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❍ 11 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *याद का सच्चा सच्चा चार्ट रखा ?*
➢➢ *मात पिता को फॉलो कर दिलतख़्तनशीन बनकर रहे ?*
➢➢ *बाप की याद द्वारा असंतोष की परिस्थितियों में सदा सुख व संतोष की अनुभूति की ?*
➢➢ *अपना दैवी स्वरुप सदा स्मृति में रहा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे पहले-पहले नशा रहता था कि हम इस वृक्ष के ऊपर बैठकर सारे वृक्ष को देख रहे हैं, *ऐसे अभी भी भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवा करते हुए तपस्या का बल अपने में भरते रहो। जिससे तपस्या और सेवा दोनों कम्बाइन्ड और एक साथ रहे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सुखदाता की संतान सुखदेव हूँ "*
〰✧ 'सदा हर आत्मा को सुख देने वाले सुखदाता बाप के बच्चे हैं' - ऐसा अनुभव करते हो? *सबको सुख देने की विशेषता है ना। यह भी ड्रामा अनुसार विशेषता मिली हुई है। यह विशेषता सभी की नहीं होती। जो सबको सुख देता है, उसे सबकी आशीर्वाद मिलती है।*
〰✧ *इसलिए स्वयं को भी सदा सुख में अनुभव करते हैं। इस विशेषता से वर्तमान भी अच्छा और भविष्य भी अच्छा बन जायेगा। कितना अच्छा पार्ट है जो सबका प्यार भी मिलता, सबकी आशीर्वाद भी मिलती?*
〰✧ *इसको कहते हैं 'एक देना हजार पाना'। तो सेवा से सुख देते हो, इसलिए सबका hयार मिलता है। यही विशेषता सदा कायम रखना।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ इस समय सभी कहाँ बैठे हो? *साकारी दुनिया में बैठे हो वा आकारी दुनिया में बैठे हो?* आकारी दुनिया में, इस साकारी दुनिया के आकर्षण से परे अपने को अनुभव करते हो वा आकारी रूप में स्थित होते साकारी दुनिया की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित नहीं करती है? साकारी दुनिया के भिन्न - भिन्न प्रकार के आकर्षण से एक सेकण्ड में अपने को न्यारा और बाप का प्यारा बना सकते हो? कर्म करते हुए कर्मबन्धनों से परे, बंधन - युक्त से बन्धन - मुक्त स्थिति का अनुभव करते हो?
〰✧ अभी - अभी आप रूहानी महावीर - महावीरनियों को डायरेक्शन मिले कि *शरीर से परे अशरीरी, आत्म - अभिमानी, बंधन - मुक्त, योग - युक्त बन जाओ तो एक सेकण्ड में स्थित हो सकते हो?* जैसे हठयोगी अपने श्वांस को जितना समय चाहे उतना समय रोक सकते हैं। आप सहजयोगी, स्वतः योगी, सदा योगी, कर्मयोगी, श्रेष्ठ योगी, अपने संकल्प को, श्वास को प्राणेश्वर बाप के ज्ञान के आधार पर जो संकल्प, जैसा संकल्प, जितना समय करना चाहो उतना समय उसी संकल्प में स्थित हो सकते हो?
〰✧ अभी - अभी शुद्ध संकल्प में रमण करना, अभी - अभी एक संकल्प में स्थित होना यह प्रैक्टिस सहज कर सकते हो? *जैसे स्थूल में चलते - चलते अपने को जहाँ चाहे वहाँ रोक सकते हो।* अचल, अडल स्थिति का जो गायन है वह किन्हों का है? तुम महावीर - महावीरनियाँ श्रीमत पर चलने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो ना? श्रीमत के सिवाए और सभी मतें समाप्त हो गई ना? कोई और मत वार तो नहीं करती? मनमत भी वार न करें।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जैसे बाप ईश्वरीय सेवा-अर्थ व बच्चों को साथ ले जाने की सेवा-अर्थ वा सच्चे भक्तों को बहुत समय के भक्ति का फल देने अर्थ, न्यारे और निराकार होते हुए भी अल्पकाल के लिए आधार लेते हैं व अवतरित होते हैं। ऐसे ही फरिश्ता अर्थात् सिर्फ ईश्वरीय सेवा—अर्थ यह साकार ब्राह्मण जीवन मिला है।* धर्म स्थापक, धर्म स्थापना का पार्ट बजाने के लिए आए हैं इसलिए नाम ही शक्ति अवतार - इस समय अवतार हूँ, धर्म स्थापक हूँ। *सिवाए धर्म स्थापन करने के कार्य के और कोई कार्य आप ब्राह्मण अर्थात् अवतरित हुई आत्माओं का है ही नहीं। सदा इसी स्मृति में इसी कार्य में उपस्थित रहने वालों को ही फरिश्ता कहा जाता है।* फरिश्ता डबल लाइट रूप है। एक लाईट अर्थात् सदा ज्योति-स्वरूप। दूसरा लाईट अर्थात् कोई भी पिछले हिसाब-किताब के बोझ से न्यारा अर्थात् हल्का। ऐसे डबल लाईट स्वरूप अपने को अनुभव करते हो?
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दुःखधाम को बुद्धि से भूल जाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस देह की मालिक हूँ... स्वराज्य अधिकारी हूँ... अपने कर्मेन्द्रियों से कर्म करने वाली मैं कर्मेन्द्रियजीत आत्मा हूँ... मैं आत्मा इन स्वमानों का अभ्यास करते-करते इस देह से बाहर निकल जाती हूँ...* मैं अशरीरी आत्मा इस देह का भान छोड़, इस देह की दुनिया को छोड़ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में अपने मीठे प्यारे बापदादा के पास... बाबा के सम्मुख बैठ उनके मधुर वचनों को बड़े प्यार से सुनती हूँ...
❉ *पुरानी देह और देह के सम्बन्धी उन सबको भूल एक बाप को याद करने की श्रीमत देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे गुणो से महके और शक्तियो से सजे खुशबूदार फूल थे... *स्वयं को देह समझ मटमैले हो गए और दुखो के दलदल में धँस गए... अब वही खुबसूरत मणि सा रूप रंग याद करो... और श्रीमत का हाथ पकड़ इस देह के दलदल से मुक्त हो जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के श्रीमत रूपी हाथों में हाथ रख मणि बन मुस्कुराते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपको भूल स्वयं को भूल दुखो के घने जंगल में उलझ गयी थी... *आज आपकी गोद में आकर फिर से फूलो जैसा खिलती जा रही हूँ... अपने अविनाशी पन के नशे में डूबती जा रही हूँ... आपकी यादो में मेरा कायाकल्प हो गया है...”*
❉ *इस विषय सागर से निकाल अपने स्नेह के सागर में डुबोते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिन देह के रिश्तो को सत्य समझ समय,साँस, संकल्प खपा रहे.... वह मात्र छलावा है, यह देह के सम्बन्ध् विनाशी है... *श्रीमत के साये में आत्मिक स्नेह की धारा में खो जाओ... और सब विनाशी नातो को भूल एक पिता की सच्ची यादो में गहरे डूब जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की यादों में बेफिक्र बादशाह बन आजाद पंछी बनकर उड़ते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के सम्बन्धो से उपराम होकर आत्मिक सत्यता से छलक उठी हूँ... *प्यारे बाबा आपने ज्ञान के नेत्र से मुझे मेरे वजूद का पता देकर... मुझे कितना सुखी प्यारा और निश्चिन्त बना दिया है...* मै आत्मा श्रीमत को पाकर हर दुःख से उबर गयी हूँ...”
❉ *सत्यता के रंगों से रंगकर मेरे जीवन को खुशनुमा बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता ने जो सत्य भरी, श्रीमत की राहो का राही बनाया है... उस पर उमंगो और खुशियो के पंखो से सदा उड़ते रहो... *देह के विकारी नातो को भूल आत्मिक नशे में सच्चा स्नेह लुटाओ... सच्चे साथी ईश्वर पिता की यादो में... देवताओ सा मुस्कराता, सुखो से सजा जीवन पाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देह के भान से मुक्त होकर आत्मिक नशे में नूर बन चमकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा मिटटी में लथपथ मिटटी के खिलोनो से खेल... दुखो के जीवन को ही अपनी तकदीर समझ रही थी... *प्यारे बाबा आपने तो मेरा भाग्य ही खिला दिया... मुझे कितना प्यारा नूरानी बना दिया और सतयुगी राजरानी सजा दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मात - पिता को फालो कर दिलतख्तनशीन बनना है*"
➳ _ ➳ मात पिता को फॉलो करने का दृढ़ संकल्प अपने मन मे ले कर मैं जैसे ही मम्मा बाबा के बारे में विचार करती हूं, मन बुद्धि से पहुंच जाती हूं उनकी कर्मभूमि मधुबन में जहां उनके हर कर्म का यादगार है। *अब मैं स्वयं को उस स्थान पर देख रही हूं जहां मम्मा बाबा के मुखारविंद से मन को आलोकित, आनंदित और निर्मल करने वाले महावाक्य सुनने के लिए सभी ब्राह्मण आत्माएं एकत्रित हैं*।
➳ _ ➳ सामने संदली पर मम्मा बाबा आकर बैठ जाते हैं। दोनों दिव्य मूर्त, दोनों के मुखमंडल पर पवित्रता की अनोखी झलक और दिव्य तेज स्पष्ट दिखाई दे रहा है। *मम्मा बाबा दोनों मधुर मुस्कान से, स्नेह भरे नयनो से सबको निहार रहें हैं*। उनके आने का ढंग, बैठने की रीति, उनकी प्रीति, उनके निहारने की विधि बहुत ही न्यारी है। मैं इस दृश्य को देख मन ही मन अपने भाग्य की सराहना कर रही हूं।
➳ _ ➳ तभी शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के साकारी तन में प्रवेश करते हैं। बाबा के प्रवेश होते ही ब्रह्मा बाबा के मुखमण्डल पर दिव्य तेज कई गुणा बढ़ जाता है और उनकी भृकुटि से शक्तिशाली प्रकंपन निकल कर पूरी क्लास में फैल जाते हैं। *क्लास में खुशी की लहर के साथ साथ मन को गहन शांति का अनुभव कराने वाला सन्नाटा छा जाता है*। सभी ब्राह्मण बच्चे बाप दादा को निहारते हुए, बाप दादा की मीठी दृष्टि लेकर स्वयं को भरपूर कर रहे हैं। बाप दादा सभी बच्चों को एक-एक करके अपने पास बुला रहे हैं, उन्हें मीठी दृष्टि देते हुए उन से मीठी मीठी रूह रिहान कर रहे हैं। *एक एक करके सभी बच्चे मात-पिता की अलोकिक गोद का दिव्य सुख और उनके पवित्र हाथों से टोली ले रहे हैं*।
➳ _ ➳ बापदादा अपने मधुर महावाक्यों से बच्चों को मीठी समझानी भी दे रहें हैं। सबको परमात्म मिलन का अलौकिक सुख प्रदान कर शिव बाबा अपने धाम लौट जाते हैं। *मम्मा सभी बच्चों से खुश - खैराफ़त पूछते हुए कह रही है, देखो बच्चे-"बाप दादा के घर आए हो सुख पाने के लिए*। कोई भी स्थूल सूक्ष्म सेलवेशन चाहिए हो तो बताना, किसी प्रकार की लज्जा नहीं करना।
➳ _ ➳ अब ब्रह्मा बाबा सभी बच्चों को ड्रिल कराते हुए कहते हैं - अच्छा बच्चे, अब बैठो अपने अति प्यारे शिव बाबा की याद में। अशरीरी हो जाओ और बुद्धि को ले जाओ परमधाम। *देखो तुम बैठे तो फर्श पर हो लेकिन तुम्हारी बुद्धि सदा अर्श अर्थात परमधाम में रहनी चाहिए*। देह और देह के सर्व सम्बन्धो से तोड़ निभाते हुए बुद्धि का योग केवल शिव बाबा के साथ लगा रहे यह अभ्यास हर समय करते रहो। बाबा के ऐसा कहते ही सभी आत्मिक स्थिति में स्थित हो जाते हैं और शिव बाबा की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाते हैं।
➳ _ ➳ अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही अब मैं आत्मा अपनी साकारी ब्राह्मण देह से निकल कर पहुंच जाती हूँ अपने पिता परमात्मा शिव बाबा के पास परमधाम और उनके साथ कम्बाइंड हो कर उनकी सर्वशक्तियो को स्वयं में समाने लगती हूं। *भरपूर हो कर लौट आती हूँ वापिस अपने साकारी ब्राह्मण तन में और अपने प्यारे बाबा से प्रोमिस करती हूं कि देह और देह की दुनिया मे रहते, सबसे तोड़ निभाते, मम्मा बाबा को फॉलो कर उनके समान बनने का तीव्र पुरुषार्थ मैं अभी से ही अवश्य करूँगी*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप की याद द्वारा असन्तोष की परिस्थितियों में सदा सुख वा सन्तोष की अनुभूति करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं महावीर आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा किसी की भी व्यर्थ नज़र से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा स्मृति स्वरूप हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ऐसी समान आत्मा बन्धनमुक्त होने के कारण ऐसे अनुभव करेगी जैसे उड़ता पंछी बन ऊँचे से ऊँचे उड़ते जा रहे हैं और ऊँची स्थिति रूपी स्थान पर स्थित होते अनुभव करेंगे कि यह सब नीचे हैं। मैं सबसे ऊपर हूँ। जैसे विज्ञान की शक्ति द्वारा ‘स्पेस' में चले जाते हैं तो धरनी का आकर्षण नीचे रह जाता है और वह स्वयं को सबसे ऊपर अनुभव करते और सदा हल्का अनुभव करते हैं। *ऐसे साइलेन्स की शक्ति द्वारा स्वयं को विकारों की आकर्षण, वा प्रकृति की आकर्षण सबसे परे उड़ती हुई स्टेज अर्थात् सदा डबल लाइट रूप अनुभव करेंगे। उड़ने की अनुभूति सब आकर्षण से परे ऊँची है। सर्व बन्धनों से मुक्त है। इस स्थिति की अनुभूति होना अर्थात् ऊँची उड़ती कला वा उड़ती हुई स्थिति का अनुभव होना।* चलते-फिरते जा रहे हैं, उड़ रहे हैं, बाप भी बिन्दु, मैं भी बिन्दू, दोनों साथ-साथ जा रहे हैं। समान आत्मा को यह अनुभव ऐसा स्पष्ट होगा जैसे कि देख रहे हैं। अनुभूति के नेत्र द्वारा देखना, दिव्य दृष्टि द्वारा देखने से भी स्पष्ट है, समझा!
✺ *"ड्रिल :- उड़ता पंछी स्थिति का अनुभव करना”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पंछियों को दाना डालती हुई पेड़ पर बने हुए कबूतर के घोंसले को देखती हूँ...* कबूतर एक-एक दाना अपने बच्चे के मुंह में डालती है... फिर उसको उड़ना सिखाती है... उसका बच्चा पंख फडफडाता है थोडा ऊपर उड़ता है फिर डरकर वापस घोंसले में बैठ जाता है... फिर एक दिन उड़ना सीख जाता है और घोंसले को छोड़ खुले आसमान में उड़ता रहता है... *मुझ आत्मा को उस कबूतर के बच्चे और मुझमें समानता नजर आई...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पंछी भी इस दुनिया रूपी घोंसले में कब से बैठी हुई थी... मुझ आत्मा रूपी पंछी के पंख कट गए थे...* जिसके कारण मैं आत्मा उड़ना नहीं जानती थी... इस घोंसले को ही अपना घर समझ बैठी थी... और इस घोंसले को ही सजाने में लगी रही... मैं आत्मा घोंसले की पंछी बनकर रह गई थी...
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा ने आकर मुझ आत्मा पंछी के मुंह में ज्ञान के दाने डालकर, योग की शक्तियों के पंख लगाकर मुझ घोंसले की पंछी को उड़ना सिखा दिया...* मैं आत्मा ज्ञान-योग द्वारा सर्व गुण-शक्तियों से संपन्न बन रही हूँ... मुझ आत्मा के मन की सारी हलचल समाप्त हो रही है... मैं आत्मा साइलेंस का अनुभव कर रही हूँ... सभी विकारों, विकर्मों से मुक्त हो रही हूँ... मैं आत्मा सर्व बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा साइलेन्स की शक्ति द्वारा सर्व आकर्षणों से परे होकर ऊपर उड़ रही हूँ...* अब मैं आत्मा डबल लाइट स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... सभी बोझों से मुक्त होकर सबसे हल्का अनुभव कर रही हूँ... धरनी का आकर्षण नीचे छोड़ मैं आत्मा स्वयं को सबसे ऊपर अनुभव कर रही हूँ... *ऊपर उड़ने की अनुभूति से मैं आत्मा स्वतः और सहज ही माया के सभी आकर्षणों से मुक्त हो रही हूँ...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब बाबा के ही संग-संग रहती हूँ... उनके ही साथ उठती हूँ... चलती हूँ... खाती हूँ... पीती हूँ... सोती हूँ...* हर कर्म सदा बाबा के साथ करते हुए बाप समान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा बिंदु के साथ बिंदु बन उडती रहती हूँ... सदा ऊँची उड़ती कला का अनुभव करती रहती हूँ... अनुभूति के नेत्रों द्वारा मैं आत्मा अपने को बाबा के साथ उड़ते हुए स्पष्ट देख रही हूँ... *अब मैं आत्मा दुनिया रूपी घोंसले से आजाद होकर खुले आसमान में उड़ता पंछी होने का अनुभव कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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