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  13 / 03 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  पारलौकिक मात-पिता का बनना और लौकिक मात-पिता, मित्र-सम्बन्धियों को छोड़ना - इसके लिए देही-अभिमानी बनने का ज्ञान चाहिए। *जब तक देही-अभिमानी नहीं बनते हैं तब तक छूटना बड़ा मुश्किल है।* 

 

➢➢  हद के एक घर से नाता तोड़ हद के दूसरे घर से नाता जोड़ना तो बहुत सहज है । हर जन्म में तोड़ना और जोड़ना होता है। एक मात-पिता, मित्र-सम्बन्धियों को छोड़ा दूसरा लिया। एक शरीर छोड़ा तो फिर मात-पिता, मित्र सम्बन्धी, गुरू आदि सब नये मिलते हैं। *यहाँ तो है जीते जी मरने की बात।*

 

➢➢  *यह बाप तो है फिर माता भी कैसे है? यह है गुह्य बात। बाप यह शरीर धारण कर इनसे फिर अपना बच्चा बनाते हैं।* परन्तु कई बच्चे यह बात घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। अज्ञान काल में कभी माँ-बाप को भूलते नहीं हैं। इस माँ-बाप को भूल जाते हैं क्योंकि यह है नई बात।     
   
➢➢  यह सन्यास धर्म नहीं होता तो भारत और ही काम चिता पर जलकर भस्म हो जाता। *अब वह रजोगुणी सन्यास स्थापन करने वाला कौन और यह सतोप्रधान सन्यास स्थापन करने वाला कौन - यह बाप बैठ समझाते हैं।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *लौकिक जगत के माता-पिता को, मित्र सम्बन्धियों आदि सबको छोड़ो और बुद्धियोग अपने सच्चे मात-पिता, जो सृष्टि के रचयिता हैं, उनसे लगाओ।*  उनको भी मात-पिता कहा जाता है। तुम मात-पिता हम बालक तेरे.. वह सब एक को कहते हैं। वह लौकिक माँ बाप तो सबके अलग-अलग हैं। यह सारे भारत अथवा सारी दुनिया का मात-पिता है।

 

➢➢  *झाड़ बुद्धि में है तो बीजरूप बाप भी याद रहता है।* हम भी वहाँ के रहने वाले हैं फिर इस झाड़ में हम ही आलराउन्ड आते हैं, आदि से अन्त तक। जब तुम पतित जड़जड़ीभूत अवस्था में आते हो तो सारा झाड़ आ जाता है।

 

➢➢  चिन्तन चलना चाहिए - *हम बच्चे बाबा के साथ मददगार हैं। तो बुद्धि में आना चाहिए कि हम किसको ड्रामा का राज़ कैसे समझायें? उन्हों का योग बाप के साथ कैसे जुटायें?* मनुष्य से देवता बनाने का पुरुषार्थ करायें अर्थात् बाप से बेहद का वर्सा लेने का मार्ग बताये। 

 

➢➢  *प्रजापिता ब्रह्मा बेहद प्रजा का बाप है ना और शिवबाबा है सभी आत्माओं का बाप। उनका निवास स्थान है परमधाम में। वही पतितों को पावन बनाने वाला है, इसलिए सारी दुनिया उनको याद करती है*। ओ गॉड कहते हैं तो निराकार ही बुद्धि में आता है।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह जो माता, पिता; मित्र-सम्बन्धी आदि हैं, उनसे अब नाता तोडना है और एक से नाता जोड़ना है।*

 

➢➢  इस मात-पिता से बुद्धियोग जोड़ना है फिर सर्विस में तत्पर रहना है। *जैसे बाप को सर्विस का फुरना रहता है, ऐसे बच्चों को भी रहना चाहिए।* कहते हैं भगवान को फुरना हुआ नई दुनिया रचे। तो यह कितना बड़ा फुरना है!

 

➢➢  *जीते जी पारलौकिक मातपिता की गोद में आना है।* इस कलियुगी जगत के मात-पिता आदि सबको भुलाना है।

 

➢➢  *ड्रामा चक्र को समझना है। ऐसे नहीं बैठ जाना है कि ड्रामा में जो होगा।* ड्रामा में एक्टर्स तो सब हैं। तो भी हर एक अपनी आजीविका के लिए पुरुषार्थ जरूर करते हैं। *पुरुषार्थ बिगर रह न सकें।*

 

➢➢  काम-क्रोध को भी जीत लेवे परन्तु देह-अभिमान है पहला नम्बर दुश्मन। *देही-अभिमानी बनने से ही फिर और विकार ठण्डे होंगे।* देही-अभिमानी तब बने, जब बाप के साथ लव जुटे।

 

➢➢  *स्वभाव भी बहुत मीठा धारण करना है।* किसके भाव-स्वभाव में जलना वा मरना नहीं है। *सहन करना है। अपनी सर्विस करनी है।* जितना हो सके सर्विस में टाइम देना चाहिए।

 

➢➢  पहले नम्बर में देवतायें गिने जाते हैं, दूसरे नम्बर में सन्यासी । *सारा मदार है ही पवित्रता पर।* दुनिया को पवित्र से अपवित्र फिर अपवित्र से पवित्र बनना ही है।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम बच्चे सबको बताओ कि बाप आया हुआ है राजयोग सिखलाने, कल्प पहले मुआफ़िक। जिसको ही शिवाए नम: कहते हैं। जो है सभी से ऊंच ते ऊंच परमधाम में रहने वाला। हम सभी आत्मायें भी वहाँ निवास करती हैं।*

 

➢➢  बेहद के बाप को बेहद का फुरना रहता है - सबको पावन बनाना है। उस पावन दुनिया स्वर्ग के लिए राजयोग सिखाना है। कितने को सिखलाना है! *सबका बुद्धियोग बाप के साथ जोड़ना है। यही धन्धा हम बच्चों का है।*

 

➢➢  *बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते तुम बच्चे सर्विस करके दिखाओ।* सन्यासियों को फुरना रहता है हम कोई को काग विष्टा समान सुख से छुड़ावें, पवित्र बनाये। उन पर भी रेसपान्सिबिल्टी रहती है - किसको वैराग्य दिलाए पवित्र बनायें।

 

➢➢  *जो सर्विसएबुल हैं उन्हों को ओना रहता है हम बाबा के मददगार हैं, मनुष्यों को फिर से सो देवता बनाने के लिए।* यह समझाना पड़ता है। तुम सो देवता थे, सो क्षत्रिय बने। 84 जन्मों की जन्मपत्री तुम ही बता सकते हो। तो यह बातें जब बुद्धि में टपकती रहेंगी तब किसको समझा सकेंगे।

 

➢➢  *तुम ब्राह्मणों का काम ही है सबको ज्ञान सुनाए सम्मुख लाना। तुम ब्राह्मण हो गीता के भगवान के सच्चे-सच्चे बच्चे। तुमको अथॉरिटी मिली हुई है।* तुम्हारी बुद्धि में गीता का ही ज्ञान है। जो समझा नहीं सकते उनको हम ब्राह्मण नहीं कह सकते। हाफ कास्ट वा क्वार्टर कास्ट कहेंगे।

 

➢➢  देहअभिमानी कुछ न कुछ तीर लगाकर आयेगा। महसूस करेंगे कि फलाने ने बात तो ठीक कही थी। योग जुट जाए तो सर्विस का फुरना भी हो। उसमें *पहले-पहले तो अल्फ पर समझाना है।* जास्ती तीक-तीक से तंग हो जायेंगे। *पहले शिवाए नमः, तीन तबका भी समझाना है। एक निराकारी दुनिया जहाँ परमपिता परमात्मा और आत्मायें रहती हैं।*

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