06-08-16 मुरली कविता


योग बल से तुम पुरानी दुनिया को बनाते नया
तुम हुए हो प्रकट रूहानी सेवा अर्थ
ईमानदार सच्चे -पुरुषार्थी होते निरहंकारी
वह किसी की डिस -सर्विस का नही करते गायन
अवगुणों को देख अपना माथा नही करते खराब
अपनी कथनी और करनी रखनी समान
सवेरे-सवेरे उठ बाप को करना याद
अपनी तपस्या की पॉवर को बढ़ाना
कम पॉवर से पुराने संस्कार रूपी कीटाणु नही होंगे खत्म
शुभ- भावना ,शुभ -कामना के श्रेष्ठ संकल्प ही बढ़ाते जमा का खाता

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!