12-12-15
बाबा पोएम
हम हैं दाता के बच्चे हम नहीं
हैं कोई भिखारी
विश्व कल्याणकारी जैसी बेहद की दृष्टि हमारी
हम ब्राह्मण करते अपने मन में गुणों की खेती
हमारी वाणी सदा सबको शुभकामना ही देती
देह सजाना छोड़कर हम आत्मा को सजाते हैं
श्रीमत पर चलने का हम श्रेष्ठ फैशन अपनाते हैं
गुणों से खुद को सजाकर रोज निखरते जाते हैं
ज्ञान स्नान कर करके हर रोज संवरते जाते हैं
भूले जा रहे हैं हम इस मिटने वाले संसार को
याद करते हैं हर पल अपने स्वर्णिम संसार को
याद की यात्रा से हमारे सर्व बंधन कटते जाते हैं
हमारे पुरुषार्थी जीवन से हर विघ्न हटते जाते हैं
आत्म पंछी बनकर हम जाते नील गगन के पार
परमधाम है अपना घर बाबा है अपना संसार
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!