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❍ 24 / 01 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *एक बाप से सच्ची प्रीत रही ?*
➢➢ *सर्व कर्मेन्द्रियों की आकर्षण से परे कमल समान रहे ?*
➢➢ *अपना शक्ति स्वरुप प्रतक्ष्य किया ?*
➢➢ *लगाव की रस्सियों को चेक किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *मन्सा सेवा करने के लिए सदा एकाग्रता का अभ्यास चाहिए। इसके लिए व्यर्थ समात हो, सर्व शक्तियों का अनुभव जीवन का अंग बन जाये।* जैसे बाप परफेक्ट है ऐसे बच्चे भी बाप समान हों, कोई डिफेक्ट न हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अतीन्द्रिय सुख में रहने वाला सर्व प्राप्ति स्वरूप हूँ"*
〰✧ सदा अपने को सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करते हो? *प्राप्ति स्वरूप अर्थात् अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले। सदा एक बाप दूसरा न कोई....ऐसे साथ का अनुभव करेंगे।* जब बाप सर्व सम्बन्धों से अपना बन गया तो सदा बाप का साथ चाहिए ना! कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, पहाड़ हो लेकिन बाप के साथ-साथ ऊपर उड़ते रहो तो कभी भी रुकेंगे नहीं।
〰✧ जैसे प्लेन को पहाड़ नहीं रोक सकते, पहाड़ पर चढ़ने वालों को बहुत मेहनत करनी पड़ती लेकिन उड़ने वाले उसे सहज ही पार कर लेते। *तो कैसी भी बड़ी परिस्थिति हो, बाप के साथ उड़ते रहो तो सेकण्ड में पार हो जायेगी। कभी भी झूले से नीचे नहीं आओ, नहीं तो मैले हो जायेंगे। मैले फिर बाप से कैसे मिल सकते!* बहुत काल अलग रहे अभी मेला हुआ तो मनाने वाले मैले कैसे होंगे।
〰✧ बापदादा हरेक बच्चे को कुल का दीपक, नम्बरवन बच्चा देखना चाहते हैं। अगर बार-बार मैले होंगे तो स्वच्छ होने में कितना टाइम वेस्ट होगा? इसलिए सदा मेले में रहो। मिट्टी में पांव क्यों रखते हो! इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और मैले, तो कौन मानेगा कि यह उस ऊँचे बाप के बच्चे हैं! इसलिए बीती सो बीती। *जो दूसरे सेकण्ड बीता वह समाप्त। कोई भी प्रकार की उलझन में नहीं आओ। स्वचिन्तन करो, परचिन्तन न सुनो, न करो, यही मैला करता है। अभी से क्वेश्चन-मार्क समाप्त कर बिन्दी लगा दो। बिन्दी बन बिन्दी बाप के साथ उड़ जाओ।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ चेक करो जैसे स्थूल साधनों के लिए बताते हैं कि भूकम्प आवे तो यह करना, तूफान आवे तो यह करना, आग लगे तो यह करना, वैसे *आप श्रेष्ठ आत्माओं के पास जो साधन हैं - सर्वशक्तियाँ योग का बल, स्नेह का चुम्बक, यह सब साधन समय के लिए तैयार है? सर्व शक्तियाँ हैं?*
〰✧ किसको शान्ति की शक्ति चाहिए लेकिन आप और कोई शक्ति दे दो तो वह सन्तुष्ट होगी? जैसे किसको पानी चाहिए और आप उसको 36 प्रकार के भोजन दे दो तो क्या वह सन्तुष्ट होगा? तो *एवररेडी बनना सिर्फ अपने अशरीरी बनने के लिए नहीं।* वह तो बनना ही है।
〰✧ *लेकिन जो साधन स्वराज्य आधिकार से प्राप्त हुए हैं, परमात्म वर्से में मिले हैं वह सब अधिकार एवररेडी हैं?* ऐसे तो नहीं जैसे समाचारों में सुनते हो कि मशीनरी इस समय चाहिए वह फारेन से आने के बाद कार्य में लगाया गया। तो साधन एवररेडी नहीं रहे ना! सर्व साधन समय पर कार्य में नहीं लगा सके। कितना नुकसान हो गया!
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *वैसे ही निर्णय शक्ति को बढ़ाने लिए मुख्य खुराक यही है, जो पहले भी सुनाया अशरीरी, निराकारी और कर्म में न्यारे। निराकारी व अशरीरी अवस्था तो हुई बुद्धि तक, लेकिन कर्म से न्यारा भी रहे और निराला भी रहे, जो हर कर्म को देखकर के लोग भी समझे कि यह तो निराला हैं।* यह लौकिक नहीं, अलौकिक है। तो निर्णय शक्ति को बढ़ाने के लिए बहुत अवश्यक है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- अशरीरी बन बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ मैं अशरीरी आत्मा जन्म-जन्म अनेक शरीरों को धारण कर इस शरीर को ही सबकुछ
समझ बैठी थी... शरीर के भान में आकर मैं आत्मा देह के संबंधो, देह के वैभवों,
देह की दुनिया के जंजीरों में फंस गई थी... परम ज्योति परमात्मा ने मुझे स्मृति
दिलाई की मैं ये शरीर नहीं बल्कि एक आत्मा हूँ... *इस देह के सम्बन्धी जिनको
अपना समझ मोह के बंधन में फंस गई... वो तो हर जन्म में अलग-अलग हैं... हर जन्म
के माता-पिता अलग हैं... सिर्फ एक जिससे मेरा स्थाई सम्बन्ध है वो सिर्फ
परमात्मा हैं... वही मेरे असली पिता हैं...* मैं आत्मा अपने सच्चे-सच्चे पिता
को याद करती हुई उनके पास उड़ चलती हूँ...
❉ *इस देह सहित इन आँखों से जो कुछ भी दिखता है उसे भूल एक बाप को याद करने की
शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *अब इस मिटटी
और मटमैली दुनिया से और दिल न लगाओ... पुरानी दुनिया को भूलकर, नई सतयुगी दुनिया
के सुखो में खो जाओ... सच्चे सहारे मीठे बाबा को प्रतिपल याद करो...* जो हाथ
में हाथ डालकर मीठे घर ले जायेगा... और पुनः अनन्त सुखो की बहारो को दामन में
सजाएगा...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों के उपवन में रूहानी फूल बन महकते हुए कहती
हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा विकारी दुनिया के मायाजाल से मुक्त
होकर... आपकी यादो में काँटे से फूल बन रही हूँ... *ईश्वरीय प्यार को पाकर
रूहानियत से भर गयी हूँ... पुरानी दुनिया को भूल सुख भरी दुनिया के आनन्द में
खो रही हूँ... आपके प्यार की गहराई में डूबकर खुशियो में चहक उठी हूँ..."*
❉ *विनाशी दुनिया के अंधकार से निकाल प्रकाशमय सतयुगी दुनिया की ओर ले जाते हुए
मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब यह खेल समाप्ति की ओर
है... इस देह और देह की दुनिया से सारे नाते तोड़कर आत्मिक नशे से भर जाओ... *मीठे
बाबा की यादो में देवताई निखार को पा जाओ... यह पुरानी दुनिया के सारे मंजर
स्वाहा हो जायेंगे... सिर्फ यादो में बीते पल ही सच्चा साथ निभाएंगे...* इसलिए
सब कुछ भूल रोम रोम को ईश्वरीय प्यार में डुबो दो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा काले बादलों के साये से निकल इन्द्रधनुषी रंगों से अपने जीवन
को सजाते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता की
बाँहों में मुस्कराने वाली बेहद भाग्यशाली हूँ... *मीठे बाबा आपने जीवन में आकर
मेरे कदमो तले खुशियो के फूल बिछा दिए है... और मेरी तकदीर को अपने प्यार के
खुबसूरत रंगो से सजा दिया है... आपकी यादो में मै सारी दुनिया ही भूल रही
हूँ..."*
❉ *मेरे मनमीत प्यारे जादूगर बाबा अपने प्रेम की छड़ी से इस दुनिया के भंवर जाल
को ख़त्म करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय प्यार की
छत्रछाया में मन बुद्धि को देह के मायाजाल से मुक्त करो... *हर साँस समय संकल्प
को ईश्वर पिता के प्यार में लुटा दो... यह सच्चे प्रेम का रिश्ता ही सच्चा साथ
निभायेगा... और सतयुगी दुनिया के असीम सुख को आँचल में भर कर... सच्ची प्रीत की
रीत निभायेगा..."*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के सच्चे प्रेम के आगोश में डूबकर खुशियों के जहान में
लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सच्चे प्रेम
की बून्द को प्यासी, दर दर भटक रही थी... प्यारे बाबा आपको न जाने कहाँ कहाँ तो
खोज रही थी... आज आपको पाकर मैंने सारा जहान पा लिया है... *सच्चा प्रेम,
ईश्वरीय यादो भरा सच्चा सुख पाकर, मै आत्मा सदा की तृप्त हो गयी हूँ... और मीठी
यादो में खोकर, देह की दुनिया ही भूल गयी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल
:- ट्रस्टी बनकर सब कुछ सम्भालते हुए अपना ममत्व मिटा देना है*"
➳ _ ➳ अपने सभी बोझ बाबा को देकर,
लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते,
डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर
कर्म कर रही हूँ। *बाबा का आह्वान कर,
बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के
बाद,
मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी
याद में जैसे ही बैठती हूँ* मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची
बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते
हुए,
अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।
➳ _ ➳ हर बोझ से मुक्त,
हर गम से अनजान सुंदर,
सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। *अपनी पलको
को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते
हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो
ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त
स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है*। संगमयुग पर परमात्म गोद
मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है,
तो *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे
बोझ ले कर,
अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा
है*।
➳ _ ➳ स्वयं से बातें करती,
अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती,
अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने
भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान
पर सवार हो कर,
विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *देह
से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव
पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है*। ऐसे ही आजाद पँछी
की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी
पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं
पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों
का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच
कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे,
विदेही बन,
अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा,
संपूर्णता के सागर,
पवित्रता के सागर,
सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार,
ज्ञान सागर,
शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला
है*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा
और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति
का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ*।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके,
अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली
बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ
रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट
प्ले कर रही हूँ*। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर
करते हुए,
बेफिक्र बादशाह बन,
अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही
हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का
अनुभव करवाती है। *ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते,
हर पल,
हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का
भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺
*मैं सर्व कर्मेन्द्रियों की आकर्षण से परे रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं कमल समान रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र की वरदानी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺
*मैं आत्मा हर आसक्ति से मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं शक्ति स्वरुप प्रत्यक्ष करने वाली आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा शिवशक्ति हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *आप ब्राह्मणों के एक श्रेष्ठ संकल्प में, शुभ संकल्प में इतनी शक्ति है जो आत्माओं को बहुत सहयोग दे सकते हो। संकल्प शक्ति का महत्व अभी और जितना चाहो उतना बढ़ा सकते हो।* जब साइंस का साधन रॉकेट, दूर बैठे जहाँ चाहे, जब चाहे, जिस स्थान पर पहुँचाने चाहे, एक सेकण्ड में पहुँचा सकते हैं। आपके शुभ श्रेष्ठ संकल्प के आगे यह रॉकेट क्या है! रिफाइन विधि से कार्य में लगाके देखो, आपकी विधि से सिद्धि बहुत श्रेष्ठ है। लेकिन *अभी अन्तर्मुखता की भट्टी में बैठो। तो इस नये वर्ष में अपने आप सर्व खजानों की बचत की स्कीम बनाओ। जमा का खाता बढ़ाओ। सारे दिन में स्वयं ही अपने प्रति अन्तर्मुखता की भट्टी के लिए समय फिक्स करो। आपे ही आप कर सकते हो, दूसरा नहीं कर सकता है।*
✺ *ड्रिल :- "ब्राह्मण आत्माओं के श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन में विराजमान एकांत बैठी हूँ... मैं मन-बुद्धि द्वारा एक समु्द्र के किनारे पहुँचती हूँ...* वहाँ मन को लुभाने वाली ठंडी-ठंडी हवायें चल रही हैं... समु्द्र की लहरे तेज़ी से बढ़ रही है... वहाँ एक द्वीप पर छोटी-छोटी रंग-बिरंगी सीपियाँ पड़ी हुई हैं... उसी के पास एक सुनहरे रंग का चिराग रखा हुआ हैं जिसमें मैं आत्मा रूपी जादुई जिन बैठी हुई हूँ...
➳ _ ➳ बाबा ऊपर बैठे यह सब नज़ारे देख रहे हैं... *बाबा चिराग के अंदर शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, शक्ति, आनंद और ज्ञान की किरणें डाल रहे हैं... मैं चिराग में बैठी हुई आत्मा रूपी जिन पॉवरफुल होती जा रही हूँ...* मुझमें बाबा ने रूहानी पॉवर भरदी हैं... मैं तेज़ी से उस चिराग से बाहर निकलती हूँ... मेरे सामने बहुत-सी दुःखी आत्मायें खड़ी हैं... वह मुझसे तीन ख्वाहिशें माँग रही है... पहली-शुभभावना, दूसरी- सकारात्मक सोच और तीसरी- दुःखों से दूर करना... मैं यह तीनों ख्वाहिशें पूर्ण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं संकल्प शक्ति द्वारा सर्व आत्माओं के दुःखों को जान पा रही हूँ और जिन सम्बन्धों में कड़वाहट हैं वो संकल्प शक्ति द्वारा सही होते जा रहे है... *मैं परमात्म पालन में सर्व प्राप्तियों का अनुभव कर रही हूँ... मुझे सर्व खजानों की मालिकपन की अनुभूति हो रही हैं... मैं अपने श्रेष्ठ संकल्पों और श्रेष्ठ समय को यूज़ करके स्व और सर्व का कल्याण कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ अब मैं क्यों, कैसे, क्या जैसे प्रश्नों में नहीं आती हूँ... अब मैं अपने को बिंदू स्थिति में स्थित करके सारी परिस्थितियों को बिंदी लगाती जाती हूँ... *मैं याद की शक्ति द्वारा अपनी संकल्प शक्ति को बढ़ाती जा रही हूँ... बाबा ने सर्व अधिकार देकर सर्व खजानों से भरपूर कर दिया... अब मैं बिल्कुल भी व्यर्थ संकल्प नहीं करती हूँ जिससे कि मेरे संकल्पों की बचत हो...* अब हर समय मैं यही चेकिंग करती हूं कि कही मेरे संकल्प व्यर्थ तो नहीं जा रहे हैं...
➳ _ ➳ अपनी दिनचर्या में मैं नये-नये तरीके ढूंढती हूँ कि कैसे मैं जमा का खाता बढ़ा सकती हूँ... *अमृतवेले और नुमाशाम योग के समय में मैं अन्तर्मुख होकर परमधाम, सूक्ष्मवतन, साकारलोक की सैर करती हूँ... वहाँ की वाइब्रेशन्स से मेरा मन हर्षित हो उठता हैं... सभी के प्रति शुभ संकल्पों का संचार होने लगता हैं...* अब मैं सदा अटेंशन रखती हूँ कि किसी अन्य आत्मा की कमी-कमजोरी मेरे संकल्पों में धारण न हो...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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