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❍ 28 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"मैं फ़रिश्ता सो देवता हूँ" - चलते फिरते यह अनुभव किया ?*
➢➢ *अपना तन-मन-धन सब कुछ बाप के आगे समर्पण किया ?*
➢➢ *निरंतर सेवाधारी और निरंतर योगी बनकर रहे ?*
➢➢ *पूरे विश्व को सुख, शांति और शक्ति की किरनें दिन ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *ज्वाला स्वरूप याद के लिए मन और बुद्धि दोनों को एक तो पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए।* इससे बुद्धि की शक्ति वा कोई भी एनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जायेगी। *जितनी जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी। इसके लिए अब संकल्पों का बिस्तर बन्द करते चलो अर्थात् समेटने की शक्ति धारण करो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी हीरे तुल्य श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को संगमयुगी हीरे तुल्य श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? *क्योंकि संगम पर इस समय हीरे तुल्य हो, सतयुग में सोने तुल्य बनेंगे। लेकिन इस समय सारे चक्र के अन्दर श्रेष्ठ आत्मा का पार्ट बजा रहे हो। तो हीरे समान जीवन अर्थात् इतनी अमूल्य जीवन बनी है? सबसे बड़ी मूल्यवान जीवन संगमयुग की है।*
〰✧ तो ऐसी स्मृति रहती है कि इतने श्रेष्ठ हैं? क्योंकि जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी। अगर स्मृति श्रेष्ठ है तो स्थिति साधारण नहीं हो सकती। अगर स्थिति साधारण है तो स्मृति भी साधारण है। *तो सदा सर्वश्रेष्ठ मूल्यवान जीवन अनुभव करने वाली आत्मा हूँ-यह स्मृति में इमर्ज रहे। ऐसे नहीं कि मैं हूँ ही, मालूम है कि हम हीरे तुल्य हैं।* लेकिन स्मृति में इमर्ज रूप में रहता है और उसी स्मृति से, उसी स्थिति से हर कार्य करते हो?
〰✧ क्योंकि हीरे तुल्य जीवन वा हीरे तुल्य स्थिति वाले का हर कर्म हीरे तुल्य होगा अर्थात् मूल्यवान होगा, ऊंचे ते ऊंचा होगा। तो हर कर्म ऐसे ऊंचा रहता है या कभी ऊंचा, कभी साधारण? क्योंकि सदा हीरे तुल्य हो। हीरा तो हीरा ही होता है, वह कभी सोना वा चांदी नहीं बनता। *तो हर कर्म करते हुए चेक करो कि-हीरे तुल्य स्थिति है, चलते-चलते साधारणता तो नहीं आ गई? क्योंकि 63 जन्म का अभ्यास है साधारण रहने का। तो पिछला संस्कार कभी खींच लेता है। कमजोर को कोई खींच लेगा, बहादुर को कोई खींच नहीं सकता। बहादुर उसको भी चरणों में झुका देगा। तो कभी भी साधारण स्थिति नहीं हो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज बापदादा रूहानी ड्रिल करा रहे थे। *एक सेकण्ड में संगठित रूप में एक ही वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकते हैं।*
〰✧ नम्बरवार हरेक इन्डीविजुवल अपने-अपने पुरुषार्थ प्रमाण, महारथी अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल को परविर्तन करते रहते हैं। लेकिन *विश्व परिवर्तन में सम्पूर्ण कार्य की समाप्ति में संगठित रूप की एक ही वृति और वायब्रेशन चाहिए।*
〰✧ थोडी-सी महान आत्माओं के वा तीव्र पुरुषार्थी महारथी बच्चों की वृत्ति व वायब्रशन्स द्वारा कहीं-कहीं सफलता होती भी रहती है लेकिन *अभी अंत में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की एक ही वृति की अंगुली चाहिए। एक ही संकल्प की अंगुली चाहिए तब ही बेहद का विश्व परिवर्तन होगा।* वर्तमान समय विशेष अभ्यास इसी बात का चाहिए।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जो बच्चे बाप की याद में रहने वाले हैं, वह विनाश में विनाश नहीं होंगे लेकिन स्वेच्छा से शरीर छोड़ेंगे,* न कि विनाश के सरकमस्टान्सेज़ के बीच में छोड़ेंगे। *इसके लिए एक बुद्धि की लाइन क्लियर हो और दूसरा अशरीरी बनने का अभ्यास बहुत हो।* कोई भी बात हो तो आप अशरीरी हो जाओ। अपने आप शरीर छोड़ने का जब संकल्प होगा तो संकल्प किया और चले जायेंगे। इसके लिए बहुत समय से प्रैक्टिस चाहिए। *जो बहुत समय के स्नेही और सहयोगी रहते हैं।उनको अन्त में मदद ज़रूर मिलती है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे स्थूल वस्त्र उतार रहे हैं। ऐसे ही शरीर छोड़ देंगे।* सारा दिन में चलते-चलते बीच-बीच में अशरीरी बनने का अभ्यास ज़रूर करो। *जैसे ट्रैफिक कण्ट्रोल का रिकार्ड बजता है तो वैसे वहाँ कार्य में रहते भी बीच-बीच में अपना प्रोग्राम आपे ही सेट करो तो लिंक जुटा रहेगा। इससे अभ्यास होता जाएगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- निरंतर सेवाधारी तथा निरतंर योगी बनना"*
➳ _ ➳ *जाना है हमें अपने परमधाम जहाँ देह ना है ना देह का ज्ञान... जाना है हमें अपने परमधाम...* इस गीत को सुनते ही मैं आत्मा टिक जाती हूँ अपने सत्य स्वरूप में... अपने सत्य स्वरुप में टिककर मैं आत्मा इस देह को छोड़कर अब ऊपर की ओर जा रही हूँ... *मैं चमकती हुई ज्योति आकाश मंडल को पार करती हुए जा रही हूं... अपने घर परमधाम... गोल्डन प्रकाश से प्रकाशित, संपूर्ण शांति से भरपूर यह मेरा घर है...* मेरे सामने है सुख के दाता, आनंद के सागर मेरे मीठे प्यारे बाबा ... उनके सानिध्य में, मैं असीम सुख और शांति का अनुभव कर रही हूं... उनसे निकल रहे शक्तिशाली प्रकंपन मुझे असीम आनंद से भरपूर कर रहे हैं... उन से आ रही सर्व शक्तियों की किरणे मुझे शक्तिशाली बना रही हैं... *मेरे प्यारे बाबा के प्रेम की शीतल छाया मुझे अतींद्रिय सुखमय स्थिति का अनुभव करवा रही है...* मैं आत्मा एक शिव पिता की लगन में मगन हो जाती हूँ...
❉ *बाबा मुझ आत्मा को विश्व कल्याण की भावनाओं से ओत-प्रोत करते हुए कहते है :-* लाडले विश्व कल्याणकारी बच्चे मेरे... ईश्वर पिता ने आकर है आपके जीवन को अथाह सुख-शांति से है सजाया... सर्व प्राप्तियों से है आपको सम्पन्न बनाया... बन रूहानी सोशल वर्कर तुम इस सुख-शांति को पूरी दुनिया मे फैलाओं... *हर आत्मा को सुखों की अमीरी से भर आओ...*
➳ _ ➳ *मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा विश्व कल्याण की भावना से सम्पन्न होकर कहती हूँ :-* मेरे दिल के सहारे सच्चे मनमीत बाबा मेरे... कितना ऊँचा कितना शानदार है आपने मुझ आत्मा का भाग्य बनाया... सच्ची सुख -शांति से है इस जीवन को सजाया... *बन अब मैं आत्मा रूहानी सोशल वर्कर सुखों की अमीरी से हर आत्मा को सजा रही हूँ... विश्व सेवाधारी बन पूरी दुनिया को सुख-शांति-पवित्रता से सम्पन्न बना रही हूँ...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा को सर्व आत्माओं के कल्याण का रूहानी अहसास देकर कहते है :-* मीठे सच्चे सेवाधारी बच्चे मेरे... *पवित्रता की धरोहर से जीवन को श्रेष्ठ बनाकर क्या से क्या बन रहे हो... यह प्राप्ति औरों को भी कराओं...* सबके जीवन को आप समान खुशियों से महकाओं... सफल कर अपना तन-मन-धन तुम... इस दुनिया को सुख-शांति पवित्रता से सम्पन्न बनाओ...
➳ _ ➳ *मैं आत्मा विश्व कल्याण के मीठे रूहानी अहसासों से भरकर कहती हूँ :-* मीठे-मीठे रत्नागर बाबा मेरे... पवित्रता ही सुख-शांति का आधार है... इस सत्य से सबको रूबरू करा रही हूँ... सबके जीवन को आप समान खुशियों से महका रही हूँ... *सफल कर अपना तन-मन-धन सबकों ईश्वरीय सुखों से सम्पन्न बना रही हूँ...*
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को जिम्मेवारी का ताज पहनाकर कहते है :-* मीठे लाडले दिलतख्तनशीन बच्चे मेरे... *लगाकर अपना तन-मन-धन इस रूहानी सच्ची सेवा में अपना और दूसरों का भाग्य उज्जवल बनाओं...* अपने आत्मा भाईयों का तुम सोया भाग्य जगाओं... पवित्रता के फूलों से उनके जीवन को महकाओं... रूहानी सोशल वर्कर बन अब ये कमाल बच्चे कर दिखलाओं...
➳ _ ➳ *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा जिम्मेवारी का ताज पहन कर कहती हूँ :-* मीठे प्यारे जादूगर बाबा मेरे... तन-मन-धन इस ईश्वरीय सेवा में लगा कर अपना और दूसरों का भाग्य चमका रही हूँ... देकर सबको ईश्वरीय पैगाम... सुखमय जीवन की सच्ची राह दिखा रही हूँ... *पवित्रता के फूलों से उनके जीवन को महका रही हूँ... इस प्रकार सच्ची सुख शांति पवित्रता से दुनिया को सम्पन्न बना रही हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पूरे विश्व को सुख शांति और शक्ति की किरणें देना*"
➳ _ ➳ "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ" इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे परमधाम से सर्वशक्तिवान शिव बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ बिखेरते हुए, मेरे सिर के बिल्कुल ऊपर आ कर स्थित हो गए हैं और उनकी सर्वशक्तियों से मेरे चारों और एक बहुत ही सुंदर औरा निर्मित हो गया है। *इस औरे का विस्तार जैसे - जैसे बढ़ रहा है वैेसे - वैसे मेरे चारों और का वायुमण्डल बहुत ही शक्तिशाली बनता जा रहा है*। एक - एक करके मेरी सभी शक्तियां इमर्ज रूप में मेरे सामने उपस्थित हो गई है और मैं स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। *अपनी इस शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो कर अब मैं अपने लाइट के फ़रिशता स्वरूप को धारण कर लेती हूँ*।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न अपने फ़रिशता स्वरूप में स्थित हो कर, अपने सर्वशक्तिवान परम पिता परमात्मा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते, अब मैं फ़रिशता सारी दुनिया का चक्कर लगा रहा हूँ। *सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा से निरन्तर सर्वशक्तियाँ निकल कर मुझ फ़रिश्ते में और मुझ फ़रिश्ते से सारे विश्व में फैलती जा रही हूँ*। मैं देख रहा हूँ उन सभी तड़पती हुई, अशांत आत्माओं को जो पल भर की शांति की तलाश में भटक - भटक कर बिल्कुल निर्बल, शक्तिहीन हो चुकी हैं और मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियों को पा कर स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करने लगी है। *मुझ फ़रिश्ते से निकल रही सर्वशक्तियाँ उनमें शक्ति का संचार कर रही हैं*।
➳ _ ➳ सर्वशक्तिवान बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, विश्व की सर्व आत्माओं को शक्तियां प्रदान करता मैं फ़रिशता अब अपने सर्वशक्तिवान बाबा के साथ सूक्ष्म लोक की ओर जा रहा हूँ। *सूक्ष्म लोक में पहुंच कर बाबा अपने निर्धारित रथ, ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो जाते हैं और मुझे अपने पास बिठा कर, शक्तिशाली दृष्टि दे कर अपनी सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करने लगते हैं*। अपने हाथ मेरे हाथों पर रख कर बाबा अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल करने के बाद अपने निराकार स्वरूप में परमधाम की ओर प्रस्थान करते हैं। मैं भी अपनी फ़रिशता ड्रेस को वही उतार कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप में स्थित हो कर उनके पीछे परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।
➳ _ ➳ परमधाम में पहुंच कर, सर्वशक्तिवान बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सानिध्य में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा जा कर बैठ जाती हूँ। बाबा से आती सर्वशक्तियों रूपी किरणों की मीठी - मीठी फुहारे मुझे असीम बल प्रदान कर रही हैं। सर्वशक्तियों से मैं सम्पन्न होती जा रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे अपनी समस्त ऊर्जा का भंडार बाबा मेरे अंदर समाहित कर रहे हैं ताकि संपूर्ण ऊर्जावान बन मैं विश्व की समस्त आत्माओं का कल्याण करने के निमित बन बाबा के कार्य में मददगार बन सकूँ*। परमात्म शक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, शक्तियों का पुंज बन अब मैं परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकारी दुनिया मे आ कर अपने पांच तत्वों के बने शरीर में मैं प्रवेश करती हूँ, इस स्मृति के साथ कि अब मुझे मास्टर सर्व शक्तिवान आत्मा बन निर्बल आत्माओं को शक्ति स्वरुप स्थिति का अनुभव करवाना है।
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं स्वयं को सदा इस श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रखती हूँ कि "मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की संतान हूँ"। *इस श्रेष्ठ स्वमान की स्मृति में रहने से मैं स्वयं को सदैव अपने सर्वशक्तिवान शिव बाबा के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करती हूँ*। जिससे मुझ आत्मा की शक्तियाँ सदैव इमर्ज रहती है और मेरा शक्तिसम्पन्न स्वरूप मेरे सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली निर्बल और कमजोर आत्माओं को भी, उनके शक्तियों से सम्पन्न ओरिजनल स्वरूप का रीयलाईजेशन करवा कर उन्हें भी शक्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करवाता रहता है।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं श्रेष्ठता के आधार पर समीपता बढ़ाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विशेष पार्टधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा व्यर्थ संकल्पों से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सब खज़ाने सफल करती हूँ ।*
✺ *मैं संपन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ जब कोई विध्न आता है, तो विघ्न आते हुए यह भूल जाते हो कि *बापदादा ने पहले से ही यह नॉलेज दे दी है कि लगन की परीक्षा में यह सब आयेंगे ही।* जब पहले से ही मालूम है कि विघ्न आने ही हैं, फिर घबराने की क्या जरूरत?
➳ _ ➳ विघ्नों के कारण का नहीं सोचो लेकिन बापदादा के यह महावाक्य याद रखो कि जितना आगे बढ़ेगे उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से परीक्षा लेने के लिए आयेगी और यह *परीक्षा ही आगे बढ़ाने का साधन है* न कि गिराने का। *कारण सोचने के बजाए निवारण सोची, तो निर्विघ्न हो जायेंगे।* क्यों आया? नहीं, लेकिन यह तो आना ही है-इस स्मृति में रहो तो समर्थी स्वरूप हो जायेंगे।
✺ *"ड्रिल :- परीक्षा को आगे बढ़ाने का साधन अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा देख रही हूँ चारों ओर दुनिया निराश, हताश, दुःखी है... कोई भी परिस्थिति आते ही घबराकर उसके कारण का निवारण न ढ़ूंढ़ एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे है... परमात्मा को ही नही छोड़ते उसे भी कोसने लगते हैं... कि मेरे साथ ही ऐसा क्यूं... भला बुरा कहने लगते है कि मैंने क्या बिगाड़ा आपका... मुझ आत्मा की खुशी व हिम्मत देखकर मुझसे पूछ रहे हैं आपको कौन मिला है *जो हर परिस्थिति में सदा खुश रहते हो*... मैं आत्मा मन ही मन उन्हें शुभ भावना शुभ कामना देती हूँ व कहती हूँ... *उठो जागो स्वयं परमपिता परमात्मा इस धरा पर अवतरित हो चुके है... आओ अपने सच्चे परमपिता परमात्मा को व स्वयं को जानो... सच्चे परमपिता परमात्मा से मिलन मनाओ*... सच्चे पिता का हाथ व साथ पाकर अपने जीवन की हर परीक्षा को खेल समझ व आगे बढ़ने का साधन अनुभव करो...
➳ _ ➳ मुझ ब्राह्मण आत्मा को स्वयं भगवान ने चुना है... प्यारे परमपिता परमात्मा ने सही राह दिखाई है... जिसका हाथ स्वयं ईश्वर ने पकड़ा है... ईश्वर ने सम्भाला है... मुझ आत्मा के जीवन की डोर स्वयं भगवान ने सम्भाली है... कोई भी परिस्थिति या पेपर आने पर स्वयं ही स्मृति आ जाती है कि मेरा साथी कौन है... *स्वयं भगवान मेरा साथी है तो मुझ आत्मा का अकल्याण तो है ही नही सकता*... इस ड्रामा के अंतिम सीन तक बाबा और मैं साथ साथ है... और साथ साथ ही रहेंगे... ज्ञानसागर मीठे बाबा ने नॉलेज देकर मुझ आत्मा को नॉलेजफुल बना दिया है... कि इस *लगन में विघ्न तो बहुत आऐंगे ही पर विघ्नों से घबराने की जरुरत नही है*... बस मैं आत्मा *एक बल एक भरोसा* से सदा आगे बढ़ती जा रही हूँ... हर पल हर कदम पर बाबा का साथ अनुभव कर रही हूं...
➳ _ ➳ *विजय मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है... ईश्वर मेरा साथी है*... हर परिस्थिति में हर पेपर में मैं आत्मा अनुभव करती हूं कि बाबा आप मेरे साथ खड़े हो... *बाबा से निरंतर आती शक्तिशाली किरणों का जाल मेरे चारों ओर है... ये निश्चय मुझ आत्मा को हर पेपर में आगे बढ़ाता है*... जैसे बच्चे का पेपर होता है तभी वो पास होकर अगली कक्षा में जाता है... ऐसे ही माया भी अलग अलग रुप में आती है पेपर लेती है... मैं आत्मा बापदादा की हजार भुजाओं की छत्रछाया में रह अपने पेपर में पास होती आगे बढ़ रही हूँ... और परीक्षाओं को परिस्थितियों को साइड सीन समझ और आगे बढ़ने का साधन अनुभव कर रही हूं... निश्चय का फाउंडेशन पक्का कर रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं पर, बाबा पर, ड्रामा पर निश्चय रख हर परिस्थिति में कल्याण छिपा है ऐसा निश्चय रख आगे बढ़ती जा रही हूँ... *जितना आगे बढ़ेगे तो पेपर भी उतने ज्यादा आयेंगे*... मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्मृति में रख पेपर को आगे बढ़ने का साधन अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा पेपर आने को गुडलक समझ रही हूँ... *मैं आत्मा एक बाप की याद में रह अंगद समान अपनी स्थिति अचल अडोल रख हर पेपर को पार करती आगे बढ़ने का साधन अनुभव कर रही हूँ*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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