01-09-15 मुरली कविता


यह है सच्ची-सच्ची पाठशाला और सतसंग 

सत बाप के संग से तुम जाते पार

मनुष्य समझते दुःख-सुख देने वाला है परमात्मा 

हम कहते बाप तो सुख का बताते रास्ता

दुःख मिलता है तुम्हारे कर्मानुसार

माया के विघ्न और आपदाओं को सहनशीलता के गुण से करना पार

बाप की याद में सहन करना और सच्ची कमाई करना

विशाल -बुद्धि रख ड्रामा को अच्छी रीति समझना

यह ड्रामा है कुदरती बना बनाया,बाप की मत पर चलना

हर आत्मा को उसकी विशेषता सुनाना,कमज़ोरी नही

यह है संजीवनी बूटी जो मूर्छित को करती सुरजीत

नाम -मान- शान का त्याग ही बनाता महान त्यागी 

ॐ शांति!!!

मेरा बाबा!!!