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❍ 29 / 10 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *सदा बाप की कशिश रही ?*
➢➢ *माया के तूफानों से डरे तो नहीं ?*
➢➢ *अपने अधिकार की शक्ति द्वारा त्रिमूर्ति रचना को सहयोगी बनाया ?*
➢➢ *अव्यक्त पाला के वरदान का अधिकार लिया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ कर्मातीत स्थिति को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति धारण करना आवश्यक है। *कर्मबन्धनी आत्माएं जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं और कर्मातीत आत्मायें एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं क्योंकि कर्मातीत हैं। उनकी स्पीड बहुत तीव्र होती है, सेकण्ड में जहाँ चाहे वहॉ पहुँच सकती हैं, तो इस अनुभूति को बढ़ाओ।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ"*
〰✧ स्वयं को तीव्र पुरूषार्थी आत्मायें अनुभव करते हो? *क्योंकि समय बहुत तीव्रगति से आगे बढ़ रहा है। जैसे समय आगे बढ़ रहा है, तो समय पर मंजिल पर पहुँचने वाले को किस गति से चलना पड़े? समय कम है और प्राप्ति ज्यादा करनी है। तो थोड़े समय में अगर ज्यादा प्राप्ति करनी हो तो तीव्र करना पड़ेगा ना।* समय को देख रहे हो और अपने पुरूषार्थ की गति को भी जानते हो। तो समय अगर तेज है और अपनी गति तेज नहीं है तो समय अर्थात् रचना आप रचता से भी तेज हुई।
〰✧ रचता से रचना तेज चली जाए तो उसे अच्छी बात कहेंगे? रचना से रचता आगे होना चाहिए। *सदा तीव्र पुरूषार्थी आत्मायें बन आगे बढ़ने का समय है। अगर आगे बढ़ते कोई साइडसीन को भी देख रूकते हो, तो रूकने वाले ठीक समय पर पहुँच नहीं सकेंगे। कोई भी माया की आकर्षण साइडसीन है।* साइडसीन पर रूकने वाला मंजिल पर कैसे पहुँचेगा? इसलिए सदैव तीव्र पुरूषार्थी बन आगे बढ़ते चलो।
〰✧ ऐसे नहीं समय पर पहुँच ही जायेंगे, अभी तो समय पड़ा है। ऐसे सोचकर आगर धीमी गति से चलेंगे तो समय पर धोखा मिल जायेगा। बहुत काल का तीव्र पुरूषार्थ का संस्कार अन्त में भी तीव्र पुरूषार्थ का अनुभव करायेगा। तो सदा तीव्र पुरूषार्थी। कभी तीव्र, कभी कमजोर नहीं। ऐसे नहीं थोड़ी-सी बात हुई कमजोर बन जाओ। इसको तीव्र पुरूषार्थी नहीं कहेंगे। *तीव्र पुरूषार्थी कभी रूकते नहीं, उड़ते हैं। तो उड़ते पंछी बन उड़ती कला का अनुभव करते चलो। एक-दो को भी सहयोग दे तीव्र पुरूषार्थी बनाते चलो। जितनी औरों की सेवा करेंगे उतना स्वयं का उमंग-उत्साह बढ़ता रहेगा।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ *राजा ऑर्डर करे - यह काम नहीं होना है।* तो प्रजा क्या करेगी? *मानना पडेगा ना।* आजकल तो राजा ही नहीं है, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। इसलिए कोई किसका मानता ही नहीं है। लेकिन आप लोग तो राजयोगी हो ना।
〰✧ आपके यहाँ प्रजा का प्रजा पर राज्य नहीं है ना राजा का राज्य है ना तो बाप कहते हैं - ‘हे राजे! आपके कन्ट्रोल में आपकी प्रजा है? *या कभी कन्ट्रोल से बाहर हो जाती है?*
〰✧ रोज राज्य दरबार लगाते हो?' *रोज रात्रि को राज्य दरबार लगाओ।* अपने राज्य कारोबारी ‘कर्मेन्द्रियों' से हालचाल पूछो। जैसे राजा राज्य दरबार लगाता है ना तो आप अपनी राज्य दरबार लगाते हो? या भूल जाते हो, सो जाते हो? राज्य दरबार लगाने में कितना टाइम लगता है?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *फ़रिश्ता स्वरूप अर्थात् स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ़ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं, स्वरूप में हो।* ऐसा परिवर्तन, किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता हैं? *जैसी बात वैसे अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- फूल बन सबको सुख देना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की कुटिया में बैठी हूँ... कुटिया चारों तरफ से रंग बिरंगे फूलों से सजी हुई बहुत सुंदर लग रही है...* बाबा से अलौकिक प्रकाश निकल कर मुझ में समाता जा रहा है, मैं आत्मा बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं...* बाबा अपने हाथों में मेरा हाथ लेकर मुझे सैर पर ले जाते हैं , और एक सुंदर बगीचे में मेरे साथ टहलने लगते हैं... मैं आत्मा मन ही मन ये विचार कर रही हूं कि कितना सुंदर बाग है और ये फूल चारों तरफ अपनी खुशबु बिखेरते कितने प्यारे लग रहे हैं...
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोले:-* "मीठे बच्चे... जैसे बाप सबको सुख देते हैं वैसे ही सबको फूल बन सुख देना है... सुख दाता बाप के बच्चे कभी किसी को दुख नहीं दे सकते... *बाप की श्रीमत है, ना दुख दो न दुख लो* रूहे गुलाब बन सबको सुख देना है और दुआओं का खाता जमा करना है... *बाप की श्रीमत को धारण कर बाप से 21 जन्म की प्रालब्ध लेनी है...*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्यार भरी समझानी को अपने में समाते हुए बाबा से बोली:-* " हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपसे प्यार और दुलार पाकर स्वयं को दिव्य ज्ञान से सुसज्जित देख कर आनंद के सागर में डुबकियाँ लगा रही हूं... *आपकी श्रीमत पाकर मेरा जीवन अलौकिक शक्ति से और दिव्यता से चमक उठा है... मैं आत्मा कितनी भाग्यशाली हूं जिसको परमात्मा की पालना मिली... अपने भाग्य को देख मैं आत्मा असीम सुख का अनुभव कर रही हूं...*
❉ *बाबा एक बहुत सुंदर गुलाब को अपने हाथ में लेकर मुझे दिखाते हुए बोले:-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... इस फूल में कितने कांटे हैं फिर भी सबकी नजर इस फूल पर ही पड़ती है क्योंकि फूल की सुंदरता, महक और मन को मोहने वाले सौंदर्य को देख कर सबका मन खिल जाता है ऐसे ही तुम्हें भी सुख देने वाला फूल बन सबको बाप समान सुख देना है... *बाप तुम्हें ज्ञान के खज़ानों से माला माल करने आये हैं,* इस ज्ञान को धारण कर तुम्हें दूसरों को भी कराने की सेवा करनी है... *इस पतित दुनिया से उपराम बनने के लिए इस ज्ञान सागर में रोज़ स्नान करो... निरंतर ज्ञान स्नान से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएंगे और तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जाएंगे...*
➳ _ ➳ *ज्ञान रत्नों से अलंकृत होकर बाबा की मधुर वाणी को दिल में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* " प्राण प्यारे बाबा मेरे... मैं जन्मों जन्मों से भटकती हुई आज अपने दिलाराम बाबा को पाकर खुशी से झूम रही हूं... *अपने स्वरूप को निखरता हुआ देख कर मन में अपार खुशी का अनुभव कर रही हूं...* जीवन इतना खूबसूरत हो जाएगा कभी सोचा न था... *मेरी मंज़िल मुझे मिल गयी है आपकी श्रीमत को धारण कर मैं आत्मा निखर गयी हूं... आपका स्नेह और साथ पाकर मैं अतीन्द्रिय सुख के झूले में निरंतर झूल रही हूं...*
❉ *बाबा मेरे सर पर बहुत प्यार से हाथ फेरते हुए कहते हैं:-* " मेरे नैनों के नूर मेरे लाडले बच्चे... तुम्हारा भाग्य तुम्हारे ही हाथों में है जितना चाहे उतना बना सकते हो... दुनिया में कितनी आत्माएं भटक रही है उनको ठिकाना मिल जाये ऐसा अपना स्वरूप बनाओ... तुम्हें देख दूसरे भी अपने जीवन को परमात्म प्रेम से भरें ऐसा आत्मिक स्वरूप प्रत्यक्ष करो... एक बाप दूसरा न कोई इस मंत्र को सदैव स्मृति में रखो... *एक बाप से योग लगाकर अपने विकर्मों को भस्म कर मेरे साथ चलने की तैयारी करो... पवित्र बने बिना तुम मेरे साथ जा नही सकते इसलिए अशरीरी पन का निरंतर अभ्यास करो... सम्पूर्ण पवित्र बन बाप से पूरा वर्सा लो...*
➳ _ ➳ *बाबा की मीठी मीठी बातों को स्वयं में धारण करते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूं:-* "मेरे मीठे जादूगर बाबा... आपने तो मेरा जीवन सचमुच कितना दिव्य बना दिया है... मैं क्या से क्या हो गयी हूँ ,अपने भाग्य को देख कर मेरा मन खुशी के गीत गा रहा है और झूम झूम कर नाच रहा है... मैं आत्मा कितना भी शुक्रिया करूं कम ही लगता है... आपकी रहमतों के आगे तो शुक्रिया शब्द भी बहुत छोटा लग रहा है... *मेरी बुद्धि को पत्थर से पारस बुद्धि बना दिया है... ज्ञान रत्नों से आपने मेरा श्रृंगार कर मेरे स्वरूप को निखार दिया है... आपकी श्रीमत पाकर मैं आत्मा धन्य धन्य हो गयी हूँ... मीठे बाबा को दिल की गहराइयों से शुक्रिया कर मैं आत्मा अपने साकार तन में लौट आती हूं...*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- आत्मा पर जो कट चढ़ी है, उसे याद की यात्रा से उतार कर बहुत बहुत लवली बनना है*
➳ _ ➳ एकांत में बैठ, पूरे कल्प की अपनी जीवन यात्रा के बारे में विचार करते हुए मन ही मन अपने आप से मैं बात करती हूँ कि *पूरे 63 जन्म देह भान में आकर मुझ आत्मा ने अनेक अलग - अलग शरीर रूपी रथ का आधार लेकर अनेक विकर्म किये और जन्म बाय जन्म विकारो की कट मुझ आत्मा के ऊपर इतनी जमा होती गई कि पतित बनने के कारण मैं आत्मा और मेरा शरीर रूपी बर्तन बिल्कुल ही अशुद्ध और अस्वच्छ हो गए*। यह विचार करते - करते अपने अब के तमोप्रधान स्वरूप और अपने अनादि सतोप्रधान स्वरूप को स्मृति में लाकर दोनो के अंतर को मैं बुद्धि के दिव्य नेत्र से देखने का प्रयास करती हूँ।
➳ _ ➳ एक तरफ मुझे मेरा विकारों की कट से पूरी तरह मैला हो चुका, चमकहीन स्वरूप दिखाई दे रहा है और दूसरी तरफ मुझे मेरा सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न सम्पूर्ण चमकदार स्वरूप दिखाई दे रहा है जो मन को अथाह आनन्द का अनुभव करवा रहा है। *अपने अब के मैले, अस्वच्छ स्वरूप को फिर से शुद्ध, पवित्र बनाने का मैं मन में दृढ़ संकल्प करती हूँ और योग अग्नि से आत्मा और शरीर रूपी बर्तन को साफ करने के लिए, अपने पतित पावन शिव पिता द्वारा सिखाये सहज राजयोग की अति सहज यात्रा पर चलने के लिए स्वयं को तैयार करती हूँ*।
➳ _ ➳ देह रूपी वस्त्र से स्वयं को अलग कर, अशरीरी बन अपने पतित पावन प्यारे पिता की याद में मैं बैठ जाती हूँ और सेकण्ड में विदेही बन देह से न्यारी होकर देह और देह की दुनिया के हर बन्धन से मुक्त होकर ऊपर आकाश की ओर चल पड़ती हूँ। *मन बुद्धि से की जाने वाली राजयोग की इस अति सहज यात्रा पर निरन्तर आगे बढ़ते हुए आकाश को पार कर, उससे भी ऊपर और ऊपर सफेद प्रकाश की दुनिया को पार कर मैं पहुँच जाती हूँ लाल प्रकाश की उस दुनिया में जहाँ चारों और चमकते हुए हीरो के समान, चमकती हुई चैतन्य मणियों से निकल रहा प्रकाश सब तरफ फैल कर पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहा है*।
➳ _ ➳ चमकती हुई जगमग करती *चैतन्य मणियो के बीच में विराजमान अनन्त प्रकाशमय अपने पतित पावन शिव पिता को मैं देख रही हूँ जो अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों को चारों और फैलाते हुए प्रकाश का एक विशाल पुंज दिखाई दे रहें हैं*। अपने ऊपर चढ़ी विकारों की कट को साफ करने के लिए मैं जैसे - जैसे उनके समीप जा रही हूँ मैं देख रही हूँ उनसे निकल रही सर्वशक्तियों की किरणों की तीव्रता धीरे - धीरे बढ़ते हुए जवालास्वरूप धारण करती जा रही है।
➳ _ ➳ ज्ञान सूर्य अपने शिव पिता से आ रही उन जवालास्वरूप किरणों के नीचे पहुंचते ही मैं अनुभव कर रही हूँ जैसे एक विशाल जवाला मेरे चारो और धधक रही है और उसकी तपश से मेरे ऊपर चढ़ी विकारों की कट जल रही है। *विकारो से मैले हुए अपने अशुद्ध, तमोप्रधान स्वरूप को फिर से शुद्ध सतोप्रधान स्वरूप में परिवर्तित होते मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। अपनी खोई हुई चमक को मैं पुनः प्राप्त करते हुए देख रही हूँ। अपनी खोई हुई शक्तियों और गुणों को पुनः इमर्ज होते हुए देख रही हूँ*। स्वयं को शुद्ध और पवित्र बना कर अब मैं आत्मा एकदम हल्केपन का अनुभव करते हुए अपने लाइट माइट स्वरूप में वापिस साकार सृष्टि पर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपनी साकार देह को देखते हुए, अपनी लाइट और माइट से भरपूर स्वरूप के साथ, अपने सर्वशक्तिवान पतित पावन प्यारे पिता का आह्वान कर, *उनकी सर्वशक्तियों की किरणों की छत्रछाया के नीचे स्थित होकर, उनसे आ रही सर्वशक्तियों को अपने अंदर समाहित कर, उन्हें अपने शरीर रूपी रथ पर प्रवाहित करते हुए, अपनी आत्मा और शरीर रूपी बर्तन को साफ, स्वच्छ बनाकर फिर से अपनी साकार देह में मैं प्रवेश करती हूँ और भृकुटि के अकाल तख्त पर विराजमान होकर फिर से अपना पार्ट बजाने के लिए तैयार हो जाती हूँ*। सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाते हुए, राजयोग के अभ्यास द्वारा आत्मा और शरीर रूपी बर्तन की सफाई प्रतिदिन करते हुए, आत्मा और अपने शरीर रूपी बर्तन को अब मैं पूरी तरह शुद्ध और स्वच्छ बनाती जा रही हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपने अधिकार की शक्त्ति द्वारा त्रिमूर्ति रचना को सहयोगी बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मास्टर रचता आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा स्पष्टवादी हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा अव्यक्त पालना के वरदान का अधिकार प्राप्त करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा ईश्वरीय पालना की अधिकारी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *पवित्रता ही महानता है। पवित्रता ही योगी जीवन का आधार है।* कभी-कभी बच्चे अनुभव करते हैं कि अगर चलते-चलते मन्सा में भी अपवित्रता अर्थात् वेस्ट वा निगेटिव, परचिंतन के संकल्प चलते हैं तो कितना भी योग पावरफुल चाहते हैं, लेकिन होता नहीं है क्योंकि जरा भी अंशमात्र संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता है तो *जहाँ अपवित्रता का अंश है वहाँ पवित्र बाप की याद जो है, जैसा है वैसे नहीं आ सकती।* जैसे दिन और रात इकट्ठा नहीं होता। इसीलिए बापदादा वर्तमान समय पवित्रता के ऊपर बार-बार अटेन्शन दिलाते हैं। *कुछ समय पहले बापदादा सिर्फ कर्म में अपवित्रता के लिए इशारा देते थे लेकिन अभी समय सम्पूर्णता के समीप आ रहा है इसलिए मन्सा में भी अपवित्रता का अंश धोखा दे देगा।* तो मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता अति आवश्यक है। मन्सा को हल्का नहीं करना क्योंकि मन्सा बाहर से दिखाई नहीं देती है लेकिन मन्सा धोखा बहुत देती है। *ब्राह्मण जीवन का जो आन्तरिक वर्सा सदा सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप, मन की सन्तुष्टता है, उसका अनुभव करने के लिए मन्सा की पवित्रता चाहिए।*
✺ *ड्रिल :- "ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महानता का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा पवित्र स्वरूप हूँ... जन्म-पुनर्जन्म में आते-आते अपने ही असली स्वरूप को भूल गयी थी...* सृष्टि नाटक के अन्त के भी अन्त समय बाप आकर हम आत्माओं को सूक्ष्म और स्थूल रीति से पवित्र बना रहे हैं... मैं आत्मा फरिशते रूप में एक झील किनारे आकर बैठ जाती हूँ... अपने ही प्रतिबिंब को इस झील में देख रही हूँ... कितने जन्मों से व्यर्थ संकल्पों का बोझ है... कर्मों में भी अपवित्रता... मन्सा में भी अपवित्रता, वेस्ट संकल्प, नेगेटिव संकल्पों का... परचिंतन के भी संकल्प चलते हैं... *अनुभव कर रही हूँ कि मन जो दिखता नहीं, जो सूक्ष्म है... वो कितना धोखा देती है...*
➳ _ ➳ मैं फरिश्ता मधुबन तपोभूमि आ जाती हूँ... और हिस्ट्री हॉल में सोफे पर बैठ जाती हूँ... महसूस कर रही हूँ यहां की पवित्र तरंगे... शांति की, सुख की... जन्म जन्मांतर के सारे बोझ से हल्की होती जा रही हूँ... एक दिव्य ज्योति जैसे कि विस्फोटित होती है... *रंग-बिरंगी किरणें चारों और फैलती हुई मुझ आत्मा में समाती जा रही है... मेरे अनादि गुणों को इमर्ज करती जा रही है...* मैं आत्मा दिव्य गुणों की स्वरूप बन गयी हूँ...
➳ _ ➳ *बाप स्मृति दिलाते हैं की पवित्रता से ही सुख, शान्ति की अनुभूति होती है...* पवित्रता मुझ आत्मा के ब्राह्मण जीवन का आधार है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्रता को अपने जीवन में अपना निरंतर बाबा की याद में रह स्मृति स्वरुप अवस्था का अनुभव कर रही हूँ... मन्सा में भी व्यर्थ संकल्प दग्ध हो रहे हैं... वाचा, कर्मणा से नेगेटिव, परचिन्तन करना समाप्त होते जा रहे है... *अटेंशन रूपी पहरा से किसी भी तरह की अंश मात्र अपवित्रता समाप्त होती जा रही है...*
➳ _ ➳ पवित्रता मुझ ब्राह्मण आत्मा का श्रृंगार है... संगमयुगी ब्राह्मण जीवन को श्रेष्ठ व महान बनाने वाला... सम्बन्ध-संपर्क में आने वाली हर ब्राह्मण आत्मा के प्रति भी पवित्र संकल्प होते जा रहे हैं... समय की संपूर्णता जैसे-जैसे समीप आती जा रही है... मैं आत्मा सम्पूर्ण पवित्र होती जा रही हूँ... सम्पूर्ण पवित्रता ही मन की संतुष्टि दे रही है... पवित्रता की शक्ति से मन निश्छल, निर्मल हो गया है... *मैं आत्मा अपने ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महानता का अनुभव कर रही हूँ... ओम् शान्ति...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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