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 22 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *गयाना सुनाते समय योग में रहे ?*

 

➢➢ *अंतरमुखी बन एकांत में बैठ अपने आप से रूह रिहान की ?*

 

➢➢ *सर्व के दिल का प्यार प्राप्त किया ?*

 

➢➢ *एक "बाबा" शब्द की चाबी को सदा संभालकर रखा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  साधनों को आधार नहीं बनाओ लेकिन साधना के आधार से साधनों को कार्य में लगाओ *यदि साधना की स्थिति में रह साधनों को कार्य में नहीं लगाते, कोई-न-कोई आधार को अपनी उन्नति का आधार बना देते हो तो जब वह आधार हिलता है, तो उमंग-उत्साह भी हिल जाता है। वैसे आधार लेना कोई बुरी चीज़ नहीं है लेकिन आधार को फाउण्डेशन नहीं बनाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अचल-अड़ोल आत्मा हूँ"*

 

    अचल-अडोल आत्माएं हैं - ऐसा अनुभव करते हो? एक तरफ है हलचल और दूसरी तरफ आप ब्राह्मण आत्माएं सदा अचल हैं। जितनी वहाँ हलचल है उतनी आपके अन्दर अचल-अडोल स्थिति का अनुभव बढ़ता जा रहा है। कुछ भी हो जाये, सबसे सहज युक्ति है - 'नथिंग न्यु'। कोई नई बात नहीं है। कभी आश्चर्य लगता है कि यह क्या हो रहा है, क्या होगा? आश्चर्य तब हो जब नई बात हो। कोई भी बात सोची नहीं हो, सुनी नहीं हो, समझी नहीं हो और अचानक होती है तो आश्चर्य लगता है। तो आश्चर्य नहीं लेकिन फुलस्टोप हो। *दुनिया मूँझने वाली और आप मौज में रहने वाले हो। दुनिया वाले छोटी-छोटी बात में मूँझेंगे - क्या करें, कैसे करें...। और आप सदा मौज में हो, मूँझना खत्म हो गया। ब्रह्मण अर्थात् मौज, क्षत्रिय अर्थात् मूँझना।* कभी मौज, कभी मूँझ।

 

  आप सभी अपना नाम ही कहते हो - ब्रह्माकुमार और कुमारियां। क्षत्रिय कुमार और क्षत्रिय कुमारी तो नहीं हो ना? सदा अपने भाग्य की खुशी में रहने वाले हो। *दिल में सदा, स्वत: एक गीत बजता रहता - 'वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य।' यह गीत बजता रहता है, इसको बजाने की आवश्यकता नहीं है। यह अनादि बजता ही रहता है। हाय हाय खत्म हो गई, अभी है 'वाह-वाह।'* हाय-हाय करने वाले तो बहुत मैजारिटी हैं और वाह वाह करने वाले बहुत थोड़े हो। तो नये वर्ष में क्या याद रखेंगे? 'वाह-वाह।' जो सामने देखा, जो सुना, जो बोला - सब वाह-वाह, हाय-हाय नहीं। हाय ये क्या हो गया! नहीं, वाह, ये बहुत अच्छा हुआ।

 

  कोई बुरा भी करे लेकिन आप अपनी शक्ति से बुरे को अच्छे में बदल दो। यही तो परिवर्तन है ना। अपने ब्राह्मण जीवन में बुरा होता ही नहीं। चाहे कोई गाली भी देता है तो बलिहारी गाली देने वाले की, जो सहन शक्ति का पाठ पढ़ाया। बलिहारी तो हुई ना, जो मास्टर बन गया आपका! मालूम तो पड़ा आपको कि सहन शक्ति कितनी है, तो बुरा हुआ या अच्छा हुआ? *ब्राह्मणों की दृष्टि में बुरा होता ही नहीं। ब्राह्मणों के कानों में बुरा सुनाई देता ही नहीं। इसलिए तो ब्राह्मण जीवन मौजों की जीवन है। अभी-अभी बुरा, अभी-अभी अच्छा तो मौज नहीं हो सकेगी। सदा मौज ही मौज है। सारे कल्प में ब्रह्माकुमार और कुमारी श्रेष्ठ हैं। देव आत्माएं भी ब्राह्मणों के आगे कुछ नहीं हैं। सदा इस नशे में रहो, सदा खुश रहो और दूसरों को भी सदा खुश रखो। रहो भी और रखो भी।* मैं तो खुश रहता हूँ, ये नहीं। मैं सबको खुश रखता हूँ - यह भी हो। मैं तो खुश रहता हूँ - यह भी स्वार्थ है। ब्राह्मणों की सेवा क्या है? ज्ञान देते ही हो खुशी के लिए।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *वह अन्तिम लक्ष्य पुरुषार्थ के लिए कौन - सा है? वह है - अव्यक्त फरिश्ता हो रहना।* अव्यक्त रूप क्या है? फरिश्तापन। उसमें भी लाइट रूप सामने है - अपना लक्ष्य। वह सामने रखने से जैसे लाइट के कार्ब में यह मेरा आकर है।

 

✧  जैसे वतन में भी अव्यक्त रूप देखते हो, तो अव्यक्त और व्यक्त में क्या अंतर देखते हो? *व्यक्त, पाँच तत्वों के कार्ब में है और अव्यक्त, लाइट के कार्ब में है।*

 

✧  *लाइट का रूप तो है, लेकिन आसपास चारों ओर लाइट ही लाइट है, जैसे कि लाइट के कार्ब में  यह आकर दिखाई देता है।* जैसे सूर्य देखते हो तो चारों ओर फैली सूर्य कि किरणों की लाइट के बीच में, सूर्य का रूप दिखाई देता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *लगाव की भी स्टेजस हैं। एक है सूक्ष्म लगाव, जिसको सूक्ष्म आत्मिक स्थिति में स्थित होकर ही जान सकते हैं।* दूसरे हैं स्थूल रूप के लगाव, जिसको सहज जान सकते हो। सूक्ष्म लगाव का भी विस्तार बहुत है। *बिना लगाव के, बुद्धि की आकर्षण वहाँ तक जा नही सकती। वा बुद्धि का झुकाव वहाँ जा नहीं सकता। तो लगाव की चेकिंग हुई झुकाव।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- हम अविनाशी आत्मा हैं, यह प्रैक्टिस करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठ आत्मचिंतन करती हूँ... मैं एक चैतन्य ज्योतिपुंज हूँ... जो इस शरीर में विराजमान होकर पार्ट बजा रही हूँ...* ना ये तन मेरा है, ना ये धन मेरा है, ना कोई वस्तु-वैभव मेरे हैं... ना ये संसार मेरा है... मेरे तो एक शिवबाबा हैं... और मेरा घर परमधाम है... *मैं तो एक अशरीरी आत्मा हूँ... चिंतन करते-करते मैं आत्मा इस देह और इस देह की दुनिया से निकलकर पहुँच जाती हूँ आकारी वतन में बापदादा के पास...*

 

  *प्यारे मीठे बाबा सत्य स्वरुप के ज्ञान की सच्चाई से मेरे जीवन को रोशन करते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *स्वयं को देह समझ और देहधारियों से दिल लगाकर दुखो के घने जंगल में भटक गए... अब ईश्वर पिता से सत्य को जान अपने ज्योति स्वरूप के भान में खो जाओ...* अपनी निराकारी सत्यता को हर साँस संकल्प में जीकर... सुनहरे सुखो के अधिकारी बन सदा का मुस्कराओ...

 

_ ➳  *शरीर के भान से मुक्त होकर खुशियों के आसमान में जगमगाती मैं आत्मा सितारा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा शरीर नही खुबसूरत मणि हूँ...* मीठे बाबा आप जैसी ही निराकार खुबसूरत हूँ इस सत्य को बाँहों में भर कर खुशियो के गगन में उड़ रही हूँ... और स्वयं के सत्य भान में टिक कर पुनः तेजस्वी बनती जा रही हूँ...

 

  *इस देह और देह की दुनिया से न्यारी बनाकर सत्यता के ओज से चमकाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... अब इस देह की मिटटी में मन बुद्धि रुपी हाथो को और नही सानो... अपने ओजस्वी तेजस्वी स्वरूप को यादो में बसाओ... *ईश्वर पिता समान अशरीरी के भान में खो जाओ... देह के सब रिश्तो नातो से उपराम होकर... अशरीरी पन के नशे में गहरे उतर जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा के यादों के दर्पण में अपने सत्य स्वरूप को निखारते हुए कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह भान के दलदल से निकल कर... ईश्वरीय प्यार की खुशबू से रंगती जा रही हूँ... मै अविनाशी आत्मा हूँ इस सत्य को हर पल अपनाती जा रही हूँ... *अपने असली अशरीरी सौंदर्य को यादो में बसाकर मीठे बाबा की ऊँगली पकड़ घर चलने की तैयारी कर रही हूँ...”*

 

  *मीठे जादूगर मेरे बाबा अपने प्यार के झरने में मुझे कमल फूल समान खिलाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जब घर से निकले थे कितने महकते फूल थे... *धरा की मिटटी में खेलते खेलते अपने दमकते स्वरूप को भूल कर मात्र शरीरधारी हो गए... अब उसी महक उसी रंगत उसी नूर को यादो में ताजा करो...* अपने अविनाशी पन को हर साँस में पिरोकर पिता संग घर की ओर लौटने की तैयारी में जुट जाओ...

 

_ ➳  *माया के मायाजाल से मुक्त होकर सत्यपिता के सत्य ज्ञान से सत्य स्वरुप में स्थित होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी सच्ची अशरीरी सुंदरता को पाती जा रही हूँ... इस देह के मायाजाल से निकल कर अविनाशी गौरव को यादो में बसा रही हूँ...* मै आत्मा मीठे बाबा के साथ घर चलने को सज संवर रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बहुत मीठा बनना है*"

 

 _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण किये मैं फ़रिशता सूक्ष्म वतन में अव्यक्त बापदादा के सामने बैठा उनकी मीठी दृष्टि से स्वयं को निहाल कर रहा हूँ। बापदादा की मीठी दृष्टि मेरे रोम - रोम में मिठास घोल रही है और मुझे आप समान मीठा बना रही है। *बाबा की दृष्टि में मेरे लिए समाया असीम स्नेह, प्रेम के मीठे झरने के रूप में मुझ पर निरन्तर प्रवाहित हो रहा है*। बड़े स्नेह से निहारते हुए बाबा मेरी बुद्धि रूपी झोली को वरदानों से भरपूर कर रहें हैं। मुझे आप समान बहुत बहुत मीठा बना कर, सबको मीठी दृष्टि से निहाल कर, सबका कल्याण करने का वरदान दे रहें हैं।

 

 _ ➳  मेरे नैन अपने अति मीठे बापदादा को एकटक निहार रहें हैं। एक पल के लिए भी मेरी आँखें उनके ऊपर से नही हटना चाहती। ऐसा लगता है कि उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म - जन्म की प्यास को मेरी ये आंखे आज ही बुझा लेना चाहती हैं। *बाबा के नयनो में अथाह स्नेह का सागर लहराता हुआ मैं स्पष्ट देख रही हूँ और उस स्नेह की गहराई में मैं डूबती जा रही हूँ*। बाबा के नयनो में समा कर, बाबा को निहारते हुए, बाबा के वरदानी हस्तों को मैं अपने सिर के ऊपर अनुभव कर रही हूँ। बाबा के वरदानी हस्तों से बाबा की सर्वशक्तियाँ, गुण और खजाने मुझ फ़रिश्ते में समा रहें हैं और मुझे सर्व गुणों, सर्व शक्तियों और सर्व खजानों से सम्पन्न बना रहे हैं।

 

 _ ➳  अब मैं सामने से अपनी अति मीठी मम्मा को आते हुए देख रही हूँ जो बाबा के पास आ कर बैठ गई है और बहुत मीठी दृष्टि से मुझे निहारती जा रही हैं। *मम्मा के मस्तक से निकल रही लाइट सीधी मेरे मस्तक पर पड़ रही है और मुझमे असीम शक्ति का संचार कर रही है*। मम्मा का मुस्कराता हुआ चेहरा और मीठी मुस्कान मुझे दिल की गहराई तक स्पर्श कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी मीठी मुस्कान और मीठी दृष्टि से मम्मा अपनी सारी मिठास मेरे अंदर प्रवाहित कर मुझे आप समान अति मीठा बना रही है। *अपने हाथ से इशारा करते हुए मम्मा मुझे अपने पास बुला रही है। अपनी गोद में बिठा कर अपने हाथों से मुझे मीठी टोली खिला रही हैं*। 

 

 _ ➳  मम्मा के हाथों की मीठी टोली, और बापदादा की अति मीठी दृष्टि से मेरे अंदर देह अभिमान के कारण जो कड़वाहट आ गई थी वो अब बिल्कुल समाप्त हो गई है और मैं स्वयं को विशेष रूहानी स्नेह और प्यार की मिठास से भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाप समान बहुत - बहुत मीठा बन कर अब मैं साकारी दुनिया में वापिस लौट रहा हूँ। *बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर मैं सारे विश्व में चक्कर लगा रहा हूँ और अपने रूहानी स्नेह के वायब्रेशन सारे विश्व मे चारों और फैला रहा हूँ*। मैं देख रहा हूँ रूहानी स्नेह के वायब्रेशन से लोंगो के हृदय परिवर्तन हो रहें हैं। जिस हृदय में एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या - द्वेष और नफरत के भाव थे, वो भाव आपसी स्नेह में परिवर्तित हो रहें हैं। *सभी एक दो को मीठी दृष्टि से देख रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नफरत की दुनिया स्नेह की एक सुंदर दुनिया बन गई है*।

 

 _ ➳  सभी आत्माओं के एक दूसरे के प्रति अति मीठे व्यवहार को देखता हुआ, प्रसन्नचित मुद्रा में मैं फ़रिशता अब साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में आ कर विराजमान हो जाता हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं स्थित हूँ और अपने मीठे बाबा के प्यार की मिठास से स्वयं को भरपूर करके, उस मिठास से भरपूर वायब्रेशन, अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को देते हुए, उनके जीवन को भी मैं मिठास से भर रही हूँ*। मेरी मीठी दृष्टि पा कर सभी आत्माओं की दृष्टि, वृति भी परिवर्तित हो गई है। सभी एक दो को सच्चा रूहानी स्नेह और प्यार दे कर, एक दो के जीवन में खुशियां भर रहें हैं 

 

 _ ➳  *सबको आत्मा भाई - भाई की मीठी दृष्टि से देखते हुए, अपने मधुर व्यवहार और मीठे बोल से सबको संतुष्ट करने वाली सन्तुष्ट मणि आत्मा बन मैं अपने मीठे बाबा और सर्व आत्माओं की दुआयों की पात्र आत्मा बन गई हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व के दिल का प्यार प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं न्यारी और प्यारी आत्मा हूँ।*

   *मैं निःसंकल्प आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा "बाबा" शब्द की चाबी को सदा सम्भाल कर रखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा "बाबा" शब्द की चाबी से सर्व खज़ाने प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं सहज योगी और सम्पन्न आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *लेकिन श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का आधार है -’’श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म।'' चाहे ट्रस्टी आत्मा हो, चाहे सेवाधारी आत्मा हो, दोनों इसी आधार द्वारा नम्बर ले सकते हैं। दोनों को फुल अथार्टी है - भाग्य बनाने की। जो बनाने चाहें, जितना बनाना चाहें बना सकते हैं।* संगमयुग पर वरदाता द्वारा ड्रामा अनुसार समय को वरदान मिला हुआ है। जो चाहे वह श्रेष्ठ भाग्यवान बन सकता है। ब्रह्माकुमार-कुमारी बनना अर्थात् जन्म से भाग्य ले ही आते हो। जन्मते ही भाग्य का सितारा सर्व के मस्तक पर चमकता हुआ है। यह तो ‘जन्म-सिद्ध' अधिकार हो गया। ब्राह्मण माना ही - ‘भाग्यवान'।

✺ *"ड्रिल :- ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति का अनुभव करना।*"

➳ _ ➳ *अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृतियों का सिमरन करती हुई मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन अपने प्यारे बाबा के पास...* और बाबा की गोदी में बैठ जाती हूँ... बाबा की गोदी के झूले में झूलती हुई अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करती हूँ... बाबा के कोमल स्पर्श से मुझ आत्मा में अलौकिक शक्तियों का संचार हो रहा है... मैं आत्मा देहभान से न्यारी हो रही हूँ... मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... बाबा से एक होकर एकरस स्थिति में स्थित हो रही हूँ...

➳ _ ➳ मैं आत्मा सर्व प्रकार के बोझ से मुक्त होकर हलकी हो रही हूँ... *सर्व बन्धनों से मुक्त होकर डबल लाइट फरिश्ता स्थिति में स्थित हो रही हूँ...* बाबा से निकलती दिव्य किरणों को अपने में ग्रहण कर रही हूँ... सर्व गुण, शक्तियों के खजानों से भरपूर हो रही हूँ... मैं आत्मा अपने मस्तक पर चमकते हुए भाग्य के सितारे को देख स्व-चिन्तन करती हूँ...

➳ _ ➳ कितना प्यारा है मेरा बाबा जिसने मुझे भाग्य बनाने की अथार्टी ही दे दी... *जितना चाहे जैसे चाहे मैं आत्मा अपना भाग्य बना सकती हूँ... अपने भाग्य की लम्बी लकीर खींच सकती हूँ...* कितनी ही श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ मैं जो स्वयं भगवान ने आकर मुझे शूद्र से ब्राहमण बना दिया... रावण के चंगुल से छुडाकर राम का बना दिया... ब्राह्मण जन्म लेते ही मुझ आत्मा के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक गया...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा संगमयुग पर वरदाता द्वारा समय को मिले वरदान का सदुपयोग कर वरदान को सिद्ध कर रही हूँ... अब मैं आत्मा अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर स्थित रहकर श्रेष्ठ संकल्पों के द्वारा श्रेष्ठ कर्म कर अपना श्रेष्ठ भाग्य बना रही हूँ... *मैं ब्राह्मण आत्मा ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार श्रेष्ठ भाग्यवान स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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