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 01 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *बाप को याद कर स्वयं को सुधारा ?*

 

➢➢ *साइलेंस की शक्ति द्वारा विश्व में प्रतक्ष्यता का नागदा बजाया ?*

 

➢➢ *जीरो बाप के साथ रह हीरो पार्टधारी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *समय प्रमाण अब सर्व ब्राह्मण आत्माओं को समीप लाते हुए ज्वाला स्वरूप का वायुमण्डल बनाने की सेवा करो,* उसके लिए चाहे भट्टियां करो या आपस में सगंठित होकर रूहरिहान करो लेकिन ज्वाला स्वरूप का अनुभव करो और कराओ, *इस सेवा में लग जाओ तो छोटी-छोटी बाते सहज परिवर्तन हो जायेंगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एकरस स्थिति वाली तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को एकरस स्थिति में अनुभव करते हो? एकरस स्थिति है या और हद के रस आकर्षित करते हैं? निरन्तर योगी बन गये? सदा पावरफुल योग है या फर्क पड़ता है? निरन्तर अर्थात् अन्तर न हो। ऐसे शक्तिशाली बने हो या बन रहे हो? कितने तक बने हो? 75 परसेन्ट तक पहुँचे हो? *क्योंकि सदा एकरस का अर्थ ही है एक के साथ सदा जैसे बाप, वैसे मैं, बाप समान। बनना तो बाप समान है। बाप तो शक्ति भरते ही हैं। रोज की मुरली क्या है? शक्ति भरती है ना! लेकिन भरने वाले भरते हैं।*

 

  *सदैव स्मृति रखो कि हम महावीर हैं, शिवशक्तियां हैं तो कभी भी निर्बल नहीं होंगे, कमजोर नहीं होंगे। क्योंकि कोई भी विघ्न तब आता है जब कमजोर बनते हैं। अगर कमजोर नहीं बनो तो विघ्न नहीं आ सकता। महावीर को कहते हैं विघ्न विनाशक।* तो यह किसका टाइटल है? आप सभी विघ्न विनाशक हो या विघ्नों में घबराने वाले हो? कोई भी शक्ति की कमी हुई तो मास्टर सर्व शक्तिवान नहीं कहेंगे। इसलिए सदा याद रखो कि सर्व शक्तियां बाप का वर्सा है। वर्सा तो पूरा मिला है या थोड़ा मिला है? तो एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिए।

 

  इस समय सभी मधुबन निवासी हो ना! अभी मधुबन को साथ ले जाना। क्योंकि मधुबन अर्थात् मधुरता। मधुबन आपके साथ होगा तो सदा ही सम्पूर्ण और सदा ही सन्तुष्ट रहेंगे। ऐसे नहीं कहना कि मधुबन में तो बहुत अच्छा था। अभी बदल गये। मधुबन का बाबा भी साथ है। तो मधुबन की विशेषता भी साथ है। तो सदा अपने को मास्टर सर्व शक्तिवान अनुभव करेंगे। सभी तीव्र पुरुषार्थी हो या पुरुषार्थी हो? तीव्र पुरुषार्थी की निशानी क्या होती है? *तीव्र पुरुषार्थी सदा उड़ती कला वाला होगा, सदा डबल लाइट होगा। कभी ऊपर, कभी नीचे नहीं, सदा उड़ती कला। जितना-जितना विचित्र बाप से प्यार है तो जिससे प्यार होता है वैसा ही बनना होता है। स्वयं भी विचित्र आत्मा रूप में स्थित होंगे तो उड़ती कला में रहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *वर्तमान समय माया ब्राह्मण बच्चों की बुद्धि पर ही पहला वार करती है।* पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है। जैसे जब कोई दुश्मन वार करता है तो पहले टेलिफोन, रेडियों आदि के कनेक्शन तोड देते है।

 

✧  लाइट और पानी का कनेक्शन तोड देते है फिर वार करते हैं, *ऐसे ही माया भी पहले बुद्धि का कनेक्शन तोड देती है जिससे लाइट, माइट शक्तियाँ और ज्ञान का  संग आँटोमेटिकली बन्द हो जाता है।* अर्थात मूर्छित बना देती है।

 

✧  अर्थात स्वयं के स्वरूप की स्मृति से वंचित कर देती है व बेहोश कर देती है। उसके लिए *सदैव बुद्धि पर अटेन्शन का पहरा चाहिए। तब ही निरंतर कर्मयोगी सहज बन पायेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ आप पद्मापद्म भाग्यशाली सिकीलधे बच्चों का भी बुद्धि रूपी पाँव सदा देहभान या देह की दुनिया की स्मृति से ऊपर रहना चाहिए। जब बाप-दादा ने मिट्टी से ऊपर कर तख्तनशीन बना दिया तो तख्त छोड़कर मिटी में क्यों जाते। *देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना। संगमयुग चढ़ती कला का युग है, अब गिरने का समय पूरा हुआ, अब थोड़ा सा समय ऊपर चढ़ने का है इसलिए नीचे क्यों आते, सदा ऊपर रहो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- जब तक जीना है तब तक पढ़ना और पढ़ाना है"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने की पढाई पढने के लिए सज धज कर तैयार होती हूँ... मैं आत्मा इस देहभान से निकल अपने आत्मिक स्वरुप में टिक जाती हूँ...* अपने जगमगाते, चमचमाते अत्यंत सुन्दर सजीले स्वरुप में सजकर मैं आत्मा इस स्थूल दुनिया को छोड़ सुन्दर प्रकाश के विमान में बैठकर पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन मेरे प्यारे बाबा के पास...

 

   *प्यारा बाबा मेरे जीवन की बगिया को अपने ज्ञान रत्नों और प्यार से महकाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... इस धरा पर खेल को जो उतरे तो सब कुछ भूल गए कौन हो किसके हो कहां के हो... *सब कुछ भूल गए हो... अब सत्य पिता ज्ञान रत्नों से फिर से सजा रहा और देवताओ सा सुखद जीवन दामन में खिला रहा है... यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सतयुगी सुखो का आधार है...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा वरदाता का साथ और श्रीमत का हाथ पकडकर कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मुझ आत्मा ने कितना प्यारा भाग्य पाया है कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे पढ़ा रहा... मेरा खोया हुआ सौंदर्य लौटाकर मुझे देवताओ सा खुबसूरत सजा रहा...* मै आत्मा मीठे बाबा से पढ़कर प्रतिपल निखर रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा मेरी तकदीर जगाकर ज्ञान रत्नों से सराबोर करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय पढ़ाई को मन बुद्धि के रोम रोम में भर लो... यही ज्ञान रत्न सुखो के रत्नों में बदल जीवन को शांति और आनन्द से भरपूर कर जाएँगे...* ईश्वर पिता ने गोद में बिठाकर सारे ज्ञान खजाने नाम कर दिए है उन कीमती अमूल्य रत्नों को सहेज लो...

 

 ➳ _ ➳  *मैं आत्मा कई जन्मों के पुण्यफल से भगवान् को सम्मुख पाकर अपने भाग्य पर इठलाती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा ईश्वरीय रत्नों को पाने वाली महान भाग्यशाली आत्मा हूँ... भक्ति में कितनी खाली हो गई थी मै आत्मा ईश्वरीय सानिध्य में ज्ञान रत्नों से मालामाल हो गयी हूँ...* और सुंदर देवता बनने का राज जानकर मुस्करा उठी हूँ...

 

   *मेरे बाबा मुझ आत्मा को इस ऊँची पढाई से दैवीय गुणों से भरपूर कर पावन श्रेष्ठाचारी बनाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारा मदार इस ईश्वरीय पढ़ाई पर ही है... *यह पढ़ाई ही विश्व का मालिक बनाकर विश्वधरा पर सजायेंगी... इसलिए इस पढ़ाई को रग रग में धारण करलो...* जिन अल्पकाल के क्षणिक सुख के पीछे खप रहे थे कभी... यह पढ़ाई देवताई सुखो के अम्बार लगाकर जीवन खुशनुमा बना देगी...

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वर्णिम विश्व के रंगमंच पर देवता बन फिर से पार्ट बजाने का पुरुषार्थ करते हुए कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सारे सुखो के गहरे राज आप पिता से जान चुकी हूँ... और जीवन को साधारण मनुष्य से असाधारण देवता बनाने के प्रयासों में जीजान से जुटी हूँ...* मीठे बाबा से सारे सुख अपने नाम लिखवा रही हूँ और शान से मुस्करा रही हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  समय निकाल एकान्त में अपने आप से बातें कर अपने को उमंग में लाना है*

 

_ ➳  अपने पूर्वज स्वरूप की स्मृति में कल्प वृक्ष की जड़ो में बैठ तपस्या करती हुई मैं दिव्य चक्षु से देख रही हूँ सृष्टि पर पार्ट बजाने वाली सारे विश्व की आत्माओं को जो बहुत ही व्याकुल, अशांत और दुखी दिखाई दे रही हैं। *उन आत्माओं की ऐसी दुर्दशा देख उन पर दयादृष्टि रखते हुए अपने प्यारे पिता का मैं आह्वान करती हूँ और सेकेंड में उनकी छत्रछाया को अपने ऊपर महसूस करती हूँ। उनकी सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे फुहारें बन कर मेरे ऊपर बरस रही है और मुझ ब्राह्मण आत्मा से वो फुहारे कल्प वृक्ष की जड़ो में समाती जा रही हैं*। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे उन शीतल फुहारों का स्पर्श पाकर समस्त मानवता में एक जागरूकता आ रही है। 

 

_ ➳  अपने आपको भूलने के कारण सर्व मनुष्य आत्मायें जो अपार दुख और अशांति का अनुभव कर रही थी अब स्व स्वरूप में स्थित हो रही हैं और अपने सत्य स्वरूप में स्थित होते ही उस सुख और शान्ति का अनुभव करने लगी है जिसकी तलाश में दर - दर भटक रही थी। *शांति की तलाश में भटकती उन आत्माओ को शांति की अनुभूति करवाकर अब मैं स्व चिंतन और परमात्म चिंतन में अपने मन बुद्धि को बिजी कर लेती हूँ। मन ही मन अपने आप से मैं बातें करती हूँ कि मेरा वास्तविक स्वरूप कितना सुख और आनन्द देने वाला है! जब तक अपने इस स्वरूप से मैं अनजान थी कितनी दुखी थी और अब जब मुझे मेरी पहचान मिल गई है तो जीवन कितना सुंदर और मधुर हो गया है*!  कितने गुण और विशेषताएं हैं मेरे अन्दर जिन्हें मैं भूली हुई थी। अपने अंदर छुपे गुणों और विशेषताओं को जानकर उनका स्वरूप बनते ही जीवन में जैसे एक निखार आ गया है। 

 

_ ➳  मन ही मन स्वयं का चिंतन करते हुए धीरे - धीरे मैं अपने स्वरूप के अनुभव में खोने लगती हूँ। *स्व स्वरूप में स्थित होते ही मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ा देह रूपी वस्त्र उतरने लगता है और अपने अति सुंदर मन को लुभाने वाले प्रकाशमय स्वरूप को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से निहारने लगती हूँ*। देख रही हूँ मैं स्वयं को चमकती हुई एक अति सूक्ष्म लाइट के रूप में जो भृकुटि के मध्य ऐसे चमक रही है जैसे किसी मंदिर में कोई दीपक की लौ जग रही हो और उसका प्रकाश पूरे मन्दिर में उजाला कर रहा हो। *मुझ प्वाइंट ऑफ लाइट आत्मा से निकल रहा प्रकाश भी मेरे चारो और एक दिव्य प्रकाश का आभामण्डल बना रहा है। एक ऐसा प्रकाश जो मन को आनन्दित कर रहा है, एक सुखद सुकून दे रहा है*। 

 

_ ➳  प्रकाश के इस दिव्य आभामण्डल को निहारते हुए, इस कार्ब को धारण किये हुए अब मैं आत्मा अपना सुखद प्रकाश चारों और फैलाती हुई देह रूपी मन्दिर से बाहर आकर ऊपर आकाश की और जा रही हूँ। *सतरंगी प्रकाश की किरणें चारों और बिखेरते हुए मैं सारे विश्व का चक्कर लगाकर, आकाश को पार करके, सूक्ष्म वतन से होती हुई अपने पारलौकिक वतन में प्रवेश करती हूँ*। जगमग करती मणियो की चमकती हुई एक ख़ूबसूरत दुनिया जहाँ गहन शांति ही शांति है। एक बेआवाज चुप्पी चारों और बिखरी हुई है। *ऐसी अथाह शांति की दुनिया मे आकर शांति के गहरे अनुभव में खो कर स्वयं को तृप्त करके अपने पारलौकिक पिता के पास अब मैं पहुँच गई हूँ और उनसे मीठी मीठी रूह रिहान कर रही हूँ*।

 

_ ➳  पारलौकिक मिलन के असीम सुख की अनुभूति में आनन्द विभोर हो कर अपने पारलौकिक पिता के सामने अपने मन की भावनाओं को मैं अभिव्यक्त कर रही हूँ। *ओ मेरे प्राणेश्वर बाबा आप ही मेरा संसार हो, आप ही मेरे सर्वस्व हो। मेरे जीवन को सुखमय बनाने वाले आप ही मेरे दिल के सच्चे - सच्चे मीत हो। मेरे कौड़ी तुल्य जीवन को आप ही हीरे तुल्य बनाने वाले हो*। स्वयं से और अपने पारलौकिक पिता से बातें करते - करते उनके प्यार की गहराई में मैं डूबती जा रही हूँ और उनके प्रेम की किरणों से स्वयं को भरपूर भी करती जा रही हूँ। *उनके प्रेम के रंग में पूरी तरह रंग कर मैं जैसे उनके ही समान मास्टर प्यार का सागर बन गई हूँ*।

 

_ ➳  अपने पारलौकिक प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर खूबसूरत एहसास की मीठी यादों को अपने साथ लेकर अब मैं अपने कार्यक्षेत्र पर लौट रही हूँ। *अपनी साकार देह में आकर अब मैं हर कर्म करते अपने आप से और अपने पारलौकिक पिता से मन ही मन मीठी - मीठी रूह रिहान करती रहती हूँ। स्वयं से और अपने प्यारे पिता से बाते करते हुए विचार सागर मन्थन में मुझे बिजी देख माया भी वापिस लौट जाती है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं साइलेन्स की शक्ति द्वारा विश्व में प्रत्यक्षता का नगड़ा बजाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं शांत स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा जीरो बाप के साथ रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा हीरो पार्टधारी हूँ  ।*

   *मैं श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ रोब को त्याग, रूहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी बनोः- सभी कुमार सदा रूहानियत में रहते हो? रोब में तो नहीं आते? यूथ को रोब जल्दी आ जाता है। यह समझते हैं हम सब कुछ जानते हैं, सब कर सकते हैं। जवानी का जोश रहता है। लेकिन *रूहानी यूथ अर्थात् सदा रूहाब में रहने वाले। सदा नम्रचित्त।* क्योंकि जितना नम्रचित्त होंगे उतना निर्माण करेंगे। *जहाँ निर्मान होंगे वहाँ रोब नहीं होगा, रूहानियत होगी। जैसे बाप कितना नम्रचित्त बनकर आते हैं, ऐसे फालो फादर। अगर जरा भी सेवा में रोब आता तो वह सेवा समाप्त हो जाती है।*

✺ *"ड्रिल :- रोब को त्याग, रुहाब को धारण करने वाले सच्चे सेवाधारी स्थिति का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा सुहाने मौसम में, प्रकृति के बीच बहते हुए झरने के नीचे नहा रही हूँ... अपने लंबे केश खोले, बालों को हवा में उछाल रही हूँ... और मैं एक जगह से दूसरी जगह उछल-उछल कर अपनी खुशी का इजहार कर रही हूँ... तभी वहाँ मैं एक दृश्य को देखती हूँ... *एक माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार से नहला रही है... और बच्चा बार बार माँ से हाथ छुडा रहा है... और माँ बार बार उस बालक को पकड़कर नहलाने लगती है... मैं उनके इस दृश्य को और माँ के प्रयास को बड़े ध्यान से देख रही हूँ...*

➳ _ ➳ कुछ देर बाद मेरे मन में ये विचार आता है कि *माँ कितनी विनम्र और नम्रचित्त होती है बिना किसी रोब के अपना सारा जीवन बच्चे और परिवार की सेवा में गुजार देती है...* और बिना थके, बिना कुछ कहे बच्चे की हर तमन्ना पूरी करती है... और बच्चे का सुंदर भविष्य का निर्माण करती है... ये सोचते-सोचते मेरा मन अचानक एक बिंदु रूप लिए आकाश में उड़ जाता है... और मैं उड़ते-उड़ते मधुबन पहुँच जाती हूँ... जहाँ सभी सेवाधारियों को बिना किसी रोब के रूहानियत से सेवा करते हुए देखती हूँ... कुछ दूर जाने के बाद मैं बाबा के कमरे के पास आकर बैठ जाती हूँ... और बाहर से ही बाबा के कमरे को निहारती हूँ...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरे पास बाबा आते हैं और बाबा मुझे छूते हैं... बाबा के छूते ही मैं फ़रिश्ता रूप में आ जाती हूँ... बाबा मुझे अपने साथ हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले जाते है... मैं बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... और बाबा की आँखों को निहारती हूँ... देखते देखते मैं अनुभव करती हूँ कि बाबा मुझे समझा रहे हैं... बाबा मुझसे कहते हैं... *बच्चे अगर सेवा में निरन्तर आगे जाना है और सच्चा सेवाधारी स्थिति का अनुभव करना है तो हमेशा याद रहे... किसी भी प्रकार की सेवा करते समय हमेशा रूहानियत में रहो... सेवा में कभी भी रोब नहीं आना चाहिए...*

➳ _ ➳ और बाबा मुझसे कहते है... बच्चे आजकल के युवा जल्दी ही सेवा करते रोब में आ जाते है... और अपने आपको सेवाधारी कहते है... नहीं, अगर सेवा में हर छोटी बात पर रोब दिखाओगे तो ये सेवा नहीं मानी जायेगी... सेवा में सदा नम्रचित्त रहो... विनम्रता से हम पत्थर रूपी कड़े संस्कारों वाली आत्मा को भी फूल के समान कोमल बना सकते हैं... अगर सेवा में जरा भी रोब आया तो वो सेवा उसी समय समाप्त हो जायेगी... बाबा की ये बातें सुनकर और अपने आपसे वा बाबा से ये वादा करके *कि मैं आज से हमेशा सभी प्रकार की सेवा सिर्फ और सिर्फ रूहानियत से करूँगी... हर आत्मा से नम्रचित्त रहकर उन्हें रूहानियत का अनुभव कराउंगी...* मैं वापिस झरने के नीचे आ जाती हूँ... और सच्ची सेवाधारी की स्थिति के लिए तैयार हो जाती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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