क्यों बिगड़ा हमारा जीवन जो था इतना प्यारा
खुशियों से सदा खिला रहता था चेहरा हमारा
क्यों बने हम एक दूजे को दुःख देने का कारण
बन सकते थे हम आपस के दुखों का निवारण
जब से आया रावण लेकर देहभान की बीमारी
फैल गई सारी दुनिया में विकारों की महामारी
निश्छलता निष्कपटता गई गया सबका ईमान
टूट चुकी सारी मर्यादाएं बन गए सब बेईमान
दिव्य गुण थे हमारे जीवन की सच्ची पहचान
घुस आया उनकी जगह विकारों रूपी शैतान
विकार बन चुका जब जीवन जीने का आधार
इसलिए हर कोई खाता है माया रावण से हार
माया लाई हमको महाविनाश के कितना पास
ये सृष्टि ले रही अपने जीवन की अंतिम सांस
सतयुग से कलयुग का चक्र खत्म होने को है
सतयुगी दुनिया की पुनः शुरुआत होने को है
चलना है सतयुग में तो अज्ञान की निद्रा छोड़ो
निराकारी बनकर अपना रिश्ता शिव से जोड़ो
दिव्य गुणों को अपने अंदर धारण करते जाओ
खुद को सतयुग में जाने लायक बनाते जाओ
ॐ शांति !!!