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❍ 28 / 03 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *समझाने में रूहाब धारण किया ?*
➢➢ *जो आसुरी नींद में सोये हुए है, उन्हें जगाया ?*
➢➢ *बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खाजनाओ को अपना बनाया ?*
➢➢ *परमात्म मोहब्बत के झूले में उडती कला की मौज मनाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सेवा में सफलता का मुख्य साधन है-त्याग और तपस्या ।* ऐसे त्यागी और तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लग्न में लवलीन, प्रेम के सागर में समाए हुए, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए को ही कहेंगे-तपस्वी । *ऐसे त्याग तपस्या वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को साक्षीपन की सीट पर स्थित आत्मायें अनुभव करते हो? *यह साक्षीपन की स्थिति सबसे बढिया श्रेष्ठ सीट है। इस सीट पर बैठ कर्म करने या देखने में बहुत मजा आता है।* जैसे सीट अच्छी होती है तो बैठने में मजा आता है ना। सीट अच्छी नहीं तो बैठने में मजा नहीं।
〰✧ *यह 'साक्षीपन की सीट' सबसे श्रेष्ठ सीट है।* इसी सीट पर सदा रहते हो? दुनिया में भी आजकल सीट के पीछे भाग-दौड़ कर रहे हैं। आपको कितनी बिढ़या सीट मिली हुई है। जिस सीट से कोई उतार नहीं सकता।
〰✧ उन्हों को कितना डर रहता है, आज सीट है कल नहीं। आपको अविनाशी है निर्भय होकर बैठ सकते हो। *तो साक्षी-पन की सीट पर सदा रहते हो। अपसेट वाला सेट नहीं हो सकता। सदा इस सीटपर सेट रहो। यह ऐसी आराम की सीट है जिस पर बैठकर जो देखने चाहो जो अनुभव करने चाहे वह कर सकते हो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ वह अनुभव, वह अन्तिम स्थिती की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अन्तिम स्थिति के नजदीक है। जैसे सूर्य अपने जब पूरे प्रकाश में आ जाता है तो हर चीज स्पष्ट देखने में आती है। जो अन्धकार है, धूंध है वह सभी खत्म हो जाते है। *इसी रीती जब सर्वशक्तिवान ज्गान सूर्य के साथ अटुट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आयेगी*।
〰✧ *जो चलते - चलते पुरुषार्थ में माया का अंधकार वा धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपाने वाले हैं, वह हट जायेंगे*। इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना। आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं। वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज लेकर देते हैं।
〰✧ तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन - सी अनोखी चीज देंगे? *आज के इस मधुर मिलन के मेले का यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिंतक और शुभ चिंतन में रहना।* शुभ चिंतक और शुभ चिंतन। यह दो बातें सदैव याद रखना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *एक होता है डायरेक्ट विकर्म विनाश की स्टेज में स्थित हो फुल फोर्स से विकर्मों का नाश करना। दूसरा तरीका है जितना-जितना शुद्ध संकल्प वा मनन की शक्ति से अपनी बुद्धि को बिज़ी रखते हो, वह जो शक्तियां जमा होती हैं, तो उनसे वह धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा।* बुद्धि में यह भरने से वह पहले वाला स्वयं ही निकल जायेगा। *एक होता है पहले सारा निकाल कर फिर भरना, दूसरा होता है भरने से निकालना। अगर खाली करने की हिम्मत नहीं है तो दूसरा भरते जाने से पहला आपेही खत्म हो जायेगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का कर्तव्य है काँटों के जंगल को खलास कर फूलों का बगीचा बनाना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुबह-सुबह फूलों के बगीचे में झुला झूलती हुई फूलों... पंछियों... उगते सूरज की लालिमा... बहती हवाओं को देख मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... इतनी सुन्दर प्रकृति के रचनाकार को दिल ही दिल में शुक्रिया करती हुई... *सुप्रीम रचयिता का आह्वान करती हूँ... जिसने परमधाम से अवतरित होकर बागबान बन मेरे अन्दर के अवगुणों रूपी काँटों को निकाल दिया... और दिव्य गुणों रूपी खुशबू से भर दिया है... अब मैं आत्मा चैतन्य पुष्प बन अल्लाह के बगीचे में बैठ चारों ओर अपनी खुशबू फैला रही हूँ...*
❉ *प्यारे बाबा मेरे मन के फूलों को खिलाते हुए खुशबू से महकाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता बागबान के बगीचे में रूहानी पुष्प बन खिले हो... कितना महकता और खूबसूरती से सजा शानदार सा भाग्य है... *ज्ञान के सुंदर रंग में रंगे से... याद और दिव्य गुणो का महकता रूप और खुशबु लिए चैतन्य पुष्प बन मुस्करा रहे हो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बसंत बन ज्ञान पुष्पों को सब पर बरसाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कभी काँटों के जंगल का हिस्सा थी... आज ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल बन खिल रही हूँ... *दूर से सबको अपनी रूहानी रंगत रूप और खुशबु से दीवाना बनाकर... मीठे बाबा बागबान का पता दे रही हूँ...”*
❉ *देह के जाल से मुक्त कर ज्ञान योग के पंख देते हुए प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अल्लाह के बगीचे के जो फूल बन खिले हो... तो ज्ञान और योग का प्रेक्टिकल स्वरूप दिव्य गुणो की धारणा भी अपने स्वरूप से छ्लकाओ...* स्वयं प्रकाशित होकर सबके दिलो से अँधेरा दूर कर दो... विघ्नो से मुक्ति देने वाले विघ्न विनाशक मा. ज्ञान सूर्य से दमक उठो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मस्तक मणि बन अपनी चमक से चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल हूँ... मीठा बाबा इस समय मेरा बागवान है... *और योगी जीवन दिव्य गुणो की खुशबु से पूरा विश्व महका कर सुखो की बहार खिला रही हूँ... सबके दिलो की मलिनता और अँधेरा मिटा कर ज्ञान की रौशनी से जगमगा रही हूँ...”*
❉ *वरदानों से भरपूर कर मेरे भाग्य की लकीर लम्बी खींचते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *तन मन धन से सच्चे सेवाधारी बन ईश्वर पिता के दिल तख्त पर झूम जाओ...* वरदानी संगम युग में 84 जनमो का खूबसूरती से रिकार्ड भरकर... सदा सच्चे सुखो के मालिक बनो... प्राप्ति के समय में सच्ची कमाई के असीम खजानो को... बाँहों में भरकर खुशियो में मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपना सबकुछ समर्पण कर परवाना बन शमा पर फ़िदा होते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को वरदानी संगम पर खुशियो से सजा रही हूँ... *इतना प्यारा और खुबसूरत समय जो तकदीर ने थमाया है बलिहार हो गई हूँ...* हर जन्म की सुन्दरतम कहानी भाग्य की लकीरो में स्वयं बैठ लिखती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दृष्टि को पावन बनाना है*"
➳ _ ➳ "मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही अपने सम्पूर्ण स्तोप्रधान अनादि स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ। *अपने इस सत्य स्वरूप की स्मृति में टिकते ही मैं अनुभव करती हूँ स्वयं को इस साकार देह में भृकुटि के मध्य विराजमान एक परम पवित्र चमकते हुए दिव्य सितारे के रूप में जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है*। देख रही हूँ मैं इस सितारे में से निकल रही पवित्रता की किरणों को जो मेरे मस्तक से निकल कर चारों ओर फैल रही हैं। मेरे चारों और पवित्रता की श्वेत रश्मियों का एक बहुत सुंदर औरा निर्मित हो गया है।
➳ _ ➳ पवित्रता की किरणों से निर्मित श्वेत प्रकाश के कार्ब को धारण किये मैं आत्मा अब अपनी साकार देह से बाहर निकलती हूँ और चल पड़ती हूँ पवित्रता की उस दुनिया की ओर, जहाँ पतित पावन मेरे शिव पिता परमात्मा का निवास हैं। *सेकण्ड में पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, मैं पहुँच जाती हूँ उस पवित्र लोक, ब्रह्मलोक में*। मैं देख रही हूँ अपने सामने पवित्रता के सागर, पतित पावन अपने प्राणेश्वर निराकार शिव पिता को, जिनसे निकल रही पवित्रता की श्वेत किरणें पूरे ब्रह्मलोक में फैल रही हैं। *पवित्रता की इन किरणो को स्वयं में समाते हुए मैं धीरे -धीरे अपने प्यारे बाबा के बिल्कुल नजदीक जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ जितना मैं बाबा के समीप जा रही हूँ उतना ही मेरे अंदर पवित्रता का प्रकाश बढ़ता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे चारों और पवित्र योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है और मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्वाला स्वरूप पवित्र किरणों को ग्रहण कर रही हूँ। *योग अग्नि से निकलती इन पवित्र ज्वाला स्वरूप किरणों में मुझ आत्मा की अनेक जन्मों की अपवित्रता जल कर भस्म हो रही है*। साथ ही साथ मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म भी स्वाहा हो रहे हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं। *63 जन्मों से विकारों की अग्नि में जलती हुई मैं आत्मा योग अग्नि में तप कर अब स्वयं को सच्चे सोने के समान एक दम शुद्ध अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ शुद्ध और पावन बन कर मैं आत्मा परमधाम से नीचे आती हूँ और सफेद प्रकाश से प्रकाशित फरिश्तो की आकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ। बापदादा के इस अव्यक्त वतन में आकर अपने लाइट के सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप को मैं धारण करती हूँ और बापदादा के सामने पहुँच जाती हूँ। *बापदादा के लाइट माइट स्वरूप से पवित्रता का अनन्त प्रकाश निकल रहा है जिसकी किरणे पूरे सूक्ष्म लोक में फैल रही हैं*। चारों और फैला पवित्रता का यह प्रकाश, पवित्रता की शक्तिशाली किरणों के रूप में निरन्तर मुझ फ़रिश्ते में समा रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे एक तेज करेन्ट मेरे अंदर प्रवाहित हो रहा है जो मेरे अंदर विधमान अपवित्रता के अंश को भी जलाकर मुझे डबल लाइट बना रहा है*।
➳ _ ➳ इस डबल लाइट स्थिति में मैं स्वयं को कमल आसन पर विराजमान पवित्रता के अवतार के रूप में देख रही हूँ जो पवित्रता की अनन्त शक्ति से भरपूर है। *इसी डबल लाइट स्वरूप के साथ अब मैं सूक्ष्म लोक से नीचे साकार लोक में आती हूँ और अपने शुद्ध, पवित्र अनादि ज्योति बिंदु स्वरुप को धारण कर, अपने साकार तन में प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ*। "मैं शुद्ध, पवित्र आत्मा हूँ" इसी "स्मृति की पवित्रता" द्वारा अपनी वृति और दृष्टि को पवित्र बनाकर, अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओ को उनके दैहिक स्वरूप में ना देखते हुए, उन्हें उनके परम पूज्य स्वरूप में देखने का फाउंडेशन अब मैं मजबूत कर रही हूँ।
➳ _ ➳ स्वयं को सदा कमल आसन पर विराजमान अनुभव करते, लौकिक और अलौकिक दोनों परिवार के सम्पर्क में आते, सभी को परम पूज्य स्वरूप में देखने का अभ्यास मुझे सदा मेरे शुद्ध पवित्र स्वरूप में स्थित रखता है। *अपने शुध्द पवित्र स्वरुप में सदा स्थित रहने से, अपने मस्तक पर निरन्तर सफ़ेद मणि के समान चमकता हुआ पवित्रता का प्रकाश मुझे सदा अनुभव होता है जो मेरे चारों और पवित्रता का आभामंडल निर्मित कर, मुझे हर प्रकार की अपवित्रता से दूर रखता है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व ख़ज़ानों को अपना बनाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं परमात्म मोहब्बत के झूले में उड़ती कला की मौज मना कर सबसे श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *मधुबन, मधुबन ही है। विदेश में भी सुन रहे हैं। लेकिन वह सुनना और मधुबन में आना, इसमें रात-दिन का फर्क है।*बापदादा साधनों द्वारा सुनने, देखने वालों को भी यादप्यार तो देते हैं, कोई बच्चे तो रात जागकर भी सुनते हैं। ना से अच्छा जरूर है लेकिन अच्छे ते अच्छा मधुबन प्यारा है। मधुबन में आना अच्छा लगा है, या वहाँ बैठकर मुरली सुन लो! क्या अच्छा लगता है? वहाँ भी तो मुरली सुनेंगे ना। यहाँ भी तो पीछे-पीछे टी.वी. में देखते हैं। *तो जो समझते हैं मधुबन में आना ही अच्छा है, वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। फिर भी देखो भक्ति में भी गायन क्या है? मधुबन में मुरली बाजे। यह नहीं है लण्डन में मुरली बाजे।* कहाँ भी हो, मधुबन की महिमा का महत्व जानना अर्थात् स्वयं को महान बनाना।
✺ *ड्रिल :- "मधुबन की महिमा का महत्व अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले आज, मैं आत्मा... उमंग उत्साह के पंख लगाए उड़ चलती हूँ... मधुबन, अपने प्यारे बाबा के घर... आह! क्या मनोरम वातावरण है... चारो ओर एकदम शान्ति ही शान्ति है...* फूलो की धीमी-धीमी खुशबू वातावरण को महका रही है... साथ ही साथ रूहानी बाप की रूहानी खुशबू मन को महका रही है... बाबा का रूहानी प्यार अपनी ओर आकर्षित कर रहा है... मै आत्मा फरिश्तो की दुनिया में पहुच गयी हूँ... जहाँ देखो हर तरफ सफ़ेद वस्त्रधारी फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है...
➳ _ ➳ *मै आत्मा मधुबन का चक्र लगाती पहुंच जाती हूँ बाबा के कमरे में, जहाँ मेरे प्यारे मीठे बाबा बाहें फैलाये मुझ आत्मा का आह्वान कर रहे है...* कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा से रूहरिहान करती हूँ... बाबा की दृष्टि में समाती हुई मै आत्मा एकदम हल्की होती जा रही हूँ... बाबा के साथ उड़ती हुई अब मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ तपस्या भवन में...
➳ _ ➳ *तपस्या भवन में योगियो की सभा सजी हुई है... बाबा के मस्तक से निकलते हुए तेजोमय प्रकाश में समाती हुई मै आत्मा योगयुक्त हो शिव बाबा से योग लगा रही हूँ...* योग से मुझ आत्मा के विकर्म विनाश होते जा रहे है... बाबा से निकलती हुई किरणों से मुझ आत्मा में सातो गुण वा शक्तियाँ समाती जा रही है... बुद्धि से सभी व्यर्थ संकल्प समाप्त होते जा रहे है... योगयुक्त मै आत्मा शांत स्वरुप होती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं शांत स्वरुप आत्मा पहुँच जाती हूँ प्रकाश स्तंभ पर...* यहाँ बैठ मै आत्मा दादी प्रकाशमणि जी की शिक्षाओं को जीवन में धारण कर चमकती हुई मणि का अनुभव कर अपने फ़रिश्ताई स्वरुप में स्थित हो पहुँच जाती हूँ डायमंड हॉल में...
➳ _ ➳ *आह! डायमंड हॉल का क्या नजारा है... चारो ओर फरिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है... फरिश्तो की महफ़िल सजी हुई है... सभी फरिश्ते अपने-अपने योग सिंहासन पर बैठे शिव परमपिता परमात्मा से रूहानी पढ़ाई पढ़ रहे है...* इस रूहानी पाठशाला में मैं फरिश्ता स्वरुप आत्मा अपने योग सिंहासन पर विराजमान हो अपने प्यारे पारलौकिक पिता के सम्मुख बैठ जाती हूँ...
➳ _ ➳ *वाह! बाबा वाह!..., वाह! मेरा भाग्य वाह!... मै कितनी सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जो परमपिता परमात्मा शिव स्वयं परम शिक्षक बन मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर मनुष्य से देवता बनाने की रूहानी पढ़ाई पढ़ा रहे है...* मै आत्मा ज्ञान रत्नों से सजती जा रही हूँ... बाबा के उच्चारित महावाक्य मुझ आत्मा में उसी तरह समाते जा रहे जैसे माँ के हाथ की गरमा गरम रोटी डायरेक्ट तवा टू माउथ हो... मुरली का एक-एक महावाक्य मुझ आत्मा को उमंग-उत्साह से भरता जा रहा है... मधुबन में बैठी मै आत्मा मुरली के एक-एक पोइन्ट को गहराई से धारण कर रही हूँ... *बाबा की मुरली सभी बच्चो के लिए पूरे विश्व में एक जैसी चलती है... बाबा का याद प्यार सभी बच्चो को मिल रहा है परन्तु मधुबन की मुरली वा मधुबन के बाबा का प्यार जो मधुबन में बरस रहा है उसका तो, क्या कहना...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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