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 07 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *कडवे बोल तो नहीं बोले ?*

 

➢➢ *सिर्फ शिव बाबा की ही महिमा की ?*

 

➢➢ *सर्व के गुण द्केहते हुए स्वयं में बाप के गुण धारण किये ?*

 

➢➢ *साक्षीपन की स्थिति से यथार्थ निर्णय लिए ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *जैसे कोई भी व्यक्ति दर्पण के सामने खड़ा होते ही स्वयं का साक्षात्कार कर लेता है, वैसे आपकी आत्मिक स्थिति, शक्ति रुपी दर्पण के आगे कोई भी आत्मा आवे तो वह एक सेकेण्ड में स्व स्वरुप का दर्शन वा साक्षात्कार कर ले।* आपके हर कर्म में, हर चलन में रुहानियत की अट्रेक्शन हो। *जो स्वच्छ, आत्मिक बल वाली आत्मायें हैं वह सबको अपनी ओर आकर्षित जरूर करती हैं।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा हूँ"*

 

  बाप-दादा बच्चों को पहला-पहला टाइटिल देते हैं 'स्वदर्शन चक्रधारी'। बाप-दादा द्वारा मिला हुआ टाइटिल स्मृति में रहता है? *जितना-जितना स्वदर्शन चक्रधारी बनेंगे उतना मायाजीत बनेंगे।* तो स्वदर्शन चक्र चलाते रहते हो? स्वदर्शन चक्र चलाते-चलाते कब स्व के बजाय पर-दर्शन चक्र तो नहीं चल जाता? 

 

✧  स्वदर्शन चक्रधारी बनने वाले स्व-राज्य और विश्व राज्य के अधिकारी बन जाते हैं। स्वराज्य अधिकारी अभी बने हो? *जो अभी स्वराज्य अधिकारी बनते वही भविष्य राज्य अधिकारी बन सकते हैं।* राज्य अधिकारी बनने के लिए कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए।

 

✧  *जब जिस कर्म इन्द्रिय द्वारा जो कर्म कराने चाहें वह करा सकते, इसको कहा जाता है 'अधिकारी'।* ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर है? कभी आंखे वह मुख धोखा तो नहीं देते। जब कन्ट्रोलिंग पावर होती है तो कोई भी कर्मेन्द्रिय कभी संकल्प रूप में भी धोखा नहीं दे सकती।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *यह कर्मेन्द्रियाँ हमारी साथी हैं, कर्म की साथी हैं लेकिन मैं न्यारा और प्यारा हूँ अभी एक सेकण्ड में अभ्यास दोहराओ।* (बापदादा ने ड़िल कराई) सहज लगता है कि मुश्किल है? सहज है तो सारे दिन में कर्म के समय यह स्मृति इमर्ज करो, तो कर्मातीत स्थिति का अनुभव सहज करेंगे।

 

✧  क्योंकि सेवा वा कर्म को छोड सकते हो? छोडेगे क्या? करना ही है। तपस्या में बैठना यह भी तो कर्म है तो बिना कर्म के वा बिना सेवा के तो रह नहीं सकते हो और रहना भी नहीं है। क्योंकि *समय कम है और सेवा अभी भी बहुत है।* सेवा की रूपरेखा बदली है।

 

✧  लेकिन अभी भी कई आत्माओं का उल्हना रहा हुआ है। इसलिए *सेवा और स्व-पुरुषार्थ दोनों का बैलेन्स रखो।* ऐसे नहीं कि सेवा में बहुत बिजी थे ना इसलिए स्व-पुरुषार्थ कम हो गया। नहीं। और ही सेवा में स्व-पुरुषार्थ का अटेन्शन ज्यादा चाहिए। क्योंकि *माया को आने की मार्जिन सेवा में बहुत प्रकार से होती है।*

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  आजकल की दुनिया में ड्रामा के अतिरिक्त और कौन-सी वस्तु है जो ऐसे फ़रिश्तों के नयनों जैसी आकर्षण करने वाली हैं? टी.वी.। *जैसे टी.वी. द्वारा इस संसार की कैसी-कैसी सीन-सीनरियाँ देखते हुए कई आकर्षित होते अर्थात् गिरती कला में जाते हैं ऐसे ही फ़रिश्तों के नयन दिव्य दूर-दर्शन का काम करेंगे। हर एक के नयनों द्वारा सिर्फ इस संसार के ही नहीं लेकिन तीनों लोकों के दर्शन करेंगे। ऐसे फ़रिश्तों के मस्तक में चमकती हुई मणि, आत्माओं को सर्च-लाइट व लाइट हाउस के समान स्वयं का स्वरूप, स्वमार्ग और श्रेष्ठ मंज़िल का स्पष्ट साक्षात्कार करायेंगी। ऐसे फ़रिश्तों के युक्तियुक्त बोल अर्थात् अमूल्य बोल, हर भिखारी आत्मा की रत्नों से झोली भरपूर करेंगे।* जो गायन है देवतायें भी भक्तों पर प्रसन्न हो फूलों की वर्षा करते हैं- ऐसे आप श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा विश्व की आत्माओं के प्रति सर्व शक्तियों, सर्व गुणों तथा सर्व वरदानों की पुष्प-वर्षा सर्व के प्रति होगी।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बाप के बहुत-बहुत सिकीलधे हो"*

 

_ ➳  विश्व कल्याण के लिए निकली फरिश्तों की टोली के समूह में... मै आत्मा फ़रिश्ते स्वरूप में विश्व ग्लोब पर... मीठे बाबा से सुख, शांति, प्रेम की तरंगो को लेकर... निरन्तर बरसा रही हूँ... और फिर सूक्ष्म वतन में ठहर जाती हूँ... मीठे बाबा और मै फ़रिश्ता...मेरा हाथ थामे मीठे बाबा सूक्ष्म वतन में गुफ्तगू करते टहलते है... अपने प्यारे बाबा को दिल के इतना करीब देख... मै आत्मा अपने सोभाग्य पर मुस्कराती हूँ... और *सोचती हूँ वाह रे भाग्य मेरे, तूने यूँ भगवान का हाथ मेरे हाथो में दे दिया*....

 

   *मीठे बाबा मुझ आत्मा को विश्व के कल्याण की जिम्मेदारी को समझाते हुए बोले :-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... सबको अपने जैसा महान भाग्यशाली बनाओ... *हर बिछड़े दिल को सच्चे पिता से मिलवाकर, खुशियो की जन्नत दिलवाओ.*.. सच्ची खुशियो से सबका दामन सजाओ... जो खजाने आप बच्चों ने पाये है उन्हें दिल खोल कर लुटाओ..."

 

_ ➳  *मै आत्मा अपने बाबा की उम्मीदों का इस कदर सितारा बनकर कहती हूँ :-* "मीठे बाबा मेरे... भगवान को यूँ कभी काम आऊँगी भला... यह तो सपनो में भी न सोचा था... *यूँ खुशियो की महारानी बनी... मै आत्मा सबको इस दौलत से सजाऊँगी* ऐसा आत्मिक भाव, और विशाल दिल देकर... आपने मेरे बौनेपन को अनन्त में बदल दिया है..."

 

   *प्यारे बाबा मुझे ज्ञान रत्नों की जागीरों से भरते हुए बोले :-* "मीठे लाडले बच्चे... मै ईश्वर पिता अपने महान बच्चों की ओर मदद की नजरो से सदा ही देखता हूँ... मेरे बिछड़े जिगर के टुकुडो को मुझसे मिलवाओ... *उनके दुखो में थके कदमो, और मेरी खोज में पथरायी आँखों को, सदा की ख़ुशी और सुकून दे आओ*... उन्हें भी आप समान सोभाग्य से सजाओ...."

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा को मुझ आत्मा को इतना प्यार सम्मान और दुलार देते देख कहती हूँ :-* "मीठे सिकीलधे बाबा... *आपसे पाया असीम प्यार... मै आत्मा हर मन आँगन में बिखेर रही हूँ.*.. सच्चे सुखो की अधिकारी बनाकर सच्ची मुस्कान से सजा रही हूँ... स्वर्ग के सुख भरे फूल उनके दामन में खिला रही हूँ..."

 

  *मीठे प्यारे बाबा मुझ आत्मा को मा सुख दाता बनाते हुए बोले :-* "मीठे सिकीलधे बच्चे... आप समान सोभाग्यशाली हर आत्मा को भी बनाओ... *सच्चे सुख आनन्द से भरा जीवन सबकी जागीर बनाओ.*..  विश्व पिता से पायी सच्ची खुशियो की बहार... हर दिल पर खिलाओ.. और मायूस अधरों पर सच्ची सुख भरी मुस्कान सजाओ...

 

_ ➳  *मै आत्मा मीठे बाबा को सच्चे दिल से वादा करते हुए कहती हूँ :-* "मीठे प्यारे बाबा मेरे... मै आत्मा आपसे पाये ज्ञान रत्नों की दौलत और ईश्वरीय प्यार की खुशनसीबी का अधिकारी सबको बना रही हूँ... विकारो से मुक्त कराकर ईश्वरीय दिल का तख्त दिलवा रही हूँ... *भटके हुए दिलो को आपके हाथो में लाकर, सदा का निश्चिन्त बना रही हूँ.*.. ऐसी मीठी रुहरिहानं अपने बाबा से करके... मै आत्मा साकार वतन में आ गयी...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- किसी भी देहधारी की स्तुति नहीं करनी है*"

 

_ ➳  अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर के साथ मैं फरिश्ता अपनी साकार देह से बाहर आता हूँ ओर ऊपर आकाश की ओर उड़ जाता हूँ। *साकारी दुनिया के हर नज़ारे को साक्षी होकर देखता हुआ मैं सारे विश्व का चक्कर लगाते हुए एक श्मशान के ऊपर से गुजरता हुआ, वहां जल रही चिताओं को देख नीचे उतरता हूँ और श्मशान के अंदर प्रवेश कर जाता हूँ*। मैं देखता हूँ एक अर्थी को उठाये कुछ मनुष्य उस श्मशान भूमि में प्रवेश करते हैं और उसे जमीन पर रख उस पर लकड़ियों का ढ़ेर लगाकर उसे अग्नि देकर उसका दाह संस्कार कर वापिस लौट जाते हैं। वहाँ खड़ा ऐसे ही ना जाने कितने मृत शरीरों को मैं अग्नि में जलते देख रहा हूँ। 

 

_ ➳  इस दृश्य को देख मैं उस श्मशान भूमि से बाहर आता हूँ और मन ही मन विचार करता हूँ कि जिन देह के सम्बन्धियों से प्रीत निभाने के लिए मनुष्य अपने पूरा जीवन लगा देता है, उनके मोह में फंस कर कितने विकर्म करता है उसके वही सम्बन्धी उसके मरते ही उससे हर सम्बन्ध तोड़, उसे अग्नि देकर कैसे वापिस लौट जाते हैं। *इस श्मशान से आगे की यात्रा तो आत्मा को अकेले ही तय करनी होती है। केवल श्मशान तक साथ देने वाले इन देह के सम्बन्धियों से दिल लगाकर हर मनुष्य कैसे अपने आप को ठग रहा है*! इस बात से भी बेचारे मनुष्य कितने अनजान है कि इस नश्वर संसार में अगर कोई प्रीत की रीत निभा सकता है तो वो केवल एक निराकार परमात्मा है, कोई देहधारी नही।

 

_ ➳  मन ही मन अपने आप से बातें करता मैं फ़रिश्ता अपने श्रेष्ठ भाग्य के बारे में विचार कर हर्षित होता हूँ कि कितना महान सौभाग्य है मेरा जो सर्व सम्बन्धों से भगवान ने मुझे अपना बना लिया। *इसलिए दिल को आराम देने वाले अपने दिलाराम बाबा से मैं मन ही मन प्रोमिस करता हूँ कि किसी भी देहधारी से दिल ना लगाते हुए, केवल अपने दिलाराम बाबा से ही मैं दिल की प्रीत रखूँगा और उस प्रीत की रीत निभाने में कभी कोई कमी नही आने दूँगा*। स्वयं से और अपने प्यारे मीठे बाबा से प्रोमिस करके दिल को सुकून देने वाले अपने दिलाराम बाबा को मैं याद करते ही महसूस करता हूँ जैसे मेरे दिलाराम बाबा अपने स्नेह की मीठी फुहारे मुझ पर बरसाते हुए, अपने लाइट माइट स्वरूप में मेरे सामने आकर उपस्थित हो गए हैं।

 

_ ➳  अपने हाथ मे मेरा हाथ थामे मेरे मीठे बाबा अब मुझे अपने अव्यक्त वतन की ओर ले कर जा रहें हैं। बापदादा के साथ, प्रकृति के खूबसूरत नजारों का आनन्द लेता हुआ उनका हाथ थामे मैं ऊपर आकाश को पार करता हुआ, उससे भी ऊपर उड़ते हुए बापदादा के साथ सूक्ष्म वतन में पहुँचता हूँ।

*अपने प्यारे बापदादा के पास बैठ, उनके नयनों में समाये अथाह प्यार के सागर में डुबकी लगाकर, उनका असीम प्यार पाकर , और उनसे सर्व सम्बन्धो का अविनाशी सुख लेकर अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होकर मैं चमकती हुई मस्तक मणि अब अपने अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर, अब सूक्ष्म वतन से ऊपर अपने परमधाम घर की ओर चल पड़ती हूँ*।

 

_ ➳  अपने इस परमधाम घर में पहुँच कर, यहाँ चारों और फैले अथाह शान्ति के वायब्रेशन्स को अपने अंदर गहराई तक समाती हुई, गहन शांति की अनुभूति करके  *मैं धीरे - धीरे अपने दिलाराम बाबा के पास पहुँचती हूँ और उनके समीप पहुँच कर जैसे ही मैं उन्हें टच करती हूँ उनकी शक्तियों का शीतल झरना मुझ आत्मा के ऊपर बरसने लगता है औऱ मुझे असीम आनन्द देने के साथ - साथ असीम शक्ति से भरपूर कर देता है*। अपने दिलाराम बाबा की किरणों को बार - बार छूते हुए, उनके प्यार का सुखद अनुभव करके मैं आत्मा वापिस सृष्टि ड्रामा पर अपना पार्ट बजाने के लिए अब परमधाम से नीचे आ जाती हूँ। 

 

_ ➳  अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, अपने दिलाराम बाबा के निस्वार्थ प्यार की छाप को अपने दिल दर्पण पर अंकित कर, उस प्यार के मधुर अहसास को घड़ी - घड़ी याद कर, अब मैं अपने दिलाराम बाबा के प्यार के झूले में हर पल झूल रही हूँ। *देह और देह की दुनिया मे रहते हुए, देह के सम्बन्धों से ममत्व निकाल, अब किसी भी देहधारी से दिल ना लगाते हुए, सर्व सम्बन्धों का सुख अपने दिलाराम बाबा से लेते हुए,

अतीन्द्रीय सुख का सुखद अनुभव मैं हर समय कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सर्व के गुण देखते हुए स्वयं में बाप के गुणों को धारण करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा साक्षीपन की स्थिति में स्थित हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सदैव यथार्थ निर्णय के तख़्त पर विराजमान हूँ  ।*

   *मैं आत्मा साक्षी दृष्टा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। *आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है।* सबसे नम्बरवन त्याग का एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - *जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे।* समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार *त्याग श्रेष्ठ त्याग नहीं है।* शुरू से ही देखो *तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया।* नये- बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी।

 

 _ ➳  ब्रह्मा  का फल आप बच्चों को मिल रहा है। *तपस्या का प्रभाव इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है।* साथ में बच्चे भी हैंबच्चों की भी तपस्या है लेकिन निमित्त तो ब्रह्मा बाप कहेंगे। जो भी मधुबन तपस्वी भूमि में आते हैं तो ब्राह्मण बच्चे भी अनुभव करते हैं कि *यहाँ का वायुमण्डलयहाँ के वायब्रेशन सहजयोगी बना देते हैं।* योग लगाने की मेहनत नहींसहज लग जाता है और कैसी भी आत्मायें आती हैंवह कुछ न कुछ अनुभव करके ही जाती हैं। ज्ञान को नहीं भी समझते लेकिन *अलौकिक प्यार और शान्ति का अनुभव करके ही जाते हैं। कुछ न कुछ परिवर्तन करने का संकल्प करके ही जाते हैं।* यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव। 

 

✺   *ड्रिल :-  "मधुबन तपोभूमि की स्मृति से अलौकिक प्यार और शांति का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं आत्मा मधुबन की मधुर स्मृतियों को स्मृति में रख पहुँच जाती हूँ शान्ति स्तम्भ... *जहाँ प्यारे बापदादा बाहें पसारे खड़े मुस्कुरा रहे हैं... मैं आत्मा बाबा की बाँहों में सिमट जाती हूँ... और बाबा को कहती हूँ बाबा- अब घर ले चलो... इस आवाज़ की दुनिया से पार ले चलो... बापदादा बोले:- बच्चे- मैं अपने साथ ले जाने के लिए ही आया हूँ... साथ जाने के लिए एवररेडी बनो... ब्रह्मा बाप समान त्यागी बनो...* बिंदु रूप में स्थित हो जाओ...

 

 _ ➳  *धन्य है आबू की धरती, जिस पर जहाँ- तहाँ फरिश्ते विचरण कर रहे हैं...* जिधर भी नजर जा रही है फरिश्ते ही घूमते नजर आ रहे हैं... जैसे की फरिश्तों की दुनिया को छोड़ कर सारे फरिश्ते इस धरा पर उतर आये हों... कैसा अद्भुत नजारा है यह जिसे निरन्तर देखते रहने का मन हो रहा है... *यहाँ-वहाँ फरिश्ते सर्व आत्माओं पर अपनी निःस्वार्थ स्नेह, निश्चल प्रेम वा सौहार्द भरी दिव्य रूहानी दृष्टि डालकर मनुष्य आत्माओं को परम सुख-शांति वा खुशी की अनुभूति करा रहे हैं...*  

 

_ ➳  मैं आत्मा ब्रह्मा बाबा के त्याग की कहानी शिव बाबा से सुन... अन्दर ही अन्दर दृढ़ संकल्प करती हूँ... *मुझ आत्मा को भी बाप समान बनना ही है...* जिस प्रकार ब्रह्मा बाबा ने पहली मुलाकात में ही अपना सारा व्यापार, सारे रिश्ते-नाते, समेट लिए... *उसी प्रकार मुझ आत्मा को भी अपना सब कुछ समेट लेने की शक्ति बापदादा से मिल रही है...* बापदादा की दृष्टि से निकलती हुई शक्ति की किरणें मुझ आत्मा में समा रही है...

 

 _ ➳  मैं आत्मा देख रही हूँ... ब्रहमा बाबा के साथ-साथ ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव मधुबन भूमि में समाया हुआ है... *यहाँ का वायुमंडल यहाँं के वाइब्रेशन मुझे सहज योगी बना देते हैं...* मैं आत्मा देख रही हूँ... कोई भी ब्राह्मण आत्मा जो मधुबन तपस्वी भूमि में आती है... तो अनुभव करती हैं कि... *यहाँ योग लगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती, सहज ही लग जाता है...* मैं आत्मा देख रही हूँ... कैसी भी आत्माएं आती हैं... वह कुछ ना कुछ अनुभव करके ही जाती हैं... ज्ञान को नहीं समझते लेकिन *अलौकिक प्यार और शांति का अनुभव करके ही जाते हैं...*

   

 _ ➳  *मैं आत्मा सदा बाप समान विश्व हूँ...* बाबा जैसी दृष्टि, बाबा जैसी वृत्ति, बाबा जैसी स्मृति, सदा बाप समान साक्षी दृष्टा स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करती हूँ... *मैं मास्टर ब्रहमा हूँ... मेरी चलन, दृष्टि, वृत्ति बाबा जैसी हो रही है... बाबा मेरी मस्तक मणि हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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