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❍ 15 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ख़ुशी ख़ुशी सबका उद्धार करने के निमित बने ?
➢➢ नॉलेज को धारण कर धनवान बने ?
➢➢ सेवा में रहते कर्मातीथ स्थिति का अनुभव किया ?
➢➢ कारण रुपी नेगेटिव को समाधान रुपी पॉजिटिव बनाया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अपनी सब जिम्मेवारी बाप को दे दो अर्थात् अपना बोझ बाप को दे दो तो स्वयं हल्के हो जायेंगे, बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ। अगर बुद्धि से सरेन्डर होंगे तो और कोई बात बुद्धि में नहीं आयेगी। बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं खुशनसीब हूँ"
〰✧ अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? खुशी का भाग्य जो स्वप्न में भी नहीं था वो प्राप्त कर लिया। तो सभी की दिल सदा यह गीत गाती है कि सबसे खुशनसीब हूँ तो मैं हूँ। यह है मन का गीत। मुख का गीत गाने के लिये मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मन का गीत सब गा सकते हैं।
〰✧ सबसे बड़े से बड़ा ख़जाना है खुशी का ख़जाना। क्योंकि खुशी तब होती है जब प्राप्ति होती है। अगर अप्राप्ति होगी तो कितना भी कोई किसी को खुश रहने के लिये कहे, कितना भी आर्टीफिशयल खुश रहने की कोशिश करे लेकिन रह नहीं सकते। तो आप सदा खुश रहते हो या कभी-कभी रहते हो? जब चैलेन्ज करते हो कि हम भगवान के बच्चे हैं, तो जहाँ भगवान् है वहाँ कोई अप्राप्ति हो सकती है? तो खुशी भी सदा है क्योंकि सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। ब्रह्मा बाप का क्या गीत था? पा लिया-जो था पाना। तो यह सिर्फ ब्रह्मा बाप का गीत है या आप सबका? कभी-कभी थोड़ी दु:ख की लहर आ जाती है? कब तक आयेगी?
〰✧ अभी थोड़ा समय भी दु:ख की लहर नहीं आये। जब विश्व परिवर्तन करने के निमित्त हो तो अपना ये परिवर्तन नहीं कर सकते हो? अभी भी टाइम चाहिये, फुल स्टॉप लगाओ। ऐसा श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ प्राप्तियाँ, श्रेष्ठ सम्बन्ध सारे कल्प में नहीं मिलेगा। तो पहले स्व-परिवर्तन करो। यह स्व-परिवर्तन का वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन करायेगा।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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अगर कोई भी शक्ति वा गुण समय पर इमर्ज नहीं होता है तो इससे सिद्ध है कि मालिक को समय का महत्व नहीं है। क्या करना चाहिए? सिंहासन पर बैठना अच्छा या मेहनत करना अच्छा? अभी इसमें समय देने की आवश्यकता नहीं है। मेहनत करना ठीक लगता या मालिक बनना ठीक लगता? क्या अच्छा लगता है? सुनाया ना - इसके लिए सिर्फ एक यह अभ्यास सदा करते रहो - ‘निराकार सो साकार के आधार से यह कार्य करा रहा हूँ" करावनहार बन कर्मेन्द्रियों से कराओ। अपने निराकारी वास्तविक स्वरूप को स्मृति में रखेंगे तो वास्तविक स्वरूप के गुण, शक्तियाँ स्वतः ही इमर्ज होंगे। जैसा स्वरूप होता है वैसे गुण और शक्तियाँ स्वतः ही कर्म में आते हैं। जैसे कन्या जब माँ बन जाती है तो माँ के स्वरूप में सेवा भाव, त्याग, स्नेह, अथक सेवा आदि गुण और शक्तियाँ स्वतः ही इमर्ज होती है ना तो अनादि अविनाशी स्वरूप याद रहने से स्वतः ही यह गुण और शक्तियाँ इमर्ज होंगे। स्वरूप की स्मृति स्थिति को स्वतः ही बनाता है। समझा क्या करना है। मेहनत शब्द को जीवन से समाप्त कर दो। मुश्किल मेहनत के कारण लगता है। मेहनत समाप्त तो मुश्किल शब्द भी स्वत: ही समाप्त हो जायेगा। अच्छा -
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ इस देह के जो सर्व सम्बन्ध हैं, दृष्टि से, वृति से, कृत से उन सबसे न्यारा। देह का सम्बन्ध देखते हुए भी स्वत: ही आत्मिक, देही सम्बन्ध स्मृति में रहे। इसलिए दीपावली के बाद भैया-दूज मनाया ना। जब चमकता हुआ सितारा व जगतमाता अविनाशी दीपक बन जाते हो तो भाई-भाई का सम्बन्ध हो जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप आया है, रावण से छुड़ाकर सच्ची स्वतंत्रता देने"
➳ _ ➳ मैं आत्मा ओम शांति ध्वनि किरणों से खींची चली जा रही हूँ... इन
किरणों के रास्ते मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ मधुबन... जहाँ प्रकृति से, पहाड़ों
से, बगीचों से, बाबा के झूले से, चारों और से ओम शांति की ध्वनि गूंज रही है...
बाबा झूले में झूलते हुए दोनों बाँहों को पसारकर मुझे अपने पास बुलाते हैं...
मैं आत्मा बाबा की बाँहों में समा जाती हूँ और उनकी गोदी के झूले में बैठ जाती
हूँ... मीठे बाबा प्यार से मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए मीठी शिक्षाएं देते
हैं...
❉ योगबल से विकारो रुपी रावण दुश्मन पर विजय प्राप्त कर जगतजीत
बनने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे...
सच्चे पिता से सच्चा ज्ञान पाकर सारी उलझनों से मुक्त होकर सदा के विजयी बन
मुस्कराओ... कागज के रावण को नही... मन की जमीन पर विकारो के रावण को जलाओ...
और मीठी यादो में सच्चे राजतिलक को पाओ...”
➳ _ ➳ योगेश्वर बाबा की यादों की किरणों से विकारों रूपी रावण के पुतले
को भस्म कर गुणों की खुशबू से महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे
बाबा... मै आत्मा अज्ञान में सदा बाहर ही रावण को जलाती आई... और भीतर उसे सदा
जिन्दा ही पाया... मीठे बाबा आपने ज्ञान के नेत्र से मुझे विकारो रुपी रावण
समझा दिया है... यादो की अग्नि में इसे जलाकर भस्म कर रही हूँ...”
❉ ज्ञान का शंख बजाकर रावण माया के विकारों रूपी घेरे को तोड़कर
मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सुंदर खिलते हुए फूल बच्चे
विकारो के रावण की गिरफ्त में दुखो के जंगल में भटक पड़े हो... अब योग की अग्नि
में इस समूचे जंगल को ही जला दो... और सच्ची विजयपताका लहराओ... सच्चे सुखो को
सितारों से जीवन को सजाओ... विश्व के मालिक बन खिलखिलाओ...”
➳ _ ➳ दुःख, अंधकार के साए से दूर होकर खुशियों की बरसात में नहाते हुए
मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मन के भीतर विकारो
के गहरे रावण पर विजय पाकर खूबसूरत जीवन को पाती जा रही हूँ... मीठे बाबा आपकी
यादो में विश्व की राजाई का तिलक सहज ही पाती जा रही हूँ... और अशोक वाटिका
में मुस्करा रही हूँ...”
❉ ज्ञान योग के अमृत झरने में पावन बनाकर हीरे जैसे चमकाते हुए
मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो
के रावण से मुक्त कराने का दम रखती है... और सहज ही विजयी बनाकर विश्व अधिकारी
बनाती है... इन मीठी यादो में अंतर्मन भिगो दो... यह मीठी यादे पारस बनाएंगी
सारे दुखो से शोक से मुक्त कराएंगी... खुशियो के आँगन में कदम रखोगे... हर दिल
खुशनुमा हो झूम उठेगा...”
➳ _ ➳ विकारों की लंका को जलाकर रावण की शोक वाटिका से निकल मुक्त गगन
की पंछी बन मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके मीठी
यादो की ऊँगली पकड़कर विकारो के कालेपन से मुक्त होकर... उजली सी दमकती जा रही
हूँ... और सच्चा सच्चा दशहरा मना रही हूँ... अपने पावन स्वरूप को पाकर सदा की
विजयी होती जा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम है, इसे धारण कर धनवान बनना है
➳ _ ➳ जिस सत्य नॉलेज को पाकर मेरे जीवन में छाया अज्ञान अंधकार मिट गया
और अज्ञान अंधकार से निकल ज्ञान के सोझरे में आकर जिस आनन्दमयी जीवन का अनुभव
मैं आज कर रही हूँ, वो सत्य ज्ञान देने वाले जीवनदाता अपने प्यारे पिता का मैं
मन ही मन शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने ने आकर मुझे सत्यता का बोध करवाया।
याद करती हूँ मैं उस समय को जब भगवान को पाने के लिए मैं भटक रही थी। भक्ति के
व्यर्थ के कर्मकांडो में उलझ कर अपना समय, संकल्प और श्वांस सब व्यर्थ गंवा रही
थी किन्तु ज्ञान सागर मेरे प्यारे भगवान ने आकर मुझे ऐसी नई नॉलेज दी जिससे
मेरे मन के सभी बन्द कपाट खुल गए और उनके खुलते ही मेरे प्यारे प्रभु साक्षात
मुझे मेरे सामने खड़े दिखाई दिए।
➳ _ ➳ मन मे चल रहे इन सभी विचारों को दृश्यों के रूप में देखते हुए मैं
महसूस कर रही हूँ जैसे जीवन को बदलने वाला सत्य ज्ञान देने वाले ज्ञान सागर
मेरे पिता साक्षात मेरे सामने आ कर खड़े हो गए है और ज्ञान सूर्य बन ज्ञान की
अनन्त किरणो का प्रकाश मेरे ऊपर डाल रहें हैं। मन को आनन्दित करने वाला ये
प्रकाश देह रूपी पिंजरे में फंसी मुझ आत्मा को छू रहा है और मैं आत्मा अपने
सत्य स्वरूप को पहचान उस स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ। स्पष्ट अनुभव कर
रही हूँ मैं अपने उस सतोगुणी स्वरूप को जो सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता,
ज्ञान और शक्ति से भरपूर है।
➳ _ ➳ अपने अंदर समाये ये सातों गुण मुझे मेरे मस्तक से प्रकाश की रंग
बिरंगी किरणो के रूप में निकलते हुए दिखाई दे रहे हैं। मुझ आत्मा से निकल रहे
प्रकाश की इन रंग बिरंगी किरणों के साथ इन सातों गुणों के वायब्रेशन्स को मैं
धीरे - धीरे अपने चारो और फैलता हुआ महसूस कर रही हूँ। एक दिव्य अलौकिक
आभामंडल मेरे चारों और निर्मित होने लगा है जो देह रूपी पिंजरे को तोड़, मुझे
उससे बाहर निकलने में मदद कर रहा है। प्रकाश के दिव्य कार्ब के साथ मैं आत्मा
भृकुटि की कुटिया से बाहर निकल रही हूँ और अब अपने ही शरीर को साक्षी हो कर देख
रही हूँ। कोई लगाव, कोई मोह मुझे इस शरीर के साथ अब नही है। नए ज्ञान की नई
रोशनी ने देह के हर बन्धन से जैसे मुझे मुक्त कर दिया है।
➳ _ ➳ एक अति सुंदर निर्बन्धन स्थिति में स्थित होकर अब मैं आत्मा ज्ञान
सागर अपने प्यारे पिता के पास उनके वतन की ओर जा रही हूँ। हर बन्धन से मुक्त,
एकदम हल्केपन की स्थिति में स्थित होकर उड़ने का भरपूर आनन्द लेती हुई मैं नीले
गगन को पार कर, उससे ऊपर फरिश्तो की दुनिया को पार कर पहुँच चुकी हूँ अपने उस
निराकारी वतन में जहाँ ज्ञान के सागर मेरे निराकार पिता परमात्मा रहते हैं।
रंग बिरंगे सितारों की तरह चमकती आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में आकर मैं
गहन शान्ति की अनुभूति कर रही हूँ। मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने प्यारे
पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ। सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता
उनका मन को लुभाने वाला सुन्दर स्वरूप मुझे अपनी और खींच रहा है। उनके समीप
जाकर अब मैं उनकी किरणो रूपी छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ गई हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञानसूर्य मेरे शिव बाबा ज्ञान की अनन्त किरणो को अब मेरे ऊपर
प्रवाहित कर, अज्ञानता के पुराने सभी संस्कारों को जलाकर भस्म कर मेरे अंदर
अथाह ज्ञान का प्रकाश भर रहें हैं। बाबा मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर
बना रहे हैं ताकि अज्ञान अंधकार में भटक रही आत्माओं को ज्ञान का प्रकाश देकर
उनके अंधेरे जीवन मे उजाला कर सकूँ। ज्ञान की शक्ति स्वयं में भरकर अब मैं
ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता से मिली नई नॉलेज सबको देकर, सर्व का कल्याण करने
के लिए वापिस साकारी दुनिया की ओर आ रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि सिहांसन पर अब मैं विराजमान हूँ और अपने
प्यारे पिता द्वारा मिलने वाली नई नॉलेज को पढ़कर उसे दूसरों को पढ़ाने की सेवा
कर रही हूँ। जैसे बाबा ने नई नॉलेज देकर मेरे जीवन को परिवर्तित किया ऐसे बाबा
से यह नॉलेज लेकर सबको यह नई नॉलेज देकर मैं सबके जीवन को परिवर्तन करने के
बाबा के कार्य मे मददगार बन उनका पूरा सहयोग दे रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं सेवा में रहते कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने वाली तपस्वीमूर्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं कारण रूपी निगेटिव को समाधान रूपी पॉजिटिव बनाने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ १.
कई कहते हैं ज्ञान-योग बहुत अच्छा लगता है, अच्छा
है वो तो ठीक है लेकिन कर्म में लाते हो? ज्ञान
माना आत्मा, परमात्मा,
ड्रामा.... यह कहना नहीं। ज्ञान का अर्थ है समझ। समझदार जैसा समय होता है वैसे
समझदारी से सदा
सफल होता है।
➳ _ ➳ २.
समझदार की निशानी है कभी धोखा नहीं खाना - ये है ज्ञानी की निशानी,
और
योगी की निशानी है - सदा क्लीन
और क्लियर बुद्धि। क्लीन भी हो और क्लियर भी हो। योगी कभी नहीं कहेगा-पता
नहीं,
पता
नहीं उनकी बुद्धि
सदा ही क्लियर है। और धारणा स्वरूप की निशानी है सदा स्वयं भी डबल लाइट।
कितनी भी जिम्मेवारी हो लेकिन धारणामूर्त, सदा
डबल लाइट। चाहे मेला हो, चाहे
झमेला हो-दोनों में डबल लाइट। और सेवाधारी की निशानी है-सदा
निमित्त और निर्माण भाव। तो ये सभी अपने में चेक करो। कहने में तो सभी कहते हो
ना कि चारों ही सब्जेक्ट के
गाडली स्टूडेण्ट हैं। तो निशानी दिखाई देनी चाहिये।
✺
ड्रिल :- "ज्ञानी, योगी, धारणा स्वरूप और सेवाधारी बनना"
➳ _ ➳ झील
में खिले पावन कमल की कोमल पंखुरियों पर पडें ओस कणों के समान... शिव सूर्य की
किरणों से स्वर्ण मयी आभा बिखराती,
मैं
ज्योति बिन्दु उन्हीं किरणों पर सवार होकर पहुँच गयी हूँ परमधाम में... असंख्य
जगमगाते हीरों की मालाओं से जडी,
जैसे कोई भव्य और विशाल पारदर्शी सुराही... शान्ति और पावनता का मधुरस-सा
झलकाती हुई... सुराही के शीर्ष पर स्वयं अमृत के सागर,
अनवरत अमृत धारा छलकाते हुए... आत्माओं के उर को निरन्तर भरपूर किये जा रहे
है... छलछलाती सुराही,
शान्ति से,
पावनता से,
और
भरपूर अवस्था में हर आत्मा मणि... मैं आत्मा शिवबाबा के एकदम करीब उनको पास से
निहारती हुई... और देखते ही देखते एक जादुई आकर्षण में बंधी समाँ गई हूँ उनकी
परम पावन सी गोद में... चिरकाल तक स्वयं को उस मधु से भरपूर करती हुई...
➳ _ ➳ अब
मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... सन्दली पर बैठे शिक्षक रूप में
बापदादा,
और
असंख्य फरिश्तों
की कतार उनके सामने बैठी है... आहिस्ता से पीछे जाकर बैठ गया हूँ मैं फरिश्ता
भी... बापदादा की स्नेहमयी नजरें मेरा पीछा करती हुई... और बापदादा हर एक
फरिश्ते को ज्ञान,
योग,
सेवा और धारणा चारों विषयों में सम्पन्न बनने का वरदान दे रहे है... वरदान
पाकर सभी एक एक कर अपने अपने सेवा स्थानों को जाते हुए... मैं फरिश्ता मगन होकर
देख रहा हूँ इस दृश्य को... सहसा चौक गया हूँ कोई स्नेहिल सा स्पर्श अपने कन्धे
पर पाकर... बापदादा सामने खडे हैं हाथो में उपहारों का थाल सजाये... मेरे
सामने थाल को रख मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे ज्ञानी तू आत्मा का वरदान दे रहे
है... सामने रखे स्वर्ण जडित थाल से स्वमानों की माला मेरे गले में पहनाते
हुए,
समझदारी की प्रतीक ज्ञान गदा सौंप रहे है मेरे हाथों में... मैं देख रहा हूँ,
गले
मे पहनी स्वमानों की माला को... जो मेरी समझ और शक्ति को तीव्रता से बढा रही
है... योग का प्रतीक स्वदर्शन चक्र मेरी बुद्धि को क्लीन और क्लीयर कर रहा
है...
➳ _ ➳ और
अब धारणा का पावन कमल मैंने स्वयं ही उठा लिया बापदादा के सामने से... मेरी इस
बालसुलभ उत्सुकता पर बापदादा मुस्कुरा रहे हैं आँखों में विशेष स्नेह भरकर...
मानो कह रहे हो बच्चे! अब ये सेवा का शंखनाद भी तुम्हें स्वतः ही करना है...
जैसे ही सेवा का शंख हाथ में उठाता हूँ... खुशी से भर गया हूँ सामने,
अपना ही देवताई अलंकारों से सजा भव्य रूप देखकर... गदा शंख चक्र और कमल देवताई
अलंकारों से सुशोभित रूप अपने भविष्य रूप को देखकर उत्साह से भर गया हूँ
मैं... और चारों ही विषयों में सम्पूर्णता पाने की लगन अब पहले से तेज हो गयी
है... सम्पूर्णता का दृढ निश्चय लिए मैं लौट आया हूँ अपने उसी ब्राह्मण शरीर
में... धारणाओं का कमल अब पहले से भी ज्यादा शोभा के साथ खिल रहा है उसी झील
में... कोमल पत्तियों पर पडे ओस कण सुनहरे प्रतीत हो रहे है... मेरे सतयुगी
भविष्य के समान...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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