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❍ 09 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बच्चे जानते हैं मरना किसको कहा जाता है। *आत्मा शरीर से अलग हो जाती है, उनको मरना कहा जाता है। यहाँ बच्चे जानते हैं हम जीते जी शरीर से अलग हैं* और अपने परमपिता परमात्मा के साथ उनके धाम जाने वाले हैं। *जो आत्मायें जा नहीं सकती हैं उनको योग से पवित्र बना रहे हैं। इसको कहा जाता है नालेज। रूह को नालेज मिलती है।*
➢➢ यह तो बच्चे जानते हैं - *दो चीजें हैं - जीव और आत्मा। मनुष्य जब दु:खी होते हैं तो जीवघात करते हैं। आत्म-घात नहीं।* आत्मा जानती है, *शरीर के कारण आत्मा को दु:ख होता है, इसलिए उनको छोड़ना चाहती है।*
➢➢ बाबा ने समझाया है - *यह अकालतख्त है जो छोड़कर फिर दूसरा लेना होता है। तख्त के बदले घर कहना ठीक है। घर में खिड़कियां आदि होती हैं, इसलिए शरीर को घर कहा जाता है।* तख्त के ऊपर राजाई की जाती है। *इस समय तो दु:खधाम है। हाँ, यह जरूर है आत्मा को घर अर्थात् नये शरीर में बैठ फिर सिंहासन पर बैठ जाना है। राजाई करनी है।*
➢➢ *यह तुम बच्चों को पता है जो कुछ पिछाड़ी वाले रहे हुए होंगे वह आते जायेंगे, जैसे मच्छर देखो रात को आये और सुबह को देखो तो सब मरे हुए होंगे। परन्तु उनका कोई हिसाब-किताब थोड़ेही है।*
➢➢ यह *जो बड़े-बड़े साइंसदान हैं वह कितना माथा मारते रहते हैं - खोज करते रहते हैं। जैसे ज्ञान की ऊंचाई है तो माया भी कम नहीं है।* देखो, आसुरी मत पर क्या-क्या बना रहे हैं। *श्रीमत क्या कहती है और साइंस वाले क्या करते रहते हैं। सुख भी है तो इन चीजों से विनाश भी होना है।*
➢➢ *जब लड़ाई शुरू होगी तो खुद लड़ते भी रहेंगे, मदद भी करते रहेंगे। अब भी देखो देते रहते हैं, नहीं तो भारत भूख मर जाये।* परन्तु कभी ऐसे हुआ नहीं है। कैलेमिटीज भी आती रहेंगी। *लड़ाई तब लगेगी जब पढ़ाई पूरी हो जाए।* अभी तो पढ़ाई चल रही है ना। बाबा को पढ़ाना है।
➢➢ *मनुष्य देह-अभिमान में रहते हैं तो कहते हैं मन मेरा शान्त नहीं होता है। जैसे कि शरीर में मन है।* परन्तु आत्मा कहती है मेरे मन को, बुद्धि को ज्ञान नहीं है। मुझे शान्ति चाहिए। *वह अपने को आत्मा समझते नहीं हैं। शान्त वा अशान्त आत्मा होती है। आत्मा कहती है मैं अशान्त आत्मा हूँ, मैं शान्त आत्मा हूँ।* देह-अभिमान वाला कहेगा - *हमारे मन को शान्ति कैसे मिले? मन क्या है? वह भी समझते नहीं हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ वैसे तुम बच्चों का भी यह पुराना घर है, इनमें खिड़कियां आदि सब हैं। तो बाप कहते हैं *बच्चे यह पुराना घर सबको छोड़ देना है। मेरे साथ घर चलना है, इसलिए जीते जी इस घर से ममत्व मिटाते जाओ। अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो।*
➢➢ सन्यासी भी इस बात को नहीं जानते - वह तो कह देते, आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। परन्तु *ताकत कैसे मिले जो शान्ति में रह सकेंगे। जब बाप को याद करें तब ही ताकत मिले।* सिर्फ शान्ति से भी कोई फायदा नहीं।
➢➢ *आत्मा अशरीरी हो बाप के पास चली जायेगी।* कहते हैं मन में संकल्प विकल्प न आयें। बाप कहते हैं यह तो जरूर आयेंगे। *मामेकम् याद करो। हम आत्मा अपने साइलेन्स होम, मुक्तिधाम में जाती हैं। पियरघर जाती हैं।*
➢➢. *बुद्धि में यही रहता है - बाबा आया है हमको ले जायेंगे। गाइड बाबा ही है। कहते हैं मेरे लाडले बच्चे मैं तुमको साथ ले जाऊंगा।*
➢➢ साइंस और साइलेन्स। *तुम सदैव बाप को याद करते रहते हो साइलेन्स में।* उनको फिर साइंस का कितना घमण्ड है। कितने एरोप्लेन, बारूद आदि हैं। *साइन्स पर साइलेन्स की विजय होती है।* कई कहते हैं *मन जीते जगतजीत परन्तु माया जीते जगतजीत कह सकते हैं।*
➢➢ *अब नाटक पूरा होता है। नाटक में एक्टर खेलते भी रहते हैं और टाइम भी देखते रहते हैं। अभी नाटक पूरा होता है, बाकी इतना टाइम है। टाइम पूरा हुआ, सब एक्टर आकर खड़े हो जाते हैं फिर ड्रेस बदली कर घर चले जाते हैं। हूबहू तुम्हारा भी ऐसे ही पार्ट है। बाप आया है लेने लिए।*
➢➢ आत्मा समझती है, कैसे हम आत्मा को घर मिलता है। ऊंच पवित्र आत्माओं को शरीर भी ऐसे ही मिलेगा। पावन बनेंगे तो पावन घर मिलेगा जरूर। *जब पावन बनाने वाला आये तब तो हम पावन बनें। खुद कहते हैं बच्चे तुम याद करते थे, अब मैं आया हूँ।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢. समझाया जाता है *हमारी एम आब्जेक्ट है नर से नारायण वा मनुष्य से देवता बनना वा स्वर्ग की बादशाही पाना।*
➢➢ गृहस्थ व्यवहार में रहते तुमने बुद्धि से सब कुछ पुरानी चीजों का सन्यास कर अपने को आत्मा निश्चय किया है। अभी *जीते जी सब सम्बन्ध तोड़ने हैं।* बाप कहते हैं तुम्हें इस पुरानी दुनिया में रहना नहीं है।
➢➢ तुम्हारा व्यापार ही है ज्ञान-रत्नों का। ज्ञान रत्नों के बाद फिर वह रत्न भी तुमको अथाह मिलते हैं। आत्मा ज्ञान रत्नों का मुख से वर्णन करती है। *तुम अमृतवेले उठ यह ज्ञान रत्नों का धन्धा करो।* प्रभात अच्छी होती है। कहते हैं - *राम नाम सिमर प्रभात मोरे मन।*
➢➢ बाप सम्मुख समझाते हैं, तुम समझते हो कि *अभी हमें बाप के गले का हार बनना है।* हम असुल उस बाप के गले का हार थे।
➢➢ *पहले तो आत्मा को जानना पड़े।* आत्मा का स्वधर्म शान्त है। यह शरीर तुम्हारे आरगन्स हैं। इनसे चाहे काम लो, चाहे स्वधर्म में टिको।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢. *वृद्धि होनी ही है। आत्माओं को वहाँ (परमधाम) से स्टेज पर आना ही है फिर बर्थ कन्ट्रोल क्या करेंगे। जो कुछ बची-खुची आत्मायें हैं सब आयेंगी इसलिए तो वृद्धि होती रहती है।*
➢➢ *मनुष्य सृष्टि एक ही है, जो चक्र लगाती है, इनको झाड़ भी कहते हैं। बड़ के झाड़ से भेंट की जाती है। उनकी आयु बहुत बड़ी होती है। यह झाड़ जब नया है तब हम देवतायें ही रहते हैं। अभी तो पुराना हो गया है।*
➢➢. *दुनिया में ऐसा
तो कोई नहीं जिसको बाप से राजाई मिलती है। जब तक बाप न आये तब तक बादशाही कैसे
मिले!*
➢➢ तुम जानते हो हम आधाकल्प सुख में और आधाकल्प दु:ख में रहते हैं। रावण के गले
का हार पहले-पहले देवी-देवता धर्म वाले बनते हैं फिर और धर्म वाले आयेंगे, वह
भी रावण के गले का हार बनेंगे। अन्त में सभी रावण के गले का हार बन जाते हैं।
यह *ड्रामा का खेल ऐसा बना हुआ है जो सिवाए बाप के और कोई समझा न सके।
प्वाइंट्स तो बहुत मिलती हैं ना समझाने के लिए। नटशेल में कहा जाता है एक बाप
को याद करो। सारे चक्र का राज भी समझाना है।*
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