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❍ 04 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *संगमयुग बहुत ही महत्वपूर्ण युग है। यह संस्कार परिवर्तन करने का युग है।* व्यर्थ कखपन की टोकरी उठा स्वयं ही राजा के बदले अधीन प्रजा बन जाते है। *जो अपने आदि संस्कार अविनाशी नहीं बना सकते वह आदिकाल के राज्य अधिकारी नही बनेंगे।*
➢➢ *बाप का बनना अर्थात सर्वशक्तिवान बाप की सर्वशक्तियों के अधिकारी अर्थात् वर्से के अधिकारी वा हकदार बनना।* सर्वशक्तियाँ बाप की प्रापर्टी हैं उस प्रापर्टी का अधिकारी हरेक बच्चा है। *यह सर्व शक्तियों का राज्य भाग्य बापदादा सभी को जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में देते है।*
➢➢ *''बालक सो मालिक हूँ'' - यह स्मृति सदा निरहंकारी, निराकारी स्थिति का अनुभव कराती है। बालक बनना अर्थात् हद के जीवन का परिवर्तन होना। जब ब्राह्मण बने तो ब्राह्मणपन की जीवन का पहला सहज ते सहज पाठ पढ़ा - बच्चों ने कहा ''बाबा'' और बाप ने कहा ''बच्चा अर्थात् बालक''। इस एक शब्द का पाठ नॉलेजफुल बना देता है।*
➢➢ *दिव्य नेत्र से देखना अर्थात सदैव हरेक नारी शरीरधारी आत्मा को शक्ति रूप, जगत माता का रूप, देवी का रूप देखना।* कुमारी है, माता है, बहन है, सेवाधारी निमित्त शिक्षक है, लेकिन है कौन? शक्ति रूप। *बहन भाई के सम्बन्ध में भी कभी-कभी वृत्ति और दृष्टि चंचल हो जाती है इसलिए सदा यह स्मृति रहे कि शक्ति रूप हैं, शिव शक्ति हैं।*
➢➢ *पुरूषार्थी
शब्द में सारा ज्ञान समाया हुआ है इसलिए पुरूषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज़
नहीं करना है।* पुरूषार्थी हैं, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह
अलबेलेपन की भाषा है। उसी घड़ी पुरूषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो
जाओ। पुरूष हूँ, प्रकृति धोखा दे नहीं सकती। यह सब प्रकार की कमजोरियाँ
अलबेलेपन की निशानियां हैं। महावीर तो पहाड़ को भी सेकेण्ड में हथेली पर रख
उड़ने वाला है अर्थात् पहाड़ को भी पानी के समान हल्का बनाने वाला है।
➢➢ *हर ब्राह्मण को ब्रह्मा बाप के यह लास्ट तीनों शब्द याद रखने है - निराकारी,
निरहंकारी और निर्विकारी।* संकल्प में सदा निराकारी, सर्व से न्यारे और बाप के
प्यारे, वाणी में सदा निरंहकारी अर्थात् सदा रुहानी मधुरता और निर्माणता
सम्पन्न और कर्म में हर कर्मेन्द्रिय द्वारा निर्विकारी अर्थात् प्युरिटी की
पर्सनैलिटी वाले बनना है।
➢➢ *साक्षात्कारमूर्त तब बनेंगे जब आकार में होते निराकारी अवस्था में होंगे।
जब यह आत्म-अभिमानी स्थिति में रहे तब सर्व आत्माओं को साक्षात्कार कराने के
निमित्त बनेंगे।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *किसी भी देहधारी को देख सदा मस्तक की तरफ आत्मा को देखो। बात आत्मा से करनी है । सदा हर सेकेण्ड शरीर में आत्मा को देखो। नज़र ही मस्तक मणी पर जाये। तो आत्मा, आत्मा को देखते स्वत: ही आत्म-अभिमानी बन जाये।*
➢➢ *हम आत्माओ का असली स्वरूप निराकार है, साकार आधार है। अपने निराकारी वास्तविक स्वरूप को स्मृति में रखेंगे तो उस स्वरूप के असली गुण शक्तियाँ स्वत: ही इमर्ज होंगी।*
➢➢ *बाप से योग लगा अपने विकर्मों का खाता समाप्त करना है।* अपने संस्कारों को परिवर्तन करने की शक्ति बाप से ले दृष्टि परिवर्तन, वृत्ति परिवर्तन करने का तीव्र पुरुषार्थ करना है।
➢➢ *हर बहन शिवशक्ति है तो हर भाई महावीर है ।* महावीर की विशेषता दिखाते है कि उसके दिल में सदा एक राम दूसरा न कोई। *महावीर भी राम का है, शक्ति भी शिव की है। इसलिए सदा इसी स्थिति में स्थित हो सर्व प्रथम बाप की याद द्वारा स्वयं के अन्दर रावण वंश को जलाना है।*
➢➢ *जितना निराकारी अवस्था में होंगे उतना निर्भय होंगे क्योंकि भय शरीर के भान में होता है। जितना निराकारी और न्यारी स्थिति में रहेंगे उतना योग में बिन्दु रूप स्थिति का अनुभव करेंगे और चलते-फिरते अव्यक्त स्थिति में रहेंगे।*
➢➢ *सारे दिन में बीच-बीच में समय निकालकर इस देहभान से न्यारे निराकारी आत्मा स्वरूप में स्थित होने का अभ्यास करना है,* कोई भी कार्य करते यह अभ्यास करना है कि मैं निराकार आत्मा इस साकार कर्मेन्द्रियों के आधार से कर्म करा रही हूँ। निराकारी स्थिति करावनहार स्थिति है, *कर्मेन्द्रियां करनहार हैं, आत्मा करावनहार है। तो निराकारी आत्म स्थिति से निराकारी बाप स्वत: याद आयेगा।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ शिव बाबा ने ज्ञान का तीसरा नेत्र दे ब्रह्मा मुख द्वारा ब्राह्मण रचे। ब्राह्मण अर्थात दृष्टि द्वारा देखने वाले दृष्टा। दिव्य नेत्र से देखना और इस चमड़ी के नेत्रों (स्थूल नेत्रों) से देखना अलग है। दिव्य नेत्र से सदा स्वत: ही दिव्य स्वरूप ही दिखाई देगा। चमड़े की आखें चमड़े को देखती। *चमड़ी को देखना, चमड़ी का सोचना यह ब्राह्मणों का काम नही है।*
➢➢ *मै शांत स्वरुप आत्मा हूँ। यह पहला पाठ ही पक्का करना है,* अल्फ को पक्का नहीं करेंगे तो बे की बादशाही कैसे मिलेगी।
➢➢ *सदा एकरस स्थिति के आसन पर विराजमान हो अपनी स्थिति अचल-अडोल बनानी है।*
➢➢ *दृढ़ संकल्प वाला बनना है। परिवर्तन करना ही है, कल भी नहीं, आज। आज भी नहीं अभी।* कुछ भी सहन करना पड़े, सामना करना पड़े लेकिन श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ परिवर्तन करना ही है। *अभी नही तो फिर कभी नही।*
➢➢ *बाप से कुछ भी छिपाना नही है,अपनी कमज़ोरियों को बाप के सामने सच्चाई से स्पष्ट करना है।* तो उस सच्चाई की मार्क्स बाप से मिल जायेंगी।
➢➢ *अपनी कमजोरियाँ बाप को दे वापिस नहीं लेनी है।* जबरदस्ती आ जावे तो भी आने नहीं देना। जैसे दुश्मन को आने नही दिया जाता है उसी प्रकार *अपनी कमजोरियों पर अटेन्शन और चेकिंग का डबल लाक लगाना है। याद और सेवा - यह दूसरा डबल लाक भी लगाना है। दोनों तरफ लाक लगाना है।*
➢➢ *तेरा, मेरा, मान-शान का जरा भी अंश न हो।* अंश भी हुआ तो वंश आ जायेगा इसलिए संकल्प में भी कोई विकार का अंश ना आये। सदैव यह स्मृति रहे मै निमित्त हूँ।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *परमात्मा ने जन्मते ही विश्व कल्याण के सेवा का ताज हर बच्चे को दिया है।* सदैव यह स्मृति रहे कि मै परमात्मा द्वारा कोटो में कोई और कोई में भी कोई विश्व की सेवा अर्थ चुनी हुई विशेष आत्मा हूँ । *मुझे विश्व की सर्व आत्माओ की मनसा, वाचा कर्मणा सेवा करनी है।*
➢➢ *सेवा में निमित्त भाव ही सेवा की सफलता का आधार है।* निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी - यह तीनों विशेषतायें निमित्त भाव से स्वत: ही आती हैं। निमित्त भाव नहीं तो अनेक प्रकार का मैं-पन, मेरा-पन सेवा को ढीला कर देता है इसलिए न मैं न मेरा। एक शब्द याद रखना कि मैं निमित्त हूँ। *निमित्त बन निमित्त भाव से सर्व आत्माओ को बाप का परिचय देने की सेवा करनी है।*
➢➢ *अब अपने निराकारी घर जाना है तो जैसा देश वैसा अपना वेष बनाना है। तो अब विशेष पुरुषार्थ यही होना चाहिए कि वापिस जाना है और सबको ले जाना है।* इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति के आकर्षण से उपराम अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। *साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी, बाप-समान बन बाप का राइट हैण्ड बन सृष्टि परिवर्तन के कार्य में सहयोग देना है।*
➢➢ वाचा के साथ-साथ संकल्प शक्ति द्वारा सेवा करना-यही पावरफुल अन्तिम सेवा है। *जब मन्सा सेवा और वाणी की सेवा दोनों का कम्बाइन्ड रूप होगा तब सहज सफलता होगी, इससे दुगुनी रिजल्ट निकलेगी।*
➢➢ *वाणी की सेवा करने वाले तो थोड़े होते हैं बाकी रेख देख करने वाले, दूसरे कार्यों में जो रहते हैं उन्हें मन्सा सेवा करनी चाहिए, इससे वायुमण्डल योगयुक्त बनता है।*
➢➢ *हर एक समझे मुझे
सेवा करनी है तो वातावरण भी पावरफुल होगा और सेवा भी डबल हो जायेगी।*
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