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  03 / 02 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं।* देव-देव महादेव कहते हैं। *ब्रह्मा और विष्णु का आपस में कनेक्शन है। शंकर का कोई कनेक्शन नहीं, इसलिए उनको बड़ा रखते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं, उनको सूक्ष्म शरीर मिलता है। शिवबाबा को सूक्ष्म शरीर भी नहीं है इसलिए वह सबसे ऊंचे ते ऊंच है। वह है बेहद का बाप।*


➢➢  *तुम बच्चों को राजतिलक मिल रहा है - बाप और वर्से को याद करने से। बाप और बादशाही को याद कर शरीर छोड़ेंगे तो राजाई तिलक मिल जायेगा। एक को तो नहीं मिलेगा। माला 108 की भी है। 16108 की भी है।*


➢➢  *सबसे बड़ी हिंसा काम महाशत्रु की है। आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं - आज से विकार में नहीं जाना तो मुँह नीचे कर देते हैं। अरे काम महाशत्रु है। यह अच्छा थोड़ेही है। यह है ही विशश वर्ल्ड, सब पतित हैं। सतयुग में सभी सम्पूर्ण निर्विकारी हैं।*


➢➢   *तुम बच्चे जानते हो कि हमारा बाप आया हुआ है। आयेगा भी जरूर कोई शरीर में। उनका कोई अपना शरीर तो है नहीं। वह पुनर्जन्म रहित है। पुनर्जन्म मनुष्य सृष्टि में होता है।*


➢➢  अभी तुम अच्छी रीति जान गये हो। और कोई ऐसे नहीं समझते हैं कि *बाप बिन्दी है। अति सूक्ष्म भी कहते हैं फिर कहते हैं हजारों सूर्यों से भी तीखा है।* तो बात मिलती नहीं है। जब कहते हैं नाम-रूप से न्यारा है फिर हजारों सूर्य से तीखा क्यों कहना चाहिए? *पहले तुम भी ऐसे समझते थे। बाप कहते हैं - ड्रामा में यह समझानी देरी से मिलनी थी। ऐसे नहीं ख्याल आना चाहिए कि पहले हजारों सूर्यों से तेजोमय कहते थे अब फिर बिन्दी क्यों कहते? जब आई.सी.एस. पढ़ेंगे तब आई.सी.एस. की बातें करेंगे, पहले कैसे करेंगे? इसमें मूँझने की दरकार नहीं है।*

 

➢➢  *बाप कहते हैं - मनमनाभव।* तुम बच्चे कहते हो बाबा हम कल्प-कल्प आपसे मिलते हैं। यह ज्ञान आपसे मधुबन में आकर लेते हैं। *यह है वशीकरण मंत्र। सतगुरू है तो तुम्हें मंत्र भी ऐसा देता है, जो तुम अमर बन जाओ। यह है माया पर जीत पाने का मंत्र। इस पर गाते हैं तुलसीदास चन्दन घिसे.... यह भी अब की बात है जो बाद में गाई जाती है।*  

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *तुम्हारे लिये योग की भट्ठी मोस्ट वैल्युबुल है, क्योंकि इस भट्ठी से ही तुम्हारे विकर्म भस्म होते हैं।*

 

➢➢  *तुम्हारा अजपाजाप चलता रहे। सूक्ष्म वा स्थूल में शिवबाबा, शिवबाबा कहने की दरकार नहीं। बुद्धि से याद करना है।*

 

➢➢  नाटक में एक्टर समझते हैं - अभी बाकी आधा घण्टा है फिर हम घर जायेंगे। टाइम देखते रहते हैं। तुम्हारी तो बेहद की बहुत बड़ी घड़ी है। *समझाया है कि अब घर चलना है। बाप को याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और कोई शास्त्रों में ऐसा सहज योग है नहीं।*

 

➢➢   *तुम बेहद के बाप द्वारा राजाओं का राजा बन रहे हो। ऐसे बाप को घड़ी-घड़ी याद करना है।* सतयुग में बाप को याद नहीं किया जाता है। अपने को किया जाता है। कलियुग में न बाप को जानते, न अपने को जानते हैं। सिर्फ बाप को पुकारते हैं। 

 

➢➢  *अभी तो तुमको कर्म सिखलाने वाला बाप मिला है। उनको अच्छी रीति याद करना चाहिए।*


➢➢  बीमारी में जब ज्यादा पीड़ा होती है तो सब भूल जाता है। बाकी जिसका किसमें भाव होता है वह सामने आ जाता है। *तुम्हारा तो अन्जाम (वायदा) है मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। फिर दूसरे किसको याद क्यों करते हो। बाप कहते हैं - मेरे बिगर किसकी स्मृति भी न आये।*  

 

➢➢. *अब तो सिर्फ तुमको एक्यूरेट बाबा को याद करना है। बाबा के लिए कहते हैं - तुम्हरी गत मत तुम ही जानो। सो बरोबर है।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢   विचार सागर मंथन के लिए अमृतवेले का टाइम बहुत अच्छा है। *अमृतवेले उठकर बुद्धि से एक बाबा को याद करो।* 

 

➢➢  *तुमको शिव-शिव कहना नहीं है*। जो लोग भक्ति में करते वह ज्ञान में नहीं होना चाहिए। बहुतों को आदत पड़ी हुई है, शिव-शिव सिमरण करते होंगे। *तुमको शिव-शिव न स्थूल में, न सूक्ष्म में जपना है।*


➢➢  बच्चे जानते हैं बेहद के बाप से हम बेहद सुख का वर्सा लेते हैं। *बाप की श्रीमत पर तुमको पूरा चलना है।* कर्मातीत अवस्था अन्त में होगी। तुमको रहना भी गृहस्थ व्यवहार में है, छोड़ना भी नहीं है। *शरीर निर्वाह अर्थ व्यवहार करते हुए कमल फूल समान पवित्र रहना है।*

 

➢➢  बाप बच्चों को समझाते रहते हैं - तुम्हारे अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। बाकी थोड़ा टाइम है। *बाप और वर्से को याद करना है।*  

 

➢➢  *शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। यह तो पक्का याद रखना है। नहीं तो विकर्म विनाश नहीं होंगे।* यह योग की भट्ठी मोस्ट वैल्युबुल है। मुक्ति भी मिलती है ना।   

 

➢➢  बाप कहते हैं मुझे भी जिस्म है तब तो बात कर सकता हूँ। *तुम भी ऐसे समझो मैं आत्मा हूँ, इस जिस्म द्वारा सुन रहा हूँ। यह नॉलेज अच्छी रीति धारण करनी है*। जैसे बाप के पास धारण की हुई है। 

 

➢➢  *तुम्हारी बुद्धि में ऐसी धारणा होनी चाहिए जैसे बाप की बुद्धि में है। वह रहेगा तब जब विचार सागर मंथन करेंगे। विचार सागर मंथन करने का समय सवेरे का बहुत अच्छा है।*

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप कहते हैं - जब पतित दुनिया होगी तब मैं पावन दुनिया बनाने आऊंगा। पुकारते भी हैं हे पतित-पावन, हे दु:ख हर्ता सुखकर्ता आओ। वह तो संगम पर आयेगा। जब रात पूरी होगी तब दिन होगा। पुरानी दुनिया का अन्त होगा।*
 

➢➢  *देवता तो हैं ही पूर्ण पवित्र। परन्तु कब और कैसे बनें! जरूर पुरुषार्थ किया तब तो प्रालब्ध पाई। पुरुषार्थ अनुसार प्रालब्ध बनी। जैसा कर्म वैसी प्रालब्ध।*


➢➢  समझाया जाता है शान्तिधाम, सुखधाम और यह है दु:खधाम। सुखधाम में मनुष्य बहुत थोड़े थे। उस समय बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में थी। तुमको शान्ति वहाँ मिलेगी। यहाँ तो मिल न सके। यहाँ तो है ही दु:खधाम। दु:ख में अशान्ति होती है। *यह तो बहुत सहज है, किसको भी समझाना। सुख-शान्ति का वर्सा देने वाला एक ही बाप है। सतयुग में सुख-शान्ति दोनों ही हैं।*

 

➢➢  भक्ति भी मनुष्य सवेरे करते हैं। यहाँ वहाँ जाते रहते हैं वा बैठकर कोई नाम जपते रहते हैं वा गीत गाते हैं, आवाज करते, कोई तो अन्दर ही राम-राम रटते हैं। यह भक्ति का अजपाजाप होता है। कोई माला भी फेरते रहते हैं। *जो खुद याद करते हैं, औरों को याद कराते हैं, वह जैसे बाबा के मददगार हैं।*