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 19 / 02 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"मेरा तो एक शिव बाबा... दूसरा न कोई" - यह अनुभव किया ?*

 

➢➢ *इस रूद्र यज्ञ में अपना सब कुछ सफल किया ?*

 

➢➢ *ग्यानी तू आत्मा बन ज्ञान सागर में समाये रहे *

 

➢➢ *सहजयोगी बन अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  हर समय, हर आत्मा के प्रति मन्सा स्वत: शुभभावना और शुभकामना के शुद्ध वायब्रेशन वाली स्वयं को और दूसरों को अनुभव हो। मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति दुआयें निकलती रहें। मन्सा सदा इसी सेवा में बिजी रहे। *जैसे वाचा की सेवा में बिजी रहने के अनुभवी हो गये हो। अगर सेवा नहीं मिलती तो अपने को खाली अनुभव करते हो। ऐसे हर समय वाणी के साथ साथ मन्सा सेवा स्वत: होती रहे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *" मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान अनुभव करते हो? जिसका बाप ही भाग्यविधाता हो वह कितना न भाग्यवान होगा! भाग्यविधाता बाप है तो वह वर्से में क्या देगा? जरूर श्रेष्ठ भाग्य ही देगा ना! सदा भाग्यविधाता बाप और भाग्य दोनों ही याद रहें। *जब अपना श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहेगा तब औरों को भी भाग्यवान बनाने का उमंग उत्साह रहेगा। क्योंकि दाता के बच्चे हो।* भाग्य विधाता बाप ने बह्मा द्वारा भाग्य बाँटा, तो आप ब्रह्मण भी क्या करेंगे?

 

  जो ब्रह्मा का काम, वह ब्रह्मणों का काम। तो ऐसे भाग्य बाँटने वाले। वे लोग कपड़ा बाँटेंगे, अनाज बाँटेंगे, पानी बाँटेंगे लेकिन श्रेष्ठ भाग्य तो भाग्य विधाता के बच्चे ही बाँट सकते। *तो भाग्य बाँटने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें हो। जिसे भाग्य प्राप्त है उसे सब कुछ प्राप्त है।* वैसे अगर आज किसी को कपड़ा देंगे तो कल अनाज की कमी पड़ जायेगी, कल अनाज देंगे तो पानी की कमी पड़ जायेगी। एक-एक चीज कहाँ तक बाँटेंगे। उससे तृप्त नहीं हो सकते। लेकिन अगर भाग्य बाँटा तो जहाँ भाग्य है वहाँ सब कुछ है।*

 

  *वैसे भी कोई को कुछ प्राप्त हो जाता है तो कहते हैं - वाह मेरा भाग्य! जहाँ भाग्य है वहाँ सब प्राप्त है। तो आप सब श्रेष्ठ भाग्य का दान करने वाले हो। ऐसे श्रेष्ठ महादानी, श्रेष्ठ भाग्यवान। यही स्मृति सदा उड़ती कला में ले जायेगी। जहाँ श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति होगी वहाँ सर्व प्राप्ति की स्मृति होगी।* इस भाग्य बाँटने में फ़राखदिल बनो। यह अखुट है। जब थोड़ी चीज होती है तो उसमें कन्जूसी की भावना आ सकती लेकिन यह अखुट है इसलिए बाँटते जाओ। सदा देते रहो, एक दिन भी दान देने के सिवाए न हो। सदा के दानी सारा समय अपना खजाना खुला रखते हैं। एक घण्टा भी दान बन्द नहीं करते। ब्रह्मणों का काम ही है सदा विधा लेना और विधा का दान करना। तो इसी कार्य में सदा तत्पर रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बापदादा देख रहे थे कि देहभान क स्मृति में रहने में क्या मेहनत की - मैं फलाना हूँ मैं फलाना हूँ यह मेहनत की? नेचरल रहा ना नेचर बन गई ना बॉडी कान्सेस की। *इतनी पक्की नेचर हो गई जो अभी भी कभी-कभी कई बच्चों को आत्मअभिमानी बनने के समय बॉडी कान्सेसनेस अपने तरफ आकर्षित कर लेती है।* सोचते हैं मैं आत्मा हूँ मैं आत्मा हूँ, लेकिन देहभान ऐसा नेचरल रहा है जो बार-बार न चाहते, न सोचते देहभान में आ जाते हैं।

 

✧  *बापदादा कहते हैं अब मरजीवा जन्म में आत्मअभिमान अर्थात देही-अभिमानी स्थिति भी ऐसे ही नेचर और नेचरल हो।* मेहनत नहीं करनी पडे - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। जैसे कोई भी बच्चा पैदा होता है और जब उसे थोडा समझ में आता है तो उसको परिचय देते हैं आप कौन हो, किसके हो, ऐसे ही जब ब्राह्मण जन्म लिया तो आप ब्राह्मण बच्चों को जन्मते ही क्या परिचय मिला?

 

✧  आप कौन हो? आत्मा का पाठ पक्का कराया गया ना! तो पहला परिचय नेचरल नेचर बन जाए। नेचर नेचरल और निरंतर रहती है, याद करना नहीं पडता। *ऐसे हर ब्राह्मण और नेचरल स्मृति स्वरूप बनना ही है। लास्ट अंतिम पेपर सभी व्राह्मणों का यही छोटा-सा है - नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूपा?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  यह जो आजकल की सर्विस कर रहे हो उसमें विशेषता क्या चाहिए? *भाषण तो वर्षों कर ही रहे हो लेकिन अब भाषणों में भी क्या अव्यक्त स्थिति भरनी है?जो बात करते हुए भी सभी ऐसे अनुभव करें कि यह तो जैसे कि अशरीरी, आवाज़ से परे न्यारे स्थिति में स्थित होकर बोल रहे हैं।* अब इस सम्मेलन में यह नवीनता होनी चाहिए।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस थोड़े समय में योगबल जमा करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सबेरे-सबेरे बगीचे की सैर करते हुए प्रकृति के सौन्दर्य को निहार रही हूँ...*  ठंडी-ठंडी हवाएं फूलों की खुशबू को पूरे बगीचे में फैला रही हैं... आम के पेड़ पर बैठी कोयल कुहू-कुहू करती मेरे स्वागत में मीठे गीत गा रही है... मेरे मन को लुभा रही है... एक छोटे से बीज से उत्पन्न ये पेड़ कितने बड़े हो गए हैं... इनको देख बीज रूपी परमात्मा और सृष्टि रूपी झाड़ स्मृति में आ जाते हैं... *तुरंत मैं आत्मा उड़ चलती हूँ, परमधाम... बीजरूप बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से दिव्य शक्तिशाली किरणें निकल मुझ आत्मा पर पड़ती जा रही हैं... और मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं...* फिर मैं आत्मा बिंदु, बिंदु बाबा के साथ सूक्ष्मवतन में आ जाती हूँ... ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर शिवबाबा विराजमान हो जाते हैं और मैं फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर उनसे प्यारी शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...

 

  *ज्ञान और योगबल से विकर्मो को भस्म कर श्रेष्ठ कर्मो के लिए श्रीमत देते हुए ज्ञान के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को दुखो में कितना पुकारा है... *अब जो भगवान इतना सहज मिला है, तो श्रीमत पर चलकर अपने कर्मो को खुबसूरत बनाओ... यादो की खुमारी में खोकर अपने विकर्मो को खत्म कर, जमा का खाता बढ़ाओ...* सच्चे प्रेम को हर घड़ी जीने वाले ईश्वरीय प्रेम के पर्याय बन जाओ..."

 

_ ➳  *अमूल्य ज्ञान रत्नों से मेरे भाग्य को अमूल्य बनाने वाले प्राण प्यारे बाबा को मैं भाग्यशाली आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की दुनिया में कितनी कर्म भ्रष्ट हो गयी थी... *आपने श्रेष्ठ दिव्य कर्मो से मेरा जीवन सुगन्धित किया है... आपने देह में धूल धूसरित सी मुझ आत्मा को अपने दिल में सजाकर... अमूल्य मणि बना दिया है...”*

 

  *यादों के इंद्रधनुषी किरणों से मुझे एवरहेल्दी, एवर वेल्दी बनाते हुए सुख के सागर मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय यादो में इस कदर डूब जाओ कि विकर्मो की कालिमा सहज निकल जाये...* और श्रीमत के हाथ को पकड़ देह के दलदल से सहज बाहर निकल... अपनी दिव्य सुंदरता से सज जाओ... मीठे बाबा की सुखदायी यादो में अनन्त सुखो से भर जाओ...

 

_ ➳  *अनंत खुशियों के खजानों से मालामाल होकर दिव्यता से श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सारे किये विकर्मो से मुक्त होकर फूलो जैसी खिलती जा रही हूँ... पुण्यो का खाता बढ़ाकर भीतर की सुंदरता को हर पल निखार रही हूँ... *आपकी यादो में सम्पूर्ण पवित्रता से सजधज कर सतयुगी स्वर्ग में आ रही हूँ...”*

 

  *अपने स्नेह भरी नजरों से मुझे निहाल कर विश्व का मालिक बनाते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय मत पर चलकर जीवन खुशियो से महकाओ... ईश्वर पिता की यादो में सारे पापो को खत्म कर... अपने तेजस्वी रूप को पुनः पाकर ईश्वरीय दिल में बस जाओ...*  एक के अंत में खो जाओ... और विश्व पिता से विश्व का राजभाग्य पाने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पुराने सारे खाते खत्म कर नया पुण्य का खाता जमा कर नया भाग्य बनाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खूबसूरत भाग्य की धनी सी... ईश्वरीय बाँहो में मुस्करा रही हूँ... *मुझे प्यार करने, सच्ची राहो पर ऊँगली पकड़ चलाने, ईश्वरीय दौलत से दामन सजाने भगवान धरा पर उतर आया है... मै आत्मा दिव्य मणि सी चमक रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वराज्य पाने के लिए शरीर सहित जो कुछ भी है, वह बलिहार जाना है*"

 

_ ➳  *देहभान में आने से विकारों का जो कखपन मुझ आत्मा में भर गया है उस कखपन को करनीघोर मेरे परमपिता परमात्मा स्वयं मुझसे मांग कर बदले में मुझे जन्म जन्मांतर के लिए प्योर और निरोगी बनाने का मेरे साथ सौदा कर रहें हैं तो ऐसे भगवान बाप पर मुझे कितना ना बलिहार जाना चाहिए* जो मेरा कखपन लेकर मुझे विश्व की बादशाही दे रहें हैं। कितने रहमदिल दया के सागर हैं मेरे प्रभु जो सभी आत्माओं के ऊपर अपनी दयादृष्टि रखते हैं। सबको दुखों से लिबरेट कर सुख के संसार में ले जाते हैं। 

 

_ ➳  विकारो ने आज जिस भारत को कौड़ी तुल्य बना दिया है उसे फिर से स्वर्ग बनाने का कर्तव्य करने वाले *अपने प्यारे बाबा का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करते हुए अब अपने आप से वायदा करती हूँ कि जिन विकारो ने मुझे कौड़ी तुल्य बनाया है वह कखपन अपने पिता को सौंप, इस विकारी देह और देह से जुड़े विकारी सम्बन्धो से ममत्व  मिटा कर केवल उन पर ही बलिहार जाना है*। उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर उनके समान बनना ही अब मेरे इस जीवन का लक्ष्य है।

 

_ ➳  इस लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प लेकर अपने प्यारे प्रभु की याद में बैठ स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करने और अपने ऊपर चढ़ी विकारो की कट को जलाकर भस्म करने के लिए अपने बीज रूप पिता के पास चलने की आंतरिक यात्रा को अब मैं शुरू करती हूँ। *अपने मन और बुद्धि को देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, हर संकल्प विकल्प से किनारा कर मन को एक ही शक्तिशाली संकल्प में मैं स्थित करती हूँ कि मैं परमपवित्र आत्मा हूँ, नष्टोमोहा हूँ*। इस संकल्प में स्थित होते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मैं देह से स्वत: ही डिटैच हो रही हूँ और देह को भूलती जा रही हूँ। देह में होते भी स्वयं को मैं देह से न्यारी एक चमकती हुई ज्योति के रूप में देख रही हूँ। 

 

_ ➳  एक चैतन्य शक्ति जो इस देह में विराजमान होकर इस देह को चला रही है किन्तु देह से पूरी तरह अलग है, अपने इस स्वरूप में स्थित होकर अब मैं देख रही हूँ सितारे के समान चमक रहें अपने इस अद्भुत निराले स्वरूप को जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है। *इस सत्य स्वरूप में स्थित होते ही मैं महसूस कर रही हूँ जैसे पवित्रता के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझ आत्मा से निकल रहें हैं और मुझे विदेही बना कर पवित्रता के सागर मेरे प्यारे पिता की ओर ले जाने का मुझमे बल भर रहें हैं*। बाबा की पवित्रता की शक्ति एक मेग्नेटिक पॉवर की तरह मुझे अपनी ओर खींच रही है। बाबा मुझे कशिश कर रहें हैं। धीरे - धीरे देह से बाहर आकर अब मैं ऊपर की ओर उड़ रही हूँ।

 

_ ➳  मन को गहन सुकून दे रही है ये यात्रा। बहुत ही हल्केपन का मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ। *देह और देह के सम्बन्धो की जंजीरों में जकड़ी मैं आत्मा आज उन जंजीरो को तोड़ स्वयं को पूरी तरह आजाद महसूस कर रही हूँ और उन्मुक्त होकर इस आजादी का भरपूर आनन्द लेते हुए सारे विश्व की सैर करते हुए ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। प्रकृति के हर दृश्य को देखते हुए आकाश को पार कर मैं उससे भी ऊपर जा रही हूँ। सफेद प्रकाश की खूबसूरत फरिश्तो की दुनिया से होकर अब मैं पहुँच गई हूँ अपने मूलवतन परमधाम घर मे अपने प्यारे पिता के पास। यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा शन्ति के गहन अनुभवों का आनन्द ले रही हूँ।

 

_ ➳  कुछ क्षण शान्ति की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं अपने ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर स्वयं को पावन बनाने के लिए पवित्रता के सागर अपने पिता के पास पहुँच गई हूँ जो महाज्योति के रूप में मेरे सामने उपस्थित हैं। *उनके बिल्कुल समीप जाकर मैं आत्मा बैठ गई हूँ। उनसे निकल रही पवित्रता की किरणों की मीठी - मीठी फुहारें मुझ पर बरस रही है और मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की मैल को धोकर मुझे शुद्ध और पावन बना रही हैं*। उन किरणों का स्वरूप - धीरे - धीरे बदलकर योग अग्नि में परिवर्तित हो रहा है ऐसे लग रहा है जैसे मेरे चारों तरफ कोई ज्वाला दधक रही है जिसकी तपश मेरे विकर्मों को दग्ध कर रही है। *जैसे - जैसे मेरे विकर्म विनाश हो रहें हैं मैं सच्चे सोने के समान चमकदार बन रही हूँ*।

 

_ ➳  शुद्व, पवित्र, शक्तिशाली बन कर मैं आत्मा अब वापिस फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजाने के लिए लौट रही हूँ। अपने शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर, बाबा को विकारों रूपी कखपन दे, विकारों के ग्रहण से मैं धीरे - धीरे मुक्त होती जा रही हूँ। *एक बाबा को ही अपना संसार बना कर, देह और देह के सम्बन्धो, देह की दुनिया से मैं धीरे - धीरे ममत्व मिटाती जा रही हूँ। अपने जीवन को सुख शांति से सम्पन्न बनाने वाले अपने सुखदाता, शांतिदाता बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उन पर बलिहार जाकर, मैं हर समय उनकी सुखदाई यादों में समा कर अपने लक्ष्य को पाने का पुरुषार्थ निर्विघ्न हो कर बिल्कुल सहज रीति कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ज्ञानी तू आत्मा बन ज्ञान में समाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा इस जीवन में अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करती हूँ  ।*

   *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सुख स्वरूप, आनंद स्वरूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  प्युरिटी की वृत्ति है - शुभ भावना, शुभ कामना। कोई कैसा भी हो लेकिन पवित्र वृत्ति अर्थात् शुभ भावना, शुभ कामना और पवित्र दृष्टि अर्थात् सदा हर एक को आत्मिक रूप में देखना वा फरिश्ता रूप में देखना। तो वृत्ति, दृष्टि और तीसरा है कृति अर्थात् कर्म में, तो कर्म में भी सदा हर आत्मा को सुख देना और सुख लेना। यह है प्युरिटी की निशानी। वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में यह धारणा हो। *कोई क्या भी करता है, दुःख भी देता है, इन्सल्ट भी करता है, लेकिन हमारा कर्तव्य क्या है? क्या दुःख देने वाले को फालो करना है या बापदादा को फालो करना है? फालो फादर है ना! तो ब्रह्मा बाप ने दुःख दिया वा सुख दिया? सुख दिया ना! तो आप मास्टर ब्रह्मा अर्थात् ब्राह्मण आत्माओं को क्या करना है?*

 

✺   *ड्रिल :-  "वृत्ति, दृष्टि, कृति में प्युरिटी का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  इस संसार सागर में रहते हुए कर्म करते हुए मैं आत्मा थक कर अपनी सर्व कर्मेन्द्रियों को समेट कर शान्त अवस्था में बैठी हूँ... *धीरे धीरे इस देह से हल्की होती जा रही हूँ और स्वयं को इस देह से अलग एक आत्मा देख रही हूँ...* मस्तक के मध्य एक सितारे की भांति चमक रही हूँ... अब इस स्थूल देह से निकल कर अपने फरिश्ता स्वरूप में आ गयी हूँ... और इस साकारी दुनिया से उड़ कर ऊपर की ओर जा रही हूँ... उड़ते उड़ते सूक्ष्मवतन में आकर ठहरती हूँ...

 

 _ ➳  यहां आकर असीम शांति का अनुभव कर रही हूँ... चारों ओर सफेद रंग का चमकीला प्रकाश फैला हुआ है... अब थोड़ा और आगे चलने पर अपने ब्रह्मा बाबा को अपने सामने पाती हूँ... *सफेद चांदनी में नहाये बाबा बाँहे फैलाये मेरा स्वागत कर रहे हैं और मैं उनके सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा की मीठी दृष्टि मुझ पर पड़ने से मैं फरिश्ता भी चमकने लगता हूँ...* और बाबा से निकल कर सफेद प्रकाश की ये चमकीली और शक्तिशाली किरणें मुझमें असीम ऊर्जा का संचार कर रही हैं...

 

 _ ➳  मैं बाबा के प्यार में समाती जा रही हूँ... बेहद सुख का अनुभव कर रही हूँ... *मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के रूहानी चेहरे को निहार रही हूँ, कितनी प्योरिटी उनके चेहरे में दिखाई दे रही है...* उनके नयनों में आत्मिक प्यार चमक रहा है... मैं आत्मा विचार करती हूँ कि मुझे भी अपने सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओ को ऐसी ही आत्मिक दृष्टि देनी है... आज सभी आत्मायें इस कलियुग के प्रभाव में आकर अपने मूल देवताई संस्कारों को भूल चुकी हैं... और आसुरी संस्कारों को अपने संस्कार बना चुकी हैं...

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने लौकिक जीवन से जुड़ी सभी आत्माओ को अपने सामने इमर्ज करती हूँ... इन सभी को मैं यहाँ फरिश्ता रुप में देख रही हूँ मेरी आत्मिक दृष्टि इन सब पर पड़ रही है... *इनकी सभी कमी कमज़ोरियों को देखते हुए भी नहीं देखती और इन सबको प्योर वाइब्रेशन दे उनकी कमियों को दूर करने में उनकी मदद कर रही हूँ...* इन सभी आत्माओ के लिए मेरे मन में शुभभावना और शुभकामना है...

 

 _ ➳  कुछ आत्माओ के स्वभाव संस्कार के कारण मुझे कुछ परेशानी भी होती है तो भी मैं उनके प्रति मेरी वृति पवित्र है... *कोई दुख भी देता है तो भी मैं उसे सुख देती हूँ क्योंकि मेरे ब्रह्मा बाबा को मैं अपने इस संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में फॉलो कर रही हूँ...* मेरे ब्रह्मा बाबा ने भी कभी किसी को दुख नहीं दिया बल्कि दुख देने वालों को भी सुख दिया... मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखकर स्वयं को सम्पूर्णता की ओर बढ़ा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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