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❍ 31 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ स्वयं को सर्व बन्धनों से मुक्त कर हल्का बनाया ?
➢➢ ड्रामा में बुधी को रख किसी भी पार्टधारी की निंदा तो नहीं की ?
➢➢ बुधी के साथ और सहयोग के साथ मौज का अनुभव किया ?
➢➢ संतुष्ट रहे और संतुष्ट किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ पूरा ही दिन सर्व के प्रति कल्याण की भावना, सदा स्नेह और सहयोग देने की भावना, हिम्मत-हुल्लास बढ़ाने की भावना, अपनेपन की भावना और आत्मिक स्वरुप की भावना रखना है। यही भावना अव्यक्त स्थिति बनाने का आधार है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं रूहानी यात्री हूँ"
〰✧ सदा अपने को रूहानी यात्री समझते हो? यात्रा करते क्या याद रहेगा? जहाँ जाना है वही याद रहेगा ना। अगर और कोई बात याद आती है तो उसको भुलाते हैं। अगर कोई देवी की यात्रा पर जाएंगे तो 'जय माता-जय माता' कहते जाएंगे। अगर कोई और याद आएगी तो अच्छा नहीं समझते हैं। एक दो को भी याद दिलाएंगे - 'जय माता' याद करो, घर को वा बच्चें को याद नहीं करो, माता को याद करो। तो रूहानी यात्रियों को सदा क्या याद रहता है? अपना घर परमधाम याद रहता है ना? वहाँ ही जाना है। तो अपना घर और अपना राज्य स्वर्ग-दोनों याद रहता है या और बातें भी याद रहती हैं? पुरानी दुनिया तो याद नहीं आती है ना?
〰✧ ऐसे नहीं- यहाँ रहते हैं तो याद आ जाती है। रहते हुए भी न्यारे रहना, क्योंकि जितना न्यारे रहेंगे उतना ही प्यार से बाप को याद कर सकेगे। तो चेक करो पुरानी दुनिया में रहते पुरानी दुनिया में फँस तो नहीं जाते हैं? कमल-पुष्प कीचड़ में रहता है लेकिन कीचड़ से न्यारा रहता है। तो सेवा के लिए रहना पड़ता है, मोह के कारण नहीं। तो माताओंको मोह तो नहीं है? अगर थोड़ा धोत्रे-पोत्रे को कुछ हो जाए, फिर मोह होगा? अगर वह थोड़ा रोए तो आपका मन भी थोड़ा रोएगा? क्योंकि जहाँ मोह होता है तो दूसरे का दु:ख भी अपना दु:ख लगता है। ऐसे नहीं-उसको बुखार हो तो आपको भी मन का बुखार हो जाए। मोह खींचता है ना। पेपर तो आते हैं ना। कभी पोत्रा बीमार होगा, कभी धोत्रा। कभी धन की समस्या आएगी, कभी अपनी बीमारी की समस्या आएगी। यह तो होगा ही।
〰✧ लेकिन सदा न्यारे रहें, मोह में न आएं-ऐसे निर्मोही हो? माताओंको होता है सम्बन्ध से मोह और पाण्डवों को होता है पैसे से मोह। पैसा कमाने में याद भी भूल जाएगी। शरीर निर्वाह करने के लिए निमित्त काम करना दूसरी बात है लेकिन ऐसा लगे रहना जो न पढ़ाई याद आए, न याद का अभ्यास हो...उसको कहेंगे मोह। तो मोह तो नहीं है ना! जितना नष्टोमोहा होंगे उतना ही स्मृतिस्वरूप होंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ तो क्या हालचाल है आपकी राज्य दरबार का? ऊपर-नीचे तो नहीं है ना। सभी का हाल ठीक है? कोई गडबड तो नहीं है? जो यहाँ कभी-कभी ऑर्डर में चला सकता है और कभी-कभी चला सकता - तो वहाँ भी कभी-कभी का राज्य मिलेगा, सदा का नहीं मिलेगा।
〰✧ फाउण्डेशन तो यहाँ से पडता है ना। तो सदा चेक करो कि मैं सदा अकाल तख्तनशीन स्वराज्य चलाने वाली राजा ‘आत्मा’ हूँ?
〰✧ सभी के पास तख्त है ना खो तो नहीं गया है? तखत पर बैठकर राज्य चलाया जाता है ना या तखत पर आराम से अलबेले होकर सो जायेंगे?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ नये वर्ष में यह समान बनने का दृढ़ संकल्प करो। लक्ष्य रखो कि हमें फ़रिश्ता बनना ही है। अब पुरानी बातों को समाप्त करो। अपने अनादि और आदि संस्कारों को इमर्ज करो। स्मृति में रखो- चलते-फिरते मैं बाप समान फरिश्ता हूँ, मेरा पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से कोई रिश्ता नहीं। समझा?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप खिवैया आया है विषय सागर से निकाल क्षीरसागर में ले जाने"
➳ _ ➳ विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे
खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन...
विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट
बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और
रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण
मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और
मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती
हूँ...
❉ अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए
प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही
वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो
में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में
डुबो दो...”
➳ _ ➳ प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं
आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और
देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... आपने प्यारे बाबा मुझे
सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”
❉ मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे
भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा
पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... तो उनकी याद
में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो
से भरा दामन में ले आएँगी...”
➳ _ ➳ शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र
करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी
सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... मेरा जीवन खुशियो का
पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही
हूँ...”
❉ देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते
हुए मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प
और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... खुशियो भरे जीवन के
मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान
को अपनी बाँहों में भर लो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन
करते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ...
मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... प्यारे बाबा
आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार
देकर नूरानी कर दिया है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- ड्रामा के राज को समझ विश्व का मालिक बनना है"
➳ _ ➳ ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, इस बेहद के ड्रामा में वैरायटी आत्माओं के
वैरायटी पार्ट को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना वन्डरफुल है ये
ड्रामा! इस सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना - अपना पार्ट प्ले कर रही है और
एक का पार्ट भी दूसरे के पार्ट से मैच नही करता। हर आत्मा कल्प पहले मुआफ़िक
अपना पार्ट बिल्कुल ऐक्यूरेट बजा रही है। बाबा ने ड्रामा के इस राज को स्पष्ट
करके जीवन को कितना सहज बना दिया है। इस राज को जानने से क्या, क्यो और कैसे की
क्यू में उलझने की बजाए सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाना कितना सरल हो गया है।
ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ लेने से
जीवन को जैसे एक नई दिशा मिल गई है।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण जीवन मे निरन्तर आगे बढ़ते हुए, ड्रामा के हर राज को अच्छी
रीति समझ अडोल रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अब मुझे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य
को जल्द से जल्द प्राप्त करना है मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, ड्रामा
के हर खूबसूरत पहलू से परिचित कराने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा से मीठी मीठी
रूहरिहान करने, उनसे मंगल मिलन मनाने और ड्रामा के पट्टे पर सदा अचल, अडोल रहने
का उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन और
बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और सेकेण्ड में अशरीरी होकर, देह से बिल्कुल न्यारा
एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आ जाता हूँ और
अपने बिंदु बाप के पास उनके धाम की ओर चल पड़ता हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में स्थित मेरे बिंदु बाप से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझ
बिंदु सितारे के साथ कनेक्ट होकर मुझे बिल्कुल सहज रीति ऊपर की ओर खींच रही है
और मैं चैतन्य सितारा, इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर, स्वयं को हर चीज
से उपराम अनुभव करते हुए, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ता जा रहा हूँ। मेरे
बिंदु पिता से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे अति शीघ्र 5 तत्वों की बनी
साकारी दुनिया को पार कराये, फरिश्तो की आकारी दुनिया से ऊपर, आत्माओं की उस
निराकारी दुनिया में ले आई है जहाँ पहुँच कर मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति
का अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया में मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ ना साकार देह का कोई
बन्धन है और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है केवल चमकती हुई निराकारी बिंदु
आत्मायें अपने बिंदु बाप की अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर,
उनके प्यार और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। बिंदु बाप के साथ
अपने बिंदु बच्चो का यह मंगल मिलन मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है।
अपने बिंदु पिता से मिलन मनाने के लिए मैं बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे उनके पास
पहुँचती हूँ ओर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती
हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की प्रवेशता के कारण मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो
अब परमात्म शक्तियों से चार्ज हो गई है और मैं आत्मा जैसे लाइट हाउस बन गई हूँ।
परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही
हूँ। शक्तियों का पुंज बनकर, बेहद के सृष्टि ड्रामा में अपना खूबसूरत पार्ट
बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ। फिर से 5 तत्वों की
साकारी दुनिया में, अपने साकारी तन में प्रवेश कर ड्रामा के पट्टे पर आकर खड़ी
हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ड्रामा के हर राज को गहराई से समझ,
साक्षी दृष्टा बन, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखते हुए, हर परिस्थिति
में अचल अडोल रहने का अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ। "सृष्टि का यह नाटक अब
पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे हर आकर्षण से मुक्त और हर चीज से उपराम करके,
ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ, स्वयं को अचल, अडोल और एकरस बनाने में सहयोग
दे रही है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं बुद्धि के साथ और सहयोग के हाथ द्वारा मौज का अनुभव करने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं संतुष्ट रहकर और संतुष्ट करके दुआओं का खाता जमा करने वाली संतुष्टमणी हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. समय की डेट नहीं देखो। 2 हजार में होगा, 2001 में होगा, 2005 में होगा, यह नहीं सोचो। चलो एवररेडी नहीं भी बनो इसको भी बापदादा छोड़ देते हैं, लेकिन सोचो बहुतकाल के संस्कार तो चाहिए ना! आप लोग ही सुनाते हो कि बहुतकाल का पुरुषार्थ, बहुतकाल के राज्य-अधिकारी बनाता है। अगर समय आने पर दृढ़ संकल्प किया, तो वह बहुतकाल हुआ या अल्पकाल हुआ? किसमें गिनती होगा? अल्पकाल में होगा ना! तो अविनाशी बाप से वर्सा क्या लिया? अल्पकाल का। यह अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना! तो बहुतकाल का अभ्यास चाहिए, कितना काल है वह नहीं सोचो, जितना बहुतकाल का अभ्यास होगा, उतना अन्त में भी धोखा नहीं खायेंगे। बहुतकाल का अभ्यास नहीं तो अभी के बहुतकाल के सुख, बहुतकाल की श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव से भी वंचित हो जाते हैं। इसलिए क्या करना है? बहुतकाल करना है? अगर किसी के भी बुद्धि में डेट का इन्तजार हो तो इन्तजार नहीं करना, इन्तजाम करो। बहुतकाल का इन्तजाम करो। डेट को भी आपको लाना है। समय तो अभी भी एवररेडी हैं कल भी हो सकता है लेकिन समय आपके लिए रुका हुआ है। आप सम्पन्न बनो तो समय का पर्दा अवश्य हटना ही है। आपके रोकने से रुका हुआ है।
➳ _ ➳ 2. इसलिए बापदादा की एक ही शुभ आशा है कि सब बच्चे चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, जो भी अपने को ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार कहलाते हैं, चाहे मधुबन निवासी, चाहे विदेश निवासी, चाहे भारत निवासी - हर एक बच्चा बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनें। कभी-कभी के नही।
✺ ड्रिल :- "बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनना"
➳ _ ➳ मैं मास्टर सर्वशक्ति मान स्थिति के स्वमान में स्थित होकर बाबा की याद में खो चुकी हूँ... चारो ओर कोई नहीं है ऐसा अनुभव हो रहा है... सिर्फ मैं और बाबा और कोई नहीं है... मैं आत्मा ये महसूस कर रही हूँ कि जैसे जैसे मैं आत्मा बाबा कि याद में खोती जा रही हूँ वैसे वैसे बाबा भी मेरे पास आते जा रहे हैं... मुझ आत्मा का बहुत काल का देही- अभिमानी स्थिति का अभ्यास पक्का होता जा रहा है... मैं आत्मा बस अपने बाप की याद में पक्की होती जा रही हूँ... और आगे बढती जा रही हूँ... मैं आत्मा विनाश की कोई डेट नहीं देखते हुए कि क्या होना है कैसे होना है... बस अपने पुरुषार्थ में आगे बढती जा रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर बात में एवर रेडी हूँ... क्योंकि मैं कोई भी बात समय पर ना छोड़ कर अपने पुरुषार्थ में लगी हुई हूँ... मुझ आत्मा का नष्टोमोहा ओर देही अभिमानी स्थिति के संस्कार पक्के होते जा रहे है... और मुझ आत्मा का बहुत काल का ये अभ्यास है और मैं आत्मा बहुत काल के लिए परमात्म प्यार की अधिकारी बन चुकी हूँ... मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी बनती जा रही हूँ... बहुत काल के अभ्यास से मुझ आत्मा की कंट्रोलिंग पॉवर बढती जा रही हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर बात में निश्चय बुद्धि हूँ... ड्रामा का हर सीन देखते हुए हर हाल में खुश हूँ... मुझ आत्मा को मेरे अविनाशी बाप से पूरा वर्सा मिल रहा हैं... जिसके लिए ना जाने कितने जन्मों से मैं इन्तजार कर रही थी... अब उसका इन्तजाम मेरे परम पिता ने किया है... वाह मेरा भाग्य वाह... मुझ आत्मा का देही अभिमानी , नष्टोमोहा और ड्रामा के ज्ञान का बहुत काल के अभ्यास होने के कारण किसी भी बात में धोखा नहीं खा रही हूँ... मै शरीर का भान खो चुकी हूँ...
➳ _ ➳ बहुत काल की अभ्यासी होने के कारण मैं आत्मा अपने ब्राह्मण जीवन का सुख प्राप्त कर रही हूँ... और अतीन्द्रिय सुख का आनंद ले रही हूँ... मैं आत्मा किसी डेट का वेट ना करते हुए अपने अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिमान की स्टेज से समय का आह्वान कर रही हूँ... बाबा भी बहुत प्यारी दृष्टि से मुझ आत्मा को देख रहे है कि वाह मेरे बच्चे वाह... बाबा की भी मुझ आत्मा के प्रति शुभ आशा है बच्चे बहुत काल के अधिकारी बने... और मैं आत्मा बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल की अधिकारी बन चुकी हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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