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❍ 05 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सच्चे सहयोगी सो सच्चे योगी बनकर रहे ?*
➢➢ *इच्छा मातरम् अविध्या की शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *सदा हिम्मत और उल्लास में रह एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *मास्टर विधाता, वरदाता बन आत्माओं को शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करवाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ हरेक यही संकल्प लो कि हमें शान्ति की, शक्ति की किरणें विश्व में फैलानी है, तपस्वी मूर्त बनकर रहना है, *अब एक दूसरे को वाणी से सावधान करने का समय नहीं है, अब मन्सा शुभ भावना से एक दूसरे के सहयोगी बनकर आगे बढ़ो और बढ़ाओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्माये अनुभव करते हो? बाप के बन गये – यह ख़ुशी सदा रहती है? *दुःख की दुनिया से निकल सुख के संसार में आ गये। दुनिया दु:ख में चिल्ला रही है और आप सुख के संसार में, सुख के झूले में झूल रहे हो। कितना अंतर है! दुनिया ढूँढ़ रही है और आप मिलन मना रहे हो।*
〰✧ तो सदा अपनी सर्व प्राप्तियो को देख हर्षित रहो। क्या-क्या मिला है, उसकी लिस्ट निकालो तो बहुत लम्बी लिस्ट हो जायेगी। क्या-क्या मिला? *तन में खुशी मिली, तो तन की खुशी तन्दुरूस्ती है; मन में शान्ति मिली, तो शान्ति मन की विशेषता है और धन में इतनी शक्ति आई जो दाल-रोटी 36 प्रकार के समान अनुभव हो। ईश्वरीय याद में दाल-रोटी भी कितनी श्रेष्ठ लगती है!* दुनिया के 36 प्रकार हों और आप की दाल-रोटी हो तो श्रेष्ठ क्या लगेगा? दाल-रोटी अच्छी है ना। क्योंकि प्रसाद है ना।
〰✧ *जब भोजन बनाते हो तो याद में बनाते हो, याद में खाते हो तो प्रसाद हो गया। प्रसाद का महत्व होता है। आप सभी रोज प्रसाद खाते हो। प्रसाद में कितनी शक्ति होती है! तो तन-मन-धन सभी में शक्ति आ गई।* इसलिए कहते हैं - अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में। तो सदा इन प्राप्तियो को सामने रख खुश रहो, हर्षित रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए, चाहिए - चाहिए तो नहीं हैं?* चाहिए शब्द दाता, विधाता, वरदाता के बच्चों के आगे शोभता है? अभी तो विधाता और वरदाता बनकर विश्व के हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देना है न कि यह चाहिए, यह चाहिए का संकल्प अभी तक करते हो दाता के बच्चे सर्वशक्तियों से संपन्न होते हैं। यही संपन्न स्थिति सम्पूर्ण स्थिति को समीप लाती है।
〰✧ अपने को विश्व के अन्दर सर्व आत्माओं से न्यारे और बाप के प्यारे विशेष आत्माएं समझते हो? तो साधारण आत्माएँ और विशेष आत्माओं में अन्तर क्या होता है, इस अन्तर को जानते हो? *विशेष आत्माओं की विशेषता यही प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देनी चाहिए तो सदा अपने को सर्व शक्तियों से सम्पन्न अनुभव करें।*
〰✧ जो गायन है अप्राप्ति नहीं कोई वस्तु, वह *इस समय जब सर्व शक्तियों से अपने को सम्पन्न करेंगे तब ही भविष्य में भी सदा सर्वगुणों से भी सम्पन्न, सर्व पदार्थों से भी सम्पन्न और सम्पूर्ण स्टेज को पा सकेंगे।* इसलिए अपने को ऐसे बनाने के लिए ही विशेष भट्ठी में आए हो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक ही समय प्रकृति के सभी तत्व साथ-साथ और अचानक वार करेंगे। *किसी भी प्रकार के प्रकृति के साधन बचाव के काम के नहीं रहेंगे और ही साधन समस्या का रूप बनेंगे। ऐसे समय पर प्रकृति के विकराल रूप का सामना करने के लिए किस बात की आवश्यकता होगी? अपने अकाल-तख्त नशीन अकालमूर्त बनने से महाकाल बाप के साथ-साथ 'मास्टर महाकाल' स्वरूप में स्थित होंगे तब ही सामना कर सकगे।* महाविनाश देखने के लिए मास्टर महाकाल बनना पड़ेगा। मास्टर महाकाल बनने की सहज विधि कौन-सी है? *अकालमूर्त बनने की विधि है - हर समय अकाल-तख्त नशीन रहना। जरा-सा भी देहभान होगा, तो अकाले मृत्यु के समान अचानक के वार में हार खिला देगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सच्चे सहयोगी ही सच्चे योगी"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में खिले हुए रंग बिरंगी फूलों को देख मन्त्र मुग्ध हो रही हूँ... इस सुन्दर प्रकृति में रंग भरने वाले प्यारे बागबान बाबा का आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा मेरी एक पुकार सुन तुरंत हाजिर हो जाते हैं और मेरा हाथ पकड संग संग बगीचे में सैर करते हुए प्यारी प्यारी बाते करते हैं...* फिर प्यारे बाबा कल्प वृक्ष को इमर्ज करते हैं और अपने साथ मुझे कल्पवृक्ष की जड़ों में बिठाते हैं...
❉ *ज्ञान के चन्दन से जीवन फुलवारी को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *मीठे वरदानी संगम पर अपने सहयोगी ही सहजयोगी के वरदान को अनुभूतियों में भर लो...* स्मृति में समर्थी रख अल्बेलेपन से मुक्त बनो... *सदा सहयोगी बन विश्वकल्याणकारी के भाव से भरकर पूरे वृक्ष को रूहानी जल से सिंचित करो... मनसा वाचा कर्मणा सहयोग देकर दातापन के भावो से भर जाओ...”*
➳ _ ➳ *मेरे दिल के दर्पण में एक बाबा की यादों को बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सहजयोगी बनकर सारे विश्व के कल्याण के भाव से भरकर हर आत्मा पत्ते को शुभ भावो से सींच रही हूँ...* वरदानी संगम पर मीठे बाबा से पाये हर वरदान को अनुभव कर सबको इन मीठी खुशियो का अनुभवी बनाती जा रही हूँ...”
❉ *रूहानी प्यार का सकाश देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपनी उमंगों से औरो में भी उत्साह के रंग भरो... वायुमण्डल में शुभवृति की लहर फैलाकर अपनी हर्षित अवस्था से खुशियो की तरंगे फैलाओ... *साइलेन्स की शक्ति से दैवी राज्य की स्थापना करने वाले... रूहानी बाबा के रूहानी बच्चे बनकर सबको सहयोग देकर खुशियो के खजानो को बढ़ाते जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कल्पवृक्ष की जड़ों को उमंग उत्साह के जल से सींचते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से पाये खुशियो के खजाने पूरे विश्व पर बरसाकर हर दिल को धनवान् बनाती जा रही हूँ.... *सबको उत्साह से भरकर उमंगो में उड़ाती जा रही हूँ... हर दिल की सहयोगी बन सहजयोगी बन मुस्करा रही हूँ...”*
❉ *मेरे बाबा अपनी गोद में बिठाकर प्रेम सिन्धु में डुबोकर हर मुश्किल का सहज मार्ग बताते हुए कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... माया के रंग बिरंगे रूपो से घबराओ नहीं... इन्हे खेल खिलोने समझ खेलते रहो... *सहज मार्ग में व्यर्थ संकल्पों को भरकर घबराओ नही... छोटी बात को बड़ा नही बल्कि बड़ी बात को भी छोटा करने वाले जादूगर बन जाओ... हर संकल्प और हर सेकण्ड बेस्ट कर सम्पूर्ण और सम्पन्न बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *नथिंग न्यू की स्मृति से हर बात में कल्याण की बिंदी लगाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले हर विघ्न से हल्की होती जा रही हूँ... *अपनी शक्तिशाली स्थिति से विघ्नो को खिलोने समझ मुस्कराती जा रही हूँ... हर बात पर बिन्दु लगाकर अपने बिन्दु स्वरूप में खोती जा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा हिम्मत और उल्लास में रह एकरस स्थिति का अनुभव*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान की पालना में पलने वाली मैं ब्राह्मण आत्मा कितनी पदमापदम सौभाग्य शाली हूँ जो मेरा एक - एक सेकेण्ड परमात्म पालना के झूले में झूलते हुए बीतता है। *जिस भगवान के दर्शनों की दुनिया प्यासी है वो भगवान मेरे हर दिन की शुरुआत से लेकर रात के सोने तक मेरे साथ रहता है*। अमृत वेले बड़े प्यार से मीठे बच्चे कहकर मुझे उठाता है। वरदानो से मेरी झोली भरता है। टीचर बन मुझे पढ़ाता है। चलते फिरते उठते बैठते हर कर्म करते मेरा साथी बन मेरे साथ रहता है। *अपनी श्रेष्ठ मत देकर मुझे श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाता है। सर्व सम्बन्धो का मुझे सुख देता है*।
➳ _ ➳ ऐसे अपने सर्वश्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की अनमोल प्राप्तियों की स्मृति में खोई अपने प्यारे प्रभु के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा उनसे मिलने के लिए आतुर हो उठती हूँ और *मन मे अपने प्यारे प्रियतम की मीठी सी सुखद याद को समाये, मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर उनसे मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्रियतम बाबा मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहें हैं और मैं देह, देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त होकर, बस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ।
➳ _ ➳ कुछ ही क्षणों की अद्भुत रूहानी यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे शिव पिता के पास। लाइट की एक ऐसी दुनिया जहाँ चारों और चमकती हुई मणियां जगमग कर रही है। इस परमधाम घर में मैं स्वयं को अपने प्यारे प्रभु के सम्मुख देख रही हूँ। *बाबा के साथ अटैच होकर उनसे आ रही लाइट, माइट से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमे असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है*। मैं डबल स्थिति में सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मैं स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता परमात्मा के सानिध्य में गहन सुख की अनुभूति करके, और उनकी लाइट माइट से भरपूर हो कर डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ। *फिर से साकारी दुनिया मे आकर, अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, अपने प्यारे प्रभु के स्नेह के रस का रसपान करने वाली एकरस आत्मा बन, अब मैं सुबह से लेकर रात तक संगमयुग की मौजों के नजारों का अनुभव करते हुए अपने पिता परमात्मा के स्नेह में सदा समाई रहती हूँ*। मेरे शिव पिता का निस्वार्थ प्रेम देह और देह की दुनिया से मुझे नष्टोमोहा बना रहा है।
➳ _ ➳ अपनी हजारों भुजाओं के साथ बाबा चलते, फिरते, उठते, बैठते हर समय मुझे अपने साथ प्रतीत होते हैं। बाबा के प्रेम का रंग मुझ पर इतना गहरा चढ़ चुका है कि मेरे हर कर्म में बाबा अब सदा मेरे साथ रहते हैं। *अपने पिता परमात्मा के साथ, संगमयुग की मौजों के नजारों का अनुभव मुझे अतीन्द्रीय सुख के झूले सदा झुलाता रहता है। भोजन खाती हूँ तो बाबा के साथ मौज में खाती हूँ। चलती हूँ तो भाग्यविधाता बाप के हाथ मे हाथ देकर चलती हूँ*। ज्ञान अमृत पीती हूँ तो ज्ञानदाता बाप के साथ पीती हूँ। कर्म करती हूँ तो करावनहार बाप के साथ स्वयं को निमित समझ करती हूँ। सोती हूँ तो बाबा की याद की गोदी में सोती हूँ। उठती हूँ तो भी भगवान के साथ रूह - रिहान करके उठती हूँ।
➳ _ ➳ *सारी दिनचर्या में बाबा को साथ रख, खाते, पीते याद की मौज में रहते बेफ़िक्र बादशाह बन अपने निश्चिन्त ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा सर्व सिद्धियां प्राप्त करने वाली सदा समर्थ आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं कमल पुष्प के समान न्यारे रहकर प्रभु के प्यार का पात्र बनने वाली न्यारी व प्यारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जैसे सूर्यवंशी अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज है। 16 कला अर्थात् फुल स्टेज है वैसे हर धारणा में सम्पन्न अर्थात् फुल स्टेज प्राप्त करना ‘सूर्यवंशी' की निशानी है। तो इसमें भी फुल बनना पड़े। *कभी सुख की शय्या पर कभी उलझन की शय्या पर इसको सम्पन्न तो नहीं कहेंगे ना! कभी बिन्दी का तिलक लगाते, कभी क्यों, क्या का तिलक लगाते। तिलक का अर्थ ही है - ‘स्मृति'। सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। तीन बिन्दियों का तिलक ही सम्पन्न स्वरूप है। यह लगाने नहीं आता!* लगाते हो लेकिन अटेन्शन रूपी हाथ हिल जाता है। अपने पर भी हंसी आती है ना! लक्ष्य पावरफुल है तो लक्षण सम्पूर्ण सहज हो जाते हैं। मेहनत से भी छूट जायेंगे। कमजोर होने के कारण मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। शक्ति स्वरूप बनो तो मेहनत समाप्त।
✺ *"ड्रिल :- स्वयं को तीन बिंदियों का तिलक लगाना*”
➳ _ ➳ *मैं सजनी चली अपने साजन के पास... परवाना बन उड़ चली शमा के पास...* मैं परवाना शमा से निकलती लाइट में समा रही हूँ... इस देह, देह की दुनिया से न्यारी होकर शमा पर मर मिटने को तैयार हो रही हूँ... अपने दिल दर्पण में एक शिव साजन को ही बसा रही हूँ... *मैं आत्मा सजनी साजन के मुहब्बत में मोहित होती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *प्यारे साजन बड़े प्यार से मुझ सजनी का श्रृंगार कर रहे हैं... प्यारे साजन मुझे ज्ञान के घुंघरू बांध रहे हैं...* मैं सजनी शिव साजन के साथ ज्ञान डांस कर रही हूँ... ज्ञान डांस करते-करते मुझ सजनी का तीसरा नेत्र खुल जाता है... मैं आत्मा त्रिनेत्री स्मृति स्वरुप बन रही हूँ... मेरे साजन मेरे मस्तक पर आत्मा, परमात्मा, ड्रामा के तीन बिन्दियों का तिलक लगा रहे हैं...
➳ _ ➳ *प्राण प्यारे साजन मुझ सजनी को दिव्य गुणों का कंगन पहना रहे हैं... अष्ट शक्तियों की अगूंठी पहनाकर मुझसे सगाई कर रहे हैं...* दिव्यता का काजल लगाकर मेरी दृष्टि, वृत्ति को दिव्य बना रहे हैं... कानों में ख़ुशी के झुमके लगा रहे हैं... *मीठे सजना मीठी वाणी का अमृत पिला रहे हैं...* अब मैं आत्मा सदा प्यारे साजन से ही सुनती हूँ... और सदा मीठी वाणी ही बोलती हूँ... *मैं सजनी श्रीमत रूपी बिछिया पहनकर सदा अपने साजन के कदम से कदम मिलाकर चलती हूँ...*
➳ _ ➳ *प्यारे सजना रूहानियत का इत्र लगाकर मुझे महका रहे हैं...* फरिश्तों की चमकीली ड्रेस पहनाकर पवित्रता के ताज से सजा रहे हैं... *प्राण प्यारे साजन मुझ सजनी के गले में विजय की वरमाला पहनाकर मुझे वर लिए हैं...* अपना बना लिए हैं... मेरे शिव साजन 16 कलाओं से श्रृंगार कर मुझे सम्पन्न बना रहे हैं... मैं आत्मा हर धारणा में सम्पन्न बन ‘सूर्यवंशी' बनने के लक्ष्य को सामने रख वैसे लक्षण धारण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा रोज अमृतवेले उठकर अपने मन रूपी दर्पण में स्वयं को देखती हूँ और सदा तीन बिन्दियों का तिलक लगाकर श्रृंगार करती हूँ...* अब मैं आत्मा अपनी सभी कमी-कमजोरियों से मुक्त होकर शिव की शक्ति बन रही हूँ... मैं आत्मा सजनी सदा अपने साजन के मुहब्बत में रह मेहनत से छूट रही हूँ... अब मैं आत्मा कभी भी क्यों, क्या का तिलक नहीं लगाती हूँ... *अब मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन सदा सम्पूर्ण और सम्पन्नता के स्टेज में स्थित रहती हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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