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 22 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ कोई भी कार्य कल पर तो नहीं छोड़ा ?

 

➢➢ कोई भी छी छी चीज़ में आसक्ति तो नहीं रही ?

 

➢➢ बीमारी कान्सेस की बजाये ख़ुशी ख़ुशी से हिसाब किताब चुक्तु किया ?

 

➢➢ हर गुण हर शक्ति का अनुभव कर अनुभवी मूरत बनकर रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अगर आपकी वृत्ति में श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना है तो अपने संकल्प से, दृष्टि से, दिल की मुस्कराहट से सेकण्ड में किसी को बहुत कुछ दे सकते हो। जो भी आवे उसको गिफ्ट दो, खाली हाथ नहीं जाये। जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हूँ"

 

  सदा संगमयुगी पुरुषोत्तम आत्मा हैं-ऐसे अनुभव करते हो? संगमयुग का नाम ही है पुरुषोत्तम। अर्थात् पुरुषों से उत्तम पुरुष बनाने वाला युग। तो संगमयुगी हो? आप सभी पुरुषोत्तम बने हो ना। आत्मा पुरुष है और शरीर प्रकृति है। तो पुरुषोत्तम अर्थात् उत्तम आत्मा हूँ। सबसे नम्बरवन पुरुषोत्तम कौन है? (ब्रह्मा बाबा) इसीलिए ब्रह्मा को आदि देव कहा जाता है। 'फरिश्ता ब्रह्मा' भी उत्तम हो गया और फिर भविष्य में देव आत्मा बनने के कारण पुरुषोत्तम बन जाते। लक्ष्मी-नारायण को भी पुरुषोत्तम कहेंगे ना।

 

  तो पुरुषोत्तम युग है, पुरुषोत्तम मैं आत्मा हूँ। पुरुषोत्तम आत्माओंका कर्तव्य भी सर्वश्रेष्ठ है। उठा, खाया-पीया, काम किया-यह साधारण कर्म नहीं, साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति हो। जो देखते ही महसूस करे कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। जो असली हीरा होगा वह कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, छिप नहीं सकता। तो आपकी जीवन हीरे तुल्य है ना। कैसे भी वातावरण में हों, कैसे भी संगठन में हों लेकिन जैसे हीरा अपनी चमक छिपा नहीं सकता, ऐसे पुरुषोत्तम आत्माओंकी श्रेष्ठ झलक सबको अनुभव होनी चाहिए। तो ऐसे है या दफ्तर में जाकर, काम में जाकर आप भी वैसे ही साधारण हो जाते हो? अभी गुप्त में हो, काम भी साधारण है। इसीलिए पाण्डवों को गुप्त रूप में दिखाया है। गुप्त रूप में राजाई नहीं की, सेवा की। तो दूसरों के राज्य में गवर्मेन्ट-सर्वेन्ट कहलाते हो ना। चाहे कितना भी बड़ा आफीसर हो लेकिन सर्वेन्ट ही है ना। तो गुप्त रूप में आप सब सेवाधारी हो लेकिन सेवाधारी होते भी पुरुषोत्तम हो। तो वह झलक और फलक दिखाई दे।

 

  जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी पुरुषोत्तम अनुभव होता था। सभी ने सुना है ना। देखा है या सुना है? अभी भी अव्यक्त रूप में भी देखते हो-साधारण में पुरुषोत्तम की झलक है! तो फालो फादर है ना। ऐसे नहीं-साधारण काम कर रहे हैं। मातायें खाना बना रही हैं, कपड़े धुलाई कर रही हैं-काम साधारण हो लेकिन स्थिति साधारण नहीं, स्थिति महान् हो। ऐसे है? या साधारण काम करते साधारण बन जाते हैं? जैसे दूसरे, वैसे हम-नहीं। चेहरे पर वो श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव होना चाहिए। यह चेहरा ही दर्पण है ना। इसी से ही आपकी स्थिति को देख सकते हैं। महान् हैं या साधारण हैं-यह इसी चेहरे के दर्पण से देख सकते हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जब साइन्स के साधन सेकण्ड में अन्धकार से रोशनी कर सकते हैं तो हे ज्ञान सूर्य बच्चे, आप कितने समय में रोशनी कर सकते हो? साइन्स से तो साइलेंस की शक्ति अति श्रेष्ठ है। तो ऐसे अनुभव करते हो कि सेकण्ड में स्मृति का स्विच ऑन करते अंधकार में भटकी हुई आत्मा को रोशनी में लाते हैं?

 

क्या समझते हो? सात दिन के सात घण्टे का कोर्स दे अंधकार से रोशनी में ला सकते हो वा तीन दिन के योग शिविर से रोशनी में ला सकते हो? वा सेकण्ड की स्टेज तक पहुँचे गये हो? क्या समझते हो?

 

✧  अभी घण्टों के हिसाब से सेवा की गति है वा मिनट व सेकण्ड की गति तक पहुँच गये हो? क्या समझते हो? अभी टाइम चाहिए वा समझते हो कि सेकण्ड तक पहुँच गये हैं?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पड़ेगा। स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौस सी? फुरी-फुरी तालाब (बूंद-बूंद से तालाब) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड-सेकण्ड करते कितना हो जायेगा! इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनी। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। ऐसे स्व अभ्यासी चात्रक एक-एक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- भाई-भाई समझना"
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन डायमंड हाल में सभी फरिश्तों के बीच बैठी हूँ... अपने सभी भाई-बहनों के साथ बाबा मिलन की घड़ियों का इन्तजार करती... कितनी भाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो की इतनी बड़ी ईश्वरीय फैमिली मिली है... मेरे शिव बाबा ने मुझे एडाप्ट करके अपना बनाया है... बेहद के बाबा ने अपना बनाकर बेहद का अलौकिक परिवार गिफ्ट में दिया है... इन्तजार की घड़ियों को ख़तम करते हुए अव्यक्त बापदादा दादी के तन में आकर मुझे मीठी प्यारी शिक्षाएं और समझानी देते हैं... 
 
❉   प्यारे बाबा अपनी दृष्टि से निहाल कर मेरा अलौकिक श्रृंगार करते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय राहो में पवित्रता से सजधज कर देवताई श्रृंगार को पाकर... अनन्त सुखो के मालिक बन इस विश्व धरा पर मुस्कराओ... ईश्वर पिता की सन्तान आपस में सब भाई भाई हो... इस भाव में गहरे डूबकर पावनता की छटा बिखेर... धरा पर स्वर्ग लाने में सहयोगी बन जाओ..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा पवित्रता के सागर से पवित्र किरणों को लेकर चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में दिव्य गुणो की धारणा और पवित्रता की ओढनी पहन कर निखर उठी हूँ... मै आत्मा विश्व धरा को पवित्र तरंगो से आच्छादित कर रही हूँ... शरीर के भान से परे होकर आत्मिक स्नेह की धारा बहा रही हूँ..."
 
❉   बुझी हुई ज्योति को जगाकर आत्मदर्शन कराकर मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अपने खुबसूरत सत्य स्वरूप को स्मृति में रखकर, सच्चे प्रेम की लहरियां पूरे विश्व की हवाओ में फैला दो... आत्मा भाई भाई और ब्राह्मण भाई बहन के सुंदर नातो से पवित्रता की खुशबु चारो ओर फैलाओ... विकारो से परे आत्मिक भावो से भरे सम्बन्धो से, विश्व को सजा दो..."
 
➳ _ ➳  स्वदर्शन कर अपने सत्य स्वरुप के स्वमान में टिकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा देह के मटमैले पन से निकल अब आत्मिक भाव् से भर गयी हूँ... अपने अविनाशी सत्य स्वरूप को जान, विकारो को सहज ही त्याग रही हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता को अपनाकर पवित्र तरंगे बिखरने वाली सूर्य रश्मि हो गयी हूँ..."
 
❉   मेरे अंतर के नैनों को खोल अमृत रस पान कराते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे...  अपनी दृष्टि वृत्ति और कृति को पावनता के रंग से सराबोर करो... दिव्यता और पवित्रता को विश्व धरा पर छ्लकाओ... विकारो की कालिमा से निकल खुबसूरत दिव्यता को बाँहों में भरकर मुस्कराओ... आत्मिक सच्चे प्यार की सुगन्ध से विश्व धरा महकाओ..."
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा प्रभु मिलन कर परमानन्द को पाकर प्यारे बाबा से कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबके मस्तक में आत्मा मणि को निहार रही हूँ... और सच्चा सम्मान देकर गुणो और शक्तियो से भरपूर हो रही हूँ... मनसा वाचा कर्मणा पावनता से सजधज कर मै आत्मा हर दिल पर यह दौलत लुटा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- ऐसा योगी बनना है जो शरीर मे जरा भी ममत्व ना रहे"

➳ _ ➳  "मैं अजर, अमर, अविनाशी आत्मा हूँ, देह नही" इस सत्य को स्वीकार करते ही यह देह और इस देह से जुड़ी हर चीज से ममत्व निकलने लगता है और मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्वत: ही स्थित हो जाती हूँ। देख रही हूँ अब मैं केवल अपने अनादि सत्य स्वरूप को जो बहुत ही न्यारा और प्यारा है। एक चैतन्य सितारा जिसमे से रंग बिरंगी शक्तियो की किरणें निकल रही है, इस देह रूपी गुफा में, मस्तक रूपी दरवाजे पर चमकता हुआ, अपने प्रकाश से इस देह रूपी गुफा में प्रकाश करता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एक ऐसा प्रकाश जिसमे ऐसी हीलिंग पॉवर है जो पूरे शरीर को हील कर रही है।

➳ _ ➳  मैं आत्मा इस देह रूपी गुफा में बैठी, अँखियों की खिड़कियों से अपने आस - पास फैले उस रूहानी वायुमण्डल को देख आनन्द विभोर हो रही हूँ जो मुझ आत्मा से निकलने वाले प्रकाश की हीलिंग पॉवर से बहुत ही शक्तिशाली बन रहा है। इस रूहानी वायुमण्डल के प्रभाव  से हर चीज मुझे रूहानियत से भरपूर दिखाई दे रही हैं। मुझ आत्मा में निहित सातों गुणों की सतरंगी किरणों के प्रकाश से बनने वाला औरा एक खूबसूरत इंद्रधनुष के रूप में मुझे अपने चारों और दिखाई दे रहा है जिसमे से सातों गुणों की सतरंगी किरणे फ़ुहारों के रूप में मेरे रोम - रोम को प्रफुलित कर रही हैं।

➳ _ ➳  ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे किसी सतरंगी झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और उससे आने वाली शीतल फ़ुहारों का आनन्द ले रही हूँ जो मेरे अंतर्मन को पूरी तरह से शांन्त और शीतल बना रही हैं। इस अति शांन्त और शीतल स्थिति में स्थित, अब मैं विचार करती हूँ कि अपने अनादि स्वरूप में मैं आत्मा कितनी शांन्त और शीतल हूँ किन्तु देह का भान आते ही मेरे अंदर की शांति को जैसे ग्रहण लग जाता है और मैं कितनी दुखी और अशांत हो जाती हूँ। अगर मैं सदैव अपने इस अनादि स्वरूप की स्मृति में रहूँ तो कोई भी बात मुझे देह भान में ला कर दुखी और अशान्त नही कर सकती।

➳ _ ➳  केवल मेरा अनादि ज्योति बिंदु स्वरूप ही सत्य है, और सदा के लिए है। बाकी इन आँखों से जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो सब विनाश होने वाला है। यहां तक कि यह देह भी मेरी नही, यह भी विनाशी है। यह बात स्मृति में आते ही मैं आत्मा मोहजीत बन अब इस देह से ममत्व निकाल, इस नश्वर देह का त्याग कर एक अति सुन्दर रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ। कितनी सुंदर और आनन्द देने वाली है यह यात्रा। हर प्रकार के बंधन से मुक्त, एक आजाद पँछी की भांति मैं उन्मुक्त हो कर उड़ रही हूँ। उड़ते - उड़ते मैं विशाल नीलगगन को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, जगमग करते, चमकते सितारों की खूबसूरत दुनिया में प्रवेश करती हूँ।

➳ _ ➳  लाल प्रकाश से प्रकाशित यह सितारों की दुनिया गहन शांति की अनुभूति करवा कर मन को तृप्त कर रही है। अपने बिल्कुल सामने मैं अपने पिता शिव परमात्मा को एक ज्योतिपुंज के रूप में देख रही हूँ। अनन्त शक्तियों की किरणें बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मुझे स्वत: ही अपनी और खींच रहा है और उनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं उनके अति समीप पहुंच कर उनके साथ अटैच हो गई हूँ। मेरे शिव पिता की सारी शक्ति मुझ आत्मा में भरती जा रही है। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ। अपने शिव पिता की अथाह शक्ति से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस अपने शरीर रूपी गुफा में लौट रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण तन में, जो मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है, उस तन में भृकुटि पर विराजमान हो कर अब मैं इस सृष्टि रंगमंच पर अपना एक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ। देह से ममत्व निकाल, मोहजीत बन अपने अनादि स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ। आत्मिक स्मृति में रह कर हर कर्म करने से मैं कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से मुक्त होकर, कर्मातीत अवस्था को सहज ही प्राप्त करती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं बीमारी कॉन्सेस के बजाए खुशी-खुशी से हिसाब-किताब चुक्तु करने वाली सोलकान्सेस आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं हर गुण, हर शक्ति का अनुभव करके अनुभवी मूर्त बनने वाली आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  चांस लेने चाहो तो ले लो फिर यह उल्हना भी कोई नहीं सुनेगा कि मैं कर सकता था लेकिन यह कारण हुआ। पहले आता तो आगे चला जाता था। यह परिस्थितियाँ नहीं होती तो आगे चला जाता। यह उल्हने स्वयं के कमज़ोरी की बातें हैं। स्व-स्थिति के आगे परिस्थिति कुछ कर नहीं सकती। विघ्न विनाशक आत्माओं के आगे विघ्न पुरूषार्थ में रूकावट डाल नहीं सकता। समय के हिसाब से रफ्तार का हिसाब नहीं। दो साल वाला आगे जा सकतादो मास वाला नहीं जा सकतायह हिसाब नहीं। यहाँ तो सेकण्ड का सौदा है। दो मास तो कितना बड़ा है। लेकिन जब से आये तब से तीव्रगति हैतो सदा तीव्रगति वाले कई अलबेली आत्माओं से आगे जा सकते हैं।

 

_ ➳  इसलिए वर्तमान समय को और मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं को यह वरदान है - जो अपने लिए चाहो जितना आगे बढ़ना चाहोजितना अधिकारी बनने चाहो उतना सहज बन सकते हो क्योंकि - वरदानी समय है। वरदानी बाप की वरदानी आत्माएं होसमझा - वरदानी बनना है तो अभी बनोफिर वरदान का समय भी समाप्त हो जायेगा। फिर मेहनत से भी कुछ पा नहीं सकेंगे। इसलिए जो पाना है वह अभी पा लो। जो करना है अभी कर लो। सोचो नहीं लेकिन जो करना है वह दृढ़ संकल्प से कर लो। और सफलता पा लो।

 

✺   "ड्रिल :- विघ्नों को अपने पुरुषार्थ में बाधा न बना तीव्र गति से पुरुषार्थ करते रहना।"

 

_ ➳  एकांत अवस्था में एकांत स्थान पर मैं शान्त स्वरूप अवस्था में बाप दादा की तस्वीर के सामने एक शांति भरे कमरे में बैठी हुई हूं... और बाप दादा को लगातार निहार रही हूं... जैसे-जैसे मैं बाप-दादा को निहारने लगती हूँ... वैसे वैसे मैं अपने अंदर नई शक्तियों का अनुभव करने लगती हूं... मैं बाबा की दृष्टि पाकर बापदादा की आंखों में प्रकाश बनकर डूब जाती हूं... और अपने आप को अलौकिक मां के ममता भरी गोद में अनुभव करती हूं... अपनी अलौकिक मां की गोद में मैं छोटी सी बालिका बनकर मां से खेल, खेल रही हूं... और मां से कहती हूं... कि माँ कुछ समय मेरे साथ खेलिये... और मेरी मां मेरे साथ प्यार से बालक के भाव से खेलने लगती है...

 

_ ➳  कुछ समय बाद मेरी अलौकिक मां मुझे अपने मित्र के साथ खेलने के लिए कहती है... और मुझे अपनी गोद से उतार देती है... मैं अपनी अलौकिक मां के आदेश का पूर्णतया पालन करते हुए अपने परमात्मा रूपी मित्र के साथ खेलने के लिए खुले वातावरण में प्रकृति की गोद में खेलने के लिए चली जाती हूं... मेरा वह मित्र भी बालक बनकर मेरे साथ खेलने लगता है... और मेरा हाथ थामे एक ऐसे स्थान पर ले जाता है... जहां पर गहरी नदी तेज बहती हुई कल कल आवाज करती हुई नजर आती है... मेरा मित्र धीरे धीरे मुझे उस नदी के अंदर ले जाने का प्रयास करता है मैं कुछ डरी सहमी सी उस नदी के अंदर चली जाती हूं... और मैं उस तेज बहाव के कारण अपने आप को उस नदी में स्थित नहीं कर पाती हूं... और ना ही खेलने की इस अवस्था को अनुभव कर पाती हूं... मैं अपने आप को असक्षम अनुभव करती हूं...

 

_ ➳  और मैं अपने मित्र के साथ उस नदी में अपने मित्र का हाथ थामे खड़ी होने का प्रयास करती हूं... परंतु जैसे ही नदी में पानी का बहाव तेज होता है... मैं उस पानी में स्थित नहीं हो पाती और उस पानी के साथ बहने लगती हूं... और बहते-बहते मैं देखती हूं... कि मेरा वह छोटा सा मित्र बिल्कुल आराम से उस तेज पानी के तेज बहाव में खड़ा है... मैं उसकी यह अवस्था देख आश्चर्यचकित हो जाती हूं... और उसके मनोबल की सराहना करती हूं... और मैं देखती हूं... कि जैसे ही मैं पानी में गिरती हूं... मेरा वह मित्र मुझे पानी से उठाकर अपने साथ फिर से खड़ा कर लेता है... और खेलने के लिए कहता है... मैं अपने मित्र की इस प्रक्रिया में पूर्ण तरह से सहायक नहीं हो पाती हूं... क्योंकि मेरी अवस्था मेरे मित्र से बहुत ही कमजोर हो रही है... मेरा मित्र मेरा यह रूप देखकर मेरी भावनाओं को समझते हुए... मुझे उस पानी के बहाव से बाहर निकालकर ले आता है...

 

_ ➳  और मेरे मित्र द्वारा पानी से बाहर आने के बाद... मैं अपने मित्र से अपने डर का इजहार करती हूं... और अपनी कमी कमजोरियों का वर्णन करती हूं... मेरा मित्र मुझे हाथ पकड़कर एक चट्टान पर बिठा देता है... और स्वयं भी मेरे सामने एक चट्टान पर बैठ जाता है... और मुझे कहता है कि... अगर तुम ऐसे ही इन पानी के बहाव रूपी विघ्नों से घबराती रही तो कभी भी अपने पुरुषार्थ में आगे नहीं बढ़ पाओगे... और ना ही अपनी स्थिति मजबूत कर पाओगी... तथा ना ही तुम हर परिस्थिति का आनंद ले पाओगी... हमेशा विघ्नों रूपी इन कठिनाइयों में अपने आप को बांध लोगी... अगर तुम्हें इन विघ्नों को पार करना है... तो अपने अंदर नई शक्तियों को भरना होगा... अपने मनोबल को बढ़ाना होगा... जब तक तुम्हारा मनोबल नहीं बढ़ेगा तुम्हारी शक्तियां कभी भी तुम्हारा साथ नहीं देगी... इसलिए हमेशा यह संकल्प करो कि यह जो भी विघ्न आते है... वह तुम्हारी स्थिति को और भी मजबूत बनाने के लिए आए हैं... 

 

_ ➳  मेरे मित्र की इन बातों को सुनकर मेरे अंदर मनोबल का नया विकास होता है... और मैं अपने आप को शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करने लगती हूं... मैं अपने आप को मास्टर सर्वशक्तिमान की स्टेज पर लाते हुए... अपने मित्र का हाथ पकड़कर उस नदी में पानी के तेज बहाव के बीचो बीच ले आती हूं... और मजबूत चट्टान रूपी अवस्था में खड़ी हो जाती हूं... और जैसे ही वह पानी का तेज बहाव आता है... मैं अपने अंदर यह एहसास लाती हूं कि यह पानी का बहाव मुझे और भी मजबूत करते हुए जाएगा... और मैं देखती हूं... कि यह पानी मेरे पास होकर गुजर जाता है... और मुझे इसके बहाव का जरा भी एहसास नहीं होता... कि इसका वेग कितना होगा कितना है... इस तरह मैं अपनी अवस्था को धीरे-धीरे मजबूत बना लेती हूं... और उस परमात्मा रुपी मित्र का कोटि-कोटि धन्यवाद करती हूँ... और वहां पर अपनी अलौकिक मां की गोद में प्यारे से बच्चे के रूप में आकर बैठ जाती हूं... और अपने पुरुषार्थ की ओर बढ़ती जाती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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