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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *गीत भी गाते
हैं दूरदेश के... अब पराये देश, पतित शरीर में आये हैं। बाप खुद कहते हैं यह
पराया देश है। पराया किसका? रावण का। तुम भी पराये देश अथवा रावण राज्य में हो।
भारतवासी पहले राम राज्य में थे। इस समय पराये अर्थात् रावण राज्य में हैं।*
➢➢ *जिन्होंने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया है, उन्हों का यादगार है। जगत
अम्बा, जगत पिता और उनके बच्चे हैं। मैजारिटी माताओं की होने कारण बी.के.नाम
लिख दिया है।* मंदिर में भी कुवारी कन्या और अधर देवी है। अन्दर जायेंगे तो
हाथियों पर मेल्स के चित्र हैं। यह सब बातें तुम बच्चे ही समझ सकते हो।
➢➢ *बाप ने समझाया है दूरदेश से आते हैं पराये देश में। फिर रावण राज्य द्वापर
से शुरू होता है। भक्ति भी द्वापर से शुरू होती है, इस समय सबकी तमोप्रधान,
जड़जड़ीभूत अवस्था है।* यह बेहद का पुराना झाड़ है। बेहद का ज्ञान कोई दे न सके।
बेहद का सन्यास कोई करा न सके। *वह हद का सन्यास कराते हैं। बेहद का बाप बेहद
की पुरानी दुनिया का सन्यास कराते हैं।*
➢➢ अब मैं आया हूँ तुमको पावन बनाकर वापिस घर ले जाने के लिए। जो विकार में
जास्ती जाते हैं उनको ही पतित भष्टाचारी कहा जाता है। *यह सारी दुनिया ही विकारी
है इसलिए ड्रामा प्लैन अनुसार मैं रावण के देश में आया हूँ। 5 हजार वर्ष पहले
भी आया था। हर कल्प आता हूँ और आता भी हूँ संगमयुगे। बच्चों को मुक्ति,
जीवनमुक्ति देने आता हूँ।*
➢➢ *सतयुग में है जीवनमुक्ति। बाकी सब मुक्ति में रहते हैं। तो भी इतनी सब जो
आत्मायें हैं उनको ले कौन जायेगा? बाप को ही लिबरेटर और गाइड कहा जाता है। बाप
ही आकर भक्तों को भक्ति का फल देते हैं।* तुम ही पुजारी से पूज्य बनते हो। बाबा
कोई और तकलीफ नहीं देते।
➢➢. *ब्रह्मा, सरस्वती की भी माँ हो गई। गाया भी जाता है त्वमेव माताश्च पिता...
निराकार को कैसे कह सकते। इसमें उसने प्रवेश किया है तो यह माता बनी ना।*
सन्यासी तो निवृत्ति मार्ग वाले हैं - अपने मुख से कहते हैं कि यह हमारे
फालोअर्स हैं। वे कहते हैं हम फालोअर्स हैं। *यहाँ तो माता पिता दोनों हैं,
इसलिए कहते हैं त्वमेव माताश्च पिता... बन्धू भी हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम्हारे अब 84
जन्म पूरे हुए हैं। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। विनाश अवश्य होना ही है इसलिए
बेहद के बाप और वर्से को याद करो।* हे आत्मायें सुनती हो? हम आत्मा हैं,
परमात्मा बाप हमको पढ़ाते हैं। जब तक यह पक्का निश्चय नहीं, गोया कुछ भी नहीं
समझेंगे।
➢➢ *देलवाड़ा मंदिर में चित्र बरोबर ठीक हैं। बच्चे योग में बैठे हैं, उन्हों
को शिक्षा देने वाला कौन है? परमपिता परमात्मा का चित्र भी है। शिवबाबा ब्रह्मा
द्वारा सतयुग की स्थापना कर रहे हैं। यहाँ भी चित्र में देखो झाड़ के नीचे
तपस्या कर रहे हैं।*
➢➢ *स्वर्ग का मालिक बनाने वाला जरूर उस्ताद चाहिए। वहाँ कृष्ण की बात नहीं।
जहाँ ब्रह्मा बैठा है - वहाँ कृष्ण कैसे आये। कृष्ण की आत्मा तपस्या कर रही है,
सुन्दर बनने के लिए। अभी वह श्याम है।*
➢➢ बाबा झट बतायेंगे, इस समय ब्राह्मणों की माला में नम्बरवार कौन-कौन हैं।
परन्तु सब कायम नहीं रहेंगे। कमाई में दशायें बैठती हैं ना। *किसको राहू की दशा
बैठती है तो फिर छोड़ चले जाते हैं - पुरानी दुनिया में। कहते हैं हमसे मेहनत
नहीं होती है। बाबा को याद नहीं कर सकते। नहीं कहने से नास्तिक बन जाते हैं।
दशायें फिरती रहती हैं। माया के तूफान आने से ढीले हो जाते हैं।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*जबकि बेहद का बाप बच्चों को मिला है और बच्चों ने पहचाना है, अब हर एक महसूस
करते हैं कि हम कितना पाप आत्मा थे और कितना पुण्य आत्मा बन रहे हैं।
जितना-जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना जरूर बाप को फालो करेंगे।*
➢➢ तुम अभी साफ दिल बनते हो। आत्मा से अवगुण निकाल रहे हो। तुम्हारी मम्मा
किसको समझाती थी तो उनको तीर लग जाता था। उनमें सच्चाई, पवित्रता थी। थी भी
कुमारी। मम्मा का नाम पहले आता है। पहले लक्ष्मी फिर नारायण। अब बाप कहते हैं *मम्मा
जैसे गुण धारण करो। अवगुणों को निकालते जाओ।*
➢➢ *सपूत बच्चों का काम है हर एक बात समझना। पहले तुम बेसमझ थे। अब बाबा
समझदार बनाते हैं।* अज्ञान में बच्चे खराब होते हैं तो बाप का नाम बदनाम करते
हैं। यह तो बेहद का बाप है। *ब्रह्माकुमार कुमारियाँ कहलाकर फिर ईश्वर बाप का
नाम बदनाम करेंगे तो उनका क्या हाल होगा। ऐसा काम क्यों करना चाहिए जो पद भी
भष्ट हो और बहुतों का नुकसान भी हो।*
➢➢ तुम बच्चे ज्ञान तो सबको देते हो लेकिन कई समझते हैं कि ज्ञान में आकर पति
पत्नी दोनों साथ रहते पवित्र रहें-यह तो बहुत बड़ी ताकत है। परन्तु यह नहीं
समझते कि यह सर्वशक्तिमान् बाप की ताकत है। *बाप देखो स्वर्ग की कितनी भीती देते
हैं। बच्चे पवित्र बनो तो स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।*
➢➢ तुम ब्रह्मण कुल वाले श्याम से सुन्दर बन रहे हो। यहाँ बहुत जबरदस्त कमाई
है। बच्चे जानते हैं मम्मा बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। *बच्चे कहते हैं बाबा
हम भी आप जैसा पुरुषार्थ कर जरूर तख्तनशीन बनेंगे। वारिस बनेंगे। परन्तु फिर भी
ग्रहचारी बैठ जाती है। चलन भी अच्छी चाहिए।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। यह ब्रह्मा विचार सागर मंथन कर समझाते हैं कि *यह जो जैनी लोग हैं उनका यह देलवाड़ा मंदिर है। यह जो चैतन्य होकर गये हैं उनका ही जड़ याद
गार है। आदि देव आदि
देवी भी बैठे हैं। ऊपर में स्वर्ग है। अब अगर जो उन्हों के भगत हैं उन्हों को
ज्ञान मिले तो अच्छी तरह समझ सकते हैं कि बरोबर नीचे राजयोग की शिक्षा ले रहे
हैं।*
➢➢ *तुम्हारा धन्धा है घर-घर में सन्देश पहुँचाना कि शिवबाबा को याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे। विनाश सामने खड़ा है - तुम निमन्त्रण देते रहो।* तुम्हारी
दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जायेगी। सेन्टर्स खुलते जायेंगे। यह इतना बड़ा मकान
भी कम पड़ जायेगा। *आगे चल कितने मकान चाहिए। ड्रामा में आने वालों के लिए
प्रबन्ध भी जरूर चाहिए।*
➢➢ *बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। अम्बा के मंदिर के आगे भी अपना सेन्टर
होना चाहिए जो सबको समझाया जाए, तो अभी यह ज्ञान ज्ञानेश्वरी है।* वहाँ भी भीड़
मच जायेगी। तुम सिर्फ काम करो, पैसे छम-छम कर आ जायेंगे। *ड्रामा में पहले से
नूंधा हुआ है। तुम 10 सेन्टर खोलो, बाबा ग्राहक दे देंगे।*
➢➢ *कलकत्ते जैसे शहर में तो बहुत सेन्टर खुलने चाहिए। हिम्मते बच्चे मददे बाप,
किसको भी टच कर देंगे।* काम तुमको करना है। बहुरूपी के बच्चे तुम बहुरूप धारण
कर यह सर्विस कर सकते हो। *कहाँ भी जाकर बहुतों का कल्याण कर सकते हो। जैनियों
की भी सर्विस करनी है। बहुत अच्छे बड़े-बड़े जैनी हैं।*
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