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 22 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सारा दिन मुख से बाबा - बाबा निकलता रहा ?*

 

➢➢ *तीसरे नेत्र द्वारा आत्मा को और आत्मा के बाप को देखने का अभ्यास किया ?*

 

➢➢ *नीरस वातावरण में भी ख़ुशी की झलक का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *शरीर के किसी भी आकर्षण ने अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  विशेष याद की यात्रा को पॉवरफुल बनाओ, ज्ञान-स्वरुप के अनुभवी बनो। *आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृत्ति और शक्तिशाली वातावरण अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति करायेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं श्रेष्ठ भाग्य की खुशी के गीत गाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत स्वत: ही मन में बजते रहते हैं? यह अनादि अविनाशी गीत है। इसको बजाना नहीं पड़ता लेकिन स्वत: ही बजता है। सदा यह गीत बजना अर्थात् सदा ही अपने खुशी के खजाने को अनुभव करना। सदा खुश रहते हो? ब्राह्मणों का काम ही है खुश रहना और खुशी बांटना। इसी सेवा में सदा बिजी रहते हो? वा कभी भूल भी जाते हो? जब माया आती है फिर क्या करते हो? *जितना समय माया रहती है उतना समय खुशी का गीत बन्द हो जाता है। बाप का सदा साथ है तो माया आ नहीं सकती। माया आने के पहले बाप का साथ अलग करके अकेला बनाती है, फिर वार करती है। अगर बाप साथ है तो माया नमस्कार करेगी, वार नहीं करेगी।*

 

  तो माया को जब अच्छी तरह से जान गये हो कि यह दुश्मन है, तो फिर आने क्यों देते हो? साथ छोड़ देते हो ना, इसलिए माया को आने का दरवाजा मिल जाता है। *दरवाजे को डबल लॉक लगाओ, एक लॉक नहीं। आजकल एक लॉक नहीं चलता। तो डबल लॉक है-याद और सेवा। सेवा भी निःस्वार्थ सेवा-यही लॉक है। अगर निःस्वार्थ सेवा नहीं तो वह लॉक ढीला लॉक हो जाता है, खुल जाता है। याद भी शक्तिशाली चाहिए। साधारण याद है तो भी लॉक नहीं कहेंगे।* तो सदा चेक करो-याद तो है लेकिन साधारण याद है या शक्तिशाली याद है? ऐसे ही, सेवा करते हो लेकिन निःस्वार्थ सेवा है या कुछ न कुछ स्वार्थ भरा है? सेवा करते हुए भी, याद में रहते हुए भी यदि माया आती है तो जरूर सेवा अथवा याद में कोई कमी है। 

 

  सदा खुशी के गीत गाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माएं हैं-इस स्मृति से आगे बढ़ो। यथार्थ योग वा यथार्थ सेवा-यह निशानी है निर्विग्न रहना और निर्विग्न बनाना। निर्विग्न हो या कभी-कभी विघ्न आता है? फिर कभी पास हो जाते हो, कभी थोड़ा फेल हो जाते हो। कोई भी बात आती है, उसमें अगर किसी भी प्रकार की जरा भी फीलिंग आती है-यह क्यों, यह क्या..... तो फीलिंग आना माना विघ्न। *सदैव यह सोचो कि व्यर्थ फीलिंग से परे, फीलिंग-प्रूफ आत्मा बन जायें। तो मायाजीत बन जायेंगे। फिर भी, देखो-बाप के बन गये, बाप का बनना-यह कितनी खुशी की बात है! कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा कि भगवान् के इतने समीप सम्बन्ध में आयेंगे! लेकिन साकार में बन गये!* तो क्या याद रखेंगे? सदा खुशी के गीत गाने वाले। यह खुशी के गीत कभी भी समाप्त नहीं हो सकते हैं।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *संकल्प किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण अवस्था, कर्मातीत अंतिम स्टेज।* तो अपने आप से पूछो - अन्तिम स्टेज के कितना समीप पहुँचे हो? *जितना संपूर्ण अवस्था के नजदीक होंगे  अर्थात् बाप के नजदीक होंगे उसी अनुसार भविष्य प्रालब्ध में भी राज्य अधिकारी होंगे।*

 

✧  साथ-साथ आदि भक्त जीवन में भी समीप सम्बन्ध में होंगे। पूज्य अथवा पूजारी दोनों जीवन में साकार बाप के समीप होंगे अर्थात आदि आत्मा के सारे कल्प में सम्बन्ध वा सम्पर्क में रहेंगे। *हीरो पार्टधारी आत्मा के साथ-साथ आप आत्माओं का भी भिन्न नाम-रूप से विशेष पार्ट होगा।*

 

✧  अब के सम्पूर्ण स्थिति के नज़दीक से अर्थात बापदादा की समीपता के आधार से सारे कल्प की समीपता का आधार है इसलिए *जितना चाहो उतना अपनी कल्प की प्रालब्ध बनाओ।* समीपता का आधार श्रेष्ठता है।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *सेवा का कितना भी विस्तार हो लेकिन स्वयं की स्थिति सार रूप में हो। अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक सेकण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो हो जाओ। टाइम न लगे। सेकण्ड की बाज़ी है। एक सेकण्ड की बाज़ी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हो। जितनी चाहो उतनी बनाओ।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  अपना पोतामेल देखना"*

 

   *प्यारे बाबा :-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... सत्य पिता के साथ *सदा सत्य भरी राहो पर मुस्कराते हुए सदा उमंगो संग झूमो.*..अपने दिल की हर बात को सत्य पिता को बयाँ करो... हर पल हर कदम पर मीठे बाबा से राय लेते रहो... और श्रीमत का हाथ पकड़े हुए यूँ सदा निश्चिन्त, बेफिक्र बन मौजो से भरा ईश्वरीय जीवन जियो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके साये में सत्य स्वरूप में खिल उठी हूँ... श्रीमत को पाकर जीवन मूल्यों से भर गयी हूँ... *दिल के हर जज्बातों में आपको साझा कर रही हूँ.*.. आपके साथ और अमूल्य प्यार को पाकर, खुशनुमा जीवन को मालिक हो गयी हूँ..."

 

   *मीठे बाबा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जनमो की भटकन के पश्चात जो ईश्वर पिता को पाया है तो *उनकी श्रीमत पर चलकर जीवन अनन्त मीठे सुखो का पर्याय बना लो.*.. सच्चे साथी से हर कदम राय लेकर, जीवन को खुशियो की बहार बना दो... सच्चा पोतामेल ईश्वर पिता को देकर, प्यार में वफादारी का सबूत दे दो..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा परमात्मा पिता को पाकर कितनी भाग्यशाली हो गई हूँ... कभी कहाँ भला सोचा था कि *जीवन ईश्वरीय मत पर चलकर यूँ सुखो का समन्दर हो उठेगा.*.. प्यारे बाबा आपके प्यार को पाने वाले, अपने भाग्य की जादूगरी पर निहाल हो गयी हूँ... "

 

   *प्यारे बाबा :-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... जनमो के भटके मन को अब ईश्वरीय मत पर चलाकर निर्मल पवित्र बनाओ.... *श्रीमत के हाथो में पलकर, अथाह खुशियो से सजा योगी जीवन पाओ.*.. हर कर्म में मीठे बाबा को सच्चा साथी बनाकर राय लो... तो यह जीवन सच्चे सुख प्रेम शांति से भर उठेगा....और इनकी खुशबु से विश्व भी महक उठेगा...."

 

_ ➳  *मैं आत्मा :-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार के साये तले कितनी मालामाल हो गयी हूँ... श्रीमत को पाकर खुबसूरत जीवन की मालिक हो गयी हूँ... *जीवन असीम खुशियो से लबालब है और ईश्वर पिता हर पल, हर कदम मेरे साथ है.*.. ऐसे प्यारे भाग्य पर कितना न बलिहार जाऊं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सारा दिन मुख से बाबा बाबा निकलता रहे*

 

_ ➳  मन मे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी याद को बसाये अन्दर में बाबा - बाबा कहते मैं हर कर्म कर रही हूँ और साथ ही साथ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में भी विचार कर रही हूँ कि मेरे जैसा भाग्यवान इस दुनिया में कोई नही, जिसके हर कर्म में भगवान साथी बन उसका हर कार्य कैसे सहजता से करवा रहें है। *ना कोई थकावट, ना कोई मेहनत हर काम अपने आप सम्पन्न हो रहा है। कर्म करते हुए भी, कर्म के प्रभाव से मुक्त, मैं स्वयं को कितना लाइट अनुभव कर रही हूँ*। मेरे मीठे बाबा की मीठी याद मुझे कितना बल दे रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सोचने का काम भी बाबा कर रहें हैं। 

_ ➳  ऐसे अन्दर में बाबा - बाबा कहते, अपने मीठे बाबा की मीठी याद में कर्म करते हुए मैं अपने अति मीठे शिव भोला भगवान के गुणों का चिंतन करते हुए अपने आप से ही बात करती हूँ कि बाबा कितने स्वीट हैं। *उनकी मीठी याद जीवन की दुखदाई स्मृतियो की सारी कड़वाहट को भुला कर मन को कितना सुकून देती है। बाबा के समान मुझे भी बहुत स्वीट बन कर दुखी अशांत आत्माओं के जीवन से दुख की कड़वाहट को समाप्त कर उनके जीवन में मिठास लाने की सेवा कर बाबा के स्नेह का रिटर्न देना है*।

 

_ ➳  मन ही मन स्व चिंतन करते हुए, अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान स्वीट बनने की प्रतिज्ञा स्वयं से करके, *मैं अपने स्वीट बाबा और अपने स्वीट साइलेन्स होम को जैसे ही याद करती हूँ, ऐसा लगता है जैसे मेरी हर प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए, परमधाम से बाबा की सर्वशक्तियों की अनन्त शक्तिशाली किरणो के रूप में परमात्म ब्लैसिंग मुझ आत्मा पर बरसने लगी है*। यह परमात्म प्रेम और परमात्म शक्तियाँ मेरे अंदर एक बल भर रही है और मुझे बहुत ही लाइट और माइट बना रही हैं। इस लाइट और माइट स्थिति में मैं स्वयं को धीरे - धीरे देह से डिटैच अनुभव कर रही है। देह में होते हुए भी मैं स्वयं को देह से एकदम अलग अनुभव कर रही हूँ।

 

_ ➳  साक्षी होकर मैं अपनी देह और अपने आस पास की हर वस्तु को देखते हुए, अब इन सबसे किनारा कर ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *अपने स्वीट साइलेन्स होम में जाकर अपने स्वीट बाबा से मिलने की इस खूबसूरत रूहानी यात्रा पर मैं धीरे - धीरे आगे बढ़ रही हूँ और कुछ ही सेकण्ड में इस यात्रा को पूरा कर मैं पहुँच गई हूँ अपने स्वीट साइलेन्स होम में, जहाँ आकर मन को गहन शान्ति और सुकून का अनुभव हो रहा है*।

अपने सामने सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरा आह्वान कर रहें हैं। धीरे - धीरे मैं अपने मीठे बाबा के समीप जाकर मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा अपने सारे गुण और अपनी सारी शक्तियाँ मेरे अंदर भर कर मुझे आप समान बना रहें हैं*।

 

_ ➳  अपने स्वीटेस्ट बाबा के समान सर्व गुणों और सर्वशक्तियों से भरपूर होकर अब मैं ईश्वरीय सेवा अर्थ वापिस साकार लोक की ओर लौट रही हूँ। साकार सृष्टि पर अपने साकार शरीर मे प्रवेश कर भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ। *अपने स्वीटेस्ट बाबा की याद में निरन्तर रहते, हर कर्म करते अन्दर में बाबा - बाबा कहते, बाबा के गुणों को अपने जीवन में धारण कर, उनके समान स्वीट बन मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को सच्चा रूहानी स्नेह और सम्मान देकर सबके जीवन में मिठास घोल रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं नीरस वातावरण में खुशी की झलक का अनुभव कराने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं एवरहैप्पी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं अशरीरी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा शरीर की कोई भी आकर्षण से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा बेहद की वैरागी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ अमृतवेले से लेकर हर कर्म में चेक करो कि सुकर्म किया वा व्यर्थ कर्म किया वा कोई विकर्म भी किया? *सुकर्म अर्थात् श्रीमत के आधार पर कर्म करना। श्रीमत के आधार पर किया हुआ कर्म स्वत:ही सुकर्म के खाते में जमा होता है। तो सुकर्म और विकर्म को चेक करने की विधि यह सहज है। इस विधि के प्रमाण सदा चेक करते चलो।* अमृतवेले के उठने के कर्म से लेकर रात के सोने तक हर कर्म के लिए ‘श्रीमत' मिली हुई है। उठना कैसे है, बैठना कैसे है, सब बताया हुआ है ना! अगर वैसे नहीं उठते तो अमृतवेले से श्रेष्ठ कर्म की श्रेष्ठ प्रालब्ध बना नहीं सकते। अर्थात् व्यर्थ और विकर्म के त्यागी नहीं बन सकते।

✺ *"ड्रिल :- अमृतवेले से लेकर रात्रि तक हर कर्म को अच्छे से चेक करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपनी शिव मां की गोद में एक छोटा सा बच्चा बनकर खेल रही हूं... और मेरी मां मुझे सहला रही है, मुझे नींद दिलाने की कोशिश कर रही है, परंतु मैं गोद से नीचे उतरकर खेलने के लिए आतुर हो रही हूं... मेरी शिव मां मुझे खेलने के लिए इस धरा पर छोड़ देती है, मैं खेलने के लिए खुले मैदान में दौड़ने लगती हूं और अपने संगी-साथियों को इकट्ठा करती हूं... मेरे साथी मेरे पुकारने पर इकट्ठा हो जाते हैं और मैं उनको खेलने के लिए प्रेरित करती हूं... *जैसे ही हम खेलना प्रारंभ करते हैं तो हम इधर-उधर दिशाओं में भागने लगते हैं... जब हम इधर उधर दिशाओं में भाग रहे होते हैं तो मेरी शिव माँ मेरे लिए चिंतित होती है...*

➳ _ ➳ मेरी शिव मां अपनी चिंता को मिटाने के लिए एक तरकीब अपनाती है... हमारे पास आकर हमें एक जगह एकत्रित करती है और हमें एक जगह खड़े होने के लिए कहती है... *हम देखते हैं कि मेरी मां हमारे चारों तरफ़ एक लकीर खींच देती है और कहती है कि तुम्हें इस लकीर से बाहर नहीं आना है, जो भी खेल खेलना है इस लकीर के अंदर ही रहकर खेलना है... और कहती है... अगर तुमने किसी भी कारण इस लकीर से बाहर कदम रखे, तो तुम अपनी मां की आज्ञा की अवहेलना करोगे, जिससे तुम्हें हानि भी हो सकती है...* मेरी शिव मां कहती है... अगर तुम्हें अपने आपको हमेशा सुरक्षित महसूस करना है तो हमेशा इस मर्यादा रूपी लकीर के अंदर रहकर ही खेलना होगा, जिससे तुम हमेशा सभी परेशानियों से दूर रहोगे...

➳ _ ➳ मेरी शिव मां के ऐसे करने पर हम बहुत आश्चर्यचकित और हर्षित होते हैं... आश्चर्यचकित इसलिए होते हैं कि मां को शायद यह लगता है कि हम अपना ध्यान नहीं रख सकते और हर्षित इसलिए होते हैं कि हम उस लकीर के अंदर अब अपने आप को सुरक्षित अनुभव करने लगते हैं और बेफिक्र होकर खेलने के लिए आतुर हो रहे हैं... मेरी मां हमें सुरक्षित घेरे के अंदर छोड़कर बेफिक्र होकर अपना काम करने लगती है... और हम भी बड़े हर्ष और उल्लास से खेल खेलना प्रारंभ करते हैं... खेलते खेलते जब किसी समय हमारा पैर एकदम से लकीर के बाहर जाता है, तो हमें अपनी मां की बात याद आती है और तुरंत ही हम उस लकीर के अंदर आ जाते हैं... *एक समय ऐसा भी आया कि हमें लगा हमारी शिव मां हमें नहीं देख रही है... और हम चुपके से उस लकीर से बाहर निकल जाते हैं और खेलते-खेलते हम ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जहां चारों तरफ कांटे ही कांटे होते हैं... और उनमें से एक कांटा मेरे पैर को लग जाता है...*

➳ _ ➳ जब मेरे पैर को कांटा लग जाता है और मैं दुखी होकर रोने लगती हूं तो मुझे अपनी शिव मां की कही हुई बात याद आती है और उनके द्वारा खींची हुई लकीर का मतलब भी समझ आ जाता है... जैसे ही मैं रोना स्टार्ट करती हूं, तुरंत मेरी शिव माँ मेरे पास आकर वह कांटा निकाल देती है और मुझे गोद में उठा कर वापिस अपने पास ले आती है... और मेरी मां मेरी उस मर्यादा रूपी लकीर से बाहर निकलने के लिए मुझे प्यार से डांटती है और समझाती है... *अगर तुम उस मर्यादा रूपी लकीर के अंदर ही खेलते, तो तुम्हें किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती... और हमेशा सुरक्षित ही अनुभव करते... उनका ऐसा समझाने पर मैं पूर्ण रीति से समझ जाती हूं और अपनी मां को कहती हूं... मां अब मैं कभी भी इस मर्यादा रूपी लकीर से बाहर नहीं आऊंगी...*

➳ _ ➳ मेरी शिव माँ मुझे इतना समझाते हुए अपने सामने बिठा लेती है... और इसको और भी गहराई से समझाते हुए कहती है... ऐसे ही तुम्हें परमात्मा द्वारा दिए हुए श्रीमत रूपी लकीर के अंदर ही रहकर अपना हर कर्म करना चाहिए, परमात्मा जो तुम्हे श्रीमत देते हैं, पूरा दिन आपको उसके अनुसार ही चलना चाहिए और *चेक करना चाहिए कि कभी कोई कर्म तुमने मर्यादा की लकीर से हटकर तो नहीं किया... और साथ ही यह भी चेक करना है कि मेरा कोई भी संकल्प व्यर्थ तो नहीं गया, कोई भी कार्य किसी को हानि तो नहीं पहुंचाता... अगर हमारा कोई भी कार्य श्रीमत की लकीर से बाहर निकलकर हुआ, तो हम हमारे परमात्मा का भी नाम खराब करते हैं... हम श्रीमत रूपी मर्यादा की लकीर के अंदर जो भी कर्म करेंगे, वह हर कर्म हमारा सुकर्म ही होगा,* और अगर बाहर निकलकर किया तो वह कर्म, विकर्म कहलाएगा... इसलिए हमें लकीर के अंदर रहकर सिर्फ सुकर्म ही करने हैं... और अपनी शिव मां की यह बातें सुनकर मैं अपने पुरुषार्थ में लग जाती हूं... और यह संकल्प करती हूं कि मैं अब जो भी कर्म करूंगी वह सुकर्म ही करूंगी, मर्यादा की लकीर में रहकर ही करूंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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