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 16 / 02 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने बुधी की रूहानी डोर एक बाप के साथ बाँधी ?*

 

➢➢ *याद की यात्रा में तत्पर रह विकर्म विनाश किये ?*

 

➢➢ *सर्व झाजनाओ को विश्व कल्याण प्रति यूज़ किया ?*

 

➢➢ *एक की लगन में सदा मगन रह निर्विघन रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *मन्सा शक्ति का दर्पण है - बोल और कर्म।* चाहे अज्ञानी आत्मायें, चाहे ज्ञानी आत्मायें - दोनों के सम्बन्ध-सम्पर्क में बोल और कर्म शुभ- भावना, शुभ-कामना वाले हों। *जिसकी मन्सा शक्तिशाली वा शुभ होगी उसकी वाचा और कर्मणा स्वत: ही शक्तिशाली शुद्ध होगी, शुभ-भावना वाली होगी। मन्सा शक्तिशाली अर्थात् याद की शक्ति श्रेष्ठ होगी, शक्तिशाली होगी, सहजयोगी होंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी ब्राह्मण चोटी महान आत्मा हूँ"*

 

✧  सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें, पुरुषोत्तम आत्मायें वा ब्राह्मण चोटी महान आत्मायें समझते हो? अभी से पुरुषोत्तम बन गये ना। *दुनिया में और भी पुरुष हैं लेकिन उन्हों से न्यारे और बाप के प्यारे बन गये इसलिए पुरुषोत्तम बन गये। औरों के बीच में अपने को अलौकिक समझते हो ना! चाहे सम्पर्क में लौकिक आत्माओंके आते लेकिन उनके बीच में रहते हुए भी मैं अलौकिक न्यारी हूँ यह तो कभी नहीं भूलना है ना!*

 

  क्योंकि आप बन गये हो हंस, ज्ञान के मोती चुगने वाले 'होली हंस' हो। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते, गन्द ही बोलते...तो बगुलों के बीच में रहते हुए अपना होलीहंस जीवन कभी भूल तो नहीं जाते! कभी उसका प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? वैसे तो उसका प्रभाव है मायावी और आप हो मायाजीत तो आपका प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, उनका आप पर नहीं। तो सदा अपने को होलीहंस समझते हो? *होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। ब्रह्मण आत्मायें जो ऊँच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते। बगुले से होलीहंस बन गये। तो होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र।*

 

  पवित्रता ही स्वच्छता है। हंस सदा स्वच्छ है, सदा सफेद-सफेद। सफेद भी स्वच्छता वा पवित्रता की निशानी है। *आपकी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की निशानी है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता है तो होलीहंस नहीं। होलीहंस संकल्प भी अशुद्ध नहीं कर सकते। संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरुस्त नहीं रह सकते।* व्यर्थ चीज को फेका जाता, इक्क्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी।* चलते-फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियाँ करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा नहीं, स्मृति मे इमर्ज हो।

 

✧  मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलंग पॉवर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? *जैसे राजा अपने कर्मचारियों को ऑर्डर में रखते हैं, ऑर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियाँ ऑर्डर में रहेंगी।*

 

✧  माया के ऑर्डर में नहीं रहेंगी, आपके ऑर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया ऑर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के ऑर्डर में चल पडती है। इसलिए *सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने ऑर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे इस शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। वैसे ही जब चाहो तब शरीर का भान बिल्कुल छोड़कर अशरीरी बन जाना और जब चाहो तब शरीर का आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है? इस अनुभव को अब बढ़ना है। बिल्कुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए। सदैव यही याद रखो कि अब गये कि गये। सिर्फ़ सर्विस के निमित शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते है। *जैसे आप लोग कहाँ भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना। डयूटी की ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहन लेते हो वैसे ही सर्विस प्रति यह शरीर रूपी वस्त्र का आधार लिया फिर सर्विस समाप्त हुई और इन वस्रों के बोझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो।* एक सेकेण्ड में चोले से अलग कौन हो सकेंगे? अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे। *कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्के होने से सहज ही अलग हो जाता है। वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी इज़ीपन नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक से ही तोड़ निभाना"*

 

_ ➳ *मैं आत्मा रूपी पतंग इस धरती से ऊपर अम्बर में उडती हुई हिचकोले खाती ख़ुशी ख़ुशी झूमती हुई सैर कर रही हूँ...* लौकिक अलौकिक संबंधों रूपी काँटों में फंसकर मैं आत्मा रूपी पतंग उड़ नहीं पा रही थी... अब मुझ आत्मा रूपी पतंग की डोर सिर्फ और सिर्फ प्यारे बाबा के हाथों में है... जिससे मैं आत्मा सदा फर्श से न्यारी रह फ़रिश्ता बन उडती रहती हूँ... *सैर करते करते अब मैं चली अपने वतन प्यारे मीठे बाबा के पास...*

 

   *विकारी संबंधो से ममत्व निकालने राजयोग का ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की दिल पसन्द मणि हो... तो इस खुदाई नशे से भरकर दुनिया में रहते हुए भी उपराम रहो... अपने राजयोगी होने की खुमारी की सदा दिल दिमाग पर छाये हुए... *विकारी दुनिया से अछूते होकर कार्य व्यवहार करो... ईश्वरीय प्रतिनिधि बन सम्बन्धो को तोड़ मात्र निभाते रहो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा जन्म-जन्मान्तर के इन संबंधों के चक्रव्यूह से बाहर निकलकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... जिस विकारी दुनिया ने मुझे दुखी और खाली सा किया... अब उस दुनिया से मेरा कोई नाता न हो... *मात्र तोड़ ही बस मुझे तो निभाना है... और अपनी यादो में मीठे बापदादा और अपने सजीले घर को ही बसाना है...”*

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा के सत्य स्वरुप की स्मृति दिलाते हुए कहते हैं:–* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैलेपन और विकारो के दलदल ने सत्य स्वरूप को भुला दिया... *अब जो मीठे बाबा ने फूलो सी गोद में लेकर राजयोगी बनाया है तो हर कर्म में अपनी शान को याद रखो... अपने सत्य स्वरूप को यादो में कायम रख कर ही दुनियावी कारोबार करो...”*

 

 ➳ _ ➳  *मैं आत्मा अपने निज स्वरुप में स्थित होकर आनंद विभोर होती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा सारे विकारी सम्बन्धो से उपराम होकर आपकी मीठी यादो में अपने राजयोगी के नशे में खो रही हूँ...* इस विकारी दुनिया से अलग अपनी ज्योतिमय दुनिया को यादो में बसाये देवताई स्वरूप को पाती जा रही हूँ...

 

   *मेरा बाबा अपने रूहानी रंगों से मुझ आत्मा रूपी पतंग को सजाते हुए कहते है:–* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो में फंसकर गुणो और शक्तियो को खोकर खाली हो गए हो... *अब ईश्वरीय राहो में राजयोगी बन खुशियो के आसमाँ में खुशनुमा से उड़ते रहो...* इस धरा पर ईश्वर पिता का चुना हुआ गुलाब हूँ... इस नशे से भरकर अपनी रूहानियत की छटा बिखेरते रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सभी दुनियावी संबंधो से तोड़ निभाकर मोह्जीत बनते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा को चुनकर अपनी गोद में बिठा कर मेरे मटमैले पन को धोकर आपने खूबसूरत राजयोगी सा सजा दिया है... *मै आत्मा अब विकारो से परे कमल फूल सा प्यारा न्यारा जीवन जी रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  स्वयं को बहुत बहुत स्वीट बनाना है*

 

_ ➳  मन मे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को बसाये अन्दर में बाबा - बाबा कहते मैं हर कर्म कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में भी विचार कर रही हूँ कि मेरे जैसा भाग्यवान इस दुनिया में कोई नही, जिसके हर कर्म में भगवान साथी बन उसका हर कार्य कैसे सहजता से करवा रहें है। *ना कोई थकावट, ना कोई मेहनत हर काम अपने आप सम्पन्न हो रहा है। कर्म करते हुए भी, कर्म के प्रभाव से मुक्त, मैं स्वयं को कितना लाइट अनुभव कर रही हूँ*। मेरे मीठे बाबा की मीठी याद मुझे कितना बल दे रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सोचने का काम भी बाबा कर रहें हैं। 

 

_ ➳  ऐसे अन्दर में बाबा - बाबा कहते, अपने मीठे बाबा की मीठी याद में कर्म करते हुए मैं अपने अति मीठे शिव भोला भगवान के गुणों का चिंतन करते हुए अपने आप से ही बात करती हूँ कि बाबा कितने स्वीट हैं। *उनकी मीठी याद जीवन की दुखदाई स्मृतियो की सारी कड़वाहट को भुला कर मन को कितना सुकून देती है। बाबा के समान मुझे भी बहुत स्वीट बन कर दुखी अशांत आत्माओं के जीवन से दुख की कड़वाहट को समाप्त कर उनके जीवन में मिठास लाने की सेवा कर बाबा के स्नेह का रिटर्न देना है*।

 

_ ➳  मन ही मन स्व चिंतन करते हुए, अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान स्वीट बनने की प्रतिज्ञा स्वयं से करके, *मैं अपने स्वीट बाबा और अपने स्वीट साइलेन्स होम को जैसे ही याद करती हूँ, ऐसा लगता है जैसे मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, परमधाम से बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त शक्तिशाली किरणो के रूप में परमात्म ब्लैसिंग मुझ आत्मा पर बरसने लगी है*। यह परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियाँ मेरे अंदर एक बल भर रही है और मुझे बहुत ही लाइट और माइट बना रही हैं। इस लाइट और माइट स्थिति में मैं स्वयं को धीरे - धीरे देह से डिटैच अनुभव कर रही है। देह में होते हुए भी मैं स्वयं को देह से एकदम अलग अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  साक्षी होकर मैं अपनी देह और अपने आस पास की हर वस्तु को देखते हुए, अब इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर अपने स्वीट बाबा से मिलने की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ रही हूँ और कुछ ही सेकण्ड में इस यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच गई हूँ अपने स्वीट साइलेन्स होम में, जहाँ आकर मन को गहन शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है*।

अपने सामने सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। धीरे - धीरे मैं अपने मीठे बाबा के समीप जाकर मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा अपने सारे गुण और अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर भर कर मुझे आप समान बना रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में निरन्तर रहते, हर कर्म करते अन्दर में बाबा - बाबा कहते, बाबा के गुणों को अपने जीवन में धारण कर, उनके समान स्वीट बन मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सच्चा रूहानी स्नेह और सम्मान देकर सबके जीवन में मिठास घोल रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व खजानों को विश्व कल्याण प्रति यूज़ करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा एक की लगन में सदा मगन रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा निर्विघ्न हूँ  ।*

   *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *स्वयं सदा स्वमान में रह उड़ते रहो। स्वमान को कभी नहीं छोड़ो, चाहे झाडू लगा रहे हो लेकन स्वमान क्या है? विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ। तो अपना रूहानी स्वमान कोई भी काम करते भूलना नहीं।* नशा रहता है ना, रूहानी नशा। हम किसके बन गये! भाग्य याद रहता है ना? भूलते तो नहीं हो? *जितना भी समय सेवा के लिए मिलता है उतना समय एक-एक सेकण्ड सफल करो।* व्यर्थ नहीं जाए, साधारण भी नहीं। *रूहानी नशे में रूहानी प्राप्तियों में समय जाए। ऐसा लक्ष्य रखते हो ना! अच्छा।*

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा अपने रूहानी स्वमान में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा देख रही हूँ स्वयं को, एक बड़ी ऊंची पहाड़ी पर प्रकृति के सानिध्य में बैठे हुए...* मैं आत्मा उन अद्वितीय, अविस्मरणीय मीठे अद्भुत पलों को याद कर रही हूँ... *जब इस कलियुग रूपी अन्धेरे में ज्योति बिन्दु शिव बाबा रोशनी बन मेरे जीवन में आये... और मुझ दिव्य आत्मा को अज्ञान अन्धेरे से बाहर निकाल ज्ञान प्रकाश  दिया...* मुझ विशेष आत्मा को मेरा सत्य परिचय दिया... *मुझ आत्मा का हाथ थामा मुझे अपना बनाया...* मैं आत्मा इस पहाड़ी से इस पूरे विश्व की आत्माओं को देख रही हूँ और अपने भाग्य को देख रही हूँ... *कितना श्रेष्ठ भाग्य, मुझ श्रेष्ठ आत्मा ने पाया हैं... इस संसार की आत्माओं से चुनकर बाबा ने मुझ आत्मा को कितना विशेष बना दिया है...* वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो, स्वयं बाबा ने आकर अपना सत्य परिचय दिया... सत्यता का प्रकाश मुझे दिया... और जीवन में सवेरा लाया...

 

 _ ➳  *मूर्छित अवस्था से सुरजीत किया... वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य जो इस ब्रम्हांड की परमसत्ता से मेरा मिलन हुआ...* उसने आते ही मुझ आत्मा के स्वमान को जगाया... मुझ आत्मा को जागरण की अवस्था मे लाया... *मुझ आत्मा को भिन्न-भिन्न स्वमानों से सजाया...* जैसे ही ये विचार मैं आत्मा जनरेट करती हूँ... तभी अचानक एक सतरंगी रंग का कमल का फूल, मुझ आत्मा के सामने आता है... *मैं आत्मा उठकर इस कमल फूल पर विराजमान हो जाती हूँ...* मैं कमल आसनधारी आत्मा जैसे ही कमल फूल पर बैठती हूँ... मुझ आत्मा का स्वरूप परिवर्तन हो जाता है...

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा डबल लाइट फरिशता स्वरूप धारण करती हूँ...* और सामने फरिशतों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटि में शिव बाबा चमक रहे है... *बाबा मुझ नन्हें फरिशते के पास आ जाते है... बाबा को सामने पाकर मैं आत्मा खुशी से भर गयी हूँ...* बाबा मुझ आत्मा पर रंग-बिरंगे फूलों रूपी शक्तियों की वर्षा कर रहे है... वाह मुझ आत्मा का भाग्य वाह, अपने भाग्य को देख-देख मैं आत्मा खुशी में झूम रही हूँ... *बापदादा मुझ आत्मा के सामने आकर बैठ जाते है... और मुझ आत्मा को भिन्न भिन्न स्वमानों की मालायें पहना रहे है...*

 

 _ ➳  *एक-एक स्वमान की माला अदभुत चमकीली है... भिन्न-भिन्न स्वमानों की माला से बाबा मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहे है...* अब मैं आत्मा भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाओं से सज गयी हूँ... फिर बाबा मेरे सिर पर हाथ रखते हैं... और *बाबा मुझ आत्मा को वरदान दे रहे "सदा स्वमानधारी" भव बच्चे...* मैं आत्मा अन्तर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में कर्मक्षेत्र पर... *मैं आत्मा हर कार्य करते भिन्न-भिन्न स्वमानों की मालाएँ धारण कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ... इस स्वमान के रूहानी नशे में रह हरदम उड़ती कला का अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा हर समय रूहानी नशे मे रह रूहानी प्राप्तियों में समय सफल कर रही हूँ... *स्वमान की भिन्न-भिन्न मालाओं से मैं आत्मा सजकर हर कार्य में सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* मैं आत्मा अपना एक-एक सेकेंड सफल कर रही हूँ... *मैं श्रेष्ठ आत्मा स्वमान में स्थित होकर हर सेवा कर रही हूँ...* मैं आत्मा किसकी बन गयी हूँ... *सदा इस रूहानी नशे में उड़ती रहती हूँ... स्वमान में स्थित रह सबको सम्मान देती हूँ...* और सभी आत्माओं को स्वमान की दृष्टि से देखती हूँ... *बाबा के द्वारा मिला सदा स्वमानधारी भव का वरदान प्रत्यक्ष हो रहा है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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