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❍ 03 / 12 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *"मैं आत्मा हूँ" - यह स्मृति पक्की की ?*
➢➢ *विघनो से घबराए तो नहीं ?*
➢➢ *अहम् और वहम को समाप्त कर रहमदिल बनकर रहे ?*
➢➢ *तन मन धन के सहयोग से सफलता को प्राप्त किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ जैसे यह देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये। *मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे वा स्मृति में न आये। ऐसे निरन्तर तपस्वी बनो तब हर आत्मा के प्रति कल्याण का शुभ संकल्प उत्पन्न होगा।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं संगमयुगी बेपरवाह बादशाह हूँ"*
〰✧ सदा अपने को संगमयुगी बेपरवाह बादशाह हूँ - ऐसे समझते हो? पुरानी दुनिया की कोई परवाह नहीं। सदा दिल में ब्रह्मा बाबा समान क्या गीत गाते हो? परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले की, वह तो पा लिया, अभी क्या परवाह! तो बेपरवाह बादशाह हो, गुलाम नहीं। *इस बादशाही जैसी और कोई बादशाही नहीं। क्योंकि यह बादशाही डायरेक्ट बाप ने दी है। और जो भी बादशाही मिलती है वह या तो धन दान करने से मिलती है या आजकल के वोटों से मिलती है और आपको स्वयं बाप ने राजतिलक दे दिया। इस राजतिलक के आगे सतयुग का राजतिलक भी कोई बड़ी बात नहीं।* तो यह राजतिलक पक्का लगा हुआ है या मिट जाता है?
〰✧ अभी-अभी राजा और अभी-अभी गुलाम - ऐसा खेल तो नहीं करते हो? बेपरवाह बादशाह - यह कितनी अच्छी स्थिति है! जब सब-कुछ बाप के हवाले कर दिया तो परवाह किसको होगी - बाप को या आपको? बाप जाने। *जब अपने जीवन की जिम्मेवारी बाप के हवाले की है तो बाप जाने। ऐसे तो नहीं - थोड़ा-थोड़ा कहीं अपनी अथॉरिटी को छिपाकर रखा हो, मनमत को छिपाकर रखा हो। अगर श्रीमत पर हैं तो बाप के हवाले हैं।* सच्ची दिल से बाप के हवाले सबकुछ कर दिया तो उसकी निशानी सदा डबल लाईट होंगे, कोई बोझ नहीं होगा। अगर किसी भी प्रकार का बोझ है तो इससे सिद्ध है कि बाप के हवाले नहीं किया। जब बाप ऑफर करता है कि सब बोझ मेरे को दे दो और तुम हल्के हो जाओ, तो क्या करना चाहिए? ऐसा सर्वेन्ट फिर नहीं मिलेगा। अनेक जन्म बोझ रखकर देख लिया, बोझ से क्या हुआ? नीचे ही होते गये।
〰✧ *अब डबल लाइट बन उड़ते रहो। तन-मन-धन सब ट्रांस्फर कर दो। कोई कहते हैं - और कोई बोझ नहीं है लेकिन थोड़ा-थोड़ा सम्बन्ध का बोझ है। तो सर्व सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है तब बोझ है। वायदा है सर्व सम्बन्ध एक बाप से। तो कोई बोझ नहीं। आराम से दाल-रोटी खाओ और उड़ती कला में उड़ो।* कहाँ भी रहते बाप को भोग लगा कर खाते हो तो ब्रह्मा भोजन खाते हो। ब्रह्मा भोजन खाओ, खूब नाचो और मौज मनाओ। अभी मौज में नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे!
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ (बापदादा ने ड़िल कराई) एक सेकण्ड में अपने को अशरीरी बना सकते हो? क्यों? संकल्प किया मैं अशरीरी आत्मा हूँ, तो कितना टाइम लगा? सेकण्ड लगा ना! तो *सेकण्ड में अशरीरी, न्यारे और बाप के प्यारे - ये ड्रिल सारे दिन में बीच-बीच में करते रहो।*
〰✧ करने तो आती है ना? *तो अभी सब एक सेकण्ड में सब भूलकर एकदम अशरीरी बन जाओ* (बापदादा ने 5 मिनट ड़िल कराई) अच्छा। इस ड्रिल को दिन में जितना बार ज्यादा कर सको उतना करते रहना।
〰✧ चाहे एक मिनट करो। तीन मिनट, दो मिनट का टाइम न भी हो एक मिनट, आधा मिनट *यह अभ्यास करने से लास्ट समय अशरीरी बनने में बहुत मदद मिलेगी।* बन सकते हैं?
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ *कर्तव्य करते हुए भी कि मैं फ़रिश्ता निमित्त इस कार्य-अर्थ, पृथ्वी पर पाँव रख रहा हूँ, लेकिन मैं हूँ अव्यक्त देश का वासी, अब इस स्मृति को ज़्यादा बढ़ाओ।* ‘मैं इस कार्य-अर्थ अवतरित हुई हूँ अर्थात् जैसे कि मैं इस कार्य अर्थ पृथ्वी पर वतन से आई हूँ कारोबार पूरी हुई, फिर वापस अपने वतन में। *जैसे कि बाप आते हैं, तो बाप को स्मृति है ना कि हम वतन से आये हैं, कर्तव्य के निमित्त और फिर हमको वापिस जाना है। ऐसे ही आप सबकी भी यह स्मृति बढ़नी चाहिए कि मैं अवतार हूँ अर्थात् मैं अवतरित हुई हूँ।* मैं मरजीवा बन रही हूँ, अभी मैं ब्राह्मण हूँ और फिर मैं देवता बनूँगी- यह भी वास्तव में मोटा रूप है। यह स्टेज भी साकारी है। *अभी आप लोगों की स्टेज आकारी चाहिए, क्योंकि आकारी से फिर निराकारी सहज बनेंगे।* जैसे बाप भी साकार से आकारी बना, आकारी से फिर निराकारी और फिर साकारी बनेंगे।' *अब आप लोगों को भी अव्यक्त वतनवासी स्टेज तक पहुँचना है, तभी तो आप साथ चल सकेंगे।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- मनसा-वाचा-कर्मणा बहुत-बहुत ख़ुशी में रहना"*
➳ _ ➳ *भरपूर हुई है, मन की गागर*... *छलछल अब छलक रही है*... *मौजे परमात्म प्रेम की अंग अंग से अब झलक रही है*, *बाँट रही मै, भर भर आँचल, फिर भी मै भरपूर हूँ*... मौजों में रहती हरदम खुशियों का मै नूर हूँ... और प्रभु प्रेम का उपहार, इन खुशियों का नूर बनकर मैं आत्मा बैठी हूँ , खुशियों के सागर के पहलू में... खुशियों की तरंगे मेरे रोम रोम से बही जा रही हैं... ये धरती,ये गगन, ये बहती पवन सब मुझसे खुशनुमा मस्तियों की सौगात लिये जा रही है... *उनकी आँखो से बरसती खुशियों की चाँदनी अभी भी मुझे नख शिख नहला रही है*...
❉ *ज्ञान चन्द्रमा बापदादा आँखों ही आँखों में खुशियों की चाँदनी में नहलाते स्नेह से भरपूर हो मुझ आत्मा से बोले:-* "सदा रूहानियत की स्थिति में रहने वाली मेरी रूहे गुलाब बच्ची... *सारे ज्ञान का सार मन्मनाभव को क्या आपने बुद्धि में धारण किया है*? क्या जन्मों जन्मों के लिए खुशी की खुराक से भरपूर हुए हो? *समाने और समेटने की शक्ति द्वारा एकाग्रता का अनुभव करने वाले सार स्वरूप बने हो*? ऊँचे ते ऊँचे बाप की बच्ची, *अब बाप समान ऊँची स्थिति बनाओं*... *समेटकर संकल्पों को अपने, इस लगाव की रस्सी को जलाओं..."*
➳ _ ➳ *ज्ञान का तीसरा नेत्र दे कर सृष्टि के आदि मध्य अन्त का सम्पूर्ण सार मेरी बुद्धि में समाँ, मुझे त्रिनेत्री बनाने वाले बापदादा से, मैं आत्मा बोली:-* "मीठे से मीठा ज्ञान का एक ही अक्षर बुद्धि में धारण कर मैं धन्य हुई हूँ बाबा!... *जन्मों जन्मों की मिठास अब तो जीवन में इस कदर घुली कि कोशिशों के बिना ही दिशाओं में भी घुलने लगी है... गैर नही रहा कोई अब, हर रूह अपनी- सी लगने लगी है...जाम खुशियों का अब भर- भर कर उँडेल रही हूँ*... *गमों की दुनिया भूली हूँ बाबा! अब बस खुशियों से खेल रही हूँ..."*
❉ *इस दुनियावी जहाजी बेडे को इस पतित भवसागर से पार ले जाने वाले मेरे खिवैय्या सतगुरू मुझ आत्मा से बोलें:-* "रूहानी बच्ची... संगम के इन गलियारों से इस ज्ञान की मीठी सेक्रीन, *मन्मनाभव* का सबको अनुभव कराओं, *ज्ञान और योग की ये फर्स्ट क्लास वन्डरफुल खुराक, खुशी के एक -एक लम्हें के लिए तरसती हर आत्मा को पिलाओं*, इस अनमोल खुराक के सर्जन का अब हर रूह से परिचय कराओ..."
➳ _ ➳ *मुझ आत्मा से सब डिफेक्ट निकाल, मुझे प्युअर डायमण्ड बनाने वाले रत्नाकर बाप से, मैं आत्मा बोली:- "मीठे बाबा... एक बाप के डायरेक्शन प्रमाण चलने वाली मै महावीर आत्मा, मन्मनाभव की स्मृति से सबको समर्थ बना रही हूँ*... आत्मा भाई -भाई की स्मृति से बाप के वर्से की ये अधिकारी आत्माए देखो, अपने भाग्य पर किस कदर इठला रही है, निमित्त बन, कर जो दिया इनको अखुट खजाना, अब त्रिकाल दर्शी बन ये भी सबको लुटा रही है, बाबा! *विकारों की खोट आपने मुझ आत्मा से जैसे निकाली है, वैसे ही मैं अब हर आत्मा को प्योर डायमंड बनने के तमाम हुनर सिखा रही हूँ..."*
❉ *अतीन्द्रिय सुखों की रिमझिम सी बरसातों में भिगो देने वाले ज्ञानसागर बाप, शिक्षक और सतगुरू बोले:-* "सबको सुख देने वाली मेरी खुशबूदार फूल बच्ची... अपने *दिव्य गुणों की खुशबू से अब सतयुगी नजारें साकार करो*, *खुशियों के रंगों से जो बेरंग नजारें है, अब उनमे भी परमात्म प्यार भरों*... सदा खुश मौज में रहों खुद, फिर औरो, को खुशियाँ बाँट दो, प्यारें बन कर संसार के मोह के बंधन काट दों... *अन्तिम समय, सेकेन्ड का समय और नष्टोमोहा का पेपर, इस पेपर में पास सबको पास कराओं..."*
➳ _ ➳ *वन्डरफुल ज्ञान देने वाले वन्डरफुल बाप से इस वन्डरफुल समझानी को पाकर मैं आत्मा धन्य हो बोली*:- "प्यारे मीठे बापदादा... *इस ज्ञान का सार, वर्से का सार, ये अखुट खुशी और आपका पावन प्यार*... जो भर भर आपने लुटाया है... *इस पालना का रिटर्न मैने भी हर आत्मा को आप का परिचय देकर चुकाया है*... घर घर मन्दिर बन रहा है बाबा ! हर नर में नारायण नजर आते है... आप मौजों का सागर हो, ये सुनकर हर रूह आपके पहलू में आ चुकी है... *और विश्व कल्याणकारी मैं आत्मा, निमित्त भाव से खुशियों के अखुट खजाने लुटाये जा रही हूँ... वरदानों से भरपूर कर रहे है बापदादा मुझे और मै मन्द मन्द मुस्कुराये जा रही हूँ..."*
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए वाणी से परे जाने का पुरुषार्थ करना है*"
➳ _ ➳ वाणी से परे वानप्रस्थ में जाने का अभ्यास ही वो सर्वोच्च प्राप्ति करने का आधार है जहाँ पहुंच कर आत्मा उस गहन परम आनन्द की अनुभूति करती है जिस परमानन्द का बड़े बड़े साधू सन्यासियों, महा मण्डलेश्वरों ने वर्णन तो किया किन्तु उसका अनुभव नही कर पाए। क्योकि *उस सर्वोच्च स्थिति को वही पा सकता है जो सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि बन सम्पूर्ण समर्पण भाव से उस सत्य परमपिता परमात्मा पर कुर्बान हो जाता है*। यही विचार करते - करते मुझे अपने सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य पर नाज होता है और मैं सोचती हूँ कि कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं आत्मा जो जब चाहे तभी वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति में जा कर सेकेंड में उस परमानन्द का अनुभव कर लेती हूँ।
➳ _ ➳ अपने परम पिता परमात्मा शिव बाबा के सानिध्य में बैठ उस परमानन्द की अनुभूति का संकल्प ही मुझे मेरी शांत अशरीरी स्थिति में स्थित कर देता है। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से अब मैं अपने चैतन्य निराकारी ज्योति बिंदु स्वरूप को स्पष्ट देख रही हूं और स्वयं को एक ऐसी चैतन्य शक्ति के रूप में अनुभव कर रही हूँ जो इस देह को चला रही है*। अपने इस सत्य स्वरुप में स्थित होते ही मुझ आत्मा के अंदर निहित गुण और शक्तियां स्वत: ही इमर्ज हो रहें हैं। इस अवस्था में मेरी सर्व कर्मेन्द्रियां शांत और शीतल होती जा रही हैं । मेरे विचार स्थिर हो रहे हैं।
➳ _ ➳ इसी गहन शांति की अवस्था में मैं आत्मा अशरीरी बन इस देह से निकलकर अब अपने घर निर्वाण धाम की ओर चल पड़ती हूं। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से इस साकार दुनिया के वन्डरफुल नजारों को देखती हुई अपने पिता परमात्मा के प्रेम में मगन उनसे मिलन मनाने की तीव्र लग्न में मैं आत्मा वाणी से परे की इस आंतरिक यात्रा पर निरंतर बढ़ती जा रही हूँ*। साकार लोक को पार कर, सूक्षम लोक को भी पार कर, मैं आत्मा पहुंच गई निर्वाणधाम अपने शिव पिता परमात्मा के पास।
➳ _ ➳ वाणी से परे इस निर्वाणधाम में देह और देह की दुनिया के संकल्प मात्र से भी मैं मुक्त हूँ। लाल प्रकाश से प्रकाशित इस घर मे मुझे चारों और चमकती हुई मणियां ही दिखाई दे रही है। *चारों ओर शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन फैले हुए हैं। शांति की गहन अनुभूति करते हुए इस पूरे ब्रह्माण्ड में मैं विचरण रही हूँ*। विचरण करते - करते शांति के सागर अपने शिव पिता परमात्मा के पास मैं पहुंच जाती हूँ। बाबा से आ रहे शांति के शक्तिशाली वायब्रेशन मुझे गहन शान्ति का अनुभव करवा रहें हैं। इनके आकर्षण में आकर्षित हो कर मैं आत्मा अपने शिव पिता के और भी समीप पहुंच जाती हूँ और जा कर उनके साथ कम्बाइंड हो जाती हूं।
➳ _ ➳ बाबा के साथ कम्बाइंड होते ही ऐसा आभास होता है जैसे सर्व शक्तियों के फवारे के नीचे मैं आत्मा स्नान कर रही हूं। *बाबा से निकल रही सर्वशक्तियों रूपी सतरंगी किरणों का झरना मुझ आत्मा पर बरस रहा हैं। मैं असीम आनन्द का अनुभव कर रही हूँ। एक अलौकिक दिव्यता से मैं आत्मा भरपूर होती जा रही हूँ*। प्यार के सागर बाबा अपना असीम प्यार मुझ पर लुटा रहे हैं। उनके प्यार की शीतल किरणे मुझे भी उनके समान मास्टर प्यार का सागर बना रही हैं। बाबा की सर्वशक्तियों को स्वयं में समाकर मैं शक्तियों का पुंज बनती जा रही हूँ। *लाइट माइट स्वरूप में स्थित हो कर मैं मास्टर बीजरूप स्थिति का अनुभव कर रही हूँ*।
➳ _ ➳ मास्टर बीजरूप स्थिति में स्थित हो, गहन अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति करके मैं लौट आती हूँ साकारी लोक में और अपनी साकारी देह में आ कर फिर से भृकुटि सिहांसन पर विराजमान हो जाती हूँ किन्तु अब देह का कोई भी आकर्षण मुझे अपनी ओर आकर्षित नही कर रहा। *देह में रहते हुए वाणी से परे की वानप्रस्थ स्थिति का दिव्य अलौकिक अनुभव मुझे रुहानी नशे से भरपूर कर रहा है*।
➳ _ ➳ इस रूहानी नशे से स्वयं को सदा भरपूर रखने के लिए अब मैं ब्राह्मण आत्मा देह अभिमान में आ कर की हुई भूलों को, बाबा की श्रीमत पर चल, सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बन सुधारती जा रही हूँ। *स्वयं पर, बाबा पर और ड्रामा पर सम्पूर्ण निश्चय मेरे मन मे उठने वाले व्यर्थ संकल्पो, विकल्पों से मुझे मुक्त कर रहा है। जिससे साइलेन्स का बल मेरे अंदर जमा होता जा रहा है और डीप साइलेन्स की अनुभूति करते हुए वाणी से परे वानप्रस्थ स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बढ़ता जा रहा है जो मुझे हर समय अतीन्द्रिय सुख से भरपूर कर रहा है*।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं अहम और वहम को समाप्त कर रहमदिल बननें वाली आत्मा हूँ।*
✺ *मैं विश्व कल्याणकारी आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदैव तन-मन-धन द्वारा सहयोगी हूँ ।*
✺ *मैं आत्मा सदा सफलता मूर्त हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ 1. *अमृतवेले से लेकर हर चलन को चेक करो - हमारी दृष्टि अलौकिक है? चेहरे का पोज सदा हर्षित है? एकरस, अलौकिक है वा समय प्रति समय बदलता रहता है?* सिर्फ योग में बैठने के समय वा कोई विशेष सेवा के समय अलौकिक स्मृति वा वृत्ति रहती है व साधारण कार्य करते हुए भी चेहरा और चलन विशेष रहता है? कोई भी आपको देखे - कामकाज में बहुत बिजी हो, कोई हलचल की बात भी सामने हो लेकिन आपको अलौकिक समझते हैं? तो *चेक करो कि बोल-चाल, चेहरा साधारण कार्य में भी न्यारा और प्यारा अनुभव होता है? कोई भी समय अचानक कोई भी आत्मा आपके सामने आ जाए तो आपके वायब्रेशन से, बोल-चाल से यह समझेंगे कि यह अलौकिक फरिश्ते हैं?*
➳ _ ➳ 2. बापदादा जानते हैं कि बहुत अच्छे-अच्छे पुरुषार्थी,पुरुषार्थ भी कर रहे हैं, उड़ भी रहे हैं लेकिन बापदादा इस 21वीं सदी में नवीनता देखने चाहते हैं। सब अच्छे हो, विशेष भी हो, महान भी हो लेकिन *बाप की प्रत्यक्षता का आधार है - साधारण कार्य में रहते हुए भी फरिश्ते की चाल और हाल हो।* बापदादा यह नहीं देखने चाहते कि बात ऐसी थी, काम ऐसा था, सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी, इसीलिए साधारणता आ गई। फरिश्ता स्वरूप अर्थात् स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं, स्वरूप में हो। ऐसा परिवर्तन किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता है? जैसी बात वैसा अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो?परिवर्तन किसको कहा जाता है? प्रैक्टिकल लाइफ का सैम्पल किसको कहा जाता है? जैसा समय, जैसा सरकमस्टांश वैसे स्वरूप बने - यह तो साधारण लोगों का भी होता है। लेकिन *फरिश्ता अर्थात् जो पुराने या साधारण हाल-चाल से भी परे हो।*
➳ _ ➳ *इस नई सदी में बापदादा यही देखने चाहते हैं कि कुछ भी हो जाए लेकिन अलौकिकता नहीं जाए।* इसके लिए सिर्फ चार शब्दों का अटेन्शन रखना पड़े, वह क्या? वह बात नई नहीं है, पुरानी है,सिर्फ रिवाइज करा रहे हैं। एक बात - शुभचिंतक। दूसरा - शुभ-चिंतन, तीसरा - शुभ-भावना, यह भावना नहीं कि यह बदले तो मैं बदलूं। उसके प्रति भी शुभ-भावना, अपने प्रति भी शुभ-भावना और 4- शुभ श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप। *बस एक 'शुभ' शब्द याद कर लो,इसमें 4 ही बातें आ जायेंगी। बस हमको सबमें शुभ शब्द स्मृति में रखना है।* यह सुना तो बहुत बारी है। सुनाया भी बहुत बारी है। अब और स्वरूप में लाने का अटेन्शन रखना है।
✺ *ड्रिल :- "बाप की प्रत्यक्षता का आधार- सदा फरिश्ता स्वरूप स्थिति में रहने का अनुभव"*
➳ _ ➳ मैं आत्मा स्व चिंतन करती हुई एक झील के पास बैठी हूँ... स्व स्वरूप का चिंतन करते हुए मेरा मन पूरी तरह शांत होता जा रहा है... मैं आत्मा पास के उद्यानों की सुंदरता को निहार रही हूँ... *पक्षियों का सुंदर कलरव मन को आनंदित कर रहा है... पक्षियों की उड़ान, मधुर ध्वनि... जीवन को हल्का, प्रसन्न रखने की जैसे कि प्रेरणा दे रही है... खिलते, मुस्कुराते फूल जैसे कह रहे हैं कि... सदा मुस्कुराते हुए दिव्य गुणों की खुशबू से... स्वयं का और सर्व का जीवन सुगंधित करना है...*
➳ _ ➳ झील में किनारे पर कमल पुष्प खिले हुए बहुत सुंदर लग रहे हैं... कमल फूल तो जैसे जीवन जीने का तरीका सिखा रहे हैं... किस तरह से ये जल में जन्म लेते हैं, जल में पलते और बढ़ते हैं... लेकिन पानी की एक बूँद भी इन पर ठहर नहीं सकती... *संसार में रहते हुए, सब कुछ करते हुए किस तरह से न्यारा और प्यारा रह सकते हैं... यह सुंदर पाठ पढ़ाते हैं कमल के ये खिलखिलाते सुंदर पुष्प*... यह चिंतन करते-करते मैं आत्मा स्वयं को कमल आसन पर देख रही हूँ... ऊपर से पवित्रता के सागर शिवबाबा से... पवित्रता की किरणें, शीतल फुहारों के रूप में मुझ पर बरस रही हैं...
➳ _ ➳ बाबा की किरणों रूपी जल में नहाते-नहाते... मुझ आत्मा की जन्म जन्म की मैल धूल रही है... *व्यक्त भाव समाप्त हो अव्यक्त स्थिति बनती जा रही है... मेरी दृष्टि दिव्य, अलौकिक हो गई है... एकरस, मधुर आनंदमय अवस्था बन गई है... मेरा चेहरा खुशी से जगमगा रहा है... मेरी चलन, मेरे हर कर्म में अलौकिकता, विशेषता समाती जा रही है*... मैं आत्मा विशेष आत्मा के स्वमान में स्थित होकर हर कर्म कर रही हूँ... मेरे बोल, संकल्प, कर्म से साधारणता समाप्त हो रही है... मेरा जीवन कमल पुष्प समान न्यारा और प्रभु प्यारा बनता जा रहा है...
➳ _ ➳ मैं अव्यक्त फरिश्ता स्वरुप में बाबा की किरणों में नहाती हुई... अपने संबंध संपर्क में आने वाली हर आत्मा को दिव्यता, अलौकिकता की अनुभूति करा रही हूँ... *मेरा हर कर्म फरिश्ते समान अव्यक्त स्थिति की अनुभूति करा रहा है... फरिश्ता स्वरुप मेरी भविष्य स्टेज नहीं, मेरी वर्तमान स्थिति है... मेरा वर्तमान स्वरुप है... मैं आत्मा फरिश्ता स्वरुप में स्थित हूँ*... कोई भी बात, कोई भी परिस्थिति मेरी स्थिति को हलचल में नहीं ला सकती... हर प्रकार के पुराने, साधारण संकल्प, बोल, कर्म से परे... मैं फरिश्ता स्वरुप की न्यारी और प्यारी अवस्था में स्थित हूँ... अपनी फरिश्ता स्वरुप स्थिति द्वारा अपने मीठी बाबा की प्रत्यक्षता का आधार बन रही हूँ...
➳ _ ➳ मैं अपने मीठे बापदादा की उम्मीदों का सितारा हूँ... उनकी आशाओं का दीपक हूँ... अपनी अलौकिक स्थिति में स्थित हूँ... *मैं हर आत्मा के प्रति शुभ चिंतन कर रही हूँ... हर एक के प्रति मेरी वृति शुभचिंतक की है... सर्व के प्रति और स्वयं के प्रति भी मेरे मन में शुभ भावना समाई हुई है*... मैं आत्मा शुभ और श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप में स्थित हूँ... *बाबा की मीठी मीठी शिक्षाओं का प्रैक्टिकल स्वरुप बनती हुए मैं फरिश्ता... अपने मीठे बाबा को विश्व में प्रत्यक्ष करने के निमित्त बन रही हूँ...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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