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 21 / 06 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बापदादा से "सदा सफलता भव" का वरदान स्वीकार किया ?*

 

➢➢ *आत्माओं को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अनुभव करवाया ?*

 

➢➢ *आत्माओं पर स्नेह के पुष्पों की वर्षा की ?*

 

➢➢ *शक्तिशाली वृत्ति और वायुमंडल बनाने का पुरुषार्थ किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  लास्ट सो फास्ट पुरुषार्थ ज्वाला-रुप का ही रहा हुआ है। *पाण्डवों के कारण यादव रुके हुए हैं। पाण्डवों की श्रेष्ठ शान, रुहानी शान की स्थिति यादवों के परेशानी वाली परिस्थिति को समाप्त करेगी।* तो अपनी शान से परेशान आत्माओं को शान्ति और चैन का वरदान दो। ज्वाला स्वरुप अर्थात् लाइट हाउस और माइट हाउस स्थिति को समझते हुए इसी पुरुषार्थ में रहो।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मा हूँ"*

 

  सदा यह नशा रहता है कि हम कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मायें बनते हैं? कितनी बार आपकी पूजा हुई है? पूज्य आत्मा हूँ-यह पूज्यपन की अनुभूति क्या होती है? निशानी क्या है? किस विशेषता के आधार पर कोई पूज्य बनता है? लौकिक में भी देखो-किसको कहते हैं कि यह तो पूज्य है। *पूज्य आत्मा की निशानी है-वह कभी भी किसी भी वस्तु के पीछे, व्यक्ति के पीछे झुकेगा नहीं। सब उसके आगे झुकेंगे लेकिन वह झुकेगा नहीं। नम्रता से झुकना-वह अलग चीज है। लेकिन झुकना अर्थात् प्रभावित होना। पूज्य के आगे सब झुकते हैं, पूज्य नहीं झुकता है।*

 

  तो किसी भी प्रकार के व्यक्ति या वैभव की आकर्षण झुका लेवे-यह पूज्य की निशानी नहीं है। तो यह चेक करो कि कभी भी, किसी भी आकर्षण में मन और बुद्धि झुकती तो नहीं है, प्रभावित तो नहीं होते हो? *सिवाए एक बाप के और कहाँ भी मन और बुद्धि का झुकाव नहीं। पूज्य अर्थात् झुकाने वाला, न कि झुकने वाला। जो कल्प-कल्प का पूज्य होगा उसकी निशानी क्या होगी? सिवाए बाप के, और कहाँ भी आंख नहीं डूबेगी। यह बहुत अच्छा है, यह बहुत अच्छी चीज है-नहीं। पूज्य आत्माओंके आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं।* 

 

  लगाव तब होता है जब झुकाव होता है। बिना लगाव के झुकाव नहीं होता। आज के भक्तों का भी चाहे अल्पकाल की प्राप्ति की तरफ लगाव हो, तभी झुकाव होता है। आजकल पूज्य की तरफ लगाव नहीं है, अल्पकाल की प्राप्ति के तरफ लगाव है। लेकिन प्राप्ति कराने वाली पूज्य आत्मायें हैं, इसलिये झुकते उनकी तरफ ही हैं। तो समझा, पूज्य की निशानी क्या है? कल्प-कल्प की श्रेष्ठ पूज्य आत्मायें सदा स्वयं को सम्पन्न अनुभव करेंगी। जो सम्पन्न होता है उसकी आंख किसमें भी नहीं जाती। पूज्य आत्मा सम्पन्न होने के कारण सदा ही अपने रूहानी नशे में रहेगी। उनके मन-बुद्धि का झुकाव कहाँ भी नहीं होगान देह के सम्बन्ध में, न देह के पदार्थ में। सबसे न्यारा और सबसे प्यारा। *ब्राह्मण जीवन का मजा जीवन्मुक्त स्थिति में है। न्यारा अर्थात् मुक्त। संस्कार के ऊपर भी झुकाव नहीं। जब कहते हो कि क्या करुँ, कैसे करुँ-तो उस समय जीवन्मुक्त हुए या जीवन-बन्ध? करना नहीं चाहते थे लेकिन हो गया-यह है जीवन-बन्ध बनना। इच्छा नहीं थी लेकिन अच्छा लग गया, शिक्षा देनी थी लेकिन क्रोध आ गया-यह है जीवन-बन्ध स्थिति। ब्राह्मण अर्थात् जीवन्मुक्त। कभी भी किसी बंधन में बंध नहीं सकते।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सदा अपनी स्मृति की समर्थी से अपने तीनों स्थान और तीनों स्थिति, *निराकारी आकारी और साकारी तीनों स्थिति में सहज ही स्थित हो सकते हो?*

 

✧  जैसे आदि स्थिति साकार स्वरुप में सहज ही स्थित रहते हो ऐसे *अनादि निराकारि स्थिति इतनी ही सहज अनुभव होती है?* अभी-अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो?

 

✧  जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे *अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ अनेक बन्धनों से मुक्त एक बाप के सम्बन्ध में समझो तो सदा
एवर-रेडी रहेंगे। संकल्प किया और अशरीरी बना, यह प्रैक्टिस करो। कितना भी सेवा में बिज़ी हों, कार्य की चारों ओर की खींचतान हो, बुद्धि सेवा के कार्य में अति बिज़ी हो- ऐसे टाइम पर अशरीरी बनने का अभ्यास करके देखो। *यथार्थ सेवा का कभी बन्धन होता ही नही। क्योंकि योग युक्त, युक्तियुक्त सेवाधारी सदा सेवा करते भी उपराम रहते हैं। ऐसे नहीं कि सेवा ज़्यादा है इसलिए अशरीरी नहीं बन सकते। याद रखो मेरी सेवा नहीं बाप ने दी है तो निर्बन्धन रहेंगे।* 'ट्रस्टी हूँ, बन्धनमुक्त हूँ' ऐसी प्रैक्टिस करो। अति के समय अन्त की स्टेज, कर्मातीत अवस्था का अभ्यास करो तब कहेंगे तेरे को मेरे में नहीं लाया है। अमानत में ख्यानात नहीं की है समझा, अभी का अभ्यास क्या करना है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :-  गोल्डन संकल्प करना"*

 

_ ➳  आज ब्राह्मण जीवन की खूबसूरती को जब मै आत्मा... निहारती हूँ तो मीठे आनन्द से भर जाती हूँ... मीठे *बाबा ने मीठे बोल, मीठी चाल, स्नेह भरी दृष्टि और दिल की विशालता देकर...मुझे जन्नत की हूर सजा दिया है.*.. पहले यह जीवन देह के प्रभाव में कितना कड़वा और कँटीला था... मीठे बाबा ने प्यार का सोने का पानी डालकर... मेरे मन बुद्धि को कितना उजला सच्चा और खुबसूरत बना दिया है... *भगवान ही तो यह जादु कर सकता था... और भगवान ने आकर ही मुझे खुबसूरत कृति सा सजाया है.*.. मीठे बाबा की रोम रोम से आभारी मै आत्मा...शुकराना करने वतन में उड़ चलती हूँ...

 

   *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को गुणो और शक्तियो में आप समान बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *दिलाराम बाबा को दिल अर्पित करने वाले, महान भाग्य के धनी हो... सब कुछ मीठे बाबा को सौपने वाले, समर्थ और सच्चे आशिक हो...* समर्थ की निशानी है... हर संकल्प बोल कर्म संस्कार बाप समान होगा... यही निरन्तर याद की अवस्था है... मीठे बाबा की यादो में सदा खोये हुए सदा के मायाजीत बन मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा भगवान को अपने दिल में समाकर हर पल उसकी यादो में डूबकर कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे साथी बाबा... मै आत्मा देह के प्रभाव में अपने दिल के 100 टुकड़े करके जगह जगह बांटा करती थी... और *आज आपने मेरे सारे टुकड़ो को जोड़ कर, खुबसूरत दिल सजाकर, अपने दिल की तिजोरी में ही बन्द कर दिया है... अब मुझे जिंदगी के दुःख तपन की कोई परवाह ही नही... मेरा जीवन भगवान के हाथो में सदा के लिए सुरक्षित हो गया है...*

 

   *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को सेवा के नये आयामो को समझाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सदा यह स्म्रति रहे कि हम है ही फ़रिश्ते... सब कुछ बाबा का है... मेरा कुछ भी नही इस भाव में सदा हल्के फ़रिश्ते बन मुस्कराते रहो.*.. सदा निराकार आकर और साकार को फॉलो करने वाले स्वराज्य अधिकारी... किंग और क्वीन बनकर, बापदादा के दिल तख्त पर मुस्कराओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान मणियो को सुनकर मन्त्रमुग्ध झूमती हुई कहती हूँ :-* "प्यारे प्यारे बाबा मेरे... *मै आत्मा आपकी मीठी यादो की छाँव में कितनी हल्की निश्चिन्त और बेफिक्री से भरी हुई फ़रिश्ता बन गयी हूँ... स्वयं भगवान मेरा साथी हो गया है...* तो मै आत्मा हर फ़िक्र से परे हो गयी हूँ... अपने हर संकल्प, बोल, कर्म को बाप समान सजाकर, किस कदर खुबसूरत हो गयी हूँ..."

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को अपने शानदार भाग्य का नशा दिलाते हुए कहते है :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... कितना प्यारा और खुबसूरत भाग्य है कि स्वयं भगवान ने दिल की तिजोरी में छुपा कर रखा है... *पवित्रता की धरोहर से जीवन को श्रेष्ठ बनाकर क्या से क्या बन रहे हो... यह प्राप्ति औरो को भी कराओ... सबके जीवन आप समान खुशियो से महकाओ... सबकी आशाये पूर्ण करने वाले महादानी वरदानी बनो..."*

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने प्यारे बाबा के प्यार की बरसात में भीगते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मनमीत बाबा... *आपने मेरा हाथ थामकर, मुझे देह के कंटीले जंगल से निकाल... खुबसूरत ज्ञान परी बना दिया है... मै आत्मा भगवान को वरने वाली... उसके दिल में सजने वाली, शिव प्रियतमा ही गयी हूँ...* शिव साजन को चुनकर, सारा ब्रह्माण्ड बाँहो में भर रही हूँ... और यह भाग्य हर दिल पर सजा रही हूँ..." मीठे बाबा को अपने जज्बात अर्पित कर... मै आत्मा स्थूल धरा पर उतर आयी...

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्माओं को मुक्ति जीवन मुक्ति का अनुभव करवाना*"

 

 _ ➳  अपने मन बुद्धि को सभी बाहरी बातों से डिटैच कर, मन मे चल रहे संकल्पो पर ध्यान केंद्रित करते हुए, धीरे धीरे उन संकल्पो को नियंत्रित कर, अपनी आंखों को हल्के - हल्के बन्द कर मैं एकदम रिलैक्स हो कर बैठ जाती हूँ। इसी शांतमय स्थिति में कुछ देर बैठे - बैठे अचानक कुछ दृश्य आंखों के सामने उभरने लगते हैं। *मैं देख रही हूँ बहुत बड़ी सोने की नगरी लंका और इस लंका में एक वाटिका में कैद माँ सीता जो अपने प्रभु राम को याद करती हुई विलाप कर रही है*। वही सामने सीता को हासिल करने की अपनी जीत पर अहंकार वश जोर जोर से अट्हास करता हुआ रावण।

 

 _ ➳  इस दृश्य को देखते ही मेरी चेतनता जैसे एक दम लौट आती है और मैं इस दृश्य के बारे में विचार करने लगती हूँ। तभी ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरे प्रभु राम, मेरे मीठे शिव बाबा फरमान कर रहे है कि जाओ सबको रावण की जंज़ीरों से मुक्त कर जीवनमुक्ति का वर्सा दिलाओ। *अपने प्रभु राम, शिव बाबा की आज्ञा का पालन करने के लिए मैं महावीर हनुमान बन चल पड़ता हूँ इस रावण राज्य रूपी अशोक वाटिका में कैद सभी मनुष्य आत्माओं रूपी सीताओं को पांच विकारों रूपी रावण की कैद से छुड़ाये उन्हें उनके प्रभु राम से मिलवाने*।

 

 _ ➳  अपने प्रभु राम का आह्वान कर, उनकी सर्वशक्तियों को स्वयं में भरपूर कर, बलशाली बन मैं चल पड़ता हूँ उन आत्मा रूपी सीताओं को ढूंढने जो अपने प्रभु राम से मिलने के लिए तड़प रही हैं। *ऊपर आकाश में मैं फ़रिशता, महावीर हनुमान बन उड़ता जा रहा हूँ और देख रहा हूँ नीचे भू लोक का करुणामयी नजारा*। कैसे आत्मायें विकारों की अग्नि में जल रही हैं। हर तरफ भ्रष्टाचार, पापाचार की अग्नि दधक रही हैं जो सभी को अपनी लपेट में ले रही है। दुखी अशांत आत्मायें पल भर की शांति के लिए भटक रही हैं। कहीं अकाले मृत्यु, कहीं प्रकृति का तांडव, हर तरफ दुख, अशांति, का दृश्य दिखाई दे रहा है। *सर्व आत्मायें दुखी हो कर अपने प्रभु राम को पुकार रही हैं*।

 

 _ ➳  मैं देख रहा हूँ दुखों से छूटने के लिए परमात्मा को पाने की इच्छा में मनुष्य क्या क्या नही कर रहे। अपने प्रभु के एक दर्शन पाने के लिए स्वयं को अनेक प्रकार के दुख दे रहें हैं। *अपने प्यारे प्रभु राम का सन्देश वाहक बन अब मैं अपने शक्तिशाली संकल्पो द्वारा सभी दुखी अशांत आत्माओं को सुख, शांति पाने का सत्य रास्ता बता रहा हूँ*। उन्हें इस सत्यता का बोध करवा रहा हूँ कि उन्हें दुख देने वाला रावण कहीं बाहर नही बल्कि उनके ही भीतर समाये वो 5 विकार है जिन्होंने उन्हें कैद कर रखा है। इन विकारों की कैद से मुक्त कराने और जीवनमुक्ति अर्थात स्वर्ग में ले जाने के लिए ही उनके प्यारे प्रभु राम आ चुके हैं। *आओ उनसे आ कर जीवनमुक्ति का वर्सा ले लो*।

 

 _ ➳  इन शक्तिशाली श्रेष्ठ संकल्पो के साथ - साथ ज्ञान की शक्तिशाली किरणे बाबा से लेकर मैं उन आत्माओं को दे रहा हूँ। *मुझ से आ रही ज्ञान की शीतल किरणे जैसे जैसे उन आत्माओं पर पड़ रही हैं उन्हें सूक्ष्म रीति अपने प्रभु राम की छत्रछाया का एहसास हो रहा है*। उन्हें अनुभव हो रहा है कि उन्हें रावण की जंजीरो से मुक्त करने के लिए उनके प्रभु राम आ चुके हैं।

 

 _ ➳  अपने प्रभु राम को पाने का सही रास्ता जानने के लिए अब सभी आत्मायें ब्रह्माकुमारीज़ आश्रमों में जा रही हैं। हर आश्रम पर मनुष्य आत्माओं की भीड़ लगी है। ब्रह्माकुमारी बहने सभी आत्माओं को परमात्म परिचय दे कर उन्हें मुक्ति जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बता रही है। *रावण की कैद में फंसी सभी आत्मा रूपी सीतायें अब उस कैद से छूट कर, अपने प्रभु राम से मिलकर, उनकी श्रीमत पर चल जीवनमुक्ति के वर्से की अधिकारी बनने के पुरुषार्थ में लग गई हैं*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं ईश्वरीय रॉयल्टी के संस्कारधारी  आत्मा हूँ।*

   *मैं हर एक कि विशेषताओं का वर्णन करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं पुण्य आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा वरदान की शक्ति प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा परिस्थिति रूपी आग को भी पानी बना देती हूँ  ।*

   *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

✺ अव्यक्त बापदादा :-

➳ _ ➳ क्योंकि आप सभी ब्राह्मण आत्माओं का विश्व के मंच पर हीरो और हीरोइन का पार्ट है। ऐसी हीरो पार्टधारी आत्माओं का एक-एक सेकण्ड, एक-एक संकल्प, एक-एक बोल, एक-एक कर्म, हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान है। *अगर एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो जैसे हीरे को गँवाया। अगर कीमती से कीमती हीरा किसका गिर जाए, खो जाए तो वह सोचेगा ना - कुछ गँवाया है। ऐसे एक हीरे की बात नहीं। अनेक हीरों की कीमत का एक सेकण्ड है। इस हिसाब से सोचो। ऐसे नहीं कि साधारण रूप में बैठे-बैठे साधारण बातें करते-करते समय बिता दो।* फिर क्या कहते - कोई बुरी बात तो नहीं की, ऐसे ही बातें कर रहे थे, ऐसे ही बैठे थे, बातें कर रहे थे। ऐसे ही चल रहे थे। यह ऐसे-ऐसे करते भी कितना समय चला जाता है। ऐसे ही नहीं लेकिन हीरे जैसे हैं। तो अपने मूल्य को जानो।

➳ _ ➳ आपके जड़ चित्रों का कितना मूल्य है। एक सेकण्ड के दर्शन का भी मूल्य है। *आपके एक संकल्प का भी इतना मूल्य है जो आज तक उसको वरदान के रूप में माना जाता है। भक्त लोग यही कहते हैं कि एक सेकण्ड का सिर्फ दर्शन दे दो। तो दर्शन ‘समय' की वैल्यु है, वरदान ‘संकल्प' की वैल्यु, आपके बोल की वैल्यु - आज भी दो वचन सुनने के लिए तड़पते हैं। आपके दृष्टि की वैल्यु आज भी नज़र से निहाल कर लो, ऐसे पुकारते रहते हैं। आपके हर कर्म की वैल्यु है। बाप के साथ श्रेष्ठ कर्म का वर्णन करते गद्गद् होते हैं। तो इतना अमूल्य है आपका हर सेकण्ड, हर संकल्प। तो अपने मूल्य को जान व्यर्थ और विकर्म वा विकल्प का त्याग।*

✺ *"ड्रिल :- अपने हर सेकेंड, संकल्प, बोल और कर्म के मूल्य को समझना "*

➳ _ ➳ मैं आत्मा कुछ कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए हुए नाटक को देखने के लिए आती हूं... जहां मुझे आकर अनेक तरह के भिन्न-भिन्न चित्र दिखाई पड़ते हैं... मैं वहां देखती हूं कि वहां पर बैठे सभी लोग जो सामने नाटक प्रस्तुत कर रहे हैं उस हीरो पार्ट धारी को बहुत गौर से देख रहे हैं... *मेरी भी बार बार नजर नाटक के हीरो पर ही जाती है... मेरा सारा ध्यान नाटक के हीरो के हर छोटे बड़े एक्शन की तरफ जाता है... उनकी हर छोटी बड़ी बात मुझे प्रभावित करती है...* यूं तो वहां और भी कलाकार थे परंतु हम सभी बार-बार मुख्य भूमिका वाले एक्टर को देखने के लिए प्रभावित हो रहे है... और हम सभी श्रोतागण उस ऐक्टर की भूमिका की सराहना कर रहे हैं...

➳ _ ➳ जब यह नाटक समाप्त होता है तो मैं अपने घर चली जाती हूं... और मुझे बार-बार उस हीरो पार्टधारी एक्टर की भूमिका याद आती है... बार-बार मेरी बुद्धि उधर ही चली जाती है... इससे मुझे ज्ञात होता है कि *जैसे मेरी बुद्धि बार-बार उधर जा रही है, मैं चाहकर भी उस एक्ट को नहीं भुला पा रही हूं... उसके जैसा ही बनना चाहती हूं, उसके जैसा ही जीवन जीना चाहती हूं, उसकी कही हुई हर बात को अपने अंदर समाना चाहती हूं, उसकी हर कला को अपने अंदर समा कर उसके जैसी ही भूमिका अदा करना चाहती हूं... ऐसे ही सृष्टि रूपी रंगमंच पर सर्वश्रेष्ठ पार्ट निभाने वाले व्यक्ति को सभी लोग बड़ी गहराई से देखते हैं और उसकी कही हुई हर बात का अनुसरण करते हैं...*

➳ _ ➳ कुछ देर तक विचार करने के बाद मैं एकांत अवस्था में जाकर बैठ जाती हूं... और विचार विमर्श करने लगती हूं... तभी मेरी नजर एक ऐसे चित्र पड़ जाती है जहां पर सभी ब्राह्मण आत्माएं कल्पवृक्ष की जड़ों में बैठकर इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष को साकाश दे रहे हैं... उस चित्र को देखकर मुझे यह ज्ञात होता है कि यह *सभी ब्राह्मण आत्माएं अपने इस संगम युग के महत्वपूर्ण समय को सही तरीके से यूज कर उसका पूर्ण लाभ उठा रहे हैं... और अपना वा पूरे संसार का कल्याण कर रहे हैं... जैसे-जैसे मैं उन ब्राह्मण आत्माओं को जड़ चित्रों के रुप में देखती हूं वैसे वैसे ही मैं शिव बाबा को बीज रूप में अनुभव करती हूं...* और कुछ देर के लिए मैं एकदम शांत अवस्था में बैठ जाती हूं...

➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं मन बुद्धि से फरिश्ता स्वरुप में आ जाती हूं और अपने आप को सफ़ेद प्रकाश रूपी शरीर में अनुभव करती हूं... और मैं अनुभव करती हूं कि मुझसे रंग बिरंगी किरणें निकल रही है... और साथ ही यह भी फील करती हूँ कि शिवबाबा बीज रुप में बैठे हुए हैं, और उनसे अद्भुत रंग बिरंगी किरणें मुझ पर आकर गिर रही हैं... और *मुझे आभास होता है कि शिव बाबा मुझे कह रहे हैं कि बच्चे तुम भी उस नाटक के हीरो के समान हो... जैसे उस हीरो पार्टधारी को सभी मनुष्य देखते हैं और उसको फॉलो करने की कोशिश करते हैं... वैसे ही तुम्हारा भी चाल- चलन और हर कर्म संकल्प ऐसे होने चाहिए कि आपकी हर एक गतिविधि को अन्य आत्माएं फॉलो कर सके और श्रीमत की राह पर चल सके...*

➳ _ ➳ बाबा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए मुझे कहते हैं कि जैसे नाटक में हीरो की समय अवधि निर्धारित होती है... वह कोशिश करता है कि इस समय में वह अपनी सबसे बेहतरीन भूमिका दे सके... वह अपना पूरा जोर लगा देता है... जिसके कारण वह अपना अभिनय सबसे अच्छा देने की कोशिश करता है और उस समय अवधि में वह अपने हर संकल्प बोल को बहुत ही सोच समझकर उपयोग मे लाता है... उसी कारण वह अपना अभिनय सबसे श्रेष्ठ कर पाते हैं... वैसे ही तुम्हें भी अपने समय संकल्प की महत्वपूर्णता को जानते हुए हर कर्म करना है... इन्हीं कर्मों के कारण आप अपनी स्थिति इतनी ऊंची कर सकते हैं की आपकी एक झलक के लिए इस संसार की अन्य आत्माएं तरसती हैं... उनके एक एक बोल को अपने लिए वरदान समझते हैं, और उस वरदान के कारण ही वह आपके आगे नतमस्तक हो जाते हैं इसलिए इस समय की महत्वपूर्णता को जानते हुए *अपने संकल्प बोल और कर्मों को इतना महान बनाइए कि आपके वचन और बोल के लिए अन्य आत्माएं युगों-युगों तक आप की पुकार करने लगे और आप के दर्शन मात्र के लिए आपके इंतजार में बैठी रहे... और बाबा की यह बातें सुनकर मेरा मन गदगद हो उठता है... और मैं उसी समय से अपने आपको सृष्टि रूपी रंगमंच की हीरो पार्टधारी के रुप में अनुभव करने लगती हूं...*
 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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