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❍ 14 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम तो मुझे
कहते ही हो पतित-पावन, नालेजफुल ज्ञान का सागर आओ, हमको आकर पावन बनाओ।* राजयोग
भी सिखाओ। परमात्मा को ही बुलाते हैं फिर बीच में कृष्ण कहाँ से आया। कृष्ण को
सभी गाड फादर थोड़ेही कहेंगे। *सभी आत्माओंका बाप निराकार है। वह है दु:ख हर्ता
सुख कर्ता।*
➢➢ *निराकार शिव
भगवानुवाच, बच्चे समझते हैं कि निराकार तो शिवबाबा को ही कहा जाता है और कोई
मनुष्य मात्र के लिए नहीं कहेंगे। निराकार पतित-पावन शिवबाबा ही ज्ञान का सागर
है। वह इस तन द्वारा बैठ समझाते हैं। उसे ही परमपिता परमात्मा कहते हैं।*
➢➢ आत्मा क्या चीज
है। अंग्रेजी में कहा जाता है सेल्फ रियलाइजेशन। सेल्फ यानी आत्मा क्या वस्तु
है। *भल कहते भी हैं भकुटी के बीच में सितारा रहता है। बस सिर्फ कहने मात्र कह
देते हैं। आत्मा स्टार है - निराकार है तो उनका बाप भी तो निराकार होगा। छोटा
बड़ा तो हो नहीं सकता। जैसे आत्मा है वैसे परमात्मा है। वह है सुप्रीम। सबसे
ऊंच ते ऊंच।*
➢➢ *बाप ही आकर
आत्माओं को बतलाते हैं कि आत्मा स्टार मिसल है। अति सूक्ष्म है। इन आंखों से
देखा नहीं जा सकता। देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए।*
➢➢ *धर्मशास्त्र
मुख्य कौनसे हैं? उस पर बाप समझाते हैं। मुख्य है गीता, जिससे ब्रह्मण,
सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना हुई। संगमयुग है ही ब्राह्मण धर्म l*
➢➢ *परमात्मा का
रूप बिन्दी है। परन्तु उनमें कैसे अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो कब मिटने वाला
नहीं है। यह कोई नहीं जानते। परन्तु पार्ट अनादि परम्परा से चले आते हैं, इनकी
कब इन्ड नहीं होती।*
➢➢ *धर्म शास्त्र
उसको कहा जाता है जिससे धर्म स्थापन होता है। वेदों से कौन सा धर्म स्थापन हुआ?
कुछ भी नहीं। महाभारत भी धर्म शास्त्र नहीं है। बाइबिल धर्म शास्त्र है। *गीता
से तो देवता धर्म स्थापन हुआ।* बाकी भागवत, रामायण में तो दन्त कथायें लिख दी
हैं। वह तो धर्म शास्त्र नहीं हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ परमपिता परमात्मा
ने ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना की। *बाबा ने आत्मा पर भी समझाया
है। कई बच्चे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने में मूँझते हैं। अरे तुम आत्मा
हो ना। तुम्हारा बाप है शिव।*
➢➢ मूल बात है कि
आत्मा को समझना है। वह फिर कहते कि आत्मा निर्लेप है तो उल्टा हो गया ना। *वास्तव
में आत्मा ही शरीर द्वारा खाती है, वासना लेती है। दु:ख-सुख आत्मा ही फील करती
है ना। महात्मा, पाप आत्मा कहा जाता है।* फिर आत्मा सो परमात्मा कह दिया तो
रांग हो गया।
➢➢ *जब तक अपने को
आत्मा समझ बाप को याद न करें तो विकर्म विनाश भी हो न सके। मनुष्य बिल्कुल
पत्थरबुद्धि हैं, उन्हें पारसबुद्धि बनाने में मेहनत लगती है।*
➢➢ *सिर्फ शिवबाबा
को याद करते रहो। यह भी अच्छा। बाप को याद करते हैं ना। शिवबाबा है ही आत्माओं
का बाप। मरने समय शिवबाबा के सिवाए और कुछ भी याद न आये तो भी स्वर्ग में
जायेंगे।*
➢➢ *अपने को आत्मा
निश्चय करना है। वह है फिर परमपिता परमात्मा। नाम उनका शिव है। आत्मा भी बिन्दी
रूप है। परमात्मा भी बिन्दी है। जैसे आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, परमात्मा
का भी पार्ट है-पतितों को पावन बनाने का।* भक्ति में मैं सर्व की मनोकामनायें
पूर्ण करता हूँ। दिव्य दृष्टि की चाबी बाप के हाथ में है। यह भी ड्रामा में
पार्ट बना हुआ है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*तुम जानते हो बाबा हमको ज्ञान सुना रहे हैं, जिससे हम शुद्र से ब्रह्मण बनते
हैं। फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे। यह तो पक्का याद कर लेना चाहिए।*
➢➢
*पहले तो यह निश्चय चाहिए कि मैं आत्मा अति सूक्ष्म हूँ।* बाप उनको ही समझाते
हैं, जिनकी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। फिर परमात्मा खुद ही
रियलाइज कराते हैं, वो आत्मा थोडे ही करा सकती है। परमात्मा खुद ही रियलाइज
कराते हैं कि मैं तुम्हारा बाप अति सूक्ष्म हूँ। ड्रामा में सारी एक्ट नूँधी
हुई है। इनके पार्ट में कुछ भी चेन्ज हो नहीं सकता।
➢➢
बाप कहते हैं मैं राजयोग सिखाकर, पतित से पावन बनाने आया हूँ। ऐसे नहीं मुर्दे
में श्वास डाल दूँगा। *बीमारी है तो जाओ डाक्टर के पास। हम तो आये हैं पावन
बनाने। पावन बनो तो पावन दुनिया में चलेंगे।* जरूर पतित दुनिया का विनाश होगा
तब तो पावन दुनिया स्थापन होगी।
➢➢
अभी सब बच्चे पुरूषार्थी हैं। 16 कला कोई बना नहीं है। *जब तक विनाश हो तब तक
पुरूषार्थ चलना ही है।* किसकी भी ताकत नहीं जो कहे कि 16 कला सम्पूर्ण बन गये
हैं। बन ही नहीं सकते। वह अवस्था होगी अन्त में। भल कोई रात दिन उठकर बैठ जाये,
परन्तु बन नहीं बस सकेगा। इस समय कोई कर्मातीत बन जाये तो शरीर छोड़ना पड़े।
सूक्ष्मवतन में जाकर बैठना पड़े। मूलवतन में तो जा न सके। पहले ब्राइडग्रूम जाये
तब तो ब्राइड्स जायेंगी।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ सेन्टर पर आने
वाले कई बच्चों को यह भी पता नहीं है कि *आत्मा क्या चीज है। तुम खुद कहते हो
आत्मा स्टार है। उनमें ही सारा पार्ट भरा हुआ है। आत्मा अति सूक्ष्म है। आत्मा
को कब देख नहीं सकते हो। हाँ बाबा दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार करा सकते हैं।*
साक्षात्कार किया फिर गुम हो जायेगा। फिर भी तुमको बुद्धि से निश्चय तो करना
पड़ेगा ना कि हम आत्मा अति सूक्ष्म हैं।
➢➢ *बाप तुम बच्चों
को अभी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज समझाते हैं।* यह नालेज किसकी बुद्धि में
है नहीं। आत्मा का ही ज्ञान नहीं है। बाबा से आकर पूछते हैं आत्मा क्या है! बाबा
को याद कैसे करें? बाबा वन्डर खाते हैं-सर्विस करने वाले बच्चों में भी आत्मा,
परमात्मा का ज्ञान नहीं है तो औरों को क्या सुनाते होंगे। हाँ, मुरली सुनाते
रहते हैं।
➢➢ टीचर्स भी
नम्बरवार होती हैं इसलिए *मुख्य जो ब्राह्मणियाँ हैं, उनको मुकरर किया जाता है
कि क्लास में चक्कर लगायें, एक-एक से पूछे कि आत्मा का रूप क्या है? परमात्मा
का रूप क्या है? सुपरवाइज करनी चाहिए।*
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