28-04-16
मुरली कविता
तुम फूल बन सबका देना सुख
मुख से निकले सदैव ज्ञान रत्न
आसुरी अवगुण रूपी कांटा देना निकाल
मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई विकर्म किया तो मिलगा दण्ड
संग-दोष से करनी अपनी संभाल
श्रीमत पर बनना बहुत नम्र
काम महाशत्रु से नही खानी हार
युक्ति से खुद को बचाना
साकार सृष्टि,साकार शरीर है स्टेज
तुम पार्टधारी हो अधारमूर्त,मालिक
इस स्मृति से न्यारे हो बजाना पार्ट
साक्षी बन हर खेल को देखने वाले ही है साक्षी-दृष्टा
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!