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❍ 04 / 05 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *याद की यात्रा पर पूरा अटेंशन दिया ?*
➢➢ *गफलत में अपना टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?*
➢➢ *मन बुधी को अनुभव की सीट पर सेट किया ?*
➢➢ *बुराई की रीस को छोड़ अच्छाई की रेस की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप के संस्कारों में बेहद का त्याग और बेहद की तपस्या देखी। हर संकल्प में यही रहा कि बेहद का कल्याण कैसे हो। *ऐसे बेहद के तपस्वी बनो। दो चार घण्टे के तपस्वी नहीं लेकिन हर सेकंड तपस्या-स्वरूप, तपस्वी मूर्त। मूर्त और सूरत से त्याग, तपस्या और सेवा-साकार रूप में प्रत्यक्ष करो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं राजयोगी, श्रेष्ठ योगी आत्मा हूँ"*
〰✧ राजयोगी, श्रेष्ठ योगी आत्मायें हो ना? *साधारण जीवन से सहजयोगी, राजयोगी बन गये। ऐसी श्रेष्ठ योगी आत्मायें सदा ही अतीइन्द्रिय सुख के झूले में झूलती हैं।* हठयोगी योग द्वारा शरीर को ऊंचा उठाते हैं और उड़ने का अभ्यास करते हैं। वास्तव में आप राजयोगी ऊंची स्थिति का अनुभव करते हो। इसको ही कापी करके वो शरीर को ऊंचा उठाते हैं।
〰✧ लेकिन आप कहाँ भी रहते ऊंची स्थिति में रहते हो, इसलिए कहते हैं - योगी ऊंचा रहते हैं। तो मन की स्थिति का स्थान ऊंचा है। क्योंकि डबल लाइट बन गये हो। वैसे भी फरिश्तों के लिए कहा जाता कि फरिश्तों के पांव धरनी पर नहीं होते। *फरिश्ता अर्थात् जिसका बुद्धि रूपी पांव धरती पर न हो, देहभान में न हो। देहभान से सदा ऊंचे - ऐसे फरिश्ते अर्थात् राजयोगी बन गये।*
〰✧ अभी इस पुरानी दुनिया से कोई लगाव नहीं। सेवा करना अलग चीज है लेकिन लगाव न हो। योगी बनना अर्थात् बाप और मैं, तीसरा न कोई। *तो सदा इसी स्मृति में रहो कि हम राजयोगी, सदा फरिश्ता हैं। इस स्मृति से सदा आगे बढ़ते रहेंगे। राजयोगी सदा बेहद का मालिक हैं, हद के मालिक नहीं। हद से निकल गये। बेहद का अधिकार मिल गया - इसी खुशी में रहो। जैसे बेहद का बाप है, वैसे बेहद की खुशी में रहो, नशे में रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ रूहानी ड्रिल जनते हो? जैसे शारीरिक ड्रिल के अभ्यासी एक सेकण्ड में जहाँ और जैसे अपने शरीर को मोडने चाहे वहाँ मोड सकते हैं, ऐसे रूहानी ड्रिल करने के अभ्यासी एक सेकण्ड में बुद्धि को जहाँ चाहो, जब चाहो उसी स्टेज पर, उसी परसेन्टेज से स्थित कर सकते हो? *ऐसे एवररेडी रूहानी मिलिट्री बने हो?*
〰✧ अभी - अभी आर्डर हो अपने सम्पूर्ण निराकारी, निरअहंकारी, निर्विकारी स्टेज पर स्थित है जाओ तो क्या स्थित हो सकते हो वा साकार शरीर, साकारी सृष्टि वा विकारी संकल्प न चाहते हुए भी आपने तरफ आकर्षित करेंगे। *इस देह के आकर्षण से परे एक सेकण्ड में हो सकते हो?* हार और जीत का आधार एक सेकण्ड होता है। तो एक सेकण्ड की बाजी जीत सकते हो?
〰✧ ऐसी विजयी अपने आप को समझते हो? *ऐसे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान अपने को समझते हो वा अभी तक सम्पूर्ण सम्पत्तिवान बनना हैं?* दाता के बच्चे सदा सर्व सम्पत्तिवान होते हैं, ऐसे अपने को समझते हो वा अभी तक 63 जन्मों के भक्त - पन वा भिखारी - पन के संस्कार कब इमर्ज होते हैं?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एवररेडी अर्थात् अभी-अभी किसी भी परिस्थिति व वातावरण में आर्डर मिले व श्रीमत मिले कि एक सेकण्ड में सर्व-कर्मेन्द्रियों की अधीनता से न्यारे हो कर्मेन्द्रिय-जीत बन एक समर्थ संकल्प में स्थित हो जाओ, तो श्रीमत मिलते हुए मिलना और स्थित होना साथ-साथ हो जाये। *बाप ने बोला और बच्चों की स्थिति ऐसी ही उस घड़ी बन जाये उसको कहते हैं एवररेडी।* जो पहले बातें सुनाई समानता की जिससे ही समीपता की स्टेज बनती है - ऐसे सब बातों में कहाँ तब समान बने है? यह चैकिंग करो। ऐसे तो नहीं डायरेक्शन को प्रेक्टिकल में लाने में एक सेकण्ड के बजाय एक मिनट लग जाये। *एक सेकेण्ड के बजाय एक मिनट भी हुआ तो फस्र्ट डिवीजन में पास नहीं होंगे, चढ़ते, उतरते व स्वयं को सैट करते फस्र्ट डिवीजन की सीट को गंवा देंगे। इसलिए सदा एवररेडी, सिर्फ एवररेडी भी नहीं, सदा एवररेडी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने को सुधारने के लिए दैवीगुण धारण करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी ज्योति को जगाया...* दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... *मीठे बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... यह यादे ही आनन्द का दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार लाएंगी..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से सज कर निखरती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही हूँ...* और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."
❉ *मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में गहरे धँस गए थे... *अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो जाओ... दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... यह रोम रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ...* देह के भान से निकल कर ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ... और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."
❉ *मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... *अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ...* और विकारो से मुक्त होकर अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- गफलत में अपना टाइम वेस्ट नही करना है*"
➳ _ ➳ पूरे कल्प में केवल संगमयुग का ही समय मोस्ट वैल्युबुल समय है जब स्वयं भगवान आ कर सर्व खजानों से अपने हर ब्राह्मण बच्चे को सम्पन्न बना देते हैं। *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जो परमात्मा बाप द्वारा मिले इन अनमोल खजानों को अपने परमात्मा बाप की श्रीमत प्रमाण यूज़ करके इन्हें सफल करते हैं औऱ कल्प - कल्प के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना लेते हैं*।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं परमात्मा बाप द्वारा मिले सर्व खजानों को स्मृति में ला कर स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि समय, संकल्प और श्वांसों का जो अनमोल खजाना भगवान ने मुझे गिफ्ट के रूप में दिया है उसे किसी भी प्रकार की गफलत में व्यर्थ नही गंवाना। *समय, संकल्प और श्वांसों के अनमोल खजाने को सफल करना ही सर्व खजानों की प्राप्ति का आधार है इसलिए अपना समय, संकल्प और श्वांस अपने प्यारे बाबा की याद और ईश्वरीय सेवा में सफल करते हुए अब मुझे सर्व खजानों को जमा करना है और उन्हें सर्व आत्माओं को बाँटना है*।
➳ _ ➳ स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने प्यारे बाबा का दिल से शुक्रिया अदा करती हुई मैं जैसे ही उनकी याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ *बाबा सहज ही मुझे अपनी और खींच लेते हैं और मैं आत्मा सेकण्ड में आजाद पँछी की भांति देह रूपी पिंजरे का दरवाजा खोल उड़ जाती हूँ ऊपर खुले आसमान की ओर*। नीले गगन में विचरण करते, सूर्य, चांद, सितारों रूपी बत्तियों की रिमझिम को निहारते मैं इन्हें पार करके, चैतन्य सितारों की दुनिया में प्रवेश करती हूँ। चमकते हुए चैतन्य सितारों की यह निराकारी दुनिया मेरे पिता परमात्मा का घर है।
➳ _ ➳ अपने बिल्कुल सामने मैं देख रही हूँ अनन्त प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता परमात्मा को। *उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे अब मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ*। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा प्रेम के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के प्यार में गहराई तक समाती जा रही हूँ। अपने निराकार शिव पिता परमात्मा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे बैठ मैं गहन सुख, शांति और आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। *सर्वशक्तियों की किरणों की शीतल फुहारें मन को असीम शीतलता प्रदान कर रही हैं*।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और अपनी लाइट की फ़रिशता ड्रेस को धारण कर सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ। जहां बाहें पसारे बापदादा का लाइट माइट स्वरूप मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है। *बाबा की बाहों में अब मैं फ़रिशता समा रहा हूँ। अपनी बाहों में भर कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा कर अब बाबा मुझे शक्तिशाली दृष्टि दे रहे हैं और अपनी सर्वशक्तियों से मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार करके गफलत से सदा मुक्त रहने का बल मुझमे भर रहें हैं*।
➳ _ ➳ बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपनी फरिश्ता ड्रेस को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर अपने साकारी तन में आ कर प्रवेश करती हूँ। *स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ*। बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है। हर प्रकार की गफलत से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए अब मैं उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मन-बुद्धि को अनुभव की सीट पर सेट करने वाली नम्बरवन विशेष आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं बुराई की रीस को छोड़ अच्छाई की रेस करने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सदा रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले सच्चे-सच्चे रूहानी गुलाब:- *सभी बच्चे- सदा रूहानी नशे में रहने वाले सच्चे रूहानी गुलाब हो ना? जैसे रूहे गुलाब का नाम बहुत मशहूर है वैसे आप सभी आत्मायें रूहानी गुलाब हो। रूहानी गुलाब अर्थात् चारों ओर रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले।* ऐसे अपने को रूहानी गुलाब समझते हो? सदा रूह को देखते और रूहों के मालिक के साथ रूह-रूहान करते यही रूहानी गुलाब की विशेषता है। सदा शरीर को देखते रूह अर्थात् आत्मा को देखने का पाठ पक्का है ना! इसी रूह को देखने के अभ्यासी रूहानी गुलाब हो गये। *बाप के बगीचे के विशेष पुष्प हो क्योंकि सबसे नम्बरवन रूहानी गुलाब हो। सदा एक की याद में रहने वाले अर्थात् एक नम्बर में आना है, यही सदा लक्ष्य रखो।*
✺ *"ड्रिल :- सदा रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले सच्चे-सच्चे रूहानी गुलाब बनकर रहना*"
➳ _ ➳ *मैं रूह रुई की तरह हलकी होकर हवा में उड़ती अपनी ही धुन में झूमती हुई पहुँच जाती हूँ रूहों के मालिक सुप्रीम रूह के पास...* मैं रूह सुप्रीम रूह को निहार रही हूँ... सुप्रीम रूह मुझ रूह को बड़े प्यार से देख रहे हैं... मैं सुप्रीम रूह के प्यार में समा रही हूँ... सुप्रीम रूह के संग के रंग में रंगती जा रही हूँ... रुहानी खुशबू को धारण कर रुहानी गुलाब बन रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं रूहानी गुलाब सदा सुप्रीम रूह की छत्र छाया में ही रहती हूँ...* मेरी दृष्टि में सदा सुप्रीम रूह समाया हुआ रहता है... मैं सदा सुप्रीम रूह के साथ कम्बाइन्ड रहती हूँ... सदा इसी नशे में रहती हूँ कि सुप्रीम रूह मेरा और मैं सुप्रीम रूह की... *मैं रूहे गुलाब सदा सुप्रीम रूह को देखती, उनसे रूह-रूहान करती रहती हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं रूहानी नशे में रहने वाली रूहानी रूहे गुलाब चारों ओर अपनी खुशबू महका रही हूँ...* चारों ओर के वायुमंडल को सुगन्धित बना रही हूँ... मेरी रूहानियत की खुशबू से चारों ओर की तमोप्रधान प्रकृति सतोप्रधान बन रही है... मैं रूह सदा रूहों को देखती हूँ... उनके शरीर को नहीं देखती... सभी रूहें मेरे आत्मा भाई हैं... सभी अलग-अलग अपना पार्ट बजा रहे हैं... *मुझ रुहे गुलाब को देह वा देह की दुनिया, वस्तु, व्यक्ति देखते हुए भी नहीं दिखाई देते हैं...* पुरानी दुनिया भी रुहानी दुनिया, फरिश्तों की दुनिया दिखाई देती है...
➳ _ ➳ *मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है... मैं करनहार हूँ...* मैं हर संकल्प, बोल और कर्म सुप्रीम रूह की श्रीमत के आधार पर करती हूँ... वह चला रहा है, मैं चल रहीं हूँ... अब मैं आत्मा सदा रुहानी खुशबू में अविनाशी और एकरस रहती हूँ... *अब मैं आत्मा सदा एक की याद में रहकर एक नम्बर में आने का लक्ष्य रखकर चलती हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं रूहे गुलाब सदा इसी रुहानी भावना में रहती हूँ कि सर्व रूहें भी सुप्रीम रूह के वर्से के अधिकारी बन जायें...* मैं रुहानी गुलाब सुप्रीम रूह से सर्व गुणों, शक्तियों को धारण कर सर्व को भी गुण, शक्तियों का दान करती हूँ... सुख, शांति की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के साथ सर्व रूहों की रुहानी सेवा करती हूँ... *मैं रूह नम्बर वन खुशबूदार रुहे गुलाब बन दूर दूर तक रुहानी खुशबू फैलाने वाली सच्ची-सच्ची रूहानी गुलाब हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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