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 19 / 04 / 21  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *हर कार्य करते हुए आत्मा अभिमानी बनने की प्रैक्टिस की ?*

 

➢➢ *अपने मैनर्स रॉयल बनाये ?*

 

➢➢ *भोलेनाथ के समान आलमाइटी अथॉरिटी बन माया का सामना किया ?*

 

➢➢ *अपने दिल में याद का झंडा लहराया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे साइंस के साधन का यंत्र काम तब करता है जब उसका कनेक्शन मेन स्टेशन से होता है, *इसी प्रकार साइलेंस की शक्ति द्वारा अनुभव तब कर सकेंगे, जबकि बापदादा से निरन्तर क्लीयर कनेक्शन और रिलेशन होगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी यात्री हूँ"*

 

✧  *सभी याद की यात्रा में आगे बढ़ते जा रहे हो ना। यह रूहानी यात्रा सदा ही सुखदाई अनुभव करायेगी। इस यात्रा से सदा के लिए सर्व यात्रायें पूर्ण हो जाती हैं। रूहानी यात्रा की तो सभी यात्रायें हो गई और कोई यात्रा करने की आवश्यकता ही नहीं रहती।*

 

✧  क्योंकि महान यात्रा है ना। महान यात्रा में सब यात्रायें समाई हुई है। पहले यात्राओंमें भटकते थे अभी इस रूहानी यात्रा से ठिकाने पर पहुँच गये। *अभी मन को भी ठिकाना मिला तो तन को भी ठिकाना मिला। एक ही यात्रा से अनेक प्रकार का भटकना बन्द हो गया।*

 

  *तो सदा रूहानी यात्री हैं इस स्मृति में रहो, इससे सदा उपराम रहेंगे, न्यारे रहेंगे, निर्मोही रहेंगे। किसी में भी मोह नहीं जायेगा। यात्री का किसी में भी मोह नहीं जाता। ऐसी स्थिति सदा रहे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अभी अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर व्यक्त देह का आधार लेकर देख रहे है, यह अनुभव कर रहे हो?* जैसे कोई स्थूल स्थान में प्रवेश करते हो वैसे ही इस स्थूल देह में प्रवेश कर यह कार्य कर रहे हैं। ऐसा अनुभव होता है? जब चाहें तब प्रवेश करें और जब चाहें तब फिर न्यारे हो जायें, ऐसा अनुभव करते हो? एक सेकण्ड में धारण करें और एक सेकण्ड में छोडें यह अभ्यास है?

  

✧  जैसे और स्थूल वस्तुओं को जब चाहे तब छोड सकते हैं ना। वैसे इस देह के भान को जब चाहे तब छोड देही - अभिमानी बन जायें - यह प्रैक्टीस इतनी सरल है, जितनी कोई स्थूल वस्तु की सहज होती है? रचयिता जब चाहे रचना का आधार ले जब चाहे तब रचना के आधार छोड दे ऐसे रचयिता बने हो? *जब चाहे तब न्यारे, जब चाहे तब प्यारे बन जायें।* इतना बन्धन - मुक्त बने हो?

 

✧  यह देह का भी बन्धन है। देह अपने बन्धन में बाँधती है। अगर देह बन्धन से मुक्त हो तो यह देह बन्धन नहीं डालेगी। लेकिन कर्तव्य का आधार समझ आधार को जब चाहे तब ले सकते हैं। ऐसी प्रैक्टीस चलती रहती है? देह को भान को छोडने अथवा उनसे न्यारे होने में कितना समय लगता है? एक सेकण्ड लगता है? सदैव एक सेकण्ड लगता है वा कभी कितना, कभी कितना? (कभी कैसी, कभी कैसी) *इसमे सिद्ध है कि आभी सर्व बन्धनों से मुक्त नहीं हुए हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे कोई भी व्यक्ति दर्पण के सामने खड़े होने से ही एक सेकण्ड में स्वयं का साक्षात्कार कर लेते हैं, वैसे आपके आत्मिक-स्थिति, शक्ति-रूपी दर्पण के आगे कोई भी आत्मा आवे तो क्या एक सेकेण्ड में स्व-स्वरूप का दर्शन वा साक्षात्कार नहीं कर सकते हैं?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  एकांत में बैठ सच्चे माशूक को याद करना"*

 

_ ➳  बहुत ही खुबसूरत ऊँची पहाड़ी पर खड़ी मै आत्मा... चाँद की शीतल चाँदनी का आनन्द लेते हुए मीठे बाबा की प्यारी यादो में खो जाती हूँ... कि *प्यारे बाबा ने जीवन में आकर मुझे कितना ऊँचा उठाया है.*.. मुझे क्या से क्या बना दिया है... गुणो और शक्तियो में सम्पन्न बनाकर, मन की ऊँची अवस्था में लाकर... शीतल स्वरूप की चाँदनी में रख... *मुझे कितना खुबसूरत आशिक बना दिया है..*. मीठे बाबा को अपनी भावनाये सुनाने मै आत्मा... सूक्ष्म वतन में मीठे बाबा की बाँहों में चली जाती हूँ...

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे प्यार में डुबोते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... रूहानी माशूक बाबा आज अपने आशिको से मिलने आये है... *गुणो और शक्तियो के सागर कण्ठे पर... ऊँची स्थिति की पहाड़ी पर, और सदा शीतल स्वरूप की चांदनी में... दिल का गीत सुन रहे है.*..निरन्तर याद और यह रूहानी आशिक माशूक का सम्बन्ध् को सदा यादो में बसाये रखो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा के प्यार में रोम रोम से डूबकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा भगवान को माशूक रूप में पाकर... इस कदर प्यार में बावरी हो जाउंगी... यह तो मेने कभी सोचा भी न था बाबा... *आपने तो जीवन में आकर, सच्चे प्रेम की बहार खिलाई है... मन तो जेसे प्यार की खुशबु में रोम रोम से भीगा भीगा सा है.*.."

 

   *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो के खजाने से सम्पन्न बनाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... माशूक बाबा तो सागर है... इसलिए सागर से जितना चाहे उतना अथाह लेकर नम्बरवन बनो... *सदा मेरा बाबा में दिल की गहराइयो से खोये रहो... मेरा मेरा कह और जगह फेरे न लगाओ..*. जेसे माशूक प्यारा है, सजा संवरा है, ऐसे ही गुणो और शक्तियो से सजे संवरे चमकीली ड्रेस में माशूक संग... समान बन मुस्कराओ

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के रूहानी प्यार को मन बुद्धि में समाकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... *आपने अपनी आशिकी के रंग में... मुझ आत्मा को रंगकर, कितना खुबसूरत और प्यारा बना दिया है.*.. काली दागो वाली ड्रेस की जगह... चमकीली सुंदर फ़रिश्ता ड्रेस पहनाकर अपना आशिक सजाया है... वाह कितना प्यारा यह मेरा भाग्य है..."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को आप समान बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *सदा माशूक समान हल्के बनो तो ही संग उड़ साथ जा सकेंगे.*.. यादो में रह व्यर्थ के सारे बोझों के भारीपन को समाप्त करो... अभी अभी निराकारी, अभी अव्यक्त फ़रिश्ता, अभी कर्मयोगी,अभी सेवाधारी, यह अभ्यास निरन्तर बढ़ाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा के प्यार में खुबसूरत आशिक बनी मुस्कराती हुई कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा देहभान में कितनी काली और दागो से भर गयी थी... *आपने मीठे बाबा मुझे अपने प्यार में कितना सुंदर चमकीला बना दिया है.*.. और हाथ पकड़ कर संग ले चलने को सजा दिया है..." मीठे बाबा से अथाह प्यार पाकर, यूँ सज संवर कर मै आत्मा... अपने स्थूल वतन में आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हर कार्य करते हुए आत्म - अभिमानी बनने की प्रेक्टिस करनी है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठी एक दृश्य मैं इमर्ज करती हूँ और इस दृश्य में एक बहुत बड़े दर्पण के सामने स्वयं को निहारते हुए अपने आप से मैं सवाल करती हूँ कि मैं कौन हूँ ! *क्या इन आँखों से जैसा मैं स्वयं को देख रही हूँ मेरा वास्तविक स्वरूप क्या सच मे वैसा ही है! अपने आप से यह सवाल पूछते - पूछते मैं उस दर्पण में फिर से जैसे ही स्वयं को देखती हूँ, दर्पण में एक और दृश्य मुझे दिखाई देता है इस दृश्य में मुझे मेरा मृत शरीर दिखाई दे रहा है जो जमीन पर पड़ा है*। थोड़ी ही देर में कुछ मनुष्य वहाँ आते हैं और उस मृत शरीर को उठा कर ले जाते है और उसका दाह संस्कार कर देते हैं।

 

_ ➳  इस दृश्य को देख मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि शरीर के किसी भी अंग में छोटा सा कांटा भी कभी चुभ जाता था तो मुझे कष्ट होता था। लेकिन अभी तो इस शरीर को जलाया जा रहा है फिर भी इसे कोई कष्ट क्यो नही हो रहा! *इसका अर्थ है कि इस शरीर के अंदर कोई शक्ति है और जब तक वो चैतन्य शक्ति शरीर में है तब तक यह शरीर जीवित है और हर दुख - सुख का आभास करता है लेकिन वो चैतन्य शक्ति जैसे ही इस शरीर को छोड़ इससे बाहर निकल जाती है ये शरीर मृत हो जाता है*। फिर किसी भी तरह का कोई एहसास उसे नही होता। अपने हर सवाल का जवाब अब मुझे मिल चुका है।

 

_ ➳  "मैं कौन हूँ" की पहेली सुलझते ही अब मैं उस चैतन्य शक्ति अपने निज स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ जो शरीर रूपी रथ पर विराजमान होकर रथी बन उसे चला रही है। *स्वराज्य अधिकारी बन मन रूपी घोड़े की लगाम को अपने हाथ मे थामते ही मैं अनुभव करती हूँ कि मैं आत्मा रथी अपनी मर्जी से जैसे चाहूँ वैसे इस शरीर रूपी रथ को चला सकती हूँ*। यह अनुभूति मुझे सेकण्ड में देही अभिमानी स्थिति में स्थित कर देती है और इस स्थिति में स्थित होकर मैं स्वयं को सहज ही देह से न्यारा अनुभव करते हुए बड़ी आसानी से देह रूपी रथ का आधार छोड़ इस रथ से बाहर आ जाती हूँ।

 

_ ➳  अपने शरीर रूपी रथ से बाहर आकर अब मैं इस देह और इससे जुड़ी हर चीज को बिल्कुल साक्षी होकर देख रही हूँ जैसे मेरा इनसे कोई सम्बन्ध ही नही। *किसी भी तरह का कोई भी आकर्षण या लगाव अब मुझे इस देह के प्रति अनुभव नही हो रहा, बल्कि एक बहुत ही न्यारी और प्यारी बन्धनमुक्त स्थिति में मैं स्थित हूँ जो पूरी तरह से लाइट है और उमंग उत्साह के पँख लगाकर ऊपर उड़ने के लिए तैयार है*। इस डबल लाइट देही अभिमानी स्थित में स्थित मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे मेरे शिव पिता के  प्यार की मैग्नेटिक पावर मुझे ऊपर अपनी और खींच रही है। *अपने प्यारे पिता के प्रेम की लग्न मे मग्न मैं आत्मा अपने विदेही पिता के समान विदेही बन, देह की दुनिया को छोड़ अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*।

 

_ ➳  परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही उनके अविनाशी प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अति शीघ्र पहुँच जाती हूँ अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में। *आत्माओं की ऐसी दुनिया, जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही, ऐसी चैतन्य मणियों की दुनिया मे मैं स्वयं को देख रही हूँ*। चारों और चमकते हुए चैतन्य सितारे और उनके बीच मे अत्यंत तेजोमय एक ज्योतिपुंज जो अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं।

 

_ ➳  उस महाज्योति अपने शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों की मीठी फ़ुहारों का भरपूर आनन्द लेने और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए मैं निराकार ज्योति धीरे - धीरे उनके समीप जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणो की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। *अपने प्यारे पिता के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  कर्म करने के लिए फिर से अपने शरीर रूपी रथ पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब मै सदैव इस स्मृति में रह हर कर्म करती हूँ कि मैं आत्मा इस देह में रथी हूँ। *इस स्मृति को पक्का कर, कर्म करते हुए भी स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारी आत्मा अनुभव करते हुए, देही अभिमानी बनने का अभ्यास मैं बार - बार करती रहती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं भोलेपन के साथ ऑलमाइटी अथॉरिटी बन माया का सामना करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं शक्ति स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अपने दिल में सदा याद का झंडा लहराती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव प्रत्यक्षता का झंडा लहराती हूँ  ।*

   *मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  जिस समय पावरफुल बनना चाहिए उस समय नालेजफुल बन जाते हैं। लेकिन नालेज की शक्ति है, उस नालेज को शक्ति रूप में यूज़ नहीं करते। प्वाइन्ट के रूप से यूज़ करते हैं लेकिन *हर एक ज्ञान की प्वाइन्ट शस्त्र है, उसे शस्त्र के रूप से यूज़ नहीं करते। इसलिए बीज को जानो। अलबेलेपन में आकर अपनी सम्पन्नता में वा सम्पूर्णता में कमी नहीं करो।*

 

✺  *"ड्रिल :- नॉलेज को शक्ति रूप में अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा घर की छत पर खड़ी सूर्योदय को देख रही हूँ... उगते सूरज की लालिमा को निहार रही हूँ...* छूकर जाती हुई ठंडी हवा, फूलों की सुगंध, पक्षियों की चहचहाहट ऐसा लग रहा जैसे सब मुझे गुड मॉर्निंग कह रहे हों... *मैं आत्मा इस सुहावने वातावरण का आनंद लेते हुए प्यारे बाबा को बुलाती हूँ...* आह्वान करते ही प्यारे बाबा तुरंत मेरे सामने आ जाते हैं...

 

_ ➳  *मेरे सामने हजारों सूर्यों की लालिमा बिखेरते ज्ञान सूर्य बाबा चमक रहे हैं... मैं आत्मा ज्ञान सूर्य की किरणों रूपी आभा में समा रही हूँ...* मैं आत्मा ज्ञान के प्रकाश से चमक रही हूँ... मुझ आत्मा का दिव्य बुद्धि रूपी ताला खुल रहा है... *मुझ आत्मा की दिव्य बुद्धि में दिव्य ज्ञान भर रहा है...* मुझ आत्मा के दिव्य नेत्र खुल रहे हैं... मैं आत्मा त्रिनेत्री बन रही हूँ... मैं आत्मा तीनों कालों का नालेज प्राप्त कर त्रिकालदर्शी बन रही हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा ज्ञान धन से भरपूर हो रही हूँ... *ज्ञान के हर एक प्वाइन्ट की गहराई में जाकर विचार सागर मंथन करती हूँ... और स्वयं में धारण कर रही हूँ...* ज्ञान धन को शक्ति रूप में यूज़ कर सर्व प्राप्तियां कर रही हूँ... हर एक ज्ञान की प्वाइन्ट को शस्त्र के रूप से यूज़ कर दिव्य शस्त्रधारी होने का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों के शस्त्रों से सदा सुसज्जित रहती हूँ...*

 

_ ➳  ज्ञान सूर्य की किरणों से मुझ आत्मा की कमी-कमजोरियां, आलस्य-अलबेलापन खत्म हो रहा है... *मैं आत्मा कमजोरियों के बीज को आलस्य, अलबेलेपन का पानी देकर बढ़ने नही देती हूँ...* अब मै आत्मा हर पल चेक कर अपनी कमजोरियों के बीज को पहचानती हूँ... और जड़ सहित भस्म करती हूँ... *एक बाबा से कनेक्शन रख करेक्शन कर रही हूँ... बाबा से वेरीफाय कराकर प्यूरीफाय हो रही हूँ...* अब मैं आत्मा नॉलेज को शक्ति रूप में अनुभव कर रही हूँ... सम्पन्न वा सम्पूर्ण बन रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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