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❍ 25 / 04 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *महीन बुधी से ड्रामा के राज़ को समझा ?*
➢➢ *कर्म करते समय बाप की याद में रहने का अभ्यास किया ?*
➢➢ *आपस में स्नेह की लेन देन द्वारा सर्व को सहयोगी बनाया ?*
➢➢ *एक सेकंड में व्यर्थ संकल्पों पर फुल स्टॉप लगाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योगबल वाली शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियां सदा प्राप्त होती हैं-एक परखने की और दूसरी निर्णय करने की।* यही दो विशेष शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं को हल करने का सहज साधन है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्वखजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सर्व खजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं वह जानते हो? गिनती कर सकते हो। अविनाशी हैं और अनगिनत हैं। *तो एक एक खजाने को स्मृति में लाओ। खजाने को स्मृति में लाने से खुशी होगी। जितना खजानों की स्मृति में रहेंगे उतना समर्थ बनते जायेंगे और जहाँ समर्थ हैं वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, व्यर्थ बोल सब बदल जाता है।* ऐसा अनुभव करते हो? परिवर्तन हो गया ना।
〰✧ *नई जीवन में आ गये। नई जीवन, नया उमंग, नया उत्साह हर घड़ी नई, हर समय नया। तो हर संकल्प में नया उमंग, नया उत्साह रहे। कल क्या थे आज क्या बन गये!* अभी पुराना संकल्प, पुराना संस्कार रहा तो नहीं है! थोड़ा भी नहीं तो सदा इसी उमंग में आगे बढ़ते चलो।
〰✧ जब सब कुछ पा लिया तो भरपूर हो गये ना। भरपूर चीज कभी हलचल में नहीं आती। *सम्पन्न बनना अर्थात् अचल बनना। तो अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खजाने से भरपूर भण्डार बन गये। जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दुख दूर हो गये।* जो जितना स्वयं खुश रहेंगे उतना दूसरों को खुश खबरी सुनायेंगे। तो खुश रहो और खुशखबरी सुनाते रहो।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ब्राह्मणों का अन्तिम सम्पूर्ण स्वरुप क्यों गाया जाता है, मालूम है? इस स्थिति का वर्णन है 'इच्छा मात्रम अविध्या'। *अब अपने से पूछो 'इच्छा मात्रम अविध्या' ऐसी स्थिति हम ब्राह्मणों की बनी है?* जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयाकार और हाहाकार भी होगी। यह है आप सब का अन्तिम स्वरूप।
〰✧ अपने स्वरूप का साक्षात्कार होता है सदैव अपने सम्पूर्ण और भविष्य स्वरूप ऐसे दिखाई दें जैसे शरीर छोडने वाले को बुद्धी में स्पष्ट रहता है कि अभी - अभी यह छोड नया शरीर धारण करना है। ऐसे सदैव बुद्धि में यही रहे कि अभी - अभी इस स्वरूप को धारण करना है। *जैसे स्थूल चोला बहुत जल्दी धारण कर लेते हो वैसे सम्पूर्ण स्वरूप धारण करो।* बहुत सुन्दर और श्रेष्ठ वस्त्र सामने देखते फिर पुराने वस्त्र को छोड नया धारण करना क्या मुश्किल होता है?
〰✧ ऐसे ही जब अपने श्रेष्ठ सम्पूर्ण स्वरूप वा स्थिति को जानते हो, सामने है तो फिर वह सम्पूर्ण श्रेष्ठ स्वरूप धारण करने में देरी क्यों? *कोई भी अहंकार है तो वह अलंकारहीन बना देता है।* इसलीए निरहंकारी और निराकारी फिर अलंकारी। इस स्थिति में स्थित होना सर्व आत्माओं के कल्याणकारी बनने वाले ही विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ एक देही अभिमानी स्थिति सर्व विकारों को सहज ही शांत कर देती है। यही बुद्धि की कला सर्व कलाओं को अपने में भरपूर कर सकती है व सर्व कला सम्पन्न बना सकती है। अभी-अभी सभी को डैरेक्शन मिले कि एक सेकण्ड में अशरीरी बन जाओ, तो बन सकते हो? सिर्फ एक सेकण्ड स्थित हो सकते हो? जब बहुत कर्म में व्यस्त हो ऐसे समय में डैरेक्शन मिले। *जैसे जब युद्ध प्रारम्भ होता है तो अचानक आर्डर निकलते हैं- अभी-अभी सभी घर छोड बाहर चले जाओ। फिर क्या करना पडता है? जरूर करना पड़े। तो बाप-दादा भी अचानक डायरेक्शन दे कि इस शरीर रूपी घर को छोड़, इस देह अभिमान की स्थित से देही अभिमानी बन जाओ, इस दुनिया से परे अपने स्वीटहोम में चले जाओ, तो कर सकेंगे?* ‘युद्ध स्थल में रुक तो नहीं जावेंगे? युद्ध करते-करते ही समय तो नहीं बिता देंगे कि - जावें न जावें ? जाना ठीक होगा व नहीं? यह ले जावे व छोड़ जावे?' इस सोच में समय गवा देते हैं। *ऐसे ही अशरीरी बनने में अगर युद्ध करने में ही समय लग गया तो अन्तिम पेपर में माक्र्स व डिविजन कौन-सा आवेगा? अगर युद्ध करते-करते रह गये तो क्या फस्ट डिविजन में आवेंगे? ऐसे उपराम, एवररेडी बने हो?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- हर एक को पहले अल्फ का निश्चय कराना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा मंदिर में बजती घंटी की आवाज़ से उन दिनों को स्मृतियों में लाती हूँ... जब मैं भी भगवान् को पाने की चाह में हर मंदिर, तीर्थ स्थानों में भटक रही थी... अल्पकाल की इच्छाओं की पूर्ति के लिए पूजा, जप, तप, उपवास करती थी... *इन कोटों भक्तों में से परमात्मा ने मुझे चुनकर अपना बनाकर मुझे सत्य ज्ञान देकर मेरे भटकन को समाप्त कर दिया...* सदाकाल के लिए मेरी झोली खजानों से भर दिया... *मैं आत्मा प्राप्तियों को याद करते-करते पहुँच जाती हूँ... मधुबन बाबा के कमरे में... बाबा प्यार से निहारते हुए मुझ पर अविनाशी ज्ञान रत्नों की बरसात करते हैं...*
❉ *प्यारे बाबा याद की मीठी मिठाई खिलाकर सबको बाबा का परिचय देकर ये मिठाई बाँटने की समझानी देते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय याद ही खुबसूरत सुखो का सच्चा आधार है... इन मीठी यादो में गहरे खो जाओ... *और दूसरो को भी इन मीठी अनुभूतियों के अहसास में भिगो दो... दुखो में भटके दिलो को... अल्फ और बे का परिचय देकर सच्चे सुखो का रास्ता बताओ...”*
➳ _ ➳ *मोस्ट बिलवेड बाबा को यादों में बसाकर सबकी राहों में सत्यता के फूल बिखेरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सबको सच्चा रास्ता दिखाने वाली नूरानी मणि बन गयी हूँ... *सबको सच्चे पिता से मिलवा कर सदा का मुख मीठा करा रही हूँ...* असीम सुखो के राज को हर दिल में बाँट रही हूँ...”
❉ *स्वदर्शन चक्रधारी बनाकर असीम खुशियों की अनंत ऊँचाइयों में उड़ाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह और देहधारियों की यादो ने किस कदर विकारो से काला कर दिया है... अब ईश्वरीय यादो में सदा के ओजस्वी और खुबसूरत मणि बन जाओ... *मीठे सुखो में मुस्कराने का खुबसूरत भाग्य पाओ और सबको ऐसा ही भाग्यशाली बनाओ...* यही मिठाई खाओ और खिलाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा रूहानी खुशबू बनकर हर दिल के आँगन को सत्य ज्ञान से महकाकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पायी अनन्त खुशियां सारे विश्व में फैला रही हूँ... *हर आँचल को सच्ची यादो से बांध रही हूँ और सतयुगी सुखो का अधिकारी बना रही हूँ... भगवान धरा पर आकर सतयुग का वर्सा बाँट रहा यह खबर विश्व की हवाओ में महका रही हूँ...”*
❉ *मुझे पारसमणि बनाते हुए औरों को भी आप समान बनाने की युक्ति बतलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप समान सबको सुखी बनाओ... दुखो में निस्तेज चेहरों पर सच्चे प्रकाश का ओज भर आओ... *सच्चे वजूद का पता देकर हर दिल को रौशन कर आओ... ईश्वरीय यादो में अनन्त सुखो के अधिकारी बनकर यह सुख सबके दामन में भी सजा आओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सबको अल्फ का एक्यूरेट परिचय देकर अल्लाह के बगीचे का फूल बनाने की सेवा करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा यादो की मिठाई सबको बाँट कर बाप दादा के दिल तख्त पर मणि सी मुस्करा रही हूँ... *अल्फ और बे का परिचय देकर सबके मन को भटकन से छुड़ा रही हूँ... मीठे बाबा आपसे पायी खुशियो की जागीर सबको दिला आप समान अमीर बना रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- महीन बुद्धि से इस ड्रामा के राज को समझना है*"
➳ _ ➳ इस बेहद के सृष्टि ड्रामा में पार्ट बजाने वाली मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ जिसने आदि से लेकर अंत तक इस बेहद ड्रामा में कल्प - कल्प हीरो पार्ट बजाया है। *इस बात को स्मृति में लाते ही पूरे 84 जन्मो का पार्ट मेरे सामने एक पिक्चर के रूप स्पष्ट होने लगता है*। सबसे पहले परमधाम में मेरा अनादि सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप जहां से मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में ही अपने घर परमधाम से सृष्टि रूपी रंगमंच पर इस बेहद के ड्रामा में पार्ट बजाने के लिए नई सतोप्रधान सतयुगी दुनिया मे अवतरित हुई।
➳ _ ➳ एक ऐसी दुनिया जो अपरमअपार सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर थी। जहाँ देवतायें निवास करते थे। *ऐसी दैवी दुनिया मे 20 जन्म इतना सुंदर पार्ट बजाने के बाद द्वापर युग मे भी पूज्य आत्मा बन मैने विशेष पार्ट बजाया*। ईष्टदेवी बन अपने भक्तों की हर मनोकामना को मैने पूर्ण किया। मन्दिरों में स्थापित मेरे जड़ चित्र आज भी भक्तों की हर मनोकामना को पूरा कर रहें हैं। *और अब मेरा यह ब्राह्मण जीवन भी कितना श्रेष्ठ है। स्वयं भगवान मेरी पालना कर रहें हैं। सर्व सम्बन्धो का सुख मुझे दे रहें हैं। "वाह ड्रामा वाह" और "वाह मेरा पार्ट वाह"*।
➳ _ ➳ इस बेहद के खूबसूरत ड्रामा में आदि से अंत तक के अपने विशेष हीरो पार्ट को मन बुद्धि से देखते - देखते अब मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब इस अंतिम जन्म में जबकि सभी हिसाब किताब चुकतू होने है इसलिए इस अंतिम जन्म में अनेक परिस्थितियों और दुखद घटनाओ के रूप में आने वाले कर्मभोग से मुझे घबराना नही है बल्कि *ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है और बाबा की याद से हर कर्मभोग को सहज रूप से हँसते - हँसते चुकतू करना है*। स्वयं से यह प्रतिज्ञा करते - करते मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा मेरी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मुझमे भरने के लिए मुझे अपनी ओर खींच रहें हैं।
➳ _ ➳ अशरीरी बन देह और देह की दुनिया से किनारा कर, ज्ञान और योग के पंख लगा कर मैं आत्मा अब अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के पास उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *कुछ क्षणों की सुंदर, लुभावनी रूहानी यात्रा करके मैं पहुंच जाती हूँ उस अद्भुत दुनिया परमधाम में अपने प्यारे मीठे बाबा के पास*। संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर शांति के सागर बाप के सामने मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने बाबा को निहार रही हूँ।
➳ _ ➳ धीरे - धीरे अब मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बाबा की ओर बढ़ रही हूँ। उनके समीप पहुंच कर मैं जैसे ही उन्हें टच करती हूँ शक्तियों का झरना फुल फोर्स के साथ बाबा से निकल कर अब मुझ आत्मा में समाने लगता है। *मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। मास्टर बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमात्मा बाप के साथ यह मंगलमयी मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है*। परमात्म लाइट मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है। मैं स्वयं में परमात्म शक्तियों की गहन अनुभूति कर रही हूँ।
➳ _ ➳ शक्ति स्वरुप बनकर अब मैं परम धाम से नीचे आ रही हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि "मैं विशेष हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ"। मुझे केवल अपने पार्ट को देखना है। दूसरों के पार्ट को देख कर प्रश्नचित नही बनना। *बुद्धि में इस बात को अच्छी रीति धारण कर अब मैं ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहकर इस बेहद ड्रामा में अपना ऐक्यूरेट पार्ट बजा रही हूँ*। ड्रामा में हर आत्मा के पार्ट को साक्षी हो कर देखते हुए और जीवन मे आने वाली हर परिस्थिति को खेल समझते हुए क्या,क्यो, और कैसे की क्यू से मुक्त होकर सेकण्ड में फुल स्टाप लगा कर एकरस स्थिति में स्थित रहने का पुरुषार्थ अब मैं सहज रीति कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं आपस में स्नेह की लेंन -देंन करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व को सहयोगी बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सफलता मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा एक सेकंड में व्यर्थ संकल्पों पर फुलस्टॉप लगा लेती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा तीव्र पुरुषार्थी हूँ ।*
✺ *मैं समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ राज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी, अथार्टी स्वरूप। राज्य सत्ता वाली आत्मा अपने अधिकार द्वारा जब चाहे, जैसे चाहे वैसे अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को चला सकती है। यह अथार्टी राज्य सत्ता की निशानी है। दूसरी निशानी - राज्य सत्ता वाले हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकते हैं। राज्य सत्ता अर्थात् मात-पिता के स्वरूप में अपनी प्रजा की पालना करने की शक्ति वाला। *राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं भी सदा सर्व में सम्पन्न और औरों को भी सम्पन्नता में रखने वाले। राज्य सत्ता अर्थात् विशेष सर्व प्राप्तियाँ होंगी-सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों के खजानों से भरपूर। स्वयं भी और सर्व भी खजानों से भरपूर। राज्य सत्ता वाले अर्थात् अधिकारी आत्मायें बने हो?*
✺ *"ड्रिल :- राज्य सत्ता अधिकारी अर्थात् अथार्टी स्वरूप बनकर रहना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा माया की भूल-भुलैया से आजाद होकर बगीचे में विचरण करती हुई विचार करती हूँ...* कि कैसे मैं आत्मा माया का दास बनकर उदास होती गई... सृष्टि का चक्कर लगाते-लगाते माया के कुचक्र में फंसती चली गई... कैसे प्यारे बाबा ने आकर गम की अधीनता को खत्म कर संगम के सर्व सुखों का अधिकारी बना दिया... *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों, शक्तियों के खजानों से भरपूर कर दिया...* मेरा जीवन ही बदल दिया...
➳ _ ➳ *विचार करते-करते मैं आत्मा चेक करती हूँ कि क्या मैं आत्मा बाबा की दी हुई शक्तियों और खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे वैसे चला सकती हूँ...?* अथार्टी स्वरूप बनकर हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकती हूँ...? माया के अधीन बन कर्मेन्द्रियों के वश तो नहीं हो जाती हूँ...? *अभी मुझ आत्मा में राज्य सत्ता अधिकारी के संस्कार धारण होंगे तभी भविष्य में मैं विश्व राज्य-अधिकारी बनूँगी...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बापदादा का प्यार से आह्वान करती हूँ... सर्वशक्तिवान की किरणों से मैं आत्मा अपने अन्दर के सभी कमी-कमजोरियों, पुराने-स्वभाव संस्कारों को अंश सहित खत्म कर रही हूँ... मैं आत्मा आर्डर देकर कर्मेन्द्रियों को अपने अधीन कर रही हूँ... *दिव्य गुणों को धारण कर मन, बुद्धि, संस्कारों पर अथॉरिटी चला रही हूँ... और अपने राज्य सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी की सीट पर सदा सेट रहती हूँ...* अथॉरिटी स्वरूप बनकर माया के हर विघ्नों को समाप्त कर रही हूँ... माया के प्रभाव से परे हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा अधीनता के संस्कारों को खत्म कर अधिकारी बन रही हूँ...* सर्व खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे स्व के लिए और सर्व के लिए यूज करती हूँ... *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी बन स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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