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❍ 27 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ रूहानी बाप रूहानी बच्चों को टॉपिक पर समझाते हैं - *ज्ञान, भक्ति पीछे है वैराग्य।* यह तो जानते हो ज्ञान दिन को कहा जाता है जबकि नई दुनिया है। वहाँ भक्ति होती नहीं। वह है हद की दुनिया, वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं, फिर धीरे-धीरे वृद्धि को पाते हैं। *आधाकल्प के बाद भक्ति शुरू होती है*।
➢➢ सन्यास वा त्याग वहाँ होता नहीं, यह सब बातें बुद्धि में रहनी चाहिए। धीरे-धीरे सृष्टि की वृद्धि होती जाती है। जीव आत्माओं की वृद्धि होती है। *आत्मायें परमधाम से आती रहती हैं। हद से शुरू होता है, इस समय बेहद में है। तो बाप हद बेहद से पार है।* हृद में कितने थोड़े बच्चे हैं फिर सृष्टि वृद्धि को पाती है। *अब इनसे भी पार जाना है।*
➢➢ *हद बेहद से पार का राज़ बाप तुमको समझाते हैं।* पहले-पहले नई दुनिया में हुद है। बहुत थोड़े रहते हैं। तुमको रचना के आदि मध्य अन्त की नॉलेज होनी चाहिए। *यह नॉलेज कोई को नहीं है। बाप को ही नहीं जानते। यह सब राज़ समझाने वाला बाप ही है जो हद बेहद से पार है।*
➢➢ *यह जो आकाश का तत्व है, इस मुख से, पोलार से वाणी निकलती है, इसको कहा जाता है आकाशवाणी।* वाणी मुख से (पोलार से) निकलती है। *वाणी कोई नाक कान से नहीं निकलेगी।* तो बाप भी इस शरीर में बैठ इस मुख से तुम बच्चों को समझाते हैं।
➢➢ *तुम बच्चे ही जानते हो बाप क्या है। जैसे हम आत्मा हैं वैसे बाबा भी ऊंचे ते ऊंची आत्मा है। सबको नम्बरवार पार्ट मिला हुआ है। ऊंचे ते ऊंचा बाप फिर नीचे आओ, नम्बरवार खेल में सब आते हैं।* नई दुनिया में पहले-पहले हैं लक्ष्मी-नारायण, फिर उनके साथ जो नई दुनिया में रहते हैं, माला को देखो। ऊपर में फूल ऊंचे ते ऊंचा भगवान फिर है मेरू युगल। फिर माला देखो कैसे बढ़ती है।
➢➢ *यह सृष्टि रूपी।कल्प वृक्ष है,इनकी आयु भी एक्यूरेट है,इसमें एक सेकेण्ड का भी फर्क नहीं पड़ सकता है।* तुमको कितनी नॉलेज मिली है, इसमें मजबूत वह रह सकते हैं जो पवित्र बनते हैं। नहीं तो नॉलेज धारण हो न सके।
➢➢ *तुम जानते हो बहुत ताकत वाला तो एक बाप है, वही सर्वशक्तिमान है। हमको ऊंच पढ़ाए एकदम विश्व का मालिक बना देते हैं। कोई अप्राप्त वस्तु नहीं जिसके लिए: पुरुषार्थ करना पड़े।* ऐसी कोई चीज़ है ही नहीं जो तुम्हारे पास न हो।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ हद बेहद से पार... वहाँ कुछ भी नहीं है। *तुम बच्चों के रहने का स्थान है वह ब्रह्माण्ड, ब्रह्म महतत्व। जैसे आकाश तत्व में यहाँ बैठे हो, कुछ भी देखने में नहीं आता है। पोलार ही पोलार है*। रेडियो में कहते हैं आकाशवाणी। अब आकाश तो बहुत बड़ा है, उसका अन्त तो पा नहीं सकते।
➢➢ बाप नॉलेजफुल बिगर यह नॉलेज कोई दे न सके। *यह बच्चों को धारण करना बहुत सहज है, कोई मुश्किल नहीं परन्तु याद की यात्रा है मुख्य।* सोने के बर्तन में रत्न ठहर सकेंगे। ऊंचे ते ऊंचे रत्न हैं।
➢➢ *जितना बाबा की याद में रहेंगे तो माया के तूफान खत्म होते जायेंगे।* हातमताई का खेल दिखाते हैं। मुहलरा डालते थे तो माया भाग जाती थी। *मुहलरा निकाला तो माया आ गई।*
➢➢ *बाप बच्चों को मुख्य बात कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।* यह बात तुम ही जान सकते हो। भल वह कहते हैं गॉड फादर है, हम सभी ब्रदर्स हैं।
➢➢ बाप को भी जरूर याद करना पड़े और पूरा-पूरा याद करना है ताकि पाप कट जाएं। *बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पावन बनेंगे, इनको कहा जाता है योग अग्नि।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ अच्छी चीज़, अच्छे बर्तन में ही शोभती है। • *तुम्हारे यह कान हैं बर्तन, इन द्वारा तुम सुनते हो। धारण करते हो तो यह सोने का (पवित्र) चाहिए अर्थात् बुद्धियोग बाबा से पूरा होना चाहिए।* बुद्धियोग ठीक नहीं होगा तो कोई बात ठहरेगी नहीं।
➢➢ *गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। हथकार डे दिल शिव बाबा को दे..* चलते-चलते कई बच्चे टूट भी पड़ते हैं। नापास हो पड़ते हैं। तुमको सब मालूम पड़ जायेगा।
➢➢ बाबा एम आब्जेक्ट बता देते हैं। *पुरुषार्थ करना बच्चों का काम है तब ही ऊंच पद पायेंगे। कोई भी उल्टा सुल्टा संकल्प नहीं उठना चाहिए।*
➢➢ *बाप समझाते हैं बच्चे अपने को आत्मा भाई-भाई समझो।* शरीर ही नहीं तो फिर दृष्टि कहाँ जायेगी। इतनी मेहनत करनी है। कल्प-कल्प तुम्हारा ही पुरुषार्थ चलता है। पुरुषार्थ से तुम अपना भाग्य बनाते हो।
➢➢ पहले-पहले है अशरीरी फिर शरीरी बनते हैं। पहले हम बाबा के साथ रहते फिर पार्ट बजाने के लिए लौकिक देहधारी बाप के पास आते हैं। यह सब हैं रूहानी बातें। *उस लौकिक जिस्मानी पढ़ाई को भूल जाना है। चक्र सारा बुद्धि में है। अभी है संगमयुग, हमको अब नई दुनिया में जाना है*। पुरानी दुनिया खत्म होनी है। *अब नई दुनिया मे जाने के लिए दैवी गुण भी जरूर धारण करना पड़े, पावनं बनना पड़े।*
➢➢ *पवित्रता की ही मुख्य बात आती है।* पवित्र दुनिया में कितना सुख है, पतित दुनिया में कितना दुःख है। आधाकल्प सुखधाम, आधाकल्प दुःखधाम यह राज़ भी तुम्हारी बुद्धि में ही है, दूसरा कोई नहीं जानते।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बुद्धि को सब तरफ से निकाल मेरे साथ लगाते-लगाते बर्तन सोना हो जायेगा, *दूसरों को भी दान देते रहो। भारत महादानी है, भारत में धन आदि बहुत दान करते हैं। यह फिर है अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान, जो बाप बच्चों को देते हैं*।
➢➢ *मनुष्य कोई भी रचता और रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ नहीं समझते हैं। बाप ही समझाते हैं।* कहते हैं मैं हद को भी देख रहा हूँ, बेहद में भी जाता हूँ। *इतने सभी धर्म हैं, ऐसे-ऐसे स्थापना होती है। वह सतयुग है हद की सृष्टि फिर कलियुग में है बेहद। फिर हद बेहद से पार जहाँ हमारा शान्तिधाम है, स्वीट होम है।* सतयुग भी है स्वीट होम। वहाँ शान्ति भी है तो राज्य भाग्य भी है। वहाँ सुख और शान्ति दोनों ही हैं।
➢➢ *यह है बेहद का ड्रामा।* अब कहा जाता है हद बेहद से पार, बहुत दूर-दूर जाते हैं। मनुष्यों को तो खेल का कुछ भी पता नहीं कि सबसे बड़ा कौन? *ऊंचे ते ऊंचा है भगवान, तब कहते हैं तुम्हरी गत मत तुम ही जानो।*
➢➢ *बाप एक ही बार बाप टीचर सतगुरू बनते हैं। पार्ट बजाते हैं फिर 5 हजार वर्ष बाद वही पार्ट ।* प्रलय तो होती नहीं। तो पहले है बाप, ऊंचे ते ऊंचा शिव फिर मेरू ऊंचे ते ऊंचा महाराजा महारानी। फिर अन्त में जाकर आदि देव, आदि देवी बनेंगे। सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है, परन्तु नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। यह नॉलेज तुम किसको भी सुनाओ तो वन्डर खायेंगे।
➢➢ *यूँ तो अनादि क्रियेशन है फिर भी समझाने वाला एक है, उनमें सारा ज्ञान है। है अनादि बना हुआ ड्रामा, कोई बनाता नहीं है।* वह हद का ड्रामा शूट करना सहज होता है। यह तो बड़ा बेहद का ड्रामा है। यह अनादि शूट किया हुआ है, बना बनाया है। इस ड्रामा में जरा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। *बेहद ड्रामा का चक्र चलता रहता है। हम तमोप्रधान से सतप्रधान फिर सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हैं।*
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