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❍ 01 / 05 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बाप को अपनी पढाई का जलवा दिखलाया ?*
➢➢ *बाप से क्षमा लेकर स्वयं को सुधारा ?*
➢➢ *अपनी पावरफुल स्टेज द्वारा सर्व की शुभ कामनाओं को पूरण किया ?*
➢➢ *सर्व ईश्वरीय मर्यादाओं पर चल मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लगन में लवलीन, प्रेम के सागर में समाए हुए, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए को ही कहेंगे तपस्वी।* ऐसे त्याग, तपस्या वाले ही सेवाधारी कहे जाते हैं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाबा की अति स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा बाप की अति स्नेही, सहयोगी आत्मायें अनुभव करते हो? स्नेही की निशानी क्या होती है? जिससे स्नेह होता है उसके हर कार्य में सहयोगी जरूर होंगे। *अति स्नेही आत्मा की निशानी सदा बाप के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी होगी। जितना जितना सहयोगी, उतना सहजयोगी क्योंकि बाप के सहयोगी हैं ना। दिन-रात यही लग्न रहे-बाबा और सेवा, इसके सिवाए कुछ है ही नहीं। अगर लौकिक कार्य भी करते हो तो बाप की श्रीमत प्रमाण करते हो, इसलिए वह भी बाप का कार्य है।*
〰✧ *लौकिक में भी अलौकिकता ही अनुभ्व करेंगे, कभी लौकिक कार्य समझ न थकेगे, न फंसेंगे, न्यारे रहेंगे। तो ऐसे स्नेही और सहयोगी आत्मायें हो। न्यारे होकर कर्म करेंगे तो बहुत अच्छा कर्म होगा। कर्म में फंसकर करने से अच्छा नहीं होता, सफलता भी नहीं होती, मेहनत भी बहुत और प्राप्ति भी नहीं। इसलिए सदा बाप के स्नेह में समाई हुई सहयोगी आत्मायें हैं।* सहयोगी आत्मा कभी भी माया की योगी हो नहीं सकती, उसका माया से किनारा हो जायेगा।
〰✧ *हर संकल्प में 'बाबा' और 'सेवा', तो जो नींद भी करेंगे, उसमें भी बड़ा आराम मिलेगा, शान्ति मिलेगी, शक्ति मेलेगी। नींद, नींद नहीं होगी, जैसे कमाई करके खुशी में लेटे हैं। इतना परिवर्तन हो जाता है! 'बाबा-बाबा' करते रहो। बाबा कहा और कार्य सफल हुआ पड़ा है। क्योंकि बाप सर्वशक्तिवान है। सर्वशक्तिवान बाप की याद स्वत: ही हर कार्य को शक्तिशाली बना देती है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ मास्टर आलमाइटी अथार्टी अपने को समझते हो? *जब आलमाइटी अथार्टी भी हो तो क्या अपनी बुद्धि की लगन को अथार्टी से जहाँ चाहो वहाँ नहीं लगा सकते?* अथार्टी के आगे यह अभ्यास मुश्किल है वा सहज है? जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो ना।
〰✧ अभी हाथ को ऊपर या नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। *तो जैसे स्थूल में इन्द्रियों का मालिक बन जब कार्य में लगा सकते हो वैसे ही संकल्प को वा बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सकते हो इसको ही ईश्वरीय अथार्टी कहा जाता है।* जो बुद्धि की लगन भी ऐसे ही सहज जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो जैसे स्थूल हाथ - पाँव को बिल्कुल सहज रीति जहाँ चाहो वहाँ चलाते हैं। वा कर्म में लगाते हैं। ऐसे अभ्यासी को ही मास्टर सर्वशक्तिवान वा मास्टर नाँलेजफुल कहा जाता है।
〰✧ अगर यह अभ्यास नहीं है तो मास्टर सर्वशक्तिवान वा नाँलेजफुल नहीं कह सकते। *नाँलेजफुल का अर्थ ही है जिसको फुल नाँलेज हो कि इस समय क्या करना है, क्या नहीं करना है। इससे क्या लाभ है, और न करने से क्या हानी है।* यह नाँलेज रखने वाले ही नाँलेजफुल हैं और साथ - साथ मास्टर सर्वशक्तिवान होने कारण सर्व शक्तियों के आधार से यह अभ्यास सहज और निरंतर बन ही जाता है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नजदीक अनुभव करते जा रहे हो? *कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचने की निशानी जानते हो? समीपता की निशानी समानता है।* किस बात में? आवाज में आना व आवाज से परे हो जाना साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना, सुनना और स्वरूप होना, मनन करना और मग्न रहना, रूह-रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना, सोचना और करना, कर्मेन्द्रियों द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकति के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और देखते हुए न देखना, सम्पक में आते कमल-पुष्प् के समान रहना, इन सभी बातों में समानता। *उसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था की समीपता।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक विदेही बाप को याद करना"*
➳ _ ➳ *इस रूहानी संगम के तट पर मैं आत्मा नदी सागर बाबा से मिलने यादों में लहराते हुए पहुँच जाती हूँ दिव्य लोक परमधाम में... ज्ञान, गुण, शक्तियों के सागर बाबा से एक होकर उनमे समा जाती हूँ... ये देह, देह की दुनिया, वस्तु, वैभव सबकुछ भूल एक विदेही बाबा में खो जाती हूँ...* मीठे बाबा मुझे अपनी गोद में लेकर पूरे ब्रह्माण्ड की सैर कराते हुए अव्यक्त वतन में श्वेत चमकीले बादलों के सिहांसन पर बिठाकर मीठी मीठी शिक्षाओं की बौछारें करते हैं...
❉ *सुहानी यादों के झूले में झुलाते प्यार का समंदर बहाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *खुबसूरत चमकती मणि आत्मा हो, देह नही हो... इसलिए इस देहभान से मुक्त हो, अपने अविनाशीपन के नशे में खो जाओ...* अब इस देह के आवरण से बाहर निकल, अशरीरी आत्मा के स्वमान में आओ... और पिता तुल्य देही अभिमानी हो, साथी बन घर साथ चलो..."
➳ _ ➳ *देहभान को छोडकर यादों के पंख लगाकर एक बाबा से ही दिल लगाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप की चमक में डूबती जा रही हूँ... *मीठे बाबा आपके प्यार की गहराइयो में खोकर आप समान होती जा रही हूँ... स्वयं के निराकारी और आपके परम् स्वरूप को यादो में बसाकर मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ...”*
❉ *अपने आँचल में मुझ सितारे को समेटकर देह की दुनिया से न्यारी बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब यह खेल पूरा होने को है... *इसलिये इस देह के मटमैलेपन को आत्मिक स्मृति से मिटाओ... अपने दमकते सौंदर्य आत्मा मणि को यादो में प्रतिपल तरोताजा कर... बाप समान निराकारी बन जाओ...* निराकारी बन मीठे बाबा संग अब घर को चलना है यह मीठी बात हर पल यादो में समालो..."
➳ _ ➳ *देह रूपी सीपी से मुक्त होकर मैं आत्मा मोती बन चमकते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में जनमो से खोयी अपनी आत्मिक सुंदरता को पुनः पाकर रोमांचित हो गई हूँ... *आपकी यादो की छत्रछाया में आप समान होती जा रही हूँ... देह के नश्वर आवरण से मुक्त हो, बन्धन मुक्त अवस्था को पाती जा रही हूँ..."*
❉ *प्यारे बाबा मेरे कानों में स्नेह की शहनाई बजाकर मेरी जिंदगी को खुशनुमा बनाते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वरीय यादो में आत्मिक सौंदर्य से दमक कर, चमकीले बन घर चलने की तैयारी में, हर साँस संकल्प से जुट जाओ... *इस पुरानी परायी दुनिया को भूल असली घर के आनन्द में डूब जाओ... परमधाम से प्यारा पिता जो लेने आया है, तो देह के सारे बन्धन तोड़कर, ख़ुशी ख़ुशी घर की ओर रुख करो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कली बाबा की यादों की बाँहों में फूल बन मुस्कुराते हुए कहती हूँ :-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी गोद में फूलो सी खिल रही हूँ... *अपनी सत्यता को पाकर सच्ची खुशियो को पा रही हूँ... मीठे बाबा आपके प्यार भरी हथेलियो में पल रही हूँ... और अशरीरी बन बेहद के नशे में खो गयी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भारत को स्वर्ग बनाने के धंधे में लग जाना है*"
➳ _ ➳ रामराज्य शब्द स्मृति में आते ही एक ऐसी दैवी दुनिया का चित्र आंखों के आगे उभर आता है जो सुखमय दुनिया मेरे प्रभु राम, मेरे परम प्रिय परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने हम बच्चों के लिये बनाई थी। जिसमे अपरमअपार सुख था, शांति थी, समृद्धि थी। *एक ऐसी दुनिया जहाँ सब मिल जुल कर बड़े प्यार से रहते थे। किसी के मन मे किसी के प्रति कोई ईर्ष्या - द्वेष कोई छल - कपट नही था*। उसी दैवी दुनिया अर्थात उस रामराज्य के बारे में विचार करते - करते मैं मन बुद्धि से पहुंच जाती हूँ उसी दैवी दुनिया में।
➳ _ ➳ स्वर्ण धागों से बनी हीरे जड़ित अति शोभनीय ड्रेस पहने एक राजकुमारी के रूप में मैं स्वयं को प्रकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उस देव भूमि, उस रामराज्य में देख रही हूँ जहां हरे भरे पेड़ पौधे, टालियों पर चहचहाते रंग-बिरंगे खूबसूरत पक्षी, *वातावरण में गूंजती कोयल की मधुर आवाज, फूलों पर इठलाती रंग बिरंगी तितलियां, बागों में नाचते सुंदर मोर, कल-कल करते सुगंधित मीठे जल के झरने, रस भरे फलों से लदे वृक्ष, सतरंगी छटा बिखेरती सूर्य की किरणे मन को आनन्द विभोर कर रही हैं*।
➳ _ ➳ प्रकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस देव भूमि पर सोलह कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम देवी-देवताओ को विचरण करते, पुष्पक विमानों मे बैठ उन्हें विहार करते मैं देख रही हूं। *लक्ष्मी नारायण की इस पुरी में राजा, प्रजा सभी असीम सुख, शान्ति और सम्पन्नता से भरपूर हैं*। चारों ओर ख़ुशी का माहौल हैं। दुख, अशांति का यहां नाम निशान भी दिखाई नही देता। ऐसे देवलोक के रमणीक नजारों को देख मैं मंत्रमुग्घ हो रही हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि से इस दैवी दुनिया की यात्रा कर मैं असीम आनन्द से भरपूर हो गई हूं। अपने देवताई स्वरूप का भरपूर आनन्द लेने के बाद अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होती हूँ और विचार करती हूँ कि यही भारत जब रामराज्य था तो कितना समृद्ध था। *किन्तु विकारों रूपी रावण की प्रवेशता ने इस समृद्ध भारत को कितना दुखी और कंगाल बना दिया और अब जबकि मेरे प्रभु राम इस रावण राज्य को फिर से रामराज्य बनाने के लिए आये हैं तो मुझे भी इस रामराज्य की स्थापना में अपने प्रभु राम का सहयोगी बन भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में लग जाना चाहिए*।
➳ _ ➳ इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब पर आ जाता हूँ। विश्व की सर्व आत्मायें मेरे सम्मुख हैं। *अब मैं उन्हें उनके वास्तविक स्वरूप से परिचित करवा रहा हूँ। संकल्पो के माध्यम से उन्हें बता रहा हूँ कि आपका वास्तविक स्वरूप बहुत आकर्षक है, बहुत ही प्यारा है*। आप सभी बीजरूप निराकार परम पिता परमात्मा शिव की अजर, अमर, अविनाशी सन्ताने हो।
➳ _ ➳ देह के भान में आकर आप कुरूप बन गये हो। आपका देवताई स्वरूप संपूर्ण सतोप्रधान, सर्वगुण सम्पन्न था। विकारों रूपी रावण की प्रवेशता ने आपका सुख और पवित्रता का वर्सा छीन कर आपको दुखी बना दिया है। *सो हे आत्मन - अब जागो! अज्ञान रूपी निद्रा का त्याग कर परमात्मा शिव द्वारा दिए इस सत्य ज्ञान को स्वीकार कर उसे अपने जीवन में धारण करो*। ये सत्य ज्ञान ही आपके जीवन को फिर से श्रेष्ठ बनायेगा और भारत फिर से रामराज्य बन जायेगा।
➳ _ ➳ विश्व की सर्व आत्माओं को रामराज्य में चलने का संदेश दे कर, अपने फ़रिशता स्वरूप को छोड़ अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में अपना सब कुछ सफल कर रहा हूँ। *श्वांसों - श्वांस अपने शिव पिता परमात्मा की याद में रह कर, मनसा, वाचा, कर्मणा सम्पूर्ण पवित्र बन, पवित्रता का सहयोग दे कर, अपने शिव पिता परमात्मा के साथ भारत को पावन बनाने के कार्य मे उनका मददगार बन रहा हूँ*। जिस सत्य ज्ञान को पाकर मेरे जीवन में इतना सुखद परिवर्तन आ गया उस सत्य ज्ञान को सारे विश्व की सर्व आत्माओं तक पहुंचा कर उनके जीवन में भी सुखदाई परिवर्तन लाने के निमित्त बन, उन्हें भी रामराज्य लाने और उसमें राज्य करने के लिए उन्हें प्रेरित कर रहा हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी पावरफुल स्टेज द्वारा सर्व की शुभ कामनाओं को पूर्ण करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं महादानी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा ईश्वरीय मर्यादाओं पर चलती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा ईश्वरीय मर्यादा का पालन करती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ‘‘आज बापदादा अपने पावन बच्चों को देख रहे हैं। हरेक ब्राह्मण आत्मा कहाँ तक पावन बनी है - यह सबका पोतामेल देख रहे हैं। *ब्राह्मणों की विशेषता है ही ‘पवित्रता'। ब्राह्मण अर्थात् पावन आत्मा। पवित्रता को कहाँ तक अपनाया है, उसको परखने का यन्त्र क्या है? ‘‘पवित्र बनो'', यह मन्त्र सभी को याद दिलाते हो लेकिन श्रीमत प्रमाण इस मन्त्र को कहाँ तक जीवन मे लाया है?* जीवन अर्थात् सदाकाल। जीवन में सदा रहते हो ना! तो जीवन में लाना अर्थात् सदा पवित्रता को अपनाना। इसको परखने का यन्त्र जानते हो?
✺ *"ड्रिल :- अपनी चेकिंग कर सदा पवित्रता को अपने जीवन में अपनाना”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सागर के किनारे प्यारे बाबा का हाथ पकड़ मॉर्निंग वाक कर रही हूँ...* ठंडी-ठंडी हवाएं चल रही हैं... सागर की लहरें हमारे पैरों को भीगो रहे हैं... *लग रहा है जैसे सागर की लहरें भी प्यारे बाबा का कोमल स्पर्श पाकर ख़ुशी से लहरा रहे हों...* ठंडी हवाएं बाबा को छूकर ख़ुशी में झूम रही हों... मैं आत्मा भी बाबा का हाथ और जोर से पकड़ उनके मुलायम मखमली स्पर्श से ख़ुशी की अनुभूति कर रही हूँ... *मेरे प्राणों से प्यारे बाबा सतगुरु बन मुझ आत्मा को पवित्रता की विशेषताओं को समझाकर सम्पूर्ण पवित्र बनने की शिक्षा दे रहे हैं...* सतगुरु बाबा मुझ आत्मा को पवित्र बनो, योगी बनो का मन्त्र देते हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा चेकिंग करती हूँ कि क्या मैं पवित्रता को सदा अपने जीवन में अपनाती हूँ या कभी-कभी... *मैं आत्मा अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर दिनचर्या को परखती हूँ...* क्या मैं आत्मा सदा सुख-शांति की अनुभूति करती हूँ या बीच-बीच में क्यों, क्या, कैसे के क्वेश्चन्स में फंसकर दुःखी-अशांत हो जाती हूँ... *अगर दुःख-अशांति का अनुभव करती हूँ अर्थात सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा नहीं हुई है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा संसार सागर से ऊपर उड़ते हुए पहुँच जाती हूँ परमधाम में पवित्रता के सागर के पास...* मैं आत्मा पवित्रता के सागर में गोते खा रही हूँ... *पवित्रता के सागर से निकलती किरणें मुझ आत्मा के अन्दर तक समा रहे हैं...* मुझ आत्मा से विकारों रूपी मैल बाहर निकल रहा है... मुझ आत्मा की सारी अशुद्धता खत्म हो रही है... मैं आत्मा शुद्ध पवित्र बन रही हूँ... मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति को धारण कर रही हूँ...
➳ _ ➳ *अब मैं आत्मा श्रीमत प्रमाण पवित्रता की शक्ति पर चलती हूँ... मैं आत्मा हर क्यों, क्या, कैसे के सवालों से परे रहती हूँ...* मैं आत्मा पवित्रता की शक्ति को धारण कर स्मृति स्वरुप बन गई हूँ... मुझ आत्मा को फिर से उस विषय सागर में वापस नहीं जाना है... *मुझे तो पवित्र बन अपने घर वापस जाना है...* मैं आत्मा सदा पवित्र बनो, योगी बनो के मन्त्र की स्मृति में रहती हूँ... *अब मैं आत्मा पवित्रता को सदाकाल के लिए अपने जीवन में अपनाकर सुख-शांति की अनुभूति कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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