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 16 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *क्षीरखंड होकर रहे ?*

 

➢➢ *सवेरे उठकर एक बाप की याद में बैठे ?*

 

➢➢ *किनारा करने की बजाये हर पल बाप का सहारा अनुभव किया ?*

 

➢➢ *एक बाप की कंपनी में रह एक बाप को अपना कम्पैनियन बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *यह विनाश सर्व-आत्माओं की सर्व-कामनाएं पूर्ण करने का निमित्त साधन है। यह साधन आपकी साधना द्वारा पूरा होगा।* ऐसा संकल्प इमर्ज होना चाहिए कि अब सर्व-आत्माओं का कल्याण हो। *सर्व तड़पती हुई, दु:खी और अशान्त आत्माएं वरदाता बाप और बच्चों द्वारा वरदान प्राप्त कर सदा शान्त और सुखी बन जाए और अब घर चलें।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं अमूल्य रत्न हूँ"*

 

  सभी अमूल्य रत्न हो। कितने अमूल्य हो? *इस दुनिया में ऐसा शब्द नहीं जो आपको कहें! बहुत श्रेष्ठ रत्न हो, इसलिए द्वापर से जब आपके मंदिर बनते हैं तो उसमे रत्न जड़ते हैं, जड़-चित्रों को भी रत्नों से सजाते हैं। तो जब जड़-चित्र इतने अमूल्य बने तो चैतन्य में कितने श्रेष्ठ हो, अमूल्य हो।* और अपने राज्य में जब होंगे तो यह रत्न क्या होंगे!

 

  जैसे यहाँ पत्थर सजाते हो वैसे वहां रत्न-जिड़त महल होंगे। याद है अपने राज्य में क्या-क्या किया था? अनगिनत बार की बात याद नहीं है! *अपने वर्तमान समय को ही देखो तो यह जीवन कौड़ी से क्या बन गई है? हीरे तुल्य जीवन है ना! यह हीरे-रत्न आपके लिए अनगिनत हो जायेंगे।*

 

  *सदा अपने वर्तमान श्रेष्ठ जीवन के आधार पर भविष्य सोचो कि कर्म का फल क्या मिलेगा, कितना शक्तिशाली कर्म रुपी बीज डाल रहे हो। तो फल भी अच्छा मिलेगा ना! इससे अच्छा फल और किसी को मिल नहीं सकता। यह नशा रहता है ना!*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *क्या अपने को एक सेकण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो?* जैसे वाणी में सहज ही आते हो, क्या वैसे वाणी से परे, इतना ही सहज हो ?

 

✧  कैसे भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तुफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बडी बात नहीं है, लेकिन *अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञान स्वरूप, शक्तिस्वरूप, याद स्वरूप और सर्वगुण स्वरूप कहा जाता है।*

 

✧ *भिन्न - भिन्न प्रकार के कारण होते हुए स्वयं निवारण रूप बने, इसको कहा जाता है पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष प्रमाण - रूप।* ऐसे महावीर बने हो या अब तक वीर बने हो? किस स्टेज तक पहूँचे हो? महावीर की स्टेज सामने दिखाई देती है या समीप दिखाई देती है अथवा बाप समान स्वयं को दिखाई देते हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सेन्स के आधार पर सेवाधारी तो बन गए हैं, लेकिन रूहानी सेवाधारी बनें, - ऐसे कम हैं। कारण? जैसे बाप निराकार सो साकार बन सेवा का पार्ट बजाते हैं, वैसे बच्चों को इस 'मंत्र का यंत्र' भूल जाता है कि हम भी निराकार सो साकार रूप में पार्ट बजा रहे है।* 'निराकार सो साकार' - यह दोनों स्मृति साथ-साथ नहीं रहती हैं। या तो निराकार बन जाते और या साकारी हो जाते हैं। सदा यह मंत्र याद रहे कि 'निराकार सो साकार' - यह पार्ट बजा रहे हैं। *यह साकार सृष्टि, साकार शरीर स्टेज है। स्टेज और पार्टधारी दोनों अलग-अलग होते हैं। पार्टधारी स्वयं को कब स्टेज नहीं समझेंगे। स्टेज आधार है, पार्टधारी आधार मूर्त हैं, मालिक है। इस शरीर को स्टेज समझने से स्वयं को पार्टधारी स्वत: ही अनुभव करेंगे।* तो कारण क्या हुआ? स्वयं को न्यारा करना नहीं आता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  क्षीरखण्ड बनकर रहना"*

 

_ ➳  मीठे बाबा से ज्ञान वचनो को सुनते सुनते मै आत्मा... अपने मीठे भाग्य के नशे में डूब गयी... *स्वयं ईश्वर ही शिक्षक बनकर, जीवन में ज्ञान रत्नों की बहार लेकर आ गया है.*.. सच्चे प्रेम से भरकर, मुझ आत्मा की जनमो की प्यास बुझा रहा है... बस इन मीठे अहसासो में डूबी मै आत्मा... सूक्ष्म वतन में मीठे बाबा के पास पहुंचती हूँ... और रोम रोम से शुक्रिया कर... मीठे बाबा के गले लग... अपनी जनमो की थकान मिटाती हूँ...

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने मीठे सुखो की याद दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *मीठे बाबा ने जो ज्ञान की जागीरों से भरकर, असीम खुशियो से मीठा बनाया है.*. यह आनन्द की मिठास सबको बांटो... बहुत मीठा प्यारा बनकर आपस में रहो... कभी भी लून पानी होकर... मीठे बाबा का नाम बदनाम न करो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की जागीरों पर आनन्दित होते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो में, आपके मीठे प्यार की पालना में पलकर... कितनी मीठी और प्यारी हो गयी हूँ.*.. सदा ज्ञान रत्नों की गूंज में खोयी हुई हूँ... और  सबको सच्चा प्यार देकर, ईश्वरीय प्रेम से सींच रही हूँ..."

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम की मिसाल बनाते हुए कहा :-* "मीठे लाडले प्यारे बच्चे... सदा आत्मिक स्नेह से भरपूर रहकर, मीठेपन का पर्याय बनो... सबके सहयोगी बनकर... प्यार से एक दूसरे का सच्चा सहारा बनो... ईश्वरीय प्यार में पलकर, जो ज्ञान खजाने पाये है... जो सुख पाया है, वह हर दिल पर लुटाओ... *कभी भी आपस में टकराव न करो, सदा संस्कार मिलन की रास करो.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा से सच्चे प्रेम की तरंगो को लेते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे साथी बाबा... *आपने मुझे कितना प्यारा, कितना मीठा, कितना सच्चा और खुबसूरत बना दिया है..*. मै आत्मा जहाँ भी कदम रखती हूँ... प्रेमतरंगो को पाकर हर दिल मुस्करा उठता है... और मुझसे इस ख़ुशी का राज पूछता हे... मै झट अपने मीठे बाबा का पता देती हूँ..."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने मीठेपन से सजाते हुए कहा :-* " मीठे सिकीलधे बच्चे... ईश्वरीय प्यार में ज्ञान रत्नों की अमीरी में जो सम्पन्न बने हो... इस सुख से सबको सम्पन्न बनाओ... अपनी मीठी रूहानी चलन से, ईश्वर पिता की झलक दिखाओ... *आपस में बहुत प्रेम और आत्मिक स्नेह से रहकर... श्रीमत की धारणा से, सबको ईश्वरीय दीवाना बनाओ.*.."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने मीठे बाबा की सारी मिठास स्वयं में भरते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... आपसे पाया प्यार मै आत्मा... सब पर दिल खोल कर लुटा रही हूँ... सबको मीठे बाबा का, सच्चे ज्ञान का मुरीद बना रही हूँ... *आपकी मिठास की प्रतिमूर्ति बनकर, सबको सुख पहुंचा रही हूँ और शिव दीवाना बना रही हूँ.*..अपने प्यारे बाबा से स्वयं को मीठेपन भरकर मै आत्मा... साकार वतन में लोट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बन 5 विकारों का सन्यास करना है*"

 

_ ➳  बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर, विकारों का सन्यास करके ही आत्मा रूपी सीता अपने प्रभु राम से मिल सकती है, *मन ही मन यह विचार करती मैं आत्मा सीता उस समय को याद करती हूँ जब तक मेरे प्रभु राम मुझे नही मिले थे*। पाँच विकारों रूपी रावण की जेल में कैद मैं आत्मा सीता कैसे अपने प्रभु राम के वियोग में तड़प रही थी। 

 

_ ➳  मेरा जीवन पिंजड़े में बन्द उस पंछी के समान बन गया था जो इस बात का कभी अनुभव ही नही कर पाता कि आजाद हो कर उड़ने में कितना आनन्द समाया है? अपने प्रभु राम का पता पाने के लिए मैं कितनी व्याकुल थी। कोई भी मुझे उनका पता बताने वाला नही था। *किंतु मेरे प्रभु राम, मेरे दिलाराम शिव पिता परमात्मा ने स्वयं आ कर ना केवल मुझे रावण की कैद से छुड़ाया बल्कि विकारों रूपी रावण ने जो मेरे पंख काट दिए थे वो ज्ञान और योग के पंख लगा कर मुझे उड़ना भी सिखाया*। इस उड़ने में जो परमआनन्द समाया है उसे मैं जब चाहे तब अनुभव कर सकती हूँ। 

 

_ ➳  ज्ञान और योग के पंख लगा कर मैं आत्मा सीता जब चाहे अपने प्रभु राम से मिलन मनाने जा सकती हूँ। *यही चिंतन करते - करते मैं आत्मा रूपी सीता विदेही बन देह रूपी पिंजड़े को छोड़ इससे बाहर निकल आती हूँ और चल पड़ती हूँ ऊँची उड़ान भरते हुए अपने प्रभु राम के पास*। सेकण्ड में पाँच तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार कर, उससे परे सूक्ष्म वतन को भी पार कर मैं पहुंच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में।

 

_ ➳  अब मैं परमधाम में अपनी निराकारी स्थिति में स्थित हो, बिंदु बन, अपने बिंदु शिव बाबा के साथ मिलन मना रही हूँ। मेरे शिव पिता से आ रही अनन्त सर्वशक्तियों की किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं। इन किरणों के पड़ने से मैं आत्मा एकदम हल्की होती जा रही हूँ। *मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्रभु राम ने सर्वशक्तियों को समाने की ताकत मुझे दे दी हो*। अपने प्रभु राम की सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर मैं शक्तियों का पुंज बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ में समा कर मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित करती जा रही हैं । 

 

_ ➳  अपने प्रभु राम के साथ मिलन मना कर परमात्म शक्तियों से मैं भरपूर हो चुकी हूँ। बेहद की वैरागी बन, विकारों का सन्यास करने का बल मेरे शिव पिता ने मेरे अंदर भर दिया है। *इस बल को अपने साथ लिए, शक्तिशाली बन अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ*। साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में वापिस भृकुटि के भव्य भाल पर आ कर मैं विराजमान हो जाती हूँ। 

 

_ ➳  मेरे शिव पिता परमात्मा का बल अब मुझे बेहद का वैरागी बनने और विकारों का सन्यास करने की शक्ति दे रहा है। देह, देह की दुनिया और देह के सम्बन्धों से मैं नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ। *मेरे शिव पिता से मिल रहा पवित्रता का बल मुझे विकारों के ऊपर विजयी बनने में मदद कर रहा है और विकारों का सन्यास करवा कर मुझे विकर्माजीत बना रहा है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर पल बाप का सहारा अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं निश्चय बुद्धि आत्मा हूँ।*

   *मैं विजयी रत्न आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव एक बाप की कम्पनी में रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा बाप को ही अपना कम्पैनियन बनाती हूँ  ।*

  *मैं आत्मा सदा एकरस स्थिति का अनुभव करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ परमात्म-सन्तान, और कोई गुण न हो यह हो नहीं सकता। उसी गुण के आधार से ही ब्राह्मण जन्म में जी रहे हैं अर्थात् जिन्दा हैं। ड्रामा अनुसार उसी गुण ने ही ऊँचे ते ऊँचे बाप का बच्चा बनाया है। उसी गुण के कारण ही प्रभु पसन्द बने हैं। इसलिए गुणों की माला बना रहे थे। ऐसे ही हर ब्राह्मण आत्मा के गुण को देखने से श्रेष्ठ आत्मा का भाव सहज और स्वत: ही होगा क्योंकि गुण का आधार है ही - श्रेष्ठ आत्मा। कई आत्मायें गुण को जानते हुए भी जन्म-जन्म की गन्दगी को देखने के अभ्यासी होने कारण गुण को न देख अवगुण ही देखती हैं। लेकिन अवगुण को देखना, अवगुण को धारण करना ऐसी ही भूल है जैसे स्थूल में अशुद्ध भोजन पान करना। स्थूल भोजन में अगर कोई अशुद्ध भोजन स्वीकार करता है तो भूल महसूस करते हो ना! लिखते हो ना कि खान-पान की धारणा में कमजोर हूँ। तो भूल समझते हो ना! *ऐसे अगर किसी का अवगुण अथवा कमज़ोरी स्वयं में धारण करते हो तो समझो अशुद्ध भोजन खाने वाले हो। सच्चे वैष्णव नहीं, विष्णु वंशी नहीं। लेकिन राम सेना हो जायेंगे। इसलिए सदा गुण ग्रहण करने वाले - ‘गुण मूर्त' बनो।*

✺ *"ड्रिल :- सच्चे वैष्णव अर्थात सदा गुण ग्राहक बनकर रहना*”

➳ _ ➳ *कोहिनूर समान चमकती हुई मैं नूर भृकुटी सिंहासन पर विराजमान हो जाती हूँ...* मुझ नूर से चमकती हुई किरणें निकलकर चारों ओर फैल रही हैं... इस शरीर से बाहर निकलकर चमकते हुए प्रकाश के कार्ब में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन... श्वेत प्रकाश की दुनिया में... जहाँ बापदादा गुणों की माला बना रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के पास जाकर बैठ जाती हूँ...

➳ _ ➳ मैं बाबा से पूछती हूँ प्यारे बाबा- इस माला में मेरे भी गुण हैं क्या... *बाबा बोले- हाँ मीठी बच्ची, तुम बाबा द्वारा चुनी गई कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हो...* बाबा ने गुणों के आधार पर ही तुमको चुना है... हाँ बाबा कब से मैं आपको ढूंढ रही थी... पर आपने मुझे ढूंढ लिया... कितने समय के बाद बाबा आप मिले हो कहकर मैं आत्मा बापदादा के गले लग जाती हूँ...

➳ _ ➳ मेरी सिकीलधी बच्ची कहते हुए बापदादा मुझे अपनी गोदी में बिठाकर... मुझ पर अनंत प्यार बरसा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा के प्यार में समा रही हूँ... *मुझ आत्मा का कितना ऊंचा भाग्य है जो ऊंचे से ऊंचे परमात्मा के साथ विशेष पार्ट है...* अब मैं सदा इसी स्मृति में रहती हूँ कि मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा गुणों के सागर की सन्तान हूँ... मैं आत्मा स्मृति स्वरुप बन रही हूँ...

➳ _ ➳ *बाबा मुझे दिव्य गुणों की माला पहनाते हैं...मुझ आत्मा के सभी निजी गुण जाग्रत हो रहे हैं...* मैं आत्मा हर गुण का स्वयं में अनुभव कर रही हूँ... जितना एक-एक गुण की अनुभूति में समाती जा रही हूँ उतना प्रैक्टिकल स्वरूप बन रही हूँ... अनुभवी मूर्त... गुण मूर्त बन रही हूँ...

➳ _ ➳ अब मैं नूर दिव्य गुणों से भरपूर होकर बाबा की नूरे रतन बन गई हूँ... प्रभु पसन्द बन गई हूँ... अब मैं सदा सबके गुणों, विशेषताओं को ही देख रही हूँ और स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ... किसी के भी कमज़ोरी को स्वयं में धारण नहीं करती हूँ... कभी भी अवगुण रूपी अशुद्ध भोजन नहीं खाती हूँ... *अब मैं आत्मा सदा गुणों रूपी शुद्ध, पवित्र भोजन खाने वाली सच्ची वैष्णव, विष्णु वंशी होने का अनुभव कर रही हूँ...*

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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