━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 05 / 04 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विदेही स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *"फॉलो फादर" की धारणा को अपनाया ?*

 

➢➢ *प्रशनचित की बजाये प्रसन्नचित अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *न्यारे और प्यारे बनकर रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *योग का प्रयोग अर्थात् अपने शुद्ध संकल्पों का प्रयोग तन पर, मन पर, संस्कारों पर अनुभव करते आगे बढ़ते जाओ, इसमें एक दो को नहीं देखो। यह क्या करते, यह नहीं करते, पुराने करते वा नहीं करते, यह नहीं देखो। पहले मैं इस अनुभव में आगे आ जाऊं क्योंकि यह अपने आन्तरिक पुरूषार्थ की बात है।* जब ऐसे व्यक्तिगत रूप में इसी प्रयोग में लग जायेंगे, वृद्धि को पाते रहेंगे तक एक एक के शान्ति की शक्ति का संगठित रूप में विश्व के सामने प्रभाव पड़ेगा।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✺   *"मैं संगमयुगी अलौकिक जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अपना अलौकिक जन्म, अलौकिक जीवन, अलौकिक बाप, अलौकिक वर्सा याद रहता है? *जैसे बाप अलौकिक है तो वर्सा भी अलौकिक है। लौकिक बाप हद का वर्सा देता, अलौकिक बाप बेहद का वर्सा देता। तो सदा अलौकिक बाप और वर्से की स्मृति रहे।* कभी लौकिक जीवन के स्मृति में तो नहीं चले जाते?

 

✧  *मरजीवा बन गये ना। जैसे शरीर से मरने वाले कभी भी पिछले जन्म को याद नहीं करते, ऐसे अलौकिक जीवन वाले, जन्म वाले, लौकिक जन्म को याद नहीं कर सकते। अभी तो युग ही बदल गया। दुनिया कलियुगी है, आप संगमयुगी हो, सब बदल गया।* कभी कलियुग में तो नहीं चले जाते।

 

  यह भी बार्डर है। बार्डर क्रास किया और दुश्मन के हवाले हो गये। तो बार्डर क्रास तो नहीं करते? *सदा संगमयुगी अलौकिक जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मा है, इसी स्मृति में रहो। अभी क्या करेंगे? बड़े से बड़ा बिजनेस मैन बनो। ऐसा बिजनेस मैन जो एक कदम से पदमों की कमाई जमा करनेवाले। सदा बेहद के बाप के हैं, तो बेहद की सेवा में, बेहद के उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते रहो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  सभी के अन्दर सुनने का संकल्प है। बापदादा के अन्दर क्या है? बापदादा सुनने सनाने से परे ले जाते है। एक सेकण्ड में आवाज से परे होना आता है? *जैसे आवाज में कितना सहज और जल्दी आ जाते हो वैसे ही आवाज से परे भी सहज और जल्दी जा सकते हो*? अपने को क्या कहलाते हो?

 

✧  मास्टर सर्वशक्तिवान। अब मास्टर सर्वशक्तिवान का नशा कम रहता है, इसलिए *एक सेकण्ड में आवाज में आना, एक सेकण्ड म़े आवाज से परे हो जाना इस शक्ती की प्रैक्टिकल झलक चेहरे पर नहीं देखते*। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी, अभी - अभी आवाज में, अभी - अभी आवाज से परे। यह अभ्यास सरल और सहज हो जायेगा तब समझो सम्पूर्णता आई है।

 

✧  सम्पूर्ण स्टेज की निशानी यह है। सर्व पुरुषार्थ सरल होगा। पुरुषार्थ म़े सभी बातें आ जाती है। याद की यात्रा, सर्वीस दोनों ही पुरुषार्थ में आ जाते हैं। *जब दोनों में सरल अनुभव हो तब समझो सम्पूर्णता की अवस्था प्राप्त होने वाली है*। सम्पुर्ण स्थिति वाले पुरुषार्थ कम करेंगे, सफलता अधिक प्राप्त करेंगे। अभी पुरुषार्थ अधिक करना पडता है उसकी भेंट में सफलता कम है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧  एक - सोल-कान्सेस व आत्म-अभिमानी बनने का निशाना और दूसरा है साकारी। *तो निराकारी और निर्विकारी - यह हैं दो निशानी।* सारा दिन पुरुषार्थ योगी और पवित्र बनने का करते हो ना। *जब तक पूरी रीति आत्म-अभिमानी न बने हैं। तो निर्विकारी भी नहीं बन सकते। तो निर्विकारीपन का निशाना और निराकारीपन का निशाना, जिसको फरिश्ता कहो, कर्मातीत स्टेज कहो।* लेकिन फरिश्ता भी तब बनेंगे जब कोई भी इमप्योरिटी अर्थात् पाँच तत्वों की आकर्षण आकर्षित नहीं करेगी। *जरा भी मन्सा संकल्प भी इमप्योअर अर्थात अपवित्रता का न हो, तब फरिश्तेपन की निशानी में टिक सकेंगे।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- फालो फादर करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा समुन्दर के किनारे बैठ उछलते हुए लहरों का आनंद ले रही हूँ... ऐसे लग रहा जैसे ये लहरें आसमान को छूने की कोशिश कर रही हैं... आसमान को छूकर मेरे क़दमों में आती इन लहरों की शीतलता को महसूस कर आनंदित हो रही हूँ...* इन लहरों के साथ खेलती मैं आत्मा प्यार के सागर की लहरों में डूबने उड़ चलती हूँ... वतन में प्रेम के सागर के पास... जहाँ मीठे-मीठे बाबा प्रेम की लहरों में मुझे डुबोकर... अपनी गोदी में बिठाते हुए रूह-रिहान करते हैं...

 

  *यादों के सागर में डूबोकर पवित्र बनाकर अपने दिल तख़्त पर बिठाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता के सम्मुख नही थे तब किस कदर तकलीफ उठाते हुए उसे दर दर खोज रहे थे... आज अपने शानदार भाग्य के नशे में डूब जाओ... *आसमानी पिता की गोद में खिले हुए फूल बन रहे हो... बागवान बाबा हाथो से पोषित कर रहा है... तो उसकी मीठी यादो में पवित्रता के पानी को रगो में भर दो... और मातपिता को फॉलो करो...”*

 

_ ➳  *मातपिता को फॉलो कर बाप की तख्तनशीन बनते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा कितने जनमो से आपके प्यार की प्यासी थी... इस वरदानी संगम में मेरी चाहतो की प्यास बुझी है...* और पवित्रता की चुनरी ने मेरा खूबसूरत श्रंगार किया है... ऐसे मीठे भाग्य को पाकर मै आत्मा निहाल हूँ...

 

  *अपनी पलकों के झूले में झुलाते हुए मीठे प्यारे मेरे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता तो बच्चों को फूल सी तकलीफ भी न दे पाये वो तो सदा फूलो वाली मखमली गोद में ही खिलाये... *उसकी यादो में सुख घनेरे छिपे है उन मीठी यादो में डूब जाओ... मातपिता के कदमो पर कदम भर ही तो रखना है और अनन्त खुशियो को पल में पाना है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा हर कदम में पद्मों की कमाई करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में खोयी सी मात पिता के नक्शे कदम पर पग धरती हुई मीठे बाबा की दिल में मुस्करा रही हूँ...* और सम्पूर्ण पवित्रता की मिसाल बनकर पूरे विश्व को तरंगित कर रही हूँ...

 

  *खुशियों की चांदनी से मेरे जीवन के आँगन को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *मात पिता स्वयं चल कर बच्चों के लिए राहे आसान बना रहे है और जो निशान छोड़ रहे  हैं उनपर कदम भर रखना यही मात्र पुरुषार्थ है...* बाकि विश्व पिता जनमो के थके बच्चों को कोई तकलीफ नही देता है... तो पवित्रता से सजकर मीठे बाबा को संग लिए अथाह खुशियो के आसमान में उड़ते रहो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के दिल की तिजोरी में हीरा बन चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा मात पिता के आधार पर कंगूरा बन मुस्करा रही हूँ... और बाबा के दिल तख्त पर मणि सी दमक रही हूँ...* मनसा वाचा कर्मणा पवित्र बन देवताई ताज से सजने का महाभाग्य पा रही हूँ...

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विदेही स्थिति का अनुभव करना*"

 

_ ➳  इस शरीर रूपी चित्र में भृकुटि के भव्यभाल पर विराजमान मैं मस्तकमणि विचित्र आत्मा हूँ यह समृति में लाकर मैं जैसे ही अपने विचित्र देही स्वरूप में स्थित होने का प्रयास करती हूँ, मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ जैसे देह रूपी चित्र का भान समाप्त होने लगा है और मैं अपने उस सत्य विचित्र स्वरूप में टिकने लगी हूँ जो देह रूपी चित्र के अन्दर छुपी हुई थी। *इन स्थूल आंखों से अपने उस विचित्र स्वरूप को ना देख पाने के कारण आज दिन तक देह रूपी चित्र को ही मैं सच माने बैठी थी और इसलिए अपने वास्तविक विचित्र स्वरूप से अनजान मैं आत्मा अपने विचित्र बाप को भी भूल गई थी*। इसी विस्मृति ने मेरी सुख शांति छीन मुझे दुखी और अशांत बना दिया था। 

 

_ ➳  शुक्रिया मेरे विचित्र बाप का जिन्होंने आकर देह रूपी चित्र में छुपे मेरे सत्य विचित्र स्वरूप का और अपने सत्य स्वरूप का मुझे यथार्थ परिचय देकर, मेरे ही अंदर समाये गुणों और शक्तियों से मुझे अवगत कराकर, हर दुख, हर पीड़ा से मुझे मुक्त होने का अति सहज रास्ता बता दिया। *मन ही मन अपने प्यारे पिता का शुक्रिया अदा करके अब मैं अपने देह रूपी चित्र को भूल अपने अति सूक्ष्म निराकारी ज्योति बिंदु विचित्र स्वरूप में स्थित होकर अपने विचित्र बाबा की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर लेती हूँ*। सेकण्ड में देह और देह की नश्वर दुनिया से किनारा कर अपने मूल स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने विचित्र स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाती हूँ। 

 

_ ➳  सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न मेरे विचित्र स्वरूप का अनुभव मुझे गहन सन्तुष्टता का अनुभव करवा रहा है। जिस सुख शान्ति और आनन्द को पाने के लिए मैं बाह्यमुखता में भटक रही थी वो सुख शान्ति तो मेरे अपने ही अंदर रची बसी हुई है जिसे महसूस करने का सत्य ज्ञान आज पाकर मैं धन्य - धन्य हो गई हूँ। *अब जब चाहे अपने विचित्र स्वरूप में स्थित होकर मैं सेकण्ड में सुख शांति प्राप्त कर सकती हूँ। यही संकल्प करते - करते अपने विचित्र स्वरूप की गहन अनुभूति करने के लिए अब मैं अंतर्मुखता की गुफा में पहुँच जाती हूँ* जहाँ मैं स्वयं को साकारी देह से अलग एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और हर चीज से स्वयं को उपराम अनुभव कर रही हूँ। 

 

_ ➳  इस उपराम स्थिति में स्थित हो कर धीरे - धीरे अब मैं ऊपर की ओर जा रही है। आकाश को पार करके, सूक्ष्म लोक से परें, एक ऐसी दुनिया में मैं पहुँच गई हूँ जहाँ मैं अपने चारों तरफ अपने ही समान जगमग करते हुए चैतन्य सितारों को देख रही हैं। *देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु इस निराकारी दुनिया में नही है। एक अति सुखद साक्षी स्थिति में स्थित होकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे देह से मैं संकल्प मात्र भी अटैच नही हूँ*। देह से डिटैच होने का यह अनुभव बहुत ही न्यारा और प्यारा है। 

 

_ ➳  एक दिव्य अलौकिक सुखमय स्थिति का अनुभव करते हुए निर्संकल्प हो कर अब मैं अपने सामने उपस्थित अपने विचित्र बाप को निहार रही हूँ। उन्हें देखने का यह सुख असीम आनन्द देने वाला है। *अपने विचित्र पिता को निहारते - निहारते अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच गई हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को उनकी शक्तियों से भरपूर कर रही हूँ*। मेरे विचित्र पिता से आ रही शक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं । सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ । 

 

_ ➳  अपने सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं लौट आती हूँ वापिस साकारी दुनिया में । नीचे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि मैं विचित्र हूँ और अपने विचित्र बाप की सेवा अर्थ मैंने इस शरीर रूपी चित्र का आधार लिया है। *यह स्मृति देह में रहते भी देह से मुझे न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है। चित्र और विचित्र दोनों को अलग - अलग देखते हुए, चित्र को भूल, विचित्र बन, विचित्र बाप की याद में रह, अनेक दिव्य अलौकिक अनुभूतियों का आनन्द अपने ब्राह्मण जीवन में मैं हर पल ले रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ब्रह्मा बाप समान आत्मा हूँ।*

   *मैं परोपकारी आत्मा हूँ।*

   *मैं श्रेष्ठ से श्रेष्ठ तस्वीर बनाने वाली आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सर्वस्व त्यागी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा सरलता व सहनशीलता का गुण धारण करती हूँ  ।*

   *मैं त्यागी व तपस्वी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  सच्चे ब्राह्मणों के तकदीर की लम्बी लकीर - 21 जन्मों के लिए:- *कितने भाग्यवान हो जो भगवान के साथ पिकनिक कर रहे हो! ऐसा कब सोचा था - कि ऐसा दिन भी आयेगा जो साकार रूप में भगवान के साथ खायेंगे, खेलेंगे, हसेंगे...* यह स्वप्न में भी नहीं आ सकता लेकिन इतना श्रेष्ठ भाग्य है जो साकार में अनुभव कर रहे हो। कितनी श्रेष्ठ तकदीर की लकीर है - जो सर्व प्राप्ति सम्पन्न हो।

 

✺  *"ड्रिल :- भगवान के साथ खाने, खेलने, हंसने का अनुभव"*

 

_ ➳  *‘मीठे बच्चेये मीठी मधुर वाणी सुन मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन... उड़ चलती हूँ प्यारे बाबा के पास... मुझ आत्मा को प्यारे बाबा हाथ पकड मधुबन के पीस पार्क में ले जाते हैं...* मैं नन्हा फ़रिश्ता प्यारे बाबा के साथ लुका छिपी का खेल, खेल रही हूँ... कभी मैं फरिश्ता छिप जाती हूँ... बाबा मुझे ढूंढते हैं... कभी प्यारे बाबा पेड़ों के पीछे छिप जाते हैं... मैं फरिश्ता बाबा को ढूंढकर उनकी गोदी चढ़ जाती हूँ...

 

_ ➳  *मैं नन्हा फ़रिश्ता प्यारे बाबा की गोदी में बैठकर झूला झूल रही हूँ...* फिर मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ फूलों से खेल रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ फरिश्ते पर फूल बरसा रहे हैं... मैं फ़रिश्ता बाबा के कदमों को फूलों से सजा रही हूँ... बाबा के गले में फूलों का हार पहनाकर बाबा के गले लग जाती हूँ... मैं फरिश्ता बाबा के गले का हार बन रही हूँ...

 

_ ➳  *फिर प्यारे बाबा बगीचे से फल तोड़-तोड़कर मुझ फरिश्ते को खिला रहे हैं... मैं नन्हा फ़रिश्ता बाबा को खिला रही हूँ...* खेल-खेल में ही मीठे बाबा मुझ आत्मा को ज्ञान अमृत पिला रहे हैं... ज्ञान की बातें सुनाकर मुझ फरिश्ते को गुण, शक्तियों से भरपूर कर रहे हैं... *सर्व खजानों से सम्पन्न बना रहे हैं...* मैं आत्मा 21 जन्मों के लिए अपना भाग्य बना रही हूँ...

 

_ ➳  *फिर मैं फ़रिश्ता प्यारे बाबा के साथ नक्की झील में नाव में बैठकर झील की सैर करते हुए आनंदित हो रही हूँ...* फिर मुझ फ़रिश्ते को प्यारे बाबा बर्फीले पहाड़ियों पर ले जाते हैं... *बर्फ के गोले बनाकर मैं नन्हा फरिश्ता प्यारे बाबा के साथ खेल रही हूँ...* मैं आत्मा बाबा से रूह-रिहान कर अपने दिल की सारी बातें शेयर कर रही हूँ... और बोझमुक्त होकर बहुत हलका अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं कितनी ही भाग्यवान आत्मा हूँ... जो सर्वशक्तिमान भगवान के साथ खाती हूँ, पीती हूँ, हंसती हूँ, गाती हूँ... हर पल मौज मनाती रहती हूँ...* रात को जब थक जाती हूँ... तो प्यारे बाबा लोरी सुनाकर अपनी गोदी में सुलाते हैं... *कितना श्रेष्ठ भाग्य है मुझ ब्राह्मण आत्मा का जो भगवान के साथ रोज पिकनिक मनाती हूँ...* लक्ष्मी-नारायण भी ऐसी पिकनिक नहीं मना पायेंगे... जो स्वप्न में भी नहीं सोचा था... वो मैं आत्मा साकार में परमात्म प्यार का अनुभव कर रही हूँ...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━