28-05-15 बाबा कविता


करता हूँ श्रंगार मैं तेरा ओ मेरे राज दुलारे
श्रीमत को अपना मैं तेरे हर लूंगा दुःख सारे
प्यार मेरा अनमोल है तूँ इसको पाता जा रे
अपने अंदर का देह अभिमान मिटाता जा रे
अपनी वाणी से सबको ज्ञानामृत पिला दे
बिछुड़े हुए सब बच्चों को मुझसे तूँ मिला दे
भूल विनाशी रिश्ते मुझको दिल में बिठा ले
इस पुरानी दुनिया से अपना लंगर उठा ले
करले अब तैयारी तूँ अपने घर चलने की
घड़ी सुहानी आई अब खुद को बदलने की
देह अभिमान को योगाग्नि में कर दे अर्पण
तोड़ सारे बंधन हो जा मुझ पर पूरा समर्पण
मुक्त कर दूंगा सब कष्टों से मेरा है ये वादा
श्रीमत पर चलने का पहले कर पक्का इरादा

ॐ शांति !!!