━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 22 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ "हम परमधाम निवासी आत्मा यहाँ पार्ट बजाने आये हैं" - चलते फिरते यह चिंतन किया ?
➢➢ आत्मा अभिमानी बनने का पूरा पूरा अभ्यास किया ?
➢➢ पवित्र प्यार की पालना द्वारा सर्व को स्नेह के सूत्र में बांधा ?
➢➢ संकल्प, बोल, समय, गुण और शक्तियों के खजाने को जमा किया ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ विशेष याद की यात्रा को पॉवरफुल बनाओ, ज्ञान-स्वरुप के अनुभवी बनो। आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृत्ति और शक्तिशाली वातावरण अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति करायेगी।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं श्रेष्ठ भाग्य की खुशी के गीत गाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत स्वत: ही मन में बजते रहते हैं? यह अनादि अविनाशी गीत है। इसको बजाना नहीं पड़ता लेकिन स्वत: ही बजता है। सदा यह गीत बजना अर्थात् सदा ही अपने खुशी के खजाने को अनुभव करना। सदा खुश रहते हो? ब्राह्मणों का काम ही है खुश रहना और खुशी बांटना। इसी सेवा में सदा बिजी रहते हो? वा कभी भूल भी जाते हो? जब माया आती है फिर क्या करते हो? जितना समय माया रहती है उतना समय खुशी का गीत बन्द हो जाता है। बाप का सदा साथ है तो माया आ नहीं सकती। माया आने के पहले बाप का साथ अलग करके अकेला बनाती है, फिर वार करती है। अगर बाप साथ है तो माया नमस्कार करेगी, वार नहीं करेगी।
〰✧ तो माया को जब अच्छी तरह से जान गये हो कि यह दुश्मन है, तो फिर आने क्यों देते हो? साथ छोड़ देते हो ना, इसलिए माया को आने का दरवाजा मिल जाता है। दरवाजे को डबल लॉक लगाओ, एक लॉक नहीं। आजकल एक लॉक नहीं चलता। तो डबल लॉक है-याद और सेवा। सेवा भी निःस्वार्थ सेवा-यही लॉक है। अगर निःस्वार्थ सेवा नहीं तो वह लॉक ढीला लॉक हो जाता है, खुल जाता है। याद भी शक्तिशाली चाहिए। साधारण याद है तो भी लॉक नहीं कहेंगे। तो सदा चेक करो-याद तो है लेकिन साधारण याद है या शक्तिशाली याद है? ऐसे ही, सेवा करते हो लेकिन निःस्वार्थ सेवा है या कुछ न कुछ स्वार्थ भरा है? सेवा करते हुए भी, याद में रहते हुए भी यदि माया आती है तो जरूर सेवा अथवा याद में कोई कमी है।
〰✧ सदा खुशी के गीत गाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माएं हैं-इस स्मृति से आगे बढ़ो। यथार्थ योग वा यथार्थ सेवा-यह निशानी है निर्विग्न रहना और निर्विग्न बनाना। निर्विग्न हो या कभी-कभी विघ्न आता है? फिर कभी पास हो जाते हो, कभी थोड़ा फेल हो जाते हो। कोई भी बात आती है, उसमें अगर किसी भी प्रकार की जरा भी फीलिंग आती है-यह क्यों, यह क्या..... तो फीलिंग आना माना विघ्न। सदैव यह सोचो कि व्यर्थ फीलिंग से परे, फीलिंग-प्रूफ आत्मा बन जायें। तो मायाजीत बन जायेंगे। फिर भी, देखो-बाप के बन गये, बाप का बनना-यह कितनी खुशी की बात है! कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा कि भगवान् के इतने समीप सम्बन्ध में आयेंगे! लेकिन साकार में बन गये! तो क्या याद रखेंगे? सदा खुशी के गीत गाने वाले। यह खुशी के गीत कभी भी समाप्त नहीं हो सकते हैं।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ संकल्प किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण अवस्था, कर्मातीत अंतिम स्टेज। तो अपने आप से पूछो - अन्तिम स्टेज के कितना समीप पहुँचे हो? जितना संपूर्ण अवस्था के नजदीक होंगे अर्थात् बाप के नजदीक होंगे उसी अनुसार भविष्य प्रालब्ध में भी राज्य अधिकारी होंगे।
〰✧ साथ-साथ आदि भक्त जीवन में भी समीप सम्बन्ध में होंगे। पूज्य अथवा पूजारी दोनों जीवन में साकार बाप के समीप होंगे अर्थात आदि आत्मा के सारे कल्प में सम्बन्ध वा सम्पर्क में रहेंगे। हीरो पार्टधारी आत्मा के साथ-साथ आप आत्माओं का भी भिन्न नाम-रूप से विशेष पार्ट होगा।
〰✧ अब के सम्पूर्ण स्थिति के नज़दीक से अर्थात बापदादा की समीपता के आधार से सारे कल्प की समीपता का आधार है इसलिए जितना चाहो उतना अपनी कल्प की प्रालब्ध बनाओ। समीपता का आधार श्रेष्ठता है।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ सेवा का कितना भी विस्तार हो लेकिन स्वयं की स्थिति सार रूप में हो। अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक सेकण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो हो जाओ। टाइम न लगे। सेकण्ड की बाज़ी है। एक सेकण्ड की बाज़ी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हो। जितनी चाहो उतनी बनाओ।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- आपस में रूहानी प्यार होना"
➳ _ ➳ प्रेम के सागर मीठे बाबा की बाँहों में प्रेम मणि बनी मै आत्मा... कितनी
मीठी और प्यारी हो गयी हूँ... अपने मीठे भाग्य के चिंतन में खोयी हुई कि...
प्यारे बाबा ने अपने प्यार में मेरे देहभान के सारे कड़वेपन को धो दिया है...
और अपनी मिठास को मुझ में भरकर यूँ रूहानी सा सजा दिया है... आज हर आत्मा के
लिए मेरे दिल ने सदा आत्मिक स्नेह की खुशबु है... इन्ही मीठे जज्बातों को
उंडेलने, मीठे प्यार के सागर बाबा का दिल से शुक्रिया करने, मै आत्मा वतन में
पहुंचती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रूहानी प्यार से सराबोर करते हुए कहा:- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता ने जो आत्मिक अनुभूति करवाई है... उसमे गहरे
डूबकर आत्मिक भाव की तरंगे पूरे विश्व में बहाओ... रूहानी प्यार में रहकर, सदा
एक दूसरे को आत्मा देख, गुणो को ही ग्रहण करो... मीठे बाबा से सारे गुणो की
दौलत लेने में मशगूल रहो... किसी के भी अवगुण न देखो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से सच्चे प्यार की दौलत पाकर कहती हूँ :- “मीठे
प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह के भान में आकर सदा अवगुणों पर ही गहरी नजर
रखती रही... और अवगुण देखते देखते मै स्वयं अवगुणों की खान बनकर रह गयी...
आपने मीठे बाबा मुझ आत्मा को आत्मिक स्नेह की नजर देकर मुझे कितना गुणवान और
सुखी बना दिया है...सबमे गुणो को निहारने वाला होलिहंस बना दिया है,.."
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणो की अमीरी से भरते हुए कहा :- "मीठे प्यारे
लाडले बच्चे... ईश्वरीय प्रेम के पर्याय बनकर, सबको सुख और आनन्द के खजानो का
मालिक बनाओ... सच्चे प्यार की बहार बनकर, सब्को सदा सुख ही सुख की अनुभति कराओ...
गुणो के मोती अपनी झोली में सदा भरते रहो...किसी की कमी कमजोरी को न देखो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के रूहानी प्यार को पाकर, अति मीठी और प्यारी बनकर
कहती हूँ :- "मीठे लाडले बाबा मेरे... आपने मुझे प्रेम का स्वरूप बनाकर, कितना
मीठा और प्यारा कर दिया है... सबमे गुण खोजने वाली बन गयी हूँ... मै आत्मा हर
दिल पर प्यार लुटाकर, आपको प्रत्यक्ष कर रही हूँ... सबको सुख देकर सच्चे पिता
से मिलवा रही हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को मा गुण सागर बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे
सिकीलधे बच्चे... प्यार के सागर से पायी प्यार भरी लहरों से हर मन का सिंचन करो...
हर दिल पर सदा रूहानी स्नेह की वर्षा करके सुख भरी ठंडक पहुँचाओ... सदा गुणो
को ही देखो और मा गुण सागर बनकर मुस्कराओ...."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से असीम प्यार पाकर प्रेम मणि बनकर कहती हूँ :- "मीठे
मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी प्यार भरी गोद में रूहानी प्यार से भरपूर
होकर, सबपर यह प्यार का खजाना लुटा रही हूँ... अपने मीठे बाबा से पाये गुणो के
भण्डार का मुरीद हर दिल को बना रही हूँ... कितना प्यारा यह मेरा भाग्य है..."मीठे
बाबा के प्रेम में भरपूर होकर मै आत्मा... साकारी वतन में लौट आयी...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- आत्म - अभिमानी बनने का पूरा - पूरा अभ्यास करना है
➳ _ ➳ एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत
बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं
कौन हूँ ! क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक
स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण
में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता
है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है। थोड़ी
ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और
उसका दाह संस्कार कर देते हैं।
➳ _ ➳ इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में
छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर
को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! इसका अर्थ है कि इस
शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर
जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस
शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है। फिर किसी भी तरह
का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।
➳ _ ➳ "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज
स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर
विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की
लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी
से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड
में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं
स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का
आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को
बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। किसी भी
तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि
एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह
से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है। इस डबल
लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे
शिव पिता के प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। अपने
प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान
विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का
आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच
जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। आत्माओं
की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य
मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ। चारों और चमकते हुए चैतन्य
सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से
पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।
➳ _ ➳ उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की
अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से
स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप
जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती
हूँ। अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी
शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे
वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती
हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह
में रथी हूँ। इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से
बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार -
बार करती रहती हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं पवित्र प्यार की पालना द्वारा सर्व को स्नेह के सूत्र में बांधने वाली मास्टर स्नेह की सागर आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं संकल्प, बोल, समय, गुणों और शक्तियों के खजाने जमा करके इनका सहयोग प्राप्त करने वाली सम्पन्न आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ अमृतवेले से लेकर हर कर्म में चेक करो कि सुकर्म किया वा व्यर्थ कर्म किया
वा कोई विकर्म भी किया? सुकर्म अर्थात् श्रीमत के आधार पर कर्म करना। श्रीमत
के आधार पर किया हुआ कर्म स्वत:ही सुकर्म के खाते में जमा होता है। तो सुकर्म
और विकर्म को चेक करने की विधि यह सहज है। इस विधि के प्रमाण सदा चेक करते चलो।
अमृतवेले के उठने के कर्म से लेकर रात के सोने तक हर कर्म के लिए ‘श्रीमत' मिली
हुई है। उठना कैसे है, बैठना कैसे है, सब बताया हुआ है ना! अगर वैसे नहीं उठते
तो अमृतवेले से श्रेष्ठ कर्म की श्रेष्ठ प्रालब्ध बना नहीं सकते। अर्थात्
व्यर्थ और विकर्म के त्यागी नहीं बन सकते।
✺ "ड्रिल :- अमृतवेले से लेकर रात्रि तक हर कर्म को अच्छे से चेक करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी शिव मां की गोद में एक छोटा सा बच्चा बनकर खेल रही हूं...
और मेरी मां मुझे सहला रही है, मुझे नींद दिलाने की कोशिश कर रही है, परंतु मैं
गोद से नीचे उतरकर खेलने के लिए आतुर हो रही हूं... मेरी शिव मां मुझे खेलने के
लिए इस धरा पर छोड़ देती है, मैं खेलने के लिए खुले मैदान में दौड़ने लगती हूं
और अपने संगी-साथियों को इकट्ठा करती हूं... मेरे साथी मेरे पुकारने पर इकट्ठा
हो जाते हैं और मैं उनको खेलने के लिए प्रेरित करती हूं... जैसे ही हम खेलना
प्रारंभ करते हैं तो हम इधर-उधर दिशाओं में भागने लगते हैं... जब हम इधर उधर
दिशाओं में भाग रहे होते हैं तो मेरी शिव माँ मेरे लिए चिंतित होती है...
➳ _ ➳ मेरी शिव मां अपनी चिंता को मिटाने के लिए एक तरकीब अपनाती है... हमारे
पास आकर हमें एक जगह एकत्रित करती है और हमें एक जगह खड़े होने के लिए कहती
है... हम देखते हैं कि मेरी मां हमारे चारों तरफ़ एक लकीर खींच देती है और कहती
है कि तुम्हें इस लकीर से बाहर नहीं आना है, जो भी खेल खेलना है इस लकीर के
अंदर ही रहकर खेलना है... और कहती है... अगर तुमने किसी भी कारण इस लकीर से
बाहर कदम रखे, तो तुम अपनी मां की आज्ञा की अवहेलना करोगे, जिससे तुम्हें हानि
भी हो सकती है... मेरी शिव मां कहती है... अगर तुम्हें अपने आपको हमेशा
सुरक्षित महसूस करना है तो हमेशा इस मर्यादा रूपी लकीर के अंदर रहकर ही खेलना
होगा, जिससे तुम हमेशा सभी परेशानियों से दूर रहोगे...
➳ _ ➳ मेरी शिव मां के ऐसे करने पर हम बहुत आश्चर्यचकित और हर्षित होते हैं...
आश्चर्यचकित इसलिए होते हैं कि मां को शायद यह लगता है कि हम अपना ध्यान नहीं
रख सकते और हर्षित इसलिए होते हैं कि हम उस लकीर के अंदर अब अपने आप को
सुरक्षित अनुभव करने लगते हैं और बेफिक्र होकर खेलने के लिए आतुर हो रहे हैं...
मेरी मां हमें सुरक्षित घेरे के अंदर छोड़कर बेफिक्र होकर अपना काम करने लगती
है... और हम भी बड़े हर्ष और उल्लास से खेल खेलना प्रारंभ करते हैं... खेलते
खेलते जब किसी समय हमारा पैर एकदम से लकीर के बाहर जाता है, तो हमें अपनी मां
की बात याद आती है और तुरंत ही हम उस लकीर के अंदर आ जाते हैं... एक समय ऐसा
भी आया कि हमें लगा हमारी शिव मां हमें नहीं देख रही है... और हम चुपके से उस
लकीर से बाहर निकल जाते हैं और खेलते-खेलते हम ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जहां
चारों तरफ कांटे ही कांटे होते हैं... और उनमें से एक कांटा मेरे पैर को लग जाता
है...
➳ _ ➳ जब मेरे पैर को कांटा लग जाता है और मैं दुखी होकर रोने लगती हूं तो मुझे
अपनी शिव मां की कही हुई बात याद आती है और उनके द्वारा खींची हुई लकीर का मतलब
भी समझ आ जाता है... जैसे ही मैं रोना स्टार्ट करती हूं, तुरंत मेरी शिव माँ
मेरे पास आकर वह कांटा निकाल देती है और मुझे गोद में उठा कर वापिस अपने पास ले
आती है... और मेरी मां मेरी उस मर्यादा रूपी लकीर से बाहर निकलने के लिए मुझे
प्यार से डांटती है और समझाती है... अगर तुम उस मर्यादा रूपी लकीर के अंदर ही
खेलते, तो तुम्हें किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती... और हमेशा सुरक्षित ही
अनुभव करते... उनका ऐसा समझाने पर मैं पूर्ण रीति से समझ जाती हूं और अपनी मां
को कहती हूं... मां अब मैं कभी भी इस मर्यादा रूपी लकीर से बाहर नहीं आऊंगी...
➳ _ ➳ मेरी शिव माँ मुझे इतना समझाते हुए अपने सामने बिठा लेती है... और इसको
और भी गहराई से समझाते हुए कहती है... ऐसे ही तुम्हें परमात्मा द्वारा दिए हुए
श्रीमत रूपी लकीर के अंदर ही रहकर अपना हर कर्म करना चाहिए, परमात्मा जो तुम्हे
श्रीमत देते हैं, पूरा दिन आपको उसके अनुसार ही चलना चाहिए और चेक करना चाहिए
कि कभी कोई कर्म तुमने मर्यादा की लकीर से हटकर तो नहीं किया... और साथ ही यह
भी चेक करना है कि मेरा कोई भी संकल्प व्यर्थ तो नहीं गया, कोई भी कार्य किसी
को हानि तो नहीं पहुंचाता... अगर हमारा कोई भी कार्य श्रीमत की लकीर से बाहर
निकलकर हुआ, तो हम हमारे परमात्मा का भी नाम खराब करते हैं... हम श्रीमत रूपी
मर्यादा की लकीर के अंदर जो भी कर्म करेंगे, वह हर कर्म हमारा सुकर्म ही होगा,
और अगर बाहर निकलकर किया तो वह कर्म, विकर्म कहलाएगा... इसलिए हमें लकीर के
अंदर रहकर सिर्फ सुकर्म ही करने हैं... और अपनी शिव मां की यह बातें सुनकर मैं
अपने पुरुषार्थ में लग जाती हूं... और यह संकल्प करती हूं कि मैं अब जो भी कर्म
करूंगी वह सुकर्म ही करूंगी, मर्यादा की लकीर में रहकर ही करूंगी...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━