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❍ 25 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ऐसे नहीं सतयुग
में आत्मा ऐसे कहती है कि हमको बाप ने दु:ख से छुड़ा करके सुखधाम में भेजा है,
नहीं। यह ज्ञान अभी तुमको मैं समझाता हूँ। यह ज्ञान का पार्ट अभी ही चलता है।
फिर यह पार्ट ही पूरा हो जाता है। फिर प्रालब्ध शुरू हो जाती है।*
➢➢ *पतित से पावन
बनाने का पार्ट एक ही बाप का है, जो कल्प-कल्प पार्ट बजाते हैं।* तुम जानते हो
हम आधाकल्प पावन थे। फिर रावण राज्य में आकर नीचे उतरते आते हैं। कला कमती होती
जाती है। यह राजयोग की बात कहाँ भी है नहीं। *सिवाए बाप के और कोई राजयोग सिखला
न सके, जानते ही नहीं।* तुम यह राजयोग सीखतेसीखते चले जायेंगे, जाकर राज्य
करेंगे।
➢➢ *भारत में ही
देवतायें 16 कला सम्पूर्ण, सर्वगुण सम्पन्न थे। फिर उन्हों को पुनर्जन्म
लेते-लेते नीचे जरूर आना है। कला कमती होनी ही है।* परन्तु यह वहाँ मालूम नहीं
रहता है। यह सारा ज्ञान अभी तुम्हारी बुद्धि में है।
➢➢ *समझो कोई कहते
हैं कृष्ण के तन में परमपिता परमात्मा प्रवेश करते हैं। परन्तु कृष्ण का तो वह
रूप सतयुग में था। उस नाम रूप में तो कृष्ण आ न सके।* कृष्ण का तुम चित्र देखते
हो, वह भी एक्यूरेट नहीं है। बच्चे दिव्य दृष्टि में देखते हैं, उसका तो फोटो
निकाल न सके।
➢➢ *लक्ष्मी-नारायण
से ही राज्य शुरू होता है।* राजाई से संवत शुरू होता है ना। *सतयुग का पहला
संवत है विकर्माजीत संवत।* भल पहले जब कृष्ण जन्मता है, उस समय भी कोई न कोई
थोड़े बहुत रहते हैं, जिनको वापिस जाना है।
➢➢ *सच्चा-सच्चा
हरिद्वार यह हुआ ना। दु:ख हर्ता, परमपिता परमात्मा को ही हरी कहा जाता है, न कि
श्रीकृष्ण को।* परमपिता परमात्मा ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है। *यह 84 के चक्र
की कथा सुनने से तुम चक्रवर्ती राजा रानी पद पाते हो। यह गुह्य बातें सन्यासी
आदि नहीं जानते। उनका धर्म ही अलग है।*
➢➢ *जब पूरा पावन
बन जाते हैं तो फिर लक्ष्मी-नारायण का राज्य, नया संवत शुरू हो जाता है, जिनको
विष्णुपुरी कहते हैं। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण से पालना होती है।
लक्ष्मी-नारायण के राज्य को स्वर्ग कहा जाता है। वहाँ है ही अद्वैत धर्म,
अद्वैत देवता, तो ताली बज नहीं सकती। वहाँ माया ही नहीं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ हम बच्चों के
अन्दर से भी निकलना चाहिए *ओम् अर्थात् अहम् आत्मा का स्वधर्म है शान्त। अभी हम
जाते हैं शान्तिधाम में। पहले-पहले हमको बाबा शान्तिधाम में ले जायेंगे।*
पहले-पहले कौन जायेंगे? *जितना जो याद में रहेंगे, वह जैसे कि दौड़ी पहनते
हैं।*
➢➢ अभी तुम
आत्म-अभिमानी बनते हो। उसमें बहुत मेहनत लगती है। आधाकल्प से तुमको रावण ने
देह-अभिमानी बनाया है। *अभी बेहद का बाप परमपिता परमात्मा हमको देही-अभिमानी बना
रहे हैं और अपने घर का रास्ता बता रहे हैं।* जो घर का मालिक है, वही बता रहे
हैं।
➢➢ *योगबल से तुम
विश्व के मालिक बनते हो।* उन्हों का है बाहुबल, शारीरिक बल, जो बुद्धि से
बाम्ब्स निकाले हैं। यहाँ सेना आदि की तो कोई बात नहीं। दुनिया में यह किसको पता
ही नहीं कि योगबल से कैसे विश्व की बादशाही मिलती है।
➢➢ *बाप ही आकर यह
योग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।* मैं ज्ञान सागर हूँ। महिमा
गाते हैं ना - ज्ञान का सागर, सुख का सागर, पवित्रता का सागर, ऐसे कभी नहीं
कहेंगे - योग का सागर। नहीं, योग का सागर कहना रांग हो जाए।
➢➢ बाप ज्ञान का
सागर, पतितपावन है। जरूर ज्ञान की ही वर्षा करते होंगे। *पहली बात बाप कहते
हैं- मामेकम् याद करो और किसको भी याद करना अज्ञान है।*
➢➢ सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बाप ही सुनाते हैं। योग के लिए भी शिक्षा देते हैं। *और
सब योग के लिए उल्टी शिक्षा देंगे। उनको जिस्मानी योग कहा जाता है, शरीर को ठीक
रखने के लिए। यह है रूहानी योग।*
➢➢ देवतायें पावन
थे, फिर पतित बने। फिर *पतित-पावन बाप आया है, कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म
विनाश होंगे और कोई उपाय है नहीं। योग अग्नि से ही विकारों रूपी खाद निकलेगी।
याद करते-करते तुम पावन बन गले का हार बन जायेंगे।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
तुम कहेंगे हम 5 हजार वर्ष बाद पुरूषार्थ करते हैं बाप से वर्सा लेने। *पुरूषार्थ
अच्छी रीति करना है।* टीचर को मालूम तो रहता है ना कि स्टूडेन्ट कहाँ तक पास
होंगे। तुम बच्चे भी जानते हो कि हमारी एकरस अवस्था कहाँ तक बनती जाती है?
➢➢
ज्ञान सागर बाप से यह तुमको ज्ञान रत्न मिलते हैं। वह जिस्मानी हीरे मोती नहीं
हैं। तो *तुम बच्चों को फिर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दानी भी बनना है।* अपने को
देखना चाहिए हम कितना दान करते हैं?
➢➢
*श्रीमत पर चल जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।* श्रीमत पर नहीं चलेंगे
तो ताला बन्द हो जायेगा। तीर लगेगा नहीं। खुशी का पारा चढ़ेगा नहीं। अपनी मत पर
चलेंगे तो बाबा कहेंगे यह तो रावण मत पर हैं।
➢➢
*देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है। इस पुरानी देह को भी छोड़ देना है।
यह तो मरा हुआ चोला है। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करते रहना है।*
➢➢
माया बड़ी शैतान है। अनेक प्रकार के उल्टे काम कराती रहती है। *कोई भूल हो जाए
तो फौरन बाप से क्षमा मांगनी चाहिए। अन्दर बाहर बहुत साफ होना चाहिए।* बहुतों
में देह-अभिमान बहुत रहता है। बाबा ने समझाया है - *कभी कोई से भी सर्विस नहीं
लो। अपने हाथ से भोजन आदि बनाओ।*
➢➢
*कभी भी परचिंतन नहीं करना चाहिए।* यहाँ की बातें वहाँ सुनायेंगे। भल कोई ने
कुछ कहा भी फिर भी दूसरे को सुनाकर नुकसान क्यों करना चाहिए।
➢➢
ऐसे तो बहुत झूठी बातें भी बनाते हैं - फलानी तो ऐसी है, यह है। ऐसी झूठी बातें
कभी नहीं सुनना। *कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो सुनी अनसुनी कर देना चाहिए।
किसके दिल को खराब नहीं करना चाहिए।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पावन
देवी-देवतायें पतित कैसे बनते हैं, आओ तो 84 जन्मों की कथा सुनायें।* 84 के
चक्र की यह सत्य कथा है। वह तो झूठी कथा सुनाते हैं। चक्र की आयु लम्बी चौड़ी
बता देते हैं।
➢➢ इस देवी-देवता
धर्म की महिमा गाई जाती है, सर्वगुण सम्पन्न...... *जब तुम कहाँ लक्ष्मी-नारायण
के मन्दिर में जाते हो तो बोलो यह सत्य नारायण है ना। इनको सत्य क्यों कहते
हैं? क्योंकि आजकल तो झूठ बहुत है।* बहुतों के नाम लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण
आदि हैं।
➢➢ *राजयोग के कोई
चित्र थोड़े ही हैं। तुम यह बनाते हो समझाने के लिए। सो भी कोई देखने से तो समझ
न सकें। समझाना पड़े - यह ब्रह्मा राजयोग सीखकर जाए नारायण बनते हैं।*
➢➢ *रूहानी-जिस्मानी
दोनों सर्विस करनी है। बाबा की याद में रह किसको दृष्टि देंगे तो भी बहुत मदद
मिलेगी। बाबा खुद प्रवेश कर सर्विस में बहुत मदद करते हैं।*
➢➢ *वह समझते हैं
हमने किया, अहंकार झट आ जाता है। यह नहीं समझते कि बाबा ने करवाया। बाबा प्रवेश
होकर सर्विस करवा सकते हैं, फिर तो और ही डबल फोर्स हो गया।* किसको लिफ्ट मिली,
जाकर ऊंच सर्विस करने लग पड़े तो खुश होना चाहिए ना। इसमें ईर्ष्या की क्या बात
है?
➢➢ बच्चों को पूरा
सिखलाया जाता है। बाबा कहो, मम्मा कहो तो जरूर कहेगा तब तो सीखेगा ना। *बिगर कहे
सीखेगा कैसे? इसलिए बच्चों का मुख खुलवाया जाता है। मेहनत करनी है। बाप का
परिचय देना है।*
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