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 19 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *और सब संग तोड़ एक बाप को याद किया ?*

 

➢➢ *उस अविनाशी सर्जन से कोई बता ओत नहीं छिपाई ?*

 

➢➢ *हर एक की विशेषता को स्मृति में रखा ?*

 

➢➢ *श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना जमा किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  ज्वाला-रुप बनने के लिए यही धुन सदा रहे कि अब वापिस घर जाना है। जाना है अर्थात् उपराम। *जब अपने निराकारी घर जाना है तो वैसा अपना वेष बनाना है। तो जाना है और सबको वापस ले जाना है-इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति के आकर्षण से उपराम अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी व बाप-समान बन जायेंगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"*

 

  शक्तियों का पूजन देखकर क्या स्मृति में रहता है? अपने को चेक करते हो-जैसे शक्तियों को अष्ट भुजाधारी दिखाते हैं तो हम भी अष्ट शक्तिवान, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ। ये अष्ट तो निशानी-मात्र हैं लेकिन हैं तो सर्व शक्तियां। शक्तियों का नाम सुनते, शक्तियों का पूजन देखते सर्व शक्तियों की स्मृति आती है या सिर्फ देखकर के खुश हो? *जड़ चित्रों में कितनी कमाल भर देते हैं! तो चैतन्य का ही जड़ बनता है ना। तो चैतन्य में हम कितने कमाल के बने हैं अर्थात् श्रेष्ठ बने हैं! तो यह खुशी होती है कि यह हमारा यादगार है! या देवियों का है?* देवियों के साथ गणेश की भी पूजा होती है ना। तो प्रैक्टिकल में ऐसे बने हैं तब तो यादगार बना है।

 

  सदैव अपने को चेक करो कि सर्व शक्तियां अनुभव होती हैं? बाप ने तो दी लेकिन मैंने कितनी ली, धारण की और धारण करने के बाद समय पर वो शक्ति काम में आती है? अगर समय पर कोई चीज काम में नहीं आये तो वह होना, न होना-एक ही बात है। कोई भी चीज रखते ही हैं समय पर काम में आने के लिये। अगर समय पर काम में नहीं आई तो क्या कहेंगे? है वा नहीं है-एक ही बात हुई ना। तो बाप ने दी लेकिन हमने कितनी ली-यह चेक करो। *जब प्रैक्टिकल में काम में आये तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिवान। शक्ति काम में नहीं आवे और कहें मास्टर सर्वशक्तिवान-यह शोभता नहीं है। एक भी शक्ति कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी। कोई भी समय उसी शक्ति का पेपर आ जाये तो पास होंगे या फेल होंगे? अगर नहीं होगी तो फेल होंगे, होगी तो पास होंगे।*

 

  माया भी जानती है-इसके पास इस शक्ति की कमी है। तो वही पेपर आता है। इसलिये एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिये। समझा? *ऐसे नहीं-शक्तियाँ तो आ गई, एक कम हुई तो क्या हर्जा है। एक में ही हर्जा है। एक ही फेल कर देगी। सूर्यवंशी में आना है तो फुल पास होना पड़ेगा ना। फुल पास होने का अर्थ ही है मास्टर सर्वशक्तिवान बनना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  आज बापदादा सर्व बच्चों को विशेष अभ्यास की स्मृति दिला रहे हैं - *एक सेकण्ड में इस आवाज की दुनिया से परे हो आवाज से परे दुनिया के निवासी बन सकते हो।* जितना आवाज में आने का अभ्यास है सुनने का अभ्यास है, आवाज को धारण करने का अभ्यास है वैसे आवाज से परे स्थिति में स्थित हो सर्व प्राप्ति करने का अभ्यास है?

 

✧  जैसे आवाज द्वारा रमणीकता का अनुभव करते हो, सुख का अनुभव करते हो ऐसे ही *आवाज से परे अविनाशी सुख-स्वरूप रमणीक अवस्था का अनुभव करते हो?* शान्त के साथ-साथ अति शान्त और अति रमणीक स्थिति का अनुभव है? स्मृति का स्विच ऑन किया और ऐसी स्थिति पर स्थित हुए। ऐसी रूहानी लिफ्ट की गिफ्ट प्राप्त हैं? सदा एवररेडी हो। *सेकण्ड के इशारे से एकरस स्थिति में स्थित हो जाओ।*

 

✧  ऐसा रूहानी लश्कर तैयार है वा स्थित होने में ही समय चला जायेगा? अब ऐसा समय आने वाला है जो ऐसे सत्य अभ्यास के आगे अनेकों के अयथार्थ अभ्यास स्वतः ही प्रत्यक्ष हो जायेंगे। कहना नहीं पडेगा कि आपका अभ्यास अयथार्थ है - लेकिन *यथार्थ अभ्यास के वायुमण्डल, वायब्रेशन द्वारा स्वयं ही सिद्ध हो जायेगा। ऐसे संगठन तैयार है?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ इस दिव्य जन्म का बन्धन नहीं, सम्बन्ध है। *कर्म बन्धनी जन्म नहीं, यह कर्मयोगी जन्म हैं।* इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा स्वतन्त्र है न कि परतन्त्र। *तेरे को मेरे में लाते हो, तब परतन्त्र होते हो।* मेरा पहला हिसाब, मेरा पहला संस्कार आया कहाँ से? *अगर ऐसे स्वतन्त्र होकर रहो कि यह लोन मिली हुई देह है तो सेकेण्ड में उड़ सकते हो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- निदा-स्तुति, मान-अपमान, दुःख-सुख सब सहन करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अंतर्मुखी बन परमत, परचिंतन को छोड़ ज्ञान योग के पर लगाकर मन बुद्धि रूपी विमान में बैठकर बाबा की झोपड़ी के बाहर पहुंच जाती हूँ... सुंदर सुंदर पेड़ पौधों, फूलों से सजे हुए बगीचे में चारों ओर बाबा के प्रेम की सुगंध फैली हुई है...* बापदादा झूले पर बैठ झूला झूलते हुए दोनों हाथों को फैलाए मुझे अपने पास बुलाते हैं और अपनी बाहों में समेटकर प्यार का झूला झुलाते हुए प्यारी प्यारी शिक्षाएं देते हैं...

 

   *निंदा स्तुति जय पराजय सबमे समान रह सब बातो में सहनशील बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे बच्चे... मीठा पिता सदा आपके साथ है... सम्मुख है... *अथाह दुखो को सहने के आदी जनमो से हो... तो इस समय भी सहनशील बनो...* सब बातो से उपराम बन समय और सांसो को मीठे पिता में खपा दो... और कहीं न उलझो... बस एक पिता की याद में मगन रहो..."

 

_ ➳  *सुनी सुनाई व्यर्थ बातो को छोड़ एक बाबा से ही सुनकर धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझ आत्मा ने सारा जीवन इन व्यर्थ भरी बातो में ही खपाया... *पर अब मै आत्मा प्यारे बाबा में खो गई हूँ... ईश्वर पिता के साथ सहनशीलता की मिसाल बन रही हूँ... जीवन खूबसूरत होता जा रहा है..."*

 

   *इस सृष्टि नाटक के सारे राजों को बताकर मेरे ज्ञान चक्षुओं को खोलते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे.... अब यह खेल पूरा हो गया है... सारे हिसाब पूरे होने है... *मान हो या अपमान दुनिया कुछ भी कहे.... आप प्यारे बाबा की यादो में स्थिर रहो... यादो में हर कर्म को कर ईश्वरीय पिता के दिल पर राज करो... सिर्फ पिता की सुनो और याद करो..."*

 

_ ➳  *स्मृति स्वरूप समर्थी स्वरूप बन सुख-दुख, मान-अपमान से परे होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... सबको सुनकर मै आत्मा किस कदर भटक पड़ी थी... *अब आप जो मिले हो बाबा तो आप ही को सुन रही... आपकी यादो में इस कदर खो रही हूँ... कि सब भावो से न्यारी बन रही हूँ..."*

 

   *जन्म जन्मांतर के प्यास को बुझाकर ज्ञान अमृत पिलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जनमो से असत्य को सुनकर सत्य से कोसो दूर हो गए... अब और इन बातो में न फंसो... सच्चे पिता से सुनकर गहरे आनन्द में उतरो... *भगवान आ गया है जीवन में तो सारे दुखो से उबर जाओ... खुशियो संग नाचो और सदा का मुस्कराओ... पाना था सो पा लिया..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्वमान में स्थित रहकर एकरस अवस्था का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ... ईश्वर पिता को सुनने देखने जानने का सौभाग्य मिला है... *अब झूठ के भँवर से निकल पड़ी हूँ... अब मेरी ख़ुशी को दुनिया का कोई भी दुःख छीन ही न सके..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी कारण से पढ़ाई नही छोड़नी है*"

 

 _ ➳  स्वयं भगवान परमशिक्षक बन परमधाम से हर रोज मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति मेरे अंदर एक अदबुत रूहानी जोश और उमंग भर देती है। *मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते हुए मैं उन खूबसूरत पलों को याद करती हूँ जब निराकार भगवान साकार में आकर शिक्षक बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने हम पर लुटाते हैं*। उस सीन की मधुर स्मृति मुझे परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन के उस डायमंड हाल में ले जाती हैं जहाँ भगवान साकार में आकर, अपने बच्चों के समुख बैठ बाप बन उनकी पालना करते हैं, टीचर बन उन्हें पढ़ाते हैं और सतगुरु बन अपनी श्रेष्ठ मत उन्हें देकर उनका कल्याण करते हैं। *मन बुद्धि से पहुँची मधुबन के डायमंड हाल मैं बैठी परमात्म मिलन का मैं आनन्द ले रही हूँ और अपने परमशिक्षक के मुख कमल से उच्चारे महावाक्यों को सुन कर मन ही मन हर्षित हो रही हूँ*।

 

 _ ➳  यह विचार कि "मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" और स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए आये हैं, जैसे मुझ पर एक नशा चढ़ा रहा है। मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनाने वाली अपने परमशिक्षक शिव भगवान द्वारा पढ़ाई जा रही इस पढ़ाई को मुझे ना केवल अच्छी रीति पढ़ना है बल्कि इसे जीवन मे धारण कर, औरों को भी यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाना है। *मन ही मन यह विचार कर, स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि चाहे कुछ हो जाये किन्तु कभी भी किसी से रूठ कर भी, अपने परमशिक्षक से पढ़ना  मैं नही छोडूंगी। जब तक मेरे परमशिक्षक  शिवबाबा मुझे पढ़ाते रहेंगे तब तक इस संगमयुग के अंत तक मैं इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ती रहूँगी और अपने प्यारे बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर अपने जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ करती रहूँगी*।

 

 _ ➳  अपने परमशिक्षक से पढाई को अच्छी रीति पढ़ने की प्रतिज्ञा कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपने सेवाक्षेत्र पर लौट आती हूँ और मन ही मन अपने प्यारे भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा कर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर, अपना सम्पूर्ण ध्यान मैं अपने मस्तक पर एकाग्र करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्वयं को टिकाने का प्रयास करती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं सहज ही और अतिशीघ्र अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। स्वयं को मैं भृकुटि के बीच मे चमकते हुए एक अति सूक्ष्म स्टार के रूप में देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे चारों और फैल रहा है और मन को गहन सुकून का अनुभव करवा रहा है*। इस प्रकाश में समाये गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स इस प्रकाश के साथ अब धीरे - धीरे चारों और फैल रहें हैं। जो वायुमण्डल को गहन सुखमय और शांतमय बना रहे हैं।

 

 _ ➳  अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके, असीम आनन्द लेते हुए मैं आत्मा अब अपने परमशिक्षक शिव पिता से मिलन मनाने उनकी निराकारी दुनिया की ओर जा रही हूँ। *भृकुटि के भव्यभाल से उतर कर, मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर चल पड़ी हूँ। प्रभु प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सेकण्ड में साकार और सूक्ष्म वतन को पार कर अब पहुँच गई हूँ अपने शिव पिता के पास उनके निर्वाणधाम घर में जो वाणी से परें हैं*। साइलेन्स की यह दुनिया मेरा स्वीट साइलेन्स होम जहां आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। देख रही हूँ महाज्योति अपने शिव पिता, अपने परमशिक्षक को अपने बिल्कुल सामने। *ऐसा लग रहा है जैसे सर्व शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरते मेरे प्यारे पिता अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे समाने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बिखेरता मेरे पिता का यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे सहज ही अपनी और खींच रहा है। *मैं चमकती हुई जगमग करती चैतन्य ज्योति अब धीरे - धीरे महाज्योति अपने प्यारे पिता के समीप पहुँचती हूँ और जा कर जैसे ही उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे मुझे अपने आगोश में ले लेती हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का बल मुझे भी उनके समान शक्तिशाली और तेजोमय बना रहा है। *शक्तियों से सम्पन्न अपने अति चमकदार और लुभावने स्वरूप को देख मैं मंत्रमुग्ध हो रही हूँ  जो रीयल गोल्ड की तरह दिखाई दे रहा है*।

 

_ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे, साकार सृष्टि पर कर्म करने के लिए वापिस लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव पिता के फरमान पर चल, उनकी शिक्षायों को अपने जीवन मे धारण कर, अब मैं श्रेष्ठ बनने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं इस बात को सदा स्मृति में रखकर, रुठ कर पढ़ाई छोड़ने का संकल्प भी अपने मन मे ना उठाते हुए, अपने परमशिक्षक प्यारे बाबा से मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों से हर रोज अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर मैं औरो को भी इन ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना कर उनका भी कल्याण अब हर समय कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर एक कि विशेषता को स्मृति में रखने वाली फेथफुल आत्मा हूँ।*

   *मैं एकमत संगठन बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व के शुभचिंतक आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदैव श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना जमा करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव श्रेष्ठ प्रालब्ध प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं ब्राह्मण आत्मा श्रेष्ठ संकल्पों को अपने जीवन का आधार बनाती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ भरपूर आत्माओं के चेहरे द्वारा सेवा सभी सागर के समीप रहने वाले सदा सागर के खजानों को अपने में भरते जाते हो? सागर के तले में कितने खजाने होते हैं। तो सागर के कण्ठे पर रहने वाले, समीप रहने वाले - सर्व खजानों के मालिक हो गये। वैसे भी जब किसी को कोई खजाना प्राप्त होता है तो खुशी में आ जाते हैं। अचानक कोई को थोड़ा धन मिल जाता है तो नशा चढ़ जाता है। आप बच्चों को ऐसा धन मिला है जो कभी भी कोई छीन नहीं सकता, लूट नहीं सकता। 21 पीढ़ी सदा धनवान रहेंगे। *सर्व खजानों की चाबी है ‘बाबा'। बाबा बोला और खजाना खुला। तो चाबी भी मिल गई, खजाना भी मिल गया। सदा मालामाल हो गये। ऐसे भरपूर मालामाल आत्माओं के चेहरे पर खुशी की झलक होती है।* उनकी खुशी को देख सब कहेंगे - पता नहीं इनको क्या मिल गया है, जानने की इच्छा रहेगी। तो उनकी सेवा स्वत: हो जायेगी।

✺ *"ड्रिल :- स्वयं को सर्व खजानों की मालिक मालामाल आत्मा अनुभव करना।”*

➳ _ ➳ मैं आत्मा प्रभात वेला में सागर किनारे बैठकर उगते सूरज को देख रही हूँ... *ऐसे लग रहा जैसे समुंदर की लहरें सूरज की लालिमा को लपेट कर लाल चुनरी ओढ़कर खुशी में लहरा रहे हैं... सूरज की लालिमा सबको संदेश दे रही है कि अब भोर होने वाली है सब अपनी निद्रा से जागो...* पंछी चहचहाते हुए अपने घोसलों से निकल रहे हैं... मैं आत्मा इस मनभावन दृश्य को देखकर चिंतन करती हूँ कि यह संगम युग भी अपनी लालिमा से कलियुग रूपी रात से सतयुग रुपी भोर होने का संदेश लेकर आई है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा सागर के किनारे इन सुहावने नज़ारों और इस सुहावने मौसम का आनंद लेते हुए ज्ञान सागर बाबा को बुलाती हूँ... पल भर में बाबा मेरे सामने आ जाते हैं... मैं आत्मा बाबा को पकडकर बैठ जाती हूँ... मैं बाबा को कहती हूँ बाबा कितना बड़ा सागर है... इसके अन्दर क्या-क्या छुपा है, गहराई में जाकर सब देखना चाहती हूँ... *बाबा बोले, बच्ची- तुम्हे असली सागर के रहस्यों को दिखाता हूँ... और बाबा मुझे अपनी दृष्टि देते हुए सूक्ष्म शरीर रूपी गोताखोरों का ड्रेस पहनाते हैं... और मुझे ज्ञान सागर के तले में लेकर जाते हैं...*

➳ _ ➳ वहां मैं आत्मा दिव्य अदभुत नज़ारों को देखती हूँ... वहां बहुत बड़ी गुफा थी... गुफा का दरवाजा बाहर से बंद था... मैं बाबा को कहती हूँ बाबा अन्दर कैसे जाएँ चाबी तो नहीं है मेरे पास... बाबा कहते हैं बच्ची- ‘बाबा’ कहो इसका दरवाजा खुल जायेगा... मैं आत्मा जैसे ही दिल से ‘मेरा बाबा’ कहती हूँ गुफा का दरवाजा खुल जाता है... वहां अन्दर अलग-अलग बंद कमरे थे... *मैं आत्मा एक कमरे के पास जाकर ‘मेरा बाबा’ की चाबी लगाते ही वो दरवाजा खुल जाता है... वो ज्ञान का दरवाजा था जिसके अन्दर जाते ही मुझमें आदि-मध्य-अंत का ज्ञान हो जाता है... मेरी सारी अज्ञानता दूर होने लगती है... मैं आत्मा त्रिकालदर्शी बन जाती हूँ... मेरा तीसरा नेत्र खुल जाता है...*

➳ _ ➳ मैं आत्मा फिर प्रेम, सुख, आनंद के दरवाजे ‘बाबा’ शब्द की चाबी से खोलती हूँ और स्वयं में इन गुणों को भरती हूँ... मैं आत्मा पवित्रता का दरवाजा खोलते ही मुझ आत्मा से सारी अपवित्रता बाहर निकल जाती है... सारे विकार मिट जाते हैं और मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र बन जाती हूँ... *फिर शांति और शक्ति का दरवाजा खोलते ही मैं आत्मा असीम शांति और शक्ति का अनुभव करती हूँ... मुझ आत्मा से जन्म-जन्मान्तर के दुःख, अशांति, कमी-कमजोरियां मिट जाते हैं...*

➳ _ ➳ *मैं आत्मा इन सारे खजानों से भरपूर मालामाल होकर बाबा के साथ सागर के किनारे आ जाती हूँ... बाबा मेरे सिर पर हाथ रख वरदानों से मेरी झोली भरते हैं... मुझ आत्मा के चेहरे से ख़ुशी झलक रही है... मुझ आत्मा को अविनाशी ख़ुशी का खजाना मिल गया है... 21 जन्मों के लिए मैं आत्मा इन सारे खजानों की मालिक बन गई हूँ...* ये अविनाशी खजाने न तो मुझसे कोई छीन सकता है, न कोई चोरी कर सकता है... स्वयं को सर्व खजानों की मालिक मालामाल अनुभव करती मैं आत्मा बाबा को शुक्रिया अदा करती हूँ...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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