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❍ 30 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *कोई ने लक्ष्य
को अच्छी रीति पकड़ लिया है, वह भी काफी है। घर में रहते बाप और वर्से को याद
करते रहो। परन्तु प्रजा नहीं बना सकेंगे। जो प्रजा बनायेंगे वही राजा-रानी,
मालिक बनेंगे।* मेहनत है ना। *जो ज्ञान में अचल-अडोल होंगे वह बैठे-बैठे शरीर
छोड़ेंगे। फिर कर्मातीत अवस्था में जाकर सर्विस करेंगे।*
➢➢ ओम् अर्थात्
अहम्(मैं आत्मा)। पीछे फिर कहते हैं मेरा शरीर। तो आत्मा खुद ही कहती है ओम्
शान्ति। मेरा स्वधर्म है ही शान्त और रहने का स्थान भी निर्वाणधाम, शान्तिधाम
है। बाप भी कहते हैं - ओम् शान्ति । मैं भी परम आत्मा हूँ, तुम सब बच्चों का
बाप हूँ। शान्तिधाम में रहने वाला हूँ।*
➢➢ *तुम आत्माओं ने
यहाँ शरीर धारण किया है पार्ट बजाने। फिर मन की शान्ति का तो प्रश्र ही नहीं उठ
सकता। शान्तिधाम में ही शान्ति मिल सकती है।* वहाँ तो सबको जाना है। हम
शान्तिधाम में जायेंगे फिर आयेंगे सुखधाम में। *दूसरे धर्म वालों को शान्ति
अधिक मिलती है, हमको सुख अधिक मिलता है। उन्हों को न इतना सुख, न दु:ख मिलेगा।*
यह है डीटेल की बातें।
➢➢ *बाप से वर्सा
लेने का सबको हक है।* मैं क्रिश्चियन हूँ, मैं फलाना हूँ। यह सब शरीर के धर्म
हैं। आत्मा एक ही है। शरीर बदलता है, तब कहते हैं यह मुसलमान है, यह हिन्दू है।
*आत्मा का नाम नहीं बदलता, शरीर का बदलता है।*
➢➢ *बाबा के पास
दिव्यदृष्टि की चाबी है, वह और किसको मिल न सके। बाबा ने समझाया है यह चाबी मैं
किसको भी नहीं देता हूँ। इनकी एवज में मैं फिर स्वर्ग की राजाई नहीं करता हूँ।*
तराजू इक्वल रखते हैं। तुम विश्व के मालिक बनते हो, मैं नहीं बनता हूँ।
➢➢ यह भी समझाया है
*वह है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास, जो बेहद का बाप ही सिखलाते
हैं।* वह है हठयोग, यह है राजयोग। *वो हठयोग से कर्मेन्द्रियों को वश करने चाहते
हैं। तुम राजयोग से कर्मेन्द्रियों को वश करते हो।*
➢➢ *भक्ति मार्ग
में जो साक्षात्कार करते हैं वह भी मूर्ति में थोड़ेही ताकत है। बाबा कहते हैं
- मैं मनोकामना पूर्ण करने के लिए साक्षात्कार कराता हूँ।* गणेश, हनूमान आदि
जिसकी पूजा करते हैं तो साक्षात्कार मैं कराता हूँ। *परन्तु वो लोग समझते हैं
परमात्मा सबमें है इसलिए मुझे सर्वव्यापी कह दिया, उल्टा ज्ञान ले लिया। वास्तव
में सब ब्रदर्स हैं। सबमें आत्मा है। सब फादर तो हो न सकें।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बुद्धि कहती है
- *अपने को आत्मा निश्चय करो, सुखधाम और शान्तिधाम को याद करो तो अन्त मती सो
गति हो जायेगी।*
➢➢ बाप की महिमा
अलग हो जाती है। *वह शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर है। उनके साथ योग लगाने से
हम शान्तिधाम चले जायेंगे, सो भी अभी।* ऐसा योग कभी कोई लगा नहीं सकते। तुम
शान्तिधाम को जानते हो। *बाकी याद शिवबाबा को करते हो।*
➢➢ *याद भी जरूर
करना है। बाप के बिगर पुराने पाप कट नहीं सकते। बाबा बार-बार कहते हैं - मुझे
याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।*
➢➢ *शान्तिधाम तो
है निर्वाणधाम, जहाँ बाप भी रहते हैं और हम आत्मायें भी रहती हैं।* रूद्र माला
भी कहते हैं तो रूद्र ज्ञान यज्ञ भी एक ही है।
➢➢ *मूल बात है मुझे
याद करो।* नहीं तो मुझे भी भूल जायेंगे। तुम बच्चों को महावीर बनना है।
महावीर-महावीरनी को गॉड आफ नॉलेज, गॉडेज ऑफ नॉलेज कहा जाता है। *गॉड ही योग
सिखलाए महावीर बनाते हैं।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
पतित बनने से सारा ज्ञान उड़ जाता है, बुद्धि मलीन हो जाती है। योग नहीं लगता,
याद में विध्न पड़ जाते हैं इसलिए *कोई भी पाप कर्म नहीं करना चाहिए।*
➢➢
सभी आत्मायें पुकारती है - हे गाडफादर रहम करो, तो सब बच्चे हो गये। *बच्चे बाप
से वर्सा लेते हैं तो देह का अभिमान छोड़ना पड़े। बस मैं आत्मा बाप से वर्सा ले
रही हूँ।*
➢➢
*हमारा अपने पुरुषार्थ से काम है और जास्ती बातों में नहीं जाना है।* तुमको
मुक्ति, जीवनमुक्ति चाहिए तो मनमनाभव।
➢➢
अब बाप द्वारा तुम नॉलेजफुल बनते जा रहे हो। परन्तु बनेंगे नम्बरवार पुरुषार्थ
अनुसार। *ऐसे बाप के साथ कितना लव रहना चाहिए। यह है गुप्त लव।*
➢➢
*बच्चों को सदैव अपना चार्ट देखना है जो हम बाबा से पूरा वर्सा पायें। कोई भी
बात के संशय में आकर पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी चाहिए।*
➢➢
यह सब ड्रामा बना हुआ है। ज़रा भी फर्क नहीं पड़ सकता। *बना बनाया ड्रामा है,
जो कुछ होता है साक्षी होकर देखते चलो। विनाश होना है, स्थापना होनी है, साक्षी
होकर देखना है।*
➢➢
*पिछाड़ी में जब अर्थववेक आदि होंगी उस समय महावीरपना चाहिए।* अभी तो तुम
पुरुषार्थी हो। अचल-अडोल रहना पड़े और साथ-साथ बाबा की याद में मरें तो बहुत
अच्छा।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ प्रोजेक्टर पर
समझाना सहज है। *बड़े-बड़े आदमियों को निमन्त्रण दे उन्हों को समझाना चाहिए।*
तुम बच्चे बहुतों का कल्याण कर सकते हो।
➢➢ *अंग्रेजी में
भी प्रोजेक्टर स्लाईड्स विलायत में जाकर दिखला सकते हो।* यह गोला आदि जब देखेंगे
तो समझेगे कि यह है भारत की फिलॉसफी। यह नॉलेज बाप ही दे सकते हैं।
➢➢ वैसे तो परमपिता
परमात्मा से जीवनमुक्ति पाने के लिए कोई किताब आदि की दरकार नहीं। यह तो सेकण्ड
की बात है। किताब भक्ति मार्ग में बनाते हैं, न कि ज्ञान मार्ग में। फिर भी *बाहर
वालों को समझाने के लिए रीयल्टी की जो समझानी है - सच्चे मन की शान्ति पर, सच्ची
गीता पर लिखना पड़ता है।*
➢➢ मैं हूँ ही
पतित-पावन, आकर राजयोग सिखलाता हूँ। *पतित-पावन जरूर कलियुग अन्त में आयेगा, ना
कि द्वापर में। सिर्फ शिवरात्रि लिखने से अर्थ नहीं निकलता है। त्रिमूर्ति
शिवरात्रि लिखना चाहिए।*
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