━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ 01 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━
❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ ऐसे नहीं कहा जायेगा कि लक्ष्मी-नारायण की भी रात होगी। नहीं। *ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात कहा जाता है।* लक्ष्मी-नारायण तो वहाँ राज्य करते थे। फिर जरूर सृष्टि चक्र को फिरना है। लक्ष्मीनारायण का राज्य फिर सतयुग में आना है। *सतयुग के बाद त्रेता, द्वापर, कलियुग जरूर आना है। तो जरूर सतयुग में फिर वही राजा होना चाहिए। यह ज्ञान सिर्फ शिवबाबा ही ब्रह्मा द्वारा तुम बच्चों को देते हैं, इसलिए तुमको ही यह सृष्टि चक्र का ज्ञान है। देवताओं को नहीं है ।*
➢➢ *अब दिव्य दृष्टि से विनाश का साक्षात्कार किया हुआ है। फिर इन आंखों से देखना जरूर है और स्थापना, जिसका साक्षात्कार करते हैं वह भी इन आंखों से देखना है।* मुख्य जिस ब्रह्मा का दिन और रात गाया हुआ है उनको ही स्थापना और विनाश का साक्षात्कार हुआ है। तो जो दिव्य दृष्टि से देखा है वह प्रैक्टिकल जरूर होगा।
➢➢ *एक दो को सुख देने वाले को पावन कहा जाता है। स्वर्ग में कोई दु:ख देता नहीं।* वहाँ तो शेर बकरी इकट्ठे जल पीते हैं। किसको दुःख नहीं देते। परन्तु यह बातें कोई समझते थोड़े ही हैं। जो शास्त्र पढ़े हैं वही बातें बुद्धि में आ जाती हैं।
➢➢ *बाबा ने समझाया है नम्बरवन है काम महाशत्रु, जो मनुष्य को आदि, मध्य, अन्त दुःख देता है। यह आधाकल्प का कड़ा दुश्मन है ।* भल ड्रामा में सुख और दुःख है परन्तु दु:ख में ले जाने वाला भी तो है। वह है रावण। आधाकल्प रावणराज्य चलता है ।
➢➢ कितना दूर-दूर जाकर मनुष्य धक्के खाते हैं। यह है भक्ति मार्ग । दुःख तो मनुष्यों को पाना ही है। *प्राप्ति है अल्पकाल की। वह कौन सी प्राप्ति है? तीर्थों पर जितना समय रहते हैं उतना समय पवित्र रहते हैं।*
➢➢ मनुष्यों को ज्ञान नहीं है तो समझते हैं भक्ति अच्छी है, उनसे ही भगवान मिलेगा। आधाकल्प भक्ति के धक्के खाने पड़ते हैं। *आधाकल्प के बाद जब भक्ति पूरी होती है तो फिर भगवान आते हैं। बाबा को तरस पड़ता है। ऐसे नहीं कि भक्ति से भगवान को पाते हैं। ऐसा होता तो फिर भगवान को पुकारते क्यों? याद क्यों करते?*
➢➢ मनुष्य यह भी समझते नहीं कि पतित-पावन कौन है, कैसे आते हैं इसलिए कोई को भी विश्वास नहीं बैठता है। *शास्त्रों में तो है नहीं कि कैसे ब्रह्मा तन में आते हैं। कहते भी हैं ब्रह्मा मुख द्वारा सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना होती है।* फिर भूल जाते हैं कि कब होती, कैसे होती?
────────────────────────
❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ रात के राही का अर्थ तो बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते होंगे। *अगर बच्चों का स्वदर्शन चक्र फिरता रहता है, स्मृति में रहते हैं तो वह समझ सकेंगे कि बरोबर हम दिन अर्थात् स्वर्ग के कितना नजदीक पहुंचे हैं।*
➢➢ तुम बैठे कलियुग में हो तुम्हारी बुद्धि वहाँ है। *आत्मा को समझना है हमको यह शरीर छोड़कर बाप के पास जाना है।* शरीर तो अन्त में छोड़ेंगे ज़ब मंजिल पूरी होगी अर्थात् बाप योग सिखाना बन्द करेंगे।
➢➢ पढ़ाई का अन्त होगा तब तक बाप सिखाते, पढ़ाते रहते हैं। *बच्चे बाप की याद में रहते हैं। ऐसे याद में रहते-रहते रात पूरी हो जायेगी और तुम बाप के पास चले जायेंगे।* फिर तुम आयेंगे दिन में। यह है तुम्हारी वन्डरफुल यात्रा।
────────────────────────
❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ अब दिन अर्थात् सतयुग आ रहा है। अभी तुम कलियुग रात में बैठे हो। *निरन्तर बाप को याद करते रहो।*
➢➢ बच्चे जानते हैं यह पाठशाला है, जिसमें यह विद्या (पढ़ाई) मिल रही है और तुम योग भी सीख रहे हो। *इस विद्या से तुम भविष्य प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हो। आत्मा पवित्र जरूर चाहिए।*
➢➢ *लक्ष्मी तो स्वर्ग में होगी। अभी तुम जानते हो हमें पुरुषार्थ कर भविष्य लक्ष्मी को वा नारायण को वरना है।* तो यह भी यहाँ की बात है ।
➢➢ बाप कहते हैं रावण मनुष्य को पत्थरबुद्धि बना देते हैं। मैं आकर तुमको पारस बुद्धि बनाता हूँ । *महिमा सारी बाप की करनी है। हम श्रीमत पर चल रहे हैं। ईश्वर बिगर मनुष्य को कोई श्रेष्ठ बना नहीं सकता।*
────────────────────────
❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧ ‧‧‧‧‧
➢➢ तुमको इच्छा है स्वर्ग में जाने की। *बच्चे जानते हैं कि हम स्वर्ग में जायेंगे तो सभी का कल्याण हो जायेगा।*
➢➢ उनको समझाना है अरे हम तो सारी सृष्टि को स्वर्ग बनाते हैं। *इतनी मेहनत करते हैं तो जरूर मालिक भी हमको बनना पड़ेगा ना। कोई तो राज्य करेंगे ना।*
➢➢ प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ कल्प के संगम पर होना चाहिए तब तो ब्राह्मणों की नई सृष्टि रची जाए। *मनुष्य बहुत मुंझे हुए हैं, उनको रास्ता बताना है। बाप कि यह बाप सुनाते हैं या दादा सुनाते हैं? यह भी कितने बच्चों को पता नहीं लगता।*
➢➢ *बाप कहते हैं विचार करो मैं सदैव रथ पर हाजिर रह सकता हूँ? यह तो हो नहीं सकता। मैं तो आता ही हूँ सर्विस पर।*
➢➢ *समझाना चाहिए - श्रीमत पर चलना है। परमपिता की श्रीमत बिगर कोई सुख दे न सके। अपनी बड़ाई नहीं करनी चाहिए। हम श्रीमत पर सारे सृष्टि को स्वर्ग बनाते हैं।* तो देखो कितनी भारी भूल बच्चों की होती है। वह कहते ईश्वर के हाथ में है। बी.के. कहते कि मनुष्य के हाथ में है। वास्तव में है तो बाप के ही हाथ में।
────────────────────────