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  16 / 07 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *त्यागी वो है जो त्याग का भी अभिमान न आये कि मैंने त्याग किया। अगर यह संकल्प भी आता तो यह भी त्याग नहीं हुआ।*

 

➢➢  *समान बनना अर्थात स्नेह में समा जाना। तो अपने आपको स्वयं ही जान सकते हो कि कहाँ तक बाप समान बने हैं।* बाप का जो संकल्प है उसी संकल्प समान मुझ लवलीन आत्मा का संकल्प है? ऐसे *वाणी, कर्म, सेवा, सम्बन्ध सब में बाप समान बने है? वा अभी तक महान अन्तर है वा थोड़ा सा अन्तर है।*

 

➢➢  *बेहद का बाप बेहद के दिलतख्तनशीन बनाते हैं, जो सर्व बच्चे अधिकारी बन सकते हैं। सभी को एक ही जैसा गोल्डन चांस है।* ऐसे नहीं कि पीछे वाले आगे नहीं जा सकते हैं क्योंकि *यह बेहद की प्रापर्टी है इसलिए ऐसा नहीं कि पहले वालों ने ले लिया तो समाप्त हो गई। इतनी अखुट प्रापर्टी है जो अब के बाद और भी लेने चाहें तो ले सकते हैं।*

 

➢➢  *बाप का दिलतख्त इतना बेहद का बड़ा है जो सारे विश्व की आत्मायें भी समा सकती हैं इतना विराट स्वरूप है लेकिन बैठने की हिम्मत रखने वाले कितने बनते हैं।* क्योंकि *दिलतख्तनशीन बनने के लिए दिल का सौदा करना पड़ता है* इसलिए बाप का नाम दिलवाला पड़ा है। तो दिल लेता भी है, दिल देता भी है।

 

➢➢  *अगर थोड़ा-थोड़ा अनुभव किया तो इससे सदा सम्पन्न, सदा सन्तुष्ट नहीं होंगे। इसलिए कई बच्चे अब तक भी ऐसे ही वर्णन करते है कि जितना, जैसा होना चाहिए वह इतना नहीं है।* कोई कहते पूरा अनुभव नहीं होता, थोड़ा होता है और कोई कहते, होता है लेकिन सदा नहीं होता क्योंकि *पूरा फुल सौदा नहीं किया तो अनुभव भी फुल नहीं होता है।*

 

➢➢  *बेहद का बाप देता सबको एक जैसा है लेकिन लेने वाले खुला चांस होते भी नम्बरवार बन जाते हैं।* चांस लेने चाहो तो ले लो फिर यह उलाहना भी कोई नहीं सुनेगा कि मैं कर सकता था, पहले आता तो आगे चला जाता था। यह परिस्थितियाँ नहीं होती तो आगे चला जाता। यह *उलाहने स्वयं के कमजोरी की बातें हैं स्व-स्थिति के आगे परिस्थिति कुछ कर नहीं सकती।*

 

➢➢  *विध्न-विनाशक आत्माओं के आगे विध्न पुरुषार्थ में रुकावट डाल नहीं सकता। समय के हिसाब से रफ्तार का हिसाब नहीं। दो साल वाला आगे जा सकता, दो मास वाला नहीं जा सकता, यह हिसाब नहीं। यहाँ तो सेकण्ड का सौदा है।* दो मास तो कितना बड़ा है। लेकिन जब से आये तब से तीव्रगति है?

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाप भी रूहानी बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चे भी रूहानी बाप से मिल हर्षित होते हैं क्योंकि *कल्प-कल्प की पहचानी हुई रूहानी रूह जब अपने बुद्धियोग द्वारा जानती है कि हम भी वो ही कल्प पहले वाली आत्माएं हैं और उसी बाप को फिर से पा लिया है, तो उसी आनन्द, सुख के, प्रेम के, खुशी के झूले में झूलने का अनुभव करती है।*

 

➢➢  ऐसा अनुभव कल्प पहले वाले बच्चे फिर से कर रहे हैं। वो ही पुरानी पहचान फिर से स्मृति में आ गई। ऐसे *स्मृति स्वरूप स्नेही आत्मायें इस स्नेह के सागर में समाई हुई लवलीन आत्मायें ही इस विशेष अनुभव को जान सकती हैं।*

 

➢➢  *स्नेह के सम्बन्ध के आधार पर आगे बढ़ते हुए समाये हुए स्वरूप तक भी पहुँच जायेंगे। समझना समाप्त हो समाने का अनुभव हो ही जायेगा क्योंकि समाने वाली आत्माएं समान आत्माएं हैं।*

 

➢➢  *सदा तीव्रगति वाले कई अलबेली आत्माओं से आगे जा सकते हैं इसलिए वर्तमान समय को और मास्टर सर्वशक्तिमान आत्माओं को यह वरदान है - जो अपने लिए चाहो जितना आगे बढ़ना चाहो, जितना अधिकारी बनने चाहो उतना सहज बन सकते हो क्योंकि वरदानी समय है।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अन्तर समाप्त होना ही मनमनाभव का महामंत्र है। इस महामंत्र को हर संकल्प और सेकण्ड में स्वरूप में लाना,* इसी को ही समान और समाई हुई आत्मा कहा जाता है।

 

➢➢  बेहद का बाप, बेहद का संकल्प रखने वाला है कि सर्व बच्चे बाप समान बनें। ऐसे नहीं कि मैं गुरू बनूँ और यह शिष्य बनें। नहीं, *बाप समान बन बाप के दिलतख्तनशीन बनो।* यहाँ कोई गद्दीनशीन नहीं बनना है।

 

➢➢  *बाप से अधिकार लेने के साथ-साथ अधीनता के संस्कार को छोड़ना पड़ता है।* लेकिन जब छोड़ने की बात आती है तो अपनी कमज़ोरी के कारण इस बात में रह जाते हैं और कहते हैं कि छूटता नहीं - संस्कार है, स्वभाव है। जब धारण करने वाली आत्मा है तो छोड़ना भी आत्मा को है, न कि संस्कार स्वयं छूटेंगे। तो अधिकार (मालिकपन) को धारण करना इसमें बेहद का चांस होते हुए भी यथाशक्ति लेने वाले बन जाते हैं।

 

➢➢  एक धक से सौदा करने वाले एक के होने के कारण सदा एकरस रहते है और सबमे नंबर एक बन जाते है। बाकि जो थोडा-थोडा सौदा करते है, एक के बजाए दो नांव में पांव रखने वाले सदा कोई न कोई उलझन की हलचल में एकरस नहीं बनते हैं इसलिए *सौदा करना है तो सेकण्ड में करो।*

 

➢➢  *दिल के टुकड़े-टुकड़े नहीं करो।* आज अपने से दिल हटाकर बाप से लगाई, एक टुकड़ा दिया अर्थात् एक किश्त दी। फिर कल सम्बन्धियों से दिल हटाकर बाप को दी, दूसरी किश्त दी, दूसरा टुकड़ा दिया, इससे क्या होगा? बाप की प्रापर्टी के अधिकार के भी टुकड़े के हकदार बनेंगे।

 

➢➢  वरदानी बाप की वरदानी आत्माएं हो। *वरदानी बनना है तो अभी बनो*, फिर वरदान का समय भी समाप्त हो जाएगा। फिर मेहनत से भी कुछ पा नहीं सकेंगे। इसलिए जो पाना है अभी पा लो। *सोचो नहीं लेकिन जो करना है दृढ़ संकल्प से कर लो और सफलता पा लो।*

 

➢➢  *सदा एवररेडी रहो।* क्या होगा, कैसे होगा - ट्रस्टी को क्या सोचना। *आज कोई भी डायरेक्शन मिले बोलो हाँ जी। अपनी ऑफर सदा करो* तो सदा उपराम रहेंगे।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *सेवा में सफल होने का आधार है- त्याग। तो सेवाधारी अर्थात त्याग मूर्त और तपस्वी मूर्त। एक बाप दूसरा न कोई - यह है हर समय की तपस्या। और त्याग है- किसी भी परिस्थिति में अपने नाम का त्याग करना पड़े, संस्कारों का, व्यर्थ संकल्पों का,तो उसमें सदा अपनी श्रेष्ठ स्थिति बना सकें। त्याग और तपस्या ही सेवा की सफलता का आधार है।*

 

➢➢  *सेवाधारी अर्थात् बड़ों के डायरेक्शन को फौरन अमल में लाने वाले। लोक संग्रह अर्थ कोई डायरेक्शन मिलता है तो सिद्ध नहीं करना चाहिए कि मैं राइट हूँ। भल राइट हो लेकिन लोक-संग्रह अर्थ निमित्त आत्माओं का डायरेक्शन मिलता है तो सदा - ‘जी हाँ’, करना, यही सेवाधारियों की विशेषता है।* यह झुकना नहीं है, नीचे होना नहीं है लेकिन फिर भी ऊँचा जाना है।

 

➢➢  कोई समझते हैं अगर मैंने किया तो मैं नीचे हो जाऊंगी, मेरा नाम कम हो जायेगा, लेकिन नहीं। *मानना अर्थात् माननीय बनना, बड़ों को मान देना अर्थात् स्वमान लेना। तो ऐसे सेवाधारी हो जो अपने मान शान का भी त्याग कर दो।* अल्पकाल का मान और शान क्या करेंगे। *आज्ञाकारी बनना ही सदाकाल का मान और शान लेना है। तो सेवाधारी अर्थात् इन सब बात के त्याग में सदा एवररेडी।*

 

➢➢  *झुकना अर्थात् सफलता का फलदायक बनना। यह झुकना छोटा बनना नहीं है लेकिन सफलता के फल सम्पन्न बनना है। उस समय भल ऐसे लगता है कि मेरा नाम नीचे जा रहा है, वह बड़ा बन गया। लेकिन होता सेकण्ड का खेल है। सेकण्ड की हार सदा की हार है जो चन्द्रवंशी कमानधारी बना देती है और सेकण्ड की जीत सदा की खुशी प्राप्त कराती, जिसकी निशानी श्रीकृष्ण को मुरली बजाते हुए दिखाया है।* तो इस राज़ को समझते हुए सदा आगे चलते चलो।

 

➢➢  ब्रह्मा बाप को देखा - ब्रह्मा बाप ने अपने को कितना नीचे किया, इतना निर्माण होकर सेवाधारी बना जो बच्चों के पांव दबाने के लिए भी तैयार। बच्चे मेरे से आगे हैं, बच्चे मेरे से भी अच्छा भाषण कर सकते हैं। आगे बच्चे, पहले बच्चे, बड़े बच्चे कहा, तो *स्वयं को नीचे करना नीचे होना नहीं है, ऊंचा जाना है। तो इसको कहा जाता है सच्चे नम्बरवन योग्य सेवाधारी।*

 

➢➢  *आज यहाँ हैं कल कहाँ भी चले जायें,अगर समझते, यहाँ ही रहना है तो फिर थोड़ा बनाना है, बनना है यह रहेगा। आज यहाँ कल वहाँ। पंछी हैं आज एक डाल पर, कल दूसरी डाल पर, तो स्थिति उपराम रहेगी, तो मन की स्थिति सदा उपराम चाहिए। चाहे कहाँ 20 वर्ष भी रहो लेकिन स्वयं सदा एवररेडी रहो। स्वयं नहीं सोचो कि कैसे होगा, इसको कहा जाता है महात्यागी।*

 

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