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❍ 08 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इस पुरानी देह और पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रखा ?*
➢➢ *कोई भी कर्तव्य बाप के डायरेक्शन के विरुद्ध तो नहीं किया ?*
➢➢ *अपनी रूहानी लाइट्स द्वारा वायुमंडल को परिवर्तन करने की सेवा की ?*
➢➢ *व्यर्थ बातों में समय और संकल्प तो नहीं गंवाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जैसे वह तपस्वी सदैव आसन पर बैठते हैं, ऐसे आप अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो तब सिंहासन मिलेगा।* आपकी हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्म-अभिमानी की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं हिम्मत से बाप की मदद प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ *हिम्मते बच्चे मददे बाप। बच्चों की हिम्मत पर सदा बाप की मदद पद्मगुणा प्राप्त होती है। बोझ तो बाप के ऊपर है। लेकिन ट्रस्टी बन सदा बाप की याद से आगे बढ़ते रहो। बाप की याद ही छत्रछाया है।* पिछला हिसाब सूली है लेकिन बाप की मदद से काँटा बन जाता है।
〰✧ *परिस्थितियाँ आनी जरूर हैं क्योंकि सब कुछ यहाँ ही चुक्तु करना है। लेकिन बाप की मदद काँटा बना देती है, बड़ी बात को छोटा बना देती है क्योंकि बड़ा बाप साथ है। सदा निश्चय से आगे बढ़ते रहो। हर कदम में ट्रस्टी। ट्रस्टी अर्थात् सब कुछ तेरा, मेरा-पन समाप्त।*
〰✧ *गृहस्थी अर्थात् मेरा। तेरा होगा तो बड़ी बात, छोटी हो जायेगी और मेरा होगा तो छोटी बात, बड़ी हो जायेगी। तेरा-पन हल्का बनाता है और मेरा-पन भारी बनाता है।* तो जब भी भारी अनुभव करो तो चेक करो कि कहाँ मेरा-पन तो नहीं? मेरे को तेरे में बदली कर दो तो उसी घड़ी हल्के हो जायेंगे, सारा बोझ एक सेकेण्ड में समाप्त हो जायेगा।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ शुरू में सभी साक्षात्कार हुए है। *फरिश्ते रूप में सम्पूर्ण स्टेज और पुरुषार्थी स्टेज दोनों अलग - अलग अनुभव थे।* जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा का अलग - अलग साक्षात्कार होता था, वैसे अनन्य बच्चों के साक्षात्कार भी होंगे।
〰✧ हंगामा जब होगा तो साकार शरीर द्वारा तो कुछ कर नहीं सकेंगे और प्रभाव भी इस सर्वीस से पडेगा। जैसे शुरू में भी साक्षात्कार से ही प्रभाव हुआ ना। परोक्ष - अपरोक्ष अनुभव से प्रभाव डाला। वैसे अन्त में भी यही सर्वीस होनी है। *अपने सम्पूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार अपने आप को होता है?*
〰✧ अभी शक्तियों को पुकारना शुरू हो गया है। अभी परमात्मा को कम पुकारते है, शक्तियों की पुकार तेज रफ्तार से चालू हो गई है। तो ऐसी प्रैक्टिस बीच - बीच में करनी है। *आदत पड जाने से फिर बहुत आनंद फील होगा।* एक सेकण्ड में आत्मा शरीर से न्यारी हो जायेगी, प्रैक्टिस हो जायेगी। अभी यही पुरुषार्थ करना है। अच्छा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *रूहानी गुलाब जो सदा अपने रूहानियत की स्थिति में स्थित रहते हुए सर्व को भी रूहानियत की दृष्टि से देखने वाले, सदा मस्तकमणि को देखने वाले हैं।* साथ-साथ अपनी रूहानियत की स्थिति से सदा अर्थात् हर समय सर्व आत्माओं को अपनी स्मृति, दृष्टि और वृत्ति से रूहानी बनाने के शुभ संकल्पों में रहने वाले *अर्थात् हर समय योगी तू आत्मा सेवाधारी आत्मा हो कर चलने वाले* - ऐसे रूहानी गुलाब चारों ओर फुलवारी के बीच बहुत थोड़े कही कही देखे।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर चमकती हुए मणि इस देह से निकलकर पहुँच जाती हूँ वतन में... पारसनाथ बाबा के पास... पारसनाथ बाबा के हाथों से निकलती सुनहरी किरणों से मुझ आत्मा के लौह समान विकारी संस्कार... सुनहरे दिव्य संस्कारों में परिवर्तित हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा, मुझ अविनाशी आत्मा की झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहे हैं...
❉ *प्यारे ज्ञान सागर बाबा ज्ञान की लहरों में मुझे लहराते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो... और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ...* ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक-एक ज्ञान रत्न को संजोकर दूसरों की झोली भरते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ... और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान की रोशनी से मेरे जीवन को जगमगाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो... ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते रहो...* और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार कर आनंद मगन होकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ...* सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सौभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...”
❉ *ज्ञान संजीवनी की खुशबू से मुझ आत्मा को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बैठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर जाओ... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर दो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल होकर औरों पर भी ज्ञान धन लुटाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... *मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ... मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस पुरानी देह और पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रखना है*"
➳ _ ➳ देह और देह की यह झूठी दुनिया जिसमे बुद्धि को फंसा कर आज दिन तक सिवाय दुख और अशांति के कुछ प्राप्त नही हुआ ऐसी नश्वर दुनिया से वैराग्य रख उसे बुद्धि से भूल अपने मन बुद्धि को शन्ति, प्रेम, सुख, ज्ञान, शक्ति, आनन्द और पवित्रता के सागर अपने शिव पिता परमात्मा पर एकाग्र करना ही राजयोग है जो सच्चे सुख और शान्ति को पाने का एकमात्र उपाय है। *इसी चिंतन के साथ इस असार संसार की नश्वरता का विचार मन मे आते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरा मन इस बेहद की दुनिया से वैरागी होने लगा है*। इस असार संसार मे होते हुए भी जैसे मैं इसमें नही हूँ।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं केवल अपने लाइट स्वरूप में, एक चमकते हुए चैतन्य सितारे के रूप में देख रही हूँ और अनुभव कर रही हूँ कि *मेरा घर यह नश्वर दुनिया नही बल्कि 5 तत्वों से बनी इस दुनिया से परे, तारामंडल से भी परें, फ़रिश्तों की दुनिया के पार अनन्त प्रकाश की अति सुंदर दुनिया परमधाम हैं*। उस प्रकाश की दुनिया में अपने शिव पिता परमात्मा के साथ मैं रहने वाली हूँ। इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं केवल पार्ट बजाने के लिए ही तो आई हूँ। हर आत्मा यहां इस बेहद की दुनिया मे आ कर ड्रामा प्लैन अनुसार अपना पार्ट ही तो बजा रही है।
➳ _ ➳ ड्रामा के इस अति गुह्य राज को स्मृति में रख इन सभी के पार्ट को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूँ। साक्षीदृष्टा की यह अवस्था मुझे इस बेहद की दुनिया से वैराग्य दिला रही है। *बुद्धि से इस दुनिया को भूल, अपनी अति सुंदर निराकारी दुनिया को स्मृति में लाकर अब मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ इस बेहद की दुनिया से किनारा कर प्रकाश की उस अति उज्ज्वल दुनिया की ओर जा रही हूँ*। स्वीट साइलेन्स होम की स्मृति मात्र से ही मेरे अंदर जैसे शक्ति भरने लगी है जो मुझे लाइट और माइट स्वरुप में स्थित कर, ऊपर की ओर ले जा रही है। हर प्रकार के बन्धन से मुक्त हल्के हो कर उड़ते हुए असीम आनन्द का अनुभव करते - करते आकाश मण्डल को मैं पार कर जाती हूँ।
➳ _ ➳ आकाश को पार कर, सफेद प्रकाश की दुनिया सूक्ष्म लोक को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ अति दिव्य, अलौकिक लाल प्रकाश से प्रकाशित अपने स्वीट साइलेन्स होम शान्तिधाम में। *शान्ति की इस दुनिया मे पहुंचते ही गहन शांति की अनुभूति में मैं खो जाती हूँ और हर संकल्प, विकल्प से परें एक अति न्यारी और प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित हो जाती हूँ*। संकल्पो से रहित इस अति प्यारी अवस्था में मेरा सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने सामने विराजमान मेरे शिव पिता की ओर है। मुझे केवल मेरा चमकता हुआ ज्योति बिंदु स्वरूप और अपने शिव पिता परमात्मा का अनन्त प्रकाशमय महाज्योति स्वरूप दिखाई दे रहा है।
➳ _ ➳ इस अतिशय प्यारी निरसंकल्प स्थिति में स्थित मैं आत्मा महाज्योति अपने शिव बाबा से आ रही अनन्त शक्तियों की किरणें को स्वयं में समाहित कर शक्तिसम्पन्न स्वरूप बनती जा रही हूँ। *शिव बाबा से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणे मुझ आत्मा में समाहित होकर मेरे अंदर निहित सातों गुणों को विकसित कर रही हैं*। देह अभिमान में आ कर, अपने सतोगुणी स्वरूप को भूल चुकी मैं आत्मा अपने एक - एक गुण को पुनः प्राप्त कर फिर से अपने सतोगुणी स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ हर गुण, हर शक्ति से मैं स्वयं को सम्पन्न बना कर वापिस देह की दुनिया में कर्म करने के लिए लौट रही हूँ। अपनी देह में पुनः भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं विराजमान हूँ। *बाबा के साथ सदा कम्बाइन्ड रहकर अपने गुणों और सर्वशक्तियों को सदा इमर्ज रखते हुए अब मैं साक्षीदृष्टा बन इस बेहद की दुनिया में अपना पार्ट बजा रही हूँ*। इस दुनिया मे स्वयं को मेहमान समझ इसमें रहते हुए बुद्धि से अब मैं इसे भूलती जा रही हूँ। *इस बेहद की दुनिया से बेहद की वैराग्य वृति रख, अपने शिव पिता पर अपनी बुद्धि को सदा एकाग्र रखते हुए, उनकी याद में रहते केवल निमित बन अब मैं हर कर्तव्य कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी रूहानी लाइट्स द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सहज सफलतामूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा व्यर्थ बातों में समय और संकल्प गवाने से सदा मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं सम्पूर्ण पवित्र आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ चलते फिरते, बैठते, बातचीत करते पहली अनुभूति- यह शरीर जो हिसाबकिताब के वृक्ष का मूल तना है जिससे यह शाखायें प्रकट होती हैं, यह देह और आत्मा रूपी बीज, दोनों ही बिल्कुल अलग हैं। ऐसे आत्मा न्यारेपन का चलते फिरते बार-बार अनुभव करेंगे। नालेज के हिसाब से नहीं कि आत्मा और शरीर अलग हैं। लेकिन शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ! यह अलग वस्तु की अनुभूति हो। *जैसे स्थूल शरीर के वस्त्र और वस्त्र धारण करने वाला शरीर अलग अनुभव होता है ऐसे मुझ आत्मा का यह शरीर वस्त्र है, मैं वस्त्र धारण करने वाली आत्मा हूँ। ऐसा स्पष्ट अनुभव हो। जब चाहे इस देह भान रूपी वस्त्र को धारण करें, जब चाहे इस वस्त्र से न्यारे अर्थात् देहभान से न्यारे स्थिति में स्थित हो जायें। ऐसा न्यारेपन का अनुभव होता है?* वस्त्र को मैं धारण करता हूँ या वस्त्र मुझे धारण करता है?चैतन्य कौन? मालिक कौन? तो एक निशानी - ‘न्यारेपन की अनुभूति'। अलग होना नहीं है लेकिन मैं हूँ ही अलग।
✺ *"ड्रिल :- 'शरीर से अलग मैं आत्मा हूँ' - ऐसा स्पष्ट अनुभव करना*”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठकर व्यर्थ संकल्पों की बहती हुई बाढ़ से किनारा कर मन के अंतर्द्वार खोलकर अन्दर प्रवेश करती हूँ...* चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा है... मैं आत्मा और अन्दर अंतर्मन की गहराईयों में प्रवेश करती हूँ... अंतर्मन के अँधेरे कमरे में एक बुझती-जगती हुई, टिमटिमाती हुई लाइट दिखाई दे रही है... *इस लाइट के चारों ओर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, देह अभिमान, कई जन्मों के विकर्म और विकारों रूपी राक्षस इस दीपक के घृत को पी रहे थे...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा इन राक्षसों से निपटने प्यारे बाबा को बुलाती हूँ... प्यारे बाबा तुरंत आ जाते हैं... बाबा का हाथ पकड़ मैं आत्मा अंतर्मन में प्रवेश करती हूँ... प्यारे बाबा के हाथों से शक्तिशाली किरणें निकल रही हैं... प्यारे बाबा की याद की शक्ति रूपी किरणों से इन सभी राक्षसों का खात्मा हो रहा है... *देह का भान, देह के बंधन, देह के पदार्थ, पुराने स्वभाव-संस्कार, सभी कमी-कमजोरियां भस्म होकर राख बन रही हैं... योग की तेज हवाएं इस राख को भी बाहर फेंक रही हैं...*
➳ _ ➳ अब मीठे बाबा इस दीपक में ज्ञान का घृत डालते हैं... *ज्ञान के घृत से टिमटिमाता हुआ दिया जगमगाता हुआ जलने लगता है...* अंतर्मन का कमरा चारों ओर से प्रकाशित हो रहा है... ये जगमगाता हुआ चैतन्य दीपक मैं आत्मा हूँ... *अब मुझ आत्मा के अंतर्मन में कोई भी किचड़ा नहीं है... पूरा कमरा बिल्कुल साफ़ हो चुका है... ज्ञान, योग से प्रकाशित हो चुका है...*
➳ _ ➳ *सर्व बंधनों से मुक्त मैं आत्मा इस देह की मालिक हूँ...* इस देह रूपी वस्त्र को धारण कर मैं आत्मा सर्व कर्म कर रही हूँ... *इस विनाशी देह में रहकर अपना पार्ट बजाने वाली मैं अविनाशी आत्मा हूँ...* मैं तो एक अशरीरी आत्मा हूँ... इस शरीर को धारण कर कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करती हूँ... ये मन, बुद्धि भी मुझ आत्मा के ही सूक्ष्म शक्तियां हैं... मैं आत्मा अज्ञानता वश इनके अधीन होकर दुखी हो गई थी... अब मैं आत्मा इनको अपने अधीन कर जैसा चाहे वैसा कर्म करा रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ कि मैं इस देह से बिल्कुल अलग हूँ...* मैं आत्मा जब चाहे तब इस शरीर रूपी वस्त्र को धारण कर सकती हूँ... जब चाहे तब इस शरीर रूपी वस्त्र को छोडकर कहीं भी जा सकती हूँ... मैं आत्मा जब चाहे तब इस शरीर से डिटैच होकर न्यारेपन का अनुभव करती हूँ... *अब मैं आत्मा चलते-फिरते सदा इसी न्यारेपन की स्थिति में स्थित रहती हूँ कि मैं ये शरीर नहीं बल्कि देहरूपी वस्त्र धारण करने वाली चैतन्य आत्मा हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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