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  03 / 07 / 17  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *स्वर्ग का किसको पता नहीं। समझते हैं वहाँ भी दु:ख था, यह है बेसमझी।* अब तुम बच्चे समझदार बने हो। बापने आकर समझाया है, उनकी श्रीमत पर चल रहे हो। यह पतित दुनिया है, स्वर्ग पावन दुनिया थी। *पावन दुनिया में भी दु:ख हो फिर तो दु:ख की दुनिया ही कहेंगे।*

 

➢➢  *कृष्ण पर भी झूठे कलंक लगा दिये हैं। कहा जाता है जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।* समझते हैं सारी सृष्टि ही पतित है। *इस समय उन्हों की दृष्टि ही पतित है तो सारी सृष्टि को ही पतित समझते हैं।* समझते हैं परम्परा से पतितपना चला आया है।

 

➢➢  *इस दुनिया में किसी को भी पिताश्री नहीं कह सकते। श्री माना श्रेष्ठ।* यहां एक भी मनुष्य श्रेष्ठ है नहीं। यह तो एक की ही महिमा हो सकती है। *यहाँ तो सब भ्रष्टाचार से ही पैदा होते हैं, इसलिए श्री कह नहीं सकते।*

 

➢➢  अब तुम बच्चों ने समझा है भारत श्रेष्ठ था, शुद्ध सृष्टि थी। अभी पतित सृष्टि है, *पतित को ही भ्रष्टाचारी कहेंगे।* वे लोग भ्रष्टाचारियों को श्रेष्ठ बनाने के लिए सभायें करते हैं परन्तु *दुनिया ही भ्रष्टाचारी है तो कोई किसी को श्रेष्टाचारी बना कैसे सकते।*

 

➢➢  *बरोबर यह रावण राज्य है। जिस कारण रावण को वर्ष-वर्ष जलाते हैं।* जलता ही नहीं, फिर खड़ा हो जाता है। यह भी *मनुष्यों को समझ में नहीं आता, जिसे जला दिया उसे फिर हम नया क्यों बनाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि रावणराज्य गया नहीं है।*

 

➢➢  यह तो नशा है ना - हम बाबा द्वारा दादे से वर्सा पाते हैं। *बापदादा से वर्सा पाते हैं, माता से वर्सा नहीं मिलेगा।* बाप को ही स्वर्ग की स्थापना करनी है ना। वही मालिक है। जैसे उनको दादे से वर्से का हक है, वैसे पोत्रे पोत्रियों को भी हक है।

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  यह बेहद के नाटक का राज़ भी समझ गये हो। *हद का नाटक पूरा होता है तो कपड़े बदली कर घर चले जाते हैं वैसे अब हमको भी जाना है।*

 

➢➢  *बाप कहते हैं मुझे याद करो। मैं तो कहता नहीं हूँ कि इस देहधारी को याद करो। बाप सम्मुख बात कर रहे हैं।* कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था। वर्सा भी तुमको बापदादा द्वारा मिलता है।

 

➢➢  *अभी मैं कहता हूँ तुमको वापिस चलना है। मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।* देहधारी को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। *तुम अन्जाम करते हो बाबा हम आपको ही याद करेंगे।*

 

➢➢  *तुम कहते हो हम पहले जायेंगे शान्तिधाम, जहाँ शान्ति ही शान्ति होगी।* फिर जायेंगे वहाँ से सुखधाम में, जहाँ शान्ति-सुख दोनों हैं। जब दु:ख है तो अशान्ति है। सुख में तो शान्ति है ही। परन्तु वह शान्ति नहीं। *शान्तिधाम है आत्माओं का स्वीट होम।*

 

➢➢  *बच्चों को कितनी अच्छी रीति समझाते हैं कि शान्तिधाम को याद करो यह दु:खधाम है। और गुरू गोसाई को यह कहना आयेगा नहीं, सिवाए तुम ब्राह्मण ब्राह्मणियों के। इस दु:खधाम का विनाश भी सामने खड़ा है।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अब हमको जाना है अपने घर। यह दुनिया, यह सब कुछ छोड़ना है, खुशी होनी चाहिए।*

 

➢➢  तुम जानते हो हम इस मृत्युलोक से अमरलोक में चले जायेंगे वाया शान्तिधाम। यह बुद्धि में याद रखना है। *जब तक मृत्यु नहीं हुआ है, पढ़ना ही है।* यह तो याद कर सकते हो ना।

 

➢➢  बाबा इस दादा के मुखद्वारा बोलते हैं। *जो रत्न बाबा के मुख से निकलते हैं, वही तुम बच्चों के मुख से निकलने चाहिए। फालतू बातें सुनते भी नहीं सुननी हैं।* कोई तो बैठ खुशी से सुनते हैं। बाबा कहते ऐसी बातें सुनो मत। *रहमदिल बन किसमें कोई पुरानी आदत है तो मिटानी चाहिए।*

 

➢➢  *खुद में खामी होगी तो दूसरे को बोल नहीं सकेंगे।* पाप अन्दर खाता रहेगा। बाबा हर बात बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था, भूलो मत। *सिमरण करतेकरते अन्तमती सो गति हो जायेगी।*

 

➢➢  मित्र सम्बन्धियों से दोस्ती कर उन्हें समझाओ। *बहुत मीठा बनो। तुम्हारा काम है परिचय देना। भल दुश्मन हो परन्तु उनसे भी मित्रता रखनी है।*

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  बाप कहते हैं तुमको नई-नई प्वाइंट्स सुनाता हूँ जिससे तुमको नशा चढ़े। किसको समझाने की युक्ति आये। *फार्म भराने की कॉपी में पहले यह प्रश्र लिखाना है - कहेंगे परमपिता, तो पिता हुआ ना।* फिर उस समय सर्वव्यापी का ज्ञान उड़ जायेगा।

 

➢➢  शिवबाबा तो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है तो जरूर उनसे ही वर्सा मिलेगा। सहज से सहज बातें निकालनी पड़ती हैं। बहुत सहज है। *मित्र सम्बन्धियों के पास भी जाओ उनको भी यह समझाओ।*

 

➢➢  बाबा कितना सहज कर समझाते हैं। जो कैसे भी रोगी, अन्धा कुब्जा है वह भी समझ जाये। अल्फ और बे दो अक्षर हैं। *सिर्फ पूछो परमपिता और प्रजापिता ब्रह्मा से आपका क्या सम्बन्ध है?* यह प्रश्र सबसे अच्छा है। तो सर्वव्यापी का ज्ञान एकदम बाहर निकल जाए।

 

➢➢  तुम बच्चे देखो किसके सामने बैठे हो। निश्चय है - *परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है। इन आरगन्स द्वारा हमको नॉलेज दे रहे हैं।* और कोई ऐसा सतसंग होगा क्या? अभी बाप सामने बैठ समझाते हैं। जानते हो बाप हम आत्माओं से बात करते हैं, हम कानों से सुनते हैं।

 

➢➢  यह ईश्वरीय कॉलेज है, इसमें नया आदमी कुछ समझ नहीं सकेंगे। 7 दिन क्वारनटाइन में बिठाना पड़े, जब तक लायक बनें। फिर भी *अच्छा आदमी रिलीजस माइन्डेड हो तो उनसे पूछना है - परमपिता परमात्मा तुम्हारा क्या लगता है? वह तो है आत्माओं का पिता और प्रजापिता भी तो बाप है।*

 

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