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❍ 15 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम गोपी वल्लभ के गोप गोपियाँ हैं" - सदा इसी स्मृति में रहे ?*
➢➢ *"हम भाई बहन हैं" - इस स्मृति से क्रिमिनल आई को ख़तम किया ?*
➢➢ *रीयल्टी द्वारा रॉयल्टी का प्रतक्ष्य रूप दिखाया ?*
➢➢ *विधि से व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ को इमर्ज किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अपनी सब जिम्मेवारी बाप को दे दो अर्थात् अपना बोझ बाप को दे दो तो स्वयं हल्के हो जायेंगे, बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ। *अगर बुद्धि से सरेन्डर होंगे तो और कोई बात बुद्धि में नहीं आयेगी। बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं खुशनसीब हूँ"*
〰✧ अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? *खुशी का भाग्य जो स्वप्न में भी नहीं था वो प्राप्त कर लिया। तो सभी की दिल सदा यह गीत गाती है कि सबसे खुशनसीब हूँ तो मैं हूँ। यह है मन का गीत। मुख का गीत गाने के लिये मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मन का गीत सब गा सकते हैं।*
〰✧ *सबसे बड़े से बड़ा ख़जाना है खुशी का ख़जाना। क्योंकि खुशी तब होती है जब प्राप्ति होती है। अगर अप्राप्ति होगी तो कितना भी कोई किसी को खुश रहने के लिये कहे, कितना भी आर्टीफिशयल खुश रहने की कोशिश करे लेकिन रह नहीं सकते।* तो आप सदा खुश रहते हो या कभी-कभी रहते हो? जब चैलेन्ज करते हो कि हम भगवान के बच्चे हैं, तो जहाँ भगवान् है वहाँ कोई अप्राप्ति हो सकती है? तो खुशी भी सदा है क्योंकि सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। ब्रह्मा बाप का क्या गीत था? पा लिया-जो था पाना। तो यह सिर्फ ब्रह्मा बाप का गीत है या आप सबका? कभी-कभी थोड़ी दु:ख की लहर आ जाती है? कब तक आयेगी?
〰✧ अभी थोड़ा समय भी दु:ख की लहर नहीं आये। जब विश्व परिवर्तन करने के निमित्त हो तो अपना ये परिवर्तन नहीं कर सकते हो? *अभी भी टाइम चाहिये, फुल स्टॉप लगाओ। ऐसा श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ प्राप्तियाँ, श्रेष्ठ सम्बन्ध सारे कल्प में नहीं मिलेगा। तो पहले स्व-परिवर्तन करो। यह स्व-परिवर्तन का वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन करायेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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*अगर कोई भी शक्ति वा गुण समय पर इमर्ज नहीं होता है तो इससे सिद्ध है कि मालिक को समय का महत्व नहीं है।* क्या करना चाहिए? सिंहासन पर बैठना अच्छा या मेहनत करना अच्छा? अभी इसमें समय देने की आवश्यकता नहीं है। मेहनत करना ठीक लगता या मालिक बनना ठीक लगता? क्या अच्छा लगता है? सुनाया ना - इसके लिए सिर्फ *एक यह अभ्यास सदा करते रहो - ‘निराकार सो साकार के आधार से यह कार्य करा रहा हूँ" करावनहार बन कर्मेन्द्रियों से कराओ।* अपने निराकारी वास्तविक स्वरूप को स्मृति में रखेंगे तो वास्तविक स्वरूप के गुण, शक्तियाँ स्वतः ही इमर्ज होंगे। जैसा स्वरूप होता है वैसे गुण और शक्तियाँ स्वतः ही कर्म में आते हैं। जैसे कन्या जब माँ बन जाती है तो माँ के स्वरूप में सेवा भाव, त्याग, स्नेह, अथक सेवा आदि गुण और शक्तियाँ स्वतः ही इमर्ज होती है ना तो *अनादि अविनाशी स्वरूप याद रहने से स्वतः ही यह गुण और शक्तियाँ इमर्ज होंगे।* स्वरूप की स्मृति स्थिति को स्वतः ही बनाता है। समझा क्या करना है। मेहनत शब्द को जीवन से समाप्त कर दो। मुश्किल मेहनत के कारण लगता है। *मेहनत समाप्त तो मुश्किल शब्द भी स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।* अच्छा -
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ इस देह के जो सर्व सम्बन्ध हैं, दृष्टि से, वृति से, कृत से उन सबसे न्यारा। *देह का सम्बन्ध देखते हुए भी स्वत: ही आत्मिक, देही सम्बन्ध स्मृति में रहे। इसलिए दीपावली के बाद भैया-दूज मनाया ना।* जब चमकता हुआ सितारा व जगतमाता अविनाशी दीपक बन जाते हो तो भाई-भाई का सम्बन्ध हो जाता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप की याद में रह अपना कल्याण करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को मधुबन में डाइमंड हाल में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं, और बाबा मिलन की मीठी मीठी यादों में खोई मन बुद्धि से पहुँच जाती हूँ शिव बाबा के पास परमधाम, यहाँ चारों तरफ फैला हुआ अलौकिक प्रकाश मुझे दिव्यता और परमानंद की अनुभूति करा रहा है... निराकारी दुनिया में मैं आत्मा स्वयं को बिंदु रूप में चमकता हुआ देख रही हूं... बाबा से शक्तिओं का झरना मुझ आत्मा में निरंतर बहता जा रहा और इस ज्ञान स्नान से मुझ आत्मा में पड़ी हुई खाद भस्म होती जा रही है... मैं आत्मा स्वयं को अत्यंत पवित्र और हल्का अनुभव कर रही हूँ...* शक्तिओं से भरपूर हो अब मैं आत्मा नीचे उतर रही हूं और पहुंच जाती हूँ निज वतन... सफेद प्रकाश से ढका हुआ सूक्ष्म वतन यहाँ चारों तरफ शांति ही शांति और बापदादा मेरे सामने फ़रिश्ता स्वरूप में बाहें फैलाये खड़े हैं... *नन्हा फ़रिश्ता बन मैं आत्मा दौड़ कर बाबा की गोद में सिमट जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझे गोद में लेकर मेरे गालों को प्यार से सहलाते हुए मुझ आत्मा से बोले:-* "मेरे नन्हे फूल बच्चे... *संगमयुग मौजों का युग है, बाप आये हैं अपने ब्राह्मण बच्चों का कल्याण करने* इसलिए तो मुझे तुम बच्चे शिव बाबा कहते हो... *शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी,* इसलिए सदा फखुर में रहो की विश्व के रचियता बाप ने तुम बच्चों को अपनी गोद दी है... *सारी दुनिया जिस भगवान को ढूंढ रही है तुम बच्चे उस भगवान की पालना में पल रहे हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा आत्मविभोर होकर बाबा की मधुर वाणी को सुनते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... आपने मुझ आत्मा के जीवन में आकर मुझे अपना बनाया है, वाह मेरा भाग्य... *आपकी गोद मिली मानों त्रिलोकी का राज्य मिल गया हो... मेरा जीवन इतना सुंदर पहले कभी न था* आपने आकर इसे दिव्य और अलौकिक बना दिया है... *ज्ञान सागर में स्नान कर अलौकिकता और दिव्यता का प्रकाश मुझ आत्मा से निकल निरंतर विश्व में प्रवाहित हो रहा है...* ज्ञान और वरदानों से श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को और निखार दिया है..."
❉ *अपनी बाहों के झूले में झुलाते हुए बाबा मुस्कुरा कर मुझ आत्मा से बोले:-* "सिकीलधे बच्चे... जो भी इन आँखों से दिखाई देता है वो सब खाक होना है , *इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाकर बस एक बाप की याद में रहो* की अब वापस घर जाना है... बाप आए हैं तुम्हें विश्व की राजाई देने... माया ने तुम्हें कंगाल बना दिया है बाप फिर से तुम्हें सतयुगी वैभव देकर मालामाल करने आये हैं... *बाप एक ही बार आते हैं, संगम पर इस कल्याणकारी युग का लाभ उठाओ और पुरुषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की श्रीमत को धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे जादूगर बाबा... *आपकी मीठी मीठी बातों ने ऐसा जादू किया है* जो मैं आत्मा जिधर भी देखती हूं बस बाबा ही बाबा दिखाई देते हैं... *जीवन सुखों से भरपूर हो गया है...* इस ब्राह्मण जीवन को धारण कर मैं आत्मा आनंदित हो गई हूं... *जिस परमात्मा को संसार का हर प्राणी पाने के लिए दर दर भटक रहा है वो परम पिता परमात्मा मुझ आत्मा को मिला है,* ये स्मृति आते ही मुझ आत्मा की खुशी का ठिकाना नही रहता... बाबा आपने मुझे कौड़ी से हीरा बना दिया है... वाह मेरा भाग्य..."
❉ *मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बाबा मुझे समझानी देते हुए बोले:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप को बहुत तरस पड़ता है जब बच्चे माया से हार खाते हैं... *बाप की श्रीमत पर हर कार्य करो तो माया कभी हरा नही सकती...* तुम्हें एक बाप की याद में रहकर स्वमान की सीट पर सेट रहना है... *बाप परम कल्याणकारी हैं और तुम बच्चे मास्टर कल्याणकारी बन बाप के सहयोगी बनते हो...* बाप को खुशी होती है कि बच्चे बाप में सहयोगी बने हैं... बाप और बच्चे मिलकर विश्व को स्वर्ग बना रहे हैं... ये संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कमाई करने का युग है जिसकी प्रालब्ध तुम बच्चे सतयुग में भोगेंगे... संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहो और निरंतर बाप को याद करो... बाप की श्रीमत को धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करो... *ब्राह्मणों को चोटी कहा जाता है दूसरों का कल्याण करना ब्राह्मणों का परम कर्तव्य है , तुम बच्चे भी बाप समान कल्याणकारी बनों...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से बोली:-* "हाँ मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपकी श्रीमत मेरे ब्राह्मण जीवन का आधार है, *आपकी श्रीमत मिली अहो भाग्य...* मैं आत्मा कितने जन्मों से भटक रही थी आपने मुझे अपना बनाकर मेरा जीवन पवित्रता और परमात्म प्रेम से भर दिया है... *आपको पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ...* मैं आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मेरे जीवन को सवार कर कौड़ी से हीरे तुल्य बनाने वाले *बाबा का दिल की गहराई से शुक्रिया कर मैं आत्मा लौट आती हूँ अपने साकारी तन में...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- माया से हार नही खानी है*"
➳ _ ➳ "सर्व शक्तियों को समय पर कार्य मे लगाने वाली मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के सामने माया के तूफान तोहफा बन जाते हैं" *बाबा के इन महावाक्यों को स्मृति में ला कर मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट हो कर सर्वशक्तियों का आह्वान करने और स्वयं को सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिये मैं सर्वशक्तिवान शिव बाबा की याद में मन बुद्धि को एकाग्र करती हूँ*। अशरीरी बन बाबा की याद में बैठते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शिव बाबा अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हो कर मेरे सामने आ गए हैं
➳ _ ➳ बाबा की लाइट, माइट जैसे - जैसे मुझ आत्मा पर पड़ रही है वैसे - वैसे मैं अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित होती जा रही हूँ। *अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर अब मैं अनुभव कर रही हूँ कि जैसे बाबा मुझे अपनी और खींच रहें हैं और मैं डबल लाइट फ़रिशता बन स्वत: ही ऊपर की ओर उड़ रहा हूँ*। सूर्य, चांद, तारागणों से पार अन्तरिक्ष को भी पार करता हुआ उससे भी ऊपर मैं पहुंच गया फ़रिशतो की आकारी दुनिया सूक्ष्म लोक में।
➳ _ ➳ अब मैं देख रहा हूँ स्वयं को सूक्ष्म वतन में। मेरे सामने अव्यक्त बापदादा अष्ट शक्तियों के अलग - अलग स्वरूप में मुझे दिखाई दे रहें हैं। *अष्ट शक्तियों को मुझ में समाहित कर मुझे सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिए अब बापदादा एक - एक शक्ति से भरपूर अपनी शक्तिशाली किरणे मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ अपना सम्पूर्ण ध्यान इस नश्वर दुनिया से समेट कर मैं अपना संसार केवल एक शिव बाबा को बना सकूँ इसके लिए समेटने की शक्तिशाली किरणों से बाबा मुझे भरपूर कर रहें हैं। *अपनी सहनशक्ति से हर बात को सहन करते हुए हिम्मतवान बन हर परिस्थिति को मैं सहजता से पार कर सकूँ इसके लिए बाबा अब सहनशक्ति से भरपूर किरणे मुझ में प्रवाहित कर रहें हैं*।
➳ _ ➳ जैसे बापदादा सभी बच्चों की सभी बातों को स्वयं में समा लेते हैं। वैसे समाने की शक्ति से भरपूर किरणे मुझ में समाहित कर बाबा मुझमे हर बात को स्वयं में समाने का बल भर रहें हैं। *अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को परख कर हर प्रकार के धोखे से मैं स्वयं को बचा सकूँ इसके लिए बाबा परखने की शक्ति से भरपूर किरणो से मुझे सम्पन्न बना रहे हैं*। माया के अति सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप को पहचान कर उचित समय पर मैं उचित निर्णय ले सकूँ इसके लिए बाबा निर्णय करने की शक्ति से सपन्न किरणे अब मुझमे भर रहें हैं।
➳ _ ➳ विपरीत परिस्थिति में घबराने के बजाए उसका डटकर सामना करने के लिए बाबा अब सामना करने की शक्ति से मुझे भरपूर कर रहें हैं। *एक दो को सहयोग दे, संगठन को निर्विघ्न चलाने के लिए बाबा सहयोग की शक्ति से भरपूर किरणे मुझ में प्रवाहित कर मुझे सहयोगी आत्मा बना रहें हैं*। देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप में देखने का पाठ पक्का हो इसके लिए विस्तार को सार में समाने की शक्ति बाबा मुझे दे रहें है।
➳ _ ➳ अपने आठ स्वरूपों से अष्ट शक्तियों को मेरे अंदर भरकर बाबा ने मुझे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न कर दिया हैं। देह अभिमान में आने के कारण मुझ आत्मा में निहित अष्ट शक्तियाँ जो मर्ज हो गई थी वो आठों शक्तियाँ अब इमर्ज हो गई हैं। *बापदादा के आठों स्वरूपों से अष्टशक्तियों को स्वयं में भरपूर करके अब मैं सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप बन कर वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ।
➳ _ ➳ *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर, मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सदा सेट रहते हुए, माया के तूफानों में मुरझाने के बजाए अब मैं समय और परिस्थिति के अनुसार उचित शक्ति का प्रयोग करके सहज ही माया के हर वार का सामना कर, माया पर विजय प्राप्त कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं रियल्टी द्वारा रॉयल्टी का प्रत्यक्ष रूप दिखाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं साक्षात्कार मूर्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा किसी भी विधि से व्यर्थ को समाप्त करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा समर्थ को इमर्ज करती हूँ ।*
✺ *मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ १.
कई कहते हैं ज्ञान-योग बहुत अच्छा लगता है, अच्छा
है वो तो ठीक है लेकिन कर्म में लाते हो? ज्ञान
माना आत्मा, परमात्मा,
ड्रामा.... यह कहना नहीं। *ज्ञान का अर्थ है समझ। समझदार जैसा समय होता है वैसे
समझदारी से सदा
सफल होता है*।
➳ _ ➳ २.
समझदार की निशानी है *कभी धोखा नहीं खाना - ये है ज्ञानी की निशानी,
और
योगी की निशानी है - सदा क्लीन
और क्लियर बुद्धि*। क्लीन भी हो और क्लियर भी हो। *योगी कभी नहीं कहेगा-पता
नहीं,
पता
नहीं* उनकी बुद्धि
सदा ही क्लियर है। और *धारणा स्वरूप की निशानी है सदा स्वयं भी डबल लाइट*।
कितनी भी जिम्मेवारी हो लेकिन धारणामूर्त, सदा
डबल लाइट। चाहे मेला हो, चाहे
झमेला हो-दोनों में डबल लाइट। और *सेवाधारी की निशानी है-सदा
निमित्त और निर्माण भाव*। तो ये सभी अपने में चेक करो। कहने में तो सभी कहते हो
ना कि चारों ही सब्जेक्ट के
गाडली स्टूडेण्ट हैं। तो निशानी दिखाई देनी चाहिये।
✺
*ड्रिल :- "ज्ञानी, योगी, धारणा स्वरूप और सेवाधारी बनना"*
➳ _ ➳ *झील
में खिले पावन कमल की कोमल पंखुरियों पर पडें ओस कणों के समान...* शिव सूर्य की
किरणों से स्वर्ण मयी आभा बिखराती,
मैं
ज्योति बिन्दु उन्हीं किरणों पर सवार होकर पहुँच गयी हूँ परमधाम में... *असंख्य
जगमगाते हीरों की मालाओं से जडी,
जैसे कोई भव्य और विशाल पारदर्शी सुराही*... शान्ति और पावनता का मधुरस-सा
झलकाती हुई... *सुराही के शीर्ष पर स्वयं अमृत के सागर,
अनवरत अमृत धारा छलकाते हुए*... आत्माओं के उर को निरन्तर भरपूर किये जा रहे
है... छलछलाती सुराही,
शान्ति से,
पावनता से,
और
भरपूर अवस्था में हर आत्मा मणि... मैं आत्मा शिवबाबा के एकदम करीब उनको पास से
निहारती हुई... और *देखते ही देखते एक जादुई आकर्षण में बंधी समाँ गई हूँ उनकी
परम पावन सी गोद में*... चिरकाल तक स्वयं को उस मधु से भरपूर करती हुई...
➳ _ ➳ अब
मैं आत्मा फरिश्ता रूप में सूक्ष्म वतन में... सन्दली पर बैठे शिक्षक रूप में
बापदादा,
और
असंख्य फरिश्तों
की कतार उनके सामने बैठी है... आहिस्ता से पीछे जाकर बैठ गया हूँ मैं फरिश्ता
भी... बापदादा की स्नेहमयी नजरें मेरा पीछा करती हुई... और *बापदादा हर एक
फरिश्ते को ज्ञान,
योग,
सेवा और धारणा चारों विषयों में सम्पन्न बनने का वरदान दे रहे है*... वरदान
पाकर सभी एक एक कर अपने अपने सेवा स्थानों को जाते हुए... मैं फरिश्ता मगन होकर
देख रहा हूँ इस दृश्य को... सहसा चौक गया हूँ कोई स्नेहिल सा स्पर्श अपने कन्धे
पर पाकर... *बापदादा सामने खडे हैं हाथो में उपहारों का थाल सजाये... मेरे
सामने थाल को रख मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे ज्ञानी तू आत्मा का वरदान दे रहे
है*... *सामने रखे स्वर्ण जडित थाल से स्वमानों की माला मेरे गले में पहनाते
हुए,
समझदारी की प्रतीक ज्ञान गदा सौंप रहे है मेरे हाथों में*... मैं देख रहा हूँ,
गले
मे पहनी स्वमानों की माला को... जो मेरी समझ और शक्ति को तीव्रता से बढा रही
है... *योग का प्रतीक स्वदर्शन चक्र मेरी बुद्धि को क्लीन और क्लीयर कर रहा
है*...
➳ _ ➳ *और
अब धारणा का पावन कमल मैंने स्वयं ही उठा लिया बापदादा के सामने से... मेरी इस
बालसुलभ उत्सुकता पर बापदादा मुस्कुरा रहे हैं आँखों में विशेष स्नेह भरकर...
मानो कह रहे हो *बच्चे! अब ये सेवा का शंखनाद भी तुम्हें स्वतः ही करना है*...
जैसे ही सेवा का शंख हाथ में उठाता हूँ... खुशी से भर गया हूँ सामने,
अपना ही देवताई अलंकारों से सजा भव्य रूप देखकर... *गदा शंख चक्र और कमल देवताई
अलंकारों से सुशोभित रूप अपने भविष्य रूप को देखकर उत्साह से भर गया हूँ
मैं*... और चारों ही विषयों में सम्पूर्णता पाने की लगन अब पहले से तेज हो गयी
है... सम्पूर्णता का दृढ निश्चय लिए मैं लौट आया हूँ अपने उसी ब्राह्मण शरीर
में... *धारणाओं का कमल अब पहले से भी ज्यादा शोभा के साथ खिल रहा है उसी झील
में*... *कोमल पत्तियों पर पडे ओस कण सुनहरे प्रतीत हो रहे है... मेरे सतयुगी
भविष्य के समान*...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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