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❍ 21 / 09 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आँखें कभी क्रिमिनल तो नहीं हुई ?*
➢➢ *कोई क्रोध करे तो उसे प्यार से समझाया ?*
➢➢ *अव्यक्त स्वरुप की साधना द्वारा पावरफुल वायुमंडल बनाया ?*
➢➢ *एकाग्रता की शक्ति को बढाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त बन विदेही स्थिति द्वारा कर्मातीत बने, तो *अव्यक्त ब्रह्मा की विशेष पालना के पात्र हो इसलिए अव्यक्त पालना का रेसपान्ड विदेही बनकर दो। सेवा और स्थिति का बैलेन्स रखो।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी सच्चा ब्राह्मण हूँ"*
〰✧ *अपने को संगमयुगी सच्चे ब्राह्मण समझते हो! वह हैं नामधारी ब्राह्मण और आप हो पुण्य का काम करने वाले ब्राह्मण।*
〰✧ *ब्राह्मण अर्थात् स्वयं भी ऊँची स्थिति में रहने वाले और दूसरों को भी श्रेष्ठ बनाने के निमित्त बनने वाले। यही आपका काम है।*
〰✧ *सदा बेहद बाप के हैं बेहद की सेवा के निमित्त हैं, यही याद रखो। बेहद सेवा ही उड़ती कला में जाने का साधन है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ बाप क्वेचन भी सुना रहे हैं, टाइम भी बता रहे है, फिर भी देखो कितने नम्बर बन जाते हैं। कहाँ 8 दाने का पहला नम्बर और कहाँ 16,000 का लास्ट नम्बर! कितना फर्क हुआ! क्वेचन सेकण्ड का वही होगा - *पहले नम्बर के लिए भी तो 16,000 के लास्ट नम्बर वाले के लिए भी क्वेचन एक ही होगा।*
〰✧ और कितने समय से सुना रहे हैं? तो सभी नम्बरवन आने चाहिए ना। इसी को ही अपने यादगार में ‘नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप' कहा है। बस, *सेकण्ड में मेरा बाबा दूसरा न कोई।* इस सोचने में भी समय लगता है लेकिन टिक जाएँ हिले नहीं। यह भी नहीं - सेकण्ड तो हो गया, *यह सोचा तो भी फेल हो जायेंगे।*
〰✧ कई बार जो पेपर देते हैं, वह इसी बात में ही फेल हो जाते हैं। क्वेचन पर जो लिखा हुआ होता है कि यह क्वेचन 5 मिनट का, यह 10 मिनट का, तो यही देखते हैं कि 5 मिनट, 10 मिनट हो तो नहीं गया। *समय को देखते, क्वेचन का उतर देना भूल जाते हैं।* तो यह अभ्यास चलते-फिरते, बीच-बीच मे करते रहो।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ तो जिस समय 'मैं' शब्द-यूज़ करते हो उस समय ये सोचो कि मैं कौन? मैं शरीर तो हूँ ही नहीं ना। बॉडी-कॉन्सेसनेस तब आवे जब मैं शरीर हूँ। *शरीर तो मेरा कहते हो ना? कि मैं शरीर कहते हो? कभी ग़लती से कहते हो कि मैं शरीर हूँ? ग़लती से भी नहीं कहेंगे ना कि मैं शरीर हूँ। तो 'मैं' शब्द और ही स्मृति और समर्थी दिलाने वाला शब्द है, गिराने वाला नहीं है।* तो परिवर्तन करो। विश्व-परिवर्तक पक्के हो ना? देखना कच्चे नहीं बनना। *तो 'मैं' शब्द को भी अर्थ से परिवर्तन करो। जब भी 'मैं' शब्द बोलो, तो उस स्वरूप में टिक जाओ और जब ‘मेरा' शब्द-यूज़ करते हो तो सबसे पहले मेरा कौन?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सबको प्यार देना"*
➳ _ ➳ इस विश्व धरा के वरदानी स्थल... मधुबन में तपस्या धाम में मीठे बाबा की यादो में खोयी खोयी सी हूँ... मै आत्मा मीठे बाबा की शक्तिशाली तरंगो को महसूस कर रही हूँ... और *दिल की सच्ची पुकार ने बाबा को मेरे सम्मुख प्रकट कर दिया है.*.. मीठे बाबा को कहती हूँ :- " बाबा मेरे जज्बातों को अपने दिल में समाकर आपने मुझ आत्मा कितना अमूल्य अनोखा बना दिया है... मनुष्य प्रेम में निस्तेज हो गयी मै आत्मा... आज ईश्वरीय दिल में धड़क रही हूँ...
❉ *प्यारे बाबा आप समान प्यार का सागर बनाते हुए बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... प्यार के सागर बाबा से मिलकर मा प्यार का सागर बन.., इस धरा पर प्रेम की तरंगो को फैलाओ... *हर दिल को सच्चे प्यार का अहसास कराकर... ईश्वरीय यादो का सुख दिलाओ.*.. श्रीमत को थाम कर बहुत ही स्नेह और मिठास भरी खुशबु विश्व में फैलाओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा से मिलकर प्रेम गंगा बन इस विश्व धरा पर बह रही हूँ और मीठे बाबा से कहती हूँ :-* "मेरे प्यारे प्यारे बाबा... आपने ही तो मुझ आत्मा को सच्चे प्रेम का पर्याय बनाया है... *आपके स्नेह तले मै आत्मा अथाह खुशियो में जीती जा रही हूँ..*. और सबको स्नेह से सींच रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को सुखो के अम्बार पर बैठाते हुए हीरो सा सजाते हुए बोले :-* "मीठे लाडले बच्चे... आप महान भाग्यशाली आत्माओ ने भगवान को जाना है... और उसके प्यार में फल फूल रहे हो, जबकि सारी दुनिया सच्चे प्यार की बून्द मात्र को भी तरस रही है...ऐसे में ईश्वरीय प्यार की फुहार हर तपते मन पर डाल कर शीतल राहत दे आओ... *प्रेम सुधा बनकर हर दिल को सिक्त कर आओ*..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा ईश्वरीय पालना और प्रेम की अधिकारी बनकर मुस्करा कर मीठे बाबा से कह रही :-* "मीठे मनमीत बाबा... *आपने मुझ आत्मा को प्रेम की बदली बनाकर दुखो की तपिश पर बरसाया है*... ईश्वरीय प्रेम की हर आत्मा प्यासी है, और मै आत्मा स्नेह की दौलत लुटाकर सबको असीम सुख दे रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को विश्व कल्याणकारी और मा प्यारसागर की नजरो से देखते हुए बोले :-* "मीठे मीठे बच्चे... ईश्वरीय गोद में खिलकर जो गुणो की खुशबु से महके हो और ज्ञान रत्नों से लबालब हुए हो... *यह अनो*खी खुशनसीबी हर मन के आँगन में भी बिखेरते चलो.*.. अपनी हर अदा, स्नेह भरी नजरो में ईश्वर पिता की झलक दिखाओ..."
➳ _ ➳ *मै आत्मा मीठे बाबा से बड़े प्यार से कहती हूँ :-* "मीठे लाडले बाबा मेरे... *आपने अथाह प्रेम देकर मुझ आत्मा को रोम रोम से तृप्त किया है*... सच्चे स्नेह को देकर मेरी जनमो की प्यास बुझाई है... और आपसे पाया यही सुख में सब पर दिल खोल कर लुटा रही हूँ... और अपनी चलन से पिता का नाम बाला कर रही हूँ..." इन मीठे वादों और दिली जज्बातों की बयानगी मीठे बाबा से कर... मै आत्मा साकार वतन में आ गयी...
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अपनी चाल - चलन देवताओं जैसी बनानी है*"
➳ _ ➳ बाप समान बनने का दृढ़ संकल्प मन में धारण कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ पहुँच जाती हूँ भगवान की उस अवतरण भूमि मधुबन में जहां शिव बाबा के डायरेक्शन पर चल, सम्पूर्ण समर्पण भाव से ब्रह्मा बाप द्वारा किये हर कर्म का यादगार है।
*अपनी चलन वा दैवी गुणों से बाप का नाम बाला करने वाले अपने प्यारे ब्रह्मा बाप समान बनने का संकल्प मुझे स्वत: ही बाबा के कमरे की ओर ले कर चल पड़ता है*। मन मे अपने प्यारे मीठे शिव पिता की याद को समाये धीरे - धीरे कदम बढ़ाती हुई मैं बाबा की कमरे में प्रवेश करती हूँ। कमरे की चौखट पर पैर रखते ही मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे अव्यक्त बापदादा "आओ बच्चे" कहकर मुझे पुकार रहें हैं।
➳ _ ➳ बाबा का "आओ बच्चे" कहकर पुकारना ही मेरे हृदय के तारों को झनझना देता हैं और बाबा के असीम प्यार का अहसास मन मे अथाह खुशी के साथ - साथ आंखों में खुशी के आंसू ले आता है। *बाबा के स्नेह में खोई एकाएक मैं अनुभव करती हूँ जैसे बापदादा मेरे पास आकर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कमरे के अन्दर ले जा रहें हैं*। कमरे के अंदर आ कर कोने में रखे पलंग पर बापदादा बैठ जाते हैं और बड़े प्यार से मेरा हाथ पकड़ मुझे अपने पास बिठा लेते हैं। बाबा के इस असीम स्नेह को पाकर खुशी के आंसू जो मेरी आँखों से बह रहें है उन्हें बाबा एक - एक करके अपने हाथ में ले रहे है और वो प्रेम के आंसू मोती बन बाबा के गले का हार बनते जा रहें हैं।
➳ _ ➳ बाबा के हाथों में अपना हाथ देकर मैं मन ही मन बाप समान बनने का और अपनी चलन वा दैवी गुणों से बाप का नाम बाला करने का जैसे ही संकल्प करती हूँ। मैं स्पष्ट अनुभव करती हूँ कि बाबा मेरे हर संकल्प को पढ़ रहे हैं। *मेरे मन की हर बात बिना कहे बाबा समझ रहें हैं। एक बड़ी प्यारी गुह्य मुस्कराहट के साथ अब बाबा मुझे निहारते हुए, अपनी मीठी दृष्टि मुझ पर डाल कर, मेरे हर संकल्प को पूरा करने का मेरे अंदर बल भर रहें हैं*। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा की दृष्टि से, बाबा की सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर गहराई तक समाती जा रही हैं और मेरे हर संकल्प को सिद्ध करने की शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। *अपना वरदानी हाथ बाबा मेरे सिर पर रख कर मुझे "संकल्प सिद्धि" का वरदान दे रहें हैं*।
➳ _ ➳ बाबा से वरदान लेकर, बाबा के सामने किये अपने हर संकल्प को दृढ़ता के साथ पूरा करने की स्वयं से और बाबा से प्रतिज्ञा करके अब मैं बाबा के कमरे से बाहर आकर हिस्ट्री हाल की तरफ चल पड़ती हूँ और *हिस्ट्री हाल की दीवारों पर लगे साकार ब्रह्मा बाबा के हर कर्म के यादगार चित्रों को बड़े ध्यान से देखती हुई, बाबा के हर कर्म को फॉलो करने का दृढ़ संकल्प कर, अब मैं स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए शान्ति स्तम्भ पर आकर बैठ जाती हूँ*। अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो कर, अपने शिव पिता का आह्वान करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे बाबा परमधाम से नीचे उतर आये है।
➳ _ ➳ पूरा शांति स्तम्भ बाबा की सर्वशक्तियों की छत्रछाया से आच्छादित हो गया है। बाबा की सर्वशक्तियों की मीठी - मीठी फुहारें पूरे शान्ति स्तम्भ पर बरस रही हैं। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शांति स्तम्भ अथाह शक्ति का स्तम्भ बन गया है और उसके नीचे बैठते ही उन फुहारों के रूप में वो सारी शक्ति मुझ आत्मा में समाने लगी है। स्वयं को मैं बहुत ही ऊर्जावान अनुभव कर रही हूँ*। मेरे हर संकल्प को सिद्ध करने के लिये बाबा ने जैसे अपनी सारी शक्ति मेरे अंदर भर दी है। बाबा की सर्वशक्तियों से भरपूर होकर अब मैं बाबा की कुटिया में आकर अपने प्यारे बापदादा का शुक्रिया अदा करती हूँ और *बाबा के साथ अपने मन की हर बात शेयर करके वापिस अपनी कर्मभूमि पर आकर अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरुप में स्थित होती हूँ।
➳ _ ➳ बाबा से मिली सर्वशक्तियों का बल अब मुझे अपने पुराने स्वभाव संस्कारो को मिटाने और दैवी गुणों को धारण करने की हिम्मत दे रहा है। *अपने पुराने आसुरी स्वभाव संस्कारों को अब मैं सहजता से छोड़ती जा रही हूँ। मनसा, वाचा, कर्मणा स्वयं पर पूरा अटेंशन दे कर, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो करते हुई अब मैं अपनी चलन वा दैवी गुणों से बाप का नाम बाला करने की अपनी प्रतिज्ञा को सहज ही पूरा कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अव्यक्त स्वरूप की साधना द्वारा पावरफुल वायुमंडल बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं अव्यक्त फरिश्ता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सर्वशक्तिमान बाप को सदा प्रत्यक्ष करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा एकाग्रता की शक्ति को सदा बढ़ाती हूँ ।*
✺ *मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है। ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ। मेरा निजी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो। वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया। पराये माल को अपना बना लिया। अब बाप के खजाने को अपना बनाओ। *रावण की चीज को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है?* कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है।
➳ _ ➳ जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं - बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है। बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज्यादा। *बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं। फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है - कि दिल से अगर एक बार भी 'मेरा बाबा' बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला 'मेरा बाबा', तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो।* ले तो जाना ही है। सिर्फ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सजनी बनकर चलना।
✺ *ड्रिल :- "रावण की जायदाद को छोड़ बाप की जायदाद को सम्भालना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा एक बहुत ही सुंदर बगीचे में बैठी हूं... जहां रंग बिरंगे फूल खिल रहे हैं... और फूलों पर तितलियां मंडरा रही है... और आस-पास बहुत ही मनमोहक हरियाली हो रही है... और इस हरियाली में अनेक तरह तरह के पक्षी चहचहा रहे हैं... मैं आत्मा एक स्थान पर बैठकर यह सारा नजारा अपने इन स्थूल नेत्रों से देख रही हूं...* और देख रही हूं कुछ पक्षी आपस में लड़ रहे हैं... और कभी कभी आपस में प्रेम कर रहे हैं... उनका लड़ना झगड़ना देखकर मैं अब अपनी दृष्टि तितलियों पर डालती हूँ... तितली जिस फूल पर बैठी है उस फूल में से एक भंवरा बाहर निकल कर उस तितली को कस के पकड़ना चाह रहा है... और तितली उसके कसके पकड़ने से बहुत ही तड़प रही है...
➳ _ ➳ और कुछ समय बाद मैं देखती हूं... कि वह भंवरा तितली को तड़पता हुआ देखकर छोड़ देता है... और तितली फर से उड़ जाती है... यह प्रक्रिया वह भंवरा बार बार दोहरा रहा है... पर तितली बार-बार उड़ जाती है... फिर मैं देखती हूँ की वह भंवरा शांत स्वरुप स्थिति में आराम से उस फूल पर बड़े स्नेह से बैठ जाता है... और जब वह तितली आती है तो उसे छूने की कोशिश करता है... उस तितली को भँवरे के स्नेह का आभास होता है... और वह आराम से उस फूल पर बैठकर फूलों से रस निकालती है... यह दृश्य देखकर मुझे आभास होता है कि *जब भँवरे के रावण के संस्कार थे तो तितली उससे दूर भाग रही थी... और जब वह अपने स्वधर्म में आया तो तितली उधर ही बैठ गयी...*
➳ _ ➳ और मेरे अंतर्मन को आभास होता है... कि *मेरे अंदर जो पुराने संस्कार हैं काम क्रोध लोभ मोह अहंकार अगर इनके अंश भी है तो धीरे-धीरे इनका वंश बनने में समय नहीं लगेगा... और यह जो पुराने संस्कार है वह मेरे अपने संस्कार नहीं है... वह रावण के संस्कार हैं...* रावण की मत पर चलकर मैंने इतने समय से सिर्फ अपने साथ और अन्य आत्माओं के साथ गलत कर्म ही किए हैं... और इन कर्मों के कारण मेरा विकर्मो का खाता बढ़ता ही जा रहा है... और तभी मुझे आभास होता है कि मुझे अब इन रावण के अंश विकारों का भी अपने मन बुद्धि से त्याग करना होगा...
➳ _ ➳ और यह विचार करते मैं आत्मा अब अपने मन बुद्धि से अपने आप को फरिश्ता स्वरुप में अनुभव करती हूं... और परमात्मा को अपने साथ ज्योतिर्बिन्दु रूप में अनुभव करती हूँ... और फील करती हूं मेरा पूरा शरीर सफेद किरणों से जगमगा रहा है... औऱ अनुभव करती हूँ... की *परमात्मा मुझमें अद्भुत शक्ति भर रहे हैं... शक्तियों का झरना मुझपर कुछ तरह से गिरता है कि मुझे प्रतीत होता है मानों स्वयं मेरे बाबा मुझमें नये संस्कार भर रहे हो... और जैसे जैसे ये झरनों रूपी संस्कार मुझमें भरते हैं... मेरे पुराने संस्कार पानी के रूप में मेरे शरीर से निकलकर बहते जा रहे हैं... और अब मैं आत्मा एकदम पवित्र और हल्की बन गई हूं...* अब मुझ आत्मा में सहनशक्ति के साथ साथ शांति की शक्ति का समावेश हो गया है... इस शांत और ऊंची स्थिति का मैं गहराई से आनंद ले रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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