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❍ 20 / 07 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *इर्ष्या छोड़ आपस में बहुत प्यार से मिलकर रहे ?*
➢➢ *भ्रमरी की तरह ज्ञान की भू भू कर कीड़ों को आप समान बनाने की सेवा की ?*
➢➢ *आलमाईटी सत्ता के आधार पर आत्माओं को मालामाल किया ?*
➢➢ *सम्पूरणता की बधाईयान मनाई ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अभी आप बच्चों को दो प्रकार के कार्य करने हैं-एक तो आत्माओं को योग्य और योगी बनाना है, दूसरा धरणी को भी तैयार करना है। इसके लिए विशेष वाणी के साथ-साथ वृत्ति को और तीव्र गति देनी पड़ेगी क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा,* तब तैयार होंगे। वाणी और वृत्ति दोनों साथ-साथ सेवा में लगे रहें।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं मालिकपन और बालकपन के नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा मालिकपन और बालकपन के नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *जब चाहो मालिकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तो बालकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसा अनुभव है? या जिस समय बालक बनना हो उस समय मालिक बन जाते और जिस समय मालिक बनना हो उस समय बालक बन जाते?* जब चाहो, जैसे चाहो वैसी स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसे है? क्योंकि यह डबल नशा सदा ही निर्विग्न बनाने वाला है। जब भी कोई विघ्न आता है तो उस समय जिस स्थिति में स्थित होना चाहिए, उसमें स्थित न होने कारण विघ्न आता है।
〰✧ विघ्न-विनाशक आत्मायें हो या विघ्न के वश होने वाली हो? सदैव यह स्मृति में रखो कि हमारा टाइटल ही है 'विघ्नविनाशक'। विघ्न-विनाशक आत्मा स्वयं कैसे विघ्न में आयेगी? चाहे कोई कितना भी विघ्न रूप बनकर आये लेकिन आप विघ्न विनाश करेंगे। *सिर्फ अपने लिये विघ्न-विनाशक नहीं हो लेकिन सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। विश्व-परिवर्तक हो। तो विश्व-परिवर्तक शक्तिशाली होते हैं ना।* विघ्न को कमजोर बनाने वाले हो, स्वयं कमजोर बनने वाले नहीं। अगर स्वयं कमजोर बनते हो तो विघ्न शक्तिशाली बन जाता है और स्वयं शक्तिशाली हो तो विघ्न कमजोर बन जाता है।
〰✧ तो सदा अपने मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप की स्मृति में रहो। सुना तो बहुत है, बाकी क्या रहा? बनना। सुनने का अर्थ ही है बनना। तो बन गये हो? बाप भी ऐसे शक्तिशाली बच्चों को देख हर्षित होते हैं। लौकिक में भी बाप को कौनसे बच्चे प्यारे लगते हैं? जो आज्ञाकारी, फालो फादर करने वाले होंगे। तो आप कौन हो? फालो फादर करने वाले हो। *फालो करना सहज होता है ना। बाप ने कहा और बच्चों ने किया। सोचने की भी आवश्यकता नहीं। करें, नहीं करें, अच्छा होगा, नहीं होगा-यह सोचने की भी आवश्यकता नहीं। फालो करना सहज है ना। हर कर्म में क्या-क्या फालो करो और कैसे करो-यह भी सभी को स्पष्ट है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ साइंस की शक्ति के अनुभव हो? *साइंस की शक्ति से विनाश, साइलेंस की शक्ति से स्थापना।* तो ऐसे समझते हो कि हम अपनी साइलेंस की शक्ति द्वारा स्थापना का कार्य कर रहे हैं। हम ही स्थापना के कार्य के निमित है तो *स्वयं साइलेंस रूप में स्थित रहेंगे तब स्थापना का कार्य कर सकेंगे।* अगर स्वयं हलचल में आते तो स्थापना का कार्य सफल नहीं हो सकता। की शक्ति के अनुभवी हो?
〰✧ कैसी भी अशान्त आत्मा को शान्त स्वरूप होकर शान्ति की किरणें दो तो अशान्त भी शान्त हो जाए। *शान्ति स्वरूप रहना अर्थात शान्ति की किरणें सबको देना।* यही काम है। विशेष शान्ति की शक्ति को बढाओ। *स्वयं के लिए भी औरों के लिए भी शान्ति के दाता बनो।* भक्त लोग शान्ति देव कहकर याद करते हैं ना? देव यानी देने वाले। जैसे बाप की महिमा है शान्ति दाता, वैसे *आप भी शान्ति देवा हो। यही सबसे बड़े ते बडा महादान है।*
〰✧ जहाँ शान्ति होगी वहाँ सब बातें होंगी। तो सभी शान्ति देवा हो, अशान्त वातावरण में रहते स्वयं भी शान्त स्वरूप और सबको शान्त बनाने वाले, जो बापदादा का काम है, वही बच्चों का काम है। *वापदादा अशान्त आत्माओं को शान्ति देते हैं तो वच्चों को भी फॉलो फादर करना है।* व्राह्मणों का धन्धा ही यही है। अच्छा। (पार्टियों के साथ)
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *यह (अपसेट होना) निशानी है तख्तनशीन अर्थात् तख्त पर सेट न होने की। तख्तनशीन आत्मा को व्यक्ति तो क्या लेकिन प्रकृति भी अपसेट नहीं कर सकती। माया का तो नाम निशान ही नहीं। तो ऐसे तख्तनशीन ताजधारी वरदानी आत्मायें होना।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सर्विस में तत्पर रहना”*
➳ _ ➳ *समुन्दर के किनारे बैठ मैं आत्मा लहरों को देखते हुए अंतर्मन की गहराईयों में पहुँच जाती हूँ... और विचार करती हूँ की मेरे परमप्रिय परमपिता परमात्मा परमधाम से आकर ज्ञान का सागर बन मुझ पर ज्ञान वर्षा कर मेरी अज्ञानता को दूर कर रहे हैं...* एक बूंद प्यासी को प्यार का, आनंद का सागर बन प्यार बरसा रहे हैं... सुख, शांति का सागर बन मेरे जीवन की दुःख, अशांति को दूर कर रहे हैं... पवित्रता के सागर बन पतित से पावन बना रहे हैं... शक्तियों का सागर बन शक्तियों से सम्पन्न बना रहे हैं... *विचार करते करते सर्व गुणों, शक्तियों के सागर में डुबकी लगाने पहुँच जाती हूँ उस महासागर के पास...*
❉ *प्यारे बाबा ज्ञान की शंख ध्वनि कर आप समान बनाने की सर्विस करने की शिक्षा देते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... यादो के गहरे बादल बनकर फिर बरसना है... ईश्वरीय प्यार के प्याले को खुद पीकर फिर दूसरो को भी इस नशे में डुबोना है... *प्यारे बाबा से दिलोजान से प्यार करते हुए सबपर प्यार का रंग चढ़ाना है... और ईश्वरीय प्रेम की दीवानगी में अथक बनकर सबको ऐसा दीवाना बनाना है...”*
➳ _ ➳ *मेरे जीवन के सहारे मेरे मनमीत बाबा के हर बात को कर्म में लाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा जो कभी प्रेम की बून्द को तरसती थी आज प्यार के सागर को पाकर प्रेम की बदली हो गई हूँ... हर दिल पर प्रेम वर्षा कर रही हूँ... *मै अथक बदली हूँ और सबको खुशियो के फूल खिलाने वाली आप समान बदली बना रही हूँ...”*
❉ *मीठे बाबा अपनी मीठी मीठी शीतल किरणों से जीवन को अथाह खुशियों से भरते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो की खुशबु से स्वयं महककर सबका जीवन महकाओ... इन सच्ची खुशियों का पता हर दिल को दे आओ... *मीठी यादो में खुद को भरपूर कर इन खजानो से सबके दामन भी भर आओ... पूरे विश्व के थके दुखी बच्चों को सुखो की राह दिखा आओ...”*
➳ _ ➳ *प्यार की बरसात कर प्यासे दिलों को सुख, शांति के सुमन से महकाते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा...मै आत्मा इन मीठी खुशियो में खिलकर सबके दिलो को खिला रही हूँ... प्यारा बाबा सदा के दुःख दूर करने धरा पर आ गया है...ईश्वरीय नशे में डूबी मै आत्मा... यह मीठी दस्तक हर दिल पर देती जा रही हूँ...”
❉ *सद्ज्ञान देकर जीवन को ज्योतिर्मय कर रूहानी दौलत से सम्पन्न बनाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *रूहानी सर्विस के साथ साथ स्वयं की खूबसूरत स्थिति का हर पल ख्याल करो... गहरी यादो से भरी स्थिति ही सच्ची सर्विस का आधार है...* अपने पुरुषार्थ को बढ़ाते हुए औरो के मददगार बनो... यादो से भरे गहरे बादल ही आत्माओ को सुख की अनुभूति देकर सच्चे पिता का परिचय देने में सक्षम होंगे...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पंछी बन बाबा की मधुर मीठी तान सबको सुनाकर सच्चे प्रेम के एहसासों में डुबोते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपसे ज्ञान और योग के पंख पाकर अनन्त खुशियो के आसमान में ऊँची उड़ान भर रही हूँ... *गुणो और शक्तियो के खजाने से भरपूर होकर सबको खुशियो का पता दिए चली जा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भ्रमरी की तरह ज्ञान की भूं - भूं कर कीड़ो को आप समान बनाने की सेवा करनी है*
➳ _ ➳ परमात्म प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सजनी अपने शिव साजन के प्यार की मीठी यादों में खोई एक सुंदर से उपवन में बैठी हूँ। *अपने साजन के प्यार के मधुर एहसास को याद कर मन ही मन मैं गद - गद हो रही है। मन मे खुशी की शहनाइयाँ बज रही है। ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति भी मुझे अपने प्यारे पिया के साथ मिलन करता देख सुन्दर साज बजा रही है*। ठंडी - ठंडी हवायें भी जैसे मेरे साथ परमात्म मिलन के मधुर क्षणों का आनन्द ले रही हैं। हवाओं में भी जैसे परमात्म प्यार का रंग घुल गया है। चारों तरफ वायुमण्डल में एक रूहानी मस्ती छाई हुई है। *एक मीठी - मीठी खुमारी मुझ आत्मा पर छा रही है जो मुझे विदेही बनाती जा रही है। दैहिक आकर्षण से मुक्त होकर अपने अनादि बिंदु स्वरूप में मैं स्थित होने लगी हूँ*।
➳ _ ➳ निराकारी स्थिति में स्थित होकर, अपने निराकार स्वरूप को निहारते हुए, अपने सत्य स्वरूप का मैं आनन्द ले रही हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न मेरा वास्तविक स्वरूप जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी। *देह भान रूपी मायाजाल में उलझ कर अपने जिन अनादि गुणों और शक्तियों को भूल गई थी। आज अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर उनका अनुभव करके मैं जैसे तृप्त हो गई हूँ। देख रही हूँ अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों को जो प्रकाश की रंग बिरंगी किरणों के रूप में मुझ आत्मा से निकल रहे हैं*। एक - एक रंग की किरण मेरे एक - एक गुण और शक्ति का मुझे गहन अनुभव करवा रही है। सुख, शांति, प्रेम, आनन्द, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति इन सातों गुणों की किरणों को चारों ओर फैलाते हुए मैं आत्मा अब धीरे - धीरे देह और देह की दुनिया को छोड़ अपने पिता के पास जा रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने अति सुंदर, उज्ज्वल स्वरूप में, दिव्य गुणों की महक चारों और फैलाते हुए, ज्ञान सागर अपने शिव पिता से मिलने की लगन में मगन मैं आत्मा ज्ञान और योग के सुंदर पंख लगा कर, अपनी निराकारी दुनिया की ओर उन्मुक्त होकर उड़ती जा रही हूँ। *सारे विश्व का चक्कर लगाकर, नीले गगन को पार करते हुए, फ़रिशतो की दुनिया से भी परें, अपने स्वीट साइलेन्स होम में मैं पहुँच गई हूँ। गहन शन्ति की इस दुनिया में कुछ क्षण गहन शांति का अनुभव करके अब मैं आत्मा अपने बुद्धि रूपी बर्तन को ज्ञान से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ*।
➳ _ ➳ अनन्त रंग बिरंगी किरणों के रूप में ज्ञान सागर मेरे शिव पिता के ज्ञान की वर्षा मुझ पर हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा ज्ञान की शक्तिशाली किरणे मुझ आत्मा में प्रवाहित करके मुझे आप समान मास्टर ज्ञान का सागर बना रहे हैं। ज्ञान की रिमझिम फुहारों का आनन्द लेने के साथ - साथ ज्ञान रत्नों को मैं अपने अंदर भरती जा रही हूँ। *मेरे शिव पिया के ज्ञान की शीतल फ़ुहारों की शीतलता मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति और ताजगी पैदा कर रही है। इस ज्ञान बरसात से मेरे चारो और इंद्रधनुषी रंगों का एक सुन्दर औरा निर्मित हो रहा है जिसमे से सुख, शांति पवित्रता के वायब्रेशन्स निकल कर चारो और फैल रहें है जो मन को गहन सुख और शांति की अनुभूति करवा रहे है*। इस शक्तिशाली औरे के साथ अब मैं आत्मा परमधाम से साकार लोक की ओर वापिस आ रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकारी ब्राह्मण तन में अब मैं भृकुटि के अकालतख्त पर विराजमान हूँ। मास्टर ज्ञान सागर बन अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा पर ज्ञान की बरसात कर रही हूँ। स्वयं को ज्ञान सागर अपने शिव पिता के साथ कम्बाइंड अनुभव करते, सदा ज्ञान की रिमझिम में रहते, ज्ञान के रंग में स्वयं को रंगकर अब मैं भ्रमरी मिसल सबको ज्ञान रंग लगाने की सेवा कर रही हूँ। सबको परमात्म प्यार का रंग लगाकर उनके बेरंग जीवन को खुशी और आनन्द से भरकर उन्हें नवजीवन देने की ईश्वरीय सेवा अब मैं निरन्तर कर रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं ऑलमाइटी सत्ता के आधार पर आत्माओं को मालामाल बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं पुण्य आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा संपूर्णता की बधाईयां मनाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा समय, प्रकृति और माया को विदाई लेते अनुभव करती हूँ ।*
✺ *मैं संपूर्ण और संपन्न आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ बेहद का बाप, बेहद का संकल्प रखने वाला है कि सर्व बच्चे बाप समान बनें। ऐसे नहीं कि मैं गुरू बनूँ और यह शिष्य बनें। नहीं, बाप समान बन बाप के दिलतख्तनशीन बनें। यहाँ कोई गद्दीनशीन नहीं बनना है। वह तो एक दो बनेंगे लेकिन बेहद का बाप बेहद के दिलतख्तनशीन बनाते हैं। जो सर्व बच्चे अधिकारी बन सकते हैं। *सभी को एक ही जैसा गोल्डन चांस है। चाहे आदि में आने वाले हैं, चाहे मध्य में वा अभी आने वाले हैं। सभी को पूरा अधिकार है - समान बनने का अर्थात् दिलतख्तनशीन बनने का।* ऐसे नहीं कि पीछे वाले आगे नहीं जा सकते हैं। कोई भी आगे जा सकता है - क्योंकि यह बेहद की प्रॉपर्टी है। इसलिए ऐसा नहीं कि पहले वालों ने ले लिया तो समाप्त हो गई। *इतनी अखुट प्रॉपर्टी है जो अब के बाद और भी लेने चाहें तो ले सकते हैं। लेकिन अधिकार लेने वाले के ऊपर है।*
➳ _ ➳ क्योंकि अधिकार लेने के साथ-साथ अधीनता के संस्कार को छोड़ना पड़ता है। कुछ भी नहीं सिर्फ अधीनता है लेकिन जब छोड़ने की बात आती हो तो अपनी कमज़ोरी के कारण इस बात में रह जाते हैं और कहते हैं कि छूटता नहीं। दोष संस्कारों को देते कि संस्कार नहीं छूटता। लेकिन स्वयं नहीं छोड़ते हैं। क्योंकि चैतन्य शक्तिशाली स्वयं आत्मा है वा संस्कार है? *संस्कार ने आत्मा को धारण किया वा आत्मा ने संस्कार को धारण किया? आत्मा की चैतन्य शक्ति संस्कार हैं वा संस्कार की शक्ति आत्मा है? जब धारण करने वाली आत्मा है तो छोड़ना भी आत्मा को है, न कि संस्कार स्वयं छूटेंगे।* फिर भिन्न-भिन्न नाम देते - संस्कार हैं, स्वभाव है, आदत है वा नेचर है। लेकिन कहने वाली शक्ति कौन सी है? आदत बोलती है वा आत्मा बोलती है? तो मालिक है या गुलाम हैं? तो अधिकार को अर्थात् मालिकपन को धारण करना इसमें बेहद का चांस होते हुए भी यथा शक्ति लेने वाले बन जाते हैं। कारण क्या हुआ? कहते - मेरी आदत, मेरे संस्कार, मेरी नेचर। लेकिन मेरा कहते हुए भी मालिकपन नहीं है। अगर मेरा है तो स्वयं मालिक हुआ ना! ऐसा मालिक जो चाहे वह कर न सके, परिवर्तन कर न सके, अधिकार रख न सके, उसको क्या कहेंगे? क्या ऐसी कमजोर आत्मा को अधिकारी आत्मा कहेंगे?
✺ *"ड्रिल :- मालिकपन की स्मृति से अधीनता के संस्कारों को छोड़ बाप के दिलतख़्तनशीन बनकर रहना।"*
➳ _ ➳ देह रूपी रथ का रथी मैं आत्मा, देह सहित बैठ जाती हूँ बापदादा के चित्र के सामने... और निहार रही हूँ अपलक उनकी आँखो में... *अखुट खजानों का द्वार खोलती उनकी आँखे, दिलतख्तनशीन बनने का आह्वान कर रही है...* धीरे धीरे मैं आत्मा अशरीरी अवस्था का अनुभव करती हुई... देह से अलग स्थित होकर साक्षी भाव से देख रही हूँ अपनी इस देह को... जो संगम पर पदमों की कमाई के निमित्त मुझे मिली है... मैं बाप के अखुट खजानों की अधिकारी आत्मा मन बुद्धि से बैठ गयी हूँ शान्ति स्तम्भ पर... ज्योति पुंज से आती शान्ति की किरणें मुझ आत्मा को शान्ति एवं गुणों के खजानों से भरपूर कर रही है...
➳ _ ➳ सूक्ष्मलोक के उडनखटोलें में बैठकर बापदादा आज उतर आये हैं उसी शान्ति स्तम्भ पर... मेरे चारों ओर घूमते असंख्य फरिश्ते... *पाण्डव भवन ही आज फरिश्तों का लोक नजर आ रहा है... नीचे नीचे घूमते फरिश्तों से टकराते बादल... और ये फरिश्ते खडे है मेरे चारों ओर घेरा बनाये... श्वेत बादलों का उडनखटोला पूनी के आकार में यहाँ वहाँ उडते बादल... और उडनखटोले की ध्वजा पर लहराते ज्ञान सूर्य शिव बाबा...* अब बापदादा चलकर आ रहे है मेरे करीब... मन्त्रमुग्ध सा होता हुआ मैं फरिश्ता खडा हो गया हूँ उनके अभिवादन में... आगे बढकर मेरे हाथ में सुन्दर उपहार थमा देते है, मैं मन ही मन सोच रहा हूँ उस उपहार के बारें में... तभी बापदादा मुझे उसी उडन खटोले में बैठने का आह्वान कर रहे हैं...
➳ _ ➳ हवा में उडते उडनखटोले में मैं और बापदादा सवार है... बापदादा के सामने स्वच्छ ताजे खुशबूदार फूलों का गुलदस्ता और उनके ऊपर मंडराती तितलियाँ देखकर मेरे मन में विचार उठते है... फूल अपनी खुशबू के मालिक है और तितली अपनी पंखों की, तो मैं आत्मा भी अपने संस्कारों की मालिक हूँ... अपने कमजोर संस्कारों की, आदतों की... तन पर पहने वस्त्रों को, गले में पहने हार को जब मैं उतार सकता हूँ तो मैं अपने संस्कारों को कमजोरियों को भी तो छोड सकता हूँ... उडनखटोलें की ध्वजा पर स्थित *ज्ञान सूर्य से आती तेज किरणें और मेरा दृढ होता संकल्प... इसी संकल्प के साथ गले में पहना कमी कमजोरियों का पुराना हार उतालकर दूर फेक देता हूँ मैं... खुश होकर बापदादा मुझे विजय माला पहनाकर मेरी ताजपोशी कर रहे हैं...*
➳ _ ➳ *सूक्ष्मवतन का ये बादलों रूपी उडनखटोला बदल गया है पुष्पक विमान के रूप में...* मैं देवता इस विमान पर सवार सैर कर रहा हूँ अपनी सतयुगी राजधानी की... स्वर्णाभूषणों से सजी हुई मैं अधिकारी आत्मा मालिकपन की स्मृति से अधीनता के सर्व संस्कारों को छोड बाप के दिलतख्तनशीन बन वापस लौट आयी हूँ अपनी उसी देह में, जहाँ से मैं चली थी... *अब गहराई से समझ लिया है कि जिन संस्कारों की मैं मालिक हूँ उनको बदलना और छोडना मेरे लिए सहज है... क्योंकि चेतना मैं हूँ संस्कार नही...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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