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❍ 07 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ब्राह्मण आत्माअों का सारे कल्प में अटूट संबंध है, ईश्वरीय परिवार है, बाप ने हर आत्मा को चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है, यह स्मृति रहे तो आत्मिक प्यार अटूट होने से स्नेह सम्पन्न व्यवहार होगा और सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे।*
➢➢ *परमपिता परमात्मा को बागवान भी कहते हैं, खिवैया भी कहते हैं। मनुष्य
तो समझ न सके कि खिवैया कैसे है? बरोबर असार संसार से ले जाकर फिर यहाँ नई
दुनिया में भेज देते हैं। यहाँ ही फूलों का बगीचा बनाते हैं।*
➢➢ *शिवबाबा की महिमा सिर्फ ब्राह्मण कुलभूषण अर्थात् नई मनुष्य सृष्टि की
सम्प्रदाय जिन्हें परमपिता परमात्मा ने अपना बनाया या जन्म दिया है वही
जानते हैं क्योंकि पहले-पहले इस सृष्टि में वही ब्रह्मा द्वारा जन्म लेते
हैं।* जैसे तुमने पहले-पहले जन्म लिया है परमपिता परमात्मा से। तो *वह है
सभी का सहायक, सारी दुनिया का सहायक, सभी दु:ख दूर करने वाला है*।
➢➢ परमपिता परमात्मा आकर पहले-पहले ब्राह्मण सम्प्रदाय रचते हैं, यह कोई
को पता ही नहीं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म तो है सतयुग में। बाकी संगमयुग
को भूल गये हैं क्योंकि गीता के भगवान को ही द्वापर में ले गये हैं। *सतयुग
के आदि और कलियुग के अन्त के संगम का किसको पता नहीं है। न गीता के भगवान
को जानते हैं। गीता तो है ही सभी शास्त्रों की मात-पिता।*
➢➢ *तुम ही बाप को और इस ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानते हो। देखने में कितने साधारण हो - कुब्जाएं अहिल्यायें। परन्तु नॉलेज कितनी ऊंची है। अपने सारे 84 जन्मों के चक्र को तुम जानती हो।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *एक होती है सुख की महफिल, दूसरी होती है दु:ख की। सतयुग में है सुख की महफिल।* यहाँ तो दु:ख की कहेंगे। कोई मरते हैं तो भी दु:ख की महफिल लग जाती है। कोई बड़ा आदमी मरता है तो शोक में झण्डा नीचे कर देते हैं। तो दु:ख की महफिल हुई ना। *भगत बहुत दु:खी होते हैं तो भगवान को याद करते हैं।* परन्तु उनको जानते बिल्कुल नहीं।
➢➢ *बाप इस माया पर जीत पाने की युक्ति बताते हैं। जैसे कल्प पहले भी
सिखाई थी।* जब बाबा सिखाते हैं तब हम भगत से ज्ञानी बनते हैं। इसको ही भारत
का प्राचीन ज्ञान और योग कहा जाता है। इसको दुनिया में कोई भी नहीं जानते।
➢➢ *भगवानुवाच - मैं तुमको सहज राजयोग सिखाता हूँ* जिसको फिर गीता नाम दिया
है। तो अपने को भी कहना पड़ता है कि हम नई गीता सुनाते हैं। पुरानी गीता तो
खण्डन की हुई है। यह तो भगवान खुद अपने मुख कमल से बैठ सुनाते हैं। *तुम्हारी
बुद्धि में परमपिता परमात्मा शिव ही याद आता है। वह है स्वर्ग का रचयिता,
सब का सहायक।*
➢➢ सभी बच्चे जो भगत बन गये हैं, असुल भगवान की सन्तान थे, उनको माया दु:खी बनाती है। *भगवान तो है ही एक। वह सभी भक्तों को जरूर सुख देता है। कोई भी किसको सुख देता है तब उनको याद करते हैं।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुमको भी देखना चाहिए - सारे दिन में किसको दु:ख तो नहीं दिया? किससे मतभेद में तो नहीं आये? किससे ईविल तो नहीं बोला, जिससे कोई को दु:ख हुआ हो।*
➢➢ *ईविल तो कभी नहीं सुनना चाहिए, ऐसा कुछ देखा, सुना तो बाप को बतलाना चाहिए।* बाप ही बच्चों को सब समझाते हैं। नहीं तो आदत पक्की हो जाए।
➢➢ *कोई में कोई भी गन्दी आदत है तो छोड़ देना चाहिए, नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। ज्ञान मार्ग में मैनर्स बहुत अच्छे चाहिए।*
➢➢ *तुम्हें क्षीरखण्ड होकर रहना है, मतभेद में नहीं आना है।कभी लूनपानी नहीं होना चाहिए।*
➢➢ *क्रोध करना बहुत बुरा है। जो भी बुरी आदतें हैं, क्रोध आदि विकार हैं उन्हें निकाल देना है।*
➢➢ *एक की ही श्रीमत पर चलना है। अपना अहंकार नही रखना चाहिये।* । जन्म-जन्मान्तर के सुख को लकीर लग जाती है, *पांच भूतों को भगाते रहो।*
➢➢ *कोई भी गन्दी आदत है तो उसे छोड़ देना है, किसी को भी दु:ख नहीं देना है*|
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *कोई ज्ञान के बारे प्रशन पूछे और उत्तर देना न आये तो बोलना चाहिए कि हम अभी पढ़ रहे हैं। अपना अहंकार नहीं रखना चाहिए। कह देना चाहिए, हमारी बड़ी बहन जी बहुत तीखी हैं। आप फिर कोई समय आना तो वह समझायेंगी।*
➢➢ *समझो कोई ऐसा प्रशन निकलता है तो तीखी भी उसका उत्तर नहीं दे सकती तो
बोलना चाहिए हम सब पढ़ रहे हैं। अन्त तक पढ़ते रहेंगे। गुह्य से गुह्य
नॉलेज सुनते रहेंगे।*
➢➢ *भगवान एक है, उनको ही सब याद करते हैं। भगवान ही हेविन स्थापन करते
हैं तो जरूर देवता बनाने के लिए संगम पर ही राजयोग सिखायेंगे।*
➢➢ यह है सुहावना संगम का मेला। *समझाना है सारी दुनिया के मनुष्य भगत
हैं। साधना करते हैं भगवान के लिए कि वह परमात्मा आकर सभी को वापिस ले जाये।
मुक्ति जीवनमुक्ति का ज्ञान दे देवे, देवता धर्म की स्थापना करे*।
➢➢ *बाप समझाते हैं यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है और यह देवता धर्म भी लोप हो जाता है। ड्रामा में ही ऐसा है। जब यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाए, सृष्टि दु:खी हो तब तो भगवान आकर फिर से स्थापन करे।*
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