02.01.1980       ओम शान्ति       अव्यक्त बापदादा        मधुबन


आने वाली दुनिया कैसी होगी?”

स्वर्ग के रचियता शिव बाबा बोले -

आज बाप-दादा कौन-सी सभा को देख रहे हैं? यह है साहबजादे और साहबजादियाँ सो भविष्य में शहजादे-शहजादियों की सभा। सच्चे साहब के बच्चे सब साहबजादे और साहबजादियाँ हैं। यह नशा सदैव रहता है? शहजादे वा शहजादियों के जीवन से यह जीवन पदमगुणा श्रेष्ठ है। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें अपनी श्रेष्ठता को जानते हुए निरन्तर उसी खुमारी में रहते हो? आज वतन में बाप और दादा दोनों की रूह-रूहान चल रही थी कि साहबजादे और साहबजादियों का महत्व कितना बड़ा है। भविष्य जीवन के सर्व संस्कार इस जीवन से ही आरम्भ होते हैं। भविष्य में राज्यवंश होने के कारण, राज्य अधिकारी होने के कारण सदा सर्व-सम्पत्ति से सम्पन्न हर वस्तु में मालामाल, सदा राजाई की रॉयल्टी में हर जन्म बितायेंगे। सर्व प्राप्तियाँ हरेक के जीवन में चारों ओर सेवा प्रति चक्कर लगाती रहेंगी। आप लोगों को प्राप्ति की इच्छा नहीं होगी लेकिन सर्व प्राप्तियाँ इच्छुक होंगी कि मेरे मालिक मुझे कार्य में लगायें। चारों और वैभवों की खानें भरपूर होंगी। हर वैभव अपना-अपना सुख देने के लिए सदा एवररेडी होंगे। सदा खुशी की शहनाईयाँ ऑटोमेटिकली बजती रहेंगी। बजाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपकी रचना वनस्पति अपने विश्व-पति के आगे पत्तों के हिलने से वैराइटी प्रकार के साज़ बजायेगी। वृक्ष के पत्तों का झूलना, हिलना भिन्न-भिन्न प्रकार के नैचुरल साज़ होंगे। जैसे आजकल अनेक प्रकार के साज़ आर्टाफिशल बनाते हैं वैसे पंछियों की बोली वैराइटी साज़ होगी। चेतन खिलौने के समान अनेक प्रकार के खेल आपको दिखायेंगे। जैसे आजकल यहाँ मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकार काr बोलियाँ सीखते हैं मनोरंजन के लिए, वैसे वहाँ के पंछी भिन्न-भिन्न सुन्दर आवाजों से आपके इशारे पर मनोरंजन करेंगे। इसी प्रकार यह फल और फूल होंगे। फल ऐसी वैराइटी रसना वाले होंगे जैसे यहाँ अलग-अलग नमक, मीठा अथवा मसाला आदि डालकर रसना करते हो, वैसे वहाँ नैचुरल फल भिन्न-भिन्न रसना के होंगे। यह शुगरमिल वगैरह नहीं होंगी लेकिन शुगरफल होगा। जैसी टेस्ट चाहिए वैसी नैचुरल फल से बना सकते हो। यह पत्तों की सब्जियाँ नहीं होगी लेकिन फल और फूल की सब्जियाँ होंगी। फूलों और फलों की सब्जियाँ बनायेंगे। दूध की तो नदियाँ होंगी। अच्छा अभी पियेंगे क्या?  नैचुरल रस के फल अलग होंगे, खाने के अलग, पीने के अलग होंगे। मेहनत करके रस निकालना नहीं पड़ेगा। हरेक फल इतना भरपूर होगा जैसे अभी नारियल का पानी पीते हो ना। ऐसे फल उठाया, जरा-सा दबाया और रस पी लिया। नहाने के लिए पानी होगा, वो भी जैसे आजकल का गंगाजल जिसका पहाड़ों की जड़ी-बूटियों के कारण विशेष महत्व हैं, कीड़े नहीं पड़ते हैं, इसलिए पावन गाया जाता है। वैसे वहाँ पहाड़ों पर ऐसे खुशबू की जड़ी-बूटियों के समान बूटियाँ होंगी तो वहाँ से जल आने के कारण नैचुरल खुशबू वाला होगा। इत्र डालेंगे नहीं लेकिन नैचुरल पहाड़ों से क्रास करते हुए ऐसी खुशबू की बूटियाँ होंगी जो सुन्दर खुशबू वाला जल होगा।

वहाँ अमृतवेले टेप नहीं उठायेंगे। नैचुरल पंछियों की आवाज ही साज़ होगी, जिस पर आप लोग उठेंगे। उठने का टाइम सवेरे ही होगा। लेकिन वहाँ थके हुए नहीं होंगे। क्योंकि जब चेतन देवताएँ जागें तब भक्ति में भी भक्त सवेरे उठकर जगाते हैं। भक्ति का महत्व भी अमृतवेले का है। जागेंगे सवेरे ही, लेकिन सदा ही जैसे जागती ज्योति हैं। कोई हार्ड वर्क हैं नहीं। न हार्ड वर्क है न बुद्धि का वर्क है, न कोई बोझ है। इसलिए जागना और सोना समान है। जैसे अभी सोचते हो न कि सवेरे उठना पड़ेगा, वहाँ यह संकल्प ही नहीं। अच्छा - पढ़ेंगे क्या? कि पढ़ने से छूटना चाहते हो? वहाँ की पढ़ाई भी एक खेल है। खेल-खेल में पढ़ेंगे। अपनी राजधानी की नॉलेज तो रखेंगे ना। तो राजधानी की नॉलेज की पढ़ाई है। लेकिन मुख्य सबजेक्ट वहाँ की ड्राइंग है। छोटा, बड़ा सब आार्टिस्ट होंगे, चित्रकार होंगे। साज, चित्रकार और खेल। साज़ अर्थात् गायन विद्या के संगीत गायेंगे, खेलेंगे, इसी में पढ़ाई पढ़ेंगे। वहाँ की हिस्ट्री भी संगीत और कविताओं में होगी, ऐसी सीधी-सीधी बोर करने वाली नहीं होगी। रास भी एक खेल है ना। नाटक भी करेंगे, बाकी सिनेमा नहीं होंगे। नाटक होगा। नाटक हँसी के मनोरंजन के होंगे। नाटकशालायें काफी होंगी। वहाँ के महलों के अन्दर भी विमानों की लाइन लगी होगी और विमान भी चलाने के बहुत सहज होंगे। एटामिक एनर्जी के आधार पर सब काम चलेगा। यह आप लोगों के कारण लास्ट इन्वेन्शन निकली है।

करेन्सी में अशर्फियाँ होंगी। लेकिन आजकल जैसी नहीं होगी। रूप-रेखा परिवर्तित होगी। डिजाइन और अच्छी-अच्छी होंगी। निमित्त मात्र लेन-देन होंगी। जैसे यहाँ मधुबन में परिवार होते हुए भी चार्ज वाले अलग-अलग बनाये हुए हैं ना। अलग-अलग डिपार्टमेंट बनाए हुए हैं। परिवार होते भी चार्ज वाले से लेते हो ना। एक देता है दूसरा लेता है। ऐसे वहाँ भी फैमिली सिस्टम होगा। दुकानदार और ग्राहक का भाव नहीं होगा। मालिकपन का ही भाव होगा। सिर्फ आपस में एक्सचेन्ज करेंगे। कुछ देंगे, कुछ लेंगे, कमी तो किसी को भी नहीं होगी। प्रजा को भी कमी नहीं होगी। प्रजा भी अपने शरीर निर्वाह से पद्मगुणा भरपूर होगी। इसलिए मैं ग्राहक हूँ, यह मालिक है - यह भाव नहीं रहेगा। स्नेह की लेन-देन होगी। हिसाब-किताब की खींच-तान नहीं होगी। रजिस्टर नहीं होंगे।

रतन जड़ित के साज़ होंगे। नैचुरल साज़ होंगे। मेहनत वाले नहीं होंगे। अंगुली रखी और बजा। ड्रेस तो बहुत अच्छी पहनेंगे। जैसा कार्य होगा वैसी ड्रेस होगी। जैसा स्थान वैसी ड्रेस। भिन्न-भिन्न ड्रेस पहनेंगे। श्रृंगार भी बहुत प्रकार के होंगे। भिन्न-भिन्न प्रकार के ताज होंगे, गहने होंगे। लेकिन बोझ वाले नहीं होंगे। रूई से भी हल्के होंगे। रीयल गोल्ड होगा और उसमें हीरे ऐसे होंगे जो भिन्नभिन्न रंग की लाइट्स हर हीरे से नज़र आयेगी। एक हीरे से 7 रंग दिखाई देंगे। यहाँ भिन्न-भिन्न रंग की ट्यूब्स लगाते हो ना। वहाँ हीरे ही भिन्न-भिन्न रंग के ट्यूब्स मुआफिक चमकेंगे। हरेक का महल रंग-बिरंगी लाइट से सजा हुआ होगा। जैसे यहाँ अनेक आइने रखकर एक चीज़ अनेक रूप में दिखाते हो ऐसे वहाँ की जवाहरात ऐसी होगी जो ऊपर की सीन एक के बजाए अनेक रूप में दिखाई देगी। सोने की लाइट और हीरों की लाइट अर्थात् चमक दोनों के मेल से महल जगमगाता हुआ नज़र आयेगा। सूर्य की किरणों से हीरे और सोना ऐसे चमकेंगे जैसे हजारों लाइट्स जल रही हैं। इतनी तारों (वायर्स) आदि की जरूरत नहीं पड़ेगी। बहुत सुन्दर प्रकार के आजकल की राजाई फैमली में बिजलियों की जगमग देखते हो, भिन्न-भिन्न प्रकार की लैम्पस की डिजाइन देखते हो। वहाँ रीयल हीरों के होने के कारण एक दीपक अनेक दीपकों का कार्य करेगा। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। सब नैचुरल होगा।

भाषा तो बहुत शुद्ध हिन्दी ही होगी। हर शब्द वस्तु को सिद्ध करेगा - ऐसी भाषा होगी। (विदेशियों को) आपकी इंग्लैंड और अमेरिका कहाँ जायेंगे? वहाँ महल नहीं बनाना। महल तो भारत में बनाना। वहाँ सिर्फ घूमने के लिए जाना। वह पिकनिक के स्थान, घूमने के स्थान होंगे। वह भी थोड़े-बहुत होंगे, सभी नहीं। विमान शुरू किया और आवाज से भी पहले पहुँच जायेंगे। इतनी तेज स्पीड विमान की होगी। जैसे फोन में बात करते हो ना, इतना जल्दी विमान से पहुँच जायेंगे। इसलिए फोन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। विमान भी फैमिली के भी होंगे और एक-एक के भी होंगे। जिस समय जो चाहिए वह यूज़ करो। अब बैठ गये विमान में! अभी सतयुगी विमान छोड़कर बुद्धि के विमान में आ जाओ। बुद्धि का विमान भी ऐसी स्पीड वाला है? संकल्प की स्पीड का है? संकल्प किया और चाँद और सितारों से भी परे अपने घर पहुँच गये। ऐसे बुद्धि का विमान सदा एवररेडी है? सदा विघ्नों से परे है? जो किसी भी प्रकार का एक्सीडेण्ट न हो। जाना चाहें परमधाम में और धरती को ही छोड़ न सकें या और कोई पहाड़ी से टकराकर गिर जाए। व्यर्थ संकल्प भी एक पहाड़ी से टकराना है। तो एक्सीडेंट से परे एवररेडी बुद्धि का विमान है? पहले इस विमान पर चढ़ेंगे तब वह विमान मिलेगा। ऐसे एवररेडी हो? जैसे स्वर्ग की बातों में हाँ-हाँ करते रहे वैसे इन बातों में हाँ-हाँ नहीं करते हो। आज वतन में स्वर्ग का नक्शा निकाला था, इसलिए आप लोगों को भी सुनाया। ब्रह्मा बाप तैयारी कर रहे हैं ना स्वर्ग में जाने की तो स्वर्ग के नक्शे निकाल रहे हैं। आप सब तैयार हो ना? तैयारी कौन-सी है वह तो मालूम है ना? कौन बाप के साथ स्वर्ग के गेट से पास करेंगे। उसकी पास ले ली है? गेट-पास तो ले ली हैं लेकिन बाप के साथ गेट पास करने की पास हो। एक वी.आई.पी.गेट पास होती है और एक राष्ट्रपति की भी पास होती है। यह विश्वपति का गेट पास है। कौन-सी गेट-पास ली है? अपने पास को चेक करना। ऐसे वर्तमान साहबजादे सो शहजादे, प्रकृति के मालिक सो विश्व के मालिक, मायाजीत सो जगतजीत, एक संकल्प की विधि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करने वाले, ऐसे सर्व सिद्धि स्वरूप, सदा पास रहने वाले और पास हो साथ में पास करने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात (दिल्ली जोन)

1. अपनी राजधानी को सजाने के लिए याद और सेवा का बैलेन्स रखो - सभी ने अपनी राजधानी का समाचार तो सुना। अभी राजधानी को तैयार करने के लिए दिल्ली निवासियों की विशेष ज़िम्मेवारी है। ऐसे ज़िम्मेवार समझकर चलते हो? ऐसे तो नहीं सेवा औरों को करनी है और मेवा आपको खानी है। सेवा करके मेवा खाना है। वैसे भी देखो जो काम करके, अपनी मेहनत से, प्यार से, चीज़ तैयार करते हैं तो उनको विशेष खुशी होती है। तो आप सब विशेष कौन-सी ज़िम्मेवारी लेकर राजधानी तैयार कर रहे हो? राजधानी को सजाने वाले सेवा और याद के बैलेन्स में रहो। हर संकल्प में भी सेवा हो। जब हर संकल्प में सेवा होगी तो व्यर्थ से छूट जायेंगे। तो चेक करना चाहिए जो संकल्प उठा, जो सेकेण्ड बीता उसमें सेवा और याद का बैलेन्स रहा? तो रिजल्ट क्या होगी? हर कदम में चढ़ती कला। हर कदम में पद्म जमा होते रहेंगे तब तो राज्य-अधिकारी बनेंगे। तो सेवा और याद का चार्ट रखो। सेवा एक जीवन का अंग बन जाए। जैसे शरीर में सब अंग जरूरी हैं वैसे ब्राह्मण जीवन का विशेष अंग-सेवा है। बहुत सेवा का चान्स मिलना भी भाग्य की निशानी है। स्थान मिलना, संग मिलना, चान्स मिलना यह भी भाग्य की निशानी है। आप सबको सेवा का गोल्डन चान्स है। जम्प लगाने का सहयोग मिला है। तो सेवा का सबूत देना चाहिए ना। मनसा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध और सम्पर्क से रोज सेवा की मार्क्स जरूर जमा करनी चाहिए।

हर सेवा केन्द्र पर हर वैराइटी का यादगार गुलदस्ता जरूर होना चाहिए। सब प्रकार के वी.आई.पी.के सैम्पल होने चाहिए। वी.आई.पी.की सेवा विशेष स्थान को करनी चाहिए।

2. एक रस स्थिति बनाने का सहज साधन - एक बाप से सर्व सम्बन्धों का अनुभव करो :- सदा एक बाप की याद में रहने वाले, एक बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले, एकरस स्थिति में रहते हो? एक बाप द्वारा सर्व रस अर्थात् सर्व प्राप्ति का अनुभव करने वाले, इसको कहा जाता है - एकरस स्थिति में रहने वाले - ऐसे रहते हो? दूसरा कोई भी दिखाई न दे। है कुछ जो दिखाई दे? सिवाए बाप के और कोई देखने की वस्तु है, जो देखो? बाप के सिवाए कोई सुनाने वाला है, जिससे सुनो? बहुतों को देख भी लिया, सुन भी लिया और उसका परिणाम भी देख लिया। अभी एक की याद में एकरस। बहुतों को छोड़ एक की याद, एक को देखो, एक से सुनो, एक से बैठो ....अनेकों से निभाना मुश्किल होता है, एक से सहज होता है। अनेक जन्म अनेकों से निभाया। बाप से अलग, टीचर से अलग, गुरू से अलग...अब सहज तरीका बाप ने बताया कि एक से निभाओ। जहाँ देखो वहाँ एक ही देखो, इसी को ही भावना के कारण भक्ति में सर्वव्यापी कह दिया है। वह कह देते तू ही तू...आप सदा बाप के साथ का अनुभव करते हो। जहाँ जाओ वहाँ बाप ही बाप अनुभव हो।

3. मेरापन समाप्त करने से डबल लाइट की स्थिति - सभी ने बाप से पूरापूरा अधिकार ले लिया है? पूरा अधिकार लेने के लिए पुराना सब-कुछ देना पड़े। तो दोनों सौदे किये हैं ना? या तेरा सो मेरा लेकिन मेरे को हाथ नहीं लगाना - ऐसे तो नहीं! जब एक शब्द बदल जाता है अर्थात् मेरा-तेरे में बदल जाता तो डबल लाइट हो जाते हैं। जरा भी मेरापन आया तो ऊपर से नीचे आ जाते हैं। तेरा तेरे अर्पण तो सदा डबल लाइट और सदा ऊपर उड़ते रहेंगे अर्थात् ऊँची स्थिति में रहेंगे।



04.01.1980       ओम शान्ति       अव्यक्त बापदादा        मधुबन


वर्तमान राज्य अधिकारी ही भविष्य राज्य अधिकारी

विदेशी भाई-बहनों के साथ अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात

सभी अपने को डबल राज्य-अधिकारी समझते हो? वर्तमान भी राज्य- अधिकारी और भविष्य में भी राज्य-अधिकारी। वर्तमान, भविष्य का दर्पण है। वर्तमान की स्टेज अर्थात् दर्पण द्वारा अपना भविष्य स्पष्ट देख सकते हो। वर्तमान व भविष्य के राज्य-अधिकारी बनने के लिए सदा यह चेक करो कि मेरे में रूलिंग पावर कहाँ तक है, पहले सूक्ष्म शक्तियाँ, जो विशेष कार्यकर्त्ता है, उनके ऊपर कहाँ तक अपना अधिकार है। संकल्प शक्ति के ऊपर, बुद्धि के ऊपर और संस्कारों के ऊपर। यह विशेष तीन शक्तियाँ राज्य-अधिकारी बनाने में सदा सहयोगी अर्थात् राज्य की कारोबार चलाने वाले मुख्य सहयोगी कार्यकर्त्ता हैं। अगर यह तीनों कार्यकर्त्ता आप आत्मा अर्थात् राज्य-अधिकारी राजा के इशारे पर चलते हैं तो सदा वह राज्य यथार्थ रीति से चलता है। जैसे बाप को भी तीन मूर्तियों द्वारा कार्य कराना पड़ता है। इसलिए `त्रिमूर्ति' का विशेष गायन और पूजन है। त्रिमूर्ति शिव कहते हो। एक बाप के तीन विशेष कार्यकर्त्ता हैं जिन द्वारा विश्व का कार्य कराते हैं। ऐसे आप आत्मा रचयिता हो और यह तीन विशेष शक्तियाँ अर्थात् त्रिमूर्ति शक्तियाँ आपके विशेष कार्यकर्त्ता हैं। आप भी इन तीन रचना के रचयिता हो। तो चेक करो कि त्रिमूर्ति रचना आपके कन्ट्रोल में हैं?

मन है उत्पत्ति करने वाला अर्थात् संकल्प रचने वाला। बुद्धि है निर्णय करना अर्थात् पालना के समान कार्य करना। संस्कार है अच्छा व बुरा परिवर्तन कराने वाला। जैसे ब्रह्मा आदि देव है वैसे पहले आदि शक्ति है - `मन' अर्थात् संकल्प शक्ति'। आदि शक्ति यथार्थ है तो और भी कार्यकर्त्ता उनके साथी यथार्थ कार्य करने वाले हैं। पहले यह चेक करो मुझ राजा का पहला आदि कार्यकर्त्ता सदा समीप के साथी के समान इशारे पर चलता है। क्योंकि माया दुश्मन भी पहले इसी आदि शक्ति को बागी अर्थात् ट्रेटर बनाती है। और राज्य-अधिकार लेने की कोशिश करती है। इसलिए आदि शक्ति को सदा अपने अधिकार की शक्ति के आधार पर सहयोगी, विशेष कार्यकर्त्ता करके चलाओ। जैसे राजा स्वयं कोई कार्य नहीं करता, कराता है। करने वाले राज्य कारोबारी अलग होते हैं। अगर राज्य कारोबारी ठीक नहीं होते तो राज्य डगमग हो जाता है। ऐसे आत्मा भी करावनहार है, करनहार ये विशेष त्रिमूर्ति शक्तियाँ हैं। पहले इनके ऊपर रूलिंग पावर है तो यह साकार कर्मेन्द्रियाँ उन के आधार पर स्वत:ही सही रास्ते पर चलेंगी। कर्मेन्द्रियों को चलाने वाली भी विशेष यह तीन शक्तियाँ हैं। अब रूलिंग पावर कहाँ तक आई है - यह चेक करो।

जैसे डबल विदेशी हो वैसे डबल रूलर्स हो? हरेक का राज्य-कारोबार अर्थात् स्वराज्य ठीक चल रहा है? जैसे सतयुगी सृष्टि के लिए कहते हैं - एक राज्य एक धर्म है। ऐसे ही अब स्वराज्य में भी एक राज्य अर्थात् स्व के ईशारे पर सर्व चलने वाले हैं। एक धर्म अर्थात् एक ही धारणा सब की है कि सदा श्रेष्ठाचारी चढ़ती कला में चलना है। मन अपनी मनमत पर चलावे, बुद्धि अपनी निर्णय शक्ति की हलचल करे, मिलावट करे, संस्कार आत्मा को भी नाच नचाने वाले हो जाएँ तो इसको एक धर्म नहीं कहेंगे, एक राज्य नहीं कहेंगे। तो आपके राज्य का क्या हाल है? त्रिमूर्ति शक्तियाँ ठीक हैं? कभी संस्कार बन्दर का नाच तो नहीं नचाते हैं? बन्दर क्या करता है नीचे ऊपर छलांग मारता है ना। संस्कार की भी अभी-अभी चढ़ती कला अभी-अभी गिरती कला। यह बन्दर का नाच है ना। तो ये संस्कार नाच तो नहीं नचाते हैं ना? कन्ट्रोल में है ना सब? कभी बुद्धि मिलावट तो नहीं करती है? जैसे आजकल मिलावट करते हैं तो निर्णय शक्ति भी मिलावट कर देती है, कभी बुद्धि मिलावट तो नहीं कर देती है। अभी-अभी यथार्थ अभी-अभी व्यर्थ तो मिलावट हुई ना।

कारण को निवारण के रूप में कर लो तो माया समाप्त हो जाएगी

विदेश में माया आती है? विदेशियों के पास माया नहीं आनी चाहिए क्योंकि विदेश में वर्तमान समय थोड़े ही समय में ऊँचे भी चढ़ते और नीचे भी गिरते हैं। तो थोड़े समय में सब प्रकार के अनुभव करके अब पूरे कर लिए हैं। जैसे कोई चीज़ बहुत खाई जाती है तो दिल भर जाता है। वैसे विदेश में भी सब प्रकार का फुल फोर्स होने के कारण विदेश की आत्मायें अब इनसे थक गई हैं। तो जो थके हुए होते हैं उनको अगर आराम मिल जाता है तो बिल्कुल लेटते ही गुम हो जाते हैं। डीप स्लीप का अनुभव करते हैं। तो विदेशियों को माया ने थोड़े ही समय में बहुत अनुभव करा दिया है। अब क्या करना है? अब तो नई चीज़ की तलाश थी वह मिल गई फिर माया क्यों आवे? नहीं आनी चाहिए न, फिर आती क्यों है? (माया के पुराने ग्राहक हैं) माया को भी अगर नये ग्राहक अच्छे मिल जायेंगे तो पुरानों को आपे ही छोड़ देगी। रूलिंग पावर वाले के पास माया आ नहीं सकती। माया जहाँ देखती है कार्यकर्त्ता सब होशियार हैं, अटेन्शन में है तो वहाँ हिम्मत नहीं रख सकती। रूलिंग पावर कहाँ तक है - उसकी चेकिंग करो और अगर पावर नहीं है तो उसका कारण क्या है? कारण को निवारण के रूप में परिवर्तित करो। कारण खत्म हो जाना अर्थात् माया खत्म हो गई। माया का मुख्य स्वरूप कारण के रूप में आता है। कारण को निवारण के रूप में कर लो तो माया सदा के लिए समाप्त हो जायेगी।

 

आज तो मिलने आये हैं। मुरलियाँ तो बहुत सुनीं अब ऐसे मुरलीधर बनो जो माया मुरली के आगे न्योछावर (सरेन्डर) हो जाए। ऐसे मुरलीधर हो ना कि वह स्थूल साज़ की मुरली चलाने वाले हो? वह तो बहुत अच्छी चलाते हो। इसमें भी मुरलीधर बनो। माया को सरेन्डर कराने की मुरली। यह साज़ भी बजा सकते हो ना? साज़ बजाने का मैजारटी को शौक है। जिस समय भी कोई साज़ बजाओ उस समय यह सोचो कि मायाजीत बनने के राज का साज़ भी आता है? यह राज का साज़ अगर सदैव बजाते रहो तो माया सदा के लिए सरेन्डर हो जायेगी। ऐसे साज़ बजाना आता है? विदेशी भी पद्मगुणा भाग्यशाली हैं। दूर से आते हैं लेकिन चान्स भी पद्मगुणा मिलता है। जितना देश वाले वर्ष में लेते हैं उससे ज्यादा विदेशियों को थोड़े समय में प्राप्त होता है। विशेष पालना मिल रही है।

वाइसलेस बनना ही वायरलेस है

सबकी नज़र आप विदेशियों के ऊपर विशेष रहती है। तो विशेष पालना का रूप, प्रत्यक्षफल के रूप में विशेष दिखाना पड़े। जैसे स्थापना में विशेष पालना चली वैसे अभी भी आप लोगों की विशेष पालना चल रही है। तो पहले पालना वालों ने उस पालना का रिटर्न सेवा की स्थापना की। अब आप लोग क्या करेंगे? सेवा की समाप्ति करेंगे, और सम्पूर्णता का व प्रत्यक्षता का नाम बाला करेंगे। विदेशियों को ही समाप्ति की डेट फिक्स करनी पड़ेगी। पहले वालों ने स्थापना की डेट फिक्स की और अब आप लोगों को समाप्ति की डेट फिक्स करनी पड़ेगी। अभी सबका इंतज़ार आपके ऊपर होगा। बाप दादा से पूछेंगे कि विनाश कब होगा तो कहेंगे विदेशियों से पूछो। देश वालों ने स्थापना की ज़िम्मेवारी ली। विदेशी भी कोई तो ज़िम्मेवारी लेंगे ना। है भी विदेश विनाशी और भारत अविनाशी तो भारतवासियों ने स्थापना का किया और विदेशी विनाश के कार्य में विशेष निमित्त बनेंगे। भारतवासी बच्चों ने यज्ञ की स्थापना में अपनी आहुतियाँ डाल कर स्थापना की, यज्ञ रचा। और आप लोग फिर अन्तिम आहुति डालकर समाप्त करो। फिर जय-जयकार हो जायेगा। अब जल्दी-जल्दी अन्तिम आहुति डालो। सब मिल करके एक संकल्प का स्वाहा करो तो समाप्ति हो जाएगी। इसकी डेट कब बताऐंगे? 80 में करेंगे या 81 में करेंगे। यह डेट बताना। (एक बार मधुबन में फिर से आयें) विनाश शुरू होगा तो सदा के लिए आ जायेंगे । इसलिए तो यहाँ बड़ा हाल बना रहे हैं। सिर्फ वायरलेस का सेट अपना ठीक रखना। यहाँ की वायरलेस है - वाइसलेस की वायरलेस। तो वायरलेस द्वारा आवाज आपको पहुँच जाएगी कि आप आ जाओ। अगर वायरलेस सेट नहीं होगा तो आवाज भी पहुँच नहीं सकेगा। डायरेक्शन नहीं मिल सकेगा। स्थूल साधन द्वारा आवाज नहीं आएगा। वाइसलेस बुद्धि ही यह अन्तिम डायरेक्शन कैच कर सकेगी। इसलिए जल्दी-जल्दी करेंगे तो जल्दी समय आ जाएगा। पहले तो पावरफुल माइक तैयार करो। जिस माइक द्वारा आवाज भारत में पहुँचे और फिर जैसे उन का इलेक्शन होता है तो एक दिन पहले एडवरटाइजमेन्ट साधन सब बन्द कर देते हैं। पीछे वोटिंग होती है। तो पहले तो माइक द्वारा आवाज फैलाओ तो वो भी साइलेन्स हो जाएगी फिर रिजल्ट आउट होगी। अभी एडवरटाइजमेन्ट माइक कहाँ तक तैयार किए हैं? पहले आवाज फैलेगा फिर ऐसी डेड साइलेंस होगी जो यह आवाज फैलाने का पार्ट भी समाप्त हो जाएगा और फिर परिवर्तन होगा। अभी तो पहली स्टेज चल रही है ना। पहली स्टेज में टाइम लगेगा, दूसरी में टाइम नहीं लगेगा।

आस्ट्रेलिया पार्टी :- आस्ट्रेलिया के सर्व बच्चों में सबसे बड़ी विशेषता क्या है? जानते हो? आस्ट्रेलिया वालों का जो दूसरे धर्म में पार्ट बजाने का निमित्त मात्र समय था वह समय अभी समाप्त हो गया, इसीलिए अपने धर्म की पहचान मिलने से सहज और जल्दी आ गए और फिर औरों को भी निकालने की बहुत उमंग है। तो इससे सिद्ध होता है कि टैम्प्रेरी टाइम जो दूसरे धर्म में गए हैं, वह समाप्त हो गया। इसलिए यह भी विशेषता है कि जो भी आते हैं मैजॉरिटी वह अपने लगते है। दूसरे धर्म के नहीं लगते हैं। आस्ट्रेलियन अथवा विदेशी होते हुए भी चात्रक आत्मायें लगती हैं तो आत्मा का चात्रकपन सिद्ध करता है कि अपने धर्म वाले हैं। आप लोगों को भी ऐसे ही महसूस होता है ना कि गलती से दूसरी डाली पर चले गए हैं। सेवा के लिए यह भी एक थोड़े समय का पार्ट मिला हुआ है। नहीं तो विदेश की सेवा कैसे होती? वहाँ वालों को निमित्त बना के विदेश की सेवा करा रहे हैं। जैसे कल्प पहले का गायन भी है कि पाण्डव गुप्त वेश में यहाँ-वहाँ सेवा के लिए गए थे। तो आप भी रूप-धर्म में परिवर्तन करके पाण्डवसेना सेवा के लिए गए हो। लेकिन हो `पाण्डवसेना'। अब तो धर्म, देश, गुण और कर्त्तव्य सब बदल गया ना? आस्ट्रेलिया निवासी के बजाए अपने को वहाँ रहते भी मधुबन निवासी समझकर रहते हो ना। जन्म का घर मधुबन है। साकार घर मधुबन और निराकारी घर परमधाम। आस्ट्रेलिया आपका दफ्तर है। जैसे आफिस में कार्य के लिए जाते हैं ऐसे आप भी सेवा के लिए जा रहे हो। दफ्तर में जाते हैं तो घर तो नहीं भूलता हैं ना। तो घर की एड्रेस अगर आपसे कोई पूछे तो क्या देंगे? (पाण्डव भवन) इसी स्मृति में रहने से सदा उपराम अवस्था में रहेंगे। दफतर की वस्तु में कभी लगाव नहीं होता क्योंकि समझते हैं कि यह सेवा के लिए चीजें हैं। हमारी नहीं। तो ऐसे ही उपराम रहते हो? कितनी भी प्यारी चीज़ हो या आकर्षित करने वाले सेवा के साथी हो लेकिन दफ्तर में काम करने वालों के लिए नियम होता है, काम के लिए साथी बने फिर न्यारे। अगर गलती से आपस में प्यार हो जाता है तो अच्छा नहीं माना जाता। घर वालों से स्नेह होता है। दफ्तर वालों से काम चलाना होता है, तो ऐसे चलो।

आस्ट्रेलिया वालों ने सेवा तो बढ़ाई है ना। अभी कितने स्थान हैं वहाँ (5) हरेक को राज्य करने के लिए अपनी-अपनी प्रजा तो जरूर बनानी ही है। (विनाश में हम लोगों का क्या होगा?) विनाश में आस्ट्रेलिया सारा एक ही टापू बन जाएगा। कुछ पानी में आ जाएगा कुछ ऊपर रह जाएगा। आप लोग सेफ रहेंगे। विनाश के पहले ही आप लोगों को आवाज पहुँचेगा। जब तुम सभी सेफ स्थान पर पहुँच जायेंगे फिर विनाश होगा। जैसे गायन है भट्ठी में बिल्ली के पूंगरे सेफ रहे...तो जो बच्चे बाप की याद में रहने वाले हैं, वह विनाश में विनाश नहीं होंगे लेकिन स्वेच्छा से शरीर छोड़ेंगे, न कि विनाश के सरकमस्टान्सेज के बीच में छोड़ेंगे। इसके लिए एक बुद्धि की लाइन क्लियर हो और दूसरा अशरीरी बनने का अभ्यास बहुत हो। कोई भी बात हो तो आप अशरीरी हो जाओ। अपने आप शरीर छोड़ने का जब संकल्प होगा तो संकल्प किया और चले जायेंगे। इसके लिए बहुत समय से प्रैक्टिस चाहिए। जो बहुत समय के स्नेही और सहयोगी रहते हैं उनको अन्त में मदद जरूर मिलती है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे स्थूल वस्त्र उतार रहे हैं। ऐसे ही शरीर छोड़ देंगे। सारा दिन में चलते-चलते बीच-बीच में अशरीरी बनने का अभ्यास जरूर करो। जैसे ट्रैफिक कन्ट्रोल का रिकार्ड बजता है तो वैसे वहाँ कार्य में रहते भी बीच-बीच में अपना प्रोग्राम आपे ही सेट करो तो लिंक जुटा रहेगा। इससे अभ्यास होता जाएगा।

आप लोगों में यह भी एक विशेषता है कि जब चाहो नौकरी छोड़ सकते हो जब चाहो कर सकते हो। निर्बन्धन हो। सिर्फ मन और संस्कारों का बन्धन न हो। वैसे देह और देह के धर्मों से फ्री हो। आधे बन्धनों से पहले ही फ्री हो, बाकी थोड़े बन्धनों को याद और सेवा से खत्म कर दो। सभी हाई जम्प लगाने वाले हो।



07-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"संगमयुगी बादशाही बनाम सतयुगी बादशाही"

बापदादा आज संगम युगी बेगमपुर के बादशाहों की सभा देख रहे हैं। संगम युग है ही - बेगमपुर। संगमयुगी सर्व ब्राह्मण बेगमपुर के बादशाह हैं। सतयुगी बादशाही इस संगमयुग की बेगमपुर की बादशाही के आगे कुछ भी नहीं है। वर्तमान समय की प्राप्ति का नशा, खुशी, सतयुग की बादशाही से पद्मगुणा श्रेष्ठ हैं।

आज वतन में सतयुगी बादशाही और संगमयुगी बादशाही दोनों के अन्तर पर रूह-रूहान चल रही थी। सतयुग की बादशाही की बातें तो उस दिन बहुत सुनी, और खुश भी बहुत हुए। लेकिन संगमयुग की श्रेष्ठता कितनी श्रेष्ठ है, उसके भी अनुभवी हो ना?

1. सतयुग की दिनचर्या में प्रकृति में नेचुरल साज़ जगायेंगे लेकिन संगमयुगी ब्राह्मणों के आदिकाल - अमृतबेले से श्रेष्ठता देखो तो कितनी महान है। वहाँ प्रकृति का साधन है और संगमयुग पर आदिकाल अर्थात् अमृतवेले कौन जगाता है? स्वयं प्रकृति का मालिक भगवान तुम्हें जगाता हैं।

2. मधुर साज़ कौन सा सुनते हो? बाप रोज ``बच्चे - मीठे बच्चे'' कहकर बुलाते हैं। यह नेचुरल साज, ईश्वरीय साज़ सतयुगी प्रकृति के साज़ से कितना महान है। उसके अनुभवी हो ना? तो सतयुगी साज़ महान है या ये संगमयुग के साज़ महान हैं? साथ-साथ सतयुग के संस्कार और प्रालब्ध बनाने व भरने का समय है। संस्कार भरते हैं, प्रालब्ध बनती है। इसी संगमयुग पर ही सब होता है।

3. वहाँ सतोप्रधान अति स्वादिष्ट रस वाले, वृक्ष के फल खायेंगे। यहाँ वृक्षपति द्वारा सर्व सम्बन्धों के रस, सर्व प्राप्ति-सम्पन्न प्रत्यक्ष फल खाते हो।

4. वह गोल्डन एज का फल है। और यह डायमन्ड एज का फल है, तो श्रेष्ठ कौन-सा हुआ?

5. वहाँ दास-दासियों के हाथ में पलेंगे यहाँ बाप के हाथों में पल रहे हो।

6. वहाँ महान आत्माएँ माँ-बाप होंगे, यहाँ परमात्मा माता-पिता हैं।

7. वहाँ रतन जड़ित झ्लों में झूलेंगे यहाँ सबसे बड़े-से-बड़ा झूला कौन-सा है, वह जानते हो? बाप की गोदी झूला है। बच्चे के लिए सबसे प्यारा झूला माता-पिता की गोदी है सिर्फ एक झूला भी नहीं, भिन्न-भिन्न झूलों में झूल सकते हो। अतीन्द्रिय सुख का झूला, खुशियों का झूला, वहाँ रतन जड़ित झूला है और यह झूला कितना महान है।

8. वहाँ रतनों से खेलेंगे, खिलौनों से खेलेंगे, आपस में खेलेंगे लेकिन यहाँ बाप कहते हैं सदा मेरे से, जिस भी रूप में चाहो उस रूप में खेल सकते हो। सखा बन करके खेल सकते हो, बन्धु बनाकर भी खेल सकते हो। बच्चा बन करके भी खेल सकते हो, बच्चा बनाकर भी खेल सकते हो। ऐसा अविनाशी खिलौना तो कभी नहीं मिलेगा। जो न टूटेगा न फूटेगा और खर्चा भी नहीं करना पड़ेगा।

9. वहाँ आराम से गदेलों पर सोयेंगे, यहाँ याद के गदेलों पर सो जाओ।

10. वहाँ निन्द्रा-लोक में चले जाते हो लेकिन संगम पर बाप के साथ सूक्ष्मवतन में चले जाओ।

11. वहाँ के विमानों में सिर्फ एक लोक का सैर कर सकेंगे अब बुद्धि रूपी विमान द्वारा तीनों लोकों का सैर कर सकते हो।

12. वहाँ विश्वनाथ कहलायेंगे और अब त्रिलोकीनाथ हो।

13. वहाँ दो नेत्री होंगे, यहाँ तीन नेत्री हो।

14. संगमयुग के अन्तर में अर्थात् नॉलेजफुल, पावरफुल, ब्लिसफुल इसके अन्तर में वहाँ क्या बन जायेंगे? रॉयल बुद्धू बन जायेंगे।

15. दुनिया के हिसाब से परमपूज्य होंगे, विश्व द्वारा माननीय होंगे लेकिन नॉलेज के हिसाब से महान अन्तर पड़ जायेगा।

16. यहाँ तो गुडमार्निंग, गुडनाईट बाप से करते हो और वहाँ आत्माएँ आत्माओं से करेंगी।

17. वहाँ विश्व राज्य-अधिकारी होंगे, राज्यकर्त्ता होंगे और यहाँ विश्व कल्याणकारी, महादानी, वरदानी हो। तो श्रेष्ठ कौन हुए? सतयुगी बातें तो सुनकर सदा खुशी स्वरूप बन जाओ।

18. वहाँ वैराइटी प्रकार का भोजन खायेंगे और यहाँ ब्रह्मा भोजन खाते जिसकी महिमा देवताओं के भोजन से भी अति श्रेष्ठ है। तो सदा सतयुगी प्रालब्ध और वर्तमान समय के महत्व और प्राप्ति को साथ साथ रखो। तो वर्तमान समय को जानते हुए हर सेकेण्ड और संकल्प को श्रेष्ठ बना सकेंगे। समझा।

आज पंजाब का जोन आया है। पंजाब की दो विशेषतायें हैं। एक पंजाब का पानी और दूसरा पंजाब की खेती। कौरव गवर्मेन्ट ने पंजाब में दो विशेषतायें दिखाई हैं और पाण्डव गवर्मेन्ट की तरफ से पंजाब ने क्या विशेषता दिखाई है। पंजाब ने ज्ञान नदियाँ रूपी हैन्ड्स तो निकाले लेकिन वन्डर भी किया है। पंजाब की नदियाँ पंजाब में ही रहती हैं। इसलिए पंजाब का पानी मशहूर हो गया है। जैसे पंजाब में बिना सीजन के अनाज पैदा कर लेते हैं, ऐसे साधन बनाये हैं तो पंजाब वालों को 12 ही मास के 12 ही फल देने चाहिए। जब साइन्स की शक्ति से बिना सीजन के अनाज पैदा कर लेते हैं तो क्या साइलेन्स की शक्ति संगमयुग की फुल सीजन होते हुए भी हर मास का फल नहीं दे सकती? जैसे वह लोग साधन अपनाते हैं जो असम्भव से सम्भव कर के दिखाते हैं तो साधना द्वारा पंजाब की धरती को परिवर्तित करो। प्रत्यक्ष फल देना पड़े। पंजाब को यह नये वर्ष में सलोगन याद रखना है। कौन-सा स्लोगन? ``तुरंत दान महापुण्य'' अभी तो ज्ञान गंगाओं का पार्ट है, पाण्डव बैकबौन हैं। लेकिन आगे निमित्त तो शक्तियों को रखेंगे। इसमें भी पाण्डवों का फायदा है। नहीं तो डन्डे खाने पड़ेंगे। विशेष पंजाब में तो बहुत डन्डे पड़ेंगे। इसलिए शक्तियाँ गाइड और पाण्डव गार्ड ठीक हैं। गार्ड और गॉड रास मिल जाती है। जैसे बाप बैकबोन हो के शक्तियों को आगे करते हैं वैसे पाण्डव भी बाप-समान बैकबोन हो शक्तियों को आगे रखें। तो अब नये वर्ष में पंजाब क्या नवीनता दिखायेगा? धरती परिवर्तन की नवीनता। समझा।

विदेश सेवा में अच्छे-अच्छे महावीर महावीरनियाँ साइन्स पर साइलेन्स पावर से विजय प्राप्त करने वाले तैयार हो रहे हैं। अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल, बाप की भुजायें तैयार हुई पड़ी हैं। राइट हैन्ड्स हैं। राइट हैन्ड्स द्वारा सदा श्रेष्ठ और सहज कार्य होता है। तो विदेश में राइट हैन्ड्स तैयार हो रहे हैं। अच्छा, फिर मिलेंगे तो विशेषता सुनायेंगे। देश और विदेश के दोनों बच्चों को बाप-दादा मुबारक देते हैं। जो नज़दीक व दूर से मिलन मेले में पहुँच गये हैं।

ऐसे सदा बाप से मिलन मनाने वाले, दिन-रात - ``एक बाप दूसरा न कोई'' इसी धुन में रहने वाले, सदा विश्व की आत्माओं प्रति सर्व खज़ानों से महादान और वरदान देने वाले, सदा संगमयुग की विशेषता को सामने रख श्रेष्ठ भाग्य के स्मृति-स्वरूप, ऐसे सदा श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा विश्वकल्याणकारी आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

कर्मेन्द्रियों का राजा ही राज्य-अधिकारी

पार्टियों से - पंजाब जोन

 

पंजाब वासियों को विशेष आत्मा होने के कारण विशेष फल अवश्य देना पड़े। पंजाब में विशेष `अकालतख्त' का यादगार है। जहाँ तख्त का यादगार है वहाँ के निवासी स्वयं भी सदा अकालतख्त पर विराजमान हैं। अपनी कर्मेन्द्रियों द्वारा साक्षी हो कार्य करते हुए स्वराज्य अधिकारी हो। अकालतख्तनशीन आत्मा अर्थात् राज्य-अधिकारी। ऐसे राज्य अधिकारी बन करके चलते हो? कर्मेन्द्रियों के अधीन तो नहीं होते। जहाँ अधीनता होगी, वहाँ कमज़ोरी होगी। आधा कल्प कमज़ोर रहे अब अपना राज्य लिया है? राज्य अथवा अधिकार लेने के बाद अधीनता समाप्त हो जाती है। तो राज्य अधिकारी हो ना! कोई कर्मेन्द्रिय अर्थात् कार्यकर्त्ता आपके ऊपर राज्य तो नहीं करता? जैसे आजकल की दुनिया में प्रजा का प्रजा पर राज्य है, वैसे आपके जीवन में प्रजा का राज्य तो नहीं है ना? प्रजा हैं यह कर्मेन्द्रियाँ। प्रजा के राज्य में सदा हलचल रहती है और राजा के राज्य में अचल राज्य चलता। तो अचल राज्य चल रहा है ना?

वर्तमान समय संकल्प की हलचल भी बड़ी गिनी जायेगी। पहले समय था जब संकल्प को फ्री छोड़ दिया, वाचा, कर्मणा पर अटेन्शन रखते थे लेकिन अभी मनसा भी हलचल न हो। क्योंकि लास्ट में है ही मनसा द्वारा विश्व-परिवर्तन। अभी मनसा का एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो बहुत कुछ गँवाया। एक संकल्प को भी साधारण बात न समझो। इतना अटेन्शन। अब समय बदल गया, पुरूषार्थ की गति भी बदल गई। तो संकल्प में ही फुलस्टाप चाहिए। मनसा पर भी अटेन्शन हो इसको ही कहा जाता है - `चढ़ती कला'। सदा चढ़ती कला रहे, अभी सदा का ही सौदा है।

(विदेशी पार्टियों के साथ अव्यक्त बाप-दादा की मुलाकात)

 

लंदन - सदा अपने होलीलैण्ड की स्मृति में रहते हो? होलीलैण्ड में रहने वाले सदा अपनी होली स्टेज में स्थित रहेंगे। अपने को सदा सम्पूर्ण पवित्र आत्मा की स्टेज पर अनुभव करते हो? जब यहाँ पवित्रता के ताजधारी बनते हो तब वहाँ रतनजड़ित ताज भी मिलेगा। सदा अपने उपर लाइट का क्राउन अनुभव करो। जो राजकुमार और राजकुमारियाँ होती हैं वे ताजधारी होते हैं ना। आप तो साहबजादे और साहबजादियाँ हो तो बिगर ताज हो कैसे सकते! लण्डन निवासी तो सभी ताजधारी हैं ना? ऐसे ताजधारी जो सब आपके क्राउन को देख नमस्कार करें।

सदा इसी स्मृति में रहो कि हम प्योर आत्मायें प्योरिटी के लाइट के ताजधारी हैं। माया आपके ताज को उतारती तो नहीं है ना? अभी माया को यहाँ ही विदाई देकर जाना। माया का रूप परिवर्तित करके जाना। दुश्मन के बजाए खिलौने के रूप में आये। इस नये वर्ष में यही परिवर्तन करो।

अमेरिका - पाँच पाण्डव हैं, पाँच पाण्डवों ने कल्प पहले भी क्या कमाल की थी, 5 होते हुए भी कितनी अक्षोहिणी सेना के ऊपर विजयी बने। विजय का झण्डा लहराने वाली पाण्डव सेना हो ना? एक-एक पाण्डव कितने के बराबर हो? वह अक्षोहिणी सेना यह 5 पाण्डव। तो कितने वैल्यूबल और अमूल्य हो। अभी अमेरिका के चारों ओर फैल जाओ। जैसे जाल बिछाई जाती है ना, ऐसे अपने योग शक्ति का जाल बिछा दो तो जो भी भटकती हुई आत्मायें होंगी वह पहुँच जायेंगी। अमेरिका में विशेष खुशी और शान्ति की अभिलाषी आत्मायें ज्यादा हैं, उन्हें खुशी और शान्ति का दान देते रहो तो बहुतों की आशीर्वाद मिल जायेगी।

ग्याना पार्टी - सदा सर्विसएबुल रतन हो ना? हरेक के अन्दर सेवा का संस्कार ऐसे भरा हुआ है जैसे शरीर में खून समाया हुआ है। जैसे अगर खून निकल जाए तो शरीर बेकार हो जाता है। ऐसे सेवा नहीं करते तो ऐसे ही बन जाते हैं जैसे जीते हुए भी मरे के समान हैं। सेवा ही ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है। सभी के अन्दर सेवा ही समाई हुई हो। सर्विसएबुल का तिलक सबके मस्तक पर लगा हुआ हो, ग्याना वालों ने भी सर्विस का सबूत अच्छा दिखाया है। ग्याना के विशेष व्यक्तियों का दृष्टान्त देकर अनेक स्थानों पर सेवा होगी। ग्याना के सर्विस में विशेष निमित्त बने हुए हैं। जैसे नयनों में तारा समाया हुआ है वैसे जो बाप-दादा के सिकीलधे रतन हैं वे भी नयनों में समाये हुए हैं।

जर्मनी पार्टी - जर्मनी ग्रुप को तो बहुत ही कमाल करनी है। जर्मन वाले भविष्य के लिए ऐसा ग्रुप तैयार करो जो भविष्य में आकर आपकी सेवा के निमित्त बने। सतयुग में भी एटॉमिक एनर्जी का कार्य चलना है। तो जर्मनी में सम्पर्क में आई हुई आत्मायें ऐसे कार्य के निमित्त वहाँ बनेंगी।

आप तो मालिक बनेंगे लेकिन सम्पर्क में ऐसे आयेंगे जो सेवा के निमित्त बनेंगे। तो जर्मनी को बहुत सेवा करनी है। हिम्मते बच्चे मददे बाप। जो सम्पर्क में आये उनकी सेवा करते चलो।

2- स्वदर्शन चक्रधारी कभी भी चढ़ती कला और उतरती कला का चक्र नहीं चला सकते। अभी बीती सो बीती। जैसे पिछला वर्ष खत्म हुआ वैसे यह संस्कार भी खत्म हो जाएँ। संस्कार रूप से परिवर्तन। संस्कार है बीज। अगर बीज खत्म हो जायेगा तो वृक्ष पैदा नहीं होगा। बीज, वृक्ष को पैदा न करे उसके लिए उसे आग में जलाया जाता है। तो कमज़ोरियों के संस्कार रूपी बीज को याद के लगन की अग्नि में जला दो तो वृक्ष पैदा नहीं होगा अर्थात् मन-वाणी और कर्म में कमज़ोरी आयेगी ही नहीं। जैसे होली जलाने में होशियार हो ऐसे होली (पवित्र) बनने की होली जलाना तो होली (Holy) हो जायेंगे। कमज़ोरियों को जला दिया तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे। सदा यह टाइटिल याद रखो कि - हम `विघ्न-विनाशक' हैं। स्व के साथ-साथ विश्व के भी विघ्न-विनाशक। अब विश्व की सेवा में लगना ही पड़ेगा।



09-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"अलौकिक ड्रेस और अलौकिक श्रृंगार"

आज बाप-दादा विशेष चारों ओर के बच्चों की रमणीक रंगत देख रहे थे। जिसको देख मुस्करा भी रहे थे और कहीं-कहीं विशेष हँसी भी आ रही थी। वह कौन-सी रंगत थी? बाप-दादा देख रहे थे कि संगम युगी, सर्व श्रेष्ठ हीरे तुल्य युग के वासी और सर्व श्रेष्ठ बाप-दादा के बच्चे, ईश्वरीय सन्तान, ब्राह्मण कुल की श्रेष्ठ आत्माओं को व लाडले, सिकीलधे बच्चों को बाप-दादा ने विशेष सारे दिन के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की ड्रेस और श्रृंगार, साथ-साथ बैठने के स्थान व आसन कितने श्रेष्ठ दिये हैं। जो जैसा समय वैसी ड्रेस और वैसा ही श्रृंगार कर सकते हैं। सतयुग में भिन्न-भिन्न ड्रैसेज और श्रृंगार चेन्ज करेंगे लेकिन संस्कार तो यहाँ से ही भरने हैं ना। ब्रह्मा बाप ने संगमयुग की भिन्न-भिन्न ड्रैसेज और श्रृंगार से ब्राह्मण बच्चों को सजाया है। लेकिन रमणीक रंगत क्या देखी? जो इतनी सुन्दर ड्रैसेज और सजावट होते हुए भी कोई-कोई बच्चे पुरानी ड्रेस, मिट्टी वाली मैली ड्रेस पहन लेते हैं।

जैसी ड्रेस वैसा श्रृंगार

अमृतबेले की ड्रेस और श्रृंगार जानते हो? सारे दिन की भिन्न-भिन्न ड्रेस और श्रृंगार जानते हो? बाप-दादा द्वारा भिन्न-भिन्न टाइटल्स बच्चों को मिले हुए हैं। तो भिन्न-भिन्न टाइटल्स की स्थिति रूपी ड्रेस और भिन्न-भिन्न गुणों के श्रृंगार के सेट हैं। कितने प्रकार की ड्रैसेज और सेट हैं। जैसी ड्रेस वैसा श्रृंगार का सेट और ऐसे ही सजे-सजाये सीट पर सदा सेट रहो। अपनी ड्रैसेज गिनती करो कि कितनी हैं? उसी टाइटिल की स्थिति में स्थित होना अर्थात् ड्रैसेज को धारण करना। कभी विश्व-कल्याणकारी की ड्रेस पहनो, कभी मास्टर सर्व शक्तिवान की और कभी स्वदर्शन चक्रधारी की। जैसा समय जैसा कर्त्तव्य वैसी ड्रैसेज धारण करो। साथ-साथ भिन्न-भिन्न गुणों के श्रृंगार करो। यह भिन्न-भिन्न श्रृंगारों के सेट धारण करो। हाथों में, गले में, कानों में और मस्तक में यह श्रृंगार हो। मस्तक में यह स्मृति धारण करो कि `मैं आनन्द स्वरूप हूँ' - यह मस्तक की चिन्दी हो गई। मुख द्वारा अर्थात् गले में भी आनन्द दिलाने की बातें हों - यह गले की माला हो गई। हाथों द्वारा अर्थात् कर्म में आनन्द स्वरूप की स्थिति हो - ये हाथों के कंगन हो गए। कानों द्वारा भी आनन्द स्वरूप बनने की बातें सुनते रहना, यह कानों का श्रृंगार है। पाँव द्वारा आनन्द स्वरूप बनाने की सेवा की तरफ पाँव हों अर्थात् कदम-कदम आनन्द स्वरूप बनने और बनाने को ही उठे यह पाँव का श्रृंगार है। अब एक सेट समझ लिया? पूरा ही सेट धारण कर लिया? ऐसे अलग-अलग समय पर अलग-अलग सेट धारण करो। सेट धारण करना तो आता है ना? या कानों का पहनेंगे तो गले का छोड़ देंगे। वैसे भी आजकल की दुनिया में सेट पहनने का रिवाज है। तो आपके इतने श्रेष्ठ श्रृंगार के सेट हैं! वह धारण क्यों नहीं करते हो? पहनते क्यों नहीं हो। इतनी सब भिन्न-भिन्न प्रकार की सुन्दर ड्रैसेज छोड़कर देह अभिमान के स्मृति की मिट्टी वाली ड्रेस क्यों पहनते हो?

अनोखा डै्रस कॉम्पीटीशन

आज ड्रैस और श्रृंगार की कॉम्पीटीशन देखी कि कौन-से बच्चे सारा दिन सजे-सजाये रहते हैं और कौन-से बच्चे ड्रैस बदलने और पहनने उतारने में ही लग जाते हैं। अभी-अभी एक ड्रैस धारण करेंगे और अभी-अभी वह ड्रैस उतारकर घटिया ड्रैस पहन लेंगे, ज्यादा समय श्रेष्ठ सुन्दर ड्रैस पहन ही नहीं सकते। तो क्या देखा? कोई-कोई बिल्कुल बदबू वाली ड्रेस भी पहन लेते हैं। कौन-सी बदबू? देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थो के लगाव की बदबू वाली ड्रैस जो दूर से ही बदबू आती थी। कोई गन्दे चमड़े की ड्रैस पहने हुए थे अर्थात् क्रिमिनल आई की, चमड़ी को देखने की, ऐसी गन्दी चमड़ी की ड्रैस भी पहने हुए थे। किसी की ड्रैस पर गन्दे दाग भी लगे हुए थे। गन्दे दाग अर्थात् औरों के अवगुण अर्थात् दाग को अपने में धारण करना। तो गन्दे-गन्दे दाग वाली ड्रैस भी थी। किसी की ड्रैस तो बहुत खराब खून के दागो की थी। वह क्यों थी? बारबार विकर्म करना अर्थात् आत्म-घात करना। आत्मा की श्रेष्ठ स्थिति का घात करना, ऐसी ड्रैस वाले भी थे। अब सोचो कहाँ सुन्दर टाइटल्स के स्थिति की ड्रैस और कहाँ ये गन्दी ड्रैस। श्रेष्ठ आत्माओं की ड्रैस भी श्रेष्ठ चाहिए। तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे सारा दिन उसी श्रेष्ठ ड्रैस में, श्रृंगार के सेट धारण करके सीट पर अच्छी तरह सेट थे और कोई बढ़िया ड्रैस धारण करते हुए भी, सामने होते हुए भी धारण करना चाहते हुए भी धारण कर नहीं सकते थे। तो अमृतवेले से श्रेष्ठ श्रृंगार का सेट धारण करो। जब श्रेष्ठ टाइटल्स की ड्रैस पहनेंगे, गुणों का श्रृंगार धारण करेंगे तो जैसे सतयुग में विश्व महाराजा व विश्व महारानी की राजाई ड्रैस के पीछे दास-दासियाँ ड्रैस को उठाते हैं, वैसे अब मायाजीत संगमयुगी स्वराज्य अधिकारीयों के टाइटल्स रूपी ड्रैस में स्थित होने के समय ये 5 तत्व, ये 5 विकार आपकी ड्रैस को पीछे उठायेंगे अर्थात् अधीन होकर चलेंगे।

तख्ते को छोड़ तख्त-नशीन हो जाओ

तो यह दृश्य अपना सामने लाओ कि कैसे मायाजीत के पीछे यह रावण के दस शीश, 10 सेवाधारी बन करके पीछे चलेंगे। लेकिन जब ड्रैस से टाइट होंगे और निरन्तर अर्थात् लम्बी-चौड़ी होगी तब वह 10 सर्वेन्ट आपके पीछे-पीछे उठाते आयेंगे। आजकल के राजे-रानियाँ भी यह चोगा बड़ा लम्बा-चौड़ा पहनते हैं जो उठा सवें। अगर निरन्तर की लम्बाई नहीं होगी, टाइटल्स में टाइट नहीं होंगे तो यही सेवाधारी ड्रैस उतार देंगे क्योंकि लूज़ होगी ना। तो अब दृढ़ संकल्प से टाइटल्स की ड्रैस को टाइट करो। दृढ़ संकल्प है बेल्ट। इससे टाइट करो तो सदा सेफ रहेंगे और सदा सेवाधारी अधीन रहेंगे। सुनाया था ना कि विकार परिवर्तन हो सहयोगी, सेवाधारी हो जायेंगे। अभी ड्रैस पहनना आ गया। टाइट करना भी आ गया। जिस समय जो ड्रैस चाहो वह पहनो। लेकिन गन्दी ड्रैस नहीं पहनना। वैराइटी ड्रैस और वैराइटी श्रृंगार का लाभ उठाओ। ब्रह्मा बाप व बापदादा ने संगम का दहेज दिया है, लव मैरेज की है तो दहेज भी मिलेगा ना। तो दहेज है यह वैराइटी श्रृंगार के सेट और सुन्दर ड्रैस। बाप-दादा का दहेज छोड़ के पुराना दहेज यूज़ नहीं करो। कई बच्चे ऐसे करते हैं जो बाप-दादा का दहेज भी जरूर लेंगे व लिया भी है लेकिन साथ में पुरानी ड्रैस भी छिपाकर रखी है। इसलिए कभी उसे भी धारण कर लेते हैं। जब पुराना लगाव लग जाता है तो पुरानी ड्रैस पहन लेते हैं। अमूल्य ड्रैस को छोड़ फटी-टूटी ड्रैस पहन लेते हैं तो ऐसे मत करना। अब तक भी छिपाकर रखा हो तो जला देना है। और जलाकर के राख भी अपने पास नहीं रखना। वह भी सागर में स्वाहा कर देना तो सदा सजे रहेंगे और बाप के साथ दिलतख्तनशीन रहेंगे। तख्त से उतरेंगे तो फाँसी तख्ता आ जायेगा। कभी लोभ का कभी मोह का। तो फाँसी के तख्ते को छोड़ तख्तनशीन हो जाओ। दहेज सम्भाला हुआ है ना। यूज़ करो। दहेज सिर्फ रख न दो। सिर्फ देखते रहो बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है। लेकिन धारण करो। और ड्रेस कॉम्पीटीशन में फर्स्ट नम्बर आ जाओ। सुनाया ना नम्बर है निरन्तर के ऊपर। ड्रेस पहननी तो सभी को आती है, लेकिन ड्रेस सदा टिप-टॉप रहे यह नहीं आता है। तो सदा सजे-सजायें का नम्बर है। कॉम्पीटीशन में फॉरेन वाले नम्बर वन लेंगे या भारत वाले लेंगे। जितना चाहें उतना ले सकते हैं। वहाँ तो प्राइज़ के कारण एक को ही फर्स्ट नम्बर मिलता। यहाँ तो बहुतों को फर्स्ट नम्बर बना सकते हैं, यहाँ अखुट खज़ाना है इसलिए जितने भी फर्स्ट आयेंगे उनको फर्स्ट प्राइज़ मिल जायेगी। अच्छा, कल से क्या करेंगे?

अमृतबेले से लेकर भिन्न-भिन्न ड्रेस और श्रृंगार के सेट से सज-धज कर सारा दिन बाप के साथ रहना। अमृतबेले से ही फर्स्ट नम्बर की ड्रेस पहनना। ऐसी सजी हुई सजनियों को ही साथ ले जायेंगे। औरों को नहीं। जो कॉम्पीटीशन में फर्स्ट नम्बर आयेंगे वे ही साथ रहेंगे और साथ चलेंगे। जो रहेंगे नहीं वह चलेंगे भी नहीं। तो सदा यह स्लोगन याद रखो अर्थात् यह तिलक लगाना - ``साथ रहेंगे साथ चलेंगे''। समझते हो ना कॉम्पीटीशन में कितना अच्छा लगता होगा। बाप, ब्रह्मा बाप को वतन में यह दिखाते रहते हैं। बच्चों की याद तो ब्रह्मा बाप को भी रहती है। तो बच्चों का हाल-चाल दिखाते रहते हैं।

ऐसी सदा सजी-सजाई मूर्त, संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन के महत्व को जानने वाली महान आत्मायें, दुश्मन को भी सेवाधारी बनाने वाले, सहयोगी बनाने वाले, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान, सदा बाप और आप, इस विचित्र युगल रूप में रहने वाले, ऐसी परम पूज्य और गायन योग्य आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

शिव जयन्ती महोत्सव धूम-धाम से मनाने के लिए अव्यक्त बाप-दादा का विशेष प्लैन

अभी सेवा के अच्छे चान्स आ रहे हैं। साकार और निराकार दोनों को प्रत्यक्ष करने का समय सपीप आ रहा है। इसमें क्या नवीनता करेंगे? हर फंक्शन में कोई-न-कोई नवीनता तो करते हो ना। तो इस शिवरात्रि पर विशेष क्या करेंगे?

 

1. जैसे पिछली बारी लाइट एण्ड साउण्ड का संकल्प रखा तो हरेक ने अपने-अपने स्थान पर यथाशक्ति किया। शिवरात्रि पर जैसे गीता के भगवान को सिद्ध करने का लक्ष्य रखते हो ना, लेकिन कटाक्ष करते हो तो लोगों को समझ में नहीं आता है। इसके लिए इस बार शिवरात्रि के दिन दो चित्रों को विशेष सजाओ - एक निराकार शिव का, दूसरा श्रीकृष्ण का। विशेष दोनों चित्रों को ऐसे सजाकर रखो जैसे किरणों का चित्र बनाते हो ना। शिव का भी किरणों वाला चित्र सजाया हुआ हो और श्रीकृष्ण का भी किरणों का चित्र सजाया हुआ हो। विशेष दोनों चित्रों की आकर्षण हो। कृष्ण के चित्र की महिमा अलग और शिव की महिमा अलग। कटाक्ष नहीं करो लेकिन दोनों के अन्तर को सिद्ध करो। स्टेज का विशेष शो यह दो चित्र हों। जैसे कोई भी कोन्फेरेंस आदि करते हो तो कोन्फेरेंस का सिम्बल सजाकर रखते हो, फिर उसका अनावरण कराते हो। ऐसे शिवरात्री पर कोई भी वी.आई.पी. द्वारा इन दोनों चित्रों का अनावरण कराओ और उन्हें थोड़े में पहले उसका अन्तर स्पष्ट कर सुनाओ। फिर सभा में भी इसी टॉपिक पर जिस समय शिव की महिमा करो तो भाषण के साथ-साथ चित्र भी रखो। भाषण करने वाले साथ-साथ चित्र दिखाते जाएँ। यह ये हैं - यह ये हैं। तो सभी का अटेन्शन जायेगा। पहले अन्तर सुनाकर फिर उनको कहो अब आप जज करो कि रचयिता कौन और रचता कौन? तो गीता का ज्ञान रचयिता ने दिया या रचना ने? तो इस शिवरात्रि पर इन दो विशेष चित्रों का महत्व रखो।

2. जैसे पिछली बारी लाइट एण्ड साउण्ड की टेप में कॉमेन्ट्री भरी हुई थी वैसे नहीं लेकिन प्रोग्राम के बीच में शिवबाबा का सजा हुआ लाइट का चित्र सामने लाओ और सामने रखते हुए सब लाइट बन्द कर दो, उस चित्र की लाइट ही हो फिर धीरे-धीरे डायरेक्ट उस समय बाप की महिमा करते जाओ। महिमा करते उनको भी महिमा में लेते चलो। महिमा सुनाते हुए अनुभव कराओ। शान्ति का सागर कहो तो शान्ति की लहर फैल जाए। जो भी गुण वर्णन करो उसकी लहर फैल जाए। उस समय सब लाइट बन्द होनी चाहिए। सिर्फ एक उस चित्र की तरफ सबका अटेन्शन हो। धीरे-धीरे ऐसे अनुभवी मूर्त होकर महिमा करो। जैसे साथ में लिए जा रहे हैं। शान्ति का सागर कहा तो जैसे उसी सागर में सब नहा रहे हैं, ऐसा अनुभव कराओ। जैसे योग की कॉमेन्ट्री करते हो धीरे-धीरे वैसे उनको लक्ष्य देकर उसी रीति से बिठाओ तो एक अटेन्शन जायेगा और दूसरा अन्तर का मालूम पड़ जायेगा। कट करने की जरूरत नहीं होगी। स्वत: ही सिद्ध हो जायेगा।

3. हर फंक्शन में योग शिविर के प्रोग्राम का एनाउन्स जरूर करो। चाहे एक दिन का फंक्शन करते हो लेकिन योग शिविर के फार्म जरूर भराओ। योग शिविर के फार्म का विशेष टेबल बना हुआ हो उसमें नज़दीक स्थान के लिए फार्म भराओ। तो जो पीछे योग शिविर करने आयेंगे वह सम्पर्क में आ जायेंगे। योग शिविर के फार्म भराकर पीछे भी उनका सम्पर्क बनाते रहो। कोई भी प्रोग्राम करो उसमें योग शिविर को विशेष महत्व दो।

4. जो भी चान्स मिलते हैं और जो भी सम्पर्क में आये हैं, या कोई विघ्नों के कारण भागन्ती हो चले गये हैं, उनको ऐसे मौके पर विशेष निमन्त्रण दो। जो अपनी कमज़ोरियों के कारण पीछे रह गये हैं उनको स्नेह से आगे बढ़ाना चाहिए। ऐसे प्रोग्राम से उनमें भी जागृति आयेगी। उमंग में आ जायेंगे।

सर्विसएबुल बच्चों के प्रति बाप-दादा के मधुर महावाक्य –

सर्विसएबुल बच्चों की महिमा तो बहुत महान है। क्योंकि बाप समान हैं ना। बाप भी बच्चों की सर्विस करने आते हैं और आप भी निमित्त हो तो समानता हो गई ना। समान वाले की महिमा होती है। समान वाला ही सदा साथ रह सकता है। समान नहीं होगा तो साथ भी नहीं होगा। `बाप समान अर्थात् सदा स्वमान में रहने वाले'। जैसे बाप अपने स्वमान को कभी भूलता है क्या? तो बाप समान अर्थात् सदा स्वमान में रहने वाले। ऐसे हो? सदा बाप और सेवा - यह दोनों ही ऐसे स्मृति में रहते हैं जैसे शरीर की स्मृति स्वत: ही रहती है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन स्वत: याद रहती है। ऐसे बाप की याद और सेवा भी स्वत: याद रहे। अगर आप भी मेहनत करके याद में रहो तो औरों को सहजयोगी कैसे बनायेंगे। सर्विसएबुल बच्चों की क्वालिफिकेशन है ही - `सहजयोगी', स्वतः योगी।

बेबी नहीं, बीबी

अभी समय के प्रमाण मेहनत समाप्त होनी चाहिए। अगर अभी भी मेहनत का अनुभव हो या क्यों, क्या का क्वेश्चन हो तो अपनी ड्यूटी को बजा नहीं सकते हो। क्यों, क्या करना अर्थात् क्यू में खड़ा होना। अगर स्वयं ही क्यू में होंगे तो औरों को तृप्त आत्मा कैसे बना सकेंगे। खुद ही लेने वाले होंगे तो दाता कैसे बनेंगे? सेवाधारी अर्थात् देते जाओ और साथ में लेते जाओ। जो स्वयं ही क्यों, क्या वाले हैं वह तो भिखारी के मुआफिक माँगने वाले होंगे। शक्ति देना, सहयोग देना, मैं यह कार्य कर रही हूँ, आप सफलता देना, यह अर्जा भी रॉयल भिखारीपन है। जो स्वयं भिखारियों की क्यू में होंगे वह औरों को दाता बनकर कैसे दे सकेंगे! अब बचपन खत्म हुआ। बचपन में सब छूट थी, रोना भी छूट, फीलिंग भी छूट, संकल्पों की भी छूट मिल गई, लेकिन अभी नहीं। अभी तो वानप्रस्थ तक पहुँच गये हो ना। बचपन की बातें वानप्रस्थ में नहीं रहती। इसमें क्यों, क्या नहीं। क्यों, क्या करने वाले अर्थात् बेबी क्वालिटी। जो बेबी होंगे वह बीबी नहीं बनेंगे। अब तो मियाँ और बीबी का सौदा है। अभी बेबीपन खत्म हुआ। बाप-समान बन गये तो बीबी और मियाँ बन गये। छोटे बच्चे को समान नहीं कहेंगे। जब बच्चा बड़ा बन जाता है या बाप बन जाता है तब समान कहा जाता है। तो अभी बेबी क्वालिटी खत्म।

सब-कुछ अपना है या कुछ अपना नहीं

संस्कार मिलते नहीं, यह भी संकल्प न आये। मिलाने ही हैं। मिलते नहीं, यह कौन बोलता है? यह बदलता नहीं, सुनता नहीं, यह ना-ना या नहीं-नहीं की भाषा किसकी है? अब तो होना ही है। हाँ जी। `ना' शब्द समाप्त। तो सभी हाँहाँ वाले हो ना। अभी बेहद के बनो, हद को छोड़ो। सुनाया था ना, कोई जोन का भी हेड है तो यह भी हद हुई। नक्शे के अन्दर देखो आपका जोन क्या है? बिन्दी। तो हद हो गई ना। अभी फलाने स्थान के हैं, यह भी नहीं। फलाने स्थान पर ही ठीक हैं, यह भी नहीं। बेहद के मालिक बनना है या एक स्थान का? ऐसा नहीं, थोड़ा-सा स्थान परिवर्तन हो तो स्थिति परिवर्तन हो जाए। अभी भेजेंगे यहाँ वहाँ, तैयार हो? फॉरेन भेजें या किसी भी स्थान पर भेजें लेकिन एवररेडी। देश में भेजें या विदेश में। जब जाना होता है तो शक्ति आपे ही मिल जाती है। तो कल से सभी को चेन्ज करें? अच्छा - नई बुलेटिन निकालें फिर नहीं कहना अभी तैयार होने के लिए एक साल और दो, सिर्फ 4 मास दो, दो मास दो, ऐसे तो नहीं कहेंगे ना । हिम्मत है? अपना है ही क्या। अगर अपना है तो सब, अपना है, नहीं तो कुछ अपना नहीं। जो बाप का वह अपना। बाप का बेहद है आपका भी बेहद। सब हमारे हैं, इसको कहते हैं बेहद। सभी बच्चों को सदा विशेष सहयोग देते ही रहते हैं क्योंकि जो सेवा में निमित्त बने हुए हैं तो विशेष सेवाधारियों को विशेष सहयोग सदा प्राप्त होता ही है। विशेष कार्य वाले तो पहले याद आयेंगे ना। लौकिक रीति से भी कोई हिस्ट्री को याद करो तो हिस्ट्री में भी कौन पहले आता है? जो विशेष होगा वही याद आयेगा ना। संगमयुग की हिस्ट्री में भी जो जितना विशेष सेवाधारी हैं वह विशेष आत्मा है। तो बाप-दादा जब भी याद करेंगे तो पहले-पहले वह स्वत: ही याद आयेंगे। याद करो, यह कहने की जरूरत ही नहीं। सिर्फ विशेष याद का रिटर्न लेने वाले बनो। बाप सबको याद का रिटर्न देते हैं लेकिन लेने वाले कभी-कभी अलबेलेपन के कारण लेते नहीं है। बाप के पास जो भी है, वह देने के लिए हैं, तो बाप सबको देते हैं, लेने वाले नम्बरवार हैं।


14-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"रूहानी सेनानियों से रूहानी कमाण्डर की मुलाकात"

आज विशेष कौन-सा संगठन है? इस संगठन को, अपने डबल सेवाधारी बच्चों को, जो हरेक डबल सेवाधारी वा डबल नॉलेंजफुल हैं, ऐसे ग्रुप को देख आज वतन में एक विशेष संवाद चला –

ब्रह्मा बाप बोले - `ये विशेष मेरी भुजायें हैं।' शिव बाप बोले - `यह मेरी रूद्र माला है'। रूद्र माला में विशेष मणके हैं। ऐसी चिटचैट चलते हुए शिवबाबा ने पूछा ब्रह्मा बाप से कि आप की यह सब भुजायें राइट हैण्डस हैं या लेफ्ट हैण्डस भी हैं। राइट हैण्ड अर्थात् सदा समान, स्वच्छ और सत्यवादी। तो सब राइट हैण्डस हैं? तो ब्रह्मा बाप मुस्कराये, और मुस्कराते हुए बोले कि हरेक का पोतामेल तो आपके पास है ही। जब पोतामेल देखने की बात आई, हरेक बच्चे का पोतामेल सामने इमर्ज हुआ। कैसे इमर्ज हुआ? एक घड़ी के रूप में। जिसमें हरेक की चार सबजेक्ट्स के चार भाग थे। जैसे यहाँ सृष्टि चक्र का चित्र बनाते हो। हर भाग में अलग-अलग काँटे लगे हुए थे जो हरेक के चारों ही सबजेक्ट्स की परसेन्टेज बता रहे थे। सबके पोतामेल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। पोतामेल देखते हुए बाप-दादा आपस में बोले - समय की घड़ी और बच्चों के पुरूषार्थ की घड़ी दोनों को देखते हुए क्या दिखाई दिया। समय की घड़ी फास्ट है और बच्चों के पुरूषार्थ की घड़ी मैजॉरटी की दो भाग अर्थात् दो सबजेक्ट्स की रिजल्ट 75% फिर भी ठीक थी। लेकिन दो सबजेक्ट्स के परसेन्टेज की रिजल्ट बहुत कम थी। तो बाप-दादा बोले - इस रिजल्ट के प्रमाण एवररेडी ग्रुप कहेंगे। जैसे विनाश का बटन दबाने की देरी है, सेकण्ड की बाजी पर बात बनी हुई है, ऐसे स्थापना के निमित्त बने हुए बच्चे एक सेकण्ड में तैयार हो जाएँ ऐसा स्मृति का समर्थ बटन तैयार है? जो संकल्प किया और अशरीरी हुए। संकल्प किया और सर्व के विश्व-कल्याणकारी ऊँची स्टेज पर स्थित हो गए और उसी स्टेज पर स्थित हो साक्षी दृष्टा हो विनाश लीला देख सकें। देह के सर्व आकर्षण अर्थात् सम्बन्ध, पदार्थ, संस्कार इन सबकी आकर्षण से परे, प्रकृति की हलचल की आकर्षण से परे, फरिश्ता बन ऊपर की स्टेज पर स्थित हो शान्ति और शक्ति की किरणें सर्व आत्माओं के प्रति दे सकें - ऐसे स्मृति का समर्थ बटन तैयार है? जब दोनों  बटन तैयार हों तब तो समाप्ति हो। इस ग्रुप को देखकर वतन में पोतामेल इमर्ज हुआ। जैसे बाहुबल वाली सेना में भी वैराइटी प्रकार के सैनिक होते हैं। कोई बॉर्डर पर जाने वाले, युद्ध के मैदान पर जाने वाले अर्थात् डायरेक्ट वार करने वाले और दूसरे उनकी पालना करने वाले पीछे होते हैं। डायरेक्टर तो बैकबोन होते हैं। ऐसे ही यह जो ग्रुप है वह मैदान पर सेवा करने वाला ग्रुप है। मैदान में आने वाली सेना के आधार पर ही विजय अथवा हार की बात होती है। अगर मैदान में आने वाले कमज़ोर, शस्त्रहीन, डरपोक होते हैं तो कभी भी डायरेक्टर की विजय नहीं हो सकती हैं। विश्व-कल्याण के मैदान पर यह सेवाधारी ग्रुप है। यह ग्रुप बहादुर है। सामना करने की शक्ति अर्थात् अनुभव कराने की शक्ति, सभी को श्रेष्ठ चरित्र द्वारा बाप-दादा का चित्र दिखाने की शक्ति - ऐसे शस्त्रधारी हैं? क्या समझते हो - ऐसे शक्ति स्वरूप ग्रुप है? चारों ही सबजेक्ट्स के चारों ही अलंकारधारी हों? दो भुजा वाले शक्ति स्वरूप हो या चार भुजा वाले हो? यह चार अलंकार चार सबजेक्ट्स की निशानी हैं। तो सभी अलंकार धारण किए हैं? या किसी ने दो धारण किए हैं, किसी ने तीन किये हैं या एक धारण करते हैं तो दूसरा छूट जाता हैं? तो इस ग्रुप का महत्व समझा।

 

श्रीमत का काँटा ठीक तो तराज़ू के दोनों पलड़े बराबर रहेंगे

सेवा के मैदान पर आने वाला ग्रुप है अर्थात् विजय के आधारमूर्त ग्रुप है। आधारमूर्त, मजबूत हो ना? आधार हिलने वाले तो नहीं हैं ना। जैसे ज्ञान और सेवा इन दो सबजेक्ट्स के ऊपर रिजल्ट 75% देखी। वैसे याद और धारणा इन दो सबजेक्ट्स पर भी ज्यादा अटेन्शन दे चारों ही अलंकारधारी बनो, नहीं तो सृष्टि की आत्माओं को सम्पूर्ण साक्षात्कार करा नहीं सकेंगे। इसलिए इन दो अलंकारों को धारण करने के लिए विशेष क्या अटेन्शन रखेंगे, डबल सेवाधारी हो? लौकिक और ईश्वरीय। शरीर निर्वाह अर्थ और आत्म निर्वाह अर्थ डबल सेवा मिली हुई है। और दोनों ही सेवा बाप-दादा के डायरेक्शन प्रमाण मिली हुई हैं, लेकिन दोनों ही सेवाओं में समय का, शक्तियों का समान अटेन्शन देते हो? तराज़ू के दोनों तरफ समान रखते हो? काँटा ठीक रखते हो कि बिना काँटे के तराज़ू रखते हो? काँटा है - `श्रीमत'। अगर श्रीमत का काँटा ठीक है तो दोनों साइड समान होंगी। अर्थात् तराज़ू का बैलेन्स ठीक होगा। अगर काँटा ही ठीक नहीं है तो बैलेन्स रह नहीं सकता। कोई-कोई बच्चे एक तरफ का वजन ज्यादा रखते हैं। कैसे? लौकिक ज़िम्मेवारियाँ निभानी ही हैं, ऐसे समझते हैं और ईश्वरीय ज़िम्मेवारीयाँ निभानी तो हैं, ऐसे कहते हैं। वह निभानी ही हैं और वह निभानी तो है। इसलिए एक तरफ का वजन ज्यादा हो जाता है और रिजल्ट क्या होती है? बोझ उनको ही नीचे ले आता है। ऊपर नहीं उठ सकते। बोझ वाला साइड सदा नीचे धरती पर लग जाता है और हल्का ऊपर उठ जाता है। और समान वाला भी ऊँचा उठता, नीचे धरती पर नहीं लगेगा। धरती पर लगने के कारण धरती के आकर्षण वश हो जाते हैं। बोझ के कारण ईश्वरीय सेवा के मैदान पर हल्के होकर सदा सफलता मूर्त नहीं बन सकते। कर्म बन्धन के, लोकलाज के बोझ नीचे ले आते हैं। जिस लोक को छोड़ चुके उस लोक की लाज रखते हैं और जिस संगमयुग वा संगम लोक के बन चुके, उस लोक की लाज रखना भूल जाते हैं। जो लोक भस्म होने वाला है उस लोक की लाज सदा स्मृति में रखते और जो लोक अविनाशी है और इसी लोक से भविष्य लोक बनना है उस लोक की स्मृति दिलाते भी कभी-कभी स्मृति स्वरूप बनते हैं। गृहस्थ व्यवहार और ईश्वरीय व्यवहार दोनों में समानता रखना अर्थात् सदा दोनों में हल्के और सफल होना।

गृहस्थ व्यवहार नहीं, ट्रस्ट व्यवहार

वास्तव में गृहस्थ व्यवहार शब्द चेन्ज करो। गृहस्थ शब्द बोलते ही गृहस्थी बन जाते हो। इसलिए गृहस्थी नहीं हो, ट्रस्टी हो। गृहस्थ व्यवहार नहीं, ट्रस्ट व्यवहार है। गृहस्थी बनते हैं तो क्या करते हैं? गृहस्थियों का कौन-सा खेल है? गृहस्थी बनते हो तो बहाने बाजी बहुत करते हो। ऐसे और वैसे की भाषा बहुत बोलते हो। ऐसे हैं ना, वैसे हैं ना। बात को भी बढ़ाने लग जाते हैं। यह तो आप जानते हो करना ही पड़ेगा, यह तो ऐसे ही है, वैसे ही है - यह पाठ बाप को भी पढ़ाने लग जाते हो। ट्रस्टी बन जाओ तो बहाने बाजी खत्म हो चढ़ती कला की बाजी शुरू हो जायेगी। तो आज से अपने को गृहस्थ व्यवहार वाले नहीं समझना। ट्रस्ट व्यवहार है। जिम्मेवार और है, निमित्त आप हो। जब ऐसे संकल्प में परिवर्तन करेंगे तो बोल और कर्म में परिवर्तन हो ही जाएगा। तो यही ग्रुप एक-एक बहुत कमाल कर सकते हैं। कर्मयोगी, सहजयोगी का हरेक सैम्पल अनेक आत्माओं को श्रेष्ठ सौदा करने के निमित्त बना सकते हैं। और जो भी हद के गुरू होते हैं उनका एक गद्दी नशीन शिष्य अपने गुरू का नाम बाला करता हैं और यहाँ सतगुरू के इतने सब तख्त नशीन बच्चे हो - एक-एक बच्चा कितना श्रेष्ठ कार्य कर सकते हैं!

 

बाप-दादा सभी बच्चों को ऐसे सर्विसएबुल, विश्व में नाम बाला करने वाले विश्व-कल्याणकारी बच्चा समझते हैं। जब एक दीपक दीप माला बना देता है तो आप एक-एक दीपक सारे विश्व में दीपावली कर देंगे। समझा –

इस ग्रुप को क्या करना है। वैराइटी ग्रुप को वैराइटी वर्ग वाली आत्माओं के सेवाधारी बन सर्व की सद्गति वा श्रेष्ठ जीवन बनाने का आधारमूर्त बनना है। जैसे डबल विदेशी हैं वैसे यह डबल नॉलेजफुल हैं, डबल सर्विसएबुल हैं। रिजल्ट भी डबल निकालनी है।

ऐसे सदा सर्व बन्धन-मुक्त, सदा जीवनमुक्त, विश्व शो केस के विशेष शो पीस, विश्व-परिवर्तन करने के आधार मूर्त, सदा श्रीमत के आधार पर स्व-उद्धार और विश्व-उद्धार करने वाले, ऐसे सदा विश्व-सेवाधारियों को, बेहद के सेवाधारि यों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 “अलग-अलग ग्रुप से अव्यक्त बाप-दादा की मधुर मुलाकात

डॉक्टर्स के प्रति - डबल डॉक्टर्स ग्रुप हैं ना। जैसे सभी डॉक्टर्स अपने हद की डॉक्टरी के स्पेशालिस्ट होते हैं वैसे रूहानी डॉक्टरी में विशेष किस सेवा के निमित्त बने हुए हो? जैसे हद की डॉक्टरी में कोई आँखों का, कोई विशेष गले का, कोई सर्जन, कोई सिर्फ दवाईयाँ देने वाला होता है। तो इस रूहानी डॉक्टरी में क्या विशेषतायें हैं? एक सेकेण्ड में किसी के पुराने संस्कार रूपी बीमारी को नयनों की दृष्टि द्वारा समाप्त कर दें अर्थात् उस समय उस बीमारी से उसको भुला दें, ऐसी विशेषता वाले डॉक्टर्स हो? जैसे वह आँखें ठीक कर देते हो, ऐसे अपनी दृष्टि द्वारा किसी के पुराने संस्कार को पहले दवा दें फिर समाप्त करा दें, उस समय शान्त कर दें, ऐसी विशेषता वाले डॉक्टर्स हो। यह हुआ आँखों का डॉक्टर जो दृष्टि से परिवर्तन कर दें। जैसे डॉक्टर गोली देकर थोड़े समय के लिए दर्द को दबा देते हैं ऐसे आँखों के डॉक्टर हो जो दृष्टि से उसको सन्तुष्ट कर दो। हद के नहीं, रूहानी। रूहानी आँखों के डॉक्टर अर्थात् रूहानी दृष्टि से शफा देने वाले।

2. ऑपरेशन वाले डॉक्टर, जैसे वह औजारों से ऑपरेशन करते हो वैसे अपने में जो शक्तियाँ हैं, यह शक्तियाँ ही यन्त्र हो जायें, जिन यन्त्रों द्वारा उनकी कमज़ोरियाँ समाप्त हो जायेंगी। जैसे अपने ही थियेटर के यन्त्रों द्वारा ऑपरेशन करते हो, पेशेन्ट के यन्त्र तो नहीं यूज़ करते हो ना, ऐसे अपनी शक्तियों के यन्त्र द्वारा बीमारी को ठीक कर दो, कामी को निष्कामी और क्रोधी को निक्रोधी बना दो। इसके लिए सहनशक्ति का यन्त्र यूज़ करना पड़े। तो ऐसे ऑपरेशन वाले डॉक्टर हो? जैसे उसमें आँख, नाक सबके अलग-अलग स्पेशालिस्ट होते हैं ऐसे यहाँ भी अलग-अलग विशेषतायें हैं। यहाँ भी जितनी कोई डिग्री लेना चाहे तो ले सकता है। जो सर्व विशेषताओं में ऑलराउन्डर हो जाते हैं वे नामीग्रामी हो जाते हैं।

डॉक्टर्स तो बहुत सेवा कर सकते हैं - क्यों? क्योंकि पेशेन्ट उस समय बिल्कुल भिखारी के रूप में आते हैं। अगर उस समय डाक्टर उन्हें झूठी दवाई भी दे देते, पानी भी दे देते तो भी भावना के कारण वह ठीक हो जाते हैं। उन्हें खुशी की खुराक मिल जाती, जिससे वह ठीक हो जाते, दवाई से ठीक नहीं होते, खुशी से ठीक हो जाते। तो डॉक्टर्स के पास भिखारी के रूप में आते हैं, दो घड़ी के लिए भी दर्द मिटाओ, उन्हें आप उस समय क्या भी सुनाओ तो सुनने के लिए तैयार हो जाते हैं। तो जैसे इन्जेक्शन लगाकर सेकेण्ड में उसके दर्द की सुधबुध भुला देते हो, ऐसे ज्ञान का इंजेक्शन भी लगाओ जो पुराने संस्कारों की सुधबुध भूल जाएँ। ऐसा इन्जेक्शन आप सबके पास है ना? जो पहले अपने को इन्जेक्शन लगाकर संस्कारों को भूला सकते हैं, वह अनुभव के आधार से औरों को भी लगा सकेंगे। तो डबल डॉक्टर्स की कोई तो विशेषता होनी चाहिए ना! अभी कोई भी आयेगा तो आपके पास भेजेंगे, ऐसे नहीं केस वापस चला जाए। बहुत अच्छा चान्स है सेवा में आगे बढ़ने का। डॉक्टर्स तो एक दिन में काफी प्रजा बना सकते हैं, रोज प्रजा बनी-बनाई आपके पास आती है, ढूँढने नहीं जाना पड़ता है। वैसे मेले प्रदर्शनी में कितना खर्चा करके बुलाते हैं, आपको तो बहुत सहज है। जितनों को सम्पर्क में लायेंगे उतनी प्रजा बनती जायेगी। अगर सम्बन्ध में लाया तो बच्चे भी बन सकते हैं। कोई-कोई अच्छा- अच्छा कहकर चले भी जायेंगे लेकिन वह अन्त में हलचल के समय इच्छुक होकर महसूसता शक्ति के साथ-साथ आयेंगे। इसलिए सेवा करते रहना चाहिए। फिर भी आपको इष्ट मानेंगे जरूर। और कुछ नहीं तो कम-से-कम आपके भक्त तो बन जायेंगे। अगर अन्त में यह भी कहा कि इन्होंने संदेश अच्छा दिया, संदेशी थे, पैगम्बर थे, यह भी सोचा तो भक्त बन जायेंगे। लास्ट स्टेज भक्त है, वह भी तो चाहिए।

अभी जो आते हैं वह 7 दिन के कोर्स से, अपनी हिम्मत से चलने वाले कम हैं, लास्ट पूर है ना। लास्ट पूर में ताकत नहीं होती। इसलिए अभी की आत्माओं को स्वयं के शक्तियों के सहयोग द्वारा आगे बढ़ाने का समय है। आपके भेंट में अभी की आत्मायें टू लेट हो गई, क्योंकि लास्ट पूर हो गया इसलिए स्वयं का हुल्लास देकर उनको चलाना है। आपको महादानी, वरदानी बनना पड़े। वह अपने आधार पर नही चल सकते। तो ऐसा पावरफुल यंत्र निकालो जो एक सेकेण्ड में अनुभव कराने वाला हो। अब अपने हमजिन्स की संख्या को बढ़ाओ। अभी ऐसा इन्जेक्शन तैयार करो जो लगाओ और सुधबुध भूल जाए। उस दुनिया से बेहोश हो इस दुनिया में आ जाए। ऐसा इन्जेक्शन तैयार करना पड़े। अब देखेंगे 80 के वर्ष में अपनी संख्या कितनी बढ़ाते हो। कम-से-कम आपके हमजिन्स उलाहना तो न दें कि हमको बताया ही नहीं, अगर हम नहीं जागते थे तो जगाना तो फर्ज था, यह भी उलाहना देंगे। एक बार निमंत्रण दे दिया, पर्चा भेज दिया तो कैसे जागेंगे? जो कुम्भकरण की नींद में सोया हुआ हो उसे एक बार आवाज दे दो - , जाग जाओ, तो कैसे जागेगा? इसलिए बार-बार जगाना पड़े।

इन्जीनियर्स - इन्जीनियर अर्थात् प्लैनिंग बुद्धि। इन्जीनियर सदा प्लैन सेट कर कार्य को आगे बढ़ाते हैं। तो इन्जीनियर ग्रुप अर्थात् रूहानी प्लैनिंग बुद्धि ग्रुप, ऐसे हो? इस रूहानी सेवा में भी प्लैनिंग बुद्धि बन सेवा का प्लैन बनाते हो? नया प्लैन बनाते हो या बने हुए प्लैन को प्रैक्टिकल में लाते हो? प्लैनिंग बुद्धि तो प्लैन बनाने के बिना रह न सकें। जिसका जो काम होता वह न चाहते भी उसी कार्य में सदा बिजी रहते हैं। तो सदा जैसे उस डिपार्टमेंट का अटेन्शन रहता है ना - क्या करें, कैसे करें, कैसे सफल बनायें, किस विधि से वृद्धि करें, यही इन्जीनियर्स का काम है ना तो रूहानी इन्जीनियर्स को ईश्वरीय सेवा की विधि पूर्वक वृद्धि कैसे हो - उसका प्लैन बनाना पड़े। अगर सभी अपना नया प्लैन तैयार करें तो इतने सारे प्लैन से नई दुनिया तो जल्दी ही आ जायेगी। अभी ऐसा प्लैन बनाओ जो कम खर्च और अधिक सफलता वाला हो। जैसे सेक्रीन की एक भी बूँद बहुत काम करती है ऐसे ही प्लैन पावरफुल हो लेकिन एकॉनामी वाला हो। आजकल के समय अनुसार एकॉनामी भी चाहिए और पॉवरफुल भी चाहिए। रूहानी गर्वन्मेंट के इन्जीनियर्स ऐसा प्लैन तैयार करो। जैसे आजकल एक इन्डस्ट्री के द्वारा अनेकों को काम देने का प्लैन सोचते हैं तो यहाँ भी प्लैन एकानामी का हो, सन्देश अनेकों को मिल जाए। जैसे वहाँ सोचते हैं कि अनेकों को रोजी मिल जाए तो यहाँ भी अनेकों को सन्देश मिल जाए। यहाँ इन्जीनियर्स बहुत चाहिए। क्योंकि सतयुग में इन्जीनियर्स कम समय में और सुन्दर चीजें तैयार करेंगे तो यहाँ से ही संस्कार चाहिए ना। तब तो ऐसा प्लैन बनायेंगे। आप राजा बनेंगे तो भी बनवायेंगे तो ना। आइडिया देंगे। तो नई दुनिया का प्लैन बनाने के लिए और सेवा की सफलता पाने के लिए भी इन्जीनियर्स चाहिए। तो आपका कितना महत्व है। ऐसा महत्व समझते हुए चलते हो? हरेक को समझना चाहिए मुझे सफलता का सबूत देना है। हरेक नया प्लैन बनाकर पहले अपने-अपने जोन में प्रैक्टिकल में लाओ फिर सारा विश्व आपको कॉपी करे। प्लैन पास न होने का कारण होता है कि एकॉनामी नहीं होती, अगर एकॉनामी और सफलता का प्लैन हो तो सभी पास करेंगे। तो 60 इन्जीनियर्स अगर 60 प्लैन निकाले तो 80 में ही समाप्ति हो जाए। तो 80 में समाप्ति करेंगे या आगे। हलचल तो शुरू करो जो सभी क्यू में आ जाएँ। समाप्ति भी एक सेकण्ड में नहीं होगी, धीरे-धीरे परिवर्तन होगा। लेकन शुरू हो जाए और सबके दिल से यह आवाज निकले कि अब नई दुनिया आने वाली है। जैसे साइन्स वालों ने चन्द्रमा पर जाकर थोड़ी झलक दिखाई तो सबने प्लॉट खरीदने की तैयारी शुरू कर दी, तो कम से कम साईलेन्स की शक्ति वाले नई दुनिया में प्लाट खरीदने की तैयारी तो करा दो। बुकिंग तो करा लें। जैसे साइन्स की कोई भी इन्वेन्शन पहले प्रयोगशाला में लाकर अनाउन्स करते हैं, ऐसे आप लोग भी पहले अपनी एरिया की प्रयोगशाला में प्लैन का प्रयोग करो। फिर सब मानेंगे। प्लैन की प्रैक्टिकल सफलता निकले। जो प्रदर्शनी वा मेला देख चुके उनके लिए अब नया प्लैन चाहिए। नई आकर्षण चाहिए। तो प्लैनिंग बुद्धि प्लैन निकालो। ड्रामा अनुसार जो विशेषता मिली हुई है, उस विशेषता को कार्य में लगाना अर्थात् विशेष लॉटरी लेना।

नये-नये साधन बनाने का प्लैन निकालो, कॉपी में नहीं, प्रैक्टिकल में। वहाँ के तो कागज पर ही रह जाते हैं। लेकिन यह प्रैक्टिकल के प्लैन हों।



16-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"ऑलमाइटी अथॉरिटी राज (योगी) सभा व लोक (पसन्द) सभा"

आज सारे कल्प के अन्दर सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मणों की व राजयोगी सभा देख रहे हैं। एक तरफ है आजकल के अल्प काल के राज्य की राज्य सभा व लोक सभा। दूसरी तरफ है आलमाइटी अथॉरिटी द्वारा बनी हुई राजयोगी सभा, लोक पसन्द सभा। दोनों ही सभायें अपना-अपना कार्य कर रही हैं। हद की लोकसभा हद के लॉ एण्ड आर्डर बनाती है और लोक पसन्द ब्राह्मण सभा अविनाशी लॉ एण्ड आर्डर का राज्य बना रहे हैं। जैसे उस लोक सभा व राज्य सभा में नेतायें अपनी-अपनी अल्प बुद्धि और अल्पकाल के भिन्न-भिन्न विचार निकालते हैं वैसे ब्राह्मणों की राज्य सभा व राजयोगी सभा विश्व-कल्याण के भिन्न-भिन्न विचार निकालती रहती है। वह है स्वार्थ अर्थ और यह है विश्वकल्याण अर्थ। इसलिए ही लोक-पसन्द बनते हो। स्वार्थ है तो मन पसन्द कहेंगे और विश्व कल्याणार्थ विचार हैं तो लोक-पसन्द व प्रभुपसन्द हो जाते। कोई भी संकल्प व विचार करते हो तो पहले यह चैक करो कि यह विचार व संकल्प बाप पसन्द हैं व प्रभु-पसन्द हैं? जिससे अति स्नेह होता है तो उसकी पसन्दी सो अपनी पसन्दी होती है। जो बाप की पसन्दी वह आपकी पसन्दी और जो बाप पसन्द हो गये वह लोक पसन्द स्वत: ही बन जाते हैं। क्योंकि सारे विश्व व लोक को, जानते हुए व न जानते हुए, देखते हुए व न देखते हुए सबसे ज्यादा पसन्द कौन है? धर्मपितायें अपने धर्म की आत्माओं के प्रिय हैं लेकिन धर्म पिताओं का भी प्रिय एक ही बाप परमपिता है। इसलिए सबके मुख से समय प्रति समय भिन्न-भिन्न भाषा में एक बाप की ही पुकार निकलती है। तो जो बाप लोक पसन्द है उसको जो पसन्द होगा वह स्वत: ही लोक पसन्द हो गये। जो बाप को पसन्द वह लोक पसन्द स्वत: हो गया। अपने आप से पूछो कि मुझे लोक पसन्द सभा की टिकट मिल गई है? बाप ने चुन लिया है। अगर बाप के बने हैं, बाप ने तो स्वीकार कर लिया फिर भी बाप भी हर रोज नम्बरवार कहते हैं। कहाँ 8 की माला का पहला नम्बर और कहाँ 16 हजार की माला का लास्ट नम्बर। बच्चे तो दोनों बने लेकिन अन्तर कितना हुआ! इतना अन्तर क्यों हुआ? उसका मूल कारण?

एक बाप के बच्चे होते भी इतना अन्तर क्यों?

एक हैं विश्व-कल्याण का कार्य करने वाले और दूसरे हैं कार्य करने वालों की और कार्य की महिमा करने वाले, पहले हैं महिमा योग्य बनने वाले। एक हैं करना है, दूसरे हैं करना चाहिए, होना चाहिए, बनना चाहिए। इसलिए एक बाप के बच्चे बनकर भी कितना अन्तर रह जाता है। `चाहिए' को `है' में बदलना है। जो सदा `है, है' करता है वह हाय-हाय से छूट जाता। `चाहिए' वाले कभी बहुत उमंग में नाचते रहेंगे, कभी विघ्न में हाय-हाय करते रहेंगे। वह लोक पसन्द सभा के मेम्बर नहीं हैं। जैसे वहाँ पार्टी के मेम्बर बहुत होते हैं लेकिन सभा के मेम्बर थोड़े होते हैं। यहाँ भी ब्राह्मण परिवार के मेम्बर जरूर हैं लेकिन लोक पसन्द सभा के मेम्बर अर्थात् लॉ एण्ड आर्डर का राज्य अधिकार लेने वाले अधिकारी आत्मायें, उस लिस्ट में नहीं आयेंगे। वह हैं राज्य गद्दी के अधिकाराr और वह हैं राज्य में आने के अधिकारी। 16 हजार की माला में, राज्य में आने के अधिकारी, लेकिन राज्य सिंहासन के अधिकारी नहीं। तो लोक पसन्द सभा की टिकट बुक कर लो तो राज्य सिंहासन स्वत: ही प्राप्त होगा।

आज बाप-दादा अपने सर्व महान तीर्थो के चक्कर पर निकले। अब के सेवाकेन्द्र भक्ति में तीर्थ स्थान के रूप में पूजे जायेंगे। तो सभी तीर्थ स्थानों का सैर करते गंगा-जमुना-सरस्वती-गोदावरी सबको देखा, सब ज्ञान-नदियाँ अपनी- अपनी सेवा में लगी हुई थी। कहीं थोड़े बहुत वारिस देखे और कही कुछ थोड़े होवनहार वारिस भी देखे। कहाँ रायल फैमिली के अति समीप राज्य कारोबार चलाने वाले देखे। वह राज्य का हुक्म देने वाले, वह राज्य कारोबार चलाने वाले। यह मैजॉरिटी देखी। क्योंकि आजकल बापदादा चारों ओर के बच्चों की अलग- अलग प्रकार की चेकिंग और रिजल्ट देख रहे हैं। आखिर रिजल्ट अनाउन्स तो होना है ना। तो आजकल सबके पेपर्स चेक कर रहे हैं। आज बाप-दादा हरेक बच्चे के विशेष प्यूरिटी की सबजेक्ट का पेपर चेक कर रहे थे इसलिए विशेष चक्र लगाने भी गये कि हरेक ब्राह्मण बच्चे की प्यूरिटी का प्रकाश कहाँ तक विस्तार में जा रहा है अर्थात् सेवा स्थान पर हर आत्मा की प्यूरिटी का वायब्रेशन कहाँ तक पड़ता है। प्यूरिटी की परसेन्टेज छोटे बल्ब के समान है या बड़े बल्ब के समान है या सर्चलाइट के समान है, या लाइट हाउस के समान है। प्यूरिटी की पावर्स कहाँ तक वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकती हैं - इस रिजल्ट को देखने के लिए सर्व तीर्थ स्थानों का सैर किया। तीर्थ स्थान का महत्व निमित्त बने हुए सेवाधारी सत्य तीर्थ पर है। जितना निमित्त सेवाधारी का प्रभाव होगा उतना ही चारों ओर के वायब्रेशन्स और वायुमण्डल होगा। 18 जनवरी को सबके पेपर्स की रिजल्ट सुनायेंगे। बापदादा की आज की दिनचर्या यह थी - प्यूरिटी के पेपर चेक करना। ऐसे हर स्थान की रिजल्ट देखी। आदि से लेकर अब तक प्यूरिटी का पोतामेल क्या रहा, संकल्प से लेकर स्वप्न तक सारी चैकिंग की। बापदादा अपने सहयोगीयों को जब चाहें तब इमर्ज कर लेते हैं। ट्रिब्युनल भी गाई हुई तो है। लास्ट में होगी सहयोगियों की ट्रिब्युनल। अभी तो मुरबी बच्चों व सहयोगी बच्चों के रूप में इमर्ज करते हैं। क्यों करते हैं? बापदादा भी छोटी-छोटी सभायें करते हैं ना। जैसे आप लोग कभी जोन हेड्स की मीटिंग करते हो ना। कभी सर्विसएबुल की मीटिंग करते हो, कभी सेवाधारियों की मीटिंग करते हो। बापदादा भी वहाँ ग्रुप बुलाते हैं। याद है शुरू में सुहेजों के भी ग्रुप बनाये थे। सब ग्रुप को अलग-अलग भोजन खिलाया था। अब भागवत पर आ गये। भागवत तो बड़ा लम्बा चौड़ा है। भक्ति में भी गीता से भागवत बड़ा बनाया है। गीता ज्ञान सुनने में कोई रूचि रखे न रखे लेकिन भागवत सभी सुनेंगे। तो जैसे साकार में बच्चों से स्विज मनाये ऐसे अभी भी वतन में बच्चों को इमर्ज करते रहते हैं। पेपर्स को वेरीफाय तो फिर भी बच्चों से करायेंगे क्योंकि बाप सदा बालक सो मालिक के रूप में देखते हैं। इसलिए निमित्त बने हुए बच्चों को हर कार्य में बड़ें भाई के सम्बन्ध से देखते हैं। तो भाई-भाई का मिलन कैसे होता है। भाई, भाई से वेरीफाय तो करायेंगे ना। इसलिए बाप-दादा कभी भी अकेले नहीं हैं। सदा बच्चों के साथ है। अकेले कहीं भी रह नहीं सकते। इसलिए यादगार में भी देखो पुरुषार्थी, दिलवाला मन्दिर में अकेले हैं? बच्चों के साथ हैं ना। और लास्ट की रिजल्ट विजय माला - उसमें भी अकेले नहीं हैं। कभी किसको कभी किसको सदा साथ में रखते हैं। बाप आपके सम्पूर्ण फरिश्ते रूप को इमर्ज करते हैं। वह टचिंग आपको भी आती है। रोज आती है वा कभी-कभी आती है? आप सूक्ष्मवतन को यहाँ लाते हो और बाप आपको सूक्ष्मवतन में लाते हैं। कभी बाप आपके पास आ जाते हैं कभी आपको अपने पास बुला लेते हैं। यही सारा दिन धन्धा करते हैं। कभी खेल करते और कराते हैं, कभी अपने साथ सेवा में लगाते हैं। कभी अपने साथ साक्षात्कार कराने ले जाते हैं और कभी साक्षात्कार कराने भेजते हैं। क्योंकि कोई-कोई भक्त ऐसे जिद्दी होते हैं जो अपने इष्ट देव से साक्षात्कार बिना सन्तुष्ट नहीं होते हैं। चाहे बाप भी उनके आगे प्रत्यक्ष हो जाए लेकिन वह अपने इष्ट देव को ही पसन्द करते हैं। इसलिए भिन्न-भिन्न इष्ट देव और देवियों को भक्तों के पास भेजना ही पड़ता है, और क्या करते हैं? कभीकभी विशेष स्नेही व सहयोगी बच्चों को विशेष कान में शक्ति का मन्त्र भी देते हैं। क्यों देते? क्योंकि कोई-कोई कार्य ऐसे आते हैं जिसमें विशेष आत्मायें व मुरबी बच्चे निमित्त होने के कारण हिम्मत, हुल्लास और अपनी प्राप्त हुई शक्तियों से कार्य करने के लिए आ ही जाते हैं। फिर भी कहाँ-कहाँ जैसे राकेट को बहुत ऊँचा जाना होता हे तो एक्स्ट्रा फोर्स से ऊपर चले जाते हैं। फिर निराधार हो जाते हैं। तो कहाँ-कहाँ कोई ऐसे कार्य आते हैं जहाँ सिर्फ सेकेण्ड के इशारे की आवश्यकता होती है। वह टचिंग होना अर्थात् कान में शक्ति का मन्त्र देना। अच्छा - वर्गीकरण आया है तो बाप ने भी अपना वर्गीकरण का कार्य बताया कि वतन में क्या-क्या होता है। य्ह इसलिए सुनाया क्योंकि अभी भी 18 तक अपने एडीशन पेपर तैयार कर सकते हो, कभी-कभी दोबारा भी पेपर लेते हैं ना। तो प्यूरिटी के पेपर में अभी भी एडीशन कर सकते हो तो मार्क्स जमा हो जायेगी। क्योंकि मुख्य आधार और रीयल ज्ञान की परख प्यूरिटी है। प्यूरिटी के आधार पर सहजयोग, सहज ज्ञान, और सहज धारणा व सेवा कर सकते हो। चारों ही सबजेक्ट्स का फाउण्डेशन प्यूरिटी है। इसलिए पहले यह पेपर चेक हो रहा है।

ऐसे हर संकल्प में प्रभु पसन्द व लोक पसन्द, हर कार्य में अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले, अर्थात् राज्य सभा के अधिकारी, सदा बाप के साथ मन और कर्म में विश्व सेवा के साथी, सदा संकल्प द्वारा वायुमण्डल को श्रेष्ठ बनाने वाले, अपने महावरदानी वृत्ति से वायब्रेशन्स फैलाने वाले - ऐसे समीप और सहयोगी बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

सफलता का आधार - निर्णय शक्ति, कन्ट्रोलिंग पॉवर

आफीसर्स की विशेषता जिससे अपने कार्य में सदा सफल हो सकें - वह है निर्णय शक्ति और कन्ट्रोलिंग पावर। आफीसर्स में अगर ये दो शक्तियाँ हैं तो सदा नीचे वालों को चलाने में सफल रहेंगे व कार्य में सफल रहेंगे। तो जैसे उस गवर्मेन्ट के आफीसर हो वैसे पाण्डव गवर्मेन्ट के ईश्वरीय कार्य में भी अनेक आत्माओं के कार्य के कार्यालय के आफीसर हो। वह है हद का कार्यालय और ये है बेहद का। जैसे उस गवर्मेन्ट के भिन्न-भिन्न डिपार्टमेन्टस के आफीसर हो वैसे पाण्डव गवर्मेन्ट में विश्व कल्याण के कार्य के आफीसर हो। आफीसर की क्वालिफिकेशन सुनाई - कन्ट्रोलिंग पावर और जजमेन्ट पॉवर। तो इस ईश्वरीय कार्य में भी वही सफलता मूर्त बनता है जिसमें ये दो विशेष शक्तियाँ हैं। पहले जब कोई आत्मा सम्पर्क में आती है तो जज कर सकें कि इसको किस चीज़ की जरूरत है, उसकी नब्ज द्वारा परख सकें कि इसको क्या चाहिए। और उसी चाहना के प्रमाण उसे तृप्त बना सकें। सेवा में स्वयं की कन्ट्रोलिंग पॉवर से दूसरों की सेवा के निमित्त बनो। जब दूसरों की सेवा करते हैं तो स्वयं को कन्ट्रोल करने की कन्ट्रोलिंग पॉवर के कारण दूसरे पर उस अचल स्थिति का प्रभाव पड़ता है। जैसे उस आफीसर्स की क्वालिफिकेशन है वैसे ही यहाँ भी ये क्वालिफिकेशन चाहिए। वहाँ छोटे से बड़ा, बड़े से और भी बड़ा बनना चाहते हैं। यदि गवर्मेन्ट राजी हो जाए तो गवर्नर बना देगी लेकिन यहाँ विश्व-कल्याण की सेवा में सेवाधारी बनने से विश्व के राजा बन जायेंगे। तो ये दो शक्तियाँ विशेष अपने में सदा रहनी चाहिए तो सदा सफलता है।

पाण्डव गवर्मेन्ट के भी ऐसे अच्छे आफीसर हो ना? विश्व-कल्याण के आफिस को ऐसे अच्छी तरह से चला रहे हो ना? आफीसर्स को भी सेवा का बहुत अच्छा चाँन्स है क्योंकि सम्पर्क में अनेक आत्मायें आती रहती हैं। सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय सम्पर्क में लाना ये भी तो चान्स है ना। तो पाण्डव गवर्मेन्ट के सम्पर्क में कितनों को लाते हो? सम्पर्क में लाने से एक बार भी शान्ति का अनुभव किया तो बार-बार आपके गुण गायेंगे। अब प्रजा बढ़ाने का दफ्तर खोलो। जैसे वह दफ्तर सम्भालते हो वैसे यह दफ्तर सम्भालो। आप लोगों के अनुभव में भी विशेष शक्ति है। जो अनुभव सुनकर भी अनेकों को बहुत अनुभव होंगे। आजकल सुनना सुनाना है लेकिन अनुभव नहीं है। अनुभव के इच्छुक हैं। आप जितना अनुभवी होंगे उतना ही अनुभव करा सकेंगे। सभी आफीसर्स सहज योगी हो ना? या कभी सहजयोगी, कभी मुश्किल के योगी। जो सदा सहज योगी होंगे वही निरन्तर के योगी होंगे। तो ऐसे सहजयोगी हो ना?

लौकिक सेवा - सम्पर्क बढ़ाने की सेवा

जज-वकील ग्रुप - सभी सदा स्व को स्वतन्त्र करने और अनेक आत्माओं को अनेक बन्धनों से स्वतन्त्र करने की सर्विस में सदा बिजी रहते हो? सभी का जैसे लौकिक कार्य है - कहाँ भी फँसे हुए को छुड़ाने का। यह सारा ग्रुप किसी को भी छुड़ाने वाला है। ऐसे ही जन्म-जन्म के हिसाब-किताब से भी छुड़ाने वाले हो? वो तो उस गवर्मेन्ट के हिसाब से फँस जाते हैं तो छुड़ाते हो व कोई व्यक्ति विकारों के वशीभूत बुरा काम करते हैं तो छुड़ाते हो वा फँसाते हो? कभी सच कभी झूठ। यहाँ रूहानी कार्य में सदा हर आत्मा को स्वतन्त्र बनाने वाले हो, कितनी आत्माओं को स्वतन्त्र बनाया है? आज तो रिजल्ट लेने का दिन है। तो कितनों को स्वतन्त्र बनाया है? वो सेवा निमित्त मात्र ईश्वरीय सेवा के लिए करते हो। नहीं तो पाण्डव उनकी सेवा करने के लिए समय क्यों देवें। इसी सेवा से लाभ लेने के लिए गुप्त सेवाधारी बनकर सेवा में रहते हो। जैसे गायन है कि पाण्डव गुप्त रूप में सेवा करने के लिए गये। तो पानी भरने या पैर दबाने नहीं गये, लेकिन गुप्त वेष में राज्य पलटाने के लिए सेवाधारी बनकर गये। वैसे ही गुप्त वेश में गये हो? विश्व के राज्य को परिवर्तन करने के लिए। तो सदा इसी कार्य में रहते हो? लौकिक सेवा अर्थात् सम्पर्क बढ़ाने की सेवा। ऐसे ही लक्ष्य रखते हुए इसी लक्षण से सदा सेवा में रहते हो! अब हर वर्ग को अपने हमजिन्स बढ़ाने चाहिए क्योंकि हर वर्ग वाले अपने वर्ग को उलाहना जरूर देंगे कि कमसे- कम अपने साथियों को तो बताते।

डबल सेवा का चान्स लेते रहो। जो भी आत्मायें सम्पर्क में आती हैं उनको बाप के सम्पर्क में लाओ। लौकिक सेवा से भी सहयोग दो और ईश्वरीय सेवा से सुख-शान्ति का मार्ग बताओ। तो सभी आपको महान पुण्य आत्मा की नज़र से देखेंगे।



18-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"स्मृति दिवस पर बाप-दादा की बच्चों प्रति शिक्षाएँ"

आज स्मृति दिवस के स्मृति स्वरूप अर्थात् समर्थ स्वरूप बच्चों को देखकर बापदादा भी सदा `समर्थ भव' का वरदान दे रहे हैं। जैसे आज के इस स्मृति दिवस पर स्वत: स्मृति स्वरूप रहे हो, एक ही लगन में मगन, एक बाप दूसरा न कोई - ऐसे सहजयोगी, निरन्तर योगयुक्त जीवनमुक्त, फरिश्ता स्वरूप सदाभव।

आज के दिन सभी बच्चों का चार्ट बाप-समान अव्यक्त वतन वासी, सदा स्नेही लवलीन अवस्था का रहा। ऐसे ही बाप-समान न्यारे और सदा प्यारे भव। चारों ओर के बच्चों का आज के समर्थ दिवस पर बाप को प्रत्यक्ष करने का एक ही दृढ़ संकल्प अभी भी बाप के पास पहुँच रहा है। सब बच्चे अपने एक ही उमंग हुल्लास के संकल्प से देश व विदेश में सेवा की स्टेज पर कोई मन से, कोई तन से उपस्थित हैं। यहाँ होते भी बापदादा के सामने सभी बच्चों की सेवा के उमंग, उत्साह भरे चेहरे सामने हैं। बाप-दादा को वर्ल्ड का चक्कर लगाने में कितना समय लगता है? जितने में आप लोग साइन्स के साधनों टी.वी. वा रेडियों द्वारा स्वीच ऑन कर सुनते हो व देखते हो, इतने समय में बाप-दादा वर्ल्ड का चक्कर लगाते हैं। बाप-दादा देख रहे हैं कि हर स्थान के बच्चे क्याक् या कर रहे हैं। जैसे आज के दिन सबको एक ही सेवा की धुन लगी हुई है, हरेक की बुद्धि में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरा रहा है कि विश्व में यह झण्डा लहरायें। सबके हृदय में बाप-दादा बस रहा है और यही पुरूषार्थ प्रैक्टिकल में ला रहे हैं कि सभी कैसे दिल चीरकर दिखायें कि बाप हमारे दिल में है। इस समय का सबका रूप यादगार में गाए हुए सेवक हनुमान के मिसल है। कोई संकल्प के तीर लगा रहे हैं जिस श्रेष्ठ संकल्प से वायुमण्डल द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करें। कोई अपने मुख के स्नेही और शक्तिशाली बोल से बाप को प्रत्यक्ष करने में लगे हुए हैं। ऐसा दृश्य याद और सेवा के बैलेन्स का बाप-दादा देख रहे हैं। स्नेह भी आज सम्पूर्ण रूप में इमर्ज है और शक्ति स्वरूप भी आज सेवा अर्थ इमर्ज रूप में है। आज के इस दिन के समान सदा याद और सेवा के बैलेन्स में रहना।

यह 80 का वर्ष विशेष हर आत्मा को यथा योग्य वर्सा देने का वर्ष है। सर्व तड़पती हुई आत्माओं को यथा-योग्य तृप्त आत्मा बनने का वर्ष है। विशेष इस वर्ष में याद और सेवा का बैलेन्स रखना और सदा ब्लिसफुल रहना। साथ-साथ सर्व आत्माओं को ब्लैसिंग देते रहना। इस वर्ष का संगठित रूप का विशेष स्लोगन है - `स्व के प्रति और सर्व के प्रति सदा विघ्न-विनाशक बनना'। उसका सहज साधन है क्वेश्चन मार्क को सदा के लिए विदाई देना और फुल स्टाप द्वारा सर्व शक्तियों का फुल स्टाक करना। इस वर्ष की विशेष सर्व विघ्नप्रूफ चमकीली फरिश्ता ड्रैस सदा पहनकर रखना। मिट्टी की ड्रैस नहीं पहनना और सदा सर्व गुणों के गहनों से सजे रहना। विशेष 8 शक्तियों के शस्त्रों से सदा अष्ट शक्ति शस्त्रधारी सम्पन्न मूर्ति बनकर रहना। सदा कमल पुष्प के आसन पर अपने श्रेष्ठ जीवन के पाँव रखना। और क्या करेंगे?

खुशबूदार बनो, खुशबू फैलाओ

रोज अमृतबेले विश्व वरदानी स्वरूप से विश्व-कल्याणकारी बाप के साथ कम्बाइन्ड रूप बन विश्व वरदानी शक्ति और विश्व-कल्याणकारी शिव। शिव और शक्ति कम्बाइन्ड रूप से मन्सा संकल्प वा वृत्ति द्वारा वायब्रेशन की खुशबू फैलाना। जैसे आजकल की स्थूल खुशबू के साधनों से भिन्न-भिन्न प्रकार की खुशबू फैलाते हैं। कोई गुलाब की खुशबू, कोई चन्दन की खुशबू। ऐसे आप द्वारा सुख, शान्ति, शक्ति, प्रेम, आनन्द की भिन्न-भिन्न खुशबू फैलती जाए। रोज अमृतबेले भिन्न-भिन्न श्रेष्ठ वायब्रेशन के फाउन्टेन के मुआफिक आत्माओं के ऊपर गुलाबबाशी डालना। सिर्फ संकल्प का आटोमिटिक स्वीच ऑन करना। यह तो आता हैं ना। क्योंकि आज के विश्व में अशुद्ध वृत्ति की बदबू बहुत है। उनको खुशबूदार बनाओ। समझा इस वर्ष में क्या करना है?

इस वर्ष में आजकल के गवर्मेन्ट की इलेक्शन हुई है और पाण्डव क्या करेंगे। इस वर्ष में जो भी पुराने और नये सर्विस के भिन्न-भिन्न साधन हैं उनको तन-मन-धन, समय आदि जो भी है, सब लगाकर फाइनल सर्व आत्माओं में से सिलेक्ट करो कि कौन-सी आत्मायें मुक्ति के वर्से के योग्य हैं और कौन-सी आत्मायें जीवनमुक्ति के योग्य हैं। जो जिसके योग्य है उनको वैसा ही सन्देश दे फाइनल करो। अभी सेवा की फाइल फाइनल करो। जैसे फाइल के हर कागज में ऑफीसर अपनी सही करके सम्पन्न करके आगे बढ़ता है। तो आप सब सेवाधारी हर आत्मा पर मुक्ति व जीवनमुक्ति की साइन करो। फाइनल की स्टैम्प लगाओ। तो फाइल सम्पूर्ण हो जाएगी। समझा, इस वर्ष में क्या करना है? सिलेक्शन की मशीनरी तेज करो। देखेंगे कितने में फाइल तैयार करते हो। पहले विदेश फाइल तैयार करता है या देश। जिसको जिस धर्म में जाना है, स्टैम्प लगा दो।

आज् बाप-दादा चारों ओर के सर्व स्नेही और सेवाधारी बच्चों को याद प्यार दे रहे हैं। आज के दिन तन से भले भिन्न-भिन्न स्थानों पर हैं लेकिन मन से बाप को प्रत्यक्ष करने की धुन के कारण बाप के तरफ ही `मन्मनाभव' हैं।

ऐसे सदा स्नेह और सेवा में अविनाशी रहने वाले, सदा बाप की सेवा में तत्पर रहने वाले, प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले, सर्व विजयी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

(आज जानकी दादी विदाई ले लण्डन जा रही थी - तो बापदादा ने सबसे छुटटी लेने के लिए जानकी दादी को तख्त पर अपने बाजू में बिठाया)

बाप-दादा को भी मुरबी बच्चों का रिस्पेक्ट रखना होता है। इसलिए बापदादा बधाई देते हैं, न कि विदाई। वैसे तो यह मस्त फकीर है। विश्व की परिक्रमा बाप बच्चों के साथ साकार द्वारा भी करते हैं। वैसे तो सेकेण्ड में विश्व परिक्रमा लगाते हैं लेकिन साकार रूप में बच्चों द्वारा सेवा की परिक्रमा लगाते हैं। बाप को विश्व की परिक्रमा अर्थात् सेवा की परिक्रमा दिलाने के लिए जा रही हो। इस वर्ष की विशेषता - `चक्रवर्ती भव'। आगे-आगे बाप होंगे पीछे-पीछे आप। आप बाप को परिक्रमा लगवायेंगी व बाप आपको परिक्रमा साथ-साथ दिलायेंगे।

(आज मीठी दीदी बाप-दादा के सम्मुख आकर बैठी हैं)

आज वतन में सभी बच्चे स्नेह से तो पहुँचे ही थे। लेकिन आज के समर्था दिवस मनाने के लिए, सेवा में गई हुई श्रेष्ठ आत्मायें भी पहुँची। उनकी भी रूह- रूहान बड़ी अच्छी थी। वे अपने विश्व सेवा के वण्डरफुल पार्ट को देखते हुए हर्षित हो रही थीं कि भिन्न शरीर से विश्व सेवा का अलौकिक राजयुक्त पार्ट कौन-सा है - बाप-दादा सुना रहे थे। विश्व की पतित-पावनी सरस्वती नदी का गायन ही है - `गुप्त सेवाधारी'। गंगा और जमुना प्रसिद्ध हैं साकार में। लेकिन सरस्वती की सेवा गुप्त रूप में भी दिखाई है और प्रख्यात में सितारधारी यादगार रूप में भी है। और गुप्त रूप में गुप्त नदी के रूप में यादगार है। दोनों ही पार्ट वन्डरफुल हैं। जन्म द्वारा सेवा के पार्ट का सम्बन्ध है। जहाँ जीत वहाँ जन्म। कोई राज्य की जीत नहीं लेकिन जन्म द्वारा विकारों पर जीत हो जाती है। जहाँ जन्म वहाँ जीत है, न कि जहाँ जीत वहाँ जन्म। यह जो थोड़ा बहुत गायन है वही प्रैक्टिकल में पार्ट तो चलना ही है। अब यह विशेष सेवाधारी, समय का और साकार सेवाधारियों के सेवा की पार्ट समाप्त हो, तब नये राज्य के लेन-देन के वन्डरफुल पार्ट की आदि हो। तो एडवान्स का ग्रुप, उसमें भी जो विशेष नामीग्रामी आत्मायें हैं उनका संगठन बहुत मजबूत है। श्रेष्ठ जन्म, फर्स्ट जन्म, दिलाने के लिए धरनी तैयार करने का वन्डरफुल पार्ट इन आत्माओं द्वारा तीव्रगति से चल रहा है। जैसे विनाशकारी बटन दबाने के लिए रूके हुए हैं। वैसे दिव्य जन्म द्वारा स्थापना कराने के निमित्त बनी हुई एडवान्स सेवा की पार्टी टचिंग करने के लिए, मैसेज देने के लिए, प्रत्यक्षता करने के लिए रूकी हुई है। वह तो सम्बन्ध के स्नेह से प्रत्यक्ष करेंगे। यह भी विचित्र कहानियों के रूप से स्थापना के जन्म का पार्ट नूँधा हुआ है। पहले कृष्ण पीछे राधे होगी ना। तो जन्मस्थान और उनकी स्थिति दोनों का सम्पूर्ण कार्य समाप्त कर पीछे जन्म होगा राधे का। इसलिए वह बड़ा वह छोटी हो जायेगी। जैसे यहाँ भी सेवा का भिन्न रूप में जन्म स्थान और स्थिति तैयार करने का भी वण्डरफुल पार्ट है। जैसे यहाँ भी कारोबार के निमित्त जगत् अम्बा के क्षेत्र में पहले जगत अम्बा धरनी बनाने गई और फिर बाप गये। ऐसे जगत अम्बा और मुरबी बच्चा विश्व किशोर साथी, सामना करने वाले थे। मैदान पर आगे सेवा में आने वाले रहे, वैसे ही अभी भी भिन्न रूप में कार्य के संस्कार वही हैं। दोनों स्थापना के जन्म की कहानी में हीरो पार्टधारी हैं। गर्भमहल तैयार करा रहे हैं। यहाँ भी तो कारोबार में निमित्त दोनों मूर्तियाँ रहीं। तो यह महल तैयार करने वाले भी ऐसे पॉवरफुल चाहिए। यहाँ स्थापना की तैयारी की और फिर वहाँ आप सबके लिए जो विशेष अष्ट रतन हैं, उनके लिए तैयारी कर रहे हैं, महल तैयार कर रहे हैं। जब तैयारी हो तब तो आत्मायें वहाँ जायेंगी ना। तो अब अपवित्र सृष्टि में पवित्र महल तैयार करना कितना श्रेष्ठ कार्य करना पड़े। ऐसी पॉवरफुल आत्मायें चाहिए जो यह पॉवरफुल कार्य कर सकें। ऐसी वैसी नहीं कर सकतीं। वह भी डेट पूछ रहे हैं किस डेट तक महल तैयार चाहिए, डेट बताओ। वह तो कहते हैं साकार सेवा का पार्ट समाप्त होगा तब हमारे कार्य की आदि होगी। इनकी अन्त हमारी आदि। पहले अन्त होगी तब तो फिर आदि होगी। तो सेवा के पार्ट की समाप्ति की डेट कौन-सी है? वही डेट फिर राज्य के जन्म की होगी। सुना, उनकी रूह-रूहान। वैसे तो सब आत्मायें इमर्ज थीं लेकिन उनके भी ग्रुप्स हैं।

सर्विसएबुल बच्चों को देखते हुए बाबा बोले - सर्विस के प्लैन तो सभी ने बहुत अच्छे-अच्छे बनाये हैं लेकिन सभी सर्विस के प्लैन सफल तभी होंगे जब निमित्त बने हुए विशेष अटेन्शन देंगे। एक तो जिस आत्मा की जो विशेषता है उस विशेषता को मूल्य देते हुए उनको आगे उमंग उत्साह में लाना, उसके लिए निमित्त बने हुए को भी अथक सेवाधारी बनना पड़े।

2. अपने सेवाकेन्द्र का व जो भी सम्पर्क के सेवाकेन्द्र हैं उनका वातावरण रूहानियत का बनाओ जिससे स्वयं की और आने वाली आत्माओं की, जो नयेन ये आते हैं उनकी सहज उन्नति हो सके। क्योंकि वातावरण धरती को बनाता है। तो सेवाकेन्द्र का वातावरण रूहानी हो। जो भी सेवाकेन्द्र पर आते हैं वह एक तो अपने गृहस्थ व्यवहार के झंझट से आते हैं, गृहस्थ के वातावरण से थके हुए होते हैं, तो उन्हें एकस्ट्रा सहयोग की आवश्यकता होती है, तो रूहानी वायुमण्डल का उनको सहयोग देकर सहज पुरुषार्थी बना सकते हो। जैसे एयरकन्डीशन होता है तो वातावरण को क्रियेट करते हैं, ठण्डी में अगर गर्म स्थान मिल जाता है तो जाने से ही आराम महससू करते हैं, इसी रीति से रूहानियत के आधार पर सेवाकेन्द्र का ऐसा वायुमण्डल हो जो अनुभव करें कि यह स्थान सहज ही उन्नति प्राप्त करने का है। इसलिए सेवाकेन्द्र पर आते हैं तो आते ही बाहर का और सेवाकेन्द्र का अन्तर महसूस हो, जिससे स्वत: आकर्षित हों।

ब्राह्मण परिवार की विशेषता है - अनेक होते भी एक। तो हर सेवाकेन्द्र का वायब्रेशन ऐसा हो जो सबको महसूस हो कि ये अनेक नहीं लेकिन एक हैं। एकता का वायब्रेशन सारे विश्व में एक धर्म, एक राज्य की स्थापना करेगा। यह भी विशेष अटेन्शन देकर भिन्नता को मिटाकर एकता लाना।

इस नये वर्ष में विशेष इन तीनों बातों को प्रैक्टिकल में लाना। सुनना और कहना तो चलता ही रहा है लेकिन इस साल में यह तीनों बातें प्रैक्टिकल में लाओ। सेवाधारी स्वयं प्रति नहीं लेकिन सेवा प्रति। स्वयं का सब-कुछ सेवा प्रति स्वाहा करने वाले। जैसे साकार बाप ने हड्डीयाँ भी स्वाहा की ना सेवा में। ऐसे हर कर्मेन्द्रिय द्वारा सेवा सदा होती रहे। मुख से भी सेवा, नयनों से भी सेवा, सेवा ही सेवा। तो सभी ऐसे सेवाधारी हो ना।

प्लैन अच्छे बनाये हैं अभी प्रैक्टिकल की लिस्ट आयेगी। जैसे प्लैन की फाइल आ गई वैसे प्लैन की रिजल्ट आयेगी। अच्छा - सभी 108 की माला में आने वाले हो ना। सब एनाउन्स ऑटोमेटिकली हो जाएगा। अपनी सीट हरेक लेते हुए अपना नम्बर एनाउन्स करेंगे। सेवा ही सीट नम्बर एनाउन्स करेगी। सेवा माईक बनेगी, मुख का माइक एनाउन्स नहीं करेगा।



21-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"बाप को प्रत्यक्ष करने की विधि"

आज बाप-दादा परमात्म ज्ञान के प्रत्यक्ष स्वरूप अर्थात् प्रैक्टिकल डबल रूप बच्चों को देख रहे हैं। एक माया प्रूफ, दूसरा श्रेष्ठ जीवन का वा ब्राह्मण जीवन का, ऊँचे-से-ऊँचे अपने अलौकिक जीवन, ईश्वरीय जीवन का पु्रफ। श्रेष्ठ ज्ञान का प्रुफ है - `श्रेष्ठ जीवन'। ऐसे डबल प्रूफ बच्चों को देख रहे हैं। सदा अपने को परमात्म-ज्ञान का प्रत्यक्ष प्रमाण वा प्रूफ समझने से सदा ही माया प्रूफ रहेंगे। अगर प्रत्यक्ष प्रमाण में कोई कमज़ोरी होती है तो परमात्म-ज्ञान का भी जो चैलेन्ज करते हो उसको मान नहीं सकेंगे। क्योंकि आजकल साइन्स के युग में हर बात के प्रत्यक्ष प्रमाण व प्रूफ के द्वारा ही समझना चाहते हैं। सुनने-सुनाने से निश्चय नहीं करते। परमात्म ज्ञान को निश्चय करने के लिए प्रत्यक्ष प्रूफ देखना चाहते हैं। प्रत्यक्ष प्रूफ है आप सबका जीवन। जीवन में भी यही विशेषता दिखाई दे जो आज तक कोई भी आत्म-ज्ञानी महान आत्मायें कर न सकी हों, बना न सकी हों। ऐसी असम्भव से सम्भव होने वाली बातें परमात्म-ज्ञान का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। सबसे बड़ी असम्भव, सम्भव होने वाली बात `प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना' प्रवृत्ति में रहते इस देह और देह की दुनिया के सम्बन्धों से परे रहना। पुरानी वृत्ति से पर रहना अर्थात् परे रहना, न्यारा रहना। इसको कहा जाता है पर-वृत्ति। प्रवृत्ति नहीं लेकिन पर-वृत्ति है। देखते देह को हैं लेकिन वृत्ति में आत्मा रूप है। सम्पर्क में लौकिक सम्बन्ध में आते हुए भी भाई-भाई के सम्बन्ध में रहना। इस पुराने शरीर की आँखों से पुरानी दुनिया की वस्तुओं को देखते हुए, न देखना। ऐसे प्रवृत्ति में रहने वाले अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र जीवन में चलने वाले - इसको कहा जाता है, `परमात्म ज्ञान का प्रूफ' जो महान आत्मायें भी असम्भव समझती हैं लेकिन परमात्म ज्ञानी अति सहज बात अनुभव करते हैं। वह असम्भव कहते, आप सहज कहते हो। सिर्फ कहते नहीं हो लेकिन दुनिया के आगे बन करके दिखाते हो। अब तक भक्त माला के पहले, दूसरे दाने भी परमात्म-मिलन को बड़ा मुश्किल, बहुत जन्मों के बाद भी मिले या न मिले - यह भी निश्चित नहीं समझते। एक सेकेण्ड के साक्षात्कार को महान प्राप्ति समझते हैं। साक्षात् बाप अपना बन जाए व अपना बना दे, इसको असम्भव समझते हैं। वह लम्बी खजूर कहकर दिलशिकस्त हो जाते हैं। और आप सब लम्बी खजूर के बजाए घर बैठे कल्प-कल्प का अपना अधिकार अनुभव करते हो। वह मिलना मुश्किल समझते हैं और आप मिलना अधिकार समझते हो। अधिकारी जीवन अर्थात् बाप के सर्व खज़ानों से भरपूर जीवन। यह प्रेक्टिकल अनुभवी जीवन भी विशेष परमात्म-ज्ञान का प्रमाण अर्थात् प्रूफ है। परमात्मा कहना अर्थात् बाप कहना। बाप के सम्बन्ध का प्रूफ है - वर्सा। आत्म ज्ञान का व महान आत्माओं का सम्बन्ध भाई-भाई का है। बाप नहीं है, इसलिए वर्सा नहीं है। आत्म ज्ञानी महान आत्मायें आत्मा भाई-भाई हैं, परमात्मा बाप नहीं है। इसलिए अविनाशी वर्सा चाहते हुए भी उसका अनुभव नहीं पा सकेंगे। परमात्म ज्ञान का सहज प्रूफ जीवन में वर्से की प्राप्ति है। यह अविन्शी ज्ञान, प्राप्ति का प्रूफ जीवन में वर्से की प्राप्ति है। यह अविनाशी ज्ञान, प्राप्ति का अनुभवी जीवन, परमात्मा को प्रत्यक्ष कर सकती है। तो यह विशेष प्रमाण हो गया।

सिर्फ पुरुषार्थी कहना अर्थात् प्राप्ति से वंचित रहना

बाप को प्रत्यक्ष करना - यह नये वर्ष का दृढ़ संकल्प लिया है? सभी ने संकल्प लिया है ना। तो प्रत्यक्ष करने का साधन है डबल प्रूफ बनना। तो चेक करो यह प्रत्यक्ष प्रमाण `प्यूरिटी और प्राप्ति' दोनों ही अविनाशी हैं! अल्पज्ञ आत्मा अल्पकाल की प्राप्ति कराती हैं। अविनाशी बाप `अविनाशी' प्राप्ति कराते हैं। परमात्म मिलन वा परमात्म ज्ञान की विशेषता है ही अविनाशी। तो अविनाशी हैं ना। आप कहेंगे पुरुषार्थी हैं। लेकिन पुरूषार्थ और प्रत्यक्ष प्रालब्ध यही परमात्म प्राप्ति की विशेषता है। ऐसे नहीं कि संगमयुगी पुरुषार्थी जीवन है और सतयुगी प्रालब्धी जीवन है। लेकिन संगमयुग की विशेषता है - एक कदम उठाओ और हजार कदम प्रालब्ध में पाओ। और कोई भी युग में एक का पद्मगुणा होकर मिलने का भाग्य है ही नहीं। यह भाग्य की लकीर स्वयं भाग्य विधाता बाप अभी ही खींचते हैं, ब्रह्मा बाप द्वारा। इसलिए ब्रह्मा को `भाग्य विधाता' कहते हैं। गायन भी है ब्रह्मा ने जब भाग्य बाँटा तो सोये हुए थे क्या? संगमयुग की विशेषता - पुरूषार्थ और प्रालब्ध साथ-साथ की है। और ही सतयुगी प्रालब्ध से भी विशेष बाप की प्राप्ति की प्रालब्ध अभी है। अब की प्रालब्ध है - परमात्मा के साथ डायरेक्ट सर्व सम्बन्ध। भविष्य प्रालब्ध है देव आत्माओं से सम्बन्ध। अब की प्राप्ति और भविष्य की प्राप्ति का अन्तर तो समझते भी हो और सुनाया भी था। तो पुरुषार्थी नहीं लेकिन श्रेष्ठ प्रालब्धि हैं - ऐसे समझकर हर कदम उठाते हो? सिर्फ पुरुषार्थी कहना अर्थात् अलबेला बन और प्रालब्ध वा प्राप्ति से वंचित रहना। प्रालब्धि रूप को सदा सामने रखो। प्रालब्ध देखकर सहज ही चढ़ती कला का अनुभव करेंगे। संगमयुग की विशेषताओं का सदा स्मृति स्वरूप बनो तो विशेष आत्मा हो ही जायेंगे।

``पाना था सो पा लिया'' - सदा यह गीत गाते रहो।

चलते-चलते कई बच्चों को मार्ग मुश्किल अनुभव होने लगता है। कभी सहज समझते हैं, कभी मुश्किल समझते हैं। कभी खुशी में नाचते हैं, कभी दिलशिकस्त हो बैठ जाते हैं। कभी बाप के गुण गाते और कभी `क्या'और `कैसे' के गुण गाते हो। कभी शुद्ध संकल्पों के सर्व खज़ानों के प्राप्ति की माला सुमिरण करते, कभी व्यर्थ संकल्पों के तूफान वश `मुश्किल है', `मुश्किल है' - यह माला सुमिरण करते हैं। कारण क्या? सिर्फ पुरुषार्थी समझते हैं, प्रालब्ध को भूल जाते हैं। छोड़ना क्या है - उसको सामने रखते हैं और लेना क्या है उसको पीछे रखते हैं। जबकि छोड़ने वाली चीज़ को पीछे किया जाता है, लेने वाली चीज़ को आगे। कभी भी लेने समय पीछे हटना नहीं होता, आगे बढ़ना होता है। `लेना' स्मृति में रखना अर्थात् बाप के सम्मुख होना। छोड़ने के गुण ज्यादा गाते हो। यह भी किया, यह भी करना है वा करना पड़ेगा। इसको ज्यादा सोचते हो। क्या मिल रहा है वा प्रालब्ध क्या बन रही है, उसको कम सोचते हो। इसलिए व्यर्थ का वजन भारी हो जाता है। शुद्ध संकल्पों का वजन हल्का हो जाता है। तो चढ़ती कला के बजाए बोझ स्वत: ही नीचे ले आता है। अर्थात् गिरती कला की ओर चले जाते हो। ``पाना था सो पा लिया'' यह गीत गाना भूल जाते हो। यह एक गीत भूलने से अनेक प्रकार के घुटके खाते हो। गीत गाओ तो घुटके भी खत्म तो झुटके भी खत्म हो जाएँ। जैसे स्थूल गीत भी आपको जगाता है ना। यह अविनाशी गीत गाते रहो। ``पाना था सो पा लिया'' और प्राप्ति की खुशी में नाचते रहो। गाते रहो, नाचते रहो तो घुटके और झुटके खत्म हो जायेंगे। ऐसे डबल प्रूफ प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करेंगे। यह है प्रत्यक्ष करने की विधि जो चलते-फिरते प्रत्यक्ष प्रमाण रूपी चेतन संग्रहालय रूप बन जाओ और चलता-फिरता प्रोजेक्टर बन जाओ। चरित्र-निर्माण प्रदर्शनी बन जाओ तो जगह-जगह पर प्रदर्शनी और म्यूजयम हो जायेंगे। खर्चा कम और सेवा ज्यादा हो जायेगी। खुद ही प्रदर्शनी बनो, खुद ही गाइड बनो। आजकल चलती-फिरती लायब्रेरी, प्रदर्शनियाँ बनाते हैं ना। तो 60 हजार ब्राह्मण 60 हजार चलते-फिरते प्रदर्शनियाँ म्यूजयम हो जाए तो प्रत्यक्षता कितने में होगी। समझा। इस वर्ष 60 हजार मूविंग प्रदर्शनियाँ वा प्रोजेक्टर सारे विश्व के चारों ओर फैल जाओ तो एकॉनामी की एडवरटाइजमेन्ट हो जायेगी। खर्चा करना नहीं पड़ेगा लेकिन खर्चा देने वाले आ जायेंगे। खर्चे के बजाए इनाम मिलेगा।

गुजरात तो बड़ा है ना। संख्या में तो बड़ा है ही। अब साक्षात् रूप में भी बड़े बनकर दिखाना। गुजरात की धरनी अच्छी है। जहाँ धरनी अच्छी होती हैं वहाँ पावरफुल बीज डाला जाता है। पावरफुल बीज है वारिस क्वालिटी का बीज। ऐसे वारिस का बीज डाल फल निकालो। फलीभूत धरनी अर्थात् सबसे श्रेष्ठ फल देने वाली। क्वान्टिटी तो बहुत अच्छी है। क्वालिटी भी है लेकिन और निकालो। एक- एक क्वालिटी वाले को वारिस ग्रुप का सबूत देना है। गुजरात में सहज निकल भी सकते हैं। अब विस्तार ज्यादा हो रहा है इसलिए वारिस छिप गये हैं। अब उनको प्रत्यक्ष करो। समझा - गुजरात को क्या करना है। दूसरे सम्पर्क में लावें, आप सम्बन्ध में लाओ तो नम्बर वन हो जायेंगे। इस वर्ष का प्लैन भी बता दिया। अभी विस्तार में बिजी हो गये हैं। जैसे वैराइटी वृक्ष बढ़ता है तो बीज छिप जाता है और फिर अन्त में बीज ही निकलता है। विस्तार में ज्यादा बिजी हो गये हो। अब फिर से बीज अर्थात् वारिस क्वालिटी निकालो। जो आदि में सो अन्त में करो।

सदा खुशी में नाचने वाले, प्राप्ति के गीत गाने वाले, प्रत्यक्ष फल को अनुभव करने वाले, अपने को प्रत्यक्ष प्रमाण बनाकर बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, ऐसे डबल प्रूफ श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

महादानी अर्थात् सदा अखण्ड लंगर चलता रहे

पार्टियों के साथ –

1. इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य ही है - नर से श्रीनारायण बनना वा श्रीलक्ष्मी बनना। तो सदा दिव्य गुण मूर्त देवता स्वरूप की स्मृति में रहने वाले हो! कभी भी अपना लक्ष्य भूलना नहीं चाहिए। सदा अपने दिव्य गुणधारी स्मृति स्वरूप - ऐसे रहते हो? लक्ष्मी स्वरूप अर्थात् धन-देवी और नारायण स्वरूप अर्थात् राज्य-अधिकारी। लक्ष्मी को धन देवी कहते हैं। वो धन नहीं लेकिन ज्ञान के खज़ानें जो मिले हैं उस धन की देवियाँ। सब धनदेवी हो ना। जो धन-देवी होगी वह सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न होगी। जब से ब्राह्मण बने हो तब से जन्मसिद्ध अधिकार में क्या मिला? ज्ञान का, शक्तियों का खज़ाना मिला ना। तो अधिकार साथ में रहता है, ना कि बैंक में रहता है? बैंक में रखेंगे तो खुशी नहीं होगी। बैंक में रखना अर्थात् यूज़ न करना, किनारे रखना। जितना यूज़ करेंगे उतना खुशी बढ़ेगी। इस खज़ानें को साथ में रखने से कोई भी खतरा नहीं है, जब महादानी वरदानी बनना है तो लॉकर में कैसे रखेंगे। इसलिए रोज अपने मिले हुए खज़ानों को देखो और यूज़ करो - स्व के प्रति भी, औरों के प्रति भी। महादानी अर्थात् सदा अखण्ड लंगर चलता रहे। एक दिन किया और फिर एक मास बाद किया तो महादानी नहीं कहेंगे। महादानी अर्थात् सदा भण्डारा चलता रहे। सदा भरपूर। जैसे बाप का भण्डारा सदा चलता रहता हे ना। रोज देते हैं। तो बच्चों का काम भी है रोज देना। यह भण्डारा खुला होगा तो चोर नहीं आयेगा। बन्द रखेंगे तो चोर आ जायेंगे। वैसे भी जितने ज्यादा ताले बनायें हैं उतने ज्यादा चोर हो गये हैं। पहले खुले खज़ानें थे तो इतने चोर नहीं थे। तो सदा भण्डारा खुला रहे। अभी तक जो हुआ उसको फुल स्टॉप। बीती को चिन्तन में न लाओ इसको कहा जाता है - तीव्र पुरूषार्थ। अगर बीती को चिन्तन करते तो समय, शक्ति, संकल्प सब वेस्ट हो जाता है - अभी वेस्ट करने का समय नहीं है। संगम युग की दो घड़ी अर्थात् दो सेकण्ड भी वेस्ट की तो अनेक वर्ष वेस्ट कर दिये। संगम की वैल्यू को जानते हो ना! संगम का एक सेकण्ड कितने वर्षों के बराबर है? तो एक दो सेकण्ड नहीं गँवाया लेकिन अनेक वर्ष गँवा दिये। इसलिए अब फुलस्टॉप लगाओ। जो फुलस्टॉप लगाना जानता है वह सदा फुल रहेगा।

स्व परिवर्तन से धरती परिवर्तन

2. सदा अपनी शुभ भावना से वृद्धि करते रहते हो? कैसी भी आत्मायें हो लेकिन सदा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना रखो। शुभ भावना सफलता को प्राप्त करायेगी। शुभ भावना से सेवा करने का अनुभव है? शुभ भावना अर्थात् रहम दिल। जैसे बाप अपकारियों पर उपकारी है ऐसे ही आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्त्तन कर दो। जब साइन्स वाले रेत में खेती पैदा कर सकते हैं तो क्या साइलेन्स वाले धरती का परिवर्तन नहीं कर सकते! संकल्प भी सृष्टि बना देता है। इसलिए सदा धरती को परिवर्तन करने की शुभ भावना हो। अपनी चढ़ती कला के वायब्रेशन द्वारा धरती का परिवर्तन करते चलो। स्व परिवर्तन से धरती परिवर्तन हो जायेगी। धरती में हल चलाने वाले हो ना। थकने वाले तो नहीं? हल चलाने वाले अच्छे अथक होते हैं, कलराठी जमीन को भी हरा-भरा कर देते हैं। अब दिलशिकस्त नहीं होना, दिलखुश रहना तो आपकी खुशी सबको स्वत: ही आकर्षित करेगी।

मायाजीत की दासी `माया'

3. सदा अपने को `अननोन बट वेरी वैल नोन' योद्धा समझते हुए युद्ध के मैदान पर मायाजीत बन करके रहते हो? साधारण रीति से बैठे हुए हो, चलते हो, खाते हो लेकिन चलते-फिरते भी माया से युद्ध कर विजयी बनते जा रहे हो। बाहर से कुछ भी कर रहे हो लेकिन अन्दर में माया पर जीत पहन विश्व का राज्य ले रहे हो। तो अननोन हुए ना। जब प्रत्यक्षता होगी तो सब अनुभव करेंगे कि यह कौन थे और क्या कर रहे थे। जिसके साथ सर्वशक्तिवान बाप है उसकी विजय निश्चित है। पाण्डवों का पति सर्वशक्तिवान है इसलिए पाण्डव सदा विजयी रहे। साथ कभी नहीं छोड़ना, अकेले हो जायेंगे तो माया वार करेगी। बाप के साथ रहेंगे तो माया बलिहार जायेगी। मायाजीत के आगे माया दासी बनकर नमस्कार करेगी। माया के मेले में, बाप साथी को छोड़ नहीं देना। अगर साथी छूटा तो रास्ता भूल जायेंगे। फिर चिल्लाना पड़ेगा। सदा माया को नमस्कार कराना, वार अन्दर को नहीं आने देना।



23-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"पवित्रता का महत्व"

बाप-दादा अपने सर्व महान आत्माओं, धर्म आत्माओं, पुण्य आत्माओं, महान पवित्र आत्माओं को देख हर्षित होते हैं। परमात्मा के बच्चे परम पवित्र बच्चे हैं। पवित्रता की ही महानता है। पवित्रता की मान्यता है। पवित्रता के कारण ही परम पूज्य और गायन योग्य बनते हैं। पवित्रता ही श्रेष्ठ धर्म अर्थात् धारणा है। इस ईश्वरीय सेवा का बड़े-से-बड़ा पुण्य है - पवित्रता का दान देना। पवित्र बनाना ही पुण्य आत्मा बनना है। क्योंकि किसी आत्मा को आत्म-घात महा पाप से छुड़ाते हो। अपवित्रता आत्म-घात है। पवित्रता जीय-दान है। पवित्र बनाना अर्थात् पुण्य आत्मा बनाना। गीता के ज्ञान का वह वर्तमान परमात्म-ज्ञान का जो सार रूप में स्लोगन बनाते हो, उसमें भी पवित्रता का महत्व बताते हो। ``पवित्र बनो - योगी बनो'' यही स्लोगन महान आत्मा बनने का आधार है। ब्राह्मण जीवन के पुरूषार्थ के नम्बर भी पवित्रता के आधार पर हैं। भक्ति मार्ग में यादगार पवित्रता के आधार पर हैं। कोई भी भक्त आपके यादगार चित्र को पवित्रता के बिना टच नहीं कर सकते। जिस दिन विशेष देवी व देवताओं का दिवस मनाते हैं, उस दिन का महत्व भी पवित्रता है। भक्ति का अर्थ ही है - अल्पकाल। ज्ञान का अर्थ है - सदाकाल। तो भक्त अल्पकाल के नियम पालन करते हैं। जैसे नवरात्रि मनाते हैं, जन्माष्टमी अथवा दीपमाला या कोई विशेष उत्सव मनाते हैं तो पवित्रता का नियम अल्पकाल के लिए जरूर पालन करते हैं। चाहे शरीर की पवित्रता व आत्मा के नियम, दोनों प्रकार की शुद्धि जरूर रखते हैं।

आपकी यादगार `विजय माला' - उनका भी सुमिरण करेंगे तो पवित्रता की विधि पूर्वक करेंगे। आप सिद्धि स्वरूप बनते हो, सिद्धि स्वरूप आत्माओं की पूजा भी विधि पूर्वक होती है। पवित्रता के महत्व को जानते हो ना? इसलिए पहले मुख्य पेपर्स पवित्रता के चेक किये हैं, हरेक ने अपना पवित्रता का पेपर चेक किया? प्रोग्राम प्रमाण प्रोग्रेस तो की।

टोटल रिजल्ट सबसे ज्यादा मैजारिटी की कर्मणा में परसेन्टेज ठीक रही। वाचा में कर्मणा की रिजल्ट से 25% कम। मनसा में कर्मणा की रिजल्ट से 50% कम। मनसा संकल्प, और स्वप्न में थोड़ा-सा अन्तर रहा, उसमें भी जन्म की डेट से लेकर अब तक की रिजल्ट में कइयों का पुरूषार्थ करने में उतरना चढना, दाग हुआ और मिटाया, कभी संकल्प आया और हटाया। कभी वाचा कर्मणा का दाग हुआ और मिटाया। हटाने और मिटाने वाले बहुत थे। लेकिन कई ऐसे तीव्र पुरुषार्थी भी देखे जिन्होंने ऐसे संस्कारों का दाग मिटाया है जो अब तक भी बिल्कुल साफ शुद्ध पेपर दिखाई दिया। ऐसा स्वप्न तक मिटाया हुआ था। पास विद आनर होने वाले महान पवित्र आत्माएँ भी देखी। उनकी विशेषता क्या देखी।

जब से ब्राह्मण जन्म हुआ तब से अभी तक पुरूषार्थ करने की आवश्यकता नहीं लेकिन ब्राह्मण जीवन का विशेष लक्षण है, ब्राह्मण आत्मा का वह अनादि आदि संस्कार है। ऐसे नैचुरल संस्कार से स्वप्न व संकल्प में भी अपवित्रता इमर्ज नहीं हुई है। संकल्प आवे और विजयी बनें, इनसे भी ऊपर नैचुरल संस्कार रूप में चले हैं। इस सबजेक्ट में पुरूषार्थ करने की आवश्यकता नहीं रही है। ऐसे परम पूज्य संस्कार वाले भी देखे। लेकिन माइनॉरटी। नॉलेजफुल होते हुए भी, औरों को पवित्र बनने की विधि बताते हुए भी, औरों की कमज़ोरियों को सुनते हुए भी, उनको बापकी श्रीमत देते हुए भी, स्वयं सदा सुनते हुए, जानते हुए भी सदा स्वच्छ रहे हैं अर्थात् पवित्रता की सबजेक्ट में सिद्धि स्वरूप रहे हैं। इसलिए ऐसे परम पवित्र आत्माओं का पूजन भी सदा विधि पूर्वक होता है। अष्ट देव के रूप में भी पूजन और भक्तों के इष्ट देव के रूप में भी पूजन। अष्ट शक्तियों का प्रैक्टिकल स्वरूप `अष्ट देव' प्रत्यक्ष होते हैं। तो सुना पेपर्स का रिजल्ट।

तो मनसा परिवर्तन हो इसमें डबल अटेन्शन दो। यह नहीं सोचो सम्पन्न बनने तक संकल्प तो आयेंगे ही, लेकिन नहीं। संकल्प अर्थात् बीज को ही योगाग्नि में जला दो जो आधाकल्प तक बीज फल न दे सके। वाचा के दो मुख्य पत्ते भी निकल न सकें। कर्मणा का तना और टाल टालियाँ भी निकल न सकें। बहुत काल का भस्मीभूत बीज जन्म-जन्मान्तर के लिए फल नहीं देगा। अन्त में इस सबजेक्ट में सम्पूर्ण नहीं होना है लेकिन बहुत काल का अभ्यास ही अन्त में पास करायेगा। अन्त में सम्पूर्ण होंगे, इसी संकल्प को पहले खत्म करो। अभी बने तो अन्त में भी बनेंगे। अब नहीं तो अन्त में भी नहीं। इसलिए इस अलबेलेपन की नींद से भी जग जाओ। इसमें भी सोया तो खोया। फिर उलाहना नहीं देना कि हमने समझा था अन्त में सम्पूर्ण होना है। अन्त में सम्पूर्ण होने के अर्थ को भी समझो। कोई भी विशेष कमज़ोरी को अन्त में सम्पूर्ण करेंगे, यह कभी भी संकल्प में भी नहीं लाओ। पुरूषार्थ कर ब्राह्मण जीवन का जेवर भी अभी तैयार करना है। मर्यादायें और नियम पालन करने के नंग भी अभी से लगाने हैं। पॉलिश भी अभी करनी है। अन्त में तो सिर्फ पॉलिश किये हुए को निमित्त मात्र हाथ लगाना है। बस उस समय पॉलिश भी नहीं कर सकेंगे। सिर्फ अन्य आत्माओं की श्रेष्ठ सेवा के प्रति समय मिलेगा। उस समय पुरुषार्थी स्वरूप नहीं होगा। मास्टर दाता का स्वरूप होगा। देना ही लेना होगा। सिर्फ लेना खत्म तो पॉलिश कैसे करेंगे। अगर अपने में नंग लगाने में ही रहेंगे त् विश्व-कल्याणकारी का पार्ट बजा नहीं सकेंगे। इस लिए अभी मास्टर रचयिता बनने के संस्कार धारण करो। बचपन के संस्कार समाप्त करो। मास्टर रचयिता बन प्राप्त हुई शक्तियों व प्राप्त हुआ ज्ञान, गुण, व सर्व खज़ानें औरों के प्रति वरदानी बन व महाज्ञानी बन व महादानी बनकर देते चलो। वरदानी अर्थात् अपनी शक्तियों द्वारा वायुमण्डल व वायब्रेशन के प्रभाव से आत्माओं को परिवर्तन करना। महाज्ञानी अर्थात् वाणी द्वारा व सेवा के साधनों द्वारा आत्माओं को परिवर्तन करना। महादानी अर्थात् बिल्कुल निर्बल, दिलशिकस्त असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल दे करके रूहानी रहमदिल बनना। माया का भी रहमदिल बनना होता है। कोई गलत काम कर रहा है और आप तरस कर रहे हो तो यह माया का रहमदिल बनना है। ऐसे समय पर लॉफुल बनना भी पड़ता है। होता लगाव है और समझते हैं रहम। इसको कहा जाता है, माया का रहम। ऐसा रहमदिल नहीं बनना है। इसलिए कहा - रूहानी रहमदिल। नहीं तो शब्द का भी एडवान्टेज (Advantage) लेते हैं। तो महादानी अर्थात् बिल्कुल होपलेस केस में होप (Hope) पैदा करना। अपनी शक्तियों के आधार से उनको सहयोग देना। अर्थात् महादान देना, यह प्रजा के प्रति है। वारिस क्वालिटी के प्रति महादानी नहीं। दान सदा बिल्कुल गरीब को दिया जाता है। बेसहारे को सहारा दिया जाता है। तो प्रजा के प्रति महादानी व अन्त में भक्त आत्माओं के प्रति महादानी। आपस में एक दूसरे के प्रति ब्राह्मण महादानी नहीं। वह तो आपस में सहयोगी साथी हो। भाई-भाई हो व हमशरीक पुरुषार्थी हो। सहयोग दो, दान नहीं देंगे। समझा। तो अब इस संकल्प को भी समाप्त कर लो। कभी हो जायेगा, यह `कब' शब्द भी खत्म। तीव्र पुरुषार्थी `कब' नहीं लेकिन `अब' कहते हैं। तो सदा तीव्र पुरुषार्थी बनो।

ऐसे सदा विश्व-कल्याणकारी, महान पवित्र आत्माएँ, संकल्प व स्वप्न में भी अपवित्रता से परे रहने वाले ऐसे परम पूज्य, अब भी माननीय गायन योग्य, कर्मयोगी, सदा स्व संकल्प और स्वरूप द्वारा सेवाधारी, ऐसे पुण्य आत्माओं को, वरदानी महादानी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

अमृत बेला और मनसा सेवा

अव्यक्त बाप-दादा के मधुर महावाक्य – पार्टीयों के साथ

सभी एवररेडी (Ever Ready)) और ऑलराउण्डर (All Rounder हो? एवररेडी माना ऑर्डर (Order) आया और चल पड़े अर्थात् ऑर्डर मिला और हाँ जी। क्या करें कैसे करें? - नहीं। क्या होगा, कैसे होगा, चल सकेंगे या नहीं चल सकेंगे? ऐसा संकल्प आया तो एवररेडी नहीं कहा जायेगा। तीव्र पुरुषार्थी की विशेषता है ही एवररेडी और ऑलराउण्डर। मनसा सेवा का चान्स मिले या वाचा सेवा का चान्स मिले या कर्मणा सेवा का चान्स मिले लेकिन हर सबजेक्ट (Subject) में नम्बर वन। ऐसे नहीं वाचा में नम्बरवन, कर्मणा में नम्बर टू और मनसा में नम्बर थ्री। जितना स्नेह से वाचा सेवा करते हो उतना ही मनसा सेवा भी कर सकें। मनसा सेवा का अभ्यास बढ़ाओ। वाचा सेवा तो 7 दिन के कोर्स वाले प्रवृत्ति वाले भी कर सकते हैं। आप का कार्य है - वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाना। अपने स्थान का, शहर का, भारत का व विश्व का वायुमण्डल पॉवरफुल बनाओ। चेक करो मनसा सेवा में सफलता मिलती है? अगर मनसा सेवा में सफलता होगी तो सदा स्वयं और सेवा केन्द्र निर्विघ्न और चढ़ती कला में होगा। चढ़ती कला यह नहीं कि संख्या वृद्धि को पाये। चढ़ती कला संख्या में भी, क्वालिटी भी और वायुमण्डल भी तथा स्वयं साथियों में भी चढ़ती कला। इसको कहा जाता है - `चढ़ती कला' तो ऐसे अनुभव करते हो? अमृतबेला स्वयं का पॉवरफुल है? ऐसे तो नहीं अमृतवेला में अलबेलापन विघ्न बनता हो। ऐसा पॉवरफुल अमृतवेला है जो विश्व को लाईट और माईट का वरदान दो? अमृतवेला की याद से आप अपने-आप से सन्तुष्ट हो?

मुख्य सबजेक्ट है ही `याद' की। बाप-दादा अमृतवेले जब चक्र लगाते हैं तो थोड़ा पॉवरफुल वायब्रेशन की कमी दिखाई देती है। नेमीनाथ तो बन जाते हैं, लेकिन अनुभवी मूर्त बनो। नियम प्रमाण तो जबरदस्ती हो गया ना। अगर अनुभव हो गया तो अपनी लगन में बैठेंगे। जिस बात का अनुभव होता है तो न चाहते भी वह बात अपनी तरफ खींचती है। जैसे वाचा सर्विस से खुशी का अनुभव होता है तो न चाहते भी उस तरफ दौड़ते हो ना। ऐसे ही अमृतवेले को पॉवरफुल बनाओ। जिससे मनसा सेवा का अनुभव बढ़ा सकेंगे। लास्ट में वाचा सेवा का चान्स नहीं होगा। मनसा सेवा पर सर्टिफिकेट मिलेगा। क्योंकि इतनी लम्बी क्यू (Queue) होगी जो बोल नहीं सकेंगे। जैसे अभी भी मेला करते हो तो भीड़ के समय क्या करते हो? शान्ति से उनको शुभ भावना और कामना से दृष्टि देते हो ना। तो अन्त में भी जब प्रभाव निकलेगा तो क्या होगा? अभी तो स्थूल लाईट के प्रभाव से आते हैं फिर उस समय आप आत्मा की लाईट का प्रभाव होगा, उस समय मनसा सेवा करनी पड़ेगी। नज़र से निहाल करना पड़ेगा। अपनी वृत्ति से उनकी वृत्ति बदलनी होगी। अपनी स्मृति से उनको समर्थ बनाना पड़ेगा। फिर उस समय भाषण करेंगे क्या? तो मनसा सेवा का अभ्यास जरूरी है। अनुभवी मूर्त बन जाओ। जो दूसरों को कहो, वह स्व अनुभव के आधार से कहो, समझा, मनसा सेवा को बढ़ाओ। अभी निर्विघ्न वायुमण्डल बनाओ जिसमें कोई भी आत्मा की हिम्मत न हो विघ्न रूप बनने की। विघ्न आया उसको हटाया, यह भी टाइम वेस्ट हुआ। तो अब किले को मजबूत बनाओ। आपस में स्नेही सहयोगी बनकर चलो तो सभी फॉलो करेंगे। स्वयं जो करेंगे वैसे सब फॉलो करेंगे।

2. सभी अंगद के समान अचल अडोल रहने वाले हो ना। रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके, नाखुन को भी न हिला सके। संकल्प में हिलना अर्थात् नाखुन हिलना। तो संकल्प रूप में भी न व्यक्ति, न परिस्थिति हिला सके, कभी कोई सम्बन्धी या दैवी परिवार का भी ऐसा निमित्त बन जाता है जो विघ्न रूप बन जाता है। लेकिन अंगद के समान सदा अचल रहने वाला व्यक्ति हो, विघ्न को और परिस्थितियों को पार कर लेगा क्योंकि नॉलेजफुल है। वह जानता है कि यह विघ्न क्यों आया। ये विघ्न गिराने के लिए नहीं है लेकिन और ही मजबूत बनाने के लिए हैं। वह कन्फ्यूज (Confuse) नहीं होगा। जैसे इम्तिहान के हाल में जब पेपर आता है तो कमज़ोर स्टूडेन्ट कन्फ्यूज हो जाते हैं, अच्छे स्टूडेन्ट देखकर खुश होते हैं क्योंकि बुद्धि में रहता है कि यह पेपर देकर वह क्लास आगे बढ़ेगा। उन्हें मुश्किल नहीं लगता। कमज़ोर क्वेश्चन ही गिनती करते रहेंगे। ऐसा क्वेश्चन क्यों आया, ये किसने निकाला, क्यों निकाला तो यहाँ भी कोई निमित्त पेपर बनकर आता है तो यह क्वेश्चन नहीं उठना चाहिए कि यह क्यों करता है, ऐसा नहीं करना चाहिए। जो कुछ हुआ अच्छा हुआ, अच्छी बात उठा लो। जैसे हँस मोती चुगता है ना, कंकड़ को अलग कर देता है। दूध और पानी को अलग कर देता है। दूध ले लेता है, पानी छोड़ देता है। ऐसे कोई भी बात सामने आये तो पानी समझकर छोड़ दो। किसने मिक्स किया, क्यों किया - यह नहीं, इसमें भी टाइम वेस्ट हो जाता है। अगर क्यों, क्या करते इम्तिहान की अन्तिम घड़ी हो गई तो फेल हो जायेंगे। वेस्ट किया माना फेल हुआ। क्यों-क्या में श्वास निकल जाए तो फेल। कोई भी बात फील करना माना फेल होना। माया शेर के रूप में भी आये तो आप योग की अग्नि जलाकर रखो, अग्नि के सामने कोई भी भयानक शेर जैसी चीज़ भी वार नहीं कर सकती। सदा योगाग्नि जगती रहे तो माया किसी भी रूप में आ नहीं सकती। सब विघ्न समाप्त हो जायेंगे।



25-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"बिन्दु (ज्ञान सिन्धु परमात्मा) का बिन्दु (आत्मा) से मिलन"

आज बाप-दादा मिलने के लिए आये हैं। मुरली तो बहुत सुनी है। सर्व मुरलियों का सार एक ही शब्द है - ``बिन्दु'' जिसमें सारा विस्तार समया हुआ है। बिन्दु तो बन गये हो ना? बिन्दु बनना, बिन्दु को याद करना और जो कुछ बीता उसको बिन्दु लगाना। यह सहज अनुभव होता है ना? यह अति सूक्ष्म और अति शक्तिशाली है। जिससे आप सब भी सूक्ष्म फरिश्ता बन, मास्टर सर्व शक्तिवान बन पार्ट बजाते हो। सार तो सहज है ना या मुश्किल है? डबल फॉरेनर्स क्या समझते हैं? सहज है या डबल फॉरेनर्स को डबल इजी है? अब तो बाप-दादा सार स्वरूप देखना चाहते हैं।

हरेक बच्चा ऐसा दिव्य दर्पण हो जिस दर्पण द्वारा हर मनुष्य आत्मा को अपने तीनों काल दिखाई दें। ऐसे त्रिकालदर्शन कराने वाले दर्पण हो? जिस दर्पण से, `क्या था' और `अभी क्या हूँ'और `भविष्य में क्या मिलना है' - यह तीनों काल स्पष्ट दिखाई देने से सहज ही बाप से वर्सा लेने के लिए आकर्षित होते हुए आयेंगे। जब साक्षात्कार करेंगे अर्थात् जानेंगे और ऐसे जानेंगे जैसे स्पष्ट देखने का अनुभव हो। तो जब जानेंगे अर्थात् अनुभव करेंगे व देखेंगे कि अनेक जन्मों की प्यास व अनेक जन्मों की आशायें - मुक्ति में जाने की व स्वर्ग में जाने की, अभी पूर्ण होने वाली हैं तो सहज ही आकर्षित होते आयेंगे। दो प्रकार की आत्मायें हैं। भक्त आत्मायें प्रेम में लीन होना चाहती हैं और कोई आत्मायें ज्योति में लीन होना चाहती हैं। दोनों ही लीन होना चाहती हैं। ऐसी आत्माओं को सेकेण्ड में बाप का परिचय, बाप की महिमा और प्राप्ति सुनाए, सम्बन्ध की लवलीन अवस्था का अनुभव कराओ। लवलीन होंगे तो सहज ही लीन होने के राज को भी समझ जायेंगे। तो वर्तमान समय `लवलीन' का अनुभव कराओ। भविष्य लीन का रास्ता बताओ। तो सहज ही प्रजा बनाने का कार्य हो जायेगा। ऐसे त्रिकालदर्शी बनाने का दिव्य दर्पण बने हो? ऐसे दिव्य दर्पण में अपने पुरूषार्थ के हर समय की रिजल्ट का चित्र खींचो कि समर्थ रहे या व्यर्थ में गये। व्यर्थ का पोज और समर्थ का पोज दोनों ही दिखाई देंगे। समर्थ का पोज क्या होगा - मास्टर सर्व शक्तिवान व दिलतख्तनशीन। व्यर्थ का पोज क्या होगा - सदा युद्ध के रूप में योद्धे का पोज होगा। तख्तनशीन नहीं लेकिन युद्ध स्थल पर खड़े हैं। तख्तनशीन सफलता मूर्त और युद्ध स्थल में खड़े हुए मेहनती की मूर्त होंगे। छोटी-सी बात में भी मेहनत ही करते रहेंगे। वह याद स्वरूप होंगे, वह फरियाद स्वरूप। ऐसे अपना भी स्वरूप देखते रहेंगे और दूसरे को भी तीनों काल का दर्शन करायेंगे। ऐसे दिव्य दर्पण बनो। समझा।

आज तो डबल फॉरेनर्स और गुजरात से मिलना है। दोनों की डान्स करने में राशी एक ही है। वह भ् नाचते हैं और यह भी खूब नाचते हैं। गुजरात वाले भी प्रेम स्वरूप हैं और डबल फॉरेनर्स भी प्यार के अनुभव के आधार पर भागते हैं। ज्ञान के साथ-साथ प्यार मिला है। उस रूहानी प्यार ने ही इन्हें प्रभु का बनाया है। डबल प्यार मिलता है। एक बाप का दूसरा परिवार का। तो प्यार के अनुभव ने परवाना बनाया है। प्यार विदेशियों के लिए चुम्बक का काम करता है। फिर सुनने व मरने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। यह मरना तो पसन्द है ना। ये मरना अर्थात् स्वर्ग में जाना। इसलिए मरने वाले के लिए कहते हैं - स्वर्ग गया। वह मरने वाले नहीं जाते हैं, लेकिन संगम पर जो मरा, वह स्वर्ग गया। इसकी कॉपी करके जो देह से मरते हैं उसके लिए अखबार में डालते हैं कि फलाना स्वर्ग गया। तो मरना पसन्द है ना! अपनी मर्जा से मरे हो ना, मजबूरी से तो नहीं। यह सारी सभा मरजीवा बनने वालों की है। कहाँ साँस रूका हुआ तो नहीं है ना पुरानी दुनिया में। यही वन्डर है जो मरे हुए भी हँसते हैं। (फॉरेनर्स बाबा की बातों से हँस रहे थे।)

आप लोगों की क्रिश्चियन फिलासाफी में भी है कि मुर्दो में आकर जान डालते हैं। पहले मुर्दे बने फिर जान पड़ गई। नया जन्म हो गया। इस मरने में मजा है, डर नहीं है।

दीदी जी से - वर्तमान समय महावीरों की वतन में विशेष महफिल लगती है। क्यों लगती है, वह जानती हो? आजकल बाप-दादा ने जैसे स्थापना में ब्रह्मा के सम्पूर्ण स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने की सेवा ली, ऐसे आजकल अष्ट रतन सो इष्ट रतन उनको भी शक्ति के रूप में साथ-साथ साक्षात्कार कराने की सेवा कराते हैं। स्थूल शरीर द्वारा साकारी ईश्वरीय सेवा में बिजी रहते हो लेकिन आजकल अनन्य श्रेष्ठ आत्माओं की डबल सेवा चल रही है। जैसे ब्रह्मा द्वारा स्थापना की वृद्धि हुई वैसे अभी शिव शक्ति के कम्बाइन्ड साक्षात्कार द्वारा साक्षात्कार और सन्देश मिलने का कार्य आपके सूक्ष्म शरीरों द्वारा भी हो रहा हैं। तो बाप-दादा अनन्य बच्चों को इस सेवा में भी सहयोगी बनाते हैं। इसलिए सूक्ष्म सेवा के प्रैक्टिकल प्लैन के कारण वहाँ महफिल लगती है। इसलिए महावीर बच्चों को कर्म करते भी किसी भी कर्मबन्धन से मुक्त, सदा डबल लाईट रूप में रहना है। बाप ने सूक्ष्म वतन में इमर्ज किया, सेवा कराई - उसकी अनुभूति आगे चलकर बहुत करेंगे। डबल सेवा का पार्ट चल रहा है। बाप-दादा अनन्य बच्चों के संगठन द्वारा भक्तों को और वैज्ञानिकों को, दोनों को टचिंग कराने की सेवा कराते रहते हैं। उनमें अनन्य भक्ति के संस्कार भर रहे हैं जो आधा कल्प भक्ति मार्ग को चलाते रहेंगे। और वैज्ञानिकों को परिवर्तन करने और रिफाइन साधन बनाने में। जो साधन जैसे ही सम्पन्न होंगे तो उसका सुख सम्पूर्ण आत्मायें लेंगी। ये (वैज्ञानिक) नहीं ले सकेंगे। तो दोनों ही कार्य सूक्ष्म सेवा द्वारा हो रहे हैं। समझा।

सारे दिन में सूक्ष्म वतन वासी कितना समय होकर रहती हो? कि स्थूल सेवा ज्यादा है। आप लोग कितना भी बिजी रहो, बाप तो अपना कार्य करा ही लेते हैं। अपने सम्पूर्ण आकार का अनुभव किया है? जैसे साकार आकार हो गये, आप सबका भी सम्पूर्ण आकारी स्वरूप है। जो नम्बरवार हरेक साकार आकार बन जायेंगे। आकार बन करके सेवा करना अच्छा है या साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा करना अच्छा। एडवान्स पार्टी तो साकार शरीर परिवर्तन कर सेवा कर रही है। लेकिन कोई कोई का पार्ट अन्त तक साकारी और आकारी रूप द्वारा भी चलता है। आपका क्या पार्ट है? किसका एडवान्स पार्टी का पार्ट है, किसका अन्त: वाहक शरीर द्वारा सेवा का पार्ट है। दोनों पार्ट का अपना-अपना महत्व है। फर्स्ट सेकेण्ड की बात नहीं। वैराइटी पार्ट का महत्व है। एडवान्स पार्टी का भी कार्य कोई कम नहीं है। सुनाया ना वह जोर-शोर से अपने प्लैन बना रहे हैं। वहाँ भी नामीग्रामी हैं।

पार्टीयों से - सभी सदा मणी के समान चमकते हो? मणी सदा चमकती है ना। एक-एक मणी की कितनी वैल्यू होती है। वो अमूल्य रतन हैं जिसकी कीमत आज के मानव कुछ कर नहीं सकते क्योंकि बाप के बन गये ना, जो बाप के बने वह अमूल्य रतन हो गये। सारे विश्व के अन्दर सर्वश्रेष्ठ आत्मा हो गये। इतनी खुशी रहती है? जैसे शरीर का आक्यूपेशन सदा याद रहता है वैसे आत्मा का आक्यूपेशन भी कभी भूलना न चाहिए। संगमयुग का श्रेष्ठ भाग्य ही है - बाप के अमूल्य रतन बनना। इस भाग्य को भूल कैसे सकते हैं! सभी सेवा में सहयोग देते हैं। ऑलराउण्ड सेवाधारी। सेवा का चान्स मिलना, यह भी ड्रामा में एक लिफ्ट है। जितनी यज्ञ सेवा करते हैं उतना प्राप्तियों का प्रसाद स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। निर्विघ्न रहते हैं। एक बारी सेवा की और हजार बारी सेवा का फल प्राप्त हो गया। सदा स्थूल सूक्ष्म लंगर लगा रहे। किसी को सन्तुष्ट करना यह सबसे बड़ी सेवा है। मेहमान निवाजी करना, यह सबसे बड़ा भाग्य है, कहते भी हैं - मेहमान भाग्यशाली के घर में आते हैं।

2. सभी माया को जानते हुए माया से अनजान रहते हो? जैसे देवतायें `माया' शब्द को ही नहीं जानते, उनसे पूछो कि माया क्या है - तो अनजान है ना। ऐसे आप माया को जानते हुए ``माया'' के वार से अनजान रहो। माया को ऐसे समाप्त कर दो जो नामनिशान ही खत्म हो जाए। माया कभी मेहमान तो नहीं बनती हैं ना। दरवाजा बन्द है? अगर किला मजबूत होता है तो दुश्मन नहीं आता है। ऊँच स्टेज पर रहना अर्थात् ऊँची दीवार। कभी भी नीचे की स्टेज में नहीं आना। जब बाप के बन गये तो बाप का बनना अर्थात् मेरा पन समाप्त होना। मोह की उत्पत्ति का आधार है - `मेरा'। जब मेरा ही नहीं तो मोह कहाँ से आया। जब अपने को हद का रचयिता समझते हो तो विकारों की उत्पत्ति होती है। सदा भाई-भाई की स्मृति में रहो तो कोई भी विकार उत्पन्न नहीं हो सकते।



28-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"सम्पूर्ण ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्राह्मणों के सम्पूर्ण स्वरूप के अन्तर का कारण और निवारण"

आज हरेक बच्चे का डबल स्वरूप देख रहे हैं। कौन-सा डबल रूप? एक वर्तमान पुरुषार्थी स्वरूप, दूसरा वर्तमान जन्म का अन्तिम सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप। इस समय `हम सो, सो हम' के मन्त्र में पहले हम सो फरिश्ता स्वरूप हैं फिर भविष्य में हम सो देवता रूप है। आज वतन में, सभी बच्चों के नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार, जो अन्तिम फरिश्ता स्वरूप बनना है, उस रूप को इमर्ज किया। जैसा साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा। दोनों के अन्तर को देखते और अनुभव करते थे कि पुरुषार्थी और सम्पूर्ण में क्या अन्तर है। ऐसे आज बच्चों के अन्तर को देख रहे थे। दृश्य बहुत अच्छा था। नीचे तपस्वी पुरुषार्थी रूप और ऊपर खड़ा हुआ फरिश्ता रूप। अपना-अपना रूप इमर्ज कर सकते हो? अपना सम्पूर्ण रूप दिखाई देता है? सम्पूर्ण ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्राह्मण। हरेक समझते हैं कि ब्रह्मा और हमारे सम्पूर्ण रूप में कितना अन्तर होगा। नम्बरवार तो हैं ना। वहाँ क्या हुआ! नम्बरवार फरिश्ता स्वरूप बहुत बड़े सार्किल में राज्य दरबार के रूप में इमर्ज थे। लाइट के शेड में अन्तर था। कोई विशेष चमकता हुआ रूप था, कोई मध्यम प्रकाश रूप था, लेकिन विशेष अन्तर मस्तक के बीच चमकती हुई मणी के रूप में आत्मा का था। किसी की चमक और लाइट का विस्तार अर्थात् लाइट फैली हुई ज्यादा भी। किसी की चमकती हुई लाइट थी लेकिन फैली हुई नहीं थी। किसी की लाइट ही कम थी। बाप-दादा ने सब बच्चों के अन्तर को चेक किया। तो देखा यन्त्र की स्पीड तेज है। पुरुषार्थी और सम्पूर्णता दोनों की समानता का अन्तर भी ज्यादा दिखाई दिया। जैसे विज्ञान के यन्त्र की स्पीड तेज है वैसे समानता के पुरूषार्थ की स्पीड उससे कम थी।

सिर्फ ग्रहण नहीं, गुण ग्रहण करो

बाप-दादा की रिजल्ट के ऊपर रूह-रूहान चली कि इतना अन्तर क्यों? ब्रह्मा बाप बोले - ``मेरे सभी बच्चे नॉलेजफुल हैं।'' शिव बाप बोले - ``नॉलेजफुल के साथ त्रिकालदर्शी भी हैं। समझने और समझाने में बहुत होशियार हैं। बाप को फॉलो करने में भी होशियार है। इन्वेन्टर भी हो गये हैं, क्रियेटर भी हो गये हैं, बाकी क्या रह गया, जो अन्तर बड़ा हो गया है। इसका क्या कारण है?'' कारण तो छोटा-सा ही है। ब्रह्मा बाप बोले - ``बच्चों की ग्रहण करने की शक्ति बहुत तेज है। इसलिए ज्ञान, गुण और शक्तियों को ग्रहण करने के साथसाथ दूसरों की कमज़ोरियों को भी ग्रहण करने की शक्ति तेज है। ग्रहण करने की शक्ति के आगे गुणग्राहक शब्द भूल जाता है। इसलिए अच्छाई के साथ कमज़ोरियाँ भी साथ में ग्रहण कर लेते हैं।'' और फिर क्या करते हैं - फिर एक खेल वहाँ इमर्ज हुआ। जो यहाँ आपकी प्रदर्शनियों में एक चित्र भी है। आपका चित्र दूसरे लक्ष्य से है लेकिन रूपरेखा वही है। वह चित्र है - शान्ति का दाता कौन? ऐसी रूप-रेखा से कुछ बच्चे इमर्ज हुए। फिर क्या हुआ? कोई एक कमज़ोरी की बात पहले नम्बर में खड़े हुए बच्चे को सुनाई गई कि यह बात तीव्र पुरूषार्थ के हिसाब से ठीक नहीं है। तो क्या हुआ? उसने इशारा किया दूसरे की तरफ कि यह मेरी बात नहीं है लेकिन इनकी बात है। दूसरे ने कहा कि तीसरे ने भी ऐसे ही किया था तब मैंने किया। चौथे ने कहा कि यह तो महारथी भी करते हैं। पाँचवे ने कहा कि ऐसे सम्पूर्ण कौन बना है। छठे ने कहा अरे, यह तो होता ही है। सातवें ने कहा फिर तो सम्पूर्ण हो के सूक्ष्मवतन में चले जायेंगे। आठवें ने कहा बाप-दादा तो इशारा दे रहे हैं, करना तो चाहिए लेकिन संगठन है, न चाहते भी कुछ कर लेते हैं - ऐसे पुरूषार्थ की बात एक दूसरे के ऊपर देखते और रखते हुए बात ही बदल गई। ऐसे आजकल का प्रैक्टिकल खेल बहुत चलता है। और इसी खेल में लक्ष्य और लक्षण में महान अन्तर पड़ जाता है। तो कारण क्या हुआ? इसी संस्कार के कारण सम्पूर्ण संस्कार अभी तक इमर्ज नहीं हो सकते है।

तो बाप-दादा बोले इस खेल के कारण पुरुषार्थी और सम्पूर्णता का मेल नहीं हो सकता। मूल कारण ग्रहण करने की शक्ति है, लेकिन गुण ग्राहक बनने की शक्ति कम है। दूसरी बात इस खेल से भी समझ में आ गई होगी कि अपनी गलती को दूसरे पर डालना आता है, लेकिन अपनी गलती को महसूस कर स्वयं पर डालना नहीं आता। इसलिए बाप-दादा ने कहा कि नॉलेजफुल हैं, छुड़ाने में होशियार हैं, लेकिन स्वयं को, बदलने में कम। और भी एक कारण निकला। वह क्या होगा? जिस कारण से प्रत्यक्षता होने में कुछ देरी पड़ रही है?

स्वचिन्तक और शुभचिन्तक बनो

वह कारण है - स्व-चिन्तन। स्व के प्रति `स्व-चिन्तक' और औरों के प्रति `शुभ-चिन्तक'। स्व-चिन्तन अर्थात् मनन शक्ति और शुभ चिन्तक अर्थात् सेवा की शक्ति। वाच् की सेवा के पहले शुभचिन्तक भावना से जब तक धरती को तैयार नहीं किया है, तब तक वाचा की सेवा का भी फल नहीं निकलता। इसलिए पहले सेवा का आधार है - शुभचिन्तक। यह भावना आत्माओं की ग्रहण शक्ति बढ़ाती है। जिज्ञासा को बढ़ाती है। इस कारण वाणी की सेवा सहज और सफल हो जाती है। तो स्व के प्रति स्व-चिन्तन वाला सदा माया प्रूफ, किसी की भी कमज़ोरियों को ग्रहण करने से प्रूफ होगा। व्यक्ति व वैभव की आकर्षण से प्रूफ हो जाता है। इसलिए दूसरा कारण निवारण के रूप में सुनाया - `शुभ-चिन्तक और स्व-चिन्तक बनो'। दूसरे को नहीं देखो। स्वयं करो। आप सब पुरुषार्थीयों का स्लोगन है ``मुझे देखकर और करेंगे।'' `और को देखकर मैं करूँगा' यह नहीं है। तो सुना, क्या रूह-रूहान चली?

आजकल बाप-दादा कौन-सा काम कर रहे हैं? फाइनल माला बनाने के पहले मणकों के सिलेक्शन का सेक्शन बना रहे हैं। तब तो जल्दी-जल्दी पिरोते जायेंगे ना। तो हरेक अपने-आपको देखो मैं किस सेक्शन में हूँ। नम्बरवन हैं 8 रतन और सेकेण्ड हैं 100, थर्ड हैं 16 हजार। नम्बरवन की निशानी क्या है? नम्बर वन आने का सहज साधन है - जो नम्बरवन ब्रह्मा बाप है, उसी वन को देखो। देखने में तो होशियार हो ना। अनेकों को देखने के बजाए एक को देखो। तो सहज हुआ या मुश्किल हुआ? सहज है ना। तो 8 रतनों में आ जायेंगे। सेकेण्ड और थर्ड को तो जानते ही हो।

जैसे भाग्य में अपने को आगे करते हो, वैसे त्याग में `पहले मैं'। जब त्याग में हरेक ब्राह्मण आत्मा `पहले मैं' कहेगा तो भाग्य की माला सबके गले में पड़ जायेगी। आपके सम्पूर्ण स्वरूप सफलता की माला लेकर आप पुरुषार्थीयों के गले में डालने के लिए नज़दीक आ रहे हैं। अन्तर को मिटा दो। हम सो फरिश्ता का मन्त्र पक्का कर लो तो साइन्स का यन्त्र अपना काम शुरू करे और हम सो फरिश्ते से, हम सो देवता बन नई दुनिया में अवतरित होंगे। ऐसे साकार बाप फॉलो करो। साकार को फॉलो करना तो सहज है ना। तो सम्पूर्ण फरिश्ता अर्थात् साकार बाप को फॉलो करना।

आज कर्नाटक का जोन है। कर्नाटक की विशेषता बहुत अच्छी है। कर्नाटक वाले शमा पर परवाने बन जलने में होशियार हैं। वहाँ परवाने बहुत हैं। जलने में नम्बर वन हैं। जलने के बाद है चलना। तो जलने में बहुत होशियार हो। चलने में थोड़ा क्या करते हैं! चलने में चलते-चलते बाईप्लाट बहुत दिखाते हैं। भावना मूर्त नम्बरवन हैं। स्नेही और सहयोगी मूर्त्त भी हैं। कर्नाटक निवासियों की विशेषता रचयिता बनने में होशियार है। विष्णु बनना कम आता है। शंकर रूप अर्थात् विघ्न-विनाशक - उसका भी पुरूषार्थ अभी और ज्यादा चाहिए। फिर भी बाप-दादा कर्नाटक निवासियों को मुबारक देते हैं। क्यों मुबारक देते हैं? क्योंकि प्रेम स्वरूप लगन में मगन रहने में अच्छे पुरुषार्थी हैं। अभी आगे कर्नाटक को क्या करना है, जो रह गया है? कर्नाटक की धरती फलदायक है। वी.आई.पी. के फल देने योग्य हैं। और सहज ही सम्बन्ध में आने वाले हैं। सिलवर जुबली में प्रत्यक्ष फल नहीं दिया है। वी.आई.पी. का ग्रुप कहाँ लाया है? जैसे सहज धरनी है वैसे भारत में आवाज फैलाने के निमित्त बनने वाली आत्मायें वहाँ से निकल सकती हैं। भारत की हिस्ट्री में नामीग्रामी आत्मायें कर्नाटक में बहुत है। जिस एक द्वारा बहुतों का कल्याण सहज हो सकता है। सिलवर जुबली की सौगात क्या लाई है? कर्नाटक अभी कमाल दिखाये।

ऐसे सदा स्व-चिन्तक और शुभ चिन्तक, सदा फॉलो फादर, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन करने वाले, ऐसे विश्व-कल्याणकारी, सर्व आत्माओं द्वारा सत्कारी, सदा त्याग में पहले मैं करने वाले, ऐसे श्रेष्ठ भाग्यशाली, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।



30-01-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"स्नेह, सहयोग और शक्ति स्वरूप के पेपर्स की चेकिंग और रिजल्ट"

आज बाप-दादा चारों ओर के श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। चारों ओर के बच्चों का एक ही स्नेह और याद का संकल्प है। अच्छे-अच्छे सर्विस एबुल, सहजयोगी बच्चे बाप-दादा के सदा साथ हैं। दूर होते हुए भी स्नेह के आधार पर अति समीप हैं। आज बाप-दादा हरेक बच्चे के स्नेह, सहयोग और शक्ति स्वरूप की श्रेष्ठ मूर्त देख रहे थे। आदि से अब तक तीनों ही विशेषताओं में विशेष कितने मार्क्स रहे हैं? स्नेह में तीन बातें विशेष देखीं –

1. अटूट स्नेह - परिस्थितियाँ वा व्यक्ति स्नेह के धागे को तोड़ने की कितनी भी कोशिश करें लेकिन परिस्थितियों और व्यक्तियों की ऊँची दीवारों को भी पार कर सदा स्नेह के धागे को अटूट रखा है। कारण व कमज़ोरी की गाँठ बार-बार नहीं बाँधी है। ऐसा अटूट स्नेह है।

2. सदा सर्व सम्बन्धों से प्रीति की रीति प्रैक्टिकल में निभाई है। एक सम्बन्ध की भी प्रीति निभाने में कमी नहीं।

3. स्नेह का प्रत्यक्ष रिटर्न अपने स्नेही मूर्त द्वारा कितनों को बाप का स्नेही बनाया है। सिर्फ ज्ञान के स्नेही नहीं या प्योरिटी के स्नेही या बच्चों के जीवनपरिवर्त न के स्नेही नहीं या श्रेष्ठ आत्माओं के स्नेही नहीं, लेकिन `डायरेक्ट बाप के स्नेही'। आप अच्छे हो, ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छा है - यहाँ तक नहीं, लेकिन बाप अच्छे-से-अच्छा है। इसको कहा जाता है बाप के स्नेही बनाना। तो स्नेह में इन तीन बातों की विशेषता देखी।

2. सहयोग में - मुख्य बात 1. निष्काम सहयोगी हैं? 2. सहयोग में मनसा- वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध और सम्पर्क में इन सभी रूप के सहयोगी सदा रहे हैं? 3. ऐसे योग्य सच्चे सहयोगी कितने बनाये हैं?

3. शक्ति स्वरूप

1. मास्टर सर्वशक्तिवान बने हैं या शक्तिवान।

2. समय पर शक्तियों के शस्त्र का लाभ ले सके कि शस्त्र लॉकर में पड़े हुए हैं।

3. स्व की शक्तियों की प्राप्ति द्वारा औरों को मास्टर सर्वशक्तिवान कहॉ तक बनाया है?

इन तीन बातों की विशेषता चेक कर रहे थे। सुनाया ना आजकल पेपर्स चेक हो रहे हैं। तो आज यह पेपर चेक हुआ। रिजल्ट क्या हुई? तीनों की टोटल मार्क्स में फुल पास, पास और रहम करके पास करने वाले, तीनों नम्बरवार रहे। फुल पास वाले आधे से भी कम। पास वाले 70% और रहम के पास करने वालों की भी लम्बी लिस्ट थी। अब आगे क्या करना हैं?

यह रिजल्ट है बाप के स्वरूप की। अभी भी बाप के रूप में चैक कर रहे हैं। लेकिन फाइनल रिजल्ट में बाप के साथ-साथ धर्मराज भी होंगे। उस फाइनल रिजल्ट के लिए अभी सिर्फ एक मार्जिन है। लास्ट चान्स है। वह कौन-सा?

1. एक तो दिल के अविनाशी वैराग द्वारा अपनी बीती हुई बातों को, संस्कार रूपी बीज को जला दें। यह जलाने का यज्ञ रचें।

2. यह जलाने के साथसाथ अमृतवेले से रात तक ईश्वरीय नियमों और मर्यादाओं को सदा पालन करने का व्रत लें।

3. निरन्तर महादानी बन, पुण्य आत्मा बन प्रजा को दान करें। ब्राह्मणों को सदा सहयोग देने का पुण्य करें। अविनाशी दान-पुण्य का कार्य चलता रहे। चाहे मनसा द्वारा, चाहे वाणी द्वारा या सम्बन्ध व सम्पर्क द्वारा। ऐसे हाई जम्प देने वाला डबल लाइट बन, श्रेष्ठ पुरूषार्थ द्वारा उड़ता पंछी बन रिजल्ट तक पहुँच सकता है। तो फाइनल रिजल्ट तक ऐसे पुरूषार्थ करने का चान्स है। समझा। इसलिए चेकिंग हो रही है कि सुनकर, समझकर लास्ट चान्स लें।

ब्रह्मा बाप बोले - ``साकार रूप द्वारा पालना हुई, अव्यक्त रूप द्वारा पालना हो रही है। अब जैसे साकार पालना वालों को समय-प्रति-समय बहुत चान्स मिले। अब अव्यक्त पालना वालों को भी यह लास्ट चान्स का विशेष हक मिलना चाहिए। इसलिए अव्यक्त पालना वालों को और साकार आकार दोनों की पालना वालों को, दोंनों की चेकिंग में मार्क्स देने में थोड़ा अन्तर रखा गया है। शुरू वालों के पेपर्स और अव्यक्त पालना वालों के पेपर चेक करने में पीछे वालों को 25% एकस्ट्रा मार्क्स हैं। इसलिए लास्ट चान्स जो चाहे सो ले सकते हैं। अभी सीट्स की सीटी नहीं बजी है। इसलिए चान्स लो और सीट लो।

'' कर्नाटक वाले सीट लेने में वैसे भी होशियार है। जैसे यहाँ नज़दीक सीट लेना चाहते हो वैसे फाइनल भी नज़दीक सीट ले लो। कर्नाटक वाले राजी सहज होते हैं ना। सदा ज्ञान के राजों में चलने वाले हैं - नाराज भी नहीं होते।

ऐसे सदा राजयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त कर्म करने वाले, ऐसे सदा श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सर्व शक्तिवान बाप के संग के रंग में रहने वाले, ऐसी रूहानी रूहों को, महादानी, महापुण्य आत्मा बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

विदेश सेवा में सफलता मूर्त बनने के लिए बाप-दादा का इशारा- विदेश की सेवा में विशेष साइलेन्स की शक्ति ज्यादा सफल रहेगी। क्योंकि वहाँ की आत्मायें एक सेकेण्ड की शान्ति के लिए भी जगह-जगह भटकती हैं। तो ऐसी भटकती हुई आत्माओं को एक तो शान्ति और दूसरा रूहानी स्नेह दो। स्नेह से शान्ति का अनुभव कराओ। प्रेम का भी अभाव है और शान्ति का भी अभाव है इसलिए जो भी प्रोग्राम करो उसमें पहले तो बाप के सम्बन्ध के स्नेह की महिमा करो और फिर उस प्यार से आत्माओं का सम्बन्ध जोड़ने के बाद शान्ति का अनुभव कराओ। चाहे ड्रामा करो, चाहे भाषण करो, लेकिन भाषण भी ऐसे हों जैसे प्रेम स्वरूप और शान्त स्वरूप। दोनों का बैलेन्स हो। मुख्य टॉपिक यह हो, बाकी भिन्न-भिन्न रूप हो। भाषण से भी वही अनुभव कराओ और ड्रामा से भी वही अनुभव कराओ तो वैराइटी प्रकार से एक ही अनुभव कराने से छाप लगती है। चाहे छोटे-छोटे प्रोग्राम रखो या बड़ा। लेकिन बड़ा प्रोग्राम करने के पहले सम्पर्क समीप का, वैराइटी प्रकार की आत्माओं का बनाना है। तो क्या होगा? वैराइटी प्रकार की आत्माओं की सेवा करने से हर प्रकार की आत्मायें उसमें शामिल हो जायेंगी। सहयोगी बन जायेंगी और प्रोग्राम की रौनक हो जायेंगी। वैसे भी वैराइटी अच्छी लगती है ना। तो वैराइटी वर्ग वालों का सम्पर्क और सम्बन्ध पहले से ही बनाने से कोई भी कार्य सफल हो जाता है। बाकी जो फॉरेन सर्विस के प्रति निमित्त बने हुए हैं उनको बाप-दादा विशेष सेवा और स्नेह के रिटर्न में पदमगुणा याद प्यार दे रहे हैं।

2. नॉलेज रूपी चाबी लगाने से भाग्य का खज़ाना प्राप्त हो सकता है - इस संगमयुग पर भाग्य बनाने की नॉलेज रूपी चाबी मिलती है। चाबी लगाओ और जितना भाग्य बनाना चाहो उतना भाग्य का खज़ाना ले लो। सभी चाबी लगाने में तो होशियार हो ना। चाबी मिली और मालामाल बन गये। जितना मालामाल बनते जाते हैं उतना स्वत: ही खुशी रहती है। तो सभी ऐसे अनुभव करते हो कि जैसे कोई झरने से पानी निकलता रहता है वैसे खुशी का झरना सदा बहता ही रहे - अखुट और अविनाशी। बाप-दादा भी सदा सभी के भाग्य का सितारा देख हर्षित होते हैं।



01-02-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"सूक्ष्म वतन की कारोबार"

आज विशेष भाववान बच्चों से मिलने आये हैं। जितने भाववान हैं उतने भाग्यवान भी हैं। भाग्यवान बच्चों से भाग्यविधाता बाप मिलने आये हैं। बाप-दादा के पास सर्व बच्चों की भावना, स्नेह और सेवा का सारा चार्ट रहता है। जैसे पुरानी दुनिया के मार्शल्स के पास अपने एरिया और सेना का चार्ट व नक्शा रहता है वैसे बाप के पास भी हर सेवास्थान और सेवाधारियों का चार्ट व नक्शा है। जिस चार्ट द्वारा हरेक स्थान और सेवाधारियों के हर समय के सेवा की विधि और पुरूषार्थ की गति, दोनों ही एक स्थान पर बैठे हुए देखते रहते हैं। हरेक बच्चे की सारे दिन में कौन-सी स्टेजेज बदलती है या एकरस स्टेज पर रहते हैं। वह भिन्न-भिन्न स्टेजेज का स्पष्ट साक्षात्कार होता रहता है। सूक्ष्मवतन की सारी कारोबार किस पावर से चलती है? जैसे यहाँ भिन्न-भिन्न साधनों द्वारा कारोबार चलती है और सतयुग में विशेष एटॉमिक एनर्जी द्वारा चलेगी। सूक्ष्मवतन की कारोबार कैसे चलती है? कौन-सी शक्ति के आधार पर चलती है, कैसे चलती है, जानते हो? लाइट का वतन है तो लाइट के वतन में कारोबार कैसे चलती है? लाइट के आधार पर या और किसी आधार पर? आज पेपर्स देखे, आज बच्चे इमर्ज हुए तो यह भिन्न-भिन्न कारोबार कैसे चलती है?

कर्नाटक वाले सिकीलधे है ना तो सिकीलधे को खास गु¿ राज सुनाया जाता है। कर्नाटक की सेवा में जोड़ी भी मजेंदार बनी हुई है। करनहार और करावनहार दोनों की ही जोड़ी है। वह प्रेम स्वरूप, वह नॉलेज स्वरूप। वह लव और लॉफुल वह सिर्फ लवफुल। फिर भी कर्नाटक की फुलवाड़ी अच्छी फलीभूत है। वैराइटी प्रकार के सेवाधारी भी अच्छे-अच्छे हैं। जैसे डबल विदेशियों को बाप-दादा उनकी विशेषता के ऊपर विशेष याद-प्यार देते हैं। भिन्न धर्म में कनवर्ट होते हुए भी अपने प्राचीन धर्म को पहचानने और अपनाने में तीव्र पुरुषार्थी बन चल रहे हैं। मैजॉरिटी स्नेह और शान्ति की प्राप्ति के आधार पर संशयबुद्धि कम बनते हैं। यह डबल विदेशियों की विशेषता है। इस विशेषता के कारण बाप-दादा भी रिटर्न यादप्यार देते हैं। ऐसे कर्नाटक वाले भी भावना और प्रेम से सहज ही बाप के बन जाते हैं। स्नेह के कारण भोले हैं। वैसे नॉलेजफुल भी हैं लेकिन पहले स्नेह के कारण नज़दीक आ जाते हैं फिर नॉलेज सुनकर आगे बढ़ते हैं।

कोई कोई धरती नॉलेज के आधार पर आगे आती है फिर स्नेह में आते हैं और कोई स्नेह में आकर फिर नॉलेज लेते हैं। इसलिए भोलानाथ बाप के प्यारे हैं। समझा। आप सबका भी महत्व है। ऐसे कभी भी नहीं समझना कि हम भाषा नहीं जानते, इसलिए पीछे हैं लेकिन बाप-दादा के सदा समीप हैं। बाप-दादा भाषा को नहीं देखते, भावना को देखते हैं।

वायरलैस और वाइसलेस

आप लोग सुनाओ कि सूक्ष्मवतन की कारोबार कैसे चलती है? किस आधार पर चलती है? यहाँ तो लाइट चली जाती है तो आप साधनों द्वारा कार्य चलाते हो ना! यहाँ तो जनरेटर है जिससे लाइट आती है, वहाँ क्या है! कौन-सी शक्ति द्वारा कारोबार चलती है? आकार साकार को प्रेर रहा है या साकार आकार को? बोलो, कैसे कारोबार चलती है? विशेष सूक्ष्मवतन की कारोबार शुद्ध संकल्प के आधार पर चलती है। जो गाया हुआ है - ब्रह्मा ने संकल्प किया और सृष्टि रची तो संकल्प किया और इमर्ज हुआ। मर्ज और इमर्ज का खेल है। रूप-रेखा इशारे की है लेकिन विशेष आकारी रूप की कारोबार मनोबल कहो या संकल्प कहो, इसी आधार पर चलती है। बाप-दादा संकल्प का स्वीच ऑन करते हैं तो सब इमर्ज हो जाता है। सुनाया ना उनकी कारोबार है दूर-दूर तक वायरलेस द्वारा और यहाँ तीनों लोक तक वाइसलेस की शक्ति द्वारा कनेक्शन कर सकते हैं। बुद्धियोग बिल्कुल रिफाइन हो। सूक्ष्मवतन तक संकल्प पहुँचने के लिए महीन, सर्व सम्बन्धों के सार वाली याद चाहिए। यह है सबसे पावरफुल तार। इसमें बीच में माया इन्टरफेयर (Interfere) नहीं कर सकती।

बाप-दादा के वहाँ रौनक बहुत है। इस दुनिया मुआफिक नहीं (बिजली घड़ी- घड़ी चली जाती थी) सारे कल्प के अन्दर सूक्ष्मवतन इस समय इमर्ज होता है। इसलिए सूक्ष्मवतन की रौनक भी अभी है। फिर स्वर्ग की रौनक आप लोगों के लिए है।

(यहाँ बैठे सूक्ष्मवतन का अनुभव कर सकते हैं?) - अनुभव तो बच्चे ही करेंगे। यह वतन है ही बच्चों के लिए। और कोई भी आत्मायें सूक्ष्मवतन का अनुभव कर ही नहीं सकती हैं क्योंकि ब्रह्मा और ब्राह्मणों का ही सम्बन्ध है। भक्त लोग सिर्फ कोई विशेष दृश्य का साक्षात्कार कर सकते हैं लेकिन सूक्ष्मवतन हमारा घर है, ब्रह्मा बाप का स्थान सो हमारा स्थान है। सूक्ष्मवतन के स्विजों का अनुभव, मिलने का अनुभव, बहलाने का अनुभव ब्राह्मण ही कर सकते हैं।

(विदेशी नीचे बैठे मुरली सुन रहे थे) आज डबल विदेशियों का संकल्प पहुँच रहा है। नीचे होते भी बाप के सामने हैं। इसलिए डबल विदेशियों को बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं। साथ-साथ चारों ओर के बच्चे जो दूर होते भी संकल्प शक्ति से अपने को समीप अनुभव कर रहे हैं उन सहित कर्नाटक वासियों को भी खास याद प्यार। मधुबन वाले तो है ही `चुल पर सो दिल पर', गर्म-गर्म तो मधुबन वालों को मिलता है। सेवा में अथक बनकर अच्छा सबूत दे रहे हैं। मैजॉरिटी निन्द्राजीत का गुण भी अच्छा दिखा रहे हैं। रात की नींद को छोड़ भी सेवा में अच्छे सहयोगी हैं। जी हाजर और जी हुजूर का पार्ट बजा रहे हैं। इसलिए मधुबन के सेवाधारियों को नम्बरवार सेवा के सबूत दिखाने वालों को विशेष यादप्यार। अच्छा - सभी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ अव्यक्त बाप-दादा की मधुर मुलाकात

सफलता का आधार – न्यारापन

सभी सदा अपने विश्व-कल्याणकारी स्टेज पर स्थित होकर सेवा के पार्ट में आते हो? विश्व-कल्याणकारी अर्थात् बेहद के सेवाधारी, किसी भी प्रकार की हद में नहीं आ सकते। विश्व बेहद है तो विश्व-सेवाधारी अर्थात् बेहद की स्थिति में रहने वाले। विश्व-कल्याणकारी सदा सेवा करते हुए भी न्यारे और सदा बाप के प्यारे होंगे। सेवा के भी लगाव से न्यारे। सेवा का लगाव भी सोने की जंजीर है। यह भी बन्धन बेहद से हद में ले आता है। इसलिए सदा सेवा में न्यारे और बाप के प्यारे बनकर चलो। ऐसी स्थिति में रहने वाले सदा सफलतामूर्त रहेंगे। सफलता का सहज साधन है - `न्यारा और प्यारा बनना' कही भी सफलता की कमी है तो इसका कारण न्यारे बनने की कमी है। न्यारा अर्थात् देह के स्मृति से भी न्यारा, ईश्वरीय सम्बन्ध के लगाव से भी न्यारा और ईश्वरीय सेवा के साधनों के लगाव से भी न्यारा। जब ऐसा न्यारापन कम होता है तब सफलता की कमी होती है। तो सदा सफलता मूर्त - ऐसे समझते हो? या अपने को छोटा समझते हो? जब कोई भी डायरेक्शन मिलता है तो उस डायरेक्शन को प्रैक्टिकल में लाने के समय छोटा समझना ठीक है और सेवा करने में बड़ा होकर सेवा करो। डायरेक्शन के समय छोटा समझेंगे तो सदा सफल रहेंगे। बड़ा अर्थात् बेहद की वृत्ति वाला। समझा –

सदा स्व परिवर्तन का लक्ष्य रखो

सभी सन्तुष्ट हो? कुछ भी है, कोई भी बात दिल में आती है तो उसे सुनाने में कोई हर्जा नहीं है लेकिन सुनाने के बाद जो बड़ों का डायरेक्शन हो उसमें चलने के लिए सदा तैयार रहें। सुनाया तो आपकी जिम्मेवारी खत्म हुई फिर बड़ो की जिम्मेवारी हो जाती है। इसलिए सुनाना जरूरी है लेकिन साथ-साथ डायरेक्शन पर चलना भी जरूरी है। कोई भी बात अन्दर नहीं रखो। सुनाकर हल्के हो जाओ नहीं तो अन्दर कोई भी बात होगी तो सेवा में व स्व की उन्नति में बारबार विघ्न रूप बन जायेगी। इसलिए हल्का रहना भी जरूरी है। डायरेक्शन मिला, उसको अमल में लाया और हल्के हो गये। इसके लिए कौन-सी विशेष शक्ति चाहिए? स्व को परिवर्तन करने की। अगर परिवर्तन करने की शक्ति होगी तो जहाँ भी होंगे सफल होंगे। सदा स्व परिवर्तन का लक्ष्य रखो। दूसरा बदले तो मैं बदलूँ - नहीं। दूसरा बदले या न बदले मुझे बदलना है। `हे अर्जुन' मुझे बनना है। दूसरा अर्जुन बने वा नहीं। सदा परिवर्तन करने में `पहले मैं'। जब इसमें `पहले मैं' करेंगे तो सब में पहला नम्बर हो जायेंगे।

अपने को मोल्ड (Mould) करना अर्थात् रीयल गोल्ड ( Real Gold) बनना। दूसरे को मोल्ड करना अर्थात् मिक्स्ड गोल्ड बनना। तो सभी रीयल गोल्ड हो? रीयल की वैल्यू होती है, मिक्स की वैल्यू कम हो जाती है। इसलिए सदा अपने को रीयल गोल्ड की स्थिति में रखो।

जिन बच्चों ने जन्म से विशेष कोई कमज़ोरी को टच नहीं किया है, वह जन्म से ही वैष्णव हुए। कोई-कोई बच्चे जन्म से सात्विक संस्कार वाले होते हैं। कोई रजोगुणी से सात्विक बनते हैं, कोई तमोगुणी से रजोगुणी बनते हैं, कोई तीनों में मिक्स चलते हैं। जन्म से वैष्णव अर्थात् सदा सेफ।

1. त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित रहने से व्यर्थ का खाता समाप्त - सभी अपने को पदमापदम भाग्यशाली समझते हुए हर संकल्प व कर्म करते रहते हो? श्रेंष्ठ संकल्प, बोल व कर्म के साथ-साथ व्यर्थ और समर्थ, दोनों इकट्ठा तो नहीं रहता? अभी-अभी व्यर्थ, अभी समर्थ - ऐसा खेल तो नहीं चलता? व्यर्थ एक सेकण्ड में पद्मों का नुकसान करता है। समर्थ एक सेकण्ड में पदमों की कमाई करता है। सेकण्ड का व्यर्थ भी कमाई में बहुत ही घाटा डाल देता है। जैसे कमाई का खाता जमा होता है, वैसे घाटे का खाता भी जमा होता है। घाटे का खाता ज्यादा होगा तो कमाई उसमें छिप जाती है। तो व्यर्थ समाप्त हो गया या अभी- अभी साथ है। जब त्रिकालदर्शी की स्टेज पर स्थित होते हैं, तो व्यर्थ सहज ही खत्म हो जाता है। त्रिकालदर्शी स्टेज से नीचे आकर एक कालदर्शी बनकर कर्म करते हैं तब व्यर्थ होता है। तो कौन हो? - त्रिकालदर्शी हो या एक काल-दर्शी? सदा त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहो तो सदा सफलतामूर्त होंगे। समझा।

जो सदा अचल अडोल बन करके श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले हैं, उनको कहा जाता है विशेष पार्टधारी। विशेष पार्टधारी हो या साधारण? विशेष पार्टधारी का विशेष गुण है - स्व सेवा और विश्व सेवा, दोनों का बैलेन्स।

2. सेवाधारी भाई-बहनों से - अपने अनेक जन्मों की कमाई को जमा करके जा रहे हो? मधुबन अर्थात् वरदान भूमि। वरदान भूमि से वरदानों की झोली भरकर जा रहे हो? अनेक जन्मों के लिए जमा कर लिया? यहाँ का वातावरण, यहाँ का अनुभव सदा साथ रखेंगे या एक वर्ष, आधा वर्ष तक साथ रखेंगे? सदा इसी वायुमण्डल को स्मृति में रखते हुए स्वयं को समर्थ बनाना। वातावरण कैसा भी हो लेकिन स्मृति समर्थ है तो वातावरण को परिवर्तन कर देंगे। ऐसे महावीर बनकर जा रहे हो ना? कि थोड़े टाइम के बाद लिखेंगे - `माया आ गई'। वायुमण्डल को बदलने वाले हो न कि वायुमण्डल में बदलने वाले। सभी महावीर अपने संग का रंग औरों को भी लगाते रहना तो जहाँ भी जायेंगे, वहाँ जागतीज्योति का कार्य करेंगे। सदा जगे हुए औरों को भी जगायेंगे।

3. विदेशी भाई-बहनों से - सभी अपने को लाइट-हाउस समझते हो? लाइट हाउस का कार्य है - सभी को रास्ता दिखाना। तो समझते हो कि लाइट हाउस (Light House) बनके व माइट हाउस (Might House) बनके जा रहे हैं। किसी भी प्रकार की भटकती हुई आत्मा को सहज ही यथार्थ मंजिल दिखाने जा रहे हो। इसके लिए विशेष दो बातें ध्यान में रखना। सदा परखने की शक्ति धारण करके आत्मा की चाहना को परखना। जैसे योग्य डॉक्टर उसको कहा जाता है जो नब्ज को जानता है। तो परखने की शक्ति सदा यूज़ करते रहना। दूसरी बात - सदा अपने पास सर्व खज़ानों का अनुभव कायम रखना। सर्व खज़ानों के अनुभवी औरों को भी सहज अनुभव करा सकेंगे। सदा ये लक्ष्य रखना कि सुनाना नहीं है लेकिन अनुभव कराना है। तो सर्व अनुभवी मूर्त बनके जा रहे हो? अनुभवी मूर्त, स्पीकर नहीं। सर्व सम्बन्धों का, सर्व शक्तियों का सबका अनुभव। तो टाइटल क्या हो जायेगा? शक्तियों के अनुभवी का टाइटल है ``मास्टर सर्वशक्तिवान'' और गुणों के अनुभवी का टाइटल हैं - `गुणमूर्त' सर्व सम्बन्धों के अनुभवी का टाइटल है, `सर्व स्नेही'। तो कितने टाइटल हो गये। यह सब टाइटल लेकर जा रहे हो ना? जैसे उस नॉलेज को पढ़ने वाले या कोई डिपार्टमेन्ट में कार्य करने वाले मैडल्स (Medals) लेते जाते हैं तो आपको कितने मैडल्स मिले हैं? सब मैडल्स ले लिए हैं? जितने ज्यादा मैडल्स होते हैं तो सबका अटेन्शन जाता है ना। ऐसे आपके मस्तक से, नयनों से दिखाई दे कि यह सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। ऐसे बन कर जा रहे हो?

4. पुरानी दुनिया में रहते अपने को संगमयुगी ब्राह्मण समझ कर चलते हो?- संगमयुगी ब्राह्मण कलियुगी सृष्टि से किनारा कर चुके इसलिए उनकी आँख पुरानी दुनिया की तरफ कभी नहीं जा सकती। पुरानी दुनिया, पुरानी देह या सम्बन्धी, किसी तरफ भी आकर्षण न हो। वैसे भी गवर्नमेन्ट के बिगर पासपोर्ट के कोई दूसरे देश में चले जाते हैं तो बन्दी बना लेते हैं, यहाँ भी जब बाप की छुट्टी नहीं है, तो बिगर छुट्टी अगर गये तो माया बन्दी बना लेगी। कभी भी देह के सम्बन्ध की स्मृति तो नहीं आती है? नष्टोमोहा हो? अगर थोड़ा भी मोह हुआ तो जैसे मगर मच्छ पहले थोड़ा पकड़ता है फिर सारा ले लेता है, ऐसे माया भी सारा हप कर लेगी। इसी लिए जरा भी मोह न हो। सदा निर्मोही।



04-02-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"भाग्य विधाता बाप और भाग्यशाली बच्चे"

आज ज्ञान-दाता, भाग्य विधाता बाप बच्चों के भाग्य को देख रहे हैं। सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का भाग्य कितना श्रेष्ठ है, और कैसे श्रेष्ठ है? जैसे आप सभी बाप का परिचय देते हो तो विशेष 6 बातें सुनाते हो। जिस द्वारा बाप के परिचय को स्पष्ट करते हो। अगर इन 6 बातों को जान जाएँ तो आत्मा श्रेष्ठ पद को पा सकती है। वर्तमान और भविष्य, दोनों में सर्व प्राप्ति के अधिकारी बन सकते हैं। ऐसे बाप-दादा भी बच्चों के भाग्य को 6 बातों के आधार से देख रहे थे। 6 बातें तो अच्छी तरह से जानते हो?

1. आप श्रेष्ठ आत्माओं के नाम का भी भाग्य है - जो आपके नाम अब भी विश्व की आत्माएँ वर्णन करती हैं। जैसे `ब्राह्मण चोटी'। आपके ब्राह्मण नाम से आज के नामधारी ब्राह्मण अब लास्ट समय तक भी श्रेष्ठ गाये जा रहे हैं। अब तक भी काम बदल गया है लेकिन नाम का मान मिल रहा है। ऐसे ही `पाण्डव सेना', आज तक भी इस पाण्डव नाम से दिलशिकस्त आत्मा स्वयं को उत्साह दिलाती है कि पाँच पाण्डवों के समान बाप का साथ लेने से विजयी बन जायेंगे। थोड़े हैं तो कोई हर्जा नहीं। पाण्डव सदा विजयी रहे हैं। हम भी विजयी बन सकते हैं। इसी प्रकार `गोप-गोपियाँ'। आज भी गोप गोपियों की महिमा करते खुशी में आ जाते हैं। नाम सुनते ही प्रेम में लवलीन हो जाते हैं। इसी प्रकार से आपके नाम का भी भाग्य है।

2. रूप का भी भाग्य है - शक्तियों के रूप में अब तक भी भक्त लोग दर्शन के लिए सर्दा-गर्मा सहन कर रहे हैं। यहाँ तो फिर भी आराम है। वह तो धरती और आकाश के बीच खड़े-खड़े तपस्या करते हैं। तो शक्तियों के रूप में, देवी-देवताओं के रूप में पूजन होने का भाग्य है। दोनों रूप में पूज्य बनते हो। तो रूप का गायन और पूजन है। विशेष पूजन का ही भाग्य है।

3. आपके गुणों का भाग्य है - आज तक कीर्तन के रूप में वर्णन कर रहे हैं। ऐसा वर्णन करते हैं जो आप के गुणों के भाग्य का प्रभाव अल्पकाल के लिए कीर्तन करने वालों को भी शान्ति और खुशी का, आनन्द का अनुभव होता है। यह है गुणों का भाग्य। और आगे चलो –

4. कर्त्तव्य का भाग्य - आज तक सारे वर्ष में भिन्न-भिन्न प्रकार के उत्सव मनाते हैं। आप श्रेष्ठ आत्माओं ने अनेक प्रकार के साधनों द्वारा आत्माओं के जीवन में उत्साह दिलाया है। इसलिए कर्त्तव्य के भाग्य की निशानी उत्सव मनाते हैं। आगे चलो –

5. निवास स्थान - निवास-स्थान अर्थात् रहने का धाम। उसका यादगार `तीर्थस्थान' है। आप के स्थान का भी इतना भाग्य हैं जो स्थान तीर्थ स्थान हो गये हैं। जिसकी मिट्टी का भी भाग्य हैं। अगर तीर्थस्थान की मिट्टी भी मस्तक में लगाते हैं तो अपने को भाग्यशाली समझते हैं। जो स्थान का भाग्य है और आगे –

6. इस संगम समय के भाग्य का वर्णन विशेष अमृतवेले के रूप में गाया जाता है। अमृतवेला अर्थात् अमृत द्वारा अमर बनने की वेला। साथ-साथ धर्माऊ युग `पुरूषोत्तम युग'। नुमाशाम का समय भी श्रेष्ठ भाग्य का मानते हैं। यह सब समय का गायन आपके इस समय का गायन है। तो समझा, अपने श्रेष्ठ भाग्य को।

आज बाप-दादा हरेक बच्चे के भाग्य को विशेष इन 6 बातों से देख रहे थे। 6 ही प्रकार के भाग्य को किस परसेन्टेज में बनाया है। अपने श्रेष्ठ नाम की स्मृति में कहाँ तक रहते हैं, कितना समय रहते हैं और किस स्टेज में रहते हैं। अपने दिव्य गुणधारी देवता का रूप व मास्टर सर्वशक्तिवान शक्ति रूप दोनों रूप में समर्थ स्वरूप कहाँ तक हैं? ऐसे हर बात की रिजल्ट देखी। सुनाया कि सूक्ष्मवतन में मेहनत नहीं करनी पड़ती है चेकिंग करने में। संकल्प का स्विच ऑन (Switch on)किया और हरेक का सब प्रकार का टोटल इमर्ज हो जाता है। साकार दुनिया के माफिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। जो साइन्स के साधन अभी निकाल रहे हैं उसका रिफाइन रूप वहाँ पहले से ही है। यह टी.वी. तो अभी निकली है लेकिन आप बच्चों को सूक्ष्मवतन में स्थूल वतन का दृश्य स्थापना के आदि में ही दिखाकर अनुभव कराया है। साइन्स वाले मेहनती बच्चे हैं, अब सितारों तक मेहनत कर रहे हैं। चन्द्रमा में कुछ नहीं मिला तो सितारें ही सही। लेकिन आप बच्चे साइलेन्स की शक्ति से सितारों से भी परे परमधाम का अनुभव आदि से कर रहे हो फिर भी हरेक बच्चे को मेहनत का फल जरूर मिलता है। उनको भी विश्व में नाम-मान-शान और सफलता की अल्पकाल की खुशी प्राप्त हो जाती है। यह भी ड्रामा के अन्दर परवश हैं अर्थात् पार्ट के वश हैं। जो गाया हुआ है देवताओं के आगे प्रकृति हीरे रतनों की थालियाँ भर कर आये। पृथ्वी और सागर यह आपके लिए चारों ओर फैला हुआ सोना और मोतीहीरे, एक स्थान पर इकट्ठा करने के निमित्त बनेंगे। इसी को कहा जाता है - थालियाँ भरकर आये। थाली में बिखरी हुई चीज़ इकट्ठी हो जाती हैं ना। तो यह भारत और आसपास, यह स्थान थाली बन जायेंगे। सेवक बनकर विश्व के मालिकों के लिए तैयारी कर आपके आगे रखेंगे। ऐसे ही देवताओं के लिए सर्व रिद्धि-सिद्धियाँ भी सेवाधारी बनती हैं। यह जो भिन्न-भिन्न प्रकार के साधनों द्वारा सफलता अर्थात् सिद्धि को प्राप्त करते हैं यह सब सिद्धियाँ अर्थात् साइन्स का भी रिफाइन रूप, सफलता रूप सिद्धि के रूप में आपके सेवाधारी बनेंगे। अभी तो एक्सीडेन्ट भी है और प्राप्ति भी है। लेकिन रिफाइन सिद्धि रूप में दु:ख का कारण समाप्त हो सदा सुख और सफलता रूप बन जायेंगे। यह जो भिन्न-भिन्न डिपार्टमेन्ट वाले हैं वे अपनी-अपनी नॉलेज की सिद्धि, इन्वेन्शन की सिद्धि आपकी सेवा में लायेंगे। इसको कहा जाता है प्रकृति भी दासी और सर्व रिद्धिसिद्धि की प्राप्ति। आर्डर किया और कार्य हुआ। इसको कहा जाता है - `सिद्धि स्वरूप'। तो समझा, आपका भाग्य कितना बड़ा है? बाप के भाग्य को तो आत्मायें वर्णन करती हैं लेकिन आपके भाग्य को बाप वर्णन करते हैं। इससे बड़ा भाग्य न हुआ है, न होगा। अभी तो सबको भाग्य का सितारा दिखाई दे रहा है, जैसे अभी स्पष्ट दिखाई दे रहा है ऐसे सदा अपने भाग्य के सितारे को चमकता हुआ देखो।

ऐसे श्रेष्ठ भाग्यशाली, सर्व आत्माओं के भाग्य बनाने के निमित्त बनी हुई आत्माएँ सदा प्रकृतिजीत बन प्रकृति को भी सेवाधारी बनाने वाले, मास्टर सर्वशक्तिवान बन शक्तियों के आधार पर सर्व रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करने वाले, ऐसे सदा सर्वशक्तिवान बन विश्व-कल्याणकारी बन, विश्व की आत्माओं को महादान व वरदान देने वाले ज्ञानदाता, भाग्य-विधाता के बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

वायुमण्डल को पावर फुल बनाना ही बेहद की सेवा है

निमित्त सेवाधारी बहनों प्रति - सेवाधारी बच्चों की विशेष सेवा ही है - `स्वयं भरपूर रहना और सर्व को करना'। शक्ति स्वरूप रहना और शक्ति स्वरूप बनाना। तो इसी कार्य में बिजी हो? कोर्स कराना, भाषण करना, ये तो 7 दिन के स्टूडेन्ट्स भी कर लेते हैं। जो काम कोई भी न करे वह आपको करना है। आपको निमित्त बनाया ही है विशेष कार्य अर्थ। वह विशेष कार्य है - बाप द्वारा प्राप्त हुई विशेषताओं को निर्बल आत्माओं में अपनी शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना से भरना। आपका कार्य ही है - सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप बनना। श्रेष्ठ भावना का अर्थ यह नहीं कि किसी में भावना रखते-रखते उसके भाववान हो जाओ। यह गलती नहीं करना। क्योंकि चलते-चलते उल्टा भी कर लेते हैं। भाववान बनना यानि उसके भक्त बन जाना अर्थात् उसके गुणों पर न्यौछावर हो जाना, माना भक्त बनना। तो शुभ भावना भी बेहद की हो। एक के प्रति विशेष भावना भी हद है। हद में नुकसान है, बेहद में नहीं। वर्तमान समय आप बच्चों का कार्य है - निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार पर शुद्ध वायब्रेशन्स, वायुमण्डल द्वारा शक्तिशाली बनाना। इसी कार्य में सदा बिजी रहते हो? कोर्स कराने का समय अभी गया, अभी फोर्स का कोर्स कराना है। कोर्स कराने वाले दूसरे भी तैयार हो गये हैं। इसलिए आप वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने की सेवा करो। क्योंकि दुनिया का वायुमण्डल दिन-प्रतिदिन मायावी बनता जायेगा, माया भी लास्ट चान्स में अपने यन्त्र-मन्त्र और जन्त्र जो भी हैं वह सब यूज़ करेगी। अटैक (Attack) तो करेगी ना? ऐसे विदाई नहीं लेगी। इसलिए ऐसे वायुमण्डल के बीच अपने सेवा स्थानों का वायुमण्डल बहुत ही अव्यक्त और शक्तिशाली बनाओ। जैसे आपके जड़ मन्दिरों का वायुमण्डल कैसी भी आत्मा को अपनी तरफ खींचता है, अल्पकाल के लिए अशान्त, शान्त हो जाते हैं। जब जड़ चित्रों के स्थान पर ऐसा वायुमण्डल है तो चैतन्य सेवा स्थानों पर कैसा पॉवरफुल वायुमण्डल चाहिए? तो चेक करो - आज का वायुमण्डल शक्ति शाली रहा? जो भी आये वह व्यक्त और व्यर्थ बातों से परे हो जाए। यह जो चलते-चलते अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं, या कोई व्यक्त भाव में आ जाते हैं तो उसका कारण वायुमण्डल में व्यक्त भाव है। अगर अव्यक्त हो तो कोई व्यक्त भाव की बातें लेकर भी आयेंगे तो बदल जायेंगे। जैसे जड़ मन्दिरों में अल्पकाल के लिए बदल जाते हैं ना। यह सदाकाल की बात है। क्योंकि वह जड़ है, यह चैतन्य है। तो अब सिर्फ भाषण या प्रदर्शनी की लिस्ट नहीं बनानी है लेकिन साथ-साथ शक्तिशाली वायुमण्डल की भी चेकिंग करो।

वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाने का साधन क्या है? अपने अव्यक्त स्वरूप की साधना है। यही साधन है। इसका बार-बार अटेन्शन रहे। जिस बात की साधना की जाती है, उसी बात का ध्यान रहता है ना। अगर एक टाँग पर खड़े होने की साधना है तो बार-बार यही अटेन्शन रहेगा। तो यह साधना अर्थात् बार-बार अटेन्शन की तपस्या चाहिए। चेक करो कि मैं अव्यक्त फरिश्ता हूँ? अगर स्वयं नहीं होंगे तो दूसरों को कैसे बना सकेंगे?

बाप के जो भी इशारे मिलते हैं उन इशारों को समझकर चलते रहो। अभी यह पूछने का समय गया कि कैसे पुरूषार्थ करें? अगर आप ही पूछेंगे तो और आने वाले क्या करेंगे? इसलिए जो भिन्न-भिन्न पुरूषार्थ की युक्तियाँ सुनाई हैं, उनमें से एक भी युक्ति अपनाओ तो स्वयं भी सफल हो जायेंगे और औरों को भी सफल बना सकेंगे।

तो अब क्या करूँ और कैसे करूँ की भाषा समाप्त। मुरली में रोज क्या करूँ और कैसे करूँ की बातों का रेसपान्स मिलता है। अगर फिर भी पूछते हैं तो माना मुरली को प्रैक्टिकल में लाने की शक्ति कम है।

फिर भी सभी सेवाधारी बच्चों को बाप-दादा हमशरीक साथी अर्थात् फ्रेन्ड्स समझते हैं। इसलिए फ्रेन्ड्स को मुबारक हो। लेकिन अपने फ्रेन्ड्स के समान ऐसे ही सदा सफलता मूर्त बनो। अगर एक फ्रेन्ड् सदा सफलता मूर्त हो और दूसरा धीरे-धीरे चलने वाला हो तो हाथ में हाथ कैसे मिलाकर चलेंगे? फ्रेन्ड्स माना ही समान साथी। पीछे-पीछे आने वाले को फ्रेन्ड नहीं कहेंगे। बाप हो मंजिल के नज़दीक और बच्चे रूकने और चलने वाले हों। तो पहुँचने के बजाए देखने की लाइन में आ जायेंगे। तो ऐसे तो नहीं हो ना? साथ चलने वाले हो ना?

पार्टियों से - सभी अपने को मोस्ट लकीएस्ट समझते हो? ऐसे अनुभव करते हो कि हमने जो देखा, हमने जो पाया वह विश्व की आत्मायें नहीं पा सकती। वह एक बूँद के लिए भी प्यासी हैं और आप सब मास्टर सागर बन गये तो मोस्ट लकीएस्ट हुए ना! ऐसा अपना भाग्य समझकर सदा चलते हो? सारा दिन याद रहता है या प्रवृत्ति में भूल जाते हो? जो चीज़ अपनी हो जाती है वह कभी भूलती नहीं हैं। अपनी चीज़ पर अधिकार रहता है ना! तो बाप को अपना बनाया इसलिए अपने पर अधिकार रहता है ना। अधिकारी कभी भी भूल नहीं सकते। याद में निरन्तर रहने का सहज साधन है - `प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना'। पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। ऐसे आत्मिक रूप में रहने वाला सदा न्यारा और बाप का प्यारा होगा। कुछ भी करेगा लेकिन ऐसे महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। खेल में मजा आता है ना, इसलिए सहज लगता है। तो प्रवृत्ति में रहते खेल कर रहे हो, बन्धन में नहीं। स्नेह और सहज योग के साथ-साथ शक्ति की और एडीशन करो तो तीनों के बैलेन्स से हाईजम्प लगा लेंगे।

इस नये वर्ष में विशेष अपने को साक्षात बाप-समान बनाके चारों ओर के तड़पती हुई आत्माओं को लाइट हाउस, माइट हाउस बनकर रास्ता बताते चलो। लक्ष्य रखो कि हर आत्मा को कुछ-न-कुछ देना जरूर है। चाहे मुक्ति चाहे जीवनमुक्ति। कोई मुक्ति वाले हैं तो उनको भी बाप का परिचय देकर मुक्ति का वरदान दो। तो सर्व के प्रति महादानी और वरदानी बन जायेंगे। अपने-अपने स्थान की सेवा तो करते हो लेकिन अभी बेहद के विश्व-कल्याणकारी बनो। एक स्थान पर रहते भी मनसा शक्ति द्वारा, वायुमण्डल और वायब्रेशन द्वारा विश्व-सेवा कर सकते हो। ऐसी पॉवरफुल वृत्ति बनाओ जिससे वायुमण्डल बने।



06-02-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"अशरीरी बनने की सहज विधि"

आज कल्प पहले वाले सिकीलधे अति लाडले, स्नेही और सहयोगी, शक्ति स्वरूप बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। बाप-दादा अपने सहयोगी बच्चों के साथ ही रहते हैं। सहयोग और स्नेह का अटूट धागा सदा अविनाशी है। आज वतन में बाप-दादा अति प्यारे-प्यारे बच्चों के स्नेह की माला बना रहे थे। स्नेही तो सब हो फिर भी नम्बरवार तो कहेंगे। आज हरेक बच्चे की विशेषताओं के आधार पर नम्बर बना रहे थे। कई बच्चों में विशेषतायें इतनी ज्यादा देखीं जो बिल्कुल बाप-समान समीप रतन देखे। कई बच्चे विशेषताओं को धारण करने में मेहनत करने वाले भी देखे जो मेहनत देखकर बाप को भी रहम आता है। मेरे बच्चे और मेहनत! क्योंकि सबसे ज्यादा मेहनत अशरीरी बनने में देखी।

बाप-दादा आपस में बोले कि अशरीरी आत्मा को अशरीरी बनने में मेहनत क्यों? ब्रह्मा बाप बोले - ``84 जन्म चोला धारण कर पार्ट बजाने के कारण पार्ट बजाते-बजाते शरीरधारी बन जाते हैं।'' शिव बाप बोले - ``पार्ट बजाया लेकिन अब समय कौन-सा है? समय की स्मृति प्रमाण कर्म भी स्वत: ही वैसे होता है। यह तो अभ्यास है ना?'' बाप बोले - ``अब पार्ट समाप्त कर घर जाना है। पार्ट की ड्रेस तो छोड़नी पड़ेगी ना? घर जाना है तो भी यह पुराना शरीर छोड़ना पड़ेगा, राज्य में अर्थात् स्वर्ग में जाना है तो भी यह पुरानी ड्रेस छोड़नी पड़ेगी। तो जब जाना ही है तो भूलना मुश्किल क्यों? जाना है, क्या यह भूल जाते हो? आप सभी तो जाने के लिए एवररेडी हो ना कि अब भी कुछ रस्सियाँ बँधी हुई हैं? एवररेडी हो ना?''

ये तो बाप-दादा ने सेवा के लिए समय दिया हुआ है। सेवाधारी का पार्ट बजा रहे हो। तो अपने को देखो यह शरीर का बन्धन तो नहीं है अथवा यह पुराना चोला टाइट तो नहीं है? टाइट ड्रेस तो पसन्द नहीं करते हो ना? ड्रैस टाइट होगी तो एवररेडी नहीं होंगे। बन्धन मुक्त अर्थात् लूज़ ड्रेस, टाइट नहीं। आर्डर मिला और सेकण्ड में गया। ऐसे बन्धन-मुक्त, योगयुक्त बने हो? जब वायदा ही है `एक बाप दूसरा न कोई' तो बन्धनमुक्त हो गये ना। अशरीरी बनने के लिए विशेष 4 बातों का अटेन्शन रखो –

1. कभी भी अपने आपको भुलाना होता है तो दुनिया में भी एक सच्ची प्रीत में खो जाते हैं। तो सच्ची प्रीत ही भूलने का सहज साधन है। प्रीत दुनिया को भुलाने का साधन है, देह को भुलाने का साधन है।

2. दूसरी बात सच्चा मीत भी दुनिया को भुलाने का साधन है। अगर दो मीत आपस में मिल जाएँ तो उन्हें न स्वयं की, न समय की स्मृति रहती है।

3. तीसरी बात दिल के गीत - अगर दिल से कोई गीत गाते हैं तो उस समय के लिए वह स्वयं और समय को भूला हुआ होता है।

4. चौथी बात - यथार्थ रीत। अगर यथार्थ रीत है तो अशरीरी बनना बहुत सहज है। रीत नहीं आती तब मुश्किल होता है। तो एक हुआ प्रीत 2- मीत 3- गीत 4- रीत।

एक तू जो मिला सारी दुनिया मिली

इन चारों ही बातें के आप सब तो अनुभवी हो ना? प्रीत के भी अनुभवी हो। बाप और आप तीसरा न कोई। बाप मिला माना सब कुछ मिला बाकी काम ही क्या रहा। प्रभु प्रीत के तो आज भी भक्त कीर्तन करते रहते हैं। सिर्फ प्रीत के गीत में ही खो जाते हैं तो सोचो प्रीत निभाने वाले कितने खोये हुए होंगे! प्रीत के तो अनुभवी हो ना? विपरीत बुद्धि से प्रीत बुद्धि हो गये हो ना? तो जहाँ प्रभु प्रीत है वहाँ अशरीरी बनना क्या लगता है? प्रीत के आगे अशरीरी बनना एक सेकण्ड के खेल के समान है। बाबा बोला और शरीर भूला। बाबा शब्द ही पुरानी दुनिया को भूलने का आत्मिक बाम्ब है। (बिजली बन्द हो गई) जैसे यह स्विच बदली होने का खेल देखा ऐसे वह स्मृति का स्विच है। बाप का स्विच ऑन और देह और देह की दुनिया की स्मृति का स्विच ऑफ। यह है एक सेकण्ड का खेल। मुख से बाबा बोलने में भी टाइम लगता है लेकिन स्मृति में लाने में कितना समय लगता है। तो प्रीत में रहना अर्थात् अशरीरी सहज बनना।

मोहब्बत में मेहनत नहीं

ऐसे सबसे सच्चा मीत जो श्मशान के आगे भी साथ जाए। शरीरधारी मीत तो श्मशान तक ही जायेंगे तो वे दु:ख हर्ता सुख कर्ता नहीं बन सकेंगे। थोड़ाबहुत दु:ख के समय सहयोगी बन सकते हैं। सहयोग दे सकते हैं लेकिन दु:ख हर नहीं सकते। तो सच्चा मीत मिल गया है ना? सदा इसी अविनाशी मीत के साथ रहो तो मोहब्बत में मेहनत खत्म हो जायेगी। जब मोहब्बत करना आता है तो मेहनत क्यों करते हो? बाप-दादा को कभी-कभी हँसी आती है। जैसे किसी को बोझ उठाने का अभ्यास होता है उसको आराम से बिठाओ तो वह बैठ नहीं सकता। बार-बार बोझ की तरफ भागता है और फिर साँस भी फूलता है, तो पुकारते हैं - `छुड़ाओ'! तो सदा प्रीत और मीत में रहो तो मेहनत समाप्त हो जायेगी। मीत से किनारा नहीं करो। सदा के साथी बन करके चलो।

ऐसे ही बाप-दादा द्वारा प्राप्त हुई सर्व प्राप्तियों के, गुणों के सदा गीत गाते रहो। बाप की महिमा व आपकी महिमा के कितने गीत हैं इस गीत में साज़ भी ऑटोमेटिकली चलते हैं। जितना-जितना गुणों की महिमा के गीत गायेंगे तो खुशी के साज़ साथ-साथ स्वत: बजते रहेंगे। यह भी गीत गाने वाले आये हैं (भरत व्यास आदि आये हैं) आपके साज़ तो दूसरे हैं। यह खुशी के साज़ हैं। ये कभी खराब नहीं होते जो रिपेयर (Repair) करना पड़े। तो सदा ऐसे गीत गाते रहो। यह गीत गाना तो सबको आता है ना। तो सदा गीत गाते रहो तो सहज ही अशरीरी बन जायेंगे। बाकी रही रीत - यथार्थ रीत सेकण्ड की रीत है। मैं अशरीरी आत्मा हूँ यह सबसे सहज यथार्थ रीत है। सहज है ना। जैसे बाप की महिमा है कि वह मुश्किल को सहज करने वाला है। ऐसे ही बाप समान बच्चे भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो विश्व की मुश्किल को सहज करने वाले हैं वह स्वयं मुश्किल अनुभव करें यह कैसे हो सकता है! इसलिए सदा सर्व सहजयोगी।

अहम नहीं, वहम नहीं लेकिन रहम करो

संगमयुगी ब्राह्मणों के मुख से `मेहनत' है वा `मुश्किल है' - यह शब्द मुख से क्या लेकिन संकल्प में भी नहीं आ सकता। तो इस वर्ष का विशेष अटेन्शन `सदा सहज योगी'। जैसे बाप को बच्चों पर रहम आता है वैसे स्वयं पर भी रहम करो और सर्व प्रति भी रहमदिल बनो। टाइटल `रहमदिल' का तो आप सबका भी है ना? अपना टाइटल याद है ना? लेकिन रहमदिल बनने के बदले एक छोटी-सी गलती करते हो। रहम भाव के बजाए अहम भाव में आ जाते हो। तो रहम भूल जाते हो। कोई अहम भाव में आ जाते हैं। कोई वहम भाव में आ जाते हैं। पता नहीं, पहुँच सकेंगे कि नहीं पहुँच सकेंगे? यथार्थ मार्ग है या नहीं है - ऐसे अनेक प्रकार के स्वयं के प्रति वहम भाव और कभी-कभी नॉलेज के प्रति वहम भाव। इसलिए रहम का भाव बदल जाता है। समझा? दिलशिकस्त नहीं बनो लेकिन सदा दिलतख्तनशीन बनो। तो समझा इस वर्ष में क्या करना है? इस वर्ष का होमवर्क दे रहे हैं। `सहजयोगी बनो। रहमदिल बनो और दिलतख्तनशीन बनो' तो सदा भाग्य-विधाता बाप ऐसे आज्ञाकारी बच्चों को अमृतवेले रोज सफलता का तिलक लगाते रहेंगे। यह भी तिलक का गायन है ना कि भक्तों को भगवान तिलक लगाने आया तो इस वर्ष आज्ञाकारी बच्चों को स्वयं बाप आपके सेवास्थान अर्थात् तीर्थ स्थान पर सफलता का तिलक देने आयेंगे। बाप तो रोज चक्र लगाने आते ही हैं। अगर बच्चे सोये हुए हों, वह उनकी गफलत है।

जैसे दीपावली में जगह-जगह ज्योति जगाकर रखते हैं, सफाई भी करते हैं, आह्वान भी करते हैं। `स्वच्छता, प्रकाश और आह्वान' वह लक्ष्मी का आह्वान करते और यह लक्ष्मी के रचयिता का आह्वान है। तो ज्योति जगाकर बैठो तब तो बाप आयेंगे। कईयों को जगाते भी हैं फिर सो जाते हैं। आवाज भी अनुभव करते हैं फिर भी अलबेलेपन की नींद में सो जाते हैं। सतयुग में सोना ही सोना है। डबल सोना है। इसलिए अभी जागती ज्योति बनो। ऐसे नहीं कि सोने के संस्कार से वहाँ सोना मिलेगा। जो जागेगा वह सोना पायेगा। अलबेलेपन की नींद भी तब आती है जब विनाशकाल भूल जाते हो। भक्तों की पुकार सुनो। दु:खी आत्माओं के दु:ख की पुकार सुनो। प्यासी आत्माओं के प्रार्थना की आवाज सुनो। तो कभी भी नींद नहीं आयेगी। तो इस वर्ष अलबेलेपन की नींद को तलाक देना। तब भक्त लोग आप साक्षात्कार मूर्तियों का साक्षात्कार करेंगे। तो इस वर्ष साक्षात्कार मूर्त्त बन भक्तों को साक्षात्कार कराओ। ऐसे चक्रवर्ती बनो।

ऐसे सदा प्रीत निभाने वाले, सदा सच्चे मीत के साथ रहने वाले, सदा प्राप्तियों और गुणों की महिमा के गीत गाने वाले, सदा सेकण्ड की यथार्थ रीत द्वारा सहजयोगी बनने वाले, ऐसे सदा रहमदिल, मुश्किल को सहज बनाने वाले निद्राजीत, चक्रवर्ती बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।



07-02-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"विचित्र राज्य दरबार"

बाप-दादा सभी बच्चों के रूप-बसन्त, दोनों के बैलन्स (balance) देख रहे हैं। बसन्त बनना और रूप में स्थित होना। दोनों की समानता है?जैसे बसन्त अर्थात् वाणी में आने की बहुत प्रैक्टिस है ऐसे वाणी से परे जाने का अभ्यास है? सर्व कर्मेंइन्द्रियों के कर्म की स्मृति से परे एक ही आत्मिक स्वरूप में स्थित हो सकते हो? कर्म खींचता है या कर्मातीत अवस्था खींचती है! देखना, सुनना, सुनाना - ये विशेष कर्म जैसे सहज अभ्यास में आ गये हैं, ऐसे ही कर्मातीत बनने की स्टेज अर्थात् कर्म को समेटने की शक्ति से अकर्मा अर्थात् कर्मातीत बन सकते हो? एक है कर्म-अधीन स्टेज, दूसरी है कर्मातीत अर्थात् कर्म-अधिकारी स्टेज। ज्यादा समय कौन-सी स्टेज रहती है? बाप-दादा हरेक संगमयुगी कर्मेन्द्रियों-जीत स्वराज्यधारी, राज्य अधिकारी राजाओं से पूछते है कि हरेक की राज्य कारोबार ठीक चल रही है? हरेक राज्य-अधिकारी रोज अपनी राज-दरबार लगाते हैं? राज्य दरबार में राज्य कारोबारी अपने कार्य की रिजल्ट देता है? हरेक कारोबारी आप राज्य अधिकारी के ऑर्डर में है? कोई भी कारोबारी ख्यानत व मिलावट (अमानत में ख्यानत) व किसी भी प्रकार की खिटखिट तो नहीं करते हैं? कभी आप राज्य अधिकारी को धोखा तो नहीं देते हैं? चलने के बजाए चलाने तो नहीं लग जाते हैं? आप राज्य-अधिकारियों का राज्य है या प्रजा का राज्य है? ऐसी चेकिंग करते हो या जब दुश्मन आता है तब होश आता है? रोज अपनी दरबार लगाते हो या कभी-कभी दरबार लगाते हो? क्या हाल है आपके राज्य-दरबारियों का? राज्य-कारोबार ठीक है? इतना अटेन्शन देते हो? अभी के राजा ही जन्म-जन्मान्तर के राजा बनेंगे। आपकी दासी ठीक कार्य कर रही है? सबसे बड़े-से-बड़ी दासी है - प्रकृति। प्रकृति रूपी दासी ठीक कार्य कर रही है? प्रकृतिजीत के ऑर्डर प्रमाण अपना कार्य कर रही है? प्रकृतिजीत - प्रकृति के ऑर्डर में तो नहीं आ जाते? आपके राज्य-दरबार की मुख्य 8 सहयोगी शक्तियाँ आपके कार्य में सहयोग दे रही हैं? राज्य कारोबार की शोभा हैं - ये अष्ट शक्तियाँ अर्थात् अष्ट रतन, अष्ट सहयोगी - तो आठों ही ठीक हैं? अपनी रिजल्ट चेक करो। राज्य कारोबार चलाना आता है? अगर राज्य-अधिकारी अलबेलेपन की नींद में व अल्पकाल की प्राप्ति के नशे में व व्यर्थ संकल्पों के नाच में मस्त होंगे तो सहयोगी शक्तियाँ भी समय पर सहयोग नहीं देंगी। तो रिजल्ट क्या समझें? आजकल बाप-दादा हरेक बच्चे की भिन्नभिन्न रूप से रिजल्ट चेक कर रहे हैं। आप अपनी रिजल्ट भी चेक करते हो? पहले तो संकल्प शक्ति, निर्णय शक्ति और संस्कार शक्ति - तीनों ही शक्तियाँ ऑर्डर में है? फिर 8 शक्तियाँ आर्डर में हैं? यह तीन शक्तियाँ हैं महामन्त्री। तो मन्त्री-मण्डल ठीक है या हिलता है? आपके मन्त्री भी दलबदलू तो नहीं हैं? कभी माया के मुरीद तो नहीं बन जाते हैं?

अमानत में ख्यानत

अगर अभी तक भी कन्ट्रोलिंग पावर नहीं होगी तो फाइनल रिजल्ट में क्या होगा? फाइन भरने के लिए धर्मराज पुरी में जाना पड़ेगा। यह सजायें फाइन हैं। रिफाइन बन जाओ तो फाइन नहीं भरना पड़ेगा। जिसकी अभी से राज्य दरबार ठीक है वह धर्मराज की दरबार में नहीं जायेंगे। धर्मराज भी उनका स्वागत करेगा। स्वागत करानी है या बार-बार सौगन्ध खानी है। अभी नहीं करेंगे, अभी नहीं करेंगे - यह बार-बार कहना पड़ेगा। अपना फाइनल फैसला कर लिया है कि अभी फाइलों के भण्डार भरे हुए हैं? खाता क्लियर हो गया है या मस्तक के टेबल पर यह नहीं किया है, यह नहीं किया है - ये फाइलें रही हुई है? यह करना चाहिए, यह चाहिए की फाइलें तो नहीं भरी पड़ी हैं? पुराने वर्ष के साथ पुराना खाता खत्म किया! या नये साल में भी पुराने खाते को जमा करके लम्बा किया है? क्या किया है? वर्ष परिवर्तन हुआ तो संस्कार भी परिवर्तन हुआ? अगर अब तक भी पुराने खाते का हिसाब-किताब चुक्ता न कर बढ़ाते चलेंगे तो रिजल्ट क्या होगी! जितना पुराना खाता चलाते रहेंगे उतना ही चिल्लाना पड़ेगा। यह चिल्लाना बड़ा दर्दनाक है। एक-एक सेकण्ड एक वर्ष के समान अनुभव होगा। इसलिए अभी भी `शिव-मन्त्र' द्वारा समाप्ति कर दो। अभी कईयों के खाते भस्म नहीं हुए हैं। अभी पुराने खाते ही चला रहे हैं। सुनाया ना - कईयों की तीन शक्तियाँ अभी भी बाप के सर्व खज़ानों में ख्यानत कर रही हैं। बाप ने खज़ानें दिये हैं, स्व-कल्याण और विश्व-कल्याण के प्रति, लेकिन व्यर्थ तरफ लगाना, अकल्याण के कार्य में लगाना - यह अमानत में ख्यानत हो रही है। श्रीमत के साथ परमत और जनमत की मिलावट हो रही है। मिलावट करने में होशियार भी बहुत हैं। रूप ऐसा ही रखते हैं जैसे कि श्रीमत है। शब्द मुरली के ही लेंगे लेकिन अन्तर इतना होगा जैसे शिव और शव। शिव बाप के बजाए शव में अटकेंगे। उनकी भाषा बड़ी रायल रूप की होती है। सदैव अपने को बचाने के लिए, किसने किया है, कौन देखता है, ऐसे दिलासे से स्वयं को चलाते रहते हैं। समझते हैं दूसरों को धोखा देते हैं, लेकिन स्वयं का दु:ख जमा कर रहे हैं। एक का सौ गुणा होकर जमा होता रहता है। इसलिए ख्यानत और मिलावट को समाप्त करो। रूहानियत और रहम को धारण करो। अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहमदिल बनो। स्व को देखो। बाप को देखो औरों को नहीं देखो। `हे अर्जुन' बनो। जो ओटे सो अर्जुन। सदा यह स्लोगन याद रखो - `कहकर नहीं सिखाना है, करके सिखाना है।' श्रेष्ठ कर्म करके सिखाना है। उल्टा नहीं सिखाना है। मैं बदल करके सबको बदल के दिखाऊँगा। व्यर्थ बातें सुनते हुए, देखते हुए, होली हँस बन, व्यर्थ छोड़ समर्थ धारण करो। सदा चमकीली ड्रैस में सजे-सजाये सदा सुहागिन। बाप और मैं, तीसरा न कोई। सदा झूले में झूलो। बाप की गोदी के झूलो या सर्व प्राप्तियों के झूले में झूलो। संकल्प रूपी नाखून भी मिट्टी में न जाए। समझा, इस वर्ष क्या करना है? नहीं तो मिट्टी पोंछते रहेंगे, साजन पहुँच जायेगा। वह मंजिल पर पहुँच जायेगा और आप पोंछते हुए रह जायेंगे। बरातियों की लिस्ट में आ जायेंगे। समय का इंतज़ार नहीं करना। सदा स्वयं को ऑफर करो कि मैं एवररेडी हूँ। समझा, अब क्या करना है?

बीते हुए वर्ष की रिजल्ट में अभी कईयों के खाते क्लियर नहीं हैं। अब तक पुराने-पुराने दाग भी कईयों के रहे हुए हैं। रबड़ भी लगाते हैं, फिर दाग लगा देते हैं। कईयों का तो पहले छोटा दाग है लेकिन छिपाते-छिपाते बड़ा कर दिया है। कई छिपाते हैं और कई चालाकी से अपने को चलाते हैं। इसलिए गहरा दाग होता जाता है। जैसे बहुत गहरा दाग होता है तो जिस चीज़ पर दाग होता है, वही फट जाती है, चाहे कागज पर हो, चाहे कपड़े पर हो। वैसे यहाँ भी गहरे दाग वाले को दिल फाड़ कर रोना पड़ेगा। यह मैंने किया - यह मैंने किया। ऐसे दिल फाड़ करके रोना पड़ेगा। अगर एक सेकण्ड भी वह दृश्य देखो तो विनाशकाल से भी दर्दनाक है, इसलिए सच्चे बनो, साफ बनो। बाप-दादा को अभी भी रहम आता है इसलिए रोज अपनी राज-दरबार लगाओ। कचहरी करो। चेक करने से चेन्ज हो जायेंगे।

ऐसे स्व-परिवर्तन द्वारा विश्व-परिवर्तन करने वाले सदा राज्य अधिकारी, सदा रूहानियत और रहम की वृत्ति वाले, विश्व में सदा सुखी, शान्त वायुमण्डल बनाने वाले, भटकती हुई आत्माओं के लिए लाइट हाउस और माइट हाउस - ऐसे दृढ़ संकल्प करने वाले, पुरानी दुनिया के आकर्षण से दूर रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।

सेवाधारी भाई-बहनों से - सेवाधारी अर्थात् बाप-समान। बाप भी सेवाधारी बन करके आते हैं। सेवाधारी बनना अर्थात् बाप-समान बनना। तो ये भी समझो ड्रामा में लॉटरी में नाम निकला है। सेवा का चान्स मिलना अर्थात् लॉटरी का नाम निकलना। सदा सेवा का चान्स लेते रहना। सभी की रिजल्ट अच्छी है - मुबारक हो।



09-02-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"मधुबन निवासियों की विशेषता"

आज विशेष मधुबन निवासी भाग्यशाली आत्माओं से मिलने आये हैं। मधुबन निवासियों की महिमा आज दिन तक भक्त भी गा रहे हैं और बाह्मण भी गाते हैं क्योंकि जो मधुबन धरती की महिमा है तो धरती पर रहने वालों की महिमा स्वत: ही महान हो जाती है। मधुबन वालों को ड्रामा अनुसार सब बातों में विशेष चान्स मिला हुआ है। बाप-दादा की चरित्रभूमि, कर्मभूमि होने के कारण जैसे स्थान का स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, ऐसे स्वस्थिति में श्रेष्ठता लाने का व तीव्र पुरुषार्थी बनाने का स्थान होने के कारण भी मधुबन वालों को विशेष चान्स है। मनसा को विश्व-कल्याणकारी वृत्ति में शक्तिशाली बनने का अर्थात् विश्व-सेवा का मुख्य केन्द्र `मधुबन' है। मधुबन में आये हुए मेहमानों की मनसा-वाचा-कर्मणा सेवा के साथ-साथ रूहानी अव्यक्त वातावरण बनाने की सेवा का विशेष चान्स है। मधुबन वालों को देख सर्व आत्मायें सहज फॉलो करना सीखती हैं। जैसे मधुबन बेहद का है वैसे मधुबन निवासियों को भी बेहद सेवा का चान्स है। अपने कर्म की प्रालब्ध के हिसाब से तो हर आत्मा को यथा कर्म तथा फल मिलता ही है लेकिन जितनी भी आत्मायें आई उनकी सेवा हुई और तृप्त हो करके गई तो इतनी सब आत्माओं की सन्तुष्टता का शेयर मधुबन निवासी, मेहमाननवाजी करने वालों का बन गया ना। घर बैठे अगर सेवा के शेयर्स जमा हो गये तो विशेषता हुई ना। और मधुबन वालों को प्रत्यक्ष फल मिलने में भी विशेषता है। भविष्य फल तो बन ही रहा है। मधुबन वालों को और भी विशेष लिफ्ट है। बाप-दादा की पालना तो मिलती ही है, लेकिन साकार रूप में निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं की भी पालना मिलती है, तो डबल पालना की लिफ्ट है और बना-बनाया सब साधन प्राप्त होता है तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्यशाली अपना श्रेष्ठ भाग्य जान सेवा के निमित्त बन चलते हो? जैसे कर्मणा सेवा के लिए अथक सेवाधारी का सर्टिफकेट देकर जाते हैं, ऐसे तीव्र पुरुषार्थी व निरन्तर सहजयोगी की स्थिति का सर्टिफकेट देते हैं? दोनों सर्टिफकेट साथ-साथ मिले तब कहेंगे यज्ञ की समाप्ति समीप है। मेहनत सबने अच्छी की। रात-दिन जिन्होंने सेवा के कार्य में अपना तन-मन और शक्तियों का खज़ाना लगाया, ऐसे बच्चों को बाप-दादा भी मुबारक देते हैं। त्याग वालों को भाग्य नैचुरल खुशी के रूप में और हल्केपन की अनुभूति के रूप में उसी समय ही प्राप्त होता रहता है। इस निशानी से हरेक अपने रिजल्ट को चेक कर सकते हैं कि कितना समय त्याग और निष्काम भाव रहा, निमित्तपन का भाव रहा या बीच-बीच मे और भी कोई भाव मिक्स (Mix) हुआ। चेक कर आगे के लिए चेन्ज कर देना, यह है चढ़ती कला का विशेष पुरूषार्थ।

दूसरी बात - एक विशेष गुण सबको सदा और सहज धारण हो जैसे कि मेरा निजी गुण है। जब वह निजी बन जाता है तो कोशिश नहीं करनी पड़ती है, नैचुरल जीवन ही वह बन जाता है। वह विशेष गुण है - `एक दूसरे की कमज़ोरी न धारण करो न वर्णन करो' वर्णन होने से वह वातावरण फैलता है। अगर कोई सुनाये भी तो दूसरा शुभ भावना से उससे किनारा कर ले। यह नहीं कि इसने सुनाया, मैंने नहीं कहा - लेकिन सुना तो सही ना! जैसे कहने वाले का बनता है, सुनने वाले का भी बनता है। परसेन्टेज में अन्तर है लेकिन बनता तो है ना? व्यर्थ चिन्तन या कमज़ोरी की बातें नहीं चलनी चाहिए। बीती हुई बात को भी रहमदिल बन समा दो। समाकर शुभ भावना से उस आत्मा के प्रति मनसा सेवा करते रहो। जब 5 तत्वों के प्रति भी आपकी शुभ भावना है, ये तो फिर भी सहयोगी ब्राह्मण आत्मायें हैं। भले संस्कार के वश कोई उल्टा भी कहता, करता या सुनता है लेकिन आप उस एक को परिवर्तन करो। एक से दो तक, दो से तीन तक ऐसे व्यर्थ बातों की माला की दीपमाला न हो जाए। यह गुण धारण करो। किसी का सुनना, सुनाना नहीं है लेकिन समाना है। सहयोगी बन मनसा से या वाणी से उनको भी आगे बढ़ाना है। होता क्या है एक का मित्र होता उस एक का फिर दूसरा मित्र होता, दूसरे का फिर तीसरा होता, ऐसे व्यर्थ बातों की माला बड़ा रूप लेकर चारों और फैल जाती है। इसलिए इन बातों का अटेन्शन। अच्छा! मधुबन के पाण्डवों की यूनिटी (Unity) की भी विशेषता है। पूरी सीजन निर्विघ्न चले तो निर्विघ्न भव के वरदानी हो गये ना! सेवा की सफलता में सब पास हैं। सेवा नहीं करते, लेकिन मेवा खाते हो। सर्व ब्राह्मण परिवार की आशीर्वाद के अधिकारी बनना, यह मेवा खाया या सेवा की?