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❍ 12 / 04 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पवित्रता की धारणा पर अटेंशन रहा ?*
➢➢ *मधुरता द्वारा कडुई धरनी को मधुर बनाया ?*
➢➢ *सर्व प्रकार की कामनाओं को समाप्त किया ?*
➢➢ *ज़रा भी संकल्प मात्र अभिमान व अपमान की भावना तो नहीं रही ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *इस अभ्यास को शक्तिशाली बनाने के लिये पहले अपने पर प्रयोग करके देखो। हर मास वा हर 15 दिन के लिये कोई न कोई विशेष गुण वा कोई न कोई विशेष शक्ति का स्व प्रति प्रयोग करके देखो* क्योंकि संगठन में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में पेपर तो आते ही हैं तो पहले अपने ऊपर प्रयोग करके चेक करो, कोई भी पेपर आया तो किस गुण वा शक्ति का प्रयोग करने से कितने समय में सफलता मिली? *जब स्व के प्रति सफलता अनुभव करेंगे तो आपके दिल में औरों के प्रति प्रयोग करने का उमंग-उत्साह स्वत: ही बढ़ता जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा के नयनों समाई हुई आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा बाप के नयनों में समाई हुई आत्मा स्वयं को अनुभव करते हो? नयनों में कौन समाता है? जो बहुत हल्का बिन्दु है। तो सदा हैं ही बिन्दु और बिन्दु बन बाप के नयनों में समाने वाले। *बापदादा आपके नयनों में समाये हुए हैं और आप सब बापदादा के नयनों में समाये हुए हो।*
〰✧ जब नयनों में है ही बापदादा तो और कुछ दिखाई नहीं देगा। *तो सदा इस स्मृति से डबल लाइट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दु। बिन्दु में कोई बोझ नहीं। यह स्मृति स्वरूप सदा आगे बढ़ाता रहेगा। आँखों में बीच में देखो तो बिन्दू ही है। बिन्दु ही देखता है। बिन्दू न हो तो आँख होते भी देख नहीं सकते।*
〰✧ तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो। बापदादा बच्चों के वर्तमान और भविष्य के भाग्य को देख हर्षित हैं, वर्तमान कलम है भविष्य के तकदीर बनाने की। *वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का साधन है - बड़ों के ईशारों को सदा स्वीकार करते हुए स्वयं को परिवर्तन कर लेना। इसी विशेष गुण से वर्तमान और भविष्य तकदीर श्रेष्ठ बन जाती है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *बापदादा एक सेकण्ड में अव्यक्त से व्यक्त में आ गया वैसे ही बच्चे भी एक सेकण्ड में व्यक्त से अव्यक्त हो सकते हैं?* जैसे जब चाहे तब मुख से बोलो, जब चाहे तब मुख से बन्द कर दें। ऐसा होता है ना। वैसे ही बुद्धी को भी जब चाहें तब चलायें, जब न चाहे तब न चलो। ऐसा अभ्यास अपना समझते हो?
〰✧ मुख का आरगन्स कुछ मोटा है, बुद्धि मुख से सूक्ष्म है। *लेकिन मुख के माफिक बुद्धी को जब चाहो तब चलाओ, जब चाहो तब न चलाओ*। ऐसा अभ्यास है? यह ड्रिल जानते हो? अगर इस बात का अभ्यास मजबूत होगा तो अपनी स्थिती भी मज़बूत बना सकेंगे। यह है अपनी स्थिती की वृद्धी की विधी।
〰✧ कई बच्चों का संकल्प है वृद्धि कैसे हो? *वृद्धि विधी से होती है। अगर विधी नहीं जानते हो तो वृद्धि भी नहीं होगी*। आज बापदादा हरेक की वृद्धि और विधी दोनों देख रहे हैं। अब बताओ क्या दृश्य देखा होगा? हरेक अपने आपसे पूछे और देखे कि वृद्धि हो रही हैं? मैजोरिटी अपनी वृद्वि से सन्तुष्ट हैं।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सभी अव्यक्त रूप में स्थित हो ? यह तो जानते हो - अव्यक्त मिलन अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने के अनुभवीमूर्त कहाँ तक बने हैं? *अव्यक्ति स्थिति में रहने वालों का सदा हर संकल्प, हर कार्य अलौकिक होता है। ऐसा अव्यक्ति भाव में, व्यक्ति देश और कर्तव्य में रहते हुए भी कमल पुष्प के समान न्यारा और एक बाप का सदा प्यारा रहता है। ऐसे अलौकिक अव्यक्ति स्थिति में सदा रहने वाले को कहा जाता है अल्लाह लोग।* टाइटिल तो और भी है। ऐसे को ही प्रीत बुद्धि कहा जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्व हद की कामनाओं से परे कामजीत बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा हद की दुनिया, वस्तु, वैभव, हद के संबंधों से न्यारी होती हुई बेहद बाबा के पास बेहद की दुनिया में पहुँच जाती हूँ... वतन में बेहद बाबा के सम्मुख बैठ उनको निहारती हुई उनकी आँखों में खो जाती हूँ... मैं आत्मा इस देह की भी सुध-बुध खो बैठी हूँ...* कई जन्मों से मैं आत्मा इस देह, देह के सम्बन्धी, देह के पदार्थों के वश होकर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे विकारों को अपना संस्कार बना ली थी... और अपने निज स्वरुप और निज गुणों को भूल गई थी... मैं आत्मा बेहद की सन्यासी बनने वतन में आकारी शरीर धारण कर आकारी बाबा की शिक्षाओं को धारण कर रही हूँ...
❉ *नई दुनिया का निर्माण करते हुए इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बनाने प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *इस पुरानी दुखदायी विकारी दुनिया से दिल जो लगाओगे तो उन्ही दुखो में अपना दामन उलझाओगे... तो अब समझदार बन अपना भला करो...* अपनी कमाई अपने फायदे के बारे में निरन्तर सोचो... और दिल उस मीठी सुखदायी दुनिया से लगाओ जो पिता से तोहफा मिल रहा...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पुरानी दुनिया से सन्यास लेकर निज स्वरुप में चमकते हुए, गुणों की खुशबू से महकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा अब नये घर नयी दुनिया के सपनो में खोयी हूँ यह दुखदायी दुनिया मेरे काम की नही है...* मै आत्मा बाबा के बसाये सुखभरे स्वर्ग को यादो में बसाकर मुस्कराती ही जा रही हूँ...”
❉ *दुखों का साया मिटाकर स्वर्ग के नजारों को दिखाते हुए मेरे प्रीतम प्यारे मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... इस दुःख धाम से अब बेहद के वैरागी बनो... *इस दुनिया में अब ऐसा कुछ नही है जिससे दिल लगाया जाय... अब तो ईश्वर पिता सम्मुख है... उससे उसकी सारी सम्पत्ति खजानो को बाँहों में भरने का खबसूरत समय है...* तो यादो में डूबकर ईश्वर पिता को पूरा लूट लो...”
➳ _ ➳ *सुखों के दीप जलाकर सद्गुणों का श्रृंगार कर दिव्य जीवन बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा...*मै आत्मा मीठे बाबा की सारी सम्पत्ति की हकदार बन रही हूँ... सिर्फ यादो मात्र से सच्चे स्वर्ग को घर रूप में पाने वाली महान भाग्यशाली बन रही हूँ...* और इस पतित दुनिया को सदा का भूल गई हूँ... और नयी दुनिया में खो गयी हूँ...”
❉ *अंतर्मन की प्यास बुझाकर जीवन को ज्योतिर्मय बनाते हुए मेरे ज्योतिर्बिन्दु बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *कितने महान भाग्यशाली हो ईश्वर स्वयं धरती पर उतर आया है और पत्थरो की दुनिया से निकाल कर सोने की दुनिया स्वर्ग में स्थापित कर रहा है...* इस महान भाग्य के नशे से रोम रोम को भिगो दो... और इस पुरानी दुनिया से उपराम होकर ईश्वरीय सौगात के स्वर्ग में विचरण करो...”
➳ _ ➳ *प्यारे बागबान बाबा के गुलदस्ते में सजकर मन उपवन में मयूरी बन नाचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मीठे बाबा को पाकर निहाल हूँ अपने अदभुत से भाग्य पर चकित सी हूँ... *इस दुनिया में खपकर एक कण सच्चा प्यार न मिला और बाबा की यादो भर में सुखो का स्वर्ग घर रूप में मिला...* तो क्यों न इस सच्चे रिश्ते में भीगूँ और रोम रोम से मीठे बाबा को याद करूँ...”
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पवित्रता की धारणा जरूर करनी है*"
➳ _ ➳ सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता परमपिता परमात्मा शिव बाबा के फरमान पर चल जैसे *मम्मा, बाबा ने मनसा,वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में धारण कर, अपने पवित्र योगी जीवन द्वारा, परमात्म कर्तव्य में मददगार बन, भगवान के दिल रूपी तख्त पर राज किया ऐसे अपने भगवान बाप के दिलतख्त पर सदा विराजमान रहने और मम्मा बाबा के गद्दी नशीन बनने के लिए मुझे भी अपने इस अंतिम जीवन में पवित्रता की धारणा जरूर करनी है* और ब्रह्माचारी बन ब्रह्मा बाप के आचरण को फॉलो करते हुए, परमात्म कर्तव्य में सहयोगी अवश्य बनना है। यही दृढ़ प्रतिज्ञा स्वयं से करके, अपने प्यारे शिव पिता को याद करते हुए, मम्मा, बाबा के सम्पूर्ण स्वरूप को मैं जैसे ही स्मृति में लाती हूँ, पवित्रता के तेज से चमक रहा उनका ओजस्वी चेहरा आँखों के सामने उभर आता है।
➳ _ ➳ मन बुद्धि के विमान पर बैठ मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के पास उनकी कुटिया में। *उनके ट्रांसलाइट के चित्र के सामने बैठ उनकी मनमोहिनी सूरत को निहारते हुए मैं अनुभव करती हूँ जैसे ब्रह्मा बाबा और ममता की मूर्त मम्मा साक्षात मेरे सामने आकर बैठ गए है*। एक अलौकिक दिव्य आभा से दमकते उन दोनों के चेहरे पवित्रता की अद्भुत शक्ति से चमक रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे प्यूरिटी की रॉयल्टी से चमक रहे उनके नैन अपने अन्दर अथाह प्रेम को समाकर केवल मुझे निहार रहें हैं और अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं। *उनके नयनों में अपने लिए समाये असीम स्नेह को देख मैं आनन्द विभोर हो रही हूँ*।
➳ _ ➳ पवित्रता को अपने जीवन में धारण कर, उनके समान बनने का संकल्प करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मम्मा बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख मुझे "पवित्र भव" का वरदान देते हुए अपनी पवित्र दृष्टि से पवित्रता की शक्ति मेरे अंदर भर रहें हैं। *मम्मा बाबा से आ रही पवित्रता की शक्ति को स्वयं में धारण करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे मैं पवित्रता का फरिश्ता बन रही हूँ और मेरे अंग -अंग से पवित्रता की श्वेत किरणें निकल कर चारों ओर फैल रही है*। पवित्रता का एक शक्तिशाली आभामंडल मेरे आस - पास निर्मित हो गया है जो दैहिक दुनिया के हर आकर्षण से मुझे मुक्त कर रहा है।
➳ _ ➳ जैसे - जैसे देह की दुनिया का आकर्षण समाप्त हो रहा है वैसे - वैसे मैं फ़रिश्ता अपनी पवित्रता की श्वेत रश्मियाँ फैलाता हुआ ऊपर की ओर उड़ने लगा हूँ। *सारे विश्व में भ्रमण करता, दुनिया के खूबसूरत नज़ारो को देखता मैं फ़रिश्ता ऊपर आकाश को पार कर उससे भी ऊपर उड़ते हुए अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के पास उनके अव्यक्त वतन में प्रवेश करता हूँ*। देख रहा हूँ अपने सामने सम्पूर्ण अव्यक्त ब्रह्मा बाबा और मम्मा को जिनकी पवित्रता का प्रकाश पूरे वतन में फैला हुआ है। *पवित्रता की अनन्त शक्तिशाली किरणे दोनों के सम्पूर्ण स्वरूप से निकल कर मुझ फरिश्ते तक पहुँच रही है*।
➳ _ ➳ मम्मा बाबा से मिल रही पवित्रता की शक्ति, मुझे अपने जीवन में सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करने का जैसे बल प्रदान कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपनी बाहों को फैलाये मुझे अपने पास बुला रहें हैं। *उनके समीप पहुँच कर, उनकी बाहों में समाकर, उनसे असीम स्नेह और प्यार पाकर, अब मैं फ़रिश्ता उनके सामने बैठ उनके वरदानी हस्तों से मिल रही पवित्रता की लाइट से स्वयं को शक्तिशाली बनाते हुए पवित्रता की शक्ति अपने अन्दर भरकर, वापिस साकार लोक की ओर लौट रहा हूँ*। अपने पवित्र लाइट माइट सूक्ष्म स्वरूप के साथ अपने साकार तन में प्रवेश कर, अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अपने इस ईश्वरीय जीवन को सम्पूर्ण पवित्र योगी जीवन बनाने की ही तपस्या कर रही हूँ।
➳ _ ➳ *मात पिता के गद्दी नशीन बनने के लिए, पवित्रता को अपने जीवन मे धारण कर, कदम - कदम पर फॉलो मदर फादर करते हुए, उनके समान बनने का पुरुषार्थ अब मैं पूरी लगन के साथ कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सहनशील आत्मा हूँ।*
✺ *मैं अविनाशी और मधुर फल प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व की स्नेही आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा जो बीत चुका उसको सदा भूल जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा बीती बातों से सदैव शिक्षा लेकर आगे बढ़ जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा सावधान रहती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा की तपस्या का फल आप बच्चों को मिल रहा है। तपस्या का प्रभाव इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है। साथ में बच्चे भी हैं, बच्चों की भी तपस्या है लेकिन निमित्त तो ब्रह्मा बाप कहेंगे। *जो भी मधुबन तपस्वी भूमि में आते हैं तो ब्राह्मण बच्चे भी अनुभव करते हैं कि यहाँ का वायुमण्डल, यहाँ के वायब्रेशन सहजयोगी बना देते हैं। योग लगाने की मेहनत नहीं, सहज लग जाता है और कैसी भी आत्मायें आती हैं, वह कुछ न कुछ अनुभव करके ही जाती हैं। ज्ञान को नहीं भी समझते लेकिन अलौकिक प्यार और शान्ति का अनुभव करके ही जाते हैं।* कुछ न कुछ परिवर्तन करने का संकल्प करके ही जाते हैं। यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव।
✺ *"ड्रिल :- मधुबन तपोभूमि की स्मृति से अलौकिक प्यार और शांति का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा घर की छत पर बैठकर... चाँद सितारों को निहारती हुई... प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत मुझ आत्मा के सामने आ जाते हैं... मैं आत्मा बाबा से मधुबन की सैर कराने का आग्रह करती हूँ... प्यारे बाबा अपने साथ मुझ आत्मा को *बादलों के विमान में बिठाकर मधुबन लेकर जाते हैं...*
➳ _ ➳ *यहाँ की ठंडी-ठंडी हवाएं सुन्दर प्रकृति ऐसा लग रहा... मानों हमारा स्वागत कर रही हों...* मैं आत्मा बाबा का हाथ पकड मधुबन की सुन्दरता को निहार रही हूँ... बाबा मुझ आत्मा को चार धामों की यात्रा करा रहे हैं... *बाबा का कमरा, बाबा की कुटिया, हिस्ट्री हॉल, शांति स्तम्भ में... कदम रखते ही मुझ आत्मा में रूहानियत की अनुभूति हो रही है...*
➳ _ ➳ *बाबा मुझ आत्मा के सामने साकार ब्रह्मा बाबा के... त्याग और तपस्यामय जीवन के दृश्यों को इमर्ज कर रहे हैं...* ब्रह्मा बाबा ने शिव बाबा के यज्ञ में अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था... *ब्रह्मा बाबा ज्ञान, पवित्रता एवं योग के साक्षात चैतन्य मूर्त थे...* निरंतर त्याग वृत्ति, और तपस्या मूर्त बनकर हर सेकेण्ड, हर संकल्प द्वारा विश्व कल्याण करते गए...
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाबा का पारसमणि समान व्यक्तित्व लोहे को सोना बना देता था... ब्रह्मा बाबा जागती ज्योत थे... उनके सम्पर्क में आने से बुझे दीपक जग उठते थे... उनके निर्मल जीवन, दिव्यगुण सम्पन्न आचरण, मधुरता, सेवा-भाव से... भटकते हुए को जीवन पथ मिल जाता था... *ब्रह्मा बाबा ने साकार में मधुबन में रात-दिन अटल साधना... कठिन तपस्या कर... मधुबन को पावरफुल तपोभूमि के रूप में परिवर्तित कर दिया...*
➳ _ ➳ *बाबा की तपस्या का प्रभाव आज भी इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है...* इन दृश्यों को देखकर मैं आत्मा बाप के स्नेह में समा रही हूँ... ब्रह्मा बाबा की तपस्या के फल के प्रभाव से मैं आत्मा... प्रेम, सुख, आनंद, पवित्रता की अनुभूति कर रही हूँ... *मैं आत्मा बाप समान तपस्वीमूर्त बनने का दृढ़ संकल्प करती हूँ...*
➳ _ ➳ यहाँ का वायुमण्डल, यहाँ के वायब्रेशन मुझ आत्मा को सहजयोगी बना रहे हैं... *बिना मेहनत के बाप के मुहब्बत में समाकर... बाप समान स्वतः निरंतर योगी बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा इस वरदानी भूमि की स्मृति में रहकर वरदानी मूर्त बन रही हूँ... *अब मैं आत्मा मधुबन तपोभूमि की स्मृति से ही अलोकिक प्यार और शांति का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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