मुरली कविता दिनांक 26.10.2017
प्यारे ब्राह्मण बच्चों आपस में रखना प्यार
अटूट
बाप के परिचय से कोई आत्मा रह ना जाये छूट
आपस में मिलकर तुम बनाओ ऐसा कोई प्लान
कैसे दें सबको हम अपने सत्य बाप की पहचान
बाप और पढ़ाई में दृढ़ निश्चय जिसने कर लिया
एक वही अपने सर्व संस्कारों से पूरा सुधर लिया
सूक्ष्म बिन्दू तुम आत्मा इसमें तुम सीखो टिकना
किंतू अपने देहभान से तुमको होगा पूरा मिटना
जानो अपना परमपिता वो पतितपने से है न्यारा
इसलिये हम बच्चों को वो लगता बहुत ही प्यारा
बाप की याद में रहने की बच्चों फुर्सत निकालो
याद में रहकर अपने आपको माया से बचा लो
समय नहीं दो माया को अपने बाप को छोड़कर
ज्ञान से मार देगी हमें वो गर्दन हमारी मरोड़कर
बाप की याद में बैठना क्यों लगता तुम्हें मुश्किल
क्यों नहीं दिया तुमने मीठे बाबा को अपना दिल
याद में कितना रहते हो बाबा को जरुर बताओ
बाप को सच बताने में कभी नहीं तुम शरमाओ
जब भी सुनते हो मुरली बुद्धि को ना भटकाओ
ज्ञान की हर पॉइंट मन पुस्तक में लिखते जाओ
करते रहो ख़ुशी ख़ुशी तन के त्याग का अभ्यास
किसी भी बंधन में तुम्हारी कभी न अटके सांस
दिल में बाप की याद बसाकर त्यागें अपना तन
ऐसी मीठी मौत की खातिर बना लो अपना मन
चाहत रखो मन में यही की मौत कभी जब आये
बाप के सिवा और किसी की याद मुझे ना आये
मन में हो निश्चिन्तता और चेहरा हमारा मुस्काये
एक यही स्थिति हमें कर्मातीत अवस्था दिलाये
बाप का परिचय देने की आपस में राय निकालो
बाबा से प्रीत निभाकर स्वयं को पावन बना लो
राज जानकर ड्रामा का हर हाल में रहना राजी
अपना पार्ट सुधारकर जीतो कल्प भर की बाजी
व्यर्थ की सारी बातों से जो रहता सदा अनजाना
सिर्फ उसे ही सारी दुनिया ने महान आत्मा माना
ॐ शांति