23-07-15 मुरली कविता


तुम हो सदगति करने वाले, जीवनमुक्तिदाता की संतान
ऐसे बाप का बनने का रहे सदा गुमान
जिनकों पूरा-पूरा निश्चय नही,
उनकी बुद्धि में याद ठहर नही सकती
यथार्त याद से ही होते विक्रम विनाश
शान्तिधाम और सुखधाम को करना याद
बेहद का वैरागी बनना, देह को भी भूलना
निश्चयबुद्धि बन करनी याद की यात्रा
हम सो,सो हम का यथार्त अर्थ समझना और समझाना
संकल्पों द्वारा नयी प्रकार की करनी सेवा
अमृतवेले संपर्क वाली आत्माओं पर दौड़ाओ नज़र
सहजयोग की सूक्ष्म शक्तियो से आत्माये आकर्षित होंगी स्वतः
बहानेबाज़ी को करो मर्ज
बेहद की वैराग्यवृति को करो इमर्ज


ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!