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 03 / 05 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"शिव बाबा के हम वारिस हैं.. वह हमारा वारिस है" - यह निश्चय रहा ?*

 

➢➢ *याद में कदम आगे बढ़ाते रहे ?*

 

➢➢ *इस कल्याणकारी युग में सर्व का कल्याण किया ?*

 

➢➢ *एक दुसरे के विचारों को सम्मान दे माननीय आत्मा बने ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन लगी रहे। *एक की याद में, एक के साथ में भोजन स्वीकार करना-यह भी तपस्या हुई।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं खुशियों की खान का मालिक हूँ"*

 

  *बाप की याद से खुशियों के झूलों में झूलने वाले हो ना। क्योंकि इस संगमयुग में जो खुशियों की खान मिलती है, वह और किसी युग में प्राप्त नहीं हो सकती। इस समय बाप और बच्चों का मिलन है, वर्सा है, वरदान है। बाप के रूप में वर्सा देते, सतगुरू के रूप में वरदान देते हैं।* तो दोनों अनुभव हैं ना? दोनो ही प्राप्तियॉं सहज अनुभव कराने वाली हैं। वर्सा या वरदान - दोनों में मेहनत नहीं। इसलिए टाईटल ही है -'सहजयोगी'। क्योंकि आलमाइटी ओथोरिटी बाप बन जाए, सतगुरू बन जाए... तो सहज नहीं होगा? यही अन्तर परम-आत्मा और आत्माओंका है।

 

  कोई महान् आत्मा भी हो लेकिन प्राप्ति कराने के लिए कुछ न कुछ मेहनत जरूर देगी। 63 जन्म के अनुभवी हो ना। इसलिए बापदादा बच्चों की मेहनत देख नहीं सकते। *जब बाप से थोड़ा भी, संकल्प में भी किनारा करते हो तब मेहनत करते हो। उसी सेकेण्ड बाप को साथी बना दो तो सेकेण्ड में मुश्किल सहज अनुभव हो जायेगा।*

 

  *क्योंकि बापदादा आये ही हैं बच्चों की थकावट उतारने। 63 जन्म ढूँढ़ा, भटके। अब बापदादा मन की भी थकावट, तन की भी थकावट और धन के उलझन के कारण भी जो थकावट थी, वह उतार रहे हैं।* सभी थक गये थे ना! बच्चे जो अति प्यारे होते हैं, उन्हों के लिए कहावत है - नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं। तो इतने हल्के बने हो जो नयनों पर बिठाकर बाप ले जाये? लाइट (हल्के) हो ना? जब बाप बोझ उठाने के लिए तैयार है तो आप बोझ क्यों उठाते हो?

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *एक सेकण्ड में वाणी से परे स्थिति में स्थित हो सकती हो?* जैसे और कर्म इन्द्रियों को जब चाहो जैसे चाहो वैसे हिला सकते हो। ऐसे ही बुद्धि की लगन को जहाँ चाहो, जब चाहे वैसे और वहाँ स्थित कर सकते हो? एसे पावरफुल बने हो?

  

✧  यह विधि वृद्धि को पाती जा रही है। *अगर विधि यथार्थ है तो  विधि से सिद्धि अर्थात सफलता और श्रेष्ठता अवश्य ही दिन - प्रतिदिन वृद्धि को पाते हुए अनुभव करेंगे।* इस परिणाम से अपने पुरुषार्थ की यथार्थ स्थिति को परख सकते हो।

 

✧  यह सिद्धि विधि को परखने की मुख्य निशानी है। कोई भी बात को परखने के लिए निशानियाँ होती है। *तो इस निशानी से अपने सम्पूर्ण बुद्धि की निशानी को परख सकते हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  वातावरण हो तब याद की यात्रा हो, परिस्थिति न हो तब स्थिति हो, *अर्थात् परिस्थिति के आधार पर स्थिति व किसी भी प्रकार का साधन हो तब सफलता हो, ऐसा पुरुषार्थ फाइनल पेपर में फेल कर देगा। इसलिए स्वयं को बाप समान बनाने की तीव्रगति करो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- प्यार से एकरस याद में रहना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में सागर के किनारे बैठ सागर में उछलती लहरों को देख रही हूँ... मेरे जीवन में उछलती दुःख-अशांति की लहरों को ख़त्म कर... सदा के लिए सुख-शांति, प्रेम की लहरों में मुझे लहराने वाले... सर्व गुणों-शक्तियों के सागर बाबा के पास पहुँच जाती हूँ शांतिधाम में...* परमधाम की परम शांति का अनुभव कर रही हूँ... बस एक बाबा और मैं... बाबा से निकलती किरणें मुझमें दिव्य अलौकिक शक्तियों को भर रही हैं... *फिर मैं आत्मा शांति की दुनिया से नीचे उतरकर बिंदु रूप से फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर फरिश्तों की दुनिया में पहुँच जाती हूँ... बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

 

  *सच्चे प्रेम के अहसासों में मुझे डुबोकर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... सच्चे प्यार की मुस्कराती मदमाती यादो में रग रग को डुबो दो... *सच्चे माशूक के साथ अपनी प्रीत जोड़कर... प्यार के अहसासो में डूब जाओ और प्राप्तियों के अनन्त खजाने अपने दामन में सजाओ*... योग और पढ़ाई की जादूगरी से सहज ही विश्व का अधिकार पाओ..."

 

_ ➳  *बाबा की यादों में पवित्र, निर्मल, ओजस्वी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा सच्चे प्यार को पाने वाली... ईश्वर माशूक संग हर पल मुस्कराने वाली सच्ची आशिक हूँ...* कभी मनुष्यो में प्यार की बून्द खोजने वाली... आज प्यार के सागर को ही पाकर... अपने महान भाग्य पर धन्य धन्य हो उठी हूँ... कितना प्यारा मेरा भाग्य है.."

 

  *मीठे प्रेम के तराने सुनाकर मुझे मदमस्त करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में अनन्त खजाने सहज ही पाकर... सबसे महान भाग्य से भर जाओ... *ईश्वर पिता के सारे खजानो को प्यार में सहज ही लूट लो... प्यार के तार जोड़कर विश्व की अमीरी को बाहों में भर लो... आशिक बनकर सच्चे माशूक को अपनी यादो का दीवाना बना दो..."*

 

_ ➳  *एक बाबा के दिल की तिजोरी में चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मैं आत्मा भगवान को ही माशूक रूप में पाकर सच्चे प्यार का सुख हर पल हर साँस ले रही हूँ...* भगवान मुझे यूँ मिल जायेगा यूँ प्यार करेगा, और प्यार से भर जाएगा यह तो कल्पना में भी न था... *प्यारे बाबा किन शब्दों में आपका शुक्रिया करूँ..."*

 

  *महकता फूल बनाकर अपने गुलिस्तां में सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने सत्य स्वरूप में डूबकर, सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में रोम रोम से भीग जाओ... इन सच्ची यादो में ही सच्चे सुखो के भण्डार समाये है... यह यादे ही सच्चे प्यार का पर्याय है.. सारे सुख इन यादो में निहित है...* इन यादो और ज्ञान रत्नों से जीवन को अनन्त ऊंचाइयों पर ले जाओ..."

 

_ ➳  *मीठे बाबा की मीठी यादों में डूबकर बाबा की दीवानी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्रेम में खोयी हुई अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ... *मीठे बाबा आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है... सच्चे प्रेम को दामन में सजा लिया है... और इसकी मीठी अनुभूतियों में हर पल खोयी खोयी सी हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कांटे से फूल अभी ही बनना है*"

 

_ ➳  कांटों को फूल बनाने वाले बबूलनाथ अपने प्यारे, मीठे शिव बाबा को मन ही मन मैं शुक्रिया अदा करती हूं जिन्होंने मुझे माया रावण की कांटों की नगरी से निकाल परमात्म छत्रछाया रूपी फूलों की सेज पर बिठा दिया। *बाबा का शुक्रिया अदा करते करते साथ ही साथ मन मे विचार आता है कि रावण के मायावी जाल में फंसकर कैसे आज सभी कांटे बन एक दूसरे को दुख दे रहे हैं*। इस मायाजाल में इतने फंसे हुए हैं कि दुखी होते हुए भी इस मायाजाल को तोड़ इससे बाहर निकलने में असमर्थ हैं। लेकिन मेरे सर्वसमर्थ बाबा ने आकर इस मायाजाल को तोड़ने की युक्ति बताकर मेरे काँटे समान जीवन को फूल समान सुगंधित बना दिया।

 

_ ➳  दुःखो से भरी रावण की इस नगरी के बारे में विचार करते करते एक दृश्य मेरी आँखों के सामने आ जाता है। इस दृश्य में मैं स्वयं को एक ऐसे स्थान पर खड़ा हुआ देख रही हूं जहां से मुझे दो रास्ते दिखाई दे रहे हैं और दोनों रास्ते एक ही मंजिल तक ले जाने वाले हैं। *दूर से देखने पर एक रास्ता बहुत ही आकर्षक तरीके से सजा हुआ दिखाई दे रहा है जो सब को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है जबकि दूसरा रास्ता बिल्कुल साधारण दिखाई दे रहा है उस पर किसी तरह की कोई सजावट नहीं*। इन दोनो रास्तो पर बहुत से लोग जा रहे हैं।

 

_ ➳  किंतु एक बहुत ही हैरान करने वाली बात मैं यह देखती हूं कि आकर्षक तरीके से सजे रास्ते से आकर्षित होकर जो भी व्यक्ति उस रास्ते पर जा रहा है वह उस रास्ते को पार कर जब अपनी मंजिल पर पहुंचता है तो उसकी अवस्था बहुत ही जर्जर हो चुकी होती है दुख से वह बेहाल होता है। लेकिन *दूसरे साधारण रास्ते को पार कर अपनी मंजिल तक पहुंचने वाले लोगों के चेहरे एकदम फूल की तरह खिले हुए दिखाई देते हैं*। उनके चेहरे पर एक अनोखी चमक स्पष्ट दिखाई देती है।

 

_ ➳  इस दृश्य को देखकर असमंजस की स्थिति में मैं इस में छुपे रहस्य को जानने का प्रयास करती हूं तभी मेरे सामने अपने लाइट माइट स्वरुप में बाप दादा उपस्थित हो जाते हैं। *मेरे चेहरे के हर भाव को पढ़कर बाबा बड़ी गुह्य मुस्कुराहट के साथ मेरी ओर देखते हैं और मुझसे कहते हैं आओ मेरे मीठे बच्चे इस दृश्य का रहस्य मैं तुम्हें समझाता हूं*।

 

_ ➳  बाबा कहते बच्चे जो रास्ता दूर से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रहा है ना, वह काँटो का जंगल है। *अब बाबा दिव्य दृष्टि से मुझे उस रास्ते के अन्दर का सीन दिखा रहें हैं मैं देख रही हूं पूरा रास्ता जैसे काँटो की शैया है*। जहाँ पैर रखो वहां काँटे ही काँटे। लोग काँटो की चुभन से तड़प रहें हैं, रो रहे हैं, चिल्ला रहे हैं किंतु वापिस आने की समर्थता किसी मे नही। अब बाबा दूसरा बिल्कुल साधारण रास्ता दिखाते हुए कहते हैं बच्चे यह फूलों का बगीचा है। *मैं देख रही हूं पूरा रास्ता फूलों की सेज बना हुआ है*। लोग बड़े आराम से आनन्दित होते हुए इस रास्ते से जा रहें हैं और एक दिव्य आभा के साथ अपनी मंजिल पर पहुंच रहें हैं।

 

_ ➳  दोनों रास्तों का रहस्य बताकर मेरे मन की उलझन को दूर कर अब बाबा मुझे समझाते हुए कहते हैं मेरे रूहे गुलाब बच्चे आज पूरी दुनिया ही काँटो का जंगल बन गई है इसलिए कदम कदम पर खबरदारी रखना। *माया के आकर्षण में आ कर कभी काँटो वाले रास्ते पर नही जाना*। माया संशय बुद्धि बनाने की कोशिश करेगी किन्तु सदैव निश्चयबुद्धि बन बाबा के फरमान पर चलते हुए काँटो से फूल बनने का पुरुषार्थ करते रहना। *सदैव फूलों वाले रास्ते पर चलते हुए खुशबूदार फूल बन औरों को भी काँटो से फूल बनाते रहना*।

 

_ ➳  अब बाबा अपने रूहानी नयनों से रूहानी दृष्टि दे अपनी सर्वशक्तियाँ मुझ में समाते जा रहें हैं और *मैं रूहे गुलाब बन बापदादा को निहारते हुए स्वयं को रूहानी खुशबू से भरपूर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं इस कल्याणकारी युग में सर्व का कल्याण करने वाली प्रकृतिजीत मायाजीत       आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक दूसरे के विचारों को सम्मान देकर माननीय आत्मा बनने वाली निर्मानचित्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳ दूसरी बात - अगर आपकी मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति नहीं होती अर्थात् पवित्र संकल्प का प्रभाव अन्य आत्मा तक नहीं पहुँचता तो उसका भी कारण चेक करो। किसी भी आत्मा की जरा भी कमज़ोरी अर्थात् अशुद्धि अपने संकल्प में धारण हुई तो वह अशुद्धि अन्य आत्मा को सुख-शान्ति की अनुभूति करा नहीं सकेगी। या तो उस आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव है वा अपनी मंसा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी है। जिस कारण औरों तक वह पवित्रता की प्राप्ति का प्रभाव नहीं पड़ सकता। स्वयं तक है, लेकिन दूसरों तक नहीं हो सकता। लाइट है, लेकिन सर्चलाइट नहीं है। तो *पवित्रता के सम्पूर्णता की परिभाषा है - सदा स्वयं में भी सुख-शान्ति स्वरूप और दूसरों को भी सुख-शांति की प्राप्ति का अनुभव कराने वाले। ऐसी पवित्र आत्मा अपनी प्राप्ति के आधार पर औरों को भी सदा सुख और शान्ति, शीतलता की किरणें फैलाने वाली होगी।* तो समझा सम्पूर्ण पवित्रता क्या है?

 

✺  *"ड्रिल :- मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवाना*"

 

_ ➳  *मैं आत्मा सुन्दर सरोवर के समीप बैठकर सरोवर के शांत जल को देख रही हूँ...* नीचे से एक कंकड़ उठाकर सरोवर के शांत जल में फेंकती हूँ... सरोवर के शांत जल में जल तरंगे उठने लगती हैं... ऐसे ही मुझ आत्मा के मन में एक व्यर्थ विचार का कंकड़ एक के बाद एक अन्य व्यर्थ विचारों को जन्म देता है... *मैं आत्मा अपने मन में उठने वाले व्यर्थ विचारों के तरंगो को शांत करती हुई मन-बुद्धि को भृकुटी के मध्य एकाग्र करती हूँ...* आत्मिक स्वरुप में टिकते ही मुझ आत्मा का मन शांत सरोवर की तरह शांत हो रहा है...

 

_ ➳  *मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ शांतिधाम...* मैं आत्मा शांतिधाम की गहन शांति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा बीजरूप अवस्था धारण कर बीजरूप बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से एक हो जाती हूँ... *बीजरूप बाबा से निकलती किरणों से मैं आत्मा अपनी अपवित्रता और अशुद्धि के संकल्पों को बीज सहित उखाड़कर खत्म कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सभी व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होकर एकाग्रता का अनुभव कर रही हूँ...* निर्संकल्प स्थिति में स्थित हो रही हूँ... मैं आत्मा सभी संकल्प-विकल्पों से मुक्त हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा व्यर्थ पर अटेंशन देकर समर्थ बन रही हूँ...* व्यर्थ को समर्थ में चेंज कर रही हूँ... अब मैं आत्मा पवित्र और सकारात्मक संकल्पों का निर्माण कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा सदा चेक करती हूँ कि अपनी मंसा पवित्रता की शक्ति में परसेन्टेज की कमी तो नहीं है... *सदा अटेंशन रखती हूँ कि किसी भी अन्य आत्मा की जरा भी कमज़ोरी वा अशुद्धि मेरे संकल्पों में धारण न हो...* अब मैं आत्मा किसी भी आत्मा के प्रति व्यर्थ वा अशुद्ध भाव नहीं रखती हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा सदैव सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाले सर्व आत्माओं के प्रति शुद्ध और शुभ भावना रखती हूँ... शुभ कामना और निमित्त भाव के साथ सेवा करती हूँ... *अब मैं आत्मा लाइट होकर सर्चलाइट बन रही हूँ...* मैं आत्मा अपने पवित्र संकल्पों का प्रभाव अन्य आत्माओं तक पहुँचा रही हूँ... शुद्ध संकल्पों से सर्व आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ... *मैं आत्मा मंसा द्वारा अन्य आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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