25-05-16
मुरली कविता
अपने से पूछो कोई कर्मेन्द्रिय
ने धोखा तो नही दिया
कर्मातीत बनना तो कर्मेन्द्रिय जीत बनना
आँखे देती धोखा,माया से करनी संभाल
सच्चा-सच्चा पोतामेल रखना
कुदृष्टि नही रखनी,अपनी करनी उन्नति
बुद्धि की प्रवृति है शुद्ध-संकल्प
वाणी से जो सुना वो सुनाना
कर्म की प्रवृति है कर्मयोगी बनना
इसी विधि से बिजी रहने वाला
व्यर्थ संकल्पों से निवृति करता प्राप्त
अपने नए संकल्प,नई दुनिया,नई झलक
का कराओ साक्षात्कार
ॐ शांति!!!
मेरे बाबा!!!