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  20 / 09 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बिगड़ी को बनाने वाला भगवान भोलानाथ ही है। वह कल्प-कल्प सर्व की बिगड़ी को बनाने वाला। सर्व को गति सद्गति देने वाला है।* लौकिक बात टीचर गुरु हमको बेहद का मालिक नहीं बना सकते ।

➢➢  बाप हमेशा भोले होते हैं *एक होता है हद का बाप दूसरा होता है बेहद का बाप*। बाप तो होते ही हैं - एक अलौकिक और दूसरा पारलौकिक। लौकिक बाप को तो सब जानते ही हैं *तुम ब्राह्मण अलौकिक बाप और पारलौकिक बाप दोनों को जानते हो ।*

➢➢  *स्वर्ग में तो सब नहीं जा सकते। बाप कहते हैं सर्व की सद्गति करता हूं।* तुम मुक्ति में जाकर फिर पार्ट बजाने आते हो नंबरवार । *मुक्ति सबको मिलती है।* माया के दुख से सब छूट सकते हैं। फिर नंबरबार आना होगा पार्ट बजाने ।

➢➢  *फूलों का बगीचा स्थापन होता है संगम पर। संगम को तुम ब्राह्मण ही जानते हो ।*

➢➢  *रावण की मशीनरी है पावन को पतित बनाना। राम की मशीनरी है पतितों को पावन बनाना।*

➢➢  *जो धारण करते और कराते हैं वही ऊंच पद पाते हैं। धारणा नहीं करेंगे तो ऊँच पद भी कम हो जायेगा।*

➢➢  *तुम्हारा बोल जो निकलता है उनको रत्न कहा जाता है। बाप रूप-बसन्त है । आत्मा को रूपवान बनाते है ।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अब बाप कहते हैं कि दे दान तो छुटे ग्रहण। योगबल से माया रावण को जीतना है ।* विकारों का दान दिया जाता है तो ग्रहण छूट जाता है ।

➢➢  *मुख्य है यही योग बापदादा जिससे स्वर्ग की बादशाही का वरसा मिलता है उनको याद भला क्यों नहीं करेंगे*। सारा कल्प तो देहधारी को याद किया है *अब याद करना है विदेही को, विचित्र को ।* 

➢➢  *अब आत्मा काली कुरूप है उनको योग से रूपवान बनाना है ।*

➢➢  अब बाप कहते है मैंने तुमकों कितना समझदार बनाया था। तुमको *स्वर्ग में भेजा था फिर तुम 84 जन्म लेते-लेते क्या बन पड़े हो। अनेक बार यह चक्र लगाया हैं।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम बच्चे अभी रूप-बसंत बनते हो । मुख से सदैव अविनाशी ज्ञान रतन निकलते हैं *बच्चों के मैनर्स बहुत मीठे होने चाहिए। मुख से हमेशा रतन ही निकलने चाहिए ।*

➢➢  *बच्चों को बुद्धि में बहुत नशा चढ़ना चाहिए कि राजधानी स्थापन हो रही है ।*

➢➢  *अगर कोई उल्टी बात सुनाए तो समझो यह हमारा दुश्मन है । ऐसे का संग कभी नहीं करना, ना सुनना ।*

➢➢  *आपेही अपना कल्याण करना है । किसकी गलानी नहीं करनी है ।*

➢➢  बाप कहते है तुम सब आत्माएं मेरे बच्चे हो। भाई-बहन हो। *बुद्धि में यह आना चाहिए। बाप स्वर्ग रचने वाला है। तो हमको स्वर्ग की राजाई क्यों नहीं मिलनी चाहिए ।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाप समझाते रहते है। करेक्शन भी करते जाओ। *ब्रह्माकुमार कुमारियों के आगे प्रजापिता ब्रह्मा जरूर लिखना चाहिए । प्रजापिता कहने से बाप सिद्ध हो जाता है ।* हम प्रश्न ही पूछते हैं कि प्रजापिता ब्रह्मा से क्या संबंध है ? क्योंकि ब्रह्मा नाम तो बहुतों के है।

➢➢  *बाप है ज्ञान का सागर। उसका रूप भी समझाया है कि कितना सूक्ष्म है वह तो लिंग कह देते हैं। *पहले तो बाप का परिचय देना है। भल वह ज्योतिर्लिंगम ही समझें। डीप बात बाद में समझानी होती है। फिर पूछना होता है आत्मा का रूप क्या है ?* यह तो सब कहते हैं भृकुटि के बीच में चमकती है। तो जरूर छोटी ही होगी । बड़ा लिंग तो यहां बैठ भी ना सके ।

➢➢  *पहले तो बाप और बच्चे का संबंध बुद्धि में बिठाना चाहिए।* वह तो है बेहद का बाप। अब ब्रह्मा कहाँ से आता है ?

➢➢  बाबा हमेशा समझाते हैं कि *ज्ञान रत्न दान करते रहो। बाबा जो सुनाते हैं वह औरों को सुनाओ।*

➢➢  *बाप काटों से फूल बनाने आये है तो बच्चों का भी यही धन्धा है।* बाप यह धंधा सिखलाते हैं। तो यह मनुष्य को देवता, कांटों को फूल बनाने की फैक्ट्री हुई ना। *तुम्हारा ज्ञान मेटेरियल है जिससे तुम मनुष्य से देवता बनते हो। तो वह हुनर सीखना चाहिए ना बिगड़ी को बनाते रहो पत्थर-बुद्धि को पारसबुद्धि बनाओ।*

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