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❍ 27 / 12 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ऐसी कोई गफलत तो नहीं की जिससे बैटरी डिसचार्ज हो जाए ?
➢➢ ज्ञान और योग में मस्त बनकर रहे ?
➢➢ सेवा में रहेते सम्पूरनता के समीपता की अनुभूति की ?
➢➢ हर कर्म में योग का अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ आत्मिक स्थिति में रहने से चेहरा कभी गम्भीर नहीं दिखाई देगा। गम्भीर बनना अच्छा है लेकिन टूमच गम्भीर नहीं। चेहरा सदा मुस्कराता रहे। जैसे आपके जड़ चित्रों को अगर सीरियस दिखाते हैं तो कहते हो आर्टिस्ट ठीक नहीं है। ऐसे आप अगर सीरियस रहते हो तो कहेंगे इसको जीने का आर्ट नहीं आता।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं कोटो में कोई आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को सदा विश्व के अन्दर कोटों में कोई, कोई में भी कोई, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह हमारा ही गायन है? एक होता है ज्ञान के आधार पर जानना, दूसरा होता है किसी का अनुभव सुनकर उस आधार पर मानना और तीसरा होता है स्वयं अनुभव करके महसूस करना।
〰✧ तो ऐसे महसूस होता है कि हम कल्प पहले वाली कोटों में से कोई, कोई में से कोई श्रेष्ठ आत्मायें हैं? ऐसी आत्माओंकी निशानी क्या होगी? ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें सदा बाप शमा के पीछे परवान बन फिदा होने वाली होंगी।
〰✧ चक्र लगाने वाली नहीं। आए चक्र लगाया, थोड़ी सी प्राप्ति की, ऐसे नहीं। लेकिन फिदा होना अर्थात् मर जाना-ऐसे जल मरने वाले परवाने हो ना? जलना ही बाप का बनना है। जो जलता है वही बनता है। जलना अर्थात् परिवर्तन होना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमजोरियाँ सब देह के साथ हैं, और देह से न्यारा हो गया, तो सबसे न्यारा हो गया। इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कन्ट्रलिंग पॉवर चाहिए।
〰✧ मन को कन्ट्रोल कर सकें, बुद्धि को एकाग्र कर सकें। नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। पहले एकाग्र करें, तब ही विदेही बने। अच्छा। आप लोगों का तो 14 वर्ष किया हुआ है ना! (बाबा ने संस्कार डाल दिया है) फाउण्डेशन पक्का है। आप लोगों की तो 14 वर्ष में नेचर बन गई।
〰✧ सेवा में कितने भी बिजी रही लेकिन कोई बहाना नहीं चलेगा कि हमको समय नहीं था। क्योंकि बापदादा को अभी जल्दी-जल्दी 108 और 16,000 तो तैयार करने हैं। नहीं तो काम कैसे चलेगा। साथी तो चाहिए ना। तो 108 फिर 16,000, फिर 9 लाख।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ फ़रिश्ते अर्थात् साकार बाप को फ़ालो करने वाले।जैसे भाग्य में आने को आगे करते हो, वैसे त्याग में ‘पहले मैं”। जब त्याग में हरेक ब्राह्मण-आत्मा 'पहले मैं” कहेगा तो भाग्य की माला सबके गले में पड़ जायेगी। आपके सम्पूर्ण स्वरूप सफलता की माला लेकर आप पुरुषार्थियों को गले में डालने के लिए नज़दीक आ रहे हैं। अन्तर को मिटा दो। हम सो फ़रिश्ता का मन्त्र पक्का कर लो तो साइन्स का यन्त्र अपना काम शुरू करे और हम सो फ़रिश्ते से हम सो देवता बन नई दुनिया में अवतरित होंगे। ऐसे साकार बाप को फ़ालो करो। साकार को फ़ालो करना तो सहज है ना? तो सम्पूर्ण फ़रिश्ता अर्थात् साकार बाप को फालो करना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- संगमयुग पर रहते नई दुनिया को याद कर आत्मा को पावन बनाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा पतंग अपना डोर मीठे बाबा के हाथों में देकर बेफिक्र
होकर आसमान में उड़ रही हूँ... जब से मीठे बाबा के हाथों में अपना डोर थमाया है
मैं आत्मा सर्व बन्धनों से न्यारी और प्यारे बाबा की प्यारी बन गई हूँ... इस
पुरानी दुनिया से अपने सारे बंधन, देहधारियों के हाथों में फंसे सारे मोह रूपी
डोर तोडकर बंधनमुक्त होकर... ऊपर उड़ते हुए प्यारे बाबा के पास प्यारे वतन में
पहुँच जाती हूँ...
❉ संगमयुग के पुरुषार्थ से नई दुनिया में राजाई पद पाने का ज्ञान
देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... अब इस दुनिया का अंत
बहुत करीब है... इस खत्म हुई सी दुनिया से मन बुद्धि को निकाल मीठे बाबा की
मीठी यादो में लगाओ... इस वरदानी संगमयुग में ये मीठी यादे सतयुगी सुखो से दामन
सजायेंगी... और सुखो भरी राजाई दिलाएंगी...”
➳ _ ➳ अब घर जाना है की स्मृति से एक बाबा की यादों में समाकर मैं आत्मा
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा इस दुखो से भरी दुनिया से
न्यारी होकर ईश्वरीय यादो में धनवान् बनती जा रही हूँ... मीठे संगम पर मीठे
बाबा संग यादो में झूम रही हूँ और श्रेष्ठ संस्कारो को स्वयं में भरती जा रही
हूँ...”
❉ इस धरा से उठाकर धूल से मस्तक मणि जगमगाता सितारा बनाकर मीठे
बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... स्वयं को देह समझ देह की मिटटी
में मटमैले हो गए हो... खुबसूरत सितारे हो यह पूरी तरह से भूल गए हो... अब इस
खत्म सी खाली दुनिया से और दिल न लगाओ... नई सुखो भरी खुबसूरत दुनिया में चलने
के प्रयासों में जुट जाओ...”
➳ _ ➳ नई दुनिया के नजारों को अपनी आँखों में बसाकर स्नेह सागर में
डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इस दुखदायी
दुनिया से उपराम होकर आपकी मीठी यादो में दिव्य गुणो को धारण कर शक्तिशाली बनती
जा रही हूँ... देवताओ जैसा रूप रंग पाती जा रही हूँ... सुखो भरे स्वर्ग
के लायक बनती जा रही हूँ...”
❉ पुरानी दुनिया के संस्कारों को मिटाकर नई दुनिया में चलने के
लिए नए संस्कारों को धारण कराते हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे
मीठे बच्चे... यह संगमयुग ही सच्ची कमाई का युग है... हर पल हर साँस संकल्प को
ईश्वर पिता की यादो में डुबो दो... यह यादे ही सच्ची कमाई बन जाएँगी... दिव्य
गुणो से शक्तियो से सजा कर देवताओ सा सजायेंगी.... और मीठे सुखो और आनन्द से
भरपूर दुनिया में राज भाग्य दिलाएंगी...”
➳ _ ➳ स्नेह सागर की यादों में दिव्य गुणों से सजकर बेनूर से कोहिनूर बन
मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा संगम युग में पुरानी
सी विनाशी दुनिया की हर बात से किनारा कर उज्ज्वल भविष्य की तैयारियों में जुटी
हूँ... सतयुगी दुनिया में ऊँच पद पाकर शान से मुस्कराने के मीठे प्रयत्नों में
प्रतिपल जुटी हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- याद की यात्रा से आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज कर सतोप्रधान तक
पहुंचना है"
➳ _ ➳ परमधाम में मैं आत्मा, मैं चैतन्य ज्योति, अपने महाज्योति शिव पिता
के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। अपने शिव
पिता के साथ मिलन मनाने का असीम सुख लेते हुए मैं एकटक उन्हें निहार रही हूँ।
पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे अलग रहने के कारण उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म
जन्मांतर की प्यास को मैं आज पूरी तरह बुझा लेना चाहती हूँ। इसलिए मन बुद्धि
रूपी नेत्रों को पूरी तरह अपने शिव पिता पर केंद्रित कर, उनके अति सुंदर मनमोहक
स्वरूप को, उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं मन ही मन मगन हो रही हूँ।
उनका यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे उन्हें और समीप से देखने के लिए अपनी ओर
आकर्षित कर रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की किरणों
रूपी बाहों को फैला कर मुझे अपने आगोश में लेकर, अपना सम्पूर्ण स्नेह मुझ पर
बरसा कर आज मुझे तृप्त करना चाहते हैं। अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की
किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं चैतन्य ज्योति स्वयं को अपने महाज्योति शिव
पिता के अति समीप देख रही हूँ। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं ज्योति,
महाज्योति में समा कर उनका ही स्वरूप बन गई हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ
ऐसे लग रही हैं जैसे बहुत तेज अग्नि की अनन्त धाराएं निकल रही हों।
➳ _ ➳ पूरे वेग से ये धाराएं मुझ आत्मा के ऊपर निरन्तर प्रवाहित हो रही
हैं। और इन धाराओं के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की खाद जल कर
भस्म हो रही हैं। 63 जन्मो के विकारों की कट जो असंख्य परतों के रुप में मुझ
आत्मा पर चढ़ी हुई थी वो एक - एक परत योग की अग्नि में जल कर समाप्त हो
रही है और मैं आत्मा हल्केपन का अनुभव कर रही हूँ। अपनी सर्वशक्तियों की
ज्वालास्वरूप किरणों की अग्नि से बाबा मुझ आत्मा द्वारा किये हुए एक - एक
विकर्म को दग्ध कर मुझे सम्पूर्ण पावन बना रहें हैं। मेरे सभी पुराने स्वभाव,
संस्कार इस योग की अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं।
➳ _ ➳ जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने स्वभाव संस्कारों का दाह
संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मैं आत्मा फिर से अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप
को पुनः प्राप्त कर रही हूँ। रीयल गोल्ड के समान चमकते हुए अपने वास्तविक
स्वरूप का मैं अनुभव कर रही हूँ। मेरा अनादि स्वरूप बहुत ही प्यारा और बहुत ही
आकर्षक है। कभी मैं अपने इस मनमोहक अनादि स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान
अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा के मन को लुभाने वाले अति सुंदर स्वरूप को
निहारते हुए आनन्दविभोर हो रही हूँ।
➳ _ ➳ रीयल गोल्ड बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस
साकारी लोक में आ रही हूँ। अपने जिस अनादि सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा
पहली बार सृष्टि रूपी रंगमंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए आई थी, उस
सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है। इस
लक्ष्य को सदैव स्मृति में रख, आत्मा को सतोप्रधान बना कर एकरस कर्मातीत अवस्था
तक पहुंचने के लिये, निरन्तर बाबा की याद में रह, अब मैं योग का बल स्वयं में
जमा कर रही हूँ।
➳ _ ➳ जैसे ब्रह्मा बाबा ने योगबल द्वारा एकरस कर्मातीत अवस्था बनाकर
सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के
प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे
ऐसे ही फॉलो फादर कर, योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बना कर, एकरस कर्मातीत
अवस्था तक पहुँचने और सम्पूर्णता को पाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही
हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
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मैं सेवा में रहने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं सम्पूर्णता के समीपता की अनुभूति करने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं ब्रह्मा बाप समान एक्जैमपुल आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
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मैं आत्मा हर कर्म में कर्म और योग का अनुभव करती हूँ ।
✺ मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ ।
✺ मैं आत्मा सदा कर्मयोगी बनकर कर्म करती हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ मालिक हो ना, राजा हो ना! स्वराज्य अधिकारी हो? तो आर्डर करो। राजा तो आर्डर करता है ना! यह नही करना है, यह करना है। बस आर्डर करो। अभी-अभी देखो मन को, क्योंकि मन है मुख्य मन्त्री। तो हे राजा, अपने मन मन्त्री को सेकण्ड में आर्डर कर अशरीरी, विदेही स्थिति में स्थित कर सकते हो? करो आर्डर एक सेकण्ड में। (बापदादा ने 5 मिनट ड्रिल कराई) अच्छा।
✺ ड्रिल :- "अशरीरी, विदेही स्थिति में स्थित होने का अनुभव"
➳ _ ➳ मैं आत्मा शांति स्तंभ के सामने बैठ योग तपस्या कर रही हूँ... यहां बैठते ही दिव्य शांति और रूहानियत का अनुभव हो रहा है... यहां के शक्तिशाली प्रकम्पन सहज ही देह से न्यारा, अव्यक्त स्थिति में स्थित कर रहे हैं... मैं आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हूँ... इस दिव्य भूमि पर बैठते ही ब्रह्मा बाबा के चरित्र... एक-एक करके कैमरे के चित्रों की भांति... मेरे मानस पटल पर उभरने लगे हैं...
➳ _ ➳ शांति स्तंभ की पावन धरनी पर बैठ... मैं आत्मा स्वयं को बहुत शक्तिशाली, रूहानियत से भरपूर देख रही हूँ... अब मुझ आत्मा का हर कदम ब्रह्मा बाप के समान हो रहा है... मैं हर संकल्प, बोल और कर्म में ब्रह्मा बाबा को फॉलो कर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा ने किस तरह से... आत्मिक स्थिति का अभ्यास किया... 'मैं आत्मा हूँ...', 'मैं आत्मा हूँ...' की धुन लगा दी थी... इसी प्रकार मैं आत्मा भी आत्मा का पाठ स्वयं को पक्का करा रही हूँ...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा डायरी में लिख-लिख कर अभ्यास करते थे... 'यशोदा आत्मा है...' 'यशोदा आत्मा है...' इसी प्रकार मैं आत्मा भी आत्मिक दृष्टि का अभ्यास कर रही हूँ... मेरे नैनों में, मेरे हर संकल्प में... सर्व के प्रति प्रेम, रूहानियत समाई हुई है... मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्धों से न्यारी होती जा रही हूँ... हर प्रकार के लगाव और आसक्तियों से परे... अपने आत्मिक स्वरुप में असीम सुख का रस पान कर रही हूँ...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा रोज रात को कर्मेंद्रियों का दरबार लगाते थे... आत्मा राजा बन मन मंत्री को आर्डर देते थे... ऐसे ही मैं आत्मा अपनी शक्तिशाली मालिकपन की स्थिति में स्थित हूँ... मैं आत्मा इस देह की, कर्मेंद्रियों की, मन-बुद्धि-संस्कारों की राजा हूँ... मालिक हूँ... मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... राजा बन सभी कर्मेंद्रियों को श्रीमत के आर्डर प्रमाण चला रही हूँ...
➳ _ ➳ मन मेरा सबसे अच्छा मित्र है... मैं आत्मा राजा बन मन मंत्री को... आर्डर कर रही हूँ... मन तथा सभी कर्मेन्द्रियाँ मुझ स्वराज्य अधिकारी आत्मा के... डायरेक्शन को फॉलो कर रही हैं... मैं आत्मा अपनी शक्तिशाली स्थिति में स्थित हूँ... जब चाहूँ, जैसे चाहूँ, जितना समय चाहूँ... उसी स्थिति में स्वयं को स्थित कर सकती हूँ... मेरा मन सुमन बन गया है... मैं अशरीरी, विदेही आत्मा हूँ... अपनी इस निराकार स्थिति के... सुंदर, दिव्य अनुभवों में समाई हुई हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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