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 31 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *मनसा वाचा कर्मणा क्रोध तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *ज्ञान और योग में मस्त रह अंतिम सीन सीनरी देखी ?*

 

➢➢ *रूहानी ड्रिल के अभ्यास द्वारा फाइनल पेपर में पास हुए ?*

 

➢➢ *अपने विकारी स्वभाव संस्कार को समर्पित किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *आप अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को सिद्ध कर सकते हो।* वह रिद्धि सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी। *वह रिद्धि सिद्धि यूज करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्भय, निर्वैर हूँ"*

 

  आप सब बच्चे 'निर्भय' हो ना। क्यों? क्योंकि आप सदा 'निर्वैर' हो। *आपका किसी से भी वैर नहीं है। सभी आत्माओंके प्रति भाई-भाई की शुभ भावना, शुभ कामना है। ऐसी शुभ भावना, कामना वाली आत्मायें सदा निर्भय रहती हैं।* भयभीत होने वाले नहीं। स्वयं योगयुक्त स्थिति में स्थित हैं तो कैसी भी परिस्थिति में सेफ जरूर हैं1 तो सदा सेफ रहने वाले हो ना?

 

 

  *बाप की छत्रछाया में रहने वाले सदा सेफ है। छत्रछाया से बाहर निकले तोफिर भय है। छत्रछाया के अन्दर निर्भय हैं। कितना भी कोई कुछ भी करे लेकिन बाप की याद एक किला है।* जैसे किले के अन्दर कोई नहीं आ सकता, ऐसे याद के किले के अन्दर सेफ। हलचल में भी अचल। घबराने वाले नहीं। यह तो कुछ भी नहीं देखा। यह रिहर्सल है। रीयल तो और है। रिहर्सल पक्का कराने के लिए की जाती है। तो पक्के हो गये, बहादुर हो गये?

 

  बाप से लगन है तो कैसी भी समस्याओंमें पहुँच गये। *समस्या जीत बन गये लगन निर्विग्न बनने की शक्ति देती है। बस सिर्फ 'मेरा बाबा' यह महामंत्र याद रहे। यह भूला तो गये। यही याद रहा तो सदा सेफ हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अव्यक्त में सर्वीस कैसे होती है? यह अनुभव होता जाता है? अव्यक्त में सर्वीस का साथ कैसे सदैव रहता है। यह भी अनुभव होता है? जो वायदा किया है कि स्नेही आत्माओं के हर सेकण्ड साथ ही है। ऐसे सदैव साथ का अनुभव होता है? *सिर्फ रूप बदला है लेकिन कर्तव्य वही चल रहा है*।

 

✧  *जो भी स्नेही बच्चे है उन्हों के ऊपर छत्र रुप में नजर आता है* छत्रछाया के नीचे सभी कार्य चल रहा है। ऐसी भासना आती है।  व्यक्त से अव्यक्त, अव्यक्त से व्यक्त में आना यह सीढी उतरना और चढना जैसे आदत पड गयी है। अभी - अभी वहाँ , अभी - अभी यहाँ। जिसकी ऐसी स्थिती हो जाती है , अभ्यास हो जाता है जो उसको यह व्यक्त देश भी जैसे अव्यक्त भासता है। स्मृती और दृष्टी बदल जाती है।

 

✧  सभी एवररेडी बनर बैठे हुए हो? कोई भी देह के हिसाब - किताब से भी हल्का। वतन में शुरू - शुरू में पक्षियों कि खेल दिखलाते थे, पक्षीयों को उडाते थे। वैसे आत्मा भी पक्षी है, जब चाहे तब उड सकती है। वह तब हो सकता है जब अभ्यास हो। *जब खुद उडता पक्षी बनें तब औरों को भी एक सेकण्ड में उडा सकते है*। अभी तो समय  लगता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आकार को देखते निराकार को देखने का अभ्यास हो गया है? जैसे बाप आकार में निराकार आत्माओं को ही देखते हैं, वैसे ही बाप समान बने हो? *सदैव जो श्रेष्ठ बीज़ होता है उसी तरफ ही दृष्टि और वृत्ति जाती है। तो इस आकार के बीच श्रेष्ठ कौन-सी वस्तु है? निराकार आत्मा। तो रूप को देखते हो व रूह को देखते हो?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  बाप ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा भाग्य विधाता बाप की संतान श्रेष्ठ भाग्यवान होने के नशे में झूमती, नाचती, गाती हुई प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... मीठे बाबा तुरंत आकर मुझे अपने साथ एक सुन्दर से गुलाब के बगीचे में लेकर जाते हैं... सुन्दर-सुन्दर फूलों की महक चारों ओर के वायुमंडल को सुगन्धित कर रही है...* रंग-बिरंगी तितलियाँ रंग-बिरंगी फूलों पर अपना प्यार बरसा रही हैं... चहकते हुए पक्षी अपने मधुर संगीत से समां बांध रहे हैं... इस सुन्दर खुशनुमा वातावरण में बाबा का हाथ पकड़ बगीचे की सैर करती हुई मैं आत्मा बाबा से बातें कर रही हूँ...

 

   *प्यारे बाबा मुझे विकारों की दलदल से निकाल गुलगुल फूल बनाते हुए कहते हैं:-* मेरे लाडले बच्चे... फूलो जैसे सुंदर खिले मेरे बच्चे... दुखो की दुनिया में बेहाल हो गए हो... *मै अपने बच्चों को सुखो की दुनिया में खिलते फूल बनाने आया हूँ... सुखो का मीठा स्वर्ग वर्सा देने आया हूँ... मुक्ति और जीवनमुक्ति देने मै विश्व पिता धरती पर उतर आया हूँ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा विभिन्न रंगों से सजे हुए अपने सतरंगी भाग्य को देख कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा दुखो को अपनी तकदीर समझ कितने अंधकार में जी रही थी... आपने आकर बाबा मुझे सुखो का सूरज दिखा दिया है...* अलौकिक खुशियो से दामन सजा दिया है...

 

   *प्यारे बागवान बाबा मुझ रूहानी गुलाब को महकाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... अपने ही लाडलो का दुःख मै विश्व पिता भला कैसे देख पाऊं... *मेरे फूलो को कुम्हलाता मै बागवान कैसे झेल पाऊँ... अपने मीठे बच्चों को सुखो का खुशनुमा स्वर्ग देने दौड़ा ही चला आऊं... मेरे बच्चे सदा के लिए सुखी हो जाएँ तो मै विश्व पिता मीठा सुकून पाऊं...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा खुशियों से अपना दामन सजाते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खुशियो संग मुस्करा उठी हूँ... *दुखो से सदा की अनजान और खुशियो का पता जान चुकी हूँ... आपको पाकर सदा की भाग्यशाली हो गई हूँ...”*

 

   *मेरे बाबा हथेली पर स्वर्ग की सौगात सजाकर कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मुझसे दूर होकर जो घर से निकले तो दुखो की नगरी में विकारो के कंटीले तारो में लहुलहानं हो गए... *अब प्यारा बाबा आ गया अपने बच्चों की सुध लेने... उन्हें फूलो सा खिलाने और खूबसूरत दुनिया में ले जाकर विश्व का मालिक बनाने... और सुख शांति की दुनिया के महलो में बिठाने...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वयं को सर्व वरदानों से सजी, संवरी देख खुश होते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा को पाकर जादुई अहसासो से भर उठी हूँ... *मीठा बाबा मुझे सजाने सवांरने के लिए ज्ञान और योग के पंखो को ले आया है... मुझे फ़रिश्ता सा बना अपने दिल के आसमाँ पर बिठाने आया है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  एक दो को दुख नही देना है*"

 

_ ➳  दुखों से लिबरेट कर, सबको सुख देने वाले दुख हर्ता सुख कर्ता, सदा कल्याणकारी *अपने सदाशिव भगवान बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बन सबको खुशी देने और डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से कभी भी किसी को दुख ना देने का स्वयं से वायदा कर, मैं दया के सागर, सुख के सागर अपने निराकार शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और उनके पास ले जाने वाली अति सुखदायी आंतरिक यात्रा पर धीरे - धीरे अग्रसर होती हूँ। मन और बुद्धि जैसे - जैसे स्थिर होने लगते हैं और जैसे - जैसे एकाग्रता की शक्ति बढ़ने लगती है मुझे मेरा वास्तविक स्वरूप बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देने लगता है।

 

_ ➳  अपनी साकार देह में अपनी दोनों आइब्रोज़ के बीच अपने आपको एक चमकते हुए सितारे के रूप में मैं देख रही हूँ। *उस सितारे में से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मुझे बहुत सुखद एहसास करवा रहा है और उस प्रकाश की सतरँगी किरणों में अपने अंदर निहित सातों गुणों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से निकल कर, चारो ओर फैलता हुआ मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। अपने निज स्वरूप से निकल रहे इन सातों गुणों के वायब्रेशन्स को एक रंग बिरंगे फव्वारे से निकल रही फ़ुहारों के रूप में अपने ही शरीर पर पड़ता हुआ मैं अनुभव कर रही हूँ। 

 

_ ➳  मैं देख रही हूँ जैसे - जैसे ये फुहारें मेरे शरीर पर पड़ रही है मेरे शरीर के सभी अंग एक - एक करके शिथिल हो रहें हैं। अपने आपको मैं एक दम रिलेक्स महसूस कर रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे शरीर का भान बिल्कुल समाप्त हो गया है और मैं बिल्कुल अशरीरी हो गई हूँ*। जैसे मक्खन से बाल निकलता है ऐसे इस अशरीरी अवस्था में मैं आत्मा बिल्कुल सहज रीति देह से बिल्कुल न्यारी होकर अब भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ उससे बाहर आ गई हूँ। 

 

_ ➳  दैहिक दुनिया के हर बन्धन से मुक्त इस अवस्था मे मैं स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ। यह हल्कापन मुझे धरनी के आकर्षण से मुक्त करके, ऊपर की ओर उड़ा रहा है। *धीरे - धीरे मैं चमकता सितारा अपनी खूबसूरत आंतरिक यात्रा के इस पहले को पड़ाव को पार कर अब ऊपर आकाश की ओर जा रहा हूँ*। निरन्तर अपनी मंजिल की ओर बढ़ती हुई मैं चैतन्य शक्ति आत्मा आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को पार करती हुई अब अपनी मंजिल, अपने शांति धाम घर में अपने सुख सागर बाबा के पास पहुँच चुकी हूँ। 

 

_ ➳  बाबा के पास पहुँच कर उनसे आ रही सुख की किरणों के शीतल झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्वयं को उनके सुख की किरणों से भरपूर कर स्वयं को उनके समान मास्टर सुख का सागर बना रही हूँ। *बाबा से आ रही सुख की पीले रंग की शक्तियों का झरना झर - झर करके मेरे ऊपर बहता ही जा रहा है और उन शक्तियों को मैं अपने अन्दर गहराई तक समाती जा रही हूँ*। अपने सुख सागर बाबा से सुख की अनन्त शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौटती हूँ। 

 

_ ➳  अपने सुख सागर बाप से अपने अंदर भरी हुई सुख की शक्ति मुझे बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बना रही है। अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर रहम की दृष्टि रखते हुए, सुख के वायब्रेशन उन्हें देकर मैं सबको सुख का अनुभव करवा रही हूँ। *कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा मेरे सम्पर्क में क्यो ना आये, किन्तु डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से किसी को भी दुख ना पहुँचाकर, सबके प्रति शुभभावना शुभकामना रखते हुए, मैं मास्टर सुख का सागर बन सबको सुख देकर, सबकी दुआयों की पात्र आत्मा बन रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं रूहानी ड्रिल की अभ्यासी आत्मा हूँ।*

   *मैं फाइनल पेपर में पास होने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा शक्तिशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अपने विकारी स्वभाव-संस्कार व कर्म को समर्पित करती हूँ  ।*

  *मैं समर्पित आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा विकारों से सदैव मुक्त हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मन में बहुत कुछ आपके भरा हुआ है, *बापदादा के पास मन को देखने का टी.वी. भी है।* यहाँ यह टी.वी. तो बाहर का शक्ल दिखाती है ना। लेकिन *बापदादा के पास हर एक के हर समय के मन के गति का यन्त्र है। तो मन में बहुत खजाने हैं, बहुत शक्तियाँ हैं। लेकिन कर्म में यथाशक्ति हो जाता है। अभी कर्म तक लाओ, वाणी तक लाओ, चेहरे तक लाओ, चलन में लाओ।* तभी सभी कहेंगे, जो आपका एक गीत है ना, शक्तियाँ आ गई...। *सब शिव की शक्तियाँ हैं। पाण्डव भी शक्तियाँ हो। फिर शक्तियाँ शिव बाप को प्रत्यक्ष करेंगी।* अभी छोटे-छोटे खेलपाल बन्द करो। अब वानप्रस्थ स्थिति को इमर्ज करो। तो *बापदादा सभी बच्चों को, इस समय बापदादा की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के सितारे देख रहे हैं। कोई भी बात आवे तो यह स्लोगन याद रखना - 'परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन'।*

 

✺   *ड्रिल :-  "मन के खजानों को कर्म में लाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं शिव की शक्ति शिव शक्ति हूँ... अपने आप को इस स्वमान में स्थित कर मैं आत्मा अपने प्राणप्यारे शिव बाबा की यादों में खो जाती हूं...* "यादों के आँचल में बाबा बसा लो किरणों के आँचल में हमको समा लो... तुमसे तनिक दूर जाएं ना हम... तुम बिन कहीं रह ना पाएं अब हम..." अब मैं पहुँचती हूं... अपने फरिश्ताई स्वरूप में... बापदादा के पास... बाबा बड़े प्यार से मेरा स्वागत करते हैं... बाबा के चमकते ललाट से अद्भुत किरणें निकल मेरी सूक्ष्म काया पर आकर उसे अलौकिक रूप दे रही हैं... *बाबा मेरे सर पर वरदानी हाथ रख वरदान देतें हैं... विश्व परिवर्तक भव! शक्ति स्वरूपा भव! और मैं आत्मा अपने में इन वरदानो को समाहित होता देखती हूँ...*

 

 _ ➳  *मेरे मन बुद्धि में जैसे जैसे यह वरदान समाहित होते जाते है.. वैसे वैसे मैं आत्मा अपने को बेहद शक्तिशाली अनुभव करती जा रही हूं...* बाबा ने मेरे मन के ख़ज़ानों को मेरे सामने रख दिया है... मेरे स्वमान का सही स्वरूप और कार्य बाबा ने मुझे दिखाया है... *मुझे शिव शक्ति बन परिवर्तन करना है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बाबा की आशाओं का चमकता सितारा हूं... मैं शिव की शक्ति हूं... इसी दृढ़ निश्चय को लेकर मैं शक्ति स्वरूपा बन बाबा की दी हुई मेरे मन के खजाने में भरी इन शक्तियों को अपने कर्म में ला रही हूं...* अब ये शक्तियां मेरी चलन, चेहरे और वाणी में प्रत्यक्ष होती जा रही हैं... इन्हें देख इनसे प्रभावित हो अन्य आत्मायें भी परिवर्तित होती जा रही हैं...

 

 _ ➳  *अब हम सब आत्मायें विश्व को परिवर्तन करती शिव शक्तियां बन शिव बाबा की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजा रही हैं...* हम सभी बाबा की आशाओं को पूर्ण करने वाले सितारे बन पूरे आकाश में आच्छादित होते जा रहे हैं... *सम्पूर्ण नभ बाबा की आशाओं के सितारों से जगमगा उठा है...*

 

 _ ➳  नभ में तभी एक दिव्यता का, एक अलौकिकता का आभास होता है... यकायक नभमंडल की चमक हज़ारों लाखों गुना बढ़ जाती है... उस चमक से सभी सितारे और भी ज्यादा शोभायमान हो गए हैं... *दिखता है इन सब के बीच एक दिव्य सितारा! जिसके प्रकाश से सम्पूर्ण आकाश परिवर्तित हो गया है... और ये और कोई नहीं ये मेरे बाबा हैं...* जो अपने प्यारे सितारों का हौसला अफजाई करने अपना धाम छोड़ यहाँ आए हैं...

 

 _ ➳  *वाह वाह रे! मेरे बाबा... वाह वाह! तुम्हारा क्या कहना... और बाबा की याद में... बाबा के सितारे... गुनगुनाने लगते हैं...* "चमक चम चम चमके है... सितारो में तू ही... चमक चम चम..."

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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