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❍ 05 / 12 / 20 की मुरली से चार्ट ❍
⇛ TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)
➢➢ *किसी भी परिस्थिति में दिलशिकस्त तो नहीं हुए ?*
➢➢ *विकारों से अपनी संभाल की ?*
➢➢ *त्रिकालदर्शी और साक्षीदृष्ट बन हर कर्म करते बंधनमुक्त स्थिति का अनुभव किया ?*
➢➢ *मन से सदा संतुष्ट रह डबल लाइट अवस्था का अनुभव किया ?*
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✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न* ✰
❂ *तपस्वी जीवन* ❂
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〰✧ *किसी कमजोर आत्मा की कमजोरी को न देखो। यह स्मृति में रहे कि वैराइटी आत्मायें हैं। सबके प्रति आत्मिक दृष्टि रहे।* आत्मा के रुप में उनको स्मृति में लाने से पावर दे सकोगे। आत्मा बोल रही है, आत्मा के यह संस्कार हैं, *यह पार्ट पक्का करो तो सबके प्रति स्वत: शुभ भावना रहेगी।*
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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)
➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*
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✰ *अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए* ✰
❂ *श्रेष्ठ स्वमान* ❂
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✺ *"मैं बापदादा की छत्रछाया के अन्दर रहने वाली विशेष आत्मा हूँ"*
〰✧ अपने को सदा बाप की याद की छत्रछाया के अन्दर अनुभव करते हो? जितना-जितना याद में रहेंगे उतना अनुभव करेंगे कि मैं अकेली नहीं लेकिन बाप-दादा सदा साथ है। *कोई भी समस्या सामने आयेगी तो अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करेंगे, इसलिए घबरायेंगे नहीं।* कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य सहज हो जायेगा।
〰✧ कभी भी कोई ऐसी बात सामने आवे तो बाप-दादा की स्मृति रखते अपना बोझ बाप के ऊपर रख दो तो हल्के हो जायेंगे। क्योंकि बाप बड़ा है और आप छोटे बच्चे हो। बड़ों पर ही बोझ रखते हैं। *बोझ बाप पर रख दिया तो सदा अपने को खुश अनुभव करेंगे।* फरिश्ते के समान नाचते रहेंगे। दिन रात 24 ही घंटे मन से डाँस करते रहेंगे।
〰✧ देह अभिमान में आना अर्थात् मानव बनना। *देही अभिमानी बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। सदैव सवेरे उठते ही अपने फरिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहो और खुशी में नाचते रहो तो कोई भी बात सामने आयेगी उसे खुशी-खुशी से क्रास कर लेंगे।* जैसे दिखाते हैं - देवियों ने असुरों पर डाँस किया। तो फरिश्ते स्वरूप की स्थिति में रहने से आसुरी बातों पर खुशी की डाँस करते रहेंगे। फरिश्ते बन फरिश्तों की दुनिया में चले जायेंगे। फरिश्तों की दुनिया सदा स्मृति में रहेगी।
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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)
➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*
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❂ *रूहानी ड्रिल प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं* ✰
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〰✧ आप सबका लक्ष्य क्या है? कर्मातीत बनना है ना! या थोडा-थोडा कर्मबन्धन रहा तो कोई हर्जा नहीं? रहना चाहिए या नहीं रहना चाहिए? कर्मातीत बनना है? *बाप से प्यार की निशानी है - कर्मातीत बनना।* तो ‘करावनहार' होकर कर्म करो, कराओ, कर्मेन्द्रियाँ आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ।
〰✧ बिल्कुल अपने को न्यारा समझ कर्म कराना - यह कान्सेसनेस इमर्ज रूप में हो। मर्ज रूप में नहीं। मर्ज रूप में कभी ‘करावनहार' के बजाए कर्मेन्द्रियों के अर्थात मन के, बुद्धि के, संस्कार के वश हो जाते हैं। कारण? *‘करावनहार' आत्मा हूँ मालिक हूँ विशेष आत्मा, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ यह स्मृति मालिक-पन की स्मृति दिलाती है।*
〰✧ नहीं तो कभी मन आपको चलाता और कभी आप मन को चलाते। इसलिए सदा नेचुरल मनमनाभव की स्थिति नहीं रहती। मैं अलग हूँ बिल्कुल, और सिर्फ अलग नहीं लेकिन मालिक हूँ, *बाप को याद करने से मैं बालक हूँ और मैं आत्मा कराने वाली हूँ तो मालिक हूँ। अभी यह अभ्यास अटेन्शन में कम है।*
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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*
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❂ *अशरीरी स्थिति प्रति* ❂
✰ *अव्यक्त बापदादा के इशारे* ✰
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〰✧ अब आपका गोपीपन का पार्ट समाप्त हुआ। महारथी जो आगे बढ़ते जा रहे हैं, उनका इस रीति सर्विस करने का पार्ट भी ऑटोमेटिकली बदली होता जाता है। *पहले आप लोग भाषण आदि करती थीं और कोर्स कराती थीं। अभी चेयरमैन के रूप में थोड़ा बोलती हो, कोर्स आदि आपके जो साथी हैं वह कराते हैं। अभी इस समय कोई को आकषर्ण करना, हिम्मत और हुल्लास में लाना, यह सर्विस रह गई है, तो फ़र्क आ जाता है ना? इससे भी आगे बढ़ कर यह अनुभव होगा जैसे कि आकाशवाणी हो रही है। कहेंगे यह कोई अवतार हैं और यह कोई साधारण शरीरधारी नहीं हैं।* अवतार प्रगट हुए हैं, जैसे कि साक्षात्कार में अनुभव करते-करते देवी प्रगट हुई है। महावाक्य बोले और प्राय: लोप। *अभी की स्टेज व पुरुषार्थ का लक्ष्य यह होना हैं।*
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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)
➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*
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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)
( आज की मुरली के सार पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- देही-अभिमानी बनना"*
➳ _ ➳ *मैं आत्मा स्वयं को बाबा की कुटिया में बैठा हुआ अनुभव कर रही हूं... बाबा की मीठी मीठी यादों में खोई में आत्मा पहुंच जाती हूं परमधाम और बाबा को स्पर्श करती हूं... स्पर्श करते ही एक दिव्य अलौकिक प्रकाश मुझ आत्मा में भर जाता है और मैं आत्मा बहुत शक्तिशाली अनुभव करने लगती हूँ... शक्तिओं से भरपूर होकर मैं आत्मा स्वयं को नीचे उतरता हुआ देख रही हूं... वतन में पहुंच कर बापदादा को अपने सामने देख रही हूं... बाबा बाहें फैलाये सम्मुख खड़े हैं और मैं आत्मा नन्हा फ़रिश्ता बन बाबा की बाहों में समा जाती हूँ...*
❉ *बाबा मुझ आत्मा को अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार से बोले:-* "मेरे सिकीलधे बच्चे.... अब देही अभिमानी बनों बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखाने, राजयोगी बन बाप से पूरा पूरा वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो... *तुम्हें अपने पुरुषार्थ के बल से ही सूर्यवंशी घराने में आना है और बाप से विश्व की बादशाही लेनी है... मेरी आँखों के नूर मैं आया हूँ तुम्हें इस नरक से निकाल अपने साथ ले जाने इसलिए बाप की श्रीमत पर चल अब सम्पूर्ण पवित्र बनो...*"
➳ _ ➳ *बाबा के वाक्यों को अपने हृदय में समाते हुए मैं आत्मा बाबा से कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मुझे पवित्रता का वरदान देकर मेरे इस खाली जीवन को आपने खुशिओं से भर दिया है... मैं आत्मा देही अभिमानी बन संपूर्ण सुखों से भरपूर हो गयी हूँ... आप मेरे गाईड बनें और मेरे जीवन को नया रास्ता मिल गया है... *मैं आत्मा आपके बताए रास्ते पर चलकर कितनी महान बनती जा रही हूं , सुख के सागर को पाकर मैं आत्मा धन्य हो गयी हूँ... पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बन गयी हूँ...*"
❉ *बाबा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर कहते हैं:-* "मीठे प्यारे फूल बच्चे... बाप आये हैं तुम्हें बहुत बहुत मीठा बनाने, माया ने तुम्हें खाली कर दिया है बाप आये हैं फिर से तुम्हें ज्ञान के खजाने से मालामाल करने... *अपने को देही समझ एक बाप से योग लगाओ योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम नई दुनिया के मालिक बन जायेंगे... मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई इस पाठ को पक्का करो, बाप की श्रीमत पर चलकर ही तुम राज्य के अधिकारी बनते हो... बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए निरंतर बाप की याद में रहो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा की प्रेमभरी वाणी को स्वयं में धारण करते हुए बाबा से कहती हूँ:-* "हां मेरे दिलाराम बाबा... आपकी श्रीमत पाकर मुझ आत्मा के जीवन में नई उमंग और नया उत्साह भर गया है... मैं आत्मा कितनी सौभाग्यशाली हूँ जिसको परमात्मा की पालना मिली है ये सोचते ही मेरे रोम रोम में खुशी और उल्लास की लहर सी दौड़ जाती है... *नाजाने कब से अंजान रास्तों पर चली जा रही थी अपने जीवन की मंजिल का कुछ पता न था आपने आकर मुझ आत्मा को मेरी मंजिल बताकर मुझे भटकने से बचा लिया... आपको पाकर अब और कुछ भी पाना बाकी नही रह गया...*"
❉ *बाबा मुझ आत्मा का ज्ञान श्रृंगार करते हुए मधुर वाणी में बोले:-* "मीठे बच्चे... ज्ञान से ही योग की धारणा होगी इसलिए पढ़ाई कभी मिस नही करनी... बाप से रोज़ पढ़ना है और स्वयं में ज्ञान धारण कर औरों को भी कराने की सेवा करनी है... *बाप रोज़ परमधाम से तुम्हें पढ़ाने आते हैं इस स्मृति में रहना है, निश्चय बुद्धि बनना है , कभी भी संशय में नही आना है... संगदोष में आकर पढ़ाई को कभी नही छोड़ना, ऐसा कोई काम नही करना जिससे बाप की अवज्ञा हो...*"
➳ _ ➳ *मैं आत्मा बाबा के महावाक्यों का रसपान करते हुए बाबा से बोली:-* "मेरे प्राणों से प्यारे बाबा... आपने मेरे जीवन को दिव्यता और सुख की अलौकिक चांदनी से चमचमा दिया है... जीवन की प्यास को अपने ज्ञानामृत से बुझा दिया और *मुझ आत्मा की बुद्धि का ताला खोलकर मुझे ज्ञानवान बना दिया...* मैं आत्मा स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रही हूं... मेरे जन्मों जन्मों की जो खाद आत्मा में पड़ी हुई है उसे योग अग्नि से भस्म करती जा रही हूं... *बाबा आपने वरदानों से मेरा श्रृंगार करके मुझे और भी अलौकिक बना दिया है... आपने मेरे जीवन को ज्ञान और परमात्म प्रेम से भर दिया है आपका कितना भी शुक्रिया करूँ कम ही लगता है... मैं आत्मा बाबा को दिल की गहराइयों से शक्रिया कर अपने साकारी तन में लौट आती हूं...*"
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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)
( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )
✺ *"ड्रिल :- विकारों से अपनी सम्भाल करते रहना है*"
➳ _ ➳ हंस कंकड़ पत्थर में से भी मोती चुग लेता है और कमल का पुष्प कीचड़ में उगकर भी कीचड़ की गंदगी से एकदम मुक्त, न्यारा और प्यारा रहता है। *ऐसे होली हंस और कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा ही मुझे बनना है मन ही मन अपने आप से बातें करती मैं स्वयं से प्रतिज्ञा करती हूँ कि विकारी दुनिया में रहते हुए भी विकारो के प्रभाव से स्वयं को बचाते हुए सम्पूर्ण निर्विकारी बनने का मेरे प्यारे प्रभु ने जो लक्ष्य मुझे दिया है, उस लक्ष्य को पाने के लिए मुझे स्वयं पर पूरा अटेंशन देना है*। और इसके लिए जरूरी है देह में रहते हुए, अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान अनादि स्वरूप की स्मृति में रह, सबको आत्मा भाई - भाई की दृष्टि से देखने का अभ्यास पक्का करना।
➳ _ ➳ यह विचार करते - करते ही अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप की स्मृति में मैं जैसे खो जाती हूँ और स्वयं को देह से एकदम न्यारा अनुभव करने लगती हूँ। *मन बुद्धि रूपी नेत्रों से मैं स्पष्ट देख रही हूँ जैसे यह देह अलग है और इस देह को चलाने वाली मैं चैतन्य शक्ति इस देह से बिल्कुल अलग हूँ*। अपने इस अति न्यारे और प्यारे स्वरूप पर अब मेरा मन और बुद्धि पूरी तरह एकाग्र हैं। *एक चमकता हुआ चैतन्य सितारा जिसमे से निकल रहा प्रकाश मन को बहुत ही सुखद एहसास करा रहा है, ऐसा अपना स्वरूप देख कर मैं आनन्दित हो रही हूँ*।
➳ _ ➳ मुझ आत्मा सितारे से निकल रहे प्रकाश में मेरे अंदर निहित गुणों और शक्तियों का समावेश है जिन्हें मैं प्रकाश की रंग बिरंगी किरणो के रूप में स्वयं से निकलता हुआ देख रही हूँ और अपने इन सातों गुणों सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति का अनुभव करके तृप्त हो रही हूँ। *अपने इस सत्य स्वरूप को देखने और अनुभव करने का सुखद अनुभव मुझे सर्व गुणों और सर्वशक्तियों के सागर मेरे शिव पिता की याद दिला रहा है जिन्होंने आकर ना केवल मुझे मेरे इस सत्य स्वरूप से परिचित करवाया बल्कि मुझे मेरे उस निराकारी घर का भी पता बताया जहाँ अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान स्वरुप में मैं आत्मा अपने पिता के साथ रहती थी*।
➳ _ ➳ अपने उसी स्वीट साइलेन्स होम को याद करते ही, अपने शिव पिता के सानिध्य में बैठ उनसे मिलन मनाने का मधुर अहसास अब मुझे स्वत: ही मेरे उस परमधाम घर की ओर खींच रहा है। *ऐसा लग रहा है जैसे मेरे प्यारे पिता ने मुझे अपने पास बुलाने के लिए अपनी सर्वशक्तियों रूपी किरणों की बाहें फैला ली है और अपनी बाहों में समाकर मुझे अपने घर ले जा रहें हैं*। देह को छोड़ अपने प्यारे पिता की किरणों रूपी बाहों के झूले में झूलती, असीम आनन्द का अनुभव करती मैं उनके साथ ऊपर आकाश की ओर जा रही हूँ। *चाँद, सितारों से सजे नीलगगन को पार कर, सफेद प्रकाश से प्रकाशित अव्यक्त वतन से होती हुई चैतन्य सितारों की दुनिया अपने परमधाम घर में मैं पहुँचती हूँ*।
➳ _ ➳ लाल सुनहरी प्रकाश की यह दुनिया मूल वतन जहाँ चारों ओर चमकती हुई मणियों का आगार है, अपने इस वतन में पहुँच कर मैं आत्मा एक गहन सुकून का अनुभव कर रही हूँ। *जैसे एक बच्चा अपनी माँ की गोद में सुख का अनुभव करता है ऐसे अपने शिव पिता की सर्वशक्तियों की किरणों रूपी गोद मे मैं स्वयं को महसूस करते हुए अतीन्द्रीय सुख का अनुभव कर रही हूँ*। सर्वशक्तियों की रंग बिरंगी शीतल किरणो के रूप में मेरे प्यारे पिता का अगाध प्रेम मुझ पर बरस रहा है। *अपनी पवित्रता की किरणें मुझ पर प्रवाहित करके बाबा मेरे अंदर पवित्रता का बल भर रहें हैं ताकि फिर से साकार वतन में लौट कर पार्ट बजाते हुए मैं हर प्रकार की अपवित्रता के प्रभाव से स्वयं को बचा सकूँ*।
➳ _ ➳ पवित्रता का बल स्वयं में भरकर औऱ अपने प्यारे पिता के प्यार की शक्ति अपने साथ लेकर अब मैं परमधाम से वापिस फिर से उसी अव्यक्त वतन से होती हुई, चांद, सितारों की दुनिया से नीचे साकारी दुनिया में आ जाती हूँ। *पवित्रता का और मेरे प्यारे पिता के निस्वार्थ प्यार का बल अब मुझ होली हंस बनाकर, कमल पुष्प समान न्यारा रहने की शक्ति दे रहा है*। कमल आसन पर सदा विराजमान रहते हुए अब मैं अपने सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली सभी आत्माओं को उनके अनादि निराकारी स्वरूप में ही देखती हूँ इसलिए विकारी दुनिया में रहते हुए भी विकारो के प्रभाव से अब मैं सहज ही मुक्त रहती हूँ।
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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )
✺ *मैं त्रिकालदर्शी आत्मा हूँ।*
✺ *मैं साक्षीद्रष्टा आत्मा हूँ।*
✺ *मैं हर कर्म करते बन्धन मुक्त्त स्थिति का अनुभव करने वाली आत्मा हूँ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)
( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )
✺ *मैं आत्मा मन से सदा संतुष्ट हूँ ।*
✺ *मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ ।*
✺ *मैं सदा संतुष्टमणि हूँ ।*
➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?
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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)
( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )
✺ अव्यक्त बापदादा :-
➳ _ ➳ देखो, बापदादा 'मैजारिटी' शब्द कह रहा है, सर्व नहीं कह रहा है, मैजारिटी कह रहा है। तो दूसरी बात क्या देखी? क्योंकि कारण को निवारण करेंगे तब नव-निर्माण होगा। तो दूसरा कारण - अलबेलापन भिन्न-भिन्न रूप में देखा। कोई-कोई में बहुत रायल रूप का भी अलबेलापन देखा। *एक शब्द अलबेलेपन का कारण - सब चलता है। क्योंकि साकार में तो हर एक के हर कर्म को कोई देख नहीं सकता है, साकार ब्रह्मा भी साकार में नहीं देख सके लेकिन अब अव्यक्त रूप में अगर चाहे तो किसी के भी हर कर्म को देख सकते हैं*। जो गाया हुआ है कि परमात्मा की हजार आंखे हैं, लाखों आंखें हैं,लाखों कान हैं। वह अभी निराकार और अव्यक्त ब्रह्मा दोनों साथ-साथ देख सकते हैं। कितना भी कोई छिपाये, छिपाते भी रायल्टी से हैं, साधारण नहीं। तो *अलबेलापन एक मोटा रूप है, एक महीन रूप है, शब्द दोनों में एक ही है 'सब चलता है, देख लिया है क्या होता है! कुछ नहीं होता। अभी तो चला लो, फिर देखा जायेगा!' यह अलबेलेपन के संकल्प हैं*।
➳ _ ➳ बापदादा चाहे तो सभी को सुना भी सकते हैं लेकिन आप लोग कहते हो ना थोड़ी लाज-पत रख दो। तो बापदादा भी लाज पत रख देते हैं लेकिन यह अलबेलापन पुरुषार्थ को तीव्र नहीं बनासकता। पास विद आनर नहीं बना सकता। जैसे स्वयं सोचते हैं ना'सब चलता है'। तो रिजल्ट में भी चल जायेंगे लेकिन उड़ेंगे नहीं। तो सुना क्या दो बातें देखी! परिवर्तन में किसी न किसी रूप से, हर एक में अलग-अलग रूप से अलबेलापन है। तो *बापदादा उस समय मुस्कराते हैं, बच्चे कहते हैं देख लेंगे क्या होता है! तो बापदादा भी कहते हैं देख लेना क्या होता है!* तो आज यह क्यों सुना रहे हैं?क्योंकि चाहो या नहीं चाहो, जबरदस्ती भी आपको बनाना तो है ही और आपको बनना तो पड़ेगा ही। आज थोड़ा सख्त सुना दिया है क्योंकि आप लोग प्लैन बना रहे हो, यह करेंगे, यह करेंगे... *लेकिन कारण का निवारण नहीं होगा तो टैम्प्रेरी हो जायेगा, फिर कोई बात आयेगी तो कहेंगे बात ही ऐसी थी ना! कारण ही ऐसा था! मेरा हिसाब-किताब ही ऐसा है। इसलिए बनना ही पड़ेगा*। मंजूर है ना!
✺ *ड्रिल :- "'सब चलता है'- यह अलबेलापन समाप्त करना"*
➳ _ ➳ आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त, तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाली मैं आत्मा अपने शिव पिता परमात्मा की मधुर याद में बैठी, संगमयुग की सर्वश्रेष्ठ प्राप्तियों का आनन्द लेते हुए स्वयं पर नाज कर रही हूं... और साथ ही साथ यह भी विचार कर रही हूं कि *कितनी बदनसीब हैं वो आत्मायें जो भगवान को पहचानने के बाद भी आलस्य अलबेलेपन में अपने समय को व्यर्थ गंवा रही हैं... यह सोच कर कि सब चलता है...* यही विचार करते करते मेरी आँखों के सामने एक दृश्य उभर आता है...
➳ _ ➳ मैं देख रही हूँ एक तरफ भविष्य नई दुनिया सतयुग का गेट और दूसरी तरफ़ संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों की दुनिया... जहां *बाबा के वैरायटी ब्राह्मण बच्चे बाबा की श्रीमत अनुसार इस सतयुगी दुनिया के गेट का पास प्राप्त कर इस दुनिया मे ऊंच पद पाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रहें हैं...* वही दूसरी ओर अनेक ब्राह्मण बच्चे ऐसे भी है जो आलस्य अलबेलेपन में संगमयुग के अनमोल पलो को व्यर्थ गंवा रहें हैं... गफलत कर रहें हैं... बड़े बड़े प्लैन बना रहें हैं कि यह करेंगे, वह करेंगे... लेकिन उस *प्लैन को दृढ़तापूर्वक प्रेक्टिकल में नही ला रहे...* फिर सोचते हैं कि "सब चलता है... अभी बाकी कौन से सम्पूर्ण बने हैं... लास्ट में बन जायेंगें..."
➳ _ ➳ ऐसे तीव्र पुरुषार्थ करने वाले, और आलस्य अलबेलेपन में समय व्यर्थ गवाने वाले वैरायटी ब्राह्मण बच्चो को मैं देख रही हूँ... इस दृश्य को देख कर मैं *मन ही मन स्वयं से प्रोमिस करती हूं कि मुझे आलस्य अलबेलेपन में भविष्य श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले संगमयुग के बहुमूल्य पलो को व्यर्थ नही गंवाना है...* बल्कि अपना हर सेकेंड, हर श्वांस परमात्म याद और सेवा में रह कर सफल कर, अपनी श्रेष्ठ प्रालब्ध बनानी है...
➳ _ ➳ यही संकल्प करके अब मैं अशरीरी स्थिति में स्थित हो कर, अपने प्यारे मीठे शिव बाबा की याद में बैठ जाती हूँ... और *सेकण्ड में अपने सूक्ष्म आकारी शरीर को धारण कर, अव्यक्त फरिश्ता बन पहुंच जाती हूँ सूक्ष्म वतन में, बापदादा के पास...* यहां पहुंच कर एक और विचित्र दृश्य मैं देखती हूँ कि आज बापदादा की एक नही बल्कि हज़ारों आंखे हैं जिनसे वो अपने एक - एक ब्राह्मण बच्चे को देख रहें हैं...
➳ _ ➳ बाबा के मन के भावों को, बाबा की हजारों आंखों में जैसे मैं स्पष्ट पढ़ रही हूं... *जो बच्चे सोचते है कि अभी तो चला लो, कुछ नही होता, आगे देख लेंगे... बच्चो की इस बात को सुनकर, कि देख लेंगे क्या होता है, बापदादा भी जैसे मुस्करा रहें है कि देख लेना क्या होता है और चेतावनी दे रहें हैं कि आप चाहो ना चाहो जबरदस्ती भी आपको बनाना तो है और आपको बनना तो पड़ेगा ही...* इस दृश्य के समाप्त होते ही अब मैं देख रही हूं बाहें पसारे बापदादा का पहले जैसा लाइट माइट स्वरूप जो मुझे सहज ही अपनी ओर खींच रहा है... बाबा की बाहों में अब मैं फरिश्ता समा रहा हूँ... अपनी शक्तिशाली दृष्टि से बाबा मेरे अंदर आलस्य अलबेलेपन से सदा मुक्त रहने का बल भर रहें हैं...
➳ _ ➳ बापदादा से लाइट माइट ले कर, अब मैं अपने फरिश्ता स्वरूप को सूक्ष्म वतन में ही छोड़ कर, अपने निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप को धारण कर पहुंच जाती हूँ परमधाम अपने निराकार शिव पिता परमात्मा के पास उनकी सर्वशक्तियों से स्वयं को भरपूर कर, स्वयं को शक्तिसम्पन्न बनाने... बिंदु स्वरूप में अब मैं स्वय को देख रही हूं अपने बिंदु बाप के बिल्कुल सामने... *उनसे निकल रही अनन्त शक्तियों की किरणें मुझ आत्मा के ऊपर चढ़ी विकारों की कट को उतार कर मुझे शक्तिशाली बना रही हैं...* बाबा से आ रही एक एक किरण मेरे अंदर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जा का संचार कर रही है...
➳ _ ➳ स्फूर्ति और एनर्जी से भरपूर हो कर अब मैं आत्मा अपने साकारी तन में अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर स्वयं को बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूं... *बाबा की लाइट माइट ने मुझे डबल लाइट बना दिया है... मन पर अब किसी भी प्रकार का कोई बोझ नही... आलस्य, अलबेलेपन से मुक्त स्वयं को सदा बलशाली अनुभव करते हुए, उमंग उत्साह से आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाने का तीव्र पुरुषार्थ कर रही हूं...* दृढ़तापूर्वक हर प्लैन को प्रेक्टीकल में लाने से, कदम कदम पर परमात्म मदद का अनुभव मुझे सहज ही सफ़लतामूर्त बना रहा है... *"कर लेंगे, हो जायेगा" के बजाए "करना ही है" इस पाठ को पक्का कर बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के लक्ष्य की ओर अब मैं अपने कदम बढ़ा रही हूं...*
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⊙_⊙ आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔ ॐ शांति ♔
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