━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 16 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *बच्चों को ज्ञान और भक्ति का राज़ तो समझाया है।* ज्ञान माना दिन, सतयुग-त्रेता, भक्ति माना रात, द्वापर और कलियुग। भारत की ही बात है। *और धर्मो से तुम्हारा जास्ती कनेक्शन नहीं है, 84 जन्म भी तुम ही भोगते हो।* पहले-पहले भी तुम भारतवासी आये हो। *84 जन्म का चक्र तुम भारतवासियों के लिए है।*
➢➢ सतयुग में कोई भी गुरु शास्त्र आदि नहीं होते। इस समय तो अनेक गुरु है
भक्ति सीखलाने वाले। *सद्गति देने वाला तो एक ही रूहानी बाप है, जिसकी
अपरमअपार महिमा है। उसे ही वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है।*
➢➢ *बाप कहते हैं बच्चे में कोई के अन्दर को नहीं जानता हूँ। मेरा तो काम
ही है पतितों को पावन बनाना। बाकी मैं अन्तर्यामी नहीं हूँ*। यह भक्ति
मार्ग की उल्टी महिमा है। मुझे बुलाते ही है पतित दुनिया मे। *और में एक ही
बार आता हूँ,जबकि पुरानी दुनिया को नया बनाना है।*
➢➢ *शिवबाबा मोस्ट बिलवेड है।* बाप कहते हैं मेरा भी मिट्टी का लिंग बनाकर
पूजा आदि कर फिर तोड़फोड़ देते हैं। सवेरे बनाते हैं और शाम को तोड़ देते हैं।
यह सब है भक्ति मार्ग, अन्धश्रद्धा की पूजा। मनुष्य गाते भी है आपेही पूज्य
आपेही पुजारी। *बाप कहते हैं मैं तो सदैव पूज्य हूँ। मैं तो आकर सिर्फ पतितों
को पावन बनाता हूँ। 21 जन्मों के लिए राज्य भाग्य देता हूँ*।
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *भारत खण्ड की महिमा अपरमअपार है*। वैसे परमपिता परमात्मा की महिमा और गीता की महिमा भी अपरमअपार है। परंतु सच्ची गीता की। झूठी गीता तो सुनते-सुनते पढ़ते-पढ़ते नीचे गिरते आये हैं। *अभी बाप तुमको राजयोग सीखलाते हैं।*
➢➢ *तुम सब आत्मायें आशिक हो, एक परमात्मा माशूक के। द्वापर से लेकर तुम
याद करते आये हो। दुःख में आत्मा बाप को याद करती है।* यह है ही दुःख धाम।
आत्मायें असली शान्तिधाम की निवासी हैं। पीछे आई सुखधाम में।
➢➢ बाप कहते हैं बच्चे मैं तुमको पावन बनाने आया हूँ। *यह एक जन्म मुझे
याद करो और पावन बनो तो तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। मैं ही पतित-पावन हूँ।
जितना हो सके याद की यात्रा को बढ़ाओ*।
➢➢ *मुख से शिवबाबा,शिवबाबा कहना नहीं है। जैसे माशूक को याद करते हैं।
एकबार देखा बस, बुद्धि में उनकी याद रहेगी।* भक्ति में जो जिसको याद करते,
जिसकी पूजा करते हैं उनका साक्षात्कार हो जाता है।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ अब बाप ने समझाया है *"हम सो " का अर्थ ही है --हम आत्मा सतयुग में सो देवी-देवता थी, फिर हम सो क्षत्रिय,हम सो वैश्य, हम सो शुद्र बनी। अब फिर हम सो ब्राह्मण बने हैं, हम सो देवता बनने के लिए।*
➢➢ *तुम हो गाडली स्टूडेण्ट, तो फादर भी हुआ।* स्टूडेण्ट है तो वह टीचर
हुआ। फिर तुम बच्चों को सद्गति दे स्वर्ग में ले जाते हैं तो सतगुरु हुआ।
बाप, टीचर, गुरु तीनों ही हो गया। *उनके तुम बच्चे बने हो तो तुमको कितनी
खुशी हुई चाहिए।*
➢➢ तुम जानते हो हम यहाँ पार्ट बजाने आये हैं। *पार्टधारी अगर ड्रामा के
आदि-मध्य-अन्त को न जाने तो उनको बेसमझ कहा जाता है।* बेहद का बाप कहते है
सभी कितना बेसमझ बन गये हैं।
➢➢ *अब मैं तुमको समझदार हीरे जैसा बनाता हूँ।* फिर रावण आकर कौड़ी जैसा
बनाते है,अब इस पुरानी दुनिया का विनाश होना है। *तुम्हारी एम आब्जेक्ट
सामने खड़ी है। ऐसा बनना है तब तुम स्वर्गवासी बनेंगे। तुम बी.के.यह
पुरुषार्थ कर रहे हो।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *भारत की महिमा अपरमअपार है। इतना धनवान,सुखी, पवित्र और और कोई खण्ड है नहीं। अब सतोप्रधान दुनिया स्थापन हो रही है।* त्रिमूर्ति में भी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर दिखाया है। उनका अर्थ कोई समझते नहीं।
➢➢ वास्तव में कहना चाहिए त्रिमूर्ति शिव न कि ब्रह्मा। *ब्रह्मा विष्णु
शंकर को क्रियेट किसने किया...ऊंचे ते ऊंच शिवबाबा है। कहते हैं ब्रह्मा
देवताए नमः, विष्णु देवताए नमः, शंकर देवताए नमः, शिव परमात्माए नमः। तो वह
ऊंच हुआ ना। वह है रचयिता।*
➢➢ *ब्रह्म तो भगवान नहीं। भगवान तो एक ही निराकार शिव है, जो सर्व आत्माओं
का बाप है। ब्रह्म है हम आत्माओं का रहने का स्थान। वह ब्रह्माण्ड,स्वीट
होम है। वहाँ से हम आत्मायें यहाँ पार्ट बजाने आती हैं।* आत्मा कहती है हम
एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ, 84 जन्म भी भारतवासियों के हैं।
➢➢ *सतयुग में हैं दैवीगुण वाले मनुष्य। उन्हों का है देवता धर्म। पीछे
और-और धर्म हुए हैं। द्वापर से आसुरी रावणराज्य शुरू हो जाता है। सतयुग में
रावण राज्य भी नहीं तो 5 विकार भी नहीं हो सकते। वह है सम्पूर्ण निर्विकारी।
राम सीता को 14 कला सम्पूर्ण कहा जाता है।*
➢➢ मनुष्य को यह पता नहीं कि यह जो दुनिया है वह नई से पुरानी, पुरानी से नई कब बनती है। *हर चीज़, सतो, रजो,तमो में आते हैं। मनुष्य भी एक जैसे होते हैं। बालक पहले सतोप्रधान है फिर युवा, वृद्ध होते हैं अर्थात सतो, रजो,तमो में जरूर आते हैं। बूढ़ा शरीर होता है वह छोड़ जाकर बच्चा बनते हैं।*
────────────────────────