मुरली कविता दिनांक 20.12.2017


देवता धर्म को स्थापन करने मीठा बाबा आता

धर्म के साथ राज्य भी स्वतः स्थापन हो जाता

होती सतयुग में पुण्यात्माएं रोग ना कोई होता

कलियुग में बनते रोगी खाकर विकारों में गोता

बच्चों याद करो मुझे प्यार से करते बाप इशारा

मेरे प्रेम में आंसू बहाने वाला मेरा बच्चा प्यारा

बच्चों की खातिर बाप सुखमय दुनिया बनाता

दिव्य गुणों के हीरे मोती से बच्चों को सजाता

बच्चों को मिलेंगे हीरे मोती से जड़े स्वर्ण महल

किंतू पहले पावन बनने की बच्चों करो पहल

सोचो जरा अब भी क्या पाप ही करते जाओगे

यूँ ही पाप करते रहे तो बोलो क्या पद पाओगे

बच्चों अगर खुद को तुम पावन नहीं बनाओगे

बताओ किस तरीके से परमधाम तुम जाओगे

छोड़ो देखना दाएं बाएं रखो मंजिल पर नजर

मंजिल पर पहुंचने की तुम अपनाये रखो डगर

ज्ञान योग की यात्रा बच्चों परमधाम तक जाती

पावन बनने वाली आत्मा इस मंजिल को पाती

योग बल से मिटा दो माया रावण का साम्राज्य

पवित्र बनकर स्थापन करो सतयुग का स्वराज्य

हर संकल्प के बीज को शक्ति से सम्पन्न बनाओ

अपनी वाणी और कर्म में स्वतः सफलता पाओ

योग अगन में तपकर व्यर्थ का किचड़ा जलाओ

विकारमुक्त होकर अपनी बुद्धि स्वच्छ बनाओ

ॐ शांति