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❍ 14 / 08 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *योगबल से सब पुराने हिसाब किताब चुक्तु किये ?*
➢➢ *आपार ख़ुशी में रहे ?*
➢➢ *कल्प कल्प के विजय की स्मृति के आधार पर माया दुश्मन का आह्वान किया ?*
➢➢ *समान और संपन्न बनने का पुरुषार्थ किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट रहो। *डबल लाइट रहने से लौकिक जिम्मेवारी कभी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो। ट्रस्टी को क्या थकावट।* अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। बिल्कुल न्यारे और प्यारे, बालक सो मालिक।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं तीन तख्तनशीन और त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को तख्त-नशीन आत्मायें अनुभव करते हो? अभी तख्त मिला है या भविष्य में मिलना है, क्या कहेंगे? सभी तख्त पर बैठेंगे? (दिलतख्त बहुत बड़ा है) दिलतख्त तो बड़ा है लेकिन सतयुग के तख्त पर एक समय में कितने बैठेंगे? तख्त पर भले कोई बैठे लेकिन तख्त अधिकारी रॉयल फैमली में तो आयेंगे ना। तख्त पर इक्ठे तो नहीं बैठ सकेगे! इस समय सभी तख्त-नशीन हैं। इसलिए इस जन्म का महत्व है। जितने चाहें, जो चाहें दिलतख्त-नशीन बन सकते हैं। इस समय और कोई तख्त है? कौनसा है? (अकालतख्त) आप अविनाशी आत्मा का तख्त ये भृकुटी है। *तो भृकुटी के तख्त-नशीन भी हो और दिलतख्त-नशीन भी हो। डबल तख्त है ना! नशा है कि मैं आत्मा भृकुटी के अकालतख्त-नशीन हूँ! तख्त-नशीन आत्मा का स्व पर राज्य है, इसीलिए स्वराज्य अधिकारी हैं। स्वराज्य अधिकारी हूँ-यह स्मृति सहज ही बाप द्वारा सर्व प्राप्ति का अनुभव करायेगी।*
〰✧ तो तीनों ही तख्त की नॉलेज है। नॉलेजफुल हो ना! पावरफुल भी हो या सिर्फ नॉलेजफुल हो? जितने नॉलेजफुल हो, उतने ही पावरफुल हो। या नॉलेजफुल अधिक, पावरफुल कम? *नॉलेज में ज्यादा होशियार हो! नॉलेजफुल और पावरफुल-दोनों ही साथ-साथ। तो तीनों तख्त की स्मृति सदा रहे। ज्ञान में तीन का महत्व है। त्रिकालदर्शी भी बनते हैं। तीनों काल को जानते हो।* या सिर्फ वर्तमान को जानते हो? कोई भी कर्म करते हो तो त्रिकालदर्शी बनकर कर्म करते हो या सिर्फ एकदर्शी बनकर कर्म करते हो? क्या हो-एक दर्शी या त्रिकालदर्शी?
〰✧ तो कल क्या होने वाला है-वह जानते हो? कहो-हम यह जानते हैं कि कल जो होगा वह बहुत अच्छा होगा। ये तो जानते हो ना! तो त्रिकालदर्शी हुए ना। *जो हो गया वो भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और जो होने वाला है वह और बहुत अच्छा! यह निश्चय है ना कि अच्छे से अच्छा होना है, बुरा नहीं हो सकता। क्यों? अच्छे से अच्छा बाप मिला, अच्छे से अच्छे आप बने, अच्छे से अच्छे कर्म कर रहे हो। तो सब अच्छा है ना।* कि थोड़ा बुरा, थोड़ा अच्छा है? जब मालूम पड़ गया कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो श्रेष्ठ आत्मा का संकल्प, बोल, कर्म अच्छा होगा ना! तो यह सदा स्मृति रखो कि-कल्याणकारी बाप मिला तो सदा कल्याण ही कल्याण है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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कमजोर अर्थात अधीन प्रजा। मालिक अर्थात शक्तिशाली राजा। तो आह्वान करो मालिक बन करके। स्वस्थिति के श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठो। *सिंहासन पर बैठ के शक्ति रूपी सेवाधारियों का आह्वान करो। ऑर्डर दो।* हो नहीं सकता कि आपके सेवाधारी आपके ऑर्डर पर न चलें। फिर ऐसे नहीं कहेंगे क्या करें सहन शक्ति न होने के कारण मेहनत करनी पडती है। समाने की शक्ति कम थी इसलिए ऐसा हुआ। आपके सेवाधारी समय पर कार्य में न आवें तो सेवाधारी क्या हुए? कार्य पूरा हो जाए फिर सेवाधारी आवें तो क्या कहेंगे! *जिसको स्वयं समय का महत्व है उसके सेवाधारी भी समय पर महत्व जान हाजिर होंगे।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अपने देह भान से न्यारा। *जैसे साधारण दुनियावी आत्माओं को चलते-फिरते, हर कर्म करते स्वत: और सदा देह का भान रहता ही है, मेहनत नहीं करते कि मैं देह हूँ, न चाहते भी सहज स्मृति रहती ही है। ऐसे कमल-आसनधारी ब्राह्मण आत्मायें भी इस देहभान से स्वत: ही ऐसे न्यारे रहें जैसे अज्ञानी आत्म-अभिमान से न्यारे हैं।* है ही आत्म-अभिमानी। शरीर का भान अपने तरफ आकर्षित न करे। जैसे ब्रह्मा बाप को देखो, चलते-फिरते फरिश्ता-रूप व देवता-रूप स्वत: स्मृति में रहा। ऐसे नैचुरल देही-अभिमानी स्थिति सदा रहे-इसको कहते हैं देहभान से न्यारे। *देहभान से न्यारा ही परमात्म-प्यारा बन जाता है।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- एक बाप से ही प्यार करना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा परवाना बन उड़ चलती हूँ शमा पर फिदा होने... माशूक बन आशिक की दीवानगी में खोने... मीठी बच्ची बन मीठे बाबा के प्यार में डूब जाने... *वतन में बापदादा को सामने देख दौड़कर उनके गले लग जाती हूँ और प्यार के सागर में डूब जाती हूँ... प्यारे बाबा अपनी प्यारी प्यारी बातों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करते हैं...*
❉ *प्यारे बाबा मुझे अपनी सन्तान बनाकर पुराना जीवन बदलकर नया जीवन देते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता ने दुखो के दलदल से निकाल कर, नया खुशनुमा जीवन दिया है... यह ईश्वरीय साथ का आनन्द भरा जीवन अनोखा और अदभुत है...* सब श्रीमत की ऊँगली पकड़कर उमंगो में झूम रहे है... और एक पिता माशूक में खोये से सब आशिक हो गए है..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक बाबा से प्रीत रख प्रीत की रीत निभाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपके प्यार भरी गोद में नया सा जीवन, नया सा जनम पाकर फूलो सी खिल गयी हूँ... *मेरी नजर ईश्वरीय हो गई है... पूरा विश्व परिवार बन गया है, और सब मीठे बाबा की दीवानगी में झूम रहे है..."*
❉ *मीठा बाबा मीठी बगिया में मीठा फूल बनाकर सजाते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... भगवान बागबाँ ने विकारो की गिरफ्त में काँटे हो गए बच्चों को... *पलको से चुनकर ईश्वरीय सन्तान सा खिलाया है... ईश्वरीय प्यार और महक से सराबोर शानदार जीवन दिया है...* एक सूत्र में बंधे स्नेह की माला बने, ईश्वर पिता के गले में सजे फूल से मुस्करा रहे हो..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा फूलों की बरसात से विश्व को महकाते, रूहानियत भरते हुए कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा इतना मीठा प्यारा खुबसूरत जीवन पाकर निहाल हो गई हूँ... *ईश्वरीय सन्तान होने के अपने भाग्य पर इठला रही हूँ... मीठे बाबा आपसे प्यार पाकर, स्नेह की वर्षा पूरे विश्व वसुंधरा पर कर रही हूँ..."*
❉ *मेरे बाबा अपने अविनाशी प्यार के बन्धन में मुझे बांधते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... कितना मीठा प्यारा सा भाग्य है... *ईश्वरीय गोद में खुशियो से छलकता हुआ नया जीवन मिला है... सच्चे प्रेम को जीने वाले खुशनसीब हो... देह और देहधारियों के विकृत प्रेम से निकल, ईश्वरीय प्रीत पाने वाले रूहानी गुलाब से महक उठे हो..."*
➳ _ ➳ *प्रेम रस का पान कर मदहोश होते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा जनमो की प्यासी, प्रेम विरह में व्याकुल सी... *आज आपसे अविनाशी प्यार पाकर सदा की तृप्त हो रही हूँ... ईश्वरीय प्रेम सुधा ने मुझ आत्मा के रोम रोम को सिक्त कर अतीन्द्रिय सुख से भर दिया है..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- योगबल से सब पुराने हिसाब किताब चुकतू करने हैं*"
➳ _ ➳ देह भान में आ कर, जन्मजन्मांतर से किये हुए विकर्म जो कड़े हिसाब - किताब के रूप में जीवन मे आते रहते हैं उन हिसाब - किताब को चुकतू करने का केवल एक ही उपाय है योगबल। *बाबा की याद ही वो योग अग्नि है जो विकर्मों को विनाश कर सभी हिसाब - किताब को चुकतू कर सकती है*। इसलिए अपने अब के जीवन मे किये हुए और पिछले 63 जन्मों के किये हुए विकर्मों को भस्म करने के लिए मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर अपने शिव पिता की याद में अपने मन बुद्धि को स्थिर कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ देह और देह की दुनिया से सम्बन्ध रखने वाले हर संकल्प, विकल्प, हर विचार से अपने मन बुद्धि को हटा कर मैं अपना सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने स्वरूप पर और अपने शिव पिता पर एकाग्र करती हूँ। *मन बुद्धि से अब मैं स्पष्ट देख रही हूँ अपने दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप को और अपने महाज्योति शिव पिता के स्वरूप को जो मेरे ही समान बिंदु है किंतु गुणों में सिंधु हैं*। एक चैतन्य सितारे के समान अपने जगमग करते स्वरूप को और सर्वशक्तियों, सर्व गुणों के सागर अपने शिव पिता के अनन्त तेजोमय स्वरूप को मैं देख रही हूँ।
➳ _ ➳ विकारों की कट ने मुझ आत्मा को आयरन एजेड बना दिया है इसलिए *अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की ज्वालास्वरूप किरणों से अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को जला कर, योग अग्नि में अपने पापों को भस्म कर, स्वयं को गोल्डन एजेड बनाने के लिए अब मैं ज्योति बिंदु आत्मा अपने शरीर की कुटिया से बाहर निकलती हूँ* और अपने शिव पिता के पास ले जाने वाली एक ऐसी रूहानी यात्रा पर चल पड़ती हूँ जो मन की असीम आनन्द देने वाली है। देह और देह के हर बन्धन से मुक्त इस अति सुखमय आंतरिक यात्रा पर मैं आत्मा चलती जा रही हूँ।
➳ _ ➳ इस रूहानी यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ती अब मैं चमकती ज्योति प्रकृति के पांचों तत्वों को पार कर जाती हूँ और आकाश से ऊपर फरिश्तों की दुनिया को पार कर पहुँच जाती हूँ अपने शिव पिता परमात्मा के पास उनके घर परमधाम। *चैतन्य सितारों की इस जगमग करती दुनिया में मैं मास्टर बीज रूप आत्मा अब अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ*। बिंदु का बिंदु से मिलन हो रहा है। एक बहुत ही खूबसूरत दिव्य आलौकिक नजारा मैं मन बुद्धि रूपी नेत्रों से देख रही हूँ।
➳ _ ➳ चारों ओर लाल सुनहरी प्रकाश ही प्रकाश है। बिंदु बाप से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं। *मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट इस योग अग्नि में जल कर भस्म हो रही है*। आत्मा पर चढ़ी विकारों की कट जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है वैसे - वैसे विकर्मों का बोझ उतरने से मैं आत्मा हल्की और चमकदार बनती जा रही हूँ। विकर्मों को भस्म करके, हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपनी साकार देह रूपी कुटिया में फिर से वापिस आ कर भृकुटि पर विराजमान हो कर अब मैं फिर से इस सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। *कर्मयोगी बन हर कर्म बाबा की याद में रह कर करते और कर्म करके सेकण्ड में देह से उपराम, बीज स्वरूप में स्थित हो कर अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के पास जा कर, स्वयं में योग का बल निरन्तर जमा कर, जीवन मे आने वाले हर कड़े से कड़े हिसाब - किताब को भी अब मैं योगबल से बिल्कुल सहज रीति चुकतू कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं कल्प - कल्प के विजय की स्मृति के आधार पर माया दुश्मन का आव्हान करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं महावीर आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विजयी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा समय की सूचना अनुसार समान बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा समय की सूचना अनुसार संपन्न बन जाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा समान और संपन्न हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त
बापदादा :-
➳ _ ➳ *जब
सर्वशक्तिमान् बाप साथ है तो सर्वशक्तिमान् के आगे अपवित्रता आ सकती है? नहीं
आ सकती।* लेकिन
आती तो है! तो आती फिर कहाँ से है? कोई
और जगह है? चोर
लोग जो होते हैं वो अपना स्पेशल गेट बना लेते
हैं। चोर गेट होता है। तो *आपके पास भी छिपा हुआ चोर गेट तो नहीं है? चेक
करो। नहीं तो माया आई कहाँ से?* ऊपर
से आ गई? अगर
ऊपर से भी आ गई तो ऊपर ही खत्म हो जानी चाहिये।
➳ _ ➳
कोई
छिपे हुए गेट से आती है जो आपको पता नहीं पड़ता है तो चेक करो कि माया ने कोई
चोर गेट तो नहीं बनाकर रखा है?
और
गेट बनाती भी कैसे है, मालूम
है? *आपके
जो विशेष स्वभाव या संस्कार कमजोर होंगे तो वहीं माया अपना गेट बना देती है।
क्योंकि जब कोई भी स्वभाव या संस्कार कमजोर है तो आप कितना भी गेट बन्द करो, लेकिन
कमजोर गेट है, तो
माया तो जानीजाननहार
है,उसको
पता पड़ जाता है* कि ये गेट कमजोर है, इससे
रास्ता मिल सकता है और मिलता भी है।
➳ _ ➳ *चलते-चलते
अपवित्रता के संकल्प भी आते हैं, बोल
भी होता, कर्म
भी हो जाता है। तो गेट खुला हुआ है ना, तभी तो
माया आई।* फिर साथ कैसे हुआ? कहने
में तो कहते हो कि सर्वशक्तिमान् साथ है तो ये कमजोरी फिर कहाँ से आई? कमजोरी
रह सकती है?
नहीं ना? तो
क्यों रह जाती है? चाहे
पवित्रता में कोई भी विकार हो,
मानो लोभ है, लोभ
सिर्फ खाने-पीने का नहीं होता। कई समझते हैं हमारे में पहनने,
खाने या रहने का ऐसा तो कोई आकर्षण नहीं है, जो
मिलता है, जो
बनता है, उसमें
चलते हैं। लेकिन जैसे आगे बढ़ते हैं तो माया लोभ भी रायल और सूक्ष्म रूप में लाती
है।
➳ _ ➳ *मानो
स्टूडेण्ट है, बहुत
अच्छा निश्चयबुद्धि, सेवाधारी
है,
सबमें अच्छा है लेकिन जब आगे बढ़ते हैं तो ये रायल लोभ
आता है कि मैं इतना कुछ करता हूँ, सब
रूप (तरह) से मददगार हूँ,* तन
से,
मन
से, धन
से और जिस समय चाहिये
उस समय सेवा में हाजिर हो जाता हूँ फिर भी मेरा नाम कभी भी टीचर वर्णन नहीं
करती कि ये जिज्ञासु बहुत अच्छा
है। अगर मानों ये भी नहीं आवे तो फिर दूसरा रूप क्या होता है? अच्छा, नाम
ले भी लिया तो *नाम सुनते-सुनते- मैं
ही हूँ, मैं
ही करता हूँ, मैं
ही कर सकता हूँ, वो
अभिमान के रूप में आ जायेगा।*
✺
*ड्रिल :- "माया के रायल और सूक्ष्म रूप की चेकिंग करना"*
➳ _ ➳
मन
बुद्धि रूपी विमान में बैठ मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ *शांतिवन में... बाबा रूम
में... संकल्पों विकल्पों की हलचल से दूर... शांति के सागर शिवबाबा के
सामने...* अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ...
शक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता को एकटक निहार रही हूँ... उनसे निकल रही
शांति की किरणों से भरपूर कर रही हूँ स्वयं को...
➳ _ ➳
मैं
बाबा से कहती हूँ... बाबा,
जब
सर्वशक्तिवान आप मेरे साथ हो तो माया चोर गेट बना कर कैसे आ सकती है... पर
बाबा... *माया बड़ी दुस्तर है... मेरे ऊपर बहुत कड़ी निगरानी रखती है...* कभी एक
सेकंड के लिये भी क्रोध का सूक्ष्म अंश आ जाता है... या किसी बात में थोड़ा सा
देहभान आ जाता है तो माया बिना एक पल गवांये वार कर देती है...
➳ _ ➳ *बाबा,
जब
मैं आपकी बन गई... पवित्रता का कंगन बांध लिया तो फिर संकल्प में... बोल में...
कर्म में... अपवित्रता सूक्ष्म में भी क्यों आ जाती है... मैं और मेरापन क्यों
आ जाता है...* बाबा...
जब पवित्रता के सागर... आप स्वयं मेरे साथ हो तो फिर यह अपवित्रता क्यों...
बाबा,
मेरे मीठे बाबा... *अब मैं अपने हर संकल्प... हर बोल... हर कर्म... की सूक्ष्म
चेकिंग करुँगी... अटेंशन रूपी पहरेदार को अपनी इन सूक्ष्म कमजोरियों पर कड़ी
निगरानी रखने के लिये कहूँगी...*
➳ _ ➳ *माया
की इन रॉयल और सूक्ष्म कमजोरियों पर काबू पाने के लिये मुझे परखने की... समाने
की... सहन करने की... शक्तियों का बल जमा करना है... मैं और मेरेपन के सूक्ष्म
अहंकार को समाप्त करना है...* पुराने स्वभाव और संस्कार के वंश के अंश पर जीत
पहननी है... जहाँ "मैं" शब्द याद आये वहाँ बाबा... आप याद आओ... और जहाँ "मेरा"
याद आये... वहाँ आपकी श्रीमत याद आये...
➳ _ ➳
बाबा के हाथ में अपना हाथ देकर... मैं बाबा से कहती हूँ... प्यारे बाबा... *आज
मैं आपसे प्रतिज्ञा करती हूँ मैं माया के इस चोर गेट को अटेंशन रूपी डबल लॉक
द्वारा बंद करुँगी... और हर कदम पर आपकी श्रीमत पर चलकर सम्पूर्ण पावन बन माया
के रॉयल और सूक्ष्म रूप की गहराई से चेकिंग करुँगी...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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