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 04 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद से विकर्म विनाश किये ?*

 

➢➢ *एक आँख में शांतिधाम और दूसरी आँख में सुखधाम रहा ?*

 

➢➢ *अपने डबल लाइट स्वरुप द्वारा आने वाले विघनो को पार किया ?*

 

➢➢ *सदा खुश रहे और ख़ुशी बांटी ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग में जब और सब संकल्प शान्त हो जाते हैं, एक ही संकल्प रहता 'बाप और मैं' इसी को ही पावरफुल योग कहते हैं।* बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जायें तब कहेंगे ज्वाला रूप की याद, जिससे परिवर्तन होता है।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सहजयोगी, सहज ज्ञानी हूँ"*

 

✧  सदा अपने को सहजयोगी, सहज ज्ञानी समझते हो? सहज है या मेहनत है? जब माया बड़े रूप में आती है तो मुश्किल नहीं लगता? मधुबन में बैठे हो तो सहज है, वहाँ प्रवृति में रहते जब माया आती है फिर मुश्किल लगता है? कभी-कभी क्यों लगता है, उसका कारण? मार्ग कभी मुश्किल, कभी सहज है - ऐसे नहीं कहेंगे। *मार्ग सदा सहज है, लेकिन आप कमजोर हो जाते हो इसीलिए सहज भी मुश्किल लगता है। कमजोर के लिए कोई छोटा सा भी कार्य भी मुश्किल लगता है। अपनी कमजोरी मुश्किल बना देती है, बाकी मुश्किल है नहीं।*

 

  कमजोर क्यों होते हैं? *क्योंकि कोई न कोई विकारों के संग दोष में आ जाते हैं। सत का संग किनारे हो जाता है और दूसरा संग दोष लग जाता है। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं कि सदा सतसंग में रहो। सतसंग अर्थात् सत बाप के संग में रहना।* तो आप सदा सतसंग में रहते हो या और संग में भी चक्कर लगाते हो? सतसंग की कितनी महिमा है! और आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है। क्योंकि समीप का सम्बन्ध है।

 

  सबसे समीप सम्बन्ध है बाप और बच्चे का। यह सम्बन्ध सहज भी है और साथ-साथ प्राप्ति कराने वाला भी है। तो आप सभी सदा सतसंग में रहने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी है। *सदैव यह सोचो कि हम औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो दूसरों की मुश्किल को सहज करने वाला होता वह स्वयं मुश्किल में नहीं आ सकता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी आवाज़ से परे अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बहुत समय से कर सकते हो? *आवाज़ में आने का अनुभव ज्यादा कर सकते हो वा आवाज़ से परे रहने का अनुभव ज्यादा समय कर सकते हो?*

 

✧  *जितना लास्ट स्टेज अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जाएगी उतना आवाज़ से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी* इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूती हो।

 

✧   *इस अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आह्वान कर सके़गे।* यह पाँवरफुल स्थिति 'विश्व - कल्याणकारी स्थिति' कही जाती है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अपने निजस्वरूप और निजधाम की स्थिति सदा याद रहती है? निराकारी दुनिया और निराकारी रूप दोनों की स्मृति इस पुरानी दुनिया में रहते भी सदा न्यारा और प्यारा बना देती है। *इस दुनिया के हैं ही नहीं। हैं ही निराकारी दुनिया के निवासी, यहाँ सेवा अर्थ अवतरित हुए हैं- तो जो अवतार होते हैं उन्हों को क्या याद रहता है? जिस कार्य अर्थ अवतार लेते हैं वही कार्य याद रहता है ना!* अवतार अवतरित होते ही हैं धर्म की स्थापना के लिए तो आप सभी भी अवतरित अर्थात् अवतार हो तो क्या याद रहता है? यही धर्म स्थापन करने का कार्य।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेहद की पवित्रता को धारण करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अमृतवेले के समय अमृत पान करने चार धामों की यात्रा पर निकल पड़ती हूँ...* मन-बुद्धि के रॉकेट में बैठ अपने घर मधुबन पहुँच जाती हूँ... बाबा का कमरा, बाबा की कुटिया और हिस्ट्री हाल की रूहानी यात्रा करते हुए मैं आत्मा शांति स्तम्भ के सामने बैठ जाती हूँ... *मुस्कुराते हुए, दोनों हाथों को फैलाए मेरे प्राण प्यारे बाबा मुझे अपनी बाँहों में ले लेते हैं और शांति की ठंडी-ठंडी किरणें बरसाते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...*

 

  *पवित्रता के सागर मेरे प्यारे बाबा पवित्र किरणों को बरसाते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे.... ईश्वर पिता की गोद में बैठ कमल फूल सी पवित्रता से सज जाओ... *मनसा वाचा कर्मणा पवित्र होकर सम्पूर्ण पवित्रता से विश्व मालिक बन खुशियो में झूम जाओ... पावनता से सजधज कर ईश्वर पिता के सहयोगी बन... सदा के सुखो में मुस्कराओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा लक्ष्य सोप से अपने मटमैलेपन को धोकर पवित्रता का कवच धारण करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में, रूहानी गुलाब सी खिल उठी हूँ... *आपकी यादो में पायी पावन खुशबु से... पूरे विश्व को सुवासित कर रही हूँ... पवित्रता की सुगन्ध में हर दिल को महका रही हूँ...”*

 

  *पवित्रता के सितारों से सजाकर मेरे जीवन को कंचन बनाते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *फूल से बच्चों को दुखो के जंगल में भटकते देख... विश्व पिता को भला कैसे चैन आये... बच्चों के सुख की चाहना दिल में लिये धरा पर उतर आये... फिर से पावनता में खिलाकर अनन्त सुखो का अधिकारी सजाये...* तब कही विश्व पिता करार सा पाये... पवित्रता की चुनर ओढ़ा कर देव तुल्य बनाये...

 

_ ➳  *पवित्रता के मैनर्स धारण कर हीरे जैसा नया जीवन पाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा देह के भान से निकल पवित्रता से सजकर पुनः देवताई सुखो की अधिकारी बन रही हूँ...* प्यारे बाबा विश्व परिवर्तन के महान कार्य में... पावनता से सहयोगी बनकर ईश्वरीय दिल जीतने वाली भाग्यवान हो गयी हूँ...

 

  *रूहानी नजरों से निहाल कर पावन बनाते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह के झूठे मटमैले आवरण से बाहर निकल... अपने दमकते स्वरूप को स्मृतियों में भर लो... *ईश्वरीय बाँहों में पावनता से भरपूर हो जाओ... विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, उज्ज्वल धवल तेजस्वी रूप में खिल कर... पावन तरंगो से विश्व धरा को तरंगित करो...”*

 

_ ➳  *पावनता के रिमझिम से अतीन्द्रिय सुखों में झूमती हुई, बाबा को शुक्रिया करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा पावनता को पाकर कितनी अनोखी और अमूल्य हो गयी हूँ... आपने मुझे कौड़ी से हीरे सा बनाकर दिल तख्त पर सजा लिया है...* मुझे दिव्यता से भरकर देवताई सुखो से सजा दिया है... मै आत्मा आपकी रोम रोम से ऋणी हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप की याद से अपने विकर्मो को विनाश कर कर्मातीत अवस्था बनानी है*"

 

_ ➳  परमधाम में मैं आत्मा, मैं चैतन्य ज्योति, अपने महाज्योति शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर रही हूँ। *अपने शिव पिता के साथ मिलन मनाने का असीम सुख लेते हुए मैं एकटक उन्हें निहार रही हूँ*। पूरे पाँच हजार वर्ष उनसे अलग रहने के कारण उनसे मिलने की जो प्यास थी उस जन्म जन्मांतर की प्यास को मैं आज पूरी तरह बुझा लेना चाहती हूँ। *इसलिए मन बुद्धि रूपी नेत्रों को पूरी तरह अपने शिव पिता पर केंद्रित कर, उनके अति सुंदर मनमोहक स्वरूप को, उनकी एक - एक किरण को निहारते हुए मैं मन ही मन मगन हो रही हूँ*। उनका यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे उन्हें और समीप से देखने के लिए अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शिव पिता अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैला कर मुझे अपने आगोश में लेकर, अपना सम्पूर्ण स्नेह मुझ पर बरसा कर आज मुझे तृप्त करना चाहते हैं। *अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर अब मैं चैतन्य ज्योति स्वयं को अपने महाज्योति शिव पिता के अति समीप देख रही हूँ*। इतना समीप कि ऐसा लग रहा है जैसे मैं ज्योति, महाज्योति में समा कर उनका ही स्वरूप बन गई हूँ। बाबा से आ रही सर्वशक्तियाँ ऐसे लग रही हैं जैसे बहुत तेज अग्नि की अनन्त धाराएं निकल रही हों।

 

_ ➳  पूरे वेग से ये धाराएं मुझ आत्मा के ऊपर निरन्तर प्रवाहित हो रही हैं। और इन धाराओं के प्रभाव से मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की खाद जल कर भस्म हो रही हैं। *63 जन्मो के विकारों की कट जो असंख्य परतों के रुप में मुझ आत्मा पर चढ़ी हुई थी वो एक - एक परत योग की अग्नि में जल कर  समाप्त हो रही है और मैं आत्मा हल्केपन का अनुभव कर रही हूँ*। अपनी सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों की अग्नि से बाबा मुझ आत्मा द्वारा किये हुए एक - एक विकर्म को दग्ध कर मुझे सम्पूर्ण पावन बना रहें हैं। *मेरे सभी पुराने स्वभाव, संस्कार इस योग की अग्नि में जल कर भस्म हो रहें हैं*।

 

_ ➳  जैसे - जैसे इस योग अग्नि में मेरे पुराने स्वभाव संस्कारों का दाह संस्कार हो रहा है वैसे - वैसे मैं आत्मा फिर से अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को पुनः प्राप्त कर रही हूँ। *रीयल गोल्ड के समान चमकते हुए अपने वास्तविक स्वरूप का मैं अनुभव कर रही हूँ*। मेरा अनादि स्वरूप बहुत ही प्यारा और बहुत ही आकर्षक है। कभी मैं अपने इस मनमोहक अनादि स्वरूप को और कभी अपने सामने विराजमान अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा के मन को लुभाने वाले अति सुंदर स्वरूप को निहारते हुए आनन्दविभोर हो रही हूँ।

 

_ ➳  रीयल गोल्ड बन कर, शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा वापिस साकारी लोक में आ रही हूँ। *अपने जिस अनादि सतोप्रधान स्वरूप में मैं आत्मा पहली बार सृष्टि रूपी रंगमंच पर शरीर धारण कर पार्ट बजाने के लिए आई थी, उस सम्पूर्ण सतोप्रधान अवस्था को पाना ही मेरे इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है*। इस लक्ष्य को सदैव स्मृति में रख, आत्मा को सतोप्रधान बना कर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुंचने के लिये, निरन्तर बाबा की याद में रह, अब मैं योग का बल स्वयं में जमा कर रही हूँ।

 

_ ➳  *जैसे ब्रह्मा बाबा ने योगबल द्वारा एकरस कर्मातीत अवस्था बनाकर सम्पूर्ण अवस्था को प्राप्त किया। कर्म करते हुए भी कर्म के हर प्रकार के प्रभाव से निर्लिप्त न्यारी और प्यारी अवस्था मे ब्रह्मा बाबा सदैव स्थित रहे ऐसे ही फॉलो फादर कर, योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बना कर, एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने और सम्पूर्णता को पाने का पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं डबल लाइट स्वरूप द्वारा आने वाले विघ्नों को पार करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं तीव्र पुरूषार्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा खुश रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा खुशियां बांटती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सबसे बड़ी शान में रहती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ *"ड्रिल :- बिंदु स्वरूप की स्मृति से ज्ञान गुण और धारणा में सिंधु बनने का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा इस नश्वर देह की दुनिया से किनारा कर... अब अपने घर की ओर चल पड़ती हूँ... इस साकारी दुनिया को पार करते हुए... मैं निरंतर ऊपर की ओर बढ़ती जा रही हूँ... चाँद-सितारों की दुनियां को पार करते हुए... अपने *निजधाम परमधाम में पहुँच जाती हूँ... जहाँ चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश नजर आ रहा है... शांति ही शांति अनुभव हो रही है*...

➳ _ ➳ यह शांतिधाम ही मेरा असली घर है... मैं आत्मा अपने पिता शिवबाबा... जो मेरी ही तरह ज्योतिपुंज है... प्वाइंट ऑफ़ लाइट है... ऐसे बाप के सम्मुख मैं आत्मा बैठी हूँ... *जिस शांति को सारी दुनिया ढूंढ रही है... वह शान्ति के सागर मेरे पिता... मेरे सामने बैठकर मुझे अपनी... सर्वशक्तियों से भरपूर करते जा रहे है*...

➳ _ ➳ बिंदु बीजरूप बाप की मास्टर बिंदु बीजरूप सन्तान मैं स्वयं को देख रही हूं... बाप और मैं कंबाइंड स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मैं बिंदु, बिंदु बाप में समा जाती हूँ... कुछ देर तक इसी स्थिति में स्थित हो... निर्संकल्प हो बाप के स्नेह की गहराई में समाती जा रही हूँ... *बिंदु बन सिंधु बाप में समा जाती हूँ... आहा!!कितना अलौकिक अनुभव हो रहा है... कितना पावरफुल भी... मैं आत्मा अब इसी अनुभव की गहराइयों में खोती जा रही हूँ*...

➳ _ ➳ यह स्थिति कितनी हल्की और... एक दम ऊंची भी अनुभव हो रही है... मीठे बाबा सर्व गुणों के सिंधु है... वे शांति के सागर है... मुझ आत्मा को उनसे शांति के प्रकम्पन मिल रहे है... ज्ञान का सागर मुझ आत्मा को भी ज्ञान का खजाना दे भरपूर करते जा रहे है... *बाप से सर्व सम्बन्ध की शक्ति... मुझ आत्मा को बहुत बड़ी प्राप्ति की अनुभूति करा रही है*...शुक्रिया बाबा... आपने सदा सफलता के वरदानों से मुझ आत्मा को श्रृंगार रहे है...

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाप के समान मास्टर सिंधु बनती जा रही हूँ... मैं आत्मा बाबा की श्रीमत पर चल... बाप द्वारा मिले ज्ञान को, गुणों को जीवन में अच्छी रीति धारण करती जा रही हूँ... *बिंदु बनते ही सभी विस्तार समाप्त हो गए... बाबा ने मुझ आत्मा को ज्ञान के खजाने से भरपूर कर दिया*.. मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारण कर सम्पूर्ण बनना ही है... आज *मैं बाप से दृढ़ संकल्प करती हूँ*...

➳ _ ➳ *भगवान बाप ने मुझ आत्मा को इतनी अच्छी समझ दी है... जो सारे कल्प में मुझ आत्मा के काम आने वाली है*... इस समझ को यूज़ करते-करते... मैं आत्मा ज्ञान, गुण और धारणा में सिंधु बनती जा रही हूँ... *जो परमात्म पालन और पढ़ाई मुझ आत्मा को मिली है... वह मुझ में शक्ति भर... मुझ आत्मा को बिंदु रूप की स्मृति में स्थित होने का अनुभव करा रही है*..वाह!! मीठे बाबा वाह!!

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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