19-08-15 मुरली कविता


श्रीमत पर चल करना रूहानी धंधा
सबकों मुक्ति-जीवन मुक्ति का बताना रास्ता
बाप बताते सूक्ष्म गुह्य बातें..जैसे
सतयुग को कहते अमरलोक...वहाँ मृत्यु का नाम नही
त्रिमूर्ति शिव कहेंगे..त्रिमूर्ति ब्रह्मा नही
हम ब्रह्मा की संतान आपस में है भाई -बहिन
खान -पान में हबच और हंगामे में जास्ती नही जाना
बेहद की बादशाही के सुख को याद करना
वाणी, कर्म, समय, श्वांस, संकल्प है बाप का दिया खज़ाना
इन्हें बाप की डायरेक्शन अनुसार कार्य में लगाना
श्रीमत में मनमत,स्वचिंतन के बजाये परचिन्तन,
स्वमान के जगह अभिमान यह है व्यर्थ करना खज़ाना
विश्व कल्याण अर्थ ही खज़ाना करना खर्च
ऑपोजीशन माया से करनी ..दैवी परिवार से नही


ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!