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❍ 24 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जब तक सूर्यवंशी राजधानी तुम्हारी स्थापना नहीं हुई है तब तक विनाश नहीं हो सकता। राजधानी स्थापना हो, बच्चों की कर्मातीत अवस्था हो तब फाइनल लड़ाई होगी, तब तक रिहर्सल होती रहती है। इस लड़ाई के बाद स्वर्ग के गेट खुलने वाले हैं।*
➢➢ मैं सृष्टि रचता हूँ, यह और कोई नहीं कह सकते। बेहद का बाप एक ही है।
ओम् का अर्थ भी बच्चों को समझाया गया है। *आत्मा है ही शान्त स्वरूप।
शान्तिधाम में रहती है। परन्तु बाप है ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर। आत्मा
की यह महिमा नहीं गायेंगे। हाँ आत्मा में नॉलेज आती है।*
➢➢ बाप ही आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं। अब नर्क है फिर स्वर्ग बनाने बाप
आये हैं। *यह पुरानी दुनिया है। जो नई दुनिया थी, अब वह पुरानी है। मकान भी
नये से पुराना होता है। आखरीन तोड़ने लायक हो जाता है।* अब बाप कहते हैं
मैं बच्चों को स्वर्गवासी बनाने राजयोग सिखाता हूँ।
➢➢ जिसकी महिमा सुनी - ओम् नमो शिवाय। तुम जानते हो हम उनके बच्चे बन गये
हैं। अब वर्सा ले रहे हैं। *अब तुम मनुष्य मत पर नहीं चलते। मनुष्य मत पर
चलने से तो सब नर्कवासी बन गये हैं। शास्त्र भी मनुष्यों के ही गाये हुए
हैं अथवा बनाये हुए हैं।*
➢➢ नर्क (कलियुग) में मनुष्य जो भी कर्म करते हैं वह जरूर विकर्म ही बनेंगे
क्योंकि सबमें 5 विकार हैं। *अब सन्यासी पवित्र बनते हैं, पाप करना छोड़
देते हैं, जंगल में जाकर रहते हैं। परन्तु ऐसे नहीं उनके कर्म अकर्म होते
हैं। बाप समझाते हैं इस समय है ही माया का राज्य इसलिए मनुष्य जो भी कर्म
करेंगे वह पाप ही होंगे।* सतयुग त्रेता में माया होती नहीं, इसलिए कभी
विकर्म नहीं बनते। न दु:ख होगा।
➢➢ इस समय एक तो हैं रावण की जंजीरें, फिर भक्तिमार्ग की जंजीरें।
जन्म-जन्मान्तर धक्के खाते आये हैं। बाप कहते हैं हमने आगे भी कहा था कि *इन
जप तप आदि से मैं नहीं मिलता हूँ। मैं आता ही तब हूँ जब भक्ति का अन्त होता
है। भक्ति शुरू होती है द्वापर से।*
➢➢ भारत प्राचीन देश है, जो पहले थे, उनको ही अन्त तक रहना है। 84 का चक्र
गाया जाता है। गवर्मेन्ट जो त्रिमूर्ति बनाती है उनमें होना चाहिए ब्रह्मा,
विष्णु, शंकर, परन्तु जानवर लगा देते हैं। *बाप रचयिता का चित्र है नहीं और
नीचे चक्र भी लगाया है। वह समझते हैं चरखा है परन्तु है ड्रामा सृष्टि का
चक्र। अब चक्र का नाम रखा है अशोक चक्र। अब तुम इस चक्र को जानने से ही
अशोक बन जाते हो। बात तो ठीक है, सिर्फ उलट पुलट कर दिया है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *मनुष्य दु:खी होते हैं तब याद करते हैं।* सतयुग त्रेता में हैं सौभाग्यशाली और यहाँ (कलियुग) हैं दुर्भाग्यशाली। रोते पीटते रहते हैं। अकाले मृत्यु होता रहता है। बाप कहते हैं मैं आऊंगा तब जब नर्क को स्वर्ग बनना है।
➢➢ तुम हो राजऋषि। राजाई प्राप्त करने के लिए तुम सन्यास करते हो विकारों का। *वह हद के सन्यासी घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। परन्तु हैं फिर भी पुरानी दुनिया में। बेहद का बाप तुमको नर्क का सन्यास कराते हैं और स्वर्ग का साक्षात्कार कराते हैं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको ले जाने।*
➢➢ *तुम आत्मा अविनाशी हो, यह शरीर विनाशी है। अब मुझे याद करो तो अन्त मती
सो गति हो जायेगी। गायन भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे...* अब बाप कहते हैं
अन्तकाल जो शिवबाबा सिमरे वह नारायण पद प्राप्त कर सकता है। नारायण पद मिलता
ही है सतयुग में। बाप के सिवाए यह पद कोई दिला न सके। यह पाठशाला है ही
मनुष्य से देवता बनने की। पढ़ाने वाला है बाप।
➢➢ *बाप बैठ समझाते हैं तुम आत्मा पहले पहले मूलवतन में थी। फिर देवी-देवता धर्म में आई, फिर क्षत्रिय धर्म में आई, 8 जन्म सतोप्रधान में फिर 12 जन्म सतो में, फिर 21 जन्म द्वापर में, फिर 42 जन्म कलियुग में। यहाँ (कलियुग) शूद्र बन पड़े, अब फिर ब्राह्मण वर्ण में आना है फिर देवता वर्ण में जायेंगे।* अब तुम (संगमयुग में) ईश्वरीय गोद में हो। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। 84 जन्मों को जानने से फिर उसमें सब कुछ आ जाता है। सारे चक्र का ज्ञान बुद्धि में है l
➢➢ *अब तुम बच्चों को तीन धाम समझाये हैं। शान्तिधाम से ही आत्मायें आती
हैं। आत्मा तो स्टार के मिसल है, जो भ्रकुटी के बीच में रहती है।आत्मा में
84 जन्मों का अविनाशी रिकार्ड भरा हुआ है।* न ड्रामा कभी विनाश होता, न
एक्ट बदली हो सकती। यह भी वण्डर है - कितनी छोटी आत्मा में 84 जन्मों का
पार्ट बिल्कुल एक्यूरेट भरा हुआ है। यह कभी पुराना नहीं होता। नित्य नया
है। हूबहू आत्मा फिर से अपना वही पार्ट शुरू करती है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अब यह तुम्हारा तन छी-छी हो गया है। यह दुनिया ही छी-छी है, इसलिए (बाप) तुमको इस दुनिया से सन्यास कराते हैं। *इस कब्रिस्तान से दिल नहीं लगानी है। अब बाप और वर्से से दिल लगाओ।*
➢➢ *बाबा से प्रतिज्ञा करनी है मीठे बाबा हम आपकी याद में जरूर रहेंगे।
मुख्य बात है पवित्रता की। पाँच विकारों का दान जरूर देना पड़े।* कोई हार
खाकर खड़े भी हो जाते हैं।
➢➢ अगर दो चार बारी माया का घूँसा खाकर फिर गिरा तो नापास हो जायेगा।
पासपोर्ट कैन्सिल हो जाता है। *बाप कहते हैं बच्चे कुल कलंकित मत बनो। तुम
विकारों को छोड़ो। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक अवश्य ही बनाऊंगा।*
➢➢ *तुम बच्चों को स्वर्ग में चलने लायक बनना है। बाबा पासपोर्ट निकालते हैं। जितना - जितना पवित्र बनेंगे, अन्धों की लाठी बनेंगे तो प्राइज भी अच्छी मिलेगी।*
➢➢ सारा भारत इस समय धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़ा है। देवतायें तो पवित्र थे। अब बाप कहते हैं *अगर सौभाग्यशाली बनने चाहते हो तो पवित्र बनो, प्रतिज्ञा करो - बाबा हम पवित्र बन आपसे पूरा वर्सा जरूर लेंगे*। यह तो पुरानी पतित दुनिया खत्म होने वाली है। लड़ाई झगड़ा क्या क्या लगा पड़ा है। क्रोध कितना है। बाम्बस कितने बड़े-बड़े बनाये हैं। कितने क्रोधी, लोभी हैं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप है सबसे ऊंच है, जिसको भारतवासी मात-पिता कहते हैं। तो जरूर प्रैक्टिकल में मात-पिता चाहिए। गाते हैं तो जरूर कोई समय हुए होंगे। तो पहले-पहले ऊंच ते ऊंच है वह निराकार परमपिता परमात्मा, बाकी तो हरेक में आत्मा है।*
➢➢ *कृष्ण को तो सभी मानते हैं। देखो, इनको दो गोले दिये हैं। कृष्ण की आत्मा कहती है अब मैं नर्क को लात मार रहा हूँ। स्वर्ग हाथ में ले आया हूँ।* पहले कृष्णपुरी थी, अब कंसपुरी है। इसमें यह कृष्ण भी है। इनके 84 जन्मों के अन्त का यह जन्म है। परन्तु अब वह कृष्ण का रूप नहीं है।
➢➢ *आत्मा जब शरीर में है तो दु:खी वा सुखी बनती है। यह बड़ी समझने की बातें हैं। यह कोई दन्त कथायें नहीं हैं। बाकी जो भी गुरू गुसाई आदि सुनाते हैं, वह सब दन्त कथायें हैं।*
➢➢ *बाप सभी को कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। यह तो जरूर है
जो जैसा कार्य करेगा अच्छा वा बुरा, उस संस्कार अनुसार जाकर जन्म लेंगे।
कोई साहूकार, कोई गरीब, कोई रोगी कोई तन्दरूस्त बनते हैं। यह है अगले जन्मों
के कर्मो का हिसाब। कोई तन्दरूस्त है जरूर आगे जन्म में हॉस्पिटल आदि बनाये
होंगे। दान पुण्य जास्ती करते हैं तो साहूकार बनते हैं।*
➢➢ वहाँ (सतयुग में) यथा राजा रानी तथा प्रजा सब सुखी रहते हैं। नाम ही है हेविन। हेविनली गॉड फादर हेविन स्थापना करते हैं, *यह (कलियुग) है हेल। सब सीताओं को रावण ने जेल में बाँध रखा है। सभी शोक में बैठ भगवान को याद कर रहे हैं कि इस रावण से छुड़ाओ। सतयुग है अशोक वाटिका।*
➢➢ *यह कृष्ण
का अन्तिम जन्म है। इनको बाप बैठ समझाते हैं। वास्तव में तुम सबका अन्तिम
जन्म है, जो भारतवासी देवी-देवता धर्म के थे उन्हों ने ही पूरे 84 जन्म भोगे
हैं। अभी तो सबका चक्र पूरा होता है।*
➢➢ *सबसे ऊंच है परमपिता परमात्मा अर्थात् परम आत्मा। वह है रचयिता। *पहले ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचते हैं फिर आओ नीचे अमरलोक (सतयुग) में, वहाँ है लक्ष्मी-नारायण का राज्य। सूर्यवंशी का राज्य, चन्द्रवंशी का नहीं है। यह कौन समझा रहे हैं? ज्ञान का सागर (शिवबाबा) । मनुष्य, मनुष्य को कब समझा न सके।*
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