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❍ 09 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भगवान है
ही निराकार ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप.. तुम बच्चों को बैठ
पढ़ाता हूँ। यह गॉडली नॉलेज है। सरस्वती को गॉडेज आफ नॉलेज कहते हैं। तो
जरूर गाडली नॉलेज से गॉड-गाडेज ही बनते होंगे।* बैरिस्टरी नॉलेज से
बैरिस्टर ही बनेंगे। यह है गाडली नॉलेज। *सरस्वती को गाड ने नॉलेज दी है।
तो जैसे सरस्वती गॉडेज आफ नॉलेज है, वैसे तुम बच्चे हो।* सरस्वती को बहुत
बच्चे हैं ना। परन्तु हर एक गॉडेज आफ नॉलेज कहलाये जायें, यह नहीं हो सकता।
➢➢ *निराकार
बाप को गाड फादर कहेंगे। इन (साकार) को गॉड थोड़े ही कहेंगे। यह बड़ी गुह्य
बातें हैं। आत्मा और परमात्मा का रूप और फिर सम्बन्ध कितनी गुह्य बातें
हैं।*
➢➢ मनुष्य समझते
हैं सिर्फ गंगा स्नान करने से पावन बनते हैं, कितने धक्के खाते हैं। गंगा
जमुना आदि की कितनी महिमा करते हैं। अब इसमें महिमा की तो बात ही नहीं। पानी
सागर से आता है। ऐसे तो बहुत नदियां हैं। विलायत में भी बड़ी-बड़ी नदियां
खोदकर बनाते हैं, इसमें क्या बड़ी बात है। *ज्ञान सागर और ज्ञान गंगायें
कौन हैं, यह तो जानते ही नहीं। शक्तियों ने क्या किया, कुछ भी जानते नहीं।
वास्तव में ज्ञान गंगा अथवा ज्ञान सरस्वती यह जगदम्बा है।*
➢➢ *गीता में भी है मैं राजाओं का राजा बनाता हूँ।* मनुष्य तो यह जानते नहीं। हम खुद भी नहीं जानते थे। यह जो खुद बना था, अब नहीं है, वही नहीं जानता तो और फिर कैसे जान सकते। सर्वव्यापी के ज्ञान में कुछ भी है नहीं, *योग किसके साथ लगायें, पुकारे किसको? खुद ही खुदा हैं फिर प्रार्थना किसकी करेंगे! बड़ा वन्डर*
➢➢ *राज्य करती
तो आत्मा है ना। मैं राजा हूँ, मैं आत्मा हूँ, इस शरीर का मालिक हूँ। अहम्
आत्मा शरीर का नाम श्री नारायण धराए फिर राज्य करेंगे। आत्मा ही सुनती और
धारण करती है। आत्मा में संस्कार रहते हैं। अब तुम जानते हो हम बाप से
राजाई लेते हैं श्रीमत पर चलने से।*
➢➢ *बच्चों को यह नशा होना चाहिए कि हम यहाँ ऊंच तकदीर बनाते हैं। यह है बड़े ते बड़ी तकदीर बनाने की पाठशाला।* सतसंग में तकदीर बनने की बात नहीं रहती। पाठशाला में हमेशा तकदीर बनती है। *तुम जानते हो हम नर से नारायण अथवा राजाओं का राजा बनेंगे।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *एक को ही
याद करना है। बहुत भारी वर्सा मिलता है। तुम जानते हो हम राजाओं के राजा
बनते हैं।*
➢➢ *बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा बनाऊंगा इसलिए मुझे और वर्से को याद करो।*
➢➢ बापदादा दोनों मिलकर कहते हैं बच्चे, दोनों को बच्चे कहने का हक है। *आत्मा को कहते हैं निराकारी बच्चे, मुझ बाप को याद करो। और कोई कह न सके कि हे निराकारी बच्चे, हे आत्मायें मुझ बाप को याद करो। बाप ही आत्माओं से बात करते हैं।* ऐसे तो नहीं कहते हे परमात्मा मुझ परमात्मा को याद करो। कहते हैं, *हे आत्मायें मुझ बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।*
➢➢ *अपने 84 जन्मों को याद करो इसलिए बाबा ने नाम ही रखा है ''स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे।'' तो स्वदर्शन का ज्ञान भी चाहिए ना। बाप समझाते हैं - यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। तुमको मैं नई दुनिया में ले चलता हूँ। सन्यासी सिर्फ घरबार को भूलते हैं, तुम सारी दुनिया को भूलते हो।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाबा कहते हैं श्रीमत पर चलो,* इसमें मात-पिता, टीचर, गुरू आदि सबकी मत इकट्ठी है। सबकी सैक्रीन बनी हुई है। सभी का रस एक में भरा हुआ है।*
➢➢ बाप समझाते हैं कि अब तुमको राहू का कड़ा ग्रहण लगा हुआ है। पहले हल्का ग्रहण होता है। अब *दे दान तो छूटे ग्रहण। प्राप्ति बहुत भारी है। तो पुरुषार्थ भी ऐसे करना चाहिए ना।*
➢➢ यह बाप ही कहते हैं कि *अशरीरी बनो।* मैं तुमको नई दुनिया में ले चलता
हूँ इसलिए *पुरानी दुनिया से, पुराने शरीर से ममत्व तोड़ो।* फिर नई दुनिया
में तुमको नया शरीर मिलेगा।
➢➢ बाप कहते हैं *तुमको पवित्र बनना है।* वह हठयोगी पवित्र बनने के लिए बहुत हठ करते हैं। परन्तु योग बिगर तो पवित्र बन न सके, या तो सजायें खाकर पवित्र बनना पड़े इसलिए बाप को क्यों न याद करें और *5 विकारों को भी जीतना है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *परमात्मा
बिगर राजाओं का राजा, स्वर्ग का मालिक कोई बना नहीं सकता। स्वर्ग का रचयिता
है ही निराकार बाप। उनका नाम भी गाते हैं हेविनली गॉड फादर।* बाप साफ समझाते
हैं मैं तुम बच्चों को फिर से स्वराज्य देकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। अब
तुम जानते हो हम तकदीर बनाकर आये हैं, बेहद के बाप से राजाओं का राजा बनने।
कितनी खुशी की बात है।
➢➢ *इस आत्मा
का बाप वह परमात्मा है, जो सभी का बाप है, वह पढ़ाते हैं। उनको गर्भ में तो
आना नहीं है, नॉलेज कैसे पढ़ायें। वह आते हैं ब्रह्मा के तन में।* उन्होंने
फिर ब्रह्मा के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। यह भी ड्रामा में हैं। *कुछ
भूल हो तब तो बाप आकर इस भूल को करेक्ट कर अभुल बनाये।*
➢➢ *बाप समझाते
हैं - मैं तुम्हारा बेहद का बाप बेहद का वर्सा देने वाला हूँ।
लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक कैसे बने, यह कोई भी नहीं जानते। निराकार
को न जानने कारण ही मूँझ गये हैं। जरूर कोई ने तो कर्म सिखाये होंगे ना और
वह भी जरूर बड़ा होगा, जो इतना ऊंच पद प्राप्त कराया।* मनुष्य कुछ भी नहीं
जानते।
➢➢ *बाप कितना
प्यार से समझाते हैं, कितनी बड़ी अथॉरिटी है। सारी दुनिया को पतित से पावन
बनाने वाला मालिक है। समझाते हैं यह बना-बनाया ड्रामा है। तुमको चक्र लगाना
होता है। इस बनावट को कोई भी जानते नहीं।* ड्रामा में कैसे हम एक्टर्स हैं,
यह चक्र कैसे फिरता है, दु:खधाम से सुखधाम कौन बनाते हैं, यह तुम जानते हो।
तुमको सुखधाम के लिए पढ़ाता हूँ। तुम ही 21 जन्मों के लिए सदा सुखी बनते हो
और कोई वहाँ जा न सके। सुखधाम में जरूर थोड़े मनुष्य होंगे।
➢➢ *बाप कहते हैं यह काम विकार ही आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है। जो विकारों को नहीं जीत सकते वह वैकुण्ठ के राजा थोड़े ही बन सकते हैं* इसलिए बाप कहते हैं देखो मैं तुमको कितने अच्छे कर्म सिखाता हूँ - बाप, टीचर, सतगुरू रूप में। योगबल से विकर्म विनाश कराए विकर्माजीत राजा बनाता हूँ।
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