04-11-16 मुरली कविता


सतोप्रधान बनने की ये मंजिल है बहुत ही भारी
याद की यात्रा में रहने से बनेगी तकदीर हमारी
ज्ञान का बच्चों अपने अंदर यदि आया अहंकार
उतरेंगे साकार के दिल से नहीं मिलेगा निराकार
माया दुश्मन से बच्चों तुम कभी नहीं घबराना
मन में ठान लो मुझको पावन बनकर घर जाना
अंत आ गया सारे कल्प का बाबा अब है आया
खुद से पूछो क्या मैंने ये संदेश सबको सुनाया
प्यार होगा बाबा से जितना सेवा उतनी करेंगे
सेवा करने वाले कभी भी थकने से नहीं डरेंगे
फ़ैल गया है सारे जग में अँधियारा अज्ञान का
आत्मबल से फैलाओ उजाला ईश्वरीय ज्ञान का
सेवा करते रहो जगाकर अपने ईश्वरीय संस्कार
बाबा को देते जाओ हर सेवा का तुम समाचार
ज्ञान का उल्टा नशा अपनी बुद्धि पर नहीं चढ़े
नई युक्तियाँ रचकर सेवा में हम सब आगे बढ़ें
त्रिकालदर्शी बनकर जो अपने कर्मक्षेत्र पर आते
वही आत्माएं खुद को श्रेष्ठ तकदीरवान बनाते
सहनशीलता से शीतल बन जाते कठोर संस्कार
जड़ से मिट जाता तब अपनी देह का अहंकार

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!