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❍ 21 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम शिवबाबा के महावाक्य सुन रहे हैं" - सदा यह स्मृति में रहा ?*
➢➢ *माया के वश कोई विकर्म तो नहीं किया ?*
➢➢ *दिव्य बुधी की लिफ्ट द्वारा तीनो लोकों की सैर की ?*
➢➢ *मन को सदा मौज में रखा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ सदा खुशी में झूलने वाले *सर्व के विघ्न हर्ता वा सर्व की मुश्किल को सहज करने वाले तब बनेंगे जब संकल्पों में दृढ़ता होगी* और स्थिति में डबल लाइट होंगे। मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। *जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं। मेरा नहीं तो निर्विघ्न।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा हूँ"*
〰✧ अपने को कमल पुष्प समान न्यारे और प्यारे समझते हो? सदा न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो? वा कभीकभी करते हो? अगर किसी भी प्रकार की माया की परछाई भी पड़ गई तो कमल पुष्प कहेंगे? तो माया आती है या सभी मायाजीत हो? *क्योंकि सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिमान श्रेष्ठ आत्मा समझते हो तो मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे माया आ नहीं सकती।*
〰✧ माया चींटी है या शेर है? तो चींटी पर विजय प्राप्त करना बड़ी बात है क्या? *अपनी स्मृति की ऊंची स्टेज पर होते हो तो माया चींटी को जीतना सहज लगता है और जब कमजोर होते हो तो चींटी भी शेर माफिक लगती है। तो सदा अमृतवेले इस स्मृति को इमर्ज करो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ।* तो अमृतवेले की स्मृति सारा दिन सहयोग देती रहेगी।
〰✧ जैसे स्थूल पोजीशन वाले अपने पोजीशन को भूलते नहीं। आजकल का प्राइम मिनिस्टर अपने को भूल जायेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ? *आपका पोजीशन है-मास्टर सर्वशक्तिमान। तो भूल नहीं सकते। लेकिन भूल जाते हो इसलिए रोज अमृतवेले इस स्मृति को इमर्ज करने से निरन्तर याद हो जायेगी।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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बापदादा सभी बच्चों की स्वीट साइलेन्स की स्थिति को देख रहे हैं। एक सेकण्ड में साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाना यह प्रैक्टिस कहाँ तक की है। इस स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकते हैं वा समय लगता है? क्योंकि अनादि स्वरूप ‘स्वीट साइलेन्स' है। *आदि स्वरूप आवाज में आने का है लेकिन अनादि अविनाशी संस्कार - ‘साइलेन्स' है।* तो अपने अनादि संस्कार, अनादि स्वरूप को, अनादि स्वभाव को जानते हुए जब चाहो तब उस स्वरूप में स्थित हो सकते हो? 84 जन्म आवाज में आने के हैं इसलिए ज्यादा अभ्यास आवाज में आने का है। लेकिन अनादि स्वरूप और फिर इस समय चक्र पूरा होने के कारण वापिस साइलेन्स होम में जाना है। *अब घर जाने का समय समीप है।* अब आदि-मध्य-अंत तीनों ही काल का पार्ट समाप्त कर *अपने अनादि स्वरूप, अनादि स्थिति में स्थित होने का समय है।* इसलिए इस समय यही अभ्यास ज्यादा आवश्यक है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ इतना श्रेष्ठ भाग्य कैसे प्राप्त किया! *मुख्य सिर्फ एक बात के त्याग का यह भाग्य है। कौन-सा त्याग किया? देह अभिमान का त्याग किया। क्योंकि देह अभिमान को त्याग किये बिना स्वमान में स्थित हो ही नहीं सकते।* इस त्याग के रिटर्न में भाग्यविधाता भगवान ने यह भाग्य का वरदान दिया है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपना और औरों का कल्याण कर सच्ची कमाई करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भृकुटी सिहांसन पर चमकती हुए मणि इस देह से निकलकर पहुँच जाती हूँ वतन में... पारसनाथ बाबा के पास... पारसनाथ बाबा के हाथों से निकलती सुनहरी किरणों से मुझ आत्मा के लौह समान विकारी संस्कार... सुनहरे दिव्य संस्कारों में परिवर्तित हो रहे हैं...* अविनाशी बाबा, मुझ अविनाशी आत्मा की झोली को अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर कर रहे हैं...
❉ *प्यारे ज्ञान सागर बाबा ज्ञान की लहरों में मुझे लहराते हुए कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... *यह ज्ञान ही सारे सुखो का सच्चा आधार है इसलिए इस ज्ञान धन से सदा धनवान् रहो... और यह अमीरी हर दिल पर दिल खोल कर लुटाओ...* ज्ञान की यह दौलत भविष्य में विश्व का अधिकारी सा सजाएगी...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक-एक ज्ञान रत्न को संजोकर दूसरों की झोली भरते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी मुरली की दीवानी हो गयी हूँ... *यह मधुर तान सुनाकर हर दिल को खुशियो की दौलत में लबालब कर रही हूँ... और स्वयं भी भरपूर होकर सुनहरे सुखो की अधिकारी हो रही हूँ...”*
❉ *ज्ञान की रोशनी से मेरे जीवन को जगमगाते हुए मीठे रूहानी बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ज्ञान की मीठी कूक से सदा कूकते रहो... *सबके जीवन में इस ज्ञान झनकार की खुशियाँ बिखरते रहो... ज्ञान रत्नों से अपना दामन सदा भरपूर करो... सबके दिल आँगन को मुस्कराहटों का रंग देते रहो...* और विश्व धरा को अपनी बाँहों में पाओ...”
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान रत्नों से अपना श्रृंगार कर आनंद मगन होकर कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *स्वयं भगवान को सम्मुख देख उनके श्रीमुख से ज्ञान रत्नों को पाकर कितनी धनी हो गयी हूँ...* सारे दुखो से मुक्त होकर... ख़ुशी और आनंद से भरा जीवन जीने वाली महा सौभाग्यशाली मै आत्मा बन गयी हूँ...”
❉ *ज्ञान संजीवनी की खुशबू से मुझ आत्मा को महकाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... देह की झूठी दुनिया से व्यर्थ की बातो से प्यार कर जीवन को दुखो का पर्याय बना बैठे... अब जो ईश्वर पिता मिला है तो सच्चे प्यार की महक से भर जाओ... *सच्चे ईश्वरीय ज्ञान को दिल में समालो और इसकी खुशबु से सबको मन्त्रमुग्ध कर दो... यही रत्न विश्व धरा पर राज्याधिकारी बनाएंगे...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सच्ची कमाई से मालामाल होकर औरों पर भी ज्ञान धन लुटाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में कितनी खुबसूरत कितनी प्यारी कितनी धनवान् और कितनी निराली हो गयी हूँ... *मेरे पास अथाह ईश्वरीय दौलत है और मै आत्मा सबके दामन में यह दौलत भरती जा रही हूँ... मेरे साथ पूरा विश्व इस अमीरी को पाकर मुस्करा उठा है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- माया के वश हो कोई विकर्म नही करना*
➳ _ ➳ स्वराज्यअधिकारी की सीट पर सेट होकर, अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाकर मैं चेक कर रही हूँ कि सभी कर्मेन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं! *यह चेकिंग करते - करते मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि पूरे 63 जन्म इन कर्मेन्द्रियों ने मुझ आत्मा राजा को अपना गुलाम बना कर ना जाने मुझ से क्या - क्या विकर्म करवाये*। इन विकर्मो का बोझ मुझ आत्मा के ऊपर इतना अधिक हो गया कि मैं अपने सत्य स्वरुप को ही भूल गई। मैं आत्मा अपना ही स्वधर्म, जो कि सदा शान्त और सुखमय है, उसे भूल कितनी दुखी और अशांत हो गई। किन्तु अब जबकि मेरे प्यारे पिता ने आकर मुझे फिर से मेरे सत्य स्वरूप की पहचान दे दी है कि मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों की गुलाम नही हूँ, मैं तो राजा हूँ।
➳ _ ➳ इसलिए इस सत्य पहचान के साथ अब मुझे स्व स्वरूप में सदा स्थित रहकर, इन कर्मेन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखना है। *पुराने स्वभाव संस्कारो के कारण अगर कभी मन मे कोई विकल्प उतपन्न होता भी है तो भी मुझे कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नही होने देना है और यह तभी होगा जब मैं सदैव स्व स्वरूप की स्थिति में स्थित रहूँगी*। मन ही मन यह चिन्तन करते हुए अपने स्व स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने ही स्वरूप को देखने मे मगन हो जाती हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अपने अति सुन्दर निराकारी स्वरूप को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ। *दोनों आईब्रोज के बीच मस्तक पर चमकता हुए एक चैतन्य सितारे के रूप में मुझे मेरा यह स्वरूप बहुत ही लुभायमान लग रहा है*। देख रही हूँ 7 रंगों की रंगबिरंगी किरणों को मैं अपने मस्तक से निकलते हुए जिसका भीना - भीना प्रकाश मन को आनन्दित कर रहा है।
➳ _ ➳ इस प्रकाश में विद्यमान वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मस्तक से बाहर निकल कर मेरे चारो और फैल कर मेरे आस पास के वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रहे हैं। वातावरण में एक दिव्य रूहानी खुशबू फैलती जा रही है, जो मुझे देह से डिटैच कर रही है। *देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो को भूल अब मैं पूरी तरह से अपने स्वरूप में स्थित हो गई हूँ और बड़ी आसानी से अपने अकाल तख्त को छोड़, देह से बाहर आ गई हूँ*। देह से बाहर आकर देख रही हूँ अब मैं स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारे स्वरूप में। हर बन्धन से मुक्त इस डबल लाइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं धीरे - धीरे ऊपर की और जा रही हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते - चलते मैं पांचो तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर पहुँच गई हूँ आकाश से ऊपर और इससे भी ऊपर सौरमण्डल, तारामण्डल को पार करके, सूक्ष्म लोक से होकर अब मैं अपनी निराकारी दुनिया मे आ गई हूँ। *इस अनन्त प्रकाशमय अंतहीन निर्वाणधाम घर में अब मैं विचरण कर रही हूँ और यहाँ फैले शान्ति के वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर डीप साइलेन्स का अनुभव कर रही हूँ*। यह डीप साइलेन्स की अनुभूति मुझे ऐसा अनुभव करवा रही है जैसे मैं शांति की किसी गहरी गुफा में बैठी हूँ जहाँ संकल्पो की भी कोई हलचल नही। शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँचती हूँ । *एक अति प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ*।
➳ _ ➳ उनके सानिध्य में गहन सुख और शांति की अनुभूति करते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उन्हें टच करती हूँ। सर्वशक्तियों की तेज धारायें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगती है और मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मो की कट उतरने लगती है। *पुराने सभी स्वभाव संस्कार सर्वशक्तियों की तेज आंच से जलने लगते हैं और मैं आत्मा स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करने लगती हूँ*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मो की कट को उतारने के साथ - साथ, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाने के लिए बाबा अपनी सर्वशक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। सर्व शक्तियों से भरपूर होकर मैं आत्मा अब वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के भव्यभाल पर मैं आत्मा फिर से विराजमान हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। हर कर्म अब मैं बाबा को अपने साथ रखकर, कम्बाइंड होकर करती हूँ। *बाबा की याद मेरे चारों और शक्तियों का एक ऐसा सुरक्षा कवच बना कर रखती है जिससे मैं आत्मा माया के धोखे से सदा बची रहती हूँ*। अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति में अब मैं सदा स्थित रहती हूँ। मनसा में कोई विकल्प कभी आ भी जाये तो भी परमात्म बल के प्रयोग द्वारा, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाकर, उनसे कोई भी विकर्म अब मैं कभी भी नही होने देती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं दिव्य बुद्धि की लिफ्ट द्वारा तीनों लोकों का सैर करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा मन को सदा मौज में रखती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा जीवन जीने की कला समझ मन को मौज में रखती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा श्रेष्ठ जीवन जीती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ १.
*तन तो सबके पुराने हैं ही, चाहे
जवान हैं,
चाहे बड़े हैं,
छोटे और ही बड़ों से भी कहाँ-कहाँ कमजोर हैं*, चाहे
बीमारी बड़ी है *लेकिन बीमारी की महसूसता कि मैं कमजोर हूँ, मैं
बीमार हूँ - ये बीमारी को बढ़ा देती है। क्योंकि तन
का प्रभाव मन पर आ गया तो डबल बीमार हो गये*। तन और मन दोनों से डबल बीमार होने
के कारण बार-बार सोल
कान्सेस के बजाय बीमारी कान्सेस हो जाते हैं।
➳ _ ➳
२.
*तन से तो मैजारिटी, बीमार
कहो या हिसाब-किताब चुक्तु करना कहो, कर
रहे हैं*, लेकिन
५० परसेन्ट डबल
बीमार और ५० परसेन्ट सिंगल बीमार हैं।
➳ _ ➳
३.
कभी भी मन में बीमारी का संकल्प नहीं लाना चाहिये- मैं बीमार हूँ, मैं
बीमार हूँ... *लेकिन होता क्या है? ये
पाठ पक्का हो जाता है कि मैं बीमार हूँ*.... कभी-कभी किसी समय बीमार होते नहीं
हैं लेकिन मन में खुशी नहीं है तो
बहाना करेंगे कि मेरे कमर में दर्द है। क्योंकि मैजारिटी को या तो टांग दर्द, या
कमर का दर्द होता है, कई
बार दर्द होता
नहीं है फिर भी कहेंगे मेरे को कमर में दर्द है।
➳ _ ➳
आजकल के हिसाब से दवाइयाँ खाना ये बड़ी बात नहीं समझो। क्योंकि *कलियुग का
वर्तमान समय सबसे शक्तिशाली फ्रूट ये दवाइयाँ हैं।* देखो कोई रंग-बिरंगी तो हैं
ना। कलियुग के लास्ट का यही एक फ्रूट है तो खा लो प्यार से। दवाई खाना ये
बीमारी याद नहीं दिलाता। *अगर दवाई को मजबूरी से खाते हो तो मजबूरी की दवाई
बीमारी याद दिलाती है और शरीर को चलाने के लिये एक शक्ति भर रहे हैं, उस
स्मृति में खायेंगे तो दवाई बीमारी याद नहीं दिलायेगी,
खुशी दिलायेगी* तो बस दो-तीन दिन में दवाई से ठीक हो जायेंगे।
➳ _ ➳
आजकल के तो बहुत नये फैशन हैं, कलियुग
में सबसे ज्यादा इन्वेन्शन आजकल दवाइयाँ या अलग-अलग थेरापी निकाली है, आज
फलानी थेरापी है, आज
फलानी, *तो
ये कलियुग के सीजन का शक्तिशाली फल है। इसलिए घबराओ नहीं। लेकिन दवाई कांसेस,
बीमारी कांसेस होकर नहीं खाओ*। तो तन की बीमारी होनी ही है, नई
बात नहीं है। इसलिए बीमारी से कभी घबराना नहीं।
बीमारी आई और उसको फ्रूट थोड़ा खिला दो और विदाई दे दो।
✺
*ड्रिल :- "बीमारी कान्सेस के बजाय सोल कान्सेस में रहना"*
➳ _ ➳
शाखाओं पर झूलती पकी धान की सुनहरी बालियाँ... वातावरण को महकाती हुई... शाखाओं
से अलग होने के इन्तजार में है... *कलियुग का अन्तिम प्रहर और मैं आत्म पंछी
देहभान की शाखाओं से खुद को मुक्त कर उड चला एक अनोखी सी उडान पर...* दुखों से
मुक्ति की उडान... *मैं उडता जा रहा हूँ निरन्तर ऊँचाईयों की ओर*... सब कुछ
छोटा और छोटा प्रतीत हो रहा है मुझे... *वो सभी कुछ जो पीछे छोडता जा रहा हूँ
मैं...* देह की पीडा,
देह
के सुख,
संबधों में लगाव... जैसे सब कुछ बहुत ही छोटी छोटी बाते है... ये ऊँची
बिल्डिगें ये पर्वत,
ये
नदियाँ,
ये
झरने जैसे सब कुछ नन्हें खिलौने मात्र है... गहराई से महसूस कीजिए... उन सबकी
लघुता को...
➳ _ ➳
फरिश्ता रूप में मैं,
बापदादा के सामने हिस्ट्री हाॅल में... बापदादा आज चिकित्सक के रूप में है...
(दृश्य चित्र बनाकर देखे बाप दादा को एक चिकित्सक के रूप में) मैं देख रहा हूँ
गौर से उनकी एक एक भाव भंगिमा को... महसूस कर रहा हूँ उनके अन्दर किस कदर हम
बच्चों के प्रति कल्याण की भावना है... उनकी आज की वेशभूषा इस बात का प्रमाण
है... बापदादा के सामने रंग बिरंगी गोलियों का बडा ढेर है... *कलियुग का
शक्तिशाली फल*... और *आज वरदानों के साथ बाप दादा बच्चों को यही गोलियाँ टोली
के रूप में दे रहे हैं... शरीर के हिसाब चुक्तु करने की बडी लिफ्ट ये गोलियाँ
और देही अभिमानी बनने का वरदान*...
➳ _ ➳
मेरी बारी आती है... मैं मन में कुछ संकल्प विकल्प लिए बाबा के सामने हूँ... और
बाबा जैसे बिना बतायें ही सब कुछ समझ गये हैं... *स्नेह से हाथ पकड कर बिठा
लिया है उन्होने अपनी गोद में*... और मैं नन्हें बच्चे की तरह दुबक गया हूँ,
उनकी गोद में जैसे कोई नन्हा पंछी छिप जाता है,
अपनी माँ के पंखों के नीचे... *मेरे सर पर स्नेह से हाथ फेरते बापदादा अपने
स्नेह से ही मेरी मन के सभी विकल्पों का समाधान कर रहे है*... मैं महसूस कर रहा
हूँ कि *मेरा बीमारी काॅन्सेस हो जाना ही मुझे डबल बीमार कर देता है*... इसी
समझ के साथ बापदादा से मैं *कलियुग का शक्तिशाली फल खुशी खुशी ले लेता हूँ,
बापदादा सर पर हाथ रखकर मुझे आत्म अभिमानी बनने का वरदान दे रहें है*...
➳ _ ➳
वरदानों की शक्ति स्वयं में समाये हुए मैं राकेट की तेज गति से परमधाम में...
कुछ देर सारे संकल्पों को मर्ज करके... बस एक ही संकल्प में स्थित... *मैं आत्म
अभिमानी हूँ* संकल्प का स्वरूप बनने की शक्ति देते शिव बाबा... (देर तक महसूस
करें शक्तियों का वो झरना खुद के ऊपर) और इसी एक संकल्प मैं बल भरकर,
मैं
आत्मा लौट आयी हूँ अपनी उसी पुरानी देह में, *मगर
अब न कोई शिकवा है,
न
शिकायत... मैं सम्पूर्ण स्वस्थ और आत्मभिमानी अवस्था में...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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