━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

  29 / 12 / 17  

       MURLI SUMMARY 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  *मनुष्य समझते हैं भगवान से मुक्ति मिलेगी। बाप कहते हैं तुम्हारे लिए मुक्ति से जीवनमुक्ति भी अटैच है। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में जरूर आयेंगे। माया के बंधन से छूट जाते हैं, फिर आते हैं सतोप्रधान में।*

➢➢  *तुमको बहुत सुख मिलता है फिर दु:ख भी बहुत मिलता है। बाप कहते हैं- हे बच्चे, अब तुम्हारा प्यार मेरे साथ हुआ है क्योंकि तुम जानते हो बाबा हमको सुखधाम का मालिक बनाने वाला है।*

➢➢  *आपदायें बहुत आयेंगी। भिन्न-भिन्न प्रकार के विध्न भी पड़ेगे।* विध्न तो हर एक को पड़ते हैं। यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि नई दुनिया की स्थापना के लिए बाबा बिल्कुल नई बातें सुना रहा है। *लिखा हुआ भी है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। परन्तु स्थापना और विनाश की बात को कोई समझते नहीं हैं। स्थापना किसकी? कहते हैं राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ रचा। जरूर यज्ञ रचा स्वराज्य के लिए। नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने के लिए राजयोग सिखाते हैं।*

➢➢  *गुरू लोग तो किसको मुक्ति जीवनमुक्ति दे न सके। यह बाबा ने समझाया है दिलवाला मन्दिर में ऊपर वैकुण्ठ के चित्र दिखाये हैं, नीचे तपस्या के। अब तुमको समझ मिली है कि यह भारत ही वैकुण्ठ था।*

➢➢  *हम पुरुषार्थ करते-करते जाकर पहले-पहले रूद्र माला का दाना बनेंगे।* स्कूल में भी पास होते हैं तो फिर नम्बरवार जाकर बैठते हैं। यहाँ भी तुम बच्चे जानते हो हम पढ़ते हैं फिर *हम आत्मायें मूलवतन में चले जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे। पिछाड़ी में सबको मालूम पड़ेगा। रिजल्ट पिछाड़ी में निकलेगी।*

➢➢  *तुम्हारे लिए स्वर्ग कोई दूर नहीं है। जैसे स्कूल में बच्चे पढ़कर पास होते हैं तो एक क्लास से दूसरे में ट्रांसफर होते हैं। तुम भी ट्रांसफर होते हो पुरानी दुनिया से नई दुनिया में।*

➢➢  *तुम आत्माओं का लव हो गया है एक परमपिता परमात्मा के साथ। इनको रूहानी प्यार कहा जाता है। दुनिया में वह आशिक माशूक तो जिस्मानी होते हैं। उनका आपस में प्यार भी जिस्मानी होता है। तुम्हारा तो रूहानी प्यार है।*

────────────────────────

 

❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  रूहानी प्यार अर्थात् रूहों का रूहानी बाप के साथ प्यार। *दुनिया भी उस रूहानी बाप को ही याद करती है कि हमको दु:ख से लिबरेट करो या दु:ख हरो।*

➢➢  हम आधाकल्प के आशिक हैं। अभी हमें माशूक मिला है। वह हमको नई दुनिया में जाने के लिए लायक बना रहे हैं। कर्म भी करना है। यह *सब कुछ करते हुए याद एक ही बाप को करना है।*

➢➢  *रावण के राज्य में दु:ख ही दु:ख है इसलिए बाबा को याद करते हैं - हे दुःख हर्ता सुख कर्ता आओ।* कितनी सहज बात है। सिर्फ ब्रह्मा का मुख देख मनुष्यों का माथा खराब हो जाता है।

➢➢  पुरुषार्थ तो बच्चों को हर बात में करना ही है। *तुम बच्चे योगबल से अपने को पवित्र बना रहे हो। योग से ही आत्मा की खाद निकलती है। हमको पूरा-पूरा योगी बनना है।*

➢➢  अब *पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है। निरन्तर याद की ही कोशिश करनी है।* तुमको फायदा बहुत होगा। अच्छा वर्सा मिलेगा। बाप के साथ योग अथवा पूरा लव चाहिए। उनसे ही विकर्म विनाश होते हैं।

➢➢  *तुम्हारे में जो खाद पड़ी है वो योग से ही निकलती है। सारा मदार है याद करने पर।* नहीं तो माया विकर्म करा देती है।

────────────────────────

 

❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  बाप कहते हैं *जो कुछ विकर्म किया है। वह बाप के आगे रख माफी मांगनी है।*

➢➢  *जो महावीर होंगे वह कोई भी बात की परवाह नहीं रखेंगे।* जानते हैं विनाश तो होना ही है। तुमको तो जाना है नई दुनिया में।

➢➢  *माया बहुत लड़ेगी। बाप को याद करने नहीं देगी इसलिए खबरदार रहना। माया तुम्हारा बाप से मुख मोड़ने का पुरुषार्थ करेगी। परन्तु तुमको मोड़ना नहीं है।*

➢➢  तुम्हारा बाप के साथ रूहानी लव है। तुम्हारे अन्दर रूहानी प्यार की आग लगी हुई है। जैसे अज्ञान में काम-क्रोध की आग लगती है। अब तुम आत्माओं का प्यार होता है बाप के साथ। *आत्माओं का माशूक है परमात्मा, उनसे प्रीत लगानी है।*

➢➢  लड़ाईयाँ लगेंगी, विनाश होगा। फिर तो कुछ कर भी नहीं सकेंगे। *अभी तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो। बाप कहते हैं बच्चे भूलो नहीं।* तुम सबसे जास्ती लवली (प्यारे) हो। तुमको ही सबसे ऊंच पद मिलता है। *नहीं पढ़ेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे।*

➢➢  *श्रीमत पर चलते हैं तब अच्छा पद पाते हैं,* बड़ा भारी स्कूल है। *नम्बरवार  पढ़ाई के अनुसार ही पद पायेंगे।* कहेंगे तुम्हारे ऊपर इतनी मेहनत की फिर तुम पढ़े नहीं। अब तो सजा खानी पड़ेगी। जन्म-जन्मान्तर की सजाओं का साक्षात्कार होता है। *कर्मातीत अवस्था में जाना है* तो पिछाड़ी में सब साक्षात्कार करते रहेंगे।

➢➢  अब हमारी आत्मा पढ़ रही है - परमपिता परमात्मा से। तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो। *तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे, फिर हम पास होकर बाबा के पास पहुँच जायेंगे।*

────────────────────────

 

❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  दैवी झाड़ का कलम लग रहा है। वो लोग सैपलिंग बनाते हैं झाड़ों आदि की। उनकी सेरीमनी करते हैं। *तुम्हारी क्या सेरीमनी होगी? उनकी है जंगल की सेरीमनी। तुम्हारी है बहिश्त की सेरीमनी। तुम कांटों को फूल बनाते हो।*

➢➢  बाप सम्मुख आये हैं तो तोबा भर लो (माफी ले लो)। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो बाप को पूरा लव करते हैं। लव करने वाले ही बाप की राय पर चलते होंगे। *तुम सब सीताओं का राम एक ही बाप है। तुम तो समझ गये हो अब औरों को समझाना है।*

➢➢  इस माशूक से क्या मिलता है? ओहो! वह हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। *तुम अब बाप और वर्से को जान गये हो, इसलिए *बाप समझाते हैं कोई भी मिले तो समझाओ - तुमको दो बाप हैं - एक हद का, दूसरा बेहद का। बेहद के बाप से 21 पीढ़ी सुख का वर्सा मिलता है।*

➢➢  पहले सुख के पीछे दु:ख का कायदा है। सबको सतो रजो तमो में आना ही है। *अभी तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था है झाड़ की। अब उनसे ही कलम लगानी है।*

➢➢  कुछ बीमारी आदि होती है यह तुम्हारे ही कर्मों का हिसाब-किताब है। *तुमको तो पढ़ना और पढ़ाना है।* यह राजधानी स्थापन हो रही है। इसमें गरीब, साहूकार, प्रजा, नौकर, चाकर आदि सब बनने हैं। जो बादशाह बनते हैं जरूर उन्होंने अच्छे कर्म किये हैं।

────────────────────────