10-06-16
मुरली कविता
याद से निकलता आत्मा का किचड़ा
घर चलना तो बनो पावन
देही-अभिमानी बनने की करनी मेहनत
विष छोड़ पीना अमृत
इस हीरे-तुल्य जीवन में बुद्धि को नही भटकाना
सत्तोप्रधान बन,पूरा वर्सा लेना
स्मृति रहे सदा एक बाप दूसरा न कोई
तो अविनाशी सुहाग का तिलक मिल जायेगा
ऐसे सुहाग वाले होते है भाग्यवान
अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनानी,
अन्तर्मुखी बन फिर बाह्य मुखता में आना
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!