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❍ 19 / 11 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ कुमारी जीवन में जितना चाहो कर सकते हो। स्वतंत्र आत्मा का भाग्य प्राप्त है। अपने से पूछो - स्वतन्त्र हो या परतंत्र हो? *परतंत्रता के बन्धन अपने ही मन के व्यर्थ कमजोर संकल्पों की जाल है। उसी रची हुई जाल में स्वयं को परतंत्र तो नहीं बना रहो हो? क्वेश्चन की जाल है? क्वेश्चन उठते हैं क्या होगा, कैसे होगा, ऐसे तो नहीं होगा, यह है जाल।*
➢➢ *संगमयुगी ब्राहमणों का एक ही सदा समर्थ संकल्प है कि - 'जो होगा वह कल्याणकारी होगा। जो होगा श्रेष्ठ होगा, अच्छे ते अच्छा होगा।' यह संकल्प है जाल को समाप्त करने का। संगमयुग का हर दिन बड़ा दिन है, बुरा दिन नहीं।* हर दिन आपका उत्सव है ना। हर दिन मनाने का है।
➢➢ बापदादा को तो कुमारियाँ देख करके खुशी होती है। लोगों के पास कुमारी आती है तो दु:ख होता है। *बापदादा जानते हैं कि हर कुमारी विश्व कल्याणकारी, महादानी, वरदानी है। कुमारी जीवन का महत्व कितना है।* भारत में अष्टमी पर कुमारियों को खास बुलाते हैं। तो बापदादा भी अष्टमी मना रहे हैं। हर कन्या अष्ट शक्ति स्वरूप है।
➢➢ *आप सभी कर्मयोगी हो। कर्मभोग को ऐसा भस्म करते हो कि 21 जन्मों तक निशान न रहें। कर्मभोग विदाई लेने के लिए आता है क्योंकि उसको पता है कि हम अभी ही आ सकते हैं फिर नहीं आ सकते इसलिए थोड़ा-थोड़ा बीच में चाँस लेता है।* जब देखता है कि यहाँ तो दाल गलने वाली नहीं है तो वापस चला जाता है।
➢➢ *जब तक सेवा में प्रैक्टिस नहीं की है तब तक डिग्री की भी वैल्यु नहीं है। डिग्री की वैल्यु सेवा से है। पढ़ाई पढ़कर अगर स्टेज पर आ जाएं जो डिग्री की वैल्यु भी है।* अगर यहाँ चांस मिलता है तो डिग्री आप ही मिल जायेगी। जगदम्बा सरस्वती को कितनी बड़ी डिग्री मिली। यहाँ की डिग्री तो वर्णन भी नहीं कर सकते हो।
➢➢ वरदानी कुमारियाँ हो ना! *धीरे-धीरे चलने वाली हो या उड़ने वाली हो? उड़ने वाली अर्थात् हद की धरनी को छोड़ने वाली। जब धरनी को छोड़ें तब उड़ेंगी ना! नाचे तो नहीं उड़ेंगी। नीचे वाले को शिकारी पकड़ लेते हैं।* नीचे आया पिंजरे में फंसा। उड़ने वाला पिंजरे में नहीं आता। तो पिंजरा छोड़ दिया!
➢➢ जहाँ ताज होगा वहाँ टोकरी चलेगी नहीं। *ताज उतारोगे तब टोकरी रख सकेंगे। टोकरी रखेंगे तो ताज गिर जायेगा। तो ताजधारी बनना है या टोकरीधारी। शक्ति सेना हो ना! सबके हाथ में विजय का झण्डा है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *स्वत: प्राप्त हुए वरदान की लकीर श्रेष्ठ कर्म की कलम द्वारा जितनी बड़ी खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो। यह भी इस समय को वरदान है। समय भी वरदानी, कुमारी जीवन भी वरदानी, बाप भी वरदाता। कार्य भी वरदान देने का है। तो इसका पूरा पूरा लाभ लो।*
➢➢ अभी विश्व की सेवा की जिम्मेवारी का ताज और भविष्य रत्न जिड़त ताज। अभी विश्व की सेवा का ताज पहनो तो विश्व आपको धन्य आत्मा, महान आत्मा माने। इतना बड़ा ताज पहनने वाले टोकरी क्या उठाएंगे। *63 जन्म तो टोकरी उठाते रहे, अब ताज मिलता है तो ताज पहनना चाहिए ना! धीरे-धीरे लौकिक को सन्तुष्ट करते अपने को निर्बन्धन करो।*
➢➢ *सदा उमंग उत्साह के पंखों से उड़ते रहना। किसी भी आकर्षण में नहीं आना। शिकारी जब फँसाते हैं तो अच्छा-अच्छा दाना डाल देते हैं। माया भी कभी ऐसे करती है इसलिए सदा उड़ती कला में रहना तो सेफ रहेंगी।* पीछे की बात सोचना, कमजोरी की बात सोचना पीछे देखना है,पीछे देखना अर्थात् रावण का आना।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *समर्थ संकल्पों से व्यर्थ संकल्पों की जाल को समाप्त करो। कमजोरियों को नहीं देखो। वह देखेंगी तो डरेंगी। न स्वयं कमजोर बनो, न दूसरों की कमजोरियों को देखो।*
➢➢ जितना समय अपने जीवन के फ़ैसले में लगाती हो उतना प्राप्ति का समय चला जाता है इसलिए *फ़ैसले करने में समय नहीं गंवाना चाहिए। सोचा और किया - इसको कहा जाता है नम्बरवन सौदा करने वाले।* सेकेण्ड में फ़ैसला करने वाले गोल्डन मैडल लेते हैं। सोच-सोचकर फ़ैसला करने वाले सिल्वर मैडल लेते और सोचकर भी फ़ैसला नहीं कर पाते वह कॉपर वाले हो गये।
➢➢ दूसरे की कमजोरी देखकर स्वयं दिलशिकस्त नहीं होना। पता नहीं हमारा तो ऐसा नहीं होगा! अगर एक कोई खड्डे में गिरता है तो दूसरा क्या करेगा? *कमजोर को देखने से डरते हो इसलिए उन्हें मत देखो। शक्तियों को देखो तो डर निकल जायेगा।*
➢➢ जो समर्पण नहीं होंगे वह समान कैसे बनेंगे! ब्रह्मा बाप ने समर्पण किया वा सिर्फ सहयोगी रहा? जगत अम्बा भी कन्या ही रही ना। तो *फॉलो फादर-मदर करना है। सिस्टर्स को फॉलो नहीं करना।* ''इसका जीवन देखकर मुझे भी यही अच्छा लगता है।'' तो फालो सिस्टर्स हो गया ना। डर सिर्फ अपनी कमजोरी से होता है और किसी से नहीं होता।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बेहद की वृत्ति अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति - मास्टर विश्व कल्याणकारी। सिर्फ अपने वा अपने हद के निमित्त बनी हुई आत्माओं के कल्याण अर्थ नहीं, लेकिन सर्व के कल्याण की वृत्ति हो।* मैं तो ब्रह्माकुमारी बन गई, पवित्र आत्मा बन गई, अपने प्रति सन्तुष्टता में राजी होकर चल रहे हैं, यह बाप सामन बेहद की वृत्ति रखने की स्थिति नहीं है।
➢➢ *बाँटो और बढ़ाओ, यही डायरेक्शन मिले हैं ना। गीता पाठशाला खोल ली वा जब चांस मिला तब बाँट लिया, इसमें ही सन्तुष्ट हो? बेहद के बाप से बेहद की प्राप्ति और बेहद की सेवा के उमंग-उत्साह में रहना है।*
➢➢ कुमारी जीवन संगमयुग में सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन है। तो ऐसी *वरदानी जीवन ड्रामा अनुसार आप विशेष आत्माओं को स्वत: प्राप्त है। ऐसी वरदानी जीवन सर्व को वरदान, महादान देने में लगाओ।*
➢➢ विश्व के अधिकारी बनने वाले विश्व सेवाधारी होंगे। हद के सेवाधारी नहीं। बेहद के सेवाधारी, जहाँ भी जायें वहाँ सेवा करेंगे। तो ऐसे *बेहद सेवा के लिए तैयार रहो। 2 मास-6 मास छुट्टी लेकर ट्रायल करो। एक कदम बढ़ाओगे तो 10 कदम बड़ जाएंगे। एक-दो मास निकालकर अनुभव करो।*
➢➢ *निर्बन्धन होने का प्लैन बनाओ। बेहद सेवा का लक्ष्य रखो तो हद के बन्धन स्वत: टूट जायेंगे। लक्ष्य दो तरफ का होता है तो लौकिक,अलौकिक दोनों में सफल नहीं हो सकते। लक्ष्य क्लियर हो तो लौकिक में भी मदद मिलती है।* निमित्त मात्र लौकिक, लेकिन बुद्धि में अलौकिक सेवा हो तो मजबूरी ही मुहब्बत के आगे बदल जाती है।
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