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❍ 17 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *युक्ति से सभी को झूठखंड से निकल सचखंड में चलने लायक बनाया ?*
➢➢ *एक बाप की मत आर चले ?*
➢➢ *संतुष्टता द्वारा सर्व से प्रशंसा प्राप्त की ?*
➢➢ *डायमंड बन डायमंड बनने का मेसेज दिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ सदा यही लक्ष्य याद रहे कि हमें बाप समान बनना है तो जैसे बाप लाइट है वैसे डबल लाइट। *औरों को देखते हो तो कमजोर होते हो, सी फादर, फालो फादर करो।* उड़ती कला का श्रेष्ठ साधन सिर्फ एक शब्द है- 'सब कुछ तेरा'। *'मेरा' शब्द बदल 'तेरा' कर दो। तेरा हूँ, तो आत्मा लाइट है। और जब सब कुछ तेरा है तो लाइट (हल्के) बन गये।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बाबा का स्नेही, सहयोगी और सेवाधारी हूँ"*
〰✧ सदा अपने को बाप के स्नेही, सहयोगी और सदा सेवाधारी आत्मायें समझते हो? जैसे स्नेह अटूट है ना। परमात्म-स्नेह को कोई भी शक्ति तोड़ सकती है? असम्भव है ना कि थोड़ा-थोड़ा सम्भव है? यह अविनाशी स्नेह विनाश हो नहीं सकता। स्नेह के साथ-साथ सदा सहयोगी हैं। किस बात में सहयोगी हैं? *जो बाप के डायरेक्शन्स हैं उसमें सदा सहयोगी हैं। सदा श्रीमत पर चलने में सहयोगी हैं और सदा सेवाधारी हैं। ऐसे नहीं कि सेवा का चांस मिला तो सेवाधारी। सदा सेवाधारी। ब्राह्मण बनना अर्थात् सेवा की स्टेज पर ही रहना।* ब्राह्मणों का काम क्या है? सेवा करना।
〰✧ वो नामधारी ब्राह्मण धामा खाने वाले और आप सेवा करने वाले। तो हर सेकेण्ड सेवा की स्टेज पर हैं-ऐसे समझते हो? कि जब चांस मिलता है तब सेवा करते हो? चांस पर सेवा करने वाले हो वा सदा सेवाधारी हो? खाना बनाते भी सेवा करते हो? क्या सेवा करते हो? याद में खाना बनाते हो तो यह सेवा करते हो। कोई भी कार्य करते हो तो याद में रहने से वायुमण्डल शुद्ध बनता है। क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनता है। तो याद की वृत्ति से वायुमण्डल बनाते हो। *सेवाधारी अर्थात् हर समय अपने श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करने वाले। जिसको भी श्रेष्ठ दृष्टि से देखते हो तो श्रेष्ठ दृष्टि भी सेवा करती है। तो निरन्तर सेवाधारी हैं। ब्राह्मण आत्मा सेवा के बिना रह नहीं सकती। जैसे यह शरीर है ना तो श्वास के बिना नहीं रह सकता तो ब्रह्मण जीवन का श्वास है सेवा।* जैसे श्वास न चलने पर मूर्छित हो जाते हैं ऐसे अगर ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है। ऐसे पक्के सेवाधारी हो ना।
〰✧ तो जितना स्नेही हैं, उतना सहयोगी, उतना ही सेवाधारी हैं। सेवा का चांस तो बहुत है ना कि कभी किसको मिलता है, किसको नहीं मिलता? वाणी से सेवा का चांस नहीं मिलता लेकिन मन्सा से सेवा का चांस तो हर समय है ही। सबसे पावरफुल और सबसे बड़े से बड़ी सेवा मन्सा सेवा है। वाणी की सेवा सहज है या मन्सा सेवा सहज है? *मन्सा सेवा के लिये पहले अपने को पावरफुल बनाओ। वाणी की सेवा तो स्थिति नीचे-ऊपर होते हुए भी कर लेंगे। भाषण करके आ जायेंगे। कोई कोर्स करने वाला आयेगा तो भी कोर्स करा देंगे। लेकिन मन्सा सेवा ऐसे नहीं हो सकती। अगर मन्सा थोड़ा भी कमजोर है तो मन्सा सेवा नहीं हो सकती।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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पहले इस देह के सम्बन्ध और संस्कार के अधिकारी बनने के आधार पर ही मालिक-पन के संस्कार है। *सम्बन्ध में न्यारा और प्यारा-पन आना - यह निशानी है मालिक-पन की। संस्कारों में निर्मान और निर्माण, दोनों विशेषतायें मालिक-पन की निशानी हैं।* साथसाथ सर्व आत्माओं के सम्पर्क में आना, स्नेही बनना, दिलों के स्नेह की आशीर्वाद अर्थात शुभ भावना सर्व के अन्दर से उस आत्मा के प्रति निकले। चाहे जाने, चाहे न जाने। दूर का सम्बन्ध वा सम्पर्क हो लेकिन जो भी देखे वह स्नेह के कारण ऐसे ही अनुभव करे कि यह हमारा है स्नेह की पहचना से अपना-पन अनुभव करेगा। सम्बन्ध दूर का हो लेकिन स्नेह सम्पन्न का अनुभव करायेगा। विशेषता अनुभव में आयेगी कि वह जिसके भी सम्पर्क में आयेंगे उसको उस विशेष आत्मा से दाता-पन की अनुभूति होगी। यह किसी के संकल्प में भी नहीं आ सकता कि यह लेने वाले हैं। उस आत्मा से सुख की, दाता-पन की वा शान्ति, प्रेम, आनंद, खुशी, सहयोग, हिम्मत, उत्साह, उमंग - किसी न किसी विशेषता के दाता-पन की अनुभूति होगी। सदा विशाल बुद्धि और विशाल दिल, जिसको आप बडी दिल वाले कहते हो - ऐसी अनुभूति होगी। अब इन निशानियों से *अपने आपको चेक करो कि क्या बनने वाले हो?* दर्पण तो सभी के पास है। जितना स्वयं को स्वयं जान सकते उतना और कोई नहीं जान सकते। तो स्वयं को जानी। अच्छ
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ हम अवतार हैं, ऊपर से आये हैं - यह सदा स्मृति में रखो। *अवतार आत्मायें कभी शरीर के हिसाब-किताब के बन्धन में नहीं आयेंगी, विदेही बन करके कार्य करेंगी।* शरीर का आधार लेते हैं लेकिन शरीर के बंधन में नहीं बंधेते। तो ऐसे बने हो? *तो सदा अपने को शरीर के बंधन से न्यारा बनाने के लिए अवतार समझो। इस विधि से चलते रहो तो सदा बंधन-मुक्त न्यारे और सदा बाप के प्यारे बन जायेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- दैवी संप्रदाय का बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा कस्तूरी मृग समान इस मायावी जंगल में भटक रही थी... सच्ची सुख, शांति के लिए कहाँ-कहाँ भाग रही थी... अपने निज स्वरुप को भूल, निज गुणों को भूल, आसुरी अवगुणों को धारण कर दुखी हो गई थी... रावण के विकारों की लंका में जल रही थी... परमधाम से प्रकाश का ज्योतिपुंज इस धरा पर आकर मुझ आत्मा की बुझी ज्योति को जगाया...* दैवीय गुणों की सुगंध से मेरे मन की मृगतृष्णा को शांत किया... मैं आत्मा इस देह से न्यारी होती हुई उस ज्योतिपुंज मेरे प्यारे बाबा के पास पहुँच जाती हूँ...
❉ *प्यारे बाबा ज्ञान के प्रकाश से मेरी आभा को प्रकाशित करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वरीय यादे ही विकारो से मुक्त कराएंगी... मीठे बाबा की मीठी यादे ही सच्चे सुख दामन में सजायेंगी... *यह यादे ही आनन्द का दरिया जीवन में बहायेंगी... और दैवी गुणो की धारणा सुखो भरे स्वर्ग को कदमो में उतार लाएंगी..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पद्मापदम् भाग्यशाली अनुभव करती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सच्चे सुख दैवी गुणो के श्रृंगार से सज कर निखरती जा रही हूँ... *साधारण मनुष्य से सुंदर देवता का भाग्य पा रही हूँ... और विकारो से मुक्त हो रही हूँ..."*
❉ *मीठा बाबा आसुरी अवगुणों के आवरण को हटाकर दैवीय गुणों से भरपूर करते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... देह के भान में आकर विकारो के दलदल में गहरे धँस गए थे... अब ईश्वरीय यादो से दुखो की कालिमा से सदा के लिए मुक्त हो जाओ... *दैवी गुणो को जाग्रत कर सुंदर देवताई स्वरूप से सज जाओ... और यादो से अथाह सुख और आनंद की दुनिया को गले लगाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा परमात्म आनंद के झूले में झूलती हुई कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वरीय यादे ही सच्चे सुखो का आधार है... *यह रोम रोम में बसाकर देवताई गुणो से भरती जा रही हूँ... देह के भान से निकल कर ईश्वरीय यादो में महक रही हूँ...* और उज्ज्वल भविष्य को पाती जा रही हूँ..."
❉ *मेरे बाबा मेरा दिव्य श्रृंगार कर पावन बनाते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... विकारो रुपी रावण ने सच्चे सुखो को ही छीन लिया और दुखो के गर्त में पहुंचाकर शक्तिहीन किया है... *अब अपनी देवताई सुंदरता को पुनः ईश्वरीय यादो से पाकर... दैवी गुणो की खूबसूरती से दमक उठो... यह दैवी गुण ही स्वर्ग के सच्चे सुखो का आधार है..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा दैवीय गुणों से सज धज कर खूबसूरत परी बनकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा सच्चे ज्ञान को पाकर देवताई गुण स्वयं में भरने की शक्ति... मीठे बाबा की यादो से पाती जा रही हूँ...* और विकारो से मुक्त होकर अपने सुन्दरतम स्वरूप को पा रही हूँ... अपनी खोयी चमक को पुनः पा रही हूँ..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप के समान टीचर बनना है*"
➳ _ ➳ आज सारी दुनिया मे सभी मनुष्य मात्र अल्फ अर्थात अपने ईश्वर बाप को ना जानने के कारण निधनके बन पड़े है और दुखी, अशांतमय जीवन जी रहें हैं। *दुनिया के ये सभी मनुष्य मेरे ही तो आत्मा भाई है जो आज दिन तक अपने पिता से बिछुड़े हुए हैं। अपने इन आत्मा भाईयों को अपने शिव पिता परमात्मा से मिलाना मेरा परम कर्तव्य है और यही मेरे शिव पिता की चाहना भी है कि उनका कोई भी बच्चा उनके परिचय से अनजान ना रह जाये*। अपने शिव पिता के फरमान को स्मृति में ला कर मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि कैसे सबको अल्फ की पहचान दूँ!
➳ _ ➳ एकांत में बैठ सेवा की युक्तियां सोचते - सोचते अपने शिव पिता को मैं याद करती हूँ। मेरी याद मेरे शिव पिता तक पहुंचते ही उनकी तरफ से याद का रिटर्न उनकी शक्तिशाली किरणों की छत्रछाया के रूप में मुझे अपने ऊपर स्पष्ट अनुभव होने लगता है। *मैं देख रही हूँ बाबा अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की हज़ारों भुजाओं को मेरे ऊपर फैलाये परमात्म दुआयों से मुझे भरपूर कर रहें हैं*। ये परमात्म ब्लैसिंग मेरे अंदर एक अद्भुत रूहानी नशे का संचार कर रही है। इस रूहानी नशे का अनुभव मुझे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर रहा है। मैं देख रही हूँ जैसे मेरा साकारी शरीर लुप्त हो गया है।
➳ _ ➳ लाइट के बहुत ही सुंदर फ़रिशता स्वरूप में मैं अब स्वयं को देख रही हूँ। मेरे अंग - अंग से निकल रही श्वेत रश्मियां चारों और फैल कर सारे वायुमंडल को शुद्ध, दिव्य और अलौकिक बना रही हैं। *अपनी तेजस्वी रंग बिरंगी किरणो से वायुमण्डल को शुद्ध और पवित्र बनाता हुआ मैं फ़रिशता अब धरनी के आकर्षण से मुक्त होता हुआ ऊपर आकाश मण्डल की ओर जा रहा हूँ*। सूक्ष्म रूप ले कर अति तीव्र गति से उड़ता हुआ मैं फरिश्ता पांच तत्वों की दुनिया को पार करके पहुँच जाता हूँ अपने अलौकिक वतन में।
➳ _ ➳ स्वयं को मैं अब एक ऐसी दुनिया मे देख रहा हूँ जहां चारों और सफेद चांदनी सा प्रकाश फैला हुआ है। लाइट के सूक्ष्म शरीर धारण किये फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते इस लोक में मुझे दिखाई दे रहें हैं जिनसे निकल रही प्रकाश की रश्मियां पूरे वतन में फैल रही हैं। *इस अति सुन्दर दिव्य अलौकिक दुनिया में मैं फ़रिशता अब स्वयं को बापदादा के सम्मुख देख रहा हूँ। बापदादा की लाइट माइट मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है और मैं स्वयं को बापदादा से आ रही लाइट माइट से भरपूर कर रहा हूँ*। बापदादा से आ रही सर्वशक्तियाँ मुझमे असीम बल भर कर मुझे शक्तिशाली बना रही है।
➳ _ ➳ मैं डबल लाइट बनता जा रहा हूँ। हर प्रकार के बोझ और बन्धन से मुक्त बिल्कुल उन्मुक्त और निर्बन्धन स्थिति में मैं स्थित हूँ। गहन सुखमय स्थिति की अनुभूति प्यारे बापदादा के सानिध्य में मैं कर रहा हूँ। *बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे आप समान बनने का वरदान दे रहें हैं। टीचर बन सभी को अल्फ का परिचय देने का फरमान दे रहें हैं*। बापदादा की लाइट माइट से भरपूर हो कर, बाबा से वरदान ले कर, बाबा के फरमान का पालन करने के लिए डबल लाइट बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रहा हूँ।
➳ _ ➳ अपनी लाइट की सूक्ष्म आकारी देह के साथ वापिस अपनी साकारी देह में प्रवेश कर अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं टीचर बन सबको अल्फ का परिचय देने की ईश्वरीय सेवा कर रही हूँ। अलग - अलग स्थानों पर प्रदर्शनियों आदि में जा कर एक - एक बात को अच्छी रीति समझा कर मैं सबकी बुद्धि को दिव्य बनाने का रूहानी धन्धा करते हुए सबको ईश्वर बाप से मिलवाने की बाबा की आश को पूरा कर रही हूँ। *"ईश्वर सर्वव्यापी नही है" "गीता का भगवान कृष्ण नही है" ऐसे अनेक टॉपिक्स पर टीचर की भांति अच्छी रीति समझा कर मैं पत्थरबुद्धि मनुष्यों की बुद्धि का ताला खोल उन्हें पारस बुद्धि बनाने की सेवा निरन्तर कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सन्तुष्ट आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व से प्रशंसा प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सदा प्रसन्नचित आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा डायमंड बन डायमंड बनने का मैसेज देती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा डायमंड बनने का मैसेज देकर डायमंड जुबली मनाती हूँ ।*
✺ *मैं रीयल डायमंड हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳
कोई
को तख्त मिलता और किसको रायल फैमिली मिलती है। इसके भी गुह्य रहस्य हैं। *जो
सदा संगम पर बाप
के दिल तख्तनशीन स्वत: और सदा रहता है,* कभी-कभी
नहीं, जो
सदा आदि से अन्त तक स्वप्न मात्र भी, संकल्प
मात्र भी पवित्रता के व्रत में सदा रहा है, स्वप्न
तक भी अवित्रता को टच नहीं किया है, *ऐसी
श्रेष्ठ आत्मायें तख्तनशीन
हो सकती हैं।*
➳ _ ➳
जिसने चारों ही सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लिये हैं, आदि
से अन्त तक अच्छे नम्बर से पास हुए हैं, उसी
को ही पास विद् आनर कहा जाता है। बीच-बीच में मार्क्स कम हुई हैं फिर मेकप किया
है,
मेकप वाला नहीं लेकिन
*आदि से चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसन्द है वो तख्त ले सकता है।*
➳ _ ➳
साथ-साथ जो ब्राह्मण संसार में सर्व के
प्यारे, सर्व
के सहयोगी रहे हैं, ब्राह्मण
परिवार हर एक दिल से सम्मान करता है, *ऐसा
सम्मानधारी तख्त नशीन बन सकता
है।* अगर इन बातों में किसी न किसी में कमी है तो वो नम्बरवार रायल फैमिली में
आ सकता है। चाहे पहली में
आवे,
चाहे आठवीं में आए,
चाहे त्रेता में आए। तो *अगर तख्तनशीन बनना है तो इन सभी बातों को चेक करो।*
✺
*ड्रिल :- "सतयुग, त्रेतायुग में तख्तनशीन बनने का पुरुषार्थ करना"*
➳ _ ➳
भृकुटी की कुटिया में विराजमान मैं अविनाशी प्रकाश पुंज आत्मा हूँ... *अपने
सत्य स्वरूप को और गहराई से अनुभव करते हुए* मैं आत्मा देख रही हूँ... स्वयं को
मस्तक के भव्य भाल पर सूर्य के समान चमकते हुए... जैसे सूर्य अपनी शक्तिशाली
किरणों से पूरे विश्व को प्रकाशित करता है... ठीक उसी प्रकार *मैं अविनाशी
प्रकाश पुंज आत्मा अपनी शक्तिशाली किरणों से इस पूरे विश्व को प्रकाशित कर रही
हूँ...* इस देह मे होते भी विदेही अवस्था का स्पष्ट अनुभव हो रहा है... मैं
आत्मा एक खिचाव महसूस कर रही हूँ... जैसे कोई मुझे ऊपर की तरफ खींच रहा हो...
धीरे-धीरे मैं आत्मा इस देह रूपी घर से निकल कर सूक्ष्म शरीर के साथ ऊपर की तरफ
बादलों के बीच से होती हुई जा रही हूँ... पहुँच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में जहां
*बाबा अपने फरिश्ते स्वरुप में बडे से रंग-बिरंगे फूलों के झूले पर बैठे
मुस्कुरा रहे हैं...*
➳ _ ➳
ये
दृश्य मन को मोह लेने वाला है... बाबा बाहें फैला कर मुझे अपने पास आने का
इशारा करते हैं... मैं फरिश्ता बिना देर किए जल्दी से जाकर अपने मीठू बाबा के
गले लग जाता हूँ... बाबा से गले लगते ही जैसे *बाबा की सर्व शक्तियाँ मुझ में
समा रही है...* बाबा मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं आ गये मेरे लाडले
बच्चे बाबा आपका ही इन्तजार कर रहा था... ये सुन कर मैं फरिश्ता गदगद हो जाता
हूँ... प्यार से भर जाता हूँ... *मुझ फरिश्ते की चमक और बढ गई है...* अब बाबा
मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी अपने साथ रंग-बिरंगे फूलों से बने झूले पर बिठा देते
हैं... और मुझे सामने देखने का ईशारा करते हैं... बाबा मुझ फरिश्ते के सामने एक
दृश्य इमर्ज करते हैं... मुझ फरिश्ते के सामने स्वर्णिम दृश्य इमर्ज हो रहे
हैं... मैं फरिश्ता बहुत बडे-बडे सोने-हीरों से जड़ित महल देख रहा हूँ...
सम्पूर्ण सतोप्रधान प्रकृति,
कल-कल करते मीठे झरने बह रहे हैं... दूध की नदियां बह रही है... वाह कितने
सुंदर-सुंदर फल और फूलों के बगीचे है... पंछी मधुर आवाज में गीत गा रहे हैं...
ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति और ये पंछी मिलकर नये नये साज बजा रहे हों... ये
सभी दृश्य बडे मनमोहक लग रहे हैं...
➳ _ ➳
इस
मनभावन दृश्य को देखते-देखते मैं फरिश्ता एक बडे से हीरे-सोने से बने महल में
प्रवेश करता हूँ... जहाँ मैं फरिश्ता देखता हूँ... सामने देवी-देवताओं की सभा
लगी हुई है... जिसमें *डबल सिरताज देवी-देवताएँ बैठे हैं* और उनके बीच एक बहुत
बडा सोने-हीरों से जड़ित तख्त है... उस तख्त पर भी डबल सिरताज देवी और देवता
विराजमान हैं... *अलग-अलग रंगों के हीरे और सोने से बने तख्त पर विराजमान देवी
और देवता अलग और बहुत मनमोहक नजर आ रहे हैं...* मैं फरिश्ता यहाँ वहाँ देखता
हूँ... और सोचता हूँ... ये सभी तख्त पर क्यों नहीं बैठे हैं... सिर्फ यही दो
देव आत्माएँ तख्त पर विराजमान हैं... अचानक से मुझ फरिश्ते को कंधे पर स्पर्श
अनुभव होता है... जैसे ही मुड कर देखती हूँ... सामने बाबा को पाती हूँ... और
फिर मैं बाबा को सारी बात बताती हूँ... और बाबा को कहती हूँ... बाबा वो तख्त
बहुत ही सुंदर और मनमोहक था... हम भी भविष्य में वैसे ही तख्त पर बैठेंगे...
लेकिन बाबा वहां सभी तख्त पर क्यों नहीं बैठे थे... इसका क्या रहस्य है बाबा,
बाबा मुझे देख मुस्कुराते हैं और फिर इस बात के गुह्य रहस्य को बताते हैं...
मैं एकटक होकर बाबा की एक-एक बात को बडे ध्यान से सुन रही हूँ...
➳ _ ➳
बाबा मुझे बताते हैं बच्चे भविष्य तख्त प्राप्त करने का आधार है... *सदा बाप के
दिलतख्तनशीन हो रहना... अभी के दिलतख्तनशीन ही भविष्य तख्त प्राप्त कर सकते
हैं...* चारों ही सब्जेक्ट में फुल मार्क्स लेने वाले पास विद आनर,
चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसंद जो बनते हैं... और *अभी जो सम्मानधारी
बनता वहीं तख्त नशीन बनता है...* वहीं भविष्य तख्त नशीन बनता है... अगर इनमें
से किसी भी बात में कमी है तो वो नम्बरवार रायल फैमिली में आता है... समझा
बच्चे,
बाबा की सारी बात सुन मैं आत्मा स्व चैकिंग करती हूँ... बाबा की कही सभी बातों
को सामने लाती हूँ... अपने आप से मैं प्रश्न पूछती हूँ... क्या मैं आत्मा बाबा
द्वारा बताए तख्तनशीन के पुरुषार्थ अनुसार ही पुरूषार्थ कर रही हूँ...
➳ _ ➳
बाबा को देखते हुए मैं आत्मा कहती हूँ... बाबा मैं हूँ ही दिलतख्तनशीन सो
भविष्य तख्तनशीन आत्मा... बाबा मुझ आत्मा को देखते हुए कहते हैं हाँ मेरे लाडले
बच्चे हाँ बाबा मुझ आत्मा के सिर पर अपना वरदानी हाथ रख मुझे वरदान देते हैं...
*बच्चे-सदा दिलतख्तनशीन भव !* मैं अंतर्मन से इस वरदान को स्वीकार करती हूँ...
जैसे ही अंतर्मन से मैं आत्मा इस वरदान को स्वीकार करती हूँ... वैसे ही मैं
आत्मा अपने जीवन में इस वरदान को सहज फलीभूत होते देख रही हूँ... मैं आत्मा सदा
स्वयं को बाबा के दिलतख्त पर अनुभव कर रही हूँ... *मैंने पहले नम्बर में आने का
दृढ़ संकल्प किया है* बाबा के दिए वरदान को बार बार स्मृति में ला रही हूँ...
जितना स्मृति में ला रही हूँ... उतना ही मैं इस वरदान को अनुभव कर रही हूँ...
मैं आत्मा अपनी सम्मानधारी स्थिति का स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ... हर आत्मा को
सम्मान और सहयोग दे रही हूँ... *मैं आत्मा चारों ही सब्जेक्ट में बाप की दिल
पंसद बनती जा रही हूँ...* इस प्रकार मैं आत्मा *तीव्र पुरषार्थ में जुट गई हूँ*
और "सदा दिलतख्तनशीन भव" सो भविष्य तख्तनशीन भव के वरदान को सहज ही अपने जीवन
में फलीभूत होते अनुभव कर रही हूँ... शुक्रिया मीठू बाबा,
शुक्रिया
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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