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❍ 25 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *एक बाप का हाथ पकडे रखा ?*
➢➢ *सहस रख पुरुषार्थ किया ?*
➢➢ *बाप और सेवा की स्मृति से एकरस स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *अपनी नेचर को शक्तिशाली बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *अब डबल लाइट बन दिव्य बुद्धि रूपी विमान द्वारा सबसे ऊंची चोटी की स्थिति में स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति लाइट और माइट की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ। इस विमान में बापदादा की रिफाइन श्रेष्ठ मत का साधन हो।* उसमें जरा भी मन-मत, परमत का किचड़ा न हो।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं राजऋषि हूँ"*
〰✧ *अपने को राजऋषि समझते हो? राज भी और त्र+षि भी। स्वराज्य मिला तो राजा भी हो और साथ-साथ पुरानी दुनिया का ज्ञान मिला तो पुरानी दुनिया से बेहद के वैरागी भी हो इसलिये त्र+षि भी हो। एक तरफ राज्य, दूसरे तरफ त्र+षि अर्थात् बेहद के वैरागी।* तो दोनों ही हो? बेहद का वैराग्य है या थोड़ा-थोड़ा लगाव है। अगर कहाँ भी, चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में कहाँ भी लगाव है तो राजत्र+षि नहीं। न राजा है, न त्र+षि है।
〰✧ क्योंकि स्वराज्य है तो मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने वश में है। लगाव हो नहीं सकता। *अगर कहाँ भी संकल्प मात्र थोड़ा भी लगाव है, तो राजऋषि नहीं कहेंगे। अगर लगाव है तो दो नाव में पांव हुआ ना। थोड़ा पुरानी दुनिया में, थोड़ा नई दुनिया में। इसलिए एक बाप, दूसरा न कोई।* क्योंकि दो नाव में पांव रखने वाले क्या होते हैं? न यहाँ के, न वहाँ के। इसलिये राजऋषि राजा बनो और बेहद के वैरागी भी बनो। 63 जन्म अनुभव करके देख लिया ना? तो अनुभवी हो गये फिर लगाव कैसा?
〰✧ अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते हैं। सुनने वाला, सुनाने वाला धोखा खा सकता है। लेकिन अनुभवी कभी धोखा नहीं खाता। तो दु:ख का अनुभव अच्छी तरह से कर लिया है ना फिर अब धोखा नहीं खाओ। यह पुरानी दुनिया का लगाव सोनी हिरण के समान है। यह शोक वाटिका में ले जाता है। तो क्या करना है? थोड़ा-थोड़ा लगाव रखना है? अच्छा नहीं लगता लेकिन छोड़ना मुश्किल है! खराब चीज को छोड़ना और अच्छी चीज को लेना मुश्किल होता है क्या? *अगर कोई सोचता है कि छोड़ना है, तो मुश्किल लगता है। लेना है तो सहज लगता है। तो पहले लेते हो, पहले छोड़ते नहीं हो। लेने के आगे यह देना तो कुछ भी नहीं है। तो क्या-क्या मिला है वह लम्बी लिस्ट सामने रखो।* सुनाया है ना कि गीत गाते रहो-पाना था वो पा लिया, काम क्या बाकी रहा? तो यह गीत गाना आता है? मुख का नहीं, मन का। मुख का गीत तो थोड़ा टाइम चलेगा। मन का गीत तो सदा चलेगा। अविनाशी गीत चलता ही रहता है। आटोमेटिक है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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समय की घण्टी बजे तो तैयार होंगे या अभी सोचते हो तैयार होना है। इसी अभ्यास के कारण ‘अष्ट रत्नों की माला' विशेष छोटी बनी है। बहुत थोडे टाइम की है। जैसे आप लोग कहते हो ना सेकण्ड में मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा लेना सभी का अधिकार है। तो समाप्ति के समय भी नम्बर मिलना थोडे समय की बात है। लेकिन जरा भी हलचल न हो। *बस बिन्दी कहा और बिन्दी में टिक जायें। बिन्दी हिले नहीं।* ऐसे नहीं कि उस समय अभ्यास करना शुरू करो - मैं आत्मा हूँ. मैं आत्मा हूँ. यह नहीं चलेगा। क्योंकि सुनाया - वार भी चारों ओर का होगा। लास्ट ट्रायल सब करेंगे। *प्रकृति में भी जितनी शक्ति होगी, माया में भी जितनी शक्ति होगी, ट्रायल करेगी।* उनकी भी लास्ट ट्रायल और आपकी भी लास्ट कर्मातीत, कर्मबन्धन मुक्त स्थिति होगी। दोनों तरफ की बहुत पॉवरफुल सीन होगी। वह भी फुल फोर्स, यह भी फुल फोर्सी लेकिन सेकण्ड की विजय, विजय के नगाडे बजायेगी। समझा लास्ट पेपर क्या है।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *सदा योगयुक्त रहने की सहज विधि है - सदा अपने को 'सारथी' और 'साक्षी' समझ चलना। आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस रथ के सारथी हो। रथ को चलाने वाली आत्मा सारथी हो। यह स्मृति स्वत: ही इस रथ अथवा देह से न्यारा बना देती है, किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है।* देहभान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म में योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वत: ही हो जाते है। *स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कंट्रोल में रहती हैं अर्थात् सर्व कर्मेनिद्रयों को सदा लक्ष्य और लक्षण की मंजिल के समीप लाने की कण्ट्रोलिंग पावर आ जाती है।* स्वयं 'सारथी' किसी भी कर्मन्द्रिय के वश नहीं हो सकता। *क्योंकि माया जब किसी के ऊपर वार करती है तो माया के वार करने की विधि यही होती है कि कोई-न-कोई स्थूल कर्मेन्द्रियों अथवा सूक्ष्म शक्तियां - 'मन-बुद्धि-संस्कार' के परवश बना देती है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा याद की यात्रा में रहना"*
➳ _ ➳ मैं वन्डरफुल आत्मा अपनी हर एक साँस को वन्डरफुल बाबा की यादों में पिरोकर सूक्ष्म शरीर धारण कर सूक्ष्मवतन में बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बापदादा मुझे अपनी बाँहों में समेट लेते हैं... *बाबा की मखमली बाँहों में सिमटते ही मैं आत्मा देह और देह की दुनिया के सभी बातों को भूल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूतियों में खो जाती हूँ...* फिर मीठे बापदादा रूहानी याद की यात्रा कराते हुए मीठी रूह-रिहान करते हैं...
❉ *घर बैठे-बैठे बिना किसी मेहनत के रूहानी यात्रा करने का सहज मार्ग बताते हुए प्यारे रूहानी बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता अपने दुखो में झुलसाये कुम्हलाये फूल बच्चों को 21जनमो का अथाह सुख लुटाने धरा पर उतर आया है... *अब शरीर के आवरण से अलग हो, अपने दमकते मणि स्वरूप के नशे में भर जाओ... और सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में गहरे डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *प्यारे बाबा के यादों के गहरे समंदर में डूबकर दिव्य गुणों का श्रृंगार करते हुए मैं प्यारी आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी खोज में किस कदर दर दर भटक रही थी... आपने सहज ही जीवन में आकर मुझे कितना भाग्यवान बना दिया है... खुशियो से मेरा दामन सजा दिया है... *मै आत्मा हर पल यादो में खोयी गहरे सुख को पा रही हूँ..."*
❉ *यादों के विमान में बिठाकर संगमयुगी आसमान में उड़ाकर सतयुगी दुनिया में पहुंचाते हुए मीठे बाबा कहते हैं :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... हर साँस संकल्प और समय को यादो के तारो में पिरोकर... ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न होकर सुखो की धरा पर इठलाओ... *सदा यादो में खोये रहो और ईश्वरीय दिल पर झूमते ही रहो... ऐसे सच्चे प्यार में अपने रोम रोम को भिगो कर अतीन्द्रिय सुखो की अनुभूतियों में डूब जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने खूबसूरत भाग्य पर नाज करती हुई दिल से प्यारे बाबा का शुक्रिया अदा करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपको पाकर कितने खुबसूरत भाग्य की मालकिन हो गयी हूँ... *प्यारे बाबा आपने दिल में समाकर मुझे हर दुःख से मुक्त किया है...* फूलो की छाँव और दिव्य गुणो की महक से जीवन कितना खुबसूरत प्यारा बना दिया है..."
❉ *सारे खजाने मुझ पर लुटाकर सच्चे सुख, शांति के फव्वारों से मुझे सराबोर करते हुए मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *देह की यात्राओ में मन तो सदा रिक्त ही रहा... अब रूहानी यात्री बनकर... मन को सदा की मौज और आनन्द के अहसासो में भिगो दो... हर पल रूहानी यादो में खोये रहो...* ईश्वरीय यादो की खुमारी में सच्चे सुखो को पाकर... सतयुगी सुखो के अधिकारी बन मुस्कराओ..."
➳ _ ➳ *यादों के महल में बैठकर मीठे बाबा के दिल की रानी बनकर राज करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता को पाने वाली सौभाग्यशाली हूँ... मीठे बाबा आपने दुखो के दलदल से बाहर निकाल... *मुझे सुखो से भरे फूलो के बगीचे में बिठा दिया है... ईश्वरीय गोद पाकर मै आत्मा हर दुःख से आजाद होकर, यादो में मुस्करा उठी हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- इस पतित छी - छी दुखदाई दुनिया से दिल नही लगानी है*"
➳ _ ➳ अपने दिल मे दिलाराम शिव बाबा की मीठी याद को समाये मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि *आज दिन तक देह और देह की इस झूठी दुनिया, देह के झूठे सम्बन्धो को दिल मे बसा कर सिवाय दर्द के और कुछ नही पाया किन्तु जब से दिलाराम बाबा को दिल मे बसाया है तब से दिल को असीम सुकून और चैन मिला है*। ऐसा सुकून और चैन जिसे पाकर अब और कुछ पाने की इच्छा ही शेष नही रही। तो जब हर इच्छा से अविद्या हो चुकी तो फिर इस पतित दुनिया से दिल क्यों लगाना!
➳ _ ➳ मन ही मन स्वयं से बातें करती मैं स्वयं से ही प्रतिज्ञा करती हूँ कि अब सिवाय एक दिलाराम बाप के इस दिल में और किसी की याद कभी नही आयेगी। *इस पतित दुनिया से दिल हटाकर अब सर्व सम्बन्धो का सुख मुझे केवल अपने दिलाराम बाबा से लेना है और इन नश्वर सम्बन्धों से पूरी तरह ममत्व मिटाये नष्टोमोहा बनना है* ताकि हम ब्राह्मणों का अंत का जो पेपर है नष्टोमोहा स्मृतिलब्धा का उसमे मैं पास विद ऑनर हो सकूँ।
➳ _ ➳ इसी प्रतिज्ञा के साथ अपने निराकारी ज्योतिबिन्दु स्वरुप में स्थित हो कर, दिल को आराम देने वाली *अपने दिलाराम बाबा की मीठी याद में मैं अपने मन बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ और सेकेंड में देह के बन्धन से न्यारी हो कर भृकुटि सिहांसन को छोड़ मैं दिव्य ज्योतिबिन्दु आत्मा अब देह से बाहर आ जाती हूँ*। अपनी नश्वर देह और आस - पास की हर वस्तु को साक्षी हो कर देखते हुए अब मैं उन सबसे किनारा कर अपने शिव पिता से मिलन मनाने ऊपर की ओर जा रही हूँ। अपने दिलाराम बाबा की मीठी याद रूपी स्नेह की डोर को थामे मैं निरन्तर ऊपर उड़ती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ पांचो तत्वों को पार कर, सूक्ष्म लोक से परें, आत्माओं की उस प्रकाशमयी निराकारी दुनिया मे मैं प्रवेश करती हूँ जहां मेरे दिलाराम शिव बाबा रहते हैं। *मन बुद्धि के नेत्रों से अपने शिव पिता को अपने अति समीप पाकर मैं मन ही मन हर्षित हो रही हूँ। प्रेम के सागर मेरे शिव पिता के स्नेह की मीठी मीठी लहरें उड़ - उड़ कर मेरे पास आ रही हैं*। अपने शिव पिता के स्नेह की शीतल फुहारों के नीचे मैं असीम आनन्द की अनुभूति कर रही हूँ। अपनी असीम शक्तियाँ मुझमें प्रवाहित कर बाबा मुझे आप समान शक्तिशाली बना रहे हैं। स्वयं को मैं सर्वशक्तियों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बन अब मैं आत्मा वापिस लौट रही हूँ। परमधाम से नीचे वापिस साकारी लोक में आकर अब मैं अपने शरीर रूपी रथ पर फिर से विराजमान हो गई हूँ।
मेरे शिव पिता परमात्मा के असीम स्नेह की मीठी अनुभूति अब मुझे इस पतित दुनिया से उपराम कर रही है। *दिलाराम बाबा के निःस्वार्थ प्रेम के अनुभव ने मेरी दृष्टि, वृति को बदल दिया है। इस पतित दुनिया से दिल हटाकर, दिल मे निरन्तर दिलाराम बाबा की मीठी याद को समा कर एक असीम आनन्दमयी सुखदाई स्थिति का अनुभव अब मैं हर पल कर रही हूँ*
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप और सेवा की स्मृति से एकरस स्थिति का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सर्व आकर्षण मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा नाज़ुक परिस्थितियों के पेपर में सदैव पास होती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा अपनी नेचर को सदा शक्तिशाली बनाती हूँ ।*
✺ *मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. *बापदादा ने देखा कि कमजोरी देते तो हो लेकिन फिर वापस ले लेते हो। देखो, वो (वर्ष) अक्ल वाला है जो पांच हजार वर्ष के पहले वापस नहीं आयेगा और आप पुरानी चीजें वापस क्यों लेते हो?* चिटकी लिखकर देंगे-हाँ.. बाबा, बस, क्रोध मुक्त हो जायेंगे.... बहुत अच्छा लिखते हैं और रुहरिहान भी करते हैं तो बहुत अच्छा कांध हिलाते हैं, हाँ, हाँ करते हैं। फिर पता नहीं क्यों वापस ले लेते हैं। *पुरानी चीजों से प्रीत रखते हैं। फिर कहते हैं हमने तो छोड़ दिया वो हमको नहीं छोड़ती हैं।*
➳ _ ➳ *बाप कहते हैं आप चल रहे हो और चलते हुए कोई कांटा या ऐसी चीज आपके पीछे चिपक जाती है तो आप क्या करेंगे? ये सोचेंगे कि ये मुझे छोड़े या मैं छोडूँ? कौन छोड़ेगा? अच्छा, अगर फिर भी वो हवा में उड़ती हुई आपके पास आ जाये तो फिर क्या करेंगे?* फिर रख देंगे या फ़ेंक देंगे? फेंकेंगे ना? तो ये चीज क्यों नहीं फेंकते? अगर गलती से आ भी गई तो जब आपको पसन्द नहीं है और वो चीज आपके पास फिर से आती है तो क्या आप वो चीज सम्भाल कर रखेंगे? कोई भी किसको गलती से भी अगर कोई खराब चीज दे देवे तो क्या उसे आलमारी में सजाकर रखेंगे? फ़ेंक देंगे ना? उसकी फिर से शक्ल भी नहीं दिखाई दे, ऐसे फेंकेंगे । तो ये फिर क्यों वापस लेते हो? बापदादा की ये श्रीमत है क्या कि वापस लो? फिर क्यों लेते हो? *वो तो वापस आयेगी क्योंकि उसका आपसे प्यार है लेकिन आपका प्यार नहीं है। उसको आप अच्छे लगते हो और आपको वो अच्छा नहीं लगता है तो क्या करना पड़े?*
➳ _ ➳ २. *तो अभी जब वर्ष पांच हजार वर्ष के लिये विदाई लेता है तो आप कम से कम ये छोटा सा ब्राह्मण जन्म एक ही जन्म है, ज्यादा नहीं है, एक ही है और उसमें भी कल का भरोसा नहीं तो वो पांच हजार की विदाई लेता है तो आप कम से कम एक जन्म के लिए तो विदाई दो। दे सकते हो? हाँ जी तो करते हो। लेकिन जिस समय वो वापस आती है तो सोचते हो - बड़ा मुश्किल लगता है, छूटता ही नहीं है, क्या करें! छोड़ो तो छूटें। वो नहीं छूटेगा, *आप छोड़ो तो छूटेगा। क्योंकि आपने उनसे प्यार बहुत कर लिया है तो वो नहीं छोड़ेगा, आपको छोड़ना पड़ेगा। तो पुराने वर्ष को इस विधि से दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चय, इस ट्रे में ये आठ ही बातें सजा कर उसको दे दो तो फिर वापस नहीं आयेंगी, निश्चय को हिलाओ नहीं।
➳ _ ➳ ३. *अलबेले मत बनना। रिवाइज करो, बार-बार रिवाइज करो।* बापदादा ने सबका चार्ट चेक किया तो टोटल ५० परसेन्ट बच्चे दूसरों को देख स्वयं अलबेले रहते हैं। कहाँ कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी अलबेलेपन में बहुत आते हैं। ये तो होता ही है..... ये तो चलता ही है.... चलने दो... सभी चलते हैं.... *बापदादा को हंसी आती है कि क्या अगर एक ने ठोकर खाई तो उसको देखकर आप अलबेलेपन में आकर ठोकर खाते हो, ये समझदारी है? तो इस अलबेलेपन का पश्चाताप् बहुत-बहुत-बहुत बड़ा है।* अभी बड़ी बात नहीं लगती है, हाँ चलो... लेकिन बापदादा सब देखते हैं कि कितने अलबेले होते हैं, कितने औरों को नीचे जाने में फालो करते हैं? तो बापदादा को बहुत रहम आता है कि पश्चाताप् की घड़ियाँ कितनी कठिन होगी। *इसलिए अलबेलेपन की लहर को, दूसरों को देखने की लहर को इस पुराने वर्ष में मन से विदाई दो।*
✺ *ड्रिल :- "दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरी, अलबेलेपन को मन से विदाई देना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने भृकुटि सिंहासन पर विराजमान... अपने स्वधर्म शांत स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ...* धीरे-धीरे बाहर की दुनिया से दूर डिटैच होती जा रही हूँ... सभी बाहर की आवाजें अब बंद हो गई है... और मैं आत्मा अपने इनर जर्नी पर चली जा रही हूँ... *गहरे और गहरे एकदम शांत जहां मन की भी आवाज खत्म हो जाती है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने घर स्वीट होम परमधाम आ जाती हूँ...* महाज्योति से दिव्य किरणें चारों ओर फैल रही है... और मुझ आत्मा में भी समाती जा रही है... मैं आत्मा बाबा के समीप आती जा रही हूँ... उनके किरणों रूपी गोद में बैठ जाती हूँ... पवित्रता, स्नेह, शक्ति की लाइट का फाऊँटेन आती हुई परम ज्योति से... मुझ आत्मा पर आती हुई मुझमें समाती जा रही है... भरपूर करती जा रही है...
➳ _ ➳ सर्वशक्तिमान से शक्तियों की किरणें मेरे कमजोरियों को अलबेलेपन को दग्ध कर रही है... *कोई भी काँटा, गलती से भी आयी हुई चीज सभी समाप्त होती जा रही है...* अंश के वंश को भी समाप्त कर रही है... *जो बहुत प्यार से इन सब को पकड़ रखा था एक-एक को छोड़ती जा रही हूँ... सब की विदाई कर दी है...*
➳ _ ➳ अब मैं आत्मा धीरे-धीरे सूक्ष्म वतन आती हूँ अपने चमकते लाइट के ड्रेस में... *बापदादा मेरा हाथ अपने हाथों में थाम लेते हैं... बाबा अपनी दृढ़ता, निश्चयबुद्धि मुझे विल करते जा रहे हैं...* मैं आत्मा अपने अलबेलेपन के संस्कार से मुक्त होती जा रही हूँ... *परचिंतन परदर्शन से मुक्त होती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *हाँ जी बाबा! अटेंशन रूपी पहरा रखती जा रही हूँ... यूँ ही अलबेलेपन में आकर ठोकर नहीं खाऊंगी...* अपने अंदर परिवर्तन को महसूस कर रही हूँ... अब सिर्फ सारी प्रीत एक आप से ही है बाबा... मुझ आत्मा के संकल्प दृढ़ हो गये हैं... समर्थ हो गए हैं... सम्पूर्ण निश्चय से कमजोरियों अलबेलेपन को विदाई दे दी है... मैं आत्मा शक्तियों से भरपूर... *खुद पर निश्चय रखती हुई अपने स्थूल शरीर में आ जाती हूँ... ओम् शान्ति।*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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