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 28 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *आत्म अभिमानी बनने की मेहनत की ?*

 

➢➢ *मनमनाभाव के अभ्यास द्वारा अपार ख़ुशी में रहे ?*

 

➢➢ *सदाकाल के अटेंशन द्वारा विजय माला में पिरोये जाने का पुरुषार्थ किया ?*

 

➢➢ *सेवा में सदा जी हाज़िर किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *अशरीरी बनना अर्थात् आवाज से परे हो जाना। शरीर है तो आवाज है। शरीर से परे हो जाओ तो साइलेंस।* एक सेकेण्ड में सर्विस के संकल्प में आये और एक सेकेण्ड में संकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जायें। *कार्य प्रति शारीरिक भान में आये फिर सेकेण्ड में अशरीरी हो जायें, जब यह ड्रिल पक्की होगी तब सभी परिस्थितियों का सामना कर सकोगे।*

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं सृष्टि ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी हूँ"*

 

    सदा अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी समझकर चलते हो? *जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको हर कदम पर अपने ऊपर अटेन्शन रहता है, उनका हर कदम ऐसा उठता है जो सदा वाह-वाह करें, वन्समोर करें।* अगर हीरो पार्टधारी का कोई भी एक कदम नीचे ऊपर हो जाता है तो वह हीरो नहीं कहला सकता। तो आप सभी डबल हीरो हो।

 

  हीरो विशेष पार्टधारी भी हो और हीरों जैसा जीवन बनाने वाले भी। तो ऐसा अपना स्वमान अनुभव करते हो? एक है जानना और दूसरा है जानकर चलना। तो जानते हो वा जानकर चलते हो? *तो सदा अपने हीरो पार्ट को देख हर्षित रहो, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट। अगर जरा भी साधारण कर्म हुआ तो हीरो नहीं कहला सकते।*

 

 *जैसे बाप हीरो पार्टधारी है तो उनका हर कर्म गाया और पूजा जाता है, ऐसे बाप के साथ जो सहयोगी आत्मायें हैं उन्हों का भी हीरो पार्ट होने के कारण हर कर्म गायन और पूजन योग्य हो जाता है।* तो इतना नशा है या भूल जाता है? आधाकल्प तो भूले, अभी भी भूलना है क्या? अब तो याद स्वरूप बन जाओ। स्वरूप बनने के बाद कभी भूल नहीं सकते।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  *अभी अगर आपको कहें कि 108 ऐसे नाम बताओ जो वेस्ट और निगेटिव से मुक्त हों, तो आप लोग माला बना सकती हैं।* सिर्फ 108 कह रहे हैं।

 

✧  99 तक तो 16000 चाहिए। 9 लाख तो बन जायेंगे, उसकी कोई बडी बात नहीं है। पहले तो 108 तैयार हो जाएँ (सभा से) *आप सोचते हो हम 108 में आयेंगे?*

 

✧  अभी जो कुछ हो उसे निकाल लेना, और दादी को कहना कि हम एवररेडी है। *हाँ अपना-अपना नाम देवें, आफर करो - हम 108 में है फिर वैरीफाय करेंगे।* सबसे अच्छा तो अपना नाम आपे ही देवें। (दादियों के साथ)

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फ़रिश्ते अर्थात् सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी* आगे चल समय और आत्माओं की इच्छा की आवश्यकता अनुसार डबल रूप के सेवा की आवश्यकता होगी। एक ब्रह्माकुमार-कुमारी स्वरूप अर्थात् साकारी स्वरूप की, दूसरी सूक्ष्म आकारी फ़रिश्ते स्वरूप की। जैसे ब्रह्मा बाप की दोनों ही सेवायें देखी। साकार रूप की भी, और फ़रिश्ते रूप की भी। *साकार रूप की सेवा से अव्यक्त रूप के सेवा की स्पीड तेज़ है।* यह तो जानते हो, अनुभवी हो ना? अब अव्यक्त ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन अर्थात् फ़रिश्ता रूप बन बच्चों को अव्यक्त फ़रिश्ते स्वरूप की स्टेज में खींच रहे हैं। फॉलो फादर करना तो आता है ना! ऐसे तो नहीं सोचते हम भी शरीर छोड़ अव्यक्त बन जावें। इसमें फॉलो नहीं करना। ब्रह्मा बाप फ़रिश्ता बना ही इसलिए कि अव्यक्त रूप का एग्जैम्पुल देख फॉलो सहज कर सको। *साकार रूप में न होते हुए भी फ़रिश्ते रूप से साकार रूप समान ही साक्षात्कार कराते हैं ना।* विशेष विदेशियों को अनुभव है। मधुबन में साकार ब्रह्मा की अनुभूति करते हो ना! कमरे में जा करके रूह-रूहान करते हो ना! चित्र दिखाई देता है या चैतन्य दिखाई देता है? अनुभव होता है तब तो जिगर से कहते ही ब्रह्मा बाबा। आप सबका ब्रह्मा बाबा है या पहले वाले बच्चों का ब्रह्मा बाबा है? अनुभव से कहते हो वा नालेज के आधार से कहते हो? अनुभव है?

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा स्मृतिपटल पर व्यक्त हो रहे सभी विचारों को फुल स्टॉप लगाकर एकांतवासी होकर सेण्टर में बाबा के कमरे में बैठती हूँ... एक के अंत में मगन हो जाती हूँ...* धीरे-धीरे इस देह, देह की दुनिया से डिटैच होकर ऊपर उड़ते हुए, बादलों, पहाड़ों, चाँद, सितारों, आसमान से भी पार होती हुई पहुँच जाती हूँ... मेरे प्यारे बाबा के पास... और बाबा के सम्मुख बैठ बाबा की रूहानी बातों को प्यार से सुनती हूँ...

 

  *इस अंतिम जनम में देह अभिमान को छोड़कर देही अभिमानी बनने की शिक्षा देते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* मेरे मीठे फूल बच्चे... 21 जनमो के मीठे सुख आपकी दहलीज पर आने को बेकरार है... इन सुखो को जीने के लिये अपने सत्य स्वरूप के नशे से भर जाओ... *वरदानी संगम पर आत्मा अभिमानी के संस्कार को इस कदर पक्का करो कि अथाह सुख अथाह खुशियां दामन में सदा की सज जाएँ...”*

 

_ ➳  *मैं आत्मा अपने सत्य स्वरुप में चमकती हुई अपने स्वधर्म के गुण गाती हुई कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे प्यारे बाबा... मै आत्मा शरीर के भान से निकल कर आत्मा होने की सत्यता से परिपूर्ण होती जा रही हूँ... *सातो गुणो से सजधज कर तेजस्वी होती जा रही हूँ... और नई दुनिया में अनन्त सुखो की स्वामिन् होती जा रही हूँ...”*

 

  *दिव्य गुणों की खुशबू से मेरे जीवन को दिव्य बनाकर मीठे बाबा कहते हैं:-* मीठे प्यारे लाडले बच्चे... देह के भान ने उजले प्रकाश को धुंधला कर दुखो के कंटीले तारो में लहुलहानं सा किया है... अब आत्मिक ओज से स्वयं को भर लो... *अपने चमकते स्वरूप और गुणो की उसी खूबसूरती से फिर से दमक उठो... तो सुखो के अम्बार कदमो में सदा के बिछ जायेंगे...”*

 

_ ➳  *आत्मदर्शन कर सर्वगुणों से सुसज्जित हो दिव्यता से ओतप्रोत होकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* मेरे प्राणप्रिय बाबा... मै आत्मा आपकी मीठी यादो में अपनी खोयी चमक वही खूबसूरत रंगत पुनः पाती जा रही हूँ... आत्मा अभिमानी होकर खुशियो में मुस्करा रही हूँ... *मीठे बाबा के प्यार में सतयुगी सुख अपने नाम करवा रही हूँ...”*

 

  *संगम पर मेरे संग-संग चलते हुए मेरे क़दमों में फूल बिछाते हुए मेरे बाबा कहते हैं:-* प्यारे सिकीलधे मीठे बच्चे... *संगम के कीमती समय में सुखो की जागीर अपनी बाँहों में भरकर 21 जनमो तक अथाह खुशियों में मुस्कराओ...* ईश्वर पिता का सब कुछ अपने नाम कर लो... और खूबसूरत दुनिया के मालिक बन विश्व धरा पर इठलाओ...

 

_ ➳  *मैं आत्मा आत्मिक स्वरुप की झलक और फलक से संगम के अमूल्य समय, श्वांस, संकल्पों को सफल करते हुए कहती हूँ:-* हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा कभी यूँ ईश्वर पिता के दिल पर इतराउंगी ... सब कुछ मेरी मुट्ठी में होगा... *भाग्य इतना खूबसूरत और ईश्वरीय प्यार के जादू में खिलेगा ऐसा मैंने भला कब सोचा था... ये प्यारे से ईश्वरीय पल मुझे 21 जनमो का सुख दिलवा रहे है...”*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मनमनाभव के अभ्यास द्वारा अपार खुशी में रहना है*"

 

_ ➳  एक ऊँची पहाड़ी पर बैठी मैं प्रकृति के खूबसूरत नजारो का आनन्द ले रही हूँ और साथ - साथ अपने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन के बारे में भी विचार कर रही हूँ और *अपने भाग्य की महिमा करते हुए सोच रही हूँ कि आज दिन तक जिन देवी देवताओं के जड़ चित्रों के आगे मैं माथा टेकती आई वो देवी देवता कोई और नही मैं ही ब्राह्मण सो देवता बनने वाली वो परम पूज्य, महान आत्मा*। मैं ही हूँ वो अष्ट भुजाधारी दुर्गा जिसकी नवरात्रों के रुप में आज दिन तक पूजा हो रही है। अपने बारे में सोचती, अपने आप से बातें करती अचानक मैं अनुभव करती हूँ जैसे मेरी आँखों के सामने दो चित्र बार - बार प्रकट हो रहें हैं। 

 

_ ➳  ध्यान लगाकर इन चित्रों को मैं देखने का प्रयास करती हूँ और महसूस करती हूँ कि मेरी आँखों के बिल्कुल सामने श्री कृष्ण और विष्णु चतर्भुज की दो विशाल प्रतिमाएं दिखाई दे रही हैं। *इन विशाल प्रतिमाओं को देख भक्ति में इनके चरित्रों के बारे में वर्णित बातें स्मृति में आने लगती है और मैं विचार करती हूँ कि दुनिया के सभी मनुष्य मात्र कितने बड़े घोर अंधियारे में हैं जो समझते हैं कि विष्णु ने स्वदर्शन चक्र चला कर असुरों का संहार किया*। ये बात भी किसी की बुद्धि में नही आती कि सबको सुख देने वाले देवता भला हिंसा कैसे कर सकते हैं! मनमनाभव शब्द जो गीता में लिखा हुआ है उसे भी श्री कृष्ण के साथ जोड़ कितनी बड़ी अज्ञानता कर दी! कृष्ण तो देहधारी है वो भला मनुष्यो को मनमनाभव रहने के लिए कैसे कह सकता है! 

 

_ ➳  विष्णु चतर्भुज और श्री कृष्ण की उस विशाल प्रतिमा को देखती और यह सब चिन्तन करती एकाएक मैं अनुभव करती हूँ कि उन दोनों प्रतिमाओं के ठीक ऊपर एक विशाल ज्योति आकर स्थित हो गई है। *अनन्त ज्योति के उस प्रकाश पुंज अपने पिता परमात्मा को मैं देख रही हूँ जिनसे अनन्त प्रकाश की रंग बिरंगी किरणें निकल कर अब चारों और फैलने लगी है*। पूरी पहाड़ी खूबसूरत सतरँगी प्रकाश की किरणों से ऐसे ढक गई है कि सतरँगी किरणो का एक बहुत ही सुंदर औरा पहाड़ी के चारों तरफ बन गया है और उस औरे से औंस की बूंदों की तरह निकल रहेवायब्रेशन चारों और फैल कर सारे वायुमण्डल को इतना दिव्य और अलौकिक बना रहे हैं कि एक रूहानी मस्ती मेरे ऊपर छाने लगी है।

 

_ ➳  उस अलौकिक रूहानी मस्ती में डूबी अपने शिव पिता की सुखदाई अनन्त किरणों का आनन्द लेते - लेते मैं महसूस करती हूँ कि उस विष्णु चतर्भुज और श्री कृष्ण की विशाल प्रतिमा के स्थान पर अब मेरे अलग - अलग स्वरूप बार - बार मेरी आँखों के सामने आ रहें हैं। *अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप मैं मैं स्वयं को एक विशेष चमकते हुए सितारे के रूप में अपनी अनन्त किरणे बिखेरते हुए देख रही हूँ जिसमे पवित्रता की अनन्त शक्ति है*। अपने आदि स्वरूप में मैं देख रही हूँ स्वयं को डबल ताजधारी देव स्वरूप में जो प्यूरिटी की रॉयल्टी से सम्पन्न महान स्वरूप है। 

 

_ ➳  अपने पूज्य स्वरूप में मैं अपने उस पूज्य चित्र को देख रही हूँ जिसमे पवित्रता की चमक रूहानियत के रूप में सबको आकर्षित कर रही है। भक्तों को सुख, शांति का अनुभव करवा रही है। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में मैं परमात्म पालना, परमात्म प्यार पाने वाले अपने सर्वश्रेष्ठ पदमापदम भाग्यशाली स्वरूप को देख रही हूँ और अपने फ़रिश्ता स्वरूप में मैं देख रही हूँ स्वयं को अपने लाइट माइट परमात्म सहयोगी स्वरूप में*। अपने इन पांचो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ स्वरूपों को देख कर और इनका अनुभव करके अब मैं अपने वर्तमान ब्राह्मण जीवन की स्मृति में वापिस लौटती हूँ। 

 

_ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित होकर, स्वदर्शन चक्र और मनमनाभव का अर्थ बुद्धि में यथार्थ रीति रख कर, अब मैं अपने पांचो स्वरूपों को मन बुद्धि से देखते, स्वयं का दर्शन करते हुए, यथार्थ रीति मनमनाभव होकर अर्थात अपने वास्तविक निराकार स्वरूप में स्थित होकर अपने निराकार भगवान बाप के साथ अपने मन बुद्धि का कनेक्शन जोड़ कर ब्राह्मण सो देवता बनने का पुरुषार्थ कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं सदा काल के अटेंशन द्वारा विजय माला में पिरोने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं बहुत समय की विजयी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा सेवा में सदा जी हाज़िर करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा प्यार का सच्चा सबूत देती हूँ  ।*

   *मैं निस्वार्थ सेवाधारी आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. जब माया को चैलेन्ज किया तो *यह समस्यायें, यह बातें, यह हलचल माया के ही तो रायल रूप हैं। माया और तो कोई रूप में आयेगी नहीं। इन रूपों में ही मायाजीत बनना है।* बात नहीं बदलेगी, सेन्टर नहीं बदलेगास्थान नहीं बदलेगा, आत्मायें नहीं बदलेगी, हमें बदलना है। आपका स्लोगन तो सबको बहुत अच्छा लगता है - बदलके दिखाना हैबदला नहीं लेना हैबदलना है। यह तो पुराना स्लोगन है। *नये-नये रूपरायल रूप बनके माया और भी आने वाली हैघबराओ नहीं। बापदादा अण्डरलाइन कर रहा है - माया ऐसेऐसे रूप में आनी हैआ रही है।* जो महसूस ही नहीं करेंगे कि यह माया है, कहेंगे नहीं दादी, आप समझती नहीं होयह माया नहीं है। यह तो सच्ची बात है। और भी रायल रूप में आने वाली हैडरो मत। क्यों? देखोकोई दुश्मन चाहे हार खाता हैचाहे जीत होती हैजो भी उनके पास छोटे मोटे शस्त्र अस्त्र होंगेयूज करेगा या नहीं करेगाकरेगा नातो *माया की भी अन्त होनी है लेकिन जितना अन्त समीप आ रहा हैउतना वह नये-नये रूप से अपने अस्त्र शस्त्र यूज कर रही है, करेगी भी। फिर आपके पाँव में झुकेगी। पहले आपको झुकाने की कोशिश करेगीफिर खुद झुक जायेगी।*

 

 _ ➳  2. *अपने में सिर्फ दृढ़ता लाओथोड़ी सी बात में संकल्प को ढीला नहीं कर दो। कोई इन्सल्ट करेकोई घृणा करे, कोई अपमान करेनिंदा करे, कभी भी कोई दुःख दे लेकिन आपकी शुभ भावना मिट नहीं जाए। आप चैलेन्ज करते हो कि हम माया को, प्रकृति को परिवर्तन करने वाले विश्व-परिवर्तक हैं,* अपना आक्यूपेशन तो याद है ना? विश्व-परिवर्तक तो हो ना! अगर कोई अपने संस्कार के वश आपको दुःख भी देचोट लगाये, हिलाये, तो क्या आप दुःख की बात को सुख में परिवर्तन नहीं कर सकते होइन्सल्ट को सहन नहीं कर सकते हो? गाली को गुलाब नहीं बना सकते हो? समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन नहीं कर सकते हो?   

 

✺   *ड्रिल :-  "दृढ़ता से माया के बहुरूपों को परिवर्तन कर बाप समान बनने का अनुभव"*

 

 _ ➳  *मैं आत्मा इस स्थूल शरीर को छोड़ अशरीरी बन उड़ चलती हूँ अपने प्यारे घर... शान्तिधाम... मैं आत्मा शान्तिधाम की गहन शांति को गहराई से अनुभव कर रही हूँ...* मैं आत्मा बीजरूप स्थिति में बीजरूप बाबा के समीप बैठ जाती हूँ... *बाबा से निकलती किरणों से मैं आत्मा अपनी अपवित्रता के संकल्पों... अपनी कमी कमजोरियों के संकल्पों... माया के विभिन्न स्वरूपो को बीज सहित उखाड़ कर समाप्त कर रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा अपनी चैकिंग करती हूँ कि कहीं मैं आत्मा दूसरे को बदलने की कोशिश तो नहीं कर रही... मुझे तो स्वयं को परिवर्तन करना है... मैं आत्मा अपनी चेकिंग करती हूँ कि... माया नये नये रूप... रॉयल रूप बनाकर कैसे मेरे आगे पीछे चक्कर लगाती है... *मैं आत्मा अपने हर संकल्प... हर कर्म पर अटेंशन देने लगती हूँ... मैं आत्मा याद और सेवा का डबल लॉक लगाकर बुद्धि को पहरेदार बनाकर सावधान करती हूँ... कि माया किसी भी चोर गेट से अंदर न आ सके...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा दृढ़ता की चाबी का इस्तेमाल कर हर संकल्प पर अटेंशन दे रही हूँ... *कोई इन्सल्ट करे... कोई घृणा करे... कोई निंदा करे... लेकिन मुझ आत्मा पर इन बातो का कोई असर न पड़े...* कैसी भी परिस्थिति मुझ आत्मा के सामने आये भी तो मैं अचल अडोल बन हर परिस्थिति में महावीर की तरह... अंगद की तरह अटल रहती हूँ...

 

 _ ➳  मैं आत्मा हर कदम बाबा की श्रीमत को फॉलो कर रही हूँ... *मैं आत्मा परखने की शक्ति को यूज़ कर माया से हार नहीं खाती हूँ...* मैं आत्मा सदैव सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्माओं के प्रति बाप समान शुभ भावना और शुभ कामना रख... निमित्त भाव से सेवा कर रही हूँ... *मैं रूहानी रूहे गुलाब बन चारों ओर बाप समान अपनी खुशबू फैला रही हूँ...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा माया की छाया से मुक्त हो चुकी हूँ... और सदा बाबा की छत्रछाया का अनुभव करती हूँ... *मैं आत्मा माया के सभी बहुरूपों पर विजय प्राप्त कर बाप समान होने का अनुभव कर रही हूँ... मैं आत्मा सदा बाबा की छत्रछाया का अनुभव करती हूँ...* किसी भी समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन कर सदा उमंग उत्साह और खुशी के झूले में झूलती हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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