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❍ 19 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ बाप से की गयी पवित्रता की प्रतिज्ञा को भूले तो नहीं ?
➢➢ देवता बनने के लिए अवस्था को बहुत शांतचित बनाया ?
➢➢ चेहरे द्वारा सर्व श्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव कराया ?
➢➢ उमंग उत्साह और एकमत के संगठन से सफलता को प्राप्त किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे लाइट के कनेक्शन से बड़ी-बड़ी मशीनरी चलती है। आप सभी हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं भी डबल लाइट बन चलते रहो। जहाँ डबल लाइट की स्थिति है वहाँ मेहनत और मुश्किल शब्द समाप्त हो जाता है। अपनेपन को समाप्त कर ट्रस्टीपन का भाव और ईश्वरीय सेवा की भावना हो तो डबल लाइट बन जायेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं विशेष आत्मा हूँ"
〰✧ सदा यह नशा रहता है कि हम विशेष आत्मायें हैं? तो गाया हुआ है कोटों में कोई, कोई में भी कोई तो पहले सुनते थे लेकिन अभी अनुभव कर रहे हो कि हम ही कोटों में कोई आत्मायें थी और हैं और सदा बनेंगी। कभी सोचा था कि इतना विशेष पार्ट इस ड्रामा के अन्दर हमारा नूँधा हुआ है! लेकिन अभी प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो।
〰✧ पक्का निश्चय है ना। कल्प-कल्प कौन बनता है? क्या कहेंगे? हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे। तीनों काल का ज्ञान अभी आ गया है। त्रिकालदर्शी बन गये ना। एक सेकेण्ड में तीनों काल को देख सकते हो? क्या थे, क्या हैं और क्या होंगे-स्पष्ट है ना। कल पुजारी, आज पूज्य बन रहे हैं। जब त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होते हो तो कितना मजा आता है। जैसे कोई भी देश में जब टॉप पॉइंट पर खड़े होकर सारे शहर को देखते हैं तो मजा आता है ना। ऐसे ही यह संगमयुग टॉप पॉइंट है तो इस पर खड़े होकर देखो तो मजा आयेगा। कल थे और कल बनने वाले हैं। इतना स्पष्ट अनुभव होता है? कल क्या बनने वाले हो? देवता। कितने बार बने हो? अनेक बार बने हो।
〰✧ तो कितना सहज और स्पष्ट हो गया। फलक से कहते हो ना-हम ही तो थे और कौन होंगे। अभी तो यही दिल कहता है ना कि और कौन बनेगा, हम थे, हम ही बन रहे हैं इसको कहते हैं मास्टर नॉलेजफुल। फुल नॉलेज आ गई है ना। एक काल की नहीं, तीनों काल की। तो जैसे बाप नॉलेजफुल है, बाप की महिमा में फुल के कारण सागर कहते हैं। सागर सदा फुल रहता है। तो नॉलेजफुल बन गये। एक काल के भी ज्ञान की कमी नहीं। भरपूर। इतना नशा है?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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सदा फॉलो फादर करने के लिए अपनी बुद्धि को दो स्थितियों में स्थित रखो। बाप को फॉलो करने की स्थिति है - सदा अशरीरी भव। विदेही भव, निराकारी भवा दाता अर्थात ब्रह्मा बाप को फॉलो करने के लिए सदा अव्यक्त स्थिति भव, फरिश्ता स्वरूप भव, आकारी स्थिति भव इन दोनों स्थिति में स्थित रहना फॉलो फादर बनना है। इससे नीचे व्यक्त भाव - नीचे ले आने का आधार है। इसलिए सबसे परे इन दो स्थितियों में सदा रहो। तीसरी के लिए ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा की शिक्षा मिली हुई है कि इस गिरावट की स्थिति में संकल्प से वा स्वप्न में भी नहीं जाना। यह पराई स्थिति है। जैसे अगर कोई बिना आज्ञा के परदेश चला जाए तो क्या होगा? बापदादा ने भी यह आज्ञा की लकीर खींच दी है। इससे बाहर नहीं जाना है। अगर अवज्ञा करते हैं तो परेशान भी होते हैं। पश्चाताप भी करते हैं। इसलिए सदा शान में रहने का, सदा प्राप्ति स्वरूप स्थिति में स्थित होने का सहज साधन है - 'फॉलो फादर"।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ तो जहाँ खुशी नहीं, वहाँ उमंग-उत्साह नहीं होता और योग लगाते भी अपने से सन्तुष्ट नहीं होते, थके हुए रहते है। सदा सोच की मूड में रहते, सोचते ही रहते। खुशी क्यों नहीं आती, इसका भी कारण है। क्योंकि सिर्फ यह सोचते हो कि मैं आत्मा हूँ, बिन्दु हूँ, ज्योतिस्वरूप हूँ, बाप भी ऐसा ही है। लेकिन मैं कौन-सी आत्मा हूँ। मुझ आत्मा की विशेषता क्या है? जैसे मैं पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा हूँ, मैं आदि रचना वाली आत्मा हूँ, मैं बाप के दिलतख्तनशीन होने वाली आत्मा हूँ। यह विशेषतायें जो खुशी दिलाती हैं, वह नहीं सोचते हो। सिर्फ बिन्दी हूँ, शान्तस्वरूप हूँ - तो निल में चले जाते हो। इसलिए माथा भारी हो जाता हैं।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनना”
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सुमन हो गये... अपने मन को निहार
कर, आनन्द के सागर में डूब जाती हूँ... और मीठे बाबा की यादो में खो जाती
हूँ... कि कैसे चलते चलते बाबा ने मेरे विकारी हाथो में, अपना पावन मखमली हाथ
देकर, मेरा कायाकल्प कर दिया है... इस अंतिम जनम में भगवान को पिता, टीचर और
सतगुरु रूप में पाकर... जनमो की यात्रा ही जैसे सफल हो गयी है... सृष्टि जगत के
इस खेल में मुझ आत्मा ने... अंत में भगवान को ही जीत लिया है.. सब कुछ मैंने पा
लिया है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी देवताई शानोशौकत याद दिलाते हुए
कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य के नशे में खोये
रहो... और पावनता के रंग में रंगकर मनुष्य से देवता बनने का सदा का अधिकार पा
लो...ईश्वर पिता के साथ का यह खुबसूरत वरदानी संगम है... इसमे पवित्रता से
सजकर पिता की सम्पूर्ण दौलत को पा लो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को गहराई से दिल में समाकर कहती
हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... अपनी यादो भरा मदद का हाथ देकर, मेरे भाग्य
को कितना ऊंचाइयों पर ले जा रहे हो... मै क्या हूँ और क्या मुझे बना रहे हो...
विकारो के पतितपन को जीकर मै कितनी निकृष्ट से हो गयी थी... आज पावनता से सजाकर
मुझे देवता बना रहे हो..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम के अहसासो से भरते हुए
कहते है :- "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में पलने का महाभाग्य पाकर
अब पवित्रता की तरंगे पूरे विश्व में फैलाओ... पावन बनकर, पावन दुनिया के मालिक
बन सदा के लिए मुस्कराओ... इस अंतिम जनम में ईश्वर पिता की श्रीमत के रंग में
रंगकर, सुंदर देवता बन जाओ...
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर लुटाते हुए संकल्पों को
देख कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... मनुष्य मन और मनमत ने मुझ आत्मा को विकारो
के दकदल में गहरे डुबो दिया... आपने आकर जो मात्र चोटी बची थी... खींच कर
निकाला और ज्ञान अमृत से मुझे उजला बनाया है... आपकी प्यारी यादो में डूबकर मै
आत्मा अब पवित्रता का आँचल ओढ़ मुस्करा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को वरदानों से सजाते हुए कहते है :- "मीठे
सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर अदा में ईश्वरीय झलक दिखाओ...
इस पतित हो गयी दुनिया को अपनी पावनता से पुनः खुबसूरत पवित्र बनाओ... विकारो
के कालेपन से निकल कर, ज्ञान धारा में धवल बन, और यादो में तेजस्वी होकर,
देवताई सौंदर्य से विश्व धरा पर जगमगाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य के ऊपर, ईश्वरीय जादूगरी को देख, मीठे बाबा
से कहती हूँ :- "मेरे सच्चे साथी बाबा... आपके सच्चे साथ और यादो के हाथ को
पाकर मै आत्मा विकारो के घने जंगल से बाहर निकल रही हूँ... अपनी खोयी हुई
पावनता से पुनः सज संवर रही हूँ... अपने साथ इस प्रकृति को भी पावन बनाकर, सुखो
के स्वर्ग में बदल रही हूँ..." मीठे बाबा को अपने दिल की सारी बात सुनाकर मै
आत्मा इस धरती पर लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- देवता बनने के लिए अवस्था को बहुत-बहुत शांत चित्त बनाना है"
➳ _ ➳ स्वदर्शन चक्रधारी बन स्व का दर्शन करते हुए अपने आदि और पूज्य
स्वरूप में खोई अपने उस अति सुन्दर मन को मोहने वाले स्वरूप का भरपूर आनन्द
लेते हुए मैं विचार करती हूँ कि मंदिर में स्थापित मेरे जड़ चित्रों की दिव्य
मुस्कराहट और चेहरे की हर्षितमुखता आज भी मेरे भगतों को नवजीवन दे रही है।
मेरी जड़ प्रतिमा के सामने आज भी मेरे भगत खड़े होकर एक गहन सुकून पाकर तृप्त हो
जाते हैं। तो अपने उस स्वरूप को यादगार बनाने का पुरुषार्थ मुझे इस समय संगम
युग पर अवश्य करना है तभी मेरे एक - एक कर्म का यादगार भक्ति में पूजन और गायन
योग्य बनेगा।
➳ _ ➳ यही विचार करते,अपने अंदर दैवी गुणों को धारण करने की मन ही मन
स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर बैठ जाती हूँ और
अपने मन, बुद्धि को मनुष्य से देवता बनाने वाले अपने परमपिता परमात्मा
शिव बाबा पर पूरी तरह एकाग्र करते हुए, बड़े प्यार से उनका आह्वान करती हूँ।
उनसे मिलने की मेरी इच्छा संकल्प के रूप में उन तक पहुँच रही है। मन बुद्धि
रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ कि मेरे एक बुलावे पर भगवान कैसे अपना
धाम छोड़, मेरे प्यार में बंध कर, मेरे पास दौड़े चले आ रहें हैं।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे मन के
सच्चे मीत, मेरे दिलाराम बाबा मेरे पास आ रहें हैं। उनके प्यार की शीतल फ़ुहारों
का मीठा मधुर एहसास मुझे उनकी समीपता का स्पष्ट अनुभव करवा रहा है। प्यार के
सागर अपने प्यारे बाबा को अब मैं अपने सामने देख रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे
एक विशाल सागर स्वयं चल कर मेरे पास आ गया है और अपनी शीतल लहरों की शीतलता को
गहराई तक मुझ आत्मा में समाता चला जा रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों के
सागर मेरे शिव पिता परमात्मा से निकल रहे शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे टच कर रहें
है और गहन शांति का अनुभव करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में भरकर अब मेरे शिव पिता
मुझ आत्मा को देह के हर बन्धन से मुक्त कराकर, अपने साथ ले जा रहें हैं। देह से
बाहर आकर मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। बन्धन मुक्त हो कर, आजाद
पंछी की भांति उन्मुक्त हो कर, उड़ने का आनन्द लेती हुई मैं आत्मा अपने दिलाराम
बाबा की किरणों की बाहों के झूले में झूलती, मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य
की सराहना करती उनके साथ उनके धाम जा रही हूँ। देह और देह की झूठी दुनिया के
झूठे रिश्तों के मोह की जंजीरो की कैद से मैं आजाद हो चुकी हूँ, यह एहसास मुझे
एक गहन सुकून दे रहा है।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता के साथ एक अति सुखद सुखमय रूहानी यात्रा करके अब मैं
उनके साथ उनके धाम पहुँच चुकी हूँ। स्वयं को मैं आत्माओं की एक ऐसी निराकारी
दुनिया में देख रही हूँ जहाँ चारों और शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन फैले हुए
हैं। शांति के सागर अपने शिव पिता के पास जाकर, उनके प्यार की किरणो की शीतल
छाया के नीचे बैठ, उन्हें निहारती हुई अब मैं स्वयं को तृप्त कर रही हूँ। मेरे
शिव पिता के प्यार की शीतल फुहारे बारिश की रिम झिम बूंदों की तरह मुझ पर बरस
रही हैं। मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के साथ मंगल मिलन
मनाते हुए गहन अतीन्द्रिय सुख का मैं अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख और अपने शिव पिता परमात्मा के असीम प्रेम का
अनुभव करके, अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट कर अपने शिव पिता के निष्काम और
निस्वार्थ प्रेम के खूबसूरत सुखद एहसास को स्मृति में रख, अब मैं अपने शिव पिता
की श्रेष्ठ शिक्षायों को स्वयं में धारण कर, अपने जीवन को देवताओ जैसा खुशमिजाज
बनाने का पुरुषार्थ अति सहजता से कर रही हूँ। मेरे मीठे प्यारे बाबा का प्यार
और उनकी याद मुझे आसुरी अवगुणों का त्याग कर, दैवी गुणों को धारण करने का बल दे
रही है। योग बल से अपने पुराने अभी आसुरी स्वभाव संस्कारो को भस्म कर, भविष्य
देवताई संस्कारो को धारण कर अब मैं अपने जीवन को देवताओं जैसा खुशमिजाज बना रही
हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं चेहरे द्वारा सर्व श्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव कराने वाली सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं उमंग उत्साह और एकमत के संगठन में रहकर सफलता का अनुभव करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
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कोई
भी इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी। या इच्छा पूर्ण करो या अच्छा बनो। आपके
हाथ में है। और देखा
जाता है कि ये इच्छा ऐसी चीज है जैसे धूप में आप चलते हो तो आपकी परछाई आगे
जाती है और आप उसको पकड़ने की कोशिश करो, तो
पकड़ी जाएगी?
और
आप पीठ करके आ जाओ तो वो परछाई कहाँ जायेगी? आपके पीछे-पीछे
आयेगी। तो इच्छा अपने तरफ आकर्षित कर रुलाने वाली है और इच्छा को छोड़ दो तो
इच्छा आपके
पीछे-पीछे आयेगी।
➳ _ ➳ मांगने
वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता। और कुछ नहीं मांगते हो लेकिन रायल मांग तो बहुत
है। जानते हो ना-रायल मांग क्या है? अल्पकाल
का कुछ नाम मिल जाये, कुछ
शान मिल जाये, कभी
हमारा भी
नाम विशेष आत्माओं में आ जाये, हम
भी बड़े भाइयों में गिने जायें, हम
भी बड़ी बहनों में गिने जायें,
आखिर हमको भी तो चांस मिलना चाहिए।
➳ _ ➳
लेकिन जब तक मंगता हो तब तक कभी खुशी के खजाने से सम्पन्न नहीं हो सकते। ये
मांग के पीछे या कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे ही समझो जैसे
मृगतृष्णा है। इससे सदा ही बचकर
रहो। छोटा रहना कोई खराब बात नहीं है। छोटे शुभान अल्लाह हैं। क्योंकि बापदादा
के दिल पर नम्बर आगे हैं।
✺
ड्रिल :- "हद की इच्छाओं की मृगतृष्णा से मुक्त होने का अनुभव"
➳ _ ➳
मैं
आत्मा फरिश्ता स्वरुप की चमकीली ड्रेस पहनकर पहुंच जाती हूँ सूक्ष्मवतन में...
जहां मेरे प्यारे बापदादा बड़े प्यार से मुझे बुला रहे हैं... मैं फरिश्ता
बापदादा की बाहों में समा जाती हूँ... बापदादा गुणों और शक्तियों से मेरा
श्रृंगार कर रहे हैं... अब बापदादा मेरा हाथ पकड़कर मुझे सैर पर ले जा रहे
हैं... मैं बाबा की किरणें सारे विश्व में फैला रही हूँ... मीठे बापदादा मुझे
कभी पहाड़ों पर ले जाते हैं... कभी लहलहाते खेतों में... कभी मैदान में तो कभी
रेगिस्तान में...
➳ _ ➳
अचानक मेरी नजर रेगिस्तान में चलते हुए उन यात्रियों की ओर जाती है... जो प्यास
से बेहाल हैं... सूरज की चमकती किरणें जैसे जैसे रेत पर पड़ती है... तो उन्हें
वहां पानी होने का भ्रम होता है और वे पथिक... उस ओर भागते चले जा रहे हैं...
जहां पहुंचकर उन्हें सिर्फ निराशा हाथ लगती है... तभी कुछ दूरी पर आगे पानी
होने का वही भ्रम होता है... और निराशा भरी भाग-दौड़ का सिलसिला चलता रहता
है...
➳ _ ➳
मैं
फरिश्ता चिंतन करती हूँ कि... मेरा मन भी तो इच्छाओं रूपी मृगतृष्णा में इसी
तरह से भटक रहा था... इच्छाओं की गुलाम होकर मैं आत्मा भी इसी तरह से कष्ट पा
रही थी... फिर बाबा का मीठा ज्ञान सुनकर... उनका प्यार भरा हाथ अपने सिर पर पा
कर... मैं आत्मा इच्छाओं की गुलामी से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा मन
का मालिक बनती जा रही हूँ... अंतहीन इच्छाओं के पीछे भागना तो ऐसे ही हो रहा
था जैसे कि... मैं आत्मा अपनी परछाई को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी...
➳ _ ➳
इच्छाओं की भागमभाग में कभी स्व पर ध्यान ही नहीं दिया था लेकिन... अब मैं
आत्मा स्व पुरुषार्थ पर ध्यान दे रही हूँ... इच्छाओं के,
आसक्तियों के बंधनों से मुक्त होती जा रही हूँ... मैं आत्मा स्थूल इच्छाओं से
स्वयं को मुक्त करती जा रही हूँ... साथ ही स्व चेकिंग के द्वारा हर प्रकार की
रॉयल,
सूक्ष्म इच्छाओं से भी... मुक्त होती जा रही हूँ... हद के नाम मान शान की...
रॉयल कामनाओं का भी त्याग करती जा रही हूँ...
➳ _ ➳
मैं
आत्मा दाता पिता की संतान हूँ... मैं सब प्रकार के रॉयल भिखारीपन से मुक्त
हूँ... मैं आत्मा ईश्वरीय खजानों से,
खुशी के खज़ाने से संपन्न हूँ... मैं आत्मा पूरी तरह संतुष्ट हूँ... तृप्त
हूँ... सदा ईश्वरीय नशे और ख़ुमारी में मगन हूँ... बापदादा के स्नेह में समाकर
उनके विशेष स्नेह का अनुभव कर रही हूँ... बापदादा के दिलतख्त पर स्थित होकर
अपने श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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