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 22 / 02 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपनी जांच की की हम कितना याद में रहते हैं ?*

 

➢➢ *कोई भी विकर्म कर अपना नुक्सान तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *विशेषताओं के दान द्वारा महान बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सदा आत्म अभिमानी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अभी मन्सा की क्वालिटी को बढ़ाओ तो क्वालिटी वाली आत्मायें समीप आयेंगी। इसमें डबल सेवा है - स्व की भी और दूसरों की भी।* स्व के लिए अलग मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। प्रालब्ध प्राप्त है, ऐसी स्थिति अनुभव होगी। *इस समय की श्रेष्ठ प्रालब्ध है ‘‘सदा स्वयं सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न रहना और सम्पन्न बनाना’’।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सारे विश्व के अंदर विशेष आत्मा हूँ"*

 

✧  सारे विश्व में विशेष आत्मायें हैं, यह स्मृति सदा रहती है? *विशेष आत्माएं सेकण्ड भी एक संकल्प, एक बोल भी साधारण नहीं कर सकती। तो यही स्मृति सदा समर्थ बनाने वाली है। समर्थ आत्मायें हैं, विशेष आत्मायें हैं यह नशा और खुशी सदा रहे। समर्थ माना व्यर्थ को समाप्त करने वाले।*

 

✧  जैसे सूर्य अन्धकार और गन्दगी को समाप्त कर देता है। *ऐसे समर्थ आत्मायें व्यर्थ को समाप्त कर देती हैं। व्यर्थ का खाता खत्म, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बोल, सम्पर्क और सम्बन्ध का खाता सदा बढ़ता रहे। ऐसा अनुभव है! हम हैं ही समर्थ आत्मायें यह स्मृति आते ही व्यर्थ खत्म हो जाता।* विस्मृति हुई तो व्यर्थ शुरू हो जायेगा। स्मृति स्थिति को स्वत: बनाती हैं। तो स्मृति स्वरूप हो जाओ। स्वरूप कभी भी भूलता नहीं। आपका स्वरूप है स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। बस यही अभ्यास और यही लगन। इसी लगन में सदा मग्न - यही जीवन है।

 

  कभी भी किसी परिस्थिति में वायुमण्डल में उमंग-उत्साह कम होने वाला नहीं। सदा आगे बढ़ने वाले। क्योंकि संगमयुग है ही उमंग-उत्साह प्राप्त कराने वाला। *यदि संगम पर उमंग-उत्साह नहीं होता तो सारे कल्प में नहीं हो सकता। अब नहीं तो कब नहीं। ब्राह्मण जीवन ही उमंग-उत्साह की जीवन है। जो मिला है वह सबको बाँटे यह उमंग रहे। और उत्साह सदा खुशी की निशानी है। उत्साह वाला सदा खुश रहेगा। उत्साह रहता - बस, पाना था वो पा लिया।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *मन के ऊपर ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर हो, जैसे यह स्थूल कर्मेन्द्रियाँ हाथ हैं, पाँव है, उसको जब चाहो जैसे चाहो वैसे कर सकते हो, टाइम लगता है क्या!* अभी सोचो हाथ ऊपर करना है, टाइम लगेगा? कर सकते हो ना! अभी बापदादा कहे हाथ ऊपर करो, तो कर लेंगे ना! करो नहीं, कर सकते हो।

 

✧  *ऐसे मन के ऊपर इतना कन्ट्रोल हो, जहाँ एकाग्र करने चाहो, वहाँ एकाग्र हो जाए।* मन चाहे हाथ, पाँव से सूक्ष्म है लेकिन है तो आपका ना! मेरा मन कहते हो ना, तेरा मन तो नहीं कहते हो ना! तो *जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियाँ कन्ट्रोल में रहती हैं, ऐसे ही मन-बुद्धि-संस्कार कन्ट्रोल में हो तब कहेंगे नम्बरवन विजयी।*

 

✧  साइन्स वाले तो राकेट द्वारा व अपने साधनों द्वारा इसी लोक तक पहुँचते हैं, ज्यादा में ज्यादा ग्रह तक पहुँचते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण आत्मायें तीनों लोक तक पहुँच सकते हो। सेकण्ड में सूक्ष्म लोक, निराकारी लोक और स्थूल में मधुबन तक तो पहुँच सकते हो ना! *अगर मन को ऑर्डर करो मधुबन में पहुँचना है तो सेकण्ड में पहुँच सकते हो? तन से नहीं, मन से।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दु खिसक जाता है। ऐसे यह छोटा बिन्दु भी हाथ से खिसक जाता है। *जितना-जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल?* इस रीति न्यारे होंगे तो शरीर के भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा। *अभी-अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी-अभी उतारा। मुख्य पुरुषार्थ इस विशेष बात पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आयेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ज्ञान रत्नों का धंधा करना"*
 
➳ _ ➳  सत्य के प्रकाश से कोसो दूर मै आत्मा... देह के रिश्तो और धंधो में फंसी हुई, जकड़ी हुई थी... कि अचानक मीठे बाबा ने मुझे अपना हाथ देकर उस देह के दलदल से बाहर खींच लिया... और *आज अपना चमकदार जीवन और उज्ज्वल भविष्य को पाकर मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हो गयी हूँ.*.. इसी मीठे चिंतन में खोयी हुई मै आत्मा... फ़रिश्ते रूप में दिल की गहराइयो से, मीठे बाबा का शुक्रिया करने... और बाबा को बेपनाह प्यार करने वतन में पहुंचती हूँ...
 
❉   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अलौकिकता से सजाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *सदा ईश्वरीय यादो में डूबकर, सारी शक्तियो और खजानो से सम्पन्न बनकर, देवताई सुखो के मालिक बन मुस्कराओ.*.. ईश्वरीय साथ का यह समय बहुत कीमती है, इसे हर पल ईश्वरीय यादो में लगाओ... सिर्फ मीठे बाबा और वर्से को याद करने का ही धंधा करो..."
 
➳ _ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा संग यादो में झूलते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी यादो की छत्रछाया में पलकर कितनी सुखी हो गयी हूँ... *हर साँस आपको याद कर, अथाह सुखो और धन सम्पदा की मालिक बन रही हूँ.*.. देह की मिटटी से निकल ईश्वरीय यादो में खो गयी हूँ..."
 
❉   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपनी यादो की तरंगो से भिगोते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... देहभान से निकल, अपने सत्य स्वरूप के नशे में डूबकर... हर समय मीठे बाबा को याद करो... *यादो में ही सारे सुख समाये है... इसलिए बाकि सारे धंधे छोड़, सिर्फ मीठे बाबा को ही याद करने का धंधा करो.*.. और सतयुगी मीठे सुख को याद करो..."
 
➳ _ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के ज्ञान वचनो को दिल में उतारते हुए कहती हूँ :-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... *आपकी मीठी प्यारी यादो में, मै आत्मा अतुल खजानो को पाती जा रही हूँ.*.. सबको आपका परिचय देकर, सच्चे प्रेम सुख शांति की राहो पर चला रही हूँ..."
 
❉   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो के मीठे अहसासो में डूबते हुए कहा :-* "मीठे सिकीलधे लाडले बच्चे... देह के सारे धंधो को अब छोड़, सिर्फ रूहानी धंधा करो... *हर घड़ी, हर साँस, हर संकल्प, से मीठे बाबा और असीम खजानो दौलत को ही याद करो..*. याद करते करते, सुखो भरी खुबसूरत दुनिया के मालिक बन जायेंगे... इसलिए सिर्फ यादो का ही कारोबार करो..."
 
➳ _ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ को बुद्धि पात्र में समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मुझ आत्मा ने जीवन का कितना समय देह के रिश्तो के पीछे खपा दिया... और अब जो आप मिले हो तो मै आत्मा... *हर साँस आपकी याद में ही खोयी हुई हूँ... आपकी यादो के सिवाय मुझे अब कोई कार्य नही... आपकी यादे और देवताई जीवन ही मेरी सांसो का लक्ष्य है..*." मीठे बाबा को अपने दिल की बात बताकर मै आत्मा स्थूल जगत में आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  ऐसा कोई कर्म नही करना है जो दिल खाती रहे*"

➳ _ ➳  संगमयुग का यह अमूल्य समय जबकि भगवान स्वयं हमारे सम्मुख हैं और आ कर हमें अपने श्रेष्ठ मत देकर कल्प - कल्प, जन्म - जन्मांतर के लिए हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं तो *कितने सौभाग्यशाली हैं वो बच्चे जिन्होंने भगवान को पहचान लिया है और उसकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करके भविष्य जन्म - जन्म के लिए अपनी श्रेष्ठ तकदीर बना रहें हैं*। और कितने दुर्भाग्यशाली है वो बच्चे जो भगवान का बन कर भी अपनी मत पर चल कर गलत कर्म करते ही जा रहें हैं , इस बात से भी अंजान है कि भगवान का बन कर विकर्म करना मांना स्वयं को बहुत बड़ा श्राप देना है। 
➳ _ ➳  यह विचार करते - करते भक्ति मार्ग की कुछ बातें स्मृति में आने लगती है जो शास्त्रों में लिखी हुई हैं कि जब कोई शिष्य अपने गुरु की किसी बात की अवज्ञा करता था तो गुरु उसे श्राप दे देता था। *यहां तो भगवान बाप बन कर अपने बच्चों के सम्मुख आया हैं तो एक बाप भला कैसे अपने बच्चों को श्राप दे सकता है*! भगवान कभी अपने बच्चों को श्राप नही देता वो तो करुणा, प्रेम, दया का सागर है, दाता है। अपनी श्रेष्ठ मत देकर, बच्चों को श्रेष्ठ कर्म करना सिखलाते है और उन्हें अविनाशी सुखों से भरपूर कर देते हैं। इसलिए *उनकी श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठ कर्म करना माना स्वयं पर कृपा करना और उनकी मत के विरुद्ध अपनी मत पर चलना या पर मत पर चलना माना स्वयं ही स्वयं को श्रापित करना*।

➳ _ ➳  यह सभी विचार करते हुए मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि मैं अपने भगवान बाप की श्रीमत को छोड़, मनमत वा परमत पर चल कभी भी कोई ऐसा कर्म नही करूँगी जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये। *मन मे इसी दृढ़ संकल्प को लेकर करुणा, प्रेम, दया के सागर अपने मीठे प्यारे बाबा की मीठी यादों के झूले में बैठ, उनके साथ जैसे ही मैं मन बुद्धि का कनेक्शन जोड़ती हूँ, बाबा अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाकर मुझे अपनी बाहों में भर लेते हैं*। मैं आत्मा अब अपने पिता की सर्वशक्तियों की किरणो रूपी बाहों को थामे नश्वर देह से बाहर आ जाती हूँ और अपने पिता के पास उनके मीठे वतन की ओर चल पड़ती हूँ।

➳ _ ➳  अपने मीठे बाबा की शक्तिशाली किरणो रूपी बाहों के झूले में झूलती, उनके मधुर और पावन प्रेम का अनुभव करती, *बड़ी ही आनन्दमयी स्थिति में स्थित मैं पाँच तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर, बापदादा की अव्यक्त दुनिया को भी पार कर, अपने प्राण प्रिय शिव पिता की निराकारी दुनिया में प्रवेश करती हूँ*। अपने शिव पिता की बाहों से नीचे उतर कर अपने बाबा के इस स्वीट साइलेन्स होम में विचरण करती, इस पूरे ब्रह्मांड में फैले सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन को गहराई तक अपने अंदर समाते हुए मैं असीम सुख का अनुभव करके, अपने प्यारे बाबा के पास आ कर बैठ जाती हूँ। 

➳ _ ➳  बाबा का अथाह स्नेह सर्वशक्तियों के रूप में मुझ पर बरस रहा है। अपनी शक्तियों का समस्त बल बाबा मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान सर्व शक्ति सम्पन्न बना रहे हैं ताकि वापिस कर्मभूमि पर जाकर, ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जिससे मुझे श्रापित होना पड़े। *बाबा का प्यार, बाबा के गुण, बाबा की शक्तियों की वर्षा निरन्तर मुझ पर हो रही हैं और मैं स्वयं को सर्वगुण, सर्व शक्ति सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ*। भरपूर होकर अब मैं वापिस साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। *बाबा के स्नेह, गुणों और शक्तियों का बल मुझे कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन से नयारा बना रहा है*। 

➳ _ ➳  हर कर्म अपने प्यारे बाबा की याद में रह कर अब मैं कर रही हूँ और इस बात पर पूरा अटेंशन दे रही हूँ कि ऐसा कोई भी कर्म मुझ से ना हो जो मेरे इस अमूल्य ब्राह्मण जन्म को श्रापित करे। *बाबा ने जो समझानी मुझे दी है कि "ऐसा कोई भी कर्म नही करना है जो अपने ऊपर कृपा के बजाए श्राप आ जाये" को अब मैं सदा स्मृति में रखते हुए अपने हर कर्म को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं विशेषताओ को दान करने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं महान आत्मा हूँ।*
✺   *मैं महादानी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺  *मैं आत्मा सदा आत्म अभिमानी रहती हूँ ।*
✺  *मैं आत्मा सबसे बड़ी ज्ञानी हूँ ।*
✺  *मैं ज्ञान स्वरुप आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है। तो सारे दिन में यह ड्रिल करो - मन की ड्रिल।* शरीर की ड्रिल तो शरीर के तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो क्योंकि आजकल दवाईयों से भी एक्सरसाइज आवश्यक है। वह तो करो और खूब करो टाइम पर। सेवा के टाइम एक्सरसाइज नहीं करते रहना। बाकी टाइम पर एक्सरसाइज करना। *जब बाप समान बनना है तो एक है - निराकार और दूसरा है - अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा।*

 

 _ ➳  *तो बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन एक्सरसाइज करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा - डबल लाइट। सेवा का बोझ नहीं।अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी।* अभी-अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो? (बापदादा ने ड्रिल कराई) यह अभ्यास और अटेन्शन चलते-फिरते, कर्म करते बीच-बीच में करते जाना। तो *यह प्रैक्टिस मन्सा सेवा करने में भी सहयोग देगी और पावरफुल योग की स्थिति में भी बहुत मदद मिलेगी।*

 

✺   *ड्रिल :-  "निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज करना"*

 

 _ ➳   नीले गगन में भोर से कुछ पहले चन्द्रमा की शीतल चांदनी के साथ टिमटिमाते इका दुक्का सितारे अभी भी नभ में छाए हुए हैं... मैं आत्मा एकटक एक चमकीले सितारे को निहार रही हूं... ये तेज चमकता सितारा कल्पना मे लाती हूं... *अपने पारलौकिक पिता का निराकारी स्वरूप समस्त ब्रह्मांड का इकलौता अलौकिक सितारा जिसके आगे नभ मण्डल के सब सितारे एक साथ आ जायें तो भी उनकी चमक फीकी है... ऐसा है मेरा प्यारा निराकारी शिव बाबा...*

 

 _ ➳  *स्थूल देह से निकल निराकारी स्वरूप में... बादलों से ऊपर... चांद सितारों से भी आगे... मैं आत्मा उड़ चली मूल वतन की ओर... मिलन मनाने अपने जन्म जन्मांतर के बिछड़े साथी से...* पहुँचती हूं, मैं आत्मा अपने घर में... कितनी अद्भुत छटा है इसकी! *बाबा अपनी किरणें फैलाये मेरा स्वागत करते हैं... इन किरणों रूपी बाहों से लिपट... मैं आत्मा उस अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूं... असीम शान्ति मेरे अंदर भरती जा रही है...*

 

 _ ➳  अपनी अनंत किरणें बाहें सा पसार कर... गुण शक्तियों की माला पहनाकर... *निराकार शिव पिता मुझे अपनी किरणों रूपी बाहों में समाए लेकर चलते हैं मुझे एक और अलौकिक अनुभव कराने पहुंचते हैं... सूक्ष्म वतन में जहाँ बापदादा मुझे सजाते हैं... फ़रिश्ताई ड्रेस में... जिसे पहन मैं फ़रिश्ता डबल लाइट स्थिति का अनुभव करती हूं...*

 

 _ ➳  *बाबा की छत्रछाया तले बैठ, मैं फ़रिश्ता अपने को बहुत शक्तिशाली पाता हूँ...* इस हल्केपन को प्राप्त कर... मैं फ़रिश्ता उड़ के जाता हूँ... साकारी दुनिया के ऊपर... और विश्व की सभी आत्माओं को बाबा से प्राप्त प्रेम, आनन्द और पवित्रता की किरणें दे रहा हूं... *बाबा की अनुभूति मात्र से ही समस्त आत्माएँ आनन्द विभोर हो उठी हैं...*

 

 _ ➳  *कितना आनन्दमयी अनुभव है ये निराकारी और फरिश्ते स्वरूप का... एकदम हल्का... निर्बोझ स्थिति... अंतर्मन में शांति ही शान्ति, मैं अपने आत्मिक स्वरूप में एकदम सरलचित्त आनंदचित्त अनुभव कर रही हूं...* और इसी स्वरूप में टिके रहना चाहती हूं बार बार... *पल में निराकारी पल में फ़रिश्ता बाप समान बनने का ये अनुभव बड़ा निराला है... अब मैं यह अभ्यास मन को लगातार करवाती हूं... और इसी अभ्यास से मनसा सेवा को  निर्विघ्न करती हूं... धन्यवाद मीठे बाबा प्यारे बाबा...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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