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  05 / 12 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अभी तुमको 3 बाप से तोड़ निभाना है। भक्तिमार्ग में दो बाप से तोड़ निभाना होता है। जब सतयुग में हो तो एक बाप से तोड़ निभाना होता है।*

➢➢  *ड्रामा में हर एक युग की रसम-रिवाज अपनी-अपनी है। यह बाप समझाते हैं क्योंकि बाप ही नोलेजफुल है।* है यह भी बाप, वह भी बाप। वह भी क्रियेटर, यह भी क्रियेटर। ब्रह्मा द्वारा क्रियेट करते हैं। एडॉप्ट करते हैं। *एडॉप्ट करना अर्थात् अपना बनाना।*

➢➢  देवियों को तलवार आदि दिखाते हैं। वास्तव में यह हैं ज्ञान के अलंकार। स्वदर्शन चक्र भी देवताओंको नहीं हैं। यह तुम ब्रह्मणों के हैं। गदा भी तुम्हारी निशानी है। ज्ञान की गदा से तुम माया पर जीत पाते हो। *बाकी वहाँ ऐसी चीजों की दरकार नहीं रहती। वहाँ बड़ी मौज से रहते हैं। तपस्या करने की भी दरकार नहीं। वह तो तपस्या का फल है।*

➢➢  सतयुग में देवतायें राज्य करते हैं। वह है टाकी दुनिया। सूक्ष्मवतन में है मूवी दुनिया। *दुनिया भी 3 हैं, मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूल वतन। तीन लोक कहते हैं ना।*

➢➢  *अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रहो तो आप पर किसी की व्यर्थ नजर नहीं जा सकती।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *एक बाप को याद करना है।* कोई भी साधू-सन्त गुरू आदि को याद नहीं करना है। याद चैतन्य को भी करते हैं तो जड़ को भी करते हैं।

➢➢  *बाप को और घर को याद करो।* सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना-बहुत सहज है।

➢➢  *बाप के वर्से को याद करना है।* सारा दिन तो निरन्तर याद कर नहीं सकेगे। धन्धा आदि भी करना है।

➢➢  *एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है। धन्धा आदि करते भी बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।*

➢➢  *योग होगा तो आत्मा से खाद निकलती जायेगी।* फिर बाबा भी बुद्धि का ताला ढीला करेंगे।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  कर्मबन्धन होगा तो दु:ख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो खुशी होगी इसलिए  *कर्मबन्धन को सेवा के बंधन से समाप्त करो।*

➢➢  *तुम्हें लौकिक अलौकिक परिवार से तोड़ निभाना है, लेकिन किसी में भी मोह नहीं रखना है, मोह जीत बनना है।*

➢➢  सारा पुरुषार्थ अभी ही करना है। *बाप पर सब कुछ बलिहार करेंगे तो 21 जन्म के लिए मिल जायेगा। बाप का बनकर हर कदम पर डायरेक्शन लेते रहो।*

➢➢  *मात-पिता बच्चों को समझाते हैं - लौकिक सम्बन्धियों से भी तोड़ निभाना है।*

➢➢  *ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है। किसी भी बात में नाराज नहीं होना है। सदा राजी रहना है।*

➢➢  *जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं हुई है, पुरुषार्थ करते रहना है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुमको शंखध्वनि करनी है, बाप का परिचय देना है।*

➢➢  *हाथ में चित्र हो कि यह लक्ष्मी-नारायण भारत के मालिक थे। अभी कलियुग है। फिर बाप आया है-राज्य भाग्य देने।*

➢➢  *हम ब्रह्माकुमार-कुमारी पढ़ रहे हैं, दादे से वर्सा ले रहे हैं। तुमको भी लेना हो तो लो। यह है तुम्हारा निमन्त्रण फिर बहुत आयेंगे, वृद्धि होती जायेगी।*

➢➢  *सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है।* 

➢➢  *विश्व सेवाधारी विश्व में जहाँ भी है, विश्व सेवा अर्थ है।*

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