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❍ 07 / 12 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢. *ब्रह्मा-भोजन
की बहुत महिमा है तो जरूर कुछ होगा ना। देवतायें भी इच्छा रखते हैं ब्रह्मा
भोजन की। तो याद में रह भोजन बनाने से अपना भी कल्याण होता है तो आने वालों का
भी कल्याण होता है।
➢➢ *ज्ञान तो बड़ा सहज है। मुरली भी अच्छी चलाते हैं परन्तु योग में मेहनत है।
याद से विकर्म विनाश करना - यह मेहनत है। बस इसमें बहुत फेल होते हैं।*
➢➢ भगवानुवाच तुमको मनुष्य से देवता, पतित से पावन बनाने आया हूँ। *ज्ञान से
ही सद्गति होती है, तो ज्ञान सागर को जरूर नालेज देना पड़े। बाकी पानी का सागर
वा नदियाँ थोड़े ही पावन बना सकती हैं।*
➢➢ *तुम हो ब्राह्मण। तुम्हारी जात ही न्यारी है।* तुम ब्रह्मा मुख वंशावली
ब्राह्मणों को ही बाप नालेज सुना रहे हैं। *तुम्हारी बुद्धि में सारे सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त की नालेज है। इस चक्र को जानने से ही तुम चक्रवर्ती राजा बन
जायेंगे।*
➢➢ *बाप तुमको सभी वेदों, शास्त्रों का सार समझाते हैं। दूसरा कोई भी यह सार
जानते ही नहीं।* बाप सीधा कहते हैं बच्चे देह-अभिमान को छोड़ दो। तुमको समझना
चाहिए कि हम आत्माओं से बाप बात कर रहे हैं। निराकार बाप निराकार बच्चों को ही
कहेंगे कि तुम आत्मायें कानों से सुनती हो। तुम ही सब कुछ करती हो। *कोई भी
हालत में बच्चों को देह- अभिमानी नहीं बनना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद
करो। सर्विस भी करो क्योंकि देह से ही सब काम होता है।*
➢➢ *दिन-प्रति-दिन बाप बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स देते रहते हैं, और बाप कहते
हैं जितनी झोली भरनी हो उतनी भर दो।* यह मालूम भी अपने को पड़ सकता है कि हम
अपनी झोली अच्छी रीति भर रहे हैं या कहाँ टाइम वेस्ट करते हैं। *भक्ति में तो
बहुत टाइम वेस्ट किया, एनर्जी वेस्ट की, पैसे भी बरबाद किये तो मेहनत भी बरबाद
की। देखो कितनी मेहनत करते हैं। जप, तप, दान, तीर्थ आदि कितना करते हैं। अब यह
जो कुछ हुआ ड्रामानुसार ।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बच्चों को
पुरुषार्थ कर अर्न्तमुखी बनना है। अन्दर आत्मा है ना। यह निश्चय करना है कि हम
आत्माओं को बाप समझा रहे हैं कि बच्चे तुमको सोल कान्सेस होकर रहना है,
सच्चा-सच्चा अन्तर्मुख इसको कहा जाता है।* हमारे अन्तर्मुख होने की बातें ही
निराली हैं। अन्दर जो आत्मा है उनको सब कुछ बाप से ही सुनना है। बाप प्यार से
बच्चों को बार-बार समझाते हैं।
➢➢ गाते भी हैं कि मुझ निर्गुण हारे में.. *अभी तुम बच्चों को गुणवान बनना है।
सो तब बन सकते हो जब बाप के साथ बुद्धियोग होगा।* माया तो बहुत भटकायेगी। बच्चे
गिरते और चढ़ते रहते हैं। जो बाडी कान्सेस रहते हैं वह गिरते रहते हैं। जो सोल
कान्सेस रहते हैं वह गिरते नहीं हैं।
➢➢ *तुमको तो अपनी रचना की भी पूरी देख-रेख करनी है और दिल में यह निश्चय रखना
है कि इन आंखों से हम जो देखते हैं, वह सब विनाश हो जाने वाला है। इसमें ममत्व
रखेंगें तो ही अपना नुकसान करेंगे। ममत्व एक बाप से रखना है।* मुख्य बात है
पवित्रता की।
➢➢ *बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और कोई भी उपाय है नहीं। योग अग्नि से ही
तुम पतित से पावन बनेंगे।*आइरन एज से तुम गोल्डन एज में जायेंगे। यह एक ही उपाय
है, दूसरा कोई उपाय ही नहीं। *सब बीमारियों की एक ही दवाई है, बाप की याद। इससे
ही सब दु:ख दूर हो जायेंगे। बाप की याद से वर्सा भी याद आयेगा। बाप माना ही
वर्सा ।* लौकिक बाप भल कितना भी गरीब होगा तो पाई-पैसे, बर्तन आदि का कुछ तो
वर्सा देगा जरूर। तो तुमको पहले बाप को फिर वर्से को याद करना है। *बाप कहते है
मनमनाभव, मध्याजी भव।*
➢➢ *अब बाप कहते हैं - मीठे बच्चे और सब तरफ से बुद्धियोग हटाओ। सारी दुनिया
से, अपनी देह से भी बुद्धि का योग हटा मामेकम् याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार
हो जायेगा। बहुत सस्ता सौदा है परन्तु लेने वाले नम्बरवार हैं।*
➢➢ *यहाँ तो बाप को याद करने की ही मेहनत करनी है, जिसमें ही माया के बहुत
विघ्न पड़ते हैं। तुम जानते हो हमने बाप की गोद ली है तो बाप को जरूर याद करना
पड़े।*
➢➢ *यहाँ भी बाप के याद की प्रैक्टिस पड़ जानी चाहिए। जितना हो सके भोग वा
भोजन बनाने के समय बाबा को याद जरूर करना है, बहुत-बहुत जरूरी है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢.
आगे भोग बनाते थे तो कृष्ण को, राम को, गुरूनानक को याद करते थे। गुरूवाणी पढ़ते
थे। याद में बनायेंगे तब तो शुद्ध होगा। फिर प्रैक्टिस पड़ जाती है। *सवेरे
उठकर तुम बाबा की याद में भोजन बनायेंगे तो भोजन में ताकत रहेगी।*
➢➢ अभी तो है पुरुषार्थ की बात। जो बीत चुका उसका तो कुछ होना नहीं है। फिर
अपने समय पर रिपीट होगा। *अब बाप कहते हैं श्रीमत पर चलो। अपना टाइम यहाँ वहाँ
बरबाद मत करो। टाइम को आबाद करो - बाप की याद में।*
➢➢ अब तुम्हारी सूरत और सीरत दोनों बदलती हैं। काले से गोरे बनते हो। सर्वगुण
सम्पन्न और 16 कला सम्पूर्ण बनते हो, जितना जो पुरुषार्थ करेंगे, इसमें झूठ तो
चल न सके। अगर अन्दर कुछ काला भरा हुआ होगा तो बाहर भी काला ही दिखाई पड़ेगा। *बाबा
कहते हैं - बच्चे तुम ऐसे मीठे बनो जो सब समझे तो इनको बनाने वाला कौन है।*
➢➢ अभी तुम बच्चे समझते हो हम अपने लिए राजधानी स्थापन कर रहे हैं। *आत्म-अभिमानी
बन रहे हैं।* हम बाबा से नालेज का वर्सा लेकर विश्व का मालिक बन जायेंगे।
➢➢. जिनकी तकदीर में नहीं है तो धारणा करते ही नहीं। *पुरुषार्थ करना चाहिए -
ऊंच पद पाने के लिए।* तुम जानते हो बापदादा संगम पर हमारे सम्मुख बैठे हैं। बाप
जरूर दादा के तन से ही बतायेगा। यह बच्चों को पक्का निश्चय है कि हम पुरुषार्थ
कर अवश्य बाप समान बनेंगे ।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप पतित-पावन,
ज्ञान सागर है। उससे तुम पतित-पावनी ज्ञान गंगायें निकली हो। गंगायें क्यों कहा
जाता है? क्योंकि तुम सब सजनियां हो। सबको हम ज्ञान गंगा ही कहेंगे। *बच्चों को
नशा चढ़ता है कि हम श्रीमत पर सारे विश्व के मनुष्य मात्र को सुख दे सकते हैं,
जो और कोई नहीं दे सकता।*
➢➢. *अब बाप आया है सबको सद्गति देने, और दिलाते भी हैं बच्चों द्वारा क्योंकि
करनकरावनहार है ना। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर जरूर चलना पड़े।*
➢➢. *बाप कहते हैं जो करेगा और जितनी सर्विस करेगा - वही 21 जन्मों के लिए ऊंच
प्रालब्ध पायेगा।*
➢➢ बहुत बच्चे हैं जो बाप की बातें एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं।
*जो अच्छी रीति धारण करेंगे वह फिर औरों की भी जरूर सर्विस करेंगे। अपना समय कहाँ
भी बरबाद नहीं करेंगे।*
➢➢ *तुम समझा सकते हो कि हम भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी बनाने में मदद कर रहे
हैं।* अब तुम बच्चों को सोल-कान्सेस बनना है। पतित-पावन बाप को याद करना है। *बुलाते
भी हैं कि हे पतित-पावन आओ तो आकर क्या करेंगे? जरूर पावन बनायेंगे। बोर्ड लगा
दो कि रचता है बाप, वही सारी नालेज देते हैं।*
➢➢ *भण्डारे में एक दो को याद कराना चाहिए कि बाबा को याद कर भोजन बनाओ।* ऐसे
करते-करते पक्के हो जायेंगे। जिनको अभ्यास नहीं होगा, वह तो कभी याद करेंगे नहीं।
➢➢ इतना *तुम बच्चों को नशा रहना चाहिए - सारे मनुष्य कुल का उद्धार करना है।*
मनुष्य कुल की ही बात है। ऐसे नहीं जानवर आदि का उद्धार करेंगे। उनका ड्रामा
में पार्ट ही यह है।*
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