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  16 / 08 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *वर्सा कैसे लिया, कैसे गवाया - यह है चक्र का राज। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आता है। भगवान बाप ही नई दुनिया स्थापन करने वाला है।* ऐसा बाप मिल जाए तो हम क्यों न वर्सा लेवें।


➢➢  *बाप बैठ समझाते हैं मैं तुमको सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाता हूँ।* यह सब है भक्तिमार्ग। *अब भक्ति मार्ग पूरा होता है।* वह है उतरती कला। *अब तुम्हारी होती है चढ़ती कला।* कहते हैं ना चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला। *सब मुक्ति-जीवनमुक्ति को पा लेते हैं। फिर पीछे 16 कला से उतरते-उतरते नो कला में आना है।* 

➢➢  *भगवानुवाच - मैं तुम्हारी प्रालब्ध फर्स्टक्लास बनाता हूँ।* यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। *स्थापना यहाँ ही करनी है। कराने वाला तो एक बाप है। और जो धर्म स्थापन करते वह तो एक दो के पिछाड़ी आते रहते हैं।*

➢➢  *शिवशक्तियों ने भारत को स्वर्ग बनाया है, यह किसको पता नहीं। बाप भी गुप्त, ज्ञान भी गुप्त और शिव-शक्तियां भी गुप्त। पिछाड़ी में मनुष्य समझेंगे कि बरोबर हमने लाइफ व्यर्थ गँवाई, लाइफ तो इन्हों की है।* 

➢➢  *धर्म स्थापन करने वाले प्रालब्ध बना जाते हैं। बाप को तो अपनी प्रालब्ध नहीं बनानी है। अगर प्रालब्ध बनाई तो उनको भी पुरूषार्थ कराने वाला कोई चाहिए। शिवबाबा कहते हैं मुझे कौन पुरूषार्थ करायेंगे। मेरा पार्ट ही ऐसा है, मैं बादशाही नहीं करता हूँ। यह ड्रामा बना बनाया है।*

➢➢  *सिर्फ ऐसा नहीं समझना है कि मैं बाबा की हो गई। वह तो आत्मायें बाप की हैं ही। आत्माओंका बाप परमात्मा है, यह तो सेकेण्ड की बात है। परन्तु उनसे वर्सा कैसे मिलता है, वह कब आते हैं - यह समझना है। तब तो नाम बाला करेंगे।*

➢➢  *सतयुग त्रेता की इतनी जो प्रालब्ध मिली है। जरूर ऊंच ते ऊंच बाप मिला है जो ही गोल्डन, सिलवर एज का मालिक बनाते हैं और कोई बना न सके।* जरूर बाप ही मिला है। लक्ष्मी-नारायण खुद तो नहीं मिलेंगे। *ऐसा भी नहीं कि ब्रह्मा वा शंकर मिले। नहीं। भगवान मिला। वह है निराकार। भगवान के सिवाए तो कोई है नहीं जो ऐसा पुरूषार्थ कराये।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप को याद करना है और सारे सृष्टि चक्र को याद करना है।*

➢➢  *मन्सा अर्थात् याद और वचन तो सुनाते ही दो हैं - मनमनाभव और मध्याजी भव। बाप और वर्से को याद करो दो वचन हुए ना।*

➢➢  इस समय (कलयुग) कहेंगे घोर अन्धियारा। *अभी तुम राही बने हो सोझरे में जाने लिए अथवा शान्तिधाम, पियरघर जाने लिए।* वह है पावन पियरघर और यह है पतित पियरघर।

➢➢  *प्रजापिता में जो पिऊ (शिवबाबा) बैठा है, उनको तुम बाप कहते हो। वह तुमको पवित्र बनाकर अपने घर ले जाते हैं।* पिता वह भी है, पिता यह भी है। वह है निराकार, यह है साकार। 

➢➢  *बच्चे कहने वाला सिवाए बेहद के बाप के और कोई हो न सके। बाप ही कहते हैं क्योंकि बच्चों को साथ घर ले जाना है।* 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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 ➢➢  *मन-वचन-कर्म से इस भारत को सुख देना है।* मन- वचन-कर्म सो भी रूहानी।

➢➢  *मोह ममत्व निकल जाना चाहिए। जो भी समय मिले, बाप की याद में रहें और सब तरफ से ममत्व मिटा देवें।*

➢➢  बच्चे समझते हैं *पवित्र तो जरूर बनना है।* बाप ने ज्ञान योग से पवित्र बनाया और नालेज दी। इस ज्ञान से तुम एवरवेल्दी बनते हो।

➢➢  शिव जयन्ती पर मनुष्य व्रत आदि रखते हैं। लोटी चढ़ाते हैं। सारी रात जागते हैं। *यहाँ (कलियुग) तो है ही रात। उसमें जितना जीना है उतना पवित्रता का व्रत रखना है।* व्रत धारण करने से ही पवित्र राजधानी के मालिक बनते हैं।

➢➢  *(ज्ञान और योग का ) पुरुषार्थ कर सीखना चाहिए, शौक रखना चाहिए।* यह नालेज बड़ी वन्डरफुल है। बोलो, देखो कलियुग अब पूरा होता है। सबका मौत सामने खड़ा है। कलियुग के अन्त में ही बाप आकर स्वर्ग का वर्सा देते हैं।

➢➢  *एम आब्जेक्ट (लक्ष्मी - नारायण) सामने खड़ी है।* उन कालेज आदि में इस जन्म में पढ़ते हैं, इस जन्म में ही प्रालब्ध पाते हैं। यहाँ इस पढ़ाई की प्रालब्ध विनाश के बाद दूसरे (देवता) जन्म में तुम पायेंगे। देवतायें कलियुग में आ कैसे सकते ?

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम जानते हो बाप एक ही बार अवतरित होते हैं, पतितों को पावन बनाते हैं। *कृष्ण जयन्ती पर भी सिद्ध करना है। उसने तो ज्ञान दिया नहीं। जिसने उसको बनाया, पहले तो उनकी जयन्ती (शिवबाबा की जयन्ती ) मनानी चाहिए।*

➢➢  *नालेज धारण कर फिर दूसरों का भी कल्याण करना चाहिए। अच्छे-अच्छे घर की बच्चियाँ ऐसा पुरूषार्थ कर और घर-घर में जाकर समझायें तो कितना न नामाचार निकले। बच्चों को पुरूषार्थ करना और कराना है। कोई कहते हैं हमारे लिए कोई सेवा बोलो। सेवा यही है - तीन पैर पृथ्वी के देकर उसमें रूहानी कालेज और हास्पिटल खोलो।* तो उन पर कोई बोझा भी नहीं पड़ेगा। इसमें मांगने की तो बात ही नहीं।

➢➢  *(बाप) राय देते हैं अगर तुम्हारे पास पैसे हैं तो रूहानी हास्पिटल खोलो। ऐसे भी बहुत हैं जिनके पास पैसे नहीं हैं। वह भी हास्पिटल कम यूनिवर्सिटी खोल सकते हैं।* आगे चल तुम देखेंगे बहुत हास्पिटल खुल जायेंगे। तुम्हारा नाम रूहानी सर्जन लिखा होगा। रूहानी सर्जन और प्रोफेसर। मेल अथवा फीमेल दोनों रूहानी सर्जन अथवा प्रोफेसर बन सकते हैं।

➢➢  *उनको (लक्ष्मी - नारायण) सतयुग का राज्य कैसे मिला! जरूर पास्ट जन्म में ऐसा कर्म किया होगा। तुम समझा सकते हो कि बरोबर इन्होंने पुरूषार्थ से यह प्रालब्ध बनाई है। कलियुग में पुरूषार्थ किया है, सतयुग में प्रालब्ध पाई है। वहाँ (सतयुग) तो पुरूषार्थ कराने वाला कोई होता नहीं।*

➢➢  *इन चित्रों पर बहुत अच्छी सर्विस हो सकती है। बड़ा क्लीयर लिखा हुआ है। बोलो, बाप स्वर्ग की रचना रचते हैं तो फिर हम नर्क में क्यों पड़े हैं।* यह पुरानी दुनिया नर्क है ना, इसमें दु:ख ही दु:ख है फिर जरूर नई दुनिया सतयुग आना चाहिए। *तुम चित्र लेकर किसी के भी घर में जा सकते हो। बोलो, तुम सेन्टर पर नहीं आते हो इसलिए हम तुम्हारे घर में आये हैं, तुमको सुखधाम का रास्ता बताने।* तो वह समझेंगे यह हमारे शुभचिंतक हैं। यहाँ कनरस की बात नहीं।

➢➢  *ज्ञान की चटक लगी हुई हो फिर किसको भी समझाना बड़ा सहज है। घर पर बोर्ड लगा दो।* कोई बड़ी हास्पिटल, कोई छोटी भी होती है। *अगर देखो बड़ी हास्पिटल में ले जाने वाला पेशेन्ट है तो बोलना चाहिए कि चलो हम आपको बड़ी हास्पिटल में ले चलें। वहाँ बड़े-बड़े सर्जन हैं।*

➢➢  यह (ब्रह्मा) भी दुनिया के अनुभवी हैं। 60 वर्ष के जब होते हैं तो वानप्रस्थ लेते हैं। *बुढियों के लिए तो बहुत सहज है। किसको यह बैठ समझायें तो कमाल कर दिखायें। बुढियों को बहुत शौक होना चाहिए कि हम तो बाबा का नाम बाला करें।*

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