03-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


डबल विदेशी बच्चों से बापदादा की रूह-रूहान

सर्व की विशेषताओं को बेहद के कार्य में लगाने वाले, बेहद की स्थिति में स्थित करने वाले विश्व-पिता बोले-

आज बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। सभी बच्चे दूर-दूर से अपने स्वीट होम में पहुँच गये। जहाँ सर्व प्राप्ति का अनुभव करने का स्वत: ही वरदान प्राप्त होता है। ऐसे वरदान भूमि पर वरदाता बाप से मिलने आये हैं। बापदादा भी कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा देख रहे हैं भारत में नज़दीक रहने वाली कई आत्मायें अभी तक प्यासी बन ढूंढ रही हैं। लेकिन साकार रूप से दूर-दूर रहने वाले डबल विदेशी बच्चों ने दूर से ही अपने बाप को पहचान, अधिकार को पा लिया। दूर वाले समीप हो गये और समीप वाले दूर हो गये। ऐसे बच्चों के भाग्य की कमाल देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। आज वतन में भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों की विशेषताओं पर रूह-रूहान कर रहे थे। भारतवासी बच्चों की और डबल विदेशी बच्चों की, दोनों की अपनी अपनी विशेषता थी। आज बच्चों की कमाल के गुण गा रहे थे। त्याग क्या किया और भाग्य क्या लिया! लेकिन बच्चों की चतुराई देख रहे थे कि त्याग भी बिना भाग्य के नहीं किया है। सौदा करने में भी पक्के व्यापारी हैं। पहले प्राप्ति का अनुभव हुआ, अच्छी प्राप्ति को देख व्यर्थ बातों का त्याग किया। तो छोड़ा क्या और पाया क्या? उसकी लिस्ट निकालो तो क्या रिजल्ट निकलेगी? एक छोड़ा और पदम पाया। तो यह छोड़ना हुआ या पाना हुआ? हम आत्मायें विश्व की ऐसी श्रेष्ठ विशेष आत्मायें बनेंगी, डायरेक्ट बाप से सम्बन्ध में आने वाली बनेंगी - ऐसा कब सोचा था! क्रिश्चियन से कृष्णपुरी में आ जायेंगे यह कभी सोचा था! धर्मपिता के फालोअर थे। तना के बजाए टाली में अटक गये। और अब इस वैरायटी कल्प वृक्ष का तना आदि सनातन ब्राह्मण सो देवता धर्म के बन गये। फाउन्डेशन बन गये। ऐसी प्राप्ति को देख छोड़ा क्या? अल्पकाल की निंद्रा को जीता। नींद में सोने को छोड़ा और स्वयं सोना (गोल्ड) बन गये। बापदादा डबल विदेशियो का सवेरे-सवेरे उठ तैयार होना देख मुस्कराते हैं। आराम से उठने वाले और अभी कैसे उठते हैं! नींद का त्याग किया - त्याग के पहले भाग्य को देख, अमृतवेले का अलौकिक अनुभव करने के बाद यह नींद भी क्या लगती है! खान-पान छोड़ा या बीमारी को छोड़ा? खाना पीना छोड़ना अर्थात् कई बीमारियों से छूटना। मुक्त हो गये ना। और ही हैल्थ वैल्थ दोनों मिल गई। इसलिए सुनाया कि पक्के व्यापारी हो।

विदेशी बच्चों की और एक विशेषता यह देखते कि जिस तरफ भी लगते हैं तो बहुत तीव्रगति से उस तरफ चलते हैं। तीव्रगति से चलने के कारण प्राप्ति भी सर्व प्रकार की फुल करने चाहते हैं। बहुत फास्ट चलने के कारण कभी कभी चलते चलते थोड़ी सी भी माया की रूकावट आती है तो घबराते भी फास्ट हैं। यह क्या हुआ। ऐसे भी होता है क्या! ऐसे आश्चर्य की स्थिति में पड़ जाते हैं। फिर भी लगन मजबूत होने के कारण विघ्न पार हो जाता है और आगे के लिए मजबूत बनते जाते हैं। मंज़िल पर चलने में महावीर हो, नाजुक तो नहीं हो ना! घबराने वाले तो नहीं हो? ड्रामा तो बहुत अच्छा करते हो। ड्रामा में माया को भगाने के साधन भी बहुत अच्छे बनाते हो। तो इस बेहद के ड्रामा अन्दर प्रैक्टिकल में भी ऐसे ही महावीर पार्टधारी हो ना? मुहब्बत और मेहनत , दोनों में से मुहब्बत में रहते हो वा मेहनत में? सदा बाप की याद में समाये हुए रहते हो वा बार बार याद करने वाले हो वा याद स्वरूप हो? सदा साथ रहते हो वा सदा साथ रहें, इसी मेहनत में लगे रहते हो? बाप समान बनने वाले सदा स्वरूप रहते हैं। याद स्वरूप, सर्वगुण स्वरूप, सर्व शक्तियों स्वरूप। स्वरूप का अर्थ ही है अपना रूप ही वह बन जाये। गुण वा शक्ति अलग नहीं हो। लेकिन रूप में समाये हुए हों। जैसे कमज़ोर संस्कार वा कोई अवगुण बहुत काल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की कोई मेहनत नहीं करते हो लेकिन नेचर और नैचुरल हो गये हैं। उनको छोड़ने चाहते हो, महसूस करते हो कि यह नहीं होना चाहिए लेकिन समय पर फिर से न चाहते भी वह नेचर वा नैचरल संस्कार अपना कार्य कर लेते हैं। क्योंकि स्वरूप बन गये हैं। ऐसे हर गुण वा हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए। मेरी नेचर और नैचुरल गुण बाप समान बन जाएँ। ऐसा गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप, याद स्वरूप हो जाता है। इसको ही कहा जाता है -बाप समान। तो सब अपने को ऐसे स्वरूप अनुभव करते हो? लक्ष्य तो यही है ना। पाना है तो फुल पाना या थोड़े में भी राजी हो? चन्द्रवंशी बनेंगे? (नहीं) चंद्रवंशी राज्य भी कम थोड़े ही है। सूर्यवंशी कितने बनेंगे? जो भी सब बैठे हैं सूर्यवंशी बनेंगे? राम की महिमा कम तो नहीं है। उमंग उत्साह सदा श्रेष्ठ रहे यह अच्छा है।

अब विश्व की आत्मायें आप सबसे क्या चाहती हैं वह जानते हो? अभी हर आत्मा अपने पूज्य आत्माओं को प्रत्यक्ष रूप में पाने के लिए पुकार रही हैं। सिर्फ बाप को नही पुकार रहे हैं। लेकिन बाप के साथ आप पूज्य आत्माओं को भी पुकार रहे हैं। हरेक समझते हैं - हमारा पैगम्बर कहो, मैसेन्जर कहो, देव आत्मा कहो, वह आवे और हमें साथ ले चले। यह विश्व की पुकार पूर्ण करने वाले कौन हैं?

आप पूज्य देव आत्माओं का इन्तजार कर रहे हैं कि हमारे देव आयेंगे, हमें जगायेंगे और ले जायेंगे। उसके लिए क्या तैयारी कर रहे हो? इस कांफ्रेंस के बाद देव प्रत्यक्ष होंगे अभी कांफ्रेंस के पहले स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा प्रत्यक्ष करने का स्वयं और संगठित रूप से प्रोग्राम बनाओ। इस कांफ्रेंस द्वारा निराशा से आशा अनुभव होनी चाहिए। वह दीपक तो उद्घाटन में जगायेंगे, नारियल भी तोड़ेंगे। साथ-साथ सर्व आत्माओं प्रति शुभ आशाओं का दीपक भी जगायेंगे। ठिकाना दिखाने का ठका हो जाए। जैसे नारियल का ठका करते हो ना। तो विदेशी चाहे भारतवासी दोनों को मिलकर ऐसी तैयारी पहले से करनी है। तब है महातीर्थ की प्रत्यक्षता। प्रत्यक्षता की किरण अब्बा के घर से चारों ओर फैले। जैसे कहते भी हो कि आबू विश्व के लिए लाइट हाउस है। यही लाइट अन्धकार के बीच नई जागृति का अनुभव करावे। इसके लिए ही सब आये हो ना! वा सिर्फ स्वयं रिफ्रेश हो चले जायेंगे?

सर्व ब्राह्मणों का एक संकल्प, वही कार्य की सफलता का आधार है। सबको सहयोग चाहिए। किले की एक ईंट भी कमज़ोर होती तो किले को हिला सकती है। इसलिए छोटे बड़े सब इस ब्राह्मण परिवार के किले की ईंट हो तो सभी को एक ही संकल्प द्वारा कार्य को सफल करना है। सबके मन से यह आवाज़ निकले कि यह मेरी जिम्मेवारी है। अच्छा - जितना बच्चे याद करते हैं उतना बाप भी याद प्यार देते हैं। अच्छा –

ऐसे सदा दृढ़ संकल्प करने वाले, सफलता के जन्म-सिद्ध अधिकार को साकर में लाने वाले, सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रखते हुए समर्थ रहने वाले, स्वयं की विशेषता को सदा कार्य में लगाने वाले, सदा हर कार्य में बाप का कार्य सो मेरा कार्य ऐसे अनुभव करने वाले, सर्व कार्य में ऐसे बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले विशाल बुद्धि बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।’’

ब्राजील पार्टी से

देश में सबसे दूर लेकिन दिल के समीप रहने वाली आत्मायें हो ना! सदा अपने को दूर बैठे भी बाप के साथ अनुभव करते हो ना। आत्मा उड़ता पंछी बन सेकण्ड में बाप के वतन में, मधुबन में पहुँच जाती है ना! सदा सैर करते हो? बापदादा बच्चों की मुहब्बत को देख रहे हैं कि कितनी दिल से साकार रूप में मधुबन में पहुँचने का प्रयत्न कर पहुँच गये हैं। इसके लिए मुबारक देते हैं। बापदादा आगे के लिए सदा विजयी रहो और सदा औरों को भी विजयी बनाओ यही वरदान देते हैं। अच्छा –

अब विश्व की आत्मायें आप सबसे क्या चाहती हैं वह जानते हो? अभी हर आत्मा अपने पूज्य आत्माओं को प्रत्यक्ष रूप में पाने के लिए पुकार रही है। सिर्फ बाप को नही पुकार रहे हैं। हरेक समझते हैं हमारा पैगम्बर कहो, मैसेन्जर कहो, देव आत्मा कहो वह आवे और हमें साथ ले चले। आप पूज्य देवात्माओं का इन्तजार कर रहे हैं।

शान्ति शान्ति शान्ति शान्ति


06-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


निरंतर सहज योगी बनने की सहज युक्ति
याद और सेवा की धुन में लगाने वाले
, सदा स्नेह के बन्धन में बाँधने वाले माता-पिता अपने सिकीलधे बच्चों प्रति बोले –


आज बागवान अपने वैरायटी खुशबूदार फूलों के बगीचे को देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा वैरायटी रूहानी पुष्पों की खुशबू और रूप की रंगत देख हरेक की विशेषता के गीत गा रहे हैं। जिसको भी देखो हरेक एक दो से प्रिय और श्रेष्ठ है। नम्बरवार होते हुए भी बापदादा के लिए लास्ट नम्बर भी अति प्रिय है। क्योंकि चाहे अपनी यथा शक्ति मायाजीत बनने में कमज़ोर है फिर भी बाप को पहचान दिल से एक बार भी मेरा बाबाकहा तो बापदादा रहम के सागर ऐसे बच्चे को भी एक बार के रिटर्न में पदमगुणा उसी रूहानी प्यार से देखते कि मेरे बच्चे विशेष आत्मा हैं। इसी नजर से देखते हैं फिर भी बाप का तो बना ना! तो बापदादा ऐसे बच्चे को भी रहम और स्नेह की दृष्टि द्वारा आगे बढ़ाते रहते हैं क्योंकि मेराहै। यही रूहानी मेरे-पन की स्मृति ऐसे बच्चों के लिए समर्थी भरने की आशीर्वाद बन जाती है। बापदादा को मुख से आशीर्वाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि शब्द, वाणी सेकेण्ड नम्बर है लेकिन स्नेह का संकल्प शक्तिशाली भी है और नम्बरवन प्राप्ति का अनुभव कराने वाला है। बापदादा इसी सूक्ष्म स्नेह के संकल्प से मात पिता दोनों रूप से हर बच्चे की पालना कर रहे हैं। जैसे लौकिक में सिकीलधे बच्चे की माँ बाप गुप्त ही गुप्त बहुत शक्तिशाली चीजों से पालना करते हैं। जिसको आप लोग खोरश (खातिरी) कहते हो। तो बापदादा भी वतन में बैठे सभी बच्चों की विशेष खोरश (खातिरी) करते रहते हैं। जैसे मधुबन में आते हो तो विशेष खोरश (खातिरी) होती है ना। तो बापदादा भी वतन में हर बच्चे को फरिश्ते आकारी रूप में आह्वान कर सम्मुख बुलाते हैं और आकारी रूप में अपने संकल्प द्वारा सूक्ष्म सर्व शक्तियों की विशेष बल भरने की खातिरी करते हैं। एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा शक्ति की प्राप्ति करना। यह है मात-पिता के स्नेह की पालना के रूप में विशेष खातिरी करना। जैसे यहाँ भी किस-किस की खातिरी करते हो। नियम प्रमाण रोज के भोजन से विशेष वस्तुओं से खातिरी करते हो ना। एक्स्ट्रा देते हो। ऐसे ब्रह्मा माँ का भी बच्चों में विशेष स्नेह है। ब्रह्मा माँ वतन में भी बच्चों की रिमझिम बिना रह नहीं सकते। रूहानी ममता है। तो सूक्ष्म स्नेह के आह्वान से बच्चों के स्पेशल ग्रुप इमर्ज करते हैं। जैसे साकार में याद हैं ना, हर ग्रुप को विशेष स्नेह के स्वरूप में अपने हाथों से खिलाते थे और बहलाते थे। वही स्नेह का संस्कार अब भी प्रैक्टिकल में चल रहा है। इसमें सिर्फ बच्चों को बाप समान आकारी स्वरूपधारी बन अनुभव करना पड़े। अमृतवेले ब्रह्मा माँ - ‘‘आओ बच्चे, आओ बच्चे’’ कह विशेष शक्तियों की खुराक बच्चों को खिलाते हैं। जैसे यहाँ घी पिलाते थे और साथ-साथ एक्सरसाइज भी कराते थे ना! तो वतन में भी घी भी पिलाते अर्थात् सूक्ष्म शक्तियों की (ताकत की) चीजें देते और अभ्यास की एक्सरसाइज भी कराते हैं। बुद्धि बल द्वारा सैर भी कराते हैं। अभी-अभी परमधाम, अभी-अभी सूक्ष्मवतन। अभी-अभी साकारी सृष्टि, ब्राह्मण जीवन। तीनों लोकों में दौड़ की रेस कराते हैं। जिससे विशेष खातिरी जीवन में समा जाए। तो सुना ब्रह्मा माँ क्या करते हैं।

डबल विदेशी बच्चों को वैसे भी छुट्टी के दिनों में कहाँ दूर जाकर एक्जरशन करने की आदत हैं। तो बापदादा भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष निमंत्रण दे रहे हैं। जब भी फ्री हो तो वतन में आ जाओ। सागर के किनारे मिट्टी में नहीं जाओ। ज्ञान सागर के किनारे आ जाओ। बिगर खर्चे के बहुत प्राप्ति हो जायेगी। सूर्य की किरणें भी लेना, चन्द्रमा की चाँदनी भी लेना, पिकनिक भी करना और खेल कूद भी करना। लेकिन बुद्धि रूपी विमान में आना पड़ेगा। सबका बुद्धि रूपी विमान एवररेडी है ना। संकल्प रूपी स्विच स्टार्ट किया और पहुँचे। विमान तो सबके पास रेडी है ना कि कभी-कभी स्टार्ट नहीं होता है वा पेट्रोल कम होता आधा में लौट आते। वैसे तो सेकण्ड में पहुँचने की बात है। सिर्फ डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइण्ड पेट्रोल कौन सा है? एक है निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ। दूसरा है साकार रूप में सर्व सम्बन्धों का नशा। सिर्फ बाप और बच्चे के सम्बन्ध का नशा नहीं। लेकिन प्रवृत्ति मार्ग पवित्र परिवार है। तो बाप से सर्व सम्बन्धों के रस का नशा साकार रूप में चलते फिरते अनुभव हो। यह नशा और खुशी निरंतर सहज योगी बना देती है। इसलिए निराकारी और साकारी डबल रिफाइण्ड साधन की आवश्यकता है।

अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है इसलिए फिर दुबारा साकारी और निराकारी नशे पर सुनायेंगे। डबल विदेशी बच्चों को सर्विस के प्रत्यक्ष फल की, आज्ञा पालन करने की विशेष मुबारक बापदादा दे रहे हैं। हरेक ने अच्छा बड़ा ग्रुप लाया है। बापदादा के आगे अच्छे ते अच्छे बड़े गुलदस्ते भेंट किये हैं। उसके लिए बापदादा ऐसे वफादार बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से यही वरदान दे रहे हैं –

‘‘सदा जीते रहो - बढ़ते रहो’’

अच्छा - चारों ओर के स्नेही बच्चों को, जो चारों ओर याद और सेवा की धुन में लगे हुए हैं, ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बने हुए सिकीलधे बच्चों की सेवा के रिटर्न में प्यार और याद के रिटर्न में अविनाशी याद। ऐसे अविनाशी लग्न में रहने वालों को अविनाशी याद प्यार और नमस्ते।’’

आस्ट्रेलिया पार्टी से - आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों की विशेषता बापदादा देख रहे हैं। आस्ट्रेलिया निवासियों की विशेषता क्या है, जानते हो? (पहली बार आये हैं इसलिए नहीं जानते हैं) नये स्थान पर आये हो वा अपने पहचाने हुए स्थान पर आये हो? यहाँ पहुँचने से कल्प पहले की स्मृति इतनी स्पष्ट हो जाती है जैसे इस जन्म में भी अभी-अभी देखा है। यही निशानी है समीप आत्मा की। इसी अनुभव द्वारा ही अपने को जान सकते हो कि हम ब्राह्मण आत्माओं में भी समीप की आत्मा हैं वा दूर की आत्मा है। फर्स्ट नम्बर है या सेकण्ड नम्बर हैं। यही इस अलौकिक सम्बन्ध में विशेषता है जो हरेक समझता है कि मैं फर्स्ट जाऊँगा। लौकिक में तो नम्बरवार समझेंगे यह बड़ा है, यह दूसरा नम्बर, यह तीसरा नम्बर है। लेकिन यहाँ लास्ट वाला भी समझता है कि मैं लास्ट सो फर्स्ट हूँ। यही लक्ष्य अच्छा है। फर्स्ट आना ही है। तो फर्स्ट की निशानी - सदा बाप के साथ रहना। प्रयत्न नहीं करना है लेकिन सदा साथ का अनुभव रहे। जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेराहोता है वह स्वत: ही याद रहता है, याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। ‘‘मेरा बाबा और मैं बाबा का’’, कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है - सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना! तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो? माया आती है? बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती। जैसे अपने शरीर के रहने का स्थान मालूम है, बना हुआ है तो जब भी फ्री होते हो तो सहज ही अपने घर में जाकर रेस्ट करते हो। इसी रीति से जब मालूम है कि मुझे बाप के पास रहना है, यही ठिकाना है तो कार्य करते भी रह सकते हो। ऐसे बुद्धि द्वारा अनुभव हो। हरेक अपनी तकदीर बना कर, तकदीर बनाने वाले के सामने पहुँच गये। बापदादा हरेक की तकदीर का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं। वैरायटी ग्रुप है। बच्चे भी हैं, बुजुर्ग भी हैं, यूथ भी हैं। लेकिन अभी तो सब छोटे बच्चे बन गये। अभी कोई कहेंगे 8 मास के हैं, कोई 12 मास के। अलौकिक जन्म का ही वर्णन करेंगे ना! अच्छा - सभी कल्प पहले वाली सिकीलधी आत्मायें हो। सदा बाप के अटूट लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं को हल कर, उड़ता पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी। बापदादा के दिलतख्त-नशीन रहते हुए सदा इसी नशे में रहो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। कल्प-कल्प अपना अधिकार लेते रहेंगे। मुबारक हो। सदा ही मुबारक लेने पात्र आत्मायें हो।

मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। ‘‘मेरा बाबा और मैं बाबा का’’ कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना। तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो? माया आती है? तो फर्स्ट की निशानी है - सदा बाप के साथ रहना। बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती।



09-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ

सर्व खज़ानों से भरपूर करने वाले, पद्मापद्म, भाग्यशाली बनाने वाले शिवबाबा बोले –

आज बापदादा सभी सिकीलधे बच्चों से मिलन मनाने के लिए विशेष आये हैं। डबल विदेशी बच्चे मिलने मनाने के लिए सदा इन्तजार में रहते हैं। तो आज बापदादा डबल विदेशी बच्चों से एक-एक की विशेषता की रूह-रूहान करने आये हैं। एक-एक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। कहाँ संख्या ज्यादा है और कहाँ संख्या कम होते भी अमूल्य रत्न, विशेष रत्न थोड़े चुने हुए होते भी अपना बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे बच्चों के उमंग-उत्साह को देख, बच्चों की सेवा को देख बापदादा हर्षित होते हैं। विशेष रूप में विदेश के चारों ही कोनों में बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन प्रैक्टिकल करने में अच्छी सफलता को पा रहे हैं। सर्व धर्मों की आत्माओं को बाप से मिलाने का प्रयत्न अच्छा कर रहे हैं। सेवा की लगन अच्छी है। अपनी भटकती हुई आत्मा को ठिकाना मिलने के अनुभवी होने के कारण औरों के प्रति भी रहम आता है। जो भी दूर-दूर से आये हैं उन्हों का एक ही उमंग है कि जाना है और अन्य को भी ले जाना है। इस दृढ़ संकल्प ने सभी बच्चों को दूर होते भी नज़दीक का अनुभव कराया है। इसलिए सदा अपने को बापदादा के वर्से के अधिकारी आत्मा समझ चल रहे हैं। कभी भी किसी व्यर्थ संकल्प के आधार पर अपने को हलचल में नहीं लाओ। कल्प-कल्प के पात्र हो। अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है। पहला नम्बर मिलने का चान्स अमेरिका पार्टी को मिला है। तो अमेरिका वाले सभी मिलकर सेवा में सबसे नम्बरवन कमाल भी तो दिखायेंगे ना। अभी बापदादा देखेंगे कि कांफ्रेंस में सबसे बड़े ते बड़े वी.आई.पी. कौन ले आते हैं। नम्बरवन वी.आई.पीज कहाँ से आ रहा है? (अमेरिका से) वैसे तो आप बाप के बच्चे वी.वी.वी.आई.पी. हो। आप सबसे बड़ा तो कोई भी नहीं है लेकिन जो इस दुनिया के वी.आई.पी. हैं उन आत्माओं को भी सन्देश देने का यह चान्स है। इन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह पुरूषार्थ करना पड़ता है क्योंकि वे तो अपने को इस पुरानी दुनिया के बड़े समझते हैं ना। तो छोटे-छोटे कोई प्रोग्राम में आना वह अपना रिगार्ड नहीं समझते। इसलिए बड़े प्रोग्राम में बड़ों को बुलाने का चान्स है। वैसे तो बापदादा बच्चों से ही मिलते और रूह-रूहान करते। विशेष आते भी बच्चों के लिए ही हैं। फिर ऐसे-ऐसे लोगों का भी उल्हना न रह जाए कि हमें हमारे योग्य निमंत्रण नहीं मिला, इस उल्हने को पूरा करने के लिए यह सब प्रोग्राम रचे जाते हैं। बापदादा को तो बच्चों से प्रीत है और बच्चों को बापदादा से प्रीत है। अच्छा –

सभी डबल विदेशी तन से और मन से सन्तुष्ट हो? थोड़ा भी किसको कोई संकल्प तो नहीं है। कोई तन की वा मन की प्राब्लम है? शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा। मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनो एक्सरसाइज हो जायेगी। खुशी है दुआऔर एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा। (एक बच्चे ने कहा रात्रि को नींद नहीं आती है।) सोने के पहले योग में बैठो तो फिर नींद आ जायेगी। योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।

कोई भी बात में किसको भी कोई क्वेश्चन हो या छोटी सी बात में कब कनफ्यूज भी जल्दी हो जाते, तो वह छोटी-छोटी बातें फौरन स्पष्ट करके आगे चलते चलो। ज्यादा सोचने के अभ्यासी नहीं बनो। जो भी सोच आये उसको वहाँ ही खत्म करो। एक सोच के पीछे अनेक सोच चलने से फिर स्थिति और शरीर दोनों पर असर आता है। इसलिए डबल विदेशी बच्चों को सोचने की बात पर डबल अटेन्शन देना चाहिए। क्योंकि अकेले रहकर सोचने के नैचरल अभ्यासी हो। तो वह अभ्यास जो पड़ा हुआ है, इसलिए यहाँ भी छोटी-छोटी बात पर ज्यादा सोचते। तो सोचने में टाइम वेस्ट जाता और खुशी भी गायब हो जाती। और शरीर पर भी असर आता है, उसके कारण फिर सोच चलता है। इसलिए तन और मन दोनों को सदा खुश रखने के लिए - सोचो कम। अगर सोचना ही है तो ज्ञान रत्नों को सोचो। व्यर्थ संकल्प की भेंट में समर्थ संकल्प हर बात का होता है। मानों अपनी स्थिति वा योग के लिये व्यर्थ संकल्प चलता है कि मेरा पार्ट तो इतना दिखाई नहीं देता, योग लगता नहीं। अशरीरी होते नहीं। यह है - व्यर्थ संकल्प। उनकी भेंट में समर्थ संकल्प करो - याद तो मेरा स्वधर्म है। बच्चे का धर्म ही है बाप को याद करना। क्यों नहीं होगा, जरूर होगा। मैं योगी नहीं तो और कौन बनेगा! मैं ही कल्प-कल्प का सहजयोगी हूँ। तो व्यर्थ के बजाए इस प्रकार के समर्थ संकल्प चलाओ। मेरा शरीर चल नहीं सकता, यह व्यर्थ संकल्प नहीं चलाओ। इसके बजाए समर्थ संकल्प यह है कि - इसी अन्तिम जन्म में बाप ने हमको अपना बनाया है। कमाल है, बलिहारी इस अन्तिम शरीर की। जो इस पुराने शरीर द्वारा जन्म-जन्म का वर्सा ले लिया। दिलशिकस्त के संकल्प नहीं करो। लेकिन खुशी के संकल्प करो। वाह मेरा पुराना शरीर! जिसने बाप से मिलाने के निमित्त बनाया! वाह वाह कर चलाओ। जैसे घोड़े को प्यार से, हाथ से चलाते हैं तो घोड़ा बहुत अच्छा चलता है अगर घोड़े को बार-बार चाबुक लगायेंगे तो और ही तंग करेगा। यह शरीर भी आपका है। इनको बार-बार ऐसे नहीं कहो कि यह पुराना, बेकार शरीर है। यह कहना जैसे चाबुक लगाते हो। खुशी-खुशी से इसकी बलिहारी गाते आगे चलाते रहो। फिर यह पुराना शरीर कब डिस्टर्ब नहीं करेगा। बहुत सहयोग देगा। (कोई ने कहा- प्रामिस भी करके जाते हैं, फिर भी माया आ जाती है।)

माया से घबराते क्यों हो? माया आती है आपको पाठ पढ़ाने लिए। घबराओ नहीं। पाठ पढ़ लो। कभी सहनशीलता का पाठ कभी एकरस स्थिति में रहने का पाठ पढ़ाती। कभी शान्त स्वरूप बनने का पाठ पक्का कराने आती। तो माया को उस रूप में नहीं देखो। माया आ गई, घबरा जाते हो। लेकिन समझो कि माया भी हमारी सहयोगी बन, बाप से पढ़ा हुआ पाठ पक्का कराने के लिए आई है। माया को सहयोगी के रूप में समझो। दुश्मन नहीं। पाठ पक्का कराने के लिए सहयोगी है तो आपका अटेन्शन सारा उस बात में चला जायेगा। फिर घबराहट कम होगी और हार नहीं खायेंगे। पाठ पक्का करके अंगदके समान बन जायेंगे। तो माया से घबराओ नहीं। जैसे छोटे बच्चों को माँ बाप डराने के लिए कहते हैं, हव्वा आ जायेगा। आप सबने भी माया को हव्वा बना दिया है। वैसे माया खुद आप लोगों के पास आने में घबराती है। लेकिन आप स्वयं कमज़ोर हो, माया का आह्वान करते हो। नहीं तो वह आयेगी नहीं। वह तो विदाई के लिए ठहरी हुई है। वह भी इन्तजार कर रही है कि हमारी लास्ट डेट कौन सी है? अब माया को विदाई देंगे या घबरायेंगे!

डबल विदेशियों की यह एक विशेषता है - उड़ते भी बहुत तेज हैं और फिर डरते हैं तो छोटी सी मक्खी से भी डर जाते हैं। एक दिन बहुत खुशी में नाचते रहेंगे और दूसरे दिन फिर चेहरा बदली हो जायेगा। इस नेचर को बदली करो। इसका कारण क्या है?

इन सब कारणों का भी फाउन्डेशन है - सहनशक्ति की कमी। सहन करने के संस्कार शुरू से नहीं है, इसलिए जल्दी घबरा जाते हो। स्थान को बदलेंगे या जिनसे तंग होंगे उनको बदल लेंगे। अपने को नहीं बदलेंगे। यह जो संस्कार है वह बदलना है। ‘‘मुझे अपने को बदलना है’’, स्थान को वा दूसरे को नहीं बदलना है लेकिन अपने को बदलना है। यह ज्यादा स्मृति में रखो, समझा! अब विदेशी से स्वदेशी संस्कार बना लो। सहनशीलताका अवतार बन जाओ। जिसको आप लोग कहते हो अपने को एडजस्ट करना है। किनारा नहीं करना है, छोड़ना नहीं है।

हंस और बगुले की बात अलग है। उन्हों की आपस में खिट-खिट है। वह भी जहाँ तक हो सके उसके प्रति शुभ भावना से ट्रायल करना अपना फर्ज है। कई ऐसे भी मिसाल हुए हैं जो बिल्कुल एन्टी थे लेकिन शुभ भावना से निमित्त बनने वाले से भी आगे जा रहे हैं। तो शुभ भावना से फुल फोर्स से ट्रायल करनी चाहिए। अगर फिर भी नहीं होता है तो फिर डायरेक्शन लेकर कदम उठाना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसे किनारा कर देने से कहाँ डिस सर्विस भी हो जाती है। और कई बार ऐसा भी होता है कि आने वाली ब्राह्मण आत्मा की कमी होने के कारण अन्य आत्मायें भी भाग्य लेने से वंचित रह जाती हैं। इसलिए पहले स्वयं ट्रायल करो फिर अगर समझते हो यह बड़ी प्राबल्म है तो निमित्त बनी आत्माओं से वेरीफाय कराओ। फिर वह भी अगर समझती है कि अलग होना ही ठीक है फिर अलग हुए भी तो आपके ऊपर जवाबदारी नहीं रही। आप डायरेक्शन पर चले। फिर आप निश्चिन्त। कई बार ऐसा होता है - जोश में छोड़ दिया, लेकिन अपनी गलती के कारण छोड़ने के बाद भी वह आत्मा खींचती रहती है। बुद्धि जाती रहती है यह भी बड़ा विघ्न बन जाता है। तन से अलग हो गये लेकिन मन का हिसाब-किताब होने के कारण खींचता रहता इसलिए निमित्त बनी हुई आत्माओं से वेरीफाय कराओ। क्योंकि यह कर्मों की फिलासफी है। जबरदस्ती तोड़ने से भी मन बार-बार जाता रहता है। कर्म की फिलासफी को ज्ञान स्वरूप होकर पहचानो और फिर वेरीफाय कराओ। फिर कर्म-बन्धन को ज्ञान युक्त होकर खत्म करो।

बाकी ब्राह्मण आत्माओं में जब हम-शरीक होने के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है, ईर्ष्या के कारण संस्कारों का टक्कर होता है लेकिन इसमें विशेष बात यह सोचो कि जो हम-शरीक हैं उसको निमित्त बनाने वाला कौन? उनको नहीं देखो - फलाना इस ड्यिटी पर आ गया, फलानी टीचर हो गई, नम्बरवन सर्विसएबुल हो गई। लेकिन यह सोचो कि उस आत्मा को निमित्त बनाने वाला कौन? चाहे निमित्त बनी हुई विशेष आत्मा द्वारा ही उनको ड्यिटी मिलती है लेकिन निमित्त बनने वाली टीचर को भी निमित्त किसने बनाया? इसमें जब बाप बीच में हो जायेगा तो माया भाग जायेगी। ईर्ष्या भाग जायेगी लेकिन जैसे कहावत है ना - या होगा बाप या होगा पाप। जब बाप को बीच से निकालते हो तब पाप आता है। ईर्ष्या भी पाप कर्म है ना। अगर समझो बाप ने निमित्त बनाया है तो बाप जो कार्य करते उसमें कल्याण ही है। अगर उसकी कोई ऐसी बात अच्छी न भी लगती है, रांग भी हो सकती है, क्योंकि सब पुरुषार्थी हैं। अगर रांग भी है तो अपनी शुभ भावना से ऊपर दे देना चाहिए। ईर्ष्या के वश नहीं। लेकिन बाप की सेवा सो हमारी सेवा है - इस शुभ भावना से, श्रेष्ठ जिम्मेवारी से ऊपर बात दे देनी चाहिए। देने के बाद खुद निश्चिन्त हो जाओ। फिर यह नहीं सोचो कि यह बात दी फिर क्या हुआ? कुछ हुआ नहीं। हुआ वा नहीं यह जिम्मेवारी बड़ों की हो जाती है। आपने शुभ भावना से दी, आपका काम है अपने को खाली करना। अगर देखते हो बड़ों के ख्याल में बात नहीं आई तो भल दुबारा लिखो। लेकिन सेवा की भावना से। अगर निमित्त बने हुए कहते हैं कि इस बात को छोड़ दो तो अपना संकल्प और समय व्यर्थ नहीं गँवाओ। ईर्ष्या नहीं करो। लेकिन किसका कार्य है, किसने निमित्त बनाया है, उसको याद करो। किस विशेषता के कारण उनको विशेष बनाया गया है वह विशेषता अपने में धारण करो तो रेस हो जायेगी न कि रीस। समझा।

अपसेट कभी नहीं होना चाहिए। जिसने कुछ कहा उनसे ही पूछना चाहिए कि आपने किस भाव से कहा? - अगर वह स्पष्ट नहीं करते तो निमित्त बने हुए से पूछो कि इसमें मेरी गलती क्या है? अगर ऊपर से वेरीफाय हो गया, आपकी गलती नहीं है तो आप निश्चिन्त हो जाओ। एक बात सभी को समझनी चाहिए कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही हिसाब-किताब चुक्तू होना है। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं। तो घबराओ नहीं कि यह ब्राह्मण परिवार में क्या होता है। ब्राह्मणों का हिसाब-किताब ब्राह्मणों द्वारा ही चुक्तू होना है। तो यह चुक्तू हो रहा है इसी खुशी में रहो। हिसाब-किताब चुक्तू हुआ और तरक्की ही तरक्की हुई। अभी एक वायदा करो - कि छोटी-छोटी बात में कन्फ्यूज नहीं होंगे, प्राब्लम नहीं बनेंगे लेकिन प्राब्लम को हल करने वाले बनेंगे। समझा।

अमेरिका पार्टी से - आप सब बापदादा के सिर के ताज, श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! श्रेष्ठ आत्माओं का हर संकल्प, हर बोल श्रेष्ठ होगा। कभी कभी नहीं - सदा। क्योंकि सदा का वर्सा पा रहे हो ना! तो जब सदा का वर्सा पाने के अधिकारी हो तो स्थिति भी सदाकाल की। सदाशब्द को सदा याद रखना। यही वरदान सभी बच्चे को बापदादा देते हैं। सदा खुश रहेंगे, सदा उड़ती कला में रहेंगे, सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न रहेंगे। ऐसे वरदान लेने वाली आत्मायें सहजयोगी स्वत: हो जाती हैं। आज खुशी का दिन है! सबसे अधिक खुशी किसको है, बाप को है या बच्चों को है? (बच्चों को है) बापदादा को यह खुशी है कि ऐसा कोई बाप सारे वर्ल्ड में नहीं होगा जिसका हरेक बच्चा श्रेष्ठ हो। बापदादा एक-एक बच्चे की अगर विशेषता का वर्णन करें तो कई वर्ष बीत जाएँ। हरेक बच्चे की महिमा के बड़े-बड़े शात्र बन जाएँ। विशेष आत्मा हो - ऐसा निश्चय हो तो सदा मायाजीत स्वत: हो जायेंगे।

मैक्सिको ग्रुप से - जितना दूर है उतना दिल से समीप हो? ऐसा अनुभव करते हो ना? सभी ने अपनी सीट बापदादा का दिलतख्त रिजर्व कर लिया है? बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न स्थापना के कार्य को सफल करने के निमित्त है। तो अपने को इतने अमूल्य रत्न समझते हो? कितनी भाग्यवान आत्मायें हो जो इतनी दूर से भी बाप ने ढूँढ कर अपना बनाया है। आज की दुनिया में जो बड़े-बडे विद्वान, आचार्य हैं, उन्हों से आप पद्मगुणा अधिक भाग्यवान हो। बस इसी खुशी मे रहो कि - ‘‘जो जीवन में पाना था वह पा लिया’’

न्यूजीलैण्ड - न्यूजीलैण्ड को न्यू लैण्ड बना रहे हो ना? स्वयं को भी नया बनाया तो विश्व को भी नया बनायेंगे ना। अपना आक्यूपेशन यही सुनाते और लिखते हो ना कि हम सभी विश्व का नव-निर्माण करने वाले हैं। तो जहाँ रहते हो उसको तो नया बनायेंगे ना। हरेक स्थान की अपनी विशेषता है। न्यूजीलैण्ड की विशेषता क्या है? न्यूजीलैण्ड में गये हुए भारतवासियों ने फिर से भारत के श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बाप को पहचान लिया है। भारत में रहते भारतवासी बच्चों ने नहीं जाना लेकिन विदेश में रहते भारत की महिमा को और बाप को जान लिया। न्यूजीलैण्ड में भारत के बिछड़े हुए बच्चे अच्छे-अच्छे निकले हैं। टीचर्स पीछे मिली हैं। लेकिन सर्विस की स्थापना पहले की। इसलिए हिम्मत वाले बच्चे, उमंग उल्लास वाले बच्चे विशेष हैं। समझा।!

जर्मन और हेमबर्ग - सभी बापदादा के अमूल्य रत्न हो? कौन से रत्न हो और कहाँ रहते हो? मस्तक मणी हो? गले का हार हो या कंगन हो? (तीनों हैं) तो बापदादा के विशेष श्रृंगार हो गये ना! सभी को यह नशा है ना कि हम विश्व के विशेष के मालिक के बालक हैं। इसी नशे में खुशी में सदा नाचते रहो। बाप के हाथ में हाथ है, बाप के साथ खुशी में सारा समय नाचो। बापदादा की कम्पनी और बापदादा के परिवार के हो। अभी और कहाँ क्लब आदि में जाने की आवश्यकता नहीं। सदा चेहरे में ऐसी खुशी की झलक हो जो आपका चेयरफुल चेहरा बोर्ड का काम करे। इसमें स्वत: एडवरटाइज हो जायेगी। बापदादा को भी ग्रुप को देख करके खुशी हो रही है। जिस भी स्थान पर रहते हो उस स्थान से बहुत चुने हुए रत्न बापदादा ने जो निकाले हैं वह रत्न यहाँ पहुँच गये। बापदादा की इलेक्शन में विशेष आत्मायें हो। इस इलेक्शन में मिनिस्टर आदि नहीं बनते लेकिन यहाँ तो विश्व महाराजा बनते हो।



11-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


समर्थ की निशानी संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, स्ंस्कार बाप समान

लंदन ग्रुप के प्रति बापदादा बोले –

आज रूहानी बाप बच्चों से दिलाराम को दी हुई दिल का समाचार पूछने आये हैं। सभी ने दिलाराम को दिल दी है ना। जब एक दिलाराम को दिल दे दी तो उसके सिवाए और कोई आ नहीं सकता। दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना। इसी को ही सहज योग कहा जाता हे। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमार्ग भी चलेगा। तो दिल में भी दिलाराम और दिमाग में भी अर्थात् स्मृति में भी दिलाराम। और कोई भी स्मृति वा व्यक्ति दिलाराम के बीच आ नहीं सकता - ऐसा अनुभव करते हो? जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या। मन, वाणी और कर्म से बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या। मन, वाणी और कर्म से बाप के हो गये। संकल्प भी यह किया कि हम बाप के हैं और वाणी से भी यही कहते हो मेरा बाबा’, मैं बाबा का। और कर्म में भी जो सेवा करते हो वह भी बाप की सेवा वह मेरी सेवा - ऐसे ही मन, वाणी और कर्म से बाप के बन गये ना। बाकी मार्जिन क्या रही, जहाँ से कोई संकल्प मात्र भी आवे। कोई भी संकल्प वा किसी प्रकार की भी आकर्षण आने का कोई दरवाजा वा खिड़की रह गई है क्या? आने का रास्ता हैं ही मन, बुद्धि, वाणी और कर्म - चारों तरफ चेक करो कि जरा भी किसको आने की मार्जिन तो नहीं है। मार्जिन है? ड्रीम्स (स्वप्न) भी इसी ही आधार पर आते हैं। जब बाप को एक बार कहा कि यह सब कुछ तेरा फिर बाकी क्या रहा? इसी को ही निरंतर याद कहा जाता है। कहने और करने में अन्तर तो नहीं कर देते हो? तेरा में मेरा मिक्स तो नहीं कर देते हो? सूर्यवंशी अर्थात् गोल्डन एज। उसमें मिक्स तो नहीं होगा ना। डाइमन्ड भी बेदाग हो। कोई दाग तो नहीं गया है।

जिस समय भी कोई कमज़ोरी वर्णन करते हो, चाहे संकल्प की, बोल की, चाहे संस्कार स्वभाव की, तो शब्द क्या कहते हो? मेरा विचार ऐसा कहता है। वा मेरा संस्कार ही ऐसा है। लेकिन जो बाप का संस्कार, संकल्प सो मेरा संस्कार, संकल्प। जब बाप जैसा संकल्प, संस्कार हो जाता है तो ऐसे बोल कब नहीं बोलेंगे कि क्या करूँ, मेरा स्वभाव संस्कार ऐसा हे। कया करूँ, यह शब्द ही कमज़ोरी का है। समर्थ की निशानी है - सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार हो। बाप के अलग, मेरे अलग यह हो नहीं सकता। उनके संकल्प में, बोल में, हर बात में बाबा, बाबा शब्द नैचुरल होगा। और कर्म करते करावनहार करा रहा है - यह अनुभव होगा। जब सब में बाबा आ गया तो बाप के आगे माया आ नहीं सकती। या बाप होगा या माया। लण्डन निवासी बाबा, बाबा कहते, स्मृति में रखते सदाकाल के लिए मायाजीत हो गये हैं। जब वर्सा सदाकाल का लेते हो तो याद भी सदाकाल की चाहिए ना। मायाजीत भी सदाकाल के लिए चाहिए।

लण्डन है सेवा का फाउन्डेशन स्थान। तो फाउण्डेशन के स्थान पर रहने वाले भी फाउन्डेशन के समान सदा मजबूत हैं। क्या करें, कैसे करें, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट तो नहीं है ना। बहुत करके ड्रामा भी माया के ही करते हो ना। हर ड्रामा में माया न आने वाली भी जाती है। माया के बिना शायद ड्रामा नहीं बना सकते हो। माया के भी भिन्न-भिन्न स्वरूप दिखाते हो ना। हर बात का परिवर्तक स्वरूप हो, इसका ड्रामा दिखाओ। माया का मुख्य स्वरूप क्या है, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो। लेकिन मायाजीत बनने के बाद वही माया के स्वरूप कैसे बदल जाते हैं, वह ड्रामा दिखाओ। जैसे शारीरिक दृष्टि जिसको काम कहते, तो उसके बजाए आत्मिक स्नेह रूप में बदल जाता - ऐसे सब विकार परिवर्तक रूप में हो जाते। तो क्या परिवर्तन हुआ यह प्रैक्टिकल में अनुभव भी करो और दिखाओ भी।

लण्डन निवासियौं ने विशेष स्व की उन्नति प्रति और विश्व कल्याण प्रति कौन सा लक्ष्य रखा है? सभी को विशेष सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फिरश्ते का स्वरूप कया, बोल क्या, कर्म क्या होता वह स्वत: ही फरिश्ते रूप से चलते चलेंगे। ‘‘फरिश्ता हूँ, फरिश्ता हूँ’’ - इसी स्मृति को सदा रखो। जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो क्या बन गये। हल्के फरिश्ते हो गये ना। तो इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द कि सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं - यह स्मृति में रहे। जहाँ मेरा आवे तो वहाँ तेरा कह दो। फिर कोई बोझ नहीं फील होगा। हर वर्ष कदम आगे  बढ़ रहा है और सदा आगे बढ़ते रहेंगे, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ते हैं यह तो पक्का है ना। नीचे ऊपर, नीचे ऊपर होने वाले नहीं। अच्छा - लण्डन निवासियों की महिमा तो सभी जानते हैं। आपको सब किस नजर से देखते हैं? सदा मायाजीत। क्योंकि पावरफुल डबल पालना मिल रही है। बापदादा की तो सदा पालना है ही लेकिन बाप ने जिन्हों को निमित्त बनाया है वह भी पावरफुल पालना मिल रही है। निराकार, आकार और साकार तीनों को फालो करो तो क्या बन जायेंगे? फरिश्ता बन जायेंगे ना। लण्डन निवासी अर्थात् नो कम्पलेन्ट, नो कन्फ्यूज। अलौकिक जीवन वाले, स्वराज्य करनेवाले सब किंग और क्वीन हो ना। आपका नशा है ना।’’

कुमारियों से - कुमारियाँ तो अपना भाग्य देख सदा हर्षित होती हैं। कुमारी लौकिक जीवन में भी ऊंची गई जाती है और ज्ञान में तो कुमारी है ही महान। लौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें और पारलौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें। ऐसे अपने को महान समझती हो? आप तो हाँऐसे कहो जो दुनिया सुने। कुमारियों को तो बापदादा अपने दिल की तिजोरी में रखता है कि किसी की भी नजर न लगे। ऐसे अमूल्य रतन हो। कुमारियाँ सदा पढ़ाई और सेवा इसी में ही बिजी रहती हैं। कुमारी जीवन में बाप मिल गया और चाहिए ही क्या। अनेक सम्बन्धों में भटकना नहीं पड़ा, बच गई। एक में सर्व सम्बन्ध मिल गये। नहीं तो पता है कितने व्यर्थ के सम्बन्ध हो जाते, सासू का, नंनद का, भाभियों का....सबसे बच गई ना। न जाल में फँसी, न जाल से छुड़ाने का समय ही था। कुमारियाँ तो हैं ही डबल लाइट। कुमारियाँ सदा बाप समान सेवाधारी और बाप समान सर्व धारणाओं स्वरूप। कुमारी जीवन अर्थात् प्युअर जीवन। प्युअर आत्मायें श्रेष्ठ आत्मायें हुई ना। तो बापदादा कुमारियों को महान पूज्य आत्मा के रूप में देखते हैं। पवित्र आत्मायें सर्व की और बाप की प्रिय हैं।

अपने भाग्य को सदा सामने रखते हुए समर्थ आत्मा बन सेवा में समर्थी लाते रहो। यही बड़ा पुण्य है। जो स्वयं को प्राप्ति हुई है वह औरों को भी कराओ। खज़ानों को बाँटने से खज़ाना और ही बढ़ेगा - ऐसे शुभ संकल्प रखने वाली कुमारी हो ना। अच्छा –

टीचर्स के साथ :- विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हो ना। सबकी नजर निमित्त बने हुए सेवाधारी कहो, शिक्षक कहो, उन्हीं पर ही रहती है। सदा स्टेज पर हो। कितनी बड़ी स्टेज है। और कितने देखने वाले हैं। सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं। सदा यह स्मृति में रहता है? सेन्टर पर रहती हो वा स्टेज पर रहती हो? सदा बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़ी स्टेज पर हो। इसलिए सदा दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की भावनायें सर्व की आशायें पूण करते रहो। महादानी और वरदानी बनो, यही आपका स्वरूप है। इस स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म हीरो पार्ट के समान हो क्योंकि विश्व की आत्मायें देख रही हैं। सदा स्टेज पर ही रहना, नीचे नहीं आना। निमित्त सेवाधारियों को बापदादा अपना फ्रेंडस समझते हैं। क्योंकि बाप भी शिक्षक है तो बाप समान निमित्त बनने वाले फ्रेंडस हुए ना। तो इतनी समीप की आत्मायें हो। ऐसे सदा अपने को बाप के साथ वा समीप अनुभव करती हो? जब भी बाबा कहो तो हजार भुजाओं के साथ बाबा आपके साथ है। ऐसे अनुभव होता है? जो निमित्त बने हुए हैं उन्हीं को बापदादा एकस्ट्रा सहयोग देते हैं। इसीलिए बड़े फखुर से बाबा कहो, बुलाओ, तो हाजिर हो जायेंगे। बापदादा तो ओबीडियन्ट हैं ना।

अच्छा - ओम् शान्ति।



13-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


स्वर्द्शन चक्रधारी ही चक्रवर्ती राज्य-भाग्य के अधिकारी

विश्व कल्याणकारी, वरदानी व महादानी, नजर से निहाल करने वाले बाबा बोले :-

‘‘सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो? स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य भाग के अधिकारी बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् अपने सारे चक्र के अन्दर सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले। सभी ने यह विशेष बात जान ली कि हम सब इस चक्र के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। इस अन्तिम जन्म में हीर-तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हौ। आदि से अन्त तक क्या क्या जन्म लिए हैं, सब स्मृति में हैं? क्योंकि इस समय नालेजफुल बनते हो। इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते हो तो 5 हजार वर्ष की जन्म-पत्री को जान लिया। कोई भी जन्मपत्री बताने वाले अगर किसको सुनायेंगे भी तो दो चार छे जन्म का ही बतायेंगे। लेकिन आप सबको बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बतादी है। तो आप सभी मास्टर नालेजफुल बन गये ना। सारा हिसाब चित्रों में भी दिखा दिया है। तो जरूर जानते हो तब तो चित्रों में दिखाया है ना। अपनी जन्मपत्री का चित्र देखा है? उस चित्र को देख करके ऐसा अनुभव करते हो कि यह हमारी जन्मपत्री का चित्र है। वा समझते हो नालेज समझाने का चित्र है। यह तो नशा है ना कि हम ही विशेष आत्मयें सृष्टि के आदि से अन्त तक कापार्ट बजाने वाली हैं। ब्रह्मा बाप के साथ साथ सृष्टि के आदि पिता और आदि माता के साथ सारे कल्प में भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते आये हो ना। ब्रह्मा बाप के साथ पूरे कल्प की प्रीत कीरीति निभाने वाले हो ना। निर्वाण जाने की इच्छा वाले तो नहीं हो ना। जिसने आदि नहीं देखी उसने क्या किया। आप सबने कितनी बार सृष्टि के आदि का सुनहरी दृश्य देखा है। वह समय वह राज्य, वह अपना स्वरूप, वह सर्व सम्पन्न जीवन, अच्छी तरह से याद है वा याद दिलाने की जरूरत है? अपने आदि के जन्म अर्थात् पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के महत्व को अच्छी तरह से जान लिया है ना। दोनों की महिमा अपरमपार है।

जैसे आदिदेव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण, दोनां का अन्तर दिखाते हो और दोनो को साथ-साथ दिखाते हो - ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राहमण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं। तो बहुत नशा और खुशी रहेगी। बनाने वाले और बनने वाले दोनों की विशेषता है। बापदादा सभी बच्चों के दोनों ही स्वरूप देखकर हर्षित होते हैं। चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे ना। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते हैं। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर पूज्य आत्म की लिस्ट में हैं। आधा कल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधा कल्प माननीय और पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बने। जो अपने चित्रों की पूजा, मान्यता चैतन्य रूप में ब्राहमण रूप से देव रूप की अभी भी देख रहे हो। तो इससे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है। सदा इस स्मृति स्वरूप में स्थित रहो। फिर बार-बार नीचे की स्टेज से ऊपर की स्टेज पर जाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

सभी जहाँ से भी आए हैं। लेकिन इस समय मधुबन निवासी हैं। तो सभी मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप बन गये हो ना। मधुबन निवासी बनाना भी भाग्यवान की निशानी है। क्योंकि मधुबन के गेट में आना और वरदान को सदा के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है। सभी मधुबन निवासी वरदान स्वरूप में स्थित हो ना। सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव कर रहे हो ना। सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों काभी स्वत: खुशी में मन नाचते। जैस स्थूल डाँस को देख दूसरे के अन्दर भी नाचने का उमंग उत्पन्न हो जाता है ना। तो सदा ऐसे नाचो और गाते रहो। अच्छा –

डबल विदेशी बच्चों को यह भी विशेष चान्स है क्योंकि अभी सिकीलधे हो। जब डबल विदेशियों को भी संख्या बहुत हो जायेगी तो फिर क्या करेंगे। जैसे भारतवासी बच्चों ने डबल विदेशियों को चान्स दिया है ना, तो आप भी ऐसे दूसरों को चान्स देंगेना। दूसरों की खुशी से अपनी खुशी अनुभव करना यही महादानी बनना है।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

सिंगापुर पार्टी- सिंगापुर को बापदादा, बाप का श्रृंगार कहते हैं आप सब कौन सा श्रृंगार हो? मस्तक की मणि हो? मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप याद रहे। ऐसी मस्तक मणि हो। इसी कोही उंची स्टेज कहा जाता है।सदा अपने को ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ - ऐसे समझते हुए आगे बढ़ते रहो। इसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाले नीचे की अनेक प्रकार की बातों को ऐसे पार करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं। समस्याएँ नीचे रहेंगी आप ऊपर होजायेंगे। सदा अपना मस्तकमणि का टाइटिल याद रखना। नीचे नहीं आना। सदा ऊपर। मस्तकमणि का स्थान ही ऊंचा मस्तक है। ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हो। बापदादा ने विशेष श्रृंगार को चुन लिया है। अपने भाग्य को सदा स्मृति में रख आगे बढ़ते चलो। उड़ती कला में उड़ते और उड़ाते चलो। संगमयुग है ही उड़ने और उड़ाने का युग। समय को वरदान प्राप्त है ना।

अफ्रीका पार्टी से - सदा के स्नेही और सदा के सहयोगी आत्मायें। स्नेह औरसहयोग के कारण अविनाशी रतन बन गये। अविनाशी बाप ने, बाप समान अविनाशी रतन बना दिया। ऐसे अविनाशी रतन जो किसी भी प्रकार से कोई हिला न सके। ऐसे अविनाशी रतन अमरभवके वरदानी हो। रीयल गोल्ड हो ना। बाप के साथी - बाप का कार्य सो आपका कार्य। सदा साथ रहेंगे इसलिए अविनाशी रहेंगे।

सच्ची लगन विघ्नों को समाप्त कर देती है। कितनी भी रूकावटें आएं लेकिन एक बल एक भरोसे के आधार पर सफलता मिलती रही है और मिलती रहेगी, ऐसा अनुभव होता रहता है ना। जहाँ सर्व शक्तिवान बाप साथ है वहाँ यह छोटी छोटी बातें ऐसे समाप्त हो जाती हैं जैसे कुछ भी थी ही नहीं। असम्भव भी सम्भव हो जाता है क्योंकि सर्व शक्तिवान के बच्चे बन गए। मक्खन से बालसमान सब बातें सिद्ध हो जाती हैं। अपने को ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो ना। कमज़ोरी तो नहीं आती। बाप सर्वशक्तिवान हैं, तो बच्चों को बाप अपने से भी आगे रखते हैं। बाप ने कितना ऊंच बनाया है, क्या क्या दिया है - इसी का सिमरण करते-करते सदा हर्षित और शक्तिशाली रहेंगे।

ट्रिनीडाड, ग्याना - सदा अपने को बाप समान सर्वगुण, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हैं - ऐसे अनुभव करते हो? बाप के बच्चे तो सदा हो ना। जब बच्चे सदा हैं तो बाप समान धारणा स्वरूप भी सदा चाहिए ना। यही सदा अपने आप से पूछो कि बाप के वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ। अधिकारी आत्मको अधिकार कभी भूल नहीं सकता। जब सदा का राज्य पाना है तो याद भी सदा की चाहिए।

हिम्मत रखकर, निर्भय होकर आगे बढ़ते रहे हो इसलिए मदद मिलती रही है। हिम्मत की विशेषता से सर्व का सहयोग मिल जाता है। इसी एक विशेषता से अनेक विशेषताएँ स्वत: आती जाती हैं। एक कदम आगे रखा और अनेक कदम सहयोग के अधिकारी बने इसलिए इसी विशेषता का औरों को भी दान और वरदान देते आगे बढ़ाते रहो। जैसे वृक्ष को पानी मिलने से फलदायक हो जाता है, वैसे विशेषताओं को सेवा में लगाने से फलदायक बन जाते हैं। तो ऐसे विशेषताओं को सेवा में लगाए फल पाते रहना। अच्छा–

मौरीशियस - सदा अपने को बाप समान महादानी और वरदानी आत्मा समझते हो? बापदादा अपने समान शिक्षक अर्थात् निमित्त सेवाधारी आत्माओं को देख हर्षित होते हैं। सदा पहले स्वंय को बाप समान स्वरूप सम्पन्न स्वरूप समझते हो? क्योंकि सेवाधारी अगर स्वंय सम्पन्न नहीं तो औरों को क्या होगा। सुना,अनुभव किया और ऐसा गोल्डन चान्स बाप समान सेवाधारी बनने का मिला, इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा। इसी प्राप्त हुए भाग्य को सदा आगे बढ़ाते चलो। अच्छा –



15-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सहजयोगी और प्रयोगी की व्याख्या

सदा सहजयोगी की स्थिति में स्थित करने वाले सुख के सागर शिव बाबा बोले :-

आज बाप दादा अपने सहयोगी भुजाओं को देख रहे हैं। कैसे मेरी सहयोगी भुजायें श्रेष्ठ कार्य को सफल बना रही हैं। हर भुजा के दिव्य अलौकिक कार्य की रफतार को देख बापदादा हर्षित हो रूहरिहान कर रहे थे। बापदादा देखते रहते हैं कि कोई-कोई भुजायें सदा अथक और एक ही श्रेष्ठ उमंग और उत्साह और तीव्रगति से सहयोगी हैं और कोई-कोई कार्य करते रहते लेकिन बीच-बीच में उमंग उत्साह की तीव्रगति में अन्तर पड़ जाता है। लेकिन सदा अथक तीव्रगति वाली भुजाओं के उमंग उत्साह को देखते-देखते स्वयं भी फिर से तीव्रगति से कार्य करने लग पड़ते हैं। एक दो के सहयोग से गति को तीव्र बनाते चल रहे हैं।

बापदादा आज तीन प्रकार के बच्चे देख रहे थे। एक सदासहज योगी। दूसरे हर विधि को बार-बार प्रयोग करने वाले प्रयोगी। ताrसरे सहयोगी। वैसें हैं तीनों ही योगी लेकिन भिन्न-भिन्न स्टेज के हैं। सहजयोगी, समीप सम्बन्ध औरसर्व प्राप्ति के कारण सहज योग का सदा स्वत: अनुभव करता है। सदा समर्थ स्वरूप होने के कारण इसी नशे में सदा अनुभव करता कि मैं हूँ ही बाप का। याद दिलाना नहीं पड़ता स्वयं को मैं आत्मा हूँ, मैं बाप का बच्चा हूँ। ‘‘मैं हूँ ही’’ सदा अपने कोइस अनुभव के नशे में प्राप्ति स्वरूप नैचुरल निश्चय करता है। सहयोगी को सर्व सिद्धियाँ स्वत: ही अनुभव होती हैं। इसलिए सहजयोगी सदा ही श्रेष्ठ उमंग उत्साह खुशी में एकरस रहता है। सहजयोगी सर्व प्राप्तियों के अधिकारी स्वरूप में सदा शक्तिशाली स्थिति में स्थित रहते हैं।

प्रयोग करने वाले प्रयोगी सदा हर स्वरूप के, हर पाइंट के, हर प्राप्ति स्वरूप के प्रयोग करते हुए उस स्थिति को अनुभव करते हैं। लेकिन कभी सफलता का अनुभव करते, कभी मेहनत अनुभव करते। लेकिन प्रयोगी होने के कारण, बुद्धि अभ्यास की प्रयोगशाला में बिजी रहने के कारण 75% माया से सेफ रहते हैं। कारण? प्रयोगी आत्मा को शौक रहता है कि नये ते नये भिन्नभिन्न अनुभव करके देखे। इसी शौक में लगे रहने के कारण माया से प्रयोगशाला में सेफ रहते हैं। लेकिन एकरस नहीं होते। कभी अनुभव होने के कारण बहुत उमंग उत्साह में झूमते और कभी विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति कम होने के कारण उमंग उत्साह में फर्क पड़ जाता है। उमंग उत्साह कम होने के कारण मेहनत अनुभव होती है। इसलिए कभी सहजयोगी, कभी मेहनत वाले योगी। ‘‘हूँ ही’’ के बजाय ‘‘हूँ हूँ’’‘‘आत्मा हूँ’’ बच्चा हूँ, मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ’’ - इस स्मृति द्वारा सिद्धि को पाने का बार-बार प्रयत्न करना पड़ता है। इसलिए कभी तो इस स्टेज परस्थित होते जो सोचा और अनुभव हुआ। कभी बार-बार सोचने द्वारा स्वरूप की अनुभूति करते हैं। इसको कहा जाता है - प्रयोगी आत्मा। अधिकार का स्वरूप है सहजयोगी। बार-बार अध्ययन करने का स्वरूप है प्रयोगी आत्मा। तो आज देख रहे थे- सहज योगी कौन और प्रयोगी कौन है? प्रयोगी भी कभी कभी सहजयोगी बन जाते है। लेकिन सदा नहीं। जिस समय जो पोजीशन होती है, उसी प्रमाण स्थूल चेहरे के पोज़ भी बदलते है। मन की पोजीशन को भी देखते हैं। और पोज़ को भी देखते हैं। सारे दिन में कितनी पोज़ बदलते हो। अपने भिन्न-भिन्न पोज़ को जानते हो? स्वयं को साक्षी होकर देखते हो? बापदादा सदा यह बेहद का खेल जब चाहे तब देखते रहते हैं।

जैसे यहाँ लौकिक दुनिया में एक के ही भिन्न-भिन्न पोज़ हंसी के खेल में स्वयं ही देखते हैं। विदेश में यह खेल होता है? यहाँ प्रैक्टिकल में ऐसा खेल तो नहीं करते हो ना। यहाँ भी कभी बोझ के कारण मोटे बन जाते हैं और कभी फिर बहुत सोंचने के संस्कार के कारण अन्दाज से भी लम्बे हो जाते हैं और कभी फिर दिलशिकस्त होने के कारण अपने को बहुत छोटा देखते हैं। कभी छोटे बन जाते, कभी मोटे बन जाते, कभी लम्बे बन जाते हैं। तो ऐसा खेल अच्छा लगता है?

सभी डबल विदेशी सहजयोगी हो? आज के दिन का सहज योगी का चार्ट रहा? सिर्फ प्रयोग करने वाले प्रयोगी तो नहीं हो ना। डबल विदेशी मधुबन से सदाकाल के लिए सहजयोगी रहने का अनुभव लेकर जा रहे हो? अच्छा - सहयोगी भी योगी हैं इसका फिर सुनायेंगे।

(सभी टीचर्स नीचे हाल में मुरली सुन रही थीं)

बापदादा के साथ निमित्त सेवाधारी कहो, निमित्त शिक्षक कहो तो आज साथियों का ग्रुप भी आया हुआ है ना। छोटे तो और ही अति प्रिय होते हैं। नीचे होते भी सब ऊपर ही बैठे हैं। बापदादा छोटे वा बड़े लेकिन हिम्मत रखने वाले सेवा के क्षेत्र में स्वयं को सदा बिजी रखने वाले सेवाधारियों को बहुत बहुत यादप्यार दे रहे हैं। इसलिए त्यागी बन अनेकों के भाग्य बनाने के निमित्त बनाने वाले सेवाधारियों को बापदादा त्याग की विशेष आत्मायें देख रहे हैं। ऐसी विशेष आत्माओं को विशेष रूप से बधाई के साथ-साथ यादप्यार। डबल कमाल कौन सी है? एक तो बाप को जानने की कमाल की। दूरदेश, धर्म का पर्दा रीति रसम, खान-पान सबकी भिन्नता के पर्दे के बीच रहते हुए भी बाप को जान लिया। इसलिए डबल कमाल। पर्दे के अन्दर छिप गये थे। सेवा के लिए अब जन्म लिया है। भूल नहीं की लेकिन ड्रामा अनुसार सेवा के निमित्त चारों ओर बिखर गये थे। नहीं तो इतनी विदेशों में सेवा कैसे होती। सिर्फ सेवा के कारण अपना थोड़े समय का नाम मात्र हिसाब किताब जोड़ा, इसलिए डबल कमाल दिखाने वाले सदा बाप के स्नेह के चात्रक, सदा दिल से मेरा बाबाके गीत गाने वाले, ‘जाना है, जाना है,’ 12 मास इसी धुन में रहने वाले, ऐसे हिम्मत कर बाप दादा के मददगार बनने वाले बच्चों को यादप्यार औ नमस्ते।

सेवाधारी भाई बहनों से :- महायज्ञ की महासेवा का प्रसाद खाया? प्रसाद तो कभी भी कम होने वाला नहीं है। ऐसा अविनाशी महाप्रसाद प्राप्त किया? कितना वैरयटी प्रसाद मिला? सदाकाल के लिए खुशी, सदा के लिए नशा, अनुभूति ऐसे सर्व प्रकार का प्रसाद पाया? तो प्रसाद बांटकर खाया जाता है। प्रसाद आंखों के ऊपर, मस्तक के ऊपर रखकर खाते हैं। तो यह प्रसाद ऑखों मे समा जाए। मस्तक में स्मृति स्वरूप हो जाए अर्थात् समा जाए। ऐसा प्रसाद इस महायज्ञ में मिला? महाप्रसाद लेने वाले कितने महान भाग्यवान हुए ऐसे चान्स कितनों को मिलता है? बहुत थोड़ों को उन थोड़ो में से आप हो। तो महान भाग्यवान हो गये ना। जैसे यहाँ बाप और सेवा इसके सिवाए तीसरा कुछ भी याद नहीं रहा, तो यहाँ का अनुभव सदा कायम रखना है। वैसे भी कहाँ जाते हैं तो विशेष वहाँ से कोई न कोई यादगार ले जाते हैं, तो मधुबन का विशेष यादगार क्या ले जायेंगे? निरन्तर सर्व प्राप्ति स्वरूप हो रहेंगे। तो वहाँ भी जाकर ऐसे ही रहेंगे या कहेंगे वायुमण्डल ऐसा था, संग ऐसा था। परिवर्तन भूमि से परिवर्तन होकर जाना। कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन आप अपनी शक्ति से परिवर्तन कर लो। इतनी शक्ति है ना। वायुमण्डल का प्रभाव आप पर न आवे। सभी सम्पन्न बन करके जाना।

माताओं के साथ - माताओं के लिए तो बहुत खुशी की बात हैं - क्योंकि बाप आया ही है माताओं के लिए। गऊपाल बनकर गऊ माताओं के लिए आये हैं। इसी का तो यादगार गाया हुआ है। जिसको किसी ने भी योग्य नहीं समझा लेकिन बाप ने योग्य आपको ही समझा - इसी खुशी में सदा उड़ते चलो। कोई दु:ख की लहर आ नहीं सकती। क्योंकि सुख के सागर के बच्चे बन गये। सुख क सागर में समाने वालों को कभी दु:ख की लहर नहीं आ सकती है - ऐसे सुख स्वरूप।



21-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगम पर बाप और ब्राह्मण सदा साथ-साथ

बेहद की सेवा के निमित्त बनाने वाले बाप दादा अपने फ्रेंडस बच्चों के प्रति बोले :-

आज बापदादा अपने राइट हैन्डज से सिर्फ हैन्डशेक करने के लिए आये हैं। तो हैन्डशेक कितने में होती है? सभी ने हैन्डशेक कर ली? फिर भी एक दृढ़ संकल्प कर सच्चे साजन की सजनियाँ तो बन गई हैं। तब ही विश्व की सेवा का कार्य सम्भालने के निमित्त बनी हो? वायदे के पक्के होने के कारण बाप दादा को भी वायदा निभाना पड़ा। वायदा तो पूरा हुआ ना। सबसे नज़दीक से नज़दीक गाड के फ्रेंडस कौन हैं? अभी सभी गाड के अति समीप के फ्रेंडस हो। क्योंकि समान कर्तव्य पर हो। जैसे बाप बेहद की सेवा प्रति है वैसे ही आप छोटे बड़े बेहद के सेवाधारी हो। आज विशेष छोटे-छोटे फ्रेंडस के लिए खास आये हैं। क्योंकि हैं छोटे लेकिन जिम्मेदारी तो बड़ी ली है ना। इसलिए छोटे फ्रेंडस ज्यादा प्रिय होते हैं। अभी उल्हना तो नहीं रहा ना। अच्छा। (बहनों जो गीत गाया - जो वायदा किया है, निभाना पड़ेगा)’’

बापदादा तो सदा ही बच्चों की सेवा में तत्पर ही है। अभी भी साथ हैं और सदा ही साथ हैं। जब हैं ही कम्बाइन्ड तो कम्बाइन्ड को कोई अलग कर सकता है क्या? यह रूहानी युगल स्वरूप कभी भी एक दो से अलग नहीं हो सकते। जैसे ब्रह्मा बाप और दादा कम्बाइन्ड हैं, उन्हों को अलग कर सकते हो? तो फालो फादर करने वाले ब्राहमण श्रेष्ठ और बाप कम्बाइन्ड हैं। यह तो आना और जाना तो ड्रामा में ड्रामा है। वैसे अनादि ड्रामा अनुसार अनादि कम्बाइन्ड स्वरूप संगमयुग पर बन ही गये हो। जब तक संगमयुग है, तब तक बाप और श्रेष्ठ आत्मायें सदा साथ हैं। इसलिए खेल में खेल करके गीत भले गाओ, नाचो गाओ, हंसो-बहलो लेकिन कम्बाइन्ड रूप को नहीं भूलना। बाप दादा तो मास्टर शिक्षक को बहुत श्रेष्ठ नजर से देखते हैं, वैसे तो सर्व ब्राहमण श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हैं लेकिन जो मास्टर शिक्षक बन अपने दिल व जान, सिक व प्रेम से दिन रात सच्चे सेवक बन सेवा करते वह विशेष में विशेष और विशेष में भी विशेष हैं। इतना अपना स्वमान सदा स्मृति में रखते हुए संकल्प,बोल और कर्म में आओ। सदा यही याद रखना कि हम नयनों के नूर हैं। मस्तक की मणि हैं, गले के विजय माला के मणके हैं और बाप के होठों की मुस्कान हम हैं। ऐसे सर्व चारों ओर से आये हुए छोटे-छोटे और बड़े प्रिय फ्रेंडस को वा जो भी सभी बच्चे आये हैं, वह सभी अपने-अपने नाम से अपनी याद स्वीकार करना। चाहे नीचे बैठे हैं, चाहे ऊपर बैठे हैं, नीचे वाले भी नयनों में और ऊपर वाले नयनों के सम्मुख हैं। इसलिए अभी वायदा निभाया, अभी सभी फ्रेंडस में सर्व साथियों से यादप्यार और नमस्ते।

थोड़ा-थोड़ा मिलना अच्छा है। आप लोगों ने इतना ही वायादा किया था। (गीत अभी न जाओ छोड़ के, कि दिल अभी भरा नहीं.....) दिल भरने वाली है कभी? यह तो जितना मिलेंगे उतना दिल भरेगी। अच्छा - (दीदी जी को देखते हुए) - ठीक है ना। दीदी से वायदा किया हुआ है, साकार का। तो यह भी निभाना पड़ता है। दिल भर जाए तो खाली करना पड़ेगा, इसलिए भरता ही रहे तो ठीक है। (दीदी जी से) इनका संकल्प ज्यादा आ रहा था। आप सब छोटी-छोटी बहनों से दादी-दीदी का ज्यादा प्यार रहता है। दीदी-दादी जो निमित्त है, उन्हों का आप लोगों से विशेष प्यार। अच्छा किया, बाप दादा भी आफरीन देते हैं। जिस प्यार से आप लोगों को यह चांस मिला है, उस प्यार से मिलन भी हुआ। नियम प्रमाण आना यह कोई बड़ी बात नहीं, यह भी एक विशेष स्नेह का विशेष प्यार का रिर्टन मिल रहा है। इसलिए जिस उमंग से आप लोग आये, ड्रामा में आप सबका बहुत ही अच्छा गोल्डन चांस रहा। तो सब गोल्डन चान्सलर हो गये ना। वह सिर्फ चांसलर होते हैं, आप गोल्डन चांसलर हो अच्छा’’


 


26-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग दो

सर्व को सहयोग देने के निमित्त बनाने वाले, सदा दाता शिव बाबा अपने सेवाधारी बच्चों के प्रति बोले:-

आज बापदादा अपने सेवाधारी साथियों से मिलने आये हैं, जैसे बापदादा ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा अर्थ निमित्त हैं, ऐसे ही आप सभी भी ऊंचे ते ऊंचे साकार स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा प्रति निमित्त हो। जिस स्थान के तरफ अनेक आत्माओं की नजर है। जैसे बाप के यथार्थ स्थान को न जानते हुए भी फिर भी सबकी नजर ऊंचे तरफ जाती है, ऐसे ही साकार में सर्व आत्माओं की नजर इस महान स्थान पर ही जा रही है और जायेगी। ‘‘कहाँ पर है’’ अभी तक इसी खोज में हैं। समझते हैं कि कोई श्रेष्ठ ठिकाना मिले। लेकिन यही वह स्थान है, इसकी पहचान के लिए चारों ओर परिचय देने की सेवा सभी कर रहे हैं। यह बेहद का विशेष कार्य ही इसी सेवा को प्रसिद्ध करेगा कि मिलना है वा पाना है तो यहाँ से। यही अपना श्रेष्ठ ठिकाना है। विश्व के इसी श्रेष्ठ कोने से ही सदाकाल का जीयदान मिलना है। इस बेहद के कार्य द्वारा यह एडवरटाइज विशाल रूप में होनी है, जैसे धरती के अन्दर कोई छिपी हुई वा दबी हुई चीजें अचानक मिल जाती हैं तो खुशी-खुशी से सब तरफ प्रचार करते हैं। ऐसे ही यह आध्यात्मिक खज़ानों की प्राप्ति का स्थान जो अभी गुप्त है, इसको अनुभव के नेत्र द्वारा देख ऐसे ही समझेंगे जैसे गँवाया हुआ, खोया हुआ गुप्त खज़ाने का स्थान फिर से मिल गया है। धीरे-धीरे सबके मन से, मुख से यही बोल निकलेंगे कि ऐसे कोने में इतना श्रेष्ठ प्रापति का स्थान। इसको तो खूब प्रसिद्ध करो। तो विचित्र बाप, विचित्र लीला और विचित्र स्थान, यही देख-देख हर्षित होंगे। वन्डरफुल बात है, वन्डरफुल कार्य है यही सबके मुख से सुनते रहेंगे। ऐसे सदाकाल की अनुभूति कराने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की हैं।

हाल तो तैयार कर रहे हैं, हाल के साथ चाल भी ठीक है? हाल के साथ चाल भी देखेंगे ना। तो हाल और चाल दोनों ही विशाल और बेहद है ना। जेसे मजदूरों से लेकर बड़े-बड़े इन्जीनियर्स, दोनों के सहयोग और संगठन से हाल की सुन्दर रूप रेखा तैयार हुई है, अगर मजदूर न होते तो इन्जीनियर भी क्या करते। वे कागज पर प्लैन बना सकते हैं, लेकिन प्रैक्टिकल स्वरूप तो बिना मजदूरों के हो नहीं सकता। तो जेसे स्थूल सहयोग के आधार पर सर्व की अंगुली लगने से हाल तैयार हो गया है। वैसे हाल के साथ वन्डरफुल चाल दिखाने के लिए ऐसा विशेष स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ। सिर्फ बुद्धि में संकल्प किया, यह नहीं। लेकिन जैसे इन्जीनियर के बुद्धि की मदद और मजदूरों के कर्म की मदद से कार्य सम्पन्न हुआ। इसी रीति मन के श्रेष्ठ संकल्प साथ-साथ हर कर्म द्वारा ही दिखाई देता है। तो ऐसे चलने और करने को संकल्प , वाणी हाथ वा पाँव द्वारा संगठित रूप में विचित्र स्वरूप से दिखाने का दृढ़ संकल्प किया है? ऐसी चाल का नक्शा तैयार किया है? सिर्फ 3 हजार की सभा नहीं लेकिन 3 हजार में सदा त्रिमूर्ति दिखाई दे। यह सब ब्रह्मा के समान कर्मयोगी,विष्णु के समान प्रेम और शक्ति से पालना करने वाले, शंकर के समान तपस्वी वायुम- ण्डल बनाने वाले हैं, ऐसा अनुभव हर एक द्वारा हो। ऐसा स्वंय में सर्व शक्तियों का स्टाक जमा किया है? यह भी भण्डारा भरपूर किया है? यह स्टाक चेक किया है? वा सभी ऐसे बिजी हो गये हो जो चेक करने की फुर्सत ही नहीं?

सेवा की अविनाशी सफलता के लिए स्वयं के किस विशेष परिवर्तन की आहुति डालेंगे? ऐसा अपने आप से प्लैन बनाया है? सबसे बड़े ते बड़ी देन है दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग देना। बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगडे हुए मूड को शुभ भावना से ठीक करने में सदा सर्व के सहयोगी बनना - यह है बड़े ते बड़ी विशेष देन। इसने यह कहा, यह किया, यह देखते, सुनते, समझते हुए भी अपने सहयोग के स्टाक द्वारा परिवर्तन कर देना जैसे कोई खाली स्थान होता है तो आलराउन्ड सेवाधारी समय प्रमाण जगह भर देते हैं। ऐसे अगर किसी भी द्वारा कोई शक्ति की कमी अनुभव भी हो तो अपने सहयोग से जगह भर दो। जिससे दूसरे की कभी का भी अन्य कोई को अनुभव न हो। इसको कहा जाता है - दाता के बच्चे बन समय प्रमाण उसे सहयोग की देन देना। यह नहीं सोचना है, इसने यह किया, ऐसा किया, लेकिन क्या होना चाहिए वह करते रहो। कोई की कमी न देखना, लेकिन आगे बढ़ते रहना। अच्दे ते अच्छा क्या हो सकता है वह भी सिर्फ सोचना नहीं है लेकिन करना है। इसको ही विचित्र चाल का प्रत्यक्ष स्वरूप कहा जायेगा। सदा अच्छे ते अच्छा हो रहा है और सदा अच्दे ते अच्छा करते रहना है - इसी समर्थ संकल्प को साथ रखना। सिर्फ वर्णन नहीं करना लेकिन निवारण करते नव निर्माण के कर्तव्य की सफलता को प्रत्यक्ष रूप में देखते और दिखाते रहना। ऐसी तैयारी भी हो रही है ना क्योंकि सभी की जिम्मेवारी होते हुए भी विशेष मधुबन निवासियों की जिम्मेवारी है। डबल जिम्मेवारी ली है ना। जेसे हाल का उद्घाटन कराया तो चाल का भी उद्घाटन हो गया है? वह भी रिर्हसल हुई वा नहीं। दोनों का मेल हो जायेगा तब ही सफलता का नगाड़ा चारों ओर तक पहुँचेगा। जितना ऊंचा स्थान होता है उतनी लाइट चारों ओर ज्यादा फैलती है। यह तो सबसे ऊंचा स्थान है तो यहाँ से निकला हुआ आवाज़ चारों ओर तक पहुंचे उसके लिए लाइट माइट हाउस बनना है। अच्छा –

सदा स्वंय को हर गुण, हर शक्ति सम्पन्न साक्षात् बाप स्वरूप बन सर्व को साक्षात्कार कराने वाले, सदा वचित्र स्थिति में स्थित हो साकार चित्र द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, ऊंचे ते ऊंची स्थिति द्वारा ऊंचे ते ऊंचे स्थान को, ऊंचे ते ऊंचे प्राप्तियों के भण्डार को प्रत्यक्ष करने वाले, सर्व के मन से मिल गया, पा लिया का गीत निकलने की सदा शुभभावना, शुभकामना रखने वाले - ऐसे सर्व श्रेष्ठ बेहद सेवाधारियों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

मधुबन निवासियों के साथ :- वरदान भूमि पर रहने वालों को सदा सन्तुष्ट रहने का वरदान मिला हुआ है ना। जो जितना अपने को सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करेंगे वह सदा सन्तुष्ट होंगे। अगर जरा भी कमी की महसूसता हुई तो जहाँ कमी है वहाँ असन्तुष्टता है। तो सर्व प्राप्ति है ना। संकल्प की सिद्धि तो फिर भी हो रही हैना। थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि अपना राज्य तो है नहीं। जितनी औरों के आगे प्राबलम आती है उतना यहाँ नहीं। यहाँ प्राबलम तो खेल हो गई है फिर भी समय पर बहुत सहयोग मिलता रहा है - क्योंकि हिम्मत रखी है। जहाँ हिम्मत है वहाँ सहयोग प्राप्त हो ही जाता है। अपने मन मे कोई हलचल नहीं होनी चाहिए। मन सदैव हल्का रहने से सर्व के पास भी आपके लिए हल्कापन रहेगा। थोडा बहुत हिसाब किताब तो होता ही है लेकिन उस हिसाब किताब को भी ऐस ही पार करो जैसे कोई बड़ी बात नहीं। छोटी बात को बड़ा नहीं करो। छोटा करना वा बड़ा करना यह अपनी बुद्धि के ऊपर है। अभी बेहद की सेवा का समय है तो बुद्धि भी बेहद की रखो। वातावरण शक्तिशाली बनाना है, यह हरेक आत्मा स्वयं को जिम्मेवार समझे। जबकि एक दो के स्वभाव संस्कार से टक्कर नहीं खा सकते। जैसे किसको पता है कि यहाँ खड्डा है वा पहाड़ा है तो जानने वाला कब टकरायेगा नहीं। किनारा कर लेगा । तो स्वयं को सदा सेफ रखना है। जब एक टक्कर नहीं खायेगा तो दूसरा स्वयं ही बच जायेगा। किनारा करो अर्थात् अपने को सेफ रखो और वायुमण्डल को सेफ रखो। काम से किनारा नहीं करना है। अपनी सेफ्टी की शक्ति से दूसरे को भी सेफ करना यह है किनारा करना। ऐसी शक्ति तो आ गई है ना।

साकार रूप में फालो करने के हिसाब से सबको मधुबन ही दिखाई देता है क्योंकि ऊंचा स्थान है। मधुबन वाले तो सदा झूले में झूलते रहते। यहाँ तो सब झूले। स्थूल प्राप्ति भी बहुत है तो सूक्ष्म प्राप्ति भी बहुत है सदा झूले में होंगे तो कब भूलें नहीं होंगी। प्राप्ति के झूले से उतरते हैं तो भूलें अपनी भी दसरे को भी दिखाई देंगी। झूले में बैठने से धरनी को छोड़ना पड़ता है। तो मधुबन वाले तोसर्व प्राप्ति के झूले में सदा झूलते रहते। सिर्फ प्राप्ति के आधार पर जीवन न हो। प्राप्ति आपके आगे भल आवे लेकिन आप प्राप्ति को स्वीकार नहीं कर लो। अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्ति होते भी कभी महसूस होगी। सदा अपने को खाली समझेंगे। तो ऐसा भाग्य है जो बिना मेहनत के प्राप्ति स्वयं आती है। तो इस भाग्य को सदा स्मृति में रखो। जितना स्वयं निष्काम बनेंगे उतना प्राप्ति आपके आगे स्वत: ही आयेगी। अच्छा –

सेवाधारियों से :- सेवाधारी का अर्थ ही है प्रत्यक्षफल खाने वाले। सेवा की और खुशी की अनुभूति की तो यह प्रत्यक्षफल खाया ना। सेवाधारी बनना यह तो बड़े ते बड़े भाग्य की निशानी है। जन्म-जन्म के लिए अपने को राज्य अधिकारी बनने का सहज साधन है। इसलिए सेवा करना अर्थात् भाग्य का सितारा चमकना। तो ऐसे समझते हुए सेवा कर रहे हो ना। सेवा लगती है या प्राप्ति लगती है? नाम सेवा है लेकिन यह सेवा करना नहीं है, मिलना है। कितना मिलता है? करते कुछ भी नहीं हो और मिलता सब कुछ है। करने में सब सुख के साधन मिलते हैं। कोई मुश्किल नहीं करना पड़ता है, कितना भी हार्ड वर्क हो लेकिन सैलवेशन भी साथ-साथ मिलती है तो वह हार्ड वर्क नहीं लगता खेल लगता है। इसलिए सेवाधारी बनना अर्थात् प्राप्तियों के मालिक बनना। सारे दिन में कितनी प्राप्ति करते हो? एक एक दिन की, एक एक घण्टे को प्राप्ति का अगर हिसाब लगाओ तो कितना अनगिनत है, इसलिए सेवाधारी बनना भाग्य की निशानी है। सेवा का चान्स मिला अर्थात् प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो हुए। स्थूल प्राप्ति भी है और  सूक्ष्म भी। कहीं भी कोई सेवा करो तो स्थूल साधन इतने नहीं मिलते जितने मधुबन में मिलते हैं। यहाँ सेवा के साथ-साथ पहले तो अपने आत्मा की , शरीर की पालना, डबल होती है। तो सेवा करते खुशी होती है या थकावट होती है? सेवा करते सदैव यह चेक करो कि डबल सेवा कर रहा हूँ। मंसा द्वारा वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने की ओर कर्म द्वारा स्थूल सेवा। तो एक सेवा नहीं करनी है। लेकिन एक ही समय पर डबल सेवाधारी बन करके अपना डबल कमाई का चांस लेना है।

सभी सन्तुष्ट हो? सभी अपने-अपने कार्य में अच्छी तरह से निर्विघ्न हो? कोई भी कार्य में कोई खिट-खिट तो नहीं है? कभी आपस में खिट-खिट तो नहीं करते हो। कभी तेरा मेरा, मैंने किया तुमने किया - यह भावना तो नहीं आती है? क्योंकि अगर किया और यह संकल्प में भी आया मैंने तो जो भी किया वह सारा खत्म हो गया। मेरा-पन आना माना सारे किये हुए कार्य पर पानी डाल देना। ऐसे तो नहीं करते हो? सेवाधारी अर्थात् करावनहार बाप निमित्त बनाए करा रहे हैं। करावनहार को नही भूलें। जहाँ निमित्त भाव होगा मैं पन आया तो माया भी आई। निमित्त हूँ निर्माण हूँ तो माया आ नहीं सकती। संकल्प या स्वप्न में भी माया आती है तो सिद्ध होता कि कहाँ मैं-पन का दरवाजा खुला है। मैं-पन का दरवाजा बन्द रहे तो कभी भी माया आ नहीं सकती। अच्छा –


 


15-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


विश्व शांति सम्मलेन के समाप्ति समारोह पर प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य

आज बेहद का बाप सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी बच्चों को देख रहे हैं। जिस भी बच्चे को देखें, हरेक, एक दो से श्रेष्ठ आत्मा है। तो बापदादा हरेक श्रेष्ठ आत्मा की, सेवाधारी आत्मा की विशेषता को देख रहे हैं। बापदादा को हर्ष है कि हरेक बच्चा इस विश्व परिवर्तन के कार्य में आधारमूर्त, उद्धारमूर्त है। सभी बच्चे बापदादा के कार्य में सदा सहयोगी आत्मा हैं। ऐसे सहयोगी, सहजयोगी, श्रेष्ठ विशेष आत्माओं को वा सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों को देख बापदादा अति स्नेह के सुनहरी पुष्पों से बच्चों का स्वागत और मुबारक की सैरीमनी मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे को मस्तकमणि, सन्तुष्टमणि, ह्दयमणि जैसे चमकते हुए स्वरूप में देखते हैं। बापदादा भी सदा एक गीत गाते रहते हैं, कौन सा गीत गाते हैं, जानते हो ना? यही गीत गाते- वाह मेरे बच्चे, वाह! वाह मीठे बच्चे, वाह! वाह प्यारे ते प्यारे बच्चे, वाह! वाह श्रेष्ठ आत्मायें वाह! ऐसा ही निश्चय और नशा सदा रहता है ना। सारे कल्प में ऐसा भाग्य प्राप्त नहीं हो सकता जो भगवान बच्चों के गीत गाये। भक्त, भगवान के गीत बहुत गाते हैं। आप सब ने भी बहुत गीत गाये हैं। लेकिन ऐसे कब सोचा कि कब भगवान भी हमारे गीत गायेंगे! जो सोचा नहीं था वह साकार रूप में देख रहे हो। विश्व शान्ति की कांफ्रेंस कर ली। सभी बच्चों ने मुख द्वारा बहुत अच्छी अच्छी बातें सुनाई और मन द्वारा सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना के शुभ संकल्प के वायब्रेशन भी चारों ओर, ज्ञान सूर्य बन फैलाए। लेकिन बापदादा सभी भाषण करने वालों का सार सुना रहे हैं। । आप लोगों ने तो चार दिन भाषण किये और बापदादा एक सेकण्ड का भाषण करते हैं। वह दो शब्द हैं - रियलाइजेशन और सॉल्युशन। जो भी आप सबने बोला उसका सार रियलाइजेशनही है। आत्मा को नहीं भी समझें लेकिन मानव के मूल्य को जानें तो भी शान्ति हो जाए। मानव विशेष शक्तिशाली स्वरूप है। अगर यह भी रियलाइज कर लें तो मानव के हिसाब से भी मानव धर्म स्नेहहै, न कि लड़ाई झगड़ा। इससे आगे चलो  - मानव जीवन का व मानवता का आधार आत्मा पर है। मैं कौन सी आत्मा हूँ, क्या हूँ, यह रियलाइज कर लें तो शान्ति तो स्वधर्म हो जायेगा। फिर आगे चलो - ‘‘मै श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की सन्तान हूँ’’, यह रियलाइजेशन निर्बल से शक्ति स्वरूप बना देगी। शक्ति स्वरूप आत्मा वा मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा जो चाहे, जैसे चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकती है, इसलिए सुनाया कि सारे भाषणों का सार एक ही है -’’रियलाइजेशन’’। तो बापदादा ने सभी भाषण सुने हैं ना।! बापदादा सदा बच्चों के साथ हैं ही। अच्छा –

सभी सेवा में समर्पित बच्चों को, सभी जोन से आये हुए बच्चों को, एक- एक यही समझे कि बापदादा मेरे को कह रहे हैं। एक एक से बात कर रहे हैं। सभी बच्चों ने जो प्रत्यक्ष सबूत दिखाया, उसके रिटर्न में बापदादा हरेक बच्चे को नाम सहित, रूप तो देख रहे हैं, नाम सहित मुबारक दे रहे हैं। अब तो जब आप समय परिवर्तन की सूचना दे रहे हो, तो बापदादा के मिलने का भी परिवर्तन होगा ना। आप सबका संकल्प है हमारा परिवार वृद्धि को पाए तो पुरानों को त्याग करना पड़ेगा। लेकिन यह त्याग ही भाग्य है। दूसरों को आगे बढ़ाना ही स्वयं को आगे बढ़ाना है। ऐसे नहीं समझना - क्यों बाप दादा को विदेशी बच्चे प्रिय हैं, देश वाले नहीं हैं। वा कोई विशेष बच्चे प्रिय है। बापदादा का तो हरेक बच्चा दिल का सहारा, मस्तक के ताज की मणी है। इसलिए बापदादा सबसे पहले अपने राइट हैण्ड्स सहयोगी बच्चों को अति दिल व जान, सिक व प्रेम से याद दे रहे हैं। यह तो जरूर है दूर से आने वाले, सम्पर्क में आने वालों को सम्बन्ध में लाने के लिए आप सभी खुशी-खुशी उन्हीं को आगे बढ़ा रहे हो और बढ़ाते रहेंगे।

इस समय सब सेवा के प्रति आये हो। इसलिए यह भी सेवा हो गई। हरेक जोन का नाम लेवे क्या? अगर एक-एक नाम लेंगे तो कोई रह जाए तो? इसलिए सभी जोन समझें कि बापदादा मुझे पहला नम्बर रख रहे हैं। सर्व देश के वा विदेश के, अब तो सभी मधुबन निवासी हे, इसलिए सर्व विश्व शान्ति हाल में उपस्थित बच्चों को, ओम् शान्ति भवन निवासी बच्चों को बाप दादा, सदा याद में रहो, याद दिलाते रहो, हर कदम यादगार चरित्र बनाते चलते चलो। हर सेकण्ड अपने प्रैक्टिकल लाइफ के आइने द्वारा सर्व आत्माओं को स्वका, बाप का साक्षात्कार कराते चलो, ऐसे वरदानी महादानी सदा सम्पन्न बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

राबर्ट मूलर (असिस्टेंट सेके्रट्री जनरल यू.एन.ओ.) के प्रति महावाक्य –

सेवा में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा हो। जैसे मन में यह श्रेष्ठ संकल्प रखा कि जिस कार्य के लिए निमित्त बने हो वह करके ही दिखायेंगे। यह संकल्प बाप दादा और सारे ब्राह्मण परिवार के सहयोग से साकार में आता ही रहेगा। संकल्प बहुत अच्छा है। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे सोचते हो। अभी इसी प्लैन के बीच में जब यह स्प्रिचुअल पावर एड हो जायेगी तो यह प्लैन साकार रूप लेते रहेंगे। बाप दादा के पास बच्चों के सभी उमंग पहुँचते रहते हैं। सदा अटल रहना। हिम्मतवान बनकर आगे बढ़ते जाना। वह दिन भी इन आँखों से दिखाई देगा कि विश्व शान्ति का झण्डा विश्व के चारों ओर लहरायेगा। इसलिए आगे बढ़ते चलो। दुनिया वाले दिलशिकस्त बनायेंगे। आप मत बनना। एक बल एक भरोसा, इसी निश्चय से चलते रहना। जिस समय कोई भी परिस्थिति आये तो बाप को साथी बना लेना। तो ऐसा अनुभव करेंगे कि मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ विशेष शक्ति है। स्वप्न पूरा हो जायेगा। जहाँ बाप है, वहाँ कितने भी चाहे तूफान हों, वह तोफा बन जायेंगे। निश्चय बुद्धि विजयन्ति’ - यह टाइटल याद रखना कि मैं निश्चय बुद्धि विजयी रत्न हूँ। अच्छा ।

स्टीव नारायण (वाइस प्रेजीडेन्ट, ग्याना) के प्रति महावाक्य –

अपने को बाप के दिलतख्तनशीन समीप रत्न अनुभव करते हो? दूरदेश में रहते भी दिल से दूर नहीं हो। बच्चों का सर्विस में उमंग उल्लास देख बापदादा हर्षित होते हैं और नम्बरवन देते हैं। सदा उड़ती कला में रहने वाले, बाप दादा के नूरे रत्न हो। इसलिए बाप दादा मुबारक देते हैं।

(आन्टी बेटी से) - आपको नया जन्म लेते ही आशीर्वाद मिली हुई है कि आप सर्विसएबुल हो। अनुभवी मूर्त हो। ग्याना में रहते हुए भी विश्व सेवा अर्थ निमित्त मूर्त हो और रहेंगी। याद द्वारा बाप के सहयोग और वरदानों का अनुभव होता है ना! आपकी याद बाप को पहुँचती रहती है। सर्व संकल्प सिद्ध होते रहते हैं ना! आप एक श्रेष्ठ आत्मा के एक ही श्रेष्ठ संकल्प से सारा परिवार श्रेष्ठ पद को पा रहा है। पद्मापद्म भाग्यशाली हो।

 


 

15-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"विश्व शांति सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले भाई-बहेनो के प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश"

(गुलजार बहन द्वारा)

सदा की रीति प्रमाण आज जैसे ही मैं वतन में पहुँची तो बाप दादा बहुत मीठी नजर से दृष्टि द्वारा सर्व बच्चों को यादप्यार दे रहे थे। बाबा की दृष्टि से आज ऐसे अनुभव हो रहा था जैसे अति शान्ति, शक्ति, प्रेम और आनन्द की किरणें निकल रही हों। ऐसी रूहानी दृष्टि जिससे चार ही बातों की प्राप्ति हो रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे हम बहुत कुछ पा रहे हैं। ऐसे बाप दादा ने हम सभी बच्चों का स्वागत किया और बोले - ‘‘बच्ची, सभी की याद लाई हो?’’ मैनें कहा -’’याद तो लाई हूँ लेकिन सबके आह्वान का संकल्प भी लाई हूँ’’ तो बाबा बोले - ‘‘इस समय तो मेरे इतने प्यारे बच्चे, जो भी आये हैं, जानने के लिए आए हैं, ऐसा भी दिन आएगा जो फिर मिलने के लिए आयेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों का दृश्य वतन में रहते हए भी सदा देखते रहते हैं।’’ ऐसा कहते बाबा ने एक दृश्य दिखाया - जैसे भारत देश में भक्त लोग मन्दिरों में शिवालिंग की प्रतिमा बनाते हैं। ऐसे वतन में भी एक प्रतिमा दिखाई दी लेकिन उस प्रतिमा का गोल आकार था। और उस गोल आकार में अनेक चमकते हुए हीरे चारों ओर नजर आ रहे थे। उन चमकते हुए हीरों पर चार प्रकार की लाइट पड़ रही थी। एक रंग था सफेद, दूसरा हरा, तीसरा हल्का ब्ल्यु और चौथा गोल्ड। थोड़े समय में वह लाइट शब्दों में बदल गई। सफेद लाइट के अक्षरों से लिखा था शान्ति। दूसरे पर उमंग’, तीसरे पर उत्साहऔर चौथी लाइट से सेवा

तो बाबा बोले - ‘‘सभी बच्चों ने बहुत ही उमंग उत्साह और शान्ति के संकल्प द्वारा विश्व की सेवा की। एक-एक आत्मा संगठित रूप में देखो कितनी चमक रही है।’’ फिर बाबा ने कहा - ‘‘मेरे बच्चे मुझे यथा शक्ति जान पाए हैं, फिर भी हैं तो मेरे ही बच्चे। मेरे सभी मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार देना। जो भी बच्चे आये हैं। सबके मुख से यह आवाज़ तो निकलती है कि हम अपने घर में आये हैं - बापदादा बच्चों की यह आवाज़ सुनकर मुस्कराते हैं। जब बच्चे घर में आए हैं तो पूरा अधिकार लेने आए हैं, या थोड़ा सा?’’ तो बाबा ने कहा - ‘‘सागर के किनारे पर आकर गागर भरकर नहीं जाना लेकिन मास्टर सागर बनकर जाना। खान पर आकर दो मुट्ठी भर कर नहीं जाना।’’ फिर बाप दादा ने तीन प्रकार के बच्चों को तीन प्रकार की सौगात दी –

1. बाबा बोले - ‘‘मेरे कलमधारी बच्चे (प्रेस वाले) जो आये हैं उन्हें बाप दादा कमल पुष्प की सौगात देते हैं। मेरे कलमधारी बच्चों को कहना कि सदा कमल समान सारे विश्व के तमोगुणी वायब्रेशन से न्यारे और पिता परमात्मा के प्यारे बनें। अगर ऐसी स्थिति में स्थित हो कलम चलायेंगे तो आपका व्यवहार भी सिद्ध हो जायेगा और परमार्थ भी सिद्ध हो जायेगा।’’

2. वी.आई.पी. बच्चे जो भी आये हैं, उन्हों को बाबा ने सिंहासन नहीं लेकिन हंस-आसन दिया। बाबा बोले - ‘‘यह जो मेरे वी.आई.पी. बच्चे आये हैं उन्हों के मुख में शक्ति है। इन्हें मैं हंस-आसन देता हूँ। इस आसन पर बैठकर फिर कोई वार्य करना। हंस-आसन पर बैठने से आपकी निर्णय शक्ति रेष्ठ होगी और जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता होगी। जैसे कुर्सा पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस-आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी।’’

3. सरेन्डर सेवाधारी बच्चों को बाप दादा ने एक बहुत अच्छा लाइट के फूलों का बना हुआ हारदिया। हरेक लाइट पर कोई न कोई दिव्यगुण लिखा था तो बाबा बोले - ‘‘ये मेरे बच्चे सर्वगुण धारण करने वाले गुण मूर्त बच्चे हैं। सभी बच्चों ने एक बल एक मत होकर जो यह बेहद की सेवा की, उसके रिटर्न में बाप दादा यह दिव्यगुणों की माला सभी बच्चों को सौगात रूप में देते हैं। और लास्ट में कहा - ‘‘सभी बच्चों को बाप दादा के यही महावाक्य सुनाना - कि सदा खुश रहना, खुशनसीब बनना और सर्व को खुशी के वरदानों से, खज़ानों से सम्पन्न बनाते रहना।’’ ऐसे मधुर महावाक्य सुनते, यादप्यार देते और लेते मैं अपने साकार वतन में पहुँच गई।

 


 

18-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सदा उमंग-उत्साह में रहने की युक्तियाँ

सदा सेवा की लगन में मगन बनाने वाले बापदादा बोले:-

आज सर्व बच्चों के दिलाराम बाप, बच्चों के दिल की आवाज़, दिल की मीठी-मीठी बातों का रेसपांड देने के लिए बच्चों के बीच आए हैं। अमृतवेले से लेकर बापदादा चारों ओर के बच्चों के भिन्न-भिन्न राज़ भरे हुए साज सुनते रहते हैं। सारे दिन में कितने बच्चों के और कितने प्रकार के साज सुनते होंगे। हरेक बच्चे के भी समय-समय भिन्न-भिन्न साज होते हैं। सबसे पहले ज्यादा नैचरल साज कौन सुनता है? नैचरल वस्तु सदा प्रिय लगती है। तो सब बच्चों के भिन्नभिन्न साज सुनते हुए बापदादा बच्चों के सार में मुख्य बातें सुनाते हैं।

सभी बच्चे यथाशक्ति लगन में मगन अवस्था में स्थित होने के लिए वा मगन स्वरूप के अनुभवी मूर्त बनने के लिए अटेन्शन बहुत अच्छा रखते चल रहे हैं। सबकी दिल का एक ही उमंग उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रतन बन सदा सपूत बच्चे का सबूत दूँ । यह उमंग उत्साह सर्व के उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर सम्पन्न बनने में बहुत सहयोग देता है। यह उमंग का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है। इसलिए सदा दिल में उमंग उत्साह को वा इस उड़ती कला के साधन को कायम रखना। कभी भी उमंग- उत्साह को कम नहीं करना। उमंग है - मुझे बाप समान सर्व शक्तियों, सर्व गुणों, सर्व ज्ञान के खज़ानों से सम्पन्न होना ही है - क्योंकि कल्प पहले भी मैं श्रेष्ठ आत्मा बना था। एक कल्प की तकदीर नहीं लेकिन अनेक बार के तकदीर की लकीर भाग्य विधाता द्वारा खींची हुई है। इसी उमंग के आधार पर उत्साह स्वत: ही उत्पन्न होता है। उत्साह क्या होता? ‘‘वाह मेरा भाग्य’’। जो भी बाप दादा ने भिन्न-भिन्न टाइटिल दिये हैं। उसी स्मृति स्वरूप में रहने से उत्साह अर्थात् खुशी स्वत: ही और सदा ही रहती है। सबसे बड़े ते बड़े उत्साह की बात है कि अनेक जन्म आपने बाप को ढूँढा लेकिन इस समय बापदादा ने आप लोगों को ढूँढा। भिन्न-भिन्न पर्दों के अन्दर छिपे हुए थे। उन पर्दों के अन्दर से भी ढूँढ लिया ना? बिछुड़कर कितने दूर चले गये! भारत देश को छोड़कर कहाँ चले गये! धर्म, कर्म, देश, रीति-रसम, कितने पर्दों के अन्दर आ गये। तो सदा इसी  उत्साह और खुशी में रहते हो ना! बाप ने अपना बनाया या आपने बाप को अपना बनाया! पहले मैसेज तो बाप ने भेजा ना। चाहे पहचानने में कोई ने कितना समय, कोई ने कितना समय लगाया। तो सदा उमंग और उत्साह में रहने वाली आत्माओं को, एक बल एक भरोसे में रहने वाले बच्चों को, हिम्मते बच्चे मददे बाप का सदा ही अनुभव होता रहता है। ‘‘होना ही है’’ यह है हिम्मत। इसी हिम्ते से मदद के पात्र स्वत: ही बन जाते हैं। और इसी हिम्मत के संकल्प के आगे माया हिम्मतहीन बन जाती है। पता नहीं, होगा या नहीं होगा, मैं कर सकूंगा या नहीं, - यह संकल्प करना , माया का आह्वान करना है। जब आह्वान किया तो माया क्यों नहीं आयेगी? यह संकल्प आना अर्थात् माया को रास्ता देना। जब आप रास्ता ही खोल देते हो तो क्यों नहीं आयेगी? आधाकल्प की प्रीत रखने वाली रास्ता मिलते कैसे नहीं आयेगी? इसलिए सदा उमंग उत्साह में रहने वाली हिम्मतवान आत्मा बनो। विधाता और वरदाता बाप के सम्बन्ध से बालक सो मालिक बन गए। सर्व खज़ानों के मालिक, जिस खज़ाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। ऐसे मालिक उमंग उत्साह में न रहेंगे तो कौन रहेगा! यह सलोगन सदा मस्तक में स्मृति रूप में रहे - ‘‘हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे।’’ याद है ना! इसी स्मृति ने यहाँ तक लाया है। सदा इसी स्मृति भव। अच्छा –

आज तो डबल विदेशी, सबसे ज्यादा में ज्यादा दूरदेशवासी, दूर से आने वाले बच्चों से विशेष मिलने के लिए आये हैं। वैसे तो भारत के बच्चे भी सदा अधिकारी हैं ही। फिर भी चान्सलर बन चान्स देते हैं इसलिए भारत में महादानी बनने की रीति-रसम अब तक भी चलती है। सबने अपने-अपने रूप से विश्व सेवा के महायज्ञ में सहयोग दिया। हरेक ने बहुत लगन से अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाया। सर्व के एक संकल्प द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं को बाप के समीप आने वा सन्देश मिला। अभी इसी सन्देश द्वारा जगी हुई ज्योति अनेको को जगाती रहेगी। डबल विदेशी बच्चों ने अपने दृढ़ संकल्प को साकार में लाया। भारतवासी बच्चों ने भी अनेक नाम फैलाने वाले, सन्देश पहुँचाने वाले विशेष आत्माओं को समीप लाया। कलमधारियों को भी स्नेह ओर सम्पर्क में समीप लाया। कलम की शक्ति और मुख की शक्ति दोनों ही मिलकर सन्देश की ज्योति जगाते रहेंगे। इसके लिए डबल विदेशी बच्चों को और देश में समीप रहने वाले बच्चों को, दोनों को बधाई। डबल विदेशी बच्चों ने पावरफुल आवाज़ फैलाने के निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को लाया उसके लिए भी विशेष बधाई हो। बाप तो सदा बच्चों के सेवाधारी हैं। पहले बच्चे। बाप तो बैकबोन है ना! सामने मैदान पर तो बच्चे ही आते हैं। मेहनत बच्चों की मुहब्बत बाप की। अच्छा –

ऐसे सदा उमंग उत्साह में रहने वाले, सदा बाप दादा की मदद के पात्र, हिम्मतवान बच्चे, सदा सेवा की लगन में मगन रहने वाले, सदा स्वंय को प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा सर्व आत्माओं को शक्तियों की प्राप्ति कराने वाले- ऐसे बाप के सदा अधिकारी वा बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।’’

जानकी दादी से :- बाप समान भव की वरदानी हो ना! डबल सेवा करती हो। बच्ची की मंसा सेवा की सफलता बहुत अच्छी दिखाई दे रही है। सफलता स्वरूप का प्रत्यक्ष सबूत हो। सभी, बाप के साथ-साथ बच्ची के भी गुण गाते हैं। बाप साथ-साथ चक्कर लगाते हैं ना! चक्रवर्ती राजा हो। प्रकृतिजीत का अच्छा ही प्रत्यक्ष पार्ट बजा रही हो। अब तो संकल्प द्वारा भी सेवा का पार्ट अच्छा चल रहा है। प्रैक्टिकल सबूत अच्छा है। अभी तो बहुत बड़े बड़े आयेंगे। विदेश का आवाज़ देश वालों तक पहुँचेगा। सभी विदेशी बच्चों ने सर्विस के उमंग उत्साह का अच्छा ही प्रैक्टिकल सबूत दिखाया है। इसीलिए सभी के तरफ से आपको बहुत-बहुत बधाई हो। अच्छा माइक लाया, याद का स्वरूप बनकर सेवा की है। इसलिए सफलता है। अच्छा बगीचा तैयार किया है। अल्लाह अपने बगीचे को देख रहे हैं।

जयन्ती बहन से :- जन्म से लकी और लवली तो हो ही। जन्म ही लक से हुआ है। जहाँ भी जायेंगी वह स्थान भी लकी हो जायेगा। देखो, लण्डन की धरती लकी हो गई ना। जहाँ भी चक्कर लगाती हो तो क्या सौगात देकर आती हो। जो भाग्य विधाता द्वारा भाग्य मिला है वह भाग्य बाँटकर आती हो! सभी आपको किस नजर से देखते हैं, मालूम है? भाग्य का सितारा हो। जहाँ सितारा चमकता है वहाँ जगमग हो जाता है। ऐसे अनुभव करती हो ना! कदम बच्ची का और मदद बाप की। फालो फादर तो हो ही लेकिन फालो साथी(जानकी दादी को) भी ठीक किया है। यह भी समान बनने की रेस अच्छी कर रही है। अच्छा –

(न्यूयार्क से सिंगर शैली ने बापदादा को यादप्यार भेजी है।) इसी मधुबन के यादप्यार ने ही उन्हें नया जन्म दिया है। उनके ओरीजनल नये जन्म की भूमि मधुबन है। तो बर्थ प्लेस उन्हें कैसे भूलेगा! जितनी शक्ति ली है उस शक्ति के हिसाब से बहुत ही अच्छा सर्विस का सबूत दिया है। अपने साथियों को अच्छा ही सन्देश देकर समीप लाया है। शेयर होल्डर है। क्योंकि जितनों को भी मैसेज मिलता है, इसके निमित्त उन सबका शेयर इसको मिलता रहता है।

(गायत्री बहन न्यूयार्क से):- गायत्री भी कम नहीं, बहुत अच्छा सर्विस का साधन अपनाया है। जो भी निमित्त बन करके आत्मायें मधुबन तक पहुँचाई, तो निमित्त बनने वालों को भी बाप दादा और परिवार की शुभ स्नेह के पुष्प की वर्षा होती रहती है। जितना ही शैली अच्छी आत्मा है, उतना ही यह जो बच्चा आया (राबर्ट मूलर) यह भी बहुत अच्छा सेवा के क्षेत्र में सहयोगी आत्मा है। सच्ची दिल पर साहिब राजी। साफ दिल वाला है। इसलिए बाप के स्नेह को, बाप की शक्ति को सहज कैच कर सका। उमंग-उत्साह और संकल्प बहुत अच्छा है। सेवा में अच्छा जम्प लगायेगा। बाप दादा भी निमित्त बने हुए बच्चों को देख हर्षित होते हैं। उनको कहना कि सेवा में उड़ती कला वाले फरिश्ता स्वरूप हो और ऐसे ही अनुभव करते रहना। सर्विस में उड़ती कला वाला बच्चा है। सर्विस करने का उमंग अच्छा है। अच्छा - सभी के सहयोग से सफलता मधुबन तक दिखाई दे रही है। नाम किसका भी नहीं ले रहे हैं। लकिन सब समझना कि हमें बाबा कह रहे हैं। कोई भी कम नहीं है। समझो पहले हम सेवा में आगे हैं। छोटे बड़े सभी ने तन-मन-धन-समय, संकल्प सब कुछ सेवा में लगाया है।

मुरली भाई और रजनी बहन से :- बाप दादा के स्नेह की डोर ने खींच लाया ना। सदा अभी क्या याद रहता है? श्वासों श्वासं सेकण्ड-सेकण्ड क्या याद रहता? सदा दिल से बाबा ही निकलता है ना! मन की खुशी, याद के अनुभव द्वारा अनुभव की! अभी एकाग्र हो जो सोचेंगे वह सब आगे बढ़ने का साधन हो जायेगा। सिर्फ एक बल एक भरोसे से एकाग्र हो कर के सोचो। निश्चय में एक बल और एक भरोसा, तो जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा। बापदादा सदा साथ हैं और सदा रहेंगे। बहादुर हो ना! बाप दादा बच्चे की हिम्मत और निश्चय को देख के निश्चय और हिम्मत पर बधाई दे रहे हैं। बेफिकर बादशाह के बच्चे बादशाह हो ना! ड्रामा की भावी ने समीप रत्न तो बना ही दिया है। साथ भी बहुत अच्छा मिला है। साकार का साथ भी शक्तिशाली है। आत्मा का साथ तो है ही बाप। डबल लिफ्ट है। इसलिए बेफिकर बादशाह। समय पर पुण्यात्मा बन पुण्य का कार्य किया है। इसलिए बाप दादा के सहयोग के सदा पात्र हो। कितने पुण्य के अधिकारी बने। पुण्य-स्थान के निमित्त बने। किसी भी रीति से बच्चे का भाग्य बना ही दिया ना। पुण्य की पूँजी इकट्ठी है। मुरलीधर का मुरली, मास्टर मुरली है। बाप का हाथ सदा हाथ में है। सदा याद करते और शक्ति लेते रहो।

बाप का खज़ाना सो आपका, अधिकारी समझकर चलो। बाप दादा तो घर का बालक सो घर का मालिक समझते हैं। परमार्थ और व्यवहार दोनों साथ-साथ हों। व्यवहार में भी साथ रहे। अच्छा।

यू.के. ग्रुप से :- सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी समझते हो? वैसे भी लण्डन राजधानी है ना! तो राजधानी में रहते हुए अपना राज्य सदा याद रहता है ना! रानी का महल देखते हुए अपने महल याद आते हैं? आपके महल कितने सुन्दर होंगे, जानते हो ना! ऐसा आपका राज्य है जो अब तक कोई ऐसा राज्य न हुआ ह। न होगा। ऐसा नशा है? भल अभी तो सब विनाश हो जायेगा। लेकिन आप तो भारत में आ जायेंगे ना। यह तो पक्का है ना! जहाँ भी ब्राहमण आत्माओं ने इतनी सेवा की है वह पिकनिक स्थान जरूर रहेंगे। आदमशुमारी कम होगी, इतने विस्तार की आवश्यकता नहीं होगी। अच्छा - अपना घर, अपना राज्य, अपना बाप, अपना कर्त्तव्य सब याद रहे।

प्रश्न:- सदा आगे बढ़ने का साधन क्या है?

उत्तर:- नालेज और सेवा। जो बच्चे नालेज को अच्छी रीति धारण करते हैं और सेवा की सदा रूचि बनी रहती है वह आगे बढ़ते रहते हैं। हजार भुजा वाला बाप आपके साथ है, इसलिए साथी को सदा साथ रखते आगे बढ़ते रहो।

प्रश्न:- प्रवृत्ति में जो सदा समर्पित होकर रहते हैं - उनके द्वारा कौन सी सेवा स्वत: हो जाती है?

उत्तर:- ऐसी आत्माओं के श्रेष्ठ सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। सबका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिले तो वृक्ष से फल कितना अच्छा निकलता है, ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत हो जाता है। तो ऐसे बाप दादा के दिलतख्तनशीन, सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में भी समर्पित रहने वाले बच्चे हो ना। अच्छा।

ओम् शान्ति।



21-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


शांति की शक्ति

विश्व परिवर्तन तथा विश्व कल्याण के निमित्त बनाने वाले कल्याणकारी शिव बाबा बोले:-

आज बाप दादा अमृतवेले चारों ओर बच्चों के पास चक्कर लगाने गये। चक्कर लगाते हुए बाप दादा आज अपनी शक्ति सेना वा पाण्डव सेना, सभी की तैयारी देख रहे थे कि कहाँ तक सेना शक्तिशाली शस्त्रधारी एवररेडी हुई है। समय का इंतजार है वा स्वयं सदा ही सम्पन्न रहने का इंतजाम करने वाली है। तो आज बापदादा सेनापति के रूप में सेना को देखने गये। विशेष बात, साइन्स की शक्ति पर साइलेन्स के शक्ति की विजय है। तो साइलेन्स की शक्ति संगठित रूप में और व्यक्तिगत रूप में कहाँ तक प्राप्त कर ली है? वह देख रहे थे। साइन्स की शक्ति द्वारा प्रत्यक्ष फल रूप में स्व-परिवर्तन वायुमण्डलपरिवर्त न, वृत्ति-परिवर्तन, संस्कार-परिवर्तन कहाँ तक कर सकते हैं वा किया है तो आज सेना के हरेक सैनिक की साइलेन्स के शक्ति की प्रयोगशाला चेक की कि कहाँ तक प्रयोग कर सकते हैं।

स्मृति में रहना, वर्णन करना वह भी आवश्यक है लेकिन वर्तमान समय के प्रमाण सर्व आत्मायें प्रत्यक्षफल देखना चाहती हैं। प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रैक्टिकल प्रूफ देखने चाहती हैं। तो तन के ऊपर साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करते हैं। ऐसे ही मन के ऊपर, कर्म के ऊपर, सम्बन्ध सम्पर्क में आने से सम्बन्ध सम्पर्क में क्या प्रयोग होता है, कितनी परजेन्टेज में होता है? -यह विश्व की आत्मायें भी देखने चाहती हैं। हरेक ब्राह्मण आत्मा भी स्व में प्रत्यक्ष प्रूफ के रूप में सदा विशेष से विशेष अनुभव करने चाहती है। रिजल्ट में साइलेन्स की शक्ति का जितना महत्व है, उतना उसे विधि पूर्वक प्रयोग में लाने में अभी कम है। चाहना बहुत है, नालेज भी है लेकिन प्रयोग करते हुए आगे बढ़ते चलो। साइलेन्स शक्ति की प्राप्ति की महीनता अनुभव करते, स्व प्रति वा अन्य प्रति कार्य में लगाना, उसमें अभी और विशेष अटेन्शन चाहिए। विश्व की आत्माओं वा सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को महसूस हो कि शान्ति की किरणें इन विशेष आत्मा वा विशेष आत्माओं द्वारा मिल रही है। हरेक से चलता फिरता ‘‘शान्ति यज्ञ कुण्ड’’ का अनुभव हो। जैसे आपकी रचना में छोटा-सा फायरफ्लाई दूर से ही अपनी रोशनी का अनुभव कराता है। दूर से ही देखते सब कहेंगे यह फायरफ्लाई आ रहा है, जा रहा है। ऐसे इस बुद्धि द्वारा अनुभव करें कि यह शान्ति का अवतार शान्ति देने आ गया है। चारों ओर की अशान्त आत्मायें, शान्ति की किरणों के आधार पर शान्ति कुण्ड की तरफ खिंची हुई आवें। जैसे प्यासा पानी की तरफ स्वत: ही खिंचता हुआ जाता है। ऐसे आप शान्ति के अवतार आत्माओं की तरफ खिंचे हुए आवें। इसी शान्ति की शक्ति का अभी और अधिक प्रयोग करो। शान्ति की शक्ति वायरलेस से भी तेज आपका संकल्प किसी भी आत्मा प्रति पहुँचा सकती है। जैसे साइन्स की शक्ति परिवर्तन भी कर लेती, वृद्धि भी कर लेती है, विनाश भी कर लेती, रचना भी कर लेती, हाहाकार भी मचा देती और आराम भी दे देती। लेकिन साइलेन्स की शक्ति का विशेष यंत्र है - ‘‘शुभ संकल्प’’, इस संकल्प के यंत्र द्वारा जो चाहो वह सिद्धि स्वरूप में देख सकते हो। पहले स्व के प्रति प्रयोग करके देखो। तन की व्याधि के ऊपर प्रयोग करके देखो तो शान्ति की शक्ति द्वारा कर्म बन्धन का रूप, मीठे सम्बन्ध के रूप में बदल जायेगा। बन्धन सदा कड़वा लगता है, सम्बन्ध मीठा लगता है। यह कर्मभोग - कर्म का कड़ा बन्धन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। भोगने वाला नहीं, भोगना भोग रही हूँ - यह नहीं लेकिन साक्षी दृष्टा हो इस हिसाब किताब का दृश्य भी देखते रहेंगे। इसलिए तन के साथ-साथ मन की कमज़ोरी, डबल बीमारी होने के कारण जो कड़े भोग के रूप में दिखाई देता है वह अति न्यारा और बाप का प्यारा होने के कारण डबल शक्ति अनुभव होने से कर्मभोग के हिसाब की शक्ति के ऊपर वह डबल शक्ति विजय प्राप्त कर लेगी। बीमारी चाहे कितनी भी बड़ी हो लेकिन दुःख वा दर्द का अनुभव नहीं करेंगे। जिसको दूसरी भाषा में आप कहते होकि सूली से कांटे के समानअनुभव होगा। ऐसे टाइम में प्रयोग करके देखो। कई बच्चे करते भी हैं। इसी प्रकार से तन पर, मन पर, संस्कार पर अनुभव करते जाओ और आगे बढ़ते जाओ। यह रिसर्च करो। इसमें एक दो को नहीं देखो। यह क्या करते, इसने कहाँ किया है। पुराने करते वा नहीं करते, बड़े नहीं करते, छोटे करते, यह नहीं देखो। पहले मैं इस अनुभव में आगे आ जाऊं क्योंकि यह अपने आन्तरिक पुरूषार्थ की बात है। जब ऐसे व्यक्तिगत रूप में इसी प्रयोग में लग जायेंगे। वृद्धि को पाते रहेंगे तब एक-एक के शान्ति की शक्ति का संगठित रूप में विश्व के सामने प्रभाव पड़ेगा। अभी फर्स्ट स्टेप विश्व शान्ति की कांफ्रेंस कर निमंत्रण दिया लेकिन शान्ति की शक्ति का पुंज जब सर्व के संगठित रूप में प्रख्यात होगा तो आपको निमंत्रण आयेंगे कि हे शक्ति, शान्ति के अवतार इस अशान्ति के स्थान पर आकर शान्ति दो। जैसे सेवा में अभी भी जहाँ अशान्ति का मौका (मृत्यु) होता है तो आप लोगों को बुलाते हैं कि आओ आकर शान्ति दो। और यह धीरे- धीरे प्रसिद्ध भी होता जा रहा है कि ब्रह्माकुमारियाँ ही शान्ति दे सकती हैं। ऐसे हर अशान्ति के कार्य में आप लोगों को निमंत्रण आयेंगे। जैसे बीमारी के समय सिवाए डाक्टर के कोई याद नहीं आता ऐसे अशान्ति के कोई भी बातों में सिवाए आप शान्ति-अवतारों के और कोई दिखाई नहीं देगा। तो अभी शक्ति सेना, पाण्डव सेना, विशेष शान्ति की शक्ति का प्रयोग करो। प्रयोग करके दिखाओ। शान्ति की शक्ति का केन्द्र प्रत्यक्ष करो। समझा क्या करना है?

आजकल तो डबल विदेशी बच्चों के निमित्त, सभी बच्चों को भी खज़ाना मिलता रहता है। जहाँ से भी जो सभी बच्चे आये हैं, बाप दादा सभी तरफ के बच्चों की लगन को देख खुश होते हैं। पाँचो ही खण्डों के भिन्न-भिन्न देश से आये हुए बच्चों को बापदादा देख रहे हैं। सभी ने कमाल की है। जो सभी ने लक्ष्य रखा था उसी प्रमाण प्रैक्टिकल पुरूषार्थ का रूप भी लाया है। विदेश से टोटल कितने वी.आई.पी. आये हैं? (75) और भारत के कितने वी.आई.पी. आये थे?(700) भारत की विशेषता अखबार वालों की अच्छी रही। और विदेश से 75 भी आये, यह कोई कम नहीं। बहुत आये। दूसरे वर्ष फिर बहुत आयेंगे। अभी गेट तो खुल गया ना, आने का। पहले तो विदेश की टीचर्स कहती थीं वी. आई.पी. को लाना बड़ा मुश्किल है। ऐसा तो कोई दिखाई नहीं देता। अब तो दिखाई दिया ना। भले विघ्न पड़े, यह तो ब्राह्मणों के कार्यों में विघ्न न पड़े तो लगन भी लग न सके। नहीं तो अलबेले हो जायें। इसलिए ड्रामा अनुसार लगन बढ़ाने के लिए विघ्न पड़ते हैं। अभी एक एक द्वारा आवाज़ सुनकर फिर अनेकों में उमंग आयेगा।

बच्चों ने अच्छी कमाल की है। सर्विस मे सबूत अच्छा दिखाया है। सेवा का चांस दिलाने के निमित्त तो बन गये ना। एक द्वारा सहज ही अनेको तक आवाज़ तो फैला ना! अमेरिका वालों ने अच्छी मेहनत की। हिम्मत अच्छी की, ज्यादा से ज्यादा आवाज़ फैलाने वाली निमित्त आत्मा को ड्रामा अनुसार विदेश वालों  ने ही लाया ना। भारतवासी बच्चों ने भी मेहनत बहुत अच्छ की। उस मेहनत का फल संख्या अच्छी आई। अभी भारत की विशेष आत्मायें भी आयेंगी। अच्छा।

ऐसे सर्व विदेश से आये हुए बच्चों को और भारत के चारों तरफ के बच्चों को जो सब एक ही विशेष शुद्ध संकल्प में हैं कि विश्व के कोने-कोने में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे - ऐसे शुभ संकल्प लेने वाले, विश्व-परिवर्तक विश्व कल्याणकारी, सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात –

1. वरदान भूमि पर आकर वरदान लिया? सबसे बड़े ते बड़ा वरदान है सदा अपने को बाप द्वारा बाप के साथ का अनुभव करना। सदा बाप की याद में अर्थात् सदा साथ में रहना। तो सदा ही खुश रहेंगे, कभी भी कोई भी बात संकल्प में आये तो बाप वे साथ में सब समाप्त हो जायेगा और खुशी में झूमते रहेंगे। तो सदा खुश रहने का यह तरीका याद रखना और दूसरों को भी बताते रहना। दूसरों को भी खुशी में रहने का साधन देना। तो आपको सभी आत्मायें खुशी का देवता मानेंगी। क्योंकि विश्व में आज सबसे ज्यादा खुशी की आवश्यकता है। वह आप देते जाना। अपना टाइटिल याद रखना कि मैं खुशी का देवता हूँ!

याद और सेवा इसी बैलन्स द्वारा बाप की ब्लैसिंग मिलती रहेगी। बैलेन्स सबसे बड़ी कला है। हर बात में बैलेन्स हो तो नम्बरवन सहज ही बन जायेंगे। बैलेन्स ही अनेक आत्माओं के आगे ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार करायेगा। बैलेन्स को सदा स्मृति में रखते, सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते स्वयं भी आगे बढ़ो और औरों को भी बढ़ाओ।

सदा इसी स्मृति में रहो कि बाप को जानने वाली, बाप को पाने वाली कोटो में कोई जो गाई हुई आत्मायें हैं, वह हम हैं। इसी खुशी में रहो तो आपके यह चेहरे चलते फिरते सेवा-केन्द्र हो जायेंगे। जैसे सर्विस सेन्टर पर आकर बाप का परिचय लेते हैं वैसे आपके हर्षित चेहरे से बाप का परिचय मिलता रहेगा। बापदादा हर बच्चे को ऐसा ही योग्य समझते हैं। इतने सब सेवा-केन्द्र बैठे हैं। तो सदा ऐसे समझो, चलते फिरते खाते पीते हमको बाप की सेवा, अपनी चलन से व चेहरे से करनी है। तो सहज ही निरंतर योगी बन जायेंगे। जो बच्चे आदि से सेवा में उमंग उत्साह का सहयोग देते रहे हैं, ऐसी आत्माओं को बापदादा भी सहयोग देते हुए, 21 जन्म आराम से रखेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। खाओ, पिओ और स्वर्ग का राज्य भाग्य भोगो। आधाकल्प मेहनत शब्द ही नहीं होगा। ऐसी तकदीर बनाने आए हो।

कुमारों प्रति- कुमार जीवन में एनर्जी बहुत होती है। कुमार जो चाहे वह कर सकते हैं। इसलिए बापदादा कुमारों को देख विशेष खुश होते हैं कि अपनी एनर्जी डिस्ट्रक्शन के बजाए कनस्ट्रक्शन के कार्य में लगायें। एक-एक कुमार विश्व को नया बनाने में अपनी एनर्जी को लगा रहे हैं। कितना श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं। एक कुमार 10 का कार्य कर सकते हैं। इसलिए कुमारों पर बापदादा को नाज है। कुमार जीवन में अपनी जीवन सफल कर ली। ऐसी विशेष आत्मायें हो ना! बहुत अच्छा, समय पर जीवन का फैसला किया। फैसला करने में कोई गलती तो नहीं की है ना! पक्का है ना! कोई गलत कहकर खींचे तो? चाहे दुनिया की अक्षौणी आत्मायें एक तरफ हो जाएं, आप अकेले हो, फिर क्या होगा? बोलो, मैं अकेला नही हूँ, बाप मेरे साथ है। बापदादा खुश होते हैं - स्वयं की भी जीवन बनाई और अनेको की जीवन बनाने के निमित्त बने हो। अच्छा –

पत्रों के उत्तर देते हुए, बापदादा ने सभी बच्चों प्रति टेप में याद प्यार भरी –

चारों ओर के सभी सिकीलधे, स्नेही, सहयोगी, सर्विसएबुल बच्चों के पत्र तो क्या लेकिन दिल के मीठे-मीठे साजों भरे गीत बापदादा ने सुने। जितना बच्चे दिल से याद करते हैं उससे पद्मगुणा ज्यादा बापदादा भी बच्चों को याद करते, प्यार करते और इमर्ज करके टोली खिलाते। अभी भी सामने टोली रखी है। सभी बच्चे बाप के सामने हैं। केक काट रहे हैं और सभी बच्चे खा रहे हैं। जो भी बच्चों ने समाचार लिखा है, अपनी अवस्था व सर्विस का, बापदादा ने सुने। सर्विस का उमंग उत्साह बहुत अच्छा है। अभी थोड़ा बहुत जो माया के विघ्न देखते हो, वह भी नथिंग न्यू। माया सिर्फ पेपर लेने आती है। माया से घबराओ मत। खिलौना समझकर खेलो तो माया वार नहीं करेगी। लेकिन आराम से विदाई ले सो जायेगी। इसलिए ज्यादा नहीं सोचो यह क्या हुआ, हो गया फुलस्टाप लगाओ और आगे जाकर पदमगुणा जो कुछ रह गया वह भर लो।। बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। बापदादा साथ है, माया की चाल चलने वाली नहीं है इसलिए घबराओ नहीं। खुशी में नाचो, गाओ। अब तो अपना राज्य आया कि आया। हे स्वराज्य अधिकारी, विश्व का राज्य भाग्य आपका इंतजार कर रहा है। अच्छा-

सर्व को बहुत बहुत यादप्यार और निर्विघ्न भवका वरदान बापदादा दे रहे हैं। जो बच्चे स्थूल धन की कमी के कारण पहुँच नहीं सकते उन्हें भी बापदादा याद दे रहे हैं। भल धन कम है लेकिन हैं बादशाह। क्योंकि आजकल के राजाओं के पास जो नहीं है वह इन्हीं के पास अविनाशी और जन्म -जन्म के लिए जमा है। बापदादा ऐसे वर्तमान बेगमपुर के बादशाह और भविष्य विश्व के बादशाहों को बहुत बहुत यादप्यार देते हैं। ऐसे बच्चे दिल से यहाँ है, शरीर से वहाँ हैं। इसलिए बापदादा सम्मुख बच्चों को देख, सम्मुख यादप्यार देते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

प्रश्न :- परखने की शक्ति किस आधार पर प्राप्त हो सकती है?

उत्तर:- क्लीयर बुद्धि। ज्यादा बातें सोचने के बजाए एक बाप की याद में रहो, बाप से क्लीयर रहो तो परखने की शक्ति प्राप्त हो जायेगी और उसके आधार पर सहज ही हर बात का निर्णय कर लेंगे। जिस समय जैसी परिस्थिति, जैसा सम्पर्क सम्बन्ध वाले का मूड, उसी समय पर उस प्रमाण चलना, उसको फौरन परख लेना, यह भी बहुत बड़ी शक्ति है।

प्रश्न:- शमा पर फिदा होने वाले सच्चे परवाने की निशानी क्या होगी?

उत्तर :- शमा पर जो फिदा हो चुके वह स्वयं भी शमा के समान हो गये। समा गये तो समान हो गये। जैसे शमा सबको रास्ता बताती है ऐसे शमा समान रोशनी द्वारा रास्ता बताने वाले। रास्ते में भटकने वाले नहीं। यह करें वा वह करें, यह क्वेश्चन समाप्त। फुलस्टाप आ जाता तो याद और सेवा इसी में रहो, चक्र सब समाप्त। कोई भी चक्कर रहा हुआ होगा तो चक्र लगाने जायेंगे। कभी सम्बन्ध का चक्र, कभी अपने स्वभाव संस्कार का चक्र, अगर सब चक्र समाप्त हो गये, पूरा फिदा हो गये तो फिदा होना अर्थात् जल मरना। उन्हों को सिवाए शमा के और कुछ नहीं।


 


24-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दिलाराम बाप का दिलरुबा बच्चो से मिलन

सदा सर्व बच्चों की विशेषता देखने वाले, दया और प्यार के सागर शिव बाबा बोले

आज विशेष मिलन मनाने के लिए सदा उमंग उल्लास में रहने वाले बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। दिन रात यही संकल्प रहता है कि मिलन मनाना है। आकार रूप में भी मिलन मनाते फिर भी साकार रूप द्वारा मिलने की शुभ आशा सदा ही रहती है, सब दिन गिनती करते रहते कि आज हमको मिलना है, यह संकल्प हर बच्चे का बापदादा के पास पहुँचता रहता है और बापदादा भी यही रेसपान्ड देने के लिए हर बच्चे को याद करते रहते हैं। इसलिए आज मुरली चलाने नहीं लेकिन मिलने का संकल्प पूरा करने के लिये आये हैं। कोई-कोई बच्चे दिल ही दिल में मीठे-मीठे उल्हनें भी देते हैं कि हमें तो बोल द्वारा मुलाकात नहीं कराई। बापदादा भी हरेक बच्चे से दिल भर-भर के मिलने चाहते हैं। लेकिन समय और माध्यम को देखना पड़ता है। आकारी रूप से एक ही समय पर जितने चाहें जितना समय चाहें उतना समय और उतने सब मिल सकते हैं। उसके लिए टर्न आने की बात नहीं है। लेकिन जब साकार सृष्टि में साकार तन द्वारा मिलन होता है तो साकारी दुनिया और साकार शरीर के हिसाब को देखना पड़ता है। आकारी वतन मे कभी दिन मुकरर होता है क्या कि फलाना ग्रुप फलाने दिन मिलेगा वा एक घण्टे के बाद, आधा घण्टे के बाद मिलने के लिए आना। यह बन्धन आपके वा बाप के सूक्ष्मवतन में, सूक्ष्म शरीर में नहीं है। आकारी रूप से मिलन मनाने के अनुभवी हो ना। वहाँ तो भल सारा दिन बैठ जाओ, कोई उठाएगा नहीं। यहाँ तो कहेंगे अभी पीछे जाओ, अभी आगे जाओ। फिर भी दोनों मिलना मीठा है। आप डबल विदेशी बच्चे वा देश में रहने वाले बच्चे जो साकार रूप में ड्रामा अनुसार पालना वा प्रैक्टिकल स्वरूप नहीं देख पाए हैं, ऐसे बहुत समय से ढूँढने पर फिर से आकर मिले हुए बच्चों को ब्रह्मा बाप बहुत याद करते हैं। ब्रह्मा बाप ऐसे सिकीलधे बच्चों का विशेष गुणगान करते हैं कि आए भल पीछे हैं लेकिन आकार रूप द्वारा भी अनुभव साकार रूप का करते हैं। ऐसे अनुभव के आधार से बोलते हैं कि हमें ऐसा नहीं लगता कि साकार को हमने नहीं देखा। साकार में पालना ली है और अब भी ले रहे हैं। तो आकार रूप में साकार का अनुभव करना, यह बुद्धि की लगन का, स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप है। ऐसे लगता है, आकार में भी साकार को देख रहे हैं। ऐसे अनुभव करते हो ना! तो यह बच्चों के बुद्धि का चमत्कार का सबूत है। और दिलाराम बाप के समीप दिलाराम के दिलरूबा बच्चे हैं, यह सबूत है। दिलरूबा बच्चे हो ना! दिलरूबा के दिल में सदा क्या गीत बजता है? वाह बाबा, वाह मेरा बाबा!

बापदादा हर बच्चे को याद करते हैं। ऐसे नहीं समझना - इनको याद किया, मेरे को पता नहीं याद किया वा नहीं। इनसे ज्यादा प्यार है, मेरे से कम प्यार है। नहीं। आप सोचो 5 हजार वर्ष के बाद बापदादा को बिछड़े हुए बच्चे मिले हैं तो 5 हजार वर्ष का इकठ्ठा प्यार हर बच्चे को मिलेगा ना। तो 5 हजार वर्ष का प्यार 5-6 वर्ष में या 10-12 वर्ष में देना तो कितना स्टाक थोड़े समय में देंगे। ज्यादा से ज्यादा दें तब तो पूरा हो। इतना प्यार का स्टाक हरेक बच्चे के लिए बाप के पास है। प्यार कम हो नहीं सकता।

दूसरी बात कि बापदादा सदा बच्चों की विशेषता देखता। चाहे कोई समय बच्चे माया के प्रभाव कारण थोड़ा डगमग होने का खेल भी करते हैं। फिर भी बापदादा उस समय भी उसी नजर से देखते कि यह बच्चा, आया हुआ विघ्न लगन से पार कर फिर भी विशेष आत्मा बन विशेष कार्य करने वाला है। विघ्न में भी लगन रूप को ही देखते हैं। तो प्यार कम कैसे होगा! हरेक बच्चे से ज्यादा से ज्यादा सदा प्यार है और हर बच्चा सदा ही श्रेष्ठ है। समझा!

पार्टियों से

1. न्यूयार्क :- बाप का बनना अर्थात् विशेष आत्मा बनना। जब से बाप के बने उस घड़ी से विश्व के अन्दर सर्व से श्रेष्ठ गायन योग्य और पूज्यनीय आत्मा बने। अपनी मान्यता, अपना पूजन फिर से चैतन्य रूप में देख भी रहे हो और सुन भी रहे हो। ऐसे अनुभव करते हो? कहाँ भारत और कहाँ अमेरिका लेकिन बाप ने कोने से चुनकर एक ही बगीचे में लाया। अभी सब कौन हो? अल्लाह के बगीचे के रूहे गुलाब। यह तो नाम लेना पड़ता है फलाना देश, फलाना देश, वैसे एक ही बगीचे के, एक ही बाप की पालना में आने वाले, रूहे गुलाब हो। अभी ऐसे महसूस होता है ना, हम सब एक के हैं। और हम सब एक रास्ते पर, एक मंज़िल पर जाने वाले हैं। बाप भी हरेक को देख हर्षित होते हैं। सबकी शुभ भावना, सबके सेवा की अथक लगन ने, दृढ़ संकल्प ने प्रत्यक्ष सबूत दिया। चारों ओर के उमंग उत्साह के सहयोग ने रिजल्ट अच्छी दिखाई है। बाहर का आवाज़ भारत वालों को जगाएगा। इसलिए बापदादा मुबारक देते हैं।

2. बारबेडोज- बापदादा सदा बच्चों को नम्बरवन बनने का साधन बताते हैं। चाहे कितना भी कोई पीछे आए लेकिन आगे जाकर नम्बरवन ले सकता है। ऐसे तो नहीं सोचते हो - पता नहीं हमारा ऊँचा पार्ट होगा या नहीं, हम आगे कैसे जायेंगे? बापदादा के पास चाहे पीछे आने वाले हों, चाहे किस भी देश के हों, चाहे किस भी धर्म के हों, किस भी मान्यता के हो लेकिन सबके लिए एक ही फुल अधिकार है। बाप एक है तो हक भी एक जैसा है। सिर्फ हिम्मत और लगन की बात है। कभी भी हिम्मतहीन नहीं बनना। चाहे कोई कितना भी दिलशिकस्त बनाए, कहे - पता नहीं आपको क्या हुआ है, कहाँ चले गये हो लेकिन आप उनकी बातों में नहीं आना। पक्का जान पहचान कर सौदा किया है ना! हम बाप के, बाप हमारा! बाप हर बच्चे को अधिकारी आत्मा समझते हैं। जितना जो ले उसके लिए कोई रूकावट नहीं। अभी कोई सीट्स बुक नहीं हुई है। अभी सब सीट खाली हैं। सीटी बजी ही नहीं है। इसलिए हिम्मत रखते रहेंगे तो बाप भी पद्मगुणा मदद देते रहेंगे।

3. कैनाडा - सदा उड़ती कला में जाने का आधार क्या है? ‘डबल लाइट। तो सदा उड़ते पंछी हो ना। उड़ता पंछी कभी किसके बन्धन में नहीं आता। नीचे आयेंगे तो बन्धन में बंधेंगे। इसलिए सदा ऊपर उड़ते रहो। उड़ते पंछी अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त, जीवन मुक्त। कैनाडा में साइन्स भी उड़ने की कला सिखाती है ना! तो कैनाडा निवासी सदा ही उड़ते पंछी हैं।

4. सैनफ्रींसिसको - सभी अपने को विश्व के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर समझकर पार्ट बजाते हो? (कभी-कभी) बापदादा को बच्चों का कभी -कभी शब्द सुनकर आश्चर्य लगता है। जब सदा बाप का साथ है तो सदा उसकी ही याद होगी ना। बाप के सिवाए और कौन है जिसको याद करते हो? औरों को याद करते-करते क्या पाया और कहाँ पहुँचे? इसका भी अनुभव है। जब यह भी अनुभव कर चुके तो अब बाप के सिवाए और याद आ ही क्या सकता? सर्व सम्बन्ध एक बाप से अनुभव किया है या कोई रह गया है? जब एक द्वारा सर्व सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही नहीं। इसको ही कहा जाता है - एक बल एक भरोसा। अच्छा - सभी ने अच्छी मेहनत कर विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लाया, जिन्होंने भी सेवा में सहयोग दिया उस सहयोग का रिर्टन अनेक जन्मों तक सहयोग प्राप्त होता रहेगा। एक जन्म की मेहनत और अनेक जन्म मेहनत से छूट गये। सतयुग में मेहनत थोड़े ही करेंगे! बापदादा बच्चों की हिम्मत और निमित्त बनने का भाव देखकर खुश होते हैं। अगर निमित्त भाव से नहीं करते तो रिजल्ट भी नहीं निकलती। अच्छा।



27-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुग पर श्रृंगारा हुआ मधुर अलौकिक मेला

स्नेह का जादू लगाने वाले बच्चों प्रति बाप दादा बोले :-

आज बाप और बच्चे मिलन मेला मना रहे हैं। मेले में बहुत ही वैरायटी और सुन्दर-सुन्दर वस्तु बहुत सुन्दर सजावट और एक दो में मिलना होता है। बापदादा इस मधुर मेले में क्या देख रहे हैं, ऐसा अलौकिक शृंगारा हुआ मेला सिवाय संगमयुग के कोई मना नहीं सकता। हरेक, एक दो से विशेष शृंगारे हुए अमूल्य रतन हैं। अपने श्रृंगार को जानते हो ना। सभी के सिर पर कितना सुन्दर लाइट का ताज चमक रहा है। इसी लाइट के क्राउन के बीच आत्मा की निशानी कितनी चमकती हुई मणि मुआफिक चमक रही है। अपना ताजधारी स्वरूप देख रहे हो! हरेक दिव्य गुणों के शृंगार से कितने सुन्दर सजी-सजाई मूर्त हो। ऐसा सुन्दर शृंगार, जिससे विश्व की सर्व आत्मायें आपके तरफ न चाहते हुए भी स्वत: ही आकर्षित होती हैं। ऐसा श्रेष्ठ अविनाशी शृंगार किया है? जो इस समय के शृंगार का यादगार आपके जड़ चित्रों को भी सदा ही भक्त लोग सुन्दर से सुन्दर सजाते रहेंगे। अभी का शृंगार, आधा कल्प चैतन्य देव-आत्मा के रूप में शृंगारे जायेंगे और आधा कल्प जड़ चित्रों के रूप में शृंगारे जायेंगे। ऐसा अविनाशी शृंगार बापदादा द्वारा सर्व बच्चों का अभी हो गया है! बापदादा आज हर बच्चे के तीनों ही स्वरूप वर्तमान और अपने राज्य का देव आत्मा का और फिर भक्ति मार्ग में यादगार चित्र, तीनों ही स्वरूप हरेक बच्चे के देख हर्षित हो रहे हैं। आप सब भी अपने तीनों रूपों को जान गये हो ना! तीनों ही अपने रूप नालेज के नेत्र द्वारा देखे हैं ना!

आज तो बापदादा मिलने का उल्हाना पूरा करने आये हैं। कमाल तो बच्चों की है जो निर्बन्धन को भी बन्धन में बाँध देते हैं। बापदादा को भी हिसाब सिखा देते कि इस हिसाब से मिलो। तो जादूगर कौन हुए - बच्चे वा बाप? ऐसा स्नेह का जादू बच्चे बाप को लगाते हैं जो बाप को सिवाए बच्चों के और कुछ सूझता ही नहीं। निरन्तर बच्चों को याद करते हैं। तुम सब खाते हो तो भी एक का आह्वान करते हो। तो कितने बच्चों के साथ खाना पड़े। कितने बारी तो भोजन पर ही बुलाते हो। खाते हैं, चलते हैं, चलते हुए भी हाथ में हाथ देकर चलते, सोते भी साथ में हैं। तो अब इतने अनेक बच्चों साथ खाते,सोते,चलते तो और क्या फुर्सत होगी! कोई कर्म करते तो भी यही कहते कि काम आपका है, निमित्त हम हैं। करो कराओ आप, निमित्त हाथ हम चलाते हैं। तो वह भी करना पड़े ना। और फिर जिस समय थोड़ा बहुत तूफान आता तो भी कहते - आप जानो। तूफानों को मिटाने का कार्य भी बाप को देते। कर्म का बोझ भी बाप को दे देते। साथ भी सदा रखते, तो बड़े जादूगर कौन हुए? भुजाओ के सहयोग बिना तो कुछ हो नहीं सकता। इसलिए ही तो माला जपते हैं ना। अच्छा –

आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों ने भी बहुत अच्छा त्याग किया है और हर बार त्याग करते हैं। सदा ही लास्ट सो फास्ट जाते और फर्स्ट आते हैं। जितना ही वह त्याग करते हैं, औरों को आगे करते हैं उतना ही जितने भी मिलते रहते उन सब का थोड़ा-थोड़ा शेयर आस्ट्रेलिया वालों को भी मिल जाता है। तो त्याग किया या भाग्य लिया! और फिर साथ-साथ यू.के. का भी बड़ा ग्रुप है। यह दोंनों ही पहले-पहले के निमित्त बने हुए सेन्टर्स हैं और विशाल सेन्टर्स हैं। एक से अनेक स्थानों पर बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चे हैं। इसलिए दोनों ही (आस्ट्रेलिया और यू.के.) बड़ों को, औरों को आगे तो रखना पड़ेगा ना। दूसरों की खुशी में आप सब खुश हो ना। जहाँ तक देखा गया है दोनों ही स्थान के सेवाधारी, सहयोगी, स्नेही बच्चे सब बात में फराखदिल हैं। इस बात में भी सहयोगी बनने में महादानी हैं। बापदादा को सब बच्चे याद है। सबसे मिल लेंगे, बापदादा को तो खुशी होती है, कितना दूर-दूर से बच्चे मिलने के उमंग से अपने स्वीट होम में पहुँच जाते हैं। उड़ते-उड़ते पहुँच जाते हो। भले स्थूल में किसी भी देश के हैं लेकिन हैं तो सब एक देशी। सब ही एक हैं। एक बाप, एक देश, एक मत और एक रस स्थिति में स्थित रहने वाले। यह तो निमित्त मात्र देश का नाम लेकर थोड़ा समय मिलने के लिए कहा जाता है। हो सब एक देशी। साकार के हिसाब में भी इस समय तो सब मधुबन निवासी हैं। मधुबन निवासी अपने को समझना अच्छा लगता है ना।

नये स्थान पर सेवा की सफलता का आधार :- जब भी किसी नये स्थान पर सेवा शुरू करते हो तो एक ही समय पर सर्व प्रकार की सेवा करो। मंसा में शुभ भावना, वाणी में बाप से सम्बन्ध जुड़वाने और शुभ कामना के श्रेष्ठ बोल और सम्बन्ध सम्पर्क में आने से स्नेह और शान्ति के स्वरूप से आकर्षित करो। ऐसे सर्व प्रकार की सेवा से सफलता को पायेंगे। सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन एक ही समय साथ-साथ सेवा हो। ऐसा प्लैन बनाओ। क्योंकि किसी भी सर्विस करने के लिए विशेष स्वयं को स्टेज पर स्थित करना पड़ता है। सेवा में रिजल्ट कुछ भी हो लेकिन सेवा के हर कदम में कल्याण भरा हुआ है, एक भी यहाँ तक पहुँच जाए यह भी सफलता है। इसी निश्चय के आधार पर सेवा करते चलो। सफलता तो समाई हुई है ही। अनेक आत्माओं के भाग्य की लकीर खींचने के निमित्त हैं। ऐसी विशेष आत्मा समझकर सेवा करते चलो।

अच्छा - ओम् शान्ति।



01-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


विश्व के हर स्थान पर आध्यात्मिक लाईट और ज्ञान जल पहुँचाओ

सदा एकरस स्थिति में स्थित करने वाले अव्यक्त बापदादा बोले:-

आज बापदादा वतन में रूह-रूहान कर रहे थे। साथ-साथ बच्चों की रिमझिम भी देख रहे थे। वर्तमान समय मधुबन वरदान भूमि पर कैसे बच्चों की रिमझिम लगी हुई है वह देख-देख हर्षा रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मधुबन पावर हाउस से चारों ओर कितने कनेक्शन्स गये हुए हैं। जैसे स्थूल पावर हाउस से अनेक तरफ लाइट के कनेक्शन जाते हैं। ऐसे इस पावर हाउस से कितने तरफ कनेक्शन गये हैं। विश्व के कितने कोनों मे लाइट के कनेक्शन गये हैं और कितने कोनों में अभी कनेक्शन नहीं हुआ है। जैसे आजकल की गवर्मेन्ट भी यही कोशिश करती है कि अपने राज्य में सभी कोनों में सभी गाँवों में चारों तरफ लाइट और पानी का प्रबन्ध जरूर हो। तो पाण्डव गवर्मेन्ट क्या कर रही है! ज्ञान गंगायें चारों ओर जा रही हैं। पावर हाउस से चारों ओर लाइट का कनेक्शन जा रहा है। जैसे ऊपर से किसी भी शहर को या गाँव को देखो तो कहाँ-कहाँ रोशनी है। नज़दीक में रोशनी है या दूर-दूर है, वह दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। बापदादा भी वतन से दृश्य देख रहे थे कि कितने तरफ लाइट है और कितने तरफ अभी तक लाइट नहीं पहुँची है। रिजल्ट को तो आप लोग भी जानते हो कि देश विदेश में अभी तक कई स्थान रहे हुए हैं जहाँ अभी कनेक्शन्स देने हैं। जैसे लाइट और पानी बिगर उस स्थान की वैल्यु नहीं होती। ऐसे जहाँ आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल की पूर्ति नहीं हुई है वहाँ की चैतन्य आत्मायें किस स्थिति में है! अंधकार में प्यास में भटक रहीं हैं, तड़प रहीं हैं। ऐसे आत्माओं की वैल्यु क्या बताते हो? चित्र बनाते हो ना कौड़ी तुल्य और हीरे तुल्य! लाइट और ज्ञान जल मिलने से कौड़ी से हीरा बन जाते हैं। तो वैल्यु बढ़ जाती है ना। बापदादा देख रहे थे कि आये हुए देश-विदेश से बच्चे, पावर हाउस से विशेष पावर लेकर अपने अपने स्थान पर जा रहे हैं।

एक तरफ तो बच्चों के स्नेह में बापदादा समझते हैं कि मधुबन अर्थात् बापदादा के घर का शृंगार जा रहे हैं। जब भी बच्चे मधुबन में आते हैं तो मधुबन की रौनक या स्वीट होम की झलक क्या हो जाती है! बच्चे भी खुश होते हैं और घर भी सजा हुआ लगता है। मधुबन वाले भी ऐसे महसूस करते हैं कि मधुबन की रौनक बढ़ाने वाले हमारे स्नेही साथी आये हैं। जैसे आप लोग वहाँ याद करते हो, चलते, फिरते, उठते-बैठते मधुबन की स्मृति सदा ताजी रहती है वैसे बापदादा और मधुबन निवासी भी आप सबको याद करते हैं। स्नेह के साथ-साथ सेवा भी विशेष सब्जेक्ट है - इसलिए स्नेह से तो समझते हैं यहाँ ही बैठ जाएँ। लेकिन सेवा के हिसाब से चारों ओर जाना ही पड़े। हाँ, ऐसा भी सयम आयेगा जो जाना नहीं पड़ेगा लेकिन एक ही स्थान पर बैठे-बैठे चारों ओर के परवाने स्वत: शमा पर आयेंगे। यह तो छोटा सा सैम्पुल देखा कि आबू हमारा ही है। अभी तो किराये पर मकान लेने पड़े ना! फिर भी थोड़ी सी रौनक देखी। ऐसा समय आयेगा जो चारों ओर फरिश्ते नजर आयेंगे। अभी मुख द्वारा सेवा का पार्ट चल रहा है और अभी कुछ रहा हुआ है इसलिए दूर-दूर जाना पड़ता है। अभी श्रेष्ठ संकल्प की शक्तिशाली सेवा जो पहले भी सुनाई है, अन्त में वही सेवा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देगा। हमें कोई बुला रहा है कोई दिव्य बुद्धि द्वारा, शुभ संकल्प का बुलावा हो रहा है, ऐसे अनुभव करेंगे। कोई दिव्य दृष्टि द्वारा बाप और स्थान को देखेंगे। दोनों प्रकार के अनुभवों द्वारा बहुत तीव्रगति से अपने श्रेष्ठ ठिकाने पर पहुँच जायेंगे। इस वर्ष क्या करेंगे?

प्रयत्न अच्छा किया है। इस वर्ष रहे हुए स्थानों को लाइट तो देंगे ही। लेकिन हर स्थान की विशेषता इस वर्ष यही दिखाओ कि हर सेवा केन्द्र उसमें भी विशेष बड़े-बड़े केन्द्र जो हैं उसमें यह लक्ष्य रखो, जैसे कभी धर्म सम्मेलन करते हो तो सभी धर्म वाले इकट्ठे करते हो या राजनीतिक को बुलाते हो, साइंस वालों को विशेष बुलाते हो, अलग-अलग प्रकार के स्नेह मिलन करते हो तो इस वर्ष हर स्थान पर सर्व प्रकार के विशेष आक्यूपेशन वाले, सम्बन्ध में आने वाले तैयार करो। तो जैसे अभी ऐसे कहते हैं कि यहाँ काले गोरे सब प्रकार की वैरायटी है। एक स्थान पर सर्व रंग, देश, धर्म वाले हैं, ऐसे यह कहें कि यहाँ सर्व आक्यूपेशन वाले हैं। विशेष आत्मायें एक ही गुलदस्ते में वैरायटी फूलों के मिसल दिखाई दें। हर सेन्टर पर हर आक्यूपेशन वाली विशेष आत्माओं का संगठन हो। जो दुनिया में यह आवाज़ बुलन्द हो कि यह एक बाप एक ही सत्य ज्ञान सर्व आक्यूपेशन वालों के लिए कितना सहज और सरल है! अर्थात् हर सेवा स्थान की स्टेज पर सर्व आक्यूपेशन वाले इकट्ठे दिखाई दें। कोई भी आक्यूपेशन वाला रह न जाएँ। गरीब से लेकर साहूकार तक, गाँव वालों से लेकर बड़े शहर वाले तक, मजदूर से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति तक, सर्व प्रकार की विशेष आत्माओं की अलौकिक रौनक दिखाई दे। जिससे कोई भी यह नहीं कह सके कि क्या यह ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ इन्हीं के लिए है? सर्व का बाप सर्व के लिए है - बच्चे से लेकर परदादे तक, सभी ऐसा अनुभव करें कि विशेष हमारे लिए यह ज्ञान है जैसे आप सभी ब्राह्मणों के मन से, दिल से एक ही आवाज़ निकलती है, कि हमारा बाबा है। ऐसे विश्व के कोने-कोने से, विश्व के हर आक्यूपेशन वाली आत्मा दिल से कहे कि हमारे लिए बाप आये हैं, हमारे लिए ही यह ज्ञान सहारा है। ज्ञान दाता और ज्ञान दोनों के लिए सब तरफ से सब प्रकार की आत्माओं से यह ही आवाज़ निकले। वैसे सर्व आक्यूपेशन वालों की सेवा करते भी रहते हो लेकिन हर स्थान पर सब वैरायटी हो। और फिर ऐसे वैरायटी आक्यूपेशन वालों का गुलदस्ता बापदादा के पास ले आओ। तो हर सेवाकेन्द्र विश्व की सर्व आत्माओं के संगठन का एक विशेष चैतन्य म्यूजियम हो जायेगा। समझा! जो भी सम्पर्क में हैं, उन्हीं को सम्बन्ध में लाते हुए सेवा की स्टेज पर लाओ। समय प्रति-समय जो भी वी.आई.पीज. वा पेपर्स वाले आये हैं उन्हीं को सेवा की स्टेज पर लाते रहो तो मुख से बोलने से भी वह मुख का बोल उन आत्माओं के लिए ईश्वरीय बन्धन में बन्धने का साधन बन जाता है। एक बार बोला कि बहुत अच्छा है और फिर सम्बन्ध से दूर हो गये, तो भूल जाते हैं। लेकिन बार-बार बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहते रहें, अनेकों के सामने, तो वह बोल भी उन्हीं को अच्छा बनने का उत्साह बढ़ाता है। और साथ-साथ सूक्ष्म नियम भी है कि जितनों को अनेक बोल द्वारा परिचय मिलता है अर्थात् उनके नाम द्वारा, बोल द्वारा जितनों पर प्रभाव पड़ता है उन आत्माओं का शेयर उनको मिल जाता है। अर्थात् उन्हों के खाते में पुण्य की पूंजी जमा हो जाती है। और वही पुण्य की पूंजी अर्थात् पुण्य का श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बनने के लिए उन्हीं को खींचता रहेगा। इसलिए जो अभी डायरेक्ट बाप की भूमि से कुछ न कुछ ले गये हैं चाहे थोड़ा, चाहे बहुत लेकिन उन्हीं से दान कराओ। अर्थात् सेवा कराओ। तो जैसे स्थूल धन का फल सकामी अल्पकाल का राज्य मिलता है वैसे इस ज्ञान धन वा अनुभव के धन दान करने से भी नये राज्य में आने का पात्र बना देगा। बहुत अच्छे प्रभावित हुए, अब उन प्रभावित हुई आत्माओं द्वारा सेवा कराए उन आत्माओं को भी सेवा के बल द्वारा आगे बढ़ाओ और अनेकों के प्रति निमित्त बनाओ। समझा क्या करना है! सर्विस वृद्धि को तो पा ही रही है और पाती रहेगी लेकिन अब क्लास में स्टूडेन्ट्स की वैरायटी बनाओ

अभी तो विदेश वालों का मिलने का साकार रूप का इस वर्ष के लिए सीजन का पार्ट पूरा हो रहा है। लेकिन देश वालों का तो आह्वान हो रहा है सुनाया ना साकार वतन में तो समय का नियम बनाना पड़ता है और आकारी वतन में इस बन्धन से मुक्त हैं अच्छा –

चारों ओर के उमंग उत्साह वाले सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप के साथसाथ अनुभव करने वाले समीप आत्मायें बच्चों को, सदा एक ही याद में एकरस रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।



21-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


गीता पाठशाला चलने वाले भाई-बहेनो के सम्मुख अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

आज परम आत्मा अपने महान आत्माओं से मिलने आये हैं। बापदादा सभी बच्चों को महान आत्मायें देखते हैं। दुनिया वाले जिन आत्माओं को महात्मा कहते ऐसे महात्मायें भी आप महान आत्माओं के आगे क्या दिखाई देंगे! सबसे बड़े से बड़ी महानता जिससे महान बने हो, वह जानते हो?

जिन आत्माओं को, विशेष माताओं को हर बात में अयोग्य बना दिया है ऐसी अयोग्य आत्माओं को योग्य अर्थात् बाप के भी अधिकारी आत्मायें बना दिया। जिनको चरणों की जूती समझा है, बाप ने नयनों का नूर बना दिया। जैसे कहावत है - नूर नहीं तो जहान नहीं। ऐसे ही बापदादा भी दुनिया को दिखा रहे हैं - भारत माता शक्ति अवतार नहीं तो भारत का उद्धार नहीं। ऐसे अयोग्य आत्माओं से योग्य आत्मा बनाया। तो महान आत्मायें बन गये ना! जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वह महान हैं। पाण्डवों ने भी जाना है और अपना बनाया है वा सिर्फ जाना है? अपना बनाने वाले हो ना! जानने की लिस्ट में तो सभी हैं। अपना बना लेना इसमें नम्बरवार बन जाते हैं।

अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना और अधिकार अनुभव होना अर्थात् सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त होना। अधीनता अनेक प्रकार की है। एक है स्व की स्व प्रति अधीनता । दूसरी है सर्व के सम्बन्ध में आने की। चाहे ज्ञानी आत्मायें, चाहे अज्ञानी आत्मायें, दोनों के सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा अधीनता । तीसरी है प्रकृति और परिस्थितियों द्वारा प्राप्त हुई अधीनता। तीनों में से किसी भी अधीनता के वश हैं तो सिद्ध है सर्व अधिकारी नहीं है।

अभी अपने को देखो कि अपना बनाना अर्थात् अधिकारी बनने का अनुभव सदा और सर्व में होता है। वा कभी कभी और किस बात में होता है और किसमें नहीं होता है। बापदादा बच्चों के श्रेष्ठ तकदीर को देख हर्षित भी होते हैं। क्योंकि दुनिया की अनेक प्रकार की आग से बच गये। आज का मानव अनेक प्रकार की आग में जल रहा है। और आप बच्चे शीतल सागर के कण्ठे पर बैठे हो। जहाँ सागर की शीतल लहरों में, अतीन्द्रिय सुख की, शान्ति की प्राप्ति में समाये हुए हो। एटामिक बाम्बस या अनेक प्रकार के बाम्बस की अग्नि ज्वाला जिससे लोग इतना घबरा रहे हैं, वह तो सिर्फ सेकण्डों की, मिनटों की बात है। लेकिन आजकल के अनेक प्रकार के दुख, चिन्तायें, समस्यायें यह भिन्न-भिन्न प्रकार की चोट जो आत्माओं को लगती है यह अग्नि जीते हुए जलाने का अनुभव कराती है। न जिन्दा हैं, न मरे हुए हैं। न छोड़ सकते, न बना सकते। ऐसे जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये हो - इसलिए सदा सर्व के प्रति रहम आता है ना। तब तो घर-घर में सेवाकेन्द्र बनाया है। बहुत अच्छा सेवा का लक्ष्य रखा है। अब तो गाँव गाँव या मोहल्ले में हैं, लेकिन अब गली गली में ज्ञान-स्थानहो। भक्ति में देव-स्थान बनाते हैं लेकिन यहाँ घर-घर में ब्राह्मण आत्मा हो। जैसे घर घर में और कुछ नहीं तो देवताओं के चित्र जरूर होंगे। ऐसे घर घर में चैतन्य ब्राह्मण आत्मा हो। गली गली में ज्ञान-स्थान हो तब हर गली में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। अभी तो सेवा बहुत पड़ी है। फिर भी बच्चों ने हिम्मत रख जितनी भी सेवा की है, बापदादा हिम्मतवान बच्चों को मुबारक देते हैं। और सदा मदद लेते हुए आगे बढ़ने की शुभ आशीर्वाद भी देते हैं। और फिर जब घर- घर में दीपक जगाकर दीपावली मनाकर आयेंगे तो इनाम भी देंगे।

बापदादा को यह देख खुशी है कि महान आत्माओं को भी चैलेन्ज करने वाले पवित्र प्रवृत्ति का सबूत दिखाने वाले, हद के घर को बाप की सेवा का स्थान बनाने वाले, सपूत बच्चों का प्रत्यक्ष पार्ट बजा रहे हैं। इसलिए बापदादा ऐसे सेवाधारी बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं। इसमें भी संख्या ज्यादा माताओं की है। अगर पाण्डव किसी भी बात में आगे जाते हैं तो शक्तियों को सदा खुशी होती है। बापदादा भी पाण्डवों को आगे करते हैं। पाण्डव स्वयं भी शक्तियों को आगे रखना जरूरी समझते हैं। पहली कोशिश क्या करते हो? मुरली कौन सुनाव, इसमें भी ब्रह्मा बाप को फालो करते हो। शिव बाप ने ब्रह्मा माँ को आगे बढ़ाया और ब्रह्मा माँ ने सरस्वती माँ को आगे बढाया। तो फालो फादर मदर हो गया ना। सदैव यह स्मृति में रखो कि आगे बढ़ाने में आगे बढ़ता समाया हुआ है। जबसे बापदादाने माताओं के ऊपर नजर डाली तब से दुनिया वालों ने भीलेडीज फर्स्टका नारा जरूर लगाया। नारा तो लगाते हैं ना? भारत की राजनीति में भी देखो तो सभी पुरूष भी नारी के लिए महिमा तो गाते हैं ना। ऐसे तो पाण्डव भी किसी हिसाब से नारियाँ ही हो। आत्मा नारी है और परमात्मा पुरूष है। तो क्या हुआ। आत्मा कहती है, आत्मा कहता है - ऐसे नहीं कहा जाता। कुछ भी बन जाओ लेकिन नारी तो हो। परमात्मा के आगे तो आत्मा नारी है। आशिक नहीं हो? सर्व सम्बन्ध एक बाप से निभाने वाले हो। यह तो वायदा है ना। यह तो बापदादा बच्चों से रूह-रूहान कर रहे हैं। सभी सिकीलधे बच्चे सदाएक बाप दूसरा न कोई’ - इसी अनुभव में सदा रहने वाले हैं। ऐसे बच्चे ही बाप समान श्रेष्ठ आत्मायें बनते हैं। अच्छा –

ऐसे सदा सेवा के उमंग उत्साह में रहने वाले, सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ कल्याण की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ हिम्मत द्वारा बाप दादा के मदद के पात्र आत्मायें - ऐसे सेवास्थान के निमित्त बने हुए महान आत्माओं को परम आत्मा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

बापदादा ने बच्चों की विशेषता के गुण तो सुना ही दिये। जो बापदादा के समान सेवाधारी हैं उन बच्चों को बापदादा सदा कहाँ रखते हैं? (नयनों में) नयन सारे शरीर में सूक्ष्म हैं ओर नयनों में भी जो नूर है वह कितना सूक्ष्म है, बिन्दी है ना। तो बाप के नयनों में समाने वाले अर्थात् अति सूक्ष्म। अति न्यारे और बाप के प्यारे। ऐसे ही अनुभव करते हो ना! बहुत अच्छा चांस ड्रामा अनुसार मिला है। क्यों अच्छा कहते हैं? क्योंकि जितना बिजी रहेंगे उतना ही मायाजीत हो जायेंगे। बिजी रहेने का अच्छा साधन मिला है ना। सेवा बिजी रहने का साधन है। चाहे किसी भी समय माया का विघ्न आया हुआ है लेकिन जब सेवा वाले सामने आयेंगे तो अपने को ठीक करके उनकी सेवा करेंगे। क्या भी होगा, तैयार होकर के ही मुरली सुनायेंगे ना। और सुनाते सुनाते स्वयं को भी सुना लेंगे। दूसरों की सेवा करने से स्वयं को भी मदद मिल जाती है। इसलिए बहुत बहुत श्रेष्ठ साधन मिला हुआ है। एक होता है अपना पुरूषार्थ करना, एक होता है दूसरे के सहयोग का साधन। तो डबल हो गया ना! प्रवृत्ति सम्भालते सेवा की जिम्मेवारी सम्भाल रहे हो यह भी डबल लाभ हो गया। यह तो रास्ते चलते खुदा दोस्त द्वारा बादशाही मिल गई। डबल प्राप्ति, डबल जिम्मेवारी, लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट डबल लाइट समझने से कभी लौकिक जिम्मेवारी भी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो ना। ट्रस्टी को क्या थकावट। अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। पाण्डव को कभी लौकिक व्यवहार, लौकिक वायुमण्डल में बोझ तो नहीं लगता। बिल्कुल न्यारे और प्यारे! बालक सो मालिक,ऐसा नशा रहता है? मालिकपन का नशा बेहद का है। बेहद का नशा बेहद चलेगा और हद का नशा हद तक चलेगा। सदा इस बेहद के नशे को स्मृति में लाओ कि क्या-क्या बाप ने दिया है, उस दिये हुए खज़ाने को सामने लाते हुए फिर अपने को देखो कि सर्व खज़ानों से सम्पन्न हुए हैं, अगर नहीं तो कौन सा खज़ाना और क्यों नहीं धारण हुआ है, फिर उसी प्रमाण से देखो और धारण करो। समय कौन सा है? बाप भी श्रेष्ठ, प्राप्ति भी श्रेष्ठ और स्वयं भी। जहाँ श्रेष्ठता है वहाँ जरूर प्राप्ति है ही। साधारणता है तो प्राप्ति भी साधारण। अच्छा –



27-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


कुमारियों की भठ्ठी में प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

आज बापदादा सब बच्चो से कहाँ मिलन मना रहे हैं? किस स्थान पर बैठे हो? सागर और नदियों के मिलन स्थान पर मिलन मना रहे हैं। सागर का कण्ठा पसन्द आता है ना! सिर्फ सागर नहीं लेकिन अनेक नदियों का सागर के साथ मिलन स्थान कितना श्रेष्ठ होगा। सागर को भी नदियों का मिलन कितना प्यारा लगता है। ऐसा मिलन मेला फिर किसी युग में होगा? इस युग का मिलनसारा कल्प भिन्न-भिन्न रूप और रीति से गाया मनाया जायेगा। ऐसा मेला मनाने के लिए आये हो ना, यहाँ वहाँ से इसलिए भागे हो ना! सागर में समाए, समान मास्टर ज्ञान सागर बनने का अनुभव है ना! जब सागर में समा जाते हो तो नदी से मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो अर्थात् बाप समान बेहद के स्वरूप में स्थित हो जाते हो। ऐसा बेहद का अनुभव करते हो? बेहद की वृत्ति अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति - मास्टर विश्व कल्याणकारी। सिर्फ अपने वा अपने हद के निमित्त बनी हुई आत्माओं के कल्याण अर्थ नहीं, लेकिन सर्व के कल्याण की वृति हो। मैं तो ब्रह्माकुमारी बन गई, पवित्र आत्मा बन गई - अपनी उन्नति में, अपनी प्राप्ति में, अपने प्रति सन्तुष्टता में राजी होकर चल रहे हैं, यह बाप समान बेहद की वृत्ति रखने की स्थिति नहीं है। हद की वृत्ति अर्थात् सिर्फ स्वयं प्रति सन्तुष्टता की वृत्ति। क्या यहाँ तक ही सिर्फ रहना है वा आगे बढ़ना है? कई बच्चे बेहद की सेवा का समय, बेहद की प्राप्ति का समय, बाप समान बनने का गोल्डन चान्स वा गोल्डन मैडल लेने के बजाए, मैं ठीक चल रही हूँ, कोई गलती नहीं करती, लौकिक, अलौकिक जीवन दोनों अच्छा निभा रही हूँ, कोई खिट-खिट नहीं, कोई संगठन के संस्कारों का टक्कर नहीं, इसी सिल्वर मैडल में ही खुश हो जाते हैं। बाप समान बेहद की वृत्ति तो नहीं रही ना! बाप विश्व-कल्याणकारी और बच्चे - स्व कल्याणकारी, ऐसी जोड़ी अच्छी लगेगी? सुनने में अच्छी नहीं लग रही है। और अब बनकर चलते हो तब अच्छी लगती है? सर्व खज़ानों के मालिक के बालक खज़ानों के महादानी नहीं बने तो उसको क्या कहा जायेगा? किसी से भी पूछो तो बाप के सर्व खज़ानों के वर्से के अधिकारी हो? तो सब हाँ कहेंगे ना। खज़ाना किसलिए मिला है? सिर्फ स्वयं खाओ पियो और अपनी मौज में रहो, इसलिए मिला है? बाँटो और बढ़ाओ यही डायरेक्शन मिले हैं ना। तो कैसे बाँटेंगे? गीता पाठशाला खोल ली वा जब चांस मिला तब बाँट लिया इसमें ही सन्तुष्ट हो? बेहद के बाप से बेहद की प्राप्ति और बेहद की सेवा के उमंग उत्साह में रहना है। कुमारी जीवन संगमयुग में सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन है। तो ऐसी वरदानी जीवन ड्रामा अनुसार आप विशेष आत्माओं को स्वत: प्राप्त है। ऐसी वरदानी जीवन सर्व को वरदान, महादान देने में लगा रहे हो? स्वत: प्राप्त हुए वरदान की लकीर श्रेष्ठ कर्म की कलम द्वारा जितनी बड़ी खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो। यह भी इस समय को वरदान है। समय भी वरदानी, कुमारी जीवन भी वरदानी, बाप भी वरदाता। कार्य भी वरदान देने का है तो इसका पूरा पूरा लाभ लिया है? 21 जन्मों तक लम्बी लकीर खींचने का चांस, 21 पीढ़ी सदा सम्पन्न बनने का चान्स जो मिला है वह ले लिया? कुमारी जीवन में जितना चाहो कर सकते हो। स्वतंत्र आत्मा का भाग्य प्राप्त है। अपने से पूछो - स्वतन्त्र हो या परतंत्र हो? परतंत्रता के बन्धन अपने ही मन के व्यर्थ कमज़ोर संकल्पों की जाल है। उसी रची हुई जाल में स्वयं को परतंत्र तो नहीं बना रहे हो? क्वेश्चन की जाल है। जो जाल रचते हो उसका चित्र निकालो तो क्वेश्चन का ही रूप होगा। क्वेश्चन क्या उठते हैं, अनुभवी हो ना! क्या होगा, कैसे होगा, ऐसे तो नहीं होगा, यह है जाल। पहले भी सुनाया था - संगमयुगी ब्राह्मणों का एक ही सदा समर्थ संकल्प है कि - ‘‘जो होगा वह कल्याणकारी होगा। जो होगा श्रेष्ठ होगा, अच्छे ते अच्छा होगा।’’ यह संकल्प है जाल को समाप्त करने का। जबकि बुरे दिन, अकल्याण के दिन समाप्त हो गये। संगमयुग का हर दिन बड़ा दिन है, बुरा दिन नहीं। हर दिन आपका उत्सव है ना। हर दिन मनाने का है। इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ संकल्पों की जाल को समाप्त करो।

कुमारियाँ तो बापदादा की, ब्राह्मण कुल की शान हैं। फर्स्ट चान्स कुमारियों को मिलता है। पाण्डव हँसते हैं कि छोटी छोटी कुमारियाँ टीचर बन जातीं, दादी बन जातीं, दीदी बन जातीं। तो इतना चान्स मिलता है। फिर भी चान्स न लें तो क्या कहेंगें। क्या बोलती हो, पता है? सहयोगी रहेंगे लेकिन समर्पण नहीं होंगे। जो समर्पण नहीं होंगे वह समान कैसे बनेंगे! बाप ने क्या किया? सब कुछ समर्पित किया ना! वा सिर्फ सहयोगी बना? ब्रह्मा बाप ने क्या किया? समर्पण किया वा सिर्फ सहयोगी रहा? जगत अम्बा ने क्या किया? वह भी कन्या ही रही ना। तो फालो फादर मदर करना है वा एक दो में सिस्टर्स को फालो करते हो? ‘‘इसका जीवन, जीवन देखकर मुझे भी यही अच्छा लगता है।’’ तो फालो सिस्टर्स हो गया ना! अब क्या करेंगी? डर सिर्फ अपनी कमज़ोरी से होता है। और किसी से नहीं होता। अब क्या लेंगी? गोल्डन मैडल लेंगी वा सिलवर ही ठीक है। कमज़ोरियों को नहीं देखो। वह देखेंगी तो डरेंगी। न स्वयं कमज़ोर बनो न दूसरों की कमज़ोरियों को देखो! समझा, क्या करना है!

बापदादा को तो कुमारियाँ देख करके खुशी होती है। लोगों के पास कुमारी आती है तो दुख होता है। और बापदादा के पास जितनी कुमारियाँ आवें उतना ज्यादा से ज्यादा खुशी मनाते हैं। क्योंकि बापदादा जानते हैं कि हर कुमारी विश्वकल्याणकारी, महादानी, वरदानी है। तो समझा, कुमारी जीवन का महत्व कितना है! आज विशेष कुमारियों का दिन है ना। भारत में अष्टमी पर कुमारियों को खास बुलाते हैं। तो बापदादा भी अष्टमी मना रहे हैं। हर कन्या अष्ट शक्ति स्वरूप है। अच्छा –

ऐसे सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन अधिकारी , गोल्डन चांस अधिकारी, 21 पीढ़ी की श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींचने के अधिकारी , स्वतंत्र आत्मा के वरदान अधिकारी, ऐसे शिव वंशी ब्रह्माकुमारियों, श्रेष्ठ कुमारियों को विशेष रूप में और साथ-साथ सर्व मिलन मनाने वाले पद्मापदम भाग्यवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

कर्मभोग पर कर्मयोग की विजय

कर्मभोग पर विजय पाने वाले विजयी रत्न हो ना! वे कर्मभोग भोगने वाले होते और आप कर्मयोगी हो। भोगने वाले नहीं हो लेकिन सदा के लिए भस्म करने वाले हो। ऐसा भस्म करते हो जो 21 जन्म कर्मभोग का नाम निशान न रहे। आयेगा तब तो भस्म करेंगे? आयेगा जरूर लेकिन आता है भस्म होने के लिए, न कि भोगना के लिए। विदाई लेने के लिए आता है। क्योंकि कर्मभोग को भी पता है कि हम अभी ही आ सकते हैं फिर नहीं आ सकते। इसलिए थोड़ा थोड़ा बीच में चाँस लेता है। जब देखते यहाँ तो दाल गलने वाली नहीं है तो वापस चला जाता।

दादी दीदी को देखते हुए

इतने हैण्डस देखकर खुशी हो रही है ना? जो स्वप्न देख रही थी वह साकार हो गया ना! इतने हैण्डस हों, इतने सेन्टर बढें यह स्वप्न देख रही थी ना! क्योंकि हैण्ड्स की दादी दीदी को सबसे ज्यादा आश रहती है। तो इनते सब बने बनाये हैण्ड्स देखकर खुशी होगी ना। भारत की कुमारियों में और विदेश की कुमारियों में भी अन्तर है, इन्हें कमाई की क्या आवश्यकता है। (डिग्री लेनी है) जब तक सेवा में प्रैक्टिस नहीं की है तब तक डिग्री की भी वैल्यु नहीं है। डिग्री की वैल्यु सेवा से है। पढ़ाई पढ़कर कार्य में नहीं लगाया, पढ़ाई के बाद भी गृहस्थी में रहे तो लौकिक में भी कहते हैं, पढ़ाई से क्या लाभ! अनपढ़ भी बच्चे सम्भालते और यह भी सम्भालते तो फर्क क्या हुआ? ऐसे ही यह भी पढ़कर अगर स्टेज पर आ जाए तो डिग्री की वैल्यु भी है। अगर यहाँ चांस मिलता है तो डिग्री आप ही मिल जायेगी। यह डिग्री कम है क्या! जगदम्बा सरस्वती को कितनी बड़ी डिग्री मिली। यहाँ की डिग्री का तो वर्णन भी नहीं कर सकते हो। कितनी बड़ी डिग्री मिली है - मास्टर ज्ञान सागर, मास्टर सर्वशक्तिवान - कितनी डिग्री हैं। इसमें एम.ए, ऐम.बी.ए. सब आ जाता है। इंजीनियर डाकटर सब आ जायेगा। अच्छा।

कुमारियों के अलग-अलग गु्रप से बापदादा की मुलाकात

(1) वरदानी कुमारियाँ हो ना! धीरे-धीरे चलने वाली हो या उड़ने वाली हो? उड़ने वाली अर्थात् हद की धरनी को छोड़ने वाली। जब धरनी को छोड़ें तब उड़ेंगी ना! नीचे तो नहीं उड़ेंगी। नीचे वाले को शिकारी पकड़ लेते हैं। नीचे आया पिंजरे में फँसा। उड़ने वाला पिंजरे में नहीं आता। तो पिंजरा छोड़ दिया! अभी क्या करेंगी? नौकरी करेंगी? ताज पहनेंगी या टोकरी उठायेंगी? जहाँ ताज होगा वहाँ टोकरी चलेगी नहीं। ताज उतारेंगी तब टोकरी रख सकेंगी। टोकरी रखेंगी तो ताज गिर जायेगा। तो ताजधारी बनना है या टोकरीधारी। अभी विश्व की सेवा की जिम्मेवारी का ताज और भविष्य रत्न जड़ित ताज। अभी विश्व की सेवा का ताज पहनो तो विश्व आपको धन्य आत्मा, महान आत्मा माने। इतना बड़ा ताज पहनने वाले टोकरी क्या उठायेंगे! 63 जन्म तो टोकरी उठाते रहे, अब ताज मिलता है तो ताज पहनना चाहिए ना! क्या समझती हो? दिल नहीं है लेकिन करना पड़ता है! क्या ऐसे सरकमस्टांस हैं? धीरे-धीरे लौकिक को सन्तुन्ट करते अपने को निर्बन्धन कर सकती हो। निर्बन्धन होने का प्लैन बनाओ। बेहद सेवा का लक्ष्य रखो तो हद के बन्धन स्वतः टूट जायेंगे। लक्ष्य दो तरफ का होता है तो लौकिक अलौकिक दोनों में सफल नहीं हो सकते। लक्ष्य क्लीयर हो तो लौकिक में भी मदद मिलती है। निमित्त मात्र लौकिक, लेकिन बुद्धि में अलौकिक सेवा हो तो मजबूरी भी मुहब्बत के आगे बदल जाती है।

(2) सभी कुमारियों ने अपनी तकदीर का फैंसला कर लिया है या करना है? जितना समय अपने जीवन के फैसले में लगाती हो उतना प्राप्ति का समय चलता जाता है। इसलिए फैसला करने में समय नहीं गँवाना चाहिए। सोचा और किया - इसको कहा जाता है नम्बरवन सौदा करने वाले। सेकण्ड में फैसला करने वाले गोल्डन मैडल लेते हैं। सोच-सोचकर फैसला करने वाले सिलवर मैडल लेते और सोचकर भी फैसला नहीं कर पाते वह कापर वाले हो गये। आप सब तो गोल्डन मैडल वाले हो ना! जब गोल्डन एज में जाना है तो गोल्डन मैडल चाहिए ना। राम सीता बनने में कोई हाथ नहीं उठाते। लक्ष्मी नारायण तो गोल्डन एजड हैं ना। तो सभी ने अपने तकदीर की लकीर ऐसी खींच ली है या कभी-कभी हिम्मत नहीं होती। सदा उमंग उत्साह में उड़ने वाली, कुछ भी हो लेकिन अपनी हिम्मत नहीं छोड़ना। दूसरे की कमज़ोरी देखकर स्वयं दिलशिकस्त नहीं होना। पता नहीं हमारा तो ऐसा नहीं होगा! अगर एक कोई ख·े में गिरता है तो दूसरा क्या करेगा? खुद गिरेगा या उसको बचाने की कोशिश करेगा? इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं होना। सदा उमंग उत्साह के पंखों से उड़ते रहना। किसी भी आकर्षण में नीचे नहीं आना। शिकारी जब फँसाते हैं तो अच्छा- अच्छा दाना डाल देते हैं। माया भी ऐसे करती है। इसलिए सदा उड़ती कला में रहना तो सेफ रहेंगी। पीछे की बात सोचना, कमज़ोरी की बात सोचना पीछे देखना है, पीछे देखना अर्थात् रावण का आना।

(3) शक्ति सेना हो ना। सबके हाथ में विजय का झण्डा है। विश्व के ऊपर विजय का झण्डा है या सिर्फ स्टेट के ऊपर है? विश्व के अधिकारी बनने वाले विश्व सेवाधारी होंगे। हद के सेवाधारी नहीं। बेहद के सेवाधारी जहाँ भी जाएं वहाँ सेवा करेंगे। तो ऐसे बेहद सेवा के लिए तैयार हो? विश्व की शक्तियाँ हो तो स्वयं ही आफर करो। 2 मास 6 मास की छुट्टी लेकर ट्रायल करो। एक कदम बढ़ायेंगी तो 10 कदम बढ़ जायेंगे, एक दो मास निकल कर अनुभव करो। जब कोई बढ़िया चीज़ से दिल लग जाती है तो घटिया स्वतः छुट जाती है। ऐसे ट्रायल करो। संगमयुग आगे बढ़ने का समय है। ब्रह्माकुमारी बन गयी, ज्ञान स्वरूप बन गयी, यह तो बहुत समय हो गया। अब आगे बढ़ो। कुछ तो आगे कदम बढ़ाओ वहाँ ही नहीं ठहरो। कमज़ोर को नहीं देखो। शक्तियों को देखो, बकरियों को क्यों देखते! बकरियों को देखने से खुद का भी कांध नीचे हो जाता। डर लगता है - पता नहीं क्या होगा? कमज़ोर को देखने से डरते हो इसलिए उन्हें मत देखो। शक्तियों को देखो तो डर निकल जायेगा।

(4) आप सब कुमारियाँ अपने को विशेष आत्मायें समझती हो ना? विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष कार्य के निमित्त। एक-एक विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई हो। एक एक कुमारी 21 कुल तारने वाली हैं। जब भी जहाँ भी आर्डर मिले तो हाजिर। ऐसे निर्विघ्न सेवाधारी हो ना! जिस समय जो भी सेवा मिले, हाजिर। सेवा करना अर्थात् प्रत्यक्ष फल खाना। जब प्रत्यक्षफल मिल जाता है, तो फल खाने से शक्ति आती है। प्रत्यक्षफल खाने से आत्मा शक्तिशाली बन जाती है। जब ऐसी प्राप्ति हो तो करनी चाहिए ना। लौकिक में तो एक मास नौकरी करेंगे फिर पीछे तनखा मिलेगी। यहाँ तो प्रत्यक्षफल मिलता है। भविष्य तो जमा ही होता है लेकिन वर्तमान में भी मिलता है। तो ऐसे डबल फल मिलने वाला कार्य तो पहले करना चाहिए ना! कइयों को बापदादा, दादी-दीदी डायरेक्शन देते हैं सर्विस करो, श्रीमत पर करने से जिम्मेवार खुद नहीं रहते। अपने मन के लगाव से, कमज़ोरी से करते तो श्रेष्ठ नहीं बन सकते। ट्रायल में स्वयं भी सन्तुष्ट रहें और दूसरों को भी करें तो सर्टिफिकेट मिल जाता है। अपने को मिलाकर चलने का लक्ष्य हो। मुझे बदलना है। स्वयं को बदलने की भावना वाला सभी बातों में विजयी हो जाता है। दूसरा बदले यह देखने वाला धोखा खा लेते हैं। इसलिए सदैव मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करना है, अभिमान में नहीं - करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है।

(5) बाप का बनना अर्थात् उड़ती कला के वरदानी बनना। इसी वरदान को जीवन में लाने से कभी भी किसी कदम में भी पीछे नहीं होंगे। आगे ही बढ़ते रहेंगे। सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो हर कदम में आगे है। स्वयं भी सदा सम्पन्न और दूसरों को भी सम्पन्न बनाने की सेवा करो। किसी प्रकार की कमी अनुभव न हो। सर्व-प्राप्ति स्वरूप। इसको कहा जाता है सम्पन्न। किसी भी प्रकार की रूकावट अपने कदमों को रूकाने वाली न हो। उड़ती कला वाले किसी के बन्धन में नहीं आ सकते। सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं।

संगठन में सफलता पाने का साधन ही एक है - स्वयं को बदलना है। दूसरे को बदलने का नहीं सेचना लेकिन स्वयं बदलना है। जो मोल्ड होने जाना है वही रीयल गोल्ड बन जाता है। क्या थे और क्या बन गये यह भाग्य देख सदा हर्षित रहो। बाप की बनी अर्थात् महान बनी। अभी अनेक आत्माओं को महान बनाने की सेवा करो।

(6) सेवाधारी आत्मायें चलते फिरते याद और सेवा की लगन में रहती हैं। सदा बाप के परिचय द्वारा सर्व आत्माओं को बाप के समीप लाने का प्लैन बनाती रहती हैं। लौकिक काम करते भी यही याद रहता है कि मैं ट्रस्टी हूँ। जिसने ट्रस्टी बनाया वह याद रहेगा ना! बाप और सेवा के सिवाए और कुछ नहीं। लौकिक कार्य निमित्त मात्र। लौकिक कार्य भी बाप की याद से सहज और सफल हो जाता है। जब स्वयं की प्रालब्ध बन जाती है तो दूसरों की प्रालब्ध बनाने के बिना रह नहीं सकते। क्योंकि स्वयं को जब अच्छे ते अच्छी चीज़ का अनुभव होता है तो औरों को प्राप्ति कराने के बिना रह कैसे सकते? ऐसा उमंग सदा रहता है ना! अच्छा

होली की मुबारक

सभी रंगों में श्रेष्ठ रंग कौन सा है? बाप के श्रेष्ठ संग का रंग। ऐसा रंग जो सदा ही लाल-बाप, लाल-घर, लाल-बच्चे। ऐसे लाल रंग से सदा रंगे हुए हो? यह रंग तो लगाया है ना! इस लाल रंग के संग का रंग ऐसा लगाया है जो 21 जन्म तक नहीं उतरेगा। चाहे कितना भी भट्टी में डालो नहीं उतरेगा ना। ऐसी होली मना ली है या मनानी है? ऐसा होलीएस्ट बाप होली बच्चों से रूहानी होली मना रहे हैं। ऐसी होली जिससे सदा होली बन जाए। होली मनाना क्या लेकिन होली बन गये। मनाना थोड़े समय का होता, बनना सदाकाल का होता। वह होली मनाते, आप बनते हो। ऐसी रूहानी होली मनाने वाले सभी होली बच्चों को मुबारक हो। हो गई होली, रंग पड़ गया ना। लाल हो गये ना! बाप के लाल बन गये तो लाल हो गये।

अच्छा - ओम शान्ति



30-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


कन्याओं के ग्रुप में प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

आज बेहद ड्रामा के रचयिता बाप, बेहद ड्रामा के वन्डरफुल संगमयुग के दिव्य दृश्य के अन्दर मधुबन के विशेष दृश्य को देख रहे हैं। मधुबन स्टेज पर हर घड़ी कितने दिलपसन्द रमणीक पार्ट चलते हैं। जिसको बापदादा दूर बैठे भी समीप से देखते रहते हैं। इस समय स्टेज के हीरो एक्टर कौन हैं? डबल पावन आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें। लौकिक जीवन से भी पवित्र और आत्मा भी पवित्र। तो डबल पावन विशेष आत्माओं का हीरो पार्ट मधुबन स्टेज पर चलता हुआ देख बापदादा भी अति हर्षित होते हैं। क्या क्या प्लैन बनाते हो, क्या क्या संकल्प करते हो, कौन सी हलचल में भी आते हो, यह हिम्मत और हलचल दोनों ही खेल देख रहे थे। हिम्मत भी बहुत अच्छी रखते हो। उमंग उल्लास भी बहुत आता है लेकिन साथ-साथ थोड़ा सा, हाँ वा ना का मिक्स संकल्प भी रहता है। बापदादा हँसी का खेल देख रहे थे। चाहना बहुत श्रेष्ठ है कि दिखायेंगे, करके दिखायेंगे। लेकिन मन के उमंग की चाहना वा संकल्प चेहरे पर झलक के रूप में नहीं दिखाई देता है। शुद्ध संकल्प चेहरे पर चमकती हुई दिखाई दे वह परसेन्टेज में देखा। यह क्यों? इसका कारण? शुभ संकल्प है लेकिन संकल्प में शक्ति कुछ मात्रा में है। संकल्प रूपी बीज तो है लेकिन शक्तिशाली बीज जो प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में रौनक दिखाई दे, वह अभी और चाहिए।

सबसे ज्यादा चेहरे पर उमंग उल्लास की रौनक वा चमक आने का साधन है, हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान की पाइंट के अनुभवों से सम्पन्नता। अनुभव बड़े ते बड़ी अथार्टी है। अथार्टी की झलक चेहरे पर और चलन पर स्वत: ही आती है। बापदादा वर्तमान के हीरो पार्टधारियों को देखते हुए मुस्करा रहे थे। खुशी में नाच भी रहे हैं लेकिन कोई कोई नाचते हैं तो सारे वायुमण्डल को ही नचा देते हैं। उनकी एक्ट में रौनक दिखाई देती है। जिसको आप लोग कहते हैं कि रास करते-करते मचा लिया अर्थात् सभी को नचा लिया। तो ऐसी रौनक वाली झलक अभी और दिखानी है। उसका आधार सुन लिया। सुनने सुनाने वाले तो बन ही गये हो। साथ-साथ अनुभवी मूर्त्त बनने का विशेष पार्ट बजाओ। अनुभव की अथार्टी वाला कभी भी किसी प्रकार की माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों में धोखा नहीं खायेंगे। अनुभवी अथार्टी वाली आत्मा सदा अपने को भरपूर आत्मा अनुभव करेगी। निर्णय शक्ति, सहन शक्ति वा किसी भी शक्ति से खाली नहीं होंगे। जैसे बीज भरपूर होता है वैसे ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबसे भरपूर। इसको कहा जाता है - मास्टर आलमाइटी अथार्टी। ऐसे के आगे माया झुकेगी, न कि झुकायेगी। जैसे हद की अथार्टी वाले विशेष व्यक्तियों के आगे सब झुकते हैं ना। क्योंकि अथार्टी की महानता सबको स्वत: ही झुकाती है। तो विशेष क्या देखा? अनुभव की अथार्टी की सीट पर अभी सेट हो रहे हैं। स्पीकर की सीट ले ली है लेकिन ‘‘सर्व अनुभवों की अथार्टी का आसन’’, अभी यह लेना है। सुनाया था ना, दुनिया वालों का है सिंहासन और आप सबका है अथार्टी का आसन। इसी आसन पर सदा स्थित रहो। तो सहज योगी, सदा के योगी, स्वत: योगी हैं ही।

अभी तो अमृतवेले का दृश्य भी हँसने हँसाने वाला है। कोई निशाना लगाते लगाते थक जाते हैं। कोई डबल झूलों में झूलते हैं। कोई हठयोगी बन करके बैठते हैं। कोई तो सिर्फ नेमीनाथ हो बैठते हैं। कोई कोई लगन में मगन भी होते हैं। याद शब्द के अर्थ स्वरूप बनने में अभी विशेष अटेन्शन दो। योगी आत्मा की झलक चेहरे से अनुभव हो। जो मन में होता है वह मस्तक पर झलक जरूर रहती है। ऐसे नहीं समझना मन में तो हमारा बहुत है। मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो कि हम खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा। खोया-खोया हुआ चेहरा और पाया हुआ चेहरा इसका अन्तर तो जानते हो ना। ‘‘पा लिया’’ इसी खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे। बापदादा हीरो पार्टधारी बच्चों की महिमा भी गाते हैं। फिर भी आजकल की फैशनेबल दुनिया से, मन से, तन से किनारा कर बाप को सहारा तो बना लिया। इस दृढ़ संकल्प की बहुत बहुत मुबारक। सदा इसी संकल्प में जीते रहो। बापदादा यह वरदान देते हैं। इसी श्रेष्ठ भाग्य की खुशी में, स्नेह के पुष्प भी चढ़ाते हैं। साथसाथ हर बच्चा सम्पन्न, बाप समान अथार्टी हो, इस शुद्ध संकल्प की विधि बताते हैं। बधाई भी देते हैं और विधि भी बताते हैं।

सभी ने समारोह तो मना लिया ना! सभी समारोह मनाते सम्पन्न बनने का लक्ष्य लेते हुए जा रहे हो ना! पहले वाले पुराने तो पुराने रहे लेकिन आप सुभान अल्ला हो जाओ। सबका फोटो तो निकला है ना। फोटो तो यादगार हो गया ना यहाँ। अब दीदी दादी भी देखेंगी कि अथार्टी के आसन पर कौन कौन कितने स्थित हुए। सेन्टर पर रहना भी कोई बड़ी बात नहीं लेकिन विशेष पार्टधारी बन पार्ट बजाना यह है कमाल! जो सभी कहें कि इस ग्रुप की हर आत्मा बाप समान सम्पन्न स्वरूप है। खाली नहीं बनो। खाली चीज़ में हलचल होती है। सयाने बनो अर्थात् सम्पन्न बनो। सिर्फ कुमारियों के लिए नहीं है लेकिन सभी के लिए है। सम्पन्न तो सभी को बनना है ना। जो भी सभी आये हैं मधुबन की विशेष सौगात ‘‘सर्व अनुभवों की अथार्टी का आसन’’, यह साथ में ले जाना। इस सौगात को कभी भी अपने से अलग नहीं करना। सबको सौगात है ना कि सिर्फ कुमारियों को है। मधुबन निवासियों को भी आज की यह सौगात है। चाहे कहाँ भी बैठे हैं लेकिन बाप के सम्मुख हैं। आने वाले सर्व कमल पुष्प समान बच्चों को, मधुबन निवासियों को, चारों ओर के देश विदेश के बच्चों को और वर्तमान स्टेज के हीरो पार्टधारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सभी को अनुभवी भवके वरदान के साथ वरदाता बाप की याद प्यार और नमस्ते।’’

कुमारियों ने विशेष संकल्प लिया! विशेष संकल्प द्वारा विशेष आत्मायें बनीं? विशेष संकल्प क्या लिया? सदा महावीरनी बन विजयी रहेंगी, यही संकल्प लिया है ना! सदा विजयी, सदा महावीरनी या थोड़े समय के लिए लिया? इसके बाद कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आयेगी ना! आधाकल्प के लिए खत्म हुई, कभी संकल्पों का टक्कर तो नहीं होगा। कभी व्यर्थ संकल्प का तूफान तो नहीं आयेगा? अगर बार बार माया के वार से हार खाते तो कमज़ोर हो जाते है। जैसे कोई बार बार धक्का खाता तो उसकी हड्डी कमज़ोर हो जाती है ना। फिर प्लास्टर लगाना पड़ता। इसलिए कभी भी कमज़ोर बन हार नहीं खाना। तो महावीरनी अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप बन गये। ऐसे नहीं वहाँ जाकर देखेंगे, करेंगे...यह गूँगे वाली नहीं। जो संकल्प लिया है उसमें दृढ़ रहना तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इतने दृढ़ संकल्प वाली अपने अपने स्थान पर जायेंगी तो जय जयकार हो जायेगी। संकल्प से सब सहज हो जाता है। जो संकल्प किया है उसे पानी देते रहना। हर मास अपनी रिजल्ट लिखना। कभी भी कमज़ोर संकल्प नहीं करना। यह संस्कार यहाँ खत्म करके जाना। आगे बढ़ेंगी, विजयी बनेंगी - यह दृढ़ संकल्प करके जाना। अच्छा –

सभी की आशायें पूरी हुई? कुमारियों की आशायें पूरी हुई तो माताओं की तो हुई पड़ी हैं। अभी आप लोग थोड़े आये हो इसलिए अच्छा चांस मिल गया। इस बारी सभी कुमारियों का उल्हना तो पूरा हुआ। कोई कम्पलेन्ट नहीं, सभी कम्पलीट होकर जा रही हो ना! अभी देखेंगे, नदियाँ कहाँ बहती हैं। तालाब बनती हैं, बड़ी नदी बनती हैं, छोटी बनती हैं या कुआँ बनता है। तालाब से भी छोटा कुआं होता है ना। तो देखेंगे क्या बनती हैं! वह रिजल्ट आयेगी ना! कुमारियों को देखकर आता है इतने हैण्ड्स निकलें, माताओं को देखकर कहेंगे कि निकलना थोड़ा मुश्किल है। तो अब निर्विघ्न हैण्ड्स बनना। ऐसे नहीं सेवा भी करो और सेवा के साथ-साथ मेहनत भी लेते रहो, यह नहीं करना। सेवा के साथ अगर कम्पलेन्ट निकलती रहे तो सेवा का फल नहीं निकलता। इसलिए निर्विघ्न हैण्ड बनना। ऐसे नहीं आप ही विघ्न रूप बन, दादी दीदी के सामने आते रहो, मददगार हैण्ड बनना। खुद सेवा नहीं लेना। तो सदा निर्विघ्न रहेंगे और सेवा को निर्विघ्न बढ़ायेंगे - ऐसा पक्का संकल्प करके जाना। अच्छा –

प्रश्न:- बाप को किन बच्चों पर बहुत नाज रहता है?

उत्तर:- जो बच्चे कमाई करने वाले होते, ऐसे कमाई करने वाले बच्चों पर बाप को बहुत नाज रहता, एक एक सेकण्ड में पद्मों से भी ज्यादा कमाई जमा कर सकते हो। जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बाप को याद किया, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई अभी ही जमा करते हो फिर अनेक जन्म तक खाते रहेंगे।



03-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


प्रथम और अंतिम पुरूषार्थ

सदा बेहद की स्थिति में स्थित करने वाले, सदा कर्मातीत शिव बाबा बोले:-

आज बेहद का बाप, बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, बेहद की बुद्धि, बेहद की दृष्टि, बेहद की वृत्ति, बेहद के सेवाधारी ऐसे - श्रेष्ठ बच्चों से साकार स्वरूप में साकार वतन में बेहद के स्थान पर मिलने आये हैं। सारे ज्ञान का वा इस पढ़ाई की चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात ‘‘बेहद’’ है। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है - देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित होना। और लास्ट में फरिश्ता स्वरूप बन जाना है। इसका भी अर्थ है - सर्व हद के रिश्ते से परे फरिश्ता बनना। तो आदि और अन्त पुरूषार्थ और प्राप्ति, लक्षण और लक्ष्य, स्मृति और समर्थी दोनों ही स्वरूप में क्या रहा? ‘‘बेहद’’। आदि से लेकर अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं। इस लिस्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो ना! जब सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव स्वरूप बन जाते।

हद हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक - ‘‘मेरा मेरा’’। एक मेरा बाबा, दूसरा न कोई, इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार सार स्वरूप बन जाता है। विस्तार मुश्किल होता है या सार मुश्किल होता है? तो आदि और अन्त का पाठ क्या हुआ? - बेहद। इसी अन्तिम मंज़िल पर कहाँ तक समीप आये हैं, इसको चेक करो। हद की लिस्ट सामने रख देखो कहाँ तक पार किया है! लिस्ट का वर्णन करने की तो आवश्यकता नहीं है। सबके पास कितने बार की सुनी हुई यह लिस्ट कापियों में तो बहुत नोट है। सबके पास ज्यादा से ज्यादा माल डायरियॉ वा कापियाँ होंगी। जानते तो सभी हो, वर्णन भी बहुत अच्छा कर सकते हो। ज्ञान भी हो, वक्ता भी हो। बाकी क्या रहा? बापदादा भी सभी टीचर्स अथवा स्टुडेन्ट्स, सबके भाषण सुनते हैं। बापदादा के पास वीडियो नहीं है क्या? आपकी दुनिया में तो अभी निकला है। बापदादा तो शुरू से वतन में देखते रहते हैं। सुनते रहते हैं। वर्णन करने करने का श्रेष्ठ रूप देखकर बापदादा मुबारक भी देते हैं क्योंकि बापदादा की एक प्वाइंट को भिन्न-भिन्न रमणीक रूप से सुनाते हो। जैसे गाया हुआ है - बाप तो बाप है लेकिन बच्चे बाप के भी सिरताज हैं। ऐसे सुनाने में बाप से भी सिरताज हो। बाकी क्या फालो करना है? तीसरी स्टेज है - पार कर्ता। इसमें कोई न कोई हद की दीवार को पार करने में, कोई तो उस हद में लटक जाते हैं, कोई अटक जाते हैं। पार करने वाले कोई-कोई मंज़िल के समीप दिखाई देते हैं। किसी भी हद को पार करने की निशानी क्या दिखाई देगी वा अनुभव होगी? पार करने की निशानी है - पार किया, उपराम बना। तो उपराम बनना ही पार करने की निशानी है। उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला की निशानी। उड़ता पंछी बन कर्म के इस वल्प वृक्ष की डाली पर आयेगा। उड़ती कला के बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा। कर्म रूपी डाली के बन्धन में नहीं फँसेगा। कर्म बन्धन में फँसा अर्थात् हद के पिंजरे में फँसा। स्वतन्त्र से परतन्त्र बना। पिंजरे के पंछी को उड़ता पंछी तो नहीं कहेंगे ना। ऐसे कल्प वृक्ष के भिन्न-भिन्न कर्म की डाली पर बाप के उड़ते पंछी श्रेष्ठ आत्मायें कभी-कभी कमज़ोरी के पंजों से डाली के बन्धन में आ जाते हैं। फिर क्या करते? कहानी सुनी है ना! इसको कहा जाता है हद को पार करने की शक्ति कम है। इस कल्प वृक्ष के अन्दर चार प्रकार की डालियाँ हैं। लेकिन पाँचवी डाली ज्यादा आकर्षण वाली है। गोल्डन, सिल्वर, कॉपर, आयरन और संगम है हीरे की डाली। फिर हीरो बनने के बजाए हीरे की डाली में लटक जाते हैं। संगमयुग का ही सर्व श्रेष्ठ कर्म है ना। यह श्रेष्ठ कर्म ही हीरे की डाली है। चाहे संगमयुगी कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के भी बन्धन में फँस गया, जिसको दूसरे शब्दों में आप सोने की जंजीर कहते हो। श्रेष्ठ कर्म में भी हद की कामना, यह सोने की जंजीर है। चाहे डाली हीरे की है, जंजीर भी सोने की हो लेकिन बन्धन तो बन्धन है ना! बापदादा सर्व उड़ते पंछियों को स्मृति दिला रहे हैं। सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर्ता बने हो!

आज का विशेष संगठन गऊपाल की माताओं का है। इतने बड़े संगठन को देख गऊपाल भी खुश हो रहे हैं। बापदादा भी मीठी-मीठी माताओं को ‘‘वन्दे मात्रम्’’ कहते हैं। क्योंकि नई सृष्टि की स्थापना के कार्य में ब्रह्मा बाप ने भी माता गुरू को सब समर्पण किया। इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना। माता गुरू का सिलसिला स्थापन करना, यही नवीनता है। इसलिए यादगार में भी गऊ मुख का गायन पूजन है। ऐसे हद की मातायें नहीं लेकिन बेहद की जगत मातायें हो, नशा है ना! जगत का कल्याण करने वाली हो, जगज्ञ्-कल्याणकारी अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना। कब घर-कल्याणी का गीत सुना है क्या? विश्व-कल्याणी का सुना है। तो ऐसी बेहद की माताओं का संगठन, श्रेष्ठ संगठन हुआ ना। मातायें तो अनुभवीमूर्त्त हो ना! कुमारियों को धोखे से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। मातायें तो अनुभवी होने के कारण हद के धोखे में नहीं आने वाली हो ना! मैजारटी नये-नये हैं। नये-नये छोटे बच्चों पर ज्यादा ही स्नेह होता है। बापदादा भी सभी माताओं का ‘‘भले पधारे’’ कहकर के स्वागत करते हैं।

अच्छा - ऐसे सदा बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा उड़ता पंछी, उड़ती कला में उड़ने वाले, सदा अन्तिम फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करने वाले, सदा बाप समान कर्मबन्धनों से कर्मातीत, ऐसे मंज़िल के समीप श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

(सेवाधारियों के प्रति)

बापदादा सभी निमित्त सेवाधारी बच्चों को किस रूप में देखते हैं? निमित्त सेवाधारी कौन हैं? निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बाप भी सेवाधारी बन करके ही आते हैं ना। जो भी भिन्न-भिन्न रूप हैं वह हैं तो सेवा के लिए ना! तो बाप का भी विशेष रूप सेवा का है। तो निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बापदादा हरेक बच्चे को इसी नजर से देखते हैं। बापदादा के सेवा के कार्य में आदि रत्न हो ना! जन्मते ही बाप ने क्या गिफ्ट में दिया? सेवा ही दी है ना। सेवा की गिफ्ट के आदि रत्न हो। बापदादा सभी की विशेषताओं को जानते हैं। जन्म से वरदान मिलना यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है। वैसे तो सभी सेवाधारी हैं लेकिन जन्मते ही सेवा का वरदान और आवश्यकता के समय में निमित्त बनना यह भी किसी-किसी की विशेषता है। जो है ही आवश्यकता के समय पर सेवा के साथी, ऐसी आत्मा की आवश्यकता सदा है। अच्छा - सभी में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं, अगर एक-एक की विशेषता का वर्णन करें तो कितना समय चाहिए। लेकिन बापदादा के पास हरेक की विशेषता सदा सामने है। कितनी हरेक में विशेषतायें हैं, कभी अपने आपको देखा हैविशेषतायें सबमें अपनी अपनी हैं लेकिन बापदादा विशेष आत्माओं को एक ही बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं, कौन-सी? जब भी कोई भी सेवा के क्षेत्र में आते हो, प्लैनिंग बनाते हो वा प्रैक्टिकल में आते हो तो सदा बाप समान स्थिति में स्थित होकर फिर कोई भी प्लैन बनाओ और प्रैक्टिकल में आओ। जैसे बाप सबका है, कोई भी नहीं कहेगा कि यह फलाने का बाप है, फलाने का नहीं, सब कहेंगे - मेरा बाबा। ऐसे जो निमित्त सेवाधारी हैं उन्हों की विशेषता यही है कि हरेक महसूस करे, अनुभव करे कि यह हमारे हैं। 4-6 का है, हमारा नहीं यह नहीं। हमारे हैं, हरेक के मुख से यह आवाज़ न भी निकले तो भी संकल्प में इमर्ज हो कि यह हमारे हैं। इसको ही कहा जाता है - फालो फादर। सबको हमारे-पन की फीलिंग आये। यही पहला स्टैप बाप का है। यही तो बाप की विशेषता है ना। हरेक के मन से निकलता है - मेरा बाबा। तेरा बाबा कोई कहता है? तो यह मेरा है, बेहद का भाई है या बहन है वा दीदी है, दादी है, यही सबके मन से शुभ आशीर्वाद निकले। यह मेरा है क्योंकि चाहे कहाँ भी रहते हो लेकिन विशेष आत्मायें तो बेहद की हो ना! निमित्त सेवार्थ कहीं भी रहो लेकिन हो तो बेहद सेवा के निमित्त ना। प्लैन भी बेहद का, विश्व का बनाते हो या हरेक अपने-अपने स्थान का बनाते हो। यह तो नहीं करते ना! बेहद का प्लैन बनाते, देश विदेश सबका बनाते हो ना। तो बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना यह है - फालो फादर। अभी यह प्रैक्टिकल अनुभव करो। अभी सब बुजुर्ग हो। बुजुर्ग का अर्थ ही है अनुभवी। अनेक बातों के अनुभवी हो ना! कितने अनुभव हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा अनेकों के अनुभवों से अनुभवी। अनुभवी आत्मा अर्थात् बुजुर्ग आत्मा। वैसे भी कोई बुजुर्ग होता है तो हद के हिसाब से भी उसको पिताजी, काकाजी कहते हैं। ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको अपनापन महसूस हो।

सहयोगी आत्माओं को तो बापदादा सदा ही सहयोग के रिटर्न में स्नेह देते हैं। सहयोगी हो अर्थात् सदा स्नेह के पात्र हो। इसलिए देंगे क्या, सबको स्नेह ही देंगे। सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नजर में स्नेह अनुभव हो। यही तो विशेषता है ना! ऐसा कोई प्लैन बनाओ कि हमें क्या करना है। विशेष आत्माओं का विशेष फर्ज क्या है? विशेष कर्म क्या है? जो साधारण से भिन्न हो। चाहे भावना तो समानता की रखनी है लेकिन दिखाई दे - यह विशेष आत्मायें हैं। हर कदम में विशेषता अनुभव हो तब कोई मानेंगे विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली। कहने वाली नहीं लेकिन करने वाली। अच्छा –

महावीर बच्चे सदा ही तन्दुरूस्त हैं। क्योंकि मन तन्दुरूस्त है, तन तो एक खेल करता है। मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा अगर मन निरोगी है तो सदा तन्दुरूस्त है। सिर्फ शेश शैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते। यही खेल है। जैसे साकार बाप विष्णु समान टांग पर टांग चढ़ाए खेल करते थे ना। ऐसे कुछ भी होता है तो यह भी निमित्त मात्र खेल करते। सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस मिलता है। जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं हो लेकिन सागर के तले में हो। नये-नये रत्न निकालने के लिए तले में गये हो।

कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है - विजयी रत्न। सदा यही स्मृति रहती कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना है। फुर्सत मिलती है ना, फुर्सत का काम ही क्या है? नई योजना बनाना। पलंग भी प्लैनिंग का स्थान बन गया।

(माताओं के ग्रुप से)

सभी ऐसा अनुभव करते हो कि तकदीर का सितारा चमक रहा है? जिस चमकते हुए सितारे को देख और आत्मायें भी ऐसा बनने की प्रेरणा लेती रहें, ऐसे सितारे हो ना! कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के अविनाशी सितारे हो ना! सदा एक रस हो या कभी उड़ती कला कभी ठहरती कला? सदा उड़ती कला का युग है। उड़ती कला के समय पर कोई चढ़ती कला भी करे तो भी अच्छा नहीं लगेगा। प्लेन की सवारी मिले तो दूसरी सवारी अच्छी लगेगी? तो उड़ती कला के समयवाले नीचे नहीं आओ। सदा ऊपर रहो। पिंजरे के पंछी नहीं, पिंजरा टूट गया है या दो चार लकीरें अभी रही हैं।

तार भी अगर रह जाती है तो वह अपनी तरफ खींचेगी। 10 रस्सी तोड़ दीं, एक रस्सी रह गई तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब हदें पार करने वाले ऐसे बेहद के उड़ते पंछी, हद में नहीं फंस सकते। 63 जन्म तो हद में फँसते आये। अब एक जन्म हद से निकालो। यह एक जन्म है ही हद से निकालने का तो जैसा समय वैसा काम करना चाहिए ना। समय हो उठने का और कोई सोये तो अच्छा लगेगा? इसलिए सदा हदों से पार बेहद में रहो। माताओं को अविनाशी सुहाग का तिलक तो लगा हुआ है ना। जैसे लौकिक में सुहाग की निशानी तिलक है, ऐसे अविनाशी सुहाग अर्थात् सदा स्मृति का तिलक लगा हुआ हो। ऐसी सुहागिन सदा भागिन (भाग्यवान) है। कल्प-कल्प की भाग्यवान आत्मायें हो। ऐसा भाग्य जो कोई भाग्य को छीन नहीं सकता। सदा अधिकारी आत्मायें हो, विश्व का मालिक, विश्व का राज्य ही आपका हो गया। राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है - अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो अधीनता नहीं।

प्रश्न:- आप बच्चों की कमाई अखुट और अविनाशी है, कैसे?

उत्तर:- आप ऐसी कमाई करते हो जो कभी कोई छीन नहीं सकता। कोई गड़बड़ हो नहीं सकती। दूसरी कमाई में तो डर रहता है, इस कमाई को अगर कोई छीनना भी चाहे तो भी आपको खुशी होगी क्योंकि वह भी कमाई वाला हो जायेगा। अगर कोई लूटने आये तो और ही खुश होंगे, कहेंगे लो। तो इससे और ही सेवा हो जायेगी। तो ऐसी कमाई करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो।

अच्छा - ओम् शान्ति।



05-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सर्व वरदान आपका जन्म-सिद्ध अधिकार

सर्व वरदानों से सम्पन्न श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले अव्यक्त बापदादा बोले:-

बापदादा, बाप और बच्चों का मेला देख हर्षित हो रहे हैं। द्वापर से जो भीमेलेविशेष रूप में होते हैं, कोई न कोई नदी के किनारे पर होते हैं वा कोई देवी वा देवता की मूर्ति के उपलक्ष में होते हैं। एक ही शिवरात्रि - बाप की यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं। द्वापर के मेले भक्तों और देवियों वा देवताओं के होते हैं। लेकिन यह मेला महानदी और सागर के कण्ठे पर बाप और बच्चों का होता है। ऐसा मेला सारे कल्प में हो नहीं सकता। मधुबन में डबल मेला देखते हो। एक बाप और दादा महानदी और सागर का मेला देखते। साथ साथ बापदादा और बच्चों का मेला देखते। तो मेला तो मना लिया ना! यह मेला वृद्धि को पाता ही रहेगा। एक तरफ सेवा करते हो कि वृद्धि को पाते रहें। तो वृद्धि को प्राप्त होना ही है और मेला भी मनाना ही है।

बापदादा आपस में रूह-रूहान कर रहे थे। ब्रह्मा बोले - ब्राह्मणों की वृद्धि तो यज्ञ समाप्ति तक होनी है। लेकिन साकारी सृष्टि में साकारी रूप से मिलन मेला मनाने की विधि, वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तन तो होगी ना! लोन ली हुई वस्तु और अपनी वस्तु में अन्तर तो होता ही है। लोन ली हुई वस्तु को कड़ी सम्भाल से कार्य में लगाया जाता है। अपनी वस्तु को जैसे चाहे वैसे कार्य में लगाया जाता है। और लोन भी साकार शरीर अन्तिम जन्म का शरीर है। लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की विधि भी देखनी होगी ना। तो शिव बाप मुस्कराते हुए बोले कि तीन सम्बन्धों से तीन रीति की विधि वृद्धि प्रमाण परिवर्तन हो ही जायेगा। वह क्या होगा?

बाप रूप से विशेष अधिकार है - मिलन की विशेष टोली। और शिक्षक के रूप में मुरली। सतगुरू के रूप में नजर से निहाल। अर्थात् अव्यक्त मिलन की रूहानी स्नेह की दृष्टि। इसी विधि के प्रमाण वृद्धि को प्राप्त होने वाले बच्चो का स्वागत और मिलन मेला चलता रहेगा। सभी को संकल्प होता है कि हमें कोई वरदान मिले। बापदादा बोले जब हैं ही वरदाता के बच्चे तो सर्व वरदान तो आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है। अभी तो क्या लेकिन जन्मते ही वरदाता ने वरदान दे दिये। विधाता ने भाग्य की अविनाशी लकीर जन्मपत्री में नूँध दी। लौकिक में भी जन्मपत्री नाम संस्कार के पहले बना देते हैं। भाग्य विधाता बाप ने, वरदाता बाप ने ब्रह्मा माँ ने जन्मते ही ब्रह्माकुमार वा कुमारी के नाम संस्कार के पहले सर्व वरदानों और अविनाशी भाग्य की लकीर स्वयं खींच ली। जन्मपत्री बना दी। तो सदा के वरदानी तो हो ही। स्मृति-स्वरूप बच्चों को तो सदा सर्व वरदान प्राप्त ही हैं। प्राप्ति स्वरूप बच्चे हो। अप्राप्ति है क्या जो प्राप्ति करनी पड़े। तो ऐसी रूह-रूहान आज बापदादा की चली। यह हाल बनाया ही क्यों है! तीन हजार, चार हजार ब्राह्मण आवें। मेला बढ़ता जाए। तो खूब वृद्धि को पाते रहो। मुरली बात करना नहीं है क्या! हाँ, नजर पड़नी चाहिए, यह सब बातें तो पूर्ण हो ही जायेंगी।

अभी तो आबू तक लाइन लगानी है ना। इतनी वृद्धि तो करनी है ना! वा समझते हो हम थोड़े ही अच्छे हैं। सेवाधारी सदा स्वयं का त्याग कर दूसरे की सेवा में हर्षित होते हैं। मातायें तो सेवा की अनुभवी हैं ना! अपनी नींद भी त्याग करेंगी और बच्चे को गोदी के झूले में झुलायेंगी। आप लोगों द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे उन्हों को भी तो हिस्सा दिलावेंगे ना। अच्छा –

इस बारी तो बापदादा ने भी सब भारत के बच्चों का उल्हना मिटाया है। जहाँ तक लोन का शरीर निमित्त बन सकते वहाँ तक इस बारी तो उल्हना पूरा कर ही रहे हैं। अच्छा –

सब रूहानी स्नेह को, रूहानी मिलन को अनुभव करने वाले, जन्म से सर्व वरदानों से सम्पन्न, अविनाशी श्रेष्ठ भाग्यवान, ऐसे सदा महात्यागी, त्याग द्वारा भाग्य पाने वाले ऐसे पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को, चारों ओर के स्नेह के चात्रक बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’



07-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


माताओं के प्रति अव्यक्त बापदादा के दो अनमोल बोल

हलचल से परे ले जाने वाले, निश्चय बुद्धि आत्माओं के प्रति शिवबाबा बोले:-

आज विशेष निमित्त बनी हुई डबल सेवाधारी, बापदादा की स्नेही माताओं को विशेष दो बोल सुना रहे हैं। जो सदा बाप के शिक्षा की सौगात साथ रखना। एक सदा लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की स्मृति। सदा ट्रस्टीपन की स्मृति। सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की भावना, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना। जैसे अन्य आत्माओं को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो। हद में नहीं आओ। मेरा बच्चा, मेरा पति इसका कल्याण हो, सर्व का कल्याण हो। अगर मेरापन है तो आत्मिक दृष्टि, कल्याण की दृष्टि दे नहीं सकेंगे। मैजारटी बापदादा के आगे यही अपनी आश रखते हैं - बच्चा बदल जाए, पति साथ दे, घर वाले साथी बनें। लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश क्यों रखते हो! इस हद की दीवार के कारण आपकी शुभ भावना वा कल्याण की शुभ इच्छा उन आत्माओं तक पहुँचती नहीं। इसलिए संकल्प भल अच्छा है लेकिन साधन यथार्थ नहीं तो रिजल्ट कैसे निकले? इसलिए यह कम्पलेन्ट चलती रहती है। तो सदा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है। इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं। बहुत मेहनत की है वा यह तो कभी बदलना ही नहीं है - ऐसे दिलशिकस्त भी नहीं बनो। निश्चयबुद्धि हो, मेरेपन के सम्बन्ध से न्यारे हो चलते चलो। कोई-कोई आत्माओं का ईश्वरीय वर्सा लेने के लिए भक्ति का हिसाब चुक्तु होने में थोड़ा समय लगता है। इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, निराश न हो। शान्ति और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। ऐसी स्थिति में स्थित रहकर लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले, डबल सेवाधारी, ट्रस्टी बच्चों का महत्व बहुत बड़ा है। अपने महत्व को जानो। तो दो बोल क्या याद रखेंगे?

नष्टोमोहा, बेहद सम्बन्ध के स्मृति स्वरूप और दूसरा बाप की हूँ’, बाप सदा साथी है। बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। यह तो याद पड़ सकेगा ना! बस यही दो बातें विशेष याद रखना। हरेक यही समझे कि बापदादा हरेक शक्ति वा पाण्डव से यह पर्सनल बात कर रहे हैं। सभी सोचते हो ना कि मेरे लिए पर्सनल क्या है। सभा में होते भी बापदादा सभी प्रवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं। पब्लिक में भी प्राइवेट बोल रहे हैं। समझा! एक एक बच्चे को एक दो से ज्यादा प्यार दे रहे हैं। इसलिए ही आते हो ना! प्यार मिले, सौगात मिले। इससे ही रिफ्रेश होते हो ना। प्यार के सागर हरेक स्नेही आत्मा को स्नेह की खान दे रहे हैं जो कभी खत्म ही नहीं हो और कुछ रह गया क्या! मिलना, बोलना और लेना। यही चाहते हो ना। अच्छा –

ऐसे सर्व हद के सम्बन्ध से न्यारे, सदा प्रभु प्यार के पात्र, नष्टोमोहा, विश्व कल्याण के स्मृति स्वरूप, सदा निश्चय बुद्धि विजयी, हलचल से परे अचल रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

(पार्टियों के साथ-अलग अलग ग्रुप से मुलाकात)

बाप के बधाई का पात्र बनने के लिए माया को विदाई दो:- सदा अपने को बाप के साथी अनुभव करते हो? जिसका साथी सर्वशक्तिवान बाप है उसको सदा ही सर्व प्राप्तियाँ हैं। उनके सामने कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आ सकती। माया को विदाई दे दी है? कभी माया की मेहमानी तो नहीं करते? जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। अगर अभी तक विदाई नहीं दी तो बार-बार चिल्लाना पड़ेगा - क्या करें, कैसे करें? इसलिए सदा विदाई देने वाले और बधाई पाने वाले। ऐसी खुशनसीब आत्मा हो। हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं। जो सोचा नहीं था वह पा लिया! बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद करो।

अनेक मेरा मैला बना देता और एक मेरा मैलापन समाप्त कर देता

सभी एक बाप के स्नेह में समाये हुए रहते हो? जैसे सागर में समा जाते हैं ऐसे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए। जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण  सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। मेहनत नहीं करनी पड़ती। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दूनिया की स्मृति नहीं। घर मेरा, बच्चा मेरा, यह चीज़ मेरी, ये मेरा मेरा खत्म। बस एक बाप मेरा और सब मेरा खत्म। और मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।

बाप को जानना ही सबसे बड़ी विशेषता है:- बाप को हरेक बच्चा अति प्यारा है। सब श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हो। चाहे गरीब हो, चाहे साहूकार, चाहे पढ़े लिखे हो चाहे अनपढ़, सब एक दो से अधिक प्यारे हैं। बाप के लिए सभी विशेष आत्माये हैं। कौन सी विशेषता है सभी में? बाप को जानने की विशेषता है। जो बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं जान सके वह आपने जान लिया, पा लिया। वह बिचारे तो नेती नेती करके चले गये। आपने सब कुछ जान लिया। तो बापदादा ऐसी विशेष आत्माओं को रोज याद-प्यार देते हैं। रोज मिलन मनाते हैं। अमृतवेले का समय खास बच्चों के लिए है। भक्तों की लाइन पीछे, बच्चों की पहले। जो विशेष आत्मायें होती हैं उनसे मिलने का समय भी जरूर विशेष होगा ना! तो सदा ऐसी विशेष आत्मा समझो और सदा खुशी में उड़ते चलो।

बीमारी की सहज दवा

खुशी की गोली और इन्जेक्शन:- ब्राह्मण बच्चे अपनी बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है। जैसे वह लोग पॉवरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेन्ज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते हैं वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते हैं। यह तो स्टॉक हरेक के पास है ना! नॉलेज के आधार पर शरीर को चलाना है। नॉलेज की लाइट और माइट बहुत मदद देती है। कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है। सूक्ष्मवतन में अव्यक्त बापदादा के साथ दो दिन के निमंत्रण पर अष्ट लीला खेलने के लिए पहुँच जाओ फिर कोई डॉक्टर की भी जरूरत नहीं रहेंगी। जैसे शुरू में सन्देशियाँ जाती थीं, एक या दो दिन भी वतन में ही रहती थी ऐसे ही कुछ भी हो तो वतन में आ जाओ। बापदादा वतन से सैर कराते रहेंगे, भक्तों के पास ले जायेंगे, लण्डन, अमेरिका घुमा देंगे। विश्व का चक्र लगवा देंगे। तो कोई भी बीमारी कभी आये तो समझो वतन का निमंत्रण आया है, बीमारी नहीं आर्डर है।

प्रश्न:- सहजयोगी जीवन की विशेषता क्या है?

उत्तर:- योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन। तो जो सहजयोगी हैं वह सदासुख के झूले में झूलने वाले होते हैं। जब सुखदाता बाप ही अपना हो गया तो सुख ही सुख हो गया ना। तो सुख के झूले में झूलते रहो। सुखदाता बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है योगी जीवन की विशेषता जिसमें दुख का नाम निशान नहीं।

प्रश्न:- बुजुर्ग और अनपढ़ बच्चों को किस आधार पर सेवा करनी है?

उत्तर:- अपने अनुभव के आधार पर। अनुभव की कहानी सबको सुनाओ। जैसे घर में दादी वा नानी बच्चों को कहानी सुनाती है ऐसे आप भी अनुभव की कहानी सुनाओ, क्या मिला है, क्या पाया है... यही सुनाना है। यह सबसे बड़ी सेवा है। जो हरेक कर सकता है। याद और सेवा में ही सदा तत्पर रहो यही है बाप समान कर्त्तव्य।



11-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सहज पुरुषार्थी के लक्षण

सर्व खज़ानों से मालामाल करने वाले, सहज पुरुषार्थी, सहज योगी बच्चों के प्रति बापदादा बोले:-

बापदादा अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। स्नेह और मिलन की भावना इन दो शक्तियों के आधार पर निराकार और आकार बाप को आप समान साकार रूप में, साकारी सृष्टि में लाने के निमित्त बन जाते हो। बाप को भी बच्चे स्नेह और भावना के बन्धन में बांध लेते हैं। मैजारटी अभी भी माताओं की है। माताओं का ही चरित्र और चित्र दिखाया है - भगवान को भी बांधने का। किस वृक्ष से बांधा? इस बेहद के कल्प वृक्ष के अन्दर स्नेह और भावना की रस्सी से कल्प पहले भी बांधा था और अब भी रिपीट हो रहा है। बाप दादा ऐसे बच्चों को स्नेह के रेसपान्ड में, जिस रस्सी से बाप को बांधते हो, इन स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे, झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं। इस कल्प वृक्ष के अन्दर पार्ट बजाने वाले इसी झूले में सदा झूलते रहो। सभी को झूला मिला हुआ है ना! आसन से हिल तो नहीं जाते हो? स्नेह और भावना की रस्सियाँ सदा मजबूत है ना! नीचे ऊपर तो नहीं होते! झूला झुलाता भी है, ऊंचा उड़ाता भी है और अगर जरा भी नीचे ऊपर हुए तो ऊपर से नीचे गिराता भी है। झूला तो बापदादा ने सभी को दिया है। तो सदा झूलते रहते हो! माताओं को झूलने और झुलाने का अनुभव होता है ना! जिस बात के अनुभवी हो वह ही बातें बापदादा कहते हैं। कोई नई बात तो नहीं है ना! अनुभव की हुई बातें सहज होती हैं वा मुश्किल!

आज की यह कौन सी सभा है? सभी सहजयोगी, सहज पुरुषार्थी, सहज प्राप्ति स्वरूप हो वा कभी सहज, कभी मुश्किल के योगी हो? सहज पुरुषार्थी अर्थात् आये हुए हिमालय पर्वत जितनी समस्या को भी उड़ती कला के आधार पर सेकण्ड में पार करने वाले। पार करने का अर्थ ही है कि कोई चीज़ होगी तब तो उसको पा करेंगे। ऐसे सहज पार करते, उड़ते जा रहे हो वा कभी पहाड़ पर उतर आते, कभी नदीं में उतर आते, कभी कोई जंगल में उतर आते। फिर क्या कहते? निकालो वा बचाओ। ऐसे करने वाले तो नहीं हो ना! मातायें अब भी बात बात पर वही पुकार तो नहीं करती रहती! भक्ति के संस्कार तो समाप्त हो गये ना! द्रोपदी की पुकार पूरी हो गई या अभी भी चल रही है? अभी तो अधिकारी बन गये ना! पुकार का समय समाप्त हुआ। संगमयुग प्राप्ति का समय है न कि पुकार का समय है? सहज पुरुषार्थी अर्थात् सबको पार कर सर्व सहज प्राप्ति करने वाले। सहज पुरुषार्थी सदा वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध पाने के अनुभवी होंगे। प्रालब्ध सदा ऐसे स्पष्ट दिखाई देगी जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है। ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा अर्थात् तीसरे दिव्य नेत्र द्वारा प्रालब्ध दिखाई देगी। सहज पुरुषार्थी हर कदम में पदमों से भी ज्यादा कमाई का अनुभव करेंगे। ऐसा स्वयं को सदा संगमयुगी सर्व खज़ानों से भरपूर आत्मा अनुभव करेंगे। किसी भी शक्ति से, किसी भी गुण के खज़ाने से, ज्ञान के किसी भी पाइंट के खज़ाने से, खुशी से, नशे से कभी खाली नहीं होंगे। खाली होना गिरने का साधन है। खड्डा बन जाता है ना। तो खड्डे में गिर जाते हैं। थोड़ी सी भी मोच आ जाती है तो परेशान हो जाते हैं ना! यह भी बुद्धि की मोच आ जाती है। संकल्प टेढ़ा हो जाता है। शक्तिशाली मालामाल के बदले कमज़ोर और खाली हो जाते हैं। तो संकल्प की मोच आ गई ना! ऐसे करते क्यों हो? फिर कहते हो रास्ता टेढ़ा है। आप टेढ़े नहीं हो? टेढ़े रास्ते को तो सीधा बनाया है ना। शक्ति अवतार किसलिए हो? टेढ़े को सीधा करने के लिए। कान्ट्रैक्ट क्या लिया है? जैसे इस हाल को टेढ़े बांके से सीधा किया तब तो आराम से बैठे हो। तो हाल के कान्ट्रैक्टर से पूछो उसने यह सोचा क्या कि टेढ़ा है, मोच आयेगी। सीधा किया वा टेढ़े को ही सोचता रहा। कहाँ पत्थर को उड़ाया, कहाँ पत्थर को डाला, मेहनत की ना। तो आप सबको स्वर्ग बनाने का कान्ट्रैक्ट है ना! टेढ़े को सीधा बनाने का कान्ट्रैक्ट है ना! ऐसे कान्ट्रैक्ट लेने वाले तो नहीं कह सकते कि रास्ता टेढ़ा है। अचानक गिरना यह भी अटेन्शन की कमी है। साकार रूप में याद है ना, कोई गिरते थे तो क्या करते थे! उसकी टोली बन्द होती थी। क्यों? आगे के लिए सदा अटेन्शन रखने के लिए। टोली देना तो कोई बड़ी बात नहीं है। टोली तो होती ही बच्चों के लिए है। लेकिन यह भी स्नेह है। टोली देना भी स्नेह है, टोली बन्द करना भी स्नेह है। फिर क्या सोचा? अचानक गिर जाते हैं वा रास्ता टेढ़ा है, यह कहेंगे? अभी तो इस पुरूषार्थ के मार्ग में इतनी भीड़ कहाँ हुई है! अभी तो 9 लाख प्रजा भी नहीं बनी है। अभी तो एक लाख में ही खुश हो रहे हो। पुरूषार्थ का मार्ग बेहद का मार्ग है। तो समझा सहज पुरुषार्थी किसको कहा जाता है! जो मोच न खाये और ही औरों के लिए स्वयं गाइड, पण्डा बन सहज रास्ता पार करावे। सहज पुरुषार्थी सिर्फ लव में नहीं लेकिन लव में लीन रहता। ऐसी लवलीन आत्मा सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से वायुमण्डल से दूर रहती है। क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली, सर्व बातों से सेफ रहना। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना। समाना अर्थात् समान होना। तो समानता बड़े ते बड़ी सेफ है। है ही मायाप्रूफ सेफ। तो समझा सहज पुरूषार्थ क्या है! सहज पुरूषार्थ अर्थात् अलबेलापन नहीं। कई अलबेलेपन को भी सहज पुरूषार्थ मानकर चलते हैं। वो सदा मालामाल नहीं होगा। अलबेले पुरुषार्थी की सबसे बड़ी विशेषता अन्दर मन खाता रहेगा और बाहर से गाता रहेगा! क्या गाता रहेगा? अपनी महिमा के गीत गाता रहेगा। और सहज पुरुषार्थी सदा हर समय में बाप के साथ का अनुभव करेगा। ऐसे सहज पुरुषार्थी हो? सहज पुरुषार्थी सदा सहज योगी जीवन का अनुभव कर सकता है। तो क्या पसन्द है? सहज पुरूषार्थ या मुश्किल? पसन्द तो सहज पुरूषार्थ है ना! दिलपसन्द चीज़ जब बाप दे ही रहे हैं तो क्यों नहीं लेते? न चाहते भी हो जाता है, यह शब्द भी मास्टर सर्वशक्तिवान का बोल नहीं है। चाहना एक, कर्म दूसरा तो क्या उसको शिव-शक्ति कहेंगे!

शिव-शक्ति अर्थात् अधिकारी। अधीन नहीं। तो यह बोल भी ब्राह्मण भाषा के नहीं हुए ना! अपने ब्राह्मण भाषा को तो जानते हो ना! संगमयुग का अर्थात् सहज प्राप्ति का बहुत समय गया। अब बाकी थोड़ा सा समय रहा हुआ है। इसमें भी समय के वरदान, बाप के वरदान को प्राप्त कर स्वयं को सहज पुरुषार्थी बना सकते हो। ब्राह्मण की परिभाषा है ही -मुश्किल को सहज बनाने वाला। ब्राह्मण का धर्म, कर्म सब यही है। तो जन्म के, कर्म के ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् सहज योगी। सहज पुरुषार्थी। अब यहाँ से क्या बन करके जायेंगे?

मधुबन को परिवर्तन भूमि कहते हो ना! मुश्किल शब्द को तपोभूमि में भस्म करके जाना। और सहज पुरूषार्थ का वरदान ले जाना। परिवर्तन का पात्र अर्थात् दृढ़ संकल्प के पात्र को धारण करके जाना तब वरदान धारण कर सकेंगे। नहीं तो कई कहते हैं वरदान तो बाबा ने दिया लेकिन आबू में ही रह गया। वहाँ जाकर देखते हैं वरदान तो साथ आया ही नहीं। वरदाता का वरदान योग्य पात्र में लिया? अगर लिया ही नहीं तो रहेगा कहाँ? जिसने दिया उसके पास ही रहा ना! ऐसे नहीं करना। होशियार बहुत हो गये हैं। अपना कसूर नहीं समझेंगे। कहेंगे पता नहीं बाबा ने क्यों ऐसे किया! अपनी कमज़ोरियाँ सब बाप के ऊपर रखते हैं। बाबा चाहे तो कर सकता है लेकिन करना नहीं है। बाप दाता है या लेता है? दाता तो देता है लेकिन लेने वाले लेवें भी ना! या देवे भी बाप और लेवे भी बाप। बाप लेंगे तो आप कैसे भरपूर होंगे! इसलिए लेना तो सीखो ना! अच्छा - मिलन तो हो गया ना। सबसे हंसे, बहले, सबके चेहरे देखे। इस समय तो बहुत अच्छे चेयरफुल चेहरे हैं। सभी खुशी के झूले में झूल रहे हैं। तो यह मिलना नहीं हुआ! मिलना अर्थात् मुखड़ा देखना और दिखलाना। देखा ना! पात्र भी मिला, वरदान भी मिला। बाकी क्या रह गया? टोली तो दीदी दादी से खा ली है। जब व्यक्त रूप में निमित्त बना दिया है तो अव्यक्त को क्यों व्यक्त बनाते हो! दीदी दादी भी बाप समान हैं ना! जब भी दीदी दादी से टोली लेते हो तो क्या समझकर लेते हो? बाप दादा टोली दे रहे हैं। अगर दीदी दादी समझ लेते तो यह भी भूल हो जायेगी। अच्छा, तो बाकी टोली की इच्छा अभी है। समझते हैं टोली खायेंगे तो आगे तो आयेंगे ना। तो आज ही सबकी क्यू लगाओ और टोली खाओ। दिल तो कब भरने वाली है नहीं। दिल भरती रहनी चाहिए। भर नहीं जानी चाहिए। कुछ न कुछ रहना ठीक है। तब तो याद करते रहेंगे और भरते रहेंगे। भर गई तो फिर कहेंगे भर गया अब खाओ पीयो मौज करो। अच्छा –

सब सदा के सहज योगी, सहज पुरुषार्थी, सदा सर्व की मुश्किलातों को सहज करने वाले, ऐसे बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान, सदा मालामाल, सर्व खज़ानों से स्व सहित विश्व की सेवा करने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप दादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ (माताओं के अलग-अलग ग्रुप से)

(1) सभी अपना कल्प पहले वाला चित्र देखते रहते हो? ऐसा कौन सा चित्र है जिस चित्र में बाप का साथ भी है और सेवा भी दिखाई है? गोवर्धन पर्वत उठाने काङ इस चित्र में बाप के साथ बच्चें भी हैं। और दोनों ही सेवा कर रहे हैं। पर्वत को अंगुली देना सेवा हुई ना! तो इस चित्र में आप सभी हो ना! खुशी खुशी से कहो कि हमारा ही यह चित्र है! मन में उमंग आता है ना कि सहयोगी बनने का भी यादगार बन गया है। अंगुली सहयोग की निशानी है। सभी बाप दादा के सहयोगी हो ना! जन्म ही किसलिए लिया है? सहयोगी बनने के लिए। तो सदा स्मृति में रखो कि हम जन्म से सहयोगी आत्मा हैं। तन-मन-धन जैसे पहले मालूम नहीं था तो भक्ति में लगाया और अभी जो बचा हुआ है वह सच्ची सेवा से, बाप के सहयोगी बन लगा रहे हो! 99% तो गंवा दिया बाकी 1% बचा है। अगर वह भी सहयोग में नहीं लगायेंगे तो कहाँ लगायेंगे! देखो कहाँ सतयुगी राजा और आज क्या हो? तन में भी शक्ति कहाँ हैं! आज के जवान बूढ़े हैं। जितना बूढ़े काम कर सकते उतना आज के जवान नहीं कर सकते। नाम की जवानी है। और धन भी गँवा दिया, देवता से बिजनेस वाले वैश्य बन गये। और मन की शान्ति भी कहाँ रही, भटक रहे हो। तो मन की शान्ति, तन, धन सब गँवा दिया, बाकी क्या रहा! फिर भी शुक्र करो 1ज्ञ् भी बचा हुआ तन-मन- धन ईश्वरीय कार्य में लगाकर फिर से पद्मगुणा जमा कर लेते हो। 1% भी बचा हुआ तन-मन-धन ईश्वरीय कार्य में लगाने से 21 जन्म, 2500 वर्ष के लिए जमा हो जाता है। ऐसे सहयोगी बच्चों को बाप भी सदा स्नेह देते हैं, सहयोग देते हैं। और इसी सहयोग का चित्र अभी भी देख रहे हो। अभी प्रैक्टिकल कर भी रहे हो और चित्र भी देख रहे हो। वैसे कोई मरने के बाद अपना चित्र नहीं देखता। आप चैतन्य में कल्प पहले वाला चित्र देख रहे हो। पहले अपने ही चित्र की पूजा करते थे। अगर पता होता तो गायन नहीं करते, बन जाते। तो ऐसे सभी सहयोगी हो ना! सदा हर कार्य में सहयोग देने का शुभ संकल्प, कभी भी किसी भी प्रकार के वातावरण को शक्तिशाली बनाने में सदा सहयोगी। वातावरण को भी नीचे ऊपर नहीं होने देना। सहयोगी बनने के बदले कभी हलचल करने वाले नहीं बन जाना। सदा सहयोगी अर्थात् सदा सन्तुष्ट। एक बाप दूसरा न कोई, चलते चलो, उड़ते चलो। कोई भी संकल्प आये तो ऊपर देकर स्वयं नि:संकल्प होकर चलते जाओ। विचार देना, इशारा देना यह दूसरी बात है, हलचल में आना यह दूसरी बात है। तो सदा एकरस। संकल्प दिया और निर्संकल्प बने। सदा स्व उन्नति और सेवा की उन्नति में बिजी रहो और सर्व के प्रति शुभ भावना रखो। जिस शुभ भावना से जो संकल्प रखते वह सब पूरा हो जाता है। शुभ संकल्प पूरे होने का साधन है - एकरस अवस्था। शुभ चिन्तन, शुभाचिंतक - इसी से सब बातें सम्पन्न हो जायेगी। चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बनाना यही है शक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं का कर्त्तव्य।

(2) सदा बाप और सेवा दोनों ही याद रखते हैं ना! याद और सेवा दोनों का बैलेन्स सदा रखते हो? क्योंकि याद के बिना सेवा सफल नहीं होती और सेवा के बिना मायाजीत नहीं बन सकते। क्योंकि सेवा में बिजी रहने से, इस ज्ञान का मनन करने से माया सहज ही किनारा कर लेती है। बिना याद के सेवा करेंगे तो सफलता कम और मेहनत ज्यादा। और याद में रहकर सेवा करेंगे तो सफलता ज्यादा और मेहनत कम। तो दोनों का बैलेन्स रहता है? बैलेन्स रखने वाले को स्वत: ही ब्लैसिंग मिलती रहती, मांगना नहीं पड़ता। जिन आत्माओं की सेवा करते, उन आत्माओं के मन से, वाह श्रेष्ठ आत्मा सुनाने वाली, वाह मेरी तो जीवन बदल दी...यह वाह-वाह ही आशीर्वाद बन जाती है। ऐसी आशीर्वाद का अनुभव करते हो? जिस दिन याद में रहकर सेवा करेंगे उस दिन अनुभव करेंगे- बिना मेहनत के नैचुरल खुशी। ऐसी खुशी का अनुभव है ना! इसी आधार से सभी आगे बढ़ते जा रहे हो? समझते हो कि हर समय हमारी स्व उन्नति और विश्व उन्नति होती जा रही है? अगर स्व उन्नति नहीं तो विश्व उन्नति के भी निमित्त नहीं बन सकेंगे। स्व उन्नति का साधन है यादऔर विश्व उन्नति का साधन है सेवा। सदा इसी में आगे बढ़ते चलो। संगम पर बाप ने सबसे बड़ा खज़ाना कौन सा दिया है? खुशी का! कितने प्रकार की खुशी का खज़ाना प्राप्त है! अगर खुशी की वैरायटी पाइंटस निकालो तो कितने प्रकार की होंगी! संगमयुग पर सबसे बड़े ते बड़ी सौगात, खज़ाना पिकनिक का सामान...सब खुशी है। रोज़ अमृतवेले खुशी की एक पाइंट सोचो...तो सारा दिन खुशी में रहेंगे। कई बच्चे कहते हैं मुरली में तो रोज़ वही पाइंट होती है, लेकिन जो पाइंट पक्की नहीं हुई है वह पक्की कराने के लिए रोज़ देनी पड़ती है। जैसे स्कूल में स्टूडेन्ट कोई बात पक्की याद नहीं करते तो 50 बार भी वही बात लिखते हैं, तो बापदादा भी रोज़ कहते बच्चे, अपने को आत्मा समझो और मुझे याद करो क्योंकि यह पाइंट अभी तक कच्ची है। तो रोज़ खुशी की नई-नई पाइंट्स बुद्धि में रखो और सारा दिन खुशी में रहते दूसरों को भी खुशी का दान देते रहो। यही सबसे बड़े ते बड़ा दान है। दुनिया में अनेक साधन होते हुए भी अन्दर की सच्ची अविनाशी खुशी नहीं है, आपके पास वही खुशी है तो खुशी का दान देते रहो।

(3) सदा अपने को कमल पुष्प समान पुरानी दुनिया के वातावरण से न्यारे और एक बाप के प्यारे, ऐसा अनुभव करते हो? जो न्यारा वही प्यारा और जो प्यारा वही न्यारा। तो कमल समान हो या वातावरण में रहकर उसके प्रभाव में आ जाते हो? जहाँ भी जो भी पार्ट बजा रहे हो वहाँ पार्ट बजाते पार्ट से सदा न्यारे रहते हो या पार्ट के प्यारे बन जाते हो, क्या होता है? कभी योग लगता, कभी नहीं लगता इसका भी कारण क्या है? न्यारेपन की कमी। न्यारे न होने के कारण प्यार का अनुभव नहीं होता। जहाँ प्यार नहीं वहाँ याद कैसे आयेगी! जितना ज्यादा प्यार उतना ज्यादा याद। बाप के प्यार के बजाए दूसरों के प्यारे हो जाते हो तो बाप भूल जाता है। पार्ट से न्यारा और बाप का प्यारा बनो, यही लक्ष्य और प्रैक्टिकल जीवन हो। लौकिक में पार्ट बजाते प्यारे बने तो प्यार का रिटर्न क्या मिला? कांटों की शैया ही मिली ना! बाप के प्यार में रहने से सेकण्ड में क्या मिलता है? अनेक जन्मों का अधिकार प्राप्त हो जाता है। तो सदा पार्ट बजाते हुए न्यारे रहो। सेवा के कारण पार्ट बजा रहे हो। सम्बन्ध के आधार पर पार्ट नहीं, सेवा के सम्बन्ध से पार्ट। देह के सम्बन्ध में रहने से नुकसान है, सेवा का पार्ट समझ कर रहो तो न्यारे रहेंगे। अगर प्यार दो तरफ है तो एकरस स्थिति का अनुभव नहीं हो सकता है।

(4) सदा निर्विघ्न, सदा हर कदम में आगे बढ़ने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! किसी प्रकार का विघ्न रोकता तो नहीं है? जो निर्विघ्न होगा उसका पुरूषार्थ भी सदा तेज होगा क्योंकि उसकी स्पीड तेज होगी। निर्विघ्न अर्थात् तीव्रगति की रफ्तार। विघ्न आये और फिर मिटाओ इसमें भी समय जाता है। अगर कोई गाड़ी को बार-बार स्लो और तेज करे तो क्या होगा? ठीक नहीं चलेगी ना। विघ्न आवे ही नहीं उसका साधन क्या है? सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की स्मृति में रहो। सदा की स्मृति शक्तिशाली बना देगी। शक्तिशाली के सामने कोई भी माया का विघ्न आ नहीं सकता। तो अखण्ड स्मृति रहे। खण्डन न हो। खण्डित मूर्ति की पूजा भी नहीं होती है। विघ्न आया फिर मिटाया तो अखण्ड अटल तो नहीं कहेंगे। इसलिए सदाशब्द पर और अटेन्शन। सदा याद में रहने वाले सदा निर्विघ्न होंगे। संगमयुग विघ्नों को विदाई देने का युग है। जिसको आधा कल्प के लिए विदाई दे चुके उसको फिर आने न दो। सदा याद रखो कि हम विजयी रत्न हैं। विजय का नगाड़ा बजता रहे। विजय की शहनाईयाँ बजती रहती हैं, ऐसे याद द्वारा बाप से कनेक्शन जोड़ा और सदा यह शहनाईयाँ बजती रहें। जितना-जितना बाप के प्यार में, बाप के गुण गाते रहेंगे तो मेहनत से छूट जायेंगे। सदा स्नेही, सदा सहजयोगी बन जाते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

प्रश्न:- धर्मराजपुरी क्या है उसका अनुभव कब और कैसे होता है?

उत्तर:- धर्मराजपुरी कोई अलग स्थान नहीं है। सजाओं के अनुभव को ही धर्मराजपुरी कहते हैं। लास्ट में अपने पाप सामने आते हैं, और चैतन्य में जमदूत नहीं है, लेकिन अपने ही पाप डरावने रूप में सामने आते हैं। उस समय पश्चाताप और वैराग की घड़ी होती है। उस समय छोटे-छोटे पाप भी भूत की तरह लगते हैं। जिसको ही कहते हैं - यमदूत आये, काले-काले आये, गोरे-गोरे आये...ब्रह्मा बाप भी आफीशियल रूप में सामने दिखाई देते और छोटा सा पाप भी बड़े विकराल रूप में दिखाई देता, जैसे कई आइने होते हैं जिसमें छोटा आदमी भी मोटा या लम्बा दिखाई देता है, ऐसे अन्त समय में पश्चाताप की त्राहि-त्राहि होगी। अन्दर ही कष्ट होगा। जलन होगी। ऐसे लगेगा जैसे चमड़ी को कोई खींच रहा है। यह फीलिंग आयेगी। ऐसे ही सब पापों के सजाओं की अनुभूति होगी जो बहुत ही कड़ी है। इसको ही धर्मराज पुरीकहा गया है।



13-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


परचिंतन तथा परदर्शन से हानियाँ

उड़ती कला में ले जाने वाले, सम्पूर्णता के रंग में रंगने वाले, सतगुरू शिव बाबा बोले

सभी श्रेष्ठ आत्मायें संगमयुग का हीरे समान श्रेष्ठ मेला मनाने के लिए आई हैं। अर्थात् हीरे समान अमूल्य जीवन का निरन्तर अनुभव करने का विशेष साधन फिर से स्मृति स्वरूप वा समर्थ स्वरूप बना रहे उसका बाप से या अपने परिवार से या वरदान भूमि से अनुभव प्राप्त करने के लिए आये हैं। हीरे समान जीवन जन्म से प्राप्त हुआ। लेकिन हीरा सदा चमकता रहे, किसी भी प्रकार की धूल वा दाग न आ जाए उसके लिए फिर-फिर पालिश कराने आते हैं। इसलिए आते हो ना? तो बापदादा अपने हीरे समान बच्चों को देख हर्षित भी होते हैं और चेक भी करते - अभी तक किन बच्चों को धूल का असर हो जाता है वा संग के रंग में आने से कोई-कोई को छोटा वा बड़ा दाग भी लग जाता है। कौन सा संग दाग लगाता है! उसके मूल दो कारण हैं वा मुख्य दो बातें हैं –

एक परदर्शनदूसरा परचिन्तन। परचिन्तन में व्यर्थ चिन्तन भी आ जाता है। यही दो बातें संग के रंग में स्वच्छ हीरे को दागी बना देती हैं। इसी परदर्शन, परचिन्तन की बातों पर कल्प पहले का यादगार रामायणकी कथा बनी हुई है। गीता ज्ञान भूल जाता है। गीता ज्ञान अर्थात् स्वचिन्तन। स्वदर्शन चक्रधारी बनना। नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनना। गीता ज्ञान के सार को भूल कर रामायण की कथा प्रैक्टिकल में लाते हैं। सीता भी वह बनते हैं जो मर्यादा की लकीर से बाहर निकल गई। सीता के दो रूप दिखलाये हैं। एक सदा साथ रहने वाली और दूसरा शोक वाटिका में रहने वाली। तो संगदोष में आकर शोक वाटिका वाली सीता बन जाते हैं। वह एक है फरियाद का रूप और दूसरा है याद का रूप। जब फरियाद के रूप में आ जाते हैं तो फर्स्ट स्टेज से सेकण्ड में आ जाते हैं। इसलिए सदा बेदाग सच्चा हीरा, चमकता हुआ हीरा, अमूल्य हीरा बनो। इन दो बातों से सदा दूर रहो तो धूल और दाग लग नहीं सकता। चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो, बातें बड़ी नई-नई रमणीक बताते हो। अगर वह बातें सुनावें तो बहुत लम्बा चौड़ा शास्त्र बन जायेगा। लेकिन कारण क्या है? अपनी कमज़ोरी। लेकिन अपनी कमज़ोरी को सफेदी लगा देते हो और छिपाने के लिए दूसरों के कारणों की कहानियाँ लम्बी बना देते हो। इसी से परदर्शन, परचिन्तन शुरू हो जाता है। इसलिए इस विशेष मूल आधार को, मूल बीज को समाप्त करो। ऐसा विदाई का बधाई समारोह मनाओ। मेले में समारोह मनाते हो ना! इसी समारोह मनाने को ही मिलना अर्थात् बाप समान बनना कहा जाता है। अच्छा - महिमा तो अपनी बहुत सुनी है। महिमा में भी कोई कमी नहीं रही क्योंकि जो बाप की महिमा वह बच्चों की महिमा। बापदादा का यही विशेष स्नेह है कि हर बच्चा बाप समान सम्पन्न बन जाए। समय के पहले नम्बरवन हीरा बन जाए। अभी रिजल्ट आउट नहीं हुआ है। जो बनने चाहो, जितने नम्बर में आने चाहो, अभी आने की मार्जिन है। इसलिए उड़ती कला का पुरूषार्थ करो। बेदाग नम्बरवन चमकता हुआ हीरा बन जाओ। समझा क्या करना है? सिर्फ यह नहीं जाकर सुनाना कि मधुबन से होके आये, बहुत मना के आये। लेकिन बन करके आये हैं! जब संख्या में वृद्धि हो रही है तो पुरूषार्थ की विधि में भी वृद्धि करो। अच्छा –

ऐसे सर्व उड़ती कला के पुरुषार्थी, सर्व व्यक्त संगों से दूर रहने वाले, एक ही सम्पूर्णता के रंग में रंगी हुई आत्मायें समय के पहले स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले, प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पाटियों के साथ मुलाकात

(1) सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बना लिया है? किसी भी सम्बन्ध में अभी लगाव तो नहीं है? क्योंकि कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप नहीं बन सकेंगे। बुद्धि भटकती रहेगी। बैठेंगे बाप को याद करने और याद आयेगा धोत्रा पोत्रा। जिसमें भी मोह होगा वही याद आयेगा। किसका पैसे में होता है, किसका जेवर में होता है, किसका किसी सम्बन्ध में होता - जहाँ भी होगा वहाँ बुद्धि जायेगी। अगर बार-बार बुद्धि वहाँ जाती है तो एकरस नहीं रह सकते। आधा कल्प भटकते-भटकते क्या हाल हो गया है, देख लिया ना! सब कुछ गँवा दिया। तन भी गया, मन की सुख-शान्ति भी गई, धन भी गया। सतयुग में कितना धन था, सोने के महलों में रहते थे, अभी ईटों के मकान में, पत्थर के मकान में रहते हो, तो सारा गँवा दिया ना! तो अभी भटकना खत्म। एक बाप दूसरा न कोई’ - यही मन से गीत गाओ। कभी भी ऐसे नहीं कहना कि यह तो बदलता नहीं है, यह तो चलता नहीं है, कैसे चलें, क्या करूँ...इस बोझ से भी हल्के रहो। भल भावना तो अच्छी है कि यह चल जाए, इसकी बीमारी खत्म हो जाए लेकिन इस कहने से तो नहीं होगा ना! इस कहने के बजाए स्वयं हल्के हो उड़ती कला के अनुभव में रहो। तो उसको भी शक्ति मिलेगी। बाकी यह सोचना वा कहना व्यर्थ है। मातायें कहेंगी मेरा पति ठीक हो जाए, बच्चा चल जाए, धन्धा ठीक हो जाए, यही बातें सोचते या बोलते हैं। लेकिन यह चाहना पूर्ण तब होगी जब स्वयं हल्के हो बाप से शक्ति लेंगे। इसके लिए बुद्धि रूपी बर्तन खाली चाहिए। क्या होगा, कब होगा, अभी तो हुआ ही नहीं, इससे खाली हो जाओ। सभी का कल्याण चाहते हो तो स्वयं शक्तिरूप बन सर्वशक्तिवान के साथी बन शुभ भावना रख चलते चलो। चिन्तन वा चिन्ता मत करो। बन्धन में नहीं फँसो। अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है -याद। कहने से नहीं छूटेंगे, स्वयं को छुड़ा दो तो छूट जायेंगे।

(2) संगमयुग के सर्व खज़ाने प्राप्त हो गये हैं? कभी भी अपने को किसी खज़ाने से खाली तो नहीं समझते हो? क्योंकि खाली होने का समय अभी बीत गया। अभी भरने का समय है। खज़ाना मिला है, इसका अनुभव भी अभी होता है। अप्राप्ति से प्राप्ति हुई तो उसका नशा रहेगा। तो भरपूर आत्मायें बनीं! ऐसे तो नहीं कहते कि सर्व शक्तियाँ हैं लेकिन सहन शक्ति नहीं है, शान्ति की शक्ति नहीं है। थोड़ा क्रोध या थोड़ा आवेश आ जाता है। भरपूर चीज़ में कोई दूसरी चीज़ आ नहीं सकती। माया की हल-चल होती अर्थात् खाली है। जितना भरपूर उतना हलचल नहीं। तो क्रोध, मोह...सभी को विदाई दे दी या दुश्मन को भी मेहमान बना देते हो। यह दुश्मन जबरदस्ती भी अन्दर तब आता है जब अलबेलापन है। अगर लाक मजबूत है तो दुश्मन आ नहीं सकता। आजकल भी सेफ रहने के लिए गुप्त लाक रखते हैं। यहाँ भी डबल लाक है। याद और सेवा’ - यह है डबल लाक। इसी से सेफ रहेंगे। डबल लाक अर्थात् डबल बिजी। बिजी रहना अर्थात् सेफ रहना। बार-बार स्मृति में रहना यही है लाक को लगाना। ऐसे नहीं समझो - मैं तो हूँ ही बाबा का, लेकिन बार-बार स्मृति स्वरूप बनो। अगर हैं ही बाबा के तो स्मृति स्वरूप होना चाहिए, वह खुशी होनी चाहिए। हैं तो वर्सा प्राप्त होना चाहिए। सिर्फ हैं ही के अलबेलेपन में नहीं लेकिन हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर समर्थ अनुभव करो। इसको कहा जाता है - स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। माया वार करने न आये लेकिन नमस्कार करने आये।

(3) सभी अपने को पूज्य आत्मायें अनुभव करते हो? पुजारी से पूज्य बन गये ना! पूज्य को सदा ऊँचे स्थान पर रखते हैं। कोई भी पूजा की मूर्ति होगी तो नीचे धरती पर नहीं रखेंगे। तो आप पूज्य आत्मायें कहाँ रहती हो! ऊपर रहती हो! भक्ति में भी पूज्य आत्माओं का कितना रिगार्ड रखते हैं। जब जड़ मूर्ति का इतना रिगार्ड है तो आपका कितना होगा? अपना रिगार्ड स्वयं जानते हो? क्योंकि जितना जो अपना रिगार्ड जानता है उतना दूसरे भी उनको रिगार्ड देते हैं। अपना रिगार्ड रखना अर्थात् अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना। तो कभी महान आत्मा से साधारण आत्मा तो नहीं बन जाते हो! पूज्य तो सदा पूज्य होगा ना! आज पूज्य कल अपूज्य नहीं - ऐसे तो नहीं हो ना। सदा पूज्य अर्थात् सदा महान। सदा विशेष। कई बच्चे सोचते हैं कि हम तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे हमको आगे बढ़ने का रिगार्ड नहीं देते हैं। इसका कारण क्या होता? सदा स्वयं अपने रिगार्ड में नहीं रहते हो। जो अपने रिगार्ड में रहते वह रिगार्ड माँगते नहीं, स्वत: मिलता है। जो सदा पूज्य नहीं उन्हें सदा रिगार्ड नहीं मिल सकता। अगर मूर्ति अपने आसन को छोड़ दे, या उसे जमीन में रख दें तो उसकी क्या वैल्यु होगी! मूर्ति को मन्दिर में रखें तो सब महान रूप में देखेंगे। तो सदा महान स्थान पर अर्थात् ऊँची स्थिति पर रहो, नीचे नहीं आओ। आजकल दुनिया में कौन सी विशेषता दिखा रहे हैं? मरो और मारो - यही विशेषता दिखाते हैं ना! तो यहाँ भी सेकण्ड में मरने वाले। धीरे-धीरे मरने वाले नहीं। आज मोह छोड़ा, मास के बाद क्रोध छोड़ेंगे, साल के बाद मोह छोड़ेंगे...ऐसे नहीं। एक धक से झाटकू बनने वाले। तो सभी मरजीवा झाटकू बन गये या कभी जिन्दा, कभी मरे, कई ऐसे होते हैं जो चिता से भी उठकर चल देते हैं। जाग जाते हैं। आप सब तो एक धक से मरजीवा हो गये ना! जैसे लौकिक संसार में वे लोग अपना शो दिखाते ऐसे अलौकिक संसार में भी आप अपना शो दिखाओ। सदा श्रेष्ठ, सदा पूज्य, हर कर्म, हर गुण का सभी लोग कीर्तन गाते रहें। कीर्तन का अर्थ ही है - कीर्ति गाना। अगर सदा श्रेष्ठ कर्म अर्थात् कीर्ति वाले कर्म हैं तो फिर सदा ही लोग आपका कीर्तन गाते रहेंगे। जब किसी स्थान पर हंगामा हो, तो उस झगड़े के समय शान्ति के शक्ति की कमाल दिखाओ। सबकी बुद्धि में आवे कि यहाँ तो शान्ति का कुण्ड है। शान्ति कुण्ड बन शान्ति की शक्ति फैलाओ। जैसे चारों ओर अगर आग जल रही हो और एक कोना भी शीतल कुण्ड हो तो सब उसी तरफ दौड़कर जाते हैं, ऐसे शान्ति स्वरूप होकर शान्ति कुण्ड का अनुभव कराओ। उस समय वाचा की सेवा नहीं कर सकते लेकिन मंसा से अपनी शान्ति कुण्ड की प्रत्यक्षता कर सकते हो। जहाँ भी शान्ति सागर के बच्चे रहते हैं वह स्थान शान्ति-कुण्डहो। जब विनाशी यज्ञ कुण्ड अपनी तरफ आकर्षित करता है तो यह शान्ति कुण्डअपने तरफ न खींचे यह हो नहीं सकता। सबको वायब्रेशन आने चाहिए कि बस यहाँ से ही शान्ति मिलेगी। ऐसा वायुमण्डल बनाओ। सब मांगने आयें कि बहन जी शान्ति दो। ऐसी सेवा करो।

सेवाधारी टीचर्स बहनों के प्रति

टीचर्स अर्थात् सेवाधारी। सेवाधारी अर्थात् त्यागमूर्त्त और तपस्या मूर्त्त। जहाँ त्याग, तपस्या नहीं वहाँ सफलता नहीं। त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता मिलती है। तपस्या है ही - ‘एक बाप दूसरा न कोई। यह है निरन्तर की तपस्या। तो जो भी आये वह कुमारी नहीं देखे लेकिन तपस्वी कुमारी देखे। जिस स्थान पर रहते हो वह तपस्या-कुण्ड अनुभव हो। अच्छा स्थान है, पवित्र स्थान है, यह भी ठीक लेकिनतपस्या कुण्डअनुभव हो। तपस्या कुण्ड में जो भी आयेगा वह स्वयं भी तपस्वी हो जायेगा। तो तपस्या के प्रैक्टिकल स्वरूप में जाओ। तब जयजयकार होगी। तपस्या के आगे झुकेंगे। ब्रह्माकुमार के आगे महिमा करते हैं, तपस्वी कुमार के आगे झुकेंगे। तपस्या कुण्ड बनाओ फिर देखो कितने परवाने आपेही आ जाते हैं। तपस्या भी ज्योति है, ज्योति पर परवाने आपेही आयेंगे। सेवाधारी बनने का भाग्य बन चुका अब तपस्वी कुमारी का नम्बर लो। सदा शान्ति का दान देने वाली महादानी आत्मायें बनो। बापदादा वर्तमान समय मंसा सेवा के ऊपर विशेष अटेन्शन दिलाते हैं। वाचा की सेवा से इतनी शक्तिशाली आत्मायें नहीं निकलती हैं लेकिन मंसा सेवा से शक्तिशाली आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी। वाणी तो चलती रहती है लेकिन अभी एडीशन चाहिए - शुद्ध संकल्प के सेवा की। तो स्वरूप बन करके स्वरूप बनाने की सेवा करो, अभी इसी की आवश्यकता है। अभी सबका अटेन्शन इस पाईंट पर हो। इसी से नाम बाला होगा। अनुभवी मूर्त्त अनुभव करा सकेंगे। इसी पर विशेष अटेन्शन देते रहो। इसी से मेहनत कम सफलता ज्यादा होगी। मंसा धरनी को परिवर्तन कर देती है। सदा इसी प्रकार से वृद्धि करते रहो। अभी यही विधि है वृद्धि करने की। अच्छा –

12 घण्टे बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात सुबह 6 बजे बापदादा ने सतगुरूवार की याद-प्यार सभी बच्चों को दी

सभी बृहस्पति की दशा वाले, श्रेष्ठ भाग्य की लकीर वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा आज के वृक्षपति दिवस की याद-प्यार दे रहे हैं। वृक्षपति बाप ने सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर, अविनाशी बना दी। इसी अविनाशी तकदीर द्वारा सदा स्वयं भी सम्पन्न रहेंगे और औरों को भी सम्पन्न बनाते रहेंगे। वृक्षपति दिवस सभी बच्चों के शिक्षा में सम्पन्न होने का विशेष यादगार दिवस है। इसी शिक्षा के यादगार दिवस पर शिक्षक के रूप में बापदादा सभी बच्चों को हर सबजेक्ट में सदा फुल पास होने का लक्ष्य रखते हुए, पास विद् आनर बनने की और औरों को भी ऐसे उमंग-उत्साह में लाने की, शिक्षक के रूप से शिक्षा में सम्पन्न बनने की याद-प्यार देते हैं। और बृहस्पति की तकदीर की लकीर खींचने वाले भाग्यविधाता बाप के रूप में सदा श्रेष्ठ भाग्य की बधाई देते हैं। अच्छा - यादप्यार और नमस्ते।

प्रश्न:- कौन सी स्मृति सदा रहे तो जीवन में कभी भी दिलशिकस्त नहीं बन सकते?

उत्तर:- मैं साधारण आत्मा नहीं हूँ, मैं शिव शक्ति हूँ, बाप मेरा और मैं बाप की। इसी स्मृति में रहो तो कभी भी अकेलापन अनुभव नहीं होगा। कभी दिलशिकस्त नहीं होंगे। सदा उमंग उत्साह रहेगा। शिव-शक्तिका अर्थ ही है शिव और शक्ति कम्बाइन्ड। जहाँ सर्वशक्तिवान, हजार भुजाओं वाला बाप है वहाँ सदा ही उमंग उत्साह साथ है।



14-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सम्पन्न आत्मा सदा स्वयं और सेवा से सन्तुष्ट

हल चल से परे ले जाने वाले सदा अचल, अव्यक्त बापदादा अपने अचल अडोल बच्चों के प्रति बोले:-

आज दूर देशवासी बच्चों से मिलने के लिए बच्चों के साकारी लोक में साकार का आधार ले, बच्चों को और इस साकारी पुरानी दुनिया को भी देख रहे हैं। पुरानी दुनिया अर्थात् हलचल की दुनिया। बापदादा हलचल के दुनिया की रौनक देख बच्चों की अचल स्थिति को देख रहे थे। यह सब हलचल के नजारे साक्षी हो देखते हैं। खेल में यह नजारे और ही अपना अचल स्वीट होम और अपनी निर्विघ्न स्वीट राजधानी याद दिलाते हैं। स्मृति आती है कि हमारा घर, हमारा राज्य क्या था और अब भी क्या राज्य आने वाला है और घर जाने वाले हैं। आज बापदादा यह दृश्य देख रूह-रूहान कर रहे थे। यह सब हलचल की दुनिया में रह, यह दृश्य देखना कब तक? ब्रह्मा बाप को बच्चों का यह थोड़ा बहुत सहन करने का दृश्य देख दिल में क्या आता कि अभी से सभी को वतन में बुला लेवें। यह बात पसन्द है? उड़ सकेंगे? कोई रस्सियाँ आदि तो नहीं बांधी हुई हैं? किसी भी प्रकार के लगाव से पंख कमज़ोर तो नहीं है? लगाव से पंख कहाँ चिपके हुए तो नहीं हैं? अभी ऐसी तैयारी की हुई है? बापदादा तो सेकण्ड में उड़ेंगे और आप तैयारी करते करते रह जाओ तो! तैयार तो हो ना! पहले तो दो बातें अपने से पूछनी पड़ें –

1 - एक तो सम्पूर्ण स्वतन्त्र आत्मा हैं? अपने पुरूषार्थ की रफ्तार से अपने आप से सन्तुष्ट हैं? अपनी सन्तुष्टता के साथ-साथ स्वयं की श्रेष्ठ स्थिति का सर्व सम्पर्क वाली आत्माओं से सन्तुष्टता का रेसपान्ड मिलता है?

2 - दूसरी बात सेवा में स्वयं से सन्तुष्ट हैं? यथार्थ शक्तिशाली विधि का रिटर्न सिद्धि प्राप्त हो रही है? अपने राज्य की वैरायटी प्रकार की आत्माओं को जैसे राज्य अधिकारी, रॉयल फैमली के अधिकारी, रॉयल प्रजा के अधिकारी और साधारण प्रजा के अधिकारी, सर्व प्रकार के आत्माओं को संख्या प्रमाण तैयार किया है? करावनहार बाप है लेकिन निमित्त करनहार बच्चों को ही बनाते हैं। क्योंकि कर्म का फल प्रालब्ध मिलती है। निमित्त कर्म बच्चों को ही करना है। सम्बन्ध में ब्रह्मा बाप के साथ-साथ बच्चों को आना है। बाप तो न्यारा और प्यारा ही रहेगा। तो ऐसी चेकिंग करके फिर बताओ कि तैयार हो? कार्य को आधा में तो नहीं छोड़ना है ना! और बिना सम्पन्नता के आत्मा कर्मातीत हो बाप के साथ जा नहीं सकती है। समान वाले ही साथ जायेंगे। जाना तो साथ है या पीछे-पीछे आना है! शिव की बरात में तो नहीं आना है ना! अभी बताओ तैयार हो? या सोच रहे हो कि छू मन्त्र का कुछ खेल हो जाए। शिव मन्त्र ही छू मन्त्र है। वह तो मिला हुआ है ना! ब्रह्मा बाप को बहुत ओना था कि बच्चों को तकलीफ न हुई हो। तकलीफ हुई वा मनोरंजन हुआ? (आज बहुत वर्षा होने के कारण टेन्ट आदि सब गिर गये) टेन्ट हिला वा दिल भी हिली? दिल तो मजबूत है ना। क्या होगा, कैसे जायेंगे, यह हलचल तो नहीं है? कुछ तो नई चीज़ भी देखो ना! आबू की मानसून आप लोग तो कभी देखते नहीं हो। यह भी थोड़ा सा अनुभव हो रहा है। पहाड़ों की बारिश भी देखनी चाहिए ना। यह भी एक रमणीक दृश्य देखा। जल्दी भागने का संकल्प तो नहीं आता है ना। यह भी अच्छा है जो लास्ट दिन में तूफान आया है। कोई नई न्यूज तो जाकर सुनायेंगे ना कि क्या क्या देखा। सुनाने के समाचार में रमणीकता तो आयेगी ना! वैसे तो सब अचल हैं। अभी तो बहुत कुछ होना है। यह तो कुछ नहीं है। यह भी तत्वों के परिवर्तन की निशानियाँ हैं। इसको देख जैसे तत्वों की रफ्तार तेज जा रही है ऐसे स्व-परिवर्तन की रफ्तार भी तीव्र हो। अच्छा –

ऐसे सदा स्व-परिवर्तन में तीव्रगति से चलने वाले, स्व की सम्पूर्णता से सेवा के कार्य की सम्पन्नता करने वाले, सदा साक्षीपन की स्थिति में स्थित रह हलचल के पार्ट को भी रमणीक पार्ट समझ अचल हो देखने वाले, ऐसे सदा शक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) सदा साक्षीपन की स्थिति में स्थित रहते हुए ड्रामा के हर दृश्य को देखते हो? साक्षीपन की स्थिति सदा ड्रामा के अन्दर हीरो पार्ट बजाने में सहयोगी होती है। अगर साक्षीपन नहीं तो हीरो पार्ट बजा नहीं सकते। हीरो पार्टधारी से साधारण पार्टधारी बन जाते हैं। साक्षीपन की स्टेज सदा ही डबल हीरो बनाती है। एक हीरे समान बनाती है और दूसरा हीरो पार्टधारी बनाती है। साक्षीपन अर्थात् देह से न्यारे, आत्मा मालिकपन की स्टेज पर स्थित रहे। देह से भी साक्षी। मालिक। इस देह से कर्म कराने वाली, करने वाली नहीं। ऐसी साक्षी स्थिति सदा रहती है? साक्षी स्थिति सहज पुरूषार्थ का अनुभव कराती है क्योंकि साक्षी स्थिति में किसी भी प्रकार का विघ्न या मुश्किलात आ नहीं सकती। यह है मूल अभ्यास। यही साक्षी स्थिति का पहला और लास्ट पाठ है। क्योंकि लास्ट में जब चारों ओर की हलचल होगी, तो उस समय साक्षी स्थिति से ही विजयी बनेंगे। तो यही पाठ पक्का करो। अच्छा –

(2) सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? संगमयुग श्रेष्ठ युग है, परिवर्तन युग है, आत्मा और परमात्मा के मिलन मेले का युग है। ऐसे संगमयुग के विशेषताओं को सोचो तो कितनी हैं। इन्हीं विशेषताओं के स्मृति में रह समर्थ बनो। जैसी स्मृति वैसा स्वरूप स्वत: बन जाता है। तो सदा ज्ञान का मनन करते रहो। मनन करने से शक्ति भरती है। अगर मनन नहीं करते, सिर्फ सुनते सुनाते तो शक्ति स्वरूप नहीं। लेकिन सुनाने वाले स्पीकर बनेंगे। आप बच्चों के मनन का चित्र भक्ति में भी दिखाया है। कैसे मनन करो वह चित्र याद है! विष्णु का चित्र नहीं देखा है? आराम से लेटे हुए हैं और मनन कर रहे हैं, सिमरण कर रहे हैं। सिमरण कर, मनन कर हर्षित हो रहे हैं। तो यह किसका चित्र है? शैया देखो कैसी है! सांप को शैया बना दिया अर्थात् विकार अधीन हो गये। उसके ऊपर सोया है। नीचे वाली चीज़ अधीन होती है, ऊपर मालिक होते हैं। मायाजीत बन गये तो निश्चिंत। माया से हार खाने की, युद्ध करने की कोई चिन्ता नहीं। तो निश्चिन्त और मनन करके हर्षित हो रहे हैं। ऐसे अपने को देखो, मायाजीत बने हैं। कोई भी विकार वार न करे। रोज नई नई पाइंट स्मृति में रख मनन करो तो बड़ा मजा आयेगा, मौज में रहेंगे। क्योंकि बाप का दिया हुआ खज़ाना मनन करने से अपना अनुभव होता है। जैसे भोजन पहले अलग होता है, खाने वाला अलग होता है। लेकिन जब हजम कर लेते तो वही भोजन खून बन शक्ति के रूप में अपना बन जाता है। ऐसे ज्ञान भी मनन करने से अपना बन जाता, अपना खज़ाना है यह महसूसता आयेगी।

(3) सभी अपने को सदा श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? श्रेष्ठ आत्मा अर्थात् हर संकल्प, बोल और कर्म सदा श्रेष्ठ हो। क्योंकि साधारण जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये। कलियुग से निकल संगमयुग पर आ गये। जब युग बदल गया, जीवन बदल गई, तो जीवन बदला अर्थात् सब कुछ बदल गया। ऐसा परिवर्तन अपने जीवन में देखते हो? कोई भी कर्म, चलन, साधारण लोगों के माफिक न हो। वे हैं लौकिक और आप - अलौकिक। तो अलौकिक जीवन वाले लौकिक आत्माओं से न्यारे होंगे। संकल्प को भी चेक करो कि साधारण है वा अलौकिक है? साधारण है तो साधारण को चेक करके चेन्ज कर लो। जैसे कोई चीज़ सामने आती है तो चेक करते हो यह खाने योग्य है, लेने योग्य है, अगर नहीं होती तो नहीं लेते, छोड़ देते हो ना। ऐसे कर्म करने के पहले कर्म को चेक करो। साधारण कर्म करते-करते साधारण जीवन बन जायेगी फिर तो जैसे दुनिया वाले वैसे आप लोग भी उसमें मिक्स हो जायेंगे। न्यारे नहीं लगेंगे। अगर न्यारापन नहीं तो बाप का प्यारा भी नहीं। अगर कभी कभी समझते हो कि हमको बाप का प्यार अनुभव नहीं हो रहा है तो समझो कहाँ न्यारेपन में कमी है, कहाँ लगाव है। न्यारे नहीं बने हो तब बाप का प्यार अनुभव नहीं होता। चाहे अपनी देह से, चाहे सम्बन्ध से, चाहे किसी वस्तु से...स्थूल वस्तु भी योग को तोड़ने के निमित्त बन जाती है। सम्बन्ध में लगाव नहीं होगा लेकिन खाने की वस्तु में, पहनने की वस्तु में लगाव होगा, कोई छोटी चीज़ भी नुकसान बहुत बड़ा कर देती है। तो सदा न्यारापन अर्थात् अलौकिक जीवन। जैसे वह बोलते, चलते, गृहस्थी में रहते ऐसे आप भी रहो तो अन्तर क्या हुआ! तो अपने आपको देखो कि परिवर्तन कितना किया है चाहे लौकिक सम्बन्ध में बहू हो, सासू हो, लेकिन आत्मा को देखो। बहू नहीं है लेकिन आत्मा है। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान में है। मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊँगी। अपनी वृत्ति, दृष्टि चेन्ज चाहिए। नहीं तो परिवार में प्रभाव नहीं पड़ता। तो वृत्ति और दृष्टि बदलना ही अलौकिक जीवन है। जो काम अज्ञानी करते वह आप नहीं कर सकते हो। संग का रंग आपका लगना चाहिए, न कि उन्हों के संग का रंग आपको लग जाए। अपने को देखो मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मेरा प्रभाव अज्ञानी पर पड़ता है, अगर नहीं पड़ता तो शुभ भावना नहीं है। बोलने से प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन सूक्ष्म भावना जो होगी उसका फल मिलेगा। अच्छा –

(4) हर कदम में सर्वशक्तिवान बाप का साथ है, ऐसा अनुभव करते हो? जहाँ सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ सर्व प्राप्तियाँ स्वत: होंगी। जैसे बीज है तो झाड़ समाया हुआ है। ऐसे सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो सदा मालामाल, सदा तृप्त, सदा सम्पन्न होंगे। कभी किसी बात में कमज़ोर नहीं होंगे। कभी कोई कम्पलेन्ट नहीं करेंगे। सदा कम्पलीट। क्या करें, कैसे करें...यह कम्पलेन्ट नहीं। साथ हैं तो सदा विजयी हैं। किनारा कर देते तो बहुत लम्बी लाइन है। एक क्यों, क्यू बना देती है। तो कभी क्यों की क्यू न लगे। भक्तों की, प्रजा की क्यू भले लगे लेकिन क्यों की क्यू नहीं लगानी है। ऐसे सदा साथ रहने वाले चलेंगे भी साथ। सदा साथ हैं, साथ रहेंगे और साथ चलेंगे यही पक्का वायदा है ना! बहुत काल की कमी अन्त में धोखा दे देगी। अगर कोई भी कमी की रस्सी रह जायेगी तो उड़ नहीं सकेंगे। तो सब रस्सियों को चेक करो। बस बुलावा आये, समय की सीटी बजे और चल पड़ें। हिम्मते बच्चे मददे बाप! जहाँ बाप की मदद है वहाँ कोई मुश्किल कार्य नहीं। हुआ ही पड़ा है।

(5) सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करते हो? इस स्वरूप की स्मृति में रहने से हर परिस्थिति ऐसे अनुभव होगी जैसे परिस्थिति नहीं लेकिन एक साइडसीन है। परिस्थिति समझने से घबरा जाते लेकिन साइडसीन अर्थात् रास्ते के नजारे हैं तो सहज ही पार कर लेते। क्योंकि नजारों को देख खुशी होती है, घबराते नहीं। तो विघ्न, विघ्न नहीं हैं लेकिन विघ्न आगे बढ़ने का साधन है। परीक्षा क्लास आगे बढ़ाता है। तो यह विघ्न, परिस्थिति, परीक्षा आगे बढ़ाने के लिए आते हैं ऐसे समझते हो ना! कभी कोई बात सोचते यह क्या हुआ, क्यों हुआ? तो सोचने में भी टाइम जाता है। सोचना अर्थात् रूकना। मास्टर सर्वशक्तिवान कभी रूकते नहीं। सदा अपने जीवन में उड़ती कला का अनुभव करते हैं।

(6) वरदाता बाप द्वारा सर्व वरदान प्राप्त हुए? बाप द्वारा सबसे मुख्य वरदान कौन सा मिला? एक तो सदा योगी भव और दूसरा पवित्र भव। तो यह दोनों विशेष वरदान सदा जीवन में अनुभव करते हो? योगी जीवन बना ली या योग लगाने वाले योगी हो? योग लगाने वाले योगी दो चार घण्टा योग लगायेंगे फिर खत्म। लेकिन योगी जीवन अर्थात् निरन्तर। तो निरन्तर योगी जीवन है! ऐसे ही पवित्र भव का वरदान मिला है। पवित्र भव के वरदान से पूज्य आत्मा बन गये। योगी भव के वरदान से सदा शक्ति स्वरूप बन गये। तो शक्ति स्वरूप और पवित्र पूज्य स्वरूप दोनों ही बन गये हो ना। सदा पवित्र रहते हो? कभी-कभी तो नहीं। क्योंकि एक दिन भी कोई अपवित्र बना तो अपवित्र की लिस्ट में आ जायेगा तो पवित्रता की लिस्ट में हो? कभी क्रोध तो नहीं आता? क्रोध या मोह का आना इसको पवित्रता कहेंगे? मोह अपवित्रता नहीं है क्या? अगर नष्टोमोहा नहीं बनेंगे तो स्मृति स्वरूप भी नहीं बन सकेंगे। कोई भी विकार आने नहीं देना। जब किसी भी विकार को आने नहीं देंगे तब कहेंगे - पवित्र और योगी भव! बा

पदादा सभी बच्चों से उम्मीदें रखते हैं, हर बच्चे को दृढ़ संकल्प करना है, व्यर्थ नहीं सोचेंगे, व्यर्थ नहीं करेंगे, व्यर्थ की बीमारी को सदा के लिए खत्म करेंगे। यही एक दृढ़ संकल्प सदा के लिए सफलता मूर्त्त बना देगा। सदा सावधान रहना है अर्थात् व्यर्थ को खत्म करना है।

अच्छा - ओम शान्ति।



17-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


कर्मातीत स्थिति के लिए समेटने और सामने की शक्तियों की आवश्यकता

सर्व प्राप्तियों और शक्तियों से सम्पन्न बनाने वाले सर्वशक्तिवान शिवबाबा बोले:-

आवाज़ से परे अपनी श्रेष्ठ स्थिति को अनुभव करते हो? वह श्रेष्ठ स्थिति सर्व व्यक्त आकर्षण से परे शक्तिशाली न्यारी और प्यारी स्थिति है। एक सेकण्ड भी इस श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ तो उसका प्रभाव सारा दिन कर्म करते हुए भी स्वयं में विशेष शान्ति की शक्ति अनुभव करेंगे। इसी स्थिति को - कर्मातीत स्थिति, बाप समान सम्पूर्ण स्थिति कहा जाता है। इसी स्थिति द्वारा हर कार्य में सफलता का अनुभव कर सकते हो। ऐसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव किया है? ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है - कर्मातीत स्थिति को पाना। तो लक्ष्य को प्राप्त करने के पहले अभी से इसी अभ्यास में रहेंगे तब ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। इसी लक्ष्य को पाने के लिए विशेष स्वयं में समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति आवश्यक है। क्योंकि विकारी जीवन वा भक्ति की जीवन दोनों में जन्मजन्मान्तर से बुद्धि का विस्तार में भटकने का संस्कार बहुत पक्का हो गया है। इसलिए ऐसे विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को सार रूप में स्थित करने के लिए इन दोनों शक्तियों की आवश्यकता है। शुरू से देखो - अपने देह के भान के कितने वैरायटी प्रकार के विस्तार हैं। उसको तो जानते हो ना! मैं बच्चा हूँ, मैं जवान हूँ, मैं बुजुर्ग हूँ। मैं फलाने-फलाने आक्यूपेशन वाला हूँ। इसी प्रकार के देह की स्मृति के विस्तार कितने हैं! फिर सम्बन्ध में आओ कितना विस्तार है। किसका बच्चा है तो किसका बाप है, कितने विस्तार के सम्बन्ध हैं। उसको वर्णन करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि जानते हो। इसी प्रकार देह के पदार्थो का भी कितना विस्तार है! भक्ति में अनेक देवताओं को सन्तुष्ट करने का कितना विस्तार है। लक्ष्य एक को पाने का है लेकिन भटकने के साधन अनेक हैं। इतने सभी प्रकार के विस्तार को सार रूप में लाने के लिए समाने की वा समेटने की शक्ति चाहिए। सर्व विस्तार को एक शब्द से समा देते। वह क्या? - ‘‘बिन्दू’’। मैं भी बिन्दू बाप भी बिन्दू। एक बाप बिन्दू में सारा संसार समाया हुआ है। यह तो अच्छी तरह से अनुभवी हो ना। संसार में एक है सम्बन्ध, दूसरी है सम्पत्ति। दोनों विशेषतायें बिन्दू बाप में समाई हुई हैं। सर्व सम्बन्ध एक द्वारा अनुभव किया है? सर्व सम्पत्ति की प्राप्ति सुख-शान्ति, खुशी यह भी अनुभव किया है या अभी करना है? तो क्या हुआ? विस्तार सार में समा गया ना! अपने आप से पूछो अनेक तरफ विस्तार में भटकने वाली बुद्धि समेटने के शक्ति के आधार पर एक में एकाग्र हो गई है? वा अभी भी कहाँ विस्तार में भटकती है! समेटने की शक्ति और समाने की शक्ति का प्रयोग किया है? या सिर्फ नालेज है! अगर इन दोनों शक्तियों को प्रयोग करना आता है तो उसकी निशानी सेकण्ड में जहाँ चाहो जब चाहे बुद्धि उसी स्थिति में स्थित हो जायेगी। जैसे स्थूल सवारी में पॉवरफुल ब्रेक होती है तो उसी सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ रोक सकते हैं। जहाँ चाहें वहाँ गाड़ी को या सवारी को उसी दिशा में ले जा सकते हैं। ऐसे स्वयं यह शक्ति अनुभव करते हो वा एकाग्र होने में समय लगता है? वा व्यर्थ से समर्थ की ओर बुद्धि को स्थित करने में मेहनत लगती है? अगर समय और मेहनत लगती है तो समझो इन दोनों शक्तियों की कमी है। संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही - सार रूप में स्थित हो सदा सुख-शान्ति के, खुशी के, ज्ञान के, आनन्द के झूले में झूलना। सर्व प्राप्तियों के सम्पन्न स्वरूप के अविनाशी नशे में स्थित रहो। सदा चेहरे पर प्राप्ति ही प्राप्ति है - उस सम्पन्न स्थिति की झलक और फलक दिखाई दे। जब सिर्फ स्थूल धन से सम्पन्न विनाशी राजाई प्राप्त करने वाले राजाओं के चेहरे पर भी द्वापर के आदि में वह चमक थी। यहाँ तो अविनाशी प्राप्ति है। तो कितनी रूहानी झलक और फलक चेहरे से दिखाई देगी! ऐसे अनुभव करते हो? वा सिर्फ अनुभव सुन करके खुश होते हो! पाण्डव सेना विशेष है ना! पाण्डव सेना को देख हर्षित जरूर होते हैं। लेकिन पाण्डवों की विशेषता है उन्हें सदा बहादुर दिखाते हैं, कमज़ोर नहीं। अपने यादगार चित्र देखे हैं ना। चित्रों में भी महावीर दिखाते हैं ना। तो बापदादा भी सभी पाण्डवों को विशेष रूप से, सदा विजयी, सदा बाप के साथी अर्थात् पाण्डवपति के साथी, बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में सदा रहें, यही विशेष स्मृति का वरदान दे रहे हैं। भले नये भी आये हो लेकिन हो तो कल्प पहले के अधिकारी आत्मायें। इसलिए सदा अपने सम्पूर्ण अधिकार को पाना ही है - इस नशे और निश्चय में सदा रहना। समझा। अच्छा!

सदा सेकण्ड में बुद्धि को एकाग्र कर, सर्व प्राप्ति को अनुभव कर, सदा सर्व शक्तियों को समय प्रमाण प्रयोग में लाते, सदा एक बाप में सारा संसार अनुभव करने वाले, ऐसे सम्पन्न और समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ

(1) अधरकुमारों के साथ:- ऐसा श्रेष्ठ भाग्य कभी अपने लिए सोचा था? कभी उम्मीद भी नहीं थी कि इतना श्रेष्ठ भाग्य हमें प्राप्त हो सकता है लेकिन नाउम्मीद आत्माओं को बाप ने उम्मीदवार बना दिया। नाउम्मीदी का समय अब समाप्त हो गया। अभी हर कदम में उम्मीद रहती है कि हमारी सफलता है ही। यह संकल्प तो नहीं आता कि पता नहीं होगी या नहीं होगी? किसी भी कार्य में चाहे स्वयं के पुरूषार्थ में, चाहे सेवा में, दोनों में नाउम्मीदी का संस्कार समाप्त हो जाए। कोई भी संस्कार चाहे काम का, चाहे लोभ का, चाहे अहंकार का, बदलने में नाउम्मीदी न आए। ऐसे नहीं मैं तो बदल ही नहीं सकता, यह तो बदलना बड़ा मुश्किल है। ऐसा संकल्प भी न आये। क्योंकि अगर अभी नहीं खत्म करेंगे तो कब करेंगे? अभी दशहरा है ना। सतयुग में तो दीपमाला हो जायेगी। रावण को खत्म करने का दशहरा अभी है। इसमें सदा विजय का उमंग उत्साह रहे। नाउम्मीदी के संस्कार नहीं। कोई भी मुश्किल कार्य इतना सहज अनुभव हो जैसे कोई बड़ी बात ही नहीं है क्योंकि अनेक बार कार्य कर चुके हैं। कोई नई बात नहीं कर रहे हैं। कई बार की हुई को रिपीट कर रहे हैं। तो सदा उम्मीदवार। नाउम्मीद का नाम निशान भी न रहे। कभी कोई स्वभाव संस्कार में संकल्प न आये कि पता नहीं यह परिवर्तन होगा या नहीं होगा। सदा के विजयी, कभी-कभी के नहीं। अगर कोई स्वप्न में भी कमी हो तो उसको सदा के लिए समाप्त कर देना। नाउम्मीद को सदा के लिए उम्मीद में बदल देना। निश्चय अटूट है तो विजय भी सदा है। निश्चय में जब क्यों, क्या आता तो विजय अर्थात् प्राप्ति में भी कुछ न कुछ कमी पड़ जाती है तो सदा उम्मीदवार, सदा विजयी। नाउम्मीदों को सदाकाल के लिए उम्मीदों में बदलने वाले।

(2) सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें, पुरूषोत्तम आत्मायें वा ब्राह्मण चोटी महान आत्मायें समझते हो? अभी से पुरूषोत्तम बन गये ना। दुनिया में और भी पुरूष हैं लेकिन उन्हों से न्यारे और बाप के प्यारे बन गये इसलिए पुरूषोत्तम बन गये। औरों के बीच में अपने को अलौकिक समझते हो ना! चाहे सम्पर्क में लौकिक आत्माओं के आते लेकिन उनके बीच में रहते हुए भी मैं अलौकिक न्यारी हूँ यह तो कभी नहीं भूलना है ना! क्योंकि आप बन गये हो हंस, ज्ञान के मोती चुगने वाले होली हंसहो। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते, गन्द ही बोलते...तो बगुलों के बीच में रहते हुए अपना होलीहंस जीवन कभी भूल तो नहीं जाते! कभी उसका प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? वैसे तो उसका प्रभाव है मायावी और आप हो मायाजीत तो आपका प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, उनका आप पर नहीं। तो सदा अपने को होलीहंस समझते हो? होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। ब्राह्मण आत्मायें जो ऊँच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते। बगुले से होलीहंस बन गये। तो होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र। पवित्रता ही स्वच्छता है। हंस सदा स्वच्छ है, सदा सफेद-सफेद। सफेद भी स्वच्छता वा पवित्रता की निशानी है। आपकी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की निशानी है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता है तो होलीहंस नहीं। होलीहंस संकल्प भी अशुद्ध नहीं कर सकते। संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरूस्त नहीं रह सकते। व्यर्थ चीज़ को फेंका जाता, इकट्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।’’ अच्छा –

पाण्डवों से - पाण्डव अर्थात् संकल्प और स्वप्न में भी हार न खाने वाले। विशेष यह स्लोगन याद रखना कि पाण्डव अर्थात् सदा विजयी। स्वप्न भी विजय का आये। इतना परिवर्तन करना। सभी जो बैठे हो - विजयी पाण्डव हो। वहाँ जाकर हार खा ली, यह पत्र तो नहीं लिखेंगे? माया आ नहीं जाती लेकिन आप उसे खुद बुलाते हो। कमज़ोर बनना अर्थात् माया को बुलाना। तो किसी भी प्रकार की कमज़ोरी माया को बुलाती है। तो पाण्डवों ने क्या प्रतिज्ञा की? सदा विजयी रहेंगे! हार खा करके छिपना नहीं, लेकिन सदा विजयी रहना। ऐसे प्रतिज्ञा करने वालों को सदा बापदादा की बधाई मिलती रहती है। सदा वाह-वाह के गीत बाप ऐसे बच्चों के लिए गाते रहते हैं। तो वाह-वाह के गीत सुनेंगे ना सभी। हार होगी तो हाय-हाय करेंगे, विजयी होंगे तो वाह-वाह करेंगे। सब विजयी, सारे ग्रुप में एक भी हार खाने वाला नहीं!

अच्छा - ओम शान्ति।



19-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुग का प्रभु फल खाने से सर्व प्राप्तियाँ

कर्मयोग की शिक्षा देने वाले, सर्व स्नेही बापदादा बोले:-

आज बापदादा अपने सर्व स्नेही बच्चों को स्नेह का रिटर्न देने, मिलन मनाने, स्नेह का प्रत्यक्षफल, स्नेह की भावना का श्रेष्ठ फल देने के लिए बच्चों के संगठन में आये हैं। भक्ति में भी स्नेह और भावना भक्त-आत्मा के रूप में रही। तो भक्त रूप में भक्ति थी लेकिन शक्ति नहीं थी। स्नेह था लेकिन पहचान वा सम्बन्ध श्रेष्ठ नहीं था। भावना थी लेकिन अल्पकाल की कामना भरी भावना थी। अभी भी स्नेह और भावना है लेकिन समीप सम्बन्ध के आधार पर स्नेह है। अधिकारीपन के शक्ति की, अनुभव के अथार्टी की श्रेष्ठ भावना है। भिखारीपन की भावना बदल, सम्बन्ध बदल अधिकारीपन का निश्चय और नशा चढ़ गया। ऐसे सदा श्रेष्ठ प्राप्ति और सेवा की भावना वाली श्रेष्ठ आत्माओं को प्रत्यक्षफल प्राप्त हुआ है। सभी प्रत्यक्षफल के अनुभवी आत्मायें हो? प्रत्यक्षफल खाकर देखा है? और फल तो सतयुग में भी मिलेंगे और अब कलियुग के भी बहुत फल खाये। लेकिन संगमयुग का प्रभुफल’, प्रत्यक्ष फल अगर अब नहीं खाया तो सारे कल्प में नहीं खा सकते। बापदादा सभी बच्चों से पूछते हैं - प्रभु फल, अविनाशी फल, सर्व शक्तियाँ, सर्वगुण, सर्व सम्बन्ध के स्नेह के रस वाला फल खाया है? सभी ने खाया है या कोई रह गया है? यह ईश्वरीय जादू का फल है। जिस फल खाने से लोहे से पारस से भी ज्यादा हीरा बन जाते हो। इस फल से जो संकल्प करो वह प्राप्त कर सकते हो। अविनाशी फल, अविनाशी प्राप्ति। ऐसे प्रत्यक्ष फल खाने वाले सदा ही माया के रोग से तन्दुरूस्त रहते है। दुःख, अशान्ति से, सर्व विघ्नों से सदा दूर रहने का अमर फल मिल गया है! बाप का बनना और ऐसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होना।

आज बापदादा आये हुए विशेष पाण्डव सेना को देख हर्षित तो हो ही रहे हैं। साथ-साथ ब्रह्मा बाप के हमजिन्स है। तो हमजिन्स से सदा पार्टी की जाती, पिकनिक मनाई जाती। तो आज इस प्रभुफल की पिकनिक मना रहे हैं। लक्ष्मी नारायण भी ऐसी पिकनिक नहीं करेंगे। ब्रह्मा बाप और ब्राह्मणों की यह अलौकिक पिकनिक है। ब्रह्मा बाप हमजिन्स को देख हर्षित होते हैं। लेकिन हमजिन्स ही बनना। हर कदम में फालो फादर करने वाले समान साथी अर्थात् हमजिन्स। ऐसे हमजिन्स हो ना वा अभी सोच रहे हो क्या करें कैसे करें। सोचने वाले हो वा समान बनने वाले हो? सेकण्ड में सौदा करने वाले हो वा अभी भी सोचने का समय चाहिए? सौदा करके आये हो वा सौदा करने आये हो? परमिशन किसको मिली है, सभी ने फार्म भरे थे? वा छोटी-छोटी ब्राह्मणियों को बातें बताके पहुँच गये हो? ऐसे बहुत मीठी-मीठी बातें बताते हैं। बापदादा के पास सभी के मन के सफाई की और चतुराई की दोनों बाते पहुँचती हैं। नियम प्रमाण सौदा करके आना है। लेकिन मधुबन में कई सौदा करने वाले भी आ जाते हैं। करके आने वाले के बजाए यहाँ आकर सौदा करते हैं इसलिए बापदादा क्वान्टिटी में क्वालिटी को देख रहे हैं। क्वान्टिटी की विशेषता अपनी है, क्वालिटी की विशेषता अपनी है। चाहिए दोनों ही। गुलदस्ते में वैरायटी रंग रूप वाले फूलों से सजावट होती है। पत्ते भी नहीं होंगे तो गुलदस्ता नहीं शोभेगा। तो बापदादा के घर के शृंगार तो सभी हुए, सभी के मुख से बाबा शब्द तो निकलता ही है। बच्चे घर का शृंगार होते हैं। अभी भी देखो यह ओम शान्ति भवन का हाल आप सबके आने से सज गया है ना। तो घर के शृंगार, बाप के शृंगार, सदा चमकते रहो। क्वान्टिटी से क्वालिटी में परिवर्तन हो जाओ। समझा - आज तो सिर्फ मिलने का दिन था फिर भी ब्रह्मा बाप को हमजिन्स पसन्द आ गये। इसलिए पिकनिक की। अच्छा - सदा प्रभु फल खाने के अधिकारी, सदा ब्रह्मा बाप समान सेकण्ड में सौदा करने वाले, हर कर्म में कर्मयोगी, ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, ऐसे बाप समान विशेष आत्माओं को, चारों ओर के क्वालिटी और क्वान्टिटी वाले बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात (अधरकुमारों से)

(1) सदा अपने को विश्व के अन्दर कोटो में से कोई हम हैं - ऐसे अनुभव करते हो? जब भी यह बात सुनते हो - कोटों से कोई, कोई में भी कोई तो वह स्वयं को समझते हो? जब हूबहू पार्ट रिपीट होता है तो उस रिपीट हुए पार्ट में हर कल्प आप लोग ही विशेष होंगे ना! ऐसे अटल विश्वास रहे। सदा निश्चयबुद्धि सभी बातों में निश्चिन्त रहते हैं। निश्चय की निशानी है निश्चिन्त। चिन्तायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओं की चिता से बचा लिया ना! चिंताओं की चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया। बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर लगन की अग्नि में चिन्तायें सब ऐसे समाप्त हो गई जैसे थी ही नहीं। एक सेकण्ड में समाप्त हो गई ना! ऐसे अपने को शुभचिन्तक आत्मायें अनुभव करते हो! कभी चिंता तो नहीं रहती! न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता। क्योंकि दाल रोटी तो खाना है और बाप के गुण गाना है। दाल रोटी तो मिलनी ही है। तो न धन की चिंता, न मन की परेशानी और न तन के कर्मभोग की भी चिंता। क्योंकि जानते हैं यह अन्तिम जन्म और अन्त का समय है इसमें सब चुक्तु होना है इसलिए सदा -शुभचिन्तक। क्या होगा! कोई चिंता नहीं। ज्ञान की शक्ति से सब जान गये। जब सब कुछ जान गये तो क्या होगा, यह क्वेश्चन खत्म। क्योंकि ज्ञान है जो होगा वह अच्छे ते अच्छा होगा। तो सदा शुभचिन्तक, सदा चिन्ताओं से परे निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त आत्मायें, यही तो जीवन है। अगर जीवन में निश्चिन्त नहीं तो वह जीवन ही क्या है! ऐसी श्रेष्ठ जीवन अनुभव कर रहे हो? परिवार की भी चिन्ता तो नहीं है? हरेक आत्मा अपना हिसाब किताब चुक्तु भी कर रही है और बना भी रही है इसमें हम क्या चिंता करें! कोई चिंता नहीं। पहले चिता पर जल रहे थे अभी बाप ने अमृत डाल जलती चिता से मरजीवा बना दिया। जिन्दा कर दिया। जैसे कहते हैं मरे हुए को जिन्दा कर दिया। तो बाप ने अमृत पिलाया और अमर बना दिया। मरे हुए मुर्दे के समान थे और अब देखो क्या बन गये। मुर्दे से महान बन गये। पहले कोई जान नहीं थी तो मुर्दे समान ही कहेंगे ना। भाषा भी क्या बोलते थे, अज्ञानी लोग भाषा में बोलते हैं - मर जाओ ना। या कहेंगे हम मर जाए तो बहुत अच्छा। अब तो मरजीवा हो गये, विशेष आत्मायें बन गये। यही खुशी है ना। जलती हुई चिता से अमर हो गये, यह कोई कम बात है! पहले सुनते थे भगवान मुर्दे को भी जिन्दा करता है, लेकिन कैसे करता यह नहीं समझते थे। अभी समझते हो हम ही जिन्दा हो गये तो सदा नशे और खुशी में रहो।

टीचर्स के साथ

सेवाधारियों की विशेषता क्या है? सेवाधारी अर्थात् आँख खुले और सदा बाप के साथ बाप के समान स्थिति का अनुभव करे। अमृतवेले के महत्व को जानने वाले विशेष सेवाधारी। विशेष सेवाधारी की महिमा है - जो विशेष वरदान के समय को जानें और विशेष वरदानों का अनुभव करें। अगर अनुभव नहीं तो साधारण सेवाधारी हुए, विशेष नहीं। विशेष सेवाधारी बनना है तो यह विशेष अधिकार लेकर विशेष बन सकते हो। जिसको अमृतवेले का, संकल्प का, समय का और सेवा का महत्व है ऐसे सर्व महत्व को जानने वाले विशेष सेवाधारी होते हैं। तो इस महत्व को जान महान बनना है। इसी महत्व को जान स्वयं भी महान बनो और औरों को भी महत्व बतलाकर, अनुभव कराकर महान बनाओ।

अच्छा - ओम् शान्ति।



21-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुगी मर्यादाओं पर चलना ही पुरूषोत्तम बनना है

सदा आत्मिक स्थिति में स्थित करने वाले, समर्थ स्थिति के हंस आसन पर स्थित करने वाले, त्रिकालदर्शी अव्यक्त बाप दादा बोले:-

आज बापदादा सर्व मर्यादा पुरूषोत्तम बच्चों को देख रहे हैं। संगमयुग की मर्यादायें ही पुरूषोत्तम बनाती हैं। इसलिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता है। इन तमोगुणी मनुष्य आत्माओं और तमोगुणी प्रकृति के वायुमण्डल, वायब्रेशन से बचने का सहज साधन यह मर्यादायेंहैं। मर्यादाओं के अन्दर रहने वाले सदा मेहनत से बचे हुए हैं। मेहनत तब करनी पड़ती है जब मर्यादाओं की लकीर से संकल्प, बोल वा कर्म से बाहर निकल आते हैं। मर्यादायें हर कदम के लिए बापदादा द्वारा मिली हुई हैं - उसी प्रमाण पर कदम उठाने से स्वत: ही मर्यादा पुरूषोत्तम बन जाते हैं। अमृतवेले से लेकर रात तक मर्यादापूर्वक जीवन को अच्छी तरह से जानते हो! उसी प्रमाण चलना यही पुरूषोत्तम बनना है। जब नाम ही है पुरूषोत्तम है अर्थात् सर्व साधारण पुरूषों से उत्तम। तो चेक करो कि हम श्रेष्ठ आत्माओं की पहली मुख्य बात स्मृतिउत्तम है? स्मृति उत्तम है तो वृत्ति और दृष्टि, स्थिति स्वत: ही श्रेष्ठ है। स्मृति के मर्यादा की लकीर जानते हो? मैं भी श्रेष्ठ आत्मा और सर्व भी एक श्रेष्ठ बाप की आत्मायें हैं! वैरायटी आत्मायें वैरायटी पार्ट बजाने वाली हैं। यह पहला पाठ नैचुरल रूप में स्मृति स्वरूप में रहे। देह को देखते भी आत्मा को देखें। यह समर्थ स्मृति हर सेकण्ड स्वरूप में आये, स्मृति स्वरूप हो जाएँ। सिर्फ सिमरण में न हो कि मैं भी आत्मा यह भी आत्मा। लेकिन मैं भी हूँ ही आत्मा, यह भी है ही आत्मा। इस पहली स्मृति की मर्यादा स्वयं को सदा निर्विघ्न बनाती और औरों को भी इस श्रेष्ठ स्मृति के समर्थ पन के वायब्रेशन फैलाने के निमित्त बन जाते हैं, जिससे और भी निर्विघ्न बन जाते हैं।

पाण्डव सेना मिलन मनाने तो आई लेकिन मिलन के साथ-साथ पहली मर्यादा के लकीर का फाउण्डेशन स्मृति भवका वरदान भी सदा साथ ले जाना।स्मृति भवही - समर्थ भवहै। जो भी कुछ सुना उसका इसेन्स क्या ले जायेंगे? इसेन्स है स्मृति भव। इसी वरदान को सदा अमृतवेले रिवाइज़ करना। हर कार्य करने के पहले इस वरदान के समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ निर्णय कर, व्यर्थ है वा समर्थ है, फिर कर्म में आना। कर्म करने के बाद फिर से चेक करो कि कर्म का आदिकाल और अन्तकाल तक समर्थ रहा? नहीं तो कई बच्चे कर्म के आदिकाल समय समर्थ स्वरूप से शुरू करते लेकिन मध्य में समर्थ के बीच व्यर्थ वा साधारण कर्म कैसे हो गया, समर्थ के बजाए व्यर्थ की लाइन में कैसे और किस समय गये, यह मालूम नहीं पड़ता। फिर अन्त में सोचते हैं कि जैसे करना था वैसे नहीं किया। लेकिन रिजल्ट क्या हुई! करके फिर सोचना यह त्रिकालदर्शी आत्माओं के लक्षण नहीं हैं। इसलिए तीनों कालों में - स्मृति भव वा समर्थ भव। समझा क्या ले जाना है। समर्थ स्थिति के आसन को कभी छोड़ना नहीं। यह आसन ही हंस आसन है। हंस की विशेषता, निर्णय शक्ति की विशेषता है। निर्णय शक्ति द्वारा सदा ही मर्यादा पुरूषोत्तम स्थिति में आगे बढ़ते जायेंगे। यह वरदान ‘‘आसन’’ और यह ईश्वरीय टाइटिल ‘‘मर्यादा पुरूषोत्तम’’ का सदा साथ रहे। अच्छा - आज तो सिर्फ बधाई देने का दिन है। सेवा पर जा रहे हैं तो बधाई का दिन है ना! लौकिक घर नहीं लेकिन सेवा स्थान पर जा रहे हैं। बगुलों के बीच भी जा रहे हो लेकिन सेवा अर्थ जा रहे हो। कर्म सम्बन्ध नहीं समझ के जाना लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्म सम्बन्ध चुक्तु करने नहीं बैठे हो लेकिन सेवा का सम्बन्ध निभाने के लिए बैठे हो। कर्मबन्धन नहीं, सेवा का बन्धन है। अच्छा –

सदा व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ स्थिति के हंस आसन पर स्थित रहने वाले, हर कर्म को त्रिकालदर्शी शक्ति से, तीनों काल समर्थ बनाने वाले, सदा स्वत: आत्मिक स्थिति में स्थित रहने वाले, ऐसे मर्यादा पुरूषोत्तम श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान अनुभव करते हो? जिसका बाप ही भाग्यविधाता हो वह कितना न भाग्यवान होगा! भाग्यविधाता बाप है तो वह वर्से में क्या देगा? जरूर श्रेष्ठ भाग्य ही देगा ना! सदा भाग्यविधाता बाप और भाग्य दोनों ही याद रहें। जब अपना श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहेगा तब औरों को भी भाग्यवान बनाने का उमंग उत्साह रहेगा। क्योंकि दाता के बच्चे हो। भाग्य विधाता बाप ने बह्मा द्वारा भाग्य बाँटा, तो आप ब्राह्मण भी क्या करेंगे? जो ब्रह्मा का काम, वह ब्राह्मणों का काम। तो ऐसे भाग्य बाँटने वाले। वे लोग कपड़ा बाँटेंगे, अनाज बाँटेंगे, पानी बाँटेंगे लेकिन श्रेष्ठ भाग्य तो भाग्य विधाता के बच्चे ही बाँट सकते। तो भाग्य बाँटने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें हो। जिसे भाग्य प्राप्त है उसे सब कुछ प्राप्त है। वैसे अगर आज किसी को कपड़ा देंगे तो कल अनाज की कमी पड़ जायेगी, कल अनाज देंगे तो पानी की कमी पड़ जायेगी। एक-एक चीज़ कहाँ तक बाँटेंगे। उससे तृप्त नहीं हो सकते। लेकिन अगर भाग्य बाँटा तो जहाँ भाग्य है वहाँ सब कुछ है। वैसे भी कोई को कुछ प्राप्त हो जाता है तो कहते हैं - वाह मेरा भाग्य! जहाँ भाग्य है वहाँ सब प्राप्त है। तो आप सब श्रेष्ठ भाग्य का दान करने वाले हो। ऐसे श्रेष्ठ महादानी, श्रेष्ठ भाग्यवान। यही स्मृति सदा उड़ती कला में ले जायेगी। जहाँ श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति होगी वहाँ सर्व प्राप्ति की स्मृति होगी। इस भाग्य बाँटने में फराखदिल बनो। यह अखुट है। जब थोड़ी चीज़ होती है तो उसमें कन्जूसी की भावना आ सकती लेकिन यह अखुट है इसलिए बाँटते जाओ। सदा देते रहो, एक दिन भी दान देने के सिवाए न हो। सदा के दानी सारा समय अपना खज़ाना खुला रखते हैं। एक घण्टा भी दान बन्द नहीं करते। ब्राह्मणों का काम ही है सदा विद्या लेना और विद्या का दान करना। तो इसी कार्य में सदा तत्पर रहो।

(2) सदा अपने को संगमयुगी हीरे तुल्य आत्मायें अनुभव करते हो? आप सभी सच्चे हीरे हो ना! हीरे की बहुत वैल्यु होती है। आपके ब्राह्मण जीवन की कितनी वैल्यु है। इसीलिये ब्राह्मणों को सदा चोटी पर दिखाते हैं। चोटी अर्थात् ऊँचा स्थान। वैसे ऊँचे हैं देवता लेकिन देवताओं से भी ऊँचे तुम ब्राह्मण हो - ऐसा नशा रहता है? मैं बाप का, बाप मेरा यही ज्ञान है ना! यही एक बात याद रखनी है। सदा मन में यही गीत चलता रहे - जो पाना था वह पा लिया। मुख का गीत तो एक घण्टा भी गायेंगे तो थक जायेंगे; लेकिन यह गीत गाने में थकावट नहीं होती। बाप का बनने से सब कुछ बन जाते हो, डांस करने वाले भी, गीत गाने वाले भी, चित्रकार भी, प्रैक्टिकल अपना फरिश्ते का चित्र बना रहे हो! बुद्धियोग द्वारा कितना अच्छा चित्र बना लेते हो। तो जो कहो वह सब कुछ हो। बड़े ते बड़े बिजनेसमैन भी हो, मिलों के मालिक भी हो, तो सदा अपने इस आक्यूपेशन को स्मृति में रखो। कभी खान के मालिक बन जाओ तो कभी आार्टिस्ट बन जाओ, कभी डांस करने वाले बन जाओ...बहुत रमणीक ज्ञान है, सूखा नहीं है। कई कहते हैं क्या रोज वही आत्मा, परमात्मा का ज्ञान सुनते रहें, लेकिन यह आत्मा परमात्मा का सूखा ज्ञान नहीं है। बहुत रमणीक ज्ञान है, सिर्फ रोज अपना नया-नया टाइटिल याद रखो - मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन सी आत्मा हूँ? कभी आार्टिस्ट की आत्मा हूँ, कभी बिजनेसमैन की आत्मा हूँ... तो ऐसे रमणीकता से आगे बढ़ते रहो। बाप भी रमणीक है ना! देखो कभी धोबी बन जाता तो कभी विश्व का रचयिता, कभी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट... तो जैसा बाप वैसे बच्चे... ऐसे ही इस रमणीक ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहो।

वर्तमान समय के प्रमाण स्वयं और सेवा, दोनों की रफ्तार का बैलेन्स चाहिए। हरेक को सोचना चाहिए जितनी सेवा ली है उतना रिटर्न दे रहे हैं। अभी समय है सेवा करने का। जितना आगे बढ़ेंगे, सेवा के योग्य समय होता जायेगा लेकिन उस समय परिस्थितियाँ भी अनेक होंगी। उन परिस्थितियों में सेवा करने के लिए अभी से ही सेवा का अभ्यास चाहिए। उस समय आना जाना भी मुश्किल होगा। मंसा द्वारा ही आगे बढ़ाने की सेवा करनी पड़ेगी। वह देने का समय होगा, स्वयं में भरने का नहीं। इसलिए पहले से ही अपना स्टाक चेक करो कि सर्वशक्तियों का स्टाक भर लिया है। सर्वशक्तियाँ, सर्वगुण, सर्वज्ञान के खज़ाने, याद की शक्ति से सदा भरपूर। किसी भी चीज़ की कमी नहीं चाहिए। अच्छा –

ओम शान्ति।

28 तारीख अमृतवेले बापदादा ने सत्गुरूवार की मुबारक दी

वृक्षपति दिवस की मुबारक। वृक्षपति दिवस पर सदाकाल के लिए बृहस्पति की दशा कायम रहे यही सदा स्मृति स्वरूप रहना। अब तो सभी ने वायदा पक्का किया है ना! कुमार ग्रुप तैयार हो गया तो आवाज़ बुलन्द फैल जायेगा। गवर्मेन्ट तक पहुँच जायेगा। लेकिन अविनाशी रहेंगे तो! गड़बड़ नहीं करना। उमंग उत्साह, हिम्मत अच्छी है, जहाँ हिम्मत है वहाँ मदद तो है ही। शक्तियाँ क्या सोच रही हैं? शक्तियों के बिना तो शिव भी नहीं है। शिव नहीं तो शक्तियाँ नहीं, शक्तियाँ नहीं तो शिव भी नहीं। बाप भी भुजाओं के बिना क्या कर सकता। तो पहली भुजायें कौन? वाह रे मैं!’’

अच्छा - ओम शान्ति।



24-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


रूहानी पर्सनेलिटी

कुमारों की भट्टी में प्राण अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए मधुर महावाक्य:-

आज बापदादा विश्व की सर्व आत्माओं प्रति प्रत्यक्ष जीवन का प्रमाण देने वाले बच्चों से मिलने आये हैं। कुमार सो ब्रह्माकुमार, तपस्वी कुमार, राजऋषि कुमार, सर्व त्याग से भाग्य प्राप्त करने वाले कुमार ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं का आज विशेष संगठन है। कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन गाई जाती है। लेकिन ब्रह्माकुमार डबल शक्तिशाली कुमार है। एक तो शारीरिक शक्ति दूसरी आत्मिक शक्ति। साधारण कुमार शारीरिक शक्ति वा विनाशी आक्यूपेशन की शक्ति वाले हैं। ब्रह्माकुमार अविनाशी ऊँचे ते ऊँचे मास्टर सर्वशक्तिवान के आक्यूपेशन के शक्तिशाली हैं। आत्मा पवित्रता की शक्ति से जो चाहे वह कर सकती है। ब्रह्माकुमारों का संगठन विश्व परिवर्तक संगठन है। सभी अपने को ऐसे शक्तिशाली समझते हो? अपने को पवित्रता का जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त किया हुआ अधिकारी आत्मा समझते हो? ब्रह्माकुमार का अर्थ ही है - पवित्र कुमार। ब्रह्मा बाप ने दिव्य जन्म देते ‘‘पवित्र भव, योगी भव’’ यही वरदान दिया। ब्रह्मा बाप ने जन्मते ही बड़ी माँ के रूप में पवित्रता के प्यार से पालना की। माँ के रूप से सदा पवित्र बनो, योगी बनो, श्रेष्ठ बनो बाप समान बनो, विशेष आत्मा बनो, सर्वगुण मूर्त्त बनो, ज्ञान मूर्त्त बनो, सुख शान्ति स्वरूप बनो, हर रोज यह लोरी दी। बाप के याद की गोदी में पालन किया। सदा खुशियों के झूले में झुलाया। ऐसे मात पिता के श्रेष्ठ बच्चे - ब्रह्माकुमार वा कुमारी हैं। ऐसा स्मृति का समर्थ नशा रहता है! ब्रह्माकुमार के विशेष जीवन के महत्व को सदा याद रखते हो? सिर्फ नामधारी ब्रह्माकुमार तो नहीं? अपने आपको श्रेष्ठ जीवनधारी ब्रह्माकुमार समझते हो? सदा यह याद रहता है कि विश्व की विशाल स्टेज पर पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी हैं। वा सिर्फ घर में वा सेवाकेन्द्र पर वा दफ्तर में पार्ट बजाने वाले हैं! हर कर्म करते विश्व की आत्मायें हमें देख रही हैं यह स्मृति में रहता है? विश्व की आत्मायें जिस नजर से आप सबको देखती हैं यही विशेष पार्टधारी अर्थात् हीरो पार्टधारी हैं, उसी प्रमाण हर कर्म करते रहते हो? वा यह याद रहता कि साधारण रूप से आपस में बोल रहे हैं, चल रहे हैं!

ब्रह्माकुमार का अर्थ ही है सदा प्युरिटी की पर्सनेलिटी और रॉयल्टी में रहना। यही प्युरिटी की पर्सनैलिटी विश्व की आत्माओं को प्युरिटी की तरफ आकर्षित करेगी। और यही प्युरिटी की रॉयल्टी धर्मराजपुरी की रायल्टी देने से छुड़ायेगी। रायल्टी के दोनों ही अर्थ होते हैं। इसी रायल्टी के अनुसार भविष्य रायल फैमली में आ सकेंगे। तो चेक करो ऐसी रॉयल्टी और पर्सनेलिटी जीवन में अपनाई है? यूथ ग्रुप पर्सनेलिटी को ज्यादा बनाती है ना! तो अपनी रूहानी पर्सनेलिटी अविनाशी पर्सनेलिटी अपनाई है? जो भी देखे हरेक ब्रह्माकुमार और कुमारी से यह पर्सनेलिटी अनुभव करे। शरीर की पर्सनेलिटी वह तो आत्माओं को देहभान में लाती है और प्युरिटी की पर्सनेलिटी देही अभिमानी बनाए बाप के समीप लाती है। तो विशेष कुमार ग्रुप को अब क्या सेवा करनी है? एक तो अपने जीवन परिवर्तन द्वारा आत्माओं की सेवा, अपने जीवन के द्वारा आत्माओं को जीयदान देना। स्व-परिवर्तन द्वारा औरों को परिवर्तन करना। अनुभव कराओ कि ब्रह्माकुमार अर्थात् वृत्ति, दृष्टि, कृत्ति और वाणी परिवर्तन। साथ-साथ प्युरिटी की पर्सनेलिटी, रूहानी रायल्टी का अनुभव कराओ। आते ही, मिलते ही इस पर्सनेलिटी की ओर आकर्षित हों। सदा बाप का परिचय देने वाले वा बाप का साक्षात्कार कराने वाले रूहानी दर्पण बन जाओ। जिस चित्र और चरित्र से सर्व को बाप ही दिखाई दे। किसने बनाया? बनाने वाला सदा दिखाई दे। जब भी कोई वन्डरफुल वस्तु को देखते हैं वा वन्डरफुल परिवर्तन देखते हैं तो सबके मन से, मुख से यही आवाज़ निकलता है कि किसने बनाई वा यह परिवर्तन कैसे हुआ। किस द्वारा हुआ। यह तो जानते हो ना। इतना बड़ा परिवर्तन जो कौड़ी से हीरा बन जाए तो सबके मन में बनाने वाला स्वत: ही याद आयेगा। कुमार ग्रुप भागदौड़ बहुत करता है। सेवा में भी बहुत भाग दौड़ करते हो ना। लेकिन सेवा के क्षेत्र में भाग दौड़ करते बैलेन्सरखते हो? स्व सेवा और सर्व की सेवा दोनों का बैलेन्स सदा रहता है। बैलेन्स नहीं होगा तो सेवा की भाग दौड़ में माया भी बुद्धि की भाग दौड़ करा देती है।

बैलेन्स से कमाल होती है। बैलेन्स रखने वाले का परिणाम सेवा में भी कमाल होगी। नहीं तो बाहरमुखता के कारण कमाल के बजाए अपने वा दूसरों के भाव स्वभाव की धमाल में आ जाते हो। तो सदा सर्व की सेवा के साथ-साथ पहले स्व सेवा आवश्यक है। यह बैलेन्स सदा स्व में और सेवा में उन्नति को प्राप्त कराता रहेगा। कुमार तो बहुत कमाल कर सकते हैं। कुमार जीवन के परिवर्तन का प्रभाव जितना दुनिया पर पड़ेगा उतना बड़ों का नहीं। कुमार ग्रुप गवर्मेन्ट को भी अपने परिवर्तन द्वारा प्रभु परिचय दे सकते हो। गवर्मेन्ट को भी जगा सकते हो। लेकिन वह परिक्षा लेंगे। ऐसे ही नहीं मानेंगे। तो ऐसे कुमार तैयार है! गुप्त सी.आई.डी. आपके पेपर लेंगे कि कहाँ तक विकारों पर विजयी बनें हैं। आप सबके नाम गवर्मेन्ट में भेजे? 500 कुमार भी कोई कम थोड़े ही हैं। सबने लेजर में अपना नाम और एड्रेस भरा है ना। तो आपकी लिस्ट भेजें? सभी सोच रहे हैं पता नहीं कौन से सी.आई.डी. आयेंगे! जान बूझ कर क्रोध दिलायेंगे। पेपर तो प्रैक्टिकल लेंगे ना। प्रैक्टिकल पेपर देने लिए तैयार हो? बापदादा के पास सबका हाँ और ना फिल्म की रीति से भर जाता है। यह लक्ष्य रखो कि ऐसा रूहानी आत्मिक शक्तिशाली यूथ ग्रुप बनावें जो विश्व को चैलेन्ज करे कि हम रूहानी यूथ ग्रुप विश्व शान्ति की स्थापना के कार्य में सदा सहयोगी हैं। और इसी सहयोग द्वारा विश्व परिवर्तन करके दिखायेंगे। समझा क्या करना है। ऐसा पक्का ग्रुप हो। ऐसे नहीं आज चैलेन्ज करे और कल स्वयं ही चेन्ज हो जाएं। तो ऐसा संगठन तैयार करो। मैजारिटी नये-नये कुमार हैं। लेकिन लास्ट सो फास्ट जाकर दिखाओ। बैलेन्स की कमाल से विश्व को कमाल दिखाओ। अच्छा –

ऐसे सदा स्व परिवर्तन द्वारा सर्व का परिवर्तन करने वाले, अपने जन्म-सिद्ध वरदान वा अधिकार, ‘योगी भव, पवित्र भवको सदा जीवन में अनुभव कराने वाले, सदा प्युरिटी की पर्सनैलिटी द्वारा अन्य आत्माओं को बाप तरफ आकर्षित कराने वाले, अविनाशी आक्यूपेशन के नशे में रहने वाले, मात पिता की श्रेष्ठ पालना का परिवर्तन द्वारा रिटर्न देने वाले ऐसे रूहानी रायल्टी वाली विशेष आत्माओं को बाप दादा का यादप्यार अौर नमस्ते।

पार्टियों के साथ

(1) सदा अपने को डबल लाइट अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त हल्के समझते हो? हल्के-पन की निशानी क्या है? हल्का सदा उड़ता रहेगा। बोझ नीचे ले आता है। सदा स्वयं को बाप के हवाले करने वाले सदा हल्के रहेंगे। अपनी जिम्मेवारी बाप को दे दो अर्थात् अपना बोझ बाप को दे दो तो स्वयं हल्के हो जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ। अगर बुद्धि से सरेन्डर होंगे तो और कोई बात बुद्धि में नहीं आयेगी। बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं। जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी कोई पुरानी गली, पुराने रास्ते रह तो नहीं गये हैं! बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इसी रास्ते से मंज़िल पर पहुँचो।

(2) सदा खुशी के झूले में झूलने वाले हो ना। कितना बढ़िया झूला बापदादा से प्राप्त हुआ है। यह झूला कभी टूट तो नहीं जाता? याद और सेवा की दोनों रस्सियाँ टाइट हैं तो झूला सदा ही एकरस रहता है। नहीं तो एक रस्सी ढीली, एक टाइट तो झूला हिलता रहेगा। झूला हिलेगा तो झूलने वाला गिरेगा। अगर दोनों रस्सियाँ मजबूत हैं तो झूलने में मनोरंजन होगा। अगर गिरे तो मनोरंजन के बजाए दु:ख हो जायेगा। तो याद और सेवा दोनों रस्सियाँ समान रहें, फिर देखो ब्राह्मण जीवन का कितना आनन्द अनुभव करते हो। सर्वशक्ति- वान बाप का साथ है, खुशियों का झूला है और चाहिए ही क्या!



27-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दृष्टि तथा वृत्ति परिवर्तन के लिए युक्तियाँ

कुमारों की भट्टी में प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य:-

आज बापदादा सर्व पुरूषार्थियों का संगठन देख रहे हैं। इसी पुरुषार्थी शब्द में सारा ज्ञान समाया हुआ है। पुरुषार्थी अर्थात् पुरूष अर्थात् रथी। किसका रथी है? किसका पुरूष है? इस प्रकृति का मालिक अर्थात् रथ का रथी। एक ही शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ तो क्या होगा! सर्व कमज़ोरियों से सहज पार हो जायेंगे। पुरूष प्रकृति के अधिकारी हैं न कि अधीन है। रथी रथ को चलाने वाला है न कि रथ के अधीन हो चलने वाला। अधिकारी सदा सर्वशक्तिवान बाप की सर्वशक्तियों के अधिकारी अर्थात् वर्से के अधिकारी वा हकदार है। सर्वशक्तियाँ बाप की प्रापर्टी हैं और प्रापर्टी का अधिकारी हरेक बच्चा है। यह सर्व शक्तियों का राज्य भाग्य बापदादा सभी को जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में देते हैं। जन्मते ही यह स्वराज्य सर्व शक्तियों का, अधिकारी स्वरूप के स्मृति का तिलक, और बाप के स्नेह में समाये हुए स्वरूप के रूप में दिलतख्त, सभी को जन्म लेते ही दिया है। जन्मते ही विश्व कल्याण के सेवा का ताज हर बच्चे को दिया है। तो जन्म के अधिकार का तख्त, तिलक, ताज और राज्य सबको प्राप्त है ना? ऐसे चारों ही प्राप्तियों की प्राप्ति स्वरूप आत्मायें कमज़ोर हो सकती हैं? क्या यह चार प्राप्तियाँ सम्भाल नहीं सकते हैं? कभी तिलक मिट जाता, कभी तख्त छूट जाता, कभी ताज के बदले बोझ उठा लेते। व्यर्थ कखपन की टोकरी उठा लेते। नाम स्वराज्य है लेकिन स्वयं ही राजा के बदले अधीन प्रजा बन जाते। ऐसा खेल क्यों करते हो? अगर ऐसा ही खेल करते रहेंगे तो सदा के राज्य भाग्य के अधिकार के संस्कार अविनाशी कब बनेंगे! अगर इसी खेल में चलते रहे तो प्राप्ति क्या होगी! जो अपने आदि संस्कार अविनाशी नहीं बना सकते वह आदिकाल के राज्य अधिकारी कैसे बनेंगे। अगर बहुतकाल के योद्धेपन के ही संस्कार रहे अर्थात् युद्ध करते-करते समय बिताया, आज जीत कल हार। अभी- अभी जीत अभी-अभी हार। सदा के विजयीपन के संस्कार नहीं तो इसको क्षत्रिय कहा जायेगा या ब्राह्मण? ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। क्षत्रिय तो फिर क्षत्रिय ही जाकर बनेगा। देवता की निशानी और क्षत्रिय की निशानी में देखो अन्तर है? यादगार चित्रों में उनको कमान दिखाया है, उनको मुरली दिखाई है। मुरली वाले अर्थात् मास्टर मुरलीधर बन विकारों रूपी सांप को विषैले बनने के बजाए विष समाप्त कर, शैया बना दी। कहाँ विष वाला सांप और कहाँ शैया! इतना परिवर्तन किससे किया? मुरली से। ऐसे परिवर्तन करने वाले को ही विजयी ब्राह्मणकहा जाता है। तो अपने से पूछो - मै कौन?

सभी ने अपनी-अपनी कमज़ोरियों को सच्चाई से स्पष्ट किया है। उस सच्चाई की मार्क्स तो मिल जायेंगी लेकिन बापदादा देख रहे थे कि अभी तक जबकि अपने संस्कारों को परिवर्तन करने की शक्ति नहीं आई है, विश्व परिवर्तक कब बनेंगे! अभी दृष्टा हो, दृष्टि द्वारा देखने वाले दृष्टा, दृष्टि क्यों विचलित करते? दिव्य नेत्र से देखते हो वा इस चमड़ी के नेत्रों से देखते हो? दिव्य नेत्र से सदा स्वत: ही दिव्य स्वरूप ही दिखाई देगा। चमड़े की आँखें चमड़े को देखती। चमड़ी को देखना, चमड़ी का सोचना यह किसका काम है! फरिश्तों का? ब्राह्मणों का? स्वराज्य अधिकारियों का? तो ब्राह्मण हो या कौन हो? नाम बोलें क्या?

सदैव हरेक नारी शरीरधारी आत्मा को शक्ति रूप, जगत माता का रूप, देवी का रूप देखना यह है - दिव्य नेत्र से देखना। कुमारी है, माता है, बहन है, सेवाधारी निमित्त शिक्षक है, लेकिन है कौन? शक्ति रूप! बहन-भाई के सम्बन्ध में भी कभी-कभी वृत्ति और दृष्टि चंचल हो जाती है। इसलिए सदा शक्ति रूप हैं। शिव शाक्ति हैं। शक्ति के आगे अगर कोई आसुरी वृत्ति से आते तो उनका क्या हाल होता है, वह तो जानते हो ना। हमारी टीचर नहीं - शिव शक्ति है। ईश्वरीय बहन है इससे भी ऊपर शिव शक्ति रूप देखो। मातायें वा बहनें भी सदा अपने शिव शक्ति स्वरूप में स्थित रहें। मेरा विशेष भाई, विशेष स्टूडेन्ट नहीं। वह शिव शक्ति है और आप महावीर हो। लंका को जलाने वाले, पहले स्वयं के अन्दर रावण वंश को जलाना है। महावीर की विशेषता क्या दिखाते हैं? वह सदा दिल में क्या दिखाता है? वह सदा दिल में क्या दिखाता है? - ‘एक राम दूसरा न कोई। चित्र देखा है ना। तो हर भाई महावीर है, हर बहन शक्ति है। महावीर भी राम का है, शक्ति भी शिव की है। किसी भी देहधारी को देख सदा मस्तक के तरफ आत्मा को देखो। बात आत्मा से करनी है वा शरीर से? कार्य व्यवहार में आत्मा कार्य करता है वा शरीर? सदा हर सेकण्ड शरीर में आत्मा को देखो। नजर ही मस्तक मणी पर जानी चाहिए। तो क्या होगा? आत्मा आत्मा को देखते स्वत: ही आत्म-अभिमानी बन जायेंगे। है तो यह पहला पाठ ना! पहला पाठ ही पक्का नहीं करेंगे, अल्फ को पक्का नहीं करेंगे तो बे बादशाही कैसे मिलेगी? सिर्फ एक बात की सदा सावधानी रखो। जो भी करना है, श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ बनना है। तो हर बात में दृढ़ संकल्प वाले बनो। कुछ भी सहन करना पड़े, सामना करना पड़े लेकिन श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ परिवर्तन करना ही है। इसमें पुरुषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज नहीं करो। पुरुषार्थी हैं, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह अलबेलेपन की भाषा है। उसी घड़ी पुरुषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज नहीं करो। पुरुषार्थी है, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह अलबेलेपन की भाषा है। उसी घड़ी पुरुषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ। पुरूष हूँ, प्रकृति धोखा दे नहीं सकती। यह सब प्रकार की कमज़ोरियाँ अलबेलेपन की निशानियाँ हैं। महावीर तो पहाड़ को भी सेकेण्ड में हथेली पर रख उड़ने वाला है। अर्थात् पहाड़ को भी पानी के समान हल्का बनाने वाला है। छोटी-छोटी परिस्थितियाँ क्या बात हैं! फिर तो ऐसे महावीर को कहेंगे चीटी से घबराने वाले। क्या करें, हो जाता है। यह महावीर के बोल हैं? समझदार यह नहीं कहेंगे कि क्या करें, चोर आ जाता है। समझदार बार-बार धोखा नहीं खाते। अलबेले बार-बार धोखा खाते हैं। सेफ्टी के साधन होते हुए अगर कार्य में नहीं लगाते तो उसको क्या कहेंगे? जानता हूँ कि नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा है, इसको कौन सी समझदारी कहेंगे!

दृढ़ संकल्प वाले बनो। परिवर्तन करना ही है, कल भी नहीं, आज। आज भी नहीं अभी। इसको कहा जाता है महावीर। राम के आज्ञाकारी। आज तो मिलने का दिन था फिर भी बच्चों ने मेहनत की है तो मेहनत का फल रेसपान्ड देना पड़ा। लेकन इन कमज़ोरियों को साथ ले जाना है? दी हुई चीज़ फिर वापिस तो नहीं लेनी है ना! जबरदस्ती आ जावे तो भी आने नहीं देना। दुश्मन को आने दिया जाता है क्या? अटेन्शन, चेकिंग यह डबल लॉक, याद और सेवा यह दूसरा डबल लाक सबके पास है ना। तो सदा यह डबल लाक लगा रहे। दोनों तरफ लाक लगाना। समझा! एक तरफ नहीं लगाना। खातिरी तो स्थूल सूक्ष्म बहुत हुई है। डबल खातिरी हुई है ना। जैसे दीदी दादी वा निमित्त बनी हुई आत्माओं ने दिल से खातिरी की है तो उसके रिटर्न में सब दीदी दादी को खातिरी देकर जाना कि हम अभी से सदा के विजयी रहेंगे। सिर्फ मुख से नहीं बोलना, मन से बोलना। फिर एक मास के बाद इन फोटो वालों को देखेंगे कि क्या कर रहे हैं। किससे भी छिपाओ लेकिन बाप से तो छिपा नहीं सकेंगे। अच्छा –

सदा दृढ़ सकंल्प द्वारा सोचा और किया, दोनों को समान बनाने वाले, सदा दिव्य नेत्र द्वारा आत्मिक रूप को देखने वाले, जहाँ देखें वहाँ आत्मा ही आत्मा देखें, ऐसे अर्थ स्वरूप पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’



30-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


परम पूज्य बनने का आधार

परम पूज्य, महान् आत्मा बनाने वाले श्रेष्ठ पद की प्राप्ति कराने वाले शिव बाबा बोले:-

सभी मधुबन महान तीर्थ पर मेला मनाने के लिए चारों ओर से पहुँच गये हैं। इसी महान तीर्थ के मेले की यादगार अभी भी तीर्थ स्थानों पर मेले लगते रहते हैं। इसी समय का हर श्रेष्ठ कर्म का यादगार चरित्रों के रूप में, गीतों के रूप में अभी भी देख और सुन रहे हो। चैतन्य श्रेष्ठ आत्मायें अपना चित्र और चरित्र देख सुन रही हैं। ऐसे समय पर बुद्धि में क्या श्रेष्ठ संकल्प चलता है? समझते हो ना कि हम ही थे, हम ही अब हैं। और कल्प-कल्प हम ही फिर होंगे। यह ‘‘फिर से’’ की स्मृति और नालेज और किसी भी आत्मा को, महान आत्मा को, धर्म आत्मा को वा धर्म पिता को भी नहीं है। लेकिन आप सब ब्राह्मण आत्माओं को इतनी स्पष्ट स्मृति है वा स्पष्ट नालेज है जैसे 5000 वर्ष की बात कल की बात, है। कल थे आज हैं फिर कल होंगे। तो आज और कल इन दोनों शब्दों मे 5000 वर्ष का इतिहास समाया हुआ है। इतना सहज और स्पष्ट अनुभव करते हो! कोई होंगे वा हम ही थे, हम ही हैं! जड़ चित्रों में अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षात्कार होता है? वा समझते हो कि यह महारथियों के चित्र हैं, वा आप सबके हैं? भारत में 33 करोड़ देवताओं को नमस्कार करते हैं अर्थात् आप श्रेष्ठ ब्राह्मण सो देवताओं के वंश के भी वंश, उनके भी वंश, सभी का पूजन नहीं तो गायन तो करते ही हैं। तो सोचो जो स्वयं पूर्वज हैं उनहों का नाम कितना श्रेष्ठ होगा! और पूजन भी पूर्वजों का कितना श्रेष्ठ होगा। 9 लाख का भी गायन है। उससे आगे 16 हजार का गायन है फिर 108 का है फिर 8 का है। उससे आगे युगल दाने का है। नम्बरवार हैं ना! गायन तो सभी का है क्योंकि जो भाग्य विधाता बाप के बच्चे बने, इस भाग्य के कारण उन्हों का गायन और पूजन दोनों होता है लेकिन पूजन में दो प्रकार का पूजन है। एक है प्रेम की विधि पूर्वक पूजन और दूसरा है सिर्फ नियम पूर्वक पूजन। दोनों में अन्तर हैं ना। तो अपने से पूछो, मैं कौन सी पूज्य आत्मा हूँ? पहले भी सुनाया था कि कोई-कोई भक्त, देवता नाराज़ न हो जाए इस भय से पूजा करते हैं। और कोई-कोई भक्त दिखावा मात्र भी पूजा करते हैं। और कोई-कोई समझते हैं भक्ति का नियम वा फर्ज निभाना है। चाहे दिल हो या न हो लेकिन निभाना है। ऐसे फर्ज समझ करते हैं। चारों ही प्रकार के भक्त किसी न किसी प्रकार से बनते हैं। यहाँ भी देखो देव आत्मा बनने वाले, ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ना। नम्बरवन पूज्य सदा सहज स्नेह से और विधि पूर्वक याद और सेवा वा योगी आत्मा, दिव्यगुण धारण करने वाली आत्मा बन चल रहे हैं। चार सबजेक्ट द्वारा विधि और सिद्धि प्राप्त किये हुए हैं। दूसरे नम्बर के पूज्य विधि पूर्वक नहीं लेकिन नियम समझ करके करेंगे चार ही सबजेक्ट पूरे लेकिन विधि सिद्धि के प्राप्ति स्वरूप हो करके नहीं। लेकिन नियम समझकर चलना ही है, करना ही है, इसी लक्ष्य से जितना कायदा उतना फायदा प्राप्त करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। वह दिल का स्नेह स्वत: और सहज बनाता है। और नियम पूर्वक वालों को कभी सहज कभी मुश्किल लगता। कभी मेहनत करनी पड़ती और कभी मुहब्बत की अनुभूति होती। नम्बरवन लवलीन रहते, नम्बर दो लव में रहते। नम्बर तीसरा मैजारिटी समय चारों ही सबजेक्ट दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र करते हैं। याद में भी बैठेंगे - नामीग्रामी बनने के भाव से। ऐसे दिखावा मात्र सेवा भी खूब करेंगे। जैसा समय वैसा अल्पकाल का रूप भी धारण कर लेंगे लेकिन दिमाग तेज और दिल खाली। नम्बर चौथा सिर्फ डर के मारे कोई कुछ कह न दे कि यह तो है ही लास्ट नम्बर का वा यह आगे चल नहीं सकता, ऐसे कोई इस नजर से नहीं देखे। ब्राह्मण तो बन ही गये और शूद्र जीवन भी पसन्द नहीं और ब्राह्मण जीवन में विधि पूर्वक चलने की हिम्मत नहीं इसलिए मजबूरी मजधार में आ गये। ऐसे मजबूरी वा डर के मारे चलते ही रहते। ऐसे कभी-कभी अपने श्रेष्ठ जीवन का अनुभव भी करते हैं इसलिए इस जीवन को छोड़ भी नहीं सकते। ऐसे को कहेंगे चौथे नम्बर का पूज्य आत्मा। तो उन्हों की पूजा कभी-कभी और डर के मारे मजबूरी भक्त बन निभाना है, इसी प्रमाण चलती रहती। और दिखावा वाले की भी पूजा दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र होती। इसी प्रमाण चलते रहते। तो चार ही प्रकार के पूज्य देखे हैं ना! जैसा अभी स्वयं बनेंगे वैसे ही सतयुग त्रेता की रॉयल फैमिली वा प्रजा उसी नम्बर प्रमाण बनेगी और द्वापर कलियुग में ऐसे ही भक्त माला बनेगी। अभी अपने आप से पूछो - मैं कौन! वा चारों में ही कभी कहाँ कभी कहाँ चक्र लगाते हो? फिर भी भाग्य विधाता के बच्चे बने, पूज्य तो जरूर बनेंगे। नामीग्रामी अर्थात् श्रेष्ठ, पूज्य 16 हजार तक नम्बरवार बन जाते हैं। बाकी 9 लाख लास्ट समय तक अर्थात् कलियुग के पिछाड़ी के समय तक थोड़े बहुत पूज्य बन जाते हैं। तो समझा गायन तो सबका होता है। गायन का आधार है - भाग्य विधाता बाप का बनना। और पूजन का आधार है - चारों सबजेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई, सफाई। ऐसे पर बापदादा भी सदा स्नेह के फूलों से पूजन अर्थात् श्रेष्ठ मानते हैं। परिवार भी श्रेष्ठ मानते हैं और पूजन अर्थात् श्रेष्ठ मानते हैं। परिवार भी श्रेष्ठ मानते हैं और विश्व भी वाह-वाह के नगाड़े बजाए उन्हों की मन से पूजा करेगा। और भक्त तो अपना ईष्ट समझ दिल में समायेंगे। तो ऐसे पूज्य बने हो? जब है ही परमपिता। सिर्फ पिता नहीं है लेकिन परम है तो बनायेंगे भी परम ना! पूज्य बनना बड़ी बात नहीं है लेकिन परम पूज्य बनना है।

बापदादा भी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। मुहब्बत में मेहनत को महसूस न कर पहुँच जाते हैं। अभी तो रेस्ट हाउस में आ गये ना! तन-मन दोनों के लिए रेस्ट हैं ना! रेस्ट माना सोना नहीं। सोना बनने की रेस्ट में आये हैं। पारसपुरी में आ गये हो ना! जहाँ संग ही पारस आत्माओं का है, वायुमण्डल ही सोना बनाने वाला है। बातें ही दिन रात सोना बनने की हैं। अच्छा –

ऐसे सदा परम पूज्य आत्माओं को, सदा विधि द्वारा श्रेष्ठ सिद्धि को पाने वाले, सदा महान बन महान आत्मायें बनाने वाले, स्वयं को सदा सहज और स्वत: योगी, निरन्तर योगी स्नेह सम्पन्न योगी, अनुशासन करने वाले, ऐसी सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के आकारी रूपधारी समीप बच्चों को, ऐसे साकारी आकारी सर्व सम्मुख उपस्थित हुए बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

दीदी-दादी जी से

सभी परमपूज्य हो ना! पूजा अच्छी हो रही है ना! बापदादा को तो अनन्य बच्चों पर नाज है। बाप को नाज है और बच्चों में राज़ हैं। जो राज़युक्त हैं उन बच्चों पर बाप को सदा नाज है। राज़युक्त, योगयुक्त, गुण युक्त...सबका बैलेन्स रखने वाले सदा बाप की ब्लैसिंग की छाया में रहने वाले। ब्लैसिंग की सदा ही वर्षा होती रहती है। जन्मते ही यह ब्लैसिंग की वर्षा शुरू हुई है और अन्त तक इसी छत्रछाया के अन्दर गोल्डन फूलों की वर्षा होती रहेगी। इसी छाया के अन्दर चले हैं, पले हैं और अन्त तक चलते रहेंगे। सदा ब्लैसिंग के गोल्डन फूलों की वर्षा। हर कदम बाप साथ है अर्थात् ब्लैसिंग साथ है। इसी छाया में सदा रहे हो। (दादी से) शुरू से अथक हो अथक भव का वरदान है इसलिए करते भी नहीं करते, यह बहुत अच्छा। फिर भी अव्यक्त होते समय जिम्मेवारी का ताज तो डाला है ना। इनको (दीदी को) साकार के साथसाथ सिखाया और आपको अव्यक्त होने समय सेकेण्ड में सिखाया। दोनों को अपने-अपने तरीके से सिखाया। यह भी ड्रामा का पार्ट है। अच्छा!

विदाई के समय 6.30 बजे सुबह

संगमयुग की सब घड़ियाँ गुडमार्निंग ही हैं। क्योंकि संगमयुग पूरा ही अमृतवेला है। चक्र के हिसाब से संगमयुग अमृतवेला हुआ ना। तो संगमयुग का हर समय गुडमोर्निंग ही है। तो बापदादा आते भी गुडमोर्निंग में हैं, जाते भी गुडमोर्निंग में हैं। क्योंकि बाप आता है तो रात से अमृतवेला बन गया। तो आते भी अमृतवेले में हैं और जब जाते हैं तो दिन निकल आता है लेकिन रहता अमृतवेले में ही है, दिन निकलता तो चला जाता है। और आप लोग सवेरा अर्थात् सतयुग का दिन ब्रह्मा का दिन, उसमें राज्य करते हो। बाप तो न्यारे हो जायेंगे ना। तो पुरानी दुनिया के हिसाब से सदा ही गुडमोर्निंग है। सदा ही शुभ है और सदा शुभ रहेगा। इसलिए शुभ सवेरा कहें, शुभ रात्रि कहें, शुभ दिन कहें, सब शुभ ही शुभ है। तो सभी को कलियुग के हिसाब से गुडमोर्निंग और संगमयुग के हिसाब से गुडमोर्निंग तो गुडमोर्निंग।

अच्छा - ओम शान्ति।

प्रश्न :- ब्राह्मण जीवन में मुख्य फाउन्डेशन कौन सा है?

उत्तर :- स्मृति ही ब्राह्मण जीवन में फाउन्डेशन है। स्मृति का सदा अटेन्शन। स्मृति सदा समर्थ रहे तो सदा विजयी हैं। जैसे शरीर के लिए श्वांस फाउन्डेशन है ऐसे ब्राह्मण जीवन के लिए स्मृतिफाउन्डेशन है, सदा स्मृति रहें - यह ब्राह्मण जन्म विशेष जन्म है, साधारण नहीं। ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ ऊँचे पार्टधारी हैं। तो ऊँचे पार्टधारी का हर संकल्प, हर बोल विशेष, साधारण नहीं हो सकता।



02-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दोषी माया नहीं

ज्ञान के सागर, सर्वशक्तिवान शिव बाबा, बालक सो मालिक बच्चों प्रति बोले:-

आज बापदादा सारे संगठन में विशेष उन आत्माओं को देख रहे हैं जो ज्ञान और योग के स्वरूप बन मास्टर रचयिता की स्टेज पर सदा स्थित रहते हैं। ज्ञानी और योगी तो सभी अपने को कहलाते लेकिन ज्ञानी तू बाप समान आत्मा, योगी तू बाप समान आत्मा, इसमें नम्बरवार हैं। बाप समान अर्थात् मास्टर रचता की पोजीशन में सदा स्थित रहते। इस मास्टर रचता के सहज आसन पर स्थित हुई शक्तिशाली आत्मा के आगे सारी रचना दासी के रूप में, सेवा में सहयोगी बन जाती है। मास्टर रचता सेकेण्ड में अपने शुद्ध संकल्प रूपी आर्डर से जो वायुमण्डल बनाने चाहे वह बना सकते हैं। जैसा वायब्रेशन फैलाने चाहें वैसे फैला सकते हैं। जिस शक्ति को आह्वान करें वह शक्ति सहयोगी बन जाती। जिस आत्मा को जो अप्राप्ति है वह जानकर, सर्व प्राप्तियों का मास्टर दाता बन उन आत्माओं को दे सकते हैं। ऐसे शक्तिशाली मास्टर रचता सदा सहज आसनधारी कहाँ तक बने हैं यह देख रहे थे। क्या देखा, नम्बरवार तो सब हैं ही। लेकिन ऐसे भी मास्टर रचता कहलाने वाले देखे जो अपनी रचना - संकल्प शक्ति के एक व्यर्थ संकल्प से घबरा जाते हैं। डर जाते हैं। स्मृति का प्रेशर लो हो जाता है। इसलिए उमंग उत्साह की धड़कन बहुत स्लो (Slow हो जाती है। दिलशिकस्त का पसीना निकल आता है ना! ऐसा होता है ना! क्या करें, कैसे करें, इसमें परेशान हो जाते हैं। गलती एक सेकण्ड की है। अपने मास्टर रचता की पोजीशन से नीचे आ जाते हैं। जहाँ पोजीशन समाप्त हुआ वा विस्मृत हुआ उसी सेकण्ड माया की सैना आपोजीशन करने पहुँच जाती है। आह्वान कौन करता माया को? स्वयं नीचे आ जाते, पोजीशन की सीट को छोड़ देते तो खाली स्थान को माया अपना बना लेती है। इसलिए माया कहती - दोषी मैं नहीं, लेकिन आह्वान करते हैं तो मैं पहुँच जाती। समझा! अच्छा आज तो मिलने का दिन है, फिर सुनायेंगे कि और क्या-क्या करते हैं।

सर्व मास्टर रचता, सहज आसनधारी, सदा बालक सो मालिकपन के स्मृति स्वरूप, सदा बाप समान ज्ञान युक्त, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

कुमारियों से :- कुमारियों ने अपना फैसला कर लिया है? क्योंकि कुमारी जीवन ही फैसले का समय होता है। फैसले के समय पर बाप के पास पहुँच गई, कितनी भाग्यवान हो! अगर थोड़ा भी आगे जीवन चल जाती तो पिंजरे की मैना बन जाती। तो क्या बनना है - पिंजरे की मैना या स्वतन्त्र पंछी? कुमारी तो स्वतन्त्र पंछी है। कुमारियों को नौकरी करने की भी क्या आवश्यकता है! क्या बैंक बैलेन्स करना है? लौकिक बाप के पास रहेंगी तो भी दो रोटी मिल जायेंगी, अलौकिक के पास रहेंगी तो भी कोई कमी नहीं, फिर नौकरी क्यों करती? क्या सेन्टर पर रहने में डर लगता है! अगर कहते ममता है तो भी दु:ख की लहर आ सकती है। वैसे भी कुमारी घर में नहीं रहती। इसी नशे में रहो - हम हैं बाप के तख्तनशीन। सतयुग का राज्य तख्त भी इस तख्त के आगे कुछ नहीं है। सदा ताज और तिलकधारी हैं, इस स्मृति में रहो। अगर कोई को बैठने के लिए बढ़िया आसन मिल जाए तो छोड़ेगा कैसे! बनना है तो श्रेष्ठ ही बनना है, हाँ तो हाँ। मरना है तो धक से। यही मरना मीठा है। अगर लक्ष्य पक्का है तो कोई भी हिला नहीं सकता। लक्ष्य कच्चा है तो कई बहाने, कई बातें आयेंगी जो रूकावट डालेंगी। इसलिए सदा दृढ़ संकल्प करना।

अधरकुमारों के ग्रुप से :- सभी प्रकार की मेहनत से बाप ने छुड़ा दिया है ना? भक्ति की मेहनत से छूट गये और गृहस्थी जीवन की मेहनत से भी छूट गये। गृहस्थी जीवन में ट्रस्टीबन गये तो मेहनत खत्म हो गई ना! और भक्ति का फल मिल गया तो भक्ति का भटकना अर्थात् मेहनत खत्म हो गई। भक्ति का फल खाने वाले हैं, ऐसा समझते हो? वैसे भक्ति का फल ज्ञान कहते हैं, लेकिन आप लोगों को भक्ति का फल स्वयं ज्ञान दातामिल गया। तो भक्ति का फल भी मिला और गृहस्थी के जो दु:ख, अशान्ति के झंझट थे वह भी खत्म हो गये, दोनों से मुक्त हो गये। जीवनबन्ध से जीवनमुक्त आत्मायें हो गई। जब कोई बन्धन से मुक्त हो जाता है तो खुशी में नाचता है। आप भी बन्धनमुक्त आत्मायें सदा खुशी में नाचते रहो। बस गीत गाओ और खुशी में नाचो। यह तो सहज काम है ना! सदा याद रखो - जीवनमुक्त आत्मायें हैं। सब बन्धन समाप्त हो गये, मेहनत से छूट गये, मुहब्बत में आ गये। तो सदा हल्के होकर उड़ो। पुजारी से पूज्य, दुखी से सुखी, काँटों से फूल बन गये, कितना अन्तर हो गया! अभी पुरानी कलियुगी दुनिया के कोई भी संस्कार न रहें। अगर पुरानी दुनिया का कोई भी पुराना संस्कार रह गया तो वह अपनी तरफ खींच लेगा। इसलिए सदा नई जीवन नये संस्कार। श्रेष्ठ जीवन है तो श्रेष्ठ संस्कार चाहिए। श्रेष्ठ संस्कार हैं ही स्व-कल्याण और विश्व-कल्याण करना। ऐसे संस्कार भर गये हैं? स्व-कल्याण और विश्व-कल्याण के सिवाए और कोई संस्कार होंगे तो इस जीवन में विघ्न डालेंगे। इसलिए पुराने संस्कार सब समाप्त। सदा यह स्मृति में रहे कि - मैं रूहानी गुलाब हूँ।रूहानी गुलाब अर्थात् सदा रूहानी खुशबू फैलाने वाले। जैसे रूहे गुलाब अपनी खुशबू देता है, उसका रंग रूप भी अच्छा, खुशबू भी अच्छी सबको अपने तरफ आकर्षित भी करता है ऐसे आप भी बाप के बगीचे के रूहानी गुलाब हो। गुलाब सदा पूजा में अर्पण किया जाता है। रूहानी गुलाब भी बाप के आगे आर्पित होते हैं। यह यज्ञ-सेवाधारी बनना भी अर्पण होना है। अर्पण होना यह नहीं कि एक स्थान पर रहना। कहाँ भी रहें लेकिन श्रीमत पर रहें। अपनापन जरा भी मिक्स न हो। ऐसे अपने को भाग्यवान खुशबूदार रूहानी गुलाब समझते हो ना! सदा इसी स्मृति में रहो कि हम अल्लाह के बगीचे के रूहानी गुलाब’ - यही नशा सदा रहे। नशे में रहो और बाप के गुणों के गीत गाते रहो। इस ईश्वरीय नशे में जो भी बोलेंगे उससे भाग्य बनेगा।

सदा अपने को विजयी पाण्डव समझ कर चलो। पाण्डवों की विजय कल्पकल्प की प्रसिद्ध है। 5 होते भी विजयी थे। विजय का कारण - बाप साथी था! जैसे बाप सदा विजयी है वैसे बाप का बनने वाले भी सदा विजयी। यही स्मृति में रहे कि हम सदा विजयी रत्न हैं तो यह बात भी बड़ा नशा और खुशी दिलाती है। जब पाण्डवों की कहानी सुनते हो तो क्या लगता है? यह हमारी कहानी है! निमित्त एक अर्जुन कहने में आता है, दुनिया के हिसाब से 5 हैं, लेकिन हैं सदा विजयी। यही स्मृति सदा ताजी रहे। ऐसी स्पष्ट स्मृति हो जैसे कल की बात है। सभी ने घर बैठे भाग्य ले लिया है ना! घर बैठे ऐसा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ भाग्य मिला है जो अन्त तक गाया जायेगा। बाप के घर में आये, अपने घर में आये, मनाया, खाया, खेला...वैसे भी जब थक जाते हैं तो रेस्ट में चले जाते हैं। यहाँ भी बिजनेस करके, नौकरी करके, थक कर आते हो और यहाँ आते ही कमल बन जाते हो। बाप के सिवाए और कोई दिखाई नहीं देता, रेस्ट मिल जाती है। सिवाए एक बाप से मिलने, उनकी बातें सुनने, याद करने...बस यही काम है। तो थकावट उतरी, रिफ्रेश हो गए ना! चाहे दो घण्टे के लिए भी कोई आवे तो भी रिफ्रेश हो जाते हैं क्योंकि यह स्थान ही रिफ्रेश होने का है।यहाँ आना ही रिफ्रेश होना है। अच्छा –

विदाई के समय :- एक-एक बच्चा, एक दो से अधिक प्रिय है। सभी में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं। चाहे लास्ट नम्बर भी है लेकिन बाप का तो बच्चा ही है। कैसे भी बच्चे हैं लेकिन फिर भी त्याग और भाग्य तो पा लिया है ना। इसलिए सभी अपने को बाप के प्रिय समझो। चाहे नम्बरवार हैं लेकिन याद-प्यार तो सबको मिलता है। बापदादा सबको सिक व प्रेम से याद-प्यार देते हैं। सिक व प्रेम सभी के लिए एक जैसा है। सभी सिकीलधे स्नेही, बाप की भुजायें हो। इसलिए अपनी भुजायें तो जरूर प्रिय लगेंगी ना। अपनी भुजायें अप्रिय होती हैं क्या! लास्ट नम्बर भी तो कोटो में कोई है ना! तो कोटो से तो प्रिय हो ही गये ना!

अच्छा - ओम् शान्ति।



04-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सदा एक मत, एक ही रास्ते से एकरस स्थिति

सदा श्रीमत दाता, सदा विश्व-कल्याणकारी अपने बच्चों के प्रति बोले:-

आज बापदादा वतन में सर्व बच्चों के प्रति रूह-रूहान करते मुस्करा रहे थे। किस बात पर? सभी बच्चे विश्व में चैलेन्ज करते हैं - मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा सेकण्ड में प्राप्त कर सकते हैं! यह चैलेन्ज करते हो ना! वैसे अनुभव से देखो दिव्य बुद्धि जो हर ब्राह्मण को बर्थडे की गिफ्ट मिली है ब्राह्मण - नामसंस्कार हुआ और दिव्य बुद्धि की गाडली गिफ्ट बापदादा द्वारा मिली। उस दिव्य बुद्धि के आधार पर सोचो ज्ञान भी सेकेण्ड का है। रचयिता और रचना। अल्फ और बे। और योग भी सेकण्ड का है - मैं बाप का, बाप मेरा। दिव्यगुणधारी बनना यह भी सेकेण्ड की बात है। क्योंकि जैसा जन्म जैसा कुल वैसी धारणा स्वत: और सहज होती है! ईश्वरीय कुल है तो गुण अर्थात् धारणायें भी ईश्वरीय होंगी ना! ब्राह्मण जन्म ऊँचे ते ऊँचा जन्म। तो धारणा भी ऊँची होंगी ना। तो धारणा भी सेकण्ड की है। जैसा बाप वैसे बच्चे। और सेवा भी सेकण्ड की बात है। अनुभवी बन खज़ानों के अधिकारी बन, बाप का परिचय देना है! जो अपने पास है वह दूसरों को देना सेकण्ड की और सहज बात है। तो बापदादा देख रहे थे कि सेकण्ड की बात में इतना समय चलते हुए, चाहे दो मास के ब्राह्मण हैं वा बहुत समय के ब्राह्मण हैं, ब्राह्मण अर्थात् सेकण्ड में वर्से के अधिकारी। तो सेकण्ड के अधिकारी फिर अधीन क्यों बन जाते? क्या अपने अधिकार के स्थिति रूपी सीट पर सेट होना नहीं आता? आराम की सीट को छोड़ हलचल की बेआरामी में क्यों आते! सीट छोड़ते क्यों जो बार-बार सेट होने की मेहनत करते। सीट से उतरे और सर्वशक्तियों की प्राप्ति गई। श्रेष्ठ अर्थात् स्थिति पर सेट होने से अधिकारी-पन की अथार्टी है। जब सीट छोड़ दी तो अथार्टी कहाँ से आई? सीट से उतर अपनी शक्तियों को आर्डर करते इसलिए वह आर्डर मानती नहीं। फिर सोचते हैं, हूँ तो मास्टर सर्वशक्तिवान लेकिन शक्तियाँ काम नहीं करती। क्या दास का आर्डर दास मानेगा वा मालिक का आर्डर दास मानेगा? और फिर चेहरा क्या बन जाता? जैसे कमज़ोर शरीर वाले का चेहरा पीला हो जाता है क्योंकि वह खून की शक्ति नहीं ऐसे कमज़ोर आत्मा उदास बन जाती। ज्ञान भी सुनेगा, सेवा भी करेगा लेकिन उदास रूप में। खुशी की शक्ति, सर्व प्राप्तियों की शक्ति खत्म हो जाती है। दास सदा उदास ही रहेगा। दास आत्मा की और क्या विशेष हंसाने वाली बातें होती हैं? छोटी सी बातों में बोलते कनफ्यूज हो गये हैं, मूँझ गये हैं। जैसे आँखों की नजर कम हो जाती है ना तो एक चीज़ के बजाए दो दो तीन तीन चीजें दिखाई देती हैं और उसी में कनफ्यूज हो जाते हैं कि यह सही है या वह सही है। ऐसे कमज़ोर आत्मायें एक रास्ते के बजाए दूसरे रास्ते भी देखते हैं। एक श्रीमत के साथ-साथ और मतें भी दिखाई देती हैं। फिर सोचते कि यह करें वा वह करें। यह यथार्थ है वा वह यथार्थ है! जब है ही एक रास्ता, एक श्रेष्ठ मत तो यह करें, क्या करें यह क्वेश्चन ही नहीं। कनफ्यूज क्यों नहीं होंगे, स्वयं ही दो बनाए दुविधा में आते हैं। तो यह विचित्र चाल देख बापदादा मुस्करा रहे थे। बापदादा कहते सीट पर स्थित रहो तो एकरस रहेंगे लेकिन चंचल बच्चे के समान बार-बार चक्कर लगाने के अभ्यासी फिर कहते माया का चक्र आ गया। कनफ्यूज होने का कोई आधार ही नहीं है। लेकिन व्यर्थ, कमज़ोर संकल्पों के आधार ले लेते हैं। जब है ही व्यर्थ और कमज़ोर आधार तो फिर रिजल्ट क्या होगी! या अटकेंगे या लटकेंगे या नीचे गिरेंगे। फिर चिल्लायेंगे - बाबा मैं आपका हूँ, आप शक्ति दे दो। सीट पर सेट रहो तो ज्ञान सूर्य के शक्तियों की किरणें, आपके सीट की छत्रछाया स्वत: ही, सदा ही प्राप्त है। सीट से नीचे उतर व्यर्थ वा कमज़ोरी के संकल्पों की दीवार खड़ी कर देते। व्यर्थ संकल्प एक नहीं आता। एक सेकेण्ड में एक से अनेक संकल्प पैदा हो जाते। और उसी से अनेक ईटों की दीवार बन जाती है। इसलिए ज्ञान सूर्य के शक्तियों की किरणें पहुँच नहीं सकतीं। और फिर कहते मदद नहीं मिलती, शक्ति नहीं आती। खुशी नहीं आती वा याद रहती नहीं। आ ही कैसे सकती! तो बापदादा, पुराने-नये जो ऐसा खेल करते हैं उन्हों का खेल देख मुस्करा रहे थे। सेकेण्ड की बात को इतना मुश्किल क्यों बना दिया है। एक रास्ता, एक मत उसको छोड़ - मनमत, परमत उसको मिक्स क्यों करते हो! अपने कमज़ोरी के बनाये हुए रास्ते, ऐसे तो होता ही है, ऐसा तो चलता ही है - इन रास्तों को स्वयं ही बनाए फिर स्वयं ही भूल भुलैया के खेल में आ जाते हैं। मंज़िल से दूर हो जाते हैं। ऐसे करते क्यों हैं? यह सोच रहे हो, हो जाता है, करते नहीं लेकिन हो जाता है। होता भी क्यों है? बीमारी क्यों आती हैं? बदपरहेज वा कमज़ोरी से। वा यह कहेंगे कि बीमारी आ जाती है? न कमज़ोर बनो, न मर्यादाओं की परहेज से वा मर्यादाओं की लकीर से बाहर आओ। अभी तक यही खेल करने है? विश्व-कल्याण के ठेकेदार इतने बड़े आक्यूपेशन वाले और यह बच्चों के खेल खेलते, यह कब तक? विश्व आपका इन्तजार कर रहा है कि शान्ति के दूत आये की आये। हमारे देव हमारे ऊपर शान्ति की आशीर्वाद वा कृपा करने के लिए आये कि आये। जोर-जोर से चिल्ला के घण्टियाँ बजाते। कभी तो चिमटे भी बजाते हैं, नगाड़े बजाते हैं। आओ, आओ करके पुकारते हैं। ऐसी देव आत्मायें अगर अपने बचपन के खेल में रहेंगी तो उन्हों की पुकार सुनेंगी कैसे! इसलिए पुकार सुनो और उपकार करो। समझा, क्या करना है। अच्छा बाप भी समय का ख्याल रखता, आप लोग नहीं रखते।

ऐसे सदा श्रेष्ठ समझदार, सदा एक मत एक रास्ता पर चलने वाले, एकरस स्थिति में स्थित होने वाले, सदा सेकण्ड के अधिकार को स्मृति में रख समर्थ आत्मा रहने वाले, व्यर्थ संकल्पों के खेल को समाप्त कर विश्व-कल्याण के श्रेष्ठ सेवाधारी - ऐसी महान आत्माओं सो देव आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

कुमारियों के साथ :- सभी कुमारियाँ अपने को शिव शक्तियाँ समझती हो? शक्तियाँ सदा कहाँ रहती हैं? शिव के साथ रहती हो ना! जो जिसके साथ रहते उसके संग का रंग तो उन पर जरूर लगेगा ना! तो जो बाप का गुण, जो बाप का कर्त्तव्य वही आपका है ना! बाप का कर्त्तव्य है सेवा, तो आप सभी सेवाधारी हो ना! सेवा करती हो या करनी है? सदा यह लक्ष्य रखो कि बाप समान बनना है। हर बात में चेक करो कि यह बाप का कर्म वा बाप का संकल्प, बोल है? अगर है - तो करो। नहीं तो परिवर्तन कर दो। क्योंकि साधारण कर्म आधाकल्प किया अभी तो बाप समान बनना है। सभी बाप समान विश्व सेवाधारी हो ना? हद के नहीं। हिम्मत अच्छी है। हिम्मत और उमंग में आगे बढ़ रही हो। उमंग उल्लास ही सदा आगे बढ़ाता रहेगा।

सदा उमंग और उल्लास में रहने वाले हर बात में नम्बरवन होंगे। याद में भी नम्बरवन, ज्ञान, धारणा सेवा सबमें नम्बरवन। ऐसे हो? नम्बरवन उमंग उल्लास वाले घरों में कैसे रहेंगे! निर्बन्धन होंगे ना! सभी कौन हो? पिंजरे के पंछी हो या स्वतन्त्र पंछी? पढ़ाई का पिंजरा है? माँ बाप का पिंजरा है? ऐसे पिंजरों में बंधने वाली को नम्बरवन कैसे कहेंगे! अभी निर्बन्धन हो जाओ। जो शक्तिशाली आत्मायें होंगी उनके आगे कोई भी कुछ कर नहीं सकता। जैसे तेज आग जल रही हो तो उसके आगे कोई भी आयेगा नहीं, दूर भागेगा। आप भी योग अग्नि को ऐसा जगाओ जो कोई बन्धन डालने वाला सामने आ ही न सके। जैसे कोई जानवर को भगाना होता है तो आग जला देते हैं, आग के सामने कोई जानवर नहीं आ सकता। ऐसे लगन की अग्नि को तेज करो। अगर अभी तक बन्धन हैं तो लगन है लेकिन अग्नि नहीं बनी है। लगन है तब यहाँ पहुँची लेकिन लगन अग्नि बन जाए तो निर्बन्धन हो जाओ। लगन फुल फोर्स में हो। शक्तियाँ मैदान पर आओ। इतना बड़ा ग्रुप जो आया है तो जरूर कमाल करेगा ना! इतने हैण्ड्स निकल आवे तो वाह-वाह हो जाए। अच्छा!



07-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


ब्राह्मणों का संसार - बेगमपुर

बेगमपुर का बादशाह बनाने वाले, सदा सुखदाता शिव बाबा बोले:-

आज बेगमपुर के बादशाह अपने मास्टर बेगमपुर के बादशाहों से मिलने आये हैं। यह संगमयुगी बादशाहों की सभा है। इसी बादशाही से भविष्य प्रालब्ध प्राप्त करते हैं। बापदादा देख रहे हैं कि सभी बच्चे बेगम अर्थात् किसी भी प्रकार के गम अर्थात् दुख से परे, ऐसे बादशाह बने हैं! ब्राह्मणों का संसार - बेगमपुर है। संगमयुगी ब्राह्मण संसार के अधिकारी आत्मायें अर्थात् बेगमपुर के बादशाह। संकल्प में भी गम अर्थात् दुख की लहर न हो - ऐसे बने हो? बेगमपुर के बादशाह सदा सुख की शैय्या पर सुखमय संसार में स्वयं को अनुभव करते हो? ब्राह्मणों के संसार वा ब्राह्मण जीवन में दुख का नाम निशान नहीं क्योंकि ब्राह्मणों के खज़ाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। अप्राप्ति दुःख का कारण है। प्राप्ति सुख का साधन है। तो सर्व प्राप्ति स्वरूप अर्थात् सुख स्वरूप! ऐसे सदा सुख स्वरूप बने हो? सुख के साधन-सम्बन्ध और सम्पत्ति यही विशेष हैं। सोचो - अविनाशी सुख का सम्बन्ध प्राप्त है ना! सम्बन्ध में भी कोई एक सम्बन्ध की भी कमी होती है तो दुख की लहर आती है। ब्राह्मण संसार में सर्व सम्बन्ध बाप के साथ अविनाशी हैं। कोई एक सम्बन्ध की भी कमी है क्या? सर्व सम्बन्ध अविनाशी हैं तो दुख की लहर कैसे होगी? सम्पत्ति में भी सर्व खज़ाने वा सर्व सम्पत्ति का श्रेष्ठ खज़ाना ज्ञान धनहै, जिससे सर्व धन की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है। जब सम्पत्ति, सम्बन्ध सब प्राप्त हैं तो बेगमपुर अर्थात् बेगम संसार है। सदा सुख के संसार के बालक सो मालिक अर्थात् बादशाह हो। बादशाह बने हो कि अभी बन रहे हो? बापदादा बच्चों के दुख की लहर की बातें सुनकर वा देखकर क्या सोचते हैं? सुख के सागर के बच्चे, बेगमपुर के बादशाह फिर दुख की लहर कहाँ से आई! अवश्य सुख के संसार की बाउन्ड्री से बाहर चले जाते हैं। कोई न कोई आर्टीफिशल आकर्षण वा नकली रूप के पीछे आकर्षित हो जाते हैं। जैसे कल्प पहले के यादगार कथाओं में दिखाते हैं - सीता आकर्षित हो गई और मर्यादा की लकीर अर्थात् सुख के संसार की बाउन्ड्री पार कर ली, तो कहाँ पहुँच गई? शोक वाटिका में। जब बाउन्ड्री के अन्दर हैं तो जंगल में भी मंगल है। त्याग में भी भाग्य है। बिन कोड़ी होते बादशाह हैं। बेगरी जीवन में भी प्रिन्स की जीवन है। ऐसा अनुभव है ना! संसार से परे मधुबन में आते हो तो क्या अनुभव करते हो? है छोटे से स्थान पर कोने में लेकिन पहुँचते ही कहते हो कि सतयुगी स्वर्ग से भी श्रेष्ठ संसार में पहुँच गये हैं। तो जंगल में मंगल अनुभव करते हो ना। सूखे पहाड़ों को हीरे जैसा श्रेष्ठ सुख का संसार अनुभव करते हो। संसार ही बदल गया, ऐसा अनुभव करते हो ना। ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें जहाँ भी हों दुख के वायुमण्डल के बीच भी कमल समान। दु:ख से न्यारे, बेगमपुर के बादशाह हो। तन के बीमारी के दु:ख की लहर वा मन में व्यर्थ हलचल के दु:ख की लहर वा विनाशी धन के अप्राप्ति की वा कमी के दुख की लहर, स्वयं के कमज़ोर संस्कार वा स्वभाव वा अन्य के कमज़ोर स्वभाव और संस्कार के दु:ख की लहर, वायुमण्डल वा वायब्रेशन्स के आधार पर दुख की लहर, सम्बन्ध सम्पर्क के आधार पर दुःख की लहर, अपनी तरफ खींच लेती है! न्यारे हो ना! संसार बदल गया तो संस्कार भी बदल गये। स्वभाव बदल गया इसलिए सुखमय संसार के बन गये। वैसे तो बेगर बन गये अर्थात् यह देह रूपी घर भी अपना नहीं। बेगर हो गये ना। लेकिन बाप के सर्व खज़ानों के मालिक भी तो बन गये। स्वराज्य अधिकारी भी बन गये। ऐसा नशा वा खुशी रहती है? इसको ही कहा जाता है - ‘बेगमपुर के बादशाह। तो सभी बादशाह बैठे हो ना। बादशाही का हालचाल ठीक चल रहा है? सभी राज्य कारोबारी आपके आर्डर में चल रहे हैं? कोई भी आप बादशाहों को धोखा तो नहीं देता? जी हाजिर वा जी हजूर करने वाले सभी राज्य कारोबारी हैं? अपनी दरबार लगाते हो? राजाओं की तो दरबार लगती है - तो सभी दरबारी यथार्थ कार्य कर रहे हैं? खज़ानों से भण्डारे भरपूर हैं? इतने भण्डारे भरपूर हैं जो सदा महादानी बन दान करते रहो तो भी अखुट भण्डार हो। चेक करते हो? ब्रह्माकुमार तो बन ही गये, योगी तो बन ही गये, इस अलबेलेपन के नशे में चेकिंग तो नहीं भूल जाते हो? सदा अपने राज्य कारोबार की चेकिंग करो। समझा! चेकिंग करना तो आता है ना। मैजारटी पुराने अनुभवियों का संगठन है ना। अनुभवी अर्थात् अथार्टी वाले। कौन सी अथार्टी? स्वराज्य की अथार्टी। ऐसी अथार्टी वाले हो ना! अभी तो आज आये हो। चेकिंग कराने, सर्टिफिकेट लेने आये हो ना कि हम ठीक बादशाह हैं! सर्टिफिकेट लेकर जायेंगे ना कि कौन से राजे हैं - नामधारी हैं या कामधारी। यह सब शीशमहल में आपेही देख लेंगे। अच्छा –

सदा सुख के संसार में रहने वाले, बेगमपुर के बादशाहों को, सदा राज्य अधिकारी समर्थ आत्माओं को, सदा सर्व दुख की लहरों से न्यारे और सुखदाता बाप के प्यारे, ऐसे अनुभव की अथार्टी वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

दादियों से

सभी बाप समान बच्चों को देख बापदादा हर्षित होते हैं। सदा समान आत्मायें अति प्यारी लगती हैं। तो यह सारा संगठन समान आत्माओं का है। बापदादा सदा समान बच्चों को साथी देखते हैं। विश्व की परिक्रमा लगाते तो भी साथ और बच्चों की रेख देख करने जाते तो भी साथ। सदा साथ ही साथ है इसलिए समान आत्मायें हैं ही सदा के योगी। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन। अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे। स्वत: याद है ही। जहाँ साथ होता है तो याद स्वत: रहती है। तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है। समाये हुए रहने की है। तो सदा हर कदम में आगे-आगे बच्चे, पीछे-पीछे बाप। हर कार्य में सदा आगे। बच्चे आगे हैं और बाप सकाश तो क्या लेकिन सदासाथ का अनुभव कराते हैं। जैसे बाप औरों को सकाश देते हैं वैसे समान बच्चे भी सकाश भी देने वाले हो गये। ऐसा संगठन है ना! विशेष मणकों की विशेष माला है। स्वत: तैयार हो रही है ना माला! तैयार करनी नहीं पड़ती लेकिन हो रही है। वैसे अगर नम्बर निकालें या नम्बर दें तो क्वेश्चन उठेंगे लेकिन स्वत: ही नम्बरवार सेट होते जा रहे हैं। अच्छा –

कुमारों के साथ अलग-अलग ग्रुप से

1. गॉडली यूथ ग्रुप - लौकिक रीति से वह यूथ ग्रुप अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार कार्य कर रहे हैं लेकिन उन्हों का कार्य नुकसान करना है। आप लोगों का काम है स्थापना के कार्य में सदा सहयोगी बनना। कभी कोई भी कारण वा विघ्न आये तो उसका निवारण सहज कर सकते हो? कुमार ग्रुप में बापदादा की सदा उम्मीदें रहती हैं। इतने यूथ हिम्मत और उमंग रख सदा के विजयी बन जाएं तो विश्व में विजय का झण्डा उठाकर सारे विश्व में घूमें। सदा उड़ती कला में जा रहे हो, कोई रूकती कला वाला तो नहीं है। यूथ ग्रुप अर्थात् सदा शक्तिशाली सेवा करने वाले। यूथ जो चाहे वह कर सकते हैं। वह विनाशकारी और आप स्थापना के कार्य वाले। वे अशान्ति मचाने वाले और आप शान्त स्वरूप हो। शान्ति फैलाने वाले हो। कुमारों के लिए तो बहुत तैयारी कर रहे हैं। ऐसे पक्के कुमार हों जो कभी हलचल में न आवें। ऐसे नहीं, यहाँ नाम बाला हो और फिर वहाँ पुरानी दुनिया में चले जाएं। कई कुमार पहले बहुत उमंग उत्साह से सेवा में चलते फिर थोड़ा भी टक्कर हुआ तो पुरानी दुनिया में चले जाते। छोड़ी हुई चीज़ फिर से जाकर लें तो अच्छा लगता है! आप सबने भी पुरानी दुनिया छोड़ दी है ना! अगर कोई रस्सी बंधी होगी तो हिलते रहेंगे। तो सदा अपने को गॉडली यूथ ग्रुपसमझो। इतने सब कुमार रिफ्रेश होकर खज़ानों से भरपूर होकर जायेंगे तो देखने वाले कहेंगे यह देवात्माबनकर आ गये। ऐसा कोई कमाल का प्लैन बनाओ। यूथ को देखकर गवर्मेन्ट भी घबराती है। गवर्मेन्ट को भी रास्ता दिखाने के निमित्त आप लोग बनेंगे। कुमारों को सदा सेवा के शक्तिशाली प्लैन बनाने चाहिए। परन्तु याद और सेवा का सदा बैलेन्स रहे। अच्छा -

सदा निर्विघ्न रहने की गुडमोर्निंग जब होगी तो निर्विघ्न होंगे ना! जब सतयुग गुडमोर्निंग होगा तो निर्विघ्न होंगे। अभी निर्विघ्न बनने की गुडमोर्निंग। शुभ दिन कहते हैं ना। शुभ प्रात: कहते हैं तो शुभ प्रातः अर्थात् जिसमें अशुभ कुछ नहीं। आप सबकी सदा ही शुभ प्रात: है। शुभ दिन है और शुभ रात्रि है। तो सदा निर्विघ्न अर्थात् शुभ। इसलिए निर्विघ्न भव की गुडमोर्निंग। अच्छा –

विदाई के समय

सतगुरू की कृपा आपका वर्सा बन गया। इसलिए कृपा करो, यह संकल्प करने की भी आवश्यकता नहीं। हो ही वृक्षपति के बच्चे। तो बृहस्पति की दशा, गुरू की कृपा सब स्वत: ही प्राप्त है। मांगने की आवश्यकता ही नहीं। मांगने से छूट गए, संकल्प करने से भी छुड़ा दिया। अभी मांगने का कुछ रहा है क्या! बाप के भी सिर के ताज हो गये। वह माँगेगा क्या! तो वृक्षपति दिवस की, बृहस्पति के दशा की सदा ही बच्चों को बधाई सहित याद-प्यार।

ओम शान्ति।



09-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार स्मृति, वृत्ति्, और दृष्टि की स्वच्छता

स्वच्छ, पवित्र, श्रेष्ठ तथा पूज्य बनाने वाले, परम पवित्र अव्यक्त बापदादा बोले:-

आज बापदादा सभी ब्राह्मण बच्चों के श्रेष्ठ कर्म की रेखा देख रहे हैं। जिस कर्म की रेखा द्वारा ही वर्तमान और भविष्य तकदीर की लकीर खींची जा रही है। सभी ब्राह्मणों की कर्म रेखा वा कर्म कहानी वा कर्मों का खाता देख रहे थे। वैसे भाग्य विधाता बाप के, कर्मों के गुह्य गति के ज्ञाता बाप के डायरेक्ट वर्से के अधिकारी बच्चे हैं। साथ-साथ स्वयं विधाता बापदादा ने सभी बच्चों को गोल्डन चांस दिया है कि विधाता के बच्चे हो इसलिए जो जितना भाग्य बनाना चाहे, जितना सर्व प्राप्ति स्वरूप बनना चाहे, हरेक को सम्पूर्ण अधिकार है। अधिकार देने में नम्बर नहीं है, फ्रीडम है अर्थात् सम्पूर्ण स्वतन्त्रता है। और साथ-साथ ड्रामा अनुसार वरदानी समय का भी सहयोग है। वह भी सभी को समान है। फिर भी इतना गोल्डन चांस मिलते, बेहद की प्राप्ति को भी नम्बरवार की हद में ला देते हैं। बाप भी बेहद का, वर्सा भी बेहद का, अधिकार भी बेहद का लेकिन लेने वाले नम्बरवार बन जाते हैं - ऐसा क्यों? इसके संक्षेप में दो कारण हैं। एक बुद्धि में स्वच्छता नहीं, क्लीयर नहीं। दूसरा हर कदम में सावधान नहीं अर्थात् केयरफुल नहीं। इन दो कारणों से नम्बरवार बन जाते हैं। मुख्य बात स्वच्छता की है। इसको ही पवित्रता वा पहले विकार पर जीत कहा जाता है। जब ब्राह्मण जीवन अपनाई तो ब्राह्मण जीवन का मुख्य आधार कहो, नवीनता कहो, अलौकिकता कहो, जीवन का श्रृंगार कहो, वह है ही शृंगार -पवित्रता। ब्राह्मण जीवन की चैलेन्ज ही है काम-जीत। यही असम्भव से सम्भव कर दिखाने की, श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ ज्ञान दाता की निशानी है। जैसे नामधारी ब्राह्मणों की निशानी चोटी और जनेऊ है वैसे सच्चे ब्राह्मणों की निशानी पवित्रता और मर्यादायेंहैं। जन्म की वा जीवन की निशानी वह तो सदा कायम रखनी होती है ना। पवित्रता की पहली आधारमूर्त पाइंट है ‘‘स्मृति की पवित्रता’’। मैं सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ। आत्मा शब्द तो सभी कहते हैं लेकिन ब्राह्मण आत्मा सदा यही कहेंगे कि - मैं शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ। श्रेष्ठ आत्मा हूँ। पूज्य आत्मा हूँ। विशेष आत्मा हूँ। यह स्मृति की ही पवित्रता आधार मूर्त है। तो पहला आधार मजबूत किया है? यह आक्यूपेशन सदा स्मृति में रहता है? जैसा आक्यूपेशन वैसा कर्म स्वत: होता है। पहले स्मृति की स्वच्छता चाहिए। उसके बाद वृत्ति और दृष्टि। जब स्मृति में पवित्रता आ गई कि मैं पूज्य आत्मा हूँ तो पूज्य आत्मा का विशेष गायन क्या है? सम्पूर्ण निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण। यही पूज्य आत्मा की क्वालिफिकेशन है। वह स्वत: ही स्वयं को और सर्व को किस दृष्टि से देखेंगे? चाहे अलौकिक परिवार में, चाहे लौकिक परिवार कहो वा लौकिक स्मृति में रहने वाली आत्मायें कहो, सभी के प्रति परम पूज्य आत्मायें हैं वा पूज्य बनाना है यही दृष्टि में रहे। पूज्य आत्माओं अर्थात् अलौकिक परिवार की आत्माओं के प्रति अगर कोई भी अपवित्र दृष्टि जाती है तो यह स्मृति का फाउन्डेशन कमज़ोर है। और यह महा-महा-महापाप है। किसी भी पूज्य आत्मा प्रति अपवित्रता अर्थात् दैहिक दृष्टि जाती है कि यह सेवाधारी बहुत अच्छे हैं, यह शिक्षक बहुत अच्छी है। लेकिन अच्छाई क्या है? अच्छाई है ऊँची स्मृति और ऊँची दृष्टि की। अगर वह ऊँचाई नहीं तो अच्छाई कौन सी है? यह भी सुनहरी मृगमाया का रूप है, यह सर्विस नहीं है, सहयोग नहीं है लेकिन स्वयं को और सर्व को वियोगी बनाने का आधार है। यह बात बार-बार अटेन्शन रखो।

बाप द्वारा निमित्त बने हुए शिक्षक वा सेवा के सहयोगी बनी हुई आत्मायें चाहे बहन हो या भाई हो, लेकिन सेवाधारी आत्माओं के सेवा के मुख्य लक्षण - ‘त्याग और तपस्याहैं, इसी लक्षण के आधार पर सदा त्यागी और तपस्वी की दृष्टि से देखो, न कि दैहिक दृष्टि से। श्रेष्ठ परिवार है तो सदा श्रेष्ठ दृष्टि रखो। क्योंकि यह महापाप कभी प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करा नहीं सकता। सदा ही कोई न कोई कर्म में, संकल्प में, सम्बन्ध-सम्पर्क में डिफेक्ट वा इफेक्ट इसी उतराई और चढ़ाई में चलता रहेगा। कभी भी परफेक्ट स्थिति का अनुभव नहीं कर सकेगा। इसलिए सदा याद रखो पूज्य आत्मा के बदले पाप आत्मा तो नहीं बन गये! इसी एक विकार से और विकार स्वत: ही पैदा हो जाते हैं। कामना पूरी न हुई तो क्रोध साथी पहले आयेगा। इसलिए इस बात को हल्का नहीं समझो। इसमें अलबेले मत बनो। बाहर से शुभ सम्बन्ध है, सेवा का सम्बन्ध है इस रायल रूप के पाप को बढ़ाओ मत। चाहे कोई भी दोषी हो इस पाप के, लेकिन दूसरे को दोषी बनाए स्वयं को अलबेले मत बनाओ। ‘‘मैं दोषी हूँ’’, जब तक यह सावधानी नहीं रखेंगे तब तक महापाप से मुक्त नहीं हो सकेंगे। किसी भी प्रकार का, मन्सा संकल्प का वा बोल का वा सम्पर्क का विशेष झुकाव होना यह लगाव की निशानी है। और कुछ नहीं करते हैं, सिर्फ बात करते हैं, यह बातों का झुकाव भी लगाव की परसेन्टेज है। चाहे सेवा के सहयोग की तरफ भी विशेष झुकाव है, यह भी लगाव है। और जब कोई भी इशारा मिलता है तो इशारे को इशारे से खत्म कर देना चाहिए। अगर जिद्ध करते हो और सिद्ध करते हो, स्पष्टीकरण देने की कोशिश करते हो, इससे समझो स्पष्टीकरण अपने पाप की करते हो। बात की नहीं करते हो, पाप की लकीर और लम्बी करते जाते हो। इसलिए जब हैं ही विश्व परिवर्तन के कार्य में तो स्व-परिवर्तन कर लेना यही समझदारी का काम है। अगर कुछ नहीं है तो नहीं कर दो ना। अर्थात् स्व परिवर्तन कर बात का नाम निशान खत्म कर दो। यह क्यों, ऐसा क्यों, यह तो चलता ही है। यह वायुमण्डल की अग्नि में तेल डालना है। आग को भड़काना है। बात को बढ़ाना है। इसीलिए फुल स्टाप लगाना चाहिए। है वा नहीं है कि बहस में नहीं जाओ। लेकिन संकल्प, बोल और सम्पर्क में परिवर्तन लाओ। यह है विधि - इस पाप से बचने की। समझा! ब्राह्मण परिवार में यह संस्कार नाम निशान मात्र न रहें। अच्छा फिर सुनायेंगे कि क्रोध महाभूत क्या है।

यही विशेष अटेन्शन देने की बातें हैं। जो भी आये हो विशेष बल भरने आये हो। किसी भी कमज़ोर संस्कार को सदा के लिए समाप्त करने आये हो तोकमज़ोर संस्कार समाप्ति समारोहकरके जाना। यह समारोह मनायेंगे ना। है भी विशेष पुरानों का ग्रुप। आप लोग जब समारोह मनायेंगे तब नये भी उमंग उत्साह में आयेंगे। ऐसे नहीं कि हर वर्ष यह समारोह मनाना पड़े। एक बार का यह समारोह और फिर सम्पन्न समारोह’! सदाकाल के लिए समाप्ति का समारोह मनायेंगे ना। इसमें मातायें भी आ जातीं, अधरकुमार भी आ जाते। ऐसे नहीं सिर्फ पाण्डव मनायेंगे। कुमारियाँ भी मनायेंगी, टीचर भी मनायेंगी। अधरकुमारियाँ भी मनायेंगी। सब मिलकर यह समारोह मनावें। ठीक है ना। कुमारियाँ शक्तियाँ है ना! तो शक्ति रूप का समारोह मनायेंगे ना। अच्छा –

सदा स्वयं प्रति शुभचिन्तक, सदा स्व-परिवर्तन के कार्य में पहले मैं’, इस पाठ में नम्बरवन आने वाले, सदा संकल्प, बोल और सम्पर्क में सर्व प्रति बेहद के स्मृति स्वरूप, सदा स्वच्छता और सावधानी में रहने वाले, ऐसे पवित्र पूज्य आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

कुमारों से:- सदा अपने को हर कदम में साक्षी और सदा बाप के साथी - ऐसे अनुभव करते हो? जो सदा साक्षी होगा वह सदा ही हर कर्म करते हर कदम उठाते कर्म के बन्धन से न्यारे और बाप के प्यारे, तो ऐसे साक्षीपन अनुभव करते हो? कोई भी कर्मन्द्रियाँ अपने बन्धन में नहीं बाँधे इसको कहा जाता है -साक्षी। ऐसे साक्षी हो? कोई भी कर्म अपने बन्धन में बाँधता है तो उसको साक्षी नहीं कहेंगे। फँसने वाला कहेंगे। न्यारा नहीं कहेंगे। कभी आँख भी धोखा न दे। शारीरिक सम्बन्ध में आना अर्थात् आँख का धोखा खाना। तो कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे। साक्षी रहें और सदा बाप के साथी रहें। हर बात में बाप याद आवे। महान आत्मायें भी नहीं, निमित्त आत्मायें भी नहीं लेकिन बाबा ही याद आये। कोई भी बात आती है तो पहले बाप याद आता या निमित्त आत्मायें याद आती? सदा एक बाप दूसरा न कोई, आत्मायें सहयोगी हैं लेकिन साथी नहीं है, साथी तो बाप है। सहयोगी को अपना साथी समझना यह रांग है। तो सदा सेवा के साथी लेकिन सेवा में साथी बाप है। निमित्त सहयोग देते हैं, ऐसा सदा स्मृति स्वरूप हो! किसी देहधारी को साथी बनाया तो उड़ती कला का अनुभव नहीं हो सकता। इसलिए हर बात में बाबा-बाबायाद रहे। कुमार डबल लाइट हैं, संस्कार स्वभाव का भी बोझ नहीं। व्यर्थ संकल्प का भी बोझ नहीं। इसको कहा जाता हैहल्का। जितने हल्के होंगे उतना सहज उड़ती कला का अनुभव करेंगे। अगर जरा भी मेहनत करनी पड़ती है तो जरूर कोई बोझ है। तो बाबा-बाबाका आधार ले उड़ते रहो। यही अविनाशी आधार है।

रूहानी यूथ ग्रुप शान्तिकारी, कल्याणकारी ग्रुप है। सदा विश्व में शान्ति स्थापना के कार्य में निमित्त हैं, वह अशान्ति फैलाने वाले और आप शान्ति फैलाने वाले। ऐसे अपने को समझते हो? यूथ ग्रुप में राजनीतिक लोगों की भी उम्मीदें हैं और बापदादा की भी उम्मीदें हैं। उम्मीदें पूरी करने वाले हो ना! बच्चे सदा बाप की उम्मीदें पूरी करने वाले होंगे। तो सफलता के सितारे बन गवर्मेन्ट तक यह आवाज़ बुलन्द करना कि हम विजयी रत्न हैं! अभी देखेंगे कि कौनसे ग्रुप और कहाँ यह पहले झण्डा लहराते हैं। कभी भी अपनी शक्तियों को मिसयूज नहीं करना। सदा यह याद रखो कि हमारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेवारी है। एक कमज़ोर तो एक के पीछे एक का सम्बन्ध है। हम जिम्मेवार हैं, यह स्मृति सदा रहे। जो कर्म आप करेंगे आपको देख सब करेंगे इसलिए साधारण कर्म नहीं, सदा श्रेष्ठ कर्म करने वाले, सदा अचल रहने वाले।

सभी कुमार फर्स्ट नम्बर में आने वाले हो ना। फर्स्ट नम्बर एक होता है या इतने होते हैं? अच्छा फर्स्ट डिवीजन में आने वाले हो? फर्स्ट आने वाले की विशेषता क्या होती है, वह जानते हो? फर्स्ट में आने वाले सदा बाप समान होंगे। समानता ही समीपता लाती है। समीप अर्थात् समान बनने वाले ही फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। तो बाप समान कब तक बनेंगे? जब विजय माला के नम्बर आउट हो जायेंगे फिर क्या करेंगे? कोई डेट फिक्स है? डेट फिक्स कौनसी करनी है? डेट नहीं लेकिन अब की घड़ी। क्या इसमें मुश्किल है? कुमारों को कौन सी मुश्किल है? दो रोटी खाना है और बाप की सेवा में लगना है, यही काम है ना। दो रोटी के लिए निमित्त मात्र कोई कार्य करते हो ना। करते हो, लगाव से तो नहीं करते हो ना! निमित्त कहने से नहीं होता, कुमार कहने से नहीं करते, स्वतन्त्र हैं। तो सदा लक्ष्य रहे बाप समान बनना है। जैसे बाप लाइट है वैसे डबल लाइट। औरों को देखते हो तो कमज़ोर होते हो, सी फादर, फालो फादर करना है। यही सदा याद रखो। स्वयं को सदा बाप की छत्रछाया के अन्दर रखो। छत्रछाया में रहने वाले सदा मायाजीत बन ही जाते हैं। अगर छत्रछाया के अन्दर नहीं रहते, कभी अन्दर कभी बाहर तो हार होती है। छत्रछाया के अन्दर रहने वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ती। स्वत: ही सर्व शक्तियों की किरणें उसे माया जीत बनाती हैं। एक बाप सर्व सम्बन्ध से मेरा है, यही स्मृति समर्थ आत्मा बना देती है। कुमार अब ऐसा जीवन का नक्शा तैयार करके दिखाओ जो सब कहें -निर्विघ्न आत्मायें हैं तो यहाँ हैं। सब विघ्न विनाशक बनो। हलचल में आने वाले नहीं, वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले। शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने वाले बनो। सदा विजय का झण्डा लहराता रहे। ऐसा विशेष नक्शा तैयार करो। जहाँ युनिटी है वहाँ सहज सफलता है। लेकिन गिराने में युनिटी नहीं करना, चढ़ाने में। सदा उड़ती कला में जाना है और सबको ले जाना है - यही लक्ष्य रहे। कुमार अर्थात् सदा आज्ञाकारी वफादार। हर कदम में फालो फादर करने वाले। जो बाप के गुण वह बच्चों के, जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चों का, जो बाप के संस्कार वह बच्चों के, इसको कहा जाता है फालो फादर। जो बाप ने किया है वही रिपीट करना है, कापी करना है। इस कापी करने से फुल मार्क्स मिल जायेंगी। वहाँ कापी करने से मार्क्स कट जाती और यहाँ फुल मार्क्स मिल जाती। तो जो भी संकल्प करो, पहले चेक करो कि बाप समान है? अगर नहीं है तो चेन्ज कर दो। अगर है तो प्रैक्टिकल में लाओ। कितना सहजमार्ग है! जो बाप ने किया वह आप करो। ऐसे सदा बाप को फालो करने वाले ही सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में स्थित रहते हैं। बाप का वर्सा ही है सर्वशक्तियाँ और सर्वगुण। तो बाप के वारिस अर्थात् सर्वशक्तियों के, सर्वगुणों के अधिकारी। अधिकारी से अधिकार जा कैसे सकते? अगर अलबेले बने तो माया चोरी कर लेगी। माया को भी सबसे अच्छे ग्राहक ब्राह्मण आत्मायें लगती हैं। इसलिए वह भी अपना चांस लेती है। आधा कल्प उसके साथी रहे, तो अपने साथियों को ऐसे कैसे छोड़ेगी। माया का काम है आना, आपका काम है जीत प्राप्त करना, घबराना नहीं। शिकारी के आगे शिकार आता है तो घबरायेंगे क्या? माया आती है तो जीत प्राप्त करो, घबराओ नहीं। अच्छा!

अहमदाबाद, होस्टल में रहने वाली कुमारियों का ग्रुप :- कुमारी जीवन अर्थात् स्वतन्त्र जीवन, इस स्वतन्त्रता से क्या मिलता है और श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले से क्या मिलता है - यह सदा स्मृति में रहता है? या समझती हो कि हम तो कालेज में पढ़ने वाली लड़कियाँ हैं। सदा यह स्मृति में रखो - जैसा बाप वैसी मैं। बाप क्या है? सेवाधारी है। तो सभी सेवा करती हो ना! सभी कुमारियाँ बाप की माला के मणके हो? पक्का? और किसके गले की माला तो नहीं बनेंगी। जो बाप के गले की माला बन गई वह दूसरों के गले की माला नहीं बन सकती। क्या संकल्प किया है? और कहाँ स्वप्न में भी नहीं जा सकती। ऐसे पक्के? एक बाप के बने और सर्व खज़ानों के अधिकारी बन गये। सर्व अधिकार छोड़कर दो पैसों के पीछे जायेंगे क्या! वह दो पैसे भी तब मिलते जब दो चमाट लगाते हैं। पहले दु:ख की, अशान्ति की चमाट लगती फिर दो रोटी खाते। ऐसी जीवन तो पसन्द नहीं है ना? कुमारी जीवन वैसे भी भाग्यवान है और भी डबल भाग्यवान बन गई। अभी सर्व प्रैक्टिकल पेपर देंगी ना! वह कागज वाला पेपर नहीं। सदा शिव शक्ति है, कम्बाइन्ड हैं - यह स्मृति सदा रखना। कुमारियों का कहाँ-न-कहाँ जाना तो होता ही है। अगर ऐसा श्रेष्ठ घर मिल जाए तो और क्या चाहिए। कुमारियाँ सोचती हैं अच्छा घर, भरपूर घर मिले। यह कितना भरपूर घर है जहाँ कोई अप्राप्ति नहीं। ऐसा भाग्य तो सबको मिलना चाहिए। वाह मेरा भाग्य... यही गीत गाओ। जैसे चन्द्रमा की चाँदनी सबको प्रिय लगती है ऐसे ज्ञान की रोशनी देने वाली बनो। ज्ञान चन्द्रमा समान बनो। जैसे स्वयं के भाग्य का सितारा चमका है ऐसे ही सदा औरों के भाग्य का सितारा चमकाओ। तो सभी आपको बार बार आशीर्वाद देंगे।

सभी कुमारियाँ स्कालरशिप लेंगी ना। स्कालरशिप लेना माना - विजयमाला में आना। ऐसा तीव्र पुरूषार्थ हो जो विजयमाला में आ जाओ। इतनी पालना जो ले रहे हो उसका रिटर्न तो देंगी ना। पालना का रिटर्न है - बाप समान बनना, स्कालरिशप लेना। तो सदा यह दृढ़ संकल्प रखो कि विजयी बन विजय माला के मणके बनने वाले हैं। सभी इस जीवन से सन्तुष्ट हो? कभी वह जीवन खाना, पीना, घूमना - यह याद तो नहीं आता? दूसरों को देखकर यह नहीं आता कि हम भी थोड़ा टेस्ट तो करें। वह जीवन गिरने की जीवन है - यह जीवन चढ़ने की जीवन है। चढ़ने से गिरने की तरफ कौन जायेगा! सदा एवररेडी रहो। अपने रीति से सदा तैयार रहो। कोई पढ़ाई की रीति से शौक का बन्धन नहीं। जहाँ कुमारियों का सगंठन है वहाँ सेवा में वृद्धि है ही। जहाँ शुद्ध आत्मायें हैं वहाँ सदा ही शुभ कार्य है। सभी आपस में संस्कार मिलाने की सब्जेक्ट में पास हो ना। कोई खिटखिट नहीं, कहाँ भी दृष्टि वृत्ति नहीं! एक बाप दूसरा न कोई... विशेष कुमारियों को इस बात में सर्टीफिकेट लेना है। जैसे नाम है बाल ब्रह्मचारिणी... वैसे संकल्प भी ऐसा पवित्र हो - इसको कहा जाता है - स्कालरशिप लेना। फिर राइटहैण्ड हो। सदा एक बाप दूसरा न कोई - ऐसी शिव शक्तियाँ हैं। यही याद रखना तो किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी। अच्छा।

टीचर्स के साथ :- सभी निमित्त सेवाधारी, अपने को निमित्त समझकर चलते हो? निमित्त समझने वाले सदा हल्के और सदा सफलतामूर्त होते हैं। जितना हल्के होंगे उतना सफलता जरूर होगी। कभी सेवा कम होती कभी ज्यादा तो बोझ तो नहीं लगता है ना। भारी तो नहीं होते, क्या होगा, कैसे होगा। कराने वाला करा रहा है और मैं सिर्फ निमित्त बन कार्य कर रही हूँ - यही सेवाधारी की विशेषता है। सदा स्व के पुरूषार्थ से और सेवा से सन्तुष्ट रहो तब ही जिन्हों के निमित्त बनते हैं उन्हों में सन्तुष्टता होगी। सदा सन्तुष्ट रहना और दूसरों को रखना यही विशेषता है।

अच्छा - ओम शान्ति।

(विदाई के समय गुडमोर्निंग)

सर्व चारों ओर की श्रेष्ठ आत्माओं को वा विशेष आत्माओं को बापदादा मधुबन वरदान भूमि में सम्मुख देखते हुए याद प्यार दे रहे हैं। और सभी से गुडमोर्निंग कर रहे हैं। गुडमोर्निंग अर्थात् सारा दिन ऐसा ही शुभ और श्रेष्ठ रहे। सारा दिन इसी याद प्यार की पालना में रहें। यह याद प्यार ही श्रेष्ठ पालना है। इसी पालना में सदा रहो और यही ईश्वरीय याद और प्यार सभी आत्माओं को देते हुए उन्हों की भी श्रेष्ठ पालना करो। याद प्यार पालना का झूला है। जिस झूले में पालना होती है। और गुडमोर्निंगको शक्तिशाली अमृत कहो, वा औषधि कहो, वा श्रेष्ठ भोजन कहो, जो भी कहो। ऐसे शक्तिशाली बनाने की गुडमोर्निंग है और पालना का याद प्यार झूला है। इसी झूले में सदा रहें और इसी शक्ति में सदा रहें। ऐसे सदा इसी स्वरूप में रहने की सर्व बच्चों को गुडमोर्निंग।

अच्छा।



11-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


युवा वर्ग के प्रति अव्यक्त बापदादा का सन्देश

सदा रहम दिल, दया के सागर अव्यक्त बापदादा बोले :-

आज बापदादा हंस आसनधारी होली हंसों की सभी देख रहे हैं। हर एक श्रेष्ठ आत्मा होली हंस सदा एक बाप दूसरा न कोई इसी लगन में मगन आत्मायें - यही स्थिति हंस-आसन है। ऐसे होली हंसों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। हर होली हंस ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा, विश्व-कल्याणकारी है। हर एक के दिल में दिलाराम बाप की याद समाई हुई है। हर एक अपने वर्तमान और भविष्य को बनाने में लगन से लगे हुए हैं। ऐसा श्रेष्ठ संगठन सारे कल्प में सिवाए संगमयुग के कभी नहीं देख सकते। एक ही परिवार, एक ही लगन, एक ही लक्ष्य, ऐसा फिर कभी देखेंगे? बापदादा को भी बच्चों पर नाज है। इतना बड़ा परिवार वा संगठन और हरेक श्रेष्ठ बाप के बच्चे बनने कारण बाप के वर्से के अधिकारी हैं। तो इतने सब अधिकारी बच्चों को देख बाप को भी खुशी है। यह एक-एक बच्चा कुल का दीपक है। विश्व परिवर्तन करने के निमित्त आत्मा है। हर एक चमकता हुआ सितारा विश्व को रोशनी देने वाला है। हर एक के भाग्य की अविनाशी लकीर मस्तक पर दिखाई दे रही है। ऐसा श्रेष्ठ संगठन विश्व में एक मत, एक राज्य, एक धर्म की स्थापना करने के दृढ़ संकल्पधारी हैं। बापदादा युवा-वर्ग को देख रहे थे। चाहे कुमार हैं, चाहे कुमारी हैं लेकिन हरेक के मन में उमंग उत्साह है कि हम सभी अपने विश्व को वा देश को वा सुख शान्ति के लिए भटकती हुई आत्माओं अर्थात् अपने भाई बहनों को सुख और शान्ति का अधिकार अवश्य दिलायेंगे। अपने विश्व को फिर से सुख शान्तिमय संसार बनायेंगे। यही दृढ़ संकल्प है ना! इतना बड़ा संगठन क्या नहीं कर सकता है! एक तो श्रेष्ठ आत्मायें, पवित्र आत्मायें हो तो पवित्रता की शक्ति है, दूसरा मास्टर सर्वशक्तिवान होने के कारण सर्वशक्तियाँ साथ हैं। संगठन की शक्ति है, साथ-साथ त्रिकालदर्शी होने के कारण जानते हो कि अनेक बार हम विश्वपरिवर्त क बने हैं। इसलिए कल्प-कल्प के विजयी होने के कारण अब भी विश्वपरिवर्त न के कार्य में विजय निश्चित है। होंगे या नहीं होंगे यह क्वेश्चन ही नहीं है। निश्चयबुद्धि विजयी - ऐसे अनुभव करते हो ना कि सुख का संसार अभी आया कि आया। विश्व के मालिकों को विश्व का राज्य निश्चित ही प्राप्त हुआ पड़ा है। युवा वर्ग क्या करेगा? अपने देश के वा विश्व के राज्य नेताओं को यह खुशखबरी सुनाओ, जिस बात के आप स्वप्न देख रहे हो कि ऐसा होना चाहिए, वह चाहिए की चाह हम पूर्ण कर दिखायेंगे। देश से सिर्फ एक महँगाई नहीं लेकिन डबल मँहगाई मिटाकर दिखायेंगे। क्योंकि महँगाई का आधार है - चरित्र की मँहगाई। जब चरित्र की महँगाई वा चरित्र के दु:ख अशान्ति की गरीबी मिट जायेगी तब स्वत: ही सर्व आत्मायें धनवान तो क्या लेकिन राज्य अधिकारी बन जायेंगी। यही शुभ उम्मीदें विश्व की निमित्त आत्माओं को पूर्ण कर दिखाओ। अपने देश को श्रेष्ठ बनाकर दिखायेंगे, ऐसा माला-माल बनायेंगे जो न कोई अप्राप्ति हो और न अप्राप्ति के कारण सर्व समस्यायें हों। यही दृढ़ संकल्प सभी को सिर्फ सुनाओ नहीं लेकिन परिवर्तन का सेम्पल बनकर दिखाओ। क्योंकि सब तरफ से विश्वास दिलाने के नारे सबने बहुत सुने हैं। इतने सुने हैं जो सुनकर विश्वास ही निकल गया है। ऐसे कहने वाले बहुत देख-देख सत्य को भी धोखा समझ रहे हैं। इसलिए सिर्फ कहना नहीं है, मुख बोले नहीं, लेकिन आपके जीवन की श्रेष्ठता बोले। आप एक-एक होलीहंस की पवित्रता की झलक चलन से दिखाई दे। आप सबकी श्रेष्ठ स्मृति की समर्थी, ना उम्मीद आत्माओं में उम्मीदों की समर्थी पैदा करे। समझा - युवा वर्ग को क्या करना है।

जो आज के नेतायें युवा वर्ग से विनाशकारी कर्त्तव्यों के कारण घबराते हैं। तो आप सभी विश्व कल्याणकारी उन्हीं को यह सिद्ध करके दिखाओ कि इसी देश के हम युवा वर्ग अपने भारत देश को विश्व में सर्वश्रेष्ठ स्वर्ग का स्थान बनाए विश्व को दिखायेंगे कि भारत ही प्राचीन अविनाशी, सर्व सम्पन्न, सर्व श्रेष्ठ देश है। भारत विश्व के लिए आध्यात्मिक रोशनी देने का लाइट हाउस है। क्योंकि इस श्रेष्ठ कर्त्तव्य के कराने वाला कौन है, उसकी पहचान कर लें फिर तो कोई क्वेश्चन उठने की बात ही नहीं। अपने जीवन से, कर्त्तव्य से, बाप का परिचय कराओ। इतनी हिम्मत है ना। कुमारियाँ क्या समझती हैं? जब दुर्गा की पूजा करते हैं तो अपने को भाग्यवान समझते हैं। यहाँ कितनी दुर्गायें हैं! एक-एक शिव शक्ति कमाल कर दिखाने वाली है ना। वो ही हो ना, जिन शक्तियों की घर-घर में पूजा कर रहे हैं। तो हे शिव शक्तियाँ! अपने भक्तों को फल तो दो। वो बेचारे फल चढ़ाते-चढ़ाते थक गये हैं। इतने जो फल चढ़ाये हैं उसका रिटर्न भक्ति का फल तो उन्हों को देंगी ना! भक्तों पर तरस नहीं आता। पाण्डवों की भी पूजा हो रही है। आजकल एक महावीर हनुमान की बहुत पूजा होती है और दूसरा विघ्न विनाशक गणेश की पूजा हो रही है। सब शक्ति की इच्छा से ही भक्ति कर रहे हैं। ऐसे भक्त आत्माओं को सर्व शक्तियों का फल दो। सदा के लिए विघ्नों से पार करने का सहज रास्ता बताओ। सभी पुकार से छुड़ाए प्राप्ति स्वरूप बनाओ - ऐसी सेवा युवा वर्ग करके दिखाओ। समझा। अच्छा –

सदा अपने श्रेष्ठ जीवन द्वारा अनेकों की जीवन बनाने वाले, सर्व भारतवासि यों की श्रेष्ठ, सुखी संसार की शुभ कामना पूर्ण करने वाले, घर-घर में श्रेष्ठ चरित्र का दीपक जगाने वाले, सदा अप्राप्त आत्माओं को प्राप्ति कराने वाले - ऐसे दृढ़ संकल्पधारी, निश्चित विजयी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

कुमारों में सदा बापदादा की उम्मीदें हैं। कुमार विश्व को बदल सकते हैं। अगर सभी कुमार एक दृढ़ संकल्प वाले बन आगे बढ़ते चलें तो बहुत कमाल कर सकते हैं। कमाल करने वाले कुमार हो ना। देखना, बापदादा के पास आटोमेटिक फोटो निकल जाता है! दृढ़ संकल्प वाले कुमार हो ना। कुमारों में शारीरिक शक्ति भी बहुत है इसलिए डबल कार्य कर सकते हो। स्थापना के कार्य में बहुत अच्छे सहयोगी बन सकते हो। कुमारों की बुद्धि में एक ही बात सदा रहती है ना कि - मेरा बाबा और मेरी सेवा और कोई बात नहीं। जिनकी बुद्धि में सदा बाबा और सेवा है वह सहज ही मायाजीत बन जाते हैं। सिर्फ कुमारों को एक बात अटेन्शन में रखनी है - सदा अपने को बिजी रखो, खाली नहीं। शरीर और बुद्धि दोनों से बिजी रहो। बिजीमेन बनो, बिजनेसमेन नही। जैसे कर्म की दिनचर्या सेट करते हो ऐसे बुद्धि की भी दिनचर्या सेट करो। अभी यह सोचना है, यह करना है, दिनचर्या सेट होगी तो उसी प्रमाण बिजी हो जायेंगे। बिजी रहने वाले को किसी भी रूप से माया वार नहीं कर सकती। बुद्धि को बिजी करने के साधन सदा अपनाओ - जैसे शरीर को बिजी करने के साधन हैं, ऐसे बुद्धि से सदा याद में, नशे में बिजी रहो। ऐसी दिनचर्या बनाने आती है? सदाकाल के लिए नियम बना दो। जैसे और नियम बने हैं, यह भी एक नियम बनाओ, बस करना ही है, इसी दृढ़ निश्चय से जो कमाल करने चाहो वह कर सकते हो। कुमार हैं - बापदादा के कर्त्तव्य के सितारे। सेवा के निमित्त तो कुमार बनते हैं ना। भागदौड़ भी कुमार करते हैं। जो भी सेवायें होती हैं उसमें कुमारों का विशेष पार्ट होता है - तो विशेष पार्ट लेने वाली विशेष आत्मायें हैं, यह नशा रखो, इसी खुशी में रहो। तो देखेंगे कुमार ग्रुप क्या करके दिखाते हैं। कुछ करके दिखाना, सिर्फ कहकर नहीं। सेवा के उमंग उत्साह वाले हैं, निश्चय बुद्धि है। अचल हैं, हिलने वाले नहीं हैं। ऐसे ही अचल आत्मायें औरों को भी अचल बनाकर दिखाओ।

महादानी बनकर दान करते चलो। जब स्वयं का भण्डारा भरपूर है तो बहुतों को दान देना चाहिए। सेवा को सदा आगे बढ़ाते चलो। ऐसे नहीं आज चांस मिला तो कर लिया, या जब चांस मिलेगा तब कर लेंगे। नहीं। जिसके पास खज़ाना होता है वह कहीं से भी गरीबों को ढूँढकर भी ढिंढोरा पिटवाकर भी दान जरूर करता है। क्योंकि उसे मालूम है दान करने का पुण्य मिलता है। वह दान तो विनाशी है और स्वार्थ का भी हो सकता है। आप सब तो अविनाशी खज़ानों के महादानी हो। तो सेवा को बढ़ाओ। रेस करो, महादानी बनो। निश्चय से करो, ऐसे नहीं सोचो धरनी ऐसी है। अब समय बदल गया, समय के साथ धरनी भी बदल रही है। पहले के धरनी की जो रिजल्ट थी वह अभी नहीं। समय वायुमण्डल को बदल रहा है। आत्माओं की इच्छा भी बदल रही है, सब आवश्यकता अनुभव कर रहे हैं। अभी समय है, समय के प्रमाण सदा के महादानी बनो। वाचा नहीं तो मंसा, मंसा नहीं तो कर्मणा। कर्म द्वारा किसी आत्मा को परिवर्तन करना यह है कर्मणा। सम्पर्क द्वारा भी किसी आत्मा को परिवर्तन कर सकते हो। ऐसे सेवाधारी बनो। रोज रिजल्ट निकालो। मंसा, वाचा, कर्मणा क्या सेवा की, कितनों की सेवा की । किस उमंग उत्साह से सेवा की? यह रोज की रिजल्ट स्वयं ही निकालो। स्वयं और सेवा दोनों की रफ्तार में आगे बढ़ो। अब कोई नवीनता करो। सेन्टर खोला, गीता पाठशाला खोली, मेला किया यह तो पुरानी बातें हो गई, नया कुछ निकालो। लक्ष्य रखो, अपने में और सेवा में कोई न कोई नवीनता जरूर लानी है। नहीं तो कभी थक जायेंगे, कभी बोर हो जायेंगे। नवीनता होगी तो सदा उमंग उत्साह में रहेंगे। अच्छा।’’

माताओं से :- माताओं के लिए विशेष बापदादा सहज मार्गकी सौगात लाये हैं। सहज मार्ग की सौगात सभी को मिली है? सहज प्राप्ति जो होती है यही सौगात है। तो खास बापदादा सहज मार्ग की गिफ्ट लाये हैं - यही नशा रहे। सबसे सहज - ‘‘मेरा बाबा’’ कहो, बस। मेरा बाबा कहने से, अनुभव करने से सर्व प्राप्तियाँ हो जायेंगी। माताओं को विशेष खुशी होनी चाहिए कि हमारे लिए खास बाप आये हैं। और जो भी आये उन्होंने पुरूषों को आगे किया। धर्म पितायें धर्म स्थापन करके चले गये। माताओं को किसी ने भी नामी ग्रामी नहीं बनाया। और बाप ने ‘‘पहले माता’’ का सिलसिला स्थापन किया। तो मातायें सिकीलधी हो गई ना। कितने सिक से बाप ने ढूंढा और अपना बना लिया। आप लोगों ने तो बिना एड्रेस ढूंढा इसलिए ढूंढना नहीं हुआ। बाप ने देखो कैसे कोने-कोने से ढूंढकर निकाल दिया। अनेक वृक्षों की डालियाँ अब एक वृक्ष की हो गई। एक ही चन्दन का वृक्ष हो गया। लोग कहते हैं - दो चार मातायें भी एक साथ इकट्ठी नहीं रह सकतीं और अभी मातायें सारे विश्व में एकता स्थापन करने के निमित्त हैं। वह कहते, रह नहीं सकतीं और बाप कहते मातायें ही रह सकती हैं। ऐसी माताओं का विशेष मर्तबा है। खूब खुशी में नाचो गाओ, वाह! हमारा श्रेष्ठ भाग्य! कभी भी दु:ख की लहर न आये। सभी ने दुखधाम को छोड़ दिया है ना। बस हम संगमयुगी हैं, सदा सुखधाम शान्तिधाम तरफ आगे बढ़ते रहना। माताओं को देखकर बापदादा को नाज होता है, ना-उम्मीदवार उम्मीदवार बन गई। विश्वकल् याणकारी बन गई। अभी विश्व आपकी तरफ देख रहा है, कि हमारे कल्याण वाली मातायें कहाँ हैं, तो अब जगत की मातायें बन जगत का कल्याण करो। सिर्फ लौकिक परिवार की जिम्मेवारी निभाने वाली नहीं लेकिन विश्व के सर्व आत्माओं के सेवा की जिम्मेवारी निभाने वाली। चाहे निमित्त कहाँ भी रहते हो लेकिन स्मृति में विश्व सेवा रहे। जैसा लक्ष्य होगा वैसे लक्षण स्वत: आ जाते हैं। लक्ष्य होगा बेहद का तो लक्षण भी बेहद के आयेंगे। नहीं तो हद में ही फँसे रहेंगे। सदा बाप की हूँ, बेहद की हूँ, इसी स्मृति में सर्व आत्माओं के प्रति शुभ संकल्प द्वारा सेवा करते चलो। मुख द्वारा भी और संकल्प द्वारा भी। दोनों साथ-साथ हों। मुख द्वारा किसको भल समझाओ लेकिन जब तक शुभ भावना का बल उस आत्मा को नहीं देंगे तो फल नहीं निकलेगा। मंसा वाचा दोनों इकट्ठी सेवा हों। सिर्फ सन्देश देने तक नहीं। नहीं तो सिर्फ हाँ-हाँ करके चले जाते हैं। मंसा सेवा साथ-साथ हो तो तीर लग जाए। माताओं को सेवा के मैदान पर आना चाहिए। एक-एक माता एक-एक सेवाकेन्द्र सम्भाले। अगर फुर्सत नहीं है तो आपस में दो तीन का ग्रुप बनाओ। ऐसे नहीं घर का बन्धन है, बच्चे हैं। जिनकी मातायें सोशलवर्कर होती हैं उनके भी तो बच्चे होते हैं ना। वह भी सीख जाते हैं। तो अब अपने आपको हैण्डस बनाओ और सेवा को बढ़ाओ। कोई न कोई को निकालकर उनको स्थान दे आगे बढ़ते जाओ। अभी शक्तियाँ मैदान पर आओ। जो पालना ली है उसका रिटर्न दो। जितना सेवा बढ़ायेंगे उतना स्वयं को भी उसका फल मिलेगा, वर्तमान भी शक्तिशाली होगा, और भविष्य तो बनता ही है। जितनी सेवा करेंगे उतना निर्विघ्न रहेंगे और खुशी भी रहेगी। अच्छा –

कुमारियों से :- कुमारियाँ अपने श्रेष्ठ भाग्य को अच्छी तरह से जानती हैं ना? कभी अपने श्रेष्ठ भाग्य को भूलती तो नहीं! सदा भाग्य को स्मृति में रखते हुए आगे बढ़ती चलो। संगमयुग में विशेष लिफ्ट की गिफ्ट कुमारियों को मिलती है। क्योंकि कुमारी जीवन फिकर से फारिग जीवन है। घर चलाने का, नौकरी टोकरी का कोई फिकर नहीं। कुमारी अर्थात् स्वतन्त्र। स्वतन्त्रता सभी को प्रिय लगती है। अज्ञान में भी सबका लक्ष्य यही रहता कि हम स्वतन्त्र रहें। इसीलिए स्वतन्त्र आत्मा हूँ, यह स्वतन्त्रता का वरदान आप सबको प्राप्त है। स्वतन्त्रता के वरदानी और सबको भी यही वरदान देंगी ना। कोई के भी चक्र में फँसने वाली नहीं। जब चक्र से निकल चुकी, स्वतन्त्र हैं तो सेवा करेंगी ना। निमित्त मात्र यह पढ़ाई जो रही है वह करते भी सदा सेवा की स्मृति रहे। पढ़ाई पढ़ते समय भी यह लक्ष्य रहे कि कौनसी ऐसी आत्मा है जिसे बाप का बनायें। पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते परखते रहो कि कौन सी आत्मायें योग्य हैं। तो वहाँ भी सेवा हो जायेगी। कुमारियों को भाषण करना अवश्य सीखना चाहिए। सभी पढ़ाई पढ़ते भी तैयार होती जाओ। पढ़ाई पूरी होते ही सेवा में लग जाना।

टीचर्स के साथ :- निमित्त सेवाधारी! निमित्त कहने से सहज ही याद आ जाता कि किसने निमित्त बनाया है। कभी भी सेवाधारी शब्द कहो तो उसके आगे निमित्त जरूर कहो। दूसरा निमित्त समझने से स्वत: ही निर्मान बन जायेंगे। और जो जितना निर्मान होगा उतना फलदायक होगा। निर्मान बनना अर्थात् फल स्वरूप बनना।

वर्तमान समय के हिसाब से सेवाधारी की सेवा कौन सी है? सर्व को हल्के बनाने की सेवा। उड़ती कला में ले जाने की सेवा। उड़ती कला में तब ले जायेंगे जब हल्के होंगे। सर्व प्रकार के बोझ स्वयं के भी हल्के और सर्व के भी बोझ हल्के करने वाले। जिन आत्माओं के निमित्त सेवाधारी बने हैं उन्हों को मंज़िल पर तो पहुँचना है ना! अटकाना वा फँसाना नहीं है लेकिन हल्के बन हल्के बनाना है। हल्के बनेंगे तो मंज़िल पर स्वत: पहुँच जायेंगे। सेवाधारियों की वर्तमान समय यही सेवा है। उड़ते रहो उड़ाते रहो। सभी को सेवा की लाटरी मिली है, इसी लाटरी को सदा कार्य में लगाते रहो। हर सेकेण्ड में श्वासों श्वास सेवा चलती रहे। इसी में सदा बिजी रहो। अच्छा –


 

15-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


छोटे-छोटे बच्चों के ग्रुप में प्राण अव्यक्त बापदादा की पधरामणि

सदा पुण्य करने के निमित्त बनाने वाले बापदादा अपने सिकीलधे बच्चों प्रति बोले:-

आज बागवान बाप अपने रूहानी बगीचे में खुशबूदार फूलों को और कल की विशेष कल्याण अर्थ निमित्त बनी हुई हिम्मत हुल्लास वाली कलियों को भी देख रहे हैं। कल के तकदीर की तस्वीर - नन्हें मुन्ने बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा इन छोटे-छोटे बच्चों को धरनी के चमकते सितारे कहते हैं। यही लकी सितारे विश्व को नई रोशनी देने के निमित्त बनेंगे। इन छोटे बड़े बच्चों को देख बापदादा को स्थापना के आदि का नजारा याद आ रहा है। जबकि ऐसे छोटे-छोटे बच्चे विश्व कल्याण के कार्य के उमंग उत्साह में दृढ़ संकल्प करने वाले निकले कि हम छोटे सबसे बड़ा कार्य करके दिखायेंगे जो राज-नेतायें, धर्म नेतायें, विज्ञानी आत्मायें चाहना रखती हैं लेकिन कर नहीं पाती हैं, वह कार्य हम छोटेछोटे कर दिखायेंगे। और आज उन छोटे-छोटे बच्चों का संकल्प साकार रूप में देख रहे हैं। वो ही थोड़े ही छोटे बच्चे आज शिव-शक्ति पाण्डव सेनाके रूप में कार्य कर रहे हैं। हिस्ट्री तो सब जानते हो ना। आज उन्हीं जगे हुए दीपकों से आप सभी दीपमाला बन बाप के गले के हार बन गये हो। अब भी छोटे बड़े बच्चों को देख हर बच्चे में विश्व के कल की तकदीरवान तस्वीर दिखाई देती है। सभी बच्चे अपने को क्या समझते हो? लकी सितारे हो ना! आज का दिन है ही बच्चों का दिन! बड़े तो गैलरी में बैठ देखने वाले हैं। बापदादा भी विशेष बच्चों को देख हर्षित होते हैं। एक एक बच्चा अनेक आत्माओं को बाप का परिचय दे, बाप के वर्से के अधिकारी बनाने वाले हो ना! वैसे भी बच्चों को महात्मा कहा जाता है। सच्चे-सच्चे महान आत्मायें अर्थात् श्रेष्ठ पवित्र आत्मायें आप सब हो ना! ऐसी महान आत्मायें सदा अपने एक ही दृढ़ संकल्प में रहती हो? सदा एक बाप और एक के ही श्रीमत पर चलना है। यह पक्का निश्चय किया है ना। अपने- अपने स्थानों पर जाए किसी भी संग में तो नहीं आने वाले हो? आप सभी का फोटो यहाँ निकल गया है। इसलिए सदा अपना श्रेष्ठ जीवन याद रखना। हम हर एक बच्चा विश्व के सर्व आत्माओं के श्रेष्ठ परिवर्तन के निमित्त हैं, सदैव यह याद रखना। इतनी बड़ी जिम्मेवारी उठाने की हिम्मत है? सभी बच्चे अमृतवेले से लेकर अपने सेवा की जिम्मेवारी निभाने वाले हो? जो भी किसी भी बात में कमज़ोर हो तो उसको अभी से ठीक कर लेना। आप सभी के ऊपर सभी की नजर है। इसलिए अमृतवेले से लेकर रात तक सहज योगी, श्रेष्ठ योगी जो भी श्रेष्ठ जीवन के लिए दिनचर्या मिली हुई है, उसी प्रमाण सभी को यथार्थ रीति चलना पड़ेगा - यह अटेन्शन अभी से दृढ़ संकल्प के रूप में रखना। सभी को योगी के लक्षणों का पता हैं? (सब बच्चे बापदादा को हरेक बात पर हाँ जीका रेसपान्ड करते रहे) योगी आत्माओं की बैठक, चलन, दृष्टि क्या होती है यह सब जानते हो? ऐसे ही चलते हो वा थोड़ी-थोड़ी चंचलता भी करते हो? सब योगी आत्मायें हो ना! जो दुनिया वाले करते हैं वह आप बच्चे नहीं कर सकते। आप महान आत्मायें ऐसे शान्त स्वरूप रहो जो भल कितने भी बड़े-बड़े हों लेकिन आप शान्त स्वरूप आत्माओं को देख शान्ति की अनुभूति करें और यही दिखाई दें कि यह साधारण बच्चे नहीं लेकिन सभी अलौकिक बच्चे हैं। न्यारे हैं और विशेष आत्मायें हैं। तो ऐसे चलते हो? अभी से यह भी परिवर्तन करना। आज सभी बच्चों से मिलने के लिए ही विशेष बापदादा आये हैं। समझा!

बच्चों के साथ बड़े भी आये हैं। बापदादा आये हुए सभी बच्चों को विशेष याद दे रहे हैं। साथ-साथ यह तो सभी जानते हो कि वर्तमान समय प्रमाण बापदादा सभी बच्चों को उड़ती कला की ओर ले जा रहे हैं उड़ती कला का श्रेष्ठ साधन जानते हो ना? एक शब्द के परिवर्तन से सदा उड़ती कला का अनुभव कर सकते हो। एक शब्द कौन सा? सिर्फ - ‘‘सब कुछ तेरा’’मेराशब्द बदलतेराकर लिया। तेराशब्द ही तेरा हूँ बना देता है। और यही एक शब्द सदा के लिए डबल लाइट बना देता है। तेरा हूँ, तो आत्मा लाइट है। और जब सब कुछ तेरा तो भी लाइट (हल्के) बन गये ना। तो सिर्फ एक शब्द तेरा। डबल लाइट बन जाने से सहज उड़ती कला वाले बन जाते। बहुत समय का अभ्यास है, ‘मेराकहने का। जिस मेरे शब्द ने ही अनेक प्रकार के फेरे में लाया है। अभी इसी एक शब्द को परिवर्तन कर लो। मेरा सो तेरा हो गया। यह परिवर्तन मुश्किल तो नहीं है ना। तो सदा इसी एक शब्द के अन्तर स्वरूप में स्थित रहो। समझा क्या करना है। सदा एक ही लगन में मगन रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें वर्तमान भी श्रेष्ठ जीवन का अनुभव कर रहीं हैं और भविष्य की अविनाशी श्रेष्ठ बना रही हैं। इसलिए सदा यह एक शब्द याद रखो। समझा! इसी आधार पर जितना आगे बढ़ने चाहो उतना आगे बढ़ सकते हो। और जितना अपने पास खज़ाने जमा करने चाहो उतने खज़ाने जमा कर सकते हो। वैसे भी लौकिक जीवन में सदा जो भी नामीग्रामी अच्छे कुल वाली आत्मायें होती हैं वह सदा अपने जीवन के लिए दान पुण्य करने का लक्ष्य रखती हैं। आप सभी सबसे बड़े ते बड़े कुल, श्रेष्ठ कुल के हो। तो श्रेष्ठ कुल वाली ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्मायें, उन्हों का भी लक्ष्य क्या है? सदा महादानी बनो। सदा पुण्य आत्मा बनो। कभी भी संकल्प में भी किसी विकार के वश कोई संकल्प भी किया तो उसको क्या कहा जायेगा? पाप वा पुण्य? पाप कहेंगे ना। स्वयं के प्रति भी सदा पुण्यकर्त्ता बनो। संकल्प में भी पुण्य आत्मा, बोल में भी पुण्य आत्मा और कर्म में भी पुण्य आत्मा। जब पुण्य आत्मा बन गये तो पाप का नाम निशान नहीं रह सकता। तो सदा यह स्मृति में रखो कि हम सर्व ब्राह्मण आत्मायें सदा की पुण्य-आत्मायें हैं। किसी भी आत्मा के प्रति सदा श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना रखना - यह सबसे बड़ा पुण्य है। चाहे कैसी भी आत्मा हो, विरोधी आत्मा हो वा स्नेही आत्मा हो लेकिन पुण्य आत्मा का पुण्य ही है - जो विरोधी आत्मा को भी श्रेष्ठ भावना के पुण्य की पूँजी से उस आत्मा को भी परिवर्तन करे। पुण्य कहा ही जाता है, जिस आत्मा को जिस वस्तु की अप्राप्ति हो उसको प्राप्त कराने का कार्य करना -यह पुण्य है। जब कोई विरोधी आत्मा आपके सामने आती है तो पुण्य आत्मा, सदा उस आत्मा को सहनशक्ति से वंचित आत्मा है - उसी नजर से देखेंगे। और अपने पुण्य की पूँजी द्वारा शुभ भावना द्वारा श्रेष्ठ संकल्प द्वारा उस आत्मा को सहनशक्ति की प्राप्ति के सहयोगी आत्मा बनेंगे। उसके लिए यही पुण्य का कार्य हो जाता है। पुण्य आत्मा सदा स्वयं को दाता के बच्चे देने वाला समझते हैं। किसी भी आत्मा द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति के लेने वाले की कामना से परे रहते हैं। यह आत्मा कुछ देवे तो मैं दूँ, वा यह भी कुछ करे तो मैं भी करूँ, ऐसी हद की कामना नहीं रखते। दाता के बच्चे बन सबके प्रति स्नेह सहयोग, शक्ति देने वाले पुण्य आत्मा होंगे। पुण्य आत्मा कभी भी अपने पुण्य के बदले प्रशंसा लेने की कामना नहीं रखते। क्योंकि पुण्य आत्मा जानते हैं कि यह हद की प्रशंसा को स्वीकार करना सदाकाल की प्राप्ति से वंचि्ात होना है। इसलिए वह सदा देने में सागर के समान सम्पन्न रहते हैं। पुण्य-आत्मा सदा अपने हर बोल द्वारा औरों को खुशी में, बाप के स्नेह में अतीन्द्रिय सुख में रूहानी आनन्दमय जीवन का अनुभव करायेंगे। उनका हर बोल खुशी की खुराक होगी, पुण्य आत्मा का हर कर्म सर्व आत्माओं के प्रति सदा सहयोग के प्राप्ति कराने वाला होगा। और हर आत्मा अनुभव करेगी कि इस पुण्य आत्मा का कर्म देख सदा आगे उड़ने का सहयोग प्राप्त हो रहा है। समझा, पुण्य आत्मा के लक्षण। तो ऐसे सदा पुण्यात्मा बनो। अर्थात् श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन का प्रत्यक्ष स्वरूप बनो। पवित्र प्रवृत्ति वाली पुण्य आत्मायें बनो तब ही ऐसी पुण्य आत्माओं के प्रभाव से पाप का नाम निशान समाप्त हो जायेगा। अच्छा - ऐसे सदा हर संकल्प द्वारा पुण्य करने वाली, पुण्य आत्मायें, सदा एक शब्द के परिवर्तन द्वारा उड़ती कला में जाने वाले, सदा दाता के बच्चे बन सबको देने वाली विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’



17-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगम युग - मौजों के नज्जारों का युग

राजाओं का भी राजा बनाने वाले, बेफकर बादशाह भाग्यवान बच्चों के प्रति बापदादा बोले:-

आज बापदादा अपने छोटे बड़े बेफिकर बादशाहों को देख रहे हैं। संगमयुग पर ही इतने बड़े ते बड़े बादशाहों की सभा लगती है। किसी भी युग में इतने बादशाहों की सभा नहीं होती है। इस समय ही बेफिकर बादशाहों की सभा कहो वा स्वराज्य सभा कहो, सभी देख रहे हो। छोटे बड़े यही जानते हैं और मानकर चलते हैं कि हम सभी इस शरीर के मालिक शुद्ध आत्मा हैं। आत्मा कौन हुई? मालिक! स्वराज्य अधिकारी! छोटे में छोटा बच्चा भी यही मानते हैं। कि मैं बादशाह हूँ। तो बादशाहों की सभा वा स्वराज्य सभा कितनी बड़ी हुई! और बादशाहों का बादशाह वा राजाओं का भी राजा बनाने वाले - वर्तमान के राजे सो भविष्य के राजे। ऐसे राजा को देख वा सर्व बेफकर बादशाहों को देख कितना हर्षित होंगे। सारे कल्प में ऐसा बाप कोई होगा जिसके लाखों बच्चे बादशाह हों! किसी से भी पूछो तो क्या कहते? नन्हा सा बच्चा भी कहता - ‘‘मैं लक्ष्मी-नारायण बनूँगा’’ सभी बच्चे ऐसे समझते हो ना। ऐसे बाप को ऐसे राजे बच्चों के ऊपर कितना नाज होगा! आप सभी को भी यह ईश्वरीय फखुर है कि हम भी राजा फैमली के हैं। राज्यवंशी हैं? तो आज बापदादा एक-एक बच्चे को देख रहे हैं। बाप के कितने भाग्यवान बच्चे हैं! हर एक बच्चा भाग्यवान है। साथ-साथ समय का भी सहयोग है। क्योंकि यह संगमयुग जितना छोटा युग है उतना ही विशेषताओं से भरा हुआ युग है। जो संगमयुग पर प्राप्तियाँ हैं वह और कोई युग में नहीं हो सकतीं। संगमयुग है ही मौजों के नजारों का युग। मौजें ही मौजें हैं ना! खाओ तो भी बाप के साथ मौजों में खाओ। चलो तो भी भाग्यविधाता बाप के साथ हाथ देते चलो। ज्ञान-अमृत पिओ तो भी ज्ञान दाता बाप के साथ-साथ पिओ। कर्म करो तो भी करावनहार बाप के साथ निमित्त करने वाले समझ करो। सोओ तो भी याद की गोदी में सोओ। उठो तो भी भगवान से रूह-रूहान करो। सारी दिनचर्या बाप और आप। और बाप है तो पाप नहीं है। तो क्या होगा! मौजें ही मौजें होंगी ना। बापदादा देख रहे थे तो सभी बच्चे मौजों में रहते हैं। यह छोटा सा जन्म लिया ही मौजें मनाने के लिए है। खाओ, पिओ, याद की मौज में रहो। इस अलौकिक जन्म का धर्म अर्थात् धारणा मौजमें रहना है। दिव्य कर्म सेवा की मौज में रहना है। जन्म का लक्ष्य ही है - मौजों में रहना। और सारे विश्व को सर्व मौजों वाली दुनिया बनाना। तो सवेरे से लेकर रात तक मौजों के नजारे में रहते हो ना। बेफिकर बादशाह हो करके दिन रात बिताते हो ना। तो सुना आज वतन में क्या देखा! बेफिकर बादशाहों की सभा। हरेक बादशाह अपने याद की मौज में बाप के दिलतख्तनशीन स्मृति के तिलकधारी थे। अच्छा - आज तो मिलने का दिन है इसलिए अपने बादशाहों से मिलने आये हैं। अच्छा –

सदा बेफिकर बादशाह, मौजों की जीवन में मौजों के नजारे देखने वाले, सदा भाग्यवान बाप के साथ-साथ रहने वाले, ऐसे स्वराज्य अधिकारी, दिलतख्तनशीन, पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

छोटें बच्चों से :- सभी बच्चे अपने को महान आत्मायें समझते हुए पढ़ते हो, खेलते हो, चलते हो? हम महात्मायें हैं, सदा यह खुशी रखो, नशा रखो कि हम ऊँचे ते ऊँचे भगवान के बच्चे हैं। भगवान को देखा है? कहाँ हैं? कोई कहे हमको भी भगवान से मिलाओ तो मिला सकते हो? सभी भगवान के बच्चे हो तो भगवान के बच्चे कभी लड़ते तो नहीं हो? चंचलता करते हो? भगवान के बच्चे तो योगीहोते हैं फिर आप चंचलता क्यों करते हो? सदा अपने को महान आत्मा, योगी आत्मा समझो। क्या बनेंगे? लक्ष्मी-नारायण! दोनो ही एक साथ बनेंगे? या कभी लक्ष्मी बनेंगे, कभी नारायण बनेंगे! लक्ष्मी बनना पंसद है? अच्छा - सदा नारायण बनना चाहते हो तो सदा शान्त योगी जीवन में रहना और रोज सुबह उठकर गुडमोर्निंग जरूर करना। ऐसे नहीं देरी से उठो और जल्दी-जल्दी तैयार होकर चले जाओ। 3 मिनट भी याद में बैठ गुडमोर्निंग जरूर करो, बातें करो पीछे तैयार हो। यह व्रत कभी भी भूलना नहीं। अगर गुडमोर्निंग नहीं करेंगे तो खाना नहीं खायेंगे। खाना याद रहेगा तो पहले गुडमोर्निंग करना याद रहेगा। गुडमोर्निंग करके फिर खाना खाना। याद करो ज्ञान की पढ़ाई को, अच्छे गुण धारण करो तो विश्व में आप रूहानी गुलाब बन खुशबू फैलायेंगे। गुलाब के फूल सदा खिले रहते हैं और सदा खुशबू देते हैं। तो ऐसे ही खुशबूदार फूल हो ना! सदा खुश रहते हो या कभी थोड़ा दु:ख भी होता है? जब कोई चीज़ नहीं मिलती होगी तब दुःख होता होगा या मम्मी-डैडी कुछ कहते होंगे तो दु:ख होता होगा। ऐसा कुछ करो ही नहीं जो मम्मी डैडी कहें। ऐसा चलो जैसा फरिश्ते चल रहे हैं। फरिश्तों का आवाज़ नहीं होता। मनुष्य जो होते हैं वह आवाज़ करते हैं। आप ब्राह्मण सो फरिश्ते आवाज़ नहीं करो। ऐसा चलो जो किसी को पता ही न चलें। खाओ पिओ, चलो फरिश्ता बन करके। बापदादा सभी बच्चों को बहुत बहुत बधाई दे रहे हैं। बहुत अच्छे बच्चे हैं और सदा अच्छे ही बनकर रहना। अच्छा –

बच्चियों से :- कुमारी जीवन की क्या महिमा है? कुमारियों को पूजा जाता है, क्यों? पवित्र आत्मायें हैं। तो सभी पवित्र आत्मायें पवित्र याद से औरों को भी पवित्र बनाने की सेवा में रहने वाली हो ना! चाहे छोटी हो चाहे बड़ी हो लेकिन बाप का परिचय तो सभी को दे सकते हो ना। छोटे भी बहुत अच्छा भाषण करते हैं। बापदादा सबसे छोटे से छोटी कुमारी को बड़ी स्टेज पर भाषण करने के लिए कहें तो तैयार हो? संकोच तो नहीं करेंगी। डर तो नहीं जायेंगी! सदा अपने को विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा समझो। रिवाजी साधारण कुमारियाँ नहीं लेकिन श्रेष्ठ कुमारी। श्रेष्ठ कुमारी श्रेष्ठ काम करेगी ना। सबसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कार्य है - बाप का परिचय दे बाप का बनाना। दुनिया वाले भटक रहे हैं, ढूँढ रहे हैं और तुम लोगों ने जान लिया, पा लिया, कितनी तकदीरवान, भाग्यवान हो! भगवान के बन गये इससे बड़ा भाग्य और कुछ होता है! तो सदा भाग्यवान आत्मा हूँ - इसी खुशी में रहो। यह खुशी अगर गुम हुई तो फिर कभी रोयेंगे, कभी चंचलता करेंगे। सदा आपस में भी प्यार से रहो और लौकिक माता-पिता के भी कहने पर आज्ञाकारी रहो। पारलौकिक बाप की सदा याद में रहो। तब ही श्रेष्ठ कुमारियाँ बन सकेंगी। तो सदा अपने को श्रेष्ठ कुमारी, पूज्य कुमारी समझो। मन्दिरों में जो शक्तियों की पूजा होती है, वही हो ना! एक-एक कुमारी बहुत बड़ा कार्य कर सकती। विश्व परिवर्तन करने के निमित्त बन सकती हो। बापदादा ने विश्व परिवर्तन का कार्य बच्चों को दिया है। तो सदा बाप और सेवा की याद में रहो। विश्व परिवर्तन करने की सेवा के पहले अपना परिवर्तन करो। जो पहले की जीवन थी उससे बिल्कुल बदलकर, बस - श्रेष्ठ आत्मा हूँ, पवित्र आत्मा हूँ, महान आत्मा हूँ, भाग्यवान आत्मा हूँ, इसी याद में रहो। यह याद स्कूल या कालेज में जाकर भूलती तो नहीं हो ना! संग का रंग तो नहीं लगता! कभी खाने पीने की तरफ कहाँ आकर्षण तो नहीं जाती। थोड़ा बिस्कुट या आइस्क्रीम खा लें, ऐसी इच्छा तो नहीं होती! सदैव याद में रहकर बनाया हुआ भोजन - ब्रह्मा भोजनखाने वाली - ऐसे पक्के! देखना, वहाँ जाकर संग में नहीं आ जाना। कुमारियाँ जितना भाग्य बनाने चाहो बना सकती हो। छोटे-पन से लेकर सेवा के शौक में रहो। पढ़ाई भी पढ़ो और पढ़ाना भी सीखो। छोटेपन में होशियार हो जायेंगे तो बड़े होकर चारों ओर की सेवा में निमित्त बन जायेंगे। स्थापना के समय भी छोटे-छोटे थे वह अब कितनी सेवा कर रहे हैं, आप लोग उनसे भी होशियार बनना। कल की तकदीर हो। कल भारत स्वर्ग बन जायेगा तो कल की तकदीर आप हो। कोई भी आपको देखे तो अनुभव करे कि यह साधारण नहीं, विशेष कुमारियाँ हैं।

वह पढ़ाई पढ़ते भी मन की लगन ज्ञान की पढ़ाई में रहनी चाहिए। पढ़ने के बाद भी क्या लक्ष्य है? श्रेष्ठ आत्मा बन श्रेष्ठ कार्य करने का है। नौकरी की टोकरी उठाने का तो नहीं है ना! अगर कोई कारण होता है तो वह दूसरी बात है। माँ-बाप के पास कमाई का दूसरा काई साधन नहीं है, तो वह हुई मजबूरी। लेकिन अपना वर्तमान और भविष्य सदा याद रखो। काम में क्या आयेगा? यह ज्ञान की पढ़ाई ही 21 जन्म काम आयेगी। इसलिए निमित्त मात्र अगर लौकिक कार्य करना भी पड़ता तो भी मन की लगन बाप और सेवा में रहे। तो सभी राइट हैण्ड्स बनना, लेफ्ट हैण्ड नहीं। अगर इतने सब राइट हैण्ड हो जाएँ तो विनाश हुआ कि हुआ। इतनी शक्तियाँ विजय का झण्डा लेकर आ जाएं तो रावण राज्य का समय समाप्त हो जाए। जब ब्रह्माकुमारी बनना है तो फिर डिग्री क्या करेंगी? यह तो निमित्त मात्र जनरल नालेज से बुद्धि विशाल बने उसके लिए यह पढ़ाई पढ़ी जाती। मन की लगन से नहीं, ऐसे नहीं बाकी एक साल में यह डिग्री लें, फिर दूसरे साल में यह डिग्री लें... ऐसे करते-करते काल आ जाए तो... इसलिए जो निमित्त हैं उनसे राय लेते रहो। आगे पढें या न पढ़े? कई हैं जो पढ़ाई की शौक में अपना वर्तमान और भविष्य छोड़ देती हैं। धोखा खा लेती हैं। अपने जीवन का फैसला स्वयं खुद को करना है। माँ बाप कहें, नहीं। स्वयं जज बनो। आप शिव शक्तियाँ हो, आपको कोई बन्धन में बाँध नहीं सकता। बकरियों को बन्धन में बांध सकते हैं, शक्तियों को नहीं। शक्तियों की सवारी शेर पर है, शेर खुले में रहता है, बन्धन में नहीं, तो सदा हम बाप की राइट हैण्ड हैं - यह याद रखना। अच्छा।

टीचर्स के साथ:- सदा यही स्मृति में रहता है ना कि हम निमित्त सेवाधारी हैं। करावनहार निमित्त बनाए करा रहा है। तो करावनहार जिम्मेवार हुआ ना। निमित्त बनने वाले सदा हल्के। डायरेक्शन मिला, कार्य किया और सदा हल्के रहे। ऐसे कहते हो या कभी सेवा का बोझ अनुभव होता है? क्योंकि अगर बोझ होगा तो सफलता नहीं होगी। बोझ समझने से कोई भी कर्म यथार्थ नहीं होगा। स्थूल में भी जब कोई कार्य का बोझ पड़ जाता है तो कुछ तोडेंगे, कुछ फोडेंगे, कुछ मन मुटाव होगा, डिस्टर्ब होंगे। कार्य भी सफल नहीं होगा। ऐसे यह अलौकिक कार्य भी बोझ समझकर किया तो यथार्थ नहीं होगा। सफल नहीं हो सकेंगे। फिर बोझ बढ़ता जाता है। तो संगम-युग का जो श्रेष्ठ भाग्य है हल्के हो उड़ने का, वह ले नहीं सकेंगे। फिर संगमयुगी ब्राह्मण बन किया क्या! इसलिए सदा हल्के बन निमित्त समझते हुए हर कार्य करना - इसी को ही सफलतामूर्त कहा जाता है। जैसे आजकल के जमाने में पैर के नीचे पहिये लगाकर दौड़ते हैं, वह कितने हल्के होते हैं। उनकी रफ्तार तेज हो जाती है। तो जब बाप चला रहा है, तो श्रीमत के पहिये लग गये ना। श्रीमत के पहिये लगने से स्वत: ही पुरूषार्थ की रफ्तार तेज हो जायेगी। सदा ऐसे सेवाधारी बनकर चलो। जरा भी बोझ महसूस नहीं करो। करावनहार जब बाप है तो बोझ क्यों? इसी स्मृति से सदा उड़ती कला में जाते रहो। बस सदा उड़ते चलो। इसको कहा जाता है - नम्बरवन योग्य सेवाधारी। बस, बाबा-बाबा और बाबा। हर सेकेण्ड यह अनहद साज बजता रहे। बस, बाबा और मैं, सदा ऐसे समाये रहो तो तीसरा बीच में आ नहीं सकता। जहाँ सदा समाये होंगे, दोनो राजी होंगे तो बीच में कोई नहीं आयेगा। इसको ही कहा जाता है - श्रेष्ठ सेवाधारी। ऐसे हो? दूसरा कुछ नहीं देखो, कुछ नहीं सुनो। सुनने से भी प्रभाव पड़ता। बस बाबा और मैं, सदा मौज मनाओ। मेहनत तो बहुत की, अभी मौज मनाने का समय है। एक गीत भी है ना मौजें ही मौजें... उठो, चलो, सेवा करो, सोओ सब मौज में। खूब नाचो, गाओ, खुशी में रहो। सेवा भी खुशी-खुशी से नाचते-नाचते करो। ऐसे नहीं लुढ़ते लमते गिरते चढ़ते करो। संगम पर सर्व सम्बन्ध की मौजें हैं। तो खूब मौज मनाओ। सदा मौजों के ही नजारों में रहो। अच्छा!


 

19-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


साक्षी दृष्टा कैसे बनें?

सर्व शक्तिवान, सदा विश्व कल्याणकारी शिवबाबा बोले :-

आज बापदादा इस पुरानी दुनिया और पुराने राज्य की दुनिया, जड़जड़ीभूत हुई दुनिया का समाचार सुन रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मेरे बच्चों को पुरानी दुनिया में कितना सहन करना पड़ता है। आत्मा के लिए मौजों का समय है लेकिन शरीर से सहन भी करना पड़ता है। अपने राज्य में प्रकृति आप सबकी दासी होगी। वैसे भी दासियाँ बहुत होंगी और प्रकृति के पांचों ही तत्व सदा आज्ञाकारी सेवाधारी होंगे। लेकिन अपना राज्य स्थापन करने के लिए पुराने को ही नया बनाना है। पुरानी में सेवाधारी बनना ही पड़ता है। अभी की यह सेवा जन्म-जन्मान्तर की सेवा से मुक्त कर देती है। इस सेवा के फलस्वरूप प्रकृति और चैतन्य सेवाधारी आपके चारों ओर घूमते रहेंगे। हाजिर मालिक, हाँ जी मालिक, यही सदा मीठा-मीठा साज सुनते रहेंगे। इसलिए सदाकाल की सर्व प्राप्ति के आगे यह थोड़ा बहुत सहन करना भी सहन करना नहीं लगता। श्रेष्ठ सेवा के नशे और खुशी में सहन करना एक चरित्र रूप में बदल जाता है। भागवत आप सबके सहन शक्ति के चरित्रों का यादगार है। तो सहन करना नहीं लेकिन यादगार चरित्र बन रहे हैं। अभी तक भी यही गायन सुन रहे हो कि भगवान के बच्चों ने बाप के मिलन के स्नेह में क्या-क्या किया। गोपी वल्लभ के गोप गोपिकाओं ने क्या-क्या किया। तो यह सहन करना नहीं लेकिन सहन ही शक्तिशाली बना रहे हैं। सहन शक्ति से मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो। सहन करना लगता है कि खेल लगता है? मन तो सदा नाचता रहता है ना। तो मन की खुशी यह थोड़ा बहुत सहन भी, खुशी में परिवर्तन कर देती है। तन भी तेरा, मन भी तेरा। तो जिसको तेरा कहा वह जाने। आप तो न्यारे और प्यारे रहो। सिर्फ जिस समय तन का हिसाब किताब चुक्तू करने का पार्ट बजाते हो उस समय यह निरन्तर स्मृति रहे कि बाबा आप जानो आपका काम जाने। मैं बीमार हूँ, नहीं मेरा शरीर बीमार है, नहीं, तेरी अमानत है तुम जानो। मैं साक्षीदृष्टा बन आपके अमानत की सेवा कर रही हूँ। इसको कहा जाता है - साक्षीदृष्टा। ट्रस्टी बनना। ऐसे ही मन भी तेरा। मेरा है ही नहीं। मेरा मन नहीं लगता, मेरा योग नहीं लगता, मेरी बुद्धि एकाग्र नहीं होती। यह मेराशब्द हलचल पैदा करता है। मेरा है कहाँ। मेरापन मिटाना ही सर्व बन्धन मुक्त बनना है। मेरा धन, मेरी पत्नी, मेरा पति, मेरा बच्चा ज्ञान में नहीं चलता, उसकी बुद्धि का ताला खोल दो। सिर्फ उन्हों का क्यों सोचते हो! मेरे के भाव से क्यों सोचते! यह कभी भी कोई बच्चे ने अभी तक नहीं कहा है कि मेरे गांव की वा देश की आत्मा का ताला खोलो। कहते मेरी पत्नी का, मेरे बच्चों का, मेरेपन का भाव, बेहद में नहीं ले आता। इसलिए बेहद की शुभ भावना हर आत्मा के प्रति रखते हुए सर्व के साथ उन आत्माओं को भी देखो। क्या समझा! तेरा तो तेरा हो गया। मेरा कोई बोझ नहीं। चाहे बापदादा कहाँ भी सेवा प्रति निमित्त बनावे। तन द्वारा सेवा करावे, मन द्वारा मन्सा सेवा करावे, जहाँ रखे, जिस हाल में रखे, चाहे दाल-रोटी खिलावे, चाहे 36 प्रकार के पकवान खिलावे। लेकिन जब मेरा कुछ नहीं तो तेरा तू जानो। आप क्यों सोचते हो? भगवान अपने बच्चों को सदा तन से, मन से, धन से सहज रखेगा। यह बाप की गैरन्टी है। फिर आप लोग क्यों बोझ उठाते हो? उस दिन भी सुनाया ना कि सब कुछ तेरा करने वाले हो तो जो बाप खिलावे तो खाओ, पिओ और मौज करो, याद करो। सिर्फ एक डियुटी आपकी है बस। बाकी सब डियुटी बाबा आपेही निभायेंगे। एक ही डियुटी तो कर सकते हो ना! मेरा कहते हो तब मन चंचल होता है। यही सोचते हो ना कि यह मुश्किल बात है। मुश्किल है नहीं लेकिन कर देते हो। मेरेपन का भाव मुश्किल बना देता। और तेरेपन का भाव सहज बना देता है। विश्व कल्याण की भावना रखो तो विश्व-कल्याण का कर्त्तव्य जल्दी समाप्त हो जायेगा। और अपने राज्य में चले जायेंगे। वहाँ ऐसे पंखे नहीं हिलायेंगे। (गर्मी होने के कारण सबको हाथ में रंग बिरंगे पंखे दिये गये थे) वहाँ तो प्रकृति आपका पंखा करेगी। एक एक हीरा इतनी रोशनी देंगे जो आज की लाइट से भी वन्डरफुल लाइट होगी। सदा आपके महलों में नौरंग के हीरों की लाइट होगी। सोचो कितनी बढ़िया लाइट होगी! नौरंग की मिक्स लाइट कितनी बढ़िया होगी। और यहाँ तो देखो एक रंग की लाइट भी खेल करती रहती है। इसलिए सेवा का कर्त्तव्य सम्पन्न करो। सम्पन्न बनो तो अपना राज्य, सर्व सुखों से सम्पन्न राज्य आया कि आया। समझा!

आज सभी के जाने का दिन है, बापदादा भी जल्दी-जल्दी करेंगे तब तो जायेंगे। अब तो ट्रेनों के रश में जाना पड़ता है फिर तो आपके महलों में आगे पीछे अनेक विमान खड़े होंगे। चलाने वाले का भी इन्तजार नहीं करना पड़ेगा, छोटे से छोटे जीवन में भी चला सकते हो। छोटा बच्चा भी स्विच दबायेगा और उड़ेगा। एक्सीडेंट तो होना ही नहीं है। विमान भी तैयार हो रहे हैं। लेकिन आप सब एवररेडी हो जाओ। स्वर्ग तो तैयार है ही है। विश्व कर्मा आर्डर करेगा और महल और विमान तैयार। ईश्वरीय जादू के प्रालब्ध की नगरी है। (सभी पंखे हिला रहे थे) यह भी अच्छी सीन है, फोटो निकालने वाली। ऐसी कोई सभा नहीं देखी होगी जो रंग बिरंगे पंखे हिलाने वाले हों। अच्छा!

सदा तेरा तू जानो, ऐसे दृढ़ संकल्पधारी, सदा बेहद के सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावनाधारी, सदा हर कर्म याद द्वारा यादगार बनाने वाले, ऐसे एवररेडी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

ट्रेनिंग करने वाली कुमारियों से :- सभी अपने को बाप की राइट हैण्ड समझती हो ना! लेफ्ट हैण्ड तो नहीं हो। राइट हैण्ड - एक हाथ को भी कहते हैं और दूसरा जो सेवा में सदा सहयोगी होते हैं उसको भी राइट हैण्ड कहा जाता है। तो सदा सेवा में सहयोगी बनने का दृढ़ संकल्प कर लिया है ना। वहाँ जाकर भूल तो नहीं जायेंगी। जो भी कारणे-अकारणे सेवा में अभी नहीं निकल सकती वह भी यही लक्ष्य रखना कि हमें सेवा में साथी बनना ही है। सदा हर संकल्प में सेवा समाई हो। जहाँ भी रहो, वहाँ सदा अपने को पूज्य महान आत्मा समझकर चलना। न आपकी दृष्टि किसी में जाए, न और किसी की दृष्टि आप पर जाये। ऐसी पूज्य आत्मा समझकर चलना। पूज्य आत्मा की स्मृति में रहने वाली कुमारियों के तरफ किसी की भी ऐसी दृष्टि नहीं जा सकती है। सदा इस बात में अपने को सावधान रखना। कभी भी अपने को हल्की स्मृति में नहीं रखना। ब्रह्माकुमारी तो बन गई,... कभी ऐसे अलबेले नहीं बनना। अभी तो दादी बन गई, दीदी बन गई... नहीं। यह तो कहने में भी आता है। लेकिन हैं श्रेष्ठ आत्मा, पूज्य आत्मा, शक्ति रूप आत्मा... शक्ति के ऊपर किसी की भी नजर नहीं जा सकती। अगर किसी की गई तो दिखाते हैं - वह भैंस बन गया। और भैंस जैसे काली होती है तो वह भैंस अर्थात् काली आत्मा बन गई। और भैंस बुद्धि अर्थात् मोटी बुद्धि हो जायेगी। अगर किसी की भी बुरी दृष्टि जाती है तो वह मोटी बुद्धि, भैंस बुद्धि बन जायेगा। क्यों किसी की दृष्टि जाए। इसमें भी कमज़ोरी कुमारियों की कहेंगे। पाण्डवों की अपनी कमज़ोरी, कुमारियों की अपनी। इसलिए अपने को चेक करो। दादी-दीदियों को भी डर इसी बात का रहता है कि कोई की नजर न लग जाए। तो ऐसी पक्की हो ना! कभी भी किसी से प्रभावित नहीं होना। यह सेवाधारी बहुत अच्छा है, यह सेवा में अच्छा साथी मददगार है, नहीं। यह तो इतना करता है, नहीं। बाप कराता है। मैं इतनी सेवा करती हूँ, नहीं। बाप मेरे द्वारा कराता है तो न स्वयं कमज़ोर बनो और न दूसरों को कमज़ोर बनने की मार्जिन दो। इस बात में किसी की भी रिपोर्ट नहीं आनी चाहिए। पाण्डव भी बहुत चतुर होते हैं, कोई अच्छी-अच्छी चीजें ले आयेंगे, खाने की, पहनने की - यह भी माया है। उस समय वह माया के परवश होते हैं। लेकिन आप तो माया को परखने वाली हो ना। उस चीज़ को चीज़ नहीं समझना, वह सांप है। सांप जरूर काटेगा। यह पावडर और क्रीम नहीं है लेकिन सांप है। जब इतनी कड़ी दृष्टि रखेंगी तब ही सेफ रह सकेंगी। नहीं तो किसी में भी माया प्रवेश होकर अपना बनाने की कोशिश बहुत करेगी। जैसे शुरू में छोटी-छोटी कुमारियों को बापदादा कहते थे इतनी मिर्चा खानी पड़ेगी, इतना पानी पीना पड़ेगा, डरना नहीं। तो माया आयेगी, बहुत बडें रूप से आयेगी... लेकिन परखने वाले सदा विजयी होते हैं। हार नहीं खाते। तो सभी ने परखने की शक्ति धारण की है या करनी है? देखो। अभी सबका फोटो निकल गया है। पक्की रहना। कुमारियाँ अगर इस बात में शक्ति रूप बन गई तो वाह-वाह की तालियाँ बजेंगी। बापदादा भी विजय के पुष्प बरसायेंगे। अभी देखेंगे रिजल्ट। ऐसे अंगदके मुआफिक बनना।

समय पर समझ आ जाना यह भी तकदीरवान की निशानी है। समय पर फल देने वाला वृक्ष मूल्यवान कहा जाता है। संसार में रखा ही क्या है? चिंता और दुख के सिवाय और कुछ भी नहीं हैं। तो पक्का सौदा करना। कोई बढ़िया आकर्षण वाली चीजें आयें, कोई आकर्षण वाले व्यक्ति सामने आयें, तो आकर्षित नहीं हो जाना। संकल्प स्वप्न में भी बीती हुई बातें याद न आयें। जैसे वह पिछले जन्म की बात हो गई। कभी सोचना भी नहीं।

पार्टियों से मुलाकात करते अमृतवेला हो गया

देखो, दिन को रात, रात को दिन बना दिया। यही गोप गोपिकाओं का गायन है। महारास करते-करते रात से दिन हो गया - यह आप सबका गायन है ना। सदा बाप के स्नेह में समाये हुए, स्नेही आत्मायें हो ना। जितना बच्चे स्नेही हैं, उससे पद्मगुणा बाप स्नेही हैं। ऐसे अनुभव होता है ना। बस सेकण्ड में सोचो और बाबा हाजर हो जाते। अच्छा सेवाधारी है ना। सबसे क्विक सेवाधारी बाप हुआ ना। दूसरा आने में देरी लगायेगा, उठेगा, तैयार होगा, चलेगा तब पहुँचेगा। बाप तो सदा एवररेडी है। जब बुलाओ, सेकण्ड से भी कम टाइम पर पहुँच जायेगा। सभी की सेवा के लिए सदा हाजर है। कभी तंग नहीं करते। देखो, अभी भी जितना समय बैठे उतना समय स्नेह में समाये हुए बैठे या थक गये। बापदादा बच्चों को देख-देख खुश होते हैं। बाप ने ठेका उठाया है कि सभी बच्चों को राजी करना है तो अपना ठेका पूरा करेंगे ना। सदा हरेक बच्चा एक दो से प्रिय है। कोई अप्रिय हो नहीं सकता। बच्चे हैं, बच्चे अप्रिय कैसे हो सकते! सब एक दो से आगे हैं। सभी बच्चे राजा बच्चे हैं, प्रजा बच्चे नहीं।

आपके जड़ चित्रों के लिए भक्त जागरण करते हैं, कभी तो आप लोगों ने भी किया है तभी भक्त कापी करते हैं। यह जागरण डबल कमाई वाला जागरण है। वर्तमान की कमाई हुई और वर्तमान के आधार पर भविष्य भी श्रेष्ठ हुआ। तो हम कल्याणकारी आत्मायें हैं, हर बात में कल्याण समाया हुआ है, अकल्याण हो नहीं सकता। क्योंकि कल्याणकारी बाप के बच्चे बन गये। चाहे बाहर से अकल्याण का काम दिखाई दे। जैसे मानो एक्सीडेंट हो गया तो नुकसान हुआ ना। लोग तो कहेंगे अकल्याण हो गया। लेकिन उस अकल्याण में भी संगमयुगी आत्माओं के लिए कल्याण भरा हुआ है। नुकसान भी सूली से कांटा हो जाता है। बड़े नुकसान से कम नुकसान हो जाता है। इसमें भी सदा कल्याण समझते हुए आगे बढ़ते चलो। ऐसी कल्याणकारी आत्मा स्वयं को समझते हुए चलो। बाप ने अपने समान बना दिया। बाप कल्याणकारी तो बच्चे भी कल्याणकारी। बच्चों को बाप अपने से भी आगे रखते हैं। डबल पूजा आपकी है, डबल राज्य आप करते हो। इतना नशा और इतनी खुशी सदा रहे - वाह रे मैं श्रेष्ठ आत्मा, वाह रे मैं पुण्य आत्मा, वाह रे मैं शिव शक्ति’ - इसी स्मृति में सदा रहो। अच्छा –

आप सबका घर मधुबन है। मधुबन घर से ही पास मिलेंगी परमधाम घर में जाने की। साकार रीति से मधुबन घर है और निराकारी दुनिया परमधाम है। मधुबन असली घर है, जहाँ आप लोग जा रहे हो, वह सेवा केन्द्र है। घर समझेंगे तो फँस जायेंगे। सेवाकेन्द्र समझेंगे तो न्यारे रहेंगे। जिन आत्माओं के प्रति निमित्त बनते हो उनकी सेवा के सम्बन्ध से निमित्त हो, ब्लड कनेक्शन के सम्बन्ध से नहीं। सेवा का कनेक्शन है। सदा याद और सेवा में रहो तो नष्टोमोहा सहज ही बन जायेंगे। अच्छा ।

विशेष सेवाधारी अर्थात् हर कार्य में विशेषता दिखाने वाले। सेवाधारी तो सभी हैं लेकिन विशेष सेवाधारी, विशेषता दिखायेंगे। जब भी कोई सेवा करो, प्लैन बनाओ तो यही सोचो - सेवा में क्या विशेषता लाई? विशेष सेवा करने से विशेष आत्मायें प्रसिद्ध हो जाती हैं। सदा लक्ष्य रखो ऐसा कोई विशेष कार्य करें जिससे स्वत:ही विशेष आत्मा बन जाएँ। बाप और परिवार के आगे आ जाएँ। हमेशा कोई न कोई विशेषता दिखाने वाले। विशेषता ही न्यारा और प्यारा बनाती है ना। तो हर कार्य में विशेषता की नवीनता दिखाओ। सच्चे सेवाधारी, सर्व को अपनी शक्तियों के सहयोग से आगे बढ़ाते चलो। इसी सेवा में ही सदा तत्पर रहो।

अच्छा - ओम शान्ति।



23-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


छोड़े तो छूटो!

नये विश्व के परिवर्तक, सर्व आत्माओं के परमप्रिय शिव बाबा अपने आदि रत्न बच्चों प्रति बोले:-

आज बापदादा अपने आदि स्थापना के कार्य में निमित्त बने हुए सहयोगी बच्चों को देख रहे हैं। सभी सहयोगी बच्चों के भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं। स्थापना के नक्शे को देख रहे थे। आदि काल इस श्रेष्ठ ब्राह्माणों के संसार की हिस्ट्री और जाग्राफी को देख रहे थे। कौन-कौन श्रेष्ठ आत्मायें किस समय किस स्थान पर और किस विधि पूर्वक सहयोगी बने हैं। क्या देखा? तीन प्रकार के सहयोगी बच्चे देखे। एक बापदादा के अलौकिक कर्त्तव्य को देख बापदादा की मोहनी मूर्त, रूहानी सीरत को देख बिना कुछ सोचने की मेहनत के देखा और देखने से कल्प पहले की स्मृति के संस्कार प्रत्यक्ष हो गये। सेकेण्ड में दिल से निकला यह वो ही मेरा बाबा है। और बाप ने भी सेकण्ड में स्वीकार किया कि यह वो ही मेरा बच्चा है। ऐसे बिना मेहनत के सहज बाप के स्नेह में समाये हुए सहयोगी बन गये। सप्ताह कोर्स की भी मेहनत नहीं। लेकिन ईश्वरीय स्नेह के फोर्स से बाप और बच्चों का मिलन हो गया। एक ही शब्द में जीवन के साथी बन गये। बच्चों ने कहा तुम ही मेरे, बाप ने कहा तुम ही मेरे। मेहनत का सवाल नहीं। ऐसे सेकेण्ड के सौदे वाले बिना मेहनत, मुहब्बत में समाये हुए हैं। दूसरे निमित्त बने हुए श्रेष्ठ आत्माओं के त्याग, तपस्या और सेवा के सैम्पल को देख सौदा करने वाले हैं। पहले ग्रुप ने बाप को देखा। दूसरे ग्रुप ने ज्ञान गंगाओं के सैम्पल को देखा। बुद्धिबल द्वारा सहज बाप को जाना और सहयोगी बने। फिर भी दूसरा ग्रुप भी बच्चों द्वारा बाप के साकार सम्बन्ध में आये। निराकार को भी साकार में सर्व सम्बन्धों में पाया। इसलिए साकार रूप में साकार द्वारा सर्व अनुभव करने के कारण साकारी पालना के लिफ्ट की गिफ्ट ली। यह भाग्य कोटों में कोई, कोई में भी कोई को प्राप्त हुआ। ऐसे लिफ्ट की गिफ्ट लेने वाले स्थापना के कार्य में सेवा के क्षेत्र में निमित्त बनी हुई आदि आत्मायें, ऐसे ग्रुप को निमन्त्रण दे बुलाया है। ऐसे तो और भी निमित्त बने हुए बच्चे हैं। लेकिन विशेष थोड़ों को बुलाया है। जानते हो किसलिए बुलाया है? बीच-बीच में फाउण्डेशन को चेक किया जाता है। अगर फाउण्डेशन जरा भी कमज़ोर होता है तो फाउण्डेशन का प्रभाव सब पर पड़ता है। सेवा के क्षेत्र में सेवा के निमित्त फाउण्डेशन आप जैसे रत्न हैं। पहला ग्रुप यज्ञ की स्थापना के फाउण्डेशन बने। सेवा के निमित्त बने। लेकिन सेवा का प्रत्यक्ष पहला फल आप जैसा ग्रुप है। तो सेवा के प्रत्यक्ष फल के रूप में वा शोकेस के पहले शो पीस आप श्रेष्ठ आत्मायें निमित्त बनीं। इतना अपना महत्व जानते हो? नये पत्तों की चमक, दमक, रौनक, उमंग-उल्लास के विस्तार मे आदि श्रेष्ठ आत्मायें छिप तो नहीं गये हो! पीछे वालो को आगे करते, स्वयं आगे से पीछे तो नहीं हो गये हो! यूँ तो बापदादा भी बच्चों को अपने से आगे करते, लेकिन आगे करके स्वयं पीछे नहीं होते। कई बच्चे होशियारी से जवाब देते हैं कि पीछे वालों को हम चाँस दे रहे हैं। चांस भले दो लेकिन चांसलर तो रहो ना। इतनी जिम्मेवारी समझते हो? जो पुरूषार्थ के कदम हम उठायेंगे हमें देख और भी ऐसे उमंग उत्साह के कदम उठायेंगे। यह स्मृति सदा रहती है? नये, नये हैं, लेकिन पुरानों की वैल्यु अपनी है। पुराने पत्तों से कितनी दवाईयाँ बनती हैं। जानते हो ना। पुरानी चीजों का कितना मूल्य होता है। पुरानी वस्तुएं विशेष यादगार बन जाती हैं। पुरानी चीजों के विशेष म्यूजयम बनते हैं। पुरानों की वैल्यु जानते हुए उसी वैल्यु प्रमाण कदम उठा रहे हो? अपने आपको इतना अमूल्य रत्न समझते हो? बाप समान उड़ते पंछी हो? ब्रह्मा बाप की पालना का रिटर्न दे रहे हो? यह साकार पालना कोई साधारण पालना नहीं। इस अमूल्य पालना का रिटर्न - अमूल्य बनना और बनाना है। विशेष पालना का रिटर्न, जीवन के हर कदम में विशेषता भरी हुई हो। ऐसे रिटर्न दे रहे हो? सारे कल्प के अन्दर एक बार यह पालना मिलती है। और उसके अधिकारी आप विशेष आत्मायें हो। ऐसे अपने अधिकार के भाग्य को जानते हो? तो आज ऐसे भाग्यवान बच्चों से मिलने आये हैं। तो समझा क्यों बुलाया है? रिजल्ट तो देखेंगे ना!

यह सारा ग्रुप तो ब्रह्मा बाप के हर कदम पर फालो करने वाले हैं ना। क्योंकि इन साकार आँखों से देखा। सिर्फ दिव्य नेत्र से नहीं देखा। आँखों देखी हुई बात फालो करना सहज होती है ना। ऐसे सहज पुरूषार्थ के भाग्य अधिकारी आत्मायें हो। समझा कौन हो? जाना, मैं कौन? मैं कौन की पहेली पक्की याद है ना! भूल तो नहीं जाते हो ना! बापदादा वतन में इस ग्रुप को देख रूह-रूहान कर रहे थे। क्या रूह-रूहान की होगी, जानते हो? देख रहे थे अपने भाग्य के मूल्य को कितना जाना है और कितने इस भाग्य के स्मृति स्वरूप रहते हैं! स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। तो कितने समर्थ स्वरूप बने हैं? यह देख रहे थे। विस्मृति और स्मृति की सीढ़ी पर उतरते और चढ़ते हैं वा सदा स्मृति स्वरूप द्वारा उड़ती कला में जा रहे हैं! ऐसे तो नहीं, पुराने, पुरानी विधिपूर्वक चलने वाले हैं। जो उड़ती कला के बजाए अब तक भी सीढ़ी उतरते चढ़ते रहते। यह सब बच्चों की विधि देख रहे थे। ब्रह्मा बाप बच्चों के स्नेह में बोले, सदा हर कदम में सहज और श्रेष्ठ प्राप्ति क आधार मुझ बाप समान एक बात सदा जीवन में ब्रह्मा बाप की तावीज के रूप में याद रखें - ‘‘छोड़ो तो छूटो’’। चाहे अपने तन की स्मृति को भुलाए देही अभिमानी बनने में, चाहे सम्बन्ध के लगाव से नष्टोमोहा बनने में, चाहे अलौकिक सेवा की सफलता के क्षेत्र में, चाहे स्वभाव संस्कारों के सम्पर्क में - सभी बातों में - छोड़ो तो छूटो। यह मेरे-पनके हाथ इन डालियों को पकड़ डालियों के पंछी बना देते हैं। इस मेरे-पन के हाथों को छोड़ो तो क्या बन जायेंगे - ‘उड़ते पंछी। छोड़ना तो है नहीं, बनना तो यही है - यह नहीं। लेकिन हे आधार मूर्त श्रेष्ठ आत्मायें ‘‘बन गये’’ यह सेरीमनी मनाओ। सोच रहे हैं, प्लैन बनायेंगे, नहीं। सोच लिया, कौन सी सेरीमनी मनायेंगे? हर ग्रुप फंक्शन मनाते हैं ना। आप लोग कौन सा समारोह मनायेंगे?

आप तो ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, ब्रह्मा के साथी बच्चे हो ना। ईश्वरीय परिवार की बुजुर्ग आत्मायें हो। आप सबके ऊपर बापदादा और परिवार की सदा नजर है कि यही हमारे आदि सैम्पल स्वरूप हैं। सारे परिवार के लिए, बाप की सर्व आशाओं के दीपक हो। तो कौन सा समारोह करेंगे! बाप समान बन गये, जीवनमुक्त आत्मायें बन गये! नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप बन गये! संकल्प किया और बने। ऐसा समर्थ समारोह मनाओ। तैयार हो ना! वा अभी भी सोचते हो - करना तो चाहिए, चाहिए नहीं लेकिन बाप की सर्व चाह पूर्ण करने वाले हम आदि सैम्पल हैं - ऐसे निश्चयबुद्धि विजयी रत्न, विजय का समारोह मनाओ। समझा किसलिए बुलाया है! स्पष्ट हो गया ना। इन सभी को ताज पहनाना। जिम्मेवारी के ताजपोशी मनवाना, इन्हों से। इसलिए आये हो ना! बोलते नहीं हो। बुजुर्ग हो गये हो। ब्रह्मा बाप को क्या देखा। अभी अभी बुजुर्ग और अभी अभी मिचनू किशोर। देखा ना। फालो फादर, हाँ जी करने में मिचनू बन जाओ और सेवा में बुजुर्ग। छोटे बच्चों की रौनक देखी ना - कितना मजे से कहते थे - हाँ जी, जी हाँ!

विशेष निमन्त्रण पर विशेष आत्मायें आई हैं, अब विशेष सेवा की जिम्मेवारी का फिर से समारोह मनाना। बीच बीच में ताज उतार देते हो। अभी ऐसा टाइट कर जाना जो उतारो नहीं। अच्छा फिर सुनेंगे कि समारोह की रिजल्ट क्या हुई। अच्छा।

सदा सर्व आत्माओं के निमित्त, उमंग उत्साह दिलाने वाले, सदा हर पुरूषार्थ के कदम द्वारा औरों को तीव्र पुरुषार्थी बनाने वाले, व्यर्थ को सेकण्ड में छोड़ो और छूटो करने वाले, सदा ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, ऐसे सेवा के आदि रत्नों को, पालना की भाग्यवान विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

आमन्त्रित भाई बहनों के ग्रुप से:- सभी अपने को विशेषज्ञ आत्मायें तो समझते हो ना! विशेष आत्मायें हो या बनना है? करेंगे, देखेंगे, सोचेंगे, ऐसी गें गें की भाषा वाले तो नहीं हो ना। अपने महत्व को जानो कि हम सबका महत्व कितना है। जितना बाप बच्चों के महत्व को जानते हैं उतना बच्चे अपने महत्व को सदा याद नहीं रखते। जानते हैं लेकिन याद नहीं रखते। अगर याद रहता - तो सदा ही समर्थ बन औरों को भी समर्थ बनाने के, उमंग उत्साह बढ़ाने के निमित्त बनते। तो निमित्त हो ना? बीती सो बीती कर लिया है। बीती को भुला दिया और वर्तमान, भविष्य सदा उमंग उत्साह वाला बना लिया। चलते-चलते साधारण जीवन में चलने वाले अपने को अनुभव करते हो, लेकिन साधारण नहीं हो। सदा श्रेष्ठ हो। व्यवहार किया, पढ़ाई की, प्रवृत्ति सम्भाली, यह कोई विशेषता नहीं है। यह भी साधारणता है। यह तो लास्ट नम्बर वाले भी करते हैं। तो जो लास्ट नम्बर वाले भी करते वह आदि रत्न भी करें तो क्या विशेषता हुई! आदि रत्न अर्थात् हर संकल्प और कर्म में औरों से विशेष हो। दुनिया वालों की भेंट में तो सब न्यारे हो गये, लेकिन अलौकिक परिवार में भी जो साधारण पुरुषार्थी हैं उनसे विशेष हो। दुनिया के हिसाब से लास्ट नम्बर भी विशेष है लेकिन ईश्वरीय परिवार में आदि रत्न हो, विशेष हो। उसी हिसाब से अपने को देखो। बुजुर्ग सदा छोटों को अच्छे ते अच्छी सहज राय देने वाले, रास्ता दिखाने वाले होते हैं। ऐसे आप मुख से बोलने वाले नहीं लेकिन करके दिखाने वाले हो। तो हर कदम, हर कर्म ऐसा है जो ईश्वरीय परिवार की आत्माओं को विशेष दिखाई दे।

यही विशेष आत्माओं का कर्त्तव्य है ना। जो आप विशेष आत्माओं को देखे उसे बाप की स्मृति आ जाए। जैसे देखो यहाँ मधुबन में अभी भी साकार रूप में दीदी, दादी को देखते हैं तो उन्हों के कर्म में विशेष क्या समाया हुआ दिखाई देता है? बाप दिखाई देता है ना! यह भी साकार आत्मायें हैं ना। यह ब्रह्मा जैसी विशेष पार्टधारी तो नहीं, निराकार शिव बाप जैसी भी नहीं, ब्रह्मा जैसी भी नहीं। ब्राह्मण हैं। तो वह भी ब्राह्मण, आप भी ब्राह्मण तो जैसे वह विशेष निमित्त आत्मायें हैं, कैसे निमित्त बनीं? जिम्मेवारी समझती हैं ना। जिम्मेवारी ने ही विशेष बना दिया। ऐसे ही स्वयं को भी अनुभव करते हो ना। आप भी जिम्मेवार हो ना। या दीदी-दादी ही जिम्मेवार हैं। सेवा के क्षेत्र में तो आप ही निमित्त हो ना। चारों ओर बापदादा ने सभी विशेष आत्माओं को निमित्त बनाया है। कोई कहाँ, कोई कहाँ। इतनी जिम्मेवारी सदा स्मृति में रहे। जैसे दीदी-दादी को निमित्त देख रहे हो। ऐसे ही आप लोगों से सबको अनुभव हो। वह समझें कि यह आदि रत्न हैं, इन्हों से हमें विशेष उमंग उत्साह की प्रेरणा मिलती है। यह कहती तो नहीं हैं ना कि हम दीदी-दादी हैं, हमको मानो, लेकिन कर्म स्वत: ही आकर्षित करते हैं। ऐसे ही आप सबके विशेष कर्म सबको आकर्षित करें। इतनी जिम्मेवारी है। ढीले तो नहीं हो ना! क्या करें, कैसे करें, डबल जिम्मेवारी है। ऐसे कहने वाले नहीं। छोड़ा और छूटा। इतनी बेहद की जिम्मवारी होते भी बाप को देखो ना। स्थूल जिम्मेवारी भी देखी ना। शिवबाबा की बात किनारे कर दो, लेकिन ब्रह्मा बाप को तो साकार में देखा ना। ब्रह्मा बाप जितनी जिम्मेवारी स्थूल में भी किसी को नहीं है। आप सोचेंगे क्या करें वायुमण्डल में रहते हैं। वायब्रेशन खराब रहते हैं। बगुले ठूंगें लगाते रहते हैं। चारों ओर आसुरी सम्प्रदाय है। लेकिन ब्रह्मा बाप ने आसुरी सम्प्रदाय के बीच न्यारा प्यारा बनकर दिखाया ना। तो फालो फादर।

अभी क्या करेंगे? यहाँ से जाओ तो सब अनुभव करें कि हमारा उमंग उत्साह बढ़ाने वाले स्तम्भ आ गये हैं। समझा। ऐसे बाप की उम्मीदों के सितारे हो। छोटे छोटों की कोई भी बातें दिल पर नहीं रखो। बुजुर्गों की दिल फराखदिल, बड़ी दिल होती है। छोटी दिल नहीं होती। जैसे ब्रह्मा बाप ने सभी की कमज़ोरियों को समाकर श्रेष्ठ बना दिया ऐसे आप निमित्त हो। कभी भी यह नहीं सोचना - कि यह ऐसे करते हैं, यह तो सुनते ही नहीं हैं। न सुनने वाले को भी सुनने वाला बनाना आपका काम है। वह छोटे हैं बड़े आप हो। बड़ों को बदलना है। छोटे तो होते ही नटखट हैं। तो उनकी कमज़ोरियों को नहीं देखो - बुजुर्ग बन कमज़ोरियों को समाने वाले, बाप समान बनाने वाले बनो। इतनी जिम्मेवारी है आप लोगों की। यह जिम्मेवारी फिर से स्मृति दिलाने के लिए बुलाया है। समझा। सागर के बच्चे हो ना। सागर क्या करता है? समाता है। सबका समाकर रिफ्रेश कर देते हैं। तो आप भी सबकी बातों को समाकर सबको रिफ्रेश करने वाले। जो आये वह अनुभव करे कि इस विशेष आत्मा के संग से विशेष रंग चढ़ गया। सहयोग मिल गया। आप ही - सहयोग दो, सहयोग दो, ऐसा कहने वाले तो नहीं हो ना। सहयोग देने वाले हो। जब आदि से सहयोगी बने हो तो अन्त तक सहयोग देने वाले साथी बनेंगे ना। इतने सहयोग देंगे तो छोटे तो उड़ जायेंगे। जिस भी स्थान पर आप लोग जायेंगे वह स्थान उड़ने वाला स्थान बन जायेगा ना। आप उड़नखटोले बनकर जाओ, जो भी बैठे, सम्पर्क में आये वह उड़ जाए। बापदादा को खुशी है, कौन सी? कितने साथी हैं! जब समान को देखा जाता है तो समान बच्चों को देख बाप को खुशी होती है। अभी यहाँ थोड़े आये हैं, और भी हैं, जितने भी आये हैं, उतनों को भी देख बाप खुश होते हैं। अब तो उड़नखटोला बन सबको उड़ाओ। हमारे भाई इतनी मेहनत कर रहे हैं, तरस आता है ना। सहयोग दो और उड़ाओ।

यही सेवा है विशेष आत्माओं की। जिज्ञासु समझाया, कोर्स कराया, मेला कराया, किया। यह सब करते रहते हैं। मेलें में भी आप विशेष आत्माओं की विशेषता को देखें। बस आपका खड़ा होना और सभी को उमंग आना। काम करने वालों को विशेष उमंग उत्साह का ही सहयोग चाहिये होता है। काम करने वाले आपके छोटे भाई बहन बहुत आ गये हैं। आप बुजुर्गों का काम है उन साथियों को स्नेह की दृष्टि देना, उमंग उत्साह का हाथ बढ़ाना। आपको देखकर बाप याद आ जाए। सबके मुख से निकले - यह तो बाप के स्वरूप हैं। जैसे इन दोनों के लिए (दीदी-दादी के लिए) निकलता है कि यह बाप स्वरूप है। क्योंकि सेवा में प्रैक्टिकल कर्म कर रही हैं। तो ऐसे ही दृढ़ संकल्प का समारोह जरूर मनाना। क्या समझा? आप लोग तो तूफानों में नहीं आते हो ना। तुफानों से पार होने वाले। तूफानों में आने वाले नहीं। आप एग्जाम्पल हो ना। आपको देखकर सब समझते हैं ऐसे ही चलना है, ऐसे ही होता है। तो इतना अटेन्शन रहे। अच्छा।

सेवाधारियों को तो सदा ही उड़ते रहना चाहिए - क्योंकि यज्ञ सेवा का बल बहुत है। तो सेवाधारी बलवान बन गये ना। यज्ञ सेवा का कितना गायन है। अगर यज्ञ सेवा सच्ची दिल से करते हैं तो एक सेकण्ड का भी बहुत फल है। आप लोग तो कितने दिन सेवा में रहे हो। तो फलों के भण्डार इकट्ठे हो गये। इतने फल जमा हो गये जो 21 पीढ़ी तक वह फल खाते ही रहेंगे। सेवाधारी वहाँ जाकर माया के वश नहीं हो जाना। सदा सेवा में बिजी रहना। मंसा से शुद्ध संकल्प की सेवा और सम्पर्क सम्बन्ध वा वाणी द्वारा परिचय देने की सेवा। सदा ही सेवा में बिजी रहना। सेवा का पार्ट अविनाशी है। चाहे यहाँ रहो चाहे कहीं भी जाओ, सेवाधारी के साथ सदा ही सेवा है। सदा के सेवाधारी हो। सेवा में बिजी रहेंगे तो माया नहीं आयेगी। जब खाली स्थान होता है तो दूसरे आते हैं। मच्छर भी आयेंगे, खटमल भी आयेंगे। इसलिए सदा बिजी रहो तो माया आयेगी ही नहीं। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। माया नमस्कार करके चली जायेगी। ऐसे बहादुर बनकर जा रहे हो! ऐसे तो नहीं वहाँ जाकर कहेंगे, आज क्रोध आ गया, आज लोभ, मोह आ गया...माया पेपर लेगी, वह भी सुन रही है कि यह वायदा कर रहे हैं। जहाँ बाप है वहाँ माया क्या करेगी। सदा बाप साथ है या अलग है। कुमार अकेले तो नहीं समझते हो। ऐसे तो नहीं कोई सुनने वाला नहीं, कोई बोलने वाला नहीं... बीमार पड़ेंगे तो क्या करेंगे? दूसरा साथी याद तो नहीं आयेगा! दूसरा साथी लायेंगे तो उसका सुनना भी पड़ेगा, खिलाना भी पड़ेगा। सम्भालना भी पड़ेगा। ऐसा बोझ उठाने की जरूरत ही क्या है। सदा हल्के रहों। सदा युगल रूप हो, दूसरी युगल क्या करेंगे? कभी संकल्प आता है बीमार पड़ते हो तब आता है? जिस सम्बन्ध की याद आये उसी सम्बन्ध से बाप को याद करो, तो बीमारी में सोये सोये भी ऐसा अच्छा खाना बना लेंगे जैसे दूसरा बना गया। तो सदा साथ रहना, अकेला हूँ नहीं, कम्बाइण्ड हूँ। आप और बाप दोनों कम्बाइण्ड हो, अलग कोई कर नहीं सकता, यह चैलेन्ज करो। चैलेन्ज करने वाले हो न कि घबराने वाले। अच्छा –

पर्सनल मुलाकात

प्रश्न:- संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य क्या है? उस लक्ष्य को प्राप्त करने की विधि क्या है?

उत्तर:- संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य है सदा सन्तुष्ट रहना और दूसरों को सन्तुष्ट करना। ब्राह्मण अर्थात् समझदार, स्वयं भी सन्तुष्ट रहेंगे और दूसरों को भी रखेंगे। अगर दूसरे के असन्तुष्ट करने से असन्तुष्ट होते तो संगमयुगी ब्राह्मण जीवन का सुख नहीं ले सकते। शक्ति स्वरूप बन दूसरों के वायुमण्डल से स्वयं को किनारे कर लेना अर्थात् अपने को सेफ कर लेना यही साधन है इस लक्ष्य को प्राप्त करने का। दूसरे की असन्तुष्टता से स्वयं को असन्तुष्ट नहीं होना है। दूसरा किसी भी प्रकार से असन्तुष्ट करने के निमित्त बने तो स्वयं को किनारा करके आगे बढ़ते जाना है, रूकना नहीं है।

प्रश्न:- कौन से संस्कार अपने निजी संस्कार बना लो तो सदा उड़ती कला में उड़ते रहेंगे?

उत्तर:- अपना निजी संस्कार बनाओ कि हर बात में मुझे आगे बढ़ना है। दूसरा बढ़े या न बढ़े। दूसरे के पीछे स्वयं को नीचे नहीं आना है। सहानुभूति के कारण सहयोग देना दूसरी बात है लेकिन दूसरे के कारण स्वयं नीचे आ जाना यह ठीक नहीं। न व्यर्थ सुनो, न देखो। सेवा के भाव से न्यारा होकर देखो। दूसरे के कारण अपना समय और खुशी न गंवाओ तो सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे।



25-05-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


ब्रह्मा बाप की बच्चों से एक आशा

सर्व आत्माओं के शुभचिन्तक, अविनाशी ज्ञान, शक्ति और खुशी के खज़ाने देने वाले, विदेही शिव बाबा बोले:-

आज बापदादा सर्व बच्चों की सेवा का, याद का और बाप समान बनने का चार्ट देख रहे थे। बापदादा द्वारा जो भी सर्व खज़ाने मिले, बाप को निराकार और आकार रूप से साकार में बुलाया और बापदादा भी बच्चो के स्नेह में बच्चों के बुलावे पर आये, मिलन मनाया, अब उसके फलस्वरूप सभी बच्चे कौन से फल बने - प्रत्यक्षफल बने, सीजन के फल बने, रूप वाले फल बने वा रूप रस वाले फल बने? डायेरक्ट पालना के अर्थात् पेड़ के पके हुए फल बने वा कच्चे फलों को कोई एक दो विशेषता के मसालों के आधार पर स्वयं को रंग रूप में लाया है वा अब तक भी कच्चे फल हैं! यह चार्ट बच्चों का देख रहे थे। संगमयुग की विशेषता प्रमाण, प्रत्यक्ष फल के समय प्रमाण, हर सबजेक्ट में, हर कदम में, कर्म में प्रत्यक्षफल देने वाले, प्रत्यक्षफल खाने वाले बाप की पालना के पके हुए, रंग, रूप, रस तीनों से सम्पन्न अमूल्य फल होना चाहिए। अभी अपने आप से पूछो - मैं कौन? सदा संग रहने का रंग, सदा ब्रह्मा बाप समान बाप को प्रत्यक्ष करने का रूप, सदा सर्व प्राप्तियों का रस ऐसा बाप समान बने हैं? आजकल ब्रह्मा बाप ब्राह्मण बच्चों की समान सम्पन्नता को विशेष देखते रहते हैं। सारा समय हर एक विशेष बच्चे का चित्र और चरित्र दोनों सामने रख देखते रहते हैं कि कहाँ तक सम्पन्न बने हैं। माला के मणके कौन और कितने अपने नम्बर पर सेट हो गये हैं। उसी हिसाब से रिजल्ट को देख विशेष ब्रह्मा बाप बोले - ब्राह्मण आत्मा अर्थात् हर कर्म में बापदादा को प्रत्यक्ष करने वाली। कर्म की कलम से हर आत्मा के दिल पर, बुद्धि पर, बाप का चित्र वा स्वरूप खींचने वाली रूहानी चित्रकार बने हो ना। अभी ब्रह्मा बाप की, इस सीजन के रिजल्ट में बच्चों के प्रति एक आशा है। क्या आशा होगी? बाप की सदा यही आशा रहती कि हर बच्चा अपने कर्मों के दर्पण द्वारा बाप का साक्षात्कार करावे। अर्थात् हर कदम में फालो फादर कर बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बन कर्मयोगी का पार्ट बजावे। यह आशा पूर्ण करना मुश्किल है वा सहज है? ब्रह्मा बाप तो सदा आदि से तुरन्त दान महापुण्य - इसी संस्कार को साकार रूप में लाने वाले रहे ना। करेंगे, सोचेंगे, प्लैन बनायेंगे, यह संस्कार कभी साकार रूप में देखें? अभी-अभी करने का महामन्त्र हर संकल्प और कर्म में देखा ना। उसी संस्कार प्रमाण बच्चों से भी क्या आशा रखेंगे? समान बनने की आशा रखेंगे ना? सबसे पहले बापदादा मधुबन वालों के आगे रखते हैं। हो भी आगे ना। सबसे अच्छे ते अच्छे सैम्पल कहाँ देखते हैं सभी? सबसे बड़े ते बड़ा शोकेस मधुबन है ना। देशविदेश से सब अनुभव करने के लिए मधुबन में आते हैं ना! तो मधुबन सबसे बड़ा शोकेस है। ऐसे शोकेस में रखने वाले शोपीस कितने अमूल्य होंगे! सिर्फ बापदादा से मिलने के लिए नहीं आते हैं लेकिन परिवार का प्रत्यक्ष रूप भी देखने आते हैं। वह रूप दिखाने वाले कौन? परिवार का प्रत्यक्ष सैम्पल, कर्मयोगी का प्रत्यक्ष सैम्पल, अथक सेवाधारी का प्रत्यक्ष सैम्पल, वरदान भूमि के वरदानी स्वरूप का प्रत्यक्ष सैम्पल कौन है? मधुबन निवासी हो ना!

भागवत् का महात्तम सुनने का बड़ा महत्व होता है। सारे भागवत का इतना नहीं होता। तो चरित्र भूमि का महात्तम मधुबन वाले है ना! अपने महत्व को तो याद रखते हो ना। मधुबन निवासियों को याद स्वरूप बनने में मेहनत है वा सहज है? मधुबन है ही, प्रजा और राजा दोनों आत्माओं को वरदान देने वाला।

आजकल तो प्रजा आत्मायें भी अपना वरदान का हक लेकर जा रहीं हैं। जब प्रजा भी वरदान ले रही है तो वरदान भूमि में रहने वाले कितने वरदानों से सम्पन्न आत्मायें होंगी। अभी के समय प्रमाण सभी प्रकार की प्रजा अपना अधिकार लेने के लिए चारों ओर आने शुरू हो गई है। चारों ओर सहयोगी और सम्पर्क वाले वृद्धि को पा रहे हैं। प्रजा की सीजन शुरू हो गई है। तो राजे तो तैयार हो ना। वा राजाओं का छत्र कब फिट होता है कब नहीं होता। तख्तनशीन ही ताजधारी बन सकते हैं। तख्तनशीन नहीं तो ताज भी सेट नहीं हो सकता। इसलिए छोटी-छोटी बातों में अपसेट होते रहते। यह (अपसेट होना) निशानी है तख्तनशीन अर्थात् तख्त पर सेट न होने की। तख्तनशीन आत्मा को व्यक्ति तो क्या लेकिन प्रकृति भी अपसेट नहीं कर सकती। माया का तो नाम निशान ही नहीं। तो ऐसे तख्तनशीन ताजधारी वरदानी आत्मायें हो ना। समझा - मधुबन के ब्राह्मणों के महात्तम का महत्व। अच्छा - आज तो मधुबन निवासियों का टर्न है। बाकी सब गैलरी में बैठे हैं। गैलरी भी अच्छी मिली है ना। अच्छा –

आदि रत्न आदि स्थिति में आ गये ना। मध्य भूल गया ना। डालियाँ वगैरा सब छूट गई ना। आदि रत्न सभी उड़ते पंछी बनकर जा रहे हो ना। सोने हिरण के पीछे भी नहीं जाना। किसी भी तरह की आकर्षण वश नीचे नहीं आना। चाहे किसी भी प्रकार के सरकमस्टांस बुद्धि रूपी पाँव को हिलाने आवें लेकिन सदा अचल अडोल, नष्टोमोहा और निर्मान रहना। तभी उड़ते पंछी बन उड़ते और उड़ाते रहेंगे। सदा न्यारे और सदा बाप के प्यारे। न किसी व्यक्ति के, न किसी हद के प्राप्ति के प्यारे बनना। ज्ञानी तू आत्मा के आगे यह हद की प्राप्तियाँ ही सोने हिरण के रूप में आती हैं। इसलिए, हे आदि रत्नो, आदि पिता समान सदा निराकारी, निर्विकारी, निरअहंकारी रहना। समझा। अच्छा –

ऐसे हर कर्म में बाप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले, प्रत्यक्षफल स्वरूप, सदा तुरन्त दान महापुण्य करनेवाले, पुण्य आत्मायें, हर कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, विश्व के आगे चित्रकार बन बाप का चित्र दिखाने वाले - ऐसे ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।



01-06-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


मीटिंग में पधारे हुए भाई बहनों के सम्मुख प्राण अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए मधुर महावाक्य

जिम्मेवारी का ताज व तख्तधारी, महारथी बच्चों प्रति बापदादा बोले:-

सभी ताज और तख्तधारी विशेष आत्माओं की सभा है ना। सभी अपने को ताज व तख्तधारी समझते हो ना! सभी बेहद के सेवाधारी के जिम्मेवारी के ताजधारी हो ना। बेहद का ताज अर्थात् बेहद की स्मृति स्वरूप में स्थित हो। बेहद की जिम्मेवारी के ताजधारी। हर एक बेहद के ताजधारी बच्चे की लाइट और माइट की किरणें बेहद में फैली हुई हैं। हद से निकल बेहद के बादशाह बन गये ना! जब देह के हद की स्मृति से भी पार हो गये तो देह सहित देह के साथ सर्व हदों से पार हो गये। विशेष सेवा ही है हद से बेहद में ले जाना। ब्रह्मा बाप अव्यक्त क्यों बने? हद से निकाल बेहद में ले जाने के लिए। ब्रह्मा बाप के स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप है - फालो ब्रह्मा फादर। ब्रह्मा बाप अपने राइट हैण्ड बच्चों को, अपनी विशेष भुजाओं के लिए अव्यक्त वतन से बेहद के सेवा स्थान से बाहें पसार कर हाथ में हाथ मिलाने के लिए बुला रहे हैं। ब्रह्मा बाप का बच्चों से स्नेह है। तो बह्मा बाप बुला रहे हैं कि बच्चे, बेहद में आ जाओ। यह आवाज़ सुनते हो? बस एक ही लहर ब्रह्मा बाप की सदा रहती है कि मेरे समान बेहद के ताजधारी बन चारों ओर प्रत्यक्षता की लाइट और माइट ऐसी फैलावें जो सर्व आत्माओं को निराशा से आशा की किरण दिखाई दे। सबकी अंगुली उस विशेष स्थान की ओर हो। जो आकाश से परे अंगुली कर ढ़ूंढ़ रहे हैं उन्हों को यह अनुभव हो कि इस धरती पर, वरदान भूमि पर धरती के सितारे प्रत्यक्ष हो गये हैं। यह सूर्य, चन्द्रमा और तारामण्डल यहाँ अनुभव हो। जैसे साइन्स वाले साइन्स के आधार से आकाश के तारामण्डल का अनुभव कराते हैं। ऐसे यह धरती का चैतन्य तारामण्डल दूर वालों को भी अनुभव हो। इस शुभ आशा को पूर्ण करने वाले आप सभी निमित्त आत्मायें हो। ऐसे बेहद के प्लैन्स बनाये हैं ना। प्लैन्स तो यथा शक्ति बनाये। बापदादा अब समय प्रमाण बच्चों से कौन सी रही हुई सेवा चाहते हैं? –

बापदादा आज रूह-रूहान कर रह थे। क्या रूह-रूहान हुई। बाप बोले कि मेरे निमित्त बने हुए श्रेष्ठ बच्चे, सिकीलधे बच्चे कहो, मुरब्बी बच्चे कहो वा सदा बाप के साथी बच्चे कहो - ऐसे बच्चे वरदान भूमि पर इकट्ठे हुए हैं, सेवा के प्लैन्स बनाने के लिए, तो ब्रह्मा बाप बोले कि जो मीटिंग में योजनायें निकालीं वह तो बहुत अच्छी। लेकिन मुख्य एक सेवा अभी भी रही हुई है। क्योंकि आप कितनी बड़ी अथार्टी वाले हो और कितने प्रकार की अथार्टी वाले हो, ज्ञान की अथार्टी, योगबल की अथार्टी, श्रेष्ठ धारणा स्वरूप की अथार्टी, डायरेक्ट बाप के वारिसपन की अथार्टी, विश्व परिवर्तन करने के निमित्त बनने की अथार्टी। कितनी अथार्टी है! जैसे एक शास्त्रं की अथार्टी वाले, थोड़ा बहुत त्याग कर पवित्र बनने की अथार्टी वाले, सिर्फ यह एक अथार्टी है, वह भी सत्यता की अथार्टी नहीं, भल महान आत्मायें हैं लेकिन परमात्मा बाप के सम्बन्ध में यथार्थ नालेज की अथार्टी नहीं - ऐसे एक अथार्टी वाले भी विश्व में सर्व आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित कर झूठ को सत्य सिद्ध कर चलते आ रहे हैं। कितने समय से अपनी अथार्टी दिखाते आ रहे हैं। कितनी फलक से, अल्पकाल के प्राप्ति की झलक से अपना प्रभाव डालते हैं। तो जो सर्व अथार्टी वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों को क्या करना है? बाकी क्या रहा हुआ है, जानते हो? समाप्ति के लिए कहाँ तक समय का अन्दाज लगा रहे हो? 84 तक वा 2000 तक? कहाँ तक अन्दाज लगा रहे हो? दो हजार पूरे होने हैं वा उसके पहले होना है? अपनी तैयारी के हिसाब से क्या समझते हो? कौन सी बात अभी रही हुई है? नई दुनिया के लिए धरनी तो बना रहे हो। लेकिन नई दुनिया का आधार - यह नई नालेज है। पहली अथार्टी तो नालेज की है ना! बाप की महिमा में भी पहली महिमा क्या आती है? ‘ज्ञान का सागरकहते हो ना। तो जो पहली महिमा है ज्ञान, उस नये ज्ञान को दुनिया के आगे प्रत्यक्ष किया है? जब तक ‘‘यह नया ज्ञान है’’ - यह प्रत्यक्ष नहीं हुआ है तो ज्ञानदाता कैसे प्रत्यक्ष हो। पहले ज्ञान आता है फिर दाता आता है। तो ज्ञानदाता ऊँचे ते ऊँचा है। या एक ही वह ज्ञानदाता है, यह सिद्ध कैसे होगा? इस नये ज्ञान से ही सिद्ध होगा। आत्मा क्या कहती और परमात्मा क्या कहता है, यह अन्तर जब तक मनुष्यों की बुद्धि में न आये तब तक जो भी तिनके के सहारे पकड़े हुऐ हैं वह कैसे छोड़ेंगे? और एक का सहारा कैसे लेंगे। अभी तो छोटे-छोटे तिनकों के सहारे पर चल रहे हैं, वो ही अपना आधार समझ रहे हैं। जब तक उन्हों को ज्ञान द्वारा ज्ञानदाता का सहारा अनुभव नहीं हो तब तक इस हद के बन्धनों से मुक्त हो नहीं सकते। अभी तक धरनी बनाने की, वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा हुई है। अच्छा कार्य है, परिवार का प्यार है, यह प्यार का गुण वायुमण्डल को परिवर्तन करने के निमित्त बना। धरनी तो बन गई और बनती जायेगी। लेकिन जो फाउण्डेशन है, नवीनता है, बीज है, वह हैनया ज्ञान। नि:स्वार्थ प्यार है, रूहानी प्यार है यह तो अनुभव करते हैं लेकिन अभी प्यार के साथ-साथ ज्ञान की अथार्टीवाली आत्मायें हैं, सत्य ज्ञान की अथार्टी है, यह प्रत्यक्षता अभी रही हुई है। जो भी आते हैं वो समझें कि यह नया ज्ञान, नई बात है। जो कोई ने नहीं सुनाई वह यहाँ सुनी। यह वर्णन करें कि यह देने वाला अथार्टी है। पवित्रता है, शान्ति है, प्यार है, स्वच्छता है यह सब बातें तो फाउण्डेशन हैं, जिस फाउण्डेशन के आधार पर धरनी परिवर्तन हुई। यह भी 4 स्तम्भ है। पहले जो किसी की भी बुद्धी इस तरफ टिकती नहीं थी सो अभी इन 4 स्तम्भों के आधार द्वारा बुद्धि की आकर्षण होती है। यह परिवर्तन तो हुआ। लेकिन अभी जो मुख्य बात है - नया ज्ञान, उसका आवाज़ बुलन्द हो। आज तक जिन बातों की सभी ने ‘‘हाँ’’ की, उन बातों के लिए ब्र.कु. की आलमाइटी अथार्टी ‘‘ना’’ सिद्ध करके बताती हैं। जो वे ना कहते, आप सिद्ध करके बताते हो और जो आप हाँकहते उसे वो नाकहते। तो हाँ और ना का रात दिन का अन्तर है ना। तो इस महान अन्तर को सिद्ध करने वाली महान आत्मायें हैं, यह नाम अब प्रत्यक्ष करो तब जयजयकार होगी। आत्मा का ज्ञान यथार्थ रूप में न भी है लेकिन फिर भी लोग सुन करके मिक्स कर देते हैं कि - हाँ वहाँ भी ऐसे ही कहते हैं। लेकिन यह आवाज़ बुलन्द हो कि दुनिया सारी एक तरफ है और ब्र.कु. दूसरे तरफ हैं। यह नया ज्ञान देने वाले अथार्टी हैं। यह अथार्टी प्रसिद्ध हो। इसी से ही शक्तिशाली आत्मायें आगे आयेंगी जो आपके तरफ से ढिंढोरा पिटवायेंगी। आपको ढिंढोरा नहीं पीटना पड़ेगा लेकिन ऐसी आत्मायें सैटिसफाय हो, नई बात, जान नये उमंग में आकर ढिंढोरा पीटेंगी। धर्म युद्ध भी तो अभी रही हुई है ना। अभी गुरूओं की गद्दी को कहाँ हिलाया है। अभी तो टाल टालियाँ आदि सब बहुत आराम से अपनी धुन में लगे हुए हैं। बीज कब प्रत्यक्ष रूप में आता है? मालूम है बीज ऊपर कब आता है? जब छोटी बड़ी टाल टालियाँ एकदम बिगर पत्तों की सूखी हुई डालियाँ रह जाती हैं तब बीज ऊपर प्रत्यक्ष होता है। तो उसका प्लैन बनाया है? जब अपनी स्टेज पर आते हैं तो अपने ओरीजनल नालेज की प्रत्यक्षता तो होनी चाहिए ना। अगर वरदान भूमि मे आकर भी सिर्फ कहें - शान्ति बहुत अच्छी है, प्यार बहुत अच्छा है। सिर्फ यह थोड़ी बहुत झोली भरकर चले गये तो वरदान भूमि पर आकर विशेष क्या ले गये! नया ज्ञान भी तो सिद्ध करना है ना। इसी नये ज्ञान की अथार्टी द्वारा ही आलमाइटी अथार्टी सिद्ध होगा। देने वाला कौन! प्रेम और शान्ति मिलने से इतना जरूर समझते हैं कि इन्हों को बनाने वाला कोई श्रेष्ठ है। लेकिन स्वयं भगवानहै यह बहुत कोई विरला समझते। तो समझा, क्या रहा हुआ है! अब नई दुनिया के लिए नया ज्ञान चारों ओर फैलाओ, समझा। कोटों में कोई निकले लेकिन ऐसा आवाज़ निकले जो चारों ओर पेपर्स में यह धूम मच जाए कि यह ब्र.कु. दुनिया से नया ज्ञान देती हैं। ज्ञान क्या देती हैं, उसका आधार क्या मानती हैं, उनको सिद्ध कैसे करती हैं यह जब अखबारों में आये तब समझो ज्ञान दाता का नगाड़ा बजा। समझा? ज्ञान के प्रभाव में प्रभावित हों। ज्ञान के प्रभावशाली और प्रेम के प्रभावशाली में क्या अन्तर है? ब्राह्मणों में भी दो भाग देखे ना। ब्राह्मण तो बने हैं लेकिन कोई प्यार के आधार पर, कोई ज्ञान और प्यार दोनों के आधार पर। तो दोनों में स्थिति का अन्तर है ना। जो प्यार को भी ज्ञान से समझते हैं, वह निर्विघ्न चलेंगे। जो सिर्फ प्यार के आधार पर चलते वह शक्तिशाली आत्मा नहीं होंगे। ज्ञान का बल जरूर चाहिए। जिनका पढ़ाई से प्यार है, मुरली से प्यार है और जिनका सिर्फ परिवार से प्यार है, उन्हों में कितना अन्तर है! ब्राह्मण जीवन अच्छी लगी, पवित्रता अच्छी लगी, इसी आधार पर आने वाले और ज्ञान की शक्ति के आधार पर आने वाले, उनमें कितना अन्तर है। ज्ञान की मस्ती, अलौकिक, निराधार रहने वाली मस्ती है। वैसे प्रेम भी एक शक्ति है लेकिन प्रेम की शक्ति वाले आधार के बिना चल नहीं सकते। कोई न कोई आधार जरूर चाहिए। मनन शक्ति - ज्ञान की शक्ति वाले की होगी। जितनी मनन शक्ति होगी उतनी बुद्धि के एकाग्रता की शक्ति आटोमेटिकली आयेगी। और जहाँ बुद्धि की एकाग्रता है वहाँ परखने की और निर्णय करने की शक्ति स्वत: आती है। जहाँ ज्ञान का फाउण्डेशन नहीं होगा वहाँ परखने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति कमज़ोर होगी। क्योंकि एकग्रता नहीं। अच्छा ।

बापदादा तो सब सुनते रहते हैं। हंसी भी आती और स्नेह में बलिहार भी जाते। बच्चों की हिम्मत देख खुश भी होते हैं। ब्रह्मा बाप को ज्यादा आता है कि यह मेरे समान बेहद के मालिक बन जाएँ। बच्चों के लिए रूके हुए हैं ना और दिन रात बच्चों की सेवा में तत्पर रहते। वतन में तो दिन-रात नहीं है लेकिन स्थूल दुनिया में तो है ना। एक एक बच्चे को विशेष आत्मा, सम्पूर्ण आत्मा, सम्पन्न आत्मा, समान आत्मा देखने चाहते। बाप ब्रह्मा को कहते हैं - धैर्य धरो। लेकिन ब्रह्मा को उमंग बहुत होता है ना। इसलिए वह बाप से यही रूह- रूहान करते कि बच्चे हाथ में हाथ दे मेरे समान बन जाएं। ब्रह्मा बाप के साकार जीवन की आदि से लेकर क्या विशेषता देखी! - कब नहीं लेंकिन अभी करना है। कब शब्द न सुनने के, न सुनाने के संस्कार रहे। अगर कोई बच्चा कहता था कि घण्टे के बाद करेंगे तो घण्टा लगाने दिया? कोई कहता था ट्रेन जाने में 5-10 मिनट हैं हम कैसे पहुँचेंगे तो रूकने दिया? गाड़ी रूक जायेगी लेकिन बच्चा पहुँच ही जायेगा। चलती हुई ट्रेन रूक जायेगी लेकिन बच्चे को पहुँचना ही है। यह प्रैक्टिकल देखा ना! तो ऐसे ही बच्चे भी किसी भी बात में स्व-परिवर्तन में वा विश्व परिवर्तन में कबशब्द को बदलकर अबके प्रैक्टिकल जीवन में आ जाएँ, यही ब्रह्मा बाप का उमंग सदा रहता है। तो फालो फादर है ना! अच्छा

सभी महारथियों ने सेवा के जो प्लैन्स बनाये हैं उसमें भी विशेष यूथका बनाया है ना। यूथ वा युवा वर्ग की सेवा के पहले जब युवा वर्ग गवर्मेंन्ट के आगे प्रत्यक्ष होने का संकल्प रख आगे बढ़ रहा है तो मैदान में आने से पहले एक बात सदा ध्यान में रहे कि - बोलना कम है, करना ज्यादा है। मुख द्वारा बताना नहीं है लेकिन दिखाना है। कर्म का भाषण स्टेज पर करें। मुख का भाषण करना तो नेताओं से सीखना हो तो सीखो। लेकिन रूहानी युवा वर्ग सिर्फ मुख से भाषण करने वाले नहीं लेकिन उनके नयन, मस्तक, उनके कर्म भाषण करने के निमित्त बन जाएँ। कर्म का भाषण कोई नहीं कर सकता है। मुख का भाषण अनेक कर सकते। कर्म बाप को प्रत्यक्ष कर सकता है। कर्म रूहानियत को सिद्ध कर सकता है। दूसरी बात - युवा वर्ग सदा सफलता के लिए अपने पास एक रूहानी तावीज रखे। वह कौन सा? - रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। यह रिगार्ड का रिकार्ड सफलता का अविनाशी रिकार्ड हो जायेगा। युवा वर्ग के लिए सदा मुख पर एक ही सफलता का मन्त्र हो - ‘‘पहले आप’’ - यह महामन्त्र मन से पक्का रहे। सिर्फ मुख के बोल हों कि पहले आप और अन्दर में रहे कि पहले मैं, ऐसे नहीं। ऐसे भी कई चतुर होते हैं मुख से कहते पहले आप, लेकिन अन्दर भावना पहले मैं की रहती है। यथार्थ रूप से, पहले मैं को मिटाकर दूसरे को आगे बढ़ाना सो अपना बढ़ना समझते हुए इस महामन्त्र को आगे बढ़ाते सफलता को पाते रहेंगे। समझा। यह मन्त्र और तावीज सदा साथ रहा तो प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा।

प्लैन्स तो बहुत अच्छे हैं लेकिन प्लेन बुद्धि बन प्लैन प्रैक्टिकल में लाओ। सेवा भल करो लेकिन ज्ञान को जरूर प्रत्यक्ष करो। सिर्फ शान्ति, शान्ति तो विश्व में भी सब कह रहे हैं। अशान्ति में शान्ति मिक्स कर देते हैं। बाहर से तो सब यही नारे लगा रहे हैं कि शान्ति हो। अशान्ति वाले भी नारा शान्ति का ही लगा रहे हैं। शान्ति तो चाहिए लेकिन जब अपनी स्टेज पर प्रोग्राम करते हो तो अपनी अथार्टी से बोलो! वायुमण्डल को देखकर नहीं। वह तो बहुत समय किया और उस समय के प्रमाण यही ठीक रहा। लेकिन अब जबकि धरनी बन गई है तो ज्ञान का बीज डालो। टॉपिक भी ऐसी हो। तुम लोग टॉपिक इसलिए चेन्ज करते हो कि दुनिया वाले इन्ट्रेस्ट लें। लेकिन आवे ही इन्ट्रेस्ट वाले। कितने मेले, कितनी कांफ्रेंस, कितने सेमीनार आदि किये हैं। 13 वर्ष लोगों के आधार पर टॉपिक्स बनाये। आखिर गुप्त वेष में कितना रहेंगे। अब तो प्रत्यक्ष हो जाओ। वह समय अनुसार जो हुआ वह तो हुआ ही। लेकिन अभी अपनी स्टेज पर परमात्म बॉम तो लगाओ। उन्हों का दिमाग तो घूमे कि यह क्या कहते हैं! नहीं तो सिर्फ कहते कि बहुत अच्छी बातें बोलीं। तो अच्छी, अच्छी ही रही और वह वहाँ के वहाँ रह जाते। कुछ हलचल तो मचाओ ना। हरेक को अपना हक होता है। पाइंटस भी दो तो अथार्टी और स्नेह से दो तो कोई कुछ नहीं कर सकता। ऐसे तो कई स्थानों पर अच्छा भी मानते हैं कि यह अपनी बात को स्पष्ट करने में बहुत शक्तिशाली हैं। ढंग कैसा हो वह तो देखना पड़ेगा। लेकिन सिर्फ अथार्टी नहीं, स्नेह और अथार्टी दोनों साथ साथ चाहिए। बापदादा सदैव कहते कि तीर भी लगाओ साथसाथ मालिश भी करो। रिगार्ड भी अच्छी तरह से दो लेकिन अपनी सत्यता को भी सिद्ध करो। भगवानुवाच कहते हो ना! अपना थोड़े ही कहते हो। बिगड़ने वाले तो चित्रों से भी बिगड़ते हैं फिर क्या करते हो? चित्र तो नहीं निकालते हो ना! साकार रूप में तो फलक से किसी के भी आगे अथार्टी से बोलने का प्रभाव क्या निकला। कब झगड़ा हुआ क्या? यह तरीका भाषण का भी सीखे ना। ज्ञान की रीति कैसे बोलना है - स्टडी की ना। अब फिर यह स्टडी करो। दुनिया के हिसाब से अपने को बदला, भाषा को चेन्ज किया ना। तो जब दुनिया के रूप में चेन्ज कर सके तो यथार्थ रूप से क्या नहीं कर सकते। कब तक ऐसे चलेंगे? इसमें तो खुश हैं कि यह जो कहते हैं बहुत अच्छा है। आखिर दुनिया में यह प्रसिद्ध हो कि - यही यथार्थ ज्ञान है। इससे ही गति सद्गति होगी। इस ज्ञान बिना गति सद्गति नहीं। अभी तो देखो योग शिविर करके जाते हैं। बाहर जाते फिर वही की वही बात कहेंगे कि परमात्मा सर्वव्यापी है। यहाँ तो कहते योग बहुत अच्छा लगा, फाउण्डेशन नहीं बदलता। आपके शक्ति के प्रभाव से परिवर्तन हो जाते हैं। लेकिन स्वयं शक्तिशाली नहीं बनते। जो हुआ है यह भी जरूरी था। जो धरनी कलराठी बन गई थी वह धरनी को हल चलाके योग्य धरनी बनाने का यही साधन यथार्थ था। लेकिन आखिर तो शक्तियाँ अपने शक्ति स्वरूप में भी आयेंगी ना! स्नेह के रूप में आयें, लेकिन यह शक्तियाँ हैं, इनका एक एक बोल ह्दय को परिवर्तन करने वाला है, बुद्धि बदल जाए, ‘नासे हाँमें आ जाएँ - यह रूप भी प्रत्यक्ष होगा ना। अभी उसको प्रत्यक्ष करो। उसका प्लैन बनाओ। आते हैं खुश होकर जाते हैं। वो तो जिन्हों को इतना आराम, इतना स्नेह, खातिरी मिलेंगी तो जरूर सन्तुष्ट तो होकर जायेंगे। ऐसा प्यार तो कहीं भी नहीं मिलता। इसलिए सन्तुष्ट होकर जाते हैं। लेकिन शक्ति रूप बनकर नहीं जाते। ब्रह्मा बाप की सेवा की योजनायें देखो तो क्या-क्या योजनायें प्रैक्टिकल में की? ब्रह्मा बाप कहते थे कि सब प्रदर्शनियों मे प्रश्नावली लगाओ। उसमें कौन सी बातें थीं। तीर समान थी ना! फार्म भराने के लिए कहते थे। यह राइट है वा रांग, हाँ वा ना, लिखो। फार्म भराते थे ना। तो क्या योजनायें रही। एक हैं ऐसे ही भरवाना। जल्दी-जल्दी में रांग वा राइट कर दिया, लेकिन समझाकर भराओ। तो उसी अनुसार यथार्थ फार्म भरेंगे। सिद्ध तो करना ही पड़ेगा। वह आपस में प्लैन बनाओ। जो अथार्टी भी रहे और स्नेह भी रहे। रिगार्ड भी रहे और सत्यता भी प्रसिद्ध हो। ऐसे किसकी इनसल्ट थोड़े ही करेंगे? यह भी लक्ष्य है कि हमारी ही ब्रैन्चेज हैं। हमारे से ही निकले हुए हैं। उन्हों को रिगार्ड देना तो अपना कर्त्तव्य है। छोटों को प्यार देना यह तो परम्परा ही है। अच्छा- (दो चार भाई बहनें बापदादा से छुट्टी लेने आये।)

स्नेह का रेसपान्ड तो मिल गया ना। सच्ची दिल पर साहेब सदा राजी हैं। आदि से सच्ची लगन में रहने वाली आत्मायें हो इसलिए बाप भी सच्चों को सदा स्नेह का रेसपाण्ड देता रहता है। सदा दिल में बाप ही समाया हुआ है। इसलिए अच्छे तीव्र पुरूषार्थ में चल रहे हो। कर्मयोगी आत्मा हो ना। कर्म और योग कम्बाइण्ड है ना। सदा बैलेन्स रख, बाप की ब्लैसिंग को लेने वाले और सदा ब्लिसफुल जीवन में रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हो। बाप सदा हर बच्चे प्रति यही शुभ आश रखते कि यह विजय माला के मणके हैं। अच्छा –



30-07-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दीदी मनमोहिनी जी के साकार शरीर छोड़ने पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

आज अटल राज्य अधिकारी, अटल, अचल स्थिति में रहने वाले विजयी बच्चों को देख रहे हैं। अभी से अटल बनने के संस्कारों के आधार पर अटल राज्य की प्रालब्ध पाने के पहले पुरूषार्थ में कल्प-कल्प अटल बने हो। ड्रामा के हर दृष्य को ड्रामा चक्र में संगमयुगी टॉप पाइंट पर स्थित हो कुछ भी देखेंगे तो स्वत: ही अचल अडोल रहेंगे। टॉप पाइंट से नीचे आते हैं तब ही हलचल होती है। सभी ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मायें सदा कहाँ रहते हो? चक्र में संगमयुग ऊँचा युग है। चित्र के हिसाब से भी संगमयुग का स्थान ऊँचा है। और युगों के हिसाब से छोटा सा युग पाइंट ही कहेंगे। तो इसी ऊँची पाइंट पर, ऊँचा स्थान पर, ऊँची स्थिति पर, ऊँची नालेज में, ऊँचे ते ऊँचे बाप की याद में। ऊँचे ते ऊँची सेवा स्मृति स्वरूप होंगे तो सदा समर्थ होंगे। जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ सदा के लिए समाप्त है। हरेक ब्राह्मण - पुरूषार्थ ही व्यर्थ को समाप्त करने का कर रहे हो। व्यर्थ का खाता वा व्यर्थ का हिसाब-किताब समाप्त हुआ ना। वा अभी भी कुछ पुराना व्यर्थ का खाता है? जबकि ब्राह्मण जन्म लेते प्रतिज्ञा की - तन-मन-धन सब तेरातो व्यर्थ संकल्प समाप्त हुआ, क्योंकि मन समर्थ बाप को दिया।

दो-तीन दिनों में मन तेरा के बदले मेरा तो नहीं बना दिया। ट्रस्टियों को डायरेक्शन है कि मन से सदा समर्थ सोचना है। तो व्यर्थ की मार्जिन है क्या? व्यर्थ चला? आप कहेंगे कि स्नेह दिखाया। परिवार के स्नेह के धागे में तो सभी बंधे हुए हो, यह तो बहुत अच्छा। अगर स्नेह के मोती गिराये तो वह मोती अमूल्य रहे। लेकिन क्यों, क्या के संकल्प से आँसू गिराये तो वह व्यर्थ के खाते में जमा हुआ। स्नेह के मोती तो आपकी स्नेही दीदी के गले में माला बन चमक रहे हैं। ऐसे सच्चे स्नेह की मालायें तो दीदी के गले में बहुत पड़ी हैं। लेकिन एक परसेन्ट भी हलचल की स्थिति में आये, ऑसू बहाये, वह वहाँ दीदी के पास नहीं पहुँचें। क्यों? वह सदा विजयी, अचल, अडोल आत्मा रही है और अब भी है तो अचल आत्मा के पास हलचल वाले की याद पहुँच नहीं सकती। वह यहाँ की यहाँ ही रह जाती है। मोती बन माला में चमकते नहीं हैं। जैसी स्थिति वाले, जैसी पोजीशन वाली आत्मा वैसी पोजीशन में स्थित रहने वाली आत्माओं की याद आत्मा को पहुँचती है। स्नेह है, यह तो बहुत अच्छी निशानी है। स्नेह है तो अर्पण भी स्नेह करो ना। जहाँ सच्चा श्रेष्ठ स्नेह है वहाँ दुख की लहर नहीं। क्योंकि दुखधाम से पार हो गये ना!

मीठे-मीठे उल्हनें भी सब पहुँचे। सभी का उल्हना यही रहा कि हमारी मीठी दीदी को क्यों बुलाया? तो बापदादा बोले जो सबको मीठी लगती वही बाप को मीठी लगेगी ना। अगर आवश्यकता ही मिठास की हो तो और किसको बुलायें! मीठे ते मीठे को ही बुलायेंगे ना।

आप लोग ही सोचते हो और बार-बार पूछते हो कि एडवांस पार्टी की विशेष आत्मायें अब तक गुप्त क्यों? तो प्रत्यक्ष करने चाहते हो ना। समय प्रमाण कुछ एडवांस पार्टी की आत्मायें श्रेष्ठ योगबल की श्रेष्ठ विधि को आरम्भ करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं का आह्वान कर रही हैं। ऐसे आदि परिवर्तन के विशेष कार्य अर्थ आदिकाल वाली आदि रत्न आत्मायें चाहिए। विशेष योगी आत्मायें चाहिए। जो अपने योगबल का प्रयोग कर सकें। भाग्यविधाता बाप की भागीदार आत्मायें चाहिये। भाग्यविधाता ब्रह्मा को भी कहा जाता है। समझा क्यों बुलाया है। यह सोचते हो यहाँ क्या होगा? कैसे होगा? ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए तो क्या हुआ और कैसे हुआ, देखा ना। दादी को अकेले समझते हो? वह नहीं समझती है, आप लोग समझते हो। ऐसे है ना? (दादी की ओर ईशारा) आपकी डिवाइन युनिटी नहीं है, है ना? तो डिवाइन युनिटी की भुजायें नहीं हैं क्या? डिवाइन युनिटी है ना? किसलिए यह गु्रप बनाया? सदा एक-दो के सहयोगी बनने के लिए। जब चाहो जिसको चाहो सभी सेवा के लिए जी हाजिर हैं। इन दादियों की आपस में बहुत अन्दरूनी प्रीति है, आप लोगों को पता नही है इसलिए समझते हो अभी क्या होगा। एक दीदी ने यह साबित कर दिखाया कि हम सभी आदि रत्न एक है। दिखाया ना? ब्रह्मा बाप के बाद साकार रूप में 9 रत्नों की पूज्य आत्मायें सेवा की स्टेज पर प्रत्यक्ष हुई तो 9 रत्न वा आठ की माला सदा एक दो के सहयोगी हैं। कौन हैं आठ की माला? जो ओटे सेवा में वह अर्जुन अर्थात् अष्ट माला है। तो सेवा की स्टेज पर अष्ट रत्न, 9 रत्न अपना पार्ट बजा रहे हैं। और पार्ट बजाना ही अपना पार्ट वा अपना नम्बर प्रत्यक्ष करना है। बापदादा ऐसे नम्बर नहीं देंगे लेकिन पार्ट ही प्रत्यक्ष कर रहा है। तो अष्ट रत्न हैं - आपस में सदा के स्नेही और सदा के सहयोगी। इसलिए सदा आदि से सेवा के सहयोगी आत्मायें सदा ही सहयोग का पार्ट बजाती रहेंगी। समझा। और क्या क्वेश्चन है? बताया क्यों नहीं, यह क्वेश्चन है? बतलाते तो दीदी के योगी बन जाते। ड्रामा का विचित्र पार्ट है, विचित्र का चित्र पहले नहीं खींचा जाता है। हलचल का पेपर अचानक होता है। और अभी भी इस विशेष आत्मा का पार्ट, अभी तक जो आत्मायें गई हैं, उन्हों से न्यारा और प्यारा है। हर एक क्षेत्र में इस श्रेष्ठ आत्मा का साथ, सहयोग की अनुभूति करते रहेंगे। ब्रह्मा बाप का अपना पार्ट है, उन जैसा पार्ट नहीं हो सकता। लेकिन इस आत्मा की विशेषता सेवा के उमंग उत्साह दिलाने में, योगी, सहयोगी और प्रयोगी बनाने में सदा रही है। इसलिए इस आत्मा का यह विशेष संस्कार समय प्रति समय आप सबको भी सहयोगी रहने का अनुभव कराता रहेगा। यह भी हर एक आत्मा का अपना अपना विचित्र पार्ट है। अच्छा।

मधुबन में आये, स्नेह का स्वरूप दिखाया उसके लिए यह भी विश्व में सेवा के निमित्त पार्ट बजाया। यह आप सबका आना विश्व में स्नेह की लहरें, स्नेह की खुशबू, स्नेह की किरणें फैलाना है। इसलिए भले पधारे। दीदी की तरफ से भी बाप-दादा सभी को स्नेह की, सेवा के स्वरूप की बधाई दे रहे हैं। दीदी भी देख रही है, टी.वी.पर बैठी है। आप भी वतन में जाओ तब देखो ना। यह भी सर्विस की एक छाप है।

आज के संगठन में कमल बच्ची (दीदी जी की लौकिक भाभी) भी याद आई, वह भी याद कर रही है और जिन्होंने भी स्नेही श्रेष्ठ आत्मा के प्रति अपना सहयोग दिया उन अथक बच्चों को चाहे यहाँ बैठे हैं वा नहीं भी बैठे हैं लेकिन सभी बच्चों ने शुभ भावना, शुभ कामना और एक ही लगन से जो अपना स्नेह दिखाया वह बहुत ही श्रेष्ठ रहा। इसके लिए विशेष बापदादा को दीदी ने कहा कि हमारी तरफ से ऐसे स्नेही सेवाधारी परिवार को याद और थैंक्स देना। तो दीदी का काम आज बापदादा कर रहे हैं। आज बापदादा सन्देशी बन सन्देश दे रहे हैं। जो हुआ बहुत ही राजों से भरा हुआ ड्रामा हुआ। आप सबको दीदी प्रिय हैं और दीदी को सेवा प्रिय है। इसलिए सेवा ने अपनी तरफ खींच लिया। जो हुआ बहुत ही परिवर्तन के पर्दे को खोलने के लिए अच्छे ते अच्छा हुआ। न भगवती (डॉक्टर) का दोष है, न भगवान का दोष है। यह तो ड्रामा का राज़ है। इसमे न भगवती कुछ कर सकता, न भगवान। कभी भी उसके प्रति नहीं सोचना कि इसने ऐसा किया, ऐसा आपरेशन कर लिया, नहीं। उसका स्नेह लास्ट तक भी माँ का ही रहा। इसलिए उसने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं की। यह तो ड्रामा का खेल है। समझा - इसलिए कोई संकल्प नहीं करना।

आज तो सिर्फ आज्ञाकारी बन दीदी की तरफ से सन्देशी बन आये हैं। सभी अटल स्थिति में स्थित रहने वाले, अटल राज्य अधिकारी, निश्चय बुद्धि निश्चिन्त, विजयी बच्चों को आज त्रिमूर्ति यादप्यार दे रहे हैं, बापदादा के साथ आप सबकी अति प्रिय दीदी का भी यादप्यार दे रहे हैं और नमस्ते कर रहे हैं। अच्छा-’’

डिवाइन युनिटी यहाँ आ जाए:- (स्टेज पर बापदादा ने सभी दादियों को बुलाया और माला के रूप में बिठा दिया) माला तो बन गई ना। (दादी जी से) अभी यह (जानकी दादी) और यह (चन्द्रमणी दादी) आपके विशेष सहयोगी हैं। इस रथ का (गुल्जार दादी का) तो डबल पार्ट है। बापदादा का पार्ट और यह पार्ट - डबल पार्ट। सहयोगी तो सभी हैं आपके। इसको (निर्मलशान्ता दादी को) सिर्फ थोड़ा सा जब मौसम अच्छी हो तब बुलाना। स्वतन्त्र पंछी हैं ना सभी? कोई सेवा का बन्धन नहीं। स्वतन्त्र पंछी तो ताली बजायी और उड़े। ऐसे हैं ना! स्वतन्त्र पंछी, किसी भी विशेष स्थान और विशेष सेवा का बन्धन नहीं । विश्व की सेवा का बन्धन। बेहद सेवा का बन्धन। इसलिए स्वतन्त्र हो। जब भी जहाँ आवश्यकता है वहाँ पहले मैं। हरेक आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। डिवाइन युनिटी है पालना वाली और मनोहर पार्टी है सेवा के क्षेत्र में आगे आगे बढ़ने वाली। तो अभी सेवा के साथ साथ पालना की विशेष आवश्यकता है। जैसे दीदी को पालना के हिसाब से कई आत्मायें माँके स्वरूप में देखती रहीं, वैसे तो मातपिता एक है, लेकिन साकार में निमित्त बन पार्ट बजाने के कारण पालना देने का विशेष पार्ट बजाया। ऐसे ही जो आदि रत्न हैं, उन्हों को पालना देने का, बाप की पालना लेने का अधिकारी बनाने की पालना देना है। लेनी बाप की पालना है लेकिन बाप की पालना लेने के भी पात्र तो बनाना पड़ेगा ना। तो वह पात्र बनाने की सेवा इस आत्मा ने (दीदी जी ने) बहुत अच्छी नम्बरवन की। तो आप भी सभी नम्बरवन हो ना। सेकण्ड माला में तो नहीं हो ना। पहली माला में हो ना। तो पहली माला वाले तो सभी नम्बरवन हैं। अच्छा - पाण्डवों को भी बुलाओ।

(बापदादा के सामने सभी मुख्य भाई स्टेज पर आये):- पाण्डव भी आदि रत्न हो ना। पाण्डव भी माला में हैं, ऐसे नहीं सिर्फ शक्तियाँ हैं, पाण्डव भी हैं। किस माला में अपने को देखते हो! वह तो हरेक आप भी जानते हो और बाप भी जानते हैं लेकिन पाण्डव भी इसी विशेष याद माला में हैं। कौन हैं? कौन समझते हैं अपने को? बिना पाण्डवों के कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। जितनी शक्तियों की शक्ति है वैसे पाण्डवों की भी विशाल शक्ति है इसलिए चतुर्भुज रूप दिखाया है। कम्बाइण्ड। दोनों ही कम्बाइण्ड रूप से इस सेवा के कार्य में सफलता पाते हैं। ऐसे नहीं समझना यही (दादियाँ) अष्ट देव हैं। या यही 9 रत्न हैं। लेकिन पाण्डवों में भी हैं। समझा - इतनी जिम्मेवारी का ताज सदा पड़ा रहे। सदा ताज पड़ा है ना। सभी एक दो के सहयोगी बनें। यह सब बाप की भुजायें हैं वा साकार में निमित्त बनी हुई दादी की सहयोगी आत्मायें हैं। सदा हक एक हैं - यही नारा सदा ही सफलता का साधन है। संस्कार मिलाने की रास करने वाले सदा ही हर जन्म में श्रेष्ठ आत्माओं के संगठन में रास करते रहेंगे। यहाँ की रास मिलाना अर्थात् सदा क्या पार्ट बजायेंगे! सदा श्रेष्ठ आत्माओं के फ्रेंड्स बनेंगे, सम्बन्धी बनेंगे। बहुत नज़दीक सम्बन्धी लेकिन सम्बन्धी और मित्र के दोनों स्वरूप के साथी। मित्र के मित्र भी, सम्बन्धी के सम्बन्धी भी। तो निमित्त हो। यही दीदी की रूह-रूहान रही। तो सब पाण्डव और शक्तियाँ एक बाप की श्रीमत के गुलदस्ते में गुलदस्ता बनें। दीदी से विशेष स्नेह है ना आप सबका। अच्छा –

आज तो ऐसे ही मिलन मनाने आये हैं। इसलिए अभी छुट्टी लेते हैं। (दादी जी ने बापदादा के सामने भोग रखा तो बाबा बोले) आज आफीशल मिलने आये हैं इसलिए कुछ स्वीकार नहीं करेंगे। पहले बच्चे स्वीकार करते हैं फिर बाप। फिर तो सदा ही मिलते रहेंगे, खाते रहेंगे, खिलाते रहेंगे लेकिन आज दीदी के सन्देशी बनकर आये हैं, सन्देशी सन्देश देकर चला जाता है। दीदी ने कहा है - दादी से हाथ मिलाकर आना।’’

(बापदादा ने दादी जी को हाथ दिया और वतन में उड़ गये।)



10-11-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


मुख्य भाई-बहनों की मीटिंग के समय अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए मधुर अनमोल महावाक्य

आज सर्व शक्तियों का सागर बाप, शक्ति सेना को देख रहे हैं। हर एक के मस्तक बीच त्रिशूल अर्थात् त्रिमूर्ति स्मृति की स्पष्ट निशानी दिखाई देती है। शक्ति की निशानी त्रिशूल दिखाते हैं। तो हरेक त्रिशूलधारी शक्ति सेना हो ना। बापदादा और आप। यह त्रिमूर्ति सदा स्पष्ट रूप में रहती है वा कभी मर्ज कभी इमर्ज होती है? बापदादा के साथ-साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह भी याद रहता है? इसी त्रिमूर्ति स्मृति से शक्ति में शिव दिखाई देगा। कई मन्दिरों में बापदादा के कम्बाइण्ड यादगार शिव की प्रतिमा के साथ उसी प्रतिमा में मनुष्य आकार भी दिखाते हैं। यह बापदादा का कम्बाइण्ड यादगार है। साथ-साथ शक्ति भी दिखाते हैं। तो इस त्रिमूर्ति स्मृति स्वरूप स्थिति से सहज ही साक्षात्कार मूर्त बन जायेंगे। अब सेवाधारी मूर्त, भाषण कर्ता मूर्त, मास्टर शिक्षक बने हो। अभी साक्षात मूर्त बनना है। सहज योगी बने हो लेकिन श्रेष्ठ योगी बनना है। तपस्वी बने हो, महातपस्वी और बनना है।

आजकल सेवा कहो, तपस्या कहो, पढ़ाई कहो, पुरूषार्थ कहो, पवित्रता की सीमा कहो, किस लहर में चल रही है, जानते हो? सहज योगी के ‘‘सहज’’ शब्द की लहर चल रही है। लेकिन लास्ट समय के प्रमाण वर्तमान मनुष्य आत्माओं को, वाणी की नहीं लेकिन श्रेष्ठ वायब्रेशन, श्रेष्ठ वायुमण्डल, जिससे साक्षात्कार सहज हो जाए, इसी की आवश्यकता है। अनुभव भी साक्षात्कार समान है। सुनाने वाले तो बहुत हैं जिन्हों को सुनाते हो वो भी सुनाने में कम नहीं। लेकिन कमी है साक्षात्कार कराने की। वह नहीं करा सकते। यही विशेषता, यही नवीनता, यही सिद्धि, आप श्रेष्ठ आत्माओं में है। इसी विशेषता को स्टेज पर लाओ। इसी विशेषता के आधार पर सभी वर्णन करेंगे कि हमने देखा, हमने पाया! हमने सिर्फ सुना नहीं लेकिन साक्षात् बाप की झलक अनुभव की। फलानी बहन वा फलाना भाई बोल रहे थे, यह अनुभव नहीं। लेकिन इन्हीं द्वारा कोई अलौकिक शक्ति बोल रही थी। जैसे आदि में ब्रह्मा को साक्षात्कार हुआ विशेष शक्ति का तो क्या वर्णन किया! यह कौन था, क्या था! ऐसे सुनने वालों को अनुभव हो कि यह कौन थे? सिर्फ पाइंटस नहीं सुने लेकिन मस्तक बीच पाइंट आफ लाइट (Point Of Light) दिखाई दे। यह नवीनता ही सभी की पहचान की आँख खोलेगी। अभी पहचान की आँख नहीं खुली है। अभी तो दूसरों की लाइन में आपको भी ला रहे हैं। जैसे यह-यह हैं वैसे यह भी है। जैसे वह भी यह कहते हैं वैसे यह भी कहते हैं। यह भी करते हैं। लेकिन यह वो ही हैं जिसका हम आह्वान करते हैं, जिसका इन्तजार कर रहे हैं। अभी इस अनुभूति की आवश्यकता है। इसका साधन है सिर्फ एक शब्द को चेन्ज करो। सहज योगी की लहर को चेन्ज करो। सहज शब्द पवित्र प्रवृत्ति में नहीं यूज करो। लेकिन सर्व सिद्धि स्वरूप बनने में यूज करो। श्रेष्ठ योगी की लहर, महातपस्वी मूर्त की लहर, साक्षात्कार मूर्त बनने की लहर, रूहानियत की लहर, अब इसकी आवश्यकता है। अब यह रेस करो। सन्देश कितनों को दिया, यह तो 7 दिन के कोर्स वालों का काम है। वो भी यह सन्देश दे सकते हैं। लेकिन यह रेस करो - अनुभव कितनों को कराया! अनुभव कराना है, अनुभवी बनाना है। यह लहर अभी चारों ओर होनी चाहिए। समझा।

84 का साल आ रहा है। 84 घण्टों वाली शक्ति मशहूर है। सभी देवियों की महिमा है। 84 में घण्टा तो बजायेंगे ना तब तो गायन हो, 84 का घण्टा है। अभी आदि-समान साक्षात्कार की लहर फैलाओ। धूम मचाओ। आप साक्षात् बाप बनो तो साक्षात्कार आप ही हो जायेगा। साक्षात् बाप बनना ही साक्षात्कार की चाबी मिलना है। अभी थोड़ा-थोड़ा अनुभव करते हैं लेकिन यह चारों ओर लहर फैलाओ। जैसे मेले की भी लहर फैलाते हो ना? मेले बहुत किये हैं, समारोह भी बहुत किये। अभी मिलन समारोह मनाओ। 84 का प्लैन बनाने आये हो। सबसे पहला प्लैन - स्वयं को सर्व कमज़ोरियों से प्लेन बनाओ। तब तो साक्षात्कार होगा। अगर इस मीटिंग में यह प्लैन प्रैक्टिकल में आ जाए तो सेवा आपके चरणों में झुकेगी। अभी बापदादा की यह आश पूरी करनी है। आश अभी पूरी हुई नहीं है। मीटिंग तो हो जाती है। बापदादा के पास चार्ट तो सबका है ना। सिर्फ रिगार्ड रखने के कारण बापदादा कहते नहीं है। अच्छा - आज तो थोड़ा मिलने आये हैं, चार्ट बताने नहीं आये हैं। (दादी को) आपकी सखी (दीदी) कहाँ हैं? गर्भ में? निमित्त गर्भ में है लेकिन अभी भी सेवा की परिक्रमा दे रही है। जैसे ब्रह्मा बाप के साथ साकार स्वरूप में जगत अम्बा के बाद साथी रही। वैसे अभी भी अव्यक्त ब्रह्मा के साथ है। सेवा में साथीपन का पार्ट बजा रही है। निमित्त कर्मेन्द्रियों का बन्धन है लेकिन विशेष सेवा का बन्धन है। जैसे यज्ञ की स्थापना की कारोबार पहले विशेष रूप में जगत अम्बा ने सम्भाली। जगत अम्बा के बाद विशेष निमित्त रूप में इसी आत्मा (दीदी) को रहा। साथी भले और भी रहे लेकिन विशेष स्टेज पर और साकार ब्रह्मा के साथ पार्ट में रही। अभी भी ब्रह्मा बाप और दीदी की आपस में रूह-रूहान, मनोरंजन और सेवा के भिन्न-भिन्न पार्ट चलते रहते हैं। नई सृष्टि की स्थापना में भी विशेष ब्रह्मा के साथ-साथ अनन्य आत्माओं का अभी जोर-शोर से पार्ट चल रहा है! जैसे साकार दीदी के विशेष संस्कार, सेवा के प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने का, उमंग-उत्साह दिलाने का रहा। वैसे अभी भी वो ही संस्कार नई दुनिया की स्थापना के कार्य को वा कार्य के अर्थ निमित्त बने हुए ग्रुप को और तीव्रगति देने का पार्ट चल रहा है। दीदी का विशेष बोल याद है? उमंग उत्साह में लाने के लिए विशेष शब्द क्या थे? हमेशा यही शब्द रहे कि कुछ और नया करो। अभी क्या हो रहा है? बार-बार पूछती थी, नवीनता क्या लाई है? ऐसे अभी भी अव्यक्त ब्रह्मा से बार-बार इसी शब्दों से रूह-रूहान करती थी। एडवान्स पार्टी में भी उमंग-उत्साह ला रही है। अभी तक क्या किया है, क्या हो रहा है। वो ही संस्कार अभी भी प्रैक्टिकल में ला रही है। किसको भी बैठने नहीं देती थी ना। एडवान्स पार्टी को भी अभी स्टेज पर लाने का बाण भर रही है। कन्ट्रोलर के संस्कार थे ना। अभी एडवान्स पार्टी का कन्ट्रोलर है। सेवा के संस्कार अभी भी इमर्ज रूप में है। समझा! अभी दीदी कहाँ है? अभी तो विश्व का चक्कर लगा रही हैं। जब सीट ले लेंगी तो बता देंगे। अभी वह भी आपको सहयोग देने के बहुत बड़े-बडे प्लैन्स बना रही है। अभी देरी नहीं लगेगी। अच्छा।

ऐसे सदा श्रेष्ठ योगी, सदा महान तपस्वी मूर्त, साक्षात बाप बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले, चारों ओर ‘‘हमने देखा हमने पाया’’ इस प्राप्ति की लहर फैलाने वाले, ऐसे महान तपस्वी मूर्तों को देश-विदेश के सर्व स्नेही, सेवा में मग्न रहने वाले सर्व बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

मीटिंग वालों से:- मीटिंग तो हो ही गई। मीटिंग होती है विश्व को बाप के समीप लाने के लिए। सिर्फ सन्देश देने के लिए नहीं। समीप लाने से संग का रंग लगता है ना। जितना बाप के समीप आते हैं उतना संग का रंग लगता है। जहाँ सुनना है वहाँ कुछ सुनना होता - कुछ भूलना होता लेकिन जो समीप आ जाते वो बाप के समीप होने से रूहानी रंग में रंगे रहते हैं। तो अभी क्या सेवा है? समीप लाने की। सन्देश तो दे दिया। मैसेन्जर बन के मैसेज देने का पार्ट तो बजाया। लेकिन अभी क्या बनना है? शक्तियों को सदैव किस रूप में याद करते हैं? सब शक्ति सेना हो ना! शक्तियों को हमेशा माँके रूप में याद करते हैं, पालना लेने के संकल्प से याद करते हैं। मैसेज तो बहुत दिया और अभी और भी देने वाले तैयार हो गये, अभी चाहिए पालना वाले। जो विशेष निमित्त हैं उन्हों का कार्य अभी हर सेकण्ड बाप की पालना में रहना और सर्व को बाप की पालना देना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं तो सदा पालना में रहने के कारण कितने खुश रहते हैं। कुछ भी हो लेकिन पालना के नीचे होने के कारण कितने खुश रहते हैं। ऐसे आप सभी सर्व आत्माओं को प्रभु पालना के अन्दर चलने का अनुभव कराओ। वह समझें कि हम प्रभु की पालना के अन्दर चल रहे हैं। यह हमें प्रभु के पालना की दृष्टि दे रहे हैं। तो अभी पालना की आवश्यकता है। तो पालना करने वाले हो या मैसेन्जर हो? मैसेन्जर तो आजकल बहुत कहलाने लग पड़े हैं। मैसेन्जर बनना बहुत कामन बात है। लेकिन अभी जो भी आयें वह ऐसे अनुभव करें कि हम ईश्वरीय पालना के अन्दर आ गये। इसी को ही कहा जाता है - सम्बन्ध में लाना

सभी अनन्य हैं ना। अनन्य अर्थात् जो अन्य न कर सकें वह करके दिखाने वाले। जो सब करते वो ही किया तो बड़ी बात नहीं। पालना का अर्थ है उन्हों को शक्तिशाली बनाना, उन्हों के संकल्पों को, शक्तियों को इमर्ज करना, उमंग- उत्साह में लाना। हर बात में शक्ति रूप बनाना। इसी रूप की पालना अब ज्यादा चाहिए। चल रहे हैं, लेकिन शक्तिशाली आत्मायें बनकर चलें वो अभी आवश्यक है। जो कोई नये भी आवें तो ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति जरूर करें। वाणी की शक्ति की अनुभूति तो हो रही है लेकिन यहाँ ईश्वरीय शक्ति है, वह अनुभव कराओ। स्टेज पर आते हो तो याद रहता है - भाषण करना है लेकिन यह ज्यादा याद रहे, भाषण निमित्त है, ईश्वरीय शक्ति की भासना देनी है। वाणी में भी ईश्वरीय शक्ति की भासना आवे। इसको कहा जाता है - न्यारापन। स्पीच बहुत अच्छी की तो यह स्पीकर के रूप में देखा ना। यह ईश्वरीय अलौकिक आत्मायें हैं इस रूप में देखें। यह महसूसता करानी है। यह भासना ही ईश्वरीय बीज डाल देती। फिर वह बीज निकल नहीं सकता। एक सेकण्ड का भी किसको अनुभव हो जाता है तो वह अन्त तक मेहनत नहीं लेता। ईश्वरीय झलक का अनुभव जिसने आते ही किया उनका चलना, सेवा करना वह और होता है। जो सिर्फ सुनकर प्रभावित होते उनका चलना और होता है, जो सिर्फ प्यार में ही चलते रहते उनका चलना और है। भिन्न-भिन्न प्रकार हैं ना। तो अभी पहले स्वयं को सदा ईश्वरीय पालना में अनुभव करो तब औरों को अनुभव हो। सेवा में चल रहे हैं लेकिन सेवा भी पालना है। ईश्वरीय पालना में चल रहे हैं। सेवा शक्तिशाली बनाती है तो यह भी ईश्वरीय पालना है ना। लेकिन यह इमर्ज रहे। यह दृढ़ संकल्प करना चाहिए। अनन्य अर्थात् बाप समान सैम्पल। अच्छा –

धर्म नेताओं की सेवा का प्लैन

धर्म नेताओं के लिए विशेष वह रूप चाहिए - क्योंकि धर्म की बातों में तो वे भी होशियार हैं। प्यार से सुनते भी हैं लेकिन अपने में प्रैक्टिकल की कमी महसूस करते हैं। यह साक्षात्कार करें जो आज सुनाया, वह प्रैक्टिकल अनुभव करें कि हमारे सामने यह कोई साधारण रूप नहीं है तब वह झुकें। अनुभव के पीछे झुक सकते हैं। वाणी से नहीं। वह तो कहेंगे आप भी बहुत अच्छा कार्य करते हो, आपको भी आशीर्वाद मिलती रहे। यह कहकर खुश कर देंगे। लेकिन समझें यह कोई विशेष हैं। जिसमें जो कमज़ोरी होती है उनके आधार पर उसको तीर लगाना - यह है विजय पाना। शास्त्र में भी गायन है देवताओं ने विजय प्राप्त की तब, जब उन्हें कमज़ोरी का पता पड़ा यह भी आध्यात्मिक बात है। तो धर्म नेतायें भी आयेंगे जरूर लेकिन ऐसी कोई नवीनता देखेंगे तब। अभी सिर्फ कहते हैं कि ज्ञान अच्छा है। आप भी ठीक हैं, हम भी ठीक हैं, ऐसा कह पानी डाल देते हैं। सिस्टम के ऊपर प्रभावित होते हैं लेकिन उन्हीं के मुख से जब यह निकले कि यह एक ही रास्ता है। अनेक रास्ते हैं उसमें आपका भी एक रास्ता है, यह बदल जाए। जब यह टच हो कि यहाँ से ही मुक्ति और जीवन मुक्ति मिल सकती है तब झुकें। तो अभी कोई नवीनता होनी चाहिए।

प्रवृत्ति में बहुत लग गये हो। लेकिन जैसे औरों को सुनाते हो - प्रवृत्ति में भी रहना है और प्रवृत्ति में रहते निवृत्त भी रहना है। तो यही पाठ अपने को रोज पढ़ाओ। प्रवृत्ति तो बढ़नी ही है लेकिन उसमें रहते निवृत्त रहना यह आवश्यकता है। इसमें थोड़ा अटेन्शन और अन्डर लाइन करना पड़े। हरेक अपनी-अपनी सेवा में बिजी हो गये हो लेकिन बेहद विश्व का नशा चाहिए। यह सब सम्भालते हुए बुद्धि बेहद सेवा के लिए फ्री होनी चाहिए। तन-मन-धन, बुद्धि सब रचना में ज्यादा लगी रहती है। जैसे साकार बाप को देखा, कारोबार चलाते भी सदा अपने को फ्री रखा। कभी भी बिजी होने की रूपरेखा चेहरे पर नहीं आई। चाहे जिम्मेवारी ब्राह्मण परिवार की रही लेकिन बुद्धि में क्या था? बेहद! शक्ति देनी है, पालना करनी है। आत्माओं को जगाना है, यही धुन रही। तो अभी वह होना चाहिए। उसकी कमी है। अनन्य बच्चों को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना है। हरेक बाप समान लाइट हाउस हो। जहाँ जावे - उनको लाइट मिले, शक्ति मिले, उमंग-उत्साह मिले, जो काम साधारण आत्मायें करती वह नहीं करना है। साकार बाप का बोल, संकल्प, दृष्टि, वृत्ति न्यारी रही ना। साधारण नहीं। तो ऐसी स्टेज बनाओ। इसके लिए सेवा रूकी हुई है। खर्चा ज्यादा, मेहनत ज्यादा, निकलते कितने हैं!

अभी समय के प्रमाण एडवांस पार्टी भी जोर कर रही है तो साकार वालों को तो और ज्यादा तेज होना चाहिए। होना सब अचानक है, डेट नहीं बताई जायेगी। पेपर जरूर आने हैं। आप लोगों के थाट्स को चेक करने वाले भी आयेंगे। पेपर लेने आयेंगे। जितनी प्रत्यक्षता होगी उतना यह सब पेपर्स आयेंगे। इस योग और उस योग, इस ज्ञान और उस ज्ञान में क्या अन्तर है वह लाइफ की प्रैक्टिकल की चेकिंग करेंगे। वाणी की नहीं। उसके लिए पहले से ही इतनी तैयारी चाहिए। 84 में कुछ न कुछ तो होगा ही। पेपर्स आयेंगे। आवाज़ फैलाने की तैयारी का यही साधन है। जैसे शुरू-शुरू में अभ्यास करते थे, चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी हो जो दूसरे समझें कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई न देवे। जब पहले-पहले मित्र-सम्बन्धियों के पास गये तो क्या पेपर था, वह शरीर को न देखें, लाइट देखें। बेटी न देखें लेकिन देवी देखें। यह पेपर दिया ना। अगर सम्बन्ध के रूप से देखा, बेटी-बेटी कहा तो फेल। तो ऐसा अभ्यास चाहिए। समय तो बहुत खराब आ रहा है लेकिन आप की ऐसी स्थिति हो जो दूसरों को सदैव लाइट का रूप दिखाई दे, यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें। अपने ईश्वरीय सेवा में लगने वाली सम्पत्ति भी ऐसी ही क्यों जावें, उन्हें अलमारी नहीं दिखाई दे लेकिन लाइट का किला देखें। इतना अभ्यास चाहिए। शक्ति रूप की झलक बढ़ानी चाहिए। साधारण नहीं दिखाई दे। यह लक्ष्य रहे। वार तो कई प्रकार के होंगे - आत्माओं के वार होंगे, बुरी दृष्टि वालों के वार होंगे, कैलेमिटीज के वार होंगे, बीमारियों का वार होगा लेकिन इन सबसे बचने का साधन है - अनन्य बनना। अर्थात् जो अन्य न कर सकें वह करना। सिर्फ यह याद रखों कि मैं अनन्य हूँ तो भी प्यारे और न्यारे रहेंगे। अच्छा-

विदेशी बच्चों को याद-प्यार देते हुए

सभी डबल विदेशी बच्चों को विशेष याद प्यार बापदादा पद्मगुणा रिटर्न में दे रहे हैं। सभी ने जो भी पत्र और समाचार लिखे हैं उसकी रिटर्न में सभी बच्चों को पुरूषार्थ तीव्र करने की मुबारक हो और साथ-साथ पुरूषार्थ करते अगर कोई साइड-सीन आ भी जाती है तो उसमें घबराने की कोई बात नहीं है। जो भी साइड-सीन आती है उसको याद और खुशी से पार करते चलो। विजय वा सफलता तो आप सबका जन्म-सिद्ध अधिकार है। साइडसीन पार किया और मंज़िल मिली। इसलिए कोई भी बड़ी बात को छोटा करने के लिए स्वयं बड़े ते बड़ी स्टेज पर स्थित हो जाओ तो बड़ी भी बात स्वयं छोटी स्वत: हो जायेगी। नीचे की स्थिति में रहकर और ऊपर की चीज़ को देखते हो तब बड़ी लगती है तो ऊँची स्टेज पर स्थित होकर के किसी भी बड़ी चीज़ को देखो तो छोटी अनुभव होगी। जब भी कोई परिस्थिति आती है या किसी भी प्रकार का विघ्न आता है तो अपनी श्रेष्ठ स्थिति में, ऊँचे ते ऊँची स्थिति में स्थित हो जाओ। बाप के साथ बैठ जाओ तो बाप के संग का रंग भी सहज लग जायेगा। साथ भी मिल जायेगा। और ऊँची स्टेज के कारण सब बातें बहुत छोटी-सी अनुभव होंगी, इसलिए घबराओं नहीं। दिलशिकस्त नहीं हो लेकिन सदा खुशी के झूले में झूलते रहो तो सदा ही सफलता आपके सामने आयेगी। सफलता मिलेगी या नहीं यह सोचना भी नहीं पड़ेगा। लेकिन सफलता स्वयं ही आपके सामने आयेगी। प्रकृति सफलता का हार स्वयं ही पहनायेगी। परिस्थिति बदलकर विजय का हार हो जायेगी। इसीलिए बहुत हिम्मत वाले हैं, उमंग वाले हैं, उत्साह में रहने वाले हैं, यह बीच-बीच में थोड़ा-सा होता भी है तो उसको सोचो नहीं। समय बीत गया, परिस्थिति बीत गई फिर उसका सोचना व्यर्थ हो जाता है। इसलिए जैसे समय बीत गया वैसे अपनी बुद्धि से भी बीती सो बीती, जो बीती सो बीती करते हैं वह सदा ही निश्चिन्त रहते हैं। सदा ही उमंग-उत्साह में रहते हैं इसलिए बापदादा विशेष ऐसे उमंग उत्साह में रहने वाले, हिम्मत वाले बच्चों को विशेष अमृतवेले याद करते हैं। और विशेष शक्ति देते हैं, उसी समय अपने को पात्र समझ वह शक्ति लेंगे तो बहुत ही अच्छे अनुभव होंगे।

अमृतवेले सुस्ती आ जाती है:- खुशी की पाइंटस का मनन कम करते हैं। अगर मनन सारा दिन चलता रहे तो अमृतवेले भी वही मनन किया हुआ खज़ाना सामने आने से खुशी होगी तो सुस्ती नहीं आयेगी। लेकिन सारा दिन मनन कम होता है उस समय मनन करने की कोशिश करते हैं तो मनन नहीं होता है क्योंकि बुद्धि फ्रेश नहीं होती है। फिर न मनन होता, न अनुभव होता, फिर सुस्ती आती है। अमृतवेले को शक्तिशाली बनाने के लिए सारे दिन में भी, श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना बहुत आवश्यक है तो सारा दिन मनन करते चलो। ज्ञान रत्नों से खेलते चलो तो वही खुशी की बातें याद आने से नींद चली जायेगी और खुशी में ऐसे ही अनुभव करेंगे जैसे अभी प्राप्ति की खान खुल गई। तो जहाँ प्राप्ति होती है वहाँ नीद नहीं आती है। जहाँ प्राप्ति नहीं वहाँ नींद आती वा थकावट होती है वा सुस्ती आती है। प्राप्ति के अनुभव में रहो, उसका कनेक्शन है सारे दिन के मनन पर। अच्छा-

जिन्होंने भी याद-प्यार का सन्देश भेजा है उन्हों को सम्मुख तो मिलना ही है लेकिन अभी भी जो दूर बैठे भी बापदादा सम्मुख देख रहे हैं और सम्मुख देखकर ही बात कर रहे हैं। अभी भी सम्मुख हो फिर भी सम्मुख रहेंगे। सभी को नाम सहित, समाचार के रेसपान्ड सहित याद-प्यार। सदा तीव्र उमंग, तीव्र पुरूषार्थ में रहना है और औरों को भी तीव्र पुरूषार्थ के वायब्रेशन देते हुए वायुमण्डल ही तीव्र पुरूषार्थ का बनाना है। पुरूषार्थ नहीं, ‘तीव्र पुरूषार्थ। चलने वाले नहीं, उड़ने वाले। चलने का समय पूरा हुआ अब उड़ो और उड़ाते चलो। अच्छा-

84 के, कांफ्रेंस की सफलता के लिए - जितना हो सके साइलेन्स का वातावरण रहे, ईश्वरीय ज्ञान है, ईश्वर का स्थान है यह अनुभव करके जाएँ। टोटल ऐसा वातावरण हो, अनुभूति कराने का लक्ष्य रहे। पाइंटस की चटाबेटी में न जाकर, बोलते-बोलते अनुभव कराते जाओ। लक्ष्य रखो सभी के मुख से कहलाना है कि - यह ईश्वरीय रास्ता है। ईश्वर आ गया है। बहुत अच्छा है यह तो कहते हैं लेकिन ईश्वर पढ़ा रहा है, यह कहें। ज्ञान अच्छा है लेकिन ज्ञानदाता कौन है, उसको अनुभव करें। अभी यह फाउण्डेशन डालो। जब बीज ऊपर आ जाए तब समाप्ति हो। बीज ऊपर नहीं आया तो वृक्ष परिवर्तन कैसे हो? जब इस स्थान पर अपनी रूचि से आ रहे हैं तो स्थान की जो विशेषता है वह देखें उसका अनुभव करें। आप उनकी व्यु (View) को देखकर अपनी (View) व्यु चेन्ज न करो लेकिन आपकी व्यु को देखकर वह अपनी व्यु चेन्ज करें - ऐसा प्लैन बनाओ। जब लक्ष्य रहता कि भाषण करना है तो पाइंट्स तरफ अटेन्शन जाता लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने का लक्ष्य हो तो बाप ही दिखाई देगा। जैसा लक्ष्य होगा वैसी रिजल्ट निकलेगी। अच्छा-



01-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सुख, शान्ति और पवित्रता के तीन अधिकार

सुख, शान्ति और पवित्रता का जन्म-सिद्ध अधिकार देने वाले शिवबाबा, तकदीरवान, अधिकारी बच्चों प्रति बोले:-

आज बापदादा अति स्नेही और सिकीलधे बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा अति स्नेह से मिलन मनाने अपने घर में पहुँच गये हैं। इसी भूमि को कहा जाता है - अपना घर, दाता का दर। यह महिमा इसी स्वीट होम की है। स्वीट होम में स्वीट बच्चों से स्वीटेस्ट बाप मिलन मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे के मस्तक पर आज विशेष अधिकार की तीन लकीरें देख रहे हैं। हर एक के मस्तक पर तीन लकीरें तो लगी हुई हैं, क्योंकि बच्चें तो सभी हैं। बच्चे होने के नाते अधिकारी तो सभी हैं लेकिन नम्बरवार हैं। किसी बच्चे की तकदीर, सुख के अधिकार की लकीर बहुत स्पष्ट और गहरी है। कितनी भी परिस्थितियाँ आवें, दु:ख की लहर भी उत्पत्ति दिलाने वाली लहर हो लेकिन दुःख शब्द की अविद्या वाले हों। दुख की परिस्थिति को अपने सुख के सागर से प्राप्त हुए अधिकार द्वारा दुख की परिस्थितियों में भी, ‘वाह मीठा ड्रामा, वाह हरेक पार्टधारी का पार्ट- इस नालेज की रोशनी द्वारा, अधिकार की खुशी द्वारा दुख को सुख में परिवर्तन कर देता। अधिकार से दुख के अंधकार को परिवर्तन कर, मास्टर सुखदाता बन स्वयं तो सुख के झूले में झूलते ही हैं लेकिन औरों को भी सुख के वायब्रेशन देने के निमित्त बनते हैं। ऐसे सुख के अधिकार की लकीर स्पष्ट और गहरी हैं, जिसको कोई मिटा न सके। मिटाने वाले बदल जाएँ लेकिन वह नहीं। मास्टर सुख दाता से सुख की अंचली ले लें। ऐसे लकीर वाले भी देखे। इसको कहा जाता है - नम्बर वन तकदीरवान! सुनाया था वन की निशानी है विन

दूसरी लकीर शान्ति। आप सब शान्ति को स्वधर्म मानते हो ना! यह सभी को बताते हो ना। धर्म के लिए क्या गाया हुआ है? - ‘धरत परिये धर्म न छोड़िये। सिर जावे लेकिन धर्म न जाये। तो सुख-शान्ति के वर्स के अधिकारी कभी शान्ति को छोड़ नहीं सकते। ऐसे अशान्त को शान्त बनाने वाले, सदा शान्ति की किरणें स्वयं द्वारा औरों को देने वाले, कुछ भी हो जाए लेकिन शान्तिका धर्म शान्ति का अधिकार छोड़ नहीं सकते। इसको कहते दूसरे अधिकार की लकीर में नम्बर वन। तीसरी है प्यूरिटी के अधिकार की लकीर। पवित्र आत्मायें तो सभी बच्चे हैं। फिर भी नम्बरवन अधिकार के तकदीरवान बच्चा कौन है! जिसकी चलन से, चेहरे से प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी अनुभव हो। लौकिक जीवन में लौकिकता वाली पर्सनैलिटी रॉयल्टी दिखाई देती है लेकिन अधिकार के तकदीरवान बच्चों में प्युरिटी की अलौकिक पर्सनैलिटी और रॉयल्टी दिखाई देंगी। इसको कहा जाता है - नम्बरवन पवित्रता के तकदीर की लकीर।

आज सर्व बच्चों के इस अधिकार की लकीरों को देख रहे थे। आप सब भी अपनी तीनों लकीरों को देख रहे हो ना। चेक करो तीनों अधिकार प्राप्त कर लिया है? पूरा अधिकार लिया है वा परसेन्टेज में लिया है! अगर संगम पर भी परसेन्टेज में रहे तो सारा कल्प परसेन्टेज में ही रह जायेंगे। पूज्य पद में भी परसेन्टेज होगी, फुल पूजा नहीं होगी। और प्रालब्ध में भी परसेन्टेज रह जायेगी। अच्छा-

आज मैजारिटी नये सो पुराने बच्चे आये हैं। नये बच्चे कहो वा कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चे कहो, अपना अधिकार लेने के लिए फिर से अपने स्थान पर पहुँच गये। सबसे ज्यादा खुशी किसको है! हर एक समझेंगे मेरे को है। ऐसे समझते हो वा किसको कम किसको ज्यादा है! अधिकारी बच्चों को विशेष मिलन का अधिकार देने के लिए बापदादा को भी आना ही पड़ता है।

बाप को बच्चों से स्नेह ज्यादा है वा बच्चों को बाप से स्नेह ज्यादा है? अटूट स्नेह किसका है? बापदादा तो बच्चों को अपने से आगे रखते। पहले बच्चे! अगर बच्चे याद वा प्यार नहीं करते तो बाप रेसपाण्ड किनको देते। इसलिए आगे बच्चे पीछे बाप। सदैव बच्चों को आगे चलाना होता, बाप पीछे चलता है। इसलिए बापदादा भी ऐसे बच्चों को देख-देख हर्षित होते हैं। ऐसे बच्चे भी हैं जो अटूट स्नेह प्यार में समाए हुए हैं। ऐसे बच्चों की भी माला है। चाहे देश में चाहे विदेश में दोनों तरफ ऐसे बच्चे हैं जिन्हों को सिवाए बाप और सेवा के और कोई बात याद नहीं।

जगदीश भाई से:- आपने ऐसे बच्चे देखे ना! अच्छा चक्कर लगाया ना। साकार बाप का दिया हुआ विशेष वरदान, साकार में लाया। सफलता का जन्मसिद्ध अधिकार अनुभव किया न। सर्व सफलता में विशेष सफलता की निशानी कौन सी है? श्रेष्ठ सफलता है कि बापदादा दिखाई दे। आप में बाप दिखाई दे - यह है श्रेष्ठ सफलता। यही प्रत्यक्षता का साधन है। जो भी चक्कर पर निकले विशेष बाप समान अनुभूति कराना, यही सफलता की निशानी है। और आगे चल कर भी ज्यादा से ज्यादा यही आवाज़ चारों ओर फैलता जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही। करावनहार करा लेता है। अच्छा-

ऐसे सदा सम्पूर्ण तकदीरवान, सम्पन्न अधिकार को पाने वाले अधिकारी, सदा बाप और आप के कम्बाइन्ड रूप में रहने वाले, स्नेह के सागर में सदा समाये हुए, लकी और लवली बच्चों को, भाग्य विधाता, वरदाता का यादप्यार और नमस्ते।’’

(जगदीश भाई ने विदेश यात्रा का समाचार बापदादा को बताया और नाम सहित सभी भाई-बहनों की याद दी)

‘‘सभी के स्नेह का समाचार बापदादा के पास पहुँचता ही रहता है और अभी भी पहुँचा। बापदादा सर्व विदेश के चारों ओर रहने वाले बच्चों को विशेष एक बात की मुबारक भी देते हैं। किस बात की? संस्कार, भाषा, रहन-सहन सबका परिवर्तन करने में मैजारिटी बहुत तीव्र पुरुषार्थी निकले हैं। जैसे कोई नइ दुनिया में आ जाए। ऐसे नई रीति रसम, नया सम्बन्ध फिर भी अपने को सदा कल्प पहले वाले पुराने अधिकारी आत्माएं समझते चल रहे हैं। इसलिए स्वयं को परिवर्तन करने की विशेषता पर विशेष मुबारक। बापदादा को कितना प्यार से याद करते वह बापदादा के पास सदा ही पहुँचता है। स्वयं को भूल बाप को ही सदा हर बात में याद करते यह परिवर्तन विशेष है। और इसी प्यार के आधार पर चल रहे हैं। यह प्यार ही पालना कर रहा है। सूक्ष्म प्यार की पालना ही आगे बढ़ा रही है। अच्छा-

सभी को, जिन्होंने भी यादप्यार दिया है उन्हों को प्यार के सागर बाप का सदा प्यार की झोली भर-भरकर यादप्यार। भारतवासी बच्चे भी कम नहीं है, भारत का भाग्य तो विदेश वाले गा-गाकर खुश होते हैं। भारत वाले जगे तब विदेश को जगाया। जागने वाले तो भारत के हैं। अगर विदेश में भी यह सब नहीं होते तो इतने विदेश के सेन्टर भी कैसे होते। इसी के निमित्त चारो ओर, अिफ्रीका.. सब तरफ फैले हुए हैं। सेन्टर खोलते भी कितने में हैं। पैदा हुए, थोड़ा सा बड़े हुए, सेन्टर खोला। वह भी अपने पांव पर खड़े होकर, किसी पर आधार नहीं। निमन्त्रण मिले यह आधार नहीं। स्थूल, सूक्ष्म दोनों लगार हिम्मत रख सेन्टर खोल देते हैं। बाकी उन्हों की पालना करना यह तो आप लोगों की जिम्मेवारी है। हिम्मत में पीछे नहीं हैं। मदद देना यह बाप के साथ-साथ आपका भी कार्य है।

ज्ञान की गहराई को सुनकर खुश हो गये। योग और प्यार के आधार पर चल रहे हैं, लेकिन अभी ज्ञान की गहराई को जाना यह और भी इन्हों को सेवा के निमित्त बनायेगी। माइन्ड तैयार हो जाए उसके लिए ज्ञान की गहराई चाहिए। ज्ञान और बाप यह दोनों की महसूसता दिलाना, यह रिजल्ट अच्छी है। कोई भी जाता है तो कितने खुश होते हैं, जैसे कोई आकाश से सितारा नीचे आ जाए, ऐसी अनुभूति करते हैं। अच्छा-’’

दादी जी और जानकी दादी से:- दोनों में तीसरी मूर्त (दीदी) समाई हुई है। बाप समान हैं ही। बनना है नहीं। हैं ही! ऐसे अनुभव होता है! जैसे बाप ब्रह्मा का आधार ले सेवा करते हैं वैसे आप भी बापके माध्यम हो। वर्तमान समय बाप माध्यम द्वारा करावनहार अपना कार्य करा रहे हैं। विशेष माध्यम हो। ब्रह्मा के आकार द्वारा और आपके साकार द्वारा कार्य करा रहे हैं। बहुत-बहुत पद्म से भी ज्यादा बापदादा हर सेकण्ड याद और प्यार करते हैं। शृंगार हो। विशेष बाप का और मधुबन का शृंगार हो। बापदादा हर समय देख-देख हर्षित होते हैं। अच्छा –



03-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुगी ब्राह्मण - चतुर सुजान सौदागर, रत्नागर

रत्नागर बापदादा अपने चतुर सुजान बच्चों के प्रति बोले:-

आज रत्नागर बाप अपने सौदागर बच्चों को देख रहे हैं। सौदा सभी बच्चों ने किया है। किससे सौदा किया और किन्होंने किया है? दुनिया के हिसाब से तो बहुत भोले बच्चे हैं लेकिन भोले बच्चों ने चतुर-सुजान बाप को जाना। तो भोले वा चतुर हुए! दुनिया वाले जो अपने को अनेक बातों में चतुर समझते हैं उसके अन्तर में आप सबको भोले समझते हैं लेकिन आप सब उनको भोले कहते हो - क्योंकि चतुर-सुजान बाप को जानने की समझ, चतुराई उन्हों में नहीं है। आप लोगों ने मूल को जान लिया और वह विस्तार में जा रहे हैं। आप सबने एक में पदम पा लिया और वह अरब-खरब गिनते ही रह गये। पहचानने की आँख, जिसको श्रेष्ठ नॉलेज की आँख कहते हैं, वह कल्प-कल्प किसको प्राप्त होती है? आप भोली आत्माओं को। वे क्या और क्यों, ऐसे और कैसे के विस्तार में ढूँढते ही रह जाते हैं और आप सभी ने वो ही मेरा बाप है’, मेरा बाबा कहकर रत्नागर से सौदा कर लिया। ज्ञान सागर कहो, रत्नागर कहो, रत्नों की थालियाँ भर-भरकर दे रहे हैं। उन रत्नों से खेलते हो! रत्नों से पलते हो। रत्नों में झूलते हो। रत्न ही रत्न हैं। हिसाब कर सकते हो। कितने रत्न मिले हैं। अमृतवेले आँख खोलते बाप से मिलन मनाते, रत्नों से खेलते हो ना। सारे दिन में धन्धा कौन सा करते हो! रत्नों का धन्धा करते हो ना! बुद्धि में ज्ञान रत्नों की पाइंट्स गिनते हो ना। तो रत्नों के सौदागर, रत्नों की खानों के मालिक हो। जितने कार्य में लगाओ उतने बढ़ते ही जाते। सौदा करना अर्थात् मालामाल बनना। तो सौदा करना आ गया है! सौदा कर लिया है वा अभी करना है? सौदागर नम्बरवार हैं वा सभी नम्बर वन हैं? लक्ष्य तो सभी का नम्बर वन है लेकिन नम्बर वन सदा रत्नों में इतना बिजी रहेगा जो और कोई बातों को देखने, सुनने और सोचने की फुर्सत ही नहीं होगी। माया भी बिजी देख वापस चली जायेगी। माया को बार-बार भगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। तो आज बापदादा एक तरफ बड़े-बड़े नामीग्रामी नॉलेजफुल कहलाने वाले बच्चों को देख रहे थे, क्या-क्या कर रहे हैं! अनेक बातों की समझ है, एक बात की समझ नहीं है। उसके अन्तर में ब्राह्मण बच्चों को देख रहे थे। बापदादा भी दोनों का अन्तर देख गीत गा रहे थे। आप भी वह गीत गाते हो। जो ब्रह्मा बाप को बहुत प्रिय लगता है। बापदादा बच्चों के प्रति गा रहे हैं। जो ब्रह्मा बाप आज बहुत मस्ती में गा रहे थे - कितने भोले कितने प्यार मीठे-मीठे बच्चे। जैसे आप लोग बाप के लिए गाते हो ना। बाप भी बच्चों के लिए यही गीत गाते, ऐसे ही इसी स्मृति-स्वरूप में किसके प्यारे हैं, किसके मीठे हैं, कौन बच्चों का गीत गाता है! यह स्मृति सदा निर्मान बनाए स्व-अभिमान के नशे में स्थित कर देती है। इसी नशे में कोई नुकसान नहीं। इतना नशा रहता है! आधा कल्प आपने भगवान के गीत गाये और अब भगवान गीत गा रहे हैं। दोनों तरफ के बच्चों को देख हम और स्नेह दोनों आ रहे थे।

ब्रह्मा बाप को आज भारत के और विदेश के अनजान बच्चे विशेष याद आ रहे थे। दुनिया वाले तो उन्हों को वी.आई.पी (VIP) कहते हैं लेकिन बाप उन बच्चों को वी.आई.पी. अर्थात् वेरी इनोसेन्ट परसन, (Very Innocent Person) इस रूप में देख रहे थे। आप सेन्ट (Saint) हो वे इनोसेन्ट हैं लेकिन अभी उन्हों को भी अंचली दो। अंचली देने आती है! आपके लाइन में उन्हों का नम्बर अभी पीछे है वा आगे है? क्या समझते हो?(साइलेन्स की ड्रिल)

ऐसे विशेष साइलेन्स की शक्ति उन आत्माओं को दो। अभी संकल्प उठता है कि कोई सहारा, कोई नया रास्ता मिलना चाहिए। अभी चाह उत्पन्न हो रही है। अब राह दिखाना आप सबका कार्य है। एकता और दृढ़ता’ - यह दो साधन हैं राह दिखाने के। संगठन की शुभ भावना ऐसी आत्माओं को भावना का फल दिलाने के निमित्त बनेगी। सर्व का शुभ संकल्प, उन आत्माओं में भी शुभ कार्य करने के संकल्प को उत्पन्न करेगा। इसी विधि को अभी से अपनाओ। फिर भी बड़ा कार्य सफल तब होता है जब सबके शुभ संकल्पों की आहुति पड़ती है। समझा। बापदादा तो यही सभी के प्रति कहते हैं कि कोई बच्चा वंचित न रह जाए। आप सभी तो मालामाल हो गये ना। अच्छा-

ऐसे श्रेष्ठ सौदा करने वाले श्रेष्ठ सौदागर, सदा रत्नों से पलने और खेलने वाले मास्टर रत्नागर, बाप के अति स्नेही सदा सहयोगी सिकीलधे, पहचानने के नेत्रधारी, सदा सेवाधारी, सदा मेरा बाबाके गीत गाने वाले, विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से मुलाकात

मद्रास निवासियों प्रति:- ‘‘सभी उमंग-उत्साह में हो ना। सभी के मन में एक ही उमंग-उत्साह है ना कि बाप को कैसे प्रत्यक्ष करें! अभी तो स्टेज भी तैयार कर रहे हो ना। स्टेज तैयार कर रहे हो प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने के लिए। स्थूल झण्डा और भी लहराते हैं, आप सभी कौन सा झण्डा लहरायेंगे,(कपड़े वाला झण्डा लहरायेंगे) क्या करेंगे? वह तो हुआ निमित्त मात्र लेकिन असली झण्डा कौन सा लहरायेंगे। बाप को प्रत्यक्ष करने का। बाप आये हैं यह आवाज़ फैलाने का झण्डा लहरायेंगे। इसकी तैयारी कर रहे हो ना। सभी आत्मायें जो वंचित हैं उन्हों को रोशनी मिल जाए, रास्ता मिल जाए। यही पुरूषार्थ सभी कर रहे हैं और आगे भी करना है। अभी से यह लहर फैलायेंगे तब उस समय चारों ओर यह लहर फैला सकेंगे। ऐसी तैयारी की है ना। सदा यह सोचो जो अब तक कहाँ नहीं हुआ है वह हम करके दिखायेंगे। नया कुछ करना है। नई बात यही है जो सर्व आत्माओं को परिचय मिले और वह समझें, वर्णन करें, अनुभव करें कि बाप आ गये! अच्छा -’’

प्रश्न:- सबसे बड़ा खज़ाना कौन सा है? जिससे ही ज्ञान और योग की परख होती है?

उत्तर:- सबसे बड़ा खज़ाना है - खुशी। चाहे कितना भी ज्ञान हो, योग हो लेकिन खुशी की प्राप्ति नहीं तो ज्ञान ठीक नहीं। कोई भी परिस्थिति आ जाए खुशी गायब नहीं हो सकती। अविनाशी बाप का अविनाशी खज़ाना मिला है इसलिए खुशी कभी गायब नहीं हो सकती। योग लगाते लेकिन खुशी नहीं तो योग ठीक नहीं। आपकी खुशी देख दूसरे आपसे पूछें कि आपको क्या मिला है! यही ज्ञान और योग की प्रत्यक्षता का साधन है।

प्रश्न:- किस लगन के आधार पर विघ्नों की समाप्ति स्वत: हो जाती है?

उत्तर:- एक बाप दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन रहो तो विघ्न टिक नहीं सकता। विघ्न है तो लगन नहीं। विघ्न भल आयें लेकिन उसका प्रभाव न पड़े। जब स्वयं प्रभावशाली आत्मा बन जाते तो किसी का प्रभाव नहीं पड़ सकता। जैसे सूर्य को कोई कितना भी छिपाये तो छिप नहीं सकता! सदा चमकता रहता है। ऐसे ही प्रभावशाली आत्माओं को कोई भी प्रभाव अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो सदा एक बाप दूसरा न कोई’, इसी लगन में मगन रहने वाले, यही विशेष संगमयुग का अनुभव है।

प्रश्न:- सदा अपने को श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मायें हैं - ऐसा अनुभव करते हो?

उत्तर:- श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कौन ? बाप। और बाप के साथ पार्ट बजाने वाले क्या हुए? विशेष पार्टधारी। ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं, यही सदा याद रहे। कोई कितना भी कई जन्म पुरूषार्थ करे लेकिन आप जैसा ऊँच पार्टधारी नहीं बन सकता। महात्मा बन सकते, धर्म पिता बन सकते। वह मैसेन्जर हैं, आप बच्चे हो। कितना रात-दिन का फर्क है। ऐसे अपने श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हो वा कभी भूलता, कभी याद रहता? जब हैं ही बच्चे तो भूल कैसे सकता! अविनाशी वर्सा प्राप्त होता है तो याद भी अविनाशी रहेगी। घर बैठे बिना मेहनत के बाप ने स्वयं आकर अपनी पहचान दी और अपना बनाया, आप लोग तो भटकते रहे। परिचय ही नहीं था, यथार्थ रूप का मालूम ही नहीं था, जिसको आया उसको ही बाप मान लिया। बड़ा भाई बाप समान हो सकता है लेकिन भाई से कोई वर्सा नहीं मिल सकता। पहचान न हाेने के कारण ढूँढते रहे। बाप ने जब परिचय दिया तब पाया। तो ऐसे खुशी के खज़ाने में सदा खेलते रहो, मिट्टी से कभी नहीं खेलना। छोटे कुल के बच्चे मिट्टी से खेलते हैं। रॉयल बच्चे मिट्टी से नहीं खेल सकते। वह तो सदा रत्नों से खेलेंगे।

अच्छा - ओम शान्ति।


 

05-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुग - बाप बच्चों के मिलन का युग

सर्व हितकारी शिवबाबा अपने अधिकारी बच्चों के प्रति बोले:-

आज सभी मिलन मेला मनाने के लिए पहुँच गये हैं। यह है ही बाप और बच्चों के मधुर मिलन का मेला। जिस मिलन मेले के लिए अनेक आत्मायें अनेक प्रकार के प्रयत्न करते हुए भी बेअन्त, असम्भव वा मुश्किल कहते इंतजार में ही रह गये हैं। कब हो जायेगा - इसी उम्मीदों पर चलते चले और अब भी चल रहे हैं। ऐसी भी अन्य आत्मायें हैं जो कब होगा, कब आयेंगे, कब मिलेंगे ऐसे वियोग के गीत गाते रहते हैं। वो सभी हैं कब कहने वाले और आप सब हैं - अभी वाले। वो वियोगी और आप सहज योगी। सेकण्ड में मिलन का अनुभव करने वाले। अभी भी कोई आपसे पूछे कि बापसे मिलना कब और कितने समय में हो सकता है, तो क्या कहेंगे? निश्चय और उमंग से यही कहेंगे कि बाप से मिलना बच्चें के लिए कभी मुश्किल हो नहीं सकता। सहज और सदा का मिलना है। संगमयुग है ही बाप बच्चों के मिलन का युग। निरन्तर मिलन में रहते हो ना। है ही मेला। मेला अर्थात् मिलाप। तो बड़े फखुर से कहेंगे आप लोग मिलना कहते हो लेकिन हम तो सदा उन्हीं के साथ अर्थात् बाप के साथ खाते-पीते, चलते, खेलते, पलते रहते हैं। इतना फखुर रहता है? वह पूछते परमात्मा बाप से स्नेह कैसे होता है, मन कैसे लगता! और आपके दिल से यही आवाज़ निकलता कि मन कैसे लगाना तो छोड़ा लेकिन मन ही उनका हो गया। आपका मन है क्या जो मन कैसे लगावें। मन बाप को दे दिया तो किसका हुआ! आपका या बाप का! जब मन ही बाप का है तो फिर लगावें कैसे यह प्रश्न उठ नहीं सकता। प्यार कैसे करते यह भी क्वेश्चन नहीं। क्योंकि सदा लवलीन ही रहते हैं। प्यार स्वरूप बन गये हैं। मास्टर प्यार के सागर बन गये, तो प्यार करना नहीं पड़ता, प्यार का स्वरूप हो गये हैं। सारा दिन क्या अनुभव करते, प्यार की लहरें स्वत: ही उछलती हैं ना। जितना-जितना ज्ञान सूर्य की किरणें वा प्रकाश बढ़ता है उतना ही ज्यादा प्यार की लहरें उछलती हैं। अमृतवेले ज्ञान सूर्य की ज्ञान मुरली क्या काम करती? खूब लहरें उछलती हैं ना। सब अनुभवी हो ना! कैसे ज्ञान की लहरें, प्रेम की लहरें, सुख की लहरें, शान्ति और शक्ति की लहरें उछलती हैं और उन ही लहरों में समा जाते हो। यही अलौकिक वर्सा प्राप्त कर लिया है ना! यही ब्राह्मण जीवन है। लहरों में समाते-समाते सागर समान बन जायेंगे। ऐसा मेला मनाते रहते हो वा अभी मनाने आये हो! ब्राह्मण बनकर अगर सागर में समाने का अनुभव नहीं किया तो ब्राह्मण जीवन की विशेषता क्या रही! इस विशेषता को ही वर्से की प्राप्ति कहा जाता है। सारे विश्व के ब्राह्मण इसी अलौकिक प्राप्ति के अनुभव के चात्रक हैं।

अभी भी सर्व चात्रक बच्चे बापदादा के सामने हैं। बापदादा के आगे बेहद का हाल है। इस हाल मे भी सभी नहीं आ सकते। सभी बच्चे दूरबीन लेकर बैठे हैं। साकार में भी दूर का दृश्य सामने देखने के अनुभव में बापदादा भी बच्चों के सहज श्रेष्ठ सर्व प्राप्ति को देख हर्षित होते हैं। आप सभी भी इतने हर्षित होते हो या कभी हर्षित और कभी माया के आकर्षित और माया के दुविधा में तो नहीं रहते हो! दुविधा दलदल बना देती है। अभी तो दलदल से निकल दिलतख्तनशीन हो गये हो ना! सोचो कहाँ दलदल और कहाँ दिलतख्त! क्या पसन्द है? चिल्लाना या तख्त पर चढ़के बैठना। पसन्द तो तख्त है फिर दलदल की ओर क्यों चले जाते हो। दलदल के समीप जाने से दूर से ही दलदल अपने तरफ खींच लेती है।

नया समझ करके आये हो या कल्प-कल्प के अधिकारी समझ आये हो? नये आये हो ना! परिचय के लिए नया कहा जाता है लेकिन पहचानने में तो नये नहीं हो ना। नये बन पहचानने के लिए तो नहीं आये हो ना। पहचान का तीसरा नेत्र प्राप्त हो गया है वा अभी प्राप्त करने आये हो!

सभी आये हुए बच्चों को ब्राह्मण जन्म की सौगात बर्थ-डे पर मिली वा यहाँ बर्थ-डे मनाने आये हो। बर्थ-डे गिफ्ट बाप द्वारा तीसरा नेत्र मिलता है। बाप को पहचानने का नेत्र मिलता है। जन्म लेते, नेत्र मिलते सबके मुख से पहला बोल क्या निकला? बाबा! पहचाना तब तो बाबा कहा ना! सभी को बर्थ-डे गिफ्ट मिली है वा किसकी रह गई है। सबको मिली है ना। गिफ्ट को सदा सम्भाल कर रखा जाता है, बापदादा को तो सभी बच्चे एक दो से प्यारे हैं। अच्छा-

ऐसे सर्व अधिकारी आत्माओं को, सदा सागर के भिन्न-भिन्न लहरों में लहराने वाले अनुभवी मूर्त बच्चों को, सदा दिलतख्तनशीन बच्चों को, सदा मिलन मेला मनाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, साथ-साथ देश वा विदेश के दूरबीन लिए हुए बच्चों को, विश्व के अनजान बच्चों को भी बापदादा याद-प्यार दे रहे हैं। सर्व आत्माओं को यथा स्नेह तथा स्नेह सम्पन्न याद-प्यार और वारिसों को नमस्ते।’’

दादी जी से:- बाप के संग का रंग लगा है। समान बाप बन गई! आप में सदा क्या दिखाई देता है। बाप दिखाई देता है। तो संग लग गया ना। कोई भी आपको देखता है तो बाप की याद आती क्योंकि समाये हुए हो। समाये हुए समान हो गये। इसीलिए विशेष स्नेह और सहयोग की छत्रछाया है। स्पेशल पार्ट है और स्पेशल छत्रछाया खास वतन में बनाई हुई है तब ही सदा हल्की हो। कभी बोझ लगता है? छत्रछाया के अन्दर हो ना। बहुत अच्छा चल रहा है। बापदादा देखदेख हर्षित होते हैं।

पार्टियों से (अव्यक्त बापदादा की व्यक्तिगत मुलाकात)

(1) सारे विश्व में विशेष आत्मायें हैं, यह स्मृति सदा रहती है? विशेष आत्माएं सेकण्ड भी एक संकल्प, एक बोल भी साधारण नहीं कर सकती। तो यही स्मृति सदा समर्थ बनाने वाली है। समर्थ आत्मायें हैं, विशेष आत्मायें हैं यह नशा और खुशी सदा रहे। समर्थ माना व्यर्थ को समाप्त करने वाले। जैसे सूर्य अन्धकार और गन्दगी को समाप्त कर देता है। ऐसे समर्थ आत्मायें व्यर्थ को समाप्त कर देती हैं। व्यर्थ का खाता खत्म, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बोल, सम्पर्क और सम्बन्ध का खाता सदा बढ़ता रहे। ऐसा अनुभव है! हम हैं ही समर्थ आत्मायें यह स्मृति आते ही व्यर्थ खत्म हो जाता। विस्मृति हुई तो व्यर्थ शुरू हो जायेगा। स्मृति स्थिति को स्वत: बनाती हैं। तो स्मृति स्वरूप हो जाओ। स्वरूप कभी भी भूलता नहीं। आपका स्वरूप है स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। बस यही अभ्यास और यही लगन। इसी लगन में सदा मग्न - यही जीवन है।

कभी भी किसी परिस्थिति में वायुमण्डल में उमंग-उत्साह कम होने वाला नहीं। सदा आगे बढ़ने वाले। क्योंकि संगमयुग है ही उमंग-उत्साह प्राप्त कराने वाला। यदि संगम पर उमंग-उत्साह नहीं होता तो सारे कल्प में नहीं हो सकता। अब नहीं तो कब नहीं। ब्राह्मण जीवन ही उमंग-उत्साह की जीवन है। जो मिला है वह सबको बाँटे यह उमंग रहे। और उत्साह सदा खुशी की निशानी है। उत्साह वाला सदा खुश रहेगा। उत्साह रहता - बस, पाना था वो पा लिया।

सदा अचल अडोल स्थिति में रहने वाली अंगदके समान श्रेष्ठ आत्मायें हैं, इसी नशे और खुशी में रहो। क्योंकि सदा एक के रस में रहने वाले, एकरस स्थिति में रहने वाले सदा अचल रहते हैं। जहाँ एक होगा वहाँ कोई खिटखिट नहीं। दो होता तो दुविधा होती। एक में सदा न्यारे और प्यारे। एक के बजाए दूसरे कहाँ भी बुद्धि न जाये। जब एक में सब कुछ प्राप्त हो सकता है तो दूसरे तरफ जाएं ही क्यों! कितना सहज मार्ग मिल गया। एक ही ठिकाना, एक से ही सर्व प्राप्ति और चाहिए ही क्या! सब मिल गया बस जो चाहना थी, बाप को पाने की वह प्राप्त हो गया तो इसी खुशी में नाचते रहो, खुशी के गीत गाते रहो। दुविधा में कोई प्राप्ति नहीं इसलिए एक में ही सारा संसार अनुभव करो।

अपने को सदा हीरो पार्टधारी समझते हुए हर कर्म करो। जो हीरो पार्टधारी होते हैं उनको कितनी खुशी होती है, वह तो हुआ हद का पार्ट। आप सबका बेहद का पार्ट है। किसक साथ पार्ट बजाने वाले हैं! किसके सहयोगी हैं, किस सेवा के निमित्त हैं, यह स्मृति सदा रहे तो सदा हर्षित, सदा सम्पन्न, सदा डबल लाइट रहेंगे। हर कदम में उन्नति होती रहेगी। क्या थे और क्या बन गये! वाह मैं और वाह मेरा भाग्य!सदा यही गीत खूब गाओ और औरों को भी गाना सिखाओ। 5 हजार वर्ष की लम्बी लकीर खिंच गई तो खुशी में नाचो।



07-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


श्रेष्ठ पद की प्राति का आधार - ‘‘मुरली’’

मुरलीधर बापदादा अपने मुरलीधर बच्चों के प्रति बोले:-

आज मुरलीधर बाप अपने मुरली के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं कि कितना मुरलीधर बाप से स्नेह है और कितना मुरली से स्नेह है। मुरली के पीछे कैसे मस्त हो जाते हैं। अपनी देह की सुध-बुध भूल देही बन, विदेही बाप से सुनते हैं। जरा भी देहधारी स्मृति की सुध-बुध नहीं। इस विधि से मस्त हो कैसे खुशी में नाचते हैं। स्वयं को भाग्य विधाता बाप के सम्मुख पद्मापद्म भाग्यवान समझ रूहानी नशे में रहते हैं। जैसे-जैसे यह रूहानी नशा, मुरलीधर की मुरली का नशा चढ़ जाता है तो अपने को इस धरनी और देह से ऊपर उड़ता हुआ अनुभव करते हैं। मुरली की तान से अर्थात् मुरली के साज और राज़ से मुरलीधर बाप के साथ अनेक अनुभवों में चलते जाते। कभी मूलवतन, कभी सूक्ष्मवतन में चले जाते, कभी अपने राज्य में चले जाते। कभी लाइट हाउस माइट हाउस बन इस दु:खी अशान्त संसार की आत्माओं को सुख-शान्ति की किरणें देते, रोज तीनों लोकों की सैर करते हैं। किसके साथ? मुरलीधर बाप के साथ। मुरली सुनसुन अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हैं। मुरलीधर की मुरली के साज से अविनाशी दुआ की दवा मिलते ही तन तन्दुरूस्त, मनदुरूस्त हो जाता है। मस्ती में मस्त हो बेपरवाह बादशाह बन जाते हैं। बेगमपुर के बादशाह बन जाते हैं। स्वराज्य-अधिकारी बन जाते हैं। ऐसे विधिपूर्वक मुरली के स्नेही बच्चों को देख रहे थे। एक ही मुरली द्वारा कोई राजा कोई प्रजा बन जाता है। क्योंकि विधि द्वारा सिद्धि होती है। जितना जो विधिपूर्वक सुनते उतना ही सिद्धिस्वरूप बनते हैं।

एक हैं विधिपूर्वक सुनने वाले अर्थात् समाने वाले। दूसरे हैं नियमपूर्वक सुनने कुछ समाने कुछ वर्णन करने वाले। तीसरों की तो बात ही नहीं। यथार्थ विधिपूर्वक सुनने और समाने वाले स्वरूप बन जाते हैं। उन्हों का हर कर्म मुरली का स्वरूप है। अपने आप से पूछो - किस नम्बर में हैं? पहले वा दूसरे में? मुरलीधर बाप का रिगार्ड अर्थात् मुरली के एक-एक बोल का रिगार्ड। एक-एक वरशन 2500 वर्षों की कमाई का आधार है। पद्मों की कमाई का आधार है। उसी हिसाब प्रमाण एक वरदान मिस हुआ तो पद्मों की कमाई मिस हुई। एक वरदान खज़ानों की खान बना देता है। ऐसे मुरली के हर बोल को विधिपूर्वक सुनने और उससे प्राप्त हुई सिद्धि के हिसाब-किताब की गति को जानने वाले श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं। जैसे कर्मों की गति गहन है वैसे विधिपूर्वक मुरली सुनने, समाने की गति भी अति श्रेष्ठ है। मुरली ही ब्राह्मण जीवन की साँस(श्वाँस) है। श्वाँस नहीं तो जीवन नहीं - ऐसी अनुभवी आत्माएँ हो ना। अपने आपको रोज चेक करो कि आज इसी महत्व से, विधिपूर्वक मुरली सुनी! अमृतवेले की यह विधि सारा दिन हर कर्म में सिद्धिस्वरूप स्वत: और सहज बनाती है। समझा।

नये-नये आये हो ना। तो लास्ट सो फास्ट जाने का तरीका सुना रहे हैं। इससे फास्ट चले जायेंगे! समय की दूरी को इसी विधि से गैलप कर सकते हो। साधन तो बापदादा सुनाते हैं जिससे किसी भी बच्चे का उलहना रह न जाये। पीछे क्यों आये वा क्यों बुलाया... लेकिन आगे बढ़ सकते हो। आगे बढ़ो, श्रेष्ठ विधि से श्रेष्ठ नम्बर लो। उलहना तो नहीं रहेगा ना। रिफाइन रास्ता बता रहे हैं। बने बनाये पर आये हो। निकले हुए मक्खन को खाने के समय पर आये हो। एक मेहनत से तो पहले ही मुक्त हो। अभी सिर्फ खाओ और हजम करो। सहज है ना। अच्छा!

ऐसे सर्व विधि सम्पन्न, सर्व सिद्धि को प्राप्त करने वाले, मुरलीधर की मुरली पर देह की सुध-बुध भूलने वाले, खुशियों के झूले में झूलने वाले, रूहानी नशे में मस्त योगी बन रहने वाले, मुरलीधर और मुरली के रिगार्ड रखने वाले, ऐसे मास्टर मुरलीधर, मुरली वा मुरलीधर स्वरूप बच्चों को बापदादा का साकारी और आकारी दोनों बच्चों को स्नेह सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सदा एक बाप की याद में रहने वाली, एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ट आत्माएँ हो ना! सदैव एकरस आत्मा हो या और कोई भी रस अपनी तरफ खींच लेता है? कोई अन्य रस अपनी तरफ खींचता तो नहीं है ना? आप सबको तो है ही एक। एक में सब समाया हुआ है। जब है ही एक, और कोई है नहीं। तो जायेंगे कहाँ। कोई काका, मामा, चाचा तो नहीं है ना। आप सबने क्या वायदा किया? यही वायदा किया है ना कि सब कुछ आप ही हो। कुमारियों ने पक्का वायदा किया है? पक्का वायदा किया और वरमाला गले में पड़ी। वायदा किया और वर मिला। वर भी मिला और घर भी मिला। तो वर और घर मिल गया। कुमारियों के लिए मां-बाप को क्या सोचना पड़ता है। वर और घर अच्छा मिले। तुम्हें तो ऐसा वर मिल गया जिसकी महिमा जग करता है। घर भी ऐसा मिला है जहाँ अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। तो पक्की वरमाला पहनी है? ऐसी कुमारियों को कहा जाता है - समझदारकुमारियाँतो हैं ही समझदार। बापदादा को कुमारियों को देखकर खुशी होती है क्योंकि बच गयीं। कोई गिरने से बच जाए तो खुशी होगी ना। माताएँ जो गिरी हुई थी उनको तो कहेंगे कि गिरे हुए को बचा लिया लेकिन कुमारियों के लिए कहेंगे गिरने से बच गई। तो आप कितनी लकी हो! माताओं का अपना लक है, कुमारियों का अपना लक है। मातायें भी लकी हैं क्योंकि फिर भी गऊपाल की गऊएँ हैं।

2. सदा मायाजीत हो? जो मायाजीत होंगे उनको विश्व-कल्याणकारी का नशा जरूर होगा। ऐसा नशा रहता है? बेहद की सेवा अर्थात् विश्व की सेवा। हम बेहद के मालिक के बालक हैं, यह स्मृति सदा रहे। क्या बन गये, क्या मिल गया यह स्मृति रहती है! बस इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। बढ़ने वालें को देख बापदादा हर्षित होते हैं।

सदा बाप के याद की मस्ती में मस्त रहो। ईश्वरीय मस्ती क्या बना देती है? एकदम फर्श से अर्श निवासी। तो सदा अर्श पर रहते हो या फर्श पर? क्योंकि ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे बने तो नीचे कैसे रहेंगे! फर्श तो नीचे होता है। अर्श है ऊँचा तो नीचे कैसे आयेंगे। कभी भी बुद्धि रूपी पांव फर्श पर नहीं। ऊपर। इसको कहा जाता है - ऊँचे ते ऊँचे बाप के ऊँचे बच्चे। यही नशा रहे। सदा अचल अडोल सर्व खज़ानों से सम्पन्न रहो। थोड़ा भी माया में डगमग हुए तो सर्व खज़ानों का अनुभव नहीं होगा। बाप द्वारा कितने खज़ाने मिले हुए हैं, उन खज़ानों को सदा कायम रखने का साधन है - सदा अचल अडोल रहो। अचल रहने से सदा ही खुशी की अनुभूति होती रहेगी। विनाशी धन की भी खुशी रहती है ना। विनाशी नेता-पन की कुर्सा मिलती है, नाम-शान मिलता है तो भी कितनी खुशी होती है। यह तो अविनाशी खुशी है। यह खुशी उसे रहेगी जो अचल अडोल होंगे।

सभी ब्राह्मणों को स्वराज्य प्राप्त हो गया है! पहले गुलाम थे, गाते थे मैं गुलाम, मैं गुलाम.. अब स्वराज्यधारी बन गये। गुलाम से राजा बन गये। कितना फर्क पड़ गया। रात दिन का अन्तर है ना! बाप को याद करना और गुलाम से राजा बनना। ऐसा राज्य सारे कल्प में नहीं प्राप्त हो सकता। इसी स्वराज्य से विश्व का राज्य मिलता है। तो अभी इसी नशे में सदा रहो - हम स्वराज्य अधिकारी हैंतो यह कर्मेन्द्रियाँ स्वत: ही श्रेष्ठ रास्ते पर चलेंगी। सदा इसी खुशी में रहो कि पाना था सो पा लिया.. क्या से क्या बन गये। कहाँ पड़े थे और कहाँ पहुँच गये!

प्रश्न:- मायाजीत बनने का सहज साधन क्या है?

उत्तर:- मायाजीत बनने के लिए अपनी बुराईयों पर क्रोध करो। जब क्रोध आये तो आपस में नहीं करना, बुराईयों से क्रोध करो, अपनी कमज़ोरियों पर क्रोध करो तो मायाजीत सहज बन जायेंगे।

प्रश्न:- गाँव वालों को देख बापदादा विशेष खुश होते हैं, क्यों?

उत्तर:- क्योंकि गांव वाले बहुत भोले होते हैं। बाप को भी भोलानाथ कहते हैं। जैसे भोलानाथ बाप वैसे भोले गांव वाले तो सदा यह खुशी रहे कि हम विशेष भोलानाथ के प्यारे हैं।

अच्छा - ओम् शान्ति।



12-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


एकाग्रता से सर्व शक्तियों की प्राप्ति

एकाग्रता के स्व-अभ्यासी, स्वराज्य अधिकारी, श्रेष्ठ आत्माओं के प्रति बापदादा बोले:-

आज सभी मिलन मनाने के एक ही शुद्ध संकल्प में स्थित हो ना। एक ही समय, एक ही संकल्प- यह एकाग्रता की शक्ति अति श्रेष्ठ है। यह संगठन की एक संकल्प की एकाग्रता की शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। जहाँ एकाग्रता की शक्ति है वहाँ सर्व शक्तियाँ साथ हैं। इसलिए - एकाग्रता ही सहज सफलता की चाबी हैं। एक श्रेष्ठ आत्मा के एकाग्रता की शक्ति भी कमाल कर दिखा सकती है तो जहाँ अनेक श्रेष्ठ आत्माओं के एकाग्रता की शक्ति संगठित रूप में है वह क्या नहीं कर सकते। जहाँ एकाग्रता होगी वहां श्रेष्ठता और स्पष्टता स्वत: होगी। किसी भी नवीनता की इन्वेन्शन के लिए एकाग्रता की आवश्यकता है। चाहे लौकिक दुनिया की इन्वेन्शन हो, चाहे आध्यात्मिक इन्वेन्शन हो। एकाग्रता अर्थात् एक ही संकल्प में टिक जाना। एक ही लगन में मगन हो जाना। एकाग्रता अनेक तरफ का भटकाना सहज ही छुड़ा देती है। जितना समय एकाग्रता की स्थिति में स्थित होंगे उतना समय देह और देह की दुनिया सहज भूली हुई होगी। क्योंकि उस समय के लिए संसार ही वह होता है, जिसमें ही मगन होते। ऐसे एकाग्रता की शक्ति के अनुभवी हो? एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज़ को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। वह एकाग्रता जानते हो ना! सिवाए एक बाप के और कोई भी संकल्प न हो। एक बाप में सारे संसार की सर्व प्राप्तियों की अनुभूति हो। एक ही एक हो। पुरूषार्थ द्वारा एकाग्र बनना वह अलग स्टेज है। लेकिन एकाग्रता में स्थित हो जाना, वह स्थिति इतनी शक्तिशाली है। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति का एक संकल्प भी बाप समान का बहुत अनुभव कराता है। अभी इस रूहानी शक्ति का प्रयोग करके देखो। इसमें एकान्त का साधन आवश्यक है। अभ्यास होने से लास्ट में चारों ओर हंगामा होते हुए भी आप सभी एक के अन्त में खो गये तो हंगामे के बीच भी एकान्त का अनुभव करेंगे। लेकिन ऐसा अभ्यास बहुत समय से चाहिए। तब ही चारों ओर के अनेक प्रकार के हंगामे होते हुए भी आप अपने को एकान्तवासी अनुभव करेंगे। वर्तमान समय ऐसे गुप्त शक्तियों द्वारा अनुभवी-मूर्त्त बनना अति आवश्यक है। आप सभी अभी भी अपने को बहुत बिजी समझते हो लेकिन अभी फिर भी बहुत फ्री हो। आगे चल और बिजी होते जायेंगे। इसलिए ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के स्व-अभ्यास, स्व-साधना अभी कर सकते हो। चलते-फिरते स्व-प्रति जितना भी समय मिले अभ्यास में सफल करते जाओ। दिन-प्रतिदिन वातावरण प्रमाण एमर्जेन्सी केसेज ज्यादा आयेंगे। अभी तो आराम से दवाई कर रहे हो। फिर तो एमर्जेन्सी केसेज में समय और शक्तियाँ थोड़े समय में ज्यादा केसेज करने पड़ेंगे। जब चैलेन्ज करते हो कि अविनाशी निरोगी बनने की एक ही विश्व की हास्पिटल है तो चारों ओर के रोगी कहाँ जायेंगे? एमर्जेन्सी केसेज की लाइन होगी। उस समय क्या करेंगे? अमर भव का वरदान तो देंगे ना। स्व अभ्यास के आक्सीजन द्वारा साहस का श्वास देना पड़ेगा। होपलेस केस अर्थात् चारो ओर के दिल शिकस्त के केसेज ज्यादा आयेंगे। ऐसी होपलेस आत्मओं को साहस दिलाना यही श्वास भरना है। तो फटाफट आक्सीजन देना पड़ेगा। उस स्व अभ्यास के आधार पर ऐसी आत्माओं को शक्तिशाली बना सकेंगे! इसलिए फुर्सत नहीं है, यह नहीं कहो। फुर्सत है तो अभी है फिर आगे नहीं होगी। जैसे लोगों को कहते हो फुर्सत मिलेगी नहीं, लेकिन फुर्सत करनी पड़ेगी। समय मिलेगा नहीं लेकिन समय निकालना है। ऐसे कहते हो ना! तो स्व-अभ्यास के लिए भी समय मिले तो करेंगे, नहीं। समय निकालना पड़ेगा। स्थापना के आदिकाल से एक विशेष विधि चलती आ रही है। कौस सी? फुरी-फुरी तालाब (बूंद-बूंद से तालाब) तो समय के लिए भी यही विधि है। जो समय मिले अभ्यास करते-करते सर्व अभ्यास स्वरूप सागर बन जायेंगे। सेकण्ड मिले वह भी अभ्यास के लिए जमा करते जाओ, सेकण्ड- सेकण्ड करते कितना हो जायेगा! इकट्ठा करो तो आधा घण्टा भी बन जायेगा। चलते-फिरते के अभ्यासी बनो। जैसे चात्रक एक-एक बूंद के प्यासे होते हैं। ऐसे स्व अभ्यासी चात्रक एक-एक सेकण्ड अभ्यास में लगावें तो अभ्यास स्वरूप बन ही जायेंगे।

स्व अभ्यास में अलबेले मत बनो। क्योंकि अन्त में विशेष शक्तियों के अभ्यास की आवश्यकता है। उसी प्रैक्टिकल पेपर्स द्वारा ही नम्बर मिलने हैं। इसलिए फर्स्ट डिवीजन लेने के लिए स्व अभ्यास को फास्ट करो। उसमें भी एकाग्रता के शक्ति की विशेष प्रैक्टिस करते रहो। हंगामा हो और आप एकाग्र हो। साइलेन्स के स्थान और परिस्थिति में एकाग्र होना यह तो साधारण बात है, लेकिन चारों प्रकार की हलचल के बीच एक के अन्त में खो जाओ अर्थात् एकान्तवासी हो जाओ। एकान्तवासी हो एकाग्र स्थिति में स्थित हो जाओ - यह है महारथियों का महान पुरूषार्थ। नये-नये बच्चों के लिए तो बहुत सहज साधन है। एक ही बात याद करो और एक ही बात सभी को सुनाओ। तो एक बात याद करना वा सुनाना मुश्किल तो नहीं है ना। बहुत बातें तो भूल जाते हो लेकिन एक बात तो नहीं भूलेगी ना। एक बात से बेड़ापार हो जायेगा। एक की याद में रहो, एक ही की महिमा करते रहो, एक के ही गीत गाते रहो। और एक का ही परिचय देते रहो। यह तो सहज है ना कि यह भी मुश्किल है। जहाँ एक है वहाँ एकरस स्थिति स्वत: बन जाती है। और चाहिए ही क्या! एकरस स्थिति ही चाहिए ना। तो बस, एक शब्द याद रखो। एक का गीत गाना है, एक को याद करना है, कितना सहज है? नये-नये बच्चों के लिए सहज शार्टकट रास्ता बता रहे हैं। तो जल्दी पहुँच जायेंगे। यही चाहते हो ना। आये पीछे हैं लेकिन जावें आगे तो यही शार्टकट रास्ता है, इससे चलो तो आगे पहुँच जायेंगे। माताओं को तो सब बातों में सहज चाहिए ना। क्योंकि बहुत थकी हुई हैं, जन्म-जन्म की, तो सहज चाहिए। कितने भटके हो? 63 जन्मों में कितने भटके को! तो भटकी हुई आत्माओं को सहज मार्ग चाहिए। सहज मार्ग अपनाने से मंज़िल पर पहुँच ही जायेंगे। समझा- अच्छा।

नये भी बैठे हैं और महारथी भी बैठे हैं। दोनों सामने हैं। सबसे ज्यादा समीप गुजरात है ना। समीप के साथ सहयोगी भी गुजरात वाले हैं। सहयोग में गुजरात का नम्बर राजस्थान से आगे हैं। आबू राजस्थान है? वैसे राजस्थान नज़दीक है ना। राजस्थान के राजे भी जागें तो कमाल करेंगे। अभी गुप्त हैं। फिर प्रत्यक्ष हो जायेंगे। गुजरात का जन्म कैसे हुआ, पता है? गुजरात को पहले सहयोग दिया गया। सहयोग के जल से बीज पड़ा हुआ है। तो फल भी सहयोग का ही निकलेगा ना। गुजरात को डायरेक्ट बापदादा के संकल्प के सहयोग का पानी मिला है। इसलिए फल भी सहयोग का ही निकलता है। समझा! गुजरात वाले कितने भाग्यवान हो! गुजरात में बापदादा ने सेन्टर खोला है। गुजरात ने नहीं खोला है। इसलिए न चाहते हुए भी सहज ही सहयोग का फल निकलता ही रहेगा। आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। किसी भी कार्य में आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। धरनी सहयोग के फल की है। अच्छा-

सभी स्व अभ्यास के चात्रकों को, सदा एकान्तवासी एकाग्रता की शक्ति- शाली आत्माओं को, सदा स्व अभ्यास के शक्तियों द्वारा सर्व को दिल शिकस्त से सदा दिल खुश बनाने वाले, सदा सर्व शक्तियों को प्रैक्टिकल में लगाने वाले, ऐसी श्रेष्ठ स्व अभ्यासी, स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, महावीरों को और नये-नये बच्चों को, सभी को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

एक आते और एक जाते। आने जाने का मेला है। बापदादा भी सभी बच्चों को देख खुश होते हैं। नये हैं, चाहे पुराने हैं, भाषा जानते हैं वा नहीं जानते हैं, मुरली समझते हैं वा नहीं समझते हैं, लेकिन हैं तो बाप के। फिर भी प्यार से पहुँच जाते हैं। बाप किस बात का भूखा है? प्यार का। समझदारी का भूखा नहीं। बाप प्यार देखते हैं, दिल का प्यार है! जितना ही भोले-भाले हैं उतना ही सच्चा प्यार है, चतुराई का प्यार नहीं है। इसलिए भोलेभाले बच्चे सबसे प्रिय हैं। जैसे नॉलेजफुल का टाइटिल है वैसे भोलानाथ का भी टाइटिल है, दोनों का यादगार है, नये-नये बच्चे भावना वाले अच्छे हैं। अच्छा

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

1. सदा अपने को डबल लाइट फरिश्ता समझते हो? फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। जितना-जितना हल्कापन होगा उतना स्वयं को फरिश्ता अनुभव करेंगे। फरिश्ता सदा चमकता रहेगा, चमकने के कारण सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करता है। ऐसे फरिश्ते - जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। देह के रिश्ते के आधार पर नहीं रहते, सेवा के सम्बन्ध के हिसाब से रहते हो। सम्बन्ध समझकर प्रवृत्ति में नहीं रहना है, सेवा समझकर रहना है। घर वहीं है, परिवार वही है, लेकिन सेवा का सम्बन्ध है। कर्मबन्ध के वशीभूत होकर नहीं रहते। सेवा के सम्बन्ध में क्या, क्यूँ नहीं होता। कैसी भी आत्माएँ हैं, सेवा का सम्बन्ध प्यारा है। जहाँ देह है वहाँ विकार हैं। देह के सम्बन्ध से विकार आते हैं, देह के सम्बन्ध नहीं तो विकार नहीं। किसी भी आत्मा को सेवा के सम्बन्ध से देखो तो विकारों की उत्पत्ति नहीं होगी। ऐसे फरिश्ते होकर रहो। रिश्तेदार होकर नहीं। जहाँ सेवा का भाव रहता है वहाँ सदा शुभ भावना रहती है, और कोई भाव नहीं। इसको कहा जाता है - अति न्यारा और अति प्यारा, कमल समान। सर्व पुरूषों से उत्तम फरिश्ता बनो तब देवता बनेंगे।

2. सभी बेगमपुर के बादशाह, गमों से परे सुख के संसार का अनुभवी समझते हुए चलते हो? पहले दु:ख के संसार के अनुभवी थे, अभी दु:ख के संसार से निकल सुख के संसार के अनुभवी बन गये। अभी एक सुख का मंत्र मिलने से, दु:ख समाप्त हो गया। सुखदाता की सुख स्वरूप आत्माएँ हैं, सुख के सागर बाप के बच्चे हैं, यही मंत्र मिला है। जब मन बाप की तरफ लग गया तो दु:ख कहां से आया! जब मन को बाप के सिवाए और कहाँ लगाते हो तब मन का दु:ख होता। मन्मनाभवहैं तो दु:ख नहीं हो सकता। तो मन बाप की तरफ है या और कहाँ हैं? उल्टे रास्ते पर लगता है, तब दु:ख होता है। जब सीधा रास्ता है तो उल्टे पर क्यों जाते हो? जिस रास्ते पर जाने की मना है उस रास्ते पर कोई जाए तो गवर्मेन्ट भी दण्ड डालेगी ना। जब रास्ता बन्द कर दिया तो क्यों जाते हो? जब तन भी तेरा, मन भी तेरा, धन भी तेरा, मेरा है ही नहीं तो दु:ख कहाँ से आया। तेरा है तो दु:ख नहीं। मेरा है तो दु:ख है। तेरा-तेरा करते तेरा हो गया।

3. ‘सदा एक बल और एक भरोसा’ - इसी स्थिति में रहते हो? एक में भरोसा अर्थात् बल की प्राप्ति। ऐसे अनुभव करते हो? निश्चयबुद्धि विजयी, इसी को दूसरे शब्दों में कहा जाता है - एक बल, एक भरोसा। निश्चय बुद्धि की विजय न हो यह हो नहीं सकता। अपने में ही जरा-सा संकल्प मात्र भी संशय आता कि यह होगा या नहीं होगा, तो विजय नहीं। अपने में बाप में और ड्रामा में पूरा-पूरा निश्चय हो तो कभी विजय न मिले, यह हो नहीं सकता। अगर विजय नहीं होती तो जरूर कोई न कोई पाईन्ट में निश्चय की कमी है। जब बाप में निश्चय है तो स्वयं में भी निश्चय है। मास्टर है ना। जब मास्टर सर्वशक्तिवान हैं तो ड्रामा की हर बात को भी निश्चयबुद्धि होकर देखेंगे! ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चों के अन्दर सदा यही उमंग होगा कि मेरी विजय तो हुई पड़ी है। ऐसे विजयी ही - विजय माला के मणके बनते हैं। विजय उनका वर्सा है। जन्म-सिद्ध अधिकार में यह वर्सा प्राप्त हो जाता है।

माताओं से

बापदादा भी माताओं को सदा ही नमस्कार करते हैं क्योंकि माताओं ने सदा सेवा में आगे कदम रखा है। बापदादा माताओं के गुण गाते हैं - कितनी श्रेष्ठ माताएँ बन गई, जो बापदादा भी देख हर्षित होते हैं। बस, सदा अपने इसी भाग्य को स्मृति में रख खुश रहो। मन में खुशी का गीत सदा बजता रहे और माताओं को काम ही क्या है! ब्राह्मण बन गये तो गाना और नाचना यही काम है। मन से नाचो, मन से गीत गाओ। एक-एक जगत माता अगर एक-एक दीपक जगाये तो कितने दीपक जग जायेंगे! जग की मातायें जग के दीपक जगा रही हो ना। दीपक जगते-जगते दीपमाला हो ही जायेगी। अच्छा –

प्रश्न:- सेवा का सहज साधन अथवा सर्व को आकर्षित करने का सहज साधन वा पुरूषार्थ कौनसा है?

उत्तर:- हर्षितमुख चेहरा! जो सदा हर्षित रहता वह स्वत: ही सर्व को आकर्षित करता है। और सहज ही सेवा के निमित्त भी बन जाता है। हर्षितमुखता खुशी की निशानी है। खुशी का चेहरा देख स्वत: पूछेंगे क्या पाया, क्या मिला! तो सदा खुशी में रहो। क्या थे, क्या बन गये, इससे ही सेवा होती रहेगी।

प्रश्न:- तिलक का अर्थ क्या है? किस तिलक को धारण करो तो सदा नशे और खुशी में रहेंगे?

उत्तर:- तिलक का अर्थ है - स्मृति स्वरूप। तो सदा स्मृति रहे कि हम तख्तनशीन हैं। हम वह सिकीलधी आत्मायें हैं जो प्रभु तख्त के अधिकारी बनी हैं। इस तिलक को धारण करने से सदा खुशी और नशे में रहेंगे। वैसे भी कहा जाता है - तख्त और बख्त। तख्तनशीन बनने का बख्त अर्थात् भाग्य मिला। तो सदा श्रेष्ठ तख्त और बख्त वाली आत्माएँ हैं, यही नशा और खुशी सदा रहे।



14-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


प्रभु परिवार - सर्वश्रेष्ठ परिवार

प्रभु रत्नों के प्रति भोलानाथ शिवबाबा बोले:-

आज बापदादा अपने श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार को देख रहे हैं। ब्राह्मण परिवार कितना ऊँचे ते ऊँचा परिवार है। उसको सभी अच्छी तरह से जानते हो! बापदादा ने सबसे पहले परिवार के प्यारे सम्बन्ध में लाया। सिर्फ श्रेष्ठ आत्मा हो, यह ज्ञान नहीं दिया लेकिन श्रेष्ठ आत्मा, बच्चे हो। तो बाप और बच्चे के सम्बन्ध में लाया। जिस सम्बन्ध में आने से आपस में भी पवित्र सम्बन्ध भाई-बहन का जुटा। जहाँ बापदादा, भाई-बहन का सम्बन्ध जुटा तो क्या हो गया - प्रभु परिवार। कभी स्वप्न में भी ऐसे भाग्य को सोचा था कि साकार रूप से डायरेक्ट प्रभु परिवार में वारिस बन वर्से के अधिकारी बनेंगे! वारिस बनना सबसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ भाग्य है। कभी सोचा था कि स्वयं बाप हम बच्चों के लिए हमारे समान साकार रूपधारी बन बाप और बच्चे का वा सर्व सम्बन्धों का अनुभव करायेंगे! साकार रूप में प्रभु पालना लेंगे! यह कभी संकल्प में भी नहीं था। लेकिन अभी अनुभव कर रहे हो ना! यह सब अनुभव करने का भाग्य तब प्राप्त हुआ जब प्रभु परिवार के बने। तो कितने ऊँचे परिवार के अधिकारी बच्चे बने। कितनी पवित्र पालना में पल रहे हो! कैसे अलौकिक प्राप्तियों के झूले में झूल रहे हो! यह सब अनुभव करते हो ना। परिवार बदल गया। युग बदल गया। धर्म, कर्म सब बदल गया। युग परिवर्तन होने से दु:ख के संसार से सुखों के संसार में आ गये। साधारण आत्मा से पुरूषोत्तम बन गये। 63 जन्म कीचड़ में रहे और अभी कीचड़ में कमल बन गये। प्रभु परिवार में आना अर्थात् जन्म-जन्मान्तर के लिए तकदीर की लकीर श्रेष्ठ बन जाना। प्रभु परिवार, परिवार अर्थात् वार से परे हो गये। कभी भी प्रभु बच्चों पर वार नहीं हो सकता। प्रभु परिवार का बने, सदा के लिए सर्व प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो गये। ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान बन गये जो प्रकृति भी आप प्रभु बच्चों की दासी बन सेवा करेगी। प्रकृति आप प्रभु परिवार को श्रेष्ठ समझ आपके ऊपर जन्म-जन्मान्तर के लिए चंवर (पंखा)झुलाती रहेगी। श्रेष्ठ आत्माओं के स्वागत में, रिगार्ड में चंवर झुलाते हैं ना। प्रकृति सदाकाल के लिए रिगार्ड देती रहेगी। प्रभु परिवार का अभी भी सर्व आत्माओं को स्नेह है। उसी स्नेह के आधार पर अभी तक गायन और पूजन करते रहते हैं। प्रभु परिवार के चरित्रों का अभी भी कितना बड़ा यादगार शास्त्र - भागवत’, प्यार से सुनते और सुनाते रहते हैं। प्रभु परिवार का शिक्षक और गाडली स्टूडेन्ट लाइफ का, पढ़ाई का यादगार शास्त्र -गीता’, कितने पवित्रता से विधिपूर्वक सुनते और सुनाते हैं। प्रभु परिवार का यादगार आकाश में भी सूर्य, चन्द्रमा और लकी सितारों के रूप में मनाते और पूजते रहते हैं। प्रभु परिवार बाप के दिलतख्तनशीन बनते, ऐसा तख्त सिवाए प्रभु परिवार के और किसको भी प्राप्त हो नहीं सकता। प्रभु परिवार की यही विशेषता है। जितने भी बच्चे हैं सब बच्चे तख्तनशीन बनते हैं। और कोई भी राज्य परिवार में सब बच्चे तख्तनशीन नहीं होते हैं। लेकिन प्रभु के बच्चे सब अधिकारी हैं। इतना श्रेष्ठ और बड़ा तख्त सारे कल्प में देखा? जिसमें सभी समा जाएँ। प्रभु परिवार ऐसा परिवार है जो सभी स्वराज्य अधिकारी होते। सभी को राजा बना देता। जन्म लेते ही स्वराज्य का तिलक बापदादा सभी बच्चों को देते हैं। प्रजा तिलक नहीं देते। राज्य तिलक देते हैं। महिमा भी राज्य तिलक की है ना। राज-तिलक दिवस विशेष मनाया जाता है। आप सबने अपना राज्य तिलक दिवस मनाया है। या अभी मनाना है। मना लिया है ना। खुशी की निशानी, भाग्य की निशानी, संकट दूर होने की निशानी -तिलकहोता है। जब कोई किसी कार्य पर जाते हैं, कार्य सफल रहे उसके लिए परिवार वाले तिलक लगाकर भेजते हैं। आप सबको तो तिलक लगा हुआ है ना। तिलकधारी, तख्तधारी, विश्वकल् याण के ताजधारी बन गये हो ना। भविष्य का ताज और तिलक इसी जन्म के प्राप्ति की प्रालब्ध है। विशेष प्राप्ति का समय वा प्राप्तियों की खान प्राप्त होने का समय अभी है। अभी नहीं तो भविष्य प्रालब्ध भी नहीं। इसी जीवन का गायन है - दाता के बच्चों को, वरदाता के बच्चों को अप्राप्त नहीं कोई वस्तु। भविष्य में फिर भी एक अप्राप्ति तो होगी ना। बाप का मिलन तो नहीं होगा ना। तो सर्व प्राप्तियों का जीवन ही -ईश्वरीय परिवारहै। ऐसे परिवार में पहुँच गये हो ना। समझते हो ना ऐसे ऊँचे परिवार के हैं। जिसकी महिमा करें तो अपने रात-दिन बीत जाएँ। देखो भक्तों को कीर्तन गाते-गाते कितने दिन और रात बीत जाते हैं। अभी तक भी गा रहे हैं। तो ऐसा नशा और खुशी सदा रहती है? ‘‘मैं कौन’’! यह पहेली सदा याद रहती है। विस्मृति-स्मृति के चक्र में तो नहीं आते हो ना। चक्र से तो छूट गये ना। स्वदर्शन चक्रधारीबनना अर्थात् अनेक हद के चक्करों से छूट जाना। ऐसे बन गये हो ना। सभी स्वदर्शन चक्रधारी हो ना! मास्टर होना! तो मास्टर सब जानते हैं! रोज अमृतवेले ‘‘मैं कौन’’ - यह स्मृति में रखो तो सदा समर्थ रहेंगे। अच्छा-

बापदादा बेहद के परिवार को देख रहे हैं। बेहद का बाप बेहद के परिवार को बेहद की याद-प्यार देते हैं।

सदा श्रेष्ठ परिवार के नशे में रहने वाले, प्रभु परिवार के महत्त्व को जान, महान बनने वाले, सर्व प्राप्तियों के भण्डार, श्रेष्ठ राज्य भाग्य प्राप्त करने वाले प्रभु रत्नों को याद-प्यार और नमस्ते।’’

(ग्याना के अंकल और आंटी जो आजकल देहली में ट्रांसफर होकर आये हैं, वे बापदादा से मिलने के लिए आये थे।)

सर्विसएबल बच्चों का बापदादा मिलन के साथ स्वागत कर रहे हैं। जितना पल-पल याद करते आये हो उसके रिटर्न में बापदादा नयनों की पलकों में समाए हुए बच्चों का स्वागत कर रहे हैं। एक बाप के गुण गाने वाले बच्चों को देख बापदादा भी बच्चों की विशेषता के गुण गाते हैं। निशदिन, निशपल, गीत गाते रहते हो ना। जब बच्चे गीत गाते तो बाप क्या करते? जब कोई अच्छा गीत गाता है तो सुनने वाले क्या करते हैं? न चाहते हुए भी नाचने लग जाते हैं। चाहे नाचना आवे या न आवे लेकिन, बैठे-बैठे भी नाचने लग जाते हैं। तो बच्चे जब स्नेह के गीत गाते हैं तो बापदादा भी खुशी में नाचते हैं ना। इसीलिए शंकर डांस बहुत मशहूर हैं। सेवा भी तो नाचना है ना। जिस समय सर्विस करते हो उस समय मन क्या करता है? नाचता है ना। तो सेवा करना भी नाचना ही है। अच्छा-

बापदादा सदा बच्चों की विशेष विशेषता को देखते हैं। जन्मते ही विशेष 3 तिलक बापदादा द्वारा मिले हैं। कौन से? ताज, तख्त तो हैं ही लेकिन 3 तिलक विशेष हैं। एक स्वराज्य का तिलक तो मिला ही है। दूसरा जन्मते ही सर्विसएबल का तिलक मिला। तीसरा जन्मते ही सर्व परिवार के, बापदादा के स्नेही और सहयोगीपन का तिलक। तीनों तिलक जन्मते ही मिले ना। तो त्रिमूर्ति तिलकधारी हो। ऐसे विशेष सेवाधारी सदा अपने को समझते हो। अनेक आत्माओं को उमंग उत्साह दिलाने के निमित्त बनने की सेवा ड्रामा में मिली हुई है। अच्छा।

जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना बाप भी तो याद करते हैं। सबसे ज्यादा अखण्ड अविनाशी बाप की याद है। बच्चे और कार्य में भी बिजी हो जाते हैं लेकिन बाप का तो काम ही यह है। अमृतवेले से लेकर सबको जगाने का काम शुरू करते हैं। देखो कितने बच्चों को जगाना पड़ता है और फिर देश-विदेश में, एक स्थान पर भी नहीं हैं। फिर भी बच्चे पूछते, सारा दिन क्या करते!

बच्चों के बाद फिर भक्तों का करते, फिर साइंस वालों को प्रेरणा देते। सभी बच्चों की देख-रेख तो करनी पड़े। चाहे ज्ञानी हैं, चाहे अज्ञानी हैं लेकिन कई प्रकार से सहयोगी तो हैं ना। कितने प्रकार के बच्चों की सेवा है। सबसे ज्यादा बिजी कौन है? सिर्फ अन्तर यह है, शरीर का बन्धन नहीं है। अभी कुछ टाइम तो आप सब भी बाप समान बनेंगे ही। मूलवतन में रहेंगे। यह भी आशा सभी की पूरी होगी। अच्छा

मधुबन निवासियों के साथ - मधुबन निवासियों की महिमा तो जानते ही हो। जो मुधबन की महिमा है वही मधुबन निवासियों की महिमा है। हर पल समीप साकार में रहना इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है! दर पर बैठे हो, घर में बैठे हो, दिल पर बैठे हो। मधुबन निवासियों को मेहनत करने की आवश्यक्ता नहीं, योग लगाने की आवश्यक्ता है क्या! योग लगा हुआ ही रहता है। लगे हुए को लगाने की आवश्यकता नहीं। स्वत: योगी, निरन्तर योगी। जैसे ट्रेन में इंजन लगी हुई है, सभी डिब्बे पट्टे पर हैं तो स्वत: चलते रहते हैं, चलाना नहीं पड़ता है। ऐसे आप भी मधुबन के पट्टे पर हो, इंजन लगी हुई है तो स्वत: चलते रहेंगे। मधुबन निवासी अर्थात् मायाजीत। माया आने की कोशिश करेगी लेकिन जो बाप की कशिश में रहते हैं वह सदा मायाजीत रहेंगे। माया की कशिश दूर से ही समाप्त हो जायेगी। सेवा तो सभी बहुत अच्छी करते हैं। सेवा के लिए एक एग्जाम्पल हो। कोई कहाँ भी चारों ओर सेवा में थोड़ा भी नीचे ऊपर करते हैं तो सभी मधुबन वालों का ही दृष्टान्त देते हैं। मधुबन में कितनी अथक सेवा प्यार से घर समझकर करते हैं। यह सभी मानते हैं। जैसे सेवा में सभी नम्बरवन हो, 100 मार्क्स ली हैं ऐसे सब सब्जेक्ट में भी 100 मार्क्स चाहिए। आप लोग बोर्ड पर लिखते हो ना - हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस तीनों ही मिलती है। तो यह भी सब सब्जेक्ट में मार्क्स चाहिए। सबसे ज्यादा सुनते मधुबन वाले हैं। पहला-पहला ताजा माल तो मधुबन वाले खाते हैं। दूसरे तो एक टर्न में एक बारी विशेष ब्रह्मा भोजन खाते। आप तो रोज खाते। सूक्ष्म भोजन, स्थूल भोजन सब गर्म, ताजा मिलता है। अच्छा - नई तैयारी क्या कर रहे हो? घर को तो अच्छा प्यार से सजा रहे हो। मधुबन की यह विशेषता है हर बार कोई न कोई नई एडीशन हो जाती है। जैसे स्थूल में नवीनता देखते ऐसे चैतन्य में भी हर बार नवीनता देख वर्णन करें कि इस बार विशेष मधुबन में इस प्राप्ति की लहर देखी। भिन्न-भिन्न लहरें हैं ना। कभी विशेष आनन्द की लहर हो, कभी प्यार की, कभी ज्ञान के विशेषताओं की.. हरेक को यही लहर दिखाई दे। जैसे सागर की लहरों में कोई जाता तो लहराना ही पड़ता, नहीं तो डूब जायेगा। तो यह लहरें स्पष्ट दिखाई दें। इस कानफ्रीन्स में विशेष क्या करेंगे? वी.आई.पीज. आयेंगे, पेपर वाले आयेंगे, वर्कशाप होंगी, यह तो होगा लेकिन आप सब विशेष क्या करेंगे? जैसे स्थूल दिलवाड़ा है, उसकी विशेषता क्या है? हरेक कमरे की डिजाइन अलग-अलग वैरायटी है। हर कमरे की अपनी-अपनी विशेषता है। इसलिए यह मन्दिर सब मन्दिरों से न्यारा है। मूर्तियाँ तो औरों में भी होती है लेकिन इस मन्दिर में जहाँ जाओ वहाँ विशेष कारीगरी है। ऐसे चैतन्य दिलवाड़ा मन्दिर में भी हम मूर्तियों की विशेषता अपनी-अपनी दिखाई दे। जिसको देखें, उसकी एक दो से आगे विशेष विशेषता दिखाई दे। जैसे वहाँ कहते कमाल है बनाने वाले की। ऐसे यहाँ एक-एक की विशेषता की कमाल वर्णन करें। आप लोग इस बात की मीटिंग करो। कोई बड़ी बात नहीं है कर सकते हो। जैसे सतयुग में देवताएँ सिर्फ निमित्त मात्र टीचर द्वारा थोड़ा-सा सुनेंगे लेकिन स्मृति बहुत तेज होगी, याद करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे सुना हुआ ही है, वह सिर्फ फ्रेश हो रहा है। मधुबन वालों के लिए हुआ पड़ा है। सिर्फ थोड़ा-सा दृढ़ संकल्प का इशारा है बस। संकल्प भी बहुत अच्छे-अच्छे करते हो लेकिन उसमें दृढ़ता को बार-बार अण्डरलाइन करो। अच्छा!

सेवाधारियों से- जो सेवा करता वह मेवा खाता। मेवा खाने वाले सदा तन्दरूस्त रहते हैं। सूखा मेवा खाने वाले नहीं, ताजा मेवा खाने वाले। सेवाधारी सो भाग्य अधिकारी। कितना बड़ा भाग्य है। यादगार चित्रों के पास जाकर भक्त लोग सेवा करते हैं। उस सेवा को महापुण्य समझते हैं। और आप कहाँ सेवा करते हो! चैतन्य महातीर्थ पर। वे सिर्फ तीर्थों पर जाकर चक्कर लगाकर आते तो भी महान आत्मा गाये जाते। आप तो महान तीर्थ पर सेवा कर महान भाग्यशाली बन गये। सेवा में तत्पर रहने वाले के पास माया आ नहीं सकती। सेवाधारी माना मन से भी सेवाधारी, तन से भी सेवा में बिजी रहने वाले। तन के साथ मन भी बिजी रहे तो माया नहीं आयेगी। तन से स्थूल सेवा करो और मन से वातावरण, वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करो। डबल सेवा करो, सिंगल नहीं। जो डबल सेवाधारी होगा उसको प्राप्ति भी इतनी होगी। मन का भी लाभ, तन का भी लाभ, धन तो अकीचार (अथाह) मिलना ही है। इस समय भी सच्चे सेवाधारी कभी भूखे नहीं रह सकते। दो रोटी जरूर मिलेगी। तो सभी ने सेवा की लाटरी में अपना नम्बर ले लिया। जहाँ भी जाओ, जब भी जाओ यह खुशी सदा साथ रहे क्योंकि बाप तो सदा साथ है। खुशी में नाचते-नाचते सेवा का पार्ट बजाते चलो। अच्छा-

प्रश्न:- संगमयुग की कौन-सी विशेषता है जो सारे कल्प में नहीं हो सकती?

उत्तर:- संगमयुग पर ही हरेक को ‘‘मेरा बाबा’’ कहने का अधिकार है। एक को ही सब मेरा बाबाकहते हैं। मेरा कहना अर्थात् अधिकारी बनना। संगम पर ही हरेक को एक बाप से मेरे-पन का अनुभव होता है। जहाँ मेरा बाबा कहा वहाँ वर्से के अधिकारी बन गये। सब कुछ मेरा हुआ। हद का मेरा नहीं, बेहद का मेरा। तो बेहद के मेरे-पन की खुशी में रहो।

प्रश्न:- समीप आत्मा की मुख्य निशानी क्या होगी?

उत्तर:- समीप आत्माएं अर्थात् सदा बाप के समान हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म करने वाली। जो समीप होंगे वह समान भी अवश्य होंगे। दूर वाली आत्माएँ थोड़ी अंचली लेने वाली होंगी। समीप वाली आत्माएँ पूरा अधिकार लेने वाली होंगी। तो जो बाप के संकल्प, बोल, वह आपके। इसको कहा जाता है -समीप। अच्छा


 

19-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


परमात्म प्यार - निःस्वार्थ प्यार

प्यार के सागर शिवबाबा अपने स्नेही बच्चों प्रति बोले-

आज स्नेह के सागर बाप अपने स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। स्नेही सब बच्चे हैं फिर भी नम्बरवार हैं। एक है स्नेह करने वाले। दूसरे हैं स्नेह निभाने वाले। तीसरे हैं सदा स्नेह स्वरूप बन स्नेह के सागर में समाए हुए। जिसको लवलीन बच्चेकहते। लवली और लवलीन दोनों में अन्तर है। बाप का बनना अर्थात् स्नेही, लवलीन बनना। सारे कल्प में कभी भी और किस द्वारा भी यह ईश्वरीस स्नेह, परमात्म प्यार प्राप्त हो नहीं सकता। परमात्म प्यार अर्थात् नि:स्वार्थ प्यार। परमात्म प्यार - इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है। परमात्म प्यार जन्म-जन्म की पुकार का प्रत्यक्ष फल है। परमात्मा प्यार नये जीवन का जीयदान है। परमात्म प्यार नहीं तो जीवन नीरस, सूखे गन्ने के मुआफिक है। परमात्म प्यार बाप के समीप लाने का साधन है। परमात्म प्यार सदा बापदादा के साथ अर्थात् परमात्मा को साथी अनुभव कराता है। परमात्म प्यार मेहनत से छुड़ाए सहज और सदा के योगी, योगयुक्त स्थिति का अनुभव कराता है। परमात्म प्यार सहज ही तीन मंजल पार करा देता है।

1. देह-भान की विस्मृति। 2. देह के सर्व सम्बन्धें की विस्मृति। 3. देह की, देह के दुनिया की अल्पकाल की प्राप्ति की आकर्षणमय पदार्थों का आकर्षण सहज समाप्त हो जाता है। त्याग करना नहीं पड़ता लेकिन श्रेष्ठ सर्व प्राप्ति का भाग्य स्वत: ही त्याग करा देता है। तो आप प्रभु प्रेमी बच्चों ने त्याग किया वा भाग्य लिया? क्या त्याग किया? अनेक चत्तियाँ लगा हुआ वस्त्र, जड़जड़ीभूत पुरानी अन्तिम जन्म की देह का त्याग, यह त्याग है? जिसे स्वयं भी चलाने में मजबूर हो, उसके बदले फरिश्ता स्वरूप लाइट का आकार जिसमें कोई व्याधि नहीं, कोई पुराने संस्कार स्वभाव का अंश नहीं, कोई देह का रिश्ता नहीं, कोई मन की चंचलता नहीं, कोई बुद्धि के भटकने की आदत नहीं - ऐसा फरिश्ता स्वरूप, प्रकाशमय काया प्राप्त होने के बाद पुराना छोड़ना, यह छोड़ना हुआ? लिया क्या और दिया क्या? त्याग है वा भाग्य है? ऐसे ही देह के स्वार्था सम्बन्ध, सुख-शान्ति का चैन छीनने वाले विनाशी सम्बन्धी, अभी भाई है अभी स्वार्थवश दुश्मन हो जाते, दु:ख और धोखा देने वाले हो जाते, मोह की रस्सियों में बांधने वाले, ऐसे अनेक सम्बन्ध छोड़ एक में सर्व सुखदाई सम्बन्ध प्राप्त करते तो क्या त्याग किया? सदा लेने वाले सम्बन्ध छोड़े, क्योंकि सभी आत्मायें लेती ही हैं, देते नहीं। एक बाप ही दातापन का प्यार देने वाला है, लेने की कोई कामना नहीं। चाहे कितनी भी धर्मात्मा, महात्मा, पुण्य आत्मा हो, गुप्त दानी हो, फिर भी लेता है, दाता नहीं है। स्नेह भी शुभ लेने की कामना वाला होगा। बाप तो सम्पन्न सागर है इसलिए वह दाता है! परमात्म प्यार ही दातापन का प्यार है। इसलिए उनको देना नहीं, लेना है। ऐसे ही विनाशी पदार्थ विषय भोग अर्थात् विष भरे भोग हैं। मेरे-मेरे की जाल में फँसाने वाले विनाशी पदार्थ भोग-भोग कर क्या बन गये? पिजड़े की पंछी बन गये ना। ऐसे पदार्थ, जिसने कखपति बना दिया, उसके बदले सर्वश्रेष्ठ पदार्थ देते जो पद्मापद्मपति बनाने वाले हैं। तो पद्म पाकर, कख छोड़ना, क्या यह त्याग हुआ! परमात्म प्यार भाग्य देने वाला है। त्याग स्वत: ही हुआ पड़ा है। ऐसे सहज सदा के त्यागी ही श्रेष्ठ भाग्यवानबनते हैं।

कभी-कभी बाप के आगे वई लाडले ही कहें, लाड प्यार दिखाते हैं कि हमने इतना त्याग किया, इतना छोड़ा फिर भी ऐसे क्यों! बापदादा मुस्कराते हुए बच्चों को पूछते हैं कि छोड़ा क्या और पाया क्या? इसकी लिस्ट निकालो। कौन सा तरफ भारी है - छोड़ने का वा पाने का? आज नहीं तो कल तो छोड़ना ही है, मजबूरी से भी छोड़ना ही पड़ेगा, अगर पहले से ही समझदार बन, प्राप्त कर फिर छोड़ा तो वह छोड़ना हुआ क्या! भाग्य के वर्णन के आगे त्याग कौड़ी है। भाग्य हीरा है। ऐसे समझते हो ना! वा बहुत त्याग किया है? बहुत छोड़ा है? छोड़ने वाले हो या लेने वाले हो? कभी भी स्वप्न में भी ऐसा संकल्प किया तो क्या होगा? अपने भाग्य की रेखा, मैंने किया, मैंने छोड़ा, इससे लकीर को मिटाने के निमित्त बन जाते। इसलिए स्वप्न में भी कब ऐसा संकल्प नहीं करना।

प्रभु-प्यार सदा समर्पण भाव स्वत: ही अनुभव कराता है। समर्पण भाव बाप समान बनाता। परमात्म प्यार बाप के सर्व खज़ानों की चाबी है क्योंकि प्यार वा स्नेह अधिकारी आत्मा बनाता है। विनाशी स्नेह, देह का स्नेह राज्य भाग्य गँवाता है। अनेक राजाओं ने विनाशी स्नेह के पीछे राज्य भाग्य गँवाया। विनाशी स्नेह भी राज्य भाग्य से श्रेष्ठ माना गया है। परमात्म प्यार, गँवाया हुआ राज्य भाग्य सदाकाल के लिए प्राप्त कराता है। डबल राज्य अधिकारी बनाता है। स्वराज्य और विश्व का राज्य पाते। ऐसे परमात्म प्यार प्राप्त करने वाली विशेष आत्मायें हो। प्यार करने वाले नहीं लेकिन प्यार में सदा समाये हुए लवलीन आत्माएं बनो। समाये हुए समान हैं- ऐसे अनुभव करते हो ना!

नये-नये आये हैं तो नये आगे जाने के लिए सिर्फ एक ही बात का ध्यान रखो। सदा प्रभु प्यार के प्यासे नहीं लेकिन प्रभु प्यार के भी पात्र बनो। पात्र बनना ही सुपात्र बनना है। सहज है ना। तो ऐसे आगे बढ़ो। अच्छा!

ऐसे पात्र सो सुपात्र बच्चों को, प्रभु प्रेम की अधिकारी आत्माओं को, प्रभु प्यार द्वारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्माओं को, सदा स्नेह के सागर में समाये हुए बाप समान बच्चों को, सर्व प्राप्तियों के भण्डार सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ

प्रश्न:- महा-तपस्या कौन सी है? जिस तपस्या का बल विश्व को परिवर्तन कर सकता है?

उत्तर:- एक बाप दूसरा न कोई’ - यह है महा-तपस्या। ऐसी स्थिति में स्थित रहने वाले महातपस्वी हुए। तपस्या का बल श्रेष्ठ बल गाया जाता है। जो इस तपस्या में रहते - एक बाप दूसरा न कोई’, उनमें बहुत बल है। इस तपस्या का बल विश्व परिवर्तन कर लेता है। हठयोगी एक टांग पर खड़े होकर तपस्या करते हैं लेकिन आप बच्चे एक टांग पर नहीं, एक की स्मृति में रहते हो, बस - एक ही एक। ऐसी तपस्या विश्व-परिवर्तन कर देगी। तो ऐसे विश्वकल् याणकारी अर्थात् महान तपस्वी बनो।



21-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


तुरंत दान महापुण्य का रहस्य

सर्व समर्थ अव्यक्त बापदादा अपने शक्तिशाली समर्थ बच्चों के प्रति बोले:-

आज विधाता, वरदाता बाप अपने चारों ओर के अति स्नेही सेवाधारी बच्चों को देख रहे थे। चारों ओर के समर्थ बच्चे अपने स्नेह की विशेषता द्वारा दूर होते भी समीप हैं। स्नेह के सम्बन्ध द्वारा, बुद्धि की स्पष्टता और स्वच्छता द्वारा समीप का, सन्मुख का अनुभव कर रहे हैं। तीसरे नेत्र अर्थात् दिव्यता के द्वारा उन्हों के नयन बुद्धि रूपी टी.वी. में दूर के दृश्य स्पष्ट अनुभव कर रहे हैं। जैसे इस विनाशी दुनिया के विनाशी साधन टी.वी. में विशेष प्रोग्राम्स के समय सब स्विच आन कर देते हैं। ऐसे बच्चे भी विशेष समय पर स्मृति का स्विच आन कर बैठे हैं। सभी दूर-दर्शन द्वारा दूर के दृष्य को समीप अनुभव करने वाले बच्चों को बापदादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक ही समय पर डबल सभा को देख रहे हैं।

आज विशेष वतन में ब्रह्मा बाप बच्चों को याद कर रहे थे। क्योंकि सभी बच्चे जब से जो ब्राह्मण जीवन में चल रहे हैं उन ब्राह्मणों की, समय प्रमाण मंज़िल अर्थात् सम्पूर्णता की स्थिति तक किस गति से चल रहे हैं, वह रिजल्ट देख रहे थे। चल तो सब रहे हैं लेकिन गति (स्पीड) क्या है! तो क्या देखा! गति में सदैव एक रफ्तार तीव्र हो अर्थात् सदा तीव्रगति हो, ऐसे कोई में भी कोई देखे। ब्रह्मा बाप ने गति को देख बच्चों की तरफ से प्रश्न किया कि नॉलेजफुल होते अर्थात् तीनों कालों को जानते हुए, पुरूषार्थ और परिणाम को जानते हुए, विधि और सिद्धि को जानते हुए, फिर भी सदाकाल की तीव्रगति क्यों नहीं बना सकते! क्या उत्तर दिया होगा? कारण को भी जानते हो, निवारण की विधि को भी जानते हो फिर भी कारण को निवारण में बदल नहीं सकते।

बाप ने मुस्कराते हुए ब्रह्मा बाप से बोला कि बहुत बच्चों की एक आदत बहुत पुरानी और पक्की है - वह कौन सी? क्या करते! बाप प्रत्यक्ष फल अर्थात् ताजा फल खाने को देते हैं लेकिन आदत से मजबूर उस ताजे फल को भी सूखा बनाके स्वीकार करते हैं। कर लेंगे, हो जायेंगे, होना तो जरूर है, बनना तो पहला नम्बर ही है, आना तो माला में ही है - ऐसे सोचते-सोचते प्लैन बनाते-बनाते, प्रत्यक्ष फल को भविष्य का फल बना देते हैं। करेंगे, माना भविष्य फल। सोचा, किया और प्रत्यक्ष फल खाया। चो स्व के प्रति चाहे सेवा के प्रति, प्रत्यक्ष फल वा सेवा का ताजा मेवा कम खाते हैं। तो शक्ति किससे आती है? ताजे फल से वा सूखे से? कईयों की आदत होती है - खा लेंगे - ऐसे करते ताजे को सूखा फल बना देते हैं। ऐसे ही यहाँ भी कहते - यह होगा तो फिर करेंगे, यह ज्यादा सोचते हैं। सोचा, डायरेक्शन मिला और किया। यह न करने से डायरेक्शन को भी ताजे से सूखा बना देते हैं। फिर सोचते हैं कि किया तो डायरेक्शन प्रमाण लेकिन रिजल्ट इतनी नहीं निकली। क्यों? समय पकड़ने से वेला के प्रमाण रेखा बदल जाती है। कोई भी भाग्य की रेखा वेला के प्रमाण ही सुनाते वा बनाते हैं। इस कारण वेला बदलने से वायुमण्डल, वृत्ति, वायब्रेशन सब बदल जाता है। इसलिए गाया हुआ है - तुरत दान महापुण्य। डायरेक्शन मिला और उसी वेला में उसी उमंग से किया। ऐसी सेवा का ताजा मेवा मिलता है। जिसको स्वीकार करने अर्थात् प्राप्त करने से शक्तिशाली आत्मा बन स्वत: ही तीव्रगति में चलते रहते। सभी फल खाते हो लेकिन कौन सा फल खाते हो यह चेक करो।

ब्रह्मा बाप सभी बच्चों को ताजे फल द्वारा शक्तिशाली आत्मा बनाए सदा तीव्रगति से चलने का संकल्प देते हैं। सदा ब्रह्मा बाप के इस संकल्प को स्मृति में रखते हुए, हर समय हर कर्म का श्रेष्ठ और ताजा फल खाते रहो। तो कभी भी किसी भी प्रकार की कमज़ोरी वा व्याधि आ नहीं सकती है। ब्रह्मा बाप मुस्करा रहे थे। जैसे वर्तमान समय के विनाशी डाक्टर्स भी क्या राय देते हैं! सब ताजा खाओ। जला करके, भून करके नहीं खाओ। रूप बदलकर नहीं खाओ। ऐसे कहते हैं ना। तो ब्रह्मा बाप भी बच्चों को कह रहे थे, जो भी श्रीमत समय प्रमाण जिस रूप से मिलती है उसी समय पर उस रूप से प्रैक्टिकल में लाओ तो सदा ही ब्रह्मा बाप समान तुरत दानी महापुण्य आत्माबन नम्बरवन में आ जायेंगे। ब्रह्मा बाप और जगत-अम्बा फर्स्ट राज्य अधिकारी, दोनों आत्माओं की विशेषता क्या देखी? सोचा और किया। यह नहीं सोचा कि यह करके पीछे यह करेंगे। यही विशेषता थी। तो फालो मदर करने वाले महापुण्य आत्मा, पुण्य का श्रेष्ठ फल खा रहे हैं। और सदा शक्तिशाली हैं। स्वप्न में भी संकल्प मात्र भी कमज़ोरी नहीं। ऐसे सदा तीव्रगति से चल रहे हैं लेकिन कोई में भी कोई।

ब्रह्मा बाप को, साकार सृष्टि के रचयिता होने के कारण, साकार रूप में पालना का पार्ट बजाने के कारण, साकर रूप में पार्ट बजाने वाले बच्चों से विशेष स्नेह है। जिससे विशेष स्नेह होता है उसकी कमज़ोरी सो अपनी कमज़ोरी लगती है। ब्रह्मा बाप को बच्चों की इस कमज़ोरी का कारण देख, स्नेह आता है कि अभी-अभी सदा के शक्तिशाली, सदा के तीव्र पुरुषार्थी, सदा उड़ती कला वाले बन जाएँ। बार-बार की मेहनत से छूट जाएँ।

सुना ब्रह्मा बाप की बातें। ब्रह्मा बाप के नयनों में बच्चे ही समाये हुए हैं। ब्रह्मा की विशेष भाषा का मालूम है, क्या बोलते हैं? बार-बार यही कहते हैं ‘‘मेरे बच्चे, मेरे बच्चे।’’ बाप मुस्कराते हैं। हैं भी ब्रह्मा के ही बच्चे इसलिए अपने सरनेम में भी ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहते हो ना। शिवकुमार-शिवकुमारी तो नहीं कहते हो। साथ भी ब्रह्मा को ही चलना है। भिन्न-भिन्न नाम रूप से ज्यादा समय साथ तो ब्रह्मा बाप का ही रहता है ना। ब्रह्मा मुख वंशावली हो। बाप तो साथ हैं ही। फिर भी साकार में ब्रह्मा का ही पार्ट है। अच्छा और रूह-रूहान फिर सुनायेंगे।

इस ग्रुप में तीन तरफ की विशेष नदियाँ आई हैं। डबल विदेशी तो अभी गुप्त गंगा है। क्योंकि टर्न में नहीं हैं। अभी देहली, कर्नाटक और महाराष्ट्र इन तीन नदियों का मिलन विशेष है। बाकी साथ-साथ चूंगे में हैं। जो टर्न में आये हैं वह तो अपना हक लेंगे ही लेकिन डबल विदेशी भी भाग-भाग करके अपना हक पहले लेने पहुँच गये हैं। तो वह भी प्यारे होंगे ना। डबल विदेशियों को भी चूंगे में माल मिल रहा है। फिर अपने टर्न में मिलेगा। हर तरफ के बच्चे बापदादा को प्यारे हैं। क्योंकि हर तरफ की अपनी-अपनी विशेषता है। देहली है सेवा का बीज स्थान और कर्नाटक तथा महाराष्ट्र है वृक्ष का विस्तार। जैसे बीज नीचे होता है और वृक्ष का विस्तार ज्यादा होता है तो देहली बीज रूप बनी। अन्त में फिर बीज रूप धरनी पर ही आवाज़ होना है। लेकिन अभी कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात तीनों का विशेष विस्तार है। विस्तार वृक्ष की शोभा होती है। कर्नाटक और महाराष्ट्र सेवा के विस्तार से ब्राह्मण वृक्ष की शोभा हैं। वृक्ष सज रहा है ना। प्रश्न भी यह दो ही पूछते हैं ना। एक तो खर्चे की संख्या पूछते दूसरा ब्राह्मणों की संख्या का पूछते हैं। तो महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही संख्या के हिसाब से ब्राह्मण परिवार का शृंगार है। बीज की विशेषता अपनी है। बीज नहीं होता तो वृक्ष भी नहीं निकलता। लेकिन बीज अभी थोड़ा गुप्त है। वृक्ष का विस्तार ज्यादा है। अगर देहली में भी आप सब नहीं जाते तो सेवा का फाउण्डेशन नहीं होता। पहला निमन्त्रण सेवा का लिया या मिला। लेकिन देहली से ही शुरू हुआ। इसलिए सेवा का स्थान भी वो ही बना और राज्य का स्थान भी वो ही बनेगा। जहां पहले ब्राह्मणों के पांव पड़े। तीर्थ स्थान भी वही बना और राजस्थान भी वही बनेगा। विदेश की भी बहुत महिमा है। विदेश से भी विशेष प्रत्यक्षता के नगाड़े देश तक आयेंगे। विदेश नहीं होता तो देश में प्रत्यक्षता कैसे होती। इसलिए विदेश का भी महत्व है। विदेश की आवाज़ को सुन भारत वाले जगेंगे। प्रत्यक्षता का आवाज़ निकलने का स्थान तो विदेश ही हुआ ना। तो यह है विदेश का महत्त्व। विदेश में रहने वाले भी हैं तो देश के ही लेकिन निमित्त मात्र विदेश में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को उमंग उत्साह में देख देश वालों में भी उमंग उत्साह और ज्यादा होता है। यह भी उन्हों की गुप्त सेवा का पार्ट है। तो सभी की विशेषता अपनी हुई ना। अच्छा –

सदा तुरत दान महापुण्य आत्माएँ, सोचने और करने में सदा तीव्र पुरुषार्थी, हर संकल्प, हर सेकण्ड सेवा का मेवा खाने वाले, ऐसे सदा शक्तिशाली, फालो फादर और फालो मदर करने वाले, सदा ब्रह्मा बाप के संकल्प को साकार में लाने वाले ऐसे देश-विदेश चारों ओर के समर्थ बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।



23-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


डबल लाईट की स्थिति से मेहनत समाप्त

देश-विदेश से पधारे लवलीन बच्चों के प्रति बापदादा बोले:-

आज दूर देश में रहने वाले बापदादा, दूरदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। आप सब भी दूरदेश से आये हो तो बापदादा भी दूरदेश से आये हैं। सबसे दूर से दूर और नज़दीक से नज़दीक बापदादा का देश है। दूर इतना है जो इस साकार दुनिया की बाउण्ड्री से बहुत दूर है। लोक ही दूसरा है। आप सभी साकार लोक से आये हैं और बापदादा साकार लोक से भी परे परलोक से वाया सूक्ष्मवतन ब्रह्मा बाप को साथ लाये हैं। और नज़दीक भी इतना है जो सेकण्ड में पहुँच सकते हो ना। आप लोगों को आने में कितने घण्टे लगते हैं और कितना मेहनत का कमाया हुआ धन देना पड़ा। कितना समय लगा धन इकठठा करने में। और बाप के वतन से आने और जाने में खर्चा भी नहीं लगता है। सिर्फ स्नेह की पूँजी, इसके द्वारा सेकण्ड में पहुँच जाते हो। कोई मेहनत तो नहीं लगती है ना। बापदादा जानते हैं कि राज्य-भाग्य गँवाने के बाद बच्चे अनेक जन्म भिन्न-भिन्न प्रकार की तन की, मन की, धन की मेहनत ही करते रहे हैं। कहाँ विश्व के मालिक ताज, तख्तधारी, सर्व प्राप्तियों के भण्डार के मालिक! प्रकृति भी दासी! ऐसे राज्य अधिकारी, राज्य भाग्य करने वाले, अब अधीन बनने से क्या कर रहे हैं! नौकरी कर रहे हैं! तो मेहनत हुई ना। कहाँ राजे और कहाँ कमाई करके खाने वाले गवर्मेन्ट के सर्वेन्ट हो गये। कितने जन्म शरीर को चलाने के लिए, शरीर निर्वाह का कर्म, मन को बाप से लगाने के लिए भिन्न-भिन्न साधनायें, अनेक प्रकार की भक्ति और धन को इकठठा करने के लिए कितने प्रकार के भिन्न-भिन्न जन्मों में भिन्न-भिन्न कार्य किये। ऐसे ताज-तख्तधारी सुख-चैन से पलने वाले को क्या-क्या करना पड़ा। तो बच्चों की मेहनत को देख बापदादा ने मेहनत से छुड़ाए सहज योगी बना दिया है। सेकण्ड में स्वराज्य-अधिकारी बनाया ना। मेहनत से छुड़ाया ना। यह सब सोचते हैं कि नौकरी से तो नहीं छुड़ाया। लेकिन अभी कुछ भी करते हो अपने लिए नहीं करते हो। ईश्वरीय सेवा के प्रति करते हो। अभी मेरा काम समझकर कर नहीं करते हो। ट्रस्टी बन करके करते हो। इसलिए मेहनत मुहब्बत में बदल गई। बाप की मुहब्बत में, सेवा की मुहब्बत में, मिलन मनाने की मुहब्बत में - मेहनत नहीं लगती।

दूसरी बात, करावनहार बाप है। निमित्त करने वाले आप हो। सर्वशक्तिवान बाप की शक्ति से अर्थात् स्मृति के कनेक्शन से अभी निमित्त मात्र कार्य करने वाले हो। जैसे लाइट के कनेक्शन से बड़ी-बड़ी मशीनरी चलती है। तो आधार है लाइट। आप सभी हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं भी डबल लाइट बन चलते रहते हो ना। जहां डबल लाइट की स्थिति है वहाँ मेहनत और मुश्किल शब्द समाप्त हो जाता है। नौकरी से नही छुड़ाया लेकिन मेहनत से छुड़ाया ना। भावना और भाव बदल गया ना। ट्रस्टीपन का भाव और ईश्वरीय सेवा की भावना, तो बदल गयी ना। अभी अपना-पन है? तीन पैर पृथ्वी तो मिली है वह भी बाबा का घर कहते हो ना। मेरे घर तो नहीं कहते हो ना। अपने घर में नहीं रहते। बाप के घर में रहते हो। बाप के डायरेक्शन से कार्य करते हो। अपनी इच्छा से, अपनी आवश्यकताओं के कारण नहीं करते। जो डायरेक्शन बाप का, उसमें निश्चिंत और न्यारे होकर करते जो मिला बाप का है वा सेवा अर्थ है। भले शरीर प्रति भी लगाते हो लेकिन शरीर भी अपना नहीं है। वह भी बाप को दे दिया ना। तन-मन-धन सब बाप को दे दिया है ना वा कुछ रखा है किनारे करके, ऐसे तो नहीं हो ना। तो बापदादा ने बच्चों की जन्म-जन्म की मेहनत देख अब से अनेक जन्मों तक मेहनत से छुड़ा दिया। यही निशानी है बाप और बच्चों के मुहब्बत की।

जैसे आप सब स्पेशल मिलने आये हो, बापदादा भी स्पेशल मिलने आये हैं। ब्रह्मा बाप को भी वतन से ले के आये हैं। ब्रह्मा बाप का ज्यादा स्नेह है। बाप का तो है ही लेकिन ब्रह्मा बाप का ज्यादा स्नेह है। डबल विदेशियों से विशेष स्नेह क्यों है? ब्रह्मा बोले - विदेशी बच्चों का बहुत समय से आह्वान किया। कितने वर्षों से पहले बच्चों का आह्वान किया। उसी आह्वान से विदेश से बाप के पास पहुँचे। तो बहुत समय जिसका आह्वान किया जाए और बहुत समय के आह्वान के बाद वह बच्चे पहुँचे तो जरूर विशेष प्यार होगा ना। तो ब्रह्मा बाप ने बहुत स्नेह से साकार रूप में वारिस बनने का, आप सबको आह्वान किया। समझा। सुनते रहते हो ना कि कितने वर्ष पहले आपको जन्म दिया। गर्भ में तो आ गये थे पैदा पीछे हुए हो साकार रूप में। इसलिए ब्रह्मा बाप को विशेष स्नेह  है और भविष्य की तकदीर जानते हुए स्नेह है।

जानकी दादी को देख

सभी डबल विदेशी जैसे बाप को देख करके खुश होते हैं वैसे आपको भी देख करके खुश होते हैं क्योंकि बाप से ली हुई पालना का प्रत्यक्ष रूप साकार में आप निमित्त बच्चों से सीखते हैं। इसलिए विशेष आप से भी सभी का प्यार है। दादी वा दीदी जो भी निमित्त आत्माएँ हैं उन्हों की विशेषता यही दिखाई देती जो उनमें बाप को देखेंगे। यही बाप की पालना का विशेष अनुभव करते। जब भी दीदी दादी से मिलते हो तो क्या देखते हो! बाप साकार आधार से मिल रहे हैं। ऐसे अनुभव होता है ना। यही विशेष आत्माओं की पालना है, जो आप गुम हो जायेंगे और बाप दिखाई देंगे। क्योंकि उन्हों के हर संकल्प, हर बोल में सदा बाबा-बाबाही रहता है। तो औरों को भी वो ही बाबा शब्द सुनाई वा दिखाई देता है। आज दीदी भी याद आ रही है। गुप्त गंगा हो गई ना। वैसे भी 3 नदियों में एक नदी गुप्त ही दिखाते हैं। अभी दीदी तो दादी में समाई हुई है ना। सूक्ष्म रूप में वह भी अपनी भासना दे रही है। क्योंकि कर्मबन्धनी आत्मा नहीं है। सेवा के सम्बन्ध से पार्ट बजाने गई है। कर्मबन्धनी आत्माएँ जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं। और कर्मातीत आत्माएँ एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं। क्योंकि कर्मातीत हैं। इसलिए दीदी भी आप सबके साथ है। कर्मातीत आत्मा को डबल पार्ट बजाने में कोई मुश्किल नहीं। स्पीड बहुत तीव्र होती है। सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकती है। विशेष आत्माएँ अपना विशेष पार्ट सदा बजाती हैं। इसलिए ही हवा के मुआफिक चली गई ना। जैसे अनादि अविनाशी प्रोग्राम बना हुआ ही था। यह भी विचित्र पार्ट था। शुरू से लेकर दीदी का विचित्र ट्रांस का पार्ट रहा। अन्त में भी विचित्र रूप के ट्रांस में ही ट्रान्सफर हो गई। अच्छा –

सभी देश-विदेश के चात्रक बच्चों को कल्प के सिकीलधे बच्चे को, सदा बाप के स्नेह में लवलीन रहने वाले लवलीन आत्माओं को बापदादा का यादप् यार और नमस्ते।’’

पर्सनल मुलाकात

कहाँ-कहाँ से बापदादा ने चुनकर अपने अल्लाह के बगीचे में लगा लिया। यह खुशी रहती है ना! अभी सभी रूहानी गुलाब बन गये। सदा औरों को भी रूहानी खुशबू देने वाले रूहे गुलाबहो। कोई भी आप सबके समीप आता है, सम्पर्क में आता है तो आप सभी से क्या महसूस करता है? समझते हैं कि यह रूहानी हैं। अलौकिक हैं। लौकिकता समाप्त हो गयी। जो भी आपकी तरफ देखेंगे उनको फरिश्ता रूप ही दिखाई दे। फरिश्ते बन गये ना। सदा डबल लाइट स्थित में स्थित रहने वाले फरिश्ता दिखाई देंगे। फरिश्ते सदा ऊँचे रहते हैं। फरिश्तों को चित्र रूप में भी दिखायेंगे तो पंख दिखायेंगे। किसलिए? उड़ते पंछी हैं ना। तो पंछी सदा ऊपर उड़ जाते। तो बाप मिला, ऊँचा स्थान मिला, ऊँची स्थिति मिली और क्या चाहिए!

(विदेशी बच्चों के रिटर्न में)

सबकी दिल के प्यार भरे याद-प्यार पत्र तथा याद मिली। बच्चे मीठी-मीठी रूह-रूहान भी करते तो कभी-कभी मीठे-मीठे उल्हने भी देते हैं। कब बुलायेंगे, क्यों नहीं हमको मदद करते जो हम पहुँच जाते। ऐसे उल्हने भी बाप को प्रिय लगते हैं। क्योंकि बाप को नहीं कहेंगे तो किसको कहेंगे! इसलिए बापदादा को बच्चों का लाड़-प्यार अच्छा लगता है। इसलिए बाप के प्यारे हैं और सदा बाप के प्यारे होने के कारण रिटर्न में बाप द्वारा स्नेह और सहयोग मिलता है।

अच्छा - ओम शान्ति


 

25-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुग के दिन - बड़े ते बड़े दिन मौज मनाने के दिन

बड़े दिन के अवसर पर वृक्षपति शिवबाबा अपने लकी सितारों, बच्चों प्रति बोले:-

आज बड़े ते बड़ा बाप बड़े ते बड़े बच्चों को बड़े दिल की बधाई दे रहे हैं। सभी किसमिससे भी मीठे बच्चों को क्रिसमिसकी बधाई दे रहे हैं। बड़े ते बड़े दिन - संगयुग के दिन हैं। बुरे दिन खत्म हो खुशी के उत्साह में रहने के उत्सव का दिन संगमयुगहै। जिस बड़े दिन पर वृक्षपति कल्प-वृक्षकी कहानी सुनाते हैं। इसी संगमयुग के बड़े दिन पर कल्प वृक्ष के फाउण्डेशन में चमकती हुई श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माएँ जगमगाती हुई सारे वृक्ष को जगमगाती हैं। लकी सितारे, लवली सितारे, वृक्ष को अति सुन्दर बना देते हैं। वृक्ष के डेकोरशन चैतन्य जगमगाते सितारे हैं। वृक्ष में व्हाइट और लाइट फरिश्ते चमकते हुए वृक्ष को चमकाते हैं। इसी का यादगार आज के दिन - क्रिसमस ट्रीके रूप में सजाते हैं। संगम के बड़े दिन में उत्साह के उत्सव के दिन में, रात को दिन बना देते हैं। अंधकार को रोशनी में बदल लेते हैं। ब्राह्मण परिवार संगम के बड़े दिन पर मिलकर आत्मा का भोजन - ब्रह्मा भोजनप्यार से खाते हैं। इसलिए यादगार रूप में भी सपरिवार मिलकर खाते-पीते मौज मनाते हैं। सारे कल्प में मौज मनाने का दिन वा मौजों का युग - संगमयुगहै। जिस संगमयुग में जितना चाहें दिल भरकर मौज मना सकते हैं। ज्ञान अमृत का नशा लवलीन बना देता है। इस रूहानी नशे का अनुभव विशेष बड़े दिन पर करते हैं। संगमयुग के ब्रह्म-महूर्त में अमृतवेले में श्रेष्ठ जन्म की आँख खोली और क्या मिला! कितने सौगाते मिलीं? आँख खोली बूढ़ा बाबा देखा! सफेद-सफेद बाबा देखा! सफेद में लाल देखा ना! कौन देखा? शान्ति कर्त्ता बाप देखा! कितने सौगातें दी। इतनी सौगाते दी जो जन्म-जन्म उन सौगातों से ही पलते रहेंगे। कुछ खरीद नहीं करना पड़ेगा। सबसे बड़ी ते बड़ी सौगात हीरे से भी मूल्यवान स्नेह का कंगन, ईश्वरीय जादू का कंगन दिया। जिस द्वारा जो चाहे जब चाहो संकल्प से आह्वान किया और प्राप्त हुआ। अप्राप्त कोई वस्तु नहीं ब्राह्मणों के खज़ाने में। ऐसी सौगात आँख खोलते ही, सभी बच्चों को मिली। सबको मिली है ना। कोई रह तो नहीं गया ना। यह है बड़े दिन का महत्त्व। फर्स्ट ब्राह्मण आत्माओं का यादगार, लास्ट धर्म तक भी, निशानी अब तक चल रही है। क्योंकि आप ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्माएं सारे वृक्ष के फाउण्डेशन हो। सर्व आत्माओं के दादे परदादे तो आप ही हो ना। आपकी यह शाखायें हैं। वृक्ष का फाउण्डेशन आप बड़े ते बड़े ब्राह्मण हो। इसलिए हर धर्म की आत्मायें किसी न किसी रूप में आप आत्माओं को और आपके संगमयुगी रीति रसम को अभी तक भी मनाते रहते हैं। ऐसी परमपरा की पूज्य आत्माएँ हो। परम-आत्मा से भी डबल पूज्य आप हो। ऐसे स्वयं को बड़े ते बड़े, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समझते हुए मौजों के दिन मना रहे हो ना! मनाने के दिन कितने थोड़े से हैं। कल्प के हिसाब से एक ही बड़ा दिन खूब मनाओ। खुशी में नाचो। ब्रह्मा भोजन खाओ और खुशी के गीत गाओ। और कोई िफकर है क्या! बेफिकर बादशाह सारा दिन क्या करते हैं! मौज मनाते हैं ना। मन की मौज मनाओ। हद के दिन की मौज नहीं मनाना। बेहद के दिन की, बेहद के बेगम की मौज मनाओ। समझा! ब्राह्मण संसार में आये हो, किसलिए? मौज मनाने के लिए। अच्छा –

आज विशेष चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को मौजों के दिन, बड़े ते बड़े दिन मनाने की विशेष मुबारक हो। बापदादा विशेष मिलन की सौगात देने के लिए आये हैं। अभी तो बहुत थोड़े हो फिर भी इतना दूर बैठना पड़ता है। जब वृद्धि को प्राप्त होंगे तो फिर दर्शन मात्र रह जायेंगे। फिर मिलने का चान्स नहीं होगा। सिर्फ दर्शन करने का। दृष्टि, दर्शन में बदल जायेगी। अन्त में जो सिर्फ दृष्टि मिलेगी वह भक्ति में दर्शन शब्द में बदल जायेगी। डबल विदेशियों को विशेष नशा कौन सा है? एक गीत है ना- ऊँची-ऊँची दीवारें, ऊँचे-ऊँचे समुद्र, दुनिया के देशों की दीवारें तो हैं। तो ऊँचे-ऊँचे देशों की दीवारें, धर्म की दीवारें, नॉलेज की दीवारें, मान्यताओं की दीवारें, रसम-रिवाज की दीवारें, सब पार करते आ गये हो ना। मिलते तो भारतवासी भी हैं, भारतवासियों को भी वर्सा मिला लेकिन देश का देश में मिला। इतनी ऊँची दीवारें पार नहीं करनी पड़ी। सिर्फ भक्ति की दीवार क्रास की। लेकिन डबल विदेशी बच्चों ने अनेक प्रकार की ऊँची दीवारें पार की। इसलिए डबल नशा है। अनेक प्रकार के पर्दों की दुनिया को पार किया। इसलिए पार करने वाले बच्चों को डबल याद-प्यार। मेहनत तो की है ना। लेकिन बाप की मुहब्बत ने मेहनत भुला दी। अच्छा-

सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्माओं को, सर्व को लाइट माइट देने वाले बड़े ते बड़े बच्चों को, मौजों के संसार में सदा रूहानी मौज मनाने वाले, हर दिन उत्सव समझते उत्साह में रहने वाले, बेहद की ईश्वरीय सौगात प्राप्त करने वाले, ऐसे कल्पवृक्ष के चमकते हुए, जगमगाते हुए श्रेष्ठ सितारों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

विदेशी भाई-बहनों से पर्सनल मुलाकात

1. सभी अपने को सिकीलधे समझते हो ना? कितने सिक व प्रेम से बाप ने कहाँ-कहाँ से चुनकर एक गुलदस्ते में डाला है। गुलदस्ते में आकर सभी रूहे गुलाबबन गये। रूहे गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? हरेक को यही नशा है ना कि हम बाप को प्रिय हैं! हरेक कहेगा कि मेरे जैसा प्यारा बाप को और कोई नहीं है। जैसे बाप जैसा प्रिय और कोई नहीं। वैसे बच्चे भी कहेंगे। क्योंकि हरेक की विशेषता प्रमाण बाप को सभी से विशेष स्नेह है। नम्बरवार होते हुए भी सभी विशेष स्नेही हैं। बच्चों के मूल्य को सिर्फ बाप जानें और आप जानों। और कोई नहीं जान सकता। दूसरे तो आप लोगों को साधारण समझते हैं, लेकिन कोटो में कोई और कोई में भी कोई आप हो। जिसको बाप ने अपना बना लिया। बाप का बनते ही सर्व प्राप्तियाँ हो गई। खज़ानों की चाबी बाप ने आप सबको दे दी। अपने पास नहीं रखी। इतनी चाबियाँ हैं जो सबको दी है। यह मास्टर की (चाबी) ऐसी है जो जिस खज़ाने को लगाना चाहो, लगाओ और खज़ाना प्राप्त करो। मेहनत नहीं करनी पड़ती। वैसे भी लंदन राज्य का स्थान है ना। प्रजा बनने वाले नहीं। सभी सेवा में आगे बढ़ने वाले। जहाँ प्राप्ति हैं वहाँ सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। सेवा कम अर्थात् प्राप्ति कम। प्राप्ति स्वरूप बिना सेवा के रह नहीं सकते। देखो, आप लोग कितना भी देश छोड़कर विदेश चले गये तो भी बाप ने विदेश से भी ढूँढकर अपना बना लिया। कितना भी भागे फिर भी बाप ने तो पकड़ लिया ना। अच्छा-

आस्ट्रेलिया ग्रुप से

सभी महावीर हो ना। महावीर ग्रुप अर्थात् सदा के लिए माया को विदाई देने वाले। ऐसी सेरीमनी मनाई है! आस्ट्रेलिया को सदा बापदादा बहादुरों का स्थान कहते हैं। तो आस्ट्रेलिया निवासी सदा ही माया को विदाई देने वाले। क्योंकि जब बाप साथ है तो बाप के साथ होते माया आ नहीं सकती। सदा साथ बाप है तो विदाई हो गई ना। विदाई देने वाले सदा सन्तुष्टमणि। स्वयं भी सन्तुष्ट, सेवा से भी सन्तुष्ट, सम्पर्क में भी सन्तुष्ट। सबमें सन्तुष्ट। ऐसी सन्तुष्ट मणियाँ सदा दिलतख्तनशीन हैं। तो जो तख्तनशीन होगा वह सदा खुशी और नशे में रहेगा। बापदादा - सन्तुष्ट मणियाँ , महावीर, मायाजीत ग्रुप देख रहे हैं। सभी अनुभवी आत्मायें दिखाई दे रही हैं। सेवाधारी भी हैं। जैसे सेवा की विशेषता में लंदन का विशेष पार्ट है वैसे आस्ट्रेलिया का भी विशेष पार्ट है। बापदादा आस्ट्रेलिया निवासियों को सदा सेवा में एवररेडी और सदा सेवा में वृद्धि को पाने वाले ऐसा सर्टिफकेट देते हैं। अच्छा–

विदाई के समय

अभी आप सब जाग रहे हो, आप सभी के लिए कहाँ न कहाँ जागरण होता रहता है। जब आपके भक्त जागरण करते हैं तो आपने किया तो क्या बड़ी बात है। सभी शुरू संगम से ही होता है। जो आप ज्ञान से करते उसे वह भक्ति से करते हैं। भक्ति का फाउण्डेशन भी संगम पर ही पड़ता है। वह भावना और यह ज्ञान। सभी सेवा पर जा रहे हो, घर में जा रहे हो, नहीं, जाना अर्थात् सेवा का सबूत फिर से ले आना। खाली हाथ नहीं आना। कम से कम गुलदस्ता तो भेंट किया जाता है। गुलदस्ता लाओ या बटन। फार्म में यह भी क्वेश्चन ऐड करना कि एक साल में कितने तैयार किये! जो खाली आये उसको दूसरी बार सर्टिफकेट नहीं देना। एक साल में एक तो तैयार करके साथ में लेकर आओ। अच्छा –



27-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


भिखारी नहीं, सदा के अधिकारी बनो

अमरनाथ शिवबाबा स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति बोले:-

आज विश्व रचता बाप विश्व की परिक्रमा लगाते हुए अपने मिलन स्थान पर बच्चों की रूहानी महफिल में पहुँच गये हैं। विश्व-परिक्रमा में क्या देखा? दाता के बच्चे सर्व आत्माएँ भिखारी के रूप में भीख मांग रही हैं। कोई रायल भिखारी, कोई साधारण भिखारी। सभी के मुख में वा मन में यह यह दे दो-यह दे दो का ही आवाज़ सुनाई देता था। कोई धन के भिखारी, कोई सहयोग के भिखारी, कोई सम्बन्ध के भिखारी, कोई थोड़े समय के लिए सुख-चैन के भिखारी, कोई आराम वा नींद के भिखारी, कोई मुक्ति के भिखारी, कोई दर्शन के भिखारी, कोई मृत्यु के भिखारी, कोई फालोअर्स के भिखारी। ऐसे अनेक प्रकार के बाप से, महान आत्माओं से, देव आत्माओं से और साकार सम्बन्ध वाली आत्माओं से, यह दो... यह दो की भीख माँग रहे हैं। तो बेगर्स की दुनिया देख, स्वराज्य अधिकारियों की महफिल में आए पहुँचे हैं। अधिकारी और अधीन, भिखारी आत्माओं में कितना अन्तर है। बेगर से दाता के बच्चे बन गये अर्थात् मास्टर वा अधिकारी बनगये। अधिकारी ‘‘यह दो-यह दो’’, संकल्प में भी भीख नहीं मांगते। भिखारी का शब्द है -दे दो। और अधिकारी का शब्द है -यह सब अधिकार हैं। ऐसी अधिकारी आत्माएँ बने हो ना! दाता बाप ने बिना माँगे, सर्व अविनाशी प्राप्ति का अधिकार स्वत: ही दे दिया। आप सबने एक शब्द का संकल्प किया, मेरा बाबा और बाप ने एक ही शब्द में कहाँ सर्व खज़ानों का संसार तेरा। एक ही संकल्प वा बोल अधिकारी बनाने के निमित्त बना। मेरा और तेरा। यही दोनों शब्द चक्र में भी फँसाता हैं और यही देनों शब्द सर्व विनाशी दु:खमय चक्र से छुड़ाये सर्व प्राप्तयों के अधिकारी भी बनाता है। अनेक चक्र से छूट कर एक स्वदर्शन चक्र ले लिया अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बन गये। कभी भी किसी भी प्रकार के तन-मन-धन-जन, सम्बन्ध-सम्पर्क के चक्र में फँसते हो तो उसका कारण स्वदर्शन चक्र को छोड़ देते हो। स्वदर्शन चक्र सदा ही एक ही अंगुली पर दिखाते हैं। पाँच अंगुलियाँ वा दो अंगुलियाँ नहीं। एक अंगुली अर्थात् एक ही संकल्प -’’मैं बाप का और बाप मेरा’’। एक इस संकल्प रूपी एक अंगुली पर स्वदर्शन चक्र चलता है। एक को छोड़ अनेक संकल्पों में जाते हो, अनेक चक्करों में फँसते हो। स्वदर्शन-चक्रधारी अर्थात् स्व का दर्शन करना और सदा के लिए प्रसन्नचित्त रहना। स्वदर्शन नहीं तो प्रसन्नचित्त के बजाए प्रश्नचित्त हो जाता। प्रसन्नचित्त अर्थात् जहाँ कोई प्रश्न नहीं। तो सदा स्वदर्शन द्वारा प्रसन्नचित्त अर्थात् सर्व प्राप्ति के अधिकारी। स्वप्न में भी बाप के आगे भिखारी रूप नहीं। यह काम कर लो या करा लो। यह अनुभव करा लो, यह विघ्न मिटा लो। मास्टर दाता की दरबार में कोई अप्राप्ति हो सकती है? अविनाशी स्वराज्य, ऐसे राज्य में जहाँ सर्व खज़ानों के भण्डार भरपूर हैं। भण्डारे भरपूर में कोई कमी हो सकती है? जो स्वत: ही बिना आपके माँगने के अविनाशी और अथाह देने वाला दाता, उसको कहने की क्या आवश्यकता है! आपके संकल्प से सोचने से पदमगुणा ज्यादा बाप स्वयं ही देते हैं। तो संकल्प में भी यह भिखारीपन नहीं। इसको कहा जाता है - अधिकारी। ऐसे अधिकारी बने हो? सब कुछ पा लिया - यही गीत गाते हो ना! वह अभी यह पाना है, पाना है यह फरियाद के गीत गाते हो। जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं। जहाँ फरियाद है वहाँ याद नहीं। समझा!

कभी-कभी राज्य अधिकारी की स्थिति की ड्रेस बदलकर माँगने वाली भिखारी की स्थिति की पुरानी ड्रेस धारण तो नहीं कर लेते हो? संस्कार रूपी पेटी में छिपाकर तो नहीं रखी है। पेटी सहित स्थिति रूपी ड्रेस को जला दिया है वा आईवेल के लिए किनारे कर रख लिया है? संस्कार में भी अंशमात्र न हो। नहीं तो दुरंगी बन जाते। कभी भिखारी, कभी अधिकारी। इसलिए सदा एक श्रेष्ठ रंग में रहो। पंजाब वाले तो रंग चढ़ाने में होशियार हैं ना! कच्चे रंग वाले तो नहीं हैं ना। और राजस्थान वाले राज्य अधिकारी हैं ना। अधीनता के संस्कार वाले नहीं। सदा राज्य अधिकारी। तीसरा है इन्दौर - सदा माया के प्रभाव से परे - इन डोर। अन्दर रहने वाले अर्थात् सदा बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले। वह भी मायाजीत हो गये ना। चौथा ग्रुप है महाराष्ट्र अर्थात् महान आत्मा। सबमें महान। संकल्प बोल और कर्म, तीनों महा महान हैं। महान आत्मायें अर्थात् सम्पन्न आत्मायें। चार तरफ की चार नदियाँ इकट्ठी हुई हैं लेकिन सभी सर्व प्राप्ति स्वरूप अधिकारी हो ना। चार के बीच में पाँचवे हैं - डबल विदेशी। 5 नदियों का मिलन कहाँ पर हैं? मधुबन के तट पर। नदियों और सागर का मिलन है। अच्छा –

सदा स्वराज्य अधिकारी, स्वदर्शन चक्रधारी सदा प्रसन्नचित्त रहने वाले, सर्व खज़ानों से भरपूर महान आत्माएं, भिखारीपन को स्वप्न से भी समाप्त करने वाले, ऐसे दाता के मालामाल बच्चों को अविनाशी बापदादा की ‘‘अमर भव’’ की सदा सम्पन्न स्वरूप की याद प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ

कितने तकदीरवान हो जो कहाँ-कहाँ की डाली को एक वृक्ष बना दिया। अभी सभी अपने को एक ही वृक्ष के समझते हो ना! सभी एक ही चन्दन का वृक्ष बन गये। पहले कौन-कौन-सी लकड़ी थे। अभी चन्दन के चृक्ष की लकड़ी हो गये। चन्दन खुशबू देता है। सच्चे चन्दन की कितनी वैल्यु होती है और सब कितना प्यार से चन्दन को साथ में रखते हैं। ऐसे चन्दन के समान खुशबू देने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बाप भी सदा साथ रखते हैं। एक बाप साथ रखते, दूसरा विश्व के आगे अमूल्य रत्न हैं। अभी विश्व नहीं जानती, आगे चल कितनी ऊँची नजर से देखेंगे! जैसे सितारों को ऊँची नजर से देखते हैं ऐसे आप ज्ञान सितारों को देखेंगे। वेल्युएबल हो गये ना। सिर्फ चन्दन के वृक्ष में आ गये। भगवान के साथी बन गये। तो सदा अपने को बाप के साथ रहने वाली नामीग्रामी आत्माएँ समझते हो ना। कितनी नामीग्रामी हो जो आज तक भी जड़ चित्रों द्वारा गाये और पूजे जाते हो। सारा कल्प भी नामीग्रामी हो।

घर बैठे पद्मापद्म भाग्यवान बन गये हो ना। तकदीर आपके पास पहुँच गई। आप तकदीर के पीछे नहीं गये लेकिन तकदीर आपके घर पहुँच गई। ऐसे तकदीरवार और कोई हो सकता है! जीवन ही श्रेष्ठ बन गई। जीवन घण्टे दो घण्टे की नहीं होती। जीवन सदा है। योगी नहीं बने लेकिन योगी जीवन वाले बन गये। योगी जीवन अर्थात् निरन्तर के योगी। जो निरन्तर योगी होंगे उनकी खातेपीते, चलते-फिरते बाप और मैं श्रेष्ठ आत्मा, यहीं स्मृति रहेगी। जैसा बाप वैसा बच्चा। जो बाप के गुण, जो बाप का कार्य वह बच्चों का। इसको कहा जाता है - ‘योगी जीवन। ऐसे योगी, जो सदा एक लगन में मगन रहते हैं, वही सदा हर्षित रह सकते हैं। मन का हर्ष तन पर भी आता है। जब है ही सर्व प्राप्ति स्वरूप। जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ हर्ष होगा ना। दु:ख का नाम निशान नहीं। सदा सुख स्वरूप अर्थात् सदा हर्षित। जरा भी दु:ख के संसार की आकर्षण नहीं। अगर दु:ख के संसार में बुद्धि जाती है तो बुद्धि जाना - माना आकर्षण! जो सदा हर्षित रहता वह दु:खों की दुनिया तरफ आकर्षित नहीं हो सकता। अगर आकर्षित होता तो हर्षित नहीं। तो सदा के हर्षित। वर्सा ही सदा का है। यही विशेषता है।

संगमयुग वरदान का युग है। वरदानों के युग में पार्ट बजाने वाले सदा वरदानी होंगे ना! वरदान में मेहनत नहीं करनी पड़ती। जहाँ मेहनत है वहाँ वरदान नहीं। आप सबको राज्य भाग्य वरदान में मिला है या मेहनत से? वरदाता के बच्चे बने, वरदान मिला। सबसे श्रेष्ठ वरदान - ‘‘अविनाशी भव’’। अविनाशी बनें तो अविनाशी वर्सा स्वत: मिलेगा। अविनाशी युग की अविनाशी आत्माएँ हो। वरदाता बाप बन गया, वरदाता शिक्षक बन गया, सद्गुरू बन गया तो और बाकी क्या रहा! ऐसी स्मृति सदा रहे। अविनाशी माना सदा एकरस स्थिति में रहने वाले। कभी ऊपर कभी नीचे नहीं क्योंकि बाप का वर्सा मिला, वरदान मिला तो नीचे क्यों आयें? तो सदा ऊँची स्थिति में रहने वाली महान आत्मायें हैं, यही सदा याद रखना। बाप के बच्चे बने तो विशेष आत्मा बन गये। विशेष आत्मा का हर संकल्प, हर बोल और कर्म विशेष होगा। ऐसा विशेष बोल, कर्म वा संकल्प हो जिससे और भी आत्माओं को विशेष बनने की प्रेरणा मिले। ऐसी विशेष आत्माएँ हो, चाहे साधारण दुनिया में साधारण रूप में रहे पड़े हो लेकिन रहते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे। कमल पुष्प समान। कीचड़ में फँसने वाले नहीं, औरों को कीचड़ से निकालने वाले। अनुभवी कभी भी फँसने का धोखा नहीं खायेंगे। अच्छा –


 


29-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुग - सहज प्राप्ति का युग

सर्व वरदानों के दाता दिलाराम बाप अपने वरदानी बच्चों के प्रति बोले:-

आज रहमदिल दिलवाला बाप अपने बड़ी दिल रखने वाले दिल खुश बच्चों से मिलने आये हैं। जैसे बापदादा सदा बड़ी दिल वाले बेहद की दिल वाले हैं, इसलिए सर्व की दिल लेने वाले दिलारामहैं। ऐसे बच्चे भी बेहद की दिल फराखदिल दातापन की दिल रखने वाले सदा दिल खुश से जहान को खुश करते हैं। ऐसे खुशनसीब आत्माएँ हो। आप श्रेष्ठ आत्माएँ ही जहान के आधार हो। आप सभी जगते, जागती ज्योत बनते तो जहान वाले भी जगते। आप सोते हैं तो जहान सोता है। आप सब की चढ़ती कला होती तो सर्व आत्माओं का कल्याण हो जाता। सर्व यथाशक्ति समय प्रमाण मुक्ति और जीवन-मुक्ति को प्राप्त होते हैं। आप विश्व पर राज्य करते हो तो सर्व आत्माएं मुक्ति की स्थिति में रहती हैं। तीनों लोकों में आपके राज्य समय दु:ख अशान्ति का नाम निशान नहीं। ऐसी सर्व आत्माओं को बाप द्वारा सुख-शान्ति की अंचली दिलाते जो उसी अंचली द्वारा बहुत समय की मुक्ति की आशा सर्व की पूर्ण हो जाती है। ऐसे सर्व आत्माओं को, विश्व को यथाशक्ति प्राप्ति कराने वाले स्व-प्राप्ति स्वरूप हो ना! क्योंकि डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता, सेकण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्य-विधाता, अविनाशी बाप के बच्चे बने। ऐसी अधिकारी आत्माओं को सदा अधिकार को याद करते रूहानी श्रेष्ठ नशा और सदा की खुशी रहती है? बेहद की दिल वाले, किसी हद की प्राप्ति की तरफ दिल आकर्षित तो नहीं होती? सदा सहज प्राप्ति के अनुभवीमूर्त्त बने हो वा ज्यादा मेहनत करने के बाद थोड़ा-सा फल प्राप्त करते हो। वर्तमान समय सीजन है प्रत्यक्ष फल खाने की। एक शक्तिशाली संकल्प वा कर्म किया और एक बीज द्वारा पद्मगुणा फल पाना। तो सीजन का फल अर्थात् सहज फल की प्राप्ति करते हो? फल अनुभव होता है वा फल निकलने के पहले माया रूपी पंछी फल को खत्म तो नहीं कर देते हैं! तो इतना अटेन्शन रहता है वा मेहनत करते, योग लगाते, पढ़ाई भी पढ़ते, यथाशक्ति सेवा भी करते, फिर भी जैसा प्राप्त होना चाहिए वैसा नहीं होता। होना सदा चाहिए क्योंकि एक का पद्मगुणा है तो अनगिनत फल की प्राप्ति हुई ना। फिर भी सदा नहीं रहता। जितना चाहिए उतना नहीं रहता। उसका कारण? संकल्प, कर्म रूपी बीज शक्तिशाली नहीं। वातावरण रूपी धरनी शक्तिशाली नहीं। वा धरनी और बीज ठीक है, फल भी निकलता है लेकिन ‘‘मैंने किया’’, इस हद के संकल्प द्वारा कच्चा फल खा लेते वा माया के भिन्न-भिन्न समस्याएँ, वातावरण, संगदोष, परमत वा मनमत, व्यर्थ संकल्प रूपी पंछी फल को समाप्त कर देते हैं? इसलिए फल अर्थात् प्राप्तियों से, अनुभूतियों के खज़ाने से वाचिंत रह जाते। ऐसी वंचित आत्माओं के बोल यही होते कि - पता नहीं क्यों’! ऐसे व्यर्थ मेहनत करने वाले तो नहीं हो ना। सहज योगी हो ना? सहज प्राप्ति की सीजन पर मेहनत क्यों करते हो! वर्सा है, वरदान है, सीजन है, बड़ी दिल वाला दाता है। फराखदिल भाग्य विधाता है फिर भी मेहनत क्यों? सदा दिलतख्तनशीन बच्चों को मेहनत हो नहीं सकती। संकल्प किया और सफलता मिली। विधि का स्विच आन किया और सिद्धि प्राप्त हुई। ऐसे सिद्धि-स्वरूप हो ना वा मेहनत कर-कर के थक जाते हो। मेहनत करने का कारण है - अलबेलापन और आलस्य। स्मृति-स्वरूप के किले के अन्दर नहीं रहते हो। वा किले में रहते हुए कोई न कोई शक्ति की कमज़ोरी के दरवाजे वा खिड़की खोल देते हो। इसलिए माया को चांस दे देते हो। चेक करो कि कौनसी शक्ति की कमी है अर्थात् कौन-सा रास्ता खुला हुआ है। संकल्प में भी दृढ़ता नहीं है तो समझो थोड़ा सा रास्ता खुला हुआ है। इसलिए कहते - चल तो ठीक रहे हैं, नियम तो सब पालन कर रहे हैं, श्रीमत पर चल रहे हैं लेकिन नम्बरवन खुशी और दृढ़ता से नहीं। नियम पर चलना ही पड़ेगा, ब्राह्मण परिवार की लोकलाज के वश, क्या कहेंगे, क्या समझेंगे, इस मजबूरी वा भय से नियम तो नहीं पालन करते? दृढ़ता की निशानी है सफलता। जहाँ दृढ़ता हैं वहाँ सफलता न हो, यह हो नहीं सकता। जो संकल्प में भी नहीं होगा वह प्राप्ति होगी अर्थात् संकल्प से प्राप्ति ज्यादा होगी। तो वर्तमान समय सहज सर्व प्राप्ति का युग है। द्वापर-कलियुग मेहनत का युग है। संगम सहज प्राप्ति का युग है। इसलिए सदा सहज योगी भव के अधिकारी और वरदानी बनो। समझा। मास्टर सर्वशक्तिवान बन कर के भी मेहनत की, तो मास्टर बन के क्या किया? मेहनत से छुड़ाने वाला मुश्किल को सहज करने वाला बाप मिला, फिर भी मेहनत! बोझ उठाते हो इसलिए मेहनत करते। बोझ छोड़ो, हल्के बनो तो फरिश्ता बन उड़ते रहेंगे। अच्छा-

ऐसे सदा दिल खुश, सदा सहज फल की प्राप्ति स्वरूप, सदा वरदाता द्वारा सफलता को पाने वाले वरदानी, वारिस बच्चों को दिलाराम बाप का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

पंजाब जोन:- सभी स्वदर्शन चक्रधारी हो? स्वदर्शन चक्र चलता रहता है? जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ सर्व विघ्नों से मुक्त हैं क्योंकि स्वदर्शन चक्र माया के विघ्नों को समाप्त करने के लिए हैं। जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ माया नहीं। बाप के बच्चे बने और स्व का दर्शन हुआ। बाप का बच्चा बनना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना। ऐसे स्वदर्शन चक्रधारी ही विश्व-कल्याणकारी हैं। क्योंकि विघ्नविनाशक हैं। विघ्न विनाशक गणेश को कहते हैं। गणेश की कितनी पूजा होती है! कितना प्यार से पूजा करते हैं, कितना सजाते हैं, कितना खर्चा करते हैं, ऐसी विघ्न विनाशक आत्मायें कौन हैं? सदा स्मृति में रहे कि हम विघ्न-विनाशक हैं, यह संकल्प ही विघ्न को समाप्त कर देता है क्योंकि संकल्प ही स्वरूप बनाता है। विघ्न हैं-विघ्न हैं, कहने से विघ्न स्वरूप बन जाते, कमज़ोर संकल्प से कमज़ोर सृष्टि की रचना हो जाती क्योंकि एक संकल्प कमज़ोर है तो उसके पीछे अनेक कमज़ोर संकल्प पैदा हो जाते हैं। एक क्यों और क्या का संकल्प, अनेक क्यों-क्या में ले आता है। समर्थ संकल्प उत्पन्न हुआ - मैं महावीर हूँ, मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो सृष्टि भी श्रेष्ठ होती है। तो जैसा संकल्प वैसी सृष्टि। यह सारी संकल्प की बाजी है। अगर खुशी का संकल्प रचो तो उसी समय खुशी का वातावरण अनुभव होगा। दु:ख का संकल्प रचो तो खुशी के वातावरण में भी दु:ख का वातावरण लगेगा। खुशी का अनुभव नहीं होगा। तो वातावरण बनाना, सृष्टि रचना अपने हाथ में है, दृढ़ संकल्प रचो तो विघ्न छू मंत्र हो जायेंगे। अगर सोचते - पता नहीं होगा या नहीं होगा तो मंत्र काम नहीं करता। जैसे कोई डाक्टर के पास जाते हैं तो डाक्टर भी पहले यही पूछते हैं कि तुम्हारा मेरे में फेथ है? कितनी भी बढ़िया दवाई हो लेकिन अगर फेथ नहीं तो उस दवाई का असर नहीं हो सकता। यह विनाशी बात है, यहाँ है अविनाशी बात। तो सदा विघ्नविनाशक आत्मायें हैं, पूज्य आत्मायें हैं। आपकी अभी भी किस रूप में पूजा हो रही है? यह लास्ट का विकारी जन्म होने के कारण इस रूप का यादगार नहीं रखते हैं लेकिन किस न किस रूप में आपका यादगार है। तो सदा आने को मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक शिव के बच्चे गणेशसमझकर चलो। अपना ही संकल्प रचते हो कि - पता नहीं, पता नहीं’, तो इस कमज़ोर संकल्प के कारण ही फँस जाते। तो सदा खुशी में झूलने वाले सर्व के विघ्न-हर्त्ता बनो। सर्व के मुश्किल को सहज करने वाले बनो। इसके लिए बस सिर्फ दृढ़ संकल्प और डबल लाइट। मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं। मेरा नहीं तो - निर्विघ्न। मेरा है तो विघ्नों का जाल है। तो जाल को खत्म करने वाले विघ्न-विनाशक। बाप का भी यही कार्य है। जो बाप का कार्य वह बच्चों का कार्य। कोई भी कार्य खुशी से करते हो तो उस समय विघ्न नहीं होता। तो खुशी-खुशी कार्य में बिजी रहो। बिजी रहेंगे तो माया नहीं आयेगी। अच्छा –

(2) सदा सफलता के चमकते हुए सितारे हैं, यह स्मृति रहती है? आज भी इस आकाश के सितारों को सब कितने प्यार से देखते हैं क्योंकि रोशनी देते हैं, चमकते हैं इसलिए प्यारे लगते हैं। तो आप भी चमकते हुए सितारे सफलता के हो। सफलता को सभी पसन्द करते हैं, कोई प्रार्थना भी करते हैं तो कहते - यह कार्य सफल हो। सफलता सब मांगते हैं और आप स्वयं सफलता के सितारे बन गये। आपके जड़ चित्र भी सफलता का वरदान अभी तक देते हैं, तो कितने महान हो, कितने ऊँच हो, इसी नशे और निश्चय में रहो। सफलता के पीछे भागने वाले नहीं लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सफलता स्वरूप। सफलता आपके पीछे-पीछे स्वत: आयेगी।

अच्छा - ओम शान्ति।


 


31-12-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


नववर्ष के अवसर पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

रूहानी माशूक शिवबाबा अपने आशिक रूहानी बच्चों के प्रति बोले:-

आज सागर के कण्ठे पर अर्थात् मधुबन के कण्ठे पर मधुर मिलन मनाने के लिए माशूक अपने रूहानी आशिकों से मिलने आये हैं। कितना दूर-दूर से मिलन मनाने के लिए आये हैं, क्यों? ऐसा वण्डरफुल माशूक सारे कल्प में मिल नहीं सकता। एक माशूक और आशिक कितने हैं? अनेक आशिक एक माशूक के। तो आज विशेष आशिकों की महिफल में आये हैं। महिफल में मनाना होता है, सुनाना नहीं होता है। तो आज सुनाने नहीं आये हैं, मिलने और मनाने आये हैं। विशेष डबल विदेशी बच्चे आज का दिन मनाने के लिए आये हैं। नया वर्ष मनाने का संकल्प लेकर आये हैं। बापदादा भी नये वर्ष में स्नेह और सहयोग सम्पन्न बधाई दे रहे हैं। संगमयुग नया युग है। भविष्य सतयुग इस वर्तमान नये युग के नये जीवन की प्रालब्ध है। ब्राह्मणों के लिए नवयुग, श्रेष्ठ युग अभी है। जब से ब्राह्मण बने नया युग, नया संसार, नया दिल, नयी रातें शुरू हो गई। इसी नये युग के नये जीवन की हर घड़ी पद्मों तुल्य है। हीरे तुल्य है। सतयुग में यह गीत नहीं गायेंगे - नया दिन लागे, नयी रात लागे। यह अब की बात है। बापदादा ने शुरू से किस गीत से बच्चों को जगाया है! वह गीत याद है? - जाग सजनियाँ जाग.... क्यों जागो? नवयुग आया! बचपन का यही गीत है ना! अभी तो नये-नये गीत बना दिये हैं। आदि गीत बाप ने यही सुनाया ना। तो नवयुग कब हुआ? अब! पुराने के आगे नया लगता है ना। पुरानी दुनिया, पुरानी जीवन बदल गई। नयी जीवन में आ गये ना। बेहोश थे। अपना होश था कि मैं कौन हूँ? तो बेहोश हुए ना। बेहोश से होश में आये। नया जीवन अनुभव किया ना। आँख खुलते नया सम्बन्ध, नया संसार देखा ना। तो नये युग की, नये युग में, नये वर्ष की बधाई!

लौकिक दुनिया में भी हैप्पी न्यू ईयरकहते हैं। वैसे एवर हैपी होते नहीं हैं लेकिन कहेंगे हैपी न्यू ईयर। अब आप सभी रीयल रूप में कहेंगे हैपी न्यू ईयरतो क्या लेकिन - हैपी न्यू युग। सारा ही युग खुशी का युग है। हैपी न्यू ईयर कहते हो तो बधाई देने के समय क्या करते हो? पहले तो फॉरेन का रिवाज है हाथ से हाथ जरूर मिलायेंगे। बापदादा हाथ से हाथ कैसे मिलाते? स्थूल हाथ तो एक सेकण्ड के लिए मिलाते हैं, लेकिन बापदादा सारा ही युग हाथ मिलाते अर्थात् एक ही ‘श्रेष्ठ मतरूपी हाथ दे, हाथ में हाथ मिलाए अन्त में भी साथ में ले जाते हैं। श्रीमत का हाथ सदा आप सबके साथ है। इसलिए सारा ही युग हाथ में हाथ देकर चल रहे हो। हाथ छोड़ा तो क्या हो जायेगा? किनारा हो जायेगा ना। इसलिए सच्चे आशिक सदा हर कदम हाथ में हाथ देकर चलते हैं। हाथ में हाथ देकर चलना यह स्नेह की भी निशानी है और सहयोग की भी निशानी है। कभी भी कोई चलते-चलते थक जाते हैं तो दूसरा उसका हाथ पकड़कर ले जाते हैं ना। रूहानी माशूक आशिकों का हाथ कभी नहीं छोड़ते। अन्त तक वायदा है, हाथ और साथ सदा ही रहेगा। सभी आशिकों ने हाथ तो पक्का पकड़ लिया है ना! ढीला तो नहीं है! छोड़ने वाले तो नहीं हो ना! जो छोड़ते और लेते रहते हैं, वह हाथ उठाओ। कभी छोड़ते, कभी पकड़ते ऐसा कोई है? यह विशेषता है इन्हों की, छिपाने वाले नहीं है। साफ बोलने वाले हैं इसलिए भी आधा विघ्न, साफ सुनाने से खत्म हो जाता है। लेकिन कच्चा सौदा कब तक? पुराने वर्ष में पुरानी रीति रसम समाप्त करनी है ना! यह नये वर्ष में भी यही रीति रसम चलेगी? अब तक जो हुआ उसको फुलस्टाप की बिन्दी लगाए, सदा साथ और हाथ रहने के स्मृति की बिन्दी अब से लगाओ। बड़े दिन वा खुशी के दिन पर विशेष सुहाग, भाग्य और बधाई की बिन्दी अर्थात् तिलक लगाते हैं। आप लोग भी विशेष याद की भटठी के दिन स्मृति की बिन्दी लगाते हो ना! क्यों लगाते हो? भट्टी के दिन बिन्दी खास क्यों लगाते हो? दृढ़ संकल्प की निशानी बिन्दी लगाते हो कि आज का दिन सारा ही सहज योगी और श्रेष्ठ योगीके स्वरूप में रहेंगे। तो आज भी जो थोड़ा सा कच्चा हो तो दृढ़ संकल्प द्वारा फुलस्टाप की बिन्दी लगाओ, दूसरी समर्थ स्वरूप की बिन्दी लगाओ। बिन्दी लगाने आती है? पाण्डवों को बिन्दी लगाने आती है? अच्छा, शक्तियों को बिन्दी लागाने आती है? अविनाशी बिन्दी। आज सुबह भी सभी ने क्या वायदा किया? समारोह मनाना है ना? (मैरेज समारोह मनाना है) अभी मैरेज की नहीं है क्या? बाल बच्चे पैदा नहीं किये हैं? मैरेज तो हो गई है लेकिन मैरेज का दिन मनाने आये हो। जिसकी मैरेज नहीं हुई है - वह हाथ उठाओ। कितना भी नाज नखरे करो लेकिन माशूक छोड़ने वाला नहीं है क्योंकि जानते हैं कि छोड़कर जायेंगे कहाँ जायेंगे! जैसे आजकल का विदेश का रिवाज है ना कि छोड़कर हिप्पी बन जाते हैं तो हिप्पी बनना है क्या! एवर हैपी बनना है या हिप्पी बनना है! क्या हालत होती है जो देख भी नहीं सकते। आप सब तो राज्य अधिकारी हो। इसलिए बापदादा जानते हैं कि कभी-कभी नटखट बन जाते हैं। लेकिन बापदादा ने जो वायदा किया है कि साथ ले जायेंगे तो बाप वायदा नहीं छोड़ सकता। इसलिए साथ चलना ही है। अच्छा।

नये वर्ष में नवीनता क्या करेंगे? कोई नई बात तो करेंगे ना। कोई प्लैन बनाया है? निमित्त टीचर ने कोई नया प्लैन बनाया है? गीता का भगवान तो देश में प्रत्यक्ष करेंगे। विदेश में क्या करेंगे? जो रही हुई बातें हैं उन बातों को प्रैक्टिकल में लाना, यह तो बहुत अच्छी बात है। समय प्रमाण सब बातें प्रैक्टिकल होती जा रही है। इस बात से भारत में तो नगाड़ा बजायेंगे ही। धर्म नेताओं को जगायेंगे, हलचल भी मचायेंगे। जो थोड़ा-सा जागकर बहुत अच्छा कह फिर सो जाते हैं उन्हों के लिए जैसे कोई नींद से नहीं उठता है तो उस पर ठण्डा-ठण्डा पानी डालते हैं। तो भारत वालों पर भी विशेष ठण्डा पानी डालने से जागेंगे। अच्छा तो इस वर्ष क्या नवीनता करेंगे?

जितना लौकिक दुनिया में जिस स्थान पर हलचल हो, उसी हलचल के स्थान पर सदा खुशी की अचल स्थिति का झण्डा लहराना। गवर्मेन्ट हलचल में हो और गुप्त प्रभु रत्न सदा सम्पन्न सदा अचल का विशेष झण्डा लहरायें। गवर्मेन्ट का भी अटेन्शन हो जाए कि यह इस देश में गुप्त वेषधारी कौन-सी विचित्र आत्मायें हैं जो सारे देश में न्यारी और प्यारी हैं। जो अपने को धन से कमज़ोर समझते हैं उन्हों को अविनाशी धन से सम्पन्न कर, हम सबसे भरपूर हैं, हम सदा पद्मापद्मपति हैं, यह अनुभव कराओ। धन की गरीबी का दु:ख उन्हों को भूल जाए। ऐसी लहर फैलाओ। जो भी आवे वह समझे कि अखुट खज़ानों से भरपूर हो गये, और भी कोई धन होता है, वह अनुभव करें। और इसी धन द्वारा यह स्थूल धन भी स्वत: ही समीप आता है। दु:ख नहीं देगा। अच्छाõ तो विदेश में नये वर्ष की नवीनता क्या करेंगे? सेन्टर्स तो खुलते जा रहे हैं और खुलते रहेंगे। अभी इस वर्ष विदेश में भी विशेष क्वालिटी की सर्विस, विशेष रूप से होनी चाहिए। आप सबकी विशेष क्वालिटी तो रही लेकिन आप सभी क्वालिटी वाले और भी विशेष क्वालिटी वाली आत्मायें जो स्थापना के कार्य में सहयोगी बन जाएँ, ऐसा विदेश में चारों ओर से एक गु्रप तैयार करो जो गु्रप मिलकर भारतवासियों की सेवा के अर्थ विशेष निमित्त बने। नामीग्रामी आवाज़ फैलाने वाले अलग ग्रुप हैं लेकिन यह है सम्बन्ध वाले, वह हैं सम्पर्क वाले। और यह ग्रुप चाहिए क्वालिटी वाला जो समीप सम्बन्ध में हो। विशेष जीवन के परिवर्तन के अनुभवी हों। जिसके अनुभवों द्वारा और भी विशेष क्वालिटी वाली आत्मायें, वारिस क्वालिटी निकलती रहे। वह है सेवा के निमित्त ग्रुप और यह है वारिस क्वालिटी सेवाधारी ग्रुप। नागीग्रामी भी हो और वारिस भी हो। ऐसा ग्रुप विदेश में तैयार होने से, देश में सेवा का चक्कर लगायें। राज नेता, धर्म नेता, सर्व प्रकार की आत्माओं को अपने अनुभव की शक्ति द्वारा अनुभव करने की इच्छा उत्पन्न करा सकें। तो ऐसा चक्कर लगाने वाले वारिस सेवाधारी क्वालिटी का ग्रुप तैयार करो। समझा!

विदेश में चारों ओर आवाज़ फैलाने के साधन सहज हैं इसलिए विदेश में आवाज़ फैल भी रहा है और फैलता भी रहेगा। लेकिन भारत में आवाज़ फैलाने के साधन इतने सहज नहीं। भारतवासियों को जगाने के लिए पर्सनल सेवा चाहिए। और वह भी बहुत सिम्पल अनुभव के आवाज़ की सेवा हो। भारतवासी विशेष परिवर्तन के अनुभव से परिवर्तन होंगे। ऐसे विशेष अनुभवी, जिन्हों के अनुभव में ऐसी शक्तिशाली परिवर्तन की बातें हो - ऐसी कहानियाँ सुन करके भारतवासी ज्यादा आकर्षित होंगे। भारत में कथा कहानियाँ सुनने का रिवाज है। समझा

विदेशियों को क्या करना है। इतनी सब टीचर्स आई हैं तो ऐसा ग्रुप तैयार करके लाना। अच्छा-

नये वर्ष की विशेष सौगात

बापदादा वरदान मालादे रहे हैं। सेरीमनी बनाते हैं तो वरमाला डालते हैं। बापदादा सभी आशिकों को वरदान माला की सौगात दे रहे हैं। सदा सन्तुष्टता से सन्तुष्ट रहो और सन्तुष्ट करो। हर संकल्प में विशेषता हो, हर बोल और कर्म में विशेषता हो। ऐसे विशेषता सम्पन्न सदा रहो। सदा सरल स्वभाव, सरल बोल, सरलता सम्पन्न कर्म हों। ऐसे सरल स्वरूप रहे। सदा एक की मत पर, एक से सर्व सम्बन्ध, एक से सर्व प्राप्ति ऐसे एक द्वारा सदा एक रस रहने के सहज अभ्यासी रहो। सदा खुश रहो, खुशी का खज़ाना बाँटो। खुशी की लहर सर्व में फैलाओ। ऐस सदा खुशी की मुस्कराहट चेहरे पर चमकती रहे। ऐसे हर्षित मुख रहो। सदा याद में रहो। वृद्धि को पाओ। ऐसे वरदान माला सदा साथ रहे। समझा। यह है नये वर्ष की सौगात!

अच्छा

ऐसे सदा के वरदानी, सदा हाथ और साथ के अमर श्रेष्ठ आत्मायें, हर संकल्प में नवीनता की विशेषता को जीवन में लाने वाले, ऐसी विशेष आत्माओं को, नव युग के, नये वर्ष की अमर याद-प्यार। उड़ती कला का याद-प्यार और नमस्ते।’’

रात्रि 12 बजे के बाद सभी बच्चों को बधाई

चारों ओर के स्नेही सिकीलधे, सदा सेवाधारी बच्चों को सदा नये उमंग, नये उत्साह भरे जीवन की, नये वर्ष की बधाई हो। संगमयुग नवयुग, जिसमें हर घड़ी नई हो, हर संकल्प नये ते नया उमंग उत्साह दिलाता है। ऐसे युग में नये वर्ष की मुबारक तो सदा बापदादा देते ही हैं फिर भी विशेष दिन पर विशेष याद दे रहे हैं कि सदैव स्वयं भी नये ते नये सेवा में स्वयं के प्रति प्लैन बनाते हुए प्रैक्टिकल में लाते रहो और दूसरों को भी अपने नवीन जीवन से प्रेरणा देते रहो। लण्डन निवासी वा जो भी विदेश में हैं, सभी के याद प्यार और हैपी न्यू ईयर के कार्ड भी पाये, बहुत-बहुत पत्र भी पाये, छोटी बड़ी सौगातें भी पाईं। बापदादा ऐसे नये युग में श्रेष्ठ कर्म करने वाले और नया युग रचने वाले बच्चों को विशेष वरदानों सहित नये वर्ष की बधाई दे रहे हैं। सभी बहुत अच्छे मुहब्बत और मेहनत से सेवा कर रहे हैं और सदा ही सेवा में बिजी रह औरों को भी सेवा द्वारा बाप के वर्से के अधिकारी बनाते है। अच्छा - देश-विदेश के सभी बच्चों को फिर भी बार-बार शुभ बधाईयों से याद-प्यार। अच्छा –

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) सदा अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य है - बाप का सन्देश दे बाप का बनाना। ऐसा श्रेष्ठ कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हो क्योंकि अब की पुण्य आत्मा सदाकाल के लिए पूज्य बन जाती है। पुण्य आत्मा ही पूज्य आत्मा बनती है। अल्पकाल का पुण्य भी फल की प्राप्ति कराता है लेकिन वह है अल्पकाल का, यह है अविनाशी पुण्य। क्योंकि अविनाशी बाप का बनाते हो। इसका फल भी अविनाशी मिलता है। जन्म-जन्म के लिए पूज्य आत्मा बन जायेंगे। तो सदा पुण्य आत्मा समझते हुए हर कर्म पुण्य का करते रहो। पाप का खाता खत्म। पिछला पाप का खाता भी खत्म। क्योंकि पुण्य करतेकरते पुण्य का तरफ ऊँचा हो जायेंगा तो पाप नीचे दब जायेगा। पुण्य करते रहो तो पुण्य का बैलेन्स बढ़ जायेगा और पाप नीचे हो जायेगा अर्थात् खत्म हो जायेगा। सिर्फ चेक करो - हर संकल्प पुण्य का संकल्प हुआ, हर बोल पुण्य के बोल हुए? व्यर्थ बोल भी नहीं। व्यर्थ से पाप नहीं कटेगा। और पुण्य का फल भी नहीं मिलेगा इसलिए हर कर्म, हर बोल, हर संकल्प पुण्य का हो। ऐसे सदा श्रेष्ठ पुण्य का कर्म करने वाली पुण्य आत्मा हैं, यही सदा याद रखो। संगमयुगी ब्राह्मणों का काम ही क्या है? पुण्य करना। और जितना पुण्य का काम करते हो उतना खुशी भी होती है। चलते-फिरते किसको सन्देश देते हो तो उसकी खुशी कितना समय रहती है! तो पुण्य कर्म सदा खुशी का खज़ाना बढ़ाता है। और पाप कर्म खुशी गँवाता है। अगर कभी खुशी गुम होती है तो समझो कोई न कोई बड़ा पाप नहीं तो छोटा अंश मात्र भी जरूर किया होगा। देह-अभिमान में आना यह भी पाप है ना क्योंकि बाप याद नहीं रहा तो पाप ही होगा ना। इसलिए सदा पुण्य आत्मा भव

(2) सदा अपने को निश्चय बुद्धि विजयी रत्न समझते हो? सदा के निश्चय बुद्धि अर्थात् सदा के विजयी। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय स्वत: है। अगर विजय नहीं तो निश्चय में कहाँ न कहाँ कमी है। चाहे स्वयं के निश्चय में, चाहे बाप के निश्चय में, चाहे नॉलेज के निश्चय में, किसी भी निश्चय में कमी माना विजय नहीं। निश्चय की निशानी है - ‘‘विजय’’। अनुभवी हो ना। निश्चय बुद्धि को माया कभी भी हिला नहीं सकती। वह माया को हिलाने वाले होंगे, स्वयं हिलने वाले नहीं। निश्चय का फाउण्डेशन अचल है तो स्वयं भी अचल होंगे। जैसा फाउण्डेशन वैसी मजबूत बिल्डिंग बनती है। निश्चय का फाउण्डेशन अचल है तो कर्म रूपी बिल्डिंग भी अचल होगी। माया को अच्छी तरह से जान गये हो ना। माया क्यों और कब आती है, यह ज्ञान है ना। जिसको पता है कि इस रीति से माया आती है। तो वह सदा सेफ रहेंगे ना। अगर मालूम है कि यहाँ से इस रीति से दुश्मन आयेगा तो सेफ्टी करेंगे ना। आप भी समझदार हो तो माया वार क्यों करे। माया की हार होनी चाहिए। सदा विजयी रत्न हैं, कल्प-कल्प के विजयी हैं, इस स्मृति से समर्थ बन आगे बढ़ते चलो। कच्चे पत्तों को चिड़ियायें खा जाती है इसलिए पक्के बनो। पक्के बन जायेंगे तो माया रूपी चिड़िया खायेगी नहीं। सेफ रहेंगे। अच्छा –

(3) सदा शान्ति के सागर की सन्तान शान्त स्वरूप आत्मा बन गये? हम विश्व में शान्ति स्थापन करने वाली आत्मा हैं, यह नशा रहता है? स्व धर्म भी शान्त और कर्त्तव्य भी विश्व शान्ति स्थापन करने का। जो स्वयं शान्त स्वरूप हैं वही विश्व में शान्ति स्थापन कर सकते हैं। शान्ति के सागर बाप की विशेष सहयोगी आत्मायें हैं। बाप का भी यही काम है तो बच्चों का भी यही काम है। तो स्वयं सदा शान्त स्वरूप, अशान्ति का नाम-निशान भी न हो। अशान्ति की दुनिया छूट गई। अभी शान्ति की देवी, शान्ति के देव बन गये। शान्ति देवाकहते हैं ना। शान्ति देने वाले शान्ति देवा और शान्ति देवी बन गये। इसी कार्य में सदा बिजी रहने से मायाजीत स्वत: हो जायेंगे। जहाँ शान्ति है वहाँ माया कैसे आयेगी? शान्ति अर्थात् रोशनी के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता। अशान्ति भाग गई, आधा कल्प के लिए विदाई दे दी। ऐसे विदाई देने वाले हो ना!

(4) सदा अपने को बाप के साथ रहने वाले सदा के सहयोग लेने वाली आत्मायें समझते हो? सदा साथ का अनुभव करते हो? जहाँ सदा बाप का साथ है वहाँ सहज सर्व प्राप्ति हैं। अगर बाप का साथ नहीं तो सर्व प्राप्ति भी नहीं क्योंकि बाप है सर्व प्राप्तियों का दाता। जहाँ दाता साथ है वहाँ प्राप्तियाँ भी साथ होंगी। सदा बाप का साथ अर्थात् सर्व प्राप्तियों के अधिकारी। सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें अर्थात् भरपूर आत्मायें सदा अचल रहेंगी। भरपूर नहीं तो हिलते रहेंगे। सम्पन्न अर्थात् अचल। जब बाप साथ दे रहा है तो लेने वालों को लेना चाहिए ना। दाता दे रहा है तो पूरा लेना चाहिए, थोड़ा नहीं। भक्त थोड़ा लेकर खुश हो जाते लेकिन ज्ञानी अर्थात् पूरा लेने वाले।

जर्मन ग्रुप से

सदा अपने को बाप के समीप रत्न समझते हो? जितना दूर रहते, देश से दूर भले हो लेकिन दिल से नज़दीक हो। ऐसे अनुभव होता है ना। जो सदा याद में रहते हैं, याद समीप अनुभव कराती है। सहज योगी हो ना। जब बाबा कहा तो बाबाशब्द ही सहज योगी बना देता है । बाबाशब्द जादू का शब्द है। जादू की चीज़ बिना मेहनत के प्राप्ति कराती है। आप सभी को जो भी चाहिए - सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, शक्ति चाहिए जो भी चाहिए बाबाशब्द कहेंगे तो सब मिल जायेगा। ऐसा अनुभव है! बापदादा भी, बिछुड़े हुए बच्चे जो फिर से आकर मिले हैं, ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। ज्यादा खुशी किसको? आपको है या बाप को? बापदादा सदा हर बच्चे की विशेषता सिमरण करते हैं। कितने लकी हो। अनुभव करते हो कि बाप हमको याद करते हैं? सभी अपनी-अपनी विशेषता में विशेष आत्मा हो। यह विशेषता तो सभी की है - जो दूर देश में होते, दूसरे धर्म में जाकर फिर भी बाप को पहचान लिया। तो इस विशेष संस्कार से विशेष आत्मा हो गये।

अच्छा - ओम शान्ति।