25-01-16
मुरली कविता
हे ईश्वर,हे बाबा शब्द है भक्ति
की प्रैक्टिस
अब मुख से नही निकालने यह शब्द
तुम बच्चे अभी बनते हो मरजीवा
पुराने दुनिया से जीते जी जाते मर
इसलिये तुम पहनते सफ़ेद ड्रेस
अपनी दृष्टि विकारी नही बनानी
भाई-भाई की दृष्टि रख लौकिक में निभानी
क़यामत के समय बनना सम्पूर्ण पावन
परमपिता से योग लगा बनो पावन
विकारों के अंश के वंश को भी करो समाप्त
यही सर्व सम्पूर्ण,ट्रस्टी ,स्नेही,सहयोगी की निशानी
किसी की विशेषता के कारण विशेष स्नेह रखना...माना लगाव
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!