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  18 / 09 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *देह-अभिमानी बनने से विकर्म भस्म नहीं होंगे और ही जास्ती विकर्म होते रहेंगे फिर नतीजा क्या होगा? एक तो सजा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा।*

➢➢  *माया का वार अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी हो जाता है। कोई तो ऐसे मूर्ख बन जाते हैं, कहते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है।* परन्तु ब्रह्मा के आगे तो जरूर आना पड़ेगा ना। अच्छा घर में भी जाकर बैठ जाओ फिर मुरली कैसे सुनेंगे! क्या करेंगे? *कहते यह ब्रह्मा भी पुरूषार्थी है, हम भी पुरूषार्थी हैं। पढ़ते तो सब शिवबाबा से हैं, परन्तु ब्रह्मा पास आयेंगे तब तो सुनेंगे ना।*

➢➢  बाबा से कोई भी पूछ सकते हैं कि बाबा अगर इस समय हमारा शरीर छूट जाए तो भविष्य में हम किस गति को पायेंगे? *मौत तो सामने खड़ा है। ब्रह्मण कुल भूषण को तो बिल्कुल ह्रास (दु:ख) नहीं आना चाहिए। उनको कहा जाता है महावीर। शास्त्रों में तो स्थूल रूप में बातें ले गये हैं। यह तो ज्ञान की बातें हैं।*

➢➢  *तुम जानते हो यहाँ हमारी आत्मा घोर अन्धियारे में है। बाप घोर सोझरे में ले जाते हैं। आत्माओंको कुछ पता नहीं कि हम कितने जन्म और कैसे लेते हैं। अब तुम जान चुके हो - बाप द्वारा हमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान मिला है।* दुनिया में कोई भी तुमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नालेज नहीं बता सकेंगे । वह तो न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं।

➢➢  *ब्रह्मा से जन्म लिया और मर गया फिर खत्म। वर्सा कैसे पायेंगे। ऐसे भी मंद बुद्धि बहुत संगदोष में खराब हो जाते हैं। फिर बताओ उनकी क्या गति होगी? सतगुरू का निंदक बने तो ऊंच ठौर पा नहीं सकेंगे ।*

➢➢  दैवी कुल से यह उत्तम कुल है क्योंकि तुम ईश्वरीय कुल में हो। *भारत 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग श्रेष्ठाचारी वैकुण्ठ दैवी स्वराज्य था, तब तुम सूर्यवंशी देवी-देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वंश में आये। अब प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण बने हो। इसे 84 जन्मों का चक्र कहा जाता है।*

➢➢  *वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा मनुष्य सृष्टि झाड़ का फाउन्डेशन है, जिसको कल्प वृक्ष कहा जाता है। गोया शिवबाबा मनुष्य मात्र का बाबा, पिता है और ब्रह्मा गैन्ड फादर है। मनुष्य सृष्टि झाड़ वा जीनालाजिकल ट्री का पहला मनुष्य, आदम वा एडम वा प्रजापिता ब्रह्मा है।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप समझाते तो बहुत अच्छा हैं। जीते जी मरने का अर्थ कितना सहज है। तुम जीते जी मरे हुए हो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो।* हमारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, वह भी जानते हो, बाप को भी जानते हो कि वह कैसे ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। भारत ही पावन श्रेष्ठ था, अभी तो पतित है।

➢➢  *कोई समझते हैं बाबा रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं, रावण राज्य का विनाश होना है, इसमें कोई डरने की बात नहीं है। हाँ, गवर्नमेंट आदि मकान खाली कराती है तो करना पड़ता है। बाबा की याद में शरीर भी छूट जाए तो अच्छा है।*

➢➢  *देह का अभिमान छोड़ अपने को आत्मा निश्चय कर बेहद के बाप मुझ परमपिता को याद करो तो तुम फिर से पवित्र सतोप्रधान बन जायेंगे।*

➢➢  *एक तो बाप को दूसरा सृष्टि चक्र को याद करना है और तो कोई तकलीफ नहीं। बाप जानते हैं कि बच्चों ने भक्ति मार्ग में बहुत तकलीफ देखी है, अभी और क्या तकलीफ बच्चों को देवें। जितना भक्ति में मेहनत उतना यहाँ चुप रहना है। जितना योग में रहेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  अभी तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बने हो। बाबा ने देही-अभिमानी बनाया है। *जितना देही-अभिमानी बनेंगे, बाप को अच्छी रीति याद करेंगे तो विकर्माजीत बनेंगे।*

➢➢  देही-अभिमानी न होने कारण टाइम वेस्ट करते रहते हैं। घड़ी-घड़ी देह-अभिमान आ जाता है। *तुम बच्चों को कब ह्रास (दु:ख) नहीं होना चाहिए।* कोई-कोई तो ह्रास में आ जाते हैं। 

➢➢  *शिवबाबा अपने बच्चों (आत्माओं) को कहते हैं, अब देही-अभिमानी वा आत्म-अभिमानी भव और मुझ अपने बेहद के बाप याद करो, जो इस योग अग्नि वा याद द्वारा सिर पर विकर्मों का बोझा है जन्म-जन्मान्तर का, सो भस्म हो जायेगा।*

➢➢  कोई भी बाप का परिचय दे न सके। बाप का पार्ट क्या है, समझा न सके। तुम भी नम्बरवार समझते हो। *देही-अभिमानी होने कारण अवस्था अच्छी रहती है। देह-अभिमान में आकर फिर झरमुई- झगमुई करने लग पड़ते हैं, इसलिए ऊंच पद पा न सके। न विकर्म विनाश होते हैं।* बाप समझाते तो बहुत अच्छा हैं।

➢➢  बाप आकर समझाते हैं, सेल्फ रियलाइजेशन कराते हैं। कोई से पूछो कि आत्मा का बाप कौन है? कोई कहेंगे श्रीकृष्ण, कोई कहेंगे महावीर। *हम आत्मा हैं, हमारा बाप निराकार शिव है।* एक भी ऐसे कह न सके। न तो रचयिता, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, इसलिए उनको नास्तिक कहा जाता है। बाप कहते हैं *तुम नास्तिक शूद्र थे। अब ब्रह्मण आस्तिक बने हो।*

➢➢  गुरू ब्रह्मा कहते हैं ना। गुरू विष्णु, गुरू शंकर नहीं कहेंगे। गुरू सिर्फ ब्रह्मा ही है। तुम भी माता गुरू बनती हो। सतगुरू द्वारा बनी हो न कि कलियुगी गुरूओं द्वारा। *तुम ब्रह्मण ब्रह्मणियां बनी हो। तुम्हारी है रूहानी यात्रा। मेहनत है, माया किसकी बुद्धि को ताला लगा देती है तो फिर उल्टा सुल्टा बोलते रहते हैं। वेस्ट आफ टाइम करते हैं।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  अभी तुम बच्चे जानते हो पहले तो कोई भी काम के नहीं थे। सब मरे पड़े थे, सब कब्रिस्तान बना हुआ है। अब फिर परिस्तान के मालिक बन रहे हैं। *भारत परिस्तान था, अब कब्रिस्तान है। सब एक दो को दु:ख देते ही रहते हैं। बाप कहते हैं कि अभी तुम सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ।*

➢➢  *अभी वह देवताओं का धर्म है नहीं। अनेक अधर्म हैं। अब फिर से बाप आकर वही सतयुगी देवी-देवताओं का धर्म स्थापन करते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली बच्चे जो ब्राह्मण -ब्राह्मणी कहलाते हैं। आत्मा रूप में आपस में भाई-भाई हैं। फिर ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट हो भाई बहिन बनते हैं।*

➢➢  *कल्प पहले ड्रामा अनुसार बाप ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मण रच उन ब्रह्माकुमार/कुमारियों द्वारा पतित भारत को पावन भारत बनाया था फिर जबकि कल्प की अन्त में पतित बन आत्मा 84 का चक्र पूरा करती है तो फिर वही पतित दुनिया को पावन करने बाप को आना पड़ता है।* कल्प-कल्प अर्थात् हर 5 हजार वर्ष बाद मुझ सर्व के परमपिता परमात्मा को याद करते हैं, भक्ति मार्ग में। और अन्त में जब भक्ति मार्ग पूरा होता है तो आता हूँ।

➢➢  *द्वापर में जब से रावणराज्य की स्थापना होती है तब से आत्मा जो सच्चे सोने समान है, जिसको सतोप्रधान गोल्डन एज कहा जाता है, सो अन्त में आइरन एजड तमोप्रधान कही जाती है अर्थात् सतयुग में जो पावन थे सो पतित बन जाते हैं कलियुग में। अब फिर पावन बनने लिए खास भारतवासी पतितपावन बाप को बहुत याद करते हैं क्योंकि बाप का अवतरण इस भाग्यशाली ब्रह्मा रथ में ही होता है।* 

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