━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 13 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *बुधी को गयाना मंथन में बिजी रखा ?*
➢➢ *आप समान बनाने की सर्विस की ?*
➢➢ *नाम और मान के त्याग द्वारा सर्व का प्यार प्राप्त किया ?*
➢➢ *बुधी रुपी पाँव साद तख्तनशीन रहा ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *आप बच्चों के पास पवित्रता की जो महान शक्ति है, यह श्रेष्ठ शक्ति ही अग्नि का काम करती है जो सेकण्ड में विश्व के किचड़े को भस्म कर सकती है।* जब आत्मा पवित्रता की सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होती है तो उस स्थिति के श्रेष्ठ संकल्प से लगन की अग्नि प्रज्वलित होती है और किचड़ा भस्म हो जाता है, *वास्तव में यही योग ज्वाला है। अभी आप बच्चे अपनी इस श्रेष्ठ शक्ति को कार्य में लगाओ।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त करने वाली सफलता स्वरूप आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा बाप की ब्लैसिंग स्वत: ही प्राप्त होती रहे - उसकी विधि क्या है? ब्लैसिंग प्राप्त करने के लिए हर समय, हर कर्म में बैलेन्स रखो। जिस समय कर्म और योग दोनों का बैलन्स होता है तो क्या अनुभव होता है? ब्लैसिंग मिलती है ना। *ऐसे ही याद और सेवा दोनों का बैलेन्स है तो सेवा में सफलता की ब्लैसिंग मिलती है। अगर याद साधारण है और सेवा बहुत करते हैं तो ब्लैसिंग कम होने से सफलता कम मिलती है। तो हर समय अपने कर्म-योग का बैलेन्स चेक करो।*
〰✧ दुनिया वाले तो यह समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ है लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ ह्रैं। ऐसे कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त करेंगे। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। *क्योंकि योग का अर्थ ही है मन-बुद्धि की एकाग्रता। तो जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ कार्य की सफलता बंधी हुई है। अगर मन और बुद्धि एकाग्र नहीं हैं अर्थात् कर्म में योग नहीं है तो कर्म करने में मेहनत भी ज्यादा, समय भी ज्यादा और सफलता बहुत कम।*
〰✧ कर्मयोगी आत्मा को सर्व प्रकार की मदद स्वत: ही बाप द्वारा मिलती है। ऐसे कभी नहीं सोचो कि इस काम में बहुत बिजी थे इसलिए योग भूल गया। ऐसे टाइम पर ही योग आवश्यक है। अगर कोई बीमार कहे कि बीमारी बहुत बड़ी है इसीलिए दवाई नहीं ले सकता तो क्या कहेंगे? बीमारी के समय दवाई चाहिए ना। तो जब कर्म में ऐसे बिजी हो, मुश्किल काम हो उस समय योग, मुश्किल कर्म को सहज करेगा। तो ऐसे नहीं सोचना कि यह काम पूरा करेंगे फिर योग लगायेंगे। *कर्म के साथ-साथ योग को सदा साथ रखो। दिन-प्रतिदन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स नहीं होगा तो बुद्धि जजमेन्ट ठीक नहीं कर सकती। इसलिए योग और कर्म के बैलेन्स द्वारा अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाओ।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ वर्तमान समय का पुरुषार्थ क्या है? सुनना, सुनाना चलता रहता, *अभी अनुभवी बनना है।* अनुभवी का प्रभाव ज्यादा होता। वही बात अनुभवी सुनावे और वही बात सुनी हुई सुनावे तो अन्तर पड़ेगा ना? लोग भी अभी अनुभव करना चाहते। योग शिविर में विशेष अनुभव क्यों करते?
〰✧ क्योंकि *अनुभवी बनने का साधन है - सुनाने के साथ अनुभव कराया जाता है।* इससे रिज़ल्ट अच्छी निकलती है। जब आत्माएँ अनुभव चाहती है तो आप भी अनुभवी बनकर अनुभव कराओ। अनुभव कैसे हो? उसके लिए कौन - सा साधन अपनाना है? जैसे कोई इन्वेन्टर वह कोई भी इनवेन्शन निकालने के लिए बिल्कुल एकान्त में रहते है।
〰✧ तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है, तो *बाहर के आकर्षण से एकान्त चाहिए।* ऐसे नहीं सिर्फ कमरे में बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त हो। *मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना,* एकाग्र होना यही एकान्त है। एकान्त में जाकर इन्वेन्शन निकालते है न। चारों ओर के वायब्रेशन से परे चले जाते तो यहाँ भी स्वयं को आकर्षण से परे जाना पड़े।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म *करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्मबन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आवेंगे, बन्धन में नहीं।* सदा कर्म करते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करेंगे ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अभी भी अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त अर्थात् एक्जैम्पुल बनते हैं- *जिसको देखकर अनेक आत्मायें स्वयं भी कर्मयोगी बन जाती हैं और भविष्य में भी पूज्यनीय बन जाती हैं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप का प्यार लेने आत्म-अभिमानी होकर बैठना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एकांत में बैठ अपने मन को एकाग्रचित करती हूँ... इस देह से अपना ध्यान हटाती हुई भृकुटी पर अपना ध्यान केन्द्रित करती हूँ... धीरे-धीरे इस देह से बाहर निकलती हूँ...* मैं आत्मा इस देह रूपी आवरण से निकल प्रकाश की काया धारण कर इस देह की दुनिया से न्यारी होती हुई उड़ चलती हूँ सफ़ेद प्रकाश की दुनिया में... जहाँ चारों ओर सफ़ेद चमकीला प्रकाश फैला हुआ है... बापदादा सफ़ेद प्रकाशमय चमकीली काया में मुस्कुराहट बिखेरते हुए सफ़ेद बादलों के झूले में बैठे हैं... *मुझे देख बापदादा अपने साथ बादलों के झूले में बिठाते हैं... और झुला झुलाते हुए मीठी रूह रिहान करते हैं...*
❉ *विजयी रतन होने का वरदान देकर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *देह के भान में आने से ही विकारो में फंस गए और दुखो के घने जंगल में गुमराह से हो गए... अब मीठे बाबा के रूहानी संग में रुह का अभ्यास करो...* अपने सतरंगी रंगो का श्रृंगार करो और सतयुग के अथाह सुखो में मुस्कराते हुए शान से रहो...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सीपी से निकली मोती की तरह चमचमाती हुई अपने सत्य स्वरूप में स्थित होकर कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा आपकी श्रीमत को थामे देहभान के दलदल से बाहर निकल दुखो से मुक्त हो गई हूँ...* अपने सुंदर स्वरूप को बाबा से जानकर मै आत्मा मीठे बाबा पर मुग्ध हो गयी हूँ... और उनके मीठे प्यार में खो गयी हूँ...”
❉ *अपने सतरंगी किरणों से मेरे दिव्य स्वरूप को सजाते हुए मीठे जादूगर बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मिटटी के मटमैले पन ने पापो से लथपथ कर दिया... खुबसूरत सितारे अपने वजूद को खोकर धुंधले हो गए... अब *अपने सच्चे स्वरूप सच्ची चमक को मीठे पिता के साये में फिर से पा लो और 21 जनमो तक सुख आनन्द से लबालब हो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कांटो के रेगिस्तान से निकल मीठे रूहानी खुशियों के झरने में नाचती हुई कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अब सारे विकराल दुखो को भूल अपने सच्चे सौंदर्य में खिल उठी हूँ... *मै यह देह नही खुबसूरत प्यारी और पिता की दुलारी आत्मा हूँ इस नशे से भर गई हूँ... और खजाने पाकर मालामाल हो गयी हूँ..."*
❉ *सुखों के गगन में मुझे दिव्य सितारा बनाकर पूरे विश्व को रोशन करते हुए सुखों के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने आत्मिक स्वरूप को जितना यादो में ले आओगे उतना ही निखरते चले जाओगे... देह के भान में किये सारे विकर्मो से सहज ही मुक्त होते चले जायेंगे...* और सुखो के अम्बार अपने कदमो में बिछे पाओगे... पूरा विश्व आपका और आप मालिक बन मुस्करायेंगे..."
➳ _ ➳ *अपने निज धाम में निज पिता की गोद में अपने निज स्वरूप में जगमगाती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कितनी खुशनसीब हूँ कि स्वयं ईश्वर पिता मुझे सच बता रहा... मीठे पिता की गोद में मै आत्मा कितनी सुखी होकर बैठी हूँ... और *शरीर के झूठे भ्रम से निकल कर अपने आत्मिक स्वरूप को पाकर सच्ची खुशियो से भर उठी हूँ..."*
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बुद्धि को ज्ञान सागर मंथन में बिजी रखना है*"
➳ _ ➳ सागर के तले में छुपी अनमोल वस्तुयों जैसे सीप, मोती आदि को पाने के लिए एक गोताखोर को पहले उसकी गहराई में तो जाना ही पड़ता है। *जब तक गोताखोर पानी के ऊपरी हिस्से पर तैरता रहता है तब तक तेज लहरों, पानी की थपेड़ों और तूफानों का भी उसको सामना करना पड़ता है* परन्तु यदि वह इन सबकी परवाह किये बिना पानी की गहराई में उतरता चला जाता है तो नीचे गहराई में जा कर हर चीज शांन्त हो जाती है और वह सागर के तले में छुपी उन चीजों को प्राप्त कर लेता है।
➳ _ ➳ इस दृश्य को मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देखते - देखते मैं विचार करती हूँ कि जैसे स्थूल सागर की गहराई में अनमोल सीप, मोती आदि छुपे होते हैं इसी तरह से स्वयं *ज्ञान सागर भगवान द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान में भी कितने अनमोल खजाने छुपे हैं बस आवश्यकता है इन खजानों को ढूंढने के लिए इस अनमोल ज्ञान की गहराई में जाने की अर्थात विचार सागर मंथन करने की*। मलाई से भी मक्खन तभी निकलता है जब उसे पूरी मेहनत के साथ मथा जाता है तो यहां भी अगर विचार सागर मन्थन नही करेंगे तो ज्ञान रूपी मक्खन का स्वाद भी नही ले सकेंगे। *इसलिये विचार सागर मन्थन कर, ज्ञान की गहराई में जा कर, फिर उसे धारणा में लाकर अनुभवी मूर्त बनना ही ज्ञान सागर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का वास्तविक यूज़ है*।
➳ _ ➳ हम बच्चो को यह ज्ञान दे कर, हमारे दुखदाई जीवन को सुखदाई, मनुष्य से देवता बनाने के लिए स्वयं भगवान को इस पतित दुनिया, पतित तन में आना पड़ा। तो ऐसे भगवान टीचर द्वारा दिये जा रहे इस ज्ञान का हमे कितना रिगार्ड रखना चाहिए। *ज्ञान की एक - एक प्वाइंट पर विचार सागर मंथन कर उसे धारणा में ले कर आना और फिर औरों को धारण कराना ही भगवान के स्नेह का रिटर्न है*। और भगवान के स्नेह का रिटर्न देने के लिए ज्ञान का विचार सागर मन्थन कर, सेवा की नई - नई युक्तियाँ अब मुझे निकाल औरों को भी यह ज्ञान देकर उनका भाग्य बनाना है मन ही मन स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर ज्ञान सागर अपने प्यारे परमपिता परमात्मा शिव बाबा की याद में मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की तार बाबा के साथ जुड़ते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे ज्ञान सूर्य शिवबाबा मेरे सिर के ठीक ऊपर आ कर ज्ञान की शक्तिशाली किरणों से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *बाबा से आ रही सर्वशक्तियो रूपी किरणों की मीठी फुहारें जैसे ही मुझ पर पड़ती हैं मेरा साकारी शरीर धीरे - धीरे लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर मे परिवर्तित हो जाता हैं* और मास्टर ज्ञान सूर्य बन लाइट की सूक्ष्म आकारी देह धारण किये मैं फ़रिशता ज्ञान की रोशनी चारों और फैलाता हुआ सूक्ष्म लोक में पहुँच जाता हूँ और जा कर बापदादा के सम्मुख बैठ जाता हूँ।
➳ _ ➳ अपनी सर्वशक्तियों को मुझ में भरपूर करने के साथ - साथ अब बाबा मुझे विचार सागर मन्थन का महत्व बताते हए कहते हैं कि *"जितना विचार सागर मंथन करेंगे उतना बुद्धिवान बनेंगें और अच्छी रीति धारणा कर औरों को करा सकेंगे"*। बड़े प्यार से यह बात समझा कर बाबा मीठी दृष्टि दे कर परमात्म बल से मुझे भरपूर कर देते हैं। मैं फ़रिशता परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर औरों को आप समान बनाने की सेवा करने के लिए अब वापिस अपने साकारी तन में लौट आता हूँ।
➳ _ ➳ *अपने गॉडली स्टूडेंट स्वरूप को सदा स्मृति में रख अपने परमशिक्षक ज्ञान सागर शिव बाबा द्वारा दिये जा रहे ज्ञान को गहराई से समझने और उसे स्वयं में धारण कर फिर औरों को धारण कराने के लिए अब मैं एकांत में बैठ विचार सागर मंथन कर सेवा की नई - नई युक्तियाँ सदैव निकालती रहती हूँ*।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं नाम और मान की त्यागी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व का प्यार प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विश्व के भाग्य विधाता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा परमात्म बाप की बच्ची हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा बुद्धि रूपी पांव सदा तख्तनशीन रखती हूँ ।*
✺ *मैं परमात्मा की दिल तख्तनशीन आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *दूसरा है विनाशी स्नेह और प्राप्ति के आधार पर वा अल्पकाल के लिए सहारा
बनने के कारण लगाव वा झुकाव। यह भी लौकिक, अलौकिक दोनों सम्बन्ध में बुद्धि को
अपनी तरफ खींचता है।* जैसे लौकिक में देह के सम्बन्धियों द्वारा स्नेह मिलता
है, सहारा मिलता है,प्राप्ति होती है तो उस तरफ विशेष मोह जाता है ना। उस मोह
को काटने के लिए पुरूषार्थ करते हो, लक्ष्य रखते हो कि किसी भी तरफ बुद्धि न
जाए। लौकिक को छोड़ने के बाद अलौकिक सम्बन्ध में भी यही सब बातें बुद्धि को
आकर्षित करती हैं। अर्थात् बुद्धि का झुकाव अपनी तरफ सहज कर लेती हैं। यह भी
देहधारी के ही सम्बन्ध हैं। *जब कोई समस्या जीवन में आयेगी, दिल में कोई उलझन
की बात होगी तो न चाहते भी अल्पकाल के सहारे देने वाले वा अल्पकाल की प्राप्ति
कराने वाले,लगाव वाली आत्मा ही याद आयेगी। बाप याद नहीं आयेगा।*
➳ _ ➳ फिर से ऐसे लगाव लगाने वाली आत्मायें अपने आपको बचाने के लिए वा अपने को
राइट सिद्ध करने के लिए क्या सोचती और बोलती हैं कि बाप तो निराकार और आकार है
ना! साकार में कुछ चाहिए जरूर। *लेकिन यह भूल जाती हैं अगर एक बाप से सर्व
प्राप्ति का सम्बन्ध, सर्व सम्बन्धों का अनुभव और सदा सहारे दाता का अटल
विश्वास है, निश्चय है तो बापदादा निराकार या आकार होते भी स्नेह के बन्धन में
बाँधे हुए हैं। साकार रूप की भासना देते हैं।* अनुभव न होने का कारण? नॉलेज
द्वारा यह समझा है कि सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने हैं लेकिन जीवन में सर्व
सम्बन्धों को नहीं लाया है। इसलिए साक्षात् सर्व सम्बन्ध की अनुभूति नहीं कर
पाते हैं। जब भक्ति मार्ग में भक्त माला की शिरोमणी मीरा को भी साक्षात्कार नहीं
लेकिन साक्षात् अनुभव हुआ तो क्या ज्ञान सागर के डायरेक्ट ज्ञान स्वरूप बच्चों
को साकार रूप में सर्व प्राप्ति के आधार मूर्त, सदा सहारे दाता बाप का अनुभव नहीं
हो सकता! तो फिर सर्वशक्तिवान को छोड़ यथा शक्ति आत्माओं को सहारा क्यों बनाते
हो!
✺ *"ड्रिल :- सर्वशक्तिवान को छोड़ यथा शक्ति आत्माओं को अपना सहारा नहीं बनाना*”
➳ _ ➳ *“मेरे परमपिता परमात्मा सदाशिव निराकार, ओ आनन्द के सागर तेरी महिमा
अपरम्पार... तेरी महिमा अपरम्पार"... मैं आत्मा परमात्म प्यार में मगन होकर ये
गीत गाती हुई झुला झूल रही हूँ...* याद करते ही बापदादा मुस्कुराते हुए मेरे
बाजू में झूले में बैठ जाते हैं... मैं आत्मा तुरंत बाबा की गोदी में बैठ जाती
हूँ... बाबा की गोदी के झूले में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर रही हूँ...
➳ _ ➳ बाबा की गोदी में मैं आत्मा कितना सुख, शांति का अनुभव कर रही हूँ...
कितना आराम, कितना सुकून मिल रहा है... बाबा के प्यार में, स्नेह में मैं आत्मा
डूबती जा रही हूँ... बाबा साकार रूप की भासना दे रहे हैं... *मैं आत्मा एक बाबा
से सर्व सम्बन्धों का अनुभव कर रही हूँ... बाबा ही मेरे मात-पिता, शिक्षक,
सतगुरु, साथी, साजन हैं...* बाबा से सर्व प्राप्तियों का अनुभव हो रहा है...
➳ _ ➳ *बाबा के अविनाशी स्नेह में मुझ आत्मा का विनाशी संबंधो का स्नेह खत्म हो
रहा है... मुझ आत्मा से लौकिक, अलौकिक दोनों संबंधो में आकर्षण मिट रहा है...*
ज्ञान सागर से प्राप्त ज्ञान को पाकर मैं आत्मा ज्ञान स्वरुप बन गई हूँ... मुझ
आत्मा की बुद्धि अब देहधारियों के मोह में नहीं पड़ रही हैं... अब एक बाबा का
प्यार ही मुझ आत्मा की बुद्धि को अपनी तरफ खींचता है... मैं आत्मा मन-बुद्धि से
पूरी तरह बाबा को समर्पित हो चुकी हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है, सर्वस्व
है...
➳ _ ➳ अब कोई भी समस्या जीवन में आये या दिल में कोई उलझन की बात हो तो मैं
आत्मा अल्पकाल के लिए सहारा देने वाले देहधारियों को याद नहीं करती हूँ... एक
बाबा को ही याद करती हूँ... बाबा से ही अपने दिल की हर बात को शेयर करती हूँ...
*अल्पकाल सहारा देने वाले आत्माओं को छोड़ एक सर्वशक्तिवान बाबा को ही दिल से
अपना सहारा बनाती हूँ... मैं आत्मा बाबा में अटल विश्वास, सम्पूर्ण निश्चय रख
हर परिस्थिति में बाबा की मदद का अनुभव कर रही हूँ...* बड़ी से बड़ी परिस्थिति को
भी सहज ही पार कर रही हूँ...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━