मुरली कविता दिनांक 26.12.2017


बच्चों खुले दिल से तुम ज्ञान रत्नों का दान करो

ज्ञान सागर मन्थन कर ज्ञान रत्नों से झोली भरो

बाप जो सुनाते उसको अपने जीवन में समाओ

सबका भाग्य जगाकर तुम बेहद का सुख पाओ

पुरुषार्थ करें बाप समान बेहद का वर्सा पाने का

अपने संग औरों की भी सोई तक़दीर जगाने का

बाप तभी आयेंगे जब बिगड़ी हो तक़दीर हमारी

तक़दीर तभी जगेगी जब बन जायेंगे निर्विकारी

जब तुम सब बच्चों का भक्तिमार्ग पूरा हो जाता

तभी तो शिवबाबा बच्चों की सद्गति करने आता

बुद्धि का पत्थरपना धारण करवाता उल्टा ज्ञान

दुखकर्ता कह देते उसे जो करता सुख का दान

मेरी याद से पावन बनो ये समझाते हमें भगवान

पावन नहीं होंगे कभी भले करो तुम गंगा स्नान

आत्मा में पड़ी खाद को योग अग्नि से निकालो

हंगामे चाहे होते रहे तुम पावन खुद को बना लो

महारथी वही जो औरों को आप समान बनाते

ज्ञान की धारणा करके वो पद भी सर्वोत्तम पाते

वेद शास्त्र पढ़ने से कोई भी सद्गति को नहीं पाते

सद्गति तब ही होती जब खुद सद्गति दाता आते

रावण के वर्से को बच्चों कभी ना हाथ लगाना

पुरुषार्थ करके बाप से स्वर्ग का पूरा वर्सा पाना

एक जन्म अगर तुम खुद को पावन बनाओगे

गारण्टी करता हूँ स्वर्ग का वर्सा मुझसे पाओगे

वर्सा लेना है तो मीठे और गुणवान बनते जाओ

रूहानी नशे में रहकर बच्चों सेवा करते जाओ

योग के बल से सबको आकर्षित करते जाओ

यज्ञ को छोड़कर जाने से हर आत्मा को बचाओ

स्थिति हो पुरुषोत्तम भले ही साधारण हो कर्म

ज्ञानी तूँ आत्मा का निभाओ एक यही तुम धर्म
ॐ शांति