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❍ 24 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *अच्छी अच्छी पॉइंट्स पर विचार सागर मंथन कर लिखा ?*
➢➢ *देहि अभिमानी बन बाप को याद किया ?*
➢➢ *संपनता द्वारा संतुष्टता का अनुभव किया ?*
➢➢ *नाज़ुक परिस्थितियों से पाठ पढकर स्वयं को परिपक्व बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *सदा डबल लाइट स्थिति में रहने वाले निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त होंगे। उड़ती कला में रहेंगे।* उड़ती कला अर्थात् ऊंचे से ऊँची स्थिति। उनके बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं। धरनी अर्थात् देह भान से ऊपर। जो देह भान की धरनी से ऊपर रहते वह सदा फरिश्ते हैं।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा हूँ "*
〰✧ स्वयं को सदा सर्व खजानों से भरपूर अर्थात् सम्पन्न आत्मा अनुभव करते हो? *क्योंकि जो सम्पन्न होता है तो सम्पन्नता की निशानी है कि वो अचल होगा, हलचल में नहीं आयेगा। जितना खाली होता है उतनी हलचल होती है। तो किसी भी प्रकार की हलचल, चाहे संकल्प द्वारा, चाहे वाणी द्वारा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा, किसी भी प्रकार की हलचल अगर होती है तो सिद्ध है कि ख़जाने से सम्पन्न नहीं हैं।* संकल्प में भी, स्वप्न में भी अचल। क्योंकि जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् स्वरूप की स्मृति इमर्ज होगी उतना ये हलचल मर्ज होती जायेगी। तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति प्रत्यक्ष रूप में इमर्ज हो।
〰✧ *जैसे शरीर का आक्यूपेशन इमर्ज रहता है, मर्ज नहीं होता, ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन इमर्ज रूप में रहे। तो यह चेक करो-इमर्ज रहता है या मर्ज रहता है? इमर्ज रहता है तो उसकी निशानी है-हर कर्म में वह नशा होगा और दूसरों को भी अनुभव होगा कि यह शक्तिशाली आत्मा है।* तो कहा जाता है हलचल से परे अचल। अचलघर आपका यादगार है। तो अपना आक्यूपेशन सदा याद रखो कि हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं-क्योंकि आजकल सर्व आत्मायें अति कमजोर हैं तो कमजोर आत्माओंको शक्ति चाहिये। शक्ति कौन देगा? जो स्वयं मास्टर सर्वशक्तिमान् होगा।
〰✧ किसी भी आत्मा से मिलेंगे तो वो क्या अपनी बातें सुनायेंगे? कमजोरी की बातें सुनाते हैं ना? जो करना चाहते हैं वो कर नहीं सकते तो इसका प्रमाण है कि कम]जोर हैं और आप जो संकल्प करते हो वो कर्म में ला सकते हो। *तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि संकल्प और कर्म दोनों समान होगा। ऐसे नहीं कि संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो और कर्म करने में वो श्रेष्ठ संकल्प नहीं कर सको, इसको मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहेंगे।* तो चेक करो कि जो श्रेष्ठ संकल्प होते हैं वो कर्म तक आते हैं या नहीं आ सकते? मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि जो शक्ति जिस समय आवश्यक हो उस समय वो शक्ति कार्य में आये।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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लोग चिल्लाते रहें और आप अचल रहो। *प्रकृति भी, माया भी सब लास्ट दाँव लगाने लिए अपने तरफ कितना भी खींचे लेकिन आप न्यारे और बाप के प्यारे बनने की स्थिति में लवलीन रही। इसको कहा जाता - देखते हुए न देखो। सुनते हुए न सुनो। ऐसा अभ्यास हो।* इसी को ही ‘स्वीट साइलेन्स' स्वरूप की स्थिति कहा जाता है। फिर भी बापदादा समय दे रहा है। अगर कोई भी कमी है तो अब भी भर सकते हो। क्योंकि बहुतकाल का हिसाब सुनाया। तो अभी थोडा चांस है। इसलिए *इस प्रैक्टिस की तरफ फुल अटेन्शन रखो।* पास विद ऑनर बनना या पास होना इसका आधार इसी अभ्यास पर है। ऐसा अभ्यास है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना!* इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। 'तख्तनशीन आत्मा हूँ।' इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियां स्वत: ही ऑर्डर पर चलेंगी। *जो अकाल-तख्त-नशीन समझकर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, ने देह के सम्बन्ध है, न पदार्थ हैं एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा ख़ुशी में रहना"*
➳ _ ➳ *झील के किनारे बैठी मैं आत्मा प्यारे बाबा का आह्वान करती हूँ... प्यारे बाबा के आगमन से झील की लहरें ख़ुशी से उछल रही हैं... हवा और पानी साथ साथ खेल रहे हैं... पेड़ पौधे झुक झुककर सलाम कर रहे हैं... मौसम की मस्ती से मेरे मन में भी उमंग उल्लास की लहरें दौड़ रही हैं...* ऐसा लग रहा पूरी प्रकृति प्रेम के सागर की आने की खुशी में प्रेम की कविताएं सुना रही हैं... इस दुख की दुनिया से निकाल सुख, शांति की दुनिया में ले जाने आए मेरे बाबा के सामने मैं आत्मा बैठ प्यार की बातें करती हूँ...
❉ *सुख-शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा हथेली पर स्वर्ग की सौगात सजाकर कहते हैं:-* "मेरे लाडले बच्चे... मै विश्व का पिता आप बच्चों की झोली सदा के लिए सुख से भरने आया हूँ...* अमन ही अमन हो ऐसी चैन की दुनिया बसाने आया हूँ... सुख शांति भरपूर हो ऐसी मीठी सुखो की दुनिया बच्चों के लिए सौगात स्वरूप लाया हूँ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा खुशियों के सागर में झूमती लहराती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके बिना किस कदर दुखमय जीवन को अपनी नियति समझ रही थी... आपने मीठे बाबा... *मेरा दामन खुशियो से खिलाया है... सुख शांति से भरे जीवन का अधिकारी बना सजाया है..."*
❉ *प्यारे बाबा परमात्म माइट और परमात्म दिव्य लाइट से मुझे भरपूर करते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस घोर पाप की दुनिया से ईश्वर पिता के सिवाय कोई निकाल ही न सके... सुख भरा चैन सिर्फ पिता ही जीवन में ला सके... *ऐसे मीठे बाबा को हर पल यादो में सजाओ... जो परमधाम से उतर आये और सुख शांति के सौगातों से लबालब कर जाय..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा शांतिधाम और सुखधाम की स्मृतियों को मन में बसाकर कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... आप महा पिता मेरे लिए कितनी दूर से आते हो... *सुनहरे सुखो से और शांतिमय जीवन से मेरी सदा के लिए दुनिया सजाते हो... अपनी मीठी यादो से मुझे आप समान सुंदर बनाते हो... जिंदगी को महकाते हो..."*
❉ *मेरे बाबा पाप की दुनिया से मुझे निकाल चैन की दुनिया में ले जाने दूर देश से आकर कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने खिलते हुए खुशबूदार फूलो को इस कदर विकारो रुपी काँटों में झुलसता तो मै पिता देख ही न सकूँ... और बच्चों को मुस्कराहटों से सजाने महकाने धरती पर आऊं...* बच्चे सुख शांति के जीवन में चैन से रहे तो मै पिता सदा का आराम पाऊँ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने घर को, स्वर्णिम दुनिया के सुखों को याद कर आनंदोल्लास में डूबकर कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा पाप की दुनिया में गहरे धस गई थी... आपसे मेरी दारुण सी दशा देखी न गई... आप दौड़े से आये और मेरा जीवन सुखो की सौगातों से महका दिया...* यूँ जीवन मीठा और प्यारा बना दिया..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विकर्मो से बचने के लिए देही अभिमानी बन बाप को याद करना है*"
➳ _ ➳ देह के भान से मुक्त, देही अभिमानी स्थिति में स्थित होते ही मुझे मेरे सत्य स्वरूप का अनुभव हो रहा है। मेरा सत्य स्वरूप अति सुंदर, अति प्यारा है। अपने इस सत्य स्वरूप को अब मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से स्पष्ट देख रही हूँ। *एक ज्योति जो इस देह रूपी मन्दिर में भृकुटि पर विराजमान हो कर जगमग कर रही है। इस ज्योति से निकल रहे प्रकाश को मैं अपने चारों ओर महसूस कर रही हूँ*। प्रकाश का एक सुंदर औरा मेरे चारों और निर्मित हो रहा है। इस प्रकाश से निर्मित औरे में मुझ आत्मा के सातों गुण समाये हैं जिससे मुझे शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, ज्ञान और आनन्द की गहन अनुभूति हो रही है।
➳ _ ➳ देही अभिमानी स्थिति में स्थित हो कर, अपने वास्तविक गुणों की गहन अनुभूति मुझे गुणों के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा के साथ जोड़ रही है। *मेरी बुद्धि का कनेक्शन परमधाम में रहने वाले मेरे शिव पिता परमात्मा से जुड़ रहा है*। मैं अनुभव कर रही हूँ गुणों के सागर शिव पिता से आ रही सातों गुणों की सतरंगी किरणों को स्वयं पर पड़ते हुए।
➳ _ ➳ शिव पिता परमात्मा से आ रही सर्व गुणों की शक्तिशाली किरणों के मुझ आत्मा पर पड़ने से मेरे चारों और निर्मित प्रकाश का औरा भी धीरे - धीरे बढ़ने लगा है। *प्रकाश के इस औरे के बढ़ने के साथ साथ इसमें समाये सातों गुण भी वायब्रेशन के रूप में चारों और फैलने लगे है*। दूर - दूर तक ये वायब्रेशन फैल रहें हैं और शक्तिशाली वायुमण्डल निर्मित कर रहें हैं।
➳ _ ➳ सर्व गुणों के शक्तिशाली वायब्रेशन चारो और फैलाते हुए अब मैं जागती ज्योति इस शरीर रूपी मन्दिर से बाहर निकल कर गुणों के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जा रही हूँ। *एक प्वाइंट ऑफ लाइट, मैं आत्मा धीरे - धीरे ऊपर की और बढ़ते हुए अब आकाश को पार करके उससे भी ऊपर की ओर जा रही हूँ*। अब मैं देख रही हूँ स्वयं को लाल प्रकाश की एक अति सुंदर दुनिया में जहां चारों और चमकती हुई मणियां दिखाई दे रही हैं। मेरे बिल्कुल सामने है महाज्योति शिव बाबा जिनसे अनन्त प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे परमधाम को प्रकाशित कर रही हैं।
➳ _ ➳ जैसे शमा की लौ परवाने को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं ऐसे ही मेरे शिव पिता से आ रही शक्तिशाली रंग बिरंगी किरणे मुझे अपनी और आकर्षित कर रही है और मैं आत्मा परवाना बन शिव शमा के पास जा रही हूँ। *धीरे - धीरे मैं बाबा के अति पास पहुंच कर बाबा को टच कर रही हूँ। बाबा को टच करते ही बाबा के समस्त गुणों और शक्तियों को मैं स्वयं में समाता हुआ अनुभव कर रही हूँ*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा के समस्त गुण और शक्तियाँ मुझ आत्मा में समा गए हैं और मैं बाबा के समान सर्वशक्तियों से सम्पन्न बन गई हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से सम्पन्न शक्तिस्वरूप बन अब मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हूँ। *इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर आ कर मैं फिर से अपना पार्ट बजा रही हूँ किन्तु अब मैं हर कर्म करते देही अभिमानी स्थिति में स्थित हूँ। इस देह से जुड़े अपने हर सम्बन्धी को भी अब मैं देह नही देही रूप में देख रही हूँ*। सभी को शिव पिता की अजर, अमर,अविनाशी सन्तान के रूप में देखते हुए निस्वार्थ भाव से सभी को सच्चा रूहानी स्नेह दे कर उन्हें सन्तुष्ट कर रही हूँ। देह अभिमान के अवगुण को निकाल देही अभिमानी बन सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखते हुए उन्हें भी देही अभिमानी स्थिति का अनुभव करवा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं सम्पनता द्वारा सन्तुष्टता का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं हर्षित आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विजयी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा नाज़ुक परिस्थितियों से घबराने से मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा नाजुक परिस्थितियों से सदैव पाठ पढ़ती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा स्वयं को सदा परिपक्व बनाती हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ डबल विदेशी या भारत वाले अगर परसेन्टेज के बिना फुल पास हो गये तो ब्रह्मा बाबा पता है क्या करेगा? (शाबास देंगे) बस, सिर्फ शाबास दे देगा! और क्या करेगा? *रोज आपको अमृतवेले अपनी बाहों में समा लेगा।आपको महसूसता होगी कि ब्रह्मा बाबा की बाहों में, अतीन्द्रिय सुख में झूल रहे हैं। बड़ी-बड़ी भाकी मिलेगी। ब्रह्मा बाबा का बच्चों के साथ बहुत प्यार है ना तो अमृतवेले भाकी मिलेगी* और सारा दिन क्या मिलेगा? जैसे चित्रों में दिखाते हैं ना, कि जब तूफान आया, पानी बढ़ गया तो सांप छत्रछाया बन गया। उन्हों ने तो श्रीकष्ण के लिए स्थूल बात दिखा दी है लेकिन वास्तव में ये है रुहानी बात।
➳ _ ➳ *तो जो फरिश्ता बनेगा उसके सामने अगर कोई भी परिस्थिति आई या कोई भी विघ्न आया तो बाप स्वयं आपकी छत्रछाया बन जायेंगे।* करके देखो। क्योंकि ऐसे ही बापदादा नहीं कहते हैं। पार्टीशन के समय बाबा की छत्रछाया *आप लोगों ने १४ वर्ष में योग तपस्या की तो विघ्न कितने आये लेकिन आपको कुछ हुआ? तो बापदादा छत्रछाया बना* ना, कितनी बड़ी-बड़ी बातें हुई। सारी दुनिया, मुखी, नेतायें, गुरु लोग सब एन्टी हो गये, एक ब्रह्माकुमारियाँ अटल रही, प्रैक्टिकल में बेगरी लाइफ भी देखी, तपस्या के समय भिन्न-भिन्न विघ्न भी देखे। बन्दूक भी आई तो तलवारें भी आई, सब आया लेकिन छत्रछाया रही ना। कोई नुकसान हुआ?
➳ _ ➳ जब पाकिस्तान हुआ तो लोग हंगामें में डरकर सब छोड़कर भाग गये। और आपका टेनिस कोर्ट सामान से भर गया। क्योंकि जो अच्छी चीज लगती थी, वो छोड़ें कैसे, उससे प्यार होता है ना, तो जो सिन्धी लोग उस समय एन्टी थे वो गाली भी देते थे और सामान भी दिया। जो बढ़िया- बढ़िया चीजें थी वो हाथ जोड़कर देकर गये कि आप ही यूज करो। तो दुनिया वालों के लिए हंगामा था और ब्रह्माकुमारियों के लिए पांच रूपये में सब्जियों की सारी बैलगाड़ी थी। पांच रुपये में सब्जियाँ। आप कितने मजे से सब्जियाँ खाते थे। तो दुनिया वाले डरते थे और आप लोग नाचते थे। *तो प्रैक्टिकल में देखा कि ब्रह्मा बाप, दादा - दोनों ही छत्रछाया बन कितना सेफ्टी से स्थापना का कार्य किया।*
✺ *ड्रिल :- "फरिश्ता बन बाबा की छत्रछाया का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ अमृतवेला की महान वेला में, मैं महान आत्मा भृकुटी सिहांसन पर जगमगा रही हूँ... *मैं आत्मा साकार देह में होते भी अपने निराकारी स्वरूप का सहज और स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ...* अपने इस निराकारी स्वरूप की और गहराई में मैं आत्मा जाती हूँ... कितना सुंदर और न्यारा मुझ आत्मा का ये स्वरूप है... कितना भव्य और तेजोमय यह स्वरूप है... मैं निराकारी आत्मा इन आँखों द्वारा सामने दीवार पर लगे बाबा के चित्र को देख रही हूँ... जिसमें मीठू बाबा अपने फरिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाएं खड़े हैं... धीरे-धीरे उस चित्र से *सफेद रंग की लाइट मुझ आत्मा की तरफ आती हुई प्रतीत हो रही है...* ये सफेद लाइट मुझ आत्मा पर पड़ रही है... ऐसा लग रहा है जैसे सफेद रंग की अलौकिक लाइट की वर्षा मेरे ऊपर हो रही है... और जैसे-जैसे मुझ आत्मा पर ये सफेद लाइट पड़ रही है *मैं आत्मा लाइट और माइट से भरपूर होती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ देखते ही देखते *मुझ आत्मा से लाइट पूरे कमरे में फैल गई हैं... ऐसा लग रहा है जैसे मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में हूँ...* तभी फरिश्तों के बादशाह ब्रह्मा बाबा और उनकी भृकुटी में विराजमान शिव बाबा चित्र से बाहर निकलते प्रतीत होते हैं... *बाबा का ये रूप बड़ा ही मनमोहक और अलौकिक है...* बाबा का ऐसा बेहद चमकीला स्वरूप देखकर मैं आत्मा खुशी से भर गई हूँ... *अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूल रही हूँ...* और बस एकटक बाबा को देखे जा रही हूँ... तभी मुझ आत्मा के कान में मधुर शब्द गुजते है... मीठे बच्चे, मेरे लाडले बच्चे... देखो तो लाडले बच्चे बाबा आपके लिए कुछ लाया है... ये मीठे मिश्री की तरह शब्द बाबा के मुख से सुन मैं आत्मा उठ कर जल्दी से जाकर अपने बाबा से लिपट जाती हूँ...
➳ _ ➳ *बाबा मुझ आत्मा के सिर पर हाथ रखते हैं और मुझे दृष्टि देते हुए कह रहे हैं, फरिश्ता स्वरूप भव बच्चे !* बस बाबा के इतना कहते ही धीरे-धीरे मुझ आत्मा का हड्डी-मांस खून से बनी देह परिवर्तन होकर लाइट की होती जा रही है... अनुभव कर रही हूँ, मैं आत्मा... बाबा के हाथ से निकल रही बेहद शक्तिशाली किरणें सिर से होते हुए पूरे शरीर में फैल रही है और *साकारी देह परिवर्तन होकर लाइट की हो गई है...* मैं आत्मा देह भान से न्यारा अनुभव कर रही हूँ... बन्धनमुक्त और बेहद हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब *मैं आत्मा बाप समान फरिश्ता बन गई हूँ...* मैं फरिश्ता बाबा से कहता हूँ बाबा ये गिफ्ट तो बहुत ही ज्यादा प्यारी हैं... और बाबा मुझ नन्हे फरिश्ते को अपनी गोद में उठा लेते हैं... और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं... मेरे लाडले बच्चे अब सारा दिन आप इस बाबा की दी हुई गिफ्ट को अपने पास रखना... तो सारा दिन बाबा की छत्रछाया आप हर पल अनुभव करते रहोगे... हर पल आपको बाबा का साथ अनुभव होगा... मैं फरिश्ता बाबा की तरफ देखते हुए कहता हूँ... हाँ हाँ मेरे मीठे-मीठे बाबा सारा दिन आपकी इस दी हुई गिफ्ट को साथ रखुंगा...
➳ _ ➳ और मुस्कुराते हुए बाबा मेरे सिर हाथ फेरते हुए कहते हैं... शाबास *मीठे बच्चे विजयी भव...* इस प्रकार मैं फरिश्ता अपनी दिनचर्या की शुरुआत करता हूँ... और कर्मक्षेत्र में निकलता हूँ... मैं फरिश्ता देख रहा हूँ... कई प्रकार की लहरों रूपी परिस्थितियाँ, पहाड़ रुपी विघ्न सामने आ रहे हैं... लेकिन *बाबा की छत्रछाया से हर परिस्थिति को, विघ्न को मैं फरिश्ता सहज ही खेल की तरह पार कर रहा हूँ...* जैसे कोई भी मुसीबत आने पर माँ अपने बच्चे की ढाल बनकर खड़ी हो जाती है अपने बच्चे की छत्रछाया बन जाती हैं... और बच्चे को सेफ रखती है ठीक उसी प्रकार मेरे बाबा भी हर पल मुझ नन्हे फरिश्ते की छत्रछाया बनकर मुझे हर विघ्न परिस्थिति में सेफ रह सहज आगे बढा रहे हैं... मैं फरिश्ता हर पल योगयुक्त और बन्धनमुक्त अवस्था का अनुभव कर रहा हूँ... हर पल बाबा के साथ होने का स्पष्ट और सुखद अनुभव कर खुशी में गाते हँसते हुए आगे बढ रहा हूँ... *धूप में कभी छांव बनकर, लहरों में कभी नांव बनकर, जब लड़खड़ाएँ कदम, थामा है हाथ मेरे बाबा है साथ मेरे बाबा है साथ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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