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  23 / 10 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *धारणा नहीं होती तो ईश्वरीय सर्विस कर नहीं सकते है। ऐसे समय बरबाद करेंगे, पाप करते रहेंगे तो पद कम हो पड़ेगा। फिर कल्पकल्पान्तर के लिए वह पद हो जायेगा।*

 

➢➢  *अब परमात्मा खुद शिक्षा दे रहे हैं, इस पर भी नहीं चलेंगे तो पद को लकीर लगा देंगे।* बाप कहते हैं बच्चे पवित्र बनो। *अभी सब भ्रष्टाचारी हैं, श्रेष्ठाचारी उनको कहा जाता है जो पवित्र रहते हैं।*

 

➢➢  अभी इस नर्क रूपी भंभोर को आग लगने वाली है। *तुम्हारा इस दुनिया वालों से कोई भी तैलुक नहीं है।* तुम्हारे लिए ज्ञान भी गुप्त है तो वर्सा भी गुप्त है। लौकिक बाप का वर्सा तो प्रत्यक्ष होता है।

 

➢➢  *सतयुग में सिर्फ तुम्हारा ही राज्य होगा।* तुम राज्य करते थे। फिर पुनर्जन्म तो लेना होता है। जो श्रीकृष्ण की वंशावली अथवा दैवी कुल के थे वही फिर रहेंगे। दूसरा फिर कोई नहीं होगा। चन्द्रवंशी कुल भी नहीं होगा। यह तो बहुत सहज बातें हैं समझने की।

 

➢➢  *तुम्हारा नाम ही है शिव शक्तियाँ, शेर पर सवारी कोई होती नहीं है, यह महिमा दिखाई है इसलिए शक्ति को शेर पर बिठाते हैं।* तुम कोई शेर पर तो नहीं बैठते हो। तुम तो माया पर जीत पाने वाले हो। यह पहलवानी दिखाते हो इसलिए तुम्हारा नाम शिव शक्ति सेना रखा है।

 

➢➢  तुम जानते हो सतयुग विष्णुपुरी में हम बहुत सुखी थे। पवित्रता, सुख, शान्ति सब कुछ था। यहाँ तो कितना दु:ख है। घर में बच्चे कपूत होते हैं तो कितना तंग करते हैं। वहाँ तो सदैव हर्षित रहते हैं।

 

➢➢  जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर है। *जैसे बाप एक सेकेण्ड में मुक्तिजीवनमुक्ति देते हैं, वैसे सजायें भी एक सेकेण्ड में मिल जाती हैं,* परन्तु भोगना बहुत होती है।

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बच्चे समझते हैं मात-पिता बापदादा अभी आयेंगे, आकर हम बच्चों को अपना वर्सा देंगे। *बाबा से हम फिर से 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं।*

 

➢➢  *बाबा को याद करना अच्छा है।* विनाश भी सामने खड़ा है। विनाश काले पाण्डवों की प्रीत बुद्धि। बाप ने सम्मुख आकर प्रीत रखवाई है। बाकी औरों से प्रीत रख क्या करेंगे! वह सब खलास हो जाने हैं। *एक बाप को याद करने का ही पुरूषार्थ करना है।*

 

➢➢  जिस्मानी आशिक माशूक घर में रहते एक दो को याद करते हैं। तुम आशिक बने हो शिवबाबा के। वह तुम्हारे सम्मुख है। *वह तुमको याद करते, तुम उनको याद करो।* शिवबाबा इस शरीर में आकर आत्माओंकी सगाई स्वयं से कराते हैं। इसको कहा जाता है आत्माओंका परमपिता परमात्मा के साथ कल्याणकारी मेला।

 

➢➢  तुम ज्ञान गंगायें हो, ज्ञान सागर बाप एक है। *बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे।* बाप और कोई तकलीफ नहीं देते, सिर्फ पवित्र रहना है।

 

➢➢  *अभी तुम बच्चों को बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिल रहा है, इसलिए बाप की श्रीमत पर चलकर पूरा वर्सा लो।* मौत तो सामने खड़ा है। अकाले मृत्यु तो होती है ना। एरोप्लेन गिरा तो सब मर गये। किसको पता था कि यह होगा। *मौत सिर पर खड़ा है इसलिए कोशिश करके बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम जानते हो बेहद का बाप फिर से बेहद का सुख देने आया है। बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो सिर्फ बुद्धि में यह धारणा करो - यह पढ़ाई बुद्धि की है। *घर में रहते श्रीमत पर चलो। खान-पान से भी असर लग जाता है इसलिए युक्ति से चलना है।*

 

➢➢  *काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से तुम कृष्णपुरी के मालिक बनेंगे। बाप का फरमान है पवित्र बनो तो 21 जन्म की राजाई पायेंगे।* पतित बनने से तो बर्तन मांजकर रहना अच्छा है। परन्तु देह-अभिमान न टूटने के कारण वर्से को भी गँवा देते हैं।

 

➢➢  पूछते हैं बाबा के पास क्यों आते हो? कहते हैं *सूर्यवंशी राजधानी का वर्सा लेने, तो श्रीमत पर जरूर चलना पड़े। देखना है कि मेरे से कोई बुरा काम वा पाप तो नहीं होता है?* नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा, फिर दास दासी जाकर बनेंगे।

 

➢➢  *बाबा समझाते हैं जो भी पाप किये हैं वह बाप को सुनाने से आधा पाप मिट जायेगा।* बहुत बच्चे बताते हैं हमने यह किया है। यह गुनाह है, फलाने से पतित बने हैं। बाप तो जानते हैं ना कितने विकर्म किये हैं। समझाते हैं अभी कोई पाप नहीं करो, नहीं तो सजा एकदम सौगुणी हो जायेगी फिर धर्मराजपुरी में साक्षात्कार करायेंगे।

 

➢➢  *श्रीमत पर शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भल करो। साथ-साथ यह पढ़ाई भी पढ़ो।* बाप युक्तियाँ तो सब बतलाते हैं। *पुरूषार्थ कर पवित्र भी रहना है।*

 

➢➢  जैसे काशी कलवट खाते  हैं तो वह थोड़े समय में बहुत सजायें खाते हैं परन्तु हिसाब-किताब चुक्तू हो जाता है। *तुमको तो बिगर सजा खाये हिसाबकिताब चुक्तू करना है इसलिए ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए जो सजा न खानी पड़े।*

 

➢➢  *ज्ञान की धारणा नहीं करते तो सुधरते नहीं। पुरानी ही चाल चलते रहते हैं। यहाँ तो कोई भी पाप नहीं करना चाहिए। तुमको तो पुण्य आत्मा बनना है।* श्रीमत के आधार पर अपने आपसे पूछो - यह पाप है वा पुण्य है?

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *आत्मा अविनाशी, बाप भी अविनाशी। बाप जो शरीर लेता है वह विनाशी है। इस शरीर में आकर बच्चे-बच्चे कहते हैं और स्मृति दिलाते हैं कि मैं आया हूँ तुमको दैवी सतयुगी स्वराज्य के लिए पुरूषार्थ कराने।*

 

➢➢  *सतयुग में कोई धर्म नहीं था। अभी तो ढेर धर्म हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अनेक तालियाँ बजती रहती हैं। सतयुग में धर्म ही एक है तो ताली बजती नहीं।* तो तुम बच्चे गुप्त ही अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। हर एक कहेंगे हम अपने राज्य में ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं।

 

➢➢  बाप बच्चों को समझाते हैं दिल हमेशा साफ रहनी चाहिए। जरा भी अंहकार न रहे। बिल्कुल गरीब बन जाना अच्छा है। बाप है गरीब निवाज, वाह गरीबी वाह! *गरीबों को साहूकार बनाना है।* बाप कहते हैं भारत को गरीब से साहूकार बनाता हूँ।

 

➢➢  *जैसे आत्मा आकर शरीर में प्रवेश करती है वैसे शिवबाबा भी इस शरीर में आकरके हमको फिर स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं।* बुद्धि भी कहती है हमने अनेक बार बाप से वर्सा लिया है - आधाकल्प के लिए। फिर आधाकल्प गँवा देते हैं। *अब फिर से हम श्रीमत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं।*

 

➢➢  *युक्तियां तो बहुत समझाई हैं। बोलो बाप का फरमान है पवित्र बनो, मैं तुम्हें भक्ति का फल देने आया हूँ। तो जरूर भगवान की मत पर चलना पड़े तब ही बिगर सजा खाये हम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पायेंगे।*

 

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