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  03 / 08 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *मनुष्य ज्ञान के बारे में, देवताओं के बारे में वा परमात्मा के बारे में जो कुछ भी गाते हैं वह उल्टा ही गाते हैं। इसको कहा ही जाता है उल्टी दुनिया। अल्लाह बै" समझाते हैं तुम तो माया की फाँसी पर लटके हुए थे। माया ने सब बच्चों को उल्लू बना दिया है। उनको उल्टा लटका दिया है। बाप आकर बच्चों को सुल्टा बनाते हैं।*

 

➢➢  *कलियुग के बाद जरूर सतयुग आना है। तो इससे सिद्ध होता है कि भगवान को भक्तों के पास आना ही है। भगत चाहते भी हैं भगवान से मिलें। तो समझना चाहिए कि भगवान बरोबर आयेगा।* आधाकल्प भगत तड़फते हैं तो कुछ तो देंगे ना। भगत जानते हैं भगवान जीवनमुक्ति देते हैं। वह पतित-पावन ही सबको पावन बनायेंगे।

 

➢➢  तुम बच्चे जान गये हो सब आत्मायें पावन कब बनती हैं। *सतयुग में तुम पावन रहते हो। बाकी सब आत्मायें निर्वाणधाम में रहती हैं। तुम पावन युग में आते हो, निर्वाणधाम को युग नहीं कहेंगे। वह तो इन युगों से पार है। युग यहाँ होते हैं सतयुग त्रेता... यह नाम ही यहाँ के हैं।*

 

➢➢  *यह है ही ब्लाइन्ड फेथ की दुनिया,* जो देखते रहेंगे, सबको भगवान कहते रहेंगे। तो अन्धश्रद्धा हुई ना। *कण कण में भगवान कह देते हैं। वास्तव में जो भी मनुष्य मात्र हैं सबका पार्ट अलग- अलग है। आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती है। ऐसे थोड़ेही कह देंगे कि सब भगवान ही भगवान हैं। तो क्या भगवान ही लड़ते झगड़ते रहते हैं। यह तो है 100 परसेन्ट अन्धश्रद्धा।*

 

➢➢  *लाइट हाउस वा स्वदर्शन चक्र बात तो एक ही है। परन्तु इसमें (चक्र में) डिटेल आता है। उसमें सिर्फ दो बातें हैं सुखधाम और शान्तिधाम। अल्फ - मुक्तिधाम। बे - जीवनमुक्तिधाम। कितना सहज है। जहाँ से हम आत्मायें आती हैं वह है शान्तिधाम।*

 

➢➢  *तुम समझते हो - ड्रामा का चक्र कैसे फिरता है। सतयुग नीचे हो कलियुग ऊपर आ जाता है। यह चक्र फिरता है। चक्र का ज्ञान भी तुमको है। चक्र भी बहुत लोग बनाते हैं। परन्तु आयु का किसको पता नहीं है।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *चक्र का ज्ञान भी तुमको है।* चक्र भी बहुत लोग बनाते हैं। परन्तु आयु का किसको पता नहीं है। रीयल चक्र तो कोई बता न सके। *तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है इसलिए कहा जाता है - स्वदर्शन चक्र फिराते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।*

 

➢➢  *तुम्हारा मन्त्र ही है मनमनाभव, मध्याजी भव। यह चक्र फिराते रहते हो। चलते-फिरते यही बुद्धि में रहे - शान्तिधाम और सुखधाम। ऐसी अवस्था में बैठे-बैठे किसको साक्षात्कार हो सकता है। कोई सामने आते ही साक्षात्कार कर सकते हैं।*

 

➢➢  *तुम जानते हो हम स्वदर्शन चक्र फिराते रहते हैं, इससे हमारे विकर्म विनाश होते जायेंगे और दूसरे तरफ अविनाशी पद का खाता जमा होता जायेगा।* फिर भी कहते हैं कि हम स्वदर्शन चक्र घुमाना भूल जाते हैं।

 

➢➢  *बाप आते ही हैं नर्क में, आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो और सुखधाम-शान्तिधाम को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। पहले तो जरूर घर जाना है।*  

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम्हें अब *लाइट हाउस बनना है,* तुम्हारी एक आंख में मुक्तिधाम, दूसरी आंख में जीवन मुक्तिधाम है, तुम *सबको रास्ता बताते रहो।* तुम बच्चों को अब यह प्रैक्टिस करनी है, हम रास्ता बताने वाले लाइट हाउस हैं और अभी खड़े हैं दु:खधाम में।

 

➢➢  *सदा बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता रहे। चलते-फिरते अपना शान्तिधाम और सुखधाम याद रहे* तो एक तरफ विकर्म विनाश होंगे दूसरे तरफ अविनाशी पद का खाता भी जमा होता जायेगा।

 

➢➢  कितना भारी खजाना मिलता है। बाबा तो कोई दूर नहीं है। *कहाँ भी रहते हो, अपनी उन्नति के लिए रिफ्रेश होने आ जाना है।* ऐसे मत समझो दक्षिणा देनी पड़ेगी। ऐसे को हम मूर्ख समझते हैं। बाबा तो दाता है। देने का ख्याल कभी नहीं करना है। यहाँ सा|वसएबुल बच्चों को ही रिफ्रेश होना है। तुम बच्चे आते हो बाबा के पास। ऐसे नहीं, कोई साधू महात्मा के पास आते हो, *दक्षिणा देनी है, कभी ऐसे ख्याल नहीं करना।*

 

➢➢  सतयुग और कलियुग में रात-दिन का फर्क है। आधाकल्प लग जाता है रावण राज्य को। तुम बच्चे सुखधाम की स्थापना करने वाले हो। *सबको सुख का रास्ता दिखाना है।*

 

➢➢  *कभी कोई कडुवा शब्द नहीं बोलना चाहिए। सुना न सुना कर देना चाहिए।* सुनते हैं तो फिर बोलने भी लग पड़ते हैं। क्रोध का अंश भी बहुत नुकसान कर देता है। किसको क्रोध करना यह भी दु:ख देना है। बाप कहते हैं दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे, बहुत सजायें खानी पड़ेंगी।

 

➢➢  *जिनको अपना भाग्य बनाना होता है वह अपना पुरूषार्थ करते हैं।* बाकी तो सब हैं बहाने, नौकरी है, यह है, छुट्टी मिल सकती है। कोई भी कारण बताए छुट्टी ले सकते हैं। यह कोई झूठ थोड़ेही है। इन जैसा सच तो कोई है नहीं। परन्तु बाप का इतना कदर नहीं हैं।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *नया मकान बनता है तो कहेंगे 100 परसेन्ट नया। पुराने को कहेंगे 100 परसेन्ट पुराना। नया भी भारत था, अब तो पुरानी दुनिया है। कितने अनेक धर्म हैं। रात-दिन का फर्क है ना। जरूर सतयुग में सुख ही सुख था, देवतायें राज्य करते थे। अभी तो इस पुरानी दुनिया में दु:ख ही दु:ख है।*

 

➢➢  *अभी कितना दु:ख होता है सो तुम आगे चल देखेंगे। गाया हुआ है मिरूआ मौत मलूका... मनुष्यों को मारने में किसको तरस थोड़ेही आता है। ऐसे ही कोई कुछ कर दे तो पुलिस केस कर दे। यह देखो कितने बाम्ब्स आदि बनाकर एक दो को मारते रहते हैं, रोज लिखते रहते हैं फलाने-फलाने स्थान पर इतने मरे। उन्हों पर केस करें, यह किसकी बुद्धि में भी नहीं है।*

 

➢➢  *यह है पुरानी पाप की दुनिया। सतयुग है नई दुनिया। सतयुग त्रेता में कोई किसको दु:ख नहीं देते। नाम ही है स्वर्ग, हेविन, बहिश्त... हिस्ट्री में भी पढ़ते हैं। वहाँ तो अथाह धन था - जो मन्दिरों से भी लूटकर ले गये हैं। तो जिन्होंने मन्दिर बनाये होंगे वह कितने धनवान होंगे। सोने की द्वारिका दिखाते हैं ना। कहते हैं समुद्र के नीचे चली गई। यह ड्रामा का चक्र फिरता रहता है।*

 

➢➢  साइंस को जानने वाले या नेचर को मानने वाले इन (ज्ञान) बातों को नहीं समझेंगे। बाकी देवताओंको मानने वाले समझेंगे। *लक्ष्मी-नारायण के वा राधे कृष्ण के मन्दिर में जो आते हैं, वह गीता भी सुनते होंगे। उन्हों से पूछो - कब गीता सुनी है? गीता का भगवान कहते हैं मुझे याद करो और सुखधाम-शान्तिधाम को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। बाप आते ही हैं नर्क में, आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं।*

 

➢➢  *अच्छा कोई श्रीकृष्ण को मानने वाला है, बोलो कृष्ण तो सतयुग में था ना। नई दुनिया को याद करो। इस पुरानी दुनिया से नाता तोड़ो। पवित्र भी जरूर बनना है। वहाँ कोई अपवित्र होता नहीं। किसी भी प्रकार की युक्तियां रचनी चाहिए।*

 

➢➢  बच्चे लिखते हैं सर्विस कम है, ठण्डाई है। बाप कहते हैं ठण्डाई बच्चों की है, *सेवा तो बहुत हो सकती है। मन्दिर कितने ढेर हैं। बाप कहते हैं मेरे भक्तों को ज्ञान दो।* तुम भी भगत थे ना। तुम जब समझायेंगे तो कहेंगे बात तो ठीक है। तुम्हारे इन चित्रों में बड़ा ज्ञान भरा हुआ है। जो ध्यान से इन चित्रों को देखेगा तो झट नमस्कार करेगा।

 

➢➢  *मनुष्य स्वर्ग को भी याद करते हैं। कोई बड़ा आदमी मरता है तो कहेंगे वैकुंठ गया। तो जरूर नर्क में था तब तो स्वर्ग में गया। इस समय सब नर्कवासी पतित हैं। नशा कितना रहता है! दिखाते हैं हम करोड़पति हैं। परन्तु हैं तो सब नर्कवासी। नर्कवासी, स्वर्गवासियों को माथा टेकते हैं। तुम बच्चे ही यथार्थ समझा सकते हो।*

 

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