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 30 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पावन बनने की प्रतिज्ञा पर पक्के रहे ?*

 

➢➢ *"अब नाटक पूरा हो रहा है" - यह स्मृति रही ?*

 

➢➢ *एक लगन, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा सदा निर्विघन स्थिति का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *अशरीरी स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अब अपने ईश्वरीय ब्राह्मणपन के, सर्वस्व त्यागी की पोजीशन में स्थित रहो। *हद की पोजीशन कि मैं सबसे ज्यादा सर्विसएबुल हूँ, प्लैनिंग-बुद्धि हूँ, इनवैन्टर हूँ, धन का सहयोगी हूँ, दिन-रात तन लगाने वाला हार्ड-वर्कर हूँ या इन्चार्ज हूँ. इस प्रकार के हद के नाम, मान और शान के उल्टे पोजीशन को छोड़ अब त्यागी और तपस्वीमूर्त बनो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निर्विघ्न विजयी रतन हूँ"*

 

  अपने को सदा निर्विग्न, विजयी रतन समझते हो? विघ्न आना, यह तो अच्छी बात है लेकिन विघ्न हार न खिलायें। *विघ्नों का आना अर्थात् सदा के लिए मजबूत बनाना। विघ्न को भी एक मनोरंजन का खेल समझ पार करना-इसको कहते हैं 'निर्विग्न विजयी'।* तो विघ्नों से घबराते तो नहीं? जब बाप का साथ है तो घबराने की कोई बात ही नहीं। अकेला कोई होता है तो घबराता है। लेकिन अगर कोई साथ होता है तो घबराते नहीं, बहादूर बन जाते हैं। तो जहां बाप का साथ है, वहाँ विघ्न घबरायेगा या आप घबरायेंगे? सर्वशक्तिवान के आगे विघ्न क्या है? कुछ भी नहीं।

 

  इसलिए विघ्न खेल लगता, मुश्किल नहीं लगता। विघ्न अनुभवी और शक्तिशाली बना देता है। *जो सदा बाप की याद और सेवा में लगे हुए हैं, बिजी हैं,वह निर्विग्न रहते हैं। अगर बुद्धि बिजी नहीं रहती तो विघ्न वा माया आती है। अगर बिजी रही तो माया भी किनारा कर लेगी। आयेगी नहीं, चली जायेगी।* माया भी जानती है कि यह मेरा साथी नहीं है, अभी परमात्मा का साथी है। तो किनारा कर लेगी। अनगिनत बार बिजयी बने हो, इसलिए विजय प्राप्त करना बड़ी बात नहीं है। जो काम अनेक बार किया हुआ होता है, वह सहज लगता है। तो अनेक बार के बिजयी। सदा राजी रहने वाले हो ना? मातायें सदा खुश रहती हो? कभी रोती तो नहीं? कभी कोई परिस्थिति ऐसी आ जाये तो रोयेंगी? बहादुर हो। पाण्डव मन में तो नहीं रोते? यह 'क्यों हुआ', 'क्या हुआ'-ऐसा रोना तो नहीं रोते?

 

  *बाप का बनकर भी अगर सदा खुश नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे? बाप का बनना माना सदा खुशी में रहना। न दु:ख है, न दु:ख में रोयेंगे। सब दु:ख दूर हो गये। तो अपने इस वरदान को सदा याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आवाज़ से परे रहना अच्छा लगता है वा आवाज़ में रहना अच्छा लगता है? असली देश वा असली स्वरूप में आवाज़ है? *जब अपनी असली स्थिति में स्थित हो जाते हो आवाज़ से परे स्थिति अच्छी लगती है ना।* ऐसी प्रैक्टीस हरेक कर रहे हो? जब चाहे जैसे चाहे वैसे ही स्वरूप स्थित हो जायें।

  

✧  जैसे योद्धे जो युद्ध के मैदान में रहते हैं उन्हों को भी जब भी और जैसा जैसा आर्डर मिलता है वैसे करते ही जाते हैं। ऐसे ही रूहानी वारियर्स को भी जब और जैसा डायरक्शन मिले वेसे ही अपनी स्थिति को स्थित कर सकते हैं, क्योंकि मास्टर नाँलेजफुल भी हो और मास्टर सर्वशक्तिवान भी हो। तो दोनों ही होने कारण एक सेकण्ड से भी कम समय में जैसी स्थिति में स्थित होना चाहे उस स्थिति में टिक जायें, ऐसे रूहानी वारियार्स हो? अभी - अभी कहा जाये परमधाम निवासी बन जाओ तो ऐसी प्रैक्टीस है जो कहते ही इस देह, देह के देश भूल अशरीरी परमधाम निवासी बन जाओ?

 

✧   *अभी - अभी परमधाम निवासी से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाओ, अभी - अभी सेवा के प्रति आवाज़ में आये, सेवा करते हुए भी अपने स्वरूप की स्मृति रहे, ऐसे अभ्यास बने हो?* ऐसा अभ्यास हुआ है? वा जब परमधाम निवासी बनने चाहो तो परमधाम निवासी के बजाय बार - बार आवाज़ में आ जायें ऐसा अभ्यास तो नहीं करते हो? अपनी बुद्धी को जहाँ चाहो वहाँ एक सेकण्ड से भी कम समय में लगा सकते हो? ऐसा अभ्यास हुआ है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सेना के महारथी किसको कहा जाता है। उनके लक्षण क्या होते हैं। *महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे।* मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले अपने को अनुभव करते हो? *अगर युद्ध के मैदान में कोई महारथी अपने रथ अर्थात् सवारी के वश हो जाए तो क्या वह महारथी, विजयी बन सकता है या और ही अपनी सेना के विजयी-रूप बनने की बजाये विघ्न-रूप बन जायेगा। हलचल मचाने के निमित्त बन जायेगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  सतयुगी बादशाही के लायक बनने पावन जरूर बनना*

 

_ ➳  मै आत्मा मीठे बाबा की यादो में सुमन हो गये... अपने मन को निहार कर, आनन्द के सागर में डूब जाती हूँ... और मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि *कैसे चलते चलते बाबा ने मेरे विकारी हाथो में, अपना पावन मखमली हाथ देकर, मेरा कायाकल्प कर दिया है.*.. इस अंतिम जनम में भगवान को पिता, टीचर और सतगुरु रूप में पाकर... जनमो की यात्रा ही जेसे सफल हो गयी है... सृस्टि जगत के इस खेल में मुझ आत्मा ने... अंत में भगवान को ही जीत लिया है.. सब कुछ मेने पा लिया है...

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी देवताई शानोशौकत याद दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सदा अपने मीठे भाग्य के नशे में खोये रहो... और पावनता के रंग में रंगकर मनुष्य से देवता बनने का सदा का अधिकार पा लो...ईश्वर पिता के साथ का यह खुबसूरत वरदानी संगम है... *इसमे पवित्रता से सजकर पिता की सम्पूर्ण दौलत को पा लो.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के महावाक्यों को गहराई से दिल में समाकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... *अपनी यादो भरा मदद का हाथ देकर, मेरे भाग्य को कितना ऊंचाइयों पर ले जा रहे हो.*.. मै क्या हूँ और क्या मुझे बना रहे हो... विकारो के पतितपन को जीकर मै कितनी निकृष्ट से हो गयी थी... आज पावनता से सजाकर मुझे देवता बना रहे हो..."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम के अहसासो से भरते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की गोद में पलने का महाभाग्य पाकर अब पवित्रता की तरंगे पूरे विश्व में फैलाओ... पावन बनकर, पावन दुनिया के मालिक बन सदा के लिए मुस्कराओ... *इस अंतिम जनम में ईश्वर पिता की श्रीमत के रंग में रंगकर, सुंदर देवता बन जाओ.*..

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने मीठे बाबा के मुझ आत्मा पर लुटाते हुए संकल्पों को देख कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... मनुष्य मन और मनमत ने मुझ आत्मा को विकारो के दकदल में गहरे डुबो दिया... आपने आकर जो मात्र चोटी बची थी... खींच कर निकाला और ज्ञान अमृत से मुझे उजला बनाया है... *आपकी प्यारी यादो में डूबकर मै आत्मा अब पवित्रता का आँचल ओढ़ मुस्करा रही हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को वरदानों से सजाते हुए कहते है :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर, अब अपनी हर अदा में ईश्वरीय झलक दिखाओ... इस पतित हो गयी दुनिया को अपनी पावनता से पुनः खुबसूरत पवित्र बनाओ... विकारो के कालेपन से निकल कर, ज्ञान धारा में धवल बन, और *यादो में तेजस्वी होकर, देवताई सौंदर्य से विश्व धरा पर जगमगाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने भाग्य के ऊपर, ईश्वरीय जादूगरी को देख, मीठे बाबा से कहती हूँ :-* " मेरे सच्चे साथी बाबा... आपके सच्चे साथ और यादो के हाथ को पाकर मै आत्मा विकारो के घने जंगल से बाहर निकल रही हूँ... *अपनी खोयी हुई पावनता से पुनः सज संवर रही हूँ.*.. अपने साथ इस प्रकर्ति को भी पावन बनाकर, सुखो के स्वर्ग में बदल रही हूँ..." मीठे बाबा को अपने दिल की सारी बात सुनाकर मै आत्मा इस धरती पर लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अब नाटक पूरा हो रहा है इसलिए इस अंतिम जन्म में पवित्र जरूर बनना है*

 

_ ➳  अपने मीठे मधुबन घर में, पीस पार्क में बैठी ईश्वरीय यज्ञ के इतिहास पर लिखी हुई एक पुस्तक मैं पढ़ रही हूँ जिसमे यज्ञ से जुड़ी उन महान विभूतियों का उल्लेख है जिन्होंने अपने लौकिक परिवार के अनेक प्रकार के सितम सहन करके भी भगवान का हाथ और साथ नही छोड़ा। *हर सितम सहन करके भी अपनी पवित्रता की प्रतिज्ञा को कायम रखते हुए, अपना सम्पूर्ण जीवन इस यज्ञ में स्वाहा कर दिया और अपने इस महान कर्म से वो महान आत्मायें, ईश्वरीय यज्ञ के इतिहास में सबके लिए प्रेंरणा स्त्रोत बनने के साथ - साथ  भगवान के दिल तख्त पर सदा के लिए विराजमान रहने का सौभाग्य पाने वाली महान पदमापदम सौभागशाली आत्मायें बन गई*।

 

_ ➳  ईश्वरीय यज्ञ में सब कुछ समर्पण कर देने वाली उन महान विभूतियों की जीवन गाथा को पढ़ते हुए स्वयं से मैं प्रोमिस करती हूँ कि उनके नक्शे कदम पर चलते हुए इस अंतिम जन्म में सितम सहन करते भी मैं पावन अवश्य बनूँगी। *जैसे ही मैं स्वयं से यह प्रतिज्ञा करती हूँ मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे वो सभी महान आत्मायें मेरी इस प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा करने के लिए मुझे सूक्ष्म रीति अपनी पवित्रता का बल दे रही हैं। एक अद्भुत शक्ति जैसे मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। मन में पावन बनने का दृढ़ संकल्प लेकर मैं पीस पार्क से उठकर अब पांडव भवन की ओर चल पड़ती हूँ और बाबा के समान सम्पन्न, सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य लेकर, बाबा के कमरे में पहुँच जाती हूँ और बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने जा कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा साक्षात मेरे सामने बैठे हैं और बिना कहे मेरी हर बात को समझ रहें है। मन्द - मन्द मुस्कारते हुए बाबा मुझे निहार रहें हैं। बाबा के अधरों की मुस्कराहट मन को एक सुकून दे रही है। बाबा के नयनों में मेरे लिए समाया अथाह स्नेह मुझे अंदर ही अंदर रोमांचित कर रहा है। *बाबा की दृष्टि में समाई पवित्रता की लहर को मैं स्पष्ट देख रही हूँ जो धीरे - धीरे बाबा की दृष्टि से निकल कर मुझ आत्मा को छू रही है और मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रही है*।। बाबा की पवित्र दृष्टि के साथ - साथ बाबा के वरदानी हस्तों को भी मैं अपने ऊपर अनुभव कर रही हूँ जिनसे पवित्रता की सफेद किरणे निकल कर मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं। *पवित्रता की शक्ति से भरपूर करते हुए बाबा मुझे पवित्र भव, योगी भव का वरदान दे रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता से हर हाल में पावन बनने की दृढ़ प्रतिज्ञा करके अब मैं बाबा के कमरे से बाहर आ जाती हूँ और फूलों, पतियों और लताओं से सजी बाबा की कुटिया के बाहर पार्क में रखे एक बैंच पर आकर बैठ जाती हूँ। *पतित पावन अपने शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को मैं एकाग्र कर लेती हूँ और मन बुद्धि के विमान पर बैठ अपने स्वीट साइलेन्स होम की तरफ रवाना हो जाती हूँ*। पवित्रता के सागर अपने पिता से पवित्रता की शक्ति स्वयं में भरने के लिए मैं धीरे - धीरे उनके पास पहुँच जाती हूँ और उनकी सर्कशक्तियो की किरणो की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। *पवित्रता के सफेद प्रकाश से सम्पन्न किरणे पूरे वेग के साथ मुझ आत्मा के ऊपर प्रवाहित होने लगती हैं*।

 

_ ➳  मुझे एवर प्योर बनाने के लिए बाबा अपनी सारी पवित्रता की शक्ति मेरे अंदर भरते जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे पवित्रता के सफेद प्रकाश में नहाकर मैं अति उज्ज्वल बन गयी हूँ। अपने इस उज्ज्वल स्वरूप के साथ, पवित्रता की शक्ति को अपने अंदर धारण करके मैं आत्मा अब वापिस साकार वतन की और लौट रही हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और बाबा से की हुई पवित्रता की प्रतिज्ञा को दृढ़ता के साथ पूरा कर रही हूँ*। इस अंतिम जन्म में सितम सहन करके भी पावन बनने के स्वयं से और अपने प्यारे पिता से किये हुए प्रॉमिस को हर हाल में निभाते हुए, उनसे मिले पवित्रता के बल से मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पावन बनने के लक्ष्य को मैं बिल्कुल सहज रीति प्राप्त कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं एक लगन, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा सदा निर्विघ्न बननें वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं निवारण स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं अशरीरी बनने वाला वायरलेस सेट हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव वाइसलेस बनकर वायरलेस सेट की सेटिंग करती हूँ  ।*

   *मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  सेवा बहुत अच्छी करो लेकिन सेवा और स्व दोनों कम्बाइण्ड हों... *जैसे बापदादा कम्बाइण्ड है ना... आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ना! ऐसे स्व स्थिति और सेवा दोनों कम्बाइण्ड... परसेन्टेज में कोई कमी नहीं हो...* कभी सेवा की परसेन्टेज ज्यादा, कभी स्व की परसेन्टेज ज्यादा, नहीं, सदा बैलेन्स... तो आपके बैलेन्स द्वारा विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग मिलती रहेगी... *तो अभी विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग चाहिए। मेहनत नहीं चाहिए, ब्लैसिंग चाहिए... तो आपका बैलेन्स स्वतः ही ब्लैसिंग दिलायेगी...* अच्छा।

 

✺   *ड्रिल :-  "सदा स्व-स्थिति और सेवा का बैलेन्स रखना"*

 

 _ ➳  मेरा यह ब्राह्मण जीवन मेरे शिव पिता परमात्मा की देन है जिसका रिटर्न मुझे बाबा का मददगार बन कर अवश्य देना है... *मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर, अपने मन बुद्धि की लाइन को क्लीयर कर, मैं जैसे ही बाबा के साथ जोड़ती हूँ वैसे ही मेरी मन बुद्धि बाबा के संकल्पो को कैच करने लगती है...* मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि बाबा मुझे स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स रख कर चलने की सलाह दे रहें हैं... बाबा मुझ से कह रहे हैं, मेरे विश्व परिवर्तक बच्चे:- "सदा याद रखो कि स्व स्थिति और सेवा का बैलेन्स ही स्व परिवर्तन सो विश्व परिवर्तन का आधार है"...

 

 _ ➳  बाबा के संकल्पो को कैच कर, स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सदा बना कर रखने की प्रतिज्ञा बाबा से करती हुई अब मैं बाबा की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ... *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बाबा मुझे अपने पास बुला रहे हैं...* ऐसा लग रहा है जैसे कोई शक्ति तीव्र गति से मुझे ऊपर की ओर खींच रही है... बहुत तेज प्रकाश की एक लाइट परमधाम से सीधी मुझ आत्मा पर पड़ रही है जो मुझे परमधाम तक पहुंचने का रास्ता दिखा रही है...

 

 _ ➳  सूर्य के प्रकाश से भी अधिक शक्तिशाली यह लाइट मुझे मेरे वास्तविक स्वभाव, संस्कार की अनुभूति कराने के लिए उस ज्योति के देश में खींच रही है... *फरिश्तों की दुनिया को पार करते हुए मैं जा रही हूँ उस ज्योति के देश मे जहां मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे स्वागत के लिए खड़े हैं...* उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं उनके बिल्कुल समीप पहुंच गई हूँ... बस मैं और मेरा बाबा...

 

 _ ➳  बाबा से आ रही सर्वशक्तियों के प्रकाश की एक - एक किरण मुझ आत्मा के अनेक जन्मों के नकारात्मक स्वभाव संस्कार को धोकर मुझे शुद्ध बना रही है... शक्तियों का औरा मुझ आत्मा के चारो और बढ़ रहा है... मेरी सारी कमी कमजोरियाँ जल कर भस्म हो रही हैं... *मेरे अंदर शक्तियों का संचार हो रहा है जो मुझमे असीम बल भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहा है... मैं बेदाग हीरा बन रही हूँ...* स्वयं में सर्वशक्तियों को भरकर, शक्तिसम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं वापिस लौट रही हूँ और अपने साकारी तन में आकर विराजमान हो जाती हूँ...

 

 _ ➳  "बैलेन्स ही ब्लैसिंग का आधार है" इस बात को स्मृति में रख, अपने मन बुद्धि की तार को हर समय अपने पिता परमात्मा के साथ जोड़, कर्मयोगी बन अब मैं हर कर्म कर रही हूँ... *बाबा ने मुझे निमित बना कर इस धरा पर सेवा अर्थ भेजा है, यह स्मृति मुझे सदैव इस बात का अहसास दिलाती है कि मैं तो केवल निमित हूँ, करनकरावनहार बाबा मुझसे यह सेवा करवाकर मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहे हैं और इस निमितपन की स्मृति में रह, करनकरावनहार बाबा की याद में रह हर कर्म करने से स्वत: ही मुझसे शक्तिशाली वायब्रेशन फैलते रहते हैं...* जिससे स्व स्थिति और सेवा का बैलेंस सहज ही बना रहता है...

 

 _ ➳  बाबा की याद से अब मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म को ऐसा श्रेष्ठ बना रही हूँ जो मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म सहज ही औरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहा है... *परमात्म याद में रहने से मनसा, वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बन सेवा के क्षेत्र में मैं सहज ही सफलता प्राप्त कर रही हूँ...* सेवा और स्व स्थिति का बैलेंस मुझे स्वयं के साथ - साथ सर्व का कल्याणकारी बनाकर सर्व की, और परमात्म दुआओं की अधिकारी आत्मा बना रहा है...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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