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 01 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने मियाँ मिठू तो नहीं बने ?*

 

➢➢ *स्वदर्शन चक्रधारी बने और बनाया ?*

 

➢➢ *स्वीट साइलेंस की लवलीन स्थिति द्वारा नष्टोमोहा समर्थ स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *होलीहंस बन अवगुण रुपी कंकड़ छोड़ अच्छाई रुपी मोती चुगते चले ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ, योग का प्रयोग करो तो एक बाप का सहारा और माया के अनेक प्रकार के विघ्नों का किनारा अनुभव करेंगे। *अभी ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराते हो इसलिए अल्पकाल की रिफ्रेशमेंट अनुभव करते हो। लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव कर रत्न प्राप्त करेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं विघ्न-विनाशक अचल-अड़ोल आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को अचल अडोल आत्मायें अनुभव करते हो? किसी भी प्रकार की हलचल अचल अडोल स्थिति में विघ्न नहीं डाले। ऐसी विघ्न-विनाशक अचल अडोल आत्मायें बने हो। विघ्न-विनाशक आत्मायें हर विघ्न को ऐसे पार करती जैसे विघ्न नहीं - एक खेल है। तो खेल करने में सदा मजा आता है ना। कोई परिस्थिति को पार करना और खेल करना अन्तर होगा ना। *अगर विघ्न-विनाशक आत्मायें हैं तो परिस्थिति खेल अनुभव होती है। पहाड़ राई के समान अनुभव होता है। ऐसे विघ्न-विनाशक हो, घबराने वाले तो नहीं।*

 

  नालेजफुल आत्मायें पहले से ही जानती हैं कि यह सब तो आना ही है, होना ही है। जब पहले से पता होता है तो कोई बात-बड़ी बात नहीं लगती। अचानक कुछ होता है तो छोटी बात भी बडी लगती। पहले से पता होता तो बडी बात भी छोटी लगती। *आप सब नालेजफुल हो ना। वैसे तो नालेजफुल हो लेकिन जब परिस्थितियों का समय होता है उस समय नालेजफुल की स्थिति भूले नहीं, अनेक बार किया हुआ अब सिर्फ रिपीट कर रहे हो। जब नथिंग न्यु है तो सब सहज है।*

 

  आप सब किले की पक्की ईटें हो। एक-एक ईट का बहुत महत्व है। एक भी ईट हिलती तो सारी दिवार को हिला देती। *तो आप ईट अचल हो, कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन हिलाने वाला हिल जाए आप न हिलें।  ऐसी अचल आत्माओंको, विघ्न विनाशक आत्माओंको बापदादा रोज मुबारक देते हैं।* ऐसे बच्चे ही बाप की मुबारक के अधिकारी हैं। ऐसे अचल अडोल बच्चों को बाप और सारा परिवार देखकर हर्षित होता है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अपरोक्ष रीति से वतन का अनुभव बताया। अपरोक्ष रूप से कितना समय वतन में साथ रहते हो? जैसे इस वक्त जिसके साथ स्नेह होता है, वह कहां विदेश में भी है तो उनका मन ज्यादा उस तरफ रहता है। जिस देश में वह होता है उस देश का वासी अपने को समझते हैं। *वैसे ही तुमको अब सूक्ष्मवतनवासी बनना है*।

  

✧  सूक्ष्मवतन को स्थूलवतन में इमर्ज करते हो वा खुद को सूक्ष्मवतन में साथ समझते हो? क्या अनुभव है? *सूक्ष्मवतनवासी बाप को यहाँ इमर्ज करते हो वा अपने को भी सूक्ष्मवतनवासी बनाकर साथ रहते हो*? बापदादा तो यही समझते हैं कि स्थूलवतन में रहते भी सूक्ष्मवतनवासी बन जाते, यहाँ भी जो बुलाते हो यह भी सूक्ष्मवतन के वातावरण में ही सूक्ष्म से सर्वीस ले सकते हो। अव्यक्त स्थिती में स्थित होकर मदद ले सकते हो। व्यक्त रूप में अव्यक्त मदद मिल सकती है।

     

✧  *अभी ज्यादा समय अपने को फरिश्ते ही समझो*। फरिश्तों की दुनिया में रहने से बहुत ही हल्कापन अनुभव होगा जैसे कि सूक्ष्म वतन को ही स्थूलवतन में बसा दिया है। स्थूल और सूक्ष्म में अन्तर नहीं रहेगा। तब सम्पूर्ण स्थिती में भी अन्तर नहीं रहेगा। यह व्यक्त देश जैसे अव्यक्त देश बन जायेगा। सम्पूर्णता के समीप आ जायेगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *ऐसे समझें अन्त तक पहले पाठ के अभ्यासी रहेंगे?* अन्त तक अभ्यासी हो रहेंगे व स्वरूप भी बनेंगे? *अन्त के कितना समय पहले ये अभ्यास समाप्त होगा और स्वरूप बन जायेंगे? जब तक शरीर छोड़ेंगे तब तक अभ्यासी रहेंगे?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सुख और दुःख के खेल को जानना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा पंछी बन उड़ चलती हूँ बाबा की कुटिया में... बाबा के सम्मुख बैठ मन की आँखों से हर पल उनको निहारती हुई स्नेह सागर में खो जाती हूँ... *इस सृष्टि के रचयिता ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा स्वयं आकर आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं...* जिस राज को बड़े-बड़े सन्यासी भी नहीं जानते, वो राज मुझे बताकर प्यारे बाबा मुझे मास्टर जानी जाननहार बना रहे हैं... अमरबाबा ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर तीनो कालो तीनो लोको का ज्ञान दे रहे हैं..."

 

 ❉   *ज्ञान किरणों की छाया में बिठाकर दिव्य गुणों की खुशबू से महकाते हुए प्यारा बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... अमर पिता अपने भूले बच्चों को सब कुछ याद दिलाने आया है... ज्ञान के दिव्य चक्षु से सारे राज बताने आया है... *खुद के सत्य को भूले बच्चे आज समझदार हो गए है... खुद को तो क्या तीनो कालो और तीनो लोको को जान मा ज्ञान सागर बन गए है...”*

 

_ ➳  *एक नज़र की प्यासी थी, अब बाबा की नजरों में समाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *कितना भटकी थी मै आत्मा इस दुखमय संसार के झूठे नातो में... सच्चे सुख की एक बून्द भी मेरे दामन में न थी... आपने अपना हाथ मेरे सर पर रख मुझ आत्मा को ज्ञान परी बना दिया...* मै सब जान गयी हूँ प्यारे बाबा... तीनो कालो तीनो लोको से भी वाकिफ हो गई हूँ...

 

 ❉   *ज्ञान चक्षु खोलकर अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरी झोली भरते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... हद के ज्ञान से सच्चे राजो को जान न सकोगे... बेहद के ज्ञान को अमर पिता के सिवाय तो कोई बता ही न सके... *ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर सदा के रौशन हो गए हो... खुद को जान... सृष्टि के चक्र को भी यादो में भर लिए हो, मा त्रिलोकीनाथ बन गए हो...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा से सबकुछ पाकर खुशियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे सिकीलधे प्यारे बाबा... मै आत्मा घर से जो निकली... खूबसूरत खेल खेलते खेलते दुःख के खेल में उलझ गई... स्थूल नेत्र की दुनिया को ही दिल में समा ली थी... *आपने आकर ज्ञान नेत्रो से जीवन सदा का रौशन किया है... आपने ज्ञान को मेरी बुद्धि में समाहित कर आप समान बना दिया है... प्यारे बाबा मै सब कुछ जान गयी हूँ...”*

 

 ❉   *उमंगो से जीवन को भरकर सदा के लिए खुशियों से मेरे दामन को सजाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... यह दुखमय संसार मेरे बच्चों के लिए नही है... सोने जैसी सुखो भरी धरती ही तुम बच्चों का आशियाना है... *विस्मृति के खेल से सब भूल गए हो... और अब अमर पिता के संग से अपनी वास्तविकता और खूबसूरत राजो के राजदार बन पड़े हो...”*

 

_ ➳  *त्रिकालदर्शी की सीट पर बैठ तीनों नेत्रों से इस सृष्टि के गुह्य राजों को जान, ज्ञान परी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* प्राणों से भी प्यारे बाबा... आपका किन शब्दों में शुक्रिया करूँ.... कितना सुंदर मेरा भाग्य है कि स्वयं अमर पिता... *मुझ आत्मा को ज्ञान के नेत्रो से बेहद के राजो को बताने... मेरी दुनिया में आ गया है... मुझे ज्ञानवान बना सदा का सुखी बना रहा है... मीठे बाबा... इस खुशनसीबी की तो मैंने कल्पना भी न की थी...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- स्वदर्शन चक्रधारी बनना और बनाना है*"

 

 _ ➳  इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपने सर्वश्रेष्ठ पार्ट को मैं जैसे ही साक्षी होकर देखती हूँ जीवन बिल्कुल सहज लगने लगता है। *क्या, क्यो और कैसे के सभी सवालों से मुक्त एक बहुत ही प्यारी और न्यारी स्थिति में मैं सहज ही स्थित हो जाती हूँ और इस स्थिति में स्थित होते ही मेरे तीनो काल पास्ट, प्रेजन्ट और फ्यूचर, तथा मेरे 84 जन्मो का चक्र स्वत: ही मेरी बुद्धि में फिरने लगता है*। अपने तीनो कालों और 84 जन्मो के चक्र को स्मृति में लाकर अब मैं त्रिकालदर्शी और स्वदर्शन चक्रधारी बन मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने तीनो कालो और 84 जन्मो में बजाए अपने सर्वश्रेष्ठ पार्ट को भिन्न - भिन्न स्वरूपों में बिल्कुल स्पष्ट देख रही हूँ।

 

 _ ➳  अपने अनादि स्वरूप में मैं स्वयं को देख रही हूँ परमधाम, लाल प्रकाश से प्रकाशित आत्माओं की निराकारी दुनिया में जहां देह और देह की दुनिया का कोई संकल्प नही, केवल चारों और जगमग करती चमकती हुई मणिया हैं। *ऐसे पवित्र प्रकाश की दुनिया में अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में मैं स्वयं को देख रही हूँ*। रीयल गोल्ड के समान चमकते अपने स्वरूप को देख मैं मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ।

 

 _ ➳  अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान रीयल गोल्ड स्वरुप में मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ रही हूँ और एक सम्पूर्ण सतोप्रधान दैवी दुनिया में प्रवेश कर रही हूँ। *यहां आकर अब मैं अपना सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई शरीर रूपी वस्त्र धारण करती हूँ। देव कुल की सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में मेरा इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर पार्ट प्रारम्भ होता है*। असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस अति खूबसूरत सृष्टि पर अपना खूबसूरत पार्ट बजाने के बाद अब मेरे पूज्य स्वरूप का पार्ट प्रारम्भ होता है।

 

 _ ➳  मैं देख रही हूँ स्वयं को कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में। *मेरे सामने मेरे भक्त मेरी आराधना कर रहें हैं। मेरे दर्शन पाने के लिए घण्टों लम्बी - लम्बी लाइन में खड़े इंतजार कर रहें हैं*। मेरे दिव्यता से भरपूर नयन उन्हें सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं। मेरे वरदानी हस्तों से निकल रहे वरदान उनकी हर मनोकामना को पूर्ण कर रहें हैं। *अपने पूज्य स्वरूप के बाद अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप को देख रही हूँ*।

 

 _ ➳  स्वयं परमपिता परमात्मा के मुख कमल द्वारा हुए अपने ब्राह्मण जन्म की उपलब्धियों और प्राप्तियों का अनुभव करते - करते मन ही मन अपने सर्वश्रष्ठ भाग्य का मैं गुणगान करती हूँ। *जिस भगवान को पाने के लिए सारी दुनिया भटक रही है वो भाग्यविधाता बाप मुझे इतनी सहज रीति घर बैठे मिल जाएगा यह तो मैंने कभी स्वप्न में भी नही सोचा था*। कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो भगवान ने स्वयं मुझे अपना बना लिया। 

 

 _ ➳  अपने ब्राह्मण जीवन की अखुट प्राप्तियों को स्मृति में लाकर, उनके अनुभव में खोई असीम आनन्द लेकर अब मैं अपने डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरूप को देख रही हूँ। *मेरे अंग - अंग से निकल रही श्वेत रश्मियां चारों और फैल रही हैं। प्रकाश के एक बहुत सुंदर कार्ब में मैं फ़रिश्ता अपने प्यारे परमपिता परमात्मा का संदेशवाहक बन विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्मा के इस धरा पर अवतरित होने का संदेश दे रहा हूँ*। 

 

 _ ➳  अपने इन पांचो स्वरूपों में अपने 84 जन्मो और तीनों कालों के खूबसूरत पार्ट को देख मैं स्वयं में एक अद्भुत शक्ति के संचार का अनुभव कर रही हूँ। सृष्टि चक्र के ज्ञान से त्रिकालदर्शी और स्वदर्शन चक्रधारी बन माया के हर वार का सामना करना अब मुझे सहज लगने लगा है इसलिए *अपने इस ब्राह्मण जीवन मे अब मैं अपने इन स्वरूपों के

के चक्र को बुद्धि द्वारा फिराते हुए, और अपने तीनों कालों को देखते हुए इस बात को सदैव स्मृति में रखती हूँ कि मेरा बीता हुआ कल भी श्रेष्ठ था, आज भी श्रेष्ठ है और आने वाला कल भी श्रेष्ठ है। यह स्मृति मेरी स्व स्थिति को शक्तिशाली बना कर अब हर परिस्थिति पर मुझे सहज ही विजय दिला रही है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं स्वीट साइलेन्स की लवलीन स्थिति में रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं नष्टोमोहा आत्मा हूँ।*

   *मैं समर्थ स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं होलीहंस बन अवगुण रूपी कंकड़ को सदा छोड़ देती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव अच्छाई रूपी मोती को चुगती हूँ  ।*

   *मैं होलीहंस हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  आजकल के लोग एक तरफ स्व प्राप्ति के लिए इच्छुक भी हैं, लेकिन हिम्मतहीन हैं। हिम्मत नहीं है। सुनने चाहते भी हैं, लेकिन बनने की हिम्मत नहीं है। ऐसी आत्माओं को परिवर्तन करने के लिए पहले तो आत्माओं को हिम्मत के पँख लगाओ। हिम्मत के पँख के आधार है अनुभव। अनुभव कराओ। *अनुभव ऐसी चीज है, जरा सी अंचली मिलने के बाद अनुभव किया तो अनुभव के पँख कहो, या अनुभव के पाँव कहो उससे हिम्मत में आगे बढ़ सकेंगे।* इसके लिए विशेष इस वर्ष निरन्तर अखण्ड महादानी बनना पड़े, अखण्ड। मन्सा द्वारा शक्ति स्वरूप बनाओ। महादानी बन मन्सा द्वारा, वायब्रेशन द्वारा निरन्तर शक्तियों का अनुभव कराओ। वाचा द्वारा ज्ञान दान दो, कर्म द्वारा गुणों का दान दो। *सारा दिन चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्म तीनों द्वारा अखण्ड महादानी बनो। समय प्रमाण अभी दानी नहीं, कभी-कभी दान किया, नहीं, अखण्ड दानी क्योंकि आत्माओं को आवश्यकता है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "आत्माओं को हिम्मत के पँख लगाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जो स्वयं भगवान ने मुझे ढूंढ लिया और सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान दे मुझे भटकने से बचा लिया... बाबा के दिये ज्ञान को बुद्धि में बिठा मैं आत्मा अपने जीवन को परिवर्तित कर रही हूँ... बाबा से योग लगा कर उनकी सर्व शक्तियों को स्वयं में भरकर अपने विकारों को दूर कर रही हूँ... *एक ओर जहां विश्व की अन्य आत्मायें ईश्वर को पाने के लिए भटक रही हैं और व्रत तप उपवास तीर्थ यात्रायें कर रही हैं वहीं मैं आत्मा हर रोज़ आपसे मिलन मना रही हूँ...* मेरे बाबा से मिले प्यार को और उनके परिचय को अब मुझे सभी आत्माओ को देना है... मैं आत्मा अपने प्राण प्यारे बाबा को याद कर रही हूँ और देह के बंधन से मुक्त होकर ऊपर की ओर उड़ जाती हूँ... फरिश्ता बन कर सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ...

 

 _ ➳  सूक्ष्म वतन में ब्रह्मा बाबा के सम्मुख आकर ठहरती हूँ... *बाबा से निकलते सफेद प्रकाश से सारा सूक्ष्म वतन चांदनी सा जगमगा रहा है...* बाबा की ये शीतल किरणें मुझ पर पड़ने से मैं भी चमक उठी हूँ... मैं बड़े से प्यार से बाबा से दृष्टि ले रही हूँ और देखती हूँ कि ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में शिव बाबा प्रवेश करते हैं... *शिवबाबा के प्रवेश करने से ब्रह्मा बाबा दिव्य तेज से आलोकित होने लगते हैं...* और बापदादा की ये अत्यन्त ही पॉवरफुल किरणें मुझ फरिश्ते में भी समाने लगती हैं... मैं बापदादा के प्रेम में डूबती जा रही हूँ और उनके स्नेह को स्वयं में समाकर इस सृष्टि का चक्र लगाने नीचे की ओर आ रही हूँ...

 

 _ ➳  नीचे की ओर उतरते हुए मैं विश्व के ग्लोब पर आकर बैठ गई हूँ... और विश्व की समस्त आत्माओ को देख रही हूँ... मैं देखती हूँ कि कई आत्मायें जिन्होंने बाबा का ज्ञान भी सुना है और स्वयं को परिवर्तन भी करना चाहती हैं परंतु आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाती... स्वप्राप्ति की इच्छा रखती हैं पर हिम्मत की कमी से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं... *ऐसी सभी आत्माओ को मैं शक्तिशाली वाइब्रेशन दे रही हूँ जिससे ये आत्मायें हिम्मतवान बन अपनी कमी कमज़ोरियों को दूर कर रही हैं और स्वयं को परिवर्तित कर रही हैं...*

 

 _ ➳  अब मैं आत्मा साकार लोक में वापस आती हूँ और अपनी देह में फरिश्ते रूप से प्रवेश कर रही हूं... मैं आत्मा स्वयं को बेहद शक्तिशाली महसूस कर रही हूँ... मैं आत्मा अन्य आत्माओ के सम्पर्क में आती हूँ तो *मेरे चेहरे की मुस्कान और मीठे स्वभाव से आत्मायें महसूस करती हैं कि इन्हें ज़रूर कुछ मिल गया है जो ये इतने परिवर्तित हो गए हैं...* और मेरे साथ उनका ये अनुभव उन्हें भी परिवर्तित होने में मदद कर रहा है... मुझ आत्मा को देख कर उनमे भी हिम्मत आती है कि वे भी स्व को परिवर्तन कर सकती हैं... *मैं अपने अनुभव से उन्हें भी उमंग उत्साह के पंख देकर उनको आगे बढ़ाने के निमित बन रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपने सर्व ओर की आत्माओ को निरंतर पॉवरफुल वाइब्रेशन दे रही हूँ... सभी आत्मायें इन वाइब्रेशन को कैच करती हैं और स्वयं में शक्तियों को अनुभव कर रही हैं... *मैं आत्मा कभी उनको मन्सा द्वारा शक्तियों का अनुभव करा रही हूँ तो कभी वाणी से उन्हें ज्ञान देकर उनके मन को शक्तिशाली बना रही हूँ...* कभी कर्म द्वारा उन्हें गुणों का दान दे रही हूँ... अपने प्यारे बाबा की संतान मैं आत्मा मन्सा वाचा कर्मणा गुणों और शक्तियों का दान अपने सभी भाई बहनों को देकर उन्हें भी हिम्मत के पंख दे आगे बढ़ाती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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