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❍ 09 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इस सड़ी हुई देह का अभिमान छोड़ा ?*
➢➢ *गुप्त रूप से प्रवेश करने वाली माया को परखा और समभाला ?*
➢➢ *ज्ञान कलश धारण कर आत्माओं की प्यास बुझाई ?*
➢➢ *एडजस्ट होने की कला को लक्ष्य बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *योग में सदा लाइट हाउस और माइट हाउस की स्थिति का अनुभव करो। ज्ञान है लाइट और योग है माइट।* ज्ञान और योग-दोनों शक्तियां लाइट और माइट सम्पन्न हो *इसको कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिमान।* ऐसी शक्तिशाली आत्मायें किसी भी परिस्थिति को सेकण्ड में पार कर लेती हैं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें हैं अनुभव करते हो? क्योंकि सर्वशक्तियां बाप का खजाना है और खजाना बच्चों का अधिकार है, बर्थ राइट है। तो बर्थ राइट को कार्य में लाना - यह तो बच्चों का कर्तव्य है। और खजाना होता ही किसलिए है? आपके पास स्थूल खजाना भी है, तो किसलिए है? खर्च करने के लिए, कि बैंक में रखने के लिए? बैंक में भी इसीलिए रखते हैं कि ऐसे समय पर कार्य में लगा सके। काम में लगाने का ही लक्ष्य होता है ना। *तो सर्वशक्तियां भी जन्म सिद्ध अधिकार हैं ना। जिस चीज पर अधिकार होता है तो उसको स्नेह के सम्बन्ध से, अधिकार से चलाते हैं। एक अधिकार होता है आर्डर करना और दूसरा होता है स्नेह का। अधिकार वाले को तो जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। सर्वशक्तियां अधिकार में होनी चाहिएं।* ऐसे नहीं - चार है दो नहीं है, सात है एक नहीं है।
〰✧ *अगर एक भी शक्ति कम है तो समय पर धोखा मिल जायेगा। सर्व शक्तियां अधिकार में होंगी तभी विजयी बन नम्बर वन में आ सकेगे। तो चेक करो सर्व शक्तियां कहाँ तक अधिकार में चलती हैं। हर शक्ति समय पर काम में आती है या आधा सेकेण्ड के बाद कार्य में आती है। सेकेण्ड के बाद भी हुआ तो सेकेण्ड में फेल तो कहेंगे ना।* अगर पेपर में फाइनल मार्क्स में दो मार्क भी कम है तो फेल कहेंगे ना। तो फेल वाला फुल तो नहीं हुआ ना? तो हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति से यूज करो, हर गुण को यूज करो। जिस परिस्थिति में धैर्यता चाहिए तो धैर्यता के गुण को यूज करो। ऐसा नहीं थोड़ा सा धैर्य कम हो गया। नहीं।
〰✧ अगर कोई दुश्मन वार करता है और एक सेकेण्ड भी कोई पीछे हो गया तो विजय किसकी हुई? इसीलिए ये दोनों चेकिंग करो। ऐसे नहीं सर्वशक्तियां तो हैं लेकिन समय पर यूज नहीं कर सकते। कोई बढिया चीज दे और उसको कार्य में लगाने नहीं आये तो उसके लिए वह बढिया चीज भी क्या होगी? काम की तो नहीं रही ना। तो सर्वशक्तियां यूज करने का बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। यदि बहुतकाल से कोई बच्चा आपकी आज्ञा पर नहीं चलता तो समय पर क्या करेगा? धोखा ही देगा ना। तो यह सर्वशक्तियां भी आपकी रचना है। रचना को बहुत काल से कार्य में लगाने का अभ्यास करो। हर परिस्थिति से अनुभवी तो हो गये ना। अनुभवी कभी दुबारा धोखा नहीं खाते। तो हर समय स्मृति से तीव्र गति से आगे बढ़ते चलो। *सभी तपस्या की रेस में अच्छी तरह से चल रहे हो ना। सभी प्राइज लेंगे ना। सदा खुशी खुशी से सहज उड़ते चलो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाओ नहीं। कमजोरी मुश्किल बनाती है। सदा मुश्किल को सहज करते उड़ते रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आज अमृतवेले बापदादा बच्चों की ड्रिल देख रहे थे, क्या देखा? *ड्रिल करने के लिए समय की सीटी पर पहुँचने वाले नम्बरवार पहुँच रहे थे।* पहुँचने वाले काफी थे लेकिन तीन प्रकार के बच्चे देखे।
〰✧ *एक थे - समय बिताने वाले, दूसरे थे - संयम निभाने वाले, तीसरे थे - स्नेह निभाने वाले।* हरेक का पोज अपना - अपना था। बुद्धि को ऊपर ले जाने वाले बाप से, बाप समान बन, मिलन मनाने वाले कम थे।
〰✧ रूहानी ड्रिल करने वाले ड्रिल करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पा रहे थे। कारण क्या होगा? जैसे आजकल स्थूल ड्रिल करने के लिए भी हल्का - पन चाहिए, मोटा - पन नहीं चाहिए, मोटा - पन भी बोझ होता है। *वैसे रूहानी ड्रिल में भी भिन्न - भिन्न प्रकार के बोझ वाले अर्थात मोटी बुद्धि - ऐसे बहुत प्रकार के थे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन है एक्सरसाइज़। *वैसे आत्मिक एक्सरसाइज़ योग अभ्यास द्वारा अभी-अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाना, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना- अभी-अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी-अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् वैकुण्ठवासी बन देवता रूप का अनुभव करना। ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज़ करो तो सदा हल्के हो जावेंगे।* भारीपन खत्म हो जावेगा। पुरुषार्थ की गति तीव्र हो जावेगी। सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इसी ख़ुशी में रहना कि हमें अशरीरी बाप पढ़ाते है"*
➳ _ ➳ मीठे बाबा को पाकर मुझ आत्मा का जीवन कितना प्यारा और खुशनुमा हो गया है... *सदा भगवान को पुकारता मेरा मन... आज उसकी मीठी यादो में, बातो में, ज्ञान रत्नों की बहारो में खिल रहा है.*.. भाग्य की यह जादूगरी देख देख मै आत्मा रोमांचित हूँ... प्यारे बाबा को दिल से पुकारती भर हूँ... कि भगवान पलक झपकते सम्मुख हाजिर हो जाता है... कितना शानदार भाग्य है कि भगवान मेरी बाँहों में है... इसी मीठे चिंतन में खोई हुई मै आत्मा... अपने प्यारे बाबा से मिलने... मीठे बाबा के कमरे की ओर रुख करती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को मेरे ज्ञान धन की अमीरी का नशा दिलाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ही शिक्षक बनकर, जीवन को सवांरने और देवता पद दिलाने आ गया है.*.. अपने इस मीठे भाग्य का, ईश्वरीय ज्ञान का, सदा सिमरन कर आनन्द में रहो... कितना ऊँचा भाग्य सज रहा है... भगवान बेठ निखार रहा है... सजा और संवार रहा है...
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा के ज्ञान अमृत को पीती हुई कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... *आपकी प्यार भरी गोद में बैठकर मै आत्मा मा नॉलेजफुल बन रही हूँ..*. स्वयं को भी भूली हुई कभी मै आत्मा... आज बेहद की जानकारी से भरपूर हो गयी हूँ... यह सारा जादु आपने किया है मीठे बाबा... मुझे क्या से क्या बना दिया है..."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने प्यार के नशे में भिगोते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में खोये रहो... मीठे बाबा की अमूल्य शिक्षाओ का स्वरूप बनकर विश्व को प्रकाशित करो... *ईश्वर पिता पढ़ाकर भाग्य को खुशियो का पर्याय बनाने आ गया है... इन मीठी खुशियो से सदा छलकते रहो..*."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान मणियो को दिल में आत्मसात करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... आपने जीवन में आकर जीवन को सोने सा दमकता हुआ बना दिया है... *सच्चे ज्ञान के घुंघुरू पहनकर मै आत्मा... पूरे विश्व में खुशियो की थाप दे रही हूँ..*. कि भगवान को पाकर मेने सारा जहान पा लिया है..."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने ज्ञान खजानो से सम्पन्न बनाते हुए कहा :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... *सदा ईश्वरीय ज्ञान की मौजो में डूबे रहो... जितना इन रत्नों को स्वयं में समाओगे, उतना ही सुखो में मुस्कराओगे.*.. ईश्वर पिता से पढ़कर त्रिकालदर्शी बन रहे हो यह कितने श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है...
➳ _ ➳ *मै आत्मा आनंद के सागर में खोकर प्यारे बाबा से कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... *आपने सत्य ज्ञान से मुझ आत्मा को सदा का नूरानी बनाया है..*. अंधेरो से निकाल कर ज्ञान की उजली राहों पर चलाया है... मै आत्मा आपको पाने के अपने मीठे भाग्य पर बलिहार हूँ... आपने कितना सुंदर मेरा भाग्य सजाया है..." मीठे बाबा से अपने दिल की सारी बाते कह मै आत्मा साकार जगत में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विकर्मो से बचने के लिए बुद्धि की प्रीत एक बाप से लगानी है*"
➳ _ ➳ सागर के किनारे पर खड़ी मैं सागर से आ रही शीतलता का आनन्द ले रही हूं और अपने ही विचारों में खोई सोच रही हूं कि *ये सागर कितना महान है जो नदियों, नालो से आने वाले हर प्रकार के किचड़ें को स्वयं में समा लेता है और जो भी इसकी गहराई में जाने की हिम्मत रखता है वो इसकी गहराई में छुपे रत्नों को पाकर मालामाल हो जाता है*। ये विचार करते करते मैं देखती हूँ जैसा पूरा सागर दो भागों में बंट गया है। एक भाग में सांप, बिच्छु, टिंडन, कीड़े मकोड़े आदि चल रहे हैं जबकि दूसरा भाग रत्नों से भरा हुआ बहुत ही मनमोहक और सुंदर दिखाई दे रहा है।
➳ _ ➳ सागर को दो भागों में बंटा देख मैं दुविधा में पड़ जाती हूँ और इस दुविधा से बाहर निकलने के लिए, इस रहस्य को जानने की इच्छा मन मे लिए मैं अपना लाइट का फ़रिशता स्वरूप धारण कर पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में और अव्यक्त बापदादा के सामने जा कर खड़ी हो जाती हूँ। मुझे देखते ही बाबा स्वागत की मुद्रा में खड़े अपनी बाहें फैला लेते हैं। *स्नेह सिंधु बापदादा की बाहों में समा कर मैं फ़रिशता बाबा के असीम स्नेह से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ*। बाबा का कोमल स्पर्श, बाबा का स्नेह मुझ में असीम ऊर्जा का संचार कर रहा है। स्वयं को मैं बहुत ही एनरजेटिक और शक्तिशाली अनुभव कर रहा हूँ।
➳ _ ➳ परमात्म बल और शक्तियों से मुझे भरपूर करके अब बाबा मेरे मन की दुविधा को दूर करने के लिए वही सीन मेरे सामने इमर्ज कर देते हैं और इशारे से मुझे समझाते है,देखो बच्चे:- " सागर के यह दो भाग विषय सागर और क्षीर सागर है। *इस विषय सागर में 5 विकारों रूपी सांप, बिछु, टिंडन आदि भरे पड़े है जो मनुष्य को डसते रहते हैं*। सारी दुनिया आज इसी विषय सागर में गोते खा रही है। दूसरा यह क्षीर सागर है जिसमे अविनाशी रत्नों के खजाने भरे पड़े है। जो भी मनुष्य इस क्षीर सागर में स्नान करता है वो देवता बन जाता है। किंतु *इस क्षीर सागर में जाने के लिए देह और देह के सम्बन्धो की झूठी प्रीत को छोड़ एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी पड़े*।
➳ _ ➳ बापदादा के इशारे को स्पष्ट रीति समझ कर अपने मन की दुविधा को समाप्त करके मैं फ़रिशता मन ही मन संकल्प करता हूँ कि अब मुझे 5 विकारों रूपी विषय सागर में कभी नही फंसना। *मुझे तो क्षीर सागर में डुबकी लगा कर, ज्ञान परी बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के खजानों से सदा सम्पन्न रहना है*। मेरे इन संकल्पो को बाबा झट जान जाते हैं और मेरे मस्तक पर स्मृति का अविनाशी तिलक देते हुए मुझे सदा सफ़लतामूर्त भव का वरदान दे कर इस संकल्प को सिद्ध करने का बल मेरे अंदर भर देते हैं। *बाबा के वरदानी हस्तों से निकल रही शक्तियों की धाराएं मुझ फ़रिश्ते में समा कर मुझे सिद्धि स्वरूप बना रही हैं*।
➳ _ ➳ सिद्धि स्वरूप बन, इन संकल्पो को सिद्ध करने के लिए, एक बाप से साथ प्रीत की रीत निभाने के लिए फ़रिशता स्वरूप से अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। *एक बाप से ही स्नेह जुटा कर, विषय सागर में ले जाने वाले देह के सम्बन्धियो से अब मैं अपनी प्रीत तोड़ चुकी हूं*। देह और देह के सम्बन्धियों के बीच रहते भी मैं जैसे उनके प्रति नष्टोमोहा बन चुकी हूँ।
➳ _ ➳ अब मैं अपने हर सम्बन्ध को अपने प्यारे, मीठे बाबा के साथ अनुभव कर रही हूं। उनके सिवाय मेरी दृष्टि और कहीं जा नही सकती। मेरी वृति में अब केवल वही हैं। *मैं उन्ही के संग खाती हूँ, उन्ही के सँग बैठती हूँ और उन्ही के संग हर कर्म करती हूँ*। अपने प्यारे मीठे बाबा के साथ अपने दिल की तार को जोड़ कर मैं उनके प्रति अपनी सच्ची प्रीत की रीत निभा रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ज्ञान कलश धारण करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं प्यासों की प्यास बुझाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं अमृत कलशधारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा एडजस्ट होने की कला को लक्ष्य बना लेती हूँ ।*
✺ *मै आत्मा सहज संपूर्ण बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं सरल स्वभाव वाली सरल आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ विशेष आत्मा बनने के लिए सर्व की विशेषताओं को देखो- बापदादा सदा बच्चों
की विशेषताओं के गुण गाते हैं। *जैसे बाप सभी बच्चों की विशेषताओं को देखते
वैसे आप विशेष आत्मायें भी सर्व की विशेषताओं को देखते स्वयं को विशेष आत्मा
बनाते चलो। विशेष आत्माओं का कार्य है विशेषता देखना और विशेष बनना। कभी भी
किसी आत्मा के सम्पर्क में आते हो तो उसकी विशेषता पर ही नज़र जानी चाहिए।* जैसे
मधुमक्खी की नज़र फूलों पर रहती ऐसे आपकी नज़र सर्व की विशेषताओं पर हो। हर
ब्राह्मण आत्मा को देख सदा यही गुण गाते रहो - ‘‘वाह श्रेष्ठ आत्मा वाह''! अगर
दूसरे की कमज़ोरी देखेंगे तो स्वयं भी कमजोर बन जायेंगे। तो आपकी नज़र किसी की
कमज़ोरी रूपी कंकर पर नहीं जानी चाहिए। आप होली हंस सदा गुण रूपी मोती चुगते
रहो।
✺ *"ड्रिल :- सर्व आत्माओं की विशेषता को देखना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सागर के किनारे सुहाने मौसम में ठंडी हवाओं के बीच बैठी हुई
हूं... ठंडी हवाओं के झोंके मेरे बालों को उड़ा रहे हैं... और समुंदर की लहरें
मेरे पास आकर मेरे पैरों को छूती हुई जा रही है... बैठे-बैठे मैं आत्मा सागर को
गहराई से देख रही हूँ... और जैसे ही सागर की लहरें शांत होती है तो मैं देखती
हूं सागर के किनारे कुछ हंस मुझे दिखाई देते हैं... *उन्हें देखकर मैंने यह
अनुभव किया कि वह हंस उस सागर से सिर्फ और सिर्फ मोती ही चुगते हैं और दूसरी
तरफ मैंने देखा कि कुछ पक्षी है जो उसमें से सिर्फ कीड़े मकोड़े चुन रहे हैं...
यह दृश्य बड़ा ही विचित्र था...* तभी मेरा अंतर्मन उस हंस के पास जाकर पूछता है
तुम और यह पक्षी एक ही जगह पर रहते हुए भी अलग-अलग वस्तुएं क्यों चुन रहे हो ?
हंस मुझे देख कर मुस्कुराने लगता है और कुछ सोचने लगता है...
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद हंस मुस्कुराते हुए मुझे कहता है... इसी स्थान पर अच्छी
और बुरी दोनों चीजें हैं परंतु मैं सिर्फ अच्छी चीजें ही चुनता हूं मेरी आदत
सिर्फ अच्छाई को देखना है और अन्य जीव जंतु सिर्फ बुराई को चुनते हैं सिर्फ
बुरी चीजों को चुनते हैं, अर्थात सिर्फ बुराई को चुनते हैं... इतना कहकर हंस
फिर से मोती चुगने लग जाता है और मेरा अंतर्मन मेरे इस शरीर में आकर विराजमान
हो जाता है फिर मैं सोचने लगती हूं... *हम मनुष्य की फितरत भी शायद इन जीव
जंतुओं की तरह हो गई है जो सिर्फ एक दूसरे के अंदर बुराई ही देखते हैं... हम
किसी की हम किसी की बुराई देखते हैं तो उसकी सभी अच्छाइयां उसके अंदर दब कर रह
जाती है...*
➳ _ ➳ और सोचते सोचते जब मैं हंस के बारे में सोचती हूँ तो मैं यह अनुभव करती
हूं कि बाबा ने आकर हम बच्चों को सिखाया है कि हम एक दूसरे की अच्छाइयों को
देखें ... *और जब हम एक दूसरे की अच्छाइयों को देखते हैं तो उसकी सभी बुराइयां
धीरे धीरे समाप्त हो जाती है...* इस दृश्य का अनुभव करने के बाद मैं चलते-चलते
एक बगीचे में आ जाती हूं जहां पर मैं देखती हूं अलग-अलग तरह के फूल खिले हुए
हैं... साथ ही मैं देखती हूं कि मधुमक्खी उन फूलों पर बैठ कर उनका रस पी रही
है... वैसे तो उस बगीचे में और भी पौधे थे... और परंतु मधुमक्खी सिर्फ और सिर्फ
खुशबूदार और रसीले फूलों पर ही बैठकर रस ले रहे हैं... इस दृश्य का आनंद लेने
के लिए मैं कुछ देर बैठ जाती हूं...
➳ _ ➳ पर बैठे-बैठे मैं यह आभास करती हूं कि मधुमक्खी मेरे कान के पास आकर कहती
है... मुझे सिर्फ फूलों के रस पीने की ही आदत है... इसलिए मैं सिर्फ यहां फूलों
पर ही बैठती हूं... इतना कहकर वह मधुमक्खी उड़ जाती है... और दूसरे फूल पर जाकर
बैठ जाती है और मैं अनुभव करती हूं कि यह मधुमक्खी फिर से मुझे वही गुण सिखा
गई... *मधुमक्खी ने भी मुझे सिखाया कि हमेशा दूसरों के गुण ही देखो अगर दूसरों
के गुण देखोगे तो गुणग्राही कहलाओगे और अगर अवगुण देखने की चेष्टा करोगे तो
अवगुणी कहलाओगे... और मैं सोचती हूं कि अगर हम दूसरों की कमजोरियां देखते हैं
तो उनका चिंतन करते करते हमारे में भी धीरे धीरे वही कमजोरियाँ आने लगती हैं और
हमारी सभी शक्तियां कम होने लगती है...*
➳ _ ➳ इतना सब सोचकर मैं अपने सामने मेरे बाबा को इमर्ज करती हूं... और कहती
हूं बाबा आप तो यह दृश्य लगातार देख रहे हो आपने मुझे बहुत समझाने का प्रयास
किया कि बच्चे गुणग्राही बनो... आज जैसे मैंने उस हंस को मोती चुगते हुए देखा
तो मुझे आभास हुआ कि इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनों हैं... परंतु हम सिर्फ
अच्छाई को देखेंगे तो आगे बढ़ते ही जाएंगे... मैं बाबा को बार-बार धन्यवाद कहती
हूं और बाबा से यह वादा करते हैं *बाबा अब मैं हमेशा सभी आत्माओं का और अपना
कल्याण करने के लिए सिर्फ और सिर्फ उनका गुण ही देखूंगी, गुणग्राही बनूंगी...
कभी भी किसी आत्मा का अवगुण नहीं देखूंगी हमेशा उस आत्मा की सिर्फ और सिर्फ
अच्छाई ही और गुण ही देखूंगी... जब मैं बाबा से यह वादा करती हूं तो बाबा बहुत
खुश होते हैं और मेरे सर पर हाथ रखकर कहते हैं विजयी भव...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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