━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 23 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *रूप बसन्त बन अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान किया ?*
➢➢ *किसी भी बता में मूंझे व डरे तो नहीं ?*
➢➢ *नाउम्मीदी की चिता पर बैठी हुई आत्माओं को नए जीवन का दान दिया ?*
➢➢ *न्यारे और अधिकारी होकर कर्म में आये ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *जैसे अग्नि में कोई भी चीज डालो तो नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद के लगन की अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो।* मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। *लग्न की अग्नि से ऐसा परिवर्तन होता है जो अपनापन कुछ भी नहीं रहता, इसलिए याद को ही ज्वाला रूप कहा है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं 'मेरा बाबा' की स्मृति द्वारा सर्व प्राप्ति से भरपूर आत्मा हूँ"*
〰✧ सबसे सहज सदा शक्तिशाली रहने की विधि क्या है जिस विधि से सहज और सदा निर्विग्न भी रह सकते हैं और उड़ती कला का भी अनुभव कर सकते हैं? सबसे सहज विधि है-और कुछ भी भूल जाये लेकिन एक बात कभी नहीं भूले- 'मेरा बाबा'। *'मेरा बाबा' दिल से मानना-यही सबसे सहज विधि है आगे बढ़ने की। मेरा-मेरा मानने का संस्कार तो बहुत समय का है ही। उसी संस्कार को सिर्फ परिवर्तन करना है। 'अनेक' मेरे को 'एक' मेरा बाबा उसमें समाना है।* एक को याद करना सहज है ना और एक मेरे में सब-कुछ आ जाता है। तो सबसे सहज विधि है-”मेरा बाबा”। 'मेरा' शब्द ऐसा है जो न चाहते भी याद आती है। 'मेरे' को याद नहीं करना पड़ता लेकिन स्वत: याद आती है।
〰✧ भूलने की कोशिश करते भी 'मेरा' नहीं भूलता। *योग अगर कमजोर होता है तो भी कारण 'मेरा' है और योग शक्तिशाली होता है तो उसका भी कारण 'मेरा' ही है। 'मेरा बाबा'-तो योग शक्तिशाली हो जाता है और मेरा सम्बन्ध, मेरा पदार्थ-यह 'अनेक मेरा' याद आना अर्थात् योग कमजोर होना।* तो क्यों नहीं सहज विधि से पुरुषार्थ में वृद्धि करो। विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है। रिद्धि-सिद्धि अल्पकाल की होती है लेकिन विधि से सिद्धि जो प्राhत होती है वह अविनाशी होती है। तो यहाँ रिद्धि-सिद्धि की बात नहीं है लेकिन विधि से सिद्धि प्राप्त करनी है। विधि को अपनाना आता है या मुश्किल लगता है?
〰✧ कमजोर बनना अर्थात् मुश्किल अनुभव होना। बिना कमजोरी के मुश्किल नहीं होता है। तो कमजोर हो क्या? या माया कभी-कभी कमजोर बना देती है? *अगर 'मेरा बाबा' याद आता है, तो बाप सर्वशक्तिवान है ना, तो जैसा बाप वैसे बच्चे। 'मेरा बाबा' याद आने से अपना मास्टर सर्वशक्तिवान का स्वरूप याद आता है। 'मेरा बाबा' कहने से ही 'बाप कौन है', वह स्मृति में आता है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *सदा एक लक्ष्य हो की हमें दादा का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना है न कि लेना है*- यह करें तो मैं करूँ, नहीं। हर एक दाता - पन की भावना रखे तो सब देने वाले अर्थात सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे। सम्पन्न नहीं होंगे तो दे भी नहीं सकेंगे। तो *जो सम्पन्न आत्मा होगी वह सदा तृप्त आत्मा ज़रूर होगी।* मैं देने वाले दादा का बच्चा हूँ - देना ही लेना है। जितना देना उतना लेना ही है। प्रैक्टिकल में लेने वाला नहीं लेकिन देने वाला बनना है।
〰✧ *दाता-पन की भावना सदा निर्विघ्न, इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है* - सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नजर रहे। वह लक्ष्य है बिन्दु। एक लक्ष्य अर्थात बिन्दी की तरफ सदा देखने वाले। अन्य कोई भी बातों को देखते हुए भी नहीं देखें। नजर एक बिन्दु की तरफ ही हो - जैसे यादगार रूप में भी दिखाया है कि मछली के तरफ नजर नहीं थी लेकिन आँख की भी बिन्दु में थी।
〰✧ तो मछली है विस्तार और सार है बिन्दु। तो *विस्तार को नहीं देखा लेकिन सार अर्थात एक बिन्दु को देखा।* इसी प्रकार अगर कोई भी बातों के विस्तार को देखते तो विघ्नों में आते - और सार अर्थात एक बिन्दु रूप स्थिति बन जाती और फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु लग जाती। *कर्म में भी फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु। स्मृति में भी बिन्दु अर्थात बीजरूप स्टेज हो जाती। यह विशेष अभ्यास करना है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ सभी सदा प्रवृत्ति में रहते भी न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसी स्थिति में स्थित हो चलते हो ? जितने न्यारे होंगे उतने ही बाप के प्यारे होंगे। तो हमेशा न्यारे रहने का विशेष अटेन्शन है? सदा देह से न्यारे आत्मिक स्वरूप में स्थित रहना। *जो देह से न्यारा रहता है वह प्रवृत्ति के बन्धन से भी न्यारा रहता है। निमित्त मात्र डायरेक्शन प्रमाण प्रवृत्ति में रह रहे हो, सम्भाल रहे हो लेकिन अभी-अभी आर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे या बन्धन आयेगा। सभी स्वतन्त्र हो?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान से शुद्ध खुशबूदार फूल बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा सुबह-सुबह फूलों के बगीचे में झुला झूलती हुई फूलों... पंछियों... उगते सूरज की लालिमा... बहती हवाओं को देख मन्त्रमुग्ध हो रही हूँ... इतनी सुन्दर प्रकृति के रचनाकार को दिल ही दिल में शुक्रिया करती हुई... *सुप्रीम रचयिता का आह्वान करती हूँ... जिसने परमधाम से अवतरित होकर बागबान बन मेरे अन्दर के अवगुणों रूपी काँटों को निकाल दिया... और दिव्य गुणों रूपी खुशबू से भर दिया है... अब मैं आत्मा चैतन्य पुष्प बन अल्लाह के बगीचे में बैठ चारों ओर अपनी खुशबू फैला रही हूँ...*
❉ *प्यारे बाबा मेरे मन के फूलों को खिलाते हुए खुशबू से महकाते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता बागबान के बगीचे में रूहानी पुष्प बन खिले हो... कितना महकता और खूबसूरती से सजा शानदार सा भाग्य है... *ज्ञान के सुंदर रंग में रंगे से... याद और दिव्य गुणो का महकता रूप और खुशबु लिए चैतन्य पुष्प बन मुस्करा रहे हो...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बसंत बन ज्ञान पुष्पों को सब पर बरसाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा कभी काँटों के जंगल का हिस्सा थी... आज ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल बन खिल रही हूँ... *दूर से सबको अपनी रूहानी रंगत रूप और खुशबु से दीवाना बनाकर... मीठे बाबा बागबान का पता दे रही हूँ...”*
❉ *देह के जाल से मुक्त कर ज्ञान योग के पंख देते हुए प्यारे ज्ञान सूर्य बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... *अल्लाह के बगीचे के जो फूल बन खिले हो... तो ज्ञान और योग का प्रेक्टिकल स्वरूप दिव्य गुणो की धारणा भी अपने स्वरूप से छ्लकाओ...* स्वयं प्रकाशित होकर सबके दिलो से अँधेरा दूर कर दो... विघ्नो से मुक्ति देने वाले विघ्न विनाशक मा. ज्ञान सूर्य से दमक उठो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मस्तक मणि बन अपनी चमक से चारों ओर ज्ञान की रोशनी फैलाते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय बगीचे का रूहानी फूल हूँ... मीठा बाबा इस समय मेरा बागवान है... *और योगी जीवन दिव्य गुणो की खुशबु से पूरा विश्व महका कर सुखो की बहार खिला रही हूँ... सबके दिलो की मलिनता और अँधेरा मिटा कर ज्ञान की रौशनी से जगमगा रही हूँ...”*
❉ *वरदानों से भरपूर कर मेरे भाग्य की लकीर लम्बी खींचते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *तन मन धन से सच्चे सेवाधारी बन ईश्वर पिता के दिल तख्त पर झूम जाओ...* वरदानी संगम युग में 84 जनमो का खूबसूरती से रिकार्ड भरकर... सदा सच्चे सुखो के मालिक बनो... प्राप्ति के समय में सच्ची कमाई के असीम खजानो को... बाँहों में भरकर खुशियो में मुस्कराओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपना सबकुछ समर्पण कर परवाना बन शमा पर फ़िदा होते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपने महान भाग्य को वरदानी संगम पर खुशियो से सजा रही हूँ... *इतना प्यारा और खुबसूरत समय जो तकदीर ने थमाया है बलिहार हो गई हूँ...* हर जन्म की सुन्दरतम कहानी भाग्य की लकीरो में स्वयं बैठ लिखती जा रही हूँ...”
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूप बसन्त बन अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर महादानी बनना है*"
➳ _ ➳ अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया के नीचे, एक झील के किनारे बैठी हुई मैं शीतल हवाओं का आनन्द ले रही हूँ औऱ अपने प्यारे बाबा के साथ सर्व सम्बन्धो के गहन सुख का अनुभव करके मन ही मन आनन्दित हो रही हूँ। *अपने निराकार भगवान को कभी अपने प्यारे पिता के रूप में आप समान बनाने की समझानी देते हुए तो कभी माँ के रूप में अपनी किरणों रूपी बाहों में समाकर अपने ऊपर असीम स्नेह बरसाते हुए, कभी सच्चे दोस्त के रूप में अपने साथ मीठी - मीठी रूह रिहान करते हुए और कभी साजन बन ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा सजनी का श्रृंगार करते हुए मैं देख रही हूँ*।
➳ _ ➳ हर सम्बन्ध के सुख का अनुभव बाबा के साथ करते हुए मैं दिल से अपने प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करती हूँ और बाबा के असीम प्यार का, उनके उपकारों का रिटर्न उन्हें देने के लिए उनसे और स्वयं से ये प्रोमिस करती हूँ कि *जैसे रूप बसन्त मेरे प्यारे बाबा ने मेरे जीवन मे आकर ज्ञान और योग के चन्दन से मेरे जीवन की फुलवारी को महका दिया है, जीवन को सरस और आनन्दमयी बनाने वाला सत्य ज्ञान देकर मुझे जीने का नया ढंग सिखा दिया है ऐसे ही अपने अति मीठे और प्यारे रूप बसन्त बाबा के समान बन कर अब मैं भी औरों के जीवन को महकाऊंगीं*। अपने ज्ञान सागर शिव पिता द्वारा दिये ज्ञान का अच्छी तरह विचार सागर मन्थन कर उनके समान रूप बसन्त बन कर अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन को खुशहाल बनाऊंगी।
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से यह प्रतिज्ञा करके परमात्म बल से स्वयं को भरपूर करने के लिए अपने रूप बसन्त प्यारे बाबा की याद में अपने मन औऱ बुद्धि को मैं स्थिर करती हूँ और एक अद्भुत रूहानी यात्रा पर चलने के लिए तैयार हो जाती हूँ। *मन बुद्धि जैसे ही एकाग्र होते हैं मेरी ये रूहानी यात्रा शुरू हो जाती है। देख रही हूँ अब मै स्वयं को देह, देह की दुनिया और देह के सर्व सम्बन्धो से एकदम अलग एक अति सूक्ष्म बिंदु के रूप में भृकुटि सिहांसन पर विराजमान होकर चमकते हुए*। मुझ बिंदु आत्मा से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मन को सुकून दे रहा है। अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप को मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से निहारते हुए मैं अपने इस स्वरूप का आनन्द लेते हुए *अब एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में भृकुटि सिहांसन को छोड़ देह की कुटिया से बाहर आ जाती हूँ और धीरे - धीरे इस यात्रा पर आगे बढ़ने लगती हूँ*।
➳ _ ➳ मुझ चैतन्य शक्ति आत्मा से निकल रहा प्रकाश मेरे चारों और एक दिव्य कार्ब का निर्माण कर रहा है और इस दिव्य कार्ब के साथ अपने सातों गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन्स चारों और फैलाती हुई मैं ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *सेकेंड में आकाश को पार कर, उससे ऊपर अव्यक्त बापदादा के अव्यक्त वतन में पहुँच कर, अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, ज्ञान श्रृंगार करने के लिए मैं बापदादा के पास पहुँचती हूँ*। बड़े प्यार से अपनी बाहों में भरकर बाबा अपना सारा स्नेह मुझ पर लुटाकर, मुझे मीठी दृष्टि देते हुए
मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठा लेते हैं और बड़े प्यार से अपने हाथों से मेरा श्रृंगार करते हैं।
➳ _ ➳ ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से बाबा मुझे सजाते हुए मुझ पर बलिहार जा रहें हैं। *मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए मेरे गले मे दिव्य गुणों की माला और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना रहें हैं। ज्ञान, गुण और शक्तियों से मेरा श्रृंगार कर एक दुल्हन की तरह बाबा मुझे सजा रहें हैं*। अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर अब मैं स्वयं को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरपूर करने के लिए अपने निराकार बिंदु स्वरूप में स्थित होकर, ज्ञान सागर अपने शिव पिता के पास उनके धाम पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने के लिए उनके समीप जाकर उन्हें टच करती हूँ। *बाबा को छूते ही ज्ञान की मीठी फुहारों का झरना मेरे ऊपर बरसने लगता है और परमात्म ज्ञान की शक्ति से मैं आत्मा भरपूर हो जाती हूँ*।
➳ _ ➳ ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों का स्पर्श पाकर, बाबा के समान रूप बसन्त बन कर मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ और साकार लोक में प्रवेश कर अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा ज्ञान रत्न निकालते हुए, मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ*। ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, *अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, रूप बसन्त बन, विचार सागर मन्थन कर, अब मैं सबको ज्ञान दान देकर सबके जीवन की फुलवारी को महकाने की सेवा दृढ़ता और लगन के साथ कर रही हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं नाउम्मीदी की चिता पर बैठी हुई आत्माओं को नये जीवन का दान देने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं त्रिमूर्ति प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव न्यारी और अधिकारी होकर कर्म में आती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा बंधनमुक्त स्थिति का अनुभव कर रही हूँ ।*
✺ *मैं बंधनमुक्त आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ सेवा की भाग-दौड़ भी मनोरंजन का साधन है: सभी अपने को हर कदम में याद और
सेवा द्वारा पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यवान समझते हो? कमाई का
कितना सहज तरीका मिला है। *आराम से बैठे-बैठे बाप को याद करो और कमाई जमा करते
जाओ। मन्सा द्वारा बहुत कमाई कर सकते हो, लेकिन बीच-बीच में जो सेवा के साधनों
में भाग-दौड़ करनी पड़ती है, यह तो एक मनोरंजन है। वैसे भी जीवन में चेन्ज चाहते
हैं तो चेन्ज हो जाती है। वैसे कमाई का साधन बहुत है, सेकेण्ड में पदम जमा हो
जाते हैं, याद किया और बिन्दी बढ़ गई। तो सहज अविनाशी कमाई में बिजी रहो।*
✺ *"ड्रिल :- सेवा के भाग-दौड़ में भी मनोरंजन का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा रंग बिरंगे रंगों से एक चित्र बना रही हूं... इस चित्र में मैं
एक ऐसी आत्मा का चित्र बनाती हूं, जो हाथ में माला लेकर राम राम जप रहा है...
उस चित्र में मैं यह भी दर्शाती हूं कि वह व्यक्ति हर कर्म करते हुए राम राम जप
रहा है... भिन्न भिन्न रंगों के द्वारा मैं यह भी दर्शाती हूं कि वह व्यक्ति
हाथ में माला लेकर अनेक स्थानों पर जाकर अपना कर्म कर रहा है... वह चित्र बनाते
समय मैं पूरी तरह से उस चित्र में डूब जाती हूं... और *मैं एक छोटा सा मोती बन
कर उस व्यक्ति की माला में बैठ जाती हूं... और उस माला में बैठकर अब मैं उस
व्यक्ति के और करीब हो जाती हूं और उसकी पूरी दिनचर्या करीब से देखती हूं... तभी
मुझे आभास होता है कि इसी माला में ऊपर की ओर शिव बाबा बैठे हैं और मुझे देख कर
मुस्कुरा रहे हैं...*
➳ _ ➳ जैसे ही मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुस्कुरा रहे हैं... तो मैं शिव
बाबा से पूछती हूं... कि बाबा आपकी मुस्कुराहट का क्या कारण है? बाबा मुझे कहते
हैं... *क्या तुमने इस व्यक्ति को ध्यान से देखा और समझा कि यह सारा दिन कितना
व्यस्त रहता है फिर भी माला सिमरण करना नहीं भूलता, और ना ही यह अपना कोई भी
कर्तव्य भूलता है, और साथ ही बाबा मुझे पूछते हैं... क्या तुम अपना कर्तव्य करते
समय अपने परमात्मा को याद करते हो? कितना समय याद करते हो और कितना समय भूलते
हो? क्या तुम्हें कुछ याद है? बाबा की यह बातें सुनकर मैं कुछ देर के लिए स्थिर
हो जाती हूं...*
➳ _ ➳ कुछ समय उस चित्र में व्यतीत करने के बाद मैं बाहर निकलकर इस देह में
विराजमान हो जाती हूं और फिर भी शिव बाबा की कही हुई बातों को नहीं भूलती हूं,
और बार-बार अपने सामने शिवबाबा को अनुभव करती हूं... और मुझे यह आभास होता है
कि मानो शिव बाबा बार-बार मुझे वही प्रश्न पूछ रहे हैं कि... क्या तुम्हें याद
है तुम परमात्मा को कितना समय याद करती हो? और कितना समय भूलती हो? फिर *मैं
एकांत मैं जाकर विचार सागर मंथन करती हूं और अपनी दिनचर्या बनाती हूं, जिसमें
मैं सारा दिन परमात्मा को याद रख सकूं और मेरा मनोरंजन भी हो जाए व पुरुषार्थ
में नवीनता भी आ जाए...*
➳ _ ➳ सबसे पहले मैं अमृतवेला में प्रभु मिलन कर अपनी दिनचर्या प्रारंभ करती
हूं... और जब मैं स्नान करने जाती हूं तो मैं यह अनुभव करती हूं कि मैं आत्मा
शिव बाबा की किरणों रुपी झरने में नहा रही हूं... जिससे नहा कर मेरा फरिश्ता
स्वरूप निखरता जा रहा है, और मैं बाबा को अपने साथ लेकर श्रृंगार करने बैठती
हूं... और मुझे यह भी ध्यान रहता है कि मुझे परमात्मा को भी याद करना है और
श्रृंगार भी करना है... मैं बैठ जाती हूं *शीशे के सामने और मैं श्रृंगार
प्रारंभ करती हूं... जैसे ही मैं माथे पर बिंदिया लगाती हूं तो मुझे आभास होता
है कि शिव बाबा मुझे कह रहे हैं... कि बच्चे तुम शरीर नहीं आत्मा हो, तुम
आत्मिक स्थिति में हो... और मैं तुरंत अपने आपको आत्मिक स्थिति में ले आती
हूं... फिर मैं अनुभव करती हूं कि मैं आत्मा शिव बाबा की सजनी हूं, शिव बाबा
मुझे ज्ञान रत्नों से सजाने के लिए आए हैं...*
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद जब मैं सुंदर वस्त्र पहनती हूं, तो मैं अनुभव करती हूं कि
मैं सतयुगी देवी हूं और बाबा ने मुझे यह रुप दिया है... और जब मैं भोजन बनाती
हूं तो मैं अनुभव करती हूं कि शिव बाबा मेरे सर के ऊपर हैं और अपनी शक्तिशाली
और पवित्र किरणों से भोजन को शुद्ध बना रहे हैं... और जब मैं भोजन करके और अपना
काम खत्म करके बाहर निकलती हूं तो मैं शिवबाबा को कहती हूं... बाबा इस कड़ी धूप
में आप मेरी छत्रछाया बनकर मेरे साथ रहना और पूरे रास्ते भर मैं उनको अपनी
छत्रछाया अनुभव करती हूं और उनसे बातें करते हुए चलती हूं... ऐसे ही जब मैं
वापस घर लौटती हूं तो अपने सभी काम शिव बाबा की याद में खत्म करके रात को शिव
बाबा की गोद में आकर सो जाती हूं... और मैं बाबा को कहती हूं... बाबा धन्यवाद
आपने समय पर मुझे समझा दिया कि हम कितने भी व्यस्त हो, *अपने परमात्मा को
व्यस्त रहते हुए भी याद कर सकते हैं और मनोरंजन भी हो जाता है... जिससे हमारे
पुरुषार्थ में नवीनता आ जाती है और अलबेलापन भी नहीं आता, हमारी याद की यात्रा
बढ़ती जाती है...*
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━