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❍ 28 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपने आप को देखा की हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण समान बन सकते हैं ?*
➢➢ *सवेरे सवेरे प्रेम से बाप को याद किया ?*
➢➢ *रूहानी शक्ति को हर कर्म में यूज़ किया ?*
➢➢ *सत्यता की विशेषता द्वारा ख़ुशी और शक्ति की अनुभूति करवाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अभी चारों ओर साधना का वायुमण्डल बनाओ। *समय समीप के प्रमाण अभी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य। सेकंड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो, एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर लो, इसको कहा जाता है-साधना।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं होली हँस हूँ"*
〰✧ अपने को होली हंस समझते हो? होलीहंस का विशेष कर्म क्या है? (हरेक ने सुनाया) जो विशेषताएं सुनाई वह प्रैक्टिकल में कर्म में आती हैं? क्योंकि सिवाए आप ब्राह्मणों के होलीहंस और कौन हो सकता है? *इसलिए फलक से कहो। जैसे बाप सदा ही प्योर हैं, सदा सर्वशक्तियां कर्म में लाते हैं, ऐसे ही आप होलीहंस भी सर्वशक्तियां प्रैक्टिकल में लाने वाले और सदा पवित्र हैं। थे और सदा रहेंगे। तीनों ही काल याद है ना?* बापदादा बच्चों का अनेक बार बजाया हुआ पार्ट देख हर्षित होते हैं। इसलिए मुश्किल नहीं लगता है ना।
〰✧ मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कभी मुश्किल शब्द स्वपन में भी नहीं आ सकता। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में मुश्किल अक्षर है? कहाँ छोटे अक्षरों में तो नहीं है? माया के भी नालेजफुल हो गये हो ना? जहाँ फुल है वहाँ फेल नहीं हो सकते। फेल होने का कारण क्या होता है? जानते हुए भी फेल क्यों होते हो? अगर कोई जानता भी हो और फेल भी होता है तो उसे क्या कहेंगे? *कोई भी बात होती है तो फेल होने का कारण है कि कोई न कोई बात फील कर लेते हो। फीलिंग फ्लू हो जाता है। और फ्लू क्या करता है - पता है? कमजोर कर देता है। उससे बात छोटी होती है लेकिन बड़ी बन जाती है तो अभी फुल बनो। फेल नहीं होना है, पास होना है। जो भी बात होती है उसे पास करते चलो तो पास विथ ऑनर हो जायेंगे। तो पास करना है, पास होना है और पास रहना है।*
〰✧ *जब फलक से कहते हो कि बापदादा से जितना मेरा प्यार है उतना और किसी का नहीं है। तो जब प्यार है तो पास रहना है या दूर रहना है? तो पास रहना है और पास होना है।* यू.के. वाले तो बापदादा की सर्व आशाओंको पूर्ण करने वाले हो ना। सबसे नम्बरवन बाप की शुभ आशा कौन सी है? खास यू.के. वालों के लिए कह रहे हैं। बड़े बड़े माइक लाने हैं। जो बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनें और बाप के नजदीक आएं। अभी यू.के. में, अमेरिका में और भी विदेश के देशों में माइक निकले जरूर है लेकिन एक हैं सहयोगी और दूसरे हैं सहयोगी-समीप वाले। तो ऐसे माइक तैयार करो। वैसे सेवा में वृद्धि अच्छी हो रही है, होती भी रहेगी। अच्छा- रशिया वाले छोटे बच्चे हैं लेकिन लकी हैं। आपका बाप से कितना प्यार है! अच्छा है बापदादा भी बच्चों की हिम्मत पर खुश हैं। अभी मेहनत भूल गई ना।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *निराकारी, आकारी और साकारी - इन तीनों स्टेजिस को समान बनाया है?* जितना साकारी रूप में स्थित होना सहज अनुभव करते हो, उतना ही आकारी स्वरूप अर्थात अपनी सम्पूर्ण स्टेज व अपने अनादि स्वरूप - निराकारी स्टेज - में स्थित होना सहज अनुभव होता है?
〰✧ *साकारी स्वरूप आदि स्वरूप है, निराकारि अनादि स्वरूप है।* तो आदि स्वरूप सहज लगता है या अनादि रूप में स्थित होना सहज लगता हे?
〰✧ *वह अविनाशी स्वरूप है और साकारी स्वरूप परिवर्तन होने वाला स्वरूप है।* तो सहज कौन - सा होना चाहिए? साकारी स्वरूप की स्मृति स्वतः रहती है या निराकारी स्वरूप की स्मृति यहती है या स्मृति लानी पडती है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकेण्ड में उतारने हैं। जब चाहें धारण करें, जब चाहें न्यारे हो जाएं। लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं होगा। *अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच हो नहीं सकेंगे। जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार से मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध में अगर अटैचमेन्ट है, लगाव है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बन बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"
➳ _ ➳ *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"
❉ *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भगवान हमे पढ़ाकर पुरूषोत्तम बना रहे हैं, इस नशे में रहना है*
➳ _ ➳ स्वयं भगवान ऊंचे ते ऊंचे धाम से मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर देती है और *अपने परमशिक्षक से भविष्य 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नो को धारण करने के लिए अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप में स्थित होकर, उनकी याद में मैं तेज - तेज कदमो से चलते हुए पहुँच जाती हूँ अपने ईश्वरीय विश्वविद्यालय में और जा कर क्लास रूम में बैठ जाती हूँ*। मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में मैं विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए अपने ऊंचे ते ऊंचे धाम को छोड़ मेरे पास आते हैं। अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई, अपने भाग्य का गुणगान करते - करते मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे परमशिक्षक शिव बाबा मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।
➳ _ ➳ देख रही हूँ मैं अपने सामने संदली पर बैठे सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता स्वरूप में अपने प्यारे बापदादा को जो शिक्षक के रूप में मेरे सामने बैठे मुझे निहार रहें हैं। *अपने नयनो में असीम स्नेह को समाये अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहारते हुए बापदादा मन्द - मन्द मुस्करा रहें हैं। अपने परमशिक्षक के इस मनभावन, सुन्दर सलौने स्वरूप को अपनी आंखों में बसाकर मैं एकटक उन्हें निहारती जा रही हूँ*। बाबा की मीठी दृष्टि एक रूहानी नशे से मुझ आत्मा को भरपूर कर रही है। बापदादा के मुख कमल से निकल रहे एक - एक महावाक्य को चात्रिक बन मैं आत्मा सुन रही हूँ और अपनी बुद्धि में उसे धारण करती जा रही हूँ। *बाबा का एक - एक महावाक्य गहराई तक मेरे अंदर समाता जा रहा है। अपने शिव भोलानाथ की सच्ची पार्वती बन उनके मुख कमल से उच्चारित अमरकथा को मैं बड़े प्यार से और बड़े ध्यान से सुन रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी बुद्धि रूपी झोली को अपने परमशिक्षक शिव बाबा के अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, मन ही मन मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि हर रोज़ भगवान मुझे जो पढ़ाई पढ़ाने के लिए आते हैं उसे अच्छी रीति पढ़ कर, अपने जीवन मे धारण करके, भविष्य जन्म जन्मांतर के लिए अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने का पुरुषार्थ मैं अवश्य करूँगी । *अपने आप से यह प्रतिज्ञा करके अपने प्यारे बापदादा की और मैं जैसे ही नजर घुमाती हूँ, मैं महसूस करती हूँ जैसे बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है और बाबा के वरदानी हस्तों से शक्तियों की अनन्त धारायें निकल कर मेरे अंदर समाकर, मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने का बल मेरे अंदर भरती जा रही हैं*। रंग बिरंगी शक्तियों की सहस्त्रो किरणों की बरसात मेरे ऊपर हो रही है जो मुझे बहुत ही शक्तिशाली बना रही हैं। *शक्तियों की ये अनन्त किरणे मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ डबल लाइट स्थिति में स्थित करती जा रही है*।
➳ _ ➳ स्थूल देह और सूक्ष्म देह इन दोनों के भान से मुक्त एक अति सुन्दर निराकारी स्थिति में मैं स्थित होकर अब अपने आपको देख रही हूँ एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में जो एक प्रकाशपुंज के समान चमकता हुआ दिखाई दे रहा हैं। *कुछ क्षणों के लिए मैं अपने इस स्वरूप में खो जाती हूँ और अपने स्व स्वरूप में टिक कर, अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों के अनुभव का आनन्द लेने लगती हूँ*। यह आत्म स्मृति बहुत गहरी फीलिंग का मुझे अनुभव करवाकर तृप्त कर देती हैं। अपने इस निराकार स्वरूप में स्थित अब मैं देख रही हूँ अपने सामने अपने प्यारे शिव बाबा को भी उनके निराकार बिंदु स्वरूप में। *महाज्योति के रूप में अनन्त शक्तियों की किरणों को बिखेरते हुए मेरे प्यारे पिता मेरे सम्मुख है। उनकी किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं आत्मा उनके साथ उनके वतन की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझ बिंदु आत्मा को समाये मेरे मीठे बाबा अब मुझे साकारी दुनिया से निकाल, आकारी दुनिया को पार करके अपनी निराकारी दुनिया मे ले आये हैं। अपने इस मूलवतन घर में अब मैं ज्ञान सागर अपने प्यारे पिता के सामने बैठी हूँ। *उनसे आ रही सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे मुझ पर बरस रही हैं। ज्ञान सागर मेरे प्यारे पिता के ज्ञान की रिमझिम फुहारों का शीतल स्पर्श मेरी बुद्धि को स्वच्छ बना रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे ज्ञान की शक्तिशाली किरणो के रूप में ज्ञान की बरसात मेरे ऊपर करके, बाबा मुझे समपूर्ण ज्ञानवान बना रहे हैं*। मास्टर नॉलेजफुल बन कर, ज्ञान की शक्ति से भरपूर होकर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर अब मैं फिर से विराजमान हूँ और अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरुप को सदा स्मृति में रखते हुए अब मैं हर पल इस खुशी में रहती हूँ कि ऊंचे ते ऊंचे धाम से भगवान मुझे पढ़ाने आते हैं। *यह स्मृति मुझे अपने परमशिक्षक शिव पिता की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करने का बल प्रदान करने के साथ - साथ मेरे पुरुषार्थी जीवन को भी उमंग उत्साह से सदा भरपूर रखती है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं रूहानी शक्त्ति को हर कर्म में यूज़ करने वाली युक्तियुक्त आत्मा हूँ।*
✺ *मैं जीवनमुक्त्तआत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा सत्यता की विशेषता को धारण करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव खुशी और शांति की अनुभूति कराती हूँ ।*
✺ *मैं विशेष आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *शक्ति अर्थात् सहयोगी। अभिमान के सिर वाली शक्ति नहीं लेकिन सदा सर्व
भुजाधारी अर्थात् सर्व परिस्थिति में ‘सहयोगी'। रावण के 10 सिर वाली आत्मायें
हर छोटी-सी परिस्थिति में भी कभी सहयोगी नहीं बनेगी। क्यों, क्या, कैसे के सिर
द्वारा अपना उल्टा अभिमान प्रत्यक्ष करती रहेंगी। क्यों का क्वेश्चन हल करेंगी
तो फिर कैसे का सिर ऊँचा हो जायेगा अर्थात् एक बात को सुलझायेंगी तो फिर दुसरी
बात शुरू कर देंगी। दूसरी बात को ठीक करेंगी तो तीसरा सिर पैदा हो जायेगा।*
बार-बार कहेंगे यह बात ठीक है लेकिन यह क्यों? वह क्यों? इसको कहा जाता है कि
एक बात के10 शीश लगाने वाली शक्ति। सहयोगी कभी नहीं बनेंगे,सदा हर बात में
अपोजीशन करेंगे। तो अपोजीशन करने वाले रावण सम्प्रदाय हो गये ना। चाहे ब्राह्मण
बन गये लेकिन उस समय के लिए आसुरी शक्ति का प्रभाव होता है, वशीभूत होते हैं।
और शक्ति स्वरूप हर परिस्थिति में,हर कार्य में सदा सहयोगी बन औरों को भी
सहयोगी बनायेंगे। चाहे स्वयं को सहन भी करना पड़े, त्याग भी करना पड़े लेकिन सदा
सहयोगी होंगे। सहयोग की निशानी भुजायें हैं, इसलिए कभी भी कोई संगठित कार्य
होता है तो क्या शब्द बोलते हो? अपनी-अपनी अँगुली दो, तो यह सहयोग देना हुआ ना।
अँगुली भी भुजा में है ना। तो भुजायें सहयोग की ही निशानी दिखाई हैं। तो समझा
शक्ति की भुजायें और रावण के सिर। तो अपने को देखो कि सदा के सहयोगी मूर्त बने
हैं?
✺ *"ड्रिल :- शक्ति स्वरुप बन सहयोगी बन कर रहना तथा औरों को भी सहयोगी बनाना*"
➳ _ ➳ मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ कोयले के काले धुंए से बाहर उड़ते हुए पहुँच
जाती हूँ सूक्ष्मवतन चमकीले सफेद प्रकाश की दुनिया में... मैं आत्मा रावण राज्य
में कलियुगी रूपी कोयले के खदान में पड़ी थी... विकारों, विकर्मों की कालिख में
लिपटी थी... *सुप्रीम जौहरी बाबा ने आकर मुझ आत्मा को कोयले की खदान से
निकाला... मुझे तराशकर कौड़ी से हीरे तुल्य बना दिया...*
➳ _ ➳ बाबा मुझे अपने सम्मुख बिठाते हैं... बाबा ज्ञान-योग की किरणें मुझ आत्मा
पर प्रवाहित कर रहे हैं... मैं आत्मा इन किरणों के झरने में बैठ जाती हूँ...
मुझ आत्मा का अज्ञानता रूपी अन्धकार दूर हो रहा है... *विकारों, विकर्मों रूपी
कालिख इन किरणों में बाहर बहता जा रहा है...* मैं आत्मा देह, देह के सम्बन्ध,
देह के पदार्थों के बंधन रूपी जंजीरों से मुक्त हो रही हूँ...
➳ _ ➳ मुझ आत्मा की आंखों से जन्म-जन्मान्तर के अज्ञानता रूपी परदे हट गए
हैं... मैं आत्मा त्रिकालदर्शी बन गई हूँ... मैं आत्मा स्वयं के असली स्वरुप को
देख रही हूँ... *एक चमकता हुआ हीरा, ज्योतिबिंदु, तेजोमय प्रकाश से भरपूर
जगमगाता हुआ एक सितारा हूँ...* मैं आत्मा अपने असली पिता, असली घर को पहचान गई
हूँ... मैं आत्मा अपने पिता से लिपट जाती हूँ...
➳ _ ➳ प्यारे बाबा मुझे प्यार से अपनी गोदी में बिठाकर रंग-बिरंगी गुण,
शक्तियों की मालाओं से सजा रहे हैं... मैं आत्मा सर्व गुण, शक्तियों के खजानों
से भरपूर अनुभव कर रही हूँ... *सर्व भुजाधारी शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो
रही हूँ... अब मैं आत्मा शक्ति स्वरुप बन रावण के 10 शीश का अंत कर रही
हूँ... क्यों, क्या,कैसे के रावण के सिर को अंश सहित खत्म कर रही हूँ...* अब
मुझ आत्मा में आसुरी शक्तियों का कोई भी प्रभाव शेष नहीं है...
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा रावण के अभिमान के सिर का नाश कर रावण सम्प्रदाय को खत्म कर
चुकी हूँ... अब मैं आत्मा सदा सर्व भुजाधारी शक्ति बन सर्व परिस्थिति में सर्व
की सहयोगी बन रही हूँ... *अब मैं शक्ति स्वरूप बन हर परिस्थिति में, हर कार्य
में सदा सहयोगी बन औरों को भी सहयोगी बना रही हूँ...* चाहे मुझ आत्मा को सहन भी
करना पड़े, त्याग भी करना पड़े लेकिन सदा की सहयोगी मूर्त बनकर रहती हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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