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 06 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सवेरे अमृतवेले उठकर बाप से मीठी मीठी बातें की ?*

 

➢➢ *अपनी दृष्टि बहुत पवित्र बनायी ?*

 

➢➢ *हर संकल्प, समय, वृत्ति और कर्म द्वारा सेवा की ?*

 

➢➢ *अपनी रूहानी पर्सनालिटी को स्मृति में रख मायाजीत स्थिति का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती वा अनुभव होती है। वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे।* हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? ब्राह्मणों को सदा ऊंचे ते ऊंची चोटी पर दिखाते हैं। चोटी का अर्थ ही है ऊंचा। *तो संगमयुगी अर्थात् ऊंचे ते ऊंची आत्मायें। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा गाया हुआ है, ऐसे बच्चे भी ऊंचे और संगमयुग भी ऊंचा है। सारे कल्प में संगमयुग जैसा ऊंचा कोई युग नहीं है क्योंकि इस युग में ही बाप और बच्चों का मिलना होता है।* और कोई युग में आत्मा और परमात्मा का मेला नहीं होता है।

 

  तो जहाँ आत्मा और परमात्मा का मेला है, वही श्रेष्ठ युग हुआ ना। ऐसे श्रेष्ठ युग की श्रेष्ठ आत्मायें हो! आप श्रेष्ठ ब्राह्मणों का कार्य क्या है? *ब्राह्मणों का काम है - पढ़ना और पढ़ाना। नामधारी ब्राह्मण भी शास्त्र पढ़ेंगे और दूसरों को सुनायेंगे। तो आप ब्राह्मणों का काम है ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ना और पढ़ाना जिससे ईश्वर के बन जाएं।*

 

  तो ऐसे करते हो? पढ़ते भी हो और पढ़ाते अर्थात् सेवा भी करते हो। *यह ईश्वरीय ज्ञान देना ही ईश्वरीय सेवा है। सेवा का सदा ही मेवा मिलता है। कहावत है ना - 'करो सेवा तो मिले मेवा'। तो ईश्वरीय सेवा करने से अतीन्द्रिय सुख का मेवा मिलता है, शक्तियों का मेवा मिलता है, खुशी का मेवा मिलता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  जैसै एक सेकण्ड में स्विच आँन और आँफ किया जाता हे, ऐसे ही एक सेकण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? *अभी - अभी शरीर में आये फिर अभी - अभी अशरीरी बन गये, यह प्रैक्टीस करनी है।* इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। ऐसे अनुभव होगा जब चाहे कोई कैसा वस्त्र धारण करना वा न करना यह अपने हाथ में रहेगा। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो शरीर से अलग हो गये। एसे अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो।

  

✧  कर्म करते हुए भी अनुभव ऐसा ही होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर और कार्य कर रहे हैं। कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए। *शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते - फिरते भी अनुभव होना है।* जैसे कोई प्रैक्टिस  हो जाती है ना। लेकिन यह प्रैक्टिस किनको हो सकती है?

     

✧  जो शरीर के साथ वा शरीर के संबन्ध में जो भी बातें है, शरीर की दुनिया, संबन्ध वा अनेक जो भी वस्तुएँ है उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, जरा भी लगाव नहीं होगा तब न्यारे हो सकेंगे। *अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्का - पन नहीं है, डिटैच नहीं हो सकते तो न्यारापन का अनुभव नहीं कर सकेंगे।* तो अब महारथियों को यह प्रैक्टिस करनी है। बिल्कुल ही न्यारापन का अनुभव हो। इसी स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से न्यारे - पन का अनुभव होगा, लह भी महसूस करेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे प्रकृति के पांच रूप विकराल रूप धारण करेंगे, वैसे ही पांच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप  धारण कर अन्तिम वार अति सूक्ष्म रूप में ट्रायल करेंगे अर्थात् माया और प्रकृति दोनों ही अपना फुल फोर्स का अन्तिम दाव लगायेंगे।* जैसे किसी भी स्थूल युद्ध में भी अन्तिम दृश्य हास पैदा करने वाला होता है और हिम्मत बढ़ाने वाला भी होता है, ऐसे ही कमजोर आत्माओं के लिए भी हास पैदा करने वाला दृश्य होगा - मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के लिए वह हिम्मत और हुल्लास देने वाला दृश्य होगा।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- कांटे से फूल बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा फूलों के सुन्दर बगीचे में बैठ रंग-बिरंगे फूलों को देख मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... रंग-बिरंगे फूलों पर बैठ रंग-बिरंगी तितलियाँ भी मुस्कुरा रही हैं... चारों ओर का वातावरण भी सुगन्धित फूलों की खुशबू से महक उठा है...* जन्म-जन्मान्तर से मुझ आत्मा में चुभे हुए विकारों रूपी काँटों को निकाल मुझे भी खुशबूदार फूल बनाने वाले मीठे बागबान बाबा का आह्वान करती हूँ... फूलों को देखते हुए प्यारे बाबा मुझसे रूह-रिहान करते हैं...

 

  *मुझ पर फूलों की बारिश कर रूहानी सुगंध भरते हुए प्यारे बागबान बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... अब दुखदायी कांटे क्रोध को छोड़ मीठे बाबा संग मधुरता के पर्याय बनो... और *अपने दिव्य गुणो की खुशबु से सबके जीवन में खुशियो के फूल खिलाओ... सारे विश्व को अपनी ईश्वरीय दिव्यता पवित्रता का मुरीद बना आओ...”*

 

_ ➳  *फूलों की रानी बन चारों ओर अपनी रूहानियत को फैलाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आप संग मिलकर तो पारस हो गई हूँ... *हर दिल आत्मा को आपसे पाये मीठे प्यार और गुणो की झलक दिखा रही हूँ... कौन मुझे मिला है और किसने इतना खुबसूरत फूल मुझे बनाया है... यह खुशबु पूरे जहान में फैला रही हूँ...”*

 

  *उमंगो के पंख लगाकर मेरे मन में खुशियों के पुष्प बरसाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... महान भाग्य को पाकर ईश्वर पुत्र जो बन गए हो तो बाप समान स्वरूप की अदा सारे विश्व में दिखाओ... *सबको प्रेम वर्षा से सिंचित कर रूहानियत के फूल खिला आओ... ईश्वरीय छत्रछाया में विकारो से मुक्त होकर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... प्यार के मोती सबके दामन में सजा आओ...”*

 

_ ➳  *विकारों से मुक्त होकर देवताई गुणों के सौंदर्य से महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में तो क्रोध के जहरीले कांटे से मीठा महकता प्यार का फूल बन गई हूँ... *हर दिल को दुखो से दूर कर ईश्वरीय प्यार से सींचने वाली ज्ञान गंगा बन मुस्करा रही हूँ... रूहानी गुलाब बन चारो ओर खुशबु फैला रही हूँ...”*

 

  *स्नेह प्यार की मीठी रिमझिम कर मुझे पावनता से सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विश्व पिता के प्यार भरी छाँव में रूखेपन को छोड़ रूहानियत से भर जाओ... *मीठे पिता की यादो के सुनहरे संग में स्वयं को निखार कर अपने निखरे स्वरूप की झलक से सबके दुःख दूर करने वाले दुखहर्ता बन जाओ... सच्चे सच्चे फूल बन मुस्कराओ...”*

 

_ ➳  *खुशियों के रंगों से अपने बेरंग जीवन को सजाकर आनंद के सागर में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जो कभी मिठास क्या होता है... सच्चा प्रेम क्या होता है जानती ही न थी... *आज ईश्वरीय यादो में कितना प्यारा मीठा महकता फूल बन मुस्करा रही हूँ... सुख का पर्याय बन पूरे विश्व में सुख की लहर फैला रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अशरीरी बनने का अभ्यास करना है*

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता के मधुर महावाक्यों को स्मृति में लाकर मैं एकांत में बैठ उन पर विचार सागर मंथन करते हुए, इस नश्वर देह और देह से जुड़े सम्बन्धों के बारे में चिंतन करते, अपने आप से ही सवाल करती हूँ कि जिस देह और देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, देह के पदार्थो के पीछे आज तक मैं भागती रही, उनसे मुझे क्या मिला! सिवाय दुख और अशांति के और कुछ भी इनसे मुझे प्राप्त नही हुआ। *लेकिन मेरे प्यारे बाबा ने आकर मुझे एक ही सेकण्ड में उस अविनाशी सुख और शांति को पाने का कितना सहज रास्ता बता दिया। शरीर मे होते सब से तैलुक तोड़ अशरीरी बनने का अनुभव कितना निराला कितना सुखदाई है*। सेकेण्ड में मन को सुकून और शांति देने वाला है। जिस विनाशी देह और दुनियावी सम्बन्धो में मैं रस ढूंढ रही थी उनमें कोई सार है ही नही। ये सारा संसार ही असार संसार है। *अगर सार है तो केवल अपने स्वरूप में स्थित हो अशरीरी बन अपने प्यारे पिता की याद में है*। इसलिए इस शरीर में होते हुए भी अब मुझे सबसे तैलुक तोड़, अशरीरी बनने का पुरुषार्थ निरन्तर करना है।

 

_ ➳  मन ही मन इस संकल्प को दृढ़ता का ठप्पा लगा कर अब मैं सभी बातों से अपने मन और बुद्धि को हटाती हूँ और अपने ध्यान को एकाग्र करके अशरीरी बनने का अभ्यास करती हूँ। *शरीर के सभी अंगों से धीरे - धीरे चेतना को समेट कर अपने ध्यान को अपने स्वरूप पर एकाग्र करते ही मैं स्वयं को बोडिलेस अनुभव करने लगती हूँ। स्वयं को मैं इतना रिलेक्स अनुभव कर रही हूँ कि लगता है जैसे मैं देह में हूँ ही नही*। भृकुटि के बीच चमकती एक अति सूक्ष्म ज्योति को मैं देख रही हूँ जो बहुत ही प्रकाशवान है। देह से न्यारे अपने इस अति सूक्ष्म, सुन्दर स्वरूप को देख, इसके अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे आनन्दविभोर कर रहा है। *अपने इस स्वरूप से अनजान मैं आत्मा आज अपने इस सत्य स्वरुप का अनुभव करके तृप्त हो गई हूँ*।

 

_ ➳  मन ही मन अपने प्यारे पिता का मैं शुक्रिया अदा कर रही हूँ जिन्होंने आकर मेरे इस अति सुन्दर स्वरूप की पहचान मुझे दी। *सबसे तैलुक तोड़ अशरीरी बन अपने इस सुंदर स्वरूप को देखने और अनुभव करने का सहज तरीका यह राजयोग मुझे सिखलाकर मेरे प्यारे पिता ने मेरे जीवन को सुखमय, शांतिमय और आनन्दमय बना दिया*। अपने प्यारे बाबा का बारम्बार धन्यवाद करते हुए अब मैं अशरीरी आत्मा नश्वर देह का भी आधार छोड़ उससे बाहर निकलती हूँ और देह से पूरी तरह अलग हो कर, अपने जड़ शरीर को अपने सामने पड़ा हुआ मैं देख रही हूँ किन्तु उससे अब कोई भी अटैचमेंट मुझे महसूस नही हो रही। *साक्षी हो कर मैं उसे देख रही हूँ और धीरे - धीरे उससे दूर होती जा रही हूँ। ऊपर आकाश की ओर अब मैं उड़ रही हूँ और अपने प्यारे बाबा के पास उनके धाम जा रही हूँ*।

 

_ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो के आकर्षण से मुक्त होकर, निरन्तर ऊपर की ओर उड़ते हुए मैं आकाश को पार करती हूँ और उससे भी परें सूक्ष्म लोक को पार कर पहुँच जाती हूँ आत्माओं की उस निराकारी दुनिया मे जहाँ मेरे मीठे शिवबाबा रहते हैं। *लाल प्रकाश से प्रकाशित, चैतन्य सितारों से सजे अपने स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन मीठी शांति का अनुभव कर रही हूँ*। मेरे पिता मेरे बिल्कुल सामने है। उनसे मिलन मनाकर मैं असीम तृप्ति का अनुभव कर रही हूँ। बड़े प्यार से अपने पिता के सुंदर मनमोहक स्वरूप को निहारते हुए मैं धीरे - धीरे उनके समीप जा रही हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समा कर उनके अथाह निस्वार्थ प्यार से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। 

 

_ ➳  प्यार के सागर अपने प्यारे बाबा के प्रेम की गहराई में खोकर मैं उनके बिल्कुल समीप होती जा रही हूँ। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं बाबा में समाकर बाबा का ही रूप बन गई हूँ। *यह समीपता मेरे अंदर मेरे प्यारे पिता की सर्वशक्तियों का बल भरकर मुझे असीम शक्तिशाली बना रही है*। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज अनुभव कर रही हूँ।  सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर अब मैं फिर से कर्म करने के लिए अपने कर्मक्षेत्र पर लौट आती हूँ। फिर से देह रूपी रथ पर विराजमान होकर शरीर निर्वाह अर्थ हर कर्म अब मैं कर रही हूँ किन्तु इस स्मृति में स्थित होकर कि मैं देह से न्यारी हूँ। *ईश्वरीय सेवा अर्थ मैंने ये शरीर रूपी चोला धारण किया है बुद्धि में यह धारण कर, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करने के लिए देह में आना और फिर कर्म करके देह में होते भी, देह से न्यारे अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर, अशरीरी हो जाना, यह अभ्यास अब मैं घड़ी - घड़ी करती रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर संकल्प, समय, वृति और कर्म द्वारा सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं निरन्तर सेवाधारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अपनी रूहानी पर्सनैलिटी को सदा स्मृति में रखती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा मायाजीत हूँ  ।*

   *मैं रूहानियत से चमकने वाली मायाजीत आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  सदा सुख की शैय्या पर सोई हुई आत्मा के लिए यह विकार भी छत्रछाया बन जाता हैं -दुश्मन बदल सेवाधारी बन जाते हैं। *अपना चित्र देखा है ना! तो शेष शय्या' नहीं लेकिन सुख-शय्या'। सदा सुखी और शान्त की निशानी है - सदा हर्षित रहना। सुलझी हुई आत्मा का स्वरूप सदा हर्षित रहेगा। उलझी हुई आत्मा कभी हर्षित नहीं देखेंगे। उसका सदा खोया हुआ चेहरा दिखाई देगा* और वह सब कुछ पाया हुआ चेहरा दिखाई देगा। जब कोई चीज खो जाती है तो उलझन की निशानी क्यों, क्या, कैसे ही होता है। तो रूहानी स्थिति में भी जो भी पवित्रता को खोता है, उसके अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन होती है। तो समझा कैसे चेक करना है? *सुख-शांति के प्राप्ति स्वरूप के आधार पर मंसा पवित्रता को चेक करो।*

 

✺  *"ड्रिल :- सदा सुख की शैय्या पर सोये हुए अनुभव करना*”

 

_ ➳  *"अमृतवेला शुद्ध पवन है, मेरे लाडले जागो..."  मीठे बाबा की मीठी आवाज़ सुन मैं जाग जाती हूँ...* अमृतवेले अमृत पिलाने के लिए मीठे बाबा मुझे जगा रहे हैं... मैं प्यारे बाबा को गुड मॉर्निंग कहकर उनकी गोदी में बैठ जाती हूँ... मेरी लाडली शहजादी कहकर बाबा मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हैं... मैं आत्मा रूहानी खिवैया की गोदी में बैठकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ... *रूहानी खिवैया ने विषय सागर में डोलती हुई मेरे जीवन रूपी नैया को मझधार से निकालकर किनारे पर लगा दिया है...*

 

_ ➳  अब बाबा ही मेरे जीवन के दाता हैं... मेरे सांसो के स्वामी हैं... अब मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार बाबा के हाथों सौंपती हूँ... *प्यारे बाबा ने ज्ञान अमृत पिलाकर नया ब्राह्मण जन्म दिया है... सर्व गुण, शक्तियों के खजाने दिए हैं... विकारों रूपी विष को खत्म कर पवित्रता की शक्ति दी है...* सर्व गुण सम्पन्न, 16 कलाओं से सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी बनाकर स्वर्ग सुखों का अविनाशी वरदान दिया है...

 

_ ➳  *प्यारे बाबा मुझे प्यार से अपनी गोदी में उठाकर ले चलते हैं परमधाम...* परमधाम में मैं आत्मा अपने बाबा में समाकर उनसे एक हो जाती हूँ... मैं आत्मा सर्व गुणों, शक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ... अखूट खजानों की मालिक बन रही हूँ... *पवित्रता के सागर में डुबकी लगाकर मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बन रही हूँ...* पवित्रता की शक्ति से मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म दग्ध हो रहे हैं...

 

_ ➳  *पवित्रता की शक्ति को धारण करने से मुझ आत्मा के अन्दर क्यों, क्या और कैसे की उलझन समाप्त हो रही है...* मैं आत्मा सदा सुख-शांति की अनुभूति कर रही हूँ... सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सबकुछ पाकर सदा हर्षित रहती हूँ... *अब मैं आत्मा उलझन की शय्या से निकल सदा सुख की शय्या पर रहती हूँ...*

 

_ ➳  *सदा सुख की शय्या पर रहने से मुझ आत्मा के विकार भी छत्रछाया बन गए हैं...* दुश्मन भी बदलकर सेवाधारी बन गए हैं... जिस परमात्मा को जन्म-जन्म से ढूंढ रही थी उसने मुझे ढूंढकर अपना बना लिया... सर्व अधिकार देकर सर्व खजानों से सम्पन्न बना दिया... मेरे प्यारे बाबा मुझे उलझन और काँटों की शय्या से निकाल अपनी गोदी की सुख की शय्या पर सुलाते हैं... *प्यारे बाबा मुझ आत्मा को 21 जन्मों का वर्सा देकर 21 जन्म तक सदा सुख की शय्या का वरदान देते हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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