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 17 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी की भी देह को याद तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *"अब नाटक पूरा हुआ... घर जाना है" - यह स्मृति रही ?*

 

➢➢ *लक्ष्य और मंजिल को सदा स्मृति में रख तीव्र पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *गुण मूरत बन गुणों का दान देते चले ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करो तो कभी अपसेट नहीं होंगे। *जितना अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा। मन सदा सेट अर्थात् एकाग्र है तो स्वत: अच्छे वायब्रेशन फैलते हैं। सेवा होती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं विश्व के अंदर कोटो में से कोई विशेष आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को विश्व के अन्दर कोटो में से कोई हम हैं - ऐसे अनुभव करते हो? जब भी यह बात सुनते हो - कोटों से कोई, कोई में भी कोई तो वह स्वयं को समझते हो? जब हूबहू पार्ट रिपीट होता है तो उस रिपीट हुए पार्ट में हर कल्प आप लोग ही विशेष होंगे ना! ऐसे अटल विश्वास रहे। *सदा निश्चयबुद्धि सभी बातों में निश्चिन्त रहते हैं। निश्चय की निशानी है निश्चिन्त। चिन्तायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओंकी चिता से बचा लिया ना! चिंताओंकी चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया।* बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर लगन की अग्नि में चिन्तायें सब ऐसे समाप्त हो गई जैसे थी ही नहीं। एक सेकण्ड में समाप्त हो गई ना! ऐसे अपने को शुभचिन्तक आत्मायें अनुभव करते हो!

 

  कभी चिंता तो नहीं रहती! न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता। क्योंकि दाल रोटी तो खाना है और बाप के गुण गाना है। दाल रोटी तो मिलनी ही है। तो न धन की चिंता, न मन की परेशानी और न तन के कर्मभोग की भी चिंता। क्योंकि जानते हैं यह अन्तिम जन्म और अन्त का समय है इसमें सब चुक्तु होना है इसलिए सदा - 'शुभचिन्तक'। क्या होगा! कोई चिंता नहीं। ज्ञान की शक्ति से सब जान गये। जब सब कुछ जान गये तो क्या होगा, यह क्वेश्चन खत्म। क्योंकि ज्ञान है जो होगा वह अच्छे ते अच्छा होगा। तो सदा शुभचिन्तक, सदा चिन्ताओंसे परे निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त आत्मायें, यही तो जीवन है। अगर जीवन में निश्चिन्त नहीं तो वह जीवन ही क्या है! ऐसी श्रेष्ठ जीवन अनुभव कर रहे हो? परिवार की भी चिन्ता तो नहीं है? *हरेक आत्मा अपना हिसाब किताब चुक्तु भी कर रही है और बना भी रही है इसमें हम क्या चिंता करें! कोई चिंता नहीं। पहले चिता पर जल रहे थे अभी बाप ने अमृत डाल जलती चिता से मरजीवा बना दिया। जिंदा कर दिया।* जैसे कहते हैं मरे हुए को जिंदा कर दिया। तो बाप ने अमृत पिलाया और अमर बना दिया। मरे हुए मुर्दे के समान थे और अब देखो क्या बन गये। मुर्दे से महान बन गये। पहले कोई जान नहीं थी तो मुर्दे समान ही कहेंगे ना।

 

  भाषा भी क्या बोलते थे, अज्ञानी लोग भाषा में बोलते हैं - मर जाओ ना। या कहेंगे हम मर जाए तो बहुत अच्छा। अब तो मरजीवा हो गये, विशेष आत्मायें बन गये। यही खुशी है ना। *जलती हुई चिता से अमर हो गये, यह कोई कम बात है! पहले सुनते थे भगवान मुर्दे को भी जिंदा करता है, लेकिन कैसे करता यह नहीं समझते थे। अभी समझते हो हम ही जिंदा हो गये तो सदा नशे और खुशी में रहो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मन्द्रियाँ ऑर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके ऑर्डर में रहेगी।* जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप ऑर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे।

 

✧  हर शक्ति आपके ऑर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज हो गई। *तो अपनी चीज को जैसे भी यूज करो, जब भी यूज करो, ऐसे यह सर्व शक्तियाँ आपके ऑर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियाँ आपके ऑर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसे है पाण्डव?*

 

✧  मास्टर सर्वशक्तिवान भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं। *ऐसे नहीं कहना कि मुख से निकल गया, किसने ऑर्डर दिया जो निकल गया! देखने नहीं चाहते थे, देख लिया। करने नहीं चाहते थे, कर लिया।* यह किसके

ऑर्डर पर होता है? इसको अधिकारी कहेंगे या अधीन कहेंगे? तो अधिकारी बनी, अधीन नहीं। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  एक सेकण्ड में आवाज़ में आना एक सेकण्ड में आवाज़ से परे हो जाना ऐसा अभ्यास इस वर्तमान समय में बहुत आवश्यक है। *वह समय भी आयेगा। जैसे-जैसे अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे-वैसे नयनों के इशारों से किसके मन के भाव को जान जायेंगे। कोई से बोलने व सुनने की आवश्यकता नहीं होगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करना"*
 
➳ _ ➳  मै आत्मा जब अपने मीठे घर से... *इस धरा पर आनन्द भरा जीवन जीने को उतरी थी... कितनी धनवान्, गुणवान, शक्तिवान थी.*.. इस देह के प्रभाव में आकर मुझ आत्मा... ने स्वयं को कितना दयनीय, खाली और निस्तेज कर दिया... जब मुझ ख़ाली, थकी आत्मा नेे अपने सच्चे पिता को दिल की गहराइयो से पुकारा... हर जगह उसे ढूंढा,  और पाने की सारी उम्मीद छोड़ मायूस थी... कि *मीठे बच्चे की मीठी आवाज ने मुझे पुकारा... मेने नजर भर कर जो निहारा... तो भगवान को अपनी और बाहें फैलाये मुझे पुकारते हुए पाया.*.. मै आत्मा अपने प्यारे बाबा की बाँहों में समाकर...जनमो की थकान, दुखो से मुक्त होकर... प्रेम तरंगो में भीग गयी... और मेने ईश्वर को पाकर. सब कुछ पा लिया...
 
❉   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान धन के खजानो से भरपूर करते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय प्यार में जो असीम खजाने पाये है... *ज्ञान रत्नों की उन जागीरों को हर दिल पर लुटाकर, सबके जीवन में सुखो की बहार लाने के निमित्त बनो.*.. ईश्वरीय यादो में गहरे डूबकर अपनी अवस्था को श्रेष्ठतम बनाओ...  सबके जीवन को खुशियो से सजाओ..."
 
➳ _ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के असीम प्यार में गहरे डूबकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा कितने प्यारे भाग्य सजी हूँ... *ईश्वरीय पालना में पलकर फूलो जैसा खिल गयी हूँ... दुखो की छाया से परे होकर... ईश्वरीय रंग में रंगकर... कितनी खुबसूरत और प्यारी हो गयी हूँ.*.. और यही खुशियां मै आत्मा... सबके जीवन में खिला रही हूँ..."
 
❉   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान की पराकाष्ठा पर सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय दौलत को पाकर, जो सुखो की अमीरी के अधिकारी बने हो... *यह सम्पन्नता हर मन पर बिखेरने वाले बादल बनो... पुरुषार्थ में ऊँचे आयामो को छूकर... अपनी उन्नत अवस्था को पाओ..*. और ज्ञान धन का दिलेरी से दान कर... विश्व महाराजन बन मुस्कराओ..."
 
➳ _ ➳  *मै आत्मा ईश्वरीय अमीरी से सज संवर कर... अथाह ज्ञान सम्पत्ति को दान करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार को पाकर... कितनी धनवान् बनकर... इस विश्व धरा पर मुस्करा रही हूँ... *मेरे जेसी अमीरी भला किसी और के पास कहाँ... इन ज्ञान रत्नों की खान को, खुले दिल से मै आत्मा, सबको बाँट रही हूँ.*.. और विश्व कल्याणों बनकर आपके दिल पर सज रही हूँ..."
 
❉   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को विश्व कल्याण के भाव से भरते हुए कहा :-* "सबके जीवन से दुखो की तपन मिटाने वाले... रहमदिल बनो... खुशियो के फूल इस विश्व धरा पर खिला कर... इसे प्यारा सुखो का स्वर्ग बनाओ... सबके जीवन में ज्ञान धन की सच्ची रौशनी को जगमगाओ... *विकारो की कालिमा से हर दिल को मुक्त कराकर... सच्चे रहनुमा बन, ईश्वरीय दिल में मुस्कराओ.*...
 
➳ _ ➳  *मै आत्मा इस कदर अपने भाग्य को चमकते देख... मीठे बाबा को बड़े प्यार से निहारते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपने अपने प्यार का जादु मुझ आत्मा पर चलाकर... मुझे दुखो से छुड़वाकर...सुखो की जन्नत में पहुंचाया है... और *यही सच्ची खुशियां मै सबको... दिल खोल कर बाँट रही हूँ... ईश्वरीय धन से हर झोली को भर रही हूँ... और पुरुषार्थ में ऊँची उड़ान को भर रही हूँ.*.."मीठे बाबा से ज्ञान धन में लबालब होकर मै आत्मा... स्थूल धरा पर लौट आयी हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  मुक्ति और जीवन मुक्ति का रास्ता सबको बताना है*

➳ _ ➳  सबको मुक्ति जीवन मुक्ति देने वाले अपने सच्चे सतगुरु शिव बाबा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, एकांतवासी बन कर उस एक के अंत मे खो कर, उनके समान बन जाने का संकल्प ले कर मैं इस देह से खुद को डिटैच करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *स्वयं को भृकुटि सिहांसन पर विराजमान एक दिव्य ज्योतिपुंज के रुप में मैं चमकता हुआ देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे अंदर समाये गुणों और शक्तियों को इमर्ज कर रंग बिरंगी किरणों के रूप में चारों और फैल कर वायुमण्डल को दिव्यता और अलौकिकता से भर रहा है*। मेरे अंदर समाये सातों गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन्स धीरे - धीरे प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के साथ, चारों और फैलते जा रहें हैं और वायुमण्डल को रूहानियत की शक्ति से भरपूर कर रहें हैं। *रूहानियत की यह शक्ति मुझे हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त करके, डबल लाइट बना रही है*।

➳ _ ➳  एक अति न्यारे और प्यारे हल्केपन की अनुभूति के साथ, स्वयं को लाइट हाउस बना कर सबको मुक्ति जीवनमुक्ति की सच्ची राह दिखाने का संकल्प लेकर मैं आत्मा अब भृकुटि की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की लाइट से स्वयं को लाइट माइट बनाने के लिये मुक्ति जीवनमुक्ति दाता अपने प्यारे प्रभु के पास उनके निर्वाणधाम घर की ओर प्रस्थान करती हूँ। *वाणी से परें अपने निर्वाणधाम घर जाने के लिए मन बुद्धि की आंतरिक यात्रा पर मैं चल पड़ी हूँ। अंतर्मन की यह यात्रा मन को बहुत सुकून देने वाली है। देह से जुड़ी किसी भी चीज की इस यात्रा में कोई दरकार नही केवल आत्म और परमात्म चिंतन ही मुझे मेरी मंजिल तक ले जाने का आधार है*। उसी आधार के सहारे मैं मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। 

➳ _ ➳  प्रभु मिलन का खूबसूरत मधुर अहसास मेरी गति को तीव्र कर मुझे अति शीघ्र आकाश से ऊपर अपने अव्यक्त वतन में ले आया है जहाँ मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को उनके सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ। *अपने बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखने की चाह में अपनी बाहों को पसारे सामने खड़े अव्यक्त ब्रह्मा बाबा को देखते हुए उनके समान बनने का संकल्प लेकर मैं वतन को भी पार करके अब अपने मूलवतन घर में प्रवेश कर रही हूँ*। मणियो से सजी इस दुनिया में चारो और फैली गहन शांति मन को गहन सुकून दे रही है। गहन शांति की गहरी अनुभूति करके मैं तृप्त हो गई हूँ। मेरी जन्म - जन्म की प्यास जैसे बुझ गई है। 

➳ _ ➳  गहन शांति की अनुभूति करके अब मैं अपने प्यारे पिता के पास जा रही हूँ जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे सामने खड़े हैं। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणें बिखेरता बाबा का सुंदर स्वरूप मुझे अपनी और खींच रहा है। *उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप जाकर अब उन्हें छूती हूँ। बाबा को छूते ही शक्तियों का झरना जैसे मेरे ऊपर बरसने लगता है और एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरने लगती है*। जैसे - जैसे ये शक्तियाँ मेरे अंदर समाती जा रही हैं मैं महसूस कर रही हूँ कि बाबा से मिल रही शक्तियों का बल मुझे उनके समान तेजोमय बना रहा है। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। मेरा स्वरूप बहुत ही चमकदार और लुभावना बन गया है। *अपने इस अति मनभावन सुन्दर चमकीले स्वरूप को देख मैं आनन्द मगन हो रही हूँ*।

➳ _ ➳  अपने इस अति सुन्दर लुभावने स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर फिर से वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर बापदादा के पास पहुँच जाती हूँ।*बापदादा के सामने बैठ, उनसे मीठी दृष्टि लेते हुए स्वयं को उनकी लाइट माइट से भरपूर करके, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं वतन से नीचे आकर विश्व ग्लोब के ऊपर स्थित हो जाती हूँ*। बापदादा अपनी सर्वशक्तियों की लाइट मेरे ऊपर प्रवाहित करते जा रहे है और मैं लाइट हाउस बनती जा रही हूँ। *मुझसे सर्वशक्तियों की ये लाइट निकल कर विश्व ग्लोब पर पड़ रही है और सारे विश्व की आत्माओं को परमात्म परिचय देकर उन्हें मुक्ति जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रही है*। ज्ञान की किरणों के रूप में सभी आत्माओ को परमात्म सन्देश मिल रहा है।

➳ _ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में विश्व की सर्व आत्माओं को मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखाकर अब मैं अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ। *अपने साकार तन में प्रवेश कर, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को ईश्वरीय ज्ञान देकर उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाने की ईश्वरीय सेवा में लग जाती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं लक्ष्य और मंजिल को सदा स्मृति में रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सदा होली और हैप्पी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं आत्मा गुण मूर्त हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा गुणों का दान करती हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा श्रेष्ठ सेवाधारी हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *अपने अनादि रायल्टी को याद करो, जब आप आत्मायें परमधाम में भी रहती हो तो आत्मा रूप में भी आपकी रूहानी रायल्टी विशेष है*। सर्व आत्मायें भी लाइट रूप में हैं लेकिन *आपकी चमक सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है*। याद आ रहा है परमधाम? अनादि काल से आपकी झलक फलक न्यारी है। जैसे आकाश में देखा होगा सितारे सभी चमकते हैं, सब लाइट ही हैं लेकिन सर्व सितारों में कोई विशेष सितारों की चमक न्यारी और प्यारी होती है। ऐसे ही सर्व आत्माओं के बीच आप आत्माओं की चमक रूहानी रायल्टी, प्युरिटी की चमक न्यारी है।

 

 _ ➳  याद आ रहा है ना? फिर आदिकाल में आओ, *आदिकाल को याद करो तो आदिकाल में भी देवता स्वरूप में रूहानी रायल्टी की पर्सनालिटी कितनी विशेष रही*? सारे कल्प में देवताई स्वरूप की रायल्टी और किसी की रही है? *रूहानी रायल्टी, प्युरीटी की पर्सनालिटी या है ना!* पाण्डवों को भी याद है? याद आ गया? *फिर मध्यकाल में आओ तो मध्यकाल द्वापर से लेकर आपके जो पूज्य चित्र बनाते हैं, उन चित्रों की रायल्टी और पूजा की रायल्टी द्वापर से अभी तक किसी चित्र की है? चित्र तो बहुतों के हैं लेकिन ऐसे विधिपूर्वक पूजा और किसी आत्माओं की है*? चाहे धर्म पितायें हैं, चाहे नेतायें है, चाहे अभिनेतायें हैं, चित्र तो सबके बनते लेकिन चित्रों की रायटी और पूजा की रायल्टी किसी की देखी है? डबल फारेनर्स ने अपनी पूजा देखी है? आप लोगों ने देखी है या सिर्फ सुना है? ऐसे विधिपूर्वक पूजा और चित्रों की चमक, रूहानियत और किसकी भी नहीं हुई है, न होगी। क्यों?

 

 _ ➳  *प्युरिटी की रायल्टी है। प्युरिटी की पर्सनाल्टी है*। अच्छा देख लिया अपनी पूजा? नहीं देखी हो तो देख लेना। *अभी लास्ट में संगमयुग पर आओ तो संगम पर भी सारे विश्व के अन्दर प्युरिटी की रायल्टी ब्राह्मण जीवन का आधार है। प्युरिटी नहीं तो प्रभु प्यार का अनुभव भी नहीं*। सर्व परमात्म प्राप्तियों का अनुभव नहीं। *ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी प्युरिटी है और प्युरिटी ही रूहानी रायल्टी है। तो आदि अनादि, आदि मध्य और अन्त सारे कल्प में यह रूहानी रायल्टी चलती है*।

 

✺   *ड्रिल :-  "सारे कल्प में अपनी प्यूरिटी की रायल्टी का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  अनादि स्वरूप में मैं आत्मा परमधाम में... *देख रही हूँ अपनी रूहानी राॅयल्टी को*... मैं शिव पिता की किरणों के एकदम नीचे... *प्रकाश का सतरंगी इन्द्रधनुष मुझ राॅयल आत्मा की रूहानी चमक को और भी राॅयल बना रहा है*... सप्तरंगी प्रकाश की ये किरणे फूलझडियों की तरह अन्य चमकती आत्मा मणियों को भी राॅयल्टी से भरपूर कर रही है... *मेरे अस्तित्व से निरन्तर बहता पावनता का झरना...* और उस झरने के नीचे मुझ जैसी राॅयल्टी से भरपूर होने की चाहत में मेरी ओर निहारती अन्य असंख्य झिलमिलाती आत्माए...

 

 _ ➳  *आदिकाल में मै आत्मा देव स्वरूप में*... मेरी सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था... *लाईट और माईट के ताज से सुसज्जित मैं विराजमान हूँ अपने शाही विमान पर*... घूमघूम कर देख रहा हूँ अपनी समस्त प्रजा और प्रकृति को... दोनो ही हर प्रकार से सन्तुष्ट और आनन्दित प्रतीत हो रही है... *फलों से लदे विनम्रता से झुके ये वृक्ष, मेरा अभिनन्दन करती पवन... मेरा अभिवादन करते बादल... मेरा अनुगमन करते चाँद और तारें... सब मेरी पावनता की ही विरासत है ये*...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा मध्य काल में... *ऊँचे शिखर पर विशाल भव्य मन्दिर*... भजन कीर्तन की मधुर झंकार... मन्दिर में मेरे दर्शनों के लिए लम्बी कतार... *मेरे जड चित्रों की विधि विधान से होती पूजा... भक्तों का  अपार भक्ति भाव, पूरी होती उनकी कामनाए मेरी शक्तियों में पदम गुणा बढोतरी कर रही है... ये सब मेरी पावनता का ही पसारा है... मैं देख रही हूँ मेरे जडचित्रों की प्यूरिटी की राॅयल्टी से भक्त आत्माओं की मनोकामनाए पूरी हो रही है*...

 

 _ ➳  और मेरा अन्तिम जन्म... *संगम पर मैं ब्राह्मण आत्मा मनसा वाचा और कर्मणा अपनी पावनता से संसार की सभी आत्माओं को पावनता की अंजली दे रही हूँ*... प्रकृति मेरे वायब्रैशन्स से पावन होती जा रही है... *संकल्पों की पावनता से मैने बाँध लिया है अपने स्नेह में निर्बंधन रूहानी माशूक को*... हर पल मैं उसके प्यार का और साथ का अनुभव कर रही हूँ... पावनता का सूर्य मेरे मस्तिष्क के ऊपर... और मै आत्मा भरपूर कर रही हूँ स्वयं को उस पावनता और प्रेम की शक्तियों से...

 

 _ ➳  आदि, अनादि, मध्य और सारे कल्प में स्वयं की प्यूरिटी की राॅयल्टी का बारी बारी से दर्शन करती मैं आत्मा... *इमर्ज कर  रही हूँ अपनी सम्पूर्ण पावनता के संस्कारो को... और अब बस एक ही संकल्प बार बार दृढ हो रहा है... इसी एक स्वमान में स्थित मैं आत्मा... मैं हूँ ही कल्प कल्प की प्योरिटी की राॅयल आत्मा... कल्प कल्प की महान पावन आत्मा... पावनता की गहरी अनुभूति कर उसका स्वरूप बनती मैं पावन आत्मा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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