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 18 / 03 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"ड्रामा के हर पार्टधारी का एक्यूरेट पार्ट है" - इस गुह्य रहस्य को समझकर चले ?*

 

➢➢ *सिर्फ एक बाप से सुनकर, उसकी श्रीमत से स्वयं को श्रेष्ठ बनाया ?*

 

➢➢ *अविनाशी और बेहद के अधिकार की ख़ुशी व नशे में रहे ?*

 

➢➢ *उदारचित और विशालदिल वाले बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जब मन ही बाप का है तो फिर मन कैसे लगायें! प्यार कैसे करें! यह प्रश्न ही नहीं उठ सकता क्योंकि सदा लवलीन रहते हैं, प्यार स्वरुप, मास्टर प्यार के सागर बन गये, तो प्यार करना नहीं पड़ता, प्यार का स्वरुप हो गये ।* जितना-जितना ज्ञान सूर्य की किरणें वा प्रकाश बढ़ता है उतना ही ज्यादा प्यार की लहरें उछलती हैं ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सदा याद की खुशी में रहने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

  सदा याद की खुशी में रहते हो ना? *खुशी ही सबसे बड़े ते बड़ी दुआ और दवा है। सदा यह खुशी की दवा और दुआ लेते रहो तो सदा खुश होने के कारण शरीर का हिसाब-किताब भी अपनी तरफ खींचेगा नहीं। न्यारे और प्यारे होकर शरीर का हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे। कितना भी कड़ा कर्मभेग हो, वह भी सूली से कांटा हो जाता है। कोई बड़ी बात नहीं लगती।* समझ मिल गई यह हिसाब-किताब है तो खुशी-खुशी से हिसाब-किताब चुक्तू करने वाले के लिए सब सहज हो जाता है। अज्ञानी हाय-हाय करेंगे और ज्ञानी सदा वाह मीठा बाबा! वाह ड्रामा की स्मृति में रहेंगे।

 

  *सदा खुशी के गीत गाओ। बस यही याद करो कि जीवन में पाना था वह पा लिया। जो प्राप्ति चाहिए वह सब हो गई। सर्व प्राप्ति के भरपूर भण्डार हैं। जहाँ सदा भण्डार भरपूर हैं वहा दु:ख-दर्द सब समाप्त हो जाते हैं। सदा अपने भाग्य को देख हर्षित होते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य, यही सदा मन में गीत गाते रहो। कितना बड़ा आपका भाग्य है।* दुनिया वालों को तो भाग्य में सन्तान मिलेगी, धन मिलेगा, सम्पति मिलेगी लेकिन यहाँ क्या मिलता? स्वयं भाग्य विधाता ही भाग्य में मिल जाता है! भाग्य विधाता जब अपना हो गया तो बाकी क्या रह गया! यह अनुभव है ना! सिर्फ सुनी सुनाई पर तो नहीं चल पड़े। बड़ों ने कहा भाग्य मिलता है और आप चल पड़े इसको कहते हैं - सुनी-सुनाई पर चलना। तो सुनने से समझते हो वा अनुभव से समझते हो! सभी अनुभवी हो?

 

  संगमयुग है ही अनुभव करने का युग। इस युग में सर्व प्राप्ति का अनुभव कर सकते हो। अभी जो अनुभव कर रहे हो। यह सतयुग में नहीं होगा। यहाँ जो स्मृति है वह सतयुग में मर्ज हो जायेगी। यहाँ अनुभव करते हो कि बाप मिला है, वहाँ बाप की तो बात ही नहीं। संगमयुग ही अनुभव करने का युग है। तो इस युग में सभी अनुभवी हो गये! *अनुभवी आत्मायें कभी भी माया से धोखा नहीं खा सकती। धोखा खाने से ही दु:ख होता है। अनुभव की अथार्टी वाले कभी धोखा नहीं खा सकते। सदा ही सफलता को प्राप्त करते रहेंगे। सदा खुश रहेंगे। तो वर्तमान सीजन का वरदान याद रखना - 'सर्व प्राप्ति स्वरुप सन्तुष्ट आत्मायें हैं। सन्तुष्ट बनाने वाले हैं।'*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  यह अलौकिक ड्रिल जानते हो? वैसे भी अभी वह ड्रिल जो करते है, वे तन्दुरस्त रहते है। तन्दुरस्ती के साथ - साथ शक्तिशाली भी रहते हैँ। *तो यह अलौकिक ड्रिल जो जितनी करता है उतना ही तन्दुरस्त अर्थात माया की व्याधि नहीं आती और शक्तिशाली स्वरूप भी रहता है*।

 

✧   *जितना - जितना यह अलौकिक बुद्धि की ड्रिल करते रहेंगे उतना ही जो लक्ष्य है बनने का, वह बन पावेंगे*। ड्रिल में जैसे ड्रिल - मास्टर कहता है वैसे हाथ - पाँव चलाते है ना। यहाँ भी अगर सभी को कहा जाये - एक सेकण्ड में निराकारी बन जाओ, तो बन सकेंगे? जैसे स्थूल शरीर के हाथ - पाँव झट डायरक्शन प्रमाण ड्रिल में चलाते रहते है, वैसे एक सेकण्ड में साकारी से निराकारी बनने की प्रैक्टिस है?

     

✧  साकारी से निराकारी बनने में कितना समय लगता है? जबकि अपना ही असली स्वरूप है, फिर भी सेकण्ड में क्यों नहीं स्थित हो सकते? अब तक कर्म बन्धन? क्या अब तक भी कर्म बन्धन की आवाज सुनते रहेंगे? *जब यह पुराना शरीर छोड़ देंगे, तब तक कर्म बन्धन सुनते रहेंगे*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  अपनी देह से ही जब न्यारे बनना है, तो सभी बातों में भी न्यारे हो जायेंगे। *अब पुरुषार्थ कर रहे हो न्यारे बनने का।* न्यारे बनने से फिर स्वत: ही सभी के प्यारे बन जाते हो। *प्यारे बनने का पुरुषार्थ नहीं होता है, पुरुषार्थ न्यारे बनने का होता है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सत्य सुनाने वाला एक बाप है इसलिए एक बाप से ही सुनना*"

 

_ ➳  भक्ति में सदा कनरस में डूबी हुई मै आत्मा... मन्दिर में एक प्रतिमा के दर्शन में जीवन की सफलता को निहारा करती थी... तब कहीं ख्वाबो और ख्यालो में भी... ईश्वरीय मिलन की कोई और चाहना भी न थी... बून्द ही मेरे लिए सागर थी... किसी और प्यार के सागर को भला मै क्या जानु... पर भगवान को मेरे ये खोखले और क्षणिक सुख नही भाये... और वह मुझे सच्चे सुखो की अमीरी का अहसास कराने... *परमधाम छोड़, धरती पर आ गया... मेरे अथाह सुखो की चाहना में... धरा पर डेरा जमा लिया... अपने प्यारे बाबा के सागर दिल को याद करते करते... और उसके असीम उपकारों को सिमरते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में मिलन के लिए पहुंचती हूँ...*

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने खोये गुणो से भरपूर कर पुनः चमकदार बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे,... जनमो से ईश्वर के दर्शनों को तरसते थे... आज उनके सम्मुख बैठ मा नॉलेजफुल बन रहे हो... *तो अब हर पल, हर साँस को ईश्वरीय यादो में ही बिताओ... *सिर्फ एक सच्चे बाप से सच्चे ज्ञान को सुनकर, गुणो की धारणा कर, स्वयं को सदा के लिए मीठा बनाओ... इन अविनाशी ज्ञान रत्नों को सुनने वाली... आपकी कर्मेन्द्रियों का भी भाग्य है.. कि आत्मा को ईश्वरीय सुख दिलाने में भागीदार है..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के अमृत वचन सुनकर स्वयं के भाग्य की सराहना करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा ने आपके बिना अथाह दुःख पाया... सच्चे प्यार को तरसती मै आत्मा... दर दर भटकती रही... *आज आप प्यार के सागर ने मुझे अपनी प्यार भरी बाँहों में लेकर... मेरे थके मन, बुद्धि को सुख से भर दिया है...*आपकी यादो में मेरा प्यारा मन और दिव्य बुद्धि मुझे असीम खुशियो से सजा रही है..."*

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... महान भाग्य ने जो अविनाशी ज्ञान रत्नों को दामन में सजाया है... उनको खनक में सदा खोये रहो... *श्रीमत की धारणा से मन प्यारा और बुद्धि दिव्यता से सज कर, सदा सुखो की बहारो में ले जायेगी... और ज्ञान को सुनते सुनते, स्थूल कर्मेन्द्रियाँ भी मिठास से परिपूर्ण हो जायेगी... इसलिए सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में आनन्दित रहो और यादो में झूमते रहो...*

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की सारी दौलत को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके बिना कितनी सूनी थी... पराये देश में पिता बिना कितनी अकेली थी... आप आये तो जीवन में बहार आयी है... *ज्ञान और योग से जीवन रौनक से भरा, खुबसूरत हो गया है... यह जीवन सच्ची खुशियो से संवर गया है... सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियाँ ईश्वरीय प्यार में शीतल सुखदायी हो गयी है और मुझ आत्मा को सदा का सुख दे रही है..."*

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डूबने का फरमान देते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर अब पुरानी दुनिया के व्यर्थ से मुक्त हो जाओ... *सिर्फ मीठे बाबा के सच्चे ज्ञान रत्नों को ही सुनो... यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही सच्ची कमाई है... सदा इस सच्ची कमाई में ही डूबे रहो... सत्य ज्ञान और सच्चे वजूद को जानकर, अब स्वयं को कहीं भी न उलझाओ... मीठे बाबा की प्यारी यादो में डूब, सदा के लिए प्यारे और न्यारे बन जाओ..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की मीठी मीठी यादो में गहरे डूबकर कहती हूँ :-* "प्यारे दुलारे बाबा... विकारो की कालिमा में कंगाल बन गयी... मुझ आत्मा को अपने सच्चे ज्ञान से पुनः मालामाल बना रहे हो... मै क्या बन गयी थी, और आप मुझे पुनः देवता सजा रहे हो... ऐसा मीठा खुबसूरत भाग्य पाकर, तो मै आत्मा निहाल हो गयी हूँ... *आपकी मीठी यादे और अमूल्य ज्ञान रत्न ही... मेरे जीवन का सच्चा आधार है, और इसी पर मेरे सारे सुखो का मदार है..."मीठी बाबा को अपने दिल की बात सुनाकर मै आत्मा... साकारी लोक में आ गयी...*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  एक बाप से सुनकर, उनकी श्रीमत से स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है*

 

_ ➳  मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। *मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं*। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। *ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।

 

_ ➳  एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। *परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं*। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।

 

_ ➳  बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। *कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ  निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अविनाशी और बेहद के अधिकार की खुशी वा नशे द्वारा सदा निश्चिन्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं उदारचित, विशालदिल बनकर एकता की नींव बनने वाली कल्याणकारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  हँसी की यह बात है - तो सभी कहते हैं कि पुरुषार्थ तो बहुत करते हैं, और *बापदादा को देख करके रहम भी आता है पुरुषार्थ बहुत करते हैं, कभी-कभी मेहनत बहुत करते हैं* और कहते क्या है - क्या करें, मेरे संस्कार ऐसे हैं! संस्कार के ऊपर कहकर अपने को हल्का कर देते हैं लेकिन बाप ने आज देखा कि यह जो आप कहते हो कि मेरा संस्कार है, तो क्या आपका यह संस्कार है? *आप आत्मा हो, आत्मा हो ना! बाडी तो नहीं हो ना! तो आत्मा के संस्कार क्या है? और ओरीजनल संस्कार कौन-से हैं?* जिसको आज आप मेरा कहते हो वह मेरा है या रावण का है? किसका है? आपका है? नहीं है? तो मेरा क्यों कहते हो! कहते तो ऐसे ही हो ना कि मेरा संस्कार ऐसा है? तो आज से यह नहीं कहना, मेरा संस्कार। नहीं। कभी यहाँ वहाँ से उड़के किचड़ा आ जाता है ना! *तो यह रावण की चीज आ गई तो उसको मेरा कैसे कहते हो!* है मेरा? नहीं है ना? तो अभी कभी नहीं कहना, जब मेरा शब्द बोलो तो याद करो मैं कौन और मेरा संस्कार क्या? *बाडी कानसेस में मेरा संस्कार है, आत्म-अभिमानी में यह संस्कार नहीं है। तो अभी यह भाषा भी परिवर्तन करना।* मेरा संस्कार कहके अलबेले हो जाते हो। कहेंगे भाव नहीं है, संस्कार है।

 

 _ ➳  अच्छा दूसरा शब्द क्या कहते हैं? मेरा स्वभाव। अभी स्वभाव शब्द कितना अच्छा है। स्व तो सदा अच्छा होता है। *मेरा स्वभाव, स्व का भाव अच्छा होता है, खराब नहीं होता है।* तो यह जो शब्द यूज करते हो ना, *मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, अभी इस भाषा को चेंज करो, जब भी मेरा शब्द आवे, तो याद करो मेरा संस्कार ओरीजनल क्या है?* यह कौन बोलता है? आत्मा बोलती है यह मेरा संस्कार है? तो जब यह सोचेंगे ना तो अपने ऊपर ही हँसी आयेगी, आयेंगी ना हँसी? हँसी आयेगी तो जो खिटखिट करते हो वह खत्म हो जायेगी।

 

 _ ➳  *इसको कहते हैं भाषा का परिवर्तन करना अर्थात् हर आत्मा के प्रति स्वमान और सम्मान में रहना। स्वयं भी सदा स्वमान में रहो, औरों को भी स्वमान से देखो।* स्वमान से देखेंगे ना तो फिर जो कोई भी बातें होती हैं, जो आपको भी पसन्द नहीं है, कभी भी कोई खिटखिट होती है तो पसन्द आता है? नहीं आता है ना? तो देखो ही एक दो को स्वमान से। *यह विशेष आत्मा है, यह बाप के पालना वाली ब्राह्मण आत्मा है।* यह कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा है। *सिर्फ एक बात करो - अपने नयनों में बिन्दी को समा दो, बस। एक बिन्दी से तो देखते हो, दूसरी बिन्दी भी समा दो तो कुछ भी नहीं होगा, मेहनत करनी नहीं पड़ेगी।* जैसे आत्मा, आत्मा को देख रही है। आत्मा, आत्मा से बोल रही है। आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि बनाओ। समझा - क्या करना है? *अभी मेरा संस्कार कभी नहीं कहना, स्वभाव कहो तो स्व के भाव में रहना।* ठीक है ना।

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा आत्मिक वृत्ति, आत्मिक दृष्टि में स्थित रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  देह के भान से किनारा कर... देह पर अपना अधिकार समाप्त कर... *देह रूपी वस्त्र को त्याग कर... साक्षीपन की सीट पर सेट होकर बैठ जाती हूँ...* मैं आत्मा स्वयं की देह को देख रही हूँ... यह पुरानी देह तो बापदादा द्वारा मिली हुई अमानत है... सेवा अर्थ अमानत है... मुझ आत्मा के सुख... शांति और प्रेम भरे... पवित्र संस्कारों ने... देहभान के रावण रूपी संस्कारों को नष्ट कर दिया है... मैं आत्मा देह से न्यारी होकर... एकरस अवस्था में स्थित हो गई हूँ... सब बोझ और थकावट दूर हो गए हैं... स्वतंत्र पंछी के समान... स्वयं को आसमान में उड़ता हुआ अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  बाबा की शक्तियों भरी किरणों के फव्वारे के नीचे बैठी हुई मैं आत्मा... सर्वशक्तियों व सर्वगुणों को... स्वयं में भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ... *देहभान के रावण रूपी संस्कार... योग अग्नि में भस्म होते हुए प्रतीत हो रहे हैं...* ईश्वरीय शक्तियों और गुणों से भरपूर हो कर... प्रभु पिता से सर्व संबंधों की अनुभूतियों का आनंद उठाते हुए... अपने संस्कारों को... दैवी संस्कारों में परिवर्तित कर रही हूँ...

 

 _ ➳  स्नेह के सागर... ज्ञान सागर के समीप रहने वाली मैं आत्मा... सागर के खजाने को स्वयं में भरती हुई... ज्ञान रत्नों से खेलती हुई... खुशियों से... सुखों से भरपूर हो गई हूँ... *सदा बाप के समीप रहने से... संग का रंग स्वतः ही चढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा है...* स्व का भाव भी... बाप समान... कल्याणकारी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ... सर्व के प्रति शुभचिंतक... स्व कल्याणी... विश्व कल्याणी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ...

 

 _ ➳  सदा स्मृति में रहते हुए... प्रभु प्रेम में मग्न... बिना मेहनत के चलती चली जा रही हूँ... *हर संकल्प... हर बोल... हर कर्म चेक करती हुई... चेंज करती हुई... बाप समान बना रही हूँ...* स्वभाव व संस्कारों को श्रेष्ठ बनता हुआ अनुभव कर रही हूँ... बुद्धि योग से... सदा एक बाप की प्यारी... सर्व से न्यारी हूँ... अपने ओरिजिनल स्वभाव में... हर परिस्थिति में लाइट रहकर... ड्रामा में कुशलता से पार्ट बजाते हुए... सर्व को सम्मान देते हुए... आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रही  हूँ...

 

 _ ➳  *बिंदु रूप स्थिति में स्थित होकर... सर्व प्रकार के बिखरे हुए विस्तार को बिंदु लगा रही हूँ...* बीज बाप से लगन लगा कर... लगन की अग्नि में... हिसाब किताब के विस्तार को भस्म करना कितना सहज हो गया है... *चलते फिरते अपनी आत्मिक स्वरुप... ज्योति स्वरूप का अनुभव कर रही हूँ...* कर्म करने के लिए पुराने शरीर का आधार ले लेती हूँ... फिर अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाने से... कितना लाइट अनुभव करती हूँ... स्वमान में रहकर... सम्मान से हर दूसरी आत्मा को देख रही हूँ... आत्मिक दृष्टि से सर्व को देखते हुए... सर्व को बिन्दु देखते हुए... सर्व को अपना सहयोगी बनते हुए अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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