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❍ 25 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बच्चे जो समझते
हैं कि बेहद का बाप एक ही है, जिसका असली नाम शिव है।* बाकी जो अनेक नाम रखे
हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग के। राइट नाम एक ही शिव है। जयन्ति भी मनाते हैं वह
हो गई परमात्म जयन्ति। गाते भी है निराकार शिव जयन्ती। आत्मा को जब शरीर मिलता
है तब उस शरीर का नाम पड़ता है और शिव तो आत्मा का ही नाम है।
➢➢ *गीता का भगवान तो शिव निराकार है - श्रीकृष्ण शरीर का नाम है, देहधारी है
ना।* यह तो शिवबाबा ही आकर सजनियों को जगाते हैं और अपनी पहचान भी देते हैं कि
मैं आया हूँ नई दुनिया बनाने।
➢➢ बाप आते ही हैं पतित से पावन बनाने के लिए। नई दुनिया को नया युग अथवा
सतयुग कहा जाता है। यह है कलियुग पुरानी दुनिया। *कुम्भकरण की नींद में सब सोये
हुए हैं, उनको आकर जगाते हैं।*
➢➢ *ड्रामा अनुसार जिनका जो पार्ट है समझने और समझाने का वह अपना पार्ट बजाते
हैं।* भक्ति का पार्ट भी दिन-प्रतिदिन जोर होता जाता है। गाया भी हुआ है जब
भंभोर को आग लगती है तब आँख खुलती है।
➢➢ *सबको नीचे उतरते-उतरते पतित बनना ही है, मुझ पतित-पावन को आना ही है संगम
पर।* दुनिया के मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। समझते हैं कलियुग की आयु लाखों
वर्ष पड़ी है क्योंकि शास्रों में उल्टा लिख दिया है। अब दैवी युग की स्थापना
होनी है।
➢➢ *दोज़क को बहिश्त बनाने वाला बाप ही है। बाप कोई दोज़क थोड़ेही रचेंगे।*
बच्चों को अब यह पक्का निश्चय है कि बाबा हमको पढ़ाते हैं। बहुत समय से पढ़ाते
रहते हैं।
➢➢ तुम समझते हो बाबा आया हुआ है। *हम भी घोर अन्धियारे में सोये पड़े थे, अब
बाबा आया है रात को दिन बनाने।* बाबा कहते है मैं तुम्हारे लिए दिन अर्थात्
नवयुग बनाने आया हूँ।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अब मामेकम् याद
करो। माया पर जीत पानी है।* बाबा को कहते भी हैं पतित-पावन। देवतायें जो पावन
थे, अभी पतित बने हैं, इसलिए सभी पुकारते हैं कि हे पतित-पावन आओ, आकर हमें
लिबरेट करो।
➢➢ *अब मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे क्योंकि इस समय सब पतित
हैं।* सब कहते हैं हमको इस रावण से लिबरेट करो। यह कोई समझते नहीं हैं कि शैतान
का राज्य कब से शुरू होता है।
➢➢ निराकार परमपिता परमात्मा राजयोग कैसे सिखलायेंगे? जरूर शरीर में आयेंगे। *बाप
श्रीमत दे रहे हैं - बच्चे तुमको याद की यात्रा पर रहना है। मुझे याद करो। यह
है योग अग्नि, जिससे विकर्म विनाश होंगे।*
➢➢ तुम्हें हर बात बहुत क्लीयर करके समझाई जाती है। परन्तु योग में रहें, पावन
बनें - यह मेहनत है। *विष छोड़ना, कितनी मेहनत है।* विष पर ही झगड़ा होता है।
➢➢ *मुक्तिधाम का मालिक तो एक ही परमपिता परमात्मा है, वह बाप ही आकर पावन
बनाते हैं।* यह स्नान आदि तो भारत में ही करते हैं और धर्मों में नहीं करते। वह
फिर अपने धर्म स्थापक के आगे माथा टेकते हैं, फूल चढ़ाते हैं। महिमा गाते हैं।
उन्हों को यह तो मालूम ही नहीं है कि पतित-पावन एक ही बाप है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*मुझे बाप से पूरा वर्सा लेना है। नहीं तो कल्प-कल्प का घाटा पड़ जायेगा। पहले
अपना कल्याण करेंगे तब दूसरों का भी कर सकेंगे।*
➢➢ माया ने अज्ञान अंधकार की रात में सबको सुला दिया है। अब बाप कहते हैं बच्चे
कुम्भकरण की नींद से जागो। अभी इस पुरानी दुनिया का अन्त है, मौत सामने खड़ा
हुआ है। *अब रात पूरी होती है, दिन आना है इसलिए तुम जागो।*
➢➢ *बेहद सृष्टि के कल्याण के लिए बुद्धि चलनी चाहिए।* बाबा की बुद्धि चलती
रहती है। इन चित्रों का कद्र बहुत थोड़ों को है। बाप ने दिव्य दृष्टि द्वारा यह
बनाये हैं। कितना रिगार्ड होना चाहिए, इनसे तो बहुत भारी फर्स्टक्लास सर्विस
होती है।
➢➢ हर एक को अपनी उन्नति का ख्याल जरूर होना चाहिए। *संग के रंग में नहीं आना
है।* सर्विस में बिज़ी रहना है, नहीं तो बड़ा भारी घाटा पड़ जायेगा। *अपनी
उन्नति के लिए कोशिश जरूर करना चाहिए।*
➢➢ कोई फिर अच्छा पढ़ते हैं तो ऊंच पद पाते हैं। *नहीं पढ़ते हैं तो पद भी कम,
सारा मदार है पढ़ाई पर।* तुम यहाँ मनुष्य से देवता बनने आये हो। परन्तु देवताओं
में भी नम्बरवार मर्तबे हैं। कोई फर्स्टक्लास, कोई सेकण्ड क्लास, कोई थर्ड
क्लास। यह सब गुप्त बातें हैं।
➢➢ कैसे हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। महाभारत लड़ाई भी लगने वाली है।
परन्तु पाण्डव सम्प्रदाय तो लड़ते नहीं। असुर और कौरव सम्प्रदाय आपस में लड़
झगड़कर खत्म हो जाते हैं। *तो अब तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है। समझाना भी
है - बाबा समय प्रति समय डायरेक्शन देते रहते हैं।*
➢➢ *बाबा मैं जाकर बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस करती हूँ, ऐसे-ऐसे ख्याल
आने चाहिए।* उनको कहा जाता है सतोप्रधान बुद्धि। तमोप्रधान बुद्धि न अपना, न
दूसरों का ख्याल करते हैं, उनको बेसमझ कहा जाता है। सतोप्रधान बुद्धि समझदार
हैं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अब त्रिमूर्ति
शिवजयन्ती आने वाली है। लिखना है शिवजयन्ती सो गीता जयन्ती।* श्रीकृष्ण जयन्ती
जब मनाते हैं तब गीताजयन्ती नहीं मनाते हैं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है, जब वह बड़ा
हो तब गीता सुनाये। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती माना ही गीता जयन्ती।
➢➢ पतित-पावन बाप को बुलाते भी हैं फिर गंगा में जाकर स्नान करते हैं। *तुम
लिख भी सकते हो बड़े-बड़े अक्षरों में कि पतित-पावन तो परमपिता परमात्मा को कहा
जाता है। ज्ञान का सागर भी वही है। सारी दुनिया को पावन बनाते हैं।*
➢➢ सारी दुनिया का क्वेचन है ना। दुनिया पावन कैसे बने? गंगा, जमुना आदि यह
नदियाँ तो चली आती हैं। अभी कलियुग का समय है तो कुछ गड़बड़ होती है। *सतयुग
में फिर सब नदियाँ अपने ठिकाने पर आ जायेंगी। परन्तु इनसे पावन तो कोई बनते नहीं।
बहुत क्लीयर करके समझाना है।*
➢➢ *पर्चे भी बांटने हैं। वह भी आदमी-आदमी देखकर देना है। मुख्य दो तीन
प्वाइंट्स जरूर समझानी हैं। वास्तव में इस समय सब पतित विकारी हैं। सबकी उतरती
कला है।*
➢➢ *बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे लिखो। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती सो श्रीमत भगवत गीता
जयन्ती। फिर समझाना भी है, जो समझते हैं उन्हों की दिल होती है कि यह बातें
दूसरों को भी समझायें। समझाने बिगर वृद्धि कैसे होगी।*
➢➢ *तुम बच्चों को शंखध्वनि करनी है। रात-दिन चिंतन चलना चाहिए – कैसे किसको
समझायें। सारी दुनिया को बाप का परिचय देना, कितनी बड़ी कारोबार है।* दुनिया
कितनी बड़ी है।
➢➢ *बच्चों को सर्विस पर यह अटेन्शन देना है कि पढ़कर पढ़ाना है।* इस सर्विस
में ही कल्याण है। ओना रहना चाहिए। जो नये आते हैं, उनसे फार्म भराने वाले बहुत
तीखे चाहिए। *फार्म भराने समय यह भी पूछो तुम साधना करते हो, मुक्तिधाम जाने
चाहते होना।*
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