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 02 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ पुरानी सब सामग्री इस रूद्र यज्ञ में स्वाहा की ?

 

➢➢ बाप, टीचर के साथ सतगुरु को भी याद किया ?

 

➢➢ समय को शिक्षक बनाने की बजाये बाप को शिक्षक बनाया ?

 

➢➢ सवा को और सर्व को परिवर्तित करने में सहयोगी बने ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  कर्मातीत बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास बढ़ाओ। शरीर का बंधन, कर्म का बंधन, व्यक्तियों का बंधन, वैभवों का बंधन, स्वभाव-संस्कारों का बंधन.... कोई भी बंधन अपने तरफ आकर्षित न करे। यह बंधन ही आत्मा को टाइट कर देता है। इसके लिए सदा निर्लिप्त अर्थात् न्यारे और अति प्यारे बनने का अभ्यास करो |

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं हर कल्प की अधिकारी आत्मा हूँ"

 

✧  हम हर कल्प के अधिकारी आत्मायें हैं, सिर्फ अब के नहीं, अनेक बार के अधिकारी हैं - यह खुशी रहती है? आधाकल्प बाप के आगे भिखारी बन मांगते रहे लेकिन बाप ने अब अपना बना लिया, बच्चे बन गये। बच्चा अर्थात् अधिकारी। अधिकारी समझने से बाप को जो भी वर्सा है, वह स्वत: याद रहता है।

 

✧  कितना बड़ा खजाना है! इतना खजाना है जो खाते खुटता नहीं है और जितना ओरों को बांटो उतना बढ़ता जाता है! ऐसा अनुभव है? परमात्म-वर्से के अधिकारी हैं इससे बड़ा नशा और कोई हो सकता है? तो यह अविनाशी गीत सदा गाते रहो और खुशी में नाचते रहो कि हम परमात्मा के बच्चे परमात्म-वर्से के अधिकारी हैं। यह गीत गाते रहो तो माया सामने आ नहीं सकती, मायाजीत बन जायेंगे। यही विशेष वरदान याद रखना कि परमात्म-वर्से के अधिकारी आत्मायें हैं। इसी अधिकार से भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार स्वत: मिलता है।

 

✧  शक्तियाँ सदा खुश रहने वाली हो ना? कभी कोई दु:ख की लहर तो नहीं आती? दु:ख की दुनिया छोड़ दी, सुख के संसार में पहुँच गये। दु:ख के संसार में सिर्फ सेवा के लिए रहते, बाकी सुख के संसार में। बाप के अधिकार से सब सहज हो जाता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  बाप की प्रापर्टी है 'सर्वशक्तियाँ' इसलिए बाप की महिमा ही है सर्वशक्तिवान आलमाइटी अथार्टी'। सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा हैं? या इतना ही है - कमाया और खाया, बस! बापदादा ने सुनाया है कि आगे चलकर आप मास्टर सर्वशक्तिवान के पास सब भिखारी बनकर आयेंगे।

 

✧  पैसे या अनाज के भिखारी नहीं लेकिन शक्तियों' के भिखारी आयेंगे। तो जब स्टॉक होगा तब तो देंगे ना! दान वही दे सकता जिसके पास अपने से ज्यादा है। अगर अपने जितना ही होगा तो दान क्या करेंगे? तो इतना जमा करो। संगम पर और काम ही क्या है?

 

✧  जमा करने का ही काम मिला है। सारे कल्प में और कोई युग नहीं है जिसमें जमा कर सको। फिर तो खर्च करना पडेगा, जमा नहीं कर सकेंगे। तो जमा के समय अगर जमा नहीं किया तो अंत में क्या कहना पडेगा - 'अब नहीं तो कब नहीं" फिर टू लेट का बोर्ड लग जायेगा। अभी तो लेट का बोर्ड है, टू लेट का नहीं। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ वह राज़े तो कभी तख्त पर बैठते, कभी नहीं बैठते लेकिन साक्षीपन का तख्त ऐसा है जिसमें हर कार्य करते भी तख्तनशीन, उतरना नहीं पड़ता है। सोते भी तख्तनशीन, उठते-चलते, सम्बन्ध-सम्पर्क में आते तख्तनशीन। तख्त पर बैठना आता है कि बैठना नहीं आता है, खिसक जाते हो? साक्षीपन के तख्तनशीन आत्म कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- अपने को आत्मा समझ एक बाप को याद करना"
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा अपने भाग्य पर नाज करती हुई मधुबन बाबा की कुटिया में बैठ जाती हूँ... और बाबा को एकटक निहारती रहती हूँ... प्यारे बाबा की याद में खो जाती हूँ... बाबा के नैनों से जादुई किरणें निकलकर मुझ पर पड रही हैं... बाबा की इन जादुई किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो गया है और मैं आत्मा फ़रिश्ता स्वरुप का अनुभव कर रही हूँ... प्यारे बाबा मुझे अपने साथ बाहर लेकर जाते हैं और झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हुए प्यार भरी बातें करते हैं...
 
❉   प्यारे बाबा अपनी प्यार भरी मुस्कान से मुझ आत्मा को निहाल करते हुए कहते है:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गई... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो... अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा देहभान से मुक्त होकर देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ... अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”
 
❉   मीठे बाबा मेरा सतरंगी श्रृंगार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैलेपन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... अब अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ...”
 
➳ _ ➳  मैं आत्मा सुन्दर कमल फूल समान खिलकर अपनी रंगत चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ...”
 
❉   मेरे बाबा मुझ आत्मा के 63 जन्मों के विकर्मों को भस्म कर सच्चा सोना बनाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते जायेंगे... और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे...”
 
➳ _ ➳  मैं देही अभिमानी आत्मा देह के सर्व बन्धनों से मुक्त होकर खुशियों के गीत गाती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- यह पापों से मुक्त होने का समय है, इसलिए अभी कोई पाप नहीं करना है"

➳ _ ➳  दुनिया मे हो रहे पापाचार, भ्रष्टाचार का दृश्य मैं देख रही हूँ और विचार करती हूं कि यही दुनिया कभी स्वर्ग हुआ करती थी। एक दूसरे के प्रति सभी के हृदय आपसी स्नेह और प्यार से लबालब थे किंतु आज वो स्नेह, वो प्यार कहाँ चला गया! अकेले बैठे मैं स्वयं से ही ये सवाल जवाब कर रही हूं।

➳ _ ➳  तभी मैं एक दृश्य देखती हूँ जैसे कोई राजदरबार लगी है। सामने सिहांसन पर कोई राजा बैठा है और उसके सामने उसके मंत्री बैठे हैं जिनके साथ वह कुछ विचार विमर्श कर रहा है। मंत्री गलत सलाह दे कर राजा को गलत कामों के लिए उकसा रहें है। राजा में इतनी समर्थता नही कि वो समझ सके क्या सही है और क्या गलत। उनके बहकावे में आ कर वो गलत कर्म कर रहा है उसे गलत कर्म करते देख उसके राज्य के सभी लोग भी गलत कर्म कर रहें हैं। मैं सोचती हूँ कि जिस देश का राजा ही भ्रष्ट है तो उस देश में स्वत: ही भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा।

➳ _ ➳  इस दृश्य को देखते देखते एकाएक स्मृति आती है कि मैं आत्मा भी तो राजा हूँ किन्तु कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों के बहकावे में आ कर जाने अनजाने में मुझ से कितने विकर्म हुए जिनका बोझ मुझ आत्मा पर चढ़ता चला गया। 63 जन्मो के विकर्मों का बोझ अब मुझ आत्मा को उतारना है और उसे उतारने के लिए मेरे पास केवल यही एक जन्म है। मन में यह ख़्याल आते ही मैं आत्मा 63 जन्मो के विकर्मों की कट को योग अग्नि में भस्म करने के लिए, इस साकारी देह को छोड़ चल पड़ती हूँ शिव बाबा के पास।

➳ _ ➳  साकारी और सूक्ष्म लोक से परे आत्माओं की निराकारी दुनिया परमधाम में अब मैं स्वयं को अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख देख रही हूं। बुद्धि का योग उनसे लगा कर उनसे आ रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समा रही हूँ। धीरे धीरे ये शक्तियां जवालस्वरूप धारण करती जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे एक बहुत बड़ी ज्वाला प्रज्ज्वलित हो उठी हो। अग्नि का एक बहुत बड़ा घेरा मेरे चारों ओर बनता जा रहा है और उस अग्नि की तपिश से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मों की कट और तमोगुणी संस्कार जल कर भस्म होने लगे हैं। मैं आत्मा बोझमुक्त हो रही हूं। सच्चा सोना बनती जा रही हूं। स्वयं को अब मैं एकदम हल्का, पापमुक्त अनुभव कर रही हूं। हल्की हो कर अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूं।

➳ _ ➳  साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर अब मैं आत्मा मस्तक पर स्वराज्य तिलक लगाए, स्वराज्य अधिकारी बन, मालिकपन की स्मृति में रह हर कर्म कर रही हूं। राजा बन रोज कर्मेन्द्रियों रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगा, उन्हें उचित निर्देश देने से अब मेरे जीवन रूपी शासन की बागडोर सुचारु रूप से चल रही है। अब हर कर्मेन्द्रिय मेरे अधीन है और मेरी इच्छानुसार कार्य कर रही है। कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण होने और बुद्धि की लाइन क्लीयर होने से अब मैं आत्मा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने लगी हूँ।

➳ _ ➳  व्यर्थ चिंतन के प्रभाव से अब मैं मुक्त हो गई हूं इसलिये परमात्म पालना के झूले में झूलती रहती हूं। परमात्म शक्तियों से भरपूर होने के कारण शक्तिशाली बन अब मैं सदा उड़ती कला में उड़ती रहती हूं। परम आनन्द से सदा भरपूर रहने के कारण मास्टर दाता बन सर्व आत्माओं को देने की ही भावना अब मेरे मन मे निरन्तर रहती है इसलिए सर्व आत्माओं के प्रति शुभभावना रखने से उनके साथ बने कार्मिक एकाउंट चुकतू होने लगे हैं, विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूं। तीन स्मृतियों का तिलक अब मेरे मस्तक पर सदैव लगा रहता है जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि अब मुझे कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं समय को शिक्षक बनाने के बजाए बाप को शिक्षक बनाने वाली मास्टर रचयिता    आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं बाप की पालना के रिटर्न में स्व को और सर्व को परिवर्तन करने में सहयोगी बनने वाली शक्तिस्वरूप आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर है ही गुण स्वरूपसर्व शक्ति स्वरूप और जो भी पुरानी नेचर्स हैं वह ब्राह्मण जीवन की नेचर्स नहीं हैं। कहते ऐसे हो कि मेरी नेचर ऐसी है लेकिन कौन बोलता है मेरी नेचरब्राह्मण वा क्षत्रियवा पास्ट जन्म के स्मृति स्वरूप आत्मा बोलती है? ब्राह्मणों की नेचर - जो ब्रह्मा बाप की नेचर वह ब्राह्मणों की नेचर। तो सोचो जिस समय कहते हो मेरी नेचरमेरा स्वभाव ऐसा हैक्या ब्राह्मण जीवन में ऐसा शब्द - मेरी नेचरमेरा स्वभाव... हो सकता हैअगर अब तक मिटा रहे हो और पास्ट की नेचर इमर्ज हो जाती है तो समझना चाहिए इस समय मैं ब्राह्मण नहीं हूँक्षत्रिय हूँयुद्ध कर रहा हूँ मिटाने की।

 

 _ ➳  तो क्या कभी ब्राह्मणकभी क्षत्रिय बन जाते होकहलाते क्या होक्षत्रिय कुमार या ब्रह्माकुमारकौन होक्षत्रिय कुमार हो क्याब्रह्माकुमारब्रह्माकुमारियां। दूसरा नाम तो है ही नहीं। कोई को ऐसे बुलाते हो क्या कि हे क्षत्रिय कुमार आओऐसा बोलते हो या अपने को कहते हो कि मैं ब्रह्माकुमार नहीं हूँमैं क्षत्रिय कुमार हूँतो ब्राह्मण अर्थात् जो ब्रह्मा बाप की नेचर वह ब्राह्मणों की नेचर। यह शब्द अभी कभी नहीं बोलनागलती से भी नहीं बोलनान सोचना,क्या करूं मेरी नेचर है! यह बहानेबाजी है। यह कहना भी अपने को छुड़ाने का बहाना है। नया जन्म हुआनये जन्म में पुरानी नेचर,पुराना स्वभाव कहाँ से इमर्ज होता हैतो पूरे मरे नहीं हैंथोड़ा जिंदा हैंथोड़ा मरे हैं क्या? ब्राह्मण जीवन अर्थात् जो ब्रह्मा बाप का हर कदम हैं वह ब्राह्मणों का कदम हो।

 

✺   ड्रिल :-  "नाजुक नेचर को छोड़ ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर, ब्रह्मा बाप की नेचर को धारण करने का अनुभव"

 

 _ ➳  मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा स्वयं को सर्व बंधनों से मुक्त कर, इस देह के बंधन को छोड़ अपना सूक्ष्म फरिश्ता रूप धारण करती हूँ... और इस साकारी दुनिया से ऊपर की ओर उड़ती हूँ... आकर अपने बाबा के पास सूक्ष्म वतन में ठहरी हूँ... अत्यंत सुंदर नज़ारा मुझे दिख रहा है... हर तरफ सफेद रंग का प्रकाश ही प्रकाश है... थोड़ा आगे जाती हूँ तो बाबा मुझे दिखाई देते हैं... उनके दिव्य तेज से ये सारा सूक्ष्म वतन जगमगा रहा है और उनकी किरणें मुझ पर पड़ने से मैं फरिश्ता भी जगमगाने लगता हूँ...

 

 _ ➳  मैं ब्राह्मण आत्मा अब इस कलयुगी दुनिया को बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ और संगमयुग में अपना श्रेष्ठ पार्ट प्ले कर रही हूँ... मेरे बाबा ने मुझे इस पुरानी दुनिया से निकाल सारे कल्प का गुह्य राज़ मुझे समझाया है... इस ब्राह्मण जन्म के मिलते ही बाबा ने मुझे इस दिव्य अलौकिक जन्म की गुण और शक्तियों से भी मेरा परिचय कराया... जो शक्तियां मेरे अपने अंदर ही समाहित हैं परंतु इस पूरे कल्प में भिन्न भिन्न पार्ट बजाते मैं उन्हें विस्मृत कर चुकी थी... अब बाबा की मदद से मैं आत्मा फिर से अपनी शक्तियों को इमर्ज कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं उस पुरानी दुनिया से निकल आयी हूँ और इस संगमयुग में अपने सभी मूल गुणों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... उस पुरानी दुनिया से अब मेरा कोई नाता नहीं रहा और उस जीवन के संस्कार, और अपनी पुरानी नेचर को भी मैं पीछे छोड़ आयी हूँ... अब मैं संगमयुग में ब्राह्मण आत्मा हूँ और ब्राह्मण जीवन के जो संस्कार हैं वो अब मेरे भी संस्कार बन गए हैं... मैं गुण स्वरुप हूँ, सर्व शक्ति स्वरूप हूँ और यही अब मेरी नेचुरल नेचर है...

 

 _ ➳  पास्ट के जन्म की कोई भी स्मृति अब मुझे नहीं है... मेरे शिवबाबा ने मुझे ब्रह्मा बाप द्वारा एडॉप्ट किया और ये हीरे तुल्य ब्राह्मण जन्म मुझे दिया... और मेरे सभी पुराने स्वभाव संस्कार मिट गए... बाबा ने मुझे ब्राह्मण जीवन दिया मुझे क्षत्रिय नहीं बनना है युद्ध नहीं करना है... मैं ब्रह्मा बाप की संतान ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी हूँ और  ब्राह्मण जीवन के संस्कार मेरी नेचुरल नेचर बन गयी है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने पुराने जीवन से पूरी तरह मर गयी हूँ... ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखकर मुझे अपने इस नए ब्राह्मण जन्म में आगे बढ़ना है... जो ब्रह्मा बाबा की नेचर वही मुझ ब्राह्मण आत्मा की भी नेचर है... कोई भी पुराना संस्कार अब मुझे इमर्ज नहीं करना है... मुझे इस ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रहना है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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