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 16 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *वनवाह में रह बहुत बहुत साधारण बनकर रहे ?*

 

➢➢ *सच्चा सच्चा सौदागर बन अपना पोतामेल रखा ?*

 

➢➢ *याद की सर्चलाइट द्वारा वायुमंडल बनाया ?*

 

➢➢ *स्वयं को व दूसरों को डिस्टर्ब तो नही किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब योगबल द्वारा आत्माओं को जगाने का कर्तव्य करो और सर्व शक्तिवान बाप की पालना का प्रत्यक्ष स्वरुप दिखाओ।* साकार रुप द्वारा भी बहुत पालना ली और अव्यक्त रुप द्वारा भी पालना ली, *अब अन्य आत्माओं की ज्ञान-योग से पालना करके उनको भी बाप के सम्मुख और समीप लाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कर्मयोगी आत्मा हूँ"*

 

  सेवा करते हुए सदा अपने को कर्मयोगी स्थिति में स्थित रहने का अनुभव करते हो कि कर्म करते हुए याद कम हो जाती है और कर्म में बुद्धि ज्यादा रहती है! *क्योंकि याद में रहकर कर्म करने से कर्म में कभी थकावट नहीं होती। याद में रहकर कर्म करने वाले कर्म करते सदा खुशी का अनुभव करेंगे।*

 

  कर्मयोगी बन कर्म अर्थात् सेवा करते हो ना! *कर्मयोग के अभ्यासी सदा ही हर कदम में वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाते हैं। भविष्य खाता सदा भरपूर और वर्तमान भी सदा श्रेष्ठ। ऐसे कर्मयोगी बन सेवा का पार्ट बजाते हो। भूल तो नहीं जाता।*

 

  मधुबन में सेवाधारी हैं तो मधुबन स्वत: ही बाप की याद दिलाता है। *सर्व शक्तियों का खजाना जमा किया है ना! इतना जमा किया है जो सदा भरपूर रहेंगे। संगमयुग पर बैटरी सदा चार्ज है। द्वापर से बैटरी ढीली होती। संगम पर सदा भरपूर, सदा चार्ज है।* तो मधुबन में बैटरी भरने नहीं आते हो, स्वेज मनाने आते हो। बाप और बच्चों का स्नेह है इसलिए मिलना, सुनना, यही संगमयुग के स्वेज हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आप कोई कार्य करते हो वा बात करते हो तो बीच - बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टाँप करना चाहिए। *एक मिनिट के लिए भी मन के संकल्पों को चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टीस करनी चाहिए।*

 

✧  अगर यह प्रैक्टीस नहीं करेंगे तो बिन्दु रुप की पाँवरफुल स्टेज कैसे और कब ला सकेंगे? इसलिए यह अभ्यास करना आवश्यक है।

बीच - बीच में यह प्रैक्टीस प्रैक्टिकल में करते रहेंगे तो जो आज यह बिन्दु रुप की स्थिती मुश्किल लगती है वह ऐसे सरल हो जायेगी जैसे अभी मैजारिटी को अव्यक्त स्थिति सहज लगती है।

     

✧  पहले जब अभ्यास शुरु किया तो व्यक्त में अव्यक्त स्थिति में रहना मुश्किल लगता था। *अभी अव्यक्त स्थिति में रह कार्य करना जैसे सरल होता जा रहा है वैसे ही यह बिन्दु रुप की स्थिति भी सहज हो जायेगी*। अभी महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी चाहिए। समझा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *यह सोचो कि अगर देहभान का त्याग नहीं करेंगे अर्थात् देही अभिमानी नहीं बनेंगे तो भाग्य भी अपना नहीं बना सकेंगे संगमयुग का जो श्रेष्ट भाग्य है उनसे वंचित रहेंगे।* तो चेक करो - संकल्प के रूप में व्यर्थ संकल्प का कहाँ तक त्याग किया है? वृत्ति सदा भाई-भाई की रहनी चाहिए; उस वृत्ति को कहां तक अपनाया है और देह में देहधारी पन की वृत्ति का कहां तक त्याग किया है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अल्फ और बे को याद करना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा मंदिर में बजती घंटी की आवाज़ से उन दिनों को स्मृतियों में लाती हूँ... जब मैं भी भगवान् को पाने की चाह में हर मंदिर, तीर्थ स्थानों में भटक रही थी... अल्पकाल की इच्छाओं की पूर्ति के लिए पूजा, जप, तप, उपवास करती थी... *इन कोटों भक्तों में से परमात्मा ने मुझे चुनकर अपना बनाकर मुझे सत्य ज्ञान देकर मेरे भटकन को समाप्त कर दिया...* सदाकाल के लिए मेरी झोली खजानों से भर दिया... *मैं आत्मा प्राप्तियों को याद करते-करते पहुँच जाती हूँ... मधुबन बाबा के कमरे में... बाबा प्यार से निहारते हुए मुझ पर अविनाशी ज्ञान रत्नों की बरसात करते हैं...*

 

  *प्यारे बाबा याद की मीठी मिठाई खिलाकर सबको बाबा का परिचय देकर ये मिठाई बाँटने की समझानी देते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय याद ही खुबसूरत सुखो का सच्चा आधार है... इन मीठी यादो में गहरे खो जाओ... *और दूसरो को भी इन मीठी अनुभूतियों के अहसास में भिगो दो... दुखो में भटके दिलो को... अल्फ और बे का परिचय देकर सच्चे सुखो का रास्ता बताओ...”*

 

_ ➳  *मोस्ट बिलवेड बाबा को यादों में बसाकर सबकी राहों में सत्यता के फूल बिखेरते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा सबको सच्चा रास्ता दिखाने वाली नूरानी मणि बन गयी हूँ... *सबको सच्चे पिता से मिलवा कर सदा का मुख मीठा करा रही हूँ...* असीम सुखो के राज को हर दिल में बाँट रही हूँ...

 

  *स्वदर्शन चक्रधारी बनाकर असीम खुशियों की अनंत ऊँचाइयों में उड़ाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह और देहधारियों की यादो ने किस कदर विकारो से काला कर दिया है... अब ईश्वरीय यादो में सदा के ओजस्वी और खुबसूरत मणि बन जाओ... *मीठे सुखो में मुस्कराने का खुबसूरत भाग्य पाओ और सबको ऐसा ही भाग्यशाली बनाओ...* यही मिठाई खाओ और खिलाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूहानी खुशबू बनकर हर दिल के आँगन को सत्य ज्ञान से महकाकर कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पायी अनन्त खुशियां सारे विश्व में फैला रही हूँ... *हर आँचल को सच्ची यादो से बांध रही हूँ और सतयुगी सुखो का अधिकारी बना रही हूँ... भगवान धरा पर आकर सतयुग का वर्सा बाँट रहा यह खबर विश्व की हवाओ में महका रही हूँ...”*

 

  *मुझे पारसमणि बनाते हुए औरों को भी आप समान बनाने की युक्ति बतलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... आप समान सबको सुखी बनाओ... दुखो में निस्तेज चेहरों पर सच्चे प्रकाश का ओज भर आओ... *सच्चे वजूद का पता देकर हर दिल को रौशन कर आओ... ईश्वरीय यादो में अनन्त सुखो के अधिकारी बनकर यह सुख सबके दामन में भी सजा आओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सबको अल्फ का एक्यूरेट परिचय देकर अल्लाह के बगीचे का फूल बनाने की सेवा करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा यादो की मिठाई सबको बाँट कर बाप दादा के दिल तख्त पर मणि सी मुस्करा रही हूँ... *अल्फ और बे का परिचय देकर सबके मन को भटकन से छुड़ा रही हूँ... मीठे बाबा आपसे पायी खुशियो की जागीर सबको दिला आप समान अमीर बना रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अभी हम वनवाह में हैं - इसलिए बहुत - बहुत साधारण रहना है*"

 

 _ ➳  अपने मन बुद्धि को सभी बाहरी बातों से डिटैच करके, मैं जैसे ही एकाग्र हो कर बैठती हूँ। प्यारे शिव पिता परमात्मा के महावाक्य स्मृति में आने लगते है, बच्चे:- "वनवास में रहना है"। *इन महावाक्यों के स्मृति में आते ही वो दृश्य आंखों के सामने आने लगता है जब ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन सब कुछ यज्ञ में समर्पित कर दिया, दादियों ने भौतिक संसार की सभी सुख सुविधाओं को त्याग 14 वर्ष का वनवास ले लिया*। योग की भट्टी में स्वयं को तपा कर ऐसा सच्चा सोना बना दिया जिसकी चमक आज पूरी दुनिया में फैल रही है।

 

 _ ➳  मन मे यह विचार आते ही मैं स्वयं को पांडव भवन के उस स्थान पर खड़ा हुआ देखती हूँ जहां रह कर 14 वर्ष ब्रह्मा बाबा और दादियों ने भौतिक जगत की सभी सुख सुविधाओं को त्याग कर कठोर तपस्या की। सब ऐशो - आराम होते हुए भी उसका त्याग कर वनवास में रहे। *उनकी कठोर तपस्या का प्रतिफल ही शक्तिशाली वायब्रेशन के रुप में पूरे मधुबन में फैला हुआ है जो यहां आने वाली हर आत्मा को गहन शांति की अनुभूति करवाकर तृप्त कर देता है*। 

 

 _ ➳  मधुबन के पांडव भवन में शांति स्तम्भ पर बैठ गहन शांति की अनुभूति करके मैं स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि जैसे ब्रह्मा बाबा ने सांसारिक सुखों का त्याग कर, वनवास में रह, अति साधारण जीवन व्यतीत किया ऐसे ही फॉलो फादर कर मुझे भी बाप समान बनना है। *स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए मैं स्पष्ट महसूस करती हूँ कि मेरे सामने बापदादा, मम्मा, यज्ञ में सब कुछ समर्पित कर वनवास में रहने वाली वरिष्ठ दादियां और एडवांस पार्टी की आत्मायें उपस्थित है*। बापदादा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है। बाबा मुझे विजयी भव का वरदान दे रहें हैं। दादियां और एडवांस पार्टी की सभी आत्मायें भी अपनी ब्लैसिंग दे रही हैं।

 

 _ ➳  सभी की ब्लैसिंग लेकर अब मैं शांति स्तम्भ से उठकर बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ और ब्रह्मा बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने जा कर बैठ जाती हूँ। *बाबा के उस चित्र से आ रही लाइट माइट सेकण्ड में मुझे मेरे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर देती है और लाइट माइट स्वरुप में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ कि अव्यक्त बापदादा मेरे सामने बॉहें पसारे खड़े हैं और मैं फ़रिशता उनकी बाहों में समाकर उनकी लाइट माइट से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ*। बापदादा अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख कर अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल कर रहें हैं। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ।

 

 _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपना सम्पूर्ण बल मेरे अंदर भर रहें हैं जो मुझे भौतिक जगत की सुख सुविधाओं के हर आकर्षण से मुक्त कर इच्छा मात्रम अविद्या बना रहा है। *भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग कर, अति साधारण किन्तु श्रेष्ठ और विशेष जीवन जीने की प्रेरणा दे रहा है*। बाबा की लाइट माइट स्वयं में भरकर अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ मैं अपने स्थूल शरीर मे प्रवेश कर जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपनी कर्म भूमि, अपने सेवा स्थल पर लौट आती हूँ*।

 

 _ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं सदैव स्वयं को वनवास में अनुभव करती हूँ। हद की सभी इच्छाओं का त्याग कर, बेहद की सन्यासी बन, कदम - कदम पर फॉलो फादर कर, बाप समान बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं याद की सर्चलाईट द्वारा वायुमण्डल बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं विजयी रत्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा स्वयं को और दूसरे को डिस्टर्ब करने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा बोझ से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं निष्काम सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  साधारण मैं-पन वा रायल मैं-पन दोनों का समर्पण किया है? किया है या कर रहे हैं? करना तो पड़ेगा ही... आप लोग आपस में हँसी में कहते हो ना, मरना तो पड़ेगा ही... *लेकिन यह मरना भगवान की गोदी में जीना है... यह मरना, मरना नहीं है... 21 जन्म देव आत्माओं के गोदी में जन्मना है...* इसीलिए खुशी-खुशी से समर्पित होते हो ना! चिल्ला के तो नहीं होते? नहीं। *भक्ति में भी चिल्लाया हुआ बलि स्वीकार नहीं होती है...* तो जो खुशी से समर्पित होते हैं, हद के मैं और मेरे में, वह जन्म-जन्म वर्से के अधिकारी बन जाते हैं...

 

✺   *ड्रिल :-  "मरना अर्थात भगवान की गोदी में जीने का अनुभव"*

 

 _ ➳  यह देह, देह की दुनिया और इस देह से जुड़े सम्बन्धों में लगाव, झुकाव और टकराव ही तो भगवान की गोद में जीने के सुख से वंचित करते हैं और *जो इस बात को अच्छी रीति जान जाते है कि देह और देह से जुड़ी कोई भी चीज हमे सच्चे सुख और शांति की अनुभूति कभी नही करवा सकती वो फिर इस दुनिया मे स्वयं को वंचित होने से बचा लेते हैं* और इस दुनिया से जीते जी मर कर भगवान की गोद मे जीने का सुख अनुभव करते हुए सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हैं... मन ही मन स्वयं से यह बातें करती मैं खो जाती हूँ अपने उस भगवान बाप की मीठी सी याद में जो मुझे सेकण्ड में परमात्म पालना का मीठा सा अनुभव करवा कर तृप्त कर देती है...

 

 _ ➳  मेरे संकल्प मात्र से ही मेरे शिव पिता परमात्मा अपनी शक्तिशाली किरणों की छत्रछाया रूपी गोद मे मुझे बिठा लेते हैं... मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ परमधाम से मेरे मीठे बाबा की सर्वशक्तियाँ सीधे मुझ आत्मा पर पड़ रही है और *अपने भगवान बाप की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे बैठ मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ...* जैसे एक बच्चा माँ की गोद मे आते ही स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है और निश्चित हो जाता है ठीक उसी प्रकार परमात्म गोद में बैठ मैं आत्मा भी स्वयं को बेफिक्र अनुभव कर रही हूँ क्योकि *भगवान की गोद में बैठ कर मैं स्वयं को हर प्रकार के बोझ और बन्धन से मुक्त अनुभव कर रही हूँ...* यह बोझ मुक्त और निर्बन्धन स्थिति मुझे लाइट और माइट बना रही है...

 

 _ ➳  अपने भगवान बाप की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे बैठ अब मैं अपने निराकार लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ... *परमात्म गोद का सुख लेते हुए सेकेंड में मैं इस पांच तत्वों की दुनिया को पार कर अपनी निराकारी दुनिया मे प्रवेश करती हूँ...* अपने शिव पिता परमात्मा की शक्तिशाली किरणों रूपी गोद से उतर कर अब मैं अपनी इस निराकारी दुनिया की सैर कर रही हूँ... इस पूरे परमधाम घर मे फैले मेरे शिव पिता से निरन्तर निकल रहे शांति के शक्तिशाली प्रकम्पन ऐसे लग रहे हैं जैसे *शांति की शीतल लहरे घड़ी - घड़ी पास कर मुझ आत्मा को गहन सुकून से भरपूर कर रही हैं...* जिस शांति की तलाश में आत्मा दो युगों से भटक रही थी वो गहन शांति पाकर अब जैसे मैं आत्मा तृप्त हो गई हूँ...

 

 _ ➳  अपने परमधाम घर की सैर करके, शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं वापिस अपने निराकार भगवान बाप की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे आ कर बैठ जाती हूँ और परमात्म गोद का सुख लेने लगती हूँ... *ऐसा लग रहा है जैेसे मेरी शिव माँ अपनी ममतामयी गोद मे मुझे बिठा कर, अपनी शक्तियों की शीतल छाया मुझ पर करते हुए मुझे धीरे - धीरे सहला रही है और अपनी शक्तियों से मुझे शक्तिशाली बना रही है...* परमात्म लाइट और माइट से मुझे भरपूर करके मेरे अंदर असीम बल भर रही है ताकि माया के किसी भी वार का मुझ पर कोई प्रभाव ना पड़ सके...

 

 _ ➳  परमात्म बल , परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर और परमात्म गोद के सुखद अनुभव के साथ अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ... फिर से पांच तत्वों की दुनिया मे प्रवेश कर मैं अपने साकारी तन में विराजमान होती हूँ... *मेरा यह ब्राह्मण जन्म मरजीवा जन्म है, मेरे भगवान बाप की देन है इस बात को सदा स्मृति में रख, इस दुनिया से जीते जी मर कर अब मैं सम्पूर्ण समर्पण भाव से, अपना तन - मन - धन सब कुछ भगवान बाप पर समर्पण कर, पदमापदम सौभाग्यशाली बन, भगवान की गोदी में जीने के सुख का आनन्द हर पल ले रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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