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❍ 24 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *यह बच्चों को समझाया हुआ है जैसे आत्मा शान्त स्वरूप है वैसे परमपिता परमात्मा भी शान्त स्वरूप हैं।*
➢➢ *आत्मा इमार्टल है। उस अविनाशी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। परम आत्मा में भी पार्ट भरा हुआ है। इसको कहा जाता है ड्रामा की कुदरत।*
➢➢ *सन्यासी लोग कहते हैं अहम् ब्रह्मस्मि। वह ब्रह्म को ईश्वर समझते हैं। रचना को माया कह देते हैं। अहम् ब्रह्मस्मि का यह अर्थ करते हैं। परन्तु है सब रांग।* मनुष्य जो कुछ करते हैं सब मनुष्यों की सुनी-सुनाई पर।
➢➢ अब बाप कहते हैं हे राही ...., कहाँ के राही? परमधाम के राही। यह हो गई रूहानी यात्रा रूहों के लिए। *ओम् का अर्थ भी समझाया हुआ है कि ओम् अर्थात् अहम् आत्मा। रसम-रिवाज़ जो चली आई है सो कह देते हैं, फलाना ज्योति ज्योत समाया अर्थात् आत्मा परमात्मा बन गई।यह भी ड्रामा में नूंध है।*
➢➢ *वह (बाप) तो है क्रियेटर, डायरेक्टर। तुम जो देवी-देवता बनते हो उनका सबसे जास्ती पार्ट है।* आदि से अन्त तक तुम्हारा पार्ट है। *सतयुग त्रेता में तो बाप का पार्ट है नहीं। वहाँ बाबा को कुछ भी करना नहीं पड़ता।*
➢➢ *वह है भक्त माला और यह है रूद्र माला। ज्ञान माला में भक्ति नहीं है।* वह तो ज्ञान सागर से ज्ञान धारण कर भक्तों का भी उद्धार करते हैं। उन्हों की ही फिर रूद्र माला बनती है।
➢➢ *मैं आया हुआ हूँ तुमको पढ़ाने। हूबहू 5 हजार वर्ष पहले मैंने यह राजयोग सिखाया था। मैं निराकार आत्माओं से बात करता हूँ । तुम अपने आरगन्स का आधार लेते हो। मैं इनके (ब्रह्मा के) आरगन्स का आधार लेता हूँ।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप रचता भी है, बच्चों को क्रियेट करते हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली बनाया है। *सब कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं फिर बाप डायरेक्शन देते हैं कि मनमनाभव।*
➢➢ *तुम्हारा बुद्धियोग बाप के पास जाना चाहिए। बाबा आया हुआ है हमको वापिस ले जाने के लिए।*
➢➢ *एक बाप को याद करना है।मेरी श्रीमत पर चलो। अब सिर्फ मुझे याद करते रहो।* भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग और रचना की नॉलेज देता हूँ।
➢➢ *मनमनाभव का अक्षर गीता में भी आदि और अन्त में है।* यही कहते हैं कि मुझे याद करो। मैं तुमको विश्व का मालिक इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाऊंगा। राजाओं का राजा बनाऊंगा।
➢➢ तुम जानते हो हमें 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक हूबहू बाप आकर राजयोग सिखला रहे है। *मुख्य एम आबजेक्ट भी बुद्धि में हो। चक्र तो बुद्धि में फिराना ही है।*
➢➢ जब तुम निरन्तर बाप को याद करते रहेंगे तब सम्पूर्ण निर्विकारी बनेंगे। उसी *योगबल से पाप कटते जायेंगे, पुण्य आत्मा हो जायेंगे। फिर याद से आत्मा पवित्र बनती जाती है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अब तुम बच्चे समझते हो हम रूहानी यात्रा पर हैं। *गृहस्थ व्यवहार में रहते याद बढ़ानी है।* वह है बहुत स्वीट चीज़।
➢➢ *पहले-पहले तो निश्चय करना है - मैं आत्मा हूँ, देह नहीं। इस देह का भान भूल जाना है।*
➢➢ *पुरानी दुनिया को छोड़ना है। तो अब यह निश्चय करना है कि बाप हमको स्वर्ग का वर्सा देते हैं।* यह मृत्युलोक खत्म होना है।
➢➢ *मायाजीत, जगतजीत बनना है।* माया से हारे हार है। *बाप से शक्ति लेनी है। यह मेहनत तुम बच्चों को करनी है। कोई भी बात में मूंझते हो तो पूछते रहो।*
➢➢ तूफान लगेंगे, माया खूब हैरान करेगी। फिर कहेंगे यह तो माथा ही खराब हो पड़ा है। *जो बीमारी आदि कभी हुई नहीं सो अब होती रहती है। विघ्न बहुत आयेंगे, इसमें कमजोर नहीं बनना है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इस समय बाप (शिवबाबा) ने इस कल्प वृक्ष का और ड्रामा का ज्ञान दिया है। कहते हैं तुम अब मिले हो, कल्प-कल्प मिलते रहेगे।*
➢➢ *परमपिता परमात्मा को भी गाइड कहा जाता है, पण्डों को भी गाइड कहा जाता है। तो बाप कहते हैं - बच्चे, अब मैं आया हूँ तुम बच्चों को वापिस ले जाने। कितनी फर्स्टक्लास यात्रा है। जिसके लिए भक्त लोग आधाकल्प से भक्ति करते आये हैं।* कहते हैं - आओ, हमको अपने परमधाम में ले चलो।
➢➢ *बाप बैठ समझाते हैं - हे मीठे बच्चे। पहले तो यह निश्चय होना चाहिए कि बरोबर वह बाप है। यह है दु:खधाम, पतित दुनिया नर्क। हेल नाम तो है ना। गाते भी हैं लेफ्ट फार हेविनली अबोड.. जरूर कोई नई चीज़ है।*
➢➢ *इस समय मैं बहुत सर्विस करता हूँ। तुम बच्चों को भी और भक्तों को भी राज़ी करना पड़ता है।* भक्तों को साक्षात्कार होता है तो वह समझते हैं बस हमने ईश्वर को पाया। कल्प वृक्ष के नीचे जगदम्बा बैठी है, जो सभी के सुख की कामना पूरी करती है।
➢➢ अभी तुम कलियुग में हो, कलियुग से तुमको सतयुग में ले जा रहा हूँ।मैं कल्प-कल्प आकर स्थापना करता हूँ। इस समय ही आऊंगा। *ड्रामा का राज़ और कोई समझ नहीं सकते। यह चित्र आदि भी बाप ने बनवाये हैं।*
➢➢ *यह रचना कैसे रचता हूँ, कैसे वृद्धि को पाती है। यह है ड्रामा को समझना। सो तो मनुष्य ही जानेंगे। भगवान पढ़ायेंगे भी मनुष्यों को ।भगवानुवाच - मैं तुमको पतित मनुष्य से पावन देवता बनाता हूँ। गॉड पढ़ाते हैं तो जरूर गॉड-गॉडेज बनायेंगे ना।*
➢➢ बाप पढ़ाते हैं तो इसमें कोई संशय नहीं आना चाहिए ना। स्वर्ग की स्थापना करने वाला वही फादर है। *महाराजा बनने चाहते हो तो बताओ तुमने कितनी प्रजा बनाई है? ऐसे बहुत लिखते हैं कि फलाने ने हमको दृष्टि दी, तीर लग गया। प्रजा बनाने और वारिस बनाने की मेहनत करनी पड़े। प्रजा तो बहुत सहज बन जाती है फिर गद्दी पर कौन बैठेंगे? वह भी मेहनत कर बनाना है।*
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