04-07-15 मुरली कविता


संगम है विकर्म विनाश करने का युग
इसमे पावन जरूर बनना,और कोई नही करने विकर्म
ज्ञान रत्नों से भरपूर हो,अतीइंद्रिय सुख का करना अनुभव
जो जितना करते ज्ञान धारण
उतना वो बनते साहूकार व गरीब
इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर ही ज्ञान रत्नों का होता दान
अमृतवेले उठ, करो विचार- सागर -मंथन
बाप को पूरा समाचार सुनाना
श्रीमत ले,विकर्म करने से बचना
राहमदिल बनना, सर्व आत्माओं प्रति लॉफुल,लवफुल बनना
अहम और वहम को छोड़,क्षमा करने वाले बनना
तन -मन -धन का सहयोग देना अर्थात ब्राह्मणों की सफलता


ॐ शांति !!!
मेरा बाबा !!!