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  09 / 03 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अन्त तक पुनर्जन्म तो लेते आना है। जब तक सृष्टि का विनाश हो वा सृष्टि रूपी झाड जड़ जडीभूत हो तब तक तो सबको रहना है।*

➢➢  *सचखण्ड में झूठ होता नहीं। जिस सचखण्ड के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो।* तो बच्चों को बाप से बहुत सच्चा बनना है। फिर भी बेहद का बाप है। सच्चा हो रहने से कदम-कदम पर पदमपति होते रहते हैं। 

➢➢  *कहते तो हैं कि मनुष्य सृष्टि रचने वाला परमात्मा है तो वह हुआ रचता। परन्तु रचना को फिर यह पता नहीं है कि हमारा रचता कौन है।* भक्ति आदि करते हैं - शान्ति अथवा सुख के लिए। हम तुम भी ऐसे करते थे, जबकि बाप नहीं मिला था। 

➢➢  *सुख होता है सम्पत्ति से। वहाँ (सतयुग में) तो सम्पत्ति बहुत है। यहाँ सम्पत्ति नहीं है तो मनुष्य बिचारे रोटी टुकड़ भी मुश्किल खा सकते हैं।* सम्पत्ति है तो एरोप्लेन बड़े-बड़े महल आदि सब वैभव हैं। 

➢➢  *सबको दुःखों से छुटकारा दिलाकर सुख़ में ले जाना, यह सिवाए, परमात्मा के कोई कर नहीं सकता। दोनों दरवाजों की चाबी बाप के पास है।* स्वर्ग का फाटक खुलता है तो मुक्ति का भी खुलता है। मुक्ति में जाने सिवाए स्वर्ग में जा कैसे सकते। दोनों गेटस इक्ट्टे खुलते हैं। 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *स्वर्ग कहाँ होता है, निर्वाणधाम कहाँ होता है, वहाँ क्या होता है, वहाँ जाकर फिर आना कब होता है। कुछ भी नहीं जानते। तुम सब कुछ जानते हो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।*

➢➢  *गाइड है ही एक। वह सभी को दुःखों से छुड़ाकर सुखधाम में ले जाने वाला या जीवनमुक्त बनाने वाला एक ही है। वह जब तक न आये तब तक कोई को भी मुक्ति-जीवनमुक्ति की प्राप्ति हो नहीं सकती।*

➢➢  *स्वर्ग में सुख और शान्ति दोनों हैं। शान्ति क्यों कहा जाता ? क्योंकि वहाँ लड़ाई झगड़ा आदि होता नहीं।* बाकी असली शान्तिधाम तो है। निर्वाणधाम । जहाँ सभी आत्माये शान्त रहती हैं, फिर आत्मा को जब आरगन्स मिलते हैं तो बोलती है। तो वहाँ सुख शान्ति दोनों ही हैं।

➢➢  *परमधाम में तब तक रहते हैं जब तक पार्ट में आये। इसलिए सच्चे स्वीट होम को याद करते हैं।* नाटक में हमेशा नम्बर्स की लिमिट होती है। फलाने ड्रामा में इतने एक्टर्स हैं, यह तो अनादि बना बनाया ड्रामा है। लिमिटेड नम्बर हैं, भारत में 33 करोड़ देवताओं की लिमिट है। 

➢➢  *यह कांटों का जंगल है, वह फूलों का बगीचा है।* तो मार्ग हैं ही दो। हठयोग और राजयोग। *यह राजयोग है स्वर्ग के लिए। राजाओं का राजा स्वर्ग में बनेंगे। स्वर्ग स्थापन करने वाला है परमपिता परमात्मा।* वही राजयोग सिखलाते हैं।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बच्चों को बाप से बहुत सच्चा बनना है।* फिर भी बेहद का बाप है। सच्चा हो रहने से कदम-कदम पर पदमपति होते रहते हैं। 

➢➢  *अब बच्चों को किसको समझाने की तरकीब भी सीखना है कि बेसमझ को कैसे समझायें।* बेसमझ क्यों कहा जाता है ? क्योंकि मनुष्यों को समझ नहीं है। 

➢➢  *तुम अगर मुक्ति चाहते हो तो अच्छा बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों।* 

➢➢  तुम पहले स्वर्ग में थे फिर 84 जन्म भोगे हैं। अब फिर *बाप और स्वर्ग को याद करो। कमल फूल समान पवित्र रहना होगा।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *मन बड़ा चंचल है। बोलो शान्ति तो मिलेगी परमधाम में। एक है शान्तिधाम, दूसरा है सुखधाम, तीसरा है दुःखधाम। तुम क्या चाहते हो तो फिर हम बताये कि यह साधना अथवा पुरुषार्थ करो। साधना वा पुरुषार्थ एक ही बात है।*

➢➢  *कोई भी आये तो उनसे पूछना चाहिए तुम क्या चाहते हो ? गुरू करते हो तो दिल में चाहना क्या है ?* वास्तव में उनकी चाहना को तुम ब्राह्मण ब्राह्मणियां जानते हो। चाहना क्या रखनी चाहिए, किस बात की चाहना रखनी है - यह भी कोई जानते नहीं। 

➢➢  *अब जाने के लिए धाम हैं दो। एक है निर्वाणधाम, दूसरा है शान्तिधाम। वहाँ आत्माओं का निवास होता है। क्या तुम उस धाम में जाने चाहते हो? तुम बच्चों को तरस पड़ना चाहिए।* बिचारे भटकते रहते हैं।

➢➢  *वह (बाप) सभी को दुःखों से छुड़ाकर सुखधाम में ले जाने वाला या जीवनमुक्त बनाने वाला एक ही है। वह जब तक न आये तब तक कोई को भी मुक्ति-जीवनमुक्ति की प्राप्ति हो नहीं सकती। यह दोनों प्रोपर्टी है ही एक बाप के पास। जब तक भगवान भक्तों के पास न आये तो वह चीज़ मिल नहीं सकती।*

➢➢  *समझाया जाता है यह कलियुग तो है  पुरानी दुनिया। नई दुनिया है सुखधाम, वहाँ दु:ख होता नहीं। पवित्रता, सुख, शान्ति वहाँ सब है। दूसरा है मुक्तिधाम, वहाँ कोई सदैव रह नहीं सकता।* 

➢➢  *पहले-पहले जब कोई आये तो उनसे पूछना है दिल में क्या आश हैं ? क्या चाहते हो ? दर्शन से तो कोई फायदा नहीं।* गुरू के पास कोई आश लेकर जाते हैं। एक तो आश रहती है कुछ मिले।

➢➢  *सन्यासियों को भी समझाना है, तुम्हारा हठयोग है। यह है राजयोग।* गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है। यह प्रवृत्ति मार्ग है। तुम्हारा पंथ ही अलग है, निवृत्ति मार्ग का। यह प्रवृत्ति मार्ग है जीवनमुक्ति पाने का। हमको भी बाबा ने बताया है।

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