मुरली कविता दिनांक 15.12.2017
*मेरी
जीवन नैया का खिवैया*
ढूंढती हूँ तुझे कहाँ गए ओ खेवनहार
डूबती हुई नैया क्यूँ छोड़ गए मंझधार
मैं सजनी दुख पाऊँ साजन तेरे बिना
मुश्किल हो गया तुझ बिन मेरा जीना
तुझसे मिलने को खाऊं दर दर ठोकर
कहाँ चले गए मेरे नयनों को भिगोकर
तुझे ढूंढते ढूंढते पांवों में पड़ गए छाले
तूँ आकर इस भटकन से मुझे बचा ले
मेरे तन के सब संगी साथी बिछड़ गए
आशियाने मेरी जिन्दगी के उजड़ गए
तेरे सिवा और किसको फरियाद करूँ
कोई भी नहीं जिस पर मैं विश्वास करूँ
तेरी ही प्रीत की पीड़ा मुझको सता रही
रह रहकर मुझको तेरी ही याद आ रही
और कौन है जो पार लगा दे मेरी नैया
बनकर आजा तूँ मेरी नैया का खिवैया
ॐ शांति