02-08-16
मुरली कविता
बाप की याद और वर्से से बनते
अमर
इसमें है कमाई ही कमाई और बनते तंदुरुस्त
हृदय शुद्ध बनाना तो रहो ट्रस्टी
सदा समझो खाते हम शिव के भण्डारे से
मन-बुद्धि से प्रवृति में होना सरेंडर
कर्मबंधन है तोड़ने..
अपने संस्कार -स्वाभाव है मोड़ने...
एक बाप से सर्व सम्बन्ध है जोड़ने...
योगी की निशानी है..सदा क्लीन और क्लियर
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!