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 06 / 03 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ड्रामा पर अटल रहे ?*

 

➢➢ *याद के बल से खाद निकाली ?*

 

➢➢ *आश्चर्यजनक दृश्य देखते हुए पहाड़ को राई बनाया ?*

 

➢➢ *परिस्थितियों में आकर्षित होने की बजाये साक्षी होकर उन्हें खेल के रूप में देखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  यह परमात्म प्यार की डोर दूर-दूर से खींच कर ले आती है। *यह ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाओ तो अनेक दु:ख भूल जायेंगे और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाप के समीप रत्न हूँ"*

 

  सदा अपने को बाप के समीप रत्न समझते हो? जितना दूर रहते, देश से दूर भले हो लेकिन दिल से नजदीक हो। ऐसे अनुभव होता है ना। *जो सदा याद में रहते हैं, याद समीप अनुभव कराती है। सहज योगी हो ना। जब बाबा कहा तो 'बाबा' शब्द ही सहज योगी बना देता है। 'बाबा' शब्द जादू का शब्द है। जादू की चीज बिना मेहनत के प्राप्ति कराती है।*

 

  *आप सभी को जो भी चाहिए - सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, शक्ति चाहिए जो भी चाहिए 'बाबा' शब्द कहेंगे तो सब मिल जायेगा। ऐसा अनुभव है!* बापदादा भी, बिछुड़े हुए बच्चे जो फिर से आकर मिले हैं, ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। ज्यादा खुशी किसको? आपको है या बाप को?

 

  बापदादा सदा हर बच्चे की विशेषता सिमरण करते हैं। कितने लकी हो। अनुभव करते हो कि बाप हमको याद करते हैं? *सभी अपनी-अपनी विशेषता में विशेष आत्मा हो। यह विशेषता तो सभी की है - जो दूर देश में होते, दूसरे धर्म में जाकर फिर भी बाप को पहचान लिया। तो इस विशेष संस्कार से विशेष आत्मा हो गये।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *एकाग्रता की शक्ति विशेष संस्कार भस्म करने में आवश्यक है।* जिस स्वरूप में एकाग्र होने चाहो, जितना समय एकाग्र होने चाहो, ऐसी एकाग्रता संकल्प किया और भस्म। इसको कहा जाता है योग अग्नि। नाम-निशान समाप्त मारने में फिर भी लाश तो रहता है ना!

 

✧  *भस्म होने के बाद नाम निशान खत्मा तो इस वर्ष योग को पॉवरफुल स्टेज में लाओ।* जिस स्वरूप में रहने चाहो मास्टर सर्वशक्तिवान, ऑर्डर करो। समाप्त करने की शक्ति आपके ऑर्डर नहीं माने, यह हो नहीं सकता। मालिक हो, मास्टर कहलाते हो ना! तो मास्टर ऑर्डर करे और शक्ति हाजिर नहीं हो तो क्या वह मास्टर है?

 

✧  तो बापदादा ने देखा कि पुराने संस्कार का कुछ न कुछ अंश अभी भी रहा हुआ है और वह अंश बीच-बीच में वंश भी पैदा कर देता है, जो कर्म तक भी काम हो जाता है। युद्ध करनी पडती है। तो बापदादा बच्चों का समय प्रमाण युद्ध का स्वरूप भाता नहीं है। *बापदादा हर बच्चे को मालिक के रूप में देखने चाहता है।* ऑर्डर करो जी हजूर।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *ऐसे ट्रान्सपेरेंट हो जाओ जो अपकी शरीर के अन्दर जो आत्मा विराजमान है वह स्पष्ट सभी को दिखाई दे। आपका आत्मिक स्वरूप उन्हों को अपने आत्मिक स्वरूप का साक्षात्कार कराए।* इसको ही कहते हैं अव्यक्ती व आत्मिक स्थिति का अनुभव करना ।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप को याद करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की सुनहरी यादों में खोई हुई, अपना सुनहरा शरीर धारण कर उड़ चलती हूँ... मधुबन बाबा के कमरे में... अपनी मुस्कान बिखेरते बापदादा अपने तेजस्वी सुनहरी किरणों की बाँहों को फैलाते हुए मुझे अपने पास बुलाते हैं...* मैं आत्मा तुरंत उनकी बाँहों में समा जाती हूँ और उनके मखमली सपर्श से अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूँ... फिर बाबा मुझे बगीचे में लेकर जाते हैं... और सैर करते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...

 

  *अनंत शक्तियों से भरपूर कर सत्यता के प्रकाश से आलोकित करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने खुबसूरत फूल थे... पर देह के भान ने उजले स्वरूप को निस्तेज कर दिया... और विकर्मो से दामन भर दिया... *अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम रंग में रंग जाओ और सतयुगी सुखो के अधिकारी बन सदा के मुस्कराओ...”*

 

_ ➳  *अपने सत्य स्वरुप में स्थित होकर यादों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके सच्चे प्रेम को पाकर दुनियावी रिश्तो से उपराम हो गई हूँ... *विकारो से मुक्त होकर खुबसूरत जीवन की मालिक बन... मीठे बाबा आपकी गोद में फूलो सा मुस्करा रही हूँ...”*

 

  *विकारों रूपी काँटों को निकाल अपने बगीचे का महकता फूल बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले संग में आकर अपने सत्य मणि स्वरूप को ही भूल गए हो... *अब ईश्वर पिता की मीठी यादो में उसी ओज से भरकर सुखो की बहारो में झूम जाओ... सब संग तोड़ सच्चे साथी के संग सदा के जुड़ जाओ...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की यादों में समाकर खुशियों के आसमान में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के भान में विकर्मो का खाते को किस कदर बढ़ाती जा रही थी... *प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन खुशियो से भर दिया है... मेरे आत्मिक स्वरूप का परिचय कराकर मुझे गुणो से सजा दिया है...”*

 

  *अपनी किरणों की ज्वाला से जन्मजन्मान्तर के विकर्मों को भस्म कर दिव्य गुणों से सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस देह के भान ने जीवन विकारो की कालिमा से भरकर दारुण दुखो से भर दिया...  उसे छोड़ अब आत्मिक नशे में डूब जाओ... *मीठे बाबा के सच्चे संग में आनन्द के गीत गाओ... सब जगह से बुद्धि निकाल ईश्वर पिता के प्यार में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *मीठे बाबा की मीठी यादों की रश्मियों से ऊँचे आसमान में अपने भाग्य का झंडा लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पाकर सदा खुशनसीब हो गयी हूँ... *मीठे बाबा आपका प्यार पाकर मै आत्मा विकारो के जंजाल से निकल अपने खुबसूरत मणि रूप में खिल गयी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बनी बनाई बन रही......ड्रामा पर अडोल रहना है*"

 

_ ➳  ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, इस बेहद के ड्रामा में वैरायटी आत्माओं के वैरायटी पार्ट को देख मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि कितना वन्डरफुल है ये ड्रामा! *इस सृष्टि ड्रामा में हर आत्मा अपना - अपना पार्ट प्ले कर रही है और एक का पार्ट भी दूसरे के पार्ट से मैच नही करता। हर आत्मा कल्प पहले मुआफ़िक अपना पार्ट बिल्कुल ऐक्यूरेट बजा रही है*। बाबा ने ड्रामा के इस राज को स्पष्ट करके जीवन को कितना सहज बना दिया है। इस राज को जानने से क्या, क्यो और कैसे की क्यू में उलझने की बजाए  सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाना कितना सरल हो गया है। *ड्रामा के पट्टे पर खड़े होकर, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ लेने से जीवन को जैसे एक नई दिशा मिल गई है*।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन मे निरन्तर आगे बढ़ते हुए, ड्रामा के हर राज को अच्छी रीति समझ अडोल रहने का पुरुषार्थ करते हुए, अब मुझे अपने सम्पूर्णता के लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त करना है *मन ही मन स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा कर, ड्रामा के हर खूबसूरत पहलू से परिचित कराने वाले अपने प्यारे मीठे बाबा से मीठी मीठी रूहरिहान करने, उनसे मंगल मिलन मनाने और ड्रामा के पट्टे पर सदा अचल, अडोल रहने का उनसे वरदान प्राप्त करने के लिए मैं अपने प्यारे बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और सेकेण्ड में अशरीरी होकर, देह से बिल्कुल न्यारा एक अति सूक्ष्म चैतन्य सितारा बन भृकुटि के अकालतख्त से बाहर आ जाता हूँ और अपने बिंदु बाप के पास उनके धाम की ओर चल पड़ता हूँ।

 

_ ➳  परमधाम में स्थित मेरे बिंदु बाप से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझ बिंदु सितारे के साथ कनेक्ट होकर मुझे बिल्कुल सहज रीति ऊपर की ओर खींच रही है और *मैं चैतन्य सितारा, इस परमात्म लाइट के साथ कनेक्ट होकर, स्वयं को हर चीज से उपराम अनुभव करते हुए, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर उड़ता जा रहा हूँ*। मेरे बिंदु पिता से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे अति शीघ्र 5 तत्वों की बनी साकारी दुनिया को पार कराये, फरिश्तो की आकारी दुनिया से ऊपर, आत्माओं की उस निराकारी दुनिया में ले आई है जहाँ पहुँच कर मैं आत्मा गहन विश्राम की स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। 

 

_ ➳  एक ऐसी दुनिया में मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ ना साकार देह का कोई बन्धन है और ना ही सूक्ष्म देह का कोई भान है केवल चमकती हुई निराकारी बिंदु आत्मायें अपने बिंदु बाप की अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों में सिमट कर, उनके प्यार और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *बिंदु बाप के साथ अपने बिंदु बच्चो का यह मंगल मिलन मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। अपने बिंदु पिता से मिलन मनाने के लिए मैं बिंदु आत्मा अब धीरे - धीरे उनके पास पहुँचती हूँ ओर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। 

 

_ ➳  विकारों की प्रवेशता के कारण मुझ आत्मा की बैटरी जो डिसचार्ज हो गई थी वो अब परमात्म शक्तियों से चार्ज हो गई है और मैं आत्मा जैसे लाइट हाउस बन गई हूँ। *परमात्म शक्तियों से भरपूर होकर स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। शक्तियों का पुंज बनकर, बेहद के सृष्टि ड्रामा में अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के लिए मैं वापिस साकार सृष्टि पर लौट आती हूँ*। फिर से 5 तत्वों की साकारी दुनिया में, अपने साकारी तन में प्रवेश कर ड्रामा के पट्टे पर आकर खड़ी हो जाती हूँ। 

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ड्रामा के हर राज को गहराई से समझ, साक्षी दृष्टा बन, ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखते हुए, हर परिस्थिति में अचल अडोल रहने का अब मैं पुरुषार्थ कर रही हूँ। *"सृष्टि का यह नाटक अब पूरा हो रहा है" यह स्मृति मुझे हर आकर्षण से मुक्त और हर चीज से उपराम करके, ड्रामा के राज को अच्छी रीति समझ, स्वयं को अचल, अडोल और एकरस बनाने में सहयोग दे रही है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं आश्चर्यजनक दृश्य देखते हुए पहाड़ को राई बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं साक्षीद्रष्टा आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा परिस्थितियों में आकर्षित होने से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा साक्षी होकर परिस्थितियों को खेल के रूप में देखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा साक्षी दृष्टा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है... अगर ब्राह्मण दृढ़ संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता! सब हो जायेगा सिर्फ योग को ज्वाला रूप बनाओ... *योग ज्वाला रूप बन जायेगा तो ज्वाला के पीछे आत्मायें स्वतः ही आ जायेंगी क्योंकि ज्वाला (लाइट) मिलने से उन्हों को रास्ता दिखाई देगा...* अभी योग तो लगा रहे हैं लेकिन योग ज्वाला रूप होना है... सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा बढ़ रहा है लेकिन योग में ज्वाला रूप अभी अण्डरलाइन करनी है... *आपकी दृष्टि में ऐसी झलक आ जाए तो दृष्टि से कोई न कोई अनुभूति का अनुभव करें...*

 

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प की शक्ति का अनुभव"*

 

 _ ➳  शांति के सागर अपने शिव पिता की याद में बैठी मैं गहन शान्ति का आनन्द ले रही हूँ... और उसी गहन शान्ति की स्थिति में मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे अनेकों आत्माओं की रोने, चिल्लाने की आवाज़ें मेरे कानों में सुनाई देने लगी है... उन आवाजों के साथ एक पीड़ादायक दृश्य मुझे दिखाई देता है... *मैं देख रही हूँ सारे विश्व की आत्मायें, प्रकृति से, वायुमण्डल से, अपने सम्बन्धियों से, अपने मन के कमजोर संस्कारों से, बीमारियों से पीड़ित हो कर तड़प रही हैं...* सुख शांति की एक अंचली की तलाश में भटक रही हैं, रो रही है, चिल्ला रही हैं...

 

 _ ➳  इस दृश्य को देखते - देखते एकाएक जैसे कानों में बापदादा की अव्यक्त आवाज सुनाई देती है... उन दृश्य से जैसे ही मैं ध्यान हटाती हूँ अपने सामने बापदादा को देखती हूँ जो मुझे अपने साथ चलने का इशारा कर रहें हैं... बाबा अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं... बाबा के हाथ मे मैं जैसे ही अपना हाथ रखती हूँ, मेरा ब्राह्मण स्वरूप लाइट के फ़रिशता स्वरूप में बदल जाता है और *बाबा का हाथ थामे मैं फ़रिशता बाबा के साथ चल पड़ता हूँ... बाबा के साथ चलते - चलते मैं वही सब दृश्य फिर से देख रहा हूँ... हर तरफ चीखते - चिल्लाते शांति की तलाश में भटकते मनुष्य दिखाई दे रहें हैं...*

 

 _ ➳  इन सभी दृश्यों को देखते - देखते बाबा मुझे एक ऐसे स्थान पर ले आते हैं जहां बहुत सारी ब्राह्मण आत्मायें पहले से ही उपस्थित हैं... मैं भी अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर उन सभी ब्राह्मण आत्माओं के पास जा कर बैठ जाती हूँ... *बाबा सभी ब्राह्मण बच्चों को सम्बोधित करते हुए फ़रमान करते हैं:- "सभी योग को ज्वाला स्वरूप बनाओ और शांति के एक ही संकल्प में स्थित हो जाओ"...* देखते ही देखते सभी शांति के एक ही दृढ़ संकल्प में स्थित हो जाते हैं और बाबा की याद में बैठ जाते हैं... सेकण्ड में शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन से पूरा स्थान भर जाता है... और धीरे - धीरे शांति के वो शक्तिशाली वायब्रेशन दूर - दूर तक फैल जाते हैं...

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ उन सभी तड़पती हुई अशांत आत्माओं को जो शांति के उन शक्तिशाली वायब्रेशन से आकर्षित हो कर,भाग - भाग कर उस स्थान पर आ कर एकत्रित हो रही हैं... *ऐसा लग रहा है जैसे ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प और जवालस्वरूप योग से यह स्थान एक विशाल शांति कुंड बन गया है और शांति की शक्ति चारों तरफ फैल कर सबको शान्ति का अनुभव करवा रही है...* बाबा की याद में बैठी सभी ब्राह्मण आत्मायें शांतिस्वरूप की चुम्बक बन सभी दुखी और अशांत आत्माओं को अपनी ओर खींच रही हैं... सबके मुख से यही निकल रहा है कि केवल यहां से ही शांति मिलेगी... शांति की अंचली पा कर अब सभी आत्मायें शांति की अनुभूति करके, प्रसन्न हो कर वापिस लौट रही हैं...

 

 _ ➳  बापदादा अब सभी ब्राह्मण आत्माओं को संकल्पो की दृढ़ता पर विशेष अटेंशन खिंचवाते हुए हर ब्राह्मण आत्मा को अपनी सर्वशक्तियों और वरदानों से भरपूर कर रहें हैं... सभी ब्राह्मण आत्मायें बापदादा से सर्वशक्तियाँ और वरदान ले कर अब अपने सेवा स्थलों पर वापिस लौट रहे हैं... मैं भी अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित अब वापिस अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ... इस बात को सदा स्मृति में रखते हुए कि *"ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है" अब मैं अपने संकल्पो को शुभ और श्रेष्ठ बना कर, अपनी मनसा शक्ति से, वृति से अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली सभी दुखी और अशांत आत्माओं को शांति की अनुभूति करवा रही हूँ...* और साथ ही साथ योग को जवालस्वरूप बनाने का दृढ़ संकल्प कर अब मैं याद की यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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