14-12-15
बाबा पोएम
व्यर्थ बातें छोड़कर वाणी रूपी
धन को बचाओ
सच्ची शांति के लिए खुद को अन्तर्मुखी बनाओ
अपनी कर्मेन्द्रियां जल के समान शीतल बनाओ
दैवी संस्कारों को फिर से अपनी स्मृति में लाओ
करो कभी ना बातें अब परचिन्तन परदर्शन की
कैसे चलाऊं फ़िक्र करो अपने चक्र स्वदर्शन की
एक पल का खेल है जब प्राण तन से निकलेंगे
ऊँच पद पाएंगे तभी जब खुद को हम बदलेंगे
क्या होता है क्यूँ होता है ये सोचना कर दो बन्द
बाबा की याद में रहना है कर दो मन को पाबन्द
भागे कभी मन कहीं तो कसो श्रीमत की लगाम
मालिक हो मन के तुम नहीं बनो इसके गुलाम
मन में एक तमन्ना हो बनना है मुझे बाप समान
देकर सम्मान सभी को पाना है सबसे सम्मान
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!