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  18 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं, कल्याणकारी शिवबाबा है।*  शिवाए नम:, शिव है विदेही। *वर्सा तुमको बाप से लेना है।* यह देह भी उनकी नहीं है। *बाप कहते हैं इस शरीर द्वारा मैं सिर्फ तुमको पढ़ाता हूँ, क्योंकि मुझे अपना शरीर नहीं है* इसलिए इनका आधार लेता हूँ।

 

➢➢  कल्प पहले इन द्वारा मैंने तुम बच्चों को सहज राजयोग सिखाया था, जिससे तुम पावन बने थे। *मेरी सेवा ही यह है - पतितों को पावन बनाना।*एक पतित-पावन बाप को। सारी दुनिया के मनुष्यमात्र का वह लिबरेटर है, गाईड भी है। *दु:ख से लिबरेट कर परमधाम में ले जाने वाला बाप ही है।*

 

➢➢  पाप करके फिर न बताने से वह बोझा उतरता नहीं। *भगवान तो देखता है ना। नहीं तो सजा कैसे मिलती है - गर्भ में।* बाप को तो मालूम पड़ता है - बहुत ही तुच्छ बुद्धि हैं जो समझते नहीं, पाप करते रहते हैं, सुनाते नहीं।  *बाप कहते हैं पाप करते रहेंगे तो वृद्धि होती रहेगी फिर सौगुणा दण्ड भोगना पड़ेगा।*

 

➢➢  जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं आई है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कुछ न कुछ भूलें तो होती रहती हैं। *कर्मातीत अवस्था पिछाड़ी में आयेगी। सो भी थोड़े पास विद आनर होंगे। गीता में भी आदि और अन्त में आता है मनमनाभव।* कोई भी देहधारी की याद नहीं आनी चाहिए। गंगा पतित-पावनी नहीं है। *पतित-पावन एक बाप है।*

 

➢➢  आत्मा कहती है - हे गॉड फादर, हे परमपिता परमात्मा। *बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको बिल्कुल सहज उपाय बताता हूँ कि मुझे याद करो।* अन्त में मेरी याद रहेगी तो तुम मेरे पास चले आयेंगे। जीव और आत्मा है ना।

 

➢➢  *मनुष्य आत्मा को पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है। पुण्य परमात्मा नहीं कहा जाता है।* बाप आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा अविनाशी है। बाप बच्चे दोनों अविनाशी हैं। *बाप कहते हैं लाडले, सिकीलधे बच्चों, मैं एक ही बार आकर तुमको पावन बनाता हूँ।*

 

➢➢  वह होती है शारीरिक यात्रा। *यहाँ तो तुम जानते हो कि आत्माओंको अब वापिस जाना है।* जैसे एक पिल्लर बनाते हैं ना, जहाँ दौड़ी लगाए हाथ लगाते हैं फिर जो पहले पहुँचें। *तुम्हारा पिल्लर शिवबाबा है।* भक्ति में कितनी रिड़याँ मारते हैं कि भगवान हमारी सद्गति करने आओ। *अब बाप आये हैं, समझाते हैं बच्चे पवित्र बनो।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह बाबा भी तुमको कहते हैं मनमनाभव।* देहधारी को याद किया तो दुर्गति को पायेंगे। *बाबा का फरमान है मामेकम् याद करो। सुबह को उठकर मुझे याद करो।* पतित बनें तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। *मुझ बाप को याद करते रहेंगे तो विकर्म भी विनाश होंगे और हम वर्सा भी देंगे।* थोड़ा याद करेंगे तो वर्सा भी थोड़ा मिलेगा। जो अच्छी तरह पढ़ेंगे पढ़ायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे।

 

➢➢  बच्चे किसकी याद में बैठे हैं? (शिवबाबा की) *शिवबाबा को ही याद करना है और कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है।* तुम्हारे सामने यह देहधारी बैठा हुआ है, इनको भी याद नहीं करना है। *तुमको याद सिर्फ एक विदेही को करना है, जिसको अपनी देह नहीं है।* यह मम्मा बाबा अथवा अनन्य सर्विसएबुल जो बच्चे हैं, वह सब सीखते हैं शिवबाबा द्वारा। *तो याद भी शिवबाबा को ही करना है।*

  
➢➢  *याद से विकर्म विनाश होंगे।* बाबा अपना मिसाल बताते हैं कि मैं भी भोजन पर बैठता हूँ, स्नान करता हूँ, तो मुझे भी याद दिलाओ कि शिवबाबा को याद करो। *भल खुद याद न भी करे, परन्तु बाबा का डायरेक्शन अमल में लाना चाहिए।*

 

➢➢  *याद से ही तुमको जीयदान मिलता है।* अपना हीरे जैसा जीवन बनाना है। सहज ते सहज बात है मुझे याद करो, पवित्र बनो। *शिवबाबा को याद करेंगे तो तुम्हारा कल्याण होगा।*

 

➢➢  कोई भी स्थूल चीज को तुम्हें याद नहीं करना है। *एक शिवबाबा को ही याद करना है। तुमको आत्म-अभिमानी बनाए कहता हूँ अशरीरी भव, मुझ बाप को याद करो।* बस यह है आत्मा की यात्रा।  *योग अग्नि से ही तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे।* तुम्हें ब्रह्मण बनना है।

 

➢➢  *सहज ते सहज बात है याद की। परमपिता परमात्मा को याद करना है।* बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे *फिर जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।  याद के यात्रा की दौड़ी है।* जितना याद करेंगे उतना जल्दी पिल्लर तक पहुँचेंगे फिर आना है स्वर्ग में।

 

➢➢  *योग में भल कितना भी आवाज हो, अर्थक्वेक हो, बाम्ब गिरें, देखें क्या होता है। इन बातों से डरना नहीं है।*  अजुन तो बहुत आफतें आनी हैं, तुमको देखना है, मिरूआ मौत मलूका शिकार। *शिवबाबा को याद करना है।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  अभी नाटक पूरा होता है। हम सब एक्टर्स को अब शरीर का भान छोड़ वापिस घर जाना है। *इस यात्रा में थकना नहीं है।*  हमको तो सुखधाम, शान्तिधाम में जाना है। *टाइम वेस्ट मत करो।*

 

➢➢  बाप कहते हैं कभी भी देहधारी में लटकना नहीं है।  कोई की भी याद नहीं रहनी चाहिए। देहधारी पर कभी बलिहार नहीं जाना होता है। *देहधारी में आसक्ति नहीं होनी चाहिए।*

 

➢➢  *फालतू बातें न करनी है, न सुननी है। अगर अपना कल्याण करना चाहते हो तो एक दो को सावधानी देते रहो कि शिवबाबा को याद करो।*

 

➢➢  *ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है। भोजन बनाने वाले ब्राह्मणों का योग ठीक चाहिए तब तो भोजन में ताकत आयेगी।*

 

➢➢  *भल युगल इकट्ठे रहो, देखो आग तो नहीं लगती है?* आग लगी तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। इसलिए *अपने को सम्भालना भी है। योग में रहने की बड़ी प्रैक्टिस चाहिए।*

 

➢➢  सर्जन तो एक ही है। यह (ब्रह्मा) सर्जन के रहने और बोलने की जगह है। इस सर्जन जैसी मत कोई और दे न सके। इस समय सबकी उतरती कला है तो जरूर उल्टी मत देंगे।  *बच्चों को अब ज्ञान मिला है तो कोई भी विकर्म नहीं करना चाहिए।*

 

➢➢  शिवबाबा जैसा मीठा बाप फिर कभी नहीं मिल सकता। उनकी ही मत पर चलना है। *मुख्य बात ही है पवित्र बनने की।*  देवतायें हैं ही सम्पूर्ण निर्विकारी। वह है - शिवालय। यह है वैश्यालय। *अब विकारी से निर्विकारी बन स्वर्ग का राज्य भाग्य लेना है।* 
 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *झरमुई-झगमुई करने में टाइम गँवाने से तुम्हारा बहुत नुकसान होता है। तुमको औरों को बचाना है।* कोई को फिर गुस्सा भी लगता है कि फलाना मुझे क्यों कहता है? परन्तु तुम्हारा फर्ज है याद दिलाना।

 

➢➢  तुम फरिश्ते बन रहे हो। जो अच्छे सर्विसिएबुल होंगे वही उस समय ठहर सकेंगे, इसमें बहुत मजबूती चाहिए। *बाप कहते हैं मैं पावन दुनिया स्थापन करने आया हूँ, तुमको मैं पावन दुनिया का मालिक बनाऊंगा। सिर्फ पवित्र बनने की मदद करो, सबको बाप का निमन्त्रण दो।*

 

➢➢  जो सर्विस नहीं करते उनकी यह अवस्था आयेगी नहीं। *सर्विस पर जो रहते हैं वह एक दो को याद कराते रहते हैं - परमपिता परमात्मा के साथ तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?*

 

➢➢  आज दु:खधाम है, कल सुखधाम होगा। *अब यही बाप की याद सबको दिलाओ। बाप ने हथेली पर बहिश्त लाया है। कहते हैं मामेकम् याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा।*

 

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