━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 13 / 10 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ बाबा बहुत राज़
समझाते हैं। लेकिन समझने वाले नम्बरवार हैं तो पद भी नम्बरवार हैं। *ये डीटी
किंगडम स्थापन हो रही है, धर्म नहीं। धर्म तो दूसरे धर्म वाले स्थापन करते हैं।
शिवबाबा तो ब्रह्मा द्वारा राजाओं का राजा बनाते हैं।*
➢➢ *जैसे तुम आत्मा सितारे सदृश्य हो वैसे मैं भी हूँ। अगर मैं बड़ा होता तो
इस शरीर में फिट नहीं होता।* जैसे और सभी आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं, वैसे
मैं भी आता हूँ। *बाबा का भक्तिमार्ग से पार्ट शुरू होता है। सतयुग त्रेता में
तो पार्ट ही नहीं।*
➢➢ *बाप कहते हैं मैं ही आकर बच्चों को आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज अथवा ज्ञान
सुनाता हूँ।* तो एक ही ज्ञान का सागर ठहरा, न शंकर, न अव्यक्त ब्रह्मा। अव्यक्त
ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन में रहता है। बहुत इस बात में मूंझते हैं कि दादा को
भगवान ब्रह्मा क्यों कहते हैं ? लेकिन *अव्यक्त ब्रह्मा को भी भगवान नहीं कह
सकते।*
➢➢ अब बाप समझाते हैं कि मैं ही तुम्हारा पारलौकिक पिता हूँ। परलोक न स्वर्ग
को, न नर्क को कहेंगे। *परलोक है परे ते परे लोक, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं
इसलिए उनको कहते हैं परमप्रिय पारलौकिक परमपिता क्योंकि वह परलोक में रहने वाले
हैं।*
➢➢ बाप समझाते हैं कि मैं सारे कल्प वृक्ष का बीजरूप हूँ। *एक शिव के सिवाय
किसको भी क्रियेटर नहीं कह सकते। वही एक क्रियेटर है बाकी सब उनकी क्रियेशन
हैं।* अब क्रियेटर ही क्रियेशन को वर्सा देते हैं। *सब कहते हैं हमको ईश्वर ने
अथवा खुदा ने पैदा किया है। तो उस एक ईश्वर को सब फादर कहेंगे।* गाँधी को तो
फादर नहीं कहेंगे। बेहद का रचता बाप एक ही है।
➢➢ बाबा कहते हैं मैं कोई साइज़ में बड़ा नहीं हूँ लेकिन परमधाम का रहने वाला
हूँ इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं। *परमात्मा में ही सारा ज्ञान है। वह कहते
हैं जैसे मैं अशरीरी हूँ वैसे आत्मा भी कुछ समय परमधाम में अशरीरी रहती है।*
➢➢ *बच्चे समझ गये हैं कि भोलानाथ सदा शिव को कहा जाता है। शिव भोला भण्डारी।
शंकर को भोलानाथ नहीं कहेंगे। न और कोई को ज्ञान सागर कह सकते हैं।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *तुमको बाप
समझाते हैं कि मुझ एक को याद करो। स्टूडेन्ट को भी बाप टीचर याद रहता है।* तुमको
तो बाप पढ़ाते हैं। यही तुम्हारा गुरू भी है। तीनों का ही फोर्स है।
➢➢ गाँधी भी गीता को उठाए मुख से सीताराम उच्चारते रहते थे क्योंकि वह राम,
कृष्ण, कच्छ-मच्छ सबमें भगवान मानते हैं। पहले हम भी ऐसे समझते थे। *हमारा भी
बुद्धि का ताला बन्द था। अब बाप ने आकर जगाया। सभी को कब्र से निकाल वापिस ले
जाते हैं, मच्छरों के सदृश्य।*
➢➢ *यह बाबा देखो कैसा है! इसका स्थूल नाम रूप कोई है नहीं। दूसरे के तन में
प्रवेश कर पढ़ाते हैं।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
अगर कोई बुरा काम कर छिपाता है तो उसको कड़ी सजा मिलती है। तो *धर्मराज से कुछ
छिपाना नहीं चाहिए।*
➢➢ बहुत कहते हैं हम यहाँ ही बैठ जायें। फिर आपके बाल बच्चे कहाँ जायेंगें ?
कहते हैं आप सम्भालो। हम कितनों के बच्चे सम्भालेंगे! लेकिन ठहरो, *सर्विसएबुल
बनो तो तुम्हारे बच्चों का भी प्रबन्ध हो जायेगा।*
➢➢ जरा भी *विकार में गया तो बुद्धि का ताला लाकप हो जाता है।* फिर भी सच
सुनाने से सज़ा कम हो जाती है। अगर आपेही जाकर जज को अपना दोष बताये तो कम सजा
देंगे।
➢➢ अच्छा फिर तो एक ही शिव बच्चे को सम्भालो तो वह तुम्हारे बच्चे सम्भालेंगे।
बाकी ऐसे *बाबा को कभी फारकती मत देना।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *बाप खुद आकर
हमको पूरा वर्सा देते हैं। अपने से भी दो रत्ती ऊपर ले जाते हैं। हमको
ब्रह्माण्ड और सृष्टि दोनों का मालिक बनाते हैं। यह तो हर एक बाप का फ़र्ज होता
है बच्चों को लायक बनाना, कितनी सेवा करते हैं।*
➢➢ *यह हूबहू कल्प पहले वाली पाठशाला है, तो जरूर गीता के भगवान ने गीता
पाठशाला बनाई है। जहाँ सबको ज्ञान घास, ज्ञान अमृत खिलाया है।*
➢➢ *कोई कहते कृष्ण की गऊशाला, कोई कहते ब्रह्मा की। लेकिन है क्या, जो शिवबाबा
को शरीर न होने कारण ब्रह्मा से मिला दिया है। बाकी कृष्ण को तो गऊ पालने की
दरकार नहीं। कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहते।*
➢➢ *परमात्मा को तो पतितों को पावन बनाना है। जो पुजारी से पूज्य बना रहे
हैं,* ये भी जैसे बाजोली खेलते हैं। *ब्राह्मण ही देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य....
यह वर्ण भी भारत में हैं। और कहाँ वर्ण नहीं। अब मैने 15 मिनट भाषण किया। ऐसे
तुम भी समझा सकते हो।*
➢➢ *शिव अलग है, शंकर अलग है - यह भी साफ-साफ समझाना है। यह है बाबा का परिचय
देना।* जब गर्वमेन्ट का किताब निकलता है - हू इज हू। वैसे ही हू इज हू
प्रीआर्डीनेट ड्रामा। हम कहेंगे ऊंचे ते ऊंचा शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु,
शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता फिर धर्म स्थापन करने वाले। इस रीति दुनिया
पुरानी होती जाती है।
────────────────────────