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 25 / 05 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपनी चलन से बाप का शो किया ?*

 

➢➢ *प्रीत बुधी बन एक बाप की अवयभिचारी याद में रहे ?*

 

➢➢ *स्वयं को स्वयं ही परिवर्तन कर विश्व के आधारमूरत बनकर रहे ?*

 

➢➢ *संगठन में उमंग उत्साह और श्रेष्ठ संकल्प से सफलता का अनुभव किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  बापदादा जानते हैं कि पुराने शरीर है तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। *लेकिन ऐसा अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सी मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा।* जैसे आदि सेवा के समय साधन नहीं थे, लेकिन साधना कितनी श्रेष्ठ रही। *तो यह साधना है बीज, साधन है विस्तार। तो साधना का बीज छिपने नहीं दो, अभी फिर से बीज को प्रत्यक्ष करो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं 'एक बाप, दूसरा न कोई' स्थिति वाली आत्मा हूँ"*

 

   एक बाप, दूसरा न कोई - ऐसी स्थिति में सदा स्थित रहने वाली सहयोगी आत्मा हो? एक को याद करना सहज है। अनेकों को याद करना मुश्किल होता है। अनेक विस्तार को छोड़ सार स्वरूप एक बाप - इस अनुभव में कितनी खुशी होती है। *खुशी जन्म सिद्ध अधिकार है, बाप का खजाना है तो बाप का खजाना बच्चों के लिए जन्म सिद्ध अधिकार होता है। अपना खजाना है तो अपने पर नाज होता है - अपना है।* और मिला भी किससे है? अविनाशी बाप से।

 

  *तो अविनाशी बाप जो देगा, अविनाशी देगा। अविनाशी खजाने का नशा भी अविनाशी है। यह नशा कोई छुड़ा नहीं सकता क्योंकि यह नुकसान वाला नशा नहीं है। यह प्राप्ति कराने वाला नशा है।* वह प्राप्तियॉं गंवाने वाला नशा है। तो सदा क्या याद रहता?

 

  *एक बाप, दूसरा न कोई। दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी। और एक बाप है तो एकरस स्थिति होगी। एक के रस में लवलीन रहना बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि आत्मा का ओरीजनल स्वरूप ही है - एकरस।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अब आप लोगों को भी अव्यक्त वतनवासी स्टेज तक पहूँचना है, तभी तो आप साथ चल सकेंगे।* अभी यह साकार से अव्यक्त रूप का पार्ट क्यों हुआ? सबको अव्यक्त स्थिति में स्थित कराने क्योंकि अब तक उस स्टेज तक नहीं पहूँचे हैं।

 

✧  अभी अन्तिम पुरुषार्थ यह रह गया है। इसी से ही साक्षात्कार होंगे। *साकार स्वरूप के नशे की प्वाइन्टस तो बहुत हैं कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ और मैं शक्ति हूँ। इस स्मृति से तो आपको नशे और खुशी का अनुभव होगा।*

 

✧   *लेकिन जब तक इस अव्यक्त स्वरूप में, लाइट के कर्ब में स्वयं को अनुभव नहीं किया है, तब तक औरों को आपका साक्षात्कार नहीं हो सकेगा।* क्योंकि जो दैवी स्वरूप का साक्षात्कार भक्तों को होगा, यह लाइट रूप की कार्ब में चलते - फिरते रहने से ही होगा। साक्षात्कार भी लाइट के बिना नहीं होता है। *स्वयं जब लाइट रूप में स्थित होंगे, आपके लाइट रूप के प्रभाव से ही उनको साक्षात्कार होगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जो ट्रस्टी होगा उसका विशेष लक्षण सदैव स्वयं को हर बात में हल्का अनुभव करेगा।* डबल लाइट अनुभव करेगा। शरीर के भान का भी बोझ न हो - इसको कहा जाता है - 'ट्रस्टी'। *अगर देह के भान का बोझ है तो एक बोझ के साथ अनेक प्रकार के बोझ से परे रहने का यह साधन है।* तो चैक करो बॉडी-कान्सेस में कितना समय रहते? जब बाप के बने, तो तन-मन-धन सहित बाप को बने ना?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- एक बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना"*

 

_ ➳  विषय सागर में डूबी हुई मेरे जीवन की नईया को पार लगाने वाले मेरे खिवैया की यादों के नाव में बैठकर मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ सूक्ष्मवतन... विकारों के गर्त से निकाल शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने वाले मेरे स्वीट बाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए बापदादा अपने मस्तक और रूहानी नैनों से मुझ पर पावन किरणों की बौछारें कर रहे हैं... एक-एक किरण मुझमें समाकर इस देह, देह की दुनिया, देह के संबंधो से डिटैच कर रही हैं... और मैं आत्मा सबकुछ भूल फ़रिश्तास्वरुप धारण कर बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...*

 

  *अपने सुनहरी अविनाशी यादों में डुबोकर सच्चे सौन्दर्य से मुझे निखारते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की यादो में ही वही अविनाशी नूर वही रंगत वही खूबसूरती को पाओगे... *इसलिए हर पल ईश्वरीय यादो में खो जाओ... बुद्धि को विनाशी सम्बन्धो से निकाल सच्चे ईश्वर पिता की याद में डुबो दो...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा के यादों की छत्रछाया में अमूल्य मणि बनकर दमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह अभिमान और देहधारियों की यादो में अपने वजूद को ही खो बैठी थी... *आपने प्यारे बाबा मुझे सच्चे अहसासो से भर दिया है... मुझे मेरे दमकते सत्य का पता दे दिया है...”*

 

  *मेरे भाग्य की लकीर से दुखों के कांटे निकाल सुखों के फूल बिछाकर मेरे भाग्यविधाता मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता धरा पर उतर कर अपने कांटे हो गए बच्चों को फूलो सा सजाने आये है... *तो उनकी याद में खोकर स्वयं को विकारो से मुक्त कर लो... ये यादे ही खुबसूरत जीवन को बहारो से भरा दामन में ले आएँगी...”*

 

_ ➳  *शिव पिता की यादों के ट्रेन में बैठकर श्रीमत की पटरी पर रूहानी सफ़र करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी प्यारी सी गोद में अपनी जनमो के पापो से मुक्त हो रही हूँ... *मेरा जीवन खुशियो का पर्याय बनता जा रहा है... और मै आत्मा सच्चे सुखो की अधिकारी बनती जा रही हूँ...”*

 

  *देह की दुनिया के हलचल से निकाल अपनी प्यारी यादों में मुझे अचल अडोल बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपनी हर साँस संकल्प और समय को यादो में पिरोकर सदा के पापो से मुक्त हो जाओ... *खुशियो भरे जीवन के मालिक बन सुखो में खिलखिलाओ... यादो में डूबकर आनन्द की धरा, खुशियो के आसमान को अपनी बाँहों में भर लो...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा लाइट हाउस बन अपने लाइट को चारों और फैलाकर इस जहाँ को रोशन करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... मुझे ईश्वर पिता मिल गया है... मेरा जीवन सुखो से संवर गया है... *प्यारे बाबा आपने अपने प्यार में मुझे काँटों से फूल बना दिया है... और देवताई श्रृंगार देकर नूरानी कर दिया है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- संग दोष से अपनी बहुत - बहुत सम्भाल करनी है*"

 

 _ ➳  *"बचपन के दिन भुला ना देना, आज हंसे कल रुला ना देना" गीत की इन पंक्तियों पर विचार करते - करते मैं खो जाती हूँ अपने ईश्वरीय बचपन की उन सुखद अनमोल स्मृतियों में जब पहली बार मुझे मेरा सत्य परिचय मिला था*, अपने पिता परमात्मा का सत्य बोध हुआ था। उस सुखद एहसास का अनुभव करते - करते आंखों के सामने एक दृश्य उभर आता है।

 

 _ ➳  मैं देख रही हूं एक स्थान पर जैसे एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। एक छोटे बच्चे के रूप में मैं उस मेले में घूम रही हूं। सुंदर सुंदर नजारे देख कर आनन्दित हो रही हूं। बहुत देर तक उस मेले का आनन्द लेने के बाद मुझे अनुभव होता है कि मेरे साथ तो कोई भी नही। *मैं स्वयं को एकदम अकेला अनुभव करती हूं और अपने पिता को ढूंढने लगती हूं। मैं जोर - जोर से चिल्ला रही हूं किन्तु मेरी आवाज कोई नही सुन रहा*। सभी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अब उस मेले की कोई भी वस्तु मुझे आकर्षित नही कर रही। घबरा कर मैं एकांत में बैठ अपना सिर नीचे कर रोने लगती हूँ। तभी कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं जैसे ही अपना सिर ऊपर उठाती हूँ। *सामने एक लाइट का फ़रिशता जिसके मस्तक से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा है मुझे दिखाई देता है और वो फ़रिशता मुझ से कह रहा है, बच्चे:- "घबराओ मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ"*

 

 _ ➳  इस आवाज को सुनते ही मेरी चेतनता लौट आती है और याद आता है कि इतनी बड़ी दुनिया के मेले में, इतनी भीड़ में होते हुए भी मैं अकेली ही तो थी और ढूंढ रही थी अपने पिता परमात्मा को। मैं तो नही ढूंढ पाई लेकिन उन्होंने आकर मुझे ढूंढ लिया। *अपने ईश्वरीय जीवन का वो दिन याद आता है जब पहली बार खुद भगवान के उन शब्दों को सुना था कि तुम देह नही आत्मा हो, मेरे बच्चे हो, मेरी ही तरह ज्योति बिंदु रूप है तुम्हारा*। कितने जन्म हो गए तुम्हे मुझसे बिछुड़े हुए। आओ मेरे पास आओ। अपने पिता परमात्मा के सत्य परिचय को जान कर, उनके असीम स्नेह को अनुभव करने का वो एहसास स्मृति में आते ही मन अपने उस प्यारे पिता के प्रति असीम प्यार से भर जाता है और उनसे मिलने की तड़प मन मे उतपन्न हो उठती है।

 

 _ ➳  अपने पिता परमात्मा से मिलने के लिए अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर, निर्बन्धन बन, अब मैं चमकता हुआ सितारा, ज्योति बिंदु आत्मा अपनी साकारी देह को छोड़ अपने निजधाम परमधाम की ओर चल पड़ती हूं और सेकंड में पहुंच जाती हूं प्रेम, सुख, शांति के सागर अपने शिव पिता के पास। *एक दम शांत और सुषुप्त अवस्था में मैं स्थित हूं। संकल्पों विकल्पों की हर प्रकार की हलचल से मुक्त इस शान्तिधाम में शांति के सागर अपने शिव पिता के सामने मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूं*। मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं अपलक शक्तियों के सागर अपने शिव पिता को निहारते हुए, उनसे अनेक जन्मों के बिछड़ने की सारी प्यास बुझा रही हूँ। उनके प्रेम से, उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूं।

 

 _ ➳  परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर, अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति का गहन अनुभव करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। मेरे शिव पिता परमात्मा के प्रेम का अविनाशी रंग और मेरे ईश्वरीय बचपन की सुखद स्मृतियां अब मुझे देह और देह की दुनिया मे रहते हुए भी उनके संग के प्रभाव से  मुक्त कर रही हैं। *ईश्वरीय प्रेम के रंग के आगे दुनियावी प्रेम अब मुझे बहुत ही फीका दिखाई दे रहा है इसलिए हर प्रकार के संग दोष से अपनी सम्भाल करते हुए अब मैं ईश्वरीय प्रेम के रंग में रंग कर अपने जीवन को तथा औरों के जीवन को खुशहाल बना रही हूं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं स्वयं को स्वयं ही परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं विश्व की आधारमूर्त बनने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं श्रेष्ठ पद की अधिकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा संगठन में सदा उमंग उत्साह का अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा संगठन में सदा श्रेष्ठ संकल्पों से सफलता प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सफलतामूर्त हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ एक है सेवाधारी बन सेवा करने वाले और दूसरे हैं नामधारी बनने के लिए सेवा करने वाले। फर्क हो गया ना। *सच्चे सेवाधारी जिन आत्माओं की सेवा करेंगे उन्हों को प्राप्ति के प्रत्यक्षफल का अनुभव करायेंगे।* नामधारी बनने वाले सेवाधारी उसी समय नामाचार को पायेंगे - बहुत अच्छा सुनाया, बहुत अच्छा बोला, लेकिन प्राप्ति के फल की अनुभूति नहीं करा सकेंगे। तो अन्तर हो गया ना! ऐसे एक है लगन से सेवा करना, एक है डयूटी के प्रमाण सेवा करना। *लगन वाले हर आत्मा की लगन लगाने के बिना रह नहीं सकेंगे। डयूटी वाला अपना काम पूरा कर लेगा, सप्ताह कोर्स करा लेगा, योग शिविर भी करा लेगा, धारणा शिविर भी करा लेगा, मुरली सुनाने तक भी पहुँचा लेगा, लेकिन आत्मा की लगन लग जाए इसकी जिम्मेवारी अपनी नहीं समझेंगे।* कोर्स के ऊपर कोर्स करा लेंगे लेकिन आत्मा में फोर्स नहीं भर सकेंगे। और सोचेंगे मैंने बहुत मेहनत कर ली। लेकिन यह नियम है कि सेवा की लगन वाला ही लगन लगा सकता है। तो अन्तर समझा? यह है *मिली हुई प्रॉपर्टी को बढ़ाना।*

✺ *"ड्रिल :- आत्माओं की सेवा कर उन्हें प्राप्ति के प्रत्यक्ष फल का अनुभव करवाना"*

➳ _ ➳ गोधूली सी शाम में ढलते हुए सूरज के सामने मौन अवस्था में इस आकर्षित करने वाले दृश्य को मैं आत्मा अपनी खुली आँखों से निहार रही हूँ... इस दृश्य को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो *इस धरती रूपी दुल्हनिया ने लाल-सुनहरे रंग की चुनरिया ओढ़ रखी हो... और साँझ रूपी घूंघट मुख पर डाल कर शर्मा रही हो...*

➳ _ ➳ उड़ते पंछी को वापिस अपने घोंसले में जाते हुए देख मेरा मन ये सोचने पर मजबूर हो रहा है कि किसनेे इन्हें निडर हो कर उड़ना सिखाया और इन्हें बिना किसी की ऊँगली पकडे हर तूफानों से लड़ना सिखाया... तभी मेरा अन्तर्मन पहनकर फरिश्ता चोला पहुँच गया आबू पर्वतों में... जहाँ बाबा कुटिया में बैठ कर मुझ आत्मा को अनमोल शिक्षाएं दे कर मुझे परिपूर्ण बना रहे हैं... बाबा मुझसे कहते हैं *सेवा को ड्यूटी नहीं लगन बनाओ अगर सेवा ड्यूटी समझ कर करोगे तो आप समान और बाप समान कैसे बना पाओगे? कैसे, अपनी और उनकी परमात्मा से लगन लगा पाओगे ?* ड्यूटी समझ कर तुम सेवा करोगे तो सेवाधारी बन कर रह जाओगे ? कैसे परमात्मा से प्रीत निभाओगे...

➳ _ ➳ इतना सुनकर मैं बाबा का धन्यवाद करते हुए फरिश्ते चाल चलते हुए वापिस उस स्थान पर आ जाती हूँ... और मैं अपने आप से ये वादा करती हूँ... *अब से मैं हर आत्मा में कोर्स नहीं ज्ञान का फ़ोर्स भर दूँगी... एक सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को लगन की अनुभूति कराउंगी...* जैसे एक चिड़िया अपने नवजात शिशु को सेवाधारी बनकर स्वतंत्र उड़ना सिखाती है... और स्वयं अलग दिशा में उड़ जाती है... वैसे ही मैं आत्मा अपनी सहयोगी आत्माओं में पुरुषार्थ की लगन लगाकर उन्हें संपूर्णता की मंजिल की राह दिखाउंगी...

➳ _ ➳ *सच्ची सेवाधारी बन हर आत्मा को सेवा के प्रत्यक्ष फल का अनुभव कराउंगी...* नामधारी बन केवल नामाचार को नहीं पाऊंगी... उड़ते पक्षी की तरह सभी आत्माओं में तूफानों से लड़कर जीतना सिखाऊंगी... नहीं रोक पाये जिन्हें कोई आंधी -तूफ़ान ऐसा उड़ता परिन्दा बनाउंगी... केवल अच्छा ज्ञान नहीं सुनाकर... उन्हें ज्ञानी आत्मा बनाउंगी... हमेशा लगन से सेवा करके सभी आत्माओं को प्राप्ति का अनुभव कराउंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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