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❍ 11 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सच्ची कमाई कर 21 जन्मो के लिए अपनी तकदीर बनायी ?*
➢➢ *अपने को अर्पण का र ट्रस्टी हो संभाला ?*
➢➢ *ग्लानी करने वाले को भी गुणमाला पहनाई ?*
➢➢ *अपनी मनसा वृत्ति पावरफुल बनायी ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सारथी अर्थात् आत्म-अभिमानी क्योंकि आत्मा ही सारथी है। ब्रह्मा बाप ने इस विधि से नम्बरवन की सिद्धि प्राप्त की, तो फॉलो फादर करो।* जैसे बाप देह को अधीन कर प्रवेश होते अर्थात् सारथी बनते हैं देह के अधीन नहीं होते, इसलिए न्यारे और प्यारे हैं। ऐसे ही आप सभी ब्राह्मण आत्माएं भी बाप समान सारथी की स्थिति में रहो। *सारथी स्वत: ही साक्षी हो कुछ भी करेंगे, देखेंगे, सुनेंगे और सब-कुछ करते भी माया की लेप-छेप से निर्लेप रहेंगे।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं महान आत्मा हूँ"*
〰✧ भारत देश की महानता किसके कारण है? आप लोगों के कारण है। क्योंकि देश महान बनता है महान आत्माओ द्वारा। तो भारत की सर्व महान आत्माओंमें से महान कौन? आप हैं कि दूसरे हैं? *इतनी महान आत्मायें हैं जो अब चक्कर के समाप्ति में भी भारत महान, आप महान आत्माओंके कारण गाया जाता है। और कोई भी देश में इतनी महान आत्माओंका गायन या पूजन नहीं होता।* चाहे कितने भी नामीग्रामी धर्मात्माएं हो गई हों या राजनेतायें होकर गये हों वा आजकल के जमाने के हिसाब से वैज्ञानिक भी नामीग्रामी हैं लेकिन किसी भी देश में उस देश की इतनी महान आत्माओंके मन्दिर हों, यादगार हों, पूजन हो, गायन हो - वह कहाँ भी नहीं होगा।
〰✧ चाहे विज्ञान में विदेश बहुत आगे है लेकिन गायन और पूजन में नहीं है। वैज्ञानिकों का या राजनीतिज्ञों का गायन भी होता है लेकिन उस गायन और देवात्माओंके गायन में कितना अन्तर है! ऐसा गायन वहाँ नहीं होता। *तो इतनी भारत की महानता बढ़ाने वाले हम महान आत्मायें हैं - यह नशा कितना श्रेष्ठ है! यहाँ गलीगली में मन्दिर देखेंगे। तो इतना नशा सदा स्मृति में रखो। सुनाया ना आज कि कभी-कभी का भी शब्द समाप्त करो।* अगर कभी-कभी बहुत अच्छे और कभी-कभी हलचल, तो आपके यादगार का पूजन भी कभी-कभी होगा। कई मन्दिरों में हर समय पूजन होता है, हर दिन होता है और कहाँ-कहाँ जब कोई तिथि-तारीख आती है तब होता है। तो कभी-कभी हो गया ना। लेकिन किसका सदा होता है, किसका कभी-कभी, क्यों होता है? क्योंकि इस समय के पुरुषार्थ में जो कभी-कभी लाता है उसका पूजन भी कभी-कभी होता है।
〰✧ जितना यहाँ विधिपूर्वक अपना श्रेष्ठ जीवन बनाते हैं उतना ही विधिपूर्वक पूजा होती है। तो मैं कौन? यह हरेक स्वयं से पूछे। अगर दूसरा कोई आपको कहेगा कि आपका पुरुषार्थ तेज नहीं लगता तो मानेंगे? या उसको इस बात से हटाने की कोशिश करेंगे। लेकिन अपने आपको तो जो हो जैसे हो वैसे जान सकते हो। इसलिए सदा अपने विधिपूर्वक पुरुषार्थ में लगे रहो। ऐसा नहीं कहो - पुरुषार्थ तो है ही। पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष स्वरूप अनुभव हो, दिखाई दे। ऐसे महान हो! भारत की महिमा को सुनते क्या सोचते हो? यह किसकी महिमा हो रही है? *ऐसे महान अनेक बार बने हो तब तो गायन होता है। अब उसको रिपीट कर रहे हैं। बने थे और बनना ही है। सिर्फ रिपीट करना है। तो सहज है ना। चाहे सम्पर्क में आते हो, चाहे स्व के प्रति कर्म करते हो, दोनों में सहज हो। भारीपन न हो। जो मुश्किल काम होता है वह भारी होता है। भारी के कारण ही मुश्किल होता है और जहाँ सहज होगा वहाँ हल्कापन होगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सदा ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ आसन कमल पुष्प सामान स्थिति में स्थित रहते हो? ब्राह्मणों का आसन सदा साथ रहता है तो आप सब ब्राहमण भी सदा आसन पर विराजमान रहते हो? *कमल पुष्प समान स्थिति अर्थात सदा हर कर्मेंद्रियों द्वारा कर्म करते हुए इंद्रियों के आकर्षण से न्यारे और प्यारे।*
〰✧ सिर्फ स्मृति में न्यारा और प्यारा नहीं, लेकिन ,*हर सेकेण्ड का सर्व कर्म न्यारे और प्यारे स्थिति में हो।* इसी का यादगार आप सबके गायन में अब तक भी भक्त हर कर्म में इन्द्रिय के प्रति महिमा में नयन कमल, मुख कमल, हस्त कमल कह कर गायन करते हैं।
〰✧ तो यह किस समय की स्थिति का आसन है? इस ब्राह्मण जीवन का। अपने आपसे पूछो, *हर कर्म इन्द्रिय कमल हासन बनी है? नयन कमल बने हैं? हस्त कमल बनी है?*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ सभी अपने को देह से न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो ? जितना देह से न्यारे बनते जायेंगे उतना ही बाप के प्यारे बनेंगे। *बाप प्यारा तब लगता है जब देह से न्यारे देही रूप में स्थित होते। तो सदा इसी अभ्यास में रहते हो? जैसे पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं ना, तो गुफायें कोई और नहीं हैं, लेकिन पाण्डव इन्हीं गुफाओं में रहते हैं। इसी को ही कहा जाता है अन्तर्मुखता।* जैसे गुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे रहते हैं ऐसे अन्तुर्मुखी अर्थात् सदा देह से न्यारे और *बाप के प्यारे रहने के अभ्यास की गुफा में रहने वाले दुनिया के वातावरण से परे होते, वह वातावरण के प्रभाव में नहीं आ सकते।* तो सदा न्यारे रहो यही अभ्यास चलता रहे इसके सिवाए नीचे नहीं आओ।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में अपना सबकुछ स्वाहा करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक अत्यंत सुंदर झील के किनारे बैठी आस पास की सुंदरता को देख रही हूं... झील के पानी की कल कल करती आवाज़ मेरे मन को एकाग्रता का अनुभव करा रही है... झील के चारों ओर सुंदर उपवन और महकते फूल मुझे शांति का गहन अनुभव करा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा की यादों में मगन होती जा रही हूं...* बाबा की याद ही मेरा जीवन आधार है मेरा मन परमात्म प्रेम में डूबा हुआ, मुझे परम आनन्द का अनुभव करा रहा है... *बाबा की यादों के झूले में झूलती मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ अपने निज धाम शांति धाम में यहाँ शिव बाबा अपनी शक्तियों को निरंतर प्रवाहित करते जा रहे हैं... बाबा की शक्तियों को अपने में समाते हुए मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में उतर आती हूँ... बाप दादा के सम्मुख खड़ी मैं आत्मा बाबा को निहार रही हूं... बाबा की आंखों में प्रेम ही प्रेम है...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा के सर पर वरदानी हाथ रख वरदानों से अलंकृत करते हुए बोले:-* "आओ मेरी लाडली आओ... बाप तुम्हे बेहद का सुख देने आए हैं... तुम्हें सच्चे सच्चे रूहानी ब्राह्मण बन अपना शरीर इस यज्ञ में स्वाहा करना है और बाप से 21 जन्मों की प्रालब्ध पानी है... बाप की श्रीमत भी गाई हुई है, *मनमनाभव मद्याजी भव*... बाप आये हैं तुमको विश्व का मालिक बनाने इसलिए *बाप की श्रीमत को धारण कर बाप से पूरा पूरा वर्सा लेना है...*
➳ _ ➳ *बाबा की प्यार भरी वाणी सुनकर मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "हाँ, प्राणों से प्यारे बाबा मेरे... आपने आकर मेरी जीवन की बगिया को अपने ज्ञान रूपी फूलों से महका दिया है... *मेरी आँखों को आपके दिव्य स्वरूप को निहारने का जो सुख मिला है उससे मेरा जीवन रसमय हो गया है...* मुझे भगवान ने आकर अपना बच्चा बनाया है ये विचार मेरी मन की स्थिति को उपराम बना देता है... *आपकी श्रीमत पाकर मैं आत्मा कलयुगी दुनिया में भटकने से बच गयी हूँ...*
❉ *बाबा मेरे सर पे हाथ फेरते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे बच्चे... एक बाप की मत ही तुम्हें पवित्र बनाएगी, अपनी पवित्रता की उंगली देकर आधा कल्प के लिए सुख पाना है... *रूहानी यात्रा करनी और करानी है, एक बाप दूसरा न कोई इस बात को सदैव याद रखना है...* अपना तन मन धन परम पिता परमात्मा को सौंप कर वारिस बनना है... *बेहद का बाप ही तुम्हें सदगति देकर साथ ले जाएँगे... इस पुराने शरीर को स्वाहा कर नया शरीर लेना है, सतयुगी दुनिया का अधिकारी बनना है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की गोदी में सर रख बाबा की लवलीनता का अनुभव करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरी जीवन नैया इस भवसागर से पार लगाने वाले बाबा मेरे... आपने आकर मुझे क्या से क्या बना दिया है इस विचार से मैं आत्मा गद गद हो जाती हूँ... *मुझे अपने भाग्य पर विश्वास नही होता कि वो शक्ति जिसको परमात्मा कहकर भक्त पुकार रहे हैं कि आओ और आकर दुखों से छुड़ाओ वो भगवान मुझे मिल गया है और मुझे कौड़ी से हीरे तुल्य बना रहा है वाह मेरा भाग्य वाह...*
❉ *मेरी बातों को सुनकर मुस्कुराते हुए बाबा मेरा हाथ पकड़ मुझसे कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... योग अग्नि से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, एक बाप से योग लगाओ... ये रुद्र ज्ञान यज्ञ गोपनीय है इसमें स्वाहा हो जाओ... अपने ममत्व को इस पुरानी दुनिया से निकाल अपना बुद्धि योग बाबा से लगाओ... *बाप को एक उंगली का सहयोग देकर भविष्य के लिए सुख घनेरे लेने का पुरुषार्थ करो कि अब वापस घर चलना है...*
➳ _ ➳ *बाबा की स्नेह से भरी बातों को अपने में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "मेरे प्यारे दिलाराम बाबा... आपके ज्ञान रत्नों से भरी हुई अपनी झोली को देखकर मैं आत्मा फूली नही समाती... इस कलयुगी दुनिया से निकाल कर आपने जो जीवन में पवित्रता का उपहार मुझ आत्मा को दिया है अदभुत है... *मेरा ये पुराना शरीर इस ज्ञान यज्ञ में स्वाहा हो, अहो भाग्य...* आपकी *श्रीमत ही मेरे जीवन की आधारशिला है, आपकी श्रीमत पाकर मैं आत्मा सौभाग्यशाली अनुभव कर रही हूं... मेरे जीवन को निखारने वाले मेरे प्राणों से प्यारे दिलाराम बाबा आपका कोटि कोटि धन्यवाद... बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा अपने साकारी तन में लौट आती हूँ...*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपने को अर्पण कर ट्रस्टी हो कर सब कुछ सम्भालना है*"
➳ _ ➳ अपने सभी बोझ बाबा को देकर, लौकिक और अलौकिक हर जिम्मेवारी को ट्रस्टी हो कर सम्भालते, डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हुए मैं बाबा की याद में कर्मयोगी बन हर कर्म कर रही हूँ। *बाबा का आह्वान कर, बाबा की छत्रछाया के नीचे स्वयं को अनुभव करते अपने सभी कार्य करने के बाद, मैं एकांत में अपनी पलकों को मूंदे अपने प्यारे मीठे बाबा की मीठी सी याद में जैसे ही बैठती हूँ* मुझे ऐसा आभास होता है जैसे मैं एक नन्ही सी बच्ची बन बाबा की गोद में बैठी हूँ और बाबा बड़े प्यार से अपना हाथ मेरे सिर पर फिराते हुए, अपने नयनो में मेरे लिए अथाह प्यार समेटे हुए मुझे निहार रहें हैं।
➳ _ ➳ हर बोझ से मुक्त, हर गम से अनजान सुंदर, सुहाने बचपन का यह दृश्य मेरे मन को आनन्द विभोर कर देता है। *अपनी पलको को खोल अब मैं विचार करती हूँ कि जब हम ट्रस्टी के बजाए स्वयं को गृहस्थी समझते हैं तो कितने बोझिल हो जाते हैं किंतु ट्रस्टी हो कर जब सब कुछ सम्भालते है तो ऐसी बेफिक्र और निश्चिन्त स्थिति का अनुभव स्वत: ही होता है जैसी निश्चिन्त स्थिति एक बच्चा अपने पिता की गोद मे अनुभव करता है*। संगमयुग पर परमात्म गोद मे पलने का अनुभव कोटो में कोई और कोई में भी कोई कर पाता है, तो *कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो स्वयं भगवान मेरे सारे बोझ ले कर, अपनी ममतामई गोद मे बिठा कर स्वयं मेरे हर कार्य को सम्पन्न करवा रहा है*।
➳ _ ➳ स्वयं से बातें करती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करती, अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो कर अपने सम्पूर्ण ध्यान को अपने भाग्यविधाता बाप की याद में एकाग्र करती हूँ और सेकण्ड में मन बुद्धि के विमान पर सवार हो कर, विदेही बन अपने विदेही बाबा से मिलने उनके धाम की ओर चल पड़ती हूँ। *देह से न्यारी इस विदेही अवस्था मे मैं आत्मा ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसा सुखद अनुभव पिंजरे में बंद पँछी पिंजरे से निकलने के बाद अनुभव करता है*। ऐसे ही आजाद पँछी की भांति उन्मुक्त होकर उड़ने का आनन्द लेते हुए मैं आत्मा पँछी अब आकाश को भी पार कर जाती हूँ। उससे और ऊपर फ़रिश्तों की आकारी दुनिया को पार करके अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता के पास उनके धाम।
➳ _ ➳ आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियों का आगार है ऐसी चैतन्य सितारों की जगमग करती अति सुंदर दुनिया परमधाम में पहुंच कर मैं असीम सुख की अनुभूति कर रही हूँ। *इस विदेही दुनिया मे, विदेही बन, अपने बीच रुप परम पिता परमात्मा, संपूर्णता के सागर, पवित्रता के सागर, सर्वगुण और सर्व शक्तियों के अखुट भंडार, ज्ञान सागर, शिव बाबा के सम्मुख बैठ उनसे मंगल मिलन मनाने का यह सुख बहुत ही निराला है*। कोई संकल्प कोई विचार मेरे मन में नही है। एकदम निर्संकल्प अवस्था। बस बाबा और मैं। *बीज रुप बाप के सामने मैं मास्टर बीज रुप आत्मा डेड साइलेंस की स्थिति का अनुभव करते हुए असीम अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति में स्थित हूँ*।
➳ _ ➳ गहन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करके, अब मैं अपने शिव पिता से आ रही सर्वशक्तियो को स्वयं में समाकर शक्तिशाली बन कर वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *अपने शिव पिता को हर पल अपने साथ रखते हुए अपने साकारी तन का आधार लेकर इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर मैं अपना पार्ट प्ले कर रही हूँ*। लौकिक और अलौकिक हर कर्तव्य निमित पन की स्मृति में रह कर करते हुए, बेफिक्र बादशाह बन, अपने सभी बोझ बाबा को दे कर उड़ती कला का अनुभव अब मैं निरन्तर कर रही हूँ। करन करावन हार बाबा करवा रहा है यह स्मृति मुझे सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव करवाती है। *ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालते, हर पल, हर सेकण्ड स्वयं को परमात्म गोद मे अनुभव करते मैं संगमयुग की मौजों का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ग्लानि करने वालों को भी गुणमाला पहनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं आत्मा ईस्ट देव हूँ।*
✺ *मैं महान आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं अपनी मन्सा वृत्ति सदा अच्छी पॉवरफुल बनाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा खराब को भी अच्छा बना देती हूँ ।*
✺ *मैं शक्तिशाली आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *नष्टोमोहा की निशानी - दोनों सम्बन्धों में न किसी में घृणा होगी, न
किसी में लगाव वा झुकाव होगा। अगर किसी से घृणा है तो उस आत्मा के अवगुण वा
आपके दिलपसन्द न करने वाले कर्म बारबार आपकी बुद्धि को विचलित करेंगे, न चाहते
भी संकल्प में, बोल में,स्वप्न में भी उसी का उल्टा चिन्तन स्वत: ही चलेगा*।
याद बाप को करेंगे और सामने आयेगी वह आत्मा। जैसे दिल के झुकाव में लगाव वाली
आत्मा न चाहते भी अपने तरफ आकर्षित कर ही लेती है। वह गुण और स्नेह के रूप में
बुद्धि को आकर्षित करती है और घृणा वाली आत्मा स्वार्थ की पूर्ति न होने के
कारण, स्वार्थ बुद्धि को विचलित करता है। जब तक स्वार्थ पूरा नहीं होता तब तक
उस आत्मा के साथ विरोधी संकल्प वा कर्म का हिसाब समाप्त नहीं होता।
➳ _ ➳ *घृणा का बीज है स्वार्थ का रॉयल स्वरूप -‘‘चाहिए''। इसको यह करना चाहिए,
यह न करना चाहिए,यह होना चाहिए। तो ‘चाहिए' की चाह उस आत्मा से व्यर्थ सम्बन्ध
जोड़ देती है। घृणा वाली आत्मा के प्रति सदा व्यर्थ चिन्तन होने के कारण परदर्शन
चक्रधारी बन जाते।* लेकिन यह व्यर्थ सम्बन्ध भी ‘नष्टोमोहा' होने नहीं देंगे।
मुहब्बत से मोह नहीं होगा लेकिन मजबूरी से। फिर क्या कहते हैं - मैं तो तंग हो
गई हूँ। तो जो तंग करता है उसमें बुद्धि तो जायेगी ना। समय भी जायेगा, बुद्धि
भी जायेगी और शक्तियाँ भी जायेंगी। तो एक है यह सम्बन्ध।
✺ *"ड्रिल :- किसी से घृणा नहीं रखना*”
➳ _ ➳ मैं आत्मा घर में बाबा के कमरे में बैठकर बाबा को याद करती हूं... *मैं
आत्मा रूपी हीरा इन इन्द्रियों रूपी कमरों से बने इस शरीर रूपी मकान में,
भृकुटी रूपी अलमारी के सुन्दर डिब्बे में चमक रही हूँ...* मैं आत्मा अपने स्व
स्वरुप का दर्शन करती हुई स्व चिंतन करती हूं कि मैं आत्मा कई जन्मों से
परचिन्तन, परदर्शन करते-करते परतंत्र हो गई थी... व्यर्थ चिन्तन करते-करते
परदर्शन चक्रधारी बन गई थी...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा से कनेक्शन जोड़ने की कोशिश करती हूँ... *जैसे ही योग
लगाती हूँ... वो आत्मायें मेरे सामने आने लगती हैं जिनसे मैं घृणा करती हूँ...
जिनसे घृणा है उस आत्मा के अवगुण, मेरे दिलपसन्द न करने वाले कर्म बार-बार मेरी
बुद्धि को विचलित करते हैं...* मैं आत्मा घृणा के बीज को स्वार्थ का पानी देकर
बढाती चली गई... स्व-परिवर्तन के बजाये दूसरों को परिवर्तित करने की चाह रख उस
आत्मा से व्यर्थ सम्बन्ध जोड़कर अपना अमूल्य समय, बुद्धि और शक्तियों को गवां
बैठी...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बाबा का आह्वान करती हूँ... तुरंत प्यारे बाबा मेरे सामने आ
जाते हैं... मुस्कुराते हुए बाबा मुझे दृष्टि देते हैं... बाबा से निकलती दिव्य
शक्तिशाली किरणों को स्वयं में ग्रहण कर रही हूँ... *बाबा की मीठी दृष्टि से
मुझ आत्मा के अन्दर मिठास भर रहा है... घृणा का बीज खत्म हो रहा है...* मैं
आत्मा बाबा की शक्तियों से भरपूर हो रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा मेरे सामने उन आत्माओं को इमर्ज करते हैं जिनसे मैं आत्मा घृणा करती
थी... *मैं आत्मा बाबा के सामने अपने किए कर्मों के लिए उन आत्माओं से क्षमा
मांगती हूँ... उनके किए कर्मों को अंतर्मन की गहराईयों से क्षमा करती हूँ...*
बाबा से मीठी किरणों को लेकर उन आत्माओं को भेजती हूँ... वो आत्मायें भी
धीरे-धीरे शांत और मीठे होते जा रहे हैं... अब उन आत्माओं के साथ विरोधी संकल्प
वा कर्म का हिसाब समाप्त हो गया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा बिल्कुल हल्का और स्वतंत्र अनुभव कर रही हूँ... *अब मुझ आत्मा
के संकल्प में, बोल में, स्वप्न में भी किसी के प्रति घृणा का भाव नहीं है...
अब मैं आत्मा सबके प्रति शुभ भावना रखती हूँ... सर्व के लिए मंगल कामना करती
हूँ...* किसी के पार्ट के प्रति व्यर्थ चिन्तन नहीं करती हूँ... अब मैं आत्मा
ज्ञान की समझ और ड्रामा की समझ से दूसरों के व्यवहार को क्यों, क्या, कैसे के
क्वेश्चन्स से जज नहीं करती हूँ... परचिंतन, परदर्शन छोड़ मैं आत्मा स्वचिंतन,
स्वदर्शन कर नष्टोमोहा बन गई हूँ...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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