━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 25 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *दिव्य बुद्धि के
आधार पर सोचो ज्ञान भी सेकेण्ड का है- रचयिता और रचना। अल्फ और बे, और योग भी
सेकण्ड का है - मैं बाप का, बाप मेरा।*
➢➢ *दिव्यगुणधारी बनना, यह भी सेकेण्ड की बात है क्योंकि जैसा जन्म, जैसा कुल
वैसी धारणा स्वतः और सहज होती है।* धारणा भी सेकेण्ड की है। जैसा बाप वैसे बच्चे।
➢➢ *श्रेष्ठ सीट अर्थात् स्थिति पर सेट होने से अधिकारी-पन की अथॉरिटी है।* सीट
से उतर अपनी शक्तियों को आर्डर करते इसलिए वह आर्डर मानती नहीं। ज्ञान भी सुनेगा,
सेवा भी करेगा लेकिन उदास रूप में। दास सदा उदास ही रहेगा। ऐसे कमजोर आत्मायें
एक श्रीमत के साथ-साथ और मतें भी दिखाई देती हैं।
➢➢ सीट से नीचे उतर व्यर्थ वा कमजोरी के संकल्पों की दीवार खड़ी कर देते। *एक
सेकेण्ड में एक से अनेक संकल्प पैदा हो जाते और उसी से अनेक ईटों की दीवार बन
जाती है इसलिए ज्ञान सूर्य की शक्तियों की किरणें पहुँच नहीं सकती।*
➢➢ मन की एकाग्रता ही एकरस स्थिति का अनुभव करायेगी। *एकाग्रता की शक्ति द्वारा
अव्यक्त फरिश्ता स्थिति का सहज अनुभव कर सकेंगे।*
➢➢ *एकाग्रता की शक्ति,मालिकपन की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देगी।*, एकाग्रता
अर्थात् मन को जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना समय एकाग्र कर लो। मन
वश में हो।
➢➢ पास विद ऑनर वही बनते हैं जो अपने संकल्पों की उलझन अथवा सजाओं से परे रहते
हैं। *कम्पलीट बनने में व्यर्थ संकल्पों के तूफान विघ्न डालते हैं। यह कम्पलेन
समाप्त तब होगी जब रोज़ अमृतवेले सारे दिन के अपाइन्टमेंट की डायरी बनायेंगे।*
जब अपने मन को हर समय अपाइन्टमेंट में बिजी रखेंगे तो बीच में व्यर्थ संकल्प
समय नहीं ले सकेंगे।
➢➢ *जब आपके संकल्पों में एकाग्रता आयेगी तब संकल्प से किसको बुला सकेंगे। किसको
संकल्प से कार्य की प्रेरणा दे सकेंगे।* जैसे बटन दबाने से टेलीवीज़न में सारा
नज़ारा सामने आ जाता है वैसे ही आप जो संकल्प, जिसके लिए करेंगे उसकी बुद्धि
में वही क्लियर चित्र खिंच जायेगा।
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ साकार रूप में
फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए मन की एकाग्रता पर अटेन्शन दो, आर्डर से
मन को चलाओ। *मालिकपन के स्टेज की सीट पर, भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ स्थितियों की
सीट पर सेट रहो। मन में जब कोई कमजोर संकल्प उत्पन्न हो तो उसे वहाँ ही खत्म कर
शक्तिशाली बनो।*
➢➢ *संकल्प रूपी फाउण्डेशन को मजबूत बनाओ तब अव्यक्ति कशिश आयेगी। मन की
एकाग्रता के लिए सेकेण्ड बाई सेकेण्ड ड्रामा की पटरी पर चलते रहो।* जिस रीति
से, जैसा ड्रामा चल रहा है उसी के साथ-साथ मन की स्थिति चलती रहे। जरा भी हिले
नहीं।
➢➢ *मन अर्थात् संकल्प शक्ति को ब्रेक लगाने और मोड़ने की पॉवर हो। इससे बुद्धि
की शक्ति व्यर्थ नहीं जायेगी, इनर्जी जमा होगी।* जितना मन-बुद्धि की शक्ति जमा
होगी उतना परखने वा निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी।
➢➢ मन को कन्ट्रोल करने के लिए मन को अर्पण कर पूरा सरेण्डर हो जाओ। फिर मन में
अपने अनुसार संकल्प उठा नहीं सकते। *जिसने मन भी बाप को दे दिया वह सहज मनमनाभव
हो जायेंगे। मनमनाभव होने से सहज मोहजीत बन जायेंगे। मन को समर्पण करना अर्थात्
व्यर्थ संकल्प, विकल्पों को समर्पण करना।*
➢➢ संकल्पों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर चाहिए। जैसे बाहर की कारोबार को कन्ट्रोल
करते हो ऐसे मन के संकल्पों की कारोबार को कन्ट्रोल करो, इसके लिए *सदैव स्मृति
में रखो कि मैं हर समय, हर सेकेण्ड, हर कर्म करते हुए स्टेज पर हूँ।*
➢➢ *जब जैसी स्थिति बनाना चाहें वैसी स्थिति बनाने के लिए मन को ड्रिल करानी
है। एक सेकेण्ड में आवाज में आयें, एक सेकेण्ड में आवाज से परे हो जाएं। एक
सेकेण्ड में कार्य प्रति शारीरिक भान में आयें फिर एक सेकेण्ड में अशरीरी हो
जायें।* जब यह ड्रिल पक्की हो तब हर परिस्थिति का सामना कर सकेंगे।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
बापदादा कहते सीट पर स्थित रहो तो एकरस रहेंगे। *सीट पर सेट रहो तो ज्ञान सूर्य
के शक्तियों की किरणें आपके सीट की छत्रछाया स्वतः ही, सदा ही प्राप्त है। न
कमजोर बनो, न मर्यादाओं की परहेज से वा मर्यादाओं की लकीर से बाहर आओ।*
➢➢ सदा यह लक्ष्य रखो कि बाप समान बनना है। *हर बात में चेक करो कि यह बाप का
कर्म वा बाप का संकल्प, बोल है। अगर है तो करो। नहीं तो परिवर्तन कर दो क्योंकि
साधारण कर्म आधाकल्प किया, अभी तो बाप समान बनना है।*
➢➢ *अव्यक्त महावाक्य मन को कन्ट्रोल कर एकाग्रता की शक्ति बढ़ाओ। समय प्रमाण
अब संकल्पों को समेटने की शक्ति धारण करो, संकल्पों के विस्तार का बिस्तर बन्द
करते चलो* तब औरों के संकल्पों को रीड कर सकेंगे। नयनों के इशारों से भी किसके
मन के भाव को जान लेंगे।
➢➢ मन को जहाँ लगाना चाहो वहाँ लगा रहे और कहाँ प्रयोग न हो। *मन के संकल्प में
भी माया से हार न हो, ऐसी स्थिति बनाने के लिए शुद्ध संकल्पों में पहले से ही
मन को बिजी रखो।*
➢➢ *आप भी कोई कार्य करते हो या बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की
ट्रैफिक को स्टॉप करने का अभ्यास करो।* एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को,
चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करो तो
संकल्प शक्तिशाली बन जायेंगे।
➢➢ उमंग उल्लास ही सदा आगे बढ़ाता रहेगा। *सदा उमंग और उल्लास में रहने वाले हर
बात में नम्बरवन होंगे। अभी निर्बन्धन हो जाओ।* जो शक्तिशाली आत्मायें होंगी
उनके आगे कोई भी कुछ कर नहीं सकता।
➢➢ *समय की बुकिंग करने का तरीका सीखो। जितना-जितना बाप की समानता के समीप आते
जायेंगे तो सर्व आत्माओं के मन के संकल्पों को कैच कर सकेंगे।* इसमें अपने
संकल्पों की मिक्सचर्टी नहीं चाहिए।
➢➢ *जब मन में कोई संकल्प उत्पन्न होता है। तो उसमें सच्चाई और सफाई हो। अन्दर
में कोई भी विकर्म का, भाव-स्वभाव, पुराने संस्कारों का भी किचरा नहीं हो।* जो
ऐसा सच्चा होगा वह सबका प्रिय होगा। ऐसे सच्चे पर साहब भी राज़ी होता है।
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ वर्तमान समय
प्रमाण अब मन्सा महादानी बनो तब मन के संकल्पों पर सेकण्ड में विजयी बन सकेंगे।
*कोई कितना भी चंचल संकल्प वाला हो यानी एक सेकेण्ड भी उनका मन एक संकल्प में न
टिक सके, ऐसे चंचल संकल्प वाले को भी अपनी विजय की शक्ति से टेम्प्रेरी टाइम के
लिए भी उसे शान्त व चंचल से अचल बना दो।*
➢➢ *देव आत्मायें अगर अपने बचपन के खेल में रहेंगी तो उन्हों की पुकार सुनेंगी
कैसे इसलिए पुकार सुनो और उपकार करो।*
➢➢ *अनुभवी बन खज़ानों के अधिकारी बन बाप का परिचय देना है! जो अपने पास है वह
दूसरों को देना सेकेण्ड की और सहज बात है।*
────────────────────────