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 17 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भोजन को दृष्टि दे शुद्ध बनाकर स्वीकार किया ?*

 

➢➢ *"परमपिता परमात्मा के हम बच्चे हैं" - इसी नशे में रहे ?*

 

➢➢ *स्वयं के टेंशन पर अटेंशन देकर विश्व का टेंशन समाप्त किया ?*

 

➢➢ *दृढ़ता की शक्ति से मन को कण्ट्रोल किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अब कोई भी आधार पर जीवन का आधार नहीं होना चाहिए अथवा पुरुषार्थ भी कोई आधार पर नहीं होना चाहिए,* इससे योगबल की शक्ति के प्रयोग में कमी हो जाती है। *जितना जो योगबल की शक्ति का प्रयोग करते हैं उतना उनमें वह शक्ति बढ़ती है। योगबल अभ्यास से बढ़ता है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

   एक लगन में मगन रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो? साधारण तो नहीं। *सदा श्रेष्ठ आत्मायें जो भी कर्म करेंगी वह श्रेष्ठ होगा। जब जन्म ही श्रेष्ठ है तो कर्म साधारण कैसे होगा! जब जन्म बदलता है तो कर्म भी बदलता है। नाम रूप, देश, कर्म सब बदल जाता है। तो सदा नया जन्म, नये जन्म की नवीनता के उमंग-उत्साह में रहते हो!* जो कभी-कभी रहने वाले हैं उन्हें राज्य भी कभी-कभी मिलेगा।

 

  जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हें निमित्त बनने का फल मिलता रहता है। और फल खाने वाली आत्मायें शक्तिशाली होती हैं। *यह प्रत्यक्षफल है, श्रेष्ठ युग का फल है। इसका फल खाने वाले सदा शक्तिशाली होंगे। ऐसे शक्तिशाली आत्मायें परिस्थितियों के ऊपर सहज ही विजय पा लेती हैं। परिस्थिति नीचे और वह ऊपर।*

 

  जैसे श्रीकृष्ण के लिए दिखाते हैं कि उसने साँप को भी जीता। उसके सिर पर पाँव रखकर नाचा। तो यह आपका चित्र है। कितने भी जहरीले साँप हों लेकिन आप उन पर भी विजय प्राप्त कर नाच करने वाले हो। यही श्रेष्ठ शक्तिशाली स्मृति सबको समर्थ बना देगी। *और जहाँ समर्थता है वहाँ व्यर्थ समाप्त हो जाता है। समर्थ बाप के साथ हैं, इसी स्मृति के वरदान से सदा आगे बढ़ते चलो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *फरिश्ता रुप की स्थिति अर्थीत अव्यक्त स्थिति जिसकी सदा काल रहती है वह बिन्दु रुपों में भी सहज स्थित हो सकेगा।* अगर अव्यक्त स्थिति नहीं है तो बिन्दु रुप में स्थित होना भी मुश्किल लगता है। इसलिए अभी इसका भी अभ्यास करो। शुरू शुरू में अव्यक्त स्थिति का अभ्यास करने के लिए कितना एकान्त में बैठ अपना व्यक्तिगत पुरुषार्थ करते थे।

 

✧  *वैसे ही इस फाइनल स्टेज का भी पुरुषार्थ बीच - बीच में समय निकाल करना चाहिए*। यह है फाइनल सिद्धि की स्थिति। इस स्थिति को पहूँचने के लिए एक बात का विशेष ध्यान रखना पडेगा। आजकल वह गवर्नमेन्ट कौन - सी स्कीम बनाती है? उन्हों के प्लैन्स भी सफल तब होते हैं जब पहले - पहले यह लक्ष्य रखते हैं कि सभी बातों में जितना हो सके इतनी बचत हो। बचत की योजना भी करते है ना।

 

✧   समय बचे, पैसे बचे, इनर्जी की भी बचत करना चाहते हैं। *इनर्जी कम लगे और कार्य ज्यादा हो*। सभी प्रकार की बचत की योजना करते हैं। अब पाण्डव गवर्नमेन्ट को कौन - सी स्कीम करनी पडे? *यह जो सुनाया कि बिन्दु रुप की सम्पूर्ण सिद्धि की अवस्था को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना पडे।* अभी जिस रीति चल रहे हैं उस हिसाब से तो सभी यही कहते हैं कि बहुत बिजी रहते हैं, एकान्त का समय कम मिलता हैं, अपने मनन का समय भी कम मिलता है। लेकिन समय कहाँ से आयेगा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *पुरुषार्थ शब्द का अर्थ क्या करते हो? इस रथ में रहते अपने को पुरुष अर्थात् आत्मा समझकर चलो, इसको कहते है पुरुषार्थी।* तो ऐसे पुरुषार्थ करने वाला अर्थात् आत्मिक स्थिति में रहने वाला इस रथ का पुरुष अर्थात् मालिक कौन है? आत्माना। *तो पुरुषार्थी माना अपने को रथी समझने वाला। ऐसा पुरुषार्थी कब हार नहीं खा सकता।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप के पास जो वक्खर है उसे धारण करना और कराना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा हिस्ट्री हॉल में बापदादा के सम्मुख बैठी हूँ... गॉडली स्टूडेंट बन ज्ञान मुरली सुन रही हूँ... ज्ञान सागर में डुबकी लगाकर साथ-साथ ज्ञान का मंथन करती जा रही हूंमैं अविनाशी आत्मा अविनाशी बाबा के अविनाशी ज्ञान को धारण कर रही हूँ... *प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रखते हैं... बाबा के हाथों से ज्ञान, गुण, शक्तियों के हीरे बरस रहे हैं... मैं आत्मा इन हीरों से अपना श्रृंगार करके औरों का भी श्रृंगार कर रही हूँ...*

 

   *21 जन्मों की राजाई का सुख पाने के लिए ज्ञान का मंथन कर धारणा करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता से पाये अमूल्य रत्नों को जितना लुटाओगे, उतने मालामाल हो, सतयुग के सुखो में मुस्कराओगे...* इसलिए इन बेशकीमती रत्नों को बुद्धि में इस कदर समाओ और जीवन में उसकी ऐसी मीठी झलक दिखाओ कि हर दिल आत्मा सच्चे ज्ञान को पाने को लालायित हो जाए...

 

_ ➳  *शिवसागर में डूबकर ज्ञान रत्नों रूपी अमूल्य खजानों की मालिक बन ख़ुशी की लहर फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय रत्नों को पाकर रत्नों की ख़ान बनती जा रही हूँ... *और इस दौलत की बदौलत पायी असीम ख़ुशी की झलक और फलक सारे विश्व में फैला रही हूँ... सच्चे ज्ञान रत्नों को पाकर जीवन आनन्द से भर गया है...”*

 

   *अपनी मीठी वाणी से मुझे महान बनाकर सबका कल्याण करने की शिक्षा देते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... 21 जनमो की खुबसूरत राजाई का राज ज्ञान रत्नों के दान में छुपा सा है... यह खजाना जितना लुटाओगे उतने तकदीरवान भाग्यवान बन अनन्त सुखो के झूले में खिलखिलायेंगे... *इस कीमती धन का हकदार सबको बनाओ,.. और सबका जीवन आप समान सुखी बनाओ...”*

 

_ ➳  *शिव परमात्मा के ज्ञान को धारण कर ज्ञान स्वरुप बन अंधकार भरे जग में सबकी ज्योति जगाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:*- मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ज्ञान खजाने से भरपूर होकर ऐसा ज्ञानवान धनवान् सबको बनाती जा रही हूँ... *सबके जीवन में मीठे सुखो की दस्तक देकर खुशियो की बहारो का आप समान हकदार बना रही हूँ... ज्ञान की धारणा से सच्ची खुशियो का हर पल आभास करा रही हूँ...”*

 

   *ज्ञान की जादुई छड़ी घुमाकर मनुष्य से देवता बनने का हुनर सिखाते हुए मेरे जादूगर बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वर पिता गोद में बिठाकर ज्ञान रत्नों से सजा संवार रहे है... देवता सा सौंदर्य और अतुल धन सम्पदा दिलाने वाला यह अनमोल ज्ञान खजाना... सहज ही पाने वाले महान आत्मा हो...* इस नशे को रोम रोम में भर दो और ज्ञान का प्रतीक बन सबको प्रेरित करो...

 

_ ➳  *ज्ञानामृत पीकर शुद्ध, पावन बन सद्गुणों से विश्व को जगमग जगमग चमकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... आपसे पाये दिव्य गुण शक्तियाँ और अथाह ज्ञान रत्नों की झनकार से हर दिल को मन्त्रमुग्ध कर रही हूँ... *मेरे ईश्वरीय रंगरूप को देख हर दिल ईश्वरीय ज्ञान का आतुर हो उठा है... और जनमो की अतृप्त आत्माये सदा का सुख पा रही है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- योगबल से भोजन को दृष्टि से शुद्ध बना कर स्वीकार करना है*"

 

_ ➳  शास्त्रों में ब्रह्मा भोजन की कितनी महिमा की गई है! कितना सच कहा गया है कि देवता भी इस ब्रह्मा भोजन को तरसते थे! भले सतयुग में देवताओं का राज्य होगा,अपरम अपार सुख होंगे, शांति और सम्पन्नता होगी। भोजन भी 56 प्रकार का होगा किन्तु अपने हाथ से और साथ बैठ कर खाने वाला भगवान कहाँ होगा! *जिस परमात्म पालना में पलते हुए, अपने पिता परमात्मा के  साथ बड़े प्यार के साथ भोजन स्वीकार करने का जो आनन्द मैं अब ले रही हूँ वो आनन्द पूरे कल्प में फिर कहाँ मिलेगा*! बड़े प्यार के साथ बाबा का आह्वान कर, भोजन बनाना और फिर बाबा के साथ बैठ कर भोजन खाने का आनन्द लेना! कितना सुख समाया है इसमें जिसका वर्णन भी नही हो सकता। 

 

_ ➳  मन ही मन अपने आप से बातें करती मैं रसोईघर, अपने प्यारे बाबा के भण्डारे की ओर चल पड़ती हूँ। अपने परम पवित्र श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होकर मैं बाबा के इस भण्डार गृह में प्रवेश करती हूँ, उसकी सफाई करती हूँ और बड़े प्यार से बाबा का आह्वान करती हूँ। *मेरा आह्वान सुनते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा अपना घर परमधाम छोड़ कर नीचे उतर आयें है और इस भण्डारगृह में आकर मेरे सिर के ठीक ऊपर स्थित हो गए हैं*। उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी छत्रछाया के नीचे मैं स्वयं को अनुभव कर रही हूँ। उनकी याद में मग्न, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में भरते हुए मैं बड़ी शुद्धि से भोजन बना रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि परमात्म शक्तियों से यह भोजन कितना शुद्ध और पवित्र बन रहा है।

 

_ ➳  अपने प्यारे बाबा की याद में, उच्च स्वमान के साथ बड़ी शुद्धि से भोजन बनाकर अब मैं बड़े प्यार के साथ भोग की थाली तैयार करती हूँ। *आसन बिछा कर, भोग की थाली को सामने रख मैं अशरीरी स्थिति में स्थित होकर अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप को धारण करती हूँ और बड़े प्यार से अपने हाथों में भोग की थाली उठाकर, अपने प्यारे बापदादा को भोग स्वीकार कराने उनके अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। सेकण्ड में सूर्य, चांद, तारागणों के विशाल समूह को पार कर मैं भोग की थाली के साथ पहुँच जाती हूँ सफेद प्रकाश की, फरिश्तो से सजी दुनिया में। अपने सामने अव्यक्त बापदादा को देखते हुए मैं उनके पास पहुँचती हूँ और भोग की थाली उनके आगे रख उन्हें भोग स्वीकार कराती हूँ।

 

_ ➳  बापदादा बड़े प्यार से मुस्कराते हुए कभी मुझे और कभी भोग की उस थाली को देख रहें हैं। *बाबा की याद में बने उस भोग में मेरी भावना को देख बापदादा हर्षित होते हुए अपनी दृष्टि उस भोग के ऊपर डाल उसमें अपनी सारी शक्तियाँ प्रवाहित कर रहें हैं*। बापदादा की दृष्टि से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझ फ़रिश्ते पर भी पड़ रही है और मुझ से होती हुई उस भोग में समा रही है। पवित्रता की सारी शक्ति भोजन में समाती जा रही है। भोजन के एक - एक कण में अथाह शक्तियाँ भर गई हैं। *बड़े प्यार से अपने हाथ से मैं बाबा को भोग खिला रही हूँ। बाबा एकटक मुझे निहार रहें हैं और मेरे हाथ से भोग स्वीकार कर अब अपने हाथ से मेरे मुख में छोटी सी गिटी डाल रहें हैं*। बाबा को भोग स्वीकार कराकर अब मैं वापिस आती हूँ। 

 

_ ➳  साकार लोक में अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हो जाती हूँ। अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अलग - अलग सम्बन्धों के रूप में बाबा को अनुभव करते हुए बाबा के साथ बैठ कर अब मैं उस भोग को खाती हूँ। *कभी मैं अनुभव करती हूँ बाबा मेरे सामने मेरा छोटा सा नन्हा सा बच्चा बन कर बैठें हैं और मैं बड़े प्यार से, उन पर बलिहार जाते हुए अपने हाथ से छोटी - छोटी गिटी तोड़ कर उन्हें खिला रही हूँ। एक गिटी मैं उन्हें खिलाती हूँ और फिर एक गिटी अपने नन्हे हाथों से वो मुझे खिलाते हैं*। कभी मैं उन्हें अपने खुदा दोस्त के रूप में देखती हूँ। मेरा सबसे अच्छा दोस्त जो मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार हैं उसके ऐसे निस्वार्थ प्यार को देख खुशी में गदगद होकर मैं उसके साथ बैठकर भोजन खा रही हूँ। 

 

_ ➳  कभी अपने अविनाशी साजन के रूप में, अपने जीवन के हर सुख - दुख में साथ निभाने वाला सच्चा साथी अनुभव करते हुए उनके साथ बड़े प्यार से भोजन खा रही हूँ। *इस प्रकार हर दिन बड़े प्यार से बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर, सर्व सम्बन्धो से बाबा को याद कर उनके साथ बैठकर खाने का भरपूर आनन्द लेते हुए, अपने ब्राह्मण जीवन मे मैं हर पल परमात्म प्यार और परमात्म पालना का अनुभव कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं स्वयं के टेन्शन पर अटेंशन देकर विश्व का टेन्शन समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा दृढ़ता की शक्ति से सदा मन को कंट्रोल करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव योग की अनुभूति करती हूँ  ।*

   *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  ‘‘आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं ने सर्वशक्तियों को कहाँ तक अपने में धारण किया है? *विशेष शक्तियों को अच्छी तरह से जानते हो और जानने के आधार पर चित्र बनाते हो। यह चित्र, चैतन्य स्वरूप की निशानी है - ‘‘श्रेष्ठता अथवा महानता।'' हर कर्म श्रेष्ठ, महान है इससे सिद्ध है कि शक्तियों को चरित्र अर्थात् कर्म में लाया है।* निर्बल आत्मा है वा शक्तिशाली आत्मा है, सर्वशक्ति सम्पन्न है वा शक्ति स्वरूप सम्पन्न है - यह सब पहचान कर्म से ही होती है *क्योंकि कर्म द्वारा ही व्यक्ति और परिस्थिति के सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हैं। इसलिए नाम ही है - ‘‘कर्म-क्षेत्र, कर्म-सम्बन्ध, कर्म-इन्द्रियां, कर्म भोग, कर्म योग।"*

 

✺  *"ड्रिल :- श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मन के संकल्पों, विकल्पों के बोझ से न्यारी होती हुई... परमधाम में सर्व शक्तियों के सागर के समीप बैठ जाती हूँ...* सर्व शक्तियों के सागर से असीम शीतल किरणें निकल रही हैं... मैं आत्मा इन किरणों की ठंडी छांव में बैठ जाती हूँ... मैं आत्मा इन किरणों को स्वयं में आत्मसात कर रही हूँ... *मैं आत्मा सर्व शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरुप बन रही हूँ...*

 

_ ➳  *सर्व शक्तिमान की किरणों से मुझ आत्मा की सभी कमी-कमजोरियां खत्म हो रही है... निर्बलता, संशय, अलबेलेपन के संस्कार मिट रहे हैं...* मुझ आत्मा के कमजोर संकल्प दृढ़ संकल्पों में परिवर्तित हो रहे हैं... कमजोर कर्म खत्म हो रहे हैं... *मुझ आत्मा के सभी कर्म श्रेष्ठ बन रहे हैं...* अब मैं आत्मा अपने शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रह श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ... जिससे मुझ आत्मा के विकर्मो का खाता समाप्त हो रहा है...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान के पॉइंट्स की धारणा कर नालेजफुल बन रही हूँ...* नालेज को शक्ति रूप में यूज कर रही हूँ... और पावरफुल होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को अपने चरित्र में उतार रही हूँ... मैं आत्मा अपने चैतन्य स्वरूप का चित्र बना रही हूँ... *मैं आत्मा सदा कर्म रूपी दर्पण में अपने शक्ति स्वरूप का चित्र देखती हूँ*... जिस शक्ति की कमजोरी हो उसे पहचान कर उस शक्ति को स्वयं में भरती हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों और परिस्थितियों में... शक्तियों का प्रयोग कर रही हूँ... *श्रेष्ठ कर्मों की प्रत्यक्षता द्वारा विश्व की आत्माओं के आगे उदाहरणस्वरूप बन रही हूँ...* अपने कर्मों द्वारा अपने शक्ति स्वरूप का दर्शन करा रही हूँ... *वृत्ति द्वारा वृत्तियों को, वायुमंडल को परिवर्तित* कर रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा समय पर शक्तियों को कर्म में लगाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ... *मैं आत्मा शुभ भावना, शुभ कामनाओं के श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा... चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बना रही हूँ...* मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हूँ... *अब मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्मों द्वारा श्रेष्ठता अथवा महानता का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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