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❍ 18 / 04 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप समान कर्मातीत अवस्था का अनुभव किया ?*
➢➢ *बाप की गोदी के झूले में झूलते रहे ?*
➢➢ *दिल की महसूसता से बाप से माफ़ी ली ?*
➢➢ *"करावनहार बाप, निमित मैं हूँ" - इस स्मृति से सेवाओं की हलचल से मुक्त रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे कोई भी बात सामने आती है, तो स्थूल साधन फौरन ध्यान में आ जाते हैं *लेकिन स्थूल साधन होते हुए भी ट्रायल योगबल की ही करनी चाहिए। जैसे साइंस के यंत्रों द्वारा दूर का दृश्य सन्मुख अनुभव करते हो, वैसे साइलेंस की शक्ति से भी दूरी समाप्त हो सामने का अनुभव आप भी करेंगे और अन्य आत्मायें भी करेंगी, इसको ही योगबल कहा जाता है।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अमर बाप की अमर आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अमर बाप की अमर आत्मायें हो ना। अमर हो गई ना? शरीर छोड़ते हो तो भी अमर हो, क्यों? *क्योंकि भाग्य बना करके जाते हो। हाथ खाली नहीं जाते। इसलिए मरना नहीं है। भरपूर होकर जाना है। मरना अर्थात् हाथ खाली जाना। भरपूर होकर जाना माना चोला बदली करना।*
〰✧ तो अमर हो गये ना। *'अमर भव' का वरदान मिल गया। इसमें मृत्यु के वशीभूत नहीं होते। जानते हो जाना भी है फिर आना भी है। इसलिए अमर हैं। अमरकथा सुनते-सुनते अमर बन गये।* रोज-रोज प्यार से कथा सुनते हो ना।
〰✧ बाप अमरकथा सुनाकर अमरभव का वरदान दे देता है। *बस सदा इसी खुशी में रहो कि अमर बन गये। मालामाल बन गये। खाली थे, भरपूर हो गये। ऐसे भरपूर हो गये जो अनेक जन्म खाली नहीं हो सकते।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *दिन - प्रतिदिन सर्वीस बढती जानी है और समस्यायें भी बढती जानी हैं। और यह जो संकल्पों की स्पीड है वह भी दिन - प्रतिदिन बढेगी।* अभी एक सेकण्ड में जो दस संकल्प करते हो उसकी डबल - ट्रबल स्पीड तेज होगी। एक तरफ संकल्पों की, दूसरी तरफ ईविल स्प्रिटस (आत्माओं) की भी वृद्धि होगी। लेकिन *इसके लिए एक विशेष अटेन्शन रखना पडे, जिससे सर्व बातों का सामना कर सकेंगे।*
〰✧ वह यह है कि *जो भी बात होती है उसको स्पष्ट समझने के लिए दो शब्द याद रखना है। एक अन्तर और दूसरा मन्त्र।* जो भी बात होती है उसका अन्तर करो कि यह यथार्थ है या अयथार्थ है। बापदादा के सामने है वा नहीं है। बाप समान है वा नहीं? एक तो हर समय अन्तर (भेंट) करके उसका एक सेकण्ड में नाट या डाटा।करना नहीं है तो डाट देंगे, अगर करना है तो करने लग जायेंगे।
〰✧ *तो नाट और डाट यह भी स्मृति में रखना है।* अन्तर और मन्त्र यह दोनों प्रैक्टिकल में होंगे। दोनों को भूलेंगे नहीं तो कोई भी समस्या वा कोई भी ईविल स्प्रिटस सामना नहीं कर सकेगु। एक सेकण्ड में समस्या भस्म हो जायेगी। ईविल स्प्रिटस आपके सामने ठहर नहीं सकती है। तो यह पुरुषार्थ करना पडेँ। समझा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ कभी भी शव को न देखो अर्थात् इस देह को न देखो। इनको देखने से अथवा शरीर के भान में रहने से ला ब्रेक होता है। *अगर इस ला में अपने आपको सदा कायम रखो कि शव को नहीं देखना है; शिव को देखना है तो कब भी कोई बात में हार नहीं होगी, माया वार नहीं करेगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की विशेषताएं"*
➳ _ ➳ *मैं ज्योति परमज्योति के संग, नूर बेहद का बरसाती... मेहनत से मुक्त हुई... सुख उनकी मोहब्बतों में पाती*... मैं ज्योर्तिबिन्दु आत्मा प्रकाश के शरीर में झिलमिलाती, ज्ञान, प्रेम, सुख, शान्ति, पवित्रता के बादलों संग इठलाती हुई बापदादा संग सूक्ष्म वतन में कमल आसन पर विराजमान हूँ... *मेरे सामने मुस्कुराते हुए... आनन्द की बारिशो में मुझे नहलाते हुए बापदादा... संगम युग की सहज प्राप्तियों का अनुभव कराते हुए*...
❉ *हर फिक्र से फारिग करने वाले बापदादा मुझ फरिश्ता स्वरूप आत्मा से बोले:-* "मेरी जहान की नूर, जागती ज्योति बच्ची... आपका ये संगमयुगी जीवन बेहद मूल्यवान है... क्या आपको इसकी सहज प्राप्तियों की भली प्रकार पहचान है? *आप जागती हो तो जहान की आत्माए जाग जाती है... आपकी चढती कला से ये सभी कल्याण का वर्सा पाती है... संगम पर सुख शान्ति की अजंलि पाकर आपसे ये ही भक्ति में आपके गुण गाती है..."*
➳ _ ➳ *लाइट के कार्ब में चमकती मैं आत्मा मणि बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... सब खजानों से आपने *इतना भरपूर किया है दुख एक जन्म का नही जन्मो जन्मों का दूर किया है*... कुछ भी तो अप्राप्त नही रहा अब... संगम पर आपने त्रिलोकीनाथ और त्रिकालदर्शी बनाया है... *आपका मिलना तो खुद में ही एक महामिलन था... फिर आपने स्वर्ग की सौगातों का भी अंबार लगाया है*"...
❉ *स्व का दर्शन करा चक्रधारी बनाने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरी विघ्न विनाशक बच्ची... *विघ्नों को दूर करने का सहज उपाय जानते हो आप... हर दुविधा से बचने का उपाय बस श्रेष्ठ संकल्प को पहचानते हो आप*... जैसे आप अपनी खुशियों के रचनाकार बन रहे हो... बाप के अंग संग रह हर प्राप्ति के हकदार बन रहे हो... *अब सबको इस भाग्य का अधिकारी बनाओं... दुआओं से मालामाल हो जाओगें... बाप से उसके बिछुडे बच्चों को मिलाओं*"...
➳ _ ➳ *स्व सेवा और सर्व की सेवा का बैलेन्स रखने वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *आप समान सेवाधारी बनने की तात अब तो हर पल लगी रहती है... स्वयं के विघ्नों पर नही हर आत्मा के विघ्न दूर करने पर अब नजर लगी रहती है*... दुआओ से डबल मालामाल हुई जा रही हूँ मैं... चहुँ ओर से ही खुशियों की अनूठी सौगात पा रही हूँ मैं..."
❉ *एक बाबा शब्द की जादुई चाबी से सब प्राप्तियाँ सहज ही कराने वाले बापदादा मुझ आत्मा से बोले:-* "मीठी बच्ची... अपने परमपद की ओर शीघ्रता से बढते हुए आप संगमयुग की सहज प्राप्तियों की डायरेक्ट अधिकारी बनी हो... *आपकी बडी ते बडी विशेषता यही है कि आपने गुप्त वेशधारी बाप को पहचाना है... विशेषताओं के खजानों से भरपूर होते जा रहे हो आप... ये ही तो संगम युग का नजराना है..."*
➳ _ ➳ *अपनी विशेषताओं के बीज को सर्वशक्तियों के जल से सींच कर फलदायक बनाने वाली मैं वरदानी आत्मा बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... *संगम पर जो जो भी सौगातें पा रही हूँ... आप समान ही निमित्त बन हर सेवा में लगा रही हूँ... हर आत्मा संगमयुगी खजानों से अब भरपूर हो रही... निश्चय बढता ही जा रहा है उनमें, अब हर एक पावनता का नूर हो रही है*... और मन्द मन्द मुस्कुराते हुए बापदादा की मीठी वरदानी दृष्टि मुझ आत्मा को मेरे सम्पूर्ण रूप का साक्षात्कार करा रही है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- करावनहार बाप, निमित मैं हूँ" - इस स्मृति से सेवाओं की हलचल से मुक्त रहना*"
➳ _ ➳ करनकरावनहार भगवान स्वयं कैसे हम बच्चों को निमित बनाकर ईश्वरीय कार्य को सम्पन्न करा रहें हैं, एकांत में बैठ यही विचार करते हुए मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ कि कितनी महान सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान ने मुझे अपने ईश्वरीय कार्य मे अपना मददगार बनाया। *करनकरावन हार भगवान मुझे निमित बनाकर, सब काम गुप्त रीति मुझसे करवाकर, मेरा कितना ऊँचा भाग्य बना रहे हैं। "वाह मैं आत्मा वाह", "वाह मेरा भाग्य वाह" जो भगवान ने निमित बना कर ईश्वरीय सेवायों का गोल्डन चान्स मुझे दिया*। इस बात को मैं कभी नही भूलूँगी कि मैं केवल निमित मात्र हूँ। सब कुछ मेरे मीठे करनकरावन हार बाबा मुझसे करवा रहें हैं। *"मैंने किया" इस हद के संकल्प द्वारा कभी भी कच्चा फल खाकर मैं अपने भाग्य को लकीर नही लगाऊंगी, मन ही मन इस दृढ़ संकल्प के साथ अपने करन करावनहार बाबा का दिल से मैं शुक्रिया अदा करती हूँ और खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों की स्मृति में*।
➳ _ ➳ डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता, सेकेण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्यविधाता, अविनाशी बाप ने करोड़ो आत्माओं में से चुन कर मुझे अपना बच्चा बनाया, यह स्मृति एक अद्भुत रूहानी नशे से मुझे भर देती है और अपने भाग्यविधाता दिलाराम बाबा की मन को सुकून देने वाली मीठी यादों में मैं धीरे - धीरे खोने लगती हूँ। *मेरे प्यारे प्रभु की मीठी यादें मुझे इस नश्वर संसार की हर बात से किनारा कराते हुए मेरे उस सुंदर स्वरूप में स्थित कर देती है जो शांत स्वरूप, सुख स्वरूप, आनन्द स्वरूप, प्रेम स्वरूप, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप और पवित्र स्वरूप है*। अपने इस सतोगुणी स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने अंदर समाये इन सातों गुणों का गहराई से अनुभव करते हुए अपने इस स्वरूप का आनन्द लेने में मग्न हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं स्वयं को भृकुटि की कुटिया में विराजमान होकर चमक रहे एक अति सुन्दर छोटे से स्टार के रूप में जिसमे से सतरँगी किरणों का प्रकाश निकल रहा है और अपने सातों गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों और फैलाता हुआ सारे वायुमण्डल को रूहानियत की एक दिव्य अलौकिक शक्ति से भर रहा है। *मुझ से निकल रहे सातों गुणों के वायब्रेशन्स से मेरे चारों ओर प्रकाश का एक सुंदर कार्ब निर्मित हो गया है और इस प्रकाश के कार्ब में मैं अति तेजस्वी आत्मा ऐसे लग रही हूँ जैसे सोने की डिब्बी में कोई छोटा सा हीरा चमक रहा हो*।
➳ _ ➳ मैं अति तेजस्वी मस्तक मणि आत्मा अपने इस खूबसूरत स्वरूप का आनन्द लेते हुए अब भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ती हूँ और प्रकाश के उस कार्ब के साथ ऊपर की ओर उड़ चलती हूँ। *एक दिव्य प्रकाश से चारों और के वायुमण्डल को प्रकाशित करते हुए, अपनी किरणों का प्रकाश चारों और फैलाते हुए मैं आकाश के पास पहुँच जाती हूँ* और इस अंतहीन आकाश में विचरण करते, सौरमण्डल, तारामण्डल को पार कर सफेद प्रकाश की फरिश्तो की एक सुन्दर दुनिया में प्रवेश कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ फ़रिश्तो की यह खूबसूरत दुनिया जहाँ मेरे प्यारे ब्रह्मा बाबा अपने सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप में इस लोक में रहते हुए बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने की बेहद की सेवा कर रहें हैं। *अपने इस अव्यक्त वतन में आकर मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा के अति सुंदर संपूर्ण स्वरूप को निहारते हुए उनके समान बनने का संकल्प मन मे लिए अब धीरे - धीरे सूक्ष्म वतन को पार करके उससे ऊपर अपने निराकारी घर मे पहुँच जाती हूँ*। चमकती हुई जगमग करती चैतन्य मणियों का यह सुन्दर मनभावन संसार मेरा परमधाम घर है जहाँ मेरे प्यारे प्रभु मेरे दिलाराम शिव बाबा रहते हैं। *मेरे ही समान अपने निराकार बिंदु स्वरूप में चमक रहें अखण्ड ज्योतिमय ज्ञानसूर्य अपने प्यारे शिव बाबा को मैं अपने इस घर मे अपने बिल्कुल सामने देख रही हूँ* जो अपनी शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा इंतजार करते हुए मुझे दिखाई दे रहें है।
➳ _ ➳ अपने पिता के सुंदर सलौने स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप पहुँचती हूँ और उनकी किरणों रूपी बाहों में जाकर समा जाती हूँ। उनके असीम स्नेह से स्वयं को तृप्त कर उनकी सर्वशक्तियो की किरणों की छत्रछाया के नीचे बैठ स्वयं को शक्तियों से भरपूर करने के बाद ईश्वरीय सेवा अर्थ मैं वापिस लौट आती हूँ फिर से साकार सृष्टि पर और अपने साकार तन का आधार ले कर, परमात्मा के मददगार अपने संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *अपने सर्वश्रेष्ठ, बहुमूल्य ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने प्यारे पिता का राइट हैंड बन उनकी श्रीमत पर चल, संकल्प रूपी बीज को शक्तिशाली बनाकर सेवायों में पदमापदम अविनाशी फल की प्राप्ति करते हुए, मेहनत से मुक्त, सहजयोगी, अनुभूतियो के खजाने से भरपूर अधिकारी आत्मा बन, अपने अधिकारों को स्मृति में रख मैं सदा रूहानी नशे और खुशी के झूले में अब हर पल हर घड़ी झूल रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं खुशी के साथ शक्ति को धारण कर विघ्नों को पार करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विघ्न जीत आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा परिस्थितियों में घबराने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा परिस्थितियों को शिक्षक समझकर पाठ सीख लेती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा साक्षी दृष्टा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ माया का आना यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन वह अपना रूप न दिखाये। *अगर माया की मेहमान-निवाजी करते हो तो चलते- चलते ‘उदासी' का अनुभव होगा। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे न आगे बढ़ रहे हैं न पीछे हट रहे हैं। पीछे भी नहीं हट सकते, आगे भी नहीं बढ़ सकते - यह माया का प्रभाव है। माया की आकर्षण उड़ने नहीं देती।* पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं लेकिन अगर आगे नहीं बढ़ते तो बीज को परखो और उसे भस्म करो। *ऐसे नहीं - चल रहे हैं, आ रहे हैं, सुन रहे हैं, यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं। लेकिन चेक करो कि अपनी स्पीड और स्टेज की उन्नति कहाँ तक है।*
✺ *"ड्रिल :- सदैव आगे बढते रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सबेरे उठकर एकांत में बैठती हूँ... मैं आत्मा स्वयं को चार्ज करने मन-बुद्धि के तार को सुप्रीम चार्जर से कनेक्शन जोडती हूँ... सुप्रीम चार्जर से दिव्य किरणों रूपी करंट मुझमें प्रवाहित हो रहा है...* हाई वोल्टेज करंट से मुझ आत्मा के विकारों रूपी तार जलकर भस्म हो रहे हैं... *मैं आत्मा देह, देह के बन्धनों से डिस-कनेक्ट हो रही हूँ...* मायावी आकर्षणों से मुक्त हो रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा चार्ज होकर पावरफुल बन रही हूँ... मुझ आत्मा का एक बाबा से कनेक्शन जुड़ रहा है... *मैं आत्मा एक बाबा के मुहब्बत में लवलीन हो रही हूँ...* मैं आत्मा प्रेम के सागर में समा रही हूँ... मास्टर प्रेम का सागर बन रही हूँ... *सर्व शक्तिवान बाबा की सभी शक्तियों का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा माया के सभी रूपों पर अटेंशन रख हर कर्म कर रही हूँ...* मैं आत्मा चेक करती हूँ कि कहीं देह और कर्मेन्द्रियो का आकर्षण तो मुझे अपनी तरफ नहीं खींचता... मैं आत्मा हूँ, देह नहीं हूँ, मैं आत्मा करावनहार हूँ ये देह करनहार है... मै आत्मा इस देह से कर्म कराती हूँ... *आत्मिक स्मृति में रहने से मुझ आत्मा का देह का आकर्षण खत्म हो रहा है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा से सर्व संबंधो का अनुभव कर देह के संबंधो के आकर्षण से मुक्त हो रही हूँ...* जब ये देह ही मेरा नहीं है तो ये देह के सम्बन्धी भी मेरे नहीं हैं... देह के बन्धनों में पड़ने से मुझ आत्मा को दुःख, अशांति की ही प्राप्ति हुई... *मैं आत्मा चेक करती हूँ कि कोई भी देह की वस्तुओं का आकर्षण तो नहीं हैं... जिनके लोभ में पड़कर मुझ आत्मा की पुरुषार्थ की गति आगे नहीं बढती...* ये सभी आकर्षण नश्वर हैं... विनाशी हैं...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सदा अटेंशन रख टेंशन रूपी माया से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के हाथ और साथ का अनुभव कर हर कर्म करती हूँ... सदा उमंग-उत्साह में रह उदास होने के संस्कारों को खत्म कर रही हूँ...* माया के सभी रूपों को परख कर बीज सहित भस्म कर रही हूँ... *अपने पुरुषार्थ की स्पीड को बढ़ाकर उन्नति कर रही हूँ...* और आगे बढती जा रही हूँ... माया के प्रभाव से मुक्त होकर उड रही हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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