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 28 / 02 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *शुभ चिंतन मणि बन विश्व को चिंताओं से मुक्त किया ?*

 

➢➢ *अपनी शुभ चिन्तक भावना से औरों के मन में सहयोग की भावना को उत्पन्न किया ?*

 

➢➢ *अपने शुभ भावना से आत्माओं के उमंग उत्साह के पंखों मिएँ शक्ति भरी ?*

 

➢➢ *शुभ चिंतन से व्यर्थ चिंतन व पर चिंतन को समाप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। लेकिन *परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना। जितना न्यारा बनेंगे उतना परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा का सिकीलधा रूहानी गुलाब हूँ"*

 

  सभी अपने को सिकीलधे समझते हो ना? कितने सिक व प्रेम से बाप ने कहाँ-कहाँ से चुनकर एक गुलदस्ते में डाला है। गुलदस्ते में आकर सभी 'रूहे गुलाब' बन गये। रूहे गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? *हरेक को यही नशा है ना कि हम बाप को प्रिय हैं! हरेक कहेगा कि मेरे जैसा प्यारा बाप को और कोई नहीं है। जैसे बाप जैसा प्रिय और कोई नहीं। वैसे बच्चे भी कहेंगे।* 

 

  क्योंकि हरेक की विशेषता प्रमाण बाप को सभी से विशेष स्नेह है। नम्बरवार होते हुए भी सभी विशेष स्नेही हैं। बच्चों के मूल्य को सिर्फ बाप जानें और आप जानों। और कोई नहीं जान सकता। *दूसरे तो आप लोगों को साधारण समझते हैं, लेकिन कोटो में कोई और कोई में भी कोई आप हो। जिसको बाप ने अपना बना लिया। बाप का बनते ही सर्व प्राप्तियॉं हो गई। खजानों की चाबी बाप ने आप सबको दे दी।* अपने पास नहीं रखी। इतनी चाबियाँ हैं जो सबको दी है। यह मास्टर की (चाबी) ऐसी है जो जिस खजाने को लगाना चाहो, लगाओ और खजाना प्राप्त करो। मेहनत नहीं करनी पड़ती।

 

  वैसे भी लंदन राज्य का स्थान है ना। प्रजा बनने वाले नहीं। सभी सेवा में आगे बढ़ने वाले। *जहाँ प्राप्ति हैं वहाँ सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। सेवा कम अर्थात् प्राप्ति कम। प्राप्ति स्वरूप बिना सेवा के रह नहीं सकते।* देखो, आप लोग कितना भी देश छोड़कर विदेश चले गये तो भी बाप ने विदेश से भी ढूँढकर अपना बना लिया। कितना भी भागे फिर भी बाप ने तो पकड़ लिया ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *सिर्फ मैं शब्द नहीं बोलना आत्मा साथ में बोला, पक्का हो जायेगा।* जैसे शरीर का नाम पक्का है ना दूसरे को भी कोई बुलायेंगे तो आप ऐसे-ऐसे करेंगे। तो मैं आत्मा हूँ। आत्म का संसार बापदादा, आत्मा का संस्कार ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरश्तिा सो देवता। तो क्या करेंगे? यह मन की ड़ि्ल करना। आजकल डॉक्टर्स भी कहते हैं ड़ि्ल करो, ड़ि्ल करो। एक्सरसाइज करो।

 

✧   तो *यह एक्सरसाइज करो। मैं आत्मा, मेरा बाबा क्योंकि समय की गति को ड्रामा अनुसार स्लो करना पडता है।* होना चाहिए क्रियेटर को तीव्र, क्रियेशन के नहीं लेकिन अभी के प्रमाण समय तेज जा रहा है। प्रकृति एवररेडी है सिर्फ ऑर्डर के लिए रूकी हुई है। ड्रामा का समय ही ऑर्डर करेगा ना। स्थापना वाले अगर एवररेडी नहीं होंगे ते विनाश के बाद क्या प्रलय होगी? होनी है प्रलय?

 

✧   कि विनाश के बाद स्थापना होनी ही है? *तो स्थापना के निमित बने हुए अभी समय प्रमाण एवररेडी होने चाहिए।* बापदादा यही देखने चाहते है, जैसे ब्रह्मा बाप अर्जुन बना ना, एक्जैम्पुल बना ना! ऐसे ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले कौन बनते हैं? स्वयं भी देखो, समय को भी देखो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फरिश्ता रूप की स्थिति अर्थात् अव्यक्त स्थित जिसकी सदाकाल रहती है वह बिन्दु रूप में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रूप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। *शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे। वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच-बीच में समय निकाल करना चाहिए। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  विश्व को चिंताओं से मुक्त करना"*

 

_ ➳  कर्मक्षेत्र पर मीठे बाबा की यादो में खोयी हुई थी... कि मीठे बाबा ने वतन से आवाज दी... और मै आत्मा प्रियतम की आवाज पर मद्होश हो... सूक्ष्म शरीर संग वतन में पहुंची... मीठे बाबा ने कहा :- "बच्चों को जी भर देखने को मुझ पिता का दिल सदा ही आतुर रहता है... मेरे सारे बच्चे सुखी हो जाएँ... सुखो में मुस्कराये... यही चिंतन पिता दिल निरन्तर करता है... मीठे बाबा को देख, मै आत्मा मन्द मन्द मुस्कराने लगी... और कहा मीठे बाबा, *मै हूँ ना... सबको सच्चा रास्ता बताउंगी और आपकी बाँहों में लाकर सजाऊँगी..*."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा की ओर एक मीठी आस भरी नजरो से देख रहे हे.. और कह रहे :-* "मीठे प्यारे बच्चे... अपने सभी भाई बहनो को यह सच्चा रास्ता बताओ... *सबके दामन में आप समान खुशियो के फूल खिलाओ..*. सच्चे प्रेम और सुख, शांति का अहसास, हर दिल को कराओ... दुखो में कुम्हलाये से मेरे बच्चों को, सच्ची ज्ञान रश्मियों में लाकर... सच्ची मुस्कान से पुनः महकाओ..."

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की मीठी दिली आरजू सुनकर मै आत्मा कह उठी :-*."मीठे बाबा... आपके सारे अरमान मेरी पलको पर है... आपकी सेवाओ में यह दिल तो दीवाना सा है... आपके प्यार में, मै आत्मा *मा ज्ञान सागर बनकर... इन सत्य ज्ञान की किरणों को हर मनुष्य तक पहुंचा रही हूँ.*.. और मीठी मुस्कानों से उन्हें सजा रही हूँ..."

 

   *ईश्वरीय सेवाओ में मेरा दीवानापन देख... मीठे बाबा मनमोहिनी मुस्कान लिए वरदानी हाथो से मुझे श्रंगारने लगे... और बोले :-* " लाडले बच्चे मेरे... इस धरा पर दुःख का अब नामोनिशान भी न रहे... *सारा ब्रह्मांड खुशियो की चहचहाहट से गुंजायमान हो उठे.*.. विश्व की सारी आत्माये अज्ञान अन्धकार से निकल... ज्ञान किरणों में रौशन हो मुस्कराये... "

 

_ ➳  *विश्वकल्याणकारी पिता के मन को सुनकर... मै आत्मा विश्व कल्याण से ओतप्रोत हो उठी... और कहने लगी :-* " हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबको सुखदायी बनाती जा रही हूँ... जन्म जन्मांतर के दुखो से सबको मुक्ति दिलाती जा रही हूँ... सारी आत्माये दुःख और पापो के बोझों से छूटती जा रही है... *हर आत्मा सच्चे सुख की अनुभूति में डूब रही है.*.."

 

   *मनमीत बाबा ईश्वरीय सेवाओ में मेरे जोश और जूनून पर फ़िदा हो गए... और कहने लगे :-* "जब संसार पर नजर भर घुमायी तो... आप बच्चों की चमक पर नजरे ही ठहर गयी... मेरे बच्चे ही विश्व का कल्याण कर खुशियो भरा सतयुग इस धरा को बनाएंगे... यह पिता *दिल* बच्चों का दीवाना हो गया... मेरे महकते नन्हे नन्हे फूल बच्चे... *सारे काँटों को सहज ही खुशनुमा पुष्प सा खिलायेंगे, यह बरबस कह उठा..*."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा का इतना प्यार, दुलार और विश्वास देखकर... स्नेह आँसुओ से भर गई... और कहा :-*. "प्यारे बाबा... *आपने सच्चे साथी बनकर मेरा जीवन अथाह खुशियो से सजाया है.*.. यह ख़ुशी की दौलत पाकर मै आत्मा आपकी रोम रोम से ऋणी हूँ... यह सच है की यह खुशियां हर दिल आँचल में भरकर... कण मात्र ऋण भी न उतार पाऊँगी..." ऐसी मीठी गुफ्तगू कर, स्नेह के मोती लिये, मै आत्मा स्थूल जगत में लौट आई...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शुभ चिंतन से व्यर्थ चिंतन और परचिन्तन को समाप्त करना*"

 

_ ➳  अपने आश्रम के क्लास रूम में, अपने परम शिक्षक शिव पिता परमात्मा के मधुर महावाक्य सुनने के बाद, ज्ञान के सागर, अपने प्यारे बाबा से मिलने वाले *अविनाशी ज्ञान रत्नों के बारे में विचार सागर मन्थन करते हुए, एकाएक शास्त्रों में लिखी एक बात स्वत: ही स्मृति में आने लगती है जिसमे कहा गया है "कि समुंद्र मन्थन में, समुंद्र को मथने से जो अमृत निकला था उसे पीकर देवता सदा के लिए अमर बन गए थे"*। भक्ति में कही हुई यह बात स्मृति आते ही मैं विचार करती हूँ कि वास्तव में वो अमृत तो यह ज्ञान अमृत है जो इस समय भगवान द्वारा दिये जा रहे ज्ञान का मंथन करके हम ब्राह्मण बच्चे प्राप्त कर रहें है और इस अमृत को पीकर भविष्य 21 जन्मो के लिए "सदा अमर भव" के वरदान के अधिकारी बन रहें हैं।

 

_ ➳  तो कितने पदमापदम सौभाग्यशाली है हम ब्राह्मण बच्चे जो इस ज्ञान अमृत को पीकर अमर बन रहें हैं। *मन ही मन अपने भाग्य की सराहना करती, ज्ञान अमृत पिला कर, सदा के लिए अमर बनाने वाले, ज्ञान के सागर अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करके, मैं उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और ज्ञान सागर में डुबकी लगाने के लिए, एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा बन अपने अकाल तख्त को छोड़, देह की कुटिया से बाहर आकर, सीधा ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ। 

 

_ ➳  आकाश को पार करके, मैं सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती हूँ और इस लोक को भी पार करके ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम में पहुँच जाती हूँ। *इस शान्ति धाम घर में आकर मुझे ऐसा लग रहा हूँ जैसे शांति की शीतल लहरें बार - बार आकर मुझ आत्मा को छू रही हैं और मुझे गहन शीतलता और असीम सुकून दे रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे एक छोटा बच्चा सागर के किनारे खड़ा, सागर की लहरों के साथ खेल रहा है और उस खेल का भरपूर आनन्द ले रहा हैं, *ऐसे ही मैं आत्मा शान्ति के सागर अपने शिव पिता की शान्ति की लहरों से खेलते हुए असीम आनन्द ले रही हूँ*

 

_ ➳  शान्ति की गहन अनुभूति करते - करते, मैं आत्मा ज्ञान, गुणों और शक्तियों के सागर अपने शिव पिता से ज्ञान के अखुट ख़ज़ाने अपनी बुद्धि रूपी झोली में भरने के लिए और स्वयं को गुणों और शक्तियों से भरपूर करने के लिए अब बिल्कुल उनके समीप पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर शिव बाबा से ज्ञान की नीले रंग की फुहारे, और सर्वगुणों, सर्वशक्तियों की इंद्रधनुषी रंगों की शीतल फुहारे मुझ पर बरस रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान, गुण और शक्तियों की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं।

 

_ ➳  सर्वगुण, सर्वशक्तिसम्पन्न बनकर, अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरकर मैं वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ और आकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *"मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" सदा इस स्मृति में रहते हुए मैं आत्मा अब अपने ब्राह्मण जीवन मे ज्ञान के सागर शिवबाबा से प्रतिदिन मुरली के माध्यम से प्राप्त ज्ञानधन को जीवन मे धारण कर ज्ञानस्वरूप आत्मा बनती जा रही हूँ*। ज्ञान ख़ज़ानों से सम्पन्न होकर, परमात्म ज्ञान को मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र व कार्य व्यवहार में प्रयोग करके अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को सहज ही व्यर्थ से मुक्त कर, उन्हें समर्थ बना कर समर्थ आत्मा बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  *बुद्धि में सदा ज्ञान का ही चिंतन करते, ज्ञान के सागर अपने शिव पिता के ज्ञान की लहरों में शीतलता, खुशी व आनन्द  का अनुभव करते, ज्ञान की हर प्वाइंट को अपने जीवन मे धारण कर मैं आत्मा ज्ञान सम्पन्न बनती जा रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व आत्माओं को शक्तियों का दान देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मास्टर बीजरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अलौकिक जीवन की सेफ्टी का साधन प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं सहज योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  जब 9 लाख आयेंगे तो साधन स्वतः जुट जायेगा। घबराओ नहीं, हाल बनाना पड़ेगा। देखो, भविष्य बहुत बहुत उज्जवल है। सब साधन मिल जायेंगे। बने बनाये हाल आपको मिलेंगे। बनाने नहीं पड़ेंगे। *सिर्फ जो इस वर्ष का स्लोगन दिया है ना - सफल करो, सफलता है ही। अच्छा।*

 

 _ ➳  टीचर्स अभी स्वयं भी सफल करो और सफल कराओ। सेवा में वृद्धि होना अर्थात् खजानों को सफल किया और कराया। तो इस वर्ष का स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना तो स्वतः ही वृद्धि होती जायेगी। हिम्मत दिलाओ। बापदादा ने देखा है, कोई-कोई स्थान में हिम्मत कम दिलाने की शक्ति है। *हिम्मत दिलाओ, हर कार्य में मन्सा में भी, वाचा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, कर्म में भी हिम्मत दिलाओ।* टीचर्स की सीट ही है - हिम्मत में रहना और हिम्मत दिलाना। क्यों? क्योंकि टीचर्स को जो बाप की मुरली सुनाने का चाँस मिला है और तख्त मिला है, यह एक्सट्रा मदद है। तो हिम्मत और उल्हास दिलाओ। *सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे। सुना टीचर्स ने। उल्हास में लाओ क्लास को।*

 

✺   *ड्रिल :-  "क्लास को हिम्मत और उल्हास दिलाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं चैतन्य आत्मा... भृकुटी के मध्य विराजमान स्वयं को देख रही हूं... *अपने फरिश्ता स्वरूप को इमर्ज किये ये उड़ चला मैं फ़रिश्ता एक रुहानी यात्रा पर...* देह के भान, इस साकार लोक को भी पीछे छोड़ते हुए... चांद तारों से भी पार सूक्ष्मवतन...

 

 _ ➳  *यह आ पहुंचा मैं फ़रिश्ता बापदादा की दुनिया, फरिश्तों के लोक...* चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश हैं... और सामने बापदादा, *चेहरे पर मुस्कान और मीठे बोल लिये "आओ बच्चे आओ इधर आओ" कह बाहें पसारे मेरा स्वागत कर रहे हैं...* बाबा... मीठे बच्चे... बाबा ममतामई दृष्टि से मुझे निहारते हुए... और मैं ये आ पहुँचा बापदादा के समीप...

 

 _ ➳  बापदादा की स्नेह भरी दृष्टि में मैं स्वयं को भूलते जा रहा हूं... मीठे बच्चे... ओ मीठे बच्चे... अचानक मुझे सुध आती है... बापदादा प्यार से मेरे सिर पर अपना हाथ फेर लाड प्यार देते है... *त्रिकालदर्शी बाप मुझ मास्टर त्रिकालदर्शी को दृष्टि दे रहे हैं...* मैं फ़रिश्ता भविष्य सेवा वृद्धि के दृश्य को देख रहा हूं कि किस प्रकार सभी साधन एकाएक अपने आप ही जुट गए हैं... 9 लाख भाई बहन एक बड़े से हाल में बापदादा के सन्मुख बैठे हैं... यह दृश्य देख *भविष्य सेवा को ले मैं अपनी सभी चिंताओं को भूल चुका हूं... मैं बेफिक्र बादशाह हो चला हूं...*

 

 _ ➳  अब मैं फरिश्ता बेहद की रूहानी हिम्मत लिए, उमंग उत्साह से भरपूर अपने सभी खजानों को सफल करते जा रहा हूं... *बापदादा से विदा ले अब मैं आ पहुंचा अपनी स्थूल शरीर स्थूल लोक में...* भृकुटि के मध्य मैं आत्मा स्वयं को निहार रही हूं... *मुझ आत्मा से शक्तिशाली, उमंग उत्साह की किरणे चारों ओर फैल रही हैं... चारों ओर का वायुमंडल उमंगो से तरंगों से उत्साह से भरपूर हो चला है...* उपस्थित सभी आत्माएं सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे रहा है...

 

 _ ➳  *सभी रूहानी गुलाब "मैं आत्मा कल्प कल्प की विजय रत्न हूं" कि स्मृति का तिलक लगाएं अपने सभी खजानों को सफल करते जा रहे हैं...* मनसा, वाचा, कर्मणा सभी खजानों को सफल करते हुए सेवा में वृद्धि को पा रहे हैं... *उनमे एक बेहद की रूहानी हिम्मत, एक नया रूहानी जोश अनुभव हो रहा है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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