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  18 / 08 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *पाप और पुण्य दिल रूपी दर्पण में विचार किया जाता है ना। यह तो है ही पाप आत्माओं की दुनिया। पुण्य आत्माओं की दुनिया सतयुग को कहा जाता है।* तुम सूर्यवंशी देवी-देवता थे। *तुम जान गये हैं कि हमको 84 जन्म लेने पड़ते हैं।* वर्ण भी गाये जाते हैं। *ब्राह्मण वर्ण का किसको पता नहीं है।*

 

➢➢  तुम जानते हो कि हम सो सतोप्रधान देवी-देवता थे। उन्हों की महिमा ही है-सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण ..... हम खुद भी उनकी महिमा करते हैं। *वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड। यह है विशश। दु:खधाम, सुखधाम और शान्तिधाम, जहाँ हम सब आत्मायें रहती हैं।*

 

➢➢  *भारत ही पुण्य आत्माओं की दुनिया थी, जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उनको ही कहा जाता है स्वर्ग।* मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग गया। परन्तु स्वर्ग है कहाँ ? स्वर्ग जब था तब सतयुग था। 

 

➢➢  *वह है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास। इस समय सारी दुनिया पतित है, उनको फिर पावन बनाना एक पतित-पावन बाप का ही काम है।*

 

➢➢  *सतयुग में पवित्र गृहस्थ धर्म था। लक्ष्मी-नारायण के चित्र भी हैं। देवी-देवताओंकी महिमा गाते हैं ना - सर्वगुण सम्पन्न... उनका है हठयोग कर्म सन्यास।* लेकिन कर्म का सन्यास तो हो न सके। कर्म के बिना तो मनुष्य एक सेकेण्ड भी रह नहीं सकता। *कर्म सन्यास अक्षर ही रांग है।* 

 

➢➢  *बाप का वर्सा मिलता है मुक्ति और जीवनमुक्ति। यह भी तुम जानते हो जब देवी देवताओं का राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था, चन्द्रवंशी भी नहीं थे।* यह तो समझने की बात है ना। 

 

➢➢  *देवताओं के चित्र देखो कितने हर्षित रहते हैं। अभी तुम जानते हो वह तो हम ही थे। हम सो देवता थे फिर सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें। अभी हम संगम पर ब्रह्मा मुख वंशावली बने हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली सो ईश्वर वंशी।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *मनुष्य कहते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। प्रभू आप आकर जब हम पर तरस करो तब हम भी ऐसे बन सकते हैं।* यह आत्मा ने कहा। 

 

➢➢  *ब्रदर्स को वर्सा लेना है।* रात दिन का फर्क हो जाता है। *वह तो पतित-पावन है ना, उनसे ही पावन बनना है।* हम मनुष्य से देवता बनना चाहते हैं।

 

➢➢  *अभी तो तुम जानते हो हम सो देवता फिर क्षत्रिय...बनें। यह आत्मा कहती है।* हम आत्मा पवित्र थी तो शरीर भी पवित्र था।

 

➢➢  *बाप तुम बच्चों को महामन्त्र देते हैं कि बाप और वर्से को याद करते रहो, तो तुमको राजधानी का तिलक मिल जायेगा।* 

 

➢➢  *तुम जानते हो बाबा आये हैं हमको वैकुण्ठ का रास्ता बताने। बाप आये हैं राजयोग सिखलाने।* पावन दुनिया का मार्ग बताए गाइड बन ले जाते हैं। बरोबर विनाश भी सामने खड़ा है। विनाश होता है - पुरानी दुनिया का। पुरानी दुनिया में ही उपद्रव आदि होते हैं। 

 

➢➢  *खुद कहते भी हैं हे पतित-पावन आओ।* हम जानते हैं कि भारत ही पुण्य आत्माओं का खण्ड था। कोई पाप नहीं करते थे। पुण्य आत्माओं की दुनिया में तमोप्रधान आत्मा कहाँ से आये। *अभी बाप ने रोशनी दी है ।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बच्चों को बहादुर बनना है, डरो मत।* जिनका रक्षक खुद भगवान बाप बैठा है उनको किससे डरना है ? तुम्हें कोई श्राप आदि क्या देंगे ? कुछ भी नहीं।

 

➢➢  *बाप भी कहते हैं बच्चे क्षीरखण्ड बनो।*  तुम जानते हो कि हम सो सतोप्रधान देवी-देवता थे। सतयुग में शेर बकरी इकट्ठा पानी पीते थे, क्षीरखण्ड थे।

 

➢➢  मीठे-मीठे लाडले बच्चे *घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान रहो।* जितना प्यार से काम निकल सकता है, उतना क्रोध से नहीं। *बहुत मीठे बनो।*

 

➢➢  बाप कहते हैं मैं आया हूँ श्रीमत देने, श्रेष्ठ बनाने। *याद की अग्नि से ही खाद निकलेगी* और कोई उपाय नहीं है।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  मनुष्य तो घोर अन्धियारे में धक्का खाते रहते हैं। गाया जाता है ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। ब्रह्मा तो यहाँ है ना। *बाप आते ही हैं रात को दिन बनाने के लिए। आधाकल्प है रात, आधाकल्प है दिन।* अभी तुमको मालूम हो गया है, वह तो समझते हैं कलियुग अजुन बच्चा है।

 

➢➢  कहते हैं हम सब चीनी-हिन्दू भाई-भाई हैं, परन्तु अर्थ भी तो समझें ना। आज भाई-भाई कहते कल बन्दूक लगाते रहते हैं। *आत्मायें तो सब ब्रदर्स हैं। परमात्मा को सर्वव्यापी कहने से सब फादर हो जाते हैं। फादर को वर्सा देना है। ब्रदर्स को वर्सा लेना है। रात दिन का फर्क हो जाता है। वह तो पतित-पावन है ना, उनसे ही पावन बनना है।* 
 

➢➢  *ग्रंथ में भी है मनुष्य से देवता... गाया भी जाता है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति।* हम देवतायें जीवनमुक्त थे, अभी जीवनबन्ध बने हैं। *रावण राज्य द्वापर से शुरू होता है फिर देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं। यह निशानियां भी रखी हैं।*

 

➢➢  *यह किसको पता नहीं है कि जगन्नाथ की शक्ल काली क्यों दिखाई है। कृष्ण के लिए तो कहते हैं कि उनको सर्प ने डसा। राम को क्या हुआ ? नारायण की शक्ल भी सांवरी दिखा देते हैं। शिवलिंग भी काला दिखाते हैं, सब काला ही काला दिखाते हैं। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।* 

 

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