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 10 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ कोई भी कर्म बाप की निंदा करवाने वाला तो नहीं किया ?

 

➢➢ अपनी जांच की कि मेरे अन्दर क्या अवगुण हैं ?

 

➢➢ पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकंड में नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तित किया ?

 

➢➢ स्वयं प्रति और सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ परिवर्तन की शक्ति को कार्य में लगाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  ज्वाला स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने के लिए निरन्तर याद की ज्वाला प्रज्वलित रहे। इसकी सहज विधि है-सदा अपने को ''सारथी' और 'साक्षी' समझकर चलो। आत्मा इस रथ की सारथी है- यह स्मृति स्वत: ही इस रथ (देह) से वा किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कण्ट्रोल में रहती हैं। सूक्ष्म शक्तियां 'मन-बुद्धि-संस्कार' भी ऑर्डर प्रमाण रहते हैं।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

  अपने को स्वदर्शन चक्रधारी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? सिर्फ स्व का दर्शन किया तो सृष्टि चक्र का स्वत: ही हो जायेगा। आत्मा को जाना तो आत्मा के चक्र को सहज ही जान गये। वैसे तो 5000 वर्ष का विस्तार है। लेकिन आप सबके बुद्धि में विस्तार का सार आ गया। सार क्या है? कल और आज-कल क्या थे, आज क्या है और कल क्या बनेंगे। इसमें सारा चक्र आ गया ना। कल और आज का अन्तर देखो कितना बड़ा है! कल कहाँ थे और आज कहाँ हैं, रात और दिन का अन्तर है। तो जब विस्तार का सार आ गया तो सार को याद करना सहज होता है ना। कल और आज का अन्तर देखते कितनी खुशी होती है! बेहद की खुशी है? ऐसे नहीं आज थोड़ी खुशी कम हो गई, थोड़ा सा उदास हो गये। उदास कौन होता है? जो माया का दास बनता है।

 

  क्या करें, कैसे करें, ये क्वेश्चन आना माना उदास होना। जब भी क्यों का क्वेश्वन आता है - क्यों हुआ, क्यों किया तो इससे सिद्ध है कि चक्र का ज्ञान पूरा नहीं है। अगर ड्रामा के राज को जान जाये तो क्यों क्या का क्वेश्चन उठ नहीं सकता। जब स्वयं भी कल्याणकारी और समय भी कल्याणकारी है तो यह क्या.. का क्वेश्चन उठ सकता है? तो ड्रामा का ज्ञान और ड्रामा में भी समय का ज्ञान इसकी कमी है तो क्यों और क्या का क्वेश्चन उठता है। तो कभी उठता है कि क्या यह मेरा ही हिसाब है.. मेरा ही कड़ा हिसाब है दूसरे का नहीं... कितना भी कड़ा हो लेकिन योग की अग्नि के आगे कितना भी कड़ा हिसाब क्या है! कितना भी लोहा कड़ा हो लेकिन तेज आग के आगे मोम बन जाता है। कितनी भी कड़ी परीक्षा हो, हिसाब किताब हो, कड़ा बन्धन हो लेकिन योग अग्नि के आगे कोई बात कड़ी नहीं, सब सहज है। कई आत्मायें कहती हैं - मेरे ही शरीर का हिसाब है और किसका नहीं.. मेरे को ही ऐसा परिवार मिला है.. मेरे को ही ऐसा काम मिला है.. ऐसे साथी मिले हैं.. लेकिन जो हो रहा है वह बहुत अच्छा। यह कड़ा हिसाब शक्तिशाली बना देता है। सहन शक्ति को बढ़ा देता है।

 

  तेज आग के आगे कोई भी चीज परिवर्तन न हो - यह हो ही नहीं सकता। तो यह कभी नहीं कहना - कड़ा हिसाब है। कमजोरी ही सहज को मुश्किल बना देती है। ईश्वरीय शक्ति का बहुत बड़ा महत्व है। तो सदा स्व को देखो, स्वदर्शन चक्रधारी बनो। और बातों में जाना, औरों को देखना माना गिरना और बाप को देखना, बाप का सुनना अर्थात् उड़ना। स्वदर्शन चक्रधारी हो या परदर्शन चक्रधारी हो? यह प्रकृति भी पर है, स्व नहीं है। अगर प्रकृति की तरफ भी देखते हैं तो परदर्शनधारी हो ये। बोडी कोंन्शसनेस होना माना परदर्शन और आत्म अभिमानी होना माना स्वदर्शन। परदर्शन के चक्र में आधाकल्प भटकते रहे ना। संगमयुग है स्वदर्शन करने का युग। सदा स्व के तरफ देखने वाले सहज आगे बढ़ते हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जैसे मोटे शरीर की भी वैरायटी होती है, वैसे ही आत्माओं के भारी-पन के पोज भी वैरायटी थे। अगर अलौकिक कैमरा से फोटो निकालो वा शीशा महल में यह वैरायटी पोज देखो तो बड़ी हँसी आए।

 

✧  जैसे आपकी दुनिया में वैरायटी पोज का खूब हँसी का खेल दिखाते हैं ना, वैसे यहाँ भी खूब हँसाते हैं। देखेंगे हँसी का खेल?

 

✧  बहुत ऐसे भी थे जो मोटे-पन के कारण अपने को मोडना चाहते भी मोड नहीं सकते। ऊपर जाने के बदले बार-बार नीचे आ जाते थे। बीज रूप स्टेज को अनुभव करने के बदले, विस्तार रूपी वृक्ष में अर्थात अनेक संकल्पों के वृक्ष में उलझ जाते हैं।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ जैसे पहले-पहले मौन व्रत रखा था तो सब फ्री हो गए थे, टाइम बच गया था- तो ऐसा कोई साधन निकालो जिससे सबका टाइम बच जाए-मन का मौन हो व्यर्थ संकल्प आवे ही नहीं। यह भी मन का मौन है ना। जैसे मुख से आवाज न निकले वैसे व्यर्थ संकल्प न आयें - यह भी मन का मौन है। तो व्यर्थ खत्म हो जावेगा। सब समय बच जावेगा, तब फिर सेवा आरम्भ होगी। मन के मौन से नई इन्वेन्शन निकलेगी - जैसे शुरु के मौन से नई रंगत निकली वैसे इस मन के मौन से नई रंगत होगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अवगुणों को निकालने का पुरुषार्थ करना"

➳ _ ➳ मै आत्मा भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ... मुझसे चारो ओर दिव्य प्रकाश फैल रहा है.. अपने प्रकाशित स्वरूप को देख रही हूँ और फ़रिश्ता बनकर सूक्ष्म लोक में मीठी ब्र्ह्मा माँ के पास पहुंचती हूँ... मीठी माँ मुझे स्नेह से अपनी ममतामयी गोद में आलिंगन करती है... और शिव पिता भी आतुर से हसीन नजारा देखने आये है... शिव पिता को देख... मै आत्मा उनके गले मै झूम जाती हूँ... प्यारे बाबा अपने वरदानी हाथो को सिर पर रख... आशीर्वादों की वर्षा कर रहे है...

❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को विजय तिलक से आलोकित करते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... मै पिता बच्चों को माया के बन्धनों से मुक्त कराकर 21 जनमो का स्वराज्य देने आया हूँ... इसलिए गुणो और शक्तियो के सागर पिता से सारे खजाने लेकर... स्वयं को ईश्वरीय गुणो से लबालब कर, सुखो के अधिकारी बनो... यादो की अग्नि में सारे विकारो को भस्म करो...."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानी महावाक्य सुनकर कह रही हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपकी यादो में खोकर में आत्मा सदा ही मौज में हूँ... दिव्य गुणो से सजधज कर देवताओ की धरती पर कदम रख रही हूँ... आपकी यादो में अपनी दैहिक विकृतियों को खत्म कर पवित्रता की किरणों से भर गयी हूँ..."

❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अतुल धन दौलत का मालिक बनाते हुए बोले :- " मीठे लाडले बच्चे... रूहानी फूल बनकर गुणो की खशबू से महकने वाले गुलाब बनो... अपने विकारो के काँटों को योग अग्नि में जलाकर निर्मल पवित्र बनो... और पवित्रता के सौंदर्य पर मीठे बाबा को मोहित कर स्वर्ग का अधिकार प्राप्त करो..."

➳ _ ➳ मै आत्मा अपने खोये वजूद को मीठे बाबा से पाकर निहाल हो गयी और बोली :- "सच्चे साथी बाबा... मेरे सुखो की चिंता स्वयं भगवान कर रहा है, यह कितना महान भाग्य है... अपनी गोद में बिठाकर फूलो सा खिलाना... और स्वर्ग की जमी को मेरे नाम लिखना... यह ईश्वर पिता ही मेरे लिए कर सकता है कोई मनुष्य नही..."

❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को सुखो के नजारे दिखाते हुए बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... यह धरती, आसमाँ सुखो से सजे, आप बच्चों के लिए ही है... बस श्रीमत का हाथ पकड़ देह के भान... और विकारो के दलदल से बाहर निकल जाओ... सारे अवगुण खत्म कर... स्वर्ग की बादशाही पर अपना हक जमाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा अपने भाग्य की जादूगरी पर मुस्करा कर मीठे बाबा से कहती हूँ :- "प्यारे लाडले बाबा मेरे... दैहिक रिश्तो और देहभान ने मुझे विकारी और काला कर दिया... आपने अपनी पसन्द बनाकर मुझे गोरा और उजला कर दिया है... आपके प्यार की शीतलता में, मै आत्मा पुनः निखर उठी हूँ और दिव्यता में मुस्करा रही हूँ..." यूँ अपनी भावनाओ का हार... मीठे बाबा के गले में डाल, मै आत्मा सृस्टि रंगमंच पर आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- कोई भी कर्म बाप की निंदा करने वाला ना हो"

➳ _ ➳ एक खुले स्थान पर, ठन्डी हवाओ का आनन्द लेती अपने खुदा दोस्त को अपने साथ अनुभव करती मैं अपने खुदा दोस्त का शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने अपनी श्रेष्ठ मत द्वारा मेरे जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना दिया। अपने ऐसे खुदा दोस्त, भगवान बाप को मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनकी निंदा कराने वाला कोई भी कर्म मैं कभी भी नही करूँगी। हर कदम उनकी श्रेष्ठ मत पर चलते हुए, उनके हर फरमान का पालन करते अपने श्रेष्ठ संकल्प, बोल और कर्म द्वारा उनका नाम बाला करूँगी।

➳ _ ➳ मन ही मन अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी मधुर पालना के झूले में स्वयं को झूलते हुए अनुभव करती मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में बाबा मेरे सहयोगी बन, मुझ में अपनी शक्तियाँ प्रवाहित कर, मुझे आप समान बलशाली बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं। परमधाम से अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की मीठी फ़ुहारों को अपने ऊपर गिरते हुए मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। ये रंग बिरंगी मीठी फुहारे मेरे अन्तर्मन को छू कर मुझे देह से न्यारी एक अति प्यारी अवस्था का अनुभव करवा रही हैं।

➳ _ ➳ इस न्यारी और प्यारी अवस्था मे मैं स्वयं को मस्तक के बीचों - बीच चमकते हुए एक अति सूक्ष्म गोल्डन स्टार के रूप में देख रही हूँ जिसकी रंग बिरंगी किरणों का प्रकाश चारों और फैलकर मन को बहुत ही सुखद अनुभूति करवा रहा है। इस प्रकाश में मुझ आत्मा के सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का मिश्रण समाया है जो मुझे मेरे सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करवा कर बहुत ही शक्तिशाली स्थिति में स्थित कर रहा है। स्वयं में से निकल रहे इस खूबसूरत प्रकाश को देखते और गहन आनन्द की अनुभूति करते - करते मैं गोल्डन स्टार अपनी रंग बिरंगी किरणो को फैलाता हुआ अब चमकते चैतन्य सितारों की उस गोल्डन दुनिया मे जा रहा हूँ जहाँ मेरे प्यारे पिता रहते हैं।

➳ _ ➳ अपने पिता के प्रेम की लग्न में मग्न, मैं जगमग करती ज्योति धीरे - धीरे ऊपर उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे ऊपर फरिश्तो की दुनिया को पार कर, अनन्त ज्योति के देश, अपने परमधाम घर मे प्रवेश कर जाती हूँ। सामने महाज्योति मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की अनन्त किरणो को फैलाये ऐसे लग रहे है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भरने के लिए व्याकुल हो रहें हैं। बिना कोई विलम्ब किये मैं चमकती हुई चैतन्य ज्योति अपने महाज्योति शिव पिता के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा जाती हूँ।

➳ _ ➳ मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की किरणें स्नेह की मीठी फ़ुहारों के रूप में मुझ पर बरसने लगती हैं। सर्वशक्तिवान मेरे प्यारे मीठे बाबा अपना असीम स्नेह मुझ पर बरसाते हुए अपनी सर्वशक्तियों से मुझे बलशाली बनाने के लिए अपनी लाइट माइट को फुल फोर्स के साथ मुझ में प्रवाहित करने लगते हैं। अपने प्यारे पिता की लाइट माइट पाकर, सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर, अपने संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ बना कर, अपने प्यारे पिता का नाम बाला करने के लिए अब मैं साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ।

➳ _ ➳ अपने साकार तन का आधार लेकर, ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर अब मैं हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रहकर कर रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर पूरा अटेंशन देते हुए मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि देह भान में आकर, मेरे मन मे कोई भी गलत संकल्प भी कभी उतपन्न ना हो, मेरे मुख से कभी भी, कोई भी ऐसा बोल ना निकले जो किसी को आहत करे या ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जाये जो किसी को तकलीफ पहुँचे और मेरे प्यारे पिता की निंदा का कारण बनें। इसलिये इन सभी बातों पर पूरा अटेंशन दे, अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाली स्व परिवर्तक आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं स्वयं प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति श्रेष्ठ परिवर्तन की शक्ति को कार्य में लाने वाली सच्ची कर्मयोगी आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ समय और स्वयं के महत्व को स्मृति में रखो तो महान बन जायेंगे संगम युग का एक-एक सेकण्ड सारे कल्प की प्रालब्ध बनाने का आधार है। ऐसे समय के महत्त्व को जानते हुए हर कदम उठाते हो? जैसे समय महान है वैसे आप भी महान आत्मा हो - क्योंकि बापदादा द्वारा हर बच्चे को महान आत्मा बनने का वर्सा मिला है। तो स्वयं के महत्व को भी जानकर हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म महान करो। सदा इसी स्मृति में रहो कि हम ‘महान बाप के बच्चे महान हैं।' इससे ही जितना श्रेष्ठ भाग्य बनाने चाहो बना सकते हो। संगमयुग को यही वरदान है। सदा बाप द्वारा मिले हुए खजानों से खेलते रहो। कितने अखुट खजाने मिले है, गिनती कर सकते हो! तो सदा ज्ञान रत्नों से, खुशी के खजाने से शक्तियों के खजाने से खेलते रहो। सदा मुख से रतन निकलें, मन में ज्ञान का मनन चलता रहे। ऐसे धारणा स्वरूप रहो। महान समय है, महान आत्मा हूँ - यही सदा याद रखो।

✺ "ड्रिल :- समय और स्वयं के महत्व को स्मृति में रखना"

➳ _ ➳ सुबह सुबह जब मैं दाना पानी लेकर छत पर गई और चिड़िया को खिलाने लगी... तो मैंने देखा कुछ पंछी बहुत तेजी से आकाश में उड़ते हुए जा रहे हैं... उनमें से एक पक्षी उडकर मेरे पास आ जाता है... और दाना चुगने लगता है दाना चुगकर जैसे ही वह पक्षी पानी पीकर उड़ने लगता है तो मैं उसे रोकती हूं और कहती हूं... तुम सभी पक्षी इतनी तेजी से कहां उड़े चले जा रहे हो... तो वह पक्षी मुझे समय का महत्व समझाते हुए कहता है कि मैं अपने समय के इस महत्व को अच्छी रीती जानते हुए उस दिशा में अपने घोंसले में छोड़े हुए छोटे-छोटे बच्चे हैं उनके लिए भोजन एकत्रित करने के लिए उस दिशा की तरफ जा रहा हूं... इतना कहकर वह पक्षी फर्र से उड़ जाता है...

➳ _ ➳ तभी अचानक वहां पर मेरे सामने चिड़िया आकर छोटे से पेड़ की टहनी पर बैठ जाती है और मैं उससे कहती हूं... चिड़िया रानी मुझे इस समय के महत्व के बारे में पूर्ण रीति से समझाइए... चिड़िया मेरी बात सुनकर खुश हो जाती है... और चहक चहक कर मुझे सारा हाल बताती हैंऔर कहती है... हम पक्षियों को बस दिन ही मिलता है जिसमें हम हमारा भोजन जुटा सकते हैं... इसमें बीच-बीच में आंधी और तूफान भी आते हैं जिससे हमें अपनी रक्षा करनी होती है... इसलिए हम कम समय में अपना भोजन एकत्रित करने का प्रयास करते हैं.... और वह चिड़िया मुझसे कहती है जब मुझे उड़ना भी नहीं आता था मैं अपने घोंसले में सारा दिन व्यतीत करती थी और मेरी मां मेरे लिए दाना अर्थात भोजन इकट्ठा करने के लिए सुबह ही घर से निकल जाती थी... और शाम को जब मेरी मां घोंसले में आती तो मेरे लिए अपनी चोंच में भोजन लेकर आती थी... इतना कहकर वह चिड़िया भी उड़ जाती है...

➳ _ ➳ पक्षियों के इन विचारों को सुनकर मेरे मन में एक अलग ही अनुभूति होती है... मुझे भी यह विचार आता है कि इस संगम युग पर परमपिता परमात्मा सिर्फ हमारे लिए इस धरा पर आए हैं... और मुझे भी यह आभास होता है कि यह संगम युग मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण है... यह सोचते हुए मैं फरिश्ता बनकर मेरे बाबा के पास सूक्ष्म वतन में पहुंच जाती हूं... और बाबा से कहती हूं बाबा मुझ आत्मा को इस संगम युग के महत्व के बारे में विस्तार से बताइए... बाबा मेरा हाथ पकड़ कर फरिश्ते स्वरूप में उड़ते हुए चंद्रमा के ऊपर बैठ जाते हैं... और उस शीतल वातावरण में मुझे समझाते हैं... बच्चे इस संगम युग का जन्म तुम्हारे लिए हीरे तुल्य जन्म है... तुम इस संगम युग में पुरूषार्थ करके 21 जन्मों की सुख की अनुभूति और सुख समृद्धि को प्राप्त कर सकते हो... यह समय तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है... इस समय का एक एक सेकंड तुम्हारे लिए 100 वर्षों के समान है... अगर तुमने 1 सेकंड भी व्यर्थ में गवाया तो मानो 100 वर्ष तुमने व्यर्थ में गवा दिए...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं अपने आप को एक तारे पर बाबा के साथ बैठा हुआ अनुभव करती हूं और बाबा मुझसे कह रहे हैं... (बच्चे इस संगम युग में तुम्हें अधिक-से-अधिक पुरुषार्थ करके पुरुषोत्तम बनना है... इसी समय तुम परमात्मा द्वारा दिए हुए खजानो को बटोर सकते हो... और इसी समय परमात्मा से प्रीत बुद्धि बनकर उनके दिलतख्तनशीन बन सकते हो परमात्मा तुम्हें महान बनाने आए हैं... तुम्हें महान स्थिति का अनुभव करते हुए अपने हर बोल, संकल्प , कर्म को महान बनाना है... और इस महान संगम युग में तुम्हें अपने आप को और अपने कर्मों को महान बनाना है...

➳ _ ➳ फिर बाबा मुझे फरिश्ते स्वरूप में उड़ा कर सूक्ष्म वतन में ले जाते हैं... और बाबा मुझे कहते हैं बच्चे जो मैंने तुम्हें अभी शिक्षा दी है जिस समय के महत्व के बारे में बताया है आज से उस समय के महत्व को जानते हुए और अपना महत्व जानकर इस स्मृति में रहना...कि यह समय तुम्हारे लिए कितना महत्वपूर्ण है... मैं बाबा को धन्यवाद करते हुए और यह वादा करते हुए कि मैं आपके द्वारा दी हुई इन शिक्षाओं का अनुसरण करूंगी और वापस छत पर आ जाती हूं... जहां मैं चिड़िया को दाना पानी डाल रही थी और मैं अब उस पुरुषार्थ में जुट जाती हूं कि आज से संगम युग मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है... इस समय और स्वयं की महत्वपूर्णता की स्मृति में मैं हर कर्म, बोल और संकल्प को महान बनाने में जुट जाती हूं...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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