━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 15 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ आत्माओं को अल्फ और बे की पडाई पड़ाई ?
➢➢ आवाज़ से पर शान्ति में जाने का अभ्यास किया ?
➢➢ प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की ?
➢➢ ज्ञान के अनुभवी बन दूसरों को अनुभवी बनाया ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ विश्व कल्याण करने के लिए आपकी वृत्ति, दृष्टि और स्थिति सदा बेहद की हो। वृत्ति में जरा भी किसी आत्मा के प्रति निगेटिव या व्यर्थ भावना नहीं हो। निगेटिव बात को परिवर्तन कराना, वह अलग चीज़ है। लेकिन जो स्वयं निगेटिव वृत्ति वाला होगा वह दूसरे के निगेटिव को पॉजेटिव में चेंज नहीं कर सकता।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ"
〰✧ माया को जीत लिया है? मायाजीत बन गये हो? कि अभी विजयी बनना है? माया का काम है खेल करना और आपका काम है खेल देखना। खेल में घबराना नहीं। घबराते हैं तो वह समझ जाती है कि ये घबरा तो गये हैं, अब लगाओ इसको अच्छी तरह से। माया भी तो जानने में होशियार है ना। कुछ भी हो जाये, घबराना नहीं। विजय हुई ही पड़ी है। इसको कहा जाता है सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि।
〰✧ पता नहीं क्या होगा, हार तो नहीं जाऊंगा, विजय होगी वा नहीं -ये नहीं। सदैव यह नशा रखो कि पाण्डव सेना की विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! कौरवों की होगी क्या? तो आप कौन हो? पाण्डवों की विजय तो निश्चित है ना। कोई भी बड़ी बात को छोटा बनाना या छोटी बात को बड़ी बनाना अपने हाथ में है। किसका स्वभाव होता है छोटी बात को बड़ा बनाने का और किसका स्वभाव होता है बड़ी बात को छोटा बनाने का। तो माया की कितनी भी बड़ी बात सामने आ जाये लेकिन आप उससे भी बड़े बन जाओ तो वह छोटी हो जायेगी। आप नीचे आ जायेंगे तो वह बड़ी दिखाई देगी और ऊपर चले जायेंगे तो छोटी दिखाई देगी।
〰✧ कितनी भी बड़ी परिस्थिति आये, आप ऊंची स्व-स्थिति में स्थित हो जाओ तो परिस्थिति छोटी-सी बात लगेगी और छोटी-सी बात पर विजय प्राप्त करना सहज हो जायेगा। निश्चय रखो कि अनेक बार के विजयी हैं। अभी कोई इस कल्प में विजयी नहीं बन रहे हैं, अनेक बार विजयी बने हैं। इसलिए कोई नई बात नहीं है, पुरानी बात है। लेकिन उस समय याद आये। ऐसे नहीं-टाइम बीत जाये, पीछे याद आये कि ये तो छोटी बात है, मैंने बड़ी क्यों बना दी। समय पर याद आवे की मैं कल्प-कल्प का विजयी हूँ।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ ये तो बाप-दादा ने सेवा के लिए समय दिया है। सेवाधारी का पार्ट बजा रहे हो। तो अपने को देखो यह शरीर का बन्धन तो नहीं है अथवा यह पुराना चोला टाइट तो नहीं है?
〰✧ टाइट ड्रेस तो पसन्द नहीं करते हो ना? ड्रेस टाइट होगी तो एवररेडी नहीं होंगे। बन्धन मुक्त अर्थात लूज ड्रेस, टाइट नहीं।
〰✧ आर्डर मिला और सेकण्ड में गया। ऐसे बन्धन-मुक्त, योग-युक्त बने हो? जब वायदा ही है ‘एक बाप दूसरा न कोई तो बन्धन मुक्त हो गये ना।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ लौकिक में जब वृद्धि होती है तो एक-एक बिन्दी लगाते जाते हैं। आपको भी बिन्दी लगाना है। मैं भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी। बड़े ते बड़े व्यापारी हो लेकिन लगाना है बिन्दी। सारे दिन में कितनी बिन्दी लगाते हो? जब क्वेश्चन होता है तो बिन्दी मिट जाती है। बिन्दी के बिना क्वेचन भी हल नहीं होता। मैं भी बिन्दी, बाबा भी बिन्दी। इसके लिए यह भी कोई नहीं कह सकता कि समय नहीं है। सेकण्ड की बात है। तो जितने सेकण्ड मिलें बिन्दी लगाओ फिर रात को गिनो कितनी बिन्दी लगाई! किसी बात को सोचो नहीं, जो बात ज्यादा सोचते हो वो ज्यादा बढ़ती है। सब सोच छोड़ एक बाप को याद करो, यही दुआ हो जायेगी।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- कभी भी मुरली मिस नहीं करनी"
➳ _ ➳ ईश्वर शिक्षक के जीवन में आने से... खुशियो में खिले,अपने जीवन में,
दिव्य गुणो की सुगन्ध का, आनन्द लेते हुए मै आत्मा... सोचती हूँ कि, देहभान की
डाली पर बेठी हुई मै आत्मा... अहंकार और विकारो की मूर्खता से भरी हुई... कैसे
अपनी सांसो की डाली को, कालिदास जैसा काट रही थी... कि प्यारे बाबा ने मुझे
आसमाँ से निहार कर... मेरे कल्याण के लिए धरती पर पग धरे... अपनी अमूल्य
शिक्षाओ को देकर, मुझे महान बनाया... ज्ञान सरस्वती को मेरे मन बुद्धि रुपी मुख
में बिठाया... और मुझे दिव्यता और पवित्रता से सजाकर, कितना प्यारा और महान
बना दिया है... कभी अपनी ही जड़ो को काटने वाली मै आत्मा... आज सृस्टि कल्प
व्रक्ष की जड़ो में तपस्या में लीन हूँ... और मेरा भविष्य नवाबो सा सजा धजा
है... यही मीठी गुफ्तगू प्यारे बाबा को सुनाने मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे
में पहुंचती हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी ज्ञान सम्पत्ति को देते हुए कहा :-
"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को टीचर रूप में पाने वाले, और उनकी
सारी ज्ञान सम्पदा से सजने वाले, महान भाग्यशाली हो... अपने इस महान भाग्य के
नशे में सदा झूलते ही रहो... एक दिन भी यह अमूल्य पढ़ाई मिस न करो... यह पढ़ाई
ही सारे सच्चे सुखो का आधार है... यह सच्ची पढ़ाई ही सतयुग में नवाब पद
दिलायेगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा से सतयुगी नवाब सजते हुए कहती हूँ :- "मीठे मीठे
बाबा मेरे... मै आत्मा देह के भान में कितनी गरीब, कितनी मायूस थी,.. सदा
खुशियो को तरसती, दूसरो में खोजती रही... आपने प्यारे बाबा मुझे ज्ञान धन से
मालामाल कर, राजरानी सा सजाया है... मेरे ही भीतर ख़ुशी का अनवरत झरना दिखाया
है... मै आत्मा अब आपके मीठे प्यार में सतोगुणी बनकर... सतयुगी नवाब बन रही
हूँ...
❉ प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी जागीरे, दौलत मुझे सुपुर्द करते हुए
कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा से ज्ञान रत्नों की सारी
सम्पत्ति को लेकर... 21 जनमो तक स्वर्ग का राज्य भाग्य पाओ... सदा गॉडली
स्टूडेंट बनकर, ज्ञान रत्नों संग रमण करते रहो... यही ज्ञान रत्न, असीम सुखो
में बदलकर, विश्व का मालिक सजायेंगे... परमधाम से ईश्वर, शिक्षक बनकर,पढ़ाने
आया है तो... यह पढ़ाई एक दिन भी मिस नही करनी है..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से अतुलनीय धन को दिल में समेटते हुए कहती हूँ :-
"मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन को... सदा के लिए सुखो में आबाद
किया है... दिव्य गुणो शक्तियो और पवित्रता से सजाकर, मुझे देवताई रूप दिया
है... मै आत्मा दुखो की गरीबी से निकलकर... सुखो की अमीरी से भर रही हूँ...
मुझे देवता बनाने वाली, बेशकीमती पढ़ाई को एक दिन भी मिस नही करती हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी खानों और खजानो का मालिक बनाते हुए कहा
:- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता अपनी सारी दौलत, अमीरी,अथाह
खजाने सब आप बच्चों के लिये ही लाया है... सारी खानों पर अपना अधिकार जमा लो...
सारे सुख अपनी बाँहों में सजा लो... भगवान से सब कुछ प्राप्त कर... देवताओ की
खुबसूरत दुनिया में नवाब बनकर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के इस कदर उपकारों में अभिभूत होकर कहती हूँ :-
"मेरे प्यारे दुलारे बाबा... मै आत्मा ईश्वर टीचर से पढ़ने वाली महान भाग्यशाली
गॉडली स्टूडेंट हूँ... हर पल, हर साँस, ज्ञान रत्नों से खेलकर सदा के लिए अमीर
बन रही हूँ... ईश्वरीय शिक्षाओ ने मेरे जीवन को खुबसूरत आयाम दिए है... श्रीमत
ने जीवन को खुशहाल और सुखी बनाया है... और पवित्रता ने मेरा खोया गौरव पुनः
दिलवाया है... "मीठे बाबा से कभी पढ़ाई मिस नही करने का वादा करके मै आत्मा
साकारी तन में आ गयी...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- अल्फ और बे की पढ़ाई पढ़ानी है"
➳ _ ➳ मनमनाभव के महामन्त्र को स्मृति में लाकर अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप
में मैं जैसे ही स्थित होती हूँ मुझे अपनी ईश्वरीय पढ़ाई, पढ़ाने वाले अल्फ
अर्थात अपने परम शिक्षक शिव बाबा और बे अर्थात इस मोस्ट वैल्युबुल पढ़ाई से
मिलने वाली सतयुग की बादशाही भी स्वत: ही स्मृति में आने लगती है। मन मे विचार
चलता है कि लौकिक रीति से विद्यार्थी अल्प काल के उंच विनाशी पद को पाने के लिए
कितनी मुश्किल पढ़ाई पड़ते हैं। कैसे रात - दिन एक कर देते है। सिवाय पढ़ाई के
उन्हें और कुछ सूझता नही। कितनी मेहनत करते है किंतु फिर भी प्राप्ति अल्प काल
के लिए ही होती है।
➳ _ ➳ यहाँ तो अल्फ और बे को याद करने की कितनी सिम्पल पढ़ाई है और प्राप्ति
जन्म - जन्म की है। मन ही मन मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ
कि "वाह रे मैं खुशनसीब आत्मा" जो स्वयं भगवान शिक्षक बन मुझे इतनी सिम्पल पढ़ाई
पढ़ा कर जन्म जन्मान्तर के लिए मेरा भाग्य बनाने आये हैं। ऐसे भगवान बाप, टीचर,
सतगुरु पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए। मन में यह संकल्प आते ही अपने परम
शिक्षक को मिलने के लिए मन बेचैन हो उठता है।
➳ _ ➳ अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं चल पड़ती हूँ अपने परम शिक्षक
शिव बाबा के पास उनसे ज्ञान के अथाह खजाने लेने ताकि स्वयं को भरपूर कर, इस
ईश्वरीय पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ कर औरों को भी पढ़ा सकूँ। अति तीव्र वेग से उड़ता
हुआ मैं फ़रिशता सेकण्ड में साकारी दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक में प्रवेश
करता हूँ। अपने सामने अपने परम शिक्षक शिव बाबा को ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में
मैं स्पष्ट देख रही हूँ। बापदादा बड़े प्यार से मन्द - मन्द मुस्कराते हुए अपने
नयनो से मुझे निहार रहे हैं। बाबा की भृकुटि से बहुत तेज प्रकाश निकल कर सीधा
मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रहा है। यह प्रकाश स्नेह की मजबूत डोर बन कर मुझे अपनी और
खींच रहा है।
➳ _ ➳ बाबा के स्नेह की डोर से बंधा मैं फ़रिशता अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में
स्थित हो कर बाबा के सामने जा कर बैठ जाता हूँ। बाबा ज्ञान के अथाह खजाने मुझ
पर लुटा रहें हैं। मेरी बुद्धि रूपी झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर
रहें हैं। अल्फ और बे को याद करने की अति सिम्पल पढ़ाई पढ़ा कर अपना वरदानी हाथ
मेरे सिर पर रख कर, बाबा मुझे इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ने और दूसरों को पढ़ाने
का वरदान दे रहें हैं।
➳ _ ➳ ज्ञान के अखुट खजानों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरपूर करके, अपने
फ़रिशता स्वरूप को सूक्ष्म लोक में छोड़, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में
स्थित हो कर अब मैं आत्मा ज्ञान सूर्य शिव बाबा के पास उनके धाम पहुँच जाती
हूँ और जा कर अपने परमशिक्षक ज्ञानसूर्य शिव बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों
की छत्रछाया में बैठ जाती हूँ। ज्ञान की अनन्त किरणों से स्वयं को भरपूर करके
मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ और जा कर अपने ब्राह्मण
स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अब मैं अल्फ और बे को
याद करने की इस अति सिम्पल पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ने और औरों को पढ़ाने की सेवा
में लगी रहती हूँ। हर रोज अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर,
वरदानीमूर्त बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से
ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी अल्फ और बे को याद करने की यह सिम्पल पढ़ाई
पढ़ने और उंच प्रालब्ध बनाने के लिए प्रेरित करती रहती हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाली पुरुषोत्तम आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं ज्ञान के अर्थ अनुसार अनुभव करने और दूसरों को अनुभवी बनाने वाली ज्ञानी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कर्म बन्धन से मुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए कर्मयोगी बनो:- सदा हर कर्म करते, कर्म के बन्धनों से न्यारे और बाप के प्यारे - ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अपने को अनुभव करते हो? कर्मयोगी बन, कर्म करने वाले कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं आते हैं, वे सदा बन्धनमुक्त-योगयुक्त होते। कर्मयोगी कभी अच्छे वा बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति के प्रभाव में नहीं आते। ऐसा नहीं कि कोई अच्छा कर्म करने वाला कनेक्शन में आये तो उसकी खुशी में आ जाओ और कोई अच्छा कर्म न करने वाला सम्बन्ध में आये तो गुस्से में आ जाओ - या उसके प्रति ईर्ष्या वा घृणा पैदा हो। यह भी कर्मबन्धन है। कर्मयोगी के आगे कोई कैसा भी आ जाए - स्वयं सदा न्यारा और प्यारा रहेगा। नॉलेज द्वारा जानेगा, इसका यह पार्ट चल रहा है। घृणा वाले से स्वयं भी घृणा कर ले यह हुआ कर्म का बन्धन। ऐसा कर्म के बन्धन में आने वाला एकरस नहीं रह सकता। कभी किसी रस में होगा कभी किसी रस में। इसलिए अच्छे को अच्छा समझकर साक्षी होकर देखो और बुरे को रहमदिल बन रहम की निगाह से परिवर्तन करने की शुभ भावना से साक्षी हो देखो। इसको कहा जाता है - ‘कर्मबन्धन से न्यारे'।
➳ _ ➳ क्योंकि ज्ञान का अर्थ है समझ। तो समझ किस बात की? कर्म के बन्धनों से मुक्त होने की समझ को ही ज्ञान कहा जाता है। ज्ञानी कभी भी बन्धनों के वश नहीं होंगे। सदा न्यारे। ऐसे नहीं कभी न्यारे बन जाओ तो कभी थोड़ा सा सेक आ जाए। सदा विककर्माजीत बनने का लक्ष्य रखो। कर्मबन्धन जीत बनना है। यह बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल की प्रालब्ध के निमित्त बनायेगा। और अभी भी बहुत विचित्र अनुभव करेंगे। तो सदा के न्यारे और सदा के प्यारे बनो। यही बाप समान कर्मबन्धन से मुक्त स्थिति है।
✺ "ड्रिल :- कर्म बंधनों से मुक्त रहना।"
➳ _ ➳ इस हलचल भरी सृष्टि पर मैं आत्मा कुछ आत्माओं के बीच बैठकर अपनी बुद्धि से शांतिधाम में स्थित हूं और शांतिधाम की गहन शांति को अपने अंदर अनुभव कर रही हूं.... जैसे-जैसे मैं इस शांति को अपने अंदर फील करती हूं वैसे वैसे मैं अपने आप को बहुत ही हल्का अनुभव करती हूँ... और शांति धाम में उस लाल सुनहरे प्रकाश में मैं अपने साथ अनेक आत्माओं को भी देखती हूं जो शांति स्वरूप स्थिति में बैठकर अपना प्रकाश उस स्थान पर फैला रही है... और कुछ देर बाद में देखती हूं कि उस स्थान पर मेरे परम पिता परमात्मा ज्योति स्वरूप में विराजमान है और उनसे अनेक रंग बिरंगी किरणे निकल रही है जिसे देख कर मेरा मन अति आनंदित हो रहा है... परमात्मा की शीतल किरणें जैसे जैसे मुझ पर गिरने लगती है मैं बहुत ही आनंदित अवस्था को महसूस करती हूं...
➳ _ ➳ इसी शांति स्वरूप स्थिति में मैं धीरे-धीरे अपनी कर्मभूमि पर आती हूं और अपने आप पर शांतिधाम से आती हुई किरणों को अनुभव करती हूं... जिसके कारण मैं उस हलचल भरी दुनिया से अपने आप को दूर रख पाती हूं और यहां के तेज भागते हुए संकल्पों से अपने आप को डिटेच अनुभव करती हूँ... जैसे जैसे मैं अपने इस स्थिति में स्थित होती हूँ वैसे ही वहां बैठी अन्य आत्माओं को मेरी स्थिति का अनुभव होता है और सभी आत्माएं व्याकुल होते हुए अपनी इस व्याकुलता भरे प्रश्न से मुझे अवगत कराते हुए इसका उत्तर जानने का प्रयास करते हैं... और मुझसे कहती हैं... यहां पर इस हलचल भरी दुनिया में रहते हुए भी तुम इस आनंदित भरी स्थिति का कैसे अनुभव कर पाती हो... क्या तुम्हें यहां की हलचल अपने वश में नहीं करती... तुम्हें यहां की गतिविधियां हलचल में नहीं लाती... जैसे ही यह आत्माएं मुझसे यह पूछती है तो मैं परमात्मा का धन्यवाद करती हूं और उनकी व्याकुलता को समझते हुए उनके सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उन्हें कहती हूं... हे आत्माओं अगर हमें इस हलचल भरी दुनिया से अपने आप को शांति भरी दुनिया में अनुभव करना है तो तुम्हें एक दृश्य को समझना होगा... इस दृश्य को देखकर तुम सहज ही अनुभव कर पाओगी कि मैं इस स्थिति का कैसे अनुभव कर पा रही हूं...
➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं उन आत्माओं को ज्योति स्वरुप में ही अपने साथ एक ऐसे स्थान पर ले जाती हूं जहां पर उन्हें अपने सभी प्रश्नों का उत्तर बड़ी ही सरलता से मिल सके... और हम अपना प्रकाश फैलाते हुए एक ऐसे स्थान पर आकर विराजमान हो जाते हैं जहां से हमें कमल कीचड़ में खिलता हुआ साफ साफ नजर आ रहा है... मैं उन आत्माओं से कहती हूं... हे आत्माओं अब आप इस दृश्य को बहुत ही गहराई से देखिए और समझिए... वह आत्माएं एकाग्रचित होकर उस दृश्य को देखती है और मेरे द्वारा कही हुई बातों को ध्यान से सुनने लगती है... मैं उन्हें कहती हूं कि इस कमल को देखिए यह सिर्फ कीचड़ में खिलता है परंतु कीचड़ में रहते हुए भी अपने आप को कीचड़ को छूने भी नहीं देता कीचड़ इसे छू भी नहीं पाती है... अगर यह कीचड़ में खिलकर कीचड़ में ही लिपट जाए तो इसे कोई भी मनुष्य देखेगा भी नहीं... क्योंकि कीचड़ के कारण इसकी सुंदरता और पवित्रता नष्ट हो जाएगी इसलिए यह कमल अपनी ऊंची स्थिति के लिए अपने आप को कीचड़ में रखते हुए भी इससे दूर अनुभव करता है... इसके इसी गुण के कारण सभी मनुष्य इसकी सुंदरता और पवित्रता को गहराई से अनुभव करते हैं...
➳ _ ➳ मेरी इतनी बात सुनकर वह सभी आत्माएं संतुष्ट हो जाती है... और उसी समय यह कहती है कि इस कमल की तरह आज से हम भी इस मायावी दुनिया के कर्म बंधनों से अपने आप को दूर रखेंगे... और कहती हैं कि हम जब भी कोई भी कर्म करेंगे और हमारे सामने कैसे भी संकल्पों वाली आत्माएं आये तो हमें उनके संकल्पों से कोई असर नहीं पड़ेगा और ना ही हम अपनी स्थिति को हलचल में आने देंगे... ऐसा करने पर ही हम हमारी ऊंची इस स्थिति को सहज ही अनुभव कर पाएंगे और प्रभु के प्यारे बन पाएंगे... इतना कहकर वह सभी आत्माएं वहां से मेरे साथ प्रस्थान करने लगती है... और उसी समय से अपने आप को शांतिधाम में अनुभव करती हैं... रास्ते में चलते समय कई बार ऐसी परिस्थिति आई जिसके कारण हमारी स्थिति में हलचल आ सकती थी... परंतु हमने अपने आपको परमात्म प्यार में अनुभव किया और कर्मयोगी स्थिति का अनुसरण किया... जिससे हमारी स्थिति बनी रहे और हम चलते चलते वापिस अपने इस देह में विराजमान हो जाते हैं...
➳ _ ➳ और हमारा यह छोटा सा समूह इस दुनिया में रहते हुए भी बहुत ही गहन शांति का अनुभव करती है... जिसे देखकर अन्य आत्माएं बहुत ही आकर्षित और खुश होती हैं और हम सभी अब अन्य आत्माओं के किसी भी कर्म को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते और ना ही उनके कोई भी संकल्प हमारी स्थिति को हलचल में ला सकते हैं... अब हम केवल इस स्थिति का अनुभव करते हैं जैसे कि एक व्यक्ति फांसी पर लटका हुआ हो अर्थात हमारा यह देह इस संसार में दिखाई देगा कर्मयोगी के रूप में और हम मन बुद्धि से शांतिधाम में अपने परमपिता परमात्मा के साथ अपने आप को अनुभव करते हैं... इन्हीं विचारों के साथ और इन्हीं संकल्पों के साथ हम वापस अपने इस देह में रहते हुए अपने आप को शांतिधाम में परमात्मा के साथ अनुभव करते हैं...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━