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❍ 01 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ तुम जानते हो *आत्मा बहुत छोटी सूक्ष्म है, उनको इन आँखों से देखा नहीं जाता है।* ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसने आत्मा को देखा होगा। हाँ देखने में आ सकती है । परन्तु दिव्य दृष्टि से और वह भी ड्रामा के प्लैन अनुसार। *भक्ति मार्ग में भी इन आँखों से कोई साक्षात्कार नहीं होता। दिव्य दृष्टि मिलती है, जिससे चैतन्य में देखते हैं। दिव्य दृष्टि अर्थात् चैतन्य में देखना।*
➢➢ मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बिल्कुल न्यारा है। *भारत में भक्ति मार्ग
में ढेर मन्दिर होते हैं। वहाँ शिवलिंग भी रखते हैं। कोई छोटा बनाते हैं,
कोई बड़ा बनाते हैं। अभी तुम समझते हो जैसे तुम आत्मा हो वैसे वह सुप्रीम
आत्मा है। साइज एक ही है।*
➢➢ यह बाप ही बैठ बच्चों को समझाते हैं, इसको रूहानी नॉलेज कहा जाता है। *यह
जो गाया जाता है आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल, उसका हिसाब भी समझाया
है। बहुकाल से अलग तुम आत्मायें रहती हो। अब बाप के पास आये हो - राजयोग
सीखने।*
➢➢ तुम बच्चे समझते हो हम मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनते हैं। *यह है
सच्ची-सच्ची सत्य नर से नारायण बनने की कथा। कथा क्यों कहा जाता है? क्योंकि
5 हजार वर्ष पहले भी यह नॉलेज सीखी थी। तो पास्ट को कथा कह देते हैं, यह है
सच्ची-सच्ची शिक्षा नर से नारायण बनने की।*
➢➢ *तुम बच्चे बेहद का सन्यास करते हो क्योंकि समझते हो कि यह पुरानी
दुनिया खत्म होने वाली है, इसलिए इनसे वैराग्य है।* वो लोग तो घरबार छोड़
फिर अन्दर घुस आये हैं। अभी पहाड़ियों आदि पर, गुफ़ाओं में नहीं रहते।
कुटियायें बनाते हैं, तो भी कितना खर्च करते हैं। वास्तव में कुटिया पर कोई
खर्चा थोड़े ही लगता है। बड़े-बड़े महल बनाकर रहते हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पहले बेहद के बाप की पहचान चाहिए। वह निश्चय हो गया तो फिर हद के बाप से बुद्धि निकल जाती है। गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धि का योग बाप के साथ लग जायेगा।*
➢➢ *बाप खुद कहते हैं शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते बुद्धि में याद रहे एक
बाप की। देहधारियों की याद न रहे।*
➢➢ *मुख्य बात है याद की। याद ही भूल जाती है। बाबा रोज़ कहते हैं अपने को
आत्मा समझ बाप को याद करो। मैं आत्मा बिन्दी हूँ। कहते भी हैं चमकता है अजब
सितारा।*
➢➢ *याद करते-करते तुम पावन बन जायेंगे। अन्त मति सो गति।* बाप स्वर्ग का
रचयिता है ना, तो याद दिलाते हैं तुम स्वर्ग के मालिक थे।
➢➢ *अभी तुम ईश्वर से योग लगाए मनुष्य से देवता बन रहे हो। तो तुम ठहरे
योगेश्वर, योगेश्वरी फिर बनेंगे राज राजेश्वरी, अभी हो ज्ञान ज्ञानेश्वरी।
फिर राज राजेश्वरी कैसे बनें? ईश्वर ने बनाया।* अभी तुम जानते हो इन्हों को
राजयोग किसने सिखाया? ईश्वर ने। वहाँ उन्हों की 21 पीढ़ी राजाई चलती है।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप फिर भी कहते हैं *मीठे बच्चों अपने को आत्मा समझो। स्वधर्म में टिको, बाप को याद करो। वही पतित-पावन है।
➢➢ *यह तुम्हारी है रूहानी यात्रा, इसमें धक्का नहीं खाना है।* भक्ति
मार्ग है ही रात। धक्का खाना पड़ता है। *यहाँ धक्के की बात है नहीं।*
➢➢ *यह है गॉड फादरली वर्ल्ड युनिवर्सिटी। एम आब्जेक्ट क्या है? मनुष्य से
देवता बनाना। बच्चों को यह निश्चय है कि हमको यह बनना है।* जिसको निश्चय नहीं
होगा वह स्कूल में बैठेगा क्या?
➢➢ रचता और रचना के आदि मध्य अन्त की नॉलेज नहीं थी, नास्तिक थे। अभी
आस्तिक बनने से तुम कितने सुखी बन जाते हो। *तुम यहाँ आये ही हो यह देवता
बनने के लिए।*
➢➢ *इस समय बहुत मीठा बनना है। तुम एक बाप की सन्तान भाई-बहन ठहरे ना।
क्रिमिनल दृष्टि जा न सके।* इस समय मेहनत करनी पड़ती है।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *मनुष्य सतयुग की आयु ही लाखों वर्ष कह देते है। बाप कहते है 1250 वर्ष। रात-दिन का फर्क हो गया। रात ब्रह्मा की आधाकल्प फिर दिन ब्रह्मा का आधाकल्प। ज्ञान से है सुख, भक्ति से है दुःख। यह सब बातें बाप बैठ समझाते है।*
➢➢ आजकल मनुष्यों की तमोप्रधान बुद्धि होने के कारण बाप के टाइटिल भी अपने
ऊपर रख देते हैं। *वास्तव में श्रेष्ठ बनाने वाला श्री-श्री तो एक ही बाप
है। श्रेष्ठ देवताओं की महिमा अलग है।*
➢➢ आधाकल्प भक्ति मार्ग की कथायें हैं। सुनकर सीढ़ी नीचे उतरते आये हो,
फिर 5 हजार वर्ष बाद एक्यूरेट वही ड्रामा रिपीट होगा। *बाबा ने समझाया भी
है, किसको ऐसे कहना नहीं है कि भक्ति को छोड़ो। ज्ञान आ जाता है तो फिर
आपेही भक्ति छूट जायेगी।*
➢➢ बाप सब बच्चों का सर्वेन्ट है। कहते है बच्चे मैं तुम्हारा सर्वेन्ट हूँ। *तुम कितनी हुज्जत से बुलाते हो कि भगवान आओ, आकर हम पतितों को पावन बनाओ। पावन होते ही हैं पावन दुनिया में। यह समझने की बातें हैं। बाकी तो सब है कनरस।*
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