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❍ 30 / 06 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 54=20)
➢➢ ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखा ?
➢➢ विनाशी संबंधो व साधनों को अपना सहारा तो नही बनाया ?
➢➢ स्वयम को निमित समझकर हर कार्य किया ?
➢➢ स्वयं को डबल लाइट फ़रिश्ता अनुभव किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ समय प्रमाण अब चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का कार्य करना है। अब इसी सेवा की आवश्यकता है क्योंकि समय बहुत नाजुक आना है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं कल्प पहले वाली बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हूँ"
〰✧ बाप में निश्चय है कि वही कल्प पहले वाला बाप फिर से आकर मिला है। ऐसे ही अपने में भी इतना निश्चय है कि हम भी वही कल्प पहले वाले बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्माएं हैं? या बाप में निश्चय ज्यादा है, अपने में कम है? अच्छा, ड्रामा में जो भी होता है उसमें भी पक्का निश्चय है? जो ड्रामा में होता है वह कल्याणकारी युग के कारण सब कल्याणकारी है। या कुछ अकल्याण भी हो जाता है? कोई मरता है तो उसमें कल्याण है? वो मर रहा है और आप कल्याण कहेंगे, कल्याण है? बिजनेस में नुकसान हो गया-यह कल्याण हुआ? तो नुकसान भी कल्याणकारी है!
〰✧ ज्ञान के पहले जो बातें कभी आपके पास नहीं आई, ज्ञान के बाद आई-तो उसमें कल्याण है? माया नीचे-ऊपर कर रही है, कल्याण है? इसमें क्या कल्याण है? माया आपको अनुभवी बनाती है। अच्छा, तो ड्रामा में भी इतना ही अटल निश्चय हो। चाहे देखने में अच्छी बात न भी हो लेकिन उसमें भी गुप्त अच्छाई क्या भरी हुई है, वो परखना चाहिए। जैसे कई चीजें होती हैं, उनका बाहर से कवर (ढक्कन) अच्छा नहीं होता है लेकिन अन्दर बहुत अच्छी चीज होती है। बाहर से देखेंगे तो लगेगा-पता नहीं क्या है? लेकिन पहचान कर उसे खोलकर अन्दर देखेंगे तो बढ़िया चीज निकल आयेगी।
〰✧ तो ड्रामा की हर बात को परखने की बुद्धि चाहिए। निश्चय की पहचान ऐसे समय पर आती है। परिस्थिति सामने आवे और परिस्थिति के समय निश्चय की स्थिति, तब कहेंगे निश्चय बुद्धि विजयी। तो तीनों में पक्का निश्चय चाहिए-बाप में, अपने आप में और ड्रामा में।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ आज बापदादा सर्व स्नेही बच्चों का खेल देख रहे थे। क्या खेल होगा? खेल देखना तो आपको भी अच्छा लगता है। क्या देखा? अमृतवेले का समय था।
〰✧ हरेक आत्मा, जो पक्षी समान उडने वाली है अथवा रॉकेट की गति से भी तेज उडने वाली है, आवाज की गति से भी तेज जाने वाली है, सब अपने-अपने साकार स्थानों पर, जैसे प्लेन एरोड्रोम पर आ जाता है वैसे सब अपने रूहानी एरोड्रोम पर पहुँच गये।
〰✧ लक्ष्य और डायरेक्शन सबका एक ही था। लक्ष्य था उडकर बाप समान बनने का और डायरेक्शन था एक सेकण्ड में उडने का। क्या हुआ?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने का साधन क्या है? अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना है। यही साधन है। इसका बार-बार अटेन्शन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है ना। अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार यही अटेन्शन रहेगा। तो यह साधना अर्थात बार-बार अटेन्शन की तपस्या चाहिए। चेक करो कि मैं अव्यक्त फ़रिश्ता हूँ? अगर स्वयं नहीं होंगे तो दूसरों को कैसे बना सकेंगे?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- सर्वश्रेष्ठ, सहज तथा स्पष्ट मार्ग"
➳ _ ➳ मैं आत्मा समुन्दर के किनारे बैठ उछलते हुए लहरों का आनंद ले रही हूँ...
ऐसे लग रहा जैसे ये लहरें आसमान को छूने की कोशिश कर रही हैं... आसमान को छूकर
मेरे क़दमों में आती इन लहरों की शीतलता को महसूस कर आनंदित हो रही हूँ... इन
लहरों के साथ खेलती मैं आत्मा प्यार के सागर की लहरों में डूबने उड़ चलती हूँ...
वतन में प्रेम के सागर के पास... जहाँ मीठे-मीठे बाबा प्रेम की लहरों में मुझे
डुबोकर... अपनी गोदी में बिठाते हुए रूह-रिहान करते हैं...
❉ यादों के सागर में डूबोकर पवित्र बनाकर अपने दिल तख़्त पर बिठाते हुए प्यारे
बाबा कहते हैं:- “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के सम्मुख नही थे तब किस
कदर तकलीफ उठाते हुए उसे दर दर खोज रहे थे... आज अपने शानदार भाग्य के नशे में
डूब जाओ... आसमानी पिता की गोद में खिले हुए फूल बन रहे हो... बागवान बाबा हाथो
से पोषित कर रहा है... तो उसकी मीठी यादो में पवित्रता के पानी को रगो में भर
दो... और मातपिता को फॉलो करो...”
➳ _ ➳ मातपिता को फॉलो कर बाप की तख्तनशीन बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-
“हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा कितने जनमो से आपके प्यार की प्यासी
थी... इस वरदानी संगम में मेरी चाहतो की प्यास बुझी है... और पवित्रता की चुनरी
ने मेरा खूबसूरत श्रंगार किया है... ऐसे मीठे भाग्य को पाकर मै आत्मा निहाल
हूँ...”
❉ अपनी पलकों के झूले में झुलाते हुए मीठे प्यारे मेरे बाबा कहते हैं:- “मीठे
प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता तो बच्चों को फूल सी तकलीफ भी न दे पाये वो
तो सदा फूलो वाली मखमली गोद में ही खिलाये... उसकी यादो में सुख घनेरे छिपे है
उन मीठी यादो में डूब जाओ... मातपिता के कदमो पर कदम भर ही तो रखना है और अनन्त
खुशियो को पल में पाना है...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा हर कदम में पद्मों की कमाई करते हुए बाबा से कहती हूँ:-
“मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में खोयी सी मात पिता के
नक्शे कदम पर पग धरती हुई मीठे बाबा की दिल में मुस्करा रही हूँ... और
सम्पूर्ण पवित्रता की मिसाल बनकर पूरे विश्व को तरंगित कर रही हूँ...”
❉ खुशियों की चांदनी से मेरे जीवन के आँगन को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते
हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मात पिता स्वयं चल कर बच्चों के लिए राहे
आसान बना रहे है और जो निशान छोड़ रहे हैं उनपर कदम भर रखना यही मात्र पुरुषार्थ
है... बाकि विश्व पिता जनमो के थके बच्चों को कोई तकलीफ नही देता है... तो
पवित्रता से सजकर मीठे बाबा को संग लिए अथाह खुशियो के आसमान में उड़ते रहो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा के दिल की तिजोरी में हीरा बन चमकते हुए कहती हूँ:-
“हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मात पिता के आधार पर कंगूरा बन मुस्करा रही
हूँ... और बाबा के दिल तख्त पर मणि सी दमक रही हूँ... मनसा वाचा कर्मणा पवित्र
बन देवताई ताज से सजने का महाभाग्य पा रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखना"
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प मन में ले कर,
अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित मैं आत्मा मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ
मधुबन के पांडव भवन में और बाबा के कमरे में जा कर बैठ जाती हूँ। यहां बैठ कर
गहन शांति की स्थिति में स्थित होते ही मेरे कानों में ब्रह्मा बाबा के मुख से
उच्चारित ओम ध्वनि सुनाई देने लगती है। उस ध्वनि की मीठी आवाज में मैं जैसे खो
जाती हूँ। ब्रह्मा बाबा के साथ - साथ अब मैं भी अपने मुख से ओम ध्वनि का
उच्चारण कर रही हूँ। मुझ से निकल रही ओम ध्वनि की मधुर तरंगे चारो और फैल रही
है जो धीरे धीरे परमधाम पहुंच कर शिव पिता को टच कर रही हैं जिसके रेस्पॉन्ड
में शिव बाबा परमधाम से अपनी अनन्त किरणे मुझ पर प्रवाहित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ बाबा से आ रही ये शक्तिशाली किरणे मुझे लाइट माइट स्वरूप में
स्थित कर,
अपनी ओर खींच रही हैं। डबल लाइट फ़रिशता बन अब मैं ऊपर की ओर उड़ रहा हूँ।
आकाश मण्डल को पार करके उससे भी ऊपर मैं पहुंच गया सूक्ष्म लोक। अब मैं देख रहा
हूँ स्वयं को सूक्ष्म वतन में बापदादा के लाइट स्वरूप के सम्मुख। अष्ट शक्तियों
के रूप में बापदादा के अलग - अलग स्वरूप मेरे सामने स्पष्ट हो रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का पहला स्वरूप समेटने की शक्ति से भरपूर है। जैसे
ब्रह्मा बाबा ने निश्चय होते ही अपना व्यापार,
रिश्ते नाते समेटकर अपना संसार शिव बाबा को बना लिया। वही समेटने की
शक्ति मुझ में जागृत करने के लिए समेटने की शक्तिशाली किरणों से बाबा मुझे
भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ दूसरे स्वरूप में मैं देख रहा हूँ बापदादा का सहनशक्ति से भरपूर
स्वरूप। जैसे ब्रह्मा बाबा ने सारे समाज का विरोध सहन किया। कभी हिम्मत नही
हारी। वही सहनशक्ति मुझ में भरने के लिए बाबा सहनशक्ति से भरपूर किरणे मुझ पर
प्रवाहित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का तीसरा स्वरूप समाने की शक्ति से भरपूर है। जैसे
बापदादा सभी बच्चों की सभी बातों को स्वयं में समा लेते हैं वैसे समाने की
शक्ति से भरपूर किरणे दे कर बाबा मुझमे हर बात को स्वयं में समाने का बल भर रहें
हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का चौथा स्वरूप परखने की शक्ति को परिलक्षित कर रहा है।
जैसे ब्रह्मा बाबा अपने सम्मुख आने वाली हर आत्मा को सेकेंड में परख लेते थे।
वही परखने की शक्ति से भरपूर किरणे बाबा मुझमे समाहित कर रहें हैं ताकि अपने
सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परख कर हर प्रकार के धोखे से स्वयं
को बचा सकूँ।
➳ _ ➳ अब मैं बापदादा के पांचवे स्वरूप को देख रहा हूँ जो निर्णय करने
की शक्ति स्वयं में समाए हुए है। जैसे ब्रह्मा बाबा सबकी बात सुन कर बिना किसी
पक्षपात के उचित निर्णय सुनाते थे ऐसे ही निर्णय करने की शक्ति से सपन्न किरणे
बापदादा के इस स्वरूप से निकल कर मुझ फ़रिश्ते में समा रही हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का छठा स्वरूप सामना करने की शक्ति से भरपूर है। जैसे
ब्रह्मा बाबा ने विरोधी आत्माओ की परवाह ना करते हुए अपने पितृवत स्नेह से उन्हें
भी अपना बना लिया। ऐसे सामना करने की शक्ति से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सातवें स्वरूप में बापदादा सहयोग की शक्ति से परिपूर्ण है। जैसे
ब्रह्मा बाबा सहयोग की शक्ति से सबको एक साथ ले कर आगे बढ़ते रहे,
सबको दिल का स्नेह दे कर पालना करते रहे। ऐसे सहयोग की शक्ति से भरपूर
किरणे बाबा मुझ में प्रवाहित कर मुझे भी सहयोगी आत्मा बना रहें हैं।
➳ _ ➳ बापदादा का आठवां स्वरूप विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति का
परिचायक है। जैसे ब्रह्मा बाबा अशरीरी हो कर देह और देह के सम्बन्धो के
विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप में देखते उन्हें भी आत्मिक दृष्टि से
देखने के लिए प्रेरित करते रहे। ऐसे विस्तार को सार में समाने की शक्ति बाबा
मुझे दे रहें है।
➳ _ ➳ बापदादा के आठों स्वरूपों से अष्टशक्तियों को स्वयं में भरपूर
करके अब मैं फ़रिशता मास्टर सर्वशक्तिवान बन गया हूँ। समय और परिस्थिति अनुसार
जब चाहे उचित शक्ति का प्रयोग कर मैं सहज ही माया के हर वार का सामना कर सकता
हूँ। पूर्णतया निर्विघ्न स्थिति का मैं अनुभव कर रहा हूँ। ब्रह्मा बाप समान
मास्टर दाता बन अब मैं विश्व ग्लोब पर स्थित हो कर सर्वशक्तियों की साकाश विश्व
की सर्व आत्माओं को दे कर सर्व का कल्याण कर रहा हूँ। सारी सृष्टि और इस सृष्टि
की हर चीज इस सकाश से पावन बनती जा रही है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं ब्रह्मा बाप समान जीवनमुक्त्त स्थिति का अनुभव करने वाली कर्म के बंधनों से मुक्त्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं अपनी आत्मिक वृत्ति से प्रवृत्ति की सर्व परिस्थितियों को चेंज करने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ यह सर्व प्राप्ति भी महादानी बन औरों को दान करने के बजाए स्वयं स्वीकार कर लेते हैं। तो ‘मैं और मेरा' शुद्ध भाव की सोने की जंजीर बन जाती है। भाव और शब्द बहुत शुद्ध होते हैं कि हम अपने प्रति नहीं कहते, सेवा के प्रति कहते हैं। मैं अपने को नहीं कहती कि मैं योग्य टीचर हूँ लेकिन लोग मेरी मांगनी करते हैं। जिज्ञासु कहते हैं कि आप ही सेवा करो। मैं तो न्यारी हूँ लेकिन दूसरे मुझे प्यारा बनाते हैं। इसको क्या कहा जायेगा? बाप को देखा वा आपको देखा? आपका ज्ञान अच्छा लगता है, आपके सेवा का तरीका अच्छा लगता है, तो बाप कहाँ गया? बाप को परमधाम निवासी बना दिया! इस भाग्य का भी त्याग। जो आप दिखाई न दें, बाप ही दिखाई दे। महान आत्मा प्रेमी नहीं बनाओ ‘परमात्म प्रेमी बनाओ'। इसको कहा जाता है और प्रवृत्ति पार कर इस लास्ट प्रवृत्ति में सर्वांश त्यागी नहीं बनते। यह शुद्ध प्रवृत्ति का अंश रह गया। तो महात्यागी तो बने लेकिन सर्वस्व त्यागी नहीं बने। तो सुना दूसरे नम्बर का महात्यागी।
✺ "ड्रिल :- आत्माओं को "महान आत्मा प्रेमी" बनाने की बजाये "परमात्मा प्रेमी" बनाना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक ऐसे स्थान पर हूं जहां चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं और मैं फूलों के बीच भागती जा रही हूँ... और फूलों की खुशबू को अपने अन्तर्मन तक महसूस कर रही हूं... जैसे-जैसे उन फूलों की खुशबू को मैं अपने अंदर फील करती हूं... वैसे-वैसे मेरा मन भी फूलों की तरह खिल रहा है और मैं देखती हूं कि मैं अपने आप को बहुत ही तेज खुशबूदार फूल अनुभव करती हूं... और मैं अपने इस अनुभव को सबसे श्रेष्ठ अनुभव समझने लगती हूं... बाकी सभी फूल मुझे अपने से कम खुशबू वाले प्रतीत होते हैं मुझे लगता है की मैं खुशबू से भरी हुई हूँ और बाकी सभी फूलों की रंगत मुझसे कम है...
➳ _ ➳ तभी मैं खुशबू बनकर ऊपर उठने लगती हूं और पहुंच जाती हूं सूक्ष्म वतन जहां फरिश्ते ही फरिश्ते बैठे हुए हैं... वैसे ही मैं खुशबू से एक फरिश्ते का स्वरुप ले लेती हूं और अपनी चमक दूर-दूर तक अनुभव करती हूँ... तभी मैं देखती हूं कि वहां पर मेरे मीठे बाबा ने दरबार लगाया हुआ है और हमें समझा रहे हैं... बाबा ने सभी फरिश्तों को बताया कि आप सब योग्य टीचर हो आपको मुख्य भूमिका अदा करनी है... जब कभी भी आप टीचर बनकर शिक्षा दे रहे होते हैं... उस समय आपको सभी कहते हैं कि आप बहुत अच्छा समझाते हो तो आप बहुत प्रसन्न होते हो...
➳ _ ➳ और जब आप प्रसन्न होते हो तो उस समय आपको यह आभास नहीं होता कि आपने यह भाव अपने अंदर कुछ इस तरह संभाल लिया है कि आप में देहभान आने लगता है... जब सिर्फ आपका ही वर्णन होता है और कहा जाता है कि आपकी यह सेवा हमें बहुत प्रभावित करती है... अगर आप हमें यह सेवा नहीं देंगे तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे... उस समय आप यह अनुभव करते हो जी हां यह सेवा मैं बहुत अच्छी कर रही हूं... उस समय बाप कहीं भी आपके दिमाग में नहीं होते हैं... सिर्फ आपको अपनी सेवा की महानता के बारे में ही अनुभव होता है... उस समय वह सभी आत्माएं सिर्फ आप की महानता के प्रेमी बन जाते हैं... तभी एक फरिश्ता उठ कर अपने पंख फैलाकर उड़ता हुआ बाबा को कहता है मेरे मीठे, बाबा मैं ऐसी सेवा नहीं करूंगा, जिससे वह मेरी महानता के प्रेमी बने...
➳ _ ➳ और बाबा को यह शब्द कहकर वह फरिश्ता बाबा के सामने बैठ जाता है... और बाबा उस पर अपना हाथ रखकर उसे वरदान देते हैं, सफलता मूरत भव... मैं बाबा से कहती हूं, बाबा मैं हमेशा आपकी कही हुई बातों को स्मृति में रखूंगी और सभी आत्माओं को परमात्मा प्रेमी बनाऊंगी... मैं अचानक अपने इस फरिश्ते स्वरूप से खुशबू फैलाते हुए नीचे आ जाती हूं... जहां चारों तरफ फूलों की खुशबू बिखर रही है... और फूलों से यह वातावरण बहुत सुंदर लग रहा है और इस खुशबूदार वातावरण से अब मैं वापस अपने कर्म स्थल पर आ जाती हूं और अपनी सेवा प्रारंभ करती हूं...
➳ _ ➳ मैं जैसे ही अपनी सेवा आरंभ करती हूं... तो मेरे सामने अनेक आत्माएं बैठी हुई रहती हैं और मैं उनको बाबा की मुरली सुनाने लगती हूँ... उस दौरान सभी बहने मुझे कहती हैं... बहन आप बहुत अच्छी मुरली सुनाते हो... मैं उनसे कहती हूं उसी समय मैं बाबा का धन्यवाद करती हूं और मै बहनों को यह समझाती हूँ कि यह मुरली सिर्फ और सिर्फ परमात्मा द्वारा दिया हुआ हम सभी के लिए श्रीमत रूपी वरदान है... यह सुनकर सभी बहने बाबा का धन्यवाद करती है और सभी इसी भाव से ज्ञान सुनते हैं कि यह ज्ञान हमें परमात्मा सुना रहे हैं... जो आत्माएं पहले मेरी महानता का गुणगान करती थी वह सभी आत्माएं अब परमात्मा प्रेमी बन गए हैं... सभी आत्माएं परमात्मा की श्रीमत पर चल रही है और मैं भी अपनी महानता को त्याग परमात्मा प्रेमी स्थिति का आनंद ले रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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