16-08-16
मुरली कविता
विशाल बुद्धि बन ज़ोर-शोर से करनी
सेवा
बाप ने दिलायी स्मृति तुम थे पूज्य(राजा)अब बने हो रंक
बाप से मिली इस नॉलेज को सिमरण कर ख़ुशी में रहना
स्मृति को विस्मृति में नही लाना
पवित्रता की जो करी प्रतिज्ञा उसे निभाना
पहले स्वयं करना फिर कहना
अपने ऊपर देना पूरा अटेंशन
नही तो सर्विस के साथ होगी डिस-सर्विस
अनेकता में एकता को लाना
बिगड़ी को बनाना ..यह है बड़ी विशेषता
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!