03-09-16
मुरली कविता
तुम हो रूहानी मुसाफिर तुम्हें
अमरलोक है जाना
सच्चे ब्राह्मण बनकर सबको घर का पता बताना
विकारों में गिर गिरकर हुआ है दुनिया का पतन
घर चलना है पावन बनकर कर लो इसका जतन
मिलकर आपस में करो विचार सेवा कैसे बढाएं
भटकती आत्माओं को कैसे घर का पता बताएं
ब्रह्मा मुख वंशावली हम ब्राह्मण हैं सबसे उत्तम
इस जग में ईश्वरीय कुल के हम बच्चे हैं सर्वोत्तम
ब्रह्मा बाप से हम बच्चों ने जन्म अलौकिक पाया
प्रजापिता ने हम बच्चों का सुन्दर परिवार बनाया
विकारों से बचने की बाबा ने सहज युक्ति बताई
एक पिता के बच्चे हो आपस में बहन और भाई
कभी विकार में नहीं जा सकते तुम हो भाई बहन
पवित्र बनकर रहो चाहे कुछ भी करना पड़े सहन
इस रूहानी यात्रा में कभी लौटकर फिर ना आना
आत्मलोक पहुंचकर फिर हमें अमरपुरी में जाना
अमरपुरी की यात्रा बाबा संगम पर ही सिखलाता
जो चलता है जितना तेज उतना ही श्रेष्ठ बन जाता
संगमयुग में ईश्वरीय मत के साए में हमको पलना
नाटक पूरा होने वाला अब तो अपने घर है चलना
नहीं रखनी सुख पाने की इस दुनिया में कोई आस
रहकर बाप की याद में करते रहना विकर्म विनाश
एक बाप की याद से होगी सच्ची अविनाशी कमाई
नहीं खानी पड़ेगी फिर हमें रोगों से मुक्ति की दवाई
देहभान के कारण दैवी धर्म का फाउंडेशन जल गया
परम श्रेष्ठ था ये धर्म सनातन हिन्दू धर्म में बदल गया
जब होते हम आत्माभिमानी धर्म होता दुनिया में एक
देह अभिमान के कारण दुनिया में धर्म आ गए अनेक
अब तो होती ही जा रही सभी धर्मों की अति ग्लानी
श्रीमत पर फिर दैवी धर्म वाली दुनिया अब है आनी
व्यर्थ संकल्पों से मुक्ति पाकर करना विश्व कल्याण
मुक्ति दाता आया जग में अब देना है इसका प्रमाण
बनकर शक्तिरूप सबके व्यर्थ संकल्पों को मिटाना
समर्थ संकल्पधारी बनकर स्टेज सम्पूर्णता की पाना
बनकर नष्टोमोहा सेवा के लिए रखना है सबसे प्यार
अगर मोह की हवा लगी तो आ जाएँगे सभी विकार
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!