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❍ 06 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ माया के विघनो से हार तो नहीं दिखाई ?
➢➢ एम ऑब्जेक्ट को सामने रख पुरुषार्थ किया ?
➢➢ शुभचिंतन द्वारा नेगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्त्तित किया ?
➢➢ ज्ञान रत्नों से, गुणों से और शक्तियों से खेले ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ पहले अपनी देह के लगाव को खत्म करो तो संबंध और पदार्थ से लगाव आपे ही खत्म हो जायेगा। फरिश्ता बनने के लिए पहले यह अभ्यास करो कि यह देह सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ। फिर देखो, फरिश्ता बनना कितना सहज लगता है!
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं बाबा की आँखों का तारा हूँ"
〰✧ सदा अपने को कौनसे सितारे समझते हो? (सफलता के सितारे, लक्की सितारे, चमकते हुए सितारे, उम्मीदों के सितारे) बाप की आंखों के तारे। तो नयनों में कौन समा सकता है? जो बिन्दु है। आंखों में देखने की विशेषता है ही बिन्दु में। जितना यह स्मृति रखेंगे कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, तो स्वत: ही बिन्दु रूप होंगे। कोई बड़ी चीज आंखों में नहीं समायेगी। स्वयं आंख ही सूक्ष्म है, तो सूक्ष्म आंख में समाने का स्वरूप ही सूक्ष्म है। बिन्दु-रूप में रहते हो? यह बड़ा लम्बा- चौड़ा शरीर याद आ जाता है?
〰✧ बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि हर कर्म में सफलता वा प्रत्यक्षफल प्राप्त करने का साधन है-रोज अमृतवेले तीन बिन्दु का तिलक लगाओ। तो तीन बिन्दु याद हैं ना। लगाना भी याद रहता है? क्योंकि अगर तीनों ही बिन्दी का तिलक सदा लगा हुआ है तो सदैव उड़ती कला का अनुभव होता रहेगा। कौनसी कला में चल रहे हो? उड़ती कला है? या कभी उड़ती, कभी चलती, कभी चढ़ती? सदा उड़ती कला। उड़ने में मजा है ना। या चढ़ने में मजा है? चारों ओर के वायुमण्डल में देखो कि समय उड़ता रहता है। समय चलता नहीं है, उड़ रहा है। और आप कभी चढ़ती कला, कभी चलती कला में होंगे तो क्या रिजल्ट होगी? समय पर पहुँचेंगे? तो पहुँचने वाले हो या पहुँचने वालों को देखने वाले हो? सभी पहुँचने वाले हो, देखने वाले नहीं। तो सदा उड़ती कला चाहिए ना।
〰✧ उड़ती कला का क्या साधन है? बिन्दु रूप में रहना। डबल लाइट। बिन्दु तो है लेकिन कर्म में भी लाइट। डबल लाइट हो तो जरूर उड़ेंगे। आधा कल्प बोझ उठाने की आदत होने कारण बाप को बोझ देते हुए भी कभी-कभी उठा लेते हैं। तंग भी होते हो लेकिन आदत से मजबूर हो जाते हो। कहते हो 'तेरा' लेकिन बना देते हो 'मेरा'। स्वउन्नति के लिए वा विश्व-सेवा के लिए कितना भी कार्य हो वह बोझ नहीं लगेगा। लेकिन मेरा मानना अर्थात् बोझ होना। तो सदैव क्या याद रखेंगे? मेरा नहीं, तेरा। मन से, मुख से नहीं। मुख से तेरा-तेरा भी कहते रहते हैं और मन से मेरा भी मानते रहते हैं। ऐसी गलती नहीं करना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ संसार में एक सम्बन्ध, दूसरी है सम्पति। दोनों विशेषतायें बिन्दू बाप में समाई हुई हैं। सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव किया है? सर्व सम्पत्ति की प्राप्ति सुख-शान्ति, खुशी यह भी अनुभव किया है या अभी करना है? तो क्या हुआ? विस्तार सार में समा गया ना!
〰✧ अपने आप से पूछो अनेक तरफ विस्तार में भटकने वाली बुद्धि समेटने के शक्ति के आधार पर एक में एकाग्र हो गई है? वा अभी भी कहाँ विस्तार में भटकती है! समेटने की शक्ति और समाने की शक्ति का प्रयोग किया है? या सिर्फ नॉलेज है। अगर इन दोनों शक्तियों को प्रयोग करना आता है तो उसकी निशानी सेकण्ड में जहाँ चाहो जब चाहो बुद्धि उसी स्थिति में स्थित हो जायेगी।
〰✧ जैसे स्थूल सवारी में पॉवरफुल ब्रेक होती है तो उसी सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ रोक सकते हैं। जहाँ चाहें वहाँ गाडी को या सवारी को उसी दिशा में ले जा सकते हैं। ऐसे स्वयं यह शक्ति अनुभव करते हो वा एकाग्र होने में समय लगता है? वा व्यर्थ से समर्थ की ओर बुद्धि को स्थित करने में मेहनत लगती है? अगर समय और मेहनत लगती है तो समझो इन दोनों शक्तियों की कमी है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है। किसलिए? बच्चों को भी विदेही बनाने के लिए। जैसे बाप विदेही, देह में आते हुए भी विदेही स्वरूप में, विदेहीपन का अनुभव कराते है। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते विदेही आत्म-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। यह देह करनहार है। आप देही करावनहार हो। इसी स्थिति को 'विदेही स्थिति' कहते हैं। इसी को ही फालो फादर कहा जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप समान बनने के लिए ज्ञान की धारणा करना"
➳ _ ➳ भक्ति में सदा कनरस में डूबी हुई मै आत्मा... मन्दिर में एक
प्रतिमा के दर्शन में जीवन की सफलता को निहारा करती थी... तब कहीं ख्वाबो और
ख्यालो में भी... ईश्वरीय मिलन की कोई और चाहना भी न थी... बून्द ही मेरे लिए
सागर थी... किसी और प्यार के सागर को भला मै क्या जानु... पर भगवान को मेरे ये
खोखले और क्षणिक सुख नही भाये... और वह मुझे सच्चे सुखो की अमीरी का अहसास
कराने... परमधाम छोड़, धरती पर आ गया... मेरे अथाह सुखो की चाहना में... धरा पर
डेरा जमा लिया... अपने प्यारे बाबा के सागर दिल को याद करते करते... और उसके
असीम उपकारों को सिमरते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में मिलन के लिए
पहुंचती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने खोये गुणो से भरपूर कर पुनः
चमकदार बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे,... जनमो से ईश्वर के दर्शनों
को तरसते थे... आज उनके सम्मुख बेठ मा नॉलेजफुल बन रहे हो... तो अब हर पल, हर
साँस को ईश्वरीय यादो में ही बिताओ... सिर्फ एक सच्चे बाप से सच्चे ज्ञान को
सुनकर, गुणो की धारणा कर, स्वयं को सदा के लिए मीठा बनाओ... इन अविनाशी ज्ञान
रत्नों को सुनने वाली... आपकी कर्मेन्द्रियों का भी भाग्य है.. कि आत्मा को
ईश्वरीय सुख दिलाने में भागीदार है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के अमृत वचन सुनकर स्वयं के भाग्य की सराहना
करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा ने आपके बिना अथाह दुःख
पाया... सच्चे प्यार को तरसती मै आत्मा... दर दर भटकती रही... आज आप प्यार के
सागर ने मुझे अपनी प्यार भरी बाँहों में लेकर... मेरे थके मन, बुद्धि को सुख से
भर दिया है... आपकी यादो में मेरा प्यारा मन और दिव्य बुद्धि मुझे असीम खुशियो
से सजा रही है..."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न बनाते
हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... महान भाग्य ने जो अविनाशी ज्ञान रत्नों
को दामन में सजाया है... उनको खनक में सदा खोये रहो... श्रीमत की धारणा से मन
प्यारा और बुद्धि दिव्यता से सज कर, सदा सुखो की बहारो में ले जायेगी... और
ज्ञान को सुनते सुनते, स्थूल कर्मेन्द्रियाँ भी मिठास से परिपूर्ण हो जायेगी...
इसलिए सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में आनन्दित रहो और यादो में झूमते रहो...
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की सारी दौलत को अपनी बाँहों में भरकर कहती
हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके बिना कितनी सूनी थी... पराये
देश में पिता बिना कितनी अकेली थी... आप आये तो जीवन में बहार आयी है... ज्ञान
और योग से जीवन रौनक से भरा, खुबसूरत हो गया है... यह जीवन सच्ची खुशियो से
संवर गया है... सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियाँ ईश्वरीय प्यार में शीतल
सुखदायी हो गयी है और मुझ आत्मा को सदा का सुख दे रही है..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डूबने का फरमान देते
हुए कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर अब पुरानी दुनिया
के व्यर्थ से मुक्त हो जाओ... सिर्फ मीठे बाबा के सच्चे ज्ञान रत्नों को ही
सुनो... यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही सच्ची कमाई है... सदा इस सच्ची कमाई में ही
डूबे रहो... सत्य ज्ञान और सच्चे वजूद को जानकर, अब स्वयं को कहीं भी न उलझाओ...
मीठे बाबा की प्यारी यादो में डूब, सदा के लिए प्यारे और न्यारे बन जाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की मीठी मीठी यादो में गहरे डूबकर कहती हूँ
:- "प्यारे दुलारे बाबा... विकारो की कालिमा में कंगाल बन गयी... मुझ आत्मा को
अपने सच्चे ज्ञान से पुनः मालामाल बना रहे हो... मै क्या बन गयी थी, और आप मुझे
पुनः देवता सजा रहे हो... ऐसा मीठा खुबसूरत भाग्य पाकर, तो मै आत्मा निहाल हो
गयी हूँ... आपकी मीठी यादे और अमूल्य ज्ञान रत्न ही... मेरे जीवन का सच्चा
आधार है, और इसी पर मेरे सारे सुखो का मदार है..."मीठी बाबा को अपने दिल की
बात सुनाकर मै आत्मा... साकारी लोक में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- आत्मा को सतोप्रधान बनाने की मेहनत करनी है"
➳ _ ➳ सोने में पड़ी हुई खाद को निकालने के किये एक सुनार उसे अग्नि में
कितनी अच्छी तरह तपाता है। ठीक उसी प्रकार मुझ आत्मा के ऊपर 63 जन्मो के
विकारों की जो कट चढ़ चुकी है उसे भस्म करने के लिए उसे भी तो योग अग्नि में
तपाना बहुत जरूरी है और यह योग अग्नि तभी प्रज्ज्वलित होगी जब सिवाय एक पतित
पावन बाप की याद के और कोई की याद मन मे नही होगी। केवल एक बाबा की अव्यभिचारी
याद ही, आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर भस्म कर सकती है और आत्मा
को सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान बना सकती है। ये सब बातें मैं मन ही मन में सोच
रही हूं।
➳ _ ➳ इन बातों पर विचार करते करते मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो जैसे
ही अपने शिव पिता परमात्मा की अव्यभिचारी याद में बैठती हूँ मैं डीप साइलेन्स
में पहुंच जाती हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही देह, देह से जुड़ी हर वस्तु
से मैं स्वयं को पूर्णतया मुक्त अनुभव करने लगती हूं और इसी विमुक्त अवस्था
में मैं स्वयं को विदेही, निराकार और मास्टर बीज रुप स्थिति में अपने बीच रुप
परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व
शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, पारसनाथ बाप के सामने परमधाम में पाती
हूँ। उनसे आ रही अनन्त शक्तियों की किरणों से उतपन्न होने वाली योग अग्नि में
अब मुझ आत्मा के विकर्म विनाश हो रहें हैं और मैं सम्पूर्ण पावन सतोप्रधान बन
रही हूं।
➳ _ ➳ अपने इसी अनादि सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से अब नीचे
आ जाती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान देह धारण कर नई सतोप्रधान दुनिया में मैं प्रवेश
करती हूं। संपूर्ण सतोप्रधान चोले में अवतरित देवकुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के
रुप में इस सृष्टि चक्र पर मेरा पार्ट आरंभ होता है। अब मैं आत्मा अपने पूज्य
स्वरूप का अनुभव कर रही हूं। मैं देख रही हूं मंदिरों में, शिवालयों में भक्त
गण मेरी भव्य प्रतिमा स्थापन कर रहे हैं। मेरी जड़ प्रतिमा से भी शांति, शक्ति
और प्रेम की किरणे निकल रहीं हैं जो मेरे भक्तों को तृप्त कर रही हैं।
➳ _ ➳ अपने देवताई और पूज्य स्वरूप का आनन्द ले कर अब मैं अपने ब्राह्मण
स्वरूप में स्थित होती हूँ। इस स्वरूप में टिकते ही अपने ब्राह्मण जीवन की
सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति मुझे आनन्द विभोर कर देती है। इस बात की
स्मृति आते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज़ होता है कि मेरा यह दिव्य
आलौकिक जन्म स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा के कमल मुख द्वारा हुआ है। स्वयं
परमात्मा ने मुझे कोटों में से चुन कर अपना बनाया है। तो अब मेरा भी यह फर्ज
बनता है कि अपने प्यारे मीठे बाबा की श्रीमत पर चल कर मैं ब्राह्मण सो फ़रिशता
बनने का पार्ट जल्दी ही समाप्त करूँ ताकि इस पार्ट को पूरा करके अति शीघ्र उसी
सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को प्राप्त कर, अपने धाम वापिस लौट सकूं जिस
सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था मे मैं आत्मा इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आई थी।
➳ _ ➳ इसलिये एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह, आत्मा को सम्पूर्ण
सतोप्रधान बनाने के लिए अब मैं अपने परमप्रिय परम पिता परमात्मा के प्रेम को
ढाल बना कर, आसुरी दुनिया मे रहते हुए भी आसुरी सम्बन्धो के लगाव, झुकाव और
टकराव से स्वयं को मुक्त कर रही हूं। देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी मैं
जैसे इस दुनिया मे नही हूँ। मैं आत्मा हूँ, परमपिता परमात्मा की अजर, अमर,
अविनाशी सन्तान हूँ और मेरे सर्व सम्बन्ध एक के ही साथ हैं, इसी स्मृति में
निरन्तर रह कर अब मैं आत्मा किसी भी देहधारी के नाम रूप में ना फंस कर, केवल
पतित पावन अपने परम पिता परमात्मा की याद में रह स्वयं को पावन बना रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं शुभचिंतन द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाली शुभचिंतक आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं मिट्टी को छोड़, ज्ञान रत्नों से, गुणों और शक्तियों से खेलने वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
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हर
एक बच्चा निश्चय और फलक से कहते हैं कि मेरा बाबा मेरे साथ है।
➳ _ ➳
कोई
भी पूछे परमात्मा कहाँ है? तो
क्या कहेंगे? मेरे
साथ है। फलक से कहेंगे कि अब तो बाप भी मेरे बिना
रह नहीं सकता। तो इतने समीप, साथी
बन गये हो। आप भी एक सेकण्ड भी बाप के बिना नहीं रह सकते हो।
➳ _ ➳
बापदादा बच्चों का यह खेल भी देखते रहते हैं कि बच्चे एक तरफ कह रहे हैं मेरा
बाबा, मेरा
बाबा और दूसरे
तरफ किनारा भी कर लेते हैं।
➳ _ ➳
बाप
को देखने की दृष्टि बन्द हो जाती है और माया को देखने की दृष्टि खुल जाती है।
तो आंख मिचौनी खेल
कभी-कभी खेलते हो? बाप
फिर भी बच्चों के ऊपर रहमदिल बन माया से किसी भी ढंग से किनारा करा लेता है।
वो बेहोश करती और बाप होश में लाता है कि तुम मेरे हो। बन्द आंख याद के जादू से
खोल देते हैं।
✺
ड्रिल :- "बाबा की मदद से माया से किनारे का अनुभव"
➳ _ ➳ नीले
आसमान सी चुनरिया और सिंदूरी श्याम सी बिंदिया,
पेड़ पत्तों की खनखनाहट है हाथों में और मुख पर सुर्ख हवाओं का पर्दा गिरा कर
देखो यह प्रकृति कितनी मुस्कुरा रही है... दूर एक छोटे से टापू पर बैठ कर मैं
आत्मा यह नजारा देख रही हूं... और मुझे यह प्रकृति इस श्रृंगार में अति मनमोहक
लग रही है... यह दृश्य मुझे अति आनंदित अनुभव करा रहा है... और इसी आनंद की
स्थिति में मैं और गहराई में चली जाती हूं... और पहुंच जाती हूं आबू पर्वत...
जहां पर बाबा के बच्चे फरिश्ते की तरह निमित्त भाव से सेवा करते नजर आ रहे
हैं... मैं उनको और उनके सेवाभाव को तथा उनकी बाबा से लगन को जानने के लिए उनके
पास जाकर गहराई से उनके मनोभाव को जानने का प्रयास करती हूं...
➳ _ ➳
और
जैसे ही मैं आत्मा उन फरिश्तों रूपी बाबा के बच्चों के पास जाती हूँ... तो मुझे
यह ज्ञात होता है कि... उन सभी ब्राहमण आत्माओं के पास एक चाबी है... जिसका नाम
है मेरा बाबा और जिसके कारण वह आत्माएं हर बंद ताले को खोल सकती है... और अपने
हर कार्य में सफल हो जाती है... मैं उन आत्माओं से पूछती हूं... कि क्या यह
चाबी आपके पुरुषार्थ में तुम्हारी मदद करती है... तो वह आत्माएं हमें कहती
है... हमारे सामने चाहे कोई भी परिस्थिति आए... चाहे कितनी भी खुशी रहे इस मेरे
बाबा रूपी चाबी को कभी नहीं भूलती... जिसके कारण हम आत्माएं फरिश्ते रूप में
अपने आप को सहज ही अनुभव कर निमित्त सेवाधारी का पार्ट बजा पा रही हैं...
➳ _ ➳
फिर
मैं उन फरिश्तों रूपी आत्माओं को इस स्थिति में देखकर मैं आत्मा पहुंच जाती हूं
मन बुद्धि से उसी स्थान पर... जहां से मुझे यह प्रकृति अति मनमोहक लग रही है...
और उसी टापू पर बैठकर मैं सोचने लगती हूँ... की बाबा मुझे रोज सच्चा ज्ञान दे
रहे हैं,
मुझे माया से जीतना सिखा रहे हैं... अपना घर शांति धाम छोड़ कर... यहां
कलियुगी दुनिया में आकर मुझे इस कलियुग की दुनिया से निकालकर सुखधाम ले जाने के
लिए आए हैं... तो मेरा भी यह पूरा-पूरा कर्तव्य होना चाहिए... कि मेरे दिल में
सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यारा बाबा ही हो ना कि कोई और... अगर मैं हमेशा इन
फरिश्तों की भांति अपने आप को देखना चाहती हूं... और सभी दुख दर्द से छुटकारा
पाना चाहती हूं... तो मुझे भी इस मेरे बाबा रूपी चाबी का शत प्रतिशत उपयोग करना
होगा... मैं अपने आप से यह दृढ़ संकल्प करती हूं कि... आज से मेरे दिल में
मेरे हर संकल्प में सिर्फ और सिर्फ मेरा प्यारा बाबा ही होगा...
➳ _ ➳
और
जैसे ही मैं अपने आपसे यह वादा करती हूं... तो मैं अनुभव करती हूं... कि मैं इस
सृष्टि की सबसे सौभाग्यशाली आत्मा हूं... क्योंकि मुझे स्वयं परमपिता सच्चा
ज्ञान दे रहे हैं... और अपनी गोद में बिठाकर मायावी दुनिया से मुझे बचा रहे
हैं... और जैसे ही मुझे इस स्थिति का अपने अंदर पूर्ण आभास होता है... तो मैं
देखती हूं की मेरे सामने स्वयं बापदादा खड़े होकर मुस्कुरा रहे हैं... बाबा का
मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मैं अपनी मुस्कान कभी रोक नहीं पाती और मैं बाबा से
कहती हूं... मेरे मीठे बाबा मैं बार-बार आपका हाथ छोड़ कर माया के पास चली जाती
हूं... और माया मुझे बेहोश कर देती है... परंतु मेरे मीठे बाबा इस मायावी
बेहोशी से हर बार मेरे खिवैया बनकर... आप मुझे इस विषय सागर से निकाल ही लेते
हो... और मैं कहती हूं... बाबा आप हार नहीं मानते तो मैं भी आपकी बच्ची हूं...
मैं भी हार नही मानूंगी... और हमेशा आपका नाम लेकर आपके नाम के सहारे से मैं इस
विषय सागर से निकलकर किनारे पर आ जाऊंगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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