श्रीमत पर तुम करते विश्व की सेवा
इस हेल को बनाते हेवन ,तो तुम्हारा यह जीवन है अमूल्य
देह-अभिमान कर देता ख़ुशी को गायब
दिल
में शंका पैदा होने से भी ख़ुशी हो जाती गुम
देहि-अभिमानी बनने से ख़ुशी सैदेव रहती कायम
स्थूल,सूक्ष्म सेवा कर ख़ुशी का करो अनुभव
खान-पान ,चलन रखनी रॉयल
पोतामेल रखो..कितना याद किया,कितने ज्ञान रत्न धारण
किये,कितने बने प्योर
अतीइंद्रिय सुखो के झूले झूलते रहो
देह
-अभिमान की मिट्टी में पांव नही रखो
मैं
त्यागी हूँ..इसका भी करो त्याग
ॐ
शान्ति!!!
मेरा
बाबा!!!