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  08 / 03 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप आकर अविनाशी ज्ञान रत्न चुगाते हैं, जिससे हम विश्व के मालिक बनते हैं। फिर रावण आकर बेर चुगाते हैं।* शिव का चित्र, देवताओं के चित्र सब पत्थर के ही हैं। *पत्थर को पूजते-पूजते पत्थरबुद्धि बन जाते हैं।*

➢➢  यज्ञ जब रचते हैं तो उसमें शास्त्र भी रखते हैं। रामायण, भागवत आदि की कथा सुनाते हैं, उसको रूद्र यज्ञ कहते हैं। वास्तव में रूद्र यज्ञ यह है। *यह यज्ञ तो बहुत समय चलता है। उन्हों का तो करके मास भर यज्ञ चलेगा। कितना बड़ा यज्ञ है, ख्याल तो करो।*
 

➢➢  पतितों को पावन बनाने वाला है ही एक परमात्मा न कि कृष्ण। वह तो प्रिन्स है। *कृष्ण तो माता के गर्भ से जन्म लेते हैं तो उनको पतितपावन कैसे कहेंगे।*

➢➢  *फादर तब कहा जाता है जब बच्चे पैदा करते हैं। कृष्ण तो खुद ही बच्चा है। तो उसको फादर कैसे कहा जाए। लॉ नहीं कहता। कृष्ण के साथ फिर जोड़ी चाहिए। उनके बच्चे चाहिए तब फादर कहा जाए।* वह तो फिर गृहस्थी हो गया। यहाँ तो निराकार बाप बैठ ज्ञान देते हैं। वह कभी गृहस्थ में आते नहीं, सदा पवित्र हैं।


➢➢  चक्र में भी वर्ण दिखाते हैं। *ब्राह्मण कुल है सबसे छोटा। उन्हों के ज्ञान लेने का समय भी थोड़ा है। कितने थोड़े ब्राह्मण हैं।* फिर उनसे जास्ती देवतायें, उनसे जास्ती क्षत्रिय, उनसे जास्ती वैश्य, शूद्र। तो तुम ब्राह्मण कितने थोड़े हो। *इन थोड़ों में भी वह बहुत थोड़े हैं, जिनको सदैव खुशी का पारा चढ़ा रहता है।*
 

➢➢  *बाप ने समझाया है खुशी का पारा चढ़ेगा अमृतवेले।* दिन को और रात को वायुमंडल बहुत गन्दा रहता है, उस समय याद मुश्किल रहती है। अमृतवेले का समय गाया हुआ है। *उसी समय सभी आत्मायें थक कर शरीर से डिटैच होकर सो जाती हैं। वह है शुभ महूर्त।*
 

➢➢  बच्चे तो जानते हैं हम परमपिता परमात्मा से भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए आजीविका प्राप्त करते हैं। *इसमें जो विघ्न डालते हैं उन पर कितना पाप चढ़ता होगा। सो भी समझकर विघ्न डालते हैं! बेसमझ पर तो कोई दोष नहीं। वह तो सारी दुनिया बेसमझ है।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम बच्चों को बेहद के बाप से बुद्धियोग जोड़ने लिए मेहनत करनी पड़ती है। *योग न होने के कारण ही फिर मनुष्य से पाप होते हैं या धारणा नहीं हो सकती है।* बाप को याद नहीं करते। भगवान तो एक ही है। वह है मोस्ट बिलवेड स्वर्ग का रचयिता। वहाँ बहुत सुख है। *यहाँ दु:ख होने के कारण ही भगवान को याद करते हैं।* 

➢➢  यहाँ तुमको बाप का परिचय मिलता है बाप द्वारा। मनुष्य उस मोस्ट बिलवेड बाप को जानते नहीं। *बाप को जानते ही नहीं तो अपने को उसके बच्चे भी समझते नहीं। हमने बाप को जाना है तो उनको याद करते हैं।*

➢➢  बाप का परिचय देंगे तो बाप की याद रहेगी। यूं तो बाप की याद चलते फिरते दिल में रहनी चाहिए। *बाकी हठ से एक जगह बैठ याद करेंगे तो ठहरेगी नहीं।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अमृतवेले के शुभ महूर्त में बाप को बहुत प्यार से याद कर खुशी का पारा चढ़ाना है।* चलते-फिरते भी याद का अभ्यास करना है।

➢➢  पाप कर्मों से बचने वा ज्ञान की अच्छी धारणा करने के लिए *एक बाप से बुद्धियोग जोड़ने की मेहनत करनी है।* 

➢➢  *यदि कोई बार-बार गलती करता है तो उसे परिवर्तन करने के लिए गुस्सा नहीं करो,* बल्कि रहमदिल बनकर शुभ भावना, शुभ कामना की दृष्टि रखो तो वह सहज परिवर्तन हो जायेंगे।

➢➢  सर्विस करनी हैं। *सर्विस की भिन्न भिन्न युक्तियां निकालनी हैं। फिर कोई समझे न समझे, अपना फर्ज़ हैं हर एक को समझाना।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *मनुष्य कह देते यह पशु पक्षी आदि सारी रचना वह रचते हैं। परन्तु समझाना चाहिए पहले-पहले मनुष्य की बात तो समझो। परमपिता जो रचता है वह मनुष्य सृष्टि कैसे रचते हैं।* तो पहले-पहले यह समझाना है कि मनुष्य सृष्टि का रचयिता कौन है। वह रचयिता ही सबका बाप ठहरा। *पहले-पहले बाप का परिचय देना है।*

➢➢  *कोई भी आते हैं तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। जब अल्फ याद पड़े तब फिर आगे समझ सकें। अल्फ बिगर कुछ भी समझ नहीं सकेंगे।* वह भी समझाना ऐसे है जो मनुष्य समझे इन्हों की समझानी तो बड़ी एक्यूरेट दिखाई पड़ती है। *एक्यूरेट शब्दों में अल्फ का परिचय दो तो सर्वव्यापी की बात खत्म हो जायेगी।* 

➢➢  *फार्म भराने समय भी पहले बाप का परिचय देना है।* तुम्हारी आत्मा का बाप कौन है, यह प्रश्न और कोई पूछ न सके। आत्मा तो हर एक मनुष्य में है। जीव आत्मा, पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है ना। *पुण्य आत्मा तो बाप ही बनाते हैं फिर इनको पाप आत्मा कौन बनाते हैं? यह जरूर समझाना पड़े।* बाप जो स्वर्ग का रचयिता है, जिसके हम सभी बच्चे हैं उनको तुम जानते हो? 

➢➢  *अभी है पतित दुनिया, इसलिए मनुष्य गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ। इतने सब पतित मनुष्यों को पावन कौन बनाये? सर्वव्यापी है फिर तो यह बात नहीं उठती कि परमपिता परमात्मा आओ। सर्वव्यापी है। फिर तो उसको याद करने की भी दरकार नहीं।* 

➢➢  *जिसको भाषण करना है तो विचार सागर मंथन करना होता है। पहले भाषण लिख रिफाइन करना चाहिए।* बड़े-बड़े स्पीकर्स जो होते हैं वह बहुत खबरदारी से बोलते हैं। बिल्कुल एक्यूरेट सुनाते हैं। जरा भी हिचका तो आबरू (इज्जत) चली जायेगी। पहले से ही पूरी प्रैक्टिस करते हैं। *यहाँ भी इतना बुद्धि में रहना चाहिए जो किसको बाप का परिचय दे सको।*

➢➢  *कोई भी आये उनको समझाना है कि हम पढ़ रहे हैं। इसमें कोई अन्धश्रधा की तो बात ही नहीं।* निराकार बाप टीचर के रूप से हमको सहज राजयोग सिखा रहे हैं। *कोई-कोई लिखते हैं भगवान निराकार है, तो उनको समझाना चाहिए। कोई फिर लिखते हैं कि हम जानते ही नहीं, अरे तुम बाप को नहीं जानते हो? परमपिता परमात्मा कहते हो तो जरूर कोई तो होगा ना!* 

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