━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 30 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *अपने अप पर और औरों पर रहम किया ?*

 

➢➢ *पुरानी सड़ी हुई परचिंतन की बातें तो नहीं की ?*

 

➢➢ *सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण अपना सहयोगी बनाया ?*

 

➢➢ *बापदादा के गुण गाते रहे ?*

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  *कर्मातीत का अर्थ ही है-सर्व प्रकार के हद के स्वभाव-संस्कार से अतीत अर्थात् न्यारा। हद है बन्धन, बेहद है निर्बन्धन।* ब्रह्मा बाप समान अब हद के मेरे-मेरे से मुक्त होने का अर्थात् कर्मातीत होने का अव्यक्ति दिवस मनाओ। इसी को ही स्नेह का सबूत कहा जाता है।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

   *"मैं अविनाशी बाप के बगीचे का अविनाशी रूहानी गुलाब हूँ"*

 

✧  *सदा अपने को बाप के रूहानी बगीचे के रूहानी गुलाब समझते हो! सबसे खुशबू वाला पुष्प 'गुलाब' होता है। गुलाब का जल कितने काया में लगाते हैं, 'रंग-रूप' में भी गुलाब सर्व प्रिय है। तो आप सभी रूहानी गुलाब हो।* आपकी रूहानी खुशबू औरों को भी स्वत: ही आकर्षण करती है।

 

✧  *कहाँ भी कोई खुशबू की चीज होती है तो सबका अटेन्शन स्वत: ही जाता है तो आप रूहानी गुलाबों की खुशबू विश्व को आकर्षित करने वाली है, क्योंकि विश्व को इस रूहानी खुशबू की आवश्यकता है।*

 

✧  *इसलिए सदा स्मृति में रहे कि -'मैं अविनाशी बगीचे का अविनाशी गुलाब हूँ।' कभी मुरझाने वाला नहीं। सदा खिला हुआ। ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब सदा सेवा में स्वत: ही निमित्त बन जाते हैं।* याद की, शक्तियों की, गुणों की यह सब खुशबू सबको देते रहो। स्वयं बाप ने आकर आप फूलों को तैयार किया है तो कितने सिकीलधे हो!

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

✧  साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो? *साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में अपने स्वीट होम, शान्तिधाम में पहुँचा देती है।* साइंस वाले तो और फास्ट गति वाले यंत्र निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन *आपका यंत्र कितनी तीव्र गति का है!* सोचा और पहुँचा। ऐसा यंत्र साइंस में हैं जो इतना दूर बिना खर्च के पहुँच जाएँ?

 

✧  वो तो एक-एक यंत्र बनाने में कितना खर्च करते है, कितना समय और कितनी एनर्जी लगाते हैं, आपने क्या किया? बिना खर्चे मिल गया। *यह संकल्प की शक्ति सबसे फास्ट है।* आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि से पहुँच जाते हो। *जब चाहो तब लौट आओ, जब चाहो तब चले जाओ।*

 

✧  साइंस वालों को तो मौसम भी देखनी पडती है। आपको तो यह भी नहीं देखना पडता कि आज बादल है, नहीं जा सकेंगे। आजकल देखो - बादल तो क्या थोडी-सी फागी भी होती है तो भी प्लैन नहीं जा सकता। और *आपका विमान एवररेडी हैं या कभी फागी आती है?* एवररेडी है? सेकण्ड में जा सकते हैं - ऐसी तीव्र गति है? *माया कभी रुकावट तो नहीं डालती है?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

〰✧ बंधनों की लम्बी लिस्ट वर्णन करते हो, क्लासेज कराते हो तो बंधनों की बड़ी लम्बी लिस्ट निकालते हो *लेकिन बाप कहते हैं सब बन्धनों में पहल एक बंधन है-देह भान का बंधन। उससे मुक्त बनो। देह नहीं तो दूसरे बंधन स्वत: ही खत्म हो जायेंगे।* अपने को वर्तमान समय मैं टीचर हूँ, मैं स्टूडेंट हूँ मैं सेवाधारी हूँ, इस समझने के बजाए *अमृतवेले से यह अभ्यास करो कि मैं श्रेष्ठ आत्मा ऊपर से आई हूँ'- इस पुरानी दुनिया में, पुराने शरीर में सेवा के लिए। मैं आत्म हूँ-यह पाठ अभी और पक्का करो।* आप आत्मा का भान धारण करो तो यह आत्मिक भान, माया के भान को सदा के लिए समाप्त कर देगा। लेकिन आत्मा का भान - यह अभी चलते फिरते स्मृति में रहे, वह अभी और होना चाहिए। *ब्रह्म बाप ने आत्मा का पाठ आदि से कितना पक्का किया! दीवारों पर भी मैं आत्मा हूँ परिवार वाले आत्मा हैं, एक-एक के नाम से दीवारों में भी यह पाठ पक्का किया डायरियां भर दी-मैं आत्मा हूँ यह भी आत्मा है, यह भी आत्मा है। आपने आत्मा का पाठ इतना पक्का किया है? मैं सेवाधारी हूँ, यह पाठ कुछ पक्का लगता है लेकिन आत्मा सेवाधारी हूँ, तो जीवनमुक्त बन जायेंगे।* रोज़ शरीर में ऊपर से अवतरित हो, मैं अवतार हूँ इस शरीर में अवतरित आत्मा हूँ फिर *युद्ध नहीं करनी पड़ेगी। आत्मा बिन्दू है ना? तो सब बातों को बिंदु लग जायेगा। कौन सी आत्मा हूँ? रोज एक नया-नया टाइटल स्मृति में रखो।* आपके पास बहुत से टाइटल की लिस्ट तो हैना। रोज़ नया टाइटल स्मृति में रखो कि मैं ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। सहज है या मुश्किल है? आत्मा बिन्दु रूप में रहेगी, तो ड्रामा बिन्दु भी काम में आयेगा और समस्याओं को भी सेकण्ड में बिन्दु लगा सकेंगे और बिन्दु बन परमधाम में बिन्दु जायेगी।

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

 

∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚••✰••✧゚゚

────────────────────────

 

∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा पर जो कट चढ़ी है उसको उतारना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा सबेरे-सबेरे बगीचे की सैर करते हुए प्रकृति के सौन्दर्य को निहार रही हूँ...*  ठंडी-ठंडी हवाएं फूलों की खुशबू को पूरे बगीचे में फैला रही हैं... आम के पेड़ पर बैठी कोयल कुहू-कुहू करती मेरे स्वागत में मीठे गीत गा रही है... मेरे मन को लुभा रही है... एक छोटे से बीज से उत्पन्न ये पेड़ कितने बड़े हो गए हैं... इनको देख बीज रूपी परमात्मा और सृष्टि रूपी झाड़ स्मृति में आ जाते हैं... *तुरंत मैं आत्मा उड़ चलती हूँ, परमधाम... बीजरूप बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बीजरूप बाबा से दिव्य शक्तिशाली किरणें निकल मुझ आत्मा पर पड़ती जा रही हैं... और मुझ आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म हो रहे हैं...* फिर मैं आत्मा बिंदु, बिंदु बाबा के साथ सूक्ष्मवतन में आ जाती हूँ... ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर शिवबाबा विराजमान हो जाते हैं और मैं फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर उनसे प्यारी शिक्षाओं को ग्रहण करती हूँ...

 

  *ज्ञान और योगबल से विकर्मो को भस्म कर श्रेष्ठ कर्मो के लिए श्रीमत देते हुए ज्ञान के सागर मेरे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... ईश्वर पिता को दुखो में कितना पुकारा है... *अब जो भगवान इतना सहज मिला है, तो श्रीमत पर चलकर अपने कर्मो को खुबसूरत बनाओ... यादो की खुमारी में खोकर अपने विकर्मो को खत्म कर, जमा का खाता बढ़ाओ...* सच्चे प्रेम को हर घड़ी जीने वाले ईश्वरीय प्रेम के पर्याय बन जाओ..."

 

_ ➳  *अमूल्य ज्ञान रत्नों से मेरे भाग्य को अमूल्य बनाने वाले प्राण प्यारे बाबा को मैं भाग्यशाली आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा देह की दुनिया में कितनी कर्म भ्रष्ट हो गयी थी... *आपने श्रेष्ठ दिव्य कर्मो से मेरा जीवन सुगन्धित किया है... आपने देह में धूल धूसरित सी मुझ आत्मा को अपने दिल में सजाकर... अमूल्य मणि बना दिया है...”*

 

  *यादों के इंद्रधनुषी किरणों से मुझे एवरहेल्दी, एवर वेल्दी बनाते हुए सुख के सागर मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... *ईश्वरीय यादो में इस कदर डूब जाओ कि विकर्मो की कालिमा सहज निकल जाये...* और श्रीमत के हाथ को पकड़ देह के दलदल से सहज बाहर निकल... अपनी दिव्य सुंदरता से सज जाओ... मीठे बाबा की सुखदायी यादो में अनन्त सुखो से भर जाओ...

 

_ ➳  *अनंत खुशियों के खजानों से मालामाल होकर दिव्यता से श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में सारे किये विकर्मो से मुक्त होकर फूलो जैसी खिलती जा रही हूँ... पुण्यो का खाता बढ़ाकर भीतर की सुंदरता को हर पल निखार रही हूँ... *आपकी यादो में सम्पूर्ण पवित्रता से सजधज कर सतयुगी स्वर्ग में आ रही हूँ...”*

 

  *अपने स्नेह भरी नजरों से मुझे निहाल कर विश्व का मालिक बनाते हुए मेरे भाग्यविधाता बाबा कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *ईश्वरीय मत पर चलकर जीवन खुशियो से महकाओ... ईश्वर पिता की यादो में सारे पापो को खत्म कर... अपने तेजस्वी रूप को पुनः पाकर ईश्वरीय दिल में बस जाओ...*  एक के अंत में खो जाओ... और विश्व पिता से विश्व का राजभाग्य पाने वाले महान भाग्यशाली बन जाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा पुराने सारे खाते खत्म कर नया पुण्य का खाता जमा कर नया भाग्य बनाते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा खूबसूरत भाग्य की धनी सी... ईश्वरीय बाँहो में मुस्करा रही हूँ... *मुझे प्यार करने, सच्ची राहो पर ऊँगली पकड़ चलाने, ईश्वरीय दौलत से दामन सजाने भगवान धरा पर उतर आया है... मै आत्मा दिव्य मणि सी चमक रही हूँ...”*

 

────────────────────────

 

∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- परचिंतन की बातें कर,बाप से बुद्धियोग नही तुड़ाना है*

 

_ ➳  63 जन्मो से देह और देहधारियों के चिंतन में फंसी आत्मा आज इतनी दुखी और अशांत हो गई है जिसका अनुभव आज हर मनुष्य कर रहा है, *मन ही मन अपने आप से यह बातें करती हुई मैं विचार करती हूँ कि जिस नश्वर देह और देह से जुड़े पदार्थो के साथ आज हर मनुष्य आत्मा ने अपनी प्रीत जोड़ रखी है वो झूठी प्रीत ही तो उसके दुख का कारण है*। इस दुख और अशांति से छूटने का केवल एक ही उपाय है जो इस समय स्वयं भगवान आ कर बता रहें हैं और वह है देह और देहधारियों के चिंतन को छोड़ स्व चिन्तन और परमात्म चिन्तन में मन बुद्धि को बिज़ी रखना।

 

_ ➳  अपने प्यारे पिता द्वारा दिये जा रहे इस सत्य ज्ञान को जीवन में धारण कर, अपने मन और बुद्धि को इस नश्वर देह और देह से जुड़ी हर बात से हटाकर, स्व चिंतन करते हुए, अपने सत्य स्वरूप का गहराई से अनुभव करने के लिए अब मैं अपना सम्पूर्ण ध्यान अपने स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और *महसूस करती हूँ कि धीरे - धीरे एकाग्रता की शक्ति ने मेरे मन बुद्धि को पूरी तरह मेरे उस निराकारी स्वरूप पर स्थित कर दिया है*। सिवाए मेरे निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप के अब औऱ कुछ भी मुझे दिखाई नही दे रहा। जैसे अर्जुन को सिवाय मछली की आँख के उस बिंदु के और कुछ भी दिखाई नही दे रहा था जहाँ उसे निशाना साधना था। ठीक *इसी प्रकार अपनी सम्पूर्ण देह में मुझे केवल भृकुटि के भव्य भाल पर चमकती हुई चैतन्य ज्योति ही दिखाई दे रही है*।

 

_ ➳  उस जगमग करती चैतन्य ज्योति को बड़े प्यार से मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से मैं निहार रही हूँ जो एक अति सूक्ष्म चमकते हुए चैतन्य सितारे की भांति दिखाई दे रहा है। *जैसे आकाश में चमकते हुए सितारे में से किरणे निकलती हैं ऐसे मुझ आत्मा सितारे में से भी शांति, प्रेम, आनंद, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति की सतरंगी किरणे निकल रही हैं*। अपने मन और बुद्धि को पूरी तरह अपने सत्य स्वरूप, गुणों और शक्तियों पर फोकस कर, कुछ क्षणों के लिए मैं खो जाती हूँ अपने इस अति सुखमय स्वरुप में। बड़े प्यार से मैं अपने इस स्वरूप को निहार रही हूँ और *देख रही हूँ कि कितना शुद्ध और शक्तिशाली है मेरा वास्तविक स्वरूप, जिससे मैं आज दिन तक अनजान थी*।

 

_ ➳  मन ही मन मैं अपने प्यारे पिता का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ जिन्होंने आकर मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप की पहचान करवाई। *अपने इस अति सुखदाई सत्य स्वरुप का भरपूर आनन्द लेकर, अपने प्यारे पिता के स्वरूप पर अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर, मन बुद्धि के विमान पर बैठ अब मैं पहुँच जाती हूँ अपने प्यारे पिता के पास उनके निजधाम परमधाम घर में*। देख रही हूँ मैं अपने प्यारे पिता को अपने बिल्कुल सामने जो दिखने में मेरी ही तरह बिंदु हैं किंतु गुणों में सिंधु है।

 

_ ➳  उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे फैलकर मेरे चारों और सुरक्षा का दायरा बना रही हैं। कभी मैं अपने आप को देखती हूँ तो कभी सर्वशक्तियों के दाता अपने शिव पिता को। कितना प्यारा और अलौकिक मिलन है यह। *कितनी निराली और प्यारी लाल प्रकाश की दुनिया है यह। यहाँ आकर, स्वयं को अपने प्यारे पिता के सानिध्य में मैं धन्य धन्य अनुभव कर रही हूँ*। वाह मैं आत्मा, वाह मेरे बाबा, जो मुझे अपनी सर्वशक्तियों से भरपूर कर रहे हैं। *इस बीज रूप स्थिति का सुंदर अनुभव करने के बाद मैं आत्मा लौट आती हूं साकारी दुनिया में*।

 

_ ➳  साकारी ब्राह्मण तन में भृकुटि पर विराजमान होकर, अपने वास्तविक स्वरुप की स्मृति में स्थित होकर अब मैं हर कर्म कर रही हूँ। स्व चिंतन करते हुए, अपने गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे मेरे आनन्दमयी, सुखमयी स्वरूप में स्थित रखने के साथ - साथ सबको आत्मिक दृष्टि से देखने की स्मृति दिलाता है। *सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने के अभ्यास से मेरी दैहिक दृष्टि वृति परिवर्तन हो रही है इसलिए देह  और देह से जुड़ी हर बात के चिंतन से मैं स्वत: ही मुक्त होती जा रही हूँ*।

 

────────────────────────

 

∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण अपना सहयोगी बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं प्रकृति जीत आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा बापदादा के गुण गाती रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा स्वयं भी गुणमूर्त बन जाती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सर्वगुण संपन्न हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

────────────────────────

 

∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. अभी समय प्रमाण सबको बेहद के वैराग्य वृत्ति में जाना ही होगा। लेकिन *बापदादा समझते हैं कि बच्चों का समय शिक्षक नहीं बनें*जब बाप शिक्षक है तो समय पर बनना - यह समय को शिक्षक बनाना है।

 

 _ ➳  2. ब्रह्मा बाप ने समय को शिक्षक नहीं बनायाबेहद का वैराग्य आदि से अन्त तक रहा। आदि में देखा इतना तन लगाया, मन लगायाधन लगायालेकिन जरा भी लगाव नहीं रहा। *तन के लिए सदा नेचुरल बोल यही रहा - बाबा का रथ है*। मेरा शरीर हैनहीं। बाबा का रथ है। बाबा के रथ को खिलाता हूँमैं खाता हूँनहीं। तन से भी बेहद का वैराग्य। मन तो मनमनाभव था ही। धन भी लगाया, लेकिन कभी यह संकल्प भी नहीं आया कि मेरा धन लग रहा है। *कभी वर्णन नहीं किया कि मेरा धन लग रहा है या मैंने धन लगाया है। बाबा का भण्डारा हैभोलेनाथ का भण्डारा है*। धन को मेरा समझकर पर्सनल अपने प्रति एक रूपये की चीज भी यूज नहीं की। कन्याओं, माताओं की जिम्मेवारी है, कन्याओं, माताओं को विल कियामेरापन नहीं। समय, श्वांस अपने प्रति नहींउससे भी बेहद के वैरागी रहे। *इतना सब कुछ प्रकृति दासी होते हुए भी कोई एकस्ट्रा साधन यूज नहीं किया*। सदा साधारण लाइफ में रहे। कोई स्पेशल चीज अपने कार्य में नहीं लगाई। वस्त्र तकएक ही प्रकार के वस्त्र अन्त तक रहे। चेंज नहीं किया। बच्चों के लिए मकान बनाये लेकिन स्वयं यूज नहीं कियाबच्चों के कहने पर भी सुनते हुए उपराम रहे। *सदा बच्चों का स्नेह देखते हुए भी यही शब्द रहे - सब बच्चों के लिए है*। तो इसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति प्रत्यक्ष जीवन में रही। अन्त में देखो बच्चे सामने हैंहाथ पकड़ा हुआ है लेकिन लगाव रहाबेहद की वैराग्य वृत्ति। स्नेही बच्चे, अनन्य बच्चे सामने होते हुए फिर भी बेहद का वैराग्य रहा। *सेकण्ड में उपराम वृत्ति काबेहद के वैराग्य का सबूत देखा*। एक ही लगन सेवासेवा और सेवा..... और सभी बातों से उपराम। इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य।

 

 _ ➳  3. *साकार में सर्व प्राप्ति का साधन होते हुएसर्व बच्चों की जिम्मेवारी होते हुए, सरकमस्टांशसमस्यायें आते हुए पास हो गये ना*! पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले लिया। विशेष कारण बेहद की वैराग्य वृत्ति। 

 

✺   *ड्रिल :-  "ब्रह्माबाप समान बेहद की वैराग्य वृत्ति का अनुभव करना"*

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप समान बेहद की वैराग्य वृति धारण करने का दृढ़ संकल्प मन में लिए मैं लाइट का सूक्ष्म शरीर धारण कर फरिश्ता बन पहुंच जाता हूँ सूक्ष्म वतन... *मेरे संकल्पों को पहले ही कैच कर चुके अव्यक्त ब्रह्मा बाबा में विराजमान शिव बाबा मुझे देखते ही अपनी बाहें फैला कर मुझे गले से लगा कर कहते हैं, आओ मेरे बच्चे:- "साकार ब्रह्मा बाप की गोद का सुख लेने आये हो"!* यह कह कर बाबा मुझे अपनी गोद में बिठा लेते हैं... बाबा की गोद में बैठते ही मैं जैसे एक छोटी बच्ची बन जाती हूँ और बाबा के साथ मधुबन में उस स्थान पर पहुंच जाती हूँ जहां ब्रह्मा बाबा ने दादियों के साथ 14 साल कठोर तपस्या करके इस स्थान को ऐसी तपोभूमि बना दिया कि *इस तपोभूमि पर पैर रखते ही हर मनुष्य आत्मा को गहन शांति की अनुभूति स्वत: ही होती है...*

 

 _ ➳  अब मैं देख रही हूँ स्वयं को इस तपोभूमि पर... यहां पहुंचते ही ब्रह्मा बाबा की वो सभी साकार यादें स्मृति में ताजा हो उठती है जो दीदी, दादियों ने ब्रह्मा बाबा के साथ अपने अनुभवों में कही हैं... *उन साकार यादों की स्मृति मुझे भी साकार पालना का अनुभव कराने लगती हैं*... उस खूबसूरत एहसास में मैं खो जाती हूँ... मेरी आँखों के सामने ब्रह्मा बाबा के हर कर्म का सीन स्पष्ट हो रहा है जिसमे ब्रह्मा बाप की बेहद की वैराग्य वृति की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है...

 

 _ ➳  बाबा के हर कर्म को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूं... कैसे ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन ईश्वरीय यज्ञ में समर्पित कर दिया... *तन के लिए मुख से सदा यही बोल निकला कि मेरा शरीर नही है, शिव बाबा का रथ है*... मन में भी सिवाए शिव बाबा के दूसरा कोई नही था... धन के लिए भी बाबा के मन में कभी यह संकल्प नही आया कि यज्ञ में मेरा धन लग रहा है... *मुख से सदा यही निकला कि शिव बाबा का भंडारा है, भोलेनाथ का भंडारा है*... अपना सारा धन कन्याओं, माताओं को विल कर ईश्वरीय सेवा में लगा दिया, अपने प्रति एक चीज भी यूज़ नही की... समय, संकल्प, श्वांसों को भी बेहद के वैरागी बन कर सफल किया... किसी भी चीज में कोई ममत्व, कोई लगाव नही रखा... सब कुछ होते हुए भी हर चीज से उपराम रहे...

 

 _ ➳  बाबा के हर कर्म में उनकी वैराग्य वृत्ति की छाप का मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा है... *उनके हर कर्म को देख कर मैं मन ही मन दृढ़ संकल्प करती हूं कि अब बस मुझे ब्रह्मा बाप समान बेहद का वैरागी बनना है*... इस संकल्प को दृढ़ता से मन में धारण करके जैसे ही मैं बाबा की ओर देखती हूँ... बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख कर मुझे "ब्रह्मा बाप समान बेहद के वैरागी भव" का वरदान देकर मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा देते हैं... *बाबा से वरदान ले कर, विजय का तिलक लगाए मैं फरिश्ता अब अपने ब्राह्मण स्वरूप में लौट आता हूँ*...

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप समान बनने का लक्ष्य मन में लिए, अपने ब्राह्मण जीवन में अब मैं ब्रह्मा बाप के हर कर्म को फॉलो कर रही हूँ... *मेरा यह ब्राह्मण जीवन केवल ईश्वरीय सेवा अर्थ मुझे मिला है, इस बात को स्मृति में रख मैं अपना तन- मन - धन ईश्वरीय सेवा में सफल कर रही हूं*... चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते मन में केवल एक शिव बाबा की याद है...

 

 _ ➳  देह, देह की दुनिया, देह के सम्बन्धो, पदार्थो में अब मेरा कोई ममत्व नही है... सर्व सम्बन्धो का सुख शिव बाबा से लेते हुए मैं जैसे सबसे उपराम हो गई हूं... *ब्रह्मा बाप समान देह और देह के सम्बन्धो के विस्तार को समेट कर सबको आत्मिक स्वरूप से देखने के अभ्यास ने मुझे मरजीवा बना दिया है*... इस देह में रहते स्वयं को मेहमान समझ, सर्व सम्बन्धो से मैं नष्टोमोहा हो गई हूं...

 

 _ ➳  मन में अब केवल यही अनहद नाद गूंजता रहता है "दिल का अब संकल्प यही है, बाबा तुमसा बनना ही है..." और *इस संकल्प को पूरा कर, ब्रह्मा बाप समान सम्पूर्ण बनने के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण कर, पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट लेना ही अब मेरे जीवन का लक्ष्य है*...

 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━