मुरली कविता दिनांक 11.12.2017


कल्याणकारी बनकर बच्चों सबकी सेवा करना

अशरीरी बनने का अभ्यास भी प्रतिदिन करना

नाम रूप के चक्कर में कोई बच्चा फंस न जाये

बच्चों की खातिर बाप को चिंता कितनी सताये

माया विघ्न डालेगी बच्चों बिल्कुल मत घबराना

मेरी याद में रहकर तुम खुद को विजयी बनाना

शिवबाबा पढ़ाते हमें लेकर ब्रह्मा का तन उधार

हम सब हैं अशरीरी बच्चों मन से करो स्वीकार

मुझ सर्वशक्तिमान से हीमाया को हार खिलाओ

पढ़कर यह पढ़ाई सतयुग का राज्य भाग्य पाओ

देवता नहीं कहलाते वो जिनमें होते पांच विकार

पवित्र जो बन जाते वही खोलते वैकुण्ठ के द्वार

नर से नारायण बनने की पढ़ाई बाप हमें पढ़ाते

ऐसी श्रेष्ठ पढ़ाई का नशा बच्चे क्यों नहीं चढ़ाते

बुद्धि से सन्यास करके बाप की शरण में आओ

आत्म अभिमानी बनकर पुराना संसार भुलाओ

सर्व गुण और शक्तियों से सम्पन्नता पाते जाओ

सबकी शुद्ध मनोकामनायें तुम पूरी करते जाओ

ज्योति स्वरूप की स्मृति क्षण क्षण बढ़ाते जाओ

व्यर्थ के बोझ से मुक्ति पाकर हल्के बनते जाओ

पुरानी दुनिया के सर्व आकर्षणों से मुक्ति पाओ

फ़रिश्तेपन की अवस्था सहज अनुभव में लाओ

तन मन धन से जो बाबा पर समर्पित हो जाता

बेफिक्र बादशाह का टाइटल वही बाप से पाता

ॐ शांति