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 25 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *महावीर बन माया के तूफानों को पार किया ?*

 

➢➢ *अकल्मन्द बन अपना जीवन ईश्वरीय सेवा में लगाया ?*

 

➢➢ *संकल्प रुपी बीज को कल्याण की शुभ भावना से भरपूर रखा ?*

 

➢➢ *परमात्म मेले की मौज मनाते रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे किला बांधा जाता है, जिससे प्रजा किले के अन्दर सेफ रहे। एक राजा के लिए कोठरी नहीं बनाते, किला बनाते हैं। *आप सभी भी स्वयं के लिए, साथियों के लिए, अन्य आत्माओं के लिए ज्वाला रूप याद का किला बांधो। याद के शक्ति की ज्वाला हो तो हर आत्मा सेफ्टी का अनुभव करेगी।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं एक की याद द्वारा एकरस स्थिति में रहने वाली ट्रस्टी आत्मा हूँ"*

 

  सदा एकरस स्थिति में स्थित रहने की सहज विधि क्या है? 'एक' की याद एकरस स्थिति बनाती है। एक बाबा, दूसरा न कोई। क्योंकि एक में सब समाये हुए हैं। जैसे बीज में सब समाया हुआ होता है ना। वृक्ष की एक-एक चीज को याद करना मुश्किल है लेकिन एक बीज को याद करो तो सब सहज है। *तो बाप भी बीज है। जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार-स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई। यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है।* ऐसे अनुभव करते हो? या प्रवृत्ति में रहते हो तो दूसरा-तीसरा तो होता है? मेरा बच्चा, मेरा परिवार- यह नहीं रहता है?

 

  फिर एक बाप तो नहीं हुआ ना। 'मेरा' परिवार है या 'तेरा' परिवार है? ट्रस्टी बनकर सम्भालते हो या गृहस्थी बनकर सम्भालते हो? ट्रस्टी अर्थात् तेरा और गृहस्थी अर्थात् मेरा। तो आप कौन हो? मेरा-मेरा मानते क्या मिला? *'मेरा ये, मेरा ये' ....- मेरे-मेरे के विस्तार से मिला क्या? कुछ मिला या गंवाया? जितना मेरा-मेरा कहा, उतना ही मेरा कोई नहीं रहा। तो ट्रस्टी जीवन कितनी प्यारी है!*

 

  *सम्भालते हुए भी कोई बोझ नहीं, सदा हल्के। देखो, गृहस्थी बन चलने से बोझ उठाते-उठाते क्या हाल हुआ-तन भी गंवाया, मन भी अशान्त किया और सच्चा धन भी गंवा दिया। तन को रोगी बना दिया, मन को अशान्त बना लिया और धन में कोई शक्ति नहीं रही।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *कर्म कर रहे हैं लेकिन एक ही समय पर कर्म और मन्सा दोनों सेवा का बैलेन्स हो।* जैसे शुरू-शुरू में यह अभ्यास कराया था कर्म भल वहुत साधारण हो लेकिन स्थिति ऐसी महान हो जो साधारण काम होते हुए भी साक्षात्कार मूर्त दिखाई दें - कोई भी स्थूल कार्य धोवीघाट या सफाई आदि का कर रहे हैं, भण्डारे का कार्य कर रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी महन हो - *ऐसा भी समय प्रैक्टिकल में आवेगा जो देखने वाले यही वर्णन करेंगे कि इतनी महान आत्मायें फरिश्ता रूप और कार्य क्या कर रही है।*

 

✧  *कार्य साधारण और स्थिति अति श्रेष्ठ।* जैसे सतयुगी शहजादियों की आत्मायें जब आती थी तो वह भविष्य के रूप प्रैक्टिकल में देखते हुए आश्चर्य खाती थी ना कि इतने बड़े महाराजे और कार्य क्या कर रहे हैं। विश्व महाराजा और भोजन बना रहे हैं।

 

✧  वैसे ही आने वाली आत्मायें यह वर्णन करेंगी कि हमारे इतने श्रेष्ठ पूज्य ईष्ट देव और यह कार्य कर रहे हैं। चलते-फिरते ईष्ट देव या देवी का साक्षात्कार स्पष्ट दिखाई दे। *अन्त में पूज्य स्वरूप प्रत्यक्ष देखने लगेंगे फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ तख्तनशीन होकर अपनी स्थूल शक्तियों और सूक्ष्म को अर्थात् कर्म इन्द्रियों को और मन, बुद्धि संस्कार सूक्ष्म इन शक्तियों को भी आर्डर सें चलाओ। *तख्तनशीन होंगे तो आर्डर चला सकेंगे। तख्त से नीचे उतर आर्डर करते हो इसलिए कर्मेन्द्रियाँ भी मानती नहीं हैं। ईश्वरीय सेवा तख्त पर बैठे हुए भी कर सकते हो। नीचे आने की जरूरत नहीं।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  राजयोग की शिक्षा से राजाई लेना"*

 

_ ➳  मधुबन प्रांगण में डायमण्ड हॉल में अपने खुबसूरत लक्ष्य को निहारती मै आत्मा मन्त्रमुग्ध हो जाती हूँ... और मीठे बाबा की याद में गहरे डूब जाती हूँ... और अगले ही पल दादी गुलजार के तन में विराजित मीठे बाबा को पाकर... अपने महान भाग्य पर मुस्कराती हूँ... मीठे बाबा मुझ आत्मा पर ज्ञान रत्नों की बरसात कर मुझे महा धनवान् बना रहे है... और मै आत्मा *भगवान को यूँ पिता, टीचर, सतगुरु रूप में पाकर भाव विभोर हो जाती हूँ.*.. ज्ञान धन से लबालब मै आत्मा, अपने देवताई लक्ष्य को सदा स्मर्ति में लिए... मीठे बाबा के हाथो में अपना हाथ देकर... सदा के लिए निश्चिन्त हो मुस्कराती हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने ज्ञान रत्नों की बौछार मुझ आत्मा पर कर सम्पन्न बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अपने प्यारे बच्चों को फिर से शहंशाह बनाने के लिए, भगवान पिता बनकर. अथाह खजानो और सुखो को अपनी हथेली पर सजाकर लाया है.*.. इस ईश्वरीय दौलत से सम्पन्न हो, देवताई सुखो में मुस्कराओ... अपना सम्पन्न स्वरूप देवताई लक्ष्य, सदा याद रख निरन्तर आगे बढ़ो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा से यूँ ज्ञान धन से मालामाल होकर, कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा को अपनी गोद में बिठाकर, ज्ञान धन से भरपूर किया है... *भगवान को टीचर रूप में पाने वाली, मै संसार की सबसे भाग्यशाली आत्मा हूँ... जिसे ईश्वर पिता अपने हाथो से देवताई स्वरूप में ढाल रहा है.*.. यह कितना प्यारा मेरा भाग्य है..."

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देवताई लक्ष्य का नशा दिलाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... *संगम के वरदानी समय पर, ईश्वर पिता से देवताई अमीरी से, भरपूर हो रहे हो.*.. इस मीठे भाग्य के नशे में हर पल झूमते रहो... मीठे बाबा से फिर से राजयोग सीख, देवताई सौंदर्य और विश्व की राजाई पा रहे हो... अपने लक्ष्य को सदा स्मर्ति में रख ईश्वरीय यादो में खोये रहो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा से बेपनाह सुख और दौलत पाकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा *आपकी यादो की बाँहों में, खुबसूरत देवताई लक्ष्य पाकर, मनुष्य से देवतुल्य बन रही हूँ..*. इस समूर्ण विश्व धरा पर राज्य भाग्य पा रही हूँ... प्यारे बाबा आपसे पुनः राजयोग सीख, अपनी खोयी शक्तियाँ और गुणो के खजाने से पुनः भर रही हूँ..."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने प्यार और वरदानों से भरपूर करते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की प्यार भरी छत्रछाया में बैठकर,पढ़ाई पढ़कर, सहज ही देवताई लक्ष्य को बाँहों में पा लो... *घनेरे सुखो की बहारो में प्रेम, शांति और आनन्द के झूलो में खिलखिलाओ.*..मीठे बाबा के सारे खजानो के अधिकारी बन, विश्व की बादशाही को पाने वाले महान भाग्यवान बनकर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा प्यारे बाबा को असीम प्यार से निहारते और गले लगाते हुए कहती हूँ :-* "सच्चे साथी बाबा मेरे... मै आत्मा आपको पाकर धन्य धन्य हो गयी हूँ... आपकी यादो में गुणवान, शक्तिवान बन, अपने खोये अस्तित्व को पुनः पा रही हूँ... *सच्चे सुख, शांति और प्रेम की दुनिया की ओर रुख कर रही हूँ... और सदा की मालामाल हो रही हूँ.*.."मीठे बाबा की बाँहों में अथाह ज्ञान रत्नों को पाकर मै आत्मा... अपने स्थूल वतन में लौट आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी बात में संशय बुद्धि नही बनना है*"

 

 _ ➳  इस सृष्टि रूपी विशाल रंगमंच पर चलने वाली सीन सीनरियो को देखने की इच्छा से अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फ़रिशता अपने साकारी शरीर से बाहर निकलता हूँ और सृष्टि रूपी भू लोक की सैर करने चल पड़ता हूँ। *धरती के आकर्षण से परे काफी ऊंचाई से मैं फ़रिशता धरती के चारों ओर का नजारा अपनी आंखों से स्पष्ट देख रहा हूँ*। इतनी ऊंचाई से देखने पर भू लोक का नज़ारा ऐसे लग रहा है जैसे मैं कोई बहुत बड़ा मंच देख रहा हूँ, जिस पर कोई ड्रामा अथवा नाटक चल रहा है। इस वैरायटी ड्रामा में वैरायटी एक्टर्स को वैरायटी पार्ट प्ले करते हुए मैं देख रहा हूँ।

 

 _ ➳  कोई गरीब है, कोई अमीर है। कोई दुखी है, कोई सुखी है। कोई हंस रहा है, कोई रो रहा है। कोई अत्याचार कर रहा है, कोई उस अत्याचार को सहने के लिए विवश है। *ये सब दृश्य देख कर मन मे विचार आता है कि सभी एक समान क्यो नही है! क्यो कोई दुखी और कोई सुखी है*! मन मे उठ रही इस दुविधा का हल जानने के लिए मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन अपने बाबा के पास। सूक्ष्म वतन में पहुंचते ही एक विचित्र दृश्य मुझे दिखाई देता है। मैं देख रहा हूँ सामने एक विशाल पर्दा है जिस पर वो सब सीन चल रही है जो मैं देखते हुए आ रहा था। जिसे देख कर मन मे विचार उठ रहे थे कि ऐसा क्यों? *लेकिन मैं देख रहा हूँ कि बाबा भी यही सब दृश्य यहाँ बैठ कर स्पष्ट देख रहें है लेकिन बाबा के चेहरे पर कोई दुविधा नही। बल्कि मुस्कराते हुए बाबा हर दृश्य को देख रहें हैं*।

 

 _ ➳  तभी उस पर्दे पर और भी भयानक मंजर दिखाई देता है। कहीं बाढ़ के कारण तबाही का दृश्य, तो कहीं भूकम्प के कारण गिरती हुई बड़ी बड़ी बिल्डिंग, कही बॉम्ब फटने से तबाह होते शहर, कहीं गृह युद्ध। लाशों के ढेर लगे हैं, लोग चीख रहें हैं, चिल्ला रहे हैं लेकिन बाबा के चेहरे पर अभी भी वही गुह्य मुस्कराहट देख कर मैं हैरान हो रहा हूँ। *बाबा मेरे मन की दुविधा जान कर अब मेरे पास आते हैं और मुझ से कहते हैं, बच्चे:- "त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर सीन को देखोगे तो कभी कोई संदेह या प्रश्न मन मे पैदा नही होगा"*। अब बाबा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और मास्टर त्रिकालदर्शी भव का वरदान दे कर, तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक मेरे मस्तक पर लगा कर मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर देते हैं।

 

 _ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप धारण करके, मस्तक पर तीन बिंदियो की स्मृति का अविनाशी तिलक लगाये अब मैं फ़रिशता वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ और फिर से अपने साकारी तन में प्रवेश कर रहा हूँ। किन्तु *अब मेरे मन मे कोई संदेह, कोई प्रश्न नही। ड्रामा की हर सीन को अब मैं साक्षी हो कर देख रही हूं*। त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट हो कर ड्रामा की हर एक्ट को देखने से अब हर एक्ट एक खेल की भांति प्रतीत हो रही है और मनोरंजन का अनुभव हो रहा है।

 

 _ ➳  सृष्टि के आदि, मध्य, अंत के राज को जानने और स्वयं को केवल एक्टर समझ कर पार्ट बजाने से अब मैं हर फिक्र से मुक्त हो, बेफिक्र बादशाह बन जीवन का आनन्द ले रही हूं। *इस बात को अब मैं सदा स्मृति में रखती हूं कि इस विश्व नाटक में कोई किसी का मित्र/शत्रु नही है*। सभी पार्टधारी है और सभी अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रहें हैं इसलिए क्या,क्यो और कैसे के सब सवालों से स्वयं को मुक्त कर, किसी भी बात में संशय ना उठाते हुए साक्षीदृष्टा बन इस सृष्टि ड्रामा में अपना पार्ट बजा रही हूं।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं संकल्प रूपी बीज को कल्याण की शुभ भावना से भरपूर रखने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा माया के झमेलों से घबराने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा परमात्म मेले की मौज मनाती रहती हूँ  ।*

   *मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳   *‘‘बापदादा सर्व ब्राह्मण आत्माओं में ‘सर्वस्व त्यागीबच्चों को देख रहे हैं। तीन प्रकार के बच्चे हैं - एक हैं त्यागीदूसरे हैं महात्यागीतीसरे हैं सर्व त्यागीतीनों हैं ही त्यागी लेकिन नम्बरवार हैं। त्यागी- जिन्होंने ज्ञान और योग के द्वारा अपने पुराने सम्बन्धपुरानी दुनियापुराने सम्पर्क द्वारा प्राप्त हुई अल्पकाल की प्राप्तियों को त्याग कर ब्राह्मण जीवन अर्थात् योगी जीवन संकल्प द्वारा अपनाया है अर्थात् यह सब धारणा की कि पुरानी जीवन से ‘यह योगी जीवन श्रेष्ठ है'।* अल्पकाल की प्राप्ति से यह सदाकाल की प्राप्ति प्राप्त करना आवश्यक है। और उसे आवश्यक समझने के आधार पर ज्ञान योग के अभ्यासी बन गये। ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी कहलाने के अधिकारी बन गये। लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारी बनने के बाद भी पुराने सम्बन्धसंकल्प और संस्कार सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं हुए लेकिन परिवर्तन करने के युद्ध में सदा तप्पर रहते। अभी-अभी ब्राह्मण संस्कारअभी-अभी पुराने संस्कारों को परिवर्तन करने के युद्ध स्वरूप में। इसको कहा जाता है - त्यागी बने लेकिन सम्पूर्ण परिवर्तन नहीं किया। सिर्फ सोचने और समझने वाले हैं कि त्याग करना ही महा भाग्यवान बनना है। करने की हिम्मत कम।

 

 _ ➳  *अलबेलेपन के संस्कार बार बार इमर्ज होने से त्याग के साथ-साथ आराम पसन्द भी बन जाते हैं। समझ भी रहे हैंचल भी रहे हैंपुरूषार्थ कर भी रहे हैं,ब्राह्मण जीवन को छोड़ भी नहीं सकतेयह संकल्प भी दृढ़ है कि ब्राह्मण ही बनना है।* चाहे माया वा मायावी सम्बन्धी पुरानी जीवन के लिए अपनी तरफ आकर्षित भी कर सकते हैं तो भी इस संकल्प में अटल हैं कि ब्राह्मण जीवन ही श्रेष्ठ है। इसमें निश्चय-बुद्धि पक्के हैं। लेकिन सम्पूर्ण त्यागी बनने के लिए दो प्रकार के विघ्न आगे बढ़ने नहीं देते। वह कौन से?

 

 _ ➳  एक - तो सदा हिम्मत नहीं रख सकते अर्थात् विघ्नों का सामना करने की शक्ति कम है। दूसरा - अलबेलेपन का स्वरूप आराम पसन्द बन चलना। पढ़ाई,यादधारणा और सेवा सब सबजेक्ट में कर रहे हैंचल रहे हैंपढ़ रहे हैं लेकिन आराम से!   *सम्पूर्ण परिवर्तन करने के लिए शस्त्रधारी शक्ति-स्वरूप की कमी हो जाती है। स्नेही हैं लेकिन शक्ति स्वरूप नहीं। मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित नहीं हो सकते हैं। इसलिए महात्यागी नहीं बन सकते हैं। यह है त्यागी आत्मायें।*

 

✺  *"ड्रिल :- अलबेलेपन के संस्कार इमर्ज कर आराम पसंद नहीं बनना।”*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सावन के सुहावने मौसम में... सावन के झूले में झूलती हुई... सावन की पहली बारिश के इंतजार में गगन को निहार रही हूँ... मंद-मंद हवा चल रही है... काले-काले मेघ उमड़ते गरजते चले आ रहे हैं... मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर झूले में बैठ जाते हैं...* थोड़ी ही देर में मेघ रिमझिम-रिमझिम झरने लगते हैं... झड़ी पर झड़ी बरसने लगती है... लग रहा जैसे आसमान से मोतियों की लड़ी गिर रही हों... मैं आत्मा इन बरसते मोतियों को अपनी हथेलियों में भर रही हूँ... ये पानी की बूंदे मुझसे कह रही हैं आओ पूरी तरह से भीग जाओं...    

 

 _ ➳  मैं आत्मा झूले से उतरकर बाबा का हाथ पकड़ बरसते पानी में पूरी तरह से भीगकर मजा ले रही हूँ... बाबा के साथ बारिश में खेल रही हूँ... पंछी भी खुश होकर नाच रहे हैं... पेड़-पौधे ख़ुशी में लहलहा रहे हैं... ज्ञान सागर बाबा के नैनों से दिव्य गुण शक्तियों से भरी किरणों की वर्षा हो रही है... *एक तरफ मुझ आत्मा को बाबा ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति, पवित्रता की वर्षा से भिगो रहे हैं और एक तरफ ये पानी की बूंदे मेरे शरीर को भिगो रही हैं... ये तपती हुई धरती जैसे इस वर्षा से शीतल हो रही है वैसे ही विकारों की तपन खत्म होकर मैं आत्मा शांत और शीतल हो रही हूँ...*   

 

 _ ➳  मैं आत्मा पुराने सम्बन्धपुरानी दुनियापुराने सम्पर्क द्वारा प्राप्त हुई अल्पकाल की प्राप्तियों का त्याग कर रही हूँ... मुझ आत्मा से पुराने स्वभाव-संस्कार, कमी-कमजोरियां, आलस्य-अलबेलापन, सभी विकार ज्ञान सागर के किरणों की वर्षा में बहते चले जा रहे हैं... *मैं आत्मा पुराने जीवन का त्याग कर श्रेष्ठ पवित्र योगी जीवन को अपना रही हूँ... अल्पकाल की विनाशी प्राप्तियों का त्याग कर सदाकाल की अविनाशी प्राप्तियों की अधिकारी बन रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा निश्चय-बुद्धि बन मनसा-वाचा-कर्मणा ब्राह्मण जीवन के संस्कारों को धारण कर रही हूँ... सर्वशक्तिवान बाबा से शक्तियों को ग्रहण कर शक्ति स्वरूप बन रही हूँ... अब मैं आत्मा सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित होकर विघ्नों का सामना कर रही हूँ... पुराने मायावी जीवन की तरफ अब जरा भी आकर्षित नहीं होती हूँ... *मैं आत्मा आलस्य-अलबेलेपन के संस्कार इमर्ज कर आराम पसंद नहीं बनती हूँ... बल्कि श्रीमत पर चलकर तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूँ... ज्ञान, योग, धारणा, सेवा सभी सब्जेक्ट्स में पास विद आनर बन रही हूँ...* 

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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