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 08 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *"हमारा कुछ भी नहीं... यह देह भी हमारी नहीं" - यह स्मृति रही ?*

 

➢➢ *ऐसी कोई भूल तो नहीं की जिससे रजिस्टर पर दाग लगा हो ?*

 

➢➢ *डबल लाइट बन सर्व समस्याओं को हाई जम्प से पार किया ?*

 

➢➢ *सहयोग की शक्ति से अस्म्बह्व को भी सम्भव बनाया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *पावरफुल याद के लिए सच्चे दिल का प्यार चाहिए।* सच्ची दिल वाले सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दु स्वरूप बाप को याद कर सकते हैं। *सच्ची दिल वाले सच्चे साहेब को राजी करने के कारण, बाप की विशेष दुआयें प्राप्त करते हैं, जिससे सहज ही एक संकल्प में स्थित हो ज्वाला रूप की याद का अनुभव कर सकते हो, पावरफुल वायब्रेशन फैला सकते हो।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं रॉयल बाप का बच्चा हूँ"*

 

  *सदा रॉयल फैमिली वाले हो ना। रॉयल फैमली वाले सदा गलीचों में चलते, मिट्टी में नहीं। तो झूले में झूलो। नीचे आना अर्थात् मिट्टी में आना।*

 

  *यह देह भी मिट्टी है ना। तो देह भान में नीचे आना अर्थात् मिट्टी में पांव रखना। तो जब गलती से भी मिट्टी में पांव रखते हो उस समय अपने से पूछो कि हम रॉयल बाप के बच्चे और मिट्टी में पांव कैसे रखा?*

 

  *माँ बाप के जो लाडले बच्चे होते हैं तो कोशिश करते हैं सदा गोदी में खेलता रहे। नीचे नहीं रखेंगे। तो आप भी लाडले हो। जब बाप ने इतना सिकीलधा लाडला बना दिया तो लाडले होकर चलो ना, साधारण नहीं बनो।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧    *जब साइन्स के साधन धरती पर बैठे हुए स्पेस में गए हुए यन्त्र को कन्ट्रोल कर सकते हैं, जैसे चाहे जहाँ चाहे वहाँ मोड सकते हैं, तो साइलेन्स के शक्ति स्वरूप, इस साकार सृष्टी में श्रेष्ठ संकल्प के आधार से जो सेवा चाहे, जिस आत्मा की सेवा करना चाहे वो नहीं कर सकते? *लेकिन अपनी - अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात  उपराम रहो।*

 

✧  *जो सभी खजाने सुनाए वह स्वयं के प्रति नहीं, विश्व कल्याण के प्रति यूज करो। समझा अब क्या करना है?*

 

✧  *आवाज़ द्वारा सर्विस, स्थूल साधनों द्वारा सर्विस और आवाज से परे 'सूक्ष्म साधन संकल्प' की श्रेष्ठता, संकल्प शक्ति द्वारा सर्विस का बैलेन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ तब विनाश का नगाडा बजेगा।* समझा?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बीजरूप स्टेज सबसे पावर फुल स्टेज है, उसके बाद सब नम्बरवार स्टेज हैं, *यहाँ स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है।* सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हैं। *जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते तो आटोमेटिकली विश्व को लाइट का पानी मिलता रहता।* जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाते हैं ऐसे लाइट हाउस बन विश्व-कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, अब आँख किसी में भी नहीं डूबनी"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मधुबन पहाड़ी पर बैठ स्वदर्शन चक्र फिरा रही हूँ... चक्र फिराते-फिराते अपने सभी स्वरूपों में खो जाती हूँ... कलयुगी अज्ञानता के अंधकार में सोई हुई मुझ आत्मा को परमात्मा ने ज्ञान के चक्षु देकर त्रिनेत्री बना दिया... सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देकर बुद्धिवान बना दिया...* पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बना दिया... मीठे बाबा को स्मृतियों में लाते ही तुरंत बाबा सामने हाजिर हो जाते हैं और मेरे बाजू में बैठ सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहते हैं... 

 

  *ज्ञान का तीसरा नेत्र देकर मेरी आत्म ज्योति को जगाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... शरीर नही खुबसूरत मणि हो सदा अपने अविनाशी स्वरूप के नशे में रहो... *ज्ञान के तीसरे नेत्र से सदा दमकते स्वरूप आत्मा पर ही नजर डालो...* शरीर के भ्रम से निकल कर सदा अपने सत्य चमकते स्वरूप को ही निहारो... अपने सच्चे वजूद और सत्य पिता को ही हर पल यादो में बसाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा दिव्य चक्षुओं से तीनों कालों का ज्ञान पाकर दिव्यता से सजते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा ज्ञान के तीसरे नेत्र से पूरे विश्व को मणियो से दमकता हुआ निहार रही हूँ... मीठे बाबा के सारे खुबसूरत सितारे धरा पर जगमगा रहे है... *प्यारे बाबा आपने ज्ञान के तीसरे नेत्र से मुझे त्रिकालदर्शी बना कर... मेरी दुनिया कितनी खुबसूरत प्यारी बना दी है...”*

 

  *मीठा बाबा सभी खजानों से भरपूर कर मुझे मालामाल करते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ज्ञान के तीसरे नेत्र से सदा मीठे बाबा को निहारते रहो और बाबा की सारी शक्तियाँ अथाह खजानो से स्वयं को भरपूर करते रहो...* सारी ईश्वरीय खानो पर अपना नाम लिख डालो... यह ईश्वर पिता के मीठे साथ का,भाग्य बनाने का खुबसूरत समय... स्वयं को मात्र शरीर समझ हाथ से यूँ जाने न दो...

 

_ ➳  *मीठे बाबा के यादों में समाकर सर्व शक्तियों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में खोयी हूँ... मेरा रोम रोम आँखे बन गया है.. *और हर पल हर साँस से आपको ही निहार रही हूँ... मै आत्मा अनन्त शक्तियो से भरती जा रही हूँ...* और बस एक के ही रंग में रंगी सी हूँ... मीठा बाबा ही मेरी यादो में समाया है...

 

  *मेरे मनमीत बाबा अपनी बाँहों के झूले में झुलाते हुए सत्यता की राह दिखाते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने खुबसूरत स्वरूप और सच्चे पिता की यादो में खो जाओ... देह की दुनिया से निकल अपने अविनाशी आत्मा और शिव पिता की मीठी यादो में स्थिर हो जाओ...* शरीर होने के भान से परे होकर चमकते ओजस्वी स्वरूप के नशे से भर जाओ... और सच्चे पिता को यादकर उसकी प्यारी सी बाँहों में स्नेह से झूल जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा ज्ञान अंजन लगाकर खुशियों के बगिया में मुस्कुराते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा शरीर के मायाजाल से मुक्त होकर आपकी प्यार भरी बातो में यादो में खो गई हूँ... आपके सच्चे प्यार को पाकर जीवन कितना मीठा खुशियो भरा हो गया है... *चारो ओर सुख और खुशियो के फूल खिल उठे है... जीवन प्रेम और शांति का पर्याय बन महक उठा है...”*

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बन अपना सब कुछ अर्पण कर देना है*"

 

_ ➳  बेहद की वैराग्य वृति को धारण कर, विकारों का सन्यास करके ही आत्मा रूपी सीता अपने प्रभु राम से मिल सकती है, *मन ही मन यह विचार करती मैं आत्मा सीता उस समय को याद करती हूँ जब तक मेरे प्रभु राम मुझे नही मिले थे*। पाँच विकारों रूपी रावण की जेल में कैद मैं आत्मा सीता कैसे अपने प्रभु राम के वियोग में तड़प रही थी। 

 

_ ➳  मेरा जीवन पिंजड़े में बन्द उस पंछी के समान बन गया था जो इस बात का कभी अनुभव ही नही कर पाता कि आजाद हो कर उड़ने में कितना आनन्द समाया है? अपने प्रभु राम का पता पाने के लिए मैं कितनी व्याकुल थी। कोई भी मुझे उनका पता बताने वाला नही था। *किंतु मेरे प्रभु राम, मेरे दिलाराम शिव पिता परमात्मा ने स्वयं आ कर ना केवल मुझे रावण की कैद से छुड़ाया बल्कि विकारों रूपी रावण ने जो मेरे पंख काट दिए थे वो ज्ञान और योग के पंख लगा कर मुझे उड़ना भी सिखाया*। इस उड़ने में जो परमआनन्द समाया है उसे मैं जब चाहे तब अनुभव कर सकती हूँ। 

 

_ ➳  ज्ञान और योग के पंख लगा कर मैं आत्मा सीता जब चाहे अपने प्रभु राम से मिलन मनाने जा सकती हूँ। *यही चिंतन करते - करते मैं आत्मा रूपी सीता विदेही बन देह रूपी पिंजड़े को छोड़ इससे बाहर निकल आती हूँ और चल पड़ती हूँ ऊँची उड़ान भरते हुए अपने प्रभु राम के पास*। सेकण्ड में पाँच तत्वों से बनी साकारी दुनिया को पार कर, उससे परे सूक्ष्म वतन को भी पार कर मैं पहुंच जाती हूँ अपनी निराकारी दुनिया परमधाम में।

 

_ ➳  अब मैं परमधाम में अपनी निराकारी स्थिति में स्थित हो, बिंदु बन, अपने बिंदु शिव बाबा के साथ मिलन मना रही हूँ। मेरे शिव पिता से आ रही अनन्त सर्वशक्तियों की किरणें मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं। इन किरणों के पड़ने से मैं आत्मा एकदम हल्की होती जा रही हूँ। *मेरा स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली व चमकदार बनता जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्रभु राम ने सर्वशक्तियों को समाने की ताकत मुझे दे दी हो*। अपने प्रभु राम की सर्वशक्तियों को स्वयं में समा कर मैं शक्तियों का पुंज बनती जा रही हूँ। परमात्म लाइट मुझ में समा कर मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित करती जा रही हैं । 

 

_ ➳  अपने प्रभु राम के साथ मिलन मना कर परमात्म शक्तियों से मैं भरपूर हो चुकी हूँ। बेहद की वैरागी बन, विकारों का सन्यास करने का बल मेरे शिव पिता ने मेरे अंदर भर दिया है। *इस बल को अपने साथ लिए, शक्तिशाली बन अब मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया की ओर प्रस्थान करती हूँ*। साकारी दुनिया मे अपने साकारी तन में वापिस भृकुटि के भव्य भाल पर आ कर मैं विराजमान हो जाती हूँ। 

 

_ ➳  मेरे शिव पिता परमात्मा का बल अब मुझे बेहद का वैरागी बनने और विकारों का सन्यास करने की शक्ति दे रहा है। देह, देह की दुनिया और देह के सम्बन्धों से मैं नष्टोमोहा बनती जा रही हूँ। *मेरे शिव पिता से मिल रहा पवित्रता का बल मुझे विकारों के ऊपर विजयी बनने में मदद कर रहा है और विकारों का सन्यास करवा कर मुझे विकर्माजीत बना रहा है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं डबल लाइट आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व समस्याओं को हाई जम्प दे पार करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं तीव्र पुरूषार्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सहयोग की शक्ति को सदा यूज़ करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव असंभव बात को भी संभव बना देती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा सेफ्टी के किले में रहती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *यह हैं बहुत छोटी सी कर्मेन्द्रियाँ, आँख, कान कितने छोटे हैं लेकिन यह जाल बहुत बड़ी फैला देते हैं। जैसे छोटी सी मकड़ी देखी है ना! खुद कितनी छोटी होती। जाल कितनी बड़ी होती। यह भी हर कर्मेन्द्रिय का जाल इतना बड़ा है, ऐसे फँसा देगा जो मालूम ही नही पड़ेगा कि मैं फँसा हुआ हूँ। यह ऐसा जादू का जाल है जो ईश्वरीय होश से, ईश्वरीय मर्यादाओं से बेहोश कर देता है।* जाल से निकली हुई आत्मायें कितना भी उन दास आत्माओं को महसूस करायें लेकिन बेहोश को महसूसता क्या होगी? स्थूल रूप में भी बेहोश को कितना भी हिलाओ, कितना भी समझाओ, बड़े-बड़े माइक कान में लगाओ लेकिन वह सुनेगा? तो यह जाल भी ऐसा बेहोश कर देता है और फिर क्या मजा होता है? बेहोशी में कई बोलते भी बहुत हैं। लेकिन वह बोल बेअर्थ होता है। ऐसे रूहानी बेहोशी की स्थिति में अपना स्पष्टीकरण भी बहुत देते हैं। लेकिन वह होता बेअर्थ है। दो मास की, 6 मास की पुरानी बात, यहाँ की बात, वहाँ की बात बोलते रहेंगे। ऐसी है यह रूहानी बेहोशी। तो है छोटी सी आँख लेकिन बेहोशी की जाल बहुत बड़ी है।

➳ _ ➳ इससे निकलने में भी टाइम बहुत लग जाता है क्योंकि जाल की एक-एक तार को काटने का प्रयत्न करते हैं। जाल कभी देखी है? आप लोगों के प्रदर्शनी के चित्रों में भी है। जाल खत्म करने का साधन है - सारी जाल को अपने में खा लो। खत्म कर लो। मकड़ी भी अपनी जाल को पूरा स्वयं ही खा लेती है। *ऐसे विस्तार में न जाकर विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो। बिन्दी बन जाओ। बिन्दी लगा दो। बिन्दी में समा जाओ। तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी। और समय बच जायेगा। मेहनत से छूट जायेंगे।* बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे। तो सोचों जाल में बेहोश होने की स्थिति अच्छी वा बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन होना अच्छा! तो बाप की मर्ज़ी क्या हुई? लवलीन हो जाओ।

➳ _ ➳ जबकि झाड़ को अभी परिवर्तन होना ही है। तो झाड़ के अन्त में क्या रह जाता है? आदि भी बीज, अन्त भी बीज ही रह जाता है। *अभी इस पुराने वृक्ष के परिवर्तन के समय पर वृक्ष के ऊपर मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो जाओ। बीज है ही - ‘बिन्दु'। सारा ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबका सिन्धु व बिन्दु में समा जाता है। इसको ही कहा जाता है - बाप समान स्थिति।* बाप सिन्धु होते भी बिन्दु है। ऐसे मास्टर बीज रूप स्थिति कितनी प्रिय है! इसी स्थिति में सदा स्थित रहो। समझा क्या करना है?

✺ *"ड्रिल :- बिंदी बन बिंदी लगा विस्तार को सार में समाना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने लौकिक घर में बाबा की याद में मगन होकर घर की सफाई कर रही हूँ... सफाई करते समय मेरी नजर अचानक एक कोने में लगे मकड़ी के जाले पर पड़ती है... मैने देखा वह जाल दूर तक फैला हुआ है और मकड़ी उसमे फंसी हुई है... और मकड़ी चाह कर भी उस जाले से निकल नहीं पा रही है... *मैंने उस जाले के पास जाकर उसे छुआ और बहुत आवाज करने लगी... परंतु उस मकड़ी को बिल्कुल भी यह आभास भी नहीं हुआ की उसको कोई छू रहा है अर्थात उसके जाले को कोई छूने की कोशिश कर रहा है...* कुछ समय बाद मैं दूर खड़े होकर उस जाले को लगातार निहारने लगती हूं ... और मैं देखती हूं वह मकड़ी अपने उस बने हुए जाले को स्वयं ही खाने लगती है और वह धीरे-धीरे मेरे देखते देखते वह मकड़ी सारे जाले को खा जाती है... और अपने अंदर समा लेती है और वह मकड़ी एक बिंदु के रूप में स्थित हो जाती है...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मैं आत्मा उस मकड़ी को देख कर यह अनुभव करती हूँ कि कुछ समय पहले यह मकड़ी अपने ही द्वारा बने हुए जाले में कैद थी और वह चाहकर भी उस जाले से निकल नहीं पा रही थी... ना ही इस मकड़ी को किसी भी प्रकार का अनुभव हो पा रहा था... यह ऐसा प्रतीत हो रही था जैसे यह बेहोश अवस्था में लेटी हो जिससे इस दुनिया की कुछ खबर भी ना हो उसे इस अवस्था में देखकर मैं मन ही मन यह विचार करती हूं कि *जैसे यह मकड़ी अपने ही बुने जाले को सेकंड में अपने अंदर समा लेती है वैसे ही मुझे आत्मा में भी यह गुण होना चाहिए... कि मैं विस्तार को एक सैकेंड में सार बनाकर व्यर्थ से सदा के लिए मुक्त हो जाऊं...* जैसे मकड़ी कितनी छोटी होती है और वह जाला कितना बड़ा होता है फिर भी मकड़ी सेकंड में उस बड़े से जाले को अपने अंदर समा लेती है और बिंदु रूप में समा जाती है और मैं सोचती हूं क्या मैं भी इस मकड़ी की तरह अपनी कर्मेंद्रियों को अपने वश में कर सकती हूं सोचने लगती हूं...

➳ _ ➳ कुछ समय बाद मेरा अंतर्मन बाबा के पास सूक्ष्म वतन में पहुंच जाता है और मैं बाबा से कहती हूं बाबा मुझे इस दृश्य के बारे में समझाइए... बाबा बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ रखते हैं और कहते हैं... *बच्चे जब तक तुम अपने घर में इंद्रियों के बस में होकर कार्य करोगे तब तक तुम ईश्वरीय मर्यादाओं में रहकर कार्य नहीं कर पाओगे... यह कर्मेंद्रियां बिल्कुल ही बेहोश कर देती है अगर कोई ईश्वरीय ज्ञान से होश में आई हुई आत्माएं कर्मेंद्रियों द्वारा बेहोश आत्माओं को जगाने का प्रयास करते हैं तो वह आत्माएं कितना भी जगाने पर जाग ही नहीं पाती है...* कुछ कर्मेंद्रियों के इतने वश में हो जाते हैं कि वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होते और ना ही अपने असली स्वरूप को पहचान पाते है... सिर्फ और सिर्फ कर्मेंद्रियों के वश में हो कर रह जाते हैं...

➳ _ ➳ बाबा मुझसे कहते हैं बच्चे अगर तुम बिंदी बनकर हर विस्तार पर बिंदी लगाओगे तो इस मायाजाल में फंसने से बच जाओगे और जब बिंदु रूप स्थिति का अनुभव करोगे तो सहज ही बाप की याद में लवलीन हो पाओगे ... *अगर तुम एक बार कर्मेंद्रिय रूपी जाल में फंस जाते हो तो फिर तुम्हें इस जाल को काटने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और जब तुम इस जाल को काटने में इतनी मेहनत लगाओगे तो तुम्हारा पुरुषार्थ धीरे हो जाएगा तुम पुरुषार्थ में आगे नहीं बढ़ पाओगे ...* इसलिए तुम्हें हर कर्म, इंद्रियों को अपने वश में रखकर, करना होगा जिससे तुम्हारा समय भी बचेगा और पुरुषार्थ भी आगे बढ़ेगा और एक बाप की याद में बड़ी ही सरलता से रह पाएंगे...

➳ _ ➳ बाबा के यह वचन सुनकर मैं आत्मा बाबा को कोटि-कोटि धन्यवाद करती हूं और कहती हूं... *बाबा अब से मैं जो भी कार्य करूंगी कर्मेंद्रियों को अपने वश में रखकर ही करूंगी... कर्म इंद्रियों के वश में होकर कोई कार्य नहीं करूंगी... हमेशा विस्तार से सार में आऊंगी... किसी भी बात के विस्तार में नहीं जाऊंगी सार रूपी बिंदी लगाकर अपने आपको बिंदु रूप स्थिति का अनुभव करूंगी और बिंदी बनकर परमात्मा रुपी बिंदी में लवलीन हो जाऊंगी...* बिंदु रूप स्थिति में स्थित होकर ज्ञान गुण शक्तियों का अनुभव करूंगी और कराऊंगी... बाप समान बिंदु बनकर पुराने कल्पवृक्ष के ऊपर स्थित होकर मास्टर बीज रूप स्थिति का अनुभव करूंगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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