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❍ 28 / 02 / 18 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कब्रिस्तान से बुधी निकाली ?*
➢➢ *मुख से सदैव ज्ञान रतन ही निकले ?*
➢➢ *सदा केयरफुल रह माया के रॉयल रूप की छाया से सेफ रहे ?*
➢➢ *सहजयोगी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। लेकिन *परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना। जितना न्यारा बनेंगे उतना परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त होगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा का सिकीलधा रूहानी गुलाब हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सिकीलधे समझते हो ना? कितने सिक व प्रेम से बाप ने कहाँ-कहाँ से चुनकर एक गुलदस्ते में डाला है। गुलदस्ते में आकर सभी 'रूहे गुलाब' बन गये। रूहे गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? *हरेक को यही नशा है ना कि हम बाप को प्रिय हैं! हरेक कहेगा कि मेरे जैसा प्यारा बाप को और कोई नहीं है। जैसे बाप जैसा प्रिय और कोई नहीं। वैसे बच्चे भी कहेंगे।*
〰✧ क्योंकि हरेक की विशेषता प्रमाण बाप को सभी से विशेष स्नेह है। नम्बरवार होते हुए भी सभी विशेष स्नेही हैं। बच्चों के मूल्य को सिर्फ बाप जानें और आप जानों। और कोई नहीं जान सकता। *दूसरे तो आप लोगों को साधारण समझते हैं, लेकिन कोटो में कोई और कोई में भी कोई आप हो। जिसको बाप ने अपना बना लिया। बाप का बनते ही सर्व प्राप्तियॉं हो गई। खजानों की चाबी बाप ने आप सबको दे दी।* अपने पास नहीं रखी। इतनी चाबियाँ हैं जो सबको दी है। यह मास्टर की (चाबी) ऐसी है जो जिस खजाने को लगाना चाहो, लगाओ और खजाना प्राप्त करो। मेहनत नहीं करनी पड़ती।
〰✧ वैसे भी लंदन राज्य का स्थान है ना। प्रजा बनने वाले नहीं। सभी सेवा में आगे बढ़ने वाले। *जहाँ प्राप्ति हैं वहाँ सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। सेवा कम अर्थात् प्राप्ति कम। प्राप्ति स्वरूप बिना सेवा के रह नहीं सकते।* देखो, आप लोग कितना भी देश छोड़कर विदेश चले गये तो भी बाप ने विदेश से भी ढूँढकर अपना बना लिया। कितना भी भागे फिर भी बाप ने तो पकड़ लिया ना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *सिर्फ मैं शब्द नहीं बोलना आत्मा साथ में बोला, पक्का हो जायेगा।* जैसे शरीर का नाम पक्का है ना दूसरे को भी कोई बुलायेंगे तो आप ऐसे-ऐसे करेंगे। तो मैं आत्मा हूँ। आत्म का संसार बापदादा, आत्मा का संस्कार ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरश्तिा सो देवता। तो क्या करेंगे? यह मन की ड़ि्ल करना। आजकल डॉक्टर्स भी कहते हैं ड़ि्ल करो, ड़ि्ल करो। एक्सरसाइज करो।
〰✧ तो *यह एक्सरसाइज करो। मैं आत्मा, मेरा बाबा क्योंकि समय की गति को ड्रामा अनुसार स्लो करना पडता है।* होना चाहिए क्रियेटर को तीव्र, क्रियेशन के नहीं लेकिन अभी के प्रमाण समय तेज जा रहा है। प्रकृति एवररेडी है सिर्फ ऑर्डर के लिए रूकी हुई है। ड्रामा का समय ही ऑर्डर करेगा ना। स्थापना वाले अगर एवररेडी नहीं होंगे ते विनाश के बाद क्या प्रलय होगी? होनी है प्रलय?
〰✧ कि विनाश के बाद स्थापना होनी ही है? *तो स्थापना के निमित बने हुए अभी समय प्रमाण एवररेडी होने चाहिए।* बापदादा यही देखने चाहते है, जैसे ब्रह्मा बाप अर्जुन बना ना, एक्जैम्पुल बना ना! ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले कौन बनते हैं? स्वयं भी देखो, समय को भी देखो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *फरिश्ता रूप की स्थिति अर्थात् अव्यक्त स्थित जिसकी सदाकाल रहती है वह बिन्दु रूप में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रूप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। *शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे। वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच-बीच में समय निकाल करना चाहिए। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हंस बनने का पुरुषार्थ करना"*
➳ _ ➳ *खुले आंगन में प्रकृति की गोद में मैं आत्मा बाबा की याद में बैठी हूँ... मन अपने श्रेष्ठ भाग्य की महिमा के गीत गुनगुना रहा है... बाबा ने मुझे अपना बनाकर क्या से क्या बना दिया... कहाँ भक्ति में उसकी एक झलक पाने के प्यासे थे... अब उससे हर पल मिलन मनाने का भाग्य मिल गया है...* उसने अपने दिलतख्त पर बिठाके मुझे अपनी दिलरूबा बना दिया है... तभी बारिश की हल्की हल्की बूँदें मुझ पर बरसने लगती हैं... ये बूँदें ज्ञान सागर की ज्ञान वर्षा में भीगने और आनंदित होकर झुमने का अनुभव करा रही हैं...
❉ *ज्ञान सागर बाबा अपनी ज्ञान की वर्षा करते हुए कहते हैं :-* “मीठे मीठे फूल बच्चे... तुम्हें नशा होना चाहिए की तुम्हें... पढाने वाला टीचर कौन है... *स्वयम भगवान, प्यार का सागर, आनंद का सागर, शांति का सागर बाबा तुम्हें पढ़ा रहे हैं... तुम भाग्यवान आत्माएं ज्ञान सूर्य के सम्मुख बैठ यह रूहानी पढाई पढ़ रहे हो... सदा अपने इस भाग्य के नशे में रहो...”*
➳ _ ➳ *बाबा की मधुर वाणी सुनकर आनंद विभोर होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :-* “मेरे जीवन के आधार मीठे बाबा... *संगम पर मुझ आत्मा को ज्ञान सूर्य बाप के सम्मुख बैठ... रूहानी पढ़ाई पढने का श्रेष्ठ भाग्य मिला है... मैं आत्मा सदैव इस खुमारी, नशे में स्थित हो रही हूँ...* आपसे मिले हुए ज्ञान की हर पॉइंट की अनुभवी मूर्त बनती जा रही हूँ...”
❉ *ज्ञान के दिव्य खजानों से मुझे लबालब करते हुए ज्ञान सागर बाबा कहते हैं :-* “मेरे मीठे सिकिलधे बच्चे... *अब तुम्हारी हंस मण्डली बन गयी है... तुम बगुले से हंस बन गये हो... अब तुम अवगुणों का चिन्तन नहीं कर सकते... अब तुम ज्ञान मोती चुगने वाले हंस बुद्धि बन गये हो... तुम व्यर्थ और समर्थ में से सदा समर्थ को ही ग्रहण करो...* श्रेष्ठ ज्ञान रत्नों को ही जीवन में धारण करो...”
➳ _ ➳ *बाबा से मिल रहे असीम स्नेह से गदगद होती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :-* “मेरे मन के मीत मीठे बाबा... आप मुझे व्यर्थ और समर्थ, नीर और क्षीर, कंकड़ और मोती को अलग अलग परखने की शक्ति... दिव्य बुद्धि दे रहे हैं... *मैं आत्मा होलीहंस बन... सदैव ज्ञान रत्नों को ही धारण कर रही हूँ... मैं ज्ञान मोती चुगने वाला... होलीहंस बनती जा रही हूँ...”*
❉ *अपनी मधुर दृष्टि से वरदानों की वर्षा करते हुए बाबा कहते हैं :-* “मीठे प्यारे बच्चे... *बाबा तुम्हें ज्ञान रत्नों की थालियाँ भर भर के दे रहे हैं... तुम उन्हीं ज्ञान रत्नों से सदा खेलते रहो... ज्ञान की नयी नई पॉइंट्स लेकर... उस पर विचार सागर मंथन करते रहो...* बाबा तुम्हें ज्ञान खजाने से भरपूर कर रहे हैं... इस खजाने को विश्व की... सर्व आत्माओं को बांटते चलो... “
➳ _ ➳ *बाबा की शिक्षाओं को स्वयम में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ :-* “मेरे मीठे प्यारे बाबा... आपने मुझे ज्ञान खजानों का मालिक बना दिया है... *मेरी बुद्धि को शुद्ध सोने का बर्तन बना दिया है... जिसमें मैं ज्ञान रत्नों को धारण कर रही हूँ... ज्ञान की एक एक पॉइंट पर... विचार सागर मंथन कर उसका स्वरूप बनती जा रही हूँ...* ज्ञान खजानों का दान कर सर्व को... आप समान बनाने की सेवा कर रही हूँ... खजानों को बांटते बांटते मेरा यह खजाना... और भी बढ़ता जा रहा है...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस कब्रिस्तान से बुद्धि निकाल देनी है*"
➳ _ ➳ देहभान रूपी कब्र से निकल कर मैं आत्मा जैसे ही अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होती हूँ ये सारी दुनिया मुझे एक कब्रिस्तान के रूप में दिखाई देने लगती है और इस कब्रिस्तान का दृश्य मेरी आंखों के आगे चित्रित होने लगता है। *देह भान रूपी कब्र में कैद मुर्दो की इस दुनिया को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखते हुए मैं विचार करती हूँ कि देह भान रूपी कब्र में सोए हुए बेचारे मनुष्य तो इस बात का अभी तक इन्तजार कर रहें है कि कयामत के समय खुदा आएगा और कब्रों में पड़ी हुई रूहों को जगाकर अपने साथ ले जाएगा*। बेचारे ये भी नही जानते कि वो कौन सी कब्र है और वो कौन सा कयामत का समय है।
➳ _ ➳ कयामत का समय तो अब चल रहा है जबकि सृष्टि के महापरिवर्तन का समय समीप है और वो खुदा भी इस समय इस धरा पर आकर देहभान रूपी कब्र में कैद आत्माओं को ज्ञान देकर जगा रहा है। *कितनी सौभाग्यशाली है वो आत्मायें जिन्होंने उस खुदा को पहचाना है और उनकी मत पर चल देह भान रूपी कब्र से निकल कर, इस कब्रिस्तान को भूल अपने खुदा की याद से खुद को पावन बनाने का पुरुषार्थ कर रही हैं*। इस क़ब्रिस्तान को परिस्तान बनाने के कर्तव्य में भगवान की मददगार बन उनका सहयोग दे रही हैं।
➳ _ ➳ खुदा को पहचान उनकी मत पर चलने वाली खुदाई खिदमतगार आत्माओं के बारे में विचार करते हुए अपने भाग्य की मैं सराहना करती हूँ कि "वाह मेरा भाग्य वाह" जो भगवान ने मुझ देहभान रूपी कब्र से निकाल, मेरे सुन्दर सुखद स्वरूप से मुझे अवगत करवा कर इस संसार रूपी कब्रिस्तान में कब्र दाखिल होने से मुझे बचा लिया। *अपने उस स्वरूप को जिसे मैं आज दिन तक भूली हुई थी उस शांतमय, सुखमय, आनन्दमय स्वरूप का अनुभव करने और अपने खुदा से मंगल मिलन मनाने के लिए अब मैं देह और देह की दुनिया के इस कब्रिस्तान को भूल अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर अंतर्मुखता की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की इस सुंदर यात्रा पर चलते हुए हुए अपने स्वरूप में स्थित होकर, अपने अन्दर समाये गुणों और शक्तियों का आनन्द लेने में मैं इतनी मगन हो जाती हूँ कि दुख देने वाली देह, देह की दुनिया, देह के झूठे नश्वर सम्बन्धो को मैं बिल्कुल भूल जाती हूँ। *मन को सुकून देने वाली देहीअभिमानी स्थिति में स्थित होकर मैं आत्मा विदेही बन देह से बाहर निकल आती हूँ और एक गहन हल्केपन का अनुभव करते हुए ऊपर की ओर प्रस्थान कर जाती हूँ। एक ही उड़ान में सारी दुनिया का चक्कर लगाकर मैं आकाश में पहुँच जाती हूँ और कुछ क्षणों के लिए नील गगन में चमक रहे सूर्य, चाँद, तारागणों को देखते इस नील गगन में विचरण करके, इससे और ऊपर उड़ कर सफेद प्रकाश की एक बेहद खूबसूरत दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ*। सफेद चाँदनी के प्रकाश से सजे इस अव्यक्त वतन में अपने प्यारे बापदादा के पास जा कर उनसे दृष्टि लेकर उससे ऊपर अपने परमधाम घर में मैं पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ निराकारी आत्माओं की बेहद खूबसूरत दुनिया में जहाँ ना कोई साकार देह का बन्धन और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है। *एक आलौकिक सुखमय निर्संकल्प अवस्था जो बहुत ही न्यारी और प्यारी है, उस बीज रूप अवस्था मे स्थित हो कर अपने बीज रूप परम पिता परमात्मा बाप को निहारते हुए असीम सुख का अनुभव करके और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों से सम्पन्न हो कर मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में*। देह और देह की इस दुनिया मे वापिस लौटकर, इस सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजाते हुए इस कब्रिस्तान को भूलने का अब मैं पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ।
➳ _ ➳ *यह दुनिया जल्दी ही कब्रदाखिल होने वाली है, इन आँखों से जो कुछ दिखाई दे रहा है वो सब मिट्टी में मिलने वाला है, सदा इस बात को स्मृति में रख, अपने प्यारे बाबा की याद से जल्दी से जल्दी अपने विकर्म विनाश कर, सम्पूर्ण पावन बनने के अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ अब मैं पूरी दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सदा केयरफुल रह माया के रॉयल रूप की छाया से सेफ रहने वाली मायाप्रूफ आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मुझे देख दूसरों का भी योग सहज लग जाय मैं ऐसी सहजयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जब 9 लाख आयेंगे तो साधन स्वतः जुट जायेगा। घबराओ नहीं, हाल बनाना पड़ेगा। देखो, भविष्य बहुत बहुत उज्जवल है। सब साधन मिल जायेंगे। बने बनाये हाल आपको मिलेंगे। बनाने नहीं पड़ेंगे। *सिर्फ जो इस वर्ष का स्लोगन दिया है ना - सफल करो, सफलता है ही। अच्छा।*
➳ _ ➳ टीचर्स अभी स्वयं भी सफल करो और सफल कराओ। सेवा में वृद्धि होना अर्थात् खजानों को सफल किया और कराया। तो इस वर्ष का स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना तो स्वतः ही वृद्धि होती जायेगी। हिम्मत दिलाओ। बापदादा ने देखा है, कोई-कोई स्थान में हिम्मत कम दिलाने की शक्ति है। *हिम्मत दिलाओ, हर कार्य में मन्सा में भी, वाचा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, कर्म में भी हिम्मत दिलाओ।* टीचर्स की सीट ही है - हिम्मत में रहना और हिम्मत दिलाना। क्यों? क्योंकि टीचर्स को जो बाप की मुरली सुनाने का चाँस मिला है और तख्त मिला है, यह एक्सट्रा मदद है। तो हिम्मत और उल्हास दिलाओ। *सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे। सुना टीचर्स ने। उल्हास में लाओ क्लास को।*
✺ *ड्रिल :- "क्लास को हिम्मत और उल्हास दिलाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं चैतन्य आत्मा... भृकुटी के मध्य विराजमान स्वयं को देख रही हूं... *अपने फरिश्ता स्वरूप को इमर्ज किये ये उड़ चला मैं फ़रिश्ता एक रुहानी यात्रा पर...* देह के भान, इस साकार लोक को भी पीछे छोड़ते हुए... चांद तारों से भी पार सूक्ष्मवतन...
➳ _ ➳ *यह आ पहुंचा मैं फ़रिश्ता बापदादा की दुनिया, फरिश्तों के लोक...* चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश हैं... और सामने बापदादा, *चेहरे पर मुस्कान और मीठे बोल लिये "आओ बच्चे आओ इधर आओ" कह बाहें पसारे मेरा स्वागत कर रहे हैं...* बाबा... मीठे बच्चे... बाबा ममतामई दृष्टि से मुझे निहारते हुए... और मैं ये आ पहुँचा बापदादा के समीप...
➳ _ ➳ बापदादा की स्नेह भरी दृष्टि में मैं स्वयं को भूलते जा रहा हूं... मीठे बच्चे... ओ मीठे बच्चे... अचानक मुझे सुध आती है... बापदादा प्यार से मेरे सिर पर अपना हाथ फेर लाड प्यार देते है... *त्रिकालदर्शी बाप मुझ मास्टर त्रिकालदर्शी को दृष्टि दे रहे हैं...* मैं फ़रिश्ता भविष्य सेवा वृद्धि के दृश्य को देख रहा हूं कि किस प्रकार सभी साधन एकाएक अपने आप ही जुट गए हैं... 9 लाख भाई बहन एक बड़े से हाल में बापदादा के सन्मुख बैठे हैं... यह दृश्य देख *भविष्य सेवा को ले मैं अपनी सभी चिंताओं को भूल चुका हूं... मैं बेफिक्र बादशाह हो चला हूं...*
➳ _ ➳ अब मैं फरिश्ता बेहद की रूहानी हिम्मत लिए, उमंग उत्साह से भरपूर अपने सभी खजानों को सफल करते जा रहा हूं... *बापदादा से विदा ले अब मैं आ पहुंचा अपनी स्थूल शरीर स्थूल लोक में...* भृकुटि के मध्य मैं आत्मा स्वयं को निहार रही हूं... *मुझ आत्मा से शक्तिशाली, उमंग उत्साह की किरणे चारों ओर फैल रही हैं... चारों ओर का वायुमंडल उमंगो से तरंगों से उत्साह से भरपूर हो चला है...* उपस्थित सभी आत्माएं सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे रहा है...
➳ _ ➳ *सभी रूहानी गुलाब "मैं आत्मा कल्प कल्प की विजय रत्न हूं" कि स्मृति का तिलक लगाएं अपने सभी खजानों को सफल करते जा रहे हैं...* मनसा, वाचा, कर्मणा सभी खजानों को सफल करते हुए सेवा में वृद्धि को पा रहे हैं... *उनमे एक बेहद की रूहानी हिम्मत, एक नया रूहानी जोश अनुभव हो रहा है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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