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 27 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *नर से नारायण बनने के लिए कहनी, करनी एक समान बनायीं ?*

 

➢➢ *नाम रूप की गृह्चारी से बहने के लिए याद में रहने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *साथी और साक्षीपन का अनुभव किया ?*

 

➢➢ *व्यर्थ संकल्पों से मुक्त रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  अभी निर्भय ज्वालामुखी बन प्रकृति और आत्माओं के अन्दर जो तमोगुण है उसे भस्म करो। *तपस्या अर्थात् ज्वाला स्वरूप याद, इस याद द्वारा ही माया वा प्रकृति का विकराल रूप शीतल हो जायेगा। आपका तीसरा नेत्र, ज्वालामुखी नेत्र माया को शक्तिहीन कर देगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं खुशनसीब आत्मा हूँ"*

 

✧  अपने को सदा खुशनसीब आत्माएं समझते हो? खुशनसीब आत्माओंकी निशानी क्या होगी? *उनके चेहरे और चलन से सदा खुशी की झलक दिखाई देगी। चाहे कोई भी स्थूल कार्य कर रहे हों, साधारण काम कर रहे हों लेकिन हर कर्म करते खुशी की झलक दिखाई पड़े। इसको कहते हैं निरन्तर खुशी में मन नाचता रहे।* ऐसे सदा रहते हो? या कभी बहुत खुश रहते हो, कभी कम?

 

✧  खुशी का खजाना अपना खजाना हो गया। तो अपना खजाना सदा साथ रहेगा ना। या कभी-कभी रहेगा? बाप के खजाने को अपना खजाना बनाया है या भूल जाता है अपना खजाना? अपनी स्थूल चीज तो याद रहती है ना। वह खजाना आंखों से दिखाई देता है लेकिन यह खजाना आंखों से नहीं दिखाई देता, दिल से अनुभव करते हो। तो अनुभव वाली बात कभी भूलती है क्या? तो सदा यह स्मृति में रखो कि हम खुशी के खजाने के मालिक हैं। जितना खजाना याद रहेगा उतना नशा रहेगा। तो यह रूहानी नशा औरों को भी अनुभव करायेगा कि इनके पास कुछ है। *जब ब्राह्मण जीवन के लिए संसार ही एक बाप है, तो संसार के सिवाए और क्या याद आयेगा। सदा दिल में अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत गाते रहो।*

 

✧  ऐसा श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में प्राप्त होगा? जो सारे कल्प में अभी प्राप्त होता है, तो अभी की खुशी, अभी का नशा सबसे श्रेष्ठ है। पाण्डव तो नष्टोमोहा हैं ना। व्यवहार में कुछ ऊपर-नीचे हो जाए, फिर नष्टोमोहा हैं? अभी भी बीच-बीच में माया पेपर तो लेती है ना। तो उसमें पास होते हो? या जब माया आती है तब थोड़ा ढीले हो जाते हो? *तो सदा खुशी के गीत गाते रहो। समझा? कुछ भी चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। चाहे किसी भी रूप में माया आये लेकिन खुशी न जाये। ऐसे खुश रहने वाले ही सदा खुशनसीब हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  वर्तमान समय सर्व की एक ही पुकार कौन-सी है, वह जानते हो? धर्मिक नेताओं, राजनेताओं और सर्वश्रेष्ठ साइन्स वा और साथ-साथ आम जनता की एक ही पुकार है कि अब जल्दी में कुछ बदलना चाहिए। *सर्व क्षेत्र की आत्मायें अब अपने को फेल अनुभव करने लगी हैं। अब कोई सुप्रीम पॉवर चाहिए।* सबकी चाहना का दीपक वा इस आवश्यकता को महसूस करने के संकल्प का दीपक जग चुका है।

 

✧  अब उसको और तेज करने के लिए आप सर्व आत्माओं के संकल्प घृत चाहिए जिससे सर्व की पुकार के ऊपर उपकार कर सकी। (आज दो-चार बार बीच-बीच में बिजली जाती रहती थी) देखो यह लाइट भी शिक्षा दे रही है। *जैसे लाइट एक सेकण्ड में आती और चली जाती है, ऐसे ही आप भी एक सेकण्ड में पुकार वालों के पास उपकारी बन पहुँच जाओ।*

 

✧  ऐसा अभ्यास आने और जाने का हो। अभी-अभी पुकार सुनी और अभी-अभी पहुँचे। अब सर्व की पुकार मेहनत से छूट सहज प्राप्ति करने की है। साइन्स वाले भी बहुत मेहनत कर थक गए हैं। धर्मिक आत्मायें भी साधना करके थक गई है। राजनैतिक लोग अनेक दल-बदलुओं के चक्र से थक गये हैं। और आम जनता समस्याओं से थक गई है। *अब सबकी थकावट उतारने वाला कौन?*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *तो विजय प्राप्त करने का साधन है - स्व-स्थिति द्वारा परिस्थिति पर विजय। यह देह भी पर है, स्व नहीं।* तो देह के भान में आना, यह भी स्वस्थिति नहीं है। तो चेक करो सारे दिन में स्व-स्थिति कितना समय रहती है? क्यों कि स्व-स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव करायेगा और *प्रकृति-धर्म अर्थात् पर-धर्म या देह की स्मृति किसी-न-किसी प्रकार के दु:ख का अनुभव जरूर करायेगी। तो जो सदा स्वस्थिति में होगा वह सदा सुख का अनुभव करेगा।* सदा सुख का अनुभव होता है कि दु:ख की लहर आती है। संकल्प में भी अगर दुख की लहर आई तो सिद्ध है स्व-स्थिति से, स्व-धर्म से नीचे आ गये।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कर्मातीत बनने का पुरुषार्थ करना"*

 

_ ➳  मीठे से मधुबन की मीठी प्यारी कुटिया में... मै तेजस्वी आत्मा अपने दिलबर बाबा से रुहरिहानं कर रही हूँ... प्यारे बाबा मुझ आत्मा की भावनाओ को सुनने के लिए बेहद उत्सुक है... अपनी रूहानी दृष्टि और शक्तियो से मुझे भरपूर कर रहे है... मै आत्मा बाबा की किरणों के साये तले असीम सुख पाती जा रही हूँ... और दिल ही दिल में यह गीत गुनगुना रही हूँ... *आ बैठ मेरे पास बाबा तुझे देखती रहूँ... न तु कुछ कहे ना मै कुछ कहूँ..*.. मीठे बाबा भी मुस्कराते हुए... अपनी बाँहों को फैलाये मुझ आत्मा को अपने प्यार में सराबोर कर रहे है...

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को बेपनाह अमीरी का मालिक बनाते हुए बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वरीय पढ़ाई में सदा अथक बनना है... जितनी दिल से पढ़ाई पढ़ेंगे, उतनी ही प्राप्ति के हकदार बनेगे... *यह पढ़ाई ही काँटों को फूलो जैसा सुंदर बनाकर स्वर्ग का राज्य भाग्य दिलायेगी.*.. इसलिए इस कमाई में सदा अथक बन, कर्मातीत अवस्था को पाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की सारी खानों और खजानो को अपनी बुद्धि में समेटकर कह रही हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... देह के नशे में कंगाल हो गयी मुझ आत्मा को... अमीरी से सजाने परमधाम से उतर आये हो... मेरे भाग्य को ज्ञान रत्नों से चमकाने धरा पर आये हो... *भगवान से मेरे बाबा बनकर वरदानों की बौछार कर रहे हो..*. प्यारे बाबा आप संग संगम में ऐसे सुंदर जीवन को जीयूँगी...यह तो कभी सोचा ही नही था..."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपनी गोंद में ज्ञानामृत पिलाते हुए बोले :-* "प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता के साये में अमूल्य ज्ञान रत्नों को अपनी बाँहों में भरकर... *अतुल धनसंपदा के मालिक बन कर, सुखो की धरती पर मुस्कराओ.*.. सच्ची लगन से ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर सम्पूर्णता को पा लो... और बेहद के समझदार बनकर, कर्मातीत हो जाओ...."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने प्यारे भगवान को ज्ञान दौलत मुझ पर लुटाते देख कह रही हूँ ;-* "प्यारे बाबा आपके ज्ञान रत्नों को पाकर तो मै आत्मा भाग्य की धनी हो गयी हूँ... बेहद की समझ पाकर विकर्मो से परे हो, दिव्यता भरा खुबसूरत जीवन जी रही हूँ... *संगम पर भी मौज मना रही हूँ और भविष्य को देवताओ सा सुंदर बनाती जा रही हूँ.*.."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अनमोल खजाने से सम्पन्न बनाते हुए बोले :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... देह और देह के भान में खपकर दुखो के जंगल में लहुलहानं हो गए हो... *अब श्रीमत के हाथ को पकड़कर, सुखो की बगिया में खुबसूरत गुलाब बनकर खिल जाओ.*.. ईश्वरीय पढ़ाई पढ़कर 21 जनमो की राजाई अपने दामन में सजा लो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा से ज्ञान रत्नों की दौलत को अपनी सम्पत्ति बनाते हुए कह रही हूँ :-* "मेरे सच्चे साथी बाबा... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोंद में कितनी प्यारी फूलो सी खिल रही हूँ... रूहानियत से भरपूर होकर दिव्यता से छलक रही हूँ... *भगवान को यूँ शिक्षक रूप में पाकर... सच्चे ज्ञान की झनकार से दुखो के जंगल से बाहर निकल गयी हूँ.*.." अपने बाबा से अथाह दौलत अपनी बाँहों में समेटकर मै आत्मा अपने कर्म क्षेत्र पर आ गयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पुरानी दुनिया की पुरानी चीजों को देखते हुए भी नही देखना है*"

 

_ ➳  अपने मीठे ते मीठे प्यारे बाबा के प्रेम की अमूल्य धरोहर जो मुझे उनसे मिली है, उस अमूल्य धरोहर को याद करते ही, आंखों से खुशी के आंसू मोतियों के रूप में छलक उठे है और अपने शिव प्रीतम द्वारा उन मोतियों को अपने दिल की डिब्बी में कैद कर लेने का अहसास मुझे उनके और करीब ले जा रहा है। *जितना मैं स्वयं को उनके नजदीक अनुभव कर रही हूँ उतना इस पुरानी दुनिया की हर बात से मेरा तैलुक समाप्त होता जा रहा है*। यह देह और देह की झूठी दुनिया मुझे बेरंग लगने लगी है। इसलिए मन रूपी पँछी बार - बार इस झूठी दुनिया से किनारा कर उस निराकारी दुनिया मे उड़ जाना चाहता है जहाँ प्यार के सागर मेरे शिव पिया रहते हैं।

 

_ ➳  अपने रथ पर विराजमान हो कर, मेरे शिव पिया का साकार में आ कर मुझ से मिलना, मुझ से मीठी - मीठी रूह रिहान करना और अपने प्रेम की शीतल फ़ुहारों से मुझ आत्मा सजनी को तृप्त कर देना, इन सभी बातों की स्मृति मुझे विदेही बन, झट से उनके पास जाने के लिए प्रेरित कर रही है। *अपने माशूक के प्रेम की लगन में मग्न मैं आत्मा आशिक विदेही बन इस देह से किनारा कर अब जा रही हूँ अपने शिव पिया के पास उस विदेही दुनिया में जहां देह और देह की दुनिया का संकल्प मात्र भी नही*। देह की इस झूठी साकारी दुनिया से परें आत्माओं की वो निराकारी दुनिया बहुत ही न्यारी और प्यारी है जहाँ मेरे अति मीठे, प्यारे बाबा रहते हैं।

 

_ ➳  अपने शिव पिता परमात्मा के उस धाम की ओर मैं निरन्तर बढ़ती जा रही हूँ। साकार दुनिया को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें अब मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख। *शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरता उनका सलोना स्वरूप मन को असीम आनन्द का अनुभव करवा रहा है*। उनसे निकल रही शक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बहते हुए झरने के समान मुझ पर पड़ रही है और मन को गहन शीतलता दे रही है।

 

_ ➳  शक्तियों की रंग बिरंगी धाराएं जितनी तीव्र गति से मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं उतना ही मुझ आत्मा पर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा समाप्त होने से मेरा स्वरूप निखरता जा रहा है। शक्तियों से मैं सम्पन्न हो कर शक्ति स्वरूप बनती जा रही हूँ। *बाबा का स्नेह और प्यार किरणों के रूप में निरन्तर मुझ पर बरस रहा है और मुझे नष्टोमोहा बना रहा है*। बाबा के प्रेम को अपने जीवन का आधार बना कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया की और प्रस्थान कर रही हूँ।

 

_ ➳  साकारी लोक में अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हूँ। देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, अब मेरे शिव बाबा का प्रेम, उनका साथ मुझे देह और देह की दुनिया के हर आकर्षण से मुक्त कर रहा है। दुनियावी  सम्बन्धो से अब मेरा कोई लगाव, झुकाव और टकराव नही है। *पुरानी दुनिया की किसी भी बात से कोई तैलुक ना रख, केवल अपने शिव बाबा के साथ सर्व सम्बन्धों का सुख लेते हुए, उनकी मीठी यादों में खोए रहना ही अब मुझे अच्छा लगता है*।

 

_ ➳  *तुम्ही से बैठूं, तुम्ही से खाऊँ, तुम्ही संग रास रसाऊं इसे ही अपने जीवन का मंत्र बना कर, हर बात से उपराम हो कर, अब मैं अपने मीठे बाबा के साथ अपने जीवन के हर पल का आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं साथी और साक्षीपन कि अनुभवी आत्मा हूँ।*

   *मैं सदा सफलतामूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा व्यर्थ संकल्प करने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा हर्षित मन और खुशी को सदा अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा खुशी स्वरूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

  अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  महात्यागी- सदा सम्बन्धसंकल्प और संस्कार सभी के परिवर्तन करने के सदा हिम्मत और उल्लास में रहते। पुरानी दुनियापुराने सम्बन्ध से सदा न्यारे हैं। महात्यागी आत्मायें सदा यह अनुभव करती कि यह पुरानी दुनिया वा सम्बन्धी मरे ही पड़े हैं। इसके लिए युद्ध नहीं करनी पड़ती है। सदा स्नेहीसहयोगीसेवाधारी शक्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रहते हैंबाकी क्या रह जाता है! महात्यागी के फलस्वरूप जो त्याग का भाग्य है - महाज्ञानीमहायोगीश्रेष्ठ सेवाधारी बन जाते हैं! इस भाग्य के अधिकार को कहाँ-कहाँ उल्टे नशे के रूप में यूज़ कर लेते हैं। पास्ट जीवन का सम्पूर्ण त्याग है लेकिनत्याग का भी त्याग नहीं है'  *लोहे की जंजीरे तो तोड़ दींआइरन एजड से गोल्डन एजड तो बन गयेलेकिन कहाँ-कहाँ परिवर्तन सुनहरी जीवन के सोने की जंजीर में बंध जाता है। वह सोने की जंजीरें क्या है? ‘‘मैं'' और‘मेरा''।* मैं अच्छा ज्ञानी हूँमैं ज्ञानी तू आत्मायोगी तू आत्मा हूँ। यह सुनहरी जंजीर कहाँ-कहाँ सदा बन्धनमुक्त बनने नहीं देती।

 

✺  *"ड्रिल :- लोहे की जंजीरों को तोड़ स्वयं को सोने की जंजीरों में नहीं बाँधना।”*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा झील के किनारे प्रकृति की गोद में बैठकर उसकी हरियाली का आनंद ले रही हूँ... खिली-खिली सुहानी धूप में तेज रूहानी हवायें गीत गुनगुना रही हैं... रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर अपना रंग-बिरंगी आँचल बिछाकर मुस्कुरा रहे हैं...* चीं-चीं करती चिड़िया, कूं-कूं करती कोयल, भूं-भूं करते भंवरे, झर-झर बहते झरने मेरे ह्रदय को प्रफुल्ल्ति कर रहे हैं... इतने में एक प्यासा हिरन झील का पानी पीने आता है और फुदक-फुदक कर इधर से उधर भागता है... मैं आत्मा उसके पीछे जाने की कोशिश करती हूँ... इतने में प्यारे बाबा मेरे सामने आ जाते हैं...      

 

 _ ➳  प्यारे बाबा कहते हैं- मेरी मीठी बच्ची कहाँ भाग रही हो... मैं कहती हूँ मेरे प्यारे बाबा मैं आत्मा उस हिरन को पकड़ने की कोशिश कर रही हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मुझे अपने सामने बिठाकर कहते हैं- मेरी लाडली तुमने ये कहानी तो सुनी होगी... सीता वनवास के समय अपने राजमहल के सभी ठाठ-भाट छोड़कर वन में आई... पर वन में सोने के हिरन को पाने के लिए रावण के चंगुल में फंस गई... और राम से दूर होकर मायावी रावण के अधीन हो गई... *वैसे ही बच्ची चेक करो कि तुम भी सोने की जंजीरों में पड़कर फिर से मायावी रावण के चंगुल में तो नहीं फंस रही हो?*     

 

 _ ➳  बाबा कहते हैं:- बच्ची- श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन अपनाकर तुमने पुरानी दुनियापुराने सम्बन्ध सबसे सदा न्यारे तो हो गए हो... *पुराने जीवन का सम्पूर्ण त्याग किया है, लेकिन  ‘त्याग का भी त्याग किए हो? लोहे की जंजीरे तो तोड़ दींसोने की जंजीरों में तो नहीं बंधे हो?‘‘मैं'' और ‘‘मेराये ऐसी सुनहरी जंजीरें हैं जो बन्धनमुक्त बनने नहीं देती हैं...* महाज्ञानी, महायोगी, श्रेष्ठ सेवाधारी बनकर महात्यागी तो बन गए हो लेकिन सर्वस्व त्यागी बने हो? बाबा मुझे समझानी देते हुए वरदान देते हैं- बच्चे सदा फालो फादर करते हुए बाप समान सर्वस्व त्यागी बनो, महादानी बनो...

 

 _ ➳  मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को धारण कर फालो फादर कर रही हूँ... बाबा दृष्टि देते हुए मुझे सर्व शक्तियों से सम्पन्न बना रहे हैं... *मैं आत्मा पुराने सम्बन्ध, सम्पर्क, पुरानी दुनिया का पूरी तरह त्याग कर चुकी हूँ... ‘‘मैं'' और ‘‘मेरा'' की सोने की जंजीरें बाबा की किरणों में भस्म हो रहे हैं... मैं आत्मा सर्व प्रकार के बन्धनों से मुक्त हो रही हूँ...* अब मैं आत्मा शिव शक्ति बन बाबा के साथ कंबाइंड रहकर हर कर्म करती हूँ... और कर्म के फल को भी बाबा को समर्पित कर देती हूँ... नाम, मान, शान की कभी भी अपेक्षा नहीं करती हूँ... करन करावनहार बाबा है मैं आत्मा निमित्त हूँ...

 

 _ ➳  *अब मैं आत्मा ‘‘मैं'' और ‘‘मेरा'' के स्वार्थ भावों को ‘‘मैं आत्मा'' और ‘‘मेरा बाबा'' में परिवर्तित कर चुकी हूँ...* अब मैं आत्मा ज्ञानीयोगी होने का अहंकार नहीं करती हूँ... ये ज्ञानसागर बाबा का दिया ज्ञान है... जिसने मुझे राजयोग सिखाकर ज्ञानी, योगी बनाया... मैं आत्मा निष्काम भाव से सर्व की सेवा कर रही हूँ... *मैं आत्मा वफादार, फरमानबरदार बन इस महायज्ञ में तन, मन, धन से अपना सबकुछ सम्पूर्ण स्वाहा कर सर्वस्व त्यागी बन गई हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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