मुरली कविता दिनांक 11.11.2017


आसुरी दुनिया को बदलकर दैवी दुनिया बनाओ

बच्चों बाप समान खुदाई खिदमतगार कहलाओ

कर्मों के जो भी बंधन हैं वे बच्चों को बड़े सताते

चाहकर भी पुरानी दुनिया को बच्चे नहीं भुलाते

कभी ना कोसो अपनी तक़दीर को हार मानकर

बुद्धियोग लगाओ बाप से पक्का मन में ठानकर

रहमदिल बनने की आदत जो बच्चा अपनायेगा

ईश्वरीय सेवा के बिन वो कभी भी रह ना पायेगा

गुण सम्पन्न बनने की बच्चों मेहनत करते जाना

आने वाली हर आत्मा की तुम सेवा करते जाना

सजा खानी पड़े कहीं मत करना तुम ऐसे काम

नाम कभी भी मत करना तुम बाबा का बदनाम

अपनी हर कर्मेन्द्रिय को श्रीमत अनुरूप चलाना

कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा का रोजाना दरबार लगाना

कर्मेन्द्रियां ना कर्म करे कभी श्रीमत के विपरीत

नियंत्रित हो कर्मेन्द्रियाँ तो होगी तुम्हारी ही जीत

मास्टर सर्वशक्तिमान केवल बच्चे वही कहलाते

समय अनुसार हर शक्ति को जो कार्य में लगाते
 

ॐ शांति