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❍ 21 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सर्व आत्माओ का बाप परमपिता परमात्मा शिव है। बाप का बच्चों से प्यार है इसलिए बाप सदा कहते हैं बच्चे जो हो, जैसे हो-मेरे हो।* ऐसे आप भी सदा प्यार में लवलीन रहो दिल से कहो बाबा जो हो वह सब आप ही हो।
➢➢ *परमपिता परमात्मा शिव दुःखहर्ता सुखकर्ता है।* जीवन में जो चाहिए अगर वह कोई दे देता है तो यही प्यार की निशानी होती है। *तो बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख-शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं। बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं।*
➢➢ *जो प्यारा होता है उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है।* सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा-तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। *नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए बाप को कभी मतलब से याद नहीं करना है, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रह याद करना है।*
➢➢ *परमात्म-प्यार के अनुभवी बन सहजयोगी बन उड़ते रहना है।* परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती। यह परमात्म प्यार की डोर दूर-दूर से खींच कर ले आती है। *यह ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाते हैं उनके अनेक दु:ख भूल जाते हैं और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगते हैं।*
➢➢ *संगमयुग कल्याणकारी पुरुषोत्तमयुग है, इस उत्तम समय में भाग्यविधाता बाप स्वयं अवतरित हो श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम हम बच्चो को देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो - यही परमात्म प्यार है। यह वही श्रेष्ठ समय है, अभी नही तो फिर पूरे कल्प में कभी नही...*
➢➢ *संगमयुग की मर्यादायें ही पुरूषोत्तम बनाती हैं इसलिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता है।* इन तमोगुणी मनुष्य आत्माओं और तमोगुणी प्रकृति के वायुमण्डल, वायब्रेशन से बचने का सहज साधन - यह मर्यादायें हैं। *मर्यादाओं के अन्दर रहने वाले सदा मेहनत से बचे हुए हैं। मेहनत तब करनी पड़ती है जब मर्यादाओं की लकीर से संकल्प, बोल वा कर्म से बाहर निकल आते हैं।*
➢➢ *यह रूहानी पाठशाला है, यहाँ स्वयं परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा तन का आधार ले टीचर बन पूरे सृष्टि चक्र का ज्ञान दे रहे है। यह ईश्वरीय ज्ञान बहुत रमणीक ज्ञान है, सूखा नहीं है।* कई कहते हैं क्या रोज़ वही आत्मा, परमात्मा का ज्ञान सुनते रहें, लेकिन यह आत्मा परमात्मा का सूखा ज्ञान नहीं है। बहुत रमणीक ज्ञान है, सिर्फ रोज़ अपना नया-नया टाइटिल याद रखो - मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन सी आत्मा हूँ? कभी आर्टिस्ट की आत्मा हूँ, कभी बिजनेसमैन की आत्मा हूँ... तो ऐसे रमणीकता से आगे बढ़ते रहो। बाप भी रमणीक है ना। देखो, कभी धोबी बन जाता तो कभी विश्व का रचयिता, कभी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट... *तो जैसा बाप वैसे बच्चे... ऐसे ही इस रमणीक ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहो।*
➢➢ *बाप का बच्चों
से इतना प्यार है जो अमृतवेले से ही बच्चों की पालना करते हैं।* दिन का आरम्भ
ही कितना श्रेष्ठ होता है! स्वयं भगवन मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रुहरिहान
करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! बाप की मोहब्बत के गीत हमे उठाते हैं। कितना
स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ.....। *तो इस
प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप बन ‘सहज योगी' बनना है।*
➢➢ *पतित पावन बाप
नयी सृष्टि की स्थापना का बड़े से बड़ा कार्य स्वयं करावनहार बन निमित्त करनहार
बच्चों द्वारा करा रहे हैं।* करन-करावनहार इस शब्द में बाप और बच्चे दोनों
कम्बाइन्ड हैं। हाथ बच्चों का और काम बाप का। हाथ बढ़ाने का गोल्डन चांस बच्चों
को ही मिला है। लेकिन अनुभव यहीं करते हो कि कराने वाला करा रहा है, निमित्त
बनाए चला रहा है। हर कर्म में करावनहार के रूप में साथी है। *करन करावनहार की
स्मृति में रह निमित्त बन हर कर्म करना है ।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान अनुभव कर बाप के साथ योग लगा बाप को और वर्से को याद कर श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो विकर्म विनाश करने है।*
➢➢ संगमयुगी ब्राह्मण जीवन हीरे तुल्य जीवन है। इसीलिये ब्राह्मणों को सदा चोटी पर दिखाते हैं। चोटी अर्थात् ऊंचा स्थान। *सदा यही स्मृति रहे कि मैं बाप का, बाप मेरा - यही ज्ञान है ना। यही एक बात याद रखनी है। सदा मन में यही गीत चलता रहे 'जो पाना था वह पा लिया।*
➢➢ *आने वाला समय ऐसा होगा कि उस समय आना जाना भी मुश्किल होगा।* मन्सा द्वारा ही आगे बढ़ाने की सेवा करनी पड़ेगी। वह देने का समय होगा, स्वयं में भरने का नहीं इसलिए पहले से ही योग द्वारा अपना स्टाक चेक करो कि सर्वशक्तियों का स्टाक भर लिया है? *अभी वर्तमान समय सर्वशक्तियों, सर्वगुण सर्व ज्ञान के खजाने, याद की शक्ति से सदा भरपूर होना है। किसी भी चीज़ की कमी नहीं चाहिए।*
➢➢ *परमात्म प्यार में डूब कभी भी हद के प्रभाव में नहीं आना है, सदा बेहद की प्राप्तियों में मगन रहना हैं। सब कुछ बाप पर न्यौछावर कर सदा योगयुक्त रह रूहानियत की खुशबू फैलानी है।*
➢➢ 83 जन्म देव आत्मायें वा साधारण आत्माओं द्वारा प्यार मिला, अभी ही परमात्म प्यार मिलता है। वह आत्म प्यार राज्य-भाग्य गँवाता है और *परमात्म प्यार राज्य-भाग्य दिलाता है। तो इस प्यार की अनुभूतियों में समाये हुए बाप की याद में रह इस संगम पर तीव्र पुरुषार्थ कर पुराने हिसाब किताब चुक्तु कर 21 जन्मो की बादशाही प्राप्त करनी है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अमृतवेले से लेकर रात तक हर कदम के लिए बापदादा द्वारा मर्यादाये मिली हुई हैं उसी प्रमाण चल पुरूषोत्तम बनना है।*
➢➢ *''स्मृति भव'' के वरदान को सदा अमृतवेले रिवाइज करना है।* हर कार्य करने के पहले इस वरदान के समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ निर्णय कर व्यर्थ है वा समर्थ है, फिर कर्म में आना।
➢➢ *आदिकाल, अमृतवेले अपने दिल में परमात्म प्यार को सम्पूर्ण रूप से धारण कर लो।* अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल होगा तो कभी और किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता। *ये परमात्म प्यार इस एक ब्राह्मण जन्म में ही प्राप्त होता है। ब्राह्मण जन्म वैल्युएबल है इसे व्यर्थ नही गवाना है।*
➢➢ *ज्ञानी तू आत्मा बन सृष्टि चक्र के आदि मध्य अंत का ज्ञान वा ड्रामा का राज बुद्धि में रख सदा राज़ी रहना है।*
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*कभी भी अपसेट नही होना है।* अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपसेट स्थिति
में नहीं आओ। बापदादा बच्चों से बहुत प्यार करते है इसलिए बापदादा भी कहते हैं
मेरे बच्चों में अब कोई भी कमी नहीं रहे, सब सम्पूर्ण, सम्पन्न और बाप समान बन
जायें।
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*परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। न्यारा
और बाप का प्यारा बन परमात्म-प्यार प्राप्त करना है।* जो जितना न्यारा है उतना
वह परमात्म प्यार का अधिकारी है।
➢➢ वर्तमान समय के प्रमाण स्वयं और सेवा दोनों की रफ्तार का बैलेन्स चाहिए।
हरेक को सोचना चाहिए जितनी सेवा ली है उतना रिटर्न देना है। अभी समय है सेवा
करने का। *जितना आगे बढ़ेंगे, सेवा के योग्य समय होता जायेगा लेकिन उस समय
परिस्थितियाँ भी अनेक होंगी। उन परिस्थितियों में सेवा करने के लिए अभी से ही
सेवा का अभ्यास चाहिए।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सदा भाग्यविधाता बाप और अपने श्रेष्ठ भाग्य दोनों ही याद रख, उमंग-उत्साह में रह मास्टर दाता बन सर्व आत्माओं को बाप का परिचय देने की सेवा करनी है।*
➢➢ *भाग्य विधाता बाप ने ब्रह्मा द्वारा भाग्य बांटा, जो ब्रह्मा का काम, वही हम ब्रह्ममुख वंशावली ब्राह्मणों का काम है।* दुनिया में लोग कपड़ा बांटेंगे, अनाज बाटेंगे, पानी बाटेंगे लेकिन श्रेष्ठ भाग्य तो भाग्य विधाता के बच्चे ही बाँट सकते है। *श्रेष्ठ भाग्य बाँटने की सेवा करनी है। जिसे भाग्य प्राप्त है उसे सब कुछ प्राप्त है।*
➢➢ *देह को देखते भी आत्मा को देखें। मैं भी हूँ ही आत्मा, यह भी है ही आत्मा। इस स्मृति की मर्यादा में रह स्वयं को सदा निर्विघ्न बना औरों को भी इस श्रेष्ठ स्मृति के समर्थ पन के वायब्रेशन फैलाने के निमित्त बन निर्विघ्न बनाने की सेवा करनी हैं।*
➢➢ *लौकिक घर को घर नहीं लेकिन सेवा स्थान समझ, होली हंस बन बगुलों के बीच में रह सेवा करनी है।* कर्म सम्बन्ध नहीं समझ के रहना लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्म सम्बन्ध चुक्तु करने नहीं बैठे हो लेकिन सेवा का सम्बन्ध निभाने के लिए बैठे हो। सदा स्मृति रहे कर्मबन्धन नहीं, सेवा का बन्धन है।
➢➢ *सदा के दानी
सारा समय अपना खजाना खुला रखते हैं।* एक घण्टा भी दान बन्द नहीं करते। ब्राह्मणों
का काम ही है सदा विद्या लेना और विद्या का दान करना। *तो इसी कार्य में सदा
तत्पर रहना है।*
➢➢ *हम है शिवशक्ति पाण्डव सेना। पाण्डव और शिवशक्तियों दोनों को सदा
उमंग-उत्साह में रह, हिम्मत अच्छी रखनी है, जहाँ हिम्मत है वहाँ बाप की मदद तो
है ही।* शक्तियों के बिना तो शिव भी नहीं है। शिव नहीं तो शक्तियाँ नहीं,
शक्तियाँ नहीं तो शिव भी नहीं। *बाप भी भुजाओं के बिना क्या कर सकता। सदा बाप
का राइट हैण्ड बन अपनी सहयोग की अंगुली ईश्वरीय कार्य में देनी है।*
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