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❍ 13 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी सबका यह अन्तिम जन्म है। खेल पूरा होता है। इस खेल की लिमिट ही है 5 हजार वर्ष।* यह निराकार शिवबाबा समझाते हैं। वह है निराकार सबसे ऊंच परमधाम में रहने वाला। परमधाम से तो हम सब आये हैं। *अभी कलियुग अन्त में ड्रामा पूरा हो फिर से हिस्ट्री रिपीट होती है।*
➢➢ *इस समय हर चीज तमोप्रधान है। सतयुग में नदियां भी बड़ी साफ स्वच्छ
होंगी।* नदियों में किचड़ा कुछ भी नहीं पड़ता। यहाँ तो देखो किचड़ा पड़ता
रहता है। सागर में सारा गंद जाता है। *सतयुग में ऐसा हो नहीं सकता। लॉ नहीं
है। सब चीजें पवित्र रहती हैं।*
➢➢ ओम् का अर्थ है मैं आत्मा फिर मेरा शरीर। *हर एक के शरीर रूपी रथ में
आत्मा रथी बैठी हुई है। आत्मा की ताकत से यह रथ चलता है।*
➢➢ *आज से 5 हजार वर्ष पहले बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। वह राज्य
स्थापन करने वाला जरूर बाप होगा। बाप से उनको वर्सा मिला हुआ है। उन्हों की
आत्मा ने 84 जन्मों का चक्र लगाया है।*
➢➢ *बाप समझाते हैं अब सबका पार्ट पूरा हुआ है, सब आत्मायें इक्कठी होंगी।
जब सब आ जायेंगे तब फिर जाना शुरू होगा। फिर विनाश शुरू हो जायेगा।*
➢➢ *बाप तो सदैव पूज्य है। वह आते जरूर हैं - पतितों को पावन बनाने।*
सतयुग है पावन दुनिया। सतयुग में पतित-पावनी गंगा, यह नाम ही नहीं होगा
क्योंकि वह है ही पावन दुनिया। *सभी पुण्य आत्मायें हैं। नो पापात्मा।
कलियुग में फिर नो पुण्यात्मा। सब पाप आत्मायें हैं।*
➢➢ *सचखण्ड स्थापन करने वाला एक ही सतगुरू है। वह इस रथ में रथी हैं।* इसे नंदीगण भी कहते हैं, भागीरथ भी कहते हैं। तुम अर्जुनों को कहते हैं मैं इस रथ में आया हूँ, युद्ध के मैदान में तुमको माया पर जीत पहनाने। *सतयुग में न रावण होता, न जलाते। अभी तो रावण को जलाते ही रहेंगे।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, खेल पूरा होता है इसलिए पावन बन घर जाना है*, फिर सतयुग से हिस्ट्री रिपीट होगी''
➢➢ *अभी तुम ब्रह्मा की औलाद हो। फिर सूर्यवंशी श्री नारायण के घराने में
आ जायेंगे।*
➢➢ *अभी हैं सब तमोप्रधान, पत्थरबुद्धि। सतयुग में हैं पारसबुद्धि।*
➢➢ कहते हैं बच्चे कोई भी चित्र को नहीं देखो। *मामेकम् याद करो, बुद्धियोग ऊपर लटकाओ। जहाँ जाना है उनको ही याद करना है। एक बाप बस दूसरा न कोई।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ घरबार सम्भालते, पुरानी दुनिया में रहते *सभी से ममत्व मिटा देना। देह सहित जो भी पुरानी चीजें हैं उन्हें भूल जाना...*
➢➢ *यह 5 विकार मुझे दे दो। अगर अपवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया में आ नहीं
सकेंगे। बाप से प्रतिज्ञा करो, इस अन्तिम जन्म के लिए।* फिर तो पवित्रता
कायम हो ही जायेगी।
➢➢ वापस घर चलना है इसलिए *देह सहित सब पुरानी चीजों से ममत्व निकाल देना
है। सम्पूर्ण पावन बनना है।*
➢➢ *जैसे बाप के संस्कार वैसे आप के भी संस्कार हो।* यह संस्कार मिलाना बड़े
से बड़ी रास है।
➢➢ *प्यूरिटी की रॉयल्टी का अनुभव करना और कराना ही रॉयल आत्मा की निशानी है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बच्चों को समझाया है यह शास्त्र आदि सब भक्तिमार्ग के हैं, फिर भी यही बनेंगे। जो पढ़ते-पढ़ते तमोप्रधान बन जाते हैं। *सतयुग से त्रेता हुआ। त्रेता से द्वापर, कलियुग हुआ। पतित बनें तब तो पतित-पावन आकर पावन बनायेंगे ना। शास्त्र किसको पावन बना न सकेंगे।*
➢➢ *परमधाम से तो हम सब आये हैं। अभी कलियुग अन्त में ड्रामा पूरा हो फिर
से हिस्ट्री रिपीट होती है। मनुष्य जो भी गीता आदि शास्त्र पढ़ते आये हैं,
वह बनते हैं द्वापर में। यह ज्ञान तो प्राय:लोप हो जाता है। कोई राजयोग
सिखला न सके।*
➢➢ बाप कहते हैं अब फिर से तुमको *राजयोग सिखलाता हूँ। बच्चों को समझाया
है कि इस रथ में रथी आत्मा बैठा हुआ है। यह रथी पहले 16 कला सम्पूर्ण था।
अब नो कला।* कहते भी हैं - मुझ निर्गुण हारे में अब कोई गुण नाही। आपेही
तरस परोई... अर्थात् रहम करो। *कोई में भी गुण नहीं हैं। बिल्कुल दु:खी,
पतित हैं तब तो गंगा में पावन होने जाते हैं। सतयुग में नहीं जाते। नदी तो
वही है ना।*
➢➢ इस समय सब आत्मायें माया की मत पर चलती हैं। *परमात्मा सर्वव्यापी कहना यह माया की मत है। कभी कहते सर्वव्यापी है, कभी कहते 24 अवतार लेते हैं। बाप कहते हैं मैं सर्वव्यापी कहाँ हूँ। मैं तो हूँ ही पतितपावन, स्वर्ग का रचयिता। मेरा धंधा ही है नर्क को स्वर्ग बनाना।*
➢➢ *बाप कहते हैं तुम तो बेसमझ बन गये हो, क्यों नहीं समझते हो भारत स्वर्ग था, हम ही देवता थे। मैंने तुमको राजयोग सिखाया।* तुम फिर कहते हो कृष्ण सभी का बाप स्वर्ग का रचयिता है। बाप तो निराकार सब आत्माओंका बाप है। फिर उनके लिए कहते हो कि सर्वव्यापी है। *तुम अपने बाप को गाली देते हो। शिव शंकर को मिला दिया है, कितनी ग्लानि कर दी है। शिव तो है परमात्मा।* कहते हैं मैं आता ही हूँ देवी-देवता धर्म स्थापन करने।
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