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❍ 23 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सर्वंश त्यागी बच्चों की विशेषता क्या है?* जिन विशेषताओं के आधार पर समीप व समान बनते हैं। *संकल्प में सदा निराकारी सो साकारी, सदा न्यारी और बाप की प्यारी आत्मायें । वाणी में सदा निरहंकारी अर्थात सदा रूहानी मधुरता और निर्माणता । कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात प्यूरिटी की पर्सनैलिटी वाली ।*
➢➢ ब्राह्मणों की भाषा भी रॉयल बन गई है । अभी वह विस्तार तो बहुत लम्बा है । *मैं ही यथार्थ हूँ व राइट हूँ - ऐसा अपने को सिद्ध करने के रॉयल भाषा के शब्द भी बहुत हैं । यह भी बड़ी डिक्शनरी है । जो वास्तविकता नहीं है लेकिन स्वयं को सिद्ध करने व स्वयं की कमजोरियों के बचाव के लिए मनमत के बोल हैं ।*
➢➢ *सर्वांश त्यागी स्वयं मास्टर दाता बन परिस्थितियों को भी परिवर्तन करने का, कमजोर को शक्तिशाली बनाने का, वायुमंडल व वृत्ति को अपनी शक्तियों द्वारा परिवर्तन करने का, सदा स्वयं को कल्याण अर्थ जिम्मेवार आत्मा समझ हर बात में सहयोग वा शक्ति के महादान व वरदान देने का संकल्प करेंगे ।*
➢➢ *सर्वंश त्यागी सदा विश्व कल्याणकारी की विशेषता वाले होंगे।* सदा दाता का बच्चा दाता बन सर्व को देने की भासना से भरपूर होंगे । *मास्टर दाता बन परिवर्तन करने का, शुभ भावना से शक्तियों को कार्य में लगाने अर्थात देने का कार्य करते रहेंगे।* मुझे देना है, मुझे करना है, मुझे बदलना है, मुझे निर्माण बनना है । ऐसे "ओटे सो अर्जुन" अर्थात दातापन की विशेषता होगी ।
➢➢ *सर्वंश त्यागी आत्मा सदा सर्व प्रत्यक्ष फलों से सम्पन्न अविनाशी वृक्ष के समान होगी । सदा फलस्वरूप होगी इसलिए हद के कर्म का , हद के फल पाने की अल्पकाल की इच्छा से इच्छा मात्रम अविद्या होंगे।* सदा प्रत्यक्ष फल खाने वाले सदा तंदुरुस्त होंगे, सदा स्वस्थ होंगे । *कोई भी मन की बीमारी नहीं होगी, सदा मनमनाभव होंगे।*
➢➢ ऐसा नही की यह इस स्थान की बात है या इस बहन वा भाई की बात है, नहीं । मेरा परिवार है, मैं कल्याणकारी निमित आत्मा हूँ। *टाइटल विश्व कल्याणकारी का मिला हुआ है ना कि सिर्फ स्व कल्याणकारी वा आपने सेन्टर के कल्याणकारी । मैं - पन नहीं, निमित मात्र हूँ अर्थात विश्व कल्याण के आधारमूर्त, बेहद के कार्य के आधारमूर्त हूँ। दूसरे की कमज़ोरी अर्थात अपने परिवार की कमज़ोरी है, ऐसा बेहद के निमित आत्मा समझेंगे ।*
➢➢ *सर्वंश त्यागी की ऐसी भाषा नहीं होती - जिसमे किसी भी विकार का अंश मात्र भी समाया हुआ हो । तो मंसा - वाचा - कर्मणा , सम्बन्ध - संपर्क में सदा विकारों के अंश मात्र से भी परे - इसको कहा जाता है सर्वंश त्यागी । सर्व अंश का त्याग।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ आप लोग तो हर गुरुवार को भोग लगाते हो लेकिन बापदादा तो महाभोग करेंगे ना । *जैसे संदेशियाँ ऊपर वतन में भोग ले जाती हैं - तो बापदादा भी कहाँ ले जाएंगे ! पहले स्वयं को भोग में समर्पण करो । भोग भी बाप के आगे समर्पण करते हो ना! अभी स्वयं को सदा प्रत्यक्ष फल स्वरूप बनाकर समर्पण करो तब महाभोग होगा । अपने आप को सम्पन्न बनाकर आफर करो ।* सिर्फ स्थूल भोग की आफर नहीं करो । सम्पन्न आत्मा बन स्वयं को आफर करो ।
➢➢ इस मिलन मेले की सीज़न विशेष किस सीज़न को लायेगी ? इस सीज़न का फल क्या निकलेगा ? *सीज़न के फल का महत्व होता है ना । तो इस सीजन का फल क्या निकला! बापदादा मिला यह तो हुआ लेकिन मिलना अर्थात समान बनना । तो सदा बाप समान बनने के दृढ़ संकल्प का फल बापदादा को दिखायेंगे ना!* ऐसा फल तैयार किया है? अपने को तैयार किया है? व अभी सिर्फ सुना है, बाकी तैयार होना है ? सिर्फ मिलन मनाना है व बनना है ?
➢➢ *जैसे मिलन मनाने के लिए बहुत उमंग - उत्साह से भाग - भाग कर पहुँचते हो वैसे बनने के लिए भी उड़ान उड़ रहे हो ?* आने जाने के साधनों में तकलीफ भी लेते हो । लेकिन *उड़ती कला में जाने के लिए कोई मेहनत नहीं है । जो हद की डालियाँ बनाकर डालियों को पकड़ बैठ गये हो , अभी है उड़ते पंछी , डालियों को छोड़ो ।* सोने की डाली को भी छोड़ो । सीता को सोने के हिरण ने शोक वाटिका में भेजा । यह मेरा मेरा है, मेरा नाम , मेरा मान , मेरा शान , मेरा सेन्टर यह सब सोने की डालियाँ हैं ।
➢➢ *बाकी एक बारी मिलने का रहा हुआ है । वैसे तो साकार द्वारा मिलन मेले का, इस रूप रेखा से मिलने का आज अंतिम समय है ।* प्रोग्राम प्रमाण तो आज साकार मेले का समाप्ति समारोह है फिर तो आगे की बात आगे देखेंगे। एक्सट्रा एक बाप का चुंगा भी मिल जाएगा । लेकिन इस सारे मिलन मेले का स्व प्रति सार क्या लिया? सिर्फ सुना व समाकर स्वरूप में लाया?
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ जैसे सूर्य का काम है किचडे को भस्म करना, अन्धकार को मिटाना, रोशनी देना । तो इसी रीति *मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थार्त व्यर्थ किचडे को समाप्त करने वाले अर्थात अंधकार को मिटाने वाले बनो।* अगर प्रभाव में आ जाते तो कमजोर हुए । बाप सर्वशक्तिवान और बच्चे कमजोर , यह सुनना भी अच्छा नहीं लगता । कुछ भी हो लेकिन *सदा स्मृति रहे "मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ" ।*
➢➢ *लौकिक सम्बन्ध में रहते अलौकिक सम्बन्ध की स्मृति रहे ।* निमित लौकिक सम्बन्ध लेकिन स्मृति में अलौकिक और पारलौकिक सम्बन्ध रहे । *कितनी भी आत्माओं के संपर्क में आते सदा न्यारे और प्यारे रहो ।* सेवा के अर्थ संपर्क है । *सदा कमल आसान पर विराजमान रहो ।* देह का सम्बन्ध नहीं है, सेवा का सम्बन्ध है । प्रवृत्ति में सम्बन्ध के कारण नहीं रहे हो, सेवा के कारण रहे हो । घर नहीं सेवास्थान है । सेवास्थान समझने से सदा सेवा की स्मृति रहेगी ।
➢➢ बेहद का अधिकार छोड़ हद की अधिकार लेने में आ जाते हो । मेरा अधिकार यह है, यह मेरा काम है- इन सबसे उड़ते पंछी बनो । इन *हद के आधारों को छोड़ो ।* तोते तो नहीं हो ना - जो चिल्लाते रहो की छुड़ाओ । छोड़ते खुद नहीं और चिल्लाते हैं कि छुड़ाओ । तो ऐसे तोते नहीं बनना । छोड़ो और उड़ो। छोड़ेंगे तो छूटेंगे ना । बापदादा ने पंख दे दीये हैं - पंखों का काम है उड़ना व बैठना ? तो *उड़ते पंछी बनो अर्थात उड़ती कला में सदा उड़ते रहो ।*
➢➢ *सर्वंश त्यागी आत्मा किसी भी विकार के अंश के भी वशीभूत हो कोई कर्म नहीं करेगी । सर्वंश त्यागी अर्थात सदा गुण मूर्त ।* गुण मूर्त का अर्थ है गुणवान बनना और सर्व में गुण देखना । अगर स्वयं गुण मूर्त है तो उसकी दृष्टि और वृत्ति ऐसी गुण सम्पन्न हो जायेगी जो उसकी दृष्टि वृत्ती द्वारा सर्व में जो गुण होगा वही दिखाई देगा । अवगुण देखते , समझते भी किसी का भी अवगुण बुद्धि द्वारा ग्रहण नहीं करेगा अर्थात बुद्धि में धारण नहीं करेगा । ऐसा होलिहन्स होगा ।
➢➢ सेवा में विघ्न बनने के कारण वा सम्बन्ध - संपर्क में कोई भी नम्बरवार आत्माओं के कारण ज़रा भी हलचल होती है तो *सर्वंश त्यागी बेहद के आधारमूर्त समझ चारों ओर की हलचल को अचल बनाने की जिम्मेवारी समझेंगे।* ऐसे बेहद की उन्नति के आधार मूर्त सदा स्वयं को अनुभव करेंगे ।
➢➢ सदा आपने को मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा समझते हो ? सर्वशक्तिवान अर्थात समर्थ । जो समर्थ होगा वह व्यर्थ के किचडे को समाप्त कर देगा । मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात व्यर्थ का नाम निशान नहीं । *सदा यह लक्ष्य रखो की मैं व्यर्थ को समाप्त करने वाला समर्थ हूँ ।*
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सभी प्रवृत्ति में रहते प्रवृत्ति के बंधन से न्यारे और सदा बाप के प्यारे हो?
किसी भी प्रवृत्ति के बंधन में बंधे हुए तो नहीं हो ? लोकलाज के बंधन में ,
सम्बन्ध में बंधे हुए को बन्धनयुक्त आत्मा कहेंगे । तो *कोई भी बंधन न हो । मन
का भी बन्धन नहीं। मन में भी यह संकल्प न आये की हमारा कोई लौकिक सम्बन्ध है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आप सर्वांश त्यागी आत्माये हर कर्मेन्द्रिय द्वारा महादानी व वरदानी, मस्तक द्वारा सर्व को स्व स्वरूप की स्मृति दिलाने के वरदानी व महादानी हो ।*
➢➢ *नयनों से रुहानी दृष्टि द्वारा सर्व को स्व - देश अर्थात मुक्तिधाम और स्वराज्य अर्थात जीवनमुक्ति, अपने राज्य का दर्शन कराना वा रास्ता दिखाने का दृष्टि द्वारा इशारा देना । ऐसा अनुभव कराने का वरदान देना कि जो आत्मायें महसूस करें कि यही हमारा असली घर और राज्य है । घर का रास्ता, राज्य पाने का रास्ता मिल गया ।* ऐसे महादान वा वरदान पाकर सदा हर्षित हो जाएं ।
➢➢ *आत्माये आप के मुख द्वारा रचयिता और रचना के विस्तार को स्पष्ट जान स्वयं को रचयिता की पहली रचना श्रेष्ठ ब्राह्मण सो देवता बनने का वरदान पा लें।* ऐसे *हस्तों द्वारा सर्व को सदा सहज योगी, कर्मयोगी बनने के वरदान देने वाले, श्रेष्ठ कर्मधारी, श्रेष्ठ फल प्राप्त करने के वरदानी बनाने वाले हो ।*
➢➢ *चरण कमल द्वारा हर कदम फालो फादर कर , हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने के वरदानी हो । ऐसे हर कर्मेन्द्रिय द्वारा विशेष अनुभूति कराने के वरदानी अर्थार्त निर्विकारी जीवन हो ।*
➢➢ *सर्वंश त्यागी सदा अपने को हर श्रेष्ठ कार्य के - सेवा की सफलता के कार्य में , ब्राह्मण आत्माओं की उन्नति के कार्य में , कमजोरी व व्यर्थ वातावरण को बदलने के कार्य में जिम्मेवार आत्मा समझेंगे ।*
➢➢ *ऐसा नहीं समझो
कि मैं अकेला क्या कर सकता हूँ.. एक भी अनेकों को बदल सकता है । तो स्वयं भी
शक्तिशाली बनो और औरों को भी बनाओ । जब एक छोटा - सा दीपक अंधकार को मिटा सकता
है तो आप क्या नहीं कर सकते !* तो सदा वातावरण को बदलने का लक्ष्य रखो । *विश्व
परिवर्तक बनने के पहले सेवाकेंद्र के वातावरण को परिवर्तन कर पावरफुल वायुमंडल
बनाओ ।*
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