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❍ 18 / 01 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अभी भगवान सम्मुख बैठकर हमको ज्ञान के गीत सुनाते हैं वा ज्ञान की डांस कराते हैं। इस ज्ञान डांस से तुम देवताओं मुआफिक सदा सुखी और हर्षित रहेंगे।* भगवान को ही बेहद का बाप वा विश्व का रचयिता कहा जाता है। आत्मा समझती है बाबा हमारे लिए स्वर्ग की सौगात लाये हैं। वही रचयिता है।
➢➢ बाप बेहद का मालिक है तो जरूर बेहद की बड़ी दुनिया ही रचेंगे। तुम बच्चों
के लिए सारी विश्व ही घर है अर्थात् *पार्ट बजाने का स्थान है। बेहद का बाप
आ करके बेहद का विश्व अथवा घर बनाते हैं, वह है स्वर्ग। तो ऐसे बाप का बच्चों
को कितना शुक्रिया मानना चाहिए।*
➢➢ *मीठे बच्चे, तुम जानते हो हमको पढ़ाने वाला कौन है! इस चैतन्य डिब्बी
में चैतन्य हीरा बैठा है, वही सत-चित आनन्द स्वरूप है। सत बाप तुम्हें
सच्ची-सच्ची श्रीमत देते हैं।*
➢➢ अब यह दुनिया खत्म होनी ही है, इसकी बहुत सीरियस हालत है। *इस समय सबसे
अधिक गुस्सा प्रकृति को आता है इसलिए सब खलास कर देती है। तुम जानते हो यह
प्रकृति अभी अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी। सारी पुरानी दुनिया को डुबो देगी।
अर्थक्वेक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे। अनेक प्रकार से मौत होंगे। यह सब
ड्रामा का प्लैन बना हुआ है। इसमें दोष किसी का भी नहीं है। विनाश तो होना
ही है ।*
➢➢ *तुम बच्चे इस पढ़ाई से कितनी ऊंची कमाई करते हो। तुम पदमापदम पति बनते
हो। बाबा तुम्हें कितना धनवान बनाते हैं।* बाप तुमको अखुट खजाने में ऐसा
वज़न करते हैं जो 21 जन्म साथ रहेगा। वहाँ दु:ख का नाम नहीं। कभी अकाले
मृत्यु नहीं होगा। मौत से कभी डरेंगे नहीं। यहाँ कितना डरते हैं, रोते
हैं।
➢➢ *संगठित रुप से सर्व ब्राह्मणों के अन्दर रहम की भावना, विश्व-कल्याण
की भावना, सर्व-आत्माओं को दु:खों से छुड़ाने की शुभ कामनाएं जब तक हर एक
के दिल से उत्पन्न नहीं होंगी तब तक विश्व-परिवर्तन का कार्य रुका हुआ
है।*
➢➢ इसमें भी संगठन का बल चाहिए। एक दो का व सिर्फ आठ का नहीं, लेकिन सारे
संगठन का एक संकल्प चाहिये। *संकल्प से सृष्टि रचना, इसका रहस्य इस प्रकार
से है। जब सबके अन्दर संकल्प उत्पन्न होगा तो सेकेण्ड में समाप्ति का नगाड़ा
बजना शुरु हो जायेगा।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जो खुशबूदार फूल हैं वह खींचते हैं। जो जैसा है ऐसी सर्चलाइट लेने की कशिश करते हैं। खुशबूदार, गुणवान बच्चों को देख प्यार में खुशी में नयन गीले हो जाते हैं।* कुछ तकलीफ होती है तो बाबा सर्चलाइट देते हैं।
➢➢ *जितना हृदय शुद्ध होगा तो औरों को भी शुद्ध बनायेंगे। योग की स्थिति
से ही हृदय शुद्ध बनता है। तुम बच्चों को योगी बनने बनाने का शौक होना
चाहिए । अगर देह में मोह है, देह-अभिमान रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत
कच्ची है।*
➢➢ *देही-अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड बनते हैं इसलिए जितना हो सके
देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो। बाप को याद करो ।*बाबा अक्षर सबसे बहुत
मीठा है। बाप बड़े प्यार से बच्चों को पलकों पर बिठाकर साथ ले जायेंगे। ऐसे
बाप की याद के नशे में चकनाचूर होना चाहिए। बाप को याद करते-करते खुशी में
ठण्डे ठार हो जाना चाहिए।
➢➢ *हम आत्मा इन्डिपिडेंट हैं। बस एक बाप के सिवाए और किसी की याद न आये।*
जीते जी जैसे कि मौत की अवस्था में रहना है। इस दुनिया से मर गये। कहते भी
हैं ना - आप मुये मर गई दुनिया। शरीर के भान को उड़ाते रहो। *एकान्त में
बैठ यह अभ्यास करो - बाबा बस अभी हम आपकी गोद में आये कि आये। एक की याद
में शरीर का अन्त हो - इसको कहा जाता है एकान्त।*
➢➢ *हर बात में राइटियस बनो, एक बाप को याद करो तो फिर अन्त मति सो गति हो
जायेगी।*इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ विश्व का रचता बाप डायरेक्ट समझा रहे हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ तो *तुम्हारा स्वभाव बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। तुम्हारी चलन ऐसी होनी चाहिए जो सब कहें कि यह तो जैसे देवता है। देवतायें नामीग्रामी हैं। कहते हैं इनका स्वभाव एकदम देवताई है। बिल्कुल मीठे शान्त स्वभाव के हैं।* तो ऐसे बच्चों को बाप भी देख खुश होते हैं।
➢➢ बाबा स्वर्ग का मालिक बनाने आते हैं तो *तुम्हें कितना मददगार बनना चाहिए। सर्विस में आपे ही लग जाना चाहिए। ऐसे नहीं मैं थक गया हूँ, फुर्सत नहीं है। समय पर सब काम करने में कल्याण है। यज्ञ सर्विस का इज़ाफा शिवबाबा देते हैं।* बाबा बच्चों की दैवी चलन देखते हैं तो कुर्बान जाते हैं ।
➢➢ *बाप के बने हो तो कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। चुप रहना है और पढ़ना है, एक बाप को याद करना है। घड़ी-घड़ी इस बैज को देखते रहो तो बाप और वर्से की याद आयेगी। याद से ही तुम जैसे सारे विश्व को शान्ति का दान देते हो।हर एक बच्चे को अपनी प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाने हैं।*
➢➢ *बाबा समझाते हैं मीठे बच्चे, तुम्हें इस पुरानी दुनिया में कोई भी आशा
नहीं रखनी है। अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है कि हम तो चलें सुखधाम। कहाँ
भी ठहरना नहीं है। देखना नहीं है। आगे बढ़ते जाना है। एक तरफ ही देखते रहो
तब ही अचल-अडोल स्थिर अवस्था रहेगी।*
➢➢ तुमको तो खुशी है - यह पुराना शरीर छोड़ जाए नई दुनिया में प्रिन्स
बनेंगे। *तुम इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाते रहो, इस देह को भी भूलते
जाओ।*
➢➢ *जैसे नगाड़ा बजाने से पहले नगाड़े को गर्म किया जाता है तब आवाज
बुलन्द होती है। तो यह भी योग अग्नि से नगाड़ा बजने के पहले तैयारी चाहिए,
तब नगाड़े में आवाज़ बुलन्द होगी। इस इन्तज़ाम में लगे हुए हो ना!*
इन्तज़ार करने वालों को भी इन्तज़ाम में लगाओ तब जयजयकार हो जायेगी।
➢➢ *जब शरीर को चलाना आ जायेगा तब राज्य चलाना भी आ जायेगा। शरीर को चलाना
अर्थात् राज्य करना। तो राज्य करने के संस्कार भरने हैं ना!* नॉलेजफुल कहा
जाता है, तो फुल नॉलेज में तन, मन, धन और जन सब आ जाता है। अगर एक की भी
नॉलेज कम है तो नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। समझा? सदा सफलतामूर्त बनने का आधार
भी नॉलेजफुल है। नॉलेज नहीं तो सफलतामूर्त भी नहीं हो सकते।
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं - तुम भी फालो फादर करो। सुखदाई बनो।*
➢➢ *बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो बच्चों को भी सबको सुख देना है। बाप
का राइट हैण्ड बनना है।* ऐसे बच्चे ही बाप को प्रिय लगते हैं। शुभ कार्य
में राइट हाथ को ही लगाते हैं ।
➢➢ बाबा देखते हैं सब कुछ बाप को अर्पण कर फिर हमारी श्रीमत पर कहाँ तक
चलते हैं। शुरू-शुरू में बाप ने भी ट्रस्टी हो दिखाया ना। सब कुछ ईश्वर
अर्पण कर खुद ट्रस्टी बन गया। *बस ईश्वर के काम में ही लगाना है। विघ्नों
से कभी डरना नहीं चाहिए। जहाँ तक हो सके सर्विस में अपना सब कुछ सफल करना
है। ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बन है।*
➢➢ *अब संगठित रुप में एक संकल्प को अपनाओ अर्थात् दृढ़ संकल्प की इक्ट्ठी
अंगुली सभी मिलकर दो, तब इस कलियुगी पर्वत को परिवर्तन कर गोल्डन वर्ल्ड ला
सकेंगे।*
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