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 14 / 03 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *शांति की शक्ति की महानता का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *अपनी शुभ भावना से दूसरी आत्माओं के मन में शुभ भावना उत्पन्न की ?*

 

➢➢ *शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *आत्माओं को रहम और स्नेह की अनुभूति करवाई ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जिस समय जिस सम्बन्ध की आवश्यकता हो, उसी सम्बन्ध से भगवान को अपना बना लो।* दिल से कहो मेरा बाबा, और बाबा कहे मेरे बच्चे, इसी स्नेह के सागर में समा जाओ । *यह स्नेह छत्रछाया का काम करता है, इसके अन्दर माया आ नहीं सकती ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं संगमयुगी श्रेष्ठ सच्चा ब्राह्मण हूँ"*

 

  2. सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ ब्रह्मण आत्मायें अनुभव करते हो? *सच्चे ब्राह्मण अर्थात् सदा सत्य बाप का परिचय देने वाले। ब्राह्मणों का काम है कथा करना, तुम कथा नहीं करते लेकिन सत्य परिचय सुनाते हो। ऐसे सत्य बाप का सत्य परिचय देने वाले, ब्राह्मण आत्मायें हैं, यही नशा रहे। ब्राह्मण देवताओंसे भी श्रेष्ठ हैं।*

 

  *इसलिए ब्राह्मणों का स्थान चोटी पर दिखाते हैं। चोटी वाले ब्राह्मण अर्थात् ऊँची स्थिति में रहने वाले। ऊँचा रहने से नीचे सब छोटे होंगे। कोई भी बात बड़ी नहीं लगेगी।* ऊपर बैठकर नीचे की चीज देखो तो छोटी लगेगी। कभी कोई समस्या बड़ी लगती तो उसका कारण नीचे बैठकर देखते हो। ऊपर से देखो तो मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

 

  *तो सदा याद रखना -चोटी वाले ब्राह्मण हैं, इसमें बड़ी समस्या भी सेकण्ड में छोटी हो जायेगी। समस्या से घबराने वाले नहीं लेकिन पार करने वाले समस्या का समाधान करने वाले।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *यह पहली - पहली बात है जो कि तुम सभी को बताते हो कि - मैं आत्मा हूँ, न कि शरीर*। जब आत्मा होकर बिठाते हो तभी उनको फिर शरीर भूलता है। अगर आत्मा होकर नहीं बिठाते, तो क्या फिर देह सहित देह के संबन्ध भूल जाते! जब उनको बुलाते हो, तो क्या अपने शरीर से न्यारे होकर, जो न्यारा बाप है उनकी याद में नहीं बैठ सकते हो?

 

✧  अब सब बच्चे अपने को आत्मा समझ बैठो। सामने किसको देखें? आत्माओं के बाप को। इस स्थिति में रहने से व्यक्त से न्यारे होकर अव्यक्त स्थिति में रह सकेंगे। *'मैं आत्मा बिन्दु रुप हूँ' - क्या यह याद नहीं आता है*? बिन्दि रुप होकर बैठना नहीं आता? ऐसे ही अभ्यास को बढाते जाओगे तो एक सेकण्ड तो क्या, कितनी ही घण्टे इसी अवस्था में स्थित होकर इस अवस्था का रस ले सकते हो। इसी अवस्था में स्थित रहने से फिर बोलने कि जरूरत ही नहीं रहेगी।

 

✧  बिन्दु होकर बैठना कोई जड अवस्था नहीं है। जैसे बीज में सारा पेड़ समाया हुआ है, वैसे ही मुझ आत्मा में बाप की याद समायी हुई है। ऐसे होकर बैठने से सब रसनायें आयेगी और साथ भी यह नशा होगा कि - 'हम किसके सामने बैठे हैँ। बाप हमको भी अपने साथ कहाँ ले जा रहे है।' बाप तुम बच्चों को अकेला नहीं छोडता है। जो बाप का और तुम बच्चों का घर है, वहाँ पर साथ में ही लेकर जायेंगे। सब इकट्ठे चलने ही है। *आत्मा समझकर फिर शरीर में आकर कर्म भी करना है, परंतु कर्म करते हुए भी न्यारा और प्यारा होकरल रहना है*। बाप भी तुम बच्चों को देखते हैँ। देखते हुए भी बाबा न्यारा और प्यारा है ना। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जो बन्धन मुक्त की स्थिति सुनाई कि शरीर में रहते हुए सिर्फ निमित ईश्वरीय कर्तव्य के लिए आधार लिया हुआ है। अधीनता नहीं निमत आधार लिया है। *जो निमित आधार शरीर को समझेंगे वह कभी भी अधीन नहीं बनेंगे। निमित आधार मूर्त ही सर्व आत्मओं के आधार मूर्त बन सकते हैं। जो स्वयं ही अधीन है वह उद्धार क्या करेंगे।* इसलिए सर्विस की सफलता इतनी है जितनी अधीनता से परे हरेक हैं।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अंतर्मुखी और एकांतवासी बनना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा परमधाम निवासी... परमधाम से आयी इस स्थूल धरा पर... अपना पार्ट बजाने... सतयुग... त्रेतायुग... द्वापरयुग... कलियुग... पार्ट बजाते बजाते काली हो गई... *अपनी शक्तियों को भूल... अपने आप से अनजान... उस भगवान से भी अनजान... जो मेरा पिता है... और मै उनकी संतान हूँ... मैं आत्मा हूँ... और ना ही यह शरीर...* इस सत्य से अनजान मैं आत्मा बैठी हूँ... शांत शीतल समुद्र के तट पर... खोई हुई... उलझी हुई... मायूस सी मैं आत्मा बैठी हूँ... *पुकार रहीं हूँ उस भगवान को जो दुःखहर्ता...  सुखकर्ता हैं...* मेरी पुकार सुन.. मेरे पिता स्वयं धरती पर आगये...  *ब्रह्माकुमारी संस्था में मुझ आत्मा को सच्चा गीता ज्ञान... परमपिता परमात्मा का ज्ञान... आत्मा - परमात्मा का ज्ञान देने...* और मैं आत्मा... अपने पिता की पहचान को जान... द्रवित हो जाती हूँ... और पहुँच जाती हूँ उनके पास...

 

  *अपने पिता का हाथ पकड़ कर मैं आत्मा सैर कर रही हूँ और बाबा ने कहा :-* "मेरी फूल बच्ची... क्यों मायूस हो जाती हो... *मुझे जाना... पहचाना... अपना बनाकर क्यों... उलझी हुई हो ? इस धरा पर तुझसे प्यारा अतिरिक्त मुझे और कोई नहीं है...* मासुमसी यह आँखों मे दुःख की लहर क्यों है...?"

 

_ ➳  *बाबा के प्यार और दुलार को देख मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे बाबा... *आप तो मेरे पिता हो... कल्प के बाद मिले हो... अब तक तो आप से अनजान थी...* अब मिले हो तो... खुशी में मन क्यों नहीं झूम रहा हैं... मन मे यह अदृश्य... असहनीय वेदना क्यों हैं... क्यों मन बारबार उदास हो जाता है ? *क्या वह बात हैं जिससे मैं अनजान हूँ... क्या वह दुःख हैं जो मैं महसूस कर रही हूँ..."*

 

  *शीतल पवन की लहरों समान मेरे बाबा बोले :-* "मेरी राज दुलारी... मेरी लाडली बच्ची... *कल्प के संगमयुग में मुझे आना हैं... इतने युगों पश्चात यह बाप और बच्चें का पवित्र मिलन हुआ हैं...* यह जन्म अंतिम जन्म हैं... *जिस घड़ी से मुझे जाना... उस घड़ी से जो बीता उसको बिंदी लगाना सीख गई हो... लेकिन अपने 63 जन्मो के विकर्मों को भस्म करना नहीं सीखी हो..."*

 

_ ➳  *गुल गुल फूलों से महकते मेरे बाबा को मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे गुलाब बाबा... आपने अपना बनाया... 21 जन्मों के स्वराज्य भाग्य के अधिकारी बनाया... *दुःख की लहरों से दूर हमें आप सुख की ऊंची मंजिल पर ले आये हो... सर्व दोषो से मुक्त्त कर सर्वगुण सम्पन्न बना दिया हैं... श्रीमत आपकी इस अंतिम जन्म में गले का हार बन गई है... अंतर्मुखता की इस यात्रा में... मैं आत्मा... आप के नक़्शे कदम पे चल रहीं हूँ..."*

 

  *सुख के सागर मेरे प्यारे बाबा बोले :-* "रूहानी गुलाब सी मेरी प्यारी बच्ची... अब समय हैं जन्मों के विकारों के खाते को खत्म करना... *योगबल की शक्त्ति... पवित्रता की शक्त्ति से अपने पुण्य के खाते को बढ़ाना हैं... अपने सूक्ष्म ते सूक्ष्म विकर्मों के बोझ से मुक्त्त हो... सब को मुक्त्त करना हैं... सर्व शक्तिसम्पन्न बन सर्व को शक्ति का दान करना हैं...* शांति देवा बन शांति का दान करना हैं... 63 जन्मों के विकर्मों को योग अग्नि की भट्टी में स्वाहा करना है और कंचन वर्ण बनना हैं..."

 

_ ➳  *प्यार भरी आँखो से बाबा के हाथ चूमती मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे बाबा... *कल्प के संगमयुग में... इस महा मिलन के कुम्भ मेले में... मैं आत्मा... इस सुवर्ण जन्म में... अपने जन्मों के विकारो को भस्म कर... आप समान बन रही हूँ...* योग अग्नि में तप कर खरा सोना बन रही हूँ... *योग की ऊंची मंजिल पर बैठ आप की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजा रही हूँ... हर गली... हर घर मे आप का ही झंडा लहरा रहा है..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- शान्ति की शक्ति की महानता का अनुभव करना*

 

_ ➳  मैं शान्त स्वरूप आत्मा, शांतिधाम की रहने वाली, शांति के सागर शिव पिता की सन्तान हूँ यह स्मृति मुझे सेकण्ड में अपने शान्त स्वधर्म में स्थित कर देती हैं और अपने इस शान्त स्वधर्म में स्थित होते ही शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स मेरे मस्तक से निकल कर तेजी से चारों और फैलने लगते हैं। *मैं अनुभव कर रही हूँ कि मेरे आस - पास का वायुमण्डल शांति के वायब्रेशन्स के प्रभाव से पूरी तरह शांत और निस्तब्ध होने लगा है और मेरे चारों तरफ एक "विशाल शांति कुंड" बनता जा रहा है जिसकी ज्वाला शांति की शक्तिशाली किरणों के रूप में चारों और फैल कर अब दूर - दूर तक जा रही है और सारे वातावरण को भी शांत बनाती जा रही है*। साइलेन्स का बल मेरे अंदर भरता जा रहा है।

 

_ ➳  साइलेन्स की यह शक्ति धीरे - धीरे मेरे अंदर जमा होकर मुझे शांति की ऐसी गहरी गुफा में ले कर जा रही है जहाँ कोई आवाज नही, कोई हलचल नही, केवल एक गहन चुप्पी है। बाहर की दुनिया में हो रहे शोर का भी अब मेरे ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ रहा। *शांति की गुफा में बैठ गहन शांति का अनुभव मुझे बहुत सुकून दे रहा है। इस सुकून का सुखद आनन्द लेते - लेते मन ही मन मैं विचार करती हूँ कि जिस शांति के हार की तलाश में मैं भटक रही थी वो शांति का हार तो मेरे गले मे ही पड़ा था जिसे आज अपने स्वधर्म में स्थित होकर कितनी सहजता से मैने प्राप्त कर लिया*!

 

_ ➳  शान्ति के इस हार को अब मैं कभी गुम नही होने दूँगी। इसे अपने गले मे हमेशा पहने रखने के लिए अब मैं सदैव अपने स्वधर्म और स्वदेश की स्मृति में रहूँगी। *इसी संकल्प के साथ, अपने स्वधर्म में स्थित होकर मैं आत्मा अब इस पराई देह और देह की पराई दुनिया से किनारा करके अपने स्वदेश जाने के लिए तैयार होती हूँ*। अपने उस देश, उस शान्तिधाम घर को स्मृति में लाते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे शान्तिधाम में रहने वाले शांति के सागर मेरे शिव पिता भी मुझ से मिलने के लिए व्याकुल हैं। 

 

_ ➳  शांति के सागर अपने पिता के संकल्पों को कैच कर, मैं झट से भृकुटि की कुटिया से बाहर निकलती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर सेकण्ड में आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होकर अपने शान्ति धाम घर में पहुँच जाती हूँ। *गहन शांति की यह दुनिया जहाँ अशांत करने वाली कोई बात, कोई संकल्प नही, ऐसे अपने स्वदेश में आकर, यहां चारों और फैले शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर मैं असीम शान्ति का अनुभव कर रही हूँ*। शन्ति की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं धीरे - धीरे शांति के सागर अपने शिव पिता के समीप पहुँच गई हूँ।

 

_ ➳  अपने शांति धाम घर मे अपने शिव पिता के पास जाकर अब मैं उनके सानिध्य में बैठ उनसे आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समाहित कर रही हूँ। *बाबा से आ रही शांति की हल्की नीले रंग की किरणों का फव्वारा मुझ पर बरस रहा है और मुझे रोमांचित कर रहा है। शांति की शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नीले रंग की किरणों के किसी विशाल झरने के नीचे मैं खड़ी हूँ और शांति की किरणें झर - झर करते पानी की तरह मेरे ऊपर बह रही हैं जिन्हें मैं गहराई तक अपने अंदर समाती जा रही हूँ*। शांति के सागर अपने शिव बाबा से शांति की अनन्त शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ।

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव हर पल करते हुए शांति की शक्ति मैं अपने अंदर जमा कर रही हूँ और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि शांति की शक्ति जैसे - जैसे मेरे अंदर भरती जा रही है वैसे - वैसे हर समस्या का समाधान अपने आप होता जा रहा है। *साइलेन्स के बल से मेरे जीवन मे होने वाले अनेक चमत्कारिक परिवर्तन मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को भी अपने स्वधर्म और स्वदेश की याद दिलाकर शांति का अनुभव करने का रास्ता दिखला रहें हैं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं पावरफुल ब्रेक द्वारा वरदानी रूप में सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं लाइट माइट हाउस आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा संकल्प, समय और बोल की सदैव इकॉनामी करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा बाबा की मदद को कैच कर लेती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव शांति स्वरूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *एक दो के सहयोगी बनो जो सभी मास्टर सर्वशक्तिवान बन आगे उड़ते चलें। दाता बनकर सहयोग दो।*बातें नहीं देखो, सहयोगी बनो। स्वमान में रहो और सम्मान देकर सहयोगी बनो क्योंकि *किसी भी आत्मा को अगर आप दिल से सम्मान देते हो, यह बहुत-बहुत बड़ा पुण्य है क्योंकि कमजोर आत्मा को उमंग-उत्साह में लाया तो कितना बड़ा पुण्य है!* गिरे हुए को गिराना नहीं है, गले लगाना है अर्थात् बाहर से गले नहीं लगाना, *गले लगाना अर्थात् बाप समान बनाना। सहयोग देना।*

 

✺   *ड्रिल :-  "गिरे हुए को गिराना नहीं, गले लगाना"*

 

 _ ➳  मैं मास्टर सर्वशक्तिवान... सर्वशक्तिवान शिवबाबा से कंबाइंड हूँ... प्यारे बाबा से सर्वशक्तियों की किरणें निरन्तर मुझ आत्मा पर पड़ रहीं हैं... *मैं आत्मा पदमापदम सौभाग्यशाली... जो स्वयं भगवान मेरा हो गया... वाह मेरा भाग्य...बाबा ने मेरे सारे बोझ... चिंताएं... फिकरातों से मुक्त कर दिया... अब मुझे भी बाप समान बनकर सभी आत्माओं को सहयोग देकर... उन्हें आप समान बनाना है...* 

 

 _ ➳  *मैं आत्मा मास्टर दाता के स्वमान में रह हरेक आत्मा के प्रति शुभ भावना... शुभ कामना रख रही हूँ... मैं आत्मा फॉलो फादर कर सभी आत्माओं को सम्मान की दृष्टि से देख रही हूँ...* जैसे ब्रह्मा बाबा ने अपकारियो पर भी उपकार किया... निंदा करने वालो को भी अपना मित्र समझा... उन्हें गले लगाया... वैसे ही *मैं आत्मा फॉलो फादर करती... सभी आत्माओं के प्रति सदभावना रख हर कर्म कर रहीं हूँ...*   

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाप समान विश्व की सर्वआत्माओं के प्रति कल्याण की भावना रख रहीं हूँ...  किसी भी आत्मा के प्रति भेदभाव नहीं रखती अपितु  सर्व के प्रति आत्मिक दृष्टि रखती हूँ... *मैं आत्मा विश्वकल्याणकारी के स्वमान में स्थित हो... विशाल दिल रख... रहम की भावना से... सर्व आत्माओं के प्रति सुख... शांति... के वायब्रेशन्स फैला रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं मास्टर सर्वशक्तिवान... अपनी श्रेष्ठ वृति के वायब्रेशन्स द्वारा वायुमण्डल को ऐसा बनाती हूँ... *जो कोई भी मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आता है... वह खुद बखुद मेरी ओर आकर्षित होता है...* उन्हें मुझसे स्नेह... प्यार की भासना आती है... सहयोग... हिम्मत की अनुभूति होती है...

 

 _ ➳  *मैं आत्मा अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को देख बहुत खुश हो रहीं हूँ... सदा सर्वशक्तिवान के स्वमान में रह... उमंग उत्साह के पंख लगा... हरेक को सहयोग देती हुई... सम्मान देती हुई... उड़ती कला में उड़ रही हूँ...* और सर्वशक्तिवान... शिवबाबा... भाग्यविधाता को दिल से शुक्रिया करती हुई... अपने भाग्य की सराहना कर रहीं हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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