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 30 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *किसी भी बात में संशयबुधी बन पढाई तो नहीं छोड़ी ?*

 

➢➢ *आत्मा समझ आत्मा से बात की ?*

 

➢➢ *दृढ़ संकल्प द्वारा कमजोरियों रुपी कलयुगी पर्वत को समाप्त किया ?*

 

➢➢ *साधनों का उपयोग आरामपसंद बनने के लिए न कर सेवाओं के लिए किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  वैसे अशरीरी होना सहज है लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, *कोई सर्विस के झंझट सामने हों, कोई हलचल में लाने वाली परिस्थितियां हों, ऐसे समय में सोचा और अशरीरी हो जाएं, इसके लिए बहुत समय का अभ्यास चाहिए।* सोचना और करना साथ-साथ चले तब अन्तिम पेपर में पास हो सकोगें।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं महान आत्मा हूँ"*

 

  सदा अपने को महावीर अर्थात् महान् आत्मा समझकर चलते हो? *किसके बने हैं और क्या बने हैं सिर्फ यह भी सोचो तो कभी भी व्यक्त भाव में नहीं आ सकते। व्यक्त भाव से ऊपर रहो अर्थात् फरिश्ते बन सदा ऊपर उड़ते रहो। फरिश्ते नीचे नहीं आते, धरती पर पांव नहीं रखते।* यह व्यक्त भाव भी देह की धरनी है।

 

  तो जब फरिश्ते बन गये फिर देह की धरनी में कैसे आ सकते, फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाले। तो सभी उड़ता पंछी हो, पिंजड़ेवाले तो नहीं हो ना? *आधाकल्प तो पिंजरे के थे अब उड़ते पंछी हो गये। स्वतन्त्र हो गये। नीचे की आकर्षण अभी खींच नहीं सकती। नीचे होंगे तो शिकारी शिकार कर देंगे, ऊपर उड़ते रहेंगे तो कोई कुछ नहीं कर सकता।*

 

  तो सभी उड़ता पंछी हो ना? पिंजरा खत्म हो गया? चाहे कितना भी सुन्दर पिंजरा हो लेकिन है तो बंधन ना। *यह अलौकिक सम्बन्ध भी सोने का पिंजरा है, इसमें भी नहीं फंसना। स्वतन्त्र तो स्वतन्त्र। सदा बन्धनमुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव कर सकेगे। अच्छा।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  चारों ओर हलचल है, प्रकृति के सभी तत्व खूब हलचल मचा रहे हैं, एक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैं, व्यक्तियों की भी हलचल है, प्रकृति की भी हलचल है, ऐसे समय पर *जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगे?*

 

✧  सेफ्टी का साधन कौन-सा है? *सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो तो हलचल में अचल रह सकते हो।*

 

✧  इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगा? अभी टायल करो - *एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो?* (बाबा ने ड्रिल कराई) इसको कहा जाता है - 'साधना'। अन्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फरिश्ते अर्थात् सदा देही-अभिमानी अपने को सदा बाप की याद की छत्रछाया के अन्दर अनुभव करते हो?* जितना-जितना याद में रहेंगे उतना अनुभव करेंगे कि मैं अकेली नहीं लेकिन बाप-दादा सदा साथ हैं। कोई भी समस्या सामने आयेगी तो अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करेंगे, इसलिए घबरायेंगे नहीं। *कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य सहज हो जायेगा।* कभी भी कोई ऐसी बात सामने आवे तो बाप-दादा की स्मृति रखते अपना बोझ बाप के ऊपर रख दो तो हल्के हो जायेंगे। क्योंकि बाप बड़ा है और आप छोटे बच्चे हो। बड़ों पर ही बोझ रखते हैं। *बोझ बाप पर रख दिया तो सदा अपने को खुश अनुभव करेंगे।* फ़रिश्ते के समान नाचते रहेंगे। दिन-रात २४ ही घंटे मन से डाँस करते रहेंगे। देह-अभिमान में आना अर्थात् मानव बनना। देही-अभिमानी बनना अर्थात् फ़रिश्ता बनना।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- सत बाप द्वारा सत्य का वरदान लेना"*

 

_ ➳  *मैं ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण आत्मा मुरलीधर बाबा से सच्ची सच्ची गीता सुनने सेण्टर पहुँच जाती हूँ... प्यारे बाबा ऊँचे ते ऊँचे धाम से मुझ आत्मा को सत्य ज्ञान देकर दुखों से मुक्त करने इस धरा पर उतर आयें हैं...* असत्य की दुनिया से निकाल सत्य की दुनिया में ले जाने आयें हैं... मैं मगन अवस्था में बैठ प्यारे मुरलीधर बाबा की मुरली सुनती हूँ...

 

   *ज्ञान के सागर मेरे प्यारे बाबा ज्ञान की बरसात करते हुए कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... *सत्य ज्ञान के बिना सत्य पिता के बिना किस कदर दुखो की अंधी गलियो में भटक रहे थे... अब जो ईश्वर पिता ने अपनी पलको से चुनकर फूलो सा सजाया है...* ज्ञान रत्नों से मालदार बनाया है... उस मीठे भाग्य के नशे में झूम जाओ... और ब्राह्मण होने के मीठे भाग्य पर इठलाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा आदि-मध्य-अंत के ज्ञान को पाकर त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा..*. मै आत्मा आपसे ज्ञान रत्नों की असीम दौलत पाकर... सारे सुखो को कदमो में बिखरा रही हूँ...* स्वयं से थी कभी अनजान जो आज त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रही हूँ... ब्रह्मा वंशी बन विश्व धरा पर चहक रही हूँ...

 

   *मीठे बाबा मुझे रचना रचता का ज्ञान देकर स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हुए कहते हैं:-** मीठे प्यारे लाडले बच्चे... दुनिया जिसे पुकार रही... वह विश्व पिता अपने बच्चों को बैठ पढ़ा रहा... ज्ञान रत्नों से दामन सजा रहा... अपनी सारी जागीर सारे खजाने बच्चों पर दिल खोल लुटा रहा...* सारे राज बताकर सदा का समझदार बना रहा... इस खुबसूरत मीठे भाग्य के नशे में झूम झूम जाओ...

 

_ ➳  *बाबा के प्यार में सुख को पाते हुए सुख सागर में लहराते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने अनोखे अदभुत से भाग्य पर बलिहार हूँ... धरा की मिटटी से सने देह के रिश्तो से निकल... *सच्चे प्यार सच्चे धन को पा रही हूँ... यूँ भगवान की गोद में इठलाऊँगी... भला कब मैंने सोचा था... कितना मीठा सा मेरा भाग्य है...”*

 

   *मेरे बाबा ज्ञान रतन धन से सजाकर ज्ञान रत्नों की खान सौगात में देते हुए कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... ईश्वर पिता से वर्से में जो ज्ञान धन पाकर मालामाल बने हो... उस दौलत को हर साँस संकल्प में गिनते ही रहो... *पूरे विश्व में आप चुने हुए भाग्यशाली ब्रह्मा वत्स हो... और ईश्वर पिता के हर जज्बात को जानने वाले उनके दिल पर राज करने वाले दिल पसन्द हो... इस नशे की खुमारी में खो जाओ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा परमात्म प्यार की अधिकारी बन प्यारे बाबा के दिलतख़्त पर बैठ मुस्कुराते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा आज आपके प्यार को पाकर कितनी धनवान् हो गयी हूँ... ज्ञान रत्नों की बेशुमार दौलत मेरे चँहु ओर बिखरी है...* और इस अखूट खजाने को पाकर ज्ञान परी बन चहक रही हूँ... मा त्रिकालदर्शी बन मुस्करा रही हूँ...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी बात में संशय बुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है*"

 

 _ ➳  स्वयं भगवान परमशिक्षक बन परमधाम से हर रोज मुझे पढ़ाने आते हैं यह स्मृति मेरे अंदर एक अदबुत रूहानी जोश और उमंग भर देती है। *मन ही मन अपने सर्वश्रेष्ठ भाग्य की सराहना करते हुए मैं उन खूबसूरत पलों को याद करती हूँ जब निराकार भगवान साकार में आकर शिक्षक बन अविनाशी ज्ञान रत्नों के अखुट खजाने हम पर लुटाते हैं*। उस सीन की मधुर स्मृति मुझे परमात्मा की अवतरण भूमि मधुबन के उस डायमंड हाल में ले जाती हैं जहाँ भगवान साकार में आकर, अपने बच्चों के समुख बैठ बाप बन उनकी पालना करते हैं, टीचर बन उन्हें पढ़ाते हैं और सतगुरु बन अपनी श्रेष्ठ मत उन्हें देकर उनका कल्याण करते हैं। *मन बुद्धि से पहुँची मधुबन के डायमंड हाल मैं बैठी परमात्म मिलन का मैं आनन्द ले रही हूँ और अपने परमशिक्षक के मुख कमल से उच्चारे महावाक्यों को सुन कर मन ही मन हर्षित हो रही हूँ*।

 

 _ ➳  यह विचार कि "मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ" और स्वयं भगवान मुझे पढ़ाने के लिए आये हैं, जैसे मुझ पर एक नशा चढ़ा रहा है। मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनाने वाली अपने परमशिक्षक शिव भगवान द्वारा पढ़ाई जा रही इस पढ़ाई को मुझे ना केवल अच्छी रीति पढ़ना है बल्कि इसे जीवन मे धारण कर, औरों को भी यह पढ़ाई पढा कर उन्हें भी आप समान बनाना है। *मन ही मन यह विचार कर, स्वयं से मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि चाहे कुछ हो जाये किन्तु कभी भी किसी से रूठ कर भी, अपने परमशिक्षक से पढ़ना  मैं नही छोडूंगी। जब तक मेरे परमशिक्षक  शिवबाबा मुझे पढ़ाते रहेंगे तब तक इस संगमयुग के अंत तक मैं इस पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ती रहूँगी और अपने प्यारे बाबा की अनमोल शिक्षाओं को अपने जीवन मे धारण कर अपने जीवन को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ करती रहूँगी*।

 

 _ ➳  अपने परमशिक्षक से पढाई को अच्छी रीति पढ़ने की प्रतिज्ञा कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपने सेवाक्षेत्र पर लौट आती हूँ और मन ही मन अपने प्यारे भगवान बाप का दिल से शुक्रिया अदा कर उनकी याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके बैठ जाती हूँ। हर संकल्प, विकल्प से अपने मन बुद्धि को हटाकर, अपना सम्पूर्ण ध्यान मैं अपने मस्तक पर एकाग्र करती हूँ और अपने सत्य स्वरूप में स्वयं को टिकाने का प्रयास करती हूँ। *एकाग्रता की शक्ति द्वारा मैं सहज ही और अतिशीघ्र अपने सत्य स्वरूप में स्थित हो जाती हूँ। स्वयं को मैं भृकुटि के बीच मे चमकते हुए एक अति सूक्ष्म स्टार के रूप में देख रही हूँ। मुझ से निकल रहा भीना - भीना प्रकाश मेरे चारों और फैल रहा है और मन को गहन सुकून का अनुभव करवा रहा है*। इस प्रकाश में समाये गुणों और शक्तियों के वायब्रेशन्स इस प्रकाश के साथ अब धीरे - धीरे चारों और फैल रहें हैं। जो वायुमण्डल को गहन सुखमय और शांतमय बना रहे हैं।

 

 _ ➳  अपने अंदर समाये गुणों और शक्तियों का अनुभव करके, असीम आनन्द लेते हुए मैं आत्मा अब अपने परमशिक्षक शिव पिता से मिलन मनाने उनकी निराकारी दुनिया की ओर जा रही हूँ। *भृकुटि के भव्यभाल से उतर कर, मैं प्वाइंट ऑफ लाइट, चैतन्य शक्ति धीरे - धीरे ऊपर आकाश की ओर चल पड़ी हूँ। प्रभु प्रेम के रंग में रंगी मैं आत्मा सेकण्ड में साकार और सूक्ष्म वतन को पार कर अब पहुँच गई हूँ अपने शिव पिता के पास उनके निर्वाणधाम घर में जो वाणी से परें हैं*। साइलेन्स की यह दुनिया मेरा स्वीट साइलेन्स होम जहां आकर मैं गहन शांति का अनुभव कर रही हूँ। देख रही हूँ महाज्योति अपने शिव पिता, अपने परमशिक्षक को अपने बिल्कुल सामने। *ऐसा लग रहा है जैसे सर्व शक्तियों की अनन्त किरणे बिखेरते मेरे प्यारे पिता अपनी किरणों रूपी बाहों में मुझे समाने के लिए मेरा आह्वान कर रहें हैं*।

 

 _ ➳  सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी किरणे बिखेरता मेरे पिता का यह सुन्दर सलौना स्वरूप मुझे सहज ही अपनी और खींच रहा है। *मैं चमकती हुई जगमग करती चैतन्य ज्योति अब धीरे - धीरे महाज्योति अपने प्यारे पिता के समीप पहुँचती हूँ और जा कर जैसे ही उनकी किरणों को स्पर्श करती हूँ उनसे आ रही सर्वशक्तियों की अनन्त किरणे मुझे अपने आगोश में ले लेती हैं*। बाबा की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी बाहों में समाकर मैं ऐसा अनुभव कर रही हूँ जैसे एक अद्भुत शक्ति मेरे अंदर भरती जा रही है। बाबा से आ रही सर्वशक्तियों का बल मुझे भी उनके समान शक्तिशाली और तेजोमय बना रहा है। *शक्तियों से सम्पन्न अपने अति चमकदार और लुभावने स्वरूप को देख मैं मंत्रमुग्ध हो रही हूँ  जो रीयल गोल्ड की तरह दिखाई दे रहा है*।

 

_ ➳  सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप बनकर अब मैं आत्मा परमधाम से नीचे, साकार सृष्टि पर कर्म करने के लिए वापिस लौट आती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने परमशिक्षक शिव पिता के फरमान पर चल, उनकी शिक्षायों को अपने जीवन मे धारण कर, अब मैं श्रेष्ठ बनने का पूरा पुरुषार्थ कर रही हूँ*। स्वयं भगवान मुझे पढ़ाते हैं इस बात को सदा स्मृति में रखकर, रुठ कर पढ़ाई छोड़ने का संकल्प भी अपने मन मे ना उठाते हुए, अपने परमशिक्षक प्यारे बाबा से मिलने वाले अविनाशी ज्ञान रत्नों से हर रोज अपनी बुद्धि रूपी झोली को भरकर मैं औरो को भी इन ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना कर उनका भी कल्याण अब हर समय कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं दृढ़ संकल्प द्वारा कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं समर्थी स्वरूप आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा साधन को सदैव सेवाओं के लिए यूज करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा साधन से आरामपसंद बनने से सदा मुक्त हूँ  ।*

   *मैं सच्ची सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  कई बच्चे सोचते हैं सफल तो करें लेकिन विनाश हो जाए कल परसों तोहमारा तो काम में आया ही नहीं। हमारा तो सेवा में लगा नहीं। तो करेंसोच कर करें। हिसाब से करेंथोड़ा-थोड़ा करके करें। यह संकल्प बाप के पास पहुँचते हैं। लेकिन मानों आज आप बच्चों ने अपना तन सेवा में समर्पण कियामन विश्व-परिवर्तन के वायब्रेशन में निरन्तर लगायाधन जो भी हैहै तो प्राप्ति के आगे कुछ नहीं लेकिन जो भी हैआज आपने किया और कल विनाश हो जाता है तो क्या आपका सफल हुआ या व्यर्थ गयासोचोसेवा में तो लगा नहींतो क्या सफल हुआ? आपने किसके प्रति सफल किया? *बापदादा के प्रति सफल किया नातो बापदादा तो अविनाशी हैवह तो विनाश नहीं होता! अविनाशी खाते में, अविनाशी बापदादा के पास आपने आज जमा कियाएक घण्टा पहले जमा कियातो अविनाशी बाप के पास आपका खाता एक का पदमगुणा जमा हो जायेगा ना!* पुरानी सृष्टि विनाश होगी ना! इसीलिए आपका दिल से किया हुआ, *मजबूरी से किया हुआदेखा-देखी में किया हुआ, उसका पूरा नहीं मिलता है। मिलता जरूर है क्योंकि दाता को दिया है लेकिन पूरा नहीं मिलता है।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "अविनाशी बाप के पास जमा कर अपना खाता एक का पदमगुणा बढ़ाना"*

 

 _ ➳  मधुबन तपोभूमि में तपस्या धाम में बैठी मैं तपस्या मूर्त आत्मा हूँ... समस्त चेतना को भृकुटि के मध्य केन्द्रित करती हूँ... *स्थूल देह में विराजमान यह ज्योतिमय किरण, यह चमकता प्रतिबिंब, यह जगमगाता ज्योति पुंज मैं आत्मा हूँ...* संकल्प विकल्पों से परे होकर मैं आत्मा रुपी बैटरी परमात्मा शिव बाबा पावरहाउस से कनेक्शन जोड़ती हूँ... *परमात्मा पावर हाऊस से आती किरणों से मैं आत्मा चार्ज हो रही हूँ... मुझ आत्मा की लाइट बढ़ रही है... सूरज के समान मैं आत्मा चमक रही हूँ...* एक नयी उर्जा का संचार मुझ आत्मा में हो रहा है... बेहद लाइट और माइट मैं आत्मा फील कर रही हूँ... *मुझ उर्जा बिन्दु से ऊर्जा की किरणें समस्त वायुमंडल में फैल रही है... इस वायुमंडल को पावरफुल बना रही है...*

 

 _ ➳  थोड़ी देर के इस अभ्यास के बाद मैं तपस्या मूर्त आत्मा शिव पिता की याद में तपस्या धाम से रोटी डिपार्टमेंट में स्थूल सेवा के लिए चल पड़ती हूँ... तभी अचानक कहीं एक गीत बजता है... *शुभ कर्म में ना देरी करो सांसों का भरोसा नहीं... जिन्दगी को सफल अब करो सांसों का भरोसा नहीं...* ये सुनते ही जैसे मन रूपी सागर में विचार रूपी लहरें उठती है... और मैं आत्मा अपने आप से प्रश्न करने लगती हूँ... मुझ आत्मा ने अपना जमा का खाता कितना बढाया है... अगर आज या कल ही विनाश हो जाएं तो... अगर जमा कर लिया और काम में नहीं आया सेवा में नहीं लगा तो वो सफल होगा या नहीं... *तभी अचानक ऊपर आती हुई एक तेज रोशनी मुझ आत्मा पर पड़ती है...* और एक दृश्य मुझ आत्मा के सामने आता है...

 

 ➳ _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... सामने एक बिल्ड़िग है जिस पर लिखा है... *"ईश्वरीय बैंक"* और बाहर एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है... *"एक का पदमगुणा"* मैं आत्मा देख रही हूँ, कुछ आत्माएँ इस ईश्वरीय बैंक की तरफ जा रही है... मैं आत्मा ये दृश्य बड़े ध्यान से देख रही हूँ... अन्दर एक बहुत बड़ी मशीन है जिसमें से एक स्टैम्प बाहर निकल रही है जो भी जमा करने के लिए आत्माएँ आ रही है उस पर ये स्टैम्प लग रही है... *इस स्टैम्प पर लिखा है "अविनाशी खाता"* और उसी मशीन पर एक स्क्रीन लगी है जो भी आत्मा कुछ भी जमा कर रही है ऊपर लिखा आ रहा है *"एक का पदमगुणा जमा"*

 

 _ ➳  लेकिन तभी मैं आत्मा देख रही हूँ... कुछ आत्माएँ ईश्वरीय बैंक में गई आत्माओं को देख, उनसे सुन देखा-देखी में मजबूरी में कुछ जमा करने के लिए अन्दर जाती है... लेकिन *जैसे वो आत्माएँ जमा करती है मशीन से वैसे ही स्टैम्प निकलती है उस जमा खाते पर वो अविनाशी सटैम्प लगती है... लेकिन मशीन की स्क्रीन पर अब एक का पदमगुणा लिखा नहीं आता...* तभी अचानक सारा दृश्य गायब हो जाता है *बाबा से ज्ञान प्रकाश मुझ आत्मा पर पड़ रहा है... जिससे बाबा द्वारा दिखाए इस दृश्य का राज मुझ आत्मा के सामने स्पष्ट हो जाता है...* मन में चली संकल्पों की सब लहरें शांत हो गई है... और अब मैं आत्मा समझ गयी हूँ *दिल से जमा किया हुआ ईश्वरीय बैंक में एक का पदमगुणा जमा हो जाता है...*

 

 _ ➳  कभी व्यर्थ नहीं जाता कोई भी आत्मा चाहे देखा-देखी में जमा करे लेकिन अविनाशी बाप से उसका भी रिटर्न मिलता हैं... भले पूरा ना मिले मिलता जरूर है... *अविनाशी बापदादा के पास एक का पदमगुणा जमा हो जाता है...*  और अब मैं आत्मा देख रही हूँ स्वयं को कर्म करते हुए... पुरानी सृष्टि के विनाश से पहले टू लेट से पहले *सच्ची दिल से मैं आत्मा तन को ईश्वरीय सेवा में लगा तन को सफल कर रही हूँ... और बाबा को दिया हुआ धन और मन द्वारा सदा विश्व कल्याण के वायब्रेशनस फैला रही हूँ... मनसा सेवा कर रही हूँ... दिल से धन को ईश्वरीय कार्य में लगा रही हूँ... इस प्रकार मैं आत्मा सच्ची दिल से, अविनाशी बाप के पास हर रीति से तन, मन, धन सफल का एक का पदमगुणा जमा कर रही हूँ...* और निरंतर सच्ची खुशी का अनुभव कर रही हूँ... *इस जीवन को हर प्रकार से सफल कर रही हूँ...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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