━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 21 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *देवता तब कहेंगे जब सम्पूर्ण फ़रिश्ता बनते है। तुमको अभी देवता नहीं कहेंगे। देवतायें है सतयुग में।* तुम्हारा है दैवी धर्म।
➢➢ *हम ही विश्व के मालिक बनने वाले हैं। मालिक थे, अब नहीं हैं फिर मालिक बनेंगे। सारी सृष्टि का मालिक और कोई बनते नहीं हैं। तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो 21 जन्म के लिए।* सुख तो सबके लिए है।
➢➢ *अभी तुम बच्चे जानते हो यहॉं हम बैठे है बेहद बाप के आगे। आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती रहती है। अभी जानती है हमारी आत्मा का बाप आया हुआ है।*
➢➢ *अभी तुम बच्चे जानते हो बाप के बने हैं, स्वर्ग का मालिक बनने। बाबा आया हुआ है। आगे भी आया था।*
➢➢ *रात्रि कृष्ण की मनाना वास्तव में रांग है, रात्री है शिव की। परन्तु यह है बेहद की बात और है भी शिव भगवानुवाच। उन्होंने शिव को भूल कृष्ण की रात्री लिख दी है। जब रात पूरी हो तब तो दिन शुरू हो।*
➢➢ *तुम जानते हो बाप हमें पढ़ाते है, राजयोग सिखलाते है स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए। बाप आते है दुनिया को बदलने, नर्क को स्वर्ग बनाने।*
➢➢ *मैं कल्प-कल्प इस संगम पर आता हूँ। मैं हूँ भी बिन्दी।* भेंट देखो कैसे करते है। *कितनी छोटी सी आत्मा में अविनाशी पार्ट है।* यह कुदरत है।
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *बाप ने समझाया है - मुझे याद करो। यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है,* जो हीरे तुल्य है। जो बाप के बनते है उनका हीरे तुल्य जन्म है।
➢➢ *आत्मायें आधाकल्प भक्ति मार्ग में ठोकरें खाती हैं कि हम अपने शान्तिधाम घर में जायें।* है भी बरोबर। *बाप भी कहते हैं अशरीरी बनो, मर जाओ।* आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो उसको मर जाना कहा जाता है।
➢➢ *अपने को आत्मा समझ मेरे साथ योग लगाओ। खुशी में रहो तो इस शरीर का भान टूट जायेगा। हम आत्मा इस दुनिया को छोड़कर अपने घर जाती है।*
➢➢ *मैं आया हूँ सुखधाम में ले जाने, जहाँ दुःख का नाम नहीं रहता इसलिए इस शमा पर खुशी से परवाने बन जाओ। परवाने खुशी से आते है ना दौड़-दौड़ कर।*
➢➢ *बरोबर तुम सूक्ष्मवतन , वैकुण्ठ आदि में जाते हो, मिलते जुलते हो। तुम्हारा कनेक्शन हो गया है बेहद का।* यह कैसा अच्छा फैशन हो गया है। अपने ससुर घर जा सकते हो।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ अब यह तो बड़ी शमा है। बाप कहते हैं तुम भी *पतंगे मिसल फिदा हो जाओ।* तुम तो चैतन्य मनुष्य हो *जो भी देह के बन्धन हैं, यह जीते जी छोड़ दो।*
➢➢ बाप कहते हैं बच्चे अब अशरीरी बनो। हम आत्मा वहाँ शान्तिधाम में रहनेवाली है। *अभी तो उस शान्तिधाम में कोई जा नहीं सकते हैं, जब तक पवित्र नहीं बने है।*
➢➢ बच्चों को यह याद भूल जाती है देह-अभिमान में आ जाते है। *बाप समझाते है- तुम आत्मा अविनाशी हो। शरीर विनाशी है।*
➢➢ यह है रुद्र शिवबाबा का यज्ञ । *अब एक को ही याद करना है।* यहाँ तो मनुष्य से देवता बनने की बात है।
➢➢ तुम बच्चे जानते हो विष्णुपुरी में ले जाने के लिए बाप आकर पढ़ाते है। कहते हैं *मामेकम् याद करो।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ इस समय सभी के पंख टूटे हुए है। *सबसे जास्ती पंख उनके टूटे हुए है जो अपने को भगवान मान बैठे है। तो वह ले कहाँ जायेंगे। खुद ही नही जा सकते है तो तुम्हारी सद्गति कैसे करेंगे इसलिए भगवान ने कहा है कि इन साधुओं का भी उद्धार करना है।*
➢➢ *भारत हमारा बहुत ऊँचा देश है। सोने का भारत था, अब नही है। जब था उसकी महिमा करते है। अभी तो सोने की क्या हालत हो गई है।*
➢➢ *शिव है ही अशरीरी। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा के मुख से ही समझायेंगे। मनुष्यों की रचना को मुख से ही समझायेंगे। मनुष्यों की रचना प्रजापिता ब्रह्मा से होती है। यह तो सब मानते है।*
➢➢ *बाप एडाप्ट करते है। इनको माँ भी बनाते है, बच्चा भी बनाते है। माँ ही एडाप्ट करती है इसलिए गाया जाता है तुम मातपिता... अर्थात हम सब आत्मायें आपके बच्चे है।*
➢➢ *भक्ति में कितना भटकते है, निराकार बाप से मिलने के लिए क्योंकि दुःखी है। सतयुग में भटकते नहीं है।* अभी तो कितने ढेर चित्र बनाये है, जिसको जो आया वह चित्र बनाया।
➢➢ *ब्रह्मा विष्णु शंकर देवता नमः कहते हैं नाकि परमात्माए नमः कहते है। जब इन्हों को ही देवता कहते है फिर अपने को परमात्मा क्यों कहते है। सब परमात्मा का रूप है, यह कैसे हो सकता है।*
────────────────────────