03-06-15 मुरली कविता


याद दूर हो कर भी साथ का कराती अनभुव
याद से होते विकर्म विनाश
दूरदेशी बाप बच्चों को दूरांदेशी बनाते
चक्र में भिन्न -भिन्न वर्णों का राज़ समझाते
शुद्र से हम ब्राह्मण कैसे बनते बतलाते
अभी देह -अभिमान से गलने का पुरुषार्थ करना
सच्चा -ब्राह्मण कीड़ो पर ज्ञान की भूँ भूँ कर आप समान बनाते
परिस्थिति निश्चय का फॉउन्डेशन मज़बूत करने का होती साधन
अंगद और महावीर जैसा मज़बूत बन चैलेन्ज करना
स्वस्थिति अचल -अडोल बना परस्थिति को पानी की लकीर देती बना
सर्व को प्यार की अनुभूति कराओ
सदा न्यारे और प्यारे बनो


ॐ शांति !!!
मेरा बाबा !!!