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 29 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *जीते जी मरने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *इस दुःखधाम से अपना बुधीयोग निकाला ?*

 

➢➢ *समस्याओं को समाधान रूप में परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *किसी की कमजोरियों का वर्णन करने की बजाये गुणों का वर्णन किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। लेकिन *परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना। जितना न्यारा बनेंगे उतना परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा का सिकीलधा रूहानी गुलाब हूँ"*

 

  सभी अपने को सिकीलधे समझते हो ना? कितने सिक व प्रेम से बाप ने कहाँ-कहाँ से चुनकर एक गुलदस्ते में डाला है। गुलदस्ते में आकर सभी 'रूहे गुलाब' बन गये। रूहे गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? *हरेक को यही नशा है ना कि हम बाप को प्रिय हैं! हरेक कहेगा कि मेरे जैसा प्यारा बाप को और कोई नहीं है। जैसे बाप जैसा प्रिय और कोई नहीं। वैसे बच्चे भी कहेंगे।* 

 

  क्योंकि हरेक की विशेषता प्रमाण बाप को सभी से विशेष स्नेह है। नम्बरवार होते हुए भी सभी विशेष स्नेही हैं। बच्चों के मूल्य को सिर्फ बाप जानें और आप जानों। और कोई नहीं जान सकता। *दूसरे तो आप लोगों को साधारण समझते हैं, लेकिन कोटो में कोई और कोई में भी कोई आप हो। जिसको बाप ने अपना बना लिया। बाप का बनते ही सर्व प्राप्तियॉं हो गई। खजानों की चाबी बाप ने आप सबको दे दी।* अपने पास नहीं रखी। इतनी चाबियाँ हैं जो सबको दी है। यह मास्टर की (चाबी) ऐसी है जो जिस खजाने को लगाना चाहो, लगाओ और खजाना प्राप्त करो। मेहनत नहीं करनी पड़ती।

 

  वैसे भी लंदन राज्य का स्थान है ना। प्रजा बनने वाले नहीं। सभी सेवा में आगे बढ़ने वाले। *जहाँ प्राप्ति हैं वहाँ सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। सेवा कम अर्थात् प्राप्ति कम। प्राप्ति स्वरूप बिना सेवा के रह नहीं सकते।* देखो, आप लोग कितना भी देश छोड़कर विदेश चले गये तो भी बाप ने विदेश से भी ढूँढकर अपना बना लिया। कितना भी भागे फिर भी बाप ने तो पकड़ लिया ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *सिर्फ मैं शब्द नहीं बोलना आत्मा साथ में बोला, पक्का हो जायेगा।* जैसे शरीर का नाम पक्का है ना दूसरे को भी कोई बुलायेंगे तो आप ऐसे-ऐसे करेंगे। तो मैं आत्मा हूँ। आत्म का संसार बापदादा, आत्मा का संस्कार ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरश्तिा सो देवता। तो क्या करेंगे? यह मन की ड़ि्ल करना। आजकल डॉक्टर्स भी कहते हैं ड़ि्ल करो, ड़ि्ल करो। एक्सरसाइज करो।

 

✧   तो *यह एक्सरसाइज करो। मैं आत्मा, मेरा बाबा क्योंकि समय की गति को ड्रामा अनुसार स्लो करना पडता है।* होना चाहिए क्रियेटर को तीव्र, क्रियेशन के नहीं लेकिन अभी के प्रमाण समय तेज जा रहा है। प्रकृति एवररेडी है सिर्फ ऑर्डर के लिए रूकी हुई है। ड्रामा का समय ही ऑर्डर करेगा ना। स्थापना वाले अगर एवररेडी नहीं होंगे ते विनाश के बाद क्या प्रलय होगी? होनी है प्रलय?

 

✧   कि विनाश के बाद स्थापना होनी ही है? *तो स्थापना के निमित बने हुए अभी समय प्रमाण एवररेडी होने चाहिए।* बापदादा यही देखने चाहते है, जैसे ब्रह्मा बाप अर्जुन बना ना, एक्जैम्पुल बना ना! ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले कौन बनते हैं? स्वयं भी देखो, समय को भी देखो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फरिश्ता रूप की स्थिति अर्थात् अव्यक्त स्थित जिसकी सदाकाल रहती है वह बिन्दु रूप में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रूप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। *शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे। वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच-बीच में समय निकाल करना चाहिए। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- माया दुश्मन से अपनी सम्भाल करना"*

➳ _ ➳ मधुबन के तपस्या धाम में बेठी हुई मै आत्मा... मीठे बाबा को बड़े ही प्यार से निहारती हुई सोचती हूँ... कि मीठे बाबा ने अगर मेरा हाथ न पकड़ा होता... मै आत्मा स्वयं को और प्यारे बाबा को कभी भी न जान पाती... *मीठे बाबा ने मुझे देह की मिटटी से निकाल कर... यादो में उजला खुबसूरत बना दिया है..*. विकारी दुनिया में जंग लगी मुझ आत्मा को... अपने प्यार और गुणो रुपी पानी में सोने सा दमकाया है... पारस बाबा ने अपने साये में बिठाकर... *मुझे भी आप समान चमकीला बनाकर... मेरी दिव्यता और पवित्रता का सारे विश्व में डंका बजवाया है... आज पूरा विश्व मुझे और मेरी पवित्रता को सम्मानित कर रहा है.*.. ऐसे मीठे बाबा का मै आत्मा कितना न शुक्रिया करूँ...

❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी अमूल्य शिक्षाओ से हीरे जैसा सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जनमो तक दुखो के दलदल में फंसे रहे... और विकारो में लिप्त रहकर अपनी खुबसूरत को खो बेठे... *अब जो मीठे बाबा का साथ और हाथ मिला है... तो यह सच्चा साथ, प्यार और पालना कभी छोड़ना... अपने संग की सदा सम्भाल कर... ईश्वरीय प्यार और पालना में... सदा रूहानी गुलाब बन महकना..."*

➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की छत्रछाया में फूलो जैसा मुस्कराते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी पालना में कितनी गुणवान और शक्तिवान बनकर... देवताई श्रंगार से सज गयी हूँ... *आपने सच्चे ज्ञान और प्यार को देकर... मुझे देह की मिटटी से छुड़ाकर... सदा के लिए उजला खुबसूरत बना दिया है.*.. आपकी श्रीमत के हाथो में माया के काले साये से महफूज हूँ...”

❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा अपनी प्यार भरी गोद में लेकर माया से बचाते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *मीठे बाबा ने जो ज्ञान का प्रकाश देकर मा नॉलेजफुल बनाया है... उस ज्ञान प्रकाश में, मायावी आकर्षण को दूर से ही परख कर सदा दूर रहो.*.. अब जो ईश्वरीय साथ को पाया है... तो माया के साथ से किनारा करो.. विकारी संग से सदा खबरदार रहो...”

➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को अपने दिल की गहराइयो में समाकर कहती हूँ:-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पायी ज्ञान धन की, असीम दौलत में मालामाल हो गयी हूँ... और तीसरे नेत्र को पाकर... *विवेक शक्ति से, बेहद की समझदार हो गयी हूँ... और आपकी यादो में देह के प्रभाव से मुक्त होकर...अपनी आत्मिक रूप में चमक रही हूँ.*.."

❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सतयुगी दुनिया के सुख ऐश्वर्य से मेरी झोली सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे.... *सदा प्यारे बाबा संग यादो के झूले में झूलते रहो... और माया के हर झोंके से सुरक्षित रहकर... मीठे बाबा के प्यार भरे आँचल में छुपे रहो.*.. सदा ज्ञान और योग के पंख लिए... खुशियो के अनन्त आसमाँ में... इतना ऊँचा उड़ते रहो कि माया का संग छु भी न सके...”

➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की गोद में बैठकर माया के चंगुल से सुरक्षित होकर कहती हूँ :-* "मीठे सच्चे साथी बाबा,.. आपने *मुझ आत्मा को अपने गले से लगाकर... अपनी अमूल्य शिक्षाओ से सजाकर... मेरा जीवन खुशियो की फुलवारी बना दिया है.*.. मेरा दिव्य गुणो और पवित्रता से श्रंगार कर... मेरा कायाकल्प कर दिया है... अब मै आत्मा माया के विकारी संग से सदा परे रह... इस सच्चे आनन्द में मगन रहूंगी..." मीठे बाबा को अपनी दिली दास्ताँ सुनाकर... मै आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कभी भी अपनी ऊंची तकदीर को लकीर नही लगानी है*"

➳ _ ➳  अपनी पलकों को मूंदे, परमात्म प्यार की मस्ती में डूबी, अपने प्यारे प्रभु की याद में मैं मग्न होकर बैठी हूँ और मन की आँखों से अनेक खूबसूरत दृश्य देख रही हूँ। *कभी अपने प्यारे प्रभु को नटखट कान्हा के रूप में अपने सँग रास करते हुए, कभी सखा के रूप में उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करते हुए, कभी उन्हें भोग स्वीकार कराते हुए और कभी उनके साथ सारे विश्व का भ्रमण करते हुए मै स्वयं को उनके साथ देख रही हूँ* और इन सभी दृश्यों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ। ऐसे अपने प्यारे प्रभु के साथ अनेक खूबसूरत नजारों को देखती मैं मन ही मन अपनी श्रेष्ठ तकदीर के बारे में विचार कर हर्षित हो रही हूँ।

➳ _ ➳  अपनी श्रेष्ठ तकदीर की श्रेष्ठ तस्वीर बनाने वाले अपने भाग्यविधाता भगवान बाप का मैं कोटि - कोटि शुक्रिया अदा करके, *अपने निराकार भगवान बाप से मंगल मिलन मनाने के लिए अब उनके समान स्वयं को अपने वास्तविक निराकारी स्वरूप में स्थित करती हूँ और चमकता हुआ सितारा बन देह की कुटिया से बाहर निकल खुले आसमान की ओर चल पड़ती हूँ*। मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से मैं देख रही हूँ मस्तक से निकलती एक जगमग करती ज्योति को जो अपने प्रकाश की किरणें चारों ओर फैलाती हुई, अपने प्यारे प्रभु की प्रेम की लगन में मग्न उनसे मिलन मनाने के लिये, हर विघ्न को पार कर, ऊपर की ओर बस उड़ती ही जा रही है।

➳ _ ➳  रॉकेट से भी तेज उड़ान भरकर मैं आत्मा सेकेण्ड में आकाश को पार कर, उससे भी उपर उड़ते हुए सूक्ष्म वतन से होती हुई अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ। *चमकते सितारों की यह निराकारी दुनिया जो मेरे पिता का घर है, अपने इस घर में आकर मैं डीप साइलेन्स की गहन अनुभूति में खो जाती हूँ*। गहन शांति का अनुभव करते हुए अब मैं पहुँच जाती हूँ सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता के पास जिनसे आ रही सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की शीतल फुहारें मन को शीतलता का अनुभव करवा कर अपनी और खींच रही हैं। *उन शीतल फ़ुहारों के नीचे बैठ गहन शीतलता का अनुभव करके, सर्वगुणों, सर्वशक्तियों से भरपूर होकर मैं आत्मा अब परमधाम से नीचे सूक्ष्म लोक में आ जाती हूँ*।

➳ _ ➳  सूक्ष्म आकारी फरिश्तो की इस दुनिया मे आकर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर अब मैं फरिश्ता अपने भाग्यविधाता भगवान बाप के पास पहुँचता है जो *अपने आकारी रथ पर विराजमान होकर मेरे सामने खड़े हैं और मेरे हाथ मे सर्वश्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझे दे कर कह रहे है :- "लो बच्चे, इस कलम से जितना श्रेष्ठ भाग्य लिखना चाहो लिख लो"*। अपनी तकदीर की तस्वीर जैसी बनाना चाहो बना लो। भाग्य लिखने की कलम मेरे हाथ मे देकर  बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर "श्रेष्ठ भाग्यवान भव" का वरदान देते हुए मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहे हैं और अपनी शक्तियों से मुझे शक्तिशाली भी बना रहे हैं। *अपनी लाइट माइट मुझे देते हुए बाबा अपनी शक्तियों का बल मेरे अंदर भरते जा रहें हैं*।

➳ _ ➳  अपने भाग्यविधाता बाप से वरदान, सर्वशक्तियाँ और सर्वश्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम अपने साथ लेकर, अब मैं अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर सूक्ष्म लोक से नीचे आ जाती हूँ और साकार सृष्टि पर लौट कर, अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर, भृकुटि पर आ कर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर पूरा अटेंशन देते हुए अब मैं इस बात का विशेष ध्यान रखती हूँ कि ऐसा कोई भी विकर्म मुझ से न हो या ऐसी कोई भी उल्टी चलन मुझ से ना चली जाए* जिससे मेरी तकदीर को लकीर लग जाये। 

➳ _ ➳  *इसलिए हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए, अपने भाग्यविधाता भगवान बाप द्वारा मिली भाग्य की कलम से अपने भाग्य का निर्माण करने के लिए श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर, अपनी तकदीर की श्रेष्ठ तस्वीर बना रही हूँ*

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं समस्याओं को समाधान रूप में परिवर्तित करने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं विश्व कल्याणी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं आत्मा किसी की कमी, कमजोरी का वर्णन करने से मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा गुणों का ही वर्णन करती हूँ ।*
✺ *मैं गुणस्वरुप आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  जब 9 लाख आयेंगे तो साधन स्वतः जुट जायेगा। घबराओ नहीं, हाल बनाना पड़ेगा। देखो, भविष्य बहुत बहुत उज्जवल है। सब साधन मिल जायेंगे। बने बनाये हाल आपको मिलेंगे। बनाने नहीं पड़ेंगे। *सिर्फ जो इस वर्ष का स्लोगन दिया है ना - सफल करो, सफलता है ही। अच्छा।*

 

 _ ➳  टीचर्स अभी स्वयं भी सफल करो और सफल कराओ। सेवा में वृद्धि होना अर्थात् खजानों को सफल किया और कराया। तो इस वर्ष का स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना तो स्वतः ही वृद्धि होती जायेगी। हिम्मत दिलाओ। बापदादा ने देखा है, कोई-कोई स्थान में हिम्मत कम दिलाने की शक्ति है। *हिम्मत दिलाओ, हर कार्य में मन्सा में भी, वाचा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, कर्म में भी हिम्मत दिलाओ।* टीचर्स की सीट ही है - हिम्मत में रहना और हिम्मत दिलाना। क्यों? क्योंकि टीचर्स को जो बाप की मुरली सुनाने का चाँस मिला है और तख्त मिला है, यह एक्सट्रा मदद है। तो हिम्मत और उल्हास दिलाओ। *सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे। सुना टीचर्स ने। उल्हास में लाओ क्लास को।*

 

✺   *ड्रिल :-  "क्लास को हिम्मत और उल्हास दिलाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं चैतन्य आत्मा... भृकुटी के मध्य विराजमान स्वयं को देख रही हूं... *अपने फरिश्ता स्वरूप को इमर्ज किये ये उड़ चला मैं फ़रिश्ता एक रुहानी यात्रा पर...* देह के भान, इस साकार लोक को भी पीछे छोड़ते हुए... चांद तारों से भी पार सूक्ष्मवतन...

 

 _ ➳  *यह आ पहुंचा मैं फ़रिश्ता बापदादा की दुनिया, फरिश्तों के लोक...* चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश हैं... और सामने बापदादा, *चेहरे पर मुस्कान और मीठे बोल लिये "आओ बच्चे आओ इधर आओ" कह बाहें पसारे मेरा स्वागत कर रहे हैं...* बाबा... मीठे बच्चे... बाबा ममतामई दृष्टि से मुझे निहारते हुए... और मैं ये आ पहुँचा बापदादा के समीप...

 

 _ ➳  बापदादा की स्नेह भरी दृष्टि में मैं स्वयं को भूलते जा रहा हूं... मीठे बच्चे... ओ मीठे बच्चे... अचानक मुझे सुध आती है... बापदादा प्यार से मेरे सिर पर अपना हाथ फेर लाड प्यार देते है... *त्रिकालदर्शी बाप मुझ मास्टर त्रिकालदर्शी को दृष्टि दे रहे हैं...* मैं फ़रिश्ता भविष्य सेवा वृद्धि के दृश्य को देख रहा हूं कि किस प्रकार सभी साधन एकाएक अपने आप ही जुट गए हैं... 9 लाख भाई बहन एक बड़े से हाल में बापदादा के सन्मुख बैठे हैं... यह दृश्य देख *भविष्य सेवा को ले मैं अपनी सभी चिंताओं को भूल चुका हूं... मैं बेफिक्र बादशाह हो चला हूं...*

 

 _ ➳  अब मैं फरिश्ता बेहद की रूहानी हिम्मत लिए, उमंग उत्साह से भरपूर अपने सभी खजानों को सफल करते जा रहा हूं... *बापदादा से विदा ले अब मैं आ पहुंचा अपनी स्थूल शरीर स्थूल लोक में...* भृकुटि के मध्य मैं आत्मा स्वयं को निहार रही हूं... *मुझ आत्मा से शक्तिशाली, उमंग उत्साह की किरणे चारों ओर फैल रही हैं... चारों ओर का वायुमंडल उमंगो से तरंगों से उत्साह से भरपूर हो चला है...* उपस्थित सभी आत्माएं सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे रहा है...

 

 _ ➳  *सभी रूहानी गुलाब "मैं आत्मा कल्प कल्प की विजय रत्न हूं" कि स्मृति का तिलक लगाएं अपने सभी खजानों को सफल करते जा रहे हैं...* मनसा, वाचा, कर्मणा सभी खजानों को सफल करते हुए सेवा में वृद्धि को पा रहे हैं... *उनमे एक बेहद की रूहानी हिम्मत, एक नया रूहानी जोश अनुभव हो रहा है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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