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❍ 02 / 04 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आत्मा का बाप एक ही है, उनको याद करने से वर्सा मिलता है। बेहद के शान्ति और सुख का वर्सा कोई मनुष्य मात्र से मिल नहीं सकता है* ।
➢➢ *संगम पर बाप ने ज्ञान का कलष माताओं के ऊपर रखा है।तुम माताओं के मुख से ज्ञान अमृत निकलता है जिससे सब पावन बन जाते हैं। इसलिए भक्ति में गऊमुख का यादगार बना दिया है।*
➢➢ *मनुष्य के तीन
बाप कहे जाते-एक है आत्माओं का बाप शिव, दूसरा सारे मनुष्य सृष्टि अथवा मनुष्य
सिजरे का रचता प्रजापिता ब्रह्मा, तीसरा फिर लौकिक बाप* ।
➢➢ *हम ऐसे नहीं कहेंगे कि बदनसीबी वा खुशनसीबी कोई परमात्मा द्वारा मिलती है, नहीं। यह समझना बड़ी मूर्खता है। परमात्मा तो हमें खुशनसीब बनाता है* ।
➢➢ *आत्मा तो है अविनाशी, शरीर है विनाशी। आत्मा है पारलौकिक परमपिता परमात्मा की सन्तान। शरीर है लौकिक बाप की सन्तान।*
➢➢ *तुम गऊ मातायें हो, तुम ही सबकी मनोकामनायें पूर्ण करती हो इसलिए यादगार बने हुए हैं। सब मनुष्यों के संस्कारों के ऊपर ही है। फिर जैसे पाप और पुण्य का संस्कार भरता है वैसे तकदीर बनती है ।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भक्ति मार्ग वाले बच्चे बाप को पुकारते हैं कि हे प्रभू जी, हम जो नयनहीन बुद्धिहीन बन गये हैं, हमें राह बताओ। याद करते हैं अपने बाप को। उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। सभी जीव की आत्मायें बाप को याद करती हैं* ।
➢➢ *बाप आत्माओंसे बात करते हैं मैं परमपिता परमात्मा आया हूँ*। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... *तुम बहुत समय के बिछुड़े हुए हो। अब बिल्कुल रोगी, पतित, कौड़ी तुल्य बन गये हो फिर तुमको अगर मेरे जैसा बनना है तो पुरुषार्थ करो।*
➢➢ यह राजयोग है। हठयोगी राजयोग सिखा न सके। अभी तुम बच्चों को श्रीमत मिलती है जिससे तुम श्रेष्ठ बन रहे हो । *शिवबाबा से योग लगाने से तुमको शक्ति मिलेगी।*
➢➢ *यह राजयोग की पाठशाला है। भगवानुवाच-बच्चे, मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ जिससे तुम राजाओं का राजा स्वर्ग के मालिक बनेंगे । सिर्फ बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पवित्र बनेंगे तो 21 जन्म का राज्य भाग्य मिलेगा* । कितनी सहज बात है! यह समझने से तुम भक्ति के धक्कों से, रोने पीटने से 21 जन्म छूट सकते हो।
➢➢ *पारलौकिक बाप से 21 जन्मों का वर्सा मिलता ही है संगम पर, इसलिए पुरुषार्थ करना है। बच्चों का भी कल्याण करना है*।
➢➢ *पवित्रता के बिगर तुम पवित्र दुनिया का मालिक बन नहीं सकेंगे। अब श्रीमत मिलती है तो उन पर चलना है* ।
➢➢ *पहले पहले तो अपने को यह पक्का निश्चय रखना है कि हमको पढ़ाने वाला कौन है* ? दूसरी पॉइंट है, हम सभी मनुष्य आत्मायें हैं और परमात्मा हमारा पिता है।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *यह कलियुग तो है ही दु:खधाम, सतयुग है सुखधाम। और जहाँ से हम आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं उनको शान्तिधाम कहा जाता है। आत्मा को यह शरीर रूपी बाजा अथवा यह कर्मेन्द्रियां यहाँ मिलती हैं, जिससे आत्मा कर्म करती है।*
➢➢ *चाहे कोई भी हो, ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी देवता कहा जाता, परमात्मा एक शिव है। ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा शिव है । फिर रचना रचते हैं ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की।*
➢➢ *परमात्मा युगे युगे नहीं आता बल्कि परमात्मा कल्प कल्प एक ही बार इस संगमयुग पर अर्थात् कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि संगम समय पर आता है*।
➢➢ *सिवाए बाप के कोई भी मनुष्य को भगवान कहना रांग है। भगवान है ही एक। गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं है, शिव परमात्मा है और वो भी द्वापर में नहीं आता संगम समय पर आया है* ।
➢➢ *लक्ष्मी-नारायण तो हैं स्वर्ग के मालिक, वहाँ तो सदैव सुख ही सुख है । यहाँ सभी दु:खी हैं। यह दुनिया ही पतित है। सतयुग में भारत पवित्र गृहस्थ आश्रम था यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पावन थे।*
➢➢ *परमात्मा एक है, यह पहेली अच्छी रीति समझाना चाहिए। पहले-पहले तो बाप को जानना चाहिए जो बाप स्वर्ग का रचता है* ।
➢➢ *पतित को पावन बनाने वाला एक ही परमपिता परमात्मा है। अब बाप सबको पावन बना रहे है।* 5 विकारों पर जीत पाकर माया जीते जगतजीत बनते हैं।
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