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❍ 22 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ मायाजीत और प्रकृतिजीत अवस्था का अनुभव किया ?
➢➢ विश्व कल्याणकारी स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ सदा सेवा की मौज में रहे ?
➢➢ सदा बापदादा ले स्नेह में समाये हुए रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ सारे दिन में बीच-बीच में एक सेकण्ड भी मिले, तो बार-बार यह विदेही बनने का अभ्यास करते रहो। दो चार सेकण्ड भी निकालो इससे बहुत मदद मिलेगी। नहीं तो सारा दिन बुद्धि चलती रहती है, तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और अभ्यास होगा तो जब चाहे उसी समय विदेही हो जायेंगे क्योंकि अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेही पन का अभ्यास बहुत आवश्यक है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ"
〰✧ जो अनेक बार विजयी आत्मायें हैं, उन्हों की निशानी क्या होगी? उन्हें हर बात बहुत सहज और हल्की अनुभव होगी। जो कल्प-कल्प की विजयी आत्मायें नहीं उन्हें छोटा-सा कार्य भी मुश्किल अनुभव होगा। सहज नहीं लगेगा।
〰✧ हर कार्य करने के पहले स्वयं को ऐसे अनुभव करेंगे जैसे यह कार्य हुआ ही पड़ा है। होगा या नहीं होगा यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। हुआ ही पड़ा है यह महसूसता सदा रहेगी। पता है सदा सफलता है ही, विजय है ही - ऐसे निश्चयबुद्धि होंगे।
〰✧ कोई भी बात नई नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है। इसी स्मृति से स्वयं को आगें बढ़ाते रहेंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ कोई भी संकल्प न आये, फुलस्टॉप कहा और स्थित हो गये। क्योंकि लास्ट पेपर अचानक आना है। अचानक के कारण ही तो नम्बर बनेंगे ना। लेकिन होना एक सेकण्ड में हैं। तो कितना अभ्यास चाहिए?
〰✧ अगर अभी से नष्टोमोहा हैं, मेरा-मेरा समाप्त है तो फिर मुश्किल नहीं है, सहज है। तो सभी पास होने वाले हो ना। जो निश्चय बुद्धि हैं उनकी बुद्धि में यह निश्चत रहता है कि मैं विजयी बना था, बनेंगे और सदा ही बनेंगे। बनेंगे या नहीं बनेंगे, यह क्वेचन नहीं होता है।
〰✧ तो ऐसे बुद्धि में निश्चत है कि हम ही विजयी है? लेकिन वहुतकाल का अभ्यास जरूर चाहिए। अगर उस समय कोशिश करेंगे, बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो मुश्किल हो जायेगा। बहुत काल का अभ्यास अंत में मदद देगा। अच्छा
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ पुरुषार्थ भी रमणीक करो। कई याद में बैठते हैं सोचते हैं 'मैं ज्योति बिन्दु, मैं ज्योति बिन्दु' और ज्योति टिकती नहीं, शरीर भूलता नहीं। ज्योति बिन्दु तो हैं ही लेकिन कौन-सी ज्योति बिन्दु हैं। हर रोज़ अपना नया नया टाइटल याद रखो कि ज्योति बिन्दु भी कौन सी है? रोज़ सर्वप्राप्तियो में से कोई-न-कोई प्राप्ति को याद करो।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- स्वराज्य-अधिकारी बनना"
➳ _ ➳ अपने श्रेष्ठ भाग्य और प्राप्तियों के नशे में मगन मैं आत्मा अपने
प्यारे शिव प्रियतम की याद में मगन हूँ... बाबा से मिली प्राप्तियों का सिमरन
करते करते मन प्रभु स्नेह में आनंद विभोर हो रहा है... ईश्वरीय स्नेह में डूबी
हुई मैं आत्मा अपने प्यारे बाबा को बड़े प्यार से अपने पास बुला रही हूँ...
मेरे दिल की आवाज सुनकर बाबा मेरे सामने आ गए हैं... बाबा का दिव्य तेज समूचे
वातावरण को आलोकित कर रहा है... मैं आत्मा अपने मीठे बाबा को बड़े स्नेह से
एकटक नैनो से निहार रही हूँ...
❉ अपनी दिव्य वाणी से सर्वत्र रूहानियत की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा
कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाबा बच्चों को सदा अधिकारी रुप में
देखना चाहते हैं... अधिकारी बच्चे 'यह दो यह दो' संकल्प में भी भीख नहीं
मांगते... भिखारी का शब्द है दे दो... अधिकारी का शब्द है यह सब अधिकार है...
दाता दाता बाप ने बिना मांगे ही सर्व अविनाशी प्राप्तियों का अधिकार दे दिया
है... इसलिए सदा स्वराज्य अधिकारी की स्थिति में रहो..."
➳ _ ➳ ज्ञान सूर्य बाबा की किरणों का स्पर्श पाकर खुशी में खिली हुई
सूरजमुखी रूपी मैं आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणेश्वर बाबा... आपने मुझे
भक्ति के मांगने के संस्कारों से मुक्त कर दिया... आपसे मुझे अविनाशी
प्राप्तियां हुई हैं... मैं आत्मा उन प्राप्तियों के नशे में मगन हूँ... सदा
अधिकारी पन की स्थिति में स्थित हूँ... सदा स्वराज्य अधिकारी बन ईश्वरीय
प्राप्तियों की खुशी में मग्न हूँ..."
❉ अपनी सतरंगी किरणों से मेरे जीवन को आलोकित करते हुए बाबा कहते हैं:-
"प्यारे सिकीलधे बच्चे... बाबा का बनने के बाद जब आपने स्नेह से मेरा बाबा
कहा... तो बाप ने एक शब्द में ही सर्व खजानों का संसार आपको दे दिया... मेरा
बाबा कहते ही सभी खजानों के मालिक... अधिकारी बन गए... मेरा और तेरा यह
शब्द सर्व विनाशी दु:ख में चक्र से छुड़ाकर सर्व प्राप्तियों का अधिकारी बना
देता है... सर्व खजानों से भरपूर आत्मा... अधिकारी आत्मा की स्थिति में
रहो..."
➳ _ ➳ बाबा के दिव्य ज्ञान को हृदय में आत्मसात करते हुए मैं आत्मा कहती
हूँ:- "जीवन के आधार प्यारे बाबा... मैं आत्मा आप की श्रीमत अनुसार चल रही
हूँ... अब आप ही मेरे संसार हो... आपने मुझे सर्व खजानों का मालिक बना दिया
है... अधिकारी बना दिया है... मैं आत्मा अब इसी स्मृति और खुमारी में स्थित
हूँ..."
❉ अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से जीवन रूपी पुष्प को खिलाने वाले बाबा कहते
हैं:- "प्यारे बच्चे... सदा स्वदर्शन चक्र फिराते रहो... स्वदर्शन द्वारा
प्रसन्नचित अर्थात सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बन जाते हैं... स्वप्न में भी
बाप के आगे भिखारी रूप नहीं रखना है... जो स्वत: ही बिना आपके मांगने के
अविनाशी और अथाह देने वाला दाता है... उसे कहने की क्या आवश्यकता है... दाता
के बच्चे हो इसी श्रेष्ठ स्मृति में रहो... कभी भिखारी कभी अधिकारी नहीं बनना
है... सदा एक श्रेष्ठ संग में रहो... अधीनता वाले संस्कार नहीं हो सदा स्वराज्य
अधिकारी के संस्कार हो..."
➳ _ ➳ बाबा की स्नेह वर्षा में मदमस्त होकर नाचते हुए मयूर रूपी मैं
आत्मा कहती हूँ:- "मीठे बाबा... मैं हर कदम पर आप की शिक्षाओं को धारण कर रही
हूँ... मैं आत्मा स्वदर्शन चक्र फिराकर सदा प्रसन्न और सर्व प्राप्तियों की
अधिकारी स्वरुप में स्थित हूँ... सर्व खजानों से भरपूर मैं आत्मा स्वराज्य
अधिकारी की स्थिति में स्थित हूँ... भिखारी और मांगने के संस्कारों से पूरी
तरह से मुक्त होकर मैं आत्मा अविनाशी प्राप्तियों की अधिकारी बनती जा रही
हूँ... और इसी श्रेष्ठ स्थिति में सदा भरपूर और आनंद मगन स्टेज का अनुभव कर रही
हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल : विश्व कल्याणकारी स्थिति का अनुभव"
➳ _ ➳ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने ब्राह्मण
जीवन में धारण कर, उनके समान बनने का लक्ष्य अपने सामने लाते ही मैं अनुभव
करती हूँ जैसे मैं ब्राह्मण आत्मा ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि, और अपने प्राण
प्रिय परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अवतरण भूमि मधुबन में हूँ। स्वयं को
मैं साकार ब्रह्मा बाबा के सामने देख रही हूँ। अपने हर संकल्प, बोल और
कर्म से बाबा सबको सुख दे कर, सबको परमात्म पालना का अनुभव करवा रहे हैं।
सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा की पालना में पलते हुए अपने ईश्वरीय जीवन का भरपूर
आनन्द ले रहे हैं और फॉलो फादर कर बाप समान बनने का पुरुषार्थ भी कर
रहें हैं।
➳ _ ➳ साकार बाबा की साकार पालना का यह खूबसूरत एहसास मुझे अव्यक्त
बापदादा की याद दिला रहा है। उनसे मिलने के लिए मैं जैसे ही उनका आह्वान
करती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि बाबा अपना धाम छोड़कर मुझ से मिलने
के लिए नीचे आ रहें हैं। अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए परमधाम से नीचे
उतरते, ज्ञान सूर्य अपने प्यारे बाबा को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख
रही हूँ। सूक्ष्म वतन में पहुँच कर शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के
सम्पूर्ण आकारी शरीर मे प्रवेश करते हैं और उनकी भृकुटि पर विराजमान हो कर
अब नीचे साकार लोक में पहुँच कर मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं। बाबा के
मस्तक से आती तेज लाइट को मैं अपने चारों और देख रही हूँ। यह लाइट मुझे सहज
ही लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रही है।
➳ _ ➳ चारों ओर चांदनी सा सफेद प्रकाश फैलता जा रहा है। बापदादा
अपना निस्वार्थ प्रेम और स्नेह अपनी अनन्त किरणो के रूप में मुझ पर बरसा
रहें हैं। बाबा के निस्वार्थ प्यार की अनन्त किरणे और सर्वशक्तियां मेरे
अंदर गहराई तक समाती जा रही हैं। उनकी पावन दृष्टि से पवित्रता का झरना बह
रहा है जिससे निकल रही पवित्र फुहारें मुझ पर बरस रही हैं और मेरे अंदर
पवित्रता का बल भर रही हैं। यह पवित्रता का बल मुझे डबल लाइट बना रहा है।
अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा मुझे आप समान "मास्टर सुख दाता" भव
का वरदान दे कर वापिस अपने अव्यक्त वतन की ओर लौट रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से मिले वरदान को फलीभूत करने के लिए मैं सुख का
फ़रिश्ता बन सारे विश्व मे चक्कर लगाकर, विश्व की तड़पती हुई दुखी अशांत
आत्माओं को सुख की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ। एक बहुत ऊंचे और खुले
स्थान पर जाकर मैं फरिश्ता बैठ जाता हूँ और अपने सुख सागर परमपिता परमात्मा
शिव बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ कर उनसे सुख की शक्तिशाली किरणे लेकर सारे
विश्व में सुख के वायब्रेशन फैलाने लगता हूँ। अपनी श्रेष्ठ सुख दाई मनसा
शक्ति से विश्व की सर्व आत्माओ को सुख प्रदान कर, अब मैं मनसा - वाचा -
कर्मणा तीनो स्वरूपों से सबको सुख देने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण
स्वरूप में आकर स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा
अपनी सम्पूर्ण सुख स्वरूप अवस्था बनाने के लिए हर कर्म अपने प्राण प्रिय
सुख सागर शिव बाबा की याद मे रहकर करती हूँ। चलते फिरते बुद्धि का योग केवल
अपने शिवपिता के साथ जोड़ कर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर मैं सम्पूर्ण
अटेंशन देती हूँ। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं मनसा
- वाचा - कर्मणा सुख दे कर अपने प्यारे बाबा और समस्त ब्राह्मण परिवार की
दुआयों की पात्र बन, दुआयों की लिफ्ट पर बैठ, बाप समान बनने के अपने
संपूर्णता के लक्ष्य को प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ अब निरन्तर और अति
सहज रीति कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं आत्मिक शक्त्ति के आधार पर तन की शक्त्ति का अनुभव करने वाली सदा स्वस्थ आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं दिल से, तन से, आपसी प्यार से सेवा करके निश्चित सफलता प्राप्त करने वाली सफलतामूर्त आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ देखा गया है कि क्रोध की सबजेक्ट में बहुत कम पास हैं। ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं है, यह शस्त्र है, विकार नहीं है। लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है। क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानी होती है। कहने वाले यही कहते हैं, देख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को। क्रोध के बहुत रूप हैं। एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते हो, दिखाई देता है - यह क्रोध कर रहा है।
➳ _ ➳ दूसरा - क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा होती है। इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है, लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है तो क्रोध अग्नि रूप है ना, वह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है। ऐसे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा - यह जिसमे है, वह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है।
➳ _ ➳ तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है। वह क्या है? कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है। कहाँ-कहाँ ला उठाना ही पड़ता है - कल्याण के लिए। अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो। बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में ला उठाने की छुट्टी नहीं दी है। क्या कोई मुरली में कहा है कि भले लाॅ उठाओ, क्रोध नहीं करो? लाॅ उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है। जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी ला उठाते नहीं हैं, लेकिन उन्हों को लाॅ रिवाइज कराना पड़ता है। लाॅ कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए ला को रिवाइज करना पड़ता है। निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी है, सबको नहीं।
✺ ड्रिल :- "क्रोध के बहुरूपों को पहचान क्रोध की सब्जेक्ट में पास होने का अनुभव"
➳ _ ➳ मन रूपी आकाश में बिखरे संकल्प रूपी बादल... कुछ श्वेत कुछ श्याम, और कुछ सबसे अलग अँगारों के समान, गहरे लाल रंग के... जैसे किसी ज्वाला मुखी से बिखरा लावा... एक एक संकल्प को साक्षी भाव से देखते हुए... मैं आत्मा बैठ गयी हूँ बापदादा की कुटिया में, और अब एक एक कर शान्त होते मेरे ये संकल्प... मन बिल्कुल स्वच्छ, शान्त, होता जा रहा है... बापदादा के चित्र से आती प्रकाश की किरणें... मेरी भृकुटी पर स्थित होकर... आहिस्ता आहिस्ता मेरे मस्तिष्क में प्रवेश कर रही है... और इस प्रकाश की धारा से जगमगाता मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व...
➳ _ ➳ मैं आत्मा फरिश्ता रूप में बापदादा के साथ हिस्ट्री हाॅल में... बापदादा आज बच्चों को उनके अलौकिक जन्मदिन की बधाई दे रहे है... एक एक करके... बारी-बारी से सबको... मेरा नम्बर सबसे आगे... मगर बापदादा मुझे इशारे से पीछे होने का संकेत करते हुए... एक एक आत्मा को वरदान और पावर फुल दृष्टि, साथ बेशकीमती सौगातें... और मैं एक एक कर अपने सामने से उमंगों से भरपूर होकर जाती एक एक आत्मा को देख रहा हूँ... लम्बे इन्तजार के बाद मेरा नम्बर आता है... और बापदादा मेरी उपेक्षा कर चले जाते है हिस्ट्री हाॅल से... मैं बैठकर सोच रहा हूँ इस उपेक्षा का कारण... और एक एक आत्मा के प्रति ईर्ष्या से भरता जा रहा हूँ मैं... अन्दर ही अन्दर एक बेचैनी और घुटन... एक बेबसी की भावना... क्योंकि मुझे बाहर से शान्त भी दिखना है... एक अन्तहीन सा संघर्ष... जिसकी पीडा मैं ही जानता हूँ... तभी कन्धे पर किसी का प्यार भरा स्पर्श... और जैसे किसी ने कोई पीडानाशक घोल पिला दिया हो... और सारी कटुता सारी ईर्ष्या बह गयी है आँखो से आसुँओं की धारा बनकर...
➳ _ ➳ मैं अब बापदादा के साथ एक अनोखी यात्रा पर... मैं और बाबा एक ऊँची पहाडी पर... दूर कहीं फटता ज्वालामुखी और बहकर आता हुआ उसका गहरा लाल लावा... बेहद डरावना और जलाने वाला... मैं देख रहा हूँ बाबा के मनोभावों को और समझने की कोशिश कर रहा हूँ... हिस्ट्री हाॅल का उनका व्यवहार और अब ये ज्वाला मुखी... और सहसा समझ में आ रहा है मुझे सब कुछ... क्रोध का भीषण रूप ठीक इस ज्वालामुखी की तरह से जलाने वाला... और सूक्ष्म रूप ईर्ष्या... सोचकर खुद से ही नजरें चुरा रहा हूँ मैं और बाबा रहस्यपूर्ण नजरों से देखे जा रहें है मुझे... मगर मैं नजरें उठाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा अब... और तभी बापदादा मेरा हाथ पकड कर एक झील के पास ले जाते हुए... मुझे झील के पानी में पैर उतारने का आह्वान करते हुए... और मैं देख रहा हूँ पानी से उठता धुआँ... गरम खौलता झील का पानी... कुछ ही पल में समझ रहा हूँ क्रोध के तीसरे रूप को... शीतलता का प्रतीक झील का पानी, मगर आज ये गरम और खौलता हुआ... ठीक वैसे ही जैसे निमित्त बनी आत्मा लाॅ को हाथ में उठाये और कल्याण के नाम पर क्रोध को करें...
➳ _ ➳ क्रोध के विभिन्न रूपों की पहचान कर मैं क्रोध मुक्त बनने के लिए बैठ गया हूँ... शान्त पहाडी झरने के नीचे... झरने के ऊपर बापदादा... मुझ आत्मा से क्रोध के अंश मात्र को धोते हुए... और निर्मल और शान्त होती हुई मैं आत्मा... बिन्दु बन परमधाम की ओर जाती हुई मैं आत्मा... और अन्य आत्माओं को मुझसे आगे निकलने का आह्वान करते बापदादा... मगर मैं शान्त और यथा स्थिति में... न कोई संकल्प और न ही हलचल... क्रोध के पेपर में पास मैं शान्त स्वरूप आत्मा... और अब बापदादा के एकदम करीब... बिल्कुल करीब... मैं बापदादा के सबसे करीब की आत्मा... भरे जा रही हूँ स्वयं को उनके स्नेह से... स्नेह सागर में समाती हुई... ॐ शान्ति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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