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 14 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?

 

➢➢ आत्माओं को प्राण दान दिया ?

 

➢➢ संगठन में रहते सबके स्नेही बनते बुधी का सहारा एक बाप को बनाया ?

 

➢➢ बापदादा के राईट हैण्ड बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  किसी भी प्रकार का देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन अपनी ओर आकर्षित न करे, ऐसे स्वतन्त्र बनो इसको ही कहा जाता है-बाप-समान कर्मातीत स्थिति। प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"

 

  अपने को सदा डबल लाइट अनुभव करते हो? डबल अर्थात् फरिश्ता और फरिश्ते की निशानी है - उनका कोई भी देह और देहधारियों से रिश्ता नहीं अर्थात् मन का लगाव नहीं। तो सदा फरिश्ते होकर हर कार्य करते हो? क्योंकि फरिश्तों का पाँव सदा ही ऊंचा रहता है, धरनी पर नहीं रहता। धरनी से ऊंचा अर्थात् देह-भान की स्मृति से ऊंचा। ऐसे फरिश्ते बने हो? देह और देह की दुनिया दोनों का अनुभव अच्छी तरह से कर लिया है ना?

 

  तो जब अनुभव कर लिया तो अनुभव करने के बाद अभी फिर से देह व देह की दुनिया में बुद्धि जा सकती है? देह और देह की दुनिया की स्मृति से ऊंचा रहने वाले फरिश्ते बनो। फरिश्ते अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त। तो सब बन्धन समाप्त हुए या अभी समाप्त करेंगे? दुनिया वालों को तो कहते हो कि 'अब नहीं तो कब नहीं'। यह पहले अपने को कहते या दूसरों को ही?

 

  दूसरों को कहना अर्थात् पहले अपने को कहना। जब किसी से बात करते हो तो पहले कौन सुनता है? पहले अपने कान सुनते हैं ना। तो किसी को भी कहना अर्थात् पहले अपने आप को कहना। तो सदा हर कार्य में 'अब' करने वाले आगे बढ़ेंगे। अगर 'कब' पर छोड़ेंगे तो नम्बर आगे नहीं ले सकेंगे, पीछे नम्बर में आयेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सभी अपने को इस समय भी तख्तनशीन आत्माएँ अनुभव करते हो? डबल तख्त है या सिंगल? आत्मा का अकाल

तख्त भी याद है और दिल तख्त भी याद है। अगर अकाल तख्त को भूलते हो तो बॉडी कानशेस में आते हो। फिर परवश हो जाते हो। सदैव यही स्मृति रखो कि मैं इस समय इस शरीर का मालिक हूँ। तो मालिक अपनी रचना के वश कैसे हो सकता है?

 

✧  अगर मालिक अपनी रचना के वश हो गया तो मोहताज हो गया ना! तो अभ्यास करो और कर्म करते हुए बीच-बीच में चेक करो कि मैं मालिक-पन की सीट पर सेट हूँ? या नीचे तो नहीं आ जाता? सिर्फ रात को चेक नहीं करो। कर्म करते बीच-बीच में चेक करो। वैसे भी कहते हैं कि कर्म करने से पहले सोचो, फिर करो।

 

✧  ऐसे नहीं कि पहले करो, फिर सोची। फिर निरंतर मालिक-पन की स्मृति और नशे में रहेंगे। संगमयुग पर बाप आकर मालिक-पन की सीट पर सेट करता है। स्वयं भगवान आपको स्थिति की सीट पर बिठाता है। तो बैठना चाहिए ना! अच्छा। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कण्ट्रोलिंग पावर सारे दिन में यूज करके देखो। ऐसे नही आर्डर करो - कण्ट्रोल और दो मिनट के बाद कण्ट्रोल हो, ५ मिनट के बाद कण्ट्रोल हो, इसलिए बीच-बीच में कण्ट्रोलिंग पावर को यूज करके देखते जाओ। सेकण्ड में होता है, मिनट में होता है, ज्यादा मिनट में होता है, यह सब चेक करते चलो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- याद में रहकर शक्ति लेना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रभु प्रेम की शीतल चांदनी में शीतलता का अनुभव करती, उनकी यादों में खोई हुई हूँ... जन्म-जन्मान्तर के पुराने-स्वभाव संस्कारों को योग अग्नि से भस्म कर रही हूँ... नए दैवीय गुणों की धारणा कर दिव्य गुणधारी बन रही हूँ... प्यारे बाबा की प्यारी यादों से देह के भान से मुक्त होकर आत्मिक सौंदर्य के नशे से भर रही हूँ... प्यारे वरदानी बाबा मेरे सामने बैठ मुझे वरदानों से भरपूर करते हुए अपने वरदानी बोलों से भरपूर करते हैं...

❉  यादों से मेरे जीवन को अमर बनाते हुए प्यारे मीठे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे बच्चे... सच्चे प्यारे पिता की यादो में इस कदर कमाई है.... अमीरी है कि सारे सुख कदमो में बिखरे बिखरे से है... और यही यादे सुंदर जीवन तंदुरुस्ती सुंदर काया का भी जरिया बन महकती है... और अमरता को पाकर सदा का मुस्कराते हो...”

➳ _ ➳  प्यारे बाबा के यादों के सहारे सच्ची खुशियों को पाकर मैं खुशनसीब आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने यादो भर से... सदा का अमीर सदा का तन्दुरुस्त सदा का अमर बना दिया है... आपकी मीठी यादो में और खूबसूरत सुखधाम की स्मृति में खोकर मै आत्मा क्या से क्या हो गई हूँ...”

❉  प्यारे बाबा अपनी नज़रों से मेरी जन्मों-जन्मों की तकदीर सजाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे.... यादें कितना सुंदर फूलो भरा मखमली सा अहसास है कि यादों की पंखुड़ियों पर चलते चलते महा धनी बन सज जाते हो... खूबसूरत जीवन को पाते हो... सारे भयों से मुक्त हो सदा के अमर बन सुखधाम में इठलाते हो...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों से अपने जीवन को बसंत बहार बनाकर कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... अपने मीठे बाबा की सुखभरी याद और सुंदर सुखधाम से जीवन मधुमास हो गया है... नश्वर समझ कर जी रही थी... आज अमरता के वरदानों से सज रही हूँ... सुंदर तन सुंदर मन से निखर उठी हूँ...”

❉  अपने प्रेम तरंगो से मुझे तरंगित करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के रिश्तो की यादों ने खाली और शक्तिहीन किया... अब सच्चा पिता सच्चे सुखो को सच्ची अमीरी को अमरत्व को उपहार सा ले आया है... विश्व पिता सुनहरे सुखो को दामन में भर बच्चों पर लुटाने आया है... उसकी मीठी प्यारी यादो में खो जाओ... यह यादे अनोखा कमाल कर जीवन सुनहरा कर देंगी...”

➳ _ ➳  मेरे भाग्य को धन्य-धन्य करने वाले बाबा का धन्यवाद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा दीन हीन सी... मृत्यु के भय से भयभीत सी... गरीब जीवन को अटल सत्य मान गई थी... आपने आकर मुझे बाँहो में भर लिया... मुझे इतना प्यार कर अमर कर दिया... मै आपकी मीठी यादो में खोयी खोयी सी हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  स्वदर्शन चक्रधारी बनना है

➳ _ ➳  हम सो, सो हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ का ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई भी मनुष्य आज तक बता नही सका। बड़े - बड़े वेद, ग्रंथ, और शास्त्र लिखने वालो ने तो हम सो, सो हम का अर्थ आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा बता कर, परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह सारी दुनिया को ही अज्ञान अंधकार में डाल दिया। मन ही मन यह चिंतन करती अपने प्यारे प्रभु का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर इस सत्यता का बोध कराया और हम सो, सो हम का यथार्थ अर्थ बताकर हमे हमारे 84 जन्मो के सर्वश्रेष्ठ पार्ट की स्मृति दिलाई।

➳ _ ➳  अपने प्यारे पिता का मन ही मन धन्यवाद करके मैं हम सो, सो हम की स्मृति में जैसे ही स्थित होती हूँ, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र स्वत: ही फिरने लगता है और मेरे 84 जन्मो की कहानी भिन्न - भिन्न स्वरूपों में मेरी आँखों के आगे चित्रित होने लगती है। हम सो, सो हम अर्थात ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र, सो फिर से ब्राह्मण बनने के बीच का पूरा चक्र अब अलग - अलग स्वरूपों में बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ।

➳ _ ➳  स्वदर्शन चक्रधारी बन बुद्धि में अपने 84 जन्मो का चक्र फिराते हुए, सबसे पहले मैं देख रही हूँ अपना अनादि स्वरूप जो परमधाम में एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में मुझे दिखाई दे रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सच्चे सोने के समान चमकता हुआ मेरा यह सत्य स्वरूप मन को लुभा रहा है। अपने इस स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में और अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने इस अनादि स्वरूप में अपने अंदर निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो कर अब अपने आदि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मन बुद्धि से पहुँच गई हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जहाँ अपरमअपार सुख, शांति और सम्पन्नता है। दुख का यहाँ कोई नाम निशान नही। ऐसी सुखों से भरी अति सुंदर, मन भावन दुनिया में अपने आपको अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं देख रही हूँ जो 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम है।

➳ _ ➳  सतोप्रधान प्रकृति के सुन्दर नज़ारो और स्वर्ग के सुखों का अनुभव करके अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ अपने पूज्य स्वरूप को जो पवित्रता की शक्ति से सम्पन्न है। अष्ट भुजाओं के रूप में अष्ट शक्तियों को धारण किये, अपने अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप में मैं मंदिर में विराजमान हूँ। असुरों का सँहार और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली असुर सँहारनी माँ दुर्गा के रूप में अपने भक्तो की मनोकामनाओं को मैं अपने वरदानी हस्तों से पूर्ण कर रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने परमपवित्र पूज्य स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम सौभागशाली ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। परम पिता परमात्मा की देन अपने, डायमंड तुल्य ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव, स्वयं भगवान द्वारा प्राप्त सर्व सम्बन्धो का सुख, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का सुखदाई अनुभव, आत्मा परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले परमआनन्द की अनुभूति, इन सभी प्राप्तियों का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर होकर अब अपने फ़रिश्ता स्वरूप को देखते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर रही हूँ।

➳ _ ➳  लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, मैं फ़रिश्ता देह और देह की दुनिया से हर रिश्ता तोड़, इस नश्वर दुनिया को छोड़ कर अब फरिश्तो की आकारी दुनिया की ओर जा रहा हूँ। पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, उससे और ऊपर उड़ते हुए मैं फ़रिश्ता अपने अव्यक्त वतन में पहुँच गया हूँ। सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनसे मीठी दृष्टि और वरदान ले रहा हूँ। उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। उनके साथ कम्बाइंड हो कर सारे विश्व को सकाश दे रहा हूँ। ऐसे अपने फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करके, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर कर्म करते, हम सो - सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते मन बुद्धि से अपने सभी स्वरूपों को देखते और उनका भरपूर आनन्द लेते हुए एक अलौकिक रूहानी नशे से अब मैं सदा भरपूर रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं संगठन में रहते, सबके स्नेही बनते बुद्धि का सहारा एक बाप को बनाने वाली कर्मयोगी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बापदादा का लेफ्ट हैंड बनने के बजाये राइट हैंड बनने वाली समर्थ आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए। जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए। इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगायह तो नहीं होगा। क्या होगाइस क्वेश्चन को छोड़ दो। विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती। चाहे प्रकृति के पांचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परन्तु विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद आनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद आनर का सबूत रहेगा।

 

 _ ➳  बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। आप सोचते भी होप्लैन बनाते भी होबनाओ। भले सोचो लेकिन क्या होगा!... उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोचो लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लैन स्थिति बनाते चलो। अभी आवश्यकता स्थिति की है। यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। जैसे बादल आयेचले गये। और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोचो।    

 

✺   ड्रिल :-  "लास्ट स्थिति के लिए विदेही स्थिति का अभ्यास करना"

 

 _ ➳  आज जब मैं आत्मा बाबा को याद कर रही थी तो बाबा ने अनुभव कराया कि बच्चे जब से तुम्हारा नया जन्म हुआ ये मरजीवा जन्म हुआ है तब से अपने को विदेही आत्मा अनुभव करने का बहुत काल का अनुभव चाहिए... मैं आत्मा बाबा की याद में विदेही बनती जा रही हूँ... देह का भान भूलता जा रहा है... मैं एकदम हल्की हो चुकी हूँ...

 

 _ ➳  जैसे जैसे मैं आत्मा आगे बढ़ती जा रही हूँ तो देख रही हूँ कि जब तक बहुत काल का विदेही स्थिति का अनुभव नही होगा तो अंत में आत्मिक स्थिति का अनुभव नही कर पाएंगे... और हलचल में आ जाएंगे... फिर मैं बाबा की याद में विदेही होती जा रही हूँ...

 

 _ ➳  फिर मैं आत्मा ये फील कर रही हूँ कि जो भी परिस्थिति या हलचल आ रही है या आने वाली है उन्हें मैं विदेही स्थिति से पार करती जा रही हूँ... बाबा भी मेरे साथ है हम दोनों का एक अटूट कनेक्शन है... मैं आत्मा और सब बातों को छोड़ कि क्या होगा कैसे होगा आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस देह ओर देह के संबंधों को भूलतीं जा रही हूँ...

 

 _ ➳  मुझ आत्मा का विदेही पन का बहुत काल का अभ्यास हैं... जिसके कारण कोई भी परिस्थिति और हलचल का मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नही पड़ रहा है... बस मैं आत्मा बाबा की याद में मग्न हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ कि प्रकृति के पांचों तत्व अपने विनाशी स्वरूप में हैं फिर भी मैं आत्मा विदेही बन सब साक्षी होकर देख रही हूँ... और प्रकृति के पांचो तत्वों को सकाश दे रही हूँ.. और इस हलचल की स्थिति में भी मुझ आत्मा पर कोई प्रभाव नही पड़ रहा है...

 

 _ ➳  विदेही स्थिति में बाबा के सूक्ष्म इशारे मुझे अनुभव हो रहे है... और इन इशारों से मैं आत्मा और आत्माओं के साथ प्लान बना रही हूँ... और अचल अडोल स्थिति बनती जा रही है... मैं आत्मा आश्चर्यवत नही हूँ कि ये क्या हो रहा है क्यों हो रहा है... क्योंकि बाबा ने पहले की ड्रामा के राज को स्पष्ट किया है... आदि से अंत तक का ज्ञान मुझ आत्मा में है... और हर सेकेण्ड बाबा की याद से विदेही बनती जा रही हूँ... और जो भी परिस्थिति मेरे सामने आती जा रही हैं उसे मैं आत्मा ड्रामा के एक सीन की तरह देखते आगे बढ़ती जा रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ कि ये अंतिम समय है... प्रकृति अपने विनाशी स्वरूप में है... खून की नदियां बह रही है... लेकिन मैं आत्मा अपने लास्ट स्टेज अपने फ़रिश्ता स्वरूप में ये सब देख रही हूँ...और उड़कर बाबा के गोद में समा चुकी हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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