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 17 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ गुप्त पुरुषार्थ किया ?

 

➢➢ शांति में चलते फिरते बाप को याद किया ?

 

➢➢ सर्व पदार्थो की आसक्तियों से न्यारे रहे ?

 

➢➢ मेरे मेरे के झामेलोप को छोड़ बेहद में रहे ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  अपने को शरीर के बंधन से न्यारा बनाने के लिए अवतार समझो। अवतार हूँ, इस स्मृति में रह शरीर का आधार ले कर्म करो। कर्म के बंधन में नहीं बंधो। देह में होते भी विदेही अवस्था का अनुभव करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बाबा के साथ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

  सदा अपने को बाप के साथ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? सदा साथ रहने वाले वा कभी-कभी साथ रहने वाले? क्या समझते हो? जब बाप का साथ छूटता है तो और कोई साथी बनते हैं? माया तो साथी बनती है ना! कितने जन्म माया के साथी रहे? बहुत रहे ना। और बाप का साथ प्रैक्टिकल में कितने समय का है? संगमयुग है ना और संगमयुग है भी सबसे छोटा युग। तो क्या करना चाहिये? सदा होना चाहिये।

 

  क्योंकि सारे कल्प में कितना भी पुरुषार्थ करो तो भी साथ का अनुभव कर सकेंगे? (नहीं) तो इसका स्लोगन क्या है? (अभी नहीं तो कभी नहीं) यह याद रहता है? समय का भी महत्व याद रहे और स्वयं का भी महत्व याद रहे। दोनों महत्व वाले हैं ना! इस संगमयुग के समय को, जीवन को-दोनों को हीरे तुल्य कहा जाता है। हीरे का मूल्य कितना होता है! तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी संगमयुग के साथ को छोड़ना नहीं है। सेकण्ड गया, तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया। ऐसी स्मृति रहती है?

 

  सारे कल्प की प्रालब्ध जमा करने का समय अब है। अगर सीजन पर सीजन को महत्व नहीं देते तो सदा के लिये वंचित रह जाते हैं। तो इस समय का महत्व है, जमा करने का समय है। अगर राज्य अधिकारी भी बनते हो तो भी अभी के जमा के हिसाब से और पूज्य भी बनते हो तो इस समय के जमा के हिसाब से। एक छोटे से जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध जमा करना है। ये याद रहता है कि कभी-कभी? सम टाइम है? तो ये सम टाइम शब्द कब खत्म करेंगे? समाप्ति समारोह कब मनायेंगे? रावण को भी मारने के बाद जलाकर खत्म कर देते हैं? तो अभी मारा है, जलाया नहीं है!

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  विस्मृति तो हो नहीं सकती, याद रहती है। लेकिन सदा शक्तिशाली याद स्वत: रहे उसके लिए यह लिंक तूटना नहीं चाहिए। हर समय बुद्धि में याद का लिंक जूट रहे - उसकी विधि यह है। यह भी आवश्यक समझो जैसे वह काम समझते हो कि आवश्यक है यह प्लैन पूरा करके ही उठना है। इसलिए समय भी देते हो, एनर्जी भी लगाते हो।

 

✧  वैसे यह भी आवश्यक है, इनको पीछे नहीं करो कि यह काम पहले पूरा करके फिर याद कर लेंगे। नहीं। इसका समय अपने प्रोग्राम में पहले ऐड करो। जैसे सेवा के प्लैन किये दो घण्टे का टाइम निकाल फिक्स करते हो - चाहे मीटिंग करते हो, चाहे प्रेक्टिकल करते हो, तो दो घण्टे के साथ-साथ यह भी बीच-बीच में करना ही है - यह ऐड करो।

 

✧  जो एक घण्टे में प्लैन बनायेंगे, वह आधा घण्टे में हो जायेगा। करके देखो। आपे ही फ्रेशनेस से दो बजे आँख खुलती है, वह दूसरी बात है। लेकिन कार्य के कारण जागना पडता है तो उसका इफैक्ट (प्रभाव) शरीर पर आता है। इसलिए बैलेन्स के ऊपर सदा अटेन्शन रखो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ सबसे विशेष कहने में भल एक शब्द 'देह-अभिमान' है। लेकिन देह-अभिमान का विस्तार बहुत है। एक है मोटे रूप में देह-अभिमान, जो कई बच्चों में नहीं भी है। चाहे स्वयं की देह, चाहे औरों की देह, अगर औरों की देह का भी आकर्षण है तो वह भी देह-अभिमान है। कई बच्चे इस मोटे रूप में पास थे। मोटे रूप से देह के आकार में लगाव व अभिमान नहीं है। परन्तु इसके साथ-साथ देह के सम्बन्ध से अपनी संस्कार विशेष कोई शक्ति विशेष है, उसका अभिमान अर्थात् अहंकार, नशा, रोब यह सूक्ष्म देह-अभिमान है। अगर इन सूक्ष्म देह-अभिमान में से कोई भी अभिमान है तो न आकारी फरिश्ता नैचुरल बन सकते, न निराकारी बन सकते। क्योंकि आकारी फरिश्ते में भी देह-भान नहीं है, डबल लाइट है। देह-अहंकार निराकारी बनने नहीं देता।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- ईश्वर सर्वव्यापी नहीं, हमारा बाप है- यह दूसरों को समझाना"

➳ _ ➳  परमधाम से ब्रह्मा तन में अवतरित होकर परमपिता परमात्मा ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा... परमात्मा इस यज्ञ में मेरे सारे अवगुणों, विकारों, विकर्मों को स्वाहा कर मुझे फिर से देवताई गुणों से सजाकर निर्विकारी और कर्मातीत बना रहे हैं...  बाबा ने मुझ आत्मा को इस यज्ञ की सच्ची रक्षक बनाकर इसकी संभाल करने का जिम्मा दिया है... मैं आत्मा बाप समान रूहानी सेवा करने, सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ लेने पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन पारसनाथ बाबा के पास पारसबुद्धि बनने...

❉  ज्ञान की नई-नई गुह्य बातो को समझाते हुए ज्ञान सागर प्यारे बाबा कहते हैं:- "मेरे मीठे फूल बच्चे... ज्ञान खजाने को पाकर जो खुशियो में झूम रहे हो... इस सच्चे ज्ञान की झनकार से हर दिल को मन्त्रमुग्ध बनाओ... विशालबुद्धि बन बड़ी ही युक्ति से भक्तिमय दिल को जीत आओ... और सच के आइने में उन्हें भी देवताई सूरत दिखलाओ... सच्चे ज्ञान प्रकाश से ईश्वरीय प्रीत का दीवाना बनाओ..."

➳ _ ➳  ज्ञान वीणा बजाकर सबके दिलों में ज्ञान की धुन से ज्ञानवान बनाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ज्ञान मशाल लिए हर दिल को मान्यताओ के अँधेरे से बाहर निकाल... सदा का रौशन कर रही हूँ... हर दिल को युक्ति से समझा कर ज्ञान अमृत का नशा चढ़ा रही हूँ... सच्चे ज्ञान को पाकर हर दिल खुशियो में झूम रहा है..."

❉  ज्ञान मानसरोवर में डुबोकर मेरे मन मंदिर में ज्ञान का शंख बजाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... युक्ति से विश्व का अँधेरा दूर करने वाली रूहानी जादूगर बनो... ईश्वर पिता धरा पर आकर ईश्वरीय खानो को लुटा रहा... यह खुशखबरी हर दिल को सुनाओ... और विशालबुद्धि से ज्ञान गुह्य राजो को बताकर ईश्वरीय ज्ञान से आबाद करो... ज्ञान रत्नों से हर दिल का दामन सजाकर, सच्चे सुखो का पता दे आओ..."

➳ _ ➳  अमूल्य ज्ञान रत्नों से हर आत्मा को मालामाल करते हुए मैं रूहानी सेवाधारी आत्मा कहती हूँ:- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आप समान हर दिल को खुशनसीब बना रही हूँ... प्यारे बाबा आपकी मीठी यादो में गहरे उतरकर... यह सुख की लहर सबके दिल तक पहुंचा रही हूँ... सच्चे ज्ञान को पाने की चमक से हर दिल मुस्करा रहा है... मेरा बाबा आ गया यह गीत गुनगुना रहा है..."

❉  ज्ञान चन्द्रमा के मस्तक में चमकते हुए ज्ञान सूर्य प्यारे बाबा मुझ आत्मा सितारे से कहते हैं:- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सच्चे सुखो की बहारो से हर दिल पर सदा की मुस्कान सजाओ... ज्ञान रत्नों की दौलत और गहन राजो से, अज्ञान अँधेरा मिटा कर, सदा का नूरानी हर दिल को बनाओ... हर भ्रम को दूरकर सच्चाई को छ्लकाओ... और युक्तियों से उन्हें सच भरी राहो में सुख का अधिकारी बनाओ..."

➳ _ ➳  मीठे बाबा का पता हर दिल को देकर उनकी बगिया में सुखों के फूल बिखेरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मैं आत्मा सबको खुशियो से भरने वाली ज्ञान परी बन मुस्करा रही हूँ... सबको देह की मिटटी से निकाल आत्मिक नशे से भर रही हूँ... सत्य ज्ञान और सच्चे आनंद का सुख दिला रही हूँ... ईश्वरीय यादो में रोम रोम पुलकित करा, अनन्त दुआओ को पा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- शांति में चलते फिरते बाप को याद करना है"

➳ _ ➳  अपने रूहानी पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर चलने के लिए मैं स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित करती हूँ और रूह बन चल पड़ती हूँ अपने रूहानी बाप के पास उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिये। अपने रूहानी शिव पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप को अपने सामने लाकर, मन बुद्धि रूपी नेत्रों से उनके अनुपम स्वरूप को निहारती, उनके प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा जल्दी से जल्दी उनके पास पहुँच जाना चाहती हूँ और जाकर उनके प्रेम की गहराई में डूब जाना चाहती हूँ। मेरे रूहानी पिता का प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और मैं अति तीव्र गति से ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ।

➳ _ ➳  सांसारिक दुनिया की हर वस्तु के आकर्षण से मुक्त, एक की लगन में मग्न, एक असीम आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं आत्मा अब ऊपर की और उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे भी ऊपर अंतरिक्ष से परें सूक्ष्म लोक को भी पार कर उससे और ऊपर, अपनी मंजिल अर्थात अपने रूहानी शिव पिता की निराकारी दुनिया मे प्रवेश कर अपनी रूहानी यात्रा को समाप्त करती हूँ। लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों की जगमग से सजी, रूहों की इस निराकारी दुनिया स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ।
 
➳ _ ➳  अपने रूहानी बाप से रूहानी मिलन मनाकर मैं आत्मा असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ। स्वयं को मैं अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के आगोश में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। यह समीपता मेरे अंदर मेरे रूहानी पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳  अपनी रूहानी यात्रा का प्रतिफल अथाह शक्ति और असीम आनन्द के रूप में प्राप्त कर अब मैं इस रूहानी यात्रा का मुख वापिस साकारी दुनिया की और मोड़ती हूँ और शक्तिशाली रूह बन, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए वापिस अपने साकार शरीर मे लौट आती हूँ। किन्तु अपने रूहानी पिता के साथ मनाये रूहानी मिलन का सुखद अहसास अब भी मुझे उसी सुखमय स्थिति की अनुभूति करवा रहा है। बाबा के निस्वार्थ प्रेम और स्नेह का माधुर्य मुझे बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने की शक्ति दे रहा है।

➳ _ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन में हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए, बुद्धि से सम्पूर्ण समर्पण भाव को धारण कर, कर्मेन्द्रियों से हर कर्म करते बुद्धि को अब मैं केवल अपने शिव पिता पर ही एकाग्र रखती हूँ। साकार सृष्टि पर, ड्रामा अनुसार अपना पार्ट बजाते, शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म करते, साकारी सो आकारी सो निराकारी इन तीन स्वरूपो की ड्रिल हर समय करते हुए, अब मैं मन को अथाह सुख और शांति का अनुभव करवाने वाली मन बुद्धि की इसी रूहानी यात्रा पर ही सदैव रहती हूँ।
 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सर्व पदार्थो की आसक्तियों से न्यारी अनासक्त प्रकृतिजीत आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं मेरे-मेरे के झमेलों को छोड़ बेहद में रहने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आप लोग यह नहीं सोचना कि हम लौकिक काम क्यों करें! यह तो आपकी सेवा का साधन है। लौकिक कार्य नहीं करते हो लेकिन अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए लौकिक कार्य करते हो। जहाँ भी जाते हो वहाँ सेन्टर खोलने का उमंग रहता है ना। तो लौकिक कार्य कब तक करेंगे-यह नहीं सोचो। लौकिक कार्य अलौकिक कार्य निमित्त करते हो तो आप सरेन्डर हो। लौकिकपन नहीं होअलौकिकपन है तो लौकिक कार्य में भी समर्पण हो।लौकिक कार्य को छोड़कर समर्पण समारोह मनाना है - यह बात नहीं है। ऐसा करने से वृद्धि कैसे होगी! इसीलिए निमित्त बनते होतो जो निमित्त लौकिक समझते हैं और रहते अलौकिकता में हैंऐसी आत्माओं को डबल क्यापदम मुबारक है। समझा। इसीलिए यह नहीं कहना-दादी हमको छुड़ाओहमको छुड़ाओ। नहींऔर ही डबल प्रालब्ध बना रहे हो।

 

 _ ➳  हाँ आवश्यकता अगर समझेंगे तो आपेही छुड़ायेंगेआपको क्या है! जिम्मेवार दादियां हैं, आप अपने लौकिकता में अलौकिकता लाओ।  थको नहीं। लौकिक काम करके थक कर आते हैं तो कहते हैं क्या करें! नहीं खुशी-खुशी में दोनों निभाओ क्योंकि देखा गया है कि डबल विदेशी आत्माओं में दोनों तरफ कार्य करने की शक्ति है। तो अपनी शक्ति को कार्य में लगाओ। कब छोड़ेंगेक्या होगा.... यह बाप और जो दादियां निमित्त हैं उनके ऊपर छोड़ दोआप नहीं सोचो। कौन-कौन हैं जो लौकिक कार्य भी करते हैं और सेन्टर भी सम्भालते हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। आप निश्चिंत रहो। नम्बर आप लोगों को वैसे ही मिलेंगेजो सारा दिन करते हैं उन्हों जितना ही मिलेगा। सिर्फ ट्रस्टी होकर करनामैं-पन में नहीं आना। मैं इतना काम करती हूँमैं-पन नहीं। करावनहार करा रहा है। मैं इन्स्ट्रुमेंट हूँ। पावर के आधार पर चल रही हूँ।

 

✺   ड्रिल :-  "अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए ट्रस्टी होकर लौकिक कार्य करने का अनुभव"

 

 _ ➳  सुबह की ठंडी-ठंडी हवाओं में, उगते सुरज की सुनहरी रोशनी की पनाहों में, मैं कमल पुष्प समान आत्मा बगीचे में बैठ, मीठे बाबा की मीठी-मीठी यादों में विचरण कर रही हूँ... मैं रुहे गुलाब आत्मा अपनी रूहानी खुशबू फैलाती, सुख-शांति की किरणों से इस प्रकृति को सजाती, बाबा की यादों की लहरों में समा जाती हूँ... खो जाती हूँ अपने शिव पिता की यादों में... तभी मुझ आत्मा की नजर सामने वाले वृक्ष पर पड़ती है... जिसमें गहरे नीले रंग की एक चिडिय़ा अपने घौंसले में बैठे बच्चों के मुख में दाना डाल रही है... उन्हें उड़ना सिखा रही है... इस दृश्य को देख मुझ आत्मा के मानस पटल पर पर बाबा के कहे महावाक्य सामने आ रहे हैं... बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते न्यारे और प्यारे हो रहो... स्वयं को निमित समझ कर रहो...

 

 _ ➳  मैं आत्मा सामने चल रहे इस दृश्य को देख विचार करती हूँ... ये चिडिय़ा अपने बच्चों को सम्भालती है... उन्हें दाना देती है उड़ना सिखाती है... और एक दिन ये सभी अपने ही द्वारा बनाए गए, तिनका-तिनका इकठ्ठा कर तैयार किए घौंसले को छोड़ उड़ान भरते हैं अपनी-अपनी मंजिल की तरफ... कितने न्यारे होकर रहते है... अपने इस घौंसले में... मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों द्वारा सामने लौकिक घर को देखती हूँ... बाबा के कहें महावाक्य एक बार फिर मुझ आत्मा के मानस पटल पर आते हैं... बच्चे ये आपका लौकिक घर नहीं बल्कि सेवास्थान है... और फिर मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी नेत्रों द्वारा लौकिक कार्य क्षेत्र को देखती हूँ... इसे देखते ही मुझ आत्मा को बाबा के महावाक्य याद आते हैं... बच्चे यह तो आपकी सेवा का साधन हैं...

 

 _ ➳  मैं आत्मा सेवास्थान ( लौकिक घर ) के अन्दर प्रवेश करती हूँ... और एक संकल्प क्रिएट करती हूँ... ये बाबा का घर है... ये सेवास्थान है... ये संकल्प क्रिएट करते ही बाबा से करंट मिलती है... और पूरे बाबा के इस घर में ईश्वरीय एनर्जी का फ्लो होना शुरु हो जाता है... मैं आत्मा बापदादा की छत्रछाया की स्पष्ट अनुभूति कर रही हूँ... मुझ आत्मा में एक नयी उर्जा का संचार हो रहा है... अब मैं आत्मा हर कार्य खुशी से बाबा की याद में कर रही हूँ... इस स्पष्ट समृति के साथ की बाबा ने मुझे इस सेवा स्थान के निमित्त बनाया है... यहाँ अनेक आत्माओं के कल्याण अर्थ भेजा है... इसी स्मृति द्वारा मैं आत्मा लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करने में सहज ही सफल हो रही हूँ... हर कार्य मैं आत्मा निमित्त भाव से कर रही हूँ... ट्रस्टी भाव धारण कर हर कार्य करते मैं आत्मा बहुत हल्कापन महसूस कर रही हूँ... कोई बन्धन नहीं कोई बोझ नहीं... कमल पुष्प समान मैं आत्मा न्यारी और प्यारी होकर हर कर्म कर रही हूँ...निमित मात्र हूँ बाबा का इंस्ट्रूमेंट हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को कार्य क्षेत्र पर जहाँ मैं आत्मा हर कार्य खुशी से बाबा की याद में कर रही हूँ... इस स्पष्ट स्मृति के साथ की ये लौकिक कार्य क्षेत्र अलौकिक सेवा का साधन हैं... मैं आत्मा हर पल बाबा के हाथ और साथ का सहज अनुभव कर रही हूँ... ये कार्य मैं आत्मा इस भाव से कर रही हूँ कि ये बाबा ने मुझ आत्मा को सेवा दी हैं... बाबा ने मुझे निमित्त बनाया हैं... मैं आत्मा करनहार हूँ और मेरा बाबा करावनहार है... बाबा की शक्ति मुझे चला रही है... ये स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... इससे मैं आत्मा सहज ही हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ... और ये सेवास्थान भी अब अनेक आत्माओं के कल्याण अर्थ निमित्त बन गया है... मैं आत्मा देख रही हूँ कई आत्माओं को बाबा का सन्देश मिल रहा है... उनका कल्याण हो रहा है...बाबा की अलौकिक सेवा में वृद्धि हो गयी है... जो आत्माएं यह ज्ञान सुन रही है वो भी लौकिकता को अलौकिकता में परिवर्तन कर हल्के हो चल रहे हैं... वे भी बंधनमुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हैं... और वे ट्रस्टी बन गए हैं... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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