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 12 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को वश में किया ?*

 

➢➢ *बाप को अपना समाचार दिया ?*

 

➢➢ *आत्माओं को भटकने व भिखारीपन से बचाया ?*

 

➢➢ *निस्वार्थ सेवा की ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *कई बच्चे कहते हैं कि जब योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने के बदले सेवा याद आती है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने की बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे।* उस समय सिवाय बाप के, निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी-और कुछ याद नहीं। सेवा में फिर भी साकार में आ जायेंगे इसलिए *जिस समय जो चाहे वह स्थिति हो नहीं तो धोखा मिल जायेगा।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा हूँ"*

 

  अपने को सदा सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माएं अनुभव करते हो? कितने खजाने मिले हैं? खजानों को अच्छी तरह से सम्भालना आता है या कभी-कभी अन्दर से निकल जाता है ? *क्योंकि आप आत्माएं भी बाप द्वारा नालेजफुल बनने के कारण बहुत होशियार हो लेकिन माया भी कम नहीं है। वो भी शक्तिशाली बन सामना करती है।*

 

  *तो सर्व खजाने सदा भरपूर रहे और दूसरा जिस समय जिस खजाने की आवश्यकता हो उस समय वो खजाना कार्य में लगा सको। खजाना है लेकिन टाइम पर अगर कार्य में नहीं लगा सके तो होते हुए भी क्या करेंगे? जो समय पर हर खजाने को काम में लगाता है उसका खजाना सदा और बढ़ता जाता है।*

 

  तो चेक करो कि खजाना बढ़ता जाता है कि सिर्फ यही सोच करके खुश हो कि बहुत खजाने हैं। फिर ऐसे कभी नहीं कहो कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। *ज्ञानी की विशेषता है - पहले सोचे फिर कर्म करे। ज्ञानी-योगी तू आत्मा को समय प्रमाण टच होता है और वह फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाता है। एक सेकेण्ड भी पीछे सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧   *कमल अर्थात कर्म करते हुए भी विगारी बन्धनों से मुक्त।* देह को देख भी रहे हैं लेकिन देखते हुए भी नयन कमल वाले, देह के आकर्षण के बन्धन में नहीं आयेंगे। जैसे कमल जल में रहते हुए जल से न्यारा अर्थात जल के आकर्षण के बन्धन से न्यारा, अनेक भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से न्यारा रहता है। कमल के सम्बन्ध भी बहुत होते हैं।

 

✧  अकेला नहीं होता है, प्रवृत्ति मार्ग की निशानी का सूचक है। ऐसे ब्राह्मण अर्थात *कमल पुष्प  सामान बनने वाली आत्माएँ प्रवृत्ति मार्ग में रहते, चाहे  लौकिक चाहे अलौकिक साथ-साथ किचड अर्थात तमोगुणी पतित वातावरण रहते हुए भी न्यारे।* जो गुण रचना में है तो मास्टर रचता में वही गुण है।

 

✧   सदा इस आसन पर स्थित रहते हो वा कभी-कभी स्थित होते हो? *सदा अपने इस आसन को धारण करने वाले ही सर्व बन्धन मुक्त और सदा योगयुक्त बन सकते हैं।* अपने आप को देखो - पाँच विकार, पाँच प्रकृति के तत्वों के बन्धन से कितने परसेन्ट में मुक्त हुए हैं। लिप्त आत्मा वा मुक्त आत्मा हो?

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही?* अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  कोई भी आसुरी गुण नहीं होना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी ज्योति को जगाया...* दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...

 

  *प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... *यह यादे ही आनन्द का दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार लाएंगी..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से सज कर निखरती जा रही हूँ... *साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."*

 

  *मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो जाओ... *दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... *यह रोम रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ...* और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."

 

  *मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... *अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ...* और विकारो से मुक्त होकर अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी हैं जो कोई भी चंचलता ना रहे*"

 

_ ➳  63 जन्मो के विकर्मो का बोझ जो आत्मा के ऊपर है उसे भस्म करने और स्वयं को विकर्माजीत बनाने के लिए मैं आत्मा बिंदु बन परमधाम में अपने बिंदु बाप के सानिध्य में जा कर बैठ जाती हूँ। *5 तत्वों से परे लाल सुनहरी प्रकाश से प्रकाशित यह दुनिया बहुत ही निराली और असीम शांति से भरपूर करने वाली है। यहाँ आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ*। संकल्पो की भी यहाँ कोई हलचल नही। अपनी ओरिजनल बीजरूप अवस्था में स्थित हो कर बीजरूप परमात्मा बाप के साथ का यह मंगल मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है। चित को चैन और मन को आराम दे रहा है।

 

_ ➳  ज्ञानसूर्य शिव बाबा सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणों को निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर प्रवाहित कर, मुझ आत्मा के ऊपर चढ़े हुए विकारों के किचड़े को जला कर भस्म कर रहे है। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे चक्र की भांति गोल - गोल घूमती हुई मेरे पास आ रही हैं। जैसे - जैसे इन किरणो का दायरा बढ़ता जा रहा है इनके आगोश में मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ*। मेरे चारों और फैले सर्वशक्तियों के इस गोल चक्र ने जैसे ज्वाला स्वरूप धारण कर लिया है। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे चारों तरफ योग अग्नि की बहुत ऊँची - ऊँची लपटे निकल रही हैं जिसकी तपिश से मेरे पुराने आसुरी स्वभाव, संस्कार जल कर भस्म हो रहें हैं और *मेरी खोई हुई सर्वशक्तियाँ पुनः जागृत हो रही हैं। मेरे सारे विकर्म भस्म हो रहें हैं*।

 

_ ➳  आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है, विकर्म विनाश हो रहें हैं वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और चमकदार बनती जा रही हूँ। सोने के समान चमकता हुआ मेरा स्वरूप मुझे बहुत ही प्यारा और न्यारा लग रहा है। *कभी मैं अपने इस जगमग करते ज्योतिर्मय स्वरूप को देखती हूँ तो कभी अनन्त प्रकाशमय, सर्वशक्तियों के सागर अपने शिव पिता को*। इस अलौकिक मिलन की मस्ती में डूबी मैं एकटक अपने प्यारे बाबा को निहार रही हूँ और अपने प्यारे परमात्मा के सानिध्य में स्वयं को धन्य - धन्य अनुभव कर रही हूँ। *वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे है यही गीत गाती मैं इस अलौकिक मिलन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ*। 

 

_ ➳  अपने स्वीट बाबा से स्वीट साइलेन्स होम में मधुर मंगल मिलन मनाकर, योग अग्नि में विकर्मो को भस्म करके, डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। *साकारी दुनिया में अपने साकार ब्राह्मण तन में अब मैं आत्मा विराजमान हूँ। बाबा की याद से विकर्मो पर जीत प्राप्त कर, विकर्माजीत बनने के लिए अब मैं अपने हर कर्म पर पूरा अटेंशन रखती हूँ*। स्वयं को स्वराज्य अधिकारी की सीट पर स्थित कर अब मैं हर रोज कर्मेन्द्रिय रूपी मंत्रियों की राजदरबार लगाती हूँ और उन्हें उचित निर्देश देकर अपनी इच्छानुसार उनसे हर कार्य करवाती हूँ।

 

_ ➳  कर्मेन्द्रीयजीत बन कर्म करने से पिछले अनेक जन्मों के आसुरी स्वभाव संस्कार जो विकर्मो का कारण बन रहे थे वे सभी आसुरी स्वभाव संस्कार अब परिवर्तन हो रहे हैं। *तीन बिंदियों की स्मृति का तिलक अब मैं अपने मस्तक पर सदा लगा कर रखती हूँ जिससे मुझे निरन्तर यह स्मृति रहती है कि मुझे कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नही करना जिससे विकर्म बने*। अमृतवेले से रात तक बाबा की जो भी श्रीमत मिली हुई है उस पर एक्यूरेट चलने से और बाबा की याद में रह हर कर्म करने तथा स्वयं को सदा योग भट्टी में अनुभव करने से अब विकर्मों के खाते बन्द हो रहे हैं और मैं सहज ही विकर्माजीत बनती जा रही हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर आत्मा को भटकने वा भिखारीपन से बचाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं निष्काम आत्मा हूँ।*

   *मैं रहमदिल आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव नि:स्वार्थ सेवा करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदा सेवा का मेवा प्राप्त करती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ आज बापदादा अपने महादानी वरदानी विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। महादानी वरदानी बनने का आधार है - ‘महात्यागी' बनने के बिगर महादानी वरदानी नहीं बन सकते। *महादानी अर्थात् मिले हुए खजाने बिना स्वार्थ के सर्व आत्माओं प्रति देने वाले -‘नि:स्वार्थी’। स्व के स्वार्थ से परे आत्मा ही महादानी बन सकती है। वरदानी, सदा स्वयं में गुणों, शक्तियों और ज्ञान के खजाने से सम्पन्न आत्मा सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ और शुभ भावना तथा सर्व का कल्याण हो, ऐसी श्रेष्ठ कामना रखने वाली सदा रूहानी रहमदिल, फराखदिल, ऐसी आत्मा ‘वरदानी' बन सकती है।* इसके लिए‘महात्यागी' बनना आवश्यक है।

➳ _ ➳ *त्याग की परिभाषा भी सुनाई है कि पहला त्याग है - अपने देह की स्मृति का त्याग। दूसरा देह के सम्बन्ध का त्याग। देह के सम्बन्ध में पहली बात कर्मेंन्द्रियों के सम्बन्ध की सुनाई - क्योंकि 24 घण्टे का सम्बन्ध इन कर्मेन्द्रियों के साथ है।* इन्द्रियजीत बनना, अधिकारी आत्मा बनना यह दूसरा कदम। इसका स्पष्टीकरण भी सुना। अब तीसरी बात यह है - देह के साथ व्यक्तियों के सम्बन्ध की। इसमें लौकिक तथा अलौकिक सम्बन्ध आ जाता है। इन दोनों सम्बन्ध में महात्यागी अर्थात् ‘नष्टोमोहा'।

✺ *"ड्रिल :- महात्यागी बन महादानी वरदानी स्थिति का अनुभव करना*”

➳ _ ➳ *मैं आत्मा इस वरदानी संगम युग में बाबा से वरदान लेकर स्वयं को वरदानों से भरपूर करने वरदाता बाबा को अपने पास बुलाती हूं...* बाबा अपने साथ मुझे बादलों की पहाड़ी पर बिठाकर सैर करने ले जाते हैं... मैं आत्मा बाबा के साथ प्रकृति के सौंदर्य को देखते हुए उड़ रही हूं... एक तरफ बाबा का मखमली कोमल स्पर्श का अनुभव करती हुई, एक तरफ मुलायम रुई समान बादलों को छूकर मैं आत्मा भी हलकी होती जा रही हूँ... नदी, तालाब, समुंदर, पहाड़ों, चांद, सितारों को पार करते हुए सफेद बादलों की दुनिया में बाबा मुझे ले जाते हैं...

➳ _ ➳ *बादलों की दुनिया में बाबा मुझे वरदानों से भरे बादलों के नीचे बिठाते हैं... बादलों से वरदानों की बारिश हो रही है...* मैं आत्मा इस बारिश में नहा रही हूं... देखते देखते मुझ आत्मा का स्थूल शरीर पूरी तरह गायब होता जा रहा है... मैं आत्मा इस देह और कर्मेंन्द्रियों के संबंध से न्यारी होती जा रही हूं और इन्द्रियजीत बन रही हूं... मैं आत्मा आकारी प्रकाश का शरीर धारण करती हूँ... मेरा ये लाइट का शरीर हजारों लाइट्स के समान जगमगा रहा है...

➳ _ ➳ आकारी शरीर धारण करते ही मैं आत्मा देह की स्मृति से न्यारी होती जा रही हूं... *देह की स्मृति का त्याग करते ही... मुझ आत्मा का देह के संबंधों से ममत्व मिट रहा है... मैं आत्मा बुद्धि से लौकिक अलौकिक संबंधों का त्याग कर रही हूं...* लौकिक अलौकिक संबंधों के मोह को नष्ट कर नष्टमोहा बन गई हूं... महात्यागी बन गई हूं... मैं आत्मा गुण शक्तियों और ज्ञान के खजानों से संपन्न बन रही हूं... गुण स्वरुप, धारणा स्वरूप बन रही हूँ...

➳ _ ➳ बाबा मेरे सिर पर अपना वरदानी हाथ रख सर्व वरदानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मैं आत्मा वरदानी मूर्त होने का अनुभव कर रही हूं... अब मैं आत्मा स्व के स्वार्थ से परे निस्वार्थ भाव से, बाबा से मिले खजानों को सर्व आत्माओं को दान कर रही हूं... सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ और शुभ भावना तथा शुभकामना रख सबका कल्याण कर रही हूं... मैं आत्मा हद की कामनाओं से परे निष्काम सेवा कर रही हूँ... *मैं आत्मा रूहानी रहमदिल फराख दिल बन सर्व आत्माओं का उद्धार कर रही हूं... मैं आत्मा महात्यागी बन महादानी वरदानी स्थिति का अनुभव कर रही हूं...*
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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