18-09-16 मुरली कविता


कितनी बार मिला था बच्चों से लेकर तन साकार

बाप का मिलना बच्चों को याद आता है बारम्बार

बच्चों के मन बुद्धि पर छपी मधुर मिलन की याद

बच्चे तभी सुनने को तरसते बाबा के मधुर संवाद

मिलन की याद का अनुभव होता जितना निरन्तर

इसी आधार पर तय होता विजय माला का नम्बर

कौन हूँ मैं कहाँ से आया इस पहेली को सुलझाओ

आत्मभान बढ़ाकर बाप के संग का अनुभव पाओ

अगर याद रही आधी अधूरी तो कैसे नम्बर पाओगे

जन्म हो जाएँगे कम त्रेता के अंत में ही आ पाओगे

बाप के प्यार में डूबकर जिसे कोई याद नहीं आया

बाप से समीपता का अनुभव वही बच्चा कर पाया

जो सदा बाप के संग रहे वो ना नहला है ना दहला

बाप की नजरों में उस बच्चे का नम्बर होता पहला

लौकिक पढ़ाई में होते हैं विद्यार्थियों के तीन प्रकार

बाबा के बच्चे होते हैं महारथी पैदल और घुड़सवार

रहकर बाप के समीप करना श्रेष्ठ चरित्र का चित्रण

नई नई आत्माओं को आने का देते रहना निमंत्रण

बाप समान सेवा करने वाले कहलाते हैं ब्रह्माकुमार

व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होकर बनो निर्बन्धन कुमार

जब सम्पूर्ण रूप से मिटा डालोगे संकल्पों में व्यर्थ

बाप समान बन जाओगे तब सर्व शक्तियों से समर्थ

बच्चों से अन्तिम विदाई लेने जब भी आई है माया

जाने कितने बच्चों को उसने फिर से अपना बनाया

माया के हर प्रहार से रखना है बच्चों पूरी होशियारी

आकर्षित हुए अगर तो माया लगेगी बहुत ही प्यारी

संगमयुग है सभी विशेषताओं को सेवा में लगाने का

इसी आधार से खुद को 16 कला सम्पन्न बनाने का

परिस्थिति को परखकर जो तुरंत निर्णय कर पाता है

वही मनुष्य सारी दुनिया में शक्तिशाली कहलाता है

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!