मुरली कविता दिनांक 01.12.2017


परमपिता को याद करो तुम जाकर शांतिधाम

बुद्धि उससे लगी रहे चाहे करो कोई भी काम

भाग्यवान समझो खुद को पाकर ईश्वरीय ज्ञान

इसी ज्ञान से सद्गति पाना बन जायेगा आसान

खुश मत हो जाना तुम चने भावना के खाकर

मत भूलो बाप को अल्पकाल का सुख पाकर

परमपिता हम बच्चों को साथ ले जाने आया

तीव्र पुरुषार्थी बच्चों ने ही पद सर्वोत्तम पाया

बंधन सभी काटकर हमको जाना है मुक्तिधाम

पावन बनाकर हमें ले जायेगा परमात्मा राम

देह अभिमान मिटाकर बुद्धि ऊपर लटकाओ

शोक वाटिका छोड़कर अशोक वाटिका पाओ

जन्म अलौकिक में ही समझो कल्याण समाया

हमको पावन बनाने बाप ही खुद हाजिर आया

सबसे तीखी दौड़ केवल आत्मा ही लगाती है

पल भर में आत्मा कहाँ से कहाँ चली जाती है

ज्ञान का सागर शिव बाबा है जानी जाननहार

ब्रह्मा तन में आकर ही वो हो सकता साकार

जब होती धर्म की ग्लानि तब ही मैं आता हूँ

मायापुरी मिटाकर संसार को स्वर्ग बनाता हूँ

भक्ति पूरी हो जाये तब ही ज्ञानमार्ग हम पाते

ज्ञान धारण करके विश्व के मालिक बन जाते

माया को जो हार खिलाते हैं बनकर महावीर

सतयुग में जाकर वो ही खाते हैं सुख की खीर

काम नहीं सिर्फ बाप का जग को स्वर्ग बनाना

अज्ञान निंद्रा से हमें भी सबको होगा जगाना

रूहानी सेवा के बदले बाप कुछ भी नहीं पाते

लेकिन बच्चे सेवा करके सतयुग का वर्सा पाते

चक्र इस दुनिया का बच्चों चलता अपने आप

इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता है शिव बाप

संग बाप के करना संगमयुग का सफर सुहाना

ईश्वरीय ज्ञान सुनाकर घर घर को मंदिर बनाना

ज्ञान गुण शक्तियों का देते जाओ सबको दान

महादानी बनकर ही तुम कहला पाओगे महान

पड़ने दो मन बुद्धि पर ईश्वरीय ज्ञान की छाप

माया से प्रभावमुक्त होंगे नहीं होगा कोई पाप

ॐ शांति