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❍ 14 / 09 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ एक बाप के सिवाए दूसरा कोई मित्र सम्बन्धी याद तो नहीं आया ?
➢➢ गुप्त दान किया ?
➢➢ निमित और निर्माण भाव से सेवा की ?
➢➢ सेकंड में विदेही बनने का अभ्यास किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जैसे विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है, बच्चों को विदेही बनाने के लिए। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते, विदेही आत्मा-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। यह देह करनहार है, आप देही करावनहार हो, इसी स्थिति को 'विदेही स्थिति' कहते हैं। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है। बाप को फॉलो करने की स्थिति है सदा अशरीरी भव, विदेही भव, निराकारी भव!
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं होली हँस हूँ"
〰✧ सदा होली हंस बन गये - ऐसा अनुभव करते हो? होली हंस हो ना! तो हंस क्या करता है? हंस का काम क्या होता है? (मोती चुगना) और दूसरा? दूध और पानी को अलग करना। एक है ज्ञान रत्न चुगना अर्थात् धारण करना और दूसरी विशेषता है निर्णय शक्ति की विशेषता। दूध और पानी को अलग करना अर्थात् निर्णय शक्ति की विशेषता। जिसमें निर्णय शक्ति होगी वो कभी भी दूध की बजाय पानी नहीं धारण करेगा। दूध की वैल्यु पानी से ज्यादा है। तो दूध और पानी का अर्थ है व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करना। व्यर्थ को पानी समान कहते हैं और समर्थ को दूध समान कहते हैं। तो ऐसे होली हंस हो? निर्णय शक्ति अच्छी है? कि कभी पानी को दूध समझ लेते, कभी दूध को पानी समझ लेते? व्यर्थ को अच्छा समझ लें और समर्थ में बोर हो जायें। नहीं।
〰✧ तो होली हंस अर्थात् सदा स्वच्छ। हंस सदा स्वच्छ दिखाते हैं। स्वच्छता अर्थात् पवित्रता। तो अभी स्वच्छ बन गये ना। मैलापन निकल गया या अभी भी थोड़ा-थोड़ा है? थोड़ा-थोड़ा रह तो नहीं गया? कभी मैले के संग का रंग तो नहीं लग जाता? कभी-कभी मैले का असर होता है? तो स्वच्छता श्रेष्ठ है ना। मैला भी रखो और स्वच्छ भी रखो तो क्या पसन्द करेंगे? स्वच्छ पसन्द करेंगे या मैला भी पसन्द करेंगे? तो सदा मन-बुद्धि स्वच्छ अर्थात् पवित्र। व्यर्थ की अपवित्रता भी नहीं। अगर व्यर्थ भी है तो सम्पूर्ण स्वच्छ नहीं कहेगे। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होलीहंस बनना।
〰✧ हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहें, मनन चलता रहे। ज्ञान चलेगा तो व्यर्थ नहीं चलेगा। इसको कहा जाता है रत्न चुगना। व्यर्थ है पत्थर। कभी भी अगर व्यर्थ आता है तो दु:ख की लहर आती है ना। परेशान तो होते हो ना कि ये क्यों आया? तो पत्थर दु:ख देता है और रत्न खुशी देता है। अगर किसी के हाथ में रत्न आ जाये तो परेशान होगा या खुश होगा? खुश होगा ना। अगर कोई पत्थर फ़ेक दे तो दु:ख होगा। तो बुद्धि द्वारा भी पत्थर ग्रहण नहीं करना। सदा ज्ञान रत्न ग्रहण करना। एक-एक रत्न की अनगिनत वैल्यु है! आपके पास कितने रत्न हैं? अनगिनत हैं ना! रत्नों से भरपूर हैं, खाली तो नहीं हैं? कभी भी बुद्धि को खाली नहीं रखो। कोई न कोई होम वर्क अपने आपको देते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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〰✧ अब तो घर जाना है? (कब जाना है?) समय कभी भी बता के नहीं आयेगा, अचानक ही आयेगा। जब समझेंगे समीप है तो नहीं आयेगा। जब समझने से थोडे अलबेले होंगे तो अचानक आयेगा।
〰✧ आने की निशानी अलबेलेपन वाले अलबेलेपन में आयेंगे, नहीं तो नम्बर कैसे बनेंगे? फिर तो सब कहें - हम भी अष्ट हैं, हम भी पास हैं। लेकिन थोडा बहुत अचानक होने से ही नम्बर होंगे। बाकी जो महारथी हैं उन्हों को टचिंग आयेगी।
〰✧ लेकिन बाप नहीं बतायेगा। टचिंग ऐसे ही आयेगी जैसे बाप ने सुनाया। लेकिन बाप कभी एनाउन्स नहीं करेंगे। एक सेकण्ड पहले भी नहीं कहेंगे कि एक सेकण्ड बाद होना है। यह भी नहीं कहेंगे। नम्बरवार बनने हैं, इसलिए यह हिसाब रखा हुआ है। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ और कुछ भी याद न हो, हर समय एक ही बात याद हो 'मेरा बाबा'। क्योंकि मन व बुद्धि कहाँ जाती है? जहाँ मेरा-पन होता है। अगर शरीर-भान में भी आते हो तो क्यों आते हो? क्योंकि मेरा-पन है। अगर 'मेरा बाबा' हो जाता तो स्वत: ही मेरे तरफ बुद्धि जायेगी। सहज साधन है - 'मेरा बाबा'। मेरा-पन न चाहते हुए भी याद आता है। जैसे-चाहते नहीं हो कि शरीर याद आवे, लेकिन क्यों याद आता है? मेरा-पन खीचता है ना, न चाहते भी खींचता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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"ड्रिल :- सतोप्रधान बनना"
➳ _ ➳ ऊँची पहाड़ी पर खड़ी मै आत्मा... नीचे की दुनिया देख रही हूँ... और
दुनिया से अलग अपनी ऊँची खुबसूरत स्थिति देखकर सोचती हूँ... इतना प्यारा
निर्विकारी जीवन तो कभी ख्वाबो में भी न था... जो आज जीवन की हकीकत है... कभी
तो विकार ही जीवन का सत्य बने हुए थे... उनसे हटकर मेरा भी कोई सत्य है यह दूर
दूर तक पता न था... कैसे प्यारे बाबा ने जीवन में आकर, जीवन को सच्ची खुशियो
और रौनक से सजाया है... और दुखो की मायूसी हटाकर, सुखदायी मुस्कान से मुझे इतना
सुंदर बनाया है... दिल से धन्यवाद करने मै आत्मा... अपने प्यारे बाबा के पास उड़
चलती हूँ...
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतोप्रधान बनाते हुए कहा :- "मीठे
प्यारे फूल बच्चे... देहभान और देह के विकारो ने कितना निस्तेज कर दिया है...
अपनी दिव्यता को ही भूल कितने साधारण बन पड़े हो... अब मीठे बाबा की यादो में
ज्ञान और योग से... उसी खोये दिव्य सौंदर्य को पुनः पा लो... प्यार से मीठे
बाबा को याद करो और सतोप्रधान बनकर, विश्व के मालिक बन, सुखो का आनन्द लो..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को अपनी बुद्धि पात्र में
भरते हुए कहती हूँ :- मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी प्यारी सी छत्रछाया में मै
आत्मा... विकारो जीवन से मुक्त होकर दिव्यता से भरती जा रही हूँ... ज्ञान और
योग की चमक ने जीवन को सदा का रौशन किया है और मुझे पवित्रता से सजाया है..."
❉ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादो में तेजस्वी बनाते हुए
कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... कितने खिले और खुबसूरत फूल थे... पर
देह के जंजालों में फंसकर, विकारो की कालिमा में कितने काले हो गए... अब यादो
की अग्नि में स्वयं को उसी आभा में फिर से निखारो... पुनः सतोप्रधान बनकर,
देवताई सुखो के अधिकारी बनकर विश्व धरा पर सुखो भरा राज्य भाग्य पाओ..."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा को मेरा भाग्य इतना मीठा और प्यारा बनाने पर
कहती हूँ :- "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा सदा आपकी यादो की छाँव
में... अपने खोये वजूद को पाकर, पावनता की सुंदरता से... देवताई ताजोतख्त पा रही
हूँ... दुखो से मुक्त होकर, सुखो की मालकिन बनती जा रही हूँ..."
❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रावण पर जीत पाने का राज समझाते हुए
कहा :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता के साये में सतोप्रधान बनकर,
खुशियो से महकती खुबसूरत दुनिया को अपनी बाँहों में पाओ... ज्ञान के मनन और
योग की खुशबु से. विकारो रुपी रावण को सहज ही जीत जाओ... श्रीमत का हाथ पकड़ इस
दलदल से सहज ही निकल जाओ...."
➳ _ ➳ मै आत्मा प्यारे बाबा से कहती हूँ :- "मीठे मीठे प्यारे बाबा...
मै आत्मा आपको पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... आपकी प्यारी बाँहों में पलकर कितनी
शक्तिशाली बन गयी हूँ... शक्तियो और दिव्य गुणो को पाकर, विकारो को जीतकर
मुस्करा रही हूँ... ज्ञान की अमीरी और योग से मालामाल हूँ... "मीठे बाबा से
मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा... स्थूल वतन में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- एक बाप के सिवाय दूसरा कोई भी मित्र संबंधी याद ना आए"
➳ _ ➳ देह, देह के सम्बन्धो और सभी दुनियावी बातों से अपने मन बुद्धि को
हटा कर, केवल अपने शिव बाबा की याद में बैठ मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती
हूँ अपने शिव पिता परमात्मा पर। ज्ञान के दिव्य चक्षुओं से मैं देख रही हूँ
अपने शिव पिता परमात्मा को उनके निराकारी घर शांति धाम, निर्वाण धाम में।
साकारी दुनिया मे होते हुए भी मेरी बुद्धि की तार परमधाम में मेरे शिव पिता के
साथ जुड़ी हुई है। मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ उस परमधाम घर से आती सर्वशक्तियों
को जो मेरे शिव पिता से सीधी मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और मुझे विदेही स्थिति
में स्थित कर रही हैं।
➳ _ ➳ विनाशी देह और देह की दुनिया का कोई भी संकल्प अब मेरे मन में
उतपन्न नही हो रहा, मुझे केवल मेरा निराकारी घर शांति धाम और शान्तिधाम में
विराजमान मेरे शिव पिता ही दिखाई दे रहें है। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे
चारों और बिखेरता हुआ उनका सुन्दर सलोना स्वरूप मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहा
है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी सर्वशक्तियों की किरणे रूपी बाहें फैला कर वो मुझे
अपने पास बुला रहें हैं। अपने शिव पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में बैठ
अब मैं आत्मा सजनी अपने शिव पिया के पास निर्वाण धाम जा रही हूँ। बाबा की बाहों
में झूलते, गहन आनन्द की अनुभूति करते, धीरे - धीरे मैं साकार लोक को पार कर
जाती हूँ।
➳ _ ➳ प्रकृति के पांचों तत्वों से दूर, सूक्ष्म लोक को पार कर अब मैं
पहुँच गई हूँ अपनी मंजिल, अपने घर निर्वाण धाम में अपने शिव पिता के पास। वाणी
से परें अपने इस शान्तिधाम घर मे पहुंचते ही मैं अथाह शांति का अनुभव कर रही
हूँ। अपने शिव पिता परमात्मा को अपने बिल्कुल सामने देख रही हूँ। इतने समीप से
उन्हें देखने और उन्हें महसूस करने का अनुभव बहुत ही सुंदर और निराला है। ऐसा
लग रहा है जैसे सुख, शांति, आनन्द की मीठी - मीठी लहरें बार - बार मुझे छू रही
हैं और मुझे असीम सुख, शांति और आनन्द से भरपूर कर रही हैं। सुख, शांति और
आनन्द का यह निराला अनुभव मुझे मेरे शिव पिता के और समीप ले कर जा रहा है।
➳ _ ➳ मैं आत्मा धीरे - धीरे आगे बढ़ते हुए अब उनके बिल्कुल पास पहुँच गई
हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा और मैं एक हो गए हैं। महाज्योति शिव बाबा के साथ
टच मैं ज्योति बिंदु आत्मा उनके सानिध्य में गहन सुख की अनुभूति कर रही हूँ।
उनसे निकल रही शक्तियों की शीतल फुहारें मेरे मन को तृप्त कर रही हैं। मेरे
शिव पिता का पावन प्यार उनकी अनन्त किरणों के रूप में मुझ पर बरस रहा है। प्यार
के सागर अपने प्यारे मीठे बाबा के प्यार में मैं आत्मा गहराई तक समाती जा रही
हूं। ऐसे निस्वार्थ प्यार को पा कर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ। मेरे ऊपर
बरसता हुआ बाबा का अथाह प्यार मुझे अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुला रहा है।
➳ _ ➳ अतीन्द्रिय सुख की अनुभति के साथ - साथ बाबा से आ रही
शक्तिशाली किरणे अब योग अग्नि बन कर मुझ आत्मा द्वारा किए हुए जन्म जन्मांतर के
विकर्मों को दग्ध कर रही हैं। विकारों की कट जैसे-जैसे मुझ आत्मा के ऊपर से
उतरती जा रही है मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। मेरा स्वरूप
चमकदार बनता जा रहा है। विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा रीयल गोल्ड बन गई
हूँ। हल्की होकर रीयल गोल्ड बनकर मैं आत्मा अब वापिस साकारी दुनिया की ओर आ रही
हूँ। अपनी अद्भुत छटा चारों ओर बिखेरती हुई मैं वापिस देह और देह की पुरानी
दुनिया में पहुँच कर, अपने साकारी तन में प्रवेश कर भृकुटि सिंहासन पर विराजमान
हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्वयं को देख रही हूँ। मेरा यह
ब्राह्मण जीवन केवल मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है, इसलिए उनकी याद में बैठने
समय कोई भी मित्र सम्बन्धी, खान - पान आदि याद ना आये, इसका विशेष अटेंशन रखते
हुए अपने इस ब्राह्मण जीवन को अब मैं श्वांसों श्वांस केवल अपने शिव बाबा की
याद में रह कर सफल कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं निमित्त और निर्माण भाव से सेवा करने वाली श्रेष्ठ सफलतामूर्त आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं सेकंड में विदेही बनने का अभ्यास करके सूर्यवंशी में आने वाली सूर्यवंशी आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुशी की जीवन। कभी-कभी बापदादा देखते हैं, कोई-कोई के चेहरे जो होते हैं ना वह थोड़ा सा.... क्या होता है? अच्छी तरह से जानते हैं, तभी हंसते हैं। तो बापदादा को ऐसा चेहरा देख रहम भी आता और थोड़ा सा आश्चर्य भी लगता। मेरे बच्चे और उदास! हो सकता है क्या? नहीं ना! उदास अर्थात् माया के दास। लेकिन आप तो मास्टर मायापति हो। माया आपके आगे क्या है? चींटी भी नहीं है, मरी हुई चींटी। दूर से लगता है जिंदा है लेकिन होती मरी हुई है। सिर्फ दूर से परखने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप की नालेज विस्तार से जानते हो ना, ऐसे माया के भी बहुरूपी रूप की पहचान, नालेज अच्छी तरह से धारण कर लो। वह सिर्फ डराती है, जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना तो उनको माँ बाप निर्भय बनाने के लिए डराते हैं। कुछ करेंगे नहीं, जानबूझकर डराने के लिए करते हैं।
➳ _ ➳ ऐसे माया भी अपना बनाने के लिए बहुरूप धारण करती है। जब बहुरूप धारण करती है तो आप भी बहुरूपी बन उसको परख लो। परख नहीं सकते हैं ना, तो क्या खेल करते हो? युद्ध करने शुरू कर देते हो हाय, माया आ गई! और युद्ध करने से बुद्धि, मन थक जाता है। फिर थकावट से क्या कहते हो? माया बड़ी प्रबल है, माया बड़ी तेज है। कुछ भी नहीं है। आपकी कमजोरी भिन्न-भिन्न माया के रूप बन जाती है। तो बापदादा सदा हर एक बच्चे को खुशनसीब के नशे में, खुशनुमा चेहरे में और खुशी की खुराक से तन्दरूस्त और सदा खुशी के खजानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं।
✺ ड्रिल :- "माया को मरी हुई चींटी समझ सदा खुशनसीब के नशे में रहने का अनुभव"
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में शांत स्थिति में बैठी हुई... अपनी जीवन यात्रा पर एक नजर दौड़ाती हूँ... मैं देख रही हूँ कि जीवन यात्रा में जो भी खूबसूरत पल आये... भगवान हर पल, हर क्षण मेरे साथ थे... और जीवन के चैलेंजिंग क्षणों में मैं आत्मा... स्वयं को ईश्वर की गोदी में महफूज देख रही हूँ... यह सब देख कर ईश्वर के प्रति मेरे मन में अगाध स्नेह उमड़ रहा है... ईश्वरीय स्नेह में मेरे नयन भीग रहे हैं...
➳ _ ➳ प्रभु स्नेह में भीगी हुई मैं आत्मा... अपने प्यारे शिवबाबा को अपने बिल्कुल समीप देख रही हूँ... उनकी शक्तियों का, प्यार का जल अजस्त्र धारा की तरह मुझ पर बरसता जा रहा है... मैं आत्मा ईश्वरीय स्नेह में डूबती जा रही हूँ... मैं परमात्म प्यार से सराबोर होती जा रही हूँ... मैं स्वयं को ईश्वरीय रंग में रंगा हुआ देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कितना सुंदर है मेरा यह मरजीवा जन्म... मेरा यह ब्राह्मण जीवन खुशियों से भरा जीवन है... मैं आत्मा बाबा की शक्तियों और सहयोग से... माया के हर रूप पर विजय प्राप्त करती जा रही हूँ... मैं मास्टर मायापति बन रही हूँ... माया कैसा भी विकराल रुप धारण करके आवे... लेकिन मुछ आत्मा को हलचल में नहीं ला सकती... क्योंकि सर्वशक्तिमान बाबा मेरे साथ है... उनके साथ से हर क्षण मेरी विजय होती जा रही है... मैं आत्मा मायाजीत बन रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा अपनी सर्व शक्तियों के खजानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मीठे बाबा ने अपनी समस्त शक्तियां मुझे दे दी हैं... माया तो मरी हुई चींटी के समान निर्जीव बन गई है... बाबा से मुझ आत्मा में परखने की शक्ति संपूर्ण रूप में समाती जा रही है... मुझ आत्मा को ज्ञान की गुह्य बातें स्पष्ट हो रही हैं... साथ ही माया के विविध रूपों की भी स्पष्ट परख, स्पष्ट पहचान होती जा रही है... माया तो सिर्फ डराने के लिए आती है, वास्तव में उसमें कोई भी शक्ति नहीं है...
➳ _ ➳ मैं परख शक्ति के द्वारा माया के हर रूप को परख पा रही हूँ... हर कमजोरी से स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ... वह कमजोरी ही माया के विभिन्न रुप धारण कर आती थी और मैं आत्मा उसे युद्ध करने में अपनी शक्तियां गंवा रही थी, मन-बुद्धि इस युद्ध में शिथिल होती जा रही थी... लेकिन अब हर प्रकार की कमजोरी पर जीत पाकर मैं आत्मा... अपनी खुशनसीब स्थिति में हूँ... अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों के गीत गुनगुना रही हूँ... खुशी की खुराक से मैं आत्मा तंदुरुस्त हो रही हूँ... खुशी के खजानों से भरपूर हो रही हूँ... अपनी इस खुशकिस्मत अवस्था में खुशनुमा चेहरे और चलन से... सर्व आत्माओं को खुशी का खजाना बांटती जा रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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