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❍ 20 / 06 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *झरमुई झगमुई की बातिएँ तो नहीं सुनी ?*
➢➢ *"हम 21 जन्म निरोगी बनेंगे" - इसी नशे व ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *याद के जादू मन्त्र द्वारा सर्व सिद्धियाँ प्राप्त की ?*
➢➢ *सेकंड में विस्तार को सार रूप में समाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जितना स्थापना के निमित्त बने हुए ज्वाला-रुप होंगे उतना ही विनाश-ज्वाला प्रत्यक्ष होगी। संगठन रुप में ज्वाला-रुप की याद विश्व के विनाश का कार्य सम्पन्न करेगी। इसके लिए *हर सेवाकेन्द्र पर विशेष योग के प्रोग्राम चलते रहे तो विनाश ज्वाला को पंखा लगेगा। योग-अग्नि से विनाश की अग्नि जलेगी, ज्वाला से ज्वाला प्रज्जवलित होगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं एक बल, एक भरोसा वाली निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*
〰✧ सभी अपने को एक बल एक भरोसा-ऐसे अनुभव करते हो? एक बाबा दूसरा न कोई-यह पक्का है ना। या बाबा भी है तो बच्चे भी हैं, सम्बन्धी भी हैं? जब बच्चे हैं, पति है, सासू-ससुर हैं - इतने सारे हैं तो एक कैसे हुआ? सामने हैं, देख रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, फिर एक कैसे हुआ? *ये मेरे नहीं हैं लेकिन बाप ने सेवा के लिये दिये हैं-ऐसी दृष्टि-वृत्ति रखने से एक ही याद रहेगा। चाहे कितने भी हों, कौन भी हों, लेकिन सभी बाप के बच्चे हैं और हमको सेवा के लिये ये आत्मायें मिली हैं। बाप ने सेवा अर्थ निमित्त बनाया है। घर में नही रहे हुए हो लेकिन सेवा-स्थान पर रहे हुए हो।*
〰✧ *मेरा सब तेरा हो गया। मेरा कुछ नहीं, शरीर भी मेरा नहीं। जब मेरा है ही नहीं तो बोडी-कोन्सेस कैसे हो सक्ता है।मेरे में ही आकर्षण होती है। जब मेरा समाप्त हो जाता है तो मन और बुद्धि को अपनी तरफ खींच नहीं सकते हैं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् मेरे को तेरे में बदलना।* तो बार-बार यह चेक करो कि तेरा, मेरा तो नहीं बन गया? अगर मेरापन नहीं होगा, तेरा ही है तो डबल लाइट होंगे। अगर थोड़ा भी बोझ अनुभव करते हो तो समझो-मेरापन मिक्स हो गया है। भक्ति में कहते हैं कि सब-कुछ तेरा।
〰✧ ब्राह्मण जीवन में कहना नहीं है, करना है। यह करना सहज है ना। बोझ देना सहज होता है या लेना सहज होता है? *तेरा कहना माना बोझ देना और मेरा कहना माना बोझ लेना। तो अभी एक बल एक भरोसा। बस, एक ही एक। एक लिखना सहज है ना।* तो यह तेरा-तेरा कहने वाला ग्रुप है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ अभी समय अनुसार अनेक प्रकार के लोग चेकिंग करने आयेंगे। संगठित रूप में जो चैलेन्ज करते हो कि हम सब ब्राह्मण एक की याद में एकरस स्थिति में स्थित होने वाले हैं - *तो ब्राह्मण संगठन की चेकिंग होगी।*
〰✧ इन्डीविज्युवल तो कोई बडी बात नहीं है लेकिन आप सब विश्व कल्याणकारी विश्व परिवर्तक हो - *विश्व संगठन, विश्व कल्याणकारी संगठन विश्व को अपनी वृत्ति वा वायब्रेशन द्वारा वा अपने स्मृति स्वरूप के समर्थी द्वारा कैसे सेवा करते हैं - उसकी चेकिंग करने बहुत आयेंगे।* आज की साइंस द्वारा साइलेन्स शक्ति का नाम बाला होगा।
〰✧ योग द्वारा शक्तियाँ कौन-सी और कहाँ तक फैलती है उनकी विधि और गति क्या होती है यह सब प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। ऐसे संगठन तैयार हैं? *समय प्रमाण अब व्यर्थ की वातों को छोड समर्थी स्वरूप वनो।* ऐसे विश्व सेवाधारी बनो। इतना बडा कार्य जिसके लिए निमित बने हुए हो उसको स्मृति में रखो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ 'कर्मभोग है', 'कर्मबन्धन है', 'संस्कारों का बन्धन है', ‘संगठन का बन्धन है' - इस व्यर्थ संकल्प रूपी जाल को अपने आप ही इमर्ज करते हो और अपने ही जाल में स्वयं फंस जाते हो, फ़िर कहते है कि अभी छुड़वाओ। *बाप कहते हैं कि तुम हो ही छूटे हुए। छोड़ो तो छूटो।* अब निर्बन्धनी हो या बन्धनी हो। *पहले ही शरीर छोड़ चुके हो, मरजीवा बन चुके हो।* यह तो सिर्फ विश्व की सेवा के लिए शरीर रहा हुआ है, पुराने शरीरों में बाप शक्ति भर कर चला रहे हैं। ज़िम्मेवारी बाप की है, फिर आप क्यों ले लेते हो। *ज़िम्मेवारी सम्भाल भी नहीं सकते हो लेकिन छोड़ते भी नहीं हो। ज़िम्मेवारी छोड़ दो अर्थात् मेरा-पन छोड़ दो।* मेरा पुरुषार्थ, मेरा इन्वेन्शन, मेरी सर्विस, मेरी टचिंग, मेरे गुण बहुत अच्छे हैं, मेरी हैन्डलिंग-पॉवर बहुत अच्छी है। मेरी निर्णय शक्ति बहुत अच्छी है। मेरी समझ ही यथार्थ है। बाकी सब मिसअन्डरस्टैन्डिग में हैं। *यह मेरा-मेरा आया कहाँ से? यही रॉयल माया है, इससे मायाजीत बन जाओ तो सेकेण्ड में प्रकृति जीत बन जावेंगे। प्रकृति का आधार लेंगे लेकिन अधीन नहीं बनेंगे। प्रकृतिजीत ही विश्व जीत व जगतजीत है। फिर एक सेकेण्ड का डायरेक्शन अशरीरी भव का सहज और स्वत: हो जावेगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- फ़ालतू बातों में टाइम वेस्ट ना करना"*
➳ _ ➳ *एकांत में बैठी मैं आत्मा घडी की टिक-टिक को सुन रही हूँ... घडी की टिक-टिक जैसे कह रही हो समय बड़ा अनमोल, समझो इसका मोल... कोई भी पल खो न जाए, गया समय फिर हाथ न आए...* हर घडी अंतिम घडी की स्मृति से मैं आत्मा इस स्थूल देह को छोड़ सूक्ष्म शरीर धारण कर, इस स्थूल दुनिया को छोड़ सूक्ष्म वतन में प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ... मीठे मीठे बाबा संगमयुग के एक-एक सेकंड के अनमोल समय के महत्व को समझा रहे हैं...
❉ *प्यारे बाबा टाइम वेस्ट ना करने की समझानी देते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादो में महकने और खिलने के खुबसूरत लम्हों में सदा ज्ञान के सुरीले नाद से आत्माओ को मन्त्रमुग्ध करना है... *सबका जीवन खुशियो से खिल उठे, सदा इस सुंदर चिंतन में ही रहना है... ईश्वर पिता के साथ भरे इस मीठे समय को सदा यादो से ही संजोना है...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक बाप की याद में रह टाइम आबाद करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपकी यादो में दीवानी सी... *ज्ञान रत्नों की बौछार सदा साथ लिए, खुशियो के आसमाँ से, आत्माओ के दिल पर बरस रही हूँ... सबको मीठे बाबा का परिचय देकर हर पल पुण्यो की कमाई में जीजान से जुटी हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा संगम युग की सुहावनी घड़ियों को सफल करने का राज बतलाते हुए कहते है:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *विश्व पिता के प्यार से लबालब, संगम का यह अनोखा अदभुत समय. संसार की व्यर्थ बातो में, भाग्य के हाथो से, यूँ रेत सा न फिसलाओ...* ज्ञानी तू आत्मा बनकर ज्ञान की झनकार पूरे विश्व को सुनाओ... ईश्वर पिता के साथ विश्व सेवा कर 21 जनमो का महाभाग्य पाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञानी तू आत्मा बन बाबा के ज्ञान रत्नों को चारों ओर बांटते हुए कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपसे पाये अमूल्य रत्नों को पूरे विश्व में बिखेर कर सतयुगी बहार ला रही हूँ... *हर पल यादो में खोयी हुई खुशियो में चहक रही हूँ... और ज्ञानी आत्मा बनकर अपनी रूहानी रंगत से बापदादा को प्रत्यक्ष कर रही हूँ...”*
❉ *मेरे बाबा मुझ पर वरदानों की रिमझिम बरसात करते हुए कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... सारे कल्प का कीमती और वरदानी समय सम्मुख है... जिसे कन्दराओं में जाकर ढूंढ रहे थे, दर्शन मात्र को व्याकुल थे... *वो पिता दिलजान से न्यौछावर सा दिल के इतना करीब है... जो चाहा भी न था वो भाग्य खिल उठा है... इस मीठे भाग्य के नशे में खो जाओ, सबको ऐसा भाग्यशाली बनाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची सच्ची रूहानी सेवाधारी बन सारे विश्व में खुशियों को बाँटती हुई कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चा सुख पाकर 21 जनमो की खुशनसीब बन गयी हूँ... और यह ख़ुशी हर घर के आँगन में उंडेल रही हूँ... *सारा विश्व खुशियो से भर जाये... हर दिल ईश्वरीय प्यार भरा मीठा और सच्चा सुख पाये... यह दस्तक हर दिल को दे रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *ड्रिल :- मुख से सदैव रत्न निकालने हैं पत्थर नही*"
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करने वाले ज्ञान सागर *अपने प्यारे शिव प्रीतम से मिलने की जैसे ही मन में इच्छा जागृत होती है। वैसे ही मैं आत्मा सजनी ज्ञान रत्नों का सोलह श्रृंगार कर चल पड़ती हूँ ज्ञान के अखुट खजानो के सौदागर अपने शिव प्रीतम के पास*। उनके साथ अपने प्यार की रीत निभाने के लिए देह और देह के साथ जुड़े सर्व संबंधों को तोड़, निर्बंधन बन, ज्ञान की पालकी में बैठ मैं आत्मा मन बुद्धि की यात्रा करते हुए अब जा रही हूं उनके पास।
➳ _ ➳ उनका प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं बरबस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ। *उनके प्यार में अपनी सुध-बुध खो चुकी मैं आत्मा सजनी सेकंड में इस साकार वतन और सूक्ष्म वतन को पार कर पहुंच जाती हूं परमधाम अपने शिव साजन के पास*। ऐसा लग रहा है जैसे वह अपनी किरणों रूपी बाहें फैलाए मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। उनके प्यार की किरणों रूपी बाहों में मैं समा जाती हूं। उनके निस्वार्थ और निश्छल प्यार से स्वयं को भरपूर कर, तृप्त होकर मैं आ जाती हूँ सूक्ष्म लोक।
➳ _ ➳ लाइट का फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूं अव्यक्त बापदादा के सामने। अव्यक्त बापदादा की आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही है। *बाबा कह रहे हैं, हे आत्मा सजनी आओ:- "ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए मेरे पास आओ"।* बाप दादा की आवाज सुनकर मैं फ़रिशता उनके पास पहुंचता हूं। बाबा अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगते हैं और अपनी सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर करने लगते हैं।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करके बाबा अब मुझे एक बहुत बड़े हॉल के पास ले आते हैं। जिसमें अमूल्य हीरे जवाहरात, मोती, रत्न आदि बिखरे पड़े हैं। किंतु उस पर कोई भी ताला चाबी नहीं है। उनकी चमक और सुंदरता को देखकर मैं आकर्षित होकर उस हॉल के बिल्कुल नजदीक पहुंच जाता हूं। *बाबा मुझे उस हॉल के अंदर ले जाते हैं और मुझसे कहते हैं:- "ये अविनाशी ज्ञान रत्न है। इन अविनाशी रत्नों का ही आपको श्रृंगार करना है"।* कितना लंबा समय अपने अविनाशी साथी से अलग रहे तो श्रृंगार करना ही भूल गए, अविनाशी खजानों से भी वंचित हो गए। किंतु अब बहुत काल के बाद जो सुंदर मेला हुआ है तो इस मेले से सेकेंड भी वंचित नहीं रहना।
➳ _ ➳ यह कहकर बाबा उन ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारने लगते हैं। *मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर बाबा मुझे सर्व ख़ज़ानों से भरपूर करने लगते है*। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से अब मैं फ़रिशता स्वयं को भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर बाबा खुशी से फूले नही समा रहे। बाबा जो मुझ से चाहते हैं, बाबा की उस आश को मैं आत्मा सजनी बाबा के नयनो में स्पष्ट देख रही हूं।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने शिव प्रीतम से मैं वादा करती हूँ कि ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी हुई रहूँगी और मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालूंगी। *अपने शिव साथी से यह वादा करके अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार अब धीरे-धीरे मैं आत्मा वापिस इस देह में अवतरित हो गयी हूँ*। अब मैं बाबा से मिले सर्व ख़ज़ानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। जैसे मेरे अविनाशी साजन ने मुझ आत्मा को गुणों और शक्तियों के गहनों से सजाया है वैसे ही मैं आत्मा भी वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी परमात्म स्नेह और शक्तियों का अनुभव करवा रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं याद के जादू मंत्र द्वारा सर्व सिद्धिया प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सिद्धि स्वरूप आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदैव सेकंड में विस्तार को सार रूप में समा लेती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा अंतिम सर्टिफिकेट प्राप्त करती हूँ ।*
✺ *मैं बिंदु स्वरूप आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *जैसे लौकिक दुनिया में भी उच्च रॉयल कुल की आत्मायें कोई साधारण चलन नहीं
कर सकतीं वैसे आप सुकर्मी आत्मायें विकर्म कर नहीं सकतीं।* जैसे हद के वैष्णव
लोग कोई भी तामसी चीज स्वीकार कर नहीं सकते, ऐसे विकर्माजीत विष्णुवंशी -
विकर्म वा विकल्प का तमोगुणी कर्म वा संकल्प नहीं कर सकते। यह ब्राह्मण धर्म के
हिसाब से निषेध है। *आने वाली जिज्ञासु आत्माओं के लिए भी डायरेक्शन लिखते हो
ना कि सहज योगी के लिए यह-यह बातें निषेध हैं तो ऐसे ब्राह्मणों के लिए वा अपने
लिए क्या-क्या निषेध हैं वह अच्छी तरह से जानते हो?* जानते तो सभी हैं और मानते
भी सभी हैं लेकिन चलते नम्बरवार हैं।
✺ *"ड्रिल :- अच्छे से मनन करना कि मुझ ब्राह्मण आत्मा के लिए क्या क्या निषेध
है।”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा इंद्रियों की विषयासक्ति में फंसे हुए चंचल मन को खींचकर आत्म
चिंतन में लगाती हूं... भृकुटी के अकाल तख्त पर विराजमान बिंदु रूप-ज्योति
स्वरुप आत्मा पर मन को एकाग्र करती हूं...* व्यर्थ विचारों के आवेग पर अंकुश
लगाकर मैं आत्मा बाबा का आह्वान करती हूं... बाबा मुझे अपने साथ हिस्ट्री हॉल
लेकर चलते हैं... बाबा हिस्ट्री हॉल में संदली पर बैठकर मुरली चला रहे हैं...
बाबा मुरली के माध्यम से मुझे गुह्य-गुह्य बातें समझा रहे हैं...
➳ _ ➳ बाबा कहते हैं कि बच्चे इस लौकिक दुनिया में भी उच्च रॉयल कुल की आत्मायें
हमेशा उच्च रॉयल चलन ही चलती हैं वो कभी भी साधारण चलन नहीं चलते हैं... वैसे
तुम तो विकर्माजीत विष्णुवंशी कुल की आत्मायें हो तो तुम कभी कोई भी विकर्म वा
विकल्प का तमोगुणी कर्म वा संकल्प नहीं कर सकते... *तुम श्रेष्ठ, ऊँचे ते ऊँचे
ब्राह्मण कुल की आत्मा हो... विकारों के वश होकर कोई भी तमोगुणी कर्म करना
ब्राह्मण धर्म के हिसाब से निषेध है...* सहज योगी आत्मा बनना है तो सम्पूर्ण
पवित्र बनो... सतोगुणी संस्कारों को धारण करो...
➳ _ ➳ बाबा मुरली चलाते हुए साथ-साथ मुझे दृष्टि देते जा रहे हैं... मैं आत्मा
मगन होकर बाबा की मुरली के एक-एक महावाक्य ध्यान से सुन रही हूँ... और स्वयं
में धारण कर रही हूँ... *मैं आत्मा चेक करती हूँ कि अमृतवेले से लेकर रात तक
मैं आत्मा श्रेष्ठ कर्म कर रही हूँ या कोई व्यर्थ कर्म करती हूँ... क्या मैं
आत्मा जो भी ब्राह्मणों के लिए निषेध है उन कार्यों को तो नहीं कर रही हूँ...
क्या मैं श्रीमत पर चल रही हूँ?* या मैं परमत, मनमत में आ जाती हूँ...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने एक-एक कर्मेन्द्रिय को चेक करती हूँ... क्या मेरी आंखे न
देखने वाली चीजों को तो नहीं देखती हैं... क्या मेरा मुख दूसरों के अवगुणों का
वर्णन तो नहीं करती है... मेरे कान व्यर्थ बातों को तो नहीं सुन रहा... क्या
मेरी जिह्वा निषेधित पदार्थों को खाने में, बाहर के खाने का लोभ तो नहीं रखती...
*काम, क्रोध, अंहकार जैसे विकारों का अंश तो बाकी नहीं है... परचिन्तन, परदर्शन
में पड़कर क्या मैं आत्मा अपना अमूल्य समय व्यर्थ तो नहीं गंवा रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्वयं की चेकिंग करती हुई साथ-साथ चेंज करती जाती हूँ... बाबा
की दृष्टि से, मस्तक से दिव्य किरणों रूपी फव्वारे मुझ पर पड़ रहे हैं... मुझ
आत्मा से सारी नकारात्मक एनर्जी बाहर निकल रही है... मुझ आत्मा की दृष्टि,
वृत्ति, बोल, कर्म, चलन से साधारणता खत्म हो रही है... मैं आत्मा बाबा के दिव्य
किरणों से दैवीय गुणों को धारण कर रही हूँ... मैं आत्मा अपनी कर्मेन्द्रियों पर
अपना अधिकार जमाकर स्वराज्य अधिकारी बन गई हूँ... और उनको अपने आर्डर और श्रीमत
प्रमाण चला रही हूँ... *अब मैं आत्मा जो भी ब्राह्मणों के लिए श्रीमत रूपी
मर्यादाएं हैं उन पर ख़ुशी-ख़ुशी चल रही हूँ... और बाबा का हाथ और साथ पाकर हर
कर्म को सुकर्म बनाकर सफलता प्राप्त कर रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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