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❍ 15 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *प्रीतम खुद आकर अपने भक्तों को, अपने बच्चों को बताते हैं कि मैं आता ही हूँ सिर्फ संगमयुग पर एक बार। मेरा आना और जाना उसका जो बीच है उसको संगम कहा जाता है। और सभी आत्मायें तो बहुत बारी जन्म-मरण में आती हैं, मैं एक ही बार आता हूँ। मैं सतगुरू भी एक ही हूँ।*
➢➢ *मैं भारत में ही आता हूँ। भारत में ही स्वर्ग होता है। बच्चे कर्मातीत अवस्था को पायेंगे तो ज्ञान खत्म हो जायेगा। लड़ाई आरम्भ हो जायेगी।* मैं भी अपना पावन बनाने का पार्ट पूरा करके जाऊंगा। *देवी-देवता धर्म स्थापन करना - यह मेरा ही पार्ट है।*
➢➢ इस संगमयुग की महिमा बड़ी भारी जबरदस्त है। *बाप आते ही हैं रावण राज्य का विनाश कर रामराज्य की स्थापना करने।* शास्त्रों में दन्त कथायें बहुत लिख दी हैं। रावण को जलाते आते हैं। *सारी सृष्टि इस समय जैसे लंका है। सिर्फ सीलान को लंका नहीं कहा जाता।*
➢➢ आत्मा 84 जन्म लेती है। हर जन्म में नाम रूप देश काल सब बदल जाता है। *ड्रामा में कोई को भी जो एक बारी पार्ट मिला हुआ है, उसी रूप में फिर कभी पार्ट बजा न सके। वही पार्ट फिर 5 हजार वर्ष के बाद बजायेगी।*
➢➢ यह तो जानते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है तो फीचर आदि एक न मिले दूसरे से। *5 तत्वों के अनुसार फीचर्स बदलते जाते हैं। कितने फीचर्स हैं। परन्तु यह सब पहले से ही ड्रामा में नूँध है। नया कुछ नहीं बनता है।*
➢➢ बच्चे जानते हैं इस पढ़ाई अनुसार जाकर सूर्यवंशी देवता वा चन्द्रवंशी क्षत्रिय बनेंगे। *वास्तव में सभी भारतवासियों का धर्म एक होना चाहिए। परन्तु देवता धर्म नाम बदल हिन्दू नाम रख दिया है क्योंकि वह दैवी गुण नहीं हैं।*
➢➢ *यह संगमयुग बहुत छोटा है। सभी धर्मों का विनाश होगा। ब्राह्मण कुल भी वापिस जायेगा क्योंकि उन्हों को फिर दैवी कुल में ट्रान्सफर होना है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बहुतों के नाम बदली हुए, उनसे बहुत भागन्ती हो गये। साथ में रीप्लेस भी होते हैं। बाकी देखा गया नाम से कोई फायदा नहीं। वह तो भूल भी जाते हैं। *वास्तव में तुमको योग लगाना है बाप से।*
➢➢ लक्ष्मी-नारायण वा राधे कृष्ण वा ब्रह्मा विष्णु आदि कोई प्रीतम नहीं हैं। गॉड फादर ही प्रीतम है। बाप तो जरूर वर्सा देते हैं, इसलिए बाप प्यारा लगता है। *बाप कहते हैं मुझे याद करो क्योंकि मेरे से तुमको वर्सा पाना है।*
➢➢ *सभी भक्तों का प्रीतम एक है, जिसको ही याद किया जाता है।* उनको प्रीतम कहा जाता है। याद करते हैं, जब दु:ख होता है।
➢➢ *अपना योग का चार्ट देखना चाहिए क्योंकि माया बहुत विघ्न डालती है।*
बाबा बच्चों को बार-बार समझाते हैं मीठे बच्चे, भूले-चूके भी ऐसे मोस्ट बिलवेड बाप वा साजन को फारकती शल (कभी) कोई न देवे, इतना महामूर्ख कोई न बने। परन्तु माया बना देती है।
➢➢ *मोस्ट बिलवेड बाबा हमको सदा सुखी मनुष्य से देवता बनाते हैं, तो उनकी याद बहुत रहनी चाहिए।* परन्तु माया याद को ठहरने नहीं देती।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *त्याग भी पूरा चाहिए। यह सब कुछ बाबा का है, यह अवस्था फर्स्टक्लास रहनी चाहिए।*
➢➢ *अब बाप बैठ धारण कराते हैं। कहते हैं अपने को आत्मा समझ अशरीरी हो जाओ।* तुम कोई परमात्मा नहीं हो। परमात्मा तो एक शिव है। वह सभी का प्रीतम एक ही बार संगमयुग पर आते हैं।
➢➢ यह मुरली तो सब बच्चों के पास जायेगी। टेप में भी सुनेंगे। कहेंगे शिवबाबा ब्रह्मा तन से मुरली सुना रहे हैं अथवा बच्चियां सुनायेंगी तो कहेंगी *शिवबाबा की मुरली सुनाते हैं तो बुद्धि एकदम वहाँ जानी चाहिए। वह सुख अन्दर में भासना चाहिए।*
➢➢ *अभी पुरुषार्थ अच्छी तरह करना है। ऊंच पद अथवा अच्छा नम्बर लेना है तो मेहनत भी करनी है।* भल धन्धा आदि भी करो वह टाइम छूट है। फिर भी टाइम बहुत मिलता है।
➢➢ *अब आगे चलकर तुम देखेंगे जो कुर्बान जाते थे, बहुत अच्छी सर्विस करते थे उन्हों का भी माया क्या-क्या हाल कर देती है क्योंकि श्रीमत छोड़ देते हैं इसलिए बाबा कहते हैं ऐसा बड़े ते बड़ा महामूर्ख नहीं बनना।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सच्चा बाप, सच्चा शिक्षक खुद आकर बताते हैं कि मैं संगमयुग पर आता हूँ। मेरी आयु इतनी ही है, जितना समय मैं आता हूँ। पतितों को पावन बनाकर ही जाता हूँ। जब से मेरा जन्म हुआ, तब से मैं सहज राजयोग सिखाना आरम्भ करता हूँ फिर जब सिखाकर पूरा करता हूँ तो पतित दुनिया विनाश को पाती है, और मैं चला जाता हूँ।* बस मैं इतना ही समय आता हूँ।
➢➢ *यह तो मनुष्य को देवता बनाने की पाठशाला है। आत्मा में जो खाद पड़ी है, एकदम मुलम्मा बन गई है, उसको बाप आकर हीरे जैसा बनाते हैं।*
➢➢ *यह सारी सृष्टि रावण के रहने का स्थान है वा शोकवाटिका है। सभी दु:खी हैं। बाप कहते हैं मैं इसको अशोकवाटिका अथवा हेविन बनाने आता हूँ।*
➢➢ *बाप नॉलेजफुल है तो जरूर उसने बच्चों को नॉलेज दी है तब तो उनका गायन है - तुम्हरी गत मत तुम ही जानो।
बाप कहते हैं मेरे पास जो सुख-शान्ति का खजाना है वह बच्चों को ही आकर देता हूँ।*
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