━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 22 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपना चार्ट चेक किया की हमने कितने दैवीगुण धारण किये हैं ?
➢➢ कोई भी छी छी वस्तुएं तो नहीं खायी ?
➢➢ सेवा द्वारा ख़ुशी, शक्ति व सर्व की आशीर्वाद प्राप्त की ?
➢➢ मनसा वाचा की शक्ति से विघन का पर्दा हटा अन्दर कल्याण का दृश्य देखा ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ जैसे बाप के लिए सबके मुख से एक ही आवाज निकलती है- 'मेरा बाबा'। ऐसे आप हर श्रेष्ठ आत्मा के प्रति यह भावना हो, महसूसता हो। हरेक से मेरे-पन की भासना आये। हरेक समझे कि यह मेरे शुभचिन्तक सहयोगी सेवा के साथी हैं, इसको कहा जाता है-बाप सामान। इसको ही कहा जाता है कर्मातीत स्टेज के तख्तनशीन।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं समर्थ बाप की समर्थ सन्तान हूँ"
〰✧ सदा अपने को समर्थ बाप के समर्थ बच्चे अनुभव करते हो? कभी समर्थ, कभी कमजोर - ऐसे तो नहीं? समर्थ अर्थात् सदा विजयी। समर्थ की कभी हार नहीं हो सकती। स्वप्न में भी हार नहीं हो सकती। स्वप्न, संकल्प और कर्म सबमें सदा विजयी - इसको कहते हैं 'समर्थ'। ऐसे समर्थ हो?
〰✧ क्योंकि जो अब के विजयी हैं, बहुतकाल से वही विजय माला में गायन-पूजन योग्य बनते हैं। अगर बहुतकाल के विजयी नहीं, समर्थ नहीं तो बहुतकाल के गायन-पूजन योग्य नहीं बनते हैं।
〰✧ जो सदा और बहुत काल विजयी हैं, वही बहुत समय विजय माला में गायन-पूजन में आते हैं और जो कभी-कभी के विजयी हैं, वह कभी-कभी की अर्थात् 16 हजार की माला में आयेंगे। तो बहुतकाल का हिसाब है और सदा का हिसाब है। 16 हजार की माला सभी मन्दिरों में नहीं होती, कहाँ-कहाँ होती है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ चाहे अपना पार्ट भी कोई चल रहा हो लेकिन अशरीरी बन आत्मा साक्षी हो अपने शरीर का पार्ट भी देखें। मैं आत्मा न्यारी हूँ, शरीर से यह पार्ट करा रही हूँ। यही न्यारे-पन की अवस्था अंत में विजयी या पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट देंगी। सभी पास विद ऑनर होने वाले हो?
〰✧ मजबूरी से पास होने वाले नहीं। कभी टीचर को भी एक-दो मार्क देकर पास करना पडता है। ऐसे पास होने वाले नहीं हैं। खुशी-खुशी से अपने शक्ति से पास विद ऑनर होने वाले। ऐसे हो ना? जब टाइटल भी डबल विदेशी है तो माक्र्स भी डबल लेंगे ना!
〰✧ भारतवासियों को क्या नशा है? भारतवासियों को फिर अपना नशा है। भारत में ही बाप आते हैं। लन्दन में तो नहीं आते ना। (आ तो सकते हैं) अभी तक ड्रामा में पार्ट दिखाई नहीं दे रहा है। ड्रामा की भावी कभी भगवान भी नहीं टाल सकता। ड्रामा को अथार्टी मिली हुई है। अच्छा। (पार्टियों के साथ)
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ मुश्किल है भी क्या? सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो। वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो, फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हाना भी देते हो क्या करें, कैसे करें। अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है अपना सब बोझ बाप के हवाले करो। ६३ जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मजबूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- श्रीमत पर चलना"
➳ _ ➳ मैं अल्लाह के बगीचे की रूहानी गुलाब रूहानी बागबान संग गुलाब के
बगीचे में, बाबा का हाथ पकड सैर कर रही हूँ... बाबा संग झूले में बैठ झूला झूल
रही हूँ... फूल बरसाकर प्यारे बाबा के साथ खेल रही हूँ... प्यारे बाबा के क़दमों
में कदम रख चल रही हूँ... मीठे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख वरदानों
की बरसात करते हैं... सारे खजानों को मुझ पर लुटाते हुए श्रेष्ठ मत देते हैं...
मैं आत्मा सर्व वरदानों से अपनी झोली भरते हुए प्यारे बाबा की श्रीमत पर चलते
हुए पद्मों की कमाई करने की प्रतिज्ञा करती हूँ...
❉ प्यारे बाबा मेरा श्रेष्ठ भाग्य बनाने श्रेष्ठ और ऊँची मत देते हुए
कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... श्रीमत के हाथो में ही देवताई जादू को पा
सकते हो... गर जीवन को खुबसूरत बनाना है और सुखो का अधिकारी बन मुस्कराना है
तो श्रीमत पर हर कदम को उठाओ... श्रीमत से ही जीवन दिव्यता से सजकर अथाह सुख
दिलाएगा...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा पंछी खुला आसमान पाकर इठलाती हुई खुशियों में लहराते
हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को शिक्षक
रूप में पाकर श्रीमत के जादू से स्वयं को देवताई स्वरूप में निखार रही हूँ...
श्रीमत ही मेरे जीवन की साँस है, मीठे बाबा आपका साथ ही मुझ आत्मा के प्राण
है... ऐसा सच्चा साथ मुझे देवताओ सा सजा रहा है...”
❉ मीठा बाबा मीठी मुरली से मेरे सांसों का श्रृंगार करते हुए कहते
हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे.... इंसानी मतो पर चलकर जीवन को दुःख भरे दलदल
में समा दिया है... अब श्रीमत की ऊँगली पकड़कर इस दलदल से बाहर निकल सुन्दरतम
स्वरूप में मुस्कराओ... श्रीमत ही सच्चे सुखो के फूलो की बहार जीवन में खिलाएंगी...
श्रीमत पर ही जीवन को हरपल चलाना है...”
➳ _ ➳ इस जीवन में सबसे बड़ा उपहार प्यारे बाबा की श्रीमत को पाकर मैं
आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपके मीठे साये में फूल
समान खिलती जा रही हूँ... मेरा जीवन गुणो की खुशबु से भर गया है... मै आत्मा
श्रीमत को अपनाकर कितना मीठा प्यारा जीवन जीती जा रही हूँ... और श्रेष्ठता की
ओर बढ़ती चली जा रही हूँ...”
❉ मेरे बाबा दिव्य ज्ञान देकर हाथ पकड़कर श्रीमत पर चलना सिखाते हुए कहते
हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... श्रीमत ही सुनहरे सुखो का सच्चा सच्चा
आधार है इसलिए श्रीमत को हर पल हर संकल्प हर साँस में भर लो... और खुबसूरत
देवताई श्रंगार से सज जाओ... ईश्वरीय मत जीवन को श्रेष्ठ बनाकर अथाह सुख सम्पदा
को दामन में भर देगी...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के स्नेह भरे पलकों में बैठ बाबा की दुआओं
को लेते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय मत पर चलकर
सदा की सुखी हो गई हूँ... मुझ आत्मा का जीवन सच्चे प्रेम, सच्चे ज्ञान, सच्चे
सुखो का पर्याय हो गया है... मीठे बाबा... आपकी राहो का पथिक बनकर मै आत्मा
खुशियो के बगीचे में पहुंच गयी हूँ...”
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- पढ़ाई के साथ - साथ दैवी चलन धारण करनी है"
➳ _ ➳ एकांत में अंतर्मुखी बन कर बैठी मैं ब्राह्मण आत्मा विचार करती हूँ
कि मेरा यह जीवन जो कभी हीरे तुल्य था आज रावण की मत पर चलने से कैसा कौड़ी
तुल्य बन गया है! दैवी गुणों से सम्पन्न थी मैं आत्मा और आज आसुरी अवगुणों से
भर गई हूँ। रावण रूपी 5 विकारों की प्रवेशता ने मेरे दैवी गुण छीन कर मेरे अंदर
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहँकार पैदा कर मेरे जीवन को ही श्रापित कर दिया है और
अब जबकि स्वयं भगवान आकर मेरे इस श्रापित जीवन से मुझे छुड़ा कर फिर से पूज्य
देवता बना रहे हैं तो मेरा भी यह परम कर्तव्य बनता है कि उनकी श्रेष्ठ मत पर चल
कर, अपने जीवन मे दैवी गुणों को धारण कर अपने जीवन को पलटा कर भविष्य जन्म
जन्मान्तर के लिए सुख, शांति और पवित्रता का वर्सा उनसे ले लूँ। मन ही मन
इन्ही विचारो के साथ अपने दैवी गुणों से सम्पन्न स्वरूप को मैं स्मृति में लाती
हूँ और अपने उस अति सुन्दर दिव्य स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से
निहारने मे मगन हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ दैवी गुणों से सजा मेरा पूज्य स्वरूप मेरे सामने है। लक्ष्मी
नारायण जैसे अपने स्वरूप को देख मैं मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। अपने सर्वगुण
सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप में
मैं बहुत ही शोभायमान लग रही हूँ। मेरे चेहरे की हर्षितमुखता, नयनो की
दिव्यता, मुख मण्डल पर पवित्रता की दिव्य आभा मेरे स्वरूप में चार चांद लगा रही
है। अपने इस अति सुन्दर स्वरूप का भरपूर आनन्द मैं ले रही हूँ । मन ही मन अपनी
इस ऐम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख, ऐसा बनने की मन मे दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने
जीवन को पलटाने के लिए दैवी गुणों को धारण करने का संकल्प लेकर, पुजारी से
पूज्य बनाने वाले अपने परमपिता परमात्मा का दिल की गहराइयों से मैं शुक्रिया
अदा करती हूँ और 63 जन्मो के आसुरी अवगुणों को योग अग्नि में दग्ध करने के लिए
अपने प्यारे पिता की याद में अब सम्पूर्ण एकाग्रचित होकर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ एकाग्रता की शक्ति जैसे - जैसे बढ़ने लगती है मेरा वास्तविक स्वरूप
मेरे सामने पारदर्शी शीशे के समान चमकने लगता है और अपने स्वरूप का मैं आनन्द
लेने में व्यस्त हो जाती हूँ। एक चमकते हुए बहुत ही सुन्दर स्टार के रूप में
मैं स्वयं को देख रही हूँ। उसमे से निकल रही रंगबिरंगी किरणें चारों और फैलते
हुए बहुत ही आकर्षक लग रही हैं। उन किरणों से मेरे अंदर समाये गुण और शक्तियों
के वायब्रेशन्स जैसे - जैसे मेरे चारों और फैल रहें है, एक सतरंगी प्रकाश का
खूबसूरत औरा मेरे चारो और बनता जा रहा है। प्रकाश के इस खूबसूरत औरे के अंदर
मैं स्वयं को ऐसे अनुभव कर रही हूँ जैसे किसी कीमती खूबसूरत जगमगाती डिब्बी के
अंदर कोई बहुमूल्य हीरा चमक रहा हो और अपनी तेज चमक से उस डिब्बी की सुंदरता को
भी बढ़ा रहा हो।
➳ _ ➳ सर्वगुणों औऱ सर्वशक्तियों की किरणें बिखेरते अपने इस सुन्दर
स्वरूप का अनुभव करके और इसका भरपूर आनन्द लेकर अब मैं चमकती हुई चैतन्य शक्ति
देह की कुटिया से निकल कर, स्वयं को कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले अपने प्यारे
शिव बाबा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। प्रकाश के उसी खूबसूरत औरे के
साथ मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपनी किरणे बिखेरती हुई अब धीरे - धीरे ऊपर उड़ते
हुए आकाश में पहुँच कर, उसे पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने परमधाम घर
मे पहुँच जाती हूँ। आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में चारों और चमकती जगमग
करती मणियों के बीच मैं स्वयं को देख रही हूँ। चारों और फैला मणियो का आगार और
उनके बीच मे चमक रही एक महाज्योति। ज्ञानसूर्य शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियों की
अनन्त किरणे फैलाते हुए इन चमकते हुए सितारों के बीच बहुत ही लुभावने लग
रहे हैं। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों का तेज प्रकाश पूरे परमधाम घर मे फैल
रहा है जो हम चैतन्य मणियों की चमक को कई गुणा बढ़ा रहा है।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता के इस सुंदर मनमनोहक स्वरूप को देखते हुए मैं
चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे उनके नजदीक जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों
रूपी बाहों में ऐसे समा जाती हूँ जैसे एक बच्चा अपनी माँ के आंचल में समा जाता
है। मेरे पिता का प्यार उनकी अथाह शक्तियों के रूप में मेरे ऊपर निरन्तर बरस
रहा है। मेरे पिता के निस्वार्थ, निष्काम प्यार का अनुभव, उनका प्यार पाने की
मेरी जन्म - जन्म की प्यास को बुझाकर मुझे तृप्त कर रहा है। परमात्म प्यार से
भरपूर होकर योग अग्नि में अपने विकर्मों को दग्ध करने के लिए अब मैं बाबा के
बिल्कुल समीप जा रही हूँ और उनसे आ रही जवालास्वरूप शक्तियों की किरणों के नीचे
बैठ, योग अग्नि में अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को जलाकर भस्म कर रही
हूँ। बाबा की शक्तिशाली किरणे आग की भयंकर लपटों का रूप धारण कर मेरे चारों और
जल रही है, जिसमे मेरे 63 जन्मो के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं आत्मा
शुद्ध पवित्र बन रही हूँ।
➳ _ ➳ सच्चे सोने के समान शुद्ध और स्वच्छ बनकर अपने प्यारे पिता की
श्रेष्ठ मत पर चल कर, अब मैं अपने जीवन को पलटाने और श्रेष्ठ बनाने के लिए
स्वयं में दैवी गुणों की धारणा करने के लिए फिर से साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ
और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूज्य बनने के पुरुषार्थ में लग जाती
हूँ। अपने आदि पूज्य स्वरूप को सदा स्मृति में रखते हुए, बाबा की याद से
पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को दग्ध कर, नए दैवी संस्कार बनाने का पुरुषार्थ
करते हुए अब मैं स्वयं का परिवर्तन बड़ी सहजता से करती जा रही हूँ
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सेवा द्वारा खुशी, शक्त्ति और सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली पुण्य आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा कर अन्दर कल्याण का दृश्य देखने वाली कल्याणकारी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा ने यह भी देखा है कि कोई-कोई बच्चे छोटी सी बात का विस्तार बहुत करते हैं, इसमें क्या होता है, जो ज्यादा बोलता है ना तो जैसे वृक्ष का विस्तार होता है उसमें बीज छिप जाता है, वह ऐसे समझते हैं कि हम समझाने के लिए विस्तार कर रहे हैं, लेकिन विस्तार में जो बात आप समझाने चाहते हैं ना उसका सार छिप जाता है और बोल, वाणी की भी एनर्जी होती है। जो वेस्ट बोल होते हैं तो वाणी की एनर्जी कम हो जाती है। ज्यादा बोलने वाले के दिमाग की एनर्जी भी कम हो जाती है। शार्ट और स्वीट यह दोनों शब्द याद रखो। और कोई सुनाता है ना तो उसको तो कह देते हैं कि मेरे को इतना सुनने का टाइम नहीं है। लेकिन जब खुद सुनाते हैं तो टाइम भूल जाता है। इसलिए अपने खजानों का स्टाक जमा करो। संकल्प का खजाना जमा करो, बोल का खजाना जमा करो, शक्तियों का खजाना जमा करो, समय का खजाना जमा करो, गुणों का खजाना जमा करो।
✺ ड्रिल :- "अपने खजानों का स्टाक जमा करना"
➳ _ ➳ ब्राह्मण कुल की दीपमाला का, मैं नन्हा सा दीप... अपने अन्दर के तम से लडता हुआ और मुझमें तूफानों से जीतने का ज़ज्बा भरते शिव सूर्य... स्वीट एन्ड शोर्ट की पल पल प्रेरणा देते... विस्तार को सार में समाँ लेने की सीख देते और धडकनों में बस गूँजने लगा है, एक ही गीत... शोर्ट एन्ड स्वीट मेरा बाबा...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बैठ गयी हूँ बापदादा की कुटिया में... बापदादा के ठीक सामने रखा महकतें फूलों का गुलदस्ता... मेरे मन को महका रहा है गहराई से... फूलों की सुन्दरता का सार इनकी खुशबू... और खुशबू का सार... रूहानी आनन्द जो मेरे रोम रोम में बह रहा है... और बापदादा की दिलकश सी मुस्कान को पढने की कोशिश करता हुआ मैं... मेरी धडकनों का सार है ये... रूहानी निखार है ये... तरसे है कई पतझर जिसे, वो दिलकश बहार है ये, बापदादा की भृकुटी से आती शिवसूर्य की किरणें मुझमें समाती हुई... और घट की तरह भरपूर होकर छलकता मैं... आकारी रूप में बापदादा के साथ उड चला एक अनोखी यात्रा पर...
➳ _ ➳ मैं और बापदादा बादलों के विमान पर सवार... सूर्य के करीब से गुजरता ये विमान सुनहरे रंग में रंगा हुआ... अचानक देख रहा हूँ बापदादा के हाथ में एक स्वर्ण और हीरों से जडी सुन्दर सुराही... बापदादा ने सुराही पर रखी रत्न जडित प्लेट को हटा दिया है... सुराही के खुलते ही जगमगतें रत्नों का अम्बार लगता जा रहा है... मानों रत्न उफ़न उफ़न कर बाहर आ रहे है... हैरानी से मैं देखे जा रहा हूँ एक एक कर उन सबको... देखते ही देखते बडा सा ढेर लग गया है रत्नों का जमीन से आकाश तक... अब बापदादा एक महीन धागे में पिरों रहे है उन सबको... एक एक क्रिया बाबा मुझे दिखाकर कर रहे है... और देखते ही देखते वो सारा रत्नों का ढेर सिमट गया है एक धागें में...
➳ _ ➳ मनमनाभव का धागा... और उस ढेर की जगह बस अब सुन्दर हार... बापदादा ने मुस्कुरातें हुए वो हार पहना दिया है मेरे गले में... खजाने के विस्तार को सार में समेट दिया है बापदादा ने... और ये खजानों का स्टाॅक अब मेरे अधिकार में... एक एक रत्न की बचत कैसे करनी है मुझे... मनमनाभव के सूत्र से सीख लिया है, मैने... संकल्प का खजाना, बोल का खजाना, शक्तियों का खजाना, समय और गुणों का खजाना... और सारे खजानों से भरपूर मैं मालामाल आत्मा... मनमनाभव के जादुई स्पर्श से सार में लाती और समय संकल्प, बोल, गुण और शक्तियों की बचत करती हुई... अपनी स्थिति से ही परिस्थितियों को बदलती हुई... वापस लौट आयी हूँ अपनी देह में... दीपमाला का दीपक बन अंधकार पर जीत पाती हुई... दुगुने आत्मविश्वास से...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━