22-07-15 मुरली कविता


कांटे से बनना खुशबूदार फूल, दैवी गुण करने धारण
21 जन्मों के लिये यहाँ पढ़, बनाना अपना भविष्य
श्रीमत पर चलते रहो, पढ़ाई पढ़ते रहो
बुद्धि का योग पढ़ाने वाले से रखो
देही-अभिमानी हो सुनो और सुनाओ
तो बुद्धि का ताला जायेगा खुल
बेहद के बाप की प्रॉपर्टी की, मैं आत्मा हूँ मालिक
ड्रामा कह पुरुषार्थ नही छोड़ना, करने श्रेष्ठ कर्म
मैं आत्मा मास्टर ज्ञान सागर हूँ, इस नशे में रहना
ज्ञान स्वरुप माना कहना, सोचना, करना हो एक समान
उनके कर्म ,संस्कार, गुण और कर्तव्य होते समर्थ बाप समान
वो सदा परमात्म मिलन के खेल में बिज़ी रहते ,बनाते सबको बाप समान
सेवाओं का उमंग छोटी-छोटी बिमारियों को कर देता.. मर्ज


ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!