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❍ 24 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अपना पोतामेल रखा की आजे सारे दिन में हमारा कितना जमा हुआ ?*
➢➢ *एक बाबा से सर्व समबंधो का अनुभव किया ?*
➢➢ *बाबा शब्द की स्मृति से कारण को निवारण में परिवर्तित किया ?*
➢➢ *सिर्फ एक बाप के प्रभाव में रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अभी अच्छा-अच्छा कहते हैं, लेकिन अच्छा बनना है यह प्रेरणा नहीं मिल रही है।* उसका एक ही साधन है-संगठित रुप में ज्वाला स्वरुप बनो। एक एक चैतन्य लाइट हाउस बनो। सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो, यह तो सब ठीक है, *लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लगेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं मास्टर दाता हूँ"*
〰✧ आप कौन हो? मास्टर दाता हो ना। वास्तव में देना अर्थात् बढ़ना। *जितना देते हो उतना बढ़ता है। विनाशी खजाना देने से कम होता है और अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है-एक दो, हजार पाओ।* तो देना आता है कि सिर्फ लेना आता है? दे कौन सकता है? जो स्वयं भरपूर है। अगर स्वयं में ही कमी है तो दे नहीं सकता।
〰✧ *तो मास्टर दाता अर्थात् सदा भरपूर रहने वाले, सम्पन्न रहने वाले। तो सहज याद क्या हुई? 'प्यारा बाबा'। मतलब से याद नहीं करो। मतलब से याद करने में मुश्किल होता है, प्यार से याद करना सहज होता है। मतलब से याद करना याद नहीं, फरियाद होती है।* तो फरियाद करते हो? ऐसा कर देना, ऐसा करो ना, ऐसा होना चाहिए ना....-ऐसे कहते हो?
〰✧ याद से सर्व कार्य स्वत: ही सफल हो जाते हैं, कहने की आवश्यकता नहीं। सफलता जन्मसिद्ध अधिकार है। अधिकार मांगने से नहीं मिलता, स्वत: मिलता है। तो अधिकारी हो या मांगने वाले हो? अधिकारी सदा नशे में रहते हैं-मेरा अधिकार है। मांगना तो बन्द हो गया ना। बाप से भी मांगना नहीं है। यह दे दो, थोड़ी खुशी दे दो, थोड़ी शान्ति दे दो....-ऐसे मांगते हो? बाप का खजाना मेरा खजाना है। जब मेरा खजाना है तो मांगने की क्या दरकार है। तो अधिकारी जीवन का अनुभव करने वाले हो ना। अनेक जन्म भिखारी बने, अभी अधिकारी बने हो। *सदा इसी अधिकार के नशे में रहो। परमात्म-प्यार के अनुभवी आत्माएं हो। तो सदा इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते चलो। अधिकारी आत्मायें स्वप्न में भी मांग नहीं सकतीं। बालक सो मालिक हो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *विस्तार को देखते भी न देखें, सुनते हुए भी न सुनें - यह प्रैक्टिकल अभी से चाहिए।* तब अंत के समय चारों ओर की हलचल की आवाज जो बडी दु:खदायी होगी, दृश्य भी अति भयानक होगे - अभी की बातें उसकी भेंट में तो कुछ भी नहीं है - *अगर अभी से ही देखते हुए न देखना, सुनते हुए न सुनना यह अभ्यास नहीं होगा तो अंत में इस विकराल दृश्य को देखते एक घडी के पेपर में सदा के लिए फेल माक्र्स मिल जावेगी।*
〰✧ इसलिए यह भी विशेष अभ्यास चाहिए। *ऐसी स्टेज हो जिसमें साकार शरीर भी आकारी रूप में अनुभव हो।* जैसे साकार रूप में देखा साकार शरीर भी आकरी फरिश्ता रूप अनुभव किया ना। चलते-फिरते कार्य करते आकारी फरिश्ता अनुभव करते थे।
〰✧ शरीर तो वही था ना - लेकिन स्थूल शरीर का भान निकल जाने कारण स्थूल शरीर होते भी आकारी रूप अनुभव करते थे। तो सर्व के सहयोग के वायब्रेशन का फैला हुआ हो - *जिस भी स्थान पर जाए तो यह फरिश्ता रूप दिखाई दे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात मन और बुद्धि सदा मनमत से खाली रखो। *मन को चलाने की आदत बहुत है ना।* एकाग्र करते हो फिर भी चल पड़ता है। फिर मेहनत करते हो । *चलाने से बचने का साधन है* जैसे आजकल अगर कोई कन्ट्रोल में नहीं आता, बहुत तंग करता है, बहुत उछलता है, या पागल हो जाता है तो उनको ऐसा इन्जेक्शन लगा देते हैं जो वह शान्त हो जाता है। तो ऐसे अगर संकल्प शक्ति आपके कण्ट्रोल में नहीं आती तो *अशरीरी भव का इन्जेक्शन लगा दो। बाप के पास बैठ जाओ। तो संकल्प शक्ति व्यर्थ नहीं उछलेगी।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- स्वच्छ बनना"*
➳ _ ➳ सारी एक की ही महिमा है, एक का ही गायन है... *गाते भी हैं पतित पावन, जरूर पतित हैं तभी तो बुलाते हैं...* सतयुग में तो सुखी होते हैं, वहां कोई दुख नहीं, दुख का नाम नहीं निशान नहीं... तो बाप की भी कोई दरकार नहीं पड़ती... *अभी है घोर कलयुग, घोर अंधेरा... फिर हम ब्राह्मणों की अब रात पूरी हुई दिन शुरू हुआ है...* गाते भी है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन... तो अब बाप मिला है, मनमनाभव का मंत्र मिला है... *तो अब मैं आत्मा और सबसे बुद्धि का योग तोड़ एक शिव बाबा से जुडी हूं... 'एक बाप दूसरा न कोई' इसी तपस्या में मैं आत्मा तप रही हूं और गोरा पावन बन रही हूं...*
❉ *पतित पावन बाबा ब्रह्मा तन का आधार लिए ब्रह्मा मुख कमल से मुझ आत्मा से कहते हैं:-* "मीठी बच्ची... *21 जन्म सुख भोग 63 जन्म फिर तुमने अनेक विकर्म किये... जिससे फिर अब तुम्हारे सर पर पापों का बोझ चढ़ गया हैं...* बोझ चढ़ते-चढ़ते अब तुम आत्मा तमोप्रधान काली हो चुकी हो, अब तुम्हारे बुलाने पर क्योंकि मैं आया हूं... *तो अब, मनमनाभव के मंत्र को धारण कर गोरा बनो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी को सर माथे पर रखते हुए मैं आत्मा प्यारे बाबा से बोली:-* "हां मेरे मीठे बाबा... *आधाकल्प हुआ, माया ने बहुत कुतर कुतर की है...* आधाकल्प पतित होती होती मैं आत्मा, काली और दुखी बन पड़ी थी बाबा... जिंदगी को अब कही रोशनी की किरणे मिली है... मैं आत्मा दुखों की दुनिया से निकल अब सुखों की दुनिया में पहुँची हूं... *भिन्न-भिन्न युक्तियां रच मैं आत्मा अब चलते फिरते उठते बैठते आपकी याद द्वारा अपने विकर्मो को नष्ट करती जा रही हूं बाबा..."*
❉ *ज्ञान सागर बाबा ज्ञान किरणों की बरसात मुझ आत्मा पर करते हुए बोले:-* "देखो बच्चे... *दुनिया वाले दिखाते भी है श्याम काला, फिर काली का चित्र भी बैठ बनाया है, परंतु इसका अर्थ नहीं जानते... अभी फिर तुम्हें सारा ज्ञान है... अभी तुम आत्मा नॉलेजफुल बाप के, नॉलेजफुल बच्चे बने हो...* सारा मदार है याद पर... जितना जितना फिर तुम मुझ बाप को याद करते जाओगे, बुद्धि भी स्वच्छ बनती जाएगी और तुम मेरे पास... फिर स्वर्ग कृष्णपुरी में चली जाओगी..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की समझानी को स्वयं में धारण करते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *रोज मुरलियों में आप द्वारा मिली युक्तियों से मैं आत्मा स्वयं के पुरुषार्थ में तत्पर हूं... कभी कोठरी में बैठ आप के चित्र को निहारती, तो कभी पॉकेट में पड़े स्वयं के संपूर्ण चित्र को देख... अपने लक्षणों पर विजय पा रही हूं...* स्वयं को सदा उमंग-उत्साह से भर... मैं आत्मा संगमयुगी सम्पूर्ण फरिश्ते स्वरूप के बहुत नजदीक, खुद को देख रही हूं..."
❉ *करनकरावनहार बाबा मुझ निमित बाप के कार्य में सहयोगी आत्मा बच्ची से बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब ज्वालामुखी याद द्वारा, पूरे उमंग उत्साह द्वारा औरों को भी उत्साह में रख, अभी सभी समस्याओं को संपूर्ण रुप से खत्म करो...* देखो ब्रह्मा बाप भी गेट पर खड़े आप सब का आहवान कर रहे हैं... बस अब आप बच्चो की ही सम्पूर्णता का इंतज़ार हैं,..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी पर गौर फरमाते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "मीठे बाबा... *ज्वालामुखी याद द्वारा अब मैं आत्मा स्वयं को उमंगो से भरी हुई देख रही हूं... याद रूपी अग्नि में तपते हुए, मैं आत्मा स्वयं को देख रही हूं... मैं आत्मा देख रही हूं, कैसे मुझ आत्मा का सारा किचड़ा भस्म होता जा रहा है... मैं आत्मा बेदाग स्वच्छ बन गई हूं...* मैं आत्मा श्याम से सुंदर बन अपने सम्पूर्ण स्वरूप को देख रही हूं..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाबा से सर्व सम्बन्धो का अनुभव*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान सर्व सम्बन्धों से जिसका हो जाये उससे भाग्यशाली और भला कौन हो सकता है! *यही विचार करती, मन ही मन स्वयं के भाग्य की सराहना करती, अपने शिव पिता परमात्मा, अपने भगवान बाप का मैं दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने ने मेरे जीवन मे आ कर सर्व सम्बन्धों का मुझे सुख देकर मेरे जीवन को खुशियों से भर दिया*।
➳ _ ➳ जब - जब जिस भी सम्बन्ध से अपने प्यारे मीठे बाबा को मैंने याद किया उस सम्बन्ध का असीम सुख मैंने बाबा से प्राप्त किया। *कभी बाप के रूप में अपना असीम प्यार और दुलार दिया तो कभी माँ बन कर अपने ममता के आंचल की ठन्डी छाँव में बिठाया, कभी दोस्त बन कर कदम - कदम पर मेरा साथ दिया तो कभी जीवन साथी बन कर हर सुख - दुख में मेरा साथ निभाया*। ऐसे मेरे शिव पिता परमात्मा ने हर एक सम्बन्ध के सुख का मुझे अनुभव करवा कर मेरे बेरंग जीवन को अपने प्यार के रंग से भर दिया।
➳ _ ➳ स्वयं भगवान से मिलने वाले सर्व सम्बन्धो के सुखद अनुभवों को याद करती अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी यादों में मैं खो जाती हूँ और वो सभी अनुभव अनेक चित्रों के रूप में मेरी आँखों के सामने एक - एक करके उभरने लगते हैं। *कहीं मैं स्वयं को एक छोटे बच्चे के रूप में देख रही हूँ। बाबा ने अपने हाथ मे मेरा हाथ पकड़ा हुआ है और मुझे पूरे विश्व की सैर करवा रहें हैं। मेरे साथ अनेक प्रकार से खेलपाल कर रहें हैं*। फिर मैं देख रही हूँ स्वयं को ब्रह्मा माँ की गोद मे। बाबा माँ बन कर अपनी ममता की मीठी छाँव में मुझे बिठा कर अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटा रहें हैं।
➳ _ ➳ कहीं मैं देखती हूँ अपने लाइट माइट स्वरूप में बाबा दोस्त बन मेरा हाथ अपने हाथ मे ले कर बैठें हैं और अपने खुदा दोस्त से मैं अपने मन की सारी बाते कह रही हूँ और वो बड़े प्यार से मुस्कराते हुए मेरी हर बात को ध्यान से सुन रहें हैं और मेरी हर बात का जवाब दे रहें हैं। अब मैं देख रही हूँ बाबा को अपने साजन के रूप में। *अपने निराकार स्वरूप में शिव बाबा साजन बन मुझ निराकार आत्मा सजनी को अपनी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया में बिठा कर अपने निश्छल प्रेम की मीठी फुहारें मुझ पर निरन्तर बरसा रहें हैं*।
➳ _ ➳ इन सर्व सम्बन्धो के अनुभवों का सुख लेकर, अपने भगवान बाप से मिलन मनाने के लिए अब मैं *अपने मन बुद्धि को सब बातों से हटा कर केवल अपने शिव पिता पर एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में देह से न्यारी विदेही आत्मा बन चल पड़ती हूँ उनके पास उनके धाम*। आकाश से ऊपर, सूक्ष्म वतन को पार कर एक अति सुन्दर दिव्य प्रकाशमयी अलौकिक दुनिया में मैं प्रवेश करती हूँ जो मेरे पिता परमात्मा का घर है। इस स्वीट साइलेन्स होम में पहुँच कर गहन शांति का मैं अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने प्यारे बाबा के अति सुंदर दिव्य प्रकाशमय स्वरूप को निहारते हुए, उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों के नीचे बैठ स्वयं को उनकी सर्वशक्तियों से भरपूर करके अब मैं वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ। *अपने साकारी तन में विराजमान हो कर सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाते हुए अब मैं हर सम्बन्ध का सुख अपने प्यारे बाबा से लेते हुए, देह और देह के झूठे सम्बन्धों से उपराम होती जा रही हूँ*। सर्व सम्बन्धों से भगवान बाप को अपना बना कर भगवान की पालना में पलने का सुख अब मैं हर पल ले रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाबा शब्द की स्मृति से कारण को निवारण में परिवर्तन करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सदा अचल अडोल आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा एक बाप के प्रभाव में रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा किसी भी आत्मा के प्रभाव में आने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं सहज योगी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :
➳ _ ➳ मायाजीत बनने के लिए स्वमान की सीट पर रहो: सदा स्वयं को स्वमान की सीट
पर बैठा हुआ अनुभव करते हो? पुण्य आत्मा हैं, ऊंचे ते ऊंची ब्राह्मण आत्मा हैं,
श्रेष्ठ आत्मा हैं, महान आत्मा हैं, ऐसे अपने को श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर
अनुभव करते हो? कहाँ भी बैठना होता है तो सीट चाहिए ना! तो *संगम पर बाप ने
श्रेष्ठ स्वमान की सीट दी है, उसी पर स्थित रहो। स्मृति में रहना ही सीट वा आसन
है। तो सदा स्मृति रहे कि मैं हर कदम में पुण्य करने वाली पुण्य आत्मा हूँ।
महान संकल्प, महान बोल, महान कर्म करने वाली महान आत्मा हूँ। कभी भी अपने को
साधारण नहीं समझो। किसके बन गये और क्या बन गये? इसी स्मृति के आसन पर सदा
स्थित रहो।* इस आसन पर विराजमान होंगे तो कभी भी माया नहीं आ सकती। हिम्मत नहीं
रख सकती। आत्मा का आसन स्वमान का आसन है, उस पर बैठने वाले सहज ही मायाजीत हो
जाते हैं।
✺ *"ड्रिल :- सदा स्वमान की सीट पर सेट रहना"*
➳ _ ➳ मै आत्मा तालाब के किनारे बैठकर तालाब के पानी को अपने हाथों से उछाल रही
हूं... तभी अचानक मैं देखती हूं कि *एक मछली मेरे पास आ जाती है और मछली के
मुंह से एक पानी का बुलबुला निकलता है... मैं उस बुलबुले में जाकर बैठ जाती हूं
और हवा में ऊपर उड़ने लगती हूं... और उड़ते-उड़ते मैं बगीचे की घास पर जाकर बैठ
जाती हूं... सूरज की किरणें मुझ पर गिर रही है और मुझसे रंग-बिरंगी किरणे निकल
रही है...* तभी मुझे आभास होता है कि सूरज की किरणे जो मुझ पर गिर रही है वह
मेरे बाबा की शक्तिशाली किरणे हैं... जैसे जैसे वह किरणे मुझ पर गिरती हैं
वैसे-वैसे मुझे अनुभव होता है कि मेरे बाबा मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहे
हैं... मैं बुलबुला ऊपर उड़ रही हूं और मेरे बाबा की किरणों पर जाकर बैठ जाती
हूं...
➳ _ ➳ और जब मैं बाबा की किरणों पर बैठकर झूलने लगती हूं तो मुझे आभास होता है
कि बाबा मुझे अपनी बाहों में झूला रहे हैं और झुलाते झुलाते शिक्षा दे रहे
हैं... मेरे बाबा मुझे कहते हैं कि *तुम्हें हमेशा अपने स्वमान की सीट पर
विराजमान रहना चाहिए... जब तुम स्वमान में स्थित होकर कोई भी कार्य करोगे तो
तुम हमेशा अपनी स्थिति स्थिर रख सकते हो... तुम्हारी स्थिति में कोई भी हलचल
पैदा नहीं होगी...* अगर तुम्हारे मन में हलचल पैदा हुई तो तुम इधर-उधर हवा में
उड़ने लगोगे और उड़ते उड़ते कई बार ऐसी जगह पर बैठ जाओगे जिसको छूते ही तुम
नष्ट हो जाओगे...
➳ _ ➳ बाबा ने मुझे कहा की अगर तुम ऐसे ही खुशियों की मौज में उड़ना चाहते हो
और हमेशा अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहते हो तो तुम्हें स्वमान में ही रहना
होगा अपने आप को ऐसा स्वमान दो... जैसे, मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूं और उस
सर्वशक्तिमान सीट पर आप विराजमान हो... *बाबा कहते हैं अपने आप को उस सीट पर
हमेशा बैठा कर रखोगे तो तुम बड़ी ही सरलता से किसी भी कठिनाई को पार कर लोगे और
वह कठिनाई या परिस्थिति तुम्हारी कुर्सी के नीचे से होकर गुजर जाएगी तुम्हें
एहसास भी नहीं होगा कि अभी तुम्हारे सामने कितनी बड़ी परिस्थिति आई थी*... जब
जब तुम इस स्वमान की कुर्सी पर विराजमान रहोगे तब तब तुम अपने आप को श्रेष्ठ और
ऊंची अवस्था में अनुभव करोगे...
➳ _ ➳ बाबा की यह बातें सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगता है और मैं बाबा को कहती हूं
कि... बाबा मैं इस स्वमान की सीट को कभी नहीं छोडूंगी साथ ही कहती हूं... बाबा
अगर मैं कभी इस *स्वमान की सीट को छोड़कर अपनी स्थिति हलचल में लाई तो यह
सांसारिक मोह-माया मुझे अपने अंदर समा लेगी...* यह मोह माया रूपी मछली मुझे अपने
अंदर समा लेगी... इसलिए मैं हमेशा अपने आप को परिस्थिति के अनुसार स्वमान की
सीट पर विराजमान रखूंगी... अपनी इस सीट को कभी नहीं छोडूंगी...
➳ _ ➳ बाबा से यह बातें करके मैं वापिस अपनी दुनिया में आ पहुंचती हूं... नीचे
आते समय मुझे कई ऐसी चीजें छूने की कोशिश करती हैं जिससे मेरा अस्तित्व समाप्त
हो सकता है... परंतु मैं अपने स्वमान की सीट पर विराजमान थी... इसलिए वह
परिस्थिति रूपी वस्तुएं मुझे छू भी नहीं पाई और मेरे कुर्सी के नीचे से निकल गई...
और मैं जब नीचे आकर पहुंचती हूं तो उसी मछली को देखती हूं और उससे कहती हूं.. *अब
तुम मुझे कभी भी अपने अंदर नहीं समा सकती हो... क्योंकि अब मैं तुमसे कहीं
शक्तिशाली स्थिति में विराजमान हूं... मछली दूर से ही मुझे निहारती है... लाख
प्रयास के कारण भी वह मुझे छू नहीं पाती है... और मैं इस स्थिति का दूर बैठे ही
आनंद लेती हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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