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❍ 18 / 09 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"हम ईश्वरीय संतान हैं" - सदा यह स्मृति रखी ?*
➢➢ *अन्दर में अपनी जांच की कि हमसे कोई विकर्म तो नहीं होता है ?*
➢➢ *"एक बाप दूसरा न कोई" - इस स्मृति से बंधनमुक्त रहे ?*
➢➢ *व्यर्थ संकल्प रुपी एक्स्ट्रा भोजन तो नहीं किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं, उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा..... क्या होगा..., इस क्वेश्चन को छोड़ दो, अभी विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ।* विदेही बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं होली हँस हूँ"*
〰✧ सभी अपने को सदा होली हंस अनुभव करते हो? *होली हंस का अर्थ है संकल्प, बोल और कर्म जो व्यर्थ होता है उसको समर्थ में बदलना। क्योंकि व्यर्थ जैसे पत्थर होता है, पत्थर की वैल्यु नहीं, रत्न की वैल्यु होती है। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होली हंस बनना।* तो व्यर्थ आता है? होली हंस फौरन परख लेता है कि ये काम की चीज नहीं है, ये काम की है। तो आप होली हंस हो ना। तो व्यर्थ समाप्त हुआ?
〰✧ *क्योंकि अभी नॉलेजफुल बने हो कि अगर अभी संकल्प, बोल या कर्म व्यर्थ गंवाते हैं तो सारे कल्प के लिये अपने जमा के खाते में कमी हो जाती है। जानते हो ना, नोलेजफुल हो? तो जानते हुए फिर व्यर्थ क्यों करते हो?* चाहते नहीं हैं लेकिन हो जाता है-ऐसे कहेंगे? जो समझते हैं अभी भी हो सकता है वो हाथ उठाओ। आप हो कौन? (राजयोगी) राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना, तो मन को कन्ट्रोल नहीं कर सकते! किंग में तो रुलिंग पॉवर होती है ना! तो आप में रुलिंग पॉवर नहीं है? अमृतवेले और फिर सारे दिन में बीच-बीच में अपना आक्यूपेशन याद करो-मैं कौन हूँ?
〰✧ क्योंकि काम करते-करते यह स्मृति मर्ज हो जाती है कि मैं राजयोगी हूँ। इसलिये इमर्ज करो। ये नियम बनाओ। ऐसे नहीं समझो कि हम तो हैं ही राजयोगी। लेकिन राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। नहीं तो चलते-चलते कर्म में बिजी होने के कारण योग भूल जाता है, सिर्फ कर्म ही रह जाता है। लेकिन आप कर्मयोगी कम्बाइन्ड हो। *योगी सदा ही रुलिंग पॉवर, कन्ट्रोलिंग पॉवर में रहें। फिर राजयोगी डबल पॉवर वाले कभी भी व्यर्थ सोच नहीं सकते। तो अभी कभी नहीं कहना, सोचना भी नहीं कि राजयोगी वेस्ट कर सकते हैं। तो ये कौन-सा ग्रुप है? बेस्ट ग्रुप।* बापदादा को भी बेस्ट ग्रुप अति प्यारा है क्यों? 63 जन्म बहुत वेस्ट किया ना, अभी यह छोटा-सा जन्म बेस्ट ही बेस्ट।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी शान्ति की शक्ति के अनुभवी बन गये हो ना! शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को भी परिवर्तन करती और दूसरों को भी परिवर्तन करती है। याद के बल से विश्व को परिवर्तन करते हो। याद क्या है? शान्ति की शक्ति है ना! *इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी।* इतनी शान्ति की शक्ति अपने में जमा की है?
〰✧ व्यक्तियों को तो बदलना है ही लेकिन साथ में *प्रकृति को भी बदलना है।* प्रकृति को मुख का कोर्स तो नहीं करायेंगे ना! व्यक्तियों को तो कोर्स करा देते हो लेकिन प्रकृति को कैसे बदलेंगे? वाणी से वा शान्ति की शक्ति से? योगबल से बदलेंगे ना तो योग में जब बैठते हो तो क्या अनुभव करते हो?
〰✧ शान्ति का संकल्प भी जब शान्त हो जाते हैं, *एक ही संकल्प - ‘बाप और आप’, इसी को ही योग कहते हैं।* अगर और भी संकल्प चलते रहेंगे तो उसकी योग नहीं कहेंगे, ज्ञान का मनन कहेंगे। तो *जब पॉवरफुल योग में बैठते हो तो संकल्प भी शान्त हो जाते हैं,* सिवाए एक बाप और आप। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जाते हैं - ऐसे अनुभव है ना?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ आपकी ओरीजिनल स्टेज तो निराकारी है ना। निराकार आत्मा ने इस शरीर में प्रवेश किया है। शरीर ने आत्मा में प्रवेश नहीं किया, आत्मा ने शरीर में प्रवेश किया तो अनादि ओरीजिनल स्वरूप तो निराकारी है ना कि शरीरधारी है? शरीर का आधार लिया, लेकिन लिया किसने? *आप आत्मा ने, निराकार ने साकार शरीर का आधार लिया, तो ओरीजिनल क्या हुआ आत्मा या शरीर? आत्मा। यह पक्का है? तो ओरीजिनल स्थिति में स्थित होना सहज या आधार लेने वाली स्थिति में स्थित होना सहज?*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विश्व में शांति स्थापन करने के निमित्त बनना"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा एकांत में बैठ चिंतन करती हुई स्व की गहराइयों में उतरती जाती हूँ... मैं ज्योतिबिन्दु स्वरूप आत्मा भृकुटि के सिंहासन पर चमकती हुई मणि हूँ... इस देह में अवतरित होकर अपना पार्ट बजाने वाली स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ... *मैं आत्मा और गहरे उतरती जाती हूँ... अंतर्मुखी होकर गहरी शांति का अनुभव करती हुई शांति के सागर प्यारे बाबा के पास पहुंच जाती हूँ...*
❉ *शांति के सागर मेरे प्यारे बाबा शांति की किरणों से सराबोर करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... स्वयं को देह समझ शांति के लिए बहुत बाहर भटक चुके हो... अब अपने सच्चे वजूद के नशे में गहरे डूब जाओ... और भीतर मौजूद शांति का गहरा आनंद लो... *शांति का खजाना भीतर सदा साथ है, स्वधर्म है, बस परधर्म छोड़ अपने स्वधर्म में खो जाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा गले मे शांति का हार पहन स्वधर्म में टिकती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे पाये ज्ञान के तीसरे नेत्र से, स्वयं के खजानो को देखने वाली नजर को पाकर निहाल हो गयी हूँ... *प्यारे बाबा मै शांति की बून्द भर को भी प्यासी थी... आपने तो मेरे भीतर समन्दर का पता दे दिया और मुझे सदा के लिए तृप्त कर दिया है..."*
❉ *मीठे बाबा दुख, अशांति की दुनिया से निकाल शांति के समंदर में डुबोते हुए कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... जब घर से निकले थे कितने गुणवान और शक्तियो से श्रंगारित थे... आत्मिक भान से परे, देह होने के अहसास ने सारे प्राप्त खजानो से वंचित कर दिया... *अब अपने आत्मिक स्वरूप की स्मृतियों में हर साँस को भिगो दो... और असीम शांति की तरंगो से स्वयं और पूरे विश्व को तरंगित कर दो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर अतीन्द्रिय सुख, शांति की अनुभूति में डूबकर कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मै आत्मा शांति के सागर से मिलकर गुणो के सौंदर्य से खिल उठी हूँ... प्यारे बाबा आपने मुझे मेरी खोयी खुशियां लौटाकर, मुझे मालामाल कर दिया है...* हर भटकन से मुक्त कराकर गुणो के वैभव से पुनः सजा दिया है... और अथाह शांति के स्त्रोत को भीतर जगा दिया है..."
❉ *प्यारे बाबा अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख सर्व ख़ज़ानों के वरदानों की बरसात करते हुए कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... अपने दमकते हुए मणि स्वरूप की खुमारी में डूब जाओ... और सुख शांति से लबालब हो जाओ... *ईश्वर पिता से पाये गुणो और शक्तियो के खजानो का जीवन में भरपूर आनन्द लूटते हुए... सतयुगी दुनिया के सुखो को बाँहों में भरो... सच्ची शांति जो भीतर निहित है उससे जीवन को सजा लो..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा शांति कुंड बन शांति की किरणों से सारे विश्व को चमकाते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आत्मिक गुणो से सजधज कर अप्रतिम सौंदर्य से निखर उठी हूँ... *मीठे बाबा आपकी यादो में पवित्र बन, सुख और शांति के अखूट खजानो को पा रही हूँ... आपकी प्यारी यादो में मैंने अपना खोया रंगरूप पुनः पा लिया है...* सारे खजाने मेरी बाँहों में मुस्करा उठे है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सदा इसी स्मृति में रहना है कि हम ईश्वरीय सन्तान है*"
➳ _ ➳ अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा मन ही मन विचार करती हूँ कि कितनी पदमापदम सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा कि *जिस ब्राह्मण सम्प्रदाय को भक्ति में सबसे ऊंच माना जाता है वो सच्ची ब्राह्मण आत्मा मैं हूँ जिसे स्वयं परम पिता परमात्मा ने आ कर ब्रह्मा मुख से अडॉप्ट करके ईश्वरीय सम्प्रदाय का बनाया है*। मैं वो कोटो में कोई और कोई में भी कोई सौभाग्यशाली आत्मा हूँ जिसे स्वयं भगवान ने चुना है।
➳ _ ➳ बड़े - बड़े महा मण्डलेशवर, साधू सन्यासी जिस भगवान की महिमा के केवल गीत गाते हैं लेकिन उसे जानते तक नही, वो भगवान रोज मेरे सम्मुख आकर मेरी महिमा के गीत गाता है। *रोज मुझे स्मृति दिलाता है कि "मैं महान आत्मा हूँ" "मैं विशेष आत्मा हूँ" "मैं इस दुनिया की पूर्वज आत्मा हूँ"। *"वाह मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य" जो मुझे घर बैठे भगवान मिल गए और मेरे जीवन मे आकर मुझे नवजीवन दे दिया*। उनका निस्वार्थ असीम प्यार पा कर मेरा जीवन धन्य - धन्य हो गया। इस जीवन में अब कुछ भी पाने की इच्छा शेष नही रही। जो मैंने पाना था वो अपने ईश्वर, बाप से मैंने सब कुछ पा लिया है।
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में खोई हुई मैं अपने भाग्य को बदलने वाले भाग्यविधाता बाप को जैसे ही याद करती हूँ वैसे ही मेरे भाग्यविधाता बाप मेरे सामने उपस्थित हो जाते हैं। *अपने लाइट माइट स्वरूप में भगवान जैसे ही मुझ ब्राह्मण आत्मा पर दृष्टि डालते हैं उनकी पावन दृष्टि मुझे भी लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर देती है और डबल लाइट फ़रिश्ता बन मैं चल पड़ती हूँ बापदादा के साथ इस साकारी लोक को छोड़ सूक्ष्म लोक में*। बापदादा के सामने मैं फ़रिश्ता बैठ जाता हूँ।
➳ _ ➳ बापदादा की मीठी दृष्टि और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं कोभरपूर करके मैं अपने जगमग करते ज्योतिर्मय स्वरूप को धारण कर अपने परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ। *सेकण्ड में मैं आत्मा पहुँच जाती हूँ अपने घर मुक्तिधाम में। यहां मैं परम मुक्ति का अनुभव कर रही हूँ। मैं आत्मा शांति धाम में शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख गहन शान्ति का अनुभव कर रही हूँ*। मेरे शिव पिता परमात्मा से सतरंगी किरणे निकल कर मुझ आत्मा पर पड़ रही हैं और मैं स्वयं को सातों गुणों से सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। शिव बाबा से अनन्त शक्तियाँ निकल कर मुझ में समाती जा रही हैं। कितना अतीन्द्रिय सुख समाया हुआ है इस अवस्था में।
➳ _ ➳ बीज रूप अवस्था की गहन अनुभूति करने के बाद अब मैं आत्मा वापिस लौट आती हूँ अपने साकारी ब्राह्मण तन में और भृकुटि पर विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित मैं आत्मा अब सदा इसी नशे में रहती हूँ कि मैं सबसे उंच चोटी की हूँ, ईश्वरीय सम्प्रदाय की हूँ*। आज दिन तक मेरा यादगार भक्ति में ब्राह्मणों को दिये जाने वाले सम्मान के रूप में प्रख्यात है। *आज भी भक्ति में ब्राह्मणों का इतना आदर और सम्मान किया जाता है कि उनकी उपस्थिति के बिना कोई भी कार्य सम्पन्न नही माना जाता और वो सच्ची ब्राह्मण आत्मा वो कुख वंशवाली ब्राह्मण नही बल्कि ब्रह्मा मुख वंशावली, ईश्वरीय पालना में पलने वाली, मैं सौभाग्यशाली आत्मा हूँ"।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं "एक बाप दूसरा न कोई" स्मृति स्वरूप आत्मा हूँ।*
✺ *मैं बंधनमुक्त्त आत्मा हूँ।*
✺ *मैं योगयुक्त आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा व्यर्थ संकल्प रूपी एक्स्ट्रा भोजन करने से सदा मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा मोटेपन की बीमारियों से सदा बच जाती हूँ ।*
✺ *मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय देखो ही नहीं। देखते हैं ना-इसने यह किया, इसने यह कहा -तो सफलता दूर हो जाती है। देखो ही नहीं। बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। हाँ जी और बहुत अच्छा, यह दो शब्द हर कार्य में यूज करो। स्वभाव वैरायटी हैं और रहने भी हैं। *स्वभाव को देखा तो सेवा खत्म। बाबा करा रहा है, बाबा को देखो, बाबा का काम है। इसकी ड्यूटी नहीं है, बाबा की है। तो बाप में तो स्वभाव नहीं है ना। तो स्वभाव देखने नहीं आयेगा।*
✺ *ड्रिल :- "दूसरों के स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय नहीं देखना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा आज अपने बाबा के सेंटर पर बाबा की मुरली हाथ में पकड़े... अपने सामने बैठी हुई कुछ आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारंभ करती हूं... और उससे पहले मैं देखती हूं... की इन सामने बैठी आत्माओं में सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार बिल्कुल अलग है... और इन आत्माओं के सामने मैं अपने आप को मुरली सुनाने की स्टेज पर अनुभव नहीं कर पाती हूँ...* मैं देखती हूं कि कुछ आत्माएं ऐसी भी है... जो अपने पुराने स्वभाव संस्कारों के कारण हमेशा मुझे और अन्य आत्माओं को दुखी करने का प्रयास करती रहती हैं... और कुछ आत्माएं ऐसी हैं जो काफी समय से बाबा के बच्चे के रूप में पालना ले रही हैं और मुझ आत्मा को उन्होंने अपने ज्ञान से परिपूर्ण कर आज इस स्थिति पर विराजमान किया है...
➳ _ ➳ परंतु मेरी कुछ छोटी-छोटी गलतियों के कारण वह ज्ञानी आत्माएं मुझे क्रोध वश होकर मेरा कड़े शब्दों में अपमान कर देती है... जिस को मैं भुला नहीं पाती हूँ... और कुछ आत्माएं ऐसी भी थी जो हमेशा अपने आप को श्रीमत की लकीर के अंदर अनुभव करते हुए पुरुषार्थ कर रही थी... और इन सभी आत्माओं के स्वभाव संस्कार देखते-देखते मैं आत्मा बाबा की मुरली प्रारंभ नहीं कर पाती... तभी मेरा अंतर्मन मुझे श्रीमत का ज्ञान आभास कराता है... और मैं अपने आपको बाबा से जोड़ देती हूं... और महसूस करती हूं कि *मैं आत्मा इस देह में विराजमान हूँ और शिव बाबा मुझे निमित्त बना कर इन आत्माओं को मुरली सुना रहे हैं...*
➳ _ ➳ और जैसे ही मैं अपने आप को निमित्त आत्मा अनुभव करती हूँ... तो मुझे आभास होता है कि *सामने बैठी हुई आत्माएं सिर्फ और सिर्फ मेरे बाबा के रूहानी बच्चे हैं... मुझे सभी आत्माएं अपने सामने फ़रिश्ते की भांति नजर आ रही है... और मुझे किसी भी आत्मा के स्वभाव संस्कार का बिल्कुल आभास नहीं होता है...* और मैं आत्मा अपनी इन कर्म इंद्रियों द्वारा सामने बैठी हुई आत्माओं को मुरली सुनाना प्रारम्भ कर देती हूं... मुरली सुनाते सुनाते मैं अपने आप में एक अद्भुत परिवर्तन महसूस करती हूं... मुझे अनुभव होता है कि मैं आत्मा अब बिल्कुल हल्की और फरिश्ते की भांति इस उड़ती कला स्वरूप बन गई हूं...
➳ _ ➳ और अब मैं आत्मा बिल्कुल रमणीकता से बाबा की मुरली सुना रही हूं... और जैसे ही कुछ देर बाद मुरली समाप्त होती है... तो हम सभी आत्माएं एक संकल्प में बाबा को याद करते हैं... और अपनी बेहद की सेवा में जुट जाते हैं... जैसे-जैसे सभी आत्माएं मेरे साथ सेवा करते हैं तो मैं अनुभव करती हूं... कि *ये बहुत अच्छी आत्माएं हैं... ये देवकुल की महान आत्माएं हैं... यह मेरी ईश्वरीय घराने की... मैं और ये सब आत्माएं सुखधाम में एक साथ मिलजुल कर रहेंगी...* तो अब वह सभी आत्माएं मुझे बस अपने समान बाबा के बच्चे ही नजर आते हैं... और उनके प्रति मेरा रूहानी स्नेह बढ़ता जाता है.. अब सेवा के समय मुझे हमेशा अब दूसरी आत्माएं निमित्त सेवाधारी अनुभव हो रही है... और अपने आप को भी मैं निमित भावना से सजाकर सेवा में अग्रणी होती जा रही हूं...
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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