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 26 / 12 / 20  की  मुरली  से  चार्ट  

       TOTAL MARKS:- 100 

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∫∫ 1 ∫∫ होमवर्क (Marks: 5*4=20)

 

➢➢ *तीव्र वेग से याद की यात्रा की ?*

 

➢➢ *बाप का परिचय दे बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस की ?*

 

➢➢ *हर कर्म में फॉलो फादर कर स्नेह का रेसपोंड दिया ?*

 

➢➢ *प्रसन्नचित बन सर्व प्रश्नों को समाप्त किया ?*

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  ✰ *अव्यक्त पालना का रिटर्न*

         ❂ *तपस्वी जीवन*

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✧  *जैसे सेकण्ड में लाइट का स्विच आन करने से अंधकार भाग जाता है, ऐसे स्वमान की स्मृति का स्विच आन करो तो भिन्न-भिन्न देह-अभिमान समाप्त करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती।* सहज आत्म अभिमानी स्थिति बन जायेगी। यही स्थिति रूहानी प्यार का अनुभव करायेगी।

 

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∫∫ 2 ∫∫ तपस्वी जीवन (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन शिक्षाओं को अमल में लाकर बापदादा की अव्यक्त पालना का रिटर्न दिया ?*

 

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*अव्यक्त बापदादा द्वारा दिए गए*

             ❂ *श्रेष्ठ स्वमान*

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   *"मैं निश्चयबुद्धि विजयन्ति आत्मा हूँ"*

 

✧  निश्चयबुद्धि विजयन्ती हो ना! निश्चय में कभी डगमग तो नहीं होते हो? अचल, अडोल, महावीर हो ना? महावीर की विशेषता क्या है? *सदा अचल अडोल, संकल्प वा स्वन में भी व्यर्थ संकल्प न आए इसको कहा जाता है अचल, अडोल  महावीर। तो ऐसे हो ना? जो कुछ होता है-उसमें कल्याण भरा हुआ है।* जिसको अभी नहीं जानते लेकिन आगे चल करके जानते जायेंगे।

 

✧  कोई भी बात एक काल की दृष्टि से नहीं देखो, त्रिकालदर्शी हो करके देखो। अब यह क्यों? अब यह क्या? *ऐसे  नहीं, त्रिकालदर्शी होकर देखने से सदा यही संकल्प रहेगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण है।* ऐसे ही त्रिकालदर्शी होकर चलते  हो ना? सेवा के आधारमूर्त जितने मजबूत होंगे उतनी सेवा की बिल्डिंग भी मजबूत होगी।

 

✧  *जो बाबा बोले वह करते चलो, फिर बाबा जाने बाबा का काम जाने। जैसे बाबा वैसे चलो तो उसमें कल्याण भरा हुआ है।* बाबा कहे ऐसे चलो, ऐसे रहो-जी हाज़िर, ऐसे क्यों? नहीं। जी हाजिर। समझा-जी हजूर वा जी हाजिर। तो सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे। रूकेगे नहीं, उड़ते रहेंगे  क्योंकि हल्के हो जायेंगे ना।

 

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∫∫ 3 ∫∫ स्वमान का अभ्यास (Marks:- 10)

 

➢➢ *इस स्वमान का विशेष रूप से अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *रूहानी ड्रिल प्रति*

*अव्यक्त बापदादा की प्रेरणाएं*

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✧  एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगा, तो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ। युद्ध नहीं करनी पडे। ,*युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे।*

 

✧  लास्ट घडी भी युद्ध में ही जायेगी, अगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमजोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृति में, वायुमण्डल के प्रभाव में, *जिस बात में कमजोर होंगे, उसी रूप में जान-बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी।*

 

✧  इसलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत जरूरी है। कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। *एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पडेगा।* जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पडता ना।

 

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∫∫ 4 ∫∫ रूहानी ड्रिल (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर रूहानी ड्रिल का अभ्यास किया ?*

 

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         ❂ *अशरीरी स्थिति प्रति*

*अव्यक्त बापदादा के इशारे*

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〰✧  *फ़रिश्ते अर्थात् बापदादा समान और सम्पन्न।* आज हरेक बच्चे का डबल स्वरूप देख रहे हैं। कौन-सा डबल रूप? एक वर्तमान पुरुषार्थी स्वरूप, दूसरा वर्तमान जन्म का अन्तिम सम्पूर्ण फ़रिश्ता स्वरूप। *इस समय ‘हम सो, सो हम' के मन्त्र में पहले हम सो फ़रिश्ता हैं फिर भविष्य में हम सो देवता हैं।* इस समय सभी का लक्ष्य पहले फ़रिश्ता स्वरूप, फिर देवता रूप है। आज वतन में, सभी बच्चों के नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार, जो अन्तिम फ़रिश्ता स्वरूप बनना है, उस रूप को इमर्ज किया। जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा दोनों के अन्तर को देखते और अनुभव करते थे कि पुरुषार्थी और सम्पूर्ण में क्या अन्तर है। ऐसे आज बच्चों के अन्तर को देख रहे थे। दृश्य बहुत अच्छा था। *नीचे तपस्वी पुरुषार्थी रूप और ऊपर खड़ा हुआ फ़रिश्ता रूप।* अपना-अपना रूप इमर्ज कर सकते हो? अपना सम्पूर्ण रूप दिखाई देता है? सम्पूर्ण ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्राह्मण।

 

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∫∫ 5 ∫∫ अशरीरी स्थिति (Marks:- 10)

 

➢➢ *इन महावाक्यों को आधार बनाकर अशरीरी अवस्था का अनुभव किया ?*

 

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∫∫ 6 ∫∫ बाबा से रूहरिहान (Marks:-10)

( आज की मुरली के सार पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- मीठे बाबा को प्यार से याद करना"*

 

_ ➳  *मैं आत्मा एकांत में सागर के किनारे बैठ सागर में उछलती लहरों को देख रही हूँ... मेरे जीवन में उछलती दुःख-अशांति की लहरों को ख़त्म कर... सदा के लिए सुख-शांति, प्रेम की लहरों में मुझे लहराने वाले... सर्व गुणों-शक्तियों के सागर बाबा के पास पहुँच जाती हूँ शांतिधाम में...* परमधाम की परम शांति का अनुभव कर रही हूँ... बस एक बाबा और मैं... बाबा से निकलती किरणें मुझमें दिव्य अलौकिक शक्तियों को भर रही हैं... *फिर मैं आत्मा शांति की दुनिया से नीचे उतरकर बिंदु रूप से फ़रिश्ता स्वरुप धारण कर फरिश्तों की दुनिया में पहुँच जाती हूँ... बापदादा के सम्मुख बैठ जाती हूँ...*

 

  *सच्चे प्रेम के अहसासों में मुझे डुबोकर मेरे प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे मीठे फूल बच्चे... सच्चे प्यार की मुस्कराती मदमाती यादो में रग रग को डुबो दो... *सच्चे माशूक के साथ अपनी प्रीत जोड़कर... प्यार के अहसासो में डूब जाओ और प्राप्तियों के अनन्त खजाने अपने दामन में सजाओ*... योग और पढ़ाई की जादूगरी से सहज ही विश्व का अधिकार पाओ..."

 

_ ➳  *बाबा की यादों में पवित्र, निर्मल, ओजस्वी बनकर मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे प्यारे बाबा... *मै आत्मा सच्चे प्यार को पाने वाली... ईश्वर माशूक संग हर पल मुस्कराने वाली सच्ची आशिक हूँ...* कभी मनुष्यो में प्यार की बून्द खोजने वाली... आज प्यार के सागर को ही पाकर... अपने महान भाग्य पर धन्य धन्य हो उठी हूँ... कितना प्यारा मेरा भाग्य है.."

 

  *मीठे प्रेम के तराने सुनाकर मुझे मदमस्त करते हुए मीठे बाबा कहते हैं:-* "मीठे प्यारे लाडले बच्चे... ईश्वरीय यादो में अनन्त खजाने सहज ही पाकर... सबसे महान भाग्य से भर जाओ... *ईश्वर पिता के सारे खजानो को प्यार में सहज ही लूट लो... प्यार के तार जोड़कर विश्व की अमीरी को बाहों में भर लो... आशिक बनकर सच्चे माशूक को अपनी यादो का दीवाना बना दो..."*

 

_ ➳  *एक बाबा के दिल की तिजोरी में चमकते हुए मैं आत्मा कहती हूँ:-* "मेरे प्राणप्रिय बाबा... *मैं आत्मा भगवान को ही माशूक रूप में पाकर सच्चे प्यार का सुख हर पल हर साँस ले रही हूँ...* भगवान मुझे यूँ मिल जायेगा यूँ प्यार करेगा, और प्यार से भर जाएगा यह तो कल्पना में भी न था... *प्यारे बाबा किन शब्दों में आपका शुक्रिया करूँ..."*

 

  *महकता फूल बनाकर अपने गुलिस्तां में सजाते हुए प्यारे बाबा कहते हैं:-* "मेरे सिकीलधे मीठे बच्चे... *अपने सत्य स्वरूप में डूबकर, सच्चे पिता की मीठी महकती यादो में रोम रोम से भीग जाओ... इन सच्ची यादो में ही सच्चे सुखो के भण्डार समाये है... यह यादे ही सच्चे प्यार का पर्याय है.. सारे सुख इन यादो में निहित है...* इन यादो और ज्ञान रत्नों से जीवन को अनन्त ऊंचाइयों पर ले जाओ..."

 

_ ➳  *मीठे बाबा की मीठी यादों में डूबकर बाबा की दीवानी बन मैं आत्मा कहती हूँ:-* "हाँ मेरे मीठे बाबा... मै आत्मा आपके प्रेम में खोयी हुई अतीन्द्रिय सुख में डूबी हुई हूँ... *मीठे बाबा आपको पाकर मैंने सब कुछ पा लिया है... सच्चे प्रेम को दामन में सजा लिया है... और इसकी मीठी अनुभूतियों में हर पल खोयी खोयी सी हूँ..."*

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∫∫ 7 ∫∫ योग अभ्यास (Marks:-10)

( आज की मुरली की मुख्य धारणा पर आधारित... )

 

✺   *"ड्रिल :- वनवाह में रहना है*"

 

 _ ➳  अपने मन बुद्धि को सभी बाहरी बातों से डिटैच करके, मैं जैसे ही एकाग्र हो कर बैठती हूँ। प्यारे शिव पिता परमात्मा के महावाक्य स्मृति में आने लगते है, बच्चे:- "वनवास में रहना है"। *इन महावाक्यों के स्मृति में आते ही वो दृश्य आंखों के सामने आने लगता है जब ब्रह्मा बाबा ने अपना तन - मन - धन सब कुछ यज्ञ में समर्पित कर दिया, दादियों ने भौतिक संसार की सभी सुख सुविधाओं को त्याग 14 वर्ष का वनवास ले लिया*। योग की भट्टी में स्वयं को तपा कर ऐसा सच्चा सोना बना दिया जिसकी चमक आज पूरी दुनिया में फैल रही है।

 

 _ ➳  मन मे यह विचार आते ही मैं स्वयं को पांडव भवन के उस स्थान पर खड़ा हुआ देखती हूँ जहां रह कर 14 वर्ष ब्रह्मा बाबा और दादियों ने भौतिक जगत की सभी सुख सुविधाओं को त्याग कर कठोर तपस्या की। सब ऐशो - आराम होते हुए भी उसका त्याग कर वनवास में रहे। *उनकी कठोर तपस्या का प्रतिफल ही शक्तिशाली वायब्रेशन के रुप में पूरे मधुबन में फैला हुआ है जो यहां आने वाली हर आत्मा को गहन शांति की अनुभूति करवाकर तृप्त कर देता है*। 

 

 _ ➳  मधुबन के पांडव भवन में शांति स्तम्भ पर बैठ गहन शांति की अनुभूति करके मैं स्वयं से प्रोमिस करती हूँ कि जैसे ब्रह्मा बाबा ने सांसारिक सुखों का त्याग कर, वनवास में रह, अति साधारण जीवन व्यतीत किया ऐसे ही फॉलो फादर कर मुझे भी बाप समान बनना है। *स्वयं से यह दृढ़ प्रतिज्ञा करते हुए मैं स्पष्ट महसूस करती हूँ कि मेरे सामने बापदादा, मम्मा, यज्ञ में सब कुछ समर्पित कर वनवास में रहने वाली वरिष्ठ दादियां और एडवांस पार्टी की आत्मायें उपस्थित है*। बापदादा का वरदानी हाथ मेरे सिर के ऊपर है। बाबा मुझे विजयी भव का वरदान दे रहें हैं। दादियां और एडवांस पार्टी की सभी आत्मायें भी अपनी ब्लैसिंग दे रही हैं।

 

 _ ➳  सभी की ब्लैसिंग लेकर अब मैं शांति स्तम्भ से उठकर बाबा के कमरे में पहुंचती हूँ और ब्रह्मा बाबा के ट्रांस लाइट के चित्र के सामने जा कर बैठ जाती हूँ। *बाबा के उस चित्र से आ रही लाइट माइट सेकण्ड में मुझे मेरे लाइट माइट स्वरूप में स्थित कर देती है और लाइट माइट स्वरुप में स्थित होते ही मैं अनुभव करती हूँ कि अव्यक्त बापदादा मेरे सामने बॉहें पसारे खड़े हैं और मैं फ़रिशता उनकी बाहों में समाकर उनकी लाइट माइट से स्वयं को भरपूर कर रहा हूँ*। बापदादा अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख कर अपनी सर्वशक्तियाँ मुझे विल कर रहें हैं। स्वयं को मैं बहुत ही शक्तिशाली अनुभव कर रही हूँ।

 

 _ ➳  ऐसा लग रहा है जैसे बाबा अपना सम्पूर्ण बल मेरे अंदर भर रहें हैं जो मुझे भौतिक जगत की सुख सुविधाओं के हर आकर्षण से मुक्त कर इच्छा मात्रम अविद्या बना रहा है। *भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग कर, अति साधारण किन्तु श्रेष्ठ और विशेष जीवन जीने की प्रेरणा दे रहा है*। बाबा की लाइट माइट स्वयं में भरकर अपने सूक्ष्म लाइट के शरीर के साथ मैं अपने स्थूल शरीर मे प्रवेश कर जाती हूँ। *अपने ब्राह्मण स्वरूप में स्थित हो कर मैं मन बुद्धि के विमान पर बैठ वापिस अपनी कर्म भूमि, अपने सेवा स्थल पर लौट आती हूँ*।

 

 _ ➳  *अपने ब्राह्मण स्वरूप में अब मैं सदैव स्वयं को वनवास में अनुभव करती हूँ। हद की सभी इच्छाओं का त्याग कर, बेहद की सन्यासी बन, कदम - कदम पर फॉलो फादर कर, बाप समान बनने का तीव्र पुरुषार्थ अब मैं निरन्तर कर रही हूँ*।

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∫∫ 8 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के वरदान पर आधारित... )

 

   *मैं हर कर्म में फॉलो फादर करने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं स्नेह का रेस्पांड देने वाली आत्मा हूँ।*

   *मैं तीव्र पुरूषार्थी आत्मा हूँ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 9 ∫∫ श्रेष्ठ संकल्पों का अभ्यास (Marks:- 5)

( आज की मुरली के स्लोगन पर आधारित... )

 

   *मैं आत्मा संतुष्टता का फल प्रसन्नता को प्राप्त करती हूँ  ।*

   *मैं आत्मा प्रसन्न चित्त बनकर प्रश्न समाप्त होते अनुभव करती हूँ  ।*

   *मैं संतुष्ट और प्रसन्न चित्त आत्मा हूँ  ।*

 

➢➢ इस संकल्प को आधार बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ संकल्पों में स्थित करने का अभ्यास किया ?

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∫∫ 10 ∫∫ अव्यक्त मिलन (Marks:-10)

( अव्यक्त मुरलियों पर आधारित... )

 

 अव्यक्त बापदादा :-

 

 _ ➳  1. बापदादा फिर भी मार्जिन देते हैं कि कम से कम इन 6 मास मेंजो बापदादा ने पहले भी सुनाया है और अगले सीझन में भी काम दिया थाकि *अपने को जीवनमुक्त स्थिति के अनुभव में लाओ। सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज।* कोई भी विघ्न, परिस्थितियाँसाधन वा मैं और मेरापनमैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस की सेवा का, इन सबके प्रभाव से मुक्त रहना। ऐसे नहीं कहना कि मैं तो मुक्त रहने चाहता था लेकिन यह विघ्न आ गया नायह बात ही बहुत बड़ी हो गई ना। छोटी बात तो चल जाती हैयह बहुत बड़ी बात थीयह बहुत बड़ा पेपर था, बड़ा विघ्न थाबड़ी परिस्थिति थी। कितनी भी *बड़े ते बड़ी परिस्थिति, विघ्नसाधनों की आकर्षण सामना करेंसामना करेगी यह पहले ही बता देते हैं* लेकिन कम से कम मास में 75 परसेन्ट मुक्त हो सकता है?

 

 _ ➳  2. *शेर भी आयेगा, बिल्ली भी आयेगीसब आयेंगे।* विघ्न भी आयेगा, परिस्थितियाँ भी आयेंगी, साधन भी बढ़ेंगे लेकिन साधन के प्रभाव से मुक्त रहना।

 

 _ ➳  3. यह नहीं कहना हमको तो बहुत मरना पड़ेगामरो या जीओ लेकिन बनना है। यह मरना मीठा मरना है, इस मरने में दुःख नहीं होता है। यह मरना अनेकों के कल्याण के लिए मरना है। *इसीलिए इस मरने में मजा है।* दुःख नहीं हैसुख है। कोई बहाना नहीं करनायह हो गया ना। इसीलिए हो गया। बहाने बाजी नहीं चलेगी। बहाने बाजी करेंगे क्यानहीं करेंगे ना! *उड़ती कला की बाजी करना और कोई बाजी नहीं। गिरती कला की बाजी, बहाने बाजीकमजोरी की बाजी यह सब समाप्त।* उड़ती कला की बाजी। ठीक है ना। सबके चेहरे तो खिल गये हैं। जब 6 मास के बाद मिलने आयेंगे तो कैसे चेहरे होंगे। तब भी फोटो निकालेंगे। 

 

✺   *ड्रिल :-  "संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज का अनुभव"*

 

 _ ➳  मैं इस संगमयुग की स्थिति के सर्व श्रेष्ठ आसन... नॉलेजफुल स्टेज पर स्थित *विद्या की देवी सरस्वती... सफेद वस्त्रधारी* जिसमे श्वेत रंग मेरी पवित्रता का प्रतीक है... ज्ञान की वीणा सदा बजाते रहने वाली अर्थात *सदा सेवाधारी रहने वाली... सदा शुद्ध संकल्प का भोजन बुद्धि द्वारा ग्रहण करने वाली...* सदा की सर्व आत्माओं द्वारा वा रचना द्वारा गुण धारण करने वाली... अर्थात मोती चुगने वाले हंस के आसन पर सूक्ष्मवतन में स्थित हूँ... *सूक्ष्मवतन से नीचे बापदादा मुझे भेज रहे है* अपने सेवा स्थान पर... मीठे बापदादा से विदाई लेकर... धीरे धीरे मैं अपने वाहन पर स्थित होकर स्थूलवतन में प्रवेश करती हूँ... बडे़ ही उमंग और उत्साह के साथ मैं *अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही हूँ...* धीरे धीरे... *यहाँ मेरे सामने अनेक विघ्न... परिस्थितियाँ... साधन आते जा रहे है...*

 

 _ ➳  मैं और मेरापन... भी पीछे नहीं हैं... *मैं बाडीकान्सेस का और मेरा बाडीकान्सेस सेवा का दिखाई दे रहा हैं...* इन सबके प्रभाव के सूक्ष्म धागो से बंधी हुई मैं स्वयं को पाती हूँ... अनेक बार मुक्त रहना चाहने पर भी विघ्न आते जा रहे है... छोटी बड़ी बातें भी आ रही है... मुझे बापदादा के कहे हुए शब्द याद आ रहे है की बहुत बड़े ते *बड़ी परिस्थितियां और विघ्न आएंगे ही... साधनों के आकर्षण सामना करेंगे ही...* साथ ही साथ मुझे यह भी याद आ रहा है कि *बापदादा ने मुझे कम से कम 6 मास की मार्जिन देते हुए भी कहा था की जीवन मुक्त स्थिति को अनुभव में लाना है...* सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज को अनुभव में लाना है... जैसे जैसे आगे बढती जा रही हूँ वैसे वैसे बापदादा के कहने के अनुसार *शेर भी आ रहा है और बिल्ली भी आ रही है...* विध्न भी बढ़ रहे है... परिस्थितियाँ भी बढ़ रही है... साधन भी बढ़ रहे हैं...

 

 _ ➳  लेकिन इन सब प्रभावो से मुक्त रहने का मेरा लक्ष्य अभी भी बरकरार है... जैसे जैसे और ही आगे बढती जा रही हूँ तो लग रहा है कही पर तो कमी है... वो कमी यह है की *मैं आत्मा अभी भी पूरी तरह से मरी नहीं...* अभी भी मैं आधी अधूरी जिंदा हूँ... *मुझे संपूर्ण मरना है... मरना है पुराने संस्कारों से... मरना है शुद्रपने से... मरना है देह अभिमान से... बापदादा सूक्ष्मवतन से मुझे निहार रहे है...* मुझ आत्मा को इस स्थिति में देख वो अपना धाम छोडकर मेरे पास आ रहे है... *मेरे पास आकर मुझ पर अपने हाथो से सफेद मोतियों की बारिश कर रहे हैं...* उनका अनुपम तेज भी मुझमे समाता जा रहा है... इन मोतियों की बारिश की अनुभूति मेरे पूरे सूक्ष्म शरीर में हो रही है... इन सफेद पवित्र *मोतियों की वर्सा होते ही अंदर से कमी कमजोरियां छोटे छोटे कंकड़ और रेत के रूप में बाहर निकलती जा रही है...*

 

 _ ➳  जैसे ही कंकड़ और रेत के रूप में कमी और कमजोरियां बाहर निकलती जा रही हैं... *मुझे निर्विध्न स्थिति की अनुभूति हो रही है... मुझे परिस्थितियाँ जो पहाड़ दिख रही थी वो तो रूई के समान दिखने लगी है...* ऐसा लग रहा है की मानो वो है ही नहीं... इस पवित्र मोतियों की बारिश ने मुझे पूरा ही शुद्रपने से मार दिया... देह अभिमान से मैं पूरी तरह मर चुकी हूँ... *साधनो की आकर्षण होती क्या है इसकी मुझे अविद्या हो चुकी है...* बाडीकान्सेस का 'मैं' खतम होकर संपूर्ण और संपन्न आत्मा का 'मैं' इमर्ज हो चुका है... सेवा के बाडीकान्सेस 'मेरे' की जगह सब कुछ तेरा अर्थात बाबा का अनुभव हो रहा हैं... *शेर और बिल्ली भी पेपर के प्रतीत हो रहे है...* ये जो स्थिति है इसमे मैं विकारों की विद्या से संपूर्ण अनभिज्ञ हूँ... इस कारण मुझे *संगमयुग में जीवन मुक्ति की अनुभूति हो रही हैं...* चेहरा रूहानी चमक से भरपूर हो गया है... मेरा *यह जो मीठा मरना है उसमें कोई दुःख अनुभव नहीं हो रहा है...*

 

 _ ➳  मैं आत्मा *जहाँ पर भी जाती हूँ, वहाँ सबका कल्याण ही कल्याण हो रहा है...* सबके दुःख, दर्द, पीडा़, तकलीफ मिटते जा रहे है... सबको अतिइन्द्रिय सुख की अनुभूति हो रही हैं... क्योंकि मैं आत्मा जिस किसी आत्मा के संबंध संपर्क में आती हूँ उन सभी को वही जीवनमुक्त अवस्था की अनुभूति हो रही है जो मैं कर रही हूँ... *अब सारे बहाने खतम हो गए... की यह हो गया... इसलिए हो गया... यह बहाने बाजी की बातें ही खतम हो गई... गिरती कला की बाजी, बहाने बाजीकमजोरी की बाजी यह सब समाप्त... निरंतर उड़ती कला की बाजी शुरू* हो गई है... चारो ओर सुख ही सुख, आनंद ही आनंद का मौसम छाया है... ऐसी *कर्मातीत अवस्था और ऐसी जीवन मुक्त स्थिति की अनुभूति* जिसमे शांति ही धर्म है... प्रेम ही भाषा है... एकता ही संस्कृति है... और सुख ही जीवन जीने की कला है... मेरे इस अनुभव से चेहरा एकदम खिल उठ़ा है... सारी आत्माएं मन ही मन मुझे शुक्रिया अदा कर रही है और मैं आत्मा अपने मीठे प्यारे बापदादा को ढेर सारा शुक्रिया कर रही हूँ...

 

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_⊙  आप सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को आज की मुरली से मिले चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।

 

ॐ शांति

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