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 24 / 10 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *याद में रह सबको बाप की याद दिलाई ?*

 

➢➢ *सच्चा सच्चा आशिक बन एक माशूक पर फ़िदा रहे ?*

 

➢➢ *गृहस्थ व्यवहार और ईश्वरीय व्यवहार में समानता रही ?*

 

➢➢ *कर्मेन्द्रिय जेते , मायाजेते बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अपनी हर कमेन्द्रिय की शक्ति को इशारा करो तो इशारे से ही जैसे चाहो वैसे चला सको। ऐसे कर्मेन्द्रिय जीत बनो तब फिर प्रकृतिजीत बन कर्मातीत स्थिति के आसनधारी सो विश्व राज्य अधिकारी बनेंगे।* हर कर्मेन्द्रिय 'जी हजूर' 'जी हाजिर' करती हुई चले। आप राज्य अधिकारियों का सदा स्वागत अर्थात् सलाम करती रहे तब कर्मातीत बन सकेंगे।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ"*

 

  सदा अपने को सर्व शक्तियों से सम्पन्न मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मायें अनुभव करते हो? *बाप ने सर्वशक्तियों का खजाना वर्से में दे दिया। तो सर्वशक्तियाँ अपना वर्सा अर्थात् खजाना हैं। अपना खजाना साथ रहता है ना। बाप ने दिया बच्चों का हो गया।*

 

  *तो जो चीज अपनी होती है वह स्वत: याद रहती है। वह जो भी चीजें होती हैं, वह विनाशी होती हैं और यह वर्सा वा शक्तियाँ अविनाशी हैं। आज वर्सा मिला, कल समाप्त हो जाए, ऐसा नहीं। आज खजाने हैं, कल कोई जला दे, कोई लूट ले - ऐसा खजाना नहीं है।*

 

  *जितना खर्चो उतना बढ़ने वाला है। जितना ज्ञान का खजाना बांटो उतना ही बढ़ता रहेगा। सर्व साधन भी स्वत: ही प्राप्त होते रहेंगे। तो सदा के लिए वर्से के अधिकारी बन गये - यह खुशी रहती है ना। वर्सा भी कितना श्रेष्ठ है! कोई अप्राप्ति नहीं, सर्व प्राप्तियाँ हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *सारे दिन में भिन-भिन्न स्थितियों का अनुभव करो।* कभी फरिश्ते स्थिति का, तो कभी लाइट हाऊस, माइट हाऊस स्थिति का, कभी प्यार स्वरूप स्थिति अर्थात लवलीन स्थिति के आसन पर बैठ जाओ और अनुभव करते रहो।

 

✧  इतना अनुभवी बन जाओ, *बस संकल्प किया फरिश्ता, सेकण्ड में स्थिति हो जाओ।* ऐसे नहीं, मेहनत करनी पडे। सोचते रहो मैं फरिश्ता हूँ और बार-बार नीचे आ जाओ। ऐसी प्रैक्टिस है?

संकल्प किया और अनुभव हुआ।

 

✧  जैसे स्थूल में जहाँ चाहते हो बैठ जाते हो ना। सोचा और बैठा कि युद्ध करनी पडती है - बैठें या न बैदूँ? तो यह मन-बुद्धि की बैठक भी ऐसी इजी होनी चाहिए। *जब चाहो तब टिक जाओ। इसको कहा जाता है - राजयोगी राजा।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ *बापदादा ने देखा कि मिटाने और समाने की शक्ति कम है* मिटाते भी हैं, उल्टा देखना, सुनना, सोचना, बीता हुआ भी मिटाते हैं लेकिन जैसे आप कहते हो ना कि एक है कान्सेस दूसरा है सब कान्सेस। मिटाते हैं लेकिन मन की प्लेट कहो, स्लेट कहो, कागज कहो, कुछ भी कहो, पूरा नहीं मिटाते। *क्यों नहीं मिटा सकते? कारण है- समाने की शक्ति पावरफुल नहीं है। समय अनुसार समा भी लेते लेकिन फिर समय पर निकल आता। इसलिए जो चार शब्द (शुभचिन्तक, शुभचिन्तन, शुभ भावना, शुभ श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप) बापदादा ने सुनाये, वह सदा नहीं चलते।* अगर मानों बिल्कुल मन की प्लेट कहो, कागज कहो, पूरा नहीं मिटा तो पूरा साफ न होने के बदले अगर आप और अच्छा लिखने भी चाहो तो स्पष्ट होगा? अर्थात् सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ धारण करने चाहो तो सदा और फुल परसेन्ट में होगा? बिल्कुल क्लीन भी हो, क्लीयर भी हो तब यह शक्तियाँ सहज कार्य में लगा सकते हैं। कारण यही है - मैजारिटी की स्लेट क्लीयर और क्लीन नहीं है। *थोड़ा-थोड़ा भी बीती बातें या बीती चलन, व्यर्थ बातें व व्यर्थ चाल-चलन सूक्ष्म रूप में समाई रहती हैं तो फिर समय पर साकार रूप में आ जाती हैं। तो समय अनुसार पहले चेक करो, अपने को चेक करना दूसरे को चेक करने नहीं लग जाना।* क्योंकि दूसरे को चेक करना सहज लगता है, अपने को चेक करना मुश्किल लगता है। *तो चेक करना हमारे मन की प्लेट व्यर्थ से और बीती से बिल्कुल साफ है? सबसे सूक्ष्म रूप है - बायब्रेशन के रूप में रह जाता है। फरिश्ता अर्थात् बिल्कुल क्लीन और क्लीयर। समाने की शक्ति निगेटिव को भी पॉजिटिव रूप में परिवर्तन कर समाओ। निगेटिव ही नहीं समा दो, पॉजिटिव में चेंज करके समाओ तब नई सदी में नवीनता आयेगी।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चा परवाना बन शमा पर फ़िदा होना"*

 

_ ➳  *मीठे बाबा के कमरे में बैठी हुई मैं आत्मा... एकटक... प्यारे बाबा को निहार रही हूँ...* बाबा की वरदानी... महादानी किरणों से मैं आत्मा शक्ति सम्पन्न बन रही हूँ... और मीठे चिंतन में खो रही हूँ... *प्यारे बाबा ने जब से मुझ आत्मा को अपना बच्चा बनाया है... तब से हर घड़ी सुखों की बन गयी है... हर पल कितना सुहावना बन गया है... इस पावन सुंदर वेला में... मैं आत्मा... किस कदर बाबा की याद में मदमस्त हो... बाबा से प्यारी-प्यारी बातें करने पहुंच जाती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को अपने प्यार के आगोश में भरते हुए कहा :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... *यह कलयुगी पतित दुनिया की महफिल बहुत बड़ी है...* यहाँ हर प्राणी मात्र दुःखो से झूझ रहा है... अब मैं आया हूँ... *तुम्हें इस अंधयारी रात से निकाल... सुख भरी दुनिया में... सदा मेरी याद में रह... निश्चिंत होकर, इस जीवन पथ पर यादों की छत्रछाया में आगे बढ़ो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों में खोई हुई... मुस्कराती हुई मीठे बाबा से कहती हूँ*:- "मेरे सच्चे सहारे बाबा... आपने मुझ आत्मा को कितना प्यारा और शानदार भाग्य दिया है... *मुझे काँटो से फूलों जैसा महका दिया है... मैं आत्मा आपकी यादों में और ज्ञान रत्नों की दौलत में कितनी सुखी हो गयी हूँ...* विकर्मो की कालिमा से छूटकर... पवित्रता से सज संवर रही हूँ... आप सच्चे साथी को साथ रख... हर कर्म को श्रेष्ठ बनाती जा रही हूँ... "

 

  *मीठे प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को प्यार से समझाते हुए कहा :-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... आप कितने खिले से... *महकते फूल से... धरा पर उतरे थे... पर खेलते-खेलते काले पतित बन गये हो... अब इस पतित दुनिया से निकल... शिव बाबा की यादों में रहो...  परवाने बन... शमा पर फिदा हो जाओ..."* 

 

_ ➳  *मैं आत्मा प्यारे बाबा की श्रीमत को दिल मे समाते हुए कहती हूँ :-* "मीठे मीठे बाबा मेरे... मैं आत्मा अपने खोये रूप को... सौन्दर्य को आपकी यादों में पुनः पा रही हूँ... और कंचन काया की अधिकारी बन रही हूँ... आपकी हर श्रीमत का सच्चे दिल से पालन कर रही हूँ... *मैं आत्मा आपको पाकर... सत्य की चमक से निखर गयी हूँ... मैं मात्र देह नहीं... अपितु प्यारी पवित्र आत्मा हूँ... इन मीठे अहसासों में हर पल झूम रही हूँ...* आपने मुझे पवित्रता का मार्ग दिखला... मेरा जीवन कमल फूल समान बना दिया है... *जैसे कमल फूल कीचड़ में रहते हुए भी कितना न्यारा प्यारा रहता है..."*

 

  *प्यारे बाबा ने मुझ आत्मा को पवित्रता के सच्चे रास्ते पर चलाते हुए  कहा :-* मेरे मीठे लाडले बच्चे... ईश्वर पिता की मीठी गोद में बैठ, देह के मटमैले आकर्षण से निकलकर, अपनी आत्मिक तरंगो के आकर्षण में डूब जाओ... *इस कलयुगी दुनिया में रहते हुए... प्रवृत्ति में कार्य करते हुए, सदा निराकारी पिता की यादों में खोये रहो... और महान भाग्य की खुमारी में दिव्य कर्म करते रहो..."*

 

_ ➳  *मैं आत्मा मीठे बाबा की यादों की धारा में बहते हुए सुंदर कमल फूल बन खिलते हुए कहती हूँ :-* "मेरे प्राण प्रिय बाबा... मैं आत्मा आपकी मीठी यादों में अपनी खोयी सुंदरता को पाकर मुस्कुरा रही हूँ... *दिव्य गुणों को धारण कर... पवित्रता के श्रृंगार से सजकर देवताई स्वरूप में... देवताओं की दुनिया घूम रही हूँ...* मीठे बाबा को दिल से धन्यवाद देकर मैं आत्मा... अपनी स्थूल देह में लौट आयी..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चा-सच्चा आशिक बन एक माशूक पर फिदा होना है*"

 

_ ➳  दिल मे सच्चे प्यार की आश ले कर, अपने परमात्मा माशूक की सच्ची आशिक बन, मैं उनके प्रेम की लगन में मगन हो कर उन्हें याद कर रही हूँ। *मेरी याद उन तक पहुंच रही है, मेरे प्यार की तड़प की वो महसूस कर रहें हैं तभी तो मेरे प्रेम के आकर्षण में आकर्षित हो कर वो मेरे पास आ रहें हैं*। उनके आने का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। अपने प्रेम की शीतल फुहारें मुझ पर बरसाते हुए मेरे सच्चे माशूक शिव बाबा अपना घर परमधाम छोड़ मुझ से मिलने के लिए इस साकार लोक में आ रहें हैं।

 

_ ➳  प्यार के सागर मेरे शिव पिता परमात्मा मुझे मेरे सच्चे प्यार का प्रतिफल देने के लिए अब मेरे सम्मुख हैं। उनके प्रेम की शीतल किरणों की शीतलता मुझे अपने आस - पास उनकी उपस्थिति का स्पष्ट अनुभव करवा रही हैं। *ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे मैं किसी विशाल सागर के किनारे बैठी हूँ और सागर की लहरों की शीतलता, शीतल हवाओं के झोंको के रूप में बार - बार आ कर मुझे स्पर्श कर रही हैं*। मेरे शिव पिता परमात्मा से आ रहे  सर्वशक्तियों के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे ऐसी ही शीतलता का अनुभव करवा रहें हैं। शीतल हवाओं के झोंको के रूप में मेरे शिव माशूक का प्यार निरन्तर मुझ पर बरस रहा है और मेरे मन को तृप्त कर रहा है।

 

_ ➳  अपने प्रेम की किरणों के आगोश में भरकर मेरे शिव साजन अब मुझ आत्मा को इस देह के पिजड़े से निकाल, अपने साथ ले जा रहें हैं। *देह के बन्धन से मुक्त हो कर मैं स्वयं को एकदम हल्का अनुभव कर रही हूँ। उन्मुक्त हो कर उड़ने का आनन्द कितना निराला, कितना लुभावना है*। अपने सच्चे माशूक की बाहों के झूले में झूलती, अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य पर इतराती मैं आत्मा आशिक उनके साथ उनके धाम जा रही हूँ। *देह और देह की दुनिया के झूठे रिश्तों के मोह की जंजीरो की कैद से निकल, अपने शिव पिया के साथ अब मैं पहुंच गई उनकी निराकारी दुनिया में*।

 

_ ➳  देख रही हूँ अब मैं स्वयं को परमधाम में अपने सच्चे माशूक शिव पिता परमात्मा के सामने। उनके प्यार की शीतल छाया के नीचे बैठी मैं आशिक आत्मा अपलक उन्हें निहार रही हूँ। *63 जन्मो से जिनके दर्शनों की आश मन में लिए इधर - उधर भटक रही थी। वो मेरे माशूक, मेरे शिव बाबा आज मेरे बिल्कुल सामने हैं। प्रभु दर्शन की प्यासी मैं आत्मा आज उन्हें अपने सामने पा कर तृप्त हो गई हूँ*। उनके प्यार की शीतल फुहारे रिम - झिम करती बारिश की बूंदों की तरह निरन्तर मुझ पर पड़ रही हैं। उनकी सर्वशक्तियाँ मेरे अंदर असीम बल भर रही हैं। *बीज रूप स्थिति में स्थित हो कर अपने बीज रूप शिव पिता परमात्मा के साथ मैं मंगल मिलन मना रही हूँ*। यह मंगल मिलन मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करवा रहा है।

 

_ ➳  इस अतीन्द्रिय सुख का गहन अनुभव करने के बाद, अपने माशूक शिव पिता परमात्मा के इस अदभुत, अद्वितिय प्यार का सुखद एहसास अपने साथ ले कर मै उनकी आशिक आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूँ। अब मैं अपने साकारी तन में विराजमान हूँ और स्वयं को अपने शिव पिया के साथ कम्बाइंड अनुभव कर रही हूँ। *उनके निस्वार्थ प्यार का मधुर एहसास मुझे हर पल उनकी उपस्थिति का अनुभव कराता रहता है*। एक पल के लिए भी मैं उनसे अलग नही होती। चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते वो मुझे अपने साथ अनुभव होते हैं। अपने माशूक शिव परमात्मा की सच्ची आशिक बन अब मैं हर पल उनकी ही यादों में खोई रहती हूँ।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं गृहस्थ व्यवहार और ईश्वरीय व्यवहार दोनों की समानता द्वारा सदा हल्की रहने वाली आत्मा हूँ।*

✺   *मैं सफल आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्मा सदैव कर्मेंद्रिय जीत हूँ  ।*

✺   *मैं आत्मा सदैव मायाजीत हूँ  ।*

✺   *मैं आत्मा सदा फर्स्ट डिवीजन में आती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  बापदादा एक बात का फिर से अटेन्शन दिला रहे हैं कि *वर्तमान वायुमण्डल के अनुसार मन मेंदिल से अभी वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो।* बापदादा ने हर बच्चे को चाहे प्रवृत्ति में हैचाहे सेवाकेन्द्र पर हैचाहे कहाँ भी रहते हैंस्थूल साधन हर एक को दिये हैंऐसा कोई बच्चा नहीं है जिसके पास खाना, पीनारहना इसके साधन नहीं हो। जो बेहद के वैराग्य की वृत्ति में रहते हुए आवश्यक साधन चाहिए, वह सबके पास हैं। अगर कोई को कमी है तो वह उसके अपने अलबेले-पन या आलस्य के कारण है। बाकी ड्रामानुसार बापदादा जानते हैं कि आवश्यक साधन सबके पास हैं। जो आवश्यक साधन हैं वह तो चलने ही हैं। लेकिन कहाँ-कहाँ आवश्यकता से भी ज्यादा साधन हैं। साधना कम है और साधन का प्रयोग करना या कराना ज्यादा है। इसलिए *बापदादा आज बाप समान बनने के दिवस पर विशेष अन्डरलाइन करा रहे हैं - कि साधनों के प्रयोग का अनुभव बहुत कियाजो किया वह भी बहुत अच्छा किया, अब साधना को बढ़ाना अर्थात् बेहद की वैराग्य वृत्ति को लाना।*

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप को देखा लास्ट घड़ी तक बच्चों को साधन बहुत दिये लेकिन स्वयं साधनों के प्रयोग से दूर रहे। *होते हुए दूर रहना - उसे कहेंगे वैराग्य।* लेकिन कुछ है ही नहीं और कहे कि हमको तो वैराग्य हैहम तो हैं ही वैरागीतो वह कैसे होगा। वह तो बात ही अलग है। सब कुछ होते हुए नालेज और *विश्व कल्याण की भावना से, बाप कोस्वयं को प्रत्यक्ष करने की भावना से अभी साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति हो।* जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं थेलेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे। यह 14 वर्ष जो तपस्या कीयह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये हैं, साधनों की अभी कोई कमी नहीं है लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। विश्व की आत्माओं के कल्याण के प्रति भी इस समय इस विधि की आवश्यकता है क्योंकि चारों ओर इच्छायें बढ़ रही हैंइच्छाओं के वश आत्मायें परेशान हैं, चाहे पदमपति भी हैं लेकिन इच्छाओं से वह भी परेशान हैं। *वायुमण्डल में आत्माओं की परेशानी का विशेष कारण यह हद की इच्छायें हैं। अब आप अपने बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा उन आत्माओं में भी वैराग्य वृत्ति फैलाओ।* आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती।

 

✺   *ड्रिल :-  "साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा साधना का वायुमण्डल चारों ओर बनाना"*

 

 _ ➳  नुमाशाम योग के समय हद के सेवाओं से, दुनियावी बातों से *मन और बुद्धि को कुछ समय के लिये हटाते हुये स्वयं को अशरीरी फरिश्ता स्वरूप में देख रही हूँ... सफेद प्रकाश के पवित्र उज्जवल पोशाक में स्वयं को निहार रही हूँ... कुछ ही समय में स्वयं को सूक्ष्मवतन में विराजित पाती हूँ...* ब्रह्माबाबा के सम्मुख जाकर बैठ जाती हूँ... बाबा की मीठी मुस्कान देख मैं फरिश्ता सुख का अनुभव कर रही हूँ... *बाबा की नज़रों से नज़र मिलाकर मैं आत्मा भाव विभोर हो रही हूँ...* 

 

 _ ➳  बाबा की नज़रों ने बुद्धि में ज्ञान बिंदुओं की झड़ी लगा दी है... विश्व कल्याण की इस यज्ञ शाला में साधनों के आधार पर साधना की परिधि बडी ही सीमित है... *सम्पूर्ण विश्व की सेवा के लिए, बेहद की सेवा के लिए मन और बुद्धि में वैराग वृत्ति को इमर्ज कर साधना में लीन होने की बात बाबा की नजरों से जैसे समझ आ गई...* बाबा की नज़रों ने ज्ञान की इतनी कठिन बात को सहजता से समझा दिया है...

 

 _ ➳  देह और देह की जगत के समस्त सुख सुविधा से सम्पन्न साधनों के होते हुए भी मन और बुद्धि में वैराग वृत्ति का अनुभव, विश्व के अनेक आत्माओं के शांति व सुख की शुभभावना शुभकामना के लिए बेहद सेवा को सहज आधार प्रदान कर रहा है... *चाहे जितनी साधनों का प्रयोग हो साधना के लिए वैराग वृत्ति ही मुख्य आधार हो* - बाबा की यह शिक्षा बहुत ही सरल तरीके से मुझ आत्मा की मन और बुद्धि में समाती जा रही है... *और मैं आत्मा अपने फरिश्ता स्वरुप में स्थित हो सेकंड में बेहद के वैराग का अनुभव कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  *ब्रह्मा बाबा समान लक्ष्य सदा नज़रों के सामने रख बाबा की ज्ञान ऊर्जा को स्वीकार करती मैं फरिश्ता परमात्मा पिता को प्रत्यक्ष करने के लिए तैयार हो रही हूँ...* स्वयं को बेहद के वैराग वृत्ति से भरपूर कर अन्य आत्माओं की हद की वृत्ति को बेहद में परिवर्तन करने की सेवा देने की अनुप्रेरणा ले रही हूँ...

 

 _ ➳  अपने बेहद की वृत्ति द्वारा सम्पूर्ण वायुमंडल को बेहद की वैराग वृत्ति से भरपूर करती मैं *अशरीरी आत्मा फरिश्ता स्वरूप में चारों दिशाओं की चक्कर लगाती हुई अनेक आत्माओं को शांति व शक्ति का अनुभव कराते हुए नीचे आ जाती हूँ... शांति सुख शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा को वायुमंडल में भरपूर करती मैं आत्मा अशरीरी स्वरूप में हद की समस्त बातों से न्यारा सा अनुभव कर रही हूँ...* स्वयं में बेहद के वैराग की गंभीरता को गहराई में भरते हुए अनुभव कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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