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 03 / 01 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ बाप समान निरहंकारी बन सेवा की ?

 

➢➢ हद की सर्व कामनाओं पर जीत प्राप्त की ?

 

➢➢ दिल की महसूसता से दिलाराम बाप की आशीर्वाद प्राप्त की ?

 

➢➢ "बापदादा मेरे साथ है" - हर कर्म करते हुए यह स्मृति रही ?

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  ✰ अव्यक्त पालना का रिटर्न

         ❂ तपस्वी जीवन

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✧  जैसे एक सेकेण्ड में स्वीच आन और आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार लिया और एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो गये। अभी-अभी शरीर में आये, अभी-अभी अशरीरी बन गये, आवश्यकता हुई तो शरीर रूपी वस्त्र धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। यह प्रैक्टिस करनी है, इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?

 

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अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए

             ❂ श्रेष्ठ स्वमान

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   "मैं साइलेन्स की शक्ति द्वारा विश्व सेवा करने वाली महान आत्मा हु"

 

✧  आवाज से परे जाने की युक्ति जानते हो? अशरीरी बनना अर्थात् आवाज से परे हो जाना। शरीर है तो आवाज है। शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस। साइलेंस की शक्ति कितनी महान है, इसके अनुभवी हो ना? साइलेंस की शक्ति द्वारा सृष्टि की स्थापना कर रहे हो। साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना। तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित हैं तो स्वयं साइलेंस रुप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेगे। अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता।

 

✧  विश्व में सबसे प्यारे से प्यारी चीज है- 'शान्ति अर्थात् साइलेंस'। इसके लिए ही बड़ी-बड़ी कॉन्फरन्स करते हैं। शान्ति प्राप्त करना ही सबका लक्ष्य है। यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। और आप समझते हो साइलेंस तो हमारा 'स्वधर्म' है। आवाज में आना जितना सहज लगता है उतना सेकंड में आवाज से परे जाना- यह अभ्यास है? साइलेंस की शक्ति के अनुभवी हो?

 

  कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरुप होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जाए। शान्ति स्वरुप रहना अर्थात् शान्ति की किरणें सबको देना। यही काम है। विशेष शान्ति की शक्ति को बढ़ाओ। स्वयं के लिए भी औरों के लिए भी शान्ति के दाता बनो। भक्त लोग शान्ति देवा कहकर याद करते हैं ना? देव यानी देने वाले। जैसे बाप की महिमा है शान्ति दाता, वैसे आप भी शान्तिदेवा हो। यही सबसे बड़े ते बड़ा महादान है। जहाँ शान्ति होगी वहाँ सब बातें होंगी। तो सभी शान्ति देवा हो, अशान्त के वातावरण में रहते स्वयं भी शान्त स्वरुप और सबको शान्त बनाने वाले, जो बापदादा का काम है, वही बच्चों का काम है। बापदादा अशान्त आत्माओंको शान्ति देते हैं तो बच्चों को भी फालों फादर करना है। ब्राह्मणों का धन्धा ही यह है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?

 

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         रूहानी ड्रिल प्रति

अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं

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✧  ब्रह्माबाप ने भी रोज दरबार लगाई है। कॉपी है ना। इन्हों को बताना, दिखाना। ब्रह्मा बाप ने भी मेहनत की, रोज दरबार लगाई तब कर्मातीत बनें। तो अभी कितना टाइम चाहिए? या एवररेडी हो? इस अवस्था से सेवा भी फास्ट होगी। क्यों? एक ही समय पर मन्सा शक्तिशाली, वाचा शक्तिशाली, संबंध-सम्पर्क में चाल और चेहरा शक्तिशाली।

 

 

 

✧  एक ही समय पर तीनों सेवा बहुत फास्ट रिजल्ट निकालेगी। ऐसे नहीं समझो कि इस साधना में सेवा कम होगी, नहीं। सफलता सहज अनुभव होगी। और सभी जो भी सेवा के निमित हैं अगर संगठित रूप में ऐसी स्टेज बनाते हैं तो मेहनत कम और सफलता ज्यादा होगी। तो विशेष अटेन्शन कन्ट्रोलिंग पॉवर को बढ़ाओ। संकल्प, समय, संस्कार सब पर कन्ट्रोल हो।

 

✧  बहुत बार बापदादा ने कहा है - आप सब राजे हो। जब चाहे, जैसे चाहो, जहाँ चाहो, जितना समय चाहो ऐसा मन-बुद्धि लाँ और ऑर्डर मे हो। आप कहो नहीं करना है, और फिर भी हो रहा है, कर रहे हैं तो यह लाँ और ऑर्डर नहीं है। तो स्वराज्य अधिकारी अपने राज्य को प्रत्यक्ष स्वरूप मे लाओ। लाना है ना? ला भी रहे हैं लेकिन बापदादा ने कहा ना - 'सदा' शब्द एड करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?

 

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         ❂ अशरीरी स्थिति प्रति

अव्यक्त बापदादा के इशारे

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〰✧  फ़रिश्ते अर्थात् अथक और सबकुछ बाप के हवाले करने वाले। सबसे सहज बात कौन-सी है, जिसको समझने से सदा के लिए सहज मार्ग अनुभव होगा? वह सहज बात है सदा अपनी ज़िम्मेदारी बाप को दे दो। ज़िम्मेवारी देना सहज है ना? स्वयं को हल्का करो तो कभी भी मार्ग मुश्किल नहीं लगेगा। मुश्किल तब लगता है जब थकना होता या उलझते हैं। जब सब ज़िम्मेवारी बाप को दे दी तो फ़रिश्ते हो गये। फ़रिश्ते कब थकते हैं क्या? लेकिन यह सहज बात नहीं कर पाते तब मुश्किल हो जाता। ग़लती से छोटी-छोटी ज़िम्मेवारियों का बोझ अपने ऊपर ले लेते इसलिए मुश्किल हो जाता। भक्ति में कहते थे- सब कर दो राम हवाले। अब जब करने का समय आया तब अपने हवाले क्यों करते? मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार- यह मेरा कहाँ से आया? अगर मेरा खत्म तो नष्टोमोह हो गये। जब मोह नष्ट हो गया तो सदा स्मृति स्वरूप हो जायेंगे। सब कुछ बाप के हवाले करने से सदा खुश और हल्के रहेंगे। देने में फिराक दिल बनो। अगर पुरानी कीचड़पट्टी रख लेंगे तो बीमारी हो जायेगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- स्वच्छ बुद्धि बन देवता बनना"

➳ _ ➳ मीठे बाबा की मधुर यादो में खोयी खोयी मै आत्मा...मधुबन में मीठे बाबा की झोपडी में... मन बुद्धि से उड़ कर पहुंचती हूँ... प्यारे बाबा बाहें फैलाये, मुझे प्यार करने को आतुर है... उनकी मखमली गोद में जाकर, मै आत्मा बैठ जाती हूँ... और फूलो सा विश्राम पाती हूँ... मीठे बाबा मुझ आत्मा के सर पर... अपना वरदानी हाथ फेरते है...और असीम शक्तियो से भर देते है...

❉ मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी मीठी यादो में डुबोते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्रकृति के शांत और सुगन्धित माहौल में... सवेरे सवेरे उठकर, मीठे बाबा की यादो में गहरे डूब जाओ... यह मीठी यादे ही सुखो का आधार बन, सतयुगी दुनिया में ले जाएँगी... इन मीठी यादो से ही पत्थर बुद्धि से... पारस बुद्धि बन, अनन्त सुखो के अधिकारी बनोगे..."

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के अमूल्य रत्नों को बुद्धि झोली में भरते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा सवेरे सवेरे आपकी मीठी यादो में डूबकर, अनन्त खजानो की मालिक बन रही हूँ... आपकी यादो में, देहभान में किये विकर्मो को भस्म कर...पुनः पावनता से सज संवर रही हूँ... पवित्र बुद्धि की मालिक बन रही हूँ..."

❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को पावनता के गहरे राज समझाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अमृतवेले उठकर मीठे बाबा को बड़े प्यार से, दिल से याद करो... मीठे बाबा से मीठी मीठी बाते करो... ईश्वरीय शक्तियो से स्वयं को भरपूर करो... और देह के भान में पतित हो गयी बुद्धि को यादो में पावन बनाकर... देवताई सुखो के मालिक बनो...

➳ _ ➳ मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में गहरे डूबकर कहती हूँ :- "मीठे मीठे बाबा मेरे... आपकी यादो की खुशबु ने मेरे जीवन का कायाकल्प किया है... दिव्यता और गुणो से सजाकर, आपने मुझ आत्मा को दिव्य और प्यारा बना दिया है... पावनता के रंग में रंगकर... देवताई सुंदरता से भर दिया है..."

❉ मीठे बाबा मुझ आत्मा को ईश्वरीय याद के जादु को समझाते हुए कहते है :- "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... सवेरे के यादो भरे पलो में, दिल की गहराइयो से, मीठे बाबा की याद कर प्यार की जादूगरी को देखो... यह यादे कितना खूबसुरत बनाकर, अथाह सुखो का अधिकार दिलायेगी... पतित बुद्धि को पावन बनाकर... असीम आनन्द का खजाना दिलायेगी..."

➳ _ ➳ मै आत्मा अपने पयरे बाबा को रोम रोम से सुक्रिया करते हुए कहती हूँ :- "मीठे प्यारे बाबा...मनुष्यो की यादो में जीवन दुखो का जंगल बन गया था...और मै आत्मा, उसमे गहरे उलझ... पत्थर बुद्धि बन गयी... आपने अपनी यादो की गोद में बिठाकर मुझे खुशियो से भर दिया है... मेरी विकारी बुद्धि को अपनी यादो में पुनः पवित्र कर दिया है... मीठे बाबा से मीठी रुह रिहान कर मै आत्मा... स्थूल वतन लौट आयी...”

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺ "ड्रिल :- सदा इसी खुशी में रोमांच खड़े हो कि हम तो अभी पुरुषोत्तम बन रहे हैं, भगवान हमे पढ़ाते हैं

➳ _ ➳ स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।

➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ।

➳ _ ➳ अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है।

➳ _ ➳ स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ।

➳ _ ➳ अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।

➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   मैं हद की सर्व कामनाओं पर जीत प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।
✺   मैं कामजीत आत्मा हूँ।
✺   मैं जगतजीत आत्मा हूँ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺ मैं आत्मा दिल की महसूसता से दिलाराम बाप की आशीर्वाद लेती हूँ ।
✺ मैं आत्मा दिलाराम बाप की आशीर्वाद लेने की अधिकारी हूँ ।
✺ मैं आत्मा दिलाराम बाप की बच्ची हूँ ।

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  याद की स्टेज में कई बच्चों का लक्ष्य भी अच्छा हैपुरुषार्थ भी अच्छा हैफिर जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना कम क्योंबातेंरूह-रूहान चलते-चलते यही रिजल्ट निकली कि योग का अभ्यास तो कर ही रहे हैं लेकिन योग के स्टेज की परसेन्टेज साधारण होने कारण जमा का खाता साधारण ही है। योग का लक्ष्य अच्छी तरह से है लेकिन योग की रिजल्ट है - योगयुक्त, युक्तियुक्त बोल और चलन। उसमें कमी होने के कारण योग लगाने के समय योग में अच्छे हैंलेकिन योगी अर्थात् योगी का जीवन में प्रभाव। इसलिए जमा का खाता कोई कोई समय का जमा होता हैलेकिन सारा समय जमा नहीं होता। चलते-चलते याद की परसेन्टेज साधारण हो जाती है। उसमें बहुत कम जमा खाता बनता है।  

 

✺   ड्रिल :-  "योग द्वारा जमा का खाता बढ़ाने का अनुभव"

 

 _ ➳  देह रूपी घट में पारस मणि मैं आत्मा... इस देह को अपने प्रकाश से आलोकित करती हुई... मस्तिष्क में फैलता ये गहरा लाल प्रकाश... सम्पूर्ण देह में फैलता हुआ... वापस फिर से मस्तिष्क के मध्य भृकुटी में एकत्र हो रहा है... प्रकाश का एक विशाल घेरा बनता जा रहा है मेरे मस्तिष्क के चारों ओर... शरीर जैसे कही लुप्त हो गया है... अब शेष है केवल रूहानी प्रकाश का एक विशाल बिन्दु... मै देख रहा हूँ इस बिन्दु को श्वेत प्रकाश के शरीर में बदलते हुए... ये मेरा फरिश्ता स्वरूप... कुछ क्षण के लिए स्थिर होकर मैं देख रहा हूँ... अपनी देह को, आस- पास के वातावरण को, जो योग की ऊर्जा से भरपूर है...

 

 _ ➳  मैं आत्म फरिश्ता स्वरूप में उडकर पहुँच गया हूँ सूक्ष्म वतन में... एक विशाल श्वेत पारदर्शी आवरण... स्वर्ण अक्षरों से जिस पर लिखा है, जमा खाता थोडा और आगे चलता हूँ... सूक्ष्म वतन में देख रहा हूँ जगमगाते रत्नो की अनेक बडी-बड़ी पहाडियाँ... कोई एक दूसरे से आकार में बडी तो कोई चमक में ज्यादा... कुछ देर तक एकटक देखता हुआ मैं समझ गया हूँ इनके पीछे के रहस्य को... हर एक पहाडी पर प्रकाश की लडियों से कोई नाम लिखा है... ये पहाडियाँ लगातार अपना आकार बदल रही है...छोटी से बडी और बडी से छोटी... मैं ढूँढ रहा हूँ अपने नाम की कोई पहाडी... जैसे जैसे समय बीत रहा है... मै अपना नाम न पाकर अधीर हो रहा हूँमेरी बैचेनी बढती जा रही है...

 

 _ ➳  कुछ और आगे जाकर मै देख रहा हूँ, योग की गहरी अनुभूतियों में खोये कुछ फरिश्ते... और इन फरिश्तों की सेवा में मगन मेरा ही दूसरा फरिश्ता रूप... हर एक को जमा का खाता बढाने का तरीका बताता हुआ... युक्ति युक्त बोल और कर्म से सेवा करता हुआ... योगी जीवन के उतार चढाव के सशंयो से ग्रस्त, कुछ दूसरें नवल फरिश्तों की शंकाओं का समाधान करता हुआ... और मैं, सोच में पड गया हूँ कुछ पल के लिए, अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप को देखकर... जमाखाता कितना हुआ इस बात से भी अनासक्त... बस, हर पल सबको आगे बढाने का प्रयास करता, मेरा सम्पूर्ण स्वरूप ही वास्तव में योग द्वारा अपना जमाखाता बढा रहा है...

 

 _ ➳  मै तुलना कर रहा हूँ अपने योगी जीवन से उस योगी जीवन की... मैं जमा खाता तलाश रहा हूँ... अधीर हो गया हूँ... मगर वहाँ न कोई उतावला पन है,न आसक्ति है... अनासक्त कर्म और बोल... यही है, योगयुक्त जीवन... तभी आँखों के सामने जगमगाती भव्य रत्नों की बिना नाम की पहाडीऔर उस पर मुस्कुरातें बापदादा... मानों मेरा आह्वान कर रहे है उस पर अपना नाम लिखने के लिए... मन में दृढ सकंल्प के साथ साथ बहुत से वादे स्वयं से करता हुआ मैं बिन्दु बन उड चला हूँ परमधाम की ओर...

 

 _ ➳  परमधाम में मैं आत्मा बस एक ही संकल्प के साथ... मेरे एक तरफ बिन्दु रूप में ब्रह्मा बाबा और मम्मा... और ऊपर शिव ज्योति... सम्पूर्ण योगी जीवन का वरदान पाते हुए मै... देर तक वरदानों की शक्ति को स्वयं में समायें हुए... मैं लौट आया हूँ अपनी देह में... अपने सम्पूर्ण स्वरूप की गहरी अनुभूति मन में लिए... युक्ति युक्त कर्म और बोल से... बिना नाम की उस भव्य, विशाल और जगमगाती पहाडी पर अपना नाम बापदादा द्वारा लिखवाने का लक्ष्य मन में समायें... जिसे मैं अभी सूक्ष्म वतन में देखकर आया हूँ... जो मेरे जमा खाते की प्रतीक है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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