मुरली कविता दिनांक 13.12.2017


करो याद बच्चों मुझको अपनी आंखें खोलकर

कर्म करो और खाओ पियो मेरी याद में रहकर

सर्वव्यापी कहकर मुझे हो गए बच्चे बाप से दूर

दर दर धक्के खाने को बच्चे हुए कितने मजबूर

परमधाम से आकर बाप ने अपना हमें बनाया

अपनी सत्य पहचान देकर भटकने से छुड़ाया

पतित पुरानी दुनिया को बाप नई दुनिया बनाते

खुली आंख से मुझे याद करो बाप हमें समझाते

सर्वव्यापी कहकर खुद बच्चे ही मुझसे दूर हुए

मेरी तलाश करते करते थककर कितने चूर हुए

रूहानी यात्रा हम बच्चों को बाप सिखाने आते

मृत्यु लोक से हमें छुड़ाकर अमरलोक ले जाते

पतितपना मिटाकर मेरे बच्चों हल्के हो जाओ

सम्पूर्ण पावन बनकर मेरे पास तुम उड़ आओ

बनकर ज्ञान गंगा सबको परिचय बाप का देना

पूरा नष्टोमोहा बनकर तुम शरण बाप की लेना

बाप की छत्रछाया के नीचे रहना सदा बेफिक्र

अपनी मुश्किलों का ना करना किसी से जिक्र

खुशी गुम होती है जब छोड़कर बाप को जाते

माया दुश्मन के थप्पड़ बच्चे सपने में भी खाते

शिवबाबा की निरंतर याद छत्रछाया कहलाती

याद की छत्रछाया के नीचे माया कभी न आती

बाबा के ईश्वरीय ज्ञान से होता है जिसको प्यार

बाप समान उसका सारी दुनिया करती सत्कार

ॐ शांति