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❍ 20 / 10 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *स्वयं को और स्राव को सही रास्ता बताया ?*
➢➢ *गयाना योग से आत्मा का श्रृंगार किया ?*
➢➢ *मन बुधी को मनमत से फ्री कर सूक्षम वतन का अनुभव किया ?*
➢➢ *व्यर्थ को फुल स्टॉप लगा शुभ भावना का स्टॉक जमा किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे कर्म में आना स्वाभाविक हो गया है वैसे कर्मातीत होना भी स्वाभाविक हो जाए। कर्म भी करो और याद में भी रहो। *जो सदा कर्मयोगी की स्टेज पर रहते हैं वह सहज ही कर्मातीत हो सकते हैं। जब चाहे कर्म में आये और जब चाहे न्यारे बन जायें।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को भाग्यवान समझ हर कदम में श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करते हो? क्योंकि इस समय बाप भाग्यविधाता बन भाग्य देने के लिए आये हैं। *भाग्यविधाता भाग्य बांट रहा है। बांटने के समय जो जितना लेने चाहे उतना ले सकता है। सभी को अधिकार है। जो ले, जितना ले। तो ऐसे समय पर कितना भाग्य बनाया है, यह चेक करो। क्योंकि अब नहीं तो फिर कब नहीं।*
〰✧ *इसलिए हर कदम में भाग्य की लकीर खींचने का कलम बाप ने सभी बच्चों को दिया है। कलम हाथ में है और छुट्टी है - जितनी लकीर खींचना चाहो उतना खींच सकते हो। कितना बिढ़या चांस है! तो सदा इस भागयवान समय के महत्व को जान इतना ही जमा करते हो ना?* ऐसे न हो कि चाहते तो बहुत थे लेकिन कर न सके, करना तो बहुत था लेकिन किया इतना। यह अपने प्रति उल्हना रह न जाए। समझा?
〰✧ *तो सदा भाग्य की लकीर श्रेष्ठ बनाते चलो और औरों को भी इस श्रेष्ठ भाग्य की पहचान देते चलो। 'वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!' यही खुशी के गीत सदा गाते रहो।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ जैसे आवाज में आना अति सहज लगता है ऐसे ही आवाज से परे जाना इतना सहज है? यह बुद्धि की एक्सरसाइज सदैव करते रहना चाहिए। जैसे शरीर की एक्सरसाइज शरीर को तन्दरुस्त बनाती है ऐसे *आत्मा की एक्सरसाइज आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।* तो यह एक्सरसाइज आती है या आवाज में आने की प्रैक्टिस ज्यादा है?
〰✧ *अभी-अभी आवाज में आना और अभी-अभी आवाज से परे हो जाना* - जैसे वह सहज लगता है वैसे यह भी सहज अनुभव हो। क्योंकि आत्मा मालिक है। सभी राजयोगी हो, प्रजायोगी तो नहीं? राजा का काम है ऑर्डर पर चलाना। तो *यह मुख भी आपके ऑर्डर पर हो* - जब चाहो तब चलाओ और जब चाहो तब नहीं चलाओ आवाज से परे हो जाओ
〰✧ लेकिन इस रूहानी एक्सरसाइज में सिर्फ मुख की आवाज से परे नहीं होना है - *मन से भी आवाज में आने के संकल्प से परे होना है।* ऐसे नहीं मुख से चुप हो जाओ और मन में बातें करते रहो। *आवाज से परे अर्थात मुख और मन दोनों की आवाज से परे, शान्ति के सागर में समा जायें।* यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है! अनुभवी तो हो ना।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ बापदादा का हर एक बच्चे से बहुत-बहुत-बहुत प्यार है। ऐसे नहीं समझे कि हमारे से बापदादा का प्यार कम है। *आप चाहे भूल भी जाओ लेकिन बाप निरन्तर हर बच्चे की माला जपते रहते हैं क्योंकि बापदादा को हर बच्चे की विशेषता सदा सामने रहती है। कोई भी बच्चा विशेष न हो, यह नहीं है।* हर बच्चा विशेष है। बाप कभी एक बच्चे को भी भूलता नहीं है, तो सभी अपने को विशेष आत्मा हैं और विशेष कार्य के लिए निमित हैं, ऐसे समझ के आगे बढ़ते चलो। *बापदादा अगर एक-एक की महिमा करे तो सारी रात लग जाये।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- सारी दुनिया को सैलवेज करना"*
➳ _ ➳ *परमपिता परमात्मा परमधाम से आकर विकारों की अग्नि से धधकते इस दुनिया को स्वाहा कर... नई निर्विकारी सतयुगी दुनिया की स्थापना के लिए रूद्र ज्ञान यज्ञ की ज्वाला प्रज्वलित करते हैं...* कोटो में से चुनकर प्यारे बाबा ने मुझे अपनी गोदी में पालना दी... मुझे ब्राहमण बनाकर इस यज्ञ में अपना राईट हैण्ड बनाया... विचार करते हुए मैं आत्मा उड़ चलती हूँ, अव्यक्त वतन में... मीठे बाबा मेरे सिर पर विश्व परिवर्तन का ताज पहनाते हुए समझानी देते हैं...
❉ *सबकी जिन्दगी की राहों से अँधेरा मिटाकर विश्व को रोशन करने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* “मेरे मीठे फूल बच्चे... बापदादा आज चैतन्य दीपको से मिलन मना रहे है... *हर एक दीपक अपनी रौशनी से विश्व के अंधकार को दूर करने वाला चैतन्य दीपक है... अपनी इस खुबसूरत जिम्मेदारी के ताज को सदा पहने रहो...* विश्व की आत्माये अंधकार के सागर में समायी सी... बेसब्री से आपकी बाट निहार रही है... उनके जीवन का अँधेरा दूर करो...”
➳ _ ➳ *इस जहान की नूर मैं आत्मा सबके दिलों की आश बन दुःख दर्द मिटाकर खुशियों से महकाते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे प्यारे बाबा... मै आत्मा आपकी यादो में प्रकाश पुंज बन गई हूँ... *सबके दुखो को दूर करने वाली दीपक बन जगमगा रही हूँ... सबके दामन में सुखो के फूल खिला रही हूँ...* और विश्व परिवर्तन की जिम्मेदारी का ताज पहन मुस्करा रही हूँ...”
❉ *प्यारे बाबा अमृत भरा कलश मेरे सिर पर रख विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के निमित्त बनाते हुए कहते हैं:-* “मीठे प्यारे फूल बच्चे... कितने महान भाग्यशाली ब्रह्मा कुमार हो... आपके स्नेह के आकर्षण में बाबा अव्यक्त होते हुए भी....मधुबन में साकार रूप चरित्र की अनुभूति सदा कराते है... *कितने बड़े स्नेह के जादूगर हो... ऐसी विशेषता भरी खुबसूरत मणि हो कि स्नेह के बन्धन में बापदादा को बांध लिया है...”*
➳ _ ➳ *परमात्मा की गले का हार बन अविनाशी सुखों से इस सृष्टि का श्रृंगार करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* “मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा खुबसूरत भाग्य की धनी हूँ... भगवान मेरी बाँहों में आ गया है... *मेरे स्नेह की डोरी में खिंच कर सदा साथ रह मुस्करा रहा है... वाह बच्चे वाह के गीत गा रहा है... आपके प्यार में मै आत्मा खुबसूरत चैतन्य दीपक बन गई हूँ...”*
❉ *अपने वरदानी हाथों से अविनाशी भाग्य की लकीर मेरे मस्तक पर खींचते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* “मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *बापदादा होलिहंसो का ख़ुशी भरा डांस देख देख मन्त्रमुग्ध है... मनमनाभव के महामन्त्र के वरदानी बन मुस्करा रहे हो...* ईश्वर पिता की सारी दौलत को बाँहों में भरने वाले खबसूरत सौदागर भी हो और जादूगर भी हो... सदा इस अलौकिक नशे में रहो और ज्ञान सूर्य बन चमको...”
➳ _ ➳ *इस धरा पर स्वर्ग लाने के कार्य में मैं आत्मा अपना तन, मन, धन सफल करते हुए कहती हूँ:-* “हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपको पाकर किस कदर गुणो और शक्तियो की जादूगर सी बन गयी हूँ... *जीवन कितना मीठा प्यारा और खुशनुमा इस प्यार की जादूगरी से हो गया है... मै आत्मा ज्ञान सूर्य बन अपनी रूहानियत से सबके दिल रोशन कर रही हूँ...”*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- ज्ञान योग से पवित्र बन आत्मा का श्रृंगार करना है, शरीरों का नही*"
➳ _ ➳ देह और देह की यह दुनिया अब कब्रिस्तान होनी है और पाँच तत्वों से बने सब के शरीर पाँच तत्वों में ही मिल जाने हैं। इन्ही विचारों में खोई एक पार्क के किनारे बनी पगडंडी पर मैं टहलते हुए जा रही हूँ और पार्क में टहल रहे लोगों की गतिविधियों को भी देखती जा रही हूँ। *शारीरिक सौंदर्य के प्रति जागरूक लोगों को देख मन मे विचार आता है कि कितनी बड़ी गलतफहमी में जी रहें है लोग। जिस शरीर को मिट्टी में मिल जाना है उसके श्रृंगार पर कितना समय व्यर्थ गंवा रहें है और जिस आत्मा को परमात्मा के साथ जाना है उस आत्मा को सजाने और सवांरने का किसी को ख्याल ही नही*।
➳ _ ➳ कितने दुर्भाग्यशाली हैं वो मनुष्य जो इस बात से अनजान है कि स्वयं परमपिता परमात्मा साजन हम आत्मा सजनियो का ज्ञान और गुणों से श्रृंगार कर, हमे अपने साथ ले जाने के लिए इस धरती पर आये हुए है और *कितनी दुर्भाग्यशाली हैं वो ब्राह्मण आत्मायें जो इस सत्यता को जानने के बाद भी देह के आकर्षण से स्वयं को मुक्त नही कर पा रही और पुराने जड़जड़ीभूत शरीर के श्रृंगार पर अपने संगमयुग के अनमोल पलों को व्यर्थ गंवाती जा रही हैं*।
➳ _ ➳ यही सोचते - सोचते एक दृश्य मेरी आँखों के सामने उभर आता है। मैं देख रही हूँ पार्क में जो मनुष्य टहल रहें थे वो सब जैसे लाशों में तबदील हो गए हैं। वो पार्क अब पार्क ना रह कर कब्रिस्तान बन गया है। चारों और लाशों के ढ़ेर और उनसे आ रही दुर्गन्ध। *यह दृश्य मेरे अंदर देह और देह की दुनिया से वैराग्य उतपन्न कर रहा है और इसी वैरागमई स्थिति में इस दृश्य से अपना ध्यान हटाकर मैं अपने वस्तविक स्वरूप पर एकाग्र करती हूँ और खो जाती हूँ अपने अति सुन्दर, मणि के समान चमकते, जगमग करते आकर्षणमयी स्वरूप में*। अपने इस स्वरूप में स्थित होते ही अपने अंदर निहित गुणों और शक्तियों का अनुभव मुझे गहन सुकून से भरपूर कर देता है।
➳ _ ➳ यह गहन आनन्द और सुकून की अनुभूति मुझे आभास कराती है जैसे *मेरे ही समान एक चमकता हुआ ज्योति पुंज जो अनन्त प्रकाशमय है, गुणों में सिंधु के समान है मुझे ऊपर अपनी और आकर्षित कर रहा है*। ये मेरे शिव पिता है जो मुझे इस कब्रिस्तान से निकालने के लिए अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणो की हजारों बाहों को फैलाये खड़े हैं। अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों को थामे अब मैं आत्मा, मैं चमकती मणि जा रही हूँ अपने शिव पिता के साथ एक खूबसूरत यात्रा पर।
➳ _ ➳ अपना असीम स्नेह लुटाते, अपनी बाहों के झूले में झुलाते मेरे बाबा मुझे अपने साथ एक अति सुंदर, ऐसी निराकारी दुनिया में ले आते हैं जहाँ शान्ति ही शांति है। मन को अशांत करने वाली देह की दुनिया का यहाँ संकल्प मात्र भी नही। *यहाँ पहुँच कर अपनी सर्वशक्तियों की किरणों के बाहों के झूले से मेरे बाबा मुझे नीचे उतार देते हैं और मैं चमकती मणि अब इस शांति की दुनिया की सैर करने चल पड़ती हूँ*। शान्ति की इस अनन्त दुनिया में बहुत देर विचरण करके, भरपूर आनन्द लेकर अब मैं बाबा के पास आ कर बैठ जाती हूँ और उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर करने लगती हूँ।
➳ _ ➳ सर्वशक्तियों से भरपूर हो कर, इस आनन्दमयी अति सुंदर रूहानी यात्रा और अपने स्वीट साइलेन्स होम में अपने प्यारे बाबा के साथ बिताए मंगल मिलन की अनमोल यादों के अनुभव को सँजोये अब मैं आत्मा वापिस अपना पार्ट बजाने देह की दुनिया में लौट आती हूँ। *किन्तु देह में रहते अब इस पुरानी देह से मेरा ममत्व समाप्त हो गया है*। ये शरीर केवल मेरा रथ है जिसका आधार मुझ आत्मा ने केवल कर्म करने के लिए लिया है इस बात को सदैव स्मृति में रख इस रथ की मैं पूरी सम्भाल करती हूँ किन्तु इसका श्रृंगार नही करती।
➳ _ ➳ *इस रथ पर विराजमान हो कर, अपने प्यारे बाबा की शिक्षायों को अपने जीवन में धारण कर, ज्ञान और गुणों से अपना श्रृंगार कर केवल अपने प्यारे बाबा के समान बनने का ही पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मन-बुद्धि को मनमत से फ्री कर सूक्ष्मवतन का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं डबल लाइट आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा व्यर्थ को सदैव फुलस्टॉप लगाती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा शुभ भावना का स्टॉक सदा फुल करती हूँ ।*
✺ *मैं सदा समर्थ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *चाहे विदेशी, चाहे भारतवासी दोनों ही भाग्य विधाता के बच्चे हैं इसलिए हर ब्राह्मण बच्चा विजयी है।* सिर्फ हिम्मत को इमर्ज करो। हिम्मत समाई हुई है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो- ऐसे हो ना? (सभी हाथ हिला रहे हैं) हाथ तो बहुत अच्छा हिलाते हैं। *अभी मन से भी सदा हिम्मत का हाथ हिलाते रहना। बापदादा को खुशी है, नाज है कि मेरा एक-एक बच्चा अनेक बार का विजयी है। एक बार नहीं, अनेक बार की विजयी आत्मायें हो।* तो कभी यह नहीं सोचना, पता नहीं क्या होगा? होगा शब्द नहीं लाना। विजय है और सदा रहेगी।
➳ _ ➳ 2. *मायाजीत हैं। हम नहीं होंगे तो और कौन होगा, यह रूहानी नशा इमर्ज करो।* और-और कार्य में मन और बुद्धि बिजी हो जाती है ना तो नशा मर्ज हो जाता है। लेकिन बीच-बीच में चेक करो कि कर्म करते हुए भी यह विजयीपन का रूहानी नशा है? *निश्चय होगा तो नशा जरूर होगा।* *निश्चय की निशानी नशा है और नशा है तो अवश्य निश्चय है। दोनों का सम्बन्ध है।*
➳ _ ➳ बापदादा के पास बच्चों के पत्र वा चिटकियां बहुत अच्छे-अच्छे हिम्मत की आई हैं कि हम अब से 108 की माला में अवश्य आयेंगे। बहुतों के अच्छे-अच्छे उमंग के पत्र भी आये हैं और रूह-रिहान में भी बहुतों ने बापदादा को अपने निश्चय और हिम्मत का अच्छा समाचार दिया है। *बापदादा ऐसे बच्चों को कहते हैं - बाप ने आप सबके बीती को बिन्दू लगा दिया।* इसलिए बीती को सोचो नहीं, अब जो हिम्मत रखी है, हिम्मत और मदद से आगे बढ़ते चलो। *बापदादा ऐसे बच्चों को यही वरदान देते हैं - इसी हिम्मत में, निश्चय में, नशे में अमर भव।*
✺ *ड्रिल :- "निश्चय बुद्धि बन विजयीपन के रूहानी नशे का अनुभव करना"*
➳ _ ➳ *मैं फरिश्ता उड़ती हुई ऊंची पहाड़ी पर आकर बैठ जाती हूँ...* और देखती हूँ कि दूर देश के फ़रिश्ते भी उड़ कर कभी पावन भारत भूमि पर आते तो कभी चले जाते... सबके मन खुशियों से, उमंग से भरे हुए हैं... हैं तो सभी भाग्य विधाता के बच्चे, ब्राह्मण बच्चे... कल-कल बहते पानी की मधुर आवाज से मन मगन हो जाता है... और *बुद्धि के पटल पर चलचित्र चलने लगता है.... इसमें मेरी ही कल्प-कल्प की कहानी चल रही है...*
➳ _ ➳ *मैं विजयी आत्मा हूँ... सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि हूँ... और इसी नशे का अनुभव कर रही हूँ की मैं आत्मा सिर्फ एक बार की नहीं... बल्कि अनेक बार की कल्प कल्प की विजयी आत्मा हूँ।* बापदादा रूहानी दृष्टी देते हुए मुझ आत्मा को... विजयी भव का वरदान दे रहे हैं... और मैं आत्मा बापदादा से इस वरदान को पाकर मास्टर सर्वशक्तिवान की पॉवरफुल स्थिति का अनुभव कर रही हूँ... मास्टर सर्वशक्तिमान की स्थिति मुझे मायाजीत बनाती जा रही है... *माया के हर मुखौटे को परखने की कसौटी से उन पर जीत पाती जा रही हूँ...*
➳ _ ➳ *सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि की यह अवस्था मुझ आत्मा को अत्यंत ही सुखदायी रूहानी नशे का अनुभव करवा रही है...* मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र पर अपना हर कर्म विजयी मूर्त आत्मा के इसी रूहानी नशे में स्थित होकर कर रही हूँ... और सदैव बापदादा की छत्रछाया में रहते हुए हर सेकंड अपने अलौकिक मार्ग में तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए हर कार्य में सफलता का अनुभव कर रही हूँ... *स्वयं भगवान मेरा साथी है - यह रूहानी नशा मुझ आत्मा को निडर बना मायाजीत अवस्था का अनुभव करवा रहा है...*
➳ _ ➳ *मैं परम पवित्र आत्मा अपने में निश्चय और हिम्मत का बल अनुभव करती हूँ...* बीती को बीती कर आगे बढ़ती जा रही हूँ... सभी सोच-फिकर बापदादा को देकर हल्की हो गयी हूँ... अब मैं आत्मा अपने हर कर्म में हर कदम पर हिम्मत का एक कदम उठा बापदादा की हज़ार गुना मदद का अनुभव कर रही हूँ... और मेरा यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन सम्पूर्ण निर्विघ्न होता जा रहा है... अब जबकि परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा की सभी बीती को बिंदु लगा दिया है... मैं आत्मा 108 की विजयमाला में होने का अनुभव कर रही हूँ... *कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हूँ... ओम् शान्ति।*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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