━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 29 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आत्माओं को जगाने की सेवा की ?*
➢➢ *84 का चक्र बुधी में फिराया ?*
➢➢ *बाप और प्राप्ति की स्मृति से सदा हिम्मत हुल्लास में रहे ?*
➢➢ *किसी भी प्रकार की सेवा में संतुष्ट रहे ?*
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ *बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है,* यह स्टेज लाइट हाउस, माइट हाउस का कार्य करती है। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है *ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते हो तो आटोमेटिकली विश्व को लाइट का पानी मिलता है।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
✺ *"मैं संगमयुगी रूहानी मौजों में रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा संगमयुग के रूहानी मौजों में रहने वाले अनुभव करते हो? मौजों में रहते हो वा कभी मौज में, कभी मूझंते भी हो या सदा मौज में रहते हो? क्या हालचाल है? *कभी कोई ऐसी परिस्थिति आ जाए वा ऐसी कोई परीक्षा आ जाए तो मूंझते हो?(थोड़े टाइम के लिए) और उस थोड़े टाइम में अगर आपको काल आ जाए तो फिर क्या होगा? अकाले मृत्यु का तो समय है ना। तो थोड़ा समय भी अगर मौज के बजाए मूंझते हैं और उस समय अन्तिम घड़ी हो जाए तो अन्त मति सो गति क्या होगी? इसलिए सुनते रहते हो ना सदा एवररेडी!* एवररेडी का मतलब क्या है? क्या हर घड़ी ऐसे एवररेडी हो? कोई भी समस्या सम्पूर्ण बनने में विघ्न रूप नहीं बने।
〰✧ अन्त अच्छी तो भविष्य आदि भी अच्छा होता है। जैसा मत में होगा वैसी गति होगी। तो एवररेडी का पाठ इसलिए पढ़ाया जा रहा है। ऐसे नहीं सोचो कि थोड़ा समय होता है लेकिन थोड़ा समय भी, एक सेकण्ड भी धोखा दे सकता है। वैसे सोचते हैं ज्यादा टाइम नहीं चलता, ऐसा दो-चार मिनट चलता है लेकिन एक सेकण्ड भी धोखा देने वाला हो सकता है तो मिनिट की तो बात ही नहीं सोचो। क्योंकि सबसे वैल्युएबुल आत्मायें हो, अमूल्य हो। अमूल्य आत्माओ का कोई दुनिया वालों से मूल्य नहीं कर सकते। दुनिया वाले तो आप सबको साधारण समझेंगे। लेकिन आप साधारण नहीं हो, विशेष आत्मायें हो। *विशेष आत्मा का अर्थ ही है जो भी कर्म करे, जो भी संकल्प करे, जो भी बोल बोले वो हर बोल और हर संकल्प विशेष हैं, साधारण नहीं हो। समय भी साधारण रीति से नहीं जाये। हर सेकेण्ड और हर संकल्प विशेष हो। इसको कहा जाता है विशेष आत्मा।* तो विशेष करते-करते साधारण नहीं हो जाये-ये चेक करो।
〰✧ कई ऐसे सोचते हैं कि कोई गलती नहीं की, कोई पाप कर्म नहीं किया, कोई वाणी से भी ऐसा उल्टा-सुल्टा शब्द नहीं बोला, लेकिन भविष्य और वर्तमान श्रेष्ठ बनाया? बुरा नहीं किया लेकिन अच्छा किया? सिर्फ ये नहीं चेक करो कि बुरा नहीं किया, लेकिन बुरे की जगह पर अच्छे ते अच्छा किया या साधारण हो गया ? तो ऐसे साधारणता नहीं हो, श्रेष्ठता हो। नुकसान नहीं हुआ, लेकिन जमा हुआ? *क्योंकि जमा का समय तो अभी है ना। अभी का जमा किया हुआ भविष्य अनेक जन्म खाते रहेंगे। तो जितना जमा होगा उतना ही खायेंगे ना। अगर कम जमा किया तो कम खाना पड़ेगा अर्थात् प्रालब्ध कम होगी।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ कई बच्चे रूह-रूहान करते हुए बाबा से पूछते हैं कि *'हम भविष्य में क्या बनेंगे, राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे?'* बापदादा बच्चों को रेस्पाण्ड करते हैं कि *अपने आप को एक दिन भी चेक करो* तो मालूम पड जायेगा कि मैं राजा बनूँगा वा साहूकार बनूँगा वा प्रजा बनूँगा।*
〰✧ पहले अमृतवेले से अपने मुख्य तीन कारोबार के अधिकारी, अपने सहयोगी, साथियों को चेक करो। वह कौन? 1. *मन अर्थात संकल्प शक्ताि* 2. *बुद्धि अर्थात निर्णय शक्ति।* 3. *पिछले वा वर्तमान श्रेष्ठ संस्कार* यह तीनो विशेष कारोबारी हैं।
〰✧ जैसे आजकल के जामने में राजा के साथ महामन्त्र वा विशेष मन्त्री होते हैं, उन्हीं के सहयोग से राज्य कारोबार चलता है। *सतयुग में मन्त्री नहीं होंगे लेकिन समीप के सम्बन्धी, साथी होंगे।* किसी भी रूप में, साथी समझो वा मन्त्री समझो।
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
〰✧ वहाँ कोइ हद नहीं होती। तो बेहद का राज्य-भाग्य हो गया। लेकिन बेहद का राज्य-भाग्य प्राप्त करने वालों को पहले इस समय अपनी देह की हद से परे जाना पडेगा। *अगर देहभान की हद से निकले तो और सभी हद से निकल जायेंगे।* इसलिए बापदादा कहते हैं - पहले देह सहित देह के सब सम्बन्धों से न्यारे बनो। पहले देह फिर देह के सम्बन्धी। तो इस देह के भान की हद से निकले हो? क्योंकि देह की हद कभी भी ऊपर नहीं ले जायेगी। देह मिट्टी है, मिट्टी सदा भारी होती है। कोई भी चीज मिट्टी की होगी तो भारी होगी ना। *यह देह तो पुरानी मिट्टी है, इसमें फंसने से क्या मिलेगा! कुछ भी नहीं।*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚
────────────────────────
∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अविनाशी ज्ञान रत्न धारण करना*"
➳ _ ➳ भक्ति में सदा कनरस में डूबी हुई मै आत्मा... मन्दिर में एक प्रतिमा के दर्शन में जीवन की सफलता को निहारा करती थी... तब कहीं ख्वाबो और ख्यालो में भी... ईश्वरीय मिलन की कोई और चाहना भी न थी... बून्द ही मेरे लिए सागर थी... किसी और प्यार के सागर को भला मै क्या जानु... पर भगवान को मेरे ये खोखले और क्षणिक सुख नही भाये... और वह *मुझे सच्चे सुखो की अमीरी का अहसास कराने... परमधाम छोड़, धरती पर आ गया... मेरे अथाह सुखो की चाहना में... धरा पर डेरा जमा लिया.*.. अपने प्यारे बाबा के सागर दिल को याद करते करते... और उसके असीम उपकारों को सिमरते हुए मै आत्मा... मीठे बाबा के कमरे में मिलन के लिए पहुंचती हूँ...
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने खोये गुणो से भरपूर कर पुनः चमकदार बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे,... जनमो से ईश्वर के दर्शनों को तरसते थे... आज उनके सम्मुख बेठ मा नॉलेजफुल बन रहे हो... तो अब हर पल, हर साँस को ईश्वरीय यादो में ही बिताओ... *सिर्फ एक सच्चे बाप से सच्चे ज्ञान को सुनकर, गुणो की धारणा कर, स्वयं को सदा के लिए मीठा बनाओ.*.. इन अविनाशी ज्ञान रत्नों को सुनने वाली... आपकी कर्मेन्द्रियों का भी भाग्य है.. कि आत्मा को ईश्वरीय सुख दिलाने में भागीदार है..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा के अमृत वचन सुनकर स्वयं के भाग्य की सराहना करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा... मुझ आत्मा ने आपके बिना अथाह दुःख पाया... सच्चे प्यार को तरसती मै आत्मा... दर दर भटकती रही... आज आप प्यार के सागर ने मुझे अपनी प्यार भरी बाँहों में लेकर... मेरे थके मन, बुद्धि को सुख से भर दिया है... *आपकी यादो में मेरा प्यारा मन और दिव्य बुद्धि मुझे असीम खुशियो से सजा रही है.*.."
❉ *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को ईश्वरीय खजानो से सम्पन्न बनाते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... महान भाग्य ने जो अविनाशी ज्ञान रत्नों को दामन में सजाया है... उनको खनक में सदा खोये रहो... *श्रीमत की धारणा से मन प्यारा और बुद्धि दिव्यता से सज कर, सदा सुखो की बहारो में ले जायेगी.*.. और ज्ञान को सुनते सुनते, स्थूल कर्मेन्द्रियाँ भी मिठास से परिपूर्ण हो जायेगी... इसलिए सदा ज्ञान रत्नों की झनकार में आनन्दित रहो और यादो में झूमते रहो...
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा की सारी दौलत को अपनी बाँहों में भरकर कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मै आत्मा आपके बिना कितनी सूनी थी... पराये देश में पिता बिना कितनी अकेली थी... आप आये तो जीवन में बहार आयी है... *ज्ञान और योग से जीवन रौनक से भरा, खुबसूरत हो गया है... यह जीवन सच्ची खुशियो से संवर गया है.*.. सूक्ष्म और स्थूल कर्मेन्द्रियाँ ईश्वरीय प्यार में शीतल सुखदायी हो गयी है और मुझ आत्मा को सदा का सुख दे रही है..."
❉ *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपनी यादो में डूबने का फरमान देते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... ईश्वर पिता को पाकर अब पुरानी दुनिया के व्यर्थ से मुक्त हो जाओ... *सिर्फ मीठे बाबा के सच्चे ज्ञान रत्नों को ही सुनो... यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही सच्ची कमाई है... सदा इस सच्ची कमाई में ही डूबे रहो.*.. सत्य ज्ञान और सच्चे वजूद को जानकर, अब स्वयं को कहीं भी न उलझाओ... मीठे बाबा की प्यारी यादो में डूब, सदा के लिए प्यारे और न्यारे बन जाओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा प्यारे बाबा की मीठी मीठी यादो में गहरे डूबकर कहती हूँ :-* "प्यारे दुलारे बाबा... विकारो की कालिमा में कंगाल बन गयी... मुझ आत्मा को अपने सच्चे ज्ञान से पुनः मालामाल बना रहे हो... मै क्या बन गयी थी, और आप मुझे पुनः देवता सजा रहे हो... ऐसा मीठा खुबसूरत भाग्य पाकर, तो मै आत्मा निहाल हो गयी हूँ... *आपकी मीठी यादे और अमूल्य ज्ञान रत्न ही... मेरे जीवन का सच्चा आधार है, और इसी पर मेरे सारे सुखो का मदार है*..."मीठी बाबा को अपने दिल की बात सुनाकर मै आत्मा... साकारी लोक में आ गयी...
────────────────────────
∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कभी किसी बात से तंग हो पढ़ाई नही छोड़नी है*"
➳ _ ➳ स्वयं भगवान परमशिक्षक बन परमधाम से हर रोज मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति मेरे अंदर एक अदबुत रूहानी जोश और उमंग भर देती है। *मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते हुए मैं उन खूबसूरत पलों को याद करती हूँ जब निराकार भगवान साकार में आकर शिक्षक बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने हम पर लुटाते हैं*। उस सीन की मधुर स्मृति मुझे परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन के उस डायमंड हाल में ले जाती हैं जहाँ भगवान साकार में आकर, अपने बच्चों के समुख बैठ बाप बन उनकी पालना करते हैं, टीचर बन उन्हें पढ़ाते हैं और सतगुरु बन अपनी श्रेष्ठ मत उन्हें देकर उनका कल्याण करते हैं। *मन बुद्धि से पहुँची मधुबन के डायमंड हाल मैं बैठी परमात्म मिलन का मैं आनन्द ले रही हूँ और अपने परमशिक्षक के मुख कमल से उच्चारे महावाक्यों को सुन कर मन ही मन हर्षित हो रही हूँ*।
➳ _ ➳ यह विचार कि "मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" और स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए आये हैं, जैसे मुझ पर एक नशा चढ़ा रहा है। मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनाने वाली अपने परमशिक्षक शिव भगवान द्वारा पढ़ाई जा रही इस पढ़ाई को मुझे ना केवल अच्छी रीति पढ़ना है बल्कि इसे जीवन मे धारण कर, औरों को भी यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाना है। *मन ही मन यह विचार कर, स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि चाहे कुछ हो जाये किन्तु कभी भी किसी से रूठ कर भी, अपने परमशिक्षक से पढ़ना मैं नही छोडूंगी। जब तक मेरे परमशिक्षक शिवबाबा मुझे पढ़ाते रहेंगे तब तक इस संगमयुग के अंत तक मैं इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ती रहूँगी और अपने प्यारे बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर अपने जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ करती रहूँगी*।
➳ _ ➳ अपने परमशिक्षक से पढाई को अच्छी रीति पढ़ने की प्रतिज्ञा कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपने सेवाक्षेत्र पर लौट आती हूँ और मन ही मन अपने प्यारे भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा कर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर, अपना सम्पूर्ण ध्यान मैं अपने मस्तक पर एकाग्र करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्वयं को टिकाने का प्रयास करती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं सहज ही और अतिशीघ्र अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। स्वयं को मैं भृकुटि के बीच मे चमकते हुए एक अति सूक्ष्म स्टार के रूप में देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे चारों और फैल रहा है और मन को गहन सुकून का अनुभव करवा रहा है*। इस प्रकाश में समाये गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स इस प्रकाश के साथ अब धीरे - धीरे चारों और फैल रहें हैं। जो वायुमण्डल को गहन सुखमय और शांतमय बना रहे हैं।
➳ _ ➳ अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके, असीम आनन्द लेते हुए मैं आत्मा अब अपने परमशिक्षक शिव पिता से मिलन मनाने उनकी निराकारी दुनिया की ओर जा रही हूँ। *भृकुटि के भव्यभाल से उतर कर, मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर चल पड़ी हूँ। प्रभु प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सेकण्ड में साकार और सूक्ष्म वतन को पार कर अब पहुँच गई हूँ अपने शिव पिता के पास उनके निर्वाणधाम घर में जो वाणी से परें हैं*। साइलेन्स की यह दुनिया मेरा स्वीट साइलेन्स होम जहां आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। देख रही हूँ महाज्योति अपने शिव पिता, अपने परमशिक्षक को अपने बिल्कुल सामने। *ऐसा लग रहा है जैसे सर्व शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरते मेरे प्यारे पिता अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे समाने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बिखेरता मेरे पिता का यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे सहज ही अपनी और खींच रहा है। *मैं चमकती हुई जगमग करती चैतन्य ज्योति अब धीरे - धीरे महाज्योति अपने प्यारे पिता के समीप पहुँचती हूँ और जा कर जैसे ही उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे मुझे अपने आगोश में ले लेती हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का बल मुझे भी उनके समान शक्तिशाली और तेजोमय बना रहा है। *शक्तियों से सम्पन्न अपने अति चमकदार और लुभावने स्वरूप को देख मैं मंत्रमुग्ध हो रही हूँ जो रीयल गोल्ड की तरह दिखाई दे रहा है*।
➳ _ ➳ सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे, साकार सृष्टि पर कर्म करने के लिए वापिस लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव पिता के फरमान पर चल, उनकी शिक्षायों को अपने जीवन मे धारण कर, अब मैं श्रेष्ठ बनने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं इस बात को सदा स्मृति में रखकर, रुठ कर पढ़ाई छोड़ने का संकल्प भी अपने मन मे ना उठाते हुए, अपने परमशिक्षक प्यारे बाबा से मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों से हर रोज अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर मैं औरो को भी इन ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना कर उनका भी कल्याण अब हर समय कर रही हूँ।
────────────────────────
∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं बाप और प्राप्ति की स्मृति से सदा हिम्मत - हुल्लास में रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं एकरस आत्मा हूँ।*
✺ *मैं अचल आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा किसी भी प्रकार की सेवा में सदैव संतुष्ट रहती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा संतुष्ट रहकर अच्छे मार्क्स लेती हूँ ।*
✺ *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
────────────────────────
∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. *आज बापदादा एक बात की स्मृति दिला रहे हैं - कभी भी कोई भी शारीरिक बीमारी हो, मन का तूफान हो, तन में हलचल हो, प्रवृत्ति में हलचल हो, सेवा में भी हलचल होती है तो किसी भी प्रकार के हलचल में दिलशिकस्त कभी नहीं होना।* बड़ी दिल वाले बनो। बाप की दिल कितनी है, छोटी है क्या! बाप बड़ी दिल वाले हैं और बच्चे छोटी दिल कर देते हैं, बीमार हो गये तो रोना शुरु कर देंगे। दर्द हो गया, दर्द हो गया। तो दिलशिकस्त होना दवाई है? बीमारी चली जायेगी कि बढ़ेगी? जब हिसाब-किताब आ गया, दर्द आ गया तो हिसाब-किताब आ गया ना, *लेकिन दिलशिकस्त से बीमारी को बढ़ा देते हो। इसलिए हिम्मत वाले बनो तो बाप भी मददगार बनेंगे।*
➳ _ ➳ ऐसे नहीं, रो रहे हैं- हाय क्या करुँ, क्या करुँ और फिर सोचो कि बाबा की तो मदद है ही नहीं। *मदद उसको मिलती है जो हिम्मत रखते हैं। पहले बच्चे की हिम्मत फिर बाप की मदद है।* तो हिम्मत तो हार ली और सोचने लगते हो कि बाप की मदद तो मिली नहीं, बाबा भी टाइम पर तो करता ही नहीं है! तो आधे अक्षर याद नहीं करो, बाबा मददगार है लेकिन किसका? तो आधा भूल जाते हो और आधा याद करते हो कि बाबा भी पता नहीं महारथियों को ही करता है, हमको तो करता ही नहीं है, हमको तो देता ही नहीं है। पहले आप, महारथी पीछे। लेकिन दिलशिकस्त नहीं बनो और *मन में अगर कोई उलझन आ भी जाती है तो ऐसे समय पर निर्णय शक्ति चाहिये और निर्णय शक्ति तब आ सकती है जब आपका मन बाप के तरफ होगा।* अगर अपने उलझन में होंगे तो हाँ-ना, हाँ-ना, इसी उलझन में रह जायेंगे। इसलिए मन से भी दिलशिकस्त नहीं बनो।
➳ _ ➳ और धन भी नीचे-ऊपर होता है, जब करोड़पतियों का ही नीचे-ऊपर होता है तो आप लोग उसके आगे क्या हो। वो तो होना ही है। *लेकिन आप लोगों को निश्चय पक्का है कि जो बाप के साथी हैं, सच्चे हैं तो कैसी भी हालत में बापदादा दाल-रोटी जरूर खिलायेगा।* दो-दो सब्जी नहीं खिलायेगा, दाल-रोटी खिलायेगा। लेकिन ऐसे नहीं करना कि काम से थक करके बैठ जाओ और कहो बाबा दाल-रोटी खिलायेगा। ऐसे अलबेले या आलस्य वाले को नहीं मिलेगा। बाकी सच्ची दिल पर साहेब राजी है।
➳ _ ➳ और परिवार में भी खिटखिट तो होना है। जब आप लोग कहते हो कि अति के बाद अन्त होना है, कहते हो! अति में जा रहा है और जाना है तो परिवार में खिटखिट न हो, ये नहीं होना है, होना है! *लेकिन आप ट्रस्टी बन, साक्षी बन परिस्थिति को बाप से शक्ति ले हल करो।* गृहस्थी बनकर सोचेंगे तो और गड़बड़ होगी। पहले बिल्कुल न्यारे ट्रस्टी बन जाओ। मेरा नहीं। ये मेरापन-मेरा नाम खराब होगा, मेरी ग्लानि होगी, मेरा बच्चा और मुझे...., मेरी सास मेरे को ऐसे करती है.... ये मेरापन आता है ना तो सब बातें आती हैं। मेरा जहाँ भी आया वहाँ बुद्धि का फेरा हो जाता है, बदल जाते हैं। अगर बुद्धि कहाँ भी उलझन में बदलती है तो समझ लो ये मेरापन है, उसको चेक करो और जितना सुलझाने की कोशिश करेंगे उतना उलझेगा। *इसलिए सभी बातों में क्या नहीं बनना है? दिलशिकस्त नहीं बनना है। क्या नहीं बनेंगे? (दिलशिकस्त) सिर्फ कहना नहीं, करना है।*
➳ _ ➳ २. *अभी समर्थ बनो और सन शोज फादर का पाठ पक्का करो।* कच्चा नहीं करो, पक्का करो। सभी हिम्मत वाले हो ना? हिम्मत है? अच्छा।
✺ *ड्रिल :- "दिलशिकस्त न बन, हिम्मते बच्चे, मददे बाप का अनुभव"*
➳ _ ➳ *ईश्वरीय सन्तान होने के अपने महान भाग्य पर इठलाती हुई मैं आत्मा ईश्वरीय नशे में झूमती हुई... अपने सच्चे साथी मीठे बाबा को दिल के घरोंदे में बुलाती हूँ...* मेरी यादों के दीवाने बाबा दिल के घरोंदे में सदा बसने को आतुर है... मीठे बाबा कभी मेरे उमंग उत्साह की तूफानी लहरों और अगले ही पल की दिलशिकस्त स्थिति से भली भांति वाकिफ है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने मीठे बाबा के सम्मुख खुली किताब की तरहा हो गयी हूँ... मुझे भली भांति पढ़ते हुए मुझे हर मुश्किल से उबारते हुए मीठे बाबा मुझे समाधानित करते हुए कहते है... *यह परिस्थितियां शक्तियों को जगाने का खुबसूरत साधन है... इनमें कभी दिलशिकस्त होकर निराश नही होना...* अपनी हिम्मत के एक कदम को उठाकर मीठे बाबा को हजार कदमों से दौड़ाते रहना...
➳ _ ➳ मैं आत्मा मीठे बाबा की ज्ञान रत्नों में रमणीकता को देख मुस्कराती हूँ तो मीठे बाबा मुझमे अनन्त शक्तियों का संचार कर समझाते हैं... *मन को सदा ईश्वरीय यादों में मगन रख निर्णय शक्ति को बढ़ाओ...* धन की किसी भी हलचल में अचल और अछूते रहो... *भगवान साथी बन जब साथ है तो अपने बच्चों को दाल रोटी अवश्य खिलायेगा... उसके कन्धों पर बैठ सदा निश्चिन्त हो, मौजों का आनन्द लो...*
➳ _ ➳ मीठे बाबा मेरे परिवार की गांठो को सुलझाते हुए कहने लगे... मीठे बच्चे जब अति के बाद ही अंत तय है तो अति को सदा साक्षी भाव से देख पिता से शक्ति लेकर शक्तिशाली बन मुस्कुराओ... *देह भान ने जो मेरेपन के धागों में उलझाया है ट्रस्टी बन उन डोरियों को काटते चलो... मेरेपन में फंसकर बुद्धि का फेरा नही करो बल्कि मीठे बाबा के यादो में दिल को फिराते रहो...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सच्चे साथी से प्यार की दौलत और असीम ताकत पाकर स्वयं को समर्थ और शक्तियों से सजा हुआ पा रही हूँ... *मीठे बाबा ने मुझे हिम्मत के पंख देकर दिलशिकस्त की जमीं से ऊपर उड़ा कर सफलता के आसमाँ में उड़ना सिखा दिया है...* कुछ पल पहले जो व्यर्थ चिंतन में मैं आत्मा उलझ गयी थी दिल थाम कर बैठ गयी थी... प्यारे बाबा से ज्ञान संजीवनी को पाकर पुनः अपनी शक्तियों को थामे स्वमान की सीट पर विराजित मन्द मन्द मुस्करा रही हूँ...
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━