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❍ 13 / 04 / 21 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कदम कदम एक की ही श्रीमत पर चलते रहे ?*
➢➢ *आत्माओं को बाप की याद दिलाई ?*
➢➢ *स्थूल कार्य करते भी मनसा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा की ?*
➢➢ *योद्धा बनने की बजाये निरंतर योगी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योग का प्रयोग करने के लिए दृष्टि-वृत्ति में भी पवित्रता को और अण्डरलाइन करो।* मूल फाउण्डेशन-अपने संकल्प को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप बनाओ। *कोई कितना भी भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव समझता हो लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर दे। यही है योग का प्रयोग।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं परमात्मा का सिकीलधा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को सिकीलधे समझते हो ना। सदा बाप के सिक व प्रेम का विशेष अनुभव होता है ना! जिस सिक व प्रेम से बाप ने अपना बनाया ऐसे सिक व प्रेम से आपने भी बाप को अपना बनाया है ना! दोनों का स्नेह का अविनाशी पक्का सौदा हो गया। ऐसे सौदा करने वाले सौदागर वा व्यापारी हो ना! ऐसा सौदा सारी दुनिया में कोई कर नहीं सकता। कितना सहज सौदा है। *दो शब्दों का सौदा है लेकिन है अमर। दो शब्द कौन से हैं? आपने कहा 'तेरा' और बाप ने कहा 'मेरा'। बस सौदा हो गया। तेरा और मेरा इन दो शब्दों में अविनाशी सौदा हो गया। और कुछ देना नहीं पड़ता।*
〰✧ देना भी न पड़े और सौदा भी बढ़ीया हो जाएँ तो और क्या चाहिए! सब कुछ मिल गया है ना। ऐसे समझा था कि घर बैठे इतना सहज सौदा भगवान से करेंगे। सोचा था! तो जो संकल्प में भी नहीं था वह प्रैक्टिकल कर्म में हो गया। यह खुशी है ना? सबसे ज्यादा खुशी किसको है? विशेषता यही है जो हरेक कहता - हमें ज्यादा खुशी है। पहले मैं। ऐसे नहीं इन्हें है हमें नहीं। यह भी रेस है, ईर्ष्या नहीं। इसमें हरेक एक दो से आगे बढ़ो। *चांस है आगे बढ़ने का। जितना आगे बढ़ने चाहो उतना बढ़ सकते हो। तो सब पक्के सौदागर बनो। कच्चा सौदा करेंगे तो नुकसान अपने को ही करेंगे।*
〰✧ सदा स्वयं को समाया हुआ अनुभव करते हो? *बाप के नयनों में, दिल में समाया हुआ। जो समाये रहते हैं वह दुनिया से पार रहते हैं। उन्हें अनुभव होता कि बाप ही सारी दुनिया है। स्वप्न में भी पुरानी दुनिया की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती है। ऐसे समाये हुए को किसी भी बात में मुश्किल का अनुभव नहीं हो सकता। वह दुनिया से खोया हुआ है। अविनाशी सर्व प्राप्ति प्राप्त किया हुआ है।* सदा दिल में एक ही दिलाराम रहता, ऐसी समाई हुई आत्मा सदा सफल है ही।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *अच्छा सारे दिन अव्यक्त स्थिती कितना समय रहती है?* बिन्दि रूप के लिए नहीं पूछते हैं। अव्यक्त स्थिति कितना समय रहती है? बापदादा सम्पूर्ण स्टेज को सामने रख पूछते हो और आप अपने पास्ट के पुरुषार्थ को सामने रख सोचते हो कितना फर्क हो गया। वर्तमान समय पढाई कि मुख्य सब्जेक्टस् कौन - सी चल रही है? *मुख्य सबजेक्ट यह पढ रहे हो कि ज्यादा से ज्सादा अव्यक्त स्थिति बनें*।
〰✧ तो मुख्य सबजेक्ट में रिजल्ट कम है। निरंतर याद में रहने कि सम्पूर्ण स्टेज के आगे एक - दो घण्टा क्या है। इनसे ज्यादा अपनी अव्यक्त स्थिति बनाने की विधी बुद्धी में हैं? अगर विधी है तो वृद्धि क्यों नहीं होती है, कारण? विधी का ज्ञान सारा स्पष्ट बुद्धी में आता है, लेकिन एक बात नहीं आती, जिस कारण विधि का मालूम होते भी वृद्धि नहीं होती है। वह कौन - सी बात है?
〰✧ अच्छा आज वृद्धि कैसे हो उस पर सुनाते है। *एक बात जो नहीं आती है वह है कि विस्तार करना और विस्तार में जाना आता है लेकिन विस्तार को जब चाहे समेटना और समा लेना यह प्रैक्टीस कम है*। ज्ञान के विस्तार में आना भी जानते हो लेकिन विस्तार को समाकर ज्ञान स्वरूप बन जाना, बीज रुप बन जाना इसकी प्रैक्टीस कम है। विस्तार से जाने से टाइम बहुत व्यर्थ जाता है और संकल्प भी व्यर्थ जाते है। इसलिए जो शक्ति जमा होनी चाहिए, वह नहीं होती।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे बाप को सर्व स्वरूपों से व सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी ऐसा जानना आवश्यक है। *जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हो ऐसे मानकर चलेंगे तो क्या स्थिति होगी? देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप जो है, जैसा है उसे पहचानना"*
➳ _ ➳ *ओम शांति बाबा... ये शब्द कितना गुह्य है बाबा, जिसका राज आपने अब सम्मुख बैठ समझाया है... ओम अर्थात मैं आत्मा... शांति अर्थात शांत... अर्थात मैं आत्मा शांत स्वरूप हूं...* पहले - पहले बाबा, मुझ आत्मा को न स्वयम का परिचय था, न आपका... आप मिले, तो जाना, मैं आत्मा हूं... यह मेरा शरीर हैं... मैं आत्मा, माना स्टार हूं... मेरे पिता परमपिता परमात्मा, वह भी स्टार है... *यह राज बाबा आपने हम ब्राह्मण आत्माओं को बताया... संसार में कोई और इस यथार्थ परिचय को नहीं जानता...*
❉ *निराकारी बाबा मुझ आत्मा पर सात रंगों की किरणों की बौछार करते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *द्वापर से तुम मुझे पुकारती आई हो... मंदिरों में, मेरे लिंग चिन्ह को पूजती आई हो...* दर - दर, तुमने कितने धक्के खाए!... अब, मैं आया हूं... तुम्हें सभी धक्कों से छुड़ाने... तुम्हारी भक्ति का फल देने... *अब मेरे यथार्थ स्वरूप को पहचान मुझे याद करो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा से शक्तिशाली किरणें स्वयं में भरती मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां बाबा... *अब मुझे आप का यथार्थ परिचय मिला है, मालूम हुआ है, कि आप कोई शरीरधारी नहीं... जन्म मरण से न्यारे हो... मुझ समान ही स्टार हो...* ज्योति बिंदु हो... परमधाम निवासी हो... अब मैं आत्मा, आपके यथार्थ स्वरूप को जान, मुझ आत्मा के पिता जो कि मेरे समान है याद कर रही हूं..."
❉ *स्नेह सागर अपने स्नेह की रूहानी किरणों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब तक तुमने मेरे सही स्वरूप को याद नहीं कर अपने पापों को न काटा है... अब, मेरे यथार्थ स्वरुप को जान तुम्हारे विकर्म विनाश हो रहे हैं... मीठी बच्ची अब जरूरत हैं जवालामुखी याद की...* अब इस याद को ज्वालामुखी रूप दो, ताकि यह विकर्म इस याद रूपी अग्नि में पूरी तरह भसम हो..."
➳ _ ➳ *स्नेह सागर की शिक्षाओं को सर माथे रख मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "जी बाबा... *मैं आत्मा अब याद रूपी चिता पर स्थित हूं... बिंदु स्वरूप में स्थित मैं आत्मा परमधाम में, आपके बिंदु स्वरूप को निहार रही हूं...* मैं देखती हूं आपसे पवित्रता की किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को पवित्रता से सम्पन्न महसूस कर रही हूं... भरपूर महसूस कर रही हूं..."
❉ *पवित्रता से ओतप्रोत मुझ आत्मा से निराकारी बाबा बोले:-* "मीठी बच्ची... *याद पर ही सारा मदार है, जहां याद है वहाँ बाप भी बच्चो को याद करते हैं, मदद करते हैं... जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना फिर बाप भी बच्चों को याद करते हैं...* जितना उच्च भाग्य आप आत्माओं का है उतना किसी और मनुष्य का नहीं... तो इस भाग्य को याद कर कितना रूहानी नशा रहना चाहिए..."
➳ _ ➳ *स्नेह सागर के स्नेह में खोई, लवलीन मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मीठे बाबा... अब कोई सुध नहीं... न इस शरीर की... न शरीर के संबंधों की... दुनिया के चमकीले आकर्षणों से भी मैं आत्मा मुक्त हूं... *अभी याद है तो बस बाप... निरंतर आपकी याद में खोई हुई, मैं आत्मा अपनी कर्मातीत अवस्था को देख रही हूं..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- तकदीरवान बनने के लिए एक बाप से सच्चा - सच्चा लव रखना है*"
➳ _ ➳ साकारी देह में भृकुटि के भव्य भाल पर विराजमान एक चैतन्य शक्ति मैं आत्मा दुनिया की भीड़ से दूर एक पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के सौंदर्य का आनन्द ले रही हूँ और अपने अविनाशी प्रीतम को याद कर रही हूँ। *मेरी याद मेरे शिव प्रीतम तक पहुँच रही है जिसका स्पष्ट अनुभव मेरे अविनाशी प्रीतम परमधाम से अपनी सर्वशक्तियों की किरणे मुझ पर फैलाते हुए मुझे करवा रहें हैं*। मेरे शिव पिया के प्रेम का अविनाशी रंग मुझ पर चढ़ रहा है और अनन्त दिव्य प्रकाश की किरणों के रूप में मुझ आत्मा से निकल कर चारों ओर फ़ैल रहा है।
➳ _ ➳ अपने अविनाशी प्रीतम के अविनाशी प्रेम में डूबी मैं आत्मा, प्रकृति के मनोहर दृश्य और शांत वातावरण में गहन शांति का असीम आनन्द ले रही हूँ। अपने शिव पिया के प्रेम में मग्न इस प्रेममयी अवस्था मे, मुझ आत्मा से निकल रही दिव्य किरणे मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रही हैं। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मेरा शरीर दिव्य लाइट का बन गया है और ऊपर की ओर उड़ने लगा है*। लाइट की दिव्य आकारी देह धारण कर मैं आत्मा अब दूर बहुत दूर उड़ती जा रही हूँ। पांचो तत्वों से पार, आकाश से भी परे मैं जा रही हूँ उस अव्यक्त वतन में जहां मैं अपने अविनाशी प्रीतम से अव्यक्त मिलन मना सकती हूँ।
➳ _ ➳ लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये अपने अव्यक्त रूप में स्थित अब मैं पहुँच गई फरिश्तो की अव्यक्त दुनिया में। *देख रही हूँ अपने बिल्कुल सामने अपने शिव पिया के भाग्यशाली रथ ब्रह्मा बाबा को और उनकी भृकुटि में सूर्य के समान चमक रहे अपने अविनाशी शिव साजन को*। जिनसे निकल रही दिव्य किरणे पूरे वतन में चारों ओर फैली हुई हैं। देह और देह की दुनिया से अलग, सफेद प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है।
➳ _ ➳ इस अति न्यारी और प्यारी दुनिया में अपने शिव पिया से मिलने का अनुभव भी अति न्यारा और प्यारा है। अपनी मीठी दृष्टि से वो मुझे निहाल कर रहें हैं। *मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर अपने समस्त गुण और शक्तियां मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं*। नज़रों ही नजरों में मुझ से मीठी - मीठी रूह रिहान कर रहें हैं। अपने मन के भावों को संकल्पो द्वारा मैं उनके समक्ष रख रही हूँ। *उन्हें बता रही हूँ कि उन्हें पा कर मेरा यह जीवन धन्य हो गया है, कौड़ी से हीरे तुल्य बन गया है*। जीवन में ऐसे प्रेम की अनुभूति मैंने आज तक नही की थी जो मैं अब कर रही हूँ। अब मेरा यह जीवन केवल मेरे शिव प्रीतम के लिए है।
➳ _ ➳ मेरे प्रेम के उदगार को मेरे शिव पिया समझ रहें है और मुस्कराते हुए अपने प्रेम की शीतल किरणे मेरे ऊपर बरसा कर अपना निश्छल प्रेम और स्नेह प्रदर्शित कर रहें हैं। *अपने अविनाशी प्रीतम से अव्यक्त मिलन मना कर अब मैं उनसे निराकारी स्वरूप में मिलन मनाने के लिए अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरुप को धारण कर निराकारी दुनिया परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ*। बीज रूप स्थिति में मैं आत्मा अपने बीज रुप शिव पिया के साथ अब मंगल मिलन मना रही हूँ। उनसे निकलती अनन्त सर्वशक्तियों की किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं और मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अविनाशी साजन ने सर्वशक्तियों को समाने की ताकत मुझे दे दी हो। अपने शिव पिया की सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर मैं शक्तिशाली लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हैं। *अपने प्रीतम के साथ अविनाशी मिलन मना कर और स्वयं को परमात्म शक्तियों से भरपूर करके मैं आत्मा लौट रही हूँ अपने साकारी तन में*। अपने अविनाशी प्रीतम से सच्चा लव रखते हुए अब मैं हर समय केवल उनकी ही यादों में खोई रहती हूँ और एक ही गीत सदा गुनगुनाती रहती हूँ। "स्नेह प्यार की तुझ से बाबा बाँधी है जीवन डोर, दिल मेरा लगा ही रहता अब तो तेरी ओर"
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्थूल कार्य करते भी मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं जिम्मेवार आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा निरन्तर योगी हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा अभी योद्धा बनने से मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा परमात्म मुहब्बत में सदा भरपूर हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्रह्मा बाप के हर कार्य के उत्साह को तो देखा ही है। जैसे शुरू में उमंग था - चाबी चाहिए! अभी भी ब्रह्मा बाप यही शिव बाप से कहते - अभी घर के दरवाजे की चाबी दो। लेकिन साथ जाने वाले भी तो तैयार हों। अकेला क्या करेगा! *तो अभी साथ जाना है ना या पीछे-पीछे जाना है? साथ जाना है ना? तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि बच्चों से पूछो अगर बाप चाबी दे दे तो आप एवररेडी हो? एवररेडी हो या रेडी हो, सिर्फ रेडी नहीं - एवररेडी त्याग, तपस्या, सेवा तीनों ही पेपर तैयार हो गये हैं?* ब्रह्मा बाप मुस्कराते हैं कि प्यार के आँसू बहुत बहाते हैं और ब्रह्मा बाप वह आँसू मोती समान दिल में समाते भी हैं लेकिन एक संकल्प ज़रूर चलता कि सब एवररेडी कब बनेंगे! *डेट दे देवें। आप कहेंगे कि हम तो एवररेडी हैं, लेकिन आपके जो साथी हैं उन्हें भी तो बनाओ या उनको छोड़कर चल पड़ेंगे?*
✺ *"ड्रिल :- एवररेडी स्थिति का अनुभव"*
➳ _ ➳ *‘अब घर जाना है’ कि स्मृति से मैं आत्मा उड़ चली अपने घर परमधाम…* मैं आत्मा ज्ञान सूर्य की किरणों के नीचे बैठ जाती हूँ... ज्ञान सूर्य से निकलती किरणों को मैं आत्मा स्वयं में भर रही हूँ... सर्व गुणों और शक्तियों का फाउंटेन मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... *रंग-बिरंगी किरणों के फाउंटेन से मुझ आत्मा में ज्ञान, प्रेम, सुख, आनंद, पवित्रता, शांति, और सर्व शक्तियां समा रही हैं...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देहभान के विस्तार को सार में समेट रही हूँ...* मैं आत्मा मेरा फलाना नाम है, फलाना आक्यूपेशन है, मैं नर हूँ, नारी हूँ... इन सब विस्तारों को समाप्त कर रही हूँ... *मैं सिर्फ और सिर्फ एक ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ... अविनाशी हूँ... इस देह की मालिक हूँ... मैं आत्मा बिंदु रूप में स्थित हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा देह के सभी संबंधो के विस्तार को सार में समेटती हूँ...* ये मेरी माँ है, ये बाप है, ये बेटा है या बेटी है... ये सब सिर्फ इस जन्म में पार्ट बजाने के साथी हैं... *मुझ आत्मा का सिर्फ एक शिव बाबा से ही सर्व सम्बन्ध हैं...* मैं आत्मा एक शिव बाबा में ही सर्व सम्बन्धों का सुख अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा देह के पदार्थों, साधनों, वैभवों के विस्तार को सार में समेट रही हूँ...* ये सब साधन विनाशी हैं... मुझ आत्मा का स्थूल विनाशी साधनों के अल्पकाल के सुख का मोह मिट रहा है... *ये पुरानी दुनिया, पुराने सम्बन्ध, वस्तुएं सब नश्वर हैं...* मैं आत्मा मन-बुद्धि के सभी विस्तारों को समेटकर सार रूप में स्थित हो रही हूँ... *एक सेकंड में बुद्धि को व्यर्थ से समर्थ की ओर स्थित करती हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा सर्व संबंधो, सर्व सम्पतियों की प्राप्तियों का सुख एक बाबा में ही अनुभव कर रही हूँ...* अब मैं आत्मा सार रूप में स्थित होकर सदा सुख, शांति, ख़ुशी, ज्ञान के, आनंद के झूले में झूल रही हूँ... *सदा सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहती हूँ...*
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा अंत मति सो गति की स्मृति से मन-बुद्धि को एक बाबा में ही एकाग्र कर रही हूँ...* मैं आत्मा ब्रह्मा बाप समान त्यागी, तपस्वीमूर्त, विश्व सेवाधारी बन रही हूँ... मैं आत्मा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण स्व के और सर्व के प्रयोग में लाती हूँ... *अब मैं आत्मा त्याग, तपस्या और सेवा तीनों ही पेपर्स में एवररेडी स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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