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❍ 17 / 02 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *यहाँ तुम्हारी दृष्टि जाती है शिवबाबा तरफ। शिवबाबा पढ़ाते हैं।* अभी बाप भविष्य नई दुनिया के लिए वर्सा देने आये हैं और *कोई ऐसे कह न सके कि हे बच्चों तुमको स्वर्ग के लिए राजयोग सिखला रहे हैं।* बच्चे सुनाते हैं - तो कहेंगे ज्ञान सागर बाप द्वारा सुना हुआ सुनाते हैं।
➢➢ *यहाँ तुम समझते हो ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख द्वारा पढ़ाते हैं। बाप आया हुआ है। बेहद के बाप से बच्चों को ही वर्सा मिलता है।* सन्यासियों का है ही वैराग्य मार्ग, निवृत्ति मार्ग। उनसे कभी भी प्रापर्टी का हक मिल न सके। वह प्रापर्टी चाहते ही नहीं। *तुम तो सदा सुख की प्रापर्टी चाहते हो।* नर्क के धन दौलत में दु:ख है।
➢➢ यह है बेहद का बाप, वह बैठ बच्चों को समझाते हैं। *यह बेहद का बाप
अविनाशी सुख देने आते हैं। समझाते हैं भारतवासी जो डबल सिरताज थे स्वर्ग के
मालिक थे, अब नर्क के मालिक बन पड़े हैं।*
➢➢ *तुम जानते
हो आत्मा दु:खी होती है तो चाहती है एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा ले लेवें।* वह
आपघात करने वाले ऐसे नहीं समझते हैं। वह तो यहाँ ही एक शरीर छोड़ फिर भी यहाँ
ही गंदा जन्म ले लेते हैं। ज्ञान तो है नहीं, सिर्फ शरीर को खत्म कर देते
हैं - दु:ख के कारण। फिर भी दु:खी जन्म ही पाते हैं। *तुम तो जानते हो हम
तो नई दुनिया के लायक बन रहे हैं।*
➢➢ *यहाँ तो
ज्ञान चिता पर बैठने से स्वर्ग में चले जाते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो
कि यह जगत अम्बा, जगत पिता जो स्थापना अर्थ निमित्त बने हुए हैं, यही फिर
स्वर्ग में पालनकर्ता बनेंगे।* अभी तुम जानते हो विष्णु के दो रूप
लक्ष्मी-नारायण बन पालना करते हैं, राज्य करते हैं। यह है ज्ञान चिता।
➢➢ आगे सन्यासी
पैसे के लिए सन्यास नहीं करते थे, वह तो चले जाते थे जंगल में। इस दुनिया
से तंग हो अपने को छुड़ाते हैं। परन्तु छूट नहीं सकते। *बाकी पवित्र रहते
हैं। पवित्रता के बल से भारत को थमाते हैं। यह भी भारत को सुख देते हैं।*
➢➢ *एकदम नई दुनिया में सुख होता है फिर आधा के बाद पुरानी होती है। गाया भी जाता है सतयुग में अथाह सुख है।* फिर पुरानी दुनिया होती है तो दु:ख शुरू होता है। *ज्ञान से दिन, भक्ति से रात। परमपिता परमात्मा ने डायरेक्शन दिया है, इन्हों को ज्ञान बाण मारो।* यहाँ तो सर्टेन है। इम्तहान पूरा हुआ और तुम जाकर 21 जन्म का राज्य-भाग्य लेंगे।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *तुम्हारी बुद्धि में है कि निराकार परमपिता परमात्मा इस तन द्वारा सुनाते हैं। बुद्धि चली जाती है मात-पिता और बापदादा तरफ।* भक्तों के पास भगवान को आना ही है। *नहीं तो भक्त भगवान को क्यों याद करते हैं?*
➢➢ *तुम योग लगाते हो उस एक पतियों के पति साथ। वह है शिवबाबा, वही पतियों
का पति, पिताओंका पिता है।* सब कुछ वह एक ही है। उसमें सर्व सम्बन्ध आ जाते
हैं।
➢➢ *हमको बाप राजयोग सिखलाते ही तब हैं जबकि तुम्हारा हठयोग पूरा होना है।
हठयोग और राजयोग दोनों इकट्ठे रह नहीं सकते।*
➢➢ *बाप को याद करो। जो बहुत सुख देते हैं उनकी याद रहती है ना। अब तुम्हें
याद करना है बेहद के बाप को।* हम अशरीरी हैं, *बाप से योग लगाते हैं तो
विकर्म विनाश हो जायें।*
➢➢ भल कोई सन्यासी से तुमको शान्ति मिले परन्तु उससे विकर्म विनाश नहीं हो
सकता। *यहाँ बाप को याद करने से विकर्माजीत बनते जायेंगे। सिवाए इस योगबल
के पुराने विकर्म किसी भी हालत में किसके विनाश हो नहीं सकते।*
➢➢ *प्राचीन योग भारत का ही गाया हुआ है।* इससे ही जन्म-जन्मान्तर के विकर्म विनाश होते हैं और कोई उपाय है नहीं।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बेहद का बाप आकर बच्चों को सुल्टी मत देते हैं। *समझो लौकिक बाप कहते हैं कालेज में पढ़कर बैरिस्टर आदि बनो।* वह कोई उल्टी मत थोड़ेही है। शरीर निर्वाह अर्थ तो वह राइट है। वह पुरुषार्थ तो करना ही है। उनके साथ-साथ फिर भविष्य 21 जन्मों के शरीर निर्वाह अर्थ भी पुरुषार्थ करना है।
➢➢ *पढ़ाई होती ही है शरीर निर्वाह के लिए।* शास्त्रों की पढ़ाई भी है
निवृत्ति मार्ग वालों के शरीर निर्वाह अर्थ। वह अपने शरीर निर्वाह अर्थ ही
पढ़ते हैं।
➢➢ *बाप कहते हैं बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते कमलफूल समान बनो।*
ब्रह्मणों को ही कमलफूल समान रहना है।
➢➢ कुमारियां तो हैं ही पवित्र, कमलफूल समान। बाकी जो विकार में जाते हैं उनको कहते हैं पवित्र बनो। *गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो। हर एक स्वदर्शन चक्रधारी बनो। शंख बजाओ।* ज्ञान कटारी चलाओ तो बेड़ा पार हो जायेगा।
➢➢ *मेहनत है, मेहनत बिगर इतना ऊंचा पद पा नहीं सकते। चलते-फिरते उसी सुख में रहो।*
➢➢ आरगन्स से काम करते-करते थक जाते हैं तो आत्मा शरीर से डिटेच हो जाती
है। *बाप कहते हैं शान्ति तो तुम्हारा स्वधर्म है। यह आरगन्स हैं, काम नहीं
करने चाहते हो तो चुप हो बैठ जाओ।*
➢➢ *बाप समझाते हैं - बच्चे समय बाकी थोड़ा है इसलिए गफलत मत करो।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ तुम्हारा समझाना अलग हो जाता है। अभी तुम बच्चे जानते हो जो पास्ट में जगत अम्बा थी - उसने भारत का भाग्य बनाया था। *तुम भी भारत का सौभाग्य बना रहे हो। माताओं का ही मुख्य नाम है। सन्यासियों का भी माताओंको उद्धार करना है।*
➢➢ *तुम बच्चियां भी सन्यासियों आदि से मिलती हो तो समझाती हो कि हमको ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। तुम हद के सन्यासी हो, हम हैं बेहद के।*
➢➢ *बाप ही परिचय देना है। समझाना है बोलो, तुम राज-विद्या इस जन्म में पढ़कर बैरिस्टर आदि बनेंगे।*
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