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  11 / 01 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  जबकि तुम पीस स्थापन कर रहे हो तो तुमको भी बहुत पीस में रहना चाहिए। *बच्चों को यह तो बुद्धि में होना चाहिए कि हम पारलौकिक बाप के एडॉप्टेड बच्चे हैं। परमधाम से बाप आये हैं। वह है दादा (ग्रैण्ड फादर) यह दादा (बड़ा भाई) है, जो पूरा सरेण्डर हैं वो समझेंगे हम ईश्वरीय माँ-बाप से पलते हैं।*

➢➢  शिवबाबा कहते हैं - तुम ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मा मुख वंशावली बने हो। ब्रह्मा भी कहते हैं तुम हमारे बच्चे बने हो। *तुम ब्राह्मणों की बुद्धि में श्वाँसों श्वाँस यही चलेगा कि यह हमारा बाप है, वह हमारा दादा है। बाप से जास्ती दादे को याद करते हैं। वह मनुष्य तो बाप से झगड़ा आदि करके भी दादे से प्रापर्टी लेते हैं। तुमको भी कोशिश करके बाप से भी जास्ती दादे से वर्सा लेना है।*

➢➢  अन्तर्यामी बाप हर एक की बुद्धि को समझते हैं। यहाँ शास्त्रों की तो कोई बात ही नहीं। *बाप ने आकर राजयोग सिखाया है, जिसका नाम गीता रखा है। बाकी तो छोटे मोटे धर्मों वाले सब अपना-अपना शास्त्र बना लेते हैं फिर वह पढ़ते रहते हैं। बाबा शास्त्र नहीं पढ़े हैं।* 

➢➢  पहले तो निश्चय चाहिए कि बरोबर बाबा स्वर्ग रचता है। अभी तो है नर्क। *जब कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग गया, तो जरूर नर्क में था ना। परन्तु यह तुम अभी समझते हो क्योंकि तुम्हारी बुद्धि में स्वर्ग है। बाबा रोज नये-नये तरीके से समझाते हैं।* 

➢➢  *निराकार तो साकार सृष्टि का मालिक हो न सके। वह है ब्रह्माण्ड का मालिक। वही आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं। खुद पावन दुनिया का मालिक नहीं बनते। उनका मालिक तो लक्ष्मी नारायण बनते हैं और बनाने वाला है बाप।* यह बड़ी गुह्य बातें हैं समझने की। हम आत्मा भी जब ब्रह्म तत्व में रहती हैं तो ब्रह्माण्ड के मालिक हैं।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बेहद के बाप को याद करना है, 84 जन्मों को याद करना है और चक्रवर्ती राजाई को भी याद करना है।*

➢➢  यह परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं परमधाम का रहवासी हूँ। तुमको लेने लिए आया हूँ। कृष्ण तो ऐसे कह न सके। रुद्र शिवबाबा कहते हैं, यह रुद्र यज्ञ रचा हुआ है। गीता में भी रुद्र की बात लिखी हुई है। *वह रूहानी बाप कहते हैं मुझे याद करो। बाप ऐसी युक्ति से यात्रा सिखाते हैं, जो जब विनाश हो तो तुम आत्मा शरीर छोड़ सीधा बाप के पास चले जायेंगे।* फिर तो शुद्ध आत्मा को शुद्ध शरीर चाहिए, सो तब होगा जब नई सृष्टि हो।

➢➢  *बाप कहते हैं सिर्फ मेरे को और चक्र को याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा। कितना सहज है। तुम बच्चे हो चैतन्य परवाने, बाबा है चैतन्य शमा।* तुम कहते हो अभी हमारा राज्य स्थापन होना है। अब सच्चा बाबा आया हुआ है भक्ति का फल देने। 

➢➢  *अब बाप कहते हैं मुझे याद करो अर्थात् शिवबाबा को याद करो इससे तुम्हारी ज्योति जगेगी, फिर तुम उड़ने लायक बन जायेंगे।* माया ने सबके पंख तोड़ डाले हैं।

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  राजा रानी को भी मात-पिता कहते हैं। परन्तु वह फिर भी जिस्मानी मात-पिता हुए। राज-माता भी कहते हैं तो राज-पिता भी कहते हैं। यह फिर हैं बेहद के। बच्चे जानते हैं कि हम मात-पिता के साथ बैठे हैं। *यह भी बच्चे जानते हैं कि हम जितना पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। साथ-साथ शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है।*

➢➢  *जब बाबा सम्मुख सुनाते हैं तो कितना खुशी का पारा चढ़ता है। बुद्धि को रिफ्रेश किया जाता है तो नशा चढ़ता है।* फिर किसी-किसी को वह नशा स्थाई रहता है, किसी-किसी में कम हो जाता है।

➢➢  यह हमारा पारलौकिक माँ-बाप है। यह आते ही पुरानी सृष्टि में हैं, जब मनुष्य बहुत-बहुत दु:खी होते हैं। *बच्चे जानते हैं कि हमने इस पारलौकिक मात-पिता की गोद ली है। हम सब आपस में भाई-बहन हैं। दूसरा कोई हमारा सम्बन्ध नहीं है। तो भाई बहन को आपस में बहुत मीठा, रॉयल, पीसफुल, नालेजफुल, ब्लिसफुल बनना चाहिए।*

➢➢  *जितना अच्छा पढ़ेंगे उतना अच्छा पद मिलेगा। माँ-बाप भी खुश होंगे।* इम्तहान में पास होते हैं तो मिठाई बाँटते हैं। यहाँ तो तुम रोज मिठाई बाँटते हो। फिर जब इम्तहान में पास हो जाते हो तो सोने के फूलों की वर्षा होती है। तुम्हारे ऊपर कोई आकाश से फूल नही गिरेंगे परन्तु तुम एकदम सोने के महलों के मालिक बन जाते हो। 

➢➢  बाप कहते हैं बच्चे - मैं तुमको स्वर्ग की राह बताने आया हूँ। *तुम जैसे अशरीरी आये थे, वैसे ही तुमको जाना है। देह सहित सब इन दु:खों के कर्मबन्धन को छोड़ देना है* क्योंकि देह भी दु:ख देती है। बीमारी होगी तो क्लास में आ नहीं सकेंगे। तो यह भी देह का बन्धन हो गया, इसमें बुद्धि बड़ी सालिम चाहिए। 

➢➢  जैसे यात्रा पर जाते हैं तो बद्रीनाथ का मन्दिर ऊपर रहता है। पण्डे ले जाते हैं, बद्रीनाथ खुद तो ले चलने लिए नहीं आता है। मनुष्य पण्डा बनते हैं। *यहाँ शिवबाबा खुद आते हैं परमधाम से। कहते हैं हे आत्मायें तुमको यह शरीर छोड़ शिवपुरी चलना है। जहाँ जाना है वह निशाना जरूर याद रहेगा।* वह बद्रीनाथ चैतन्य में आकर बच्चों को साथ ले जाये, ऐसे तो हो नहीं सकता। वह तो यहाँ का रहवासी है।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *श्रीकृष्ण को तो मात-पिता कह नहीं सकते। भल उनके साथ राधे भी हो तो भी उनको माता पिता नहीं कहेंगे क्योंकि वह तो प्रिन्स प्रिन्सेज हैं।* शास्त्रों में यह भूल है। अब यह बेहद का बाप तुमको सभी शास्त्रों का सार बताते हैं।

➢➢  *अभी तो सभी आत्मायें मच्छरों सदृश्य वापस जायेंगी, बाबा के साथ, इसलिए उनको खिवैया भी कहा जाता है। इस विषय सागर से उस पार ले जाते हैं।* 

➢➢  कृष्ण को खिवैया नहीं कह सकते। *बाप ही इस दु:ख के संसार से सुख के संसार में ले जाते हैं। यही भारत विष्णुपुरी, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब रावणपुरी है।*

➢➢  *रावण का चित्र भी दिखाना चाहिए। चित्रों से बहुत काम लेना है।* जैसे हमारी आत्मा है वैसे बाबा की आत्मा है। सिर्फ हम पहले अज्ञानी थे, वह ज्ञान का सागर है। *अज्ञानी उसको कहा जाता है जो रचता और रचना को नहीं जानते हैं। रचता द्वारा जो रचता और रचना को जानते हैं उनको ज्ञानी कहा जाता है। यह ज्ञान तुमको यहाँ मिलता है। सतयुग में नहीं मिलता।*

➢➢  *लोग कहते हैं परमात्मा विश्व का मालिक है। मनुष्य उस मालिक को याद करते हैं, परन्तु वास्तव में विश्व का अथवा सृष्टि का मालिक तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। निराकार शिवबाबा तो विश्व का मालिक बनता नहीं। तो उन्हों से पूछना पड़े कि वह मालिक निराकार है या साकार?*

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