26-10-15मुरली कविता


आत्मा रूपी बैटरी हो गयी डल,84 मोटरों में बजाके पार्ट
याद की यात्रा से करना अब इसको भरपूर
निर्बन्धन बच्चे होते भाग्यशाली,झंझट मुक्त
ज्ञान सुनाते हो तो योग का बल भी हो साथ
धारणा होगी खुद में जब तो लगे ज्ञान का तीर
दृष्टि में चंचलता आये तो रूहानी सर्जन को बताना सच
नम्रता से करनी सेवा ,तन -मन-धन करना सफल
बाप और मैं.. तीसरा न कोई..यह स्मृति में हो अनुभूति
तब ही बेफिक्र बादशाह बनेंगे ताजधारी
मायाजीत,कर्मेन्द्रिय जीत और बनेंगे प्रकृति जीत भी
सर्व बंधनो से मुक्त होना तो देह के नातों से बनो नष्टोमोहा

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!