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❍ 28 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह कलियुग नर्क बदल स्वर्ग होगा। हेविन की स्थापना हेल का विनाश तो गाया हुआ है। भगवान स्वयं बैठ राजयोग सिखाते हैं। *कोई भी मनुष्य चाहे हेल का, चाहे हेविन का हो, राजयोग सिखला न सके*। बच्चे जानते हैं हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण ही स्वदर्शन चक्रधारी हैं।
➢➢ *स्वदर्शन चक्र निशानी है फाइनल की। आज तुम स्वदर्शन चक्र फिराते हो, कल माया से हार खाकर गिर पड़ते हो तो तुमको अलंकार कैसे दे सकते? स्वदर्शन चक्र तो स्थाई चाहिए, इसलिए विष्णु को दिखाते हैं।* यह बहुत गुह्य बातें हैं।
➢➢ *वास्तव में कृष्ण स्वदर्शन चक्रधारी है नहीं। स्वदर्शन चक्रधारी तो ब्राह्मण कुल भूषण हैं, जिनको परमपिता परमात्मा स्वदर्शन चक्रधारी अथवा त्रिकालदर्शी बनाते हैं*। वही जब देवता बनते हैं तो उन्हों को त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ नहीं कह सकते क्योंकि अभी तो हम स्वर्ग की सीढ़ी ऊपर चढ़ते हैं सतयुग से तो सीढी नीचे उतरनी होती है। वहाँ यह ज्ञान होता नहीं।
➢➢ यह भारत अविनाशी खण्ड है। फिर सतयुग में एक ही सूर्यवंशी राजधानी स्थापन होगी। कलियुग विनाश हो सतयुग स्थापन होने में बीच का थोड़ा सा यह टाइम मिलता है, इसमें थोड़े रह जाते हैं जो नयेसिर अपनी राजधानी बनाते हैं। *पुरुषार्थ का यही थोड़ा समय है, इसको कल्याणकारी युग कहा जाता है। दूसरे संगम को कल्याणकारी नहीं कहेंगे क्योंकि नीचे उतरते जाते हैं।*
➢➢ *गरीब ही अपना कल्याण करते हैं। साहूकार मुश्किल ही करते हैं। सन्यासी भी जो नामीग्रामी हैं वह अन्त में आयेंगे।* अब बहुत करके गरीब साधारण ही ज्ञान लेते हैं। *बाप भी साधारण तन में आता है, गरीब में नहीं। अगर यह भी गरीब होता तो कुछ कर नहीं सकता। गरीब इतनों की सम्भाल कैसे करते! तो युक्ति देखो कैसी रखी है*।
➢➢ *अब स्वयं गीता का भगवान अपना वचन पालन करने के लिये आया है* और कहते हैं बच्चे, जब भारत पर अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं इसी समय अपना अन्जाम पालन करने (वायदा निभाने) के लिये अवश्य आता हूँ, अब मेरे आने का यह मतलब नहीं कि मैं कोई युगे युगे आता हूँ।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह जीवन बड़ा दुर्लभ है इसलिए कभी यह ख्याल नहीं आना चाहिए कि जल्दी मरें तो छूटें। *तुम्हें तो बाप की याद से मायाजीत बनना है*। बाप का बुद्धियोग सभी बच्चों की तरफ जाता है। चक्रधारी अथवा राजऋषि बच्चे हैं उन बच्चों को यह भी स्मृति में रहना चाहिए कि हम राजऋषि हैं। राजाई के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं, जिस राज्य में देखो तो सदैव सुख के दिन व्यतीत होते हैं।
➢➢ हम बाप से राजयोग सीख सदा सुख का वर्सा ले रहे हैं अथवा नर से नारायण बन रहे हैं। सो तो सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई बना न सके। *परमपिता परमात्मा जब कहा जाता है तो किसी साकार वा आकार की तरफ बुद्धि नहीं जाती, निराकार बाप को ही याद करते हैं*।
➢➢ *बाप कहते हैं बच्चे योग में रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बाकी थोड़ा समय है।* तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि विनाश जल्दी हो तो हम स्वर्ग में जाएं क्योंकि यह जीवन बड़ी दुर्लभ है*| ऐसे नहीं कि अभी शरीर छोड़ फिर नया शरीर लेकर पढ़ाई पढ़ सकेंगे। बाल अवस्था में ही होगा तो विनाश आरम्भ हो जायेगा। बालिग भी नहीं बन सकेगा क्योंकि इसमें छोटे-बड़े सबका विनाश होने वाला है। I
➢➢ जब समय आयेगा तो न चाहते भी सबको जाना पड़ेगा क्योंकि बाप सबको रूहानी यात्रा पर ले जायेगा। ऐसे नहीं सिर्फ 10-20 लाख को ले जायेगा। जैसे कुम्भ के मेले पर 10-15 लाख जाते हैं। *यह तो आत्मा परमात्मा का मेला है। बाप स्वयं पण्डा बनकर लेने आये हैं, इनके पिछाड़ी तो अनगिनत आत्मायें जायेंगी*।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सदा अपने को राजऋषि समझकर चलो* तो दिन सुख से बीतेंगे, माया के घुटके से बचे रहेंगे।
➢➢ आगे हम भी कुछ नहीं जानते थे, अन्धश्रद्धा से सबकी पूजा करते थे। अब तो हर प्रकार की श्रीमत मिलती है। धन्धा भी वही करते हैं जो कोई बिरला व्यापारी करे। जैसे हुनर सीखना होता है। *यह है मनुष्य को देवता बनाने का हुनर। इस पर ध्यान देना हैं। बाप ने जो मनुष्य को देवता बनाने का हुनर सिखाया है, उसमें ही लगना है।*
➢➢ *श्रीमत पर चलने में गफलत वा बहाना नहीं करना है। कर्मबन्धनों से छूटने के लिए याद में रहना है*।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *कल्प में चार युग हैं, इसको ही कल्प कहते हैं। आधाकल्प सतयुग त्रेता में सतोगुण सतोप्रधान है, वहाँ परमात्मा के आने की कोई जरूरत नहीं| और फिर तीसरा द्वापर युग से तो फिर दूसरे धर्मों की शुरूआत है, उस समय भी अति धर्म ग्लानि नहीं है इससे सिद्ध है कि परमात्मा तीनों युगों में तो आता ही नहीं है, बाकी रहा कलियुग, उसके अन्त में अति धर्म ग्लानि होती है। उसी समय परमात्मा आए अध विनाश कर सत् धर्म की स्थापना करता है।*
➢➢ *जहाँ भी विष्णु का मन्दिर हो वा कोई भी स्वदर्शन चक्रधारी का मन्दिर हो वहाँ जाकर तुम समझा सकते हो।* कृष्ण को भी स्वदर्शन चक्र देते हैं। राधे कृष्ण युगल के चित्र में स्वदर्शन चक्र नहीं देते हैं। वास्तव में कृष्ण स्वदर्शन चक्रधारी है नहीं|
➢➢ *तुमसे कोई पूछे तुम्हारी एम आब्जेक्ट क्या है, तो यह कार्ड हाथ में दे दो। उससे सब समझ जायेंगे कि यह किस धन्धे में लगे हुए हैं।* यह तो बड़े व्यापारी हैं। *हर एक की रग देखनी है। सबसे अच्छा है चक्र पर समझाना*| कैसा भी आदमी हो, चक्र को देख समझ जायेंगे कि बरोबर यह कलियुग है अब सतयुग आने वाला है। क्रिश्चियन को भी समझा सकते हो यह हेल है, अब हेविन स्थापन होने वाला है।
➢➢ *तुमको भी सबको समझाना है।* घर-घर में शिव का और लक्ष्मी-नारायण का चित्र जरूर रखना है। *नौकरों को मिस्त्रियों को भी समझाना है कि मौत सामने खड़ा है। बाप को याद करो तो | बाप हैं है ही कल्याणकारी तो बच्चों को भी ऐसा कल्याणकारी बनना है*|
➢➢ *बाबा तो कहते हैं शमशान में जाकर समझाओ। कहो अभी तो कलियुग है। अगर स्वर्ग में पुनर्जन्म लेने चाहते हो तो आकरे समझो*। हम भी पुरुषार्थ कर रहे हैं, जो फिर नर्क रहेगा ही नहीं। स्वर्ग में चलना है? वहाँ विष नहीं मिलेगा।
➢➢ *अब कोई कहे परमात्मा खुद तो निराकार है वो तकदीर को कैसे बनायेगा ! इस पर समझाया जाता है, निराकार परमात्मा कैसे अपने साकार ब्रह्मा तन द्वारा, अविनाशी नॉलेज द्वारा हमारी बिगड़ी हुई तकदीर को बनाते हैं। अब यह नॉलेज देना परमात्मा का काम है, बाकी मनुष्य आत्मायें एक दो की तकदीर को नहीं जगा सकती हैं*।
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