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 15 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सब कुछ बाप को सरेंडर कर पुण्यात्मा बने ?*

 

➢➢ *मुरली में लापरवाह तो नहीं रहे ?*

 

➢➢ *निश्चय के आधार पर विजयी रतन बनकर रहे ?*

 

➢➢ *निस्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  सर्व प्राप्ति, सर्व साधन होते हुए भी साधनों में नहीं आओ, साधना में रहो। *साधन होते हुए भी त्याग वृत्ति में रहो तब थोड़े समय में अनेक आत्माओं का भाग्य बना सकेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं राजयुक्त आत्मा हूँ"*

 

  सदा इस ब्रह्मण-जीचन में राजयुक्त, योगयुक्त और युक्तियुक्त तीनों ही विशेषतायें अपने को अनुभव करते हो? *ज्ञान के सब राज बुद्धि में स्पष्ट स्मृति में रहे - इसको कहते हैं 'राजयुक्त' और सदा रचना बाप को याद रखना - इसको कहते हैं 'योगयुक्त'। तो जो ज्ञानी और योगी आत्मा है - उसके हर कर्म स्वत: युक्तियुक्त होते हैं। युक्तियुक्त अर्थात सदा यर्थाथ श्रेष्ठ कर्म।*

 

  कोई भी कर्म रुपी बीज फल के सिवाए नहीं होता। उनके संकल्प भी युक्तियुक्त होंगे। जिस समय जो संकल्प चाहिए वही होगा। ऐसे नहीं - यह सोचना तो नहीं चाहिए था लेकिन सोच चलता ही रहा। इसे युक्तियुक्त नहीं कहेंगे। *जो युक्तियुक्त होगा वह जिस समय जो संकल्प, वाणी या कर्म चाहे - वह कर सकेगा। ऐसे नहीं - यह करना नहीं चाहता था, हो गया। तो जो राजयुक्त, योगयुक्त होगा उसकी निशानी वह 'युक्तियुक्त' होगा।* तो वह निशानी सदा दिखाई देती है?

 

  *अगर कभी-कभी दिखाई देती तो राज्य-भाग्य भी कभी-कभी मिल जायेगा, सदा नहीं मिलेगा। लेने में तो कहते हो- सदा चाहिए और करने में कभी-कभी। ऐसे नहीं करना। अभी परिवर्तन करके जाओ। कभी-कभी की लाइन में, सदा वाली लाइन में आ जाओ।* जब जान लिया अनुभव कर लिया कि अच्छे-अच्छी बीज है तो अच्छी बीज को छोड़ कोई घटिया चीज क्यों लेंगे। तो अविनाशी खान पर आकर लेने में कमी नहीं करना। लेना है तो पूरा लेना है। दाता के भण्डारे भरपूर हैं, जितना भी लो अखुट है। तो अखुट खजाने में मालिक बनो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जिसका अपनी आवश्यक और समीप की चेतन शक्तियों, संकल्पों और बुद्धि अथवा मन और बुद्धि पर कन्ट्रोल नहीं, अधिकार नहीं या विजय नहीं तो क्या, विश्व के अधिकारी व विजयी रत्न बन सकता है? *जिस राज्य के मुख्य अधिकारी अपने अधिकार में न हो, क्या वह राज्य अटल, अखण्ड और निर्विघ्न चल सकता है?* यह मन और बुद्धि आप आत्मा की समीप शक्तियाँ व मुख्य राज्य अधिकारी हैं, यदि वह भी वश में नहीं, तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? महान विजयी या महान कमजोर?

 

✧   *तो अपने आपको देखे कि क्या मेरे मुख्य राज्य - अधिकारी, मेरे अधिकार में हैं?* अगर नहीं, तो विश्वराज्य अधिकारी अथवा राजन कैसे बनेंगे? अपने ही छोटो- छोटे कार्यकर्ता अपने को धोखा दें, तो क्या ऐसे को महावीर कहा जायेगा? चैलेन्ज तो करते हो, कि हम लाँ और आँर्डर सम्पन्न राज्य स्थापित कर रहे हैं?

 

✧  तो चैलेन्ज करने वाले के यह छोटे - छोटे कार्यकर्ता अर्थात कर्मेन्द्रियाँ अपने ही लाँ और आँर्डर में नहीं और वे स्वयं ही कार्यकर्ता के वशीभूत हो तो क्या ऐसे वे विश्व में लाँ और आँर्डर स्थापित कर सकते हें? हर कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक अपने अधिकार में हैं? यह चेक करो और अभी से विजयी - पन के संस्कार धारण करो। *बापदादा का नाम बाला करने वाले ही बाप समान सम्पन्न होते हैं।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जितना लास्ट स्टेज अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जायेगी उतना आवाज से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति हो। इसी अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आहवान कर सकेंगे। यह पावरफुल स्थिति 'विश्व-कल्याणकारी स्थिति' कही जाती है।* जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा सब चीजें समीप अनुभव होती जाती हैं - दूर की आवाज टेलीफोन के साधन द्वारा समीप सुनने में आती है, टी.वी. द्वारा दूर का दृश्य समीप दिखाई देता है, ऐसे ही साइलेन्स की स्टेज द्वारा कितने भी दूर रहती हुई आत्मा को सन्देश पहुँचा सकते हो? *वो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में सम्मुख किसी ने सन्देश दिया है। दूर बैठे हुए भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के दर्शन और प्रभु के चरित्रों के दृश्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख देख रहे हैं। संकल्प के द्वारा दिखाई देगा अर्थात् आवाज से परे संकल्प की सिद्धि का पार्ट बजायेंगे। लेकिन इस सिद्धि की विधि ज्यादा-से-ज्यादा अपने शान्त स्वरूप में स्थित होना है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि का योग नर्क से निकाल देना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा पतंग अपना डोर मीठे बाबा के हाथों में देकर बेफिक्र होकर आसमान में उड़ रही हूँ... जब से मीठे बाबा के हाथों में अपना डोर थमाया है मैं आत्मा सर्व बन्धनों से न्यारी और प्यारे बाबा की प्यारी बन गई हूँ...* इस पुरानी दुनिया से अपने सारे बंधन, देहधारियों के हाथों में फंसे सारे मोह रूपी डोर तोडकर बंधनमुक्त होकर... ऊपर उड़ते हुए प्यारे बाबा के पास प्यारे वतन में पहुँच जाती हूँ...

 

   *संगमयुग के पुरुषार्थ से नई दुनिया में राजाई पद पाने का ज्ञान देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... अब इस दुनिया का अंत बहुत करीब है... *इस खत्म हुई सी दुनिया से मन बुद्धि को निकाल मीठे बाबा की मीठी यादो में लगाओ... इस वरदानी संगमयुग में ये मीठी यादे सतयुगी सुखो से दामन सजायेंगी... और सुखो भरी राजाई दिलाएंगी...”*

 

_ ➳  *अब घर जाना है की स्मृति से एक बाबा की यादों में समाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा इस दुखो से भरी दुनिया से न्यारी होकर ईश्वरीय यादो में धनवान् बनती जा रही हूँ... *मीठे संगम पर मीठे बाबा संग यादो में झूम रही हूँ और श्रेष्ठ संस्कारो को स्वयं में भरती जा रही हूँ...”*

 

   *इस धरा से उठाकर धूल से मस्तक मणि जगमगाता सितारा बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... स्वयं को देह समझ देह की मिटटी में मटमैले हो गए हो... खुबसूरत सितारे हो यह पूरी तरह से भूल गए हो... *अब इस खत्म सी खाली दुनिया से और दिल न लगाओ... नई सुखो भरी खुबसूरत दुनिया में चलने के प्रयासों में जुट जाओ...”*

 

_ ➳  *नई दुनिया के नजारों को अपनी आँखों में बसाकर स्नेह सागर में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा इस दुखदायी दुनिया से उपराम होकर आपकी मीठी यादो में दिव्य गुणो को धारण कर शक्तिशाली बनती जा रही हूँ...  देवताओ जैसा रूप रंग पाती जा रही हूँ...* सुखो भरे स्वर्ग के लायक बनती जा रही हूँ...

 

   *पुरानी दुनिया के संस्कारों को मिटाकर नई दुनिया में चलने के लिए नए संस्कारों को धारण कराते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *यह संगमयुग ही सच्ची कमाई का युग है... हर पल हर साँस संकल्प को ईश्वर पिता की यादो में डुबो दो... यह यादे ही सच्ची कमाई बन जाएँगी...* दिव्य गुणो से शक्तियो से सजा कर देवताओ सा सजायेंगी.... और मीठे सुखो और आनन्द से भरपूर दुनिया में राज भाग्य दिलाएंगी...

 

_ ➳  *स्नेह सागर की यादों में दिव्य गुणों से सजकर बेनूर से कोहिनूर बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा संगम युग में पुरानी सी विनाशी दुनिया की हर बात से किनारा कर उज्ज्वल भविष्य की तैयारियों में जुटी हूँ...* सतयुगी दुनिया में ऊँच पद पाकर शान से मुस्कराने के मीठे प्रयत्नों में प्रतिपल जुटी हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मुरली कभी भी मिस नही करनी है*"

 

_ ➳  अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को जो मुझे हर रोज मुरली के माध्यम से प्राप्त होती है। जिसमे लिखे एक - एक शब्द में मेरे शिव प्रीतम का मेरे प्रति अथाह प्रेम समाया होता है, उस प्रेम भरी पाति को पढ़ कर मैं आत्मा सजनी अपने शिव प्रीतम के प्रेम की गहराई में डूबती जा रही हूँ। *मुरली के एक - एक शब्द में अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। बाबा की मीठी याद प्रेम की मीठी मीठी फुहारों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसती हुई महसूस हो रही है जो मुझे एक बहुत ही न्यारी और प्यारी अवस्था की अनुभूति करवा रही है। *यह न्यारी और प्यारी अवस्था मुझे देह और देह की दुनिया के हर लगाव से मुक्त कर रही है*।

 

_ ➳  देह और देह की दुनिया के आकर्षण से मुक्त, अशरीरी स्थिति में मैं स्थित होती जा रही हूँ। इस स्थिति में स्थित होते ही मेरे शिव पिता परमात्मा का प्रेम चुम्बक की तरह मुझे अपनी ओर खींच रहा है। *अपने शिव प्रीतम के प्रेम की लग्न में मग्न हो कर मैं आत्मा सजनी विदेही बन, अपनी इस नश्वर देह का परित्याग कर चल पड़ी उनसे मिलने उनके ही धाम, परमधाम की ओर*। परमधाम से अपने ऊपर पड़ रही अपने शिव प्रीतम के प्रेम की मीठी - मीठी फुहारों का आनन्द लेती हुई मैं साकार लोक और सूक्ष्म लोक को पार करके, अब पहुंच गई अपने शिव परम पिता परमात्मा के पास उनके निराकारी लोक में।

 

_ ➳  अब मैं स्वयं को आत्माओ की एक ऐसी निराकारी दुनिया मे देख रही हूँ जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही। *हर तरफ चमकते हुए सितारे दिखाई दे रहें हैं और उन सभी चमकते सितारों के बीच मे एक चमकता हुआ ज्योतिपुंज अपनी सर्वशक्तियों से पूरे परमधाम को प्रकाशित करता हुआ दिखाई दे रहा हैं*। उस ज्योतिपुंज शिव परम पिता परमात्मा से निकलने वाली अनन्त किरणों का प्रकाश आत्मा को तृप्त कर रहा है। *उस प्रकाश में सातों गुण और अष्ट शक्तियों का समावेश है जो शक्तिशाली वायब्रेशन के रूप में पूरे परमधाम में फैल रहा है*। ये शक्तिशाली वायब्रेशन आत्मा को उसके ओरिजनल स्वरूप के स्थित करके उसे गहन सुख, शांति की अनुभूति करवा रहें हैं।

 

_ ➳  अपने शिव प्रीतम के सानिध्य में बैठ, उनके प्रेम से, उनके गुणों और उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं आत्माओं की निराकारी दुनिया से नीचे आकर, फ़रिशतो की आकारी दुनिया मे प्रवेश कर रही हूँ। *अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को उनके ही मुख कमल से सुनने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर पहुंच जाती हूँ उनके सम्मुख*। मेरे बिल्कुल सामने मेरे प्रीतम शिव बाबा अपने अव्यक्त आकारी रथ ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान है। *ब्रह्मा मुख कमल से मेरे शिव साजन मीठे मधुर महावाक्य उच्चारण करते हुए, मुझ आत्मा सजनी से मीठी रूह - रिहान करते हुए अपनी प्रेम भरी दृष्टि से मुझे निहार रहें हैं*।

 

_ ➳  अपनी मीठी मधुर दृष्टि से मुझे भरपूर करके अब मेरे शिव प्रीतम ब्रह्मा मुख कमल द्वारा उच्चारित प्रेम भरे मधुर महावाक्यों को मुरली के रूप में मुझे भेंट कर अपने धाम लौट रहे हैं। *मैं आत्मा अपने प्यारे शिव परम पिता परमात्मा की उस प्रेम भरी पाति को अपने साथ लिए अब वापिस अपनी साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ*। अपने निराकार स्वरूप में अब मैं आत्मा अपने साकारी तन में प्रवेश कर रही हूँ और फिर से अपने अकाल तख्त पर आकर विराजमान हो गई हूँ।

 

_ ➳  अपने शिव प्रीतम की प्रेम भरी पाति को अब हर रोज मुरली के माध्यम से पढ़ कर, स्वयं को उनके प्रेम से भरपूर कर मैं आनन्द विभोर हो जाती हूँ। *मुरली में लिखे मेरे शिव प्रीतम के मधुर महावाक्य मुझे माया के हर तूफान से लड़ने का बल देते हैं*। अपने शिव प्रीतम के प्रेम पत्र मुरली को अपने दिल से लगाये, उनके प्रेम में खोई मैं हर बात से जैसे उपराम हो गई हूँ और इसी उपराम स्थिति ने मुझे मायाजीत बना दिया है।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं निश्चय की आधारमूर्त आत्मा हूँ।*

   *मैं विजय रत्न आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व के प्रति मास्टर सहारा दाता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा निस्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा करती हूँ  ।*

   *मैं सफलता मूर्त आत्मा हूँ  ।*

   *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ऐसे जानने वाले से अवगुण को न जानने वाले बहुत अच्छे हैं। ब्राह्मण परिवार में आपस में ऐसी आत्माओं को हँसी में ‘बुद्धू' समझ लेते हैं। आपस में कहते हो ना कि तुम तो बुद्धू हो। कुछ जानते नहीं हो। लेकिन इस बात में बुद्धू बनना अच्छा है। *न अवगुण देखेंगे न धारण करेंगे, न वाणी द्वारा वर्णन कर परचिन्तन करने की लिस्ट में आयेंगे। अवगुण तो किचड़ा है ना। अगर देखते भी हो तो मास्टर ज्ञान सूर्य बन किचड़े को जलाने की शक्ति है, तो शुभ-चिन्तक बनो। बुद्धि में जरा भी किचड़ा होगा तो शुद्ध बाप की याद टिक नहीं सकेगी।* प्राप्ति कर नहीं सकेंगे। गन्दगी को धारण करने की एक बार अगर आदत डाल दी तो बार-बार बुद्धि गन्दगी की तरफ न चाहते भी जाती रहेगी। और रिजल्ट क्या होगी? वह नैचुरल संस्कार बन जायेंगे। फिर उन संस्कारों को परिवर्तन करने में मेहनत और समय लग जाता है। दूसरे का अवगुण वर्णन करना अर्थात् स्वयं भी परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत होना है। लेकिन यह समझते नहीं हो - दूसरे की कमज़ोरी वर्णन करना, अपने समाने की शक्ति की कमज़ोरी जाहिर करना है। किसी भी आत्मा को सदा गुणमूर्त से देखो।

✺ *"ड्रिल :- दूसरे के अवगुण का वर्णन कर स्वयं परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत न होना*"

➳ _ ➳ *इस भीड़ भरी दुनिया में अकेले बैठी हुई मुझ आत्मा को अपने साजन से मिलन मनाने की इच्छा जाग्रत होती है...* मैं आत्मा अपने मन उपवन में अपने साजन से मिलन मनाने साजन को निमंत्रण भेजती हूँ... मैं आत्मा साजन के आने की तैयारियां करती हूँ... मेरे मन उपवन में देखती हूँ अवगुण रूपी काँटों की झाड़ियाँ भरी हुई है... किचड़ा भरा हुआ है... मैं आत्मा कई जन्मों से परचिन्तन कर, दूसरों के अवगुणों का वाणी द्वारा वर्णन कर गन्दगी को धारण करने की आदत डाल ली थी... इसको अपना नैचुरल संस्कार बना ली थी... और परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत हो गई थी...

➳ _ ➳ मेरे उपवन में अपने साजन को बिठाने का, मिलन मनाने का जगह ही नहीं है... *मेरा साजन जो कि परम पवित्र है, गुणों का सागर है, जिसकी महिमा अपरम्पार है, उसको इस गन्दगी में नहीं बिठा सकती...* मैं आत्मा तुरंत ज्ञान सूर्य बाबा का आह्वान करती हूँ... ज्ञान सूर्य से निकलती ज्वाला रूपी किरणें मुझ पर पड़ रही हैं... ज्ञान सूर्य की किरणों से सारा किचड़ा भस्म हो रहा है... अवगुण रूपी काँटों की झाड़ियाँ योग अग्नि में जलकर भस्म हो रही हैं... सारी गंदगी समाप्त हो रही है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा गुण, शक्तियों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सूर्य बन किचड़े को जलाने की शक्ति को ग्रहण कर रही हूँ... अब मैं आत्मा न अवगुण देखती हूँ, न धारण करती हूँ... मैं आत्मा समाने की शक्ति को धारण कर सबके अवगुणों को समा लेती हूँ... बिल्कुल भी वर्णन नहीं करती... *अब मैं आत्मा दूसरे के अवगुण का वर्णन कर स्वयं परचिन्तन के अवगुण के वशीभूत नहीं होती हूँ...* मैं आत्मा दिव्य गुणधारी बन सबके गुणों को ही देखती हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं आत्मा अपने मन उपवन को, अपने साजन को सदा के लिए बिठाने लायक बना दी हूँ... अब मुझ आत्मा का मन उपवन मधुबन बन गया है... *मैं आत्मा अपने मन मधुबन को रंग-बिरंगी गुण-शक्तियों की फूल मालाओं से सजा रही हूँ... अब मेरा मन मधुबन ज्ञान-योग की रूहानी खुशबू से भर गया है...* मैं आत्मा रूहे गुलाब बन अपने दिलरुबा साजन को बुलाती हूँ... दिलाराम बाबा के आते ही उनकी बाँहों में समा जाती हूँ... अपने साजन के हाथों में हाथ डाल अपने मन मधुबन में सैर करती हूँ... उनकी यादों में खो जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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