━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 24 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *दिल से "मेरा बाबा" मान अनगिनत खजानों का सौदा किया ?*

 

➢➢ *"मेरा मेरा" के संस्कार को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *साधारण प्रवृति की दिनचर्या में अपना समय तो नहीं गंवाया ?*

 

➢➢ *बजट बनाकर हर कार्य किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *साधना वाले का आधार सदा बाप ही होता है और जहाँ बाप है वहाँ सदा बच्चों की उड़ती कला है।* जो साधना द्वारा बाप के साथ हैं, *उनके लिए संगमयुग पर सब नया ही नया अनुभव होता है। हर घड़ी में, हर संकल्प में नवीनता क्योंकि हर कदम में उड़ती कला अर्थात् प्राप्ति में प्राप्ति होती रहेगी।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं सफलता का सितारा हूँ"*

 

  अपने आपको सफलता के सितारे हैं - ऐसे अनुभव करते हो? जहाँ सर्वशक्तियां हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है। कोई भी कार्य करते हो, चाहे शरीर निर्वाह अर्थ, चाहे ईश्वरीय सेवा अर्थ। कार्य में कार्य करने के पहले यह निश्चय रखो। *निश्चय रखना अच्छी बात है लेकिन प्रैक्टिकल अनुभवी आत्मा बन 'निश्चय और नशे में रहो।' सर्व शक्तियां इस ब्राह्मण जीवन में सफलता के सहज साधन हैं। सर्व शक्तियों के मालिक हो इसलिए किसी भी शक्ति को जिस समय आर्डर करो, उस समय हाजिर हो।*

 

  जैसे कोई सेवाधारी होते हैं, सेवाधारी का जिस समय आर्डर करते हैं तो सेवा के लिए तैयार होता है ऐसे सर्व शक्तियां आपके आर्डर में हो। *जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट होंगे उतना सर्वशक्तियां सदा आर्डर में रहेंगी। थोड़ा भी स्मृति की सीट से नीचे आते हैं तो शक्तियां आर्डर नहीं मानेंगी।* सर्वेन्ट भी होते है तो कोई ओबीडियेन्ट होते हैं, कोई थोड़ा नीचे-ऊपर करने वाले होते हैं। तो आपके आगे सर्वशक्तियां कैसे हैं? ओबिडियेन्ट हैं या थोड़े देर के बाद पहुँचती है।

 

  जैसे इन स्थूल कर्मेन्द्रियों को, जिस समय, जैसा आर्डर करते हो, उस समय वो आर्डर से चलती है? ऐसे ही ये सूक्ष्म शक्तियां भी आपके आर्डर पर चलने वाली हो। चेक करो कि सारे दिन में सर्वशक्तियां आर्डर में रहीं? क्योंकि जब ये सर्वशक्तियां अभी से आपके आर्डर पर होंगी तब ही अन्त में भी आप सफलता को प्राप्त कर सकेगे। इसके लिए बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। *तो इस नये वर्ष में आर्डर पर चलाने का विशेष अभ्यास करना। क्योंकि विश्व का राज्य प्राप्त करना है ना। 'विश्व राज्य अधिकारी बनने के पहले स्वराज्य अधिकारी बनो।'*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *कर्तव्य करते हुए भी कि मैं फरिश्ता निमित्त इस कार्य अर्थ पृथ्वी पर पाँव रख रहा हूँ, लेकिन मैं हूँ अव्यक्त देश का वासी, अब इस स्मृति को ज्यादा बढाओ।* मैं इस कार्य अर्थ अवतरित हुई हूँ अर्थात जैसे कि मैं इस कार्य - अर्थ पृथ्वी पर वतन से आई हूँ, कारोबार पूरी हुई, फिर वापस अपने वतन में।

 

✧  जैसे कि बाप आते हैं, तो बाप को स्मृति है ना कि हम वतन से आये हैं, कर्तव्य के निमित्त और फिर हमको वापिस जाना है। ऐसे ही *आप सबकी भी यही स्मृति बढनी चाहिए कि मैं अवतार हूँ अर्थात मैं अवतरित हुई हूँ, अभी मैं ब्राह्मण हूँ और फिर मैं देवता बनूँगी* - यह भी वास्तव में मोटा रूप है। यह स्टेज भी साकारी है।

     

✧  *अभी आप लोगों की स्टेज आकारी चाहिए, क्योंकि आकारी से निराकारी सहज बनेंगे।* जैसे बाप भी साकार से आकारी बना, आकारी से निराकारी फिर साकारी बनेंगे।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ पहला पाठ आत्मिक स्मृति का पक्का करो। आत्मा इस शरीर द्वारा किसको देखेगी? आत्मा-आत्मा को देखेगी न कि शरीर को, आत्मा कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कर रही है। तो अन्य आत्माओं का भी कर्म देखते हुए यह स्मृति रहेगी कि यह भी आत्मा कर्म कर रही है। *ऐसे अलौकिक दृष्टि – जिसको देखो आत्मा रूप में देखो। इस अभ्यास की कमी होने के कारण कि पाठ पक्का नहीं किया। लेकिन औरों को पाठ पढ़ाने लग गए। इस कारण स्वयं प्रति अटेंशन कम रहता, दूसरों के प्रति अटेंशन ज्यादा रहता है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सस्ता सौदा करना"*

 

_ ➳   *ये पतित दुनिया, ये बेगाना घरमेरी खातिर चले आये वो परमधाम छोडकर... लम्हा दर लम्हा बदल रही जिन्दगी, हदों से निकल कर हुई, अब बेहद में मेरी नज़र*... हद की दुनिया में पुरानी कीचड पट्टी संभाले मैं आत्मा, बोझिल कदमों से हर जन्म में उनको ढूँढती... और खुद के वजूद को भूलाती गयी... मगर  ढूँढने पर न वो मिले और न मेरा वजूद... *अब वो मिलें... तो जमाने भर की खुशियाँ मेरे पहलूँ मे मचलने लगी है*... *ईश्वरीय सन्तान के रूतबे से नवाजकर सम्मुख बैठे बापदादा, आज मुझ आत्मा को पुराना बैग बैगेज ट्रांसफर कर सतयुग में सब कुछ नया लेने के बारे में समझानी दे रहे है*... 

 

  *मेरी सदकामनाओं को पूरा करने वाले सच्चे सच्चे निष्कामी बाप मुझ आत्मा से बोले*:- "हद की कामनाओं से मन बुद्धि को समेटने वाली मेरी निश्चय बुद्धि बच्ची... *बाप की मत पर क्या पूरा पूरा निश्चय रखती हो? ये परायी दुनिया और पराया घर मन बुद्धि को बाँधते तो नही*?... *सतयुगी वर्सा और नई दुनिया की बादशाही अब साकार होते देख रही हो*?"

 

_ ➳ *एक बाप दूसरा न कोई ऐसी अटूट निश्चय बुद्धि वाली मैं आत्मा बापदादा से बोली*:- "प्यारे बाबा.. *सिर हथेली पर रख आप की बनी हूँ बाबा*, *ये देह दुनिया ये झूठी शानो शौकत, ये देह के सम्बन्ध, ये पुराने संस्कार, आप की श्रीमत पर सब सतयुगी संस्कार और संबंधों में बदल रहे है*... साक्षी हो देख रही हूँ एक एक संस्कार को... जो पल पल योगज्वाला में जल रहे है..."

 

  *ज्ञान की गहराईयों में उतार मुझ आत्मा को मास्टर ज्ञान सागर बनाने वाले बापदादा बोले:-* "मेरी मास्टर ज्ञान सागर बच्ची...  देखते ही देखते इस विनाशी दुनिया का सब कुछ स्वाहा होने वाला है... *पूरी तरह ट्रस्टी बन अब हर चीज से ममत्व निकालते जाना है, ये ज्ञान के शास्त्र ये मुरली ये ज्ञान के चित्र सब यही विनाश हो जायेगे... इनमें भी मोह न रख बस अपने संस्कारों को दिव्य बनाओं..."*  

 

_ ➳  *एक शिव बाप से कनेक्शन रख तन, मन, धन सब इन्श्योर करने वाली मैं निश्चय बुद्धि आत्मा बोली:-* "मेरे बाबा... हर कदम आपकी श्रीमत पर चल चल बाप की राय लेती मैं आत्मा नैचुरल अटैन्शन से अपनी नेचर को बदल रही हूँ... *पुराने संस्कारों को भस्म कर दिव्यता की चैतन्य मूरत बन रही हूँ, अशरीरीपन का अभ्यास व्यर्थ से दूर कर रहा है... सब कुछ बाप को सौंपकर मैं ट्रस्टी बन रही हूँ*..."

 

  *हथेली पर बहिश्त रख दूसरे हाथ से पुरानी कीचड पट्टी ले सच्चा सौदा करने वाले सौदागर बाप बोले:-* "मेरी विश्व कल्याणी बच्ची... बाप की पालना का रिटर्न चुकाओ... *पुरानी कीचड पट्टी संभाले, सुखो की खोज में भटकती हर आत्मा को भी सच्चे सौदागर की खूबियों से परिचय कराओं*... चेहरे से, चलन से सबको अपनी सतयुगी झलक दिखाओं..."

 

_ ➳  *निमित्त और निर्माण भाव से सम्पन्न मैं आत्मा करन करावन हार बापदादा से बोली:-* "मीठे बाबा... आपकी श्रेष्ठ पालना का उपहार ये असंख्य आत्माए सतयुगी झलक और फलक नयनो में समाये विश्व के कोने कोने में फैल गयी है... *तन, मन, धन से ट्रस्टी ये आत्माए नई दुनिया के लिए नये संस्कारों का जागरण कर रही है.. जगह जगह मोह की होली जल रही है*... *सतयुगी दुनिया की ख्वाहिश अब हर आँख में पल रही है* और अपनी पालना का रिटर्न पाकर बापदादा वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे है..."

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मेरा मेरा के संस्कारो को समाप्त करना*"

 

 _ ➳  अपने मीठे बाबा की मीठी याद में बैठी एक बहुत ही सुंदर दृश्य मैं देख रही हूँ जिसे देख कर मेरा रोम - रोम आनन्दमयी हो रहा है। *मैं देख रही हूँ जिस देह और देह की दुनिया मे मैं रहती हूँ वह देह और देह की दुनिया जैसे निराकारी आत्माओं की दुनिया मे परिवर्तित हो रही है*। सभी के साकारी शरीर जैसे लुप्त होते जा रहें हैं। एक भी मनुष्य मुझे दिखाई नही दे रहा। चारों और केवल चमकती हुई ज्योति बिंदु आत्मायें निराकार शिव बाबा की छत्रछाया के नीचे दिखाई दे रही हैं। 

 

 _ ➳  बाबा की अनन्त शक्तियाँ सभी आत्माओं पर पड़ रही है और बाबा की सर्वशक्तियाँ पा कर सभी आत्मायें जगमग करते हुए सितारों की भांति चमक रही हैं। *सर्वशक्तियों का एक शक्तिशाली पुंज दीप राज के रूप में और उसके सामने असंख्य जगमग करते चैतन्य दीपक शोभायमान हो रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे कोई चैतन्य दीपमाला जग रही है। इस अद्भुत दृश्य को देख मन को असीम सुकून की अनुभूति हो रही है। अपने शिव बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया में सभी असीम आनन्द की अनुभूति कर रहें हैं।

 

 _ ➳  असीम आनन्द की अनुभूति करके अब हर आत्मा फिर से अपना देह रूपी वस्त्र धारण कर रही है। और जैसे ही देह में प्रवेश करती है माया रावण अपने अति लुभावने रूप में उसे अपनी और आकर्षित करके उस दिव्य अलौकिक आनन्द की अनुभूति को भुला देती है। *अब मैं देख रही हूँ फिर से साकारी दुनिया मे साकारी मनुष्यों को जिनके ऊपर माया रावण की परछाया पड़ चुकी है। माया रावण ने देह अभिमान के रुप में सभी को "मैं और मेरा" का ग्रहण लगा दिया है*। सभी के अंदर पांच विकारों रूपी रावण की प्रवेशता हो गई है। "मैं और मेरा" के ग्रहण ने सभी को अभिशापित करके विकर्मी बना दिया है। देह अभिमान में आ कर सभी विकर्म कर रहें है और दुख पा रहें हैं।

 

 _ ➳  पतित दुनिया के इस दुखमय दृश्य को देखते देखते एकाएक मैं देखती हूँ कि धीरे - धीरे परमधाम से ज्ञानसूर्य शिवबाबा अपनी शक्तिशाली किरणों को बिखेरते हुए नीचे आ रहें हैं। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर, शिवबाबा अपने आकारी रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि  पर विराजमान हो कर, साकारी दुनिया में प्रवेश करते हैं*। मैं देख रही हूँ पूरी दुनिया में ज्ञान सूर्य की शक्तिशाली किरणे धीरे - धीरे चारों ओर फैलने लगी है। शिव बाबा ब्रह्मा मुख से सभी को "मैं और मेरा" के इस ग्रहण से मुक्त होने का उपाय बता रहें हैं। सभी को उनका और अपना वास्तविक परिचय दे कर, उन्हें उनके वास्तविक गुणों की स्मृति दिला रहें हैं।

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ जो निश्चयबुद्धि बन, ज्ञानसूर्य शिव बाबा के इस दिव्य ज्ञान को सुन, उनकी समझानी पर चल रहें हैं वो "मैं और मेरा" के ग्रहण से मुक्त होते जा रहें हैं। किन्तु *जो संशय बुद्धि हैं और भगवान की मत के अनुसार नही चल रहे। वो पांच विकारों के इस ग्रहण के शिकंजे में और ज्यादा फंस कर दुखी, अशांत हो रहें हैं*। इस दृश्य को देखते - देखते मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती हूँ जो स्वयं भगवान ने आ कर मुझ आत्मा पर लगे ग्रहण से मुझे मुक्त कर सदा के लिए सुखदाई बनने का सहज रास्ता बता दिया। 

 

 _ ➳  *अपने भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए, अपने ब्राह्मण स्वरूप में रहते , निरन्तर बाबा की याद से अब "मैं और मेरा" को छोड़ पांच विकारों के ग्रहण से मुक्त होने का पुरुषार्थ मैं निरन्तर कर रही हूँ*। पांच विकारों रूपी ग्रहण ने जो मुझ आत्मा को काला बना दिया था, उन विकारों की कट को योग अग्नि से भस्म कर अब मैं रीयल गोल्ड बन रही हूँ।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सेवा द्वारा अनेक आत्माओं की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं महादानी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अभी का प्रत्यक्ष फल प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा उड़ती कला का बल प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ इसमें भी सेवा तो सभी करते ही हो लेकिन *सच्चे दिल से, लगन से सेवा करना, सेवाधारी बन करके सेवा करना इसमें भी अन्तर हो जाता है।* कोई सच्चे दिल से सेवा करते हैं और कोई दिमाग के आधार पर सेवा करते हैं। अन्तर तो होगा ना! दिमाग तेज है, प्वाइन्टस बहुत हैं, उसके आधार पर सेवा करना और सच्चे दिल से सेवा करना, इसमें रात-दिन का अन्तर है। *दिल से सेवा करने वाला दिलाराम का बनायेगा। और दिमाग द्वारा सेवा करने वाला सिर्फ बोलना और बुलवाना सिखायेगा। वह मनन करता, वह वर्णन करता।*

✺ *"ड्रिल :- दिमाग के आधार पर सेवा न कर सच्चे दिल से सेवा करनें का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा सवेरे-सवेरे उठकर, मन-बुद्धि से बाबा को साथ लेकर एक सुंदर से बगीचे में सैर करने जाती हूँ... चिड़ियों की चहचाहट, कोयल की मधुर आवाज और ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच मेरा तन मन आनंद से भर जाता है... *जैसे-जैसे सूर्य उदय होने लगता है... फूलों की कलियाँ खिलने लगती है...* और सारा बगीचा फूलों की खुशबू से महकने लगता है...

➳ _ ➳ ऐसा मनमोहक दृश्य देखकर मेरा अन्तर्मन भी फूल की तरह खिल जाता है... और मैं आत्मा अपने अंदर नयी ऊर्जा भरते हुए अनुभव करती हूँ... तभी अचानक मेरा ध्यान सूर्य की तरफ जाता है... और उसे देखकर मेरे मन में संकल्प आता है कि *ये सूर्य बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ एक कर्तव्यनिष्ठ सेवाधारी बनकर इस सृष्टि की सेवा करता है...* अगर सूर्य एकदिन भी उदय नहीं हो तो इस सृष्टि पर रहने वाले प्राणी और प्रकृति स्थिर हो जाये...

➳ _ ➳ सूर्य को अपनी अहमियत पता होने पर भी वो अपना कर्तव्य समझकर और दिल से सेवा करता है... *यह सोचते हुए मेरा अन्तर्मन बाबा की तरफ रुख करता है...* और बाबा को मैं आत्मा अपने सामने इमर्ज करती हूं और बाबा बिना देरी किये मेरे सामने आ जाते हैं... बाबा मेरे अंदर उमड़े हुए सवालों को और विचारों को समझते हुए मुझसे कहते हैं... *मेरे मीठे बच्चे तुम्हें भी सूर्य की तरह अथक और निरन्तर दिल से सेवा करनी है*....

➳ _ ➳ और बाबा मुझे ये भी समझाते हैं कि दिल और लगन से सेवा करने से तुम इसका भी अहसास नहीं कर सकते की तुमने कितनी और कितने समय वा किसके लिए सेवा की है... और जब दिल से सेवा होती है तो सेवा के साथ मनन भी चलता है... *सेवाधारी हमेशा सेवा के आदेश का इन्तजार करता है... और दिल से सेवा करने वाले जब मन चाहे जैसी सेवा करता है...* चाहे रात हो या दिन अपने मन से उसी समय सेवा में लग जाता है... *दिमाग के आधार पर सेवा करेंगे तो तुम्हें हमेशा सेवा के लिए पॉइंट्स एकत्रित करनें पड़ेंगे...* उसके लिए समय भी चाहिए...

➳ _ ➳ और जो लगन में मगन रहकर सेवा करता है... वह अपने *दिलाराम शिवबाबा से दिल लगाकर बिना किसी पॉइंट्स के सेवा करेंगे...* इतना सुनकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ... बाबा मैं अभी से ही दिल से सेवा करुँगी... क्योंकि जो दिल से सेवा करता है... वो दिलाराम का बनता है... और कहती हूँ कि मैं आत्मा आज से ही वर्णन को त्याग, मनन ही मनन करुँगी... पूरी सच्चाई -सफाई से सेवा करुँगी... क्योंकि *"सच्चे दिल पर साहिब राजी"* होते है... मैं सूर्य के समान निरन्तर अपनी दिल की सच्ची सेवा से मुरझाये हुए फूल रूपी आत्माओं को खिलते हुए फूल की तरह हँसता हुआ और सुखी बनाउंगी...

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━