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 30 / 04 / 19  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सवेरे सवेरे याद की यात्रा में बैठे ?*

 

➢➢ *ज्ञानवान और गुणवान दोनों बनने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *एक बल एक भरोसे के आधार पर माया को सरेंडर कराया ?*

 

➢➢ *नयी दुनिया की स्मृति से सर्व गुणों का आह्वान कर तीव्रगति से आगे बड़े ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अब अपने ईश्वरीय ब्राह्मणपन के, सर्वस्व त्यागी की पोजीशन में स्थित रहो। *हद की पोजीशन कि मैं सबसे ज्यादा सर्विसएबुल हूँ, प्लैनिंग-बुद्धि हूँ, इनवैन्टर हूँ, धन का सहयोगी हूँ, दिन-रात तन लगाने वाला हार्ड-वर्कर हूँ या इन्चार्ज हूँ. इस प्रकार के हद के नाम, मान और शान के उल्टे पोजीशन को छोड़ अब त्यागी और तपस्वीमूर्त बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्विघ्न विजयी रतन हूँ"*

 

  अपने को सदा निर्विग्न, विजयी रतन समझते हो? विघ्न आना, यह तो अच्छी बात है लेकिन विघ्न हार न खिलायें। *विघ्नों का आना अर्थात् सदा के लिए मजबूत बनाना। विघ्न को भी एक मनोरंजन का खेल समझ पार करना-इसको कहते हैं 'निर्विग्न विजयी'।* तो विघ्नों से घबराते तो नहीं? जब बाप का साथ है तो घबराने की कोई बात ही नहीं। अकेला कोई होता है तो घबराता है। लेकिन अगर कोई साथ होता है तो घबराते नहीं, बहादूर बन जाते हैं। तो जहां बाप का साथ है, वहाँ विघ्न घबरायेगा या आप घबरायेंगे? सर्वशक्तिवान के आगे विघ्न क्या है? कुछ भी नहीं।

 

  इसलिए विघ्न खेल लगता, मुश्किल नहीं लगता। विघ्न अनुभवी और शक्तिशाली बना देता है। *जो सदा बाप की याद और सेवा में लगे हुए हैं, बिजी हैं,वह निर्विग्न रहते हैं। अगर बुद्धि बिजी नहीं रहती तो विघ्न वा माया आती है। अगर बिजी रही तो माया भी किनारा कर लेगी। आयेगी नहीं, चली जायेगी।* माया भी जानती है कि यह मेरा साथी नहीं है, अभी परमात्मा का साथी है। तो किनारा कर लेगी। अनगिनत बार बिजयी बने हो, इसलिए विजय प्राप्त करना बड़ी बात नहीं है। जो काम अनेक बार किया हुआ होता है, वह सहज लगता है। तो अनेक बार के बिजयी। सदा राजी रहने वाले हो ना? मातायें सदा खुश रहती हो? कभी रोती तो नहीं? कभी कोई परिस्थिति ऐसी आ जाये तो रोयेंगी? बहादुर हो। पाण्डव मन में तो नहीं रोते? यह 'क्यों हुआ', 'क्या हुआ'-ऐसा रोना तो नहीं रोते?

 

  *बाप का बनकर भी अगर सदा खुश नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे? बाप का बनना माना सदा खुशी में रहना। न दु:ख है, न दु:ख में रोयेंगे। सब दु:ख दूर हो गये। तो अपने इस वरदान को सदा याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज़ से परे रहना अच्छा लगता है वा आवाज़ में रहना अच्छा लगता है? असली देश वा असली स्वरूप में आवाज़ है? *जब अपनी असली स्थिति में स्थित हो जाते हो आवाज़ से परे स्थिति अच्छी लगती है ना।* ऐसी प्रैक्टीस हरेक कर रहे हो? जब चाहे जैसे चाहे वैसे ही स्वरूप स्थित हो जायें।

  

✧  जैसे योद्धे जो युद्ध के मैदान में रहते हैं उन्हों को भी जब भी और जैसा जैसा आर्डर मिलता है वैसे करते ही जाते हैं। ऐसे ही रूहानी वारियर्स को भी जब और जैसा डायरक्शन मिले वेसे ही अपनी स्थिति को स्थित कर सकते हैं, क्योंकि मास्टर नाँलेजफुल भी हो और मास्टर सर्वशक्तिवान भी हो। तो दोनों ही होने कारण एक सेकण्ड से भी कम समय में जैसी स्थिति में स्थित होना चाहे उस स्थिति में टिक जायें, ऐसे रूहानी वारियार्स हो? अभी - अभी कहा जाये परमधाम निवासी बन जाओ तो ऐसी प्रैक्टीस है जो कहते ही इस देह, देह के देश भूल अशरीरी परमधाम निवासी बन जाओ?

 

✧   *अभी - अभी परमधाम निवासी से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाओ, अभी - अभी सेवा के प्रति आवाज़ में आये, सेवा करते हुए भी अपने स्वरूप की स्मृति रहे, ऐसे अभ्यास बने हो?* ऐसा अभ्यास हुआ है? वा जब परमधाम निवासी बनने चाहो तो परमधाम निवासी के बजाय बार - बार आवाज़ में आ जायें ऐसा अभ्यास तो नहीं करते हो? अपनी बुद्धी को जहाँ चाहो वहाँ एक सेकण्ड से भी कम समय में लगा सकते हो? ऐसा अभ्यास हुआ है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सेना के महारथी किसको कहा जाता है। उनके लक्षण क्या होते हैं। *महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे।* मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले अपने को अनुभव करते हो? *अगर युद्ध के मैदान में कोई महारथी अपने रथ अर्थात् सवारी के वश हो जाए तो क्या वह महारथी, विजयी बन सकता है या और ही अपनी सेना के विजयी-रूप बनने की बजाये विघ्न-रूप बन जायेगा। हलचल मचाने के निमित्त बन जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप का मददगार बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अमृतवेले उठ मीठे बाबा से मिलने की तमन्ना में फ़रिश्ता बन उड़ चलती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... मीठे बाबा अपनी मीठी मुस्कान से मेरा स्वागत करते हैं और अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल करते हैं...* बाबा की दृष्टि से मुझ आत्मा के सूक्ष्म विकार, पुराने स्वभाव-संस्कार दैवीय गुणों में परिवर्तित होने लगे हैं... मुझ आत्मा की काया दिव्यता से चमकने लगी है... *फिर प्यारे बाबा मुझे अपने साथ रूहानी सैर पर ले जाते हैं और तीनों कालों के दर्शन कराते हैं... फिर ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात करते हैं...*

 

  *भारत को दैवी स्वराज्य बनाने में मददगार बन श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे...  ईश्वर पिता आप बच्चों के सुखो के लिए हथेली पर स्वर्ग धरोहर लाया है... *स्वर्ग के फाउंडेशन में मददगार बन सदा का सुनहरा भाग्य बनाओ... ईश्वरीय राहो पर चलकर असीम खुशियो में मुस्कराओ...* श्रीमत के हाथो में हाथ देकर, सदा के सुखो में झूम जाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा बेहद के सर्विस में जुटकर बाबा की राईट हैण्ड बन विश्व का कल्याण करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ... *ईश्वर पिता की मदद कर, मीठा प्यारा भाग्य सजा रही हूँ... श्रीमत के साये में विकारो की कालिमा से महफूज होकर,सदा की निश्चिन्त हो गयी हूँ..."*

 

  *मेरे भाग्य के सितारे को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  ईश्वर पिता को खोज खोज कर थक से निकले थे कभी, आज उसकी मदद करने वाले खुबसूरत भाग्य के मालिक हो गए हो... *श्रेष्ठ भाग्य को लिखने की कलम पा गए हो... और अनन्त खुशियो को बाँहों में भरकर मुस्करा रहे हो... भगवान की मदद करने वाले महान हो गए हो..."*

 

_ ➳  *मीठे बाबा के प्यार के फव्वारे में खुशियों की चरमसीमा पर पहुंचकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी ही मदद को बेजार थी कभी... आपकी मदद को हर पल तरस रही थी... *आज आपका सारा प्यार आँचल में भरकर मुस्करा रही हूँ... मीठे बाबा भाग्य से युँ सम्मुख पाकर आपके प्यार में बावरी हो गयी हूँ... और असीम खुशियो में नाच रही हूँ..."*

 

  *काँटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाकर रूहानी फूलों का गुलदस्ता तैयार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता की श्रीमत पर चलकर जीवन को नये आयामो पर पहुँचाओ... मनुष्य मत ने कितना निस्तेज और बेहाल किया है... *अब श्रीमत के हाथो में पलकर फूलो सा खिलखिलाओ... दिव्य गुणो से सज संवर कर देवताई सौभाग्य को पाओ... सदा खुशियो में गुनगुनाओ..."*

 

_ ➳  *करावनहार के हाथों को थाम श्रीमत के मार्ग पर चलते हुए मंजिल के समीप पहुंचती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अदनी सी, भगवान की कभी मददगार बनूंगी, ऐसा तो मीठे बाबा ख्वाबो में भी न सोचा था... *आज आपकी मदद का भाग्य पाकर, सतयुगी सुखो का हक पा रही हूँ... श्रीमत का हाथ और ईश्वरीय प्यार पाकर, अपना भाग्य शानदार बना रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा में जो खाद पड़ी है वह याद से निकाल सच्चा सोना बनना है*"

 

_ ➳  जब मैं आत्मा अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप में थी तो मेरा स्वरूप एक दम कंचन जैसा था, यह विचार मन मे आते ही *मेरी आँखों के सामने मेरा अति उज्ज्वल सोने के समान चमकता हुआ स्वरूप स्पष्ट दिखाई देने लगता है और मैं आत्मा मंत्रमुग्ध हो कर अपने अति सुंदर सितारे के समान चमकते हुए अपने स्वरूप को मन बुद्धि रूपी नेत्रो से निहारते - निहारते अपनी निराकारी चमकते सितारों की दुनिया परमधाम पहुँच जाती हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने संपूर्ण निर्विकारी ज्योति बिंदु स्वरूप में पवित्रता के सागर, एवरप्योर अपने शिव पिता के सामने अपनी निराकारी, निर्विकारी दुनिया परमधाम में। *सच्चे सोने के समान चमकता मेरा दिव्य ज्योतिर्मय स्वरूप अति सुंदर मन को लुभाने वाला है*। चमकते सितारे की भांति सर्व गुणों और सर्वशक्तियों की किरणे मुझ चैतन्य सितारे से निकलती हुई अति शोभायमान लग रही हैं।

 

_ ➳  अपनी अनन्त किरणो की छटा बिखेरता हुआ सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था में *मैं चमकता सितारा अब अपने शिव पिता से अलग हो कर परमधाम से नीचे आ जाता हूँ और अति सुंदर कंचन जैसी काया में प्रवेश कर, सम्पूर्ण देवताई स्वरूप में एक दैवी दुनिया मे प्रवेश करता हूँ* जहां सभी कन्चन जैसी काया वाले दैवी गुणों से सम्पन्न, सम्पूर्ण पवित्र मनुष्य है। देवी - देवताओं की यह सम्पूर्ण निर्विकारी पवित्र दुनिया अपरमअपार सुखों से भरपूर है।

 

_ ➳  सुख, शान्ति, सम्पन्नता से परिपूर्ण इस दैवी दुनिया मे अपार सुख भोगने के बाद, देह के भान में आ जाने से मेरा दैवी स्वरूप अति साधारण मनुष्य स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है। *श्रेष्ठ कर्म की बजाए साधारण कर्म करते - करते और ही गिरती कला में आ जाने से मेरा परम पूज्य पवित्र स्वरूप पतित हो जाता है*। मेरे सम्पूर्ण पतित तमोप्रधान स्वरूप को फिर से सम्पूर्ण पवित्र सतोप्रधान बनाने के लिए ही पतित पावन शिव पिता परमात्मा संगम युग पर आते हैं तथा राजयोग द्वारा मुझ आत्मा को फिर से सच्चा सोना बना कर वापिस अपने घर परमधाम ले जाते हैं।

 

_ ➳अपनी पूज्य से पुजारी, सपूर्ण सतोप्रधान से सम्पूर्ण तमोप्रधान स्वरूप की सम्पूर्ण प्रक्रिया को मन बुद्धि रूपी नेत्रो से देखते - देखते *मैं आत्मा अब स्वयं को सच्चा सोना बनाने के लिए इस अंतिम जन्म में पवित्र बन पतित पावन अपने शिव पिता की याद से आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट को उतारने के लिए अशरीरी स्थिति के अभ्यास द्वारा अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ* और अपना सम्पूर्ण ध्यान भृकुटि पर एकाग्र करके नष्टोमोहा बन, देह से न्यारी हो कर एक ऊंची उड़ान भर कर सेकेण्ड में अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँच जाती हूँ।

 

_ ➳  इस सम्पूर्ण सतोप्रधान निराकारी, निर्विकारी दुनिया में पहुँच कर अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों रूपी किरणो की छत्रछाया में जा कर मैं बैठ जाती हूँ। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे फुल फोर्स के साथ मुझ आत्मा पर पड़ रही है*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा इन ज्वलंत शक्तिशाली किरणों के पड़ने से भस्म हो रहा है। आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और सच्चे सोने के समान चमकदार बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपनी साकारी देह में विराजमान हो कर, कर्मयोगी बन हर कर्म करते बाबा की याद से मैं स्वयं को पावन बना रही हूँ। *मनसा,वाचा कर्मणा सपूर्ण पवित्रता को जीवन में धारण कर, अपने इस अंतिम जन्म में बाबा की याद से सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं एक बल एक भरोसे के आधार पर माया को सरेन्डर कराने वाली शक्तिशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं नई दुनिया की स्मृति से सर्व गुणों का आह्वान करके तीव्रगति से आगे बढ़ने वाली स्मृतिस्वरूप आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सेवा बहुत अच्छी करो लेकिन सेवा और स्व दोनों कम्बाइण्ड हों... *जैसे बापदादा कम्बाइण्ड है ना... आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ना! ऐसे स्व स्थिति और सेवा दोनों कम्बाइण्ड... परसेन्टेज में कोई कमी नहीं हो...* कभी सेवा की परसेन्टेज ज्यादा, कभी स्व की परसेन्टेज ज्यादा, नहीं, सदा बैलेन्स... तो आपके बैलेन्स द्वारा विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग मिलती रहेगी... *तो अभी विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग चाहिए। मेहनत नहीं चाहिए, ब्लैसिंग चाहिए... तो आपका बैलेन्स स्वतः ही ब्लैसिंग दिलायेगी...* अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा स्व-स्थिति और सेवा का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मेरा यह ब्राह्मण जीवन मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है जिसका रिटर्न मुझे बाबा का मददगार बन कर अवश्य देना है... *मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने मन बुद्धि की लाइन को क्लीयर कर, मैं जैसे ही बाबा के साथ जोड़ती हूँ वैसे ही मेरी मन बुद्धि बाबा के संकल्पो को कैच करने लगती है...* मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझे स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स रख कर चलने की सलाह दे रहें हैं... बाबा मुझ से कह रहे हैं, मेरे विश्व परिवर्तक बच्चे:- "सदा याद रखो कि स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स ही स्व परिवर्तन सो विश्व परिवर्तन का आधार है"...

 

 _ ➳  बाबा के संकल्पो को कैच कर, स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सदा बना कर रखने की प्रतिज्ञा बाबा से करती हुई अब मैं बाबा की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ... *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा मुझे अपने पास बुला रहे हैं...* ऐसा लग रहा है जैसे कोई शक्ति तीव्र गति से मुझे ऊपर की ओर खींच रही है... बहुत तेज प्रकाश की एक लाइट परमधाम से सीधी मुझ आत्मा पर पड़ रही है जो मुझे परमधाम तक पहुंचने का रास्ता दिखा रही है...

 

 _ ➳  सूर्य के प्रकाश से भी अधिक शक्तिशाली यह लाइट मुझे मेरे वास्तविक स्वभाव, संस्कार की अनुभूति कराने के लिए उस ज्योति के देश में खींच रही है... *फरिश्तों की दुनिया को पार करते हुए मैं जा रही हूँ उस ज्योति के देश मे जहां मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे स्वागत के लिए खड़े हैं...* उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुंच गई हूँ... बस मैं और मेरा बाबा...

 

 _ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों के प्रकाश की एक - एक किरण मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के नकारात्मक स्वभाव संस्कार को धोकर मुझे शुद्ध बना रही है... शक्तियों का औरा मुझ आत्मा के चारो और बढ़ रहा है... मेरी सारी कमी कमजोरियाँ जल कर भस्म हो रही हैं... *मेरे अंदर शक्तियों का संचार हो रहा है जो मुझमे असीम बल भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहा है... मैं बेदाग हीरा बन रही हूँ...* स्वयं में सर्वशक्तियों को भरकर, शक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ...

 

 _ ➳  "बैलेन्स ही ब्लैसिंग का आधार है" इस बात को स्मृति में रख, अपने मन बुद्धि की तार को हर समय अपने पिता परमात्मा के साथ जोड़, कर्मयोगी बन अब मैं हर कर्म कर रही हूँ... *बाबा ने मुझे निमित बना कर इस धरा पर सेवा अर्थ भेजा है, यह स्मृति मुझे सदैव इस बात का अहसास दिलाती है कि मैं तो केवल निमित हूँ, करनकरावनहार बाबा मुझसे यह सेवा करवाकर मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं और इस निमितपन की स्मृति में रह, करनकरावनहार बाबा की याद में रह हर कर्म करने से स्वत: ही मुझसे शक्तिशाली वायब्रेशन फैलते रहते हैं...* जिससे स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सहज ही बना रहता है...

 

 _ ➳  बाबा की याद से अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को ऐसा श्रेष्ठ बना रही हूँ जो मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म सहज ही औरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहा है... *परमात्म याद में रहने से मनसा, वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बन सेवा के क्षेत्र में मैं सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* सेवा और स्व स्थिति का बैलेंस मुझे स्वयं के साथ - साथ सर्व का कल्याणकारी बनाकर सर्व की, और परमात्म दुआओं की अधिकारी आत्मा बना रहा है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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