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❍ 15 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहे ?*
➢➢ *आत्माओं को सच्चे आत्मिक स्नेह की अनुभूति करवाई ?*
➢➢ *स्वयं को ज्ञान धन से भरपूर किया ?*
➢➢ *"साथी" और "साथ" के अनुभव से बाप समान साक्षी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे शक्तियों के जड़ चित्रों में वरदान देने का स्थूल रूप हस्तों के रूप में दिखाया है, हस्त भी एकाग्र रूप दिखाते हैं। *वरदान का पोज हस्त, दृष्टि और संकल्प एकाग्र दिखाते हैं, ऐसे चैतन्य रूप में एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ, तब रूह, रूह का आह्वान करके रुहानी सेवा कर सकेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें समझते हो? हर समय कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकाल सकते हो? सारे कल्प के अन्दर ऐसा कोई बिजनेसमैन होगा जो इतनी कमाई करे! सदा यह खुशी की याद रहती है कि हम ही कल्प-कल्प ऐसे श्रेष्ठ आत्मा बने हैं? *तो सदा यही समझो कि इतने बड़े बिजनेसमैन हैं और इतनी ही कमाई में बिजी रहो। सदा बिजी रहने से किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी क्योंकि बिजी होंगे तो माया बिजी देखकर लौट जायेगी, वार नहीं करेगी।*
〰✧ सहज मायाजीत बनने का यही साधन है कि सदा कमाई करते रहो और कराते रहो। *जैसे-जैसे माया के अनेक प्रकारों के नालेजफुल होते जायेंगे तो माया किनारा करती जायेगी। दूसरी बात एक सेकण्ड भी अकेले नहीं हो, सदा बाप के साथ रहो तो बाप के साथ को देखते हुए माया आ नहीं सकती क्योंकि माया पहले बाप से अकेला करती है तब आती है।* तो जब अकेले होंगे ही नहीं फिर माया क्या करेगी?
〰✧ बाप अति प्रिय है, यह तो अनुभव है ना? तो प्यारी चीज भूल कैसे सकती! तो सदा यह स्मृति में रखो कि प्यारे ते प्यारा कौन? जहाँ मन होगा वहाँ तन और धन स्वत: होगा। तो 'मन्मनाभव' का मन्त्र याद है ना! *जहाँ भी मन जाए तो पहले यह चेक करो कि इससे बिढ़या, इससे श्रेष्ठ और कोई चीज है या जहाँ मन जाता है वही श्रेष्ठ है! उसी घड़ी चेक करो तो चेक करने से चेंज हो जायेंगे। हर कर्म, हर संकल्प करने के पहले चेक करो।* करने के बाद नहीं। पहले चेकिंग पीछे प्रैक्टिकल।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ 21वीं सदी तो आप लोगों ने चैलेन्ज की है, ढिंढोरा पीटा है, याद है? चैलेन्ज किया है - गोल्डन एजड दुनिया आयेगी या वातावरण बनायेंगे। चैलेन्ज किया है ना! तो इतने तक तो बहुत टाइम है। *जितना स्व पर अटेन्शन दे सको, दे सको भी नहीं, देना ही है।*
〰✧ जैसे देह-भान में आने में कितना टाइम लगता है? दो सेकण्ड? *जब चाहते भी नहीं हो लेकिन देह भान में आ जाते हो, तो कितना टाइम लगता है?* एक सेकण्ड या उससे भी कम लगता है? *पता ही नहीं पडता है कि देह भान में आ भी गये हैं।*
〰✧ ऐसे ही यह अभ्यास करो - कुछ भी हो, क्या भी कर रहे हो लेकिन यह भी पता ही नहीं पडे कि मैं सोल-कान्सेस, पॉवरफुल स्थिति में नेचुरल हो गया हूँ। *फरिश्ता स्थिति भी नेचुरल होनी चाहिए।* जितनी अपनी नेचर फरिश्ते-पन की बनायेंगे तो नेचर स्थिति
को नेचुरल कर देगी। तो बापदादा कितने समय के बाद पूछे? कितना समय चाहिए?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *आप क्या समझते हो, देह के अभिमान से भी सम्पूर्ण समर्पण बने हो ?* मर गये हो व मरते रहते हो देह के सम्बन्ध और मन के संकल्पों से भी? तुम देही हो ? *यह देह का अभिमान बिल्कुल ही टूट जाए, तब कहा जाए सर्व समर्पणमय जीवन।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- पास विद आनर होने श्रीमत पर चलते रहना"*
➳ _ ➳ *84जन्म.... 84मात पिता... अनेक मते... जिन पर चलती चलती मैं आत्मा गोरी
से काली बन पड़ी... फिर आप आए... इतना निरहंकारीपन, कि स्वयं धोबी बन पड़े...*
इस अंतिम जन्म आपके श्रीमत पर चल मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन रही हूं बाबा...
अब यह महसूसता आती जाती है बाबा, पहले क्या थे! और अब क्या बनते जा रहे हैं...
*यह अलौकिक जीवन अच्छा लगने लगा है... अभी ही आपने मुझ आत्मा को... अलौकिक सीट
की पहचान कराई... मैं आत्मा भृकुटि के मध्य विराजमान हूं!...* अब कुछ भी हो जाए
बाबा यह सीट न छोड़ने की... माया जीत जगतजीत बनने की, 8 माला में आने की, पास
विद आनर होने की मुझ आत्मा की दृढ़ प्रतिज्ञा बन गई है... क्योंकि अब इच्छा है
तो विजय निश्चित है...
❉ *मीठे बाबा अपनी प्यार भरी गोद में मीठी सी थपकी देते हुए बोलते हैं:-
"रूहानी बच्चे... 84 जन्म तुमने 84 बाप बदले... मनमत परमत पर चली हो... अभी इस
जन्म जो पिताओं का पिता मिला, अब उसकी मत पर चलो और 21 जन्मों के लिए अविनाशी
कमाई जमा करो...* देखो कमाई के समय निंद्रा फिट जाती है, तो अब स्वयं को
निंद्रा से मुक्त अब कमाई करो... जागो... *अब समय है तकदीर जगाने का..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की गोद में प्यार भरे अनुभव में डूबी मैं आत्मा बाबा से बोली:-
"हां मेरे रूहानी बाबा... अब तक तकदीर को लकीर लगी हुई थी....* आत्मा की ज्योति
उझाई हुई थी... मगर अब आपकी याद रूपी घृत से मैं आत्मा फिर से जाग उठी हूं... *जीवन
पहले जैसी नहीं... अब रातों को सोती हूं तो तुम्हारी ही मीठी यादों में... उठती
हूं तो पहले पहले तुम ही याद आते हो..."*
❉ *मीठे बाबा मीठी लाडली मुस्कान देते हुए मुझ आत्मा से बोले:- "लाडली बच्ची...
जीवन में बदलाव तो आएगा ही... जितना जितना तुम मेरी याद में रहे श्रीमत पर चल
मेरा कहना मानोगी,* बदलाव तो आएंगे ही... बाप भी हर्षित होते हैं तुम्हारे इस
नए मरजीवा जीवन को देख... *बाप को भी खुशी होती है बच्चे लायक बन रहे हैं और
बाप को क्या चाहिए..."*
➳ _ ➳ *प्यार के सागर की लहरों की गहराइयों में खोते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:-
"मीठे बाबा... सच में मैं कितनी ही भाग्यवान आत्मा हूं जो परमात्म दुआओं की
पात्र बनी...* स्वयं भगवान मुझ पर हर्षित हो प्यार लुटा रहे हैं, सचमुच बाबा अब
यह बदलाव मुझ आत्मा को और ही दृढ़ करता जा रहा है... *सपूत बच्चा बन तुम्हारी
आशा को पूरा करने का दीपक ज्वालामुखी रूप ले चुका है... अब नहीं तो कभी नहीं..."*
❉ *मीठे बाबा सन्मुख बैठे शक्तिशाली दृष्टि देते हुए बोले:- "मीठी बच्चे...
दुनिया में देखो कैसे, चाहे कोई भी प्राइम मिनिस्टर हो अपनी सीट को छोड़ने नहीं
चाहते... विनाशी कुर्सी के लिए कितनी मेहनत करते... अब तुम्हें तो अविनाशी
कुर्सी मिली है,* स्मृति आई है मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूं, तो अब इस सीट
को नहीं छोड़ अविनाशी पद का... भविष्य में चक्रवर्ती महाराजा महारानी बनो..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की शिक्षाओं को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:-
"हां मीठे बाबा... अब तो पास विद ऑनर की ट्रॉफी पर नज़र टिकी हुई है...* लक्ष्य
सामने है... मैं आत्मा लक्ष्य स्वरूप हो गई हूं... स्मृति सो समर्थी मैं आत्मा
स्व के साथ-साथ विश्व की सर्विस भी करती जा रही हूं... *विश्व कल्याणकारी मैं
आत्मा स्वयं को एक जिम्मेवार सपूत बच्चे के रूप में देख रही हूं..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺
*"ड्रिल :- सच्ची कमाई करनी और करानी है*"
➳ _ ➳ सचखंड की स्थापना कर,
उस सचखंड का मुझे मालिक बनाने वाले अपने सत्य परमपिता परमात्मा बाप के
साथ अंदर बाहर सदा सच्चे रहने का प्रोमिस करती हुई मैं मन ही मन विचार करती हूं
कि कितने घोर अंधकार में भटक रही है दुनिया! जो रावण की झूठी नगरी झूठखण्ड को
सच माने बैठी है। *रावण की झूठी माया ने सबकी बुद्धि को ताला लगा दिया है जो
झूठ और सच का निर्णय भी नहीं कर पा रहे*। इस झूठ खंड के विनाशी भौतिक सुख
संसाधनों से मिलने वाले अल्पकाल के विनाशी सुखों को ही पाने में लगे हुए हैं।
जो अविनाशी सुख इस समय परमात्मा आ कर दे रहे हैं और भविष्य
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जन्मों के लिए देने वाले हैं उन सुखों को तो यह बेचारे कभी अनुभव ही
नहीं कर पाएंगे।
➳ _ ➳ यही विचार करते करते मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सुनहरी यादों
में खो जाती हूँ और परमात्म प्यार की मधुर स्मृतियों में खोकर जैसे ही अपने
प्यारे मीठे शिव बाबा को याद करती हूं। मैं अनुभव करती हूं स्वयं को बाप दादा
के सामने। *मेरे सामने कुर्सी पर लाइट लाइट स्वरुप में बापदादा विराजमान है।
मैं एकटक उनकी ओर निहार रही हूं*। उनकी मीठी दृष्टि में अपने लिए समाये असीम
प्यार को देख मन ही मन हर्षित हो रही हूं। बाबा के पास बैठकर बाबा के घुटनों
में अपना सिर रखकर परमात्म प्यार का असीम सुख ले रही हूं।
➳ _ ➳ सिर पर बाबा के हाथों का हल्का - हल्का स्पर्श मुझे परमात्म
शक्तियों से भर रहा है। परमात्म बल से भरपूर हो कर मैं स्वयं को एकदम हलका
अनुभव कर रही हूं। *आंखों को बंद करके बाबा की गोद मे सिर रख कर परमात्म पालना
के दिव्य अलौकिक आनंद में मैं डूबी हुई हूं*। तभी एक बहुत ही खूबसूरत दृश्य मुझे
दिखाई देता है। मैं देख रही हूं कि लाइट का सूक्ष्म शरीर धारण कर मैं एक नन्हा
फरिश्ता बन बापदादा के साथ कहीं दूर जा रहा हूं। देह और देह की दुनिया पीछे
छूटती जा रही है।
➳ _ ➳ एक बहुत खुले स्थान पर बाबा मुझे ले आते हैं और मेरी आँखों पर
पट्टी बांध कर मेरे साथ आंख मिचौली का खेल खेलने लगते हैं। *आंखों पर पट्टी
बांधे अपने नन्हे नन्हे हाथों से मैं बाबा को पकड़ने की कोशिश कर रहा हूँ*। थोड़े
प्रयास के बाद मैं बाबा को ढूंढ कर बाबा का हाथ पकड़ कर जैसे ही अपनी आंखों से
पट्टी हटाता हूं तो उसी स्थान पर मैं अपना देवताई स्वरूप धारण किये एक नन्हे
राजकुमार के रूप में स्वयं को सोने की एक बहुत सुंदर नगरी में देखता हूं।
➳ _ ➳ हरे भरे पेड़ पौधे,
डालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी,
वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज,
बागों में नाचते सुंदर मोर,
रसभरे फलों से लदे वृक्षों की सुंदर कतारें,
सतरंगी छटा बिखेरती सूरज की किरणें,
ऐसा मनोरम दृश्य मैं अपनी आंखो से देख रहा हूं। स्वयं को मैं अति सुंदर
हीरे जड़ित पोशाक धारण किए एक सुंदर राजकुमार के रूप में बगीचे में अन्य
राजकुमारों के साथ खेलता हुआ देख रहा हूं। *बगीचे के बीचो-बीच से गुजरता एक
सुंदर पथ जिस पर लाल मखमली कालीन बिछा है जो राजमहल के भीतर तक जा रहा है। यह
मेरा राजमहल है जो पूरा सोने का बना है*। स्वर्ण महल के अंदर दास दासियाँ
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प्रकार के भोजन बना रहे हैं। माँ श्री लक्ष्मी और पिता श्री नारायण मुझे
अपनी गोद में उठा कर दुलार कर रहे हैं। शयनकक्ष में माँ मुझे मीठी लोरी सुनाकर
सुला रही है।
➳ _ ➳ अपने देवताई जीवन का दिन हंसते गाते खेल पाल करते आनंद में मैं
व्यतीत कर रहा हूं। *तभी कानों में बाबा की मधुर आवाज सुनाई देती है:- "मेरे
राजा बच्चे अपने देवताई राजकुमार स्वरुप को और अपने राजमहल को देखा ना"!इसी
सचखण्ड का आपको मालिक बनना है*। बाबा के ये महावाक्य निरन्तर कानो में गूंज रहे
हैं और सचखण्ड के सुंदर नज़ारे बार बार आंखों के सामने स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।
➳ _ ➳ सचखण्ड के इन सुंदर नजारों को अपनी आंखों में बसाये,
सचखण्ड का मालिक बनने का तीव्र पुरुषार्थ करने के लिए *अब मैं फ़रिशता
अपनी साकारी देह में अवतरित हो रहा हूँ और साकारी तन में प्रवेश कर अपने
संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप को धारण कर रहा हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
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*मैं सच्चे आत्मिक स्नेह की अनुभूति कराने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं आत्मा मास्टर स्नेह का सागर हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
*मैं आत्मा ज्ञान धन से सदा भरपूर रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा ज्ञान धन से स्थूल धन की प्राप्ति करती हूँ ।*
✺ *मैं ज्ञानी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा आज से सभी बच्चों को, चाहे यहाँ बैठे हैं, चाहे सेन्टर्स पर बैठे हैं, चाहे देश में हैं, चाहे विदेश में हैं लेकिन रहमदिल भावना से इशारा दे रहे हैं - *बापदादा हर बच्चे की हद की बातें, हद के स्वभाव-संस्कार, नटखट वा चतुराई के संस्कार, अलबेलेपन के संस्कार बहुत समय से देख रहे हैं, कई बच्चे समझते हैं सब चल रहा है, कौन देखता है, कौन जानता है लेकिन अभी तक बापदादा रहमदिल है, इसलिए देखते हुए भी, सुनते हुए भी रहम कर रहा है। लेकिन बापदादा पूछते है आखिर भी रहमदिल कब तक?* कब तक? क्या और टाइम चाहिए? बाप से समय भी पूछता है, आखिर कब तक? प्रकृति भी पूछती है। जवाब दो आप। जवाब दो। *अभी तो सिर्फ बाप का रूप चल रहा है, शिक्षक और सतगुरु तो है ही। लेकिन बाप का रूप चल रहा है। क्षमा के सागर का पार्ट चल रहा है।*
➳ _ ➳ *लेकिन धर्मराज का पार्ट चला तो?* क्या करेंगे? *बापदादा यही चाहते हैं कि धर्मराज के पार्ट में भी वाह! बच्चे वाह! का आवाज कानों में गूँजे।* फिर बाप को उलहना नहीं देना। बाबा, आपने सुनाया नहीं, हम तैयार हो जाते थे ना! इसलिए *अभी हद की छोटी-छोटी बातों में, स्वभाव में, संस्कारों में समय नहीं गँवाओ।* चल रहे हैं, चलता है, नहीं, जमा होता जाता है। दुगुना, तीनगुना, सौगुना जमा होता जाता है, चलता है नहीं। इसलिए इस *दृढ़ संकल्प का दिल में दीप जगाओ। हद से बेहद में वृत्ति, दृष्टि, कृति बनानी है। इसीलिए बापदादा कहते हैं बनानी पड़ेगी।* आज यह कह रहे हैं बनानी पड़ेगी फिर क्या कहेंगे? टू लेट। समय को देखो, सेवा को देखो, सेवा बढ़ रही है, समय आगे दौड़ रहा है। लेकिन स्वयं हद में हैं या बेहद में हैं? *हद की बातों के पीछे आप नहीं दौड़ो। तो बेहद की वृत्ति, स्वमान की स्थिति आपके पीछे दौड़ेगी।*
✺ *ड्रिल :- "बेहद की वृत्ति, दृष्टि, कृति से हद की बातों से मुक्त होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा याद और सेवा की रस्सियों में झूलते हुए पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... वतन में बापदादा के पास बैठ जाती हूँ... *पारलौकिक बाप अलौकिक बाप के मस्तक पर विराजमान होकर मुझे भी अलौकिक बना रहें हैं... बापदादा मुझ आत्मा को अपनी शक्तियों से भरपूर कर रहें हैं... मैं आत्मा अपनी साधारणता को छोड़ विशेष आत्मा होने का अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझ आत्मा को आदि मध्य अंत का सत्य ज्ञान सुना रहें हैं... हद और बेहद के बारे में बता रहें हैं... मैं आत्मा अपने असली स्वरूप को... असली घर को... और इस सृष्टि रंगमंच पर अपने पार्ट को समझ गई हूँ... *मैं आत्मा बेहद बाबा के साथ की अनुभूति में रह... अपनी दृष्टि... वृति... कृति को हद से निकाल बेहद की बना रही हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की वृति... दृष्टि... कृति... बेहद की हो गई है... मैं आत्मा हद की बातों से मुक्त हो गई हूँ... मैं... मेरा... मेरी देह... मेरे सम्बन्धी... अब मेरा किसी में मोह नहीं फंसता... अब ऐसा लगता है कि ये सब आत्माऐं भगवान के बच्चे हैं...जो भी मनुष्य सम्पर्क में आता है... उसे आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ... सबका कल्याण हो... सब सुख पाएं... बस यही चिंतन चलता है... इससे मन बहुत हल्का रहता है...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दृढ़ संकल्प की चाबी लगा कर अपनी दृष्टि, वृति, कृति को ब्रह्मा बाप समान पवित्र बना रही हूँ... हर कर्म को विशाल हृदय से... बेहद की दृष्टि द्वारा कर रही हूँ... ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख फॉलो फादर कर बाप समान बन रही हूँ...* अब मैं उड़ता पंछी... आजाद पंछी... मुक्त गगन में फरिश्ता बन उड़ती रहती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने हर कर्म को चेक करती हूँ कि जो कर्म मैं कर रही हूँ... वह बाप समान... बेहद का है या नहीं... *मैं आत्मा बाबा द्वारा दी गई हर श्रीमत... हर मर्यादा का पालन कर रही हूँ*, मैं आत्मा बाप समान रहमदिल... मास्टर प्यार का सागर बन अपने स्वमान में स्थित रहती हूँ... *मैं... मेरा... तेरा से उपराम... हद की बातों से उपराम हो गई हूँ... अब मैं आत्मा स्वयं के बारे में नही सोचती... मेरी दृष्टि... वृति... कृति बेहद की हो गयी है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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