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❍ 30 / 11 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म तो नहीं किया ?*
➢➢ *एक दो के मददगार बनकर रहे ?*
➢➢ *अमृतवेले का महत्व जानकर खुले भण्डार से अपनी झोली भरी ?*
➢➢ *निस्वार्थ सेवाधारी बनकर रहे ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ अनेक प्रकार के व्यक्ति, वैभव अथवा अनेक प्रकार की वस्तुओं के सम्पर्क में आते आत्मिक भाव और अनासक्त भाव धारण करो। *यह वैभव और वस्तुयें अनासक्त के आगे दासी के रूप में होंगी और आसक्त भाव वाले के आगे चुम्बक की तरह फंसाने वाली होंगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अपने को अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना! इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। *'तख्तनशीन आत्मा हूँ' - इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है। तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियाँ स्वत: ही ऑर्डर पर चलेंगी। जो अकाल-तख्त-नशीन समझ कर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है।* क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, न देह के सम्बन्ध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते हैं।
〰✧ *बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो 'एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो सिकीलधे बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं। तो बाप भी कहते हैं तख्त पर बैठो, नीचे नहीं आओ। जिसको तख्त मिलता है वह दूसरी जगह बैठेगा क्या?* तो अकालतख्त वा दिलतख्त को भूल देह की धरनी में, मिट्टी में नहीं आओ। देह को मिट्टी कहते हो ना। मिट्टी, मिट्टी में मिल जायेगी - ऐसे कहते हैं ना! तो देह में आना अर्थात् मिट्टी में आना। जो रोंयल बच्चे होते हैं वह कभी मिट्टी में नहीं खेलते। परमात्म-बच्चे तो सबसे रॉयल हुए। तो तख्त पर बैठना अच्छा लगता है या थोड़ी-थोड़ी दिल होती है - मिट्टी में भी देख लें।
〰✧ कई बच्चों की आदत मिट्टी खाने की वा मिट्टी में खेलने की होती है। तो ऐसे तो नहीं है ना! 63 जन्म मिट्टी से खेला। अब बाप तख्तनशीन बना रहे हैं, तो मिट्टी से कैसे खेलेंगे, जो मिट्टी में खेलता है वह मैला होता है। तो आप भी कितने मैले हो गये। अब बाप ने स्वच्छ बना दिया। सदा इसी स्मृति से समर्थ बनो। शक्तिशाली कभी कमजोर नहीं होते। *कमजोर होना अर्थात् माया की बीमारी आना। अभी तो सदा तन्दुरुस्त हो गये। आत्मा शक्तिशाली हो गई। शरीर का हिसाब-किताब अलग चीज है लेकिन मन शक्तिशाली हो गया ना।* शरीर कमजोर है, चलता नहीं है, वह तो अंतिम है, वह तो होगा ही लेकिन आत्मा पावरफुल हो। शरीर के साथ आत्मा कमजोर न हो। तो सदा याद रखना कि डबल तख्तनशीन सो डबल ताजधारी बनने वाले हैं।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ हर कर्म के लिए श्रीमत है। चलना, खाना, पीना, सुनना, सुनाना - सबकी श्रीमत है। है, कि नहीं है? मानो आप परचिंतन कर रहे हो तो क्या ये श्रीमत है? *श्रीमत को ढीला किया तो मन को चांस मिलता है चंचल बनने का।*
〰✧ फिर उसकी आदत पड जाती है। तो आदत डालने वाला कौन? आप ही हो ना! तो पहले मन का राजा बनो। *चेक करो - अन्दर ही अन्दर ये मन्त्री अपना राज्य तो नहीं स्थापन कर रहे हैं?*
〰✧ जैसे आजकल के राज्य में अलग गुप बना करके और पॉवर में आ जाते हैं। और पहले वालों को हिलाने की कोशिश करते हैं तो ये मन भी ऐसा करता है, बुद्धि को भी अपना बना लेता है। *मुख को, कान को, सबको अपना बना लेता है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *जो इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति में स्थित होगा वही किसी की भी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अगर स्वयं में ही कोई इच्छा रही होगी तो वह दूसरे की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर सकते। इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज तब रह सकती है जब स्वयं युक्तियुक्त, सम्पन्न, नॉलेजफुल और सदा सक्सेसफुल अर्थात् सफलता मूर्त होंगे।* जो स्वयं सफलता मूर्त नहीं होगा तो वह अनेक आत्माओं के संकल्प को भी सफल नहीं कर सकता। *इसलिए जो सम्पन्न नहीं तो उसकी इच्छायें ज़रूर होंगी क्योंकि सम्पन्न होने के बाद ही इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज आती है। तब कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रह जाती तो ऐसी स्टेज को ही कर्मातीत अथवा फ़रिश्तेपन की स्टेज कहा जाता है।* ऐसी स्थिति वाला ही हर आत्मा को यथार्थ परख सकता है और दूसरों को प्राप्ति करा सकता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- तन-मन-धन से सर्विस करना"*
➳ _ ➳ *जन्मते ही बाबा से मैं आत्मा 3 तिलक की अधिकारी बनी, स्वराज्य तिलक... सर्विसएबुल का तिलक... सर्व ब्राह्मण परिवार, बापदादा के स्नेही सहयोगी पन का तिलक...* जैसे ही मुझ आत्मा को स्मृति आई, कि मैं कौन... और किसकी... तन मन धन सब बाबा को अर्पित हो गया… *बाबा ने बताया बच्ची यह सब तुम्हें सेवा निमित मिला है, इसे सेवा अर्थ यूज करो...* अपना सर्वस्व सफल कर भाग्य को उच्च बनाओ... *बाबा की शिक्षाओं पर अटेंशन रखते बापदादा और सर्व ब्राह्मण परिवार के सहयोग द्वारा मैं आत्मा स्वयं को विश्व परिवर्तन करने की सेवा में बाबा का मददगार देख रही हूं...*
❉ *सूक्ष्म वतन में मीठे बाबा मुझ आत्मा का हाथ थामे मुझ डबल लाइट फरिश्ते से बोले:-* "मीठी बच्ची... जिस प्रकार गोप गोपियों के सहयोग द्वारा श्री कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाते दिखाया है, अभी उसी सहयोग की आवश्यकता मुझ गोपी वल्लभ को आप गोप गोपिकाओं से है... *दुखों के पहाड़ को प्रभु परिवार द्वारा उठाने का यह अभी समय है..."*
➳ _ ➳ *पतित पावन बाबा की शिक्षाओं को स्वयं में उतारते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां बाबा... स्वदर्शन चक्रधारी बन मुझ आत्मा का भाग्य जाग उठा है... अभी मैं सर्विसएबुल आत्मा बन... सर्व को पावन बनाने की सेवा में तत्पर हूं... *निशदिन निशपल आप समान सेवा कर मैं आत्मा अपने भाग्य को उच्च बना रही हूं..."*
❉ *मीठे बाबा मुझ आत्मा को समझानी देते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *सेवा में सफलता का मुख्य साधन निमित्त भाव है, मैं और मेरा अशुद्ध अहंकार हैं...* इसलिए जब मैं पन की स्मृति आये, तो खुद से पूछना मैं कौन?... और जब मेरा याद आये तो... तो बस मुझे याद कर लेना... इन्ही स्मृतियों से निरन्तर सहजयोगी और निरन्तर सेवाधारी रहोगे..."
➳ _ ➳ *मीठे बाबा की मीठी समझानी को स्वयं में उतारते हुए मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मीठे बाबा... *"मेरा बाबा" ये चाबी मुझ आत्मा को सभी हदों से पार किए हुए हैं,* बेहद में रह मैं आत्मा निर्विघ्न तन मन धन से सेवाएं देने में तत्पर हूं... *मुझ आत्मा का खुशनुमा चेहरा चलते-फिरते सेवा केंद्र का कार्य कर रहा हैं... हर किसी से आवाज आ रही है बाबा- तुम्हें बनाने वाला कौन?..."*
❉ *मीठे बाबा प्यार भरी फुहार मुझ आत्मा पर बरसाते हुए बोले:-* "प्यारी बच्ची... *यह वही रूद्र ज्ञान यज्ञ है जिसमें असुर विघ्न डालते हैं... लेकिन एक कर्म योगी सेवाधारी के लिए यह माना जैसे खेल है...* जैसे जैसे तुम इसमे पहलवान बनते जा रहे हो, माया भी अपना वार जोरों से कर रही है... लेकिन यदि *सदा सेवा में बिजी हो तो माया का वार हो नहीं सकता..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा से सुहानी प्यारी दृष्टि लेते मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मीठे बाबा... *मनसा वाचा कर्मणा तन मन धन संकल्प श्वांस सभी से मैं आत्मा सहयोगी हो हर पल हर दिन मैं आत्मा इन सभी खजानों को सफल कर रही हूं...* स्वर्णिम भारत का वह दृश्य जिसमें सभी जीव आत्माएं, प्रकृति पूरी सृष्टि सतोप्रधान है... दृश्य मुझ आत्मा की नजरों में घूम रहा है..."
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नही करना है*
➳ _ ➳ स्वराज्यअधिकारी की सीट पर सेट होकर, अपनी कर्मेन्द्रियों की राजदरबार लगाकर मैं चेक कर रही हूँ कि सभी कर्मेन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं! *यह चेकिंग करते - करते मैं मन ही मन विचार करती हूँ कि पूरे 63 जन्म इन कर्मेन्द्रियों ने मुझ आत्मा राजा को अपना गुलाम बना कर ना जाने मुझ से क्या - क्या विकर्म करवाये*। इन विकर्मो का बोझ मुझ आत्मा के ऊपर इतना अधिक हो गया कि मैं अपने सत्य स्वरुप को ही भूल गई। मैं आत्मा अपना ही स्वधर्म, जो कि सदा शान्त और सुखमय है, उसे भूल कितनी दुखी और अशांत हो गई। किन्तु अब जबकि मेरे प्यारे पिता ने आकर मुझे फिर से मेरे सत्य स्वरूप की पहचान दे दी है कि मैं आत्मा कर्मेन्द्रियों की गुलाम नही हूँ, मैं तो राजा हूँ।
➳ _ ➳ इसलिए इस सत्य पहचान के साथ अब मुझे स्व स्वरूप में सदा स्थित रहकर, इन कर्मेन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखना है। *पुराने स्वभाव संस्कारो के कारण अगर कभी मन मे कोई विकल्प उतपन्न होता भी है तो भी मुझे कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नही होने देना है और यह तभी होगा जब मैं सदैव स्व स्वरूप की स्थिति में स्थित रहूँगी*। मन ही मन यह चिन्तन करते हुए अपने स्व स्वरूप में स्थित होकर अब मैं अपने ही स्वरूप को देखने मे मगन हो जाती हूँ। सातों गुणों और अष्ट शक्तियों से सम्पन्न अपने अति सुन्दर निराकारी स्वरूप को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ। *दोनों आईब्रोज के बीच मस्तक पर चमकता हुए एक चैतन्य सितारे के रूप में मुझे मेरा यह स्वरूप बहुत ही लुभायमान लग रहा है*। देख रही हूँ 7 रंगों की रंगबिरंगी किरणों को मैं अपने मस्तक से निकलते हुए जिसका भीना - भीना प्रकाश मन को आनन्दित कर रहा है।
➳ _ ➳ इस प्रकाश में विद्यमान वायब्रेशन्स धीरे - धीरे मस्तक से बाहर निकल कर मेरे चारो और फैल कर मेरे आस पास के वायुमण्डल को शुद्ध और पावन बना रहे हैं। वातावरण में एक दिव्य रूहानी खुशबू फैलती जा रही है, जो मुझे देह से डिटैच कर रही है। *देह, देह की दुनिया, देह के वैभवों, पदार्थो को भूल अब मैं पूरी तरह से अपने स्वरूप में स्थित हो गई हूँ और बड़ी आसानी से अपने अकाल तख्त को छोड़, देह से बाहर आ गई हूँ*। देह से बाहर आकर देख रही हूँ अब मैं स्वयं को देह से बिल्कुल न्यारे स्वरूप में। हर बन्धन से मुक्त इस डबल लाइट स्वरूप में स्थित होकर अब मैं धीरे - धीरे ऊपर की और जा रही हूँ।
➳ _ ➳ मन बुद्धि की एक खूबसूरत रूहानी यात्रा पर चलते - चलते मैं पांचो तत्वों की साकारी दुनिया को पार कर पहुँच गई हूँ आकाश से ऊपर और इससे भी ऊपर सौरमण्डल, तारामण्डल को पार करके, सूक्ष्म लोक से होकर अब मैं अपनी निराकारी दुनिया मे आ गई हूँ। *इस अनन्त प्रकाशमय अंतहीन निर्वाणधाम घर में अब मैं विचरण कर रही हूँ और यहाँ फैले शान्ति के वायब्रेशन्स को स्वयं में समाकर डीप साइलेन्स का अनुभव कर रही हूँ*। यह डीप साइलेन्स की अनुभूति मुझे ऐसा अनुभव करवा रही है जैसे मैं शांति की किसी गहरी गुफा में बैठी हूँ जहाँ संकल्पो की भी कोई हलचल नही। शांति की गहन अनुभूति करके अब मैं सर्वगुणों, सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास पहुँचती हूँ । *एक अति प्रकाशमय ज्योतिपुंज के रूप में अपने शिव पिता को मैं अपने सामने देख रही हूँ*।
➳ _ ➳ उनके सानिध्य में गहन सुख और शांति की अनुभूति करते हुए मैं उनके बिल्कुल समीप पहुँच कर उन्हें टच करती हूँ। सर्वशक्तियों की तेज धारायें मुझ आत्मा में प्रवाहित होने लगती है और मुझ आत्मा पर चढ़े विकर्मो की कट उतरने लगती है। *पुराने सभी स्वभाव संस्कार सर्वशक्तियों की तेज आंच से जलने लगते हैं और मैं आत्मा स्वयं को एकदम हल्का अनुभव करने लगती हूँ*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकर्मो की कट को उतारने के साथ - साथ, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाने के लिए बाबा अपनी सर्वशक्तियों का बल मेरे अंदर भरकर मुझे शक्तिशाली बना रहे हैं। सर्व शक्तियों से भरपूर होकर मैं आत्मा अब वापिस साकारी दुनिया की ओर लौट रही हूँ।
➳ _ ➳ अपने साकार तन में भृकुटि के भव्यभाल पर मैं आत्मा फिर से विराजमान हूँ और इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ। हर कर्म अब मैं बाबा को अपने साथ रखकर, कम्बाइंड होकर करती हूँ। *बाबा की याद मेरे चारों और शक्तियों का एक ऐसा सुरक्षा कवच बना कर रखती है जिससे मैं आत्मा माया के धोखे से सदा बची रहती हूँ*। अपनी शक्तिशाली स्व स्थिति में अब मैं सदा स्थित रहती हूँ। मनसा में कोई विकल्प कभी आ भी जाये तो भी परमात्म बल के प्रयोग द्वारा, कर्मेन्द्रियों पर जीत पाकर, उनसे कोई भी विकर्म अब मैं कभी भी नही होने देती हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अमृतवेले का महत्व जानकर खुले भण्डार से अपनी झोली भरपूर करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं तकदीरवान आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा सेवा में स्वार्थ मिक्स करने से सदैव मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सफलता भी मिक्स होने से सदा मुक्त हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा नि:स्वार्थ सेवाधारी हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. मातायें तो सदा खुशी के झूले में झूलती हैं, झूलती हैं ना! माताओं को बहुत नशा रहता है, क्या नशा रहता है? हमारे लिए बाप आया है। नशा है ना! *द्वापर से सभी ने नीचे गिराया, इसलिए बाप को माताओं पर बहुत प्यार है और खास माताओं के लिए बाप आये हैं।* खुश हो रहे हैं, लेकिन सदा खुश रहना। ऐसे नहीं अभी हाथ उठा रहे हैं और ट्रेन में जाओ तो थोड़ा-थोड़ा नशा उतरता जाए, सदा एकरस, अविनाशी नशा हो। कभी-कभी का नशा नहीं, सदा का नशा सदा ही खुशी प्रदान करता है।
➳ _ ➳ *आप माताओं के चेहरे सदा ऐसे होने चाहिए जो दूर से रूहानी गुलाब दिखाई दो क्योंकि इस विश्व विद्यालय की जो बात सबको अच्छी लगती है, विशेषता दिखाई देती है वह यही कि मातायें रूहानी गुलाब समान सदा खिला हुआ पुष्प हैं और मातायें ही जिम्मेवारी उठाए, मातायें इतना बड़ा कार्य कर रही हैं।* चाहे महामण्डलेश्वर भी हैं लेकिन वह भी समझते हैं कि मातायें निमित्त बनी हैं और ऐसे श्रेष्ठ कार्य सहज चला रही हैं। माताओं के लिए कहावत है - सच है नहीं, लेकिन कहावत है तो दो मातायें भी इकट्ठा कोई कार्य करें, बड़ा मुश्किल है। लेकिन यहाँ कौन निमित्त हैं? मातायें ही हैं ना! जब भी मिलने आते हैं तो क्या पूछते हैं? मातायें चलाती हैं, आपस में लड़ती नहीं हैं? खिटखिट नहीं करती हैं? लेकिन उन्हों को क्या पता कि यह साधारण मातायें नहीं हैं, *यह परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें, मातायें हैं। परमात्म वरदान इन्हों को चला रहा है।*
➳ _ ➳ 2. *अगर माताओं को बाप निमित्त नहीं बनाता तो नया ज्ञान, नई सिस्टम होने कारण पाण्डवों को देखकर बहुत हंगामा होता। मातायें ढाल हैं क्योंकि नया ज्ञान है ना। नई बातें हैं।*
✺ *ड्रिल :- "साधारण मातायें नहीं, परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ *अमृतवेले.. प्यारे बाबा, मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे कह मुझ आत्मा को उठाने आते है... उठो बच्ची वरदानों से अपनी झोली भर लो, कानो में यह मधुर स्वर पड़ते ही मै आत्मा उठकर बैठ जाती हूँ...* मै आत्मा सफ़ेद चमकीले वस्त्र में बाबा को आता हुआ देख रही हूँ...
➳ _ ➳ कुछ देर के लिए मै आत्मा बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ... बाबा के मस्तक से वा नैनो से आती हुई दिव्य किरणे मुझ आत्मा में समाती जा रही है... *इन किरणों में समाती हुई मै आत्मा इस देह से न्यारी हो एक दम हल्का अनुभव कर रही हूँ... अब मैं आत्मा प्यारे बाबा के साथ उड़ चलती हूँ सूक्ष्म वतन में, जहाँ चारो तरफ सफ़ेद चमकीला प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है... हर तरफ फ़रिश्ते ही फ़रिश्ते दिखाई दे रहे है...* बाबा हाथ में चमचमाती छड़ी ले सफेद चमकीली पहाड़ियों पर आगे ही आगे चलते जा रहे है... मै आत्मा बाबा के पीछे-पीछे चलती जा रही हूँ... बाबा चमकीली छड़ी से एक स्थान की ओर इशारा करते है...
➳ _ ➳ आहा!!!... क्या मनोहर दृश्य है, मै आत्मा स्वयं को एक ऐसी दुनिया में देख रही हूँ *जहाँ शुद्ध हवा चल रही है, पशु पक्षी मधुर स्वर में चहचहा रहे है, शीतल जल की नदियां बह रही है, मै सुनहरे वस्त्र धारण कर, हीरे के आभूषणों से सजी हुई हूँ... सिर पर लाइट और माइट का ताज धारण कर स्वयं को राज सिंहासन पर महारानी स्वरूप में देख रही हूँ...*अपना यह स्वरुप देख मैं बाबा की और देखती हूँ... तो प्यारे मीठे बाबा छड़ी घुमाकर दूसरी तरफ इशारा करते हुए एक ओर दृश्य दिखाते है... जहाँ मै आत्मा स्वयं को जीवन बंधन में बंधा हुआ देखती हूँ... जहाँ कर्मो का बंधन है तो रिश्ते नातो का बंधन है, माया का बंधन है तो जिम्मेवारियों का बंधन है... इन बंधनो में बंधी मै आत्मा बहुत समय से गिरती चली आयी थी... बोझ से दबी हुई, अत्याचारों को सहन करती हुई, दुखो की जंजीरों में जकड़ी हुई मै आत्मा अपने वास्तविक रूप को भूल गयी थी...
➳ _ ➳ दोनों दृश्यों को देख, *मै आत्मा त्रिकालदर्शी बाबा की तेजोमय किरणों में स्वयं के पूरे 84 जन्मो के चक्र को देख रही हूँ...* इन किरणों में डूबती हुई मै आत्मा अब पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुराने सम्बन्ध, पुरानी हर चीज जो विनाशवान है उसे भूलती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझे ढूंढा है, मै साधारण नही विशेष आत्मा हूँ... अब मै आत्मा पवित्रता को धारण कर रूहे गुलाब बन सर्व आत्माओ को रूहानियत की खुशबू से महका रही हूँ... स्नेह और सहयोग द्वारा सर्व आत्माओ में उमंग उत्साह भर आत्मिक भाव में स्थित हो परमात्म प्यार में पलते हुए विश्व परिवर्तन के कार्य में परमात्मा का सहयोगी बन संगमयुग में ज्ञान-रत्नों को धारण करती जा रही हूँ... *जो कोई भी देखे तो उनको यह अनुभव हो रहा है कि यह साधारण आत्मा(माता) नही परमात्मा की पालना में पलने वाली देव आत्मा है...*
➳ _ ➳ अब मै आत्मा इस धरा पर सदा रूहानी नशे में रह जिम्मेवारियों का ताज पहन इस अंतिम जन्म में हर आत्मा के साथ अपने हिसाब-किताब चुक्तु कर, ड्रामा के हर सीन को साक्षी भाव से देखती हुई... पवित्र दुनिया में चलने के लिए हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करती जा रही हूँ... *मै आत्मा कर नही रही, करन करावनहार करा रहा है... परमात्म प्यार में डूबी हुई मै आत्मा मेहनत से नही मोहब्बत से पुरुषार्थी जीवन में निरन्तर आगे बढ़ती जा रही हूँ... परमात्मा ने स्वयं मुझ आत्मा (माताओ) पर ज्ञान का कलश रखा है, मै साधारण नही, विशेष आत्मा हूँ... मेरी एक आँख में मुक्तिधाम और एक आँख में जीवन्मुक्तिधाम समाया हुआ है...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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