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 17 / 03 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *लवलीन स्थिति वाली समान आत्माएं सदा के योगी हैं । योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन । अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे!* स्वत: याद है ही । जहाँ साथ होता है तो याद स्वत : रहती है । *तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी सर्व प्रप्ति स्वरूप आत्मा हूँ"*

 

  *संगमयुग सदा सर्व प्राप्ति करने का युग है। संगमयुग श्रेष्ठ बनने और बनाने का युग है। ऐसे युग में पार्ट बजाने वाली आत्मायें कितनी श्रेष्ठ हो गई! तो सदा यह स्मृति रहती है- कि हम संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें हैं?* सर्व प्राप्तियो का अनुभव होता है? जो बाप से प्राप्ति होती है उस प्राप्ति के अधार पर सदा स्व्यं को सम्पन्न भरपूर आत्मा समझते हो? इतना भरपूर हो जो स्यवं भी खाते रहो और दूसरों को भी बांटो।

 

  जैसे बाप के लिए कहा जाता है भण्डारे भरपूर हैं, ऐसे आप बच्चों का भी सदा भण्डारा भरपूर है! कभी खाली नहीं हो सकता। जितना किसी को देंगे उतना और ही बढ़ता जयेगा। जो संगमयुग कि विशेषता है व आप की विशेषता है। *हम संगमयुगी सर्व प्राप्ति स्वरुप आत्मायें हैं, इसी स्मृति में रहो। संगमयुग पुरुषोत्तम युग है, इस युग में पार्ट बजाने वाले भी पुरुषोत्तम हुए ना।*

 

 दुनिया की सर्व आत्मायें आपके आगे साधारण हैं, आप अलौकिक और न्यारी आत्मायें हो! वह अज्ञानी हैं आप ज्ञानी हो। वह शूद्र हैं आप ब्रह्मण हो। वह दु:खधाम वाले हैं और आप संगमयुग वाले हो। संगमयुग भी सुखधाम है। कितने दु:खो से बच गये हो! अभी साक्षी होकर देखते हो कि दुनिया कितनी दु:खी है और उनकी भेंट में आप कितने सुखी हो। फर्क मालूम होता है ना! *तो सदा हम पुरुषोत्तम युग की पुरुषोत्तम आत्मायें, सुख स्वरुप श्रेष्ठ आत्मायें हैं, इसी स्मृति में रहो। अगर सुख नहीं, श्रेष्ठता नहीं तो जीवन नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज से परे जाना है वा बाप को भी आवाज में लाना है? आप सब आवाज से परे जा रहे हो। और बापदादा को फिर आवाज में ला रहे हो। *आवाज में आते भी अतीन्द्रिय सुख में रह सकते हो, तो फिर आवाज से परे रहने की कोशिश क्यों*?

 

✧  अगर आवाज से परे निराकार रूप में स्थित हो फिर साकार में आयेंगे, तो फिर औरों को भी उस अवस्था में ला सकेंगे। एक सेकण्ड में निराकार, एक सेकण्ड में साकार - ऐसी ड्रिल सीखनी है। *अभी - अभी निराकारी, अभी - अभी साकारी*। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब साकार रूप में हर एक को निराकार रुप का आप से साक्षात्कार हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  योगयुक्त का अर्थ ही है देह के आकर्षण के बन्धन से भी मुक्त। जब देह के बन्धन से मुक्त हो गये तो सर्व बन्धन मुक्त बन ही जाते हैं। *तो समर्पण अर्थात् सदा योगयुक्त और सर्व बन्धनमुक्त।* यह निशानी अपनी सदा कायम रखना। *अगर कोई भी बन्धन युक्त होंगे तो योगयुक्त नहीं कहलायेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

 

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

 

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  मन्सा-वाचा-कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति सब में प्युरिटी है? *मनसा प्युरिटी अर्थात् सदा सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना - सर्व प्रति।* वह आत्मा कैसी भी हो लेकिन प्युरिटी की रायल्टी की मन्सा है - सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, कल्याण की भावना, रहम की भावना, दातापन की भावना। और दृष्टि में या तो सदा हर एक के प्रति आत्मिक स्वरूप देखने में आये वा फरिश्ता रूप दिखाई दे। *चाहे वह फरिश्ता नहीं बना है, लेकिन मेरी दृष्टि में फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही हो और कृति अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क में, कर्म में आना, उसमें सदा ही सर्व प्रति स्नेह देना, सुख देना। चाहे दूसरा स्नेह दे, नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर स्नेही बनाना। सुख देना।*

 

 _ ➳  स्लोगन है ना - ना दुःख दो, ना दुःख लो। देना भी नहीं है, लेना भी नहीं है। देने वाले आपको कभी दुःख भी दे दें लेकिन आप उसको सुख की स्मृति से देखो। *गिरे हुए को गिराया नहीं जाता है, गिरे हुए को सदा ऊँचा उठाया जाता है। वह परवश होके दुःख दे रहा है।* गिर गया ना! तो उसको गिराना नहीं है और भी उस बिचारे को एक लात लगा लो, ऐसे नहीं। उसको स्नेह से ऊँचा उठाओ। उसमें भी फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम। *पहले तो चैरिटी बिगन्स होम है ना, अपने सर्व साथी, सेवा साथी, ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊँचा उठाओ। वह अपनी बुराई दिखावे भी लेकिन आप उनकी विशेषता देखो।*

 

 _ ➳  नम्बरवार तो हैं ना! देखो, माला आपका यादगार है। तो सब एक नम्बर तो नहीं है ना! 108 नम्बर हैं ना! तो नम्बरवार हैं और रहेंगे और मेरा फर्ज क्या है? यह नहीं सोचना अच्छा मैं 8 में तो हूँ ही नहीं, 108 में शायद आ जाऊँगी, आ जाऊँगा। तो 108 में लास्ट भी हो सकता है तो मेरे भी तो कुछ संस्कार होंगे ना, लेकिन नहीं। *दूसरे को सुख देते-देते, स्नेह देते-देते आपके संस्कार भी स्नेही, सुखी बन ही जाने हैं। यह सेवा है और सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम।*

 

✺   *ड्रिल :-  "मनसा, वाचा, कर्मणा, वृत्ति, दृष्टि और कृति में प्युरिटी का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा फरिश्ता हूँ... मेरा श्वेत चमकीला स्वरूप, श्वेत चमकीली आभा लिए हुए है... *मैं आत्मा इस फरिश्ता रूप में चारों तरफ विचरण कर रही हूँ... और विचरण करते - करते उड़ कर पहुँच जाता हूँ ब्रह्मा बाबा के पास... बाबा ने मुझे अपने गले से लगा लिया और अपनी पवित्र दृष्टि से पवित्रता के वाइब्रेशन देकर मेरे जन्म - जन्‍म के सारे विकर्म धो दिये हैं...* बाबा ने मुझ आत्मा को अपने वास्तविक रूप बिन्दु रूप में स्थिर कर दिया... और कहा जाओ बच्ची अपने सच्चे पिता से मिलकर आओ... मैं आत्मा बाबा की आज्ञा लेकर प्रस्थान करती हूँ और उड़ कर पहुँच जाती हूँ प्यारे बाबा से मिलन मनाने के लिए... *वाह मैं आत्मा अपने परमपिता के पास पहुँच कर बाबा की किरणों के नीचे असीम सुख, शांति और प्रेम का अनुभव कर रही हूँ...* बाबा से ज्वाला समान शक्ति की लाल रंग की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... *शक्ति की किरणें मुझ आत्मा में समा रही है... और मेरे सारे विकर्म दग्ध हो रहे हैं...* मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र और निर्विकारी आत्मा बन गयी हूँ... वाह श्रेष्ठ परमपिता की मैं श्रेष्ठ संतान... उनकी आज्ञाकारी संतान उनसे शक्तियों का भंडार भर के वापस मैं साकारी दुनिया मैं आ गयी हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा स्थूल वतन में अपना श्रेष्ठ पार्ट निभा रही हूँ... *मैं आत्मा मन्सा-वाचा-कर्मणा... वृत्ति, दृष्टि और कृति सब में पवित्रता लिये हुए हूँ... मैं आत्मा सर्व आत्मा भाइयों को मन्सा-वाचा-कर्मणा... वृत्ति, दृष्टि और कृति से सबको शुभ भावना और शुभकामना दे रही हूँ...* मेरे आत्मा भाई कैसे भी हो लेकिन मैं आत्मा सदा उनके प्रति मनसा से केवल पवित्रता से पूर्ण श्रेष्ठ शुभ भावना और शुभ कामना ही दे रही हूँ... *संस्कारों के वशीभूत आत्मा को मैं आत्मा सदा कल्याण की दृष्टि से ही देख रही हूँ... कमजोर आत्मा भाईयों के लिए सदा रहम की भावना... दातापन की भावना से देख रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर एक मेरे आत्मा भाइयों को सिर्फ आत्मिक दृष्टि से देख रही हूँ... सबकी भ्रकुटी में आत्मा स्वरूप को ही देख रही हूँ... मुझ आत्मा को सबका सिर्फ फरिश्ता रूप दिखायी दे रहा है... *चाहे कोई आत्म फरिश्ता नहीं भी बना है लेकिन मेरी दृष्टि में उस आत्मा का सिर्फ फरिश्ता रूप और आत्मिक रूप ही दिखायी दे रहा है... मुझ आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क में जो भी आत्मा आती है उस आत्मा के प्रति मेरी मनसा - वाचा - कर्मणा तीनों एक समान ही है...* मुझ आत्मा के कर्म में सदा सर्व प्रति स्नेह और सुख ही रहता है... *चाहे कोई आत्मा स्नेह दे या नहीं दे लेकिन मेरा कर्तव्य है स्नेह देकर सर्व आत्मा भाइयों को स्नेही बनाना... सुख देकर सुखी बनाना...* मैं आत्मा बाबा से प्राप्त सुख और स्नेह की भासना सबको करा रही हूँ...

 

 _ ➳  *बाबा ने कहा और मैंने माना "ना दुःख दो और ना दुःख लो"... इसलिए अब मैं सुख स्वरूप आत्मा सबको सिर्फ सुख ही दे रही हूँ...* जो भी दुखी आत्माएँ मुझ आत्मा के संपर्क में आ रही है उनके सारे दुख दूर हो रहे हैं... *दुःख देने वाली आत्मा को भी मुझ फरिश्ते से सुख की अनुभूति हो रही है... संस्कारों से परवश होकर गिरी हुई आत्मा को बहुत प्यार से, स्नेह से ऊँचा उठा रही हूँ...* बाबा ने कहा है बच्ची पहले तो चैरिटी बिगन्स होम करो... मुझ आत्मा के सारे साथी... सेवा के साथी... ब्राह्मण परिवार के साथी हर एक को ऊँचा उठा रही हूँ... *जो भी आत्मा अपनी बुराई दिखाते हैं फिर भी मैं आत्मा उनकी विशेषता को ही देख रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता अपने पुरुषार्थ अनुसार नंबर वार माला 108 नम्बर की माला में पिरोये जा रही हूँ... मैं आत्मा दृढ़ निश्चय के साथ 108 की माला में आने के लिए तैयार हो रही हूँ, इसके लिए मुझ आत्मा को एक रत्ती भर भी शंका नहीं है... *चाहे मैं आत्मा 108 में लास्ट का मनका हूँ फिर भी रहूँगी तो 108 की माला में ही अपने पुरुषार्थ अनुसार... दूसरे आत्मा भाइयों को सुख देते-देते... स्नेह देते-देते... मुझ आत्मा के संस्कार भी स्नेही... सुख स्वरुप बन रहे हैं...* यह सेवा है और सेवा फर्स्ट चैरिटी बिगन्स एट होम... और मैं आत्मा अपना यही कर्तव्य निभा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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