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❍ 18 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ किसी भी एक्टर से घृणा व नफरत तो नहीं की ?
➢➢ "भगवान हमारा श्रृंगार कर रहे हैं" - इसी ख़ुशी में रहे ?
➢➢ याद और सेवा के शक्तिशाली आधार द्वारा तीव्रगति से आगे बड़े ?
➢➢ इस संसार को अलोकिक खेल और परिस्थितियों को अलोकिक खिलोने के समान समझकर चले ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जब तक आपकी याद ज्वाला रुप नहीं बनी है तब तक यह विनाश की ज्वाला भी सम्पूर्ण ज्वाला रुप नहीं लेती है। यह भड़कती है, फिर शीतल हो जाती है क्योंकि ज्वाला मूर्त और प्रेरक आधार-मूर्त आत्माएं अभी स्वयं ही सदा ज्वाला रुप नहीं बनी हैं। अब ज्वाला-रुप बनने का दृढ़ संकल्प लो और संगठित रूप में मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा पावरफुल योग के वायब्रेशन चारों ओर फैलाओ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"
〰✧ अपने को श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? नाम ही है श्रीमत। श्री का अर्थ है श्रेष्ठ। तो श्रेष्ठ मत पर चलने वाले श्रेष्ठ हुए ना। यह रूहानी नशा, बेहद का नशा रहता है ना। या कभी-कभी हद का नशा भी आ जाता है? इसलिये सदा अपने को देखो-चलते-फिरते कोई भी कार्य करते बेहद का रूहानी नशा रहता है? चाहे कर्म मजदूरी का भी हो, साधारण कर्म करते अपने श्रेष्ठ नशे को भूलते तो नहीं हो? घर में रहने वाली, घर की सेवा करने वाली साधारण मातायें हैं- यह याद रहता है या जगत माता हूँ, जगत का कल्याण करने के निमित्त यह कार्य कर रही हूँ-यह याद रहता है?
〰✧ जिसे यह रूहानी नशा होगा उसकी निशानी क्या होगी? वह खुशी में रहेगा, कोई भी कर्म करेगा लेकिन कर्म के बन्धन में नहीं आयेगा, न्यारा और प्यारा होगा। कर्म के बन्धन में आना अर्थात् कर्म में फंसना और जो न्यारा-प्यारा होता है वह कर्म करते भी कर्म के बन्धन में नहीं आता, कर्मयोगी बन कर्म करता है। अगर कर्म के बन्धन में आयेंगे तो खुशी गायब हो जायेगी। क्योंकि कर्म अच्छा नहीं होगा। लेकिन कर्मयोगी बनकर कर्म करने से दु:ख की लहर से मुक्त हो जायेंगे। सदा न्यारा होने के कारण प्यारे रहेंगे। तो समझा, कैसे रहना है? कर्मबन्धन मुक्त।
〰✧ कर्म का बन्धन खींचे नहीं, मालिक होकर कर्म करायें। मालिक न्यारा होता है ना। मालिक होकर कर्म कराना-इसे कहा जाता है बन्धन-मुक्त। ऐसी आत्मा सदा स्वयं भी खुश रहेगी और दूसरों को भी खुशी देगी। ऐसे रहते हो? सुनते तो बहुत हो, अभी जो सुना है वह करना है। करेंगे तो पायेंगे। अभी-अभी करना, अभी-अभी पाना। कभी दु:ख की लहर आती है? कभी मन से रोते हो? मन का रोना तो सबको आ सकता है। तो श्रीमत है-सदा खुश रहो। श्रीमत यह नहीं है कि कभी-कभी रो लो। बहुतकाल मन से वा आंखों से रोया, रावण ने रुलाया ना। लेकिन अभी बाप के बने हो खुशी में नाचने के लिये, रोने के लिये नहीं। रोना खत्म हो गया। दु:ख की लहर-यह भी रोना है। यह मन का रोना हो गया। सुखदाता के बच्चे सदा सुख में झूलते रहो। दु:ख की लहर आ नहीं सकती। भूल जाते हो तब आती है। इसलिये अभूल बनो। अभी जो भी कमजोरी हो उसे महायज्ञ में स्वाहा करके जाना। साथ में लेकर नहीं जाना, यहाँ ही स्वाहा करके जाओ। स्वाहा करना आता है ना। दृढ़ संकल्प करना अर्थात् स्वाहा करना। यही याद रखना कि महान् हैं और महान् बनाना है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ एक सेकण्ड का वन्डरफुल खेल जिससे पास विद ऑनर बन जायें :- एक सेकण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकन्ड का खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसे स्थिति में स्थित रह सको।
〰✧ अंतिम पेपर सेकन्ड का ही होगा जो इस सेकन्ड के पेपर में पास हुआ वही पास विद आँनर होगा। अगर एक सेकन्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कंट्रोलिंग पावर है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहिए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त।
〰✧ जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। कन्ट्रोलिंग पाँवर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज कैसे करेंगे। समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकन्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकन्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही वन्डरफुल खेल।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ पहला-पहला वायदा है सब बच्चों का कि तन-मन-धन तेरा न कि मेरा। जब तेरा है, मेरा है ही नहीं तो फिर बन्धन काहे का? यह तो लोन पर बाप-दादा ने दिया है। आप ट्रस्टी हो, न कि मालिक। जब मरजीवा बन गये तो ८ ३ जन्मों का हिसाब समाप्त हो गया।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- पदमापदम् भाग्य है सदा इसी नशे में रहना"
➳ _ ➳ मीठे बाबा की यादो में खोयी... मै आत्मा अपनी खुशियो के खजाने को गिनने
में मशगूल हूँ... और अपनी ईश्वरीय अमीरी को देख देख मुस्करा रही हूँ... कितना
प्यारा अनोखी खुशियो से भरा जीवन मीठे बाबा ने सौगात सा दे दिया है... तभी मीठे
बाबा पलक झपकते ही वहाँ उपस्थित होकर... मुझे खुशहाल देख जैसे, नयनों से कह
रहे... बच्चों की खुशियो में ही मुझ पिता की खुशियां समायी है...
❉ मीठे बाबा आज खुशियो की बरसात मेरे मन आँगन में बिखराते हुए बोले :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... अब दुःख के दिन खत्म हो गए है... अब अथाह खुशियो भरे मीठे
दिन आ गए है... अब ईश्वर पिता जीवन में आ गया है... चारो ओर खुशियो की बरसात
है... इस नशे में सदा डूबे रहो कि सुख शांति प्रेम के मीठे पल आये की आये..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा के रूप में भगवान को सम्मुख देख देख पुलकित हूँ और
कह रही हूँ :- "मीठे मीठे बाबा... ऐसा प्यारा ईश्वरीय साथ भरा जीवन तो
कल्पनाओ में भी कभी न था... आज आपको पाने की ख़ुशी से छलक रहा मन... जीवन की
सच्चाई है... और मीठे सुख मुझे अपनी बाँहों में पुकार रहे है..."
❉ प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में दुलारते हुए ज्ञान धारा को बहाते हुए बोले
:- "मीठे सिकीलधे बच्चे... जो देवताई सुख कल्पनाओ से परे थे... ईश्वर पिता उन
सुख भरे खजानो को आप बच्चों की राहो में फूलो सा बिखराया है... इस ख़ुशी में सदा
झूमते रहो... अपने मीठे सुखो की यादो में खोये रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के वरदानों की छत्रछाया में स्वयं को भरपूर करते हुए
बोली :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... दुखो के जंगल में सुख की एक बून्द को
तरसती... मै आत्मा आज स्वर्ग की बादशाही पा रही हूँ... कितना प्यारा मीठा और
खुबसूरत भाग्य है... मै आत्मा आपके सारे खजानो की मालिक बन गयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा रूहानी दृष्टि देते हुए और ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारते हुए
बोले :- "मीठे लाडले फूल बच्चे... ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर जो सुखो की दौलत
पायी है... उसके नशे में खोये रहो... संगम की यही खुशियां देवताई सुखो में बदल
कर जीवन को खुशियो से महकायेंगी... इन मीठे पलो के सुख को यादो में चिर स्थायी
बनाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को अपनी मुस्कराहट से जवाब देते हुए कहती हूँ :-
"मीठे बाबा सच्चे ज्ञान को पाकर सारी भटकन से छूट गयी हूँ और आपकी छत्रछाया
में गुणवान शक्तिवान बनकर सच्ची खुशियो में खिलखिला रही हूँ... देवताई सुखो भरा
स्वर्ग अपनी तकदीर में लिखवा रही हूँ..." अपनी खुशियो की चर्चा मीठे बाबा से
कर मै आत्मा कार्य पर लौट आयी... इन मीठी ईश्वरीय यादो को दिल में समेट कर मै
आत्मा अपने जगत मे आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- किसी भी एक्टर से घृणा व नफरत नही करनी है"
➳ _ ➳ इस बेहद के सृष्टि ड्रामा में पार्ट बजाने वाली मैं हीरो पार्टधारी आत्मा
हूँ जिसने आदि से लेकर अंत तक इस बेहद ड्रामा में कल्प - कल्प हीरो पार्ट बजाया
है। इस बात को स्मृति में लाते ही पूरे 84 जन्मो का पार्ट मेरे सामने एक
पिक्चर के रूप स्पष्ट होने लगता है। सबसे पहले परमधाम में मेरा अनादि सम्पूर्ण
सतोप्रधान स्वरूप जहां से मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में ही अपने घर
परमधाम से सृष्टि रूपी रंगमंच पर इस बेहद के ड्रामा में पार्ट बजाने के लिए नई
सतोप्रधान सतयुगी दुनिया मे अवतरित हुई।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया जो अपरमअपार सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थी। जहाँ
देवतायें निवास करते थे। ऐसी दैवी दुनिया मे 20 जन्म इतना सुंदर पार्ट बजाने
के बाद द्वापर युग मे भी पूज्य आत्मा बन मैने विशेष पार्ट बजाया। ईष्टदेवी बन
अपने भक्तों की हर मनोकामना को मैने पूर्ण किया। मन्दिरों में स्थापित मेरे जड़
चित्र आज भी भक्तों की हर मनोकामना को पूरा कर रहें हैं। और अब मेरा यह
ब्राह्मण जीवन भी कितना श्रेष्ठ है। स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहें हैं। सर्व
सम्बन्धो का सुख मुझे दे रहें हैं। "वाह ड्रामा वाह" और "वाह मेरा पार्ट वाह"।
➳ _ ➳ इस बेहद के खूबसूरत ड्रामा में आदि से अंत तक के अपने विशेष हीरो पार्ट
को मन बुद्धि से देखते - देखते अब मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब इस
अंतिम जन्म में जबकि सभी हिसाब किताब चुकतू होने है इसलिए इस अंतिम जन्म में
अनेक परिस्थितियों और दुखद घटनाओ के रूप में आने वाले कर्मभोग से मुझे घबराना
नही है बल्कि ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है और बाबा की याद से हर कर्मभोग
को सहज रूप से हँसते - हँसते चुकतू करना है। स्वयं से यह प्रतिज्ञा करते -
करते मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमे
भरने के लिए मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं।
➳ _ ➳ अशरीरी बन देह और देह की दुनिया से किनारा कर, ज्ञान और योग के पंख लगा
कर मैं आत्मा अब अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती
हूँ। कुछ क्षणों की सुंदर, लुभावनी रूहानी यात्रा करके मैं पहुंच जाती हूँ उस
अद्भुत दुनिया परमधाम में अपने प्यारे मीठे बाबा के पास। संकल्पों विकल्पों की
हलचल से दूर शांति के सागर बाप के सामने मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही
हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार
रही हूँ।
➳ _ ➳ धीरे - धीरे अब मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा की ओर बढ़ रही हूँ। उनके
समीप पहुंच कर मैं जैसे ही उन्हें टच करती हूँ शक्तियों का झरना फुल फोर्स के
साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगता है। मेरा स्वरूप अत्यंत
शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने
बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा
रहा है। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं
में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ।
➳ _ ➳ शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ रही हूँ। अपने ब्राह्मण
स्वरूप में स्थित हो कर इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि "मैं
विशेष हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ"। मुझे केवल अपने पार्ट को देखना है। दूसरों के
पार्ट को देख कर प्रश्नचित नही बनना। बुद्धि में इस बात को अच्छी रीति धारण कर
अब मैं ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहकर इस बेहद ड्रामा में अपना ऐक्यूरेट पार्ट
बजा रही हूँ। ड्रामा में हर आत्मा के पार्ट को साक्षी हो कर देखते हुए और जीवन
मे आने वाली हर परिस्थिति को खेल समझते हुए क्या,क्यो, और कैसे की क्यू से
मुक्त होकर सेकण्ड में फुल स्टाप लगा कर एकरस स्थिति में स्थित रहने का
पुरुषार्थ अब मैं सहज रीति कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं याद और सेवा के शक्तिशाली आधार द्वारा तीव्रगति से आगे बढ़ने वाली मायाजीत आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं इस संसार को अलौकिक खेल और परिस्थितियों को अलौकिक खिलौने के समान समझकर चलने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘आज बापदादा अपने सर्व विकर्माजीत अर्थात् विकर्म- संन्यासी आत्माओं को
देख रहे हैं। ब्राह्मण आत्मा बनना अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करना और विकर्म का
संन्यास करना। हरेक ब्राह्मण बच्चे ने ब्राह्मण बनते ही यह श्रेष्ठ संकल्प किया
कि हम सभी अब विकर्मी से सुकर्मी बन गये। सुकर्मी आत्मा श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा
कहलाई जाती है। तो संकल्प ही है विकर्माजीत बनने का। यही लक्ष्य पहले-पहले सभी
ने धारण किया ना! इसी लक्ष्य को रखते हुए श्रेष्ठ लक्षण धारण कर रहे हो। तो अपने
आप से पूछो - विकर्मों का संन्यास कर विकर्माजीत बने हो?
✺ "ड्रिल :- विकर्मों का संन्यास कर विकर्माजीत बनकर रहना।”
➳ _ ➳ माया रावण के इच्छा, तृष्णा, आसक्ति रूपी विकारों के जहर से भरी हुई मैं
आत्मा रूपी सर्प मधुर बीन की आवाज़ सुन उसकी तरफ चली जा रही हूँ... सर्व
शक्तिवान भोलेनाथ बाबा एक पेड़ के नीचे बैठकर मधुर मुरली की बीन बजा रहे हैं...
मैं आत्मा रूपी सर्प इस मीठी मधुर मुरली की बीन पर डांस कर रही हूँ... मैं आत्मा
मधुर मुरली की तान में मगन होती जा रही हूँ... मुरली की मिठास से मुझ आत्मा रूपी
सर्प से देह रूपी खोल बाहर निकल रहा है...
➳ _ ➳ बाबा बीन बजा-बजाकर सारा जहर बाहर निकाल रहे हैं... जन्म-जन्मांतर से
मैं आत्मा माया रावण की कैद में रहकर विकारों के वशीभूत होकर कई विकर्म करती गई
और विकर्मों के बंधन में बंधती चली गई थी... रावण रूपी विकारों के सर्प ने डस
कर मुझमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का जहर भर दिया था... और मैं आत्मा
इंद्रियों के आकर्षण में पड़कर पतित बनती गई... कर्मेन्द्रियों की कठपुतली बन कई
जन्मों तक दास बनकर रह गई थी...
➳ _ ➳ मीठे बाबा से आती दिव्य किरणों में मुझ आत्मा रूपी सर्प से विकारों रूपी
सारा जहर बाहर निकलता जा रहा है... विकारों का सूक्ष्म और रॉयल स्वरुप अंश सहित
मिट रहे हैं... मैं आत्मा काली से गोरी बन रही हूँ... इंद्रियों के आकर्षण से
परे होकर मैं आत्मा इस देह रूपी खोल से बाहर निकलती हूँ और अपने असली सुन्दर
स्वरूप को देखती हूँ... मेरा निज स्वरुप कितना पवित्र, सतोगुणी, दिव्य गुणों,
शक्तियों से भरपूर संपन्न स्वरुप है...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझे अपनी गोद में लेकर अपना बच्चा बनाकर कहते हैं- मीठे
बच्चे अब तुम ब्राह्मण आत्मा बन गई हो... ब्राह्मण आत्मा बनना अर्थात श्रेष्ठ
कर्म करना और विकर्म का सन्यास करना... अब विकर्मी से सुकर्मी बन श्रेष्ठ
ब्राह्मण आत्मा बनो... विकर्माजीत बनने का लक्ष्य सामने रख श्रेष्ठ लक्षण धारण
करो... मैं ब्राह्मण आत्मा बाबा के सामने श्रेष्ठ संकल्प करती हूँ कि मैं अब
श्रेष्ठ कर्म कर सुकर्मी आत्मा बन श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा बनूँगी... विकारों के
वशीभूत होकर कोई भी विकर्म नहीं करुँगी... अब मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्म करती हुई
विकर्मों का संन्यास कर विकर्माजीत बन रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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