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❍ 22 / 03 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *देह के मालिकपन का अभ्यास किया ?*
➢➢ *संतुष्ट रहे और संतुष्ट किया ?*
➢➢ *संबंधो में न्यारे और प्यारे बनकर रहे ?*
➢➢ *संस्कारों में निर्मान और निर्माण रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ आप गोप-गोपियों के चरित्र गाये हुए हैं - बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख लेना और मग्न रहना अथवा सर्व-सम्बन्धों के लव में लवलीन रहना । *जब कोई अति स्नेह से मिलते हैं तो उस समय स्नेह के मिलन के यही शब्द होते कि एक दूसरे में समा गये या दोनों मिलकर एक हो गये । तो बाप के स्नेह में समा गये अर्थात् बाप का स्वरूप हो गये ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विशेष पार्टधारी हूँ"*
〰✧ सदा अपने विशेष पार्ट को देख हर्षित रहते हो? *ऊंचे ते ऊंचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी हो। विशेष पार्टधारी का हर कर्म स्व्त: ही विशेष होगा क्योंकि स्मृति में है कि-मैं विशेष पार्टधारी हूँ। जैसे स्मृति वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है। हर कर्म, हर बोल विशेष। साधारणता समाप्त हुई।*
〰✧ *विशेष पार्टधारी सभी को स्वत: आकर्षित करते हैं। सदा इस स्मृति में रहो कि हमारे इस विशेष पार्ट द्वारा अनेक आत्मायें अपनी विशेषता को जानेंगी। किसी भी विशेष आत्मा को देख स्वयं भी विशेष बनने का उमंग आता है।*
〰✧ कहाँ भी रहो, कितने भी मायावी वायुमण्डल में रहो लेकिन विशेष आत्मा हर स्थान पर विशेष दिखाई दे। जैसे हीरा मिट्टी के अन्दर भी चमकता दिखाई देता। हीरा- हीरा ही रहता है। *ऐसे कैसा भी वातावरण हो लेकिन विशेष आत्मा सदा ही अपनी विशेषता से आकर्षित करेगी। सदा याद रखना कि - हम विशेष युग की विशेष आत्मायें हैं।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बहुत समय से न्यारा - पन नहीं होगा तो यही शरीर का प्यार पश्चाताप में लायेगा*। इसलिए इससे भी प्यारा नहीं बनना है। इससे जितना न्यारा होंगे उतना ही विश्व का प्यारा बनेंगे। इसलिए अब यही पुरुषार्थ करना है।
〰✧ *ऐसे नहीं समझना है कि कोई व्याधि आदि का रूप देखने में आयेगा तब जायेंगे, उस समय अपने को ठीक कर देंगे*। ऐसी कोई बात नहीं है। पीछे ऐसे - ऐसे अनोखे मृत्यु बच्चों के होने है जो ' सन शोज फादर ' करेगा। सभी का एक जैसा नहीं होगा।
〰✧ कई ऐसे बच्चे भी है जिन्हों का ड्रामा के अन्दर इस मृत्यु के अनोखे पार्ट का गायन ' सन शोज फादर ' करेगा। यह भी वही कर सकेंगे जिनमें एक विशेष गुण होगा। यह पार्ट भी बहुत थोंडों का है। अन्त घडी भी बाप का शो होता रहेगा। *ऐसी आत्मायें जरूर कोई पावरफुल होंगी जिनका बहुत समय से अशरीरी रहने का अभ्यास होगा वह एक सेकण्ड में अशरीरी हो जायेगा*।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *मनन में रहने से, अन्तर्मुखी रहने से बाहरमुखता की बातें डिस्टर्ब नहीं करेगी। देह-अभिमान से गैर हाज़िर रहेंगे।* जैसे कोई अपनी सीट से गैर हाज़िर होगा तो लोग लौट जायेंगे ना। आप भी मनन में अथवा अन्तर्मुखी रहने से देह-अभिमान की सीट को छोड़ देते हो, *फिर माया लौट जायेगी, क्योंकि आप अन्तर्मुखी अर्थात् अन्डरग्राउण्ड हो।* आजकल अण्डरग्राउण्ड बहुत बनाते जाते हैं सेफ्टी के लिए। *तो आपके लिए भी सेफ्टी का साधन यही अन्तर्मुखता है अर्थात् देह-अभिमान से अण्डरग्राउण्ड।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- वर्तमान का यह जीवन ही भविष्य का दर्पण है"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपना ऊँचा भाग्य बनाने, सतयुग में देवी-देवता पद प्राप्त करने के लिए पहुँच जाती हूँ मधुबन गॉडली यूनिवर्सिटी... जहाँ परमप्रिय परमपिता परमात्मा परमधाम से आकर सुप्रीम शिक्षक बन पढ़ाते हैं... राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाते हैं...* कोटों में से चुनकर स्वयं भगवान ने मुझे इस यूनिवर्सिटी में एडमिशन दिया... मैं आत्मा हिस्ट्री हाल में गॉडली स्टूडेंट बन बैठ जाती हूँ... सुप्रीम शिक्षक स्वयं बैठकर मुझे नई दुनिया के लिए नया ज्ञान दे रहे हैं...
❉ *बेहद के प्यारे बाबा बेहद का ज्ञान देकर मेरी तकदीर बनाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *इस पुरानी दुनिया में अपनी बिगड़ी सी तकदीर को जीने के गहरे अनुभवी हो... अब अपनी तकदीर नई सुंदर सुखो से भरी दुनिया के लिए बना रहे हो... यह राजयोग है ही सुन्दरतम दुनिया के लिए...* राजयोग की परिणीति ही अथाह सुख और आनन्द है...”
➳ _ ➳ *स्वयं भगवान् को मेरा भाग्य खुशियों से महकाते हुए देख मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ कि स्वयं भगवान मुझे राजयोग सिखा कर निखार रहा है... मेरा जीवन उज्ज्वल बना फूलो सा महका रहा है... *राजयोग सिखाकर अपनी मखमली गोद में बिठा रहा है... कैसे शुक्रिया करूँ प्यारे बाबा का...”*
❉ *संगमयुग में राजयोग के ज्ञान रत्नों से नई दुनिया में सोने-हीरों के महलों का मालिक बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस धरा पर जब फूल बन खिले थे तो सुगन्ध से परिपूर्ण थे... पर देह के भान ने उस खुशबु को रहने न दिया... अब विश्व पिता फिर से वही भाग्य जगाने आया है...* बच्चों की तकदीर बदलने राजयोग सिखाने आया है... सुखो की दुनिया में महकते फूल खिलाने आया है...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा असत्य अज्ञानता से निकल अपने सत्य स्वरुप में चमकते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा से मिलकर अपनी खोयी हुई वही चमक... वही सुनहरी रंगत... वही सतयुगी अदा को पा रही हूँ...* सुनहरा भाग्य बाबा से पा रही हूँ... और नई दुनिया को अपने नाम लिखवा रही हूँ...”
❉ *मेरे बाबा अपने जादुई कलम से मेरे भाग्य की लकीर को रंगीन बनाते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *इस देह की दुनिया में देह समझकर जीने लगे और खिलते हुए भाग्य को कुम्हला से बैठे...मिटटी के नातो में ऐसे खोये की भाग्य को दुखो की लकीर बना बैठे... अब प्यारा बाबा फिर से उन्ही सुखो में बसाने आया है...* राजयोग सिखाकर सोया सा भाग्य फिर जगाने आया है...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा राजयोग के सभी राजों को जान विश्व की राजाई अपने नाम लिखवाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी यादो में अपनी तकदीर को फूल सा खिला रही हूँ... नई दुनिया में अथाह सुखो से भरा जीवन अपने नाम लिखवा रही हूँ...* फिर से महासौभाग्यशाली बन रही हूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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*"ड्रिल :- देह के मालिकपन का अभ्यास करना*"
➳ _ ➳ स्वयं ऑल माइटी अथॉरिटी भगवान जिनके दर्शन मात्र के लिये लोग तरस
रहें हैं उनके दिल रूपी तख्त पर विराजमान होने का सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य प्राप्त
करने वाली मैं दुनिया की सबसे खुशनसीब आत्मा हूँ यह विचार मन मे आते ही मेरी
खुशनसीबी का खूबसूरत एहसास मुझे असीम खुशी से भरपूर कर देता है। *खुशी के पंख
लगाए मैं आत्मा पंछी इस देह रूपी पिंजड़े के हर बन्धन को तोड़ अपने दिलाराम बाबा
से अपने दिल का हाल बयां करने चल पड़ती हूँ*। अपने शिव पिया से मिलने की लगन में
मग्न मैं आत्मा सजनी झूमती, गाती आकाश में विचरण करती, आकाश से भी ऊपर उड़ती जा
रही हूँ।
➳ _ ➳ चांद सितारों से पार, फरिश्तो की आकारी दुनिया मे मैं पहुंच जाती
हूं। मेरे सामने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर में ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि
में मेरे दिलाराम शिव बाबा चमक रहे हैं। अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर
*जैसे ही मैं बाबा के पास पहुंचती हूँ एक बहुत ही विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता
है। मैं देख रही हूं बाबा का स्वरूप जैसे बहुत विशाल हो गया है*। हजारों की
संख्या में ब्राह्मण बच्चे अपने फ़रिशता स्वरूप में वहां आ रहें हैं और एक साथ
बाबा की बाहों में समाते जा रहें हैं। *बाबा हर बच्चे को आओ मेरे दिलतख्तनशीन
बच्चे कह कर अपने दिल रूपी तख्त पर बिठा रहे हैं*। बाबा के दिलतख्तनशीन बन सभी
खुशी में झूम रहें हैं। सभी को परमात्म शक्तियों से बाबा भरपूर कर रहें हैं।
➳ _ ➳ अब बाबा अपने सभी फ़रिशता बच्चों को सम्बोधित करते हुए कह रहें हैं,
हे मेरे मीठे सिकीलधे बच्चों:- "बाबा चाहते हैं कि मेरे सभी बच्चे बाप समान बन
बाप के दिलतख्तनशीन बनें"। सभी बच्चे अधिकारी बन भी सकते हैं। क्योकि सभी को एक
ही जैसा गोल्डन चांस है। चाहे आदि में आने वाले हैं, चाहे मध्य में वा अभी आने
वाले हैं। *बाप के दिलतख्तनशीन बनने का अधिकार सभी को है। किन्तु अधिकार लेने
के लिये अधीनता के संस्कार को छोड़ना पड़ता है*। इसलिए पुराने आसुरी संस्कारों की
अधीनता को छोड़ अधिकारी आत्मा बनो तो सहज ही बाबा के दिलतख्तनशीन बन जायेंगे।
➳ _ ➳ बाबा का दिलतख्तनशीन बनने के लिए पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारो को
छोड़ने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अब मैं अपने फ़रिशता स्वरूप को छोड़ निराकारी
आत्मा बन योग अग्नि में पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को भस्म करने के लिए चल
पड़ती हूँ परमधाम। *आत्माओं की निराकारी दुनिया मे अब मैं आत्मा स्वयं को देख रही
हूँ। मेरे सामने मेरे दिलाराम शिव बाबा विराजमान हैं*। उनसे आ रही पवित्रता की
शक्तिशाली किरणों की योग अग्नि में मेरे *पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार जल कर
भस्म हो रहें हैं और मैं उनके समान बनती जा रही हूं*।
➳ _ ➳ उनके साथ का यह मंगल मिलन मन को असीम सुख का अनुभव करवा रहा है।
उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में मैं आत्मा सिमटती जा रही हूं। कभी
मैं स्वयं को देखती हूं और कभी सर्व शक्तियों के सागर अपने शिव पिया को। कितना
प्यारा और अलौकिक मिलन है यह। *अपने शिव पिया के सानिध्य में मैं स्वयं को धन्य
धन्य अनुभव कर रही हूं। वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों
से भरपूर कर रहे हैं और प्युरीफाई कर आप समान बना रहे हैं*। इस दिव्य अलौकिक
मिलन का सुंदर सुखमय अनुभव करने के बाद मैं निराकारी दुनिया से वापिस साकारी
दुनिया में लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ साकारी दुनिया मे अब मैं अपने साकारी ब्राह्मण तन में विराजमान हो
कर बाबा के दिलतख्तनशीन बनने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूं। *"बाबा का
दिलतख्तनशीन बनना" अब मेरा केवल यही लक्ष्य है और इस लक्ष्य को पाने के लिए
निरन्तर मालिकपन की स्मृति में रह अब मैं अधीनता के सब संस्कारों को छोड़ती जा
रही हूं*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दृढ़ता द्वारा कलराठी जमीन में भी फल पैदा करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सफलता स्वरूप आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा अपने को प्रभु की अमानत समझकर चलती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा कर्म में रूहानियत लाती हूँ ।*
✺ *मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. वर्तमान समय मन की एकाग्रता, एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी। अभी रिजल्ट में देखा कि मन को एकाग्र करने चाहते हो लेकिन बीच-बीच में भटक जाता है। एकाग्रता की शक्ति अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव करायेगी। मन भटकता है, चाहे व्यर्थ बातों में, चाहे व्यर्थ संकल्पों में, चाहे व्यर्थ व्यवहार में। जैसे कोई-कोई को शरीर से भी एकाग्र होकर बैठने की आदत नहीं होती है, कोई को होती है। तो *मन जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना और ऐसा एकाग्र होना इसको कहा जाता है मन वश में। एकाग्रता की शक्ति, मालिकपन की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देती है। युद्ध नहीं करनी पड़ती है। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है। स्वतः होगी, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती है।* ब्रह्मा बाप से प्यार है ना - तो ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। एकाग्रता की शक्ति से स्वतः ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति रहती है क्योंकि एकाग्रता अर्थात् स्वमपन की स्थिति। फरिश्ता स्थिति स्वमान है।
➳ _ ➳ 2. मन के एकाग्रता की शक्ति सहज फरिश्ता बना देगी।
➳ _ ➳ 3. *एकाग्रता की शक्ति को बढ़ओ। मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहो। जब सेट होते हैं तो अपसेट नहीं होते, सेट नहीं हैं तो अपसेट होते हैं। तो भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ स्थितियों की सीट पर सेट रहो, इसको कहते हैं एकाग्रता की शक्ति।*
✺ *ड्रिल :- "एकाग्रता की शक्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान चमकता हुआ सितारा हूँ... मैं मन-बृद्धि द्वारा एक नदी में पहुँचती हूँ... वहाँ मैं आत्मा रूपी नाविक एक नाव को चला रही हूँ... वह कमजोर होने के कारण काफी धीमी गति से चल रही हैं...* पानी की लहरे बहुत तेज़ हैं... धीरे-धीरे कलियुग रूपी रात्रि हो रही हैं... अचानक से आँधी तूफान आने शुरू हो रहे हैं... मेरी मन रूपी नाव स्थिर नहीं हो पा रही हैं...
➳ _ ➳ नदी की लहरें बहुत तेज़ हो चुकी हैं... अगर यह नाव डूब गई तो मैं भी डूब जाऊँगी... मैं चीख-चीखकर अपनी जान बचाने के लिये पुकार रही हूँ परन्तु दूर-दूर तक कोई नहीं हैं... *अचानक से एक बड़ी-सी नाव मेरे सामने से गुज़रती हैं... उस नाव को एक राजा चला रहे हैं... परन्तु उनकी नाव पर तूफान का कोई असर नहीं पड़ रहा हैं...*
➳ _ ➳ उन्होंने अपना हाथ मदद के लिए आगे बढ़ाया... मैंने इशारे से साफ इंकार कर दिया... उन्होंने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया... *मैंने मुड़कर देखा कि मेरी मन रूपी नाव उन्होंने अपनी नाव से बांध रखी हैं... मुझे यकीन हो गया कि यह कोई आम राजा नहीं हैं... उन्होंने बिना कुछ कहे अपना परिचय इशारों में दे दिया हैं... यह तो जरूर परमात्मा हैं... अब मुझे पाँच हज़ार साल पहले की स्मृतियाँ याद आ रही हैं...*
➳ _ ➳ *उनकी भृकुटी से तेज़ लाल रोशनी मुझ पर पड़ रही हैं... वह शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, शक्ति, आनंद और ज्ञान की किरणें मुझ पर न्यौछावर कर रहे हैं... मैं आठो शक्तियों को अपने अंदर महसूस कर रही हूँ...* चारों ओर प्रकाश होता जा रहा हैं... अब मेरी मन रूपी नाव स्थिर रहती हैं... अब मन व्यर्थ बातों में, व्यर्थ संकल्पों में, व्यर्थ व्यवहार में भटकता नहीं हैं... स्थिर रहता हैं...
➳ _ ➳ *मुझे अब मालिकपन का अहसास हो रहा हैं... विकारों से युद्ध नहीं करनी पड़ती हैं... एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति होती है... अब मेहनत नहीं करनी पड़ती... स्वतः ही सर्व प्रति स्नेह, कल्याण, सम्मान की वृत्ति होती हैं...* मैं मालिकपन के स्टेज की सीट पर सेट रहती हूँ... रोज़ाना भिन्न-भिन्न स्वमान को धारण करती हूँ... मुझे एकरस फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति हो रही हैं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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