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 14 / 09 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *सहनशीलता के गुण को धारण कर माया के विघनो में पास हुए ?*

 

➢➢ *विशाल बुधी बन इस बने बनाए ड्रामा को अच्छी रीति समझा ?*

 

➢➢ *बाप समान वरदानी बन हर एक के दिल को आराम दिया ?*

 

➢➢ *सदा बेफिक्र बादशाह बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है, बच्चों को विदेही बनाने के लिए। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते, विदेही आत्मा-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। *यह देह करनहार है, आप देही करावनहार हो, इसी स्थिति को 'विदेही स्थिति' कहते हैं। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है। बाप को फॉलो करने की स्थिति है सदा अशरीरी भव, विदेही भव, निराकारी भव!*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं होली हँस हूँ"*

 

  सदा होली हंस बन गये - ऐसा अनुभव करते हो? होली हंस हो ना! तो हंस क्या करता है? हंस का काम क्या होता है? (मोती चुगना) और दूसरा? दूध और पानी को अलग करना। *एक है ज्ञान रत्न चुगना अर्थात् धारण करना और दूसरी विशेषता है निर्णय शक्ति की विशेषता। दूध और पानी को अलग करना अर्थात् निर्णय शक्ति की विशेषता। जिसमें निर्णय शक्ति होगी वो कभी भी दूध की बजाय पानी नहीं धारण करेगा। दूध की वैल्यु पानी से ज्यादा है। तो दूध और पानी का अर्थ है व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करना।* व्यर्थ को पानी समान कहते हैं और समर्थ को दूध समान कहते हैं। तो ऐसे होली हंस हो? निर्णय शक्ति अच्छी है? कि कभी पानी को दूध समझ लेते, कभी दूध को पानी समझ लेते? व्यर्थ को अच्छा समझ लें और समर्थ में बोर हो जायें। नहीं।

 

  तो होली हंस अर्थात् सदा स्वच्छ। हंस सदा स्वच्छ दिखाते हैं। स्वच्छता अर्थात् पवित्रता। तो अभी स्वच्छ बन गये ना। मैलापन निकल गया या अभी भी थोड़ा-थोड़ा है? थोड़ा-थोड़ा रह तो नहीं गया? कभी मैले के संग का रंग तो नहीं लग जाता? कभी-कभी मैले का असर होता है? तो स्वच्छता श्रेष्ठ है ना। मैला भी रखो और स्वच्छ भी रखो तो क्या पसन्द करेंगे? स्वच्छ पसन्द करेंगे या मैला भी पसन्द करेंगे? *तो सदा मन-बुद्धि स्वच्छ अर्थात् पवित्र। व्यर्थ की अपवित्रता भी नहीं। अगर व्यर्थ भी है तो सम्पूर्ण स्वच्छ नहीं कहेगे। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होलीहंस बनना।*

 

  *हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहें, मनन चलता रहे। ज्ञान चलेगा तो व्यर्थ नहीं चलेगा। इसको कहा जाता है रत्न चुगना। व्यर्थ है पत्थर। कभी भी अगर व्यर्थ आता है तो दु:ख की लहर आती है ना। परेशान तो होते हो ना कि ये क्यों आया? तो पत्थर दु:ख देता है और रत्न खुशी देता है।* अगर किसी के हाथ में रत्न आ जाये तो परेशान होगा या खुश होगा? खुश होगा ना। अगर कोई पत्थर फ़ेक दे तो दु:ख होगा। तो बुद्धि द्वारा भी पत्थर ग्रहण नहीं करना। सदा ज्ञान रत्न ग्रहण करना। एक-एक रत्न की अनगिनत वैल्यु है! आपके पास कितने रत्न हैं? अनगिनत हैं ना! रत्नों से भरपूर हैं, खाली तो नहीं हैं? कभी भी बुद्धि को खाली नहीं रखो। कोई न कोई होम वर्क अपने आपको देते रहो।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अब तो घर जाना है? (कब जाना है?) *समय कभी भी बता के नहीं आयेगा, अचानक ही आयेगा।* जब समझेंगे समीप है तो नहीं आयेगा। जब समझने से थोडे अलबेले होंगे तो अचानक आयेगा।

 

✧  आने की निशानी अलबेलेपन वाले अलबेलेपन में आयेंगे, नहीं तो नम्बर कैसे बनेंगे? फिर तो सब कहें - हम भी अष्ट हैं, हम भी पास हैं। लेकिन थोडा बहुत अचानक होने से ही नम्बर होंगे। बाकी *जो महारथी हैं उन्हों को टचिंग आयेगी।*

 

✧  लेकिन बाप नहीं बतायेगा। *टचिंग ऐसे ही आयेगी जैसे बाप ने सुनाया।* लेकिन बाप कभी एनाउन्स नहीं करेंगे। एक सेकण्ड पहले भी नहीं कहेंगे कि एक सेकण्ड बाद होना है। यह भी नहीं कहेंगे। नम्बरवार बनने हैं, इसलिए यह हिसाब रखा हुआ है। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ और कुछ भी याद न हो, हर समय एक ही बात याद हो 'मेरा बाबा'। *क्योंकि मन व बुद्धि कहाँ जाती है? जहाँ मेरा-पन होता है। अगर शरीर-भान में भी आते हो तो क्यों आते हो? क्योंकि मेरा-पन है। अगर 'मेरा बाबा' हो जाता तो स्वत: ही मेरे तरफ बुद्धि जायेगी। सहज साधन है - 'मेरा बाबा'।* मेरा-पन न चाहते हुए भी याद आता है। जैसे-चाहते नहीं हो कि शरीर याद आवे, लेकिन क्यों याद आता है? मेरा-पन खीचता है ना, न चाहते भी खींचता है।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्ची-सच्ची पाठशाला में बैठना"*

 

_ ➳  *ये रूहानी पाठशाला  जहाँ देवत्व जन्म ले रहा है*... रेखाओं के त्रिकोण नही, हस्त रेखाओं में जहाँ सतयुगी भाग्य का वर्सा लिखा जा रहा है... *सतयुगी दुनिया की नींव ये रूहानी पाठ- शाला... ज्ञानसागर लुटा रहा जहाँ, भर भर ज्ञानमधु का प्याला*... *ज्ञान सागर की लहरों मे डूबती उतरती मैं आत्मा पढाने वाले की मुरीद हुई*... *निहार रही हूँ एकटक उसे*... *जैसे चातक पक्षी एकटक निहारता है बादलों की ओर*... परमधाम से आकर सामने बैठा है मेरा सतगुरू और मैं रूहानी शागिर्द उसकी, और उनका एक एक महावाक्य अन्तर की गहराईयों में उतारता हुआ...

 

  *रूहानी नयनों से रूह को स्नेह परम शान्ति और रूहानी स्नेह का अमृत पिलाते मेरे सच्चे सच्चे रूहानी सदगुरू बोलें:-* "मीठी बच्ची... *मनुष्य से देवता बनाने वाले इस ज्ञानामृत की सच्ची सच्ची हकदार, कोटो में कोई, कोई में भी कोई, आप बच्ची संगम पर प्रत्यक्ष हुए इस गुप्त ज्ञान अमृत का महत्व समझती हो ना?* इस वंडर फुल पाठशाला में पढने का अपना परम लक्ष्य याद है आप बच्ची को?... *क्या आपको मालूम है मेरे परमधाम को छोडकर इस पतित दुनिया में आने का लक्ष्य?...*"

 

_ ➳  *सच्चे सच्चे सदगुरू की नजरों से निहाल, नयनों में उनकी सम्पूर्ण छवि को उतारती हुई मैं आत्मा बोली:-* "मीठा मीठा कहकर मुझे मीठे बनाने वाले प्यारे सदगुरू...  *आपने इसी रूहानी पाठशाला में, मुझे खुद की पहचान दिलाई है... मेरे भाग्य की लेखनी आपने मेरे ही हाथों में पकडा दी, आपके इस पतित दुनिया में आने का वो पावन सा मकसद मेरी ही खुशियों के इर्द गिर्द ही तो घूमता है... निज रूप को भूली आत्माए विषय वासनाओं के सागर में गोते लगाती हुई अपने स्वरूप को  पहचानने के लिए तडप रही थी... और फिर... आप आए, साथ में बहिश्त भी हथेली पर ले आए*... आपने नर से नारायण बनने का दिव्य लक्ष्य दिया और उन दिव्य लक्षणों से आप हर रोज मुझ आत्मा को संवार रहे है..."

 

 ❉  *कदम कदम पर मेरे मददगार, मुझे स्वयं ही आगे बढा शाबाशियों से नवाज़ने वाले मेरे रूहानी सतगुरू बोले:-* "स्वांसो स्वांस मुझे और स्वर्ग को याद कर सेवा करने वाली मेरी मददगार बच्ची... आप इस वन्डर फुल पाठशाला की खूबियाँ सबको बताओं, *आप रूहानी मैसेन्जर बच्ची हर आत्मा को खुद के समान भाग्यशाली बनाओं...* इन गुणों का दिव्य आईना बनकर हर एक को ये गुण धारण कराओं... *अपने चेहरे और चलन से विश्व की आत्माओं को अपने सच्चे सच्चे सदगुरू का चेहरा दिखाओं...*"

 

 ➳ _ ➳  *ज्ञान सूर्य शिव सदगुरू के  शीतल ज्ञान झरनों में सराबोर मैं आत्मा ज्ञान रत्नों की खानियाँ उँडेलने वाले सतगुरू से बोली:-* "स्वदर्शन चक्रधारी बनाने वाले मेरे रूहानी सतगुरू... *ये वंडर पाठशाला अब प्रत्यक्ष हो रही है... ज्ञान सागर से ज्ञान गंगाए निकलकर इस धरती के हर कोने में फैल रही है बाबा*... हर आत्मा बच्ची, ज्ञानगंगा और गऊमुख बनकर आपको प्रत्यक्ष कर रही है, *मैं आत्मा भी अंग अंग में ज्ञान रत्नों को सजाकर आपको प्रत्यक्ष करने निकली हूँ..."*     

 

  ❉  *ज्ञानामृत पिला पतितों को पावन बनाने वाले बापदादा बोले:-* "प्यारी बच्ची... मुँझारें में भटकती आत्माओं को अब सोझंरे में लाओं, *तीर्थ, व्रत, उपवास करती आत्माओं को ज्ञान सागर में डुबकियाँ लगवा पावन बनाने इस पाठशाला तक लाओ... परमधाम से आता है निराकार पढाने अब ये संदेश मनसा सेवा से हर रूह तक पहुँचाओ..."*

 

_ ➳  *विश्व का मालिक बनाने वाले सच्चे सच्चे सौदागर बाप से मैं 21 जन्मों के लिए अखुट खजानों की मालिक आत्मा बोली:-* "मीठे बाबा... मेरे इस जीवन को आपने पारसमणि बनाया है... अब वो देखो! वो सैकडों आत्माए जो मुझ पारसमणि आत्मा के सकंल्पों को छूते ही स्वयं अपना जीवन हीरे तुल्य बना रही है... *आपकी ये बच्ची चलती फिरती रूहानी पाठशाला बन रही है बाबा ! और दूसरों को भी आप समान बना रही है...* और बापदादा मेरे सर पर वरदानों की बारिश करते मुझे सारी सूक्ष्म शक्तियाँ विल कर रहे है..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सब कुछ सहन करते भी बाप की याद में रहना है*"

 

 _ ➳  अपने संगमयुगी ब्राह्मण जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों के बारे में चिंतन करते ही मन खुशी से झूम उठता है और *मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य के गीत गाती मैं अपने जीवन में आने वाली उन अनेक परिस्थितियों के बारे में विचार करती हूँ जिन्हें अपने प्यारे बाबा की मदद से मैंने सहज ही पार कर लिया*। बस मेरे को जब तेरे में परिवर्तन किया तो बाबा ने कैसे हर परिस्थिति रूपी तूफान को तोहफा बना दिया!

 

 _ ➳  यह विचार करते ही मन से अपने भगवान साथी के लिए कोटि - कोटि धन्यवाद निकलता है और मन ही मन अपने भगवान बाप से मैं प्रोमिस करती हूँ कि *मेरे को तेरे में परिवर्तन कर, जीवन मे आने वाले हर हिसाब - किताब को चाहे वो शरीर की बीमारी के कर्मभोग के रूप में हो या लौकिक सम्बन्धों की तरफ से हो लेकिन सदा रूहानी नशे में रह खुशी - खुशी सहन करते हुए मैं साक्षी दृष्टा बन हर हिसाब - किताब को सहज भाव से चुकतू करूँगी*। अपने प्यारे बाबा से यह प्रोमिस करते ही मैं महसूस करती हूँ जैसे मेरे सारे बोझ बाबा ने अपने ऊपर ले लिए हैं और मैं बिल्कुल हल्की हो गई हूँ। यह हल्कापन मुझे मेरे वास्तविक स्वरूप में स्थित होने में सहज ही मदद कर रहा है।

 

 _ ➳  अपने मन को हर संकल्प, विकल्प से मुक्त कर अब मैं आत्मिक स्मृति में स्थित हो चुकी हूँ और अपने आप को देह से बिल्कुल न्यारी एक प्वाइंट ऑफ लाइट के रूप में भृकुटि के अकालतख्त पर चमकता हुआ देख रही हूँ। *अपने इस स्वरूप में मुझे मेरे मस्तक से शक्तियों की किरणों के प्रकम्पन चारों ओर फैलते हुए स्पष्ट अनुभव हो रहें हैं जो धीरे - धीरे तीव्र होते हुए चारों ओर वायुमण्डल में फैल कर मेरे आस पास के वातावरण को दिव्य और अलौकिक बना रहे हैं*। मेरे चारों और शक्तियों का एक सुन्दर औरा निर्मित हो रहा है जिसके अंदर मैं आत्मा असीम सुख, शांति का अनुभव करके आनन्दित हो रही हूँ।

 

 _ ➳  अपने अंदर समाई शक्तियों और गुणों का अनुभव करते - करते मैं आत्मा अब अपने चारों और निर्मित प्रकाश के कार्ब को धारण कर, भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर आकाश की और जा रही हूँ। *अपनी सर्वशक्तियों को चारों और बिखेरती हुई मैं ज्योति बिंदु आत्मा आकाश को पार कर, सूक्ष्म वतन से होती हुई पहुँच गई अपने घर परमधाम*। देख रही हूँ अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने निराकार शिव बाबा के सम्मुख जो अनन्त शक्तियों के पुंज के रूप में मेरे सामने विराजमान है। अपने शिव पिता के साथ अपने इस परमधाम घर मे मैं देख रही हूँ चारों और चमकते चैतन्य सितारे अपने आत्मा भाइयों को। 

 

 _ ➳  अपना सम्पूर्ण ध्यान अपने शिव पिता पर एकाग्र कर, मन बुद्धि रूपी नेत्रों से उनसे निकल रहे प्रकाश की एक - एक किरण को निहारते हए मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। *धीरे - धीरे उन्हें निहारते हुए मैं आत्मा उनके समीप जाकर उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जाकर बैठ जाती हूँ। बाबा की सर्वशक्तियाँ अब अनन्त किरणों के रूप में मुझ आत्मा के ऊपर पड़ रही हैं और मुझे गहन शीतलता की अनुभूति करवा रही हैं*। एक दिव्य अलौकिक आनन्द और अथाह सुख का मैं अनुभव कर रही हूँ। अतीन्द्रिय सुख के झूले में मैं झूल रही हूँ। बाबा की सर्वशक्तियाँ मुझमे निरन्तर प्रवाहित होकर मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं।

 

 _ ➳  असीम ऊर्जावान बन कर अब मैं  आत्मा वापिस साकारी दुनिया में लौट रही हूँ। अपने साकारी तन में अब मैं विराजमान हूँ। अपने शिव पिता द्वारा अपने अंदर जमा किया हुआ बल मेरे अंदर सहनशक्ति विकसित कर रहा है। *सहनशक्ति से मास्टर सर्वशक्तिवान बन जीवन मे आने वाले हर हिसाब - किताब को मैं हँसते - हँसते चुकतू कर रही हूँ*। तन - मन - धन और जन सब कुछ बाबा को सौंप, बाबा की अमानत समझ, साक्षी दृष्टा हो, बेहद की शुभभावना हर आत्मा के प्रति रखते हुए, निमित बनसेवा करते हुए संगमयुग की मौजों का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ। *मेरे को तेरे में बदल, रूहानी नशे में रह खुशी - खुशी सब सहन करते हुए अपने ब्राह्मण जीवन का मैं भरपूर आनन्द ले रही हूँ*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं बाप समान वरदानी आत्मा हूँ।*

   *मैं हर एक के दिल को आराम देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं मास्टर दिलाराम आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मा हूँ  ।*

   *मैं सदा बेफिक्र बादशाह हूँ  ।*

   *मैं आत्मा डबल लाइट हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुशी की जीवन।* कभी-कभी बापदादा देखते हैंकोई-कोई के चेहरे जो होते हैं ना वह थोड़ा सा.... क्या होता हैअच्छी तरह से जानते हैंतभी हंसते हैं। तो बापदादा को ऐसा चेहरा देख रहम भी आता और थोड़ा सा आश्चर्य भी लगता। मेरे बच्चे और उदास! हो सकता है क्यानहीं ना! *उदास अर्थात् माया के दास। लेकिन आप तो मास्टर मायापति हो। माया आपके आगे क्या हैचींटी भी नहीं हैमरी हुई चींटी। दूर से लगता है जिंदा है लेकिन होती मरी हुई है।* सिर्फ दूर से परखने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप की नालेज विस्तार से जानते हो नाऐसे माया के भी बहुरूपी रूप की पहचाननालेज अच्छी तरह से धारण कर लो। वह सिर्फ डराती हैजैसे छोटे बच्चे होते हैं ना तो उनको माँ बाप निर्भय बनाने के लिए डराते हैं। कुछ करेंगे नहींजानबूझकर डराने के लिए करते हैं।

 

 _ ➳  ऐसे माया भी अपना बनाने के लिए बहुरूप धारण करती है। जब बहुरूप धारण करती है तो आप भी बहुरूपी बन उसको परख लो। परख नहीं सकते हैं नातो क्या खेल करते होयुद्ध करने शुरू कर देते हो हायमाया आ गई! और युद्ध करने से बुद्धि, मन थक जाता है। फिर थकावट से क्या कहते होमाया बड़ी प्रबल हैमाया बड़ी तेज है। कुछ भी नहीं है। *आपकी कमजोरी भिन्न-भिन्न माया के रूप बन जाती है। तो बापदादा सदा हर एक बच्चे को खुशनसीब के नशे में, खुशनुमा चेहरे में और खुशी की खुराक से तन्दरूस्त और सदा खुशी के खजानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं।*       

 

✺   *ड्रिल :-  "माया को मरी हुई चींटी समझ सदा खुशनसीब के नशे में रहने का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा एकांत में शांत स्थिति में बैठी हुई... अपनी जीवन यात्रा पर एक नजर दौड़ाती हूँ... मैं देख रही हूँ कि जीवन यात्रा में जो भी खूबसूरत पल आये... भगवान हर पल, हर क्षण मेरे साथ थे... और जीवन के चैलेंजिंग क्षणों में मैं आत्मा... स्वयं को ईश्वर की गोदी में महफूज देख रही हूँ... यह सब देख कर *ईश्वर के प्रति मेरे मन में अगाध स्नेह उमड़ रहा है... ईश्वरीय स्नेह में मेरे नयन भीग रहे हैं...*

 

 _ ➳  प्रभु स्नेह में भीगी हुई मैं आत्मा... अपने प्यारे शिवबाबा को अपने बिल्कुल समीप देख रही हूँ... *उनकी शक्तियों का, प्यार का जल अजस्त्र धारा की तरह मुझ पर बरसता जा रहा है... मैं आत्मा ईश्वरीय स्नेह में डूबती जा रही हूँ*... मैं परमात्म प्यार से सराबोर होती जा रही हूँ... मैं स्वयं को ईश्वरीय रंग में रंगा हुआ देख रही हूँ...  

 

 _ ➳  कितना सुंदर है मेरा यह मरजीवा जन्म... *मेरा यह ब्राह्मण जीवन खुशियों से भरा जीवन है... मैं आत्मा बाबा की शक्तियों और सहयोग से... माया के हर रूप पर विजय प्राप्त करती जा रही हूँ... मैं मास्टर मायापति बन रही हूँ...* माया कैसा भी विकराल रुप धारण करके आवे... लेकिन मुछ आत्मा को हलचल में नहीं ला सकती... क्योंकि सर्वशक्तिमान बाबा मेरे साथ है... उनके साथ से हर क्षण मेरी विजय होती जा रही है... मैं आत्मा मायाजीत बन रही हूँ...

 

 _ ➳  बाबा अपनी सर्व शक्तियों के खजानों से मुझे भरपूर कर रहे हैं... मीठे बाबा ने अपनी समस्त शक्तियां मुझे दे दी हैं... माया तो मरी हुई चींटी के समान निर्जीव बन गई है... *बाबा से मुझ आत्मा में परखने की शक्ति संपूर्ण रूप में समाती जा रही है... मुझ आत्मा को ज्ञान की गुह्य बातें स्पष्ट हो रही हैं... साथ ही माया के विविध रूपों की भी स्पष्ट परख, स्पष्ट पहचान होती जा रही है*... माया तो सिर्फ डराने के लिए आती है, वास्तव में उसमें कोई भी शक्ति नहीं है...

 

 _ ➳  मैं परख शक्ति के द्वारा माया के हर रूप को परख पा रही हूँ... हर कमजोरी से स्वयं को मुक्त अनुभव कर रही हूँ... वह कमजोरी ही माया के विभिन्न रुप धारण कर आती थी और मैं आत्मा उसे युद्ध करने में अपनी शक्तियां गंवा रही थी, मन-बुद्धि इस युद्ध में शिथिल होती जा रही थी... लेकिन अब *हर प्रकार की कमजोरी पर जीत पाकर मैं आत्मा... अपनी खुशनसीब स्थिति में हूँ... अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों के गीत गुनगुना रही हूँ... खुशी की खुराक से मैं आत्मा तंदुरुस्त हो रही हूँ... खुशी के खजानों से भरपूर हो रही हूँ...* अपनी इस खुशकिस्मत अवस्था में खुशनुमा चेहरे और चलन से... सर्व आत्माओं को खुशी का खजाना बांटती जा रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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