━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 17 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी से भी दिल तो नहीं लगाई ?*
➢➢ *विशाल बुधी विशाल दिल से अपने पन की अनुभूति कराई ?*
➢➢ *उमंग उत्साह के पंखो द्वारा सदा उडती कला की अनुभूति करते रहे ?*
➢➢ *अपने हर संकल्प, शब्द व कर्म को चेक किया की क्या यह ब्रह्मा बाप समान है ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *जो भी आत्मायें वाणी द्वारा व प्रैक्टिकल लाईफ के प्रभाव द्वारा सम्पर्क में आई हैं, वा सम्पर्क में आने के उम्मींदवार हैं, उन आत्माओं को रुहानी शक्ति का अनुभव कराओ।* जैसे भक्त लोग स्थूल भोजन का व्रत रखते हैं, तो सर्विसएबल ज्ञानी तू आत्माओं को व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म की हलचल से परे एकाग्रता अर्थात् रुहानियत में रहने का व्रत लेना है तब आत्माओं को ज्ञान सूर्य का चमत्कार दिखा सकोगें।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं भगवान के साथ पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ *कितने भाग्यवान हो जो भगवान के साथ पिकनिक कर रहे हो! ऐसा कब सोचा था - कि ऐसा दिन भी आयेगा जो साकार रूप में भगवान के साथ खायेंगे, खेलेंगे, हंसेंगे... यह सवप्न में भी नहीं आ सकता लेकिन इतना श्रेष्ठ भाग्य है जो साकार में अनुभव कर रहे हो।*
〰✧ *कितनी श्रेष्ठ तकदीर की लकीर है - जो सर्व प्राप्ति सम्पन्न हो। वैसे जब किसी को तकदीर दिखाते हैं तो कहेंगे इसके पास पुत्र है, धन है, आयु है लेकिन थोड़ी छोटी आयु है... कुछ होगा कुछ नहीं। लेकिन आपके तकदीर की लकीर कितनी लम्बी है।*
〰✧ 21 जन्म तक सर्व प्राप्तियो के तकदीर की लकीर है। 21 जन्म गेरेंटी है और बाद में भी इतना दुख नहीं होगा। सारे कल्प का पौना हिस्सा तो सुख ही प्राप्त होता है। *इस लास्ट जन्म में भी अति दुखी की लिस्ट में नहीं हो। तो कितने श्रेष्ठ तकदीरवान हुए! इसी श्रेष्ठ तकदीर को देख सदा हर्षित रहो।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ तो 5 ही रूप याद आ गये?
*अच्छा एक सेकण्ड में यह 5 ही रूपों में अपने को अनुभव कर सकते हो?* वन, टू, त्री, फोर, फाइव तो कर सकते हो! यह 5 ही स्वरूप कितने प्यारे हैं?
〰✧ *जब चाहे, जिस भी रूप में स्थित होने चाहो, सोचा और अनुभव किया। यही रूहानी मन की एक्सरसाइज है।* आजकल सभी क्या करते हैं? एक्सरसाइज करते हैं ना। जैसे आदि में भी आपकी दुनिया में (सतयुग में) नेचुरल चलते-फिरते की एक्सरसाइज थी
〰✧ खडे होकर के वन, टु, थ्री एक्सरसाइज नहीं तो *अभी अंत में भी बापदादा मन की एक्सरसाइज कराते हैं।* जैसे स्थूल एक्सरसाइज से तन भी दुरुस्त रहता है ना! तो *चलते-फिरते यह मन की एक्सरसाइज करते रहो। इसके लिए टाइम चाहिए।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *अव्यक्त स्थिति में महान बनने के लिए एक बात जो कहते रहते हैं -वह धारण कर ली तो बहुत जल्दी और सहज अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जायेंगे। वह कौन-सी बात? अभी मेहमान हैं।* क्योंकि आप सभी को भी वाया सूक्ष्मवतन होकर घर चलना है। *हम मेहमान हैं - ऐसा समझने से महान स्थिति में स्तिथ रहेंगे।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा रूपी चिड़िया इस संसार रूपी चिड़ियाघर में कैद थी... इसी
चिड़ियाघर को अपना सबकुछ समझ बैठी थी...* चिड़ियाघर में बैठ आसमान को निहारती मुझ
चिड़िया को आसमान से उतरता एक ज्योतिपुंज दिखाई दिया... उस प्रकाश की ज्योति से
मेरे जीवन की ज्योति जग गई... मेरा भाग्य ही बदल गया... *उसने आकर ज्ञान, योग
के पंखों से मुझे सजाकर खुले आसमान में उड़ना सिखा दिया... अब मैं आत्मा रूपी
चिड़िया संसार रुपी चिड़ियाघर से आजाद होकर ऊपर उड़ते हुए अपने बाबा के पास पहुंच
जाती हूँ...*
❉ *नई दुनिया के ख्वाबों को सजाकर पुरानी दुनिया की बातों को भूलने की समझानी
देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे बच्चे... अब यह दुःख भरा सफर पूरा
हुआ अब दुःख की बाते भूल जाओ... *अब खूबसूरत दुनिया में चलने के दिन आ गए है...
बस पावन हो घर चलना और फिर सुखो में उतरना है... इन दुखो से अब कोई नाता नही...
खुशियो भरा जहान सामने खड़ा है..."*
➳ _ ➳ *इस पुरानी विनाशी दुनिया को भूल नष्टोमोहा बन एक मीठे बाबा की यादों में
डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा... आपकी मीठी
यादो में बैठकर सारे कष्टो को ही भूल रही हूँ... *मीठे याद के झरने में सारी
कड़वी यादो को बहा रही हूँ.... और नयी दुनिया को यादो में भर रही हूँ..."*
❉ *मेरी तकदीर की तस्वीर को सतयुगी सुखों के बहारों में सजाते हुए मेरे प्यारे
मनमीत बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे.... कितने खूबसूरत खिले फूलो से
घर से निकले थे... चलते चलते दुखो के धाम में फस गए... मीठा बाबा अपने फूलो की
दशा देख धरा पर ही आ गया है... *अब ये दर्द भरी दास्ताँ को सदा का भूलो... और
उन सच्चे सुखो को याद करो...”*
➳ _ ➳ *प्रभु प्यार की किरणों में अपने सारे गमों को भूलकर प्रभु का शुक्रिया
करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मुझ आत्मा की वेदनाएं
और दर्द भरा जीवन ही मेरी हकीकत हो गए थे... आपने आकर मुझे मेरे सत्य का अहसास
दिया है... *देह की मिटटी से मै आत्मा अब निकल गई हूँ... सब कुछ भुला कर
सुन्दरतम यादो सुखो में खोती जा रही हूँ...”*
❉ *बड़े प्यार से अपनी पलकों में बिठाकर मेरे जीवन में खुशहाली बिखेरते हुए मेरे
बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे बच्चे... सारे भोगे गए कष्टो को काले दुख भरे
सायो को स्वप्न की तरहा विस्मृत कर दो... *खुशियो और सुखो से भरी दुनिया पर आप
बच्चों का अधिकार है... अब यहाँ और रहना नही... मीठा बाबा दुखो से निकाल हाथ
पकड़ कर सुखो के महलो में बिठाने आ गया है...”*
➳ _ ➳ *अपने जीवन के पलों को प्यारे बाबा की यादों के बाहों में सफल करते हुए
मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा गमो से निकल गयी
हूँ.... आपकी सुखद यादो में सुखी हो गयी हूँ... *पुरानी बाते नाते और दुखो के
भम्र से मुक्त हो गयी हूँ... और नई खूबसूरत दुनिया के ख्वाबो में डूब गई
हूँ...”*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
*"ड्रिल :- ज्ञान में प्रवीण बन अन्तर्मुखी रहना है*"
➳ _ ➳ अंतर्मुखता की गुफा में बैठ,
एकांतवासी बन अपने शिव पिता के साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते,
असीम आनन्द का अनुभव करके मैं रियलाइज करती हूँ कि कितना सुकून है इस
अंतर्मुखता में! *आज दिन तक मैं इस बात से कितनी अनभिज्ञ थी। इसलिए बाहरमुखता
में,
भौतिक संसधानों में सुख तलाश कर रही थी*। शुक्रिया मेरे शिव पिता का
जिन्होंने आ कर मुझे अंदर की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलना सिखा कर ऐसे
अथाह सुख का अनुभव करवाया। *तो अब मुझे अंतर्मुखी बन केवल अपने शिव पिता से ही
सुनते,
उनसे सदा मीठी - मीठी रूहरिहान करते इस असीम आनन्द का अनुभव निरन्तर
करते रहना है*। बाहरमुखता में नही आना है।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से बातें करती अब मैं अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने
सत्य स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और *अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव करते,
अंतर्मुखता की एक ऐसी असीम आनन्दमयी शांन्तचित स्थिति में स्थित हो जाती
हूँ जहां किसी भी प्रकार की कोई आवाज,
शोरगुल यहां तक की संकल्पों की भी हलचल नही*। इस गहन शांति की अवस्था
में स्थित होते ही मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि मुझ आत्मा से शांति के
शक्तिशाली वायब्रेशन निकल कर चारों ओर वायुमंडल में फैल रहें है और आस - पास के
वायुमंडल को शांत बना रहे हैं। *शांति की शक्तिशाली किरणों का एक शक्तिशाली औरा
मेरे चारों तरफ निर्मित होता जा रहा है*।
➳ _ ➳ शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन चारों और फैलाती मैं चैतन्य शक्ति
आत्मा अब सहजता से देह का आधार छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अंतरिक्ष को
पार करके,
उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परें मैं जागती ज्योति अब स्वयं को एक ऐसी
दुनिया में देख रही हैं जहां लाल प्रकाश ही प्रकाश है। चारों और चमकती हुई जगमग
करती मणियां दिखाई दे रही हैं*। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु का यहां अभाव है।
केवल रूहें ही रूहें हैं इसलिए रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से। सम्बन्ध भी
आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा।
➳ _ ➳ चैतन्य मणियों की जगमग करती इस अति सुंदर दुनिया में अब मैं स्वयं
को महाज्योति अपने शिव पिता के सम्मुख देख रही हूँ जिनसे निकल रही प्रकाश की
अनन्त किरणे पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही है। *मन्त्रमुग्ध हो कर इस अति
सुंदर नजारे को मैं देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि महाज्योति मेरे शिव पिता
से आ रही अनन्त गुणों और शक्तियों की ये किरणें मुझे अपनी ओर खींच रही हैं*।
धीरे - धीरे मैं आत्मा अब उनकी ओर बढ़ रही हूँ। उनके समीप पहुंच कर उन्हें टच
करके उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को अब मैं स्वयं में भर रही हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरकर मैं स्वयं
को सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ और सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन
कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि
सिहांसन पर विराजमान हूँ और फिर से अपनी साकार देह का आधार ले कर इस कर्मभूमि
पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। किन्तु अब मैं सदैव अंतर्मुखता में रहते केवल अपने
शिव पिता से सुनते,
हर सेकण्ड उन्हें अपने साथ अनुभव करती हूँ।
➳ _ ➳ *सर्व सम्बन्धो का सुख बाबा से लेते अपने हर संकल्प,
बोल और कर्म में बाबा की याद को बसा कर,
अंतर्मुखता की गुफा में बैठ एकांतवासी बन अपने प्यारे बाबा के सानिध्य
में अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति अब मैं सदैव कर रही हूँ और बाहरमुखता से सहज ही
दूर होती जा रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
*मैं विशाल बुद्धि, विशाल दिल रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं अपने पन की अनुभूति कराने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मास्टर रचयिता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
*मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह के पंख लगाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव उड़ती कला की अनुभूति करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा उमंग उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा सभी बच्चों को बहुत सहज पुरुषार्थ की विधि सुना रहे हैं। माताओं को सहज चाहिए ना! तो बापदादा सब माताओं, बच्चों को कहते हैं, लेकिन *सबसे सहज पुरुषार्थ का साधन है - 'सिर्फ चलते-फिरते सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हर एक आत्मा को दिल से शुभ भावना की दुआयें दो और दूसरों से भी दुआयें लो'। चाहे आपको कोई कुछ भी दे, बददुआ भी दे लेकिन आप उस बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर दो।* आप द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो। उस समय अनुभव करो जो बददुआ दे रहा है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है। *वशीभूत आत्मा के प्रति वा परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकलेगी। उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ निकलेगी।*
➳ _ ➳ सिर्फ एक ही बात याद रखो कि *हमें निरन्तर एक ही कार्य करना है - 'संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्मणा द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआ देना और दुआ लेना'।* अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ वा निगेटिव संकल्प आवे भी तो यह याद रखो मेरा कर्तव्य क्या है! जैसे कहाँ आग लग रही हो तो आग बुझाने वाले होते हैं तो वह आग को देख जल डालने का अपना कार्य भूलते नहीं, उन्हों को याद रहता है कि हम जल डालने वाले हैं, आग बुझाने वाले हैं, ऐसे अगर कोई भी विकार की आग वश कोई भी ऐसा कार्य करता है जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो *आप अपना कर्तव्य याद रखो कि मेरा कर्तव्य क्या है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने का, दुआ देने का। शुभ भावन की भावना का सहयोग देने का।* बस एक अक्षर याद रखो, माताओं को सहज एक शब्द याद रखना है - 'दुआ देना, दुआ लेना'।
✺ *ड्रिल :- "सबसे सहज पुरुषार्थ की विधि का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इस देह में भ्रूकुटी के मध्य विराजमान हूँ... मैं इस देह से अलग हो फरिश्ता रूप में स्थित हो गयी हूँ... *मेरा ये लाइट का शरीर एक दम हल्का है... मैं आत्मा फरिश्ता रूप में कही भी पहुँच जाती हूँ... मैं फरिश्ता आबू तीरथ की यात्रा पे निकल पड़ी हूँ... यहाँ ऊंचे - ऊंचे पहाड़ों से होते हुए, नाचते - गाते, झूमते हुए पहुँच जाती हूँ... बाबा की तपस्या भूमि पाण्डव भवन में...* सबसे पहले मैं फरिश्ता हिस्ट्री हॉल में जाता हूँ... यहाँ में *अपने सारे व्यर्थ और कमजोर संकल्प बाबा की झोली में डाल देती हूँ... बाबा मुझे दृष्टि दे रहे हैं... जिससे मेरे अशुद्ध और व्यर्थ विचार जल कर भस्म हो गए हैं...* मैं फरिश्ता सम्पूर्ण पवित्र बन गया हूँ... अब मैं शांति स्तंभ पे पहुंच कर बाप समान मास्टर शक्तिशाली बन गया हूँ... बाबा ने मुझे सर्व शक्तियों से भरपूर कर दिया है... *बाबा ने मेरा हाथ पकड़ के अपने कमरे में बिठा लिया और अपने समान निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी बना दिया...* अब मैं फरिश्ता उड़ कर पहुँच जाता हूँ... बाबा की झोपड़ी में जहाँ मैं बाबा से रूह - रिहान कर रही हूँ... *मेरे मन की जितनी भी उदासी, दुख और ग्लानि है सब निकल रही है... और आनंद और खुशी से भरपूर हो रही हूँ... मैं फरिश्ता बापदादा से सर्व शक्तियां लेकर कर सम्पूर्ण फरिश्ता बन गयी हूँ...*
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता वापस अपने स्थान पर पहुँच जाता हूँ... *मैं फरिश्ता सहज पुरुषार्थी हूँ... चलते - फिरते और कर्म करते हुए निरंतर बाबा को याद कर रहा हूँ... मुझ फरिश्ते के सम्बन्ध-सम्पर्क में जो भी आत्मा आती है उन सब को दिल से शुभ भावना की दुआयें दे रही हूँ...* जिससे मुझे स्वतः दुआयें मिल रही है... चाहे मुझ आत्मा को कोई कुछ भी दे... बददुआ भी दे... *लेकिन मैं आत्मा उस आत्मा की बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर रही हूँ...* मुझ आत्मा द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो रही है...
➳ _ ➳ जब भी मुझ आत्मा को कोई आत्मा भला बुरा बोलती है... उस समय मैं आत्मा अनुभव करती हूँ जो आत्मा बददुआ दे रही है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है... *मैं आत्मा बाबा के कहे अनुसार उस वशीभूत आत्मा के प्रति या परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकालती हूँ... उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ ही निकाल रही हूँ... उसको शुभ भावना की बौछार देकर परिवर्तित कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सदैव सिर्फ एक ही बात याद रखती हूँ कि... *मुझे निरन्तर सिर्फ बाबा की छत्र छाया में रहना है... जिसके अंदर में आत्मा सम्पूर्ण सुरक्षित हूँ... मैं आत्मा सिर्फ एक ही कार्य कर रही हूँ... संकल्प द्वारा... बोल द्वारा... कर्म द्वारा... सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा... दुआ दे रही हूँ और दुआ ले रही हूँ...* अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ या निगेटिव संकल्प आता भी है तो उसे बाबा को समर्पित कर हल्का हो रही हूँ... मुझ आत्मा को हमेशा स्मृति रहती है... कि मेरा कर्तव्य है... लगी हुई आग को बुझाना... मैं आत्मा हमेशा याद रखती है कि मेरा कार्य जल डालने का है... और *मैं आत्मा अपना यही कार्य कर रही हूँ... विकारों की लगी हुई आग बुझा रही हूँ...*
➳ _ ➳ अगर कोई आत्मा विकार की आग वश होकर... कोई भी ऐसा कार्य करती है जो मुझ आत्मा को अच्छा नहीं लगता है... *तो मैं आत्मा ऐसी परवश आत्मा को शुभ भावना और दुआएँ देकर उसके विकारों की आग ठंडा कर रही हूँ...* उस आत्मा को शुभ भावना का सहयोग दे रही हूँ... जिससे वो स्वत: परिवर्तित हो रही है... *बाबा ने माताओं को सहज पुरुषार्थ करने के लिए एक शब्द याद रखने को कहा कि दुआ देना है... और दुआ लेना है... अब मैं आत्मा चलते - फिरते सिर्फ दुआ देने और लेने का ही काम कर रही हूँ... यही सहज पुरुषार्थ की विधि है...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━