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 04 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ खान पान, रहन सहन बीच का साधारण रखा ?

 

➢➢ बाप ने जो सुख, शांति ज्ञान का खजाना विल किया है, वह दूसरों को दिया ?

 

➢➢ सर्व समबंधो से एक बाप को अपना साथी बनाया ?

 

➢➢ बहुरूपी बन माया के बहुरूपों को परखा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  योग में जब और सब संकल्प शान्त हो जाते हैं, एक ही संकल्प रहता 'बाप और मैं' इसी को ही पावरफुल योग कहते हैं। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जायें तब कहेंगे ज्वाला रूप की याद, जिससे परिवर्तन होता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सहजयोगी, सहज ज्ञानी हूँ"

 

✧  सदा अपने को सहजयोगी, सहज ज्ञानी समझते हो? सहज है या मेहनत है? जब माया बड़े रूप में आती है तो मुश्किल नहीं लगता? मधुबन में बैठे हो तो सहज है, वहाँ प्रवृति में रहते जब माया आती है फिर मुश्किल लगता है? कभी-कभी क्यों लगता है, उसका कारण? मार्ग कभी मुश्किल, कभी सहज है - ऐसे नहीं कहेंगे। मार्ग सदा सहज है, लेकिन आप कमजोर हो जाते हो इसीलिए सहज भी मुश्किल लगता है। कमजोर के लिए कोई छोटा सा भी कार्य भी मुश्किल लगता है। अपनी कमजोरी मुश्किल बना देती है, बाकी मुश्किल है नहीं।

 

  कमजोर क्यों होते हैं? क्योंकि कोई न कोई विकारों के संग दोष में आ जाते हैं। सत का संग किनारे हो जाता है और दूसरा संग दोष लग जाता है। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं कि सदा सतसंग में रहो। सतसंग अर्थात् सत बाप के संग में रहना। तो आप सदा सतसंग में रहते हो या और संग में भी चक्कर लगाते हो? सतसंग की कितनी महिमा है! और आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है। क्योंकि समीप का सम्बन्ध है।

 

  सबसे समीप सम्बन्ध है बाप और बच्चे का। यह सम्बन्ध सहज भी है और साथ-साथ प्राप्ति कराने वाला भी है। तो आप सभी सदा सतसंग में रहने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी है। सदैव यह सोचो कि हम औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो दूसरों की मुश्किल को सहज करने वाला होता वह स्वयं मुश्किल में नहीं आ सकता।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  सभी आवाज़ से परे अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बहुत समय से कर सकते हो? आवाज़ में आने का अनुभव ज्यादा कर सकते हो वा आवाज़ से परे रहने का अनुभव ज्यादा समय कर सकते हो?

 

✧  जितना लास्ट स्टेज अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जाएगी उतना आवाज़ से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूती हो।

 

✧   इस अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आह्वान कर सके़गे। यह पाँवरफुल स्थिति 'विश्व - कल्याणकारी स्थिति' कही जाती है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अपने निजस्वरूप और निजधाम की स्थिति सदा याद रहती है? निराकारी दुनिया और निराकारी रूप दोनों की स्मृति इस पुरानी दुनिया में रहते भी सदा न्यारा और प्यारा बना देती है। इस दुनिया के हैं ही नहीं। हैं ही निराकारी दुनिया के निवासी, यहाँ सेवा अर्थ अवतरित हुए हैं- तो जो अवतार होते हैं उन्हों को क्या याद रहता है? जिस कार्य अर्थ अवतार लेते हैं वही कार्य याद रहता है ना! अवतार अवतरित होते ही हैं धर्म की स्थापना के लिए तो आप सभी भी अवतरित अर्थात् अवतार हो तो क्या याद रहता है? यही धर्म स्थापन करने का कार्य।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप का राज सबको सपष्ट करके सुनाना"

➳ _ ➳ शिवबाबा परमधाम से आकर, मेरे दामन में सुखों के... खुशियों के फूल बिखेरेंगे... मुझे अपना बनाकर... इस कदर मेरा ख्याल रखेंगे... अपनी श्रीमत देकर, पुरानी दुनिया के दुःख भरे जंजाल से निकाल... सुखों की बाड़ सजाकर... मुझे खिलता हुआ रूहानी गुलाब सा महकाएँगे... ऐसा तो मैने कभी सोचा भी न था... मैं तो इस सांसारिक दुनिया के चक्कर में फंसकर उन्हें भूल गयी थी... लेकिन उन्होंने सदा मेरा ध्यान रखा... बस इस मीठे चिंतन ने आँखों को भिगो दिया... और भीगी पलकें लिए प्यार के सागर बाबा को निहारने मैं आत्मा... वतन में उड़ चली...

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को उज्ज्वल भविष्य का आधार श्रीमत को समझाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा यह याद रखो कि तुम बच्चे ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से स्वर्ग की बादशाही पाने के लिये राजयोग सीख रहे हो... शिवबाबा तुमको जो समझाते हैं... वह फिर तुम्हें औरों को समझाना है... जैसे तुम निरन्तर एक बाप की याद में रह... हर कर्म करते हो... वैसे ही सभी आत्माओं को बाप का परिचय दे... इस संगमयुग के महत्व को समझाओ... उन्हे भी सतयुगी वर्से का अधिकारी बनाओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के सच्चे प्यार में सुख स्वरूप आत्मा बनकर कहती हूँ :- "मेरे मीठे मीठे अविनाशी बाबा... मुझे इस जीवन में आप... अविनाशी साजन के रूप में... प्रेम करने का श्रेष्ठ अवसर मिला... खुद भगवान ने आकर मुझे अपनी प्रियतमा बनाया... वाह!! यह तो मेरा परम् सौभाग्य है... जो मुझे अविनाशी साजन मिला है... मैं आप द्वारा सिखाये राजयोग का अभ्यास... आदि-मध्य-अंत का ज्ञान... सभी आत्माओं को बता रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, जिन सच्ची खुशियों को, मीठे सुखों को, आप बच्चों ने पाया है... इन मीठी खुशियों से हर दिल आंगन को भर आओ... सबके कौड़ी जैसे जीवन को हीरे तुल्य बनाने की कला सिखा दो... सबके जीवन में सुखों की बहारों को खिलाने वाले... सदा के सुखदाई बन, मीठे बाबा के दिल में मुस्कराओ..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओं को अपने दिल में गहरे समाकर कहती हूँ :- "मीठे बाबा... मैं आत्मा आपके मीठे प्यार में, असीम सुखों की अनुभूतियों से भरकर... आपसे प्राप्त वर्से के अनुभव की दौलत को हर दिल पर... दिल खोलकर... लुटा रही हूँ... अपने प्यारे बाबा का परिचय... हर दिल को देकर... सबको आप समान खुशियों की अधिकारी बना रही हूँ..."

❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में श्रेष्ठ संस्कारो को पक्का कराते हुए कहा :- "मीठे प्यारे राजदुलारे बच्चे... शिवपिता से जो आपने... अपने आत्मिक सत्य को जाना है... उस परम सत्य को सदा स्मृति में रखना... अर्थात स्मृति स्वरूप बन सदा ईश्वरीय नशे में रह हर आत्मा को इस परम् सत्य से रूबरू करवाना... तो तुम्हारा यह जीवन सहज ही सफल हो जायेगा..."

➳ _ ➳ मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर, मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मैं आत्मा हर पल सबको सुख देने की भावना दिल में लिये हुए हूँ... सबको मीठे बाबा से मिलवाकर, सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ... बेहद के पिता का परिचय देकर... सबके जीवन को सुख भरी मुस्कान से सजा रही हूँ... मीठे बाबा को अपनी मीठी भावनायें सुनाकर मैं आत्मा... अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- सब कुछ बाप के हवाले कर ट्रस्टी हो सम्भालना है, पूरा वारी जाना है"

➳ _ ➳ अपने सभी बोझ बाबा को देकर, लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर कर्म कर रही हूँ। बाबा का आह्वान कर, बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के बाद, मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद में जैसे ही बैठती हूँ मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए, अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।

➳ _ ➳ हर बोझ से मुक्त, हर गम से अनजान सुंदर, सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। अपनी पलको को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है। संगमयुग पर परमात्म गोद मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है, तो कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे बोझ ले कर, अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा है।

➳ _ ➳ स्वयं से बातें करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती, अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर, विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। देह से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है। ऐसे ही आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।

➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ।

➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर करते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करवाती है। ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते, हर पल, हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं सर्व सम्बन्धों से एक बाप को अपना साथी बनाने वाली सहज पुरुषार्थी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं बहुरूपी बन माया के बहुरूपों को परखने वाला मास्टर मायापती हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बिंदु स्वरूप की स्मृति से ज्ञान गुण और धारणा में सिंधु बनने का अनुभव करना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा इस नश्वर देह की दुनिया से किनारा कर... अब अपने घर की ओर चल पड़ती हूँ... इस साकारी दुनिया को पार करते हुए... मैं निरंतर ऊपर की ओर बढ़ती जा रही हूँ... चाँद-सितारों की दुनियां को पार करते हुए... अपने निजधाम परमधाम में पहुँच जाती हूँ... जहाँ चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश नजर आ रहा है... शांति ही शांति अनुभव हो रही है...

➳ _ ➳ यह शांतिधाम ही मेरा असली घर है... मैं आत्मा अपने पिता शिवबाबा... जो मेरी ही तरह ज्योतिपुंज है... प्वाइंट ऑफ़ लाइट है... ऐसे बाप के सम्मुख मैं आत्मा बैठी हूँ... जिस शांति को सारी दुनिया ढूंढ रही है... वह शान्ति के सागर मेरे पिता... मेरे सामने बैठकर मुझे अपनी... सर्वशक्तियों से भरपूर करते जा रहे है...

➳ _ ➳ बिंदु बीजरूप बाप की मास्टर बिंदु बीजरूप सन्तान मैं स्वयं को देख रही हूं... बाप और मैं कंबाइंड स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मैं बिंदु, बिंदु बाप में समा जाती हूँ... कुछ देर तक इसी स्थिति में स्थित हो... निर्संकल्प हो बाप के स्नेह की गहराई में समाती जा रही हूँ... बिंदु बन सिंधु बाप में समा जाती हूँ... आहा!!कितना अलौकिक अनुभव हो रहा है... कितना पावरफुल भी... मैं आत्मा अब इसी अनुभव की गहराइयों में खोती जा रही हूँ...

➳ _ ➳ यह स्थिति कितनी हल्की और... एक दम ऊंची भी अनुभव हो रही है... मीठे बाबा सर्व गुणों के सिंधु है... वे शांति के सागर है... मुझ आत्मा को उनसे शांति के प्रकम्पन मिल रहे है... ज्ञान का सागर मुझ आत्मा को भी ज्ञान का खजाना दे भरपूर करते जा रहे है... बाप से सर्व सम्बन्ध की शक्ति... मुझ आत्मा को बहुत बड़ी प्राप्ति की अनुभूति करा रही है...शुक्रिया बाबा... आपने सदा सफलता के वरदानों से मुझ आत्मा को श्रृंगार रहे है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप के समान मास्टर सिंधु बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चल... बाप द्वारा मिले ज्ञान को, गुणों को जीवन में अच्छी रीति धारण करती जा रही हूँ... बिंदु बनते ही सभी विस्तार समाप्त हो गए... बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान के खजाने से भरपूर कर दिया.. मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारण कर सम्पूर्ण बनना ही है... आज मैं बाप से दृढ़ संकल्प करती हूँ...

➳ _ ➳ भगवान बाप ने मुझ आत्मा को इतनी अच्छी समझ दी है... जो सारे कल्प में मुझ आत्मा के काम आने वाली है... इस समझ को यूज़ करते-करते... मैं आत्मा ज्ञान, गुण और धारणा में सिंधु बनती जा रही हूँ... जो परमात्म पालन और पढ़ाई मुझ आत्मा को मिली है... वह मुझ में शक्ति भर... मुझ आत्मा को बिंदु रूप की स्मृति में स्थित होने का अनुभव करा रही है..वाह!! मीठे बाबा वाह!!

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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