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❍ 30 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *साक्षी हो अपने पुरुषार्थ को देखा ?*
➢➢ *हां जी करके बाप से वर्सा पाया ?*
➢➢ *मास्टर रचयिता की स्टेज द्वारा आपदाओं में भी मनोरंजन का अनुभव किया ?*
➢➢ *साधारण संकल्प तो नहीं किये ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *समय प्रमाण अब चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का कार्य करना है।* अब इसी सेवा की आवश्यकता है क्योंकि समय बहुत नाजुक आना है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कल्प पहले वाली बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ बाप में निश्चय है कि वही कल्प पहले वाला बाप फिर से आकर मिला है। ऐसे ही अपने में भी इतना निश्चय है कि हम भी वही कल्प पहले वाले बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्माएं हैं? या बाप में निश्चय ज्यादा है, अपने में कम है? अच्छा, ड्रामा में जो भी होता है उसमें भी पक्का निश्चय है? *जो ड्रामा में होता है वह कल्याणकारी युग के कारण सब कल्याणकारी है। या कुछ अकल्याण भी हो जाता है? कोई मरता है तो उसमें कल्याण है? वो मर रहा है और आप कल्याण कहेंगे, कल्याण है? बिजनेस में नुकसान हो गया-यह कल्याण हुआ? तो नुकसान भी कल्याणकारी है!*
〰✧ ज्ञान के पहले जो बातें कभी आपके पास नहीं आई, ज्ञान के बाद आई-तो उसमें कल्याण है? माया नीचे-ऊपर कर रही है, कल्याण है? इसमें क्या कल्याण है? माया आपको अनुभवी बनाती है। *अच्छा, तो ड्रामा में भी इतना ही अटल निश्चय हो। चाहे देखने में अच्छी बात न भी हो लेकिन उसमें भी गुप्त अच्छाई क्या भरी हुई है, वो परखना चाहिए।* जैसे कई चीजें होती हैं, उनका बाहर से कवर (ढक्कन) अच्छा नहीं होता है लेकिन अन्दर बहुत अच्छी चीज होती है। बाहर से देखेंगे तो लगेगा-पता नहीं क्या है? लेकिन पहचान कर उसे खोलकर अन्दर देखेंगे तो बढ़िया चीज निकल आयेगी।
〰✧ *तो ड्रामा की हर बात को परखने की बुद्धि चाहिए। निश्चय की पहचान ऐसे समय पर आती है। परिस्थिति सामने आवे और परिस्थिति के समय निश्चय की स्थिति, तब कहेंगे निश्चय बुद्धि विजयी। तो तीनों में पक्का निश्चय चाहिए-बाप में, अपने आप में और ड्रामा में।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *आज बापदादा सर्व स्नेही बच्चों का खेल देख रहे थे।* क्या खेल होगा? खेल देखना तो आपको भी अच्छा लगता है। क्या देखा? अमृतवेले का समय था।
〰✧ *हरेक आत्मा, जो पक्षी समान उडने वाली है अथवा रॉकेट की गति से भी तेज उडने वाली है, आवाज की गति से भी तेज जाने वाली है,* सब अपने-अपने साकार स्थानों पर, जैसे प्लेन एरोड्रोम पर आ जाता है वैसे सब अपने रूहानी एरोड्रोम पर पहुँच गये।
〰✧ लक्ष्य और डायरेक्शन सबका एक ही था। *लक्ष्य था उडकर बाप समान बनने का और डायरेक्शन था एक सेकण्ड में उडने का।* क्या हुआ?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने का साधन क्या है? अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना है। यही साधन है।* इसका बार-बार अटेन्शन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है ना। *अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार यही अटेन्शन रहेगा। तो यह साधना अर्थात बार-बार अटेन्शन की तपस्या चाहिए। चेक करो कि मैं अव्यक्त फ़रिश्ता हूँ? अगर स्वयं नहीं होंगे तो दूसरों को कैसे बना सकेंगे?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पुजारी से पूज्य बनना*"
➳ _ ➳ एक खुबसूरत उपवन में झूले में झूलती हुई मै आत्मा... झूले के ऊपर नीचे के खेल को देख... मीठे बाबा की यादो में खो जाती हूँ... कि कैसे मीठे बाबा ने मुझे ज्ञान और भक्ति के खेल को समझाकर... मझे जनमो की यात्रा का राज समझा दिया है... *मीठे बाबा की यादो में अपने आत्मिक वजूद को पाकर, मै आत्मा... पुनः पावनता की खुशबु को स्वयं में भरकर... इस बेहद के स्टेज पर पूज्य बन मुस्करा रही हूँ..*.अपने इस खुबसूरत भाग्य का सिमरन करते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा की बाँहों में झूलने वतन में पहुंचती हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को दिव्यगुण धारी बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... ईश्वर पिता की सच्ची यादो में सतोप्रधान पूज्य बनने का पुरुषार्थ करो... ज्ञान रत्नों से बुद्धि को भरपूर कर अथाह सम्पत्ति और सुखो के मालिक बनो... *मीठे बाबा की मीठी यादो में देहभान में लगे सारे दागो को मिटा दो... और पूज्य देवता बन शान से मुस्कराओ.*.."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा से दिव्यता के वरदान को लेकर मुस्करा कर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा देह भान में आकर, अपनी सारी आत्मिक सुंदरता को खो गयी थी... मै क्या थी, और क्या हो गयी हूँ... *आपने मीठे बाबा मुझे सच्ची यादो की राहो पर चलाकर, कितना दिव्य और प्यारा बनाया है.*.. आपके हाथ और सच्चे साथ ने पूज्य रूप में विश्व धरा पर सजा दिया है..."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने अमूल्य रत्नों की जागीरों को सौंपते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय यादो में हर पल हर संकल्प से डूबकर, सतोप्रधान पूज्य बन अनन्त सुखो का आनन्द उठाओ.*.. यह ज्ञान और भक्ति का वन्डरफुल खेल है, इसमे पुनः सतोप्रधान बन विश्व बादशाही को पाओ.. मीठे बाबा की यादो में सारे विकारो को भस्म कर, पावनता से सज संवर कर मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान मणियो को अपने दिल में समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपकी फूलो सी गोद में बैठकर, ज्ञान रत्नों से मालामाल हो रही हूँ... *इस प्यारे खेल में पुनः पावनता से खिलकर, सतोप्रधान बन रही हूँ.*..आपकी यादो में विकारो की कालिमा से मुक्त होकर, देवताई चमक से भर रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को रत्नों की दौलत से खुबसूरत बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *ज्ञान और भक्ति के इस जादुई खेल में, ईश्वर पिता के साथ से रत्नों से लबालब होकर, देवताई सौंदर्य को पा रहे हो.*.. मीठे बाबा के प्यार के साये तले अपने खोये ओज को पाकर... सच्चे सुखो में मुस्करा रहे हो... पावन पिता के संग में सदा की पावनता को पा रहे हो..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा से पायी ज्ञान की अतुलनीय धनसंपदा से सजकर कहती हूँ :-* "मीठे दुलारे बाबा मेरे... मै आत्मा किस कदर देह भान में फंसी थी और विकारो के दलदल में धँसी थी... *मीठे बाबा आपने हाथ देकर... जो मुझे बाहर निकाला है, मै आत्मा कितनी प्यारी पावन बनकर महक उठी हूँ..*. पूज्य बनकर निखर रही हूँ..."मीठे बाबा से पावनता का वरदान लेकर मै आत्मा... अपने वतन लौट आयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- चलते फिरते कर्म करते याद में रहने का पुरुषार्थ करना है*
➳ _ ➳ स्वयं भगवान की पालना में पलने वाली मैं कितनी महान, कितनी विशेष आत्मा हूँ, यह विचार करते, मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते हुए मैं अपने भगवान शिव बाबा का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करती हूँ और उनकी मीठी यादों में खो कर उनके बाप, टीचर और सतगुरु तीनो स्वरूपों को स्मृति में लाती हूँ। *बाप के रूप में उनसे मिलने वाले परमात्म प्यार को याद करते ही मन खुशी से झूमने लगता है और अपने भगय पर मुझे नाज़ होने लगता है कि जिस भगवान को दुनिया ढूंढ रही है वो मेरा बाप बन मुझ पर अपना अथाह स्नेह लुटा रहा है। टीचर के
रूप में परमशिक्षक मेरे शिवबाबा मुझे परमधाम से आकर ऐसी अविनाशी पढ़ाई पढा रहे है जो भविष्य 21 जन्मों के लिए मेरी ऊँच प्रालब्ध बनाने वाली है और सतगुरु के रूप में मेरे बाबा की श्रीमत मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाकर, मुझे गति सदगति दिलाने वाली है*। अपने प्यारे भगवान के इन तीनो स्वरूपो को याद करते - करते, मेरी बुद्धि का योग परमधाम में रहने वाले मेरे बाबा के साथ सहज ही जुड़ने लगता है।
➳ _ ➳ मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरा मन बुद्धि धीरे - धीरे स्वत: ही एकाग्र होने लगे हैं। संकल्पो की गति धीमी हो गई है और मन में अपने प्यारे बाबा से मिलने की लगन तीव्र होने लगी है। *देह और देह की दुनिया से कनेक्शन टूट कर उस एक अपने प्यारे मीठे बाबा के साथ जुड़ गया है। मन बुद्धि का यह कनेक्शन जुड़ते ही मैं अनुभव कर रही हूँ उस परमात्म लाइट को अपने ऊपर पड़ते हुए जो परमधाम से नीचे आकर मेरे मस्तक को स्पर्श कर रही है*। यह परमात्म लाइट परमात्म शक्तियों को मेरे अंदर भरकर मुझे आप समान विदेही बना रही है। ऐसा लग रहा है जैसे देह और देह की दुनिया के साथ मेरा कोई रिश्ता, कोई सम्बन्ध नही। मेरा सम्बन्ध मेरा हर रिश्ता उस एक के साथ है जिसके साथ इस समय मेरी बुद्धि की तार जुड़ी हुई है। वो मेरे परम् पिता परमात्मा शिव बाबा ही मेरे जीवन का आधार है। *जीवन के सहारे अपने प्राणप्यारे बाबा के साथ कनेक्ट होकर, उनसे आ रही परमात्म लाइट की मैग्नेटिक पॉवर से आकर्षित हो कर मैं आत्मा अब उनके पास उनके परमधाम घर की ओर जा रही हूँ*।
➳ _ ➳ परमधाम से आ रही परमात्म शक्तियों की लाइट मुझे ऊपर खींच रही है और मैं आत्मा भृकुटि के भव्य भाल से निकल कर, धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *हर बन्धन हर बोझ से मुक्त स्वयं को मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। यह हल्कापन बहुत ही न्यारा और प्यारा है जो मन को गहन आनन्द प्रदान कर रहा है*। इस गहन आनन्द की अनुभूति करते - करते मैं आत्मा अब आकाश को पार करके, पहुँच गई हूँ सूक्ष्म देहधारी लाइट के फरिश्तो की दुनिया में जहां मैं देख रही हूँ *अपने सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप में अपनी बाहों को पसारे, बच्चो को आप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने की इंतजार में खड़े ब्रह्मा बाबा को। उन्हें देखते हुए, उनकी दृष्टि लेते हुए, मैं सूक्ष्म वतन को पार कर अब अपने परमधाम घर में पहुँच जाती हूँ*
➳ _ ➳ चारों और चमकती, जगमग करती चैतन्य मणियों की इस निराकारी दुनिया परमधाम में पहुँच कर मैं आत्मा असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, अपने बाप, टीचर, सतगुरु के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। हर संकल्प, विकल्प से मुक्त, एकदम निर्संकल्प अवस्था में मैं स्थित हूँ और बाबा को निहार रही हूँ। *मास्टर बीज रूप स्थिति में स्थित होकर अपने बीज रूप पिता के सामने बैठ कर मैं आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ*।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ*। चलते - फिरते हर कर्म करते अब मेरी बुद्धि का योग मेरे शिव पिता के साथ लगा रहता है। *बाप, टीचर सतगुरु के रूप में अपने प्यारे बाबा की पालना, शिक्षाओं और श्रीमत को हर पल स्मृति में रखकर, उनकी याद में निरन्तर रहने का पुरुषार्थ अब मैं बिल्कुल सहज रीति करते हुए, अपने अनमोल संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्वांसों श्वांस सफल कर रही हूँ*
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा मास्टर रचयिता की स्टेज पर विराजमान हूँ।*
✺ *मैं आपदाओं में भी सम्पूर्ण मनोरंजन का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सम्पूर्ण योगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं परमात्म दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा विशेष संकल्प करती हूँ ।*
✺ *मैं सदा उड़ते रहने वाला फरिश्ता हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ यह सर्व प्राप्ति भी महादानी बन औरों को दान करने के बजाए स्वयं स्वीकार कर लेते हैं। तो ‘मैं और मेरा' शुद्ध भाव की सोने की जंजीर बन जाती है। भाव और शब्द बहुत शुद्ध होते हैं कि हम अपने प्रति नहीं कहते, सेवा के प्रति कहते हैं। *मैं अपने को नहीं कहती कि मैं योग्य टीचर हूँ लेकिन लोग मेरी मांगनी करते हैं। जिज्ञासु कहते हैं कि आप ही सेवा करो। मैं तो न्यारी हूँ लेकिन दूसरे मुझे प्यारा बनाते हैं। इसको क्या कहा जायेगा? बाप को देखा वा आपको देखा? आपका ज्ञान अच्छा लगता है, आपके सेवा का तरीका अच्छा लगता है, तो बाप कहाँ गया? बाप को परमधाम निवासी बना दिया! इस भाग्य का भी त्याग।* जो आप दिखाई न दें, बाप ही दिखाई दे। महान आत्मा प्रेमी नहीं बनाओ ‘परमात्म प्रेमी बनाओ'। इसको कहा जाता है और प्रवृत्ति पार कर इस लास्ट प्रवृत्ति में सर्वांश त्यागी नहीं बनते। यह शुद्ध प्रवृत्ति का अंश रह गया। तो महात्यागी तो बने लेकिन सर्वस्व त्यागी नहीं बने। तो सुना दूसरे नम्बर का महात्यागी।
✺ *"ड्रिल :- आत्माओं को "महान आत्मा प्रेमी" बनाने की बजाये "परमात्मा प्रेमी" बनाना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा एक ऐसे स्थान पर हूं जहां चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं और मैं फूलों के बीच भागती जा रही हूँ... और फूलों की खुशबू को अपने अन्तर्मन तक महसूस कर रही हूं... *जैसे-जैसे उन फूलों की खुशबू को मैं अपने अंदर फील करती हूं... वैसे-वैसे मेरा मन भी फूलों की तरह खिल रहा है और मैं देखती हूं कि मैं अपने आप को बहुत ही तेज खुशबूदार फूल अनुभव करती हूं... और मैं अपने इस अनुभव को सबसे श्रेष्ठ अनुभव समझने लगती हूं...* बाकी सभी फूल मुझे अपने से कम खुशबू वाले प्रतीत होते हैं मुझे लगता है की मैं खुशबू से भरी हुई हूँ और बाकी सभी फूलों की रंगत मुझसे कम है...
➳ _ ➳ तभी मैं खुशबू बनकर ऊपर उठने लगती हूं और पहुंच जाती हूं सूक्ष्म वतन जहां फरिश्ते ही फरिश्ते बैठे हुए हैं... वैसे ही मैं खुशबू से एक फरिश्ते का स्वरुप ले लेती हूं और अपनी चमक दूर-दूर तक अनुभव करती हूँ... तभी मैं देखती हूं कि वहां पर मेरे मीठे बाबा ने दरबार लगाया हुआ है और हमें समझा रहे हैं... बाबा ने सभी फरिश्तों को बताया कि आप सब योग्य टीचर हो आपको मुख्य भूमिका अदा करनी है... *जब कभी भी आप टीचर बनकर शिक्षा दे रहे होते हैं... उस समय आपको सभी कहते हैं कि आप बहुत अच्छा समझाते हो तो आप बहुत प्रसन्न होते हो...*
➳ _ ➳ और *जब आप प्रसन्न होते हो तो उस समय आपको यह आभास नहीं होता कि आपने यह भाव अपने अंदर कुछ इस तरह संभाल लिया है कि आप में देहभान आने लगता है... जब सिर्फ आपका ही वर्णन होता है और कहा जाता है कि आपकी यह सेवा हमें बहुत प्रभावित करती है... अगर आप हमें यह सेवा नहीं देंगे तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे... उस समय आप यह अनुभव करते हो जी हां यह सेवा मैं बहुत अच्छी कर रही हूं... उस समय बाप कहीं भी आपके दिमाग में नहीं होते हैं... सिर्फ आपको अपनी सेवा की महानता के बारे में ही अनुभव होता है...* उस समय वह सभी आत्माएं सिर्फ आप की महानता के प्रेमी बन जाते हैं... तभी एक फरिश्ता उठ कर अपने पंख फैलाकर उड़ता हुआ बाबा को कहता है मेरे मीठे, बाबा मैं ऐसी सेवा नहीं करूंगा, जिससे वह मेरी महानता के प्रेमी बने...
➳ _ ➳ और बाबा को यह शब्द कहकर वह फरिश्ता बाबा के सामने बैठ जाता है... और बाबा उस पर अपना हाथ रखकर उसे वरदान देते हैं, सफलता मूरत भव... *मैं बाबा से कहती हूं, बाबा मैं हमेशा आपकी कही हुई बातों को स्मृति में रखूंगी और सभी आत्माओं को परमात्मा प्रेमी बनाऊंगी...* मैं अचानक अपने इस फरिश्ते स्वरूप से खुशबू फैलाते हुए नीचे आ जाती हूं... जहां चारों तरफ फूलों की खुशबू बिखर रही है... और फूलों से यह वातावरण बहुत सुंदर लग रहा है और इस खुशबूदार वातावरण से अब मैं वापस अपने कर्म स्थल पर आ जाती हूं और अपनी सेवा प्रारंभ करती हूं...
➳ _ ➳ मैं जैसे ही अपनी सेवा आरंभ करती हूं... तो मेरे सामने अनेक आत्माएं बैठी हुई रहती हैं और मैं उनको बाबा की मुरली सुनाने लगती हूँ... उस दौरान सभी बहने मुझे कहती हैं... बहन आप बहुत अच्छी मुरली सुनाते हो... मैं उनसे कहती हूं उसी समय मैं बाबा का धन्यवाद करती हूं और मै बहनों को यह समझाती हूँ कि यह मुरली सिर्फ और सिर्फ परमात्मा द्वारा दिया हुआ हम सभी के लिए श्रीमत रूपी वरदान है... यह सुनकर सभी बहने बाबा का धन्यवाद करती है और सभी इसी भाव से ज्ञान सुनते हैं कि यह ज्ञान हमें परमात्मा सुना रहे हैं... *जो आत्माएं पहले मेरी महानता का गुणगान करती थी वह सभी आत्माएं अब परमात्मा प्रेमी बन गए हैं... सभी आत्माएं परमात्मा की श्रीमत पर चल रही है और मैं भी अपनी महानता को त्याग परमात्मा प्रेमी स्थिति का आनंद ले रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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