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❍ 26 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *सोमनाथ कहेंगे तो भी बुद्धि में लिंग आयेगा। अभी तुम्हारी आत्मा जानती है परमात्मा भी हमारे जैसा ही स्टॉर है।*
➢➢ संगम पर भेंट की जाती है-कलियुग अन्त में क्या है और सतयुग आदि में क्या होगा, आज क्या है, कल क्या होगा? *अब बेहद की रात पूरी होती है। फिर कल दिन में राज्य करेंगे। आज पतित दुनिया है, कल पावन दुनिया होगी* ।
➢➢ परमपिता परमात्मा कहा ही जाता है जो परमधाम में रहने वाला है। *पतित आत्मा, महान आत्मा कहा जाता है। पतित परमात्मा, महान परमात्मा नहीं कहेंगे* ।
➢➢ *तुम हो अनुभवी बच्चे, जिनको परमपिता परमात्मा ने अपना बनाया है और तुम बच्चों ने फिर परमपिता परमात्मा को अपना बनाया है* ।
➢➢ *पुरानी दुनिया में है पुराने दिन, पुरानी रातें और बहुत दुःख हैं। अनेक प्रकार के मैजॉरंटी दु:खी हैं। रात को काम कटारी चलाते, दिन में भी पाप करते रहते। नई दुनिया में सदैव सुख ही सुख रहता है।* यह तो जरूर बुद्धि में रहेगा। *नई दुनिया में सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण की राजधानी है। ऐसे नहीं कहा जाता कि प्रिन्स-प्रिन्सेज़ की राजधानी है। राजा रानी की ही राजधानी कहा जाता है* ।
➢➢ *नर्क के रचयिता (रावण) की महिमा नहीं होती है। उसको जलाते रहते हैं।* मनुष्य जानते नहीं हैं, नाम रख दिया है रावण। इन जैसा मनुष्य कोई हो न सके। *मनुष्य तो पुनर्जन्म लेते हैं। नाम रूप बदलते जाते हैं। रावण का नाम रूप कभी बदलता नहीं है* ।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *आत्मा को अपने बाप को याद करना तो बहुत सहज है। मनमनाभव, मध्याजीभव, कितनी सहज बात है* !
➢➢ *अब आत्मा को बुद्धि में आता है कि हम आत्मा वास्तव में परमधाम में परमपिता परमात्मा के पास रहने वाली हैं।* उनका नाम ही शिव है और कोई नाम नहीं देते। बुद्धि में लिंगाकार ही आयेगा।
➢➢ *सतयुग आदि को पावन दुनिया कहा जाता है। उसको ही सब याद करते हैं। पावन दुनिया है ही स्वर्ग* । तो जरूर स्वर्ग स्थापन करने वाला निराकार परमपिता परमात्मा ही हैl
➢➢ *कोई तो कहते हैं बाप और वर्से को याद करना - यह कोई बड़ी बात नहीं। माया हमको क्या करेगी! हम तो जरूर वर्सा पायेंगे।* कितनी सहज बात है !
➢➢ *बाप को याद करना, यह बुद्धि की दौड़ है* । यहाँ भी बुद्धि एकतो के साथ चाहिए, जो हमको स्वर्ग का मालिक बनाता है। मेरे बने हो तो अब मेरे साथ योग लगाओ
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *इन 5 विकारों को ही रावण कहा जाता है। यही दुःख देते हैं, पतित बनाते हैं। तो इन विकारों को छोड़ना चाहिए ना।*
➢➢ *धन्धाधोरी करते यह याद रहे कि हम उस बाबा के बच्चे हैं।* पक्के निश्चय वाले को अपार खुशी का पारा चढ़ा रहता है।
➢➢ बाप कहते हैं तुम हमारा बन जाओ तो हम तुमको स्वर्ग का मालिक बनायेंगे। *हम शिवबाबा के बच्चे हैं। वह स्वर्ग का रचयिता है। यह नशा रहना चाहिए।*
➢➢ आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है संस्कारों अनुसार। *यहाँ अपने को आत्मा समझने की प्रैक्टिस करनी पड़ती है*।
➢➢ *ब्रह्मा के बच्चे बहन-भाई जिस्मानी हो जाते। तुम एक बाप के बच्चे भाई-बहन हो। अभी ब्रह्मा सामने बैठे हैं। तुम उनके बच्चे बी.के. हो* ।
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*गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। यह कोई कर्म सन्यास नहीं है। शरीर निर्वाह तो
करना ही है* ।
➢➢ *पहले-पहले यह निश्चय हो जाए कि बेहद का वही बाबा स्वर्ग बनाने आया है, हम
स्वर्ग के मालिक बनेंगे तो अपार खुशी रहेगी और सहज ही वर्से के अधिकारी बन
जायेंगे* । पक्के निश्चय वाले को अपार खुशी का पारा चढ़ा रहता है।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जब जब कोई को समझाते हो तो फिर लिखाओ कि हाँ, यह यथार्थ बात है । घड़ी-घड़ी रिवाइज कराने से निश्चय होगा-नई पावन दुनिया में बरोबर यथा राजा रानी तथा प्रजा पावन ही होते हैं।*
➢➢ तुम जानते हो हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। *सिर्फ चक्र कहने से जन्म सिद्ध नहीं होते इसलिए कहना है कि हम 84 जन्मों को जानने वाले स्वदर्शन चक्रधारी हैं।*
➢➢ *वह परमपिता परमात्मा जब आकर मिलते हैं तो नई बातें सुनाते हैं। नई दुनिया के लिए सुख के लिए तुम पुरुषार्थ करते हो, वह है पावन राजधानी। बाप तुमको उस नई दुनिया का मालिक बनाते हैं* ।
➢➢ *पावन बनाने वाला आयेगा तो पावन बनाकर पावन दुनिया में ही ले जायेगा। हम आत्माओं को परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं* ।
➢➢ *बाप कहते हैं तुम हमारा बन जाओ तो हम तुमको स्वर्ग का मालिक बनायेंगे।* निश्चय है कि यह वही बेहद का बाप है। हम वर्सा जरूर लेंगे । *बस यह (स्वदर्शन चक्र का) तीर लग जाए तो झट बाप का बन जाएं* ।
➢➢ *बाबा ने कहा है स्वदर्शन चक्र का ज्ञान मेरे भक्तों को देना* । उनको समझाने से झट यह निश्चय होगा बरोबर हम 84 जन्म लेते हैं।
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