29-06-16 मुरली कविता


तुम अभी हो सच्चे-सच्चे राजयोगी
तुम्हें कहते पवित्र राजऋषि
तुम्हें बनना इच्छा मात्रम अविद्या
मैं आत्मा हूँ..आत्म -अभिमानी
बन मनुष्यों को रावण की दल-दल से निकालना
अभी तुमकों वनवाह में रहना
शांति के स्वधर्म में स्थित रहना
स्व-स्थिति के अभ्यास से परिस्थिति का करना सामना
पुरानी आदतें,पुराने संस्कारों से लेना वैराग्य
स्वयं को निमित्त करनहार समझो
तो किसी भी कर्म में नही होगी थकावट

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!