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 16 / 10 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ सर्विस में बड़ा एक्यूरेट रहे ?

 

➢➢ इस कीचड़े की दुनिया से दिल तो नहीं लगाई ?

 

➢➢ "पहले आप" के मन्त्र द्वारा सर्व से स्वमान प्राप्त किया ?

 

➢➢ सूरत द्वारा सेवा की ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे देखना, सुनना, सुनाना-ये विशेष कर्म सहज अभ्यास में आ गया है, ऐसे ही कर्मातीत बनने की स्टेज अर्थात् कर्म को समेटने की शक्ति से अकर्मी अर्थात् कर्मातीत बन जाओ। एक है कर्म-अधीन स्टेज, दूसरी है कर्मातीत अर्थात् कर्म-अधिकारी स्टेज। तो चेक करो मुझ कर्मेंन्द्रिय-जीत स्वराज्यधारी राजाओं की राज्य कारोबार ठीक चल रही है?

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं फरिश्ता हूँ"

 

  अपने को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करते हो? डबल लाइट स्थिति फरिश्तेपन की स्थिति है। फरिश्ता अर्थात् लाइट। जब बाप के बन गये तो सारा बोझ बाप को दे दिया ना? जब बोझ हल्का हो गया तो फरिश्ते हो गये। बाप आये ही हैं बोझ समाप्त करने के लिए। तो जब बाप बोझ समाप्त करने वाले हैं तो आप सबने बोझ समाप्त किया है ना? कोई छोटी-सी गठरी छिपाकर तो नहीं रखी है? सब कुछ दे दिया या थोड़ा-थोड़ा समय के लिए रखा है? थोड़े-थोड़े पुराने संस्कार हैं या वह भी खत्म हो गये? पुराना स्वभाव या पुराना संस्कार, यह भी तो खजाना है ना। यह भी दे दिया है?

 

  अगर थोड़ा भी रहा हुआ होगा तो ऊपर से नीचे ले आयेगा, फरिश्ता बन उड़ती कला का अनुभव करने नहीं देगा। कभी ऊंचे तो कभी नीचे आ जायेंगे। इसलिए बापदादा कहते हैं सब दे दो। यह रावण की प्रापर्टी है ना। रावण की प्रापर्टी अपने पास रखेंगे तो दु:ख ही पायेंगे। फरिश्ता अर्थात् जरा भी रावण की प्रापर्टी न हो, पुराना स्वभाव या संस्कार आता हैं ना? कहते हो ना - चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया, कर लिया या हो जाता है। तो इससे सिद्ध है कि छोटी-सी पुरानी गठरी अपने पास रख ली है। किचड़-पट्टी की गठरी है।

 

  तो सदा के लिए फरिश्ता बनना - यही ब्राह्मण जीवन है। पास्ट खत्म हो गया। पुराने खाते भस्म कर दिये। अभी नई बातें, नये खाते हैं। अगर थोड़ा भी पुराना कर्जा रहा होगा तो सदा ही माया का मर्ज लगता रहेगा क्योंकि कर्ज को मर्ज कहा जाता है। इसलिए सारा ही खाता समाप्त करो। नया जीवन मिल गया तो पुराना सब समाप्त

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  महारथियों की स्थिति औरों से न्यारी और प्यारी स्पष्ट हो रही है ना। जैसे ब्रह्माबाप स्पष्ट थे, ऐसे नम्बरवार आप निमित आत्माएँ भी साकार स्वरूप से स्पष्ट होती जाती। कर्मातीत अर्थात न्यारा और प्यारा।

 

✧  कर्म दूसरे भी करते हैं और आप भी करते हो लेकिन आपके कर्म करने में अन्तर है। स्थिति में अन्तर है। जो कुछ बीता और न्यारा बन गया। कर्म किया और वह करने के बाद ऐसा अनुभव होगा जैसे कि कुछ किया नहीं।

 

✧  कराने वाले ने करा लिया। ऐसी स्थिति का अनुभव करते रहेंगे। हल्का-पन रहेगा। कर्म करते भी तन का भी हल्का-पन, मन की स्थिति में भी हल्का-पन। कर्म की रिजल्ट मन को खैच लेती है। ऐसी स्थिति है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧ बापदादा जब सुनते हैं आज बहुत बिजी, बहुत बिजी, शक्ल भी बिजी कर देते हैं, बापदादा मानते नहीं हैं। जो चाहे वह कर सकते हो। अटेन्शन कम है। जैसे वह अटेन्शन रखते होना - १० मिनट में यह लेटर पूरा करना है, इसीलिए बिजी होते हो ना, टाइम के कारण। ऐसे ही सोचो १० मिनट में यह काम करना है, वह भी तो टाइमटेबल बनाते हो ना। इसमें एक-दो मिनट पहले से ही एड कर दो। ८ मिनट लगना है, ६ मिनट नहीं, ८ मिनट लगना है तो २ मिनट साधना में लगाओ। यह हो सकता है? कितना भी बिजी हों, लेकिन पहले से ही साधन के साथ साधना का समय एड करो। लेकिन स्व-उन्नति या साधना बीच-बीच में न करने से थकावट का प्रभाव पड़ता है। बुद्धि भी थकती है, हाथ-पाँव भी थकता है और बीच-बीच में अगर साधना का समय निकालो तो जो थकावट है ना वह दूर हो जाये, खुशी होती है ना। खुशी में कभी थकावट नहीं होती है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- आत्मा से विकारों का किचड़ा निकाल शुद्ध फूल बनना"

➳ _ ➳  अपने भाग्य के नशे में झूमती गाती मैं आत्मा मेरे भाग्य विधाता के पास वतन में पहुँच जाती हूँ... इस मरुस्थल रूपी कलियुगी दुनिया से निकाल मुझे सदाबहार संगमयुग में ला दिया है... विकारों रूपी कांटे निकाल ज्ञान योग के पानी से सींचकर रूहानी फूल बनाकर सजा दिया है... मैं आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ अपने अन्दर पावनता की खुशबू भरने...  

❉  बाबा का बनकर कोई भूल ना करने की शिक्षा देते हुए प्यारे  बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... प्यारा बाबा बड़ी उम्मीदों से फूल बच्चों को देख रहा... अब ईश्वर पिता का हाथ छुड़ा फिर विकारो का हाथ न थामना... भूल से भी यह भूल न करना... प्यारे बाबा की लाज रखना... और दिव्य गुणो की धारणा से बाबा का नाम रौशन कर सदा का मुस्कराना...”

➳ _ ➳  अपने दिल की गहराईयों से प्यारे बाबा का धन्यवाद करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की आपके दुलार की ममता की रोम रोम से ऋणी हूँ... मीठे बाबा आपने मेरे दुखो भरे कलुषित जीवन को सुखो का पर्याय बनाया है... मुझे फूलो सा खिलाया है... ईश्वरीय प्यार को पाकर निहाल हूँ...”

❉  मेरे मन आंगन में यादों की हरियाली बिखरते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस संकल्प समय को यादो से भर लो... ईश्वरीय यादो में इस कदर महक उठो की हर दिल इस खुशबु से सुवासित हो उठे... आपकी चमक से पिता के आने की आहट गूंजे... ऐसा रूहानियत भरा महकता जीवन हो... अपने हर कर्म को ईश्वरीय यादो से भरकर सुकर्म बनाओ...”

➳ _ ➳  मैं आत्मा सदा पावनता की खुशबू से महकते हुए प्यारे मीठे बाबा से कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में अतीन्द्रिय सुख में झूल रही हूँ...  हर कर्म बाबा की मीठी मीठी यादो में डूबी हो कर रही हूँ... सदा श्रीमत को पलको में लिए जीवन को  श्रृंगार  रही हूँ... अपने श्रेष्ठ कर्मो से प्यारे बाबा की झलक पूरे जहान को दिखा रही हूँ...”

❉  मुझे विकारों के दलदल से निकाल श्रीमत के आशियाने में बिठाकर मेरे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब जो ईश्वर पिता ने बाँहों में भरकर असीम प्यार किया है ज्ञान खजानो को लुटाकर मालामाल किया है... ईश्वरीय जागीर नाम कर बादशाह बनाया है तो श्रीमत को कभी न छोडो... भूल कर भी कोई भूल न करो और ऐसे निस्वार्थ प्रेम को बदनाम न करो... हर कदम अपनी सम्भाल करो...”

➳ _ ➳  अपने रोम-रोम में प्यारे बाबा के प्यार को बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार का दिव्य गुणो का अथाह ज्ञान रत्नों का कैसे शुक्रिया करूँ... आपने प्यारे बाबा दुखो से उबार कर मुझे फूलो के गलीचे पर रख दिया है... सारी खुशियो की फुलवारी मेरे दिल आँगन में सजा दी है... ऐसे मीठे बाबा का किन शब्दों में धन्यवाद मै करूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   "ड्रिल :- खुशबूदार फूल बनना है"

➳ _ ➳  एक खुशबूदार फूलों के बगीचे में टहलते हुए, रंग बिरंगे खुशबूदार फूलों को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि इन फूलों की खूबसूरती और खुशबू इस बग़ीचे की सुंदरता को कैसे निखार रही है! इन फूलों की महक कैसे हर आने जाने वाले को आकर्षित कर रही है। जो भी मनुष्य इस बगीचे के सामने से गुजरता है वह इस बगीचे के अंदर आने से स्वयं को रोक ही नही पाता। इन फूलों की सुगंध से यहां का वायुमण्डल ऐसी ताजगी से भर गया है कि यहां आकर जैसे मनुष्य की सारी थकावट ही दूर हो जाती है और वह स्वयं को एकदम रिफ्रेश अनुभव करता है।

➳ _ ➳  ऐसा ही फूलों के समान सुगन्धित जीवन अगर हर मनुष्य का बन जाये और सभी एक दूसरे को ईर्ष्या, द्वेष, नफरत के कांटे चुभाने के बजाए एक दूसरे पर स्नेह, सहयोग और प्रेम के फूल बरसाये तो ये दुनिया स्वर्ग बन जाये। यही विचार करते - करते अपनी आंखों को मूंद कर मैं उस वायुमण्डल में फैली खुशबू का गहराई तक स्वयं में समाते हुए एकाएक अनुभव करती हूँ जैसे मेरे ऊपर असंख्य रंग बिरंगे पुष्पों की वर्षा हो रही है और उनकी खुशबू मेरे रोम - रोम में समाती जा रही है।

➳ _ ➳  इस खूबसूरत दृश्य का आनन्द लेते - लेते मैं जैसे ही अपनी आंखों को खोलती हूँ तो देखती हूँ बापदादा हजारों भुजाओं को फैलाये मेरे सिर के ऊपर स्थित हैं और उनकी हजारों भुजाओं से सर्वशक्तियों की अनन्त शीतल फ़ुहारें रंग बिरंगे पुष्पों के रूप में मेरे ऊपर बरस रही है। बापदादा से आ रही सर्वशक्तियों की ये शीतल फुहारें मुझे डबल लाइट स्थिति में स्थित कर रही हैं। मेरा शरीर एक दम हल्का लाइट का बन गया है और मेरे लाइट के शरीर से दिव्य सुगन्ध से भरी रंग बिरंगी रश्मियां निकल रही हैं जो आस पास के वायुमण्डल को भी दिव्य और अलौकिक बना रही हैं।

➳ _ ➳  पुष्पों की सुगंध की भांति मेरे अंग - अंग से निकल रही रश्मियों में समाई रूहानी खुशबू भी चारों और फैल रही है और वहां उपस्थित सभी आत्माओं को आनन्द की अनुभूति करवा रही हैं। इस रूहानी वायुमण्डल का गहन आनन्द लेते - लेते मैं महसूस करती हूँ जैसे बापदादा अपना हाथ आगे बढ़ाकर "आओ मेरे रूहे गुलाब बच्चे" कहकर मेरा आह्वान कर रहें हैं। बापदादा के हाथ मे अपना हाथ थमाते ही मैं अनुभव करती हूँ कि बापदादा का हाथ थामे एक खूबसूरत अदबुत रूहानी यात्रा पर जैसे मैं जा रही हूँ। इस रमणीक खूबसूरत यात्रा पर चलते - चलते बापदादा के साथ उनके अव्यक्त वतन में मैं पहुँच जाती हूँ।

➳ _ ➳  रंग बिरंगे पुष्पों से सजे एक बहुत ही सुंदर झूले पर बापदादा मुझे अपने साथ बिठा लेते हैं। अपनी दृष्टि से बापदादा अपनी सारी रूहानी शक्ति मेरे अंदर प्रवाहित करने लगते हैं। अपने वरदानी हाथ में मेरा हाथ लेकर सर्व गुणों, सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर कर देते हैं। मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगाकर, "रूहानी खुशबू फैलाने वाले रुहेगुलाब भव" का वरदान देकर, मेरे सिर के ऊपर रूहानी पुष्पों का इसेन्स डाल रूहानी खुशबू मुझ में भर देते हैं।

➳ _ ➳  सर्वगुणों, सर्वशक्तियों की रूहानी खुशबू को अपने अंग - अंग में बसाकर अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ मैं वापिस साकारी दुनिया मे आती हूँ और अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर स्वयं को सदा लाइट माइट अनुभव करते हुए, बाबा की श्रीमत पर बाप समान प्यारा बन स्वयं को गुलगुल ( फूल ) बनाकर अपनी रूहानी खुशबू से मैं अब सबके जीवन को महका रही हूँ। मेरी रूहानी खुश्बू मेरे सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परमात्म प्रेम के रंग में रंग कर उन्हें भी गुलगुल ( फूल ) बनने की प्रेरणा दे रही है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं "पहले आप" के मन्त्र द्वारा सर्व का स्वमान प्राप्त करने वाली निर्माण सो महान आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   मैं सूरत द्वारा सेवा करने के लिए अपना मुस्कुराता हुआ रमणीक और गंभीर स्वरूप इमर्ज करने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ  ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   ब्रह्मा बाप यही कहते कि बच्चे सोचते बहुत हैंक्या होगा, यह होगावह होगा... यह होगा वा नहीं होगा...! यह होगा! - इस सोच में ज्यादा रहते हैं। यह तो नहीं होगा! कभी सोचते होगाकभी सोचते नहीं होगा। यह होगाहोगा का गीत गाते रहते हैं। लेकिन अपने फरिश्ते पन केसम्पन्न सम्पूर्ण स्थिति में तीव्रगति से आगे बढ़ने का श्रेष्ठ संकल्प कम करते हैं। होगाक्या होगा!... यह गा-गा के गीत ज्यादा गाते हैं।

 

 _ ➳  बाप कहते हैं कुछ भी होगा लेकिन आपका लक्ष्य क्या हैजो होगा वह देखने और सुनने का लक्ष्य है वा ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बनने का है?  उसकी तैयारी कर ली हैप्रकृति अपना कुछ भी रंग-रूप दिखाये, आप फरिश्ता बनबाप समान अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखने के लिए तैयार होप्रकृति की हलचल के प्रभाव से मुक्त फरिश्ते बने होअपनी स्थिति की तैयारी में लगे हुए हो वा क्या होगाक्या होगा - इसी सोचने में लगे होक्या कोई भी परिस्थिति सामने आये तो आप प्रकृतिपति अपने प्रकृतिपति की सीट पर सेट होंगे वा अपसेट होंगेयह क्या हो गयायह हो गया, यह हो गया... इसी नजारों के समाचारों में बिजी होंगे वा सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करेंगे?    

 

✺   ड्रिल :-  "सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करना"

 

_ ➳  मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ... आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने बाहे फैलाये आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...   

 

_ ➳  बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है... मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की शक्तिशाली किरणों को ग्रहण कर रही हूँ... इन किरणों को ग्रहण कर मैं आत्मा दिव्य दृष्टि द्वारा इस देह से न्यारी हो एक ओर अपने आदि स्वरुप(देव स्वरुप) को देख रही हूँ, तो दूसरी ओर माया के जाल में फँसे हुए कमजोर स्वरुप को देख रही हूँ... 

 

_ ➳  क्या होगा, कैसे होगा, कब होगा, होगा या नही होगा... इन व्यर्थ के संकल्पों में उलझकर मैं आत्मा माया के जाल में फंसी हुई थी, संशय बुद्धि बन गयी थी... माया ने मुझ आत्मा के उमंग उत्साह के पंख काट दिए थे... मैं आत्मा अपना समय व्यर्थ गंवाती जा रही थी... बाबा से निकलती हुई शक्तिशाली किरणों में मुझ आत्मा के सभी व्यर्थ संकल्प भस्म हो गये है... अब मैं आत्मा व्यर्थ से समर्थ बन गयी हूँ... मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं... मैं आत्मा विकारो का त्यागकर कमजोर से महावीर बन जाती हूँ... 

 

 _ ➳  महावीर स्थिति में स्थित हो मैं आत्मा सभी बंधनों से न्यारी... बादलो को चीरती हुई उड़ती जा रही हूँ... सामने से आते हुए विघ्न रुपी बादलो को मैं आत्मा जम्प लगा क्रॉस करती हुई बाप समान फरिश्ता स्वरुप स्थिति का अनुभव करती हुई पुरुषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्मवतन में ले जाते हैं...

 

_ ➳  सूक्ष्मवतन से बापदादा वा एडवांस पार्टी की आत्माओ से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ... अब मैं आत्मा ड्रामा के चक्र को बुद्धि में धारण कर, पांचो स्वरूपो का अभ्यास करती हुई साक्षी हो ड्रामा के हर सीन को..., सम्बन्ध-संपर्क में आयी हर आत्मा के स्वभाव संस्कारो को तथा तमोप्रधान प्रकृति के रूप रंग को अपनी सम्पन्नता की स्थिति में सेट हो देखती हुई, शांति का दान देती हूँ... प्रकृति की कोई भी हलचल मुझ आत्मा को अब अपने फरिश्तेपन की स्टेज से अपसेट नही कर सकती... अपनी सम्पन्नता की स्टेज में स्थित हो मैं प्रकृतिपति आत्मा बापदादा से प्राप्त दिव्य शक्तियों को चारों ओर फैलाकर  तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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