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❍ 17 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बच्चे भगवान को भी स्नेह और भावना के बन्धन में बांध लेते हैं। इस बेहद के कल्प वृक्ष के अन्दर स्नेह और भावना की रस्सी से कल्प पहले भी बच्चो ने भगवान को बांधा था और अब भी रिपीट हो रहा है।मैजारटी अभी भी माताओं की है इसलिए आज भी माताओं का ही चरित्र और चित्र(दिव्य स्वरुप) दिखाया है।*
➢➢ *बापदादा स्नेह के रेसपान्ड में,स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को लगाये दिलतख्त का आसन बनाये सभी बच्चो को इस संगम में झूला झुला रहे हैं।* इस कल्प वृक्ष के अन्दर पार्ट बजाने वाले इसी झूले में सदा झूलते रहो। यह ध्यान रहे झूला झुलाता भी है, ऊंचा उड़ाता भी है और अगर जरा भी नीचे ऊपर हुए तो ऊपर से नीचे गिराता भी है इसलिए आसन से हिलना नही है।
➢➢ *संगमयुग
प्राप्ति का समय है न कि पुकार का समय है। अधिकारी बन परमात्मा से सर्व गुण,
सर्व शक्तियॉ प्राप्त करनी है।* मातायें अब भी बात-बात पर वही पुकार तो नहीं
करती रहती! भक्ति के संस्कार तो समाप्त हो गये ना! *द्रोपदी की पुकार पूरी हो
गई या अभी भी चल रही है? अब पुकार का समय समाप्त हुआ।*
➢➢ *मधुबन परिवर्तन भूमि है, मुश्किल शब्द को तपोभूमि में भस्म करके जाना है
और सहज पुरूषार्थ का वरदान लेकर जाना है।* परिवर्तन का पात्र अर्थात् दृढ़
संकल्प के पात्र को धारण करके जाना तब वरदान धारण कर सकेंगे। नहीं तो कई कहते
हैं वरदान तो बाबा ने दिया लेकिन आबू में ही रह गया।
➢➢ *अव्यक्त बापदादा ने व्यक्त रूप में दीदी दादी को निमित्त बनाया है, तो इसलिए दीदी दादी भी बाप समान हैं जब भी दीदी दादी से टोली लेते हो तो यह समझकर लो कि बापदादा टोली दे रहे हैं।* अगर दीदी दादी समझ लेते तो यह भी भूल हो जायेगी।
➢➢ आज के मनुष्य के
तन में भी शक्ति कहाँ हैं। आज के जवान बूढ़े हैं। जितना बूढ़े काम कर सकते, उतना
आज के जवान नहीं कर सकते। नाम की जवानी है। और धन भी गँवा दिया, देवता से
बिजनेस वाले वैश्य बन गये। और मन की शान्ति भी कहाँ रही, भटक रहे हो। तो मन की
शान्ति, तन, धन सब गँवा दिया, बाकी क्या रहा। *जो बचा है उसे ईश्वरीय कार्य में
लगा 21 जन्मो का वर्सा प्राप्त करना है।*
➢➢ अव्यक्त पार्ट में आने वाली आत्माओं को परमात्मा द्वारा पुरूषार्थ में
तीव्रगति का भाग्य सहज मिला हुआ है। यह अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने
वाली है इसलिए जो जितना आगे बढ़ना चाहे बढ़ सकते हैं। *इस समय लास्ट सो फास्ट
और फास्ट सो फर्स्ट का वरदान प्राप्त है। तो इस वरदान को कार्य में लगा अर्थात्
समय प्रमाण वरदान को स्वरूप में ला। जो मिला है उसे यूज़ करो तो फर्स्ट नम्बर
में आने का अधिकार प्राप्त हो जायेगा।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सहजयोगी,सहज
पुरूषार्थी बन हिमालय पर्वत जितनी समस्या को भी योगयुक्त हो उड़ती कला के आधार
पर सेकण्ड में पार करना है।*
➢➢ *अनुभव की सीट पर सेट हो सहज पुरूषार्थी बन वर्तमान और भविष्य दोनों
प्रालब्ध प्राप्त करनी है।* प्रालब्ध सदा ऐसे स्पष्ट दिखाई देगी जैसे स्थूल
नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है।
➢➢ परमात्म प्रेम में लवलीन रह माया के रॉयल रूपो से स्वयं को सेफ रखना है। *बाबा
से योग लगा सर्व शक्तियॉ द्वारा चारों ओर के वायब्रेशन से वायुमण्डल से स्वयं
को दूर रखना है ।*
➢➢ संगमयुग अर्थात् वरदानी युग, सहज प्राप्ति का बहुत समय गया। *अब बाकी थोड़ा सा समय रहा हुआ है। इसमें भी समय के वरदान, बाप के वरदान को प्राप्त कर स्वयं को सहज पुरूषार्थी बनना है।*
➢➢ *एक बाप दूसरा न कोई । कोई भी संकल्प आये तो ऊपर देकर स्वयं नि:संकल्प होकर चलते जाओ।* किसी भी परिस्थिति में हलचल में नही आना है। सदा बाप की याद में एकरस स्थिति में रहना है। संकल्प दिया और निरसंकल्प बने।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ब्राह्मण की परिभाषा है ही मुश्किल को सहज बनाने वाला। ब्राह्मण का धर्म, कर्म सब यही है।* तो जन्म के, कर्म के ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् सहज योगी, सहज पुरूषार्थी इसलिए कभी दिलशिकस्त नही होना है।
➢➢
*पुरुषार्थ के मार्ग में अचानक गिरना, यह भी अटेन्शन की कमी है इसलिए स्व पर
पूरा पूरा अटेंशन रखना है।*
➢➢ यह पुरूषार्थ का मार्ग बेहद का मार्ग है। कई अलबेलेपन को भी सहज पुरूषार्थ
मानकर चलते हैं। वो सदा मालामाल नहीं होगा । *अलबेलेपन का त्याग कर श्रीमत पर
पूरा पूरा चलना है।* अलबेले पुरूषार्थी की सबसे बड़ी विशेषता अन्दर मन खाता
रहेगा और बाहर से अपनी महिमा के गीत गाता रहेगा।
➢➢
आज भी शिव की शक्ति का गायन है।
शिव-शक्ति अर्थात् अधिकारी आत्मा। आधीन नही। *न चाहते भी हो जाता है, यह बोल
मास्टर सर्वशक्तिवान का बोल नहीं है। बाप के साथ का अनुभव कर अपने कर्म और बोल
पर अटेंशन देना है।*
➢➢ वरदाता का वरदान योग्य पात्र में लेना है। अगर लिया ही नहीं तो रहेगा कहाँ?
जिसने दिया उसके पास ही रहा ना! ऐसे नहीं करना। होशियार बहुत हो गये हैं। अपना
कसूर नहीं समझेंगे। कहेंगे पता नहीं बाबा ने क्यों ऐसे किया! अपनी कमजोरियाँ सब
बाप के ऊपर रखते हैं। *अपनी कमी कमजोरी बाप को बतानी है, प्रतिदिन बाप को अपना
पोतामेल देना है।*
➢➢ यह सृष्टि चक्र 5000 वर्ष का है। यह पूज्य से पुजारी का चक्र है। पहले अपने ही चित्र की पूजा करते थे। अगर पता होता तो गायन नहीं करते, बन जाते। सदा हर कार्य में सहयोग देने का शुभ संकल्प, कभी भी किसी भी प्रकार के वातावरण को शक्तिशाली बनाने में सदा सहयोगी। *सदा सहयोगी अर्थात् सदा सन्तुष्ट। स्वयं भी संतुष्ट रहना और सर्व को भी संतुष्ट रखना।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप समान शक्तिशाली, सर्व बातों से सेफ रह, और ही औरों के लिए स्वयं गाइड, *रूहानी पण्डा बन सबको बाप का परिचय देना है तथा पतित दुनिया से पावन दुनिया में जाने का सहज रास्ता बताना है।*
➢➢ सहज पुरूषार्थी हर कदम में पदमों से भी ज्यादा कमाई का अनुभव करेंगे। ऐसा स्वयं को सदा संगमयुगी सर्व खजानों से भरपूर आत्मा अनुभव करेंगे। किसी भी शक्ति से, किसी भी गुण के खजाने से, ज्ञान के किसी भी प्वाइंट के खज़ाने से, खुशी से, नशे से कभी खाली नहीं होंगे। *खुश के खजाने से भरपूर हो सबको खुशियाँ बाँटने की सेवा करनी है।*
➢➢ *संकल्प शक्ति को बढ़ाना है।* खाली होना गिरने का साधन है। खड्डा बन जाता है ना। तो खड्डे में गिर जाते हैं। यदि बुद्धि की मोच आ जाती है तो संकल्प टेढ़ा हो जाता है। *अपनी संकल्प शक्ति द्वारा टेढ़े रास्ते को सीधा बनाना है अर्थात मुश्किल कार्य को सहज बनाना है।*
➢➢ *विश्व परिवर्तन
के कार्य में परमात्मा का सहयोगी बन स्वर्ग बनाने के कान्ट्रैक्ट में सहयोग देना
है।* टेढ़े को सीधा बनाने का कान्ट्रैक्ट पूरा करना है। कभी ऐसे नही कहना कि
रास्ता टेढ़ा है।
➢➢ बाप दाता है । दाता तो देता है लेकिन लेने वाले लेवें भी ना! या देवे भी
बाप और लेवे भी बाप। बाप लेंगे तो आप कैसे भरपूर होंगे! इसलिए लेना तो सीखो ना,
*बाप से सर्व गुणों, सर्व शक्तियॉ का खजाना ले सर्व को बांटते हुए ज्ञान-सागर
बाप का परिचय देने की सेवा करनी है।*
➢➢ सदा स्मृति में रहे कि हम(ब्राह्मण) जन्म से सहयोगी आत्मा हैं। *ब्रह्मा मुख द्वारा हमारा ब्राह्मण जन्म ही परमात्मा का सहयोगी बनने के लिए हुआ है। गोवर्धन पर्वत के चित्र में बाप के साथ बच्चे भी हैं और दोनों ही सेवा कर रहे हैं।* पर्वत को अंगुली देना सेवा हुई ना! *अंगुली सहयोग की निशानी है।*
➢➢ जैसे पहले भक्ति मार्ग में तन-मन-धन लगाया ओर अभी जो बचा हुआ है वह सच्ची सेवा से, बाप के सहयोगी बन लगाना है। 99 प्रतिशत तो गंवा दिया बाकी 1 प्रतिशत बचा है। अगर वह भी सहयोग में नहीं लगायेंगे तो कहाँ लगायेंगे। *इस एक जन्म बाप का मददगार बन अपना व सर्व का कल्याण करना है।*
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