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❍ 08 / 12 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *रूप बसंत बन मुख से सदा सुखदाई बोल ही बोले ?*
➢➢ *निर्मोही बनकर रहे ?*
➢➢ *अपवित्रता के नाम निशान को भी समाप्त कर हिज़ होलीनेस का टाइटल प्राप्त किया ?*
➢➢ *पुराने स्वभाव संस्कार के वंश का भी त्याग किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे एटम बम एक स्थान पर छोड़ने से चारों ओर उसके अंश फैल जाते हैं - *वह एटम बम है और यह आत्मिक बम है। इसका प्रभाव अनेक आत्माओं को आकर्षित करेगा और सहज ही प्रजा की वृद्धि हो जायेगी इसलिए संगठित रुप में आत्मिक स्वरूप के अभ्यास को बढ़ाओ, स्मृति स्वरुप बनो तो वायुमण्डल पॉवरफुल हो जायेगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं निश्चयबुद्धि आत्मा हूँ"*
〰✧ जो कुछ भी ड्रामा में होता है उसमें कल्याण ही भरा हुआ है, अगर यह स्मृति में सदा रहे तो कमाई जमा होती रहेगी। समझदार बच्चे यही सोचेंगे कि जो कुछ होता है वह कल्याणकारी है। क्यों, क्या का क्वेशचन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। *अगर स्मृति रहे कि यह संगमयुग कल्याणकारी युग है, बाप भी कल्याणकारी है तो श्रेष्ठ स्टेज बनती जायेगी। चाहे बाहर की रीति से नुकसान भी दिखाई दे लेकिन उस नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा निश्चय हो। जब बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता।*
〰✧ अभी पेपर बहुत आयेंगे, उसमें क्या, क्यों का क्वेशचन न उठे। कुछ भी होता है होने दो। *बाप हमारा, हम बाप के तो कोई कुछ नहीं सकता, इसको कहा जाता है 'निश्चय बुद्धि'।* बात बदल जाए लेकिन आप न बदलो - यह है निश्चय। कभी भी माया से परेशान तो नहीं होते हो? कभी वातावरण से, कभी घर वालों से, कभी ब्रह्मणों से परेशान होते हो? अगर अपने शान से परे होते तो परेशान होते हो। 'शान की सीट पर रहो'।
〰✧ साक्षीपन की सीट शान की सीट है इससे परे न हो तो परेशानी खत्म हो जायेगी। *प्रतिज्ञा करो कि 'कभी भी कोई बात में न परेशान होंगे, न करेंगे'।* जब नालेजफुल बाप के बच्चे बन गये, त्रिकालदर्शी बन गये, तो परेशान कैसे हो सकते? संकल्प में भी परेशानी न हो। 'क्यों' शब्द को समाप्त करो। 'क्यों' शब्द के पीछे बड़ी क्यू है।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ नाम सेवा लेकिन होता है स्वार्थी अपने को आगे बढाना है लेकिन बढ़ाते हुए बैलेन्स को नहीं भूलना है क्योंकि सेवा में ही स्वभाव, संबंध का विस्तार होता है और माया चांस भी लेती है। *थोडा-सा बैलेन्स कम हुआ और माया नया रूप धारण कर लेती है, पुराने रूप में नहीं आयेगी।*
〰✧ नये-नये रूप में, नई-नई परिस्थिति के रूप में, सम्पर्क के रूप में आती है। तो *अलग में सेवा को छोडकर अगर बापदादा बिठा दे, एक मास बिठाये, 15 दिन बिठाये तो कर्मातीत हो जायेंगे?* एक मास दें, बस कुछ नहीं करो, बैठे रहो, तपस्या करो, खाना भी एक बार बनाओ बसा फिर कर्मातीत बन जायेंगे? नहीं बनेंगे?
〰✧ *अगर बैलेन्स का अभ्यास नहीं है तो कितना भी एक मास क्या, दो मास भी बैठ जाओ लेकिन मन नहीं बैठेगा, तन बैठ जायेगा।* और बिठाना है मन को, न कि तन को। तन के साथ मन को भी बिठाना है, बैठ जाए बस, बाप और मैं, दूसरा न कोई। तो एक मास ऐसी तपस्या कर सकते हो या सेवा याद आयेगी?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ ‘वाह रे मैं!' का नशा याद है? वह दिन, वह झलक और फलक स्मृति आती है? वह नशे के दिन अलौकिक थे। ऐसे नशे के दिन स्मृति में आते ही नशा चढ़ जाता है- इतना नशा, इतनी खुशी जो स्थूल पाँव भी चलते-फिरते नैचुरल डांस करते हैं- प्रोग्राम से डांस नहीं। *मन में भी नाच और तन भी नैचुरल नाचता रहे। यह नैचुरल डांस तो निरन्तर हो सकता है? आँखों का देखना, हाथों का हिलना और पाँव का चलना सब खुशी में नैचुरल डांस करते हैं। उनको फ़रिश्तों का डांस कहते हैं- ऐसे नैचुरल डांस चलता रहता है?* जैसे कहते हैं कि फ़रिश्तों के पाँव धरती पर नहीं टिकते। ऐसे फ़रिश्ते बनने वाली आत्मायें भी इस देह अर्थात् धरती- जैसे वह धरती मिट्टी है वैसे यह देह भी मिट्टी है ना? तो फ़रिश्तों के पाँव धरती पर नहीं रहते अर्थात् फ़रिश्ते बनने वाली आत्माओं के पाँव अर्थात् बुद्धि इस देह रूपी धरती पर नहीं रह सकती। यही निशानी है फ़रिश्तेपन की। जितना फ़रिश्तेपन की स्थिति के समीप जाते रहते, उतना देह रूपी धरती से पाँव स्वत: ही ऊपर होंगे। अगर ऊपर नहीं हैं, धरती पर रहते हैं तो समझो बोझ है। बोझ वाली वस्तु ऊपर नहीं रह सकती। हल्कापन न है, बोझ है तो इस देह रूपी धरती पर बार-बार पाँव आ जायेंगे, फ़रिश्ता अर्थात् हल्का नहीं बनेंगे। *फ़रिश्तों के पाँव धरती से ऊँचे स्वत: ही रहते हैं, करते नहीं हैं। जो हल्का होता है उनके लिए कहते हैं कि यह तो जैसे हवा में उड़ता रहता है। चलता नहीं है, उड़ता है। ऐसे ही फ़रिश्ते भी ऊँची स्थिति में उड़ते हैं।* ऐसे नैचुरल फ़रिश्तों का डांस देखने और करने में भी मजा आता है।
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- बाप जो है, जैसा है उसे यथार्थ पहचानकर याद करना"*
➳ _ ➳ *ओम शांति बाबा... ये शब्द कितना गुह्य है बाबा, जिसका राज आपने अब सम्मुख बैठ समझाया है... ओम अर्थात मैं आत्मा... शांति अर्थात शांत... अर्थात मैं आत्मा शांत स्वरूप हूं...* पहले - पहले बाबा, मुझ आत्मा को न स्वयम का परिचय था, न आपका... आप मिले, तो जाना, मैं आत्मा हूं... यह मेरा शरीर हैं... मैं आत्मा, माना स्टार हूं... मेरे पिता परमपिता परमात्मा, वह भी स्टार है... *यह राज बाबा आपने हम ब्राह्मण आत्माओं को बताया... संसार में कोई और इस यथार्थ परिचय को नहीं जानता...*
❉ *निराकारी बाबा मुझ आत्मा पर सात रंगों की किरणों की बौछार करते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *द्वापर से तुम मुझे पुकारती आई हो... मंदिरों में, मेरे लिंग चिन्ह को पूजती आई हो...* दर - दर, तुमने कितने धक्के खाए!... अब, मैं आया हूं... तुम्हें सभी धक्कों से छुड़ाने... तुम्हारी भक्ति का फल देने... *अब मेरे यथार्थ स्वरूप को पहचान मुझे याद करो..."*
➳ _ ➳ *मीठे बाबा से शक्तिशाली किरणें स्वयं में भरती मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां बाबा... *अब मुझे आप का यथार्थ परिचय मिला है, मालूम हुआ है, कि आप कोई शरीरधारी नहीं... जन्म मरण से न्यारे हो... मुझ समान ही स्टार हो...* ज्योति बिंदु हो... परमधाम निवासी हो... अब मैं आत्मा, आपके अथार्थ स्वरूप को जान, मुझ आत्मा के पिता जो कि मेरे समान है याद कर रही हूं..."
❉ *स्नेह सागर अपने स्नेह की रूहानी किरणों से मुझ आत्मा को भरपूर करते हुए बोले:-* "मीठी बच्ची... *अब तक तुमने मेरे सही स्वरूप को याद नहीं कर अपने पापों को न काटा है... अब, मेरे यथार्थ स्वरुप को जान तुम्हारे विकर्म विनाश हो रहे हैं... मीठी बच्ची अब जरूरत हैं जवालामुखी याद की...* अब इस याद को ज्वालामुखी रूप दो, ताकि यह विकर्म इस याद रूपी अग्नि में पूरी तरह भसम हो..."
➳ _ ➳ *स्नेह सागर की शिक्षाओं को सर माथे रख मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "जी बाबा... *मैं आत्मा अब याद रूपी चिता पर स्थित हूं... बिंदु स्वरूप में स्थित मैं आत्मा परमधाम में, आपके बिंदु स्वरूप को निहार रही हूं...* मैं देखती हूं आपसे पवित्रता की किरणें मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं... मैं आत्मा स्वयं को पवित्रता से सम्पन्न महसूस कर रही हूं... भरपूर महसूस कर रही हूं..."
❉ *पवित्रता से ओतप्रोत मुझ आत्मा से निराकारी बाबा बोले:-* "मीठी बच्ची... *याद पर ही सारा मदार है, जहां याद है वहाँ बाप भी बच्चो को याद करते हैं, मदद करते हैं... जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना फिर बाप भी बच्चों को याद करते हैं...* जितना उच्च भाग्य आप आत्माओं का है उतना किसी और मनुष्य का नहीं... तो इस भाग्य को याद कर कितना रूहानी नशा रहना चाहिए..."
➳ _ ➳ *स्नेह सागर के स्नेह में खोई, लवलीन मैं आत्मा बाबा से बोली:-* "हां मीठे बाबा... अब कोई सुध नहीं... न इस शरीर की... न शरीर के संबंधों की... दुनिया के चमकीले आकर्षणों से भी मैं आत्मा मुक्त हूं... *अभी याद है तो बस बाप... निरंतर आपकी याद में खोई हुई, मैं आत्मा अपनी कर्मातीत अवस्था को देख रही हूं..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- रूप बसन्त बन मुख से सदा सुखदाई बोल बोलने हैं*"
➳ _ ➳ अंतर्मुखता की गुफा में बैठ, एकांतवासी बन अपने प्यारे पिता की याद में अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे *मेरी ब्रह्मा माँ अविनाशी ज्ञान रत्नों से मेरा श्रृंगार कर, मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए अपने अव्यक्त वतन में बुला रही हैं*। सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप में अपनी ब्रह्मा माँ और उनकी भृकुटि में चमक रहे अपने शिव पिता को मैं मन बुद्धि के दिव्य नेत्र से देख रही हूँ और उनकी अव्यक्त आवाज जो मुझे पुकार रही है वो भी मैं स्पष्ट सुन रही हूँ। *बाहें पसारे अपने इंतजार में खड़ी अपनी ब्रह्मा माँ की यह अव्यक्त आवाज मुझे जल्दी से जल्दी उनके पास पहुंचने के लिए व्याकुल कर रही है*।
➳ _ ➳ जैसे एक माँ अपने बच्चे के इंतजार में टकटकी लगा कर दरवाजे को देखती रहती है ऐसा ही स्वरूप अपने इंतजार में खड़ी अपनी ब्रह्मा माँ का मैं देख रही हूँ। *बिना एक पल की भी देरी किये अपने लाइट के सूक्ष्म आकारी शरीर को मैं धारण करती हूँ और साकारी देह से बाहर निकल कर अपने अव्यक्त वतन की ओर चल पड़ती हूँ*। अपने लाइट के फ़रिश्ता स्वरूप में स्थित, जल्दी से जल्दी अपनी ब्रह्मा माँ और अपने शिव पिता के पास पहुँचने का संकल्प जैसे ज्ञान और योग के पंख लगाकर मुझे तीव्र गति से उड़ने का बल दे रहा है। *ज्ञान और योग के इन पँखो की सहायता से बहुत तीव्र उड़ान भर कर मैं फरिश्ता सेकेण्ड से भी कम समय में साकारी दुनिया को पार कर जाता हूँ और उससे ऊपर उड़कर अति शीघ्र पहुँच जाता हूँ अपनी ब्रह्मा माँ के पास*।
➳ _ ➳ जैसे अपने बच्चे को देखते ही माँ दौड़ कर दरवाजे पर आती है और उसे अपने गले लगा लेती है ऐसे ही मुझे देखते ही मेरी ब्रह्मा माँ दौड़ कर मेरे पास आती है और अपनी बाहों में भरकर अपना असीम प्यार मुझ पर लुटाने लगती है। अपनी ब्रह्मा माँ के नयनों में अपने लिए समाये अथाह स्नेह को मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। *अपना असीम स्नेह मुझ पर लुटाकर, मेरा हाथ पकड़ कर वो मुझे अपने पास बिठा कर, बड़े प्यार से मुझे निहार रही है और अपने हाथों से अब मेरा श्रृंगार कर रही है, ज्ञान के एक - एक अमूल्य रत्न से मुझे सजाते हुए मेरी ब्रह्मा माँ मुझ पर बलिहार जा रही है*।मुझे आप समान रूप बसन्त बनाने के लिए दिव्य गुणों से मुझे सजाकर, मर्यादाओं के कंगन पहना रही है।
➳ _ ➳ एक दुल्हन की तरह अविनाशी ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सज - धज कर अब मैं ज्ञान सागर अपने अविनाशी साजन के पास, स्वयं को ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों से भरपूर करने उनके धाम जा रही हूँ। *ज्ञान रत्नों के श्रृंगार से सजे अपने निराकारी सुन्दर सलौने स्वरूप में स्थित होकर, अब मैं अव्यक्त वतन से ऊपर निराकार वतन की ओर बढ़ रही हूँ*। देख रही हूँ अपने अविनाशी शिव साजन को अपने सामने विराजमान अपने अनन्त प्रकाशमय स्वरूप में अपनी किरणो रूपी बाहों को फैलाये हुए। बिना विलम्ब किये सम्पूर्ण समर्पण भाव से मैं उनकी किरणो रूपी बाहों में समा जाती हूँ। *मेरे ज्ञान सागर शिव साजन के ज्ञान की रिमझिम फुहारें मुझ आत्मा सजनी के ऊपर बरसने लगती हैं*।
➳ _ ➳ ज्ञान योग की रिमझिम फ़ुहारों के स्पर्श से रूप बसन्त बन मैं आत्मा परमधाम से नीचे आ जाती हूँ। विश्व ग्लोब पर स्थित होकर, विश्व की सर्व आत्माओं के ऊपर ज्ञान वर्षा करते हुए मैं साकार लोक में प्रवेश करती हूँ और अपने साकार तन में भृकुटि के अकालतख्त पर आकर मैं विराजमान हो जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर ज्ञान योग को अपने जीवन मे धारण कर, अपने मुख से सदा ज्ञान रत्न निकालते हुए, अब मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान दे रही हूँ। ज्ञान सागर अपने शिव पिता की याद में रहकर, स्वयं को उनके ज्ञान की किरणो की छत्रछाया के नीचे अनुभव करते, अपनी बुद्धि रूपी झोली सदा ज्ञान रत्नों से भरपूर करके, रूप बसन्त बन मैं सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों से सम्पन्न बना रही हूँ*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अपवित्रता के नाम निशान को भी समाप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं हिज़ होलीनेस का टाइटल प्राप्त करने वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं होलीहंस आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा पुराने स्वभाव संस्कार के वंश का भी त्याग करती हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सर्वंश त्यागी हूँ ।*
✺ *मैं भाग्यवान आत्मा हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ *बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़ संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहिनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जाएं।* दिल से रहम इमर्ज हो। क्या जब साइन्स की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा वा संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती! जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। *जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैं, आपके ही सभी बिरादरी हैं, शाखायें हैं, परिवार है, आप ही भक्तों के ईष्ट देव हो।* यह नशा है कि हम ही ईष्ट देव हैं? तो भक्त चिल्ला रहे हैं, आप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे ईष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे हो, उन्हों को रेसपान्ड नहीं करते हो? तो *बापदादा कहते हैं हे भक्तों के ईष्ट देव अभी पुकार सुनो, रेसपान्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं।* क्या रेसपान्ड देंगे? परिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ। आपका रेसपान्ड उन्हों को नहीं मिलता तो वह भी अलबेले हो जाते हैं। चिल्लाते हैं फिर चुप हो जाते हैं।
✺ *ड्रिल :- "साइलेन्स की शक्ति और रहमदिल भावना से हलचल को परिवर्तन करना"*
➳ _ ➳ अमृतवेले बाबा की यादों में खोई मुझ आत्मा को ये सुहानी वेला ऐसे लगती है जैसे प्यासा अपनी प्यास बुझा रहा है... अमृत की बूंदें ऊपर से टप टप कर मुझ आत्मा को तृप्त कर रही हैं... *ये रूहानी अमृत और इसका नशा वाह वाह क्या कहने!* मैं मन ही मन बाबा से कहती हूँ कि क्यों अब तक दूर रखा मुझे इस अमृत से...
➳ _ ➳ बाबा की याद में डूबी मैं आत्मा वापिस आती हूं साकारी लोक में, तभी एक दृश्य सामने आता है *"भक्त आत्माएँ मंदिर जा रही हैं सुख चैन की तलाश में उनको देख तरस आता है, कि ये कहाँ जड़ चित्रों में सुख शांति ढूंढ रही हैं* ये मेरे भाई बहन इनके चित्त को कैसे आराम मिले... मैंने जो अमृत पान किया है, वो ये भी अगर चख लें तो इनके चित्त को भी आराम मिल जाये... बाबा ने मुझे जो दिया है, वो मुझे अपने इन भाई बहनों को भी देना है...
➳ _ ➳ *इसी भावना के साथ बाबा को याद कर एकाग्रचित्त हो मैं आत्मा समा जाती हूं जड़ मूर्ति में...* देखती हूँ उन भक्त आत्माओं को जो अपने दुःख में दुखी इन मूर्तियों के आगे माथा टिका रहे हैं कि कैसे भी दो पल का सुख चैन मिल जाये...
➳ _ ➳ *मैं ईष्टदेवी हूँ... इस स्वमान में सैट होकर रहमदिल बन मैं इन आत्माओं को सुख शान्ति की किरणें दे रही हूं... बाबा से निरंतर किरणें मुझ पर आ रही हैं... और मुझ से होती हुई उन भक्त आत्माओं तक पहुंच रही हैं...* सभी आत्माऐं प्रसन्न हो रही हैं... उनके अंदर की हलचल समाप्त हो गई है, और उनके मन शांत हो गए हैं... वो सब अपने ईष्टदेवी की जय-जय कार कर रहे हैं... इन आत्माओं का अलबेलापन हलचल सब समाप्त हो गई है... वातावरण पूरी तरह से परिवर्तन हो गया है... *बाबा के प्यार की किरणें चारों और फैली हुईं हैं जो सबके दिलों को छू रही हैं...*
➳ _ ➳ ऐसा लग रहा है जैसे मुरझाए पड़े वृक्ष को पानी मिल गया है... पत्ता-पत्ता... शाखा-शाखा... हर टहनी लहलहाने... खिलखिलाने लग गई है *वाह वाह रे मेरे बाबा क्या अद्धभुत तेरा कमाल "करते हो तुम बाबा मेरा नाम हो रहा है"*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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