18-12-15 मुरली कविता


तुम्हारी है यह ईश्वरीय मिशन,
जो दिलाती सबको बेहद का वर्सा
कर्मेन्द्रियों की चंचलता करनी खत्म
देह की संभाल करनी,नही रखना ममत्व
सिल्वर ऐज होने तक कर्मेन्द्रिया करनी शांत
बाप जो परहेज़ देते इसका करना पालन
कोई भी पाप कर्म छिपाने वाला,
जिससे बाप की ग्लानि हो,नही करना
एक बाप की अव्यभिचारी याद में रहना
लाइट -हाउस बन सुख का वायुमंडल करना निर्माण
स्थूल लाइट आँखों से देखते,रूहानी लाइट को अनुभव से जाना जाता
व्यर्थ बातो में समय ,संकल्प गंवाना भी है अपवित्रता


ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!