मुरली कविता दिनांक 31.10.2017


याद कर रहे थे मीठे बाबा को कितना बार बार

एक उसकी याद में सभी बच्चे रोते थे जार जार

भूल भुलैया में फंस गए हैं आकर हमें निकालो

पांच विकारों के दलदल से बाबा हमें बचा लो

संदेश दे दो बाबा आया सुनकर हमारी पुकार

उसकी श्रीमत पर चलकर बदलो सारा संसार

ब्राह्मण बनाकर हम सबको बाबा गीता सुनाते

इसी ज्ञान को धारण कर बच्चे देवपद को पाते

निराकार वो परमात्मा बेहद का बाप कहलाता

सर्व दुखों से छुड़ाकर वो सुख का वर्सा दिलाता

रावण की मत अपनाकर बच्चे दुखी बन जाते

श्रीमत पर चलाकर बाबा हमको सुखी बनाते

सदियों से हम सभी ज्ञान गीता का सुनते आये

फिर भी हर जन्म हम चरित्र से गिरते ही आये

कौन है गीता ज्ञान दाता बाप ने आकर बताया

अपना परिचाय देकर उसने सत्य ज्ञान सुनाया

बाप आकर जलाते ज्ञान की अविनाशी ज्वाला

ज्ञान की इस ज्वाला में जग सारा बदलने वाला

पांच विकारों ने हमें दुर्गति के दलदल में गिराया

बाप ने आकर दलदल से हम बच्चों को बचाया

अज्ञान की निंदिया से अब सबको तुम जगाओ

देहधारी की याद भुलाकर बाप में बुद्धि लगाओ

रहमदिली द्वारा सबकी मनसा सेवा करते जाओ

मिले हुए वरदान सभी को बांटकर बढ़ाते जाओ

अपनी मनसा शक्तियों से सेवा की गति बढ़ाओ

सेवा में बिजी होकर खुद को मायाजीत बनाओ

वृत्ति द्वारा वायुमण्डल में सर्व शक्तियां फैलाओ

कमजोर हुई आत्माओं को शक्तिशाली बनाओ

संतुष्टता से भरपूर ख़ुशी तुम जीवन में जगाओ

हर कदम सेवा करके सच्चे सेवाधारी कहलाओ

ॐ शांति