09-09-16 मुरली कविता


बाप हूँ मेरे बच्चों का नहीं हूँ नाम रूप से न्यारा
दुःख हर्ता सुख कर्ता मैं लगता हूँ सबको प्यारा
निराकार दुनिया के वासी मुसाफिर बनकर आए
जीवन यात्रा के लिए 84 प्रकार के तन अपनाए
भूल से खुद को समझा साकार लोक का वासी
इसलिए मृत्यु के भय से आती चेहरे पर उदासी
दूर देश का मुसाफिर बाबा आया यही समझाने
पावन बनो बच्चों मैं आया हूँ तुमको घर ले जाने
तुम पार्वती आत्माओं को सत्य कथा सुनाता हूँ
सम्पूर्ण शुद्ध बनाकर तुम्हें अपने घर ले जाता हूँ
विकारों का विष पीकर शक्तिहीन जब होते हो
दुःख पीड़ाएँ भोग भोगकर तुम कितना रोते हो
विकारों की अग्नि से बच्चों को बचाने आता हूँ
ब्रह्मा बाप के माध्यम से मैं ज्ञानामृत बरसाता हूँ
छोड़ो विकारों का विष पीना छोड़ो बुरे संस्कार
श्रीमत को धारण कर बनो स्वर्ग के राजकुमार
माया का ज्ञान भुलाकर बन जाओ ज्ञान स्वरूप
तब उभरेगा तुम्हारा ही भविष्य का शुद्ध स्वरूप
भीतर की अशुद्धि का अगर नहीं किया निवारण
बनेगा यही आपकी पवित्रता में विघ्न का कारण

ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!