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 18 / 07 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ इस पुरानी दुनिया से दिल तो नहीं लगाई ?

 

➢➢ बाप का प्यारा बनने के लिए पूरा फ़कीर बनने का पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ अपनी पावरफुल स्थिति में स्थित रह मनसा द्वारा सेवा की ?

 

➢➢ लोकिक कार्य करते अलोकिकता का अनुभव किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं थे, लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे। यह 14 वर्ष जो तपस्या की, यह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये हैं, साधनों की कोई कमी नहीं हैं लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बाप समान न्यारा और प्यारा हूँ"

 

  सदा अपने को जैसे बाप न्यारा और प्यारा है, ऐसे न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? बाप सबका प्यारा क्यों है? क्योंकि न्यारा है। जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं। न्यारा किससे? पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा। जितना देह की स्मृति से न्यारे होंगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात् आत्म-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारापन खत्म हो जाता है। इसलिए बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो।

 

  आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यारा पैदा होगा ना। और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे-कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन आत्मिक-भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृत्ति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा। तो सेकेण्ड में न्यारे हो सकते हो? कि टाइम लगेगा? जैसे शरीर में आना सहज लगता है, ऐसे शरीर से परे होना इतना ही सहज हो जाये। कोई भी पुराना स्वभाव-संस्कार अपनी तरफ आकर्षित नहीं करे और सेकेण्ड में न्यारे हो जाओ।

 

  सारे दिन में, बीच-बीच में यह अभ्यास करो। ऐसे नहीं कि जिस समय याद में बैठो उस समय अशरीरी स्थिति का अनुभव करो। नहीं। चलते-फिरते बीच-बीच में यह अभ्यास पक्का करो- 'मैं हूँ ही आत्मा!' तो आत्मा का स्वरूप ज्यादा याद होना चाहिए ना! सदा खुशी होती है ना! कम नहीं होनी चाहिए, बढ़नी चाहिए। इसका साधन बताया-मेरा बाबा। और कुछ भी भूल जाये लेकिन 'मेरा बाबा' यह भूले नहीं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिए रोज-रोज भिन्न-भिन्न प्रकार से प्वाइंटस बताते रहते हैं। सभी प्वाइंटस का सार है, सभी को सार में समाए बिन्दु बन जाओ। यह अभ्यास निरंतर रहता है?

 

✧  कोई भी कर्म करते हुए यह स्मृति रहती है कि - मैं ज्योति बिन्दु इन कर्मेन्द्रियों द्वारा यह कर्म कराने वाला हूँ।' यह पहला पाठ स्वरूप में लाया है? आदि भी यही है और अंत में भी इसी स्वरूप में स्थित हो जाना है। तो सेकण्ड का ज्ञान, सेकण्ड के ज्ञान स्वरूप बने हो? विस्तार को समाने के लिए एक सेकण्ड का अभ्यास है।

 

✧  जितना विस्तार में आना सहज है उतना ही सार स्वरूप में आना सहज अनुभव होता है? सार स्वरूप में स्थित हो फिर विस्तार में आना यह बात भूल तो नहीं जाते हो? सार स्वरूप में स्थित हो विस्तार में आने से कोई भी प्रकार के विस्तार की आकर्षण नहीं होगी। विस्तार को देखते, सुनते, वर्णन करते ऐसे अनुभव करेंगे जैसे एक खेल कर रहे हैं। ऐसा अभ्यास सदा कायम रहे। इसको ही सहज याद' कहा जाता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ एवररेडी अर्थात् साथ चलने के लिए समान बनी हुई आत्मा साक्षात्कार द्वारा आत्मा को नहीं देखेंगी लेकिन बुद्धियोग द्वारा सदा स्वयं को साक्षात् 'ज्योति बिन्दु आत्मा' अनुभव करेगी। साक्षात् स्वरूप बनना सदाकाल है और साक्षात्कार अल्पकाल का है। साक्षात स्वरूप आत्मा कभी भी यह नहीं कह सकती कि मैंने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है। मैंने देखा नहीं है। लेकिन वह अनुभव द्वारा साक्षात् रूप की स्थिति में स्थित रहेंगी। जहाँ साक्षात स्वरूप होगा वहाँ साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं। ऐसे साक्षात आत्मा स्वरूप की अनुभूति करने वाले अथार्टी से, निश्चय से कहेंगे कि मैंने आत्मा को देखा तो क्या लेकिन अनुभव किया है। क्योंकि देखने के बाद भी अनुभव नहीं किया तो फिर देखना कोई काम का नहीं। तो ऐसे साक्षात् आत्म-अनुभवी चलते-फिरते अपने ज्योति-स्वरूप का अनुभव करते रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- शांतिधाम घर चलने सम्पूर्ण पावन बनना"

➳ _ ➳ चारों ओर महाशिवरात्रि की धूम मची है... मंदिरों में शिव भगवान की पूजा, अर्चना, यज्ञ, जप-तप हो रहें हैं... मैं आत्मा सेण्टर में सभी आत्माओं के संग पतंग उड़ाकर प्यारे बाबा का संदेश चारों और फैला रही हूँ- “मीठा बाबा आ गया है, अब घर चलना है...” पूरे आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे बाबा का सन्देश लेकर मुस्कुराते हुए लहरा रही हैं... मैं आत्मा पतंग बन उड़ चलती हूँ मीठे वतन मीठे बाबा के पास...

❉ पवित्रता के सागर प्यारे बाबा पवित्रता के रूहानी रंग में मुझे रंगते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... अब यह खेल पूरा हो गया है... अपने चमकते मणि रूप में मीठे घर को जाना है... इसलिए यादो में गहरे खोकर, दुःख की दुनिया के सारे खाते समाप्त करो... पवित्रता के रंग से सारे विश्व को रंग दो... सिर्फ मीठे बाबा के प्यार में खो जाओ और अपने घर को याद करो..."

➳ _ ➳ इस अंतिम जन्म में स्वीट बाबा और अपने स्वीट होम को याद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके प्यार की छत्रछाया में सारे विकारो से मुक्त होकर, पावनता की सुंदरता से सजधज गयी हूँ... आपका साथी बनकर घर चलने को आतुर हूँ... और अनन्त सतयुगी सुखो की अधिकारी बनने का भाग्य पाती जा रही हूँ..."

❉ इस कलियुगी दुनिया से न्यारा और अपना प्यारा बनाकर घर का रास्ता दिखाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस देह की दुनिया से उपराम होकर, अपने घर असली घर शान्तिधाम चलने की तैयारी करो... इस समय सबकी वानप्रस्थ अवस्था है... सारे हिसाब किताबो को समेटकर, पावनता का श्रंगार कर... मीठे बाबा की बाँहों में बाहें डाल... गुनगुनाते हुए घर चलने की तैयारी करो...”

➳ _ ➳ अपने भाग्य के सितारे को ऊँचे आसमान की बुलंदियों पर चमकते हुए देख मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ... ईश्वर पिता के साथ शान से घर चलने को तैयार हो रही हूँ... मीठा बाबा मुझे कन्धों पर बिठाकर घर ले जाने आया है और मै आत्मा पवित्रता की चुनरिया ओढ़ शिव साजन संग उड़ रही हूँ..."

❉ अपने मखमली गोदी के झूले में झुलाकर पवित्रता के स्नेह सागर में डुबोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता के प्यार भरी गोद में पावनता के फूल बन महक जाओ... देह की मिटटी से परे अपनी आत्मिक रूहानियत से खिल उठो... देह की दुनिया से सारे बन्धन खत्म कर आत्मिक सम्बन्धो से भर जाओ... मीठे बाबा की ऊँगली पकड़कर घर चलो और सज संवर कर पुनः सतयुगी धरा पर खिलखिलाओ..."

➳ _ ➳ इस खेल के अंतिम पड़ाव में स्वयं भगवान के संग अपना हीरो पार्ट बजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में देह के सब बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ... वाणी से परे हो, वानप्रस्थ अवस्था को पाकर घर की ओर रुख कर रही हूँ... आपके प्यार की छाँव तले दैहिक खातो से मुक्त होकर अशरीरी हो गयी हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप से बड़े ते बड़ी प्राइज लेने के लिए सम्पूर्ण पावन बनकर दिखाना है"

➳ _ ➳ अपने प्यारे परमपिता परमात्मा से पवित्रता की प्रतिज्ञा करने वाली "मैं परम पवित्र आत्मा हूँ"। इस स्वमान में स्थित होते ही मुझे अनुभव होता है कि मुझ में पवित्रता की अनन्त शक्ति है। मैं पवित्रता का सूर्य हूँ और मुझसे पवित्रता की किरणें निकल - निकल कर कर निरन्तर चारों ओर फैल रही हैं जो वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रही हैं। पवित्रता की किरणें चारों और फैलाते हुए मैं आत्मा अब अपने साकारी तन से बाहर आ जाती हूँ और पवित्रता के सागर पतित पावन अपने शिव पिता परमात्मा के पास चल पड़ती हूँ उनके पावन धाम, परमधाम की ओर।

➳ _ ➳ पांच तत्वों की बनी साकारी और उससे परे फ़रिशतों की आकारी दुनिया को पार कर मैं पहुंच जाती हूँ उस निराकारी आत्माओं की दुनिया परमधाम में जहां मेरे शिव पिता परमात्मा रहते हैं। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्वयं को पतित पावन शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूँ। बाबा से आ रही पवित्रता की अनन्त किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और मुझ आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को भस्म कर मुझे पावन बना रही है। मेरा पवित्रता का औरा बढ़ता जा रहा है। मैं रीयल गोल्ड बनती जा रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मुझे पवित्रता का शुद्ध भोजन खिलाकर शक्तिशाली बना रहे हैं।

➳ _ ➳ पवित्रता की अनन्त शक्ति स्वयं में भरकर अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और फरिश्तों की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ। मैं देख रही हूँ फरिश्तो की इस आकारी दुनिया में सामने खड़े अपने सम्पूर्ण पवित्र फ़रिशता स्वरूप को। अपने इस सम्पूर्ण पवित्र फ़रिशता स्वरूप में मैं आत्मा प्रवेश कर जाती हूँ और पहुंच जाती हूँ बापदादा के सामने। बापदादा की पावन दृष्टि से स्वयं को भरपूर कर "पवित्रता का अवतार" बन अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया में लौट रहा हूँ।

➳ _ ➳ मुझ फ़रिश्ते के अंग - अंग से पवित्रता की श्वेत रश्मियां निकल कर विश्व के कोने - कोने में फैल रही हैं। बापदादा के साथ कम्बाइंड स्वरूप में, सारे विश्व का भ्रमण करता हुआ मैं बाबा से पवित्रता की शक्तिशाली किरणे लेकर नीचे धरती पर प्रवाहित कर रहा हूँ। मुझ से निकल रही पवित्रता, सुख शांति और शक्ति की किरणें सारे विश्व में फ़ैल रही हैं और पतित हो चुकी सर्वं आत्माओं को छू कर उन्हें पावन बना रही हैं। मुझ से निकल रही किरणे सभी आत्माओं को पाप मुक्त होने में मदद कर रही हैं। मुझसे चारों और पवित्र वायब्रेशन फ़ैल रहे हैं।

➳ _ ➳ विश्व की सर्व आत्माओं को पवित्र वायब्रेशन देकर अब मैं अपने फ़रिशता स्वरुप से अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ इस स्मृति के साथ कि पावन बनने और सारे विश्व को पावन बनाने की जो जिम्मेवारी भगवान ने मुझे दी है उस जिम्मेवारी को पूरा करना ही अब मेरा लक्ष्य है। उस जिम्मेवारी को पूरा करने औऱ बाबा से वर्सा लेने के लिए अब मैं गृहस्थ व्यवहार में रहते सदा स्वयं को कमल पुष्प आसन पर विराजमान रखती हूँ

➳ _ ➳ जैसे कमल का फूल भले खिलता कीचड़ में है किन्तु कीचड़ में रहते हुए भी उससे न्यारा रहता है और अपनी खुशबू से सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। उसी प्रकार घर गृहस्थ में रहते मैं भी कमल पुष्प समान पवित्र रह अपनी रूहानियत की खुश्बू चारों और फैला रही हूं। अपनी मनसा वृति को पवित्र बना कर, सुख स्वरूप बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सुख, शांति की प्राप्ति का अनुभव करवा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं अपनी पावरफुल स्थिति में स्थित रह मन्सा द्वारा सेवा करने वाली नम्बरवन सेवाधारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं लौकिक कार्य करते अलौकिकता का अनुभव करने वाली सरेंडरड आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  अपने को सदा सेवाधारी समझकर सेवा पर उपस्थित रहते हो नासेवा की सफलता का आधारसेवाधारी के लिए विशेष क्या हैजानते हो? सेवाधारी सदा यही चाहते हैं कि सफलता हो लेकिन सफल होने का अधार क्या हैआजकल विशेष किस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं? (त्याग पर) बिना त्याग और तपस्या के सफलता नहीं। तो सेवाधारी अर्थात् त्याग मूर्त और तपस्वी मूर्त।

 

_ ➳  तपस्या क्या है? ‘एक बाप दूसरा न कोईयह है हर समय की तपस्या।

 

_ ➳  और त्याग कौनसा हैउस पर तो बहुत सुनाया है लेकिन सार रूप में सेवाधारी का त्याग - जैसा समयजैसी समस्यायें होजैसे व्यक्ति हों वैसे स्वयं को मोल्ड कर स्व कल्याण और औरों का कल्याण करने के लिए सदा इजी रहें। जैसी परिस्थिति हो अर्थात् कहाँ अपने नाम का त्याग करना पड़ेकहाँ संस्कारों काकहाँ व्यर्थ संकल्पों काकहाँ स्थूल अल्पकाल के साधनों का... तो उस परिस्थिति और समय अनुसार अपनी श्रेष्ठ स्थिति बना सकेंकैसा भी त्याग उसके लिए करना पड़े तो कर लेंअपने को मोल्ड कर लेंइसको कहा जाता है - ‘त्याग मूर्त'। त्यागतपस्या फिर सेवा। त्याग और तपस्या ही सेवा की सफलता का आधार है। तो ऐसे त्यागी जो त्याग का भी अभिमान न आये कि मैंने त्याग किया। अगर यह संकल्प भी आता तो यह भी त्याग नहीं हुआ।

 

✺   "ड्रिल :- त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त करना।"

 

_ ➳  देह रूपी पारदर्शी डिबिया में दमकती, मैं आत्मा मणि, अपने गुणों व शक्तियों के प्रकाश से इस देह को भी आभा युक्त कर रही हूँ... (दृश्य चित्र बनाकर कुछ देर महसूस कीजिए इस दृश्य को) मैं आत्मा, उदय होता हुआ सूर्य और मेरे आसपास ये देह रूपी बादल... आहिस्ता-आहिस्ता ये बादल मेरे चारों और से हटने लगे है... और अब मैं आत्मा, अपने सम्पूर्ण प्रकाशमान रूप में... मेरा प्रकाश आसपास के वातावरण में प्रकाश के दरिया के रूप प्रवाहित हो रहा है... देखे स्वयं कों, प्रकाश के सागर में तैरते हुए... इस सागर की रंग बिरंगी लहरें कभी मुझे गहराई में लेकर जा रही है और कभी मैं लहरों के ऊपर अठखेलियाँ कर रही हूँ... तपस्या की लगन में डूबी, एक बाप दूसरा न कोई इसी एक सकंल्प को लिए मैं मस्तक मणि, जा पहुँचती हूँ परम धाम में...

 

_ ➳  असंख्य सुन्दर मणियों से भरा हुआ जैसे कोई पारदर्शी -सा, भव्य और  विशाल शीशे का जार... जार के ऊपर चमकता लाल रंग का शिव रत्नाकर, चमचमाती मणि के रूप में... और इस मणि के सबसे करीब, अपनी सम्पूर्ण आभा बिखेरता मैं नन्हा सा प्रकाश कण... अपनी किस्मत पर इठलाता हुआ... बस एक की ही लगन में मगन होता हुआ... फरिश्ता रूप में मैं रूहानी मणि उतरती हूँ अब सूक्ष्म लोक में... और बापदादा का हाथ पकडे उसी झील के किनारे जो, मेरे और बापदादा के रूहानी स्नेह की साक्षी है... मैं देख रही हूँ आकाश में, बादलों के पीछे से झाँकने का प्रयास करता सूरज, और सूरज की लालिमा से सिन्दूरी रंग में रंगे ये बादल... बादल और सूरज दोनों ही अथक सेवाधारी है...

 

_ ➳  तभी बापदादा मेरे हाथ पकडे मुझे सामने के पर्वत पर चलने का इशारा कर रहे है... मैं फरिश्ता शिखर पर जाकर बैठ गया हूँ बादलों के ढेर के ऊपर और छोटी-छोटी सी गेंद बनाकर फेंक रहा हूँ उन्हें झील के पानी में... अपना वजूद मिटाकर पानी होते ये बादल... मगर दूसरे ही पल फिर झील से धुएँ के रूप में फिर से बनकर उडते ये बादल... सर्वस्व त्याग का पाठ पढा रहे हैं... धरा की तपन मिटाने की सेवा और उस एक धुन में सर्वस्व त्याग का अनोखा उदाहरण बन गये है ये... तभी बाप दादा मेरे हाथों में पकडे हुए छोटे छोटे नन्हें रंगीन गुब्बारों की तरफ इशारा करके मानों पूछ रहें हों, बच्चे- "ये नाम, संस्कार, व्यर्थ संकल्पों और अल्पकाल के साधनों का त्याग कब तक करोगे...

 

_ ➳  और मैं, तुलना कर रहा हूँ, इन बादलों की त्यागवृत्ति से स्वयं की... कितना लचीलापन है इनमें, हवाओं के अनुसार स्वयं को किसी भी आकार में ढाल लेते है ये... जो स्वयं को कैसे भी त्याग के लिए मोल्ड कर ले, ऐसी ही त्याग वृत्ति मुझे धारण करनी है, और ऐसा निश्चय कर मैंने वो सभी रंगीन गुब्बारें हवा में छोड दिए... आकाश में दूर दूर तक फैल गये है ये संस्कार, व्यर्थ संकल्पों और अल्पकाल के साधन रूपी गुब्बारें... हवाओं में कलाबाजियाँ खाते हुए... और मैं देख रहा हूँ इनको खुद से दूर जाते हुए... दूर... बहुत दूर... और देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गये है वे सभी...

 

_ ➳  मैं देख रहा हूँ अपने दोनो हाथों को, कितना आराम महसूस कर रहे हैं मेरे दोनो हाथ... मुद्दतों के बाद आज मैं अपनी हथेली खोल रहा हूँ, बन्द कर रहा हूँ, आजादी के साथ... असीम सुख का एहसास... त्याग के सुख की गहरी अनुभूति हो रही है आज मुझे... एक लम्बी और गहरी स्वाँस के साथ, मैं देख रहा हूँ बापदादा की ओर... और बस देखे जा रहा हूँ एकटक, कृतज्ञता आँखों में भर कर... जैसे कोई चातक पक्षी दिन रात बादलों को निहारता है... और बापदादा बरसते बादलों की तरह स्नेह बरसा रहे हैं मेरे ऊपर... त्याग के भी त्याग का सुख आज महसूस हुआ है मुझ आत्मा को... सर्व के कल्याण की भावना मन में समाये, मैं आत्मा वापस लौट आयी हूँ, अपनी देह रूपी डिबियाँ में... त्याग और तपस्या के आधार पर सेवा में सफलता प्राप्त करने का दृढ निश्चय मन में लिए... ओम शान्ति...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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