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❍ 25 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इस जमाने
में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो किसको सुख दे सके। सुखदाता सद्गति दाता है ही
एक सतगुरू।* अब सुख कौन सा मांगते हैं? यह तो सभी भूल गये हैं कि स्वर्ग
में बहुत सुख थे और अभी नर्क में दु:ख है। तो जरूर सभी बच्चों पर मालिक को
ही तरस पड़ेगा।
➢➢ भक्त सभी पुकारते हैं एक भगवान को, जरूर भगवान सबसे बड़ा है, उनकी महिमा बहुत बड़ी है। तो जरूर बहुत सुख देने वाला होगा। *बाप कभी बच्चों को वा जमाने को दु:ख नहीं दे सकते। बाप समझाते हैं तुम विचार करो - मैं जो सृष्टि अथवा जमाना रचता हूँ तो क्या दु:ख देने के लिए? मैं तो रचता हूँ सुख देने के लिए। परन्तु यह ड्रामा सुख दु:ख का बना हुआ है।*
➢➢ पहले नई सृष्टि नये जमाने में बहुत थोड़े थे और बहुत सुखी थे, जिन सुखों
का पारावार नहीं था। नाम ही कहते हैं स्वर्ग, वैकुण्ठ, नई दुनिया। तो जरूर
उसमें नये मनुष्य होंगे। *जरूर वह देवी-देवताओं की राजधानी मैंने स्थापना
की होगी ना। नहीं तो जब कलियुग में एक भी राजा नहीं, सब कंगाल हैं। फिर
एकदम सतयुग में देवी-देवताओं की राजाई कहाँ से आई? यह दुनिया बदली कैसे?*
परन्तु सभी की बुद्धि इतनी मारी हुई है जो कुछ भी समझते नहीं हैं।
➢➢ *मनुष्य मालिक पर दोष धरते हैं कि वही सुख दु:ख देते हैं, परन्तु ईश्वर
को तो याद ही करते हैं कि आकर हमको सुख- शान्ति दो। स्वीट होम में ले चलो।
फिर पार्ट में तो जरूर भेजेंगे ना!*
➢➢ *कहते हैं मैं गाइड बन तुम बच्चों को वापिस ले जाने के लिए आया हूँ,
इसलिए मुझे कालों का काल भी कहते हैं। कल्प पहले भी महाभारी लड़ाई लगी थी,
जिससे स्वर्ग के द्वार खुले थे। परन्तु सभी तो वहाँ नहीं गये, सिवाए
देवी-देवताओं के।* बाकी सब शान्तिधाम में थे। तो मैं निर्वाणधाम का मालिक
आया हूँ, सभी को निर्वाणधाम ले जाने।
➢➢ *बाप आकर ब्राह्मण कुल, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी डिनायस्टी स्थापना करते हैं। वह भी इस संगम पर स्थापना करते हैं। और धर्म वाले फट से डिनायस्टी नहीं स्थापना करते हैं।* उनको गुरू नहीं कहा जाता। बाप ही आकर धर्म की स्थापना करते हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप कहते हैं देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल मुझे याद करो।* बाकी सिर्फ ऐसे नहीं कहना है कि इस्लामी, बौद्धी आदि सब भाई-भाई हैं। यह तो सभी देह के धर्म हैं ना। सभी की जो आत्मायें हैं वह बाप की सन्तान हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं मैं सहज राजयोग सिखाता हूँ। मैं कोई गीता का श्लोक आदि
नहीं गाता हूँ जो तुम गाते हो। क्या बाप बैठ गीता सिखायेंगे? मैं तो सहज
राजयोग सिखाता हूँ। स्कूल में गीत कविताएं सुनाई जाती हैं क्या? स्कूल में
तो पढ़ाया जाता है। बाप भी कहते हैं तुम बच्चों को मैं पढ़ा रहा हूँ,
राजयोग सिखला रहा हूँ।* मेरे साथ और कोई का भी योग नहीं है। सब मेरे को भूल
गये हैं। यह भूलना भी ड्रामा में नूँध है। मैं आकर फिर याद दिलाता हूँ।
➢➢ वैसे बेहद का बाप कहते हैं मैं तुम्हारे लिए नई दुनिया स्वर्ग कैसा अच्छा बनाता हूँ। *तो तुम्हारा बुद्धियोग पुरानी दुनिया से टूट जाना चाहिए। यहाँ रखा ही क्या है? देह भी पुरानी, आत्मा में भी खाद पड़ी हुई है। वह निकलेगी तब जब तुम योग में रहेंगे। ज्ञान भी धारण होगा।*
➢➢ *खाते हो तो क्या बाप को याद नहीं कर सकते हो? कपड़ा सिलाई करते हैं बुद्धियोग बाप की याद में रहे। किचड़ा तो निकालना है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ काम है नम्बरवन डर्टी। फिर क्रोध, लोभ नम्बरवार डर्टी हैं। तो सारी
दुनिया से नष्टोमोहा भी होना है तब तो स्वर्ग चलेंगे। अब *बाप कहते हैं कि
दे दान तो छूटे ग्रहण। 5 विकारों का दान दे दो और कोई पाप नहीं करो।*
➢➢ *तुम बच्चों को कितनी नॉलेज मिलती है। परन्तु विचार सागर मंथन नहीं करते,
बुद्धि भटकती रहती है तो ऐसी-ऐसी प्वाइन्ट्स भाषण में सुनाने भूल जाते हैं।
पूरा समझाते नहीं हैं।*
➢➢ बाप कहते हैं अभी सिर पर फुरना है बाप की याद का, जिसे घड़ी-घड़ी भूल
जाते हैं। *पुरूषार्थ कर धंधा आदि भी करते रहे और याद भी करते रहे हेल्दी
बनने के लिये।* बाप कमाई बड़ी जोर से कराते हैं, इसमें सभी कुछ भुलाना पड़ता
है।
➢➢ बाप पढ़ाते ऐसे हैं जैसे टीचर लोग पढ़ाते हैं, स्टूडेन्ट सुनते हैं। अच्छे स्टूडेन्ट पूरा ध्यान देते हैं, मिस नहीं करते हैं। *यह पढ़ाई रेग्युलर चाहिए। ऐसी गॉडली युनिवर्सिटी में अपसेन्ट होनी नहीं चाहिए। बाबा गुह्य-गुह्य बातें सुनाते रहते हैं।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *कलियुग है
कंसपुरी। सतयुग है कृष्णपुरी। तो पूछना चाहिए अब तुम कृष्णपुरी चलेंगे? अगर
तुम कृष्णुपरी चलने चाहते हो तो पवित्र बनो।* जैसे हम तैयारी कर रहे हैं
दु:खधाम से सुखधाम में चलने की, ऐसे तुम भी करो। उसके लिए विकार जरूर छोड़ने
पड़ेंगे।
➢➢ *यह सबका
अन्तिम जन्म है। सभी को वापस जाना है। क्या तुम भूल गये हो - 5 हजार वर्ष
पहले यह महाभारी लड़ाई नहीं लगी थी? जिसमें सभी धर्म विनाश हुए थे और एक
धर्म की स्थापना हुई थी।*
➢➢ *तुमको तो
बाप का पैगाम देना है कि बाबा आया हुआ है। यह महाभारी लड़ाई सामने खड़ी है।
सभी को वापिस जाना है। स्वर्ग स्थापना हो रहा है।* सतयुग में देवी देवतायें
थे ना। कलियुग में नहीं हैं। अब तो रावण राज्य है। आसुरी मनुष्य हैं। उन्हों
को फिर देवता बनाना पड़े। तो उसके लिए आसुरी दुनिया में आना पड़े वा दैवी
दुनिया में आयेंगे? वा दोनों के संगम पर आयेंगे? गाया भी हुआ है कल्प-कल्प,
कल्प के संगमयुगे-युगे आता हूँ।
➢➢ *बाप कहते हैं यह सब देह के धर्म छोड़ मामेकम् याद करो। यह बाप का मैसेज देने के लिए हम शिव जयन्ती मना रहे हैं। हम ब्रह्माकुमार कुमारियां शिव के पोत्रे हैं। हमको उनसे स्वर्ग की राजधानी का वर्सा मिल रहा है।* बाप हमको पैगाम देते हैं कि मनमनाभव। इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। अशरीरी बनो।
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