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❍ 24 / 10 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ गृहस्थ व्यवहार में रहते कम से कम 8 घंटे बाप को याद करने का अभ्यास किया ?
➢➢ दुखधाम से बेहद का वैराग्य कर अपने असली निवास स्थान शांतिधाम व सुखधाम को याद किया ?
➢➢ रूहानी माशूक की आकर्षण में आकर्षित हो मेहनत से मुक्त हुए ?
➢➢ एकांतवासी बनने के साथ साथ एकनामी और इकॉनामी वाले बने ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अपनी हर कमेन्द्रिय की शक्ति को इशारा करो तो इशारे से ही जैसे चाहो वैसे चला सको। ऐसे कर्मेन्द्रिय जीत बनो तब फिर प्रकृतिजीत बन कर्मातीत स्थिति के आसनधारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनेंगे। हर कर्मेन्द्रिय 'जी हजूर' 'जी हाजिर' करती हुई चले। आप राज्य अधिकारियों का सदा स्वागत अर्थात् सलाम करती रहे तब कर्मातीत बन सकेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"
〰✧ सदा अपने को सर्व शक्तियों से सम्पन्न मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मायें अनुभव करते हो? बाप ने सर्वशक्तियों का खजाना वर्से में दे दिया। तो सर्वशक्तियाँ अपना वर्सा अर्थात् खजाना हैं। अपना खजाना साथ रहता है ना। बाप ने दिया बच्चों का हो गया।
〰✧ तो जो चीज अपनी होती है वह स्वत: याद रहती है। वह जो भी चीजें होती हैं, वह विनाशी होती हैं और यह वर्सा वा शक्तियाँ अविनाशी हैं। आज वर्सा मिला, कल समाप्त हो जाए, ऐसा नहीं। आज खजाने हैं, कल कोई जला दे, कोई लूट ले - ऐसा खजाना नहीं है।
〰✧ जितना खर्चो उतना बढ़ने वाला है। जितना ज्ञान का खजाना बांटो उतना ही बढ़ता रहेगा। सर्व साधन भी स्वत: ही प्राप्त होते रहेंगे। तो सदा के लिए वर्से के अधिकारी बन गये - यह खुशी रहती है ना। वर्सा भी कितना श्रेष्ठ है! कोई अप्राप्ति नहीं, सर्व प्राप्तियाँ हैं।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ सारे दिन में भिन-भिन्न स्थितियों का अनुभव करो। कभी फरिश्ते स्थिति का, तो कभी लाइट हाऊस, माइट हाऊस स्थिति का, कभी प्यार स्वरूप स्थिति अर्थात लवलीन स्थिति के आसन पर बैठ जाओ और अनुभव करते रहो।
〰✧ इतना अनुभवी बन जाओ, बस संकल्प किया फरिश्ता, सेकण्ड में स्थिति हो जाओ। ऐसे नहीं, मेहनत करनी पडे। सोचते रहो मैं फरिश्ता हूँ और बार-बार नीचे आ जाओ। ऐसी प्रैक्टिस है?
संकल्प किया और अनुभव हुआ।
〰✧ जैसे स्थूल में जहाँ चाहते हो बैठ जाते हो ना। सोचा और बैठा कि युद्ध करनी पडती है - बैठें या न बैदूँ? तो यह मन-बुद्धि की बैठक भी ऐसी इजी होनी चाहिए। जब चाहो तब टिक जाओ। इसको कहा जाता है - राजयोगी राजा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ बापदादा ने देखा कि मिटाने और समाने की शक्ति कम है मिटाते भी हैं, उल्टा देखना, सुनना, सोचना, बीता हुआ भी मिटाते हैं लेकिन जैसे आप कहते हो ना कि एक है कान्सेस दूसरा है सब कान्सेस। मिटाते हैं लेकिन मन की प्लेट कहो, स्लेट कहो, कागज कहो, कुछ भी कहो, पूरा नहीं मिटाते। क्यों नहीं मिटा सकते? कारण है- समाने की शक्ति पावरफुल नहीं है। समय अनुसार समा भी लेते लेकिन फिर समय पर निकल आता। इसलिए जो चार शब्द (शुभचिन्तक, शुभचिन्तन, शुभ भावना, शुभ श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप) बापदादा ने सुनाये, वह सदा नहीं चलते। अगर मानों बिल्कुल मन की प्लेट कहो, कागज कहो, पूरा नहीं मिटा तो पूरा साफ न होने के बदले अगर आप और अच्छा लिखने भी चाहो तो स्पष्ट होगा? अर्थात् सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ धारण करने चाहो तो सदा और फुल परसेन्ट में होगा? बिल्कुल क्लीन भी हो, क्लीयर भी हो तब यह शक्तियाँ सहज कार्य में लगा सकते हैं। कारण यही है - मैजारिटी की स्लेट क्लीयर और क्लीन नहीं है। थोड़ा-थोड़ा भी बीती बातें या बीती चलन, व्यर्थ बातें व व्यर्थ चाल-चलन सूक्ष्म रूप में समाई रहती हैं तो फिर समय पर साकार रूप में आ जाती हैं। तो समय अनुसार पहले चेक करो, अपने को चेक करना दूसरे को चेक करने नहीं लग जाना। क्योंकि दूसरे को चेक करना सहज लगता है, अपने को चेक करना मुश्किल लगता है। तो चेक करना हमारे मन की प्लेट व्यर्थ से और बीती से बिल्कुल साफ है? सबसे सूक्ष्म रूप है - बायब्रेशन के रूप में रह जाता है। फरिश्ता अर्थात् बिल्कुल क्लीन और क्लीयर। समाने की शक्ति निगेटिव को भी पॉजिटिव रूप में परिवर्तन कर समाओ। निगेटिव ही नहीं समा दो, पॉजिटिव में चेंज करके समाओ तब नई सदी में नवीनता आयेगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप आया है बच्चों से दुखधाम का सन्यास कराने"
➳ _ ➳ मैं आत्मा निराकार परमपिता परमात्मा की संतान हूँ... परमधाम की
रहने वाली मैं निराकार आत्मा इस सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते-बजाते इस दुनिया से
ही दिल लगा बैठी... अपने असली पिता को भूल, अपने असली घर को भूल, अपने असली
वजूद को ही भूल गई थी... इस देह, देह के संबंधों, देह के वैभवों के आकर्षण में
पड़ गई थी... प्यारे बाबा ने आकर मेरी अज्ञानता के परदे को उठाकर मुझे सत्य
ज्ञान दिया... मैं आत्मा इस देह और इस दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ वतन में
प्यारे बाबा के पास गुह्य राज जानने...
❉ अपनी हथेली पर बहिश्त लाकर मुझे स्वर्ग की बादशाही देते हुए प्यारे
बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... अपने खिलते हुए फूल बच्चों को पिता
भला दुखो में तड़फता कैसे देख पाया... बाप भला बिना बच्चों के सुख के कैसे सुख
और चैन पाये... मीठा बाबा हथेली पर स्वर्ग सौगात ले आया है... बादशाह बनाने
आया है... ऐसे सुखदायी सच्चे पिता की यादो में खो जाओ..."
➳ _ ➳ हद की दुनिया से बुद्धि निकाल बेहद बाबा की यादों में खोकर मैं
आत्मा कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा प्यारे प्यारे पिता
की यादो में सुखो से महकते हुए स्वर्ग को पा रही हूँ... कभी सोचा भी न था कि
विश्व की मालिक बनूंगी और आज अपने शानदार भाग्य पर मुस्करा रही हूँ... मीठे
बाबा की यादो में तपते कदमो तले फूलो की छुअन आ रही है...”
❉ नश्वर दुनिया के काँटों को निकाल मेरे जीवन में स्वर्ग सुखों के फूल
खिलाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:- “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले
रिश्तो को याद करके दुखी होकर कितना थक गए हो... अब ईश्वर पिता की यादो में सदा
का आराम पाकर इस कदर खो जाओ... ईश्वर पिता की सारी जागीर बाँहों में भरकर सुखो
के स्वर्ग में खिलखिलाओ...”
➳ _ ➳ खुशियों की पंछी बन सुखों के आसमान में विचरण करते हुए मैं आत्मा
कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता से ज्ञान रत्नों को
पाकर सारे सत्य को जान ली हूँ... दुखो के दलदल से निकल सुखो के स्वर्ग में कदम
बढ़ा रही हूँ... मीठे बाबा के प्यार में खोकर अपनी देवताई गरिमा को पाती जा रही
हूँ...”
❉ अपने निस्वार्थ अविनाशी प्रेम के फव्वारों में मुझे भिगोते हुए मेरे
मनमीत प्यारे बाबा कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिन बन्धनों को
सत्य समझ अपने कीमती समय साँस संकल्पों को पानी सा बहा रहे वह ठग जायेंगे खोखला
और खाली तन्हा सा बनायेगे... इन सांसो और संकल्पों को ईश्वरीय प्रेम में लुटा
दो... अपने निश्छल प्रेम को ईश्वर पिता पर अर्पण कर दो जो सच्चे सुखो का आधार
बन खुशियो को लाएगा...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा गोपिका बन मुरलीधर के मधुर तान में अपना सुध-बुध खोकर
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार की छाँव तले सुखो की
अधिकारी बन रही हूँ... मीठी मीठी यादो में जन्नत अपने नाम लिखवा रही हूँ... और
पूरे विश्व धरा पर फूलो सा मुस्कराने वाली शहजादी बन रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- स्कॉलरशिप लेने के लिए गृहस्थ व्यवहार में रहते कम से कम 8 घंटा बाप
को याद करने का अभ्यास करना है
➳ _ ➳ इस पतित सृष्टि को पावन सतयुगी दुनिया मे परिवर्तन करने का जो
कर्तव्य इस समय स्वयं भगवान इस धरा पर आकर कर रहें हैं उस ऑल माइटी अथॉरिटी,
पाण्डव गवर्मेंट के साथ इस कर्तव्य में उसका मददगार बनना कितने महान सौभाग्य की
बात है! कितना श्रेष्ठ भाग्य है मेरा जो भगवान की मदद करने का गोल्डन चांस
भगवान ने स्वयं मुझे दिया है। कोटो में कोई, कोई में भी कोई मैं वो महान
सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जिसे भगवान ने स्वयं अपने सर्वश्रेष्ठ कार्य के लिए चुना
है। "वाह मैं आत्मा और वाह मेरा भाग्य"। अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में
लाकर वाह - वाह के गीत गाती हुई मैं आत्मा अपने उस प्यारे पिता का कोटि - कोटि
शुक्रिया अदा करके उनसे वादा करती हूँ कि अपनी हर रोज की दिनचर्या में मैं 8
घण्टे पांडव गवर्मेंट की मदद अवश्य करूँगी। तन मन धन से ईश्वरीय कार्य मे सहयोग
जरूर दूँगी।
➳ _ ➳ अपने सर्वशक्तिवान, सृष्टि के रचयिता पिता से वादा करके मैं जैसे
ही मन बुद्धि को उनकी याद में स्थिर करती हूँ मुझे आभास होता है जैसे मेरे पिता
अपना असीम बल भरकर मुझे अथक और अचल अडोल बनाने के लिए अपने पास बुला रहें हैं।
स्वयं भगवान मेरा आह्वान कर रहें हैं यह विचार कर मन ही मन गदगद होती हुई मैं
सेकण्ड में देह भान का त्याग कर अपने अनादि बिंदु स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ
और अपने मन बुद्धि को पूरी तरह अपने प्यारे पिता के स्वरूप पर फोकस कर लेती
हूँ। देख रही हूँ अपने सर्वशक्तिवान शिव पिता को मैं फरिश्तो के अव्यक्त वतन
में अपने अव्यक्त रथ में विराजमान होकर बाहें फैलाये अपना इंतजार करते हुए।
अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में अनन्त प्रकाशवान अपने शिव पिता को मैं देख
रही हूँ जो मुस्कारते हुए अव्यक्त इशारे से मुझे बुला रहें हैं।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर जागृत हो रही है जो
मुझे धीरे - धीरे अव्यक्त स्थिति में स्थित कर रही है। मेरा साकार शरीर लाइट के
शरीर मे परिवर्तित होता जा रहा है। ऊपर से लेकर नीचे तक अब मैं स्वयं को एक
सुंदर प्रकाश की काया में अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं इतना हल्का महसूस कर
रही हूँ कि ऐसा लग रहा है जैसे मेरे पाँव धरती को स्पर्श ही नही कर रहे और धीरे
- धीरे अपनी प्रकाश की काया के साथ मैं ऊपर उड़ रही हूँ। एक बहुत ही सुंदर
अनुभूति और लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए सारे विश्व का चक्कर लगा कर अब मैं
आकाश से ऊपर जा रही हूँ। निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए अब मैं सफेद प्रकाश की उस
खूबसूरत दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ जहाँ अव्यक्त बापदादा मेरा इंतजार कर रहें
हैं।
➳ _ ➳ फ़रिश्तों की इस लाइट की दुनिया में अपने सम्पूर्ण लाइट माइट स्वरूप
में अपना अनन्त प्रकाश पूरे वतन में फैलाते हुए बापदादा को मैं सामने देख रही
हूँ। अपनी दोनों बाहों को फैलाये अपने इंतजार में खड़े बापदादा के मुस्कारते हुए
सुंदर मनभावन स्वरूप को निहारते हुए बापदादा के पास पहुंच कर मैं उनकी बाहों
में समा जाती हूँ। उनके नयनो में अथाह प्यार का सागर मेरे लिए उमड़ रहा है उस
स्नेह सागर की गहराई में डूब कर मैं गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ।
अपने प्यारे बापदादा का अथाह प्यार पाकर तृप्त होकर अब मैं उनके सम्मुख बैठी
हूँ और उनसे मीठी दृष्टि लेकर परमात्म शक्तियों को अपने अंदर भर रही हूँ। बाबा
के मस्तक से निकल रही तेज लाइट सीधी मुझ में प्रवाहित हो रही है। अथक सेवाधारी
बन पाण्डव गवर्मेंट अर्थात ईश्वरीय कार्य मे मदद करने के लिए बाबा अपने हाथ मे
मेरा हाथ लेकर अपनी सारी शक्तियों का बल मुझे दे रहें हैं। वरदानों से मेरी
झोली भरकर मुझे भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सर्व शक्तियों, सर्व वरदानों और सर्व खजानो से सम्पन्न होकर अब मैं
अपनी लाइट की शक्तिशाली सूक्ष्म काया के साथ वापिस साकारी दुनिया मे लौट कर
अपने साकार ब्राह्मण तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ। भगवान की पाण्डव
गवर्मेंट का सच्चा सेवक बन सृष्टि परिवर्तन के उनके कार्य मे मदद करने के लिए
अब मैं सम्पूर्ण समर्पण भाव से भगवान द्वारा रचे रुद्र ज्ञान यज्ञ में पूरा
सहयोग दे रही हूँ। शरीर निर्वाह अर्थ अपने सभी दैनिक कर्तव्यों को पूरा करने के
साथ - साथ 8 घण्टा पाण्डव गवर्मेंट की सेवा में सहयोगी बन, परमात्म सेवा और
परमात्म याद द्वारा अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को मैं श्वांसों श्वांस सफल कर
रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं रूहानी माशूक की आकर्षण में आकर्षित हो मेहनत से मुक्त्त होने वाली रूहानी आशिक आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं एकांतवासी बनने के साथ साथ एकनामी और एकानामी बनने वाली भाग्यवान आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा एक बात का फिर से अटेन्शन दिला रहे हैं कि वर्तमान वायुमण्डल के अनुसार मन में, दिल से अभी वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। बापदादा ने हर बच्चे को चाहे प्रवृत्ति में है, चाहे सेवाकेन्द्र पर है, चाहे कहाँ भी रहते हैं, स्थूल साधन हर एक को दिये हैं, ऐसा कोई बच्चा नहीं है जिसके पास खाना, पीना, रहना इसके साधन नहीं हो। जो बेहद के वैराग्य की वृत्ति में रहते हुए आवश्यक साधन चाहिए, वह सबके पास हैं। अगर कोई को कमी है तो वह उसके अपने अलबेले-पन या आलस्य के कारण है। बाकी ड्रामानुसार बापदादा जानते हैं कि आवश्यक साधन सबके पास हैं। जो आवश्यक साधन हैं वह तो चलने ही हैं। लेकिन कहाँ-कहाँ आवश्यकता से भी ज्यादा साधन हैं। साधना कम है और साधन का प्रयोग करना या कराना ज्यादा है। इसलिए बापदादा आज बाप समान बनने के दिवस पर विशेष अन्डरलाइन करा रहे हैं - कि साधनों के प्रयोग का अनुभव बहुत किया, जो किया वह भी बहुत अच्छा किया, अब साधना को बढ़ाना अर्थात् बेहद की वैराग्य वृत्ति को लाना।
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप को देखा लास्ट घड़ी तक बच्चों को साधन बहुत दिये लेकिन स्वयं साधनों के प्रयोग से दूर रहे। होते हुए दूर रहना - उसे कहेंगे वैराग्य। लेकिन कुछ है ही नहीं और कहे कि हमको तो वैराग्य है, हम तो हैं ही वैरागी, तो वह कैसे होगा। वह तो बात ही अलग है। सब कुछ होते हुए नालेज और विश्व कल्याण की भावना से, बाप को, स्वयं को प्रत्यक्ष करने की भावना से अभी साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति हो। जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं थे, लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे। यह 14 वर्ष जो तपस्या की, यह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये हैं, साधनों की अभी कोई कमी नहीं है लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। विश्व की आत्माओं के कल्याण के प्रति भी इस समय इस विधि की आवश्यकता है क्योंकि चारों ओर इच्छायें बढ़ रही हैं, इच्छाओं के वश आत्मायें परेशान हैं, चाहे पदमपति भी हैं लेकिन इच्छाओं से वह भी परेशान हैं। वायुमण्डल में आत्माओं की परेशानी का विशेष कारण यह हद की इच्छायें हैं। अब आप अपने बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा उन आत्माओं में भी वैराग्य वृत्ति फैलाओ। आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती।
✺ ड्रिल :- "साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा साधना का वायुमण्डल चारों ओर बनाना"
➳ _ ➳ नुमाशाम योग के समय हद के सेवाओं से, दुनियावी बातों से मन और बुद्धि को कुछ समय के लिये हटाते हुये स्वयं को अशरीरी फरिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ... सफेद प्रकाश के पवित्र उज्जवल पोशाक में स्वयं को निहार रही हूँ... कुछ ही समय में स्वयं को सूक्ष्मवतन में विराजित पाती हूँ... ब्रह्माबाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा की मीठी मुस्कान देख मैं फरिश्ता सुख का अनुभव कर रही हूँ... बाबा की नज़रों से नज़र मिलाकर मैं आत्मा भाव विभोर हो रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की नज़रों ने बुद्धि में ज्ञान बिंदुओं की झड़ी लगा दी है... विश्व कल्याण की इस यज्ञ शाला में साधनों के आधार पर साधना की परिधि बडी ही सीमित है... सम्पूर्ण विश्व की सेवा के लिए, बेहद की सेवा के लिए मन और बुद्धि में वैराग वृत्ति को इमर्ज कर साधना में लीन होने की बात बाबा की नजरों से जैसे समझ आ गई... बाबा की नज़रों ने ज्ञान की इतनी कठिन बात को सहजता से समझा दिया है...
➳ _ ➳ देह और देह की जगत के समस्त सुख सुविधा से सम्पन्न साधनों के होते हुए भी मन और बुद्धि में वैराग वृत्ति का अनुभव, विश्व के अनेक आत्माओं के शांति व सुख की शुभभावना शुभकामना के लिए बेहद सेवा को सहज आधार प्रदान कर रहा है... चाहे जितनी साधनों का प्रयोग हो साधना के लिए वैराग वृत्ति ही मुख्य आधार हो - बाबा की यह शिक्षा बहुत ही सरल तरीके से मुझ आत्मा की मन और बुद्धि में समाती जा रही है... और मैं आत्मा अपने फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो सेकंड में बेहद के वैराग का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा समान लक्ष्य सदा नज़रों के सामने रख बाबा की ज्ञान ऊर्जा को स्वीकार करती मैं फरिश्ता परमात्मा पिता को प्रत्यक्ष करने के लिए तैयार हो रही हूँ... स्वयं को बेहद के वैराग वृत्ति से भरपूर कर अन्य आत्माओं की हद की वृत्ति को बेहद में परिवर्तन करने की सेवा देने की अनुप्रेरणा ले रही हूँ...
➳ _ ➳ अपने बेहद की वृत्ति द्वारा सम्पूर्ण वायुमंडल को बेहद की वैराग वृत्ति से भरपूर करती मैं अशरीरी आत्मा फरिश्ता स्वरूप में चारों दिशाओं की चक्कर लगाती हुई अनेक आत्माओं को शांति व शक्ति का अनुभव कराते हुए नीचे आ जाती हूँ... शांति सुख शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा को वायुमंडल में भरपूर करती मैं आत्मा अशरीरी स्वरूप में हद की समस्त बातों से न्यारा सा अनुभव कर रही हूँ... स्वयं में बेहद के वैराग की गंभीरता को गहराई में भरते हुए अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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