10-08-16
मुरली कविता
किसी के नाम-रूप में नही फंसना
बहुत-बहुत बनना मीठा
सबकों प्यार और सुख की दृष्टी से देखना
तुम हो रूप बसंत,ज्ञान दान देते रहना
योगी की निशानी है कर्मेंद्रियजीत
रिंचक भी देहधारी में न डूबे आँख
अपने अवगुणों को निकालने का करना पुरुषार्थ
खुदाई खिदमतगार बन थकी हुई प्यासी
आत्माओं को सर्वशक्तियों से एक सेकंड में देना सिद्धि
कमज़ोर संस्कार ही माया के आने का है चोर गेट
इस गेट को कर देना बंद
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!