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 22 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बुधी से बेहद का संन्यास किया ?*

 

➢➢ *ड्रामा के हर सीन को देख सदा हर्षित रहे ?*

 

➢➢ *अपने हाईएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म किया ?*

 

➢➢ *कर्म करते करन करावनहार बाप की स्मृति रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे साइन्स का बल अन्धकार के ऊपर विजय प्राप्त कर रोशनी कर देता है। ऐसे योगबल सदा के लिये माया पर विजयी बनाता है।* स्वयं में भी उन्हें माया हार नहीं खिला सकती। *स्वप्न में भी कमजोरी नहीं आ सकती। योगबल से प्रकृति के तत्व भी परिवर्तन हो जाते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सच्चा सेवाधारी हूँ "*

 

  याद की खुशी से अनेक आत्माओंको खुशी देने वाले सेवाधारी हो ना। *सच्चे सेवाधारी अर्थात् सदा स्वयं भी लगन में मगन रहें और दूसरों को भी लगन में मगन करने वाले।* हर स्थान की सेवा अपनी-अपनी है। फिर भी अगर स्वयं लक्ष्य रख आगे बढ़ते हैं तो यह आगे बढ़ना सबसे खुशी की बात है।

 

  वास्तव में यह लौकिक स्टडी आदि सब विनाशी हैं लेकिन अविनाशी प्राप्ति का साधन सिर्फ यह नालेज है। ऐसे अनुभव करते हो ना। देखो आप सेवाधारियों को ड्रामा में कितना गोल्डन चान्स मिला हुआ है। *इसी गोल्डन चांस को जितना आगे बढ़ाओ उतना आपके हाथ में है। ऐसा गोल्डन चांस सभी को नहीं मिलता है। कोटों में कोई को ही मिलता है।* आपको तो मिल गया। इतनी खुशी रहती है?

 

  दुनिया में जो किसी के पास नहीं वह हमारे पास है। ऐसे खुशी में सदा स्वयं भी रहो और दूसरों को भी लाओ। जितना स्वयं आगे बढ़ेंगे उतना औरों को बढ़ायेंगे। सदा आगे बढ़ने वाली, यहाँ वहाँ देखकर रुकने वाली नहीं। *सदा बाप और सेवा सामने हो, बस। फिर सदा उन्नति को पाती रहेंगी। सदा अपने को बाप के सिकीलधे हैं ऐसा समझकर चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *अभी जैसे समय की रफ्तार  चल रही है उसी प्रमाण अभी यह पाँव पृथ्वी पर नहीं रहने चाहिए।* कौन - सा पाँव? याद की यात्रा करते हो। कहालत है ना कि फरिश्तों के पाँव पृथ्वी पर नहीं होते। तो अभी यह बुद्धि पृथ्वी अर्थात प्रकृती के आकर्षण से परे हो जायेगी फिर कोई भी चीज़ नीचे नहीं ला सकती। फिर प्रकृती को अधीन करने वाले हो जायेंगे। न कि प्रकृति के अधीन होने वाले।

  

✧  जैसे साइन्स वाले आज प्रयत्न कर रहे हैं, पृथ्वी से परे जाने के लिये। वैसे ही साइलन्स की शक्ती से इस प्रकृती के आकर्षण से परे, जब चाहे तब अधीन कर दो। तो ऐसी स्थिती कहाँ तक बनी है? अभी तो बापदादा साथ चलने के लिये सूक्ष्मवतन में अपना कर्तव्य कर रहे हैं लेकिन यह भी कब तक? जाना तो अपने ही घर में है ना। इसलिए *अभी जल्दी - जल्दी अपने को ऊपर की स्थिति में स्थित करने का प्रयत्न करो।*

 

✧  साथ चलना, साथ रहना और फिर साथ में राज्य करना है ना। साथ कैसे होगा? समान बनने से। *समान नहीं बनेंगे तो साथ कैसे होगा।* अभी साथ उडना है, साथ रहना है। यह स्मृती में रखो तब अपने को जल्दी समान बना सकेंगे।नहीं तो कुछ दूर पड जायेंगे। वायदा भी है ना कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ ही राज्य करेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *अपने आपको एक सेकण्ड में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा समझ आत्म-अभिमानी व देही-अभिमानी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* अर्थात् एक सेकण्ड में कर्म-इन्द्रियों का आधार लेकर कर्म किया और एक सेकण्ड में फिर कर्म-इन्द्रियों से न्यारा, ऐसी प्रेक्टिस हो गई है? कोई भी कर्म करते कर्म के बन्धन में तो नहीं फंस जाते हो? कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से न्यारा बन सकते हो वा अब तक भी कर्म-इन्द्रियों द्वारा कर्म के वशीभूत हो जाते हो? हर कर्म-इन्द्रिय को जैसे चलाना चाहो वैसे चला सकते हो व आप चाहते एक हो, कर्म इन्द्रियाँ दूसरा कर लेती हैं? रचयिता बनकर रचना को चलाते हो? *जड़ वस्तु चैतन्य के वश में है, चैतन्य आत्मा जैसे चलाना चाहे वैसे चला नहीं सकती?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- भारत को सैलवेज करने बाप का मददगार बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अमृतवेले उठ मीठे बाबा से मिलने की तमन्ना में फ़रिश्ता बन उड़ चलती हूँ मधुबन बाबा की कुटिया में... मीठे बाबा अपनी मीठी मुस्कान से मेरा स्वागत करते हैं और अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल करते हैं...* बाबा की दृष्टि से मुझ आत्मा के सूक्ष्म विकार, पुराने स्वभाव-संस्कार दैवीय गुणों में परिवर्तित होने लगे हैं... मुझ आत्मा की काया दिव्यता से चमकने लगी है... *फिर प्यारे बाबा मुझे अपने साथ रूहानी सैर पर ले जाते हैं और तीनों कालों के दर्शन कराते हैं... फिर ज्ञान सागर बाबा मुझ पर ज्ञान की बरसात करते हैं...*

 

  *भारत को दैवी स्वराज्य बनाने में मददगार बन श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे...  ईश्वर पिता आप बच्चों के सुखो के लिए हथेली पर स्वर्ग धरोहर लाया है... *स्वर्ग के फाउंडेशन में मददगार बन सदा का सुनहरा भाग्य बनाओ... ईश्वरीय राहो पर चलकर असीम खुशियो में मुस्कराओ...* श्रीमत के हाथो में हाथ देकर, सदा के सुखो में झूम जाओ..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा बेहद के सर्विस में जुटकर बाबा की राईट हैण्ड बन विश्व का कल्याण करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ... *ईश्वर पिता की मदद कर, मीठा प्यारा भाग्य सजा रही हूँ... श्रीमत के साये में विकारो की कालिमा से महफूज होकर,सदा की निश्चिन्त हो गयी हूँ..."*

 

  *मेरे भाग्य के सितारे को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे...  ईश्वर पिता को खोज खोज कर थक से निकले थे कभी, आज उसकी मदद करने वाले खुबसूरत भाग्य के मालिक हो गए हो... *श्रेष्ठ भाग्य को लिखने की कलम पा गए हो... और अनन्त खुशियो को बाँहों में भरकर मुस्करा रहे हो... भगवान की मदद करने वाले महान हो गए हो..."*

 

_ ➳  *मीठे बाबा के प्यार के फव्वारे में खुशियों की चरमसीमा पर पहुंचकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपनी ही मदद को बेजार थी कभी... आपकी मदद को हर पल तरस रही थी... *आज आपका सारा प्यार आँचल में भरकर मुस्करा रही हूँ... मीठे बाबा भाग्य से युँ सम्मुख पाकर आपके प्यार में बावरी हो गयी हूँ... और असीम खुशियो में नाच रही हूँ..."*

 

  *काँटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाकर रूहानी फूलों का गुलदस्ता तैयार करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता की श्रीमत पर चलकर जीवन को नये आयामो पर पहुँचाओ... मनुष्य मत ने कितना निस्तेज और बेहाल किया है... *अब श्रीमत के हाथो में पलकर फूलो सा खिलखिलाओ... दिव्य गुणो से सज संवर कर देवताई सौभाग्य को पाओ... सदा खुशियो में गुनगुनाओ..."*

 

_ ➳  *करावनहार के हाथों को थाम श्रीमत के मार्ग पर चलते हुए मंजिल के समीप पहुंचती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अदनी सी, भगवान की कभी मददगार बनूंगी, ऐसा तो मीठे बाबा ख्वाबो में भी न सोचा था... *आज आपकी मदद का भाग्य पाकर, सतयुगी सुखो का हक पा रही हूँ... श्रीमत का हाथ और ईश्वरीय प्यार पाकर, अपना भाग्य शानदार बना रही हूँ..."*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि से बेहद का सन्यास करना है*"

 

_ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर मैं फ़रिशता सारे विश्व की सैर कर रहा हूँ। *ऊपर आकाश में उड़ता हुआ पृथ्वी लोक के नज़ारो को देखता मैं फ़रिशता सारे भू - लोक का चक्कर लगा रहा हूँ*। ऊँचे - ऊँचे पहाड़ो के बीच कल - कल करते झरने, घने गहरे जंगल लेकिन उनमें बसी प्रकृति की खूबसूरती मन को सुकून और आनन्द का अनुभव करवा रही है।

 

_ ➳  इन अद्भुत नज़ारो की खूबसूरती का आनन्द लेते - लेते मन में विचार आता है उन सन्यासियों का जो भगवान की शरण लेने के लिए ऐसे ही एकांत स्थानों पर चले जाते हैं। *अपना सारा जीवन वही एकांत में जप - तप करते परमात्मा को पाने में लगा देते हैं किंतु ना तो इस प्रकृति की इस खूबसूरती का आनन्द ले पाते और ना ही परमात्मा की शरण प्राप्त कर पाते*। क्योंकि वे तो इस बात से सर्वथा अनजान है कि परमात्मा की शरण पाने के लिए हद के सन्यास की नही बुद्धि से बेहद का सन्यास करने की आवश्यकता है। *घर गृहस्थ को छोड़ने की नही बल्कि प्रवृति में रहते पर वृति में रहने की आवश्यकता है*। यह विचार करता - करता अब मैं फ़रिशता उड़ते - उड़ते मधुबन की पावन धरनी पर पहुँच जाता हूँ।

 

_ ➳  यहाँ मैं देख रहा हूँ हजारों ब्राह्मण आत्माओं को जो बुद्धि से बेहद का सन्यास कर, परमात्म शरण का अनुभव करके आनन्द विभोर हो रही हैं। *परमात्मा पालना का सुखद अनुभव हर ब्राह्मण आत्मा के चेहरे पर झलक रहा हैं। सभी परमात्म प्रेम की रूहानी मस्ती में डूबे हुए हैं*। सबका मन खुशी में यही गा रहा है "पाना था सो पा लिया"। परमात्म प्यार की मस्ती में डूबे इन बेहद के सन्यासी बच्चों को देखता हुआ अपने मीठे बाबा को मैं याद करता हूँ और अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर नाज करता हुआ मन ही मन "वाह बाबा वाह" कहते हुए उनका आह्वान करता हूँ और उनकी उपस्थिति को स्पष्ट अनुभव करता हूँ।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में बापदादा अपनी हजारों भुजाओं को फैलाये अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की छत्रछाया में मुझे समेटे मेरे सम्मुख खड़े बड़े प्यार से मुस्कराते हुए मुझे निहार रहे हैं। *भगवान की शरण का प्रत्यक्ष अनुभव करके मैं मन ही मन  गद - गद हो रहा हूँ। परमात्म प्यार का सुख मेरे हृदय को आनन्द विभोर कर रहा है। परमात्म लाइट माइट मेरे अंदर समा कर मुझे डबल लाइट माइट स्थिति का अनुभव करवा रही है*। एक दम लाइट हो कर अब मैं अपने आकारी शरीर के भान से भी मुक्त हो कर स्वयं को केवल निराकारी आत्मा के रूप में देख रही हूँ। एक चमकती हुई चैतन्य ज्योति बिंदु मैं आत्मा अब अपनी निराकारी दुनिया की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  मधुबन की उस पावन धरनी से उड़ कर, ऊपर आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं पहुँच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया में। *चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारों के बीच में महाज्योति शिव पिता परमात्मा अपनी अनन्त शक्तियों को फैलाते हुए अति शोभाएमान लग रहे हैं*। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे मैं आत्मा जा कर बैठ जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की शीतल फ़ुहारों की शीतलता पाकर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने लगती हूँ। *बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर बीज रूप परमात्मा बाप के साथ मंगल मिलन का अतिशय सुख ले कर मैं वापिस कर्म करने के लिए साकार सृष्टि की ओर लौटती हूँ*।

 

_ ➳  अपने साकार शरीर रूपी रथ पर विराजमान हो कर बुद्धि से बेहद का सन्यास कर, *स्वयं को हर समय भगवान की शरण में अनुभव करते हुए, परमात्म पालना के झूले में झूलने का सुख हर पल लेते हुए, अब मैं इस कर्म क्षेत्र पर कर्म करते हर कर्म में श्रेष्ठता का अनुभव कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रह कर हर संकल्प, बोल व कर्म करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सम्पूर्ण निर्विकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा कर्म करते सदा करन-करावनहार बाप की स्मृति में रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा स्व-पुरुषार्थ और योग का बैलेंस ठीक रखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा कर्मयोगी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ऐसे अगर अपनी बुद्धि में समझते रहें कि मैं शक्ति स्वरूप हूँ लेकिन परिस्थितियों के समय, सम्पर्क में आने के समय, जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है उस शक्ति को कर्म मे नहीं लाते तो कोई मानेगा कि यह शक्ति स्वरूप हैं? सिर्फ बुद्धि तक जानना वह हो गया घर बैठे अपने को होशियार समझना। *लेकिन समय पर स्वरूप न दिखाया, समय पर शक्ति को कार्य में नहीं लगाया, समय बीत जाने के बाद सोचा तो शक्ति स्वरूप कहा जायेगा? यही कर्म में श्रेष्ठता चाहिए। जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगावें। तो अपने आपको सारे दिन की कर्म लीला द्वारा चेक करो कि हम मास्टर सर्वशक्तिवान कहाँ तक बने हैं!*

 

✺  *"ड्रिल :- मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठकर... साइंस के साधनों से डिटैच होती हुई... मन-बुद्धि को साधना में एकाग्र करती हूँ...* मैं आत्मा बाबा के तस्वीर को निहार रही हूँ... बाबा के तस्वीर से निकलती किरणों से मुझ आत्मा का देह लोप हो रहा है... मैं आत्मा विदेही बन रही हूँ... *मैं आत्मा इस साकार शरीर को छोड़ते हुए आकारी फरिश्ता स्वरूप धारण कर... साकार लोक से ऊपर उड़ते हुए आकारी फरिश्तों की प्रकाश की दुनिया में पहुँच जाती हूँ...*

 

_ ➳  सर्व शक्तिवान बाबा मुझ फरिश्ते को अपने सामने प्यार से बिठाते हैं... *सर्व शक्तियों के सागर से सर्व शक्तियां फाउंटेन के रूप में मुझ फरिश्ते में समा रही हैं...* पवित्र किरणों से मैं फरिश्ता पवित्र बन रही हूँ... *अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ...* सर्वशक्तिवान बाबा की सर्व शक्तियों को धारण कर मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन रही हूँ...

 

_ ➳  *अब मैं आत्मा जैसा समय वैसी शक्ति कर्म द्वारा कार्य में लगा रही हूँ...* सिकोड़ने और फैलानी की शक्तिसे मैं आत्मा अपनी कर्मेंद्रियो के ऊपर राज्य कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म कराती हूँ फिर न्यारी हो जाती हूँ... अपने आत्मिक स्वरुप में स्थित हो जाती हूँ... *मैं आत्मा समेटने की शक्तिको धारण कर देह, देह से संबंधित सभी विस्तारों को सार में समेटकर एवररेडी बन रही हूँ...*

 

_ ➳  व्यक्ति और प्रकृति द्वारा कैसी भी परिस्थितियां आये मैं आत्मा सहन शक्तिसे सब कुछ सहन करती हूँ... *समाने की शक्तिसे मैं आत्मा सबके गुणों, विशेषताओं को अपने अन्दर समा रही हूँ... परखने की शक्तिको मैं आत्मा कर्म में प्रयोग कर सही गलत की परख करती हूँ...* और निर्णय शक्तिसे सही निर्णय कर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...

 

_ ➳  *‘सामना करने की शक्तिको धारण कर मैं आत्मा माया के तूफानों का भी दृढ़ता से सामना कर रही हूँ...* पहाड़ जैसी परिस्थितियों को सहजता से पार कर रही हूँ... अब मैं आत्मा हर प्रकार के हलचल में भी अचल अडोल रहती हूँ... *सहयोग की शक्तिसे मैं आत्मा सर्व आत्माओं को स्नेह और सहयोग से भरपूर कर रही हूँ... सबके प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रख दुआओं का खाता बढा रही हूँ...*

 

_ ➳  *पवित्रता की शक्ति, शांति की शक्ति का प्रयोग कर मैं आत्मा चारों ओर के वायुमंडल को पवित्र और शांत कर रही हूँ... सतोप्रधान बना रही हूँ...* चारों ओर की अपवित्रता, तमोप्रधानता को खत्म कर रही हूँ... अब मैं आत्मा शक्ति स्वरूप बन समय पर शक्तियों को कार्य में लगाती हूँ... और श्रेष्ठ कर्म करती हूँ... *अब मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ऑर्डर प्रमाण चलाकर मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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