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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ आत्माएं अर्थात
बच्चे जान गए है कि हम आत्मा बिन्दी मिसल हैं। एक स्टार मुआफिक हैं। लेकिन जो
आत्मा है वह सेल्फ के बाप को कैसे रियलाइज करे। दुनिया में कोई भी न अपने को, न
बाप को जानते हैं। *तुम जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं। कितनी छोटी हैं, बाप भी
इतना छोटा है। आत्मा से परमात्मा बाप कोई बड़ा नहीं है। शरीर तो छोटा बड़ा होता
है। अब तुम शिवबाबा की याद में बैठे हो। भल कोई यह जान भी जाये कि आत्मा छोटी
बिन्दी है, परन्तु उसमें 84 जन्मों का पार्ट है, वन्डर है ना। जब तक आत्मा शरीर
का आधार न लेवे तब तक पार्ट बजा न सके ।*
➢➢ वैसे परमात्मा भी हम आत्मा के मुआफिक छोटा है। परन्तु बाप क्यों कहा जाता
है? क्योंकि *वह सदा पावन है। वह परमात्मा को न जानते भी उनको बाप कहते हैं।
जैसे तुम समझ से याद करते हो वैसे वह भी याद करते हैं। इतने जो भगत हैं, सबका
भगवान एक है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है। तो पतित हैं अनेक और पतित-पावन है
एक*।
➢➢ यहाँ कर्म का सन्यास कैसे हो सकता है? यह कहना भी झूठ है। वह कहते *जो
गृहस्थी कर्म करते वह हम नहीं करते। गृहस्थियों का कर्म तो बहुत है - यज्ञ, तप,
तीर्थ आदि करते हैं। वह सन्यासी भी करते हैं। बाकी फर्क सिर्फ यह है कि वह कमाई
कर खाना घर में पकाते हैं, सन्यासी यह नहीं करते हैं। वह मांगकर खाते हैं
क्योंकि उनका हठयोग है। हठयोग से परमात्मा से मिल नहीं सकते।*
➢➢ जब तक बाप न आये तब तक पावन दुनिया की स्थापना भी हो न सके। कितना समझाते
हैं फिर भी समझते नहीं हैं। बच्चे समाचार लिखते हैं - इतने-इतने आये। *अब देखें
कौन-कौन अपना सौभाग्य लेते हैं। आते बहुत हैं परन्तु बुद्धि में यह नहीं बैठता
कि इन्हें पढ़ाने वाला परमपिता परमात्मा है, हमको उनसे सौभाग्य लेना है।*
➢➢ कोई भी परमात्मा को नहीं जानते। कहते भी हैं हम रचता और रचना के आदि मध्य
अन्त को नहीं जानते हैं। परन्तु *ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानना चाहिए ना।
बाप समझाते हैं सतयुग है आदि, कलियुग है अन्त। तो तीनों काल, तीनों लोकों को
समझना है। तीन लोक हैं स्थूल वतन, सूक्ष्म वतन*........।
➢➢ *आत्मा हर्षित होके जाती है ना, तो आत्मा में अगर हर्षितपना होगा तो चेहरे
पर बाहर से दिखाई तो पड़ेगा ना! आत्मा कोई खत्म तो नहीं होती है, आत्मा शरीर
छोड़ती है। तो बड़ी खुशी से यह शरीर हंसते हुए छोड़ देगी, इसको कहा जाता है -
कर्मातीत अवस्था।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *यहाँ सुबह में
एक घण्टा बाबा समझाते हैं, तो क्या वह एक घण्टा बाबा को याद करते हो या बुद्धि
बाहर में चली जाती है?*
➢➢ *तुमको तो कहा जाता है पवित्र रहो और शिवबाबा को याद करो।* सन्यासी अपने को
कर्म सन्यासी कहलाते हैं। परन्तु कर्म का सन्यास होता नहीं। कर्म सन्यास तब हो
जब देह न हो। देह बिगर तो घर में (परमधाम में) रहते हैं।
➢➢ *बाप पावन बनाते हैं कैसे? याद से। कहते हैं सब धर्मो को भूल मामेकम् याद
करो।* सभी बुलाते हैं मैं नालेजफुल, ब्लिसफुल, लिबरेटर, गाइड हूँ। तो सुखधाम
में ले जाता हूँ।
➢➢ *बाबा पूछ रहे हैं कि कितना घण्टा याद में रहते हो?* बच्चे खेलने जाते हैं
तो टीचर को याद करते हैं। घर में पढ़ते हैं तो भी टीचर याद रहता है। तो वह है
स्थूल याद। इसमें है थोड़ी डिफीकल्टी, तो *बाबा पूछते हैं कि अपने को आत्मा समझ
बाप को 2 घण्टा जो याद कर सकते हैं, वह हाथ उठाओ। लज्जा नहीं कराे, एक्यूरेट
बताओ।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*बाप बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो। अपने को आत्मा समझो।
➢➢ *पवित्र बनो, बाबा को याद करो।* जब तक किसको समझाया नहीं जाये तब तक कुछ
समझ न सके । योग में रहने से पवित्र बन सकते है । कहते हैं हिज-होलीनेस। यह
पवित्रता का टाइटिल है।
➢➢ *बच्चों को खुद खड़ा होकर फिर औरों को भी खड़ा करना चाहिए और सर्विस के लिए
बेलैन्स बना देने चाहिए।* जैसे मिलेट्री के बड़े कमान्डर्स आपस में मिलते हैं
ना। तो यहाँ भी बच्चों को मिलना चाहिए। परन्तु क्या करें आपस में मिलते नहीं
हैं। वास्तव में तुम *ब्राह्मणों का आपस में बहुत प्यार होना चाहिए।*
➢➢ तुम यहाँ बैठते हो, बाबा मुरली चलाते हैं तो बुद्धि दूसरे तरफ चली जाती है
ना! इतना बुद्धि में धारण भी नहीं होता है। बरोबर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार
बुद्धि कहाँ न कहाँ चली जाती है। सारा नहीं सुनते हैं। अगर सारा बैठ" करके सुनें
और नोट करते रहें तो बाबा कहेगा हाँ, इनका योग "ठीक है। तो *मुरली सुनते समय
अटेन्शन देना है और प्वाइन्ट्स पूरा लिखना है।* अगर लिंक टूटेगी तो प्वाइन्ट
भूल जायेगी।
➢➢ वही इतना ऊंच गाये जाते हैं। *तुम बच्चों को ऐसे ही जाना है, शरीर की कोई
परवाह ही नहीं है, और दूसरी कोई चीज याद नहीं आवे, इसको कहेंगे सबसे मीठा, आपेही
शरीर छोड़ना* इसलिए सर्प का मिसाल भी देते हैं। *सतयुग में ऐसे होता है जो खुशी
से शरीर छोड़ते हैं। तो प्रैक्टिस यहाँ से होगी, पीछे वह प्रैक्टिस चलती रहेगी।*
➢➢ *तुमको यह ज्ञान घास मिलता है फिर इसको विचार सागर मंथन करते रहो। जैसे गाय
का मुख चलता रहता है। तुम्हारा मुख तो चलने की दरकार नहीं है, बाकी अन्दर में
सब कुछ याद करना है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ वह मध्य को नहीं
जान सकते क्योंकि कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। *कहना चाहिए कि बाप को
जानो, ब्रह्माकुमार कुमारी बनो तब वर्सा मिलेगा। पहले कोई आते हैं तो पूछो - कहाँ
आये हो? कहते हैं बी.के. के पास। तुम कहो विचार करो - इतने ब्रह्माकुमार
कुमारियां हैं, तो ब्रह्मा बाप भी होगा! कितने सेन्टर्स हैं, ढेरों के ढेर
ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। भला इतने बच्चे एक बाप को कैसे हो सकते! लिखा है
प्रजापिता तो इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। ऐसे-ऐसे समझाकर खड़ा करना चाहिए
।*
➢➢ सुख कहाँ है? सुखधाम में। अभी बाप ले जाता है शान्तिधाम में, फिर आते हैं
सुखधाम में। यह बातें कैसे याद करें। *रोज-रोज बोलते रहें, औरों को समझाते तो
वाइंट्स बुद्धि में आती रहती हैं। जब किसको समझाओ तो उनसे लिखा लेना चाहिए।
परमात्मा जो आत्माओं का पिता है - उनकी एड्रेस लिखानी चाहिए कि बाप शिव है तो
बाप से वर्सा लेंगे। तो मेहनत करनी चाहिए* ।
➢➢ *कोई राय निकालनी चाहिए - कैसे किसको समझायें। देखो, लक्ष्मी-नारायण के
कितने मन्दिर हैं। तो मन्दिर बनाने वालों को मिलना चाहिए कि आपने यह मन्दिर
बनाया है परन्तु जानते हो कि इन्होंने राज्य कैसे पाया? फिर राज्य कैसे गंवाया?*
➢➢ *बाबा कहते हैं कोई आये तो युक्ति से पूछना चाहिए कि आपने गीता पढ़ी है? फिर
भला बताओ गीता का भगवान कौन है? तो ऐसे युक्ति से समझाना चाहिए। कहते हैं ना
तुम मातपिता.... तो यह ब्रह्मा माता हो गई तो उनके साथ सम्बन्ध रखना चाहिए। अगर
उनसे प्यार गया तो खेल खलास, बाप से वर्सा कैसे पायेंगे*।
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