━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 03 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *सारे ज्ञान का
वा इस पढ़ाई की चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात ''बेहद'' है। बेहद शब्द
के स्वरूप में स्थित होना, यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले बाप का
बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है देह की हद से बेहद देही स्वरूप में
स्थित होना। और लास्ट में फरिश्ता स्वरूप बन जाना - इसका भी अर्थ है सर्व हद के
रिश्ते से परे फरिश्ता बनना।*
➢➢ *इस कल्प वृक्ष के अन्दर चार प्रकार की डालियाँ हैं। लेकिन पाँचवीं डाली
ज्यादा आकर्षण है। गोल्डन, सिलवर, कॉपर, आयरन और संगम है हीरे की डाली। फिर हीरो
बनने के बजाए हीरे की डाली में लटक जाते हैं। संगमयुग का ही सर्व श्रेष्ठ कर्म,
हीरे की डाली है। श्रेष्ठ कर्म में भी हद की कामना, यह सोने की जंजीर है।* चाहे
डाली हीरे की है, जंजीर भी सोने की है लेकिन बन्धन तो बन्धन है ना!
➢➢ *इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना।
माता गुरू का सिलसिला स्थापन करना , यही नवीनता है इसलिए यादगार में भी गऊ मुख
का गायन पूजन है।* ऐसे हद की मातायें नहीं लेकिन बेहद की जगत मातायें हो, नशा
है ना!
➢➢ *मातायें जगत का कल्याण करने वाली हो, जग कल्याणकारी अर्थात् विश्व
कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना।* तो ऐसी बेहद की माताओं का
संगठन, श्रेष्ठ संगठन हुआ ना। मातायें तो अनुभवी होने के कारण हद के धोखे में
नहीं आने वाली! *कुमारियों को धोखे से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है।
मेजॉरिटी नये ये हैं। नये-नये छोटे बच्चों पर ज्यादा ही स्नेह होता है।* बापदादा
भी सभी माताओं का ''भले पधारे'' कहकर के स्वागत करते हैं।
➢➢ *निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बापदादा हरेक बच्चे को इसी
नज़र से देखते हैं। बापदादा के सेवा के कार्य में आदि रत्न हो ना! जन्मते ही बाप
ने क्या गिफ्ट में सेवा ही दी है ना। बापदादा सभी की विशेषताओं को जानते हैं।
जन्म से वरदान मिलना, यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है।*
➢➢ वैसे तो सभी सेवाधारी हैं लेकिन *जन्मते ही सेवा का वरदान और आवश्यकता के
समय में निमित्त बनना - यह भी किसी-किसी की विशेषता है। जो हैं ही आवश्यकता के
समय पर सेवा के साथी, ऐसी आत्मा की आवश्यकता सदा है।* सभी में अपनी-अपनी
विशेषतायें हैं, बापदादा के पास हरेक की विशेषता सदा सामने है।
➢➢ *आप बच्चों की कमाई अखुट और अविनाशी है क्योंकि आप ऐसी कमाई करते हो जो कभी
कोई छीन नहीं सकता। कोई गड़बड़ हो नहीं सकती।* दूसरी कमाई में तो डर रहता है,
इस कमाई को अगर कोई छीनना भी चाहे तो भी आपको खुशी होगी क्योंकि वह भी कमाई वाला
हो जायेगा। अगर कोई लूटने आये तो और ही खुश होंगे, कहेंगे लो। तो इससे और ही
सेवा हो जायेगी। तो ऐसी कमाई करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो।
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ आदि से लेकर
अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं। *जब सर्व हदों से
पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय
प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्थिति के अनुभव
स्वरूप बन जाते।*
➢➢ *हदें हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक मेरा मेरा।
एक मेरा बाबा, दूसरा न कोई इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार
सार स्वरूप बन जाता है। बापदादा सर्व उड़ते पंछियों को स्मृति दिला रहे हैं,
सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर्ता बनो।*
➢➢ *कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है
विजयी रत्न।* सदा यही स्मृति रहे कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना
है। जब फुर्सत मिलती है तो नई योजना बनाओ।
➢➢ सभी ऐसा अनुभव करते हो कि तकदीर का सितारा चमक रहा है? *जिस चमकते हुए
सितारे को देख और आत्मायें भी ऐसा बनने की प्रेरणा लेती रहें, ऐसे सितारे हो
ना! कभी सितारे की चमक कम नहीं होने देनी।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
महावीर बच्चे सदा ही तन्दुरूस्त हैं क्योंकि मन तन्दुरूस्त है, तन तो एक खेल
करता है। मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा, *अगर मन निरोगी है तो सदा
तन्दुरूस्त है। सिर्फ शेषशैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते।
यही खेल है। सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस
मिलता है।* जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं
हो लेकिन सागर के तले में हो।
➢➢ अविनाशी बाप के अविनाशी सितारे हो ना! सदा एक रस हो या कभी उड़ती कला कभी "ठहरती
कला? सदा उड़ती कला का युग है। *उड़ती कला के समय पर कोई चढ़ती कला भी करे तो
भी अच्छा नहीं लगेगा। प्लेन की सवारी मिले तो दूसरी सवारी अच्छी लगेगी? तो उड़ती
कला के समय वाले नीचे नहीं आओ। सदा ऊपर रहो।*
➢➢ पिंजरे के पंछी नहीं, पिंजरा टूट गया है या दो चार लकीरें अभी रही हैं। तार
भी अगर रह जाती है तो वह अपनी तरफ खींचेगी। 10 रस्सी तोड़ दी, एक रस्सी रह गई
तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब हदें पार करने
वाले ऐसे बेहद के उड़ते पंछी, हद में नहीं फंस सकते। 63 जन्म तो हद में फँसते
आये। *अब एक जन्म हद से निकलो, यह एक जन्म है ही हद से निकलने का हैं।*
➢➢ *जैसा समय वैसा काम करना चाहिए ना। लेकिन समय हो उठने का और कोई सोये तो
अच्छा लगेगा? इसलिए सदा हदों से पार बेहद में रहो।*
➢➢ *बेहद का प्लैन बनाते, देश-विदेश सबका बनाते हो ना! तो बेहद की भावना, बेहद
की श्रेष्ठ कामना - यह है फालो फादर। अभी यह प्रैक्टिकल अनुभव करो।*
➢➢ अभी सब बुजुर्ग हो। बुजुर्ग का अर्थ ही है अनुभवी। *अनेक बातों के अनुभवी
हो ना! कितने अनुभव हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा अनेकों के अनुभवों से अनुभवी।
अनुभवी आत्मा अर्थात् बुजुर्ग आत्मा। वैसे भी कोई बुजुर्ग होता है तो हद के
हिसाब से भी उसको पिताजी, काका जी कहते हैं। ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको
अपनापन महसूस हो।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ विशेषतायें सबमें
अपनी-अपनी हैं लेकिन बापदादा विशेष आत्माओं को एक ही बात बार-बार स्मृति में
दिलाते हैं, *जब भी कोई भी सेवा के क्षेत्र में आते हो, प्लैनिंग बनाते हो वा
प्रैक्टिकल में न भी निकले तो भी संकल्प में इमर्ज हो कि यह हमारे हैं - इसको
ही कहा जाता है फालो फादर। सबको हमारे-पन की फीलिंग आये। यही पहला स्टैप बाप का
है। यही तो बाप की विशेषता है ना।*
➢➢ हरेक के मन से निकलता है ''मेरा बाबा।'' तेरा बाबा कोई कहता है? तो *यह मेरा
है बेहद का भाई है या बहन है, दादी है वा दादी है, यही सबके मन से शुभ आशीर्वाद
निकले। यह मेरा है क्योंकि चाहे कहीं भी रहते हो लेकिन विशेष आत्मायें तो बेहद
की हो ना!* निमित्त सेवार्थ कहीं भी रहो लेकिन हो तो बेहद सेवा के निमित्त ना।
➢➢ सहयोगी आत्माओं को तो बापदादा सदा ही सहयोग के रिटर्न में स्नेह देते हैं।
सहयोगी हो अर्थात् सदा स्नेह के पात्र हो इसलिए देंगे क्या, सबको स्नेह ही देंगे।
*सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नज़र में स्नेह
अनुभव हो।* यही तो विशेषता है ना!
➢➢ *ऐसा कोई प्लैन बनाओ कि हमें क्या करना है। विशेष आत्माओं का विशेष फर्ज
क्या है? विशेष कर्म क्या है? जो साधारण से भिन्न हो। चाहे भावना तो समानता की
रखनी है लेकिन दिखाई दे आत्मायें हैं।* हर कदम में विशेषता अनुभव हो तब कोई
मानेंगे विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली। कहने वाली
नहीं लेकिन करने वाली।
────────────────────────