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 09 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ ऐसा कोई कर्म तो नहीं किया जिससे श्राप मिल जाए ?

 

➢➢ झूठ खंड से किनारा किया ?

 

➢➢ सवा दर्शन चक्र द्वारा माया के सब चक्रों को समाप्त किया ?

 

➢➢ विदेही स्थिति में स्थित हो परिस्थितियों को सहज ही पार किया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  बीजरूप स्थिति में रहने का अभ्यास तो करो लेकिन कभी लाइट-हाउस के रूप में, कभी माइट-हाऊस के रूप में, कभी वृक्ष के ऊपर बीज के रूप में, कभी सृष्टि-चक्र के ऊपर टॉप पर खड़े होकर सभी को शक्ति दो। कभी मस्तकमणि बन, कभी तख्तनशीन बन.... भिन्न-भिन्न स्वरूपों का अनुभव करो। वैराइटी करो तो रमणीकता आयेगी, बोर नहीं होंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ"

 

✧  कोई भी मेरापन, मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी नेचर, कुछ भी मेरा है तो बोझ है और बोझ वाला उड़ नहीं सकता, फरिश्ता नहीं बन सकता। तो फरिश्ते हो या कोई न कोई बोझ अभी रहा हुआ है? आइवेल के लिये थोड़ा-थोड़ा छिपाकर रखा है? मेरा-मेरा कहते मैले हो गये थे, अभी तेरा-तेरा कहते स्वच्छ बन गये। तो फरिश्ता अर्थात् मेरापन अंशमात्र भी नहीं। संकल्प में भी मेरे पन का भान आये तो समझो मैला हुआ। किसी भी चीज के ऊपर मैल चढ़ जाये तो मैल का बोझ हो जायेगा ना। तो ये मेरापन अर्थात् मैलापन। फरिश्ते हैं, पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं।

 

✧  सेवा अर्थ हैं, रिश्ता नहीं है। सेवा भाव से सम्बन्ध में आते हो। गृहस्थी बनकर सेवा नहीं करते हो, सेवाधारी बनकर सेवा करते हो। ऐसे सेवाधारी हो? सेवास्थान समझते हो या घर समझते हो? तो जैसे सेवा स्थान की विधि होती है उसी विधि प्रमाण चलते हो कि गृहस्थी प्रमाण चलते हो? सेवास्थान समझने की विधि है न्यारे और बाप के प्यारे। जरा भी मेरेपन का प्रभाव नहीं पड़े। आग है लेकिन सेक नहीं आये। क्योंकि साधन हैं ना। जैसे आग बुझाने वाले आग में जाते हैं लेकिन खुद सेक में नहीं आते, सेफ रहते हैं क्योंकि साधन हैं, अगर आग बुझाने वाले ही जल जाये तो लोग हंसेंगे ना। तो चाहे वायुमण्डल में परिस्थितियों की आग हो लेकिन प्रभाव नहीं डाले, सेक नहीं आये। ऐसे नहीं कि परिस्थिति नहीं है तो बहुत अच्छे और परिस्थिति आ गई तो सेक लग गया। तो ऐसे फरिश्ते हो ना।

 

✧  फरिश्ता कितना प्यारा लगता है! अगर स्वप्न में भी किसके पास फरिश्ता आता है तो कितना खुश होते हैं। फरिश्ता जीवन अर्थात् सदा प्यारा जीवन। बाप प्यारे से प्यारा है ना तो बच्चे भी सदा सर्व के प्यारे से प्यारे हैं। सिर्फ बाल बच्चे, पोत्रे धोत्रों के प्यारे नहीं, हद के प्यारे नहीं, बेहद के प्यारे। क्योंकि सर्व आत्मायें आपका परिवार हैं, सिर्फ 10-12 का परिवार नहीं है। कितना बड़ा परिवार है? बेहद। सर्व के प्यारे। चाहे कैसी भी आत्मा हो, लेकिन आप सर्व के प्यारे हो। जो प्यार करे उसके प्यारे हो, ये नहीं। सर्व के प्यारे। लड़ाई करने वाले, कुछ बोलने वाले प्यारे नहीं। ऐसे नहीं, सर्व के प्यारे। आप लोगों ने द्वापर से बाप को कितनी गाली दी, फिर बाप ने प्यार किया या घृणा की? hयार किया ना। तो फालो फादर।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जैसे साकार ब्रह्मा बाप को देखा, सम्पूर्णता की समीपता की निशानी - सेवा में रहते, समाचार सुनते-सुनते एकान्तवासी बन जाते थे। यह अनुभव किया ना। एक घण्टे के समाचार को भी 5 मिनट में सार समझ बच्चों को भी खुश किया और अपनी अन्तर्मुखी, एकान्तवासी स्थिति का भी अनुभव कराया।

 

✧  सम्पूर्णता की निशानी - अन्तर्मुखी, एकान्तवासी स्थिति चलते-फिरते, सुनते, करते अनुभव किया। तो फालो फादर नहीं कर सकते हो? व्रह्मा वाप से ज्यादा जिम्मेवारी और किसको है क्या? व्रह्मा वाप ने कभी नहीं कहा कि मैं वहुत विजी हूँ। लेकिन बच्चों के आगे एग्जाम्पल बने। ऐसे अभी समय प्रमाण इस अभ्यास की आवश्यकता है।

 

✧  सब सेवा के साधन होते हुए भी साइलेन्स की शक्ति के सेवा की आवश्यकता होगी क्योंकि साइलेन्स की शक्ति अनुभूति कराने की शक्ति है। वाणी की शक्ति का तीर वहुत करके दिमाग तक पहुँचता है और अनुभूति का तीर दिल तक पहुँचता है। तो समय प्रमाण एक सेकण्ड में अनुभूति करा लो - यही पुकार होगी। सुनने-सुनाने के थके हुए आयेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ प्रकृति-पति हो, इस प्रकृति के खेल को देख हर्षित होते हो। चाहे प्रकृति हलचल करे,चाहे प्रकृति सुन्दर खेल दिखाए - दोनों में प्रकृति-पति आत्माएं साक्षी हो खेल देखती हो। खेल में मज़ा लेते हैं, घबराते नहीं हैं। इसलिए बापदादा तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के आसन पर अचल अडोल स्थित रहने का विशेष अभ्यास करा रहे हैं। तो यह स्थिति का आसन सबको अच्छा लगता है या हलचल का आसन अच्छा लगता है? अचल आसन अच्छा लगता है ना। कोई भी बात हो जाए चाहे प्रकृति की, चाहे व्यक्ति की, दोनों अचल स्थिति के आसन को ज़रा भी हिला नही सकते हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  ब्राहमण बन देवता बनना"

➳ _ ➳  मैं आत्मा मधुबन जाने के लिए ट्रेन में बैठकर खिड़की से प्रकृति के सौंदर्य को निहारती हुई बाबा को याद कर रही हूँ... डग-मगाती, झिल-मिलाती, सीटी बजाती, ठंडी हवाओं को बिखेरती ट्रेन... पेड़-पौधों, पहाड़ों, जंगलों, मैदानों को पीछे छोडती हुई अपने गंतव्य की ओर जा रही है... बाबा का आह्वान करते ही प्यारे बाबा मेरे बाजू में आकर बैठ जाते हैं... और मीठी रूह-रिहान करते हैं...

❉  मेरे प्यारे बाबा मनुष्य से देवता बनने की रूहानी यात्रा का महत्व समझाते हुए कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... जरा स्वयं को पहचानो... क्या से क्या बन रहे हो इस नशे को रग रग में समाओ... ईश्वरीय पसन्द हो गोद में खिले हुए फूल हो... ब्राह्मण से सीधे देवता बन सजोगे... इतना प्यारा निराला भाग्य है... तो अब विकारो की गन्दगी से परे हो जाओ... और देवता बनने के नशे से भर जाओ..."

➳ _ ➳  पटरियों पर झूमती ट्रेन जैसे, मैं आत्मा बाबा के प्यार की गोदी में झूमती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपनी ऊँची जाति के नशे में भरकर सारे दुर्गुणों और विकारो से स्वयं को मुक्त कराती जा रही हूँ... मीठे बाबा का प्यार पाकर विकारो से निकल सम्पूर्ण पवित्रता को अपना रही हूँ..."

❉  मीठे बाबा अपनी नूरानी सुगंध मुझमें भरते हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अपने सुंदर स्वमान से भर उठो... विश्व पिता की नजरो में समाये नूर हो इस मीठे अहसास में डूब जाओ... और अब जो खुशबु से सुवासित फूल बन रहे हो तो सारे विकारी काँटों से न्यारे हो जाओ... ईश्वरीय प्यार की कस्तूरी में इस कदर खो जाओ कि सिवाय याद के और कुछ याद ही न रहे..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा मनुष्य से देवता बनने के अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ती हुई कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में कितनी मीठी प्यारी और खुबसूरत होती जा रही हूँ... सुंदर देवता बन सुखो से भरे स्वर्ग की अधिकारी बन रही हूँ... विकारो की गन्दगी से अछूती होकर निर्मल पवित्र हो रही हूँ..."

❉  मधुबन की इस यात्रा में मेरे बाबा अपनी मधुर मुस्कान से मधु पिलाते हुए कहते हैं:- "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मनुष्य से देवता बनने वाले अति अति भाग्यशाली आप बच्चे ही हो... तो इस मीठे नशे में डूब जाओ... और दिव्य गुण और शक्तियो की धारणा कर सुंदर सजीले बन जाओ... अब विकारो के मटमैलेपन से मुक्त होकर... अपनी सच्ची सुनहरी रंगत को स्मृतियों में भर लो..."

➳ _ ➳  मैं आत्मा बाबा के हाथों में हाथ डाल, बाबा की दृष्टि से निहाल होती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत की ऊँगली थामे... विकारो के दलदल से निकल उजली होती जा रही हूँ... कंचन तन कंचन मन से कंचन महल में सज रही हूँ... अपने खुबसूरत देवताई स्वरूप के नशे में डूबती जा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जिससे श्राप मिल जाए"

➳ _ ➳  संगमयुग का यह अमूल्य समय जबकि भगवान स्वयं हमारे सम्मुख हैं और आ कर हमें अपने श्रेष्ठ मत देकर कल्प - कल्प, जन्म - जन्मांतर के लिए हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं तो कितने सौभाग्यशाली हैं वो बच्चे जिन्होंने भगवान को पहचान लिया है और उसकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करके भविष्य जन्म - जन्म के लिए अपनी श्रेष्ठ तकदीर बना रहें हैं। और कितने दुर्भाग्यशाली है वो बच्चे जो भगवान का बन कर भी अपनी मत पर चल कर गलत कर्म करते ही जा रहें हैं , इस बात से भी अंजान है कि भगवान का बन कर विकर्म करना मांना स्वयं को बहुत बड़ा श्राप देना है।

➳ _ ➳  यह विचार करते - करते भक्ति मार्ग की कुछ बातें स्मृति में आने लगती है जो शास्त्रों में लिखी हुई हैं कि जब कोई शिष्य अपने गुरु की किसी बात की अवज्ञा करता था तो गुरु उसे श्राप दे देता था। यहां तो भगवान बाप बन कर अपने बच्चों के सम्मुख आया हैं तो एक बाप भला कैसे अपने बच्चों को श्राप दे सकता है! भगवान कभी अपने बच्चों को श्राप नही देता वो तो करुणा, प्रेम, दया का सागर है, दाता है। अपनी श्रेष्ठ मत देकर, बच्चों को श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाते है और उन्हें अविनाशी सुखों से भरपूर कर देते हैं। इसलिए उनकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करना माना स्वयं पर कृपा करना और उनकी मत के विरुद्ध अपनी मत पर चलना या पर मत पर चलना माना स्वयं ही स्वयं को श्रापित करना।

➳ _ ➳  यह सभी विचार करते हुए मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मैं अपने भगवान बाप की श्रीमत को छोड़, मनमत वा परमत पर चल कभी भी कोई ऐसा कर्म नही करूँगी जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये। मन मे इसी दृढ़ संकल्प को लेकर करुणा, प्रेम, दया के सागर अपने मीठे प्यारे बाबा की मीठी यादों के झूले में बैठ, उनके साथ जैसे ही मैं मन बुद्धि का कनेक्शन जोड़ती हूँ, बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाकर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं। मैं आत्मा अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को थामे नश्वर देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने पिता के पास उनके मीठे वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

➳ _ ➳  अपने मीठे बाबा की शक्तिशाली किरणो रूपी बाहों के झूले में झूलती, उनके मधुर और पावन प्रेम का अनुभव करती, बड़ी ही आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, बापदादा की अव्यक्त दुनिया को भी पार कर, अपने प्राण प्रिय शिव पिता की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ। अपने शिव पिता की बाहों से नीचे उतर कर अपने बाबा के इस स्वीट साइलेन्स होम में विचरण करती, इस पूरे ब्रह्मांड में फैले सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन को गहराई तक अपने अंदर समाते हुए मैं असीम सुख का अनुभव करके, अपने प्यारे बाबा के पास आ कर बैठ जाती हूँ।

➳ _ ➳  बाबा का अथाह स्नेह सर्वशक्तियों के रूप में मुझ पर बरस रहा है। अपनी शक्तियों का समस्त बल बाबा मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान सर्व शक्ति सम्पन्न बना रहे हैं ताकि वापिस कर्मभूमि पर जाकर, ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जिससे मुझे श्रापित होना पड़े। बाबा का प्यार, बाबा के गुण, बाबा की शक्तियों की वर्षा निरन्तर मुझ पर हो रही हैं और मैं स्वयं को सर्वगुण, सर्व शक्ति सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। भरपूर होकर अब मैं वापिस साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। बाबा के स्नेह, गुणों और शक्तियों का बल मुझे कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन से नयारा बना रहा है।

➳ _ ➳  हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रह कर अब मैं कर रही हूँ और इस बात पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ कि ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जो मेरे इस अमूल्य ब्राह्मण जन्म को श्रापित करे। बाबा ने जो समझानी मुझे दी है कि "ऐसा कोई भी कर्म नही करना है जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये" को अब मैं सदा स्मृति में रखते हुए अपने हर कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं स्व-दर्शन चक्र द्वारा माया के सब चक्रों को समाप्त करने वाली मायाजीत आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं विदेही स्थिति में रहकर परिस्थितियां सहज पार करने वाला फरिश्ता हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  साधन ही नहीं है और कहोहमको तो वैराग्य हैतो कौन मानेगासाधन हो और वैराग्य हो। पहले के साधन और अभी के साधनों में कितना अन्तर हैसाधना छिप गई है और साधन प्रत्यक्ष हो गये हैं। अच्छा है साधन बड़े दिल से यूज करो क्योंकि साधन आपके लिए ही हैंलेकिन साधना को मर्ज नहीं करो। बैलेन्स पूरा होना चाहिए। जैसे दुनिया वालों को कहते हो कि कमल पुष्प समान बनो तो साधन होते हुए कमल पुष्प समान बनो। साधन बुरे नहीं हैं, साधन तो आपके कर्म कायोग का फल हैं। लेकिन वृत्ति की बात है। ऐसे तो नहीं कि साधन के प्रवृत्ति मेंसाधनों के वश फंस तो नहीं जातेकमल पुष्प समान न्यारे और बाप के प्यारे। यूज करते हुए उन्हों के प्रभाव में नहीं आयेन्यारे। साधनबेहद की वैराग्य वृत्ति को मर्ज नहीं करे। अभी विश्व अति में जा रही है तो अभी आवश्यकता है - सच्चे वैराग्य-वृत्ति की और वह वायुमण्डल बनाने वाले आप हो, पहले स्वयं मेंफिर विश्व में। 

 

✺   ड्रिल :-  "साधन और साधनों का बैलेन्स रखना"

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता उड़ चली हूं... अपने प्यारे बाबा के पास... मेरे बाबा सिंहासन पर विराजमान है... उनकी नजर मुझ पर पड़ी और मेरी नजर उन पर हम दोनों एक दूसरे में समा गए हैं... और मैं गहरी शांति का अनुभव कर रही हूं... जैसे समुंदर में पानी है उसकी गहराई में समा जाते हैं... उसी तरह बाबा की यादों में समा गई हूं...

 

 _ ➳  बाबा मुझे कुछ कह रहे हैं... मैं बड़े प्यार से सुन रही हूं... मेरे मीठे प्यारे बच्चे-यह जो साधन है... आप को सहारा देने वाला है... आपकी मदद करने वाला है... जब कभी आप उदास होते हो तो साधनों का उपयोग कर सकते हो... लेकिन मीठे प्यारे बच्चे साधन के सहारे कभी नहीं जीना... जैसे बच्चा चलता है... उंगली पकड़कर उसे सहारा देते हैं... लेकिन जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है... तब उसका सहारा हट जाता है... ऐसे आप भी अपने पैरों पर खड़े होकर साधन के वश नहीं साधना के वश रहो... अपने मन की गहरी शांति के लिए किसी साधन को यूज़ करते हो... लेकिन आप तो शांत स्वरुप आत्मा हो... अपनी शक्तियों को इमर्ज करो और समय पर कार्य में लगाओ...

 

 _ ➳  जैसे आप कहते हो कमल पुष्प समान पवित्र बनो... जैसे कीचड़ में कमल होता है... लेकिन कीचड़ से उपराम रहता है... आप भी बिना किसी साधन के इस भव सागर में कमल फूल समान पवित्र हो... अब मैं समझ गई हूं... मुझे क्या करना है... साधनों का सहारा लेना है... लेकिन उस के सहारे नहीं जीना अपने साधन से कार्य करना है... मेरे प्राण प्यारे बाबा मुझे क्या-क्या सिखा रहे हो जो बाबा चाहे वही मैं कर रही हूं...

 

 _ ➳  बाबा मुझमें सर्व शक्तियां दे रहे हैं... और मैं सर्व शक्तियों को समाती जा रही हूं... मेरा एक रुप निखर गया है... मैं संपूर्ण बाप समान बन गई हूं... संपूर्ण फरिश्ता बन गई हूं... अब मैं धीरे-धीरे साकार वतन में आती हूं... और पवित्रता की किरणें पूरे वायुमंडल में फैला रही हूं... सारा वायुमंडल पवित्र शुद्ध बन गया है... अब मैं सारे विश्व में बाबा की शक्तियों को फैला रही हूं... इससे सारी विश्व की आत्माएं शांति अनुभव कर रही है... और सर्वात्मा बापदादा की तरफ आ रही है... समय प्रमाण इन आत्माओं को बापदादा की तरफ ले जाती हूं... बापदादा अपनी बाहों में समा लेते हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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