━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 22 / 11 / 17 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *कलियुग में है
काग विष्ठा समान सुख इसलिए सन्यासी घरबार छोड़ देते हैं। वह गृहस्थ धर्म को नहीं
मानते हैं। गृहस्थ धर्म सतयुग में है ना।* तुम जानते हो इस पढ़ाई से हम
विष्णुपुरी में जाते हैं उसके लिए परमपिता परमात्मा हमको पढ़ा रहे हैं।
➢➢ *श्रीमत शिव भगवानुवाच - शिवबाबा जन्म नहीं लेते, वह प्रवेश करते हैं। जन्म
तब कहें जब पालना लेवें। वह कभी पालना नहीं लेते हैं। सिर्फ कहते हैं मेरी
श्रीमत पर चलो। स्वर्ग के तुम मालिक बनो। मुझे तो बनना नहीं है, मैं तो अभोक्ता
हूँ। तो समझना चाहिए। बाबा हम आत्माओं को समझा रहे हैं, आत्मा ही समझती है ना।*
➢➢ *राधे कृष्ण का जितना नाम है, उन्हों के माँ बाप का तो जैसे नाम है नहीं।
वास्तव में जिसने जन्म दिया उन्हों का नाम बहुत होना चाहिए। परन्तु नहीं, राधे
कृष्ण सबसे ऊंच हैं। उन्हों के ऊपर तो कोई है नहीं।* राधे कृष्ण पहले नम्बर में
गये हैं फिर पहले नम्बर में महाराजा महारानी भी बने हैं। भल जन्म माँ बाप से
लिया है परन्तु नाम उन्हों का ऊंचा है। यह बुद्धि में अच्छी तरह बिठाना है।
➢➢ सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान है। तुम बच्चे भी इस सृष्टि चक्र को जानते हो।
यह सारा चक्र कैसे फिरता है, यह बाप में ज्ञान है, इसलिए उनको ज्ञान का सागर कहा
जाता है। वही पतित-पावन है। *इस चक्र को समझने से, स्वदर्शन चक्रधारी बनने से
तुम फिर स्वर्ग के चक्रवर्ती राजा रानी बनते हो। तो बुद्धि में सारा दिन यह
चक्र फिरना चहिए तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे।*
➢➢ *सतयुग में तो तुम यह चक्र (स्वदर्शन) नहीं फिरायेंगे। वहाँ स्व अर्थात्
आत्मा को सृष्टि चक्र का ज्ञान नहीं होता। न सतयुग में, न कलियुग में, यह ज्ञान
सिर्फ संगमयुग पर तुमको मिलता है।* संगम की बहुत महिमा है। कुम्भ का मेला करते
हैं ना। वास्तव में यह है ज्ञान सागर और नदियों का मेला अर्थात् परम आत्मा और
आत्माओं का मेला। वह कुम्भ का मेला भक्ति मार्ग का है।
➢➢ *यह आत्मा और परमात्मा का मेला इस सुहावने कल्याणकारी संगमयुग पर ही होता
है, जबकि तुम दु:खों से छूट सुख में जाते हो इसलिए बाप को दुःख हर्ता सुख कर्ता
कहा जाता है। आधाकल्प सुख और आधाकल्प दु:ख चलता है।* दिन और रात आधा-आधा है।
मकान भी नया पुराना होता है। नये घर में सुख, पुराने घर में दु:ख होता है। *दुनिया
भी नई और पुरानी होती है। आधाकल्प सुख रहता है फिर मध्य से दु:ख शुरू होता है।
दु:ख के बाद फिर सुख होता है।*
➢➢ सतयुग को नई दुनिया, कलियुग को पुरानी दुनिया कहा जाता है। *अभी है संगम।
अभी तुम संगमयुग पर खड़े हो, बाकी सब कलियुग में हैं। *वह (मनुष्य) समझते हैं
कि कलियुग तो अजुन बच्चा है। तुम जानते हो कि कलियुग का अब विनाश होने पर है।*
अब तुम्हें सतयुग में जाना है। सतयुग, त्रेता में हमने कितने जन्म लिये हैं, वहाँ
कितने वर्ष कौन-कौन राज्य करते हैं। सारा तुम्हारी बुद्धि में है। *सतयुग में
है 16 कला सम्पूर्ण, फिर 14 कला फिर उतरती कला होती है।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *बाप ने तुम्हें
स्मृति दिलाई है - मैं कल्प-कल्प तुमको वर्सा देता हूँ। तो वर्सा पूरा लेना
चाहिए ना।* तो बाप ऐसे थोड़ेही कहते हैं कि यहाँ बैठ जाओ।
➢➢ बाप सिर्फ कहते है मुझे याद करो और कोई तकलीफ नहीं देते। कैसे भी टाइम
निकाल फरमान मानना चाहिए। परन्तु *माया ऐसी है जो फरमान मानने नहीं देती। बाप
से बुद्धियोग लगाने नहीं देती। परन्तु तुम बच्चों ने कल्प पहले भी पुरुषार्थ कर
इस माया रूपी रावण पर जीत पाई है* तब तो सतयुग की स्थापना होती है।
➢➢ हम परमात्मा की सन्तान हैं तो हमको स्वर्ग की राजधानी जरूर चाहिए। बाप हमको
स्वर्ग का वसा देने आये हैं। *रावण फिर आधाकल्प के बाद श्राप देते हैं तो तुम
दु:खी तमोप्रधान बन जाते हो। फिर बाप आकर सुखी बनने का वर देते हैं। ऐसे नहीं
कहते चिरन्जीवी भव। परन्तु कहते हैं मुझे याद करो तो इस जन्म सहित जो भी जन्म
जन्मान्तर के पाप हैं वह भस्म हो जायेंगे, इसको योग अग्नि कहा जाता है।*
➢➢ *आत्मा ही बैरिस्टर, इन्जीनियर बनती है। मैं फलाना हूँ l आत्मा ने कहा - हम
देवता थे, फिर हम 8 जन्म बाद क्षत्रिय बने, फिर 12 जन्म लिये, फिर मैं पतित बनता
हूँ। अब बाप कहते हैं बच्चे, आत्म-अभिमानी भव । यह समझने की बातें हैं।*
➢➢ *भल घर गृहस्थ में रहो सिर्फ यह स्वदर्शन चक्र फिराते रहो और नष्टोमोहा हो
जाओ। एक शिवबाबा दूसरा न कोई।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
*हम जानते हैं कि अब हमारा नया सम्बन्ध जुट रहा है, तो पुराने में ममत्व नहीं
रहना चाहिए। नई दुनिया, नई राजधानी से ममत्व रखना है।*
➢➢ *तुम यहाँ बैठे हो तो यह स्वदर्शन चक्र फिराते रहो।* इस चक्र फिराने से
तुम्हारे पाप भस्म होते हैं अर्थात् रावण का सिर कटता है। यह सतयुग, त्रेता का
चक्र है ना। हम पहले सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य. बनें। अब फिर हम
ब्राह्मण बने हैं। फिर हम सो देवता बनेंगे।
➢➢ अभी हमारी चढ़ती कला है। हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। फिर त्रेता में
आयेंगे तो 2 कला कम हो जायेंगी फिर द्वापर में 5 विकारों का ग्रहण लगने से काले
होते जाते हैं। *अभी बाप कहते हैं इन 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण उतर जाये,
फिर तुम सतयुगी सम्पूर्ण देवता बन जायेंगे। पहले-पहले देह-अभिमान छोड़ो, काम
विकार का दान दो। अन्त में आकर नष्टोमोहा बनना होता है।*
➢➢ *बेहद के बाप की जो मत नहीं मानते उन्हें महान कपूत कहा जाता है। कपूत बच्चे
को बाप से क्या वर्सा मिलेगा ! सपूत बच्चे वर्सा भी अच्छा लेते हैं।* जो खुद
पवित्र बन औरों को पवित्र बनाते हैं। बेहद का बाप आत्माओं को पढ़ाते हैं हे
आत्मायें कानों से सुनती हो? कहते हैं हाँ बाबा हम आपकी श्रीमत पर चल जरूर
श्रेष्ठ बनेंगे।
➢➢ *बाप का फरमान है कि मुझे याद करो क्योंकि आधाकल्प के विकर्मों का बोझा सिर
पर है, उनको भस्म करने का कोई उपाय नहीं सिवाए याद के।* भल गंगा जमुना को
पतित-पावनी कहते हैं, समझते हैं हम पावन हो जायेंगे परन्तु पानी से पाप कैसे
कटेंगे।
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ तुम पुरानी
दुनिया से निकल जाए नये घर में बैठेगे। तुम कहेंगे हम नये घर के लिए पुरुषार्थ
कर रहे हैं कि हम नई दुनिया में ऊंच पद पायें l *जितना जो मददगार बनता है उनको
उतना इज़ाफ़ा भी मिलता है। तो बच्चों को यह नॉलेज मित्र सम्बन्धियों को भी देनी
है।*
➢➢ इस समय बहुत दु:ख है। दु:ख होता ही है पुरानी दुनिया में। सतयुग को नई
दुनिया, कलियुग को पुरानी दुनिया कहा जाता है। *अभी है संगम। अब पुरानी दुनिया
का विनाश होता है, बाप नई दुनिया बना रहे हैं। यह है पतित दुनिया तब सब पुकारते
है हे पतित-पावन आकर सतयुग की स्थापना करो। सो तो सिवाए बाप के कोई स्थापन कर न
सके।*
➢➢ पतित और पावन आत्मा बनती है, परमात्मा तो सदैव पावन है, वह सबको पावन बनाते
हैं। *पतित बनाते हैं रावण (5 विकार)। सतयुग में विकार होते नहीं। वह है
सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया, तब तो देवताओं के आगे जाकर गाते हैं - आप सर्वगुण
सम्पन्न l यह महिमा शिव के आगे नहीं गायेंगे। देवतायें जो पावन है सो पतित बनते
हैं, यह खेल है। बाप सुखधाम बनाते हैं, शिव को बाप कहते हैं।*
➢➢ *यहाँ तो मनुष्य सदैव पवित्र रहते नहीं। सदैव पवित्र तो सुखधाम में रहते
हैं। त्रेता में भी कुछ कला कम (2 कला) होती जाती हैं। यह है नई दुनिया के लिए
नया ज्ञान। देने वाला एक ही बाप है, कृष्ण ने ज्ञान नहीं दिया, कृष्ण को
पतित-पावन नहीं कहा जाता। पतित-पावन तो एक ही परमपिता परमात्मा है, जो
पुनर्जन्म रहित है।*
➢➢ बाबा ने ओम् का अर्थ अलग समझाया है, हम सो का अर्थ अलग है। शास्रों में एक
ही कर दिया है। वह समझते हैं ओम् अर्थात् हम आत्मा सो परमात्मा। परमात्मा सो
आत्मा - यह है उल्टा। *बाप समझाते हैं ओम् अर्थात् हम आत्मा हैं, परमपिता
परमात्मा की सन्तान हैं। मैं भगवान, यह कोई ओम् का अर्थ नहीं है। हम आत्मा
निराकार हैं। हमारा बाप भी निराकार है। साकार शरीर का बाप भी साकार है।*
➢➢ *कृष्णपुरी को ही विष्णुपुरी कहा जाता है। कृष्ण की राजधानी अपनी, राधे की
राजधानी अपनी फिर उन्हों की आपस में सगाई होती है। राधे कृष्ण ही फिर
लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। स्वर्ग के महाराजा और महारानी, प्रिन्स और प्रिन्सेज
राधे कृष्ण गाये हुए हैं।*
────────────────────────