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❍ 20 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *देहली को ही परिस्तान कहते हैं। इस समय है कब्रिस्तान। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। देहली परिस्तान थी, स्वर्ग थी। अब नर्क है*।
➢➢ *अब भगवान है निराकार ज्ञान का सागर, जिसको सभी मानते हैं। उनका यादगार मन्दिर भी शिव का है*। मनुष्यो को ब्रह्मा विष्णु शंकर का चित्र देंगे तो कहेंगे यह ब्रह्मा है, यह विष्णु है। *भगवान ब्रह्मा वा भगवान विष्णु नहीं कहेंगे। भगवान एक निराकार को कहेंगे। वह शिव ही है।*
➢➢ *मनुष्य समझते हैं लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक थे। सिर्फ यह भूल गये हैं कि लक्ष्मी-नारायण छोटेपन में राधे-कृष्ण थे। सतयुग में महाराजा महारानी थे तो जरूर उन्हों का बचपन भी होगा। उन्हों की यह प्रालब्ध जरूर स्वर्ग के रचयिता ने बनाई होगी। वह कब आया - किसको भी यह पता नहीं।*
➢➢ *शिव का लिंग तो है। यह शिव का बड़ा रूप करके रखा है। वास्तव में कोई इतना बड़ा तो नहीं है ना। वह तो स्टार है, उनका कोई चित्र तो समझ न सके। यह सिर्फ पूजा के लिए बड़ा चित्र बनाया है*।
➢➢ *सारी दुनिया का कोई धनी धोणी नहीं है। मनुष्य, मनुष्य में लड़ते हैं।* जानवर भी लड़ते हैं। कोई धनी धोणी नहीं है। धनी है बाप रचयिता।* उनके आने से ही सब बच्चे धणके बन जाते हैं। *बाप बच्चों को शान्तिधाम और फिर सुखधाम ले जाते हैं। पहले सतोप्रधान फिर सतो, रजो, तमो। हर एक चीज़ ऐसे ही होती है।* छोटे बच्चे भी सतोप्रधान हैं इसलिए प्रिय लगते हैं।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *शान्ति चाहिए तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो मेरे पास चले आयेंगे।* जो स्वर्ग में आने वाले होंगे वह कहेंगे हम तो ज्ञान जरूर लेंगे, सुख जरूर लेंगे। बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है। तुम जानते हो हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं।
➢➢ आत्मा और परमात्मा। विकारी को तो परमात्मा नहीं कहा जाता। वह समझते हैं हम निर्विकारी बन परमात्मा बन जायेंगे। बाप कहते हैं ऐसे तो हो नहीं सकता। कोई भी मिल नहीं सकता। *मैं आकर सबको वापिस ले जाऊंगा। निशानी भी है महाभारी लड़ाई। बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप खुद स्वर्ग का मालिक नहीं बनते हैं, बच्चों को बनाते हैं। तुम कहते हो बाबा हमको फिर से स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। *इतने सब निश्चयबुद्धि हैं तो देखकर निश्चयबुद्धि बनना चाहिए*।
➢➢ *बाप कहते हैं इसमें (ज्ञानमार्ग में) छोड़ना कुछ भी नहीं है। यह है अन्तिम जन्म। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है।* यह है मृत्युलोक, वह है अमरलोक। गाया जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। वहाँ विकार होता नहीं। तो मानना चाहिए ना।
➢➢ गाया भी हुआ है संग तारे कुसंग बोरे। *यह है सत का संग। उनकी श्रीमत पर चलने से हम नई दुनिया में आ जायेंगे।* निश्चय में संशय आ जाता है तो वर्सा मिल न सके।
➢➢ सर्वशक्तिमान तो बाप है ना। कहते हैं अगर तुम मेरी मत पर चलेंगे तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा। कल्प-कल्प तुम मेरी श्रीमत से ऐसे श्रेष्ठ बनते हो। आधाकल्प बाद जब मेरी मत पूरी हो आसुरी मत शुरू होती है तो तुम कंगाल कौड़ी जैसे बन पड़ते हो। अब फिर *तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बनाता हूँ, तो श्रीमत पर चलना चाहिए ना।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप ने समझाया है कि भगवान एक ही है जिसने भगवती को रचा*। बरोबर भगवानुवाच है। जैसे बैरिस्टर-वाच, सर्जन-वाच.. यह फिर है भगवानुवाच। *भगवान कहते हैं मैं तुम्हें स्वर्ग का मालिक राजाओं का राजा बनाऊंगा। यह है गीता। परन्तु मनुष्य भूल गये हैं कि गीता का भगवान कौन था।*
➢➢ *सतयुग का अन्त, त्रेता के आदि का संगम कोई कल्याणकारी नहीं है क्योंकि सतयुग में जो 16 कला सम्पूर्ण हैं, वही देवी-देवता फिर 14 कला बन जाते हैं। तो वह कल्याणकारी युग थोड़ेही हुआ। फिर त्रेता के अन्त, द्वापर युग के आदि का भी संगम हुआ परन्तु उसमें भी कलायें कम होती हैं। सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में गिरते हैं। तमोप्रधान बनना ही है। तो इस समय सारी दुनिया दु:खी है। इसको कहा जाता है आरफन्स की दुनिया। कोई धनी धोणी नही।*
➢➢ *बाप ने समझाया है स्वर्ग का रचयिता है परमपिता परमात्मा। स्वर्ग में तो सदैव सुख होता है। बाप थोड़े ही बच्चों को रचकर दु:खी बनायेंगे। यह तो हो नहीं सकता।*
➢➢ *रचयिता एक निराकार को ही कहा जाता है। साकार को कभी क्रियेटर नहीं मानेंगे। इनकारपोरियल गॉड फादर कहते हैं।* लक्ष्मी-नारायण सतयुग आदि में थे। अभी तो है कलियुग। *यहाँ मनुष्य दु:खी कंगाल हैं।* राजा रानी तो हैं नहीं। *स्वर्ग की तो बहुत महिमा है। कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ। स्वर्ग याद आता है तो जरूर स्वर्ग कोई अच्छी चीज़ थी। नर्क में जो मरते हैं, उनको पुनर्जन्म जरूर नर्क में ही लेना पड़े। जैसा कर्म करते हैं उस अनुसार यहाँ ही जन्म लेना पड़ता है।*
➢➢ *क्रिश्चियन, बौद्धी आदि सबको मालूम है कि हमारा धर्म फलाने ने स्थापन किया। उनका धर्म शास्त्र यह है। पहले-पहले मुख्य बात ही यह है इसलिए बाबा चित्र बनवाते हैं। समझाने के लिए ही बनवाते हैं।* आगे वाले चित्रों में कोई लिखत थोड़े ही थी।
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