15-02-16
मुरली कविता
गरीब-निवाज़ बाप आया बनाने तुम्हें
हीरा
तो तुम उनकी श्रीमत पर चलो सदा
बाप-दादा के गुह्य राज़ को समझाना
बाप है निराकार 'परम आत्मा'
दादा है 'आत्मा' , यह है 'ब्रह्मा' मनुष्य
मनुष्य को नही कहेंगे भगवान्
निराकार की याद से बुद्धि बनती सोना
याद से ही आयेगी पवित्रता की लाइट
वृत्ति के सुधार से दृष्टि बनती दिव्य
तब नैन बनेंगे साक्षात्कार के साधन
सेवा में उमंग-उत्साह के साथ
बेहद का वैराग्य हो तब होगी सफलता
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!