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 02 / 03 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप का सुनाया हुआ ज्ञान बुधी में रख सदा हर्षित रहे ?*

 

➢➢ *एक बाप की श्रीमत का हर पल पालन किया ?*

 

➢➢ *अपने दिव्य अलोकिक जन्म की स्मृति द्वारा मर्यादा की लकीर के अन्दर रहे ?*

 

➢➢ *शन्ति दूत बन अपनी तपस्या द्वारा विश्व में शांति की किरणें फैलाई ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं। याद प्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं,* तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर दो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पुण्य आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? *सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य है - बाप का सन्देश दे बाप का बनाना। ऐसा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हो क्योंकि अब की पुण्य आत्मा सदाकाल के लिए पूज्य बन जाती है। पुण्य आत्मा ही पूज्य आत्मा बनती है।* अल्पकाल का पुण्य भी फल की प्राप्ति कराता है लेकिन वह है अल्पकाल का, यह है अविनाशी पुण्य। क्योंकि अविनाशी बाप का बनाते हो। इसका फल भी अविनाशी मिलता है।

 

  जन्म-जन्म के लिए पूज्य आत्मा बन जायेंगे। तो सदा पुण्य आत्मा समझते हुए हर कर्म पुण्य का करते रहो। पाप का खाता खत्म। पिछला पाप का खाता भी खत्म। क्योंकि पुण्य करते-करते पुण्य का तरफ ऊँचा हो जायेंगा तो पाप नीचे दब जायेगा। पुण्य करते रहो तो पुण्य का बैलेन्स बढ़ जायेगा और पाप नीचे हो जायेगा अर्थात् खत्म हो जायेगा। *सिर्फ चेक करो - हर संकल्प पुण्य का संकल्प हुआ, हर बोल पुण्य के बोल हुए? व्यर्थ बोल भी नहीं। व्यर्थ से पाप नहीं कटेगा। और पुण्य का फल भी नहीं मिलेगा इसलिए हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प पुण्य का हो। ऐसे सदा श्रेष्ठ पुण्य का कर्म रने वाली पुण्य आत्मा हैं, यही सदा याद रखो।*

 

  संगमयुगी ब्रह्मणों का काम ही क्या है? पुण्य करना। और जितना पुण्य का काम करते हो उतनी खुशी भी होती है। चलते-फिरते किसको सन्देश देते हो तो उसकी खुशी कितना समय रहती है! तो पुण्य कर्म सदा खुशी का खजाना बढ़ाता है। और पाप कर्म खुशी गँवाता है। *अगर कभी खुशी गुम होती है तो समझो कोई न कोई बड़ा पाप नहीं तो छोटा अंश मात्र भी जरूर किया होगा। देह-अभिमान में आना यह भी पाप है ना क्योंकि बाप याद नहीं रहा तो पाप ही होगा ना। इसलिए 'सदा पुण्य आत्मा भव'।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अपना स्वमान याद करो - मास्टर सर्वशक्तिवान, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, स्वदर्शन चक्रधारी, उसी स्वमान के आधार पर क्या सर्वशक्तिवान के बच्चे को कोई कमेंद्रिय आकर्षित कर सकती है?* क्योंकि समय की समीपता को देखते अपने को देखो - सेकण्ड में सर्व बन्धनों से मुक्त हो सकते हो?

 

✧  कोई भी ऐसा बन्धन रहा हुआ तो नहीं है? क्योंकि *लास्ट पेपर में नम्बरवन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, सेकण्ड में जहाँ, जैसे मन-बुद्धि को लगाने चाहो वहाँ सेकण्ड में लग जाये।*

 

✧  हलचल में नहीं आये। जैसे स्थूल शरीर द्वारा जहाँ जाने चाहते हो, जा सकते हो ना! *ऐसे बुद्धि द्वारा जिस स्थिति में स्थित होने चाहो उसमें स्थित हो सकते हो?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थों से लगाव मिटाना सरल है लेकिन देह के भान से मुक्त होना मेहनत की बात है।* अभी क्या बन्धन रह गया है? यही। देह के भान से मुक्त हो जाना। जब चाहें तब व्यक्त में आयें। ऐसी प्रैक्टिस अभी जोर शोर से करनी है। *ऐसे ही समझे जैसे अब बाप आधार लेकर बोल रहे हैं वैसे ही हम भी देह का आधार लेकर कर्म कर रहे हैं। इस न्यारेपन की अवस्था प्रमाण ही प्यारा बनना है। जितना इस न्यारेपन की प्रैक्टिस में आगे होंगे उतना ही विश्व को प्यारे लगने में आगे होंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्म अभिमानी बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में बैठ ड्रिल करती हूँ... मैं एक आत्मा हूँ... ये शरीर नहीं हूँ... इस शरीर को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति हूँ... मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर बैठ राज करने वाली स्वराज्य अधिकारी हूँ...* धीरे-धीरे मैं आत्मा इस शरीर से बाहर निकल रही हूँ... चमकीले प्रकाश का सूक्ष्म शरीर धारण कर स्वदर्शन चक्र फिराती हूँ... *अपने पांचो स्वरूपों का दर्शन करती हुई पहुँच जाती हूँ मधुबन तपस्या धाम में... प्यारे बाबा से रूह रिहान करने...*

 

  *अपनी दुआओं और वरदानों से मुझे मालामाल करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... देह को सत्य समझ जीते आये और दुःख के गहरे दलदल में धँस चले... *अब अपने आत्मिक सत्य स्वरूप की हर पल प्रैक्टिस करो... और अपने अविनाशीपन के भान में डूब जाओ...* मीठे बाबा की मीठी यादो में इस कदर खो जाओ कि देह का भान ही न रहे...और यूँ यादो में खोये हुए से घर को चलें...

 

_ ➳  *मैं आत्मा देहभान को भूल अपने सत्य स्वरुप में टिककर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब शरीर के दायरे से ऊपर उठ अपने सत्य स्वरूप के भान में डूबी हुई आपकी यादो में... सच्चे प्यार के मीठे रंग में रंगी हुई हूँ.... *एक बाबा ही मेरा संसार है और मीठी यादे ही मेरे जीने का आधार है*...

 

  *अपनी श्रीमत से देवताई पद पाने की राह दिखाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह समझने के अनुभवी जनमो तक रहे हो... *अब आत्मिक स्थिति के गहरे अनुभवी बनकर जीवन में अथाह सुखो के जादू को महसूस करो...* शिवबाबा की मीठी यादो में खोकर स्वयं को दिव्य गुण और शक्तियो से भरपूर कर लो... अशरीरीपन के भान में डूब जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने निज स्वरुप में अविनाशी सुखों की अनुभूति करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप की पहचान को आपसे पाकर खुशनुमा हो चली हूँ... *मै नश्वर नही अविनाशी आत्मा हूँ इस अहसास ने जीवन में सुखो की बहार ला दी है... और आत्मिक स्थिति में डूबकर आपके प्यार को जीती जा रही हूँ...”*

 

  *पवित्रता की किरणों का ताज पहनाकर मुझे गले लगाते हुए मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह विनाशी देह नही हो खुबसूरत मणि हो... अपने अप्रतिम सौंदर्य में खो जाओ... दिव्य गुण और शक्तियो से सजकर देवताई सुंदरता को पाओ...* मीठे बाबा की यादो में अपनी खोयी शक्तियो और खजानो को पाकर मालामाल हो जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की बाँहों में समाकर सबकुछ भूल एकरस स्थिति में स्थित होकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरे आगोश में कितनी सुखी कितनी महफूज हूँ... *इस देह के मटमैलेपन से मुक्त हो रही  हूँ और आपके प्यार भरे साये में देवताई गुणो से सज संवर रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मास्टर ज्ञान सागर बन पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है*"

 

_ ➳  ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर, ज्ञान गंगा बन ज्ञान के शीतल जल से पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए मैं ज्ञान के सागर, *पतित पावन अपने शिव पिता परमात्मा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ और अंतर्मुखता की एक ऐसी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो मुझे सीधी ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के पास ले जायेगी*। अंतर्मुखता की इस अति सुन्दर लुभावनी यात्रा पर अनेक सुन्दर अनुभवों की खान अपने साथ लेकर मैं इस यात्रा का आनन्द लेते हुए देह के आकर्षण से स्वयं को मुक्त कर विदेही बन अब नश्वर देह से बाहर निकलती हूँ और ऊपर की ओर चल पड़ती हूँ। 

 

_ ➳  अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, उस रास्ते पर उड़ती जा रही हूँ जो मेरे स्वीट साइलेन्स होम को जाता है। *आनन्द से भरपूर, ज्ञान की रूहानी अलौकिक मस्ती में डूबी मैं आत्मा पंछी समस्त पृथ्वी लोक का चक्कर लगा कर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में प्रवेश करती हूँ*। 

 

_ ➳  गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात नही, ऐसे अपने शांतिधाम घर मे पहुंच कर, गहन शांति का अनुभव करते - करते मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए अब अपने ज्ञान सागर बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित कर मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं*। ज्ञान रत्नों से मैं भरपूर होती जा रही हूँ।

 

_ ➳  अपनी बुद्धि रूपी झोली में ज्ञान का अखुट भण्डार जमा कर, ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करने के लिए अब मैं परमधाम से नीचे आती हूँ और अपने फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर विश्व ग्लोब पर बैठ बापदादा का आह्वान करती हूँ। *बापदादा की छत्रछाया को अपने ऊपर अनुभव करते हुए, बापदादा के साथ कम्बाइन्ड होकर अब ज्ञान सागर अपने शिव पिता से ज्ञान की अनन्त किरणों को स्वयं में भरकर, फिर उन्हें चारों और फैला रही हूँ*। मुझ ज्ञान गंगा से निकल रही ज्ञानअमृत की शीतल धारायें मुझ से निकल कर विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर पड़ रही है और उन्हें विकारों की तपन से मुक्त कर, गहन शीतलता का अनुभव करवा रही है।

 

_ ➳  विश्व की सर्व आत्माओं पर ज्ञान वर्षा करके, मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और ज्ञान गंगा बन सबको यह सच्चा ज्ञान देकर उन्हें पावन बनाने की सेवा के लिए चल पड़ती हूँ। *मुरली के माध्यम से बाबा जो अविनाशी ज्ञान रत्न हर रोज मुझे देते हैं उन अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर, उन्हें कण्ठ कर, सबको उन ज्ञान रत्नों का मैं दान करती रहती हूँ*। अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को इस सत्य ज्ञान रूपी गंगा जल से पावन बनाने की सेवा करते हुए, सबको ज्ञान सागर उनके शिव पिता से मिलाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के पुरुषार्थ में अब मैं निरन्तर लगी रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अपने दिव्य, अलौकिक जन्म की स्मृति द्वारा मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मर्यादा पुरुषोत्तम आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा शान्ति दूत हूँ  ।*

   *मैं तपस्वी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा विश्व में शांति की किरणें फैलाती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्मयोगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है।* कारण क्या है? कर्म करते, सोल कान्सेस और कर्म कान्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन-सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर *इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ।* क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, डयुटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो *अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ।*

 

 _ ➳  *यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है।* आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो *यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए।* चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। *अनुभव करें कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "कर्म करते कर्मयोगी स्टेज की स्थिति का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान... मुझसे चारों ओर सर्व शक्तियों के वायब्रेशन्स फैल रहें हैं... मैं आत्मा सर्वशक्तिवान... शिवबाबा... से कंबाइंड हूँ... सर्वशक्तिवान की शक्तिशाली किरणें निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रहीं हैं... मैं आत्मा सर्वशक्तियों से भरपूर हो रही हूँ... *वाह!! मैं पद्मापदम  सौभाग्यशाली आत्मा... जो स्वयं भगवान ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को अपना बना लिया... और मैं आत्मा परमात्म पालना में पल रही हूँ ...*

 

 _ ➳  शिवबाबा ने अपना बनाकर आत्मा और परमात्मा का... सृष्टि के आदि मध्य अंत... का सत्य ज्ञान दिया... *कर्म करने का अलौकिक ज्ञान दिया... मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ... यह ज्ञान दिया... मैं... मेरा... मेरेपन का बोध कराया... आत्म अभिमानी और देह अभिमानी का अंतर समझाया... यह समझाया कि कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने वाली मैं आत्मा हूँ...* यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं... लेकिन इन कर्मचारियों से *कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ... न्यारी प्यारी आत्मा हूँ...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा बार बार अभ्यास करती हूँ कि मैं करावनहार बन कर्म कर रही हूँ... करनहार अलग है... करावनहार अलग है... मैं आत्मा हर कर्म बाबा की याद में रहकर करती हूँ...* योगयुक्त होकर कर्म करने से हर कर्म सहज हो जाता है... सही ढंग से... सफलतापूर्वक और समय से भी पहले हो जाता है...

 

 _ ➳  मेरा न्यारापन सभी आत्माओं को रूहानियत की ओर आकर्षित कर रहा है... यह न्यारापन ही ईश्वरीय ज्ञान को प्रत्यक्ष करेगा... *मैं आत्मा हर कर्म में न्यारी बन... कर्मयोगी स्थिति में कर्म करती हुई... श्वांसों श्वांस बाबा की याद में रह... स्वयं को करावनहार शक्तिशाली आत्मा समझ हर कर्म कर रही हूँ...*  

 

 _ ➳  *आत्मिक स्थिति में स्थित होकर कर्म करने से मैंपन समाप्त हो गया... कोई भी जिम्मेवारी बोझ नहीं लगती... निमित्त भाव, हल्के और शांत मन से कर्म करने से ख़ुशी का एहसास ही अलग है... बाबा की याद में... योगयुक्त होकर... उमंग उत्साह से कर्म बहुत सरलता से हो रहा है...* जैसे परमपिता से हमारा प्यार हमें योगी बनाता है... वैसे ही ईश्वरीय परिवार की सभी आत्माओं से प्यार हमें कर्मयोगी बना देता है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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