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❍ 24 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आत्मा में ही खाद पड़ती है। आत्मा ही सतोप्रधान, आत्मा ही तमोप्रधान बनती है।* सच्चा सोना ही फिर झूठा बनता है। *ऐसे कभी नहीं समझना कि आत्मानिलेंप है।*
➢➢ ईश्वर अर्थ जो कुछ भी करते हैं भक्ति आदि, सब ईश्वर से मिलने अर्थ करते हैं। सबकी चाहना ही यह रहती है कि ईश्वर से कैसे मिलें? इनके लिए ही *यज्ञ तप दान पुण्य आदि करते हैं। फिर भी ईश्वर तो मिलता नहीं है। अगर ईश्वर मिलता तो तीर्थों पर नहीं जाते।*
➢➢ *आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है तो आत्मा को फील होता है।* तुम बच्चे जानते हो सतयुग में कोई दुख नहीं होता क्योंकि वहाँ तो माया का राज्य ही नहीं होता। *तुम पुरुषार्थ करते हो स्वर्ग में चलने का, जहाँ माया नहीं।* यह माया का राज्य पूरा होने वाला है।
➢➢ *अब आत्मा आरगन्स द्वारा विकर्मों पर जीत पा रही है। ऐसे नहीं कि मन पर जीत पा रही है,नहीं। माया पर जीत पाते हैं, परमपिता परमात्मा की श्रीमत से।*
➢➢ *मन और बुद्धि आत्मा की शक्तियां हैं और यह शरीर आरगन्स है। इन बातों को और कोई नहीं जानते। वास्तव में आत्मा का नाम लेना चाहिए। शान्ति आत्मा को चाहिए।*
➢➢ यह ईश्वरीय घर है। दर कहो वा घर कहो बात एक ही है। दर में आया तो घर में भी आया। दर से अन्दर घर में आया। तो *यहाँ ईश्वरीय घर है, भाई बहन हैं इसलिए इनको इन्द्रप्रस्थ भी कहते हैं।*
➢➢ *बाप कहते हैं मेरा पार्ट आता है तो मैं इस साधारण तन में आकर तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। मैं गर्भ में तो आऊंगा नहीं। जरूर मनुष्य तन में ही आकर राजयोग सिखलाऊंगा या कच्छ मच्छ में आऊंगा?*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *हम अब तैयारी कर रहे हैं, बाबा हमें लेने के लिये आये हैं। बैग बैगेज तैयार करना है।* बाप को पुराना कखपन देते हैं। बाबा बदले में सब सोना देते हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं - हे प्रीतमायें अपने प्रीतम को घड़ी-घड़ी याद करते रहो।* प्रीतम भी जानते हैं कि इन पर माया का बहुत वार है। घड़ी-घड़ी माया भुलाकर देह-अभिमान में ले आती है।
➢➢ *आत्मा को पहचान मिलती है - हम शान्त स्वरूप हैं।* आत्मा का स्वधर्म ही है शान्ति। स्वधर्म को भूल आत्मा दु:खी होकर पुकारती है - हमको शान्ति चाहिए, मुक्ति चाहिए। शान्ति के बाद फिर है सुख।
➢➢ *तुम अब यात्रा पर जा रहे हो। जानते हो रूहानी यात्रा हम ही करते हैं। बरोबर हम सब आत्माओं का पण्डा एक ही है।* अब तुमको दु:ख से लिबरेट कर ले जाते हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं मनमनाभव। सिर पर बोझा बहुत है, याद से ही विकर्म विनाश होंगे। नहीं तो धर्मराज द्वारा बहुत सजायें खानी पड़ेगी।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप कहते हैं - *देहअभिमान छोड़ मामेकम् याद करो।* तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। तत्व योगी समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे परन्तु ब्रह्म में लीन अथवा ज्योति में कोई समाते नहीं हैं।
➢➢ *हमको तो बस शिवबाबा की याद में रहना चाहिए* अगर बहुत समय से याद नहीं करेंगे तो पिछाड़ी में वह अवस्था नहीं रहेगी। बहुत सन्यासी लोग भी ऐसे बैठे-बैठे जाते हैं भक्तों की महिमा भी कोई कम नहीं है। फिर भी पुनर्जन्म उनको तो लेना ही है।
➢➢ *मन को शान्ति चाहिए - यह कहना भी रांग है।* ऐसे नहीं कि मन को सुख चाहिए। आत्मा शान्ति मांगती है क्योंकि उनको अपना शान्तिधाम याद आता है। अभी तुम बच्चे आत्मा और परमात्मा के भेद को जान गये हो।
➢➢ शिव के लिए मुख वंशावली नहीं कहेंगे। उनको सब फादर मानते हैं, *तीन पितायें हैं, शिवबाबा और प्रजापिता ब्रह्मा की सब सन्तान हैं। लौकिक में तो हैं ही। तो यह पक्का याद करना चाहिए।*
➢➢ *बुद्धि में आना चाहिए- बाबा हमारा पण्डा है। ढेर की ढेर आत्माओं को ले जाते हैं।* बाप कहते हैं मेरा काम ही यह है। मैं सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाता हूँ।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बरोबर शिवरात्रि गाई जाती है। *कोई से भी पूछो कि शिव तो निराकार है फिर उनकी रात्रि कैसे होती है? जिनका नाम और रूप नहीं फिर उनकी रात्रि कैसे होती है?*
➢➢ तुम एक बाप से सुनते हो और कोई बात सुनते नहीं हो। *एक दो को यही ज्ञान की प्वाइंट्स सुनाओ। रिपीट कराओ।*
➢➢ *सर्विस पर जाने वालों की बुद्धि में यह रहता है कि सर्विस करें। ड्रामा चक्र को भी समझाना बहुत सहज है।*
➢➢ अब बाप कहते हैं हम सब आत्माओं को साथ ले जाऊंगा। *रात-दिन यही चिंता रहे कि कैसे बाप का परिचय दें।*
➢➢ *तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां हो। सबको यह समझाओ।* ब्रह्माकुमार कुमारियों के आगे प्रजापिता अक्षर न आने से यह मूंझ हो जाती है। प्रजापिता अक्षर न होने से मनुष्य समझ नहीं सकते। प्रजापिता को तो सब जानते हैं।
➢➢ *समझाया जाता है- परमपिता शिवबाबा का कोई बाप टीचर नहीं है। यह (प्रजापिता ब्रह्मा) भी उस बाप को याद करते हैं। वही परमपिता भी है, परम शिक्षक भी है। रोज़ शिक्षा दे रहे हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार की।*
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