29-07-16
मुरली कविता
दुनिया में तुम हो सबसे खुशनसीब
राजऋषि हो राजयोग सीख पाते रजाई पद
निराकार के जो होते संस्कार वो हमें करने धारण
वो है ज्ञान के सागर,पतित पावन
हम जो सुनते वो फिर सबकों सुनाते
आत्मा के बुरे संस्कारों को योग बल से करना समाप्त
फ़रिश्ते को माया टच भी नही करती
उनके बुद्धि रूपी पांव 5 तत्व के आकर्षण से होते परे
सदा लाइट रूप स्थिति में रहो
लाइट के शरीर को देखो
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!