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❍ 12 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बच्चों को कहा
जाता है ले लो, ले लो दुआयें माँ बाप की... अर्थात् श्रीमत पर चलो। अपनी
चाल-चलन अच्छी हो तो अपने पर आपही दुआयें हो जायेंगी।*
➢➢ *यह कल्प-कल्प
की रेस है। अभी अगर घाटा पड़ा तो कल्प-कल्प पड़ता ही रहेगा। कृष्ण भगवानुवाच
समझो, तो वह भी नम्बरवन है। उनकी बात भी माननी चाहिए तब तो स्वर्ग के मालिक
बनेंगे।*
➢➢ *तुम मात-पिता
हम बालक तेरे... तुम्हारी कृपा वा दुआ से सुख घनेरे। भारत में ही यह महिमा गाई
जाती है। जरूर भारत में ही यह हुआ है तब तो गाया जाता है।*
➢➢ *गाते हैं तुम
मात पिता... परन्तु समझते नहीं हैं कि कौन से माता पिता की महिमा है। यह तो
बहुतों की बात है ना। ईश्वर की सन्तान तो सभी हैं, परन्तु इस समय तो सभी दु:खी
हैं।*
➢➢ *गाते हैं कि
दु:ख में सिमरण सब करें सुख में करे न कोई। आधाकल्प दु:ख है तो सभी सिमरण करते
हैं। सतयुग में अथाह सुख हैं, तो वहाँ सिमरण नहीं करते हैं।* मनुष्य पत्थरबुद्धि
होने कारण कुछ भी समझते नहीं हैं।
➢➢ बुद्धिवान होगा
तो पूछेगा कि *परमात्मा को तो गॉड फादर कहा जाता है,* उनको फिर मदर कैसे कहते
हैं? तो उनकी बुद्धि जगत अम्बा के तरफ जायेगी। *जब जगत अम्बा की तरफ बुद्धि जाती
है तो फिर जगत पिता के तरफ भी बुद्धि जानी चाहिए। अब ब्रह्मा सरस्वती यह कोई
भगवान तो नहीं हैं। यह महिमा उनकी हो नहीं सकती।* उनके आगे भी माता-पिता कहना
राँग है। मनुष्य गाते तो परमपिता परमात्मा के लिए हैं, परन्तु जानते नहीं हैं
कि वह मात-पिता कैसे बनते हैं।
➢➢ *सुख घनेरे तो
किसको नहीं हैं। कृपा से तो सुख मिलना चाहिए। अकृपा से दु:ख होता है।* बाप तो
कृपालु गाया हुआ है। साधू सन्तों को भी कृपालु कहते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो
भक्ति मार्ग में गाते हैं तुम मात पिता... यह बिल्कुल यथार्थ है। *यह बड़ी
गुह्य बात है जो एक को ही माता पिता कहते हैं। यह ब्रह्मा बाप भी है तो बड़ी
माँ भी है।* अब यह बाबा किसको माँ कहे? यह माता (ब्रह्मा) अब किसको माँ कहे? इस
माँ की तो माँ कोई हो नहीं सकती। जैसे शिवबाबा का कोई बाप नहीं, ऐसे इन्हें अपनी
कोई माँ नहीं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अगर चलन अच्छी
नहीं होगी, किसको दु:ख देते रहेंगे, मात-पिता को याद नहीं करेंगे अथवा दूसरों
को याद नहीं करायेंगे तो दुआयें मिल नहीं सकती।* फिर इतना सुख भी नहीं पा सकेंगे।
बाप की दिल पर चढ़ नहीं सकेगे। इस बाप की (ब्रह्मा की) दिल पर चढ़े तो गोया
शिवबाबा की दिल पर चढ़े। यह गायन है ही उस मात-पिता का।
➢➢ *एकदम बेहद में
चला जाना चाहिए। बुद्धि कहती है स्वर्ग का रचयिता बाप एक ही है। स्वर्ग में तो
सभी सुख हैं। वहाँ दु:ख का नाम-निशान हो नहीं सकता।*
➢➢ *कृष्ण तो बच्चा
था। वह कैसे मत देंगे। जब बड़ा होकर गद्दी पर बैठेगा तब वह मत देगा।* मत देने
के लायक बनेंगे तब तो राज्य चलायेंगे ना। अब *शिवबाबा तो कहते हैं मुझे निराकारी
दुनिया में याद करो। कृष्ण फिर कहेगा कि मुझे स्वर्ग में याद करो।*
➢➢ सतयुग में प्रजा
बहुत सुखी रहती है। अपने महल, गायें, बैल आदि सब कुछ होते हैं। अच्छा - बच्चे,
खुश रहो आबाद रहो, *न बिसरो न याद रहो क्योंकि याद तो शिवबाबा को करना है। अपने
शरीर को भी भूल जाना है तो औरों को कैसे याद करें।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢
यह माता भी है तो ब्रह्मा बाबा भी है। *लिखते हैं शिवबाबा केयरआफ ब्रह्मा। तो
माता भी हो जाती है तो पिता भी हो जाता। अब बच्चों को इस पिता की दिल पर चढ़ना
है।* क्योंकि इनमें ही शिवबाबा प्रवेश होते हैं। यह जब गैरन्टी देते हैं कि हाँ
बाबा यह बच्चा बहुत अच्छा सर्विसएबुल है, सभी को सुख देने वाला है।
मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दु:ख नहीं देता है तब ही शिवबाबा की दिल पर चढ़ सकता
है।
➢➢
*मन्सा-वाचा-कर्मणा से जो करो, जो बोलो उससे सबको सुख मिले। दु:ख किसको नहीं
देना है।* दु:ख देने का विचार पहले मन्सा में आता है फिर कर्मणा में आने से पाप
बनता है। *मन्सा तूफान तो जरूर आयेंगे परन्तु कर्मणा में कभी नही आओ।*
➢➢
*सपूत बच्चे बहुत पुरुषार्थ करेंगे कि हमने अगर अभी लाडले बाबा से सूर्यवंशी का
पूरा-पूरा वर्सा नहीं लिया तो कल्प-कल्प नहीं लेंगे। अभी अगर विजय माला में नहीं
पिरोये तो कल्प-कल्प नहीं पिरोयेंगे।*
➢➢
*मनुष्य समझते हैं कृष्ण भगवान ने श्रीमत से शिक्षा दी है। अच्छा उनकी मत पर चलो।
उसने भी कहा है कि काम महाशत्रु है, भला उनको जीतो। इन विकारों को जीतेंगे तब
ही कृष्णपुरी में आ सकेगे।*
➢➢
शिवबाबा खुद कहते हैं कृष्ण और उनके सारे घराने को अब मैं स्वर्ग में जाने लायक
बना रहा हूँ। बाबा कितनी मेहनत करते हैं कि *बच्चे स्वर्ग में चल ऊंच पद पायें।
नहीं तो पढ़े लिखे के आगे जाकर भरी उठायेंगे। बाप से तो पूरा वर्सा लेना है।*
➢➢
मुख्य बात बच्चों को यह समझाते हैं कि अगर मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख देंगे
तो दु:ख पायेंगे और पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। *सच्चे साहेब के आगे सच्चा रहना है,
हमेशा सपूत बच्चों को यह विचार रहता है कि हम गद्दी नशीन कैसे बनें। यही तात लगी
रहती है।*
➢➢
गद्दी तो नम्बरवार 8 हैं। फिर 108 फिर 16108 भी हैं, परन्तु अभी हम
ऊंच पद पायें। ऐसे तो शोभता नहीं जो दो कला कम हों तब गद्दी पर बैठे। *पक्का
व्यापारी वह जो श्रीमत पर माँ बाप को पूरा फालो करे, कभी किसको दु:ख न दे।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह दादा ही
सर्टीफिकेट देंगे कि बाबा यह बच्चा बड़ा सपूत है। बाबा महिमा तो करते हैं। *जो
सर्विसएबुल बच्चे हैं तन-मन-धन से सर्विस करते हैं, कभी भी किसको दु:ख नहीं देते
हैं, वही बापदादा और माँ की दिल पर चढ़ते हैं।*
➢➢ *सपूत भी
नम्बरवार होते हैं। उत्तम, मध्यम, कनिष्ट। उत्तम तो कभी छिपे नहीं रहते। उनकी
दिल में रहम आयेगा हम भारत की सेवा करें।* सोशल वर्कर्स भी नम्बरवार होते हैं -
उत्तम, मध्यम, कनिष्ट। कई तो बहुत लूटते हैं, माल बेचकर खा जाते हैं।
➢➢ सोशल वर्कर्स तो
अपने को बहुत कहलाते हैं क्योंकि सोसायटी की सेवा करते हैं। *सच्ची सेवा तो बाप
ही करते हैं। तुम कहते हो कि हम भी बाबा के साथ रूहानी सर्वेन्ट हैं। सारी
सृष्टि तो क्या तत्वों को भी पवित्र करते हैं। तत्व भी इस समय तमोप्रधान हैं,
इनको भी सतोप्रधान बनाना है।*
➢➢ *सतोप्रधान तत्वों
से तुम्हारा शरीर भी सतोप्रधान बन जायेगा। परन्तु बच्चे फिर भी भूल जाते हैं।
याद उनको रहेगा जो औरों को सुनाते रहेंगे।*
➢➢ *दान नहीं करेंगे
तो धारणा भी नहीं होगी। जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनका बापदादा भी नाम बाला
करते हैं।* यह तो बच्चे भी जानते हैं कि सर्विस में कौन-कौन तीखे हैं। जो
सर्विस पर हैं वह दिल पर चढ़ते हैं।
➢➢ *सदैव फालो माँ-बाप
को करना है। उनके ही दिल तख्तनशीन बनना है। जो सर्विस पर होंगे वह दूसरों को
सुख देंगे। अपना मुँह दर्पण में देखो कि बाबा का सपूत बच्चा बना हूँ? खुद भी
लिख सकते हैं कि हमारी सर्विस का यह चार्ट है।*
➢➢ *मम्मा-बाबा ने
सर्विस भी बहुत की है। जैसे बाबा जाते हैं, मम्मा भी जाती थी। छोटे-छोटे गांवों
में सर्विस करती थी। सबमें तीखी गई।* बाबा के साथ तो बड़ा बाबा है, इसलिए बच्चों
को इनकी सम्भाल रखनी पड़ती है।
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