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 26 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *फैशन आदि का त्याग किया ?*

 

➢➢ *कोई भी व्यर्थ बातें तो नहीं की ?*

 

➢➢ *नॉलेज की लाइट माईट द्वारा अपने लक को जगाया ?*

 

➢➢ *न्यारे बन कर्मेन्द्रियों से कर्म करवाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  परमार्थ मार्ग में विघ्न-विनाशक बनने के लिए योगयुक्त बनकर साइलेन्स की शक्ति द्वारा परखने और निर्णय करने की शक्ति को अपनाओ। *यदि माया के भिन्न-भिन्न रूपों को परख नहीं सकेंगे तो उसे भगा भी नहीं सकेंगे क्योंकि परमार्थी बच्चों के सामने माया रॉयल ईश्वरीय रूप रच करके आती हैं जिसको परखने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए। एकाग्रता की शक्ति साइलेन्स की शक्ति से ही प्राप्त होती है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी गुलाब हूँ"*

 

  सदा विस्तार को प्राप्त करने वाला रूहानी बगीचा है ना। और आप सभी रूहानी गुलाब हो ना। जैसे सभी फूलों में रूहे गुलाब श्रेष्ठ गाया जाता है। वह हुआ अल्पकाल की खुशबू देने वाला। आप कौन हो? *रूहानी गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। सदा रूहानियत की खुशबू में रहने वाले और रूहानी खुशबू देने वाले।* ऐसे बने हो?

 

  सभी रूहानी गुलाब हो या दूसरेदूसरे। और भी भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल होते हैं लेकिन जितना गुलाब के पुष्प की वैल्यु है उतनी औरों की नहीं। *परमात्म बगीचे के सदा खिले हुए पुष्प हो। कभी मुरझाने वाले नहीं। संकल्प में भी कभी माया से मुरझाना नहीं। माया आती है माना मुरझाते हो। मायाजीत हो तो सदा खिले हुए हो।*

 

  *जैसे बाप अविनाशी है ऐसे बच्चे भी सदा अविनाशी गुलाब हैं। पुरुषार्थ भी अविनाशी है तो प्राप्ति भी अविनाशी है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज आवाज़ से परे जाने का दिन रखा हुआ है। तो बापदादा भी आवाज़ में कैसे आयें? *आवाज़ से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है।* आवाज़ में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो उससे अधिक आवाज़ से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे।

 

✧  *अपनी अव्यक्त स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्ष फल स्वरूप आपके सम्मुख दिखाई देगा।* आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज़ में आने से वह आवाज़, आवाज़ नहीं लगेगा लेकिन उस आवाज़ में भी अव्यक्त वाय्ब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा। वह आवाज़ सुनते हुए उन्हों को आपकी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होने लगेगा।

 

✧  जैसे इन साकार सृष्टी में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज़ होता है लेकिन वह आवाज़, आवाज़ से परे ले जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। *एक सेकण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी संबन्ध में जोड सकता हे।* ऐसा अटूट संबन्ध जुड जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  जैसे स्थूल चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण करते हो और उतार देते हो, वैसे ही इस साकार देह रूपी चोले को कर्तव्य के प्रमाण धारण किया और न्यारा हुआ। *लेकिन जैसे स्थूल वस्त्र भी अगर टाइट होते हैं तो सहज उतरते नहीं हैं, ऐसे ही आत्मा का देह रूपी वस्त्र देह, दुनिया के माया के आकर्षण में टाइट अर्थात खींचा हुआ है तो सरल उतरेगा नहीं अर्थात सहज न्यारा नहीं हो सकेंगे।* समय लग जाता है। थकावट हो जाती है। कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो थकावट व परेशानी हो ही जाती है; परेशानी कभी एक टिकाने टिकने नहीं देती। *तो यह भक्ति का भटकना क्यों शुरु हुआ? जब आत्मा इस शरीर रूपी चोले को धारण करने व न्यारे होने में असमर्थ हो गयी। यह देह का भान अपने तरफ खेंच गया तब परेशान होकर भटकना शुरू किया।* लेकिन अब आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस शरीर की आकर्षण से परे एक सेकण्ड में हो सकते हो, ऐसी प्रेक्टिस है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अमृत पीना और पिलाना*"

 

_ ➳  मीठे बाबा की यादो में खोयी हुई मै आत्मा... नक्की झील में उठती फुहारों को देख रही हूँ... और सोच रही हूँ... *ऐसा ही खुबसूरत, मेरे मन के भीतर भी, ख़ुशी का फव्वारा निरन्तर बहता है... और भगवान को पाने के असीम आनन्द में मन झूमता और नाचता है..*. कभी बाहर की अमीर और भीतर से गरीब... मै आत्मा ख़ुशी को सदा तरसती थी... आज मीठे बाबा से, अनगिनत खजाने पाकर, भीतर की अमीरी और सुखो से लबालब हूँ... ईश्वरीय वंशी होकर, ईश्वर पिता द्वारा... गॉडली स्टूडेंट पुकारी जाती हूँ... *ऐसा रत्नों से दमकता शानदार भाग्य तो कभी कल्पनाओ में भी न था... जो आज प्यारे बाबा ने जीवन की सच्चाई बना दिया है.*..यही मीठा चिंतन करते हुए मै आत्मा... पांडव भवन की ओर रुख करती हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अमूल्य ज्ञान रत्नों से मालामाल करते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *मीठे बाबा आप बच्चों के लिए ही तो अथाह खजाने अपनी बाँहों में भरकर, सौगात सजाकर, धरती पर आया है... इन रत्नों से सदा खेलते रहो.*.. और इन अमूल्य रत्नों की दिल जान से कद्र करो... इन रत्नों की बदौलत ही तो अथाह सुख कदमो में बिखरेंगे... इसलिए इस सच्ची, देवता बनाने वाली पढ़ाई को, कभी न छोडो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की शिक्षाओ को पाकर संपत्तिवान बनकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह की मिटटी से निकलकर, आपकी गोद में बेठ देवताई ताजोतख्त से सज संवर रही हूँ... *अपने खोये मूल्यों को पुनः पाकर दिव्यता और अलौकिकता से सम्पन्न हो रही हूँ.*.. हर दिन ईश्वरीय पढ़ाई के आनन्द में बिताने वाली, महान भाग्यशाली आत्मा हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अतुलनीय धन सम्पद्दा से भरकर विश्व का मालिक बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... यह *ईश्वरीय पढ़ाई अनमोल है, इसी पढ़ाई से देवताई संस्कार पुनः जाग्रत होंगे... इसलिए इस पढ़ाई के दिल से कद्रदान बनो.*.. हर पल इस सच्ची पढ़ाई को पढ़कर, मन्थन कर शक्तिशाली बनो... अंतिम साँस तक भी यह अमूल्य पढ़ाई पढ़ते ही रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से अथाह खजाने पाकर खुशियो में झूमते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे...मै आत्मा *आपसे सच्चे रत्नों की दौलत पाकर, कितने खुबसूरत जीवन की मालिक बन गयी हूँ.*.. जीवन खुशियो से छलक उठा है... और सुंदर शिक्षाओ को पाकर, देवताई संस्कारो से भर गया है... मै आत्मा इन बहुमूल्य रत्नों को पाकर, सुंदर भाग्य से सज गयी हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझे विश्व राज्य की अधिकारी आत्मा बनाने के लिए श्रीमत से सजाकर कहा ;-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *मीठे बाबा ने जो टीचर बनकर पढ़ाया है... ज्ञान अमृत से उजला बनाया है... उन अमूल्य शिक्षाओ को श्रीमत को, सदा अपने जीवन का आधार बनाकर... दिव्य और पवित्र जीवन के मालिक बनो.*.. सदा इन ज्ञान मोतियो को ग्रहण करने वाले होली हंस बनकर मुस्कराओ... ज्ञान के सदा चात्रक बनकर, मरते दम तक ज्ञान अमृत को पीते रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से अमूल्य ज्ञान निधि को पाकर, सतयुगी अमीरी की अधिकारी बनकर कहती हूँ*  :-"मेरे सच्चे साथी बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले... ज्ञान और योग के पंख पाकर... खुशियो के आसमाँ में उड़ता पंछी बनकर मुस्करा रही हूँ... *सच्चे ज्ञान की झनकार ने मेरे जीवन को, आत्मिक मूल्यों से सजाकर कितना सुदर बना दिया है.*.. प्यारे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ का दिल से शुक्रिया कर मै आत्मा अपने साकार वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हियर नो ईविल, सी नो ईविल.... कोई भी व्यर्थ बातें नही करनी हैं*"

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया की सभी बातों से मन बुद्धि को हटा कर जैसे ही मैं एकाग्रचित होकर बैठती हूं वैसे ही स्वयं को सूक्ष्म वतन में देखती हूँ। *यहां पहुंच कर मैं अपनी लाइट की फ़रिश्ता ड्रेस को धारण कर लेती हूं और सूक्ष्म वतन की सैर करने चल पड़ती हूँ*। सूक्ष्म वतन के सुंदर नजारे देखकर मैं मन ही मन आनंदित हो रही हूँ। पूरे सूक्ष्म वतन की सैर करके अब मैं पहुंच जाती हूँ बापदादा के पास। मैं देख रही हूं सामने लाइट माइट स्वरूप में बाप दादा विराजमान हैं। उनसे आ रही लाइट और माइट चारों ओर फैल रही है। बाप दादा की लाइट माइट जैसे - जैसे मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है मेरी चमक बड़ती जा रही है। *एक दिव्य अलौकिक रूहानी चमक से मेरा फ़रिशता स्वरूप जगमगाने लगा है*।

 

_ ➳  बापदादा अब मेरे बिल्कुल समीप आ कर, मेरा हाथ थामे मुझे साकारी लोक की ओर ले कर जा रहें हैं। बापदादा के साथ मैं पूरे विश्व का भ्रमण कर रही हूँ। प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द ले रही हूँ। *प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेते लेते अब मैं अपने फ़रिशता स्वरूप में नीचे भू लोक में आ जाती हूँ*। बापदादा के साथ अब मैं भू लोक पर विचरण कर रही हूँ। चलते चलते एक स्थान पर लगे म्यूजियम को देख मैं बापदादा के साथ उस म्यूजियम के अंदर प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  भारत की अनेक ऐतिहासिक वस्तुएँ, राजनेताओ के चित्र इस म्यूजियम में जहां - तहां लगे हुए हैं। सामने बापू जी की विशाल प्रतिमा रखी है और उस प्रतिमा के सामने तीन बन्दरो के जड़ चित्र स्थापित किये गए है। *जिसमे एक बंदर ने अपने हाथों से अपने मुख को बंद किया हुआ है जो इस बात का प्रतीक है कि बुरा मत बोलो, एक बंदर अपने हाथ अपने कानों पर रख कर यह संदेश दे रहा है कि बुरा मत सुनो और एक बंदर अपने हाथों से अपनी आंखें बन्द कर यह समझा रहा है कि बुरा मत देखो*।

 

_ ➳  बन्दरो की इन प्रतिमाओं को देख कर मैं मन मे विचार करती हूँ कि इन बन्दरो की तरह आज के मनुष्य भी तो बंदर बुद्धि बन गए हैं जो बुराई देख रहें हैं, बुरा सुन रहें हैं और बुरा ही बोल रहे हैं। ये चित्र और कहानियां तो केवल किताबो में ही बंद हो कर रह गई हैं। यही विचार करते - करते मैं बाबा की ओर देखती हूँ। बाबा मन्द मन्द मुस्कराते हुए मेरी ओर देखते हैं। *बाबा की जो डायरेक्शन है कि हियर नो ईविल, सी नो ईविल... टाक नो ईविल... उस डायरेक्शन को बाबा के मन के भावों से मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। स्वयं से और बाबा से मैं दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब मुझे बाबा के इस फरमान पर पूरी तरह चल कर मन्दिर लायक अवश्य बनना है। *इसी दृढ़ संकल्प के साथ अपने पूज्य स्वरूप को अपने सामने इमर्ज करके अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  ब्राह्मण स्वरूप में रहते हुए अब मुझे मेरा पूज्य स्वरूप सदा स्मृति में रहता है। स्वयं को सदा ईष्ट देव, ईष्ट देवी के रूप में अनुभव करने से अब मेरे अंदर दैवी गुण धारण होने लगे है। पुराने आसुरी स्वभाव संस्कार स्वत: ही समाप्त हो रहें हैं। सबके साथ बातें करते उनके मस्तक में चमकती हुई आत्मा को ही अब मैं देख रही हूँ। सबके साथ बातें करते, सुनते, देखते, बोलते चलते-फिरते हर कर्म करते जैसे अब मैं सब बातों से उपराम हूं। *बुरा ना बोलने, बुरा ना देखने और बुरा ना सुनने के साथ साथ बुरा ना सोचने और बुरा ना करने की भावना को अपने जीवन में धारण करने से अब मेरे अंदर दाता पन के संस्कार इमर्ज हो रहें हैं जो मुझे मंदिर लायक बना रहे हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं नॉलेज की लाइट-माइट द्वारा अपने लक को जगाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सफलतामूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा न्यारी बन कर कर्मेद्रियों से कर्म कराती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा कर्मातीत स्थिति का अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा साक्षी दृष्टा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  धर्म में दो विशेषतायें होती हैं। धर्म सत्ता स्व को और सर्व को सहज परिवर्तन कर लेती है। परिवर्तन शक्ति स्पष्ट होगी। सारे चक्र में देखो जो भी धर्म सत्ता वाली आत्मायें आई हैं उन्हों की विशेषता है - मनुष्य आत्माओं को परिवर्तन करना। साधारण मनुष्य से परिवर्तन हो कोई बौद्धी, कोई क्रिश्चयन बना, कोई मठ पंथ वाले बने। लेकिन परिवर्तन तो हुए ना! तो धर्म सत्ता अर्थात् परिवर्तन करने की सत्ता। पहले स्वयं को फिर औरों को। धर्म सत्ता की दूसरी विशेषता है -परिपक्वता'। हिलने वाले नहीं। परिपक्वता की शक्ति द्वारा ही परिवर्तन कर सकेंगे। चाहे सितम हों, ग्लानी हो, आपोजिशन हो लेकिन अपनी धारणा में परिपक्व रहें। यह हैं धर्म सत्ता की विशेषतायें। धर्म सत्ता वाली हर कर्म में निर्मान। *जितना ही गुणों की धारणा सम्पन्न होगा अर्थात् गुणों रूपी फल स्वरूप होगा उतना ही फल सम्पन्न होते भी निर्मान होगा। अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा ही हर गुण को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। जो भी ब्राह्मण कुल की धारणायें हैं उन सर्व धारणाओं की शक्ति होना अर्थात् धर्म सत्ताधारी होना।*

 

✺  *"ड्रिल :- 'परिवर्तन करने की कला, परिपक्वता, निर्मानता' - इन 3 गुणों का विशेष रूप से अनुभव करना*"

 

_ ➳  मैं आत्मा *फर्श से न्यारी होती हुई एक बाबा से रिश्ता रख फरिश्ता बन उड़ चलती हूँ फरिश्तों की दुनिया में...* जहाँ बापदादा मेरे ही इन्तजार में बैठे हुए हैं... चारों ओर सफेद चमकीले प्रकाश की आभा बिखेरते हुए बापदादा अपने कोमल हाथों से मुझे अपनी गोदी में बिठाते हैं... बाबा अपनी मीठी दृष्टि देते हुए अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं...

 

_ ➳  *बाबा की मीठी दृष्टि मुझ आत्मा में मिठास घोल रही है...* मैं आत्मा भी बाप समान मीठी बन रही हूँ... मुझ आत्मा के पुराने स्वभाव-संस्कार बाहर निकल रहे हैं... बाबा के हाथों से दिव्य अलौकिक गुण व शक्तियां निकलकर मुझ फरिश्ते में प्रवाहित हो रहे हैं... मुझ आत्मा के आसुरी अवगुण भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा दिव्य गुणों को धारण कर धारणा सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा स्व को परिवर्तित कर रही हूँ... मैं आत्मा कलियुगी संस्कारों से मुक्त हो रही हूँ... और संगमयुगी श्रेष्ठ संस्कारों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रीमत अनुसार ब्राह्मण कुल की सर्व धारणाओं पर चल रही हूँ...* मैं आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा सर्व को परिवर्तित कर रही हूँ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा परिपक्वता की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हूँ...* हर परिस्थिति में अचल अडोल बन विजय प्राप्त कर रही हूँ... कैसी भी परिस्थिति अब मुझ आत्मा को हिला नहीं सकती है... मैं आत्मा हर परिस्थिति में अपनी धारणा में परिपक्व रहती हूँ... *हर प्रकार के मान-अपमान से परे होकर निर्मानता के गुण को स्वयं में अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा सदा अटेंशन रख परिवर्तन करने की कलासे माया के सभी रूपों को परिवर्तित कर रही हूँ...* परिपक्वताकी शक्ति से मैं आत्मा सर्व मर्यादाओं का पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपनी निर्मान' स्थिति द्वारा हर गुण को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...* मैं आत्मा धर्म सत्ताधारी बन इन 3 गुणों का अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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