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❍ 23 / 08 / 19 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ योग अग्नि से आत्मा को सच्चा सोना बनाया ?
➢➢ रूहानी पंडा बन सबको शांतिधाम घर की यात्रा कराई ?
➢➢ हर कर्म में बाप के साथ भिन्न भिन्न समबंधो से स्मृति स्वरुप बनकर रहे ?
➢➢ ब्रह्मा बाप समान बनने का पुरुषार्थ किया ?
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✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
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〰✧ जिम्मावारी को निभाना यह भी आवश्यक है लेकिन जितनी बड़ी जिम्मेवारी उतना ही डबल लाइट। जिम्मेवारी निभाते हुए जिम्मेवारी के बोझ से न्यारे रहो इसको कहते हैं बाप का प्यारा। घबराओ नहीं क्या करूँ, बहुत जिम्मेवारी है। यह करूँ, वा नहीं यह तो बड़ा मुश्किल है। यह महसूसता अर्थात् बोझ है! डबल लाइट अर्थात् इससे भी न्यारा। कोई भी जिम्मेवारी के कर्म के हलचल का बोझ न हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
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✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
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✺ "मैं वर्ल्ड ड्रामा में की स्टेज पर विशेष पार्टधारी हूँ"
〰✧ सदा अपने को चलते-फिरते, खाते-पीते बेहद वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर विशेष पार्टधारी आत्मा अनुभव करते हो? जो विशेष पार्टधारी होता है उसको सदा हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट के ऊपर अटेन्शन रहता है। क्योंकि सारे ड्रामा का आधार हीरो पार्टधारी होता है। तो इस सारे ड्रामा का आधार आप हो ना। तो विशेष आत्माओंको वा विशेष पार्टधारियों को सदा इतना ही अटेन्शन रहता है? विशेष पार्टधारी कभी भी अलबेले नहीं होते। अलर्ट होते हैं। तो कभी अलबेलापन तो नहीं आ जाता? कर तो रहे हैं, पहुँच ही जायेंगे, ऐसे तो नहीं सोचते? कर रहे हैं लेकिन किस गति से कर रहे हैं? चल रहे हैं लेकिन किस गति से चल रहे हैं? गति में तो अन्तर होता है ना।
〰✧ कहाँ पैदल चलने वाला और कहाँ प्लेन में चलने वाला! कहने में तो आयेगा कि पैदल वाला भी चल रहा है और प्लेन वाला भी चल रहा है लेकिन फर्क कितना है? तो सिर्फ चल रहे हैं, ब्रह्माकुमार बन गये माना चल रहे हैं लेकिन किस गति से? तीव्रगति वाला ही समय पर मंजिल पर पहुँचेगा। नहीं तो पीछे रह जायेगा। यहाँ भी प्राप्ति तो होती है लेकिन सूर्यवंशी की होती है या चन्द्रवंशी की होती है अन्तर तो होता है ना। तो सूर्यवंशी में आने के लिए हर संकल्प, हर बोल से साधारणता समाप्त हो। अगर कोई हीरो एक्टर साधारण एक्ट करे तो सभी उस पर हंसेंगे ना।
〰✧ तो यह सदा स्मृति रहे कि मैं विशेष पार्टधारी हूँ इसलिये हर कर्म विशेष हो, हर कदम विशेष हो, हर सेकेण्ड, हर समय, हर संकल्प श्रेष्ठ हो। ऐसे नहीं कि ये तो 5 मिनट साधारण हुआ। पांच मिनट, पांच मिनट नहीं है। संगमयुग के पांच मिनट बहुत महत्व वाले हैं, पांच मिनट पांच साल से भी ज्यादा हैं इसलिए इतना अटेन्शन रहे। इसको कहते हैं तीव्र पुरुषार्थी। तीव्र पुरुषार्थियो का स्लोगन कौन-सा है? 'अब नहीं तो कब नहीं।' तो यह सदा याद रहता है? क्योंकि सदा का राज्य भाग्य प्राप्त करना चाहते हो तो अटेन्शन भी सदा। अब थोड़ा समय सदा का अटेन्शन बहुतकाल, सदा की प्राप्ति कराने वाला है। तो हर समय ये स्मृति रहे और चेकिंग हो कि चलते-चलते कभी साधारणता तो नहीं आ जाती? जैसे बाप को परम आत्मा कहा जाता है, तो परम है ना। तो जैसे बाप वैसे बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
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❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
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चाहे अपनी कमजोरियों की हलचल हो, संस्कारों के व्यर्थ संकल्पों की हलचल हो ऐसी हलचल के समय स्वयं को अचल बना सकते हो वा टाइम लगता है? क्योंकि टाइम लगना यह कभी भी धोखा दे सकता है।
समाप्ति के समय में ज्यादा समय नहीं मिलना है। फाइनल रिजल्ट का पेपर कुछ सेकण्ड और मिनटों का ही होना है। लेकिन चारों ओर की हलचल के वातावरण में अचल रहने पर ही नम्बर मिलना है। अगर बहुतकाल हलचल की स्थिति से अचल बनने में समय लगने का अभ्यास होगा तो समाप्ति के समय क्या रिजल्ट होगी? इसलिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास करो। मन को जहाँ और जितना समय स्थित करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित कर सको। फाइनल पेपर है बहुत ही सहजा और पहले से ही बता देते हैं कि यह पेपर आना है। लेकिन नम्बर बहुत थोडे समय में मिलना है। स्टेज भी पॉवरफुल हो। देह, देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायब्रेशन, वायुमण्डल सब होते हुए भी आकर्षित न करे। इसी को ही कहते हैं - ‘नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप'। तो ऐसी प्रैक्टिस है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
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❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
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〰✧ बापदादा ने देखा कई बच्चे अपने से भी अप्रसन्न रहते हैं। छोटी-सी बात के कारण अप्रसन्न रहते हैं। पहला-पहला पाठ 'मैं कौन' इसको जानते हुए भी भूल जाते हैं। जो बाप ने बनाया है, दिया है - उसको भूल जाते है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- याद की यात्रा में रह कमाई जमा करना"
➳ _ ➳ मैं आत्मा बगीचे में पौधों को पानी देते हुए फूल पर बैठी तितली को
देख रही हूँ... उसके रंग-बिरंगे पंख मन को भा रहे हैं... सुंदर-सुंदर प्यारी
तितली एक-एक फूल के कानों में जा धीरे से कुछ कहती है... कलियाँ खुश हो रही
हैं... फूल भी मुस्कुरा रहे हैं... तितली रानी इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर
फूल-फूल का रस ले रही है... एक जगह ठहरती नहीं, किसी के भी हाथ नहीं आती है...
मैं आत्मा मेरे जीवन में रंग भरकर, सर्व संबंधों का रस पान कराने वाले प्यारे
बाबा के पास... रूहानी सैर करने तितली बन उड़ जाती हूँ...
❉ प्यारे बाबा मुझे गुप्त रूहानी याद की यात्रा कराते हुए कहते हैं:-
“मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही सच्ची कमाई है... इन मीठी
यादो में हर साँस संकल्प को पिरो दो... यह मीठी यादे ही सतयुग के सुनहरी सुखो
को जीवन में बहार सा खिलाएंगी... इसलिए हर साँस में ईश्वर पिता को प्यार कर
लो...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपना बुद्धि योग एक बाबा की याद में डुबोकर प्यार से
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी महकती यादो में
एवरहेल्दी बनती जा रही हूँ... अपार सुखो में, आनन्द के झूलो में झूलने वाली
सौभाग्यशाली बन रही हूँ... सच्ची कमाई करने वाली सबसे अमीर हो गई हूँ...”
❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा तितली को याद प्यार के रंग बिरंगी पंखों से सजाते
हुए कहते हैं:- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इंसानी यादो ने खोखला कर बेवफाई
से सिला देकर ठगा है... सच्चे प्रेम और वफादारी का पर्याय... प्यार के सागर
बाबा से बेपनाह मोहब्बत कर लो... इस प्रेम के रंग में रंगकर आत्मा को अनन्त
सुख और कमाई से भर कर सदा का मुस्कराओ... इस यात्रा में कभी रुकना नहीं...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा गोपी वल्लभ की सच्ची सच्ची गोपिका बन उसकी यादों में
प्रेममय होकर कहती हूँ:- “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय प्यार को
पाकर रोम रोम से पुलकित हूँ... इतना प्यारा बाबा साथी पाकर मै आत्मा सदा की
निश्चिन्त हो गई हूँ... और बाबा की यादो में खजाने लूट रही हूँ... सच्ची कमाई
को पाने वाली खुबसूरत आत्मा बन गयी हूँ...”
❉ मेरे बाबा अपने स्नेह के शीतल छीटों की फुहारों से मुझे महकाते हुए
कहते हैं:- “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह गुप्त रूहानी यात्रा ही सच्चे
सुखो का आधार है... ईश्वर पिता की याद से ही अपना खोया ओज और तेज पा कर पुनः
विश्व धरा पर चमकेंगे... अपनी खुबसूरत सतोप्रधान अवस्था को पाकर... अथाह मीठे
सुखो से भरे जीवन में खिलखिलायेंगे...”
➳ _ ➳ मैं आत्मा ज्ञान सिंधु परमात्मा की यादों की लहरों में लहराते हुए
कहती हूँ:- “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने मीठे भाग्य को देख देख निहाल
हूँ... वफ़ा की बून्द की प्यासी आज प्यार का समन्दर बाँहों में लिए मुस्करा रही
हूँ... मीठे बाबा के प्यार में मगन होकर आनन्द के गीत गा रही हूँ... यादो में
मालामाल मैं आत्मा ख़ुशी के गगन में झूम रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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"ड्रिल :- योग अग्नि से आत्मा को सच्चा सोना बनाना है, सतोप्रधान बनना है"
➳ _ ➳ जब मैं आत्मा अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप में थी तो मेरा स्वरूप
एक दम कंचन जैसा था, यह विचार मन मे आते ही मेरी आँखों के सामने मेरा अति
उज्ज्वल सोने के समान चमकता हुआ स्वरूप स्पष्ट दिखाई देने लगता है और मैं आत्मा
मंत्रमुग्ध हो कर अपने अति सुंदर सितारे के समान चमकते हुए अपने स्वरूप को मन
बुद्धि रूपी नेत्रो से निहारते - निहारते अपनी निराकारी चमकते सितारों की
दुनिया परमधाम पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने संपूर्ण निर्विकारी ज्योति बिंदु
स्वरूप में पवित्रता के सागर, एवरप्योर अपने शिव पिता के सामने अपनी निराकारी,
निर्विकारी दुनिया परमधाम में। सच्चे सोने के समान चमकता मेरा दिव्य
ज्योतिर्मय स्वरूप अति सुंदर मन को लुभाने वाला है। चमकते सितारे की भांति
सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की किरणे मुझ चैतन्य सितारे से निकलती हुई अति
शोभायमान लग रही हैं।
➳ _ ➳ अपनी अनन्त किरणो की छटा बिखेरता हुआ सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था
में मैं चमकता सितारा अब अपने शिव पिता से अलग हो कर परमधाम से नीचे आ जाता
हूँ और अति सुंदर कंचन जैसी काया में प्रवेश कर, सम्पूर्ण देवताई स्वरूप में एक
दैवी दुनिया मे प्रवेश करता हूँ जहां सभी कन्चन जैसी काया वाले दैवी गुणों से
सम्पन्न, सम्पूर्ण पवित्र मनुष्य है। देवी - देवताओं की यह सम्पूर्ण निर्विकारी
पवित्र दुनिया अपरमअपार सुखों से भरपूर है।
➳ _ ➳ सुख, शान्ति, सम्पन्नता से परिपूर्ण इस दैवी दुनिया मे अपार सुख
भोगने के बाद, देह के भान में आ जाने से मेरा दैवी स्वरूप अति साधारण मनुष्य
स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है। श्रेष्ठ कर्म की बजाए साधारण कर्म करते -
करते और ही गिरती कला में आ जाने से मेरा परम पूज्य पवित्र स्वरूप पतित हो जाता
है। मेरे सम्पूर्ण पतित तमोप्रधान स्वरूप को फिर से सम्पूर्ण पवित्र सतोप्रधान
बनाने के लिए ही पतित पावन शिव पिता परमात्मा संगम युग पर आते हैं तथा राजयोग
द्वारा मुझ आत्मा को फिर से सच्चा सोना बना कर वापिस अपने घर परमधाम ले जाते
हैं।
➳ _ ➳ अपनी पूज्य से पुजारी, सपूर्ण सतोप्रधान से सम्पूर्ण तमोप्रधान
स्वरूप की सम्पूर्ण प्रक्रिया को मन बुद्धि रूपी नेत्रो से देखते - देखते मैं
आत्मा अब स्वयं को सच्चा सोना बनाने के लिए इस अंतिम जन्म में पवित्र बन पतित
पावन अपने शिव पिता की याद से आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को उतारने के लिए
अशरीरी स्थिति के अभ्यास द्वारा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ और
अपना सम्पूर्ण ध्यान भृकुटि पर एकाग्र करके नष्टोमोहा बन, देह से न्यारी हो कर
एक ऊंची उड़ान भर कर सेकेण्ड में अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ।
➳ _ ➳ इस सम्पूर्ण सतोप्रधान निराकारी, निर्विकारी दुनिया में पहुँच कर
अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों रूपी किरणो की छत्रछाया में जा कर मैं बैठ जाती
हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे फुल फोर्स के साथ मुझ आत्मा
पर पड़ रही है। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा इन ज्वलंत शक्तिशाली
किरणों के पड़ने से भस्म हो रहा है। आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि
में जल रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और सच्चे सोने के समान चमकदार बनती
जा रही हूँ।
➳ _ ➳ हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही
हूँ। अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, कर्मयोगी बन हर कर्म करते बाबा की
याद से मैं स्वयं को पावन बना रही हूँ। मनसा,वाचा कर्मणा सपूर्ण पवित्रता को
जीवन में धारण कर, अपने इस अंतिम जन्म में बाबा की याद से सम्पूर्ण सतोप्रधान
बनने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं हर कर्म में बाप के साथ भिन्न - भिन्न सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप बनने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं ब्रह्मा बाप समान बन संपूर्णता की मंज़िल पर पहुंचने वाली आत्मा हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्माकुमारीज इज रिचेस्ट इन धी वर्ल्ड चाहे डालर कहो, चाहे पौण्ड कहो, है तो पेपर ही, तो पेपर कहाँ तक चलेगा! सोने का मूल्य है, हीरे का मूल्य है, पेपर का क्या है? मनी डाउन तो होनी ही है। और आपकी मनी सबसे ज्यादा मूल्यवान है। जैसे शुरु में अखबार में डलवाया था ना कि ओम मण्डली रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। कमाई का साधन कुछ नहीं था। ब्रह्मा बाप के साथ एक-दो समर्पण हुए और अखबार में डाला रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड।
➳ _ ➳ तो अभी भी जब चारों ओर ये स्थूल हलचल होगी फिर आपको अखबार में नहीं डालना पड़ेगा। आपके पास अखबार वाले आयेंगे और खुद ही डालेंगे, टी.वी. में दिखायेंगे कि ब्रह्माकुमारीज रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। क्योंकि आपके चेहरे चमकते रहेंगे, कुछ भी हो जाये। दिन में खाने की रोटी भी नहीं मिले तो भी आपके चेहरे चमकते रहेंगे तो चारों ओर होगा दुख और आप खुशी में नाचते रहेंगे। इसी को ही कहते हैं मिरुआ मौत मलू का शिकार।
➳ _ ➳ हिम्मत है ना! क्या होगा, कैसा होगा, ये नहीं सोचो। अच्छा है, अच्छा होना ही है। जो श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करते हो वो सदा ही अच्छा है। तो ये कभी नहीं सोचो पता नहीं क्या होगा, पता है अच्छा होगा समझा? अच्छा है हिम्मत बहुत अच्छी रखी। जहाँ हिम्मत है वहाँ मदद है।
✺ ड्रिल :- "श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करना"
➳ _ ➳ प्रकृति के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... मंद-मंद लहराते ठन्डे-ठन्डे पवन के झोंके... फूलों की खुशबू से महकी मैं आत्मा... बाप के याद रूपी पंख लगाकर उड़ चलती हूँ पांडव भवन में... ज्ञान चक्षु से पांडव भवन में विहरति मैं आत्मा... बैठ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में... सुख... शांति... पवित्रता से भरी बाबा की झोपड़ी... मीठी-मीठी फूलों की खुशबू फैला रहा है... और मैं आत्मा सिर्फ एक बाप की यादों में मग्न हो जाती हूँ... और मैं आत्मा मन की आँखों से देख रही हूँ सतयुगी दुनिया को... पवित्रता का श्रृंगार किये खड़ी प्रकृति... सतोगुणी प्रकृति के सुखद आहलादक नज़ारे... सोने चांदी हीरों से सजे महल... 16 कला सम्पूर्ण... सम्पूर्ण निर्विकारी... सभी आत्मायें... और मैं आत्मा खो जाती हूँ सतयुगी सृष्टि में...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी सतयुगी सफर का आनंद लेकर वापिस आ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में... पूर्णतः शांति... निःसंकल्पता की अवस्था में बैठी मैं आत्मा... एक और सीन देख रही हूँ... कलियुगी विनाश के नज़ारे... प्राकृतिक आपदाओं से घेरा हुआ ब्रह्माण्ड... अग्नि ज्वालाओं में लपेटे हुए इमारतों के ढेर... कहीं और समंदर का तांडव... दुःख दर्द से व्यथित धरती... अगन ज्वाला फेकता आग... त्राहिमाम अवस्था में भागती आत्मायें... अपनों की खोज में ख़ुद को खो चूंकि आत्मायें... चेतनहींन शरीर... दुःख... दर्द से भरा प्रकृति का साम्राज्य... दुःखी... हताश आत्मायें... मन विचलित हो उठा यह देख और आँखों से अश्रु धारा बहती जा रही हैं...
➳ _ ➳ और मन ही मन बाबा को पूछती हूँ "बाबा सतयुग की सुहानी सफर के बाद यह विनाश का नजारा क्यूँ दिखाया?" और अपने सवाल के जवाब की आश लिए देखती हूँ बापदादा को... शांत मन की गहराईओं में मैं आत्मा देख रही हूँ... संगमयुगी ब्राह्मण आत्मायें जो इस विनाश की लपटों में भी अपनी अवस्था बनायें रखी हैं... साक्षीदृष्टा बन विनाशी पलों को देख रहे हैं... एक बाप की याद में रह अपने विनाशी देह से परमधाम की यात्रा कर रहे हैं... बापदादा की गोद में सुकून से समां रहे हैं... मुरली रूपी शिक्षाओं को अपने में धारण कर पूरा संगमयुगी जीवन बाप को समर्पित कर श्रीमत का पालन करते करते अंतिम समय की तैयारी कर रहे हैं...
➳ _ ➳ अंतिम संगमयुगी जीवन में पवित्रता की धारणा कर शांति का श्रृंगार कर अपने साथ शांति और पवित्रता रूपी ख़ज़ाने को लेकर उड़ चलते हैं परमधाम की ओर... न कलियुगी संस्कारों को साथ लेकर... न कलियुगी खजानों को साथ लेकर... बस एक बाप के प्यार में मग्न होकर... बाप की शिक्षाओं को साथ लेकर... योग बल से अपने विनाशी देह का त्याग करते हैं... रिचेस्ट बाप के रिचेस्ट बच्चे... संगमयुग में सतयुगी स्थापना की नींव रखते है... संगमयुग में अविनाशी खजानों की प्राप्ति कर पुण्य का खाता श्रेष्ठ स्मृति रूपी कार्य से जमा करते रहते हैं...
➳ _ ➳ योगयुक्त अवस्था की उच्च आत्मिक स्थिति में स्थित होकर के संगमयुगी कार्य को बाप की श्रीमत पर चल परिपूर्ण करते रहते हैं... मैं आत्मा बापदादा से निकलते आशीर्वाद रूपी किरणों को अपने में धारण कर संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... सतयुगी श्रेष्ठ स्मृति को अपने जीवन में चरितार्थ कर संगमयुग को ही सतयुग में परिवर्तित करती जा रही हूँ... श्रेष्ठ संकल्प... श्रेष्ठ स्मृति के भाग्य को जान अब मैं आत्मा एक-एक संकल्प को तराजू में तोलती जा रही हूँ... ॐ शांति...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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