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 15 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *खान-पान , चाल चलन रॉयल रही ?*

 

➢➢ *"हम आत्माएं भाई भाई हैं" - यह अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *बाप समान स्थिति द्वारा समय को समीप लाये ?*

 

➢➢ *एक दो के विचारों को रीगार्ड दिया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *आगे चलकर अनेक प्रकार की परिस्थितियाँ आयेंगी उन्हें पार करने के लिए बहुत पावरफुल स्थिति चाहिए, अगर योगयुक्त होंगे तो जैसा समय वैसा तरीका टच होगा। अगर समय प्रमाण युक्ति नहीं आती हैं तो समझना चाहिए योगबल नहीं हैं।योगबल वाली आत्मा को आने वाली परिस्थिति का पहले से ही पता होगा* इसलिए वह योगयुक्त स्थिति में रह हर परिस्थिति को सहज पार कर लेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं डबल लाइट आत्मा हूँ"*

 

✧  *सेवा में निमित्त बनना यह भी श्रेष्ठ भाग्य है - इस भाग्य को सदा आगे बढ़ाने के लिए विशेष स्वयं को डबल लाइट समझो। किसी भी प्रकार का बोझ खुशी की अनुभूति सदा नहीं करायेगा।*

 

  *जितना अपने को डबल लाइट अनुभव करेंगे उतना भाग्य पद्मगुणा बढ़ता जायेगा। बापदादा डबल लाइट रहने वाले बच्चों के हर कार्य में मददगार हैं।*

 

  जितना सेवा में निमित्त बनने का भाग्य मिलता है उतना डबल लाइट स्थिति से उड़ती कला में उड़ने के विशेष अनुभवी बन सकते हो। *डबल लाइट स्थिति में रहने से सदा खुशी में नाचते रहेंगे और खुशी के महादानी बन खुशी की खान बढ़ाते रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी जिस स्थिती में अभी बैठे हैं, उसको कौन - सी स्थिती कहेंगे? व्यक्त में अव्यक्त स्थिती है? *बापदादा से मुलाकात करते समय बिन्दु रुप की स्थिती में रह सकते हो?* बिन्दु रुप की स्थिती विशेष किस समय बनती है? जब एकान्त में बैठते हो तब या चलते - फिरते भी हो सकती है?

 

✧  *अन्तिम पुरुषार्थ याद का ही है।* इसलिए याद का स्टेज वा अनुभव को भी बुद्धी में स्पष्ट समझना आवश्यक है।

बिन्दुरुप की स्थिती क्या है और अव्यक्त स्थिति क्या है, दोनों का अनुभव क्या क्या है? क्यों कि नाम दो कहते है तो दोनों के अनुभव में भी अन्तर होगा।

 

✧  चलते फिरते बिन्दुरुप कि स्थिती इस समय कम भी नहीं लेकिन ना के बारबर ही कहें। इसका भी अभ्यास करना चाहिए। जैसे जब कोई ऐसा दिन होता है तो सारे चलते -फिरते हुए ट्रैफिक को भी रोक कर तीन मिनिट साइलेन्स की प्रैक्टिस करते हैं। सारे चलते हुए कार्य को स्टाँप कर लेते हैं। *आप भी कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच - बीच में यह संकल्पों की प्रैक्टिस करना चाहिए*।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  देह का भान है तो क्या बाप याद है? बाप के समीप सम्बन्ध का अनुभव होता है जब देहभान का त्याग करते हो तो। *देहभान का त्याग करने से ही देही-अभिमानी बनने से पहली प्राप्ति क्या होती है? यही ना की निरन्तर बाप की स्मृति में रहते हो अर्थात् हर सेकण्ड के त्याग से हर सेकण्ड के लिए बाप के सर्वसम्बन्ध का, सर्वशक्तियों का अपने साथ अनुभव करते हो। तो यह सबसे बड़ा भाग्य नहीं? यह भविष्य में नहीं मिलेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  पावन बनने का पुरुषार्थ करना"*

 

_ ➳  आज मै आत्मा मा त्रिलोकीनाथ के नशे में डूबी हुई... तीनो लोको को स्म्रति पटल पर देख रही हूँ... और देखते देखते मै आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को लिए... इस स्थूल धरा के आवरण से निकल कर... सूक्ष्म वतन में अपने प्यारे बाबा से मिलने को उड़ चली हूँ... *सूक्ष्म वतन में पहुंच कर मै आत्मा मीठे बाबा की बाँहों में समा जाती हूँ... और दीवानी आत्मा और माशूक परमात्मा के सच्चे प्रेम की धारा से सूक्ष्म वतन तरंगित हो रहा है.*..

 

   *मीठे बाबा सामने खड़े ज्ञान की अमूल्य मणियो को मेरी झोली में छलकाते हुए कहने लगे :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह और देह की दुनिया के आकर्षणों से निकल सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करो... *यह पवित्रता ही स्वर्गिक सुखो का आधार है.*.. पवित्रता का कंगन बांध पावन बनने की द्रढ़ प्रतिज्ञा करो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा को रोम रोम से शुकिया कहते हुए बोली :-* "मेरे मीठे बाबा,.. आपने जीवन में आकर जीवन को पवित्रता की खूबसूरती से सजाया है... इसके पहले तो मै आत्मा अपवित्रता की दुर्गन्ध में डूबी हुई थी... *आपने मुझे पावनता से सजाकर, महान भाग्यशाली बना दिया है.*.."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को पावनता के श्रंगार से खुबसूरत बनाते पुनः बोले :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... हर साँस और संकल्प को पवित्रता के रंग में रंगकर देवताई राजतिलक के अधिकारी बनो... *पवित्रता ही देवताओ का सौंदर्य है.*.. इसलिए दिल जान से इस पावनता की प्रतिज्ञा को निभाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा की अनमोल शिक्षाओ को दिल में समाते हुए कह रही हूँ :-* "ओ मीठे बाबा मेरे... आपने मुझ आत्मा को देह के दलदल से निकाल, दिव्यता से सजाकर, कितना प्यारा और खुशबूदार बना दिया है... *मै आत्मा पावनता की सुगन्ध लिए स्वर्ग धरा पर विचरण कर रही हूँ.*.."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को अपने वरदानी हाथो में थाम प्रेम किरणों से भरपूर करते हुए बोले :-* " मीठे लाडले बच्चे... पवित्रता ही देवताओ सा सुखमय और अथाह खुशियो और आनन्द से भरपूर जीवन की आधारशिला है... *विश्व का राज्य भाग्य इस पवित्रता की धारणा पर ही पा सकते हो... इसलिए पावनता से सजधज कर देवताई खुशियो में झूम जाओ..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा को परम् शिक्षक रूप में पाकर अपने मीठे भाग्य पर नाज करते हुए कह रही हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... देह की मिटटी ने मुझ आत्मा को जो मैला कर दिया... *आपने पावनता से उसे धो दिया है... और वही तेज और ओज देकर मुझ आत्मा को दिव्यता के रंग से निखार दिया है.*..अपने बाबा से ऐसी मीठी रुहरिहानं कर मै आत्मा स्थूल जगत मे लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी एकरस स्थिति जमानी है*"

 

_ ➳  परमधाम में मैं आत्मा, मैं चैतन्य ज्योति, अपने महाज्योति शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *अपने शिव पिता के साथ मिलन मनाने का असीम सुख लेते हुए मैं एकटक उन्हें निहार रही हूँ*। पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे अलग रहने के कारण उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म जन्मांतर की प्यास को मैं आज पूरी तरह बुझा लेना चाहती हूँ। *इसलिए मन बुद्धि रूपी नेत्रों को पूरी तरह अपने शिव पिता पर केंद्रित कर, उनके अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को, उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं मन ही मन मगन हो रही हूँ*। उनका यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे उन्हें और समीप से देखने के लिए अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मुझे अपने आगोश में लेकर, अपना सम्पूर्ण स्नेह मुझ पर बरसा कर आज मुझे तृप्त करना चाहते हैं। *अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं चैतन्य ज्योति स्वयं को अपने महाज्योति शिव पिता के अति समीप देख रही हूँ*। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं ज्योति, महाज्योति में समा कर उनका ही स्वरूप बन गई हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ ऐसे लग रही हैं जैसे बहुत तेज अग्नि की अनन्त धाराएं निकल रही हों।

 

_ ➳  पूरे वेग से ये धाराएं मुझ आत्मा के ऊपर निरन्तर प्रवाहित हो रही हैं। और इन धाराओं के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की खाद जल कर भस्म हो रही हैं। *63 जन्मो के विकारों की कट जो असंख्य परतों के रुप में मुझ आत्मा पर चढ़ी हुई थी वो एक - एक परत योग की अग्नि में जल कर  समाप्त हो रही है और मैं आत्मा हल्केपन का अनुभव कर रही हूँ*। अपनी सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों की अग्नि से बाबा मुझ आत्मा द्वारा किये हुए एक - एक विकर्म को दग्ध कर मुझे सम्पूर्ण पावन बना रहें हैं। *मेरे सभी पुराने स्वभाव, संस्कार इस योग की अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं*।

 

_ ➳  जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने स्वभाव संस्कारों का दाह संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मैं आत्मा फिर से अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूँ। *रीयल गोल्ड के समान चमकते हुए अपने वास्तविक स्वरूप का मैं अनुभव कर रही हूँ*। मेरा अनादि स्वरूप बहुत ही प्यारा और बहुत ही आकर्षक है। कभी मैं अपने इस मनमोहक अनादि स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा के मन को लुभाने वाले अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए आनन्दविभोर हो रही हूँ।

 

_ ➳  रीयल गोल्ड बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ रही हूँ। *अपने जिस अनादि सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा पहली बार सृष्टि रूपी रंगमंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए आई थी, उस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है*। इस लक्ष्य को सदैव स्मृति में रख, आत्मा को सतोप्रधान बना कर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुंचने के लिये, निरन्तर बाबा की याद में रह, अब मैं योग का बल स्वयं में जमा कर रही हूँ।

 

_ ➳  *जैसे ब्रह्मा बाबा ने योगबल द्वारा एकरस कर्मातीत अवस्था बनाकर सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे ऐसे ही फॉलो फादर कर, योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बना कर, एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने और सम्पूर्णता को पाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं बाप समान स्थिति द्वारा समय को समीप लाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं तत त्वम की वरदानी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा एक दो के विचारों को रिगार्ड देती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा स्वयं का रिकार्ड सदा अच्छा बनाती हूँ  ।*

   *मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैं, आपके ही सभी बिरादरी हैं, शाखायें हैं, परिवार है, आप ही भक्तों के इष्ट देव हो। यह नशा है कि हम ही इष्ट देव हैं?* तो भक्त चिल्ला रहे हैं, आप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे इष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे हो, उन्हों को रेसपाण्ड नहीं करते हो? *तो बापदादा कहते हैं हे भक्तों के इष्ट देव अभी पुकार सुनो, रेसपाण्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं। क्या रेसपाण्ड देंगे? परिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ।*

 

✺  *"ड्रिल :- स्वयं को इष्ट देव के स्वरुप में स्थित कर भक्तों की पुकार सुनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एक आँख में सुखधाम, दूसरी आँख में शांतिधाम की स्मृतियों को समाए हुए... सुख और शांति के सागर का आह्वान करती हूँ...* प्यारे बाबा मुझ आत्मा के सामने तुरंत हाजिर हो जाते हैं... मैं आत्मा सुख, शांति के सागर में समाकर... अतीन्द्रिय सुख और शांति का अनुभव कर रही हूँ... प्यारे बापदादा हाथ पकड मुस्कुराते हुए मुझ आत्मा को मंदिर में लेकर जाते हैं...

 

_ ➳  *मंदिर में मुझ आत्मा का ही पूज्य स्वरुप है... जिसके सामने सभी भक्त चिल्ला रहे हैं... पुकार रहे हैं...* मैं आत्मा देख रही हूँ कि दुखी, अशांत आत्माएं... सुख, शांति के लिए... एक बूंद प्यार के लिए तड़प रही हैं... कितनी भाग्यवान आत्मा हूँ मैं... जो मुझे सुख, शांति, प्यार का सागर ही मिल गया है... प्यारे बाबा मुझे स्मृति दिलाते हैं कि ये सब मुझ आत्मा के ही भाई हैं... सब एक ही बिरादरी एक ही परिवार हैं...

 

_ ➳  *बाबा द्वारा स्मृति पाकर मैं आत्मा इष्ट देव के स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ...* ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर मुझ पर तेजस्वी किरणों की बौछारें कर रहे हैं... मैं आत्मा इन किरणों को ग्रहण कर रही हूँ... मुझसे होती हुई ये किरणें सभी भक्तों पर पड़ रही हैं... *मैं आत्मा रहमदिल भावना से तडपती आत्माओं की पुकार सुन... ज्ञान जल की अंचली देकर... उनकी प्यास बुझा रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा के साथ भटकती आत्माओं को सत्य की राह दिखा रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पूर्वज हूँ... इष्ट देव हूँ... विश्व परिवर्तन के कार्य के निमित्त हूँ... मास्टर वरदाता हूँ... बाप समान मास्टर कल्याणकारी हूँ... बापदादा की राईट हैण्ड हूँ...* इस स्मृति से मैं आत्मा सदा विश्व कल्याण के स्टेज पर स्थित रहती हूँ... मैं आत्मा चारों ओर सुख, शांति के वायब्रेशंस फैला रही हूँ... शुभ भावना-शुभ कामना द्वारा सबका कल्याण कर रही हूँ... मैं आत्मा चारों ओर के हलचल के वायुमंडल को शांत कर रही हूँ... *मैं आत्मा बाबा से मिले खजानों को सबको बांटकर... चारों ओर खुशहाली का वायुमंडल बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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