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❍ 11 / 04 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *एक बाप से तन मन धन और श्रेष्ठ संबंधो का सौदा किया ?*
➢➢ *दिल से "बाबा कहा ?*
➢➢ *खजानों को स्व प्रति और सर्व प्रति कार्य में लगाया ?*
➢➢ *मनन शक्ति से ज्ञान धन को बढाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे कोई भी साइन्स के साधन को यूज करेंगे तो पहले चेक करेंगे कि लाइट है या नहीं है। ऐसे जब योग का, शक्तियों का, गुणों का प्रयोग करते हो तो पहले ये चेक करो कि मूल आधार आत्मिक शक्ति, परमात्म शक्ति वा लाइट (हल्की) स्थिति है?* अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता बहुत सहज कर सकते हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी सदा अपने को विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सारे विश्व में ऐसी विशेष आत्मायें कितनी होंगी? जो कोटों में कोई गायन है, वह कौन हैं? आप हो ना! तो सदा अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? कभी स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि इतनी श्रेष्ठ आत्मा बनेंगे लेकिन साकार रूप में अनुभव कर रहे हो। तो सदा अपना यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है? *वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो भगवान ने खुद आपका भाग्य बनाया है। डायरेक्ट भगवान ने भाग्य की लकीर खींची, ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है। जब यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है तो खुशी में बुद्धि रूपी पाँव इस पृथ्वी पर नहीं रहते।* ऐसे समझते हो ना।
〰✧ वैसे भी फरिश्तों के पाँव धरनी पर नहीं होते। सदा ऊपर। तो आपके बुद्धि रूपी पाँव कहाँ रहते हैं? नीचे धरनी पर नहीं। देह-अभिमान भी धरनी है। देह-अभिमान की धरनी से ऊपर रहने वाले। इसको ही कहा जाता है - 'फरिश्ता'। तो कितने टाइटिल हैं - भाग्यवान हैं, फरिश्ते हैं, सिकीलधे हैं - जो भी श्रेष्ठ टाइटिल हैं वह सब आपके हैं। तो इसी खुशी में नाचते रहो। *सिकीलधे धरती पर पाँव नहीं रखते, सदा झूले में रहते। क्योंकि नीचे धरनी पर रहने के अभ्यासी तो 63 जन्म रहे। उसका अनुभव करके देख लिया। धरनी में मिट्टी में रहने से मैले हो गये। और अभी सिकीलधे बने तो सदा धरनी से ऊपर रहना। मैले नहीं, सदा स्वच्छ।*
〰✧ *सच्ची दिल, साफ दिल वाले बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं। क्योंकि बाप भी सदा स्वच्छ है ना। तो बाप के साथ रहने वाले भी सदा स्वच्छ हैं।* बहुत अच्छा, मिलन मेले में पहुँच गये। लगन ने मिलन मनाने के लिए पहुँचा ही दिया। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि बच्चे नहीं तो बाप भी अकेला क्या करेगा? भले पधारे अपने घर में। मौज मनाते हुए पहुँच गये।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बाप कब निराशा होते है? परिस्थितयों से घबराते है? तो बच्चे फिर क्यों घबराते है? ज्यादा परिस्थितियों को सामना करने का साकार सबूत भी देखा। कभी उनका घबराहट का रूप देखा? सुनाया था ना कि *सदैव यह याद रखो कि स्नेह में सम्पूर्ण होना है*। कोई मुश्किल नहीं है। स्नेही को सुधा - बुध रहती है? जब अपने आप को मिटा ही दिया फिर यह मुश्किल क्यों? मिटा दिया ना।
〰✧ जो मिट जाते हैं वह जल जाते है। *जितना अपने को मिटाना उतना ही अव्यक्त रुप से मिलना*। मिटना कम तो मिलना भी कम। अगर मेले में भी कोई मिलन न मनाये तो मेला समाप्त हो जायेगा फिर कब मिलन होगा? स्नेह को समानता में बदली करना है। स्नेह को गुप्त और समानता को प्रत्यक्ष करो। सभी समाया हुआ है सिर्फ प्रत्यक्ष करना है। अपने कल्प पहले के समाये हुए संस्कारों को प्रत्यक्ष करना है।
〰✧ कल्प पहले की अपनी सफलता का स्वरूप याद आता है ना। *अभी सिर्फ समाये हुए को प्रैक्टिकल प्रत्यक्ष रूप में लाओ*। सदैव अपनी सम्पूर्णता का स्वरूप और भविष्य 21 जन्मों का रूप सामने रखना है। कई लोग अपने घर को सजाने के लिए अपने बचपन से लेकर, अपने भिन्न - भिन्न रूपों का यादगार रखते है। तो आप अपने मन मन्दिर में अपने सम्पूर्ण स्वरुप की मूर्ती, भविष्य के अनेक जन्मों की मूर्तियाँ स्पष्ट रूप में सामने रखो। फिर कोई तरफ संकल्प नहीं जायेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ निरन्तर देह का भान भूल जाए- उसके लिए हरेक यथाशक्ति नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मेहनत कर रहे हैं। पढ़ाई का लक्ष्य ही है देह-अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना। *देह-अभिमान से छूटने के लिए मुख्य युक्ति यह है सदा अपने स्वमान में रहो तो देह-अभिमान मिटता जायेगा। स्वमान में स्व का भान भी रहता है अर्थात् आत्मा का भान। स्वमान - मैं कौन हूँ।* अपने इस संगमयुग के और भविष्य के भी अनेक प्रकार के स्वमान जो समय प्रति समय अनुभव कराए गये हैं, उनमें से अगर कोई भी स्वमान में स्तिथ रहते रहे तो देह - अभिमान मिटता रहे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- तन, मन, धन और सम्बन्ध का श्रेष्ठ सौदा करना"*
➳ _ ➳ *ये पतित दुनिया, ये बेगाना घर, मेरी खातिर चले आये वो परमधाम छोडकर... लम्हा दर लम्हा बदल रही जिन्दगी, हदों से निकल कर हुई, अब बेहद में मेरी नज़र*... हद की दुनिया में पुरानी कीचड पट्टी संभाले मैं आत्मा, बोझिल कदमों से हर जन्म में उनको ढूँढती... और खुद के वजूद को भूलाती गयी... मगर ढूँढने पर न वो मिले और न मेरा वजूद... *अब वो मिलें... तो जमाने भर की खुशियाँ मेरे पहलूँ मे मचलने लगी है*... *ईश्वरीय सन्तान के रूतबे से नवाजकर सम्मुख बैठे बापदादा, आज मुझ आत्मा को पुराना बैग बैगेज ट्रांसफर कर सतयुग में सब कुछ नया लेने के बारे में समझानी दे रहे है*...
❉ *मेरी सदकामनाओं को पूरा करने वाले सच्चे सच्चे निष्कामी बाप मुझ आत्मा से बोले*:- "हद की कामनाओं से मन बुद्धि को समेटने वाली मेरी निश्चय बुद्धि बच्ची... *बाप की मत पर क्या पूरा पूरा निश्चय रखती हो? ये परायी दुनिया और पराया घर मन बुद्धि को बाँधते तो नही*?... *सतयुगी वर्सा और नई दुनिया की बादशाही अब साकार होते देख रही हो*?"
➳ _ ➳ *एक बाप दूसरा न कोई ऐसी अटूट निश्चय बुद्धि वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली*:- "प्यारे बाबा.. *सिर हथेली पर रख आप की बनी हूँ बाबा*, *ये देह दुनिया ये झूठी शानो शौकत, ये देह के सम्बन्ध, ये पुराने संस्कार, आप की श्रीमत पर सब सतयुगी संस्कार और संबंधों में बदल रहे है*... साक्षी हो देख रही हूँ एक एक संस्कार को... जो पल पल योगज्वाला में जल रहे है..."
❉ *ज्ञान की गहराईयों में उतार मुझ आत्मा को मास्टर ज्ञान सागर बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मेरी मास्टर ज्ञान सागर बच्ची... देखते ही देखते इस विनाशी दुनिया का सब कुछ स्वाहा होने वाला है... *पूरी तरह ट्रस्टी बन अब हर चीज से ममत्व निकालते जाना है, ये ज्ञान के शास्त्र ये मुरली ये ज्ञान के चित्र सब यही विनाश हो जायेगे... इनमें भी मोह न रख बस अपने संस्कारों को दिव्य बनाओं..."*
➳ _ ➳ *एक शिव बाप से कनेक्शन रख तन, मन, धन सब इन्श्योर करने वाली मैं निश्चय बुद्धि आत्मा बोली:-* "मेरे बाबा... हर कदम आपकी श्रीमत पर चल चल बाप की राय लेती मैं आत्मा नैचुरल अटैन्शन से अपनी नेचर को बदल रही हूँ... *पुराने संस्कारों को भस्म कर दिव्यता की चैतन्य मूरत बन रही हूँ, अशरीरीपन का अभ्यास व्यर्थ से दूर कर रहा है... सब कुछ बाप को सौंपकर मैं ट्रस्टी बन रही हूँ*..."
❉ *हथेली पर बहिश्त रख दूसरे हाथ से पुरानी कीचड पट्टी ले सच्चा सौदा करने वाले सौदागर बाप बोले:-* "मेरी विश्व कल्याणी बच्ची... बाप की पालना का रिटर्न चुकाओ... *पुरानी कीचड पट्टी संभाले, सुखो की खोज में भटकती हर आत्मा को भी सच्चे सौदागर की खूबियों से परिचय कराओं*... चेहरे से, चलन से सबको अपनी सतयुगी झलक दिखाओं..."
➳ _ ➳ *निमित्त और निर्माण भाव से सम्पन्न मैं आत्मा करन करावन हार बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... आपकी श्रेष्ठ पालना का उपहार ये असंख्य आत्माए सतयुगी झलक और फलक नयनो में समाये विश्व के कोने कोने में फैल गयी है... *तन, मन, धन से ट्रस्टी ये आत्माए नई दुनिया के लिए नये संस्कारों का जागरण कर रही है.. जगह जगह मोह की होली जल रही है*... *सतयुगी दुनिया की ख्वाहिश अब हर आँख में पल रही है* और अपनी पालना का रिटर्न पाकर बापदादा वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दिल से बाबा कहना*
➳ _ ➳ मन मे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को बसाये अन्दर में बाबा - बाबा कहते मैं हर कर्म कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में भी विचार कर रही हूँ कि मेरे जैसा भाग्यवान इस दुनिया में कोई नही, जिसके हर कर्म में भगवान साथी बन उसका हर कार्य कैसे सहजता से करवा रहें है। *ना कोई थकावट, ना कोई मेहनत हर काम अपने आप सम्पन्न हो रहा है। कर्म करते हुए भी, कर्म के प्रभाव से मुक्त, मैं स्वयं को कितना लाइट अनुभव कर रही हूँ*। मेरे मीठे बाबा की मीठी याद मुझे कितना बल दे रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सोचने का काम भी बाबा कर रहें हैं।
➳ _ ➳ ऐसे अन्दर में बाबा - बाबा कहते, अपने मीठे बाबा की मीठी याद में कर्म करते हुए मैं अपने अति मीठे शिव भोला भगवान के गुणों का चिंतन करते हुए अपने आप से ही बात करती हूँ कि बाबा कितने स्वीट हैं। *उनकी मीठी याद जीवन की दुखदाई स्मृतियो की सारी कड़वाहट को भुला कर मन को कितना सुकून देती है। बाबा के समान मुझे भी बहुत स्वीट बन कर दुखी अशांत आत्माओं के जीवन से दुख की कड़वाहट को समाप्त कर उनके जीवन में मिठास लाने की सेवा कर बाबा के स्नेह का रिटर्न देना है*।
➳ _ ➳ मन ही मन स्व चिंतन करते हुए, अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान स्वीट बनने की प्रतिज्ञा स्वयं से करके, *मैं अपने स्वीट बाबा और अपने स्वीट साइलेन्स होम को जैसे ही याद करती हूँ, ऐसा लगता है जैसे मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, परमधाम से बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त शक्तिशाली किरणो के रूप में परमात्म ब्लैसिंग मुझ आत्मा पर बरसने लगी है*। यह परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियाँ मेरे अंदर एक बल भर रही है और मुझे बहुत ही लाइट और माइट बना रही हैं। इस लाइट और माइट स्थिति में मैं स्वयं को धीरे - धीरे देह से डिटैच अनुभव कर रही है। देह में होते हुए भी मैं स्वयं को देह से एकदम अलग अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ साक्षी होकर मैं अपनी देह और अपने आस पास की हर वस्तु को देखते हुए, अब इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर अपने स्वीट बाबा से मिलने की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ रही हूँ और कुछ ही सेकण्ड में इस यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच गई हूँ अपने स्वीट साइलेन्स होम में, जहाँ आकर मन को गहन शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है*।
अपने सामने सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। धीरे - धीरे मैं अपने मीठे बाबा के समीप जाकर मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा अपने सारे गुण और अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर भर कर मुझे आप समान बना रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में निरन्तर रहते, हर कर्म करते अन्दर में बाबा - बाबा कहते, बाबा के गुणों को अपने जीवन में धारण कर, उनके समान स्वीट बन मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सच्चा रूहानी स्नेह और सम्मान देकर सबके जीवन में मिठास घोल रही हूँ
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं संगमयुग पर हर कर्म कला के रूप में करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं 16 कला सम्पन्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा फौरन परख कर फैसला कर देती हूँ ।*
✺ *मैं पावरफुल आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा परखने की शक्ति को यूज़ करती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है। *सबसे नम्बरवन त्याग का एक्ज़ाम्पल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे। समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार त्याग - श्रेष्ठ त्याग नहीं है। शुरू से ही देखो तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया। शरीर का भी त्याग किया, सब साधन होते हुए स्वयं पुराने में ही रहे।* साधनों का आरम्भ हो गया था। होते हुए भी साधना में अटल रहे। *यह ब्रह्मा की तपस्या आप सब बच्चों का भाग्य बनाकर गई।* ड्रामानुसार ऐसे त्याग का एक्ज़ाम्पल रूप में ब्रह्मा ही बना और इसी त्याग ने संकल्प शक्ति की सेवा का विशेष पार्ट बनाया। जो नये-नये बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी।
✺ *"ड्रिल :- सब कुछ प्राप्त होते हुए भी त्याग का पार्ट बजाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा व्यक्त भाव और व्यक्त दुनिया से न्यारी होती हुई... अव्यक्त वतन में अव्यक्त बापदादा से मिलन मनाने पहुँच जाती हूँ...* मैं फरिश्ता बापदादा के सम्मुख बैठ उनको निहार रही हूँ... बापदादा के मस्तक से दिव्य अलौकिक किरणें निकलकर मुझ फरिश्ते पर पड़ रही हैं... *मैं फरिश्ता अलौकिकता का अनुभव कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं फ़रिश्ता बाप समान बन रही हूँ... *मैं फरिश्ता ब्रहमा बाप समान परमात्म प्यार में लवलीन हो रही हूँ... ब्रह्मा बाप समान त्यागी बन रही हूँ...* मैं आत्मा तन, मन, धन से एक बाबा को समर्पित हो रही हूँ... हर कर्म बाबा की याद में कर रही हूँ... सबकुछ बाबा को सौंपकर हलकी होकर उड़ रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का विनाशी धन, वैभव और साधनों की आसक्ति खतम हो रही है... विनाशी संबंधो का मोह मिट रहा है... ये सब नश्वर हैं... मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाप समान... *एक बाबा में ही सर्व संबंधो का सुख अनुभव कर रही हूँ... एक की लगन में मगन हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ मुझ आत्मा का मन विनाशी साधनों से हटकर साधना में लीन हो रहा है... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के आदर्शों पर चल रही हूँ... ब्रह्मा बाप समान सादगी का जीवन अपना रही हूँ...* फालो फादर कर कदम से कदम मिलाकर चल रही हूँ... *हर कदम में पद्मों की कमाई कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अब समझ गई हूँ... कि *अल्पकाल के साधनों से सिर्फ अल्पकाल का ही सुख मिलता है...* और अविनाशी बाबा की याद से ही अविनाशी खजानों... अविनाशी सुख की प्राप्ति होती है... *अब मैं आत्मा ब्रह्मा बाप के त्याग के एक्ज़ाम्पल को सामने रख... त्याग की भावना से... श्रेष्ठ कर्म करते हुए... श्रेष्ठ भाग्य बना रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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