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 15 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *योगबल से आत्मा रुपी सुई की जंक को उतारा ?*

 

➢➢ *बुधी को ज्ञान की पॉइंटस से भरपूर रख सर्विस की ?*

 

➢➢ *आदि और अनादी स्वरुप की स्मृति द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाया ?*

 

➢➢ *सहजयोगी कहकर अलबेले तो नही हुए ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *समय प्रमाण लव और ला का बैलेन्स रखो लेकिन ला में भी लव महसूस हो। इसके लिए आत्मिक प्यार की मूर्त बनो* तब हर समस्या को हल करने में सहयोगी बन सकोगे। *शिक्षा के साथ सहयोग देना ही आत्मिक प्यार की मूर्त बनना है।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं बापदादा के समीप रत्न हूँ"*

 

✧  सदा स्वयं बाप के समीप रत्न समझते हो? समीप रत्न की निशानी क्या होगी? समीप अर्थात् समान। समीप अर्थात् संग में रहने वाले। संग में रहने से क्या होता है? वह रंग लग जाता है ना। *जो सदा बाप के समीप अर्थात् संग में रहने वाले हैं उनको बाप का रंग लगेगा तो बाप समान बन जायेंगे।* समीप अर्थात् समान ऐसे अनुभव करते हो? हर गुण को सामने रखते हुए चेक करो कि क्या क्या बाप समान है? हर शक्ति को सामने रख चेक करो कि किस शक्ति में समान बने हैं। आपका टाइटल ही है 'मास्टर सर्वगुण सम्पन्न, मास्टर सर्व शक्तिवान'।

 

✧  तो सदा यह टाइटल याद रहता है? सर्वशक्तियाँ आ गई अर्थात् विजयी हो गये फिर कभी भी हार हो नहीं सकती। जो बाप के गले का हार बन गये उनकी कभी भी हार नहीं हो सकती। *तो सदा यह स्मृति में रखो कि मैं बाप के गले का हार हूँ, इससे माया से हार खाना समाप्त हो जायेगा। हार खिलाने वाले होंगे, खाने वाले नहीं।* ऐसा नशा रहता है?

 

✧  हुनमान को महावीर कहते हैं ना। महावीर ने क्या किया? लंका को जला दिया। खुद नहीं जला, पूंछ द्वारा लंका जलाई। तो लंका को जलाने वाले महावीर हो ना। माया अधिकार समझकर आये लेकिन आप उसके अधिकार को खत्म कर अधीन बना दो। हनूमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी था। अपने को सेवक समझता था। तो यहाँ जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं। जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते। हनुमान के दिल में सदा राम बसता था ना। एक राम दूसरा न कोई। *तो बाप के सिवाए और कोई भी दिल में न हो। अपने देह की स्मृति भी दिल में नहीं। सुनाया ना कि देह भी पर है, जब देह ही पर होगई तो दूसरा दिल में कैसे आ सकता।*

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *आसन ही सिंहासन प्राप्त कराता है।* अब आसन है फिर सिंहासन है। हलचल वाला आसन पर एकाग्र होकर बैठ नहीं सकता। इसलिए कहा *व्यर्थ समाप्त, अशुभ समाप्त* - तो अचल हो जायेंगे और अचल स्थिति के आसन पर सहज और सदा स्थित हो सकेंगे। देखो, आप सबका यादगार यहाँ अचलघर है। अचलघर देखा है ना? यह किसका यादगार है?

 

✧  *आप सबके स्थिति का यादगार यह अचलघर है।* अनुभव करो, ट्रायल करते जाओ, यूज करते जाओ। ऐसे नहीं समझ लेना, हाँ, सर्व शक्तियाँ तो हैं ही। समय पर यूज हो। यूज नहीं करेंगे तो समय पर धोखा मिल सकता है। इसलिए छोटी-मोटी परिस्थिति में यूज करके देखो। परिस्थितियाँ तो आनी ही हैं, आती भी हैं। पहले भी बापदादा ने कहा है कि वर्तमान समय अनुभव करते हुए चलो।

 

✧  हर शक्ति का अनुभव करो, हर गुण का अनुभव करो। *ऐसे अनुभवी मूर्त बनो जो कोई भी आवे तो आपके अनुभव की मदद से उस आत्मा को प्राप्ति हो जाए।* दिन-प्रतिदिन आत्मायें शक्तिहीन हो रही हैं, होती रहेगी। ऐसी आत्माओं को आप अपनी शक्तियों की अनुभूतियों से सहारा बन अनुभव करायेंगे। अच्छा। मालिक है ना तो मालेकम सलाम, बाप कहते हैं - मालिकों को सलाम। अच्छा।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *सभी ने बाप से पूरा-पूरा अधिकार ले लिया है? पूरा अधिकार लेने के लिए पुराना सब कुछ देना पड़े। तो दोनों सौदे किये हैं ना?* या तेरा सो मेरा लेकिन मेरे को हाथ नहीं लगाना- ऐसे तो नहीं है ना? *जब एक शब्द बदल जाता है अर्थात् मेरा तेरे में बदल जाता तो डबल लाइट हो जाते हैं।* ज़रा भी मेरापन आया तो ऊपर से नीचे आ जाते हैं। तेरा तेरे अर्पण तो सदा डबल लाइट और सदा ऊपर उड़ते रहेंगे अर्थात् ऊँची स्थिति में रहेंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मामेकम याद कर पावन बनना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा बाबा के कमरे में बैठ बाबा का आह्वान करती हूँ... बाबा मेरी एक पुकार सुन तुरन्त आ जाते हैं और मुझे अपने साथ ले चलते हैं वतन में... और ज्ञान की बरसात करते हैं... ज्ञान सागर बाबा मुझे ज्ञान की नौका में बिठाकर विषय सागर को पार करा रहे हैं...* मैं आत्मा अपने जीवन रूपी नैया की पतवार रूहानी खिवैया के हाथों में सौम्पकर निश्चिन्त होकर बाबा की यादों में खो जाती हूँ...

 

   *काँटों के जंगल से निकाल फूलों की बगिया में मुस्कुराता हुआ फूल बनाकर प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे बच्चे... इस पुरानी खत्म होने के कगार पर खड़ी दुनिया से रगो को बाहर निकालो... सारा ममत्व मिटा दो... *देह और देह के नातो से निकल आत्मा के भान में आ जाओ... सिर्फ मीठे बाबा की यादो में खो जाओ... यही यादे सदा का साथ निभाएगी और सुखो की दुनिया में ले जाएँगी...”*

 

_ ➳  *सर्व संबंधों का रस एक बाबा से लेते हुए एक बाबा को ही अपनी दुनिया बनाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा इस विकारी दुनिया से मन और बुद्धि को निकाल कर निर्मोही हो गई हूँ...* आपकी मीठी यादो में खोकर इस विनाशी दुनिया को भूल गई हूँ... अब बाबा ही मेरा संसार है...

 

   *यादों की महफिल सजाकर अमृत पान कराकर अमर बनाते हुए मीठा बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे फूल बच्चे... अब देह व देह के भान में लिपटे नातो से उपराम बनो... और आत्मिक सुंदरता से सज जाओ... इस विनाशी संसार में दिल न फंसाओ... *वक्त से पहले देवताई गुणी शक्तियो से सज जाओ... मीठे बाबा की याद को हर साँस में पिरो दो... वही सच्चा सहारा है... और स्वर्ग में ले जाने वाला है...”*

 

_ ➳  *सत्य ज्ञान से दमकती अपने निज स्वरुप में मणि समान चमकती हुई मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा अपने सत्य स्वरूप और सतयुगी सुखो को जानकर झूठ के जंजालों से परे होती जा रही हूँ... *समय और सांसो को मीठे बाबा पर ही लुटा रही हूँ... और विनाशी संसार के मोहपाश से मुक्त हो रही हूँ...”*

 

   *अंतर्मन में ज्ञान की ज्योत जगाकर अविनाशी सुखों के राह को रोशन करते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... यह शरीर के रिश्ते और ही गहरे गिराएंगे और गहरे दुखो के दलदल में उलझायेंगे... *इनसे मन बुद्धि को बाहर निकाल ईश्वरीय यादो में स्वयं को पावन बनाओ... और ज्ञान और योग से सजकर देवताई स्वराज्य पा जाओ... इस विकारी विनाशी दुनिया से दिल न लगाओ...”*

 

_ ➳  *इस देह की दुनिया से न्यारी होकर प्रभु पिता के दिल में सदा के लिए सजकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... आपके प्यार में मै आत्मा मोह से मुक्त होती जा रही हूँ... *इन देह के खोखले नातो के प्रभाव से आजाद होती जा रही हूँ... और सच्ची मीठी यादो में झूम रही हूँ... और सतयुगी सुनहरे संसार में खोती जा रही हूँ...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्मा रूपी सुई पर जो जंक चढ़ी है उसे योगबल से उतार सतोप्रधान बनने की मेहनत करनी है*"

 

_ ➳  एक मंदिर के सामने से गुजरते हुए, मन्दिर के अंदर एकत्रित भक्तो की भीड़ को देख कर मेरे कदम वही रुक जाते हैं और मन ही मन *मैं विचार करती हूं कि कितनी आकर्षणमयता है इन देवी देवताओं के जड़ चित्रों में, कि इनके दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं* तभी तो इनके दर्शन के लिए भक्त घण्टो लम्बी - लम्बी कतारों में खड़े रहते हैं। यही विचार करते - करते मैं अपना देवताई स्वरूप धारण कर मन्दिर के अंदर पहुंच जाती हूँ और *अष्टभुजाधारी दुर्गा की जड़ मूर्ति में जा कर विराजमान हो जाती हूँ*।

 

_ ➳  मैं देख रही हूं मेरे सामने मेरे भक्तों की भीड़ लगी हुई है जो मेरी जयजयकार करते हुए मुझ पर पुष्पों की वर्षा कर रहें हैं। ढोल, मंजीरे बजाते हुए मेरी आरती गा रहें हैं। *अपना वरदानीमूर्त हाथ ऊपर उठाये मैं उन सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर रही हूं*। मेरे दर्शन पा कर भाव - विभोर हो कर अब सभी भक्त वापिस अपने घर लौट रहे हैं।

 

_ ➳  अपने भक्तों को दर्शन दे कर,उनकी झोली वरदानों से भरपूर करके मैं मन्दिर से बाहर आ जाती हूँ और अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर चलते - चलते मैं फिर से विचार करती हूँ कि मेरे चैतन्य कर्मो का यादगार ही तो मेरे यह जड़ चित्र है। और *इस समय धारण किये हुए दैवी गुणों के कारण ही तो द्वापर में मेरा पूजन और गायन होगा*। इसलिए अब मुझे याद की अग्नि से आत्मा में पड़ी खाद को निकाल, सम्पूर्ण पावन बनना है और साथ ही साथ दैवी गुणों को धारण कर सदा देवताओ जैसा मुस्कराते रहना है।

 

_ ➳  मन में लक्ष्मी नारायण जैसा श्रेष्ठ बनने का दृढ़ संकल्प करते हुए मैं चलते - चलते अपने घर पहुंच जाती हूँ। आत्मा में पड़ी 63 जन्मो के विकर्मों की खाद को जल्दी से जल्दी योग अग्नि में भस्म करने के किये अब मैं अशरीरी हो, अपने पतित पावन, पवित्रता के सागर शिव बाबा की अव्यभिचारी याद में बैठ जाती हूँ। *बाबा की मीठी शक्तिशाली याद मुझमे असीम शक्ति का संचार करने लगती है और मैं आत्मा लाइट माइट बन हल्की हो कर अपनी साकारी देह से बाहर निकल आती हूँ*।देह और देह के हर बन्धन से मुक्त मैं आत्मा अब धीरे धीरे ऊपर की ओर उड़ रही हूँ।

 

_ ➳  मैं ज्योति बिंदु चमकता हुआ सितारा प्रकृति के पांचों तत्वों को पार कर, फरिश्तों की दुनिया से परे अब पहुंच गई अपने शिव पिता परमात्मा के पास उनके घर परमधाम। यहां मैं मास्टर बीज रूप आत्मा बीज रूप अपने शिव पिता परमात्मा के सम्मुख हूँ। *बिंदु का बिंदु से मिलन हो रहा है। कितना आलौकिक और दिव्य नजारा है। चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई दे रहा है। बिंदु बाप से आ रही सर्वशक्तियों की ज्वलंत किरणे निरन्तर मुझ बिंदु आत्मा पर पड़ रही हैं*। मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ विकारों का किचड़ा इन ज्वलंत शक्तिशाली किरणों के पड़ने से भस्म हो रहा है। आत्मा में पड़ी खाद जैसे - जैसे योग अग्नि में जल रही है वैसे - वैसे मैं आत्मा हल्की और चमकदार बनती जा रही हूँ।

 

_ ➳  हल्की और चमकदार बन कर मैं आत्मा वापिस साकारी दुनिया मे लौट रही हूं। अपने साकारी देह में विराजमान हो कर अब मैं फिर से इस सृष्टि रंग मंच पर अपना पार्ट बजा रही हूं। *कर्मयोगी बन हर कर्म करते बाबा की याद से मैं स्वयं को प्यूरीफाई कर रही हूं। सदा कम्बाइंड स्वरूप में रहने से परमात्म लाइट निरन्तर मुझ आत्मा में समाकर मुझे पावन बना रही है*। पावन बनने के साथ साथ अपने लक्ष्य को सदा स्मृति में रख अब मैं दैवी गुणों को जीवन मे धारण कर देवताई सम्राज्य में जाने का पुरुषार्थ कर रही हूँ।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं आदि और अनादि स्वरूप की स्मृति द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं पवित्र आत्मा हूँ।*

   *मैं योगी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं सहजयोगी आत्मा हूँ  ।*

   *मैं आत्मा अलबेलापन लाने से सदैव मुक्त हूँ  ।*

   *मैं आत्मा शक्ति रूप हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

अव्यक्त बापदादा :-

 

_ ➳  होलीहंसों की विशेषता को सभी अच्छी तरह से जानते हो। *'सदा होली हैपी हंस अर्थात् स्वच्छ और साफ दिल'*। ऐसे होलीहंसों की स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण *हर शुभ आशायें सहज पूर्ण होती हैं। सदा तृप्त आत्मा रहते हैं। श्रेष्ठ संकल्प किया और पूर्ण हुआ।* मेहनत नहीं करनी पड़ती। क्यों? बापदादा को सबसे प्रिय, सबसे समीप साफ दिल प्यारे हैं। *साफ दिल सदा बापदादा के दिलतख्त नशीन, सर्व श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होने के कारण वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सरल और स्पष्ट एक समान दिखाई देते हैं।* सरलता की निशानी है - दिल, दिमाग, बोल एक समान। दिल में एक, बोल में और (दूसरा) - यह सरलता की निशानी नहीं है। *सरल स्वभाव वाले सदा निर्माणचित, निरहंकारी, निर-स्वार्थी होते हैं। होलीहंस की विशेषता - सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि।*

 

✺   *ड्रिल :-  "होली हंस की विशेषता- सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि को स्वयं में अनुभव करना"*

 

_ ➳  *मैं होली हंस आत्मा हूँ...* ज्ञान सूर्य शिव बाबा से ज्ञान गुण और शक्तियों की किरणें निरंतर मुझ आत्मा पर आ रही हैं... और *मेरा जीवन दिव्यता से भरपूर हो रहा है... मेरा मन निर्मल हो रहा है, बुद्धि स्वच्छ बन रही है और संस्कार दिव्य हो रहे हैं...*

 

_ ➳  *मैं होली हंस आत्मा अवगुण रूपी कंकड़-पत्थर को अलग कर गुण रुपी मोती चुगने वाली हूँ...* मैं होली हंस आत्मा *सदा दूसरों के गुणों को देखती हूँ... और गुणों का ही वर्णन करती हूँ...* मुझ होली हंस का दिल स्वच्छ और साफ है... मुझ आत्मा की सभी आशाएं सहज ही पूर्ण हो जाती है... मैं होली हंस आत्मा सदा बापदादा की सबसे प्रिय लाडली बच्ची हूँ...

 

_ ➳  मैं आत्मा होली हंस हूँ...  *इसलिए मैं किसी के अवगुणों को नहीं देखती हूँ... अब मेरी अवगुणी दृष्टि, गुणग्राही दृष्टि में परिवर्तन हो रही है...* हर एक के गुणों व विशेषताओं को ही...  देखने का लक्ष्य रखने वाली मैं आत्मा होली हंस हूँ...

 

_ ➳  *मैं होली हंस आत्मा किसी की निंदा, ग्लानि और परचिन्तन कभी नहीं करती...* सदा फॉलो फादर करती हूँ... जैसे ब्रह्मा बाबा जितना नॉलेजफुल थे उतना ही उनका सरल स्वभाव भी था... *मैं होली हंस आत्मा भी सफलतामूर्त बनने के लिए... सरलता और सहनशीलता के गुणों को धारण करती हूँ...*

 

 ➳ _ ➳  स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण मैं होली हंस आत्मा *सदा तृप्त रहती हूँ...* जो भी श्रेष्ठ संकल्प करती हूँ... *स्वतः ही सब पूर्ण हो जाते हैं...* सदा मैं आत्मा *बापदादा के दिलतख्तनशीन* रहती हूँ... *मैं निरहंकारी, निःस्वार्थी व  निर्माण चित्त आत्मा हूँ... मेरा दिल, दिमाग, बोल सब एक समान होते हैं...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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