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❍ 02 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बच्चे अब तुम स्वर्ग में चलते हो। जो विष पीने वाले हैं वह विघ्न तो जरूर डालेंगे क्योंकि सारी दुनिया धुंधकारी है। देखो भारत में पवित्रता नहीं है तो धक्के खाते रहते हैं।*
➢➢ यहाँ तो है ही माया का राज्य, शान्ति मिल नहीं सकती। शान्ति के लिए अलग
जगह है, सुख के लिए अलग जगह है। *सुखधाम में सब सुखी होते हैं। कोई एक भी
दु:खी नहीं रहता और दु:खधाम में फिर एक भी सुखी नहीं रहता।* यथा राजा रानी
तथा प्रजा सब दु:खी ही दु:खी हैं।
➢➢ एक दो को सहन नहीं कर सकते अनेक धर्म हो गये हैं तो लड़ते रहते हैं,
इसलिए सभी देह के धर्मों को निकाल देते हैं। *बाप कहते हैं जो भी धर्म वाले
हैं, सबको हम देह के धर्मों से निकाल देंगे। सतयुग में सिर्फ एक देवता धर्म
रहता है।*
➢➢ तुम अभी पत्थरनाथ से पारसनाथ बनते हो। भारत ही पारसपुरी था। जो अब
पत्थरपुरी बना है वह फिर पारसपुरी बनेगा। *हमारी बुद्धि में यह चक्र फिरता
रहता है। सारा दिन चक्र बुद्धि में फिरेगा तब ही चक्रवर्ती राजा रानी बनेंगे।*
➢➢ *तुम सभी ज्ञान मीरायें बनती हो। तुम आये हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी
महारानी बनने के लिए।* भल पहले अनपढ़े, पढ़े के आगे भरी ढोते हैं परन्तु
महारानी तो बनेंगे ना। अगर बचपन को भूल हाथ छोड़ दिया फिर तो कभी नहीं
महारानी बनेंगी और ही प्रजा में भी कम पद पायेंगी।
➢➢ सन्यासी अपने को ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहलाते हैं। शिव का उनको
पता भी नहीं है। तत्व तो रहने का स्थान है। वह फिर ब्रह्म और तत्व को भी एक
नहीं मानते। अच्छा ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी हैं फिर अपने को शिव क्यों
कहलाते? वह तो समझते हैं *शिव भी एक ही है, ब्रह्म भी एक ही है। अब ब्रह्म
तो है ही रहने का स्थान। मनुष्य तो बहुत मूंझे हुए हैं। तुम बच्चों को अब
होशियार होना है।*
➢➢ *तुम बच्चे हो राजऋषि। अभी तपस्या कर रहे हैं - वानप्रस्थ में जाने के लिए। ऐसा जवाब देने का कोई मनुष्य को अक्ल नहीं है। वह तो वानप्रस्थ को समझते ही नहीं। तुम कहेंगें हम राजयोगी हैं। जीवनमुक्ति के लिए तपस्या कर रहे हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *वह (रचयिता) तो रहते ही हैं शान्तिधाम में। उनको याद करने से तुम शान्ति का वर्सा ले सकते हो। वर्सा लेते-लेते विकर्म विनाश हो जायेंगे और तुम उनके पास चले जायेंगे।* यह ज्ञान सभी धर्म वालों के लिए है। यह है बिल्कुल नई बात।
➢➢ कुछ भी नहीं होगा तो सब कुछ मिल जायेगा। *देह सहित कुछ भी न रहे। शिवपुरी, विष्णुपुरी तरफ ही बुद्धियोग लगाना है, और कोई भी चीज़ में आसक्ति न हो।* पवित्र भी जरूर बनना है।
➢➢ यह सब होना ही है। कहाँ सब्जी नहीं मिलेगी, कहाँ दूध नहीं मिलेगा, जहाँ
तहाँ खिटपिट है। यह सब हंगामा हो फिर शान्ति होगी। *विनाश का और फिर
विष्णुपुरी का साक्षात्कार तो अर्जुन को भी कराया था ना। तुमको भी अभी हो
रहा है।*
➢➢ *बाबा में कशिश है ना। बाप है चुम्बक। आत्मायें हैं सुईयां। अब सुईयों
पर कट (जंक) चढ़ी हुई है।* कट वाली सुई ऊपर कैसे जाये। पंख टूटे हुए हैं।
कट वाली चीज़ मिट्टी के तेल में डाली जाती है। *बाबा भी इस ज्ञान अमृत से
सबकी कट निकालते हैं।* फिर हम सच्चा सोना बन जायेंगे।
➢➢ बाप कहते हैं विष का वर्सा तो बाप से, पति से लेते आये हो। अब *यह
पारलौकिक बाप, पति अमृत का वर्सा तुमको देते हैं।*
➢➢ *पीसफुल तो एक ही भगवान है। वह जब आये तो शान्ति का दान देवे। देने वाला
तो वह एक ही है ना। देखो तुम कितने लाडले बच्चे हो। बहुत जन्मों के बाद
अन्त में आकर मिले हो। तो अब पूरा सौभाग्य लो।*
➢➢ *नींद को जीतने वाले बच्चे, मुझ बाप को श्वांसो श्वांस याद करो। विचार
सागर मंथन करो। रात-दिन जितना योग में रहेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे और
जितना ज्ञान सिमरण करेंगे उतनी कमाई होगी।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *कभी क्रोध में आकर वाद-विवाद नहीं करना है। भल जाए कोई निन्दा करे, गुस्से में कभी नहीं आना चाहिए।*
➢➢ जब शादी का समय होता है तो दोनों (स्त्री-पुरुष) फटे हुए कपड़े पहनते
हैं, तेल लगाते हैं। ये रसम भी यहाँ की है। *तुम बच्चों को भी पूरा बेगर
बनना है।*
➢➢ बाबा देखो कितना फ़राख दिल है। कखपन ले और बादशाही दे देते हैं। सपूत
बच्चे ही बाबा की सर्विस कर सकते हैं। कपूत क्या करेंगे। कपूत को थोड़े ही
बाप वर्सा देंगे। *तुमको सतगुरू का शो करना है। काम अथवा क्रोध में आये तो
गोया सतगुरू की निन्दा कराई, फिर पद पा नहीं सकेंगे। बहुत सम्भाल करनी
चाहिए।*
➢➢ शास्त्र तो हैं भक्ति मार्ग के। दर-दर धक्का खाना, ब्राह्मण खिलाना,
तीर्थों पर जाना। *यहाँ तो एक ही ज्ञान से बेड़ा पार हो जाता है और कहीं
जाने की दरकार ही नहीं।* बच्चे अब तुम स्वर्ग में चलते हो। जो विष पीने वाले
हैं वह विघ्न तो जरूर डालेंगे क्योंकि सारी दुनिया धुंधकारी है।
➢➢ देही-अभिमानी हो रहना - बड़ी भारी मंजिल है। इसमें मेहनत है। *बाबा कहते
हैं 8 घण्टा तो देही-अभिमानी बनो फिर भल शरीर निर्वाह अर्थ काम भी करो। रात
को जागो तो बहुत अच्छी लगन रहेगी*। कमाई है ना।
➢➢ यह तो बच्चे समझते हो इस ज्ञान मार्ग में जरूर विघ्न पड़ते हैं क्योंकि
पवित्रता का सवाल है। जो भी धर्म स्थापन करने आते हैं उन्हों को पवित्र
जरूर बनाना पड़े। *इस समय तो मनुष्य बहुत गन्दे हैं। विघ्न भी बहुत डालेंगे,
झूठ कलंक भी लगायेंगे। इन बातों से डरना नहीं है।*
➢➢ *बच्चों को रिफ्रेश हो फिर सर्विस करनी है।* दिन प्रतिदिन कायदे कानून भी सुधरते जायेंगे। दुनिया के कायदे कानून तो बिगड़ते जायेंगे क्योंकि वह तो तमोप्रधान बनती जाती है। हम तो सतोप्रधान बन रहे हैं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम सभी धर्म वालों को रचयिता और रचना की नॉलेज बता सकते हो। वह (रचयिता) तो रहते ही हैं शान्तिधाम में। उनको याद करने से तुम शान्ति का वर्सा ले सकते हो।*
➢➢ *भक्ति करने वालों से पूछना चाहिए कि तुम क्या चाहते हो? कृष्ण की भक्ति
क्यों करते हो?* जरूर दिल होगी कि इनकी राजधानी में जायें। परन्तु वहाँ
जायेंगे कैसे? *बहुत मनुष्य कहते हैं हमको शान्ति चाहिए। परन्तु अशान्ति तो
सारी दुनिया में है ना। तुम एक को शान्ति मिलने से क्या होगा, हम तुमको 21
जन्मों के लिए सदैव सुखी बना सकते हैं।*
➢➢ *हाथ में चित्र उठाए जाकर वानप्रस्थियों को समझाना चाहिए। मन्दिरों में
जाना चाहिए। उनसे पूछना चाहिए शंकर के आगे शिव दिखाते हैं तो जरूर वह शंकर
से बड़ा हुआ ना। अगर शंकर भगवान का रूप है तो फिर उनके सामने शिवलिंग रखने
की क्या दरकार है।*
➢➢ *हमेशा पहले तो चित्र सामने दे देना चाहिए। पैसा तो तुम कभी नहीं मांगना। तुम्हारा काम है उनको देना। कुछ भी उनको देना होगा तो आपेही देंगे। कोई दाम पूछे तो बोलो बाबा तो गरीब-निवाज़ है। गरीबों के लिए फ्री बांटा जाता है। बाकी साहूकार जितना देंगे उतना हम और भी छपायेंगे।*
➢➢ *कुछ भी हो घबराना नहीं चाहिए। 5 हजार वर्ष पहले भी यह कलंक लगे थे।
अब भी लगेंगे। झूठी-झूठी बनावटी बातें भी करेंगे।* किसको रेसपान्ड ठीक न
मिलने से भी हंगामा करते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते सन्यासी उदासी आदि सब धर्म
वाले आयेंगे। *सबको बाप की नॉलेज जरूर लेनी है। यह चित्र भी सारी दुनिया
में जाने हैं।*
➢➢ *तुम सन्यासियों को भी समझा सकते हो। उनसे भी कोई निकलेंगे जो असुल
देवता धर्म के होंगे, वह झट ज्ञान को समझ लेंगे। कोई 3-4 जन्मों से कनवर्ट
हुए होंगे तो इतना जल्दी नहीं निकलेंगे, ताजे गये होंगे तो झट निकलेंगे।*
➢➢ *सिखलाने वाला है पारलौकिक परमपिता परमात्मा, ज्ञान का सागर। ऐसे-ऐसे माताएं बैठ समझायें तो सब वन्डर खायेंगे। बोलो, हमको पारलौकिक परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं। भविष्य ऊंच पद प्राप्त कराने के लिए।*
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