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 29 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *रूहानी यात्रा में रहकर दूसरों को रूहानी यात्रा सिखाई ?*

 

➢➢ *निरोगी बनने के लिए याद में मज़बूत बने ?*

 

➢➢ *मास्टर नॉलेजफुल बन अनजानेपन को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *प्रशनचित न बन प्रसन्नचित बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *तपस्या अर्थात् एक बाप की लगन में रहना। किसी भी कार्य में सफलता-मूर्त बनने के लिये त्याग और तपस्या चाहिए।* त्याग में महिमा का भी त्याग, मान का भी त्याग और प्रकृति दासी का भी त्याग-जब ऐसा त्याग हो तब तपस्या द्वारा सफलता स्वरूप बनेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ"*

 

   सदा बाप और वर्से की स्मृति में रहते हो! श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव होता है। *स्थिति का आधार है - 'स्मृति'। स्मृति कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर हो जाती है। स्मृति सदा शक्तिशाली रहे। वह शक्तिशाली स्मृति है - 'मैं बाप का और बाप मेरा'।* इसी स्मृति से स्थिति शक्तिशाली रहेगी और दूसरों को भी शक्तिशाली बनायेंगे। तो सदा स्मृति के ऊपर विशेष अटेन्शन रहे।

 

  *समर्थ स्मृति, समर्थ स्थिति, समर्थ सेवा स्वत: होती रहे। स्मृति, स्थिति और सेवा तीनों ही समर्थ हों। जैसे स्विच आन करो तो रोशनी हो जाती, आफ करो तो अंधियारा हो जाता, ऐसे ही यह स्मृति भी एक 'स्विच' है।*

 

  *स्मृति का स्विच अगर कमजोर है तो स्थिति भी कमजोर है। सदा 'स्मृति रूपी स्विच का अटेन्शन'। इसी से ही स्वयं का और सर्व का कल्याण है। नया जन्म हुआ तो नई स्मृति हो। पुरानी स्मृतियाँ सब समाप्त। तो इसी विधि से सदा सिद्धि को प्राप्त करते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *दो - चार बारी भी कोई बात प्रेक्टिकल में लाई जाती है तो प्रैक्टिकल में लाने से प्रैक्टीस हो जाती है।* यहाँ इस भट्ठी में अथवा मधुपन में इस अभ्यास को प्रैक्टिकल में लाते हो ना। जब यहाँ प्रैक्टिकल में लाते हो और प्रैक्टीस हो जाती है तो वह प्रैक्टीस की हुई चीज़ क्या बन जानी चाहिए? नेचरुल और नेचर बन जानी चाहिए। समझा।

 

✧  जैसे कहते हैं ना यह मेरी नेचर है। तो यह अभ्यास प्रैक्टीस में नेचुरल और नेचर बन जान चाहिए। यह स्थिति जब नेचर बन जायेगी फिर क्या होगा। नेचुरल केलेमिटीज हो जायेगी। *आपकी नेचर न बनने के कारण यह नेचुरल केलेमिटीज रुकी हुई है।* क्योंकि अगर सामना करने वाले अपने स्व - स्थिति से उन परिस्थितियों को पार नहीं कर सकेंगे तो फिर वह परिस्थितियाँ आयेंगी कैसे।

 

✧   *सामना करने वाले अभी तैेयार नहीं हैं। इसलिए यह पर्दा खुलने में देरी पड रही है।* अभी तक इन पुरानी आदतों से, पुरानी संस्कारों से , पुरानी बातों से, पुरानी दुनिया से, पुरानी देह के सम्बन्धियों से वैराग्य नहीं हुआ है। कहाँ भी जाना होता है तो जिन चीजों को छोडना होता है उनसे पीठ करनी होती है। तो अभी पीठ करना नहीं आता है। एक तो पीठ नहीं करते हो, दूसरा जो साधन मिलता है उसकी पीठ नहीं करते हो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे अभी सभी का एक संकल्प चल रहा था, वैसे ही सभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही 'अशरीरी-भव' बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ। तो सभी के संगठन रूप का शुद्ध-संकल्प क्या कर सकता है। किसी के भी ओर दूसरे संकल्प न हों। *सभी एक-रस स्थिति में स्थित हों तो बताओ वह एक सेकण्ड के शुद्ध-संकल्प की शक्ति क्या कमाल कर देती है तो ऐसे संगठित रूप में एक ही शुद्ध संकल्प अर्थात् एक-रस स्थिति बनाने का अभ्यास करना है। तब ही विश्व के अंदर शक्ति सेना का नाम बाला होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बन रूहानी यात्रा पर रहना"*

 

_ ➳  मैं वन्डरफुल आत्मा अपनी हर एक साँस को वन्डरफुल बाबा की यादों में पिरोकर सूक्ष्म शरीर धारण कर सूक्ष्मवतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बापदादा मुझे अपनी बाँहों में समेट लेते हैं... *बाबा की मखमली बाँहों में सिमटते ही मैं आत्मा देह और देह की दुनिया के सभी बातों को भूल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूतियों में खो जाती हूँ...* फिर मीठे बापदादा रूहानी याद की यात्रा कराते हुए मीठी रूह-रिहान करते हैं... 

 

  *घर बैठे-बैठे बिना किसी मेहनत के रूहानी यात्रा करने का सहज मार्ग बताते हुए प्यारे रूहानी बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता अपने दुखो में झुलसाये कुम्हलाये फूल बच्चों को 21जनमो का अथाह सुख लुटाने धरा पर उतर आया है... *अब शरीर के आवरण से अलग हो, अपने दमकते मणि स्वरूप के नशे में भर जाओ... और सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में गहरे डूब जाओ..."*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा के यादों के गहरे समंदर में डूबकर दिव्य गुणों का श्रृंगार करते हुए मैं प्यारी आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी खोज में किस कदर दर दर भटक रही थी... आपने सहज ही जीवन में आकर मुझे कितना भाग्यवान बना दिया है... खुशियो से मेरा दामन सजा दिया है... *मै आत्मा हर पल यादो में खोयी गहरे सुख को पा रही हूँ..."*

 

  *यादों के विमान में बिठाकर संगमयुगी आसमान में उड़ाकर सतयुगी दुनिया में पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस संकल्प और समय को यादो के तारो में पिरोकर... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर सुखो की धरा पर इठलाओ... *सदा यादो में खोये रहो और ईश्वरीय दिल पर झूमते ही रहो... ऐसे सच्चे प्यार में अपने रोम रोम को भिगो कर अतीन्द्रिय सुखो की अनुभूतियों में डूब जाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य पर नाज करती हुई दिल से प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर कितने खुबसूरत भाग्य की मालकिन हो गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपने दिल में समाकर मुझे हर दुःख से मुक्त किया है...* फूलो की छाँव और दिव्य गुणो की महक से जीवन कितना खुबसूरत प्यारा बना दिया है..."

 

  *सारे खजाने मुझ पर लुटाकर सच्चे सुख, शांति के फव्वारों से मुझे सराबोर करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *देह की यात्राओ में मन तो सदा रिक्त ही रहा... अब रूहानी यात्री बनकर... मन को सदा की मौज और आनन्द के अहसासो में भिगो दो... हर पल रूहानी यादो में खोये रहो...* ईश्वरीय यादो की खुमारी में सच्चे सुखो को पाकर... सतयुगी सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *यादों के महल में बैठकर मीठे बाबा के दिल की रानी बनकर राज करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को पाने वाली सौभाग्यशाली हूँ... मीठे बाबा आपने दुखो के दलदल से बाहर निकाल... *मुझे सुखो से भरे फूलो के बगीचे में बिठा दिया है... ईश्वरीय गोद पाकर मै आत्मा हर दुःख से आजाद होकर, यादो में मुस्करा उठी हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- रूहानी यात्रा में रहकर दूसरों को यही यात्रा सिखानी है*"

 

_ ➳  स्वयं परम पिता परमात्मा शिव बाबा ने रूहानी पण्डा बन जो रूहानी यात्रा हम बच्चों को सिखलाई है, उस यात्रा पर रहने के लिए एक दो को सावधानी देते आगे बढ़ना और बढ़ाना ही हम ब्राह्मण बच्चों का कर्तव्य है। *अपने आश्रम में, बाबा के कमरे में बैठी मैं मन ही मन यह विचार करते हुए बाबा का आह्वान करती हूँ और बाबा के साथ कम्बाइंड हो कर वहाँ उपस्थित अपने सभी ब्राह्मण भाईयों और बहनों को मनसा सकाश देते हुए ये संकल्प करती हूँ कि यहाँ उपस्थित मेरे सभी ब्राह्मण भाई बहन एक दो को सहयोग देते, इस रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते रहें* और ऐसे ही आगे बढ़ते और दूसरों को बढ़ाते जल्दी ही सारे विश्व की सभी ब्राह्मण आत्मायें संगठित रूप से एकमत होकर बाबा को प्रत्यक्ष करने का कार्य सम्पन्न करें।

 

_ ➳  इसी संकल्प के साथ, स्वयं को अपने प्यारे बाबा की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, *अपने ब्राह्मण सो फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो कर, मैं फरिश्ता अब बापदादा के साथ कम्बाइंड होकर ऊपर की ओर उड़ते हुए मधुबन की पावन धरनी पर पहुँचता हूँ जो परमात्मा की अवतरण भूमि है*। जहाँ भगवान साकार में आ कर अपने ब्राह्मण बच्चों से मिलन मनाते हैं, उनकी पालना करते हैं और परमात्म प्यार से उन्हें भरपूर करते हैं। *इस पावन धरनी पर आकर अब मैं देख रहा हूँ करोड़ो ब्राह्मण आत्मायें यहां उपस्थित है और सभी एक दूसरे के प्रति आत्मा भाई - भाई की रूहानी दृष्टि, वृति रख, अपने रूहानी शिव पिता के प्रेम की लग्न में मग्न हैं*।

 

_ ➳  सभी ब्राह्मण बच्चों के स्नेह की डोर बाबा को अपनी ओर खींच रही है और बच्चो के स्नेह में बंधे भगवान को भी अपना धाम छोड़ कर नीचे आना पड़ता है। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं देख रही हूँ, बाबा परमधाम से नीचे आ रहें है। *सूक्ष्म वतन से होते हुए अपने आकारी रथ पर विराजमान हो कर बापदादा अब मधुबन की उस पावन धरनी पर हम बच्चों के सामने आ कर उपस्थित होते हैं*। सभी ब्राह्मण बच्चे अब अपने पिता परमात्मा से मिलन मनाने का आनन्द ले रहे हैं। बापदादा अपने एक - एक अमूल्य रत्न को नजर से निहाल कर रहें हैं। एक - एक करके सभी ब्राह्मण बच्चे बाबा के पास जा कर बाबा से दृष्टि और वरदान ले रहें हैं।

 

_ ➳  मैं फरिश्ता भी बापदादा से दृष्टि और वरदान लेने के लिए उनके पास पहुंचता हूँ और उनकी ममतामयी गोद में जा कर बैठ जाता हूँ। अपनी स्नेह भरी दृष्टि से बाबा मुझे निहार रहें हैं। बाबा की दृष्टि से बाबा के सभी गुण मुझ में समाते जा रहें हैं। *बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मुझमें एक अलौकिक रूहानी नशे का संचार कर रही हैं । जिससे मैं फरिश्ता असीम रूहानी आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ*। बाबा के हाथों का मीठा - मीठा स्पर्श मुझे बाबा के अपने प्रति अगाध प्रेम का स्पष्ट अनुभव करवा रहा है ।

 

_ ➳  मैं बाबा के नयनो में अपने लिए असीम स्नेह देख कर गद गद हो रहा हूँ और साथ ही साथ बाबा के नयनों में अपने हर ब्राह्मण बच्चे के लिए जो आश है कि सभी एक दो को सावधान करते इस रूहानी यात्रा पर सदा आगे बढ़े। *बाबा की इस आश को जान, मन ही मन बाबा को मैं प्रोमिस करता हूँ कि इस रूहानी यात्रा पर एक दो को सावधान करते, मैं निरन्तर आगे बढ़ता ओर बढाता रहूँगा*। बाबा मेरे मन के हर संकल्प को पढ़ते हुए, अपना वरदानी हाथ मेरे मस्तक पर रख मुझे सदा विजयी रहने का वरदान दे रहें हैं।

 

_ ➳  अपने सभी ब्राह्मण बच्चो को नजर से निहाल करके, वरदानो से भरपूर करके, अपने मीठे मधुर महावाक्यों द्वारा अपने सभी बच्चों को मीठी समझानी देकर अब बाबा सभी बच्चों को याद की रूहानी यात्रा पर चलने की ड्रिल करवा रहें है। *मैं देख रही हूँ सभी ब्राह्मण आत्मायें सेकेंड में अपनी साकारी देह को छोड़ निराकारी आत्मायें बन रूहानी दौड़ में आगे जाने की रेस कर रही हैं। सभी का लक्ष्य इस रूहानी दौड़ में आगे बढ़ने का है और सभी अपने पुरुषार्थ के अनुसार नम्बरवार इस लक्ष्य को प्राप्त कर अपनी मंजिल पर पहुंच रही हैं*।

 

_ ➳  सभी आत्मायें इस रूहानी यात्रा को पूरा कर अब परमधाम में अपने प्यारे बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मिलन मना रही हैं। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हैं। *शक्ति सम्पन्न बन कर अब सभी आत्मायें वापिस अपने साकारी ब्राह्मण स्वरूप में लौट रही है और सभी एक दो को सावधान करते, एक दूसरे को सहयोग देते अपनी रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ रही हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं मास्टर नॉलेजफुल बन अनजानपने को समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं योगयुक्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा प्रसन्नचित हूँ  ।*

   *मैं आत्मा प्रश्नचित्त होने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं सरलचित्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *समय के प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करो:- अभी समय के प्रमाण परिवर्तन की गति तीव्र चाहिए।* जब समय तीव्रगति में जा रहा है और परिवर्तन करने वाले तीव्रगति में नहीं होंगे तो समय परिवर्तन हो जायेगा और स्वयं कमी वाले ही रह जायेंगे। कमी वाली आत्माओं की निशानी क्या दिखाई है? कमान। तो कमानधारी बनना है वा छत्रधारी बनना है? *सूर्यवंशी बनना है ना? तो सूर्य सदा तेज होता है और तीव्रगति में कार्य करता है। सूर्य के अन्तर में चन्द्रमा शीतल गाया जाता है। तो पुरूषार्थ में शीतल नहीं होना है। पुरूषार्थ में शीतल हुए तो चन्द्रवंशी हो जायेंगे। सूर्यवंशी की निशानी है - तीव्र पुरूषार्थ।* सोचा और किया। ऐसे नहीं, सोचा एक वर्ष पहले और किया दूसरे वर्ष में। तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला वाले। अभी चढ़ती कला का समय भी चला गया।

 

✺  *"ड्रिल :- तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव करना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन-बुद्धि रूपी टाइम मशीन में बैठकर रूहानी सैर पर निकलती हूँ...* मैं आत्मा टाइम मशीन को सतयुगी दुनिया के समय में सेट करती हूँ... *बादलों के ऊपर से उड़ते हुए टाइम मशीन को लैंड करती हूँ स्वर्णिम युग में...* मैं आत्मा अति सुंदर, अवर्णनीय स्वर्णिम युग के नज़ारों को देखते हुए चल रही हूँ...

 

_ ➳  *चारों ओर की सतोप्रधान प्रकृति, सुन्दर-सुन्दर पहाड़ियां, सुंदर-सुंदर बाग-बगीचे , सोने-हीरे-जवाहरातों के बड़े-बड़े महल बहुत ही मनोहारी लग रहे हैं...* दूध की नदियाँ बह रही हैं... पंछियों की आवाज़ कानों में मधुर रस घोल रही है... *चारों ओर सुख, शांति, प्रेम, आनंद से भरी बहुत ही अद्वितीय स्वर्णिम दुनिया है...*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मनमोहक नजारों को देखते-देखते एक बहुत बड़े सुन्दर से महल में प्रवेश करती हूँ...* मैं आत्मा स्वयं को रत्न-जडित सिंहासन पर विश्व के बादशाह के रूप में देख रही हूँ... *मैं आत्मा 16 कला सम्पूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम सम्पूर्ण देवताई स्वरुप में स्वयं को देख रही हूँ...* ऊँचे कद काठी, कंचन वर्ण, कानों में कुंडल, मस्तक पर चमकता हुआ मणि, हीरे, सोने के आभूषणों, सुंदर दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित मेरी ये छबि देखते ही बनती है...

 

_ ➳  *सूर्यवंशी घराने की मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ...* मुझ आत्मा ने श्रीकृष्ण के साथ पूरे 84 जन्मों का पार्ट निभाया है... सुख-समृद्धि से संम्पन्न जीवन व्यतीत किया है... *पुरुषार्थ में शीतल होकर चन्द्रवंशी बनना मतलब 1250 वर्षों की सुख, शांति, सम्पन्नता के जीवन से वंचित रहना...* मुझ आत्मा को फिर से सूर्यवंशी बनना है तो तीव्र पुरुषार्थ करना ही होगा...

 

_ ➳  *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्ष्य को सामने रख टाइम मशीन में बैठकर पहुँच जाती हूँ परमधाम...* ज्ञान सूर्य के सामने बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा ज्ञान सूर्य के तेज को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... मुझ आत्मा के आलस्य, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं... *मैं आत्मा स्वयं में फुर्ती, उमंग-उत्साह का अनुभव कर रही हूँ...* अपनी सभी कमी-कमजोरियों को शक्ति रूप में परिवर्तित कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति को धारण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा समय की तीव्रगति के प्रमाण स्वयं की परिवर्तन की गति को तीव्र कर रही हूँ... *मैं आत्मा सूर्यवंशी बनने के लक्षण धारण कर रही हूँ...* और समय को समीप लाकर विजय प्राप्त कर रही हूँ... अब मैं आत्मा संकल्प करते ही निश्चित समय पर हर कार्य को करते हुए सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा पुरूषार्थ में शीतल नहीं होती हूँ... तीव्र पुरुषार्थ करते हुए सदा उडती कला में रह सूर्यवंशी घराने की अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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