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 18 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *श्रेष्ठ चिंतन से आपार ख़ुशी का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *हर एक के पुरुषार्थ को साक्षी होकर देखा ?*

 

➢➢ *संगमयुग पर प्रतक्ष्यफल द्वारा शक्तिशाली बनकर रहे ?*

 

➢➢ *पास विद ऑनर बनकर पास्ट को पास किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  आप सभी अपने को बहुत बिजी समझते हो लेकिन अभी फिर भी बहुत फ्री हो। *आगे चल और बिजी होते जायेंगे इसलिए स्व प्रति जितना भी समय मिले स्व-अभ्यास, स्व-साधना में सफल करते जाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बापदादा का लाडला हूँ"*

 

  अपने को बापदादा के अति स्नेही, अति लाडले हैं - ऐसा अनुभव करते हो? बापदादा हर बच्चे को अति लाडले समझते हैं। बापदादा सर्व सम्बंध से ही बच्चों को याद करते लेकिन फिर भी मुख्य तीन सम्बंध जो गाये हुए हैं उन तीन सम्बंधों से तीन विशेषताएं बच्चों को देते हैं। जानते हो ना? इसी को ही कहते हैं - दिल का प्यार। *बाप के रुप में सिर्फ नहीं देते, लेकिन शिक्षक के रुप में पढ़ाई द्वारा श्रेष्ठ पद की भी प्राप्ति कराते हैं और सतगुरु के रुप में सदा वरदान देते रहते हैं। तो कितना प्यारा हुआ! लौकिक बाप तो सिर्फ वर्सा देंगे लेकिन यहां वरदान भी है, वर्सा भी है और पढ़ाई भी है।* ऐसा बाप सारे कल्प में मिला?

 

  सारी वर्ल्ड घूमकर आओ, देखो तो नहीं मिलेगा। क्योंकि बाप बच्चों की मेहनत देख नहीं सकते। कोई-कोई बच्चे बहुत पुरुषार्थ करने में भी मेहनत करते हैं। बापदादा को अच्छा नहीं लगता, मेहनत क्यों करते? बच्चों को सदैव बालक सो मालिक कहा जाता है। मालिक कभी मेहनत नहीं करते। मालिक हो या लेबर हो? कभी वह बन जाते कभी वह बन जाते। जब अभी से मालिकपन के संस्कार डालेंगे तभी विश्व के मालिक बनेंगे। जब सर्वशक्तिवान् बाप सदा साथ है तो मेहनत क्यों करेंगे? साथ में रहने वाले को मेहनत करके याद किया जाता है क्या? *जहां सर्वशक्तिवान् बाप साथ है तो शक्तियां भी साथ होंगी ना। जहां सर्वशक्तियां हैं वहां मेहनत करने की जरुरत नहीं। इसलिए बापदादा कहते हैं कि सदा अपने को लाडला समझो।*

 

  सतगुरु वरदाता हर बच्चे को हर कर्म में वरदान देते हैं। *जब बाप साथ है, वरदाता साथ है तो वरदान ही देगा ना! जब हर कर्म में वरदाता का वरदान मिला हुआ है तो वरदान जहां होता है वहां मेहनत नहीं होती। वरदानों से जन्म हुआ, वरदानों से पालना हुई, वरदानों से सदैव उड़ रहे हो, इतना वरदान मिला है ना?* किसको कम, किसको ज्यादा नहीं मिला है? कोई को कम तो नहीं मिला है ना? किसको कम, किसको ज्यादा नहीं मिला है? कोई को कम तो नहीं मिला है? सबको फुल मिला है इसलिए सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान् समझ इसी स्मृति से आगे बढ़ते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *जितना वाणी सूनने और सुनाने की जिज्ञासा रहती है, तडप रहती है, चाँन्स बनाते भी हो क्या ऐसे ही फिर वाणी से परे स्थिति में स्थित होने का चाँन्स बनाने और लेने के जिज्ञासु हो?* यह लगन स्वतः स्वयं में उत्पन्न होती है या समय प्रमाण, समस्या प्रमाण व प्रोग्राम प्रमाण यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है?

 

✧  फर्स्ट स्टेज तक पहुँँची हुई आत्माओं की पहली निशानी, यह होगी। *ऐसी आत्मा को, इस अनुभूती की स्थिति में मग्न रहने के कारण कोई भी विभूती व कोई भी हद की प्राप्ति का आकर्षण, संकल्प में भी छू नहीं सकता।*

 

✧  *अगर कोई भी हद की प्राप्ती की आकर्षण उन्हें उनके संकल्प में भी छूने की हिम्मत रखती है, तो इसको क्या कहेंगे? क्या ऐसे को वैष्णव कहेंगे?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *तीव्र पुरूषार्थ का सहज साधन है - दृढ़ संकल्प। देही-अभिमानी बनने के लिए भी दृढ़ संकल्प करना है कि मैं शरीर नहीं हूँ, आत्मा हूँ। संकल्प में दृढ़ता नहीं तो कोई भी बात में सफलता नहीं।* कोई भी बात में जब दृढ़ संकल्प रखते हैं तब ही सफलता होती है। *दृढ़ संकल्प वाले ही मायाजीत होते हैं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप द्वारा रचता और रचना को जानी जानना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा पंछी बन उड़ चलती हूँ बाबा की कुटिया में... बाबा के सम्मुख बैठ मन की आँखों से हर पल उनको निहारती हुई स्नेह सागर में खो जाती हूँ... *इस सृष्टि के रचयिता ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा स्वयं आकर आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं...* जिस राज को बड़े-बड़े सन्यासी भी नहीं जानते, वो राज मुझे बताकर प्यारे बाबा मुझे मास्टर जानी जाननहार बना रहे हैं... अमरबाबा ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर तीनो कालो तीनो लोको का ज्ञान दे रहे हैं..."

 

 ❉   *ज्ञान किरणों की छाया में बिठाकर दिव्य गुणों की खुशबू से महकाते हुए प्यारा बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... अमर पिता अपने भूले बच्चों को सब कुछ याद दिलाने आया है... ज्ञान के दिव्य चक्षु से सारे राज बताने आया है... *खुद के सत्य को भूले बच्चे आज समझदार हो गए है... खुद को तो क्या तीनो कालो और तीनो लोको को जान मा ज्ञान सागर बन गए है...”*

 

_ ➳  *एक नज़र की प्यासी थी, अब बाबा की नजरों में समाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *कितना भटकी थी मै आत्मा इस दुखमय संसार के झूठे नातो में... सच्चे सुख की एक बून्द भी मेरे दामन में न थी... आपने अपना हाथ मेरे सर पर रख मुझ आत्मा को ज्ञान परी बना दिया...* मै सब जान गयी हूँ प्यारे बाबा... तीनो कालो तीनो लोको से भी वाकिफ हो गई हूँ...

 

 ❉   *ज्ञान चक्षु खोलकर अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरी झोली भरते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे बच्चे... हद के ज्ञान से सच्चे राजो को जान न सकोगे... बेहद के ज्ञान को अमर पिता के सिवाय तो कोई बता ही न सके... *ज्ञान के तीसरे नेत्र को पाकर सदा के रौशन हो गए हो... खुद को जान... सृष्टि के चक्र को भी यादो में भर लिए हो, मा त्रिलोकीनाथ बन गए हो...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा से सबकुछ पाकर खुशियों से मालामाल होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे सिकीलधे प्यारे बाबा... मै आत्मा घर से जो निकली... खूबसूरत खेल खेलते खेलते दुःख के खेल में उलझ गई... स्थूल नेत्र की दुनिया को ही दिल में समा ली थी... *आपने आकर ज्ञान नेत्रो से जीवन सदा का रौशन किया है... आपने ज्ञान को मेरी बुद्धि में समाहित कर आप समान बना दिया है... प्यारे बाबा मै सब कुछ जान गयी हूँ...”*

 

 ❉   *उमंगो से जीवन को भरकर सदा के लिए खुशियों से मेरे दामन को सजाकर मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे बच्चे... यह दुखमय संसार मेरे बच्चों के लिए नही है... सोने जैसी सुखो भरी धरती ही तुम बच्चों का आशियाना है... *विस्मृति के खेल से सब भूल गए हो... और अब अमर पिता के संग से अपनी वास्तविकता और खूबसूरत राजो के राजदार बन पड़े हो...”*

 

_ ➳  *त्रिकालदर्शी की सीट पर बैठ तीनों नेत्रों से इस सृष्टि के गुह्य राजों को जान, ज्ञान परी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* प्राणों से भी प्यारे बाबा... आपका किन शब्दों में शुक्रिया करूँ.... कितना सुंदर मेरा भाग्य है कि स्वयं अमर पिता... *मुझ आत्मा को ज्ञान के नेत्रो से बेहद के राजो को बताने... मेरी दुनिया में आ गया है... मुझे ज्ञानवान बना सदा का सुखी बना रहा है... मीठे बाबा... इस खुशनसीबी की तो मैंने कल्पना भी न की थी...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *ड्रिल :- हर एक के पुरुषार्थ को साक्षी होकर देखना है*"

 

_ ➳  साक्षीदृष्टा बन मास्टर त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर सृष्टि के आदि मध्य अंत को समृति में लाते ही *इस सृष्टि रंग मंच पर मुझ आत्मा द्वारा बजाए गए 84 जन्मों का पार्ट एक-एक करके भिन्न-भिन्न स्वरूपों में मेरे सामने स्पष्ट होने लगता है*। आदि से लेकर अंत तक के अपने पार्ट को अब मैं साक्षी होकर देख रही हूँ।

 

_ ➳  मेरा अनादि सतोप्रधान स्वरूप बहुत सुंदर, बहुत आकर्षक और बहुत ही प्यारा है। *बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान मै आत्मा अपने अनादि स्वरूप में सम्पूर्ण पावन, सतोप्रधान अवस्था मे हूँ*। एक दिव्य प्रकाशमयी दुनिया जहां हजारों चंद्रमा से भी अधिक उज्ज्वल प्रकाश है उस निराकारी पवित्र प्रकाश की दुनिया की मैं रहने वाली हूँ।

 

_ ➳  अपने अनादि सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में ही अपनी निराकारी दुनिया को छोड़ सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई चोला धारण कर मैं आत्मा सम्पूर्ण सतोप्रधान देवताई दुनिया मे अवतरित होती हूं। मन बुद्धि से देख रही हूं अब मैं स्वयं को अपने आदि स्वरूप में सतयुगी दुनिया में। *मेरा आदि स्वरूप 16 कला सम्पूर्ण, डबल सिरताज, पालनहार विष्णु के रूप में मन को लुभाने वाला है*।

 

_ ➳  अपने पूज्य स्वरूप में मैं आत्मा स्वयं को कमल आसन पर विराजमान, शक्तियों से संपन्न अष्ट भुजाधारी दुर्गा के रूप में देख रही हूं। *असंख्य भक्त मेरे सामने भक्ति कर रहे हैं, मेरा गुणगान कर रहे हैं, तपस्या कर रहे हैं, मुझे पुकार रहे हैं, मेरा आवाहन कर रहे हैं*। मैं उनकी सभी शुद्ध मनोकामनाएं पूर्ण कर रही हूं।

 

_ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने ब्राह्मण स्वरूप में। ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होते ही अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में मैं खो जाती हूँ। *संगम युग की सबसे बड़ी प्रालब्ध स्वयं भाग्यविधाता भगवान मेरा हो गया*। विश्व की सर्व आत्माएँ जिसे पाने का प्रयत्न कर रही है उसने स्वयं आ कर मुझे अपना बना लिया। कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जिसे घर बैठे भगवान मिल गए।

 

_ ➳  यह विचार करते करते अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के साथ साथ मुझे मेरे ब्राह्मण जीवन के कर्तव्यों का भी अनुभव होने लगता है कि *मेरा यह ब्राह्मण जीवन तो पुरुषार्थी जीवन है। जिसमे मुझे तीव्र पुरुषार्थ कर भविष्य 21 जन्मो की अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है*। विश्व की सर्व आत्माओं को परमात्म सन्देश देने की सेवा अर्थ बाबा ने जो मुझे यह ब्राह्मण जीवन दिया है उस कर्तव्य को पूरी निष्ठा और लगन से करने का तीव्र पुरुषार्थ मुझे अवश्य करना है।

 

_ ➳  अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा कर अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में बापदादा के पास। अपनी मीठी दृष्टि से असीम स्नेह और सर्व शक्तियाँ मुझमे समाहित करने के साथ साथ *बाबा मुझ से मीठी मीठी रूह रिहान करते हुए कहते हैं, मेरे मीठे बच्चे:- " विश्व की सर्व आत्मायें आपके रूहानी भाई बहन हैं। इसलिए सर्व के प्रति यही शुभभावना रहे कि सबको अपने अविनाशी पिता का परिचय मिल जाये और सभी मुक्ति, जीवनमुक्ति के वर्से की अधिकारी बन जाएं"।*

 

_ ➳  बाबा की इस मीठी रूह रिहान का जवाब देते हुए मैं बाबा से कहती हूँ, जी बाबा:-  "मैं जानती हूं सेवा के मार्ग पर हर घड़ी आप मेरे साथ हो"। बाबा मैं आपको पूर्ण विश्वास दिलाती हूँ कि मैं पूर्णतया योगयुक्त और अंतर्मुखी रह सेवा का पार्ट बजाने का पुरुषार्थ करूँगी। *बाबा आपने मुझे संगठन में रहते "पहले आप" का जो पाठ पक्का करवाया है उसका ख्याल रखते हुए अपने साथी सहयोगियों को आगे रखने का प्रयत्न करूँगी*। साक्षी हो कर दूसरों के पुरुषार्थ को देखते मैं तीव्र पुरुषार्थी बनूँगी।

 

_ ➳  बाबा से मीठी मीठी रुह रिहान करके, साक्षी स्थिति में स्थित रह सबके पार्ट को साक्षी हो कर देखने का दृढ़ संकल्प ले कर *अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर नथिंग न्यू की स्मृति से इस बेहद नाटक को हर्षित हो कर देख रही हूं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं संगमयुग पर प्रत्यक्ष फल द्वारा शक्तिशाली बनने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा पास विद ऑनर बनती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा पास्ट को पास करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा बाप के पास रहती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳. कभी भी झूले से नीचे नहीं आओ, नहीं तो मैले हो जायेंगे। मैले फिर बाप से कैसे मिल सकते! बहुत काल अलग रहे अभी मेला हुआ तो मनाने वाले मैले कैसे होंगे। *बापदादा हरेक बच्चे को कुल का दीपक, नम्बरवन बच्चा देखना चाहते हैं।* अगर बार-बार मैले होंगे तो स्वच्छ होने में कितना टाइम वेस्ट होगा? इसलिए सदा मेले में रहो। मिट्टी में पांव क्यों रखते हो! इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और मैले, तो कौन मानेगा कि यह उस ऊँचे बाप के बच्चे हैं! इसलिए बीती सो बीती। *जो दूसरे सेकण्ड बीता वह समाप्त।* कोई भी प्रकार की उलझन में नहीं आओ। स्वचिन्तन करो, परचिन्तन न सुनो, न करो, यही मैला करता है। *अभी से क्वेश्चन-मार्क समाप्त कर बिन्दी लगा दो।* बिन्दी बन बिन्दी बाप के साथ उड़ जाओ।

✺ *"ड्रिल :- सदा मेले में रह स्वच्छ स्थिति का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मेरी शिव माँ मुझे अपने किरणों रूपी शीतल जल से नहलाकर और ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार करके, अपने आँचल रूपी झूले में बिठा देती हैं... और साथ ही मुझे झूला झुलाते यह समझा रही है... *कि बच्चे मैंने अब तुमको पूरा तैयार कर दिया है... अब तुम इस झूले से उतरकर विकारों रूपी मिट्टी में मत खेलना, वरना तुम मैले हो जाओगे*...

➳ _ ➳ इतना सुनते ही मेरा झूला एकदम से रुक जाता हैं और मैं उनसे ये वादा करती हूँ... और कहती हूँ... माँ मैं आपकी दी हुई शिक्षाओं को कभी नहीं भूलूंगी... क्योंकि अगर मैं फिर से विकारों रूपी कीचड़ में मैली हो गयी तो आपकी गोद में नहीं बैठ पाऊंगी... *शिव माँ मैं बहुत समय से आपसे बिछुड़ी हुई हूँ... अब और दूर नहीं रह पाऊंगी...* इतना कहते हुए मेरी आँख भर आती हैं... और उनके आँचल में छिप जाती हूँ... मेरी शिव माँ बड़े प्यार से मेरे सर को सहलाते हुए मुझे झूला झुलाने लगती है... जैसे-जैसे झूला ऊपर जाता है... मेरा मन खुशियों से भर जाता है... मैं उड़ती कला का अनुभव करने लगती हूँ... और महसूस करती हूँ की मैं सर्वोत्तम ब्राह्मण आत्मा हूँ...

➳ _ ➳ और जैसे-जैसे मेरा झूला नीचे की तरफ आता है... मैं अनुभव करती हूँ... कि मेरी शिव माँ बाहें फैलाये मुझे गोद में आने को कह रही है... और मानों मैं दौड़ती हुई उनके पास जा रही हूँ... और मेरी माँ मुझे कसकर अपनी बाँहों में जकड़ लेती है... इस स्थिति में मैं दुनिया में सबसे सुरक्षित अनुभव करती हूँ... जैसे ही झूला तेज होता है... मैं बिंदु बन मेरे बाबा बिंदु के संग उड़ जाती हूँ... और बाबा उड़ते-उड़ते मुझे बता रहे हैं... *बच्चे तुम कुल के दीपक हो, तुम्हें अपनी रोशनी में कमी नहीं लानी, अपना प्रकाश इतना बढ़ाओ कि तुम्हें देखकर सब कहे ऐसे होते हैं कुलदीपक...* और मेरे बाबा फिर मुझे अपनी पवित्र रोशनी से भर कर परिपूर्ण कर रहे हैं...

➳ _ ➳ बाबा ने समझाया बच्चे आगे बढ़ते रहो... परचिन्तन को अपने जीवन से निकाल दो... मैंने बाबा से वादा किया बाबा अब मैं कभी किसी आत्मा का परचिन्तन नहीं करुँगी... *मैं सदा स्वचिन्तन में ही समय व्यतीत करुँगी...* किसी भी बात को ज़्यादा नहीं बढ़ाऊंगी... तुरन्त उस बात पर बिन्दी लगाकर समाप्त करुँगी... हमेशा ज्यादा से ज्यादा समय बिंदी बनकर ही बिताऊँगी... इतना सुनकर बाबा और मैं उड़ते हुए वापिस नीचे झूले पर लौट आते हैं... जहाँ मेरा झूला पूरी रफ्तार पर होता है... और मेरी शिव माँ मेरे झूले की रफ्तार कम करती है... और वापिस अपनी माँ की गोद में आ जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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