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 27 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ लाइट हाउस बन सबको शांतिधाम, सुखधाम का रास्ता बताया ?

 

➢➢ याद में आखें खोलकर बैठे ?

 

➢➢ इस अलोकिक जीवन में सम्बन्ध की शक्ति से अविनाशी स्नेह और सहयोग प्राप्त किया ?

 

➢➢ कोई भी प्लान विदेही, साक्षी बन सोचा ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  विदेही बनने की विधि है-बिन्दी बनना। अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है इसलिए बापदादा कहते हैं अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूहरिहान करते जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ और चेक करो-किसी भी कारण से यह स्मृति का तिलक मिटे नहीं। अविनाशी, अमिट तिलक रहे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं बाप की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

  सदा अपने को बाप की याद की छत्रछाया में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? यह याद की छत्रछाया सर्व विघ्नों से सेफ कर देती है। किसी भी प्रकार का विघ्न छत्रछाया में रहने वाले के पास आ नहीं सकता। छत्रछाया में रहने वाले निश्चित विजयी है ही। तो ऐसे बने हो? छत्रछाया से अगर संकल्प रूपी पाँव भी निकाला तो माया वार कर लेगी।

 

  किसी भी प्रकार की परिस्थिति आवे छत्रछाया में रहने वाले के लिए मुश्किल से मुश्किल बात भी सहज हो जायेगी। पहाड़ समान बातें रूई के समान अनुभव होंगी। ऐसी छत्रछाया की कमाल है। जब ऐसी छत्रछाया मिले तो क्या करना चाहिए? चाहे अल्पकाल की कोई भी आकर्षण हो लेकिन बाहर निकला तो गया। इसलिए अल्पकाल की आकर्षण को भी जान गये हो। इस आकर्षण से सदा दूर रहना। हद की प्राप्ति तो इस एक जन्म में समाप्त हो जायेगी। बेहद की प्राप्ति सदा साथ रहेगी। तो बेहद की प्राप्ति करने वाले अर्थात् छत्रछाया में रहने वाले विशेष आत्मायें है, साधारण नहीं। यह स्मृति सदा के लिए शक्तिशाली बना देगी।

 

  जो सिक्कीलधे लाडले होते हैं वह सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं। याद ही छत्रछाया है। इस छत्रछाया से संकल्प रूपी पाँव भी बाहर निकाला तो माया आ जायेगी। यह छत्रछाया माया को सामने नहीं आने देती। माया की ताकत नहीं है - छत्रछाया में आने की। वह सदा माया पर विजयी बन जाते हैं। बच्चा बनना अर्थात् छत्रछाया में रहना। यह भी बाप का प्यार है जो सदा बच्चों को छत्रछाया में रखते हैं। तो यही विशेष वरदान याद रखना - कि लाडले बन गये, छत्रछाया मिल गई। यह वरदान सदा आगे बढ़ाता रहेगा।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आप चैलेन्ज करते हो कि हम आपको जीवन में मुक्ति डबल दिला सकते हैं - जीवन भी हो और मुक्ति भी हो, ऐसी चैलेन्ज की है ना? नशे से कहते हो कि जीवनमुक्ति आपका और हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है, तो स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात दु:ख के चक्करों से मुक्त रहने वाले और मुक्त करने वाले। वशीभूत होने वाले नहीं लेकिन अधिकारी बन, मालिक बन सर्व कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले।

 

✧  धोखा खाने वाले नहीं लेकिन औरों को भी धोखे से छुडाने वाले। यही अभ्यास करते हो ना - कर्म में आना और फिर न्यारे हो जाना, तो याद का अभ्यास क्या रहा? - आना और जाना और पढाई अर्थात ज्ञान का सार क्या है? कर्मातीत बन घर जाना है और फिर राज्य करने का पार्ट बजाने अपने राज्य में आना है। यही ज्ञान का सार है ना। तो जानाऔर आना' - यही ज्ञान और योग है, इसी अभ्यास में दिन-रात लगे हुए हो।

 

✧  बुद्धि में घर जाने की और फिर राज्य में आने की खुशी है। जैसे मधुबन अपने घर में आते हो तो कितनी खुशी रहती है। जब से टिकेट बुक कराते हो तब से जाना है, जाना है - यह बुद्धि में याद रहता है ना! तो जब मधुबन घर की खुशी है तो आत्मा के घर जाने की भी खुशी है। लेकिन खुशी से कौन जायेगा? जितना सदा यह 'आने' और जाने' का अभ्यास होगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ पाण्डव एक सेकण्ड में एकदम अलग हो सकते हो? आत्मा अलग मालिक और कर्मेन्द्रियां कर्मचारी अलग, यह अभ्यास जब चाहो तब होना चाहिए। अच्छा, अभी-अभी एक सेकण्ड में न्यारे और बाप के प्यारे बन जाओ। पावरफुल अभ्यास करो बस मैं हूँ ही न्यारी। यह कर्मेन्द्रियाँ हमारी साथी हैं, कर्म की साथी हैं लेकिन मैं न्यारा और प्यारा हूँ। अभी एक सेकण्ड में अभ्यास दोहराओ। (ड्रिल) सहज लगता है कि मुश्किल है? सहज है तो सारे दिन में कर्म के समय यह स्मृति इमर्ज करो, तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज करेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- कर्मबंधन में नहीं फंसना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा देह, देह के संबंधो के, देह की दुनिया, वस्तु, वैभवों के जाल में फसी हुई थी... दुनियावी संबंधों के ताने-बाने में उलझ कर इधर-उधर भटक रही थी... इन जीवन बन्धनों में बंधी मैं आत्मा छटपटा रही थी... कोटो में से मेरी पुकार सुनकर मेरे सच्चे पिता ने ज्ञान-योग की कैंची से मुझ आत्मा के बन्धनों की रस्सियों को काटकर मुझे इस जाल से आजाद कराया... गुण-शक्तियों का बल देकर आजाद पंछी की तरह मुझे उड़ना सिखाया... मैं आत्मा इस देह रूपी वस्त्र को छोडकर प्रकाश का वस्त्र धारण कर... उड़ चलती हूँ प्रकाश की दुनिया में... जहाँ बापदादा बैठे मेरा इन्जार कर रहे हैं...

❉ प्यारे बाबा दैहिक बन्धनों में भटकते हुए मेरे मन-बुद्धि को अपने स्नेह के सम्बन्ध में बांधते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... अब देह के मटमैले रिश्तो में स्वयं को मैला न करो... आत्मा के भान में रह आत्मिक अनुभूतियों का आनंद लो... श्रीमत के साये में फूलो सा जीवन संवार चलो... विनाशी सम्बन्धो से निकलकर अविनाशी आत्मा के नशे में खो जाओ... एक बाप से बुद्धियोग लगाकर सब बंधन समाप्त करो... ईश्वरीय साथ के अमूल्य पलों में खुद को कहीं भी न उलझाओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा बापदादा की बाँहों में समाकर बाबा के लाड-प्यार में खुश होती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्यार को पाकर प्रेम दीवानी हो गयी हूँ... प्यारे बाबा... सच्चे प्यार की बून्द को तरसती मै आत्मा... आज सागर को पाकर तृप्त हो गयी हूँ... आपके साथ और श्रीमत के हाथ को पकड़कर असीम खुशियो से भर गयी हूँ...”

❉ मीठे बाबा अपनी मीठी-मीठी दुआओं से मेरा दामन सजाते हुए कहते हूँ:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सच्ची प्रीत सच्चे माशूक संग रखकर प्रेम के पर्याय बन सदा के खुशनुमा हो जाओ... श्रीमत को रोम रोम में बसाकर देह के बन्धनों से मुक्त हो जाओ... संगम के सुनहरे पलों को ईश्वर पिता की यादो में समाकर असीम खुशियो से भरे भाग्य को पा लो...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा विनाशी बन्धनों से मुक्त होकर बाबा के अविनाशी स्नेह के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के बन्धनों में कितनी उलझी सी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे उलझनों से निकाल श्रीमत पर सदा का सुखी बनाया है... मेरा जीवन फूलो जैसा हल्का और खुशनुमा बनाया है... मै आत्मा इन मीठी यादो में खोकर अतीन्द्रिय सुख पा रही हूँ...”

❉ मेरे बाबा हद के दुखों से छुड़ाकर बेहद के सुख की दुनिया में ले जाते हुए कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... इस झूठ की दुनिया में सच्चे प्यार की बून्द की आस भी छलावा है... इसलिए प्यार के सागर में, प्रेम की अनन्त गहराइयो में डूब जाओ... और अतृप्त मन की प्यास बुझाओ... और प्रेम अमृत में अमरता को पाकर अथाह सुखो में मुस्कराओ... सच्चे प्रियतम से जुड़कर प्रेम तरंगो से भर जाओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के पारलौकिक प्रेम के सागर की गहराइयों में डूबती हुई कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को देह के रिश्तो में सच्चा प्यार कभी न मिला... हर रिश्ते ने ठगा और खोखला किया... अब आपकी यादो की छत्रछाया में कितनी शीतल, कितनी सुखी और प्रेममय हो गयी हूँ... देह के सारे भ्रम से निकल अपने और पिता के स्वरूप पर मन्त्रमुग्ध हो गयी हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- अपने शांत स्वरूप स्थिति में स्थित हो शरीर से डिटैच होने का अभ्यास करना है

➳ _ ➳ स्व स्थिति के आसन पर विराजमान होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे कोई राजा अपने सिहांसन पर विराजमान होकर, अपने अधिकारों का प्रयोग करता है और अपने राज्य की कारोबार को चलाने के लिए अपने मंत्रियों को आदेश देकर अपने शासन की बागडोर को अच्छी रीति सम्भलाता है ठीक उसी तरह मैं आत्मा भी अब स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट हूँ और महसूस कर रही हूँ कि मैं आत्मा राजा हूँ और हर कर्मेंद्रिय मेरे ऑर्डर प्रमाण कार्य कर रही है।

➳ _ ➳ अपने ऊँचे ते ऊँचे अधिकारीपन के आसन पर सेट होकर अब मैं अपनी सभी कर्मेन्द्रियों को समेट, मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर शांति में बैठने का अभ्यास करती हूँ और धीरे - धीरे महसूस करती हूँ जैसे मैं आत्मा अंतर्मुखता की एक ऐसी गुफा में जा रही हूँ जहाँ कोई आवाज, कोई शोर नही यहां तक कि संकल्पो की भी हलचल नही। अंतर्मुखता का यह अवस्था मुझे गहन शांति का अनुभव करवा रही है। अपने मस्तक से निकल रहे शांति के वायब्रेशन्स को मैं अपने चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ। शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स धीरे - धीरे चारों ओर फैलते जा रहें हैं और मेरे आस पास के वायुमंडल को शांत बना रहे हैं। मैं महसूस कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से निकल रहे शांति के वायब्रेशन्स से एक शक्तिशाली आभामण्डल मेरे चारों तरफ बन गया है जो बाहरी वातावरण के हर प्रभाव से मुझे मुक्त कर रहा है।

➳ _ ➳ अंतर्मुखी बन, शांति की गहन अनुभूति करते हुए, शांति के सागर अपने प्यारे पिता को अब मैं याद करती हूँ और महसूस करती हूँ कि उन्हें याद करते ही मेरे मन बुद्धि का कनेक्शन शांति धाम में रहने वाले शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ जुड़ गया है और यह कनेक्शन मुझे अपनी और खींच रहा है। मन बुद्धि के विमान पर बैठ सेकण्ड में मैं साकार और सूक्ष्म लोक को पार करके अपने शांतिधाम घर मे पहुँच जाती हूँ। शांति के बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन इस शांति धाम घर में फैले हुए हैं। जो मुझे गहन शांति से भरपूर कर रहे हैं। गहन शांति की गहन अनुभूति करते हुए मैं आत्मा धीरे - धीरे शांति के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँच जाती हूँ।

➳ _ ➳ सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शांति दाता शिव बाबा के समीप बैठ अब मैं उनके सर्व गुणों, सर्व शक्तियों की एक - एक किरण को गहराई तक स्वयं में समाती जा रही हूँ। जैसे - जैसे बाबा की सर्वशक्तियों की किरणे मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं मैं स्वयं में असीम बल भरता हुआ अनुभव कर रही हूँ। अपने बिंदु बाप की शीतल किरणों की छत्रछाया में गहन शीतलता की अनुभूति करते हुए अपने प्यारे बाबा के साथ इतना सुन्दर मधुर मंगल मिलन मनाने का सुख मैं प्राप्त कर रही हूँ। मास्टर बीज रूप बन अपने बीज रूप बाप के साथ मंगल मिलन मनाने का यह सुख मुझे परम आनन्द प्रदान कर रहा है। परमात्म शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ और बहुत ही शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳ अपने बीज रूप शिव पिता के सानिध्य में बैठ, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं मास्टर बीज रूप आत्मा उनके समान अति तेजस्वी, सर्वशक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर, अब वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर लौट रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करके फिर अपने को देह से न्यारी मास्टर बीज रूप आत्मा समझ, कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठने का अभ्यास निरन्तर करते हुए, गहन शांति की अनुभूति मैं हर पल स्वयं भी कर रही हूँ और दूसरों को करा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं इस अलौकिक जीवन में संबंध की शक्त्ति से अविनाशी स्नेह और सहयोग प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं विदेही, साक्षी बन कोई भी प्लैन बनाकर सेकंड में प्लेन स्थिति बनाने वाली साक्षीदृष्टा आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  प्रसन्नचित आत्माकोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नजर से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है 'नजर से निहाल करने वाले', वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो नजर से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगाएक नजर से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी।

 

✺   ड्रिल :-  "नजर से निहाल करने की सेवा का अनुभव करना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि को एकाग्र कर भृकुटी... के मध्य में स्वयं को अनुभव करती हूं... आत्म पंछी उड़ान भरता है सूक्ष्म वतन की ओर जहां... ब्रह्मा बाबा और उनके मस्तक के बीचों बीच परम ज्योति बापदादा को देख मैं आत्मा अपनी सुधबुध भूल जाती हूँ...

 

 _ ➳  बाबा बड़े प्यार से मुझे देख रहे हैं... हाथ से पास आने का इशारा करते हैं... मैं तुरंत उनके पास पहुंच जाती हूं... पाती हूं अपने आपको बाबा की गोद में... बाबा बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराते हैं... और आशीर्वाद देते हैं... प्रसन्नचित आत्मा भव और दृष्टि दे रहे हैं... बाबा की नजर पड़ते ही मैं आत्मा... भूल जाती हूं सब कुछ... असीम शान्ति... आनन्द ही आनन्द... कैसा जादू है... बाबा की नजर से ही मैं आत्मा निहाल हो चली हूं खो चली हूं... इस परम आनंद... परम सुख में...

 

 _ ➳  मेरे अंदर से दुख... अशांति... सब भाप बन कर उड़ता जा रहा है... अपने अंदर प्रसन्नता का अनुभव होते ही... मेरी सबको देखने की नजर बदलती जा रही है... मेरी दृष्टि सबके लिए प्यार भरी... रहम भरी... कल्याणकारी होती जा रही है...

 

 _ ➳  सुख और आनंद... के झूले में झूलते हुए मैं एहसास करती हूं कि मुझे बाबा ने जो अनुभव कराया है... वैसा ही अनुभव मुझ आत्मा से विश्व की सर्व आत्माओं को हो रहा हैै... बाप समान बन किसी के प्रति भी घृणा भाव न रख उन्हें सुख और आनंद दे रही हूं... अपनी शुभ भावना की दृष्टि द्वारा उनका कल्याण कर रही हूं... शान्ति को खोजती आत्माओं के दिल की आस पूर्ण कर रही हूं...

 

 _ ➳  इन संकल्पों के उदय होने के साथ ही मैं अपने अंदर एक नई ऊर्जा... और प्रसन्नता... को पाती हूं और अपने इस सुंदर पावन स्वरूप के लिये... इस सेवा के लिए... बाबा को दिल से... धन्यवाद देती हूं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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