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 14 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बाप समान संपन्न और सम्पूरण अवस्था का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *लाइट हाउस माईट हाउस बनकर रहे ?*

 

➢➢ *बेहद की दृष्टि रही ?*

 

➢➢ *सुनना और स्वरुप बनना में समानता रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *तपस्वी मूर्त का अर्थ है-तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारों ओर फैलती हुई अनुभव में आयें।* यह तपस्वी स्वरुप औरों को देने का स्वरुप है। *जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है।* ऐसे महान तपस्वी आत्माएं ज्वाला रुप शक्तिशाली याद द्वारा प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराती हैं।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं पूर्वज और पूज्य आत्मा हूँ"*

 

  हम पूज्य और पूर्वज आत्मायें हैं - इतना नशा रहता है? आप सभी इस सृष्टि रुपी वृक्ष की जड़ में बैठे हो ना? *आदि पिता के बच्चे आदि रत्न हो। तो इस वृक्ष के तना भी आप हो। जो भी डाल-डालियाँ निकलती है वह बीज के बाद तना से ही निकलती हैं। तो सबसे आदि धर्म की आप आत्माएं हो और सभी पीछे निकलते हैं इसलिए पूर्वज हो। तो आप फाउन्डेशन हो।* जितना फाउन्डेशन पक्का होता है उतनी रचना भी पक्की होती है। तो इतना अटेन्शन अपने उपर रखना है।

 

  *पूर्वज अर्थात तना होने के कारण डायरेक्ट बीज से कनेक्शन है। आप फलक से कह सकते हो कि हम डायरेक्ट परमात्मा द्वारा रचे हुए हैं।* दुनिया वालों से पूछो कि किसने रचा? तो सुनी-सुनाई कह देंगे कि भगवान ने रचा। लेकिन कहने मात्र हैं और आप डायरेक्ट परम आत्मा की रचना हो।

 

  आजकल के ब्राह्मण भी कहते हैं कि हम ब्रह्मा के बच्चे हैं। लेकिन ब्रह्मा के बच्चे प्रैक्टिकल में आप हो। तो यह खुशी है कि हम डायरेक्ट रचना है। कोई महान आत्मा, धर्म आत्मा की रचना नहीं, डायरेक्ट परम आत्मा की रचना हैं। तो डायरेक्ट कितनी शक्ति है! *दुनिया वाले ढूँढ़ रहे हैं कि कोई वेष में भगवान आ जायेगा और आप कहते मिल गया। तो कितनी खुशी हैं! तो इतनी खुशी रहती है कि आपको देख करके और भी खुश हो जाएं। क्योंकि खुश रहने वाले का चेहरा सदा ही खुशनुम: होगा ना?*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  ऐसे भी कई होते जिन्हें एकान्त पसन्द आता, संगठन में रहना, हँसना, बोलना ज्यादा पसन्द नहीं आता, लेकिन यह हुआ बाहर मुखता में आना। *अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अंतर्मुख बनो।*

 

✧  अब समय ऐसा आ रहा है जो यही अभ्यास काम में आएगा। अगर बाहर के आकर्षण के वशीभूत होने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा दे देगा। *सरकमस्टान्सेज ऐसे आयेंगे जो इस अभ्यास के सिवाए और कोई आधार ही नहीं दिखाई देगा।*

 

✧  एकान्तवासी अर्थात् अनुभवी मूर्त।  दिल्ली वाले सेवा के आदि के निमित बने हैं तो इस विशेषता में भी   निमित्त बनो। तो इस स्थिति के अनुभव को दूसरे भी कॉपी करेंगे। यह सबसे बड़े ते बड़ी सेवा है। *संगठित रूप में और इन्डिविजिवल रूप में दोनों ही रूप से ऐसे अभ्यास का वातावरण फैलाओ।* (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *देह के बन्धन का कारण है देही का सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है।* बाप की स्मृति और देही स्वरूप के स्मृति की धारणा नहीं हुई है। *पहला पाठ कच्चा है। सेकेण्ड में देह से न्यारे बनने का अभ्यास सेकेण्ड में देह के बन्धन से मुक्त बना देता है। स्वीच आन हुआ और भस्म ।* जैसे साइन्स के साधनों द्वारा भी वस्तु सेकेण्ड में परिवर्तन हो जाती है वैसे साइलेन्स की शक्ति से, देही के सम्बन्ध से बंधन खत्म। *अब तक भी अगर पहली स्टेज देह के बन्धन में हैं तो क्या कहेंगे! अभी तक पहले क्लास में हैं। जैसे कोई स्टूडेन्ट कमज़ोर होने के कारण कई वर्ष एक ही क्लास में रहते हैं- तो सोचो ईश्वरीय पढ़ाई का लास्ट टाइम चल रहा है और अब तक भी देह के सम्बन्ध की पहली चौपड़ी में हैं, ऐसे स्टूडेन्ट को क्या कहेंगे।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सम्पूर्ण और सम्पन्न बनना”*

 

_ ➳  *हृदय में बाबा की मीठी यादें संजोए हुए... मैं आत्मा मधुबन के प्रांगण में हूँ... दिल में एक दिलाराम बाबा की याद है... नैनों में दिला राम की मूरत समाई हुई है...* मधुबन के प्रांगण में बिल्कुल शांति है... कम्पलीट सायलेंस है... मैं आत्मा सहज ही हिस्ट्री होल की ओर बढ़ती जा रही हूँ... यहां आते ही मैं देखती हूँ... *मेरे मीठे बाबा ब्रह्मा बाबा के तन में विराजमान है... पूरा हॉल बाबा की शक्तिशाली किरणों से चार्ज हो गया है...* मुझे देखते ही सतगुरु बाबा कहते हैं... आओ मेरे लाडले बच्चे... मैं आत्मा बाबा के सामने बैठ जाती हूँ... बाबा की शक्तिशाली दृष्टि से मुझ आत्मा पर... अनवरत रूप से शक्तियां बरसती जा रही हैं...

 

  *अपनी मीठी मीठी शिक्षाओं से मेरे जीवन को संवारते हुए सतगुरु बाबा कहते हैं:-* "मीठे फरमानबरदार बच्चे... अब संपूर्ण स्थिति को प्राप्त करना ही है... संपन्न बने बिना आत्मा कर्मातीत बनकर बाप के साथ नहीं जा सकेगी... *तुम्हें शिव की बारात में पीछे पीछे नहीं आना... शिव के साथ साथ चलना है तो अब अपनी संपन्न स्थिति का आह्वान करो... बाप समान बनने वाले बच्चे ही बाप के साथ जाएंगे..."*

 

_ ➳  *बाबा की शिक्षाओं को जीवन में धारण करती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्यारे सतगुरु बाबा... मैं आत्मा हर कदम में फॉलो फादर कर रही हूँ... ब्रह्मा बाबा ने संपूर्ण बनने का जो पुरुषार्थ किया... मैं आत्मा भी बाबा के नक्शे कदम पर चल रही हूँ... *ब्रह्मा बाबा को फॉलो करते करते... मैं बाप समान संपन्न और संपूर्ण बनने की यात्रा पर... तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही हूँ..."*

 

  *योग ज्वाला में मुझ आत्मा की अलाय को जला सच्चा सोना बनाने वाले पारसनाथ बाबा कहते हैं:-* "मेरे प्यारे फूल बच्चे... क्या अपने पुरुषार्थ की गति से संतुष्ट हो... क्या संबंध संपर्क में आने वाली आत्माओं से... संतुष्टता का सर्टिफिकेट मिल गया है... जो भी सेवा करते हो क्या उस से आप संतुष्ट हो... *यथार्थ विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है... संपन्न बनने वाली आत्मा स्वयं से संतुष्ट होगी... और सर्व आत्माएं भी उससे संतुष्ट होंगी... ऐसी अपनी सूक्ष्म में चेकिंग करो..."*

 

_ ➳  *पारसनाथ बाबा द्वारा दी गई एक एक कसौटी पर स्वयं को कसकर खरा सोना बनती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मीठे प्यारे बाबा... आप करावनहार हो... हम बच्चे तो निमित्त मात्र कर्म कर रहे हैं... *यज्ञ सेवाओं से मैं आत्मा असीम खुशी... अतींद्रिय सुख को प्राप्त करती हुई... सर्व आत्माओं को आप का संदेश दे रही हूँ... ज्ञानगंगा बनकर आप का ज्ञान सबको सुनाती हुई... मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ... व हर्षित स्थिति का अनुभव कर रही हूँ..."*

 

  *अपने हाथ में मेरा हाथ थामे मुझे सतयुगी  दुनिया की सैर कराते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे बच्चे... *राजधानी में ब्रह्मा बाप के साथ साथ आप बच्चों को आना है... बात तो न्यारा और प्यारा ही होगा...* अपने राज्य की वैराइटी प्रकार की आत्माओं को... राज्य अधिकारी, रॉयल फैमिली की अधिकारी, रॉयल प्रजा की अधिकारी, साधारण प्रजा की अधिकारी... *क्या सर्व प्रकार की... वैराइटी आत्माओं को तैयार कर लिया है... ऐसा करने के लिए संपूर्ण पवित्र व निरंतर योगी बनो..."*

 

_ ➳  *सतयुग में कृष्ण के साथ रास रचाती, झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा निरंतर आपकी यादों में समाए हुए हूँ... निरंतर योगयुक्त स्थिति में हूँ... करावनहार बाप की स्मृति में... ट्रस्टी बनकर सेवा किए जा रही हूँ... मैं आत्मा देख रही हूँ... *निमित्त बन कर की गई सेवा से सब आत्माएं संतुष्ट हैं... और मैं आत्मा स्वयं भी हलकी व खुश हूँ... निरंतर उड़ती कला में जाते हुए... मैं संपन्न और संपूर्ण मूर्त बनती जा रही हूँ..."*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  लाइट हाउस माइट हाउस बन कर रहना*

 

_ ➳  सबको मुक्ति जीवन मुक्ति देने वाले अपने सच्चे सतगुरु शिव बाबा की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, एकांतवासी बन कर उस एक के अंत मे खो कर, उनके समान बन जाने का संकल्प ले कर मैं इस देह से खुद को डिटैच करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *स्वयं को भृकुटि सिहांसन पर विराजमान एक दिव्य ज्योतिपुंज के रुप में मैं चमकता हुआ देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे अंदर समाये गुणों और शक्तियों को इमर्ज कर रंग बिरंगी किरणों के रूप में चारों और फैल कर वायुमण्डल को दिव्यता और अलौकिकता से भर रहा है*। मेरे अंदर समाये सातों गुणों और अष्ट शक्तियों के वायब्रेशन्स धीरे - धीरे प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के साथ, चारों और फैलते जा रहें हैं और वायुमण्डल को रूहानियत की शक्ति से भरपूर कर रहें हैं। *रूहानियत की यह शक्ति मुझे हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त करके, डबल लाइट बना रही है*।

 

_ ➳  एक अति न्यारे और प्यारे हल्केपन की अनुभूति के साथ, स्वयं को लाइट हाउस बना कर सबको मुक्ति जीवनमुक्ति की सच्ची राह दिखाने का संकल्प लेकर मैं आत्मा अब भृकुटि की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और अपने प्यारे पिता की सर्वशक्तियों की लाइट से स्वयं को लाइट माइट बनाने के लिये मुक्ति जीवनमुक्ति दाता अपने प्यारे प्रभु के पास उनके निर्वाणधाम घर की ओर प्रस्थान करती हूँ। *वाणी से परें अपने निर्वाणधाम घर जाने के लिए मन बुद्धि की आंतरिक यात्रा पर मैं चल पड़ी हूँ। अंतर्मन की यह यात्रा मन को बहुत सुकून देने वाली है। देह से जुड़ी किसी भी चीज की इस यात्रा में कोई दरकार नही केवल आत्म और परमात्म चिंतन ही मुझे मेरी मंजिल तक ले जाने का आधार है*। उसी आधार के सहारे मैं मन बुद्धि के विमान पर सवार होकर अब ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। 

 

_ ➳  प्रभु मिलन का खूबसूरत मधुर अहसास मेरी गति को तीव्र कर मुझे अति शीघ्र आकाश से ऊपर अपने अव्यक्त वतन में ले आया है जहाँ मैं अपने प्यारे ब्रह्मा बाबा को उनके सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ। *अपने बच्चों को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखने की चाह में अपनी बाहों को पसारे सामने खड़े अव्यक्त ब्रह्मा बाबा को देखते हुए उनके समान बनने का संकल्प लेकर मैं वतन को भी पार करके अब अपने मूलवतन घर में प्रवेश कर रही हूँ*। मणियो से सजी इस दुनिया में चारो और फैली गहन शांति मन को गहन सुकून दे रही है। गहन शांति की गहरी अनुभूति करके मैं तृप्त हो गई हूँ। मेरी जन्म - जन्म की प्यास जैसे बुझ गई है। 

 

_ ➳  गहन शांति की अनुभूति करके अब मैं अपने प्यारे पिता के पास जा रही हूँ जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों रूपी बाहों को फैलाये मेरे सामने खड़े हैं। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणें बिखेरता बाबा का सुंदर स्वरूप मुझे अपनी और खींच रहा है। *उनकी एक - एक किरण को बड़े प्यार से निहारते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप जाकर अब उन्हें छूती हूँ। बाबा को छूते ही शक्तियों का झरना जैसे मेरे ऊपर बरसने लगता है और एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरने लगती है*। जैसे - जैसे ये शक्तियाँ मेरे अंदर समाती जा रही हैं मैं महसूस कर रही हूँ कि बाबा से मिल रही शक्तियों का बल मुझे उनके समान तेजोमय बना रहा है। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ। मेरा स्वरूप बहुत ही चमकदार और लुभावना बन गया है। *अपने इस अति मनभावन सुन्दर चमकीले स्वरूप को देख मैं आनन्द मगन हो रही हूँ*।

 

_ ➳  अपने इस अति सुन्दर लुभावने स्वरूप के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर फिर से वतन में प्रवेश करती हूँ और अपने लाइट के फरिश्ता स्वरूप को धारण कर बापदादा के पास पहुँच जाती हूँ।*बापदादा के सामने बैठ, उनसे मीठी दृष्टि लेते हुए स्वयं को उनकी लाइट माइट से भरपूर करके, उनके साथ कम्बाइंड होकर अब मैं वतन से नीचे आकर विश्व ग्लोब के ऊपर स्थित हो जाती हूँ*। बापदादा अपनी सर्वशक्तियों की लाइट मेरे ऊपर प्रवाहित करते जा रहे है और मैं लाइट हाउस बनती जा रही हूँ। *मुझसे सर्वशक्तियों की ये लाइट निकल कर विश्व ग्लोब पर पड़ रही है और सारे विश्व की आत्माओं को परमात्म परिचय देकर उन्हें मुक्ति जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रही है*। ज्ञान की किरणों के रूप में सभी आत्माओ को परमात्म सन्देश मिल रहा है।

 

_ ➳  अपने लाइट माइट स्वरूप में विश्व की सर्व आत्माओं को मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखाकर अब मैं अपने बिंदु स्वरूप में स्थित होकर वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ। *अपने साकार तन में प्रवेश कर, भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं स्थित हो जाती हूँ और अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को ईश्वरीय ज्ञान देकर उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाने की ईश्वरीय सेवा में लग जाती हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं कर्मो की गति को जान गति - सदगति का फैसला करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मास्टर दुःख हर्ता सुख कर्ता आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा मोहब्बत की स्टेज पर बैठ कर अनुभूति करती हूँ  ।*

   *मैं योद्धा बनने से मुक्त होने वाला योगी हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सहज योगी हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *टीचर्स के साथ- सेवाधारी आत्माओं का सदा एक ही लक्ष्य रहता है कि बाप समान बनना है? क्योंकि बाप समान सीट पर सेट हो। जैसे बाप शिक्षक बन, शिक्षा देने के निमित्त बनते हैं वैसे सेवाधारी आत्मायें बाप समान कर्त्तव्य पर स्थित हो। तो जैसे बाप के गुण वैसे निमित्त बने हुए सेवाधारी के गुण।* तो सदा पहले यह चेक करो - कि जो भी बोल बोलते हैं यह बाप समान हैं? जो भी संकल्प करते हैं यह बाप समान है! अगर नहीं तो चेक करके चेन्ज कर लो। कर्म में नहीं जाओ। ऐसे चेक करने के बाद प्रैक्टिकल में लाने से क्या होगा? जैसे बाप सदा सेवाधारी होते हुए सर्व का प्यारा और सर्व से न्यारा है, ऐसे सेवा करते सर्व के रूहानी प्यारे भी रहेंगे और साथ-साथ सर्व से न्यारे भी रहेंगे! बाप की मुख्य विशेषता ही है - ‘जितना प्यारा उतना न्यारा'। ऐसे बाप समान सेवा में प्यारे और बुद्धियोग से सदा एक बाप के प्यारे सर्व से न्यारे। इसको कहा जाता है - ‘बाप समान सेवाधारी'। तो शिक्षक बनना अर्थात् बाप की विशेष इस विशेषता को फालो करना। सेवा में तो सभी बहुत अच्छी मेहनत करते हो लेकिन कहाँ न्यारा बनना है और कहाँ प्यारा बनना है - इसके ऊपर विशेष अटेन्शन।

➳ _ ➳ अगर प्यार से सेवा न करो तो भी ठीक नहीं और प्यार में फँसकर सेवा करो तो भी ठीक नहीं। तो प्यार से सेवा करनी है लेकिन न्यारी स्थिति में स्थित होकर करनी है तब सेवा में सफलता होगी। *अगर मेहनत के हिसाब से सफलता कम मिलती है तो जरूर प्यारे और न्यारे बनने के बैलेन्स में कमी है।* इसलिए सेवाधारी अर्थात् बाप का प्यारा और दुनिया से न्यारा। यही सबसे अच्छी स्थिति है। इसी को ही ‘कमल पुष्प समान' जीवन कहा जाता है। इसलिए शक्तियों को कमल आसन भी देते हैं! कमल पुष्प पर विराजमान दिखाते हैं। क्योंकि कमल समान न्यारे और प्यारे हैं। तो सभी सेवाधारी कमल आसन पर विराजमान हो ना? आसन अर्थात् स्थिति। स्थिति को ही आसन का रूप दिया है। बाकी कमल पर कोई बैठा हुआ तो नहीं है ना? तो सदा कमल आसन पर बैठो। कभी कमल कीचड़ में न चला जाए इसका सदा ध्यान रहे!

✺ *"ड्रिल :- सेवा करते सर्व के रूहानी प्यारे और साथ साथ से न्यारे बनकर रहना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा आज सेंटर पर दीदी के द्वारा मुरली सुन रही हूं... मैं देखती हूं कि हमारी प्यारी दीदी हमें बड़े ही प्यार से मुरली सुना रही है... *और मैं यह भी अनुभव करती हूं कि हमारी प्यारी दीदी हमें रोज नई नई ज्ञान की गहरी बातों को बताती हैं... हम चाहे कितनी भी क्वेश्चन दीदी से करें वह उनका बड़े प्यार से उत्तर देती है... उनकी ज्ञान देने की भावना से हमें ऐसा प्रतीत होता है कि मानो दीदी हमें अपने से भी ऊपर ले जाना चाहते हैं... वह चाहते हैं कि वह हम में इतना ज्ञान भर दे कि हम बहुत ऊंचे जाए और बहुत अच्छा पद प्राप्त करें...* वह हमें रोज रूहानी भावना से पढ़ाते हैं और रोज हमें रुहानी प्यार का अनुभव कराती है...

➳ _ ➳ और फिर मुरली सुनाते हुए हमें दीदी ब्रहमा बाबा के बारे में बताते हैं... उन्होंने बताया कि जैसे ब्रह्मा बाबा ने परमपिता परमात्मा के आदेश का आजीवन पालन करते हुए अपना सारा जीवन सेवा के लिए और अन्य आत्माओं के भविष्य के लिए समर्पित कर दिया... और एक सच्चे सेवाधारी बन कर रहे... बाबा सेवा करते थे तो वह हमेशा रूहानी दृष्टि से और रुहानी प्यार से सेवा किया करते थे... सभी को उनकी रुहानियत का बहुत गहराई से अनुभव होता था... *वह सदा कमल फूल समान पवित्र न्यारे और प्यारे बन कर रहे... उन्होंने हमेशा निमित्त भाव रखते हुए सेवा की... बाबा की इन विशेषताओं को जानकर मुझे उनके द्वारा सेवा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली... और मुझे बाप समान बनने की लालसा भी लगी...*

➳ _ ➳ फिर दीदी ने हमें समझाया की सेवा अर्थात बाप का प्यारा और सबसे न्यारा... जब हम सेवा करते हुए बाप को याद रखेंगे अर्थात निमित्त भाव से सेवा करेंगे... तो हमें किसी भी सेवा में थकावट का अनुभव नहीं होगा... जब हम सेवा में निमित्त भाव नहीं रखते हैं तो अक्सर हम सेवा में थकावट का अनुभव करते हैं... और जब हम सेवा में बाप को याद रखते हैं तो कब सेवा हो जाती है और कितनी सेवा होती है इसका हमें आभास भी नहीं होता... *सेवा करते समय हमें चेकिंग करनी चाहिए कि हमसे सेवा में कोई भूल तो नहीं हुई... हमें सदा यह स्मृति में रखना चाहिए की हम न्यारे और प्यारे होकर सेवा करेंगे तो अपना और औरों का भी भविष्य खुशहाल बना सकेंगे... और पुरुषार्थ में कभी रुकावट का अनुभव नहीं करेंगे...*

➳ _ ➳ दीदी की मुरली सुनाने के बाद मैं बाबा के कमरे में आती हूं... और बाबा की आंखों में देखती हूं... मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो बाबा मुझे कुछ समझाना चाहते हो... तभी मुझे अनुभव होता है कि बाबा मुझे समझा रहे हैं कि *बच्चे, मुझे देखो मेरा चित्र हमेशा तुम्हें कमल आसन पर विराजमान हुआ दिखाई देगा... यह कमल आसन मेरी स्थिति है... यह कमल मेरी इस स्थिति का प्रमाण है कि मैंने इस कीचड़ रुपी संसार में रहते हुए भी अपनी बुद्धि इस कीचड़ में नहीं फंसाई... हमेशा अपने आपको अपने चौड़े चौड़े पत्ते रूपी बाप की याद और रुहानियत से अपने आप को इस कीचड़ से बचा कर रखा...* इसलिए अब तुम्हें भी अपना जीवन कमल फूल समान बनाना है बाबा के यह वचन सुनकर मेरा मन फूल की तरह खिलता है और मैं बाबा से कहती हूं बाबा मैं भी अब रुहानियत से सर्व से न्यारी और बाबा की प्यारी बनकर निमित्त भाव से सेवा करूंगी और सच्ची सच्ची सेवाधारी बनूंगी...
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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