━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 15 / 09 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ मनसा शक्ति से आत्माओं को परिवर्तित किया ?

 

➢➢ शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया ?

 

➢➢ सर्व आत्माओं के प्रति मंगल कामना रखी ?

 

➢➢ आत्माओं को आप समान निश्चयबुधी बनाया ?

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  विदेही बनने में 'हे अर्जुन बनो'। अर्जुन की विशेषता-सदा बिन्दी में स्मृति स्वरुप बन विजयी बनो। ऐसे नष्टोमोहा स्मृति स्वरुप बनने वाले अर्जुन। सदा गीता ज्ञान सुनने और मनन करने वाले अर्जुन। ऐसा विदेही, जीते जी सब मरे पड़े हैं, ऐसे बेहद की वैराग्य वृत्ति वाले अर्जुन बनो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   "मैं तख्त नशीन आत्मा हूँ"

 

  सभी अपने को तख्त नशीन आत्मायें अनुभव करते हो? इस समय भी तख्तनशीन हो कि भविष्य में बनना है? अभी कौन-सा तख्त है? एक अकाल तख्त, दूसरा दिल तख्त। तो दोनों तख्त स्मृति में रहते हैं? तख्तनशीन आत्मा अर्थात् राज्य अधिकारी आत्मा। तख्त पर वही बैठता जिसका राज्य होता है। अगर राज्य नहीं तो तख्त भी नहीं। तो जब अकाल तख्तनशीन हैं तो भी स्वराज्य अधिकारी हैं और बाप के दिल तख्तनशीन हैं तो भी बाप के वर्से के अधिकारी। जिसमें राज्य- भाग्य सब आ जाता है। तो तख्तनशीन अर्थात् राज्य अधिकारी। राज्य अधिकारी हो कि कभी-कभी तख्त से नीचे उतर आते हो? सदा तख्त नशीन हो कि कभी-कभी के हो? कभी तख्त पर बैठकर थक जाये तो नीचे आ जायें! नहीं।

 

  दिल तख्त इतना बड़ा है जो सब-कुछ करते भी तख्तनशीन। कर्मयोगी अर्थात् दोनों तख्तनशीन। अकाल तख्त पर बैठ कर्म करते हो तो वो कर्म भी कितने श्रेष्ठ होते हैं! क्योंकि हर कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं। अगर कोई तख्त पर ठीक न हो तो लॉ और ऑर्डर चल नहीं सकता। अभी देखो प्रजा का प्रजा पर राज्य है तो लॉ और ऑर्डर चल सकता है? एक लॉ पास करेगा तो दूसरा लॉ ब्रेक करेगा। तो तख्तनशीन आत्मा अर्थात् सदा यथार्थ कर्म और यथार्थ कर्म का प्रत्यक्षफल खाने वाली। श्रेष्ठ कर्म का प्रत्यक्षफल भी मिलता है और भविष्य भी जमा होता है-डबल है।

 

  तो प्रत्यक्षफल क्या मिला है? खुशी मिलती है, शक्ति मिलती है। कोई भी श्रेष्ठ कर्म करते हो तो सबसे पहले खुशी होती है। और दिल खुश तो जहान खुश। तो दिल सदा खुश रहता है या कभी संकल्प मात्र भी दु:ख की लहर आ जाती है? कभी भी नहीं आती या कभी-कभी चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाती है? दु:खधाम से किनारा कर लिया। किया है या एक पांव इधर है, एक पांव उधर है? एक दु:खधाम में, एक सुखधाम में-ऐसे तो नहीं? आप कलियुग निवासी हो या संगम निवासी हो? कि कभी-भी कलियुग में भी चले जाते हो? संगमयुगी ब्राह्मण अर्थात् दु:ख का नाम-निशान नहीं। क्योंकि सुखदाता के बच्चे हो। तो सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता होंगे। जो मास्टर सुखदाता है वो स्वयं दु:ख में कैसे आ सकता है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  बापदादा देख रहे हैं - बच्चों में उमंग बहुत है, इसलिए शरीर का भी नहीं सोचते। उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं। आगे बढ़ना बापदादा को अच्छा लगता है, फिर भी बैलेन्स अवश्य चाहिए।

 

✧  भल करते रहते हो, चलते रहते हो लेकिन कभीकभी जेसे बहुत काम होता है तो बहुत काम में एक तो बुद्धि की थकावट होने के कारण जितना चाहते उतना नहीं कर पाते और दूसरा - बहुत कम होने के कारण थोडा-सा भी किसी द्वारा थोडी हलचल होगी तो थकावट के कारण चिडचिडापन हो जाता।

 

✧  उससे खुशी कम हो जाती है। वैसे अंदर ठीक रहते हो, सेवा का बल भी मिल रहा है, खुशी भी मिल रही है, फिर भी शरीर तो पुराना है ना। इसलिए टू मच में नहीं जाओ। बैलेन्स रखो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं। न्यारा किससे? पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा। जितना देह की स्मृति से न्यारे होंगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात् आत्म-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारापन खत्म हो जाता है। इसलिए बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो। आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यार पैदा होगा ना। और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे - कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन आत्मिक भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृत्ति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :-  विश्व सेवा करना"
 
➳ _ ➳  जब मै आत्मा देह की मिटटी में गहरे धँसी थी तो... विकारो की बदबू से सनी थी... मेरे तपते जीवन में दूर दूर तक सुखो की कोई छाया नही थी... कि भाग्य ने अचानक परमात्म हाथो को मेरे जीवन की छत्रछाया बनाकर,मेरे ऊपर सजा दिया... मेरा विकारी जीवन गुणो की सुगन्ध में बदल गया... ईश्वरीय यादो में पोर पोर खुशबु से खिल गया... अंग अंग से पवित्रता छलकने लगी... आज तन और मन पावन बनकर.. पांचो तत्वों को, इस विश्व धरा को, पावन तरंगो से सिंचित करने लगे है... यह कितनी प्यारी जादूगरी ईश्वर पिता ने मेरे जीवन पर दिखाई है... उस जादूगर बाबा को अपनी पावनता का दिल से... धन्यवाद करने मै आत्मा... बढ़ चलती हूँ मीठे बाबा के कमरे की ओर....
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी शक्तियाँ देकर रूहानी सोशल वर्कर बनाते हुए कहा :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सतगुरु पिता से मिलकर जो शक्तियो और गुणो का प्रतीक बनकर मुस्करा रहे हो... यह दौलत सबके दिलो में उंडेल आओ... भारत को अपनी पावन किरणों से भरकर, पावनता और महानता का प्रतीक बनाओ... सब आत्माओ के दुखो को दूर करने वाले... और सच्चे सुखो से जीवन को सजाने वाले... रूहानी सेवाधारी बनकर, बापदादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार के रंग में रंगकर प्रेम स्वरूप बनकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे...मै आत्मा आपसे पाये असीम खजाने पूरे विश्व पर बिखेर रही हूँ... और सबके आँगन में सच्ची खुशियो के फूल खिला रही हूँ... सदा हँसती, मुस्कराती और खुशियो की बहारो को लुटाती... राह में आने वाले सारे विघ्नो को खत्म कर... सबका जीवन आप समान प्यारा बनाती जा रही हूँ..."
 
❉  प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व का कल्याण करने के लिए पावनता से सजाकर कहा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के मददगार बनने वाले कितने महान भाग्यशाली हो... कि भारत को पावन बनाने में दिल जान से मीठे बाबा के साथी बने हो... सदा इस मीठे नशे से भरकर, ईश्वरीय दिल पर इतराओ... भारत को पवित्र बनाने की सेवा कर, आने वाली सारी मुश्किलो को अपनी शक्तियो से दूर कर... उमंग उत्साह के पंखो से सदा खुशियो के आसमाँ में उड़ते रहो..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा से पवित्रता की किरणे लेकर मा सागर बनकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा...मै आत्मा कभी खुद के वजूद को भूली थी... आज आपसे मिलकर भारत को पवित्रता से सजाने आप संग चल पड़ी हूँ... यह कितनी प्यारी जादूगरी है... यह कितना प्यारा मेरा भाग्य है... कि मै आत्मा हर दिल को सच्चे आनन्द. प्रेम से भरकर, खुशियो से सजी खुबसूरत सतयुगी दुनिया में देवताओ सा सजा देख रही हूँ...
 
❉   मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी सारी खानों का मालिक बनाकर कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा ने जिन सच्ची खुशियो दिव्यता और पवित्रता... से आपको श्रंगारित किया है... आप इस श्रंगार से पूरे विश्व को सजाओ... पतित हो गए भारत को पुनः इसकी दिव्यता से भरपूर करो... और देवताओ वाली सुंदर सतयुगी दुनिया इस धरा पर पुनः लाओ.... सदा खुशियो में चहकते हुए, इस ईश्वरीय सेवा में.अपना भाग्य बनाओ..."
 
➳ _ ➳  मै आत्मा प्यारे बाबा की बाँहों में महानता से सज संवर कर कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे...मै आत्मा आपकी यादो में गहरे डूबकर, आज इस कदर महान बन गयी हूँ कि दिव्य गुणो से हर मन को सजा रही हूँ... आपकी यादो भरी पवित्रता की चुनरी, हर दिल को ओढ़ा रही हूँ... और आपकी यादो के श्रंगार से देवताई सौंदर्य से दिलवा रही हूँ... सच्ची सेवाधारी बनकर सबको खुशनुमा जीवन की अधिकारी बना रही हूँ... "मीठे बाबा को दिल की भावनाये अर्पित कर, सच्ची सेवा का व्रत लेकर... मै आत्मा धरा पर लौट आयी...

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- शक्तिशाली स्थिति का अनुभव

➳ _ ➳  ज्ञान के सागर अपने शिव पिता से मुरली के माध्यम से हर रोज मिलने वाले ज्ञान के पोष्टिक भोजन को खाकर अपनी बुद्धि को स्वच्छ और शक्तिशाली बनाती जा रही मैं ब्राह्मण आत्मा एकान्त में बैठ उस ज्ञान रूपी भोजन को पचाने के लिए ज्ञान की प्वाइंट्स को स्मृति में लाकर, विचार सागर मंथन कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वक्षेष्ठ भाग्य की भी सराहना कर रही हूँ। मन ही मन अपने भगय का मैं गुणगान कर रही हूँ कि कितनी विशेष, कितनी महान और कितनी सौभागशाली हूँ मैं आत्मा जो मेरी बुद्धि को शक्तिशाली बनाने के लिए स्वयं भगवान हर रोज मुझे ज्ञान का शक्तिशाली भोजन खिलाते हैं। सवेरे आंख खुलते ही ज्ञान रत्नों की थालियां लेकर बाबा मेरे पास पहुँच जाते है और ज्ञान का वो भोजन सारा दिन मेरी बुद्धि को शक्तिशाली रखता है और माया के हर वार से मुझे बचा कर रखता है।

➳ _ ➳  मन ही मन यह विचार करते हुए अपने भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ और महसूस करती हूँ जैसे ज्ञान सागर मेरे शिव पिता अपने आकारी रथ पर विराजमान होकर ज्ञान रत्नों के अखुट ख़ज़ाने लेकर मेरे सामने खड़े हैं और मुस्कराते हुए उन ज्ञान रत्नों से मेरी बुद्धि रूपी झोली को भरने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं। ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता को अपने सामने पाकर मन ही मन मैं आत्म विभोर हो रही हूँ। उनकी लाइट माइट को मैं अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। बापदादा से आ रही लाइट माइट मुझे भी लाइट और माइट बना रही है। स्वयं को मैं पूरी तरह रिलेक्स महसूस कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कोई सवेंदना मेरी देह में नही हो रही और मैं देह से बिल्कुल न्यारी हो चुकी हूँ। अपनी लाइट की सूक्ष्म देह को मैं अपनी स्थूल देह से पूरी तरह अलग महसूस कर रही हूँ।

➳ _ ➳  लाइट के बहुत ही सुंदर फ़रिशता स्वरूप में मैं अब स्वयं को देख रही हूँ जिसमे से रंग बिरंगी श्वेत रश्मियां निकल रही है जो चारों और फैल कर सारे वायुमंडल को शुद्ध, दिव्य और अलौकिक बना रही हैं। अपनी लाइट माइट चारो और बिखेरता हुआ, अपनी रंग बिरंगी किरणो से वायुमण्डल को शुद्ध और पवित्र बनाता हुआ मैं फ़रिशता अब धरनी के आकर्षण से मुक्त होकर, अपने प्यारे बापदादा का हाथ थामे उनके साथ उनके अव्यक्त वतन की ओर जा रहा हूँ। सारे विश्व का चक्कर लगाकर, आकाश को पार कर, उससे ऊपर अब मैं पहुँच गया बापदादा के साथ एक ऐसी दुनिया में जहां चारों और सफेद चांदनी सा प्रकाश फैला हुआ है।

➳ _ ➳  लाइट के सूक्ष्म शरीर को धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते इस लोक में मुझे दिखाई दे रहें हैं जिनसे निकल रही प्रकाश की रश्मियां पूरे वतन में फैल रही हैं। इस अति सुन्दर दिव्य अलौकिक दुनिया में मैं फ़रिशता अब बापदादा के सम्मुख बैठ , स्वयं को बापदादा से आ रही सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहा हूँ। बाबा की भृकुटि से निकल रहे ज्ञान के प्रकाश की तेज धारायें मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही हैं और ज्ञान की शक्ति से मुझे भरपूर कर रही हैं। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा अपनी हजारों भुजायें मेरे ऊपर फैला कर ज्ञान के अखुट खजाने मुझ पर लुटा रहें हैं और मैं फ़रिश्ता इन खजानो को अपने अंदर समाता जा रहा हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली खुराक खाकर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अपने लाइट माइट स्वरूप के साथ अब मैं वापिस लौट रही हूँ।

➳ _ ➳  अपने लाइट की सूक्ष्म देह के साथ, अपनी स्थूल देह में प्रवेश कर अब मैं फिर से अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और ज्ञान की शक्तिशाली खुराक हर रोज अपनी बुद्धि को खिलाकर उससे प्राप्त होने वाली परमात्म शक्ति को मैं अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ। बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द  का अनुभव करते, बुद्धि को रोज ज्ञान का शक्तिशाली भोजन देकर उसे शक्तिशाली बना उस शक्ति के प्रयोग से माया पर भी मैं सहज ही विजय प्राप्त करती जा रही हूँ।

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं ईश्वरीय सेवा के बंधन द्वारा समीप संबंध में आने वाली रॉयल फैमिली की अधिकारी आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का वाइब्रेशन तीव्र गति से फैलाने वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. बापदादा ने पहले भी दो शब्द सुनाये हैं - साथी और साक्षी। जब बापदादा साथ है तो साक्षीपन की सीट सदा मजबूत रहती है। कहते सभी हो बापदादा साथ हैबापदादा साथ है लेकिन माया का प्रभाव भी पड़ता रहता और कहते भी रहते हो बापदादा साथ हैबापदादा साथ है। साथ है, लेकिन साथ को ऐसे समय पर यूज नहीं करते होकिनारे कर देते हो। जैसे कोई साथ में होता है ना, कोई बहुत ऐसा काम पड़ जाता है या कोई ऐसी बात होती है तो साथ कभी ख्याल नहीं होताबातों में पड़ जाते हैं। ऐसे साथ है यह मानते भी होअनुभव भी करते हो। कोई है जो कहेगा साथ नहीं हैकोई नहीं कहता। सब कहते हैं मेरे साथ हैयह भी नहीं कहते कि तेरे साथ है। हर एक कहता है मेरे साथ है। मेरा साथी है। मन से कहते हो या मुख सेमन से कहते हो?

 

 _ ➳  2. बापदादा तो खेल देखते हैंबाप साथ बैठे हैं और अपनी परिस्थिति मेंउसको सामना करने में इतना मस्त हो जाते हैं जो देखते नहीं हैं कि साथ में कौन हैं। तो बाप भी क्या करतेबाप भी साथी से साक्षी बनकर खेल देखते हैं। ऐसे तो नहीं करो ना। जब साथी कहते हो तो साथ तो निभाओकिनारा क्यों करते होबाप को अच्छा नहीं लगता।

 

 _ ➳  3. साक्षीपन का तख्त छोड़ो नहीं। जो अलग-अलग पुरूषार्थ करते हो उसमें थक जाते हो। आज मन्सा का किया, कल वाचा का किया, सम्बन्ध-सम्पर्क का किया तो थक जाते हो। एक ही पुरुषार्थ करो कि साक्षी और खुशनुम: तख्तनशीन रहना है। यह तख्त कभी नहीं छोड़ना है।

 

 _ ➳  4. साक्षीपन के तख्तनशीन आत्मा कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा ना।

 

✺   ड्रिल :-  "साथी और साक्षीपन से माया के प्रभाव से मुक्त होने का अनुभव"

 

 _ ➳  देह रूपी कमल में स्थित मैं आत्मा बैठी हूँ पदमासन् लगाए... और देख रही हूँ स्वयं की देह को साक्षी होकर... कमल की दो आधार पत्तियाँ, ये मेरे दोनो पैर... उदर भाग कमल का आधार तना है...ये दोनों भुजाएँ कमल की नीचे को झुकी दो बडी शाखाएँ, ये मस्तक मध्य की पंखुरी और मेरी दो आँखे, दोनों कान, मुख नासिका सभी उस कमल की नन्ही- नन्हीं पंखुरियाँ... मैं आत्मा सुनहरा पराग बन बैठी हूँ शीर्ष पंखुरी पर...  मेरे ठीक ऊपर शिव सूर्य अपनी नम किरणों से मुझे भरपूर करते हुए... शिव सूर्य से प्रकाश शक्ति ग्रहण कर मैं कमल की एक एक पंखुरी को देखते हुए... खिल उठा है ये देह रूपी कमल... और मैं आत्मा पराग बन शिव किरणों के साथ उड चली हूँ परम धाम की ओर...

 

 _ ➳  परम धाम में मैं आत्मा साक्षी होकर एक एक आत्मा मणि को देखती हुई एकदम साक्षी भाव से... एक से बढकर रूहानी चमक लिए ये  सुनहरी मणियाँ, शान्ति के सागर में, गहरी अनुभूतियों में मगन... और शान्ति की सुनहरी धाराओं से सींचते शिव सूर्य... कुछ देर साक्षी होकर देखती हुई मैं आत्मा भी, लीन हो गयी हूँ उसी परमानन्द में... कुछ मणियों को सूक्ष्म वतन की ओर जाते देख मैं भी चल पडी हूँ उनके पीछे... आगे आगे मम्मा बाबा और पीछे कुछ महारथी आत्माएँ... और मैं भी उमंगों से भरकर उनके साथ साथ... मम्मा के साथ वो सब जा रहे है सूक्ष्म वतन की ओर...

 

 _ ➳  और बापदादा मेरे संग उतर गये है, विशाल हरे-भरे से मैदान में... पर्वत शिखरों से घिरा ये मैदान खूबसूरती का बेजोड सा नमूना... बापदादा और मैं नन्हा फरिश्ता... खुशी से फूला नही समाँ रहा हूँ, उनको साथी के रूप में पाकर... मैं और बापदादा पतंग उडाते हुए... मेरे हाथों में पतंग और बाबा के हाथों मे डोर... सहसा उछाल देता हूँ मैं हवा की दिशा में उसको... और देखते ही देखते आकाश से बातें करती... ये मेरी स्थिति की और महत्वकांक्षाओं की पतंग... और बापदादा अब पतंग की डोर मेरे हाथों में थमाकर बैठ गये है मुझ से थोडी दूरी पर... आनन्द से इठलाता हुआ मैं... एक नजर बाबा पर और दूसरी नजर पतंग पर जमाये... और भी ऊँचाईयों पर उसे ले जा रहा हूँ...

 

 _ ➳  और अब मेरा ध्यान केवल पतंग पर... ऊँचाईयों को छूती हुई ये पतंग मेरे मन का प्रतिबिम्ब लग रही है मुझे... मेरी ऊँची स्थिति का प्रतीक, ये हवा से बातें करती सबसे ऊँची उडती मेरी पतंग... मैं भूल गया हूँ बापदादा को भी... कुछ पल के लिए सहसा कहीं से उडकर आता हुआ बाज पक्षी का झुण्ड और मेरी डोर को काटने का प्रयास करता हुआ... मैं भरपूर कोशिश कर रहा हूँ उसे बचाने की... मगर हर कोशिश मेरी व्यर्थ जा रही है... हवा में बाज रूपी माया से लडता हुआ मैं अकेला और पास में ही बैठे बापदादा साथी से साक्षी होते हुए...

 

 _ ➳  सहसा कानों में मधुर सी संगीतमय आवाज... साक्षी और खुशनुमः तख्तनशीन रहना है, जब साथी कहते हो, तो किनारा क्यों करते हो? भूलों नहीं बापदादा को!  बाबा को, ये बिल्कुल अच्छा नही लगता... और मैं फरिश्ता अचानक लौट आता हूँ बापदादा के साथ की स्मृति में... और दौडकर बापदादा के हाथों में डोर थमा देता हूँ... और खुद बैठ गया हूँ साक्षी होकर, आहिस्ता आहिस्ता आकाश में गुम होता वो बाज पक्षियों का झुण्ड और फिर से मैं खुशी में उमंगों से भरपूर अपनी मन बुद्धि रूपी पंतग को ऊँचे संकल्पों में विचरण कराता हुआ... मैं फरिश्ता लौट आया हूँ अपनी उसी कमल पुष्प समान देह में, जो अभी भी पदमासन् लगाए बैठी है मेरे इन्तजार में... मगर अब बापदादा हर पल मेरे साथ है इस स्मृति को पक्का करते हुए... पहले से ज्यादा साक्षी और माया के प्रभाव से मुक्त...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━