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❍ 01 / 07 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ किसी की निंदा तो नहीं की ?
➢➢ फायदा, नुक्सान और इज्ज़त को ध्यान में रखते हुए क्रिमिनल आई को ख़तम किया ?
➢➢ निश्चय और नशे के आधार से हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त की ?
➢➢ निमित बन यथार्थ पार्ट बजा सर्व के सहयोग की मदद प्राप्त की ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अब अपनी उड़ती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाओ और जिसको शान्ति चाहिए, खुशी चाहिए, सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में उन्हें अनुभूति कराओ। वह अनुभव करें कि इन फरिश्तों द्वारा शान्ति, शक्ति, खुशी मिल गई।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाली विश्व-परिवर्तक आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाली विश्व-परिवर्तक आत्माएं हो ना। इस ब्राह्मण जीवन का विशेष आक्यूपेशन क्या है? अपनी वृत्ति से, वाणी से और कर्म से विश्व-परिवर्तन करना। तो सभी ऐसी सेवा करते हो? या टाइम नहीं मिलता है? वाणी के लिए समय नहीं है तो वृत्ति से, मन्सा-सेवा से परिवर्तन करने का समय तो है ना। सेवाधारी आत्माएं सेवा के बिना रह नहीं सकती। ब्राह्मण जन्म है ही सेवा के लिए। और जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना ही सहज मायाजीत बनेंगे। तो सेवा का फल भी मिल जाये और मायाजीत भी सहज बन जायें-डबल फायदा है ना।
〰✧ जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ। सेवा के सिवाए समय गँवाना नहीं है। निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बनो-चाहे संकल्प से करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से। अपने सम्पर्क से भी सेवा कर सकते हो। चलो, मन्सा-सेवा करना नहीं आवे लेकिन अपने सम्पर्क से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हो। यह तो सहज है ना। तो चेक करो कि सदा सेवाधारी हैं वा कभी-कभी के सेवाधारी हैं? अगर कभी-कभी के सेवाधारी होंगे तो राज्य-भाग्य भी कभी-कभी मिलेगा।
〰✧ इस समय की सेवा भविष्य प्राप्ति का आधार है। कभी भी कोई यह बहाना नहीं दे सकते कि चाहते थे लेकिन समय नहीं है। कोई कहते हैं-शरीर नहीं चलता है, टांगें नहीं चलती हैं, क्या करें? कोई कहती हैं-कमर नहीं चलती, कोई कहती हैं-टांगे नहीं चलती। लेकिन बुद्धि तो चलती है ना! तो बुद्धि द्वारा सेवा करो। आराम से पलंग पर बैठकर सेवा करो। अगर कमर टेढ़ी है तो लेट जाओ लेकिन सेवा में बिजी रहो। बिजी रहना ही सहज पुरुषार्थ है। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बार-बार माया आवे और भगाओ-तो मेहनत होती है, युद्ध होती है। बिजी रहने वाले युद्ध से छूट जाते हैं। बिजी रहेंगे तो माया की हिम्मत नहीं होगी आने की और जितना अपने को बिजी रखेंगे उतना ही आपकी वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होता रहेगा।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ जैसे साइन्स के साधन एरोप्लेन जब उडते हैं तो पहले चेकिंग होती है फिर माल भरना होता है। जो भी उसमें चाहिए - जैसे पेट्रोल चाहिए, हवा चाहिए, खाना चाहिए, जो भी चाहिए, उसके बाद धरती को छोडना होता है फिर उडना होता है। ब्राह्मण आत्मा रूपी विमान भी अपने स्थान पर तो आ ही गये। लेकिन जो डायरेक्शन था अथवा है एक सेकण्ड में उडने का, उसमें कोई चेकिंग करने में रह गये। मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं हूँ - इसी चेकिंग में रह गये और कोई ज्ञान के मनन द्वारा स्वयं को शक्तियों से सम्पन्न बनाने में रह गये।
〰✧ मैं मास्टर ज्ञान स्वरूप हूँ मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ - इस शुद्ध संकल्प तक रहे, लेकिन स्वरूप नहीं बन पाये। तो दूसरी स्टेज भरने तक रह गये और कोई भरने में बिजी होने के कारण उडने से रह गये। क्योंकि शुद्ध संकल्प में तो रमण कर रहे थे लेकिन यह देह रूपी धरती को छोड नहीं सकते थे। अशरीरी स्टेज पर स्थित नहीं हो पाते थे। बहुत चुने हुए थोडे से बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेकण्ड में उडकर सूक्ष्मवतन या मूलवतन में पहुँचे।
〰✧ जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते हैं, तो जैेसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य हैं वैसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण आत्मायें अर्थात महान आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं। स्वतन्त्र हो। तीनों लोकों के मालिक हो। इस समय त्रिलोकीनाथ हो। तो नाथ अपने स्थान पर जब चाहें तब जा सकते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ याद में निरन्तर रहने का सहज साधन है - 'प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना'। पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। ऐसे आत्मिक रूप में रहने वाला सदा न्यारा और बाप का प्यारा होगा। कुछ भी करेगा लेकिन ऐसे महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। खेल में मज़ा आता है ना, इसलिए सहज लगता है। तो प्रवृत्ति में रहते खेल कर रहे हो, बन्धन में नहीं। स्नेह और सहज योग के साथ-साथ शक्ति की और एडीशन करो तो तीनों के बैलेन्स से हाईजम्प लगा लेंगे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- दैवी कैरेक्टर्स धारण करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची
सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों
को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका
में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की
बुझी ज्योति को जगाया... दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को
शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे
बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...
❉ प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-
"मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे
बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... यह यादे ही आनन्द का
दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में
उतार लाएंगी..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:- "हाँ मेरे
मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से
सज कर निखरती जा रही हूँ... साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही
हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."
❉ मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए
कहते हैं:- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में
गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो
जाओ... दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से
अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:- "मेरे
प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... यह रोम
रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर
ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ... और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."
❉ मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:- "प्यारे
सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो
के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः
ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही
स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:- "हाँ
मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की
शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ... और विकारो से मुक्त होकर
अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
"ड्रिल :- देही अभिमानी बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है"
➳ _ ➳ देह के भान से मुक्त,
देही अभिमानी स्थिति में स्थित होते ही मुझे मेरे सत्य स्वरूप का अनुभव
हो रहा है। मेरा सत्य स्वरूप अति सुंदर,
अति प्यारा है। अपने इस सत्य स्वरूप को अब मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों
से स्पष्ट देख रही हूँ। एक ज्योति जो इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि पर
विराजमान हो कर जगमग कर रही है। इस ज्योति से निकल रहे प्रकाश को मैं अपने
चारों ओर महसूस कर रही हूँ। प्रकाश का एक सुंदर औरा मेरे चारों और निर्मित हो
रहा है। इस प्रकाश से निर्मित औरे में मुझ आत्मा के सातों गुण समाये हैं जिससे
मुझे शांति,
प्रेम,
सुख,
पवित्रता,
शक्ति,
ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति हो रही है।
➳ _ ➳ देही अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर,
अपने वास्तविक गुणों की गहन अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता
परमात्मा के साथ जोड़ रही है। मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले
मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है। मैं अनुभव कर रही हूँ गुणों के सागर
शिव पिता से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों को स्वयं पर पड़ते हुए।
➳ _ ➳ शिव पिता परमात्मा से आ रही सर्व गुणों की शक्तिशाली किरणों के
मुझ आत्मा पर पड़ने से मेरे चारों और निर्मित प्रकाश का औरा भी धीरे - धीरे बढ़ने
लगा है। प्रकाश के इस औरे के बढ़ने के साथ साथ इसमें समाये सातों गुण भी
वायब्रेशन के रूप में चारों और फैलने लगे है। दूर - दूर तक ये वायब्रेशन फैल
रहें हैं और शक्तिशाली वायुमण्डल निर्मित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सर्व गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और फैलाते हुए अब मैं
जागती ज्योति इस शरीर रूपी मन्दिर से बाहर निकल कर गुणों के सागर अपने शिव पिता
परमात्मा के पास जा रही हूँ। एक प्वाइंट ऑफ लाइट,
मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी
ऊपर की ओर जा रही हूँ। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को लाल प्रकाश की एक अति
सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं। मेरे
बिल्कुल सामने है महाज्योति शिव बाबा जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर
पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।
➳ _ ➳ जैसे शमा की लौ परवाने को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं ऐसे ही मेरे
शिव पिता से आ रही शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है
और मैं आत्मा परवाना बन शिव शमा के पास जा रही हूँ। धीरे - धीरे मैं बाबा के
अति पास पहुंच कर बाबा को टच कर रही हूँ। बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त
गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा
है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा
के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी
दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान
हूँ। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आ कर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ किन्तु
अब मैं हर कर्म करते देही अभिमानी स्थिति में स्थित हूँ। इस देह से जुड़े अपने
हर सम्बन्धी को भी अब मैं देह नही देही रूप में देख रही हूँ। सभी को शिव पिता
की अजर,
अमर,अविनाशी
सन्तान के रूप में देखते हुए निस्वार्थ भाव से सभी को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर
उन्हें सन्तुष्ट कर रही हूँ। देह अभिमान के अवगुण को निकाल देही अभिमानी बन
सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखते हुए उन्हें भी देही अभिमानी स्थिति का
अनुभव करवा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं निश्चय और नशे के आधार से हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त करने वाली सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं निमित्त बन यथार्थ पार्ट बजाकर सर्व के सहयोग की मदद प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा-:
➳ _ ➳ कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो। लवलीन आत्मा कर्म करते भी न्यारी रहेगी। कर्मयोगी अर्थात् याद में रहते हुए कर्म करने वाला सदा कर्मबन्धन मुक्त रहता है। ऐसे अनुभव होगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे हैं। किसी भी प्रकार का बोझ वा थकावट महसूस नहीं होगी। तो कर्मयोगी अर्थात् कर्म को खेल की रीति से न्यारे होकर करने वाला। ऐसे न्यारे बच्चे कर्मेंन्द्रियों द्वारा कार्य करते बाप के प्यार में लवलीन रहने के कारण बन्धनमुक्त बन जाते हैं।
✺ "ड्रिल :- याद में रह हर कर्म करते हुए कर्म को एक खेल बनाना"
➳ _ ➳. दूर एकांत स्थान पर बैठकर मैं आत्मा एक ऐसी आत्मा को देखती हूं... जो अपने सिर पर एक भारी सी गठरी लिए हुए चल रही है... वह अपने शरीर से और उस गठरी से अपने आपको इतना थका हुआ अनुभव कर रही है कि वह एक कदम भी सही तरह चल नहीं पा रही है... उसे देख कर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह बहुत ही थकान से भरी हुई है... और एक तरफ मैं देखती हूं कि एक आत्मा अपने आनंद से चली जा रही है वह बहुत ही तेजी से और अपने ही धुन में चली जा रही है... जब मैं दूर बैठी उन दोनों आत्माओं को ध्यान से देखती हूं तो मुझे दोनों ही आत्माओं में अलग-अलग भाव दिखाई देता है...
➳ _ ➳ मैं उन आत्माओं के पास जाती हूं और जिस आत्मा ने अपने ऊपर एक भारी गठरी रखी हुई थी उससे पूछती हूं ? तुम इतनी थकान में और इस गठरी के बोझ से प्रभावित होकर कहां जा रही हो? तो वह आत्मा कहती है कि मैं अपने कर्म-क्षेत्र पर अपना कर्म कर रही हूं जिससे मुझे थकान का अनुभव हो रहा है... मेरे कर्तव्य का बोझ और सेवा का बोझ मुझ पर इतना हो गया है कि मैं चल भी नहीं पा रही हूं और कहती हूँ परंतु मैं कितना भी थकान का अनुभव करूँ मुझे चलते जाना है... मुझे सेवा करते रहनी है और मैं उस आत्मा को उसी स्थान पर रुकने के लिए कहती हूं और वह आत्मा अपने गठरी को नीचे रखती है और बैठ जाती है...
➳ _ ➳ और मैं दूसरी आत्मा को जो मगन अवस्था में तेजी से चल रही थी उसे अपने पास बुलाती हूँ और पूछती हूं... तुम इतनी तेजी से और मगन अवस्था में कहां जा रहे हो ? तो वह आत्मा मुझे कहती है कि मैं परमात्मा की याद में अपना कर्तव्य और सेवा करती हुई जा रही हूं... फिर मैं उन दोनों आत्माओं को एक स्थान पर बैठा कर उनका अनुभव सुनकर उन्हें एहसास दिलाती हूं कि अगर हम किसी भी सेवा को परमात्मा की याद में रहकर करते हैं तो हमें उस सेवा को करते समय कोई भी थकावट नहीं होगी... वह सेवा कब पूरी हो जाएगी हमें एहसास भी नहीं होगा और वह सेवा हम खेल खेल में ही पूर्ण कर देंगे...
➳ _ ➳ इतना कहकर मैं आत्मा रॉकेट बनकर अंतरिक्ष में पहुंच जाती हूं... जहां पर एक ग्रह के ऊपर मैं बाबा को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... यह नजारा देख कर मेरी आंखें बहुत ही सुख का अनुभव कर रही है... और बाबा मुझे कह रहे हैं, बच्चे तुम्हे भी हर कर्म को परमात्मा की याद मे रहकर ही करना चाहिए... और हर कर्म को खेल समझकर करना चाहिए... जिससे तुम कब, कितना काम कर जाओगे तुम्हे अहसास भी नहीं होगा... और साथ ही उन दोनों आत्माओं का उदाहरण भी देते हैं कि अगर हम हमारा सारा बोझ परमात्मा को दे देते हैं तो हमें उसकी याद में थकावट का अनुभव नहीं होगा...
➳ _ ➳ और बाबा की बातों को सुनकर मैं बाबा का धन्यवाद करती हूँ... और मन बुद्धि से रॉकेट में बैठकर वापिस मैं उसी स्थान पर आ जाती हूँ और उन दोनों आत्माओं को कहती हूँ... जो आत्मा गठरी उठाये थी उसे कहती हूँ, आप इस अपनी गठरी को एक खेल की प्रक्रिया समझते हुए उठाये और बाबा की याद में रहिये... जैसे आप समझो की इस पोटली में बाबा के दिए हुए अनमोल खजाने है... जिसको स्वयं बाबा उठा रहे हैं आप तो सिर्फ निमित्त मात्र है... और साथ ही मैने कहा कि तुम इस खजानों की पोटली को लेकर भागते हुए ये अनुभव करो की तुम्हें पुरुषार्थ की दौड़ में इन खजानों से नंबर वन आना है... वह आत्मा फिर तेजी से और याद में मगन होकर चलने लगती है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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