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❍ 01 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इतने बड़े-बड़े
भारत के मालिक सन्यासियों के पीछे फिरते रहते हैं। उनके पास बच्चियां जाती हैं
तो कहते हैं फुर्सत नहीं। इससे समझ जाते हैं कि इनकी तकदीर में स्वर्ग के सुख
नहीं हैं। ब्रह्मण कुल के भाती बनते ही नहीं, इनको पता ही नहीं कि भगवान कैसे
और कब यहाँ आते हैं!*
➢➢ *भक्ति मार्ग में मनुष्य "ठण्डी में स्नान करने जाते हैं। कितने धक्के खाते
हैं। दु:ख सहन करते हैं। यहाँ तो पाठशाला है, पढ़ना है, इसमें धक्के खाने की तो
कोई बात ही नहीं।*
➢➢ *पुरुषार्थ तीव्र कराने के लिए चार्ट लिखने को कहा जाता है और देख भी सकते हैं कि हमने कितना समय शिवबाबा को याद किया? सारी दिनचर्या सामने आ जाती है।*
➢➢ *बाप समझाते हैं बच्चे स्कूलों आदि में जो किताबें पढ़ाई जाती हैं उनमें फिर भी एम-आबजेक्ट है।* फायदा है, कमाई होती है। मर्तबा मिलता है। *बाकी शास्त्र आदि जो पढ़ते हैं, उसको अन्धश्रद्धा कहा जाता है। पढ़ाई को कभी भी अन्धश्रद्धा नहीं कहेंगे।*
➢➢ *तुम सब राजऋषि हो। वह हैं योगऋषि। वह भी पवित्र रहते हैं। राजाई में तो राजा रानी प्रजा सब चाहिए। सन्यासियों में तो राजा रानी हैं नहीं। उन्हों का है हद का वैराग्य, तुम्हारा है बेहद का वैराग्य।* वह घरबार छोड़ फिर भी इस विकारी दुनिया में ही रहते हैं। *तुम्हारे लिए तो इस दुनिया के बाद फिर है स्वर्ग, दैवी बगीचा।*
➢➢ *यह दो अक्षर गति और सद्गति चले आते हैं। परन्तु इनका अर्थ कोई भी नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो सबका सद्गति दाता एक बाप ही है, बाकी सब पतित हैं। दुनिया ही सारी पतित है।*
➢➢ *बाबा कहते हैं मैं तुमको ऐसे कर्म सिखाता हूँ, जो तुमको कभी कर्म कूटने नहीं पड़ेंगे।* वहाँ ऐसी "ठण्डी भी नहीं होगी। अभी तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। कभी बहुत गर्मी, कभी बहुत "ठण्डी। *वहाँ (सतयुग) ऐसी आपदायें होती नहीं। सदैव बसन्त ऋतु रहती है। नेचर सतोप्रधान है। अभी नेचर तमोप्रधान है।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाबा कहते हैं - बच्चे अपने पास नोट करो कि कितना समय मोस्ट बिलवेड बाबा को याद किया? जिस बाप की याद से ही वर्सा लेना है।*
➢➢ *बाप कहते हैं इस शरीर को भूल जाओ। तुमको अशरीरी भेजा था। अब भी अशरीरी होकर मेरे साथ चलना है।* इसको नालेज अथवा शिक्षा कहा जाता है। इस शिक्षा से ही सद्गति होती है।
➢➢ तुम बच्चे समझते हो बरोबर बाबा जो समझाते हैं वह कोई शास्त्र आदि में है नहीं। *बाप बहुत गुह्य और रमणीक बातें समझाते हैं। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, रचता और रचना का सारा समाचार तुमको सुनाते हैं। फिर भी कहते हैं अच्छा जास्ती नहीं तो दो अक्षर ही याद करो - मनमनाभव, मध्याजी भव।*
➢➢ *भगवान ने तो सहज राजयोग सिखाया है, कहते हैं सिर्फ मुझ बाप को याद करो। भक्ति में भी बहुत याद करते थे। गाते भी हैं दु:ख में सुमिरण सब करें.. फिर भी कुछ समझते नहीं।* जरूर सतयुग त्रेता में सुख की दुनिया है तो याद क्यों करेंगे? अब माया के राज्य में दु:ख होता है तब बाप को याद करना होता है और फिर सतयुग में अथाह सुख भी याद आता है।
➢➢ *बच्चों में देखो - हैं कैसे अनपढ़। उन्हों के लिए तो और ही अच्छा है, क्योंकि कहाँ भी बुद्धि जाती नहीं है।*
➢➢ *यह है योग की यात्रा, जिसको और कोई जानते नहीं तो सिखा कैसे सकते। तुम जानते हो अब बाबा के पास लौटना है। बाबा का वर्सा है ही राजाई इसलिए इस पर नाम पड़ा है राजयोग।*
➢➢ *कलियुग का अन्त आ गया है। अब तुम बाप को याद करो,* मुक्तिधाम वाले सुनकर बहुत खुश होंगे। वह चाहते ही मुक्ति हैं। समझते हैं जीवनमुक्ति (सुख) पाकर फिर भी तो दु:ख में आयेंगे, इससे तो मुक्ति अच्छी। यह नहीं जानते कि सुख तो बहुत है। *हम आत्मायें परमधाम में बाप के साथ रहने वाली हैं। परन्तु परमधाम को अब भूल गये हैं।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *बाप सभी को कहते हैं बच्चे देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो। तुम अशरीरी आये थे, 84 जन्म भोगे अब फिर अशरीरी बनो।*
➢➢ *देखना है हम बाबा को और चक्र को कितना समय याद करते हैं? ऐसी प्रैक्टिस करने से रूद्र माला में पिरोने के लिए दौड़ी जल्द पहनेंगे।*
➢➢ *यहाँ तो सिर्फ चुप रहना है। मुख से भी कुछ नहीं कहना है। सिर्फ बाबा को याद करते रहो* तो विकर्म विनाश होंगे। फिर साथ ले जाऊंगा।
➢➢ *रोज अपना मुँह आइने में देखना है, तो पता पड़ेगा कि हम लक्ष्मी को वा सीता को वरने लायक हैं वा प्रजा में चले जायेंगे?*
➢➢ *अपना चार्ट लिखना है, कितना समय हम योग में रहते हैं।* बहुत हैं जो चार्ट लिख भी नहीं सकते। चलते-चलते थक पड़ते हैं।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ यह कोई सतसंग नहीं। लिखा है ईश्वरीय विश्व विद्यालय। तो समझना चाहिए जरूर ईश्वर का बहुत भारी विद्यालय होगा। सो भी विश्व के लिए है। *सभी को पैगाम भी देना है कि देह सहित सभी धर्मो को छोड़ अपने स्वधर्म में टिको, फिर अपने बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी।*
➢➢ *जब राजाई का वर्सा लेना है तो प्रजा भी बनानी है।* बाबा स्वर्ग का रचयिता है तो उनसे क्यों नहीं स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। बहुत हैं जिनको स्वर्ग का वर्सा मिलता है। बाकी को शान्ति मिलती है।
➢➢ *कोई को यह भी तुम समझा सकते हो, बाबा कितना सहज समझाते हैं सिर्फ याद करो।* परन्तु माया इतनी प्रबल है जो याद करने नहीं देती। आधाकल्प की दुश्मन है। इस दुश्मन पर ही जीत पानी है।
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