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 20 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *टाइम वेस्ट तो नहीं किया ?*

 

➢➢ *बाजोली को याद कर अथाह ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा पतित वायुमंडल को परिवर्तित किया ?*

 

➢➢ *धरनी में परमात्म पहचान का बीच डाला ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  योगबल जमा करने के लिए मन्सा बहुत शुद्ध और श्रेष्ठ चाहिए। *मन्सा शक्ति ही सेफ्टी का साधन है। मन्सा शक्ति द्वारा ही स्वयं की अन्त सुहानी बनाने के निम्मित बन सकेंगे।* नहीं तो साकार सहयोग समय पर सरकमस्टांस प्रमाण प्राप्त नहीं हो सकता। *उस समय मन्सा शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प शक्ति, एक के साथ लाइन क्लीयर हो तब परमात्म शक्तियों का अनुभव कर सकेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं स्व-स्वरूप में स्थित विशेष आत्मा हूँ"*

 

✧  *सुनने के साथ-साथ स्वरूप बनने में भी शक्तिशाली आत्मायें हो ना। सदैव अपने संकल्पों में हर रोज कोई न कोई स्व के प्रति और, औरों के प्रति उमंग-उत्साह का संकल्प रखो।* जैसे आजकल के समय में अखबार में या कई स्थानों पर 'आज का विचार' विशेष लिखते हैं ना।

 

✧  *ऐसे रोज मन का संकल्प कोई न कोई उमंग-उत्साह का इमर्ज रूप में लाओ। और उसी संकल्प से स्वयं में भी स्वरूप बनाओ और दूसरों की सेवा में भी लगाओ तो क्या होगा? सदा ही नया उमंग-उत्साह रहेगा। आज यह करेंगे आज यह करेंगे।* जैसे कोई विशेष प्रोग्राम होता है तो उमंग-उत्साह क्यों आता है? प्लान बनाते हैं ना - यह करेंगे फिर यह करेंगे। इससे विशेष उमंग-उत्साह आता है।

 

  *ऐसे रोज अमृतवेले विशेष उमंग-उत्साह का संकल्प करो और फिर चेक भी करो तो अपनी भी सदा के लिए उत्साह वाली जीवन होगी और उत्साह दिलाने वाले भी बन जायेंगे। समझा- जैसे मनोरंजन प्रोग्राम होते हैं ऐसे यह रोज का मन का मनोरंजन प्रोग्राम हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जितना बन्धन मुक्त उतना ही योग - युक्त होंगे और जितना योग - युक्त होंगे उतना ही जीवन्मुक्त में ऊँच पद की प्राप्ती होती है। *अगर बन्धन मुक्त नहीं तो योग - युक्त भी नहीं।* उसको मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे? देह के संबन्ध और देह के पदार्थों से लगाव मिटाना सरल है लेकिन देह के भान से मुक्त होना मेहनत की बात है।

 

✧  अभी क्या बन्धन रह गया है? यही। देह के बान से मुक्त हो जाना। जब चाहे तब अव्यक्त में आये। ऐसी प्रैक्टीस अभी जोर - शोर से करनी है। *ऐसे ही समझें जैसे अब बाप आधार लेकर बोल रहे हैं वैसे ही हम भी देह का आधार लेकर कर्म कर रहे हैं।* इस न्यारे - पन की अवस्था प्रमाण ही प्यारा बनना है।

 

✧  जितना इस न्यारेपन की प्रैक्टीस में आगे होंगे उतना ही विश्व के प्यारे लगने में आगे होंगे। *सर्व स्नेही बनने के लिए पहले न्यारा बनना है।* सर्वीस करते हुए, संकल्प करते हुए भी अपने को और दूसरों को भी महसूसता ऐसी आनी चाहिए कि यह न्यारा और अति प्यारा है। जितना जो स्वयं न्यारा होगा उतना औरों को बाप का प्यारा बना सकेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  सूक्ष्म में भी वृत्ति व दृष्टि में हलचल मचती है - क्यों, कैसे हुआ.? इसको भी देही-अभिमानी स्टेज नहीं कहेंगे। *जैसे महिमा सुनने के समय वृत्ति व दृष्टि में उस आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, वैसे ही अगर कोई शिक्षा का इशारा देते हैं, तो उसमें भी उसी आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिन्तक की भावना रहती कि यह आत्मा मेरे लिए बड़ी से बड़ी शुभचिन्तक है, ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी।* अगर देही-अभिमानी नहीं हैं तो दूसरे शब्दों में अभिमान कहेंगे। इसलिए अपमान को सहन नहीं कर सकते।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- देह-अभिमान का द्वार बंद करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मन-बुद्धि से सूक्ष्म वतन में बाबा के सम्मुख बैठ, बाबा को प्यार से निहार रही हूँ... मीठे बाबा अपनी पावन दृष्टि से मुझ आत्मा को निहाल कर रहे हैं... मैं आत्मा इस देह से डिटैच होकर सुन्दर प्रकाशमय काया को धारण करती हूँ...* बाबा अपने पवित्र किरणों को मुझ आत्मा पर बरसाकर मेरी काया को और चमका रहे हैं... मैं आत्मा चमकीला फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर मीठे बाबा की मीठी शिक्षाओं को धारण करती हूँ...

 

  *विकारों से मुक्त होकर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... देह और देहाभिमान ने जीवन दुखो का दलदल बना दिया है... अब अपने सच्चे वजूद के नशे में खो जाओ... *कितनी खुबसूरत असीम शक्तियो से लबालब जादूगर आत्मा हो इस भान में गहरे डूब जाओ... और माँ पिता का नाम रोशन करने वाले सपूत बन जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा रूहानी नूर बन खुशियों के आसमान में चमकते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ईश्वर पिता की मीठी सुखदायी छाँव में विकारो के कांटे से खुशनुमा फूल हो गई हूँ*... मेरा खोया खुबसूरत वजूद पाकर मीठे बाबा पर फ़िदा हो गयी हूँ... माँ पिता के आदर्शो पर चलकर नूरानी सी चहक रही हूँ...

 

  *मुझ आत्मा को सर्व वरदानों और खजानों से मालामाल करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता जो अथाह खजाने हथेली पर सजाकर बच्चों के लिए लाये है उन खजानो से मालामाल हो जाओ... *विकारो की कालिमा से दूर होकर ईश्वरीय यादो में प्रकाश पुंज बन सबके दिलो को रोशन करो... माँ पिता के नक्शे कदम पर कदम रखते जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा विषय सागर से निकल ज्ञानसागर में लहराकर मोतियों को बटोरते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा दुखो में लहुलुहान करने वाले विकारी काँटों से निकल कर ईश्वर पिता की गोद में फूल बन मुस्करा रही हूँ...* मीठे बाबा की सारी दौलत अपने दामन में सजा रही हूँ... और अमीरी से भरपूर हो गई हूँ... वफादारी की खशबू से मीठे बाबा को रिझा रही हूँ...

 

  *अपने स्नेह के आँचल में मुझे समेटते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *देह के पराये से गुणो का त्यागकर ईश्वरीय गुणो से महक जाओ... अथाह सुखो से सजे मीठे से स्वर्ग के मालिक होकर सच्ची मुस्कराहटों के फूल जीवन की बगिया में खिलाओ...* अपनी सच्ची स्मृतियों में डूब जाओ और माता पिता को गौरवान्वित कराओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा देही-अभिमानी बन परमात्म प्यार की अधिकारी बनते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... ईश्वर पिता को विकारो का दान कर सारे ईश्वरीय खजाने की सहज ही अधिकारी हो गई हूँ...* धरती आसमाँ को बाँहों में भरकर मुस्कराने वाली मै आत्मा ईश्वर पिता की रोम रोम से ऋणी हूँ..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सदा स्मृति रहे कि अभी हमारी वानप्रस्थ अवस्था है*

 

_ ➳  वाणी से परे अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर, वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करने के लिए, अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, मन और मुख का मौन धारण कर, एकांतवासी बनते ही मैं अनुभव करती हूँ कि जैसे सम्पूर्ण मौन की शक्ति धीरे - धीरे मेरे अन्दर एक अद्भुत आंतरिक बल का संचार कर रही है। *यह आंतरिक बल मेरे शरीर के भिन्न - भिन्न अंगों में बिखरी हुई मेरी सारी चेतना को समेटने लगा है। शरीर का एक - एक अंग जैसे शिथिल होने लगा है और श्वांसों की गति बिल्कुल धीमी हो गई है*। अपने शरीर मे आये इस परिवर्तन को महसूस करते हुए मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे धीरे - धीरे मैं सवेंदना शून्य होती जा रही हूँ और देह के भान से परे एक अति आनन्दमयी स्थिति में स्थित हो गई हूँ।

 

_ ➳  इस अति खूबसूरत स्थिति में मैं स्वयं को एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में देख रही हूँ जिसमे से निकल रही लाइट और माइट मन को तृप्त कर रही है। ये प्वाइंट ऑफ लाइट एक अति सूक्ष्म शाइनिंग स्टार के रूप में मेरे मस्तक पर चमकती हुई मुझे अनुभव हो रही है। *मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने इस अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए मैं गहन आनन्द के सुखद अनुभव में डूबती जा रही हूँ*। देह के हर आकर्षण से मुक्त करता मेरा ये मन को लुभाने वाला स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी उस स्वरूप का अनुभव करवाने वाले अपने प्यारे पिता का दिल से मैं बार - बार शुक्राना करती हूँ और अपने इस स्वरूप का भरपूर आनन्द लेते - लेते उनकी मीठी याद में खो जाती हूँ जो मुझे सेकण्ड में वाणी से परे मेरे निर्वाण धाम घर मे ले जाती है।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के इस निर्वाण धाम घर मे आकर मैं वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव कर रही हूँ। *एक गहन शांति, एक गहन निस्तब्धता इस शांतिधाम घर मे छाई  हुई है जो शांति की दिव्य अनुभूति करवाकर मेरी जन्म - जन्म से शांति की तलाश में भटकने की सारी वेदना को मिटाकर मुझे असीम सुकून दे रही है*। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शीतल लहरें दूर - दूर से आकर बार - बार मुझ आत्मा को स्पर्श करके अपनी सारी शीतलता मेरे अंदर समाकर चली जाती हैं। इन शीतल लहरों की शीतलता को स्वयं में समाते - समाते अब मैं शान्ति के सागर अपने प्यारे पिता के समीप जा रही हूँ।

 

_ ➳  वो शांति का सागर मेरा प्यारा पिता जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहा है। अपने उस शांति सागर प्यारे पिता के पास पहुँच उनकी किरणों रूपी बाहों में जा कर मैं समा जाती हूँ। *उनकी शक्तिशाली किरणों के रूप में उनके अविरल प्रेम की अनन्त धाराएं मेरे ऊपर बरसने लगती हैं और अपने अथाह प्रेम से मुझे तृप्त करने लगती हैं*। बीज रूप स्थिति में स्थित होकर बीज रूप अपने प्यारे बाबा से यह मंगल मिलन मनाना मन को एक गहन परमआनन्द की अनुभूति करवा रहा है। बाबा से आती सर्वशक्तियों की किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के निष्काम प्रेम और उनकी शक्तियों का बल स्वयं में भरकर, अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने प्यारे *बाबा के साथ बिताए अनमोल पलों को मीठी यादो के रूप में अपने मन और बुद्धि में सँजो कर, अब मैं वापिस पार्ट बजाने के लिए आवाज की दुनिया में वापिस लौट आती हूँ और आकर अपनी देह में भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान हो जाती हूँ*। देह का आधार लेकर, साकार सृष्टि पर अपना पार्ट बजाते हुए इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूँ कि यह मेरी वानप्रस्थ अवस्था है और मुझे वाणी से परे स्वीट होम जाना है। यह स्मृति देह में रहते भी मुझे देह से न्यारा और प्यारा अनुभव करवाती है।

 

_ ➳  *देह और देही दोनों को अलग - अलग देखते हुए अशरीरी बनने का अभ्यास बार - बार करने से अब मैं देह और देह की दुनिया से सहज ही उपराम होती जा रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा पतित वायुमंडल को परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मास्टर पतित-पावनी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अब धरनी में परमात्म प्रत्यक्षता का बीज डालती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव परमात्मा को प्रत्यक्ष करती हूँ  ।*

   *मैं निमित्त सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *कर्म द्वारा शक्ति स्वरूप का दर्शन अथवा साक्षात्कार कराओ तो कर्म द्वारा संकल्प शक्ति तक पहुँचना सहज हो जायेगा।* नहीं तो कमजोर कर्म, सूक्ष्म शक्ति बुद्धि को भी, संकल्प को भी नीचे ले आयेंगे। जैसे धरनी की आकर्षण ऊपर की चीज को नीचे ले आती है। इसलिए चित्र को चरित्र में लाओ।

 

✺ *"ड्रिल :- चित्र को चरित्र में लाने का अनुभव"*

 

_ ➳  मैं आत्मा माया के सभी आकर्षणों से विमुख होती हुई... वतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... *बापदादा की मीठी दृष्टि से मुझ आत्मा के कडवे संस्कार मीठे बन रहे हैं...* मुझ आत्मा का स्मृतियों का फाउंडेशन पक्का हो रहा है... बापदादा मुझ आत्मा को विजयी भव, निर्विघ्न भव, सफलता मूर्त भव का वरदान दे रहे हैं... मैं आत्मा सर्व वरदानों से भरपूर हो रही हूँ...

 

_ ➳  फिर बापदादा मुझे एक चित्र प्रदर्शनी में लेकर जाते हैं... वहां कई चित्र लगे हुए हैं... *बाबा मुझे एक-एक करके सभी चित्र दिखा रहे हैं...* एक चित्र को दिखाकर बाबा कहते हैं:- बच्चे- इसे पहचानो... मैं देखती हूँ कि ये मुझ आत्मा का अष्ट भुजाधारी दुर्गा स्वरूप का चित्र है... *सम्पूर्ण पवित्रता के लाइट के ताज से चमकता... सर्व अलंकारों, दिव्य अस्त्र-शस्त्रों के श्रृंगार से सुसज्जित... सर्व गुणों से सम्पन्न अपने दुर्गा स्वरूप के चित्र के सामने मैं आत्मा खड़े हो जाती हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने शक्ति स्वरूप के चित्र से दिव्य और अलौकिक गुणों को स्वयं में धारण कर रही हूँ... *फिर बाबा मुझे महावीर का चित्र दिखाते हैं... मैं आत्मा महावीर के गुणों को धारण कर रही हूँ... एक दिलाराम को दिल में बसा रही हूँ...* फिर बाबा मुझे विघ्न विनाशक के चित्र को दिखाते हैं... मै आत्मा गणेश समान दिव्य बुद्धि, रिद्धि-सिद्धियों को प्राप्त कर रही हूँ... *ऐसे ही मैं आत्मा अपने सभी चित्रों से दिव्य गुणों को धारण कर दिव्य गुणधारी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने कर्मों द्वारा विश्व की आत्माओं को शक्ति स्वरूप का दर्शन करा रही हूँ... मैं आत्मा अपने चित्रों को चरित्र में लाकर शक्ति स्वरूप का साक्षात्कार करा रही हूँ... *शिव शक्ति बन आसुरी वृत्तियों को परिवर्तित कर रही हूँ... महावीर बन पहाड़ जैसी परिस्थितियों को राई समान छोटा बना रही हूँ... विकारों की लंका को जला रही हूँ... विघ्न विनाशक बन सभी विघ्नों से मुक्त होकर निर्विघ्न बन रही हूँ...* और सर्व को भी निर्विघ्न बना रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा कर्मों द्वारा हर शक्ति को प्रत्यक्ष दिखा रही हूँ... श्रेष्ठ कर्मों से कमजोरियां, अलबेलेपन के संस्कारों को खत्म कर रही हूँ... सदा शक्ति स्वरुप के चित्रों की स्मृति से व्यक्ति, वैभवों के आकर्षणों से मुक्त हो रही हूँ... *अब कोई भी धरनी का आकर्षण मुझे नीचे नहीं खींच सकता... मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा, संकल्पों द्वारा वायुमंडल को चेंज कर रही हूँ... चित्र को चरित्र में लाकर सदा उडती कला का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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