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❍ 30 / 11 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ज्ञानवान बन स्वयं को स्वयं ही चेंज किया ?
➢➢ बाप और दादा दोनों को याद किया ?
➢➢ हद की कामनाओं से मुक्त रह सर्व प्रश्नों से पार रहे ?
➢➢ अटेंशन से व्यर्थ की चेकिंग की ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अनेक प्रकार के व्यक्ति, वैभव अथवा अनेक प्रकार की वस्तुओं के सम्पर्क में आते आत्मिक भाव और अनासक्त भाव धारण करो। यह वैभव और वस्तुयें अनासक्त के आगे दासी के रूप में होंगी और आसक्त भाव वाले के आगे चुम्बक की तरह फंसाने वाली होंगी।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपने को अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना! इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। 'तख्तनशीन आत्मा हूँ' - इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है। तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियाँ स्वत: ही ऑर्डर पर चलेंगी। जो अकाल-तख्त-नशीन समझ कर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, न देह के सम्बन्ध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते हैं।
〰✧ बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो 'एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो सिकीलधे बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं। तो बाप भी कहते हैं तख्त पर बैठो, नीचे नहीं आओ। जिसको तख्त मिलता है वह दूसरी जगह बैठेगा क्या? तो अकालतख्त वा दिलतख्त को भूल देह की धरनी में, मिट्टी में नहीं आओ। देह को मिट्टी कहते हो ना। मिट्टी, मिट्टी में मिल जायेगी - ऐसे कहते हैं ना! तो देह में आना अर्थात् मिट्टी में आना। जो रोंयल बच्चे होते हैं वह कभी मिट्टी में नहीं खेलते। परमात्म-बच्चे तो सबसे रॉयल हुए। तो तख्त पर बैठना अच्छा लगता है या थोड़ी-थोड़ी दिल होती है - मिट्टी में भी देख लें।
〰✧ कई बच्चों की आदत मिट्टी खाने की वा मिट्टी में खेलने की होती है। तो ऐसे तो नहीं है ना! 63 जन्म मिट्टी से खेला। अब बाप तख्तनशीन बना रहे हैं, तो मिट्टी से कैसे खेलेंगे, जो मिट्टी में खेलता है वह मैला होता है। तो आप भी कितने मैले हो गये। अब बाप ने स्वच्छ बना दिया। सदा इसी स्मृति से समर्थ बनो। शक्तिशाली कभी कमजोर नहीं होते। कमजोर होना अर्थात् माया की बीमारी आना। अभी तो सदा तन्दुरुस्त हो गये। आत्मा शक्तिशाली हो गई। शरीर का हिसाब-किताब अलग चीज है लेकिन मन शक्तिशाली हो गया ना। शरीर कमजोर है, चलता नहीं है, वह तो अंतिम है, वह तो होगा ही लेकिन आत्मा पावरफुल हो। शरीर के साथ आत्मा कमजोर न हो। तो सदा याद रखना कि डबल तख्तनशीन सो डबल ताजधारी बनने वाले हैं।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ हर कर्म के लिए श्रीमत है। चलना, खाना, पीना, सुनना, सुनाना - सबकी श्रीमत है। है, कि नहीं है? मानो आप परचिंतन कर रहे हो तो क्या ये श्रीमत है? श्रीमत को ढीला किया तो मन को चांस मिलता है चंचल बनने का।
〰✧ फिर उसकी आदत पड जाती है। तो आदत डालने वाला कौन? आप ही हो ना! तो पहले मन का राजा बनो। चेक करो - अन्दर ही अन्दर ये मन्त्री अपना राज्य तो नहीं स्थापन कर रहे हैं?
〰✧ जैसे आजकल के राज्य में अलग गुप बना करके और पॉवर में आ जाते हैं। और पहले वालों को हिलाने की कोशिश करते हैं तो ये मन भी ऐसा करता है, बुद्धि को भी अपना बना लेता है। मुख को, कान को, सबको अपना बना लेता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ जो इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति में स्थित होगा वही किसी की भी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अगर स्वयं में ही कोई इच्छा रही होगी तो वह दूसरे की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते। इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज तब रह सकती है जब स्वयं युक्तियुक्त, सम्पन्न, नॉलेजफुल और सदा सक्सेसफुल अर्थात् सफलता मूर्त होंगे। जो स्वयं सफलता मूर्त नहीं होगा तो वह अनेक आत्माओं के संकल्प को भी सफल नहीं कर सकता। इसलिए जो सम्पन्न नहीं तो उसकी इच्छायें ज़रूर होंगी क्योंकि सम्पन्न होने के बाद ही इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज आती है। तब कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रह जाती तो ऐसी स्टेज को ही कर्मातीत अथवा फ़रिश्तेपन की स्टेज कहा जाता है। ऐसी स्थिति वाला ही हर आत्मा को यथार्थ परख सकता है और दूसरों को प्राप्ति करा सकता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- पतित से पावन बनना"
➳ _ ➳ अमृतवेला का ये सुहानी पल रात के अँधेरे को ख़तम कर सुबह की रोशनी
की ओर रुख कर रहा है... वैसे ही कलियुगी अंधियारे को चीरते हुए ये संगमयुग...
सतयुग की ओर ले जा रहा है... प्यारे बाबा जब से आयें हैं, संगम की हर घडी ही
अमृतवेला बन गई है... जो सदा सुखों की ओर ले जाती है... हर पल ही कितना सुहावना
हो गया है... इतनी पावन, सुन्दर वेला में मैं आत्मा प्यारे बाबा से
प्यारी-प्यारी बातें करने पहुँच जाती हूँ पावन वतन में...
❉ मेरे मन मंदिर में अपनी मूरत बसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे
मीठे फूल बच्चे... कितने मीठे खिले से महकते फूल से धरा पर उतरे थे पर खेलते
खेलते काले पतित हो गए... अब इस देह की दुनिया से निकल ईश्वर पिता की सोने सी
यादो में स्वयं को उसी दिव्यता से दमकाओ क्योकि अब सुनहरी सुखो भरी दुनिया में
चलना है...”
➳ _ ➳ निराकारी बाबा की यादों में स्वर्णिम सुखों को अपने नाम करते हुए
मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अपने खोये रूप
को सौंदर्य को आपकी यादो में पुनः पा रही हूँ... कंचन काया और कंचन महल की
अधिकारी बन रही हूँ और इस दुनिया से उपराम हो रही हूँ...”
❉ अपने रूहानी नैनों से पावनता की खुशबू फैलाते हुए मीठे बाबा कहते
हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के साथ का समय बहुत कीमती
है... यादो में रहकर अपने सच्चे दमकते स्वरूप को पाकर सुखो की दुनिया में
मुस्कराओ... यादो में अपनी दिव्यता और शक्तियो को फिर से पाकर सुंदर तन और मन
से सुन्दरतम दुनिया के रहवासी बनो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रभु की यादों की धारा में बहकर सुन्दर कमल बन खिलते
हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी
खोयी सुंदरता को पाकर मुस्करा रही हूँ... दिव्य गुणो को धारण कर पवित्रता के
श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में देवताओ की दुनिया घूम रही हूँ...”
❉ रूहानी यादों में मेरे मन के चमन को खिलाकर मेरे रूहानी बाबा कहते
हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सिर्फ बाबा की यादे ही एकमात्र उपाय है
जो इस पतित तन और मन को खुबसूरत और पवित्र बना सकता है... तो इस समय को यादो
में भर दो... अपने पुरुषार्थ को तीव्र कर स्वयं को निखारने में पूरी तन्मयता से
जुट जाओ... क्योकि अब पवित्र दुनिया में चलने और सुख लेने का समय हो गया है...
➳ _ ➳ एक की लगन में मगन होकर जीवन में मिठास भरकर मैं आत्मा कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जनमो के कालेपन को आपकी मीठी यादो में
धो रही हूँ... वही सुंदर देवताई स्वरूप पा रही हूँ और सुख और शांति की दुनिया
की अधिकारी होकर मीठे सुखो में खिलखिला रही हूँ... यादो में पावन बनकर खिल उठी
हूँ...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- पुजारी से पूज्य बनने के लिए सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है"
➳ _ ➳ अपने सम्पूर्ण निर्विकारी अनादि और आदि स्वरुप को स्मृति में लाते
ही मन बुद्धि से मैं पहुंच जाती हूँ परमधाम। यहां मैं आत्मा अपने सम्पूर्ण
सतोप्रधान स्वरूप में स्थित हूँ। निराकारी आत्माओं की इस दुनिया में
अपनी स्वर्णिम किरणे बिखेरते हुए एक चमकते हुए सितारे के रुप में मैं स्वयं को
देख रही हूं। मेरा यह दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप मन को लुभाने वाला है। अपने इस
सम्पूर्ण निर्विकारी स्वरूप में मैं आत्मा सातों गुणों से, सर्वशक्तियों से
सम्पन्न हूँ। मेरे सामने महाज्योति मेरे शिव पिता परमात्मा एक ज्योतिपुंज के
रूप में अपनी सर्वशक्तियों रूपी अनन्त किरणों के साथ सुशोभित हो रहें हैं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता परमात्मा के साथ आत्माओं की निराकारी दुनिया मे रहने
वाली मैं सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा ड्रामा अनुसार पार्ट बजाने के लिए सृष्टि
रंगमंच पर उतरती हूँ। प्रकृतीक सौंदर्य से परिपूर्ण, एक स्वर्णिम दुनिया सतयुग
में अपने सम्पूर्ण निर्विकारी देवताई स्वरुप को धारण किये मैं इस सुंदर धरा पर
अवतरित होती हूँ जो मेरे पिता परमात्मा ने मेरे लिए रची है। मेरा यह सम्पूर्ण
निर्विकारी देवताई स्वरूप सोलह कलाओं से सम्पन्न है। दैवी गुणों से सजी मैं
चैतन्य देवी अति शोभायमान लग रही हूं। मुख पर दिव्य आभा और दिव्य मुस्कराहट मन
को लुभा रही है।
➳ _ ➳ अपने इस देवताई स्वरूप को देख मन ही मन आनन्दित होते हुए अब मैं
अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर याद करती हूं अपने शिव पिता परमात्मा को
जिन्होंने ने मुझे ऐसा बनाया। अपने प्यारे मीठे बाबा की याद मन मे उनसे मिलने
की तीव्र इच्छा जागृत कर देती है और जैसे ही मैं उन्हें मिलने के लिए पुकारती
हूँ। मेरे दिलराम शिव बाबा सेकण्ड में मेरे पास दौड़े चले आते हैं और आ कर अपनी
सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मुझे भर लेते हैं। अपने शिव पिता
परमात्मा की किरणों रूपी बाहों में समा कर इस नश्वर देह और देह की दुनिया को
जैसे मैं बिल्कुल भूल जाती हूँ। केवल मेरे दिलाराम शिव बाबा मुझे दिखाई दे रहें
हैं और मुझ पर निरन्तर बरसता हुआ उनका प्यार मुझे असीम आनन्द से भरपूर कर रहा
है।
➳ _ ➳ अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए मेरे मीठे शिव बाबा मुझे अपने
साथ इस छी छी विकारी दुनिया से दूर, अपने निर्विकारी धाम की ओर ले कर चल पड़ते
हैं। मैं देख रही हूं एक चमकती हुई ज्योति मैं आत्मा स्वयं को महाज्योति अपने
शिव पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में, साकारी दुनिया से दूर ऊपर की ओर
जाते हुए। पांच तत्वों की इस दुनिया के पार, सूक्ष्म लोक से भी पार अपने शिव
पिता के साथ मैं पहुंच गई निर्वाणधाम अपने असली घर। शिव पिता के साथ कम्बाइंड
हो कर अब मैं स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रही हूं। बाबा से आ रही
सर्वशक्तियों का स्वरूप ज्वालामुखी बन कर मुझ आत्मा द्वारा किये हुए 63 जन्मो
के विकर्मों को दग्ध कर रहा है। विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा सच्चा सोना
बनती जा रही हूं। मुझ आत्मा की चमक करोड़ो गुणा बढ़ती जा रही है। स्वयं को मैं
बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूं।
➳ _ ➳ अपने शिव पिता की लाइट माइट से स्वयं को भरपूर करके डबल लाइट बन अब
मैं वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाती हूँ और
अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं बाबा की श्रीमत पर चल सम्पूर्ण
निर्विकारी बनने का पुरुषार्थ कर रही हूं। बाबा की याद मेरे अंदर बल भर रही है
और बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने से मेरे बोल सहज ही योगयुक्त औऱ
युक्तियुक्त, मनसा वृति शक्तिशाली तथा कर्म श्रेष्ठ बन रहे हैं। बाबा की
श्रीमत पर चल अपने कर्मो को श्रेष्ठ बनाकर और बाबा की याद से सर्वशक्ति सम्पन्न
स्वरूप बन कर अब मैं अपने श्रेष्ठ कर्मो द्वारा सर्व आत्माओं को भी श्रेष्ठता
का अनुभव करवा रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
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मैं हद की कामनाओं से मुक्त्त रहने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं सर्व प्रश्नों से पार रहने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं सदा प्रसन्नचित रहने वाली आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
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मैं आत्मा व्यर्थ की चेकिंग अटेंशन से करती हूँ ।
✺ मैं आत्मा अलबेले रूप से सदैव मुक्त हूँ ।
✺ मैं समर्थ आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. मातायें तो सदा खुशी के झूले में झूलती हैं, झूलती हैं ना! माताओं को बहुत नशा रहता है, क्या नशा रहता है? हमारे लिए बाप आया है। नशा है ना! द्वापर से सभी ने नीचे गिराया, इसलिए बाप को माताओं पर बहुत प्यार है और खास माताओं के लिए बाप आये हैं। खुश हो रहे हैं, लेकिन सदा खुश रहना। ऐसे नहीं अभी हाथ उठा रहे हैं और ट्रेन में जाओ तो थोड़ा-थोड़ा नशा उतरता जाए, सदा एकरस, अविनाशी नशा हो। कभी-कभी का नशा नहीं, सदा का नशा सदा ही खुशी प्रदान करता है।
➳ _ ➳ आप माताओं के चेहरे सदा ऐसे होने चाहिए जो दूर से रूहानी गुलाब दिखाई दो क्योंकि इस विश्व विद्यालय की जो बात सबको अच्छी लगती है, विशेषता दिखाई देती है वह यही कि मातायें रूहानी गुलाब समान सदा खिला हुआ पुष्प हैं और मातायें ही जिम्मेवारी उठाए, मातायें इतना बड़ा कार्य कर रही हैं। चाहे महामण्डलेश्वर भी हैं लेकिन वह भी समझते हैं कि मातायें निमित्त बनी हैं और ऐसे श्रेष्ठ कार्य सहज चला रही हैं। माताओं के लिए कहावत है - सच है नहीं, लेकिन कहावत है तो दो मातायें भी इकट्ठा कोई कार्य करें, बड़ा मुश्किल है। लेकिन यहाँ कौन निमित्त हैं? मातायें ही हैं ना! जब भी मिलने आते हैं तो क्या पूछते हैं? मातायें चलाती हैं, आपस में लड़ती नहीं हैं? खिटखिट नहीं करती हैं? लेकिन उन्हों को क्या पता कि यह साधारण मातायें नहीं हैं, यह परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें, मातायें हैं। परमात्म वरदान इन्हों को चला रहा है।
➳ _ ➳ 2. अगर माताओं को बाप निमित्त नहीं बनाता तो नया ज्ञान, नई सिस्टम होने कारण पाण्डवों को देखकर बहुत हंगामा होता। मातायें ढाल हैं क्योंकि नया ज्ञान है ना। नई बातें हैं।
✺ ड्रिल :- "साधारण मातायें नहीं, परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें होने का अनुभव"
➳ _ ➳ अमृतवेले.. प्यारे बाबा, मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे कह मुझ आत्मा को उठाने आते है... उठो बच्ची वरदानों से अपनी झोली भर लो, कानो में यह मधुर स्वर पड़ते ही मै आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ... मै आत्मा सफ़ेद चमकीले वस्त्र में बाबा को आता हुआ देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बाबा के मस्तक से वा नैनो से आती हुई दिव्य किरणे मुझ आत्मा में समाती जा रही है... इन किरणों में समाती हुई मै आत्मा इस देह से न्यारी हो एक दम हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में, जहाँ चारो तरफ सफ़ेद चमकीला प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है... हर तरफ फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है... बाबा हाथ में चमचमाती छड़ी ले सफेद चमकीली पहाड़ियों पर आगे ही आगे चलते जा रहे है... मै आत्मा बाबा के पीछे-पीछे चलती जा रही हूँ... बाबा चमकीली छड़ी से एक स्थान की ओर इशारा करते है...
➳ _ ➳ आहा!!!... क्या मनोहर दृश्य है, मै आत्मा स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हूँ जहाँ शुद्ध हवा चल रही है, पशु पक्षी मधुर स्वर में चहचहा रहे है, शीतल जल की नदियां बह रही है, मै सुनहरे वस्त्र धारण कर, हीरे के आभूषणों से सजी हुई हूँ... सिर पर लाइट और माइट का ताज धारण कर स्वयं को राज सिंहासन पर महारानी स्वरूप में देख रही हूँ...अपना यह स्वरुप देख मैं बाबा की और देखती हूँ... तो प्यारे मीठे बाबा छड़ी घुमाकर दूसरी तरफ इशारा करते हुए एक ओर दृश्य दिखाते है... जहाँ मै आत्मा स्वयं को जीवन बंधन में बंधा हुआ देखती हूँ... जहाँ कर्मो का बंधन है तो रिश्ते नातो का बंधन है, माया का बंधन है तो जिम्मेवारियों का बंधन है... इन बंधनो में बंधी मै आत्मा बहुत समय से गिरती चली आयी थी... बोझ से दबी हुई, अत्याचारों को सहन करती हुई, दुखो की जंजीरों में जकड़ी हुई मै आत्मा अपने वास्तविक रूप को भूल गयी थी...
➳ _ ➳ दोनों दृश्यों को देख, मै आत्मा त्रिकालदर्शी बाबा की तेजोमय किरणों में स्वयं के पूरे 84 जन्मो के चक्र को देख रही हूँ... इन किरणों में डूबती हुई मै आत्मा अब पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुराने सम्बन्ध, पुरानी हर चीज जो विनाशवान है उसे भूलती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझे ढूंढा है, मै साधारण नही विशेष आत्मा हूँ... अब मै आत्मा पवित्रता को धारण कर रूहे गुलाब बन सर्व आत्माओ को रूहानियत की खुशबू से महका रही हूँ... स्नेह और सहयोग द्वारा सर्व आत्माओ में उमंग उत्साह भर आत्मिक भाव में स्थित हो परमात्म प्यार में पलते हुए विश्व परिवर्तन के कार्य में परमात्मा का सहयोगी बन संगमयुग में ज्ञान-रत्नों को धारण करती जा रही हूँ... जो कोई भी देखे तो उनको यह अनुभव हो रहा है कि यह साधारण आत्मा(माता) नही परमात्मा की पालना में पलने वाली देव आत्मा है...
➳ _ ➳ अब मै आत्मा इस धरा पर सदा रूहानी नशे में रह जिम्मेवारियों का ताज पहन इस अंतिम जन्म में हर आत्मा के साथ अपने हिसाब-किताब चुक्तु कर, ड्रामा के हर सीन को साक्षी भाव से देखती हुई... पवित्र दुनिया में चलने के लिए हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करती जा रही हूँ... मै आत्मा कर नही रही, करन करावनहार करा रहा है... परमात्म प्यार में डूबी हुई मै आत्मा मेहनत से नही मोहब्बत से पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा (माताओ) पर ज्ञान का कलश रखा है, मै साधारण नही, विशेष आत्मा हूँ... मेरी एक आँख में मुक्तिधाम और एक आँख में जीवन्मुक्तिधाम समाया हुआ है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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