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❍ 11 / 09 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाबा तो है ऊंच
ते ऊंच। चलन गरीब से गरीब चलते हैं।* बाप गरीब-निवाज है ना। गरीबों से ही मिलने
आते हैं। साहूकार लोग तो नामीग्रामी मनुष्यों से ही मिलते हैं।
➢➢ पूछो-तुम्हारा
बाप कहाँ गया? कहेंगे काशीवास किया और मुक्ति को पाया अर्थात् स्वर्ग पधारा।
परन्तु *अब तुम समझते हो मुक्ति जीवनमुक्ति किसको मिली नहीं है। सब यहाँ ही आते
जाते हैं। कर्मो अनुसार एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।*
➢➢ *रावण राज्य में
जो भी कर्म मनुष्य करते हैं वह विकर्म बन जाते हैं।* बालिक अवस्था में ही
हिसाब-किताब बनता है। छोटे बच्चे का कुछ जमा नहीं होता है। *बच्चा बड़ा होता है
तो उनके मा बाप काम कटारी पर चढ़ा देते हैं। यह भी कर्म विकर्म हुआ।*
➢➢ सर्प खल छोड़ता
है फिर नई लेता है। सन्यासी यह मिसाल दे नहीं सकते। *यहाँ तुम भी नई खाल लेने
के पहले पुरानी छोड़ते हो। फिर वहाँ हर जन्म में आपेही पुरानी खाल छोड़ नई ले
लेते हो।*
➢➢ अच्छे-अच्छे
बच्चे उनको भी माया चमाट मार देती है। समझते हैं - बस जो कुछ है निराकार ही है।
सो तो ठीक है ना। *निराकार नहीं होता तो हम तुम कैसे होते। परन्तु निराकार को
तो रथ जरूर चाहिए ना। रथ बिगर क्या करेंगे, शिवबाबा क्या करेगा? रथ में आये तब
तो तुम उनसे मिलेंगे।*
➢➢ *बच्चे समझते
हैं कि अब हम यह पुरानी खाल छोड़ घर जायेंगे। फिर स्वर्ग में समय पर पुराना
शरीर छोड़ दूसरा लेते रहेंगे।* सर्प तो बहुत बार खाल उतारता है। तुमको तो यहाँ
प्रैक्टिस कराई जाती है।
➢➢ *तुम्हारे दिल
में गुप्त खुशी है कि हम तो जाकर सोने के महल बनायेंगे।* जैसे यहाँ पत्थरों की
दीवार है, वहाँ सोने की दीवार होगी। *हम पारसबुद्धि बनते हैं तो महल भी सोने के
बनाते हैं।* पुराना सब खलास हो जायेगा।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *याद में बैठे
हो तो जैसे योग में बैठे हो। हर एक जानते हैं कि हमको तमोप्रधान से सतोप्रधान
बनना है।* यह है गुप्त मेहनत। इसमें कोई बड़ाई की बात नहीं।
➢➢ *गरीब ही बाप से
अपना वर्सा कल्प पहले मुआफिक ले लेंगे।* ड्रामा में नूँध ही है। साहूकार तो बलि
चढ़ न सकें। हाँ इनको (शिवबाबा को) कोई वारिस बनाये तो कमाल कर दिखावे।
➢➢ इस ड्रामा को बड़ा
युक्ति से समझना होता है। नई दुनिया में सब कुछ नया होता है। यह कितनी सहज बातें
हैं। अच्छा *यह भी समझ में न आये तो बाप को बड़े प्यार से याद करो इसलिए यह सब
महीन बातें बाबा ने देर से समझाई हैं।*
➢➢ कितना प्यार से
बैठ समझाते हैं- *कितनी सहज बात है, देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग एक बाप
को याद करो।* चाहे तो स्वराज्य पाओ, चाहे प्रजा पद पाओ। तुम्हारे पुरूषार्थ पर
है।
➢➢ तुम्हीं से सुनूँ,
तुम्ही से बैठूँ। तो रथ जरूर चाहिए ना। *अच्छा साकार बिगर निराकार को याद कर
दिखाओ।* क्या तुमको ज्ञान प्रेरणा से मिलेगा? फिर मेरे पास आये ही क्यों हो? *यह
बाबा भी कहता है कि वर्सा तो शिवबाबा से लेना है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
बाप तो कहते हैं - *काम तो तुम्हारा दुश्मन है।* तुम पावन देवी-देवता थे। अभी
कहते हो कि हम पतित दु:खी हैं। बाबा कहते हैं-इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के
विघ्न बहुत पड़ेंगे। शुरू से ही पड़ते आये हैं।
➢➢
हम आत्मा ही 84 जन्म लेते हैं। आत्मा को अब निश्चय हुआ है देह-अभिमान खत्म। पहला
अवगुण ही यह है। *देह-अभिमान आने से ही और विकार चटकते हैं। तो अब देही-अभिमानी
बनना है।*
➢➢
बाबा हम आत्मायें बस आई कि आई। 84 जन्म पूरे किये हैं। ड्रामा अब पूरा हुआ। *अब
हमको नया जन्म मिलेगा। खुशी होनी चाहिए ना।*
➢➢
*तुम बच्चों को तो बिल्कुल ही निरहंकारी बनकर रहना है।* अहंकार आने से ही फिर
सारा किचड़ा बाहर निकल आता है। किचड़े की जैसे वर्षा होती है। कहते भी हैं
रूद्र यज्ञ में असुरों का किचड़ा पड़ा-वह समझते हैं शायद गोबर आदि डालते होंगे।
सचमुच यह गोबर है।
➢➢
*बाप कहते हैं बहुत खबरदार रहना है। संग तारे, कुसंग बोरे... बाबा बिल्कुल मना
कर देते हैं।* बड़े आदमी के दुश्मन बहुत बन पड़ते हैं। यहाँ फिर विष का खाना न
मिलने से कामेशु, क्रोधेशु बन पड़ते हैं।
➢➢
*मुख्य है ही पवित्रता की बात।* तुम पुकारते भी हो कि हे पतित-पावन आओ। तो *अब
आये हैं-पावन बनाते हैं। फिर क्यों पतित बनने चाहते हो?* बच्चियाँ भी कहती हैं-हमको
तो बाप से वर्सा जरूर लेना है-कुछ भी हो जाए। बाप क्या करेगा? मारेगा ना। लड़ाई
में कितने मरते हैं। तुमको बाप कोई मार नहीं डालेगा। *हाँ सहन जरूर करना पड़ता
है, इसमें महावीरता चाहिए।*
➢➢
बाप कहते हैं बच्चे खबरदार रहो। *तुम रूप-बसन्त बन सदा मुख से रत्न ही निकालो।
किचड़ा सुनना भी नहीं चाहिए। समझो हमारा यह दुश्मन है। ज्ञान के सिवाए और सब
बातें सुनना ईविल है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ वहाँ तो बहुत
दान करने वालों का नाम अखबार में निकाला जाता है। *यहाँ गरीब दान करते हैं तो
अखबार में डालना चाहिए। चावल की मुट्ठी देकर फिर महल ले लेते हैं।*
➢➢ *यहाँ तुम
अविनाशी ज्ञान रत्न प्राप्त कर और दान करते हो।* तन-मन-धन सब समर्पण करते हो तो
इसका एवजा मिलना चाहिए। अज्ञान काल में भी बहुत दान करने वाले बड़े आदमियों पास
जन्म लेते हैं। यहाँ तुम बाप के आगे सरेन्डर करते हो तो पिछाड़ी में जो साहूकार
बनते हैं, उनके पास जाकर जन्म लेते हैं।
➢➢ *तुम बच्चों को
बाप देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं।* और कोई सतसंग में ऐसे नहीं कहेंगे कि
तुम्हारी आत्मा में सारा पार्ट बजाने की नूँध है। आत्मा शरीर छोड़ दूसरा ले
पार्ट बजाती है। आत्मा ही कानों से सुनती है। *अब तुमको सेल्फ रियलाइजेशन कराया
है।*
➢➢ *ज्ञान की मुट्ठी
भर देते हैं तो तुम साहूकार बनो।* साहूकारों का ठहरना मुश्किल है। दरकार ही नहीं
है इस ज्ञान मार्ग में। गवर्मेन्ट को तो धनवान लोग बहुत मदद करते हैं ना।
नामीग्रामी हैं ना।
➢➢ बाप गरीब-निवाज
गाया हुआ है। सबसे मिलते जुलते रहते हैं। बड़ा आदमी मसाला बेचने वाले से मिलेगा
नहीं। *यहाँ तो हैं ही गरीब। उन्हों को ही साहूकार बनाना है।* बाप तो है गुप्त।
➢➢ *गरीबों को ही
दान करना चाहिए। कोई भी बात समझ में न आये तो बोलो अच्छा बाबा से पूछकर बतायेंगे
क्योंकि ज्ञान की अभी बहुत मार्जिन है।* आगे चलकर समझते जायेंगे। दिन-प्रतिदिन
तुम नई-नई प्वाइंटस सुनते रहेंगे।
➢➢ एक-एक राजा रानी
के पास प्रजा कितनी लाखों के अन्दाज में आती है। *यह ज्ञान तो ढेर सुनेंगे। आप
समान बनाने की मेहनत करनी है।*
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