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❍ 31 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ ड्रामा के आदि मध्य अंत को स्मृति में रख दूसरों को भी स्मृति दिलाई ?
➢➢ जीते जी मरने का अभ्यास किया ?
➢➢ अपने संपर्क द्वारा अनेक आत्माओं की चिंताओं को मिटाया ?
➢➢ बोल रत्न समान मूल्यवान रहे ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ अभी तक की रिजल्ट में मास्टर सूर्य के समान नॉलेज की लाईट देने के कर्त्तव्य में सफल हुए हो लेकिन अब किरणों की माइट से हरेक आत्मा के संस्कार रूपी कीटाणु को नाश करने का कर्त्तव्य करना है। अभ्यास ऐसा हो जो चलते फिरते आपके मस्तिष्क से लाईट का गोला नज़र आये और चलन से, वाणी से नॉलेज रूपी माइट का गोला नजर आये अर्थात् बीज नजर आये। मास्टर बीजरुप, लाईट और माइट का गोला बनो तब साक्षात् वा साक्षात्कार मूर्त्त बन सकेंगे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ"
〰✧ सदा अपने को कर्मयोगी आत्मायें अनुभव करते हो? कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योगयुक्त हो। कर्म अलग, योग अलग नहीं। कर्म में योग, योग में कर्म। सदा दोनों साथ हैं तब कहते हैं कर्मयोगी। ऐसे नहीं, जब योग में बैठे तो योगी हैं और कर्म में जायें तो योग साधारण हो जाये और कर्म महान् हो जाये। सदा दोनों का साथ रहे, बैलेन्स रहे। तो ऐसे कर्मयोगी हो या जब कर्म में लग जाते हो तो योग कम हो जाता है? और जब योग में बैठते हो तो लगता है कि बैठे ही रहें तो अच्छा है।
〰✧ कर्मयोगी आत्मा सदा ही कर्म और योग का साथ रखने वाली अर्थात् बैलेन्स रखने वाली। कर्म और योग का बैलेन्स है तो हर कर्म में बाप द्वारा तो ब्लैसिंग मिलती ही है लेकिन जिसके सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें मिलती हैं। कोई अच्छा काम करता है तो दिल से उसके लिये दुआयें निकलती हैं ना कि बहुत अच्छा है। तो बहुत अच्छा मानना-यह दुआयें है। और जो अच्छा कार्य करता है उसके संग में रहना सदा सभी को अच्छा लगता है। उसके सहयोगी बहुत बन जाते हैं। तो दुआयें भी मिलती हैं, सहयोग भी मिलता है। तो जहाँ दुआयें हैं, सहयोग है वहाँ सफलता तो है ही। तो कितनी प्राप्ति हैं? बहुत प्राप्ति हुई ना। इसलिये सदा कर्मयोगी।
〰✧ जब योग होगा तो कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होगा क्योंकि योग का अर्थ ही है श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहना और स्वयं भी श्रेष्ठ आत्मा हूँ-इस स्मृति में रहना। तो जब स्मृति श्रेष्ठ होगी तो स्थिति भी श्रेष्ठ होगी ना और स्थिति होने के कारण न चाहते भी वायुमण्डल श्रेष्ठ बन जाता है। तो कर्मयोगी अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल। कोई ज्ञान सुने, नहीं सुने, योग सीखे, नहीं सीखे लेकिन वायुमण्डल का प्रभाव स्वत: ही उनको आकर्षित करता है। मधुबन में क्या विशेष अनुभव करते हो? तपस्या का वायुमण्डल है ना। तो जो भी आते हैं उनका योग बिना मेहनत के ही लग जाता है। योग लगाना नहीं पड़ता, योग लग ही जाता है। ऐसे होता है ना। मधुबन में योग लगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती क्योंकि वायुमण्डल तपस्या का है, संग तपस्वी आत्माओंका है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ योग को बुद्धियोग कहते हैं तो अगर यह विशेष आधर स्तम्भ अपने अधिकार में नहीं हैं वा कभी हैं, कभी नहीं है, अभीअभी हैं, अभी-अभी नहीं हैं, तीनों में से एक भी कम अधिकार में हैं तो इससे ही चेक करो कि हम राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे?
〰✧ बहुतकाल के राज्य अधिकारी बनने के संस्कार बहुतकाल के भविष्य राज्य अधिकारी बनायंगेे। अगर कभी अधिकारी, कभी वशीभूत हो जाते हो तो आधा कल्प अर्थात पूरा राज्य-भाग्य का अधिकार प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
〰✧ आधा समय के बाद त्रेतायुगी राजा बन सकते हो, सारा समय राज्य अधिकारी अर्थात राज्य करने वाले रॉयल फैमिली के समीप सम्बन्ध में नहीं रह सकते। अगर वशीभूत बार-बार होते हो तो संस्कार अधिकारी बनने के नहीं लेकिन राज्य अधिकारियों के राज्य में रहने वाले हैं। वह कौन हो गये? वह हुई प्रजा तो समझा, राजा कौन बनेगा, प्रजा कौन बनेगा?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ पास-विद्-ऑनर बनना है तो इस अभ्यास में पास होना अति आवश्यक है। और इसी अभ्यास को अटेन्शन में डबल अण्डरलाइन करो, तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी बनेंगे। ब्राह्मण बने, बाप के वर्से के अधिकारी बने, गॉडली स्टूडेंट बने, ज्ञानी तू आत्मा बने, विश्व सेवाधारी बने - यह भाग्य तो पा लिया लेकिन अब पास विद् ऑनर होने के लिए, कर्मातीत स्थिति के समीप जाने के लिए ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेन्शन।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- बाप ने संगम पर जो स्मृतियाँ दिलाई उसका सिमरण कर हर्षित
रहना"
➳ _ ➳ मीठे बाबा के मिलन को प्यासी मै आत्मा... मिलन की आस दिल में लिए
डायमण्ड हाल में पहुंचती हूँ... मेरे सम्मुख दादी गुलजार है... मीठी दादी के
सानिध्य में कुछ पल रहती हूँ... और अचानक मीठे बाबा की आवाज सुनाई देती है...
मेरे मीठे बच्चे... मेरे हर्ष की कोई सीमा ही नही रही है... और पलको से आसुंओं
की अनवरत धारा बह चली है... अपने मीठे बाबा को टुकुर टुकुर निहारे जा रही
हूँ... और मीठे बाबा मेरी जनमो के बिछड़े पन की प्यास मिटाते जा रहे है...
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अमूल्य रत्नों से सजाकर कहते है :-
"मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को जानकर, जो स्वयं के सत्य स्वरूप को
जाना है... तो स्वयं के चमकते रूप और मीठे बाबा की यादो में सदा खोये रहो...
सदा स्व के दर्शन में आनन्दित रहो... इन मीठी यादो में सदा मगन रहो और दूसरो
को भी सदा याद दिलाते रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समाकर कहती
हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... विकारो से ग्रसित मै आत्मा... स्वयं को सदा
देह मानकर दुखो के पहाड़ को जीती जा रही थी... आपने जीवन में आकर, मेरा आत्मिक
सौंदर्य दिखा कर, देवताई लक्ष्य दिया है... अपने दमकते अनादि स्वरूप को जानकर
मै आत्मा पुलकित हूँ..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को दिव्य तरंगो से भरपूर करते हुए कहते
है :- "मीठे लाडले बच्चे... अपने 84 जनमो को जानकर, बेहद के खेल को भलीभांति
जान गए हो... अपने स्वदर्शन को यादो में फिराते ही रहो... यही यादे सुखो भरे
मीठे जीवन को प्यारी हकीकत बनाएंगी... खुद भी यादो में डूबे रहो, और औरो को भी
इन यादो के अहसासो में भिगो दो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा अपने प्यारे बाबा से असीम ख़ुशी को पाकर कहती हूँ :-
"मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन को खुशियो की मचान बना दिया
है... मेरा खोया वजूद याद दिला कर, मुझे अनोखा और प्यारा बना दिया है... मै
आत्मा अपने 84 जनमो के पार्ट को देख देख ख़ुशी में झूम रही हूँ...."
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने वरदानों से भरपूर करते हुए कहते है
:- "मीठे सिकीलधे बच्चे... मीठे बाबा बेहद का समाचार सुनाकर, तीनो लोको की खबर
सुनाकर, मा त्रिलोकीनाथ बना देते है... इस मीठे नशे में सदा झूमते रहो... अपनी
बुद्धि में सदा स्वदर्शन को फिराते रहो... कितना खुबसूरत देवताई भाग्य पाते
हो...इन मीठी स्मृतियों में खोये रहो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा की सारी रत्नों भरी खानों पर अपना अधिकार
जमाते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा हदो में फंसी स्वयं को
मात्र देह समझ दुखो में उलझी रही... आपने आकर मुझे नूरानी बनाया है... अथाह
ज्ञान धन देकर मुझे मालामाल किया है... और देवताई सुखो का अधिकार देकर भाग्यवान
बनाया है..." अपने प्यारे बाबा से मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा... अपने कर्म
क्षेत्र पर लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- ब्रह्मा बाप समान कुर्बान जाने में पूरा फॉलो करना है"
➳ _ ➳ साकार में सर्व प्राप्ति के साधन होते हुए भी ब्रह्मा बाबा ने जिस
उपराम वृति से अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में स्वाहा कर दिया और परमात्मा
की जन्म भूमि भारत की सेवा के लिए स्वयं को बलि चढ़ा दिया ऐसे भारत की सेवा के
लिए ब्रह्मा बाप के समान पूरा - पूरा बलि चढ़ने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर,
ब्रह्मा बाप समान बनने का संकल्प मन मे लेकर, मैं अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी
फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित होकर अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा से मिलने उनके अव्यक्त
वतन की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ पाँच तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कर, सूर्य, चांद,
तारागणों से भी पार सफेद प्रकाश की उस दुनिया में मैं पहुँचती हूँ जहाँ ब्रह्मा
बाबा अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में आज भी अपने बच्चों की पालना करने के लिए ठहरें
हुए हैं। उस अव्यक्त वतन में पहुंचते ही अपने सामने मैं अव्यक्त ब्रह्मा बाबा
और उनकी भृकुटि में विराजमान अपने प्राणप्रिय शिव बाबा को देख रही हूँ। बाबा
को देखते ही साकार पालना की स्मृतियाँ मन में ताजा हो उठती हैं और मन अपने
प्यारे बाबा की ममतामयी गोद का सुख पाने के लिए मचलने लगता है।
➳ _ ➳ मन में यह संकल्प आते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरा आकारी शरीर
और भी सूक्ष्म हो गया है और मैं एक नन्हा सा फ़रिश्ता बन गया हूँ। बाबा अपनी
गोद मे मुझे बिठा कर बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेर रहें हैं। अपने हाथों से
मुझे टोली खिला रहें हैं। मेरे साथ मीठी - मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। बाबा
के हाथों का मीठा - मीठा स्पर्श और उनकी ममतामयी गोद में बैठने का सुख अनुभव
करके मैं मन ही मन अपने भाग्य पर गर्व महसूस कर रही हूँ जो अव्यक्त रूप में आज
भी बाबा मुझे साकार पालना का अनुभव करवा रहें हैं।
➳ _ ➳ साकार पालना के खूबसूरत अनुभव में खोई अब मैं महसूस करती हूँ जैसे
साकार ब्रह्मा बाबा द्वारा किया हुआ हर कर्म मेरी आँखों के सामने अनेक दृश्यों
के रूप में उभर कर मेरे सामने आ रहा है। मैं देख रही हूँ साकार ब्रह्मा बाबा
के उस महान तपस्वी वैरागी स्वरूप को कि कैसे सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बन ब्रह्मा
बाबा ने अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में समर्पित कर दिया। तन के लिए बाबा
के मुख से सदा यही बोल निकला कि मेरा शरीर नही है, शिव बाबा का रथ है। मन मे
सिवाए एक शिव बाबा के दूसरा कोई नही और धन के लिए भी बाबा के मन मे कभी यह
संकल्प नही आया कि यज्ञ में मेरा धन लग रहा है। मुख से सदा एक ही शब्द निकला कि
शिव बाबा का भंडारा है।
➳ _ ➳ अपना तन - मन - धन बाबा ने ईश्वरीय सेवा में लगा कर यहां तक कि
अपना समय, संकल्प, श्वांस सब कुछ भारत की सेवा के लिए बलि चढ़ा दिया। बाबा के
एक एक कर्म का चरित्र चित्र के रूप में देख कर मैं मन ही मन अपने प्यारे
ब्रह्मा बाबा के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ और उनके समान बनने का जैसे ही दृढ़
संकल्प करते हुए बाबा की ओर देखती हूँ मैं अनुभव करती हूँ जैसे बापदादा बड़े
प्यार से मुझे निहार रहें हैं। मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख कर मुझे
ब्रह्मा बाप समान बनने का वरदान दे रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा से वरदान लेकर, अव्यक्त में भी साकार पालना का अनुभव करके
अब मैं अपने सूक्ष्म आकारी फ़रिश्ता स्वरुप में ही वापिस साकारी दुनिया मे आकर
अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर
अब मैं ब्रह्मा बाप समान निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी इन तीन विशेषताओं
को अपने ब्राह्मण जीवन मे धारण कर, भारत की सेवा के लिए पूरा - पूरा बलि चढ़ने
का पुरुषार्थ कर रही हूँ। अपने तन - मन - धन को ईश्वरीय सेवा में सफल कर,
ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्णता के लक्ष्य को पाने की ओर अब मैं निरन्तर आगे बढ़
रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं अपने सम्पर्क द्वारा अनेक आत्माओ की चिन्ताओं को मिटाने वाली सर्व की प्रिय आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं बोल भी रत्न समान मूल्यवान बनाने वाली हीरे तुल्य आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. माया तो लास्ट घड़ी तक आयेगी। ऐसे नहीं जायेगी। लेकिन माया का काम है आना और आपका काम है दूर से भगाना। आ जावे फिर भगाओ, ये नहीं। ये टाइम अभी समाप्त हुआ। माया आवे और आपको हिलावे फिर आप भगाओ, टाइम तो गया ना! लेकिन साइलेन्स के साधनों से आप दूर से ही पहचान सकते हो कि ये माया है। इसमें भी टाइम वेस्ट नहीं करो और माया भी देखती है ना कि चलो आने तो देते हैं ना, तो आदत पड़ जाती है आने की। जैसे कोई पशु को, जानवर को अपने घर में आने की आदत डाल दो फिर तंग होकर भगाओ भी लेकिन आदत तो पड़ जाती है ना! और बाप ने सुनाया था कि कई बच्चे तो माया को चाय-पानी भी पिलाते हैं।
➳ _ ➳ चाय-पानी कौन सी पिलाते हो? पता है ना? क्या करूँ, कैसे करूँ, अभी तो पुरुषार्थी हूँ, अभी तो सम्पूर्ण नहीं बने हैं, आखिर हो जायेंगे - ये संकल्प चाय-पानी हैं। तो वो देखती है चाय-पानी तो मिलती है। किसी को भी अगर चाय-पानी पिलाओ तो वो जायेगा कि बैठ जायेगा? तो जब भी कोई परिस्थिति आती है तो क्यों, क्या, कैसे,कभी-कभी तो होता ही है, अभी कौन पास हुआ है, सबके पास है - ये है माया की खातिरी करना। कुछ नमकीन, कुछ मीठा भी खिला देते हो। और फिर क्या करते हो? फिर तंग होकर कहते हो अभी बाबा आप ही भगाओ। आने आप देते हो और भगाये बाबा, क्यों?आने क्यों देते हो?
➳ _ ➳ माया बार-बार क्यों आती है? हर समय, हर कर्म करते, त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट नहीं होते हो। त्रिकालदर्शी अर्थात् पास्ट, प्रेजेन्ट और फ्यूचर को जानने वाले। तो क्यों, क्या नहीं करना पड़ेगा। त्रिकालदर्शी होने के कारण पहले से ही जान लेंगे कि ये बातें तो आनी हैं, होनी हैं, चाहे स्वयं द्वारा, चाहे औरों द्वारा, चाहे माया द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा, सब प्रकार से परिस्थितियाँ तो आयेंगी, आनी ही हैं। लेकिन स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो पर-स्थिति उसके आगे कुछ भी नहीं है।
➳ _ ➳ २. इसका साधन है - एक तो आदि-मध्य-अन्त तीनों काल चेक करके, समझ कर फिर कुछ भी करो। सिर्फ वर्तमान नहीं देखो। सिर्फ वर्तमान देखते हो तो कभी परिस्थिति ऊंची हो जाती और कभी स्व-स्थिति ऊंची हो जाती। दुनिया में भी कहते हैं पहले सोचो फिर करो। नहीं तो जो सोच कर नहीं करते तो पीछे सोचना पश्चाताप् का रूप हो जाता है। ऐसे नहीं करते, ऐसे करते, तो पीछे सोचना अर्थात् पश्चाताप् का रूप और पहले सोचना ये ज्ञानी तू आत्मा का गुण है।
➳ _ ➳ ३. ऐसा अपने को बनाओ जो अपने आपमें भी, मन में एक सेकण्ड भी पश्चाताप् नहीं हो।
✺ ड्रिल :- "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट होकर माया को दूर से भगाना"
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया के अनेक कर्म करते थक कर मैं आत्मा स्वयं को रिलैक्स करने के लिए अपने शिव पिता की गोद में सिर रख कर लेट जाती हूँ... अपने शिव पिता की दिव्य अलौकिक गोद रूपी झूले में सिर रखते ही मैं गहन निद्रा की आगोश में खो कर स्वप्नों की एक बहुत सुंदर दुनिया में पहुंच जाती हूँ... मैं देख रही हूं स्वयं को एक छोटे से बालक के रूप में अपने शिव पिता के साथ, मन को लुभाने वाली एक बहुत सुंदर दुनिया में, जहां अनेक प्रकार की सुंदर - सुंदर चीजें और अनेक प्रकार के सुंदर खिलौने रखे हैं... उन सुंदर - सुंदर खिलौनों को देख कर उनके साथ खेलने के लिए मेरा मन ललचा रहा है...
➳ _ ➳ एक बहुत सुंदर सोने के समान चमक रही फुटबॉल को देख कर मैं जैसे ही उसे उठाने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता हूँ, कानों में एक आवाज आती है नही बच्चे, इसे अपने हाथ में मत उठाना... लेकिन उस बॉल का आकर्षण मुझे बार - बार उसे अपने हाथों में उठाने के लिए मजबूर कर रहा है... स्वयं को मैं रोक नही पा रहा... इसलिए फिर से उसे उठाने के लिए मैं जैसे ही अपने हाथ आगे बढ़ाता हूँ तभी पीछे से शिव बाबा आ कर उस बॉल को जोर से किक मारते हैं... वो बॉल बहुत दूर जा कर एक बहुत तेज धमाके के साथ फ़ट जाती है... अब बाबा मुझे अपनी गोद में उठा कर समझाते हुए कहते हैं, मेरे बच्चे:- "हर आकर्षित करने वाली चीज सुख देने वाली हो यह जरूरी नही है"...
➳ _ ➳ अपनी गोद में उठा कर बाबा अब मुझे उस चकाचौंध करने वाली, मन को लुभाने वाली दुनिया से निकाल कर अपने साथ ले जाते हैं... मेरी निद्रा टूटते ही अब मैं स्वयं को उस स्वप्न लोक से बाहर, अपने फ़रिशता स्वरूप में बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में देख रही हूँ... मेरे सामने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा बैठे हैं जो बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं...
➳ _ ➳ अपनी मीठी दृष्टि से मुझे भरपूर करते हुए बाबा उस स्वप्न का राज मुझे समझा रहे हैं, मेरे बच्चे:- "उस स्वप्न लोक की भांति यह संसार भी एक बहुत बड़ी माया नगरी है"... यहां मन को लुभाने और आकर्षित करने वाली हर चीज धोखा देने वाली है... इस लिए इस संसार रूपी माया नगरी के मोह जाल में कभी नही फंसना... यहां आपकोे कदम कदम पर सम्भल कर चलना है... माया के अति रॉयल रूप से कभी आकर्षित नही होना... क्योकि माया के प्रति आकर्षण ही आपको उसके अधीन कर देगा फिर उसे भगाने में बहुत टाइम व्यर्थ चला जायेगा... जैसे किसी जानवर या पशु को घर में आने की आदत डाल दी जाए और बाद में तंग हो कर यदि उसे भगाने का प्रयास किया जाए तो वह भागता नही... ठीक इसी प्रकार यदि समय पर माया को पहचान कर उसे नही भगाया तो गोया उसकी ख़ातिरी कर सदा के लिए उसका गुलाम बनना हुआ...
➳ _ ➳ जीवन में आने वाली परिस्थितियां भी माया का रूप है... उस समय क्यों, क्या, कैसे ये संकल्प भी अगर मन में आते हैं तो समझो आप माया की ख़ातिरी कर रहे हो... उसे चाय, पानी पिला रहे हो... इसलिए त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर माया के हर रॉयल रूप को पहले से ही पहचान कर सावधान रहो तो आपकी स्व स्थिति माया रूपी हर परिस्थिति पर आपको सहज ही विजय दिला देगी... यह कह कर बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख मुझे सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट रहने का वरदान देते हैं...
➳ _ ➳ बाबा से वरदान लेकर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं हर कर्म सदा त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर करती हूं... आदि, मध्य, अंत तीनों काल चेक करके, समझ कर हर कर्म करने से माया के वार से हार खा कर पश्चाताप करने के बजाए अब मैं सफलतामूर्त बन हर कार्य में सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूं... मेरी शक्तिशाली स्व स्थिति अब मुझे हर परिस्थिति रूपी माया पर सहज ही विजय दिला कर मायाप्रूफ बना रही है...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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