━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

  08 / 09 / 17  

       MURLI SUMMARY 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  *यह ज्ञान सिर्फ तुम्हारे ही पास है। भगवान फिर से आकर पढ़ाते हैं।* यह कोई कम बात थोड़े ही है। यह भी बच्चों को पता है कि भगवान एक है और भगत अनेक हैं। इससे सिद्ध होता है - बाप एक और बच्चे अनेक होते हैं। बाप को क्रियेटर तो सब मानेंगे। *रचना को रचता द्वारा वर्सा मिलता है।*

➢➢  *सहज ज्ञान, सहज राजयोग। राजा जनक को भी सेकण्ड में ज्ञान मिला और जीवनमुक्त हुआ।* मनुष्य भी कहते हैं हमको जनक मिसल ज्ञान चाहिए, जो हम गृहस्थ में रहते पा सकें। यह तो बहुत ऊंच पढ़ाई है। मनुष्य से देवता बनना है।

➢➢  *शिवबाबा का भण्डारा भरपूर है। कहते हैं ना-जिस भण्डारे से खाया वह भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर... यहाँ तो अकाले मृत्यु होती रहती है। पतित-पावन शिवबाबा के भण्डारे में जो आता है वह पावन बन जाता है।*

➢➢  *हम राजाओं का राजा बनेंगे। इस पाठशाला में बूढ़े जवान बच्चे सब पढ़ते हैं। यह वन्डर है ना।* पाठशाला में तो ऐसा होता नहीं इसलिए इसको सतसंग भी कहा जाता है। सतसंग में तो सब जाते हैं। परन्तु वह ऐसे नहीं कहेंगे कि हम राजयोग सीखने जाते हैं। उनको कोई भगवान तो नहीं पढ़ाते हैं। *तुमको तो भगवान खुद पढ़ा रहे हैं।* 

➢➢  लक्ष्मी-नारायण पावन थे ना। अभी तो वह हैं नहीं। यह तो पतित राज्य है फिर से पावन बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। *लक्ष्मी-नारायण में सभी का प्यार रहता है, तब तो बड़े-बड़े आलीशान मन्दिर बनाते हैं। कृष्ण का तो छोटा-छोटा मन्दिर बनाते हैं। जैसे बच्चों का होता है उनको यह पता ही नहीं कि राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।*

➢➢  *यह (ब्रह्मा) कहते हैं- मैं थोड़े ही भगवान हूँ। बनाने वाला तो दूसरा होगा ना। मैं कहाँ से सीखा? अगर हमारा मनुष्य गुरू होता तो गुरू से लाखों करोड़ों सीखने वाले चाहिए।*

➢➢  तुम भी कहते हो हम फिर से देवता बन रहे हैं। शिव जयन्ति भी गाई जाती है। लाखों वर्ष तो नहीं हुए। *बाप बैठ समझाते हैं इन शास्त्रों आदि में कोई सार नहीं है, यह पढ़ते-पढ़ते तुम्हारी कला उतरती गई है। अभी तो कोई कला नहीं रही है। बाप कहते हैं भक्ति से कोई भी मेरे से मिल नहीं सकता। मुझे आना ही पड़ता है।* 

────────────────────────

 

❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  *और पाठशालाओं में ऐसे नहीं कहते हैं कि हम फिर से पढ़ रहे हैं। यह तो बच्चों की ही बुद्धि में है। कहते हैं कि मैं फिर से राजयोग सिखाने आया हूँ।* उस समय महाभारत लड़ाई लगी थी। पाण्डव गीता सुनते थे। 

➢➢  *हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं।* इस समय हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्मण बने हैं। *तुम क्या पढ़ते हो? राजयोग। यह भी जानते हो हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं* और पढ़ने वाले कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम फिर से पढ़ रहे हैं। यहाँ *तुम बच्चों को निश्चय है कि हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं। जो 5 हजार वर्ष पहले भी सीखा था।*

➢➢  *बरोबर वह सम्पूर्ण निर्वकारी थे। अभी पतित दुनिया है इसलिए परमपिता परमात्मा को आना होता है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ, वह तो निराकार ठहरा ना। आकर पावन बनायेंगे।* 

➢➢  *परमात्मा को निराकार मानते हैं। वही लिबरेटर, गाइड, ब्लिसफुल, गाड फादर, सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। बाप जब दु:ख हरते हैं तो सुख भी देते होंगे।*

➢➢  *भगवान है ही निराकार। शिव जयन्ति मनाते हैं तो जरूर जन्म लेकर कुछ किया होगा ना। वर्सा दिया होगा। बरोबर सतयुग में सूर्यवंशी देवता थे।* 

➢➢  *यहाँ तो है ही भगवानुवाच। उसने यह राज समझाया है। यह चित्र कैसे बैठ निकलवाये हैं। लक्ष्मी-नारायण बचपन में राधे कृष्ण थे। गीता का भगवान कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ।* 

➢➢  यह बड़ी जरूरी बात है। इसी में सारा रोला है। नर्क को पलटने और स्वर्ग बनाने वाला कौन? बाप ही कर सकते हैं। लक्ष्मी-नारायण कितने एक्टिव थे। *बाप कहते है सिर्फ मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश हो जायेंगे।*

────────────────────────

 

❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  स्वदर्शन चक्र देवताओं को नहीं है। यह तुमको है। परन्तु तुम तो सम्पूर्ण बने नहीं हो। तो निशानी देवताओंको दे दी है। *स्वदर्शन चक्र फिराते, कमल पुष्प समान बनते, शंखध्वनि करते तुम देवता बन जायेंगे।* शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी स्थापन कर रहे हैं, हम विश्व के मालिक बनते हैं।

➢➢  देवताओंकी महिमा कितनी ऊंची है, सर्वगुण सम्पन्न... यह है मृत्युलोक। वह है अमरलोक पतित दुनिया आसुरी, पावन दुनिया है दैवी दुनिया। *पावन दुनिया में जाने लिए पवित्र बनना है।* 

➢➢  तुम हो रूहानी पण्डे। *हे रूहानी बच्चे अथवा रूहानी पण्डे थक मत जाना।* बाप कहते हैं ना -गीता जरूर भगवान ही सुनायेंगे ना। भगवानुवाच। तुम जानते हो हम स्वर्ग के सुख पाने के लिए राजयोग सीख रहे हैं।

➢➢  *स्टूडेन्ट लाइफ इज दी बेस्ट। पढ़ाई की लाइफ बेपरवाह अच्छी रहती है।* पीछे तो जाल में फँस जाते हैं। कितने दु:ख की जाल है। सतयुग में कोई बात नहीं। खुशी-खुशी से शरीर छोड़ते हैं। घुट-घुट कर मरना रावणराज्य में होता है।

➢➢  तुम खुशी से तैयारी कर रहे हो कि हम कब बाबा के पास जायें, बैठे ही इसलिए हैं। पुराना शरीर छोड़ जायें। फिर 21 जन्म घुटका खाने की बात नहीं। *इस जन्म में घुटका बिल्कुल नहीं खाना है, पतित से पावन बन रहे हैं। बहुत खुशी में रहना है।*

➢➢  ब्रह्मा भोजन की बड़ी महिमा है। योग भी बड़ा अच्छा चाहिए। *योग में रह भोजन बनाओ और खाओ तो तुम्हारी बहुत अच्छी उन्नति होगी।* उस भोजन में बहुत ताकत आ जाती है। योग में रह तुम भोजन खाओ तो बहुत ताकत मिलेगी और तन्दरूस्त भी रहेंगे।

➢➢  बाबा की याद में बैठे  जैसेकि हम और बाबा खाते हैं, परन्तु फिर भी भूल जाता हूँ। *एक बाप की याद में ही शरीर छूटे, कोई घुटका नहीं आये, ऐसी प्रैक्टिस करनी चाहिए।* बाबा की याद में रहने से एक तो शान्ति रहेगी और हेल्दी बनेंगे। भोजन पवित्र हो जायेगा।

────────────────────────

 

❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  एम-आब्जेक्ट बुद्धि में रहनी चाहिए ना। तुम्हारी बुद्धि में है लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो एक ही राज्य था। सारे विश्व पर राज्य था। तो *तुम बच्चों को चित्रों पर बैठ समझाना है। हम क्या पढ़ रहे हैं। यह है एम-आब्जेक्ट, यहाँ तुम फिर से राजाई के लिए पढ़ रहे हो। तो तुमको मित्र सम्बन्धियों को भी बतलाना पड़े। हम इस गीता पाठशाला में राजयोग सीखते है।*

➢➢  *यह चित्र तो घर-घर में होना चाहिए। माता-पिता, मित्र सम्बन्धी जो भी आयें उनको समझाना है कि हम यह पढ़ रहे हैं। यह पढ़ाई तो बहुत सहज है।*

➢➢  *तुम समझा सकते हो कि आज से 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य भारत में था और कोई के चित्र हैं नहीं। सूर्यवंशी डिनायस्टी मशहूर है। लक्ष्मी-नारायण और सीता-राम की डिनायस्टी थी फिर द्वापर कलियुग होता है। अभी कलियुग का अन्त है।*

➢➢  *राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। डिनायस्टी में तो बहुत होते हैं ना। जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड... उन्हों की भी डिनायस्टी चलती है। यह भी ऐसे है। तुम बच्चे चित्रों पर अच्छी रीति समझा सकते हो।* 

➢➢  *अन्त का गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपगोपियों से पूछो। झाड़ में समझानी बहुत अच्छी है। त्रिमूर्ति और गोला भी जरूरी है। दिन-प्रतिदिन तुम्हारा नाम बाला होता जायेगा।*

➢➢  *तुम कहते हो भगवान किस न किस रूप में आयेगा। कृष्ण तो है ही सतयुग का प्रिन्स। शिव तो है निराकार। वह जरूर किसमें आया होगा। पतित-पावन है तो जरूर कलियुग के अन्त में आया होगा।* मैं आता ही हूँ संगम पर। इस बूट (ब्रह्मा) में मैं फिट होता हूँ। ड्रामा में कोई चेन्ज नहीं हो सकती।

────────────────────────