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 07 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सुखधाम और शांतिधाम को याद किया ?*

 

➢➢ *अंतर्मुखता के अभ्यास द्वारा अलोकिक भाषा को समझा ?*

 

➢➢ *अति हल्का बनकर रहे ?*

 

➢➢ *"यह सब सेवा अर्थ है.. अमानत है... मैं ट्रस्टी हूँ" - यह अभ्यास किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अशरीरी स्थिति का अनुभव करने के लिए सूक्ष्म संकल्प रुप में भी कहाँ लगाव न हो, सम्बन्ध के रुप में, सम्पर्क के रुप में अथवा अपनी कोई विशेषता की तरफ भी लगाव न हो। *अगर अपनी कोई विशेषता में भी लगाव है तो वह भी लगाव बन्धन-युक्त कर देगा और वह लगाव अशरीरी बनने नहीं देगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं 'मधुबन तीर्थ' की स्मृति द्वारा समस्याओंको हल करने वाली आत्मा हूँ"*

 

  भाग्य विधाता की भूमि पर पहुंचना यह भी बहुत बड़ा भाग्य है। यह कोई खाली स्थान नहीं है, महान तीर्थ स्थान है। वैसे भी भक्ति मार्ग में मानते हैं कि तीर्थ स्थान पर जाने से पाप खत्म हो जाते हैं, लेकिन कब होते हैं, कैसे होते हैं, यह जानते नहीं हैं। इस समय तुम बच्चे अनुभव करते हो कि *इस महान तीर्थ स्थान पर आने से पुण्य आत्मा बन जाते हैं। यह तीर्थ स्थान की स्मृति जीवन की अनेक समस्याओंसे पार ले जायेगी। यह स्मृति भी एक तावीज का काम करेगी।*

 

✧  जब भी याद करेंगा तो यहाँ के वातावरण की शान्ति और सुख आपके जीवन में इमर्ज हो जायेगा। तो पुण्य आत्मा हो गये ना। *इस धरनी पर आना भी भाग्य की निशानी है। इसलिए बहुत-बहुत भाग्यशाली हो। अब भाग्यशाली तो बन गये लेकिन सौभाग्यशाली बनना वा पद्मापद्म भाग्यशाली बनना यह आपके हाथ में है।*

 

  बाप ने भाग्यशाली बना दिया, यही भाग्य समय प्रति समय सहयोग देता रहेगा। *कोई भी बात हो तो मधुवन में बुद्धि से पहुंच जाना। फिर सुख और शान्ति के झूले में झूलने का अनुभ करेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  कितना भी बिजी हो, लेकिन पहले से ही साधन के साथ साधना का समय एड करो। होता क्या है - सेवा तो बहुत अच्छी करते हो, समय भी लगाते हो, उसकी तो मुबारक है। लेकिन स्व-उन्नति या साधना बीच-बीच में न करने से थकावट का प्रभाव पडता है। बुद्धि भी थकती है, हाथ-पाँव भी थकता है और *बीच-बीच में अगर साधना का समय निकालो तो जो थकावट है ना, वह दूर हो जाए।*

 

✧  *खुशी होती है ना खुशी में कभी थकावट नहीं होती है।* काम में लग जाते हो, बापदादा तो कहते हैं कि काफी समय एक्शन-कान्सेस रहते हो। ऐसा होता है ना? एक्शन-कान्सेस की माक्र्स तो मिलती हैं, वेस्ट तो नहीं जाता है लेकिन सोल-कान्सेस की माक्र्स और एक्शन कान्सेस की माक्र्स में अन्तर तो होगा ना। फर्क होता है ना? तो अभी बैलेन्स रखो।

 

✧  लिंक को तोडो नहीं, जोडते रहो क्योंकि मैजारिटी डबल विदेशी काम करने में भी डबल बिजी रहते हैं। *बापदादा जानते हैं कि मेहनत बहुत करते हैं लेकिन बैलेन्स रखो।* जितना समय निकाल सको, सेकण्ड निकाली, मिनट निकालो, निकालो जरूरा हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? टीचर्स हो सकता है? और जो ऑफिस में काम करते हैं, उनका हो सकता है? हाँ तो बहुत अच्छा करते हैं। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फ़रिश्ते अर्थात् कर्मातीत अवस्था वाले।* आज के दिन सदा अपने को डबल लाइट समझ उड़ती कला का अनुभव करते रहना। कर्मयोगी का पार्ट बजाते भी कर्म और योग का बैलेन्स चेक करना कि कर्म और याद अर्थात् योग दोनों ही शक्तिशाली रहे? अगर कर्म शक्तिशाली रहा और याद कम रही तो बैलेन्स नहीं। और याद शक्तिशाली रही और कर्म शक्तिशाली नहीं तो भी बैलेन्स नहीं। तो *कर्म और याद का बैलेन्स रखते रहना।* सारा दिन इसी श्रेष्ठ स्थिति में रहने से अपनी कर्मातीत अवस्था के नज़दीक आने का अनुभव करेंगे। सारा दिन कर्मातीत स्थिति वा अव्यक्त फ़रिश्ते स्वरूप स्थिति में चलते फिरते रहना और नीचे की स्थिति में नहीं आना। आज नीचे नहीं आना, ऊपर ही रहना। अगर कोई कमज़ोरी से नीचे आ भी जाए तो एक-दो को स्मृति दिलाए समर्थ बनाए सभी ऊँची स्थिति का अनुभव करना। यह आज की पढ़ाई का होम वर्क है। होम वर्क ज़्यादा है, पढ़ाई कम है। *बाप का बनना अर्थात् डबल लाइट बनना।* क्योंकि बाप के बनते ही सब बोझ बाप को दे दिया। सदा बाप के हो ना! सब कुछ बाप को दे दिया। तन-मन-धनसम्बन्ध सब कुछ सरेन्डर कर दिया। फिर बोझ काहे का? अभी यही याद रखना - *जब सब कुछ बाप का हो गया तो सदा डबल लाइट बन गये।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- पवित्रता का बल जमा करना"*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा अमृतवेले के समय अमृत पान करने चार धामों की यात्रा पर निकल पड़ती हूँ...* मन-बुद्धि के रॉकेट में बैठ अपने घर मधुबन पहुँच जाती हूँ... बाबा का कमरा, बाबा की कुटिया और हिस्ट्री हाल की रूहानी यात्रा करते हुए मैं आत्मा शांति स्तम्भ के सामने बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए, दोनों हाथों को फैलाए मेरे प्राण प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में ले लेते हैं और शांति की ठंडी-ठंडी किरणें बरसाते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...*

❉ *पवित्रता के सागर मेरे प्यारे बाबा पवित्र किरणों को बरसाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे.... ईश्वर पिता की गोद में बैठ कमल फूल सी पवित्रता से सज जाओ... *मनसा वाचा कर्मणा पवित्र होकर सम्पूर्ण पवित्रता से विश्व मालिक बन खुशियो में झूम जाओ... पावनता से सजधज कर ईश्वर पिता के सहयोगी बन... सदा के सुखो में मुस्कराओ...”*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा लक्ष्य सोप से अपने मटमैलेपन को धोकर पवित्रता का कवच धारण करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में, रूहानी गुलाब सी खिल उठी हूँ... *आपकी यादो में पायी पावन खुशबु से... पूरे विश्व को सुवासित कर रही हूँ... पवित्रता की सुगन्ध में हर दिल को महका रही हूँ...”*

❉ *पवित्रता के सितारों से सजाकर मेरे जीवन को कंचन बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *फूल से बच्चों को दुखो के जंगल में भटकते देख... विश्व पिता को भला कैसे चैन आये... बच्चों के सुख की चाहना दिल में लिये धरा पर उतर आये... फिर से पावनता में खिलाकर अनन्त सुखो का अधिकारी सजाये...* तब कही विश्व पिता करार सा पाये... पवित्रता की चुनर ओढ़ा कर देव तुल्य बनाये...”

➳ _ ➳ *पवित्रता के मैनर्स धारण कर हीरे जैसा नया जीवन पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा देह के भान से निकल पवित्रता से सजकर पुनः देवताई सुखो की अधिकारी बन रही हूँ...* प्यारे बाबा विश्व परिवर्तन के महान कार्य में... पावनता से सहयोगी बनकर ईश्वरीय दिल जीतने वाली भाग्यवान हो गयी हूँ...”

❉ *रूहानी नजरों से निहाल कर पावन बनाते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के झूठे मटमैले आवरण से बाहर निकल... अपने दमकते स्वरूप को स्मृतियों में भर लो... *ईश्वरीय बाँहों में पावनता से भरपूर हो जाओ... विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, उज्ज्वल धवल तेजस्वी रूप में खिल कर... पावन तरंगो से विश्व धरा को तरंगित करो...”*

➳ _ ➳ *पावनता के रिमझिम से अतीन्द्रिय सुखों में झूमती हुई, बाबा को शुक्रिया करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा पावनता को पाकर कितनी अनोखी और अमूल्य हो गयी हूँ... आपने मुझे कौड़ी से हीरे सा बनाकर दिल तख्त पर सजा लिया है...* मुझे दिव्यता से भरकर देवताई सुखो से सजा दिया है... मै आत्मा आपकी रोम रोम से ऋणी हूँ...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- देवताओं जैसा मीठा बनना है*"

➳ _ ➳ आप समान अति मीठा बनाने वाले, मेरे अति मीठे शिव बाबा की मीठी याद मेरे अंदर एक ऐसी मिठास घोल देती है जिसमे विकारों की कड़वाहट घुलने लगती है। *अपने ऐसे अति मीठे बाबा की मीठी याद में बैठी मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ परमधाम से सीधे अपने ऊपर गिरती उनकी सर्वशक्तियों रूपी किरणों के मीठे झरने के नीचे स्वयं को अनुभव करती हूँ*। सातों गुणों की रंग बिरंगी किरणों का यह मधुर झरना मेरे तन - मन को शीतलता प्रदान कर रहा है। शीतलता की इसी गहन अनुभूति के बीच मैं अनुभव करती हूँ कि मुझ आत्मा को अपनी शीतल किरणों से शीतल बनाने वाले मेरे फर्स्टक्लास मीठे बाबा जैसे परमधाम से नीचे मेरे पास आ रहें हैं।

➳ _ ➳ उनकी उपस्थिति से उनकी समीपता का एहसास मुझे स्पष्ट अनुभव होने लगा है। अपने सिर के बिल्कुल ऊपर मुझे उनकी छत्रछाया की अनुभूति हो रही है। मेरे पूरे कमरे में जैसे शीतलता की मीठी लहर दौड़ रही है। पूरे घर मे मेरे मीठे शिव बाबा के शक्तिशाली वायब्रेशन फैल रहें हैं। *एक अति मीठी सुखदाई स्थिति में मैं सहज ही स्थित होती जा रही हूँ। यह स्थिति मुझे देह और देह के झूठे भान से मुक्त कर, लाइट माइट स्वरूप का अनुभव करवा रही है*। धीरे - धीरे मैं इस साकारी देह के बंधन से स्वयं को मुक्त कर अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर रही हूँ।

➳ _ ➳ मेरा यह लाइट का फ़रिशता स्वरूप मुझे धरती के आकर्षण से मुक्त कर, ऊपर की ओर ले जा रहा है। मैं स्वयं को धरती से ऊपर उड़ता हुआ अनुभव कर रहा हूँ। छत को पार करते हुए अब मैं खुले आकाश के नीचे पूरी दुनिया मे विचरण कर रहा हूँ। धीरे - धीरे अब मैं आकाश को भी पार करता हुआ लाइट की सूक्ष्म आकारी फरिश्तो की दुनिया मे प्रवेश कर रहा हूँ। इस अति सुन्दर फरिश्तो की दुनिया मे विचरण करता हुआ अब मैं स्वय को अव्यक्त ब्रह्मा बाप के सामने देख रहा हूँ। *फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम बाला करने वाले अपने प्यारे ब्रह्मा बाप के सामने बैठ मैं मन ही मन प्रतिज्ञा करता हूँ कि मुझे भी ब्रह्मा बाप समान फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बन बाप का नाम अवश्य बाला करना है*।

➳ _ ➳ इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमें भरने के लिए अब परमधाम से मेरे अति मीठे शिव बाबा फरिश्तों की इस दुनिया मे प्रवेश करते हैं और आ कर ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं। *बाप दादा अपने वरदानी हस्तों से अब मुझे विजयी भव का वरदान देते हुए, अपनी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर प्रवाहित करते हुए मुझ आत्मा में बल भर रहें हैं ताकि कदम - कदम पर फॉलो फादर कर, अपने शिव बाबा का नाम मैं बाला कर सकूँ*। बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि से मेरे पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और उसके स्थान पर फर्स्टक्लास मीठा और बहुत - बहुत रॉयल बनने के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं।

➳ _ ➳ आसुरी संस्कारों का त्याग कर इन दैवी संस्कारों को ही अब मुझे अपने जीवन में धारण करने का पुरुषार्थ करना है, इसी दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने लाइट माइट स्वरूप को अपने ब्राह्मण स्वरूप में मर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण जीवन के नियमो और मर्यादाओं पर चलते हुए अब मैं हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो कर रही हूँ। *अपने मीठे शिव बाबा की श्रीमत पर कदम - कदम चलते हुए अब मैं आसुरी अवगुणों का त्याग करती जा रही हूँ। मेरे मुख से अब किसी भी आत्मा को दुख देने वाले कड़वे बोल नही निकलते। बाप समान सबको सुख देने वाले मीठे बोल ही अपने मुख से बोलते हुए अब मैं सबके जीवन को खुशियों की मिठास से भर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं अन्तर्मुखता की अभ्यासी आत्मा हूँ।*
✺   *मैं अलौकिक भाषा को समझने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं सदा सफलता सम्पन्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा सदा हल्की बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा बाप की पलकों पर बैठ कर साथ जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा डबल लाइट हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  अब आप लोगों की सेवा हैवायब्रेशन्स द्वारा आत्माओं को समीप लाना... आपस में तो होना ही है... आपसी स्नेह औरों को वायब्रेशन द्वारा खींचेगा... अभी आप लोगों को यह साधारण सेवा करने की आवश्यकता नहीं है... *भाषण करने वाले तो बहुत हैंलेकिन आप लोग हरेक आत्मा को ऐसी भासना दो जो वह समझें कि हमको कुछ मिला...*  ब्राह्मण परिवार में भी आपके संगठन के वायब्रेशन द्वारा निर्विघ्न बनाना है... मन्सा सेवा की विधि को और तीव्र करो... वाचा वाले बहुत हैं... मन्सा द्वारा कोई न कोई शक्ति का अनुभव हो... *वह समझें कि इन आत्माओं द्वारा यह शक्ति का अनुभव हुआ... चाहे शान्ति का होचाहे खुशी का होचाहे सुख का होचाहे अपने-पन का...* तो जो भी अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को अभी यह सेवा करनी है... सभी अपने को महारथी समझते होमहारथी होअच्छा है। (जगदीश भाई ने गीत गाया) अभी औरों को भी आप द्वारा ऐसा अनुभव हो... बढ़ता जायेगा... इससे ही अभी ऐसी अनुभूति शुरू करेंगे तब साक्षात्कार शुरू हो जायेगा...

 

 _ ➳  *बापदादा ने यह भी देखा की जो नये नये बच्चे आते है, उन्हो मे कई आत्मायें ऐसी भी है जिन्हों को बापदादा के सहयोग के साथ-साथ आप ब्राह्मण आत्माओं के द्वारा हिम्मत, उमंग, उत्साह,समाधान मिलने की आवश्यकता है...* छोटे-छोटे है ना! फिर भी है छोटे लेकिन हिम्मत रख ब्राह्मण बने तो है ना! तो छोटों को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है... और पालना नहीशक्ति देने के पालना की आवश्यकता है... तो जल्दी से स्थापना की ब्राह्मण आत्मायें तैयार हो जाएं क्यों की कम से कम 9 लाख तो चाहिए ना! तो शक्तियों का सहयोग दोशक्तियों से पालना दोशक्तियाँ बढाओ... *ज्यादा डिसकस करने की शिक्षायें नही दो... शक्ति दो... उनकी कमजोरी नहीं देखो लेकिन उसमे विशेषता वा जो शक्ति की कमी हो वह भरते जाओ...* आजकल जो निमित्त है उन्हों को इस पालना के निमित्त बनने की आवश्यकता है... जिज्ञासु बढायें, सेवाकेन्द्र बढायें यह तो कामन है, लेकिन हर एक आत्मा को शक्तिशाली बाप की मदद से बनायेंअभी इसकी आवश्यकता है... सेवा तो सब कर रहे हो और करने के बिना रह भी नही सकते... लेकिन सेवा मे शक्ति स्वरूप के वायब्रेशन आत्माओं को अनुभव हो, शक्तिशाली सेवा हो... *साधारण सेवा तो आजकल की दुनिया मे बहुत करते है लेकिन आपकी विशेषता है -'शक्तिशाली सेवा'*... ब्राह्मण आत्माओं को भी शक्ति की पालना आवश्यक है... अच्छा...

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने को महारथी समझ मन्सा सेवा द्वारा शक्तियों का अनुभव कराना"*

 

 _ ➳  समय की समीपता की ओर इशारा करती बाबा की अव्यक्त वाणियों पर विचार सागर मन्थन करते हुए मैं स्वय से ही सवाल करती हूं कि समय जिस तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, क्या समय के हिसाब से मेरे पुरुषार्थ की गति भी उतनी ही तीव्र है? *समय की समीपता को देखते हुए आने वाले समय प्रमाण जो मनसा बल मेरे अंदर जमा होना चाहिए, क्या वो बल मैं जमा कर रही हूँ?* मन में उठ रहे इन सवालों जवाबों की उलझन के बीच मैं देखती हूँ अंत का वो सीन जिसमे मुझे महारथी बन लाचार, बेबस, दुखी आत्माओं को मनसा बल द्वारा शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है...

 

 _ ➳  अनेक प्रकार के सीन एक - एक करके मेरी आँखों के सामने आ रहें हैं... मैं देख रही हूँ *कहीं प्रकृति का विकराल रूप, कहीं विकारों का विकराल रूप, कहीं तमोगुणी आत्माओं का वार और कहीं भगवान को पुकारती भक्त आत्माओं की हृदय विदीर्ण पुकार... राज्य सत्ता, धर्म सत्ता, और अनेक प्रकार के बाहुबल सब हलचल की स्थिति में दिखाई दे रहें हैं...* सभी आशापूर्ण निगाहों से उन महारथी आत्माओं की इंतजार कर रहें हैं जो मसीहा बन कर उन्हें इन सभी मुसीबतों से बाहर निकाल कर, पल भर की शांति, सुख का अनुभव करवा सके...

 

 _ ➳  तभी एक और दृश्य आंखों के सामने उभर आता है... मैं देख रही हूँ *बापदादा के साथ अनेक महारथी ब्राह्मण आत्मायें मसीहा बन उन तड़पती हुई आत्माओं के पास आ रही है और अपनी शीतल दृष्टि से, अपनी शक्तिशाली मनसा शक्ति से उन्हें बल प्रदान कर रही हैं...* उन्हें शांति की अंचलि दे कर तृप्त कर रही हैं... एक तरफ हाहाकार और दूसरी तरफ जयजयकार हो रही है... इस दृश्य को देखते देखते मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूं कि समय की इन अंतिम घड़ियों के नजदीक आने से पहले मुझे अपने अंदर इतना बल जमा करना है कि महारथी बन, विश्व की सभी दुखी अशांत आत्माओ को मनसा द्वारा शक्तियों का अनुभव करवा सकूँ और भगवान की प्रत्यक्षता में सहयोगी बन सकूँ...

 

 _ ➳  इसी दृढ़ निश्चय के साथ अपने फ़रिशता स्वरूप को धारण कर मैं बापदादा के पास पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन और बाबा की सर्वशक्तियाँ स्वयं में समाहित कर, परमात्म बल से मैं भरपूर हो जाती हूँ... परमात्म शक्तियों से स्वयं को सम्पन्न कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में आकर अब मैं निरन्तर परमात्म याद में रह, अपनी मनसा वृति को शक्तिशाली बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ... *अपने अंदर मनसा बल को जमा करने के साथ - साथ मनसा शक्तियों के प्रयोग से अनेको आत्माओ को परमात्म पालना का अनुभव करवाकर उन्हें अपने ईश्वरीय परिवार के समीप ला रही हूँ...*

 

 _ ➳  महारथी बन अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली और सेवा स्थल पर आने वाली आत्माओं को मैं मनसा शक्ति द्वारा कोई ना कोई शक्ति का अनुभव करवा रही हूँ... *कोई आत्मा शांति का, कोई सुख का, कोई खुशी का और कोई अपनेपन का अनुभव करके जैसे तृप्त हो रही हैं...* इन मनसा शक्तियों के प्रयोग से सेवा स्थल का वायुमण्डल भी निर्विघ्न बन रहा है।

 

 _ ➳  सेवा स्थल का वायुमण्डल निर्विघ्न होने से ब्राह्मण संगठन भी शक्तिशाली बन रहा है जिससे सेवा स्थल पर आने वाले नए बच्चो को बापदादा के सहयोग के साथ साथ  ब्राह्मण आत्माओं के द्वारा उमंग, उत्साह, हिम्मत और समाधान मिलने से वो भी तीव्र गति से आगे बढ़ रहें हैं... *शक्तियों का सहयोग और शक्तियों की पालना मिलने से निर्बल और उत्साह हीन आत्मायें भी अपने अंदर शक्ति भरने से शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कर रही है...*

 

 _ ➳  *सेवा मे शक्ति स्वरूप के वायब्रेशन आत्माओं को अनुभव हो, शक्तिशाली सेवा हो इसी लक्ष्य को ले कर अब सभी ब्राह्मण आत्मायें अपनी मनसा शक्ति को बढ़ा कर महारथी बन मनसा द्वारा शक्तियों का अनुभव कर और करवा रही है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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