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  26 / 07 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम जानते हो *यह ज्ञान है बहुत सहज, परन्तु विध्न पड़ते रहते हैं। मित्र-सम्बन्धी आदि सब विध्न डालेंगे। हम इनको इस तरफ खींचते हैं वह फिर उस तरफ खींचते हैं। बड़ी जंजीरें हैं।*

 

➢➢  *तुम्हारा दीवा जगता रहता है। सतयुग से त्रेता तक जगता रहेगा, इसको दीपमाला कहते हैं।* रुद्रमाला और दीपमाला बात एक ही है। याद तो शिवबाबा को ही करना हैना। तुम असुल में रुद्र माला के मोती तो होना अर्थात् निर्वाणधाम में रहने वाले हो। उसे *शिवबाबा का धाम, रूद्रधाम भी कह सकते हैं।*

 

➢➢  *भल सन्यासी लोग कितने भी हठयोग आदि करें फिर भी उन्हों को मृत्युलोक में रहना ही है।* तुम बच्चों को इस मृत्युलोक से जाना है अमरलोक में, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है, जिस मेहनत से वह डरते हैं। समझते हैं गृहस्थ व्यवहार में रह हम योगी नहीं बन सकते। उनको कुछ पता ही नहीं है, *सन्यास से क्या मिलेगा? कोई एम आब्जेक्ट ही नहीं है, तुम्हारे पास एम आब्जेक्ट है।*

 

➢➢  *पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म की बिरादरी है। फिर अनेक प्रकार के धर्म के स्तम्भ निकलते हैं।* वह सब पीछे आने वाले हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें रहनी चाहिए। हम ब्राह्मण हैं, वह शूद्र हैं। *हम शिक्षा पाकर तमोप्रधान से सतोप्रधान हो रहे हैं। कौन बनाते हैं? जो एवर सतोप्रधान हैं वह कभी रजो तमो में नहीं आते।* हमको बना रहे हैं।

 

➢➢  गुरू लोग मन्त्र देते रहते हैं। *यहाँ बाबा का मन्त्र कोई और देने वाला नहीं है। बाप एक ही मन्त्र देते हैं, मैं तुम्हारा निराकार बाप हूँ।* तुम्हारा टीचर भी हूँ, पतित-पावन गुरू भी हूँ। हूँ तो निराकार, यह भी निश्चय चाहिए। हमारा बाप पतित-पावन निराकार ज्ञान का सागर है। राजयोग से हमको महाराजा महारानी बनाते हैं। बेहद का वर्सा देते हैं। *100 प्रतिशत सम्पतिवान भव, आयुश्वान भव । देवताओं जितनी आयु कोई की नहीं होती। पुत्रवान भव, तुम्हारा कुल चलता है।*

 

➢➢  *तुम्हें कोई भी दुख नहीं मिल सकता।* कितना तुम शाहों के शाह बन जाते हो। पैसे की कभी कोई तकलीफ नहीं होती और हेल्दी भी बनते हो। यह *सब गुण अभी तुम शिवबाबा से पाते हो।* बरोबर तुम हेल्दी वेल्दी और हैपी बनते हो।

 

➢➢  *यह भी जानते हो जन्म-जन्मान्तर फालतू कथायें सुनते आये हैं। कितनी गीतायें पुस्तक सुनते आये हैं।* अभी है संगमयुग। *संगमयुग का अर्थ ही है पुरानी दुनिया का विनाश, नई दुनिया की स्थापना। इसलिए इसको आस्पीशियस, कल्याणकारी संगमयुग कहा जाता है। संगमयुग को भूलने से अपनी राजधानी को भूल जाते हैं।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप ही सबसे बड़ा सर्जन भी है। कोई स्थूल दवाई आदि डालने के लिए नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं मामेकम्याद करो। इस याद में सब दवाईयां आ जाती हैं। याद से ही तन्दरूस्त बन जाते हैं भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए।* वो योग तो बहुत किसम-किसम के सिखलाते हैं, उससे बहुत पहलवान भी बनते हैं। मेहनत करते हैं।

 

➢➢  *तुम जागे हो सो भी नम्बरवार क्योंकि घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। जगाने वाला कहते हैं सजनियां भूल न जाओ। यह याद का घृत है।* मनुष्य मरते हैं तो दीवे में घृत डालते रहते हैं कि दीवा बुझ न जाये। बाप कहते हैं *बच्चे याद करते रहो। यह याद करने के लिए, घृत डालने के लिए सवेरे का टाइम बहुत अच्छा है। सवेरे याद करेंगे तो वह याद बहुत समय कायम रहेगी।*

 

➢➢  बच्चे जानते हैं बाबा के पास हमें जाना है। *याद से दीपक जगता जायेगा।* यह श्री अर्थात् श्रेष्ठ मत मिलती है। गाया हुआ भी है श्रीमत मिली थी, तो श्रेष्ठ सत्य धर्म की स्थापना हुई थी। अब तुम्हारा बड़ा झुण्ड है। नम्बरवार जितना जागते हैं उतना जगा सकते हैं। *दीवे को जगाने के लिए सवेरे उठना पड़ता है। घृत डालना पड़ता है, इसमें कोई तकलीफ नहीं। बाप को याद करना यही घृत डालते रहना है।*

 

➢➢  आत्मा पहले पतित थी अर्थात् आत्मा की ज्योति बुझी हुई थी। *अब बाप को याद करने से ज्योत जगेगी और विकर्म विनाश होते रहेंगे अर्थात् पावन बनते रहेंगे।* अभी आत्मा पर अज्ञान का परछाया पड़ा हुआ है।

 

➢➢  इसका नाम ही है सहज राजयोग, जिससे दैवी स्वराज्य मिलता है। *स्व अर्थात् आत्मा को ही राज्य मिलता है।* आत्मा कहती है अभी हम बेगरी शरीर में हैं। फिर प्रिन्स का शरीर मिलेगा। तुम आत्मायें यहाँ बैठी हो, *जिसके पास जाना है, उसको ही याद करना है।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाप समझाते हैं तुमको *पवित्र दुनिया का मालिक बनना है तो यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो।* सन्यासी भी 5 विकारों का सन्यास करते हैं। परन्तु वह तो बहुत दूर जंगल में चले जाते हैं। यहाँ तुमको *गृहस्थ व्यवहार में रहते 5 विकारों का सन्यास करना है।*

 

➢➢  *अच्छा दिन में टाइम नहीं मिलता है, अमृतवेले तो याद करो।* कहते हैं राम सिमर प्रभात मोरे मन। आत्मा कहती है प्रभात में अपने बाप को याद करो।

 

➢➢  *तुम तो राजाई में ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ करते हो। इसमें पुरुषार्थ पूरा करना है,* आशीर्वाद वा कृपा की बात ही नहीं है। ऐसे नहीं कि हमारे पति की बुद्धि का ताला खुले, आशीर्वाद करो। क्या हम सभी का ताला खोल देंगे? तुम *बच्चों की बुद्धि का ताला खुल जाता है फिर भी मेहनत तुमको करनी है।*

 

➢➢  बाबा भी यही कहते हैं *नींद भी टाइम पर करनी चाहिए। पूरा चार्ट रखना है। सवेरे उठ सकते हो।* इस पर एक कहावत भी सिंधी में है - सवेरे सोना, सवेरे उठना... अभी तुम अक्लमंद बनते हो।

 

➢➢  *अभी तुम महावीर बनते हो।* पवित्रता को ही महावीरता कहा जाता है। इससे आयु भी बहुत बड़ी हो जाती है। बाप की याद से ताकत मिलती जाती है।

 

➢➢  *हर एक को मेहनत करनी है।* तुम्हारी मेहनत से आटोमेटिकली तुमको ही ऊंच पद मिलता है। हर एक अपनी राजधानी को सम्भालते हो। तुमको मदद देने वाला एक ही बेहद का बाप है।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  ड्रामानुसार जिन बच्चों को शूद्र से ब्राह्मण बनना है, उन्हों को आना ही है। *जिनका कल्प पहले ताला खुला होगा, उनका ही खुलेगा। हाँ शुभचिंतक हो राय दी जाती है। तरस तो पड़ता है ना कि यह भी साहूकार बन जाये। ताला खुले तो स्वर्ग में चले जायें। यह भी स्वर्ग के मालिक बन जायें। यह तुम्हारा धन्धा है।*

 

➢➢  *बाप समझाते हैं तुमको भक्तों को समझाना सहज होगा। तुम सर्वव्यापी कहते हो तो पूजते क्यों हो? यह तो जड़ है, तुम तो चैतन्य हो। तुम बड़े हो गये ना। समझाना है बेहद का बाप तो एक ही है, उनकी ही महिमा है। वह मनुष्य सृष्टि का बीज रूप पतित-पावन है। दुनिया पतित है, उनको पतित से पावन बनाने वाला एक ही बाप है। जरूर संगम पर ही आता होगा। अब आये हैं, कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।*

 

➢➢  भल प्रदर्शनी में हजारों आते हैं परन्तु यह किसको भी समझ में नहीं आता कि तुमको निराकार परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। *कहते हैं यह बात हमको समझ में नहीं आती। निराकार कैसे पढ़ायेंगे? अच्छा हम आकर समझेंगे। कहकर फिर आयेंगे नहीं।* ऐसे भी होते हैं। *कितना तुम समझाते हो चलो हम तुमको स्वर्ग की बादशाही दें, तो भी मानते नहीं।*

 

➢➢  *भल तुम प्रदर्शनी आदि रखते हो, फिर भी कोई की बुद्धि में नहीं बैठता। इतना कहते हैं कि यहाँ ईश्वर को पाने की समझानी बहुत अच्छी है। बस। यही नहीं समझते कि ईश्वर पढ़ाते हैं।* कोई विरले को निश्चय बैठता है, जो कहते कि बरोबर ठीक है।

 

➢➢  बच्चों ने गीत भी सुना-जागो और जगाओ अज्ञान नींद से। *गृहस्थ व्यवहार में रहते किसको बाप का परिचय दो। वह फिर लिखे भी कि बाबा, फलाने द्वारा हम आपको जान गये हैं। अभी तो हम आपके ही होकर रहेंगे, आपसे वसा जरूर लेंगे। आपके ही थे, ऐसी चिट्ठी आवे तब सर्विस का सबूत मिले।* पत्र देख बाबा खुश होंगे।

 

➢➢  *सिर्फ क्लास से ही होकर आना यह तो पुरानी चाल हो गई। जैसे और सतसंगों में नियम से जाते हैं। तुमको तो एक-एक को अच्छी रीति समझाना है - 'यह बहुत ऊंची पढ़ाई है। यह ज्ञान सागर से कितनी अच्छी नॉलेज मिलती है।' मेहनत चाहिए समझाने की।*

 

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