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❍ 16 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपनी मस्ती में रहे ?
➢➢ किसी भी बात के चिंतन में अपना समय तो नहीं गंवाया ?
➢➢ देह भान से न्यारे बन परमात्म प्यार का अनुभव किया ?
➢➢ अपनी विशेषताओ व गुणों को प्रभु प्रसाद माना ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ बाप के समीप और समान बनने के लिए देह में रहते विदेही बनने का अभ्यास करो। जैसे कर्मातीत बनने का एग्जैम्पल साकार में ब्रह्मा बाप को देखा, ऐसे फॉलो फादर करो। जब तक यह देह है, कर्मेन्द्रियों के साथ इस कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजा रहे हो, तब तक कर्म करते कर्मेन्द्रियों का आधार लो और न्यारे बन जाओ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ"
〰✧ सभी अपने को विश्व कल्याणकारी बाप के बच्चे विश्व कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? विश्व कल्याणकारी आत्माओंकी विशेषता क्या होगी? विश्व का कल्याण करने वाली आत्मा पहले स्वयं सर्व ख़जानों से सम्पन्न होगी। तो सर्व ख़जानों से भरपूर हो? कितने ख़जाने हैं? बहुत हैं ना! तो सब खजाने से भरपूर आत्मायें ही औरों को दे सकेंगी।
〰✧ अगर ज्ञान का ख़जाना है तो फुल ज्ञान हो, कोई भी कमी नहीं हो तब कहेंगे भरपूर। तो फुल है या कभी कोई कम भी हो जाता है? है लेकिन समय पर कार्य में लगा सके-ये चेकिंग सदा करते रहो। तो समय पर यूज कर सकते हो कि समय बीत जाता है पीछे सोचते हो? फिर क्या कहना पड़ता है-ऐसे करते थे, ऐसे होता था तो 'थे' और 'था' होता है। क्या चेक करना है कि समय पर जो ख़जाना चाहिये वो ख़जाना कार्य में लगा या नहीं? विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा हर समय चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में, हर समय सेवा में बिजी रहती हैं।
〰✧ तो इतने बिजी रहते हो? सबसे ज्यादा सेवा में बिजी कौन रहता है? क्योंकि जब नाम ही है विश्व कल्याणकारी तो यह आक्यूपेशन हो गया ना। तो जो आक्यूपेशन होता है उसके बिना रह नहीं सकते। तो सदा बिजी हैं और सदा रहेंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ याद के चार्ट पर थकावट का असर नहीं होना चाहिए। जितना सेवा में बिजी
रहते हो, भल कितना भी बिजी रहो लेकिन थकावट मिटाने का विशेष साधन हर घण्टे वा दो घण्टे में एक मिनट भी शक्तिशाली याद का अवश्य निकालो। जैसे कोई शरीर में कमजोर होता है तो शरीर को शक्ति देने के लिए डॉक्टर्स दो-दो घण्टे बाद ताकत की दवाई पीने लिए देते हैं।
〰✧ टाइम निकाल दवाई पीनी पडती हे ना तो बीच-बीच में एक मिनट भी अगर शक्तिशाली याद का निकालो तो उसमें ए, बी, सी, - सब विटामिन्स आ जायेंगे। सुनाया था ना कि शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती।
〰✧ जब हैं ही बाप के और बाप आपका, सर्व सम्बन्ध हैं, दिल का स्नहे हैं, नॉलेजफुल हो, प्राप्ति के अनुभवी हो, फिर भी शक्तिशाली याद सदा क्यों नहीं रहती, उसका कारण क्या? अपनी याद का लिंक नहीं रखते। लिंक टूटता है, इसलिए फिर जोडने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ चेक करो कि कौन सा लगाव नीचे ले आता है? अपनी देह का लगाव खत्म किया तो सम्बन्ध और पदार्थ के लगाव आपे ही खत्म हो जायेंगे। अपनी देह का लगाव अगर है तो सम्बन्ध और पदार्थ का लगाव भी अवश्य ही खीचेगा। इसलिए पहला पाठ पढ़ाते हो कि - देह-भान को छोड़ो, तुम देह नहीं, आत्मा हो। तो यह पाठ पहले अपने को पढ़ाया है? देह-भान को छोड़ने का सहज से सहज तरीका क्या है? चलो, आत्मा 'बिन्दी' याद नहीं आती, खिसक जाती है। लेकिन यह तो वायदा है कि तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा..। जब देह मेरी है ही नहीं तो लगाव किससे? जब मेरा है ही नहीं तो ममता कहाँ से आई? मेरे में ममता होती है। जब मैंने दे दिया तो लगाव खत्म हुआ। इस एक बात से ही सब लगाव सहज खत्म हो जायेंगे। अभी यह देह बाप की अमानत है - सेवा के लिए। तो सदा फरिश्ता बनने के लिए पहले यह प्रेक्टिकल अभ्यास करो कि - सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ। ट्रस्टी अगर ट्रस्ट की चीज में ट्रस्ट नहीं करे तो उसको क्या कहा जायेगा? इस बात को पक्का करो। फिर देखो, फरिश्ता बनना कितना सहज लगता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- अपना टाइम परचिन्तन में वेस्ट नहीं करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में बैठकर स्वदर्शन चक्र फिराती हूँ... अपने निज
स्वरूपों का दर्शन करती हूँ... स्वदर्शन करते हुए स्वचिन्तन करती हूँ कि कैसे
मैं आत्मा इस ड्रामा में अपना हीरो पार्ट बजा रही हूँ... चक्र फिराते फिराते
मैं आत्मा मधुबन पहुँच जाती हूँ और चार धामों का चक्कर लगाती हूँ... फिर शांति
स्तम्भ प्यारे बाबा के सामने बैठ बाबा को निहारती हूँ... बाबा दोनों हाथों को
फैलाए मुझे अपनी गोद में बिठाकर प्यारी प्यारी बातें करते हैं...
❉ परचिन्तन छोड़ स्व के कल्याण का पुरुषार्थ कर सोने जैसा बनकर औरो
को भी मार्ग बताने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे
बच्चे... देह और देह की दुनिया की बाते समय साँस संकल्पों को मिटटी में
मिलायेगी... इन सांसो को यादो में बैठ निखारो... स्वयं को सुनहरा संवारो और
औरो को भी ज्ञान रत्नों से दमकाओ... यह खूबसूरत रास्ता सबको बताओ...”
➳ _ ➳ प्यारे बाबा की यादों की महफ़िल में खुद को सजाकर मैं आत्मा कहती
हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... अब मै आत्मा व्यर्थ से समर्थ की और रुख
कर रही हूँ... सुनहरे जीवन के सच्चे सूत्रो को जान यादो में खो गई हूँ... खुद
भी सुंदर बन औरो को भी खूबसूरत बनाने में जुट गयी हूँ...”
❉ जीवन के दाता सांसों के स्वामी मेरे मीठे बाबा जीवन को खुशहाल
बनाते हुए कहते हैं:- “मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब सबके ख्यालो को छोड़ सिर्फ
अपने जीवन को स्वर्णिम बनाने का ख्याल करो... सच्चे सुखो के अधिकारी बन कर
ज्ञान की महक से सबको महकाओ... पूरे विश्व का कल्याण कर सबको खुशियो से भर आओ...”
➳ _ ➳ ज्ञान योग के पंखों से रूहानियत की खुशबू चारों ओर फैलाते हुए मैं
आत्मा कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान और योग के पंख लिए
खूबसूरत परी बन गई हूँ... हद के दायरों से निकल पूरे विश्व के कल्याण के भावो
में डूबी हूँ... अपने साथ सबको महकाने के प्रयासों में जुट गयी हूँ...”
❉ नई स्वर्णिम सुबह की किरणों से जीवन को रोशन करते हुए मेरे बाबा
कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... दूसरो के चिंतन में सांसो को न
खपाओ... इन मोतियो को प्यारे बाबा की मीठी यादो में पिरो खूबसूरती को पाओ...
अथाह सुखो पर अपना नाम लिखवाओ... प्रेम और शांति सुख की जन्नत में इतराओ... और
इसी खुशबु से पूरे जहान के चमन को खुशनुमा बना आओ...”
➳ _ ➳ प्यारे बाबा के अनुपम ज्ञान की जादूगरी से विश्व को महकाते हुए
मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने सदा दूसरो का ही
चिंतन किया... सदा दुखो भरा जीवन ही व्यतीत किया... अब आपके मीठे प्यार की
जादूगरी में मै सुनहरी परी बन रही हूँ... और यही जादू पूरे विश्व में फैला रही
हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- किसी भी बात के चिंतन में अपना समय नहीं गंवाना है
➳ _ ➳ 63 जन्मो से देह और देहधारियों के चिंतन में फंसी आत्मा आज इतनी दुखी और
अशांत हो गई है जिसका अनुभव आज हर मनुष्य कर रहा है, मन ही मन अपने आप से यह
बातें करती हुई मैं विचार करती हूँ कि जिस नश्वर देह और देह से जुड़े पदार्थो के
साथ आज हर मनुष्य आत्मा ने अपनी प्रीत जोड़ रखी है वो झूठी प्रीत ही तो उसके दुख
का कारण है। इस दुख और अशांति से छूटने का केवल एक ही उपाय है जो इस समय स्वयं
भगवान आ कर बता रहें हैं और वह है देह और देहधारियों के चिंतन को छोड़ स्व
चिन्तन और परमात्म चिन्तन में मन बुद्धि को बिज़ी रखना।
➳ _ ➳ अपने प्यारे पिता द्वारा दिये जा रहे इस सत्य ज्ञान को जीवन में धारण
कर, अपने मन और बुद्धि को इस नश्वर देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, स्व
चिंतन करते हुए, अपने सत्य स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए अब मैं अपना
सम्पूर्ण ध्यान अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और महसूस करती हूँ कि धीरे -
धीरे एकाग्रता की शक्ति ने मेरे मन बुद्धि को पूरी तरह मेरे उस निराकारी स्वरूप
पर स्थित कर दिया है। सिवाए मेरे निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप के अब औऱ कुछ
भी मुझे दिखाई नही दे रहा। जैसे अर्जुन को सिवाय मछली की आँख के उस बिंदु के और
कुछ भी दिखाई नही दे रहा था जहाँ उसे निशाना साधना था। ठीक इसी प्रकार अपनी
सम्पूर्ण देह में मुझे केवल भृकुटि के भव्य भाल पर चमकती हुई चैतन्य ज्योति ही
दिखाई दे रही है।
➳ _ ➳ उस जगमग करती चैतन्य ज्योति को बड़े प्यार से मन बुद्धि के दिव्य नेत्र
से मैं निहार रही हूँ जो एक अति सूक्ष्म चमकते हुए चैतन्य सितारे की भांति
दिखाई दे रहा है। जैसे आकाश में चमकते हुए सितारे में से किरणे निकलती हैं ऐसे
मुझ आत्मा सितारे में से भी शांति, प्रेम, आनंद, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति
की सतरंगी किरणे निकल रही हैं। अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह अपने सत्य
स्वरूप, गुणों और शक्तियों पर फोकस कर, कुछ क्षणों के लिए मैं खो जाती हूँ अपने
इस अति सुखमय स्वरुप में। बड़े प्यार से मैं अपने इस स्वरूप को निहार रही हूँ
और देख रही हूँ कि कितना शुद्ध और शक्तिशाली है मेरा वास्तविक स्वरूप, जिससे
मैं आज दिन तक अनजान थी।
➳ _ ➳ मन ही मन मैं अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ
जिन्होंने आकर मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप की पहचान करवाई। अपने इस अति सुखदाई
सत्य स्वरुप का भरपूर आनन्द लेकर, अपने प्यारे पिता के स्वरूप पर अपने मन
बुद्धि को एकाग्र कर, मन बुद्धि के विमान पर बैठ अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने
प्यारे पिता के पास उनके निजधाम परमधाम घर में। देख रही हूँ मैं अपने प्यारे
पिता को अपने बिल्कुल सामने जो दिखने में मेरी ही तरह बिंदु हैं किंतु गुणों
में सिंधु है।
➳ _ ➳ उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलकर मेरे चारों और सुरक्षा का
दायरा बना रही हैं। कभी मैं अपने आप को देखती हूँ तो कभी सर्वशक्तियों के दाता
अपने शिव पिता को। कितना प्यारा और अलौकिक मिलन है यह। कितनी निराली और प्यारी
लाल प्रकाश की दुनिया है यह। यहाँ आकर, स्वयं को अपने प्यारे पिता के सानिध्य
में मैं धन्य धन्य अनुभव कर रही हूँ। वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे
अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे हैं। इस बीज रूप स्थिति का सुंदर अनुभव
करने के बाद मैं आत्मा लौट आती हूं साकारी दुनिया में।
➳ _ ➳ साकारी ब्राह्मण तन में भृकुटि पर विराजमान होकर, अपने वास्तविक स्वरुप
की स्मृति में स्थित होकर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ। स्व चिंतन करते हुए, अपने
गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे मेरे आनन्दमयी, सुखमयी स्वरूप में स्थित रखने
के साथ - साथ सबको आत्मिक दृष्टि से देखने की स्मृति दिलाता है। सबको आत्मा
भाई - भाई की दृष्टि से देखने के अभ्यास से मेरी दैहिक दृष्टि वृति परिवर्तन हो
रही है इसलिए देह और देह से जुड़ी हर बात के चिंतन से मैं स्वत: ही मुक्त होती
जा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं देह - भान से न्यारी बन परमात्म प्यार का अनुभव करने वाली कमल आसनधारी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मेरी विशेषताएं वा गुण प्रभु प्रसाद हैं, मैं मेरा को तेरा में बदल कर देह-अभिमान से मुक्त होने वाली देही-अभिमानी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ऐसे नहीं सोचना कि अभी कुछ समय तो पड़ा है, इतने में विनाश तो होना नहीं है, यह नहीं सोचना। विनाश होना है अचानक। पूछकर नहीं आयेगा कि हाँ तैयार हो! सब अचानक होना है। आप लोग भी ब्राह्मण कैसे बनें? अचानक ही सन्देश मिला, प्रदर्शनी देखी, सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ बदल गये। क्या सोचा था कि इस तारीख को ब्राह्मण बनेंगे? अचानक हो गया ना! तो परिवर्तन भी अचानक होना है। आपको पहले माया और ही अलबेला बनायेगी, सोचेंगे हमने तो दो हजार सोचा था - वह भी पूरा हो गया, अभी तो थोड़ा रेस्ट कर लो। पहले माया अपना जादू फैलायेगी, अलबेला बनायेगी। किसी भी बात में, चाहे सेवा में, चाहे योग में, चाहे धारणा में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में यह तो चलता ही है, यह तो होता ही है ...., ऐसे पहले माया अलबेला बनाने की कोशिश करेगी।
➳ _ ➳ फिर अचानक विनाश होगा, फिर नहीं कहना कि बापदादा ने सुनाया ही नहीं, ऐसा भी होना है क्या! इसलिए पहले ही सुना देते हैं - अलबेले कभी भी किसी भी बात में नहीं बनना। चार ही सबजेक्ट में अलर्ट, अभी भी कुछ हो जाए तो अलर्ट। उस समय नहीं कहना बापदादा अभी आओ, अभी साथ निभाओ, अभी थोड़ी शक्ति दे दो, उस समय नहीं देंगे। अभी जितनी शक्ति चाहिए, जैसी चाहिए उतनी जमा कर लो। सबको खुली छुट्टी है, खुले भण्डार हैं, जितनी शक्ति चाहिए, जो शक्ति चाहिए ले लो। पेपर के समय टीचर वा प्रिन्सीपाल मदद नहीं करता।
✺ ड्रिल :- "अचानक की स्मृति से अलर्ट होकर अलबेलेपन से मुक्त होने का अनुभव"
➳ _ ➳ पहाड़ी की ऊँची चोटी पर खड़ी मैं आत्मा... देख रही हूँ प्रकृति के सौंदर्य को... आह्लादक नज़ारा... हरियाली की चुनरी ओढ़े सजी धरती... नीला नीला आसमान... जरमर जरमर बहते झरनें... असीम शांति की आगोश में मैं आत्मा सिर्फ एक की ही यादों में खोई हूँ... वह हैं मेरे शिवबाबा... मेरे पिता परमेश्वर... ब्रह्माण्ड के स्वामी की मैं संतान... बिंदु रूपी बाप की यादों में बिंदु रूप बनती जा रही हूँ... देवकुल की मैं देव आत्मा... देवताई गुणों के स्वामी का आह्वान करती हूँ...
➳ _ ➳ मेरे पिता परमेश्वर... अपनी राज दुलारी का दुलार भरा आह्वान सुन कर मेरे समीप आ जाते हैं... ब्रह्मा तन में अवतरित मेरे पिता का भव्य रूप देख के मैं आत्मा भाव विभोर हो जाती हूँ... अश्रुभीनी आँखों से मैं बापदादा के गले मिलती हूँ... बापदादा मुझे अपने पास बिठा कर मुझ आत्मा के सर पर आशीर्वादों से भरा रूहानी हाथ रख रहे हैं... बापदादा से आती हुई शक्तियों को मैं आत्मा अपने में धारण करती जा रही हूँ... और अचानक बापदादा का धर्मराज का रूप देख मैं आत्मा भयभीत हो जाती हूँ... बापदादा मेरा हाथ पकड़ें ले चलते हैं सूक्ष्म वतन में... और मैं आत्मा डरी हुई... सहमी सहमी सी बापदादा को देखती रहती हूँ... आँखों में अश्रु की धारा बहती ही जा रही हैं...
➳ _ ➳ सूक्ष्म वतन में बापदादा मेरे सर पर अपना हाथ रख कर मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहे हैं... मनुष्यलोक में चारों ओर विनाश का तांडव रचा हुआ हैं... प्रकृति के पाचों तत्व का विकराल रूप देख कर मैं आत्मा अचंभित हो जाती हूँ... कहीं ओर आकाश अग्नि वर्षा कर रहा है तो कहीं ओर वरुण का रौद्र रूप दिखाई दे रहा है... कहीं ओर जलसमाधि लिये हुए शहरों को देख रही हूँ... तो कहीं ओर पूरी धरती अचेतन शरीरों का बोझ उठा रही हैं... त्राहिमाम त्राहिमाम सारी सृष्टि हो गई हैं... और त्राहिमाम त्राहिमाम हर आत्मा बन गयी हैं...
➳ _ ➳ और मैं आत्मा देख रही हूँ अपने आप को इस विनाशी दुनिया में... अपने अंतिम पलों को महसूस करती हूँ... समाधि अवस्था में बैठी मैं आत्मा सिर्फ बाप को याद करती हूँ... अंतिम समय में बापदादा की गोदी का सहारा लेकर मैं आत्मा शांति का अनुभव कर रही हूँ... अब तो अपने घर को जाना हैं... अपने पिता के घर... और फिर सतयुगी दुनिया में रहना हैं... यह बात याद करती मैं आत्मा मृत्यु शैया पर भी मुस्कुराती रहती हूँ... बाप के रंग में रंगी मैं आत्मा... अब मृत्यु को अपने गले का हार बना रही हूँ... अपने अंतिम समय में बापदादा का शुक्रिया अदा करती हूँ... कर्मातीत अवस्था की अंतिम स्टेज पर पहुँची मैं आत्मा... अपनी आँखों से बापदादा को ही देख रही थी... अंतिम स्वांस लेती मैं आत्मा... बापदादा की बाहों में सदा के लिए समां जा रही हूँ...
➳ _ ➳ बापदादा का रूहानी हाथ मेरे सर से उठते ही... मैं आत्मा वापिस स्थूल शरीर में प्रवेश करती हूँ... और मैं आत्मा यह नज़ारा देख मन ही मन अपने स्थूल देह को श्रद्धांजलि अर्पण करती हूँ... खुद के ही हाथों मंसा अग्निदाह दे रही हूँ... और बापदादा को मुस्कुराते हुए देखती हूँ... उनका धर्मराज का रूप परिवर्तित हो कर मेरे बाबा का रूप दिखाई दे रहा है... और बापदादा द्वारा सतयुगी स्वराज्य अधिकार को प्राप्त करती हूँ... अंत में ही आरम्भ को देखती मैं आत्मा कब बापदादा का सन्देश मिला... कैसे प्रदर्शनी देखी... कब सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ और अचानक ही बापदादा की बन गईं... कभी सोचा भी नहीं था कि ब्राह्मण जन्म मिलेगा... और ऐसा शानदार... वैभवी ठाठबाठ... से खुद के ही हाथों से खुद का अग्निदाह करने को मिलेगा... बापदादा के महावाक्य "अंत मती सो गति" को सफल कर दिखाया...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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