12-01-16 मुरली कविता


कदम-कदम श्रीमत पर चलते रहो
बाबा कहते-बच्चे.... बाप-दादा दोनों है इकठ्ठे
मूंझना नही -श्रीमत समझकर चलते रहो
जवाबदार बाप है..संशय नही उठाना
निश्चय में अडोल रहना
बाप की हर समझानी पर देना अटेंशन
स्वयं ज्ञान धारण कर फिर औरों को सुनना
मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराना
एक बाप ,दूसरे हम,तीसरा न कोई रखना याद
तीसरा आया तो तीसरा नेत्र हो जायेगा बंद
प्रश्नचित बनना अर्थात...परेशान होना और करना

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!