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  11 / 03 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह संगमयुग वरदानी समय है, इस वरदानी समय में स्वयं भाग्य विधाता बापदादा ने सभी बच्चों को गोल्डन चांस दिया है कि  जो जितना श्रीमत पर चल भाग्य बनाना चाहे, जितना सर्व प्राप्ति सवरूप बनना चाहे, हरेक को सम्पूर्ण अधिकार है।* अधिकार देने में नम्बर नहीं है, फ्रीडम है अर्थात् सम्पूर्ण स्वतन्त्रता है। और साथ-साथ ड्रामा अनुसार वरदानी समय का भी सहयोग है।

 

➢➢  *बाप भी बेहद का, वर्सा भी बेहद का, अधिकार भी बेहद का लेकिन लेने वाले नम्बरवार बन जाते हैं ।* इसके संक्षेप में दो कारण हैं- एक बुद्धि में स्वच्छता नहीं, क्लीयर नहीं। दूसरा - हर कदम में सावधान नहीं अर्थात् केयरफुल नहीं। इन दो कारणों से नम्बरवार बन जाते हैं।

 

➢➢  *ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार - स्मृति, वृत्ति और दृष्टि की स्वच्छता(पवित्रता) है।* ब्राह्मण जीवन की चैलेन्ज ही है काम-जीत। यही असम्भव से सम्भव कर दिखाना है, यही श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ ज्ञान दाता के बच्चो की निशानी है।

 

➢➢  *पवित्रता की पहली आधारमूर्त प्वाइंट है ‘‘स्मृति की पवित्रता'।* मैं सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ। आत्मा शब्द तो सभी कहते हैं लेकिन ब्राह्मण आत्मा सदा यही कहेगी कि मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ। श्रेष्ठ आत्मा हैं। पूज्य आत्मा हूँ। विशेष आत्मा हूँ। यह स्मृति की ही पवित्रता आधार मूर्त है।*पहले स्मृति की स्वच्छता चाहिए। उसके बाद वृत्ति और दृष्टि।*

➢➢  बाप द्वारा निमित्त बने हुए शिक्षक वा सेवा के सहयोगी बनी हुई आत्मायें चाहे बहन हो या भाई हो, लेकिन सेवाधारी आत्माओं की सेवा के मुख्य लक्षण त्याग और तपस्या है, *इसी लक्षण के आधार पर सदा त्यागी और तपस्वी की दृष्टि से देखो न कि दैहिक दृष्टि से। श्रेष्ठ परिवार है तो सदा श्रेष्ठ दृष्टि रखनी है क्योंकि यह महापाप कभी प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करा नहीं सकता।*

 

➢➢  हर बात में बाप को याद कर साथी बनाना है। महान आत्मायें भी नहीं, निमित्त आत्मायें भी नहीं लेकिन बाबा ही याद आये। *कोई भी बात आती है तो पहले बाप को याद करना है। सदा एक बाप दूसरा न कोई, आत्मायें सहयोगी हैं लेकिन साथी नहीं हैं।*

 

➢➢  *यह स्मृति सदा रहे कि निमित्त सहयोग देते है, साथी तो बाप है। सहयोगी को अपना साथी समझना, यह रांग है। तो सदा सेवा के साथी लेकिन सेवा में साथी बाप है।* किसी देहधारी को साथी बनाया तो उड़ती कला का अनुभव नहीं हो सकता इसलिए हर बात में बाबा-बाबा याद रहे।

 

➢➢  *कुमार अर्थात डबल लाइट, संस्कार-स्वभाव का भी बोझ नहीं।* व्यर्थ संकल्प का भी बोझ नहीं। जितने हल्के होंगे उतना सहज उड़ती कला का अनुभव करेंगे। अगर ज़रा भी मेहनत करनी पड़ती है तो जरूर कोई बोझ है। *तो बाबा-बाबा का आधार ले उड़ते रहो। यही अविनाशी आधार है।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  सदा ही कोई न कोई कर्म में, संकल्प में, सम्बन्ध-सम्पर्क में डिफेक्ट वा इफेक्ट इसी उतराई और चढ़ाई में चलता रहेगा। कभी भी परफेक्ट स्थिति को अनुभव नहीं कर सकेगा इसलिए *सदा चेक करो पूज्य आत्मा के बदले पाप आत्मा तो नहीं बन गये। इसी एक विकार से और विकार स्वत: ही पैदा हो जाते हैं। बाप से योग लगा विकारो पर जीत पानी है।*  

➢➢  *किसी भी प्रकार का, मन्सा संकल्प का, बोल का वा सम्पर्कसम्बन्ध का विशेष झुकाव होना यह लगाव की निशानी है।* और कुछ नहीं करते हैं, सिर्फ बात करते हैं, यह बातों का झुकाव भी लगाव की परसेन्टेज़ है। चाहे सेवा के सहयोग की तरफ भी विशेष झुकाव है, यह भी लगाव है। *योगबल की शक्ति द्वारा सर्व लगाव से मुक्त हो बुद्धि से बाप को याद कर नष्टोमोहा स्थिति में स्थित होना है।*  
  
➢➢  बापदादा का याद प्यार हम ब्राह्मण बच्चो के लिए पालना का झूला है। जिस झूले में हमारी पालना होती है और बापदादा की गुडमार्निंग शक्तिशाली अमृत कहो, वा औषधि कहो, वा श्रेष्ठ भोजन कहो, जो भी कहो। *हमे बाबा की याद प्यार में यह संगमयुगी ब्राह्मण जीवन जीना है। बाबा की याद में रह माया के प्रहार से बचना है।*  

➢➢  *योगयुक्त स्थिति में स्थित हो,त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव करते हुए हर कर्म करना है,* तो कोई भी कार्य व्यर्थ वा साधारण नहीं होगा और विकर्मों से बच जाएंगे।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  कोई भी कर्मेन्द्रियाँ अपने बन्धन में नहीं बाँधे, इसको कहा जाता है साक्षी। *हर कर्म सदा साक्षी हो कर करना है, हर कदम उठाते कर्म के बन्धन से न्यारे और बाप के प्यारे बनकर करना है।*

 

➢➢  क्यों, ऐसा क्यों यह तो चलता ही है। यह वायुमण्डल की अग्नि में तेल डालना है। आग को भड़काना है। *बात को बढ़ाना नही है, उसे फुलस्टाप लगाना है। है वा नहीं है, इस बहस में नहीं जाना है। लेकिन संकल्प, बोल और सम्पर्क में परिवर्तन लाना है।*

 

➢➢  *जैसे नामधारी ब्राह्मणों की निशानी चोटी और जनेऊ है वैसे सच्चे ब्राह्मणों की निशानी पवित्रता और मर्यादायें हैं।*  इस ब्राह्मण जन्म की वा जीवन की निशानी को सदा कायम रखना है ।

 

➢➢  *बाप की याद में स्थित हो सदा ऊँची स्थिति बनाने का पुरुषार्थ करना है।*

 

➢➢  *कामना पूरी न हुई तो क्रोध साथी पहले आयेगा इसलिए इस बात को हल्का नहीं समझो, इसमें अलबेले नही बनना है।* बाहर से शुभ सम्बन्ध है, सेवा का सम्बन्ध है - इस रॉयल रूप के पाप को बढ़ाओ मत। *चाहे कोई भी दोषी हो इस पाप के, लेकिन दूसरे को दोषी बनाए स्वयं को अलबेले नही बनना है। मैं दोषी हूँ" जब तक यह सावधानी नहीं रखेंगे तब तक महापाप से मुक्त नहीं हो सकेंगे।*

 

➢➢  *सभी को मिलकर सदाकाल के लिए समाप्ति समारोह मनाना है।* इसमें मातायें भी आ जाती, अधरकुमार भी आ जाते। ऐसे नहीं सिर्फ पाण्डव मनायेंगे। कुमारियाँ भी मनायेंगी, टीचर भी मनायेंगी। अधरकुमारियाँ भी मनायेंगी। सब मिलकर यह समारोह मनावें । *सदा उमंग उत्साह में रह नये आत्माओ को भी उमंग उत्साह में लाना है।* 

➢➢  *जो कर्म हम करेंगे हमे देख सब करेंगे इसलिए साधारण कर्म नहीं, सदा श्रेष्ठ कर्म करने है, बाप की याद में रह अपनी स्थिति अचल अडोल बनानी है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  पूज्य आत्मा अर्थात सम्पूर्ण निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण। यही पूज्य आत्मा की क्वालिफिकेशन है। वह स्वत: ही स्वयं को और सर्व को चाहे अलौकिक परिवार में, चाहे लौकिक परिवार कहो वा लौकिक स्मृति में रहने वाली आत्मायें कहो, सभी के प्रति परम पूज्य आत्मायें हैं वा पूज्य बनाना है यही दृष्टि रखनी है। *पूज्य आत्मा की स्थिति में स्थित हो,मनसा द्वारा सर्व आत्माओ की सेवा करनी है।*

 

➢➢  जब बाबा से कोई भी इशारा मिलता है तो इशारे को इशारे से खत्म कर देना चाहिए। अगर जिद्द करते हो और सिद्ध करते हो, स्पष्टीकरण देने की कोशिश करते हो, इससे समझो स्पष्टीकरण अपने पापं की करते हो। बात की नहीं करते हो, पाप की लकीर और लम्बी करते जाते हो इसलिए *जब हैं ही विश्व परिवर्तन के कार्य में तो स्व-परिवर्तन कर लेना, यही समझदारी का काम है। स्व सेवा द्वारा विश्व की सेवा करनी है।*

 

➢➢  इस समाप्ति वर्ष में बाप को याद कर आत्मा में विशेष बल भर कमज़ोर संस्कारो को सदा के लिए समाप्त करना है। *कमज़ोर संस्कारो का समाप्ति समारोह करके जाना है,यही विशेष आटेंशन दे स्व के प्रति सच्ची सेवा करनी है।*

 

➢➢  रूहानी यूथ ग्रुप शान्तिकारी, कल्याणकारी ग्रुप है। सदा विश्व में शान्ति स्थापना के कार्य में निमित्त है, वह अशान्ति फैलाने वाले और हम शान्ति फैलाने है। यूथ ग्रुप में राजनीतिक लोगों की भी उम्मीदें हैं और बापदादा की भी उम्मीदें हैं। *सच्चे सेवाधारी बन सर्व आत्माओ को बाप का संदेश दे, बाप(परमात्मा शिव)की उम्मीदें पूरी करनी है।* सफलता के सितारे बन गवर्मेन्ट तक यह आवाज बुलन्द करना कि हम विजयी रत्न हैं।

 

➢➢  *सदा यह याद रखना है कि हमारे ऊपर विश्व परिवर्तन की बहुत बड़ी जिम्मेवारी है।* कमजोर संकल्पो को समाप्त कर मनसा, वाचा कर्मणा द्वारा सर्व आत्माओ की वा तमोप्रधान प्रकृति को सतोप्रधान बंनाने की सेवा करनी है।

 

➢➢  *सच्चे सेवाधारी बन अपने सन्तुष्ट और खुशनुमः जीवन से वा चहरे और चलन से सर्व आत्माओ की सेवा करनी है।*  

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