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❍ 12 / 03 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *माया को दोष न देकर अपनी कमियों की जांच कर उन्हें निकाला ?*
➢➢ *अहंकार का त्याग कर पानी पढाई में मस्त रहे ?*
➢➢ *निश्चय के आधार पर सदा एकरस अचल स्थिति में स्थित रहे ?*
➢➢ *सदा स्नेही बन हर कार्य में स्वतः सहयोगी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *आदिकाल, अमृतवेले अपने दिल में परमात्म प्यार को सम्पूर्ण रूप से धारण कर लो ।* अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियां, परमात्म ज्ञान फुल होगा *तो कभी और किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाप द्वारा सर्व खजानों से भरपूर आत्मा हूँ"*
〰✧ बाप द्वारा सर्व खजाने प्राप्त हो रहे हैं? भरपूर आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? *एक जन्म नहीं लेकिन 21 जन्म यह खजाने चलते रहेंगे। कितना भी आज की दुनिया में कोई धनवान हो लेकिन जो खजाना आपके पास है वह किसी के पास भी नहीं है। तो वास्तविक सच्चे वी.आई.पी कौन हैं? आप हो ना!* वह पोजीशन तो आज है कल नहीं लेकिन आपका यह ईश्वरीय पोजीशन कोई छीन नहीं सकता।
〰✧ *बाप के घर में श्रृंगार बच्चे हो। जैसे फूलों से घर को सजाया जाता है ऐसे बाप के घर के श्रृंगार हो। तो सदा स्वयं को - मैं बाप का श्रृंगार हूँ ऐसा समझ श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहो।* कभी भी कमजोरी की बातें याद नहीं करना। बीती बातों को याद करने से और ही कमजोरी आ जायेगी। पास्ट सोचेंगे तो रोना आयेगा इसलिए पास्ट अर्थात् फिनिश।
〰✧ * बाप की याद शक्तिशाली आत्मा बना देती है। शक्तिशाली आत्मा के लिए मेहनत भी मुहब्बत में बदल जाती है। जितना ज्ञान का खजाना दूसरों को दते हैं उतना वृद्धि होती है। हिम्मत और उल्लास द्वारा सदा उन्नति को पाते आगे बढ़ते चलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अभी एक मिनट के लिए सभी लाइट हाऊस, माइट हाऊस स्थिति द्वारा विश्व में अपनी लाइट-माइट फैलाओ।* (बापदादा ने ड़िल कराई) अच्छा - ऐसा अभ्यास समय प्रति समय कार्य में होते हुए भी करते रहो। *अभी सेकण्ड में जिस स्थिति में बापदाद डायरेक्शन दे उसी स्थिति में सेकण्ड में पहुँच सकते हो?* कि पुरुषार्थ में समय चला जायेगा?
〰✧ *अभी प्रेक्टिस चाहिए सेकण्ड की क्योंकि आगे जो फाइनल समय आने वाला है, जिसमें पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट मिलना है, उसका अभ्यास अभी से करना है।* सेकण्ड में जहाँ चाहे, जो स्थिति चाहिए उस स्थिति में स्थित हो जाएँ तो एवररेडी। रेडी हो गये। अभी पहले एक सेकण्ड में पुरुषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण हूँ इस स्थिति में स्थित हो जाओ।
〰✧ अभी मैं फरिश्ता रूप हूँ, डबल लाइट हूँ। *अभी विश्व कल्याणकारी बन मन्सा द्वारा चारों ओर शक्ति की किरणें देने का अनुभव करो।* ऐसे सारे दिन में सेकण्ड में स्थित हो सकते हैं। इसका अनुभव करते रहो क्योंकि अचानक कुछ भी होना है। ज्यादा समय नहीं मिलेगा। *हलचल में सेकण्ड में अचल बन सकें इसका अभ्यास स्वयं ही अपना समय निकाल बीच-बीच में करते रहो। इससे मन का कन्ट्रोल सहज हो जायेगा। कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर बढती जायेगी।* अन्छ|-
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति में रहने का अभ्यास अभी सहज हो गया है ? जब जहाँ अपनी बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ लगा सकें - इसी अभ्यास को बढ़ाने के लिए भट्ठी में आते हैं। *जैसे लौकिक जीवन में न चाहते हुए भी आदत अपनी तरफ खींच लेती है, वैसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होने की आदत बन जाने के बाद यह आदत स्वत: ही अपनी तरफ खींचेगी । यह आदत आपको अदालत में जाने से बचायेगी। समझा?* जब बुरी -बुरी आदतें अपना सकते हो तो क्या यह आदत नहीं डाल सकते हो? दो चार बार भी कोई बात प्रेक्टिकल में लाई जाती है तो प्रेक्टिकल में लाने से प्रेक्टिस हो जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगदोष से बचकर पढाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मन-बुद्धि के विमान में बैठ मधुबन हिस्ट्री हाल में पहुँच जाती हूँ... यहाँ की तस्वीरों को देखते हुए बाबा की मीठी यादों में खो जाती हूँ...* सामने संदली पर बापदादा मुस्कुराते हुए बैठे हैं... मैं आत्मा बाबा को प्यार से निहारती हुई बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... मीठे बाबा मीठी मुरली की मधुर तान छेड़ते हैं... जिसकी धुन में मैं आत्मा परवश हो जाती हूँ और बाबा के संग के रंग में रंग जाती हूँ...
❉ *अपने प्यार के रंग में रंगते हुए संगदोष से अपनी सम्भाल करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने जो अब अपने प्यार भरे हाथो में पाला है... तो बुरे संग की मिटटी में अपना उजला स्वरूप फिर से मटमैला न करो...* इस ईश्वरीय चमक को देहभान और बुरे संग में धुंधला न करो... ईश्वरीय गोद से नीचे उतरकर खुद को फिर से मलिन न करो... अपना हर पल ख्याल रखो...”
➳ _ ➳ *पवित्रता के सागर में डूबकर कौड़ी से हीरे तुल्य बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा देहभान और विकारो के संग में आकर अपने सत्य स्वरूप को खोकर किस कदर दुखी और मलिन से हो गई थी...* अब जो मीठे बाबा ने मुझे अपनी बाँहों में लेकर श्रृंगारा है... मै दमकती आत्मा यह ईश्वरीय चमक हर दिल पर सजा रही हूँ...”
❉ *परमात्म प्रेम के सुगंध से मेरे जीवन के हर श्वांस को महकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वर बागबान से जो खुशबूदार फूल बन महके हो तो अब फिर से काँटों का संग न करो...* अपनी बहुत सम्भाल करो... ईश्वर प्रेम में खिली मन बुद्धि की पंखुड़ियों को बुरे संग की तेज धूप में फिर से न कुम्हलाओ... अपनी ईश्वरीय खुशबु और रंगत महकेपन का हर साँस से ध्यान रखो...”
➳ _ ➳ *बाबा के संग में रूहे गुलाब बन सुखों के चमन में महकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा प्यारे बाबा संग जो खिला फूल हो गई हूँ... इस रूहानियत की खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ...* संगदोष से दूर रह सबपर ईश्वरीय यादो का रंग चढ़ा रही हूँ... सबके जीवन में अपने जैसी बहार लाकर ऐसा ही खूबसूरत बना रही हूँ...”
❉ *अपने प्रेम की तरंगो में तरंगित करते हुए ज्ञान रत्नों को चुगने वाला हंस बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने सुंदर खिले हुए दामन में अब फिर संगदोष में आकर दाग न लगाओ... ईश्वरीय श्रीमत का हाथ थाम सदा हंसो के संग मुस्कराते रहो... *देहधारियों के प्रभाव से मुक्त रहकर सदा ज्ञान रत्नों से श्रृंगारित रहो... संगदोष फिर से विकारो की कालिमा से बेनूर कर देगा... इससे परे रहो...”*
➳ _ ➳ *बाबा की श्रीमत रूपी जादू से अपना श्रृंगार कर रूहानी फूल बन खिलखिलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा की श्रीमत को दिल में समा कर प्रतिपल अपना ख्याल रख रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो समझ भरा तीसरा नेत्र दिया है उससे स्वयं को हर बुराई से परे रख हंसो संग झूम रही हूँ... और अपने उजले पन में मुस्करा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगदोष से बहुत - बहुत सम्भाल करनी है*"
➳ _ ➳ *"बचपन के दिन भुला ना देना, आज हंसे कल रुला ना देना" गीत की इन पंक्तियों पर विचार करते - करते मैं खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय बचपन की उन सुखद अनमोल स्मृतियों में जब पहली बार मुझे मेरा सत्य परिचय मिला था*, अपने पिता परमात्मा का सत्य बोध हुआ था। उस सुखद एहसास का अनुभव करते - करते आंखों के सामने एक दृश्य उभर आता है।
➳ _ ➳ मैं देख रही हूं एक स्थान पर जैसे एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। एक छोटे बच्चे के रूप में मैं उस मेले में घूम रही हूं। सुंदर सुंदर नजारे देख कर आनन्दित हो रही हूं। बहुत देर तक उस मेले का आनन्द लेने के बाद मुझे अनुभव होता है कि मेरे साथ तो कोई भी नही। *मैं स्वयं को एकदम अकेला अनुभव करती हूं और अपने पिता को ढूंढने लगती हूं। मैं जोर - जोर से चिल्ला रही हूं किन्तु मेरी आवाज कोई नही सुन रहा*। सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अब उस मेले की कोई भी वस्तु मुझे आकर्षित नही कर रही। घबरा कर मैं एकांत में बैठ अपना सिर नीचे कर रोने लगती हूँ। तभी कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं जैसे ही अपना सिर ऊपर उठाती हूँ। *सामने एक लाइट का फ़रिशता जिसके मस्तक से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है मुझे दिखाई देता है और वो फ़रिशता मुझ से कह रहा है, बच्चे:- "घबराओ मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ"*
➳ _ ➳ इस आवाज को सुनते ही मेरी चेतनता लौट आती है और याद आता है कि इतनी बड़ी दुनिया के मेले में, इतनी भीड़ में होते हुए भी मैं अकेली ही तो थी और ढूंढ रही थी अपने पिता परमात्मा को। मैं तो नही ढूंढ पाई लेकिन उन्होंने आकर मुझे ढूंढ लिया। *अपने ईश्वरीय जीवन का वो दिन याद आता है जब पहली बार खुद भगवान के उन शब्दों को सुना था कि तुम देह नही आत्मा हो, मेरे बच्चे हो, मेरी ही तरह ज्योति बिंदु रूप है तुम्हारा*। कितने जन्म हो गए तुम्हे मुझसे बिछुड़े हुए। आओ मेरे पास आओ। अपने पिता परमात्मा के सत्य परिचय को जान कर, उनके असीम स्नेह को अनुभव करने का वो एहसास स्मृति में आते ही मन अपने उस प्यारे पिता के प्रति असीम प्यार से भर जाता है और उनसे मिलने की तड़प मन मे उतपन्न हो उठती है।
➳ _ ➳ अपने पिता परमात्मा से मिलने के लिए अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, निर्बन्धन बन, अब मैं चमकता हुआ सितारा, ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निजधाम परमधाम की ओर चल पड़ती हूं और सेकंड में पहुंच जाती हूं प्रेम, सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता के पास। *एक दम शांत और सुषुप्त अवस्था में मैं स्थित हूं। संकल्पों विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त इस शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूं*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं।
➳ _ ➳ परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। मेरे शिव पिता परमात्मा के प्रेम का अविनाशी रंग और मेरे ईश्वरीय बचपन की सुखद स्मृतियां अब मुझे देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी उनके संग के प्रभाव से मुक्त कर रही हैं। *ईश्वरीय प्रेम के रंग के आगे दुनियावी प्रेम अब मुझे बहुत ही फीका दिखाई दे रहा है इसलिए हर प्रकार के संग दोष से अपनी सम्भाल करते हुए अब मैं ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग कर अपने जीवन को तथा औरों के जीवन को खुशहाल बना रही हूं*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं निश्चय के आधार पर सदा एकरस अचल स्थिति में रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं निश्चिन्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं सदा स्नेही आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा हर कार्य में स्वत: सहयोगी बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं सदा स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बापदादा यही इशारा देते हैं - *कोई भी समस्या को सामना करने के लिए सहज विधि है पहले एकाग्रता की शक्ति*। मन एकाग्र हो जाए, तो *एकाग्रता की शक्ति निर्णय बहुत अच्छा करती है*। इसीलिए देखो कोर्ट में तराजू दिखाते हैं। निर्णय की निशानी तराजू इसलिए दिखाते हैं - एकाग्र कांटा हो जाता है। तो *कोई भी समस्या को जिस समय चारों ओर हलचल हो उस समय अगर मन की एकाग्रता की शक्ति हो, जहाँ मन को चाहो वहाँ एकाग्र हो जाए, निर्णय हो जाए किस परिस्थिति में कौन सी शक्ति कार्य में लायें, तो एकाग्रता की शक्ति दृढ़ता स्वतः ही दिलाती है और दृढ़ता सफलता की चाबी है*। तो ऐसे अपने को एक एक्जैम्पुल बनाके औरों को प्रेरणा देते रहो। ठीक है ना! अच्छा है।
✺ *ड्रिल :- "एकाग्रता की शक्ति से कोई भी समस्या को सामना करने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मन बुद्धि को एक बिन्दु पर एकाग्र कर मैं आत्मा, साक्षी होकर देख रही हूँ... मन में उत्पन्न होने वालें संकल्पों और विकल्पों को... संकल्पों का ये बहाव सागर में उठती लहरों के समान*... हर लहर में डूबाने और पार लगाने की शक्ति, ठीक ऐसे ही मेरे हर संकल्प में चढती कला और उतरती कला का अन्तहीन सफर... *देही से देह तक के सफ़र में समस्याओं का समर और साथ छोडती मेरी एकाग्रता*... शनै: शनै: क्षीण होती निर्णय शक्ति...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा संगम पर प्रभु प्रेम की डोर पकड पहचान रही हूँ निज स्वरूप को*... स्वराज्य अधिकारी की स्टेज पर स्थित मैं आत्मा... *मन और बुद्धि की कचहरी लगा अपना अपना कार्य सौंप रही हूँ दोनों को*... मन विचार शक्ति और बुद्धि विवेक शक्ति... दोनो ही महामन्त्री अपने अपने अधिकार क्षेत्र पर पूरी सतर्कता के साथ... *दोनो का आपस में घनिष्ठ सहयोग...* और सफलता में दृढ होता मेरा निश्चय...
➳ _ ➳ संकल्पों की सफलता से बढता मेरा आत्मविश्वास... और पग पग पर जीत की अनुभूतियाँ संजोये, मैं आत्मा आनन्द के गहरें सागर में डुबकिया लगा रही हूँ... *नाम, मान, शान की लहरें हर पल मेरे चारों ओर अठखेलियाँ करती हुई... असंख्य रूपों से भ्रमित करने की भरसक कोशिश कर रहीं है ये लहरें*... मन मुग्ध हो रहा है उनकी अदाओं से... घिर रहा है उनके जादुई आकर्षण में... संकल्पों और विकल्पों का बुनता जाल... और आहिस्ता आहिस्ता उलझनों का विशाल भँवर...
➳ _ ➳ *बुद्धि के पलडें पर आती संकल्प- विकल्प रूपी लहरें*... साक्षी भाव से हर एक संकल्प को परखती हुई बुद्धि सहजता से नीचे गिरा रही है नाम, मान, शान की उन लहरों को... और इन सब के लिए मौन स्वीकृति देता मन... बुद्धि के सहयोगी होने का परिचय दे रहा है... *मन मुक्त हो रहा है विकल्पों के भार से*...और फिर से आनन्दोत्सव की फुहारें मन की गलियों में महसूस कर रही हूँ मैं आत्मा...
➳ _ ➳ *मन स्थिर होता जा रहा है केवल निज स्वरूप पर*... अपनी शक्तियों का भरपूर एहसास संजोए... *बुद्धि की अनन्त शक्तियों को प्रयोग में लाता हुआ*... हर परिस्थिति के अनुसार *मन और बुद्धि की उचित शक्ति का प्रयोग कर समस्या मुक्त होती मैं समाधान मूर्त आत्मा*... एकाग्रता की शक्ति का गहरा अनुभव कर रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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