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❍ 01 / 04 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ब्राह्मणों का संसार बेगमपुर है।* संगमयुगी ब्राह्मण संसार के अधिकारी आत्मायें अर्थात् बेगमपुर के बादशाह है। संकल्प में भी गम अर्थात् दु:ख की लहर न हो। *ब्राह्मणों के संसार वा ब्राह्मण जीवन में दु:ख का नाम निशान नहीं क्योंकि ब्राह्मणों के खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। अप्राप्ति दु:ख का कारण है, प्राप्ति सुख का साधन है।*
➢➢ *बाप के बने अर्थात बाप के सर्व खज़ानों के मालिक भी तो बन गये।* संसार बदल गया तो संस्कार भी बदल गये। स्वभाव बदल गया इसलिए सुखमय संसार के बन गये। *वैसे तो बेगर बन गये अर्थात् यह देह रूपी घर भी अपना नहीं। लेकिन स्वराज्य अधिकारी भी बन गये। इसको ही कहा जाता है बेगमपुर के बादशाह।* सभी राज्य कारोबारी आपके आर्डर में चल रहे हैं। कोई भी आप बादशाहों को धोखा तो नहीं देता।
➢➢ परमपिता परमात्मा शिव सुख का सागर है, जब सुख के सागर के बच्चे, बेगमपुर के बादशाह *सुख के संसार की बाउन्ड्री से बाहर चले जाते हैं तो दुखी हो जाते है। जब बाउन्ड्री के अन्दर हैं तो जंगल में भी मंगल है, त्याग में भी भाग्य है।* बिन कौड़ी होते बादशाह है। बेगरी जीवन में भी प्रिन्स की जीवन है।
➢➢ कुमारी जीवन वैसे भी भाग्यवान है और भी डबल भाग्यवान बन गई। अभी सर्व प्रैक्टिकल पेपर देंगी ना! वह कागज़ वाला पेपर नहीं। सदा शिव शक्ति हैं, कम्बाइन्ड हैं - यह स्मृति सदा रखना। *कुमारियों को कहाँ न कहाँ जाना तो होता ही है। अगर ऐसा श्रेष्ठ घर मिल जाए तो और क्या चाहिए। कुमारियाँ सोचती हैं अच्छा वर, भरपूर घर मिले। यह कितना भरपूर घर है जहाँ कोई अप्राप्ति नहीं।*
➢➢ *कुमारियाँ अर्थात शिव शक्तियॉ बापदादा की राइट हैण्ड है। यही याद रखना तो किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी।* विदाई (अंत) के समयः- सतगुरु की कृपा आपका वर्सा बन गया इसलिए कृपा करो, यह संकल्प करने की भी आवश्यकता नहीं। हो ही वृक्षपति के बच्चे। तो बृहस्पति की दशा, गुरू की कृपा सब स्वतः ही प्राप्त है। मांगने की आवश्यकता ही नहीं।
➢➢ *अपनी वृत्ति और दृष्टि को बदलना ही अलौकिक जीवन है, लौकिक सम्बन्धों में रहते हद के सम्बन्ध को न देख आत्मा को देखो। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान है, मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा को अपनी शुभ भावना से बदलना है, अपने संग का रंग उन्हें लगाना है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ सदा बाप समान आत्मायें बापदादा को अति प्यारी लगती हैं। बापदादा सदा समान बच्चों को साथी देखते हैं। विश्व की परिक्रमा लगाते तो भी साथ और बच्चों की रेख देख करने जाते तो भी साथ। *सदा साथ ही साथ है इसलिए समान आत्मायें हैं ही सदा के योगी। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन अर्थात स्वतः बाप की याद में रहने वाली आत्मये।*
➢➢ अनुभवी अर्थात् स्वराज्य की अथॉरिटी वाले। यह सब शीश महल में आपेही देखना है कि नामधारी हैं या कामधारी! *योग द्वारा अनुभविमूर्त बन बेगमपुर के बादशाह का सर्टीफिकेट लेना है।*
➢➢ *ज्ञान और योग बल द्वारा परमात्मा की श्रीमत पर चल विजय माला का मणका बनने का पुरुषार्थ करना है।* विशेष मणकों की विशेष माला स्वतः तैयार हो रही है। तैयार करनी नहीं पड़ती लेकिन हो रही है। वैसे अगर नम्बर निकालें या नम्बर दें तो क्वेश्चन उठेंगे लेकिन स्वत: ही नम्बरवार सेट होते जा रहे हैं।
➢➢ जहाँ कुमारियों का सगंठन है वहाँ सेवा में वृद्धि है ही। जहाँ शुद्ध आत्मायें हैं वहाँ सदा ही शुभ कार्य है। *एक बाप दूसरा न कोई... सदा बाप की याद में रह पुराने हिसाब किताब चुक्तु करने है।*
➢➢ सम्बन्ध में भी कोई एक सम्बन्ध की भी कमी होती है तो दु:ख की लहर आती है। *ब्राह्मण संसार में सर्व सम्बन्ध बाप के साथ अविनाशी हैं।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सदा एवररेडी रह श्रेष्ठ कर्म से विश्व पिता का नाम बाला कर विश्व कल्याणकारी बन विश्व की सर्व आत्माओ का कल्याण करना है।*
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*मधुबन छोटे से स्थान पर कोने में है लेकिन पहुँचते ही कहते हो कि सतयुगी
स्वर्ग से भी श्रेष्ठ संसार में पहुँच गये हैं।* तो जंगल में मंगल अनुभव करते
हो ना। सूखे पहाड़ों को हीरे जैसा श्रेष्ठ सुख का संसार अनुभव करते हो। संसार
ही बदल गया, ऐसा अनुभव करते हो ना। *ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें जहाँ भी हो दु:ख
के वायुमण्डल के बीच भी कमल फूल समान पवित्र बनकर रहना है।*
➢➢ *स्वराज्य अधिकारी बन अपने राज्य कारोबार की दरबार लगाओ,* राजाओं की तो
दरबार लगती है - चेक करो सभी दरबारी यथार्थ कार्य कर रहे हैं? खज़ानों से
भण्डारे भरपूर हैं? इस अलबेलेपन के नशे में चेकिंग करना भूल नही जाना है।
➢➢ जैसे सदा हर कदम में आगे-आगे बच्चे, पीछे-पीछे बाप। वैसे हर कार्य में सदा बच्चे आगे हैं और बाप सदा साथ का अनुभव कराते हैं। *सर्व को बाप समान आगे बढ़ाना है। दूसरों को आगे बढ़ाने में ही स्वयं आगे बढ़ना है।*
➢➢ कुमारी जीवन अर्थात् स्वतन्त्र जीवन,सदा यह स्मृति में रखो जैसा बाप वैसी मैं। बाप सेवाधारी है, मै आत्मा भी सेवाधारी हूँ। *सभी कुमारियाँ बाप की माला के मणके है किसी ओर के गले की माला तो नहीं बनेंगी। जो बाप के गले की माला बन गई वह दूसरों के गले की माला नहीं बन सकती।*
➢➢ *आपस में संस्कार मिलाने की सबजेक्ट में पास होना है। कोई खिटखट नहीं, कहाँ भी दृष्टि वृत्ति नहीं! जैसे नाम है बाल ब्रह्मचारिणी... वैसा ही पवित्र जीवन बनना है कि संकल्प में भी अपवित्रता न हो।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ परमपिता परमात्मा शिव भोला भण्डारी, सर्व गुणों वा अविनाशी खजाने(शक्तियों) के भंडारी है। *बाप को याद कर सर्व गुणों वा शक्तियो के भण्डारे से भरपूर हो सदा महादानी बन अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करते रहना है।*
➢➢ *जैसे बाप औरों को सकाश देते हैं वैसे ही बाप का सहयोगी बन सर्व आत्माओ को सकाश देने की सेवा करनी है।*
➢➢ कुमारों का ग्रुप अर्थात गॉडली यूथ ग्रुप। यूथ ग्रुप अर्थात् सदा शक्तिशाली सेवा करने वाले। *यूथ जो चाहे वह कर सकते हैं। लौकिक रीति से वह यूथ ग्रुप अशान्ति मचाने वाले और यह गोडली यूथ ग्रुप शान्ति फैलाने की सेवा के निमित्त है।*
➢➢ *स्थापना के
कार्य में बापदादा का सदा सहयोगी बनना है। कभी कोई भी कारण वा विघ्न आये तो
निवारण स्वरुप बन उसका निवारण करना है।*
➢➢ पक्के ब्रह्माकुमार बन कभी हलचल में नही आना है। ऐसे नहीं यहाँ नाम बाला हो
और फिर वहाँ पुरानी दुनिया में चले जाएं। *बहुत उमंग-उत्साह में रह सेवा में
सहयोगी बन, स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने की सेवा करनी है।*
➢➢ ब्रह्माकुमार अर्थात गाँडली यूथ ग्रुप, कुमारों को सदा याद और सेवा का बैलेंस बना सेवा के शक्तिशाली प्लैन बनाने है। ऐसा कोई कमाल का प्लैन बनाओ कि देखने वाले कहेंगे यह देवात्मा बनकर आ गये। *यूथ को देखकर गवर्मेन्ट भी घबराती है। गवर्मेन्ट को भी रास्ता दिखाने की सेवा कुमारो को ही करनी है। निमित्त आप लोग बनेंगे।*
➢➢ जैसे चन्द्रमा की चांदनी सबको प्रिय लगती है ऐसे ज्ञान की रोशनी देने वाली सेवाधारी कुमारी बनो। *ज्ञान चन्द्रमा समान बनो। जैसे स्वयं के भाग्य का सितारा चमका है, ऐसे ही सदा औरों के भाग्य का सितारा चमकाने की सेवा करनी है।*
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