━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 28 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *स्वयं के चिंतन और पढाई में मस्त रहे ?*

 

➢➢ *पूरा विल कर ट्रस्टी बन हलके होकर रहे ?*

 

➢➢ *अपने मूल संस्कारों के परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन किया ?*

 

➢➢ *दिल से प्रतिज्ञा कर जीवन को परिवर्तित करने का पुरुषार्थ किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *योगबल द्वारा मन्सा सेवा करने के लिए अपने मन-वचन-कर्म की पवित्रता से साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तब किसी भी आत्मा की वृत्ति, दृष्टि को परिवर्तन कर सकते हो।* स्थूल में कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, उनको सन्मुख का अनुभव करा सकते हो, इसको ही योगबल कहा जाता है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं कर्मयोगी न्यारा और प्यारा हूँ"*

 

  सदा स्वयं को कर्मयोगी अनुभव करते हो? *कर्मयोगी जीवन अर्थात् हर कार्य करते याद की यात्रा में सदा रहे। यह श्रेष्ठ कार्य श्रेष्ठ बाप के बच्चे ही करते हैं और सदा सफल होते हैं। आप सभी कर्मयोगी आत्मायें हो ना! कर्म में रहते 'न्यारा और प्यारा' सदा इसी अभ्यास से स्वयं को आगे बढ़ाना है।*

 

  स्वयं के साथ-साथ विश्व की जिम्मेवारी सभी के ऊपर है। लेकिन यह सब स्थूल साधन हैं। *कर्मयोगी जीवन द्वारा आगे बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। यही जीवन अति प्रिय जीवन है। सेवा भी और खुशी भी हो। दोनों साथ-साथ, ठीक हैं ना!*

 

  *गोल्डन अर्थात् सतोप्रधान स्थिति में स्थित रहने वाले। तो सदा अपने को इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा आगे बढ़ाते चलो।* सभी ने सेवा अच्छी तरह से की ना! सेवा का चांस भी अभी ही मिलता है फिर यह चांस समाप्त हो जाता है। तो सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति में रहने का अभ्यास अभी सहज हो गया है। जब जहाँ अपनी बुद्धि को लगाना चाहे तो लगा सके। इसी अभ्यास को बढाने के लिए अपने घर में अथवा भट्ठी में आते हो। तो यहाँ के थोडे समय का अनुभव सदा काल बनाने का प्रयत्न करना है। *जैसे यहाँ भट्ठी वा मधुपन में चलते - फिरते अपने को अव्यक्त फरिश्ता समझते हो वैसे कर्मक्षेत्र वा सर्वीस भूमी पर भी यह अभ्यास अपने साथ ही रखना है।*

  

✧    *एक बार का किया हुआ अनुभव कहाँ भी याद कर सकते हैं।* तो यहाँ का अनुभव वहाँ भी याद रखने से वा यहाँ कि स्थिति में वहाँ भी स्थित रहने से बुद्धि को आदत पड जायेगी। जैसे लौकिक जीवन में न चाहते हुए भी आदत अफनी तरफ खींच लेती है, वैसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होने की आदण बन जाने के बाद यह आदत स्वतः ही अपनी तरफ खींचेगी।

 

✧  इतना पुरुषार्थ करते हुए कई ऐसी आत्मायें है जो अब भी यही कहती है कि मेरी आदत है। कमज़ोरी क्यों है, क्रोध क्यों किया, कोमल क्यों बने, कहेंगे मेरी आदत है। ऐसे जवाब अभी देते हैं। *तो ऐसे ही यह स्थिति वा इस अभ्यास की भी आदत बन जाये तो फिर न चाहते हुए भी यह अव्यक्त स्थिति की आदत अपनी तरफ आकर्षित करेगी।* यह आदत आपको अदालत में जाने से बचायेगी। समझा। जब बुरी - बुरी आदतें अपना सकते हो तो क्या यह आदत नहीं डाल सकते हो।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज की सम्पूर्णता को समीप लायेगी। *तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करें कि जैसे पहले अपने पुरूषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है।* अपनी बॉडी-कॉनशेस देह-अभिमान नेचुरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जायेगा। *ऑटोमेटिकली सोल-कॉनशेस होंगे। कार्य में लगना अर्थात् सोल-कॉनशेस होना। बगैर सोल:कॉनशेस के कार्य सफल नही होगा।* तो निरन्तर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वत: ही हो जायेगी।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वापिस घर जाना है, इसलिए इस दुनिया से ममत्व मिटा देना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा बगीचे में बैठ झुला झूलते हुए प्रकृति का आनंद ले रही हूँ... *मेरी नज़र पेड़ पर बैठी बया चिड़िया पर पड़ती है... वो छोटी सी प्यारी सी चिड़िया एक एक तिनके को जोड़कर घोंसला बना रही है... उस घोंसले को देख मुझे भी अपने नए घर की याद आती है जिसे मेरा प्यारा बाबा बना रहा है...* इस दुःख की दुनिया से निकाल सुख, शांति की नगरी बना रहा है... मैं आत्मा उस स्वर्ग के सपने को यादों में लिए उड़ चलती हूँ मीठे वतन, मीठे बाबा के पास...

 

  *प्यारे बाबा मुझे दिव्य देवताई गुणों से सजाकर हथेली पर स्वर्ग की सौगात देकर कहते हैं:-* मेरे लाडले बच्चे... *आप फूल से बच्चों के लिए पिता खूबसूरत परिस्तान बना रहा... सारे सुखो की जन्नत बच्चों के लिए बसा रहा... यह पुरानी दुनिया का अंत करीब है...* सुखो में मुस्कराने का मीठा समय नजदीक है... इसलिए हर साँस हर संकल्प हर कर्म में पवित्रता को अपनाओ...

 

_ ➳  *नए घर स्वर्ग में जाने स्वयं को निज गुण, शक्तियों के श्रृंगार से सुन्दर बनाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा नई सी दुनिया में चलने को आतुर हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता को अपनाकर सज रही हूँ... *नए सुख बाँहो में भरने को नई दुनिया में जाने के महा पुरुषार्थ में जुट गयी हूँ...”*

 

  *पवित्र किरणों से मुझे परी समान सजाकर खुशियों के गगन में उड़ाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... *आप सुंदर देवता बन सुंदर दुनिया में चलोगे असीम खुशियां और आनन्द से खिलोगे... इस दुनिया का बदलाव समीप है...* पर नई दुनिया की पवित्रता पहली शर्त है... इसलिए पवित्रता को अपनाकर अनोखी दिव्यता से नई दुनिया के हकदार बनो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वर्ग की यादों में झूमती, नाचती, पवित्र किरणों में खिलखिलाती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा पवित्र बन कितनी खूबसूरत होती जा रही हूँ... *मीठा बाबा मेरे लिए प्यारी सी दुनिया बनाने धरा पर उतर आया है... मै इस विनाशी दुनिया के विकारी जीवन को छोड़ चमकीली पवित्र होती जा रही हूँ...”*

 

  *खुशियों के बगीचे की रूहानी फूल बनाकर पवित्रता की खुशबू से महकाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *इस विनाशी दुनिया से ममत्व निकाल नई दुनिया सुखो के संसार को याद करो...* पवित्र बन कर अनन्त खुशियो में मुस्कराओ... और शानदार सुखो की दुनिया के मालिक बन सदा के आनन्दित हो जाओ...

 

_ ➳  *इस पुरानी दुनिया से प्रीत निकाल सुखधाम को यादों में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा इस विनाशी देह और दुनिया से मुक्त होती जा रही हूँ... *पवित्रता को दामन में सजाये स्वर्ग के लिए दिव्य प्रकाश से भरती जा रही हूँ... प्यारा बाबा मुझे सुखधाम में ले जाने आ गया है...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पूरा विल कर ट्रस्टी बन हल्का रहना है*"

 

_ ➳  अपने सभी बोझ बाबा को देकर, लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा का आह्वान कर, बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के बाद, मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद में जैसे ही बैठती हूँ* मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए, अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।

 

_ ➳  हर बोझ से मुक्त, हर गम से अनजान सुंदर, सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। *अपनी पलको को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है*। संगमयुग पर परमात्म गोद मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है, तो *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे बोझ ले कर, अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा है*।

 

_ ➳  स्वयं से बातें करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती, अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर, विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *देह से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है*। ऐसे ही आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।

 

_ ➳  आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ*।

 

_ ➳  गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ*। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर करते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करवाती है। *ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते, हर पल, हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अपने मूल संस्कारो में परिवर्तित होने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं  विश्व परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं उदाहरण स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *अब प्रयत्न का समय बीत गया, इसलिए मैं आत्मा दिल से प्रतिज्ञा करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा जीवन का परिवर्तन करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  इसी रीति - धर्म सत्ता अर्थात् हर धारणा की शक्ति स्वयं में अनुभव करने वाली आत्मा। जैसे पवित्रता के धारणा की शक्ति अनुभव करने वाली। *पवित्रता की शक्ति से सदा परमपूज्य बन जाते। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन कर लेते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। पवित्रता की शक्ति आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता की शक्ति नेत्रहीन को तीसरा नेत्र दे देती है।* पवित्रता की शक्ति से इस सारे सृष्टि रूपी मकान को गिरने से थमा सकते हैं। पवित्रता पिलर्स हैं - जिसके आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। पवित्रता लाइट का क्राउन है। ऐसे पवित्रता की धारणा - यह है धर्म सत्ता'। इसी प्रकार हर गुण की धारणा, हर गुण की विशेषता आत्मा में समाई हुई हो। इसको कहा जाता है धर्म सत्ता'। *धर्म सत्ता अर्थात् धारणा की सत्ता। ऐसी धर्म सत्ता वाली आत्मायें बने हो?*

 

✺  *"ड्रिल :- पवित्रता की शक्ति का अनुभव करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी सिंहासन पर विराजमान होकर परमात्मा को आकाश सिंहासन छोड़कर नीचे आने का आग्रह करती हूँ...* आकाश से एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज नीचे उतर रहा है... सूक्ष्मलोक में ब्रह्मा के तन का आधार लेकर परमप्रिय परमपिता परमात्मा मेरे सामने आकर खड़े हो जाते हैं... बापदादा मेरा हाथ पकड एक मैदान में लेकर जाते हैं...

 

_ ➳  परमपिता परमात्मा नई सृष्टि की स्थापना हेतु रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं... *प्यारे शिवबाबा रूहानी पंडा बन बेहद का यज्ञ कुंड रचते हैं...* बाबा मुझ आत्मा को मनमनाभव का मन्त्र देकर अपने सामने बिठाते हैं... *बाबा की दृष्टि से, मस्तक से ज्ञान-योग की ज्वाला प्रज्वलित हो रही है...* मैं आत्मा बाबा से निकलती ज्ञान-योग की पवित्र किरणों को ग्रहण कर रही हूँ...

 

_ ➳  बेहद के यज्ञ कुंड की पवित्र अग्नि में मैं आत्मा अपना सबकुछ स्वाहा कर रही हूँ... *योग अग्नि से निकलती पवित्र ज्वाला रूपी किरणों में मुझ आत्मा की अनेक जन्मों की अपवित्रता भस्म हो रही है...* मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के विकर्म स्वाहा हो रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार बीज सहित दग्ध हो रहे हैं...

 

_ ➳  *अनेक जन्मों से विकारों की अग्नि में जलती हुई मैं आत्मा योग अग्नि में जलकर शीतल, शांत स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति को धारण करते ही मैं आत्मा त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... पवित्रता की शक्ति से मैं आत्मा पवित्रता का फरिश्ता बन रही हूँ... प्यारे बापदादा मुझ फरिश्ते को अपने साथ सूक्ष्म वतन में ले जाते हैं...

 

_ ➳  *सूक्ष्म वतन में मम्मा, दीदी, दादियाँ, सभी एडवांस पार्टी की आत्माएं मेरा वेलकम कर रही हैं...* मेरे चारों ओर दिव्य फरिश्ते खड़े हैं... सभी अपनी पवित्रता की शक्ति से मुझे भर रहे हैं... *सभी मुझ फरिश्ते को बीच में बिठाकर पवित्रता का ताज पहनाते हैं... चमकीले हीरों की पुष्प वर्षा कर रहे हैं...* मुझ फरिश्ते का ड्रेस जगमगा रहा है... और भी ज्यादा चमक रहा है...

 

_ ➳  *बापदादा और सभी आधारमूर्त आत्माओं से भर भरके वरदान, ब्लेस्सिंग्स लेकर मैं फरिश्ता नीचे साकार लोक में आती हूँ...* मैं आत्मा पवित्रता की शक्तियों को चारों ओर फैलाकर वायुमंडल को पवित्र बना रही हूँ... तमोप्रधान प्रकृति को शुद्ध, सतोप्रधान बना रही हूँ... *मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति का स्वयं में अनुभव कर... सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को अपने पवित्र स्वरुप का अनुभव करा रही हूँ...*

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━