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❍ 20 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भारत दैवी फूलों का परिस्तान था। अभी काँटों का जंगल है। तुम बच्चे अभी जो महावाक्य सुनते हो, यह सुनाने वाला ऊंचते ऊंच बाप है ना। उनकी हर एक बात महान है। महान सुख का सागर है। महान ज्ञान का सागर है। महान शान्ति का सागर है ।*
➢➢ *बाबा ने समझाया है - लौकिक मात-पिता से तो अल्पकाल सुख का वर्सा मिलता है। वह मिलते हुए भी फिर पारलौकिक मात-पिता को याद करते हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को तो नहीं याद करेंगे।* उनको मात-पिता नहीं कहेंगे। *वे तो सूक्ष्मवतन वासी हैं ना। उनको ब्रह्मा देवताए नमः, विष्णु देवताए नम: कहते हैं।*
➢➢ *आत्मा में ही सारा पार्ट भरा हुआ है, वह इमर्ज तब होता है जब शरीर मिले। आत्मा में ही सारा खेल भरा हुआ है।* इतनी छोटी सी आत्मा में कितना पार्ट है। शरीर मिलने से ही वह पार्ट बजायेगी। यह भी अभी तुम जानते हो बरोबर *देवी-देवता धर्म वाली आत्मा में ही 84 जन्मों का पार्ट है।*
➢➢ अभी समझते हो कि *जन्म-जन्मान्तर शास्र पढ़ते भी नीचे ही उतरते आये। यह भी ड्रामा में नूंध है। भक्ति करनी ही है। न भक्ति बदलनी है, न ज्ञान बदलना है।* भक्ति की बड़ी सामग्री है। वेदशास्त्र अथाह हैं ।
➢➢ शिवबाबा के बच्चे अर्थात् आत्मायें तो हो ही। अज्ञानकाल में भी शिवबाबा कहते रहते हैं। परन्तु शिवबाबा कौन है? उनका क्या पार्ट है? यह कोई भी नहीं जानते हैं। *शिवबाबा कहते हैं मेरा भी ड्रामा में पार्ट गूंधा हुआ है। ऐसे नहीं जो चाहूँ सो करूं। हमारा भी जो पार्ट होगा वही चलेगा ना। इसमें कृपा वा आशीर्वाद माँगने की बात ही नहीं है ।*
➢➢ *सेकेण्ड में इस ज्ञान से स्वर्ग का वर्सा मिल जाता है।* दिन के बाद रात और रात के बाद दिन। भक्ति है रात। ठोकरें खाते हैं ना इसलिए नाम ही रखा है अन्धियारी रात। *जानते भी हैं ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। विष्णु के लिए क्यों नहीं कहते। यह ज्ञान अभी मिलता ही तुम ब्राह्मणों को है, इसलिए ब्रह्मा के लिए गाया हुआ है। ब्रह्मा ही दिन और रात को जानते हैं।*
➢➢ *शिवबाबा तो खाते नहीं हैं। वह तो अभोक्ता है। देवताओं को ब्राह्मणों का भोजन अच्छा लगता है क्योंकि इस ब्राह्मणों के भोजन से देवता बनते हैं। तो ब्राह्मणों के भोजन का कितना महत्व है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बेहद का बाप कैसे आशीर्वाद अथवा कृपा करते हैं। ऐसे तो नहीं कहते हैं आयुवान भव, चिरन्जीवी भव। बाप तो आकर सहज राजयोग और ज्ञान की शिक्षा देते हैं।* आशीर्वाद वा कृपा भक्ति मार्ग में ढेर देते हैं एक दो को। अच्छी दृष्टि रखना, दया दृष्टि रखना सो तो परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई रख न सके।
➢➢ *हमें चाहिए ही शान्ति। हमको जाना है शान्तिधाम। शान्तिधाम किसको कहा जाता है, यह अब तुम समझते हो। आत्मा तो है ही शान्त स्वरूप।* मन को शान्ति चाहिए, ऐसे नहीं कह सकते। आत्मा में ही मन-बुद्धि है ना। आत्मा शरीर अलग-अलग है। नाक, कान आदि को शान्ति नहीं चाहिए। शान्ति चाहिए आत्मा तो ।
➢➢ *बच्चों की पालना कैसे करनी है - ज्ञान और योग से। तुम्हारी पालना है ही ज्ञान और योग की।* मुझे कहते ही हैं बाबा क्योंकि रचयिता ठहरा ना। तो जरूर बाबा कहेंगे। *लौकिक माँ बाप होते हुए भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं। अभी तुम जानते हो पारलौकिक मात-पिता ऐसे हुए हैं। हमको राजयोग सिखा रहे हैं।*
➢➢ *भगवानुवाच - तुम मेरे को याद करो तो तुम मेरे मुक्तिधाम में आ जायेंगे। कृष्ण कहेंगे - मेरे वैकुण्ठधाम में आ जायेंगे। पहले तो निर्वाणधाम में जाना है, तो जरूर निराकारी बाप को याद करना पड़े।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ हर कर्मेन्द्रियों से एक दो को दु:ख ही देते थे। अब हम खुद ही कर्मेन्द्रियों से किसको दुःख न देने की प्रतिज्ञा करते हैं। *जैसे बाप दुःख हर्ता सुख कर्ता है वैसे बच्चों को भी बनना है। कोई को भी दु:ख नहीं देना है, हर एक को सुखधाम का ही रास्ता बताना है।*
➢➢ *इस पढ़ाई में तो थकने की बात ही नहीं,* इसमें तो और ही खुशी होती है क्योंकि यहाँ है कमाई। कमाई में कभी उबासी वा झुटके नहीं आने चाहिए। धारणा कच्ची है, नॉलेज की वैल्यु का पता नहीं है तो सुस्ती आती है। *बाप की याद में बैठने से भी बहुत कमाई होती है। इसमें थकना नहीं है।* विवेक कहता है *तुमको अथक जरूर बनना है। पुरुषार्थ करते अथक कर्मातीत अवस्था को पाना है।*
➢➢ वह परमपिता परमात्मा को जानते नहीं तो सब कुछ अर्पण नहीं कर सकते। यहाँ तो सब कुछ अर्पण करते हैं। *बाप कहते हैं अपने को ट्रस्टी समझो।* तुम जो खाते हो वह समझो हम शिवबाबा के यज्ञ से खाते हैं। *सम्भाल भी करनी होती है। कोई तमोगुणी भोग लगा न सके।* मन्दिर में भी शुद्ध भोग लगता है। वह वैष्णव ही रहते हैं।
➢➢ हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं, जिनको आधाकल्प पुकारा है। आधाकल्प भक्ति करने वाले ही यहाँ आयेंगे। बहुत तीखी भक्ति करते हैं। तुम *बच्चों को फिर तीखा ज्ञान उठाना है। थोड़े में ही राज़ी नहीं होना है।*
➢➢ तुम्हें पक्के योगियों का भोजन मिले तो बुद्धि बहुत अच्छी हो जाए। *सारा दिन शिवबाबा की याद में रहकर कोई स्वदर्शन चक्र फिराते भोजन बनाये, ऐसे योगी चाहिए।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *कितनी प्वाइंट्स दी जाती हैं समझाने के लिए। बुढ़ियाँ तो इतना समझ न सकें। उनको फिर बाबा कहते हैं तुम किसको सिर्फ यह समझाओ कि पारलौकिक बाप का परिचय है तो उस बाप को याद करो। तुम भक्त हो, वह भगवान है।*
➢➢ *तुम कह सकते हो - इस ज्ञान से ही हम इतनी ऊंची प्राप्लब्ध पाते हैं, फिर यह ज्ञान गुम हो जाता है। ड्रामा में यह शास्र आदि भी नूंधे हुए हैं।* फिर वही शास्र बनेंगे, जिसके लिए कहते हैं परम्परा से चले आते हैं। ऐसे नहीं कि धरती से शास्त्र निकल आयेंगे।
➢➢ बूढ़ी माताओं को यह भी याद करा दो - *ऊंचे ते ऊंच है शिवबाबा जो परमधाम में रहते हैं। जहाँ आत्मायें रहती हैं, वह है ऊंचा ठाँव मूलवतन फिर सूक्ष्मवतन में है ब्रह्मा विष्णु शंकर। फिर स्थूल वतन में आओ तो पहले लक्ष्मी-नारायण का राज्य है, जो नई रचना बाप रच रहे हैं, पतितों को पावन बना रहे हैं।*
➢➢ *मूल बात है अपने बाप और घर को याद करना। सबको यही कहो- हे आत्मायें अब घर जाना है। शरीर तो सबके खत्म हो जायेंगे।* आत्मा के नाते सब भाई-भाई हैं। ब्रदर्स हैं फिर शरीर के नाते भाई-बहन हैं।
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