29-10-15 मुरली कविता


अंदर में रहो घोटते ..मैं हूँ आत्मा
देही-अभिमानी बनो,चार्ट रखो ..इसमें है फ़ायदा
इस अविनाशी नाटक में,हरेक है पार्टधारी..उसे पार्ट बजाने आना
कोई कहे मैं शान्तिधाम में ही बैठूँ...तो यह नही लॉ
आत्मभिमानी बनने में है मेहनत
काम-विकार पर योग बल से पानी जीत
सेवाधारी अर्थात उमंग-उत्साह दे जो बनाये शक्तिशाली
अपनी पालना का देना रिटर्न ...आत्माओं को समर्थ,अचल अडोल बनाने का दे सहयोग
रूहानी ड्रिल माना रूह जब , जहाँ,जैसे चाहे हो जाये स्थित

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!