━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 13 / 08 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ आप सबकी आश है कि एक विश्व हो जाए, विश्व में स्नेह हो, प्यार हो,
लड़ाई झगड़ा न हो, यही आप सब आत्माओं की आश पूर्ण होने का समय पहुँच गया
है। विधि यथार्थ है तो सिद्धि भी होगी। *लड़ाई-झगड़े का बीज ही खत्म हो जाए
तो शस्त्र आदि होते भी यूज नहीं करना पड़े क्योंकि नुकसान कोई शस्त्र नहीं
करते, नुकसान करने वाला क्रोध है, बीज क्रोध है।* तो उसी विधिपूर्वक बीज को
ही खत्म कर दें तो सिद्धि हुई पड़ी है।
➢➢ *अब समय सबकी
बुद्धि को प्रेर रहा है। गुप्त कार्य जो चल रहा है, वह कार्य सभी को अपनी
तरफ खींच रहा है लेकिन वह जान नहीं सकते कि यह संकल्प क्यों आ रहा है। बनाया
भी खुद और फिर यूज न करें यह संकल्प क्यों चल रहा है!* यह आप स्वयं समझते
हो कि परिवर्तन में विनाश के सिवाए स्थापना होगी नहीं। लेकिन भावना तो उन्हों
की भी वही है।
➢➢ *बच्चों की
खुशी में बाप की खुशी है। सफलता मूर्त हो ना! सफलता तो साथ है ही। जब बाप
साथ है तो सफलता कहाँ जायेगी। जहाँ बाप है वहाँ सर्व सिद्धियाँ साथ हैं।*
➢➢ *कई आत्माये
गुप्त रूप में अपना स्थापना का पार्ट बजा रहे हैं, अभी प्रत्यक्ष नहीं होंगे
क्योंकि पर्दा उठने का समय तब आये जब सब एवररेडी हो जाएं। सम्पन्न हो जाएं।
पर्दा उठा फिर तो समाप्ति होगी ना। 108 भी सम्पन्नता के काफी समीप हों,
बिल्कुल सम्पन्न हो जाएं।* समय के हिसाब से भी सम्पूर्णता के नजदीक हों। ऐसा
समझते हो?
➢➢ *माला की
निशानी है - एक के साथ एक दाना मिला हुआ है। माला की विशेषता है एक दो के
संस्कारों के समीप। दाने से दाना मिला हुआ। वह तैयारी है? जिसको भी देखें,
चाहे 108 वां नम्बर हो लेकिन दाना मिला हुआ तो वह भी है ना! ऐसे जुड़े हुए
हैं।*
➢➢ *जब तक एक
दूसरे से न मिलें तब तक माला बन नहीं सकती। एक भी दाना निकल जाए तो माला
खण्डित हो जाए। पूज्य माला नहीं कही जायेगी। दूर भी रह जाएं तो भी कहेंगे
यह पूज्यनीय माला नहीं। 108 वां नम्बर भी अगर थोड़ा दूर है तो माला रेडी नहीं
हो सकती।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *जब एक ही दिखाई
देगा तो जो गीत गाते हो मेरा तो एक बाप... यह स्वत: ही होगा।* बापदादा तो सिर्फ
नैन मिलन करने आये हैं। बच्चों ने बुलाया और बाप आये। सबका संदेश तो पहुँच गया!
आपका संकल्प करते ही बापदादा ने सुन लिया। वाणी में आने से पहले बापदादा के पास
पहुंच जाता है। दिल दूर नहीं तो देश भी दूर नहीं। दिल नजदीक है इसलिए यह भी एक
दो के समीप होने का सबूत है।
➢➢ *सदा एक दो के
साथी हैं, यह प्रैक्टिकल स्वरूप दिखाया। यही मुरब्बी बच्चों की निशानी है। सभी
बच्चों की दिल मिलन मनाने में है और देह वहाँ है। याद तो वैसे भी उन्हों को
पहुँच जाती है। ऐसे तो देश में से भी जो बच्चे साकार में यहाँ नहीं हैं लेकिन
उन्हों की भी दिल यहाँ है।* उन बच्चों को देख स्नेह के सूत्र में बंधे हुए सदा
समीप रहने वाली आत्माओं को विशेष यादप्यार दे रहे हैं।
➢➢ तीनों बिन्दियों
के तिलक की सौगात हो गई। *जब से संकल्प किया और तीन बिन्दयों का तिलक ड्रामा
अनुसार फिर से लग गया। लगा हुआ है और फिर से लग गया। यह अविनाशी तिलक सदा मस्तक
पर लगा हुआ है ना। तीनों ही बिन्दी साथ-साथ हैं। बापदादा ने इस तिलक से वतन में
स्वागत कर लिया।*
➢➢ आजकल की दुनिया
में ऐसा बारूद चलाते हैं जो इतनी छोटी बिन्दी से इतना बड़ा सांप बन जाता है। *यहाँ
भी लगानी चाहिए बिन्दी। बिन्दी में सब समा जाता है। अगर संकल्प की तीली लगा देते
तो फिर वह साँप हो जाता। न तीली लगाओ न साँप बने।*
➢➢ *जो होता सबमें
कल्याण भरा हुआ है। ऐसा क्यों वा क्या नहीं। जो कुछ अनुभव करना था, वह किया।
परिवर्तन किया और आगे बढ़ो। यह है बिन्दी लगाना।* सभी विदेशियों को भी यह खेल
बताना। उन्हों को ऐसी बातें अच्छी लगती है।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ शुरू-शुरू में आदि स्थापना के समय एक दो को लिखते थे *प्रिय निज आत्मा।*
यही आत्म-अभिमानी बनने और बनाने का साधन सहज रहा। नाम, रूप नहीं देखते थे.
*यही आदि शब्द अभी गुह्य रहस्य सहित प्रैक्टिकल में लाओ तो स्वत: ही स्मृति
स्वरूप हो जायेंगे।*
➢➢ एक का मन्त्र- एक बाप, एक घर, एकमत, एकरस, एक राज्य, एक धर्म, एक नाम
आत्मा, एक रूप। *एक का मन्त्र सदा याद रहे।* तो सर्व में एक दिखाई देगा।
➢➢ *सदा उमंग-उत्साह में उड़ते चलो* यही विशेष पाठ सभी को अनुभव द्वारा
पढ़ाना। अनुभव द्वारा पाठ पढ़ना यह अविनाशी पाठ हो जाता है। तो विशेष नवीनता
यही हो - अनुभव में रह अनुभव कराना। मुख की पढ़ाई तो बहुत समय चली। अभी सभी
को इसी पढ़ाई की आवश्यकता है। इसी विधि द्वारा सभी को उड़ती कला में ले जाना
क्योंकि अनुभव बड़े से बड़ी ऑथोरिटी है।
➢➢ *जिसको अनुभव की ऑथोरिटी है उसको और कोई ऑथोरिटी वार नहीं कर सकती। माया
की ऑथोरिटी चल नहीं सकती। तो यही विधि विशेष ध्यान में रखकर चक्कर लगाना।*
➢➢ *वातावरण ऐसा बना दो जो सभी ऐसे अनुभव करें जैसे कोई शान्ति की किरण आ
गई है।* चाहे एक, आधा सेकण्ड ही अनुभव हो क्योंकि यह तो वायुमण्डल द्वारा
होगा ना! एक आधा सेकण्ड भी वायुमण्डल ऐसा हल्का बन जाए तो अन्दर से बहुत
शुक्रिया मानेंगे क्योंकि विचारे बहुत हलचल में हैं। उन्हों को देख बापदादा
को तो रहम आता है। एक झलक ही चाहिए। ज्यादा समय तो वह शक्ति को धारण भी नहीं
कर सकेंगे।
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ मनुष्यात्माये
चाहते हैं कि विनाश न हो। इस दुनिया की स्थापना ही रहे। विनाश से डरते हैं
क्योंकि समझते हैं हमारी यह दुनिया खत्म हो जायेगी। लेकिन दुनिया तो और ही नई
आने वाली है। *उन्हों को यह खुशखबरी मिल जाए तो जो आप सबका संकल्प है कि हमारी
यह दुनिया सदा वृद्धि को पाती रहे। यह आपका संकल्प विश्व के रचयिता बाप के पास
पहुँच गया है। और विश्व का मालिक विश्व में शान्ति स्थापन हो, उसका कार्य करा
रहे हैं।*
➢➢ *बोलना और
स्वरूप बनकर स्वरूप बनाना, यह साथसाथ हो। आपकी पसन्दी भी यह है ना! ड्रामा
अनुसार अभी समय जो नूँधा हुआ है वही सेवा के लिए योग्य समझो।*
➢➢ *मनुष्यात्माये
को यह खुशखबरी सुनाओ कि शान्ति के सागर द्वारा ही शान्ति होगी। हम सब एक हैं।
कभी हथियार यूज करें, कभी नहीं करें। लेकिन यह संकल्प ही समाप्त हो जाए,
ब्रदरहुड हो जाए, यह है विधि।* ब्रदरहुड आ गया तो बाप तो है ही। शान्ति का पाठ
पढ़ना पड़ेगा (शान्ति की विधि से अशान्ति खत्म होगी)। इसके लिए फिर मन्त्र है -
मैं भी शान्त, घर भी शान्त, बाप भी शान्ति का सागर, धर्म भी शान्त। तो ऐसा पाठ
पढ़ाओ।
➢➢ *मनुष्यात्माओं
को एक घड़ी भी डेड साइलेन्स की अनुभूति हो जाए तो वह बार-बार आपको थैंक्स देंगे।
आपको ही भगवान समझने लग जायेंगे। परेशान आत्माओं को अगर जरा भी अंचली मिल जाती
तो वही उन्हों के लिए एक जीवन का वरदान हो जाता। जिसको भी चांस मिले वह
बोलते-बोलते शान्ति में जाएं।* एक सेकण्ड भी अनुभूति में उन्हों को ले जाएं तो
वह बहुत थैंक्स मानेंगे।
➢➢ आप सभी के आगे
परिवार का श्रृंगार (दादियां) हैं। यह सब आप लोगों को अमर भव का सहयोग देती रहती
है। यह स्थूल में निमित्त छत्रछाया है। वैसे तो बाप की छत्रछाया हैं लेकिन
निमित्त यह अनुभवी आत्मायें मास्टर छत्रछाया है। *जैसे यह निमित्त बनी हुई हैं,
ऐसे ही आप भी अपने को हर स्थान की छतरी समझो। जिनके निमित्त बनते हो उन्हों को
सेफ्टी का साधन मिल जाए। झुकाव नहीं हो लेकिन सहारा दो।*
➢➢ *निमित्त बनकर
सहारा, सहयोग देना दूसरी बात है लेकिन सहारेदाता बनकर सहारा नहीं दो। अगर आप नहीं
समझते हो कि मैं सहारा हूँ परन्तु दूसरा आपको समझता है तो भी नाम तो दोनों का
होगा ना! सेवा समझ करके निमित्त बन उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहारा देना, इस विधि
पूर्वक सहारा दो तो कभी भी रिपोर्ट नहीं निकलेगी।* लेकिन सब कुछ उनको ही समझने
लग जाते कि यही मेरा सहारा है, इसको कहा जाता है सहारा दाता बन सहारा दिया।
लेकिन सेवा समझ निमित्त बन सहयोग का सहारा देना वह दूसरी बात है।
────────────────────────