मुरली कविता दिनांक 20.11.2017
श्रीमत अपनाकर मन बुद्धि को छोड़ो भटकाना
बन्धनमुक्त बनने के लिये बुद्धि ईश्वर में लगाना
अपना परिचय खुद परमात्मा आकर बतलाता
सर्वव्यापी न कहो मुझे मैं तो परमधाम से आता
समझकर मुझे सर्वव्यापी बुद्धि से हुए विपरीत
टूट गया सम्बन्ध मेरे से जुड़ गई अनेकों से प्रीत
भ्रमजाल में उलझ गए हो मैं आया तुम्हें छुड़ाने
बुद्धि का भटकना छुड़ाकर मुझसे योग लगवाने
सुख घनेरे पाओगे केवल मुझसे बुद्धि जोड़कर
याद करो तुम मुझे बुद्धि का भटकाना छोड़कर
रावण की दुनिया से जब पूरा ममत्व मिटाओगे
स्वर्ग की राजाई तब ही मेरे माध्यम से पाओगे
मेरे लाडलों धीरज धरो सुख के दिन भी आयेंगे
चलते रहोगे श्रीमत पर तो भ्रम सारे मिट जायेंगे
दुख की बातें आकर तुम्हारी खुशी नहीं चुराये
प्रभु प्यार का अनुभव ही खुशनुमा तुम्हें बनाये
दुख की हर लहर से रखना तुम खुद को न्यारा
खुशी का खजाना बांटकर बनो प्रभु का प्यारा
बच्चों माया को पहचानो त्रिकालदर्शी बनकर
ज्ञान का नेत्र खोलकर रहना माया से बचकर
ॐ शांति