मुरली कविता दिनांक 17.11.2017


विशाल बुद्धि बनकर दुनिया को पावन बनाओ

समय कीमती सेवा का तुम व्यर्थ में ना गंवाओ

स्वस्थ बनेंगे तभी जब मन में होंगे शुद्ध विचार

शुद्ध संकल्प ना किये तो हो जाएंगे हम बीमार

बेहद की जो दे राजाई करते जाएं उसको याद

ख्याल चलें सेवा के सदा चाहे दिन हो चाहे रात

सेवा में सदा रहने वाले बच्चे बाप को हैं पसंद

कभी ना थकते सेवा में चाहे गर्मी हो चाहे ठंड

सतयुगी दुनिया प्रति मन में बढ़ाते जाओ प्यार

सहज रूप से मिट जाएंगे जीवन से 5 विकार

बाप आये हैं बच्चों को श्रीमत फिर से सिखाने

देहभान मिटाकर बच्चों का देवी देवता बनाने

एक बाप और न कोई का मंत्र सभी अपनाओ

वशीकरण इस मंत्र से रावण को हार खिलाओ

जब तक हो तन के अन्दर संकल्प रहेंगे चलते

श्रीमत पर परखकर इनको रहना सदा बदलते

दिव्य गुणों के आधार पर हर कर्म करते जाना

फरिश्ता बनकर सबको गुण दान करते जाना

ब्राह्मण जीवन की सांस है उमंग और उत्साह

उत्साही बच्चों की खातिर सब कहते हैं वाह

ॐ शांति