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❍ 06 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *ब्रह्मण कुल को रचने वाला ब्रह्मा। ब्रह्मा और कृष्ण में तो बहुत फर्क है।* कृष्ण के मुख से देवतायें रचे गये - ऐसे तो कहाँ भी नहीं लिखा हुआ है। अभी तुम बच्चे जानते हो दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसकी बुद्धि में यह हो कि निराकार परमात्मा साकार में आकर आत्माओंको ज्ञान देते हैं। *ज्ञान लेने वाली भी आत्मा है तो देने वाली भी आत्मा है।*
➢➢ *तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय में ही ज्ञान आ सकता है। आसुरी सम्प्रदाय में
ज्ञान कहाँ से आया?* भल गाते भी हैं पतित-पावन.. परन्तु अपने को पतित समझते
नहीं। स्वर्ग को तो बिल्कुल जानते ही नहीं। सिर्फ नाम मात्र कहते हैं, यह
भी नहीं समझते हैं कि देवतायें स्वर्गवासी हैं। *तुम जब समझाते हो तब आंखे
खुलती हैं।*
➢➢ *तुमको तो बाप खुद पढ़ाते हैं। तुम स्टूडेन्ट ही गोप-गोपियां हो।
वास्तव में यह अक्षर सतयुग से निकला है।* वहाँ प्रिन्स प्रिन्सेज खेलपाल
करते हैं तो प्रिय नाम गोप गोपियां रखा है। कृष्ण के साथ दिखाते हैं। बड़े
हो जाते हैं तो गोप गोपियां नहीं कहा जाता है। होंगे तो सभी प्रिन्स ना।
➢➢ *परमात्मा का पूरा परिचय है।* भल तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो,
देह-अभिमान में आ जाते हो, पूरी रीति कोई से मेहनत होती नहीं। *माया ऐसी है
जो पुरुषार्थ करने नहीं देती।* खुद भी सुस्त हैं तो माया और ही सुस्त बना
देती है। *विश्व का मालिक खुद बठै पढ़ाते हैं, जिसमें मात-पिता, बन्धु सखा,
गुरू आदि सभी सम्बन्धों की ताकत आ जाती है।*
➢➢ *यह नालेज बड़ी खुशी की है। ऐसा बेहद का बाप स्वयं तुम बच्चों के और कोई को मिलता नहीं है*। विवेक भी कहता है परमपिता परमात्मा का जो बच्चा बना है उनकी खुशी का पारावार नहीं होना चाहिए। *परन्तु लोभ मोह आदि विकार आने से खुशी को दबा देते हैं।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह बाप आकर न पढ़ाते तो हम क्या पढ़ सकते? नहीं। यह मोस्ट लवली बाप है। *सबसे अच्छी मत देते हैं - मनमनाभव। मुझे याद करो। स्वर्ग को याद करो, चक्र को याद करो।*
➢➢ हम अभी जानते हैं कि शंख है ज्ञान का, जो निराकार बाप देते हैं। विष्णु
थोड़ेही देते हैं। और देते हैं मनुष्यों को। जो फिर देवता अथवा विष्णु बनते
हैं। कितना मीठा ज्ञान है। *तो कितना खुशी से बाप को याद करना चाहिए*।
➢➢ तुम जानते हो हम आत्मायें 84 जन्मों का चक्र लगाकर आई हैं। *अब यह अन्तिम जन्म है। यह घड़ी-घड़ी बुद्धि में याद रहना चाहिए।*
➢➢ तो बाप कितना समझाते हैं, कहते हैं श्रीमत पर चलो। इस समय तुमको सुख ही सुख मिलता है। उनकी कितनी महिमा है। *सबके दु:ख कैन्सिल कराए सभी को सुख देते हैं। कहते हैं मामेकम् याद करो।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुमको भी अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल रहा है। तो बुद्धि रूपी नेत्र खुल जाता है तो अच्छा पुरुषार्थ करने लग पड़ते हैं।* कोई का पूरा नहीं खुलता है, धारणा नहीं होती, दैवी चलन भी नहीं होती। माया के तूफान में घड़ी-घड़ी गिरते रहते हैं।
➢➢ *आन्तरिक नारायणी नशा चढ़ा होगा तो वर्णन भी करेंगे, औरों को समझायेंगे।*
यह पढ़ाई तो राजाओंका राजा बनाने वाली है।
➢➢ *आगे के लिए पुरुषार्थ करो। अपना चार्ट देखो - इतने समय में क्या धारणा
की है?* कोई 25-30 वर्ष के हैं। कोई एक मास, कोई 7 रोज के बच्चे हैं। परन्तु
15-20 वर्ष वालों से गैलप कर रहे हैं। वन्डर है ना। या तो कहेंगे माया
प्रबल है या तो ड्रामा पर रखेंगे। *परन्तु ड्रामा पर रखने से पुरुषार्थ
ठण्डा हो जाता है*।
➢➢ यह भी पढ़ाई है। बुद्धि से काम लेना पड़ता है। राधे-कृष्ण को 16 कला लकी कहेंगे। राम-सीता दो कला कम हो गये। नापास हुए। *सबसे नम्बरवन लकी लक्ष्मी-नारायण हैं। वह भी इस पढ़ाई से ऐसे बने हैं। पुरुषार्थ में कमी करने से अनलकी बन पड़ते हैं।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सतयुग त्रेता में माँ बाप तो दु:ख नहीं देते। यहाँ माँ बाप प्यार तो बहुत करते हैं, परन्तु उनको फिर काम कटारी नीचे डाल देते हैं। तो दु:ख आरम्भ हो जाता है। सतयुग में तो ऐसे नहीं होता। वहाँ तो दु:ख की बात नहीं।*
➢➢ यह भी किसको पता नहीं है कि रावण राज्य कब आरम्भ होता है। *आधाकल्प
रामराज्य, आधाकल्प रावण राज्य। यह है राम राज्य और रावण राज्य की कहानी।*
➢➢ यह सत्य नारायण की कथा तो मशहूर है। परन्तु विद्वान, आचार्य भी नहीं
जानते। गीता का कितना आडम्बर बनाया है। *लाखों सुनते हैं, परन्तु समझते कुछ
भी नहीं हैं। अब इन विचारों को कौन सुजाग करे। यह तुम बच्चों का काम है।*
➢➢ तुम सब लकी स्टार्स हो। तुम्हारी भेंट ऊपर के स्टार्स से की जाती है। *तुम सृष्टि के सितारे हो।* वह तो सिर्फ रोशनी देते हैं। *तुम तो मनुष्यों को जगाने की सेवा करते हो। दु:खियों को सुखी बनाते हो*।
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