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  26 / 01 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢  *अब उस वैष्णव सम्प्रदाय का राज्य कहाँ है ? अब तुम ब्राह्मण बने हो, तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां हो तो जरूर ब्रह्मा भी होगा, तब तो नाम रखा हुआ है शिववंशी प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद।*

 

➢➢  *अब फिर देवी-देवता धर्म की हिस्ट्री-रिपीट होनी है। यह कोई नई बात नहीं। कल्प-कल्प हम राज्य लेते हैं। जैसे वह हद का खेल रिपीट होता है वैसे यह बेहद का खेल है।*

 

➢➢  *देवतायें पवित्र हैं तब अपवित्र मनुष्य उन्हों के आगे जाकर माथा झुकाते हैं। सन्यासियों को भी माथा टेकते हैं। मरने के बाद उन्हों का यादगार बनाया जाता है क्योंकि पवित्र बने हैं।*

 

➢➢  *अभी बाप और बच्चे सम्मुख बैठे हैं फिर यह नाम-रूप आदि सब बदल जायेगा। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि हम वही कल्प पहले वाले लक्ष्मी-नारायण हैं वा प्रजा थोड़ेही कहेगी कि यह वही कल्प पहले वाले लक्ष्मी-नारायण हैं। नहीं। यह सिर्फ इस समय तुम बच्चे ही जानते

हो।*

 

➢➢   अंग्रेजी में गॉड फादर कहते हैं। यहाँ तुम कहते हो परमपिता परमात्मा। *वो लोग पहले गॉड फिर फादर कहते। हम पहले परमपिता फिर परमात्मा कहते। वह सबका फादर है। अगर सभी फादर हों तो फिर वो गॉड फादर कह न सकें।*

 

➢➢  *परमात्मा को सर्वशक्तिमान् कहते हैं। यह भी उनका ड्रामा में पार्ट है।* बाप कहते हैं मैं भी ड्रामा में बाँधा हुआ हूँ। यदा यदाहि धर्मस्य... लिखा हुआ है। अब वही धर्म की ग्लानि भी भारत में बरोबर है।

 

➢➢  *ईश्वर आकर माया से तुमको लिबरेट करते हैं। तुम जानते हो कि हमको इनपर्टाक्युलर (खास) और दुनिया को इनजनरल (आम) माया की जंजीरों से छुड़ाते हैं।*

 

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम इस ड्रामा को समझ गये हो। बुद्धि में चक्र फिरता रहता है। बाप ने आकर रोशनी दी है।*

 

➢➢  *पहले तो तुम कुछ नहीं जानते थे। मैं ही कल्प के संगमयुगे आकर अपनी पहचान देता हूँ। यह सिर्फ बेहद का बाप ही कह सकते हैं।*

 

➢➢  *याद है कि 5 हजार वर्ष पहले भी हम आपस में इसी नाम रूप से मिले थे ? यह तुम अभी कह सकते हो, फिर कभी भी कोई जन्म में ऐसे कह नहीं सकेंगे।*

 

➢➢  *जो भी ब्रह्माकुमार कुमारियाँ बनते हैं, वही एक दो को पहचानेंगे। बाबा आप भी वही हो, हम आपके बच्चे भी वही हैं।* कल्प पहले वाले ही इस समय, इस जन्म में एक दो को पहचानते हैं। रूहानी पारलौकिक माँ बाप और भाई बहन आपस में एक दो को पहचानते हैं।

 

➢➢  *तुम पवित्र बनते हो, उस एवर-प्योर के साथ योग लगाने से। जितना तुम योग लगाते जायेंगे उतना तुम पवित्र बनते जायेंगे, फिर अन्त मती सो गति। बाप के पास चले जायेंगे।*

 

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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  *अभी इस ड्रामा की अन्त है। अब तुम फिर नई दुनिया के लिए पुरूषार्थ करो।*

 

➢➢  *तुम्हारा यह अभी का जीवन अमूल्य गाया हुआ है। इसी जीवन में कौड़ी से हीरे जैसा बनना है।*

 

➢➢  *यह भाई-बहन सब हैं हंस,* इनको हंस मण्डली भी कहा जाता है। हम भाई-बहन फिर से अपने बाप से वर्सा लेते हैं।

 

➢➢  *तुम बच्चे सच्चे-सच्चे खुदाई खिदमतगार हो।* ईश्वरीय सैलवेशन आर्मी हो। ईश्वर आकर माया से तुमको लिबरेट करते हैं।

 

➢➢  *पुरूषार्थ फर्स्ट। सारी ताकत पवित्रता में है। पवित्रता की बलिहारी है।* देवतायें पवित्र हैं तब अपवित्र मनुष्य उन्हों के आगे जाकर माथा झुकाते हैं।

 

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप कहते हैं मैं भी ड्रामा में बाँधा हुआ हूँ। यदा यदाहि धर्मस्य... लिखा हुआ है। अब वही धर्म की ग्लानि भी भारत में बरोबर है।* मेरी भी ग्लानी करते हैं, देवताओं की भी ग्लानी करते हैं, इसलिए बहुत पाप आत्मा बन पड़े हैं। यह भी उन्हों को बनना ही है।

 

➢➢  *मनुष्य हैं देह-अभिमानी और याद करती है देही (आत्मा) अगर परमात्मा सर्वव्यापी है तो फिर आत्मा (देही) क्यों याद करे ? अगर आत्मा निर्लेप है फिर भी देही अथवा आत्मा क्या याद करती है ? भक्तिमार्ग में आत्मा ही परमात्मा को याद करती है क्योंकि दु:खी है।*

 

➢➢  *नई दुनिया की स्थापना तो पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना चाहिए। यह है दोनों का संगमयुग। यह बहुत कल्याणकारी युग है। सतयुग को वा कलियुग को कल्याणकारी नहीं कहेंगे।*

 

➢➢  अब बड़ाई किसको देवें ? जिसकी एक्टिंग अच्छी होती है, उनका ही नाम होता है। तो बड़ाई भी परमपिता परमात्मा को ही दी जाती है। *अब धरती पर पापात्माओं का बहुत बोझ है। सरसों मिसल कितने ढेर मनुष्य हैं। बाप आकर बोझ उतारते हैं।*

 

➢➢  *पहले अलौकिक सेवा करनी चाहिए, स्थूल सर्विस बाद में।* शौक चाहिए। खास मातायें बहुत अच्छी रीति सर्विस कर सकती हैं। माताओं को कोई धिक्कारेंगे नहीं। सब्जी वाले, अनाज वाले, नौकर आदि सबको समझाना है। कोई रह न जाए जो उल्हना देवे।

 

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