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 28 / 12 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ स्वयं में ज्ञान रतन धारण कर रूप बसंत बनकर रहे ?

 

➢➢ एस अकोई कर्म तो नहीं किया जिससे अंत समय में पछताना पड़े ?

 

➢➢ अलबेलेपन व अटेंशन के अभिमान को छोड़ बाप की मदद के पात्र बने ?

 

➢➢ संकल्पों को विश्व कल्याण के कार्य में लगाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अशरीरी बनना अर्थात् आवाज से परे हो जाना। शरीर है तो आवाज है। शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस। एक सेकेण्ड में सर्विस के संकल्प में आये और एक सेकेण्ड में संकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जायें। कार्य प्रति शारीरिक भान में आये फिर सेकेण्ड में अशरीरी हो जायें, जब यह ड्रिल पक्की होगी तब सभी परिस्थितियों का सामना कर सकोगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सृष्टि ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी हूँ"

 

    सदा अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी समझकर चलते हो? जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको हर कदम पर अपने ऊपर अटेन्शन रहता है, उनका हर कदम ऐसा उठता है जो सदा वाह-वाह करें, वन्समोर करें। अगर हीरो पार्टधारी का कोई भी एक कदम नीचे ऊपर हो जाता है तो वह हीरो नहीं कहला सकता। तो आप सभी डबल हीरो हो।

 

  हीरो विशेष पार्टधारी भी हो और हीरों जैसा जीवन बनाने वाले भी। तो ऐसा अपना स्वमान अनुभव करते हो? एक है जानना और दूसरा है जानकर चलना। तो जानते हो वा जानकर चलते हो? तो सदा अपने हीरो पार्ट को देख हर्षित रहो, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट। अगर जरा भी साधारण कर्म हुआ तो हीरो नहीं कहला सकते।

 

 जैसे बाप हीरो पार्टधारी है तो उनका हर कर्म गाया और पूजा जाता है, ऐसे बाप के साथ जो सहयोगी आत्मायें हैं उन्हों का भी हीरो पार्ट होने के कारण हर कर्म गायन और पूजन योग्य हो जाता है। तो इतना नशा है या भूल जाता है? आधाकल्प तो भूले, अभी भी भूलना है क्या? अब तो याद स्वरूप बन जाओ। स्वरूप बनने के बाद कभी भूल नहीं सकते।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  अभी अगर आपको कहें कि 108 ऐसे नाम बताओ जो वेस्ट और निगेटिव से मुक्त हों, तो आप लोग माला बना सकती हैं। सिर्फ 108 कह रहे हैं।

 

✧  99 तक तो 16000 चाहिए। 9 लाख तो बन जायेंगे, उसकी कोई बडी बात नहीं है। पहले तो 108 तैयार हो जाएँ (सभा से) आप सोचते हो हम 108 में आयेंगे?

 

✧  अभी जो कुछ हो उसे निकाल लेना, और दादी को कहना कि हम एवररेडी है। हाँ अपना-अपना नाम देवें, आफर करो - हम 108 में है फिर वैरीफाय करेंगे। सबसे अच्छा तो अपना नाम आपे ही देवें। (दादियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  फ़रिश्ते अर्थात् सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी आगे चल समय और आत्माओं की इच्छा की आवश्यकता अनुसार डबल रूप के सेवा की आवश्यकता होगी। एक ब्रह्माकुमार-कुमारी स्वरूप अर्थात् साकारी स्वरूप की, दूसरी सूक्ष्म आकारी फ़रिश्ते स्वरूप की। जैसे ब्रह्मा बाप की दोनों ही सेवायें देखी। साकार रूप की भी, और फ़रिश्ते रूप की भी। साकार रूप की सेवा से अव्यक्त रूप के सेवा की स्पीड तेज़ है। यह तो जानते हो, अनुभवी हो ना? अब अव्यक्त ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन अर्थात् फ़रिश्ता रूप बन बच्चों को अव्यक्त फ़रिश्ते स्वरूप की स्टेज में खींच रहे हैं। फॉलो फादर करना तो आता है ना! ऐसे तो नहीं सोचते हम भी शरीर छोड़ अव्यक्त बन जावें। इसमें फॉलो नहीं करना। ब्रह्मा बाप फ़रिश्ता बना ही इसलिए कि अव्यक्त रूप का एग्जैम्पुल देख फॉलो सहज कर सको। साकार रूप में न होते हुए भी फ़रिश्ते रूप से साकार रूप समान ही साक्षात्कार कराते हैं ना। विशेष विदेशियों को अनुभव है। मधुबन में साकार ब्रह्मा की अनुभूति करते हो ना! कमरे में जा करके रूह-रूहान करते हो ना! चित्र दिखाई देता है या चैतन्य दिखाई देता है? अनुभव होता है तब तो जिगर से कहते ही ब्रह्मा बाबा। आप सबका ब्रह्मा बाबा है या पहले वाले बच्चों का ब्रह्मा बाबा है? अनुभव से कहते हो वा नालेज के आधार से कहते हो? अनुभव है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते रहना”
 
➳ _ ➳  मीठे बाबा की यादो में डूबी हुई में आत्मा... सोचती हूँ कि परमधाम से कितनी सजी संवरी मै आत्मा... इस धरा पर उतरी... सुखो को जीते जीते कैसे मै आत्मा... देह के भान में आकर, अपने निज स्वरूप को ही भूल बेठी... कैसे, मै देह समझ कर, इस खेल में उलझ गयी... और अथाह दुखो से घिर गयी... मीठे बाबा ने घर से जो मेरी दारुण दशा को निहारा... मेरे प्यार में मेरे सुखो की चाहत में, मेरा बाबा धरती पर आ गया... सारी स्मर्तियो को हथेली पर संजोये हुए, मेरे दिल में भरने आ गया... अथाह रत्नों को अपनी बाँहों में भरकर... मुझे पुनः सुखो में अमीर और पावन बनाने आ गया... ऐसे मीठे प्यारे दिलेर पिता की आभारी मै आत्मा... मीठे बाबा की झोपडी में प्रवेश करती हूँ....
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन के खजानो से भरते हुए मालामाल करते हुए कहा:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे...  मीठे भाग्य की बदौलत ईश्वर पिता टीचर बनकर, जीवन को ज्ञान निधि से सजा रहा है... इस धन से भरपूर होकर स्वर्ग के मीठे सुखो के अधिकारी बनो... इसलिए जब तक जीना है, अंतिम साँस तक भी पढ़ाई को नही छोड़ना है... यह पढ़ाई ही दिव्य गुणो से सजाकर, पावन दुनिया का मालिक बनाएगी..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से सारी खाने और खजाने लेकर मुस्कराते हुए कहती हूँ:-"मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा महान भाग्य ने दिलवाये ईश्वरीय प्यार को पाकर खुशियो के ऊँचे शिखर पर हूँ... साधारण जीवन ईश्वरीय प्यार और ज्ञान को पाकर... कितना सुखदायी और मालामाल हो गया है... मै आत्मा ज्ञान परी बनकर मुस्करा रही हूँ..."
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय ज्ञान रत्नों की जागीर सौंपते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा ज्ञान रत्नों से खेलते रहो... यह ज्ञान रत्न ही सारे सुखो को आपके कदमो तले सजायेंगे... ईश्वरीय ज्ञान से सदा आबाद रहना है, यह ज्ञान और श्रीमत ही सच्चा सहारा है... सांसो और यादो में पावन बनकर... पावन दुनिया में अथाह सुखो के साम्राज्य को जीना है...
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार को मन बुद्धि में डुबोते हुए कहती हूँ :- "सच्चे साथी मेरे बाबा... आपने मुझ आत्मा को अपने मजबूत हाथो में थाम मेरा सदा का कल्याण किया है... दुःख भरी दुनिया से निकाल... सुखो के सवेरे को मेरे जीवन में बिखेरा है... मै आत्मा ईश्वरीय दौलत को पाकर... सदा की अमीरी से भरपूर हो गयी हूँ...
 
❉   प्यारे बाबा ने अपने अमूल्य ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा के जीवन को दमकाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... यह ईश्वरीय पढ़ाई अनमोल है... स्वयं भगवान धरा पर आकर, अपनी फूलो सी गोद में बिठाकर... पढ़ाई पढ़ा रहा... अपने भूले हुए बच्चों को पुनः दिव्य गुणो और पावनता से सजा रहा है... ऐसी पढ़ाई का दिल से सम्मान करो और अंतिम साँस तक पढ़ते रहो... यह पढ़ाई ही अथाह सतयुगी सुखो में बदल कर... जीवन को सच्ची खुशियो से महकाएगी...
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा से अखूट खजाने लेकर महा धनवान् बनकर कहती हूँ :- "मीठे दुलारे मेरे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... जिसने मुझे जादूगर बाबा से मिलवाया हे... अपने पुण्यो की आभारी हूँ जिसने ईश्वरीय अमीरी से मुझे छलकाया है... भगवान को पाने वाली, उनसे पढ़ने वाली मै महा भाग्यवान आत्मा हूँ... आपका हाथ और साथ मै आत्मा कभी न छोडूंगी..."मीठे बाबा से असीम प्यार को लिए दिल में समाये मै आत्मा... इस धरा पर उतर आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- इस विनाश काल मे बाप से प्रीत रख एक की ही याद में रहना है"

➳ _ ➳  अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं आकाश में विचरण करता हुआ साकारी दुनिया के रंग बिरंगे, मन को मोहने वाले मायावी दुनिया के नजारे देख रहा हूँ। इस मायावी दुनिया की झूठी चकाचौंध को सच समझने वाले कलयुगी मनुष्यों को देख मुझे उन पर रहम आता है और मन मे ये विचार आता है कि कितने बेसमझ है बेचारे ये लोग जो देह और देह की दुनिया को सच माने बैठे हैं।

➳ _ ➳  अपना सारा समय देह के झूठे सम्बन्धों के साथ प्रीत निभाने में जुटे हैं। अपने और अपने परिवार के लिए भौतिक सुख, सुविधाओं को जुटाने में ही अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ गंवाते जा रहे हैं। इस बात से कितने अनजान है कि देह, देह की दुनिया और देह के ये सब सम्बन्ध समाप्त होने वाले है। इस विनाशकाल में केवल एक परमात्मा के साथ प्रीत ही इस जीवन की डूबती नैया को पार लगा सकती है।

➳ _ ➳  दुनिया के झूठे सहारों का किनारा छोड़ परमात्मा बाप को सहारा बनाने वाले ही मंजिल को पा सकेंगे बाकि तो सब डूब जायेंगे। मन ही मन यह विचार करते हुए एकाएक मेरी आँखों के सामने महाविनाश का भयंकर दृश्य उभरता है। मैं फ़रिशता अपने दिव्य चक्षुओं से देख रहा हूँ कहीं भयंकर तूफ़ान में गिरती हुई बड़ी - बड़ी बिल्डिंगे और उनके नीचे दबे हुए लोगों को चीखते, चिल्लाते हुए। कहीं बाढ़ का भयंकर दृश्य जिसमे हजारों फुट ऊंची पानी की लहरें सब कुछ तबाह करती जा रही हैं। कहीं ज्वालामुखी का लावा तीव्र गति से आते हुए सब कुछ जला कर भस्म करता जा रहा है। खून की नदिया बह रही है। चारों और लोगों के मृत शरीर पड़े हैं।

➳ _ ➳  विनाश के इस भयानक दृश्य को देखते - देखते एकाएक मुझे मेरा ब्राह्मण स्वरूप दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ कि अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हूँ। मेरी आँखोंके सामने मेरे सम्बन्धी एक - एक करके काल का ग्रास बन रहें हैं। मैं साक्षी हो कर हर दृश्य को देख रही हूँ। मेरी बुद्धि की तार केवल मेरे शिव पिता के साथ जुड़ी हुई है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं देह और इस देह से जुड़े हर सम्बन्ध से नष्टोमोहा बन चुकी हूँ। अपने इस नष्टोमोहा ब्राह्मण स्वरूप को देख कर इस स्वरूप को जल्द से जल्द पाने का लक्ष्य रख मैं फ़रिशता अब साकारी दुनिया को छोड़ सूक्ष्म लोक की ओर चल पड़ता हूँ।

➳ _ ➳  सफेद चांदनी के प्रकाश से प्रकाशित सूक्ष्म वतन में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप में मेरे सामने खड़े है और उनकी भृकुटि में शिवबाबा चमक रहें हैं। बापदादा के मस्तक से आ रही लाइट और माइट चारों और फैल कर पूरे सूक्ष्म वतन को प्रकाशित कर रही है। सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन इस पूरे वतन में चारों और फैले हुए हैं। मैं फ़रिशता धीरे - धीरे बाबा के पास पहुंचता हूँ। बापदादा के मस्तक से आ रही शक्तियों की लाइट और माइट अब सीधी मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है और मैं फ़रिशता सर्वशक्तियों से भरपूर होता जा रहा हूँ। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर बाबा मुझे "नष्टोमोहा भव" का वरदान दे रहें हैं।

➳ _ ➳  बापदादा से वरदान लेकर और सर्वशक्तियो से सम्पन्न बन कर मैं फ़रिशता अब वापिस साकार लोक की ओर प्रस्थान करता हूँ। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन के साथ मैं अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ। अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ। यह देह और देह की दुनिया अब खत्म होने वाली है, इस बात को सदा स्मृति में रखते हुए इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत केवल अपने शिव बाप से रखते हुए अब मैं हर बात से स्वत: ही उपराम होती जा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं अलबेलेपन वा अटेंशन के अभिमान को छोड़ने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं बाप की मदद के पात्र बनने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं सहज पुरुषार्थी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं आत्मा वेस्ट और निगेटिव संकल्प को परिवर्तन कर देती हूँ  ।
✺   मैं आत्मा सदा विश्वकल्याण के कार्य में लगी हूँ  ।
✺   मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. जब माया को चैलेन्ज किया तो यह समस्यायें, यह बातें, यह हलचल माया के ही तो रायल रूप हैं। माया और तो कोई रूप में आयेगी नहीं। इन रूपों में ही मायाजीत बनना है। बात नहीं बदलेगी, सेन्टर नहीं बदलेगास्थान नहीं बदलेगा, आत्मायें नहीं बदलेगी, हमें बदलना है। आपका स्लोगन तो सबको बहुत अच्छा लगता है - बदलके दिखाना हैबदला नहीं लेना हैबदलना है। यह तो पुराना स्लोगन है। नये-नये रूपरायल रूप बनके माया और भी आने वाली हैघबराओ नहीं। बापदादा अण्डरलाइन कर रहा है - माया ऐसेऐसे रूप में आनी हैआ रही है। जो महसूस ही नहीं करेंगे कि यह माया है, कहेंगे नहीं दादी, आप समझती नहीं होयह माया नहीं है। यह तो सच्ची बात है। और भी रायल रूप में आने वाली हैडरो मत। क्यों? देखोकोई दुश्मन चाहे हार खाता हैचाहे जीत होती हैजो भी उनके पास छोटे मोटे शस्त्र अस्त्र होंगेयूज करेगा या नहीं करेगाकरेगा नातो माया की भी अन्त होनी है लेकिन जितना अन्त समीप आ रहा हैउतना वह नये-नये रूप से अपने अस्त्र शस्त्र यूज कर रही है, करेगी भी। फिर आपके पाँव में झुकेगी। पहले आपको झुकाने की कोशिश करेगीफिर खुद झुक जायेगी।

 

 _ ➳  2. अपने में सिर्फ दृढ़ता लाओथोड़ी सी बात में संकल्प को ढीला नहीं कर दो। कोई इन्सल्ट करेकोई घृणा करे, कोई अपमान करेनिंदा करे, कभी भी कोई दुःख दे लेकिन आपकी शुभ भावना मिट नहीं जाए। आप चैलेन्ज करते हो कि हम माया को, प्रकृति को परिवर्तन करने वाले विश्व-परिवर्तक हैं, अपना आक्यूपेशन तो याद है ना? विश्व-परिवर्तक तो हो ना! अगर कोई अपने संस्कार के वश आपको दुःख भी देचोट लगाये, हिलाये, तो क्या आप दुःख की बात को सुख में परिवर्तन नहीं कर सकते होइन्सल्ट को सहन नहीं कर सकते हो? गाली को गुलाब नहीं बना सकते हो? समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन नहीं कर सकते हो?   

 

✺   ड्रिल :-  "दृढ़ता से माया के बहुरूपों को परिवर्तन कर बाप समान बनने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ अपने प्यारे घर... शान्तिधाम... मैं आत्मा शान्तिधाम की गहन शांति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा बीजरूप स्थिति में बीजरूप बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... बाबा से निकलती किरणों से मैं आत्मा अपनी अपवित्रता के संकल्पों... अपनी कमी कमजोरियों के संकल्पों... माया के विभिन्न स्वरूपो को बीज सहित उखाड़ कर समाप्त कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपनी चैकिंग करती हूँ कि कहीं मैं आत्मा दूसरे को बदलने की कोशिश तो नहीं कर रही... मुझे तो स्वयं को परिवर्तन करना है... मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ कि... माया नये नये रूप... रॉयल रूप बनाकर कैसे मेरे आगे पीछे चक्कर लगाती है... मैं आत्मा अपने हर संकल्प... हर कर्म पर अटेंशन देने लगती हूँ... मैं आत्मा याद और सेवा का डबल लॉक लगाकर बुद्धि को पहरेदार बनाकर सावधान करती हूँ... कि माया किसी भी चोर गेट से अंदर न आ सके...

 

 _ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की चाबी का इस्तेमाल कर हर संकल्प पर अटेंशन दे रही हूँ... कोई इन्सल्ट करे... कोई घृणा करे... कोई निंदा करे... लेकिन मुझ आत्मा पर इन बातो का कोई असर न पड़े... कैसी भी परिस्थिति मुझ आत्मा के सामने आये भी तो मैं अचल अडोल बन हर परिस्थिति में महावीर की तरह... अंगद की तरह अटल रहती हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर कदम बाबा की श्रीमत को फॉलो कर रही हूँ... मैं आत्मा परखने की शक्ति को यूज़ कर माया से हार नहीं खाती हूँ... मैं आत्मा सदैव सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति बाप समान शुभ भावना और शुभ कामना रख... निमित्त भाव से सेवा कर रही हूँ... मैं रूहानी रूहे गुलाब बन चारों ओर बाप समान अपनी खुशबू फैला रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा माया की छाया से मुक्त हो चुकी हूँ... और सदा बाबा की छत्रछाया का अनुभव करती हूँ... मैं आत्मा माया के सभी बहुरूपों पर विजय प्राप्त कर बाप समान होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया का अनुभव करती हूँ... किसी भी समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन कर सदा उमंग उत्साह और खुशी के झूले में झूलती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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