18-05-15 बाबा कविता


भूलकर अपना सत्य स्वरूप दुख ही मैंने पाया
इन्द्रियों का मैं दास बना मालिक बन गई माया
विकारों के दलदल में धँसकर पाप करता गया
अवगुण अपनाकर अपने विवेक से मरता गया
खा गई माया मुझे विकारों के जाल में फंसाकर
अब कौन निकाले मुझे उसके जबड़े से बचाकर
अपना दुःख मैंने रो रोकर हर एक को सुनाया
लेकिन इसका उपाय मुझे कोई बता ना पाया
परमधाम से अवतरित हुआ तब शिव भगवान
उसी ने आकर दी मुझको मेरी सत्य पहचान
दुःख आने का सही कारण उसने मुझे बताया
राजयोग सिखाकर देहभान से मुझे छुड़ाया
अपनाकर राजयोग देहभान से मैं न्यारा हुआ
बाबा की मत अपनाकर बाबा का प्यारा हुआ

ॐ शांति !!!