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❍ 02 / 12 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *आप में क्षीरखंड होकर रहे ?*
➢➢ *मास्टर प्यार का सागर बनकर रहे ?*
➢➢ *मगन अवस्था के अनुभव द्वारा माया को अपना भक्त बनाया ?*
➢➢ *उछारण और आचरण ब्रह्मा बाप के समान रहा ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जब स्वयं को अकालमूर्त आत्मा समझेंगे तब अकाले मृत्यु से, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच सकोगे। *मानसिक चिन्तायें, मानसिक परिस्थितियों को हटाने का एक ही साधन है - अपने इस पुराने शरीर के भान को मिटाना। देह-अभिमान को मिटाने से सर्व परिस्थितियाँ मिट जायेंगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं अतीन्द्रिय सुख में रहने वाली आत्मा हूँ"*
〰✧ सदा अतीन्द्रिय सुख में रहते हो? *अतीन्दिय सुख अर्थात् आत्मिक सुख। इन्द्रियों का सुख नहीं लेकिन आत्मिक सुख। आत्मा अविनाशी है तो आत्मिक सुख भी अविनाशी होगा। इन्द्रियाँ खुद ही विनाशी हैं तो सुख भी विनाशी होगा। कोई भी विनाशी यानी थोड़े समय का सुख नहीं चाहते हैं।* अगर किसी को भी कहो - 2 घण्टे का सुख ले लो और 22 घण्टे का दु:ख ले लो तो कौन मानेगा। यही सोचेगा कि सदा सुख हो, दु:ख का नाम-निशान न हो।
〰✧ तो अतीन्द्रिय सुख अविनाशी है। इन्द्रियों के सुख के अनुभवी भी हो और अतीन्द्रिय सुख के अनुभवी भी हो। तो क्या अच्छा लगता है? अतीन्द्रिय सुख अच्छा या इन्द्रियों का सुख अच्छा? *तो अच्छी चीज को कभी छोड़ा नहीं जाता, भूला नहीं जाता, भूलना चाहें तो भी नहीं भूलेंगे। तो सदा अतीन्द्रिय सुख में रहने वालों के पास दु:ख का नाम-निशान नहीं आ सकता, असम्भव।* कई कहते हैं - मेरे को दु:ख नहीं होता लेकिन दूसरा दु:ख देता है तो क्या करें? दूसरा देता है तो लेते क्यों हो? कोई भी चीज आपको दे और आप नहीं लो तो वह किसके पास रहेगी? उसके पास ही रहेगी ना।
〰✧ *देने वाले तो देंगे, उनके पास है ही दु:ख लेकिन आप नहीं लो। आपका स्लोगन है - 'सुख दो, सुख लो। न दु:ख दो, न दु:ख लो'। लेकिन गलती कर देते हो। इसलिए थोड़ी दु:ख की लहर आ जाती है। कोई दु:ख दे तो उसे भी परिवर्तन कर उसको सुख दे दो, उसको भी सुखी बना दो। सुखदाता के बच्चे हो, सुख देना और सुखी रहना - यही आपका काम है।*
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ ये मन बहुत चंचल है और बहुत क्वीक है, एक सेकण्ड में आपको फारेन घुमाकर आ सकता है तो क्या सुना? बालक सो मालिक। *ऐसे नहीं खुश रहना - बालक तो बन गये, वर्सा तो मिल गया लेकिन अगर वर्से के मालिक नहीं बने तो बालक-पन क्या हुआ?*
〰✧ *बालक का अर्थ ही है मालिक। लेकिन स्वराज्य के भी मालिक बनो।* सिर्फ वर्से को देख करके खुश नहीं हो, स्वराज्य अधिकारी बनो। इतनी छोटी-सी आँख बिन्दी है, वो भी धोखा दे देती है तो मालिक नहीं हुए तभी धोखा देती है तो बापदादा सभी बच्चों को स्वराज्य अधिकारी राजा देखना चाहते हैं।
〰✧ अधिकारी, अधीन नहीं रहेगा। समझा? क्या बनेंगे? बालक सो मालिक। *रावण की चीज को तो यहाँ हॉल में ही छोडकर जाना।* ये तपस्या का स्थान है ना तो तपस्या को अग्नि कहा जाता है। तो अग्नि में खत्म हो जायेगा।
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *अन्तिम लक्ष्य पुरुषार्थ के लिए कौन-सा है? वह है- अव्यक्त फ़रिश्ता हो रहना। अव्यक्त रूप क्या है? फ़रिश्तापन। उसमें भी लाइट रूप सामने है- अपना लक्ष्य। वह सामने रखने से जैसे लाइट के कार्ब में यह मेरा आकार है।* जैसे वतन में भी अव्यक्त रूप देखते हो, तो अव्यक्त और व्यक्त में क्या अन्तर देखते हो? व्यक्त पाँच तत्वों के कार्ब में हैं और अव्यक्त लाइट के कार्ब में हैं। लाइट का रूप तो है, लेकिन आस पास चारों ओर लाइट ही लाइट है, जैसे कि लाइट के कार्ब में, यह आकार दिखाई देता है। *जैसे सूर्य को देखते हो, तो चारों ओर फैली सूर्य की किरणों की लाइट के बीच में, सूर्य का रूप दिखाई देता है। सूर्य की लाइट तो है, लेकिन उसके चारों ओर भी सूर्य की लाइट परछाई के रूप में फैली हुई दिखाई देती है और लाइट में विशेष लाइट दिखाई देती है। इसी प्रकार से, 'मैं आत्मा ज्योति रूप हूँ'- यह तो लक्ष्य है ही। लेकिन मैं आकार में भी कार्ब में हूँ।* चारों ओर अपना स्वरूप लाइट ही लाइट के बीच में स्मृति में रहे और दिखाई भी दे तो ऐसा अनुभव हो। *जैसे कि आइने में देखते हो तो स्पष्ट रूप दिखाई देता है, वैसे ही नॉलेज रूपी दर्पण में, अपना यह रूप स्पष्ट दिखाई दे और अनुभव हो। चलेते-फिरते और बात करते, ऐसे महसूस हो कि 'मैं लाइट रूप हूँ, मैं फरिश्ता चल रहा हूँ और मैं फ़रिश्ता बात कर रहा हूँ।' तो ही आप लोगों की स्मृति और स्थिति का प्रभाव औरों पर पड़ेगा।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- पढाई पढनी और पढ़ानी है"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्कूल के पार्क में खेल रहे बच्चों को देख रही हूँ... कोई फ़ुटबाल खेल रहे... कोई झूला झूल रहे, कोई फिसल पट्टी पर फिसल-फिसल कर मजे ले रहे हैं... कुछ बच्चे एक दूसरे से खाना बांटकर मजे से खा रहे हैं... मंत्रमुग्ध होती मैं इनको देख रही... जैसे ही इंटरवेल खत्म होने की घंटी बजी, सभी बच्चे दौड़ते हुए अपने अपने क्लास में चले जाते हैं और पढाई शुरू करते हैं... इनको पढ़ते हुए देख मुझे भी अपनी पढाई याद आती है...* मैं आत्मा सबकुछ भूल इस दुनियावी खेल में मग्न हो गई थी... अब प्यारे बाबा सुप्रीम शिक्षक बनकर मुझे पढ़ा रहे हैं... मैं आत्मा सेण्टर जाकर सुप्रीम शिक्षक के सामने बैठ जाती हूँ...
❉ *प्यारे सुप्रीम शिक्षक गुड मॉर्निंग करते हुए कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... *ईश्वर पिता के साये में फूल से जो खिल उठे हो... दुखो के गहरे दलदल से निकल जो गुलाब बन महक उठे हो... तो यह महक हर दिल तक पहुँचाओ... सारे विश्व को दुखो से मुक्ति की सच्ची राह दिखाओ...* स्वयं जो प्रकाशित हो गए हो तो औरो के भी जीवन में सुखो का प्रकाश कर आओ... यह पढ़ाई इस अंतिम जन्म के लिए ही है इसलिए अच्छी रीति पढ़ो और पढ़ाओ"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा भी बाबा को गुड मॉर्निंग कर रिगार्ड देते हुए कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा ज्ञानसागर बाबा से ज्ञान रत्नों को पाकर ज्ञानपरी बन गई हूँ... दुखो के जंजालों से सदा की आजाद उड़ता पंछी बन चहक रही हूँ...* और अब अच्छी रीति पढ़कर टीचर बन औरो के जीवन को भी खुशनुमा बना रही हूँ..."
❉ *मीठे बाबा मीठी शिक्षाओं से मुझे भरपूर करते हुए कहते है:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... यह ईश्वरीय पढ़ाई ही सारे सच्चे सुखो का आधार है... इस अंतिम जन्म में अनेक जनमो के विकर्मो से मुक्त होने की जादुई छड़ी सी है... *जीवन को गजब का खुबसूरत बनाने वाली इस पढ़ाई में जी जान से जुट जाओ... और स्वयं महक कर औरो को भी महकाओ..."*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा ईश्वरीय पढ़ाई के महत्व को जान कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा प्यारे बाबा को टीचर रूप में पाकर अति सौभाग्यशाली बन ज्ञान रत्नों के खजाने को प्रतिपल लूट रही हूँ... *और ज्ञान की बुलबुल बन कर यह मनभावन ईश्वरीय गीत हर दिल को सुना कर मन्त्रमुग्ध कर रही हूँ..."*
❉ *मेरे सुप्रीम शिक्षक बाबा ज्ञान रत्नों की वर्षा करते हुए कहते हैं:-* "प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... अब दुखो के दिन पूरे हो गए... अब ईश्वरीय यादो में महकने और खिलने के सुनहरे दिन आये है... *मीठा बाबा सबको शिक्षक बन पढ़ा रहा... सुन्दरतम देवता रूप में सजाकर सुख शांति और आनन्द के सागर में लहरा रहा... सुखो के सारे राज समझा रहा...* तो इस ईश्वरीय पढ़ाई में खो जाओ औरो को भी यह मार्ग दिखाओ..."
➳ _ ➳ *मैं आत्मा प्यारे बाबा से अनमोल शिक्षाओं को पाकर आनन्दित होती हुई कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा अब देह और दुखो की दुनिया से आजाद होकर ईश्वरीय यादो में डूब रही हूँ... ईश्वरीय पढ़ाई में मगन होकर अपने खुबसूरत भाग्य का निर्माण कर रही हूँ... *ज्ञान रत्नों से जीवन संवार रही हूँ... और ज्ञान की बुलबुल बन टिकलु टिकलु का गीत सबके दिल आँगन में गा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देह - अभिमान को छोड़ मास्टर प्यार का सागर बनना है *
➳ _ ➳ प्यार के सागर अपने प्यारे पिता के प्यार के मीठे मधुर एहसास के बारे में विचार करते ही एक सिहरन सी पूरे शरीर मे दौड़ जाती है और मन व्याकुल हो उठता है फिर से उसी प्यार को पाने के लिए। *जैसे ही मन में बाबा के निःस्वार्थ, निष्काम प्यार को पाने का संकल्प मन मे आता है मैं महसूस करती हूँ जैसे प्यार के सागर मेरे बाबा मेरे हर संकल्प को पूरा करने और अपने स्नेह की मीठी फुहारे मेरे ऊपर बरसाने के लिए मेरे पास आ रहें हैं*। हवाओ में भी जैसे एक विचित्र रूहानी खुशबू फैल गई है जो उनके आने का मुझे पैगाम दे रही है। अपनी अनन्त शक्तियों की किरणों के रूप में मेरे प्यार के सागर बाबा अपने प्यार की शीतल फुहारे मुझ पर बरसाते हुए परमधाम से उतरकर धीरे - धीरे नीचे आ रहें हैं।
➳ _ ➳ मैं महसूस कर रही हूँ जैसे कि शक्तियों का एक तेजोमय पुंज आकाश से नीचे आकर, अब सीधा मेरे सिर के ऊपर स्थित हो गया है और अपने स्नेह की अनन्त किरणे मेरे ऊपर बिखेर रहा है। *बारिश की हल्की - हल्की बूंदों की तरह अपने ऊपर पड़ती अपने स्नेह के सागर पिता के स्नेह की किरणों के वायब्रेशन्स को मैं महसूस कर रही हूँ और उनके स्नेह में डूबती जा रही हूँ*।प्यार का सागर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाता जा रहा है और उस प्यार के मधुर एहसास में मैं गहराई तक समाती जा रही हूँ। देह और देह की दुनिया से जुड़े सम्बन्ध जैसे कहीं पीछे छूट रहें हैं और सारे सम्बन्ध उस एक के साथ जुड़ते जा रहें हैं। *हर सम्बन्ध का अविनाशी सुख अपने प्यारे पिता के प्यार में खोकर मैं ले रही हूँ। उनके लव में लीन यह लवलीन स्थिति मुझे उनके समान स्थिति में स्थित करती जा रही है*।
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे देह से मेरा कोई सम्बन्ध नही। अपने स्वरूप में पूरी तरह डूब कर केवल दो सितारों की उपस्थिति को ही मैं अनुभव कर रही हूँ। एक अति सूक्ष्म चैतन्य स्टार के रुप में मैं स्वयं को देख रही हूँ और अपने सामने स्थित सुपर स्टार के रूप में अपने पिता को देख रही हूँ। *इन दोनों स्टार्स में ही जैसे सारी दुनिया समा गई है। अपने प्यार की अनन्त किरणों की वर्षा मुझ पर करते, प्यार के सागर मेरे सुपर स्टार शिव बाबा चुम्बक की तरह मुझे खींच कर अब अपने साथ ऊपर ले जा रहें हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों की मैग्नेटिक पॉवर, नश्वर संसार की हर चीज से किनारा करवाकर मुझे खींचती हुई अब आकाश को पार कर, सूक्ष्म लोक से ऊपर मेरे स्वीट साइलेन्स होम में मुझे ले आई है। *अपने घर मे आकर मैं आत्मा शांति की गहन स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ इस शांतिधाम घर मे चारों और फैले शांति के वायब्रेशन्स मुझे गहन शांति की अनुभूति करवाकर एक अनोखी शक्ति का संचार मेरे अन्दर कर रहें हैं। *साइलेन्स का बल अपने अंदर भरकर अब मैं सर्वगुणों और सर्वशक्तियों के सागर अपने प्यारे पिता के पास आकर बैठ गई हूँ और बड़े प्यार से उन्हें निहार रही हूँ*। मैं महसूस कर रही हूँ जैसे बाबा भी बड़े प्यार से मुझे निहार रहें हैं और अपना प्यार शीतल लहरों के रूप में धीरे - धीरे मुझ तक पहुँचा रहें हैं। बाबा के अथाह प्यार की शीतल लहरों की शीतलता मन को गहन सुख प्रदान कर रही है। धीरे - धीरे ये लहरे बढ़ रही हैं और मुझे अपने अंदर समाती जा रही हैं।
➳ _ ➳ प्यार के सागर मेरे पिता के प्यार की लहरों का प्रवाह मुझे बहा कर अपने बिल्कुल समीप ले आया है। जहाँ पहुँच कर ऐसा लग रहा है जैसे प्यार का कोई सतरंगी झरना मेरे ऊपर बरस रहा है और उस झरने के नीचे खड़ी होकर मैं स्नान करके प्यार के सागर अपने पिता के समान बनती जा रही हूँ। *नफरत, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा के पुराने स्वभाव संस्कार जैसे प्यार के सागर की गहराई में डूब गए हैं और उसके स्थान पर सबको प्रेम देने, सहयोग देने के संस्कार जैसे इमर्ज हो गए हैं*। स्वयं को मैं बाप समान प्यार का सागर अनुभव कर रही हूँ। अपने प्यारे पिता के साथ स्नेह मिलन मनाकर, उनके समान बन कर अब मैं वापिस साकारी दुनिया में लौट आती हूँ और अपने साकार तन में फिर से भृकुटि के अकालतख्त पर आकर विराजमान हो जाती हूँ।
➳ _ ➳ *प्यार के सागर अपने पिता से प्राप्त किये हुए प्यार का मधुर एहसास मेरी शक्ति बनकर अब मुझे भी बाप समान प्यार का सागर बन सबको सच्चा रूहानी प्यार देने के लिए प्रेरित करता रहता है इसलिए अपने प्यारे पिता के प्यार से स्वयं को हरपल भरपूर रखते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को आत्मिक स्नेह देकर उन्हें तृप्त करती रहती हूँ*
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं मगन अवस्था के अनुभव द्वारा माया को अपना भक़्त बनाने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं मायाजीत आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा स्वयं का उच्चारण और आचरण ब्रह्मा बाप के समान रखती हूँ ।*
✺ *मैं सच्ची ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं बाप समान श्रेष्ठ आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. डाक्टर्स का वर्ग भी बापदादा को सेवाधारी ग्रुप देखने में आता है। सिर्फ थोड़ा समय इस सेवा को भी देते रहो। *कई डाक्टर्स कहते हैं हमको फुर्सत ही नहीं होती है। फुर्सत नहीं होती होगी फिर भी कितने भी बिजी हों, अपना एक कार्ड छपा के रखो, जिसमें यह इशारा हो, अट्रेक्शन का कोई स्लोगन हो, तो और आगे सफा चाहते हो तो यह यह एड्रेसेज हैं, जहाँ आप रहते हो वहाँ के सेन्टर्स की एड्रेस हो यहाँ जाकर अनुभव करो, कार्ड तो दे सकते।* जब पर्चा लिखकर देते हो यह दवाई लेना, यह दवाई लेना। तो पर्चा देने के समय यह कार्ड भी दे दो। हो सकता है कोई कोई को तीर लग जाए क्योंकि डाक्टरों की बात मानते हैं और टेन्शन तो सभी को होता है। एक प्रकृति की तरफ से टेन्शन, परिवार की तरफ से टेन्शन और अपने मन की तरफ से भी टेन्शन। तो टेन्शन फ्री लाइफ की दवाई यह है,ऐसा कुछ उसको अट्रेक्शन की छोटी सी बात लिखो तो क्या होगा,आपकी सेवा के खाते में तो जमा हो जायेगा ना। ऐसे कई करते भी हैं, जो नहीं करते हैं वह करो। डबल डाक्टर हो सिंगल थोड़ेही हो। डबल डाक्टर हो तो डबल सेवा करो।
➳ _ ➳ 2. जब पेशेन्ट आते हैं। आपके पास तो पेशेन्ट ही आयेंगे। तो पेशेन्ट हमेशा डाक्टर को भगवान का रूप समझते हैं और भावना भी होती है। *अगर डाक्टर किसको कहता है यह चीज नहीं खानी है, तो डर के मारे नहीं खायेंगे और कोई गुरू कहेगा तो भी नहीं मानेंगे।* तो मेडीकल वालों को सहज सेवा का साधन है जो भी आवे उनको समय मुकरर करना पड़ता है, क्योंकि काम के समय तो आप कुछ कर नहीं सकते, लेकिन कोई ऐसा विधि बनाओ जो पेशेन्ट थोड़ा भी इन्ट्रेस्टेड हो, उनको एक टाइम बुलाकर और उन्हों को 15 मिनट आधा घण्टा भी परिचय दो तो क्या होगा, आपकी सेवा बढ़ती जायेगी। सन्देश देना वह और बात है, सन्देश से खुश होते हैं लेकिन राजयोगी नहीं बनते हैं।
➳ _ ➳ 3. *जब तक थोड़ा टाइम भी किसको अनुभव नहीं होता तब तक स्टूडेन्ट नहीं बन सकता।*
➳ _ ➳ 4. *जिसको कोई भी अनुभव होता है वह छोड़ नहीं सकते हैं। बाकी काम तो अच्छा है, किसके दुख को दूर करना। कार्य तो बहुत अच्छा करते हो, लेकिन सदा के लिए नहीं करते हो। दवाई खायेंगे तो बीमारी हटेगी, दवाई बन्द तो बीमारी फिर से आ जाती है। तो ऐसी दवाई दो, जो बीमारी का नाम निशान नहीं हो, वह है मेडीटेशन।*
✺ *ड्रिल :- "डबल डाक्टर होने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने आत्मिक स्वरूप में स्वयं को स्थित करती हूँ और एक दम शांत अवस्था में अपने मन को केंद्रित करती हूँ... अपने इस संगमयुगी जीवन की प्राप्तियों को देख रही हूँ... *बाबा से मिली शक्तियों और ज्ञान रत्नों के ख़ज़ानों को याद करती हूँ और उनका शुक्रिया अदा करती हूँ...* आपने मुझे मेरे हर दुख से मुक्त कर मेरे जीवन को खुशियों से भर दिया है...
➳ _ ➳ मैं आत्मा सृष्टि के रंगमंच पर अपने पार्ट को प्ले करते हुए अन्य बहुत सी आत्माओं के संपर्क में आती हूँ... मैं देखती हूँ कि आज हर आत्मा किसी ना किसी कारण वश दुखी है... कुछ आत्मायें पूर्व जन्मों में किये पाप कर्म के कारण दुखों को भोग रही हैं तो कुछ आत्मायें अपने ही कड़े आसुरी स्वभाव संस्कार के वश हो औरों को भी दुख दे रही हैं और स्वयं भी दुखों से घिरी हुई हैं... जिस कारण वो स्वयं भी अशांत रहती हैं और उनके संपर्क में आने वाली आत्मायें भी अशान्ति का अनुभव करती हैं... *इन समस्त आत्माओं को मैं आत्मा अपने शांति के वाइब्रेशन देकर उनके मन को शांत कर रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने कर्मक्षेत्र में भी बाबा के शक्तिशाली वाइब्रेशन चारों तरफ फैलाती हूँ... आज के इस तमोगुणी वातावरण में आत्माओं के शरीर के साथ साथ उनके मन भी बीमार हैं... समस्त आत्मायें क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, लालच, परचिन्तन, परदर्शन जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं... *जैसे मेरे बाबा रूहानी डॉक्टर भी हैं वैसे ही मैं आत्मा भी अपने आत्मा भाइयों के लिए उनका रूहानी डॉक्टर बन उनकी इन सभी बीमारियों का इलाज कर उनको इन बीमारियों से मुक्त कर उनको सशक्त और निरोगी बना रही हूँ...*
➳ _ ➳ मैं आत्मा अपने सभी भाई बहनों को बाबा का परिचय देती हूँ... *बाबा का परिचय पाकर आत्मायें उनसे अपना कनेक्शन जोड़कर उनसे सर्व शक्तियाँ प्राप्त कर रही हैं और अपने दुखों को अपनी बीमारियों को ठीक कर रही हैं... जिन आत्माओं को मैं आत्मा बाबा का परिचय देती हूँ उन्हें उमंग उत्साह दे आगे भी बढ़ाती जाती हूँ...* वो सभी आत्मायें बाबा से संबंध जोड़ उनके प्यार को अनुभव करती हैं... योग में नित नए अनुभव कर रही हैं और अपने सर्व दुखों से छूटती जा रही हैं...
➳ _ ➳ मैं आत्मा किसी न किसी रूप में बाबा का परिचय आत्माओं को देती हूँ... निमित्त बन अपने चेहरे और चलन से सेवा करती हूँ... *बाबा से जुड़ कर आत्मायें अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित हो अपने गुणों और शक्तियों को इमर्ज कर रही हैं और राजयोग के अभ्यास से अपने को सशक्त बनाती जा रही हैं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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