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 25 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *देह के सर्व पदार्थो और समबंधो से मुक्त अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *कर्मेन्द्रियों के मालिक बना कर्मेन्द्रियों से कर्म करवाया ?*

 

➢➢ *कर्मयोग से कर्मभोग को चुक्तु किया ?*

 

➢➢ *होली हंस बन नुकसान के बीच अपने फायदे को ढूँढा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योगबल वाली शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता के कारण विशेष दो शक्तियां सदा प्राप्त होती हैं-एक परखने की और दूसरी निर्णय करने की।* यही दो विशेष शक्तियाँ व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं को हल करने का सहज साधन है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सर्वखजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

✧  सर्व खजानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं वह जानते हो? गिनती कर सकते हो। अविनाशी हैं और अनगिनत हैं। *तो एक एक खजाने को स्मृति में लाओ। खजाने को स्मृति में लाने से खुशी होगी। जितना खजानों की स्मृति में रहेंगे उतना समर्थ बनते जायेंगे और जहाँ समर्थ हैं वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, व्यर्थ बोल सब बदल जाता है।* ऐसा अनुभव करते हो? परिवर्तन हो गया ना।

 

✧  *नई जीवन में आ गये। नई जीवन, नया उमंग, नया उत्साह हर घड़ी नई, हर समय नया। तो हर संकल्प में नया उमंग, नया उत्साह रहे। कल क्या थे आज क्या बन गये!* अभी पुराना संकल्प, पुराना संस्कार रहा तो नहीं है! थोड़ा भी नहीं तो सदा इसी उमंग में आगे बढ़ते चलो।

 

✧  जब सब कुछ पा लिया तो भरपूर हो गये ना। भरपूर चीज कभी हलचल में नहीं आती। *सम्पन्न बनना अर्थात् अचल बनना। तो अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खजाने से भरपूर भण्डार बन गये। जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दुख दूर हो गये।* जो जितना स्वयं खुश रहेंगे उतना दूसरों को खुश खबरी सुनायेंगे। तो खुश रहो और खुशखबरी सुनाते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  ब्राह्मणों का अन्तिम सम्पूर्ण स्वरुप क्यों गाया जाता है, मालूम है? इस स्थिति का वर्णन है 'इच्छा मात्रम अविध्या'। *अब अपने से पूछो 'इच्छा मात्रम अविध्या' ऐसी स्थिति हम ब्राह्मणों की बनी है?* जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयाकार और हाहाकार भी होगी। यह है आप सब का अन्तिम स्वरूप।

 

✧  अपने स्वरूप का साक्षात्कार होता है सदैव अपने सम्पूर्ण और भविष्य स्वरूप ऐसे दिखाई दें जैसे शरीर छोडने वाले को बुद्धी में स्पष्ट रहता है कि अभी - अभी यह छोड नया शरीर धारण करना है। ऐसे सदैव बुद्धि में यही रहे कि अभी - अभी इस स्वरूप को धारण करना है। *जैसे स्थूल चोला बहुत जल्दी धारण कर लेते हो वैसे सम्पूर्ण स्वरूप धारण करो।* बहुत सुन्दर और श्रेष्ठ वस्त्र सामने देखते फिर पुराने वस्त्र को छोड नया धारण करना क्या मुश्किल होता है?

 

✧  ऐसे ही जब अपने श्रेष्ठ सम्पूर्ण स्वरूप वा स्थिति को जानते हो, सामने है तो फिर वह सम्पूर्ण श्रेष्ठ स्वरूप धारण करने में देरी क्यों? *कोई भी अहंकार है तो वह अलंकारहीन बना देता है।* इसलीए निरहंकारी और निराकारी फिर अलंकारी। इस स्थिति में स्थित होना सर्व आत्माओं के कल्याणकारी बनने वाले ही विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  एक देही अभिमानी स्थिति सर्व विकारों को सहज ही शांत कर देती है। यही बुद्धि की कला सर्व कलाओं को अपने में भरपूर कर सकती है व सर्व कला सम्पन्न बना सकती है। अभी-अभी सभी को डैरेक्शन मिले कि एक सेकण्ड में अशरीरी बन जाओ, तो बन सकते हो? सिर्फ एक सेकण्ड स्थित हो सकते हो? जब बहुत कर्म में व्यस्त हो ऐसे समय में डैरेक्शन मिले। *जैसे जब युद्ध प्रारम्भ होता है तो अचानक आर्डर निकलते हैं- अभी-अभी सभी घर छोड बाहर चले जाओ। फिर क्या करना पडता है? जरूर करना पड़े। तो बाप-दादा भी अचानक डायरेक्शन दे कि इस शरीर रूपी घर को छोड़, इस देह अभिमान की स्थित से देही अभिमानी बन जाओ, इस दुनिया से परे अपने स्वीटहोम में चले जाओ, तो कर सकेंगे?* ‘युद्ध स्थल में रुक तो नहीं जावेंगे? युद्ध करते-करते ही समय तो नहीं बिता देंगे कि - जावें न जावें ? जाना ठीक होगा व नहीं? यह ले जावे व छोड़ जावे?' इस सोच में समय गवा देते हैं। *ऐसे ही अशरीरी बनने में अगर युद्ध करने में ही समय लग गया तो अन्तिम पेपर में माक्र्स व डिविजन कौन-सा आवेगा? अगर युद्ध करते-करते रह गये तो क्या फस्ट डिविजन में आवेंगे? ऐसे उपराम, एवररेडी बने हो?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कर्मातीत स्थिति को पाना"*

 

_ ➳  *अमृत की वेला में मनमोहक-मनभावन परम आन्दमय प्रभु मिलन का आनन्द लेकर मै आत्मा... मीठे बाबा के प्यार भरे गीत गुनगुनाती हुई... टहलते हुए... सूर्य को, धरती को, आलिंगन करती, नई नवेली रंग-बिरंगी किरणों को निहार रही हूँ... और विचार कर रही हूँ... कि ज्ञान सूर्य बाबा ने मुझ आत्मा को... गले लगाकर... मुझे गुणों और शक्तियो से कितना सजा दिया है...* और श्रृंगारित करके मुझ आत्मा को सीधे अपने दिल में सजा दिया है... बाबा के दिल की प्यारी राजदुलारी बनकर... मै आत्मा, अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आज मै आत्मा, बाबा के दिल में रहती हूँ, मीठी बाते करती हूँ, दिल की हर बात बताती हूँ.... उस के साथ हंसती मुस्कुराती हूँ..... इन मीठे अहसासो ने जनमो के दुःख ही विस्मृत कर दिए है... अब सुख ही सुख मेरे चारो ओर बिखरा है... वाह मेरा भाग्य जो सपने में भी नहीं सोचा था उसे साकार में पाया है... यही मनभावन जज्बात मीठे बाबा को सुनाने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

_ ➳  *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान का प्रकाश मुझ आत्मा पर डालते हुए कहते है :-* "मीठे लाडले बच्चे मेरे... समय की है अन्तिम वेला जरा गहरे से अब आप गौर फरमाओं... समय की इस अन्तिम वेला में कर्मातीत तुम बन जाओ... बच्चे गफलत छोड़ इस सच्चे सच्चे पुरूषार्थ में जुट जाओ... *कर्मातीत बनने की मंजिल पर पहुंचने के लिए उड़ान जरा जोर से लगाओ..."*

 

  *ज्ञान के प्रकाश को स्वयं में समाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-*  "मीठे-मीठे लाडले ओ बाबा मेरे... आप की इस गहरी सी समझानी को बुद्धि में बिठा रही हूँ... *कर्मातीत बनने के सच्चे-सच्चे पुरूषार्थ की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही हूँ... कर्मातीत स्थिति के प्रवाह में बहती जा रही हूँ...* उड़ता पंछी बन अन्दर से अब मुस्कुरा रही हूँ..."

 

_ ➳  *ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा को सजाते हुए रत्नाकर बाबा बोले :-* "मीठे मीठे सिकीलधे प्यारे बच्चे मेरे... समाने और समेटने की शक्तियों को अब तुम कार्य में लगाओ... और कर्मातीत बन जाओ... उड़ता पंछी बन खुले आसमा में बाहे फैलाओं... *जरा अटेंशन देकर बच्चे तुम अब कर्मातीत स्थिति बनाने के पुरूषार्थ में लग जाओ..."*

 

  *ज्ञान रत्नों से सज-धज कर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "राजदुलारे प्यारे बाबा मेरे... अटेंशन से कर्मातीत स्थिति के पुरूषार्थ में जुट गई हूं... समाने और समेटने की शक्तियों को कार्य में लगाए रही हूँ... अपनी स्थिति द्वारा सत्यता का प्रकाश फैला रही हूं... उड़ता पंछी बन आसमा में बाहें फैला रही हूँ... *कर्मों के बन्धन से भी मुक्त होने का अनुभव औरों को करा रही हूँ... इस प्रकार अपनी कर्मातीत स्थिति की ओर कदम बढ़ा रही हूँ..."*

 

_ ➳  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा करते हुए मीठे बाबा मुझ आत्मा से कहते है :-* "मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे मेरे... कर्मातीत स्टेज को अब तुम नजदीक लाओ... बच्चे अटेंशन से अब इस पुरूषार्थ में लग जाओ... *अपनी इस अन्तिम अवस्था की तरफ अब तेजी से दौड़ी लगाओ... जीवन की प्रयोगशाला में समेटने और समाने की शक्ति को प्रयोग में ला कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ..."*

 

  *ज्ञान की रिमझिम वर्षा में भीगकर मैं आत्मा कहती हूँ :-* "लाडले ज्ञान सागर बाबा मेरे... सुन के आपकी ये गहरी सी समझानी अटेंशन से इस पुरुषार्थ में जुट गई हूँ... *जीवन रूपी प्रयोगशाला में समाने और समेटने की शक्ति को प्रयोग में लाकर कर्मातीत स्थिति को नजदीक ला रही हूँ...* मुक्त पंछी बन उड़ती जा रही हूँ... तेजी से इस पुरूषार्थ में आगे बढ़ती जा रही हूँ... इस पुरूषार्थ में सफलता पा रही हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह के सर्व पदार्थो और सम्बन्धो से मुक्त अवस्था का अनुभव*"

 

 _ ➳  "मैं देह नही बल्कि इस देह में विराजमान एक चैतन्य ज्योति हूँ, एक शक्ति हूँ जो इस देह को चलाने वाली है। इस सत्य ज्ञान को पाकर ऐसा लगता है जैसे मुझे मेरे जीवन का सार मिल गया। *आज दिन तक स्वयं को देह समझने के कारण देह के सम्बन्धो को ही सब कुछ माना और इस भूल ने मुझ आत्मा से जो विकर्म करवाये, उन विकर्मों के बोझ ने मेरी सुख, शांति को छीन मुझे कितना दुखी और अशांत बना दिया था*। धन्यवाद मेरे शिव पिता परमात्मा का जिन्होंने आ कर ये सत्य ज्ञान मुझे दिया कि "मैं अकेली आत्मा हूँ देह नही और मेरे सर्व सम्बन्ध केवल मेरे पिता परमात्मा के साथ है"। 

 

 _ ➳  अपने सत्य स्वरूप को पहचान कर, उस स्वरूप में टिकते ही अब मैं आत्मा सेकेंड में अपने उस एक परम पिता परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ कर, उस गहन सुख और शांति की अनुभूति कर लेती हूँ जिसकी तलाश मैं आज दिन तक दैहिक सम्बन्धों में कर रही थी। *मन ही मन स्वयं से यह बातें करती हुई मैं जैसे ही अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होती हूँ मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि मेरा वास्तविक स्वरूप कितना सुन्दर और कितना प्यारा है*। 

 

 _ ➳  अपने अति सुंदर, तेजोमय स्वरूप को मैं अब अपने मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ। *एक चैतन्य दीपक इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि सिहांसन पर चमकता हुआ मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है जिसमे से अनन्त प्रकाश निकल रहा है*। इस प्रकाश को मैं अपने चारों और फैलता हुआ देख रही हूँ। यह प्रकाश मेरे मन को गहन शांति की अनुभूति करवा रहा है। *इस प्रकाश में समाये सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के वायब्रेशन चहुँ और फैल कर मेरे आस - पास के वायुमण्डल को शुद्ध और शांतमय बना रहे हैं*।

 

 _ ➳  आत्मिक स्वरुप में टिक कर, अपने मौलिक गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे एक अति सुंदर शांतचित स्थिति में स्थित करके, एक विचित्र अंतर्मुखता का अनुभव करवा रहा है। अंतर्मुखता की इस स्थिति में मैं चैतन्य दीपक सहजता से देह रूपी मन्दिर को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रहा हूँ। *आकाश को पार करके, उससे ऊपर सूक्ष्म लोक से भी परें मैं प्वाइंट ऑफ लाइट अब स्वयं को एक ऐसी विचित्र दुनिया में देख रही हैं जो लाल प्रकाश से आच्छादित है, जहां चारों और चमकते हुए जगमग करते चैतन्य दीपक दिखाई दे रहें हैं*। देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु यहां दिखाई नहीं दे रही। रूह रिहान भी आत्मा का आत्मा से। सम्बन्ध भी आत्मिक और दृष्टिकोण भी रूहानियत से भरा।

 

 _ ➳  इस अति सुंदर जगमग करते दीपकों की दुनिया में अब मैं देख रही हूँ अपने बिल्कुल सामने महाज्योति शिव बाबा को जिनसे निकल रही अनन्त प्रकाश की किरणों से पूरा परमधाम प्रकाशित हो रहा है। *जैसे शमा को देखते ही परवाना स्वत: ही उसकी ओर खिंचने लगता है ऐसे ही मेरे महाज्योति शिव पिता के अनन्त गुणों और शक्तियों की किरणें मुझे अपनी ओर खींच रही हैं और मैं धीरे - धीरे उनकी ओर बढ़ रही हूँ*। मैं चैतन्य दीपक महाज्योति शिव बाबा के अति समीप पहुंच कर उन्हें टच करती हूँ और उन्हें टच करते ही उनके समस्त गुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरता हुआ स्पष्ट अनुभव करती हूँ।

 

 _ ➳  बाबा के सर्वगुणों और सर्वशक्तियों को स्वयं में भरकर मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ और सर्वशक्ति स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ और देह धारण कर फिर से इस कर्मभूमि पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। किन्तु अब मैं स्वयं को आत्मा निश्चय कर हर कर्म कर रही हूँ। *देह के सभी सम्बन्धो को भूल स्वयं को अकेली आत्मा समझने से मेरी दृष्टि, वृति भी आत्मिक होने लगी है इसलिए इस देह से जुड़े सम्बन्धियों को भी अब मैं देह नही बल्कि उनके आत्मिक स्वरूप में देख रही हूँ*। अपने को अकेली आत्मा समझने और सबके प्रति आत्मा भाई - भाई की दृष्टि हो जाने से देह के सम्बन्धों के प्रति अब मेरा लगाव, झुकाव और टकराव समाप्त हो गया है और जीवन बहुत ही आनन्दमयी लगने लगा है।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं कदम कदम पर सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं पदमपति आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा मन को सदा ऑर्डर प्रमाण चलाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा मनमनाभव की स्थिति में स्वत: स्थित रहती हूँ  ।*

   *मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  राज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी, अथार्टी स्वरूप। राज्य सत्ता वाली आत्मा अपने अधिकार द्वारा जब चाहे, जैसे चाहे वैसे अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को चला सकती है। यह अथार्टी राज्य सत्ता की निशानी है। दूसरी निशानी - राज्य सत्ता वाले हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकते हैं। राज्य सत्ता अर्थात् मात-पिता के स्वरूप में अपनी प्रजा की पालना करने की शक्ति वाला। *राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं भी सदा सर्व में सम्पन्न और औरों को भी सम्पन्नता में रखने वाले। राज्य सत्ता अर्थात् विशेष सर्व प्राप्तियाँ होंगी-सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों के खजानों से भरपूर। स्वयं भी और सर्व भी खजानों से भरपूर। राज्य सत्ता वाले अर्थात् अधिकारी आत्मायें बने हो?*

 

✺  *"ड्रिल :- राज्य सत्ता अधिकारी अर्थात् अथार्टी स्वरूप बनकर रहना*”

 

_ ➳  *मैं आत्मा माया की भूल-भुलैया से आजाद होकर बगीचे में विचरण करती हुई विचार करती हूँ...* कि कैसे मैं आत्मा माया का दास बनकर उदास होती गई... सृष्टि का चक्कर लगाते-लगाते माया के कुचक्र में फंसती चली गई... कैसे प्यारे बाबा ने आकर गम की अधीनता को खत्म कर संगम के सर्व सुखों का अधिकारी बना दिया... *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सुख, शान्ति, आनन्द, प्रेम, सर्व गुणों, शक्तियों के खजानों से भरपूर कर दिया...* मेरा जीवन ही बदल दिया...

 

_ ➳  *विचार करते-करते मैं आत्मा चेक करती हूँ कि क्या मैं आत्मा बाबा की दी हुई शक्तियों और खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे वैसे चला सकती हूँ...?* अथार्टी स्वरूप बनकर हर कार्य को ला एण्ड आर्डर द्वारा चला सकती हूँ...? माया के अधीन बन कर्मेन्द्रियों के वश तो नहीं हो जाती हूँ...? *अभी मुझ आत्मा में राज्य सत्ता अधिकारी के संस्कार धारण होंगे तभी भविष्य में मैं विश्व राज्य-अधिकारी बनूँगी...*

 

_ ➳  मैं आत्मा प्यारे बापदादा का प्यार से आह्वान करती हूँ... सर्वशक्तिवान की किरणों से मैं आत्मा अपने अन्दर के सभी कमी-कमजोरियों, पुराने-स्वभाव संस्कारों को अंश सहित खत्म कर रही हूँ... मैं आत्मा आर्डर देकर कर्मेन्द्रियों को अपने अधीन कर रही हूँ... *दिव्य गुणों को धारण कर मन, बुद्धि, संस्कारों पर अथॉरिटी चला रही हूँ... और अपने राज्य सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी की सीट पर सदा सेट रहती हूँ...* अथॉरिटी स्वरूप बनकर माया के हर विघ्नों को समाप्त कर रही हूँ... माया के प्रभाव से परे हो रही हूँ... *अब मैं आत्मा अधीनता के संस्कारों को खत्म कर अधिकारी बन रही हूँ...* सर्व खजानों को जब चाहे, जैसे चाहे स्व के लिए और सर्व के लिए यूज करती हूँ... *अब मैं आत्मा राज्य सत्ता अधिकारी बन स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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