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❍ 05 / 11 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आकार रूप में
भी मिलन मनाते फिर भी साकार रूप द्वारा मिलने की शुभ आशा सदा ही रहती है, सब
दिन गिनती करते रहते कि आज हमको मिलना है, यह संकल्प हर बच्चे का बापदादा के
पास पहुँचता रहता है और बापदादा भी यही रेसपान्ड देने के लिए हर बच्चे को याद
करते रहते हैं* इसलिए आज मुरली चलाने नहीं लेकिन मिलने का सकंल्प पूरा करने आये
हैं।
➢➢ कोई-कोई बच्चे दिल ही दिल में मीठे मीठे उल्हनें भी देते हैं कि हमें तो
बोल द्वारा मुलाकात नहीं कराई। बापदादा भी हरेक बच्चे से दिल भर-भर के मिलने
चाहते हैं। लेकिन समय और माध्यम को देखना पड़ता है। *आकारी रूप से एक ही समय पर
जितने चाहें जितना समय चाहें उतना समय मिल सकते है। लेकिन जब साकार सृष्टि में,
साकार तन द्वारा मिलन होता है तो साकारी दुनिया और साकार शरीर के हिसाब को देखना
पड़ता है।*
➢➢ *आकारी वतन मे कभी दिन फिक्स नहीं होता है कि फलाना ग्रुप फलाने दिन मिलेगा।
यह बन्धन आपके वा बाप के सूक्ष्मवतन में सूक्ष्म शरीर में नहीं है। वहाँ तो भल
सारा दिन बैठ जाओ, कोई उठाएगा नहीं यहाँ तो कहेंगे अभी पीछे जाओ, अभी आगे जाओ।
फिर भी दोनों मिलना मीठा है।*
➢➢ *बाप का बनना अर्थात् विशेष आत्मा बनना। जब से बाप के बने उस घड़ी से विश्व
के अन्दर सर्व से श्रेष्ठ गायन योग्य और पूज्यनीय आत्मा बने। अपनी मान्यता, अपना
पूजन फिर से चैतन्य रूप में देख भी रहे हो और सुन भी रहे हो।* कहाँ भारत और कहाँ
अमेरिका लेकिन बाप ने कोने से चुनकर एक ही बगीचे में लाया। आप सभी अल्लाह के
बगीचे के रूहे गुलाब हो।
➢➢ सभी के सिर पर कितना सुन्दर लाइट का ताज चमक रहा है। इसी लाइट के क्राउन के
बीच आत्मा की निशानी कितनी चमकती हुई मणि मुआफिक चमक रही है। *हरेक दिव्य गुणों
के श्रृंगार से कितने सुन्दर सजी-सजाई मूर्त हो। ऐसा सुन्दर श्रृंगार, जिससे
विश्व की सर्व आत्मायें आपके तरफ न चाहते हुए भी स्वत: ही आकर्षित होती हैं।*
➢➢ *इस समय के श्रृंगार के यादगार आपके जड़ चित्रों को सदा ही भक्त लोग सुन्दर
से सुन्दर सजाते रहेंगे। अभी का श्रृंगार आधा कल्प चैतन्य देव-आत्मा के रूप में
श्रृंगारे जायेंगे और आधाकल्प जड़ चित्रों के रूप में श्रृंगारे जायेंगे।* ऐसा
अविनाशी श्रृंगार बापदादा द्वारा सर्व बच्चों का अभी हो गया है।
➢➢ *कोई कर्म करते तो भी यही कहते कि काम आपका है, निमित्त हम हैं। करो कराओ
आप, निमित्त हाथ हम चलाते हैं। तो वह भी करना पड़े ना।तूफानों को मिटाने का
कार्य भी बाप को देते। कर्म का बोझ भी बाप को दे देते।* साथ भी सदा रखते, तो बड़े
जादूगर कौन हुए? भुजाओं के सहयोग बिना तो कुछ हो नहीं सकता इसलिए ही तो माला
जपते हैं ना।
➢➢ ऐसे बहुत समय से ढूंढने पर फिर से आकर मिले हुए बच्चों को ब्रह्मा बाप बहुत
याद करते हैं। *ब्रह्मा बाप ऐसे सिकीलधे बच्चों का विशेष गुणगान करते हैं कि आये
भल पीछे हैं लेकिन आकार रूप द्वारा भी अनुभव साकार रूप का करते हैं, ऐसे अनुभव
के आधार से बोलते हैं कि हमें ऐसा नहीं लगता कि साकार को हमने नहीं देखा।*
साकार में पालना ली है और अब भी ले रहे हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ऐसे नहीं समझना
इनको याद किया, मेरे को पता नहीं याद किया वा नहीं। इनसे ज्यादा प्यार है मेरे
से कम प्यार है, नहीं। आप सोचो 5 हजार वर्ष के बाद बापदादा को बिछड़े हुए बच्चे
मिले हैं तो 5 हजार वर्ष का इकट्ठा प्यार हर बच्चे को मिलेगा ना।* तो 5 हजार
वर्ष का प्यार 5-6 वर्ष में या 10-12 वर्ष में देना तो कितना स्टॉक थोड़े समय
में देंगे। प्यार कम हो नहीं सकता।
➢➢ *बापदादा सदा बच्चों की विशेषता देखता। चाहे कोई समय बच्चे माया के प्रभाव
कारण थोड़ा डगमग होने का खेल भी करते हैं। फिर भी बापदादा उस समय भी उसी नज़र से
देखते कि यह बच्चा आया हुआ विघ्न लगन से पार कर फिर भी विशेष आत्मा बन विशेष
कार्य करने वाला है।* विघ्न में भी लगन रूप को ही देखते हैं तो प्यार कम कैसे
होगा! हरेक बच्चे से ज्यादा से ज्यादा सदा प्यार है और हर बच्चा सदा ही श्रेष्ठ
है।
➢➢ *दिलाराम बाप के समीप दिलाराम के दिलरूबा बच्चे हैं, यह सबूत है। दिलरूबा
बच्चे हो ना। दिल रूबा पर सदा गीत बजता है- वाह बाबा, वाह मेरा बाबा। बापदादा
हर बच्चे को याद करते हैं।*
➢➢ सर्व सम्बन्ध एक बाप से अनुभव किया है या कोई रह गया है? *जब एक द्वारा
सर्व सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही नहीं हैं।*
इसको ही कहा जाता है एक बल एक भरोसा।
➢➢ *बापदादा आज हर बच्चे के तीनों ही स्वरूप वर्तमान और अपने राज्य का देव
आत्मा का और फिर भक्ति मार्ग में यादगार चित्र, तीनों ही स्वरूप हरेक बच्चे के
देख हर्षित हो रहे हैं। कमाल तो बच्चों की है जो निरबन्धन को भी बन्धन में बाँध
देते हैं।* बापदादा को भी हिसाब सिखा देते कि इस हिसाब से मिलो। तो जादूगर कौन
हुए - बच्चे वा बाप?
➢➢ *ऐसा स्नेह का जादू बच्चे बाप को लगाते हैं जो बाप को सिवाए बच्चों के और
कुछ सूझता ही नहीं। निरन्तर बच्चों को याद करते हैं।* तुम सब खाते हो तो भी एक
का आह्वान करते हो। तो कितने बच्चों के साथ खाना पड़े! खाते हैं, चलते हैं, चलते
हुए भी हाथ में हाथ देकर चलते, सोते भी साथ में हैं। तो जब इतने अनेक बच्चों
साथ खाते, सोते, चलते तो और क्या फुर्सत होगी!
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
बापदादा सदा बच्चों को नम्बरवन बनने का साधन बताते हैं। चाहे कितना भी कोई पीछे
आये लेकिन आगे जाकर नम्बरवन ले सकता है। *ऐसे नहीं सोचना पता नहीं हमारा ऊंचा
पार्ट होगा या नहीं, हम आगे कैसे जायेंगे। बापदादा के पास चाहे पीछे आने वाले
हों, चाहे किस भी धर्म के हों, किस लेकिन सबके लिए एक ही फुल अधिकार है।* बाप
एक है तो हक भी एक जैसा है। सिर्फ हिम्मत और लगन की बात है।
➢➢ बाप हर बच्चे को अधिकारी आत्मा समझते हैं। जितना जो ले उसके लिए कोई रूकावट
नहीं। *अभी कोई सीट्स बुक नहीं हुई हैं। अभी सब सीट खाली हैं। सीटी बजी ही नहीं
है इसलिए हिम्मत रखते रहेंगे तो बाप भी पदमगुणा मदद देते रहेंगे।*
➢➢ *कभी भी हिम्मतहीन नहीं बनना। चाहे कोई कितना भी दिलशिकस्त बनाए, कहे पता
नहीं आपको क्या हुआ है, कहाँ चले गये हो लेकिन आप उनकी बातों में नहीं आना।*
पक्का जान पहचान कर सौदा किया है ना! हम बाप के, बाप हमारा।
➢➢ *सदा उड़ती कला में जाने का आधार हैं डबल लाइट। तो सदा उड़ते पंछी बनो। उड़ता
पंछी कभी किसके बन्धन में नही आता। नीचे आएंगे तो बन्धन में बंधेंगे इसलिए सदा
ऊपर उड़ते रहो।* उड़ते पंछी अर्थात सर्व बन्धनों से मुक्त जीवन हैं। सदा ही उड़ते
पंछी हैं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बच्चों ने बहुत
अच्छा त्याग किया है और हर बार त्याग करते हैं। जो लास्ट सो फास्ट जाते हैं वह
फर्स्ट आते हैं। *जितना ही बच्चे त्याग करते हैं, औरों को आगे करते हैं उतना ही
उनको मिल जाता है। तो त्याग किया या भाग्य लिया!*
➢➢ सभी ने अच्छी मेहनत कर विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लाया, *जिन्होंने भी
सेवा में सहयोग दिया उस सहयोग का रिर्टन अनेक जन्मों तक सहयोग प्राhत होता रहेगा।
एक जन्म की मेहनत और अनेक जन्म मेहनत से छूट गये। बापदादा बच्चों की हिम्मत और
निमित्त बनने का भाव देखकर खुश होते हैं। अगर निमित्त भाव से नहीं करते तो
रिजल्ट भी नही निकलती।*
➢➢ *नये स्थान पर सेवा की सफलता का आधार हैं- जब भी किसी नये स्थान पर सेवा
शुरू करते हो तो एक ही समय पर सर्व प्रकार की सेवा करो। मन्सा में शुभ भावना,
वाणी में बाप से सम्बन्ध जुड़वाने और शुभ कामना के श्रेष्ठ बोल और सम्बन्ध
सम्पर्क में आने से स्नेह और शान्ति के स्वरूप से आकर्षित करो।* ऐसे सर्व
प्रकार की सेवा से सफलता को पायेंगे।
➢➢ *सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन एक ही समय साथ-साथ सेवा हो। ऐसा प्लैन बनाओ,
क्योंकि किसी की भी सर्विस करने के लिए विशेष स्वयं को स्टेज पर स्थित करना
पड़ता है।*
➢➢ *सेवा में रिजल्ट कुछ भी हो लेकिन सेवा के हर कदम में कल्याण भरा हुआ है,
एक भी यहाँ तक पहुँच जाए यह भी सफलता तो समाई हुई है ही। अनेक आत्माओं के भाग्य
की लकीर खींचने के निमित्त हैं। ऐसी विशेष आत्मा समझकर सेवा करते चलो।*
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