14-06-15 बाबा कविता


जैसे वक्त तय है चाँद सूरज के निकलने का।
वैसे संगमयुग है शिव साजन से मिलने का।
सूरत दिखे न उसे दिखे मेरी सीरत उसे बस।
मोहब्बत उसका मजहब है करे मोहब्बत बस।
सच्चा प्रेमी वो मेरा अपने जैसा मुझे बनाएगा।
उसके जैसा बनते ही वो साथ मुझे ले जायेगा।
रूह बनकर देखूं उसे करे वो नजर से निहाल।
संवार कर बिगड़ी किस्मत करे मुझे खुशहाल।
बसा लूँ अपनी आँखों में बस उसकी तस्वीर।
संग है वो मेरे तो बनेगी बिगड़ी हुई तकदीर।
क्यों ना खोऊँ मैं अपने साजन के ख्यालों में।
ख़ुशी के मोती आए मेरे नयनों रूपी

ॐ शांति !!!