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 13 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *साफ़ दिल बन एक बाप की याद से सब हिसाब किताब चुक्तु किये ?*

 

➢➢ *"ड्रामा में होगा तो कर लेंगे" - यह कहकर पुरुषार्थ हीन तो नहीं बने ?*

 

➢➢ *हर संकल्प व कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाया ?*

 

➢➢ *ख़ुशी का दान किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  समय की समीपता के प्रमाण अभी सच्चे तपस्वी बनो। *आपकी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य।* अभी चारों ओर पावरफुल तपस्या करनी है, *जो तपस्या मन्सा सेवा के निमित्त बनें, ऐसी पावरफुल सेवा अभी तपस्या द्वारा शुरू करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाली आत्मा हूँ"*

 

  अपने को रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाला अनुभव करते हो? *सुनते थे कि दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है लेकिन अभी अनुभवी बन गये। रूहानी दृष्टि से सृष्टि बदल गई ना! अभी आपके लिए बाप संसार है, तो सृष्टि बदल गई।* पहले की सृष्टि अर्थात् संसार और अभी के संसार में फर्क हो गया ना! पहले संसार में बुद्धि भटकती थी और अभी बाप ही संसार हो गया। तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया, एकाग्र हो गई। क्योंकि पहले की जीवन में, कभी देह के सम्बन्ध में, कभी देह के पदार्थ में - अनेकों में बुद्धि जाती थी। अभी यह सब बदल गया। अभी देह याद रहती या देही?

 

  अगर देह में कभी बुद्धि जाती है तो रांग समझते हो ना! फिर बदल लेते हो, देह के बजाय अपने को देही समझने का अभ्यास करते हो। तो संसार बदल गया ना! स्वयं भी बदल गये। बाप ही संसार है या अभी संसार में कुछ रहा हुआ है? विनाशी धन या विनाशी सम्बन्ध के तरफ बुद्धि तो नहीं जाती? *अभी मेरा रहा ही नहीं। 'मेरे पास बहुत धन है' - यह संकल्प या स्वप्न में भी नहीं होगा क्योंकि सब बाप के हवाले कर दिया। मेरे को तेरा बना लिया ना! या मेरा, मेरा ही है और बाप का भी मेरा है।* ऐसे तो नहीं समझते? यह विनाशी तन-धन, पुराना मन, मेरा नहीं, बाप को दे दिया।

 

  *पहला-पहला परिवर्तन होने का संकल्प ही यह किया कि सब कुछ तेरा और तेरा कहने से ही फायदा है। इसमें बाप का फायदा नहीं है, आपका फायदा है। क्योंकि मेरा कहने से फंसते हो, तेरा कहने से न्यारे हो जाते हो। मेरा कहने से बोझ वाले बन जाते हो और तेरा कहने से डबल लाइट 'ट्रस्टी' बन जाते हो।* तो क्या अच्छा है - हल्का बनना अच्छा है या भारी बनना अच्छा है? आजकल के जमाने में शरीर से भी कोई भारी होता तो अच्छा नहीं लगता। सभी अपने को हल्का करने का प्रयत्न करते हैं। क्योंकि भारी होना माना नुकसान है और हल्का होने से फायदा है। ऐसे ही मेरा-मेरा कहने से बुद्धि पर बोझ पड़ जाता है, तेरा-तेरा कहने से बुद्धि हल्की बन जाती है। जब तक हल्के नहीं बने तब तक ऊँची स्थिति तक पहुँच नहीं सकते। उड़ती कला ही आनन्द की अनुभूति कराने वाली है। हल्का रहने में ही मजा है।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को एक सेकण्ड में जैसे और जहाँ करना चाहें वहाँ कर सकते हैं, अधिकार है न उन पर? *ऐसे बुद्धि के ऊपर और संकल्पों के ऊपर भी अधिकारी बने हो?* फुलस्टाँप करना चाहो तो कर सको क्या ऐसा अभ्यास है?

 

✧  विस्तार में जाने के बजाय एक सेकण्ड में फुलस्टाँप हो जाये ऐसी स्थिति समझते हो? जैसे ड्राइविंग का लाइसेन्स लेने जाते हैं तो जानबूझ कर भी उनसे तेज स्पीड करा के फिर फुलस्टाँप कराते हैं व ब्रेक कराते हैं। यह भी प्रैक्टिस है ना? *तो अपनी बुद्धि को चलाने और ठहराने की भी प्रैक्टिस करनी है।*

 

✧   *कमाल तब कहेंगे जब ऐसे समय पर एक सेकण्ड में स्टाँप हो जायें।* निरंतर विजयी वह जिसके युक्ति - युक्त संकल्प व युक्ति - युक्त बोल व युक्ति - युक्त कर्म हो या जिसका एक संकल्प व्यर्थ न हो। वह तब होगा जब यह प्रैक्टिस होगी मानो कोई ऐसी सर्विस है जिसमें फूल विजयी होना होता है तो ऐसे समय भी स्टाँप करने का अभ्यास करो।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ ऐसा अभ्यास करो जो जहाँ बुद्धि को लगाना चाहे वहाँ स्थित हो जायें। संकल्प किया और स्थित हुआ। यह रूहानी डिल सदैव बुद्धि द्वारा करते रहो। *अभी-अभी परमधाम निवासी, अभी-अभी सूक्ष्म अव्यक्त फरिश्ता बन जायें और अभी-अभी साकार कर्मन्द्रियों का आधार लेकर कर्मयोगी बन जायें। इसको कहा जाता है - संकल्प शक्ति को कण्ट्रोल करना।* संकल्प को रचा कहेंगे और आप उसके रचयिता हो। जितना समय जो संकल्प चाहिए उतना ही समय वह चले। जहाँ बुद्धि लगाना चाहे, वहाँ ही लगे। इसको कहा जाता है - अधिकारी। *यह प्रेक्टिस अभी कम है। और चेक करो कि जितना समय निश्चित किया, क्या उतना समय वह स्टेज रही?*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अमृतवेले एक बाप को प्यार से याद करना"*

 

_ ➳  *'अमृतवेला शुद्ध पवन है, मेरे लाडले जागो’- ये आवाज़ सुन मैं आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ... सामने दोनों हाथों को फैलाए बापदादा मुस्कुराते हुए खड़े हैं... स्वयं भगवान मुझे जगाने आया है...* मैं आत्मा प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कह उनकी बाहों में समा जाती हूँ... रूहानी बाबा, मुझे अपनी गोदी में उठाकर रूहानी यात्रा कराते हैं... *मीठे बाबा मुझ पर भरपूर प्यार और वरदानों को बरसाते हुए अमृत पान कराते हैं...*

 

  *मुझे अपनी यादों के आँचल में बसाते हुए प्यारे-प्यारे बाबा कहते हैं:- मेरे मीठे फूल बच्चे... *ये ईश्वरीय यादो के सच्चे दिन सच्ची कमाई करने के है... इन मीठे पलों को दृढता से यादो में लगाओ...* भले ही कितने तूफान विपरीत से आये पर निडर हो निर्भय हो सदा आगे बढ़ते रहो... *अमृतवेले बरसते हुए अमृत का रसपान करो और शक्तिशाली बन जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा के हाथों अमृत का रस पान करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अमृतवेले उठकर आपकी यादो की चाँदनी में निखर रही हूँ उजली धवल सी चमक रही हूँ...* माया के हर वार को पहचान कर शक्तिशाली बन अथक हो रही हूँ... और यादो में गहरे भीग रही हूँ...

 

  *मेरे हर श्वांस को सफल कर मुझे मालामाल करते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सांसो के हर तार को ईश्वरीय यादो से जोड़ दो... यह सच्चे प्यार का सच्चा नाता ही सुखो की नींव है... *इसलिए अपनी कमाई पर प्रतिपल नजर रखो... बाते तो आएँगी और चली भी जाएँगी समझदार और अथक बन बढ़ते ही रहो... अमृतवेले यादो में बैठ रोम रोम को तृप्त कर लो...”*

 

_ ➳  *जहाँ की सारी खुशियों को अपने दिल में समेटते हुए मैं खुशनसीब आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा देह की दुनिया की हर बात से उपराम हो मीठी यादो में खो रही हूँ... *तीव्र पुरुषार्थी होकर हर पल को ईश्वर पिता संग जी रही हूँ... अमृतवेले बाबा से अथाह प्यार पाकर पुलकित हो उठी हूँ... और मुस्कराती हुई लक्ष्य को पाती जा रही हूँ...”*

 

  *अमृतवेले के अमूल्य पलों को मेरे मन में बसाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब ईश्वर पिता का साया सर पर है तो माया से डरो नही... ईश्वरीय प्यार में थको नही... *अमृतवेले मीठी यादो में सच्चा सुकून पा लो... जनमो के थके से मन को सुख की अनुभूतियों में तरोताजा करो...* दिव्य गुण और शक्तियो से सम्पन्न बन मुस्करा उठो...

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमात्म प्यार की अनुभूतियों को अपने मन में समाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा अमृतवेले की मीठी यादो में अमरता को पाती जा रही हूँ... और शक्तिशाली बन हर कदम पर सफलता को पाती जा रही हूँ...* मीठे बाबा की यादो में हर साँस संकल्प को पिरोती जा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरुषार्थ कर अपनी भविष्य कमाई में लग जाना है*

 

_ ➳  एकान्त में बैठ, बाबा द्वारा मिली ड्रामा की नॉलेज को स्मृति में लाकर, उस पर मन्थन करते हुए मैं विचार कर रही हूँ कि बाबा ने ड्रामा का जो राज हम बच्चों को समझाया है अगर उसे यथार्थ रीति जानकर, उस ज्ञान को ब्राह्मण जीवन मे धारण किया जाए तो कोई भी ब्राह्मण आत्मा कभी भी अपने इस बहुमूल्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के बेहतरीन अनुभवों से वंचित नही रह सकती। *ब्राह्मण बनकर भी अगर ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव आत्मा को नही हो रहा तो स्पष्ट सी बात है कि ड्रामा को यथार्थ रीति जाना ही नही। कितनी बदनसीब है वो ब्राह्मण आत्मायें जो ये सोच कर पुरुषार्थ ही नही करना चाहती कि मेरा तो ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है और कितनी महान सौभाग्यशाली है वो आत्मायें जो समय और परिस्थिति के अनुसार ड्रामा के ज्ञान को ढाल बनाकर उसे यथार्थ रीति यूज़ कर अपने तीव्र पुरुषार्थ से अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बना रही हैं*।

 

_ ➳  मन ही मन यह विचार सागर मंथन करते हुए अपने आप से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अपने इस सर्वश्रेष्ठ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का अनुभव करने के लिए और जन्म जन्मांतर की अपनी ऊँच प्रालब्ध बनाने के लिए मैं अपने पुरुषार्थ पर पूरा ध्यान दूँगी। *"ड्रामा में होगा तो हो जायेगा" यह कहकर कभी भी थककर बैठूँगी नही, बल्कि उचित समय पर ड्रामा के ज्ञान को यथार्थ रीति यूज़ कर, बीती को बीती कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर आगे बढ़ने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर करती रहूँगी*। इसी दृढ़ संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ अपने पुरुषार्थ को सदा सहज और मेहनत से मुक्त बनाने का बल स्वयं में भरने के लिए अपने प्यारे पिता के पास जाने की अति सहज यात्रा पर चलने के लिए अपने मन और बुद्धि को मैं एकाग्र कर लेती हूँ और स्वयं को अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित कर लेती हूँ।

 

_ ➳  आत्मिक स्मृति में स्थित होकर, स्वयं को देह से डिटैच करके, अपने गुणों और शक्तियों का अनुभव करते हुए थोड़ी देर के लिए मैं अपने अति सुंदर स्वरूप में खोकर उसका आनन्द लेने में तल्लीन हो जाती हूँ। *भूल जाती हूँ नश्वर देह और देह से जुड़ी सभी बातों को। केवल एक ही स्मृति कि मैं आत्मा हूँ, महान आत्मा हूँ, विशेष आत्मा हूँ, परमात्मा की संतान हूँ, मेरे सर्व सम्बन्ध केवल उस एक मेरे पिता परमात्मा के साथ हैं। इस सृष्टि पर मैं केवल पार्ट बजाने आई हूँ। अब ये पार्ट पूरा हुआ और मुझे वापिस अपने पिता के पास जाना है* इन्ही संकल्पो के साथ मैं आत्मा, एक चमकता हुआ सितारा अब देह से बाहर निकलती हूँ और चल पड़ती हूँ उनके पास उनकी निराकारी दुनिया उस पार वतन में जहाँ प्रकृति के पांचो तत्वों की कोई हलचल नही। 

 

_ ➳  मन बुद्धि के विमान पर बैठ कर, आत्माओं की उस सुन्दर दुनिया में जो मेरा परमधाम घर हैं, जहाँ मेरे पिता रहते हैं उस निर्वाणधाम घर में अब मैं पहुँच चुकी हूँ। चारों और फैले अनन्त लाल प्रकाश को मैं देख रही हूँ। *एक सुंदर लालिमा चारों और बिखरी हुई है जो मन को सुकून दे रही हैं। एक ऐसा गहन सुकून जिससे मैं आत्मा आज दिन तक अनजान थी, वो सुकून, वो शांति, वो सुख पाकर मैं आत्मा जैसे तृप्त हो गई हूँ। मन में अपने पिता से मिलने की आश तीव्र होती जा रही है। अपने प्यारे पिता से मिलकर जन्म  जन्मांतर से उनसे बिछुड़ने की प्यास बुझाने के लिए अब मैं उनके पास जा रही हूँ*। अपने सामने मैं देख रही हूँ सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर, महाज्योति अपने प्यारे पिता को जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। बिना एक पल भी व्यर्थ गवांए अपने पिता की किरणों रूपी बाहों में मैं जाकर समा जाती हूँ।

 

_ ➳  उनकी बाहों में समाकर मैं ऐसा महसूस कर रही हूँ जैसे सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी लहरों में मैं डुबकी लगा रही हूँ। मेरे शिव पिता से रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे झरने की फुहारों की तरह निरन्तर मुझ पर बरस रही है और मुझे असीम सुख, शांति का अनुभव करवाने के साथ - साथ, मुझ में असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली भी बना रही हैं। *स्वयं को सर्वशक्तिसम्पन्न बना कर अब मैं फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ। अपने साकारी शरीर मे विराजमान हो कर ड्रामा के राज को यथार्थ रीति स्मृति में रखकर केवल अपने पुरुषार्थ द्वारा अपनी ऊँच प्रालब्ध बनाने पर अब मैं अपना पूरा ध्यान दे रही हूँ*। कोई संदेह, कोई भी प्रश्न अब मेरे मन मे नही हैं। त्रिकालदर्शी बन ड्रामा की हर एक्ट को साक्षी होकर देखते हुए, अपने पुरुषार्थ को ड्रामा के ऊपर ना छोड़ कर, पूरी लगन के साथ भविष्य ऊँच प्रालब्ध बनाने के लिए अब मैं तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर संकल्प वा कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं ज्ञान स्वरूप आत्मा हूँ।*

   *मैं समझदार आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं ब्राह्मण जीवन जीने वाली आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव खुशी स्वरूप हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा खुशी का दान करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  *तीसरी अनुभूति- ऐसी समान आत्मा अर्थात् एवररेडी आत्मा - साकारी दुनिया और साकारी शरीर में होते हुए भी बुद्धियोग की शक्ति द्वारा सदा ऐसा अनुभव करेगी कि मैं आत्मा चाहे सूक्ष्मवतन में, चाहे मूलवतन में, वहाँ ही बाप के साथ रहती हूँ। सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी हो कर्मयोगी बन कर्म का पार्ट बजाने वाली हूँ लेकिन अनेक बार अपने को बाप के साथ सूक्ष्मवतन और मूलवतन में रहने का अनुभव करेंगे।* फुर्सत मिली और सूक्ष्मवतन व मूलवतन में चले गये। ऐसे सूक्ष्मवतन वासी, मूलवतनवासी की अनुभूति करेंगे जैसे कार्य से फुर्सत मिलने के बाद घर में चले जाते हैं। दफ्तर का काम पूरा किया तो घर में जायेंगे वा दफ्तर में ही बैठे रहेंगे! ऐसे एवररेडी आत्मा बार-बार अपने को अपने घर के निवासी अनुभव करेंगी। जैसे कि घर सामने खड़ा है। *अभी-अभी यहाँ, अभी-अभी वहाँ। साकारी वतन के कमरे से निकल मूलवतन के कमरे में चले गये।*

 

✺  *"ड्रिल :- सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी होने का अनुभव करना”*

 

_ ➳  *“बाबा बुला रहे हैं बच्चों वतन में आओ, अब मुझको न बुलाओ तुम मेरे पास आओ”... ये गीत सुनते ही मैं आत्मा ऊपर खींची चली जा रही हूँ...* प्यारे बाबा दोनों हाथों को फैलाए मुझे वतन में बुला रहे हैं... मन-बुद्धि के तार बाबा से जुड़ते ही मुझ आत्मा का स्थूल शरीर गायब हो रहा है... मैं आत्मा सूक्ष्म शरीर धारण कर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... *जहाँ ब्रह्मा बाबा के तन में शिव बाबा ऐसे लग रहे हैं जैसे हीरे की डिब्बी में हीरा चमक रहा हो...*

 

_ ➳  *सुप्रीम हीरे से दिव्य किरणों की बौछारें मुझ पर पड़ रही हैं... एक-एक किरण मुझ आत्मा के एक-एक विकार को भस्म कर रहा है...* सभी अवगुणों, कमी-कमजोरियों, विकारों से मुक्त होकर मैं आत्मा हलकी हो रही हूँ... फरिश्ते समान डबल लाइट हो गई हूँ... मैं आत्मा बेदाग हीरा बन रही हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन से भी ऊपर उड रही हूँ... फरिश्ते का ड्रेस लोप हो रहा है... मैं आत्मा धीरे-धीरे बिंदु बन रही हूँ... *बिंदु बन मैं आत्मा बिंदु बाबा के साथ ऊपर उड़ते हुए मूलवतन पहुँच जाती हूँ...* सुप्रीम बिंदु से एक हो जाती हूँ... एक होते ही बाबा से गुण, शक्तियां मुझमें ट्रान्सफर हो रही हैं... *मैं आत्मा सर्व प्राप्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव कर रही हूँ...*

 

_ ➳  अब मुझ आत्मा को पूरी सृष्टि ही अपना घर लग रहा है... मैं आत्मा बेहद के घर में रह रही हूँ... मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ कि मैं अब तीन कमरे के घर में रह रही हूँ... *साकारी वतन के कमरे में कर्मयोगी बन कर्म करती हूँ... फिर सेकंड में सूक्ष्मवतन के कमरे में बापदादा के पास पहुंच जाती हूँ और सेकंड में मूलवतन के कमरे में बिंदु बाबा के पास चले जाती हूँ...* मैं आत्मा हर कर्म बाबा के साथ से करती हूँ फिर बाबा के साथ अपने वतन पहुँच जाती हूँ...

 

_ ➳  अब मैं आत्मा अपने घर जाने के लिए सदा एवररेडी रहती हूँ... *जब चाहे तब मैं आत्मा अपने बुद्धियोग की शक्ति द्वारा कहीं भी जा सकती हूँ...* मैं आत्मा साकार वतन में सिर्फ कर्म करने आती हूँ... यहाँ की किसी वस्तु, व्यक्ति, वैभव में अपना मन नहीं लगाती हूँ... इस देह से भी मैं आत्मा डिटैच रहती हूँ... ये देह सिर्फ कर्म करने का साधन है... *अब मैं आत्मा एवररेडी बन सेकण्ड में सूक्ष्मवतन वासी, सेकण्ड में मूलवतनवासी, सेकण्ड में साकार वतन वासी होने का अनुभव कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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