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 29 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *पवित्र बनकर पक्का वैष्णव बनकर रहे ?*

 

➢➢ *मुरली से स्वयं को रिफ्रेश किया ?*

 

➢➢ *जुदाई को सदाकाल के लिए विदाई दी ?*

 

➢➢ *स्वभाव इजी और पुरुषार्थ अटेंशन वाला रहा ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  जैसे बापदादा अशरीरी से शरीर में आते हैं वैसे ही बच्चों को भी अशरीरी हो करके शरीर में आना है। अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर फिर व्यक्त में आना है। *जैसे इस शरीर को छोड़ना और शरीर को लेना यह अनुभव सभी को है। ऐसे ही जब चाहो तब शरीर का भान छोड़कर अशरीरी बन जाओ और जब चाहो तब शरीर का आधार लेकर कर्म करो। बिल्कुल ऐसे ही अनुभव हो जैसे यह स्थूल चोला अलग है और चोले को धारण करने वाली मैं आत्मा अलग हूँ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं परमात्मा बाप की स्नेही और सहयोगी आत्मा हूँ"*

 

  *सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर बाप के साथ स्नेही और सहयोगी आत्मायें हैं, ऐसा समझकर चलते हो? हम आत्माओंको इतना श्रेष्ठ भाग्य मिला है, यह आक्यूपेशन सदा याद रहता है?* जैसे लौकिक आक्यूपेशन वाली आत्मा के साथ भी कार्य करने वाले को कितना ऊंचा समझते हैं लेकिन आपका पार्ट, आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है। तो कितना श्रेष्ठ पार्ट हो गया। ऐसे समझते हो?

 

  *पहले तो सिर्फ पुकारते थे कि थोड़ी घड़ी के लिए दर्शन मिल जाए। यही इच्छा रखते थे ना। अधिकारी बनने की इच्छा वा संकल्प तो सोच भी नहीं सकते थे, असम्भव समझते थे।* लेकिन अभी जो असम्भव बात थी वह सम्भव और साकार हो गई। तो यह स्मृति रहती है? सदा रहती है वा कभी-कभी। अगर कभी-कभी रहती है तो प्राप्ति क्या करेंगे?

 

  कभी-कभी राज्य मिलेगा। कभी राजा बनेंगे कभी प्रजा बनेंगे। *जो सदा के राजयोगी हैं वही सदा के राजे हैं। अधिकार तो अविनाशी और सदाकाल का है। जितना समय बाप ने गैरन्टी दी है, आधाकल्प उसमें सदाकाल राज्य पद की प्राप्ति कर सकते हो।* लेकिन राजयोगी नहीं तो राज्य भी नहीं। जब चांस सदा का है तो थोड़े समय का क्यों लेते।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  अभी एक सेकण्ड सभी पॉवरफुल संकल्प से, दृढता से पुराने वस्तुओं को, पुराने वर्ष को, पुरानी बातों को सदा के लिए विदाई दो। *एक सेकण्ड सभी - दृढ़ता सफलता है' - इस दृढ़ संकल्प में स्थित हो जाओ।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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✧  जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप साकार रूप की पालना दे रहे हैं, साकार रूप की पालना का अनुभव करा रहे हैं, वैसे *आप व्यक्त में रहते अव्यक्त फ़रिश्ते रूप का अनुभव करो।* सभी को यह अनुभव हो कि यह सब फ़रिश्ते कौन हैं और कहाँ से आये हुए हैं! जैसे अभी चारों ओर यह आवाज़ फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं! वैसे चारों ओर अब फ़रिश्ते रूप का साक्षात्कार हो। इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप। *सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी।* जिसको देख न चाहते भी आँख खुल जाए। जैसे अन्धकार में कोई बहुत तेज़ लाइट सामने आ जाती है तो अचानक आँख खुल जाती है ना कि यह क्या है, यह कौन है, कहाँ से आई! तो ऐसे अनोखी हलचल मचाओ। जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे *चारों ओर फ़रिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ। इसको कहा जाता है- आध्यात्मिक जागृति।* इतने सब जो देश-विदेश से आये हो, ब्रह्माकुमार-कुमारी स्वरूप की सेवा की! अवाज़ बुलन्द करने की जागृति का कार्य किया! संगठन का झण्डा लहराया। अब फिर नया प्लैन करेंगे ना! जहाँ भी देखें तो फ़रिश्ते दिखाई दें, लण्डन में देखें, इण्डिया में देखें जहाँ भी देखें फ़रिश्ते-ही-फ़रिश्ते नजर आयें।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मृत्युलोक के मनुष्य से अमरलोक का देवता बनना"*

 

_ ➳  *अमृतवेले के रूहानी समय में मैं आत्मा बगीचे के झूले में बाबा की गोदी में बैठी हूँ... बाबा की गोदी के झूले में झूलती हुई उनके रूहानी प्यार में समाती जा रही हूँ...* अभी तक जिस भगवान को ढूंढ रही थी, दुनिया वाले जिसे अभी भी ढूंढ रहे हैं, अब मैं भाग्यशाली आत्मा उनकी गोद में बैठ उनकी पालना और शिक्षाएं ले रही हूँ... मीठे बाबा प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मुझे वरदानों, खजानों से भरपूर करते हैं... *मैं आत्मा बाबा का दिल से शुक्रिया करती हुई उनसे रूह-रिहान करती हूँ... बाबा मुझे अपनी श्रेष्ठ मत देकर श्रेष्ठ बनाते हैं...*

 

  *प्यार के मीठे तराने सुनाकर प्रेम रस में मुझे भिगोते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... साधारण मनुष्य मात्र से खुबसूरत देवताई राज्य भाग्य वाले... महानतम भाग्य को पा रहे हो... तो श्रीमत के हाथ को सदा थाम कर दिल से शुक्रिया के नगमे गुनगुनाते रहो... *सच्चे प्यार के सागर से हर पल प्रेम सुधा का रसपान करो... और रूहानी प्रेम की बदली बन विश्व धरा को सिक्त करो...."*

 

_ ➳  *प्यारे प्रभु का साथ पाकर उनके हाथों में हाथ डालकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... मैं आत्मा आपके सच्चे प्यार की चन्दन महक में खोयी सी विश्व धरा को प्रेम तरंगो से सराबोर कर रही हूँ... *श्रीमत के मखमली हाथो में बेफिक्र सी खुशियो के अनन्त आसमाँ में झूम रही हूँ... सच्चे प्रेम में खोकर मदमस्त हो गई हूँ..."*

 

  *प्यार के चन्दन से मेरे जीवन फुलवारी को महकाकर खुशियों से मेरी झोली भरते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... जिस ईश्वर पिता की खोज में दर दर भटक रहे थे... *आज उनकी फूलो सी गोद में देवताई स्वरूप को पा रहे हो... तो ऐसे मीठे बाबा पर दिल का सारा स्नेह उंडेल कर... सच्चे प्रेम का पर्याय बन जाओ... श्रीमत को दिल की गहराइयो से अपनाकर जीवन को सुखो के स्वर्ग में बदल दो..."*

 

_ ➳  *बाबा की श्रीमत पर चलते हुए दैवीय गुणों की धारणा करते हुए मैं आत्मा कहती हूँ :-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... मैं आत्मा आपकी बाँहों में अनन्त सुखो की हकदार हो गई हूँ... प्यारे बाबा सुख की एक बून्द को कभी व्याकुल *मै आत्मा,आज आपकी यादो में देवताओ सा निखर रही हूँ...मनुष्य मत पर पाये दुखो के दलदल से निकल श्रीमत से सम्पूर्ण सुखी हो गयी हूँ..."*

 

  *अपने पलकों पर बिठाकर मेरे भाग्य को संवारते हुए मीठे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता मनुष्य से देवताओ सा श्रृंगार कर... स्वर्गधरा पर सजा रहे है... *ऐसे मीठे पिता का रोम रोम से शुक्रिया कर... सच्चे प्यार से दिल, सदा का आबाद करो... सच्ची मत को अपनाकर... दिव्यता से सम्पन्न हो, अनोखे सुखो को दामन में भर लो..."*

 

_ ➳  *बाबा के प्यार की लहरों में लहराती हुई स्वर्ग सुखों की अधिकारी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... *मैं आत्मा किन शब्दों में आपकी दरियादिली का शुक्रिया करूँ... मीठे बाबा मेरे, मै आत्मा तो दुखो को ही अपनी तकदीर मान ली थी... आपने तो मुझे देवतुल्य बना दिया है...* और असीम मीठे सुखो से मेरा जीवन संवार दिया है..."

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- श्रेष्ठ बनने के लिए श्रीमत पर जरूर चलना है*

 

_ ➳  मन बुद्धि का कनेक्शन अपने शिव पिता के साथ जुड़ते ही इस नश्वर भौतिक जगत से कनेक्शन टूटने लगता है और मन मगन हो जाता है प्रभु प्यार में। *मन को सुकून देने वाली मीठे बाबा की मीठी याद में मैं जैसे खो जाती हूँ और प्रभु यादों की डोली में बैठ उड़ कर पहुँच जाती हूँ उस खूबसूरत लाल प्रकाश की दुनिया में जहाँ मेरे मीठे बाबा रहते हैं*। देह, देह की दुनिया से बहुत दूर आत्माओं की इस निराकारी दुनिया में निराकार अपने शिव पिता को अनन्त प्रकाश के एक ज्योतिपुंज के रूप में मैं देख रही हूँ। मन को तृप्ति प्रदान करने वाला उनका अति मनमोहक प्रकाशमय स्वरूप मुझे अपनी ओर खींच रहा है। उनके आकर्षण में बंधी मैं आत्मा एक चमकती हुई ज्योति अब धीरे धीरे उस महाज्योति के पास जा रही हूँ।

 

_ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन और बुद्धि की तार उस महाज्योति के साथ जुड़ी हुई है और उस तार में बिजली के तार की भांति एक तेज करेन्ट निकल रहा है जो मेरे शिव पिता से सीधा मुझ बिंदु आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और अपनी सारी शक्तियों का प्रवाह मेरे अंदर प्रवाहित करता जा रहा है। *ये सर्व शक्तियाँ मुझ आत्मा में समाकर मेरे अंदर अनन्त शक्ति का संचार कर रही है और मुझे शक्तिशाली बनाने के साथ - साथ ये शक्तियाँ मुझे छू कर अनन्त फ़ुहारों के रूप में चारों और फैल रही हैं और मेरे ऊपर बरस कर मुझे गहन शीतलता का अनुभव करवा रही हैं*। ऐसा अनुभव हो रहा है जैसे शक्तियों का कोई सतरँगी फव्वारा मेरे ऊपर चल रहा है और अपनी मीठी - मीठी, हल्की - हल्की फ़ुहारों से मेरे अन्तर्मन की सारी मैल को धोकर साफ कर रहा है।

 

_ ➳  एक बहुत ही प्यारी लाइट माइट स्थिति का मैं अनुभव कर रही हूँ। हर बोझ, हर बन्धन से मुक्त यह लाइट स्थिति मुझे परम आनन्द प्रदान कर रही है। अतीन्द्रीय सुख के सुखदाई झूले में मैं आत्मा झूल रही हूँ। *परम आनन्द की गहन अनुभूति करते - करते अब मैं बिंदु आत्मा सम्पूर्ण समर्पण भाव से अपने महाज्योति शिव पिता की किरणों रूपी बाहों में समाकर उनके और भी समीप पहुँच गई हूँ। समर्पणता के उस अंतिम छोर पर मैं स्वयं को देख रही हूँ जहाँ दोनों बिंदु एक दिखाई दे रहे हैं*। यह अवस्था मुझे बाबा के समान सम्पूर्ण स्थिति का अनुभव करवा रही है। अपनी इस सम्पूर्ण स्थिति में मैं स्वयं को सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के मास्टर सागर के रूप में देख रही हूँ। अपने इस सम्पूर्ण स्वरूप के साथ मैं आत्मा परमधाम से नीचे आकर सूक्ष्म वतन में प्रवेश कर जाती हूँ।

 

_ ➳  दिव्य प्रकाश की काया वाले फरिश्तो के इस अव्यक्त वतन में अपने सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप को धारण कर, अव्यक्त बापदादा के सामने मैं उपस्थित होती हूँ और अपने अव्यक्त स्वरूप में स्थित होकर, बाहें पसारे खड़े अव्यक्त बापदादा की बाहों में समाकर, उनके प्रेम से स्वयं को भरपूर करके उनके सम्मुख बैठ जाती हूँ। *अपनी मीठी दृष्टि और मधुर मुस्कान के साथ बाबा मुझे निहारते हुए अपनी लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करते जा रहें हैं*। बाबा की शक्तिशाली दृष्टि मेरे अंदर एक अनोखी शक्ति का संचार कर रही है और मुझे बाबा की श्रीमत पर चलने और उनके हर फरमान का पालन करने की प्रेरणा दे रही है।

 

_ ➳  बाबा से दृष्टि लेते हुए मैं मन ही मन सदा बाबा की श्रीमत पर चलने की स्वयं से दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ और अपने निराकारी बिंदु स्वरूप में स्थित होकर अब उस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वापिस अपनी कर्मभूमि पर लौट आती हूँ। *कर्म करने के लिए जो शरीर रूपी रथ मुझ आत्मा को मिला हुआ है उस शरीर रूपी रथ पर पुनः विराजमान होकर मैं आत्मा अब फिर से सृष्टि रंगमंच पर अपना पार्ट बजा रही हूँ*। शरीर का आधार लेकर हर कर्म करते हुए अब बुद्धि का कनेक्शन केवल अपने शिव पिता के साथ  निरन्तर जोड़ कर, उनकी जो श्रीमत मिलती है उसे राइट समझ उस पर चलने का पूरा पुरुषार्थ अब मैं कर रही हूँ और अपने प्यारे पिता के साथ अपने सँगमयुगी ब्राह्मण जीवन का भरपूर आनन्द ले रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं जुदाई को सदा काल के लिए विदाई देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं स्नेही स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं इज़ी स्वभाव वाली आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव अटेंशन से पुरुषार्थ करती हूँ  ।*

   *मैं तीव्र पुरुषार्थी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *आजकल चाहे संसार मेंचाहे ब्राह्मण संसार में हर एक को हिम्मत और सच्चा प्यार चाहिए। मतलब का प्यार नहीं, स्वार्थ का प्यार नहीं।* एक सच्चा प्यार और दूसरी हिम्मतमानो 95 परसेन्ट किसने संस्कार वश, परवश होके नीचे-ऊपर कर भी लिया लेकिन 5 परसेन्ट अच्छा कियाफिर भी अगर आप उसके 5 परसेन्ट अच्छाई को लेकर पहले उसमें हिम्मत भरोयह बहुत अच्छा किया फिर उसको कहो बाकी यह ठीक कर लेनाउसको फील नहीं होगा। अगर आप कहेंगी यह क्यों कियाऐसा थोड़ेही किया जाता हैयह नहीं करना होता हैतो पहले ही बिचारा संस्कार के वश हैकमजोर हैतो वह नरवश हो जाता है। प्रोग्रेस नहीं कर सकता है। 5 परसेन्ट की *पहले हिम्मत दिलाओयह बात बहुत अच्छी है आपमें। यह आप बहुत अच्छा कर सकते हैं,* फिर उसको अगर समय और उसके स्वरूप को समझकर बात देंगे तो वह परिवर्तन हो जायेगा। हिम्मत दोपरवश आत्मा में हिम्मत नहीं होती है। *बाप ने आपको कैसे परिवर्तन किया?आपकी कमी सुनाईआप विकारी हो, आप गन्दे हो, कहाआपको स्मृति दिलाई आप आत्मा हो और इस श्रेष्ठ स्मृति से आपमें समर्थी आईपरिवर्तन किया। तो हिम्मत से स्मृति दिलाओ। स्मृति समर्थी स्वतः ही दिलायेगी।* समझा। 

 

✺   *ड्रिल :-  "हिम्मतहीन को हिम्मत दे आगे बढ़ाना"*

 

 _ ➳  मैं प्रेम स्वरूप आत्मा हूँ... *मैं प्रेम के सागर शिव बाबा से... वरदानी अमृतवेला में मिलन मना रही हूँ... यह वेला आत्मा और परमात्मा के मिलन की श्रेष्ठ वेला है... इस वेला में मैं आत्मा अपने ज्ञान सूर्य शिव बाबा से सर्व शक्तियां ग्रहण कर रही हूँ...* मेरे ज्ञान सूर्य शिवबाबा मुझ आत्मा पर अपनी सर्व शक्तियों की बौछार कर रहे हैं... इन शक्तियों से मैं आत्मा भरपूर हो रही हूँ... *बाबा से विशेष प्रेम की हरे रंग की किरणें मुझ आत्मा पर पड़ रही है... और एक शक्तिशाली हरे रंग का आभा मंडल मुझ आत्मा के चारों ओर बन रहा है...* इस आभा मंडल का प्रभाव दूर - दूर तक फैल रहा है... *इस आभा मंडल के संपर्क में जो भी आ रहा है वो गहरे और सच्चे प्रेम का अनुभव कर रहा है...* मैं आत्मा अब उड़ कर अपने सूक्ष्म वतन में पहुँच जाता हूँ... फरिश्ता स्वरूप ब्रह्मा बाबा मेरे सामने अपने बाहें फैला कर मेरा आह्वान कर रहे हैं... मैं नन्हा प्रेम का फरिश्ता बाबा की बाहों में समा जाता हूँ... बाबा मुझे अपनी प्रेम भरी दृष्टि से सच्चे प्रेम की अनुभूति करवा रहे हैं... मैं सच्चे प्रेम से भरपूर हो गयी हूँ... *बाबा मुझसे कह रहे हैं जाओ बच्ची इस अविनाशी और सच्चे प्रेम को अपने सेवा स्थान पे जाकर सबको बाटों... बाबा का आदेश मिलते ही मैं फरिश्ता उड़ चल पड़ता हूँ पंच तत्व की दुनिया में अपने सेवा स्थान की ओर...*

 

 _ ➳  इस दुनिया में पहुँचते ही मैं आत्मा देखती हूँ कि यहाँ की सारे आत्माएँ सच्चे प्रेम की प्यासी है... *यहाँ चारों तरफ झूठे और स्वार्थी प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं है... सब मतलब का प्रेम ही करते हैं... जिससे सब आत्माएँ हिम्मतहीन, उदास और परेशान है...* सब आत्माएँ सच्चे प्रेम की तलाश में इधर - उधर भटक रही है... इन आत्माओं को देख कर मुझ आत्मा का हृदय विदीर्ण हो रहा है... *मैं सच्चे प्रेम और हिम्मत का फरिश्ता विश्व के ग्लोब पे इन सब आत्माओं को इमर्ज करता हूँ...* सच्चे प्रेम की तलाश में भटकती सारी आत्माएँ मुझ फरिश्ते के सामने विराजमान है... *मैं प्रेम का फरिश्ता इन सारी आत्माओं पर प्रेम के हरे रंग की बरसात कर रही हूँ... जिससे ये सब आत्माएँ सच्चे प्रेम का अनुभव कर रही है...* और इस प्रेम से भरपूर हो गयी है... इनकी सच्चे प्रेम की तलाश पूरी हो गयी है... *सब के चेहरों पर सच्चे प्रेम की एक गहरी मुस्कान आ गयी है... सब आत्माएँ बहुत खुशनुमा नजर आ रही है...*

 

 _ ➳  मैं प्रेम का फरिश्ता देखता हूँ कि कुछ ब्राह्मण परिवार की आत्माओं को भी हिम्मत और सच्चा प्यार चाहिए... मतलब का प्यार नहीं... स्वार्थ का प्यार नहीं... जबकि प्रेम के सागर का सच्चा प्यार चाहिए... *मैं फरिश्ता उड़ कर पहुँच जाता हूँ अपने ब्राह्मण भाई - बहनों के पास... और उनको भी सच्चे... अविनाशी प्रेम से भरपूर कर रही हूँ... हिम्मतहीन आत्माओं को शक्ति की किरणें देकर हिम्मतवान बना रही हूँ...* मैं आत्मा किसी भी आत्मा की कमी कमजोरी को नहीं देखती हूँ... उसमें *एक गुण भी है तो ऐसी आत्माओं को प्रेम से सहारा देकर आगे बढ़ने की हिम्मत दे रही हूँ...*

 

 _ ➳  अगर किसी आत्मा ने 95 परसेन्ट अपने पुराने संस्कार वश... परवश होकर नीचे-ऊपर कर लिया लेकिन 5 परसेन्ट अच्छा किया... *तो मैं आत्मा उसकी 5 परसेन्ट अच्छाई को लेकर... पहले उसमें हिम्मत भर रही हूँ... उस आत्मा को कह रही हूँ... आप ने बहुत अच्छा किया...* फिर उसको कहती हूँ बाकी जो बचा हुआ है उसको भी ठीक कर लेना... जिससे उस आत्मा को फील नहीं होता है... *वो हिम्मत से और अच्छा करने लगती है...* मैं आत्मा उस आत्मा की कमी को डायरेक्ट ना बोल के युक्ति से समझा कर बोल रही हो... *यह क्यों किया... ऐसा थोड़े ही करते है... यह नहीं करना चाहिए था... ऐसा ना बोल पहले उस संस्कार के वश... कमजोर... आत्मा को युक्ति से समझाती हूँ...* अगर मैं आत्मा उसकी कमी को बताती हूँ तो वह आत्मा नरवस हो जाएगी... प्रोग्रेस नहीं कर सकेगी... उस संस्कार के परवश आत्मा को पहले 5 परसेन्ट की हिम्मत दे रही हूँ... उसकी तारीफ कर आप में यह बात बहुत अच्छी है... आपमें यह गुण बहुत अच्छा है... आप और भी अच्छा कर सकते हैं... *मैं आत्मा उसके समय और उसके स्वरूप को समझकर बता रही हूँ... जिससे वह आत्मा मोल्ड हो रही है... और स्वयं ही परिवर्तन कर रही है...* वो आत्मा मुझ आत्मा से सच्चे सागर के सच्चे प्यार का अनुभव करके दिन पर दिन निखरती जा रही है...

 

 _ ➳  मैं फरिश्ता हिम्मतहीन को हिम्मत दे आगे बढ़ा रही हूँ... अपने संस्कार से परवश आत्मा में हिम्मत नहीं होती है... जिस तरह से बाबा ने मुझ आत्मा को परिवर्तित किया है...  जिस तरह से बाबा ने मुझ आत्मा की कमी नहीं सुनाई... मुझ आत्मा के विकार नहीं देखे... मुझ आत्मा को स्मृति दिलाई की आप महान आत्मा हो और इस श्रेष्ठ स्मृति से आपमें समर्थी आएगी... ऐसा समझा कर परिवर्तन किया... *ऐसे ही मैं आत्मा भी परवश आत्मा को हिम्मत से स्मृति दिला रही हूँ कि स्मृति से समर्थी स्वतः ही आ जाएगी... वह  हिम्मतहीन आत्मा भी हिम्मत से आगे बढ़ रही है...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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