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  10 / 01 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *परमात्मा  में सारा ज्ञान भरा हुआ है, उनकी महिमा गाई हुई है कि वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, ज्ञान का सागर है, चैतन्य आत्मा है। बाप आते ही हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करने , जो प्राय: लोप हो गया है।*


 

➢➢  *भारतवासी अपने दैवी धर्म में थे तो बहुत सुखी थे। वर्ल्ड आलमाइटी अथारिटी राज्य था। पुरुषोत्तम राज्य करते थे। नीचे उतरते हैं तो देवता से क्षत्रिय, क्षत्रिय से फिर वैश्य, शूद्र कनिष्ट बनते हैं।*


 

➢➢  भल बहुत गुरू किये हों तो भी *जब हे भगवान कहते हैं तो कभी उनको गुरू याद नहीं आयेगा। अगर गुरू को याद कर और ही भगवान कहें तो वह मनुष्य तो जन्म-मरण में आने वाला हो गया। तो यह गोया 5 तत्वों के बने हुए शरीर को याद करते हैं, जिसको 5 भूत कहा जाता है। आत्मा को भूत नहीं कहा जाता। तो वह जैसे भूत पूजा हो गई।*


 

➢➢  *उनको (बाप को) ज्ञान सूर्य कहा जाता है।* ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सूर्य और ज्ञान लकी सितारे। *अच्छा ज्ञान सूर्य तो है बाप। फिर माता चाहिए ज्ञान चन्द्रमा। तो जिस तन में प्रवेश किया है वह हो गई ज्ञान चन्द्रमा माता और बाकी सब हैं बच्चे लकी सितारे। इस हिसाब से जगदम्बा भी लकी स्टार हो गई क्योंकि बच्चे ठहरे ना। स्टार्स में कोई सबमें तीखा भी होता है। वैसे यहाँ भी नम्बरवार हैं।* 

 

➢➢  *जब कलियुग का अन्त आये तब भक्ति का भी अन्त आये, तब ही भगवान आकर मिले क्योंकि वही भक्ति का फल देने वाला है।*


 

➢➢  *नईया पार करने वाला सतगुरू एक है। डुबोने वाले अनेक हैं। सभी विषय सागर में डूबे हुए हैं तब तो कहते हैं इस असार संसार, विषय सागर से उस पार ले चलो, जहाँ क्षीरसागर है।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम्हें तो देही-अभिमानी बन एक विदेही बाप को याद करना है।*


 

➢➢  *निराकार भगवान को तो बहुत याद करते हैं।* जिन्होंने गुरू नहीं किया है, *छोटे बच्चे हैं उनको भी सिखाया जाता है परमात्मा को याद करो, परन्तु किस परमात्मा को याद करो - यह नहीं बताया जाता। कोई भी चित्र बुद्वि में नहीं रहता।* 


 

➢➢  *वास्तव में परमात्मा नाम जब निकलता है तो बुद्धि निराकार तरफ चली जाती है। निराकार बाप को निराकार आत्मा याद करती है।* उसको देही-अभिमानी कहेंगे।


 

➢➢  *बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं मैं फिर से 5 हजार वर्ष बाद तुमको वही राजयोग सिखाने आया हूँ। अपने को निराकार आत्मा समझें तो निराकार परमात्मा को याद करें।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अब तुम मरजीवा बने हो तुम परमपिता परमात्मा के आगे जीते जी मरते हो। तो यह है मरजीवा जन्म।* 


 

➢➢  ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी चित्र है उनको भगवान नहीं कह सकते। *तुम ब्राह्मण ब्रह्मा को नहीं परमपिता परमात्मा को याद करते हो क्योंकि ब्रह्मा द्वारा तुम उनके बने हो।*


 

➢➢  *परमात्मा का यादगार है तो जरूर वह आया होगा, स्वर्ग रचा होगा।* नहीं तो स्वर्ग कौन रचेगा। *अब फिर आकर यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। इसको यज्ञ कहा जाता है क्योंकि इसमें स्वाहा होना होता है।* 


 

➢➢  *पहले मेहनत कर अपना पद तो प्राप्त कर लो। लायक तो बनो।*


 

➢➢  *साकार शरीर को याद करना भी भूत अभिमानी बनना है, क्योंकि शरीर 5 भूतों का है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *शूद्रों को ब्रह्मण धर्म में कनवर्ट करने की सेवा करनी है।*


 

➢➢  *भगवान बैठ बच्चों को समझाते हैं कि मनुष्य को भगवान नहीं कहा जा सकता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी चित्र है उनको भगवान नहीं कह सकते। परमपिता परमात्मा का निवास उनसे भी ऊंच है। उनको ही प्रभू, ईश्वर, भगवान आदि कहते हैं। मनुष्य जब पुकारते हैं तो उन्हों को कोई भी आकार वा साकार मूर्त दिखाई नहीं पड़ती, इसलिए किस भी मनुष्य आकार को भगवान कह देते हैं।*


 

➢➢  *परमात्मा का यादगार है तो जरूर वह आया होगा, स्वर्ग रचा होगा। माया रावण ने भारत को कौड़ी तुल्य बना दिया है। बाप आकर हीरे तुल्य बनाते हैं। ब्रह्मण धर्म, सूर्यवंशी देवता धर्म और चन्द्रवंशी क्षत्रिय धर्म तीनों का स्थापक एक ही परमपिता परमात्मा है।*


 

➢➢  *इस समय तो सारी दुनिया तमोप्रधान है । आज से 5 हजार वर्ष पहले परमपिता परमात्मा शिव पधारे थे। नहीं तो शिव जयन्ती क्यों मनाते! परमपिता परमात्मा जरूर बच्चों के लिए सौगात ले आयेंगे और जरूर सर्वोत्तम कार्य करेंगे। सारी तमोप्रधान सृष्टि को सतोप्रधान सदा सुखी बनाते हैं।*


 

➢➢  *शमा कहने से मनुष्य ज्योति समझ लेते हैं। यह तो बाप ने खुद समझाया है मैं परम आत्मा हूँ, जिसका नाम शिव है। शिव को रूद्र भी कहते हैं। उस निराकार के ही अनेक नाम हैं और कोई के इतने नाम नहीं।*


 

➢➢  *अब क्रियेटर तो जरूर नया धर्म, नई दुनिया रचेगा। ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मण कुल ही रचेगा। पहले-पहले सभी से सर्वोत्तम पुरुष जो बनते हैं वही फिर मध्यम, कनिष्ट बनते हैं। तो लक्ष्मी-नारायण हैं पुरुषोत्तम।*

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