16-09-15
मुरली कविता
इस पढ़ाई का सारा मदार है योग पर
जिससे आत्मा बनती पवित्र और होते विक्रम विनाश
जो बच्चें होते नही निश्चयबुद्धि, बाप को नही पहचानते
बाप को देते फारकती ,उनका हाथ छोड़ जाते
अवस्था ऊपर नीचे होती तो पढ़ाई भी छूट जाती
पुरुषोत्तम युग में पढ़ाई पढ़ बनना... देवी- देवता जैसा लायक
स्वरदर्शन चक्रधारी बनना,होना नही दिलशिकस्त
बेहद के विशाल कार्य में अपनी मन्सा -शक्ति का देना सहयोग
नयी सृष्टि को नई रचना का योगबल दे.. करना प्रारम्भ
निर्भयता और नम्रता ही ज्ञानी और योगी आत्मा का है स्वरुप
ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!