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 21 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एम ऑब्जेक्ट का चित्र सतह में रखा ?*

 

➢➢ *सदा सेवा पर उपस्थित रहे ?*

 

➢➢ *पास विद ऑनर बनने के लिए पुरुषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल रखी ?*

 

➢➢ *सोचा कम और कर्तव्य अधिक किया ?*

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*अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  वर्तमान समय विश्व कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है। *सारे विश्व की सर्व आत्मायें विशेष यही चाहना रखती हैं कि भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए। यह विश्व की मांग वा चाहना तब पूरी कर सकोगें। जब एकाग्र होने का अभ्यास होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं याद की छत्रछाया के अनुभवी आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अपने ऊपर बाप के याद की छत्रछाया अनुभव करते हो? याद की छत्रछाया है। इस छत्रछाया को कभी छोड़ तो नहीं देते? *जो सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं वे सर्व प्रकार के माया के विघ्नों से सेफ रहते हैं। किसी भी प्रकार से माया की छाया पड़ नहीं सकती।*

 

  *यह 5 विकार, दुश्मन के बजाए दास बनकर सेवाधारी बन जाते हैं। जैसे विष्णु के चित्र में देखा है - कि सांप की शय्या और सांप ही छत्रछाया बन गये। यह है विजयी की निशानी।* तो यह किसका चित्र है? आप सबका चित्र है ना। जिसके ऊपर विजय होती है वह दुश्मन से सेवाधारी बन जाते हैं। ऐसे विजयी रत्न हो।

 

  *शक्तियाँ भी गृहस्थी माताओंसे, शक्ति सेना की शक्ति बन गई। शक्तियों के चित्र में रावण के वंश के दैत्यों को पांव के नीचे दिखाते हैं। शक्तियों ने असुरों को अपने शक्ति रूपी पाँव से दबा दिया। शक्ति किसी भी विकारी संस्कार को ऊपर आने ही नहीं देगी।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आज बापदादा विश्व के सर्व तरफ के अपने स्वराज्य अधिकारी बच्चों की राज्य सभा देख रहे हैं।* हर एक स्वराज्य अधिकारी, पवित्रता की लाइट के ताजधारी, अधिकारी की स्मृति के तिलकधारी, अपने-अपने भृकुटि के अकाल तख्तनशीन दिखाई दे रहे हैं।

 

✧  *इस समय जितना स्वराज्य अधिकार अनुभव करते हो उतना ही भविष्य विश्व राज्य अधिकारी है ही हैं।*

 

✧  *मैं कौन' वा 'मेरा भविष्य क्या?’* वह अब के स्वराज्य की स्थिति द्वारा स्वयं ही देख सकते हो। *बापदादा हर एक बच्चे के सदा स्वराज्य की स्थिति को देख रहे थे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *सर्विस की सफलता का मुख्य गुण कौन-सा है? नम्रता। जितनी नम्रता उतनी सफलता। नम्रता आती है निमित समझने से।* निमित्त समझकर कार्य करना है। जैसे बाप शरीर का आधार निमित्त मात्र लेते हैं, वैसे आप समझो कि निमित्त -मात्र शरीर का आधार लिया है। *एक तो शरीर को  निमित्त-मात्र समझना है और दूसरा सर्विस में अपने को निमित्त समझना, तब नम्रता आयेगी। फिर देखो, सफलता आपके आगे चलेगी।* जैसे बापदादा टेम्पररी देह में आते हैं, ऐसे देह को निमित आधार समझो। बापदादा की देह में अटैचमेन्ट होती है क्या? *आधार समझने से अधीन नहीं होंगे। अभी देह के अधीन होते हो, फिर देह को अधीन करेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- ज्ञान की धारणा करनी और करानी है"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा हिस्ट्री हॉल में बापदादा के सम्मुख बैठी हूँ... गॉडली स्टूडेंट बन ज्ञान मुरली सुन रही हूँ... ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर साथ-साथ ज्ञान का मंथन करती जा रही हूं… मैं अविनाशी आत्मा अविनाशी बाबा के अविनाशी ज्ञान को धारण कर रही हूँ... *प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं... बाबा के हाथों से ज्ञान, गुण, शक्तियों के हीरे बरस रहे हैं... मैं आत्मा इन हीरों से अपना श्रृंगार करके औरों का भी श्रृंगार कर रही हूँ...*

❉ *21 जन्मों की राजाई का सुख पाने के लिए ज्ञान का मंथन कर धारणा करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता से पाये अमूल्य रत्नों को जितना लुटाओगे, उतने मालामाल हो, सतयुग के सुखो में मुस्कराओगे... *इसलिए इन बेशकीमती रत्नों को बुद्धि में इस कदर समाओ और जीवन में उसकी ऐसी मीठी झलक दिखाओ कि हर दिल आत्मा सच्चे ज्ञान को पाने को लालायित हो जाए...”*

➳ _ ➳ *शिवसागर में डूबकर ज्ञान रत्नों रूपी अमूल्य खजानों की मालिक बन ख़ुशी की लहर फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय रत्नों को पाकर रत्नों की ख़ान बनती जा रही हूँ... और इस दौलत की बदौलत पायी असीम ख़ुशी की झलक और फलक सारे विश्व में फैला रही हूँ...* सच्चे ज्ञान रत्नों को पाकर जीवन आनन्द से भर गया है...”

❉ *अपनी मीठी वाणी से मुझे महान बनाकर सबका कल्याण करने की शिक्षा देते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... 21 जनमो की खुबसूरत राजाई का राज ज्ञान रत्नों के दान में छुपा सा है... यह खजाना जितना लुटाओगे उतने तकदीरवान भाग्यवान बन अनन्त सुखो के झूले में खिलखिलायेंगे... *इस कीमती धन का हकदार सबको बनाओ,.. और सबका जीवन आप समान सुखी बनाओ...”*

➳ _ ➳ *शिव परमात्मा के ज्ञान को धारण कर ज्ञान स्वरुप बन अंधकार भरे जग में सबकी ज्योति जगाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान खजाने से भरपूर होकर ऐसा ज्ञानवान धनवान् सबको बनाती जा रही हूँ... *सबके जीवन में मीठे सुखो की दस्तक देकर खुशियो की बहारो का आप समान हकदार बना रही हूँ... ज्ञान की धारणा से सच्ची खुशियो का हर पल आभास करा रही हूँ...”*

❉ *ज्ञान की जादुई छड़ी घुमाकर मनुष्य से देवता बनने का हुनर सिखाते हुए मेरे जादूगर बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता गोद में बिठाकर ज्ञान रत्नों से सजा संवार रहे है... *देवता सा सौंदर्य और अतुल धन सम्पदा दिलाने वाला यह अनमोल ज्ञान खजाना... सहज ही पाने वाले महान आत्मा हो...* इस नशे को रोम रोम में भर दो और ज्ञान का प्रतीक बन सबको प्रेरित करो...”

➳ _ ➳ *ज्ञानामृत पीकर शुद्ध, पावन बन सद्गुणों से विश्व को जगमग जगमग चमकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... आपसे पाये दिव्य गुण शक्तियाँ और अथाह ज्ञान रत्नों की झनकार से हर दिल को मन्त्रमुग्ध कर रही हूँ... *मेरे ईश्वरीय रंगरूप को देख हर दिल ईश्वरीय ज्ञान का आतुर हो उठा है... और जनमो की अतृप्त आत्माये सदा का सुख पा रही है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वच्छ बुद्धि बन वन्डरफुल ज्ञान को धारण कर बाप समान मास्टर ज्ञान सागर बनना है*"

➳ _ ➳ 
ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर, ज्ञान गंगा बन ज्ञान के शीतल जल से पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए मैं ज्ञान के सागर, *पतित पावन अपने शिव पिता परमात्मा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अंतर्मुखता की एक ऐसी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो मुझे सीधी ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के पास ले जायेगी*। अंतर्मुखता की इस अति सुन्दर लुभावनी यात्रा पर अनेक सुन्दर अनुभवों की खान अपने साथ लेकर मैं इस यात्रा का आनन्द लेते हुए देह के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कर विदेही बन अब नश्वर देह से बाहर निकलती हूँ और ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ। 

➳ _ ➳ 
अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, उस रास्ते पर उड़ती जा रही हूँ जो मेरे स्वीट साइलेन्स होम को जाता है। *आनन्द से भरपूर, ज्ञान की रूहानी अलौकिक मस्ती में डूबी मैं आत्मा पंछी समस्त पृथ्वी लोक का चक्कर लगा कर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में प्रवेश करती हूँ*। 

➳ _ ➳ 
गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति का अनुभव करते - करते मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए अब अपने ज्ञान सागर बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं*। ज्ञान रत्नों से मैं भरपूर होती जा रही हूँ।

➳ _ ➳ 
अपनी बुद्धि रूपी झोली में ज्ञान का अखुट भण्डार जमा कर, ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए अब मैं परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब पर बैठ बापदादा का आह्वान करती हूँ। *बापदादा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते हुए, बापदादा के साथ कम्बाइन्ड होकर अब ज्ञान सागर अपने शिव पिता से ज्ञान की अनन्त किरणों को स्वयं में भरकर, फिर उन्हें चारों और फैला रही हूँ*। मुझ ज्ञान गंगा से निकल रही ज्ञानअमृत की शीतल धारायें मुझ से निकल कर विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर पड़ रही है और उन्हें विकारों की तपन से मुक्त कर, गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है।

➳ _ ➳ 
विश्व की सर्व आत्माओं पर ज्ञान वर्षा करके, मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और ज्ञान गंगा बन सबको यह सच्चा ज्ञान देकर उन्हें पावन बनाने की सेवा के लिए चल पड़ती हूँ। *मुरली के माध्यम से बाबा जो अविनाशी ज्ञान रत्न हर रोज मुझे देते हैं उन अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर, उन्हें कण्ठ कर, सबको उन ज्ञान रत्नों का मैं दान करती रहती हूँ*। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को इस सत्य ज्ञान रूपी गंगा जल से पावन बनाने की सेवा करते हुए, सबको ज्ञान सागर उनके शिव पिता से मिलाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के पुरुषार्थ में अब मैं निरन्तर लगी रहती हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं पास विद आनर आत्मा हूँ।*
✺   *मैं पुरुषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं योगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं आत्मा ओबीडिएन्ट सर्वेंट हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा अलमस्त होने से मुक्त हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा सदा सेवा पर उपस्थित रहती हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳ 1. अभी किसमें होशियार बनेंगेमनसा सेवा में... नम्बर आगे ले लो... पीछे नहीं रहना... इसमें कोई कारण नहीं... समय नहीं मिलताचांस नहीं मिलतातबियत नहीं चलतीपूछा नहीं गयायह कुछ नहीं... सब कर सकते हो... *बच्चों ने दौड़ लगाने का खेल खेला था नाअभी इसमें दौड़ लगाना... मनसा सेवा में दौड़ लगाना...*

 

 _ ➳  2. अभी टीचर्स मनसा सेवा में रेस करनी है... लेकिन ऐसे नहीं करना कि सारा दिन बैठ जाओमैं मनसा सेवा कर रही हूँ... कोई कोर्स करने वाला आवे तो आप कहो नहींनहीं मैं मनसा सेवा कर रही हूँ... कोई कर्मयोग का टाइम आवे तो कहो मनसा सेवा कर रही हूँ,नहीं... बैलेन्स चाहिए... कोई कोई को ज्यादा नशा चढ़ जाता है ना! तो ऐसा नशा नहीं चढ़ाना... *बैलेन्स से ब्लैसिंग है... बैलेन्स नहीं तो ब्लैसिंग नहीं...* अच्छा...

 

✺   *ड्रिल :-  "बैलेन्स रख मनसा सेवा करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  स्वयं में परमात्म बल जमा कर, अपनी मनसा वृति को शक्तिशाली बनाने के लिए, देह से न्यारे अपने निराकार स्वरूप में स्थित हो कर मैं अपने मन बुद्धि को अपने निराकार शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करती हूँ... *मन बुद्धि की तार अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही मैं उस परमात्म करेंट को अपने अंदर प्रवाहित होते स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* जैसे मोबाइल चार्जर से जुड़ते ही उसकी बैटरी चार्ज होने लगती है ऐसे ही मैं भी स्वयं को परमात्म शक्तियों से चार्ज होते अनुभव कर रही हूँ... *मुझ आत्मा की सोई हुई शक्तियां परमात्म बल पाकर जागृत हो रही हैं... मैं स्वयं को शक्तियों से भरपूर होता हुआ अनुभव कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मेरे शिव पिता परमात्मा से निकल रही अनन्त शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मैगनेट की तरह मुझ आत्मा को अपनी तरफ खींच रही हैं... *मैं आत्मा परमात्म शक्तियों के चुम्बकीय आकर्षण से आकर्षित हो कर अब नश्वर देह का त्याग कर ऊपर की ओर उड़ रही हूँ...* रुई के समान स्वयं को मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ... तीव्र गति से उड़ते हुए मैं सेकेण्ड में आकाश से भी पार पहुंच गई हूँ... अब आकाश से भी ऊपर, सूक्ष्म लोक को पार करके मैं पहुंच गई हूँ अपने शिव पिता परमात्मा की अनन्त शक्तियों की किरणों के बिल्कुल नीचे...

 

 _ ➳  अपने इस परमधाम घर मे अब मैं अपने शिव पिता परमात्मा के बिल्कुल समीप हूँ... शिव परमपिता परमात्मा से आ रही शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं असीम ऊर्जावान बन रही हूँ... *अपने प्यारे शिव बाबा के सर्वगुणों, सर्वशक्तियों और सर्व खजानों को मैं स्वयं में जमा कर रही हूँ...* सर्व प्राप्तियों का फुल स्टॉक स्वयं में भर कर अब मैं वापिस साकार लोक की ओर आ रही हूँ... यहाँ आ कर अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित हो कर अब मैं अपनी शक्तिशाली मनसा से अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी दुखी और अशांत आत्माओं को सुख और शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...

 

 _ ➳  जिस ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे मेरे शिव पिता परमात्मा ने इस धरा पर भेजा है उस ईश्वरीय सेवा को अपने शिव पिता परमात्मा की याद में रह कर करने से सेवा में सहज ही सफलता प्राप्त हो रही है... *परमात्म याद और परमात्म छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते हर कर्म करने से मुझ आत्मा से स्वत: ही शक्तिशाली वायब्रेशन चारों और फैल रहें है जो सहज ही आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहें है...* योग युक्त स्थिति में स्थित होकर, वाणी द्वारा आत्माओं को परमात्म सन्देश और अपनी मनसा शक्ति द्वारा परमात्म प्रेम का अनुभव करवा कर मैं अनेको आत्माओं को सच्चा ईश्वरीय मार्ग दिखा कर उनका कल्याण कर रही हूँ...

 

 _ ➳  एकाग्रता की शक्ति को बढ़ा कर, स्वयं में योग का बल जमा कर, मैं अनेक हिम्मतहीन और निर्बल आत्माओं को, स्वयं में जमा की हुई सर्वशक्तियों के आधार से सहयोग देकर आगे बढ़ा रही हूँ... *जैसे वृक्ष की छाया राही को आराम का अनुभव कराती है ऐसे शक्तिशाली याद में रह सेवा करने से विकारो की अग्नि में जल रही आत्माओं को मेरे सम्पर्क में आते ही शीतलता की छाया का अनुभव हो रहा है...* शीतलता का सुख और आनन्द लेकर वो आत्मायें शीतल हो रही हैं... योग और सेवा का बैलेन्स मुझे सर्व आत्माओं की दुआओं के साथ - साथ परमात्म ब्लेसिंग का भी अधिकारी बना रहा है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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