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❍ 04 / 03 / 18 ❍
⇛ MURLI SUMMARY ⇚
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❍ ज्ञान के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *पुरानी दुनिया अर्थात् हलचल की दुनिया।* बापदादा हलचल के दुनिया की रौनक देख बच्चों की अचल स्थिति को देख रहे थे। *(बच्चे) यह सब हलचल के नज़ारे साक्षी हो देखते हैं। खेल में यह नज़ारे और ही अपना अचल स्वीट होम और अपनी निर्विघ्न स्वीट राजधानी याद दिलाते हैं।* स्मृति आती है कि हमारा घर, हमारा राज्य क्या था और अब भी क्या राज्य आने वाला है और घर जाने वाले हैं।
➢➢ *करावनहार बाप है लेकिन निमित्त करनहार बच्चों को ही बनाते हैं क्योंकि
कर्म का फल प्रालब्ध मिलती है। निमित्त कर्म बच्चों को ही करना है।*
सम्बन्ध में ब्रह्मा बाप के साथ-साथ बच्चों को आना है। बाप तो न्यारा और
प्यारा ही रहेगा। तो ऐसी चेकिंग करके फिर बताओ कि तैयार हो? कार्य को आधा
में तो नहीं छोड़ना है ना!
➢➢ *बिना सम्पन्नता के आत्मा कर्मातीत हो बाप के साथ जा नहीं सकती है। समान वाले ही साथ जायेंगे।* जाना तो साथ है या पीछे-पीछे आना है! शिव की बरात में तो नहीं आना है ना! अभी बताओ तैयार हो?
➢➢ *सभी अपने को सदा श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? श्रेष्ठ आत्मा अर्थात् हर
संकल्प, बोल और कर्म सदा श्रेष्ठ हो क्योंकि साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ
जीवन में आ गये। कलियुग से निकल संगमयुग पर आ गये।* जब युग बदल गया, जीवन
बदल गई, तो जीवन बदला अर्थात् सब कुछ बदल गया। ऐसा परिवर्तन अपने जीवन में
देखते हो?
➢➢ *साक्षी स्थिति सहज पुरूषार्थ का अनुभव कराती है? क्योंकि साक्षी स्थिति
में किसी भी प्रकार का विघ्न या मुश्किलात आ नहीं सकती। यह है मूल अभ्यास।*
यही साक्षी स्थिति का पहला और लास्ट पाठ है क्योंकि *लास्ट में जब चारों ओर
की हलचल होगी, तो उस समय साक्षी स्थिति से ही विजयी बनेंगे।* तो यही पाठ
पक्का करो।
➢➢ सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? *संगमयुग श्रेष्ठ युग
है, परिवर्तन युग है,आत्मा और परमात्मा के मिलन मेले का युग है।* ऐसे
संगमयुग की विशेषताओं को सोचो तो कितनी हैं। इन्हीं विशेषताओं की स्मृति
में रह समर्थ बनो। जैसी स्मृति वैसा स्वरूप स्वत: बन जाता है।
➢➢ *कोई भी कर्म, चलन साधारण लोगों के मुआफ़िक न हो।* वे हैं लौकिकं और आप अलौकिक। तो *अलौकिक जीवन वाले लौकिक आत्माओं से न्यारे होंगे। संकल्प को भी चेक करो कि साधारण है वा अलौकिक है? साधारण है तो साधारण को चेक करके चेन्ज कर लो।*
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❍ योग के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *अगर न्यारापन नहीं तो बाप का प्यारा भी नहीं।* अगर कभी-कभी समझते हो कि हमको बाप का प्यार अनुभव नहीं हो रहा है तो समझो कहाँ न्यारेपन में कमी है, कहाँ लगाव है। न्यारे नहीं बने हो तब बाप का प्यार अनुभव नहीं होता।
➢➢ *(ब्राह्मण जीवन में अगर कोई लगाव है) चाहे अपनी देह से, चाहे सम्बन्ध
से, चाहे किसी वस्तु से...स्थूल वस्तु भी योग को तोड़ने के निमित्त बन जाती
है।* सम्बन्ध में लगाव नहीं होगा लेकिन *खाने की वस्तु में, पहनने की वस्तु
में लगाव होगा, कोई छोटी चीज़ भी नुकसान बहुत बड़ा कर देती है।* तो सदा
न्यारापन अर्थात् अलौकिक जीवन। जैसे वह बोलते, चलते, गृहस्थी में रहते ऐसे
आप भी रहो तो अन्तर क्या हुआ!
➢➢ *हर कदम में सर्वशक्तिवान बाप का साथ है, ऐसा अनुभव करते हो? जहाँ
सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ सर्व प्राप्तियाँ स्वत: होंगी। जैसे बीज है तो
झाड़ समाया हुआ है।*
➢➢ *ऐसे सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो सदा मालामाल, सदा तृप्त, सदा
सम्पन्न होंगे। कभी किसी बात में कमज़ोर नहीं होंगे।* कभी कोई कम्पलेट नहीं
करेंगे। *सदा कम्पलीट।*
➢➢ क्या करें, कैसे करें... यह कम्पलेन्ट नहीं। *(बाबा का)साथ हैं तो सदा
विजयी हैं।* किनारा कर देते तो बहुत लम्बी लाइन है। एक क्यों क्यू बना देती
है। तो कभी क्यों की क्यू लगे । भक्तों की प्रजा की क्यू भले लगे लेकिन क्यों
की क्यू नहीं लगानी है। *ऐसे सदा साथ रहने वाले चलेंगे भी साथ।*
➢➢ *(बाप और बच्चे) सदा साथ हैं, साथ रहेंगे और साथ चलेंगे यही पक्का वायदा
है ना। बहुतकाल की कमी अन्त में धोखा दे देगी। अगर कोई भी कमी की रस्सी रह
जायेगी तो उड़ नहीं सकेंगे। तो सब रस्सियों को चेक करो। बस बुलावा आये, समय
की सीटी बजे और चल पड़े।*
➢➢ *बाप द्वारा सबसे मुख्य वरदान कौन सा मिला? एक तो सदा योगी भव और दूसरा पवित्र भव।* तो यह दोनों विशेष वरदान रादा जीवन में अनुभव करते हो? *योगी जीवन बना ली या योग लगाने वाले योगी हो? योग लगाने वाले योगी दो चार घण्टा योग लगायेंगे फिर खत्म। लेकिन योगी जीवन अर्थात् निरन्तर । तो निरन्तर योगी जीवन है।* ऐसे ही पवित्र भव का वरदान मिला है। पवित्र भव के वरदान से पूज्य आतगा बन गये। *योगी भव के वरदान से सदा शक्ति स्वरूप बन गये ।* तो शक्ति स्वरूप और पवित्र पूज्य स्वरूप दोनों ही बन गये हो ना।
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❍ धारणा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ *(बहुत वर्षा होने के कारण टेन्ट आदि सब गिर गये)* टेन्ट हिला वा दिल भी हिली? दिल तो मजबूत है ना। ब्रह्मा बाप को बहुत ओना था कि बच्चों को तकलीफ न हुई हो। तकलीफ हुई वा मनोरंजन हुआ? *वैसे तो सब अचल हैं। अभी तो बहुत कुछ होना है। यह तो कुछ नहीं है। यह भी तत्वों के परिवर्तन की निशानियाँ हैं। इसको देख जैसे तत्वों की रफ्तार तेज जा रही है, ऐसे स्व-परिवर्तन की रफ्तार भी तीव्र हो।*
➢➢ *सदा साक्षीपन की स्थिति में स्थित रहते हुए ड्रामा के हर दृश्य को
देखते हो? साक्षीपन की स्थिति सदा ड्रामा के अन्दर हीरो पार्ट बजाने में
सहयोगी होती है।* अगर साक्षीपन नहीं तो हीरो पार्ट बजा नहीं सकते। हीरो
पार्टधारी से साधारण पार्टधारी बन जाते हैं।
➢➢ *साक्षीपन की स्टेज सदा ही डबल हीरो बनाती है। एक हीरे समान बनाती है और दूसरा हीरो पार्टधारी बनाती है। साक्षीपन अर्थात् देह से न्यारे, आत्मा मालिकपन की स्टेज पर स्थित रहे। देह से भी साक्षी, मालिक।* इस देह से कर्म कराने वाली, करने वाली नहीं। ऐसी साक्षी स्थिति सदा रहती है?
➢➢ *सदा ज्ञान का मनन करते रहो। मनन करने से (आत्मा में) शक्ति भरती है।*
अगर मनन नहीं करते, सिर्फ सुनते सुनाते तो शक्ति स्वरूप नहीं लेकिन सुनाने
वाले स्पीकर बनेंगे।
➢➢ *मायाजीत बन गये तो निश्चिन्त। माया से हार खाने की, युद्ध करने की कोई
चिन्ता नहीं। तो निश्चिन्त और मनन करके हर्षित हो रहे हैं। ऐसे अपने को देखो
मायाजीत बने हैं।* कोई भी विकार वार न करे। (विष्णु का चित्र में वो आराम
से लेटे हुए हैं और मनन कर रहे हैं, सिमरण कर मनन कर हर्षित हो रहे हैं|
सांप को शैया बना दिया अर्थात् विकार अधीन हो गये। नीचे वाली चीज़ अधीन होती
है, ऊपर मालिक होते हैं| यह चित्र हम बच्चों का ही मनन का चित्र है, भक्ति
में)
➢➢ *रोज़ नई-नई प्वाइंट स्मृति में रख मनन करो तो बड़ा मज़ा आयेगा, मौज
में रहेंगे क्योंकि बाप का दिया हुआ खजाना मनन करने से अपना अनुभव होता
है।* जैसे भोजन पहले अलग होता है, खाने वाला अलग होता है। लेकिन जब हज़म कर
लेते तो वही भोजन खून बन शक्ति के रूप में अपना बन जाता है। *ऐसे ज्ञान भी
मनन करने से अपना बन जाता, अपना खज़ाना है - यह महसूसता आयेगी।*
➢➢ *हिम्मते बच्चे मददे बाप । जहाँ बाप की मदद है वहाँ कोई मुश्किल कार्य नहीं। हुआ ही पड़ा है।* सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करते हो? इस स्वरूप की स्मृति में रहने से हर परिस्थिति ऐसे अनुभव होगी जैसे परिस्थिति नहीं लेकिन एक साइडसीन है। *मास्टर सर्वशक्तिवान कभी रूकते नहीं। सदा अपने जीवन में उड़ती कला का अनुभव करते हैं।*
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❍ सेवा के मुख्य बिंदु ❍
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➢➢ (बापदादा बच्चों को अपने आप से पूछने के लिए कह रहे हैं) सम्पूर्ण स्वतन्त्र आत्मा हैं? अपने पुरूषार्थ की रफतार से अपने आप से सन्तुष्ट हैं? *अपनी सन्तुष्टता के साथ-साथ स्वयं की श्रेष्ठ स्थिति का सर्व सम्पर्क वाली आत्माओं से सन्तुष्टता का रेसपान्ड मिलता है?*
➢➢ (बापदादा बच्चों को अपने आप से पूछने के लिए कह रहे हैं) सेवा में स्वयं से सन्तुष्ट हैं? *यथार्थ शक्तिशाली विधि का रिटर्न सिद्धि प्राप्त हो रही है? अपने राज्य की वैरायटी प्रकार की आत्माओं को जैसे राज्य अधिकारी, रॉयल फैमली के अधिकारी, रॉयल प्रजा के अधिकारी और साधारण प्रजा के अधिकारी, सर्व प्रकार की आत्माओं को संख्या प्रमाण तैयार किया है?*
➢➢ अपने आपको देखो कि परिवर्तन कितना किया है। चाहे लौकिक सम्बन्ध में बहू
हो, सासू हो, लेकिन आत्मा को देखो। बहू नहीं है लेकिन आत्मा है। *(अपने
लौकिक सम्भंधों को) आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा
बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान में है। मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो
उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊंगी।*
➢➢ *अपनी वृत्ति, दृष्टि चेन्ज चाहिए। नहीं तो परिवार में प्रभाव नहीं पड़ता। तो वृत्ति और दृष्टि बदलना ही अलौकिक जीवन है।* जो काम अज्ञानी करते वह आप नहीं कर सकते हो। संग का रंग आपको न लग जाए। *अपने को देखो मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मेरा प्रभाव अज्ञानी पर पड़ता है, अगर नहीं पड़ता तो शुभ भावना नहीं है। बोलने से प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन सूक्ष्म भावना जो होगी उसका फल मिलेगा।*
➢➢ *बापदादा सभी बच्चों से उम्मीदें रखते हैं, हर बच्चे को दृढ़ संकल्प करना है, व्यर्थ नहीं सोचेंगे, व्यर्थ नहीं करेंगे, व्यर्थ की बीमारी को सदा के लिए खत्म करेंगे. यही एक दृढ़ संकल्प सदा के लिए सफलता मूर्त बना देगा।* सदा सावधान रहना है अर्थात् व्यर्थ को खत्म करना है
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