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❍ 22 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *यह सारी दुनिया
विषय वैतरणी नदी है। बाकी कोई पानी की नदी नहीं है, इनको विषय सागर भी कहते
हैं। परमपिता परमात्मा है ज्ञान का सागर और रावण है विषय सागर। उनसे विकारों की
नदियां बहती हैं। इस समय जो आसुरी सम्प्रदाय हैं, वह विषय सागर में गोता खा रहे
हैं। दु:ख ही दु:ख है। इन बातों को भी कोटों में कोई ही समझेंगे।*
➢➢ *बाप को न जानने
कारण साधू सन्त आदि परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते हैं।* तुम बच्चे कहते हो -
बाप ने ब्रह्मा के मुख द्वारा हमको अपना बनाया है। *हम ईश्वर के कुटुम्ब के ठहरे।
तुम हो शिव वंशी फिर बनते हो ब्रह्माकुमार कुमारी। इनको कहा जाता है अविनाशी
सन्तान।*
➢➢ कई तो बहुत अच्छे
बनकर भी फिर आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते हैं। कहते भी हैं हम स्वर्ग के मालिक बन
रहे हैं, फिर भागन्ती हो जाते हैं। *युद्ध के मैदान में कोई सबकी जीत नहीं होती
है। दोनों तरफ से कोई मरेंगे, कोई जीतेंगे। हाँ, पहलवान होंगे तो जास्ती को
मारेंगे। कमजोर जो होते हैं वह जास्ती मरते हैं। यहाँ भी जो कमजोर हैं वह झट मर
पड़ते हैं। यहाँ तुम्हारी है ही रावण से लड़ाई।*
➢➢ *दो दिन भी एक
जैसे नहीं हो सकते। यह फिर पांच हजार वर्ष बाद हूबहू रिपीट होता है। यह अनादि
ड्रामा है- सेकेण्ड बाई सेकेण्ड पार्ट बजता जाता है। फिर फिर रिपीट होता है। कहाँ
सतयुग, कहाँ कलियुग। वहाँ क्या होता है, यहाँ क्या होता है -यह तुम बच्चों को
अब रोशनी मिली है।*
➢➢ *यह ड्रामा कब
विनाश होने वाला नहीं है।* वन्डर है ना - आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। इतनी
छोटी बिन्दी में कितना पार्ट भरा हुआ है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। *आत्मा भी
अविनाशी, बाप भी अविनाशी।* आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। *देवी-देवता जो
सतोप्रधान थे वही सतो रजो तमो में आये हैं। विकारों की खाद पड़ने से फिर
तमोप्रधान बन जाते हैं। खाद पड़ती है आत्मा में। ऐसे नहीं कि आत्मा निर्लेप है।
आत्मा ही पुण्य आत्मा और पाप आत्मा बनती है।*
➢➢ *ज्ञान का सागर
कहा ही जाता है- एक निराकार को। उनसे तुम ज्ञान गंगायें बनती हो।* सागर तो एक
है ना। *बाप ही ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नालेज देते हैं। सतयुग में सूर्यवंशी
राजायें थे, 8 बादशाही चली। फिर वही सूर्यवंशी चन्द्रवंशी... बनते हैं।* यह
ज्ञान तुम ब्रह्मणों में ही है। तुम हो मुख वंशावली ब्रह्मण।
➢➢ *तुम जीवनमुक्ति
पाते हो, बाकी सब मुक्ति में जायेंगे।* भारत सुखधाम था ना। अब तो दु:खधाम है। *देवी-देवता
धर्म तो है नहीं। फिर स्थापना होनी है। तुम बच्चे राजयोग की शिक्षा ले राज्य
भाग्य ले रहे हो। कांटें से फूल बन रहे हो। यहाँ तो सब कांटे हैं। एक दो को
कांटा लगाते अर्थात् काम कटारी चलाते रहते हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अभी तो संगम पर
बैठे हो। विनाश भी सामने खड़ा है। *कल्प-कल्प के संगमयुगे बाप आते हैं। बाप ही
आकर सहज राजयोग सिखलाते हैं।* मूत पलीती कपड़ धोए। बाप ही आकर कपड़े धोते हैं।
अभी तुम्हारा भी यह पुराना शरीर है। *हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक
न मिले दूसरे से। ड्रामा है ना। सब दिन होत न एक समान। पांच हजार वर्ष का ड्रामा
है।*
➢➢ चारों धामों का
जन्म-जन्मान्तर चक्र लगाया। तीर्थ कोई कहाँ, कोई कहाँ चारों तरफ हैं ना। *चारों
तरफ के चक्र लगाये फिर भी भक्त लोग भगवान से मिल न सके। भगवान आते ही हैं इस
समय। उनको पतित-पावन कहा जाता है।* कलियुग को सतयुग बनाने हमारा बाबा भारत में
आते हैं। भारतवासियों को फिर से हीरे जैसा स्वर्ग का मालिक बनाते हैं।
➢➢ बाप सबका एक है।
वह ब्रह्मण हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली। वह जिस्मानी यात्रा कर फिर घर
लौट जाते हैं। *हमारी एक ही यात्रा है। एक ही बार यह अमरलोक की यात्रा करते
हैं, फिर लौट कर इस मृत्युलोक में आना नहीं है।*
➢➢ *बुद्धि में है
सब दिन होत ना एक समाना बेहद के सच्चे बाप की है बेहद की महफिल। बाप आते ही तब
हैं जब बड़ी महफिल होती है। सब आत्मायें यहाँ आ जाती हैं तब बाप आते हैं। भल
थोड़ी सी आत्मायें ऊपर होंगी भी, वह भी आ जायेंगी।*
➢➢ *नाम भी हमेशा
शिवबाबा का लो।* जब गिनती करते हैं तो बिन्दी को शिव भी कहते हैं। तो बेहद का
बाप शिव है, वह है बेहद का शिक्षक। हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त तीनों कालों
की समझानी देते हैं।
➢➢ दुनिया में
त्रिकालदर्शी कोई मनुष्य नहीं, जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानता हो।
*वह (बाप) बेहद का सतगुरू है। वही सबको साथ ले जाने वाला पण्डा भी है। वह सब
हैं जिस्मानी पण्डे। यह है रूहानी।*
➢➢ *अमरलोक स्वर्ग
को कहा जाता है। वहाँ कोई यात्रा होती नहीं।* वहाँ भक्ति ही नहीं। यह है ब्रह्मा
की रात, जिसमें भक्ति के धक्के हैं। *चारों तरफ फेरे लगाये परन्तु हरदम दूर रहे।
स्वर्ग का मालिक बनाने वाला बाप नहीं मिला। तुम पुकारते हो हे पतित-पावन आओ,
आकर पावन बनाओ।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
काम से हराया तो बहुत बड़ी चोट लग पड़ती है। बाक्सिंग होती है ना। कोई तो बेहोश
हो जाते हैं फिर आवाज करते हैं। कोई फिर खड़े हो जाते हैं। *यहाँ भी काम की चोट
खाई तो बड़ा जोर से धक्का आ जाता है। काला मुँह हो गया, क्रोध पर इतना नहीं
कहेंगे जितना काम पर। यह है बहुत बड़ा दुश्मन। बहुत दु:ख देने वाला है। काम
कटारी से ही बहुत दु:खी हुए हैं। काम विकार से ही पतित बनते हैं।*
➢➢
*पक्का याद कर लो- हमारा सच्चा बेहद का बाबा बेहद का वर्सा देने वाला है। बेहद
का वर्सा माना नर से नारायण बनाने वाला।* वहाँ हेल्थ वेल्थ दोनों हैं तो खुशी
रहती है। यहाँ किसको हेल्थ है तो वेल्थ नहीं है। किसको वेल्थ है तो हेल्थ नहीं
है। बच्चा पैदा न हो तो दूसरे का लेना पड़े। वहाँ यह सब बातें होती नहीं।
➢➢
अभी तुम्हारी चढ़ती कला शुरू होती है। *बाप कहते हैं दे दान तो छुटे ग्रहण,
विकारों का।* सीधी सी बात है। बाप तुम्हारे विकारों का दान लेते हैं फिर उनके
बदले में देखो तुम क्या देते हो! तुम कौड़ीया देते हो बाप तुम्हें ज्ञान रत्न
देते हैं। बाप को कहा भी जाता है रत्नागर, सौदागर।
➢➢
बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको पावन बनाकर स्वर्ग का मालिक बनाने। तो *अन्दर
में बहुत खुशी होनी चाहिए - बाबा हमको पावन बनाकर स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं।*
➢➢
*अब बाबा फूल बनाते हैं, तो कांटा लगाना छोड़ देना है। हिम्मत रखनी है।* हिम्मत
वाले भी खड़े हो जाते हैं। बाबा देखते हैं इनकी हिम्मत अच्छी है, कभी गिरेंगे
नहीं। तो ऐसे हिम्मत वाले को शरण भी दे देते हैं।
➢➢
नाफरमानबरदार बच्चे भी हैं। जो बाबा का कहना कभी मानेंगे नहीं। रूठे पड़ेंगे।
गोया अपनी तकदीर से रूठते हैं। फिर ऊंच तकदीर बनती ही नहीं है। देह-अभिमान के
कारण अपनी मत पर चलने लग पड़ते हैं। *कदम-कदम श्रीमत पर चलना चाहिए।* श्रीमत
देते हैं ब्रह्मा द्वारा।
➢➢
यह है ही दु:खधाम। रावण से दु:ख का श्राप मिलता है। बाप आकर वर्सा देते हैं। यहाँ
तुम बच्चों का मुख रोज मीठा किया जाता है। सेन्टर्स पर तो गुरूवार के दिन मुख
मीठा कराते होंगे। यहाँ तो कान भी मीठे किये जाते हैं, मुख भी मीठा किया जाता
है। *आत्मा कानों से अविनाशी ज्ञान सुनती है। नयनों से देखती है, मुख से खाती
है तो उनका स्वाद आता है। आत्म-अभिमानी बनना पड़ता है ना।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ लक्ष्मी-नारायण
बरोबर स्वर्ग के मालिक थे। उन्हों को बाबा से वर्सा मिला था। *तुम यह भी पूछ
सकते हो कि यह जो लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे तो जरूर उन्हों की प्रजा
भी होगी। सतयुग आदि में तो था ही उन्हों का राज्य। यहाँ तो प्रजा का प्रजा पर
राज्य है।*
➢➢ *यह तो समझाया
गया है - बाबा कौन है? पहले-पहले हमेशा बाबा की महिमा सुनानी है। वह सच्चा बेहद
का बाप है। बेहद का सच्चा शिक्षक है, बेहद का सच्चा सतगुरू है। यह एक की ही
महिमा है। यह पक्का याद कर लेना है।*
➢➢ *बोलो, हम जो
आपको सुनाते हैं वही सुनो। हमको और किसका सुनना नहीं है। बाप का फरमान है तुम
किसी का नहीं सुनो।* तुम जो बोलेंगे शास्त्रों की ही बात बोलेंगे। वह तो
जन्म-जन्मान्तर हम सुनते ही आये, धक्के खाते ही आये हैं। बेहद का बाप तो एक ही
है। हम ऐसे बाप की सुनेंगे वा तुम्हारी सुनेंगे? हम आपको सुनाने वाले हैं, न कि
सुनने वाले।
➢➢ *समझाना है
प्रजापिता ब्रह्मा के इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं तो जरूर भाई बहन है। दादे
का वर्सा मिलता है ब्रह्मा द्वारा। दादे का वर्सा बाप बिगर कैसे मिलेगा?* बहुत
कहते हैं हम तो सीधा दादे से ही लेंगे। परन्तु मिलेगा कैसे?
➢➢ *ब्रह्माकुमार
कुमारी जब तक न बनें तब तक दादे से वर्सा कैसे मिलेगा। पोत्रे और पोत्रियां दोनों
को हक मिलना है। बाप बिगर फिर दादा कहाँ से आयेगा? पहले-पहले है बाप का परिचय।*
➢➢ वह *गीता का
भगवान बेहद का सच्चा बाप, बेहद की शिक्षा देने वाला है।* बाप बूढ़ी माताओं के
लिए बहुत सहज करके समझाते हैं। *यह है संगम, जबकि बाप बैठ पतितों को पावन बनाते
हैं।*
➢➢ *पहले-पहले बाप
का परिचय देना है। वह रूप भी है, बसन्त भी है। निराकार आत्मा जरूर मुख से ज्ञान
सुनायेगी। कानों से आत्मा सुनेगी। नहीं तो ज्ञान सागर कैसे ज्ञान सुनाये! जरूर
ब्रह्मा मुख से सुनाना पड़े। विष्णु वा शंकर तो ज्ञान दे न सके।*
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