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❍ 12 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *भगवानुवाच, गीता में भी भगवानुवाच है ना* - यह हैं आसुरी सम्प्रदाय। भगवान ने क्यों कहा है। तुम बन्दर मिसल हो? अपनी शक्ल तो आइने में देखो। भगवान को जानते नहीं, ढूंढते रहते हैं। इसलिए मनुष्य को ही भगवान मिलना चाहिए। ढूंढते हैं परन्तु मिलते नहीं। तो *जब भगवान आये तब आकर अपना परिचय दे। गीता में पूरा परिचय है। कहते हैं मैं रूद्र हूँ। मुझ रूद्र ने यह ज्ञान यज्ञ रचा है।*
➢➢ *जब सन्यास धर्म की स्थापना होती है, उस समय सृष्टि रजो है। तो भारत को पवित्रता में थमाने लिए यह पवित्र धर्म की स्थापना होती है।* उनको रजोगुणी सन्यासी कहा जाता है। सन्यास जरूर करते हैं परन्तु रजोगुणी। वह कोई सतोप्रधान नहीं हैं। जब भारत काम चिता पर चढ़ने से जलना शुरू हो जाता है *तब ड्रामा में इस सन्यास का भी पार्ट है। उनको कोई सहज राजयोग नहीं कहेंगे। वह भगवान ने नहीं सिखाया था। वे तो भगवान को ही नहीं जानते। यह बड़ी भारी भूल कर दी है, जो कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं ।*
➢➢ तुम जानते हो मन्दिर लायक देवी-देवतायें ही बनते हैं। उन्हों के लिए ही मन्दिर बनाया जाता है। *सतयुग में तो सारी दुनिया को शिवालय कहा जाता है। सभी मन्दिर में रहते हैं। सृष्टि ही पवित्र मन्दिर बन जाती है।* विश्व शिवालय बन जाता है, जिसमें यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पवित्र रहते हैं।सतयुग में देवी देवतायें पवित्र थे, अभी नहीं हैं। *कलियुग के बाद फिर सतयुग आना है। बाप ही आकर सतयुग स्थापन करते हैं।*
➢➢ तुम जानते हो बाप आकर सब पर उपकार करते हैं। माया रावण अपकार करते हैं। *बाप आकर एक ही बार इतना उपकार करता है जो 21 जन्म हमारा उपकार हो जाता है।* मनुष्य हर एक, एक दो पर अपकार ही करते हैं। काम कटारी चलाते हैं। बाप को भूला, उपकार करना भूला तो वह फिर अपकारी जरूर बनेगा। सेकेण्ड में उपकार, सेकेण्ड में फिर अपकार कर देते
➢➢ *कलियुगी दुनिया के सभी मनुष्य मात्र नास्तिक, निधनके हैं। हे भगवान, हे परमपिता परमात्मा कह पुकारते तो हैं परन्तु उनको जानते नहीं कि आखरीन भी वह कौन है। पुकारते-पुकारते वह थक पड़े हैं।* कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। बन्दगी भी करते हैं परन्तु जानते नहीं। यह तो समझने की बात है।
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बेहद का बाप जब आते हैं तब पुरानी सृष्टि का विनाश और नई सृष्टि की स्थापना हो जाती है। यह ज्ञान हमको मिलता ही है नई दुनिया के लिए। *बाप कहते हैं देह सहित जो भी तुम्हारे संबंध आदि हैं, सबको भूल अपने को देही समझ मुझे याद करो।* यह हमारा योग है सतोप्रधान। अब फिर तमोप्रधान से सतोप्रधान सृष्टि जरूर बननी है।
➢➢ *बाप आते ही हैं बच्चों को वापिस ले जाने के लिए।* ब्रह्मा की अंधियारी रात पूरी हो सवेरा होता है। *देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं वह टूट जाते हैं।* यह पुरानी दुनिया देखने में नहीं आती। *बस बाप और परमधाम ही सूझता है।* यह वन्डर है ना।
➢➢ *हमको मदद मिल रही है परमपिता परमात्मा की।* ऐसे गृहस्थ व्यवहार में रहते 5 विकारों का सन्यास करने से हम स्वर्ग का मालिक बनेंगे।
➢➢ *जब परमात्मा बाप आकर के जीव आत्माओं से मिलते हैं तो जीव आत्मा को अपना जीवपना भूल जाता है। उनको निश्चय हो जाता है कि हम आत्मा हैं और परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। बाकी जो कुछ हम देखते हैं यह देह सहित देह के सर्व सम्बन्धी आदि यह तो याद रहना ही नहीं है।*
➢➢ *बाप को पूरा न पहचानने के कारण, बुद्धियोग न लगने कारण देह-अभिमान पूरा मिटता ही नहीं है।* उनको हम बन्दर सम्प्रदाय कहते हैं। जब देही-अभिमानी बनें तब ईश्वरीय सम्प्रदाय कंहें। *तो देही-अभिमानी हो रहना बहुत मुश्किल है, बड़ी मंजिल है।*
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ श्रीमत से ही तुम कोई का भी उपकार कर सकेंगे। फिर देह-अभिमानी बना तो अपकार करना शुरू कर देंगे। *उपकार करने से भविष्य 21 जन्मों के लिए पूंजी जमा होती है। अपकार करने से जो जमा हुआ होता वह भी खत्म हो जाता है। जबकि उपकार करना जानते हैं तो करना है।* उपकार करना नहीं जानते हैं। तो जरूर अपकार ही करेंगे।
➢➢ *क्रोध बहुत खराब है इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं मीठे टेम्पर (स्वभाव) वाले बनो। क्रोधी टेम्पर अज्ञान है।*
➢➢ *बाप समझाते हैं ममत्व को बिल्कुल छोड़ना है। ममत्व टूटते-टूटते जब अन्त का समय आयेगा तब सम्पूर्ण बनेंगे।* रेस है ना। बच्चे जानते हैं मम्मा बाबा पहले पहुंचते हैं। तो उनकी मत पर चल फालो करना चाहिए। धारणा करनी चाहिए। *माँ बाप के दिल पर चढ़ेंगे तो तख्त पर भी बैठेगें।*
➢➢ *कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। अगर ट्रेटर बन पड़े तो जाकर चांडाल बनेंगे।* हूबहू कल्प पहले वाली बातें बाबा रोज़-रोज़ सुनाते रहते हैं। उनमें कहाँ भी फ़र्क नहीं पड़ सकता।
➢➢ बाबा को कभी-कभी तो नींद ही नहीं आती। बच्चों को विश्व का मालिक बनाना है तो इतना फ़िकर रहता है। *तुम बच्चों को भी इतना फिकर रहना चाहिए कि हम श्रीमत पर कहाँ तक चलते हैं।*
➢➢ *बापदादा संग हम बच्चों को ही कुल्हा (कंधा) देना है। सारी पुरानी दुनिया को रवाना - करना है।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ बाप बैठ भूले हुए मनुष्यों को समझाते हैं। सन्यासी लोग कहते हैं आप सन्यास धर्म की निंदा करते हो। बोलो आकर समझो। पहले बताओ तुम निंदा किसको कहते हो। *परमपिता परमात्मा जो सबका बाप है, गीता का भगवान है, उसने समझाया है, कृष्ण ने नहीं। परमपिता परमात्मा ने आकर कहा है कि यह कलियुग का अन्त है*।
➢➢ *ईश्वर तो सभी का एक है, जिसको सब याद करते हैं। यह समझने की बाते हैं। समझना हो तो समझो।* परन्तु समझाने वाला बड़ा रिफाइन चाहिए। *जिनमें क्रोध का भूत होगा वह क्या समझा सकेंगे।* क्रोध का भूत, मोह का भूत, लोभ का भूत छोटे बड़े भूत तो होते ही हैं। गन्दी आदते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चों से भी माया कुछ न कुछ करा देती है। यह है सब देहअभिमान की शैतानी।
➢➢ *भगवान एक है। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी देवता कहा जाता है। उनसे नीचे तबके वालों को मनुष्य कहा जाता है। भगवान रहते ही हैं परमधाम में। हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं। ऐसे रिफाइननेस से समझाना है।* परन्तु योग पूरा नहीं है तो धारणा नहीं होती है।
➢➢ *जो जैसी सर्विस करते हैं, उनको फल जरूर मिलता है। नम्बरवन है नॉलेज देना।* उसमें बहुतों को सुख दे चक्रवर्ती बनाना है। औरों को बनायेंगे, *सर्विस की युक्तियां तो बहुत अच्छी बताई जाती है। कहाँ भी सर्विस हो सकती है। फिर करके 100 में से एक जगेगा। मेहनत का काम है।*
➢➢ *कोई सन्यासी आदि आये तो पहले युक्ति से उनकी महिमा करनी चाहिए। आओ सन्यासी जी आप तो बहुत अच्छे हो जो सन्यास किया है, घरबार छोड़ा है। तुमको मालूम है दो प्रकार का सन्यास है। एक है घरबार छोड़ने का सन्यास, दूसरा है घरबार न छोड़ने का सन्यास। गृहस्थ व्यवहार में रहते राजयोग सीख स्वर्ग का मालिक बनना होता है। कभी सुना है? कहेंगे यह बात तो कोई भी शास्त्र में नहीं है। गीता में कृष्ण का नाम डाल द्वापर में ठोक दिया है, तो समझेंगे कैसे? फिर चित्रों पर समझाना होता है।*
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