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❍ 12 / 10 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह तो बच्चे समझ
गये हैं कि *आत्माओं का बाप, उसे कहा जाता है परमपिता परम आत्मा। बाप खुद समझाते
हैं - मेरा कोई आकार में बड़ा रूप नहीं है। जैसे आत्मा के लिए कहते हैं स्टार
है, भ्रकुटी के बीच में रहती है। वैसे मैं भी परम आत्मा हूँ, उसकी महिमा बड़ी
है। ज्ञान सागर है।* बाकी इतना बड़ा चित्र जैसे नहीं है। इतना बड़ा होता तो इस
शरीर में घुस नहीं सकता। वह तो शिवलिंग की पूजा करते हैं तो बड़ा बनाते हैं।
अंगूठे सदृश्य कहते हैं। आत्मा माना आत्मा सिर्फ उनको परम कहते हैं, जो परमधाम
में रहते हैं।
➢➢ यह तो शिवलिंग की पूजा करते हैं तो बड़ा बनाते हैं। अंगूठे सदृश्य कहते
हैं। आत्मा माना आत्मा सिर्फ उनको परम कहते हैं, जो परमधाम में रहते हैं। तुम
जानते हो इस समय है डेविल वर्ल्ड, आसुरी सम्प्रदाय। *सतयुग में इस भारत पर
देवताओं का राज्य था, अब तो आसुरी राज्य है। देखो, क्या-क्या खा जाते हैं! मांस
मदिरा यह राक्षसी आहार है, इस बात को भी नहीं समझते हैं ।*
➢➢ *बाप अपना परिचय देते हैं कि मैं आत्मा हूँ जैसे तुम हो। परन्तु मैं
पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ, जन्म लेता हूँ परन्तु मरण में नहीं आता, मेरी जयन्ती
मनाते हैं। मैं इस तन में पढ़ाने के लिए आता जाता रहता हूँ तो इसको मृत्यु नहीं
कहेंगे।*
➢➢ अब सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। राम के राज्य में इतने मनुष्य नहीं
थे। जब रामराज्य है तो रावणराज्य नहीं। कहाँ चला जाता है? नीचे पाताल में चला
जाता है। फिर रावण राज्य आता है तो रामराज्य नीचे चला जाता है। यह ड्रामा है
ना। *जब चक्र फिरता है तब सतयुग ऊपर आ जाता है। द्वापर, कलियुग नीचे चला जायेगा
तो सतयुग त्रेता नीचे से ऊपर आ जायेगा है चक्र की बात, उन्होंने ऐसे लिख दिया
है। बाकी कोई सागर में नहीं चला जाता है वा सागर से निकल नहीं आता है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ भगवान माना
भगवान निराकार, न ब्रह्मा, न विष्णु, न शंकर, न कृष्ण... कहते हैं मैं परमात्मा
भी तुम्हारे जैसा हूँ। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाने आया हूँ। योग की कितनी
महिमा है। बहुत योग आश्रम खुले हैं। उसमें हठयोग आदि सिखलाते हैं। परन्तु *तुम
योगबल से सारे विश्व को स्वर्ग बनाते हो। विश्व को परिवर्तन करते हो। सारी
दुनिया तो योग में नहीं रहती, योग की कितनी महिमा है, जिससे खास भारत स्वर्ग
बनता है।*
➢➢ सन्यास दो प्रकार का है। एक है निवृत्ति मार्ग का सन्यास जो जंगल में जाते
हैं, वह है हाफ सन्यास। तुम्हारा है फुल सन्यास। *तुम सारी आसुरी दुनियां का
सन्यास करते हो मेरा पति, मेरा बच्चा, मेरा गुरू... उन सब मेरे-मेरे से
बुद्धियोग तोड़ते हो। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। जब तक यह अवस्था नहीं
आयेगी तब तक तूफान आते रहेंगे। झोके खाते रहेंगे।*
➢➢ बाप सारी आसुरी दुनिया का सन्यास कराते हैं क्योंकि यह सब भस्म होना है। वह
ऐसे नहीं कहते सब भस्म होना है। *तुम रहते सम्बन्धियों के बीच में हो परन्तु
उनको देखते बुद्धि वहाँ लगी हुई है। मेरा कुछ है नहीं। तो काम क्रोध किससे होगा!
यह युक्ति बहुत अच्छी है, परन्तु जब बुद्धि में बैठे। इसको राजयोग कहा जाता है।
तुम योग लगाते हो, राजाई लेते हो।* वह है हठयोग। यह गुह्य प्वाइंट्स हैं।
➢➢ बाप समझाते हैं यह बड़ी गुह्य समझने की बातें हैं। *इसमें पवित्रता है
फर्स्ट और योग पक्का चाहिए। इसको कहा जाता है कम्पलीट सन्यास। इस दुनिया से
बुद्धियोग खलास।* यह बातें तुम्हारे में भी कोई समझते होंगे। सब समझें तो ज्ञान
गंगा बन जायें। छोटी नदी बनें, कैनाल्स बनें। अच्छा टुबका बन घर में सुनायें तो
भी समझें कि कुछ समझा है। परन्तु घर में भी नहीं बता सकते है ।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
*बच्चों को नशा होना चाहिए कि हम तो देवता बन रहे हैं।* बाप खुद कहते हैं मैं
पतितों की दुनिया में आता हूँ। सतयुग में यही नारायण था - अब फिर इनके तन में
आया हूँ, इनको ही नर से नारायण बनाता हूँ। नम्बरवन पूज्य भी यह था, अब नम्बरवन
पुजारी भी यह बना है। फिर इनका ही आलराउन्ड पार्ट है। यह मेरा मुकरर् तन है। यह
चेन्ज नहीं हो सकता। ऐसे नहीं कब दूसरे को चांस दूँ। यह ड्रामा बना बनाया है ।
➢➢ मैं आता हूँ देवता बनाने। अब जो आकर पढ़ेंगे...,पढ़ेंगे भी वही जिन्होंने
कल्प पहले पढ़ा होगा। बहुतकाल से बिछुड़े हुए वही सिकीलधे बच्चे हैं, दूसरे
थोड़ेही 84 जन्मों में आते हैं, हम ही सारा 84 का चक्र लगाते हैं। मनुष्य तो
बहुत जन्म लेने से तंग होते हैं, तुमको कहेंगे हम 84 के चक्र में नहीं आने चाहते
हैं। परन्तु हम कितने पहलवान हैं जो और ही खुश होते हैं। *हम इस 84 के चक्र को
याद करते-करते चक्रवर्ती राजा बन जाते हैं।*
➢➢ *बाबा ने नटशेल में बताया है। योग से तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो। बाकी
बादशाही के लिए नॉलेज चाहिए। दो सब्जेक्ट हैं। बाबा भी योग में रहने का
पुरुषार्थ करते हैं तब कहते ना - न बिसरो न याद रहो ।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ब्रह्माकुमार
कुमारियों में भी नम्बरवार महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे बहुत हैं जो अच्छी रीति
समझा नहीं सकते हैं। ज्ञान पूरा न होने कारण डिससर्विस करते हैं। जितना जिसमें
ज्ञान है, उतना समझायेंगे। नम्बरवार तो हैं। कहाँ भूलें भी करते हैं।*
➢➢ *बाप कहते हैं कि कैसा भी गरीब हो परन्तु घर में गीता पाठशाला खोल सकते
हैं। भल एक ही कमरा हो उसमें खाते पीते सोते हो। अच्छा काम उतार सफाई कर फिर यह
क्लास लगाओ। तीन पैर पृथ्वी में इतनी बड़ी हॉस्पिटल खोल सकते हो सेवा।*
➢➢ मेरे पास तो गरीब आयें जो अच्छी तरह पढ़ें। अगर दूसरे को नहीं सुना सकते तो
छोटा तालाब भी नहीं ठहरे। *तुमको तो बड़ी नदी बनना है। मम्मा बाबा को फालो करना
है। परन्तु घर में भी नहीं सुना सकते तो चुल्लू पानी (हथेली में पानी) की तरह
भी नहीं ठहरे। बाबा को तो मजा आयेगा ज्ञान गंगाओं के सामने।* कई बाबा के सम्मुख
सुनते हैं तो खुश होते हैं।
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