━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

  07 / 03 / 18  

       MURLI SUMMARY 

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

 

❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  *भागवत के साथ गीता का, गीता के साथ फिर महाभारत लड़ाई का कनेक्शन है। अभी वही संगमयुग है। कृष्ण का तो नाम ही नहीं। कृष्ण की राजधानी है सतयुग में। कृष्ण ने कोई पतित को पावन बनाने के लिए कभी राखी नहीं बांधी।* यह है पतित को पावन बनाने का उत्सव। सो तो पतित-पावन परमात्मा ही है न कि श्रीकृष्ण। 


➢➢  अभी तुम जानते हो हम फिर से गंवाया हुआ सतयुग का राज्य-भाग्य ले रहे हैं। *जब बाबा बच्चों को कहते हैं तब याद करते हैं, फिर भूल जाते हैं। जो बात याद रहती है वह फिर औरों को समझाने के लिए दिल टपकती है। याद नहीं होगी तो दिल टपकेगी नहीं। फिर वह खुशी की उछल नहीं आयेगी। मुरझाई हुई शक्ल दिखाई देगी।*


➢➢  *क्रिश्चियन (अंग्रेज) से तो राज्य ले लिया हठ से, भूख हड़ताल आदि करके। यहाँ तो वह कोई बात नहीं। तुम्हारी दिल में है हम 5 हजार वर्ष पहले मुआफ़िक फिर से राज्य-भाग्य प्राप्त करते हैं, बाप की श्रीमत पर चलने से।* इसमें तलवार आदि कुछ भी चलाने की मत नहीं देते। कहते हैं बच्चे स्वीट टेम्पर बनो। *बहुत मीठे बनो।*

 

➢➢  अब तुम बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हो भविष्य के लिए और कोई भी भविष्य के लिए पुरुषार्थ नहीं करते हैं। *पुरुषार्थ में फिर माया भुला देती है फिर जैसे के वैसे बन जाते हैं। माय एकदम मुंह फेर देती है, इसलिए बहुत सम्भाल करनी है। जितना हो सके खुशी से बाबा को याद करना है।*


➢➢  *यहाँ हैं सब आसुरीं बुद्धि, सतयुग में हैं दैवी बुद्धि। आसुरी के बाद फिर देवी जरूर बनना है। आसुरी और दैवी, पतित और पावन में फ़र्क बहुत है। तुम जानते हो हम पावन थे फिर रावण ने पतित बनाया है।* अभी फिर बाप द्वारा हम फिर से पावन दुनिया का वर्सा ले रहे हैं, सतयुगी राज्य-भाग्य का वह भी 21 जन्मों के लिए।

 

➢➢  क्रोध भी मनुष्य की पूरी ही सत्यानाश कर देता है। यह भी बड़ी परीक्षा होती है। *क्रोध का भूत आकर दरवाजा ठोकते हैं, देखें भौं-भौं करते हैं। अगर कोई भौं-भौं करने लग पड़ते हैं तो दीवा बुझ जाता है। माया सबकी परीक्षा लेती रहती है।*

 

➢➢  *तुम्हारी बुद्धि में है। जो माँ बाप दादे के दिल पर चढ़े हुए बच्चे हैं, वही तख्तनशीन बनेंगे। जो फरमानबरदार नहीं वह क्या पद पायेंगे। पद पाना चाहिए सूर्यवंशी।* नहीं तो पाई पैसे के दास दासी जाकर बनेंगे।

────────────────────────

 

❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। क्रोध की भी स्टेजेस होती हैं। काम का भूत तो बड़ा खराब है। *भल कोई में काम का भूत फिर से प्रवेश न करे। उनको योगबल से निकाल देना है। योग से ही क्रोध का भूत भी निकलता है। घड़ी-घड़ी दरवाजा खटकाते हैं। कहाँ मार्जिन देखी और घुस पड़ते।* 

 

➢➢  *यह बाप कहते हैं मैं ज्ञान और योगबल से तुम्हारे चित्र ऐसे बना रहा हूँ जो तुमको यह शरीर छोड़ने के बाद एकदम फर्स्टक्लास शरीर मिल जायेगा।* तो मनुष्य से देवता बन जायेंगे।

 

➢➢  कुछ न कुछ कांटे भी लगते हैं, माया का वार होता है। दीवे को तूफान लगते हैं। *जितना ज्ञान और योग में रहेंगे तो इस घृत से (बाबा की याद) तुम्हारी ज्योति जगी रहेगी।*

────────────────────────

 

❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  बाबा के पास बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे थे, माया का तूफान सहन नहीं कर सके तो गिर पड़े फिर कहा जाता है किस्मत। हम परीक्षा में ठहर नहीं सकते। *बच्चों को तो परीक्षा में बड़ा अड़ोल रहना है हनूमान मिसल। यह भी एक मिसाल है। बाकी कोई हनूमान था नहीं।*


➢➢  कोई दीपक में घृत थोडा कम हो जाता है तो लाइट कम हो जाती है। कोई का दीवा बहुत अच्छा जलता रहता है। *आत्मा रूपी दीवे को ही तूफान लगता है। तूफान तो लगेंगे, बाबा कहते हैं नम्बरवन अनुभवी मैं हूँ। रुसतम से जरूर माया रुसतम होकर लड़ेगी।*


➢➢  बाप समझाते हैं हे दीवे ऐसे-ऐसे तूफान आयेंगे, परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई पाप कर्म नहीं करना। *कोई ने कुछ कहा तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दिया, ऐसा अभ्यास करना पड़े।*


➢➢  *जो ट्रेटर बन विघ्न डालते हैं उनके ऊपर बड़ा पाप चढ़ता है। चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो एकदम चकनाचूर..... या तो वैकुण्ठ का मालिक या तो नौकर चाकर। ऐसा काम जो करेगा तो इतना ही पाप आत्मा भी बनेगा।* बहुतों को दुःख देने के निमित्त बन जाते हैं। बाबा को तरस पड़ता है।

 

➢➢  ज्ञान योगबल से तुम कितने गोरे बन जाते हो। *बाबा जैसा फर्स्टक्लास कारीगर कोई होता नहीं। यह बाप का ही काम है मनुष्य को देवता बनाना। यह है नम्बरवन सर्विस, जिससे सारी दुनिया पलट जाती है।*

────────────────────────

 

❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

   ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧       ‧‧‧‧‧

 

➢➢  सतयुग में शेर बकरी भी इकट्टे जल पीते थे। एक दो के प्यार में रहते थे। दुःख का वार नहीं होता। यहाँ दु:ख का वार बहुत होता है। *काम कटारी चलाना, यह भी दुःख का वार है। किसको बुरे वचन कहना वा क्रोध करना, डांटना यह भी दु:ख देना है। बाप कहते हैं किसको भी यह दुःख नहीं देना है। अपना मिजाज़ बहुत मीठा बनाओ। भूले-चूके भी दुःख देने का काम नहीं करो।*


➢➢  *कृष्ण का जन्म तो सतयुग में हुआ। वहाँ तो कंस, रावण, सूपनखा आदि हो न सकें। यह इस समय (संगम युग) हैं आसुरी सम्प्रदाय।* इन सब बातों को तुम अभी समझते हो। तुम्हारी बुद्धि में है। हमने बेहद के बाप से अनेक बार राजयोग सीखा और 21 जन्म राज्य पद पाया है फिर माया से राज्य-भाग्य पाया है। 


➢➢  *कोई अखबार में उल्टा सुल्टा डाल लेते हैं तो बिचारी माताओं पर कितनी आपदायें आ जाती हैं। जानते हुए और फिर कुछ करते हैं तो उन पर धर्मराज की कितनी मार पड़ेगी।* बाप कहते हैं ऐसा काम कोई नहीं करे जो ट्रेटर बने और अबलाओं पर अत्याचार हो।

 

➢➢  यह 5 चोर अन्दर बहुत घाटा डाल देते हैं। हम कितने साहूकार थे, 5 विकारों ने कितना कंगाल बना दिया है। इनका बड़ा सरदार है काम, सेकेण्ड नम्बर है क्रोध। *काम बच्चू बादशाह है। बड़ा मुश्किल से पीछा छोड़ते हैं। बड़ा भारी दुश्मन है, बहुत तंग करते हैं। बिचारी अबलायें कितनी मार खाती हैं। उन्हों की फरियाद सुनी नहीं जाती। यह फरियाद सिर्फ एक बाप ही सुनने वाला है। परन्तु वह भी सच्चे जो होंगे उन्हों की सुनेंगे। झूठों की नहीं।* 

────────────────────────