मुरली कविता दिनांक 05.12.2017


लौकिक या अलौकिक हमें सबसे तोड़ निभाना

लेकिन किसी के मोह में कभी ना हमको आना

समय कयामत का है बाबा पर बलिहार जाओ

ज्ञान योग से मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा पाओ

वाममार्ग अपनाकर पतन की और जब जाते

जीवन में तरह तरह के दुख दर्द तभी हैं आते

जीवन शैली पलट जाती जब होता कलियुग

सत्य मार्ग बाप बताकर ले आते फिर सतयुग

ज्ञान योग की बच्चों को करनी होगी मेहनत

हमें छोड़नी पड़ेगी हर देहधारी की सोहबत

अंतिम जन्म में आकर ही गोद बाप की पाई

योग बल से नई दुनिया बनानी उसने सिखाई

मौत खड़ा है सामने कर लो तुम पूरी कमाई

महाविनाश की घड़ियां पास बहुत अब आई

सुनी सुनाई बातों को मन बुद्धि से तुम छोड़ो

बाबा जो सुना रहे उस तरफ बुद्धि को मोड़ो

अंत समय है अपने कर्मों के हिसाब चुकाओ

आधा कल्प के लिये श्रेष्ठ कर्मों को कमाओ

अपना सब कुछ कर दो बाबा पर बलिहार

वर्से के रूप में पाओ हर जन्म बाप का प्यार

अपनी मन बुद्धि को तुम सतोप्रधान बनाओ

राजयोग के बल से तुम स्वर्ग धरा पर लाओ

श्रृंगार करने वाले शिव साजन को ना भुलाना

उसके संग आसान होगा माया पर जीत पाना

ड्रामा का सीन देखकर ना होना कभी नाराज

बजाते रहना सदा राजी रहने का तुम साज

याद रहे सदा बाप की ऐसी युक्ति अपनाना

एक दो को सावधान कर उन्नति करते जाना

सेवा का बंधन बांधकर कर्म बंधन मिटाओ

सेवाभाव जगाकर विश्व सेवाधारी कहलाओ

अपने दैवी स्वरूप की स्मृति मन में जगाओ

व्यर्थ की दृष्टि से अपने आपको तुम बचाओ

ॐ शांति