मुरली कविता दिनांक 23.10.2017


ईश्वरीय पढ़ाई है बुद्धि की रखना इसको शुद्ध
अशुद्ध खानपान प्रति तुम्हें रहना सदा विरुद्ध

करो पाप कितने भी किंतू छिपा नहीं पाओगे
पापों के फल से स्वयं को बचा नहीं पाओगे

अपनी गलती अगर कोई बाबा को बताएगा
किया हुआ वह पाप आधा माफ हो जाएगा

नर्कमय दुनिया को अब लगने वाली है आग
जगा लें मन में इसके प्रति हम पूरा ही वैराग

गुप्त बाबा से गुप्त रूप से वर्सा लेते जा रहे
नई दुनिया में जाने लायक खुद को बना रहे

भीड़ लगी है धर्मों की बजती जाए तालियाँ
देते रहते इक दूजे को जाने कितनी गालियाँ

होगा एक धर्म सतयुग में नहीं बजेगी ताली
अपने ही पुरुषार्थ से नई दुनिया आने वाली

विकारों रूपी माया शेर की करो तुम सवारी
पांच विकारों को हराकर जीतो दुनिया सारी

बाबा के फरमान पर पावन खुद को बनाओ
सजाएं खाये बिना मुक्ति जीवनमुक्ति पाओ

आशिक बनो बाबा के बनाओ उसे मनमीत
कृष्णपुरी में जाओ पाकर विकारों पर जीत

रखना मेरे बच्चों खुद को विकारों से तुम दूर
पवित्रता के लिये बर्तन मांझना भी हो मंजूर

श्रीमत को धारण करके सुधारो अपनी चाल
विकारों में पड़कर कभी नहीं बनना कंगाल

सूर्यवंशी बनने के लिए आये बाबा के पास
पाप करके कभी ना बनना दासी और दास

पवित्र नहीं बने तो पद ना कोई तुम पाओगे
सबकी नजरों में कौड़ी समान कहलाओगे

बनकर महावीर करो समस्या का समाधान
निर्भय रहकर करो हर मुश्किल को आसान

छोटी मोटी बातों में ना बनो कभी कमजोर
जीत लो हर मुश्किल को लगाकर पूरा जोर

ज्ञानी योगी वही जो चाहता सबका कल्याण
करके सबका सहयोग वो देता इसका प्रमाण

ॐ शांति