━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 07 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *परमपिता
परमात्मा शिव निराकार ज्योति बिंदू स्वरुप है। एक बिन्दु बाप में सारा संसार
समाया हुआ है। सर्व विस्तार को एक शब्द से समा सकते है और वह एक शब्द है बिन्दू।
मैं आत्मा भी बिन्द , बाप भी बिन्दु।*
➢➢ *संसार में एक
है सम्बन्ध, दूसरी है सम्पत्ति। दोनों विशेषतायें बिन्दु बाप में समाई हुई
हैं।* सर्व सम्बन्ध एक बाप द्वारा अनुभव कर सर्व सम्पत्ति की प्राप्ति
सुख-शान्ति, खुशी यह भी बाप से अनुभव कर विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को समाने
और समेटने की शक्ति के आधार पर एक में एकाग्र करना है।
➢➢ *कर्मातीत स्थिति
सर्व व्यक्त आकर्षण से परे बाप समान सम्पूर्ण न्यारी और प्यारी शक्तिशाली स्थिति
है। एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जायें तो उसका प्रभाव सारा
दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव कराता है। इसी
स्थिति द्वारा हर कार्य में सफलता का अनुभव कर सकते है।*
➢➢ जैसे स्थूल सवारी
में पावरफुल ब्रेक होती है तो उसी सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ रोक सकते हैं। जहाँ
चाहें वहाँ गाड़ी को या सवारी को उसी दिशा में ले जा सकते हैं उसी प्रकार अगर *समाने
और समेटने की दोनों शक्तियों को प्रयोग करना आता है तो उसकी निशानी सेकण्ड में
जहाँ चाहे जब चाहे बुद्धि उसी स्थिति में स्थित कर सकते है।*
➢➢ *संगमयुग के
ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही सार रूप में स्थित हो - सदा सुख-शान्ति के, खुशी
के, ज्ञान के, आनन्द के झूले में झूलना।* सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप
के अविनाशी नशे में स्थित रहना। सदा चेहरे पर प्राप्ति ही प्राप्ति है, उस
सम्पन्न स्थिति की झलक और फलक दिखाई दे।
➢➢ *संगमयुग अर्थात
वरदानी युग, कल्याणकारी युग किसी भी कार्य में चाहे स्वयं के पुरूषार्थ में,
चाहे सेवा में, नाउम्मीदी का समय अब समाप्त हो गया।* अभी हर कदम में बाप के साथ
का अनुभव कर उम्मीद रखनी है कि हमारी सफलता है ही। *कभी यह संकल्प नहीं लाना कि
पता नहीं होगा या नहीं होगा क्योकि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।*
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *पुरूषोत्तम
आत्मायें अर्थात ब्राह्मण चोटी महान आत्माये, दुनिया में और भी पुरूष हैं लेकिन
उन्हों से न्यारे और बाप के प्यारे बन औरों के बीच में अपने को अलौकिक समझ
बुद्धि से बाप को याद कर हिसाब किताब चुक्तु करने है।*
➢➢ *संकल्प बुद्धि
का भोजन है।* अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दरूस्त नहीं रह सकते।
व्यर्थ चीज को फेंका जाता है, इकट्ठा नहीं किया जाता इसलिए *योगबल से व्यर्थ
संकल्प को समाप्त कर समर्थ स्वरुप बनना है।*
➢➢ *ब्राह्मण जीवन
का लक्ष्य है कर्मातीत स्थिति को पाना* क्योंकि विकारी जीवन वा भक्ति की जीवन
दोनों में जन्म-जन्मान्तर से बुद्धि को विस्तार में भटकने का संस्कार बहुत पक्का
हो गया है इसलिए ऐसे *विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को बाप की याद द्वारा सार
रूप में स्थित कर विकर्म विनाश करने है।*
➢➢ *ब्राह्मण
आत्मायें जो ऊंच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते।*
होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र है। हमारी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की
निशानी है। *आत्मा में पड़ी विकारो रूपी खाद्य को बाप की याद से भस्म कर पवित्र
योगी जीवन बनाना है।*
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢
*हम सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हैं। दाता अर्थात् सेवाधारी। दाता देने के
बिना रह नहीं सकते। अपने रहमदिल के गुण से किसी को हिम्मत दो तो किसी निर्बल
आत्मा को बल देना है।*
➢➢
*ब्राह्मण अर्थात होलीहंस,* होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती
के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते,
गन्द ही बोलते... *तो बगुलों के बीच में होलीहंस बन कर रहते हुए अपना प्रभाव उन
पर डालना है।*
➢➢
संगमयुग अर्थात परिवर्तन युग नाउम्मीदों को सदाकाल के लिए उम्मीदों में बदलने
का युग। *कभी कोई स्वभाव-संस्कार में संकल्प न आये कि पता नहीं यह परिवर्तन होगा
या नहीं होगा। सदा के विजयी, कभी-कभी के नहीं। निश्चय अटूट है तो विजय भी सदा
है।* निश्चय में जब क्यों, क्या आता तो विजय अर्थात् प्राप्ति में भी कुछ न कुछ
कमी पड़ जाती है तो सदा उम्मीदवार, सदा विजयी।
➢➢
विनाशी खजाना देने से कम होता है और अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है-एक दो,
हजार पाओ। *मास्टर दाता बन जो बाप से लिया है, वह औरों को दो। आत्माअों से लेने
की भावना नहीं रखो। रहमदिल बन अपने गुणों का, शक्तियों का सबको सहयोग दो, जितना
दूसरों को देते जायेंगे उतना बढ़ता जायेगा।*
➢➢
*निरन्तर स्मृति में रहे कि मैं दाता का बच्चा अखण्ड महादानी आत्मा हूँ।* कोई
भी आत्मा आपके सामने आये चाहे अज्ञानी हो, चाहे ब्रह्मण हो लेकिन कुछ न कुछ सबको
देना है। राजा का अर्थ ही है दाता। तो एक सेकण्ड भी दान देने के बिना रह नहीं
सकते।
➢➢
*ब्राह्मण जीवन की विशेष धारणा पवित्रता है, पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं
लेकिन ब्रह्मचारी और सदा ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर हर कदम
चलने वाले।* संकल्प, बोल और कर्म रूपी कदम ब्रह्मा बाप के कदम ऊपर कदम हो, ऐसे
जो ब्रह्माचारी हैं उनका चेहरा और चलन सदा ही अन्तर्मुखी और अतीन्द्रिय सुख की
अनुभूति कराने वाला होगा।
➢➢
*माया अर्थात कमजोर संकल्प, माया आ नहीं जाती लेकिन हम उसे स्वयं के कमजोर
संकल्पो द्वारा खुद बुलाते है। तो किसी भी प्रकार की कमजोरी से हार नही खानी
है।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ *सदा स्मृति रहे
जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा।* विकारों के वशीभूत
मनुष्य तो लड़ते ही रहेंगे। उनका काम ही यह है। लेकिन *अशान्ति के समय पर
मास्टर शान्ति-दाता बन औरों को शान्ति का दान देने की सेवा करनी है।*
➢➢ *पाण्डव सेना
अर्थात सदा बहादुर, पाण्डव सेना को चित्रों में भी महावीर दिखाते हैं।* तो
बापदादा भी सभी पाण्डवों को विशेष रूप से, सदा विजयी, सदा बाप के साथी अर्थात्
पाण्डवपति के साथी, बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में सदा रहें, यही
विशेष स्मृति का वरदान देते हैं। *भले नये भी आये हो लेकिन हो तो कल्प पहले के
अधिकारी आत्मायें इसलिए सदा महावीर स्थिति में स्थित हो ईश्वरीय कार्य में
सहयोग देना है।*
➢➢ वर्तमान समय में
सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, सब खुशी के भिखारी हैं और आप दाता के बच्चे
हो। *दाता के बच्चों का काम है-देना। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये-खुशी बांटते
जाओ, देते जाओ। कोई खाली नहीं जाये, इतना भरपूर बन सर्व आत्माओ की सेवा करनी
है।*
➢➢ *अब सारे विश्व
की आत्मायें सुख-शान्ति की भीख मांगने के लिये आपके सामने आने वाली हैं। आप दाता
के बच्चे मास्टर दाता बन सबको मालामाल करेंगे। तो पहले से स्वयं के भण्डारे
सर्व खजानों से भरपूर करते जाओ। आप श्रेष्ठ आत्मायें संगम पर अखुट और अखण्ड
महादानी बन सर्व के सहयोगी बन सेवा करो।*
➢➢ *ब्राह्मण
आत्माओं के पास ज्ञान तो पहले ही है, जिस आत्मा को, जिस शक्ति की आवश्यकता हो,
उस आत्मा को मन्सा द्वारा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन्स द्वारा शक्तियों
का दान अर्थात् सहयोग दो। कर्म द्वारा सदा स्वयं जीवन में गुण मूर्त बन,
प्रत्यक्ष सैम्पल बन औरों को सहज गुण धारण करने का सहयोग देना है।*
➢➢ *चाहे कोई कैसा
भी है लेकिन बाप का तो है। आप दाता के बच्चे हो तो हर एक को दिल से बांटो। जो
अशान्ति, दु:ख में भटक रहे हैं वो आपका परिवार हैं। परिवार को सहयोग दो।* तो
वर्तमान समय महादानी बनने के लिये विशेष रहमदिल के गुण को इमर्ज कर किसी से भी
लेने की इच्छा नहीं रखो कि वो अच्छा बोले, अच्छा मान दे। *मास्टर दाता बन वृत्ति
द्वारा, वायब्रेशन्स द्वारा, वाणी द्वारा देते जाओ।*
➢➢ *बेहद के दाता
बन वर्ल्ड के गोले पर खड़े हो, बेहद की सेवा में वायब्रेशन फैलाओ। महान दाता बनो।
बेहद में जाओ तो हदों की बातें स्वत: समाप्त हो जायेंगी।*
────────────────────────