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 25 / 10 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *फ़रिश्ते पन की स्थिति का सहज अनुभव किया ?*

 

➢➢ *सदा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना रखी ?*

 

➢➢ *आत्माओं को अनुभूति करवा बाप से समबन्ध जुड़वाया ?*

 

➢➢ *नम्रता और तपस्या से सच्चे सेवाधारी बनकर रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जब कर्मातीत स्थिति के समीप पहुंचेंगे तब किसी भी आत्मा तरफ बुद्धि का झुकाव, कर्म का बंधन नहीं बनायेगा।* आत्मा का आत्मा से लेन-देन का हिसाब भी नहीं बनेगा। वे कर्म के बन्धनों का भी त्याग कर देंगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं उड़ती कला वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को हर कदम में उड़ती कला वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? *क्योंकि उड़ती कला में जाने का समय अब थोड़ा-सा है और गिरती कला का समय बहुत है। सारा कल्प गिरते ही आये हो। उड़ती कला का समय सिर्फ अब है। तो थोड़े से समय में सदा के लिए उड़ती कला द्वारा स्वयं का और सर्व का कल्याण करना है।*

 

✧  थोड़े समय में बहुत बड़ा काम करना है। तो इतनी रफ्तार से उड़ते रहेंगे तब यह सारा कार्य सम्पन्न कर सकेगे। *सिर्फ स्वयं का कल्याण नहीं करना है लेकिन प्रकृति सहित सर्व आत्माओंका कल्याण करना है। कितनी आत्मायें हैं! बहुत है ना। तो जब इतना स्वयं शक्तिशाली होंगे तब तो दूसरों को भी बना सकेगे। अगर स्वयं ही गिरते-चढ़ते रहेंगे तो दूसरों का कल्याण क्या करेंगे। इसलिए हर कदम में उड़ती कला।*

 

  चल तो रहे हैं, कर तो रहे हैं - ऐसे नहीं। जिस रफ्तार से चलना चाहिए, उस रफ्तार से चल रहे हैं? कर तो रहे हैं लेकिन जिस विधि से करना चाहिए, उस विधि से कर रहे हैं? कर तो सभी रहे हैं, किसी से पूछो - सेवा करते हो? तो सब कहेंगे - हाँ, कर रहे हैं। *लेकिन विधि वा गति कौनसी है - यह जानना और देखना है। समय तेज जा रहा है या स्वयं तीव्रगति से जा रहे हैं? सेवा की भी तीव्र विधि है या यथाशक्ति कर रहे हैं? इसलिए सदा उड़ते चलो। उड़ने वाले औरों को उड़ा सकते हैं।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  राजा बनने का युग है। राजा क्या करता है? ऑर्डर करता है ना? *राजयोगी जैसे मन-बुद्धि को ऑर्डर करे, वैसे अनुभव करें।* ऐसे नहीं कि मन-बुद्धि को ऑर्डर करो, फरिश्ता बनो और नीचे आ जाए तो राजा का आर्डर नहीं माना ना तो राजा वह जिसका प्रजा आर्डर माने।

 

✧  नहीं तो योग्य राजा नहीं कहा जायेगा। काम का राजा नहीं, नाम का राजा कहा जायेगा। तो आप कौन हो? सच्चे राजा हो। कर्मेन्द्रियाँ ऑर्डर मानती है? *मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने ऑर्डर में हों।* ऐसे नहीं, क्रोध करना नहीं चाहता लेकिन हो गया।

 

✧  बॉडी कान्सेस होना नहीं चाहता लेकिन हो जाता हूँ तो उसको ताकत वाला राजा कहेंगे या कमजोर? तो *सदैव यह चेक करो कि मैं राजयोगी आत्मा, राज्य अधिकारी हूँ?* अधिकार चलता है? कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा नहीं देवे। आज्ञाकारी हो। अच्छा। (पार्टियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧ बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जायें। दिल से रहम इमर्ज हो। *क्या जब साइंस की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा व संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती। जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो।*

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सच्चा सेवाधारी बनना"*

 

_ ➳  इन भारत की वादियों में खुशबू से भरी वायु का वेग, मधुर संगीत सा प्रतीत हो रहा हैं, मुझ आत्मा को... अपने सातो रंगों का जैसे साक्षात्कार हो गया हैं... *मेरे रूहानी पिता ने जैसे मेरे रूहानी सोशल वर्कर के संस्कार को प्रत्यक्ष कर दिया है*... सारे विकार न जाने कहाँ भस्म हो गए... और मैं आत्मा खुद को एक रूहानी सोशल वर्कर के रूप मे इस भारत भूमि पर स्वर्ग स्थापन करता देख रही हूँ... *अब मैं आत्मा अपने पिता से रूह रिहान करने सूक्ष्म वतन पहुंचती हूँ...*

 

  *मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को देखकर मुस्कुराते हुए कहा:-* "मीठे सर्व गुणों से सम्पन्न प्यारे बच्चे... *शिव बाबा ने धरा पर आकर, आप बच्चों को एक एक कर बड़े प्यार से चुना हैं, ताकि तुम इस पवित्र भूमि भारत को फिर से स्वर्ग बना सको...* इस कार्य में परमपिता तुम्हारे साथ है...  तुम्हें योग्य बन, ये कार्य बड़ी परिपक्वता से करना है... मुस्कुराते हुए रूहानी सोशल वर्कर बन इस धरा पर स्वर्ग स्थापन करना है..."

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने मीठे बाबा के ज्ञान को दिल मे बड़े प्यार से धारण करते हुए कहती हूँ:-* "मेरे मीठे मीठे बाबा... *मै आत्मा कितनी भाग्यशाली हूँ... कि स्वयम भगवान ने मुझे चुना हैं...  सारे विकर्मो को दग्ध कर मुझे मेरे पिता ने... इस भारत खंड को, एक रूहानी सोशल वर्कर बन... स्वर्ग बनाने का कार्य सौंपा हैं*... मैं आत्मा... रूहानियत से सराबोर होकर बाबा का कार्य करने का प्लान बाबा से मिलकर बना रही हूँ..."

 

  *प्यारे बाबा मुझे रूहानियत से भरपूर कर अपने प्यार में डुबोते हुए मुझ आत्मा से कहता हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे… *इस संगम युग में... इस वरदानी समय में... पिता के साथ मिलकर... दिव्यता औऱ पवित्रता से भरपूर होकर... सोशल वर्कर बनकर... इस भारत को स्वर्ग बनाने के निमित्त बनकर... तुम पूज्य बन रहे हो...* तुम इस सृष्टि का उद्धार कर रहे हो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने भाग्य पर इतराती हुई कहती हूं:-* "मीठे बाबा... *मैं आत्मा तो स्वयम को भूली हुए थी, आपने संगम पर आ कर मुझे चुना*... मेरी रूहानी सोशल वर्कर की काबलियत को निखारा... मुझे दिव्यता का दान दिया, मुझ को अपनी छत्रछाया मे रखकर... इस भारत को स्वर्ग बनाने का कार्य दिया... *मेरा खोया हुआ स्वरूप लौटाया... मेरा खोया हुआ गौरव वापिस दिला कर मुझे पूज्य बना दिया..."*

 

  *मेरे मीठे बाबा ने मुझ आत्मा को सोशल रूहानी सर्विस देखकर...भारत भूमि को स्वर्ग बनाने के कार्य में अपना सहयोगी बनाते हुए कहा:-* "मीठे प्यारे सिकीलधे बच्चे... इस रूहानियत के कार्य में... *तुम ब्राह्मण बच्चे ही... इस धरा पर स्वर्ग लाने का कार्य कर सकते हो...* फिर आप ही रूहे गुलाब बन कर... दिव्यता व पवित्रता की दौलत का भरपूर भंडार बन कर, इस स्थापित किये गए स्वर्ग का राज्ये पाते हो..."

 

_ ➳  *मै आत्मा बाबा के मुख से अपने लिए इतने उच्च महवाक्य सुनकर भावविभोर होकर दिल की गहराई से बाबा से कहती हूं:-* "मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा कांटो से फूल बन गईं आपकी गोद मे बैठकर... *आपने जो शक्तिओ, वरदानों से मुझ आत्मा को सवारा हैं... तभी तो मैं आत्मा इस धरती पर स्वर्ग स्थापना की निमित बन पा रही हूँ*... औऱ आपसे प्राप्त सभी देवताई सुखों का अधिकार प्राप्त कर रही हूँ... मीठे बाबा से बेहद की रुहानियत, प्यार, समझ लेकर... मैं आत्मा वापिस इस कर्म क्षेत्र पर आकर... भारत को स्वर्ग बनाने के कार्य मे पूरी लगन से जुट जाती हूं..."

 

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- फ़रिश्तेपन की स्थिति का सहज अनुभव*"

 

_ ➳  अपने आश्रम के बाबा रूम में, अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर अपने प्यारे मीठे शिव बाबा की मीठी याद में खो कर गहन आनन्द की अनुभूति करने के बाद मैं बाबा रूम में लगे बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र को निहार रही हूँ। उस चित्र को देखते देखते *मैं अनुभव करती हूँ जैसे साकार ब्रह्मा बाबा मेरे सामने बैठे हैं और देखते देखते उनके तन में शिव बाबा की पधरामणि होती है*। शिव बाबा ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में आ कर विराजमान हो जाते हैं और बाबा रूम में चारों और बहुत ही शक्तिशाली वायब्रेशन फैल जाते हैं। मेरे सामने बैठे बापदादा अपनी मीठी दृष्टि से मुझे निहाल कर रहें हैं। *मेरी आँखें एकटक उन्हें ही देख रही हैं। उनकी लाइट माइट मुझे शक्तिशाली बना रही है*।

 

_ ➳  तभी बाबा की अव्यक्त आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई देती है। ऐसा लगता है जैसे *बाबा कह रहे हैं, बच्चे:- अभी - अभी निराकारी, अभी अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी अभी सकारी कर्मयोगी होने की रूहानी एक्सरसाइज करो*। बाबा की इस अव्यक्त आवाज को सुनते ही मैं एक दम अपने निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ और एक चमकता हुआ सितारा बन, साकारी देह से बाहर आ जाती हूँ और चल पड़ती हूँ अपनी रूहानी यात्रा पर।

 

_ ➳  देह और देह के सर्व बंधनों से मैं जैसे मुक्त हो चुकी हूँ। पांच तत्वों की बनी देह रूपी प्रकृति का कोई भी आकर्षण मुझे आकर्षित नहीं कर रहा और ना ही स्थूल प्रकृति की हलचल का कोई प्रभाव मुझ पर पड़ रहा है। *मैं उन्मुक्त अवस्था मे बस ऊपर की और उड़ती जा रही हूं। आवाज की दुनिया को पार कर, सूक्ष्म वतन से होते हुए मैं पहुंच जाती हूँ आत्माओं की निराकारी दुनिया में अपने महाज्योति शिव पिता परमात्मा के पास*। उनसे निकल रही शक्तियों और गुणों की अनन्त किरणे जैसे ही मुझ आत्मा पर पड़ती हैं असीम आनन्द से मैं आत्मा भरपूर होने लगती हूँ। अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हुए मैं आत्मा प्रेम के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के प्यार की गहराई में समा जाती हूं ।

 

_ ➳  स्वयं को पूरी तरह तृप्त और शक्तियों से भरपूर करके अब मैं आत्मा सूक्ष्म वतन में आ जाती हूँ और अपने फरिश्ता स्वरूप को धारण कर पहुँच जाती हूँ बापदादा के सम्मुख। *बापदादा की शक्तिशाली दृष्टि मुझ फ़रिश्ते में असीम ऊर्जा का संचार कर रही हैं। सिर पर बाबा के हाथों का हल्का - हल्का स्पर्श मुझे परमात्म शक्तियों से भरपूर कर रहा है*। परमात्म शक्तियों से भरपूर हो कर अब मैं फ़रिशता सूक्ष्म लोक से नीचे आ रहा हूँ। मुझ फरिश्ते से निकल रही श्वेत रश्मियां पूरे विश्व मे चारों ओर फैल रही हैं।

 

_ ➳  अपनी लाइट माइट फैलाता हुआ मैं फ़रिश्ता साकारी दुनिया मे प्रवेश करता हूँ और अपने साकारी शरीर मे प्रवेश कर जाता हूँ। *अब मैं अपने साकारी तन में विराजमान होकर साकारी कर्मयोगी स्वरूप में स्थित हूँ*। हर कर्म करते स्वयं को अपने प्यारे मीठे शिव बाबा के साथ कम्बाइंड अनुभव कर रही हूँ। बाबा की छत्रछाया हर पल मुझे अपने ऊपर अनुभव हो रही है जो हर कर्म करते मुझे स्मृति स्वरूप बना रही है। एक पल के लिए भी अब मैं उनसे अलग नही हूँ। *चलते - फिरते, खाते - पीते हर कर्म करते वो मुझे अपने साथ अनुभव हो रहें हैं और उनके साथ का यह अनुभव मुझे कर्मयोगी बनाये, हर कर्म के बन्धन से मुक्त कर रहा है*।

 

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

✺   *मैं पांचों तत्वों और पांचों विकारों को अपना सेवाधारी बनाने वाली आत्मा हूँ।*

✺   *मैं मायाजीत आत्मा हूँ।*

✺   *मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

✺   *मैं आत्मा जिन गुणों वा शक्तियों का वर्णन करती हूँ उनके अनुभवों में सदा खो जाती हूँ  ।*

✺   *मैं आत्मा सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी स्वरूप हूँ  ।*

✺   *मैं आत्मा अनुभवों की खान हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  हाथ तो बहुत सहज उठाते हैंबाबा को पता है हाथ उठवायेंगे तो बहुत प्रकार के हाथ उठेंगे लेकिन फिर भी बापदादा कहते हैं कि जिस चेकिंग से आप हाथ उठाने के लिए तैयार हैं, बापदादा को पता है कितने तैयार हैंकौन तैयार हैं। *अभी भी और अन्तर्मुखी बन सूक्ष्म चेकिंग करो। अच्छा कोई को दु:ख नहीं दिया, लेकिन जितना सुख का खाता जमा होना चाहिए उतना हुआनाराज नहीं कियाराजी कियाव्यर्थ नहीं सोचा लेकिन व्यर्थ के जगह पर श्रेष्ठ संकल्प इतने ही जमा हुए?* सबके प्रति शुभ भावना रखी लेकिन शुभ भावना का रेसपान्स मिलावह चाहे बदले नहीं बदलेलेकिन आप उससे सन्तुष्ट रहेऐसी सूक्ष्म चेकिंग फिर भी अपने आपकी करो और अगर ऐसी सूक्ष्म चेकिंग में पास हो तो बहुत अच्छे हो।

 

✺   *ड्रिल :-  "अन्तर्मुखी बन सूक्ष्म चेकिंग करना"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस देह की मालिक, देह में मस्तक के मध्य चमक रही हूँ... स्वयं को इस देह से अलग एक जगमगाते सितारे के रुप में देख रही हूँ... बाबा की याद में बैठी हूँ और और उनके प्यार में खो जाती हूँ... *बाबा से मिलने वाले सभी ख़ज़ानों और शक्तियों को याद कर रही हूँ... स्वयं को चेक भी कर रही हूँ कि इन सब ख़ज़ानों को कितना जमा किया है...*

 

 _ ➳  मैं कितनी भाग्यशाली आत्मा हूँ जो इस संगमयुग में अपने प्राण प्यारे बाबा से सम्मुख मिलन मनाती हूँ... बाबा ने जो मुझे अमूल्य ख़ज़ाने और शक्तियाँ दी हैं उन्हें अपने इस हीरे तुल्य जीवन मे यूज़ करते हुए निरंतर आगे बढ़ रही हूँ... बाबा का साथ और प्यार मुझे हर कदम पर महसूस होता है... मैं बाबा की छत्रछाया में रह हर कर्म करती हूँ... *हर आत्मा के प्रति शुभभावना रखती हूँ और मेरे प्योर वाइब्रेशन अन्य आत्मायें कैच करती हैं और मेरी ओर आकर्षित होती हैं और मैं आत्मा उन सभी को अपनी शीतल दृष्टि से संतुष्ट करती हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस सृष्टि के रंगमंच पर अपना पार्ट प्ले करते हुए अन्य बहुत सी आत्माओं के संपर्क में आती हूँ... और हर आत्मा अपने स्वभाव संस्कार के अनुसार व्यवहार करती है... क्योंकि इस सृष्टि के अंत में सभी आत्माओं की बैटरी डिस्चार्ज है... *मैं आत्मा अपने संपर्क में आने वाली हर आत्मा को शुभ वाइब्रेशन दे उनके संस्कार परिवर्तन में उन्हें मदद करती हूँ...*

 

 _ ➳  मेरे संपर्क में आने वाली आत्माएं शांति का अनुभव करती हैं... वो अपने दुखों को भूल सुख का अनुभव करती हैं क्योंकि मैं आत्मा सुख स्वरूप हूँ... *कोई आत्मा अपने कड़े संस्कारों के कारण मुझसे अच्छा व्यवहार नहीं करती या नाराज़ रहती है उसे भी मैं शुभ भावना देकर उसे भी राज़ी करती हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा इस संगमयुग पर अपने पुराने सभी कलियुगी संस्कारों को परिवर्तन कर रही हूँ... *बाबा के साथ से उनके सहयोग से तेज़ी से मेरे संस्कार परिवर्तन हो रहे हैं... मैं आत्मा स्वयं पर अटेंशन रखकर साथ साथ अपनी चेकिंग भी करती जाती हूँ...* मुझ आत्मा के किसी व्यवहार के कारण किसी को कोई दुख तो नहीं पहुंचा... मैं आत्मा अन्य आत्माओं के भी दुखों को दूर करती हूँ और अपना सुख का खाता जमा करती हूँ... *मैं आत्मा अंतर्मुखी बन अपनी सूक्ष्म चेकिंग करती हूँ... श्रेष्ठ संकल्पों का ख़ज़ाना जमा करती हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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