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❍ 20 / 10 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ दूरदेशी बच्चे
कम हैं। भल *ज्ञान बहुत है परन्तु दूरदेशी कम हैं अर्थात् बाप की याद में कम
रहते हैं।* बाकी साधू तो साधना करते हैं यथा राजारानी तथा प्रजा *सारी दुनियाँ
इस समय पतित है। भल, महात्मा नाम डाल देते हैं परन्तु महान आत्मा कोई है नहीं।*
➢➢ *कृष्ण को महात्मा कहते हैं। यह फिर भी राइट है क्योंकि वहाँ श्रेष्ठाचारी
दुनिया है। यह तो है भ्रष्टाचारी दुनिया। यथा राजा रानी तथा प्रजा परन्तु इस
समय राजा कोई है नहीं। प्रजा का प्रजा पर राज्य है।*
➢➢ *बाप कहते हैं शास्त्र पढ़ने से तुम मेरे से मिल नहीं सकते और ना ही कोई
मुक्ति में जा सकते हैं। जब तक मेरे द्वारा कोई मेरे को न जाने और जब तक कल्प
के अंत में मैं न आऊं।*
➢➢ तुम जानते हो सतयुग में सुख था फिर धीरे-धीरे नीचे सीढ़ी उतरनी है। चढ़ने
में एक सेकेण्ड जम्प लगाना पतित से पावन बनने की छलांग लगाना। उतरने में 5 हजार
वर्ष। *तुम सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार विशालबुद्धि बने हो। यह ज्ञान अभी
मिलता है, सतयुग में यह ज्ञान होता नहीं। संगम पर बाप आते हैं- हूबहू कल्प पहले
मुआफिक।*
➢➢ *सतयुग में यह नहीं कहेंगे कि यह मरा क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु होती ही नहीं।*
काल पर ज़ीत पाते हैं। मरना शब्द वहाँ नहीं होता। सतयुग में जानते हैं कि हम
मरते नहीं हैं। *सिर्फ एक पुराना चोला छोड़, नया लेते हैं - सो भी समय पर।* सर्प
का मिसाल है कि पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं।
➢➢ मुख्य धर्म हैं चार। उसमें *ब्राह्मण धर्म है मुख्य। हीरे जैसा जन्म देवताओं
का नहीं कहेंगे क्योंकि यह कल्याणकारी लीप धर्माऊ योग है। लीप मास, धर्माऊ को
कहते हैं। यह है संगमयुग, कल्याणकारी और जितने भी युग हैं वहाँ अकल्याण ही होता
है क्योंकि र्डिग्री कम होती जाती है।* दिन प्रतिदिन कला कम ही होती जाती है।
यह युग ही है कल्याणकारी।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *हमारा तीर्थ
बहुत दूर है इसलिए बच्चों को कहा जाता है दूरादेशी भव। दूरदेश में रहने वाले
फिर कहतें हैं विशालबुद्धि भव। सब बच्चों की है दूरादेशी बुद्धि अर्थात् दूर के
रहने वाले की याद।*
➢➢ *सृष्टि के आदी मध्य अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। और सब हैं अल्प बुद्धि
सिर्फ कहते हैं परमात्मा, परन्तु जानतें नहीं। यहाँ कोई महात्मा नहीं है। यह तो
बाप आकर दूरदेशी बनाते हैं।*
➢➢ मनुष्य तो *कृष्ण को याद करते हैं वह तो इस देश का है। दूरादेशी है नहीं।
तो बाप को याद करना माना दूरादेशी बनना। मनमनाभव का अंर्थ है दूरदेशी भव।* जो
बाप को जानते नहीं तो बाप से वो कैसे मिले। अगर आये नहीं तो रास्ता कैसे मिले।
बड़ी समझ की बात है।
➢➢ *साजन से बड़ा प्यार चाहिए। कहते हैं एक तू जो मिला तो सब कुछ मिला। तो एक
से ही सब कुछ प्राप्ति हो जाती है। ऐसे साजन से बहुत लव चाहिए।*
➢➢ *ऊपर में परमात्मा हैं ना तो उसका परिचय देते हो। तो तुम जानकार हो ना।
बच्चों को तो बाप की जानकारी होती ही है। अब पारलौकिक बाप आये हैं तुमको पावन
बनाकर वापस ले जाने के लिए।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
यह है बेहद की नॉलेज। विराट ड्रामा अर्थात् वैराइटी, जिसमें अनेक मतभेदे हैं तभी
कहते हैं देवता राज्य। दैत्य कहा जाता है रावण को। देवता बनाने वाला एक ही बाप
है। कहते हैं मनुष्य से देवता....। कितनी सहज बात है। *तुम हो विशाल बुद्धि।*
कोई को तो ज्ञान के प्वाइंट्स की धारणा नहीं और कोई तो बड़े दूरदेशी,
विशालबुद्धि हैं तो औरों को भी बनाते हैं। पहले दूरादेशी पीछे विशाल बुद्धि
कहेंगे। समझने की बात है ना। *ब्राहमणों जैसा सोभाग्यशाली कोई है नहीं। एकदम
सबको ऊपर ले जाते हैं।*
➢➢ शास्त्र पढ़ने वाले को विशाल बुद्धि नहीं कहेंगे। वह है भक्ति। ज्ञान अलग
चीज़ है, भक्ति अलग चीज़ है। ज्ञान तो ज्ञान सागर बाप देते हैं। *तुम हीरे जैसे
थे, अब कोड़ी जैसे बन गये हो। अब बाप हीरे जैसा बनाते हैं।* तुम विशाल बुद्धि
होने से विश्व पर राज्य करते हो। वहाँ आखण्ड अटल राज्य है।
➢➢ *बाप ज्ञान का सागर है। तुम भी ज्ञान के सागर बनते हों,* फिर तुम सुख शान्ति
के सागर बनते हो। *सतयुग में सुख अपार रहता है। तो बाप द्वारा सर्व सुखों की
प्राप्ति होती है।* अभी देखो कितना दुख अशान्ति है। बड़ों-बड़ों को नींद नहीं
आती है। तुम बच्चों को तो कितनी खुशी है क्योंकि तुम बाप को जानते हो।
➢➢ ब्रह्म तत्व भी परमात्मा के रहने का स्थान है। परन्तु मनुष्यों की अल्प
बुद्धि होने के कारण समझते नहीं। यह ज्ञान की बात है। दुनिया की बातों को तो सब
अच्छी तरह जानते हैं। यह खुद जोहरी था तो सब कुछ जानता था। बाकी ज्ञान की बातों
में अल्प बुद्धि तुच्छ बुद्धि थे, कुछ नहीं जानते थे। तो बाबा आकर पहचान देते
हैं। *जब तक कोई ब्राह्मण न बनें तो बाप से वर्सा ले न सके।*
➢➢ प्रजा तो बननी है। किसी ने भी थोड़ा सुना तो प्रजा बन जायेंगे। *अगर विकार
में जाता रहेगा तो उनको सजा भोगनी पड़ेगी। फिर आकर साधारण प्रजा बनेंगे।* अभी
सबका मौत है। कब्रदाखिल होना ही है। कब्रिस्तान बनना ही है।*
➢➢ *इस समय मनुष्यों की कोई वेल्यू नहीं है। तुम्हारी भी नहीं थी। अब वेल्यु
बन रही है। बाकी जब विनाश होगा तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे। जैसे दीपावली पर
मच्छर कितने मरते हैं तो सबको मरना है ही क्योंकेि सबको घर वापिस जाना है।*
➢➢ यहाँ का ही यादगार भक्ति मार्ग में चलता है। *अभी तुम बच्चे जितनी-जितनी
धारणा करेंगे उतना विशाल बुद्धि बनेंगे, उतनी कमाई करेंगे।* जैसे सर्ज़न जितनी
विशाल बुद्धि वाला होता है, जितनी दवाई आदि बुद्धि में अधिक रखता है उतना कमाई
करता है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। कोई 250 रूपया कमाई करते, कोई तो फिर हजारों कमाते
हैं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ परमात्मा
पतित-पावन है तो सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। परन्तु मनुष्य अल्प बुद्धि हैं, *कितना
भी समझाओ, समझते नहीं हैं। तो समझो वह ब्राहमण कुल का नही है। जो देवता कुल का
होगा वही ज्ञान को समझेगें ब्राह्मण बनेंगे।*
➢➢ दुनिया कहती है ओ गॉड फादर, परमपिता परमात्मा परन्तु जानती नहीं। कितने समय
से भक्त भक्ति करते, याद करते आये हैं, जानते ही नहीं। *बाप अपना और अपनी रचना
का परिचय खुद आकर देते हैं तुमको औरों को देना है।* तुम जानते हो यह बाप है,
कोई महात्मा नहीं है।
➢➢ *बाबा को ख्याल आया, फार्म में लिखा हो तो आप किससे मिलने आये हो? तो कहेंगे
महात्मा से। बोलो, महात्मा तो यह है नहीं। नाम है ब्रहमाकुमार कुमारियाँ तो इनका
बाप प्रजापिता ब्रह्मा होगा ना। तो महात्मा कैसे हुआ। समझाने वाले अच्छे चाहिए।
बुद्धि वाला चाहिए* समझो वह लिखकर भी जाते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं,
बिल्कुल ही बुद्धू हैं। शक्ल से मालूम पड़ जाता है - बुद्धि में ज्ञान नहीं है।
शिवबाबा तो जानते हैं, अन्तर्यामी है।
➢➢ *यह बाबा तो अन्तर्यामी हैं बाप कहते हैं मैं आता ही उस तन में हूँ जो पहला
नम्बर है। अब लास्ट में है। इनमें प्रवेश करता हूँ क्योंकि इनको फिर वही नारायण
बनना है। तो इनको इस तन को देने की रावण मत पर होने कारण मनुष्य समझते नहीं
हैं। अब तुमने समझा है तो औरों को समझाने की युक्ति निकालो।*
➢➢ *तुमको ख्याल आना चाहिए कि औरों को कैसे दूरदेशी बनायें। कैसे बाप की परिचय
दें,* वह ब्रह्म को याद करते हैं। ब्रह्म तो तत्व है जहाँ परमात्मा रहते हैं।
परन्तु वह ब्रह्म को ही परमात्मा समझते हैं। जैसे हिन्दू कोई धर्म नहीं है।
हिन्दुस्तान में रहने के कारण हिन्दू नाम रख दिया है वास्तव में हिन्दुस्तान तो
रहने का स्थान है। ब्रह्म तत्व भी परमात्मा के रहने का स्थान है। परन्तु मनुष्यों
की अल्प बुद्धि होने के कारण समझते नहीं। यहाँ ज्ञान की बात है।
➢➢ *हर एक को माथा मारना पड़े। कि औरों को कैसे समझायें। यूं तो उस्ताद बता रहे
हैं कि रास्ता कैसे बताओं फिर हरएक का धन्धा अपना-अपना है। तो यह आना चाहिए कि
कैसे औरों को दुबन (दलदल) से निकालें। कई तो दल-दल से निकालने जाते फिर खुद फंस
जाते हैं। तो समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए।*
➢➢ *पहले अल्फ को समझाओ तो बे बादशाही को भी जान जायेंगे और सृष्टि चक्र की भी
जान जायेंगे। पहले अल्फ को तो जानो। कोई हजार दफा लिखकर दें कि अल्फ कौन है, तब
यहाँ बैठ सके।* कई तो ब्लड से भी लिखकर देते हैं फिर चले जाते है। माया कोई कम
थोड़े ही है।
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