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  31 / 01 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप कहते हैं मैं आकर तुमको इस माया से छुड़ाता हूँ। तुम तो जितना छूटने को करेंगे, उतने फंसते जायेंगे।*

 

➢➢  *बच्चों को बेहद का बाप एक ही मिलता है, बेहद का सुख देने के लिए।* फिर और कोई चीज माँग नहीं सकते। *भक्ति मार्ग में तो भक्त भगवान से, देवताओं से, साधु- संतों से माँगते रहते हैं।* जब बेहद का बाप मिला है तो फिर सब कुछ मिल जाता है। बाप स्वर्ग का मालिक बना देता है।

 

➢➢  *इस मनुष्य सृष्टि में सबसे ऊंचे ते ऊंचा पद मिलता है सूर्यवंशी लक्ष्मी नारायण को। इससे और कोई पद ऊंच है ही नहीं।* तो माँगना बंद हो जाता है। लक्ष्मी नारायण के साथ प्रजा भी तो होगी। यथा राजा रानी तथा प्रजा.....

 

➢➢  अनेक धर्मों के कितने झगड़े रहते हैं। *बाप कहते हैं सभी झगड़े मिटाकर एक धर्म की स्थापना करना मेरा काम है। मैं खुद अपना परिचय देने, तुम बच्चों को ब्रह्मा तन से बैठ समझाता हूँ।*

 

➢➢  *ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का तो आकार है। मनुष्य का भी साकार रूप है। बाकी ऊंचे ते ऊंचे परमात्मा का न आकार है न साकार है, उनको निराकार कहा जाता है।*

 

➢➢  *जैसे आत्मा निराकार है तो निराकार आत्मा कहती है, मेरा बाप भी निराकार है। वही एक सभी का बाप ठहरा, बाकी सबके शरीर का नाम है। सिर्फ एक ही निराकार परमात्मा है जिसका नाम शिव है।*

 

➢➢  *मुझ ज्ञान सागर से तुम भी सारी सृष्टि के आदि मध्य, अंत की नॉलेज जान जाते हैं।* प्यार का सागर भी बनाता हूँ। देवतायें भी प्यार के सागर हैं न। उन्हों को सभी कितना प्यार करते हैं।

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अभी हम हैं ब्रह्मा मुखवंशवाली ब्राह्मण।* बाकी तुम कहेंगें हम कैसे माने कि ब्रह्मा के तन में परमात्मा आकर राजयोग सिखाते हैं। *तुम भी ब्रह्मा मुखवंशवाली बन राजयोग सीखों तो आपेही तुमको भी अनुभव हो जायेंगे।*

 

➢➢  *हम ईश्वरीय फैमिली हैं। असुल में तो हम सब आत्मायें परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं, तो फैमिली हुई न। वह निराकार फिर साकार में आते हैं।*

 

➢➢  *मरते समय भी कहते हैं भगवान को याद करो तो ऊपर चले जायेंगे। फिर वापिस आयेंगे नहीं। परंतु ऐसा है नहीं।*

 

➢➢  *मुझ ज्ञान के सागर से तुम सारे सृष्टि के आदि, मध्य, अंत की नॉलेज जान जाते हो। प्यार का सागर भी बनाता हूँ। देवतायें प्यार का सागर हैं ना। उन्हों को सभी कितना प्यार करते हैं।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *शांति है निर्वाणधाम में। स्वर्ग में है सुख, नरक में है दुःख। ये बातें बाप ही समझाते हैं। तो इनका सपूत बच्चा बन वर्सा लेना चाहिए।*

 

➢➢  अब तुमको घर वापिस जाना है तो *पवित्र जरूर बनना पड़े।*

➢➢  *बाप बच्चों पर विश्वास रखते हैं कि बच्चें ब्राह्मण कुल का नाम बाला करेंगे। भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार जरूर बनना है।*

 

➢➢  *बाप तो सबका कल्याणकारी, क्षमा का सागर है। कोई भगन्ती हो फिर भी बाप कहेंगे, अच्छा फिर से ज्ञान उठाओ।*

 

➢➢  *अगर 5 भूतों को जीतेंगे तो स्वर्ग का मालिक बन जायेंगे।*

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *इस ड्रामा चक्र पर अच्छी रीती समझाना चाहिए। अब है कलयुग। इसके बाद सतयुग आना है। तो सिवाय बाप के कौन बात सकता है। हरेक वस्तु पहले नई फिर पुरानी होती है। वैसे सृष्टि की भी स्टेजस हैं।*

 

➢➢  *गृहस्थ व्यवहार में रहते कुछ न कुछ टाइम निकल सर्विस करनी चाहिए। कोई न कोई अंधों को रास्ता बता आना चाहिये। फिर कोई न कोई निकल पड़ेगा।*

 

➢➢  *मुरली सुनाओ तो ग्रहण हट जाये। हम सभी शिव बाबा की सर्विस में हैं। बाप बच्चों पर विश्वास रखते हैं कि बच्चे ब्राह्मण कुल का नाम बाला करेंगें। भारत को स्वर्ग बनाने में मददगार जरूर बनना है।*

 

➢➢  मकान बनना भी बाबा की सर्विस है। *बाप बच्चों की सर्विस करने आये हैं। बादशाही देते हैं तो बच्चों को भी बाप की सर्विस का फुरना रखना चाहिए।*

 

➢➢  *अभी फिर से बाप हमें स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। इस समय कलयुग है पतित दुनिया, इसको पावन तो बाप ही बनायेंगे।*

 

➢➢  *"यह झाड़, गोला तो अंधों के लिए आईना है। "आगे चल तुम्हारे पास जब बहुत आने लगेंगे, तो उन्हों को देख और भी आयेंगे।*

 

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