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⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप ने समझाया है - *यह ब्राह्मण धर्म परमपिता परमात्मा ही स्थापन करते हैं।* अब ब्राह्मण धर्म कहाँ होता है? क्या सतयुग में? नहीं। जरूर यहाँ होगा। प्रजापिता भी यहाँ ठहरा। *बाप ने ब्राह्मण धर्म स्थापन किया और ब्रह्मा मुख वंशावली रची।*
➢➢ यह तो तुम समझते हो कि यह पतित दुनिया है। सबका अन्तिम जन्म है। *अभी नाटक पूरा होता है। नहीं तो सतयुग से दैवी धर्म कैसे स्थापन होगा।* सतयुग में है एक अद्वैत देवी-देवता धर्म।
➢➢ इस समय तुम्हारा है ब्राह्मण धर्म। विराट रूप का राज़ भी समझाया है। *ब्राह्मण माना चोटी, फिर ब्राह्मण ही देवता बनते हैं।* मनुष्यों को यह पता ही नहीं है कि शिवबाबा ब्राह्मण धर्म रचते हैं। अभी तुम ट्रांसफर होते हो। शूद्र से ब्राह्मण, नीचे से आसमान में चले जाते हो।
➢➢ मनुष्य देवियों के मन्दिर में जाते हैं तो यह नहीं जानते हैं कि जगत अम्बा कौन है? *वह भी ब्राह्मणी है। तुम भी ब्राह्मणियाँ हो।* जगत अम्बा और जगत पिता भी है, *जो जिसका पुजारी होगा उनका मन्दिर बनायेगा।*
➢➢ नॉलेज कुछ भी नहीं है कि जगत अम्बा कौन है। वह है ज्ञान ज्ञानेश्वरी, जो फिर राज-राजेश्वरी बनती है। *देवियों की बहुत पूजा होती है। सतयुग में हैं लक्ष्मी-नारायण, त्रेता में हैं राम-सीता।* बाकी सब इस समय के चित्र हैं। अनेक चित्र हैं, अनेक मन्दिर बनाये हैं।
➢➢ तुम जानते हो ब्रह्मा सरस्वती ब्राह्मण और ब्राह्मणियाँ हैं। लक्ष्मी को ब्राह्मणी नहीं कहेंगे, वह देवता है। जब ब्राह्मणी है तो सब मनोकामनायें पूर्ण करती है - 21 जन्मों के लिए। *जब लक्ष्मी बनती है तो ग्रेड कम हो जाता है। अभी तुम ईश्वर की सन्तान हो। तुम्हारी ग्रेड ऊंची है।*
➢➢ तुमको अब ऊपर जाना है। तुम्हारी चढ़ती कला है। *तुम रूहानी ब्राह्मण मुखवंशावली हो। वह हैं कुख वंशावली, जिस्मानी ब्राह्मण।* वह जिस्मानी तीर्थ कराते हैं, कथा सुनाते हैं।
➢➢ उन्हों का है हद का रजोगुणी वैराग्य। यह है बेहद का सतोप्रधान वैराग्य। दुनिया को नहीं छोड़ते हैं। *तुम पुरुषार्थ कर रहे हो पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाने लिए।* वह थोड़ेही ऐसे समझते हैं कि नई दुनिया में जाकर सुख भोगना है। यह सुख तुम्हारे लिए है। *उन्हों का है रजोप्रधान सन्यास। तुम्हारा है सतोप्रधान सन्यास।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि हम बाप और दादा के सामने बैठे हैं। हर एक बात नई है और याद करना है श्रीमत पर एक ही बाप को। बाप श्रीमत देते हैं दादा के तन द्वारा। *घड़ी-घड़ी बच्चों को सावधानी मिलती है कि मनमनाभव अर्थात् बाप को याद करो। इस दादा को याद नहीं करना है।* दादा की आत्मा भी बाप को याद करती है तो तुमको भी याद करना है।
➢➢ सर्वशक्तिमान एक ही बाप है। भल तुम विश्व के मालिक बनते हो परन्तु तुमको सर्वशक्तिमान नहीं कहेंगे। सर्वशक्तिमान द्वारा तुम रावण पर जीत पाकर फिर से अपना राज्य पद लेते हो। *बाप का फरमान है कि मुझ अपने बाप को याद करो।*
➢➢ *अभी बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे।* सो जाने से कोई विकर्म विनाश नहीं होंगे। यह तो बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है, जो पुरुषार्थ बहुत जरूरी है। घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं मुझे याद करो।
➢➢ बच्चों को सतोप्रधान बनना है। *योग से खाद भस्म हो जायेगी इसलिए इसको योग अग्नि कहा जाता है।* याद अग्नि यह अक्षर शोभता नहीं है। योग अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म भस्म होंगे। है बहुत सहज बात। परन्तु घड़ी-घड़ी कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं - बच्चे देही-अभिमानी बनो।* सतयुग से त्रेता तक तुम सोल कान्सेस रहते हो। तुम आधाकल्प सोल कान्सेस, आधाकल्प बॉडी कान्सेस बने हो। तो अब सोलकान्सेस बनने में मेहनत लगती है।
➢➢ तुम जानते हो यह बूढ़ा शरीर छोड़ जाकर नया लेंगे। पुराने कपड़े को छोड़ने का दिल होता है। कछुए का मिसाल भी तुम्हारे लिए है। *कर्म करते बाप को याद करते रहो। बाप ही सद्गति दाता है।* सद्गति दाता एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
➢➢ दुनिया बहुत गन्दी है। सेन्टर पर गन्दे लोग आ जाते हैं। नाम रूप में फंस पड़ते हैं। यज्ञ में अनेक प्रकार के विघ्न भी पड़ते हैं। माया भी विघ्न डालती है। फिर बहुत घुटका खाते हैं। *फिर भी बाप को याद करना पड़े। युद्ध के मैदान में खड़े होकर लड़ना है।* डरना नहीं है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ तुम झाड़ के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझ गये हो। अभी तुम कितने समझदार बने हो अर्थात् बुद्धि में नॉलेज है। *इस नॉलेज से तुमको बहुत ऊंच पद मिलता है। नर से नारायण बनते हो।* यह राजयोग की पढ़ाई है।
➢➢ कल्प पहले भी तुमने यह पढ़ाई पढ़ी है। एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है फिर जो जितना पुरुषार्थ करे। *पुरुषार्थ बहुत करना चाहिए और है भी बहुत सहज।* अपने घर को जानना, यह कोई मुश्किल नहीं है।
➢➢ तुम ब्राह्मण अभी ज्ञानी तू आत्मा बने हो। जिनमें 5 विकार प्रवेश हैं वह देवता कैसे बन सकेंगे। *नर से नारायण बनने के लिए अच्छी मेहनत चाहिए। बेहद का पुरुषार्थ करना है।* ऐसा ऊंचा पद बाप के सिवाए कोई प्राप्त करा नहीं सकता। कोई राजयोग सिखला न सके।
➢➢ तुम सबको समझाते हो - कि अभी राजयोग सीखकर हम लक्ष्मी-नारायण जैसा बन रहे हैं। *स्वयं भगवान नर से नारायण बनने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। तो तुम बच्चों को बहुत नशा होना चाहिए।*
➢➢ बाबा सत, चित, आनन्द स्वरूप, बीजरूप है और है भी निराकार। *तुमको भी बुद्धि में नॉलेज धारण करनी है।* नॉलेज डिफीकल्ट नहीं है, सिर्फ ध्यान देना है। ऐसे भी नहीं कोई घर-बार छोड़ना है।
➢➢ ब्रह्म तत्व से योग जल्दी नहीं लगता। यहाँ तुम जानते हो पुरानी दुनिया और पुराने सम्बन्ध हैं। *देह सहित सब कुछ छोड़ना है,* इसलिए तुमको इस पुरानी दुनिया से वैराग्य आता है। पुराने शरीर से भी तुमको वैराग्य है। यह है बेहद का वैराग्य।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जितना जो सर्विस करेंगे, अपनी ही प्रजा बनायेंगे। ढेर की ढेर प्रजा बनानी है, बहुतों का कल्याणकारी बनना है।* तुम मनुष्य मात्र के कल्याणकारी हो। रावण राज्य में कोई भी किसका कल्याण नहीं करते।
➢➢ *बाबा ने डायरेक्शन दिया कि कल्प 5 हजार वर्ष का है - यह सिद्ध कर बताना है।* यह स्वर्ग-नर्क के चित्र बाबा ने बनवाये हैं। गीता में यह थोड़ेही लिखा हुआ है कि परमपिता परमात्मा ने पढ़ाया है। देखो समझाने में कितनी मेहनत लगती है। दिन-प्रतिदिन समझानी मिलती रहती है।
➢➢ *बाप भारत को स्वर्ग बनाते हैं। भारत ही प्राचीन हेविन था,* परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। भारतवासियों को मालूम पड़े तो खुश हो जायें कि हम स्वर्ग के मालिक थे। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग गया। *हेविनली गॉड फादर ही हेविन बनाते हैं।*
➢➢ मूलवतन तो है ही। उसके लिए स्थापना अक्षर नहीं आयेगा। स्थापना धर्म की होती है। *वह (परमधाम)आत्माओं का घर है जो इस समय खाली होता है, फिर नम्बरवार सब जायेंगे। यह बच्चों की बुद्धि में बिठाना है औरों को समझाने लिए।*
➢➢ *तुम ब्राह्मण सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाने वाले हो।* जिस्मानी ब्राह्मण भी यहाँ आते हैं - उन्हों को जब मालूम पड़ता है कि सच्चे ब्राह्मण बरोबर यह हैं तब समझते हैं हम बरोबर झूठी कथायें सुनाते हैं। उन्हों के कच्छ में है कुरम, तुम्हारी बुद्धि में है नॉलेज। वह शास्त्र पढ़कर सुनाते हैं और तुम्हारी बुद्धि में नॉलेज है, जैसे बाबा की बुद्धि में है।
➢➢ *प्रजापिता ब्रह्मा के 84 जन्मों का राज़ बाप बैठ समझाते हैं।* यह है अन्तिम जन्म, इसमें ही आना पड़ेगा। जो आदि में है सो अन्त में होगा। यह सब राज़ बाप ही समझाते हैं। *यह चित्र भी शिवबाबा ने दिव्य दृष्टि से बनवाये हैं।*
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