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 26 / 06 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)

 

➢➢ कांटो को फूल बनाने की सेवा की ?

 

➢➢ अपनी चाल चलन का पोतामेल रख खामियां निकाली ?

 

➢➢ पवित्रता की श्रेष्ठ धारणा द्वारा एक धर्म के संस्कार वाले समर्थ सम्राट बनकर रहे ?

 

➢➢ सच्ची प्रीत एक परमात्म से रही ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  पाप कटेश्वर वा पाप हरनी तब बन सकते हो जब याद ज्वाला स्वरूप होगी। इसी याद द्वारा अनेक आत्माओं की निर्बलता दूर होगी। इसके लिए हर सेकण्ड, हर श्वांस बाप और आप कम्बाइन्ड होकर रहो। कोई भी समय साधारण याद न हो। स्नेह और शक्ति दोनों रूप कम्बाइन्ड हो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं सर्व प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्मा हूँ"

 

  सदा अपने को सर्व प्राप्ति-स्वरूप श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करते हो? क्योंकि प्राप्ति-स्वरूप ही औरों को सर्व प्राप्ति करा सकता है। देने में लेना स्वत: ही समाया है। अभी अपने बहन-भाइयों को भिखारी देख रहम तो आता है ना। जब परमात्म प्राप्तियो के अधिकारी बन गये तो पा लिया-सदा दिल में यही गीत गाते हो? पाना था सो पा लिया। सम्पन्न बन गये। ऐसे सम्पन्न बन गये या विनाश तक बनेंगे?

 

✧  अगर समय सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनाये तो रचना पावरफुल हुई या रचता? तो समय पर नहीं बनना है, समय को समीप लाना है। समय का इन्तजार करने वाले नहीं हो। जब पा लिया तो पाने की खुशी में रहने वाले सदा ही एवररेडी रहते हैं। कल भी विनाश हो जाये तो तैयार हो? या थोड़ा टाइम चाहिए? एवररेडी, नष्टोमोहा, स्मृति-स्वरूप इसमें पास हो? एवररेडी का अर्थ ही है-नष्टोमोहा स्मृति-स्वरूप। या उस समय याद आयेगा कि पता नहीं बच्चे क्या कर रहे होंगे, कहाँ होंगे, छोटे-छोटे पोत्रों का क्या होगा? यहीं विनाश हो जाये तो याद आयेंगे? पति का भी कल्याण हो जाये, पोत्रे का भी कल्याण हो जाये, उन्हों को भी यहाँ ले आयें-याद आयेगा? बिजनेस का क्या होगा, पैसे कहाँ जायेंगे? रास्ते टूट जायें फिर क्या करेंगे? देखना, अचानक पेपर होगा।

 

✧  सदा न्यारा और प्यारा रहना-यही बाप समान बनना है। जहाँ हैं, जैसे हैं लेकिन न्यारे हैं। यह न्यारापन बाप के प्यार का अनुभव कराता है। जरा भी अपने में या और किसी में भी लगाव न्यारा बनने नहीं देगा। न्यारे और प्यारेपन का अभ्यास नम्बर आगे बढ़ायेगा। इसका सहज पुरुषार्थ है निमित्त भाव। निमित्त समझने से 'निमित्त बनाने वाला' याद आता है। मेरा परिवार है, मेरा काम है। नहीं, मैं निमित्त हूँ। निमित्त समझने से पेपर में पास हो जायेंगे।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  जैसे कल्प पहले का भी गायन है अर्जुन का - साधारण सखा रूप भी देखा लेकिन वास्तविक रूप का साक्षात्कार करने के बाद वर्णन किया कि आप क्या हो! इतना श्रेष्ठ और वह साधारण सखा रूप! इसी रीति आपके भी साक्षात्कार होंगे चलते-फिरते। दिव्य दृष्टि में जाकर देखें वह बात और है। जैसे शुरू में चलते-फिरते देखते रहते थे। यह ध्यान में जाकर देखने की बात नहीं। जेसे एक साकार बाप का आदि में अनुभव किया वैसे अंत में अभी सबका साक्षात्कार होगा।

 

✧  यह साधारण रूप गायब हो जावेगा, फरिश्ता रूप या पूज्य रूप देखेंगे। जैसे शुरू में आकारी ब्रह्मा और श्रीकृष्ण का साथ-साथ साक्षात्कार होता था। वैसे अभी भी यह साधारण रूप देखते हुए भी दिखाई न दे। आपके पूज्य देवी या देवता रूप या फरिश्ता रूप देखें। लेकिन यह तब होगा जब आप सबका पुरुषार्थ देखते हुए न देखने का हो - तब ही अनेक आत्माओं को भी आप महान आत्माओं का यह साधारण रूप देखते हुए भी नहीं दिखाई देगा।

 

✧  आँख खुले-खुले एक सेकण्ड में साक्षात्कार होगा। ऐसी स्टेज बनाने के लिए विशेष अभ्यास बताया कि देखते हुए भी न देखो, सुनते हुए भी न सुनो। एक ही बात सुनो और एक बिन्दु को ही देखो। विस्तार को न देख एक सार को देखो। विस्तार को न सुनते हुए सदा सार को ही सुनो। ऐसे जादू की नगरी यह मधुबन बन जावेगा - तो सुना मधुबन का महत्व अर्थात मधुबन निवासियों का महत्व।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ अब से अपने महत्व को जान कर्तव्य को जान सदा जागती ज्योति बनकर रहो। सेकण्ड में स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर सकते हो। इसकी प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी,अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। जैसे पुरानी दुनिया का दृष्टान्त देते हैं। आपकी रचना कछुआ सेकण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकण्ड में स्थित हो सकते हो।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- बाप बागवान के पास खुशबूदार फूल लाना"

➳ _ ➳ मैं आत्मा सुबह-सुबह फूलों के बगीचे में झुला झूलती हुई फूलों... पंछियों... उगते सूरज की लालिमा... बहती हवाओं को देख मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... इतनी सुन्दर प्रकृति के रचनाकार को दिल ही दिल में शुक्रिया करती हुई... सुप्रीम रचयिता का आह्वान करती हूँ... जिसने परमधाम से अवतरित होकर बागबान बन मेरे अन्दर के अवगुणों रूपी काँटों को निकाल दिया... और दिव्य गुणों रूपी खुशबू से भर दिया है... अब मैं आत्मा चैतन्य पुष्प बन अल्लाह के बगीचे में बैठ चारों ओर अपनी खुशबू फैला रही हूँ...

❉ प्यारे बाबा मेरे मन के फूलों को खिलाते हुए खुशबू से महकाते हुए कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता बागबान के बगीचे में रूहानी पुष्प बन खिले हो... कितना महकता और खूबसूरती से सजा शानदार सा भाग्य है... ज्ञान के सुंदर रंग में रंगे से... याद और दिव्य गुणो का महकता रूप और खुशबु लिए चैतन्य पुष्प बन मुस्करा रहे हो...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा बसंत बन ज्ञान पुष्पों को सब पर बरसाते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कभी काँटों के जंगल का हिस्सा थी... आज ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल बन खिल रही हूँ... दूर से सबको अपनी रूहानी रंगत रूप और खुशबु से दीवाना बनाकर... मीठे बाबा बागबान का पता दे रही हूँ...”

❉ देह के जाल से मुक्त कर ज्ञान योग के पंख देते हुए प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अल्लाह के बगीचे के जो फूल बन खिले हो... तो ज्ञान और योग का प्रेक्टिकल स्वरूप दिव्य गुणो की धारणा भी अपने स्वरूप से छ्लकाओ... स्वयं प्रकाशित होकर सबके दिलो से अँधेरा दूर कर दो... विघ्नो से मुक्ति देने वाले विघ्न विनाशक मा. ज्ञान सूर्य से दमक उठो...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा मस्तक मणि बन अपनी चमक से चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल हूँ... मीठा बाबा इस समय मेरा बागवान है... और योगी जीवन दिव्य गुणो की खुशबु से पूरा विश्व महका कर सुखो की बहार खिला रही हूँ... सबके दिलो की मलिनता और अँधेरा मिटा कर ज्ञान की रौशनी से जगमगा रही हूँ...”

❉ वरदानों से भरपूर कर मेरे भाग्य की लकीर लम्बी खींचते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:- “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... तन मन धन से सच्चे सेवाधारी बन ईश्वर पिता के दिल तख्त पर झूम जाओ... वरदानी संगम युग में 84 जनमो का खूबसूरती से रिकार्ड भरकर... सदा सच्चे सुखो के मालिक बनो... प्राप्ति के समय में सच्ची कमाई के असीम खजानो को... बाँहों में भरकर खुशियो में मुस्कराओ...”

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना सबकुछ समर्पण कर परवाना बन शमा पर फ़िदा होते हुए कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को वरदानी संगम पर खुशियो से सजा रही हूँ... इतना प्यारा और खुबसूरत समय जो तकदीर ने थमाया है बलिहार हो गई हूँ... हर जन्म की सुन्दरतम कहानी भाग्य की लकीरो में स्वयं बैठ लिखती जा रही हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- काँटो को फूल बनाने की सेवा करनी है"
 
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इस काँटो के जंगल (दुखधाम) को फूलों का बगीचा (सुखधाम) बनाने का जो कर्तव्य करने के लिए परमपिता परमात्मा शिव बाबा इस धरा पर अवतरित हुए है उस कार्य में उनका मददगार बनने के लिए मुझे काँटे से फूल बन सबको फूल बनाने का पुरुषार्थ अवश्य करना है और सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताना है। मन ही मन अपने आपसे यह प्रतिज्ञा करते हुए अपने दिलाराम बागवान बाप की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ। प्रभु यादों की डोली में बैठ अव्यक्त फ़रिशता बन इस साकारी दुनिया और दुनियावी सम्बन्धो से किनारा कर मैं चल पड़ती हूँ उस अव्यक्त वतन में जहां मेरे दिलाराम बाबा मेरे आने की राह में पलके बिछाए बैठे हैं।
 
➳ _ ➳ 
वतन में पहुंच कर अब मैं वतन का खूबसूरत नजारा मन बुद्धि रूपी दिव्य नेत्रों द्वारा स्पष्ट देख रही हूं। पूरा वतन रंग बिरंगे फूलों की खुशबू से महक रहा है। मेरे ऊपर लगातार पुष्पो की वर्षा हो रही हैं। जहाँ - जहाँ मैं पाव रखती हूं मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे पैरों के नीचे मखमली फूंलो का गलीचा बिछा हुआ है। सामने मेरे दिलाराम मेरे बागवान बाबा अपने लाइट माइट स्वरूप में रंग बिरंगे फूलो से सजे एक बहुत सुंदर झूले पर बैठे मेरा इन्जार कर रहें हैं। मुझे देखते ही बाबा मुस्कराते हुए स्वागत की मुद्रा में खड़े हो कर अपनी बाहें फैला लेते हैं और आओ मेरे रूहे गुलाब बच्चे कह कर अपने गले लगा लेते हैं।
 
➳ _ ➳ 
बाबा की बाहों के झूले में झूलते, अपनी आंखें बन्द कर मैं असीम सुख की अनुभूति में खो जाती हूँ। अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहराई तक अनुभव करने के बाद मैं जैसे ही अपनी आंखें खोलती हूं तो देखती हूँ कि बाबा के साथ मैं एक बहुत बड़े फूंलो के बगीचे में खड़ी हूँ। बाबा बड़े प्यार से एक एक - एक फूल पर दृष्टि डाल कर, हर फूल को बड़े प्यार से सहलाते हुए आगे बढ़ जाते हैं। मैं भी बाबा के पीछे - पीछे चलते हुए हर फूल को बड़े ध्यान से देख रही हूं। कुछ फूल तो एक दम खिले हुए बड़ी अच्छी खुशबू फैला रहे हैं, कुछ अधखिलें हैं और कुछ थोड़े थोड़े मुरझाए हुए भी दिखाई दे रहें हैं। लेकिन हर फूल के ऊपर प्यार भरी दृष्टि डाल कर अब बाबा वापिस उस झूले पर आ कर बैठ जाते हैं और मुझे भी अपने पास बैठने का ईशारा करते हैं।
 
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मेरे मन मे चल रही दुविधा को जैसे बाबा मेरे चेहरे से स्पष्ट पढ़ रहे हैं इसलिए मेरे कुछ भी पूछने से पहले बाबा मुझसे कहते हैं, मेरे रूहे गुलाब बच्चे:- "इस काँटो की दुनिया को फूलो की नगरी बनाने के लिए ही बाबा ये सैपलिंग लगा रहें हैं" और ये सभी फूल मेरे वो मीठे, सिकीलधे बच्चे हैं जो श्रीमत पर चल काँटे से फूल बनने का पुरुषार्थ कर रहें हैं, लेकिन नम्बरवार हैं। इसलिए कुछ फूल तो पूरी तरह खिले हुए हैं जो अपनी रूहानियत की खुशबू सारे विश्व में फैला रहें हैं। कुछ अधखिले हैं जो अभी खिलने के लिए तैयार हो रहें हैं। और कुछ मुरझाए हुए भी हैं जो बार बार माया से हार खाते रहते हैं। लेकिन बाबा अपने हर बच्चे को नम्बर वन रूहे गुलाब के रूप में देखना चाहते हैं इसलिए हर बच्चे को सूक्ष्म में इमर्ज कर उन्हें बल देते रहते हैं।
 
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अपने मन में चल रहे सभी सवालों के जवाब सुन कर अब मैं मन ही मन दृढ़ संकल्प करती हूं कि अब मुझे नम्बर वन रूहे गुलाब अवश्य बनना है। इसलिए काँटे से फूल बन, सबको फूल बनाने का ही अब मुझे पुरुषार्थ करना है। बाबा मेरे मन के हर संकल्प को पढ़ कर बड़ी गुह्य मुस्कराहट के साथ मुझे देखते हैं और अपना वरदानीमूर्त हाथ मेरे सिर पर रख देते है। मुझे माया जीत भव और सफलता मूर्त भव का वरदान देते हुए मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगाते हैं।
 
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विजय का स्मृति तिलक लगाकर, काँटे से फूल बनने के पुरुषार्थ में आने वाले माया के हर विघ्न का डटकर सामना करने के लिए अब मैं स्वयं को बलशाली बनाने के लिए निराकारी ज्योति बिंदु आत्मा बन चल पड़ती हूँ अपने निराकार काँटो को फूल बनाने वाले बबूलनाथ अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा के पास परमधाम और जा कर उनके सानिध्य में बैठ स्वयं को उनकी सर्वशक्तियो से भरपूर करने लगती हूँ। स्वयं में परमात्म बल भर कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ।
 
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साकारी दुनिया मे, अपने साकारी ब्राह्मण तन में प्रवेश कर, अब मैं अपने सम्बन्ध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को सच्चा - सच्चा परमात्म ज्ञान सुना कर उन्हें शान्तिधाम, सुखधाम जाने का रास्ता बता रही हूँ। रूहानियत की खुशबू चारों और फैलाते हुए अपनी पवित्रता की शक्ति से मैं विकारों रूपी काँटो की चुभन से पीड़ित आत्माओं को उस चुभन से निकाल उन्हें फूलो की मखमली शैया का सुखद अनुभव करवा कर उन्हें भी काँटे से फूल बनने का सत्य मार्ग दिखा रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं पवित्रता की श्रेष्ठ धारणा द्वारा एक धर्म के संस्कार वाली समर्थ सम्राट आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं सच्ची प्रीत एक परमात्मा से रखने वाला विजयी रत्न हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  क्वेश्चन उठने का मुख्य कारण है-ज्ञानी बने हो लेकिन ज्ञान स्वरूप नहीं होइसलिए छोटे से विघ्न में व्यर्थ संकल्पों की क्यू लग जाती हैऔर उसी क्यू को समाप्त करने में काफी समय लग जाता है। वातावरण प्रभाव तभी डालता है जब भूल जाते हो कि हम अपनी पॉवरफुल वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले हैं।

 

✺   "ड्रिल :- सिर्फ ज्ञानी बनने की बजाये ज्ञान स्वरुप बनकर रहना।”

 

 _ ➳  सोने के सितारों से जडित नीले आसमान रूपी चादर के नीचे मैं आत्मा सितारा एकांत में बैठी हूँ... आसमान में सितारे चमक रहे हैं... नीचे जुगनू चमक रहे हैं... रातरानी के फूलों की खुशबू महक रही है... चाँद अपनी चांदनी से मुझे छूने की कोशिश कर रहा है... मैं आत्मा चमकते हुए जुगनूओं को देख रही हूँ... स्वयं कितने प्रकाशित हैं ये... अपने लाइट से चारों ओर लाइट फैला रहे हैं... किसी भी प्रकार के विघ्नों की भनक लगते ही ये जुगनू अपनी लाइट का स्विच ऑन कर देते हैं और विघ्नों से सेफ रहते हैं...

 

 _ ➳  इन जुगनूओं को देख मैं आत्मा चिंतन करती हूँ कि... मैं आत्मा भी तो एक चमकता हुआ सितारा हूँ... मेरा असली स्वरुप तो ज्योतिबिंदु स्वरुप है... मैं आत्मा अपने स्व-स्वरूप में टिककर अपने इस स्थूल देह को त्याग लाइट का शरीर धारण कर जुगनुओं के संग उडती जा रही हूँ... जुगनुओं को अलविदा कहती मैं आत्मा और ऊपर उड़ती जा रही हूँ... चाँद, सितारों के पास पहुँच जाती हूँ... उनसे मिलकर उनको अलविदा कहती हुई और ऊपर की ओर उड रही हूँ... और पहुँच जाती हूँ अपने मूलवतन अपने प्यारे बाबा के पास...   

 

 _ ➳  चारों ओर शांति ही शांति है, लग रहा जैसे सितारों की महफ़िल जमी हो... मैं आत्मा बिंदु बाबा के सामने बिंदु बन बैठ जाती हूँ... बाबा से सर्वशक्तियों की किरणों को अपने में समा रही हूँ... सभी संकल्प, विकल्पों से पूरी तरह से मुक्त अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... फिर मैं आत्मा बिंदु बाबा के साथ-साथ नीचे सूक्ष्म वतन में आती हूँ... जहाँ ब्रह्मा बाबा बैठे हुए इन्तजार कर रहे हैं... बिंदु बाबा ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर विराजमान हो जाते हैं...       

 

 _ ➳   बापदादा मुझे आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दे रहे हैं... बाबा कहते हैं:- बच्चे- तुम ही वो पूर्वज आत्मा हो, आधारमूर्त, उद्धारमूर्त आत्मा हो... इस कल्पवृक्ष की जड़ें हो, तना हो... आदि से अंत तक 84 जन्मों का विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हो... इस जड़जड़ीभूत वृक्ष को तुम्हें ही अपने गुण, शक्तियों से सींचना है... फिर से हरा-भरा करना है... दुखी, अशांत आत्माओं को शक्ति स्वरुप बन शक्तियों की अंचली देना है... सबके दुःख दूर कर मुक्ति-जीवनमुक्ति के वर्से की अधिकारी बनाना है... तुम्हें स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करना है...     

 

 _ ➳  बच्चे- तुम्हें इस कार्य में बाबा का राईट हैण्ड बनना है... इस कार्य में माया के भी कई विघ्न आयेंगे, पर तुम्हें कभी भी छोटे-बड़े विघ्नों से घबराना नहीं है... विघ्नों के समय क्यों, क्या, कैसे के व्यर्थ संकल्पों की क्यू मत लगाओ क्योंकि उस क्यू को समाप्त करने में काफी समय लग जाता है... वातावरण का प्रभाव अपने पर नहीं पड़ने दो... कभी भी यह मत भूलो कि तुम अपनी पॉवरफुल वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले हो...

 

 _ ➳  बाबा ज्ञान रत्नों, वरदानों से मेरी बुद्धि रूपी झोली भर रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के ज्ञान को धारण कर ज्ञान स्वरुप बन रही हूँ... अब मैं आत्मा एक बाबा की याद में हर कर्म कर रही हूँ... अब कोई भी विघ्न आयें तो मैं आत्मा जुगनू समान अपनी स्मृति के लाइट का स्विच ऑन कर देती हूँ... मैं आत्मा सदा ही अपने स्वमान की सीट पर सेट रहती हूँ... डबल लाइट बन उडती रहती हूँ... मैं आत्मा ज्ञान स्वरूप बनकर पॉवरफुल वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तित कर देती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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