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 07 / 03 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एक साइलेंस के शुद्ध घमंड में रहे ?*

 

➢➢ *अपना तन मन धन सब अर्पण कर सफल किया ?*

 

➢➢ *निमित भाव की स्मृति से हलचल को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *सर्व बातों में न्यारे बन परमात्म बाप के सहारे का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जीवन में जो चाहिए अगर वह कोई दे देता है तो यही प्यार की निशानी होती है। तो बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख- शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं।* बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं। *साथ-साथ श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो - यही परमात्म प्यार है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान समझते हो? भाग्य में क्या मिला? *भगवान ही भाग्य में मिल गया। स्वयं भाग्य विधाता भाग्य में मिल गया। इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है? तो सदा ये खुशी रहती है कि विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान हम आत्मायें हैं।*

 

  हम नहीं, हम आत्मायें। आत्मायें कहेंगे तो कभी भी उल्टा नशा नहीं आयेगा। *देही-अभिमानी बनने से श्रेष्ठ नशा - ईश्वरीय नशा रहेगा। भाग्यवान आत्मायें हैं, जिन्हों के भाग्य का अब भी गायन हो रहा है।*

 

  *'भागवत' - आपके भाग्य का यादागार है। ऐसा अविनाशी भाग्य जो अब तक भी गायन होता है, इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। कुमारियां तो निर्बन्धन, तन से भी निर्बन्धन, मन से भी निर्बन्धन। ऐसे निर्बन्धन ही उड़ती कला का अनुभव कर सकते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अभी बापदादा सभी को चाहे यहाँ समुख बैठे हैं, चाहे देश-विदेश में दूर बैठे सुन रहे हैं या देख रहे हैं, सभी बच्चों को ड़ि्ल कराते हैं। सभी रेडी हो गये। *सब संकल्प मर्ज कर दो, अभी एक सेकण्ड में मन-बुद्धि द्वारा अपने स्वीट होम में पहुँच जाओ।*

 

✧  *अभी परमधाम से अपने सूक्ष्म वतन में पहुँच जाओ। अभी सूक्ष्मवतन से स्थूल साकार वतन में अपने राज्य स्वर्ग में पहुँच जाओ। अभी अपने पुरुषोत्तम संगमयुग में पहुँच जाओ। अभी मधुबन में आ जाओ।* ऐसे ही बार-बार स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्र लगाते रहो। अच्छा।

 

✧  *अभी एक सेकण्ड में अपने मन से सब संकल्प समाप्त कर एक सेकण्ड में बाप के साथ परमधाम में ऊँचे ते ऊंचे स्थान, ऊँचे ते ऊंचा बाप, उनके साथ ऊँची स्थिति में बैठ जाओ।* और बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान बन विश्व की आत्माओं को शक्तियों की किरणें दो। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सदैव अपने को अकालमूर्त समझते चलेंगे तो अकाले मृत्यु से भी, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच सकेंगे । *मानसिक चिन्तायें, मानसिक परिस्थितियों को हठाने का एक ही साधन याद रखना है - सिर्फ अपने इस पुराने शरीर के भान को मिटाना है। इस देह अभिमान को मिटाने से सर्व परिस्थितियाँ मिट जायेंगी ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- योगबल से सारी सृष्टि को पावन बनाना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वीट बाबा की यादों में मगन होकर उड़ चलती हूँ स्वीट होम... और बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... स्वीट बाबा से स्वीट रंगीन चमकती हुई किरणें निकलकर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं...* मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा स्वीट बाबा के साथ स्वीट होम से नीचे उतरकर फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर अव्यक्त वतन में पहुँच जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी दृष्टि देते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...

 

  *योग अग्नि से पापो को भस्म कर सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... खूबसूरत महकते फूल आत्मा से... देहभान में लिप्त साधारण मनुष्य बनकर... विकारो में फंस पड़े हो... *अब स्वयं के सत्य स्वरूप को ईश्वरीय यादो में उजला करो... योग अग्नि में... सारे पापो को भस्म कर वही दमकता चमकता स्वरूप पुनः पा लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा योग अग्नि से सारे हिसाब-किताब चुक्तु करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपको पाकर निहाल हो गई हूँ... और पिता की मीठी यादो में देहभान के सारे पापो से मुक्त होती जा रही हूँ...* अपने दमकते स्वरूप को पाती जा रही हूँ... और बाबा का हाथ थामे खुशियो में उड़ती जा रही हूँ...

 

  *मीठे बाबा सतयुगी स्वर्णिम सुखों से मुझ आत्मा को मालामाल करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब भगवान को पाकर जीवन को सच्चा बनाओ... *अब और नए हिसाब किताब बनाकर स्वयं को मत उलझाओ... पुराने सारे पापो को ईश्वरीय यादो में जलाओ...* और हल्के खुशनुमा होकर अथाह खुशियो में डूब जाओ... सुंदर देवता बन मुस्कराओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पवित्रता के सफ़ेद किरणों से विकारों की कालिमा को भस्म करते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर सारे विकारो से मुक्त हो गई हूँ... बाबा ने मुझे दमकता सा सुनहरा रंग दे दिया है... *मै आत्मा गुणो और शक्तियो से भरपूर होती जा रही हूँ... और अपने पापो के सारे बोझों को यादो में स्वाहा कर रही हूँ...”*

 

  *सुखों के आसमान तले मेरे भाग्य के सितारे को पारसमणि समान चमकाते हुए पारसनाथ बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे तो सतोप्रधान स्थिति से भरपूर थे... अथाह सुखो के मालिक थे... फिर नीचे उतरते विकारो में गिरकर पापो से भर गए... *अब मीठा बाबा अपनी गोद में बिठा सारे पापो को मिटाकर... स्वर्ग की खूबसूरत सौगात हथेली पर रख ले आया है... और वही सच्चा सोना बनाने आया है...”*

 

_ ➳  *बिंदु बाबा के यादों के सहारे पुराने सारे हिसाब-किताब को बिंदु लगाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की यादो में सतोप्रधान होती जा रही हूँ... फिर से सजकर देवताई स्वरूप पा रही हूँ... *पापो की दुनिया से सारे हिसाबो को खत्म कर... नई सुख़ शांति आनन्द की दुनिया का राज्य भाग्य पा रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  इस रुद्र यज्ञ में खुशी से अपना तन-मन-धन सब अर्पण कर सफल करना है*"
 
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कर्मयोगी बन कर्म करते करते मैं बाबा के गीत सुन रही हूं। तभी गीत में एक पंक्ति आती हैं:- "बच्चो में संकल्प जो आये, वरदाता ही भागे आये"। गीत की इन पंक्तियों को सुनते ही मन में अपने शिव पिता परमात्मा से मिलने का संकल्प उतपन्न हो उठता है और *अपने शिव पिता परमात्मा से मिलने की इच्छा मन मे लिए, अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर, मैं अपने मन बुद्धि को अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करके उन्हें अपने पास आने का आग्रह करती हूं* और देखती हूँ परमधाम से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे की ओर आ रहा हैं जिसमे से अनन्त शक्तियों की किरणें निकल - निकल कर चारों और फैल रही हैं।
 
➳ _ ➳ 
धीरे - धीरे वह ज्योतिपुंज सूक्ष्म लोक में पहुंच कर ब्रह्मा तन में प्रवेश कर जाता है और कुछ ही क्षणों में मैं अपने परमप्रिय परम पिता परमात्मा को उनके आकारी रथ के साथ अपने सम्मुख पाती हूँ। अब मैं देख रही हूं बापदादा को अपने सामने। *उनके आने से वायुमण्डल में चारों ओर जैसे एक रूहानी मस्ती छा गई है। उनसे आ रही शक्तिशाली किरणे मुझ पर पड़ रही है और उन शक्तिशाली किरणों का औरा मुझे विदेही स्थिति का अनुभव करवा रहा है*। मेरा साकार जैसे जड़ हो गया है और उसमें से एक लाइट का सूक्ष्म आकारी शरीर बाहर निकल आया है।
 
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अपने इस सूक्ष्म आकारी लाइट के फरिश्ता स्वरूप में मैं स्वयं को बहुत ही हल्का अनुभव कर रही हूँ। बापदादा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए अपना हाथ मेरी और बढ़ा रहे हैं। बाबा के हाथ मे जैसे ही मैं अपना हाथ रखती हूं।बाबा मेरा हाथ थाम कर मुझे इस साकारी दुनिया से लेकर दूर चल पड़ते हैं। *हर प्रकार की भीड़ - भाड़ से अलग एक बहुत बड़े खुले स्थान पर बाबा मुझे ले आते हैं। बड़े प्यार से मैं बाबा को निहारते हुए इस अलौकिक मिलन का आनन्द ले रही हूं*। तभी अचानक मैं देखती हूँ वो पूरा खुला स्थान जैसे एक बहुत बड़ा कुंड है और उस कुंड में अग्नि की विशाल लपटे निकल रही हैं जो आसमान को छू रही हैं। हैरान हो कर मैं बाबा की ओर देखती हूँ।
 
➳ _ ➳ 
बाबा मेरा हाथ थामे मुझे उस कुंड के बिल्कुल नजदीक ले आते हैं। मनमनाभव का मंत्र दे कर बाबा मुझे उस स्थिति में स्थित करके, अपनी शक्तिशाली किरणे मुझ पर प्रवाहित करने लगते हैं। *मैं देख रही हूं बाबा के मस्तक से, बाबा की दृष्टि से शक्तियों की जवालस्वरूप धाराओं को निकलते हुए*। इन जवालस्वरूप धाराओं रूपी योग अग्नि से निकल रही ज्ञान और योग की पावन किरणे अब मुझ पर पड़ रही हैं और मेरे अंदर से 5 विकारों के भूत एक - एक करके बाहर निकल रहें हैं और इस योग अग्नि में जल कर स्वाहा हो रहें हैं। *इन भूतों के स्वाहा होते ही मेरा स्वरूप जैसे बदल रहा है*। मैं दैवी गुणों से सम्पन्न होने लगा हूँ।
 
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अब मेरे मन की सारी दुविधा मिट चुकी है। मैं जान गई हूं कि यह विशाल कुंड बेहद का रुद्र ज्ञान यज्ञ है जो परमात्मा ने स्वयं आ कर रचा है। *इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से प्रज्ज्वलित होने वाली विनाश ज्वाला में सारी पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार जल कर भस्म हो जाएंगे और उसके बाद नया दैवी स्वराज्य स्थापन हो जाएगा*। जहां सभी दैवी गुण वाले मनुष्य अर्थात देवी देवताओं का राज्य होगा। लेकिन देवी देवताओं की इस दुनिया के आने से पहले परमात्मा द्वारा रचे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल करना मेरी जिम्मेवारी है। इस जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए मैं फ़रिशता अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ।
 
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बाबा की श्रीमत पर चल कर, बाबा द्वारा रचे इस अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ की बड़े प्यार से और सच्चे दिल से संभाल करना ही अब मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है। और इस लक्ष्य को पाने के लिये अब मैं अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में लगा कर सम्पूर्ण समर्पण भाव इस यज्ञ को चलाने के निमित बन गई हूं। *परमात्मा बाप द्वारा रचे हुए इस अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ में सहयोगी बनने के लिए बाप से मैंने जो पवित्रता की प्रतिज्ञा की है उस प्रतिज्ञा को मन, वचन, कर्म से पूरा करने के पुरुषार्थ में अब मैं सदा तत्पर रहती हूं*। मनसा-वाचा-कर्मणा अपवित्रता का अंश भी मुझमे ना आये इस बात पर पूरा अटेंशन देते हुए, यज्ञ रक्षक बन यज्ञ की सच्चे दिल से मैं सम्भाल कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं निमित्त भाव की स्मृति में रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं हलचल को समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा अचल-अडोल आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

  *मैं आत्मा सर्व बातों में न्यारी बनती हूँ ।*

  *मैं आत्मा परमात्म बाप के सहारे का अनुभव करती हूँ ।*

  *मैं न्यारी प्यारी आत्मा हूँ ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा को फारेन वालों ने यह जो सेवा की थी - काल आफ टाइम वालों की, उसकी विधि अच्छी लगी कि छोटे से संगठन को समीप लाया... ऐसे हर जोन, हर सेन्टर अलग-अलग सेवा तो कर रहे हो लेकिन कोई सर्व वर्गों का संगठन बनाओ... *बापदादा ने कहा था कि बिखरी हुई सेवा तो बहुत है, लेकिन बिखरी हुई सेवा से कुछ समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते रहो ओर उन्हों को सेवा का उमंग बढ़ाओ...* बापदादा देखते हैं कि ऐसी आत्मायें हैं लेकिन अभी वह पावरफुल पालना, संगठित रूप में नहीं मिल रही है... अलग-अलग यथाशक्ति पालना मिल रही है, संगठन में एक दो को देखकर भी उमंग आता है... यह, ये कर सकता है, मैं भी कर सकता हूँ, मैं भी करूँगा, तो उमंग आता है... *बापदादा अभी सेवा का प्रत्यक्ष संगठित रूप में देखने चाहते हैं...* मेहनत अच्छी कर रहे हो, हर एक अपने वर्ग की, एरिया की, जोन की, सेन्टर की कर रहे हो, बापदादा खुश होते हैं... अब कुछ सामने लाओ...

 

✺   *ड्रिल :-  "संगठित रूप में पावरफुल पालना देने का अनुभव"*

 

_ ➳  अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर, मैं बापदादा के साथ सारे विश्व का भ्रमण कर रहा हूँ और बाबा के साथ स्थान - स्थान पर बने बाबा के सभी सेवा केंद्रों को देख रहा हूँ... *सभी सेवा केंद्रों की सेवायें बढ़ती जा रही हैं... दुखी अशांत आत्मायें इन सेवा केंद्रों पर आ कर शांति का अनुभव करके तृप्त हो रही हैं...* परमात्म पालना का अनुभव उनके जीवन को परिवर्तित कर रहा है... हर जोन, हर सेंटर

पर बहुत अच्छी तरह से सेवाएं हो रही हैं... बाबा के साथ इन सभी सेवा केंद्रों को देखता हुआ, मैं बाबा के मन मे चल रहे संकल्पो को पढ़ने का भी प्रयास कर रहा हूँ...

 

_ ➳  पूरे विश्व का भ्रमण करके, सभी सेवा स्थलों का निरीक्षण करके, अब मैं बापदादा के साथ वतन की ओर जा रहा हूँ... वतन में पहुंच कर बाबा सभी ब्राह्मण बच्चों को अपने सामने इमर्ज करते हैं और उन्हें निर्देश देते हैं कि:- *"अब बिखरी हुई सेवा से समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते हुए, उनमें सेवा का उमंग बढ़ाओ"*... संगठित रूप में पावरफुल पालना देने से सेवा वृद्धि को भी पायेगी और सेवाओं में सहज ही सफ़लतामूर्त बन जायेंगे। यह निर्देश दे कर बाबा सभी ब्राह्मण बच्चों को परमात्म शक्तियों से भरपूर कर रहें हैं...

 

_ ➳  अब सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा के निर्देश अनुसार वापिस अपने सेवा केंद्रों पर लौट कर संगठित रूप में पावरफुल पालना देने का अनुभव यथाशक्ति बढ़ाते जा रहें हैं... *बापदादा के साथ मैं फ़रिशता फिर से सभी सेवा केंद्रों का भ्रमण कर रहा हूँ और देख रहा हूँ कि अलग अलग स्थानों पर अब अनेक ऐसे संगठन बन चुके हैं जहां बाबा के नए आने वाले और पुराने सभी ब्राह्मण बच्चों को संगठित रूप में पावरफुल पालना मिल रही है...* सभी उमंग उत्साह से स्वयं भी आगे बढ़ रहे हैं तथा एक दो को सहयोग दे कर उन्हें भी आगे बढ़ा रहें हैं...

 

_ ➳  संगठित रूप में पावरफुल पालना से सेवा स्थलों का वायुमण्डल पावरफुल बन रहा है जिससे सेवा भी वृद्धि को पाती जा रही है... *जैसे मन्दिर का वातावरण दूर से ही खींचता हैऐसे याद की खुशबू का संगठित वातावरण आत्माओं को दूर से ही आकर्षित कर रहा है...* आत्मायें स्वत: ही खिंचती चली आ रही हैं और संगठित रूप में पावरफुल पालना पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव कर रही हैं... दिलशिकस्त और निराश आत्मायें भी योग का संगठित बल पा कर स्वयं को हिम्मतवान अनुभव कर रही हैं...

 

_ ➳  अनेक प्रकार के विनाशी सुख शांति से विचलित हुई आत्मायें जो बाप को और स्वयं को भूल चुकी हैं, वे संगठित रूप की पावरफुल पालना पा कर ऐसा अनुभव कर रही है जैसे वे अपनी यथार्थ मंजिल पर पहुंच गई हैं... *हर सेवा स्थल पर संगठित रूप में ब्राह्मण आत्माओं की अव्यक्त स्थिति और उनकी रूहानी लाइट और माइट की स्थिति सभी आत्माओं को रूहानी पालना का अनुभव करवा कर उन्हें परमात्म प्यार की अनुभूति करवा रही हैं...* स्वयं को सभी परमात्म पालना में पलता हुआ अनुभव करके निरन्तर आगे बढ़ते हुए एक दूसरे को भी आगे बढ़ा रहे हैं...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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