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 10 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *विश्व की आत्माओं को सुख और शन्ति की सांस देने के निमित बनकर रहे ?*

 

➢➢ *किसी एक गुण की विशेषता में स्वयं को संपन्न बनाने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *याद और पुरुषार्थ की स्टेजस की महीनता से रिसर्च की ?*

 

➢➢ *हर संकल्प और कर्म गोल्ड समान रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जब तपस्वी तपस्या करते हैं तो वृक्ष के नीचे तपस्या करते हैं। इसका भी बेहद का रहस्य है, *इस सृष्टि रूपी वृक्ष में आप लोग भी नीचे जड़ में बैठकर तपस्या कर रहे हो। वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज बुद्धि में आ जाती है। यह जो आपकी स्टेज है, उसका यादगार भक्तिमार्ग में चलता आया है। यह है प्रैक्टिकल, भक्ति मार्ग में फिर स्थूल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं ईश्वरीय सुख के अधिकारी आत्मा हूँ"*

 

  अविनाशी सुख और अल्पकाल का सुख - दोनों के अनुभवी हो ना? *अल्पकाल का सुख है - स्थूल साधनों का सुख और अविनाशी सुख है - ईश्वरीय सुख। तो सबसे अच्छा सुख कौनसा हैं! ईश्वरीय सुख जब मिल जाता है तो विनाशी सुख आपे ही पीछे-पीछे आता है।* जैसे कोई धूप में चलता है तो उसके पीछे परछाई आपे ही आती है और अगर कोई परछाई के पीछे जाये तो कुछ नहीं मिलेगा।

 

  *तो जो ईश्वरीय सुख के तरफ जाता है, उसके पीछे अल्पकाल का सुख स्वत: ही परछाई की तरह आता रहेगा, मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे कहते हैं - जहाँ परमार्थ होता है, वहाँ व्यवहार स्वत: सिद्ध हो जाता है। ऐसे ईश्वरीय सुख है 'परमार्थ' और विनाशी सुख है 'व्यवहार'।* तो परमार्थ के आगे व्यवहार आपे ही आता है।

 

  तो सदा इसी अनुभव में रहना जिससे दोनों मिल जाएं। नहीं तो, एक मिलेगा और वह भी विनाशी होगा। कभी मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा। क्योंकि चीज ही विनाशी है, उससे मिलेगा ही क्या? *जब ईश्वरीय सुख मिल जाता है तो सदा सुखी बन जाते हैं, दु:ख का नामनिशान नहीं रहता। ईश्वरीय सुख मिला माना सब कुछ मिला, कोई अप्राप्ति नहीं रहती। अविनाशी सुख में रहने वाले विनाशी चीजों को न्यारा होकर यूज करेगा, फंसेगा नहीं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अपने आपको एक सेकण्ड में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा समझ आत्म - अभिमानी वा देही - अभिमानी स्थिति में स्थित हो सकते हो?* अर्थात एक सेकण्ड में कर्मेन्द्रियों का आधार लेकर कर्म किया और एक सेकण्ड में फिर कर्मेंन्द्रियों से न्यारा, ऐसी प्रैक्टिस हो गई है? कोई भी कर्म करते कर्म के बन्धन में तो नहीं फंस जाते हो?

 

✧  *हर कर्मेन्द्रियों को जैसे चलाना चाहो वैसे चला सकते हो वा आप चाहते एक हो, कर्मेन्द्रियाँ दूसरा कर लेती है?* रचयिता बनकर रचना को चलाते हो? जैसे और कोई भी जड वस्तु को चैतन्य आत्मा वा चैतन्य मनुष्यात्मा जैसे चाहे वैसे कर्तव्य में लगा सकती है, जहाँ चाहे वहाँ रख सकती है।

 

✧  जड वस्तु चैतन्य के वश में है, चैतन्य जड वस्तु के वश में नहीं होता है। *ऐसे ही 5 तत्वों के जड शरीर को चैतन्य आत्मा जैसे चलाना चाहे वैसे नहीं चला सकती है?* जैसे जड वस्तु को किस भी रुप में परिवर्तन कर सकते हो वैसे कर्मेन्द्रियों को विकारी से निर्विकारी  वा विकारों के वश आग में जले हुए कर्मेन्द्रियों को शीतलता में नहीं ला सकते हो? क्या चैतन्य आत्मा में यह परिवर्तन की शक्ति नहीं आई हैं ?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बाप-समान निराकारी, देह की स्मृति से न्यारे, आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हुए, साक्षी होकर अपना और सर्व आत्माओं का पार्ट देखने का अभ्यास मजबूत होता जाता है? सदा साक्षीपन की स्टेज स्मृति में रहती है? *जब तक साक्षी स्वरूप की स्मृति सदा नहीं रहती तो बाप-दादा को अपना साथी भी नहीं बना सकते। साक्षी अवस्था का अनुभव, बाप के साथीपन का अनुभव कराता है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  धरती का होली सितारा बनना"*

 

_ ➳  निराला निराकारी शिव पिता, और ब्रह्मा सी प्यारी अलौकिक मां.... के साये में सनाथ बनी मै आत्मा... इतने अनोखे निराले प्यारे माँ पिता को पाकर.. जनमो के अनाथपन को कब का भूल गयी हूँ... संगम के वरदानी समय पर भाग्य के यूँ उदय होने पर... खुशियो और आनन्द में रोमांचित हूँ... *वो भटकन वह दुःख भी, अब तो प्यारे है... जिन्होंने मुझे यूँ भगवान की गोद में लाकर छोड़ दिया... वह हर बात प्यारी है, जिसने मुझे भगवान के निच्छल प्रेम का प्याला पिला दिया है.*.. इसी मीठे चिंतन में मगन मै आत्मा... सूक्ष्म वतन में अपने सच्चे मातपिता से मिलने उड़ चलती हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को चमकता सितारा बनाते हुए कहा :-* " मीठे प्यारे फूल बच्चे... मीठे बाबा ने जो भाग्य का सितारा चमकाया है... सदा उसे ही देझते रहो... दूर से ही आपकी चमक की लाइट दिखती रहे... ऐसा अभ्यास बढ़ाते चलो... *मा दाता, मा शिक्षक के साथ मा सतगुरु का भी पार्ट बजाकर... वरदाता बन मुक्ति जीवनमुक्ति दिलाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से मा सतगुरु की उपलब्धि पाकर आनन्द में डूबकर कहती हूँ :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... सुख की एक झलक को प्यासी मै आत्मा गुरुओ के पीछे घूम रही थी... *कि आप सतगुरु ने मुझे गले लगाकर, मा सतगुरु की सीट पर सजा दिया है... इस मीठे भाग्य का किस तरहा शुक्रिया करूँ.*.. प्यारे बाबा आपने और मेरे भाग्य ने मुझे किन ऊंचाइयों पर सजा दिया है..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा में मेरी सोयी शक्तियो को जगाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा एकरस सम्पूर्ण चमकता सितारा हो... ऐसा स्वयं को प्रत्यक्ष कर, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प करो.*.. भटकती थकी प्यासी आत्माओ को सच्चा रास्ता दिखाने वाले... लाइट हाउस बन कर, बाप दादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की प्यारी गोद में इठलाते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे मनमीत बाबा... कभी स्वयं अज्ञान के अंधेरो में खो गयी थी... आज भाग्य ने ज्ञान सितारा बनाकर विश्व में मुझे चमका दिया है... आपकी मीठी यादो संग में आत्मा *विश्व को रौशन करने वाला, एकरस सम्पूर्ण सितारा बनकर, विश्व गगन पर बड़े ही शान से चमक रही हूँ..*.

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को हर बात में विन, नम्बर वन बनाते हुए कहते है :-* "सदा पुरुषोत्तम समझकर, चढ़ती कला में जाने वाले बनो... सदा उड़ो और उड़ाओ...सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न है इस नशे में डूबे रहो... *ईश्वरीय खानों के मालिक मा सागर के खुमारी में रह... बीती को बिंदी लगाकर... खुशियो में झूमते आगे बढ़ो.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा से पायी खुशियो की दौलत को गले लगाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे दुलारे बाबा... *अपनी यादो के पंख देकर, मुझ आत्मा को खुशियो के आसमाँ में उड़ाने वाला खुबसूरत आत्मा परिंदा बना दिया है.*.. बीती को बिंदी में समाकर कितना हल्का प्यारा कर दिया है... ईश्वर ही मेरा साथी बनकर साथ है... भला अब किस बात की मुझे चिंता..."ईश्वर पिता से शक्तियो वरदानों को लेकर मै आत्मा... स्थूल जगत में लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- विश्व की आत्माओं को सुख और शान्ति का अनुभव करवाना*"

 

 _ ➳  "विश्व की सर्व आत्मायें शांति की तलाश में भटक रही है, उन तड़पती हुई आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाओ" अपने शिव पिता परमात्मा के इस फरमान का पालन करने के लिए, अपनी शांत स्वरूप स्थिति में स्थित हो कर मैं शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा की याद में बैठ जाती हूँ। *अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं स्वयं को शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सन्मुख पाती हूँ जो शांति की अनन्त शक्तियों से मुझे भरपूर कर रहें हैं*। अपने शिव पिता से आ रही शांति की शक्तिशाली किरणों को स्वयं में समा कर मैं जैसे शांति का पुंज बनती जा रही हूं।

 

 _ ➳  शांति की असीम शक्ति का स्टॉक अपने अंदर जमा करके अब मैं परमधाम से नीचे आ कर विश्व की उन सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाने चल पड़ती हूँ जो पल भर की शांति की तलाश में भटक रही हैं। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर, शांति दूत बन बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर अब मैं विश्व ग्लोब पर आ कर बैठ जाता हूँ*। मैं देख रहा हूँ बापदादा से अविरल शांति की धाराएं निकल रही हैं जो निरन्तर मुझ फ़रिश्ते में समा रही है। शांति की इन धाराओं को मैं फ़रिशता अब विश्व ग्लोब के ऊपर प्रवाहित कर रहा हूँ। *शांति की इन धाराओं के विश्व ग्लोब पर पड़ते ही शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन पूरे विश्व मे फैल रहें हैं*।

 

 _ ➳  जैसे - जैसे ये वायब्रेशन वायुमण्डल में फैल रहें हैं वैसे - वैसे वायुमण्डल में एक दिव्यता छाने लगी है। *जैसे सुबह की ताजी हवा शरीर को सुखद अहसास करवाती है वैसे ही वायुमण्डल में फैले ये शांति के वायब्रेशन आत्माओं को एक अद्भुत सुख का अनुभव करवा रहें हैं*। उनके अशांत मन शांति का अनुभव करके तृप्त हो रहे हैं। सबके चेहरे पर एक सकून दिखाई दे रहा है। *जन्म जन्मान्तर से शांति की एक बूंद की प्यासी आत्माओं की प्यास बुझ रही है*। शांति के सागर शिव पिता से आ रही शांति की किरणों का प्रवाह और भी तीव्र होता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे शांति की शक्ति की किरणों की बरसात हो रही है।

 

 _ ➳  *जैसे चात्रक पक्षी अपनी प्यास बुझाने के लिए स्वांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों के साथ निरन्तर आकाश की ओर देखता रहता है*। इसी प्रकार शांति की तलाश में भटकती और तड़पती हुई आत्मायें भी शांति की एक बूंद पाने की इच्छा से व्याकुल निगाहों से ऊपर देख रही है और शांति की किरणों की बरसात में नहा कर जैसे असीम शांति का अनुभव करके प्रसन्न हो रही हैं। *विश्व की सर्व आत्माओं को शांति की अनुभूति करवाकर अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ फिर से सूक्ष्म लोक में पहुंचता हूँ*। अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार कर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं आत्मा अपने शांत स्वरूप में स्थित हो कर वापिस साकारी दुनिया मे अपने साकारी शरीर मे प्रवेश करती हूं।

 

 _ ➳  साकारी दुनिया मे आ कर अब मैं आत्मा अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, निरन्तर अपने शांत स्वधर्म में रहकर शांति के वायब्रेशन चारों ओर फैला रही हूँ। सर्व आत्माओ को शांति के सागर बाप का परिचय दे कर, उन्हें भी अपने शांत स्वधर्म में स्थित हो कर शांति पाने का सहज उपाय बता रही हूं। *स्वयं को शांति के सागर अपने शिव पिता के साथ सदा कम्बाइंड अनुभव करने से मेरे सम्पर्क में आने वाली परेशान आत्मायें डेड साइलेन्स की अनुभूति करके सहज ही अपनी सर्व परेशानियों से मुक्त हो रही हैं*। "विश्व की सर्व आत्माओं को शांति का अनुभव कराना" यही मेरा कर्तव्य है। इस बात को सदा स्मृति में रख अब मैं इसी ईश्वरीय सेवा में निरन्तर लगी रहती हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ईश्वरीय मर्यादाओं के आधार पर विश्व के आगे एक्ज़ाम्पल  बनने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अपने चेहरे और चलन से अनुभव कराती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा पवित्रता की श्रेष्ठता का अनुभव कराती हूँ  ।*

   *मैं परम पवित्र आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  माया की छाया से बचने के लिए छत्रछाया के अन्दर रहो:- सदा अपने ऊपर बाप के याद की छत्रछाया अनुभव करते हो? याद की छत्रछाया है। इस छत्रछाया को कभी छोड़ तो नहीं देते? *जो सदा छत्रछाया के अन्दर रहते हैं वे सर्व प्रकार के माया के विघ्नों से सेफ रहते हैं। किसी भी प्रकार से माया की छाया पड़ नहीं सकती। यह 5 विकार, दुश्मन के बजाए दास बनकर सेवाधारी बन जाते हैं। जैसे विष्णु के चित्र में देखा है - कि सांप की शय्या और सांप ही छत्रछाया बन गये। यह है विजयी की निशानी।* तो यह किसका चित्र है? आप सबका चित्र है ना। जिसके ऊपर विजय होती है वह दुश्मन से सेवाधारी बन जाते हैं। ऐसे विजयी रत्न हो। शक्तियाँ भी गृहस्थी माताओं से, शक्ति सेना की शक्ति बन गई। शक्तियों के चित्र में रावण के वंश के दैत्यों को पांव के नीचे दिखाते हैं। शक्तियों ने असुरों को अपने शक्ति रूपी पाँव से दबा दिया। *शक्ति किसी भी विकारी संस्कार को ऊपर आने ही नहीं देगी।*

 

✺  *"ड्रिल :- अपने विष्णु स्वरुप का अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बगीचे में झूला झूलती हुई आसमान को निहार रही हूँ...* 16 कलाओं से परिपूर्ण पूर्णमासी का चाँद चारों ओर अपनी चांदनी बिखेर रहा है... आसमान में सितारे जगमग चमकते हुए अति सुंदर नजर आ रहे हैं... *सितारों की सुन्दरता को देखते हुए मैं आत्मा एकाएक चिंतन करने लगती हूँ कि मैं आत्मा भी एक सितारे मिसल हूँ...* आसमान के सितारों से भी ज्यादा चमक है मुझ आत्मा में...

 

_ ➳  मैं आत्मा अपने भव्य स्वरूप को देखने लगती हूँ... *जैसे ही आत्मानुभूति करने लगती हूँ प्यारे बाबा की याद आ जाती है...* प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा को बुलाते ही चंद्रमा में बाबा मुस्कुराते हुए नज़र आने लगते हैं... परमधाम जैसा नज़ारा अनुभव हो रहा है... बाबा के चारों ओर आत्मा सितारे जगमगा रहे हैं... पूरा आसमान छत्रछाया लग रहा है...

 

_ ➳  *बाबा अपनी शीतल किरणों की वर्षा कर रहे हैं...* पूरे आसमान से दिव्य किरणों की बौछारें मुझ पर पड़ रही हैं... मुझ आत्मा से एक-एक विकार बाहर निकलते जा रहे हैं... काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सभी विकार बाहर निकलकर माया रावण का पुतला बन सामने खड़े हो जाते हैं... *बाबा से निकलती दिव्य तेजोमय किरणों से रावण का पुतला बीज सहित भस्म हो रहा है...* मेरे सामने विकारों रूपी रावण का वंश सहित अंत हो चुका है...

 

_ ➳  मैं आत्मा माया की छाया से मुक्त हो चुकी हूँ... और सदा बाबा की छत्र छाया का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा सभी विकारों पर विजय प्राप्त कर विजयी रत्न होने का अनुभव कर रही हूँ...* माया के सभी विघ्नों से सेफ अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया के अन्दर ही रहती हूँ... पांचो विकार अब मुझ आत्मा के अधीन हो गए हैं... सभी कर्मेन्द्रियाँ मेरे वश हो गए हैं...

 

_ ➳  *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे पांचो विकारों रूपी नाग सेवाधारी बन मेरी सेवा कर रहे हैं...* मुझ आत्मा को ये झूला शेषशैया अनुभव हो रहा है जिस पर मैं आत्मा विष्णु स्वरुप में लेटी हुई हूँ... क्षीरसागर में लेटी मैं अपने विष्णु स्वरुप में मायाजीत, प्रकृतिजीत, जगतजीत होने का अनुभव कर रही हूँ... *मैं आत्मा अपने विष्णु स्वरुप का अनुभव करती हुई बाबा की याद की गोदी में सो जाती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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