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 05 / 03 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आप समान बनाने की सेवा की ?*

 

➢➢ *मुखड़ा सदैव देवताओं जैसा हर्षितमुख रहा ?*

 

➢➢ *पश्चाताप से परे प्राप्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सुखदाई बाप के सुखदाई बच्चे बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *परमात्म-प्यार के अनुभवी बनो तो इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते रहेंगे।* परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। *माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप के साथ और सहयोग लेने वाली विशेष आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के साथ रहने वाले सदा के सहयोग लेने वाली आत्मायें समझते हो? सदा साथ का अनुभव करते हो? *जहाँ सदा बाप का साथ है वहाँ सहज सर्व प्राप्तियों हैं। अगर बाप का साथ नहीं तो सर्व प्राप्ति भी नहीं क्योंकि बाप है सर्व प्राप्तियों का दाता। जहाँ दाता साथ है वहाँ प्राप्तिया भी साथ होंगी।*

 

  *सदा बाप का साथ अर्थात् सर्व प्राप्तियों के अधिकारी। सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें अर्थात् भरपूर आत्मायें सदा अचल रहेंगी। भरपूर नहीं तो हिलते रहेंगे। सम्पन्न अर्थात् अचल।*

 

  *जब बाप साथ दे रहा है तो लेने वालों को लेना चाहिए ना। दाता दे रहा है तो पूरा लेना चाहिए, थोड़ा नहीं। भक्त थोड़ा लेकर खुश हो जाते लेकिन ज्ञानी अर्थात् पूरा लेने वाले।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज बापदादा सभी बच्चों को मुबारक के साथ-साथ यही इशारा देते हैं कि *यह रहा हुआ संस्कार समय पर धोखा देता भी है और अंत में भी धोखा देने के निमित बन जायेगा। इसलिए आज संस्कार का संस्कार करो।* हर एक अपने संस्कार को जानता भी है, छोडने चाहता भी है, तंग भी है लेकिन सदा के लिए परिवर्तन करने में तीव्र पुरुषार्थी नहीं है। पुरुषार्थ करते हैं लेकिन तीव्र पुरुषार्थी नहीं है।

 

✧  कारण? तीव्र पुरुषार्थ क्यों नहीं होता? कारण यही है, जैसे रावण को मारा भी लेकिन सिर्फ मारा नहीं, जलाया भी। ऐसे मारने के लिए पुरुषार्थ करते हैं, थोडा बेहोश भी होता है संस्कार, लेकिन जलाया नहीं तो बेहोशी से बीच-बीच में उठ जाता है। *इसके लिए पुराने संस्कार का संस्कार करने के लिए इस नये वर्ष में योग अग्नि से जलाने का, दृढ़ संकल्प का अटेन्शन रखो।* पूछते हैं ना इस नये वर्ष में क्या करना है?

 

✧  सेवा की तो बात अलग है लेकिन पहले स्वयं की बात है - योग लगाते हो, बापदादा बच्चों को योग में अभ्यास करते हुए देखते हैं। अमृतवले भी बहुत पुरुषार्थ करते हैं लेकिन योग तपस्या, तप के रूप में नहीं करते हैं। *प्यार से याद जरूर करते हैं, रूहरिहान भी बहुत करते हैं, शक्ति भी लेने का अभ्यास करते हैं लेकिन याद को इतना पॉवरफुल नहीं बनाया है, जो संकल्प करो विदाई, तो विदाई हो जाए।* योग को योग अग्नि के रूप में कार्य में नहीं लगाते। इसलिए योग को पॉवरफुल बनाओ।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *आवाज से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है। आवज में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो, उससे अधिक आवाज से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे।* अपनी अव्यक्त स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्ष फल-स्वरूप आपके सम्मुख दिखायी देगा। *आवज से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज में आने से वह आवाज,आवाज नहीं लगेगा । लेकिन उस आवाज में भी अव्यक्ती वायब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा।* जैसे इस साकार सृष्टि में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज होता है लेकिन वह आवाज, आवाज से परे जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज में आओ आवाज से परे होने का अनुभव करा सकते हो। *एक सेकण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी सम्बन्ध में जोड सकता है। सदैव अपने को कम्बाइण्ड समझ, कम्बाइण्ड रूप की सर्विस करो अर्थात अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- फालो फादर करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा समुन्दर के किनारे बैठ उछलते हुए लहरों का आनंद ले रही हूँ... ऐसे लग रहा जैसे ये लहरें आसमान को छूने की कोशिश कर रही हैं... आसमान को छूकर मेरे क़दमों में आती इन लहरों की शीतलता को महसूस कर आनंदित हो रही हूँ...* इन लहरों के साथ खेलती मैं आत्मा प्यार के सागर की लहरों में डूबने उड़ चलती हूँ... वतन में प्रेम के सागर के पास... जहाँ मीठे-मीठे बाबा प्रेम की लहरों में मुझे डुबोकर... अपनी गोदी में बिठाते हुए रूह-रिहान करते हैं...

 

  *यादों के सागर में डूबोकर पवित्र बनाकर अपने दिल तख़्त पर बिठाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के सम्मुख नही थे तब किस कदर तकलीफ उठाते हुए उसे दर दर खोज रहे थे... आज अपने शानदार भाग्य के नशे में डूब जाओ... *आसमानी पिता की गोद में खिले हुए फूल बन रहे हो... बागवान बाबा हाथो से पोषित कर रहा है... तो उसकी मीठी यादो में पवित्रता के पानी को रगो में भर दो... और मातपिता को फॉलो करो...”*

 

_ ➳  *मातपिता को फॉलो कर बाप की तख्तनशीन बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा कितने जनमो से आपके प्यार की प्यासी थी... इस वरदानी संगम में मेरी चाहतो की प्यास बुझी है...* और पवित्रता की चुनरी ने मेरा खूबसूरत श्रंगार किया है... ऐसे मीठे भाग्य को पाकर मै आत्मा निहाल हूँ...

 

  *अपनी पलकों के झूले में झुलाते हुए मीठे प्यारे मेरे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता तो बच्चों को फूल सी तकलीफ भी न दे पाये वो तो सदा फूलो वाली मखमली गोद में ही खिलाये... *उसकी यादो में सुख घनेरे छिपे है उन मीठी यादो में डूब जाओ... मातपिता के कदमो पर कदम भर ही तो रखना है और अनन्त खुशियो को पल में पाना है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा हर कदम में पद्मों की कमाई करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में खोयी सी मात पिता के नक्शे कदम पर पग धरती हुई मीठे बाबा की दिल में मुस्करा रही हूँ...* और सम्पूर्ण पवित्रता की मिसाल बनकर पूरे विश्व को तरंगित कर रही हूँ...

 

  *खुशियों की चांदनी से मेरे जीवन के आँगन को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मात पिता स्वयं चल कर बच्चों के लिए राहे आसान बना रहे है और जो निशान छोड़ रहे  हैं उनपर कदम भर रखना यही मात्र पुरुषार्थ है...* बाकि विश्व पिता जनमो के थके बच्चों को कोई तकलीफ नही देता है... तो पवित्रता से सजकर मीठे बाबा को संग लिए अथाह खुशियो के आसमान में उड़ते रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के दिल की तिजोरी में हीरा बन चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मात पिता के आधार पर कंगूरा बन मुस्करा रही हूँ... और बाबा के दिल तख्त पर मणि सी दमक रही हूँ...* मनसा वाचा कर्मणा पवित्र बन देवताई ताज से सजने का महाभाग्य पा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *ड्रिल :- मुख से सदैव रत्न निकालने है*"

 

_ ➳  अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करने वाले ज्ञान सागर *अपने प्यारे शिव प्रीतम से मिलने की जैसे ही मन में इच्छा जागृत होती है। वैसे ही मैं आत्मा सजनी ज्ञान रत्नों का सोलह श्रृंगार कर चल पड़ती हूँ ज्ञान के अखुट खजानो के सौदागर अपने शिव प्रीतम के पास*। उनके साथ अपने प्यार की रीत निभाने के लिए देह और देह के साथ जुड़े सर्व संबंधों को तोड़, निर्बंधन बन, ज्ञान की पालकी में बैठ मैं आत्मा मन बुद्धि की यात्रा करते हुए अब जा रही हूं उनके पास।

 

_ ➳  उनका प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं बरबस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ। *उनके प्यार में अपनी सुध-बुध खो चुकी मैं आत्मा सजनी सेकंड में इस साकार वतन और सूक्ष्म वतन को पार कर पहुंच जाती हूं परमधाम अपने शिव साजन के पास*। ऐसा लग रहा है जैसे वह अपनी किरणों रूपी बाहें फैलाए मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। उनके प्यार की किरणों रूपी बाहों में मैं समा जाती हूं। उनके निस्वार्थ और निश्छल प्यार से स्वयं को भरपूर कर, तृप्त होकर मैं आ जाती हूँ सूक्ष्म लोक।

 

_ ➳  लाइट का फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूं अव्यक्त बापदादा के सामने। अव्यक्त बापदादा की आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही है। *बाबा कह रहे हैं, हे आत्मा सजनी आओ:- "ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए मेरे पास आओ"।* बाप दादा की आवाज सुनकर मैं फ़रिशता उनके पास पहुंचता हूं। बाबा अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगते हैं और अपनी सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर करने लगते हैं।

 

_ ➳  सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करके बाबा अब मुझे एक बहुत बड़े हॉल के पास ले आते हैं। जिसमें अमूल्य हीरे जवाहरात, मोती, रत्न आदि बिखरे पड़े हैं। किंतु उस पर कोई भी ताला चाबी नहीं है। उनकी चमक और सुंदरता को देखकर मैं आकर्षित होकर उस हॉल के बिल्कुल नजदीक पहुंच जाता हूं। *बाबा मुझे उस हॉल के अंदर ले जाते हैं और मुझसे कहते हैं:- "ये अविनाशी ज्ञान रत्न है। इन अविनाशी रत्नों का ही आपको श्रृंगार करना है"।* कितना लंबा समय अपने अविनाशी साथी से अलग रहे तो श्रृंगार करना ही भूल गए, अविनाशी खजानों से भी वंचित हो गए। किंतु अब बहुत काल के बाद जो सुंदर मेला हुआ है तो इस मेले से सेकेंड भी वंचित नहीं रहना।

 

_ ➳  यह कहकर बाबा उन ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारने लगते हैं। *मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर बाबा मुझे सर्व ख़ज़ानों से भरपूर करने लगते है*। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से अब मैं फ़रिशता स्वयं को भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर बाबा खुशी से फूले नही समा रहे। बाबा जो मुझ से चाहते हैं, बाबा की उस आश को मैं आत्मा सजनी बाबा के नयनो में स्पष्ट देख रही हूं।

 

_ ➳  मन ही मन अपने शिव प्रीतम से मैं वादा करती हूँ कि ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी हुई रहूँगी और मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालूंगी। *अपने शिव साथी से यह वादा करके अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार अब धीरे-धीरे मैं आत्मा वापिस इस देह में अवतरित हो गयी हूँ*। अब मैं बाबा से मिले सर्व ख़ज़ानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। जैसे मेरे अविनाशी साजन ने मुझ आत्मा को गुणों  और शक्तियों के गहनों से सजाया है वैसे ही मैं आत्मा भी वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी परमात्म स्नेह और शक्तियों का अनुभव करवा रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सदा पश्चाताप से परे रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं प्राप्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सद-बुद्धिवान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सुखदाता बाप का सुखदाई बच्चा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा दुख की लहर पास आने से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं सुख स्वरूप आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. *पुण्य का खाता एक का 10 गुणा फल देता है।*

 

 _ ➳  2. *मन्सा सेवा भी पुण्य का खाता जमा करती है।* वाणी द्वारा किसी कमजोर आत्मा को खुशी में लाना, परेशान को शान की स्मृति में लाना, दिलशिकस्त आत्मा को अपनी वाणी द्वारा उमंग-उत्साह में लाना, सम्बन्ध संपर्क से आत्मा को अपने श्रेष्ठ संग का रंग अनुभव कराना, इस विधि से पुण्य का खाता जमा कर सकते हो। *इस जन्म में इतना पुण्य जमा करते हो जो आधाकल्प पुण्य का फल खाते हो और आधाकल्प आपके जड़ चित्र पापी आत्माओं को वायुमण्डल द्वारा पापों से मुक्त करते हैं।* पतित-पावनी बन जाते हो।

 

✺   *ड्रिल :-  "पुण्य का खाता जमा करने का अनुभव"*

 

 _ ➳  अमृतवेला की परम सुहानी बेला में... 'लाडले बच्चे, मीठे बच्चे जागो' की मीठी मधुर ध्वनि सुनते ही मैं आत्मा जग जाती हूँ... आंखें खोलते ही देखती हूँ... यह तो मेरे मीठे बाबा की आवाज है... मेरे बाबा मेरे सामने खड़े हैं... बड़े प्यार से मुझे जगा रहे हैं... अपने प्यारे बाबा की मोहिनी मुस्कान मुझे सर्व खुशियों की सौगात दे रही है... *भगवान बाँहें फैलाये सामने खड़े हैं... मेरे लिए स्वर्ग की बादशाही सौगात में लेकर आए हैं... मैं आत्मा उठते ही अपने बाबा के गले लग जाती हूँ... तहे दिल से बाबा का उनकी हर देन, हर उपकार के लिए शुक्रिया करती हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा चिंतन करती हूँ... यह अमृतवेला का समय बाबा ने खास हम बच्चों के लिए ही तो बनाया है... *इस समय भोला भंडारी बाबा बच्चों की झोलियां भरने खुद आते हैं...* इस समय मैं जो चाहूं वह वरदान अपने बाबा से ले सकती हूँ... अपनी भूलों के लिए क्षमा ले सकती हूँ... *इस समय मुझ आत्मा के दोनों एकाउंट्स साथ साथ चलते हैं... एक तरफ मेरा पुण्य का खाता बढ़ता जाता है, दूसरी तरफ मेरे पाप कर्मों का खाता घटता जाता है... ऐसे सुंदर श्रेष्ठ समय में मैं आत्मा सोती हुई कैसे रह सकती हूँ...* हे आत्मा जाग! अपने बाबा से अपने जन्म जनम का भाग्य ले ले!

 

 _ ➳  बाबा की पवित्रता की, शक्तियों की किरणों में मैं आत्मा भीग रही हूँ... मेरा पुण्य का खाता बढ़ता जा रहा है... *यह पुण्य का खाता निराला है जो एक का दस गुणा फल देता है...* बाबा की शक्तिशाली ज्वाला स्वरुप किरणों में नहाते हुए मैं आत्मा अनुभव कर रही हूँ... कि मेरे पाप कर्म तेजी से दग्ध होते जा रहे हैं... मेरे श्रेष्ठ कर्मों की पूंजी बढ़ती जा रही है... *बाबा द्वारा मिले ज्ञान, शक्तियों और गुणों के खजानों से भरपूर होकर मैं आत्मा... इन खजानों को विश्व की सर्व आत्माओं को दे रही हूँ...* उन सभी आत्माओं का बाबा से मिलन कराने के निमित्त बन रही हूँ... *इस श्रेष्ठ मनसा सेवा से मेरा पुण्य का खाता जमा होता जा रहा है...*

 

 _ ➳   मैं अपने मन वचन कर्म को ईश्वरीय सेवाओं में सफल कर रही हूँ... वाणी से मीठे शक्तिशाली बोल द्वारा कमजोर, अशक्त आत्माओं को खुशी प्रदान कर रही हूँ... *मेरी शक्तिशाली स्थिति दु:खी परेशान आत्माओं को उनके श्रेष्ठ स्वरुप की स्मृति दिला रही है...* दिल शिकस्त आत्माओं को अपनी वाणी द्वारा मैं उमंग उत्साह प्रदान कर रही हूँ... *संबंध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को रूहानियत के रंग में रंग रही हूँ...*

 

 _ ➳  इस प्रकार से मुझ आत्मा का पुण्यों का खाता जमा होता जा रहा है... संगम के इस अमूल्य समय में जितना चाहे मैं पुण्यों का खाता जमा कर सकती हूँ... *अभी का जमा किया हुआ खाता सारे कल्प मेरे साथ साथ चलता है...* आधाकल्प सतयुग त्रेता में इसी पुण्य के बल पर मैं सुख भोगती हूँ... आधाकल्प मेरे जड़ चित्र भक्तों को पुण्य कर्म करने की प्रेरणा देते हैं... पापी आत्माओं को पापों से मुक्त करते हैं... *मेरे जड़ चित्र पतितों को पावन करने के निमित्त बन जाते हैं... मैं आत्मा पूरा अटेंशन देकर पुण्य का खाता जमा करती जा रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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