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 17 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *हर संकल्प, बोल और कर्म समर्थ और श्रेष्ठ रहा ?*

 

➢➢ *हर पल अविनाशी आंतरिक ख़ुशी का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *हद की प्राप्तियों की छोटी छोटी गलियों में तो खुद को नहीं फंसाया ?*

 

➢➢ *साइड सीन की तरफ आकर्षित तो नहीं हुए ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *किसी भी स्थान के वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने के लिए अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना चाहिए, इसका बार-बार अटेंशन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है।* अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार वही अटेंशन रहेगा। तो यह साधना अर्थात् बार-बार अटेंशन की तपस्या।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बड़े-ते-बड़ा बिजनेसमैन हूँ"*

 

  *सभी बिजी रहते हो ना! जो बिजी होता है उसके पास माया नहीं आती। क्योंकि आपके पास उसे रिसीव करने का टाइम ही नहीं है।* तो इतने बिजी रहते हो या कभी-कभी रिसीव कर लेते हो? ब्राह्मण बने ही क्यों? बिजी रहने के लिए ना। बापदादा हंसी में कहते हैं कि बिजी रहने वाले ही बड़े-ते-बड़े बिजनिसमैन हैं। सारे दिन में कितना बड़ा बिजनेस करते हो!

 

  जानते हो हिसाब? हिसाब रखना आता है? हर कदमों में पद्मों की कमाई है। कदम में पद्म - सारे कल्प में ऐसा बिजनेस कोई नहीं कर सकता। तो जितना जमा होता है उस जमा की खुशी होती है। सबसे ज्यादा खुशी किसको रहती है? *नशे से कहो - 'हम नहीं खुश होंगे तो कौन होगा!' यह नशा भी हो किन्तु निर्मान।* जैसे अच्छे वृक्ष की निशानी है-फल वाला होगा लेकिन झुका होगा। ऐसा नशा है? तो दोनों साथ-साथ हों।

 

  आप सबकी नैचुरल जीवन ही यह हो गई है - किसी को भी देखेंगे तो उसी स्मृति से देखेंगे कि यह एक ही परिवार की आत्माएं हैं। इसलिए नुकसान वाला नशा नहीं है। *हर आत्मा के प्रति दिल का प्यार स्वत: ही इमर्ज होता है। कभी किसी के प्रति घृणा नहीं आ सकती। कभी कोई गाली देवे तो भी घृणा नहीं आ सकती, क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहां क्वेश्चनमार्क होगा वहां हलचल जरुर होगी। फुलस्टॉप लगाने वाले फुल पास होते हैं। फुलस्टॉप वही लगा सकते हैं। जिनके पास शक्तियों का फुलस्टॉक हो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  बाप समान तीन स्टेज नम्बरवार हैं। *एक है समान, दूसरी है समीप, तीसरी है सामने।* तो कहाँ तक पहूँचे हैं?  *समान वाले की निशानी *एक सेकण्ड में जहाँ और जैसे चाहें , जो चाहें वह कर सकते हैं व करते हैं।*

  

✧   सेकण्ड स्टेज - *एक सेकण्ड में बजाय कुछ घडियों में, स्वयं को सेट कर सकते हैं।* तीसरी स्टेज - *कुछ घण्टों व दिनों तक स्वयं को सेट कर सकते हैं।*

 

✧  *समान वाले, सदा बाप समान, स्वयं के महत्व को, स्वयं की सर्वशक्तियों के महत्व को और हर पुरुषार्थी की नम्बरवार स्टेज को, गुणदान, ज्ञानधन दान और स्वयं को समय का दान, इन सबके महत्व को जानने वाले और चलने वाले होते हैं।* वे कर्मों को, संस्कार और स्वभाव को जानने वाले ज्ञान स्वरूप होते हैं। क्या ऐसे ज्ञान स्वरूप बने हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सदैव यह समझ कर चलो कि मैं विदेशी हूँ। पराये देश और पुराने शरीर में विश्व-कल्याण का पार्ट बजाने के लिए आया हूँ। *तो पहला पाठ कमजोर होने के कारण सेन्सीबल बने हैं, लेकिन इसैन्स कम है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ब्राहमण जीवन- सदा बेहद की खुशियों का जीवन"*

 

_ ➳  *भरपूर हुई है, मन की गागर*... *छलछल अब छलक रही है*... *मौजे परमात्म प्रेम की अंग अंग से अब झलक रही है*, *बाँट रही मै, भर भर आँचल, फिर भी मै भरपूर हूँ*... मौजों में रहती हरदम खुशियों का मै नूर हूँ... और प्रभु प्रेम का उपहार, इन खुशियों का नूर बनकर मैं आत्मा बैठी हूँ , खुशियों के सागर के पहलू में... खुशियों की तरंगे मेरे रोम रोम से बही जा रही हैं... ये धरती,ये गगन, ये बहती पवन सब मुझसे खुशनुमा मस्तियों की सौगात लिये जा रही है... *उनकी आँखो से बरसती खुशियों की चाँदनी अभी भी मुझे नख शिख नहला रही है*...

 

  *ज्ञान चन्द्रमा बापदादा आँखों ही आँखों में खुशियों की चाँदनी में नहलाते स्नेह से भरपूर हो मुझ आत्मा से बोले:-* "सदा रूहानियत की स्थिति में रहने वाली मेरी रूहे  गुलाब बच्ची... *सारे ज्ञान का सार मन्मनाभव को क्या आपने बुद्धि में धारण किया है*? क्या जन्मों जन्मों के लिए खुशी की खुराक से भरपूर हुए हो? *समाने और समेटने की शक्ति द्वारा एकाग्रता का अनुभव करने वाले सार स्वरूप बने हो*? ऊँचे ते ऊँचे बाप की बच्ची, *अब बाप समान ऊँची स्थिति बनाओं*... *समेटकर संकल्पों को अपने, इस लगाव की रस्सी को जलाओं..."*

 

_ ➳   *ज्ञान का तीसरा नेत्र दे कर सृष्टि के आदि मध्य अन्त का सम्पूर्ण सार मेरी बुद्धि में समाँ, मुझे त्रिनेत्री बनाने वाले बापदादा से, मैं आत्मा बोली:-* "मीठे से मीठा ज्ञान का एक ही अक्षर बुद्धि में धारण कर मैं धन्य हुई हूँ बाबा!... *जन्मों जन्मों की मिठास अब तो जीवन में इस कदर घुली कि कोशिशों के बिना ही दिशाओं में भी घुलने लगी है... गैर नही रहा कोई अब, हर रूह अपनी- सी  लगने लगी है...जाम खुशियों का अब भर- भर कर उँडेल रही हूँ*... *गमों की दुनिया भूली हूँ बाबा! अब बस खुशियों से खेल रही हूँ..."*

 

   *इस दुनियावी जहाजी बेडे को इस पतित भवसागर से पार ले जाने वाले मेरे खिवैय्या सतगुरू मुझ आत्मा से बोलें:-* "रूहानी बच्ची... संगम के इन गलियारों से इस ज्ञान की मीठी सेक्रीन, *मन्मनाभव* का सबको अनुभव कराओं, *ज्ञान और योग की ये फर्स्ट क्लास वन्डरफुल खुराक, खुशी के एक -एक लम्हें के लिए तरसती हर आत्मा को पिलाओं*, इस अनमोल खुराक के सर्जन का अब हर रूह से परिचय कराओ..."

 

_ ➳  *मुझ आत्मा से सब डिफेक्ट निकाल, मुझे प्युअर डायमण्ड बनाने वाले रत्नाकर बाप से, मैं आत्मा बोली:- "मीठे बाबा... एक बाप के डायरेक्शन प्रमाण चलने वाली मै महावीर आत्मा, मन्मनाभव की स्मृति से सबको समर्थ  बना रही हूँ*... आत्मा भाई -भाई की स्मृति से बाप के वर्से की ये अधिकारी आत्माए देखो, अपने भाग्य पर किस कदर इठला रही है, निमित्त बन, कर जो  दिया इनको अखुट खजाना, अब  त्रिकाल दर्शी बन ये भी सबको लुटा रही है, बाबा! *विकारों की खोट आपने मुझ आत्मा से जैसे निकाली है, वैसे ही मैं अब हर आत्मा को प्योर डायमंड बनने के तमाम हुनर सिखा रही हूँ..."* 

 

 *अतीन्द्रिय सुखों की रिमझिम सी बरसातों में भिगो देने वाले ज्ञानसागर बाप, शिक्षक और सतगुरू बोले:-* "सबको सुख देने वाली मेरी खुशबूदार फूल बच्ची... अपने *दिव्य गुणों की खुशबू से अब सतयुगी नजारें साकार करो*, *खुशियों के रंगों से जो बेरंग नजारें है, अब उनमे भी परमात्म प्यार भरों*... सदा खुश मौज में रहों खुद, फिर औरो, को खुशियाँ बाँट दो, प्यारें बन कर संसार के मोह के बंधन काट दों... *अन्तिम समय, सेकेन्ड का समय और नष्टोमोहा का पेपर, इस पेपर में पास सबको पास कराओं..."*

 

_ ➳  *वन्डरफुल ज्ञान देने वाले  वन्डरफुल बाप से इस वन्डरफुल समझानी को पाकर मैं आत्मा धन्य हो बोली*:- "प्यारे मीठे बापदादा... *इस ज्ञान का सार, वर्से का सार, ये अखुट खुशी और आपका पावन प्यार*... जो भर भर आपने लुटाया है... *इस पालना का रिटर्न मैने भी हर आत्मा को आप का परिचय देकर चुकाया है*... घर घर मन्दिर बन रहा है बाबा ! हर नर में नारायण नजर आते है... आप मौजों का सागर हो, ये सुनकर हर रूह आपके पहलू में आ चुकी है... *और  विश्व कल्याणकारी मैं आत्मा, निमित्त भाव से खुशियों के अखुट खजाने लुटाये जा रही हूँ... वरदानों से भरपूर कर रहे है बापदादा मुझे और मै मन्द मन्द मुस्कुराये जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ रखना*"

 

_ ➳  भगवान को प्रत्यक्ष करना हम ब्राह्मण बच्चों का कर्तव्य भी है और संकल्प भी है, मन ही मन स्वयं से यह बातें करती अब मैं अपने आप से प्रश्न करती हूँ कि क्या मेरी मनसा, वाचा, कर्मणा इतने श्रेष्ठ बन चुके हैं जो बाप समान मास्टर दाता बन मैं दूसरों को सुख की अनुभूति करवा सकूँ! *मन के श्रेष्ठ संकल्प के साथ - साथ मुझे अपने हर कर्म द्वारा सभी को ऐसी विचित्र चाल का अनुभव करवाना है जो दूसरे भी स्वत: ही परिवर्तित हो जायें*। सर्व की सहयोगी बन, उनके प्रति शुभभावना, शुभकामना रखते हुए मुझे उन्हें उनके पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्त करवाना है यही मेरे बाबा की मुझ से आश है, जिसे मुझे अवश्य पूरा करना है।

 

_ ➳  अपने भगवान बाप की इस आश को पूरा करने के लिए पहले मुझे स्वयं में सर्वशक्तियों का स्टॉक जमा करना है। यह विचार करके अब मैं स्वयं को सर्वशक्तियों से भरपूर करने के लिए विदेही स्थिति में स्थित होती हूँ। *सभी बातों से किनारा कर, हर संकल्प विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटा कर, एकाग्र चित हो कर मैं बाबा की याद में बैठ एक विचित्र दिव्य अनुभूति में खो जाती हूँ और इसी दिव्य अनुभूति के साथ अब मैं आत्मा अपने मन बुद्धि को परमधाम में रहने वाले अपने प्यारे परम पिता परमात्मा शिव बाबा पर एकाग्र करती हूँ*। 

 

_ ➳  बुद्धि रूपी दिव्य नेत्रों द्वारा मैं स्पष्ट देख रही हूँ परमधाम में अखण्ड ज्योति के रूप में विराजमान अपने मीठे प्यारे शिव बाबा को। *उनसे आ रही दिव्य किरणों का प्रवाह परमधाम से सीधा मुझ आत्मा पर पड़ रहा है और एक दिव्य आलौकिक आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। शिव बाबा से आ रही पवित्र तरंगों का प्रवाह मैग्नेट की भांति मुझे अपनी ओर खींच रहा है। 

 

_ ➳  मैं आत्माइस देह को छोड़ अब ऊपर की ओर बढ़ रही हूँ। *सेकण्ड में साकारी दुनिया को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने शिव पिता परमात्मा के पास और जा कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूँ और सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर मैं वापिस लौट आती हूँ अपने साकारी ब्राह्मण तन में*। इस स्मृति के साथ कि अपने शक्तिसम्पन्न स्वरूप में स्थित हो कर अब मुझे अपने हर कर्म को श्रेष्ठ बना कर सभी को श्रेष्ठता का अनुभव करवाना है।

 

_ ➳  प्रत्यक्ष स्वरूप कर्म द्वारा ही दिखाई देता है इस बात को अच्छी रीति बुद्धि में बिठा कर, जमा किये हुए अपने सर्वशक्तियों के स्टॉक को अब मैं सर्व आत्माओं प्रति यूज़ कर रही हूँ। *मेरे सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप से सर्व आत्माओं को ब्रह्मा के समान कर्मयोगी स्वरूप का, विष्णु के समान प्रेम और शक्ति के पालना स्वरूप का तथा शंकर के समान तपस्वी स्वरूप का अनुभव हो रहा है*।

 

_ ➳  मास्टर दाता बन, आत्माओं के बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को और उनके बिगड़े हुए मूड़ को शुभभावना से ठीक करने में सहयोगी बन मैं उनकी कमजोरियों से उन्हें मुक्ति दिला रही हूँ। *निर्बल और दिलशिकस्त आत्माओं को अपनी शक्ति का बल दे कर उन्हें शक्तिशाली बना रही हूँ ताकि उनकी कमी का दूसरों को भी अनुभव ना हो*। अच्छे ते अच्छा करने का सोचने के बजाए उसे करके मैं अपने हर कर्म द्वारा सबको विचित्र चाल का अनुभव अब सहज ही करवा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सदा भगवान और भाग्य की स्मृति में रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं हर्षितमुख चेहरे वाली सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सर्व प्राप्तियों की अनुभूति कराती हूँ  ।*

   *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *किसी भी प्रकार के विकारों के वशीभूत हो अपनी उल्टी होशियारी नहीं दिखाओ। यह उल्टी होशियारी अब अल्पकाल के लिए अपने को खुश कर लेगी वा ऐसे साथी भी आपकी होशियारी के गीत गाते रहेंगे लेकिन कर्म की गति को भी स्मृति में रखो। उल्टी होशियारी उल्टा लटकायेगी।* अभी अल्पकाल के लिए काम चलाने की होशियारी दिखायेंगे, इतना ही चलाने के बजाए चिल्लाना भी पड़ेगा। कई ऐसी होशियारी दिखाते हैं कि बापदादा दीदी दादी को भी चला लेंगे। यह सब तरीके आते हैं। अल्पकाल की उल्टी प्राप्ति के लिए मना भी लिया, चला भी लिया लेकिन पाया क्या और गंवाया क्या! दो तीन वर्ष नाम भी पा लिया लेकिन अनेक जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद से नाम गंवा लिया। तो पाना हुआ या गंवाना हुआ?

✺ *"ड्रिल :- विकारों के वशीभूत हो उल्टी होशियारी नहीं दिखाना*”

➳ _ ➳ *अपने उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए मैं आत्मा ज्योति सुप्रीम ज्योतिषी के पास पहुँच जाती हूँ...* अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने के उपाय जानने की इच्छा जाहिर करती हुई... मैं आत्मा सुप्रीम ज्योतिषी बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... सुप्रीम ज्योतिषी बाबा मेरे भाग्य की रेखाओं को देख रहे हैं...

➳ _ ➳ *बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथों में अविनाशी भाग्य बनाने की कलम दे देते हैं और कहते हैं- बच्चे श्रेष्ठ कर्म कर जितना चाहे उतना अपना ऊँचा भाग्य बनाओ...* पुरुषार्थ कर श्रेष्ठ कर्म की कलम से सर्व प्राप्तियों की भाग्य रेखायें खींच लो... वर्तमान में जैसे कर्म करोगे वैसे ही भविष्य प्रालब्ध प्राप्त करोगे...

➳ _ ➳ *बाबा कर्मों की गुह्य गति का ज्ञान देते हुए मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख अमर भव का वरदान देते हैं...* बाबा के हाथों से, मस्तक से सर्व गुण, शक्तियां निकलकर मुझ आत्मा में समा रही हैं... मैं आत्मा विकारों से मुक्त होकर सर्व खजानों से सम्पन्न हो रही हूँ... बाबा मेरे मस्तक में चमकती हुई ज्योति की रेखा खींचते हैं...

➳ _ ➳ *बाबा मेरे नयनों में रूहानियत की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे मुख में श्रेष्ठ मीठी वाणी की भाग्य रेखा खींचते हैं...* मेरे होंठो में रूहानी मुस्कुराहट की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे हाथों में सर्व परमात्म-खजाने की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे कदमों में पद्मों की भाग्य रेखा खींचते हैं... मेरे ह्रदय में बाप के लव की लवलीन रेखा खींचते हैं...

➳ _ ➳ *मैं आत्मा अब वर्तमान में अपना तन, मन, धन, हर स्वांस को सफल कर रही हूँ... संगमयुग के समय के महत्व को जान हर घडी को सफल कर रही हूँ...* बाबा से प्राप्त ज्ञान, गुण, शक्तियों के खजानों को सफल कर रही हूँ... राज्य सत्ता और धर्म सत्ता की अधिकारी बन रही हूँ... तीव्र पुरुषार्थ कर अनेक जन्मों की प्रालब्ध बना रही हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अल्पकाल की उल्टी प्राप्ति के लिए विकारों के वशीभूत होकर कोई भी उल्टा कर्म नहीं करती हूँ... मन, वचन, कर्म, संकल्पों से सदा श्रेष्ठ कर्म ही करती हूँ... और अनेक जन्मों के लिए श्रेष्ठ पद पाने की अधिकारी बन गई हूँ... *अविनाशी बाबा ने अविनाशी भाग्य की रेखायें खींचकर मुझ अविनाशी आत्मा को श्रेष्ठ भाग्यशाली बना दिया है...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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