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  14 / 02 / 18  

       MURLI SUMMARY 

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❍   ज्ञान के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  तुम आते हो इस पाठशाला में, किसकी पाठशाला है? *श्रीमत भगवत की पाठशाला।* फिर उनका नाम गीता रख दिया है। *श्रीमत श्रेष्ठते श्रेष्ठपरमात्मा की है, वह अपने बच्चों को श्रेष्ठमत दे रहे हैं।* आगे तो तुम रावण की आसुरी मत पर चलते आये हो। अब ईश्वर बाप की मत मिलती है।

 

➢➢  मैं सिर्फ तुम्हारा बाप नहीं हूँ। तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, सतगुरू भी हूँ। जो हमारे बनते हैं, कहते हैं शिवबाबा ब्रह्मा मुख द्वारा हम आपके बन गये। *प्रतिज्ञा करते हैं मैं आपकी हूँ, आपकी ही रहूँगी। बाबा भी कहते हैं तुम हमारे हो।*

 

➢➢  *ऐसे नहीं सतयुग त्रेता में सिर्फ 108 ही प्रिन्स-प्रिन्सेज होंगे।* वृद्धि होते माला बढ़ती जाती है। *प्रजा की वृद्धि होगी तो जरूर प्रिन्स-प्रिन्सेज की भी वृद्धि होगी।*

 

➢➢  *हे मेरे लाडले बच्चे मुझे जानने से तुम सृष्टि झाड़ को जान जायेंगे।* यह झाड़ कब पुराना नहीं होता है। भक्तिमार्ग कब शुरू होता है - यह तुम जानते हो। यह है कल्प वृक्ष। नीचे कामधेनु बैठी है। जरूर उनका बाप भी होगा। *अभी तुम भी कल्प वृक्ष के तले में बैठे हो, फिर तुम्हारा नया झाड़ शुरू हो जायेगा।*

 

➢➢  किचड़पट्टी खलास होनी है। देवतायें किचड़पट्टी में नहीं रहते हैं। लक्ष्मी का आह्वान करते हैं तो सफाई आदि करते हैं ना। *अब लक्ष्मी-नारायण आयेंगे तो सारी सृष्टि साफ हो जायेगी और सब खण्ड खत्म हो जायेंगे, फिर देवतायें आयेंगे।* वह आकर अपने महल बनायेंगे।

 

➢➢  *रोते हैं, झगड़ते हैं। उल्टा सुल्टा खाते हैं। देवतायें रोते तो भी और बात, यह तो डायरेक्ट ईश्वर की सन्तान रोते हैं तो क्या गति होगी!* ऐसा अकर्तव्य कार्य नहीं होना चाहिए, जो बाप की आबरू गँवाओ।

 

➢➢  *श्रीमत पर चलने से तुम सो श्रेष्ठ लक्ष्मीनारायण बन जायेंगे। गैरन्टी है। कल्प पहले भी तुमको नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनाया था। ऐसा कोई मनुष्य कह न सके। किसको कहने आयेगा नहीं।*

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❍   योग के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *अन्दर बुद्धि से बाप को और वर्से को याद करो।* मायापुरी को भूलो, इनमें अथाह दु:ख हैं। यह कब्रिस्तान है।

 

➢➢  *मीठे बाबा और मीठे सुखधाम को याद करो।* यह दुनिया तो खत्म होनी है। विदेशों में तो बाम्ब्स आदि गिरायेंगे तो सब मकान गिर जायेंगे, सबको मरना है।

 

➢➢  *तुम जानते हो हम यहाँ आये हैं नर से नारायण बनने।* सिर्फ मनुष्य से देवता भी नहीं कहो। देवताओंकी तो राजधानी है ना। हम आये हैं राज्य लेने। *इसको कहा ही जाता है राजयोग।* यह कोई प्रजा योग नहीं है।

 

➢➢  तुम अभी जानते हो - देवतायें जो गोरे थे, द्वापर में आकर जब काम चिता पर बैठते हैं तो आत्मा काली बन जाती है। *फिर बाप आकर उन्हें काले से गोरा बनाते हैं।*

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❍   धारणा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *कृष्ण जैसा बनना है तो अभी सदा हर्षितमुख रहो और मुख से रत्न निकलते रहें।*

 

➢➢  बातें तो बहुत बना दी हैं। *अभी बाप कहते हैं यह सब बातें बुद्धि से निकालो। अब मेरी सुनो।* संशयबुद्धि विनश्यन्ती। *अब मुझ पर निश्चय रखो तो निश्चयबुद्धि विजयन्ती।* विजय माला के दाने बन जायेंगे।

 

➢➢  *जो अच्छी सर्विस करते हैं उनकी विजय माला बनती है।* सबसे अच्छी सर्विस करने वाले दाने रूद्र माला में आगे जाते हैं। फिर विष्णु की माला में आगे जायेंगे। नम्बरवार 108, फिर 16000 की भी माला एड करो।

 

➢➢  *अब ईश्वर के बच्चे तो सदैव हर्षित रहने चाहिए। कभी रोना नहीं चाहिए।* यहाँ बहुत ब्रह्माकुमार कुमारियां कहलाने वाले भी रोते हैं। खास कुमारियां। पुरुष रोते नहीं हैं। तो रोने वाले नाम बदनाम कर देते हैं। वह माया के मुरीद देखने में आते हैं। शिवबाबा के मुरीद नहीं देखने में आते।

 

➢➢  यह है ब्रह्मणों की नई रचना। ऊंच ते ऊंच चोटी ब्रह्मण, ऊंच ते ऊंच भगवान फिर ईश्वरीय सम्प्रदाय। तो *तुमको इतना नशा रहना चाहिए। हम ईश्वर के पोत्रे-पोत्रियां प्रजापिता के बच्चे हैं।*

 

➢➢  बाबा कहते अपनी सम्भाल करो। सतगुरू की निन्दा कराने वाला कभी ठौर नहीं पायेगा। वह समझ लेवे हम राजगद्दी कभी नहीं पायेंगे। *तुम्हें तो सदैव हर्षित रहना चाहिए।* जब तुम यहाँ हर्षित रहेंगे तब 21 जन्म हर्षित रहेंगे।

 

➢➢  *हर बात में सम्भाल चाहिए।* तुमको ईश्वर पढ़ाते हैं। इस समय तो जितने मनुष्य उतनी मतें हैं - एक न मिले दूसरे से। तो बाप समझाते हैं यहाँ तुम बैठे हो अपनी ऊंच ते ऊंच तकदीर बनाने। ऊंच तकदीर सिवाए परमात्मा के और कोई बना न सके।

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❍   सेवा के मुख्य बिंदु   ❍

 

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➢➢  *यह बाप ही कहते हैं मेरे बच्चे मैं तुमको राजयोग सिखलाकर फिर से स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। सतयुग है अल्लाह की दुनिया।* भगवती, भगवान को अल्लाह कहेंगे।

 

➢➢  यहाँ भी माया टूँगा लगा देती है। दु:खी होते रहते हैं। *अभी बाप कहते हैं तुमको इन दु:खों से, विषय सागर से क्षीर सागर में ले चलते हैं।* अब क्षीरसागर तो कोई है नहीं। कह देते हैं विष्णु सूक्ष्मवतन में क्षीरसागर में रहते हैं। यह अक्षर महिमा के हैं।

 

➢➢  *बाबा कहते हैं गरीब-निवाज मैं हूँ। दान भी गरीब को किया जाता है। अहिल्यायें, कुब्जायें, पाप आत्मायें जो हैं, ऐसे-ऐसे को मैं आकर वरदान देता हूँ।*

 

➢➢  *तुम एकदम सन्यासियों को भी बैठ ज्ञान देंगे।* ब्रह्मण बनने बिगर देवता कोई भी बन न सकेंगेे। जो देवता वर्ण के थे, वह ब्रह्मण वर्ण में आयें, तब फिर देवता वर्ण में जा सकेंगे।

 

➢➢  मुझ आत्मा को परमपिता परमात्मा का धन मिला है, जो मुझ आत्मा में धारण होता है, सो मैं अपने मुख से दान करता जाता हूँ। *जैसे बाबा शरीर का लोन ले दान करते रहते हैं, ऐसी अवस्था चाहिए।*

 

➢➢  *बाबा समझाते हैं कल्प के संगमयुग पर ही मैं आकर लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन करता हूँ।* बाबा कहते हैं तुमको राजतिलक दे रहा हूँ। मैं स्वर्ग का रचयिता तुमको राजतिलक नहीं दूँगा तो कौन देगा?

 

➢➢  अब मैं ज्ञान सागर तुम बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। *तुम काम चिता पर बैठने से जलकर काले बन जाते हो, मैं आकर तुम पर ज्ञान वर्षा करता हूँ, जिससे तुम गोरे बन जाते हो।*

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