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❍ 16 / 03 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरन कर सदा हर्षित रहे ?*
➢➢ *बाप को समाचार दे राय ली ?*
➢➢ *मुरलीधर की मुरली से प्रीत रख सदा शक्तिशाली आत्मा बनकर रहे ?*
➢➢ *हर परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर रियल गोल्ड बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *किसी भी बात के विस्तार में न जाकर, विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो, बिन्दी बन जाओ, बिन्दी लगा दो, बिन्दी में समा जाओ तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी और समय बच जायेगा, मेहनत से छूट जायेंगे ।* बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे । कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो ।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? स्वराज्य का अधिकार मिल गया? ऐसी अधिकारी आत्मायें शक्तिशाली होंगी ना! राज्य को- 'सत्ता' कहा जाता है। सत्ता अर्थात शक्ति। आजकल की गवर्मेन्ट को भी कहते हैं - राज्य सत्ता वाली पार्टी है। तो राज्य की सत्ता अर्थात् शक्ति है। तो स्वराज्य कितनी बड़ी शक्ति है? ऐसी शक्ति प्राप्त हुई है? सभी कमेन्द्रियाँ आपकी शक्ति प्रमाण कार्य कर रही हैं? राजा सदा अपनी राज्य सभा को, राज्य दरबार को बुलाकर पूछते हैं कि - कैसे राज्य चल रहा है? *तो आप स्वराज्य अधिकारी राजाओंकी कारोबार ठीक चल रही है? या कहाँ नीचे-ऊपर होता है? कभी कोई राज्य कारोबारी धोखा तो नहीं देते हैं! कभी आंख धोखा दे, कभी कान धोखा दें, कभी हाथ, कभी पांव धोखा दें! ऐसे धोखा तो नहीं खाते हों!*
〰✧ *अगर राज्य सत्ता ठीक है तो हर संकल्प, हर सेकण्ड में पदमों की कमाई है। अगर राज्य सत्ता ठीक नहीं है तो हर सेकण्ड में पदमों की गँवाई होती है। प्राप्ति भी एक की पदमगुणा है तो और फिर अगर गँवाते हैं तो एक का पदमगुणा गँवाते हो। जितना मिलता है - उतना जाता भी है। हिसाब है। तो सारे दिन की राज्य कारोबार को देखो।* आंख रुपी मंत्री ने ठीक काम किया? कान रुपी मंत्री ने ठीक काम किया? सबकी डिपार्टमेन्ट ठीक रही या नहीं? यह चेक करते हो या थक कर सो जाते हो? वैसे कर्म करने से पहले ही चेक कर फिर कर्म करना है। पहले सोचना फिर करना। पहले करना पीछे सोचना, यह नहीं। टोटल रिजल्ट निकालना अलग बात है लेकिन ज्ञानी आत्मा पहले सोचेगी फिर करेगी। तो सोच-समझ कर हर कर्म करते हो? पहले सोचने वाले हो या पीछे सोचने वाले हो? अगर ज्ञानी पीछे सोचे उसको ज्ञानी नहीं कहेंगे। इसलिए सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं और इसी स्वराज्य के अधिकार से विश्व के राज्य अधिकारी बनना ही है। बनेंगे या नहीं - यह क्वेश्चन नहीं।
〰✧ स्वराज्य है तो विश्व राज्य है ही। तो स्वराज्य में गड़बड़ तो नहीं है ना? द्वापर से तो गड़बड़ शालाओंमें चक्र लगाते रहे। अब गड़बड़ शाला से निकल आये, अभी फिर कभी भी किसी भी प्रकार की गड़बड़ शाला में पांव नहीं रखना। *यह ऐसी गड़बड़ शाला है एक बार पांव रखा तो भूल भुलैया का खेल है! फिर निकलना मुश्किल हो जाता। इसलिए सदा एक रास्ता। एक में गड़बड़ नहीं होती। एक रास्ते पर चलने वाले सदा खुश-सदा सन्तुष्ट।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ कैसे भी परिस्थिति हो। क्योंकि फाइनल अनेक प्रकार के भयानक और न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करने वाली परिस्थितियों के बीच होंगे। उनकी भेंट में जो आजकल कि परिस्थितियां हैँ वह कुछ नहीं है। *जो अन्तिम परिस्थितियाँ आने वाली है, उन परिस्थितियों के बीच पेपर होना है*। इसकी तैयारी पहले से करनी है। इसलिए जब अपने को देखो कि बहुत बिजी हूँ, बुद्धि बहुत स्थूल कार्य में बिजी है, चारों ओर सरकमस्टान्सेज अपने तरफ खैंचने वाले है, तो ऐसे समय पर यह अभ्यास करो। तब मालूम पडेगा कहाँ तक हम ड्रिल कर सकते है।
〰✧ *इसी ड्रिल में रहेंगे तो सफलता को पायेंगे*। एक - एक सबजेक्ट की नम्बर होती हैँ। मुख्य तो यही है। इसमें अगर अच्छे है तो नम्बर आगे ले सकते है। अगर इस सब्जेक्ट में नम्बर कम है तो फाइनल नम्बर आगे नहीं आ सकते।
〰✧ इसलिए सुनाया था ना कि ' ज्ञानी तू आत्मा' के साथ स्नेही भी बनना है। जो स्नेही होता है वह स्नेह पाता है। जिससे ज्यादा स्नेह होता है, तो कहते है यह तो सुध - बुध ही भूल जाते हैँ। *सुध - बुध का अर्थ ही है अपने स्वरूप की जो स्मृति रहते है वह भी भूल जाते हैँ*। बुद्धि की लगन भी उसके सिवाए कहाँ नहीं हो। ऐसे जो रहने वाले होते उनको कहा जाता है स्नेही।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जो देहाभिमान को अर्पण करता है उसका हर कर्म दर्पण बन जाता है, *जैसे कोई चीज अर्पण की जाती है तो फिर वह अर्पण की हुई चीज़ अपनी नहीं समझी जाती है। तो इस देह के भान को भी अर्पण करने से जब अपनापन मिट जाता है तो लगाव भी मिट जाता है।* ऐसे समर्पण हुए हो?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान से जागृति लाना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा पंछी बन उड़ चलती हूँ बाबा की कुटिया में... बाबा के सम्मुख बैठ मन की आँखों से हर पल उनको निहारती हुई स्नेह सागर में खो जाती हूँ... *इस सृष्टि के रचयिता ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा स्वयं आकर आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं...* जिस राज को बड़े-बड़े सन्यासी भी नहीं जानते, वो राज मुझे बताकर प्यारे बाबा मुझे मास्टर जानी जाननहार बना रहे हैं... अमरबाबा ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर तीनो कालो तीनो लोको का ज्ञान दे रहे हैं..."
❉ *ज्ञान किरणों की छाया में बिठाकर दिव्य गुणों की खुशबू से महकाते हुए प्यारा बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... अमर पिता अपने भूले बच्चों को सब कुछ याद दिलाने आया है... ज्ञान के दिव्य चक्षु से सारे राज बताने आया है... *खुद के सत्य को भूले बच्चे आज समझदार हो गए है... खुद को तो क्या तीनो कालो और तीनो लोको को जान मा ज्ञान सागर बन गए है...”*
➳ _ ➳ *एक नज़र की प्यासी थी, अब बाबा की नजरों में समाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *कितना भटकी थी मै आत्मा इस दुखमय संसार के झूठे नातो में... सच्चे सुख की एक बून्द भी मेरे दामन में न थी... आपने अपना हाथ मेरे सर पर रख मुझ आत्मा को ज्ञान परी बना दिया...* मै सब जान गयी हूँ प्यारे बाबा... तीनो कालो तीनो लोको से भी वाकिफ हो गई हूँ...”
❉ *ज्ञान चक्षु खोलकर अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरी झोली भरते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे बच्चे... हद के ज्ञान से सच्चे राजो को जान न सकोगे... बेहद के ज्ञान को अमर पिता के सिवाय तो कोई बता ही न सके... *ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर सदा के रौशन हो गए हो... खुद को जान... सृष्टि के चक्र को भी यादो में भर लिए हो, मा त्रिलोकीनाथ बन गए हो...”*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा से सबकुछ पाकर खुशियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे सिकीलधे प्यारे बाबा... मै आत्मा घर से जो निकली... खूबसूरत खेल खेलते खेलते दुःख के खेल में उलझ गई... स्थूल नेत्र की दुनिया को ही दिल में समा ली थी... *आपने आकर ज्ञान नेत्रो से जीवन सदा का रौशन किया है... आपने ज्ञान को मेरी बुद्धि में समाहित कर आप समान बना दिया है... प्यारे बाबा मै सब कुछ जान गयी हूँ...”*
❉ *उमंगो से जीवन को भरकर सदा के लिए खुशियों से मेरे दामन को सजाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे बच्चे... यह दुखमय संसार मेरे बच्चों के लिए नही है... सोने जैसी सुखो भरी धरती ही तुम बच्चों का आशियाना है... *विस्मृति के खेल से सब भूल गए हो... और अब अमर पिता के संग से अपनी वास्तविकता और खूबसूरत राजो के राजदार बन पड़े हो...”*
➳ _ ➳ *त्रिकालदर्शी की सीट पर बैठ तीनों नेत्रों से इस सृष्टि के गुह्य राजों को जान, ज्ञान परी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “प्राणों से भी प्यारे बाबा... आपका किन शब्दों में शुक्रिया करूँ.... कितना सुंदर मेरा भाग्य है कि स्वयं अमर पिता... *मुझ आत्मा को ज्ञान के नेत्रो से बेहद के राजो को बताने... मेरी दुनिया में आ गया है... मुझे ज्ञानवान बना सदा का सुखी बना रहा है... मीठे बाबा... इस खुशनसीबी की तो मैंने कल्पना भी न की थी...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
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*"ड्रिल :- याद की यात्रा से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था
बनानी है*"
➳ _ ➳ जैसे ब्रह्मा बाबा ने सम्पूर्ण समर्पण भाव और अपनी लाइट माइट स्थिति
द्वारा कर्मातीत बन, सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। ऐसे ही फॉलो फादर कर,
कर्म से अतीत हो कर, सम्पूर्णता को पाना हर ब्राह्मण आत्मा का लक्ष्य है। *इस
लक्ष्य को पाने की मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए, अपने मन बुद्धि
को एकाग्रचित करके मैं अपने सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ अपनी स्थूल देह से बाहर
निकलती हूँ* और सेकण्ड में मन बुद्धि की लिफ्ट पर सवार होकर, अव्यक्त वतन में
पहुंच जाती हूँ और अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सामने जा कर बैठ जाती हूँ।
➳ _ ➳ बाबा के इस अव्यक्त स्वरूप में भी बाबा के साकार स्वरूप की झलक स्पष्ट
दिखाई पड़ रही है जो बाबा की साकार पालना का अनुभव करवा रही है। *इस अनुभव को
करते - करते मैं खो जाती हूँ साकार मिलन की खूबसूरत यादों में और मन बुद्धि से
पहुँच जाती हूँ साकार ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि मधुबन में जहाँ की पावन धरनी पर
बाबा के हर कर्म का यादगार है*। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव
से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे, इस बात
का स्पष्ट अनुभव हिस्ट्री हाल में लगे साकार ब्रह्मा बाबा के हर चित्र को देख
कर स्वत: और सहज ही होता है।
➳ _ ➳ अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन में मैं हिस्ट्री हाल में हूँ और वहाँ
दीवार पर लगे एक - एक चित्र को बड़े ध्यान से देख रही हूँ। *हर चित्र ब्रह्मा
बाबा के कर्म की गाथा सुना रहा है और साथ ही साथ कर्मातीत अवस्था को पाने के
बाबा के पुरुषार्थ को भी परिलक्षित कर रहा है*। ब्रह्मा बाप समान कर्मातीत बनने
का ही पुरुषार्थ अब मुझे करना है, यह दॄढ संकल्प करते ही मैं स्पष्ट अनुभव करती
हूँ कि जैसे अव्यक्त बापदादा मेरे सम्मुख आ गए हैं और आ कर अपना वरदानी हाथ
मेरे सिर पर रख दिया है। *अपने वरदानी हस्तों से बाबा मुझे "कर्म करते भी कर्म
के प्रभाव से सदा मुक्त रहने" का वरदान दे रहें हैं*। मस्तक पर विजय का तिलक
लगा रहें हैं।
➳ _ ➳ बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही सर्वशक्तियों को मैं स्वयं में समाता
हुआ स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *अपनी लाइट और माइट से बाबा मुझे भरपूर कर रहें
हैं, मुझे बलशाली बना रहे हैं ताकि आत्म बल से सदा भरपूर रहते हुए मैं अति
शीघ्र कर्मातीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ सहज रीति कर सकूँ*। बापदादा से लाइट
माइट और वरदान ले कर अब मैं अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो कर, स्वयं को और
अधिक परमात्म बल से भरपूर करने के लिए अव्यक्त वतन को छोड़ आत्माओं की निराकारी
दुनिया परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ अब मैं स्वयं को निराकार महाज्योति अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव
बाबा के सम्मुख देख रही हूँ। उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों को स्वयं में समा कर
मैं स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। उनकी किरणों की शीतल छाया मुझे गहन
शांति का अनुभव करवा रही हैं। उनके सामने बैठ कर उनसे आ रही सातों गुणों की
सतरंगी किरणों और सर्वशक्तियों से मैं स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। कुछ देर बीज
रूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा के साथ कम्बाइंड हो कर
अतिन्द्रिय सुख लेने के बाद और सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के बाद मैं
आ जाती हूँ परमधाम से नीचे वापिस साकारी दुनिया में।
➳ _ ➳ पाँच तत्वों की साकारी दुनिया मे, अपने साकार तन में विराजमान हो कर अब
मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित रहते हुए, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो
कर रही हूँ। *बाबा की लाइट माइट से स्वयं को सदा भरपूर करते हुए योग बल से
अपने पुराने कर्म बन्धनों को काटने और कर्मातीत बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं
निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मुरलीधर की मुरली से प्रीत रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सदा शक्तिशाली आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा हर परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर लेती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा रीयल गोल्ड बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सोचो, *आप विशेष आत्माओं की अनादि आदि पर्सनैलिटी और रायल्टी कितनी ऊँची है!* अनादि रूप में भी देखो जब आप आत्मायें परमधाम में रहती तो कितनी चमकती हुई आत्मायें दिखाई देती हो। उस चमक की रायल्टी, पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। दिखाई देती है? *और बाप के साथ-साथ आत्मा रूप में भी रहते हो, समीप रहते हो।* जैसे आकाश में कोई-कोई सितारे बहुत ज्यादा चमकने वाले होते हैं ना! ऐसे आप आत्मायें भी विशेष बाप के साथ और विशेष चमकते हुए सितारे होते हो। *परमधाम में भी आप बाप के समीप हो और फिर आदि सतयुग में भी आप देव आत्माओं की पर्सनैलिटी, रायल्टी कितनी ऊँची है।*
➳ _ ➳ सारे कल्प में चक्कर लगाओ, धर्म आत्मा हो गये, महात्मा हो गये, धर्म पितायें हो गये, नेतायें हो गये, अभिनेतायें हो गये, ऐसी पर्सनैलिटी कोई की है, जो आप देव आत्माओं की सतयुग में है? *अपना देव स्वरूप सामने आ रहा है ना? आ रहा है या पता नहीं हम बनेंगे या नहीं? पक्का है ना!* अपना देव रूप सामने लाओ और देखो, पर्सनैलिटी सामने आ गई? कितनी रायल्टी है, प्रकृति भी पर्सनैलिटी वाली हो जाती है। पंछी, वृक्ष, फल, फूल सब पर्सनैलिटी वाले, रायल।
➳ _ ➳ अच्छा फिर आओ नीचे, तो *अपना पूज्य रूप देखा है? आपकी पूजा होती है!* डबल फारेनर्स पूज्य बनेंगे कि इण्डिया वाले बनेंगे? आप लोग देवियाँ, देवतायें बने हो? सूंढ वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं। देवियाँ भी वह काली रूप नहीं, लेकिन देवताओं के मन्दिर देखा, आपके पूज्य स्वरूप की कितनी रायल्टी है, कितनी पर्सनैलिटी है? *मूर्ति होगी, 4 फूट, 5 फूट की और मन्दिर कितना बड़ा बनाते हैं। यह रायल्टी और पर्सनैलिटी है।*आजकल के चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, चाहे राजा हो लेकिन धूप में बिचारे का बुत बना के रख देंगे, क्या भी होता रहे। और आपके पूज्य स्वरूप की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है। है ना बढिया! कुमारियाँ बैठी हैं ना! रायल्टी है ना आपकी? *फिर अन्त में संगमयुग में आप सबकी रायल्टी कितनी ऊँची है। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी कितनी बड़ी है!* डायरेक्ट भगवान ने आपके ब्राह्मण जीवन में पर्सनैलिटी और रायल्टी भरी है। ब्राह्मण जीवन का चित्रकार कौन? स्वयं बाप। ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी *रायल्टी कौन-सी है? प्युरिटी। प्युरिटी ही रायल्टी है।*
✺ *ड्रिल :- "सारे कल्प में अपनी ऊंची रायल्टी और पर्सनालिटी का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं ज्योति बिंदु स्वरूप आत्मा अपने पंच तत्व के देह और देह की दुनिया को छोड़कर अपने पिता परमात्मा मीठे शिवबाबा से मिलन मनाने परमधाम जा रही हूं... *उज्ज्वल सितारा स्वरूप में मैं आत्मा अपने असली घर परमधाम में प्रवेश कर रही हूं...* जहां चारो ओर शांति ही शांति का अनुभव कर रही हूं... *वाणी से परे इस निर्वाण धाम में परम् शांति को अनुभव कर मैं आत्मा हल्का महसूस कर रही हूं...* थोड़ी देर के लिए मैं आत्मा तमाम जटिलताओं से मुक्त हो सहज और सरल अनुभव कर रही हूं...
➳ _ ➳ मीठे बाबा के सम्मुख बैठ मैं आत्मा मीठी किरणों को अपने अंदर समा रही हूं... बाबा की दृष्टि से मैं आत्मा निहाल हो रही हूं... *मुझ आत्मा पर सकाश ऊर्जा से भरपूर उजली किरणों की वर्षा हो रही है... मैं आत्मा अपने अंदर सर्व शक्तियों की ऊर्जा को महसूस कर रही हूं...* अंतर्मन के समस्त अज्ञान अन्धकार को मिटते हुए अनुभव कर रही हूं... सकाश ऊर्जा से भरपूर हो मैं उज्ज्वल प्रकाशमय हो रही हूं...
➳ _ ➳ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को उज्ज्वल श्वेत प्रकाश का चमकीला वस्त्र सौगात दे रहे है...* इस उज्ज्वल वस्त्र की महिमा बता रहे है... सुकर्म द्वारा वस्त्र की आभा बनाये रखने का आदेश दे रहे है... *सदा सेवाधारी स्वरूप का परिचय लिए यह वस्त्र धारण कर विश्व कल्याण की सेवा करने की प्रेरणा दे रहे है...* मैं आत्मा सौगात प्राप्त कर धन्य अनुभव कर रही हूं... खुशी के झूले में झूल रही हूं...
➳ _ ➳ मीठे बाबा की मीठी दृष्टि द्वारा मैं आत्मा ज्ञान के गुह्य रहस्यों को बुद्धि में समा रही हूं... *अपने नए पुराने सभी स्वरूपों का बुद्धि से दर्शन कर रही हूं... सतयुगी देवताई स्वरूप की मुकुटधारी निर्मल काया देख देख हर्षित हो रही हूं... पवित्रता की चमक देख मैं आत्मा सहज ही पवित्र अनुभव कर रही हूं...* अपने आदि रॉयल रूप की उजली छटा को चारो ओर बिखरता हुआ अनुभव कर रही हूं... अपने स्वरूप की गरिमा देख मन ही मन वाह वाह के गीत गुनगुना रही हूं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब अपने मध्यकालीन स्वरूप अर्थात पूज्य स्वरूप की रॉयल पर्सनैलिटी को देख प्रफुल्लित अनुभव कर रही हूं...* ऊंची ऊंची शिखर युक्त मंदिरो की भव्यता देख भाव विभोर हो रही हूं... अपनी पर्सनालिटी की रॉयल्टी को स्मृति में रख अपने कर्मो को परिवर्तित होते हुए देख रही हूं... मन्दिर के प्रांगण में खड़े हुए सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर रही हूं... *आज की सेवाधारी ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर पूरे विश्व को परमात्म शक्तियों से भरपूर कर रही हूं...* मीठे बाबा के इस बेहद यज्ञ में अपना योगदान दे भाग्य बना रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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