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  29 / 03 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *आत्मा परमात्मा को बुलाती है सिर्फ आत्मा कहें तो कहेंगे आत्मा तो वाणी से परे है इसलिए कहते हैं। जीवात्मा, परमात्मा को बुलाती है।* अब उनको यहां बुलाते हैं, तुम जानते हो बुलाने की तो दरकार ही नहीं। जबकि परमात्मा को जानते ही नहीं तो फिर बुलाते कैसे? *जिसको याद किया जाता है, उनके महत्व को, आक्यूपेशन को, गुणों को जानना चाहिए।*

 

➢➢  *गीत में भी कहते हैं बाबा आप आकर ज्ञान सुनाओ तो हम सुनकर फिर औरों को सुनायेंगे। जैसे शास्त्रों में आटे में नमक है वैसे इन भक्ति मार्ग के गीतों में भी थोड़ा बहुत है।* यह गीत बाप की महिमा में है बाप को बुलाते हैं कि आप आकर हमको सुनाओ तो हम फिर औरों को सुनायेंगे। आकर हमको राजयोग सिखलाओ फिर हम मुरलीधर बनेंगे।

 

➢➢  *अब लक्ष्मी-नारायण की इतनी महिमा है, उनमें क्या ब्युटी है? आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान पवित्र हैं। हर्षितमुख हैं, गोरे हैं।* समझाया जाता है आत्मा मैली हो जाती है तो लाइट कम होती है।

 

➢➢  ब्रह्मा को कहा ही जाता है प्रजापिता। अब वह ब्रह्मा आये कहाँ से। क्या सूक्ष्मवतन से उतर आये? जैसे दिखाते हैं विष्णु अवतरण ऊपर से गरूड पर सवार हो आते हैं। अब विष्णु को तो यहाँ आना नहीं है। *विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण जो हैं उन्होंने भी यहाँ इस पढ़ाई से यह पद पाया है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण ही पालना करते हैं। परन्तु ऐसे कोई गरूड पर उतरते नहीं हैं और फिर वहाँ लक्ष्मी-नारायण की आत्मा कोई इकट्ठी नहीं आती है। पहले नारायण की आत्मा आयेगी फिर लक्ष्मी की आयेगी।* स्वयंवर करेंगे तब विष्णु युगल रूप कहलायेंगे।

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *भल और मनुष्य शिव को याद करते हैं परन्तु इस ज्ञान से याद नहीं करते। वह जानते ही नहीं। न जानने कारण विकर्म विनाश हो नहीं सकते।* यह जानते ही नहीं कि हम योग लगाने से विकर्माजीत बनेंगे। अच्छा फिर क्या होगा? यह भी नहीं जानते। *तुमको बाप समझाते हैं योग से तुम विकर्माजीत बनेंगे। 5 विकारों की मैल भस्म होगी। समझानी मिलने के बाद उस खुशी से याद करेंगे।*

 

➢➢  पहले हल्का ज्ञान था अब गहरा मिलता जाता है। *परन्तु आत्मा में पुराने उल्टे सुल्टे भक्ति के संस्कार जो हैं वह जब निकलें तब ज्ञान की धारणा हो। योग हो तब विकर्म विनाश होते जायें और बुद्धि शुद्ध होती जाये।* बुद्धि पवित्र नहीं होगी तो अविनाशी ज्ञान रत्न ठहरेंगे नहीं।

 

➢➢  *बच्चों को समझाया है कि पहले भोग लगाकर फिर खाया जाता है क्योंकि उनका ही सब दिया हुआ है। तो फिर पहले उनको याद कर भोग लगाते हैं, आह्वान किया जाता है। फिर जैसे कि साथ में मिलकर खाते हैं।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *बाप भल निष्कामी है लेकिन भोजन का भोग जरूर लगाना है। बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर बाबा के साथ बैठकर खाना है।*

 

➢➢  इस रूद्र यज्ञ में योगबल से अपने पाप स्वाहा करने हैं। *आवाज में नहीं आना है, चुप रहना है। बुद्धि को योगबल से पवित्र बनाना है। तुम्हें बाप के आक्यूपेशन और गुणों सहित उसे याद करना है* याद से ही तुम विकर्माजीत बनेंगे, विकारों की मैल भस्म होगी।

 

➢➢  *जैसे स्पीकर की सीट सहज ही ले लेते हो ऐसे अभी सर्व अनुभवों के अथॉरिटी का आसन लो।* अथॉरिटी के आसन पर सदा स्थित रहो तो सहजयोगी, सदा के योगी, स्वत: योगी बन जायेंगे। ऐसे अथॉरिटी वालों के आगे माया झुकेगी न कि झुकायेगी।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अब ब्रह्मा के बच्चे वह हो गये ब्रह्माकुमार और कुमारियां। यह पूरी रीति समझाना है। नहीं तो मनुष्य डरते हैं। अब बाप को तो जरूर ब्रह्मा का शरीर लेना पड़े। सो भी बड़ा चाहिए। छोटे बच्चे में प्रवेश करेंगे क्या?*

 

➢➢  *यह तुम समझा सकते हो कि हम ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। ब्रह्मा को प्रजापिता कहा जाता है। यह तो सब मानेंगे कि भगवान ने आदम-बीबी (ब्रह्मा सरस्वती) द्वारा रचना रची है।*

 

➢➢  *वास्तव में ब्रह्मा की सन्तान तुम भी हो, ब्राह्मणों की शुरूआत संगम पर ही होती है।* ब्रह्मा द्वारा हम ब्राह्मण पढ़ते हैं। रूद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल करते हैं। हम अपने विकारों की आहुति देते हैं।

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