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 03 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सबको सुख का रास्ता बताया ?*

 

➢➢ *बापदादा समान निर्माण और निरहंकारी बनकर रहे ?*

 

➢➢ *कल्याणकारी बाप और समय का हर सेकंड लाभ उठाया ?*

 

➢➢ *बाप के संग का रंग लगा बुराइयों को स्वतः समाप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *योग माना शान्ति की शक्ति। यह शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को और दूसरों को परिवर्तन करती है, इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी।* व्यक्तियों को तो मुख का कोर्स करा लेते हो लेकिन प्रकृति को बदलने के लिए शान्ति की शक्ति अर्थात् योगबल ही चाहिए।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं तपस्वी आत्मा हूँ"*

 

  तपस्वी आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? *तपस्या अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे है या दूसरा कोई है अभी भी कोई है? कोई व्यक्ति या कोई वैभव? एक के सिवाए और कोई नहीं या थोड़ा लगाव है? निमित्त बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन लगाव जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ बुद्धि जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर।* तो चेक करो कि सारे दिन में मन और बुद्धि कहाँ-कहाँ भागती है? सिवाए बाप और सेवा के और कहाँ तो मन-बुद्धि नहीं जाती? अगर जाती है तो लगाव है। अगर व्यवहार भी करते हो, जो भी करते हो, वो भी ट्रस्टी बनकर। मेरा नहीं, तेरा। मेरा काम है, मुझे ही देखना पड़ता है.. मेरी जिम्मेवारी है.. ऐसे कहते हो कभी? क्या करें, मेरी जिम्मेवारी है ना, निभाना पड़ता है ना, करना पड़ता है ना, कहते हो कभी? या तेरा तेरे अर्पण, मेरा कहां से आया? तो यह बोल भी नहीं बोल सकते हो? मुझे ही देखना पड़ता है, मुझे ही करना पड़ता है, मेरा ही है, निभाना ही पड़ेगा...। मेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं निमित्त हूँ तो हल्के। बोझ उठाने की आदत तो नहीं है? 63 जन्म बोझ उठाया ना। कइयों की आदत होती है बोझ उठाने की। बोझ उठाने बिना रह नहीं सकते। आदत से मजबूर हो जाते हैं।

 

✧  मेरा मानना माना बोझ उठाना सभी तपस्या में सफलता को प्राप्त कर रहे हो ना। तपस्या में सन्तुष्ट हो? अपने चार्ट से सन्तुष्ट हो? या अभी होना है? यह भी एक लिफ्ट की गिफ्ट है। गिफ्ट जो होती है उसमें खर्चा नहीं करना पड़ता, खरीदने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। *एक तो है अपना पुरुषार्थ और दूसरा है विशेष बाप द्वारा गिफ्ट मिलना। तो तपस्या वर्ष एक गिफ्ट है, सहज अनुभूति की गिफ्ट। जितना जो करना चाहे कर सकता है। मेहनत कम, निमित्त मात्र और प्राप्ति ज्यादा कर सकते हैं।* अभी भी समय है, वर्ष पूरा नहीं हुआ है। अभी भी जो लेने चाहो ले सकते हो। इसलिए सफलता का सूर्य इस्ट में जगाओ। सदा सभी खुश हैं या कभी-कभी कुछ बातें होती तो नाखुश भी होते हो? खुशी बढ़ती जाती है, कम तो नहीं होती है?

 

  मायाजीत हो या माया रंग दिखा देती है? वह कितना भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ। माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले मनोरंजन समझकर देखो। देखते-देखते हार नहीं जाओ। साक्षी होकर के, न्यारे होकर के देखते चलो। सभी तपस्या में आगे बढ़ने वाले, गिफ्ट लेने वाले हो? सेवा अच्छी हो रही है? स्वयं के पुरुषार्थ में उड़ रहे हैं और सेवा में भी उड़ रहे हैं। सभी फर्स्ट हैं। *सदा फर्स्ट रहना, सेकेण्ड में नहीं आना। फर्स्ट रहेंगे तो सूर्यवंशी बनेंगे, सेकेण्ड बनें तो चन्द्रवंशी। फर्स्ट नम्बर मायाजीत होंगे। कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् फास्ट पुरुषार्थ। जिसका फास्ट पुरुषार्थ है वो पीछे नहीं हो सकता। सदा साक्षी और सदा बाप के साथी - यही याद रखना।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अशरीरी भव - यह वरदान प्राप्त कर लिया है? *जिस समय संकल्प करो कि 'मैं अशरीरी हूँ', उसी सेकण्ड स्वरूप बन जाओ।* ऐसा अभ्यास सहज हो गया है? *सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की निशानी है।*

 

✧  कभी सहज, कभी मुश्किल, कभी सेकण्ड में, कभी मिनिट में या और भी ज्यादा समय में अशरीरी स्वरूप का अनुभव होना अर्थात सम्पूर्ण स्टेज से अभी दूर है। *सदा सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की परख है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ रायल्टी किन बातों की व रीयल्टी किस बात की? पहले अपने स्वरूप की रीयल्टी। *अगर रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति है तो स्वरूप की रीयल्टी से इस स्थूल सूरत में भी अलौकिक रायल्टी नज़र आयेगी। जो भी देखेंगे उनके मुख से यही निकलेगा कि यह इस दुनिया के नहीं हैं लेकिन अलौकिक दुनिया के फरिश्ते हैं अथवा यह स्वर्ग का कोई देवता उतरा है। ऐसे रायल्टी से अनुभव होगा।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- श्रीमत पर सबको सुख देना"*

 

_ ➳  मैं आत्मा सरोवर के किनारे बैठ पानी में अपने प्रतिबिम्ब को निहारती हुई अपने अंतर्मन के सरोवर में डूब जाती हूँ... और अपने निज स्वरुप को निहारती हूँ... चमकते हीरे समान तेज दिव्य स्वरुप है मेरा... जिसको भूल मैं आत्मा अपने को देह समझ देह के सर्व बन्धनों में फंस गई थी... अपने निज गुणों को भूलकर अवगुणों को धारण कर ली थी... *अब परमप्रिय परमपिता परमात्मा इस संगम युग में अपने संग के रंग में रंग कर मुझे फिर से देवता बना रहे हैं... मैं आत्मा उड़ते हुए प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... प्यारे बाबा से श्रीमत पर सर्वगुण संपन्न देवता बनने और बनाने का हुनर सीखने...*

 

   *श्रीमत पर सबकी रूहानी खातिरी करने का हुनर सिखाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *जिस परमात्मा को इतना पुकारा वह कितना सहज जीवन में मौजूद है यह कितनी बड़ी ख़ुशी है जागीर है... यह ईश्वर प्राप्ति की ख़ुशी की दौलत अपने चेहरे और चलन से हर पल छ्लकाओ...* जो ईश्वरीय खजाना सहजता से यूँ पा लिए हो उस खजाने की झनकार जमाने को भी सुनाओ...

 

_ ➳  *खुशी की खुराक खाती और सर्व को खिलाती मैं आत्मा कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा श्रीमत का हाथ थामे आपसे पायी अनन्त खुशियो को हर दिल आत्मा पर उंडेल रही हूँ... *अपने पिता से सेवा का हुनर सीख सच्ची रूहानी सेवा कर रही हूँ... आपसे पायी अथाह ख़ुशी के प्रकम्पन्न पूरे विश्व में फैला रही हूँ...”*

 

   *मीठे बाबा देवताई गुणों से 16 श्रृंगार कर मुझे सजाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... विश्व पिता की गोद में बैठे हो उसके दिल तख्त पर मुस्करा रहे... जिस भाग्य की कभी कल्पना भी न कर सके... *वह भाग्य जीवन का सुंदर सच बनकर सम्मुख है... सच्ची ख़ुशी का पर्याय ईश्वरीय बाँहों में ही है... अपनी रूहानी चलन से यह ईश्वरीय अमीरी सबको दिखाओ...”*

 

_ ➳  *मन मधुबन को सच्चा हीरा बनाने के लिए बाबा का शुक्रिया करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-*  मेरे प्राणप्रिय बाबा... ईश्वरीय यादो में खुशियो की अपार दौलत मुझ आत्मा ने पायी है.. कितना सुख कितनी शांति कितनी ख़ुशी की अनुभवी हूँ... *मै आत्मा जनमो बाद सच्ची मुस्कराहट को जी पायी हूँ... और श्रीमत को साथ लिए सबके होठो पर यह मुस्कराहट सजा रही हूँ...”*

 

   *मेरे बागबान बाबा सुन्दर रूहानी बगीचे का निर्माण कर सेवा की जिम्मेवारी मुझे सौंपते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... श्रीमत के साथ पूरे विश्व की रूहानी सेवा कर सबको महा भाग्यशाली बनाओ... *सबको अपने साथ की सच्ची खुशियो का भागीदार बनाओ और ईश्वर पिता के कन्धों पर चढ़ मुस्कराओ... दुखो से कुम्हलाये मेरे हर फूल को खुशियो का पानी देकर खिला आओ...”*

 

_ ➳  *बाबा की पालना और शिक्षाओं से रूहे गुलाब बन जहाँ में खुशबू फैलाकर सबके जीवन को सजाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत की सुखमय राहो पर चलकर सच्चे सुख और सच्चे प्यार की गहरी अनुभवी होकर... अनुभव की दौलत सबको बाँट रही हूँ...* आपके मीठे प्यार में सबके दुखो को दूर करने वाली जादूगर बन गई हूँ...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी को भी दुख नही देना है*"

 

_ ➳  दुखों से लिबरेट कर, सबको सुख देने वाले दुख हर्ता सुख कर्ता, सदा कल्याणकारी *अपने सदाशिव भगवान बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बन सबको खुशी देने और डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से कभी भी किसी को दुख ना देने का स्वयं से वायदा कर, मैं दया के सागर, सुख के सागर अपने निराकार शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ* और उनके पास ले जाने वाली अति सुखदायी आंतरिक यात्रा पर धीरे - धीरे अग्रसर होती हूँ। मन और बुद्धि जैसे - जैसे स्थिर होने लगते हैं और जैसे - जैसे एकाग्रता की शक्ति बढ़ने लगती है मुझे मेरा वास्तविक स्वरूप बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देने लगता है।

 

_ ➳  अपनी साकार देह में अपनी दोनों आइब्रोज़ के बीच अपने आपको एक चमकते हुए सितारे के रूप में मैं देख रही हूँ। *उस सितारे में से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मुझे बहुत सुखद एहसास करवा रहा है और उस प्रकाश की सतरँगी किरणों में अपने अंदर निहित सातों गुणों के वायब्रेशन्स को अपने मस्तक से निकल कर, चारो ओर फैलता हुआ मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ*। अपने निज स्वरूप से निकल रहे इन सातों गुणों के वायब्रेशन्स को एक रंग बिरंगे फव्वारे से निकल रही फ़ुहारों के रूप में अपने ही शरीर पर पड़ता हुआ मैं अनुभव कर रही हूँ। 

 

_ ➳  मैं देख रही हूँ जैसे - जैसे ये फुहारें मेरे शरीर पर पड़ रही है मेरे शरीर के सभी अंग एक - एक करके शिथिल हो रहें हैं। अपने आपको मैं एक दम रिलेक्स महसूस कर रही हूँ। *ऐसा लग रहा है जैसे शरीर का भान बिल्कुल समाप्त हो गया है और मैं बिल्कुल अशरीरी हो गई हूँ*। जैसे मक्खन से बाल निकलता है ऐसे इस अशरीरी अवस्था में मैं आत्मा बिल्कुल सहज रीति देह से बिल्कुल न्यारी होकर अब भृकुटि के अकालतख्त को छोड़ उससे बाहर आ गई हूँ। 

 

_ ➳  दैहिक दुनिया के हर बन्धन से मुक्त इस अवस्था मे मैं स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ। यह हल्कापन मुझे धरनी के आकर्षण से मुक्त करके, ऊपर की ओर उड़ा रहा है। *धीरे - धीरे मैं चमकता सितारा अपनी खूबसूरत आंतरिक यात्रा के इस पहले को पड़ाव को पार कर अब ऊपर आकाश की ओर जा रहा हूँ*। निरन्तर अपनी मंजिल की ओर बढ़ती हुई मैं चैतन्य शक्ति आत्मा आकाश को पार कर, उससे ऊपर सूक्ष्म वतन को पार करती हुई अब अपनी मंजिल, अपने शांति धाम घर में अपने सुख सागर बाबा के पास पहुँच चुकी हूँ। 

 

_ ➳  बाबा के पास पहुँच कर उनसे आ रही सुख की किरणों के शीतल झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्वयं को उनके सुख की किरणों से भरपूर कर स्वयं को उनके समान मास्टर सुख का सागर बना रही हूँ। *बाबा से आ रही सुख की पीले रंग की शक्तियों का झरना झर - झर करके मेरे ऊपर बहता ही जा रहा है और उन शक्तियों को मैं अपने अन्दर गहराई तक समाती जा रही हूँ*। अपने सुख सागर बाबा से सुख की अनन्त शक्ति अपने अंदर भरकर मैं वापिस साकारी दुनिया में अपने कर्मक्षेत्र पर लौटती हूँ। 

 

_ ➳  अपने सुख सागर बाप से अपने अंदर भरी हुई सुख की शक्ति मुझे बाप समान मास्टर दुख हर्ता सुख कर्ता बना रही है। अपने सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर रहम की दृष्टि रखते हुए, सुख के वायब्रेशन उन्हें देकर मैं सबको सुख का अनुभव करवा रही हूँ। *कैसे भी स्वभाव संस्कार वाली आत्मा मेरे सम्पर्क में क्यो ना आये, किन्तु डबल अहिंसक बन मन, वचन, कर्म से किसी को भी दुख ना पहुँचाकर, सबके प्रति शुभभावना शुभकामना रखते हुए, मैं मास्टर सुख का सागर बन सबको सुख देकर, सबकी दुआयों की पात्र आत्मा बन रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं कल्याणकारी बाप और समय का हर सेकण्ड लाभ उठाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं निश्चयबुद्धिआत्मा हूँ।*

   *मैं निश्चिन्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा बाप के संग का रंग लगाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा बुराईयां स्वत: समाप्त होते अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं सहज योगी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ *इस पुरानी देह को बापदादा द्वारा मिली हुई ‘अमानत' समझो। सेवा अर्थ कार्य में लगाना है। यह मेरी देह नहीं लेकिन सेवा अर्थ अमानत है। जैसे मेहमान बन देह में रह रहे हैं।* थोड़े समय के लिए बापदादा ने कार्य के लिए आपको यह तन दिया है। तो आप क्या बन गये? मेहमान! मेरे-पन का त्याग और मेहमान समझ महान कार्य में लगाओ। मेहमान को क्या याद रहता है? असली घर याद रहता है या उसी में ही फँस जाते हो! तो आप सबका यह शरीर रूपी घर भी, यह फारिश्ता स्वरूप है, फिर देवता स्वरूप है। उसको याद करो। इस पुराने शरीर में ऐसे ही निवास करो जैसे बापदादा पुराने शरीर का आधार लेते हैं लेकिन शरीर में फँस नहीं जाते हैं। कर्म के लिए आधार लिया और फिर अपने फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो जाओ। अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ। न्यारेपन की ऊपर की ऊँची स्थिति से नीचे साकार कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करने लिए आओ, इसको कहा जाता है - ‘मेहमान अर्थात् महान'। ऐसे रहते हो? त्याग का पहला कदम पूरा किया है?

✺ *"ड्रिल :- स्वयं को इस देह में मेहमान समझ महान अवस्था का अनुभव करना"*

➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा की याद में चली जा रही हूँ... बाबा तेज धूप में मुझपर अपनी ठंडी छत्रछाया डाल रहे हैं... कुछ दूर चलते-चलते मुझे कुछ लोग दिखाई दिए... उन्होंने मुझे रोका और किसी घर का पता पूछा... तभी मैने जाना तो वो मेरे ही लौकिक घर का पता था... मैं उनको आदर भाव से घर ले गयी... और उसी समय से मैं उन्हें ध्यान से देखने लगी... मैने देखा कि *वो एक स्थान पर बैठे हैं... और इस घर की किसी भी चीज को छू भी नहीं रहे है... और बार बार उस घर की बात कर रहे हैं, जहाँ से वो आये है... हमने उनका बहुत आदर भाव और मान मनुहार किया... वो बहुत खुश भी थे... परंतु बार बार अपने घर को याद करते है...*

➳ _ ➳ उन्हें देखकर मैं सोचने लगती हूँ... कि इन्हे इतना मान सम्मान और प्यार मिल रहा है तब भी ये अपने घर को नहीं भूल रहे... यहाँ की किसी भी चीज में ममत्व नहीं है... हर कर्म करते भी अपनी बुद्धि से अपने घर को याद कर रहे है... इन्हे मालूम है ये सिर्फ कुछ दिनो के लिए यहाँ आये है... फिर इन्हे वापिस अपने घर जाना है... *इसलिए जब ये मेहमान यहाँ से जाएंगे तब इन्हे यहाँ की चीजें याद नहीं आएँगी... और ना ही इनमें इनका मोह होगा... क्योंकि इन्हे पता है कि ये कोई भी चीज इनकी नहीं है...* मेहमान यहाँ पूरे परिवार के साथ रहते भी मन बुद्धि से अपने घर की याद में थे... इसलिए ये आसानी से बिना किसी दुःख के यहाँ से प्रस्थान कर रहे है...

➳ _ ➳ इस दृश्य को देखकर मैं मन बुद्धि से बाबा के पास चली जाती हूँ... और बाबा से कहती हूँ... बाबा... मेरा मार्गदर्शन कीजिये... और बाबा मुझसे कहते है... मेरे मीठे बच्चे, *तुम्हारा यह शरीर भी तुम्हारा नहीं है... यह सिर्फ कर्म करने के लिये तुम्हें मिला है...* तुम हमेशा इस शरीर को समझो जैसे तुम इसमे मेहमान हो... तुम्हे इस कमरे रूपी मकान में हमेशा नहीं रहना... इसमे रहकर अपना हर कर्म निभाना है... मेहमान के बुद्धि में हमेशा अपना घर रहता है... ऐसे ही तुम्हारी बुद्धि में भी हमेशा अपना असली स्वरूप रहना चाहिए... इस विनाशी शरीर से किसी भी प्रकार का लगाव नहीं रखना है... अगर इससे लगाव रखोगे तो अंत में इससे आसानी से नहीं निकल पाओगे... निकलते समय बहुत दुःख होगा...

➳ _ ➳ बाबा के वचन सुनकर मैं आत्मा बाबा से वादा करती हूँ... और कहती हूँ... बाबा... *मैं भी इस शरीर को सिर्फ़ कर्म करने का साधन मात्र समझूँगी... मैं हमेशा यह याद रखूँगी कि मैं एक ज्योतिर्बिन्दु हूँ... मैं इस शरीर और इन कर्मेन्द्रियों की मालिक हूँ...* मैं यह याद रखूँगी कि ये शरीर मुझे इस कर्मक्षेत्र पर कर्म करने के लिए मिला है... कर्म करते समय मैं अपने आपको चलता फिरता फ़रिश्ता स्वरूप में ही अनुभव करूँगी... जब कार्य समाप्त होगा मैं ज्योतिर्बिन्दु बनकर अपनी शक्तियां बढ़ाऊंगी... मैं आत्मा इस शरीर में मेहमान बनकर प्रवेश करूँगी... और मेहमान बनकर ही प्रस्थान करूँगी... और जब भी मैं आत्मिक स्थिति में रहकर कर्म करूँगी तो अपनी महान स्थिति का अवश्य ही अनुभव करूँगी...

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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