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 09 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *भविष्य के लिए कमाई जमा की ?*

 

➢➢ *सब कुछ करते बुधी बाप की तरफ लगी रही ?*

 

➢➢ *हज़ार भुजा वाले ब्रह्मा बाप के साथ का अनिरंतर अनुभव किया ?*

 

➢➢ *अशरीरी स्थिति का अनुभव व अभ्यास किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  ब्रह्मा की स्थापना का कार्य तो चल ही रहा है। ईश्वरीय पालना का कर्त्तव्य भी चल ही रहा है। अब लास्ट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मों और हर आत्मा के तमोगुणी संस्कारों और प्रकृति के तमोगुण को भस्म करने का कर्त्तव्य करना है। *जैसे चित्रों में शंकर का रूप विनाशकारी अर्थात् तपस्वी रूप दिखाते हैं, ऐसे एकरस स्थिति के आसन पर स्थित होकर अब अपना तपस्वी रूप प्रत्यक्ष दिखाओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं नूरे रत्न हूँ"*

 

  *सदा अपने को बापदादा की नजरों में समाई हुई आत्मा अनुभव करते हो? नयनों में समाई हुई आत्मा का स्वरूप क्या होगा? आखों में क्या होता है? बिन्दी।*

 

  *देखने की सारी शक्ति बिन्दी में है ना। तो नयनों में समाई हुई अर्थात् सदा बिन्दी स्वरुप में स्थित रहने वाली - ऐसा अनुभव होता है ना! इसको ही कहते हैं -'नूरे रत्न'।*

 

  *तो सदा अपने को इस स्मृति से आगे बढ़ाते रहो। सदा इसी नशे में रहो कि मैं 'नूरे रत्न' आत्मा हूँ।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  एक सेकण्ड में अपने को अपने सम्पूर्ण निशाने और  नशे में स्थित कर सकते हो? सम्पूर्ण निशाना क्या है उसको तो जानते हो ना? *जब सम्पूर्ण निशाने में स्थित हो जाते हैं - तो नशा तो रहता ही है।* अगर निशाने बुद्धि नहीं टिकती तो नशा भी नहीं रहेगा।

 

✧   *निशाने पर स्थित होने की निशानी है - नशा।* तो ऐसा नशा सदैव रहता है? जो स्वयं नशे में रहते है वह दूसरों को भी नशे में टिका सकते हैं। जैसे कोई हद कि नशा पीते है तो उनकी चलन से, उनके नैन - चैन से कोई भी जान लेता है - इसने नशा पिया हुआ है।

     

✧  इसी प्रकार यह जो सभी से श्रेष्ठ नशा है, जिसको ईश्वरीय नशा कहा जाता है, इसी में स्थित रहने वाला भी दूर से दिखाई तो देगा ना। *दूर से ही वह अवस्था इतना महसूस करे यह कोई - कोई ईश्वरीय लगन में रहने वाली आत्मायें हैं।* ऐसे अपने को महसूस करते हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *स्व-मान में स्थित होना ही जीवन की पहेली को हल करने का साधन है।* आदि से लेकर अभी तक इस पहेली को हल करने में ही लगे हुए हो कि 'मैं कौन हूँ?" *'मैं कौन हूँ।' इस एक शब्द के उत्तर में सारा ज्ञान समाया हुआ है। यह एक शब्द ही खुशी के खजाने, सर्व शक्तियों के खजाने, ज्ञान धन के खजाने, श्वांस और समय के खजाने की चाबी है।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप से प्यार करना"*

 

_ ➳  *प्रेम के सागर से बिछुडी मैं स्नेह की एक नन्हीं सी बूँद... स्वार्थ के इस सूखे और कंटीले रेगिस्तान में अपने वजूद को बचानें की कोशिशों में जिस राह चली, वो राहें ही मेरे लिए लिए दलदली होती चली*... प्यार के नाम पर स्वार्थ को पाया और स्वार्थ ही अपनाया... मगर अब लौट चली इन राहों से, जब निस्वार्थ प्यार का तोहफा लेकर वो मेरे प्रेम सागर मेरे दर पर आया...  *कल्प कल्प का स्नेह बरसाता वो प्रेम का सागर बैठा है मेरे सामने... और चातक के समान प्यासी मैं आत्मा उस स्नेह की बूँद-बूँद को निरन्तर पिये जा रही हूँ*...

 

  *नयनों से अविरल स्नेह बरसाते स्नेह के सागर बाप मुझ लवलीन आत्मा से बोलें:-"स्नेह सरिता मेरी मीठी बच्ची... जन्म-जन्म की पुकार का प्रत्यक्ष फल ये परमात्म प्यार अब आपने पाया है*... ब्राह्मण जीवन के आधार परमात्म प्यार से तीनो मंजिलों को पार किया... *इस प्रेम में डूबकर क्या देहभान की विस्मृति हुई है? सर्वसबंधो का रस एक बाप में पाया है? और दुनियावी आकर्षणों से छुटकारा पाया... ?*"

 

_ ➳  *निस्वार्थ प्रेम से भरपूर हो कर दैहिक सम्बन्धों के मोहपाश से मुक्त मैं आत्मा रूहानी स्नेह सागर से बोली:-" मीठे बाबा... आपके अनोखे स्नेह ने सब कुछ सहज ही भूलाया है*... त्याग करना नही पडा... स्वतः ही त्याग  कराया है, चत्तियाँ लगी ये अन्तिम जन्म की जर्जर काया, क्या मोल रह गया इसका... बदले में में इसके जब ये चमचमाता फरिश्ता रूप पाया... *सबंध संस्कार दैवी हो रहे... जीवन में दिव्यता को पाया...*"

 

  *ईश्वरीय मर्यादाओं का कंगन बाँध कर हर बंधन से छुडाने वाले मुक्तिदाता बाप मुझ आत्मा से बोले:-*" सर्व सम्बन्धों का सुख मुझ बाप से पाने वाली मेरी मीठी बच्ची... निस्वार्थ प्रेम के लिए तरसती संसार की आत्माओं को भी अब *परमात्म स्नेह का अनुभव कराओं*... सदा ही स्नेह माँगने वालो की कतार में खडे इन स्नेह के प्यासों पर परमात्म स्नेह का मीठा झरना बन बरस जाओं... *दैहिक संबन्धों में बूँद बूँद स्नेह तलाशते इन प्यासों को परमात्म संबन्धों का अनुभव कराओं...*"

 

_ ➳  *एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति से सब कुछ विस्मृत करने वाली मैं आत्मा दिलाराम बाप से बोली:-"मीठे बाबा... आपकी स्मृति से सर्व समर्थियाँ पायी है मैने*... स्नेह सागर को स्वयं में समाँकर अब उसी के रूप में ढलती जा रही हूँ... *परमात्म स्नेह का ये झरना मेरे स्वरूप से बेहद में बरस रहा है... प्रकृति भी परमात्म प्रेम से भरपूर हो गयी है... इस कल्प वृक्ष का तना भी भरपूर हुआ, पत्ता पत्ता प्रभु प्रेम से हरष रहा है...*"

 

  *अव्यक्त रूप में बेहद के सेवाधारी विश्व कल्याणी बाप मुझ आत्मा से बोलें:- "समर्थ संकल्पों के द्वारा व्यर्थ का खाता समाप्त करने वाली मेरी होली हंस बच्ची!... अब ये प्यार शान्ति सुख की किरणें बेहद में फैलाओं*... अपने अन्तिम स्थिति के अन्तःवाहक स्वरूप से अब सबको उडती कला का अनुभव कराओं... *नाजुक समय की नाजुकता को पहचानों और एक एक सेकेन्ड का अभ्यास बढाओं... अपने शक्ति स्वरूप से शक्तिमान का दीदार कराओं...*"

 

_ ➳  *फालो फादर कर मनसा सेवा से कमजोरों में बल भरने वाली मैं आत्मा स्नेह सागर बापदादा से  बोली:-*" मीठे बाबा... आपके निस्वार्थ प्रेम ने मँगतों से देने वालों की कतार में खडा किया है... रोम रोम आपके स्नेह में डूबा है, *जो निस्वार्थ स्नेह आपसे पाया है अब औरों पर लुटा रही हूँ... इस असीम स्नेह का कण कण मैं आप समान मनसा सेवा से चुका रही हूँ*... स्नेह के अविरल झरने अब दोनो ओर से ही झर झर बह रहे है,.. और *मैं आत्मा इस बहते स्नेह के दरिया में फिर से डूबी जा रही हूँ*...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- गृहस्थ व्यवहार में रहते इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर पूरा पावन बनना है*"

 

 _ ➳  परमधाम में मैं आत्मा पतित पावन, पवित्रता के सागर अपने परमपिता परमात्मा शिव बाबा से पवित्रता की शक्तिशाली किरणे लेकर स्वयं को पावन बना रही हूं। *बाबा से आ रही पवित्रता की श्वेत किरणों का ज्वालामुखी स्वरूप मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी 63 जन्मो के विकारों की कट को जलाकर भस्म कर रहा है*। विकारों की कट उतरने से मैं आत्मा धीरे धीरे अपने उसी सम्पूर्ण निर्विकारी सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूं जिसे देहभान में आ कर, विकारों में लिप्त हो कर मैंने गंवा दिया था।

 

 _ ➳  परमधाम में बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाकर, योग की अग्नि में तपकर मेरा स्वरूप सच्चे सोने के समान बन गया है। *सोने के समान उज्ज्वल बन कर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ रही हूं और प्रवेश करती हूं सफेद प्रकाश की एक ऐसी दुनिया में जहां शिव बाबा अपने नन्दी अर्थात अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान हो कर हम बच्चों से अव्यक्त मिलन मनाते हैं*। इस स्थान पर पहुंच कर अपने लाइट के सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप को धारण कर मैं पहुंच जाती हूँ बापदादा के सामने। मैं देख रही हूं ब्रह्माबाबा की भृकुटि में शिव बाबा को चमकते हुए। बाबा की भृकुटि से पवित्रता का अनन्त प्रकाश निकल रहा है जिसकी किरणे पूरे सूक्ष्म लोक में फैल रही हैं। बापदादा से आ रही पवित्रता की शक्तिशाली किरणें मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे पावन बना रही हैं।

 

 _ ➳  अब बाबा मेरे समीप आ कर अपने वरदानी हाथ से मेरे मस्तक को छूते हैं। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे बहुत तेज करंट मेरे अंदर प्रवाहित होने लगा है जिसने मेरे अंदर की कट को पूरी तरह जला कर भस्म करके मुझे डबल लाइट बना दिया है। मैं फ़रिशता जैसे पवित्रता का अवतार बन गया हूँ। अब *बाबा अपना हाथ ऊपर उठाते हैं औऱ देखते ही देखते एक कमल का पुष्प बाबा के हाथ मे आ जाता है जो धीरे धीरे बढ़ने लगता है*। बाबा उस कमल पुष्प को मेरे सामने रख देते हैं और मुझे उस कमल आसन पर बैठने का इशारा करते हैं। *कमल आसन पर विराजमान हो कर, बापदादा से विजय का तिलक ले कर अब मैं फ़रिशता ईश्वरीय सेवा अर्थ नीचे पतित दुनिया मे लौट आता हूँ*।

 

 _ ➳  ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर स्वयं को सदा कमल आसन पर विराजमान अनुभव करने से मुझे अपने मस्तक पर निरन्तर सफ़ेद मणि के समान चमकता हुआ पवित्रता का प्रकाश सदा अनुभव होता है जिससे निरन्तर पवित्रता के शक्तिशाली प्रकम्पन निकल कर चारों ओर फैलते रहते हैं। *मेरे चारों ओर पवित्रता का एक ऐसा शक्तिशाली औरा बन चुका है जो मुझे हर प्रकार की अपवित्रता से बचा कर रखता है* और गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे कमल पुष्प समान पवित्र जीवन जीने का बल देता है।

 

 _ ➳  घर गृहस्थ में कमल पुष्प समान रहकर अपनी रूहानियत की खुश्बू अब मैं चारों और फैला रही हूं। *लौकिक सम्बन्धों को अलौकिक बना कर, सबको आत्मा भाई भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास मुझे प्रवृति में रहते हुए भी पर - वृति का अनुभव करवा रहा है*। अपने लौकिक सम्बन्धियो को देख कर मैं यही अनुभव करती हूं कि ये सब भी शिव बाबा की अजर, अमर, अविनाशी सन्तान हैं। ये सब भी शिव बाबा के बच्चे और मेरे भाई हैं। संसार के सभी मनुष्य मात्र मेरे भाई बहन है। वे सब भी पवित्र आत्मायें हैं। *इन्ही शुभ और श्रेष्ठ संकल्पो के साथ, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्रता का श्रृंगार किये अब मैं सबको पवित्रता की राह पर चलने का रास्ता बता रही हूं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हजार भुजा वाले ब्रह्मा बाप के साथ का निरन्तर अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सच्ची स्नेही आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा अशरीरी स्थिति का अनुभव व अभ्यास करती हूँ  ।*

   *मैं नम्बर आगे लाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

   *मैं अशरीरी आत्मा नम्बरवन आने का अभ्यास करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  वातावरण को पावरफुल बनाने का लक्ष्य रखो तो सेवा की वृद्धि के लक्षण दिखाई देंगे:- जैसे मन्दिर का वातावरण दूर से ही खींचता है, ऐसे याद की खुशबू का वातावरण ऐसा श्रेष्ठ हो जो आत्माओं को दूर से ही आकर्षित करे कि यह कोई विशेष स्थान है। *सदा याद की शक्ति द्वारा स्वयं को आगे बढ़ाओ और साथ-साथ वायु मण्डल को भी शक्तिशाली बनाओ। सेवाकेन्द्र का वातावरण ऐसा हो जो सभी आत्मायें खिंचती हुई आ जाएं। सेवा सिर्फ वाणी से ही नहीं होती, मंसा से भी सेवा करो। हरेक समझे मुझे वातावरण पावरफुल बनाना है, हम जिम्मेवार हैं। ऐसा जब लक्ष्य रखेंगें तो सेवा की वृद्धि के लक्षण दिखाई देंगे।* आना तो सबको है, यह तो पक्का है। लेकिन कोई सीधे आ जाते हैं, कोई चक्कर लगाकर, भटकने के बाद आ जाते हैं। इसलिए एक-एक समझे कि मैं जागती ज्योति बनकर ऐसा दीपक बनूँ जो परवाने आपेही आयें। आप जागती ज्योति बनकर बैठेंगे तो परवाने आपेही आयेंगे।

 

✺  *"ड्रिल :- सेवाकेंद्र का वायुमंडल शक्तिशाली बनाना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सेवाकेंद्र के हाल के चेयर पर चियरफुल होकर बैठी हूँ...* सभी भाई-बहनें भी बैठे हुए हैं... अगरबत्ती की भीनी-भीनी खुशबू आ रही है... चारों ओर लाल रोशनी है... *सामने ब्रह्मा बाबा की तस्वीर और शिवबाबा का लाल लाइट चमक रहा है...* सभी मंत्रमुग्ध होकर बाबा के गाने सुनते हुए झूम रहे हैं... सामने दीदी आकर विराजमान हो जाती हैं... दीदी सबको योग कमेंट्री द्वारा याद की यात्रा पर ले चलती हैं...

 

_ ➳  *मैं आत्मा भृकुटी के चेयर पर गॉडली स्टूडेंट के स्वमान में विराजमान हो जाती हूँ...* सभी प्यारे बाबा का आह्वान करते हैं... आह्वान करते ही सामने शिव बाबा के लाल लाइट में फ़्लैश होता है और वो लाइट का फ़्लैश ब्रह्मा बाबा की तस्वीर में बाबा के मस्तक में चमकने लगता है... *ऐसा लग रहा सामने तस्वीर से बाबा बाहर निकल साकार रूप में खड़े होकर मुस्कुरा रहे हैं...* और सबको अपने प्रेम, सुख, शांति की किरणों से आच्छादित कर रहे हैं...

 

_ ➳  *शांति के सागर को सामने खड़े देख सभी अपने देहभान से मुक्त हो रहे हैं...* शांति के सागर की लहरें चारों ओर फैल रही हैं... मैं आत्मा शांति के सागर की अनंत गहराईयों में समाती जा रही हूँ... न कोई आवाज़, न कोई हलचल, न कोई दुःख-अशांति... मैं आत्मा गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ... *सभी के साकार शरीर लुप्त हो चुके हैं... सभी अपने लाइट के शरीर में चमक रहे हैं... सभी जागती ज्योति बन चुके हैं...*

 

_ ➳  *सेवाकेंद्र का वायुमंडल रूहानियत की खुशबू से महक रहा है...* सभी जगमगाते हुए दीपक लग रहे हैं... सभी से वायब्रेशंस निकलकर चारों ओर फैल रहे हैं... सेवाकेंद्र के बाहर दूर-दूर तक रूहानी खुशबू फैल रही है... सेवाकेंद्र का वातावरण पावरफुल बन गया है... *सभी रूहानी दीपक बन अपनी रोशनी चारों ओर फैला रहे हैं... और परवानों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं...*

 

_ ➳  *सेवाकेंद्र शांतिकुंड बन चुका है... शांति की किरणें विश्व की आत्माओं को दूर से ही आकर्षित कर रही हैं...* सभी आत्मायें ऐसा अनुभव कर रही हैं कि यह कोई विशेष स्थान है... सभी भटकती हुई आत्माएँ महसूस कर रही हैं कि यही उनकी मंजिल है... सभी अशांत, अतृप्त आत्मायें शांति की शक्ति से खींचे चले आ रहे हैं... *याद की शक्ति द्वारा मैं आत्मा स्वयं भी आगे बढ़ता हुआ अनुभव कर रही हूँ और साथ-साथ वायु मण्डल को भी शक्तिशाली बना रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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