28-10-15मुरली कविता


बाप के मददगार बनो,सब को दो सुख
प्रीत बुद्धि बनो,कभी ख्याल भी न आये देने का दुःख
रूप-बसंत हो तो मुख से निकले सदैव रत्न
आपस में एक दो को नही करो तंग
गुस्सा नही करो ..यह है आसुरी चलन ...रहो शांत
निंदा-स्तुति, मान-अपमान को करना सहन
मीठा बोलो..रजिस्टर में न हो कोई दाग
श्रीमत पर चलो,संग की रखो संभाल
स्नेही आत्माओ की स्थिति का है गायन...
एक बाप दूसरा न कोई ..बाप ही है संसार
उनका समय ,संकल्प भी नही होता माया व् प्रकृति के अधीन
नॉलेजफुल बनो..तो समस्यायें बन जाये मनोरंजन

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!