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 23 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कर्म करते याद में रहने की आदत डाली ?*

 

➢➢ *साइलेंस की शक्ति द्वारा सेकंड में मुक्ति और जीवनमुक्ति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *बाप के हर फरमान पर स्वयं को कुर्बान करने वाले सच्चे परवाने बनकर रहे ?*

 

➢➢ *हर संकल्प स्वयं व सर्व प्रति कल्याण का रहा ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बुद्धि को एकाग्र करने के लिए मनमनाभव के मंत्र को सदा स्मृति में रखो।* मनमनाभव के मंत्र की प्रैक्टिकल धारणा से पहला नम्बर आ सकते हो। मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना, *एकाग्र होना यही एकान्त है।* अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षणों के वायब्रेशन से अन्तर्मुख बनो। अब यही अभ्यास काम में आयेगा।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अल्लाह के बगीचे का रूहानी गुलाब हूँ"*

 

   सदा अपने को बापदादा के अर्थात् अल्लाह के बगीचे के फूल समझकर चलते हो? सदा अपने आप से पूछो कि मैं रूहानी गुलाब बन सदा रूहानी खुशबू फैलाता हूँ? *जैसे गुलाब की खुशबू सबको मीठी लगती है, चारों ओर फैल जाती है, तो वह है स्थूल, विनाशी चीज और आप सब अविनाशी सच्चे गुलाब हो।*

 

  तो सदा अविनाशी रूहानियत की खुशबू फैलाते रहते हो? *सदा इसी स्वमान में रहो कि हम अल्लाह के बगीचे के पुष्प बन गये - इससे बड़ा स्वमान और कोई हो नहीं सकता। 'वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य' - यही गीत गाते रहो।*

 

  भोलानाथ से सौदा कर लिया तो चतुर हो गये ना! किसको अपना बनाया है? किससे सौदा किया है? कितना बड़ा सौदा किया है? *तीनों लोक ही सौदे में ले लिए। आज की दुनिया में सबसे बड़े ते बड़ा कोई भी धनवान हो लेकिन इतना बड़ा सौदा कोई नहीं कर सकता, इतनी महान आत्मायें हो - इस महानता को स्मृति में रखकर चलते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  एक-दो कर्मेन्द्रियाँ थोडा नाज-नखडा तो नहीं दिखाती? *आपका राज्य लाँ और ऑर्डर के बजाए लव ऑर लाँ में यथार्थ रीति से चल रहा है?* क्या समझते हैं? चल रहे हैं या थोडी आनाकानी करते हैं? जब कहते ही हो मेरा हाथ, मेरे संस्कार, मेरी बुद्धि, मेरा मन, तो मेरे के ऊपर मैं का अधिकार है?

 

✧   कि कब मेरा अधिकारी बन जाता, कब मैं अधिकारी बन जाती? *समय प्रमाण हे स्वराज्य अधिकारी, अभी सदा और सहज अकाल तख्तनशीन बनो।* तब ही अन्य आत्माओं को बाप द्वारा जीवनमुक्ति और मुक्ति का अधिकार तीव्र गति से दिला सकेंगे।

 

✧   *समय की पुकार अब तीव्र गति और बेहद की है। छोटी-सी रिहर्सल देखी, सुनी।। (कच्छ का भूकंप) एक ही साथ बेहद का नक्शा देखा ना!* चिल्लाना भी बेहद, मरना भी बेहद, मरने वालों के साथसाथ जीने वाले भी अपने जीवन में परेशानी से मर रहे हैं। ऐसे समय पर आप स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का क्या कार्य है?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *याद की यात्रा तो एक साधन है। लेकिन वह भी किसलिए कराते हैं? पहले अपने को क्या फ़ालो करना पड़ेगा?* याद की यात्रा भी किसलिए सिखाई जाती है? *गुरु रूप से मुख्य फ़ालो यही करना है - अशरीरी, निराकारी, न्यारा बनना।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- निराकार बाप की मत से आस्तिक बनकर वर्सा लेना"*

➳ _ ➳ *मैं ब्राह्मण आत्मा सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठ बाबा की यादों में खोई हुई हूँ... प्यारे बाबा इतने दूर से आकर मुझे रोज पढ़ाते हैं... ज्ञान-योग से श्रृंगार करते हैं... हाथ पकडकर मुझे सबकुछ सिखाते हैं... रोज मीठी-मीठी समझानी देकर आगे बढ़ा रहे हैं...* वरदानों, खजानों से मालामाल कर रहे हैं... निराकारी बाबा मुझे पढ़ाकर आप समान निर्विकारी बना रहे हैं... मनुष्य से देवता बना रहे हैं... मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य का चिन्तन करती हुई पहुँच जाती हूँ मीठे बाबा के पास...

❉ *विजय माला में आने के लिए निश्चयबुद्धि बनने की शिक्षा देते हुए निराकार बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता इस धरा पर उतरकर, हथेली पर खजाने लिए बच्चों पर लुटाने आये है... टीचर रूप में अमूल्य ज्ञान की धारा लिये, बच्चों को काँटों से फूल सा पुनः खिलाने आये है...* सदा इस निश्चय से भरकर यादो में खोये रहो... और विजयमाला मे पिरोकर विश्व के मालिक सा सज जाओ..."

➳ _ ➳ *मैं आत्मा गॉडली स्टूडेंट बन निराकार रूहानी बाबा से पढकर ज्ञान रत्नों को धारण करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा ईश्वर पिता से पढ़ने वाली खुबसूरत भाग्य की धनी हूँ... मेरी तकदीर जगाने विश्व पिता धरा पर उतर आया है... *मै आत्मा निराकार पिता से मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा पाने वाली महान तकदीर पा रही हूँ..."*

❉ *सत्य ज्ञान देकर अपने सारे खजाने मेरे नाम विल करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा निश्चयबुद्धि बनकर, ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर, देवताई सुखो से भर जाओ... *निराकार बाबा ज्ञान रत्नों से सजाकर दिव्यता और शक्तियो का पुंज बना रहा है...* सदा इस खुमारी में डूबे रहो... और साथी बनकर घर चलने की तैयारी में जुट जाओ..."

➳ _ ➳ *मैं आत्मा रूहानियत की झलक से भरपूर होकर खुशियों के आसमान में उडती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आपका मेरे जीवन में आना... और जीवन सुखो की जन्नत बन जाना,न जाने कौनसे पुण्य ने यह खुबसूरत दिन मन की आँखों को दिखलाया है... *आपने मुझ पत्थरबुद्धि आत्मा को ज्ञान परी सा सजा दिया है... प्यारे बाबा मै आत्मा रोम रोम से आपकी शुक्रगुजार हूँ..."*

❉ *अपने यादों के साये के तले मेरे दामन में खुशियों के फूल बरसाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बनकर विजयमाला में आने का पुरुषार्थ करो... *देह की दुनिया से परे अपने अविनाशी स्वरूप में खोकर ज्ञान रत्नों से मन बुद्धि को सजाओ... और देवताई सौंदर्य से सज धज कर... सुनहरे सुखो में जीवन मुक्त अवस्था को पाओ...* ऐसे ईश्वरीय दीवाने बन मुस्कराओ..."

➳ _ ➳ *मैं आत्मा सत्य ज्ञान की किरणों में मुस्कुराते हुए बाबा के प्रेम सागर में डूबकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में असीम खुशियो में नाच रही हूँ... *जीवन कितना खुबसूरत प्यारा और ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न हो गया है... मै आत्मा निराकार पिता को पाकर, झूठ के दायरे से निकल सत्य की रौशनी से चमक उठी हूँ..."*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्म करते याद में रहने की आदत डालनी है*"

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अपने रूहानी पिता द्वारा सिखाई रूहानी यात्रा पर चलने के लिए मैं स्वयं को आत्मिक स्मृति में स्थित करती हूँ और रूह बन चल पड़ती हूँ अपने रूहानी बाप के पास उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिये। *अपने रूहानी शिव पिता के अनन्त प्रकाशमय स्वरूप को अपने सामने लाकर, मन बुद्धि रूपी नेत्रों से उनके अनुपम स्वरूप को निहारती, उनके प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा जल्दी से जल्दी उनके पास पहुँच जाना चाहती हूँ* और जाकर उनके प्रेम की गहराई में डूब जाना चाहती हूँ। मेरे रूहानी पिता का प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और मैं अति तीव्र गति से ऊपर की ओर उड़ती जा रही हूँ।

➳ _ ➳ 
सांसारिक दुनिया की हर वस्तु के आकर्षण से मुक्त, एक की लगन में मग्न, एक असीम आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं आत्मा *अब ऊपर की और उड़ते हुए आकाश को पार करती हूँ और उससे भी ऊपर अंतरिक्ष से परें सूक्ष्म लोक को भी पार कर उससे और ऊपर, अपनी मंजिल अर्थात अपने रूहानी शिव पिता की निराकारी दुनिया मे प्रवेश कर अपनी रूहानी यात्रा को समाप्त करती हूँ*। लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों की जगमग से सजी, रूहों की इस निराकारी दुनिया स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ।

➳ _ ➳ 
अपने रूहानी बाप से रूहानी मिलन मनाकर मैं आत्मा असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ। *स्वयं को मैं अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों के आगोश में समाया हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। यह समीपता मेरे अंदर मेरे रूहानी पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है। *स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ*।
 
➳ _ ➳ 
अपनी रूहानी यात्रा का प्रतिफल अथाह शक्ति और असीम आनन्द के रूप में प्राप्त कर अब *मैं इस रूहानी यात्रा का मुख वापिस साकारी दुनिया की और मोड़ती हूँ और शक्तिशाली रूह बन, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए वापिस अपने साकार शरीर मे लौट आती हूँ*। किन्तु अपने रूहानी पिता के साथ मनाये रूहानी मिलन का सुखद अहसास अब भी मुझे उसी सुखमय स्थिति की अनुभूति करवा रहा है। *बाबा के निस्वार्थ प्रेम और स्नेह का माधुर्य मुझे बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने की शक्ति दे रहा है*।

➳ _ ➳ 
अपने ब्राह्मण जीवन में हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए, बुद्धि से सम्पूर्ण समर्पण भाव को धारण कर, कर्मेन्द्रियों से हर कर्म करते बुद्धि को अब मैं केवल अपने शिव पिता पर ही एकाग्र रखती हूँ। *साकार सृष्टि पर, ड्रामा अनुसार अपना पार्ट बजाते, शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म करते, साकारी सो आकारी सो निराकारी इन तीन स्वरूपो की ड्रिल हर समय करते हुए, अब मैं मन को अथाह सुख और शांति का अनुभव करवाने वाली मन बुद्धि की इसी रूहानी यात्रा पर ही सदैव रहती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं साइलेन्स की शक्ति द्वारा सेकण्ड में मुक्ति और जीवनमुक्ति अनुभव कराने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं विशेष आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं बाप के हर फरमान पर स्वयं को कुर्बान करने वाली आत्मा हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा सच्चा परवाना हूँ ।*
✺  *मैं फरमान बरदार आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सदा ही एक-दो को *शुभ भावना की मुबारक दो। यही सच्ची मुबारक है। मुबारक जब देते हो तो स्वयं भी खुश होते हो और दूसरे भी खुश होते हैं।* तो सच्चे दिल की मुबारक है - *एक-दो के प्रति दिल से शुभ भावना, शुभ कामना की मुबारक।* शुभ भावना ऐसी श्रेष्ठ मुबारक है जो कोई भी आत्मा की कैसी भी भावना हो, अच्छी भावना वा अच्छा भाव न भी हो, *लेकिन आपकी शुभ भावना उनका भाव भी बदल सकती है,* स्वभाव भी बदल सकती है। वैसे स्वभाव का अर्थ ही है - स्व (सु) अर्थात् शुभ भाव। *हर समय हर आत्मा को यही अविनाशी मुबारक देते चलो। कोई आपको कुछ भी दे लेकिन आप सबको शुभ भावना दो।* अविनाशी आत्मा के अविनाशी *आत्मिक स्थिति में स्थित होने से आत्मा परिवर्तन हो ही जायेगी।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सच्ची मुबारक देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  आज जब मै आत्मा बाबा को याद करने बैठीं तो बाबा मुझें दिल से मुबारक दे रहे थे कि वाह बच्ची वाह, *बाबा की शुभ भावना हमेशा मुझ आत्मा के साथ हैं...* मै आत्मा भी दिल से सभी आत्माओं को दिल से शुभ कामना दे रही हूँ... *कोई भी आत्मा चाहे वो किसी भी संस्कार के वशीभूत हो या कितना भी* *मुझ आत्मा का अपमान करे  पर मुझ आत्मा को उसके लिए सदैव शुभ भावना ही हैं...* मुझ आत्मा का स्व प्रति भी शुभ भावना हैं... कि *मै आत्मा भी निर्विघन बाबा की सेवा और ज्ञान में सफ़लता मूर्त बन चुकीं हूँ...* मैं आत्मा ख़ुशी के ख़जाने से भरपूर हो करके *सर्व आत्माओं को ख़ुशी का ख़जाना बाँट रही हूँ...*

 

 _ ➳  *शुभ भावना से सर्व आत्माओं का व्यवहार मेरे लिए बहुत ही अच्छा हो चुका हैं...* सभी मुझ आत्मा को बहुत सहयोग दे रहे हैं... *मैं आत्मा सच्चे दिल से सभी आत्माओं को अविनाशी बाप, अविनाशी ज्ञान, अविनाशी खजानों, और स्वर्ग की बादशाही की मुबारक देने में इतनी खुश* हूँ कि और भी आत्माये मुझे भी मुबारक दे रही हैं... *बाबा ने जो नया जन्म दिया उसकी मुबारक, सर्व आत्माओं और ख़ुद के लिए शुभ भावना और शुभ कामना की मुबारक...* यही मुबारक सबको दे रही हूँ... मै आत्मा देख रही हूँ कि कोई भी आत्मा मेरे सामने आ रही हैं... *उसका स्वभाव कैसा भी हो, चाहे वो मेरा विरोध क्यों ना करे... उस आत्मा के लिए मेरे मन से सिर्फ और सिर्फ शुभ भावना ही निकल रही हैं...* शुभ भावना से वह आत्मा बिलकुल बदल चुकी हैं... *वो आत्मा मेरी सहयोगी बन चुकी है...*   

 

 _ ➳  शुभ भावना से मेरे चारों ओर एक *सकारात्मक आभामंडल बन चुका हैं...* जिससे *कोई भी आत्मा मेरे पास आते ही सुख की अनुभति कर रही हैं...* शुभ भावना के कारण सबका स्नेह और सहयोग मुझे मिल रहा हैं... *स्व प्रति भी शुभ भावना और शुभ कामना से मुझ आत्मा के भी पुराने संस्कार, स्वभाव भी परिवर्तित हो चुका हैं...* मै आत्मा जो पुराने स्वभाव के कारण इतना भारी महसूस कर रही थी... *शुभ भावना से सु भाव होकर एकदम हल्की हो चुकी हूँ...* मै आत्मा ख़ुशी के ख़जाने से भरपूर हो चुकी हूँ...

 

 _ ➳  बाबा ने मुझ आत्मा के सारे बोझ और चिंताए ले करके *मुझ आत्मा को शुभ भावना और शुभ कामना से भरपूर कर दिया हैं...* मेरे दिल में बस यही शुभ कामना हैं कि सभी ख़ुश रहें... और *मेरे दिल से सभी आत्माओं के लिए सच्चे दिल से शुभ भावना निकल रही हैं...* कोई भी आत्मा मेरे पास आ रही है, चाहे उसके कैसे भी संकल्प हो... *वो मुझ आत्मा से शुभ भावना ही लेकर जा रही है... मैं अविनाशी आत्मा अपने अविनाशी आत्मिक स्थिति में स्थित होकर अपने आदि, अनादी संस्कार इमर्ज कर चुकी हूँ...* जिससे मुझ आत्मा के कलियुगी संस्कार समाप्त हो चुके हैं...

 

 _ ➳  *बाबा ने शुभ भावना और शुभ कामना का ऐसा मंत्र दिया हैं... जिससे कोई भी आत्मा मेरे संपर्क में आते ही परिवर्तित हो जाती हैं...* यही सच्ची सच्ची मुबारक बाबा मुझे दे रहे कि बच्चे सदैव आगे बढ़ते जाओ... *कैसे भी संस्कारों वाली आत्मा हो उसके लिए यही शुभ भावना रखों कि ये भी तो भगवान का बच्चा हैं...* बस पुराने संस्कारों के वशीभूत हैं... *शुभ भावना रख वो आत्माए भी बदल चुकी है... यही दिल कि सच्ची मुबारक मै आत्मा सबको दे रही हूँ... जो बाबा ने मुझ आत्मा को दिया... वाह बाबा वाह... आपका बहुत बहुत शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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