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❍ 22 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *पवित्र बन बुधी रुपी बर्तन को स्वच्छ बनाया ?*
➢➢ *डायरेक्ट बाप के आगे अपना सब कुछ अर्पण किया ?*
➢➢ *शुद्धी की विधि द्वार किले को मज़बूत बनाया ?*
➢➢ *यथार्थ सेवा का प्रतक्ष्य फल "ख़ुशी" का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ सदा अपने को डबल लाइट समझकर सेवा करते चलो। *जितना सेवा में हल्कापन होगा उतना सहज उड़ेगे उड़ायेंगे।* डबल लाइट बन सेवा करना, याद में रहकर सेवा करना-यही सफलता का आधार है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं उड़ती कला में रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा उड़ती कला के लिये विशेष क्या स्मृति आवश्यक है? कभी भी नीचे नहीं आयें सदा ऊपर रहें उसके लिये क्या आवश्यक है? *उड़ने के लिये पंख चाहते हैं ना। तो उड़ती कला के दो पंख कौन से है? (ज्ञान और योग) ज्ञान और योग के साथ हिम्मत और उमंग-उत्साह।*
〰✧ अगर हिम्मत है तो हिम्मत से जो चाहे, जैसे चाहे वैसे कर सकते हैं। इसलिये गाया हुआ भी है हिम्मते बच्चे मददे बाप। तो हिम्मत और उमंग-उत्साह रहता है? *क्योंकि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उमंग उत्साह बहुत जरूरी है। अगर उमंग उत्साह नहीं होगा तो कार्य सफल नहीं हो सकता।* क्यों?
〰✧ *जहाँ उमंग-उत्साह नहीं होगा वहाँ थकावट बहुत ज्यादा होगी और थका हुआ कभी सफल नहीं होगा। तो हिम्मत और उमंग-उत्साह-इसी आधार पर सदा उड़ती कला का अनुभव कर सकते हो। वर्तमान समय के अनुसार उड़ती कला के सिवाए मंजिल पर पहुँच नहीं सकते।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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अपने आपको चेक करो कि कर्मेन्द्रिय-जीत बने हैं? आवाज में नहीं आना चाहे तो ये मुख का आवाज अपनी तरफ खींचता तो नहीं है? इसी को ही रूहानी ड़्रिल कहा जाता है। *जैसे वर्तमान समय के प्रमाण शरीर के लिए सर्व बीमारियों का इलाज 'एक्सरसाइज' सिखाते हैं, तो इस समय आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास चाहिए।* चारों ओर कितना भी वातावरण हो, हलचल हो लेकिन आवाज में रहते आवाज से परे स्थिति का अभ्यास अभी बहुत काल का चाहिए। शान्त वातावरण में शान्ति की स्थिति बनाना यह कोई बडी बात नहीं है। *अशान्ति के बीच आप शान्त रहो, यही अभ्यास चाहिए।* ऐसा अभ्यास जानते हो?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *पहले संसार में बुद्धि भटकती थी और अभी बाप ही संसार हो गया। तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया, एकाग्र हो गई।* क्योंकि पहले की जीवन में कभी देह में, कभी देह के सम्बन्ध में, कभी देह के पदार्थ में - अनेकों में बुद्धि जाती थी। अभी यह सब बदल गया। अभी देह याद रहती या देही? *अगर देह में कभी बुद्धि जाती है तो रांग समझते हो ना! फिर बदल लेते हो, देह के बजाय अपने को देही समझने का अभ्यास करते हो। तो संसार बदल गया ना ! स्वयं भी बदल गये।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- श्रीमत पर चल स्वयं को पवित्र बनाना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बगीचे में बागवानी करते हुए पौधों के आसपास के खरपतवार को निकाल रही हूँ... जो पौधों के पोषक तत्वों को शोषित कर उनके विकास की गति को धीमी कर रहे हैं...* खरपतवार को निकालने के बाद फूल-पौधे बहुत ही सुन्दर दिख रहे हैं... मुस्कुरा रहे हैं... *ऐसे ही परम बागबान ने मुझ आत्मा के अन्दर के विकारों रूपी खरपतवार को निकालकर मुझे रूहानी फूल बना दिया है... मेरे जीवन के आंगन को खुशियों से खिला दिया है...* मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले प्यारे बागबान बाबा के पास...
❉ *पावन दुनिया की राजाई के लिए श्रेष्ठ श्रीमत देते हुए पतित पावन प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... *मीठे बाबा की श्रीमत पर चलकर पावन बनते हो इसलिए पावन दुनिया के सारे सुखो के अधिकारी बनते हो...* मनुष्य की मत सम्पूर्ण पावन न बन सकते हो न ही सतयुगी दुनिया के मालिक बन सकते हो... यह कार्य ईश्वर पिता के सिवाय कोई कर ही न सके...”
➳ _ ➳ *श्रीमत की बाँहों में झूलते हुए सतयुगी सुखों के आसमान को छूते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत और दूसरो की मत से अपनी गिरती अवस्था की बेहतर अनुभवी हूँ... *अब श्रीमत का हाथ थाम खुशियो के संसार में बसेरा हुआ है... प्यारा बाबा मुझे पावन बनाने आ गया है...”*
❉ *प्यार भरी नज़रों से मुझे निहाल कर लक्ष्मी नारायण समान श्रेष्ठ बनाते हुए मीठे-मीठे बाबा कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... पतित पावन सिर्फ बाबा है जो स्वयं पावन है वही पावन बना भी सकता है... मनुष्य खुद इस चक्र में आता है वह दूसरो को पावनता से कैसे सजाएगा भला... *ईश्वर की मत ही सर्व प्राप्तियों का आधार है... श्रीमत ही मनुष्य को देवता श्रृंगार देकर सजाती है...”*
➳ _ ➳ *अपने जीवन की गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए मंजिल के करीब पहुँचते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा इतनी भाग्यशाली हूँ कि श्रीमत मेरे भाग्य में है... श्रीमत की ऊँगली पकड़ मै आत्मा पावनता की सुंदरता से दमक रही हूँ...* और श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बन सतयुग की राजाई की अधिकारी बन रही हूँ...”
❉ *पवित्रता की खुशबू से महकाकर खुशियों के झूले में झुलाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता धरती पर उतरा है प्रेम की सुगन्ध को बाँहों में समाये हुए... तो फूल बच्चे इस खुशबु को अपने रोम रोम में सुवासित कर लो... *यादो को सांसो सा जीवन में भर लो... और यही प्रेम नाद सबको सुनाकर आह्लादित रहो... हर साँस पर नाम खुदाया हो... ऐसा जुनूनी बन जाओ...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ज्ञान कलश को सिर पर धारण कर हीरे समान चमकते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अपनी मत पर चलकर और परमत का अनुसरण कर निराश मायूस हो गई थी... दुखो को ही अपनी नियति मान बैठी थी... *प्यारे बाबा आपकी श्रीमत ने दुखो से निकाल... मीठे सुखो से दामन सजा दिया है... प्यारी सी श्रीमत ने मुझे पावन बनाकर महका दिया है...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान की धारणा करने के लिए पवित्र बन बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बनाना है*"
➳ _ ➳ एकांत में बैठ, पूरे कल्प की अपनी जीवन यात्रा के बारे में विचार करते हुए मन ही मन अपने आप से मैं बात करती हूँ कि *पूरे 63 जन्म देह भान में आकर मुझ आत्मा ने अनेक अलग - अलग शरीर रूपी रथ का आधार लेकर अनेक विकर्म किये और जन्म बाय जन्म विकारो की कट मुझ आत्मा के ऊपर इतनी जमा होती गई कि पतित बनने के कारण मैं आत्मा और मेरा शरीर रूपी बर्तन बिल्कुल ही अशुद्ध और अस्वच्छ हो गए*। यह विचार करते - करते अपने अब के तमोप्रधान स्वरूप और अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को स्मृति में लाकर दोनो के अंतर को मैं बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखने का प्रयास करती हूँ।
➳ _ ➳ एक तरफ मुझे मेरा विकारों की कट से पूरी तरह मैला हो चुका, चमकहीन स्वरूप दिखाई दे रहा है और दूसरी तरफ मुझे मेरा सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न सम्पूर्ण चमकदार स्वरूप दिखाई दे रहा है जो मन को अथाह आनन्द का अनुभव करवा रहा है। *अपने अब के मैले, अस्वच्छ स्वरूप को फिर से शुद्ध, पवित्र बनाने का मैं मन में दृढ़ संकल्प करती हूँ और योग अग्नि से आत्मा और शरीर रूपी बर्तन को साफ करने के लिए, अपने पतित पावन शिव पिता द्वारा सिखाये सहज राजयोग की अति सहज यात्रा पर चलने के लिए स्वयं को तैयार करती हूँ*।
➳ _ ➳ देह रूपी वस्त्र से स्वयं को अलग कर, अशरीरी बन अपने पतित पावन प्यारे पिता की याद में मैं बैठ जाती हूँ और सेकण्ड में विदेही बन देह से न्यारी होकर देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ। *मन बुद्धि से की जाने वाली राजयोग की इस अति सहज यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर और ऊपर सफेद प्रकाश की दुनिया को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ लाल प्रकाश की उस दुनिया में जहाँ चारों और चमकते हुए हीरो के समान, चमकती हुई चैतन्य मणियों से निकल रहा प्रकाश सब तरफ फैल कर पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहा है*।
➳ _ ➳ चमकती हुई जगमग करती *चैतन्य मणियो के बीच में विराजमान अनन्त प्रकाशमय अपने पतित पावन शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों को चारों और फैलाते हुए प्रकाश का एक विशाल पुंज दिखाई दे रहें हैं*। अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को साफ करने के लिए मैं जैसे - जैसे उनके समीप जा रही हूँ मैं देख रही हूँ उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों की तीव्रता धीरे - धीरे बढ़ते हुए जवालास्वरूप धारण करती जा रही है।
➳ _ ➳ ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता से आ रही उन जवालास्वरूप किरणों के नीचे पहुंचते ही मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे एक विशाल जवाला मेरे चारो और धधक रही है और उसकी तपश से मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की कट जल रही है। *विकारो से मैले हुए अपने अशुद्ध, तमोप्रधान स्वरूप को फिर से शुद्ध सतोप्रधान स्वरूप में परिवर्तित होते मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। अपनी खोई हुई चमक को मैं पुनः प्राप्त करते हुए देख रही हूँ। अपनी खोई हुई शक्तियों और गुणों को पुनः इमर्ज होते हुए देख रही हूँ*। स्वयं को शुद्ध और पवित्र बना कर अब मैं आत्मा एकदम हल्केपन का अनुभव करते हुए अपने लाइट माइट स्वरूप में वापिस साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपनी साकार देह को देखते हुए, अपनी लाइट और माइट से भरपूर स्वरूप के साथ, अपने सर्वशक्तिवान पतित पावन प्यारे पिता का आह्वान कर, *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे स्थित होकर, उनसे आ रही सर्वशक्तियों को अपने अंदर समाहित कर, उन्हें अपने शरीर रूपी रथ पर प्रवाहित करते हुए, अपनी आत्मा और शरीर रूपी बर्तन को साफ, स्वच्छ बनाकर फिर से अपनी साकार देह में मैं प्रवेश करती हूँ और भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए तैयार हो जाती हूँ*। सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाते हुए, राजयोग के अभ्यास द्वारा आत्मा और शरीर रूपी बर्तन की सफाई प्रतिदिन करते हुए, आत्मा और अपने शरीर रूपी बर्तन को अब मैं पूरी तरह शुद्ध और स्वच्छ बनाती जा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं सदा विजयी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं निर्विघ्न आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा युक्तियुक्त वा यथार्थ सेवा करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सेवा का प्रत्यक्षफल खुशी को प्राप्त करती हूँ ।*
✺ *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा खुशी स्वरूप हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ १. *सेवा जो स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा नहीं है, स्वार्थ है।* और निमित्त कोई न कोई स्वार्थ ही होता है इसलिए नीचे-ऊपर होते हैं। चाहे अपना, चाहे *दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता है तब सेवा में डिस्टर्बेन्स होती है। इसलिए स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करो।*
➳ _ ➳ २. *चारों ओर अटेन्शन प्लीज।*
✺ *ड्रिल :- "स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करना*
➳ _ ➳ *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अपने फरिश्ता स्वरूप में स्थित होकर पहुँच जाती हूँ... हिस्ट्री हॉल में... और बाबा के चित्र के आगे जाकर बैठ जाती हूँ...* बापदादा अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं... मैं बाबा को देख कर अति प्रसन्न होकर वाह बाबा वाह!! कह उनसे बातें करने लगती हूँ... तभी बाबा मुझे सेवा के महत्व के बारे में समझाते हुए कहते हैं...
➳ _ ➳ *बच्ची... हर कर्म को... हर सेवा को... निमित्त समझ कर... निःस्वार्थ भाव से... करो, कोई भी सेवा स्वार्थ वश नहीं करना...* चाहे उस सेवा से अपना स्वार्थ सिद्ध हो या दूसरे का... वो सेवा... सेवा नही, साधारण कर्म हो जायेगा... फिर बाबा समझाने लगे... *ऐसी सेवा भी नहीं करना जो दूसरों के लिये व्यवधान पैदा करे...*
➳ _ ➳ *अपने को हर कर्म में निमित्त समझना... यही न्यारे और सर्व के प्यारे बनने का सहज साधन है...* निमित्त बन कर जब सेवा करते हैं तो वह सेवा निर्विघ्न... और अविनाशी कमाई जमा कराती है... बच्ची... *हर कदम ब्रह्मा बाबा को फॉलो करो... जैसे ब्रह्मा बाबा देह से न्यारे होकर कर्म करते थे... सदा अचल... अडोल... निश्चिन्त... उनके नक्शे कदम पर चलो...*
➳ _ ➳ बाबा... मेरे मीठे मीठे बाबा... *मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के हर कदम पर... उनकी हर श्रीमत को पूरा पूरा फॉलो करुँगी...* जैसे बाबा हर सेवा में अटल... अचल... रहते थे... जैसे उन्हें पक्का निश्चय था कि सर्वशक्तिवान मेरे साथ है... करन करावनहार वही है... मैं निमित्त हूँ... वैसे ही *मैं आत्मा भी ब्रह्मा बाबा की तरह... मनसा-वाचा-कर्मणा... हर सेवा को निमित्त समझ... स्वार्थ से परे... न्यारी और सर्व की प्यारी बनकर करुँगी...*
➳ _ ➳ मैं बाबा से कहती हूँ... *बाबा... अब मैं आत्मा चलते फिरते... स्वार्थ से परे... सदा इसी न्यारेपन की स्थिति में स्थित रहकर हर सेवा करुँगी...* मैं आत्मा अपना सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाकर दूसरों को भी स्वार्थ से परे रहने के लिये प्रेरित करुँगी...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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