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 12 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *ज्ञान रतन धारण करके दूसरों को दान दिए ?*

 

➢➢ *कभी लूनपानी तो नहीं हुए ?*

 

➢➢ *कहना सोचना और करना इन तीनो को समान बनाया ?*

 

➢➢ *सदा सेवा में बिजी रहे ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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〰✧  *जैसे अन्य आत्माओ को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो।* लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की, ट्रस्टीपन की स्मृति, सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना रखो। *हद में नहीं आओ।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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✺   *"मैं अतिन्द्रिय सुख के झूले में झुलने वाली आत्मा हूँ"*

 

✧   सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हो? बापदादा के सिकीलधे बच्चे हो। तो सिकीलधे बच्चों को माँ बाप सदा ऐसे स्थान पर बिठाते हैं, जहाँ कोई भी तकलीफ न हो। *बाप-दादा ने आप सिकीलधे बच्चों को कौन सा स्थान बैठने के लिए दिया है? दिलतख्त।* कितना बड़ा है। इस तख्त पर बैठकर जो चाहो वह कर सकते हो, तो सदा तख्तनशीन रहो। नीचे नहीं आओ।

 

✧  जैसे फारेन में जहाँ-तहाँ गलीचे लगा देते हैं कि मिट्टी न लगे। *बापदादा भी कहते हैं देहभान की मिट्टी में मैले न हो जाए इसलिए सदा दिल तख्तनशीन रहो।* जो अभी तख्तनशीन होंगे वही भविष्य में भी तख्तनशीन बनेंगे। तो चेक करो कि सदा तख्तनशीन रहते हैं या तरते चढ़ते हैं?

 

  तख्त पर बैठने के अधिकारी भी कौन बनते? जो सदा डबल लाइट रूप में रहते हैं। *अगर जरा भी भारीपन आया तो तख्त से नीचे आ जायेंगें। तख्त से नीचे आये तो माया से सामना करना पड़ेगा। तख्तनशीन हैं तो माया नमस्कार करेगी।* बापदादा द्वारा बुद्धि के लिए जो रोज शक्तिशाली भोजन मिलता है। उसे हजम करते रहो तो कभी भी कमजोरी आ नहीं सकती। माया का वार हो नहीं सकता।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  सभी को फील हो कि बस हमको भी अभी वैराग्य वृति में जाना है। अच्छा समझा क्या करना है? सहज है या मुश्किल है? थोडा-थोडा आकर्षण तो होगी या नहीं? साधन अपने तरफ नहीं खींचेंगे? *अभी अभ्यास चाहिए - जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसा चाहिए - वहाँ स्थिति को सेकण्ड में सेट कर सके।*

 

✧  सेवा में आना है तो सेवा में आये। सेवा से न्यारे हो जाना है तो न्यारे हो जाएँ। ऐसे नहीं, सेवा हमको खींचे। सेवा के बिना रह नहीं सके। *जब चाहें, जैसे चाहें, विल पॉवर चाहिए।* विल पॉवर है? स्टॉप तो स्टॉप हो जाए।

 

✧  *ऐसे नहीं लगाओ स्टॉप और हो जाए क्वेचन मार्क।* फुलस्टॉप स्टॉप भी नहीं फुलस्टॉप जो चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकें। चाहते हैं लेकिन होना मुश्किल है तो इसको क्या कहेंगे? विल पॉवर है कि पॉवर है? संकल्प किया - व्यर्थ समाप्त, तो सकण्ड में समाप्त हो जाए।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *जैसे बाप चारों ओर चक्कर लगाते हैं वैसे आप भी भक्तों के चारों ओर चक्कर लगाती हो? कभी सैर करने जाती हो? आवाज़ सुनने में आती है, तो कशिश नहीं होती है?* बाप के साथ-साथ शक्तियों को भी पार्ट बजाना है। *जैसे शक्तियों का गायन है कि अन्त:वाहक शरीर द्वारा चक्कर लगाती थीं, वैसे बाप भी अव्यक्त रूप में चक्कर लगाते हैं। अन्त:वाहक अर्थात् अव्यक्त फ़रिश्ते रूप में सैर करना।* यह भी प्रैक्टिस चाहिए और यह अनुभव होंगे।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- बुद्धि का योग एक बाप से लगाना"*

 

_ ➳  *मैं श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा भाग्य विधाता बाप की श्रेष्ठ संतान हूँ... भाग्य विधाता परमात्मा ने स्वयं अपने हाथों से श्रेष्ठ भाग्य लिखने की कलम मुझ आत्मा को दे दी है... मैं आत्मा एकांत में बैठ सिर्फ एक बाबा से योग लगाती हूँ...* हर कर्म, हर सेवा को बाबा की याद में करती, अपने दिल को एक बाबा को समर्पित कर, एक की लगन में मगन होकर मैं आत्मा उड़ चलती हूँ प्यारे बाबा के पास प्यारे वतन में... एक बाबा की याद से अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की रेखा बनाने मीठे बाबा के सम्मुख बैठ जाती हूँ

 

   *एक बाबा से बुद्धियोग लगाकर सच्ची सच्ची रूहानी यात्रा करने की समझानी देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... दुनियावी कार्यो को करते हुए भी बुद्धियोग ईश्वर पिता की यादो में खोया रहे... प्यार की ऐसी मीठी लहर दिल में बनी रहे...* ईश्वर पिता के साथ के यह मीठे सुंदर पल दिल की गहराइयो में बसा लो... और संगम पथ पर अथक पथिक बन यादो की यात्रा कर लो...”*

 

_ ➳  *बाबा को निरतंर निहारते हुए यादों के समन्दर में डूबकर मैं आत्मा कहती हूँ:-*  हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... *मै आत्मा मनुष्य से देवतुल्य के महा सौभाग्य को प्राप्त कर रही हूँ... मेरी यादो में मीठा बाबा सदा प्राण बन समाया है...* ये ईश्वरीय मीठी यादे मुझ आत्मा को अथाह सुख प्राप्तियां देकर मालामाल कर रही हैं...

 

   *मेरी धरती-गगन, मेरा सारा संसार बन सुख सघन देते हुए मेरे मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... मीठे बाबा की मीठी यादो में जितना दिल को भिगोयेगें यह यादे उतने ज्यादा सुख सम्पन्नता और सच्चे प्रेम के महकते फूल जीवन में खिलाएंगी... *प्रेम में ऐसी वफादारी तो मनुष्य मात्र तो दे न सके... इसलिए मीठी ईश्वरीय यादो में अनन्त खुशियां पा लो...”*

 

 ➳ _ ➳  *प्यारे बाबा की छवि को अपने अंतर में उतारकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा धरती के मटमैले रिश्तो में सच्चे प्रेम की बून्द भी पा न सकी और प्यारा बाबा प्यार का सागर सा जीवन में छलक उठा... *ऐसे प्यारे बाबा को एक पल भी अब न बिसरूँ मै... रोम रोम से यादकर सच्चे प्रेम को जीती जा रही हूँ...”*

 

   *परमधाम से पधारकर सारे खजानों को मुझ पर लुटाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *जिस भगवान के जनमो से मुरीद होकर... मात्र एक झलक पाने को जर्रे जर्रे में खोज रहे थे... आज सम्पूर्ण दौलत सहित सामने है... ऐसे प्यारे बाबा को जी भर के प्यार करो...* हर पल हर घड़ी सिर्फ और सिर्फ उसे ही याद करो... दिल में बसाकर दिल का सच्चा श्रृंगार करो...

 

_ ➳  *देह दुनिया का भान खोकर एक बाबा को हर श्वांस में बसाकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... *मै आत्मा ईश्वर पिता को प्यार करने वाली उसे अपने दिल में समाकर रुहरिहान करने वाली दिलरुबा बनी हूँ...* अब मेरा सारा प्यार मीठे बाबा के लिए है... साँस का हर कतरा मीठे बाबा की मधुर थाप से गूंज रहा है...

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- अपनी उन्नति के लिए रूहानी सर्विस में तत्पर रहना है*"

 

_ ➳  इस पुरानी दुनिया के डूबे हुए बेड़े को पार लगाने के लिए स्वयं परम पिता परमात्मा *शिव बाबा ने आ कर जो रूहानी मिशनरी चलाई है उस ईश्वरीय मिशनरी में रूहानी सेवाधारी बन रूहों को सेल्वेज करने के कार्य मे स्वयं भगवान ने मुझे अपना मददगार बना कर जो श्रेष्ठ भाग्य बनाने का गोल्डन चाँस मुझे दिया है उसके लिए अपने शिव पिता परमात्मा का मैं दिल से कोटि कोटि धन्यवाद करती हूँ* और रूहानी सेवा करने के उनके फ़रमान को पूरा करने और सेवा मे सफ़लता प्राप्त करने के लिए स्वयं को मनसा,वाचा, कर्मणा तीनो रूपो से शक्तिशाली बनाने के लिए अब मैं अपने शिव पिता की याद में अशरीरी हो कर बैठ जाती हूँ।

 

_ ➳  अशरीरी स्थिति में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ जैसे शरीर के सभी अंगों से चेतना सिमट कर भृकुटि पर एकाग्र हो गई है। *एकाग्रता की इस अवस्था मे अपने सत्य स्वरूप का मैं स्पष्ट अनुभव कर रही हूँ। स्वयं को मैं एक चैतन्य सितारे के रूप में भृकुटि के बीचोंबीच चमकता हुआ देख रही हूँ*। ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत जिसके बिना इस शरीर का कोई अस्तित्व नही। अपने इसी वास्तविक स्वरूप में स्थित हो कर मैं जागती ज्योति आत्मा अब भृकुटि सिहांसन को छोड़ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। विशाल तारामण्डल और अंतरिक्ष को पार करके अब मैं सूक्ष्म वतन में प्रवेश करती हूँ।

 

_ ➳  सूक्ष्म वतन में प्रवेश करते ही मैं देख रही हूँ सामने सृष्टि के रचयिता सर्वशक्तिवान मेरे शिव पिता परमात्मा अपने लाइट माइट स्वरूप में अव्यक्त ब्रह्मा बाबा की भृकुटि में विराजमान हैं। *अपनी बाहों को फैलाये स्वागत की मुद्रा में खड़े बाबा मेरा आह्वान कर रहें हैं। ऐसा लग रहा है जैसे बाबा मेरा ही इंतजार कर रहे थे*। अपने लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर, चमकीली फ़रिशता ड्रेस पहन कर अब मैं बापदादा के पास जा रही हूँ। अपनी बाहों में समाकर असीम स्नेह लुटाने के बाद अब बाबा अपनी शक्तिशाली दृष्टि से अपनी सम्पूर्ण लाइट और माइट मुझ फ़रिश्ते में प्रवाहित करके मुझे आप समान बलशाली बना रहे हैं। *सेवा में सदा सफ़लता प्राप्त करने के लिए बाबा अपने वरदानी हस्तों से मुझे सफ़लतामूर्त भव का वरदान दे रहें हैं और मेरे मस्तक पर विजय का तिलक लगा रहें हैं*।

 

_ ➳  बाबा से वरदान और विजय का तिलक ले कर सूक्ष्म रूहानी सेवा करने के लिए अब मैं फ़रिशता बापदादा के साथ कम्बाइंड हो कर विश्व ग्लोब के ऊपर पहुँच जाता हूँ और उन आत्माओं को जो अपने पिता परमात्मा से बिछुड़ कर उन्हें पाने के लिए दर - दर भटक रही है और दुखी हो रही हैं। *उन भटकती आत्माओं को मनसा साकाश द्वारा परमात्म पहचान और परमात्म पालना का अनुभव करवाकर अब मै स्थूल सेवा करने के लिए अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट खजानों से भरपूर करने के लिए ज्ञान सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास जाने के लिए अपने निराकारी स्वरूप में स्थित होती हूँ* और परमधाम की ओर चल पड़ती हूँ।

 

_ ➳  यहाँ पहुँच कर मैं आत्मा अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों और सर्वगुणों की किरणों की छत्रछाया के नीचे जा कर बैठ जाती हूँ। ज्ञान की शक्तिशाली किरणो का फव्वारा मेरे ज्ञान सागर शिव पिता से सीधा मुझ आत्मा पर प्रवाहित होने लगता है। *अपनी बुद्धि रूपी झोली को ज्ञान के अखुट अविनाशी खजानों से भरपूर करके स्थूल सेवा करने के लिए मैं वापिस साकारी दुनिया मे लौट आती हूँ*।

 

_ ➳  अब मैं अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हूँ और रूहानी सेवाधारी बन अपने सम्बन्ध - सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा को अपने मुख से ज्ञान रत्नों का दान दे कर उनकी बुद्धि रूपी झोली में भी अविनाशी ज्ञान रत्न डाल कर उन्हें भी उनके परमपिता परमात्मा बाप से मिलवाने की रूहानी सेवा कर रही हूँ। *अपने शिव पिता द्वारा मिले ज्ञान रत्नों को स्वयं धारण कर ज्ञान स्वरुप बन मैं अनेको आत्माओं का कल्याण कर रही हूँ*। मेरे मुख से निकले वरदानी बोल अनेकों आत्माओं को मुक्ति, जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहें हैं।

 

_ ➳  *बाप समान निरहंकारी बन, सर्व आत्माओं को ज्ञान रत्न दे कर, उनका कल्याण करने की रूहानी सेवा ही मेरे ब्राह्मण जीवन का उद्देश्य है इस बात को सदा स्मृति में रख सच्ची रूहानी सेवाधारी बन अब मैं रूहों की सेवा के कार्य पर सदैव तत्पर रहती हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं कहना, सोचना और करना - इन तीनो को समान बनाने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं ज्ञानी तू आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सदा सेवाओं की उमंग में रहती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा छोटी-छोटी बीमारियों को सदा मर्ज कर देती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा सेवा में सदा बिजी रहती हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  *ऐसा कभी भी नहीं सुना होगा कि बाप का जन्म-दिन भी वही और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही। यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज आप मना रहे हो।* साथ-साथ सभी को यह भी न्यारा और प्यारा-पन स्मृति में है कि *यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है जो स्वयं भगवान बाप बच्चों का मना रहे हैं। परम आत्मा बच्चों काश्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं।* दुनिया में कहने मात्र कई लोग कहते हैं कि हमको पैदा करने वाला भगवान हैपरम-आत्मा है। परन्तु न जानते हैंन उसी स्मृति में चलते हैं। आप सभी अनुभव से कहते हो - हम परमात्म-वंशी हैंब्रह्मा-वंशी हैं। *परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं। हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं।* 

 

✺   *ड्रिल :-  "परमात्मा द्वारा अपना अलौकिक जन्म दिवस मनाने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *वाह मैं पद्मापदम भाग्यशाली आत्मा... जो स्वयं भाग्य विधाता परमात्मा... मेरा जन्‍म-दिवस मनाते हैं... ऐसा भाग्‍य मुझ आत्मा को सिर्फ... संगमयुग पर ही प्राप्त होता है...* इस संगम युग पर बाबा अकेले नहीं आते हैं... बच्चों के साथ ही आते हैं... क्यूँकि बाबा इस संगम युग पर... यज्ञ रचते हैं... और यज्ञ में ब्राह्मण आहूति डालते हैं... और हम बच्चें वही कल्प वाले ब्राह्मण है... *वाह मैं आत्मा अपना अलौकिक जन्म-दिवस... स्वयं परमात्मा के साथ मना रही हूँ... यह जयंती सब जयंतियों से वंडरफुल है... सारे कल्प में... यही एक जयंती है... जो बाप और बच्चों का साथ में जन्म होता है... इसलिए इस जयंती को हीरे तुल्य कहा गया है...*

 

 _ ➳  *मुझ आत्मा के इस अलौकिक जन्म-दिवस पर... परमात्मा मुझ आत्मा को मुबारक देते हैं... और मैं आत्मा अपने परमपिता को मुबारक देती हूँ...* बाबा ने कहा है... बच्चे साथ रहेंगे... साथ उड़ेंगे... साथ आएंगे और... ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करेंगे... साथ रहने का वादा है... मैं आत्मा भी कहती हूँ... *जहां बाप वहाँ साथ - साथ रहूँगी... यह है मुझ आत्मा का बाप से वादा... और बाप का मुझ आत्मा से वादा... शरीर द्वारा कही भी रहूँ... लेकिन दिल में सदा दिलाराम बाप साथ है...*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा सदा बाबा के साथ-साथ ही रहती हूँ... अकेले कभी नहीं रहती हूँ... क्योंकि अकेले रहने से माया अपना चांस ले लेगी... और साथ रहने से लाइट - हाउस के आगे माया स्वतः ही भाग जाती है... मुझ आत्मा के नजदीक भी नहीं आती है...* इसीलिए मैं आत्मा सदा बाबा के साथ रहने का वादा निभा रही हूँ... और बाबा भी सदा मेरे साथ रहकर अपना वादा निभा रहे हैं...

 

 _ ➳  *ऐसा कभी भी किसी ने भी नहीं सुना होगा कि... बाप का जन्म-दिन भी वही... और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही... यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज हम बच्चे मना रहे है...* मुझ आत्मा को... यह जन्‍म-दिवस न्यारा... और प्यारा-पन अनुभव करा रहा है... *यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है... जो स्वयं भगवान बाप... बच्चों का मना रहे हैं...* परम आत्मा बच्चों का...  श्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं... दुनिया में सभी आत्माएँ... कहने मात्र कहती हैं कि... हमको पैदा करने वाला भगवान है... परम-आत्मा है... परन्तु न उनको जानते हैं... न उनकी स्मृति में चलते हैं... *हम सभी बाप के बच्चें... अनुभव से कहते है - हम परमात्म-वंशी हैं... ब्रह्मा-वंशी हैं... परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं... हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं...*

 

 _ ➳  आज मैं आत्मा अपना जन्म-दिवस... और परमात्मा बाप का जन्म-दिवस साथ-साथ मना रही हूँ... मैं बाप का बर्थडे मना रही हूँ... और बाप मुझ आत्मा का बर्थडे मना रहे हैं... *मैं आत्मा बाप को मुबारक देती हूँ... वाह बाबा वाह... और बाप मुझ आत्मा को मुबारक देते हैं... वाह बच्चे वाह...* आज इस अलौकिक और अनोखे... बाप और बच्चों के जन्म दिवस पर... *मैं आत्मा बाप के सामने... यह संकल्प लेती हूँ कि... सदा एक दो को उमंग - उत्साह दिलाते हुए... सहयोगी बनूँगी... अपने व्यर्थ संकल्पों के अक के फूल बाप को अर्पण करती हूँ...* अब मैं आत्मा व्यर्थ संकल्प न करती हूँ... न सुनती हूँ... और न संग में आकर... व्यर्थ संकल्पों के संग का रंग लगाती हूँ... क्योंकि *जहाँ व्यर्थ संकल्प होगा... वहाँ याद का संकल्प... ज्ञान के मधुर बोल... जिसको मुरली कहते हैं... वह शुध्द संकल्प स्मृति में नहीं रहेंगे...*

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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