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 07 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *निश्चयबुधी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सम्पूरणता और समानता का समीप अनुभव किया ?*

 

➢➢ *लेवता पन के संस्कारों को समाप्त करने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *नॉलेजफुल बन तीव्र गति से आगे बड़े ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पावरफुल मन की निशानी है-सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुच जाए। मन को जब उड़ना आ गया, प्रैक्टिस हो गई तो सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुंच सकता है।* अभी-अभी साकार वतन में, अभी-अभी परमधाम में, सेकण्ड की रफ़्तार है-अब इसी अभ्यास को बढ़ाओ।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं बाबा के ब्राह्मण परिवार का श्रेष्ठ ब्राह्मण हूँ"*

 

  अपने को ब्राह्मण संसार का समझते हो। ब्राह्मण संसार ही हमारा संसार है, बाप ही हमारा संसार है - ऐसे अनुभव करते हो कि और भी कोई संसार है। बाप और छोटा सा परिवार यही संसार है। जब ऐसा अनुभव करेंगे तब न्यारे और प्यारे बनेंगे। अपना संसार ही न्यारा है। अपनी दृष्टि-वृत्ति सब न्यारी है। ब्राह्मणों की वृत्ति में क्या रहता है? किसी को भी देखते हो तो आत्मिक वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से मिलते हो। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। अगर वृत्ति और दृष्टि में आत्मिक दृष्टि है तो सृष्टि कैसी लगेगी? आत्माओंकी सृष्टि कितनी बिढ़या होगी? शरीर को देखते भी आत्मा को देखेंगे। *शरीर तो साधन है। लेकिन इस साधन में विशेषता आत्मा की है ना। आत्मा निकल जाती है तो शरीर के साधन की क्या वैल्यु है! आत्मा नहीं है तो देखने से भी डर लगता है। तो विशेषता तो आत्मा की है। प्यारी भी आत्मा लगती है। तो ब्राह्मणों के संसार में स्वत: चलते फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति है इसलिए कोई दु:ख का नाम- निशान नहीं।* क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से।

 

  *अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है। सुखदायी-सुखमय जीवन। क्योंकि बाप को कहते ही हैं - सुखदाता। तो सुखदाता द्वारा सर्व सुखों का वर्सा मिल गया। माँ बाप कहा और वर्सा मिला। तो सुख की शैया पर सोने वाले।* चाहे स्थूल में बिस्तर पर सोते हो, लेकिन मन किस पर सोता है? चलते-फिरते क्या लगता है? सुख ही सुख है। संसार ही सुखमय है सुख ही सुख दिखाई देगा ना। दु:खधाम को छोड़ दिया। अभी भी दु:खधाम में रहते हो या कभी-कभी चक्कर लगाने जाते हो? दु:खधाम से किनारा कर दिया। संगम पर आ गये है ना। अभी संगमयुगी हो या कलियुगी हो?

 

  स्वप्न में भी दु:खधाम में नहीं जा सकते। नया जीवन है ना। युग भी बदल गया, जीवन भी बदल गया। अभी संगमयुगी श्रेष्ठ ब्रह्मण आत्मायें हैं - इसी नशे में सदा रहो। सुखमय संसार में रहने वाले सुख स्वरूप आत्मायें। दु:ख तो 63 जन्म देख लिया। *अभी संगम पर अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले हैं। यह बाहर का सुख नहीं है, अतीन्द्रिय सुख है। विनाशी सुख तो कलियुगी आत्मा को भी है। लेकिन आपको अतीन्द्रिय सुख है। तो सदा सुख के झूले में झूलते रहो। बाप कहते हैं - सदा बाप के साथ झुले में झूलते रहो। यही भक्ति का फल है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *विश्व की अधिकतर आत्मायें आप की और इष्ट देवताओं की प्रत्यक्षता का आह्वान ज्यादा कर रही है और इष्ट देव उनका आह्वान कम कर रहे हैं।* इसका कारण क्या है? अपने हद के स्वभाव, संस्कारों की प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो।

 

✧  जैसे अज्ञानी आत्माओं को ज्ञान सुनने की फुर्सत नही हैं वैसे बहुत से ब्राह्मणों को भी इस पॉवरफुल स्टेज पर स्थित होने की फुर्सत नहीं मिलती है। *इसलिए ज्वाला रूप बनने की आवश्यकता है।*

 

✧  बापदादा हर एक की प्रवृत्ति को देख मुस्कुराते है कि कैसे टू - मच बिजी हो गए हैं। *बहुत बिजी रहते हो ना वास्तविक स्टेज में सदा फ्री रहेंगे। सिद्धि भी होगी और फ्री भी रहेंगे।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ सूर्यवंशी अपने वृत्ति और वायब्रेशन की किरणों द्वारा अनेक आत्माओं को स्वस्थ अर्थात स्वस्मृति में स्थित करने का अनुभव कराएंगे। *सूर्यवंशी की विशेष दो निशनियाँ अनुभव होगी - एक तो सदा निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आना। दूसरा सदा स्थिति में स्वमान-बोल और कर्म में निर्माण अर्थात् निर्वाण और निर्माण दो निशानियाँ अनुभव होगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- पुरुषार्थ और परिवर्तन का गोल्डन चांस लेना"*

 

_ ➳  *परमपिता परमात्मा परमधाम से आकर विकारों की अग्नि से धधकते इस दुनिया को स्वाहा कर... नई निर्विकारी सतयुगी दुनिया की स्थापना के लिए रूद्र ज्ञान यज्ञ की ज्वाला प्रज्वलित करते हैं...* कोटो में से चुनकर प्यारे बाबा ने मुझे अपनी गोदी में पालना दी... मुझे ब्राहमण बनाकर इस यज्ञ में अपना राईट हैण्ड बनाया... विचार करते हुए मैं आत्मा उड़ चलती हूँ, अव्यक्त वतन में... मीठे बाबा मेरे सिर पर विश्व परिवर्तन का ताज पहनाते हुए समझानी देते हैं...  

 

  *सबकी जिन्दगी की राहों से अँधेरा मिटाकर विश्व को रोशन करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... बापदादा आज चैतन्य दीपको से मिलन मना रहे है... *हर एक दीपक अपनी रौशनी से विश्व के अंधकार को दूर करने वाला चैतन्य दीपक है... अपनी इस खुबसूरत जिम्मेदारी के ताज को सदा पहने रहो...* विश्व की आत्माये अंधकार के सागर में समायी सी... बेसब्री से आपकी बाट निहार रही है... उनके जीवन का अँधेरा दूर करो...

 

_ ➳  *इस जहान की नूर मैं आत्मा सबके दिलों की आश बन दुःख दर्द मिटाकर खुशियों से महकाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में प्रकाश पुंज बन गई हूँ... *सबके दुखो को दूर करने वाली दीपक बन जगमगा रही हूँ... सबके दामन में सुखो के फूल खिला रही हूँ...* और विश्व परिवर्तन की जिम्मेदारी का ताज पहन मुस्करा रही हूँ...

 

  *प्यारे बाबा अमृत भरा कलश मेरे सिर पर रख विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के निमित्त बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली ब्रह्मा कुमार हो... आपके स्नेह के आकर्षण में बाबा अव्यक्त होते हुए भी....मधुबन में साकार रूप चरित्र की अनुभूति सदा कराते है... *कितने बड़े स्नेह के जादूगर हो... ऐसी विशेषता भरी खुबसूरत मणि हो कि स्नेह के बन्धन में बापदादा को बांध लिया है...”*

 

_ ➳  *परमात्मा की गले का हार बन अविनाशी सुखों से इस सृष्टि का श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा खुबसूरत भाग्य की धनी हूँ... भगवान मेरी बाँहों में आ गया है... *मेरे स्नेह की डोरी में खिंच कर सदा साथ रह मुस्करा रहा है... वाह बच्चे वाह के गीत गा रहा है... आपके प्यार में मै आत्मा खुबसूरत चैतन्य दीपक बन गई हूँ...”*

 

  *अपने वरदानी हाथों से अविनाशी भाग्य की लकीर मेरे मस्तक पर खींचते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *बापदादा होलिहंसो का ख़ुशी भरा डांस देख देख मन्त्रमुग्ध है... मनमनाभव के महामन्त्र के वरदानी बन मुस्करा रहे हो...* ईश्वर पिता की सारी दौलत को बाँहों में भरने वाले खबसूरत सौदागर भी हो और जादूगर भी हो... सदा इस अलौकिक नशे में रहो और ज्ञान सूर्य बन चमको...

 

_ ➳  *इस धरा पर स्वर्ग लाने के कार्य में मैं आत्मा अपना तन, मन, धन सफल करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर किस कदर गुणो और शक्तियो की जादूगर सी बन गयी हूँ... *जीवन कितना मीठा प्यारा और खुशनुमा इस प्यार की जादूगरी से हो गया है... मै आत्मा ज्ञान सूर्य बन अपनी रूहानियत से सबके दिल रोशन कर रही हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- निश्चय बुद्धि अवस्था का अनुभव करना*

 

_ ➳  हर सम्बन्ध का सुख देकर मेरे जीवन मे खुशियों के फूल खिलाने वाले मेरे मीठे प्यारे बाबा, जिन्हें याद करते ही दिल बार - बार उनका शुक्राना करता है, उन पर बलिहार जाता है और एक - एक करके वो सभी प्राप्तियाँ स्मृति में आने लगती हैं जो बाबा हर मुझे पल करवाते रहते हैं। *उन सभी मीठी मधुर स्मृतियों में खोई अपने दिलाराम बाबा को बड़े प्यार से मैं जैसे ही पुकारती हूँ मेरे दिलाराम बाबा मेरी एक पुकार सुनते ही सेकण्ड में मेरे पास पहुँच जाते हैं* और यह सोच कर अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर मुझे नाज़ होता है कि जिस भगवान को पाने के लिए दुनिया वाले कठिन से कठिन तपस्या करते हैं वो भगवान कितनी सहज रीति मुझे मिल  गया! 

 

_ ➳  कैसे मेरे एक बुलावे पर मेरे बाबा दौड़े चले आते है। अपना हर वादा निभाते है। ऐसे भगवान बाप का हाथ और साथ मैं कभी नही छोड़ूंगी। चाहे दुनिया कितने सितम ढाये लेकिन मैं अपने दिलाराम बाबा की ही होकर रहूँगी। *मन ही मन स्वयं से प्रतिज्ञा करते हुए मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरा हर संकल्प मेरे बाबा तक पहुँच रहा है और उनका प्रेम अनवरत मुझ पर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों के रूप में मुझे अपने ऊपर बरसता हुआ स्पष्ट अनुभव होने लगा है*। परमधाम से आ रही मेरे प्यारे पिता के स्नेह की मीठी मधुर मन को तृप्त कर देने वाली शीतल फुहारें, बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह मेरे ऊपर पड़ रही हैं और मुझे अपने प्रेम के रंग में रंगती जा रही हैं। *एक अद्भुत अलौकिक रूहानी मस्ती मुझ पर छाने लगी है*। 

 

_ ➳  अपने दिलाराम बाबा के प्रेम की मस्ती में डूबी मैं आत्मा सजनी अब स्वयं को उनके ही समान देह से बिल्कुल न्यारा अनुभव करने लगी हूँ। अपने निराकार प्वाइंट ऑफ लाइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं मन बुद्धि के दिव्य चक्षु से उस सुप्रीम प्वाइंट ऑफ लाइट अपने पिता को देख रही हूँ जो परमधाम से अपने प्रेम की वर्षा मेरे ऊपर करते हुए मुझे अपने पास आने के लिए आमंत्रित कर रहें हैं। *अपने प्यारे प्रभु के आमंत्रण को हृदय से स्वीकार कर अब मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, अपने पिता सुप्रीम प्वाइंट ऑफ लाइट से मिलने उनके ब्रह्मलोक घर की ओर जा रही हूँ*। देह की साकारी और फरिश्तो की आकारी दुनिया को पार कर आत्माओं की निराकारी दुनिया, अपने पिता के ब्रह्मलोक घर में अब मैं स्वयं को देख रही हूँ।

 

_ ➳  लाल प्रकाश से सजे, अपने प्यारे पिता के  परमधाम घर में आकर मैं एक ऐसी गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ जिसकी तलाश में मैं भटक रही थी। ऐसा लग रहा है शांति की तलाश में भटकने की मेरी सारी प्यास जैसे आज बुझ गई है और मैं आत्मा पूरी तरह से तृप्त हो गई हूँ। *गहन शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं अपने दिलाराम बाबा के पास जाती हूँ और उनके समीप बैठ कर बड़े प्यार से उन्हें निहारने लगती हूँ। सूर्य के समान तेजोमय उनके अति सुंदर स्वरूप और उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणों को एकटक निहारते हुए, उनकी एक - एक किरण से निकलने वाले उनके गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स को मैं अपने अंदर समा रही हूँ* और उनके समान सर्व गुणों सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन रही हूँ।

 

_ ➳  अपने दिलाराम बाबा से मिलन मना कर उनके गुणों और शक्तियों से स्वयं को भरपूर करके अब मैं साकार सृष्टि रूपी कर्मभूमि पर कर्म करने के लिए वापिस लौट आती हूँ। *कर्मक्षेत्र पर देह का आधार लेकर कर्म करते हुए भी अब मैं देह और देह की दुनिया से जैसे स्वयं को उपराम अनुभव कर रही हूँ*। मन बुद्धि से केवल अपने दिलाराम बाबा की होकर मैं हर सम्बन्ध का सुख उनसे ले रही हूँ। *" मैं बाबा की हूँ और बाबा की ही रहूँगी " इस निश्चय में रहते हुए बाबा को ही अपना संसार बनाकर, मैं बाबा के साथ अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*। अमृतवेले दिन की शुरुआत से लेकर रात्रि सोने तक हर कर्म करते बाबा को साथी बना कर, बाबा से की हर प्रतिज्ञा को मैं  सहज रीति पूरा कर रही

 हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं वाह ड्रामा वाह की स्मृति में रहने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं अनेकों की सेवा करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा खुशनुम: आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा शांति की शक्ति को यूज़ करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव मनसा सेवा करती हूँ  ।*

   *मैं संतुष्ट आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ ‘‘बापदादा राजऋषियों की दरबार देख रहे हैं। राज अर्थात् अधिकारी और ऋषि अर्थात् सर्व त्यागी। त्यागी और तपस्वी। *तो बापदादा सर्व ब्राह्मण बच्चों को देख रहें हैं कि कहाँ तक अधिकारी आत्मा और साथ-साथ महात्यागी आत्मादोनों का जीवन में प्रत्यक्ष स्वरूप कहाँ तक लाया है! अधिकारी और त्यागी दोनों का बैलेन्स हो। अधिकारी भी पूरा हो और त्यागी भी पूरा हो।* दोनों ही इकट्ठे हो सकता है? इसको जाना है वा अनुभवी भी हो? *बिना त्याग के राज्य पा सकते हो? स्व का अधिकार अर्थात् स्वराज्य पा सकते हो? त्याग किया तब स्वराज्य अधिकारी बने। यह तो अनुभव है ना! त्याग की परिभाषा पहले भी सुनाई है।*

✺ *"ड्रिल :- राजऋषि बनकर रहना*"

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में ख्वाबों के बिस्तर पर गहरी नींद में सो रही थी। तभी मुझे गहरी नींद में मीठे से स्वपन की अनुभूति होती है... *मैं अपने आप को बापदादा के साथ सूक्ष्म लोक में अनुभव करती हूँ... मैं अपने दिव्य चक्षु से देखती हूँ बाबा फरिश्तों का दरबार लगाये हुए हैं और सभी फ़रिश्ते सफ़ेद चमकीली पोशाक पहन कर बापदादा के सामने बैठे हुए हैं...* और समझा रहे हैं और कुछ पूछ रहे हैं... क्या तुम सभी अपने आप को राजऋषि समझते हो? राज अर्थात अधिकारी! बापदादा द्वारा दिए हुए सर्वखजानों पर अपना पूर्ण अधिकार और बापदादा पर भी अपना पूर्ण अधिकार... जब चाहे पूरे अधिकार से सभी खज़ाने प्राप्त कर लो...

➳ _ ➳ और फ़िर बाबा उन फरिश्तों को समझाते हैं... मन में कभी ये संकोच न रहे कि ये खज़ाना मेरा है या नहीं... *जैसे एक बच्चा अपने माता पिता से किसी भी प्रकार की चीज़ मांगता नहीं है बल्कि पूर्ण अधिकार से और प्रेम से हर चीज़ अपने माता पिता से प्राप्त करता है...* उस बच्चे के मन में कभी किसी भी प्रकार का कोई संकोच न होने के कारण और गहरे प्रेम और निः स्वार्थ के कारण वो ज़िद से भी अपनी हर चीज़ को माता पिता से ही लेता है और माता पिता भी अपने बच्चों को कोई भी चीज़ देने से इंकार नहीं करते... ऐसे अधिकारी बनो...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद बाबा कहते हैं जिस तरह अपने ख़ज़ानों पर और अपने बाप पर पूर्ण अधिकार रखते हो उसी तरह अपनी कर्मेन्द्रियों पर भी पूरी तरह से राज़ करते हो? जब चाहे कर्मेन्द्रियों को वश में कर सकते हो? और जब चाहे स्वतंत्र कर सकते हो? क्या ऐसे राज़ अधिकारी बने हो? फिर बाबा कहते हैं *जैसे कछुआ कर्म करते हुए अपनी गर्दन और पैरों को बहार निकाल लेता है और जब उसका कर्म समाप्त होता है तो वह अपनी कर्मेन्द्रियों को अंदर समेट लेता है... क्या ऐसे कर्मेन्द्रियों के अधिकारी बने हो?* कुछ फ़रिश्ते खड़े हो कर बाबा से कहते हैं बाबा... सिर्फ कुछ ही कर्मेन्द्रियाँ हैं जिनको वश में करना बाकी है... काफी हद तक वश में हैं परंतु वश से बाहर हो जाती हैं...

➳ _ ➳ उस सूक्ष्म लोक में उस शीतल प्रकाश के बीच उन फरिश्तों को इस स्थिति में देख कर बाबा आश्चर्यचकित होते हैं और मुस्कुरा कर आगे बढ़ने का आदेश देते हैं... फिर बाबा पूछते हैं *बच्चों क्या अपने आप को त्याग और बलिदान की स्मृति में रखते हुए ऋषि की भाँति त्यागी जीवन का अनुभव करते हो... जैसे ऋषि अपना सर्वस्व त्याग कर तपस्या करता है वैसे ही आप सर्वस्व त्याग कर त्यागमूर्त बने हो?* तभी कुछ फ़रिश्ते बाबा को कहते हैं हाँ बाबा बस यह स्थिति भी पूरी होने ही वाली है बस कुछ समय और उनकी बात सुनकर बाबा फिर मुस्कुराते हैं और आगे बढ़ने का वरदान देते हैं...

➳ _ ➳ सूक्ष्म लोक के इस दृश्य को देखकर मेरे मन के सभी प्रश्न समाप्त हो गए और मैं आगे बढ़कर बापदादा के पास जाती हूँ और बाबा से कहती हूं बाबा सदा अधिकारी और त्यागी स्थिति में अपने आप को अनुभव करुँगी... दोनों स्थितियों का अपने पुरुषार्थ में बैलेंस रखूँगी... *कभी भी पुरुषार्थ के मार्ग में नहीं डगमगाऊँगी अपनी कर्मेन्द्रियों पर राज करके स्वराज अधिकारी स्थिति का अनुभव करूँगी और स्वराज अधिकारी बनूँगी...* और मैं बाबा से कहती हूं बाबा मुझे अच्छी तरह समझ आ गया है कि मैं बिना त्याग के राज्य पा नहीं सकती... इसलिए त्यागी मूर्त बनकर सेवा करुँगी... ये वादा कर के मैं वापिस अपने कर्म क्षेत्र पर आ जाती हूँ और बाबा की बातों को स्मृति में रखते हुए गहरी निद्रा से जाग जाती हूँ... तथा बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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