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  07 / 11 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *शिवबाबा जो सबका बाप है, वह हम बच्चों को बैठ समझाते हैं। भविष्य 21 जन्मों के लिए अटल अखण्ड दैवी स्वराज्य प्राप्त कराते हैं।* जैसे स्कूल अथवा कालेज में बच्चे जानते हैं कि टीचर हमें आप समान बैरिस्टर बना रहे हैं, एम आब्जेक्ट है। बाकी सतसंगों में जो जाते हैं वेद शास्त्र आदि सुनने के लिए, उससे तो कुछ मिलता नहीं है इसलिए टीचर फिर भी अच्छे होते हैं जो शरीर निर्वाह अर्थ कोई जिस्मानी विद्या सिखलाते हैं, जिससे आजीविका होती है।

 

➢➢  यहाँ तो *बाप अमृत भी पिलाते हैं और वर्सा भी देते हैं कहते हैं कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।* कितना फर्क है - *हद के बाप में और बेहद के बाप में। वह रात में ले जाते हैं, यह दिन में ले जाते हैं।* यह है ही पतित-पावन। कहते भी हैं कि सद्गति दाता एक है - जो आकर सबकी सद्गति करते हैं, फिर दुर्गति किसने की? यह नहीं जानते।

 

➢➢  *बहुत समझते हैं कि कोई शक्ति है बस। निराकार शिवबाबा कैसे आ सकता!* कोई शास्त्र में भी लिखा हुआ नहीं है। यह हैं नई बातें। गाते भी हैं शिव जयन्ति.. परन्तु पत्थरबुद्धि होने के कारण समझते नहीं हैं। शिव है तब तो सब भक्त याद करते हैं। *कहते भी हैं शिवाए नम:, समझते हैं वह परमधाम में रहते हैं। हमारा बाप भी है परमपिता, तो वह सबका फादर हो गया ना।*

 

➢➢  यह जो अपना गोला है, उसमें नीचे लिखना चाहिए यह है स्वदर्शन चक्र। यह बहुत अच्छी चीज है। *यह ईश्वरीय कोट आफ आर्मस है। यह तो ईश्वरीय बातें हैं।* स्लाइड्स जो बना रहे हैं उनके लिए भी बाबा समझानी देते रहते हैं। अगर समझो वो मुरली न सुनें तो डायरेक्शन अमल में ला न सकेंगे।

 

➢➢  भक्ति मार्ग में पहले अव्यभिचारी भक्ति थी अब व्यभिचारी बन गई है। व्यभिचारी और अव्यभिचारी में कितना अन्तर है। वह पाप आत्मा, वह पुण्य आत्मा। *अव्यभिचारी भक्ति है ही सच्ची भक्ति।* उस समय यानी द्वापर में मनुष्य सुखी भी रहते हैं। धन-दौलत आदि सब रहता है। कलियुग में जास्ती दुर्गति को पाते हैं। जब व्यभिचारी भक्ति में आते हैं तब विकारी भी बहुत बनते जाते हैं।  पहले सतोप्रधान विकार थे, अभी तमोप्रधान विकार हैं। *शिवबाबा बैठ बच्चों को समझाते हैं। कृष्ण तो बाप नहीं ठहरा।* कोई की भी बायोग्राफी नहीं जानते हैं।

 

➢➢   *बहुत समझते हैं कि कोई शक्ति है बस। निराकार शिवबाबा कैसे आ सकता! कोई शास्त्र में भी लिखा हुआ नहीं है। यह हैं नई बातें। गाते भी हैं शिव जयन्ति.. परन्तु पत्थरबुद्धि होने के कारण समझते नहीं हैं। शिव है तब तो सब भक्त याद करते हैं।* कहते भी हैं शिवाए नम:, समझते हैं वह परमधाम में रहते हैं। हमारा बाप भी है परमपिता, तो वह सबका फादर हो गया ना।

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाप कहते हैं- मैं कितना श्रृंगारता हूँ फिर भी सुधरते नहीं हैं, उल्टा सुल्टा बोलते रहते हैं। *यहाँ बाबा कहते हैं देह सहित जो कुछ है सब कुछ भूल मामेकम् याद करो।* अपनी देह में भी न फंसो। किसकी देह में फंसने से गिर पड़ते हैं।

 

➢➢  *बाप कितना कहते हैं कि देह-अभिमानी मत बनो, मामेकम् याद करो। तुम इस ब्रह्मा के शरीर को भी याद नहीं करो।* शरीर को याद करने से पूरा ज्ञान उठा नहीं सकते।

 

➢➢  *जब दुर्गति को पाने का पूरा ग्रहण लग जाता है, तब बाप आकर 16 कला सम्पूर्ण बनाते हैं।* ग्रहण को स्वदर्शन चक्र से निकाला जाता है।

 

➢➢  *बाप सेकण्ड में जीवनमुक्ति देने वाला बैठा है।* बाबा को पहचाना, निश्चय हुआ बस। जीवनमुक्ति पाने का पुरुषार्थ चल पड़ता है। जन्म तो लिया ना। *बाप से पूरा वर्सा लेना है।*

 

➢➢  *योग में ही बड़ी मेहनत है।* नाँलेज तो सहज है। योग में ही घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं इसलिए बाप कहते हैं विकर्माजीत कैसे बनेंगे। *योग में रहो तो पाप भी नहीं होंगे।* नहीं तो सौगुणा हो जाता है।

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢ ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा सद्गति करते हैं। तो *जो मेहनत करता है वही विष्णुपुरी का मालिक बनता है।* बाकी जो ज्ञान नहीं लेते उनका विनाश हो जाता है। वह सजायें भी खाते हैं, पद भी नहीं पाते।

 

➢➢  *जो मुक्ति के लिए पुरुषार्थ करते हैं वह पद अच्छा पा नहीं सकेंगे।* विकर्म विनाश नहीं होंगे इसलिए साक्षात्कार कराया था-धर्म स्थापक भी आते हैं दृष्टि लेने। *याद करते-करते विकर्म विनाश करते जायें तो पद ऊंचा पा सकते हैं,* और धर्म वाले भी आयेंगे सो भी पिछाड़ी में, जो बड़े होंगे।

 

➢➢  *क्रियेटर बाप है, सबको उनकी आज्ञा पर चलना है।* तुम भी श्रीमत पर नहीं चलते हो तो पद भ्रष्ट हो जाता है। बाप कहते हैं- *इस ज्ञान मार्ग में नष्टोमोहा अच्छा चाहिए।* बाबा की आज्ञा मिली हुई है, *जो बच्चे आज्ञाकारी नहीं, वह कपूत ठहरे।* वह बच्चा, बच्चा नहीं।

 

➢➢  ज्ञान तो बहुत अच्छा अच्छा सुनाते हैं। योग में मुश्किल रहते हैं। जितना रूस्तम, उतना माया के तूफान आयेंगे। *किसी न किसी के नामरूप में फंस धोखा खा लेते हैं, इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए।*

 

➢➢  यहाँ तो खुद धर्मराज और बाप दोनों साथ हैं इसलिए खुद कहते हैं कि बाप के आगे कोई पाप नहीं करना, नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। *योग से ही विकर्माजीत बनना है।*

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *मनुष्य तो पानी के सागर से निकली हुई पानी की नदियों को पतित-पावनी समझ लेते हैं। उनसे पूछना चाहिए कि जैसे गीता के भगवान का आक्यूपेशन पूछा जाता है - निराकार परमपिता परमात्मा है रचयिता और श्रीकृष्ण है रचना, अब बताओ गीता का भगवान कौन? भगवान तो एक को ही कहेंगे। फिर व्यास को भगवान कैसे कह सकते।*

 

➢➢  *पतितपावन, परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है*, उनसे यह ज्ञान गंगायें कैसे निकलती हैं? *परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख कमल द्वारा ब्रह्मण मुख वंशावली रचते हैं। उन्हों को ब्रह्मा मुख से ज्ञान मिल रहा है, जिससे सद्गति को पाते हैं।* अब पानी के सागर से पावन बनते हैं वा ज्ञान सागर से। पानी से मनुष्य तो पावन हो न सकेंगे। तो यह पहेली भी पूछनी पड़े, इनको पूछने से पावन दुनिया का मालिक बन सकते हैं। बुलाते तो उनको ही हैं कि हे पतित-पावन सीताराम।

 

➢➢  *त्रिमूर्ति का कैलेन्डर बनाना है। सारा मदार है त्रिमूर्ति शिव के चित्र पर। लिखा हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। जरूर शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करेंगे ना।* कलियुग आसुरी राज्य का विनाश होगा। आसुरी राज्य में कितने ढेर हैं। दैवी राज्य में कितने थोड़े हैं। लिखा हुआ भी है कि अनेक धर्मों का विनाश, एक सत धर्म की स्थापना।

 

➢➢  बाप तो डायरेक्शन देते हैं। *ऐसे अच्छे चित्र, कैलेन्डर छपाओ, त्रिमूर्ति शिव के कैलेन्डर्स निकलने चाहिए। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती कहना राइट है।* सिर्फ शिव जयन्ती कहना रांग है। *त्रिमूर्ति  शिव जयन्ती का कलैन्डर बनावें सो भी रंगीन। त्रिमूर्ति  से समझानी अच्छी मिलती है। बाबा लाकेट भी इसलिए बनवाते हैं कि उनसे अच्छा समझा सकते हैं।*

 

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