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 30 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी भी समबन्ध में मोह की रगें तो नहीं गयी ?*

 

➢➢ *"भगवान हमें पढाते हैं" - यह नशा रहा ?*

 

➢➢ *सर्व आत्माओं को यथार्थ अविनाशी सहारा दिया ?*

 

➢➢ *समय को नष्ट करने की बजाये फ़ौरन निर्णय कर सफल किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे साइंस प्रयोग में आती है तो समझते हैं कि साइंस अच्छा काम करती है, ऐसे साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करो, इसके लिए एकाग्रता का अभ्यास बढ़ाओ। *एकाग्रता का मूल आधार है-मन की कंट्रोलिंग पावर, जिससे मनोबल बढता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एक बाप की मत पर चलने वाली एकरस आत्मा हूँ"*

 

  *अपने को एक ही बाप के, एक ही मत पर चलने वाले एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले अनुभव करते हो? जब एक बाप है, दूसरा है ही नहीं तो सहज ही एकरस स्थिति हो जाती है।* ऐसे अनुभव है?

 

  जब दूसरा कोई है ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी और कहाँ जाने की मार्जिन ही नहीं है। है ही एक। जहाँ दो चार बातें होती हैं तो सोचने को मार्जिन हो जाती। जब एक ही रास्ता है तो कहाँ जायेंगे! *तो यहाँ मार्ग बताने के लिए ही सहज विधि है - एक बाप, एक मत, एकरस एक ही परिवार। तो एक ही बात याद रखो तो वन नम्बर हो जायेंगे। एक का हिसाब जानना है, बस।*

 

  *कहाँ भी रहो लेकिन एक की याद है तो सदा एक के साथ हैं, दूर नहीं। जहाँ बाप का साथ है वहाँ माया का साथ हो नहीं सकता। बाप से किनारा करके फिर माया आती है।* ऐसे नहीं आती। न किनारा हो न माया आये। एक का ही महत्व है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे आप लोग कहीं भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। *ड्यूटी के ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहल लेते हो वैसे ही सर्वीस समाप्त हुई और इन वस्त्रों के बोंझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो*। एक सेकण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे।

 

✧  कोई भी चीज अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्का होने से सहज ही अलग हो जाता है। *वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी ईजी - पन नहीं होता तो फिर अशरीरी - पन का अनुभव नहीं कर सकेंगे*।

 

✧  सुनाया था ना कि क्या बनना है । इजी और एलर्ट। ऐसे भी नहीं कि ऐसा इजी रहे जो माया भी इजी आ जाये। कोई समय ईजी रहना पडता है, कोई समय एलर्ट रहना पडता है। *तो ईजी और एलर्ट, ऐसे रहने वाले ही इस अभ्यास में रह सकेंगे*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  यह तो अमानत रूहानी बाप ने दी है, रूहानी बाप की याद रहेगी। *अमानत समझने से रूहानियत रहेगी और रूहानियत से सदैव बुद्धि मे राहत रहेगी, थकावट नहीं होगी। अमानत में ख्यानत करने से रूहानियत के बदली उलझन आ जाती है, राहत के बजाय घबराहट आ जाती है। इसलिए यह शरीर है ही सिर्फ ईश्वरीय सर्विस के लिए।* अमानत समझने से आटोमेटिकली रूहानियत की स्थिति रहेगी। जितना अपनी रूहानियत की स्थिति को पक्का करेंगे उतना प्रत्यक्ष फल दे सकेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  हमे भगवान पढ़ाते हैं, यह ख़ुशी चेहरे से झलकना चाहिए"*

 

_ ➳  मीठे बाबा को पाकर मुझ आत्मा का जीवन कितना प्यारा और खुशनुमा हो गया है... *सदा भगवान को पुकारता मेरा मन... आज उसकी मीठी यादो में, बातो में, ज्ञान रत्नों की बहारो में खिल रहा है.*.. भाग्य की यह जादूगरी देख देख मै आत्मा रोमांचित हूँ... प्यारे बाबा को दिल से पुकारती भर हूँ... कि भगवान पलक झपकते सम्मुख हाजिर हो जाता है... कितना शानदार भाग्य है कि भगवान मेरी बाँहों में है... इसी मीठे चिंतन में खोई हुई मै आत्मा... अपने प्यारे बाबा से मिलने... मीठे बाबा के कमरे की ओर रुख करती हूँ...

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे ज्ञान धन की अमीरी का नशा दिलाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ही शिक्षक बनकर, जीवन को सवांरने और देवता पद दिलाने आ गया है.*.. अपने इस मीठे भाग्य का, ईश्वरीय ज्ञान का, सदा सिमरन कर आनन्द में रहो... कितना ऊँचा भाग्य सज रहा है... भगवान बेठ निखार रहा है... सजा और संवार रहा है...

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान अमृत को पीती हुई कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... *आपकी प्यार भरी गोद में बैठकर मै आत्मा मा नॉलेजफुल बन रही हूँ..*. स्वयं को भी भूली हुई कभी मै आत्मा... आज बेहद की जानकारी से भरपूर हो गयी हूँ... यह सारा जादु आपने किया है मीठे बाबा... मुझे क्या से क्या बना दिया है..."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने प्यार के नशे में भिगोते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में खोये रहो... मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ का स्वरूप बनकर विश्व को प्रकाशित करो... *ईश्वर पिता पढ़ाकर भाग्य को खुशियो का पर्याय बनाने आ गया है... इन मीठी खुशियो से सदा छलकते रहो..*."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान मणियो को दिल में आत्मसात करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन को सोने सा दमकता हुआ बना दिया है... *सच्चे ज्ञान के घुंघुरू पहनकर मै आत्मा... पूरे विश्व में खुशियो की थाप दे रही हूँ..*. कि भगवान को पाकर मेने सारा जहान पा लिया है..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने ज्ञान खजानो से सम्पन्न बनाते हुए कहा :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे...  *सदा ईश्वरीय ज्ञान की मौजो में डूबे रहो... जितना इन रत्नों को स्वयं में समाओगे, उतना ही सुखो में मुस्कराओगे.*.. ईश्वर पिता से पढ़कर त्रिकालदर्शी बन रहे हो यह कितने श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है...

 

_ ➳  *मै आत्मा आनंद के सागर में खोकर प्यारे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने सत्य ज्ञान से मुझ आत्मा को सदा का नूरानी बनाया है..*. अंधेरो से निकाल कर ज्ञान की उजली राहों पर चलाया है... मै आत्मा आपको पाने के अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आपने कितना सुंदर मेरा भाग्य सजाया है..." मीठे बाबा से अपने दिल की सारी बाते कह मै आत्मा साकार जगत में आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- नष्टोमोहा बनना है*"

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया से डिटैच हो कर, अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्वयं को देख रही हूं। इस देह से उपराम, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान मैं एक चमकती हुई मणि हूँ। *अपने इस वास्तविक स्वरूप में स्थित होते ही मैं स्वयं को लगावमुक्त अनुभव कर रही हूं। देह और देह से जुड़ी हर वस्तु से जैसे मैं अनासक्त हो गई हूँ*। संसार के किसी भी पदार्थ में मुझे कोई आसक्ति नही। इस नश्वर संसार से अनासक्त होते ही एक बहुत प्यारी और हल्की स्थिति का अनुभव मैं कर रही हूं। ऐसा लग रहा है जैसे देह और देह के सम्बन्धो की रस्सियों ने मुझ आत्मा को बांध रखा था इसलिए मैं उड़ नही पा रही थी लेकिन अब मैं सभी बन्धनों से मुक्त हो गई हूँ।

 

_ ➳  बन्धनमुक्त हो कर अब मैं आत्मा इस देह से निकल कर चली ऊपर की ओर। आकाश के पार मैं पहुंच गई फरिश्तों की दुनिया में। फरिश्तों की इस दुनिया मे पहुंच कर अपने सम्पूर्ण निर्विकारी, सम्पूर्ण पावन फ़रिशता स्वरूप को मैने धारण कर लिया। *अब मैं फ़रिशता देख रहा हूँ स्वयं भगवान अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सम्मुख हैं। उनकी पावन दृष्टि जैसे जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मैं फ़रिशता अति तेजस्वी बनता जा रहा हूँ*। बापदादा की शक्तिशाली किरणे मोती बन कर मेरे ऊपर बरस रही हैं और हर मोती से निकल रही रंग बिरंगी शक्तियों की किरणें मुझे शक्तिशाली बना रही हैं। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे डबल लाइट बना रही है।

 

_ ➳  अपने इसी लाइट माइट स्वरूप में मैं फ़रिशता अब वापिस धरती की ओर लौट रहा हूँ। अब मैं सम्पूर्ण लगावमुक्त हूँ, विरक्त हूँ। संसार के सब प्रलोभनों से ऊपर हूँ। *देह की आकर्षण से मुक्त, देह के सम्बन्धो और देह से जुड़ी सभी इच्छाओं से मुक्त मैं फ़रिशता अब अपनी साकारी देह में प्रवेश कर रहा हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं देह में रहते हुए भी निरन्तर अव्यक्त स्थिति में स्थित हूँ। स्वयं को निरन्तर बापदादा की छत्रछाया के नीचे अनुभव कर रहा हूँ। *अब मेरे सर्व सम्बन्ध केवल एक बाबा के साथ हैं। मेरे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म में केवल बाबा की याद समाई है*। बाबा की स्वर्णिम किरणों का छत्र निरन्तर मेरे ऊपर रहता है जो मुझे अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति से सदैव भरपूर रखता है।

 

_ ➳  देह में रहते अव्यक्त स्थिति में स्थित होने के कारण अब मैं आत्मा स्वयं को सदा बाबा के साथ अटैच अनुभव करती हूं और उनकी लाइट माइट से स्वयं को हर समय भरपूर करती रहती हूँ। *साकारी देह में रहते हुए सम्पूर्ण नष्टोमोहा बन मैं अपने पिता परमात्मा के स्नेह में निरन्तर समाई रहती हूँ*। देह और देह की दुनिया से अब मेरा कोई रिश्ता नही।

 

_ ➳  बाबा के प्रेम के रंग में रंगी मुझ आत्मा को सिवाय बाबा के और कुछ नजर नही आता। सुबह आंख खोलते बाबा, दिन की शुरुवात करते बाबा, हर संकल्प, हर बोल में बाबा, हर कर्म करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते भी एक बाबा के लव में लीन रहने वाली मैं लवलीन आत्मा बन गई हूं। *मुख से और दिल अब केवल यही निकलता है "दिल के सितार का गाता तार - तार है, बाबा ही संसार मेरा, बाबा ही संसार है"*

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सभी आत्माओं को अविनाशी सहारा देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं आधारमूर्त आत्मा हूँ।*

   *मैं उद्धारमूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा समय के अमूल्य खजाने को नष्ट करने से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा फौरन निर्णय कर समय को सफल करती हूँ  ।*

   *मैं सम्पन्न आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *साधारण बोल अभी आपके भाग्य के आगे अच्छा नहीं लगता। कारण है 'मैं'।* यह मैं, मैं-पन, मैंने जो सोचा, मैंने जो कहा, मैं जो करता हूँ... वही ठीक है। *इस मैं-पन के कारण अभिमान भी आता है, क्रोध भी आता है।* दोनों अपना काम कर लेते हैं। *बाप का प्रसाद है, मैं कहाँ से आया! प्रसाद को कोई मैं-पन में ला सकता है क्या? अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है। बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन 'मैं' नहीं लाओ। यह मैं-पन को समाप्त करो। यह सूक्ष्म मैं-पन है। अलौकिक जीवन में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता।*

 

✺   *ड्रिल :-  "बाप का प्रसाद समझ मैं-पन को समाप्त करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  देख रही हूँ मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा स्वयं को सेन्टर में बाबा के कमरें में बैठे हुए... *स्व स्वरूप में स्थित मैं आत्मा सातों गुणों का अनुभव कर रही हूँ... अनुभव कर रही हूँ मैं आत्मा शिव माँ की शीतल छत्रछाया के नीचे स्वयं को...* शिव माँ रगं-बिरंगी किरणों की लाइट मुझ पर डाल रही है... जैसे-जैसे मुझ आत्मा पर शिव मां से ये लाइट पड़ रही है... *मैं आत्मा अतिन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा अतिन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ... मैं आत्मा लाइट हाऊस, माइट हाऊस बनती जा रही हूँ...* मुझ आत्मा के दैवी संस्कार इमर्ज होते जा रहे है...

 

 _ ➳  तभी मुझ आत्मा की मन रुपी स्लेट पर बाबा के कहें गये अव्यक्त महावाक्य उभरने लगते है... *"अगर बुद्धि भी है, कोई हुनर भी है, कोई विशेषता भी है... बापदादा विशेषता को, बुद्धि को आफरीन देता है लेकिन मैं नहीं लाओ... यह मैं-पन को समाप्त करो... यह सूक्ष्म मैं-पन है... अलौकिक जीवन में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता..."* एकाएक मैं आत्मा सामने लगे बापदादा की तस्वीर को देखती हूँ... ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... और *बाबा की आँखों से लाइट मुझ आत्मा पर पड़ रही है... मैं आत्मा बाबा को अपने सम्मुख अनुभव कर रही हूँ...* और फिर से यहीं बाबा के महावाक्य मन रुपी स्लेट पर उभरते है...

 

 _ ➳  *"मैं नहीं लाओ यह मैं-पन समाप्त करो... अलौकिक जीवन में यह सूक्ष्म मै-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देता..."* मैं आत्मा बाबा के द्वारा कहें गये इन माहावाक्यों पर चितंन करती हूँ... मैं आत्मा बाबा की आँखों में देखते हुए... अपने आप से प्रश्न करती हूँ... *क्या मैं आत्मा मैं-पन से सम्पूर्ण मुक्त हो चुकी हूँ ? कहीं मैं-पन के कारण अहंकार वश और क्रोध वश तो नहीं हो जाती हूँ ? कोई भी विशेषता या हुनर जो प्रभु प्रसाद है... कहीं उसका अहंकार तो नहीं आ जाता है ? निमित्त भाव के बदले मैंने किया... मुझे आता है... मैं ही कर सकती हूँ कहीं ऐसी मैं-पन के बोझ की गठरी उठाएं तो नहीं चल रही हूँ* ताज के बदले कहीं मैं-पन की टोकरी उठाकर तो नहीं चल रही हूँ... कहीं ऐसा मैं-पन का अभिमान तो नहीं आता... क्योंकि यह मैं-पन अगर होगा तो बोझ अनुभव होगा...

 

 _ ➳  ये मन-पन क्रोध और अभिमान को साथ लायेगा... आत्मा कभी उड़ती कला का अनुभव नहीं कर पायेगी... ये मैं-पन *स्थिति को बार-बार नीचे गिरायेगा और इस अलौकिक मार्ग में यह मैं-पन दर्शनीय मूर्त बनने नहीं देगा...* मैं आत्मा बाबा के द्वारा कहें एक-एक महावाक्य को गहराई से समझ रही हूँ... तभी एकाएक बाबा से शक्तिशाली ज्ञान की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ने लगती है... मुझ आत्मा के ऊपर जैसे-जैसे ये प्रकाश पड़ता जा रहा है... *मैं आत्मा ज्ञान स्वरूप बनती जा रही हूँ... सत्यता के प्रकाश से मैं आत्मा चमक रही हूँ... मैं आत्मा मैं और मेरेपन के झूठ से मुक्त होती जा रही हूँ... बाबा शक्तिशाली पवित्र किरणें मुझ आत्मा पर डाल रहे है... मुझ आत्मा की सूक्ष्म मैं और मेरेपन की रस्सियां जलकर भस्म हो रही है... अब मैं आत्मा मैं-पन से सम्पूर्ण मुक्त हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा हर कर्म निमित्त भाव और करनकरावनहार की स्मृति में रह कर करती हूँ... अपनी विशेषताओं को बाबा का प्रसाद समझ निमित्त, निर्माण भाव से सेवा में यूज करती हूँ...* अब मैं आत्मा हर प्रकार के सूक्ष्म ते अति सूक्ष्म मैं-पन से मुक्त हो बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ... और हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ...  *मैं-पन से मुक्त मैं आत्मा इस अलौकिक जीवन में दर्शनीय मूर्त बन गयी हूँ... उड़ती कला द्वारा तीव्र गति से आगे बढ़ रही हूँ... और सबको आगे बढ़ा रही हूँ... आप समान बना रही हूँ... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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