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 28 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ सबके प्रति प्रेम की दृष्टि रखी ?

 

➢➢ "अंत समय में कोई भी चीज़ याद न आये" - यह अभ्यास किया ?

 

➢➢ ब्राह्मण जीवन में श्रेष्ठ स्थिति रुपी मैडल प्राप्त किया ?

 

➢➢ देह अभिमान को मिटा सर्व परिस्थितियों को मिटाया ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  ज्वाला स्वरूप याद के लिए मन और बुद्धि दोनों को एक तो पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए। इससे बुद्धि की शक्ति वा कोई भी एनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जायेगी। जितनी जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी। इसके लिए अब संकल्पों का बिस्तर बन्द करते चलो अर्थात् समेटने की शक्ति धारण करो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं संगमयुगी हीरे तुल्य श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

✧  सभी अपने को संगमयुगी हीरे तुल्य श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? क्योंकि संगम पर इस समय हीरे तुल्य हो, सतयुग में सोने तुल्य बनेंगे। लेकिन इस समय सारे चक्र के अन्दर श्रेष्ठ आत्मा का पार्ट बजा रहे हो। तो हीरे समान जीवन अर्थात् इतनी अमूल्य जीवन बनी है? सबसे बड़ी मूल्यवान जीवन संगमयुग की है। 

 

✧  तो ऐसी स्मृति रहती है कि इतने श्रेष्ठ हैं? क्योंकि जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी। अगर स्मृति श्रेष्ठ है तो स्थिति साधारण नहीं हो सकती। अगर स्थिति साधारण है तो स्मृति भी साधारण है। तो सदा सर्वश्रेष्ठ मूल्यवान जीवन अनुभव करने वाली आत्मा हूँ-यह स्मृति में इमर्ज रहे। ऐसे नहीं कि मैं हूँ ही, मालूम है कि हम हीरे तुल्य हैं। लेकिन स्मृति में इमर्ज रूप में रहता है और उसी स्मृति से, उसी स्थिति से हर कार्य करते हो?

 

✧  क्योंकि हीरे तुल्य जीवन वा हीरे तुल्य स्थिति वाले का हर कर्म हीरे तुल्य होगा अर्थात् मूल्यवान होगा, ऊंचे ते ऊंचा होगा। तो हर कर्म ऐसे ऊंचा रहता है या कभी ऊंचा, कभी साधारण? क्योंकि सदा हीरे तुल्य हो। हीरा तो हीरा ही होता है, वह कभी सोना वा चांदी नहीं बनता। तो हर कर्म करते हुए चेक करो कि-हीरे तुल्य स्थिति है, चलते-चलते साधारणता तो नहीं आ गई? क्योंकि 63 जन्म का अभ्यास है साधारण रहने का। तो पिछला संस्कार कभी खींच लेता है। कमजोर को कोई खींच लेगा, बहादुर को कोई खींच नहीं सकता। बहादुर उसको भी चरणों में झुका देगा। तो कभी भी साधारण स्थिति नहीं हो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  आज बापदादा रूहानी ड्रिल करा रहे थे। एक सेकण्ड में संगठित रूप में एक ही वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हैं।

 

✧  नम्बरवार हरेक इन्डीविजुवल अपने-अपने पुरुषार्थ प्रमाण, महारथी अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल को परविर्तन करते रहते हैं। लेकिन विश्व परिवर्तन में सम्पूर्ण कार्य की समाप्ति में संगठित रूप की एक ही वृति और वायब्रेशन चाहिए।

 

✧  थोडी-सी महान आत्माओं के वा तीव्र पुरुषार्थी महारथी बच्चों की वृत्ति व वायब्रशन्स द्वारा कहीं-कहीं सफलता होती भी रहती है लेकिन अभी अंत में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की एक ही वृति की अंगुली चाहिए। एक ही संकल्प की अंगुली चाहिए तब ही बेहद का विश्व परिवर्तन होगा। वर्तमान समय विशेष अभ्यास इसी बात का चाहिए।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ जो बच्चे बाप की याद में रहने वाले हैं, वह विनाश में विनाश नहीं होंगे लेकिन स्वेच्छा से शरीर छोड़ेंगे, न कि विनाश के सरकमस्टान्सेज़ के बीच में छोड़ेंगे। इसके लिए एक बुद्धि की लाइन क्लियर हो और दूसरा अशरीरी बनने का अभ्यास बहुत हो। कोई भी बात हो तो आप अशरीरी हो जाओ। अपने आप शरीर छोड़ने का जब संकल्प होगा तो संकल्प किया और चले जायेंगे। इसके लिए बहुत समय से प्रैक्टिस चाहिए। जो बहुत समय के स्नेही और सहयोगी रहते हैं।उनको अन्त में मदद ज़रूर मिलती है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे स्थूल वस्त्र उतार रहे हैं। ऐसे ही शरीर छोड़ देंगे। सारा दिन में चलते-चलते बीच-बीच में अशरीरी बनने का अभ्यास ज़रूर करो। जैसे ट्रैफिक कण्ट्रोल का रिकार्ड बजता है तो वैसे वहाँ कार्य में रहते भी बीच-बीच में अपना प्रोग्राम आपे ही सेट करो तो लिंक जुटा रहेगा। इससे अभ्यास होता जाएगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- एक दो के साथ बड़े प्यार से रहना"

➳ _ ➳ इस विश्व धरा के वरदानी स्थल... मधुबन में तपस्या धाम में मीठे बाबा की यादो में खोयी खोयी सी हूँ... मै आत्मा मीठे बाबा की शक्तिशाली तरंगो को महसूस कर रही हूँ... और दिल की सच्ची पुकार ने बाबा को मेरे सम्मुख प्रकट कर दिया है... मीठे बाबा को कहती हूँ :- " बाबा मेरे जज्बातों को अपने दिल में समाकर आपने मुझ आत्मा कितना अमूल्य अनोखा बना दिया है... मनुष्य प्रेम में निस्तेज हो गयी मै आत्मा... आज ईश्वरीय दिल में धड़क रही हूँ...

❉ प्यारे बाबा आप समान प्यार का सागर बनाते हुए बोले :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्यार के सागर बाबा से मिलकर मा प्यार का सागर बन.., इस धरा पर प्रेम की तरंगो को फैलाओ... हर दिल को सच्चे प्यार का अहसास कराकर... ईश्वरीय यादो का सुख दिलाओ... श्रीमत को थाम कर बहुत ही स्नेह और मिठास भरी खुशबु विश्व में फैलाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से मिलकर प्रेम गंगा बन इस विश्व धरा पर बह रही हूँ और मीठे बाबा से कहती हूँ :- "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... आपने ही तो मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम का पर्याय बनाया है... आपके स्नेह तले मै आत्मा अथाह खुशियो में जीती जा रही हूँ... और सबको स्नेह से सींच रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को सुखो के अम्बार पर बैठाते हुए हीरो सा सजाते हुए बोले :- "मीठे लाडले बच्चे... आप महान भाग्यशाली आत्माओ ने भगवान को जाना है... और उसके प्यार में फल फूल रहे हो, जबकि सारी दुनिया सच्चे प्यार की बून्द मात्र को भी तरस रही है...ऐसे में ईश्वरीय प्यार की फुहार हर तपते मन पर डाल कर शीतल राहत दे आओ... प्रेम सुधा बनकर हर दिल को सिक्त कर आओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा ईश्वरीय पालना और प्रेम की अधिकारी बनकर मुस्करा कर मीठे बाबा से कह रही :- "मीठे मनमीत बाबा... आपने मुझ आत्मा को प्रेम की बदली बनाकर दुखो की तपिश पर बरसाया है... ईश्वरीय प्रेम की हर आत्मा प्यासी है, और मै आत्मा स्नेह की दौलत लुटाकर सबको असीम सुख दे रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी और मा प्यारसागर की नजरो से देखते हुए बोले :- "मीठे मीठे बच्चे... ईश्वरीय गोद में खिलकर जो गुणो की खुशबु से महके हो और ज्ञान रत्नों से लबालब हुए हो... यह अनोखी खुशनसीबी हर मन के आँगन में भी बिखेरते चलो... अपनी हर अदा, स्नेह भरी नजरो में ईश्वर पिता की झलक दिखाओ..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से बड़े प्यार से कहती हूँ :- "मीठे लाडले बाबा मेरे... आपने अथाह प्रेम देकर मुझ आत्मा को रोम रोम से तृप्त किया है... सच्चे स्नेह को देकर मेरी जनमो की प्यास बुझाई है... और आपसे पाया यही सुख में सब पर दिल खोल कर लुटा रही हूँ... और अपनी चलन से पिता का नाम बाला कर रही हूँ..." इन मीठे वादों और दिली जज्बातों की बयानगी मीठे बाबा से कर... मै आत्मा साकार वतन में आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  स्वदर्शन चक्रधारी होकर रहना है

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हम सो, सो हम इस शब्द के वास्तविक अर्थ का ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई भी मनुष्य आज तक बता नही सका। बड़े - बड़े वेद, ग्रंथ, और शास्त्र लिखने वालो ने तो हम सो, सो हम का अर्थ आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा बता कर, परमात्मा को ही सर्वव्यापी कह सारी दुनिया को ही अज्ञान अंधकार में डाल दिया। मन ही मन यह चिंतन करती अपने प्यारे प्रभु का मैं शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर इस सत्यता का बोध कराया और हम सो, सो हम का यथार्थ अर्थ बताकर हमे हमारे 84 जन्मो के सर्वश्रेष्ठ पार्ट की स्मृति दिलाई।

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अपने प्यारे पिता का मन ही मन धन्यवाद करके मैं हम सो, सो हम की स्मृति में जैसे ही स्थित होती हूँ, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र स्वत: ही फिरने लगता है और मेरे 84 जन्मो की कहानी भिन्न - भिन्न स्वरूपों में मेरी आँखों के आगे चित्रित होने लगती है। हम सो, सो हम अर्थात ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र, सो फिर से ब्राह्मण बनने के बीच का पूरा चक्र अब अलग - अलग स्वरूपों में बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ।

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स्वदर्शन चक्रधारी बन बुद्धि में अपने 84 जन्मो का चक्र फिराते हुए, सबसे पहले मैं देख रही हूँ अपना अनादि स्वरूप जो परमधाम में एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में मुझे दिखाई दे रहा है। सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से सम्पन्न, सम्पूर्ण सतोप्रधान, सच्चे सोने के समान चमकता हुआ मेरा यह सत्य स्वरूप मन को लुभा रहा है। अपने इस स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच गई हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में और अपने प्यारे पिता के सम्मुख बैठ अपने इस सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

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अपने इस अनादि स्वरूप में अपने अंदर निहित सातों गुणों और अष्ट शक्तियों का अनुभव करके मैं आत्मा तृप्त हो कर अब अपने आदि स्वरूप का अनुभव करने के लिए मन बुद्धि से पहुँच गई हूँ उस स्वर्णिम दुनिया में जहाँ अपरमअपार सुख, शांति और सम्पन्नता है। दुख का यहाँ कोई नाम निशान नही। ऐसी सुखों से भरी अति सुंदर, मन भावन दुनिया में अपने आपको अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई स्वरूप में मैं देख रही हूँ जो 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम है।

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सतोप्रधान प्रकृति के सुन्दर नज़ारो और स्वर्ग के सुखों का अनुभव करके अब मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ अपने पूज्य स्वरूप को जो पवित्रता की शक्ति से सम्पन्न है। अष्ट भुजाओं के रूप में अष्ट शक्तियों को धारण किये, अपने अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप में मैं मंदिर में विराजमान हूँ। असुरों का सँहार और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली असुर सँहारनी माँ दुर्गा के रूप में अपने भक्तो की मनोकामनाओं को मैं अपने वरदानी हस्तों से पूर्ण कर रही हूँ।

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अपने परमपवित्र पूज्य स्वरूप का अनुभव करके अब मैं अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम सौभागशाली ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ। परम पिता परमात्मा की देन अपने, डायमंड तुल्य ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों की स्मृति, परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव, स्वयं भगवान द्वारा प्राप्त सर्व सम्बन्धो का सुख, अतीन्द्रीय सुख के झूले में झूलने का सुखदाई अनुभव, आत्मा परमात्मा के मिलन से प्राप्त होने वाले परमआनन्द की अनुभूति, इन सभी प्राप्तियों का अनुभव करके मैं गहन आनन्द से भरपूर होकर अब अपने फ़रिश्ता स्वरूप को देखते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप को धारण कर रही हूँ।

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लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण कर, मैं फ़रिश्ता देह और देह की दुनिया से हर रिश्ता तोड़, इस नश्वर दुनिया को छोड़ कर अब फरिश्तो की आकारी दुनिया की ओर जा रहा हूँ। पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, उससे और ऊपर उड़ते हुए मैं फ़रिश्ता अपने अव्यक्त वतन में पहुँच गया हूँ। सफेद प्रकाश की इस दुनिया में अपने प्यारे बापदादा के पास जाकर उनसे मीठी दृष्टि और वरदान ले रहा हूँ। उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ। उनके साथ कम्बाइंड हो कर सारे विश्व को सकाश दे रहा हूँ। ऐसे अपने फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करके, अपने निराकार स्वरूप में स्थित होकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौटती हूँ।

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अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, इस सृष्टि रूपी कर्म भूमि पर कर्म करते, हम सो - सो हम की स्मृति से स्वदर्शन चक्र फिराते मन बुद्धि से अपने सभी स्वरूपों को देखते और उनका भरपूर आनन्द लेते हुए एक अलौकिक रूहानी नशे से अब मैं सदा भरपूर रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं ब्राह्मण जीवन मे श्रेष्ठ स्थिति रूपी मैडल प्राप्त करने वाली बेगमपुर की बादशाह हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं देह अभिमान को मिटा कर सर्व परिस्थितियां स्वतः मिटने का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   जब कोई विध्न आता है, तो विघ्न आते हुए यह भूल जाते हो कि बापदादा ने पहले से ही यह नॉलेज दे दी है कि लगन की परीक्षा में यह सब आयेंगे ही। जब पहले से ही मालूम है कि विघ्न आने ही हैं, फिर घबराने की क्या जरूरत?

 

_ ➳  विघ्नों के कारण का नहीं सोचो लेकिन बापदादा के यह महावाक्य याद रखो कि जितना आगे बढ़ेगे उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से परीक्षा लेने के लिए आयेगी और यह परीक्षा ही आगे बढ़ाने का साधन है न कि गिराने का। कारण सोचने के बजाए निवारण सोची, तो निर्विघ्न हो जायेंगे। क्यों आया? नहीं, लेकिन यह तो आना ही है-इस स्मृति में रहो तो समर्थी स्वरूप हो जायेंगे।

 

 ✺   "ड्रिल :-  परीक्षा को आगे बढ़ाने का साधन अनुभव करना"

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ चारों ओर दुनिया निराश, हताश, दुःखी है... कोई भी परिस्थिति आते ही घबराकर उसके कारण का निवारण न ढ़ूंढ़ एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे है... परमात्मा को ही नही छोड़ते उसे भी कोसने लगते हैं... कि मेरे साथ ही ऐसा क्यूं... भला बुरा कहने लगते है कि मैंने क्या बिगाड़ा आपका... मुझ आत्मा की खुशी व हिम्मत देखकर मुझसे पूछ रहे हैं आपको कौन मिला है जो हर परिस्थिति में सदा खुश रहते हो... मैं आत्मा मन ही मन उन्हें शुभ भावना शुभ कामना देती हूँ व कहती हूँ... उठो जागो स्वयं परमपिता परमात्मा इस धरा पर अवतरित हो चुके है... आओ अपने सच्चे परमपिता परमात्मा को व स्वयं को जानो... सच्चे परमपिता परमात्मा से मिलन मनाओ... सच्चे पिता का हाथ व साथ पाकर अपने जीवन की हर परीक्षा को खेल समझ व आगे बढ़ने का साधन अनुभव करो...

 

 _ ➳  मुझ ब्राह्मण आत्मा को स्वयं भगवान ने चुना है... प्यारे परमपिता परमात्मा ने सही राह दिखाई है... जिसका हाथ स्वयं ईश्वर ने पकड़ा है... ईश्वर ने सम्भाला है... मुझ आत्मा के जीवन की डोर स्वयं भगवान ने सम्भाली है... कोई भी परिस्थिति या पेपर आने पर स्वयं ही स्मृति आ जाती है कि मेरा साथी कौन है... स्वयं भगवान मेरा साथी है तो मुझ आत्मा का अकल्याण तो है ही नही सकता... इस ड्रामा के अंतिम सीन तक बाबा और मैं साथ साथ है... और साथ साथ ही रहेंगे... ज्ञानसागर मीठे बाबा ने नॉलेज देकर मुझ आत्मा को नॉलेजफुल बना दिया है... कि इस लगन में विघ्न तो बहुत आऐंगे ही पर विघ्नों से घबराने की जरुरत नही है... बस मैं आत्मा एक बल एक भरोसा से सदा आगे बढ़ती जा रही हूँ... हर पल हर कदम पर बाबा का साथ अनुभव कर रही हूं...

 

 _ ➳  विजय मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है... ईश्वर मेरा साथी है... हर परिस्थिति में हर पेपर में मैं आत्मा अनुभव करती हूं कि बाबा आप मेरे साथ खड़े हो... बाबा से निरंतर आती शक्तिशाली किरणों का जाल मेरे चारों ओर है... ये निश्चय मुझ आत्मा को हर पेपर में आगे बढ़ाता है... जैसे बच्चे का पेपर होता है तभी वो पास होकर अगली कक्षा में जाता है...  ऐसे ही माया भी अलग अलग रुप में आती है पेपर लेती है... मैं आत्मा बापदादा की हजार भुजाओं की छत्रछाया में रह अपने पेपर में पास होती आगे बढ़ रही हूँ... और परीक्षाओं को परिस्थितियों को साइड सीन समझ और आगे बढ़ने का साधन अनुभव कर रही हूं... निश्चय का फाउंडेशन पक्का कर रही हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्वयं पर, बाबा पर, ड्रामा पर निश्चय रख हर परिस्थिति में कल्याण छिपा है ऐसा निश्चय रख आगे बढ़ती जा रही हूँ... जितना आगे बढ़ेगे तो पेपर भी उतने ज्यादा आयेंगे... मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्मृति में रख पेपर को आगे बढ़ने का साधन अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा पेपर आने को गुडलक समझ रही हूँ... मैं आत्मा एक बाप की याद में रह अंगद समान अपनी स्थिति अचल अडोल रख हर पेपर को पार करती आगे बढ़ने का साधन अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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