23-09-15 मुरली कविता


बेहद के नाटक में हर आत्मा का होता अपना -अपना पार्ट
शरीर रूपी कपड़े उतार..घर जा.. फिर आना नये राज्य
प्रेरणा से होती नही.... नई दुनिया की स्थापना
बाप लेते शरीर का आधार,कर्मेन्द्रियों बिगर कर्म करना मुश्किल...वो है करनकरावनहार
आसुरी मत छोड़ ...ईश्वरीय मत पर चलना
देवता बनना तो सम्पूर्ण वाइसलेस बनना
रूहानी स्नेह की वर्षा से दुश्मन को बनाना दोस्त
रत्नागर बाप के बच्चे ..पत्थर के बदले देते रत्न
निमित्त-निर्मान बन...करो विश्व का नव निर्माण

ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!