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 09 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *योगबल जमा करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *हर संकल्प, बोल और कर्म को फलदायक बनाया ?*

 

➢➢ *शुभचिन्तक मणि बन अपने किरणों से विश्व को रोशन किया ?*

 

➢➢ *मन की एकाग्रता से एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अशरीरी बनने के लिए समेटने की शक्ति बहुत आवश्यक है।* अपने देह-अभिमान के संकल्प को, देह के दुनिया की परिस्थितियों के संकल्प को समेटना है। शरीर और शरीर के सर्व सम्पर्क की वस्तुओं को, अपनी आवश्यकताओं के साधनों की प्राप्ति के संकल्प को भी समेटना है। *घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य किसी संकल्प का विस्तार न हो-बस यही संकल्प हो कि अब अपने घर गया कि गया।* अनुभव करो कि मैं आत्मा इस आकाश तत्व से भी पार उड़ती हुई जा रही हूँ, इसके लिये अब से अकाल तख्तनशीन होने का अभ्यास बढ़ाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अंधकार में रोशनी करने वाला चैतन्य दीपक हूँ"*

 

   अपने को सदा जगे हुए दीपक समझते हो? *आप विश्व के दीपक, अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार अभी भी 'दीपमाला' मनाई जाती है। तो यह निश्चय और नशा रहता है कि हम दीपमाला के दीपक हैं? अभी तक आपकी माला कितनी सिमरण करते रहते हैं?* क्यों सिमरण करते हैं? क्योंकि अधंकार को रोशन करने वाले बने हो। स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। टिमटिमाने वाले नहीं। 

 

  *कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक। ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं।*

 

  टिमटिमाते दीपकों के साथ नही रहते। *बाप जैसे सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे बच्चे भी सदा अमरज्योति! अमर ज्योति के रुप में भी आपका यादगार है। चैतन्य में बैठे अपने सभी जड़यादगारों को देख रहे हो। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  संस्कार के ऊपर भी कन्ट्रोल होना चाहिए। जब चाहो, जैसे चाहो - जब यह अभ्यास पक्का होगा तब समझो पास विद ऑनर होंगे। तो *बनना लक्ष्मी-नारायण है, तो राज्य कन्ट्रोल करने के पहले स्व-राज्य अधिकारी तो बनो तब राज्य अधिकारी बनेंगे।*

 

✧  इसका भी साधन यही है कि खजाने जमा करो। समझा। अच्छा - इस वायुमण्डल में, मधुबन में बैठे हो। *मधुबन का वायुमण्डल पॉवरफुल है, इस वायुमण्डल में इस समय मन को कन्ट्रोल कर सकते हो?*

 

✧  चाहे मिनट में करो, चाहे सेकण्ड में करो लेकिन कर सकते हो? *ऑर्डर दो मन को, बस आत्मा परमधाम निवासी बन जाओ।* देखो मन ऑर्डर मानता है या नहीं मानता है? (बापदादा ने ड़िल कराई) अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फ़रिश्ते अर्थात् इच्छा मात्रम अविद्या।* जैसे देवताओं के लिए गायन है- इच्छा मात्रम् अविद्या। यह है फ़रिश्ता जीवन की विशेषता। देवताई जीवन में तो इच्छा की बात ही नहीं। *ब्राह्मण जीवन सो फ़रिश्ता जीवन बन जाती अर्थात् कर्मातीत स्थिति को प्राप्त हो जाते।* किसी भी शुद्ध कर्म वा व्यर्थ कर्म वा विकर्म वा पिछला कर्म, किसी भी कर्म के बन्धन में बंध कर करना- इसको कर्मातीत अवस्था नहीं कहेंगे। एक है कर्म का सम्बन्ध, एक है बन्धन। तो जैसे यह गायन है- हद की इच्छा से अविद्या, ऐसे फ़रिश्ता जीवन वा ब्राह्मण जीवन अर्थात् 'मुश्किल' शब्द की अविद्या, बोझ से अविद्या, मालूम ही नहीं कि वह क्या होता है! *तो वरदानी आत्मा अर्थात् मुश्किल जीवन से अविद्या का अनुभव करने वाली।* इसको कहा जाता है- वरदानी आत्मा। तो *बाप समान बनना अर्थात् सदा वरदाता से प्राप्त हुए वरदानों से पलना, सदा निश्चिन्त, निश्चित विजय अनुभव करना।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- अनादि ड्रामा को जानना"*

➳ _ ➳ *सृष्टि रंगमंच पर चल रहे इस बेहद के ड्रामा में हीरो पार्ट धारी मैं आत्मा स्वयं के पार्ट को साक्षी होकर देख रही हूँ*... इस कल्याण कारी ड्रामा की हर सीन बेहद ही खूबसूरत है ... *सत्यं शिवं सुन्दरम् का गहरा एहसास करती हुई मैं आत्मा बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराती हुई अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित हूँ बापदादा के सम्मुख*... और बापदादा आज *श्रीमत पर परफैक्ट बनने की विधि समझाते हुए विचार सागर मंथन के लिए समझानी दे रहे है*।

❉ *स्नेह शक्तियों और गुणों की मिठास खुद में समेटे, मीठा- मीठा कहकर मुझे मीठा बनाने वाले मेरे मीठे बाबा बोले:-* "मेरी मास्टर ज्ञानसागर बच्ची, *जो पास्ट हुआ है वह फिर रिपीट हो रहा है यह बहुत समझने की बात है*, क्या आप इस की गहराई समझ कर अपने इस संगम युगी जीवन के हीरो पार्ट के कर्तव्यों को भली भाँति समझती हो! *सतयुग के अपने यादगार जड चित्रों की महिमा का महत्व समझती हो*? *अपने फ्यूचर के फरिश्ता स्वरूप के फीचर का सबको साक्षात्कार कराती हो*?

➳ _ ➳ *इस पतित दुनिया में पावनता का बादल बन बरसते, बापदादा के रूहानी स्नेह में डूबकर दिव्य बुद्धि मैं आत्मा, पतित पावन बाप से बोली:-* "अपनी पावन ज्ञान गंगा से मेरी बुद्धि को निर्मल और दिव्य बनाने वाले मेरे मीठे बाबा! *स्वदर्शन चक्र की ये जो सौगात आपसे पायी है, इसने मुझ आत्मा की बुद्धि को दिव्य बुद्धि बनाया है। पग पग पर आपके साथ के अनुभवों की मीठी सी सौगात मेरी समझ को और भी गहरा बना रही है*... *इस बेहद के ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त की सारी नाॅलिज अब मेरी बुद्धि में समाँ रही है*...

❉ *विकारों की कैद में कराहती आत्माओ को लिबरेट करने वाले मेरे लिबरेटर शिव बाबा स्नेह से मुस्कुराते हुए बोले:-* " मेरी शिवशक्ति बच्ची, बेहद के ड्रामा में मेरा परिचय सब आत्माओं को देने का दारोमदार तुम बच्ची पर है *गीता ज्ञान दाता मुझ शिव पिता को भूलकर कृष्ण को पूजती आत्माओं को, इस भ्रम से आप बच्ची लिबरेट कराओं... जाओ अब जाकर गीता को करेक्ट कराओं*।अपने जड चित्रों के उपासको को अब अपने चैतन्य रूप की झलक दिखाओं। *परदर्शन में डूबी हर आत्मा को स्वदर्शन का अनुभव कराओं*।

➳ _ ➳ *परम पिता के असीम रूहानी स्नेह की गहरी अनुभूतियों में खोई मैं कल्प कल्प की विशेष आत्मा गुप्त रूहानी सेना के रूहानी कमांडर शिव पिता से बोली:-* "गुप्त वेश में आपकी शक्ति सेना ये कमाल कर रही है बाबा! गीता ज्ञान दाता प्रत्यक्ष हो रहा है, *आप समान बनकर साक्षात चैतन्य मूर्तियाँ एक नये कुरूक्षेत्र में उतर रही है, शिव पिता की प्रत्यक्षता आप स्वयं ही देख रहे है*, श्वेतवस्त्रधारी ये दिव्यात्माए गीता के भगवान को प्रत्यक्ष कर रही है, *परदर्शन से मुक्त होकर, देखो, करोडो आत्माए -"यही है यही है" का अलख जगाती इधर ही आ रही है*।

❉ *दया के सागर, प्रेम के सागर, विषय सागर में डूबे बेडे को पार लगाने वाले हर्षित हो, मन्द मन्द मुस्काते बोले:-* " दिव्य बुद्धि से ड्रामा के हर राज़ को धारण करने वाली मेरी मीठी बच्ची, *ड्रामा ज्ञान के लेकर मूँझने वाली आत्माओं को एक बाप के सच्चे सच्चे रूप का अनुभव करा, सबके प्रति रहमभाव अपनाओं*, किनारा करने वालों के भी सहारा बन विश्वकल्याण के कार्यों को मंजिल तक ले जाओं। *अविनाशी प्यार के धागे में हर आत्मा को पिरोकर ही अपनी अवस्था अविनाशी बनाओ... सभी के कर्म भोग का वर्णन समाप्त कर कर्मयोग का जिक्र सुनो और सुनाओं*।

➳ _ ➳ *बुद्धि रूपी निर्मल आकाश में जगमगाते एक मात्र शिव सूर्य, और उनकी श्रीमत की दिव्य माला गले में धारण किये, मैं आत्मा विचार सागर मंथन से परफैक्ट बनती शिव शिक्षक से बोली:-* "बाबा आपके अविनाशी प्यार की सौगात ही सबको एक धागे से बाँधकर इस रूद्रज्ञान यज्ञ को सम्पूर्ण बना रही है, ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का राज सब आत्माओं की बुद्धि में प्रत्यक्ष हो रहा है, आप ही करावन हार है बाबा! मैने तो हाँजी का पार्ट बजाया है... विचार सागर मंथन के लिए भी आप ही मेरी बुद्धि चला रहे है।... *ये गीता ज्ञान भी आप ही प्रत्यक्ष करा रहे है... सभी आत्माए एक शिव पिता के कल्याणकारी रूप का जयकार कर रही है... और बापदादा मन्द मन्द मुस्कुराते वरदानों से मुझे नवाज़ रहे है*।

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- योग ही सेफ्टी के लिए ढाल है इसलिये योगबल जमा करना है*"

➳ _ ➳ कमल आसन पर विराजमान अपने परम पवित्र स्वरूप में स्थित होकर मैं ब्राह्मण आत्मा अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह एकाग्र करती हूँ और पतित पावन, एवर प्योर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में मग्न होकर बैठ जाती हूँ। *स्वयं को अपने प्राण प्रिय परम पिता परमात्मा की पवित्रता की शक्ति से भरपूर करने के लिए मैं बड़े प्रेम और सिक से उनका आह्वान करती हूँ*। मेरी पुकार सुनते ही पवित्रता के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी पवित्रता की अनन्त किरणे सीधे परमधाम से मुझ आत्मा पर प्रवाहित करने लगते हैं।

➳ _ ➳ एक बहुत तेज लाइट को मैं ऊपर से आते हुए महसूस करती हूँ जो मेरे मस्तक पर पड़ रही है। ये लाइट मुझ आत्मा के साथ कनेक्ट हो चुकी है। *पवित्रता की शक्ति का बहुत तेज प्रवाह इस लाइट के द्वारा मुझ आत्मा में आ रहा है और एक शक्तिशाली करेन्ट के रूप में मेरे सारे शरीर मे प्रवाहित हो रहा है*। मुझ आत्मा के साथ - साथ मेरे शरीर की अशुद्धियां भी इस शक्तिशाली करेन्ट के प्रभाव से जल कर भस्म हो रही हैं और मुझ आत्मा के साथ - साथ मेरा शरीर भी शुद्ध और पवित्र हो रहा है।

➳ _ ➳ मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे रोम - रोम से पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन निकल - निकल कर चारों और फैल रहें हैं। मेरे चारों और पवित्रता का एक औरा निर्मित हो रहा है जो समस्त वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रहा है। *पवित्रता से भरपूर यह वायुमण्डल मुझे एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में स्थित कर रहा है। मेरा स्वरूप एकदम लाइट हो गया है*। स्वयं को अब मैं कमल आसन पर विराजमान अपने लाइट माइट फ़रिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ।
इस लाइट माइट स्थिति में मैं फ़रिश्ता अब स्वयं को धरनी के आकर्षण से मुक्त अनुभव कर रहा हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे परमात्म लाइट मुझे ऊपर की ओर खींच रही है*।

➳ _ ➳ इस लाइट के साथ - साथ मैं फ़रिश्ता अब धीरे - धीरे ऊपर की ओर उड़ता जा रहा हूँ। आकाश को पार करता हुआ, उससे और ऊपर ही ऊपर उड़ते - उड़ते अब मैं फ़रिश्ता एक ऐसी दुनिया मे प्रवेश करता हूँ जहाँ चारो और लाइट ही लाइट है। *ऐसा लग रहा है जैसे एक सफेद चाँदनी की चादर यहाँ बिछी हुई है। जो मन को गहन शीतलता से भरपूर कर रही है*। इस शीतलता का आनन्द लेता हुआ मैं फ़रिश्ता अब वहाँ पहुँच जाता हूँ जहाँ से ये प्रकाश मुझे आता हुआ दिखाई दे रहा है। *मैं देख रहा हूँ सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में खड़े हैं और उनकी भृकुटि में निराकार भगवान विराजमान है। जिनका अनन्त प्रकाश ब्रह्मा बाबा की भृकुटि से निकल कर पूरे वतन को प्रकाशित कर रहा है*।

➳ _ ➳ बापदादा के पास जाकर स्वयं को उनकी लाइट माइट से भरपूर करके और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों, तथा सर्व ख़ज़ानों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर अब मैं योग का बल अपने अन्दर भरने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, सूक्ष्म वतन से ऊपर स्थित अपने निराकार भगवान बाप के निराकारी वतन की ओर चल पड़ती हूँ। *अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर यहाँ मैं अपने बिंदु बाप के साथ मिलन मनाने का भरपूर आनन्द ले रही हूँ। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की एक - एक किरण को अपने अंदर गहराई तक समा कर, एक एक शक्ति का बल मैं अपने अंदर भर रही हूँ*।

➳ _ ➳ बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वाला स्वरूप किरणे योग अग्नि बन कर मेरे विकर्मो को दग्ध कर करने के साथ - साथ मेरे अंदर योग का बल भी जमा कर रही हैं। विकर्मो को विनाश करके और योग का बल अपने अंदर भरकर अब मैं आत्मा निराकारी वतन से वापिस साकार वतन में आ जाती हूँ। *अपने साकार तन में आकर, ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, फिर से कमलआसन पर मैं विराजमान हो जाती हूँ और इस श्रेष्ठ आसन पर स्वयं को सदा स्थित रखते हुए, अभी - अभी साकारी, अभी - अभी आकारी और अभी - अभी निराकारी स्वरूप की ड्रिल बार - बार करते हुए अब मैं अपने अंदर हर समय योगबल और पवित्रता का बल जमा कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं हर संकल्प, बोल और कर्म को फलदायक बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺   *मैं रूहानी प्रभावशाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ *मैं शुभचिंतक मणी हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा अपनी किरणों से विश्व को सदा रोशन करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा लाइट हाउस हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  औरों के सेवा की बहुत-बहुत बहुत-बहुत आवश्यकता है। यह तो कुछ भी नही हैबहुत नाजुक समय आना ही है। ऐसे समय पर *आप उड़ती कला द्वारा फरिशता बन चारों ओर चक्कर लगाते, जिसको शान्ति चाहिएजिसको खुशी चाहिएजिसको सन्तुष्टता चाहिएफरिशते रूप मे साकाश देने का चक्कर लगायेंगे* और वह अनुभव करेंगे। जैसे अभी अनुभव करते है नापानी मिल गया बहुत प्यास मिटी। खाना मिल गयाटेन्ट मिल गयासहारा मिल गया। ऐसे अनुभव करेंगे शांति मिल गई फरिशतों द्वारा। शक्ति मिल गई। खुशी मिल गई। *ऐसे अन्तःवाहक अर्थात् अन्तिम स्थितिपावरफुल स्थिति आपका अन्तिम वाहन बनेगा। और चारों ओर चक्कर लगाते सबको शक्तियाँ देंगे। साधन देंगे।* अपना रूप सामने आता है । *इमर्ज करो। कितने फरिस्ते चक्कर लगा रहे है! सकाश दे रहे है,* तब कहेंगे जो आप एक गीत बजाते हो ना - *शक्तियां आ गई... शक्तियों द्वारा ही सरवशक्तिवान स्वतः ही सिद्ध हो जायेगा। सुना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "अपने अन्तः वाहक शरीर द्वारा सेवा का अनुभव"*

 

 _ ➳  देख रही हूँ मैं आत्मा स्वयं को एक बड़ी सी ऊंची पहाड़ी पर प्रकृति के सानिध्य में बैठे हुए... चारों तरफ एक गहन शांति है... कोई आवाज नहीं... *अब मैं आत्मा चलती हूँ अन्तर यात्रा की ओर... समस्त चेतना को भृकुटि के मध्य केन्द्रित करती हूँ...* केवल अपने इस ज्योतिमय स्वरूप को देख रही हूँ *मैं आत्मा, महसूस कर रही हूँ अपने इस प्रकाशमय स्वरूप को बहुत गहराई से...* जितना गहराई से मैं आत्मा अपने इस स्वरूप को अनुभव करती जा रही हूँ उतना ही *मुझ आत्मा की आंतरिक शक्तियाँ जागृत हो रही है... मुझ आत्मा का प्रकाश बढ़ रहा है...* देख रही हूँ मैं आत्मा अपने इस जगमगाते शक्तिशाली स्वरूप को... तभी मुझ आत्मा की मन रूपी स्लेट पर बाबा के द्वारा कहे महावाक्य उभरने लगते है...

 

 _ ➳  *अन्त:वाहक अर्थात अन्तिम स्थिति, पावरफुल स्थिति आपका अन्तिम वाहन बनेगा । इमर्ज करो अपना यह स्वरूप इमर्ज करो* यह शब्द जैसे कानों में गुंजने लगते है... *मैं आत्मा ड्रामा की रिल को फारवर्ड करती हूँ... और अब मैं आत्मा पहुंच चुकी हूँ, ड्रामा के उस अन्तिम चरण में जहाँ चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है... बेहद दर्दनाक सीन सामने आ रहे हैं... आत्माएँ चिल्ला रही है... रो रही है...* दु:खों के पहाड़ उनके जीवन पर गिर पड़े है... *प्रकृति भी अपना विकराल रूप दिखा रही है... चारों तरफ प्रकृति का प्रकोप है... ना कोई साधन कार्य कर रहे है... ना ही विनाशी धन काम आ रहा है...* एक पल की शांति, खुशी की प्यासी आत्माएँ भटक रही है...

 

 _ ➳  उन्हें कहीं से कोई आशा की किरण नजर नहीं आ रही है... *जहाँ-तहाँ आत्माएँ दर्द में चिल्ला रही है... इस दुनिया की अन्तिम सीन बेहद दर्दनाक है...* आत्माएँ तड़फ रही है... उनकी आँखों में दर्द-दु:ख साफ दिखाई दे रहा है... *इसी अन्तिम सीन में मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को... अपनी बेहद पावरफुल स्टेज को... अपनी इस अन्तिम स्थितिकर्मातीत स्टेज को... यहाँ रहते भी साक्षी दृष्टा हर प्रकार से उपराम अवस्था का अनुभव मैं आत्मा कर रही हूँ...* देख रही हूँ मैं आत्मा अपने इस शक्ति स्वरूप को... जिसमें *संहारी और अलंकारी दोनों स्वरूप एक साथ इमर्ज रूप में है... देख रही हूँ अपने इस कम्बाइंड शिवशक्ति स्वरूप को... लाइट माइट सम्पन्न इस स्थिति को... अपनी इस फरिश्ता स्थिति को...* देख रही हूँ मैं आत्मा...

 

 _ ➳  अब मैं फरिश्ता एक सेकंड में अलग-अलग स्थान पर पँहुच कर सभी दु:खी अशांत आत्माओं को सुख-शांति और खुशी की सकाश दे रहा हूँ... *मैं फरिश्ता जिन्हें शांति चाहिए, उन्हें शांति दाता बन शांति दे रहा हूँ... जिन्हें खुशी चाहिए उन्हें खुशी दे रहा हूँ... जिन्हें सुख चाहिए उन्हें सुख की अनुभूति करा रहा हूँ...* मुझ फरिश्ते के साथ बाबा के सभी बच्चे अपने अन्त: वाहक शरीर द्वारा इस पूरे विश्व में जहाँ जिसे जिस चीज की आवश्यकता है उन्हें दे रही है... *हम सभी फरिश्ते मिलकर सुख, शांति की सकाश इस पूरे विश्व को दे रहे है... चारों ओर चक्कर लगा रहे है... सबको सकाश दे रहे है...* आत्माएँ शांति की अनुभूति कर रही है... सुख की अनुभूति कर रही है...

 

 _ ➳  हम फरिश्तों को देखकर बेसहारा आत्माएँ सहारे का अनुभव कर रही है... *हमें देख भक्त आत्माएँ भी अपने ईष्टों का साक्षात्कार कर सन्तुष्ट हो रही है...* जयजयकार कर रही है... और अब यह गायन प्रत्यक्ष हो रहा है... *शिव शक्तियाँ आ गई धरती पर शिव शक्तियाँ आ गई... घर-घर में होती है जिनकी पूजा... चेतन में वो देवियाँ आ गई... हम फरिश्तों से सबको अनेक साक्षात्कार हो रहे है... हम शिव शक्तियों द्वारा सर्वशक्तिवान प्रत्यक्ष हो रहा है...* हाहाकार से जय-जयकार हो रही है... हम एक-एक फरिश्ते द्वारा एक बाबा प्रत्यक्ष हो रहा है... *सभी आत्माएँ अपने सच्चे पिता, अपने प्यारे पिता को पहचान रही है... एक-एक आत्मा के मुख से निकल रहा है मेरा बाबा आ गया मेरा बाबा आ गया...* उन्हें अपने सत्य स्वरूप का साक्षात्कार हमारे द्वारा हो रहा है... उन्हें अब अपने घर का सही रास्ता मिल गया है... अपने सच्चे पिता और अपने असली घर का पता पाकर *सभी आत्माएँ खुश हो रही है... सच्ची शांति, सुख खुशी सच्चे प्यार की अनुभूति कर रही है... ओम शांति...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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