08-10-15 मुरली कविता


बाबा -बाबा मुख से निकलता रहे..'बाबा 'अक्षर है मीठा
सतयुग में मनुष्य,जानवर कोई न रोगी होगा
बाप अविनाशी सर्जन.. बेहद की सृष्टि का करते ऐसा ऑपेरशन
सारी सृष्टि जो अभी है दुखी...वही फिर बन जाती रोग-मुक्त
सत बाप के संग जाना तो रहना उनसे सच्चा
क्रिमिनल एक्ट न हो...भाई -बहिन का रहे सिर्फ सम्बन्ध
"मैं बाबा का और बाबा मेरा"...इस स्मृति से स्व का और सर्व का होगा कल्याण
पुरानी स्मृति को कर समाप्त..नयी स्मृति पर हो अटेंशन
इस विधि से ही प्राप्त होगा सिद्धि स्वरुप का वरदान
शांत स्थिति से ही होगा....अती -इंद्रिय सुख का अनुभव
 

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!