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❍ 21 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *शिव भगवानुवाच, जो ऊंच ते ऊंच है, वह सबका बाप है, जिसको सर्वशक्तिमान कहा जाता है* | तुम उनके बच्चे शिव शक्तियां हो। अभी है पुरानी दुनिया और नई दुनिया का संगम। जरूर नई दुनिया होकर गई है, अब पुरानी दुनिया है। जो सतयुग पास्ट हुआ है फिर भविष्य में आना है। यह समझ की बात है। ज्ञान है ही समझ। वह है भक्ति, यह है ज्ञान।
➢➢ *कृष्ण को भी श्री कहते हैं क्योंकि उनको श्रेष्ठ बनाने वाला बाप है। भारतवासी बिचारे यह नहीं जानते हैं कि कृष्ण ही नारायण बनते हैं*। हम अभी कहते हैं बिचारे बेसमझ हैं। कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहा जाता है। नई पावन दुनिया बनाने वाला रचयिता बाप ही है, जिसको परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान कहा जाता है।
➢➢ पतित-पावन एक ही ईश्वर है। मनुष्य पतित से पावन बना नहीं सकते, कोई भी हालत में। *वास्तव में शिव भगवानुवाच पतित दुनिया में एक भी पावन हो नहीं सकता। पतित-पावन का अर्थ ही है विश्व को पावन बनाने वाला। नई दुनिया में है आदि सनातन देवी-देवता धर्म।* यह भी कोई नहीं जानते। सारी विश्व को पावन बनाना यह एक ही के हाथ में है।
➢➢ मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है, जो कुछ करते हैं सो परमपिता परमात्मा करते हैं। *मनुष्य को शान्ति सुख देना - यह बाप का काम है। हमेशा महिमा एक बाप की ही करनी है और कोई की महिमा है नहीं।* लक्ष्मी-नारायण की भी महिमा है नहीं। परन्तु राज्य करके गये हैं तो समझते हैं यह स्वर्ग के मालिक थे। भगवानुवाच तुम राजाओं का राजा पूज्य बनते हो फिर पुजारी बनेंगे। पूज्य लक्ष्मी-नारायण ही फिर आपेही पुजारी बनेंगे। तो जो पास्ट हो गये हैं उनका फिर मन्दिर बनाकर पूजन करते हैं। यह आत्माओं और परमात्मा का घर एक ही है स्वीट होम।
➢➢ गीता खण्डन होने कारण भगवान की हस्ती गुम हो गई है। कह देते हैं ईश्वर का कोई नाम रूप है नहीं। अब नाम रूप काल तो आत्मा का भी है। *आत्मा का नाम आत्मा है, वह भी परमपिता परम आत्मा है। परम अर्थात् सुप्रीम, ऊंच ते ऊंच। वह जन्म मरण रहित है, अवतार लेते हैं*। अगर वह दूसरे में आये तो भी उनका नाम ब्रह्मा रखना पड़े। वह आते ही हैं ज्ञान देने के लिए।
➢➢ आत्मा यह शरीर रूपी चोला लेकर पार्ट बजाती है फिर वापिस जाना है, शरीर छोड़ना पड़ता है। तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए, डरना नहीं चाहिए। तुम बहुत कमाई कर रहे हो। *तुम्हारे अन्दर यह चलता रहता है हम असुल शिवबाबा के बच्चे हैं। हम विश्व के मालिक बनेंगे, फिर चक्र में आयेंगे इसको स्वदर्शन चक्र कहा जाता है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप कहते हैं तुम बच्चों को पावन बनाने लिए सारी सृष्टि को पावन बनाता हूँ। *शिवबाबा खुद कहते हैं मैं पतित से पावन बना रहा हूँ। तुमको ही पावन दुनिया का मालिक बनना है। नई दुनिया में है आदि सनातन देवी-देवता धर्म।* यह भी कोई नहीं जानते।
➢➢ शिव शक्ति जगत अम्बा होकर गई है, जिसका यह यादगार है। होकर गये हैं फिर आने हैं जरूर। *जैसे सतयुग पास्ट हुआ, अब कलियुग है फिर सतयुग आने वाला है। अभी है पुरानी दुनिया और नई दुनिया का संगम | जरूर नई दुनिया होकर गई है, अब पुरानी दुनिया है।* जो सतयुग पास्ट हुआ है फिर भविष्य में आना है। यह समझ की बात है।
➢➢ *मुझ परमपिता का नाम शिव ही है। मैं परमपिता परम आत्मा स्टार मिसल हूँ। मेरा शिव नाम एक ही है। तुम ही सालिग्राम हो, परन्तु तुम्हारा नाम 84 जन्मों में बदलता रहता है।* मेरा तो एक ही नाम है। मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ। गीता में जिसका नाम डाल दिया है वह तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। ऐसे नहीं कि कृष्ण ने गीता सुनाई। यह बड़ी समझने की बात है।
➢➢ बाप कहते हैं अपने को देखते रहो मैं मास्टर ज्ञान सागर बना हूँ? मात-पिता समान औरों को ज्ञान देता हूँ? हमारे से कोई नाराज़ तो नहीं होता है? शान्ति को धारण किया है? *शान्ति हमारा स्वधर्म है ना | अपने को अशरीरी आत्मा समझना है, देखना है मेरे में कोई विकार तो नहीं हैं? अगर कोई विकार होगा तो नापास हो जायेंगे।* ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी पड़ती हैं। यह है विचार सागर मंथन कर अपने को परफेक्ट बनाना, श्रीमत से। महिमा सारी परमपिता परमात्मा की ही है।
➢➢ मैं शिव भगवान तुम बच्चों को राजयोग और सृष्टि चक्र का ज्ञान समझाता हूँ अर्थात् अब तुम्हारी आत्मा को सृष्टि चक्र का ज्ञान है। जैसे मुझ बाप को सृष्टि के चक्र का ज्ञान है, मैं आया हूँ तुमको सिखलाने। *जितना योग लगायेंगे उतना नजदीक जाकर रूद्र के गले का हार बनेंगे अभी हम संगम पर है। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी चाहिए।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बेहद ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को समझना है, जो पास्ट हुआ वही अब फिर प्रजेन्ट होना है, अभी संगमयुग प्रजेन्ट है फिर सतयुग आना है। *अपने आपको परफेक्ट बनाने के लिए विचार सागर मंथन करो। ड्रामा के आदि मध्य अन्त को समझना है।*
➢➢ *श्रीमत पर हर कर्म श्रेष्ठ करना है।* सबके डूबे हुए बेड़े को श्रीमत पर पार लगाना है। दु:खियों को सुख देना है।
➢➢ *अन्दर स्वदर्शन चक्र फिराते रूद्र माला में नजदीक आने के लिए याद में रहना है।* ज्ञान का मंथन करना है, अपने आपसे बातें जरूर करनी है।
➢➢ किसी से किनारा करने के बजाए सर्व का सहारा बनने वाले विश्व कल्याणकारी सारे कल्प में कल्याणकारी आत्मायें हो। *कभी किसी भी बात में, किसी स्थान से, किसी सेवा से, किसी साथी से किनारा करके अपनी अवस्था अच्छी बनाने का संकल्प नहीं करना।*
➢➢ *कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करना हैं।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है वह समझना है। उनको समझने बिगर मनुष्य कुछ भी समझ नहीं सकते।* ड्रामा के आदि मध्य अन्त को समझना है। उस हद के ड्रामा के आदि मध्य अन्त को तो जानते हैं। यह है बेहद का ड्रामा, इसको मनुष्य समझ नहीं सकते।
➢➢ *बाबा ने समझाया है तुम हो सैलवेशन आर्मी। सैलवेशन आर्मी उनको कहा जाता है जो किसके डूबे हुए बेड़े को (नांव को) पार लगाते हैं। दु:खी को सुखी बनाते हैं।* अभी तुम श्रीमत पर सबका बेड़ा पार कर रहे हो।
➢➢ शिव भगवानुवाच तुम राजाओं का राजा पूज्य बनते हो फिर पुजारी बनेंगे। पूज्य लक्ष्मी-नारायण ही फिर आपेही पुजारी बनेंगे। तो जो पास्ट हो गये हैं उनका फिर मन्दिर बनाकर पूजन करते हैं। *यह सिद्ध कर बताना है, ऐसे नहीं कि ईश्वर आपेही पूज्य आपेही पुजारी बनता है। नहीं।*
➢➢ *सारा मदार गीता को करेक्ट कराने पर है।* कह देते हैं ईश्वर का कोई नाम रूप है नहीं। अब नाम रूप काल तो आत्मा का भी है।
➢➢ यहाँ तो बाप मत देते हैं। जैसे स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं। रावण तो कोई चीज़ नहीं जो उल्टा पढ़ाये। *बाप तो है ज्ञान का सागर। रावण को सागर या नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। तुम अब श्रीमत पर चल रहे हो। तुम ब्राह्मण बन यज्ञ की सेवा करते हो।* तुमको राजयोग और ज्ञान सिखलाना है।
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