26-12-15 बाबा पोएम


छाई है घनघोर घटाएं देखो पांच विकारों की
आवाजे आती है इनके बरछी तीर कटारों की
कैसे बचाएं खुद को इनके अनगिनत वारों से
कैसे निकलें विकारों के बन्धन की दीवारों से
बहरूपिया बनकर आ जाते हैं पांचों विकार
करते हैं आत्मिक स्थिति का पल में बंटाधार
अभी थे प्रेम स्वरूप हो गए पल में अहंकारी
सुंदर तन को देखकर दृष्टि बनती है विकारी
रूप रूपया मन बुद्धि में फैलाते हैं प्रदूषण
भ्रष्टाचार फैलाता है इन दोनों का आकर्षण
विनाशी शरीर के रिश्ते मन को ललचाते है
धीमे जहर की तरह मोह माया में फ़ंसाते हैं
हो जाते हैं जब हम पांच विकारों के गुलाम
हमारा आत्मभान तब हो जाता है गुमनाम
आओ हम करें इस समस्या का समाधान
आत्मभान जगाकर जीवन बनाएं आसान
परवाह नहीं हमें माया रावण के वारों की
पांडवों की संख्या है लाखों और हजारों की
मिलजुलकर विकारों का कर देंगे सर्वनाश
कलयुगी दुनिया से ले लेंगे पूरा ही सन्यास
स्व परिवर्तन से इस जग को स्वर्ग बनाएंगे
हर आत्मा के अंदर ज्ञान की ज्योत जगाएंगे
हम करते हैं आज माया रावण को खबरदार
सदा बने रहेंगे हम बाबा के फरमानबरदार
पांच विकारों के धोखे में कभी नहीं आएंगे
श्रीमत रूपी शस्त्र से विकारों को मिटाएंगे

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!