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 17 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *जीते जी देह अभिमान से गलने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सच्चा ब्राह्मण बन कीड़ो पर ज्ञान की भू भू की ?*

 

➢➢ *होपलेस में भी होप पैदा की ?*

 

➢➢ *परीक्षा के समय प्रतिज्ञा याद रही ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे सूर्य की किरणें फैलती हैं, वैसे ही मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज पर शक्तियों व विशेषताओं रुपी किरणें चारों ओर फैलती अनुभव करे,* इसके लिए 'मैं मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक आत्मा हूँ', इस स्वमान के स्मृति की सीट पर स्थित होकर कार्य करो तो विघ्न सामने तक भी नहीं आयेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सदा खुश रहने वाली खुशनसीब आत्मा हूँ"*

 

  सभी खुश रहते हो? *कैसी भी परिस्थिति आ जाए, कितना भी बड़ा विघ्न आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। विघ्न आता है तो चला जायेगा। लेकिन अपनी चीज क्यों चली जाए। वह आया, वह जाए। अपनी चीज तो नहीं जाए ना।* आने वाला जायेगा या रहने वाला भी चला जायेगा? तो खुशी अपनी चीज है।

 

  *बाप का वर्सा है ना खुशी। तो विघ्न आता और चला जाता है। जब भी विघ्न आये ना तो यह सोचो यह आया है चले जाने के लिए। कोई घर का मेहमान आता है तो ऐसे नहीं, मेहमान होकर आया और सारी चीजें लेकर जाये। ध्यान रखेंगे ना।*

 

  तो विध्न आया और चला जायेगा। लेकिन आपकी खुशी तो नहीं ले जाये। दा खुशी साथ रहे। *बाप है अर्थात् खुशी है। अगर पाप है तो खुशी नहीं, बाप है तो खुशी है। तो सदा खुश रहो। हर एक समझे कि मैं खुश रहने वाला हूँ। खुश रहने वाले को देख दूसरा भी खुश हो जाता है। रोने वाले को देखेंगे तो दूसरे को भी रोना आ जाता है।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकंड में आतार ने हैं। जब चाहे धारण करें, जब चाहे न्यारे हो जाएं।  लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बंधन नहीं होगा। *अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच हो नहीं सकेंगे।*

 

✧  जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार *मन्सा, वाचा, कर्मणा सम्बन्ध में अगर अटैचमेंट है लगाव  है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे।* ऐसा अभ्यास सहज कर सकते हो। जैसा संकल्प किया, वैसा स्वरूप हो जाए।

 

✧  संकल्प के साथ-साथ

स्वरूप बन जाते हो या संकल्प के बाद टाइम लगता है स्वरूप मैंने में? संकल्प किया और अशरीरी हो जाओ। *संकल्प किया मास्टर प्रेम के सागर की स्थिति में स्थित हो जाओ और वह स्वरुप हो जाए।* ऐसी प्रैक्टिस हैं? अब इसी प्रैक्टिस को बढ़ाओ। इसी प्रैक्टिस के आधार पर स्कॉलरशिप ले लेंगे।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ जैसे बाप प्रवेश होते हैं और चले जाते हैं, *तो जैसे परमात्मा प्रवेश होने योग्य हैं वैसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् महान आत्मायें भी प्रवेश होने योग्य हैं। जब चाहो कर्मयोगी बनो, जब चाहो परमधाम निवासी योगी बनो, जब चाहो सूक्ष्मवतनवासी योगी बनो। स्वतन्त्र हो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद में रहना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा की सुनहरी यादों में खोई हुई, अपना सुनहरा शरीर धारण कर उड़ चलती हूँ... मधुबन बाबा के कमरे में... अपनी मुस्कान बिखेरते बापदादा अपने तेजस्वी सुनहरी किरणों की बाँहों को फैलाते हुए मुझे अपने पास बुलाते हैं...* मैं आत्मा तुरंत उनकी बाँहों में समा जाती हूँ और उनके मखमली सपर्श से अतीन्द्रिय सुख में खो जाती हूँ... फिर बाबा मुझे बगीचे में लेकर जाते हैं... और सैर करते हुए मीठी शिक्षाएं देते हैं...

 

  *अनंत शक्तियों से भरपूर कर सत्यता के प्रकाश से आलोकित करते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने खुबसूरत फूल थे... पर देह के भान ने उजले स्वरूप को निस्तेज कर दिया... और विकर्मो से दामन भर दिया... *अब ईश्वर पिता के सच्चे प्रेम रंग में रंग जाओ और सतयुगी सुखो के अधिकारी बन सदा के मुस्कराओ...”*

 

_ ➳  *अपने सत्य स्वरुप में स्थित होकर यादों के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके सच्चे प्रेम को पाकर दुनियावी रिश्तो से उपराम हो गई हूँ... *विकारो से मुक्त होकर खुबसूरत जीवन की मालिक बन... मीठे बाबा आपकी गोद में फूलो सा मुस्करा रही हूँ...”*

 

  *विकारों रूपी काँटों को निकाल अपने बगीचे का महकता फूल बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के मटमैले संग में आकर अपने सत्य मणि स्वरूप को ही भूल गए हो... *अब ईश्वर पिता की मीठी यादो में उसी ओज से भरकर सुखो की बहारो में झूम जाओ... सब संग तोड़ सच्चे साथी के संग सदा के जुड़ जाओ...”*

 

_ ➳  *प्यारे बाबा की यादों में समाकर खुशियों के आसमान में झूमती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा देह के भान में विकर्मो का खाते को किस कदर बढ़ाती जा रही थी... *प्यारे बाबा आपने मेरा जीवन खुशियो से भर दिया है... मेरे आत्मिक स्वरूप का परिचय कराकर मुझे गुणो से सजा दिया है...”*

 

  *अपनी किरणों की ज्वाला से जन्मजन्मान्तर के विकर्मों को भस्म कर दिव्य गुणों से सजाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस देह के भान ने जीवन विकारो की कालिमा से भरकर दारुण दुखो से भर दिया...  उसे छोड़ अब आत्मिक नशे में डूब जाओ... *मीठे बाबा के सच्चे संग में आनन्द के गीत गाओ... सब जगह से बुद्धि निकाल ईश्वर पिता के प्यार में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *मीठे बाबा की मीठी यादों की रश्मियों से ऊँचे आसमान में अपने भाग्य का झंडा लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप को पाकर सदा खुशनसीब हो गयी हूँ... *मीठे बाबा आपका प्यार पाकर मै आत्मा विकारो के जंजाल से निकल अपने खुबसूरत मणि रूप में खिल गयी हूँ...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चा ब्राह्मण बन कीड़ो पर ज्ञान की भू भू कर उन्हें आप समान ब्राह्मण बनाना है*

 

_ ➳  परमात्म प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सजनी अपने शिव साजन के प्यार की मीठी यादों में खोई एक सुंदर से उपवन में बैठी हूँ। *अपने साजन के प्यार के मधुर एहसास को याद कर मन ही मन मैं गद - गद हो रही है। मन मे खुशी की शहनाइयाँ बज रही है। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति भी मुझे अपने प्यारे पिया के साथ मिलन करता देख सुन्दर साज बजा रही है*। ठंडी - ठंडी हवायें भी जैसे मेरे साथ परमात्म मिलन के मधुर क्षणों का आनन्द ले रही हैं। हवाओं में भी जैसे परमात्म प्यार का रंग घुल गया है। चारों तरफ वायुमण्डल में एक रूहानी मस्ती छाई हुई है। *एक मीठी - मीठी खुमारी मुझ आत्मा पर छा रही है जो मुझे विदेही बनाती जा रही है। दैहिक आकर्षण से मुक्त होकर अपने अनादि बिंदु स्वरूप में मैं स्थित होने लगी हूँ*।

 

_ ➳  निराकारी स्थिति में स्थित होकर, अपने निराकार स्वरूप को निहारते हुए, अपने सत्य स्वरूप का मैं आनन्द ले रही हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न मेरा वास्तविक स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी। *देह भान रूपी मायाजाल में उलझ कर अपने जिन अनादि गुणों और शक्तियों को भूल गई थी। आज अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर उनका अनुभव करके मैं जैसे तृप्त हो गई हूँ। देख रही हूँ अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को जो प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ आत्मा से निकल रहे हैं*। एक - एक रंग की किरण मेरे एक - एक गुण और शक्ति का मुझे गहन अनुभव करवा रही है। सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों की किरणों को चारों ओर फैलाते हुए मैं आत्मा अब धीरे - धीरे देह और देह की दुनिया को छोड़ अपने पिता के पास जा रही हूँ।

 

_ ➳  अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, अपनी निराकारी दुनिया की ओर उन्मुक्त होकर उड़ती जा रही हूँ। *सारे विश्व का चक्कर लगाकर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में मैं पहुँच गई हूँ। गहन शन्ति की इस दुनिया में कुछ क्षण गहन शांति का अनुभव करके अब मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ*।

 

_ ➳  अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित करके मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं। ज्ञान की रिमझिम फुहारों का आनन्द लेने के साथ - साथ ज्ञान रत्नों को मैं अपने अंदर भरती जा रही हूँ। *मेरे शिव पिया के ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की शीतलता मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति और ताजगी पैदा कर रही है। इस ज्ञान बरसात से मेरे चारो और इंद्रधनुषी रंगों का एक सुन्दर औरा निर्मित हो रहा है जिसमे से सुख, शांति पवित्रता के वायब्रेशन्स निकल कर चारो और फैल रहें है जो मन को गहन सुख और शांति की अनुभूति करवा रहे है*। इस शक्तिशाली औरे के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से साकार लोक की ओर वापिस आ रही हूँ।

 

_ ➳  अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हूँ। मास्टर ज्ञान सागर बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर ज्ञान की बरसात कर रही हूँ। स्वयं को ज्ञान सागर अपने शिव पिता के साथ कम्बाइंड अनुभव करते, सदा ज्ञान की रिमझिम में रहते, ज्ञान के रंग में स्वयं को रंगकर अब मैं भ्रमरी मिसल सबको ज्ञान रंग लगाने की सेवा कर रही हूँ। सबको परमात्म प्यार का रंग लगाकर उनके बेरंग जीवन को खुशी और आनन्द से भरकर उन्हें नवजीवन देने की ईश्वरीय सेवा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं होपलेस में भी होप पैदा करने वाली  आत्मा हूँ।*

   *मैं सच्चे परोपकारी आत्मा हूँ।*

   *मैं संतुष्ठमणि आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा परीक्षा के समय सदा प्रतिज्ञा याद करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा प्रत्यक्षता में सदा सहयोगी हूँ  ।*

   *मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ यह भी एक गुह्य कर्मों का हिसाब बुद्धि में रखो। कर्मों का हिसाब कितना गुह्य है - इसको जानो। *किसी भी आत्मा द्वारा अल्पकाल का सहारा लेते हो वा प्राप्ति का आधार बनाते हो, उसी आत्मा के तरफ बुद्धि का झुकाव होने के कारण कर्मातीत बनने के बजाए कर्मों का बन्धन बंध जाता है। एक ने दिया दूसरे ने लिया - तो आत्मा का आत्मा से लेन-देन हुआ।* तो लेन-देन का हिसाब बना वा समाप्त हुआ? उस समय अनुभव ऐसे करेंगे जैसे कि हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन वह आगे बढ़ना, बढ़ना नहीं, लेकिन कर्म बन्धन के हिसाब का खाता जमा किया। रिजल्ट क्या होगी! कर्म-बन्धनी आत्मा, बाप से सम्बन्ध का अनुभव कर नहीं सकेगी। कर्मबन्धन के बोझ वाली आत्मा याद की यात्रा में सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव कर नहीं सकेगी, वह याद के सबजेक्ट में सदा कमजोर होगी। नॉलेज सुनने और सुनाने में भल होशियार, सेन्सीबुल होगी लेकिन इसेन्सफुल नहीं होगी। सर्विसएबुल होगी लेकिन विघ्न विनाशक नहीं होगी। सेवा की वृद्धि कर लेंगे लेकिन विधिपूर्वक वृद्धि नहीं होगी। इसलिए ऐसी आत्मायें कर्म बन्धन के बोझ कारण स्पीकर बन सकती हैं लेकिन स्पीड में नहीं चल सकती अर्थात् उड़ती कला की स्पीड का अनुभव नहीं कर सकती। तो यह भी दोनों प्रकार के देह के सम्बन्ध हैं जो ‘महात्यागी' नहीं बनने देंगे।

➳ _ ➳ तो सिर्फ पहले *इस देह के सम्बन्ध को चेक करो - किसी भी आत्मा से चाहे घृणा के सम्बन्ध में, चाहे प्राप्ति वा सहारे के सम्बन्ध से लगाव तो नहीं है? अर्थात् बुद्धि का झुकाव तो नहीं है? बार-बार बुद्धि का जाना वा झुकाव सिद्ध करता है कि बोझ है।* बोझ वाली चीज झुकती है। तो यह भी कर्मों का बोझ बनता है इसलिए बुद्धि का झुकाव न चाहते भी वहाँ ही होता है।

✺ *"ड्रिल :- आत्मा का आत्मा से लेनदेन कर कर्मों से नए बंधन नहीं बनाना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा नुमाशाम योग में बैठी हूं... जैसे-जैसे मैं योग की गहराई में जाती हूँ... मेरे शरीर की एक-एक नस खुलने लगती है... जो भी आज तक किसी कारणवश बन्द थी वो सभी नसें खुलने लगती हैं... पवित्र सफेद प्रकाश से मेरा मस्तिष्क एकदम सफेद लाइट रूपी बॉल के समान प्रतीत हो रहा है... और अब मैं धीरे-धीरे अपने आपको सफेद प्रकाश रूपी शरीर में अनुभव करती हूं... मेरे शरीर से अद्भुत किरणें निकल रही है... और यह पूरा स्थान सफेद किरणों से भरा हुआ प्रतीत होता है... *मेरा सूक्ष्म शरीर निकलकर प्रकृति के पास पहुंच जाता है... जहां मेरे बाबा मेरा हाथ पकड़े मुझे यह नजारा दिखा रहे हैं... और मैं इस प्रकृति को और यहां रहने वाली सभी आत्माओं को साकाश दे रही हूं...*

➳ _ ➳ प्रकृति को साकाश देते समय मैं ऐसे स्थान पर पहुंच जाती हूं... जहां पर एक मां अपने पुत्र को कहीं जाने से रोकती है, विलाप कर रही है जितना मैं उसके पास जाती हूँ उतना ही मुझे उनकी स्थिति का अनुभव होता है... *मुझे ज्ञात होता है वह मां अपने पुत्र मोह के कारण अपने पुत्र को अपने से दूर नहीं कर रही है... और पुत्र इस संसार की गतिविधियों को जानने के लिए वहां से जाना चाहता है... माँ का बुद्धि का झुकाव अपने पुत्र में इस कदर हो जाता है... कि वह अपने आपको इस पुत्रमोह में फंसा लेती है... इस कारण मां ना सो पाती है ना ही कुछ खा पाती है... और ना ही किसी प्रकार की सेवा कर पाती है... जैसे ही वह किसी भी प्रकार की सेवा करती है... उसका बुद्धियोग अपने पुत्र में चला जाता है...*

➳ _ ➳ और अपना *बुद्धि योग पुत्र में जाने के कारण कर्म बंधन में आ जाती है... जिस कर्म को अभी तक अपना कर्तव्य और सेवा समझती थी... अब वह कर्म उसका बंधन बन जाता है... अपने इस बंधन के कारण वह अपने आप को किसी भी प्रकार निस्वार्थ आगे नहीं बढ़ा पाती है... और ना ही निमित्त भाव से सेवा करने का अनुभव कर पाती है...* इस संसार में वह स्वयं भी अपना यह बंधन नहीं देख पाती है... और ना ही समझ पाती है... कुछ देर रुककर मैं आत्मा उस आत्मा को शांति का साकाश देती हूं... जैसे ही वह आत्मा शांति का अनुभव करती है मैं आत्मा उसे समझाने लगती हूं...

➳ _ ➳ और कहती हूँ... *हे आत्मा अपने आप से इस मोह का और इस कर्म बंधन का पर्दा हटा कर देखो... तुम धीरे-धीरे इस कर्म बंधन में फंसती जा रही हो... तुम्हारी इस स्थिति के कारण तुम परमपिता परमात्मा से योग नहीं लगा पा रही हो... और ना ही आत्मिक स्थिति का अनुभव कर पा रही हो... अगर ऐसा ही रहा तो तुम्हारा कर्मों का खाता बढ़ता जाएगा और पुरुषार्थ की लगन कम होती जाएगी... जब-जब तुम याद की यात्रा से उड़ती कला का अनुभव करने लगोगी तब तब तुम्हें यह कर्म बंधन अपनी और खींचेगा और तुम्हें उड़ने नहीं देगा...* मेरे यह वचन सुनकर उस आत्मा को सत्य का आभास होता है और याद की यात्रा में और पुरुषार्थ में आगे बढ़ने का वचन देती है... इसी तरह मैं सारी आत्माओं को साकाश देते हुए अपने इस शरीर में वापस विराजमान हो जाती हूं... और मैं इस स्मृति में अपने पुरुषार्थ को आगे बढ़ाती हूं... कि मुझे कर्म बंधन को चेक करते हुए आगे बढ़ना है...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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