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 27 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ड्रामा की नॉलेज को बुधी में रखा ?*

 

➢➢ *साहूकारी का नशा छोड़ देहि अभिमानी रहने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *महान और मेहमान इन दो स्मृतियों से सर्व आकर्षणों से मुक्त हुए ?*

 

➢➢ *सर्व की शुभ भावना और सहयोग की बूँद से बड़े कार्य को भी सहज किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब चारों ओर सेवाकेन्द्र वा प्रवृत्ति के स्थान को शान्ति कुण्ड बनाओ, इसके लिए योग का किला मजबूत करो। किले को मजबूत करने का साधन है-प्युरिटी।* जहाँ पवित्र आत्माएं रहती हैं वहाँ के वायब्रेशन विश्व की आत्माओं को शान्ति की अनुभूति कराते हैं। *पवित्रता की शक्ति महान शक्ति है, उसकी महानता को जानकर मास्टर शान्ति देवा बनो। कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप, पवित्र स्वरूप में स्थित होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयोगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  स्वयं को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् राज्य अधिकारी तो राजा बने हो? या कभी राजा का राज्य, कभी प्रजा का? *राजयोगी माना सदा राजा बन राज्य चलाने वाले। कभी भी अधीन बनने वाले नहीं। राजयोगी कभी प्रजायोगी नहीं बन सकते। योगी का अर्थ ही है - निरन्तर याद में रहने वाले। तो योगी भी हो और राजा भी हो।*

 

  *योगी जीवन का अर्थ है याद कभी भूल नहीं सकती। योग लगाने वाले योगी नहीं। योगी जीवन वाले योगी हो। लगाने वाले का कब लगेगा कब नहीं लेकिन 'जीवन' सदा रहती है।* खाते-पीते, चलते जीवन होती है। या सिर्फ जब बैठते हो तब जीवन है चलते हो तब जीवन है?

 

  *हर कार्य करते जीवन है। तो यही स्मृति रहे कि हम 'योगी-जीवन' वाले हैं। अभी के भी राजे हैं और जन्मजन्म के भी राजे हैं। अभी राजे नहीं तो भविष्य में भी नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सिर्फ आवाज़ द्वारा प्रभावित हुई आत्माएँ अनेक आवाज़ सुनने से आवागमन में आ जाती है। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए आवाज़ द्वारा अनुभवी आत्मायें आवागमन से छूट जाती हैं। ऐसी आत्मा के ऊपर किसी भी रूप का प्रभाव नहीं पड सकता। *सदैव अपने को कम्बाइन्ड समझ, कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस करो अर्थात अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज़।* दोनों की कम्बाइन्ड रूप की सर्वीस वारिस बनायेगी।

 

✧  *सिर्फ आवाज़ द्वारा सर्वीस करने से प्रजा बनती जा रही है।* तो अब सर्वीस में नवीनता लाओ। ( इस प्रकार का सर्वीस करने का साधन कौन - सा है?) जिस समय सर्वीस करते हो उस समय मंथन चलता है, लेकिन याद में मगन यह स्टेज मंथन की स्टेज से कम होती है। दूसरे के तरफ ध्यान अधिक रहता है। अपनी अव्यक्त स्थिति की  तरफ ध्यान कम रहता है। इस कारण ज्ञान के विस्तार का प्रभाव पडता है लेकिन लगन में मगन रहने का प्रभाव कम दिखाई देता है।

 

✧  रिजल्ट में यह कहते हैं कि यह ज्ञान बहुत ऊचा है। लेकिन मगन रहना है यह हिम्मत नहीं रखते। क्योंकि अव्यक्त स्थिति द्वारा लगन का अर्थात सम्बन्ध जोडने का अनुभव नहीं किया है। बाकी थोडा कणा - दाना लेने से प्रजा बन जाती है। *अब के सम्बन्ध जुटने से ही भविष्य सम्बन्ध में आयेंगे।* नहीं तो प्रजा में। तो नवीनता यही लानी है। जो एक सेकण्ड में अव्यक्त अनुभव द्वारा सम्बन्ध जोडना है। सम्बन्ध और सम्पर्क दोनों में फर्क है। सम्पर्क में आते हैं, सम्बन्ध में नहीं आते। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *प्रेक्टिस की परीक्षा का समय कौन-सा होता है? जब कर्मभोग का ज़ोर होता है?* कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल कर्मभोग के वश अपने तरफ आकर्षण करें, जिसको कहा जाता है बहुत दर्द है। *कहते हैं ना - बहुत दर्द है, इसलिए थोड़ा भूल गयी।* लेकिन यह तो टग ऑफ वार (रस्सा कशी) का समय है, *ऐसे समय कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर कर्मेन्द्रियों को भोगवाने वाले जो होते उनको अष्ट रतन कहा जाता है, जो ऐसे समय विजयी बन दिखाते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपने स्वधर्म में रहना है"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में एकाग्रचित्त होकर बैठ जाती हूँ... अपने शरीर के सभी आरगन्स से धीरे-धीरे डिटैच होती जाती हूँ... और अपने मस्तक सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ... मैं आत्मा मस्तक के बीचों-बीच मणि समान चमक रही हूँ...* भृकुटी के बीच चमकती हुई मैं आत्मा मणि भृकुटी के द्वार से बाहर निकल जाती हूँ और उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ शांति के सागर के पास शांतिधाम... निराकार बाबा से आती हुई शांति की किरणों को अपने में समेटती हुई नीचे आ जाती हूँ सूक्ष्म वतन में...

 

  *स्वधर्म और स्वदेश का ज्ञान देकर सत्यता के प्रकाश से मुझ आत्मा को प्रकाशित करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... *सत्य पिता ने आकर सत्य स्वरूप का अहसास कराया है... इस सत्य के नशे में आओ... अपने स्वधर्म में स्थित हो प्यार से दूसरी आत्मा को सम्मान दो...* ओम शांति कह आत्मा का अभिवादन करना ही सच्चा सम्मान देना है...

 

_ ➳  *इस शरीर को भूलकर अपने सुन्दर मणि रूप को देखते हुए उसकी चमक में खोकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आत्मिक स्मृतियों से भर गई हूँ... अपने खूबसूरत स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... इसी स्वधर्म के नशे में गहरे उतर रही हूँ...* और सबको आत्मिक भाव से रिगार्ड दे रही हूँ...

 

  *मुझ आत्मा पर सुख-शांति की वर्षा करते हुए सुख शान्ति के सागर प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... *आत्मा के सच्चे नशे से भर जाओ... इन्ही यादो में डूब कर दूसरों को भी इसी आत्मिकता का नशा चढ़ाओ...* ओम शांति के सच्चे भाव में डूब जाओ... इन्ही यादो में भरो और औरो को भी भर आओ...

 

_ ➳  *सत्यता के सुन्दर नजारों में डूबकर अपने श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य के नशे में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ओमशन्ति के स्वरूप में समा रही हूँ... इन सुंदर अहसासो में भीग रही हूँ... आत्मा देख आत्मा से बात कर रही हूँ...* सबको सच्चा रिगार्ड देकर ईश्वरीय नजरो में सज रही हूँ...

 

  *मेरे निज स्वरुप के दर्शन कराकर मेरे मन मंदिर में शांति की बरसात करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... *सारा मदार स्मृतियों पर टिका है... स्वयं को आत्मा निश्चित कर इस भाव से स्वयं को भर लो...* और ओम शांति के भाव में डूबकर अन्य आत्माओ का भी सम्मान करो... यही दिली रिगार्ड है... जो एक दूसरे को देना है...

 

_ ➳  *अपने स्वधर्म में टिककर सत्यता के बादलों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा सबको सच्चा रिगार्ड दे रही हूँ... *सदा अपने स्वधर्म में स्थित होकर मुस्करा रही हूँ... सच्चा सम्मान दे रही हूँ और पा भी रही हूँ.... यह स्वरूप बहुत ही लुभावना मीठा और प्यारा है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- धन - माल वा साहूकारी का नशा छोड़ देही - अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करना है*"

 

_ ➳  देह के भान से मुक्त, देही अभिमानी स्थिति में स्थित होते ही मुझे मेरे सत्य स्वरूप का अनुभव हो रहा है। मेरा सत्य स्वरूप अति सुंदर, अति प्यारा है। अपने इस सत्य स्वरूप को अब मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ। *एक ज्योति जो इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि पर विराजमान हो कर जगमग कर रही है। इस ज्योति से निकल रहे प्रकाश को मैं अपने चारों ओर महसूस कर रही हूँ*। प्रकाश का एक सुंदर औरा मेरे चारों और निर्मित हो रहा है। इस प्रकाश से निर्मित औरे में मुझ आत्मा के सातों गुण समाये हैं जिससे मुझे शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति हो रही है।

 

_ ➳  देही अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर, अपने वास्तविक गुणों की गहन अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ रही है। *मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है*। मैं अनुभव कर रही हूँ गुणों के सागर शिव पिता से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों को स्वयं पर पड़ते हुए।

 

_ ➳  शिव पिता परमात्मा से आ रही सर्व गुणों की शक्तिशाली किरणों के मुझ आत्मा पर पड़ने से मेरे चारों और निर्मित प्रकाश का औरा भी धीरे - धीरे बढ़ने लगा है। *प्रकाश के इस औरे के बढ़ने के साथ साथ इसमें समाये सातों गुण भी वायब्रेशन के रूप में चारों और फैलने लगे है*। दूर - दूर तक ये वायब्रेशन फैल रहें हैं और शक्तिशाली वायुमण्डल निर्मित कर रहें हैं।

 

_ ➳  सर्व गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और फैलाते हुए अब मैं जागती ज्योति इस शरीर रूपी मन्दिर से बाहर निकल कर गुणों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जा रही हूँ। *एक प्वाइंट ऑफ लाइट, मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी ऊपर की ओर जा रही हूँ*। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं। मेरे बिल्कुल सामने है महाज्योति शिव बाबा जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।

 

_ ➳  जैसे शमा की लौ परवाने को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं ऐसे ही मेरे शिव पिता से आ रही शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है और मैं आत्मा परवाना बन शिव शमा के पास जा रही हूँ। *धीरे - धीरे मैं बाबा के अति पास पहुंच कर बाबा को टच कर रही हूँ। बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।

 

_ ➳  सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ। *इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आ कर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ किन्तु अब मैं हर कर्म करते देही अभिमानी स्थिति में स्थित हूँ। इस देह से जुड़े अपने हर सम्बन्धी को भी अब मैं देह नही देही रूप में देख रही हूँ*। सभी को शिव पिता की अजर, अमर,अविनाशी सन्तान के रूप में देखते हुए निस्वार्थ भाव से सभी को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही हूँ। देह अभिमान के अवगुण को निकाल देही अभिमानी बन सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखते हुए उन्हें भी देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करवा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं महान और मेहमान इन दो स्मृतियों द्वारा सर्व आकर्षणों से मुक्त्त बननें वाली उपराम आत्मा हूँ।*

   *मैं साक्षीद्रष्टा  आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव सर्व की शुभ भावना और सहयोग को प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा बड़े कार्य को सहज ही होते अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं शुभचिंतक आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *अब तो आगे बढ़ने का बहुत सहज साधन मिला हुआ है सिर्फ एक शब्द की गिफ्ट है - वह कौन सी? ‘मेरा बाबा', यही एक शब्द ऐसी लिफ्ट है जो एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर जा सकते हो। क्या यह लिफ्ट यूज़ करने नहीं आती? अब लिफ्ट का जमाना है फिर सीढ़ी क्यों चढ़ते हो?* लिफ्ट में कोई थकावट नहीं होती। सोचा और पहुँचा। तो कौन हो? एक ही शब्द लिफ्ट है - ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं, एक शब्द एक नम्बर में पहुँचा देगा। जब मेरा बाबा हुआ तो मैं उसमें समा गई।' इतनी सहज लिफ्ट यूज़ करो - यूज़ करने वाले पहुँच जाते और देखने वाले, सोचने वाले रह जाते। *तो अब एक शब्द के स्मृति स्वरूप होकर सदा समर्थ आत्मा बन जाओ।*

 

✺  *"ड्रिल :- ‘मेरा बाबा’ शब्द की लिफ्ट को यूज़ करना*”

 

_ ➳  *अमृतवेले मीठे, लाडले बच्चे’- ये मधुर साज सुनते ही मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* सामने प्राण प्यारे बाबा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... मैं आत्मा झट से बाबा के गले लग जाती हूँ... मैं आत्मा मेरा बाबाकहते हुए बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की मखमली रुई जैसे गोदी में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा है... *बाबा के स्पर्श से मैं आत्मा इस शरीर को भूल रही हूँ... और बाबा की यादों में खोकर मैं आत्मा भी रुई जैसे हलकी हो रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा हलकी होकर प्यारे बाबा के साथ उडती हुई अपने घर पहुँच जाती हूँ... *बाबा से निकलती दिव्य तेजस्वी किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ...* मैं आत्मा अलौकिकता को धारण कर अलौकिक बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ रहती हूँ... *मैं आत्मा सदा अविनाशी बाबा के अविनाशी प्रेम में एकरस रहती हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा सदा बेहद के नशे में रहती हूँ... मुझ आत्मा का हद का नशा पूरी तरह से बाहर निकल रहा है... *मैं आत्मा स्मृति स्वरुप होकर समर्थ आत्मा बन रही हूँ...* मैं आत्मा सदा मेरा बाबाशब्द के जादू से उड़ता पंछी बन उडती रहती हूँ... किसी भी हद के बन्धनों में नहीं पड़ती हूँ... मैं आत्मा एक बाबा से सर्व सम्बन्ध निभाती हुई अविनाशी बन्धन में बंध गई हूँ...

 

_ ➳  *‘मेरा बाबा' शब्द बोलते ही मुझ आत्मा की मैं, मेरेपन की भावना मिट रही है... मैं आत्मा मेरा बाबाशब्द की जादुई चाबी लगाकर सर्व खजानों की अधिकारी बन रही हूँ...* संपत्तिवान बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा उमंग-उत्साह में रह उडती कला का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा बिना किसी थकावट या मेहनत के सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा *मेरा बाबा' शब्द की सहज लिफ्ट को यूज़ कर एक सेकण्ड में नीचे से ऊपर पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा मेरा बाबाशब्द की लिफ्ट से बिना किसी रुकावट के आगे बढ रही हूँ... *मैं आत्मा जब चाहे तब मेरा बाबा' शब्द की लिफ्ट में थर्ड फ्लोर से सेकंड फ्लोर सूक्ष्मवतन... और फर्स्ट फ्लोर मूलवतन पहुँच जाती हूँ...* मैं आत्मा इस लिफ्ट से स्व-दर्शन चक्र फिराकर सदा अपने आदि, अनादि स्वरुप की स्मृति में रहती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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