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  28 / 10 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *शिवबाबा बागवान भी है क्योंकि नये दैवी बगीचे का कलम लगाते हैं। तो खुद माली भी है और हाथ पकड़ कर साथ ले जाते हैं।* तो बाबा माली, बागवान और खिवैया कैसे है - यह सब तुम बच्चे ही जानते हो। *यह सब अनेक नाम हैं, उनको लिबरेटर भी कहते हैं।*

➢➢  *ड्रामा अनुसार आत्मा आपेही पार्ट बजाने नीचे आ जाती है।* आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। तो आत्मा नीचे आकर शरीर धारण कर पार्ट बजाती है। *शरीर का नाम तो सबका अलग है। आत्मा का नाम तो आत्मा ही है।* हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाते हैं।

➢➢  *ड्रामा अनुसार अब तुमको बाप की स्मृति आई है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। सारी दुनिया विस्मृति में है।* बाप की रचना को और बाप के पतित से पावन बनाने वा सर्व की सद्गति करने के कर्तव्य को कोई भी नहीं जानते। *तुम रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।*

➢➢  इस समय आत्मा पर ग्रहण लगा हुआ है। पहले तुम 16 कला सम्पूर्ण थे, अब नो कला है। *जैसे चन्द्रमा की भी पूर्णमासी के बाद धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। अन्त में जरा सी लकीर रह जाती है। तुम्हारी भी अभी वही अवस्था है।*

➢➢  *जो कर्मभोग रहा हुआ है उसकी निशानी है बीमारी। तूफान आते हैं, इसका कारण पूरा योग नहीं है।* बाप कहते हैं और संग तोड़ मुझ एक संग जोड़ो। और सतसंगों में माशुक को जानते नहीं।

➢➢  अब तुमको स्मृति आई है कि *हम ब्रह्मण हैं फिर सतयुग में प्रालब्ध शुरू हो जायेगी फिर जो कर्म हर एक ने सतयुग में किये थे वही रिपीट करेंगे।* संस्कार इमर्ज होते जायेंगे।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बच्चे गरीब-निवाज बाप को जान चुके हैं और बाप की याद में बैठे रहते हैं। *भल आखों से किसको भी देखें, कर्मेन्द्रियों से कर्म भी करें परन्तु गाया जाता है हाथों से कर्म करते रहो, दिल माशूक तरफ लगाते रहो।*

➢➢  *बाबा कहते हैं यहाँ आते हो तो शिवबाबा को याद करके आओ। हमने तो शिवबाबा को अपना बनाया है।* ब्रह्मा ने भी उनको अपना बनाया है। तो हम उनको ही क्यों न याद करें।

➢➢  *दिल अन्दर देखते रहो कि हमारी दिल बाबा से लगी हुई है, जिससे हमारा जन्म-जन्मान्तर का ग्रहण छूटा है।* समय तो लगता है, एकदम तो नहीं छूटता।

➢➢  एक तो प्रेम से चलना है, दूसरा स्मृति में रहना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। *धन्धा तो करना ही है इसलिए सुबह का समय बहुत अच्छा है।* कहते हैं ना सवेरे सोना... सवेरे उठना... इसलिए *सवेरे-सवेरे उठ यहाँ आकर बैठो तो 5 मिनट भी याद ठहरेगी। फिर धीरे-धीरे आदत पड़ने से याद पक्की हो जायेगी।*

➢➢  *खाना खाते हो तो देखो कि कितना समय बाबा की याद में खाया!* अगर सारा समय याद किया तो वह भी बड़ी बहादुरी है। *भोजन पर एक दो को इशारा देना है कि बाप को याद करो। एक-एक गिट्टी पर याद दिलाओ। हमारा है ही सहजयोग।*

➢➢  अब तुम बच्चों को हम सो, सो हम का अर्थ भी समझाया है। *हम सो परमात्मा नहीं, लेकिन परमात्मा का बच्चा हूँ। यह हो गया हम सो के चक्र का दर्शन। इस याद से ही खाद निकलेगी।* खाद निकालने का समय ही है अमृतवेला। तो *पास विद आनर बनने के लिए कृष्णपुरी का मालिक बनाने वाले बाप को याद करना है।*

➢➢  बाप कहते हैं मैं कल्प में एक ही बार आता हूँ, तुमको साथ ले जाने के लिए तो बिल्कुल खुशी खुशी से जाना है। *दु:खधाम से निकलना है। ऐसी स्मृति होगी तो डरेंगे नहीं। कितनी भी परीक्षायें आये तो भी स्मृति पक्की रहनी चाहिए। ऐसी अवस्था जमानी है।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम जानते हो हम आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। यह शरीर तो लौकिक बाप ने दिया। *अब पारलौकिक बाप कहते हैं यह पुराने शरीर का भान छोड़ो,* जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ता है और नई लेता है।

➢➢  *अब तुम्हारा अन्तिम जन्म है। बाप कहते हैं - बाकी थोड़ा समय है। तुमको धीरज मिला है, तुम खुशी में हो कि हम फिर से बाप द्वारा सुख का वर्सा पा रहे हैं।* सुख का वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना।

➢➢  *अब हमको स्मृति आई है और कोई की याद नहीं होनी चाहिए क्योंकि पुरानी दुनिया में पुराना पार्ट, पुराना शरीर छोड़ नई दुनिया में जाना है।* वहाँ नया शरीर हमको मिलना है।

➢➢  बाबा कहते हैं *दे दान तो छूटे ग्रहण। अगर विकारों का दान देकर फिर वापिस लिया तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।* यहाँ विकारों की ही बात है। पैसे की बात नहीं।

➢➢  *हमारे मुख से ऐसे शब्द नहीं निकलने चाहिए जो किसको दु:ख मिले।* अगर किसी को दु:ख दिया तो समझना चाहिए -हमारे अन्दर भूत है फिर लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। *बाप के बने हैं तो लक्ष्मी को वरने लायक बनना चाहिए।*

➢➢  *बच्चों में क्रोध नहीं होना चाहिए। बड़े प्रेम से चलना चाहिए।* देखो, बाबा के कितने बच्चे हैं तो भी बाबा क्रोध थोड़ेही करते हैं। तो तुमको भी बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है।

➢➢  *लक्ष्मी-नारायण का चित्र कितना खींचता है तो हमको भी ऐसा बनना है। तुमको पति क्रोध करता है तो भी प्रेम से बात करनी है,* यह नहीं उनमें भूत हैं तो मुझ में भी आ जाए। नहीं, *मेरे में जो अवगुण हैं कैसे भी करके अवगुणों को निकालना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  किसी ने कहा लौकिक बाप गुस्सा करता है, तो मैंने कहा कि *जब वह क्रोध करता है तो तुम अच्छे-अच्छे फूल चढ़ाओ। तो वह वन्डर खाये, फिर वह ठण्डा हो जायेगा। बड़ा युक्ति से समझाना है क्योंकि रावणराज्य है ना।*

➢➢  तुमको स्मृति आई कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, हम 84 का चक्र कैसे लगाते हैं, *जिन्होंने सतयुग से लेकर कलियुग के अन्त तक पार्ट बजाया है, वही अभी भी बजायेंगे। सतयुग से लेकर कलियुग तक जन्म लेते नीचे उतरते आये हैं।*

➢➢  *चित्र में भी दिखाया है - सभी शिव को मानते हैं। बाबा आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा न कह जीवात्मा कहेंगे क्योंकि जब आत्मा अकेली है तो बोल नहीं सकती।* शरीर बिगर आत्मा, आत्मा से बात नहीं करती।

➢➢  *जब सृष्टि पर भारी दु:ख होता है तब उसी समय स्वयं परमात्मा आए गुप्त रूप में अपने ईश्वरीय योग पावर से दैवी सृष्टि की स्थापना कराए सभी मनुष्य आत्माओं को खुशकिस्मत बनाते हैं।*

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