━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 03 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ जो कोई कुछ करके जाते हैं तो उनके पीछे उनकी महिमा गाई जाती है। *जैसे शंकराचार्य अपने सन्यास धर्म को स्थापन करके गये हैं तो उनकी महिमा यहाँ ही अब जरूर होगी।* अन्य धर्मों में तो डिनायस्ट्री राजाओं की चलती है। *सन्यासियों में राजाओं की डिनायस्टी नहीं चलती।*
➢➢ *जैसे क्रिश्चियन की राजाई चलती है। धर्म भी है, राजाई भी है। वैसे यह (देवताओं का) धर्म भी है और राजाई भी है, जिसके चित्र भी बने हुए हैं।* इस पर कान्ट्रास्ट दिखाया जाए - वह शंकराचार्य, *यह है भगवान शिवाचार्य। यह ज्ञान का सागर है।* शिवबाबा आते ही तब हैं जबकि हठयोग का विनाश हो और राजयोग की स्थापना होनी है।
➢➢ *यह है भविष्य के लिए पढ़ाई और सब पढ़ाईयां होती हैं इस दुनिया, इस जन्म के लिए। तुम्हारी भविष्य के लिए पढ़ाई है।* यह बुद्धि में रहना चाहिए । अब तो जानते हैं हम यह बनेंगे। *वह तो समझाते हैं मैं आकर सबको ले जाता हूँ, इसमें डरने की तो कोई बात ही नहीं। तुम बच्चों को गुल-गुल बनना है श्रीमत पर।*
➢➢ *तुम सब आत्माओं को भी पुराना शरीर छुड़ाए वापिस ले जाऊंगा। ड्रामा
अनुसार तुमको जाना ही है।* तुमको अब ऐसे कर्म सिखलाता हैं, जो कर्म कूटना न
पड़े फिर तुम सबको ले जाता हैं। जब तक जीते हैं नई-नई युक्तियां समझाते
रहेंगे। *बाप के डायरेक्शन पर अमल होता है तो बाप को खुशी होती है।*
➢➢ *जानते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है।* हरेक को अपने को दुर्गति से सद्गति में लाना है अर्थात् सतयुग में जाने लिये पुरुषार्थ करना है। *तुम लक्की हो। बाप आकर बहुत सुख घनेरे देते हैं। यह ज्ञान भी बड़ा वन्डरफुल है ।* तुम्हारी राजाई भी वन्डरफुल है। तुम्हारी आत्मा भी वन्डरफुल है। *रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त का सारा नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है।*
➢➢ *बाप है रास्ता बताने वाला। ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड का काम है
। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 5,000 वर्ष लगते हैं।* बाप भी गरीब निवाज
कहलाते हैं। भारत इस समय सभी से गरीब है । *जो गोल्डन एज में थे वही आयरन
एज में आये हैं। बाप समझाते हैं भी तुम फिर से देवता बना रहे हो। निराकार
गाड तो एक ही है।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *जिसकी महिमा तुम बच्चे सुन रहे हो वह तुम्हारे सम्मुख बैठ तुमको राजयोग सिखा रहे हैं। तुम जानते हो हम अभी राजयोग सीख रहे हैं।* फिर ताज सहित राजाई करेंगे। जो योग में रह विकर्म विनाश करते हैं, वही इतना ऊंच पद पा सकते हैं।
➢➢ *हमको भगवान राजयोग सिखाते हैं, सिवाए उनके और कोई राजयोग से लक्ष्मी-नारायण बना नहीं सकता। तो चित्र देखने से खुशी का पारा चढ़ेगा।*
➢➢ *वह है हठयोग, यह है राजयोग।* वह गुरू लोग तो यह राजयोग सिखला न सके। हम बेहद के सन्यासी हैं। सन्यास का अर्थ ही है 5 विकारों का सन्यास।
➢➢ *बाप ने समझाया है ऐसी प्रैक्टिस करो, यहाँ सब कुछ देखते हुए, पार्ट बजाते हुए बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे।*
➢➢ *राजयोग सीख रहे हैं।* थोड़े ही समय में हम सतयुगी नई दुनिया में अथवा अमरपुरी में जायेंगे। *अपने जन्म-जन्मान्तर के पाप भी योगबल से भस्म कर रहे हैं। बाप यह सभी बातें समझाते फिर भी कहते हैं मन्मनाभव। बाप को याद करो।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *यह चित्र भी बच्चों को अपने पास रखना चाहिए।* जो बच्चे-समझते हैं हम भविष्य राजाई पद पायेंगे। *हर एक जो भी ब्राह्मण कुल भूषण हैं और जिनको निश्चय है।* निश्चय तो सभी को होता ही है।
➢➢ *घर में भी अपना राजयोग और राजाई का चित्र देख नशा चढ़ेगा।* तुमको
देवताओं के चित्र को हाथ जोड़ने की दरकार नहीं है। तुम तो स्वयं वह बनते
हो। तो *सामने चित्र देख खुशी का पारा चढ़ेगा और दिल दर्पण में अपना मुंह
भी देखेंगे, हम ऐसे श्री नारायण को व श्री लक्ष्मी को वरने के लायक हैं?*
नहीं होंगे तो शर्म आयेगी।
➢➢ देलवाड़ा मन्दिर भी कितना अच्छा यादगार बना हुआ है, नीचे तपस्या के
चित्र ऊपर में वैकुण्ठ बनाया है। *तो यह चित्र बनाकर अपने दफ्तर में भी रख
सकते हो, जिससे यह स्मृति आयेगी।*
➢➢ *मनमनाभव और स्वदर्शन चक्र की भी स्मृति आयेगी।* शिवबाबा हमको यह पढ़ाते
हैं फिर हम यह राजा रानी बनेंगे। *आपेही चित्र बनाए अपने को सावधान करते रहो।
तुम्हें फिर दैवीगुण भी धारण करने है।* बहुत स्वीट
टेम्पर (मिजाज़) होना चाहिए।
➢➢ *अभी तुम बदल रहे हो। आसुरी मनुष्य से बदल दैवी मनुष्य बन रहे हो।* बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। देवताओं में दैवीगुण होते हैं। वह भी हैं मनुष्य, परन्तु उनमें दैवीगुण हैं। तुम जानते हो यह आसुरी रावणराज्य फिर नहीं रहेगा। *अभी हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं। जो जैसा पुरुषार्थ करेगा ऐसा भाग्य बनायेंगे।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *ड्रामा की टिक टिक तो चलती रहती है। इस ड्रामा की टिक टिक को तुम जानते हो। आगे चलकर मनुष्य भी अच्छी रीत समझते जायेंगे।*
➢➢ उन्हों का पुनर्जन्म यहाँ ही होता है। *इन बातों पर विचार सागर मंथन कर
तुम बहुत काम वा सर्विस कर सकते हो।* परन्तु विरला कोई ऐसा पुरुषार्थ करते
हैं। *माया सर्विस में बहुत सुस्त बनाती है, बहुत धोखा देती है।*
➢➢ *सन्यास धर्म का भी चित्र बनाए लिख देना चाहिए - शंकराचार्य द्वारा
स्थापन किया हुआ हठयोग, कर्म सन्यास कब शुरू हुआ, कब पूरा होने वाला है।
ऐसीऐसी बातों पर विचार सागर मंथन कर फिर एक्ट में आना चाहिए।* कान्ट्रास्ट
दिखाना है। वह शंकराचार्य की स्थापना, यह भगवान शिवाचार्य की स्थापना।
➢➢ *ऐसे युक्ति से चित्र बनाने चाहिए।* वह हठयोग द्वापर से कलियुग अन्त तक
चलता है। *फिर लिखना है - वह है हठयोग, उसमें घरबार छोड़ना पड़ता है, इसमें
सारी पुरानी सृष्टि का सन्यास करना पड़ता है।* तुम तिथि-तारीख सभी जान सकते
हो।
➢➢ *मित्र सम्बन्धियों आदि को चित्र पर समझाने से वह बहुत खुश होंगे। उन
पर भी रहम करना है। अपना काम है हर एक को समझाना।* जगदम्बा नर से नारायण
बनाने का कर्तव्य करती है। तुम भी करते हो ना । तुम्हारा यादगार मन्दिर भी
है। तुम चैतन्य यहाँ बैठे हो। *समझानी ऐसी क्लीयर हो जो मनुष्य समझें ।*
➢➢ *चित्र से अपनी भी सर्विस होगी, दूसरे को भी समझाने की सर्विस होगी।*
ऐसे बच्चों पर बाप भी राज़ी रहेगा। *तुम बहुत अच्छी रीति किसको समझा सकेंगे।
हम ऐसे बनते हैं, समझाने में बड़ी अच्छी चतुराई चाहिए,* बाप भी चतुर है ना।
➢➢ *कहा जाता है अभी सर्विस करो। ईश्वरीय सर्विस करनी है तो सेन्टर खोलो, मेहनत भी करो। बलिहारी एक की है, दूसरों. को समझाने की तुम कितनी मेहनत करते हो। कितने चित्र बनाते हो।*
────────────────────────