03-03-16 मुरली कविता


गृहस्थ में रह बनो कमल-पुष्प समान पवित्र
श्रीमत पर चलो,नही करो कोई डिस-सर्विस
देह-अभिमान में आने से माया मारती पंजा
पद कर देती भ्रष्ट,लगाती थप्पड़
देहि-अभिमानी,निरहंकारी बनो यही मंजिल
न देना दुःख ,न ही लेनी कोई सेवा
पाप-कर्म नही करना जो दिलाये सज़ा
चेहरे से दिखायी दे ईश्वरीय नशा
नयन और मस्तक से भी हो सेवा
सच्चे-सेवाधारी का जास्ती होता खज़ाना ज़मा
समय और संकल्प की बचत से होता खाता ज़मा

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!