मुरली कविता दिनांक 27.11.2017
मत जो देते परमात्मा वो सारी दुनिया से न्यारी
लगती है श्रीमत उनकी सच्चे बच्चों को प्यारी
जान सके ना कोई भी ईश्वरीय श्रीमत का राज
पालन करे जो मत उनकी पाता स्वर्ग का ताज
जो रहते देहभान से मुक्त कहलाते ब्रह्माकुमार
मतभेद में ना आते और करते सबका सत्कार
फैल गया है सारी दुनिया में नफरत का बाजार
लड़ते झगड़ते आपस में दिखता नहीं है प्यार
इसीलिए तो यह संसार रावण राज्य कहलाता
दुख ही पाते सभी यहां पर सुख ना कोई पाता
परमपिता परमात्मा को हर कोई यहां बुलाता
दुख से मुक्त होने के लिये कितने आंसू बहाता
दुख से मुक्ति पाने की विधि परमात्मा बताता
श्रीमत पर चलाकर हमको सद्गति में ले जाता
परमात्मा या गंगाजल हमें पावन कौन बनाता
केवल परमात्मा ही हमको भटकने से छुड़ाता
पतित पावन से तुम अपना बुद्धियोग लगाना
उसकी याद में बैठकर पावन खुद को बनाना
सवाल करो सबसे तुम कहाँ रहता सद्गति दाता
वो है सर्वव्यापी अगर तो नजर नहीं क्यूँ आता
रामराज्य लाने के लिए खुद को लायक बनाना
मिलजुलकर तुम बैठकर सारे मतभेद मिटाना
आसुरी स्वभाव जो रखे ब्रह्मा वंशी ना कहलाते
कड़वे बोल कहने वाले जंगली कांटे बन जाते
परवशता समाप्त करो छोड़कर मन की गुलामी
आदि अनादि संस्कारों की स्मृति मन में जगानी
जमा करते जाओ ईश्वरीय दुआयें और वरदान
परिस्थिति रूपी अग्नि बन जाएगी जल समान
ॐ शांति