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❍ 23 / 10 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *चित्रों पर विचार सागर मंथन कर दूसरों को समझाया ?*
➢➢ *यह अभिमान तो नहीं आया की हमने बाबा को इतना दिया ?*
➢➢ *विश्व कल्याणकारी की ऊंची स्टेज पर स्थित रहे ?*
➢➢ *ईश्वरीय शक्तियों से स्वयं को बलवान बनाया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अब सेवा के कर्म के भी बन्धन में नहीं आओ। *हमारा स्थान, हमारी सेवा, हमारे स्टूडेंट, हमारी सहयोगी आत्माएं, यह भी सेवा के कर्म का बन्धन है, इस कर्मबन्धन से कर्मातीत। तो कर्मातीत बनना है* और 'यह वही हैं, यही सब कुछ हैं,' यह महसूसता दिलाए आत्माओं को समीप ठिकाने पर लाना है।
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को इस विशाल ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? आप सबका हीरो पार्ट है। हीरो पार्टधारी क्यों बने? *क्योंकि जो ऊंचे ते ऊंचा बाप जीरो है - उसके साथ पार्ट बजाने वाले हो। आप भी जीरो अर्थात् बिन्दी हो। लेकिन आप शरीरधारी बनते हो और बाप सदा जीरो है।*
〰✧ *तो जीरो के साथ पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर हैं - यह स्मृति रहे तो सदा ही यथार्थ पार्ट बजायेंगे, स्वत: ही अटेन्शन जायेगा। जैसे हद के ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी को कितना अटेन्शन रहता है! सबसे बड़े ते बड़ा हीरो पार्ट आप सबका है। सदा इस नशे और खुशी में रहो - वाह, मेरा हीरो पार्ट जो सारे विश्व की आत्मायें बार-बार हेयर-हेयर करती हैं!*
〰✧ यह द्वापर से जो कीर्तन करते हैं यह आपके इस समय के हीरो पार्ट का ही यादगार है। कितना अच्छा यादगार बना हुआ है! आप स्वयं हीरो बने हो तब आपके पीछे अब तक भी आपका गायन चलता रहता है। अन्तिम जन्म में भी अपना गायन सुन रहे हैं। गोपीवल्लभ का भी गायन है तो ग्वाल बाप का भी गायन है, गोपिकाओंका भी गायन है। *बाप का शिव के रूप में गायन है तो बच्चों का शक्तियों के रूप में गायन है। तो सदा हीरो पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं - इसी स्मृति में खुशी में आगे बढ़ते चलो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ सभी अपने को राजयोगी अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन-सा है? आसन किसको कहेंगे? *भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं।* कभी अपने स्वमान की स्थिति में स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है।
〰✧ कभी *बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में स्थित होते तो वह दिलतखत स्थिति आसन बन जाती है।* जैसे आसन पर स्थित होते हैं, एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो।
〰✧ तो वेरायटी अच्छा लगता है ना। एक ही चीज कितनी भी बढिया हो, लेकिन वही चीज बार-बार अगर यूज करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वेरायटी अच्छी लगेगी। तो *बापदादा ने वेरायटी स्थितियों के वेरायटी आसन दे दिये हैं।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *ब्राह्मण जीवन अर्थात वाह-वाह! हाय-हाय नहीं। शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहीं, वाह! यह भी बोझ उतरता है।* अगर १० मन से आपका ३-४ मन बोझ उतर जाये तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है? वाह बोझ उतरा! *हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? वाह-वाह! करते जाओ तो वाह-वाह! करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी। तो व्याधि को भी वाह-वाह! कहो।* हाय यह मेरे पास ही क्यों आई, मेरा ही हिसाब है। प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। *प्राप्तियाँ सामने रखो और हिसाब-किताब सामने रखो तो वह क्या है? क्या लगेगा? बहुत छोटी-सी चीज़ लगेगी। मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाये, पॉजिटिव रूप में देखो।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- भगवान के श्रेष्ठ मत से श्रेष्ठ बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा मधुबन की पहाड़ी पर बैठ प्रकृति के नजारों को देखती हूँ... पहाड़ों के बीच से उगते हुए सूरज की लालिमा ने अपना सुनहरा आँचल फैलाकर पहाड़ों को और ही खूबसूरत बना दिया है...* ठंडी-ठंडी हवाओं के झोंकें मधुर संगीत सुना रही हैं... इस मधुर पावन धरती की गाथा गा रही है... मैं आत्मा हद की दुनिया से दूर बेहद के इस घर में बेहद बाबा को याद करती हूँ... तुरंत ही मीठे प्यारे बाबा मेरे सम्मुख हाजिर होकर अपने प्यार की खुशबू मुझ पर बरसाते हैं...
❉ *ऊँगली पकडकर श्रीमत की राह पर चलाकर श्रेष्ठ बनाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे बच्चे... अब यह विकारो से भरी दुनिया खत्म होने वाली है और दिव्य गुणो के महक वाली सतयुगी दुनिया आने वाली है... तो ईश्वर पिता की श्रीमत को जीवन का आधार बना लो... *यही श्रीमत और पवित्रता देवी देवता के रूप में श्रृंगारित कर सुखो के संसार में ले चलेगी...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा अपने जीवन रूपी गाड़ी को श्रीमत रूपी पटरी पर चलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा इस पुरानी विकारी दुनिया से मन बुद्धि को निकाल श्रीमत का हाथ पकड़ सतयुगी दुनिया की और बढ़ती चली जा रही हूँ...* दिव्य गुणो से सजती जा रही हूँ... प्यारे बाबा संग निखरती जा रही हूँ...”
❉ *मीठा बाबा स्वर्ग सुखों से जीवन को आबाद कर खुशियों की शहजादी बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... इस दुःख भरी दुनिया से उपराम होकर मेरी महकती यादो में खो जाओ... *श्रीमत का हाथ सदा पकड़े रहो... तो काँटों से महकते फूल बन खिल उठेंगे... ईश्वर पिता का साथ सुखो के जन्नत में ले चलेगा...* जहाँ देवता बन मुस्करायेंगे...”
➳ _ ➳ *रावण की दुनिया से निकल एक राम की यादों में महकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा से सारे गुण और शक्तियो से भरकर भरपूर हो गई हूँ... *इस मिटटी के नातो से निकल कर अपने सत्य स्वरूप के नशे में खो गई हूँ... और श्रेष्ठ कर्म से खिलती जा रही हूँ...”*
❉ *श्रीमत के झूले में झुलाकर दिव्यता से महकाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... जिस दुनिया सा इतना दिल लगाकर दुखी हुए... खाली हो गए... अब उसका अंत आया की आया... *अब समय साँस संकल्पों को मीठे बाबा की यादो और श्रीमत के पालन में लगाओ... तो यह पवित्र जीवन सुख और शांति से खिल उठेगा... घर आँगन सुखो से लहलहायेगा...”*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा सुन्दर परी बनकर पवित्रता की खुशबू चारों ओर फैलाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपकी श्रीमत से खूबसूरत होती जा रही हूँ... मन बुद्धि को इस संसार से उपराम बनाती जा रही हूँ... *मीठे बाबा आपने जो सुंदर कर्म सिखाये है... पवित्रता का दामन थाम सुन्दरतम होती जा रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *ड्रिल :- मुख से ज्ञान रत्न निकालने की प्रैक्टिस करनी है*"
➳ _ ➳ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मुझ आत्मा का श्रृंगार करने वाले ज्ञान सागर *अपने प्यारे शिव प्रीतम से मिलने की जैसे ही मन में इच्छा जागृत होती है। वैसे ही मैं आत्मा सजनी ज्ञान रत्नों का सोलह श्रृंगार कर चल पड़ती हूँ ज्ञान के अखुट खजानो के सौदागर अपने शिव प्रीतम के पास*। उनके साथ अपने प्यार की रीत निभाने के लिए देह और देह के साथ जुड़े सर्व संबंधों को तोड़, निर्बंधन बन, ज्ञान की पालकी में बैठ मैं आत्मा मन बुद्धि की यात्रा करते हुए अब जा रही हूं उनके पास।
➳ _ ➳ उनका प्यार मुझे अपनी ओर खींच रहा है और उनके प्रेम की डोर में बंधी मैं बरबस उनकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ। *उनके प्यार में अपनी सुध-बुध खो चुकी मैं आत्मा सजनी सेकंड में इस साकार वतन और सूक्ष्म वतन को पार कर पहुंच जाती हूं परमधाम अपने शिव साजन के पास*। ऐसा लग रहा है जैसे वह अपनी किरणों रूपी बाहें फैलाए मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। उनके प्यार की किरणों रूपी बाहों में मैं समा जाती हूं। उनके निस्वार्थ और निश्छल प्यार से स्वयं को भरपूर कर, तृप्त होकर मैं आ जाती हूँ सूक्ष्म लोक।
➳ _ ➳ लाइट का फरिश्ता स्वरूप धारण कर मैं फ़रिशता पहुंच जाता हूं अव्यक्त बापदादा के सामने। अव्यक्त बापदादा की आवाज मेरे कानों में स्पष्ट सुनाई दे रही है। *बाबा कह रहे हैं, हे आत्मा सजनी आओ:- "ज्ञान रत्नों का श्रृंगार करने के लिए मेरे पास आओ"।* बाप दादा की आवाज सुनकर मैं फ़रिशता उनके पास पहुंचता हूं। बाबा अपने पास बिठाकर बड़ी प्यार भरी नजरों से मुझे निहारने लगते हैं और अपनी सर्व शक्तियों रूपी रंग बिरंगी किरणों से मुझे भरपूर करने लगते हैं।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से मुझे भरपूर करके बाबा अब मुझे एक बहुत बड़े हॉल के पास ले आते हैं। जिसमें अमूल्य हीरे जवाहरात, मोती, रत्न आदि बिखरे पड़े हैं। किंतु उस पर कोई भी ताला चाबी नहीं है। उनकी चमक और सुंदरता को देखकर मैं आकर्षित होकर उस हॉल के बिल्कुल नजदीक पहुंच जाता हूं। *बाबा मुझे उस हॉल के अंदर ले जाते हैं और मुझसे कहते हैं:- "ये अविनाशी ज्ञान रत्न है। इन अविनाशी रत्नों का ही आपको श्रृंगार करना है"।* कितना लंबा समय अपने अविनाशी साथी से अलग रहे तो श्रृंगार करना ही भूल गए, अविनाशी खजानों से भी वंचित हो गए। किंतु अब बहुत काल के बाद जो सुंदर मेला हुआ है तो इस मेले से सेकेंड भी वंचित नहीं रहना।
➳ _ ➳ यह कहकर बाबा उन ज्ञान रत्नों से मुझे श्रृंगारने लगते हैं। *मेरे गले मे दिव्य गुणों का हार और हाथों में मर्यादाओं के कंगन पहना कर बाबा मुझे सर्व ख़ज़ानों से भरपूर करने लगते है*। सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति और गुणों से अब मैं फ़रिशता स्वयं को भरपूर अनुभव कर रहा हूँ। बाबा ने मुझे ज्ञान रत्नों के खजानों से मालामाल करके सम्पत्तिवान बना दिया है। सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के श्रृंगार से सजा मेरा यह रूप देख कर बाबा खुशी से फूले नही समा रहे। बाबा जो मुझ से चाहते हैं, बाबा की उस आश को मैं आत्मा सजनी बाबा के नयनो में स्पष्ट देख रही हूं।
➳ _ ➳ मन ही मन अपने शिव प्रीतम से मैं वादा करती हूँ कि ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से अब मैं आत्मा सदा सजी हुई रहूँगी और मुख से सदैव ज्ञान रत्न ही निकालूंगी। *अपने शिव साथी से यह वादा करके अपनी फ़रिशता ड्रेस को उतार अब धीरे-धीरे मैं आत्मा वापिस इस देह में अवतरित हो गयी हूँ*। अब मैं बाबा से मिले सर्व ख़ज़ानों से स्वयं को सम्पन्न अनुभव कर रही हूँ। जैसे मेरे अविनाशी साजन ने मुझ आत्मा को गुणों और शक्तियों के गहनों से सजाया है वैसे ही मैं आत्मा भी वरदानीमूर्त बन अब अपने सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उन्हें भी परमात्म स्नेह और शक्तियों का अनुभव करवा रही हूं।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं विश्व कल्याण की ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विनाश लीला को देखने वाली साक्षी द्रष्टा आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सदा ईश्वरीय शक्तियों से बलवान बनती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा माया के फोर्स को सदा समाप्त कर देती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा मायाजीत हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *जिस भी बच्चे को देखें, जो भी मिले, संबंध-सम्पर्क में आये, उन्हों को यह लक्षण दिखाई दें कि यह जैसे परमात्मा बाप, ब्रह्मा बाप के गुण हैं, वह बच्चों के सूरत और मूरत से दिखाई दें।* अनुभव करें कि इनके नयन, इनके बोल, इन्हों की वृत्ति वा वायब्रेशन न्यारे हैं।
➳ _ ➳ 2. *जो बच्चा जहाँ भी रहता है, जो भी कर्मक्षेत्र है, हर एक बच्चे से बाप समान गुण, कर्म और श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल अनुभव में आये, इसको बापदादा कहते हैं - बाप समान बनना।* जो अभी तक संकल्प है बाप समान बनना ही है, वह संकल्प अभी चेहरे और चलन से दिखाई दे। *जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उनके दिल से यह आवाज निकले कि यह आत्मायें बाप समान हैं।*
➳ _ ➳ बापदादा अभी सभी बच्चों से यह प्रत्यक्षता चाहते हैं। जैसे वाणी द्वारा प्रत्यक्षता करते हो तो वाणी का प्रभाव पड़ता है, उससे भी ज्यादा प्रभाव गुण और कर्म का पड़ता है। *हर एक बच्चे के नयनों से यह अनुभव हो कि इन्हों के नयनों में कोई विशेषता है।* साधारण नहीं अनुभव करें। अलौकिक हैं। *उन्हों के मन में क्वेश्चन उठे कि यह कैसे बनें, कहाँ से बनें। स्वयं ही सोचें और पूछें कि बनाने वाला कौन?* जैसे आजकल के समय में भी कोई बढ़िया चीज देखते हो तो दिल में उठता है कि यह बनाने वाला कौन है! ऐसे अपने बाप समान बनने की स्थिति द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो।
➳ _ ➳ आजकल मैजारिटी आत्मायें सोचती हैं कि क्या इस साकार सृष्टि में, इस वातावरण में रहते हुए ऐसे भी कोई आत्मायें बन सकती हैं! तो *आप उन्हों को यह प्रत्यक्ष में दिखाओ कि बन सकता है और हम बने हैं। आजकल प्रत्यक्ष प्रमाण को ज्यादा मानते हैं। सुनने से भी ज्यादा देखने चाहते हैं* तो चारों ओर कितने बच्चे हैं, हर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाए तो मानने और जानने में मेहनत नहीं लगेगी।
✺ *ड्रिल :- "बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बनने का अनुभव"*
➳ _ ➳ अब तक मैं आत्मा झूठे जिस्मानी प्रेम की मृगतृष्णा में भटक रही थी... जिसके द्वारा जन्म जन्मांतर दुःख पाती रही... *मेरे मीठे बाबा ने कोटो में कोई और कोई में भी कोई... मुझ आत्मा को दुःखों से छुड़ा... अपने स्नेह... प्यार की पालना देकर... अपने गले से लगा लिया... वाह रे मैं भाग्यशाली आत्मा!!* जो परमात्मा स्वयं मुझे अपने जैसा बनने की पढ़ाई पढ़ाने रोज़ धरा पर आते हैं...
➳ _ ➳ अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य को देख कर गर्व करती मैं आत्मा... स्वयं भगवान मेरा है... उसका सबकुछ मेरा हो गया है... *उसने अपने सर्व वरदान और सर्वशक्तियां मुझे दे दी हैं... आहा!! मेरा सर्वश्रेष्ठ भाग्य... इस अंतिम जन्म में हर पल भगवान मेरे साथ है... स्वयं भगवान मुझ आत्मा को सर्व सम्बन्धों की पालना दे रहे हैं...* बाबा के सानिध्य से प्राप्त इन सर्व शक्तियों को धारण कर... मैं आत्मा धारणा स्वरूप बन गयी हूँ...
➳ _ ➳ जैसे ही मैं आत्मा अपने पवित्र स्वरूप में टिकती हूँ... मुझ आत्मा के सम्पर्क में जो भी आत्माऐं आती हैं... वह मन-वचन-कर्म से पवित्रता का अनुभव करती हैं... मैं आत्मा स्वराज्य के धर्म और बाबा द्वारा दी गई सभी मर्यादाओं का पालन करती हूँ... *संकल्प व स्वप्न में भी मेरे प्यारे शिवबाबा के सिवाय और कोई नही... मुझे बाबा को प्रत्यक्ष करना ही है... करना ही है... सभी आत्माओं को बाबा का बनाना ही है...*
➳ _ ➳ कर्मक्षेत्र में जो भी आत्माऐं मुझ आत्मा के सम्बन्ध सम्पर्क में आती हैं... मुझ आत्मा की रूहानियत उन्हें बाबा की ओर आकर्षित करती हैं... *मेरे मधुर बोल... उन्हें शांति का अनुभव कराते हैं... मेरे नयनों से उन्हें अलौकिकता... स्पष्ट दिखाई देती है... मेरे हर कर्म से... चाल चलन से... झलकती हुई दिव्यता उन्हें भरसक मेरी ओर आकर्षित करती है...*
➳ _ ➳ मेरा हर बोल बाप समान... जो बाबा का संकल्प... वही मुझ आत्मा का संकल्प... मेरी हर श्वांस... हर सेकंड... तन-मन-धन... बाप समान बन रहा है... *मैं आत्मा जहाँ भी जाती हूँ... सारे वातावरण को रूहानियत की खुशबू से महका देती हूँ... बाबा से प्राप्त गुणों और शक्तियों का प्रभाव... हर कर्म से झलकती दिव्यता... अलौकिकता... सभी आत्माओं को सोचने में मजबूर कर देती है... आखिर इन ब्रह्माकुमारियों को ऐसा क्या मिला है जो ये सदा खुश रहती हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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