मुरली कविता दिनांक 21.12.2017
रूठकर किसी से तुम ईश्वरीय पढ़ाई मत छोड़ो
पढ़ाई छोड़कर अपने ही बाप से मुख मत मोड़ो
मतभेद रखा आपस में तो सेवा ना बढ़ पायेगी
झरमुई झगमुई बातों से बुद्धि भ्रमित हो जाएगी
नाम रूप के महारोग से जो भी ग्रसित हो जाता
उसका मन ईश्वरीय पढ़ाई से पूरा ही उठ जाता
लगने ना देना तुम अपने रजिस्टर पर कोई दाग
कहीं जला ना दे तुमको पांच विकारों की आग
रहा ज्ञान का कच्चापन तो गलती होती जाएगी
ज्ञान की बातें भी बच्चों को समझ नहीं आएगी
डरना नहीं चाहे आये माया का कोई भी तूफान
दिल में बसाए रखना तुम अपना शिव भगवान
रावण चाहे कितने भी करे तुम्हें हराने के प्रयास
योगबल से बना लो रावण को तुम अपना दास
बाप के बनकर भी तुम विकारों को अपनाओगे
अपने पापों की तुम सौ गुणा सजा भी पाओगे
सच्चे दिल से तुम मेरी हर श्रीमत को अपनाना
स्वर्ग में जाकर मिलेगा तुमको सूर्यवंशी घराना
समय बड़ा करीब आया छोड़ो गफलत करना
ऊंच पद पाने की खातिर हर रोज पढ़ाई करना
व्यर्थ की सब बातों को तुम समर्थ में देना बदल
पवित्रता की प्रतिज्ञा पर सदा रहना तुम अटल
बाप के बनकर हुए हैं उसके वर्से के अधिकारी
खुशी मनाओ बच्चों तुम्हें मिल गई दुनिया सारी
सर्व की दुआयें पाकर तीव्र गति की उड़ान भरो
समस्याओं के पहाड़ को सहज रीति पार करो
ॐ शांति