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❍ 16 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *एक वृक्षपति बाप की याद में रहे ?*
➢➢ *"मैं आत्मा हूँ" - सवेरे सवेरे उठकर यह पाठ पक्का किया ?*
➢➢ *स्वयं के प्रति इच्छा मातरम् अविध्या की स्थिति रही ?*
➢➢ *ज्ञान, गुण और धारणा में सिन्धु और स्मृति में बिंदु बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे दु:खी आत्माओं के मन में यह आवाज शुरु हुआ है कि अब विनाश हो, वैसे ही आप विश्व-कल्याणकारी आत्माओं के मन में यह संकल्प उत्पन्न हो कि अब जल्दी ही सर्व का कल्याण हो तब ही समाप्ति होगी। *विनाशकारियों को कल्याणकारी आत्माओं के संकल्प का इशारा चाहिये इसलिए अपने एवर-रेडी बनने के पॉवरफुल संकल्प से ज्वाला रूप योग द्वारा विनाश ज्वाला को तेज करो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ"*
〰✧ अपने को ज्ञान सूर्य के बच्चे मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? सूर्य का कार्य क्या होता है? अन्धकार मिटाना, प्रकाश देना। ऐसे ही आप सभी भी अज्ञान अन्धेरा मिटाने वाले हो ना। कभी स्वयं भी अन्धियारे में तो नहीं आ जाते? स्वयं से अन्धियारा समाप्त हो गया। स्वयं भी आत्मा ज्योति अर्थात प्रकाश स्वरुप है और कार्य भी है प्रकाश फैलाना। *अन्धकार में मनुष्य आत्माएं भटकती हैं - यहाँ जाएं, वहाँ जाएं, यह रास्ता ठीक है, यह स्थान ठीक है वा नहीं है, भटकते रहेंगे और रोशनी में सेकेण्ड में ठिकाना दिखाई देगा। तो सभी को रोशनी द्वारा अपना निजी ठिकाना दिखाने के निमित्त हो।*
〰✧ भटकती हुई आत्माओंको ठिकाना देने वाले। अगर कोई बहुत समय भटकता रहे और उसको कोई द्वारा ठिकाना मिल जाये तो ठिकाना दिखाने वाले को कितनी दुआएं देगा! *तो आप भी जब आत्माओंको रोशनी द्वारा ठिकाना दिखाते हो, दिखाने का अनुभव कराते हो तो आत्माओं द्वारा कितनी दुआएं निकलती हैं और जिसको दुआएं मिलती हैं वह सदा आगे बढ़ता जाता है। उसकी हर बात में प्रोग्रेस होती है क्योंकि दुआएं लिपÌट का काम करती हैं। सदा सहज आगे बढ़ते जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।* इसलिए भक्ति मार्ग में भी जब भटकते-भटकते थक जाते हैं तो बाप को कहते हैं - अभी कोई दुआ करो, कृपा करो। तो अनेक आत्माओंकी दुआएं आप आत्माओंको सहत उड़ती कला का अनुभव करायेंगी। एक बाप की दुआएं और आत्माओ की भी दुआएं मिलती हैं। माँ-बाप बच्चों को दुआएं करते हैं - उड़ते रहो, बढ़ते रहो।
〰✧ लेकिन दुआएं लेने वाले पात्र होने चाहिए। बाप सभी को देता है लेकिन लेने वाले पात्र हैं तो अनुभवव करते हैं और पात्र नहीं है तो दाता देता है लेकिन लेने वाला नहीं लेता। *पात्र बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि। स्वच्छ मन और स्वच्छ बुद्धि। जिसकी स्वच्छ बुद्धि स्वच्छ मन है वह हर समय बाप की, आत्माओंकी दुआएं स्वत: ही अनुभव करते हैं।* लौकिक दुनिया में भी देखो अगर कोई ऐसे समय किसको सहारा देता है, मुश्किल के समय आधार बन जाता है तो मुख से दुआएं निकलती हैं ना - तुम सदा जीते रहो, तुम सदा जीवन में सफल रहो, यह दुआएं जरुर निकलती हैं। तो अपने से पूछो कि बाप की दुआएं, आत्माओंकी दुआएं अनुभव होती है या मेहनत बहुत करनी पड़ती है?
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अभी वर्णन सब करते योग अर्थात याद, योग अर्थात कनेक्शन। लेकिन *कनेक्शन का प्रैक्टिकल रूप, प्रमाण क्या है, प्राप्ति क्या है, उसकी महीन में जाओ।* मोटे रूप में नहीं, लेकिन रूहानियत की गुह्यता में जाओ। तब फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष होगा। *'प्रत्यक्षता का साधन ही है स्वयं में पहले सर्व अनुभव प्रत्यक्ष हो'।*
〰✧ जैसे विदेश की सेवा में भी रिजल्ट क्या सुनी? प्रभाव किसका पड़ता? दृष्टि का और रूहानियत की शक्ति का, चाहे भाषा ना समझे लेकिन जो छाप लगती है वह फरिश्ते-पन की, सूरत और नयनों द्वारा रूहानी दृष्टि की। रिजल्ट में यही देखा ना। तो *अन्त में न समय होगा, न इतनी शक्ति होगी।*
〰✧ चलते-चलते बोलने की शक्ति भी कम होती जाएगी। लेकिन *जो वाणी कर्म करती है उससे कई गुणा अधिक रूहानियत की शक्ति कार्य कर सकती है।* जैसे वाणी में आने का अभ्यास हो गया है, वैसे रूहानियत का अभ्यास हो जाएगा तो वाणी में आने का दिल नहीं होगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *सदैव यह अनुभव हो कि मैं आत्मा परमधाम से अवतरित हुई हूँ, विश्व-कल्याण का कर्तव्य करने के लिए। तो इस स्मृति से क्या होगा? जो भी संकल्प करेंगे, जो भी कर्म करेंगे, जो भी बोल बोलेंगे, जहाँ भी नज़र जायेगी, सर्व का कल्याण करते रहेंगे।* यह स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी। उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है लेकिन यहाँ सर्वशक्तियों के लाइट हाउस हर कदम आत्माओं को रास्ता दिखाने का कार्य करें।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आत्म-अभिमानी होकर रहना"*
➳ _ ➳ *शरीर की प्रवृत्ति, लौकिक प्रवृत्ति, सेवा की प्रवृत्ति, स्वभाव संस्कार की प्रवृत्ति, सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारी होती हुई मैं आत्मा मन-बुद्धि को अपने भृकुटी के मध्य एकाग्र करती हूँ... अपने जगमगाते हुए सत्य स्वरूप में टिकते ही मुझे परमात्मा की याद आने लगती है... और मैं आत्मा उड़कर पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने प्यारे शिव बाबा के पास... बाबा से आती सतरंगी दिव्य किरणों से भरपूर हो रही हूँ...* फिर शिव बाबा संग नीचे उतरते हुए पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में... मैं सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करती हूँ... प्यारे शिवबाबा, ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं... मैं बाबा को निहारते हुए रूह-रिहान करने लगती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा मुझ आत्मा में परमात्म शक्तियों का बल भरते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... अब ईश्वरीय राहो पर फूलो सा महकने के दिन आ गए है... तो मीठे बाबा की यादो संग पूरे विश्व में सुख की मीठी बयार चलाओ... *हर दिल आत्मा को प्रेम से सींच प्रेम सागर से मिलवाओ... अपने आत्मिक स्वरूप और गुणो का सबको मुरीद बनाओ... देह अभिमान में आने से पाप होते है इसलिए आत्म अभिमानी बनो"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के संग रूहानी चमन में उड़ते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा अब देह के भान से निकल आत्मा के नशे में गहरे खो गई हूँ... *खुद अथाह सुख को पाकर सबको यह सुखदायी रास्ता बता रही हूँ... अपनी चलन और रूहानियत की खुशबु से हर दिल को मीठे बाबा का पता दे रही हूँ..."*
❉ *मीठे बाबा आत्म अभिमानी भव का वरदान देते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के भान में आकर अपना वजूद ही खो दिए हो... सारी चमक को धुंधला कर कलुषित हो गए हो... अब इस नकली आवरण को छोड़ असली सुंदरता के नशे में खो जाओ... *अपने आत्मिक सुन्दरतम स्वरूप में मदमस्त हो गुणवान छवि दिखाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा से अपने प्यार का इजहार करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... कितना न आपका मै आत्मा शुक्रिया करूँ... *मै क्या बन गयी थी बाबा और आपने अपने प्यार में कितना सुंदर बना दिया है... प्रेम गुलाब बना मुझे महका दिया है...* मेरा मीठा सा रूप रंगत देख देख हर दिल मेरे बाबा का आशिक बन रहा है..."
❉ *मेरे बाबा पवित्रता का नूर मुझमें भरते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... मीठे प्यारे बाबा के मीठे से संग में मिठास और ख़ुशी के प्रतीक बनो... *देहभान के कंटीले साये से दूर होकर आत्मिक गुणो की महक फैलाओ... ईश्वरीय यादो में हर कालिमा को धो लो और सम्पूर्ण पवित्रता भरे प्रकाश से नूरानी हो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा देह अभिमान से मुक्त होकर आत्म अभिमानी स्थिति में स्थित होते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय ज्ञान और योग से पाये अपने सच्चे रूप पर मोहित हो उठी हूँ... *सबको अपना निखरा और धवल प्रकाशित स्वरूप दिखा रही हूँ... और मीठे प्यारे बाबा से पायी गुणो की दौलत सारे जहान में लुटा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक वृक्षपति बाप की याद में रहना है*"
➳ _ ➳ अपनी एम ऑब्जेक्ट लक्ष्मी नारायण के चित्र के सामने खड़ी मैं बड़ी बारीकी और तन्मयता से भाव विभोर हो कर उस चित्र को देख रही हूँ और मन ही मन हर्षित हो रही हूँ। *उस चित्र की खूबसूरती को देखते - देखते एक सुन्दर गीत के वो शब्द याद आ जाते है कि "जिसकी रचना इतनी सुन्दर है, वो रचनाकार खुद कितना सुन्दर होगा"* इन्ही शब्दो पर विचार करते - करते मैं फिर से लक्ष्मी नारायण के उस चित्र पर नजर डालती हूँ और उनके अनुपम सौन्दर्य और तेजस्वी मुख मण्डल को निहारते हुए *उन्हें ऐसा श्रेष्ठ बनाने वाले श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ रचनाकार अपने शिव पिता को जैसे ही याद करती हूँ, मस्तिष्क के स्मृति पटल पर मेरे सुन्दर सलौने शिव पिता का मनमोहक स्वरूप उभर आता है और मन बुद्धि पूरी तरह से उनके स्वरूप पर एकाग्र हो जाते हैं*।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया को भूल अपने प्यारे पिता के स्वरूप को निहारने में मैं आत्मा ऐसे मग्न हो जाती हूँ जैसे चात्रिक पक्षी स्वन्ति की एक बूंद के लिये बादलों की ओर टकटकी लगाए देखता रहता है। *अपने प्यारे प्रभु को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से अपने सामने देखते हुए उनकी एक - एक किरण को एकटक निहारते हुए, मैं उनके अद्भुत सौंदर्य का रसपान कर रही हूँ*। शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे अपनी और आकर्षित कर रहा है। उनके पास जा कर उन्हें छूने की प्रबल इच्छा मेरे अंदर जागृत हो रही है। मेरे हर संकल्प को मेरे प्यारे प्रभु बिना कहे जैसे जान रहें हैं इसलिए बिल्कुल सहज रीति अपनी मैग्नेटिक पावर से मुझे अपनी और खींच रहें हैं।
➳ _ ➳ मेरे प्यारे मीठे बाबा की सर्वशक्तियों का यह चुम्बकीय बल मुझे देह भान से पूरी तरह मुक्त कर, अशरीरी स्थिति में स्थित कर रहा है। देह और देह से जुड़ी कोई भी वस्तु अब मुझे दिखाई नही दे रही। *मैं आत्मा स्वयं को एकदम साक्षी स्थिति में अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं संकल्प मात्र भी देह से अटैच नही हूँ। बहुत ही न्यारी और प्यारी, एक अलौकिक सुखमय स्थिति में मैं स्थित हो चुकी हूँ और इस अति न्यारी और प्यारी स्थिति में मैं सहजता से नश्वर देह को त्याग कर अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ*। सेकेण्ड मेंआकाश को पार कर, सूक्ष्म वतन से होती हुई मैं पहुँच जाती हूँ परमधाम अपने प्यारे बाबा के पास और उनके पास जा कर बैठ जाती हूँ ।
➳ _ ➳ बाबा से सर्वगुणों और सर्वशक्तियों की सतरंगी किरणे निकलकर मुझ आत्मा पर बरस रही हैं और मुझे असीम आनन्द से भरपूर कर रही हैं। एक अलौकिक दिव्यता मुझ आत्मा में भरती जा रही है। प्यार के सागर मेरे मीठे बाबा अपनी शक्तिशाली किरणो के रूप में अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। *उनके प्यार की शीतल किरणे मेरे अंदर गहराई तक समा कर, मुझे भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बना रही हैं। निरसंकल्प बीज रूप अवस्था में अपने बीज रूप शिव पिता को छू कर, उनके प्यार का सुखद एहसास करने के साथ - साथ उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर, सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे अपना पार्ट बजाने के लिए लौट आती हूँ*।
➳ _ ➳ नीचे साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ। बाबा के प्यार के सुखद एहसास को सदा स्मृति में रख, गुप्त रीति उन्हें याद कर, लक्ष्मी नारायण जैसा श्रेष्ठ बनने का अब मैं जी जान से पुरुषार्थ कर रही हूँ। *बाबा की श्रीमत पर चल, बाबा की शिक्षाओं को जीवन मे धारण करते हुए अपने संकल्प, बोल और कर्म को योगयुक्त औऱ युक्तियुक्त बनाकर मैं सहज ही श्रेष्ठ बनती जा रही हूँ*। गुप्त रीति ईश्वरीय याद में रह योगबल से पुराने कर्मबन्धनों के हिसाब - किताब बिल्कुल सहज भाव से चुकतू करने के साथ - साथ *अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारो को भी योग अग्नि में भस्म कर, श्रेष्ठ दैवी गुणों को धारण करते हुए अपने लक्ष्य की ओर मैं निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं स्वयं के प्रति इच्छा मात्रम अविद्या रखने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं बाप समान अखण्डदानी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं परोपकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा ज्ञान, गुण और धारणा में सदैव सिंधु बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा स्मृति में बिंदु हूँ ।*
✺ *मैं बिंदु स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ कुमार सदा अपने को बाप के साथ समझते हो? बाप और मैं सदा साथ-साथ हैं, ऐसे
सदा के साथी बने हो? वैसे भी जीवन में सदा कोई न कोई साथी बनाते हैं। तो आपके
जीवन का साथी कौन? (बाप) ऐसा सच्चा साथी कभी भी मिल नहीं सकता। *कितना भी प्यारा
साथी हो लेकिन देहधारी साथी सदा का साथ नहीं निभा सकते और यह रूहानी सच्चा साथी
सदा साथ निभाने वाला है।* तो कुमार अकेले हो या कम्बाइन्ड हो? (कम्बाइन्ड) फिर
और किसको साथी बनाने का संकल्प तो नहीं आता है? कभी कोई मुश्किलात आये, बीमारी
आये, खाना बनाने की मुश्किल हो तो साथी बनाने का संकल्प आयेगा या नहीं? कभी भी
ऐसा संकल्प आये तो इसे ‘व्यर्थ संकल्प' समझ सदा के लिए सेकण्ड में समाप्त कर
लेना। क्योंकि जिसे आज साथी समझकर साथी बनायेंगे कल उसका क्या भरोसा! इसलिए
विनाशी साथी बनाने से फायदा ही क्या! तो सदा कम्बाइन्ड समझने से और संकल्प
समाप्त हो जायेंगे क्योंकि सर्वशक्तिवान साथी है। जैसे सूर्य के आगे अंधकार ठहर
नहीं सकता वैसे सर्वशक्तिवान के आगे माया ठहर नहीं सकती। तो सब मायाजीत हो
जायेंगे।
✺ *"ड्रिल :- किसी भी मुश्किल में बीमारी में बाप को अपना साथी बना कर रखना"*
➳ _ ➳ सुंदर से बगीचे में फूलों की महक में ओस की बूंदों से सजे एक बहुत ही
प्यारे फूल पर मैं आत्मा तितली बन कर बैठी हूं... कभी इस फूल पर और कभी उस फूल
पर मैं तितली उड़ती हुई नए-नए रस का आनंद ले रही हूं... मैं इतनी हल्की होकर उड़
रही हूं मानो मैं एक हवा का झोंका हूँ... और मानो जैसे मुझे कोई बंधन नहीं हो,
अपने रंग बिरंगे पंखों से मैं इस प्रकृति की शोभा बढ़ा रही हूं... थोड़ी ही देर
बाद मैंने देखा कि उस बगीचे में एक बहुत ही सुंदर जोड़ा मोर मोरनी का नाच रहा
है... और मैं उसे देख कर बहुत आनंदित हो रही हूं... *उन्हें देख कर मुझे ऐसा
प्रतीत होता है कि मानो वह एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हो और मानो हर पल एक
दूसरे की याद में ही रहते हो...*
➳ _ ➳ उनको देखते-देखते मैं तितली नाचती हुई मोरनी के पंखों पर जाकर बैठ जाती
हूं... और उनके हृदय की गहराई को जानने का प्रयत्न करती हूं... जैसे ही मैं उनके
पास पहुंचती हूं मुझे आभास होता है कि वह मोर मोरनी आपस में बात कर रहे हैं...
मोर मोरनी से कहता है... तुम हमेशा किस खुशी में नाचती रहती हो? मेरा मन कई बार
उदास हो जाता है परंतु तुम कभी उदास नहीं होती तुम्हारी खुशी का क्या कारण है
मोरनी बहुत खुश होती है और मोर को कहती है... *जब मेरा केवल देहधारियों से नाता
था मैं केवल उनसे जुड़े रिश्ते नाते और बातें और सिर्फ उनको ही याद रखती थी...
जब उनसे जुड़ी कोई खुशी की बात याद आती तो मैं खुश होती और जब उनसे जुड़ा कोई
दुख मुझे याद आता तो मैं भी उदास और दुखी हो जाती थी...*
➳ _ ➳ फिर थोड़ा समय रुकने के बाद मोरनी मोर को कहती है... जैसे ही मुझे ज्ञात
हुआ की मुझ आत्मा के पिता परमात्मा *जो मुझे हर पल याद करते हैं मैं उन्हें भूली
हुई हूँ... जो मुझे सिर्फ खुशी देने के लिए आए हैं... हमेशा नाचते हुए देखने के
लिए आए हैं... उनको मैं कभी याद भी नहीं करती तब मुझे सिर्फ दुख की अनुभूति ही
हुई... जैसे ही मैंने देह धारियों से अपनी बुद्धि हटाकर हरपल परमपिता परमात्मा
को अपना साथी बनाया, अपना दुख दर्द का हिस्सेदार बनाया, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं
रहा...* अब मुझे सिर्फ परम् पिता से जुड़ी हुई खुशियां और अनुभव ही याद रहते
हैं... हर पल उनका साथ महसूस करने के कारण मैं हमेशा खुशी का अनुभव करती हूँ और
खुशी में नृत्य करती हूँ...
➳ _ ➳ उनकी बातें सुनकर मैं बहुत आनंदित हो उठती हूं... और मुझे भी ज्ञात होता
है कि मैं अभी तक देहधारियों से नाता तोड़ नहीं पाई हूं... बुद्धि से कहीं ना
कहीं अभी तक मैं उन में फंसी हुई हूं... मैंने अपने कर्तव्यों को मोह में बदलकर
अशांति प्राप्त की है... अब मै और ऐसा नहीं होने दूंगी... मैं सिर्फ परमपिता
परमात्मा को अपना साथी बना कर आगे बढूंगी... हर पल उनको अपने साथ अनुभव करूंगी...
और मैं यह भी दृढ़ संकल्प करती हूं कि... मैं किसी भी सांसारिक रिश्ते में अपनी
बुद्धि नहीं फसाऊंगी... सिर्फ परमात्मा की याद में आगे बढ़ती जाऊंगी... *अगर
मैं परमात्मा की याद में कोई भी संकल्प करूंगी तो वह संकल्प सिर्फ और सिर्फ
पॉजिटिव ही होंगे... कोई भी व्यर्थ संकल्प मेरे दिमाग में नहीं आएगा... परमात्मा
को अपना साथी और अपनी छत्रछाया बनाकर हमेशा अपने साथ रखूंगी... हमेशा परमात्मा
के साथ कंबाइंड स्थिति का अनुभव करके अपनी शक्तियों को बढ़ाऊंगी और मास्टर
सर्वशक्तिमान स्थिति का अनुभव करूंगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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