18-04-16
मुरली कविता
योग से निकलती आत्मा की खाद
तो जितना हो सके बढ़ाओ योग
देवता अपने धर्म को भूल बन गये धर्म -भ्रष्ट , कर्म- भ्रष्ट
याद से पावन बन बाप के गले का बनना हार
कर्म करते बाप की याद से बनना विकर्माजीत
पुण्य आत्मा बनने का करना पुरुषार्थ
मज़बूरी से त्याग नही कर, ज्ञान स्वरुप बन संकल्प से भी बनो
त्यागी
तपस्वी वो जो बाप की लग्न में रहे लवलीन
अपनी तपस्या द्वारा शांति के वायब्रेशन फैलाना है विश्व
सेवाधारी बनना
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!