13-10-15
मुरली कविता
बाप की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत
से बनते तुम भी श्रेष्ठ
देवता बनना तो मुख से निकले फूल
किसी को भी दुःख देने की नही हो भूल
रूठना नही ,मुर्दे जैसी नही बनानी शक्ल
सजाओं से बचना,सर्वगुण सम्पन्न बनना
मुख से कांटे व् नही निकले पत्थर
श्रीमत पर चलना,बाप को सदा करना याद
बाप जैसे स्थिति हो ऊँची,कर्म भल साधारण
डबल -लाइट स्थिति हो तो कर्म भी हो जाते अलौकिक
आत्मिक दृष्टि-वृति के अभ्यास से... होती पवित्रता धारण
ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!