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❍ 15 / 07 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सजायें खायेंगे तो राजाई पद भी नहीं मिलेगा। जो योग में रह विकर्माजीत बनेंगे वही विकर्माजीत राजा बनेंगे।*
➢➢ तुम कहते भी हो भक्तों को भगवान आकर अपने धाम ले जायेंगे। *धाम हैं ही दो-मुक्ति और जीवनमुक्ति। भारत जीवनमुक्त था तब दूसरी आत्मायें शान्तिधाम में थी। सुखधाम था तब दुखधाम था ही नहीं। अब वह सुखधाम फिर दुखधाम बन गया है।*
➢➢ *बाबा है भी ज्ञान का सागर। इतनी नदियां जो निकलती हैं उनका क्रियेटर कौन है? जरूर कहेंगे सागर है, उनसे ही सब नदियां निकलती हैं। तो ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा ठहरा। उनसे तुम ज्ञान गंगायें निकलती हो।*
➢➢ *जब भारत श्रेष्ठाचारी पूज्य था तो कोई भी भक्तिमार्ग का चिन्ह नहीं था। न वेद-शास्र, न तप-तीर्थ, दान-पुण्य कुछ भी नहीं होता था। यह सब अभी भक्ति मार्ग में निकले हैं।*
➢➢ *विकर्माजीत
का संवत वन से 2500 वर्ष तक फिर विक्रम राजा का संवत 2500 वर्ष से 5000
वर्ष तक।* मनुष्य संवत को नहीं जानते। *विकर्माजीत बादशाही सतयुग त्रेता
में चलती है, उनको लाखों वर्ष दे दिये हैं। और विक्रम संवत को 2 हजार वर्ष
दे दिये हैं। वास्तव में आधा उनका, आधा उनका होना चाहिए। यह सब बातें समझने
की हैं।*
➢➢ *तुम तो हो सच्चे ब्राह्मण मुख वंशावली। वह तो हैं कुख वंशावली। तुम ब्राह्मण ही देवता बनते हो।* ब्राह्मण बन फिर पावन बनना शुरू करते हो। *पतित-पावन है ही एक बाप।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पतित-पावन बाप कहते हैं मेरे को याद करने से तुम्हारे पास्ट के विकर्म विनाश हो जायेंगे और आगे भी कोई विकर्म नहीं होंगे क्योंकि तुम पवित्र ही रहेंगे।*
➢➢ बाप कहते हैं अब तुम *मेरी याद से पावन बनते जायेंगे, विकर्म भस्म होंगे।* भगवानुवाच *मामेकम् याद करो तो इस योग अग्नि से तुम पवित्र बनोंगे।*
➢➢ बाप कहते हैं *मुझ ज्ञान सागर को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। पावन बन जायेंगे।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अब बाप कहते हैं *मामेकम् याद करो।* गृहस्थ व्यवहार में रहते *कमल फूल समान बनो।* तो पवित्र दुनिया का राज-तिलक मिलेगा। हम राजयोग सीखते हैं। यह है ही स्वराज्य पाने की पढ़ाई।
➢➢ पतित-पावन बाप ने आकर सबको कहा है कि *पवित्र बनो।* जो ब्रह्मा मुख वंशावली हैं- कमल फूल समान गृहस्थ व्यवहार में रह पवित्र बन बाप को याद करते हैं, वही ऊंच पद पाते हैं। 5 हजार वर्ष पहले भी ऐसे हुआ था, अब भी होना है।
➢➢ *तुम कभी पतित नहीं बनना।* तुम भी सबको यही कहते हो - आज से प्रतिज्ञा करो- हम पावन बनाने वाले बाप से स्वर्ग का स्वराज्य लेंगे। पावन जरूर बनेंगे।
➢➢ पतित-पावन बाप आकर पवित्रता की प्रतिज्ञा कराते हैं कि मनमनाभव। *पवित्र बनो और मुझे याद करो।* तुम्हारे विकर्म विनाश होने का और कोई उपाय नहीं है।
➢➢ भगवान के महावाक्य हैं- कमल फूल समान पवित्र बनो। *काम महाशत्रु को जीतो।*
➢➢ यहाँ तो परमपिता परमात्मा आर्डिनेंस निकालते हैं कि *जो पवित्र बनेंगे वह पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।* पावन तो सिर्फ तुम बनते हो।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुमको पहले-पहले यह समझाना चाहिए कि राखी बंधन है ही पवित्रता की निशानी। तुम इस काम शत्रु को जीतो तो पवित्र बन जायेंगे।*
➢➢ *बाबा समझानी देते हैं- कैसे किसको समझाओ। बोलो, पहले तुम कहते हो पतित-पावन आओ- यह किसको कहते हो? गाते भी हो तुम मात-पिता.. यह किसकी महिमा करते हो? जरूर भगवान ही ठहरा। उनको ही पतित-पावन कहा जाता है।*
➢➢ गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो। तो पवित्र दुनिया का राज-तिलक मिलेगा। *राजतिलक कब और किसको मिला। यह तो है सारी ज्ञान की बात। तो तुमको जाकर समझाना है। यह तुम ब्राह्मणों का काम है।*
➢➢ *पूछा जाता है - पारलौकिक परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? बाप एक वही पतित-पावन है।* कहते हैं पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनो।
➢➢ सतयुग में योगी थे - घर गृहस्थ में रहते हुए। उन्हों को कहा जाता है सर्वगुण सम्पन्न. वाइसलेस वर्ल्ड। प्रवृत्ति मार्ग तो हैना। राज्य करते होंगे। शादियां आदि भी होती होंगी। वह है पावन राज्य। *पतित-पावन बाप पतित दुनिया को पावन कैसे बनाते हैं, वह बैठ समझो।*
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