━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 23 / 08 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *बेफिक्र बादशाह बन हर कार्य किया ?*

 

➢➢ *सुख की, शांति की नींद की ?*

 

➢➢ *अपनी सब जिम्मेवारी बाप को अर्पित की ?*

 

➢➢ *कर्मेन्द्रियजीत, प्रक्रतिजीत स्थिति का अनुभव किया ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *जिम्मावारी को निभाना यह भी आवश्यक है लेकिन जितनी बड़ी जिम्मेवारी उतना ही डबल लाइट।* जिम्मेवारी निभाते हुए जिम्मेवारी के बोझ से न्यारे रहो इसको कहते हैं बाप का प्यारा। *घबराओ नहीं क्या करूँ, बहुत जिम्मेवारी है। यह करूँ, वा नहीं यह तो बड़ा मुश्किल है। यह महसूसता अर्थात् बोझ है! डबल लाइट अर्थात् इससे भी न्यारा। कोई भी जिम्मेवारी के कर्म के हलचल का बोझ न हो।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं वर्ल्ड ड्रामा में की स्टेज पर विशेष पार्टधारी हूँ"*

 

  सदा अपने को चलते-फिरते, खाते-पीते बेहद वर्ल्ड ड्रामा की स्टेज पर विशेष पार्टधारी आत्मा अनुभव करते हो? *जो विशेष पार्टधारी होता है उसको सदा हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट के ऊपर अटेन्शन रहता है। क्योंकि सारे ड्रामा का आधार हीरो पार्टधारी होता है। तो इस सारे ड्रामा का आधार आप हो ना।* तो विशेष आत्माओंको वा विशेष पार्टधारियों को सदा इतना ही अटेन्शन रहता है? विशेष पार्टधारी कभी भी अलबेले नहीं होते। अलर्ट होते हैं। तो कभी अलबेलापन तो नहीं आ जाता? कर तो रहे हैं, पहुँच ही जायेंगे, ऐसे तो नहीं सोचते? कर रहे हैं लेकिन किस गति से कर रहे हैं? चल रहे हैं लेकिन किस गति से चल रहे हैं? गति में तो अन्तर होता है ना।

 

✧  कहाँ पैदल चलने वाला और कहाँ प्लेन में चलने वाला! कहने में तो आयेगा कि पैदल वाला भी चल रहा है और प्लेन वाला भी चल रहा है लेकिन फर्क कितना है? तो सिर्फ चल रहे हैं, ब्रह्माकुमार बन गये माना चल रहे हैं लेकिन किस गति से? *तीव्रगति वाला ही समय पर मंजिल पर पहुँचेगा। नहीं तो पीछे रह जायेगा। यहाँ भी प्राप्ति तो होती है लेकिन सूर्यवंशी की होती है या चन्द्रवंशी की होती है अन्तर तो होता है ना। तो सूर्यवंशी में आने के लिए हर संकल्प, हर बोल से साधारणता समाप्त हो।* अगर कोई हीरो एक्टर साधारण एक्ट करे तो सभी उस पर हंसेंगे ना।

 

✧  *तो यह सदा स्मृति रहे कि मैं विशेष पार्टधारी हूँ इसलिये हर कर्म विशेष हो, हर कदम विशेष हो, हर सेकेण्ड, हर समय, हर संकल्प श्रेष्ठ हो। ऐसे नहीं कि ये तो 5 मिनट साधारण हुआ। पांच मिनट, पांच मिनट नहीं है। संगमयुग के पांच मिनट बहुत महत्व वाले हैं, पांच मिनट पांच साल से भी ज्यादा हैं इसलिए इतना अटेन्शन रहे। इसको कहते हैं तीव्र पुरुषार्थी।* तीव्र पुरुषार्थियो का स्लोगन कौन-सा है? 'अब नहीं तो कब नहीं।' तो यह सदा याद रहता है? क्योंकि सदा का राज्य भाग्य प्राप्त करना चाहते हो तो अटेन्शन भी सदा। अब थोड़ा समय सदा का अटेन्शन बहुतकाल, सदा की प्राप्ति कराने वाला है। तो हर समय ये स्मृति रहे और चेकिंग हो कि चलते-चलते कभी साधारणता तो नहीं आ जाती? जैसे बाप को परम आत्मा कहा जाता है, तो परम है ना। तो जैसे बाप वैसे बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

चाहे अपनी कमजोरियों की हलचल हो, संस्कारों के व्यर्थ संकल्पों की हलचल हो *ऐसी हलचल के समय स्वयं को अचल बना सकते हो वा टाइम लगता है?* क्योंकि टाइम लगना यह कभी भी धोखा दे सकता है।

समाप्ति के समय में ज्यादा समय नहीं मिलना है। फाइनल रिजल्ट का पेपर कुछ सेकण्ड और मिनटों का ही होना है। लेकिन चारों ओर की हलचल के वातावरण में अचल रहने पर ही नम्बर मिलना है। अगर बहुतकाल हलचल की स्थिति से अचल बनने में समय लगने का अभ्यास होगा तो समाप्ति के समय क्या रिजल्ट होगी? इसलिए यह रूहानी एक्सरसाइज का अभ्यास करो। *मन को जहाँ और जितना समय स्थित करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित कर सको।* फाइनल पेपर है बहुत ही सहजा और पहले से ही बता देते हैं कि यह पेपर आना है। लेकिन नम्बर बहुत थोडे समय में मिलना है। स्टेज भी पॉवरफुल हो। देह, देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार, व्यक्ति या वैभव, वायब्रेशन, वायुमण्डल *सब होते हुए भी आकर्षित न करे। इसी को ही कहते हैं - नष्टोमोहा समर्थ स्वरूप'। तो ऐसी प्रैक्टिस है?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ *बापदादा ने देखा कई बच्चे अपने से भी अप्रसन्न रहते हैं। छोटी-सी बात के कारण अप्रसन्न रहते हैं। पहला-पहला पाठ 'मैं कौन' इसको जानते हुए भी भूल जाते हैं। जो बाप ने बनाया है, दिया है - उसको भूल जाते है।*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बेफिक्र बादशाह बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा आईने के सामने खडी होकर देख रही हूँ स्वयं को... कई जन्मों से स्वयं को देह समझ, इस देह का ही श्रृंगार करती रही... इस देह और देह के सब संबंधो को ही अपना सबकुछ समझ बैठी थी... प्यारे बाबा ने आकर ज्ञान दर्पण में मुझे मेरा सत्य स्वरुप दिखाया... सत्य ज्ञान दिया...* मैं तो एक चमकती हुई अविनाशी आत्मा हूँ... और मुझ आत्मा के असली पिता स्वयं परमात्मा हैं... मेरा असली घर परमधाम है... ये देह की दुनिया मेरी नहीं है... ये स्मृति में आते ही मैं आत्मा उड़ चलती हूँ मेरे बाबा के पास वतन में आत्मा का श्रृंगार कराने...

 

  *सारे फिक्रों से फारिग कर मुझे हल्का बनाकर आसमान में उड़ाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... कल तक तो भगवान के दर्शन को कितने प्यासे थे... वह पिता बनकर आज मीठी पालना दे रहा है... तो *पिता को अपना सब कुछ सौंप दो... और ट्रस्टी बनकर ख़ुशी आनन्द के गीत गाओ... सारी जवाबदारी बाबा की है... आप हल्के और निश्चिन्त हो मौज मनाओ...”*

 

_ ➳  *बाबा के साथ से सारे नज़ारे कितने हसीन और प्यारे लग रहे, इस एहसास से निश्चिन्त होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा आप सच्चे पिता को पाकर सदा की मुस्करा रही हूँ... आप जीवन में न थे तो बाबा, जीवन का बोझ उठाकर मै आत्मा किस कदर टूट सी गयी थी... *आज पिता का हाथ थाम निश्चिन्त हो, मै खुशियो के आसमाँ में उड़ रही हूँ...”*

 

  *मीठा बाबा अपनी दिव्य किरणों की छाँव में मुझे गुल-गुल फूल बनाते हुए कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *सब कुछ ईश्वर पिता के हवाले कर उसके ट्रस्टी बनकर सम्भाल करो, तो सदा बेफिक्र बादशाह बन मुस्करायेंगे... जब सब कुछ बाबा के नाम करोगे, तो सब कुछ पवित्र हो जायेगा...* और शिवबाबा के भण्डारे से पलने वाले महान भाग्यशाली आत्मा बन बेफिक्र हो गुनगुनाएंगे...

 

_➳  *मैं आत्मा सारे बोझ और चिंताओं से मुक्त होकर ख़ुशी में नाचती झूमती हुई कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा ईश्वर पिता के भण्डारे से पलने वाली देवताओ से भी ज्यादा भाग्यशाली आत्मा हूँ... मेरी पालना ईश्वर पिता के हाथो से हो रही है... *मीठे बाबा... आपने सारे बोझों से मुझे मुक्त कर... कितना खुशहाल और खुशनुमा बना दिया है...”*

 

  *'बच्चे, तुम चिंता मत करो मैं बैठा हूँ ना’... ये कहकर मुझे सारी जिम्मेवारियों से मुक्त करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *जो गुण शक्तियाँ धन सम्पदा है, वह ईश्वरीय वरदान है... प्रभु देंन है, यह समझ ट्रस्टी बनकर व्यवहार करो... तो जीवन की हर बात का गवाह और जिम्मेदार ईश्वर पिता होगा...* ऐसा जिगरी सम्पूर्ण निश्चय कर, शिव भंडारे से पलते चलो और असीम खुशियो में झूमते रहो....

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने भाग्य के सितारे को बुलंदियों में देख बाबा से कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा शानदार भाग्य वाली हूँ... कि जीवन की तमाम बाते चिंताए बोझ सब ईश्वर पिता को पकड़ाए कितनी हल्की खुशनुमा हूँ... मेरी जिम्मेदारी उठाने भगवान धरती पर आ गया...* प्यारे बाबा मेरे सारे बोझ आपके और आपका शिव भण्डारा मेरा हो गया...

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी सब जिम्मेवारियां बाप को अर्पित करना*"

 

 _ ➳  बापदादा की मत पर चल, अपने सभी बोझ बापदादा को सौंपते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे मैं बेफ़िक्र बादशाह बन, उमंग उत्साह के पंख लगा कर उड़ रही हूँ। *निश्चिन्त स्थिति का यह अनुभव मुझे उड़ती कला का अनुभव करवा रहा है। स्वयं को मैं एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ*। इस हल्की और निश्चिन्त स्थिति का भरपूर आनन्द लेते हुए मैं अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो मुझे कदम - कदम पर श्रेष्ठ मत देकर मेरे जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले बाप और दादा मुझे मिले। 

 

 _ ➳  कितनी भाग्यवान है वो ब्राह्मण आत्मायें जो इस समय भगवान को यथार्थ रीति पहचान कर, उनकी मत पर चल रही हैं। *जिस ब्रह्मा की मत को भक्ति में मशहूर माना जाता है वो ब्रह्मा बाप इस समय सम्मुख बैठ अपनी श्रेष्ठ मत हम बच्चों को दे रहें है और उनके तन में विराजमान स्वयं निराकार शिव भगवान भी साकार में आकर अपनी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत द्वारा कल्प - कल्प के लिए हम ब्राह्मण बच्चों का सर्वश्रेष्ठ भाग्य बना रहें हैं*। 

 

 _ ➳  ऐसे बापदादा की मत पर चल अपना भाग्य बनाने वाली आत्मायें कोटो में कोई हैं। और उन कोई में भी कोई मैं हूँ वो सौभाग्यशाली आत्मा। *अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के बारे में चिंतन करती अब मैं उन पलों को याद करती हूँ जब किसी भी बात का मन पर बोझ हुआ तो बापदादा ने कैसे सामने आकर हमेशा ये अहसास दिलाया कि "बच्चे आप चिन्ता क्यो करते हो, मैं बैठा हूँ ना"*। और जब बापदादा की मत पर चल, सब कुछ उन्हें सौंप दिया तो वो बोझ जो मन को भारी कर रहा था, इतना हल्का हो गया जैसे कि था ही नही। 

 

 _ ➳  ऐसे कदम - कदम पर अपने प्यारे बाप और दादा की मत पर सदा चलने और अपने सभी बोझ उन्हें देकर, सदा हल्के रहने की स्वयं से प्रतिज्ञा कर, *अपने भाग्यनिर्माता बापदादा से मिलने का मैं जैसे ही संकल्प करती हूँ अव्यक्त बापदादा की अव्यक्त आवाज मुझे सुनाई देती है जैसे बाबा कह रहे हैं "आओ बच्चे, मेरे पास आओ"।* यह अव्यक्त आवाज़ मुझे अव्यक्त स्थिति में स्थित कर, अव्यक्त फ़रिश्ता बनाये, बापदादा के अव्यक्त वतन की ओर लेकर चल पड़ती है। 

 

 _ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर मैं फ़रिश्ता साकार दुनिया को पार करता हूँ और उससे ऊपर अंतरिक्ष को पार करके लाइट के सूक्ष्म देहधारी फ़रिशतो की दुनिया मे पहुँच जाता हूँ। *अव्यक्त बापदादा के इस अव्यक्त वतन में मैं देख रहा हूँ अपने सामने अव्यक्त ब्रह्मा बाबा को उनके सम्पूर्ण फ़रिशता स्वरुप में और उनकी भृकुटि में विराजमान शिव बाबा को। इस कम्बाइन्ड स्वरूप में बापदादा के मस्तक से बहुत तेज लाइट और माइट निकल रही है जो चारों और फैल कर पूरे सूक्ष्म वतन को प्रकाशमय बना रही है*। सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन बापदादा से निकल कर चारों और फैल रहे हैं। 

 

 _ ➳  इन शक्तिशाली वायब्रेशन का आकर्षण मुझे बापदादा के बिलुक़ल समीप ले कर जा रहा हैं। मैं फ़रिशता बापदादा के पास पहुँच कर, उनके सामने जाकर बैठ जाता हूँ। *बापदादा के मस्तक से आ रही शक्तियों की लाइट और माइट अब सीधी मुझ फ़रिश्ते पर पड़ रही है और मैं फ़रिशता सर्वशक्तियों से भरपूर हो रहा हूँ*। अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर बाबा मुझे हर बोझ से सदा मुक्त रहने का वरदान दे रहें हैं।

 

 _ ➳  बापदादा से वरदान लेकर और सर्वशक्तियो से सम्पन्न बन कर मैं फ़रिशता अब वापिस साकार लोक की ओर प्रस्थान करता हूँ। अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी तन के साथ मैं अपने साकारी तन में प्रवेश कर जाता हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं कदम - कदम पर बाप और दादा की मत पर चल कर, अपने सब बोझ बापदादा को दे कर, डबल लाइट स्थिति का अनुभव सदैव कर रही हूँ और इस डबल लाइट स्थिति में स्थित होकर, बापदादा को सदा अपने साथ अनुभव करते हुए, अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन और संगमयुग की मौजों का अब मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सच्चे साथी का साथ लेने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं सर्व से न्यारी और प्यारी आत्मा हूँ।*

   *मैं निर्मोही आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री हूँ  ।*

   *मैं आत्मा माया को देखकर और जानकर उसपर विजयी बनती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा मायाजीत, विजयी रत्न हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳ *ब्रह्माकुमारीज इज रिचेस्ट इन धी वर्ल्ड चाहे डालर कहो, चाहे पौण्ड कहोहै तो पेपर हीतो पेपर कहाँ तक चलेगा! सोने का मूल्य हैहीरे का मूल्य हैपेपर का क्या है?* मनी डाउन तो होनी ही है। और आपकी मनी सबसे ज्यादा मूल्यवान है। जैसे शुरु में अखबार में डलवाया था ना कि ओम मण्डली रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। कमाई का साधन कुछ नहीं था। *ब्रह्मा बाप के साथ एक-दो समर्पण हुए और अखबार में डाला रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड।*

 

 _ ➳  तो अभी भी जब चारों ओर ये स्थूल हलचल होगी फिर आपको अखबार में नहीं डालना पड़ेगा। *आपके पास अखबार वाले आयेंगे और खुद ही डालेंगेटी.वी. में दिखायेंगे कि ब्रह्माकुमारीज रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। क्योंकि आपके चेहरे चमकते रहेंगेकुछ भी हो जाये। दिन में खाने की रोटी भी नहीं मिले तो भी आपके चेहरे चमकते रहेंगे* तो चारों ओर होगा दुख और आप खुशी में नाचते रहेंगे। इसी को ही कहते हैं मिरुआ मौत मलू का शिकार।   

 

 _ ➳  *हिम्मत है ना! क्या होगाकैसा होगाये नहीं सोचो। अच्छा हैअच्छा होना ही है। जो श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करते हो वो सदा ही अच्छा है।* तो ये कभी नहीं सोचो पता नहीं क्या होगापता है अच्छा होगा समझा? *अच्छा है हिम्मत बहुत अच्छी रखी। जहाँ हिम्मत है वहाँ मदद है।*

 

✺   *ड्रिल :-  "श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करना"*

 

 _ ➳  प्रकृति के सानिध्य में बैठी मैं आत्मा... मंद-मंद लहराते ठन्डे-ठन्डे पवन के झोंके... फूलों की खुशबू से महकी मैं आत्मा... बाप के याद रूपी पंख लगाकर उड़ चलती हूँ पांडव भवन में... *ज्ञान चक्षु से पांडव भवन में विहरति मैं आत्मा... बैठ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में...* सुख... शांति... पवित्रता से भरी बाबा की झोपड़ी... मीठी-मीठी फूलों की खुशबू फैला रहा है... और मैं आत्मा सिर्फ एक बाप की यादों में मग्न हो जाती हूँ... और मैं आत्मा मन की आँखों से देख रही हूँ सतयुगी दुनिया को... *पवित्रता का श्रृंगार किये खड़ी प्रकृति... सतोगुणी प्रकृति के सुखद आहलादक नज़ारे... सोने चांदी हीरों से सजे महल... 16 कला सम्पूर्ण... सम्पूर्ण निर्विकारी... सभी आत्मायें...* और मैं आत्मा खो जाती हूँ सतयुगी सृष्टि में...

 

 _ ➳  मैं आत्मा मन बुद्धि रूपी सतयुगी सफर का आनंद लेकर वापिस आ जाती हूँ बाबा की झोपड़ी में... पूर्णतः शांति... निःसंकल्पता की अवस्था में बैठी मैं आत्मा... एक और सीन देख रही हूँ... *कलियुगी विनाश के नज़ारे... प्राकृतिक आपदाओं से घेरा हुआ ब्रह्माण्ड... अग्नि ज्वालाओं में लपेटे हुए इमारतों के ढेर...* कहीं और समंदर का तांडव... दुःख दर्द से व्यथित धरती... अगन ज्वाला फेकता आग... त्राहिमाम अवस्था में भागती आत्मायें... *अपनों की खोज में ख़ुद को खो चूंकि आत्मायें...* चेतनहींन शरीर... दुःख... दर्द से भरा प्रकृति का साम्राज्य...  दुःखी... हताश आत्मायें... मन विचलित हो उठा यह देख और आँखों से अश्रु धारा बहती जा रही हैं...

 

 _ ➳  और मन ही मन बाबा को पूछती हूँ "बाबा सतयुग की सुहानी सफर के बाद यह विनाश का नजारा क्यूँ दिखाया?" और अपने सवाल के जवाब की आश लिए देखती हूँ बापदादा को... शांत मन की गहराईओं में मैं आत्मा देख रही हूँ... *संगमयुगी ब्राह्मण आत्मायें जो इस विनाश की लपटों में भी अपनी अवस्था बनायें रखी हैं... साक्षीदृष्टा बन विनाशी पलों को देख रहे हैं... एक बाप की याद में रह अपने विनाशी देह से परमधाम की यात्रा कर रहे हैं... बापदादा की गोद में सुकून से समां रहे हैं...* मुरली रूपी शिक्षाओं को अपने में धारण कर पूरा संगमयुगी जीवन बाप को समर्पित कर श्रीमत का पालन करते करते अंतिम समय की तैयारी कर रहे हैं...

 

 _ ➳  अंतिम संगमयुगी जीवन में पवित्रता की धारणा कर शांति का श्रृंगार कर अपने साथ शांति और पवित्रता रूपी ख़ज़ाने को लेकर उड़ चलते हैं परमधाम की ओर... *न कलियुगी संस्कारों को साथ लेकर... न कलियुगी खजानों को साथ लेकर...* बस एक बाप के प्यार में मग्न होकर... बाप की शिक्षाओं को साथ लेकर... *योग बल से अपने विनाशी देह का त्याग करते हैं... रिचेस्ट बाप के रिचेस्ट बच्चे... संगमयुग में सतयुगी स्थापना की नींव रखते है...* संगमयुग में अविनाशी खजानों की प्राप्ति कर पुण्य का खाता श्रेष्ठ स्मृति रूपी कार्य से जमा करते रहते हैं...

 

 _ ➳  *योगयुक्त अवस्था की उच्च आत्मिक स्थिति में स्थित होकर के संगमयुगी कार्य को बाप की श्रीमत पर चल परिपूर्ण करते रहते हैं...* मैं आत्मा बापदादा से निकलते आशीर्वाद रूपी किरणों को अपने में धारण कर संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... *सतयुगी श्रेष्ठ स्मृति को अपने जीवन में चरितार्थ कर संगमयुग को ही सतयुग में परिवर्तित करती जा रही हूँ...* श्रेष्ठ संकल्प... श्रेष्ठ स्मृति के भाग्य को जान अब मैं आत्मा एक-एक संकल्प को तराजू में तोलती जा रही हूँ... ॐ शांति...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━