11-11-15 मुरली कविता
तुम हो सच्चे-सच्चे तपस्या करने वाले राजऋषि
तुम तपस्या कर बनते हो पूजन लायक
आत्मा को सत्तोप्रधान बनाने का करना तुमको पुरुषार्थ
जो करते नही पुरुषार्थ वो सजायें धर्मराज की खाते
..फिर मुहँ ऊँचा नही कर पाते तो पूज्य भी नही बन पाते
दही-अभिमानी बनने की करनी तपस्या
सबकों मुक्ति-जीवनमुक्ति का बताना रास्ता
बेहद का वैरागी और सदा सुखदायी बनना
मालिकपन और विश्वसेवधारी का नशा समानता में हो तो बन जायेंगे
बाप समान
दोनों स्वरुप प्रत्यक्ष रूप में कर्म में हो तब बनें बाप समान
ख़ज़ानों से सम्पन्न
ज्ञान के अखुट ख़ज़ानों के अधिकारी की अधीनता स्वतः हो जाती ख़त्म
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!