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❍ 06 / 11 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप ने तुम बच्चों
को समझाया है, *यह ज्ञान अभी तुमको मिला है, देवताओं के पास यह ज्ञान नहीं रहता।
तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों का खुलता है।*
➢➢ गाते हैं तुम मात-पिता.. जब हम तुम्हारे गले का हार बनेंगे तब हम सदा सुखी
होंगे। बेहद के बाप को याद करते हैं परन्तु उनके गले का हार कैसे बनेंगे, वह आश
रहती है। सो तो *जब त्रिमूर्ति शिवबाबा आये, आकर तीनों को रचे - ब्रह्मा, विष्णु,
शंकर को, तब ब्रह्मा द्वारा बेहद बाप के गले का हार बन सकेंगे।*
➢➢ *ऐसे भी नहीं झट से सब एडाप्ट हो जाते हैं।* नहीं। आहिस्ते-आहिस्ते बनते
हैं। अब देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। *झाड़ धीरे-धीरे वृद्धि को पाता
है।*
➢➢ गाॅडली स्टूडेन्ट लाइफ है ना। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं। *कृष्ण
मनुष्य नहीं पढ़ाते। ज्ञान सागर कृष्ण को नहीं कहा जाता। कृष्ण त्रिकालदर्शी नहीं
था।* राजयोग का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है, जिससे तुम प्रालब्ध पाते हो। वहाँ
इस नाॅलेज की दरकार नहीं। दरकार यहाँ है।
➢➢ वह समझते हैं शिव पर कुर्बान हो निर्वाणधाम चले जायेंगे। *बाप कहते हैं
वापिस कोई जा नहीं सकते।* पुनर्जन्म तो सबको लेना है। यह पहला नम्बर ही पूरे
पुनर्जन्म लेते हैं। तो जरूर पीछे वाले भी लेंगे। तुमने 84 जन्म लिए हैं।
➢➢ मनुष्य बिल्कुल विकारी पतित बन पड़े हैं। बूढ़े हो जाते हैं तो भी विकार नहीं
छोड़ते। नहीं तो कायदा है 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ लेना चाहिए। पहले ऐसे करते
थे। 60 वर्ष के अन्दर अपना बोझा उतारकर बच्चों को दे देते थे। अब 60 वर्ष की आयु
में भी बच्चे पैदा करते रहते हैं। *बाप कहते हैं इनकी 60 वर्ष की आयु में बहुत
जन्मों के अन्त के अन्त में, जब इनकी वानप्रस्थ अवस्था हुई तब मैंने प्रवेश किया,
तब इसने भी सब कुछ छोड़ा।*
➢➢ शुरू से ही तुम्हारा पार्ट चलता है। तुम्हारा यह है कल्याणकारी लीप जन्म। *इस
जन्म में अथवा इस धर्माऊ युग में तुम धर्मात्मा बनते हो।* वह सब हैं हद की बातें।
वह है धर्माऊ मास, धर्माऊ वर्ष, यह है धर्माऊ युग। *यह लीप जन्म ब्राह्मणों का
एक ही है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ जैसे लौकिक बाप
की रचना, लौकिक बाप के गले का हार है। बच्चे बाप को, बाप बच्चे को याद करते
हैं। वैसे *वास्तव में जो भी आत्मायें हैं वह सब याद करती हैं परमपिता परमात्मा
बाप को।* वह है हद का बाप, यह है बेहद का बाप।
➢➢ *बाप कितना सहज समझाते हैं, मनमनाभव। बाप और वर्से को याद करो।* ब्रह्मा
मुख वंशावली हो ना। तुम ज्ञान गंगायें भी ठहरे। तुम हो ज्ञान सागर द्वारा
ब्रह्मा मुख वंशावली से निकली हुई मुख वंशावली, ज्ञान कुमार, कुमारियां। तो तुम
हो ज्ञान सागर के बच्चे।
➢➢ वास्तव में सच्चा-सच्चा तीर्थ तो यह है। आत्माओं और परमात्मा का यह है सच्चा
संगम। ज्ञान सागर और ज्ञान गंगायें। यह बड़ी गुप्त समझने की बातें हैं। मोटी
बुद्धि वाले यह नहीं समझ सकेंगे। उन्हों के लिए फिर सहज युक्ति है - *शिवबाबा
और वर्से को याद करो - इन द्वारा। यह बुद्धि में होने से खुशी का पारा चढ़ेगा।*
➢➢ बाप के आने से सारी दुनिया के लिए वानप्रस्थ अवस्था हो जाती है क्योंकि *सबको
जाना है वापिस इसलिए बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।* छोटा वा बड़ा कोई भी रहेगा
नहीं। बाप आकर सबको मीठा बनाते हैं। मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों मीठे धाम हैं।
विनाश सबका होना है। *हिसाब-किताब चुक्तू भी सबका होता है।*
➢➢ *यहाँ बैठे तुम याद की यात्रा में रहो तो पाप भस्म हो जायेंगे।* तमोप्रधान
से सतोप्रधान बनने का और कोई उपाय नहीं। योग की बहुत महिमा है। मेहनत भी इसमें
है। बहुत तूफान आते हैं। सहज भी है तो मुश्किल भी है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
पहले लौकिक माँ बाप के गले का हार हैं। *उनसे जीते जी मरकर पारलौकिक बाप का बनें
तब वर्सा मिले।* जैसे कोई साहूकार, गरीब के बच्चे को एडाप्ट करते हैं तो आकर
साहूकार की गोद लेते हैं - जीते जी। वह गरीब भी जीते तो हैं ना। दोनों याद रहते
हैं। तुमको भी लौकिक और पारलौकिक दोनों सम्बन्ध याद हैं। दोनों से मिलन होता
है।
➢➢ तुमने पारलौकिक माँ बाप की गोद ली है, उनसे सुख घनेरे लेने लिए। वह हुई हद
की गोद, यह है बेहद की गोद। जीते जी गोद ली है। जानते हो इनकी गोद लेने से हम
देवी-देवता कुल में सुख घनेरे पायेंगे। तो *जिस मात-पिता की सन्तान बने हो उनको
जरूर याद करना पड़े।*
➢➢ तुम्हारी योग तपस्या के भी चित्र हैं। राजाई का भी चित्र है। *राजयोग से
तुम देवता बनते हो। तुम राजऋषि हो,* वह हठयोग ऋषि हैं। तुमको नेचरल जटायें हैं।
अभी हम सब बाबा के गले का हार हैं, सब भाई-भाई हैं। बाप से वर्सा भी मिलता होगा।
➢➢ हर एक मनुष्य चाहते हैं - हम मुक्ति प्राप्त करें क्योंकि निराकार के गले
का हार अर्थात् मुक्ति और विष्णु के गले का हार अर्थात् जीवनमुक्ति। बाप मुक्ति
और जीवनमुक्ति देते हैं। *बेहद के बाप के बच्चे बनेंगे तो उनके गले का हार होंगे।*
➢➢ यह तो बेहद का बाप है। *बहुतों को शिवबाबा के गले का हार बनना पड़ेगा तब
फिर विष्णु के गले का हार बनेंगे।* शिवबाबा तो है निराकार। ब्रह्मा द्वारा मुख
वंशावली रचते हैं।
➢➢ अब बाप नई सुख की दुनिया का लायक बना रहे हैं। बाप खुद कहते हैं। तुम कितने
नालायक अर्थात् न लायक बने हो। *अब तुम लायक बन स्वर्ग के मालिक बन सकते हो।*
तुम सो देवी-देवता थे, अभी असुर बन पड़े हो।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *गोले के नीचे
लिखना है स्वदर्शन चक्र (न कि चर्खा) उस गवर्मेन्ट का चर्खा लगा हुआ है।* यहाँ
स्वदर्शन चक्र है। दिन प्रतिदिन करेक्शन होती रहती है। बाबा ने समझाया है - *हमेशा
त्रिमूर्ती शिव जयन्ती कहना है।*
➢➢ *शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं।* शिव बाबा है तो वर्सा भी साथ में
जरूर चाहिए। तो यह विष्णु है वर्सा। फिर शंकर द्वारा विनाश गाया हुआ है, इसलिए
*त्रिमूर्ति का चित्र है मुख्य। त्रिमूर्ति चित्र चला आया है।* वहाँ भी तुम
राज्य करते हो तो तख्त के पिछाड़ी विष्णु का चित्र रहता है।
➢➢ *बाबा ने कहा है कोई ऐसी नई चीज बनाओ जो समझाना सहज हो। उसमें त्रिमूर्ति
शिव जयन्ती लिखो।* बाबा डायरेक्शन देते हैं परन्तु बनाने वाला होशियार चाहिए।
इस ज्ञान यज्ञ में विघ्न भी किस्म-किस्म के पड़ते हैं, फिर सर्विस ढीली हो जाती
है।
➢➢ बाप है ही कल्याणकारी। बच्चे भी औरों का कल्याण करते रहते हैं। तो बाप
देखकर खुश होता है। कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। *मित्र सम्बन्धियों को
भी समझाना है।* नहीं तो उल्हना देंगे। प्वाइंट्स बहुत अच्छी मिलती हैं। चित्र
भी अच्छे हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं मैंने तुमको साहूकार बनाया था।* तुमने मन्दिर बनाकर, शास्त्र
बनाकर, दान कर फालतू खर्चा करते-करते दुर्गति को पा लिया। यह भी ड्रामा में
नूँध थी तब तो बाप बैठ समझाते हैं। *बाबा तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं।*
➢➢ *तुम ब्राह्मण हो सच्ची-सच्ची गीता सुनाने वाले। सच्ची-सच्ची यात्रा का राज
तुम समझाते हो।*
➢➢ *बाप कहते हैं कल्प-कल्प मैं आकर राजयोग सिखलाता हूँ।* रचना के
आदि-मध्य-अन्त का राज समझाता हूँ कि यह चक्र कैसे फिरता है। महिमा सारी संगम की
है, जबकि *पतित-पावन बाप आकर पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ले जाते हैं।*
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