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❍ 30 / 03 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सुबह सुबह बाबा से सर्च लाइट ली ?*
➢➢ *सबकी भ्रकुटी में ही देखकर बात की ?*
➢➢ *बाप के संस्कारों को अपना ओरिगिअल संस्कार बनाया ?*
➢➢ *समर्थ स्थिति से सर्व शक्तियों के खजाने के अधिकारी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे साइंस प्रयोग में आती है तो समझते हैं कि साइंस अच्छा काम करती है, ऐसे साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करो, इसके लिए एकाग्रता का अभ्यास बढ़ाओ। *एकाग्रता का मूल आधार है-मन की कंट्रोलिंग पावर, जिससे मनोबल बढता है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एक बाप की मत पर चलने वाली एकरस आत्मा हूँ"*
〰✧ *अपने को एक ही बाप के, एक ही मत पर चलने वाले एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले अनुभव करते हो? जब एक बाप है, दूसरा है ही नहीं तो सहज ही एकरस स्थिति हो जाती है।* ऐसे अनुभव है?
〰✧ जब दूसरा कोई है ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी और कहाँ जाने की मार्जिन ही नहीं है। है ही एक। जहाँ दो चार बातें होती हैं तो सोचने को मार्जिन हो जाती। जब एक ही रास्ता है तो कहाँ जायेंगे! *तो यहाँ मार्ग बताने के लिए ही सहज विधि है - एक बाप, एक मत, एकरस एक ही परिवार। तो एक ही बात याद रखो तो वन नम्बर हो जायेंगे। एक का हिसाब जानना है, बस।*
〰✧ *कहाँ भी रहो लेकिन एक की याद है तो सदा एक के साथ हैं, दूर नहीं। जहाँ बाप का साथ है वहाँ माया का साथ हो नहीं सकता। बाप से किनारा करके फिर माया आती है।* ऐसे नहीं आती। न किनारा हो न माया आये। एक का ही महत्व है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे आप लोग कहीं भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। *ड्यूटी के ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहल लेते हो वैसे ही सर्वीस समाप्त हुई और इन वस्त्रों के बोंझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो*। एक सेकण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे।
〰✧ कोई भी चीज अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्का होने से सहज ही अलग हो जाता है। *वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी ईजी - पन नहीं होता तो फिर अशरीरी - पन का अनुभव नहीं कर सकेंगे*।
〰✧ सुनाया था ना कि क्या बनना है । इजी और एलर्ट। ऐसे भी नहीं कि ऐसा इजी रहे जो माया भी इजी आ जाये। कोई समय ईजी रहना पडता है, कोई समय एलर्ट रहना पडता है। *तो ईजी और एलर्ट, ऐसे रहने वाले ही इस अभ्यास में रह सकेंगे*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ यह तो अमानत रूहानी बाप ने दी है, रूहानी बाप की याद रहेगी। *अमानत समझने से रूहानियत रहेगी और रूहानियत से सदैव बुद्धि मे राहत रहेगी, थकावट नहीं होगी। अमानत में ख्यानत करने से रूहानियत के बदली उलझन आ जाती है, राहत के बजाय घबराहट आ जाती है। इसलिए यह शरीर है ही सिर्फ ईश्वरीय सर्विस के लिए।* अमानत समझने से आटोमेटिकली रूहानियत की स्थिति रहेगी। जितना अपनी रूहानियत की स्थिति को पक्का करेंगे उतना प्रत्यक्ष फल दे सकेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अब वापिस जाना है इसलिए पुरानी देह और पुरानी दुनिया से उपराम बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा घर की छत पर बैठी उड़ते हुए पंछियों को निहार रही हूँ... संध्या की सुमधुर वेला में सभी पंछी वापस अपने घोंसलों में लौट रहे हैं... इन पंछियों को देख मुझ आत्मा को अपना घर परमधाम याद आ गया... अब मुझे भी अपने घर वापस जाना है...* पहले मैं आत्मा भगवान को पाने के लिए दर-दर भटक रही थी... मंदिरों में, तीर्थों पर ढूंढ रही थी... जप, तप, पूजा, पाठ, यज्ञ, व्रत करते-करते थक गई थी... स्वयं भगवान ने कोटों में से मुझे ढूंढकर अपना बनाया और मेरी भटकन को समाप्त कर दिया... अब मीठे बाबा रूहानी पंडा बन मुझ आत्मा को रूहानी यात्रा करा रहे हैं... *मैं आत्मा चल पड़ती हूँ रूहानी यात्रा करती हुई रूहानी बाबा के पास...*
❉ *दर-दर की भटकन को खत्म कर स्वीट होम की याद दिलाते हुए स्वीट बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... खुबसूरत फूल से जो धरा पर खेलने आये थे... वह खेल अब अंतिम पड़ाव पर आ गया है... *इसलिए अब पिता का हाथ पकड़कर घर चलने की तैयारी में जुटो... बुद्धि को समेटो और साजो सामान को बिन्दु कर अशरीरी हो जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस देह और देह की दुनिया से न्यारी होकर मीठे बाबा की बाहों में मुस्कुराती हुई कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोकर अथाह सुख भरी दुनिया की अधिकारी बन रही हूँ... *अब हर भटकन से मुक्त होकर सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... प्यारे बाबा आप संग घर चलने को तैयार हो रही हूँ...”*
❉ *जीवन की राह से कांटो को निकाल दिव्य किरणों की राह दिखाते हुए मनमीत मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब बेहद की रात पूरी होने को है... मीठे सुख भरे दिन आये की आये... बेहद के खुबसूरत खिले दिन के सच्चे सुखो में फिर आना है... *सच्चा हँसना और मुस्कराना है... इसलिए देह की दुनिया से उपराम हो सच्ची यादो में खो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा रूहानी बाबा का हाथ थाम उनके संग रूहानी यात्रा करते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपका हाथ थाम कर हर भटकन से मुक्त हो गई हूँ... ईश्वर पिता के सच्चे साथ में महफूज़ हो गयी हूँ... *देह के दुखो से निजात पाकर अपने अविनाशी वजूद और निराकारी पिता की बाँहों में खो गयी हूँ..."*
❉ *मीठे यादों के जहाज में बिठाकर इस दुनियावी समंदर के पार ले जाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब स्वयं को कहीं भी उलझाने और भटकाने की जरूरत नही है... *अब मन्नतो का फल खुदा को ही पा लिए हो... तो उसके प्यार में फूलो सा मुस्कराओ और इन मीठी महकती यादो में खोये हुए अपने घर चलने की तैयारी करो..."*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा की मधुर रागिनी से प्यार में डूबकर अशरीरी बन घर जाने को तैयार होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे तो स्वयं बाबा लेने आया है... मै आत्मा बाबा का हाथ पकड़कर सबसे आगे चलूंगी...* और मीठे सुखो की नगरी में सबसे पहले मै ही तो उतरूंगी..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की करेण्ट को कैच करना है*"
➳ _ ➳ इस वर्ड ड्रामा की स्टेज पर खड़े होकर मैं इस सृष्टि रूपी रंगमंच और इस सृष्टि नाटक में पार्ट बजाने वाले करोड़ो पार्टधारियों को देख रही हूँ। *इस 5000 वर्ष के सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना पार्ट बजाते - बजाते आज उस पड़ाव पर पहुँच गई है जहाँ इस वर्ड ड्रामा का एन्ड होकर फिर से इसकी पुनरावृति होने वाली है*। सृष्टि ड्रामा का सारा चक्र मेरी आँखों के सामने घूम रहा है। सभी आत्माओं की सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था से लेकर सम्पूर्ण तमोप्रधान अवस्था तक पहुँचने का सफर मैं दिव्य बुद्धि के नेत्र से देख रही हूँ।
➳ _ ➳ सृष्टि के नए से पुराने होने के चक्र को देखते हुए मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि देहभान ने आज हर मनुष्य आत्मा को कितना शक्तिहीन बना दिया है। *अपने स्वधर्म को भूल परधर्म को अपनाकर आज आत्मायें कितनी दुखी और अशांत हो चुकी है। इस शरीर को अपना मान कर इसके साथ ममत्व रखकर, अपने गुणों और शक्तियों को ही भूल गई हैं इसलिए कितनी निर्बल और असहाय बन पड़ी है*। बलिहारी मेरे प्यारे प्रभु की जिन्होंने आकर सत्यता का बोध करवाने वाला यह सत्य ज्ञान हम मनुष्य आत्माओं को दिया।
➳ _ ➳ परधर्म को छोड़ अर्थात देह से डिटैच हो कर, अशरीरी बन, अपने स्वधर्म में स्थित होकर, अपने प्यारे प्रभु को याद करके अपनी खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने का बाबा ने कितना सहज रास्ता बताकर जैसे हर मुश्किल को आसान कर दिया है। *यही चिंतन करते, मन ही मन अपने प्यारे प्रभु का धन्यवाद करके, स्वयं को मैं अशरीरी में स्थित करती हूँ और स्वयं को देह से डिटैच निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा निश्चय कर, अपनें मन और बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता की याद में स्थिर कर लेती हूँ*।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार परमधाम निवासी मेरे प्यारे पिता के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता से समस्त शक्तियों की एक तेज लाइट मेरे मस्तक के ऊपर पड़ रही है और उस लाइट से निकल रहा करेन्ट मेरे अंदर नव शक्ति का संचार कर रहा है। *एक अनोखी शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है जो मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ एक दम लाइट स्थिति में स्थित कर रही है*। स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करते हुए मैं आत्मा अब अपने आप ही ऊपर की ओर उड़ने लगी हूँ। *देह और देह की दुनिया का आकर्षण जैसे पीछे छूटता जा रहा है और मैं बस एक पतंग की भांति अपने आप उस तरफ उड़ती जा रही हूँ जिसकी डोर बाबा के हाथ मे है और बाबा उसे अपनी ओर खींच रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के आगोश में लेकर, आंधी, तूफान आदि सबसे मुझे बचाते हुए मेरे प्यारे पिता मुझे मेरे स्वीट साइलेन्स होम में पहुँचा देते हैं। *अपने इस शान्तिधाम घर में आकर, मन बुद्धि से सब कुछ भूल, निरसंकल्प होकर अब मैं केवल स्वयं को और अपने प्यारे प्रभु को निहार रही हूँ*। उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए, उन्हें छूने की मन में आश लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास जाने के लिए आगे बढ़ रही हूँ। जैसे मोर अपने पंख जब फैलाता है तो उसका सौंदर्य देखने वाले का मन मोह लेता है ऐसे ही *बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चारों ओर फैलकर, मन को लुभाते हुए अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं*।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की किरणों से निकल रहे वायब्रेशन मन को एक अति सुखद अनुभूति करवा रहें हैं। एक गहन सुकून का अनुभव करते, धीरे - धीरे आगे बढ़ते हुए मैं अपने प्यारे पिता के बिल्कुल समीप पहुँच कर अब उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ। *ये छुयन एक शक्तिशाली करन्ट की तरह मेरे रोम - रोम को पुलकित कर देती हैं और एक अद्भुत शक्ति से मुझे भर देती है*। बार -बार अपने सर्वशक्तिवान पिता की एक - एक शक्ति की अनन्त किरणों को छू कर, हर शक्ति से भरपूर होकर, मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ *फिर से वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर अपना पार्ट बजाते हुए, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते, बीच - बीच में शरीर से डिटैच होकर, बाबा की याद में बैठ, बाबा से शक्ति लेकर, स्वयं को सदा एनर्जेटिक महसूस करते हुए, अपने लौकिक और अलौकिक सभी कर्तव्यों को मैं अब बड़ी सहजता से खुशी - खुशी पूरा कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप के संस्कारों को अपने ओरिजिनल संस्कार बनाने वाली शुभ भावना, शुभ कामनाधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *जिसमें समर्थी है, मैं वही सर्व शक्तियों के खजाने की अधिकारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *साधारण बोल अभी आपके भाग्य के आगे अच्छा नहीं लगता। कारण है 'मैं'।* यह मैं, मैं-पन, मैंने जो सोचा, मैंने जो कहा, मैं जो करता हूँ... वही ठीक है। *इस मैं-पन के कारण अभिमान भी आता है, क्रोध भी आता है।* दोनों अपना काम कर लेते हैं। *बाप का प्रसाद है, मैं कहाँ से आया! प्रसाद को कोई मैं-पन में ला सकता है क्या? अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है। बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन 'मैं' नहीं लाओ। यह मैं-पन को समाप्त करो। यह सूक्ष्म मैं-पन है। अलौकिक जीवन में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता।*
✺ *ड्रिल :- "बाप का प्रसाद समझ मैं-पन को समाप्त करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा स्वयं को सेन्टर में बाबा के कमरें में बैठे हुए... *स्व स्वरूप में स्थित मैं आत्मा सातों गुणों का अनुभव कर रही हूँ... अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा शिव माँ की शीतल छत्रछाया के नीचे स्वयं को...* शिव माँ रगं-बिरंगी किरणों की लाइट मुझ पर डाल रही है... जैसे-जैसे मुझ आत्मा पर शिव मां से ये लाइट पड़ रही है... *मैं आत्मा अतिन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अतिन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ... मैं आत्मा लाइट हाऊस, माइट हाऊस बनती जा रही हूँ...* मुझ आत्मा के दैवी संस्कार इमर्ज होते जा रहे है...
➳ _ ➳ तभी मुझ आत्मा की मन रुपी स्लेट पर बाबा के कहें गये अव्यक्त महावाक्य उभरने लगते है... *"अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है... बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन मैं नहीं लाओ... यह मैं-पन को समाप्त करो... यह सूक्ष्म मैं-पन है... अलौकिक जीवन में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता..."* एकाएक मैं आत्मा सामने लगे बापदादा की तस्वीर को देखती हूँ... ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... और *बाबा की आँखों से लाइट मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मैं आत्मा बाबा को अपने सम्मुख अनुभव कर रही हूँ...* और फिर से यहीं बाबा के महावाक्य मन रुपी स्लेट पर उभरते है...
➳ _ ➳ *"मैं नहीं लाओ यह मैं-पन समाप्त करो... अलौकिक जीवन में यह सूक्ष्म मै-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता..."* मैं आत्मा बाबा के द्वारा कहें गये इन माहावाक्यों पर चितंन करती हूँ... मैं आत्मा बाबा की आँखों में देखते हुए... अपने आप से प्रश्न करती हूँ... *क्या मैं आत्मा मैं-पन से सम्पूर्ण मुक्त हो चुकी हूँ ? कहीं मैं-पन के कारण अहंकार वश और क्रोध वश तो नहीं हो जाती हूँ ? कोई भी विशेषता या हुनर जो प्रभु प्रसाद है... कहीं उसका अहंकार तो नहीं आ जाता है ? निमित्त भाव के बदले मैंने किया... मुझे आता है... मैं ही कर सकती हूँ कहीं ऐसी मैं-पन के बोझ की गठरी उठाएं तो नहीं चल रही हूँ* ताज के बदले कहीं मैं-पन की टोकरी उठाकर तो नहीं चल रही हूँ... कहीं ऐसा मैं-पन का अभिमान तो नहीं आता... क्योंकि यह मैं-पन अगर होगा तो बोझ अनुभव होगा...
➳ _ ➳ ये मन-पन क्रोध और अभिमान को साथ लायेगा... आत्मा कभी उड़ती कला का अनुभव नहीं कर पायेगी... ये मैं-पन *स्थिति को बार-बार नीचे गिरायेगा और इस अलौकिक मार्ग में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देगा...* मैं आत्मा बाबा के द्वारा कहें एक-एक महावाक्य को गहराई से समझ रही हूँ... तभी एकाएक बाबा से शक्तिशाली ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ने लगती है... मुझ आत्मा के ऊपर जैसे-जैसे ये प्रकाश पड़ता जा रहा है... *मैं आत्मा ज्ञान स्वरूप बनती जा रही हूँ... सत्यता के प्रकाश से मैं आत्मा चमक रही हूँ... मैं आत्मा मैं और मेरेपन के झूठ से मुक्त होती जा रही हूँ... बाबा शक्तिशाली पवित्र किरणें मुझ आत्मा पर डाल रहे है... मुझ आत्मा की सूक्ष्म मैं और मेरेपन की रस्सियां जलकर भस्म हो रही है... अब मैं आत्मा मैं-पन से सम्पूर्ण मुक्त हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा हर कर्म निमित्त भाव और करनकरावनहार की स्मृति में रह कर करती हूँ... अपनी विशेषताओं को बाबा का प्रसाद समझ निमित्त, निर्माण भाव से सेवा में यूज करती हूँ...* अब मैं आत्मा हर प्रकार के सूक्ष्म ते अति सूक्ष्म मैं-पन से मुक्त हो बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ... और हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *मैं-पन से मुक्त मैं आत्मा इस अलौकिक जीवन में दर्शनीय मूर्त बन गयी हूँ... उड़ती कला द्वारा तीव्र गति से आगे बढ़ रही हूँ... और सबको आगे बढ़ा रही हूँ... आप समान बना रही हूँ... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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