ज्योत जगाकर अविनाशी सुखों के राह को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह शरीर के रिश्ते और ही गहरे गिराएंगे और गहरे दुखो के दलदल में उलझायेंगे... इनसे मन बुद्धि को बाहर निकाल ईश्वरीय यादो में स्वयं को पावन बनाओ... और ज्ञान और योग से सजकर देवताई स्वराज्य पा जाओ... इस विकारी विनाशी दुनिया से दिल न लगाओ...”

➳ _ ➳ इस देह की दुनिया से न्यारी होकर प्रभु पिता के दिल में सदा के लिए सजकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार में मै आत्मा मोह से मुक्त होती जा रही हूँ... इन देह के खोखले नातो के प्रभाव से आजाद होती जा रही हूँ... और सच्ची मीठी यादो में झूम रही हूँ... और सतयुगी सुनहरे संसार में खोती जा रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- सच्चा प्यार एक बाप में रखना है, बाकी सबसे अनासक्त, नाम मात्र प्यार हो"

➳ _ ➳ साकारी देह में भृकुटि के भव्य भाल पर विराजमान एक चैतन्य शक्ति मैं आत्मा दुनिया की भीड़ से दूर एक पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के सौंदर्य का आनन्द ले रही हूँ और अपने अविनाशी प्रीतम को याद कर रही हूँ। मेरी याद मेरे शिव प्रीतम तक पहुँच रही है जिसका स्पष्ट अनुभव मेरे अविनाशी प्रीतम परमधाम से अपनी सर्वशक्तियों की किरणे मुझ पर फैलाते हुए मुझे करवा रहें हैं। मेरे शिव पिया के प्रेम का अविनाशी रंग मुझ पर चढ़ रहा है और अनन्त दिव्य प्रकाश की किरणों के रूप में मुझ आत्मा से निकल कर चारों ओर फ़ैल रहा है।

➳ _ ➳ अपने अविनाशी प्रीतम के अविनाशी प्रेम में डूबी मैं आत्मा, प्रकृति के मनोहर दृश्य और शांत वातावरण में गहन शांति का असीम आनन्द ले रही हूँ। अपने शिव पिया के प्रेम में मग्न इस प्रेममयी अवस्था मे, मुझ आत्मा से निकल रही दिव्य किरणे मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रही हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरा शरीर दिव्य लाइट का बन गया है और ऊपर की ओर उड़ने लगा है। लाइट की दिव्य आकारी देह धारण कर मैं आत्मा अब दूर बहुत दूर उड़ती जा रही हूँ। पांचो तत्वों से पार, आकाश से भी परे मैं जा रही हूँ उस अव्यक्त वतन में जहां मैं अपने अविनाशी प्रीतम से अव्यक्त मिलन मना सकती हूँ।

➳ _ ➳ लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये अपने अव्यक्त रूप में स्थित अब मैं पहुँच गई फरिश्तो की अव्यक्त दुनिया में। देख रही हूँ अपने बिल्कुल सामने अपने शिव पिया के भाग्यशाली रथ ब्रह्मा बाबा को और उनकी भृकुटि में सूर्य के समान चमक रहे अपने अविनाशी शिव साजन को। जिनसे निकल रही दिव्य किरणे पूरे वतन में चारों ओर फैली हुई हैं। देह और देह की दुनिया से अलग, सफेद प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है।

➳ _ ➳ इस अति न्यारी और प्यारी दुनिया में अपने शिव पिया से मिलने का अनुभव भी अति न्यारा और प्यारा है। अपनी मीठी दृष्टि से वो मुझे निहाल कर रहें हैं। मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर अपने समस्त गुण और शक्तियां मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं। नज़रों ही नजरों में मुझ से मीठी - मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। अपने मन के भावों को संकल्पो द्वारा मैं उनके समक्ष रख रही हूँ। उन्हें बता रही हूँ कि उन्हें पा कर मेरा यह जीवन धन्य हो गया है, कौड़ी से हीरे तुल्य बन गया है। जीवन में ऐसे प्रेम की अनुभूति मैंने आज तक नही की थी जो मैं अब कर रही हूँ। अब मेरा यह जीवन केवल मेरे शिव प्रीतम के लिए है।

➳ _ ➳ मेरे प्रेम के उदगार को मेरे शिव पिया समझ रहें है और मुस्कराते हुए अपने प्रेम की शीतल किरणे मेरे ऊपर बरसा कर अपना निश्छल प्रेम और स्नेह प्रदर्शित कर रहें हैं। अपने अविनाशी प्रीतम से अव्यक्त मिलन मना कर अब मैं उनसे निराकारी स्वरूप में मिलन मनाने के लिए अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरुप को धारण कर निराकारी दुनिया परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ। बीज रूप स्थिति में मैं आत्मा अपने बीज रुप शिव पिया के साथ अब मंगल मिलन मना रही हूँ। उनसे निकलती अनन्त सर्वशक्तियों की किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं और मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है।

➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अविनाशी साजन ने सर्वशक्तियों को समाने की ताकत मुझे दे दी हो। अपने शिव पिया की सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर मैं शक्तिशाली लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हैं। अपने प्रीतम के साथ अविनाशी मिलन मना कर और स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करके मैं आत्मा लौट रही हूँ अपने साकारी तन में। अपने अविनाशी प्रीतम से सच्चा लव रखते हुए अब मैं हर समय केवल उनकी ही यादों में खोई रहती हूँ और एक ही गीत सदा गुनगुनाती रहती हूँ। "स्नेह प्यार की तुझ से बाबा बाँधी है जीवन डोर, दिल मेरा लगा ही रहता अब तो तेरी ओर"

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं कर्मबन्धन को सेवा के बन्धन में परिवर्तन कर सर्व से न्यारी और परमात्म प्यारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं स्वस्थिति द्वारा हर परिस्थिति को पार करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ त्याग का अर्थ है किसी भी चीज को वा बात को छोड़ दिया, अपनेपन से किनारा कर लिया, अपना अधिकार समाप्त हुआ। जिसके प्रति त्याग किया वह वस्तु उसकी हो गई। जिस बात का त्याग किया उसका फिर संकल्प भी नहीं कर सकते - क्योंकि त्याग की हुई बात, संकल्प द्वारा प्रतिज्ञा की हुई बात फिर से वापिस नहीं ले सकते हो। जैसे हद के संन्यासी अपने घर का,सम्बन्ध का त्याग करके जाते हैं और अगर फिर वापिस आ जाएँ तो उसको क्या कहा जायेगा! नियम प्रमाण वापिस नहीं आ सकते। ऐसे आप ब्राह्मण बेहद के संन्यासी वा त्यागी हो। आप त्याग मूर्तियों ने अपने इस पुराने घर अर्थात् पुराने शरीर, पुराने देह का भान त्याग किया, संकल्प किया कि बुद्धि द्वारा फिर से कब इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होंगे। संकल्प द्वारा भी फिर से वापिस नहीं आयेंगे। पहला-पहला यह त्याग किया। इसलिए तो कहते हो - देह सहित देह के सम्बन्ध का त्याग। देह के भान का त्याग। तो त्याग किए हुए पुराने घर में फिर से वापिस तो नहीं आते जाते हो! वायदा क्या किया है? तन भी तेरा कहा वा सिर्फ मन तेरा कहा?पहला शब्द ‘‘तन'' आता है। जैसे तन-मन-धन कहते हो,देह और देह के सम्बन्ध कहते हो। तो पहला त्याग क्या हुआ? इस पुराने देह के भान से विस्मृति अर्थात् किनारा। यह पहला कदम है त्याग का।

✺ "ड्रिल :- देह सहित देह के सर्व संबंधो का त्याग करना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा सेंटर में शांत स्वरूप स्थिति में बैठकर परम कल्याणकारी, परम सद्गुरु परमात्मा शिव के अनमोल महावाक्यों को सुन रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को सुनते-सुनते देह से न्यारी होती जा रही हूँ... विदेही बन मैं आत्मा आनंदानुभूति से सराबोर हो रही हूँ... मैं आत्मा स्थूल देह को छोड़ प्रकाश के शरीर को धारण कर उड़ चलती हूँ सफेद प्रकाश की दुनिया में...

➳ _ ➳ अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने बैठ जाती हूँ... बापदादा के प्रकाशमय काया से दिव्य प्रकाश निकलकर मुझ आत्मा के प्रकाश के शरीर को और भी चमकीला बना रहा है... मैं आत्मा देहभान से मुक्त हो रही हूँ... पुराने देह के भान से विस्मृत होकर एक सुन्दर फरिश्ते स्वरुप में चमक रही हूँ...

➳ _ ➳ ये देह नश्वर है... देह के सब सम्बन्ध नश्वर हैं... देह के पुराने स्वभाव-संस्कार ओझल हो रहे हैं... देह भान का त्याग करते ही मुझ आत्मा का देह के संबंधों से ममत्व मिट रहा है... नए, पवित्र, स्वर्णिम युग के संस्कार अंकुरित हो रहे हैं... बाबा की रूहानी दृष्टि, स्नेह भरी दृष्टि से मैं फरिश्ता देह की स्मृति से न्यारी और बाबा की दुलारी बन गई हूँ...

➳ _ ➳ मैं बाबा को कहती हूँ बाबा ये तन-मन-धन सब कुछ तेरा... सबकुछ आपको समर्पित करती हूँ... देह सहित देह के सर्व संबंधो का त्याग करती हूँ... इन पर अब मेरा अधिकार नहीं है... मैं प्रतिज्ञा करती हूँ बाबा- कि त्याग की हुई पुराने तन-मन-धन को संकल्प द्वारा भी फिर से वापिस नहीं लुंगी... बुद्धि द्वारा फिर से कभी भी इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होउंगी... संकल्प द्वारा भी फिर से इस पुराने शरीर में वापिस नहीं आउंगी... बाबा से पक्का वायदा करते हुए मैं आत्मा बाबा के प्यार में मगन हो जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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