━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 01 / 03 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *एक्यूरेट और आलराउंडर बनकर रहे ?*

 

➢➢ *आपस में बहुत प्यार से रहे ?*

 

➢➢ *सदा साथ के अनुभव द्वारा मेहनत की अविध्या का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *रूहे गुलाब बन अपनी रूहानी वृत्ति से वायुमंडल में रूहानियत की खुशबू फैलाई ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *परमात्म प्यार में ऐसे समाये रहो जो कभी हद का प्रभाव अपनी ओर आकर्षित न कर सके।* सदा बेहद की प्राप्तियों में मगन रहो जिससे रूहानियत की खुशबू वातावरण में फैल जाए।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं सफलता का सितारा हूँ"*

 

  सदा सफलता के चमकते हुए सितारे हैं, यह स्मृति रहती है? *आज भी इस आकाश के सितारों को सब कितने प्यार से देखते हैं क्योंकि रोशनी देते हैं, चमकते हैं इसलिए प्यारे लगते हैं। तो आप भी चमकते हुए सितारे सफलता के हो।*

 

  *सफलता को सभी पसन्द करते हैं, कोई प्रार्थना भी करते हैं तो कहते - यह कार्य सफल हो। सफलता सब मांगते हैं और आप स्वयं सफलता के सितारे बन गये।*

 

  आपके जड़ चित्र भी सफलता का वरदान अभी तक देते हैं, तो कितने महान हो, कितने ऊँच हो, इसी नशे और निश्चय में रहो। *सफलता के पीछे भागने वाले नहीं लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सफलता स्वरूप। सफलता आपके पीछे-पीछे स्वत: आयेगी।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *अभी एक मिनट ऐसा पॉवरफुल सर्वशक्तियों सम्पन्न विश्व की आत्माओं को किरणें दो जो चारों ओर आपके शक्तियों का वायब्रेशन विश्व में फैल जाये।* (बापदादा ने ड़िल कराई) अच्छा।

 

✧  आज चारों ओर के सम्पूर्ण समान बच्चों को देख रहे हैं। समान बच्चे ही बाप के दिल में समाये हुए हैं। *समान बच्चों की विशेषता है - वह सदा निर्विघ्न, निर्विकल्प, निर्मान और निर्मल होंगे। ऐसी आत्मायें सदा स्वतंत्र होती है, किसी भी प्रकार के हद के बन्धन में बंधयमान नहीं होती।* तो अपने आप से पूछो ऐसी बेहद की स्वतंत्र आत्मा बने हैं। *सबसे पहली स्वतंत्रा है देहभान से स्वतन्त्र।* जब चाहे तब देह का आधार ले, जब चाहे देह से नयारे हो जाए। देह की आकर्षण में नहीं आये।

 

✧  दूसरी बात - *स्वतन्त्र आत्मा कोई भी पुराने स्वभाव और संस्कार के बन्धन में नहीं होगी।* पुराने स्वभाव और संस्कार से मुक्त होगी। साथ-साथ किसी भी देहधारी आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क में अकर्षित नहीं होगी। सम्बन्ध-सम्पर्क में आते न्यारे और प्यारे होंगे। *तो अपने को चेक करो - कोई भी छोटी-सी कर्मन्द्रिय बन्धन तो नहीं बांधती?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  *जैसे और स्थूल वस्तुओं को जब चाहो तब लो और जब चाहो तब छोड़ सकते हैं ना। वैसे इस देह के भान को जब चाहें तब छोड़ देही अभिमानी बन जायें - यह प्रैक्टिस इतनी सरल हैं, जितनी कोई स्थूल वस्तु की सहज होती है?* रचयिता जब चाहे रचना का आधर ले जब चाहे तब रचना के आधार को छोड़ दे ऐसे रचयिता बने हो? जब चाहें तब न्यारे, जब चाहें तब प्यारे बन जायें।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आपस में रूहानी स्नेह से रहना"*

 

_ ➳  *मधुबन... श्रेष्ठ भूमि पर... मीठे बाबा के कमरे में रुहरिहान करने के लिये... जब मैं आत्मा... पांडव भवन के प्रांगण में पहुँचती हूँ... सुंदर सतयुग और मनमोहिनी सूरत... श्रीकृष्ण को सामने देख पुलकित हो उठती हूँ...* मीठे बाबा ने ज्ञान के तीसरे नेत्र को देकर... चित्रो में चैतन्यता को सहज ही दिखाया है... भक्ति में सबकुछ कल्पना मात्र लगता था... परन्तु आज बाबा की गोद में बैठकर... हर नज़ारा दिल के कितने करीब है... *बाबा ने सतयुगी दुनिया के ये प्यारे नज़ारे मेरे नाम लिख दिये हैं... मन के यह भाव... मीठे बाबा को सुनाने मैं आत्मा... कमरे की और बढ़ चलती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने महान भाग्य की खुशी से भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *इस ऊँचे स्थान... मधुबन में, ऊँची स्थिति पर, ऊँची नॉलेज से, ऊँचे ते ऊँचे बाप की याद में, ऊँचे ते ऊँची सेवा स्मृति स्वरूप रहोंगे तो सदा समर्थ रहोगे..."* जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ सदा के लिये समाप्त हो जाता है... *इसलिये मधुबन श्रेष्ठ भूमि पर... बाप के साथ सदा सच्चे स्नेही बनकर रहना..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान रत्नों को अपनी झोली में समेटते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मैं आत्मा अपने मीठे भाग्य पर क्यों न इतराऊ... कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी *फूलो की बगिया में बिठा कर... मुझे भी सुंदर खिलता हुआ फूल बना दिया है... आपने मेरा जीवन सत्य की रोशनी से भर दिया है..."*

 

 ❉ *बाबा ने मुझ आत्मा को विश्वकल्याणकारी की भावना से ओतप्रोत बनाते हुए कहा :-* "मीठी लाडली बच्ची... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर श्वांस को ईश्वरीय यादों में पिरो दो... *जब भी तुम ड्रामा के हर दृश्य को ड्रामा चक्र संगमयुगी टॉप पर स्थित हो कुछ भी देखोगी तो स्वतः ही अचल, अडोल रहोगी...* तुम तो कल्प पहले वाली... स्नेही, सहयोगी, अटल, अचल स्थिति में रहने वाली विजयी आत्मा हो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा ईश्वरीय यादों के खजानों से सम्पन्न होकर, मीठे बाबा से कहती हूँ :-"मीठे मीठे बाबा...* आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर... विश्व कल्याण की सुंदर भावना से भर दिया है... मैं आत्मा *आपसे सच्चा स्नेह रख सबके जीवन से दुःखों की लहर निकाल... सुख की किरणें फैलाती हूँ... सबके जीवन में आनंद और खुशियों के फूल खिला रही हूँ..."*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान रत्नों से भरपूर करते हुए कहा :-* "मीठी बच्ची... *जहाँ सच्चा, श्रेष्ठ स्नेह है... वहाँ दुःख की लहर आ नही सकती...* परिवार के स्नेह के धागे में तो सभी बंधे हुए हो, लेकिन अब सच्चे सच्चे शिवबाबा की लग्न में मगन... *सदा एक की याद में रह... कभी भी क्या, क्यों के संकल्प में फंस नहीं जाना... नहीं तो सब व्यर्थ के खाते में जमा हो जायेगा..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के सच्चे प्यार में दिल से कुर्बान होकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे मेरे बाबा... मैं आत्मा आपसे सच्चा स्नेह... सच्चा सुख पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... *मीठे बाबा... आपने तो मेरे जीवन को दुःखों से सुलझाया है...* और सच्चे प्यार और मीठे ज्ञान रत्नों से सजाया है... *मैं आत्मा अब आपका साथ कभी भी नहीं छोडूंगी...* मीठे बाबा से सदा साथ रहने का वायदा करके मैं आत्मा... अपने कर्मक्षेत्र पर वापिस लौट आई..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बापदादा की दिल पर चढ़ने के लिए मनसा - वाचा - कर्मणा सेवा करनी है*"

 

_ ➳  अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने ब्राह्मण जीवन में धारण कर, उनके समान बनने का लक्ष्य अपने सामने लाते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मैं ब्राह्मण आत्मा ब्रह्मा बाबा की कर्मभूमि, और अपने प्राण प्रिय परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अवतरण भूमि मधुबन में हूँ। स्वयं को मैं साकार ब्रह्मा बाबा के सामने देख रही हूँ। *अपने हर संकल्प, बोल और कर्म से बाबा सबको सुख दे कर, सबको परमात्म पालना का अनुभव करवा रहे हैं। सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा की पालना में पलते हुए अपने ईश्वरीय जीवन का भरपूर आनन्द ले रहे हैं और फॉलो  फादर कर बाप समान बनने का पुरुषार्थ भी कर रहें हैं*।

 

_ ➳  साकार बाबा की साकार पालना का यह खूबसूरत एहसास मुझे अव्यक्त बापदादा की याद दिला रहा है। उनसे मिलने के लिए मैं जैसे ही उनका आह्वान करती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि बाबा अपना धाम छोड़कर मुझ से मिलने के लिए नीचे आ रहें हैं। *अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए परमधाम से नीचे उतरते, ज्ञान सूर्य अपने प्यारे बाबा को मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। सूक्ष्म वतन में पहुँच कर शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा के सम्पूर्ण आकारी शरीर मे प्रवेश करते हैं और उनकी भृकुटि पर विराजमान हो कर अब नीचे साकार लोक में पहुँच कर मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं*। बाबा के मस्तक से आती तेज लाइट को मैं अपने चारों और देख रही हूँ। यह लाइट मुझे सहज ही लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रही है।

 

_ ➳  चारों ओर चांदनी सा सफेद प्रकाश फैलता जा रहा है। बापदादा अपना निस्वार्थ प्रेम और स्नेह अपनी अनन्त किरणो के रूप में मुझ पर बरसा रहें हैं। बाबा के निस्वार्थ प्यार की अनन्त किरणे और सर्वशक्तियां मेरे अंदर गहराई तक समाती जा रही हैं। *उनकी पावन दृष्टि से पवित्रता का झरना बह रहा है जिससे निकल रही पवित्र फुहारें मुझ पर बरस रही हैं और मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रही हैं*। यह पवित्रता का बल मुझे डबल लाइट बना रहा है। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखकर बाबा मुझे आप समान "मास्टर सुख दाता" भव का वरदान दे कर वापिस अपने अव्यक्त वतन की ओर लौट रहें हैं।

 

_ ➳  बापदादा से मिले वरदान को फलीभूत करने के लिए मैं सुख का फ़रिश्ता बन सारे विश्व मे चक्कर लगाकर, विश्व की तड़पती हुई दुखी अशांत आत्माओं को सुख की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ। *एक बहुत ऊंचे और खुले स्थान पर जाकर मैं फरिश्ता बैठ जाता हूँ और अपने सुख सागर परमपिता परमात्मा शिव बाबा के साथ कनेक्शन जोड़ कर उनसे सुख की शक्तिशाली किरणे लेकर सारे विश्व में सुख के वायब्रेशन फैलाने लगता हूँ*। अपनी श्रेष्ठ सुख दाई मनसा शक्ति से विश्व की सर्व आत्माओ को सुख प्रदान कर, अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा तीनो स्वरूपों से सबको सुख देने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण स्वरूप में आकर स्थित हो जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते अब मैं मनसा - वाचा - कर्मणा अपनी सम्पूर्ण सुख स्वरूप अवस्था बनाने के लिए हर कर्म अपने प्राण प्रिय सुख सागर शिव बाबा की याद मे रहकर करती हूँ। चलते फिरते बुद्धि का योग केवल अपने शिवपिता के साथ जोड़ कर अपने हर संकल्प, बोल और कर्म पर मैं सम्पूर्ण अटेंशन देती हूँ। *अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को मैं मनसा - वाचा - कर्मणा सुख दे कर अपने प्यारे बाबा और समस्त ब्राह्मण परिवार की दुआयों की पात्र बन, दुआयों की लिफ्ट पर बैठ, बाप समान बनने के अपने संपूर्णता के लक्ष्य को प्राप्त करने का तीव्र पुरुषार्थ अब निरन्तर और अति सहज रीति कर रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सदा साथ के अनुभव द्वारा मेहनत की अविद्या करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं अतीन्द्रिय सुख में झूलने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं आनंद स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा रूहे गुलाब हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव अपनी रूहानी वृत्ति से वायुमण्डल में खुशबू फैलाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा वायुमण्डल में रूहानियत की खुशबू फैलाती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *भटकती हुई आत्मायें, प्यासी आत्मायें, अशान्त आत्मायें, ऐसी आत्माओं को अंचली तो दे दो।* फिर भी आपके भाई-बहनें हैं। तो अपने भाईयों के ऊपर, अपनी बहनों के ऊपर रहम आता है ना! देखो, *आजकल परमात्मा अपने को आपदा के समय याद करते लेकिन शक्तियों को, देवताओं में भी गणेश है, हनुमान है और भी देवताअों को ज्यादा याद करते हैं, तो वह कौन है? आप ही हो ना!* आपको रोज याद करते हैं। पुकार रहे हैं - हे कृपालु, दयालु रहम करो, कृपा करो। जरा-सी एक सुख-शान्ति की बूँद दे दो। आप द्वारा एक बूँद की प्यासी हैं। तो दुःखियों का, प्यासी आत्माओं का आवाज हे शक्तियाँ, हे देव नहीं पहुँच रहा है! पहुँच रहा है ना? बापदादा जब पुकार सुनते हैं तो शक्तियों को और देवों को याद करते हैं।

 

 _ ➳  2. *उन्हों को भी कुछ समय दो। एक बूँद से भी प्यास तो बुझाओ, प्यासे के लिए एक बूँद भी बहुत महत्त्व वाली होती है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "प्यासी, अशान्त आत्माओं को सुख-शान्ति की अंचली देने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मधुबन की बगिया में झूले पर बैठी मैं लगन में मगन आत्मा शिव बाबा की यादों में मगन हूँ...* बाबा की शीतल किरणों के फूल मुझ आत्मा पर बरस रहे है... *अतिन्द्रिय सुख के झूले में, मैं आत्मा झूल रही हूँ... मीठे बाबा के असीम प्यार का अनुभव कर रही हूँ...* गुणों, शक्तियों और वरदानों की बारिश बाबा मुझ आत्मा पर कर रहे है... मैं आत्मा इस परमात्म बारिश में भीगकर भरपूर हो रही हूँ... और अतिइन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ... उड़ रही हूँ... *आत्मा के सातों गुणों का अनुभव कर रही हूँ...* तभी अचानक कुछ आवाजें मुझ आत्मा को सुनाई देतीं है... *हे माँ कृपा करो, सुख दो शांति दो दया करो रहम करो माँ... मैं आत्मा और ध्यान से इन आवाजों को सुनती हूँ...* तभी कुछ और आवाजें आती है... हे शांति देवा, हे बुद्धि बल दाता रहम करो... *हे संकट मोचन हमारे संकट हरो राह दिखाओं सुख दो शांति दो... दुखी-अंशात आत्माओं की आवाज सुनकर मैं आत्मा अपने ईष्ट देव स्वरूप को इमर्ज करती हूँ...* और मैं आत्मा चलती हूँ बाबा संग उन स्थानों की ओर जहाँ से, ये अशांत दुखी आत्माएँ पुकार रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को ऊँची चोटी पर स्थित भव्य विशाल मन्दिर में... *मैं अष्ट भुजाधारी माँ दुर्गा हूँ... असुर संहारिणी हूँ पाप नाशिनी हूँ... जग उध्दारक हूँ...* लाखों भक्तों की लाइनें लगी... भक्त आत्माएँ पुकार रही है... *हे जगत जननी माँ... हे पाप नाशिनी... कष्ट हारिणी माँ शांति दो... सुख दो माँ... इन आत्माओं के नयन दो पल की शांति और खुशी के लिए तरस रहे है...* ये दुखियारी आत्माएँ पुकार रही है... हे माँ कृपा करो... रहम करो... *मैं आत्मा अपने वरदानी स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ... मुझ आत्मा के नयनों से शांति और पवित्रता की किरणें निकल सभी अशांत दुखी आत्माओं पर पड़ रही है...* सभी आत्माएँ सुख और शांति की अनुभूति कर रही है... उनके सभी कष्ट-पीड़ाएँ समाप्त हो रही है... *मुझ माँ दुर्गा के वरदानी हस्त से शक्तियों की किरणें निकल इन सभी आत्माओं पर पड़ रही है... ये सभी आत्माएँ मजबूत बन रही है... इनका उमंग-उत्साह बढ रहा है... इनका मन शांत हो रहा है...* सभी आत्माओं की मनोकामनाएँ पूर्ण हो रही है...

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को बहुत बड़े मन्दिर में अपने वरदानी स्वरूप में... *मैं आत्मा बुद्धि-बल दाता सिद्धि विनायक गणेश हूँ... मैं आत्मा विघ्न-विनाशक हूँ... दुख हर्ता सुख कर्ता हूँ...* मैं वरदानी-महादानी आत्मा देख रही हूँ... भक्तों की भीड़ लगी है... वे पुकार रहे है *हे गणपति देवा दुख हरो... सुख दो ! शांति दो ! हमारे जीवन के विघ्नों को हरो मंगल मोरया...* हे देवा रहम करो... कृपा करो... मुझ वरदानी आत्मा की दृष्टि जैसे-जैसे इन, एक पल की शांति की प्यासी आत्माओं पर पड़ रही है *ये आत्माएँ असीम सुख और शांति का अनुभव कर रही है... मुझ विघ्न विनाशक गणेश के हाथों से शक्तिशाली किरणें इन आत्माओं पर पड़ रही है... इनके विघ्न नष्ट हो रहे है... इनका मनोबल बढ़ रहा है...* इनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो रही है... *सभी आत्माएँ खुश होकर जा रही है... भरपूर होकर जा रही है...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को बहुत बड़े भव्य सुन्दर मन्दिर में अपने वरदानी स्वरूप में... *मैं आत्मा महावीर पवन पुत्र हनुमान हूँ... मैं भव्य मन्दिर में विराजमान संकट मोचन हनुमान हूँ... भक्त आत्माओं की भीड़ लगी है...* डर, चिंता, भय के काले बादलों ने इन आत्माओं के जीवन में ग्रहण लगा दिया है... *अंशात और दुखी होकर वे आत्माएँ पुकार रही है... हे संकट मोचन, हे महावीर हमारा कल्याण करों, शांति दो...* इन दुखों के संकटों से हमें बाहर निकालों... हे महावीर कृपा करो... वे आरती गा रहे है... *जय जय हनुमान गोसाई कृपा करहु गुरु देव की नाई... मुझ संकट मोचन महावीर हनुमान के मस्तक और नयनों से शक्तियों की किरणें निकल कर सभी अशांत, दुखी, परेशान संकट मे घिरी आत्माओं पर पड़ रही है...* इनके कष्ट मिट रहे है... इनके संकट खत्म हो रहे है... *सभी आत्माएँ सुख-शांति की अनुभूति कर रही है... सभी आत्माओं का मनोबल बढ़ रहा है... सभी आत्माएँ खुश और सन्तुष्ट होकर जा रही है...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को अति सुन्दर विशाल मन्दिर में... *मैं आत्मा माँ सन्तोषी हूँ... सबको सन्तोष देने वाली, मैं मां सन्तोषी देख रही हूँ... भक्तों की भीड़ को जो नंगे पांव सीढीयाँ चढते हे माँ सन्तोषी, सुख दो माँ, शांति दो... जय माँ सन्तोषी कह पुकार रहे है...* वे एक पल की शांति और खुशी की अंचली मांग रहे है... कृपा करो हे जगत जननी कृपा करो... *कुछ आत्माएँ मन्दिर में आरती गा रही है... मैं तो आरती उतारु रे सन्तोषी माता की जय जय सन्तोषी माता जय जय माँ...* मुझ माँ सन्तोषी के नयनों से शीतल किरणें इन सभी आत्माओं पर पड़ रही है... *ये सभी आत्माएँ सुख और शांति की अनुभूति कर रही है...* मुझ सन्तोषी माँ के वरदानी हाथों से किरणें निकल इन आत्माओं पर पड़ रही है... सभी आत्माओं की मनोकामनाएं पूर्ण हो रही है... *इनका मन शांत हो गया है... सन्तोष से परिपूर्ण हो गया है... सभी आत्माएँ सन्तुष्ट होकर जा रही है... खुश होकर जा रही है... शुक्रिया मीठे बाबा शुक्रिया...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━