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❍ 15 / 03 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी को दुःख तो नहीं दिया ?*
➢➢ *देहि अभिमानी बन अविनाशी बाप को याद किया ?*
➢➢ *अपने सहयोग से निर्बल आत्माओं को वर्से का अधिकारी बनाया ?*
➢➢ *अपने परिवर्तन द्वारा संपर्क, बोल और समबन्ध में सफलता प्राप्त की ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सेवा में वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार ।* बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे । संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ, *ऐसी लवलीन स्थिति में रह एक शब्द भी बोलेंगे तो वह स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देंगे । ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू मंत्र का काम करेगा ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं शान्ति का पैगाम देने वाला खुदाई पैगम्बर हूँ"*
〰✧ *सदा अपने को शान्ति का सन्देश देने वाले, शान्ति का पैगाम देने वाले सन्देशी समझते हो? ब्राह्मण जीवन का कार्य है - सन्देश देना।* कभी इस कार्य को भूलते तो नहीं हो?
〰✧ *रोज चेक करो कि मुझ श्रेष्ठ आत्मा का श्रेष्ठ कार्य है वह कहाँ तक किया! कितनों को सन्देश दिया। कितनों को शान्ति का दान दिया। सन्देश देने वाले महादानी-वरदानी आत्मायें हो।* कितने टाइटल्स हैं आपके?
〰✧ आज की दुनिया में कितने भी बड़े ते बड़े टाइटल हों आपके आगे सब छोटे हैं। वह टाइटल देने वाली आत्मायें हैं लेकिन अब बाप बच्चों को टाइटल देते हैं। *तो अपने भिन्न-भिन्न टाइटल्स को स्मृति में रख उसी खुशी, उसी सेवा में सदा रहो। टाइटल की स्मृति से सेवा स्वत: स्मृति में आयेगी।* अच्छा-
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जब जैसे चाहो वैसे स्थिति बना सके। यह मन को ड्रिल करानी है। *यह जरूर प्रैक्टिस करो - एक सेकण्ड में आवाज में, एक सेकण्ड में फिर आवाज से परे, एक सेकण्ड में सर्विस के सकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जायें*। इस ड्रिल की बहुत आवश्यकता है।
〰✧ एक सेकण्ड में कार्य प्रति शारीरिक भान में आयें, फिर एक सेकण्ड में अशरीरि हो जायें। जिसकी यह ड्रिल पक्की होगी वह सभी परिस्थितियों का सामना कर सकते हैँ। *जैसे शारीरिक ड्रिल सुबह को कराई जाती है, वैसे यह अव्यक्त ड्रिर भी अमृतवेले विशेष रूप से करनी है*। करना तो सारा दिन है लेकिन विशेष प्राक्टीस करने का समय अमृतवेले है।
〰✧ *जब देखो बुद्धि बहुत बिजी है तै उसी समय यह प्रैक्टिस करो - परिस्थिति में होते हुए भी हम अपनी बुद्धि को न्यारा कर सकते हो*। लेकिन न्यारे तब हो सकेंगे जब जो भी कार्य करते हो वह न्यारी अवस्था में होकर करेंगे। अगर उस कार्य में अटैचमेन्ट होगी तो फिर एक सेकन्ट में डिटैच नहीं होगे। इसलिए यह प्रैक्टिस करो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक तो साथी को सदैव साथ रखो। दूसरा - साक्षी बनकर हर कर्म करो। *तो साथी और साक्षी - ये दो शब्द प्रैक्टिस में लाओ तो यह बन्धन मुक्त की अवस्था बहुत जल्दी बन सकती है।* सर्वशक्तिवान का साथ होने से शक्तियाँ भी सर्वप्राप्त हो जाती हैं। और साथ-साथ साक्षी बनकर चलने से कोई भी बन्धन में फंसेंगे नहीं। तो बन्धनमुक्त हुए हो ना।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप की याद में रहना और सबको याद दिलाना है*"
➳ _ ➳ परमात्म प्यार और परमात्मा पालना का सुख लेते हुए, अपने प्यारे बाबा की मीठी याद में बैठी मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर हर्षित हो रही हूँ और अपने आप से सवाल कर रही हूँ कि क्या कभी मैंने स्वप्न में भी यह सोचा था कि मैं परमात्म प्यार और परमात्मा पालना के झूले में ऐसे पलूँगी! *जिस भगवान को सारी दुनिया याद करती है, उसे नमन करती है वो भगवान मुझे याद करेगा, मुझे नमन करेगा, अपने से भी ऊँचा बना कर मुझे याद प्यार देगा, मुझ पर बलिहार जाएगा, यह तो कभी संकल्प में भी नही था*!
➳ _ ➳ यही सब चिंतन करते - करते मैं खो जाती हूँ उन खूबसूरत पलों में जब पहली बार भगवान के साकार प्यार का अनुभव किया था। *आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे और मेरा भगवान अपने साकार रथ में बैठा मन्द - मन्द मुस्कराते हुए मुझे निहार रहा था। उसकी दृष्टि में मैं देख रही थी उस अथाह प्यार के सागर को जो मेरे लिए उमड़ रहा था। वो प्यार पाकर मैं आत्मा ऐसे तृप्त हो गई थी मानो उनसे मिलने की जन्म - जन्म की जो प्यास थी वो जैसे बुझ गई थी*। मन को गहन सुकून मिला था अपने पिता परमात्मा को जान कर और उनसे इतना सुंदर मिलन मना कर।
➳ _ ➳ परमात्म मिलन की मीठी मधुर स्मृतियों में खो कर उस मिलन के आनन्द के खूबसूरत एहसास को फिर से तरोताजा करके, *अपने ऐसे भगवान बाप को सदा याद करने तथा औरों को भी उनकी याद दिलाने का पुरुषार्थ करने का संकल्प लेकर, अपने प्यारे पिता के पास उनके धाम जाने के लिए, अब मैं अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करती हूँ*। अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करने लगती हूँ और इनका अनुभव करते - करते एक बहुत ही न्यारी और प्यारी स्थिति में सहज ही स्थित हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ यह न्यारी और प्यारी स्थिति मुझे देह भान से पूरी तरह मुक्त करके देह से ऐसे बाहर निकाल लेती है जैसे मक्खन से बाल बिल्कुल सहज रीति अलग हो जाता है। *ठीक इसी तरह मैं बड़ी आसानी से देह से बाहर निकल आती हूँ और अपने प्यारे पिता तक पहुंचाने वाली मन बुद्धि की एक अति ख़ूबसूरत रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ*। ज्ञान और योग के सुन्दर पंख लगाकर मैं आत्मा धीरे - धीरे उड़ान भर कर आकाश में पहुँच जाती हूँ। सूर्य, चाँद सितारों की इस दुनिया की सैर करते हुए मैं इसे भी पार कर लेती हूँ और फरिश्तों की सफेद प्रकाश की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ अपने लाइट के आकारी शरीर को धारण कर कुछ क्षण अपने इस अव्यक्त वतन में अपने प्यारे बापदादा के साथ बिताकर, उनसे मीठी - मीठी रूह रिहान करके, अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में पुनः स्थित होकर मैं सूक्ष्म वतन से बाहर आकर ऊपर अपने परमधाम घर की ओर रवाना हो जाती हूँ। *अपने निराकार शिव पिता के सम्मुख जाकर, मैं उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे कुछ पलों के लिए निरसंकल्प स्थिति में स्थित होकर बैठ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता के अति सुन्दर प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए, उनसे आ रही सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी फ़ुहारों का आनन्द लेते हुए, स्वयं को उनकी शक्तियों से पूरी तरह भरपूर करके वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर रूपी रथ में विराजमान होकर मैं फिर से अपने अमूल्य ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और अपने प्यारे प्रभु की देन इस ईश्वरीय ब्राह्मण जन्म को सफल करने के लिए बाबा को याद करने तथा औरों को भी बाबा की याद दिलाने के पुरुषार्थ में पूरी तरह लग जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता की याद में रह, परमात्म बल से स्वयं को भरपूर रखते हुए, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को भी सदा परमात्म याद में रहने की प्रेरणा देते हुए उन्हें भी घड़ी - घड़ी बाबा की याद दिलाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳. *एक वाणी, दूसरा स्व शक्तिशाली स्थिति और तीसरा श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन जहाँ भी सेवा करो वहाँ ऐसा रूहानी वायब्रेशन फैलाओ जो वायब्रेशन के प्रभाव में सहज आकर्षित होते रहें।* देखो, अभी लास्ट जन्म में भी आप सबके जड़ चित्र कैसे सेवा कर रहे हैं? क्या वाणी से बोलते? वायब्रेशन ऐसा होता जो भक्तों की भावना का फल सहज मिल जाता है। *ऐसे वायब्रेशन शक्तिशाली हों, वायब्रेशन में सर्व शक्तियों की किरणें फैलती हों, वायुमण्डल बदल जाए। वायब्रेशन ऐसी चीज है जो दिल में छाप लग जाती है।* आप सबको अनुभव है किसी आत्मा के प्रति अगर कोई अच्छा या बुरा वायब्रेशन आपके दिल में बैठ जाता है तो कितना समय चलता है? बहुत समय चलता है ना! निकालने चाहे तो भी नहीं निकलता है, किसका बुरा वायब्रेशन बैठ जाता है तो सहज निकलता है? तो *आपका सर्व शक्तियों की किरणों का वायब्रेशन, छाप का काम करेगा। वाणी भूल सकती है, लेकिन वायब्रेशन की छाप सहज नहीं निकलती है।* अनुभव है ना!
➳ _ ➳. *अभी सेकण्ड में ज्ञान सूर्य स्थिति में स्थित हो चारों ओर के भयभीत, हलचल वाली आत्माओं को, सर्वशक्तियों की किरणें फैलाओ। बहुत भयभीत हैं। शक्ति दो। वायब्रेशन फैलाओ।* अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)
✺ *ड्रिल :- "श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन फैलाने का अनुभव"*
➳ _ ➳ पावन अमृतवेला में बाबा को निहारती अपने भाग्य को सहारती इठलाती इतराती मैं आत्मा गुनगुनाती हूं..."जाने क्या देखा मुझमें मुझे प्यार कर लिया, मेरे लाडले कहा और मुझे बांहों में भर लिया" *मैं विशेष आत्मा हूं... मुझे स्वयं भगवान ने अपना बनाया है... इसी रूहानी नशे में अपने स्वमान में स्थित हो बाबा को साथ ले सृष्टि की सैर को निकलती हूं...*
➳ _ ➳ ऊँची ऊँची चोटियों के ऊपर से, कहीं कल-कल करती नदियां... ऊपर से नीचे गिरते झरने... ताल तालाब... लहलहाते पेड़ पौधे... चहचहाते पक्षियों के झुंड...उगते सूरज की लालिमा ये सब बड़ा ही सुखदायी लग रहा है... *परम कलाकार की बनाई ये तस्वीर एकदम अनोखी है मन को भाने वाली है...*
➳ _ ➳ तभी कोलाहल से मेरी तंद्रा टूटती है...नीचे देखती हूं, तो पाती हूँ कि *अनेक आत्मायें भयभीत होकर हलचल में हैं... शक्तिहीन स्थिति में होने के कारण बेचैन हैं...* इनकी इसी अवस्था को दिखाने के लिए ही बाबा ने आज मुझे इस सैर को प्रेरित किया है... *मेरे बाबा को हर एक आत्मा का कितना ध्यान रहता है... ये सोचकर ही मैं आत्मा कृतकृत्य हो जाती हूं... ये मेरे आत्मा भाई हैं, मुझे इनको इस अवस्था से बाहर निकालना ही है... मैं आत्मा सर्वशक्तिमान की संतान हूँ...*
➳ _ ➳ *अपने सर्वशक्तिमान, ज्ञान सूर्य पिता को याद कर मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो इन आत्माओं को सर्व शक्तियों की किरणें दे रही हूं...* शुभभावना और शुभकामनाओं के वायब्रेशन्स दे रही हूं... *ईश्वर पिता से प्राप्त इन रूहानी वायब्रेशन्स से वायुमंडल बदल रहा है... शक्तियों की किरणों के वायब्रेशन फैलते ही इन आत्माओं की हलचल समाप्त हो रही है...* ये आत्मायें शान्ति की सुख की शक्तियों की तरंगों को अनुभव कर रही हैं... *वातावरण धीरे धीरे हल्का हो शान्त हो गया है सभी आत्माएँ प्रसन्नता पूर्वक इस सुख शान्ति के लिए ईश्वर पिता को मन ही मन धन्यवाद देती हैं...*
➳ _ ➳ *मैं भी बाबा को इस सेवा को कराने के लिये दिल से शुक्रिया अदा करती हूं...* बाबा आपका जितना भी शुक्रिया करूँ वो कम है... मेरे बाबा... मेरे बाबा... *"किस तरह सुनाएं ओ बाबा! जो तुमसे इतना पाएं हैं वो भूल कभी ना पाएंगे..."*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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