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❍ 24 / 12 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपना खान-पान बोल-चाल सब सात्विक रखा ?
➢➢ अविनाशी ज्ञान रत्नों की निराकारी खान से अपनी झोली भरकर आपार ख़ुशी में रहे ?
➢➢ मन-बुधी को आर्डर प्रमाण विधिपूर्वक कार्य में लगाया ?
➢➢ समय को शिक्षक न बना मास्टर विश्व शिक्षक बनकर रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ शरीर में होते निराकारी आत्मिक रुप में स्थित रहो तो यह साकार रूप गायब हो जायेगा। जैसे साकार बाप को देखा, व्यक्त गायब हो अव्यक्त दिखाई देता था। तो ऐसी अवस्था बनाने के लिए मन्सा में निराकारी स्टेज, वाचा में निरहंकारी और कर्म में निर्विकारी स्टेज हो। संकल्प में भी कोई विकार का अंश न हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं खुशी के खजाने से सम्पन्न आत्मा हूँ"
〰✧ सदा खुशी के खजानों से खेलने वाले हो ना? खुशी भी एक खजाना है जिस खजाने द्वारा अनेक आत्माओंको माला माल बना सकते हो। आजकल विशेष इसी खजाने की आवश्यकता है। और सब हैं लेकिन खुशी नहीं। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गयी है। अनगिनत खजाना मिल गया है।
〰✧ खुशी के खजाने में भी वैराइटी है ना। कभी किस बात की खुशी कभी किस बात की खुशी। कभी बालक पन की खुशी तो मालिकपन की खुशी। कितने प्रकार के खुशी के खजाने मिले हैं। वो वर्णन करते हुए औरों को भी मालामाल बना सकते हो। तो इन खजानों को सदा कायम रखो। और सदा खजानों के मालिक बनो।
〰✧ सदा बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों को कार्य में लगाते रहो। बाप ने तो शक्तियाँ दे दी हैं। अब सिर्फ उन्हें कार्य में लगाओ। सिर्फ मिल गया है, इसमें खुश नहीं रहो लेकिन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज करो तो सदा मालामाल अनुभव करेंगे।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ चाहे प्रकृति के पाँचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परंतु विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद ऑनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद ऑनर का सबूत रहेगा।
〰✧ बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। आप सोचते भी हो, प्लैन बनाते भी हो, बनाओ। भले सोचो लेकिन क्या होगा! उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोची लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो।
〰✧ अभी आवश्यकता स्थिति की है। यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। जैसे बादल आये, चले गये। और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोची।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ फ़रिश्ते अर्थात् भक्तों को और वैज्ञानिकों को टचिंग कराने वाले (दीदी से) वर्तमान समय महावीरों की वतन में विशेष महफिल लगती है। क्यों लगती है, वह जानती हो? आजकल बापदादा ने जैसे स्थापना में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने की सेवा ली, ऐसे आजकल अष्ट रत्न सो इष्ट रत्न उनको भी शक्ति के रूप में साथ-साथ साक्षात्कार कराने की सेवा कराते हैं। स्थूल शरीर द्वारा साकारी ईश्वरीय सेवा में बिजी रहते हो लेकिन आजकल अनन्य श्रेष्ठ आत्माओं की डबल सेवा चल रही है। जैसे ब्रह्मा द्वारा स्थापना की वृद्धि हुई वैसे अभी शिव-शक्ति के कम्बाइन्ड स्वरूप द्वारा साक्षात्कार और सन्देश मिलने का कार्य आपके सूक्ष्म शरीरों द्वारा भी हो रहा है। तो बापदादा अनन्य बच्चों को इस सेवा में भी सहयोगी बनाते हैं। इसलिए सूक्ष्म सेवा के प्रैक्टिकल प्लैन के कारण वहाँ महफिल लगती है। इसलिए महावीर बच्चों को कर्म करते भी किसी भी कर्मबन्धन से मुक्त सदा डबल लाइट रूप में रहना है। बाप ने सूक्ष्म वतन में इमर्ज किया, सेवा कराई- उसकी अनुभूति इस साकार सृष्टि से भी कर सकते हो। ऐसे अनुभव आगे चल कर बहुत करेंगे। डबल सेवा का पार्ट चल रहा है। बापदादा अनन्य बच्चों के संगठन द्वारा भक्तों को और वैज्ञानिकों को, दोनों को टचिंग कराने की सेवा कराते रहते हैं। उनमें अनन्य भक्ति के संस्कार भर रहे हैं जो आधा कल्प भक्ति मार्ग को चलाते रहेंगे। और वैज्ञानिकों को परिवर्तन करने और रिफ़ाइन साधन बनाने में। जो साधन जैसे ह सम्पन्न होंगे तो उसका सुख सम्पूर्ण आत्मायें लेंगी। ये (वैज्ञानिक) नहीं ले सकेंगे। तो दोनों ही कार्य सूक्ष्म सेव द्वारा हो रहे हैं। समझा?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- अपने दीपक की संभाल स्वयं करनी है"
➳ _ ➳ मीठे मधुबन के प्रांगण में... मै आत्मा बाबा की यादो में
चहल कदमी करते हुए... अपने प्यारे से बाबा की यादो में डूब जाती हूँ... और यूँ
यादो में खोयी खोयी सी... में आत्मा अपने कदमो का रुख मीठे बाबा के कमरे की ओर
बढ़ाती हूँ... मुझ आत्मा के स्वागत में पलके बिछाये बाबा मेरे ही इंतजार में
बेठे है... मुझे देखते ही बाबा खिल उठते है... अपने बच्चे को सम्मुख देख
प्यारे पिता का असीम प्यार उमड़ आया है... और मै और बाबा एक दूजे के नयनों में
खो से जाते है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को देवताई सौंदर्य से दमकाते हुए बोले :-
"मीठे प्यारे फूल बच्चे... सवेरे सवेरे उठकर मीठे बाबा की यादो में अपनी मद्धम
हो गयी रौशनी को, पुनः प्रज्जवलित करो... मीठे बाबा की यादो में अपने सारे
विकर्मो को भस्म करके, दिव्य गुण और शक्तियो से सज जाओ... यह यादे ही खोया हुआ
प्रकाश पुनः वापिस दिलायेगी..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा को दिल से शुक्रिया करते हुए कहती हूँ
:- "मीठे मीठे बाबा... देह की दुनिया में लिप्त होकर मै आत्मा अपने वजूद को ही
खो गयी थी... आपने मुझे यादो के सत्य के प्रकाश में फिर से तेजस्वी बनाया
है... आपके प्यारे से साथ में, मै आत्मा अपनी रूहानियत को पाकर पुनः खुबसूरत
होती जा रही हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को आत्मिक तेज से प्रकाशित करते हुए बोले
:- "मीठे लाडले बच्चे... अमृतवेले यादो भरे मौसम में ईश्वरीय याद में गहरे डूब
जाओ... और अपनी खोयी पवित्रता को पाकर देवताई सुखो में मुस्कराओ... यादो के
घृत से आत्मिक तेज को बढ़ाओ... सवेरे मीठे बाबा संग प्यार भरी बातो में खो
जाओ... और यूँ ही यादो में के नशे में डूबे हुए, स्वर्ग के मीठे सुख अपनी हथेली
पर सजाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की ओर बड़े ही प्रेम से निहारती हुई कहती हूँ
:- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर आपकी मीठी यादो के साये
तले, अपनी देवताई दिव्यता को पाती जा रही हूँ... देह की मिटटी में विकारो की
धूल से धूमिल हो गयी अपनी खोयी छवि को पुनः तेज से भर रही हूँ... मै आत्मा
अमृतवेले यादो में तेजस्वी बन रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी सारी शक्तियो से भरपूर करते हुए
बोले :- "मीठे सिकीलधे बच्चे... सवेरे उठकर मीठे बाबा की मधुर यादो में रहकर
स्वयं को नूरानी बनाओ... अपनी खोयी सुंदरता को पाकर विश्व राज्य तिलक को
पाओ... यादो में गहरे डूबकर अपनी असीम शक्तियो से पुनः सज जाओ... और खुशियो भरे
स्वर्ग पर मुस्कराता हुआ जीवन पाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने मीठे बाबा को दिल से वादा करते हुए कहती हूँ :-
"मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जिन सच्ची खुशियो से मुझे सजाया
है, ज्ञान श्रंगार से मुझे बेशकीमती बनाया है, और अपनी यादो की खुशबु में सदा
का निखारा है, उसका मै किन शब्दों में शुक्रिया करूँ..." ऐसी मीठी प्यारी
रुहरिहानं अपने बाबा सुनाकर... मै आत्मा साकार तन में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप समान रूप बसन्त बनना है"
➳ _ ➳ अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे,
एक झील के किनारे बैठी हुई मैं शीतल हवाओं का आनन्द ले रही हूँ औऱ अपने प्यारे
बाबा के साथ सर्व सम्बन्धो के गहन सुख का अनुभव करके मन ही मन आनन्दित हो रही
हूँ। अपने निराकार भगवान को कभी अपने प्यारे पिता के रूप में आप समान बनाने की
समझानी देते हुए तो कभी माँ के रूप में अपनी किरणों रूपी बाहों में समाकर अपने
ऊपर असीम स्नेह बरसाते हुए, कभी सच्चे दोस्त के रूप में अपने साथ मीठी - मीठी
रूह रिहान करते हुए और कभी साजन बन ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार
करते हुए मैं देख रही हूँ।
➳ _ ➳ हर सम्बन्ध के सुख का अनुभव बाबा के साथ करते हुए मैं दिल से अपने
प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ और बाबा के असीम प्यार का, उनके उपकारों
का रिटर्न उन्हें देने के लिए उनसे और स्वयं से ये प्रोमिस करती हूँ कि जैसे
रूप बसन्त मेरे प्यारे बाबा ने मेरे जीवन मे आकर ज्ञान और योग के चन्दन से मेरे
जीवन की फुलवारी को महका दिया है, जीवन को सरस और आनन्दमयी बनाने वाला सत्य
ज्ञान देकर मुझे जीने का नया ढंग सिखा दिया है ऐसे ही अपने अति मीठे और प्यारे
रूप बसन्त बाबा के समान बन कर अब मैं भी औरों के जीवन को महकाऊंगीं। अपने
ज्ञान सागर शिव पिता द्वारा दिये ज्ञान का अच्छी तरह विचार सागर मन्थन कर उनके
समान रूप बसन्त बन कर अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन को खुशहाल बनाऊंगी।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करके परमात्म बल से स्वयं को भरपूर
करने के लिए अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की याद में अपने मन औऱ बुद्धि को मैं
स्थिर करती हूँ और एक अद्भुत रूहानी यात्रा पर चलने के लिए तैयार हो जाती हूँ।
मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं मेरी ये रूहानी यात्रा शुरू हो जाती है।
देख रही हूँ अब मै स्वयं को देह, देह की दुनिया और देह के सर्व सम्बन्धो से
एकदम अलग एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर
चमकते हुए। मुझ बिंदु आत्मा से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मन को सुकून दे
रहा है। अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से
निहारते हुए मैं अपने इस स्वरूप का आनन्द लेते हुए अब एक प्वाइंट ऑफ लाइट के
रूप में भृकुटि सिहांसन को छोड़ देह की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और धीरे -
धीरे इस यात्रा पर आगे बढ़ने लगती हूँ।
➳ _ ➳ मुझ चैतन्य शक्ति आत्मा से निकल रहा प्रकाश मेरे चारों और एक दिव्य
कार्ब का निर्माण कर रहा है और इस दिव्य कार्ब के साथ अपने सातों गुणों के
शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों और फैलाती हुई मैं ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ।
सेकेंड में आकाश को पार कर, उससे ऊपर अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन में
पहुँच कर, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, ज्ञान श्रृंगार करने के
लिए मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ। बड़े प्यार से अपनी बाहों में भरकर बाबा
अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटाकर, मुझे मीठी दृष्टि देते हुए
मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और बड़े प्यार से अपने हाथों से
मेरा श्रृंगार करते हैं।
➳ _ ➳ ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से बाबा मुझे सजाते हुए मुझ पर
बलिहार जा रहें हैं। मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए मेरे गले मे दिव्य
गुणों की माला और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना रहें हैं। ज्ञान, गुण और
शक्तियों से मेरा श्रृंगार कर एक दुल्हन की तरह बाबा मुझे सजा रहें हैं।
अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर अब मैं स्वयं को ज्ञान के अखुट
ख़ज़ानों से भरपूर करने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान
सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं
को भरपूर करने के लिए उनके समीप जाकर उन्हें टच करती हूँ। बाबा को छूते ही
ज्ञान की मीठी फुहारों का झरना मेरे ऊपर बरसने लगता है और परमात्म ज्ञान की
शक्ति से मैं आत्मा भरपूर हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों का स्पर्श पाकर, बाबा के समान रूप
बसन्त बन कर मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकार लोक में प्रवेश कर
अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण
स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा
ज्ञान रत्न निकालते हुए, मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ।
ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की
छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से
भरपूर करके, रूप बसन्त बन, विचार सागर मन्थन कर, अब मैं सबको ज्ञान दान देकर
सबके जीवन की फुलवारी को महकाने की सेवा दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
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मैं मन - बुद्धि को आर्डर करने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं विधि पूर्वक कार्य करने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं निरन्तर योगी आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
मैं मास्टर विश्व शिक्षक हूँ ।
✺ मैं आत्मा समय को शिक्षक बनाने से मुक्त हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा ने देखा है कि एक संस्कार या नेचर कहो, नेचर तो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन सर्व का स्नेही और सर्व बातों में, सम्बन्ध में सफल, मन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता तब आ सकती है जब इजी नेचर हो। अलबेली नेचर नहीं। अलबेलापन अलग चीज है। इजी नेचर उसको कहा जाता है - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देवे। इजी अर्थात् मिलनसार। टाइट नेचर बहुत टू-मच आफीशियल नहीं, आफीशियल रहना अच्छा है लेकिन टू-मच नहीं और समय पर जब समय ऐसा है, उस समय अगर कोई आफीशियल बन जाता है तो वह गुण के बजाए, उनकी विशेषता उस समय नहीं लगती। अपने को मोल्ड कर सके, मिलनसार हो सके, छोटा हो, बड़ा हो। बड़े से बड़ेपन में चल सके, छोटे से छोटेपन में चल सके। साथियों में साथी बनके चल सके, बड़ों से रिगार्ड से चल सके। इजी मोल्ड कर सके, शरीर भी इजी रखते हैं ना तो जहाँ भी चाहें मुड जाते हैं और टाइट होगा तो मुड नहीं सकेगा। अलबेला भी नहीं, इजी है तो जहाँ चाहे इजी हो जाए, अलबेला हो जाए। नहीं। बापदादा ने कहा ना इजी हो जाओ तो इजी हो गये, ऐसे नहीं करना। इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप बना सके।
✺ ड्रिल :- "इजी नेचर से जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश वैसा अपना स्वरूप बनाना"
➳ _ ➳ कोटो में कोई और कोई में भी कोई मैं पदमापदम सौभाग्यशाली आत्मा... ब्रह्मामुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा बन गई... शुक्रिया अदा करती मैं संगमयुगी आत्मा... बैठी हूँ बाबा के कमरे में... बापदादा का भावपूर्ण आह्वान करती मैं आत्मा ज्योतिपुंज... अपने शरीर के अकालतख्त पर विराजमान हूँ... देह अभिमान से मुक्त मुझ आत्मा का प्यार भरा आह्वान सुनकर बापदादा आ जाते हैं मेरे समीप... बाबा का कमरा दिव्य अलौकिक खुशबू से भर जाता हैं... बापदादा का फ़रिश्ता स्वरुप गोल्डन तेजोमय किरणों से प्रकाशित हो रहा हैं...
➳ _ ➳ बापदादा से आती हुई रंग बिरंगी चमकीली किरणों का फाउंटेन पूरे कमरे में फ़ैल गया हैं... मैं आत्मा परिपूर्ण होती जा रही हूँ... मुझ आत्मा का स्थूल शरीर भी पवित्र होता जा रहा हैं... मैं आत्मा अपने स्थूल शरीर का त्याग कर फ़रिश्ता स्वरुप धारण करती हूँ... और मैं आत्मा अपने फ़रिश्ते स्वरुप में चल पड़ती हूँ बापदादा के साथ... एक ग्लोब की चोटी पर... बापदादा के संग मैं आत्मा बैठी हूँ ग्लोब की चोटी पर... बापदादा एक सीन दिखा रहे हैं... एक बड़ा हॉल हैं जहाँ एक फंक्शन चल रहा हैं... बच्चे... जवान... वृद्ध... सभी खुश खुशहाल नजर आ रहे हैं...
➳ _ ➳ खाना-पीना... ऐश-आराम की कोई कमी नहीं थी... भरपूरता ही भरपूरता थी... बस कमी थी तो संस्कारों की... न बड़ो का लिहाज रखा जा रहा था और न बच्चों और छोटो से प्यार भरा आचरण था... युवा पीढ़ी अपने ही दैहिक आकर्षणों में उलझी हुई थी... चारो तरफ वातावरण अस्त-व्यस्त दुराचार से भरा हुआ था... तभी वहाँ पर एक ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी के एक ग्रुप का आगमन होता हैं... वाइट ड्रेस में... श्री लक्ष्मी श्री नारायण का बैच पहने... हाथों में बापदादा का झंडा लहराए... द्वार पे खड़े थे... प्रोग्राम के आयोजक से परमिशन लेकर ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियों ने शिव प्रदर्शनी का आयोजन किया...
➳ _ ➳ और पूरे हॉल में डीप साइलेंस छा जाता हैं... जब ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का प्रवचन स्टार्ट होता हैं... भगवान कौन... हम कौन... सारे सृष्टि चक्र का राज... संगमयुग में भगवान के अवतरण को जानकर सभी उपस्थित अचम्भित हो जाते हैं... न कभी सुना ऐसा गुह्य ज्ञान... सुन कर भाव विभोर हो जाते हैं... ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का मिलनसार व्यक्तित्व... संयमपूर्वक वार्तालाप... नजरों में... वाणी में... एक एक बोल में... प्यार भरी मिठास देख के... सुन के... सभी उपस्थित लोगों का दिल ख़ुशी के हिलोरे ले रहा हैं... और मैं फ़रिश्ता आत्मा यह नजारा देख मन ही मन बाबा को धन्यवाद कहती हूँ... बापदादा से प्रवाहित होता किरणों का झरना उन सभी उपस्थित और ब्रह्माकुमार - ब्रह्माकुमारियों पर प्रवाहित हो रहा हैं और सभी के व्यक्तित्व में निखार आ रहा हैं... सभी को अपनी भूलों का अहसास होता है... और सभी का व्यवहार मिलनसार... खुशनुमा बनता जा रहा हैं...
➳ _ ➳ बाबा के पवित्र... रूहानी किरणों से सभी आत्माओं की ज्योति जग जाती हैं... और सभी बाबा के बच्चे बन जाते हैं... ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में राजयोग मेडिटेशन का कोर्स कर बापदादा की श्रीमत पर पूरा पूरा बलिहार जाते हैं... सभी उपस्थित आत्मायें... सर्व का स्नेही और सर्व बातों में, सम्बन्ध में सफल, मन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता लाने में सक्षम हो जाते हैं... इजी नेचर - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इजी कर देना ही अब हम सभी ब्राह्मण आत्माओं का ईश्वरीय कर्तव्य बन गया हैं... बाबा से आशीर्वाद लेती मैं आत्मा वापिस अपने स्थूल देह में प्रवेश करती हूँ और अपने लौकिक कार्य में इजी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप अनुभव कर रही हूँ।
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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