━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 04 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ अपना चार्ट देख सक्क किया की कितना पुण्य जमा किया है ?
➢➢ मधुरता के वरदान द्वारा सदा आगे बढते रहे ?
➢➢ हर परिस्थिति में राज़ी रह राज़युक्त बनकर रहे ?
➢➢ मुख से कभी व्यर्थ व साधारण बोल तो नहीं निकले ?
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न ✰
❂ तपस्वी जीवन ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ बापदादा अचानक डायरेक्शन दे कि इस शरीर रुपी घर को छोड़, देह-अभिमान की स्थिति को छोड़ देही-अभिमानी बन जाओ, इस दुनिया से परे अपने स्वीट होम में चले जाओ तो जा सकते हो? युद्ध स्थल में युद्ध करते करते समय तो नहीं बिता देंगे! अशरीरी बनने में अगर युद्ध करने में ही समय लग गया तो अंतिम पेपर में मार्क्स वा डिवीजन कौन-सा आयेगा!
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए ✰
❂ श्रेष्ठ स्वमान ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ "मैं विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देने वाला मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ"
〰✧ ब्राह्मणों का विशेष कर्तव्य है-ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देना - सभी विश्व-कल्याणकारी बन विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें दे रहे हो? मास्टर ज्ञान सूर्य हो ना। तो सूर्य क्या करता है? अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है तो आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्वशक्तियों को किरणें विश्व में देते रहते हो।
〰✧ सारे दिन में कितना समय इस सेवा में देते हो? ब्राह्मण जीवन का विशेष कर्तव्य ही यह है। बाकी निमित्त मात्र। ब्राह्मण जीवन वा जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए। तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहते हो?
〰✧ जो इस कार्य में तत्पर होंगे, वह सदा निर्विग्न होंगे। विघ्न तब आते हैं जब बुद्धि फ्री होती है। सदा बिजी रहो तो स्वयं भी निर्विग्न और सर्व के प्रति भी विघ्न विनाशक। विघ्न विनाशक के पास विघ्न कभी भी आ नहीं सकता।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ रूहानी ड्रिल प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ सेकण्ड में बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और सेकण्ड में व्यर्थ देहभान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए।
〰✧ ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर सारे दिन में यूज करके देखो। ऐसे नहीं ऑर्डर करो - कन्ट्रोल और दो मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, 5 मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, इसलिए बीच-बीच में कन्ट्रोलिंग पॉवर को यूज करके देखते जाओ।
〰✧ सेकण्ड में होता है, मिनट में होता है, ज्यादा मिनट में होता है, यह सब चेक करते जाओ।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ अशरीरी स्थिति प्रति ❂
✰ अव्यक्त बापदादा के इशारे ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ फ़रिश्ते अर्थात् ज्योति की काया वाले। सभी अपने को ब्राह्मण सो फ़रिश्ता समझते हो? अभी ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण से फ़रिश्ता बनने वाले हैं फिर फ़रिश्ता सो देवता बनेंगे -वह याद रहता है? फ़रिश्ता बनना अर्थात् साकार शरीरधारी होते हुए लाइट रूप में रहना अर्थात् सदा बुद्धि द्वारा ऊपर की स्टेज पर रहना। फ़रिश्ते के पाँव धरनी पर नहीं रहते। ऊपर कैसे रहेंगे? बुद्धि द्वारा। बुद्धि रूपी पाँव सदा ऊँची स्टेज पर। ऐसे फ़रिश्ते बन रहे हो या बन गये हो? ब्राह्मण तो हो ही - अगर ब्राह्मण न होते तो यहाँ आने की छुट्टी भी नहीं मिलती। लेकिन ब्राह्मणों ने फ़रिश्तेपन की स्टेज कहाँ तक अपनाई है? फ़रिश्तों को ज्योति की काया दिखाते हैं। प्रकाश की काया वाले। जितना अपने को प्रकाश स्वरूप आत्मा समझेंगे- प्रकाशमय तो चलते फिरते अनुभव करेंगे जैसे प्रकाश की काया वाले फ़रिश्ते बनकर चल रहे हैं। फ़रिश्ता अर्थात् अपनी देह के भान का भी रिश्ता नहीं, देहभान से रिश्ता टूटना अर्थात् फ़रिश्ता। देह से नहीं, देह के भान से। देह से रिश्ता खत्म होगा तब तो चले जायेंगे लेकिन देहभान का रिश्ता खत्म हो। तो यह जीवन बहुत प्यारी लगेगी। फिर कोई माया भी आकर्षण नहीं करेगी।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- याद का चार्ट रखना"
❉ प्यारे बाबा :- "मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य पिता के साथ सदा सत्य भरी
राहो पर मुस्कराते हुए सदा उमंगो संग झूमो...अपने दिल की हर बात को सत्य पिता
को बयाँ करो... हर पल हर कदम पर मीठे बाबा से राय लेते रहो... और श्रीमत का हाथ
पकड़े हुए यूँ सदा निश्चिन्त, बेफिक्र बन मौजो से भरा ईश्वरीय जीवन जियो..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा :- "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके साये में सत्य
स्वरूप में खिल उठी हूँ... श्रीमत को पाकर जीवन मूल्यों से भर गयी हूँ... दिल
के हर जज्बातों में आपको साझा कर रही हूँ... आपके साथ और अमूल्य प्यार को
पाकर, खुशनुमा जीवन को मालिक हो गयी हूँ..."
❉ मीठे बाबा :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जनमो की भटकन के पश्चात जो ईश्वर
पिता को पाया है तो उनकी श्रीमत पर चलकर जीवन अनन्त मीठे सुखो का पर्याय बना
लो... सच्चे साथी से हर कदम राय लेकर, जीवन को खुशियो की बहार बना दो... सच्चा
पोतामेल ईश्वर पिता को देकर, प्यार में वफादारी का सबूत दे दो..."
➳ _ ➳ मैं आत्मा :- "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा परमात्मा पिता को पाकर
कितनी भाग्यशाली हो गई हूँ... कभी कहाँ भला सोचा था कि जीवन ईश्वरीय मत पर
चलकर यूँ सुखो का समन्दर हो उठेगा... प्यारे बाबा आपके प्यार को पाने वाले,
अपने भाग्य की जादूगरी पर निहाल हो गयी हूँ... "
❉ प्यारे बाबा :- "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... जनमो के भटके मन को अब ईश्वरीय
मत पर चलाकर निर्मल पवित्र बनाओ.... श्रीमत के हाथो में पलकर, अथाह खुशियो से
सजा योगी जीवन पाओ... हर कर्म में मीठे बाबा को सच्चा साथी बनाकर राय लो... तो
यह जीवन सच्चे सुख प्रेम शांति से भर उठेगा....और इनकी खुशबु से विश्व भी महक
उठेगा...."
➳ _ ➳ मैं आत्मा :- "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले
कितनी मालामाल हो गयी हूँ... श्रीमत को पाकर खुबसूरत जीवन की मालिक हो गयी
हूँ... जीवन असीम खुशियो से लबालब है और ईश्वर पिता हर पल, हर कदम मेरे साथ
है... ऐसे प्यारे भाग्य पर कितना न बलिहार जाऊं..."
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ "ड्रिल
:- टीचर बन बहुतों को रास्ता बताना है"
➳ _ ➳ आज सारी दुनिया मे सभी मनुष्य मात्र अल्फ अर्थात अपने ईश्वर बाप को ना
जानने के कारण निधनके बन पड़े है और दुखी, अशांतमय जीवन जी रहें हैं। दुनिया के
ये सभी मनुष्य मेरे ही तो आत्मा भाई है जो आज दिन तक अपने पिता से बिछुड़े हुए
हैं। अपने इन आत्मा भाईयों को अपने शिव पिता परमात्मा से मिलाना मेरा परम
कर्तव्य है और यही मेरे शिव पिता की चाहना भी है कि उनका कोई भी बच्चा उनके
परिचय से अनजान ना रह जाये। अपने शिव पिता के फरमान को स्मृति में ला कर मैं
मन ही मन विचार करती हूँ कि कैसे सबको अल्फ की पहचान दूँ!
➳ _ ➳ एकांत में बैठ सेवा की युक्तियां सोचते - सोचते अपने शिव पिता को मैं याद
करती हूँ। मेरी याद मेरे शिव पिता तक पहुंचते ही उनकी तरफ से याद का रिटर्न
उनकी शक्तिशाली किरणों की छत्रछाया के रूप में मुझे अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव होने
लगता है। मैं देख रही हूँ बाबा अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की हज़ारों
भुजाओं को मेरे ऊपर फैलाये परमात्म दुआयों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। ये
परमात्म ब्लैसिंग मेरे अंदर एक अद्भुत रूहानी नशे का संचार कर रही है। इस
रूहानी नशे का अनुभव मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रहा है। मैं देख रही
हूँ जैसे मेरा साकारी शरीर लुप्त हो गया है।
➳ _ ➳ लाइट के बहुत ही सुंदर फ़रिशता स्वरूप में मैं अब स्वयं को देख रही हूँ।
मेरे अंग - अंग से निकल रही श्वेत रश्मियां चारों और फैल कर सारे वायुमंडल को
शुद्ध, दिव्य और अलौकिक बना रही हैं। अपनी तेजस्वी रंग बिरंगी किरणो से
वायुमण्डल को शुद्ध और पवित्र बनाता हुआ मैं फ़रिशता अब धरनी के आकर्षण से मुक्त
होता हुआ ऊपर आकाश मण्डल की ओर जा रहा हूँ। सूक्ष्म रूप ले कर अति तीव्र गति
से उड़ता हुआ मैं फरिश्ता पांच तत्वों की दुनिया को पार करके पहुँच जाता हूँ
अपने अलौकिक वतन में।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं अब एक ऐसी दुनिया मे देख रहा हूँ जहां चारों और सफेद चांदनी
सा प्रकाश फैला हुआ है। लाइट के सूक्ष्म शरीर धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते इस
लोक में मुझे दिखाई दे रहें हैं जिनसे निकल रही प्रकाश की रश्मियां पूरे वतन
में फैल रही हैं। इस अति सुन्दर दिव्य अलौकिक दुनिया में मैं फ़रिशता अब स्वयं
को बापदादा के सम्मुख देख रहा हूँ। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही
है और मैं स्वयं को बापदादा से आ रही लाइट माइट से भरपूर कर रहा हूँ। बापदादा
से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमे असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है।
➳ _ ➳ मैं डबल लाइट बनता जा रहा हूँ। हर प्रकार के बोझ और बन्धन से मुक्त
बिल्कुल उन्मुक्त और निर्बन्धन स्थिति में मैं स्थित हूँ। गहन सुखमय स्थिति की
अनुभूति प्यारे बापदादा के सानिध्य में मैं कर रहा हूँ। बाबा अपना वरदानी हाथ
मेरे सिर पर रख कर मुझे आप समान बनने का वरदान दे रहें हैं। टीचर बन सभी को
अल्फ का परिचय देने का फरमान दे रहें हैं। बापदादा की लाइट माइट से भरपूर हो
कर, बाबा से वरदान ले कर, बाबा के फरमान का पालन करने के लिए डबल लाइट बन कर अब
मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ।
➳ _ ➳ अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह के साथ वापिस अपनी साकारी देह में प्रवेश
कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं टीचर बन सबको अल्फ का परिचय
देने की ईश्वरीय सेवा कर रही हूँ। अलग - अलग स्थानों पर प्रदर्शनियों आदि में
जा कर एक - एक बात को अच्छी रीति समझा कर मैं सबकी बुद्धि को दिव्य बनाने का
रूहानी धन्धा करते हुए सबको ईश्वर बाप से मिलवाने की बाबा की आश को पूरा कर रही
हूँ। "ईश्वर सर्वव्यापी नही है" "गीता का भगवान कृष्ण नही है" ऐसे अनेक
टॉपिक्स पर टीचर की भांति अच्छी रीति समझा कर मैं पत्थरबुद्धि मनुष्यों की
बुद्धि का ताला खोल उन्हें पारस बुद्धि बनाने की सेवा निरन्तर कर रही हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ मैं
मधुरता के वरदान द्वारा सदा आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ।
✺ मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ मैं
आत्मा हर परिस्थिति में सदा राज़ी रहती हूँ ।
✺ मैं आत्मा राज़युक्त हूँ ।
✺ मैं आत्मा सदा राज़ी हूँ ।
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवा तो बहुत करते हैं, दिन-रात बिजी भी रहते हैं। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं और सेवा में वृद्धि भी बहुत अच्छी हो रही है। फिर भी मैजारिटी का जमा का खाता कम क्यों? तो रूह-रूहान में यह निकला कि सेवा तो सब कर रहे हैं, अपने को बिजी रखने का पुरुषार्थ भी अच्छा कर रहे हैं। फिर कारण क्या है? तो यही कारण निकला सेवा का बल भी मिलता है, फल भी मिलता है। बल है स्वयं के दिल की संतुष्टता और फल है सर्व की संतुष्टता। अगर सेवा की, मेहनत और समय लगाया तो दिल की संतुष्टता और सर्व की संतुष्टता, चाहे साथी, चाहे जिन्हों की सेवा की दिल में सन्तुष्टता अनुभव करें, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहके चले जायें, नहीं। दिल में सन्तुष्टता की लहर अनुभव हो। कुछ मिला, बहुत अच्छा सुना, वह अलग बात है। कुछ मिला, कुछ पाया, जिसको बापदादा ने पहले भी सुनाया - एक है दिमाग तक तीर लगाना और दूसरा है दिल पर तीर लगाना। अगर सेवा की और स्व की संतुष्टता, अपने को खुश करने की संतुष्टता नहीं, बहुत अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ, नहीं। दिल माने स्व की भी और सर्व की भी।
➳ _ ➳ और दूसरी बात है कि सेवा की और उसकी रिजल्ट अपनी मेहनत या मैंने किया... मैंने किया यह स्वीकार किया अर्थात् सेवा का फल खा लिया। जमा नहीं हुआ। बापदादा ने कराया, बापदादा के तरफ अटेन्शन दिलाया, अपने आत्मा की तरफ नहीं। यह बहन बहुत अच्छी, यह भाई बहुत अच्छा, नहीं। बापदादा इन्हों का बहुत अच्छा, यह अनुभव करना - यह है जमा का खाता बढ़ाना। इसलिए देखा गया टोटल रिजल्ट में मेहनत ज्यादा, समय- एनर्जी ज्यादा और थोड़ा-थोड़ा शो ज्यादा। इसलिए जमा का खाता कम हो जाता है। जमा के खाते की चाबी बहुत सहज है, वह डायमण्ड चाबी है, गोल्डन चाबी लगाते हो लेकिन जमा की डायमण्ड चाबी है 'निमत्त भाव और निर्मान भाव'। अगर हर एक आत्मा के प्रति, चाहे साथी, चाहे सेवा जिस आत्मा की करते हो, दोनों में सेवा के समय, आगे पीछे नहीं सेवा करने के समय निमित्त भाव, निर्मान भाव, निःस्वार्थ शुभ भावना और शुभ स्नेह इमर्ज हो तो जमा का खाता बढ़ता जायेगा। बापदादा ने जगत अम्बा माँ को दिखाया कि इस विधि से सेवा करने वाले का जमा का खाता कैसे बढ़ता जाता है। बस, सेकण्ड में अनेक घण्टों का जमा खाता जमा हो जाता है। जैसे टिक-टिक-टिक जोर से जल्दी-जल्दी करो, ऐसे मशीन चलती है। तो जगत अम्बा बड़बी खुश हो रही थी कि जमा का खाता, जमा करना तो बहुत सहज है।
✺ ड्रिल :- "सेवा द्वारा सहज जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"
➳ _ ➳ पांडव भवन में... बापदादा के कमरे में बैठी मैं आत्मा... अपने मन को बाहरी दुनिया से समेट कर लगा देती हूँ सिर्फ एक बिंदु रूपी बाप पर... मन बुद्धि के तार बापदादा से जुड़ते ही बाबा के कमरे में दिव्य सुगंध की लहर फ़ैल जाती हैं... बापदादा का फ़रिश्ता स्वरुप प्रत्यक्ष मुझ आत्मा को प्रतीत हो रहा हैं... बापदादा का चमकता हुआ ओरा... चांदनी सा प्रकाश फैला रहा हैं... दैदीप्यमान स्वरुप मेरे बापदादा का देख मैं आत्मा भाव विभोर हो जाती हूँ... बापदादा से निकलती पवित्र किरणों का झरना मुझ आत्मा में स्वतः धारण होता जा रहा हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा शक्तियों से परिपूर्ण होती जा रही हूँ... अपने 63 जन्मो के विकर्मो को नष्ट होता हुआ देख रही हूँ... अपने आप को एक संपूर्ण फ़रिश्ते स्वरुप में परिवर्तित होता देख रही हूँ.... लेकिन मेरा फ़रिश्ता स्वरुप आधा ही इमर्ज होता हुआ दिखाई दे रहा हैं... और मैं आत्मा अचरज भरी निगाहों से बापदादा को देख रही हूँ... मेरे संकल्पों को जान बापदादा मुझ आत्मा को एक सीन दिखा रहे हैं... जहाँ मैं आत्मा देख रही हूँ अपने आप को... बापदादा के महायज्ञ में अपने मन वचन कर्म से सेवा को सफल करने में लग गई हूँ...
➳ _ ➳ हर घड़ी... हर पल बापदादा को प्रत्यक्ष करने की सेवा में मग्न रहती मैं आत्मा... स्वयं को संतुष्ट करती जा रही हूँ... सेवा में संकल्प को... बोल को... पूर्ण रूप से सफल कर रही हूँ... मुझ आत्मा का सेवा के प्रति लगन में सिर्फ एक ही कमी रह जाती थी... निमित्त और निर्माण भाव की प्रत्यक्षता... मैं आत्मा सेवा में निमित्त भाव को प्रत्यक्ष नहीं कर पा रही थी... देह अभिमान रूपी संस्कार के वशीभूत मैं आत्मा... मेरेपन को पूर्ण रूप से मिटा नहीं पा रही थी... बापदादा को प्रत्यक्ष करने की सेवा में देह अभिमान रूपी कंटक को दूर नहीं का पा रही थी... दिल की सेवा नहीं दिमाग की सेवा में उलझ गई थी...
➳ _ ➳ अपने जमा के खाते को न बढ़ाते... खर्च करती जा रही तो... सेवा में परिपूर्णता का झलक नहीं दिखाई दे रही थी... इसीलिए मुझ आत्मा का फ़रिश्ता स्वरुप आधा दिखाई दे रहा था... मैं आत्मा अब अपने फ़रिश्ता स्वरुप को इमर्ज न करने का कारण जान कर बापदादा को कोटि बार धन्यवाद करती हूँ... और सेवा को सच्ची दिल की लगन से सफल करने का पक्का और सच्चा वादा करती हूँ... मेरेपन का संकल्प भी त्याग करती हूँ... बापदादा का कार्य... बापदादा ने करवाया... मैं सिर्फ निमित्त हूँ... यह भावना... यह संकल्प को सुनहरे अक्षरों से अपने दिल-दिमाग में अंकित करती हूँ...
➳ _ ➳ बापदादा को एक वादा करती हूँ... मेरेपन के अभिमान का त्याग कर दूगी... और दिल की सेवा जो दिल में तीर बन कर लग जाये... बापदादा की प्रत्यक्षता हो जाये न कि मुझ आत्मा का मान बढे... ऐसे अब यज्ञ में खुद को स्वाहा कर देना हैं... सेवा के समय निमित्त भाव... शुभ भाव इमर्ज हो जाये और न कि खुद आत्मा के वाह वाह के भाव इमर्ज हो जाये... निःस्वार्थ शुभ भाव... शुभ कामना रूपी शक्तियों का आह्वान करती मैं आत्मा लौकिक का हर कार्य अब तो बापदादा को प्रत्यक्ष करने में मग्न हो गई हूँ...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━