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  11 / 02 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *भारत में 33 करोड़ देवताओं को नमस्कार करते हैं अर्थात् आप श्रेष्ठ ब्रह्मण सो देवताओं के वंश के भी वंश, उनके भी वंश, सभी का पूजन नहीं तो गायन तो करते ही हैं। तो सोचो जो स्वयं पूर्वज हैं उन्हों का नाम कितना श्रेष्ठ होगा!* और पूजन भी पूर्वजों का कितना श्रेष्ठ होगा। 9 लाख का भी गायन है। उससे आगे 16 हजार का गायन है फिर 108 का है फिर 8 का है। उससे आगे युगल दाने का है। नम्बरवार हैं ना।

 

➢➢  *कोई-कोई भक्त, देवता नाराज न हो जाए इस भय से पूजा करते हैं। और कोई-कोई भक्त दिखावा मात्र भी पूजा करते हैं। और कोई-कोई समझते हैं भक्ति का नियम वा फर्ज निभाना है। चारों ही प्रकार के भक्त किसी न किसी प्रकार से बनते हैं।* यहाँ भी देखो देव आत्मा बनने वाले, ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ना।

 

➢➢  *नम्बरवन पूज्य सदा सहज स्नेह से और विधि पूर्वक याद और सेवा वा योगी आत्मा, दिव्यगुण धारण करने वाली आत्मा बन चल रहे हैं। चार सबजेक्ट विधि और सिद्धि प्राप्त किये हुए हैं।*

 

➢➢  *दूसरे नम्बर के पूज्य विधि पूर्वक नहीं लेकिन नियम समझ करके करेंगे, चार ही सबजेक्ट पूरे लेकिन विधि सिद्धि के प्राप्ति स्वरूप हो करके नहीं। वह दिल का स्नेह स्वत: और सहज बनाता है और नियम पूर्वक वालों को कभी सहज कभी मुश्किल लगता।* कभी मेहनत करनी पड़ती और कभी मुहब्बत की अनुभूति होती। नम्बरवन लवलीन रहते, नम्बर दो लव में रहते।

 

➢➢  *नम्बर तीसरा - मेजॉरिटी समय चारों ही सबजेक्ट दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र करते हैं।* याद में भी बैठेंगे नामीग्रामी बनने के भाव से। ऐसे दिखावा मात्र सेवा भी खूब करेंगे। जैसा समय वैसा अल्पकाल का रूप भी धारण कर लेंगे लेकिन दिमाग तेज़ और दिल खाली।

 

➢➢  *नम्बर चौथा - सिर्फ डर के मारे कोई कुछ कह न दे कि यह तो है ही लास्ट नम्बर का वा यह आगे चल नहीं सकता। शूद्र जीवन भी पसन्द नहीं और ब्रह्मण जीवन में विधि पूर्वक चलने की हिम्मत नहीं इसलिए मजबूरी मजधार में आ गये।* ऐसा न हो कि दोनों तरफ से  छूट जाये। उन्हों की पूजा कभी-कभी और डर के मारे, मजबूरी भक्त बन निभाना है और दिखावा वाले की भी पूजा दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र होती।

 

➢➢  *नामीग्रामी अर्थात् श्रेष्ठ पूज्य 16 हजार तक नम्बरवार बन जाते हैं। बाकी 9 लाख लास्ट समय तक अर्थात् कलियुग के पिछाड़ी के समय तक थोड़े बहुत पूज्य बन जाते हैं।* गायन तो सबका होता है। गायन का आधार है भाग्य विधाता बाप का बनना और पूजन का आधार है चारों सबजेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई, सफाई।

 

➢➢  *संगमयुग की सब घड़ियाँ गुडमानिंग ही हैं क्योंकि संगमयुग पूरा ही अमृतवेला है। चक्र के हिसाब से संगमयुग अमृतवेला हुआ ना।* बाप आता है तो रात से अमृतवेला बन गया और जब जाते हैं तो दिन निकल आता है। आप सतयुग का दिन, ब्रह्मा का दिन, उसमें राज्य करते हो। तो पुरानी दुनिया के हिसाब से सदा ही गुडर्निंग है। इसलिए शुभ सवेरा कहें, शुभ रात्रि कहें शुभ दिन कहें सब शुभ ही शुभ है।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *याद को ज्वाला स्वरूप बनाओ बाप समान पाप कटेश्वर वा पाप हरनी तब बन सकते हो, जब आपकी याद ज्वाला स्वरूप हो। ऐसी याद ही आपके दिव्य दर्शनीय मूर्त को प्रत्यक्ष करेगी। इसके लिए कोई भी समय साधारण याद न हो।* सदा ज्वाला स्वरूप, शक्ति स्वरूप याद में रहो। स्नेह के साथ शक्ति रूप कम्बाइन्ड हो।

 

➢➢  *वर्तमान समय संगठित रूप के ज्वाला स्वरूप की आवश्यकता है।* ज्वाला स्वरूप की याद ही शक्तिशाली वायुमण्डल बनायेगी और निर्बल आत्मायें शक्ति सम्पन्न बनेंगी। सभी विघ्न सहज समाप्त हो जायेंगे और पुरानी दुनिया के विनाश की ज्वाला भड़केगी।

 

➢➢  ज्वाला-रूप बनने का मुख्य और सहज पुरुषार्थ -- *सदा यही धुन रहे कि अब वापिस घर जाना है और सबको साथ ले जाना है।* इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति की आकर्षण से उपराम अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी वा बाप-समान बन जाएंगे।

 

➢➢  कोई भी हिसाब-चाहे इस जन्म का, चाहे पिछले जन्म का, लग्न की अग्नि -स्वरूप स्थिति के बिना भस्म नहीं होता। *ज्वाला रूप की शक्तिशाली याद, बीजरूप, लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति में स्थित रहो तो पुराने हिसाब-किताब भस्म हो जायेंगे।* शक्तिशाली ज्वाला स्वरूप की याद तब रहेगी जब याद का लिंक सदा जुटा रहेगा। अगर बार-बार लिंक टूटता है, तो उसे जोड़ने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते हो।

 

➢➢  साधना इसको नहीं कहते कि सिर्फ योग में बैठ गये लेकिन *जैसे शरीर से बैठे हो वैसे दिल, मन, बुद्धि एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए।* ऐसी एकाग्रता ही ज्वाला को प्रज्जवलित करेगी। पॉवरफुल याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है। एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी और हल्केपन का अनुभव कराती है। ऐसे विधिपूर्वक याद को ही यथार्थ और शक्तिशाली याद कहा जाता है।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  हर कदम बाप साथ है अर्थात् ब्लैसिंग साथ है। इसी छाया में सदा रहे हो। इसके लिए *अब संकल्पों का बिस्तर बन्द करते चलो अर्थात् समेटने की शक्ति धारण करो। कोई भी कार्य करते वा बात करते बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करो।*

 

➢➢  *पवित्रता की धारणा जब सम्पूर्ण रूप में करनी होगी तब आपके श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति लगन की अग्नि प्रज्जवलित करेगी, उस अग्नि में सब किचड़ा भस्म हो जायेगा।* फिर जो सोचेंगे वही होगा, विंहग मार्ग की सेवा स्वत: हो जायेगी। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से असुरों को भस्म कर दिया। असुर नहीं लेकिन आसुरी शक्तियों को खत्म कर दिया।

 

➢➢  *ज्वाला स्वरूप याद के लिए मन और बुद्धि दोनों को एक तो पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए। इससे बुद्धि की शक्ति वा कोई भी एनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जायेगी।* जितनी जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी।

 

➢➢  *एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को, चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करो तब बिन्दू रूप की पॉवरफुल स्टेज पर स्थित हो सकेंगे।* जैसे कोई भी कीटाणु को मारने के लिए डॉक्टर लोग बिजली की रेज़ देते हैं। ऐसे याद की शक्तिशाली किरणें एक सेकेण्ड में अनेक विकर्म रूपी कीटाणु भस्म कर देती हैं।

 

➢➢  *निरन्तर सहजयोगी तो हो सिर्फ इस याद की स्टेज को बीच-बीच में पॉवरफुल बनाने के लिए अटेन्शन का फोर्स भरते रहो।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है। ऐसे आप बच्चे *अपने महान तपस्वी रूप द्वारा प्राप्ति की किरणों की अनुभूति कराओ।* इसके लिए पहले जमा का खाता बढ़ाओ। जैसे सूर्य की किरणें चारों ओर फैलती हैं, ऐसे आप मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज पर रहो तो शक्तियों व विशेषताओं रूपी किरणें चारों ओर फैलती अनुभव करेंगे।

 

➢➢  *विशेष ज्ञान-स्वरूप के अनुभवी बन शक्तिशाली बनो।* जिससे आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृति और शक्तिशाली वातावरण द्वारा अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति हो।

 

➢➢  *सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज अर्थात् लाइट माइट हाउस की स्टेज, स्टेज पर आ जाओ*, याद ज्वाला रूप हो जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लग जाएं।

 

➢➢  *अभी ज्वालामुखी बन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव सब-कुछ भस्म करो। प्रकृति और आत्माओं के अन्दर जो तमोगुण है उसे भस्म करने वाले बनो।* यह बहुत बड़ा काम है, स्पीड से करेंगे तब पूरा होगा।

 

➢➢  *खाओ-पियाे, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो।*

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