01-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नव वर्ष पर नवीनता की मुबारक
सदा वरदानी महादानी बापदादा बोले–
आज चारों ओर के सर्व स्नेही-सहयोगी और शक्तिशाली बच्चों के अमृतवेले से मीठे-मीठे, मन के श्रेष्ठ संकल्प, स्नेह के वायदे, परिवर्तन के वायदे, बाप समान बनने के उमंग उत्साह के दृढ़ संकल्प अर्थात् अनेक रूहानी साजों भरे मन के गीत, मन के मीत के पास पहुँचे। मन के मीत, सभी के मीठे गीत सुन श्रेष्ठ संकल्प से अति हर्षित हो रहे थे। मन के मीत, अपने सर्व रूहानी मीत को, गाडली फ्रेंड्स को सभी के गीतों का रेसपाण्ड दे रहे हैं। सदा हर संकल्प में हर सेकेण्ड में, हर बोल में होली, हैप्पी, हेल्दी रहने की बधाई हो। सदा सहयोग का हाथ मन के मीत के कार्य में सहयोग के संकल्प के हाथ में हाथ हो। चारों ओर के बच्चों के संकल्प, पत्र, कार्ड और साथ-साथ याद की निशानी स्नेह की सौगातें सब बापदादा को पहुँच गई। बापदादा सदा हर बच्चे के बुद्धि रूपी मस्तक पर वरदान का सदा सफलता का आशीर्वाद का हाथ नये वर्ष की बधाई में सब बच्चों को दे रहे हैं। नये वर्ष में सदा हर प्रतिज्ञा को प्रत्यक्ष रूप में लाने का अर्थात् हर कदम में फालो फादर करने का विशेष स्मृति स्वरूप का तिलक सतगुरू सभी आज्ञाकारी बच्चों को दे रहे हैं। आज के दिन छोटे-बड़े सभी के मुख में बधाई का बोल बार-बार रहता ही है। ऐसे ही सदा नया साज है। सदा नया सेकण्ड है। सदा नया संकल्प है। इसलिए हर सेकण्ड बधाई है। सदा नवीनता की बधाई दी जाती है। कोई भी नई चीज़ हो, नया कार्य हो तो मुबारक जरूर देते हैं। मुबारक नवीनता को दी जाती है। तो आप सबके लिए सदा ही नया है। संगमयुग की यह विशेषता है। संगमयुग का हर कर्म उड़ती कला में जाने का है। इस कारण सदा नये ते नया है। सेकण्ड पहले जो स्टेज थी, स्पीड थी वह दूसरे सेकण्ड उससे ऊँची है अर्थात् उड़ती कला की ओर है। इसलिए हर सेकण्ड की स्टेज स्पीड ऊँची अर्थात् नई है। तो आप सबके लिए हर सेकण्ड के संकल्प की नवीनता की मुबारक हो। संगमयुग है ही बधाईयों का युग। सदा मुख मीठा, जीवन मीठी, सम्बन्ध मीठे अनुभव करने का युग है। बापदादा नये वर्ष की सिर्फ मुबारक नहीं देते लेकिन संगमयुग के हर सेकण्ड की, संकल्प की श्रेष्ठ बधाईयाँ देते हैं। लोग तो आज मुबारक देंगे कल खत्म। बापदादा सदा की मुबारक देते, बधाईयाँ देते। नवयुग के समीप आने की मुबारक देते। संकल्प के गीत बहुत अच्छे सुने। सुन-सुनकर बापदादा गीतों के साज और राज़ में समा जाते।
आज वतन में गीत माला का प्रोग्राम अमृतवेले से सुन रहे थे। अमृतवेला भी देश-विदेश के हिसाब से अपना-अपना है। हर बच्चा समझता है अमृतवेले सुना रहे हैं। बापदादा तो निरन्तर सुन रहे हैं। हर एक के गीत की रीति भी बड़ी प्यारी है। साज भी अपने-अपने हैं। लेकिन बापदादा को सबके गीत प्यारे हैं। मुबारक तो दे दी। चाहे मुख से दी, चाहे मन से दी। रीति प्रमाण दी या प्रीत की रीति निभाने के श्रेष्ठ संकल्प से दी। अभी आगे क्या करेंगे? जैसे सेवा के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं ऐसे सर्व श्रेष्ठ संकल्प वा वायदे पूरे करेंगे वा संकल्प तक ही रहने देंगे? वायदे तो हर वर्ष बहुत अच्छे-अच्छे करते हो। जैसे आज की दुनिया में दिन प्रतिदिन कितने अच्छे-अच्छे कार्ड बनाते रहते हैं। तो संकल्प भी हर वर्ष से श्रेष्ठ करते हो लेकिन संकल्प और स्वरूप दोनों ही समान हो। यही महानता है। इस महानता में ‘जो ओटे सो अर्जुन’। वह कौन बनेगा? सब समझते हैं हम बनेंगे। दूसरे अर्जुन बनते है या भीम बनते हैं उसको नहीं देखना है। मुझे नम्बरवन अर्थात् अर्जुन बनना है। हे अर्जुन ही गाया हुआ है। हे भीम नहीं गाया हुआ है। अर्जुन की विशेषता सदा बिन्दी में स्मृति स्वरूप बन विजयी बनना है। ऐसे नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनने वाला अर्जुन। सदा गीता ज्ञान सुनने और मनन करने वाला अर्जुन। ऐसा विदेही, जीते जी सब मरे पड़े हैं - ऐसे बेहद की वैराग वृत्ति वाले अर्जुन कौन बनेंगे? बनना है कि सिर्फ बोलना है? नया वर्ष कहते हो, सदा हर सेकण्ड में नवीनता। मन्सा में, वाणी में, कर्म में, सम्बन्ध में नवीनता लाना। यही नये वर्ष की बधाई सदा साथ रखना। हर सेकण्ड, हर समय स्थिति की परसेन्टेज आगे से आगे हो। जैसे कोई मंज़िल पर पहुँचने के लिए जितने कदम उठाते जाते तो हर कदम में समीपता के आगे बढ़ते जाते। वहीं के वहीं नहीं रूकते। ऐसे हर सेकण्ड वा हर कदम में समीपता और सम्पूर्णता के समीप आने के लक्षण स्वयं को भी अनुभव हों और दूसरों को भी अनुभव हों। इसको कहा जाता है परसेन्टेज को आगे बढ़ाना। अर्थात् कदम आगे बढ़ाना। परसेन्टेज की नवीनता, स्पीड की नवीनता इसको कहा जाता है। तो हर समय नवीनता को लाते रहो। सब पूछते हैं नया क्या करें? पहले स्व में नवीनता लाओ। तो सेवा में नवीनता स्वत: आ जायेगी। आज के लोग प्रोग्राम की नवीनता नहीं चाहते हैं लेकिन प्रभाव की नवीनता चाहते हैं। तो स्व की नवीनता से प्रभाव में नवीनता स्वत: ही आयेगी।
इस वर्ष प्रभावशाली बनने की विशेषता दिखाओ। आपस में ब्राह्मण आत्मायें जब सम्पर्क में आते हो तो सदा हर एक के प्रति मन की भावना स्नेह सहयोग और कल्याण की प्रभावशाली हो। हर बोल किसी को हिम्मत हुल्लास देने के प्रभावशाली हों। व्यर्थ नहीं हो। साधारण बातचीत में आधा घण्टा भी बिता देते हो। फिर सोंचते हो इसकी रिजल्ट क्या निकली? तो ऐसे न बुरा न अच्छा, साधारण बोल चाल यह भी प्रभावशाली बोल नहीं कहेंगे। ऐसे ही हर कर्म फलदायक हो। चाहे स्व के प्रति, चाहे दूसरों के प्रति। तो आपस में भी हर रूप में रूहानी प्रभावशाली बनो। सेवा में भी रूहानी प्रभावशाली बनो। मेहनत अच्छी करते हो। दिल से करते हो। यह तो सब कहते हें लेकिन यह राजयोगी फरिश्ते हैं, रूहानियत है तो यहाँ ही है, परमात्म कार्य यही है, ऐसा बाप को प्रत्यक्ष करने का प्रभाव हो। जीवन अच्छी है, कार्य अच्छा है यह भी कहते हैं लेकिन परमात्म कार्य है, परमात्म बच्चे हैं, यही सम्पन्न जीवन सम्पूर्ण जीवन है। यह प्रभाव हो। सेवा में और प्रभावशाली होना है, अभी यह लहर फैलाओ जो कहें कि हम भी अच्छा बनें। आप बहुत अच्छे हो, यह भक्त माला बन रही है लेकिन अभी विजय माला अर्थात् स्वर्ग के अधिकारी बनने की माला पहले तैयार करो। पहले जन्म में ही 9 लाख चाहिए। भक्त माला बहुत लम्बी है। राज्य के अधिकारी, राज्य करने की नहीं। राज्य में आने के अधिकारी वह भी अभी चाहिए। तो अभी ऐसी लहर फैलाओ। जो अच्छा कहने वाले अच्छा बनने में सम्पर्क वाले, कम से कम प्रजा के सम्बन्ध में तो आ जाएँ। फिर भी आपके सम्पर्क में आते हैं। स्वर्ग के अधिकारी तो बनायेंगे ना। ऐसा सेवा में प्रभावशाली बनो। यह वर्ष प्रभावशाली बनने और प्रभाव द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने की विशेषता से विशेष रूप से मनाओ। स्वयं नहीं प्रभावित होना। लेकिन बाप पर प्रभावित करना। समझा। जैसे भक्ति में कहते हो ना कि यह सब परमात्मा के रूप हैं। वह उल्टी भावना से कह देते हैं। लेकिन ज्ञान के प्रभाव से आप सबके रूप में बाप का रूप अनुभव करें। जिसको भी देखें तो परमात्म स्वरूप की अनुभूति हो। तब नवयुग आयेगा। अभी पहले जन्म की प्रजा तैयार नहीं की है। पिछली प्रजा तो सहज बनेगी। लेकिन पहले जन्म की प्रजा। जैसे राजा शक्तिशाली होगा वैसे पहली प्रजा भी शक्तिशाली होगी। तो संकल्प के बीज को सदा फल स्वरूप में लाते रहना। प्रतिज्ञा को प्रत्यक्षता के रूप में सदा लाते रहना। डबल विदेशी क्या करेंगे? सबमें डबल रिजल्ट निकालेंगे ना। हर सेकण्ड की नवीनता से हर सेकण्ड बाप की मुबारक लेते रहना। अच्छा।
सदा हर संकल्प में नवीनता की महानता दिखाने वाले, हर समय उड़ती कला का अनुभव करने वाले, सदा प्रभावशाली बन बाप का प्रभाव प्रत्यक्ष करने वाले, आत्माओं में नई जीवन बनाने की नई प्रेरणा देने वाले, नव युग के अधिकारी बनाने की श्रेष्ठ लहर फैलाने वाले - ऐसे सदा वरदानी महादानी आत्माओं को बापदादा का सदा नवीनता के संकल्प के साथ याद प्यार और नमस्ते।’’
दादियों से- शक्तिशाली संकल्प का सहयोग विशेष आज की आवश्यकता है। स्वयं का पुरूषार्थ अलग चीज़ है लेकिन श्रेष्ठ संकल्प का सहयोग इसकी विशेष आवश्यकता है। यही सेवा आप विशेष आत्माओं की है। संकल्प से सहयोग देना इस सेवा को बढ़ाना है। वाणी से शिक्षा देने का समय बीत गया। अभी श्रेष्ठ संकल्प से परिवर्तन करना है। श्रेष्ठ भावना से परिवर्तन करना इसी सेवा की आवश्यकता है। यही बल सभी को आवश्यक है। संकल्प तो सब करते हैं लेकिन संकल्प में बल भरना वह आवश्यकता है। तो जितना जो स्वयं शक्तिशाली है उतना औरों में भी संकल्प में बल भर सकते हैं। जैसे आजकल सूर्य की शक्ति जमा कर कई कार्य सफल करते हैं ना। यह भी संकल्प की शक्ति इकट्ठी की हुई, उससे औरों को भी बल भर सकते हो। कार्य सफल कर सकते हो। वह साफ कहते हैं - हमारे में हिम्मत नहीं है। तो उन्हें हिम्मत देनी है। वाणी से भी हिम्मत आती है लेकिन सदाकाल की नहीं। वाणी के साथ-साथ श्रेष्ठ संकल्प की सूक्ष्म शक्ति ज्यादा कार्य करती है। जितना जो सूक्ष्म चीज़ होती है वह ज्यादा सफलता दिखाती है। वाणी से संकल्प सूक्ष्म हैं ना। तो आज इसी की आवश्यकता है। यह संकल्प शक्ति बहुत सूक्ष्म है। जैसे इन्जेक्शन के द्वारा ब्लड में शक्ति भर देते हैं ना। ऐसे संकल्प एक इन्जेक्शन का काम करता है। जो अन्दर वृत्ति में संकल्प द्वारा संकल्प में शक्ति आ जाती है। अभी यह सेवा बहुत आवश्यक है। अच्छा –
टीचर्स से- निमित्त सेवाधारी बनने में विशेष भाग्य की प्राप्ति का अनुभव करती हो? सेवा के निमित्त बनना अर्थात् गोल्डन चांस मिलना। क्योंकि सेवाधारी को स्वत: ही याद और सेवा के सिवाए और कुछ रहता नहीं। अगर सच्चे सेवाधारी है तो दिन रात सेवा में बिजी होने के कारण सहज ही उन्नति का अनुभव करते हैं। यह मायाजीत बनने की एकस्ट्रा लिफ्ट है। तो निमित्त सेवाधारी जितना आगे बढ़ने चाहें उतना सहज आगे बढ़ सकते हैं। यह विशेष वरदान है। तो जो एकस्ट्रा लिफ्ट वा गोल्डन चांस मिला है उससे लाभ लिया है? सेवाधारी स्वत: ही सेवा का मेवा खाने वाली आत्मा बन जाते हैं। क्योंकि सेवा का प्रत्यक्षफल अभी मिलता है। अच्छी हिम्मत रखी है। हिम्मत वाली आत्माओं पर बापदादा की मदद का हाथ सदा है। इसी मदद से आगे बढ़ रही हो और बढ़ती रहना। यही बाप की मदद का हाथ सदा के लिए आशीर्वाद बन जाता है। बापदादा सेवाधारियों को देख विशेष खुश होते हैं क्योंकि बाप समान कार्य में निमित्त बनें हुए हो। सदा आप समान शिक्षकों की वृद्धि करते चलो। सदा नया उमंग नया उत्साह स्वयं में धारण करो और दूसरों को भी दिखाओ। आपका उमंग देखकर स्वत: सेवा होती रहे। हर समय कोई सेवा की नवीनता का प्लैन बनाते रहो। ऐसा प्लैन हो जो विहंग मार्ग की सेवा का विशेष साधन हो। अभी ऐसी कोई कमाल करके दिखाओ। जब स्वयं निर्विघ्न हो, अचल हो तो सेवा में नवीनता सहज दिखा सकते हो। जितना योगयुक्त बनेंगे उतनी नवीनता टच होगी। ऐसा करना है और याद के बल से सफलता मिल जायेगी। तो विशेष कोई कार्य करके दिखाओ।
पार्टियों से
1. सर्व खज़ानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? कितने खज़ाने मिले हैं वह जानते हो? गिनती कर सकते हो। अविनाशी हैं और अनगिनत हैं। तो एक एक खज़ाने को स्मृति में लाओ। खज़ाने को स्मृति में लाने से खुशी होगी। जितना खज़ानों की स्मृति में रहेंगे उतना समर्थ बनते जायेंगे और जहाँ समर्थ हैं वहाँ व्यर्थ खत्म हो जाता है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, व्यर्थ बोल सब बदल जाता है। ऐसा अनुभव करते हो? परिवर्तन हो गया ना। नई जीवन में आ गये। नई जीवन, नया उमंग, नया उत्साह हर घड़ी नई, हर समय नया। तो हर संकल्प में नया उमंग, नया उत्साह रहे। कल क्या थे आज क्या बन गये! अभी पुराना संकल्प, पुराना संस्कार रहा तो नहीं है! थोड़ा भी नहीं तो सदा इसी उमंग में आगे बढ़ते चलो। जब सब कुछ पा लिया तो भरपूर हो गये ना। भरपूर चीज़ कभी हलचल में नहीं आती। सम्पन्न बनना अर्थात् अचल बनना। तो अपने इस स्वरूप को सामने रखो कि हम खुशी के खज़ाने से भरपूर भण्डार बन गये। जहाँ खुशी है वहाँ सदाकाल के लिए दुख दूर हो गये। जो जितना स्वयं खुश रहेंगे उतना दूसरों को खुश खबरी सुनायेंगे। तो खुश रहो और खुशखबरी सुनाते रहो।
2. सदा विस्तार को प्राप्त करने वाला रूहानी बगीचा है ना। और आप सभी रूहानी गुलाब हो ना। जैसे सभी फूलों में रूहे गुलाब श्रेष्ठ गाया जाता है। वह हुआ अल्पकाल की खुशबू देने वाला। आप कौन हो? रूहानी गुलाब अर्थात् अविनाशी खुशबू देने वाले। सदा रूहानियत की खुशबू में रहने वाले और रूहानी खुशबू देने वाले। ऐसे बने हो? सभी रूहानी गुलाब हो या दूसरे-दूसरे। और भी भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल होते हैं लेकिन जितना गुलाब के पुष्प की वैल्यु है उतनी औरों की नहीं। परमात्म बगीचे के सदा खिले हुए पुष्प हो। कभी मुरझाने वाले नहीं। संकल्प में भी कभी माया से मुरझाना नहीं। माया आती है माना मुरझाते हो। मायाजीत हो तो सदा खिले हुए हो। जैसे बाप अविनाशी है ऐसे बच्चे भी सदा अविनाशी गुलाब हैं। पुरूषार्थ भी अविनाशी है तो प्राप्ति भी अविनाशी है।
3. सदा अपने को सहयोगी अनुभव करते हो? सहज लगता है या मुश्किल लगता है? बाप का वर्सा बच्चों का अधिकार है। तो अधिकार सदा सहज प्राप्त मिलता है। जैसे लौकिक बाप का अधिकार बच्चों को सहज होता है। तो आप भी अधिकारी हो। अधिकारी होने के कारण सहजयोगी हो। मेहनत करने की आवश्यकता नहीं। बाप को याद करना कभी मुश्किल होता ही नहीं है। यह बेहद का बाप है और अविनाशी बाप है। इसलिए सदा सहजयोगी आत्माएँ। भक्ति अर्थात् मेहनत, ज्ञान अर्थात् सहज फल की प्राप्ति। जितना सम्बन्ध और स्नेह से याद करते हो उतना सहज अनुभव होता है। सदा अपना यह वरदान याद रखना कि - ‘मैं हूँ ही सहजयोगी’। तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति स्वत: बन जायेगी।
4. बाप मिला सब कुछ मिला, इसी खुशी में रहते हो? बाप का बनना अर्थात् सर्व गुणों के, सर्व ज्ञान रत्नों के खज़ाने के मालिक बनना। तो ऐसे मालिकपन की खुशी सदा रहती है? बाप के ही थे लेकिन माया ने दूर कर दिया, बिछुड़ गये अब फिर बाप ने अपना बना लिया! यही खुशी और स्मृति सदा आगे बढ़ाती रहेगी। सदा अपने आपको देखो कि हर सबजेक्ट में कहाँ तक समीप पहुँचे हैं। जहाँ बाप का साथ है वहाँ सहयोग सदा प्राप्त होता रहता है। सदा बाप हमारा सहयोगी है इस श्रेष्ठ भाग्य के गीत गाते रहो। वाह भाग्य और वाह भाग्य विधाता - यह दोनों स्मृतियाँ स्वतः ही नष्टोमोहा बना देंगी। और सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सदा एक बल और एक भरोसे में रहते हुए सबको यही अनुभव कराओ। सन्देश देते चलो। एक दिन अवश्य आयेगा जो बाप की प्रत्यक्षता विश्व में होगी।
5. ‘स्वउन्नति’ सेवा की उन्नति का विशेष आधार है। तो सदा स्व उन्नति अनुभव करते हो? जो कल थे वह आज और आगे बढ़े। इसको कहते हैं ‘स्वउन्नति’। स्वउन्नति कम है तो सेवा भी कम है। जो भी कर्म करते हो उस श्रेष्ठ कर्म द्वारा सेवा करने वाले सदा प्रत्यक्ष फल प्राप्त करते रहते हैं। सिर्फ किसी को मुख से परिचय देना ही सेवा नहीं है। लेकिन कर्म द्वारा भी श्रेष्ठ कर्म की प्रेरणा देना यह भी सेवा है। सदा सेवाधारी अर्थात् मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों में सदा सेवा करने वाले। सेवा ही श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव कराती है। जितनी सेवा करते हो उतना स्वयं भी आगे बढ़ते रहते हो। दूसरों को देना अर्थात् स्वयं में भरना। ‘सेवा ब्राह्मण जीवन का धर्म है’। जैसे जीवन के और-और स्थूल धर्म हैं ऐसे ब्राह्मण जीवन का स्वधर्म हैं। सेवा का चांस मिले तो करेंगे, नहीं। सदा चांस है। करने वाले करें तो चांस ही चांस है। कितना बड़ा जंगल है। इसमें जितना जो करे उतना अपने लिए वर्तमान और भविष्य बनाता है। तो सदा के सेवाधारी हैं यह लक्ष्य पक्का रहे। सेवा के बिना जीवन नहीं। मन्सा करो, वाणी से करो, कर्म से करो, सम्पर्क से करो लेकिन सेवा जरूर करनी है। सेवा के बिना रह नहीं सकते - इसको कहते हैं ‘सेवाधारी’।
6. स्वयं को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् राज्य अधिकारी तो राजा बने हो? या कभी राजा का राज्य, कभी प्रजा का? राजयोगी माना सदा राजा बन राज्य चलाने वाले। कभी भी अधीन बनने वाले नहीं। राजयोगी कभी प्रजायोगी नहीं बन सकते। योगी का अर्थ ही है - निरन्तर याद में रहने वाले। तो योगी भी हो और राजा भी हो। योगी जीवन का अर्थ है याद कभी भूल नहीं सकती। योग लगाने वाले येगी नहीं। योगी जीवन वाले योगी हो। लगाने वाले का कब लगेगा कब नहीं लेकिन ‘जीवन’ सदा रहती है। खाते-पीते, चलते जीवन होती है। या सिर्फ जब बैठते हो तब जीवन है चलते हो तब जीवन है? हर कार्य करते जीवन है। तो यही स्मृति रहे कि हम ‘योगी-जीवन’ वाले हैं। अभी के भी राजे हैं और जन्म-जन्म के भी राजे हैं। अभी राजे नहीं तो भविष्य में भी नहीं।
7. अपने को संगमयुगी सच्चे ब्राह्मण समझते हो! वह हैं नामधारी ब्राह्मण और आप हो पुण्य का काम करने वाले ब्राह्मण। ब्राह्मण अर्थात् स्वयं भी ऊँची स्थिति में रहने वाले और दूसरों को भी श्रेष्ठ बनाने के निमित्त बनने वाले। यही आपका काम है। सदा बेहद बाप के हैं बेहद की सेवा के निमित्त हैं, यही याद रखो। बेहद सेवा ही उड़ती कला में जाने का साधन है। अच्छा –
06-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग - जमा करने का युग
त्रिकालदर्शी शिव बाबा बोले
आज सर्व बच्चों के तीनों काल को जानने वाले त्रिकालदर्शी बापदादा सभी बच्चों के जमा का खाता देख रहे हैं। यह तो सभी जानते ही हो कि सारे कल्प में श्रेष्ठ खाता जमा करने का समय सिर्फ यही ‘संगमयुग’ है। छोटा-सा युग, छोटी-सी जीवन है। लेकिन इस युग, इस जीवन की विशेषता है जो अब ही जितना जमा करने चाहें वह कर सकते हैं। इस समय के श्रेष्ठ खाते के प्रमाण पूज्य पद भी पाते हो और फिर पूज्य सो पुजारी भी बनते हो। इस समय के श्रेष्ठ कर्मों का, श्रेष्ठ नॉलेज का, श्रेष्ठ सम्बन्ध का, श्रेष्ठ शक्तियों का, श्रेष्ठ गुणों का सब श्रेष्ठ खाते अभी जमा करते हो। द्वापर से भक्ति का खाता अल्पकाल का अभी-अभी किया, अभी-अभी फल पाया और खत्म हुआ। भक्ति का खाता अल्पकाल का इसलिए है - क्योंकि अभी कमाया और अभी खाया। जमा करने का अविनाशी खाता जो जन्म-जन्म चलता रहे वह अविनाशी खाते जमा करने का अभी समय है इसलिए इस श्रेष्ठ समय को ‘पुरूषोत्तम युग या धर्माऊ युग’ कहा जाता है। ‘परमात्म अवतरण युग’ कहा जाता है। डायरेक्ट बाप द्वारा प्राप्त शक्तियों का युग कहा जाता है। इसी युग में ही बाप विधाता और वरदाता का पार्ट बजाते हैं। इसलिए इस युग को ‘वरदानी युग’ भी कहा जाता है। इस युग में स्नेह के कारण बाप भोले भण्डारी बन जाते हैं। जो एक का पद्मगुणा फल देता है। एक का पद्मगुणा जमा होने का विशेष भाग्य अभी ही प्राप्त होता है। और युगों में जितना और उतना का हिसाब है। अन्तर हुआ ना! क्योंकि अभी डायरेक्ट बाप वर्से और वरदान दोनों रूप में प्राप्ति कराने के निमित्त हैं। भक्ति में भावना का फल है, अभी वर्से और वरदान का फल है। इसलिए इस समय के महत्त्व को जान, प्राप्तियों को जान, जमा के हिसाब को जान, त्रिकालदर्शी बन हर कदम उठाते रहते हो? इस समय का एक सेकण्ड कितने साधारण समय से बड़ा है - वह जानते हो? सेकण्ड में कितना कमा सकते हो और सेकण्ड में कितना गँवाते हो, यह अच्छी तरह से हिसाब जानते हो? वा साधारण रीति से कुछ कमाया कुछ गँवाया? ऐसा अमूल्य समय समाप्त तो नहीं कर रहे हो? ब्रह्माकुमार- ब्रह्माकुमारी तो बने लेकिन अविनाशी वर्से और और विशेष वरदानों के अधिकारी बने? क्योंकि इस समय के अधिकारी जन्म-जन्म के अधिकारी बनते हैं। इस समय के किसी न किसी स्वभाव वा संस्कार वा किसी सम्बन्ध के अधीन रहने वाली आत्मा, जन्म-जन्म अधिकारी बनने के बजाए प्रजा पद के अधिकारी बनते हैं। राज्य अधिकारी नहीं। प्रजा पद अधिकारी बनते हैं। बनने आये हैं राजयोगी, राज्य अधिकारी लेकिन अधीनता के संस्कार कारण विधाता के बच्चे होते हुए भी राज्य अधिकारी नहीं बन सकते। इसलिए सदा यह चेक करो - स्व अधिकारी कहाँ तक बने हैं? जो स्व अधिकार नहीं पा सकते वह विश्व का राज्य कैसे प्राप्त करेंगे? विश्व के राज्य अधिकारी बनने का चैतन्य मॉडल, अभी स्व-राज्य अधिकारी बनने से तैयार करते हो। कोई भी चीज़ का पहले माडल तैयार करते हो ना। तो पहले इस माडल को देखो।
स्व-अधिकारी अर्थात् सर्व कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा के राजा बनना। प्रजा का राज्य है या राजा का राज्य है? यह तो जान सकते हो ना कि प्रजा का राज्य है तो राजा नहीं कहलायेंगे। प्रजा के राज्य में राजवंश समाप्त हो जाता है। कोई भी एक कर्मेन्द्रिय धोखा देती है तो स्व-राज्य अधिकारी नहीं कहेंगे। ऐसे भी कभी नहीं सोचना कि एक दो कमज़ोरी तो होती ही हैं। सम्पूर्ण तो लास्ट में बनना है। लेकिन बहुत काल की एक कमज़ोरी भी समय पर धोखा दे देती है। बहुत काल के अधीन बनने के संस्कार अधिकारी बनने नहीं देंगे। इसलिए अधिकारी अर्थात् ‘स्व-अधिकारी’। अन्त में सम्पूर्ण हो जायेंगे, इस धोखे में नहीं रह जाना। बहुत काल का स्व-अधिकार का संस्कार बहुत काल के विश्व-अधिकारी बनायेगा। थोड़े समय के स्व-राज्य अधिकारी थोड़े समय के लिए ही विश्व-राज्य अधिकारी बनेंगे। जो अभी बाप की समानता की आज्ञा प्रमाण बाप के दिलतख्तनशीन बनते हैं वो ही राज्य तख्तनशीन बनते हैं। बाप समान बनना अर्थात् बाप के दिल तख्तनशीन बनना। जैसे ब्रह्मा बाप सम्पन्न और समान बने ऐसे सम्पूर्ण और समान बनो। राज्य तख्त के अधिकारी बनो। किसी भी प्रकार के अलबेलेपन में अपना अधिकार का वर्सा वा वरदान कम नहीं प्राप्त करना। तो जमा का खाता चेक करो। नया वर्ष शुरू हुआ है ना। पिछला खाता चेक करो और नया खाता समय और बाप के वरदान से ज्यादा से ज्यादा जमा करो। सिर्फ कमाया और खाया ऐसा खाता नहीं बनाओ! अमृतवेले योग लगाया जमा किया। क्लास में स्टडी कर जमा किया और फिर सारे दिन में परिस्थितियों के वश वा माया के वार के वश वा अपने संस्कारों के वश, जो जमा किया वह युद्ध करते विजयी बनने में खर्च किया। तो रिजल्ट क्या निकली? कमाया और खाया! जमा क्या हुआ? इसलिए जमा का खाता सदा चेक करो और बढ़ाते चलो। ऐसे ही चार्ट में सिर्फ राइट नहीं करो। क्लास किया? हाँ। योग किया? लेकिन जैसे शक्तिशाली योग समय के प्रमाण होना चाहिए वैसे रहा? समय अच्छा पास किया, बहुत आनन्द आया, वर्तमान तो बना लेकिन वर्तमान के साथ जमा भी किया! इतना शक्तिशाली अनुभव किया? चल रहे हैं, सिर्फ यह चेक नहीं करो। किसी से भी पूछो कैसे चल रहे हो? तो कह देते बहुत अच्छे चल रहे हैं। लेकिन किस स्पीड में चल रहे हैं, यह चेक करो। चींटी की चाल चल रहे हैं वा राकेट की चाल चल रहे हैं? इस वर्ष सभी बातों में शक्तिशाली बनने की स्पीड को और परसेन्टेज को चेक करो। कितनी परसेन्टेज में जमा कर रहे हो? 5 रूपया भी कहेंगे जमा हुआ। 500 रूपया भी कहेंगे जमा हुआ! जमा तो किया लेकिन कितना किया? समझा क्या करना है।
गोल्डन जुबली की ओर जा रहे हो - यह सारा वर्ष गोल्डन जुबली का है ना! तो चेक करो हर बात में गोल्डन एजड अर्थात् सतोप्रधान स्टेज है? वा सतो अर्थात् सिलवर एजड स्टेज है? पुरूषार्थ भी सतोप्रधान गोल्डन एजड हो। सेवा भी गोल्डन एजड हो। जरा भी पुराने संस्कार का अलाए (खाद) नहीं हो। ऐसे नहीं जैसे आजकल चांदी के ऊपर भी सोने का पानी चढ़ा देते हैं। बाहर से तो सोना लगता है लेकिन अन्दर क्या होता है? मिक्स कहेंगे ना! तो सेवा में भी अभिमान और अपमान का अलाए मिक्स न हो। इसको कहा जाता है गोल्डन एजड सेवा। स्वभाव में भी ईर्ष्या, सिद्ध और जिद का भाव न हो। यह है अलाए। इस अलाए को समाप्त कर गोल्डन एजड स्वभाव वाले बनो। संस्कार में सदा - हाँ जी। जैसा समय, जैसी सेवा वैसे स्वयं को मोल्ड करना है अर्थात् रीयल गोल्ड बनना है। मुझे मोल्ड होना है। दूसरा करे तो करूँ, यह जिद्द हो जाती है। यह रीयल गोल्ड नहीं! यह अलाए समाप्त कर गोल्डन एजड बनो। सम्बन्ध में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, कल्याण की भावना हो। स्नेह की भावना हो, सहयोग की भावना हो। कैसे भी भाव स्वभाव वाला हो लेकिन आपका सदा श्रेष्ठ भाव हो। इन सब बातों में स्व-परिवर्तन ही गोल्डन जुबली मनाना है। अलाए को जलाना अर्थात् गोल्डन जुबली मनाना। समझा - वर्ष का आरम्भ गोल्डन एजड स्थिति से करो। सहज है ना! सुनने के समय तो सब समझते हैं कि करना ही है लेकिन जब समस्या सामने आती तब सोचते यह तो बड़ी मुश्किल बात है। समस्या के समय स्व-राज्य-अधिकारीपन का अधिकार दिखाने का ही समय होता है। वार के समय ही विजयी बनना होता है। परीक्षा के समय ही नम्बरवन लेने का समय होता है। ‘समस्या स्वरूप नहीं बनो लेकिन समाधान स्वरूप बनो’। समझा - इस वर्ष क्या करना है। तब गोल्डन जुबली की समाप्ति सम्पन्न बनने की गोल्डन जुबली कही जायेगी। और क्या नवीनता करेंगे? बाप दादा के पास सभी बच्चों के संकल्प तो पहुँचते ही हैं। प्रोग्राम में भी नवीनता क्या करेंगे? गोल्डन थॉट्स सुनाने की टापिक रखी है ना। सुनहरी संकल्प, सुनहरे विचार, जो सोना बना दें और सोने का युग लावें। यह टापिक रखी है ना? अच्छा - आज वतन में इस विषय पर रूह-रूहान हुई वो फिर सुनायेंगे। अच्छा –
सर्व वर्से और वरदान के डबल अधिकारी भाग्यवान आत्माओं को, सदा स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्वयं को गोल्डन एजड स्थिति में स्थित करनेवाले रीयल गोल्ड बच्चों को, सदा स्व-परिवर्तन की लगन से विश्व परिवर्तन में आगे बढ़ने वाले विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
मीटिंग में आये हुए डाक्टर्स से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
अपने श्रेष्ठ उमंग उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं को सदा खुश बनाने की सेवा में लगे हुए हो ना। डाक्टर्स का विशेष कार्य ही है - हर आत्मा को खुशी देना। पहली दवाई ‘खुशी’ है। खुशी आधी बीमारी खत्म कर देती है। तो रूहानी डाक्टर्स अर्थात् खुशी की दवाई देने वाले। तो ऐसे डाक्टर हो ना? एक बार भी खुशी की झलक आत्मा को अनुभव हो जाए तो वह आत्मा सदा खुशी की झलक से आगे उड़ती रहेगी। तो सभी को डबल लाइट बनाए उड़ाने वाले डाक्टर्स हो ना! वह बेड से उठा देते हैं। बेड में सोने वाले पेशन्ट को उठा देते हैं, चला देते हैं। आप पुरानी दुनिया से उठाएँ, नई दुनिया में बिठा दो। ऐसे प्लैन बनाये हैं ना। रूहानी इंस्ट्रूमेन्टस यूज करने का प्लैन बनाया है? इन्जेक्शन क्या है, गोलियाँ क्या हैं, ब्लड देना क्या है। यह सब रूहानी साधन बनाये हैं! किसको ब्लड देने की आवश्यकता है तो रूहानी ब्लड कौन-सा देना है। पेशन्ट को कौन-सी दवाई देनी है। हार्ट पेशन्ट अर्थात् दिलशिकस्त पेशन्ट। तो रूहानी सामग्री चाहिए। जैसे वह नई-नई इन्वेंशन करते हैं, वो साइन्स के साधन से इन्वेन्शन करते हैं। आप साइलेंस के साधनों से सदाकाल के लिए निरोगी बना दो। जैसे उन्हों के पास सारी लिस्ट है - यह इंस्ट्रूमेंट हैं, यह इंस्ट्रूमेंट है। ऐसे ही आपकी भी लिस्ट हो लम्बी। ऐसे डाक्टर्स हो। एवरहेल्दी बनाने के इतने बढ़िया साधन हो। ऐसे आक्युपेशन अपना बनाया है? सभी डाक्टर्स ने अपने- अपने स्थान पर ऐसा बोर्ड लगाया है - एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनने का? जैसे अपने वह आक्युपेशन लिखते हो ऐसे ही यह लिखत हो जिसे देखकर समझें कि यह क्या है- अन्दर जाकर देखें। आकर्षण करने वाला बोर्ड हो। लिखित ऐसी हो जो परिचय लेने के बिना कोई रह न सके। वैसे बुलाने की आवश्यकता न हो लेकिन स्वयं ही आपके आगे न चाहते भी पहुँच जाएँ। ऐसा बोर्ड हो। वह तो लिखते हैं - एम. बी. बी. एस., फलाने-फलाने आप फिर अपना ऐसा बोर्ड पर रूहानी आक्युपेशन लिखो जिससे वह समझें कि यह स्थान जरूरी है। ऐसी अपनी रूहानी डिग्री बनाई है या वो ही डिग्रियाँ लिखते हो!
(सेवा का श्रेष्ठ साधन क्या होना चाहिए) सेवा का सबसे तीखा साधन है - ‘समर्थ संकल्प से सेवा’। समर्थ संकल्प भी हों, बोल भी हों और कर्म भी हों। तीनों साथ-साथ कार्य करें। यही शक्तिशाली साधन है। वाणी में आते हो तो शक्तिशाली संकल्प की परसेन्टेज कम हो जाती है या वह परसेन्टेज होती है तो वाणी की शक्ति में फर्क पड़ जाता है। लेकिन नहीं। तीनों ही साथ-साथ हों। जैसे कोई भी पेशन्ट को एक ही साथ कोई नब्ज देखता है, कोई आपरेशन करता है... इकट्ठे-इकट्ठे करते हैं। नब्ज देखने वाला पीछे देखे और आपरेशन वाला पहले कर ले तो क्या होगा? इकट्ठे-इकट्ठे कितना कार्य चलता है। ऐसे ही रूहानियत के भी सेवा के साधन इकट्ठे-इकट्ठे साथ-साथ चलें। बाकी सेवा के प्लैन बनाये हैं, बहुत अच्छा। लेकिन ऐसा कोई साधन बनाओ जो सभी समझें कि हाँ, यह रूहानी डाक्टर सदा के लिए हैल्दी बनाने वाले हैं। अच्छा –
पार्टियों से
1. जो अनेक बार विजयी आत्मायें हैं, उन्हों की निशानी क्या होगी? उन्हें हर बात बहुत सहज और हल्की अनुभव होगी। जो कल्प-कल्प की विजयी आत्मायें नहीं उन्हें छोटा-सा कार्य भी मुश्किल अनुभव होगा। सहज नहीं लगेगा। हर कार्य करने के पहले स्वयं को ऐसे अनुभव करेंगे जैसे यह कार्य हुआ ही पड़ा है। होगा या नहीं होगा यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। हुआ ही पड़ा है यह महसूसता सदा रहेगी। पता है सदा सफलता है ही, विजय है ही - ऐसे निश्चयबुद्धि होंगे। कोई भी बात नई नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है। इसी स्मृति से स्वयं को आगें बढ़ाते रहेंगे।
2. डबल लाइट बनने की निशानी क्या होगी? डबल लाइट आत्मायें सदा सहज उड़ती कला का अनुभव करती है। कभी रूकना और कभी उड़ना ऐसे नहीं। सदा उड़ती कला के अनुभवी ऐसी डबल लाइट आत्मायें ही डबल ताज के अधिकारी बनते हैं। डबल लाइट वाले स्वत: ही ऊँची स्थिति का अनुभ्व करते हैं। कोई भी परिस्थिति आवे, याद रखो - हम डबल लाइट हैं। बच्चे बन गये अर्थात् हल्के बन गये। कोई भी बोझ नहीं उठा सकते।
अच्छा - ओमशान्ति।
08-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
धरती के ‘होली’ सितारे
ज्ञान सूर्य बाबा ज्ञान सितारों प्रति बोले
आज ज्ञान सूर्य बाप अपने अनेक प्रकार के विशेषताओं से सम्पन्न विशेष सितारों को देख रहें हैं। हर एक सितारे की विशेषता विश्व को परिवर्तन करने की रोशनी देने वाला है। आजकल सितारों की खोज विश्व में विशेष करते हैं। क्योंकि सितारों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। साइन्स वाले आकाश के सितारों की खोज करते, बापदादा अपने होली स्टार्स की विशेषताओं को देख रहें हैं। जब आकाश के सितारे इतनी दूर से अपना प्रभाव अच्छा वा बुरा डाल सकते हैं तो आप होली स्टार्स इस विश्व को परिवर्तन करने का, पवित्रता-सुख-शांतिमय संसार बनाने का प्रभाव कितना सहज डाल सकते हो! आप धरती के सितारे, वह आकाश के सितारे। धरती के सितारे इस विश्व को हलचल से बजाए सुखी संसार, स्वर्ण संसार बनाने वाले हो। इस समय प्रकृति और व्यक्ति दोनों ही हलचल मचाने के निमित्त हैं लेकिन आप पुरूषोत्तम आत्मायें विश्व को सुख की साँस, शांति की साँस देने के निमित्त हो। आप धरती के सितारे सर्व आत्माओं की सर्व आशायें पूर्ण करने वाले प्राप्ति स्वरूप सितारे सर्व की ना उम्मीदों को उम्मीदों में बदलने वाले श्रेष्ठ उम्मीदों के सितारे हो। तो अपने श्रेष्ठ प्रभाव को चेक करो कि मुझ शांति के सितारे, होली सितारे की, सुख स्वरूप सितारे की, सदा सफलता के सितारे की, सर्व आशायें पूर्ण करने वाले सितारे की, सन्तुष्टता के प्रभावशाली सितारे की प्रभाव डालने की चमक और झलक कितनी है? कहाँ तक प्रभाव डाल रहे हैं! प्रभाव की स्पीड कितनी है? जैसे उन सितारों की स्पीड चैक करते हैं, वैसे अपने प्रभाव की स्पीड स्वयं चेक करो। क्योंकि विश्व में इस समय आवश्यकता आप होली सितारों की है। तो बापदादा सभी वैराइटी सितारों को देख रहे थे।
यह रूहानी सितारों का संगठन कितना श्रेष्ठ है और कितना सुखदाई है। ऐसे अपने को चमकता हुआ सितारा समझते हो? जैसे उन सितारों को देखने के लिए कितने इच्छुक हैं। अब समय ऐसा आ रहा है जो आप होली सितारों को देखने के लिए सभी इच्छुक होंगे। ढूँढेंगे आप सितारों को कि यह शांति का प्रभाव, सुख का प्रभाव, अचल बनाने का प्रभाव कहाँ से आ रहा है। यह भी रिसर्च करेंगे। अभी तो प्रकृति की खोज तरफ लगे हुए हैं, जब प्रकृति की खोज से थक जावेंगे तो यह रूहानी रिसर्च करने का संकल्प आयेगा। उसके पहले आप होली सितारे स्वयं को सम्पन्न बना लो। किसी न किसी गुण की, चाहे शांति की, चाहे शक्ति की विशेषता अपने में भरने की विशेष तीव्रगति की तैयारी करो। आप भी रिसर्च करो। सभी गुण तो हैं ही लेकिन फिर भी कम से कम एक गुण की विशेषता से स्वयं को विशेष उसमें सम्पन्न बनाओ। जैसे डाक्टर्स होते हैं। जनरल बीमारियों की नॉलेज तो रखते ही हैं लेकिन साथ-साथ किसी में विशेष नॉलेज होती है। उस विशेषता के कारण नामीग्रामी हो जाते हैं। तो सर्वगुण सम्पन्न बनना ही है। फिर भी एक विशेषता को विशेष रूप से अनुभव में लाते सेवा में लाते आगे बढ़ते चलो। जैसे भक्ति में भी हर एक देवी की महिमा में, हर एक की विशेषता अलग-अलग गाई जाती है। और पूजन भी उसी विशेषता प्रमाण होता है जैसे सरस्वती को विशेष विद्या की देवी कह करके मानते हैं और पूजते हैं। है शक्ति स्वरूप लेकिन विशेषता विद्या की देवी कह करके पूजते हैं। लक्ष्मी को धन देवी कह करके पूजते हैं। ऐसे अपने में सर्वगुण, सर्वशक्तियाँ होते भी एक विशेषता में विशेष रिसर्च कर स्वयं को प्रभावशाली बनाओ। इस वर्ष में हर गुण की, हर शक्ति की रिसर्च करो। हर गुण की महीनता में जाओ। महीनता से उसकी महानता का अनुभव कर सकेंगे। याद की स्टेजेस का, पुरूषार्थ की स्टेजेस का महीनता से रिसर्च करो। गुह्यता में जाओ। डीप अनुभूतियाँ करो। अनुभव के सागर के तले मे जाओ। सिर्फ ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराने के अनुभवी बनना यही सम्पूर्ण अनुभव नहीं है। और अन्तर्मुखी बन गुह्य अनुभवों के रत्नों से बुद्धि को भरपूर बनाओ। क्योंकि प्रत्यक्षता का समय समीप आ रहा है। सम्पन्न बनो, सम्पूर्ण बनो तो सर्व आत्माओं के आगे से अज्ञान का पर्दा हट जाए। आपके सम्पूर्णता की रोशनी से यह पर्दा स्वत: ही खुल जायेगा। इसलिए रिसर्च करो। सर्च लाइट बनो। तब ही कहेंगे गोल्डन जुबली मनाई।
गोल्डन जुबली की विशेषता, हर एक द्वारा सभी को यही अनुभव हो, दृष्टि से भी सुनहरी शक्तियों की अनुभूति हो। जैसे लाइट की किरणें आत्माओं को गोल्डन बनाने की शक्ति दे रही हैं। तो हर संकल्प, हर कर्म गोल्ड हो। गोल्ड बनाने के निमित्त हो। यह गोल्डन जुबली का वर्ष अपने को पारसनाथ के बच्चे ‘मास्टर पारसनाथ’ समझो। कैसी भी लोहे समान आत्मा हो लेकिन पारस के संग से लोहा भी पारस बन जाए। यह लोहा है, यह नहीं सोचना। मैं पारस हूँ यह समझना। पारस का काम ही है लोहे को भी पारस बनाना। यही लक्ष्य और यही लक्षण सदा स्मृति में रखना। तब होली सितारों का प्रभाव विश्व की नजरों में आयेगा। अभी तो बिचारे घबरा रहे हैं, फलाना सितारा आ रहा है। फिर खुश होंगे कि ‘होली’ सितारे आ रहे हैं। चारों ओर विश्व में होली सितारों की रिमझिम अनुभव होगी। सबके मुख से यही आवाज निकलेगा कि लकी सितारे, सफलता के सितारे आ गये! सुख-शान्ति के सितारे आ गये! अभी तो दूरबीनियाँ लेकर देखते हैं ना। फिर तीसरे नेत्र, दिव्य नेत्र से देखेंगे। लेकिन यह वर्ष तैयारी का है। अच्छी तरह से तैयारी करना। अच्छा - प्रोग्राम में क्या करेंगे! बापदादा ने भी वतन में दृश्य इमर्ज किया, दृश्य क्या था?
कांफ्रेंस की स्टेज पर तो स्पीकर्स ही बिठाते हो ना। कान्फ्रेंस स्टेज अर्थात् स्पीकर्स की स्टेज। यह रूपरेखा बनाते हो ना। टापिक पर भाषण तो सदा ही करते हो- और अच्छे करते हो लेकिन इस गोल्डन जुबली में भाषण का समय कम हो और प्रभाव ज्यादा हो। उसी समय में भिन्न-भिन्न स्पीकर्स अपना प्रभावशाली भाषण कर सकते, उसकी वह रूपरेखा क्या हो। एक दिन विशेष आधा घण्टा के लिए यह प्रोग्राम रखो और जैसे बाहर वाले या विशेष भाषण वाले भाषण करते हैं वह भला चले लेकिन आधा घन्टा के लिए एक दिन स्टेज के भी आगे भिन्न भिन्न आयु वाले अर्थात् एक छोटा-सा बच्चा, एक कुमारी, एक पवित्र युगल हो। एक प्रवृति में रहने वाले युगल हो। एक बुजुर्ग हो। वह भिन्न-भिन्न चन्द्रमा की तरह स्टेज पर बैठे हुए हों। और स्टेज की लाइट तेज नहीं हो। साधारण हो। और एक-एक, तीन-तीन मिनिट में अपना विशेष गोल्डन वर्शन्स सुनावे कि इस श्रेष्ठ जीवन बनने का गोल्डन वर्शन क्या मिला जिससे जीवन बना ली। छोटा-सा कुमार अर्थात् बच्चा या बच्ची सुनावे, बच्चों के लिए क्या गोल्डन वर्शन्स मिले। कुमारी जीवन के लिए गोल्डन वर्शन क्या मिला? बाल ब्रह्मचारी युगलों को गोल्डन वर्शन क्या मिला। और प्रवृति में रहने वाले ट्रस्टी आत्माओं को गोल्डन वर्शन क्या मिला? बुजुर्ग को गोल्डन वर्शन क्या मिला? वह तीन-तीन मिनिट बोले। लेकिन लास्ट में गोल्डन वर्शन स्लोगन के रूप में सारी सभा को दोहरायें। और जिसका टर्न हो बोलने का उसके ऊपर विशेष लाइट हो। तो स्वत: ही सबका अटेन्शन उसकी तरफ जायेगा। साइलेन्स का प्रभाव हो। जैसे कोई ड्रामा करते हो, ऐसे ही सीन हो। भाषण हो लेकिन दृश्य के रूप में हो। और थोड़ा बोले। 3 मिनिट से ज्यादा नहीं बोले। पहले से ही तैयारी हो। तो एक दिन यह आधा घण्टा का विशेष प्रोग्राम चले और दूसरे दिन फिर इसी रूप रेखा से भिन्न भिन्न वर्ग का हो। जैसे कोई डाक्टर हो, कोई बिजनेस मैन हो, आफीसर हो...ऐसे भिन्न-भिन्न वर्ग वाले तीन-तीन मिनिट में बोलें कि आफीसर की ड्यूटी बजाते भी कौन-सी मुख्य गोल्डन धारणा से कार्य में सफल रहते हैं। वह सफलता की मुख्य पाइंट गोल्डन वर्शन्स के रूप में सुनावे। होंगे भाषण ही लेकिन रूप रेखा थोड़ी भिन्न प्रकार की होने से यह ईश्वरीय ज्ञान कितना विशाल है और हर वर्ग के लिए विशेषता क्या है, वह तीन-तीन मिनिट में अनुभव, अनुभव के रीति से नहीं सुनाना है लेकिन अनेक अनुभव कर लेवें। वातावरण ऐसा साइलेन्स का हो जो सुनने वालों को भी बोलने की हलचल की हिम्मत न हो। हर एक ब्राह्मण यह लक्ष्य रखे कि जितना समय प्रोग्राम चलता है उतना समय जैसे ट्राफिक ब्रेक का रिकार्ड बजता है तो सभी एक ही साइलेन्स का वायुमण्डल बनाते है - ऐसे इस बारी इस हाल में आदि से अन्त तक हरेक ब्राह्मण को लक्ष्य हो कि मुझे वायुमण्डल को पावरफुल बनाने के लिए मुख के भाषण नहीं लेकिन शान्ति का भाषण करना है। मैं भी एक स्पीकर हूँ, बंधा हुआ हूँ। शान्ति की भाषा भी कम नहीं है। यह ब्राह्मणों का वातावरण औरों को भी उसी अनुभूति में लाता है। जहाँ तक हो सके और कारोबार समाप्त कर सभा के समय सब ब्राह्मणों को वायुमण्डल बनाने का सहयोग देना ही है। अगर किसी की ऐसी ड्युटी भी है तो वह आगे नहीं बैठने चाहिए। आगे हलचल नहीं होनी चाहिए। समझो तीन घण्टे की भट्टी है। तब भाषण अच्छे नहीं कहेंगे लेकिन कहेंगे भासना अच्छी आई। भाषण के साथ भासना भी तो आवे ना! जो भी ब्राह्मण आता है वह यह समझकर आवे कि हमको भट्टी में आना है। कांफ्रेंस देखने नहीं आना है लेकिन सहयोगी बन आना है। तो इसी प्रकार वायुमण्डल ऐसा शक्तिशाली बनाओ जो कैसी भी हलचल वाली आत्मायें थोड़े समय की भी शान्ति और शक्ति की अनुभूति करके जावें। ऐसे लगे यह तीन हजार नहीं है लेकिन फरिश्तों की सभा है। कलचरल प्रोग्राम के समय भल हँसना-बहलना लेकिन कांफ्रेंस के समय शक्तिशाली वातावरण हो। तो दूसरे आने वाले भी उसी प्रकार से बोलेंगे। जैसा वायुमण्डल होता है वैसे दूसरे बोलने वाले भी उसी वायुमण्डल में आ जाते हैं। तो थोड़े समय में बहुत खज़ाना देने का प्रोग्राम बनाओ। शार्ट और स्वीट। अगर अपने ब्राह्मण धीरे से बोलेंगे तो दूसरे बाहर वाले भी धीरे से बोलेंगे। अच्छा - अभी क्या करेंगे? अपने को विशेष सितारा प्रत्यक्ष करेंगे ना। तो यह गोल्डन जुबली का वर्ष विशेष अपने को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाने का वर्ष मनाओ। न हलचल में आओ न हलचल में लाओ। हलचल मचाने वाली तो प्रकृति ही बहुत है। यह प्रकृति अपना काम कर रही है। आप अपना काम करो। अच्छा –
सदा होली सितारे बन विश्व को सुख-शान्तिमय बनाने वाले, मास्टर पारसनाथ बन पारस दुनिया बनाने वाले, सर्व को पारस बनाने वाले, सदा अनुभवों के सागर के तले में अनुभवों के रतन स्वयं में जमा करने वाले, सर्चलाइट बन अज्ञान का पर्दा हटाने वाले - ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले विशेष सितारों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
टीचर्स से- नई दुनिया बनाने का ठेका उठाया है ना! तो सदा नई दुनिया बनाने के लिए उमंग, नया उत्साह सदा रहता है कि विशेष मौके पर उमंग आता है, कभी-कभी के उमंग उत्साह से नई दुनिया नहीं स्थापन होती। सदा उमंग उत्साह वाले ही नई दुनिया बनाने के निमित्त बनते हैं। जितना नई दुनया के नजदीक आते जायेंगे उतना ही नई दुनिया की विशेष वस्तुओं का विस्तार होता रहेगा। नई दुनिया में आने वाले भी आप हो तो बनाने वाले भी आप हो। तो बनाने में शक्तियाँ भी लगती है, समय भी लगता है लेकिन जो शक्तिशाली आत्मायें हैं वह सदा विघ्नों को समाप्त कर आगे बढ़ते रहते है। तो ऐसे नई दुनिया के फाउण्डेशन हो। अगर फाउण्डेशन कच्चा होगा तो बिल्डिंग का क्या होगा! तो नई दुनिया बनाने की ड्यूटी वाले जो हैं उन्हों को मेहनत कर फाउण्डेशन पक्का बनाना है। ऐसा पक्का बनाओ जो 21 जन्म तक बिल्डिंग सदा चलती रहे। तो अपनी 21 जन्मों की बिल्डिंग तैयार की है ना! अच्छा –
2. बाप के दिलतख्तनशीन आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? इस समय दिलतख्तनशीन हैं फिर होंगे विश्व के राज्य के तख्तनशीन। दिलतख्तनशीन वही बनते जिनके दिल में एक बाप की याद समाई रहती है। जैसे बाप की दिल में सदा बच्चे समाये हुए हैं ऐसे बच्चों की दिल में बाप की याद समाई हो। अगर जरा भी किसी और की याद आयी तो बाप की याद नहीं रूकती। दिलतख्तनशीन अर्थात् बाप की याद सदा और स्वत: रहे। बाप के सिवाए और है ही क्या! तो तख्तनशीन हैं - इसी नशे और खुशी में रहो। अच्छा –
(विदाई के समय- 6 बजे गुरूवार)
चारों ओर के स्नेही सहयोगी बच्चों पर सदा वृक्षपति की, ब्रहस्पति की दशा तो है ही। और इसी ब्रहस्पति की दशा से श्रेष्ठ बनाने की सेवा में आगे बढ़ते जा रहे हैं। सेवा और याद दोनों में विशेष सफलता को प्राप्त कर रहे हो और करते रहेंगे। बच्चों के लिए संगमयुग ही ब्रहस्पति की वेला है। हर घड़ी संगमयुग की ब्रहस्पति अर्थात् भाग्यवान है। इसलिए भाग्यवान हो, भगवान के हो, भाग्य बनाने वाले हो। भाग्यवान दुनिया के अधिकारी हो। ऐसे सदा भाग्यवान बच्चों को यादप्यार और गुडमार्निंग!
13-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ब्राह्मण जीवन सदा बेहद की खुशियों का जीवन
सदा खुशनसीब होली, हैप्पी बच्चों प्रति बापदादा बोले
आज बापदादा अपने होली और हैपी हंसों की सभा देख रहे हैं। सभी होली के साथ हैपी भी सदा रहते हैं? होली अर्थात् पवित्रता की प्रत्यक्ष निशानी - हैपी अर्थात् खुशी सदा प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देगी। अगर खुशी नहीं तो अवश्य कोई अपवित्रता अर्थात् संकल्प वा कर्म यथार्थ नहीं है, तब खुशी नहीं है। अपवित्रता सिर्फ 5 विकारों को नहीं कहा जाता। लेकिन सम्पूर्ण आत्माओं के लिए, देवात्मा बनने वालों के लिए अयथार्थ, व्यर्थ, साधारण संकल्प, बोल वा कर्म भी सम्पूर्ण पवित्रता नही कहा जायेगा। सम्पूर्ण स्टेज के समीप पहुँच रहे हो इसलिए वर्तमान समय के प्रमाण व्यर्थ और साधारण कर्म न हों इसमें भी चेकिंग और चेन्ज चाहिए। जितना समर्थ और श्रेष्ठ संकल्प, बोल और कर्म होगा और उतना सदा खुशी की झलक, खुशनसीबी की फलक अनुभव होगी और अनुभव करायेगी। बापदादा सभी बच्चों की यह दोनों बातें चेक कर रहे थे कि पवित्रता कहाँ तक धारण की है! व्यर्थ और साधारणता अभी भी कहाँ तक है। और रूहानी खुशी, अविनाशी खुशी, आन्तरिक खुशी कहाँ तक रहती है! सभी ब्राह्मण बच्चों का ब्राह्मण जीवन धारण करने का लक्ष्य ही है - ‘सदा खुश रहना’। खुशी की जीवन व्यतीत करने के लिए ही ब्राह्मण बने हो, न कि पुरूषार्थ की मेहनत वा किसी न किसी उलझन में रहने के लिए ब्राह्मण बने हो।
रूहानी आन्तरिक खुशी वा अतीन्द्रिय सुख जो सारे कल्प में नहीं प्राप्त हो सकता है वह प्राप्त करने के लिए ब्राह्मण बने हो। लेकिन चेक करो कि खुशी किसी साधन के आधार पर, किसी हद की प्राप्ति के आधार पर, वा थोड़े समय की सफलता के आधार पर, मान्यता वा नामाचार के आधार पर, मन के हद की इच्छाओं के आधार पर वा यही अच्छा लगता है - चाहे व्यक्ति, चाहे स्थान वा वैभव, ऐसे मन पसन्दी के प्रमाण खुशी की प्राप्ति का आधार तो नहीं है? इन आधारों से खुशी की प्राप्ति - यह कोई वास्तविक खुशी नहीं है। अविनाशी खुशी नहीं है। आधार हिला तो खुशी भी हिल जाती। ऐसी खुशी प्राप्त करने के लिए ब्राह्मण नहीं बने हो। अल्पकाल की प्राप्ति द्वारा खुशी - यह तो दुनिया वालों के पास भी है। उन्हों का भी स्लोगन है - खाओ पियो मौज करो। लेकिन वह अल्पकाल का आधार समाप्त हुआ तो खुशी भी समाप्त हो जाती। ऐसे ही ब्राह्मण जीवन में भी इन आधारों से खुशी की प्राप्ति हुई तो बाकी अन्तर क्या हुआ? खुशियों के सागर के बच्चे बने हो तो हर संकल्प में, हर सेकण्ड खुशी की लहरों में लहराने वाले हो। सदा खुशियों के भण्डार हो! इसको कहा जाता है - ‘होली और हैपी हंस’। बापदादा देख रहे थे कि जो लक्ष्य है बिना कोई हद के आधार के सदा आन्तरिक खुशी में रहने का, उस लक्ष्य से बदल और हद की प्राप्तियों की छोटी-छोटी गलियों में फँस जाने कारण कई बच्चे लक्ष्य अर्थात् मंज़िल से दूर हो जाते हैं। हाईवे को छोड़कर गलियों में फँस जाते हैं। अपना लक्ष्य, खुशी को छोड़ हद की प्राप्तियों के पीछे लग जाते हैं। आज नाम हुआ वा काम हुआ, इच्छा पूर्ण हुई तो खुशी है। मनपसन्द, संकल्प पसन्द प्राप्ति हुई तो बहुत खुशी है। थोड़ी भी कमी हुई तो लक्ष्य वहाँ ही रह जाता। लक्ष्य हद के बन जाते इसलिए बेहद की अविनाशी खुशी से किनारा हो जाता है। तो बापदादा बच्चों से पूछते हैं कि क्या ब्राह्मण इसलिए बने हो? इसलिए यह रूहानी जीवन अपनाई है? यह तो साधारण जीवन है। इसको श्रेष्ठ जीवन नहीं कहा जाता।
कोई भी कर्म करो चाहे कितनी भी बड़ी सेवा का काम हो लेकिन जो सेवा आन्तरिक खुशी, रूहानी मौज, बेहद की प्राप्ति से नीचे ले आती है अर्थात् हद में ले आती है, आज मौज कल मूंझ, आज खुशी कल व्यर्थ उलझन में डालती है, खुशी से वंचित कर देती है, ऐसी सेवा को छोड़ दो लेकिन खुशी को नहीं छोड़ो। सच्ची सेवा सदा बेहद की स्थिति का, बेहद की खुशी का अनुभव कराती है। अगर ऐसी अनुभूति नहीं है तो वह मिक्स सेवा है। सच्ची सेवा नहीं है। यह लक्ष्य सदैव रखो कि सेवा द्वारा स्वउन्नति, स्वप्राप्ति, सन्तुष्टता और महानता की अनुभूति हुई? जहाँ सन्तुष्टता की महानता होगी वहाँ अविनाशी प्राप्ति की अनुभूति होगी। सेवा अर्थात् फूलों के बगीचे को हरा-भरा करना। सेवा अर्थात् फूलों के बगीचे का अनुभव करना न कि कांटों के जंगल में फँसना। उलझन, अप्राप्ति, मन की मूंझ और मौज, अभी-अभी मूंझ - यह है कांटे। इन कांटों से किनारा करना अर्थात् बेहद की खुशी का अनुभव करना है। कुछ भी हो जाए - हद की प्राप्ति का त्याग भी करना पड़े, कई बातों को छोड़ना भी पड़े, बातों को छोड़ो लेकिन खुशी को नहीं छोड़ो। जिस लिए आये हो उस लक्ष्य से किनारे न हो जाओ। यह सूक्ष्म चेकिंग करो। खुश तो हैं लेकिन अल्पकाल की प्राप्ति के आधार से खुश रहना इसी को ही खुशी तो नहीं समझते? कहाँ साइडसीन को ही मंज़िल तो नहीं समझ रहे हो? क्योंकि साइडसीन भी आकर्षण करने वाले होते हैं। लेकिन मंज़िल को पाना अर्थात् बेहद के राज्य अधिकारी बनना। मंज़िल से किनारा करने वाले विश्व के राज्य अधिकारी नहीं बन सकते। रायल फैमिली में भी नहीं आ सकते। इसलिए लक्ष्य को, मंज़िल को सदा स्मृति में रखो। अपने से पूछो। चलते-चलते कहाँ कोई हद की गली में तो नहीं पहुँच रहे हैं! अल्पकाल की प्राप्ति की खुशी, सदाकाल की खुशनसीबी से किनारा तो नहीं करा रही है? थोड़े में खुश होने वाले तो नहीं हो? अपने आप को खुश तो नहीं कर रहे हो? जैसी हूँ, वैसी हूँ, ठीक हूँ, खुश हूँ। अविनाशी खुशी की निशानी है - उनको औरों से भी सदा खुशी की दुआयें अवश्य प्राप्त होंगी। बापदादा और निमित्त बड़ों के स्नेह की दुआयें अन्दर अलौकिक आत्मिक खुशी के सागर में लहराने का अनुभव करायेंगी। अलबेलेपन में यह नहीं सोचना कि मैं तो ठीक हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं जानते। क्या सूर्य की रोशनी छिप सकती है? सत्यता की खुशबू कभी मिट नहीं सकती। छिप नहीं सकती। इसलिए धोखा कभी नहीं खाना। यही पाठ पक्का करना। पहले अपनी बेहद की अविनाशी खुशी फिर दूसरी बातें। बेहद की खुशी सेवा की वा सर्व के स्नेह की, सर्व द्वारा अविनाशी सम्मान प्राप्त होने की खुशनसीबी अर्थात् श्रेष्ठ भाग्य स्वत: ही अनुभूति करायेगी। जो सदा खुश है वह खुशनसीब है। बिना मेहनत, बिना इच्छा अथवा बिना कहने के सर्व प्राप्ति सहज होंगी। यह पाठ पक्का किया?
बापदादा देखते हैं - आये किसलिए हैं, जाना कहाँ है और जा कहाँ रहे हैं। हद को छोड़ फिर भी हद में ही जाना तो बेहद का अनुभव कब करेंगे! बापदादा को भी बच्चों पर स्नेह होता है। रहम तो नहीं कहेंगे क्योंकि भिखारी थोड़े ही हो। दाता, विधाता के बच्चे हो, दुखियों पर रहम किया जाता है। आप तो सुख स्वरूप सुख दाता के बच्चे हो। अब समझा क्या करना है? बापदादा इस वर्ष के लिए बार-बार भिन्न-भिन्न बातों में अटेन्शन दिला रहे हैं। इस वर्ष विशेष स्व पर अटेन्शन रखने का समय दिया जा रहा है। दुनिया वाले तो सिर्फ कहते हैं कि खाओ पियो मौज करो। लेकिन बापदादा कहते हैं - खाओ और खिलाओ। मौज में रहो और मौज में लाओ। अच्छा –
सदा अविनाशी बेहद की खुशी में रहने वाले, हर कर्म में खुशनसीब अनुभव करने वाले, सदा सर्व को खुशी का खज़ाना बांटने वाले, सदा खुशी की खुशबू फैलाने वाले,सदा खुशी के उमंग, उत्साह की लहरों में लहराने वाले, ऐसे सदा खुशी की झलक और फलक में रहने वाले, श्रेष्ठ लक्ष्य को प्राप्त करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का सदा होली और हैपी रहने की यादप्यार और नमस्ते।’’
पार्टियों से
(1) प्रवृत्ति में रहते सदा न्यारे और बाप के प्यारे हो ना! कभी भी प्रवृत्ति से लगाव तो नहीं लग जाता? अगर कहाँ भी किसी से अटैचमेन्ट है तो वह सदा के लिए अपने जीवन का विघ्न बन जाता है। इसलिए सदा निर्विघ्न बन आगे बढ़ते चलो। कल्प पहले मिसल ‘अंगद’ बन अचल अडोल रहो। अगंद की विशेषता क्या दिखाई है? ऐसा निश्चयबुद्धि जो पाँव भी कोई हिला न सके। माया निश्चय रूपी पाँव को हिलाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार से आती है। लेकिन माया हिल जाए आपका निश्चय रूपी पाँव न हिले। माया स्वयं सरेण्डर होती है। आप तो सरेण्डर नहीं होंगे ना! बाप के आगे सरेण्डर होना, माया के आगे नहीं, ऐसे निश्चयबुद्धि सदा निश्चिन्त रहते हैं। अगर जरा भी कोई चिंता है तो निश्चय की कमी है। कभी किसी बात की थोड़ी सी भी चिंता हो जाती है - उसका कारण क्या होता, जरूर किसी न किसी बात के निश्चय में कमी है। चाहे ड्रामा में निश्चय की कमी हो, चाहे अपने आप में निश्चय की कमी हो, चाहे बाप में निश्चय की कमी हो। तीनों ही प्रकार के निश्चय में जरा भी कमी है तो निश्चिन्त नहीं रह सकते। सबसे बड़ी बीमारी है - ‘चिंता’। चिंता में बीमारी की दवाई डाक्टर्स के पास भी नहीं है। टैम्प्रेरी सुलाने की दवाई दे देंगे लेकिन सदा के लिए चिंता नहीं मिटा सकेंगे। चिंता वाले जितना ही प्राप्ति के पीछे दौड़ते हैं उतना प्राप्ति आगे दौड़ लगाती है। इसलिए सदा निश्चय के पाँव अचल रहें। सदा एकबल एक भरोसा - यही पाँव है। निश्चय कहो, भरोसा कहो एक ही बात है। ऐसे निश्चयबुद्धि बच्चों की विजय निश्चित है।
(2) सदा बाप पर बलिहार जाने वाले हो? जो भक्ति में वायदा किया वह निभाने वाले हो ना? क्या वायदा किया? - सदा आप पर बलिहार जायेंगे। बलिहार अर्थात् सदा समार्पित हो बलवान बनने वाले। तो बलिहार हो गये या होने वाले हो? बलिहार होना, माना - ‘मेरा कुछ नहीं’। मेरा-पन समाप्त। मेरा शरीर भी नहीं। तो कभी देह अभिमान में आते हो? मेरा है तब देह-भान आता है। इससे भी परे रहने वाले इसको कहा जाता है - बलिहार जाना। तो मेरा-पन सदा के लिए समाप्त करते चलो। सब कुछ तेरा, यही अनुभव करते चलो। जितना ज्यादा अनुभवी उतना अथारिटी स्वरूप। वह कभी धोखा नहीं खा सकते। दु:ख की लहर में नहीं आ सकते। तो सदा अनुभव की कहानियाँ सबको सुनाते रहो। अनुभवी आत्मा थोड़े समय में सफलता ज्यादा प्राप्त करती है। अच्छा –
(विदाई के समय - 14 जनवरी मकर-संक्रान्ति की यादप्यार)
आज के दिन के महत्व को सदा खाने और खिलाने का महत्व बना दिया है। कुछ खाते हैं, कुछ खिलाते हैं। वह तिल दान करते हैं या खाते हैं। तिल अर्थात् बहुत छोटी-सी बिन्दी, कोई भी बात होती है- छोटी-सी होती है तो कहते हैं - यह तिल के समान है और बड़ी होती है तो पहाड़ के समान कहा जाता है। तो पहाड़ और तिल बहुत फर्क हो जाता है ना। तो तिल का महत्व इसलिए है क्योंकि अति सूक्ष्म बिन्दी बनते हो। जब बिन्दी रूप बनते हो तभी उड़ती कला के पतंग बनते हो। तो तिल का भी महत्व है। और तिल सदा मिठास से संगठन रूप में लाते हैं, ऐसे ही तिल नहीं खाते हैं। मधुरता अर्थात् स्नेह से संगठित रूप में लाने की निशानी है। जैसे तिल में मीठा पड़ता है तो अच्छा लगता है, ऐसे ही तिल खाओ तो कड़ुवा लगेगा लेकिन मीठा मिल जाता है तो बहुत अच्छा लगेगा। तो आप आत्मायें भी जब मधुरता के साथ सम्बन्ध में आ जाती हो, स्नेह में आ जाती हो तो श्रेष्ठ बन जाती हो। तो यह संगठित मधुरता का यादगार है। इसकी भी निशानी है। तो सदा स्वयं को मधुरता के आधार से संगठन की शक्ति में लाना, बिन्दी रूप बनना और पतंग बन उड़ती कला में उड़ना, यह है आज के दिन का महत्व। तो मनाना अर्थात् बनना। तो आप बने हो और वह सिर्फ थोड़े समय के लिए मनाते हैं। इसमें दान देना अर्थात् जो भी कुछ कमज़ोरी हो उसको दान में दे दो। छोटी-सी बात समझकर दे दो। तिल समान समझकर दे दो। बड़ी बात नहीं समझो - छोड़ना पड़ेगा, देना पड़ेगा नहीं। तिल के समान छोटी-सी बात दान देना, खुशी खुशी छोटी-सी बात समझकर खुशी से दे दो। यह है ‘दान’ का महत्व। समझा।
सदा स्नेही बनना, सदा संगठित रूप में चलना और सदा बड़ी बात को छोटा समझ समाप्त करना। आग में जला देना यह है महत्व। तो मना लिया ना। दृढ़ संकल्प की आग जला दी। आग जलाते हैं ना इस दिन। तो संस्कार परिवर्तन दिवस - वह ‘संक्रान्ति’ कहते हैं आप ‘संस्कार-परिवर्तन’ कहेंगे। अच्छा, सभी को स्नेह और संगठन की शक्ति में सदा सफल रहने की यादप्यार और गुडमार्निंग।
15-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सस्ता सौदा और बचत का बजट
ज्ञान रत्नों के सागर अपने सौदागर बच्चों प्रति बोले
रत्नागर बाप अपने बड़े ते बड़े सौदा करने वाले सौदागर बच्चों को देख मुस्करा रहे हैं। सौदा कितना बड़ा और करने वाले सौदागर दुनिया के अन्तर में कितने साधारण, भोले-भाले हैं। भगवान से सौदा करने वाली कौन आत्मायें भाग्यवान बनीं! यह देख मुस्करा रहे हैं। इतना बड़ा सौदा एक जन्म का जो 21 जन्म सदा मालामाल हो जाते। देना क्या और लेना क्या है! अनगिनत पद्मों की कमाई वा पद्मों का सौदा कितना सहज करते हो। सौदा करने में समय भी वास्तव में एक सेकण्ड लगता है। और कितना सस्ता सौदा किया? एक सेकण्ड में और एक बोल में सौदा कर लिया। दिल से माना - ‘मेरा बाबा’। इस एक बोल से इतना बड़ा अनगिनत खज़ाने का सौदा कर लेते हो। सस्ता सौदा है ना! न मेहनत है, न महंगा है। न समय देना पड़ता है। और कोई भी हद के सौदे करते तो कितना समय देना पड़ता। मेहनत भी करनी पड़ती और मंहगा भी दिनप्रतिदिन होता ही जाता है। और चलेगा कहाँ तक? एक जन्म की भी गारन्टी नहीं। तो अब श्रेष्ठ सौदा कर लिया है वा अभी सोच रहे हो कि करना है? पक्का सौदा कर लिया है ना? बापदादा अपने सौदागर बच्चों को देख रहे हैं। सौदागरों की लिस्ट में कौन-कौन नामीग्रामी हैं। दुनिया वाले भी नामीग्रामी लोगों की लिस्ट बनाते हैं ना। विशेष डायरेक्टरी भी बनाते हैं। बाप की डायरेक्टरी में किन्हों के नाम हैं? जिनमें दुनिया वालों की आँख नहीं जाती उन्होंने ही बाप से सौदा किया और परमात्म नयनों के सितारे बन गये, नूरे रतन बन गये। ना उम्मीद आत्माओं को विशेष आत्मा बना दिया। ऐसा नशा सदा रहता है? परमात्म डायरेक्टरी के विशेष वी.आई.पी. हम हैं। इसलिए ही गायन है - भोलों का भगवान। है चतुरसुजान लेकिन पसन्द भोले ही आते हैं। दुनिया की बाहरमुखी चतुराई बाप को पसन्द नहीं। उन्हों का कलियुग में राज्य हैं। जहाँ अभी-अभी लखपति अभी-अभी कखपति हैं। लेकिन आप सभी सदा के लिए पद्मापद्पति बन जाते हो। भय का राज्य नहीं। निर्भय हैं।
आज की दुनिया में धन भी है और भय भी हैं। जितना धन उतना भय में ही खाते, भय में ही सोते। और आप बेफिकर बादशाह बन जाते। निर्भय बन जाते हो। भय को भी भूत कहा जाता है। आप उस भूत से भी छूट जाते हो। छूट गये हो ना। कोई भय है? जहाँ मेरापन होगा वहाँ भय जरूर होगा। मेरा बाबा। सिर्फ एक ही शिवबाबा है जो निर्भय बनाता है। उनके सिवाए कोई भी सोना-हिरण भी अगर मेरा है तो भी भय है। तो चेक करो मेरा-मेरा का संस्कार ब्राह्मण जीवन में भी किसी भी सूक्ष्म रूप में रह तो नहीं गया है? सिलवर जुबिली, गोल्डन जुबिली मना रहे हो ना। चांदी वा सोना, रीयल तभी बनता है जब आग में गलाकर जो कुछ मिक्स होता है उसको समाप्त कर देते हैं। रीयल सिलवर जुबली, रीयल गोल्डन जुबली है ना। तो जुबली मनाने के लिये रीयल सिल्वर, रीयल गोल्ड बनना ही पड़ेगा। ऐसे नहीं जो सिलवर जुबली वाले हैं वह सिलवर ही हैं। यह तो वर्षों के हिसाब से सिलवर जुबली कहते हैं। लेकिन हो सभी गोल्डन एज के अधिकारी, गोल्डन एज वाले। तो चेक करो रीयल गोल्ड कहाँ तक बने हैं? सौदा तो किया लेकिन आया और खाया। ऐसे तो नहीं? इतना जमा किया जो 21 पीढ़ी सदा सम्पन्न रहें? आपकी वंशावली भी मालामाल रहे। न सिर्फ 21 जन्म लेकिन द्वापर में भी भक्त आत्मा होने के कारण कोई कमी नहीं होगी। इतना धन द्वापर में भी रहता है जो दान-पुण्य अच्छी तरह से कर सकते हो। कलियुग के अन्त में भी देखो, अन्तिम जन्म में भी भिखारी तो नहीं बने हो ना! दाल-रोटी खाने वाले बने ना। काला धन तो नहीं है लेकिन दाल-रोटी तो है ना। इस समय की कमाई इकट्ठे किया है जो अन्तिम जन्म में दाल-रोटी खाते हो! इतना बचत का हिसाब रखते हो! बजट बनाना आता है? जमा करने में होशियार हो ना! नहीं तो 21 जन्म क्या करेंगे? कमाई करने वाले बनेंगे या राज्य अधिकारी बन राज्य करेंगे? रायल फैमली को कमाने की जरूरत नहीं होती। प्रजा को कमाना पड़ेगा। उसमें भी नम्बर हैं। साहूकार प्रजा और साधारण प्रजा। गरीब तो होता नहीं। लेकिन रायल फैमली पुरूषार्थ की प्रालब्ध राज्य प्राप्त करती है। जन्म-जन्म रायल फैमली के अधिकारी बनते हैं। राज्य तख्त के अधिकारी हर जन्म में नहीं बनते लेकिन रायल फैमली का अधिकार जन्म-जन्म प्राप्त करते हैं। तो क्या बनेंगे? अब बजट बनाओ। बचत की स्कीम बनाओ।
आजकल के जमाने में ‘वेस्ट से बेस्ट’ बनाते हैं। वेस्ट को ही बचाते हैं। तो आप सब भी बचत का खाता सदा स्मृति में रखो। बजट बनाओ। संकल्प शक्ति, वाणी की शक्ति, कर्म की शक्ति, समय की शक्ति कैसे और कहाँ कार्य लगानी है। ऐसे न हो यह सब शक्तियाँ व्यर्थ चली जाएँ। संकल्प भी अगर साधारण हैं, व्यर्थ हैं तो व्यर्थ और साधारण दोनों बचत नहीं हुई। लेकिन गँवाया। सारे दिन में अपना चार्ट बनाओ। इन शक्तियों को कार्य में लगाया, कितना बढ़ाया! क्योंकि जितना कार्य में लगायेंगे उतना शक्ति बढ़ेगी। जानते सभी हो कि संकल्प शक्ति है लेकिन कार्य में लगाने का अभ्यास, इसमें नम्बरवार हैं। कोई फिर, न तो कार्य में लगाते न पाप कर्म में गँवाते। लेकिन साधारण दिनचर्या में न कमाया न गँवाया। जमा तो नहीं हुआ ना। साधारण सेवा की दिनचर्या वा साधारण प्रवृत्ति की दिनचर्या इसको बजट का खाता जमा होना नहीं कहेंगे। सिर्फ यह नहीं चेक करो कि यथाशक्ति सेवा भी की, पढाई भी की। किसको दुख नहीं दिया। कोई उल्टा कर्म नहीं किया। लेकिन दुख नहीं दिया तो सुख दिया? जितनी और जैसी शक्तिशाली सेवा करनी चाहिए उतनी की? जैसे बापदादा सदा डायरेक्शन देते हैं कि मैं-पन का, मेरेपन का त्याग ही सच्ची सेवा है, ऐसे सेवा की? उल्टा बोल नहीं बोला, लेकिन ऐसा बोल बोला जो किसी ना-उम्मीद को उम्मीदवार बना दिया। हिम्मतहीन को हिम्मतवान बनाया? खुशी के उमंग, उत्साह में किसको लाया? वह है जमा करना, बचत करना। ऐसे ही दो घण्टा, चार घण्टा बीत गया, वह बचत नहीं हुई। सब शक्तियाँ बचत कर जमा करो। ऐसी बजट बनाओ। यह साल बजट बनाकर कार्य करो। हर शक्ति को कार्य में कैसे लगावें यह प्लैन बनाओ। ईश्वरीय बजट ऐसा बनाओ जो विश्व की हर आत्मा कुछ न कुछ प्राप्त करके ही आपके गुण गान करे। सभी को कुछ न कुछ देना ही है। चाहे मुक्ति दो, चाहे जीवनमुक्ति दो। मनुष्य आत्मायें तो क्या प्रकृति को भी पावन बनाने की सेवा कर रहे हो! ईश्वरीय बजट अर्थात् सर्व आत्मायें प्रकृति सहित सुखी वा शान्त बन जावें। वह गवर्मेन्ट बजट बनाती है, इतना पानी देंगे, इतने मकान देंगे, इतनी बिजली देंगे। आप क्या बजट बनाते हो! सभी को अनेक जन्मों तक ‘मुक्ति और जीवनमुक्ति’ देवें। भिखारीपन से, दुख अशान्ति से मुक्त करें। आधाकल्प तो आराम से रहेंगे। उन्हों की आश तो पूर्ण हो ही जायेगी। वह लोग तो मुक्ति ही चाहते हैं ना। जानते नहीं है लेकिन मांगते तो हैं ना। तो स्वयं के प्रति और विश्व के प्रति ईश्वरीय बजट बनाओ। समझा क्या करना है! सिलवर और गोल्डन जुबली दोनों इसी वर्ष में कर रहे हो ना। तो यह महत्व का वर्ष है। अच्छा –
सदा श्रेष्ठ सौदा स्मृति में रखने वाले, सदा जमा का खाता बढ़ाने वाले, सदा हर शक्तियों को कार्य में लगाए वृद्धि करने वाले, सदा समय के महत्व को जान महान बनने और बनाने वाले ऐसे श्रेष्ठ धनवान, श्रेष्ठ समझदार बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
पार्टियों से
कुमारों से - कुमार जीवन भी लकी जीवन है। क्योंकि उल्टी सीढ़ी चढ़ने से बच गये। कभी संकल्प तो नहीं आता है - उल्टी सीढ़ी चढ़ने का! चढ़ने वाले भी उतर रहे हैं। सभी प्रवृत्ति वाले भी अपने को कुमार-कुमारी कहलाते हैं ना। तो सीढ़ी उतरे ना! तो सदा अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रखो। कुमार जीवन अर्थात् बन्धनों से बचने की जीवन। नहीं तो देखो कितने बन्धनों में होते हैं। तो बन्धनों में खिंचने से बच गये। मन से भी स्वतन्त्र, सम्बन्ध से भी स्वतन्त्र। कुमार जीवन है ही - ‘स्वतन्त्र’। कभी स्वप्न में भी ख्याल तो नहीं आता - थोड़ा कोई सहयोगी मिल जाए! कोई साथी मिल जाए! बीमारी में मदद हो जाए, ऐसे कभी सोचते हो! बिल्कुल ख्याल नहीं आता? कुमार जीवन - अर्थात् सदा उड़ते पंछी, बंधन में फँसे हुए नहीं। कभी भी कोई संकल्प न आवे। सदा निर्बन्धन हो तीव्रगति से आगे बढ़ते चलो।
कुमारियों से - कुमारियों को सेवा में आगे बढ़ने की लिफ्ट मिली हुई है। यह लिफ्ट ही श्रेष्ठ गिफ्ट है। इस गिफ्ट को यूज करना आता है ना! जितना स्वयं को शक्तिशाली बनायेंगी उतना सेवा भी शक्तिशाली करेंगी। अगर स्वयं ही किसी बात में कमज़ोर होंगी तो सेवा भी कमज़ोर होगी। इसलिए शक्तिशाली बन शक्तिशाली सेवाधारी बन जाओ। ऐसी तैयारी करती चलो। जो समय आने पर सफलता पूर्वक सेवा में लग जाओ और नम्बर आगे ले लो। अभी तो पढ़ाई में टाइम देना पड़ता है फिर तो एक ही काम होगा। इसलिए जहाँ भी हो ट्रेनिंग करते रहो। निमित्त बनी हुई आत्माओं के संग से तैयारी करती रहो। तो योग्य सेवाधारी बन जायेंगी। जितना आगे बढ़ेगी उतना अपना ही फायदा है।
सेवाधारी-टीचर्स बहनों से
1. सेवाधारी अर्थात् सदा निमित्त- निमित्त भाव-सेवा में स्वत: ही सफलता दिलाता है। निमित्त भाव नहीं तो सफलता नहीं। सदा बाप के थे, बाप के हैं और बाप के ही रहेंगे - ऐसी प्रतिज्ञा कर ली है ना? सेवाधारी अर्थात् हर कदम बाप के कदम पर रखने वाली। इसको कहते हैं - फालो फादर करने वाले। हर कदम श्रेष्ठ मत पर श्रेष्ठ बनाने वाले सेवाधारी हो ना। सेवा में सफलता प्राप्त करना यही सेवाधारी का श्रेष्ठ लक्ष्य है। तो सभी श्रेष्ठ लक्ष्य रखने वाले हो ना। जितना सेवा में वा स्व में व्यर्थ समाप्त हो जाता है उतना ही स्व और सेवा समर्थ बनती है। तो व्यर्थ को खत्म करना सदा समर्थ बनना। यही सेवाधारियों की विशेषता है। जितना स्वयं निमित्त बनी हुई आत्मायें शक्तिशाली होंगी उतनी सेवा भी शक्तिशाली होगी। सेवाधारी का अर्थ ही है - सेवा में सदा उमंग उत्साह लाना। स्वयं उमंग उत्साह में रहने वाले ही औरों को उमंग उत्साह दिला सकते हैं। तो सदा प्रत्यक्ष रूप में उमंग उत्साह दिखाई दे। ऐसे नहीं कि मैं अन्दर में तो रहती हूँ लेकिन बाहर नहीं दिखाई देता। गुप्त पुरूषार्थ और चीज़ है लेकिन उमंग उत्साह छिप नहीं सकता है। चेहरे पर सदा उमंग उत्साह की झलक स्वत: दिखाई देगी। बोले, न बोले लेकिन चेहरा ही बोलेगा, झलक बोलेगी। ऐसे सेवाधारी हो?
सेवा का गोल्डन चांस यह भी श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है। सेवाधारी बनने का भाग्य तो प्राप्त हो गया। अभी सेवाधारी नम्बरवन हैं या नम्बर टू हैं यह भी भाग्य बनाना और देखना है। सिर्फ एक भाग्य नहीं लेकिन भाग्य पर भाग्य की प्राप्ति। जितने भाग्य प्राप्त करते जाते उतना नम्बर स्वत: ही आगे बढ़ता जाता है। इसको कहते हैं - ‘पद्मापद्म भाग्यवान’। एक सबजेक्ट में नहीं सब सबजेक्ट में सफलता स्वरूप। अच्छा –
2. सबसे ज्यादा खुशी किसको है - बाप को है या आपको? क्यों नहीं कहते हो कि मेरे को है। द्वापर से भक्ति में पुकारा और अब प्राप्त कर लिया तो कितनी खुशी होगी! 63 जन्म प्राप्त करने की इच्छा रखी और 63 जन्मों की इच्छा पूर्ण हो गई तो कितनी खुशी होगी! किसी भी चीज़ की इच्छा पूर्ण होती है तो खुशी होती है ना। यह खुशी ही विश्व को खुशी दिलाने वाली है। आप खुश होते हो तो सारी विश्व खुश हो जाती है। ऐसी खुशी मिली है ना! जब आप बदलते हो तो दुनिया भी बदल जाती है। और ऐसी बदलती है जिसमें दुःख और अशान्ति का नामो-निशान नहीं। तो सदा खुशी में नाचते रहो। सदा अपने श्रेष्ठ कर्मों का खाता जमा करते चलो। सभी को खुशी का खज़ाना बाँटो। आज वे संसार में खुशी नहीं है। सब खुशी के भिखारी हैं, उन्हें खुशी से भरपूर बनाओ। सदा इसी सेवा से आगे बढ़ते रहो। जो आत्मायें दिलशिकस्त बन गई हैं उन्हों में उमंग उत्साह लाते रहो। कुछ कर सकते नहीं, हो नहीं सकता... ऐसे दिलशिकस्त हैं और आप विजयी बन विजयी बनाने का उमंग उत्साह बढ़ाने वाले हो। सदा विजय की स्मृति का तिलक लगा रहे। तिलकधारी भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं - इसी स्मृति में सदा रहो। अच्छा –
प्रश्न - जो समीप सितारे हैं उनके लक्षण क्या होंगे?
उत्तर - उनमें समानता दिखाई देगी। समीप सितारों में बापदादा के गुण और कर्तव्य प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। जितनी समीपता उतनी समानता होगी। उनका मुखड़ा बापदादा का साक्षात्कार कराने वाला दर्पण होगा। उनको देखते ही बापदादा का परिचय प्राप्त होगा। भले देखेंगे आपको लेकिन आकर्षण बापदादा की तरफ होगी। इसको कहा जाता है - ‘सन शोज फादर’। स्नेही के हर कदम में, जिससे स्नेह है उसकी छाप देखने में आती है। जितना हर्षित मूर्त उतना आकर्षण मूर्त बन जाते हैं। अच्छा!
18-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मन्सा शक्ति तथा निर्भयता की शक्ति
वृक्षपति बाप अपने आदि रत्नों प्रति बोले
आज वृक्षपति अपने नये वृक्ष के फाउण्डेशन बच्चों को देख रहे हैं। वृक्षपति अपने वृक्ष के तना को देख रहे हैं। सभी वृक्षपति की पालना के पले हुए श्रेष्ठ फलस्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। आदि देव अपने आदि रत्नों को देख रहे हैं। हर एक रत्न की महानता, विशेषता अपनी-अपनी है। लेकिन हैं सभी नई रचना के निमित्त बने हुए विशेष आत्मायें। क्योंकि बाप को पहचानने में, बाप के कार्य में सहयोगी बनने में निमित्त बने और अनेकों के आगे एक्जैम्पुल बने हैं। दुनिया को न देख, नई दुनिया बनाने वाले को देखा। अटल निश्चय और हिम्मत का प्रमाण दुनिया के आगे बनकर दिखाया। इसलिए सभी विशेष आत्मायें हो। विशेष आत्माओं को विशेष रूप से संगठित रूप में देख बापदादा भी हर्षित होते हैं और ऐसे बच्चों की महिमा के गीत गाते हैं। बाप को पहचाना और बाप ने, जो भी हैं, जैसे भी हैं, पसन्द कर लिया। क्योंकि दिलाराम को पसन्द है - सच्ची दिल वाले। दुनिया का दिमाग न भी हो लेकिन बाप को दुनिया के दिमागी पसन्द नहीं, दिल वाले पसन्द है। दिमाग तो बाप इतना बड़ा दे देता है जिससे रचयिता को जानने से रचना के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज जान लेते हो। इसलिए बापदादा पसन्द करते हैं - दिल से। नम्बर भी बनते हैं सच्ची साफ दिल के आधार से। सेवा के आधार से नहीं। सेवा में भी सच्ची दिल से सेवा की वा सिर्फ दिमाग के आधार से सेवा की! दिल का आवाज दिल तक पहुँचता है, दिमाग का आवाज दिमाग तक पहुँचता है। आज बापदादा दिल वालों की लिस्ट देख रहे थे। दिमाग वाले नाम कमाते हैं, दिल वाले दुआयें कमाते हैं। तो दो मालायें बन रही थीं। क्योंकि आज वतन में एडवांस में गई हुई आत्मायें इमर्ज थी। वह विशेष आत्मायें रूह-रूहान कर रही थीं। मुख्य रूह-रूहान क्या होगी? आप सभी ने भी विशेष आत्माओं को इमर्ज किया ना! वतन में भी रूह-रूहान चल रही थी कि ‘समय और सम्पूर्णता’ दोनों में कितना अन्तर रह गया है? नम्बर कितने तैयार हुए हैं? नम्बर तैयार हुए हैं या अभी होने हैं? नम्बरवार सब स्टेज पर आ रहे हैं ना। एडवांस पार्टी पूछ रही थी - कि अभी हम तो एडवांस का कार्य कर रहे हैं लेकिन हमारे साथी हमारे कार्य में विशेष क्या सहयोग दे रहे हैं? वह भी माला बना रहे हैं। कौन-सी माला बना रहे हैं? कहाँ-कहाँ किस-किस का नई दुनिया के आरम्भ करने का जन्म होगा। वह निश्चित हो रहा है। उन्हों को भी अपने कार्य में विशेष सहयोग - सूक्ष्म शक्तिशाली मन्सा का चाहिए। जो शक्तिशाली स्थापना के निमित्त बनने वाली आत्मायें हैं वह स्वयं भल पावन हैं लेकिन वायुमण्डल व्यक्तियों का, प्रकृति का तमोगुणी है। अति तमोगुणी के बीच अल्प सतोगुणी आत्मायें कमल पुष्प समान हैं। इसलिए आज रूह-रूहान करते आपकी अति स्नेही श्रेष्ठ आत्मायें मुस्कराते हुए बोल रही थीं कि क्या हमारे साथियों को इतनी बड़ी सेवा की स्मृति है वा सेन्टरों में ही बिजी हो गये हैं वा जोन में बिजी हो गये हैं?
इतना सारा प्रकृति परिवर्तन का कार्य, तमोगुणी संस्कार वाली इतनी आत्माओं का विनाश किसी भी विधि से होगा लेकिन अचानक के मृत्यु, अकाले मृत्यु, समूह रूप में मृत्यु, उन आत्माओं के वायब्रशेन कितने कितने तमोगुणी होंगे, उसको परिवर्तन करना और स्वयं को भी ऐसे खूनी नाहक वायुमण्डल के वायब्रेशन से सेफ रखना और उन आत्माओं को सहयोग देना - क्या इस विशाल कार्य के लिए तैयारी कर रहे हो? या सिर्फ कोई आया, समझाया और खाया, इसी में ही तो समय नहीं जा रहा है? वह पूछ रहे थे। आज बापदादा उन्हों का सन्देश सुना रहे हैं। इतना बेहद का कार्य करने के निमित्त कौन हैं? जब आदि में निमित्त बने हो तो अन्त में भी परिवर्तन के बेहद के कार्य में निमित्त बनना है ना। वैसे भी कहावत है - ‘जिसने अन्त किया उसने सब कुछ किया’। गर्भ महल भी तैयार करने हैं। तब तो नई रचना का, योगबल का आरम्भ होगा। योगबल के लिए मन्सा शक्ति की आवश्यकता है। अपनी सेफ्टी के लिए भी मन्सा शक्ति साधन बनेगी। मन्सा शक्ति द्वारा ही स्वयं की अन्त सुहानी बनाने के निमित्त बन सकेंगे। नहीं तो साकार सहयोग समय पर सरकमस्टांस प्रमाण न भी प्राप्त हो सकता है। उस समय मन्सा शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प शक्ति, एक के साथ लाइन क्लीयर नहीं होगी तो अपनी कमज़ोरियाँ पश्चाताप के रूप में भूतों के मिसल अनुभव होंगी। क्योंकि स्मृति में कमज़ोरी आने से भय - भूत की तरह अनुभव होगा। अभी भले कैसे भी चला लेते हो लेकिन अन्त में भय अनुभव होगा। इसलिए अभी से बेहद की सेवा के लिए, स्वयं की सेफ्टी के लिए मन्सा शक्ति और निर्भयता की शक्ति जमा करो, तब ही अन्त सुहाना और बेहद के कार्य में सहयोगी बन बेहद के विश्व के राज्य अधिकारी बनेंगे। अभी आपके साथी, आपके सहयोग का इन्तजार कर रहे हैं। कार्य चाहे अलग-अलग है लेकिन परिवर्तन के निमित्त दोनों ही हैं। वह अपनी रिजल्ट सुना रहे थे।
एडवांस पार्टी वाले कोई स्वयं श्रेष्ठ आत्माओं का आह्वाहन करने के लिए तैयार हुए हैं और हो रहे हैं, कोई तैयार कराने में लगे हुए हैं। उन्हों का सेवा का साधन है - मित्रता और समीपता के सम्बन्ध। जिससे इमर्ज रूप में ज्ञान चर्चा नहीं करते लेकिन ज्ञानी तू आत्मा के संस्कार होने के कारण एक दो के श्रेष्ठ संस्कार, श्रेष्ठ वायब्रेशन और सदा होली और हैपी चेहरा एक दो को प्रेरणा देने का कार्य कर रहा है। चाहे अलग-अलग परिवार में हैं लेकिन किसी न किसी सम्बन्ध वा मित्रता के आधार पर एक दो के सम्पर्क में आने से आत्मा नॉलेजफुल होने के कारण यह अनुभूति होती रहती है कि यह अपने हैं वा समीप के हैं। अपनेपन के आधार से एक दो को पहचानते हैं। अभी समय समीप आ रहा है इसलिए एडवांस पार्टी का कार्य तीव्रगति से चल रहा है। ऐसी लेन-देन वतन में हो रही थी। विशेष जगत-अम्बा सभी बच्चों के प्रति दो मधुर बोल, बोल रही थी। दो बोल में सभी को स्मृति दिलाई - ‘‘सफलता का आधार सदा सहनशक्ति और समाने की शक्ति है, इन विशेषताओं से सफलता सदा सहज और श्रेष्ठ अनुभव होगी।’’ औरों का भी सुनायें क्या? आज चिटचैट का दिन विशेष मिलने का रहा तो हर एक अपने अनुभव का वर्णन कर रहे थे। अच्छा और किसका सुनेंगे? (विश्व किशोर भाऊ का) वह वैसे भी कम बोलता है लेकिन जो बोलता है वह शक्तिशाली बोलता है। उसका भी एक ही बोल में सारा अनुभव रहा कि किसी भी कार्य में सफलता का आधार - ‘‘निश्चय अटल और नशा सम्पन्न’’। अगर निश्चय अटल है तो नशा स्वत: ही औरों को भी अनुभव होता है। इसलिए निश्चय और नशा सफलता का आधार रहा। यह है उसका अनुभव। जैसे साकार बाप को सदा निश्चय और नशा रहा कि मैं भविष्य में विश्व महाराजन बना कि बना। ऐसे विश्वकिशोर को भी यह नशा रहा कि मैं पहले विश्व महाराजन का पहला प्रिन्स हूँ। यह नशा वर्तमान और भविष्य का अटल रहा। तो समानता हो गई ना। जो साथ में रहे उन्होंने ऐसा देखा ना।
अच्छा - दीदी ने क्या कहा? दीदी रूह-रूहान बहुत अच्छी कर रही थी। वह कहती है कि आपने सभी को बिना सूचना दिये क्यों बुला लिया। छुट्टी लेकर तैयार हो जाती। आप छुट्टी देते थे? बापदादा बच्चों से रूह-रूहान कर रहे थे - देह सहित देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार सबके सम्बन्ध, लौकिक नहीं तो अलौकिक तो हैं। अलौकिक सम्बन्ध से, देह से, संस्कार से ‘नष्टोमोहा’ बनने की विधि, यही ड्रामा में नूंधी हुई है। इसलिए अन्त में सबसे नष्टोमोहा बन अपनी ड्यूटी पर पहुँच गई। चाहे विश्व किशोर का पहले थोड़ा-सा मालूम था लेकिन जिस समय जाने का समय रहा उस समय वह भी भूल गया था। यह भी ड्रामा में नष्टोमोहा बनने की विधि नूँधी हुई थी जो रिपीट हो गई। क्योंकि कुछ अपनी मेहनत और कुछ बाप ड्रामा अनुसार कर्मबन्धन मुक्त बनाने में सहयोग भी देता है। जो बहुत काल के सहयोगी बच्चे रहे हैं, ‘एक बाप दूसरा न कोई’ इस मेन सबजेक्ट में पास रहे हैं, ऐसे एक बाप अनुभव करने वालों को बाप विशेष एक ऐसे समय सहयोग जरूर देता है। कई सोचते हैं कि क्या यह सब कर्मातीत हो गये, यही कर्मातीत स्थिति है? लेकिन ऐसे आदि से सहयोगी बच्चों को एक्स्ट्रा सहयोग मिलता है। इसलिए कुछ अपनी मेहनत कम भी दिखाई देती हो लेकिन बाप की मदद उस समय अन्त में एक्स्ट्रा मार्क्स दे पास विद आनर बना ही देती है। वह गुप्त होता है - इसलिए क्वेश्चन उठते हैं- कि क्या ऐसा हुआ? लेकिन यह सहयोग का रिटर्न है। जैसे कहावत है ना - ‘आईवेल में काम आता है’। तो जो दिल से सहयोगी रहे हैं उन्हों को ऐसे समय पर एक्स्ट्रा मार्क्स रिटर्न के रूप में प्राप्त होती है। समझा - इस रहस्य को? इसलिए नष्टोमोहा की विधि से एक्स्ट्रा मार्क्स की गिफ्ट से सफलता को प्राप्त कर लिया। समझा - पूछते रहे हो ना कि आखिर क्या है? सो आज यह रूह-रूहान सुना रहे हैं। अच्छा - दीदी ने क्या कहा? उसका अनुभव तो सभी जानते भी हो। वह यही बोल, बोल रही थी कि ‘सदा बाप और दादा की अँगुली पकड़ो या अँगुली दो। चाहे बच्चा बना के अँगुली पकड़ो, चाहे बाप बनाकर अँगुली दो। दोनों रूप से हर कदम में अँगुली पकड़ साथ का अनुभव कर चलना, यही मेरे सपालता का आधार है। तो यही विशेष रूह-रूहान चली। आदि रत्नों के संगठन में वह कैसे मिस होगी इसलिए वह भी इमर्ज थी। अच्छा - वह रही एडवांस पार्टी की बातें, आप क्या करेंगे?
एडवांस पार्टी अपना काम कर रही है। आप एडवांस फोर्स भरो। जिससे परिवर्तन करने के कार्य का कोर्स समाप्त हो जाए। क्योंकि फाउण्डेशन है। फाउण्डेशन ही बेहद के सेवाधारी बन, बेहद के बाप को प्रत्यक्ष करेंगे। प्रत्यक्षता का नगाड़ा, एक ही साज में बजेगा - ‘मिल गया, आ गया।’ ! अभी तो बहुत काम पड़ा है। आप समझ रहे हो कि पूरा हो रहा है। अभी तो वाणी द्वारा बदलने का कार्य चल रहा है। अभी वृत्ति द्वारा वृत्तियाँ बदलें, संकल्प द्वारा संकल्प बदल जाएं। अभी यह रिसर्च तो शुरू भी नहीं की है। थोड़ा-थोड़ा किया तो क्या हुआ? यह सूक्ष्म सेवा स्वत: ही कई कमज़ोरियों से पार कर देगी। जो समझते हैं कि यह कैसे होगा। वह जब इस सेवा में बिजी रहेंगे तो स्वत: ही वायुमण्डल ऐसा बनेगा जो अपनी कमज़ोरियाँ स्वयं को ही स्पष्ट अनुभव होंगी और वायुमण्डल के कारण स्वयं ही शर्मशार हो परिवर्तित हो जायेंगे। कहना नहीं पड़ेगा। कहने से तो देख लिया। इसलिए अभी ऐसा प्लैन बनाओ। जिज्ञासु और ज्यादा बढ़ेगे इसकी चिंता नहीं करो। मदोगरी भी बहुत बढ़ेगी। इसकी भी चिंता नहीं करो। मकान भी मिल जायेंगे इसकी भी चिंता नहीं करो। सब सिद्धि हो जायेगी। यह विधि ऐसी है जो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे। अच्छा –
शक्तियाँ बहुत हैं, आदि में निमित्त ज्यादा शक्तियाँ बनी। गोल्डन जुबली में भी शक्तियाँ ज्यादा रही हैं। पाण्डव थोड़े गिनती के हैं। फिर भी पाण्डव हैं। अच्छा है, हिम्मत रख आदि में सहन करने का सबूत तो यही आदि रतन हैं। विघ्न विनाशक बन निमित्त बन, निमित्त बनाने के कार्य में अमर रहें हैं। इसलिए बापदादा को भी अविनाशी, अमर भव के वरदानी बच्चे सदा प्रिय हैं। और यह आदि रतन स्थापना के, आवश्यकता के समय के सहयोगी हैं। इसलिए ऐसे निमित्त बनने वाली आत्माओं को, आईवेले पर सहयोगी बनने वाली आत्माओं को, ऐसी कोई भी वेला मुश्किल की आती है तो बापदादा भी उन्हें उसका रिटर्न देता है। इसलिए आप सभी जो भी ऐसे समय पर निमित्त बने हो उसकी यह एकस्ट्रा गिफ्ट ड्रामा मे नूंधी हुई है। इसलिए एक्स्ट्रा गिफ्ट के अधिकारी हो। समझा - माताओं के फुरी-फुरी बूंद-बूंद तालाब से स्थापना का कार्य आरम्भ हुआ और अभी सफलता के समीप पहुँचा। माताओं के दिल की कमाई है, धन्धे की कमाई नहीं। दिल की कमाई एक हजार के बराबर है। स्नेह का बीज डाला है इसलिए स्नेह के बीज का फल फलीभूत हो रहा है। है तो साथ पाण्डव भी। पाण्डवों के बिना भी तो कार्य नहीं चलता लेकिन ज्यादा संख्या शक्तियों की है। इसलिए 5 पाण्डव लिख दिये हैं। फिर भी प्रवृत्ति को निभाते न्यारे और बाप के प्यारे बन हिम्मत और उमंग का सबूत दिया है इसलिए पाण्डव भी कम नहीं हैं। शक्तियों का सर्वशक्तिवान गाया हुआ है तो पाण्डवों का पाण्डवपति भी गाया है। इसलिए जैसे निमित्त बने हो ऐसे निमित्त बने हो ऐसे सदा स्मृति में रख आगे बढ़ते चलो। अच्छा –
सदा पद्मापद्म भाग्य के अधिकारी, सदा सफलता के अधिकारी, सदा स्वयं को श्रेष्ठ आधारमूर्त समझ सर्व का उद्धार करने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
दादियों से - घर का गेट कौन खोलेगा? गोल्डन जुबली वाले या सिल्वर जुबली वाले, ब्रह्मा के साथ गेट तो खोलेंगे ना! या पीछे आयेंगे? साथ जायेंगे तो सजनी बनकर जायेंगे और पीछे जायेंगे तो बराती बनकर जायेंगे। सम्बन्धी भी तो बराती कहे जायेंगे। नजदीक तो हैं लेकिन कहा जायेगा - बारात आई हैं। तो कौन गेट खोलेगा? गोल्डन जुबली वाले सा सिल्वर जुबली वाले? जो घर का गेट खोलेंगे वही स्वर्ग का गेट भी खोलेंगे। अभी वतन में आने की किसको मना नहीं है। साकार में तो फिर भी बन्धन है समय का सरकमस्टांस का। वतन में आने के लिए तो कोई बन्धन नहीं। कोई नहीं रोकेगा, टर्न लगाने की भी जरूरत नहीं। अभ्यास से ऐसा अनुभव करेंगे जैसे यहाँ शरीर में होते हुए एक सेकण्ड में चक्कर लगाकर वापस आ गये जो अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का गायन है। यह अन्तर की आत्मा वाहन बन जाती है। तो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे बिल्कुल बटन दबाया, विमान उड़ा, चक्र लगाके आ गये और दूसरे भी अनुभव करेंगे कि यह यहाँ होते हुए भी नहीं है। जैसे साकार में देखा ना - बात करते-करते भी सेकण्ड में है और अभी नहीं है। अभी-अभी है, अभी-अभी नहीं है। यह अनुभव किया ना। ऐसे अनुभव किया ना! इसमें सिर्फ स्थूल विस्तार को समेटने की आवश्यकता है। जैसे साकार में देखा - इतना विस्तार होते हुए भी अन्तिम स्टेज क्या रही? विस्तार को समेटने की, उपराम रहने की। अभी-अभी स्थूल डारेक्शन दे रहे हैं और अभी-अभी अशरीरी स्थिति का अनुभव करा रहे हैं। तो यह समेटने की शक्ति की प्रत्यक्षता देखी! जो आप लोग भी कहते थे कि बाबा यहाँ है या नहीं हैं! सुन रहे हैं या नहीं सुन रहे हैं। लेकिन वह तीव्रगति ऐसी होती है, जो कार्य मिस नहीं करेंगे। आप बात सुना रहे हो तो बात मिस नहीं करेंगे। लेकिन गति इतनी तीव्र है जो दोनों ही काम एक मिनट में कर सकते है। सार भी कैच कर लेंगे और चक्र भी लगा लेंगे। ऐसे भी अशरीरी नहीं होंगे जो कोई बात कर रहा है, आप कहो कि सुना ही नहीं। गति फास्ट हो जाती है। बुद्धि इतनी विशाल हो जाती है जो एक ही समय पर दोनों कार्य करते हैं। यह तब होता जब समेटने की शक्ति यूज करो। अभी प्रवृत्ति का विस्तार हो गया है। उसमें रहते हुए यही अभ्यास फरिश्ते पन का साक्षात्कार करायेगा! अभी एक-एक छोटी-छोटी बात के पीछे यह जो मेहनत करनी पड़ती है - वह स्वतः ही ऊँच जाने से यह छोटी बातें व्यक्त भाव की अनुभव होंगी। ऊँचे जाने से नीचा पन अपने आप छूट जायेगा। मेहनत से बच जायेंगे। समय भी बचेगा, और सेवा भी फास्ट होगी, नहीं तो कितना समय देना पड़ता है! अच्छा –
“सिल्वर जुबली में आई हुई टीचर्स बहनों के प्रति अव्यक्त महावाक्य”
सभी ने सिल्वर जुबली मनाई! बनना तो गोल्डन एजड है, सिल्वर तो नहीं बनना है ना! गोल्डन एजड बनने के लिए इस वर्ष क्या प्लैन बनाया है? सेवा का प्लैन तो बनाते ही हो लेकिन स्व-परिवर्तन और बेहद का परिवर्तन - उसके लिए क्या प्लैन बनाया है? यह तो अपने-अपने स्थान का प्लैन बनाते हो, यह करेंगे। लेकिन आदि निमित्त हो तो बेहद के प्लैन वाले हो। ऐसे बुद्धि में इमर्ज होता है कि हमें इतने सारे विश्व का कल्याण करना है, यह इमर्ज होता है? या समझते हो कि यह तो जिनका काम है वही जानें! कभी बेहद का ख्याल आता है या अपने ही स्थानों का ख्याल रहता है? नाम ही है विश्व-कल्याणकारी, फलाने स्थान के कल्याणकारी तो नहीं कहते। लेकिन बेहद सेवा का क्या संकल्प चलता है? बेहद के मालिक बनना हैं ना, स्टेट के मालिक तो नहीं बनना है। सेवाधारी निमित्त आत्माओं में जब यह लहर पैदा हो तब वह लहर औरों में भी पैदा होगी। अगर आप लोगों में यह लहर नहीं होगी तो दूसरों में आ नहीं सकती। तो सदा बेहद के अधिकारी समझ, बेहद का प्लैन बनाओ। पहली मुख्य बात है -किसी भी प्रकार के हद के बन्धन में बंधे हुए तो नहीं हैं ना! बन्धन मुक्त ही बेहद की सेवा में सफल होंगे। यहाँ ही यह प्रत्यक्ष होता जा रहा है और होता रहेगा। तो इस वर्ष में क्या विशेषता दिखायेंगे? दृढ़ संकल्प तो हर वर्ष करते हो। जब भी कोई ऐसा चांस बनता है उसमें भी दृढ़ संकल्प तो करते भी हो, कराते भी हो। तो दृढ़ संकल्प लेना भी कामन हो गया है। कहने में दृढ़ संकल्प आता है लेकिन होता है - संकल्प। अगर दृढ़ होता तो दुबारा नहीं लेना पड़ता। ‘दृढ़ संकल्प’ यह शब्द कामन हो गया है। अभी कोई भी काम करते है तो कहते ऐसे ही हैं कि हाँ, दृढ़ संकल्प करते हैं लेकिन ऐसा कोई नया साधन निकालो जिससे सोचना और करना समान हो। प्लैन और प्रैक्टिकल दोनों साथ हों। प्लैन तो बहुत हैं लेकिन प्रैक्टिकल में समस्यायें भी आती हैं, मेहनत भी लगती है, सामना करना भी पड़ता है, यह तो होगा और होता ही रहेगा। लेकिन जब लक्ष्य है तो प्रैक्टिकल में सदा आगे बढ़ते रहेंगे। अभी ऐसा प्लैन बनाओ जो कुछ नवीनता दिखाई दे। नहीं तो हर वर्ष इकट्ठे होते हो, कहते हो वैसे का वैसा ही है। एक दो को वैसा ही देखते। मनपसन्द नहीं होता। जितना चाहते हैं उतना नहीं होता। वह कैसे हो? इसके लिए - ‘ओटे सो अर्जुन’। एक भी निमित्त बन जाता है तो औरों में भी उमंग उत्साह तो आता ही है। तो इतने सभी इकट्ठे हुए हो, ऐसा कोई प्लैन प्रैक्टिकल का बनाओ। थ्योरी के भी पेपर्स होते हैं, प्रैक्टिकल के भी होते हैं। यह तो है कि जो आदि से निमित्त बने हैं उन्हों का भाग्य तो श्रेष्ठ है ही। अभी नया क्या करेंगे?
इसके लिए विशेष अटेन्शन - हर कर्म करने के पहले यह लक्ष्य रखो कि मुझे स्वयं को सम्पन्न बनाए सैम्पुल बनाना है। होता क्या है कि संगठन का फायदा भी होता है तो नुकसान भी होता है। संगठन में एक दो को देख अलबेलापन भी आता है और संगठन में एक दो को देख करके उमंग उत्साह भी आता है, दोनों होता है। तो संगठन को अलबेलेपन से नहीं देखना है। अभी यह एक रीति हो गई है, यह भी करते हैं, यह भी करते हैं, हमने भी किया तो क्या हुआ! ऐसे चलता ही हैं। तो यह संगठन में अलबेलेपन का नुकसान होता है। संगठन से श्रेष्ठ बनने का सहयोग लेना वह अलग चीज़ है। अगर यह लक्ष्य रहे - कि मुझे करना है। मुझे करके औरों को कराना है। फिर उमंग उत्साह रहेगा करने का भी और कराने का भी। और बार-बार इस लक्ष्य को इमर्ज करें। अगर सिर्फ लक्ष्य रखा तो भी वह मर्ज हो जाता है। इसीलिए प्रैक्टिकल नहीं होता। तो लक्ष्य को समय प्रति समय इमर्ज करो। लक्ष्य और लक्षण भी बार-बार मिलाते चलो। फिर शक्तिशाली हो जायेंगे। नहीं तो साधारण हो जाता है। अभी इस वर्ष हर एक यही समझे कि हमें ‘सिम्पल और सैम्पल’ बनना है। यह सेवा की प्रवृत्ति वृद्धि को तो पाती रहती है लेकिन यह प्रवृत्ति उन्नति में विघ्न रूप नहीं बननी चाहिए। अगर उन्नति में विघ्न रूप बनती है तो उसे सेवा नहीं कहेंगे। अच्छा - है तो बहुत बड़ा झुण्ड! जब एक इतना छोटा-सा एटम बाम्ब भी कमाल कर दिखाता है तो यह इतने आत्मिक बाम्बस क्या नहीं कर सकते हैं! स्टेज पर तो आने वाले आप लोग हो ना। गोल्डन जुबली वाले तो हो गये बैकबोन लेकिन प्रैक्टिकल में स्टेज पर तो आने वाले आप हो। अभी ऐसा कुछ करके दिखाओ। - जैसे गोल्डन जुबली के निमित्त आत्माओं का स्नेह का संगठन दिखाई देता है और उस स्नेह के संगठन ने प्रत्यक्षफल दिखाया - सेवा की वृद्धि, सेवा में सफलता। ऐसे ही ऐसा संगठन बनाओ जो किले के रूप में हो। जैसे गोल्डन जुबली वाली निमित्त दीदियाँ, दादियाँ जो भी हैं उन्होंने जब स्नेह और संगठन की शक्ति का प्रत्यक्षफल दिखाया तो आप भी प्रत्यक्षफल दिखाओ। तो एक दो के समीप आने के लिए समान बनना पड़ेगा। संस्कार भिन्न-भिन्न तो हैं भी और रहेंगे भी। अभी जगदम्बा को देखो और ब्रह्मा को देखो - संस्कार भिन्न-भिन्न ही रहे। अभी जो भी निमित्त दीदी-दादियाँ हैं, संस्कार एक जैसे तो नहीं लेकिन संस्कार मिलाना - यह है स्नेह का सबूत। यह नहीं सोचो कि संस्कार मिलें तो संगठन हो, यह नहीं। संस्कार मिलाने से संगठन मजबूत बन ही जाता है। अच्छा - यह भी हो ही जायेगा। सेवा एक है लेकिन निमित्त बनना, निमित्त भाव में चलना - यही विशेषता है। यही तो हद निकलनी है ना? इसके लिए सोचा न? तो सबको चेन्ज करें। एक सेन्टर वाले दूसरे सेन्टरों में जाने चाहिए। सभी तैयार हो? आर्डर निकलेगा। आपका तो हैंडसअप हैं ना? बदलने में फायदा भी है। इस वर्ष यह नई बात करें ना। नष्टोमोहा तो होना ही पड़ेगा। जब त्यागी तपस्वी बन गये तो यह क्या है? त्याग ही भाग्य है। तो भाग्य के आगे यह क्या त्याग है! आफर करने वालों को आफरीन मिल जाती है। तो सभी बहादुर हो! बदली माना बदली। कोई को भी कर सकते हैं। हिम्मत है तो क्या बड़ी बात है। अच्छा तो इस वर्ष यह नवीनता करेंगे। पसन्द हैं ना! जिन्होंने एवररेडी का पाठ आदि से पढ़ा हुआ है उनमें यह भी अन्दर ही अन्दर बल भरा हुआ होता है। कोई भी आज्ञा पालन करने का बल स्वतः ही मिलता है तो सदा आज्ञाकारी बनने का बल मिला हुआ है, अच्छा - सदा श्रेष्ठ भाग्य है और भाग्य के कारण सहयोग प्राप्त होता ही रहेगा। समझा!
2. सेवा वर्तमान और भविष्य दोनों को ही श्रेष्ठ बनाती है। सेवा का बल कम नहीं है। याद और सेवा दोनों का बैलन्स चाहिए। तो सेवा उन्नति का अनुभव करायेगी। याद में सेवा करना नैचुरल हो। ब्राह्मण जीवन की नेचर क्या है? याद में रहना। ब्राह्मण जन्म लेना अर्थात् याद का बन्धन बांधना। जैसे वह ब्राह्मण जीवन में कोई न कोई निशानी रखते हैं- तो इस ब्राह्मण जीवन की निशानी है - ‘याद’। याद में रहना नैचुरल हो। इसलिए याद अलग की, सेवा अलग की, नहीं। दोनों इकट्ठे हों। इतना टाइम कहाँ है जो याद अलग करो, सेवा अलग करो।। इसलिए याद और सेवा सदा साथ है ही। इसी में ही अनुभवी भी बनते हैं, सफलता भी प्राप्त करते हैं। अच्छा –
सिलवर जुबली में आये हुए भाई-बहिनों प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश
रजत जयन्ति के शुभ अवसर पर रूहानी बच्चों के प्रति स्नेह के सुनहरे पुष्प “सारे विश्व में ऊँचे से ऊँचे महायुग के महान पार्टधारी, युग परिवर्तक बच्चों को श्रेष्ठ सुहावने जीवन की मुबारक हो। सेवा में वृद्धि के निमित्त बनने के विशेष भाग्य की मुबारक हो। आदि से परमात्म स्नेही और सहयोगी बनने की, सैम्पल बनने की मुबारक हो। समय के समस्याओं के तूफान को तोफा समझ, सदा विघ्न-विनाशक बनने की मुबारक हो।
बापदादा सदा अपने ऐसे अनुभवों के खज़ानों से सम्पन्न सेवा के फाउण्डेशन बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चों के साहस के गुणों की माला सिमरण करते हैं। ऐसे लकी और लवली अवसर पर विशेष सुनहरे वरदान देते सदा एक बन, एक को प्रत्यक्ष करने के कार्य में सफल भव! रूहानी जीवन में अमर भव! प्रत्यक्ष फल और अमर फल खाने के पद्म भाग्यवान भव!”
20-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
पुरूषार्थ और परिवर्तन के गोल्डन चांस का वर्ष
आदि अनादि बाप अपने आदि बच्चों प्रति बोले
आज समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। जिन समर्थ आत्माओं ने सबसे बड़े ते बड़ा समर्थ कार्य, विश्व को नया श्रेष्ठ विश्व बनाने का दृढ़ संकल्प किया है। हर आत्मा को शान्त वा सुखी बनाने का, समर्थ कार्य करने का संकल्प किया है और इसी श्रेष्ठ संकल्प को लेकर दृढ़ निश्चय बुद्धि बन कार्य को प्रत्यक्ष रूप में ला रहे हैं। सभी समर्थ बच्चों का एक ही यह श्रेष्ठ संकल्प है कि यह श्रेष्ठ कार्य होना ही है। इससे भी ज्यादा यह निश्चित है कि यह कार्य हुआ ही पड़ा है। सिर्फ कर्म और फल के, पुरूषार्थ और प्रालब्ध के निमित्त और निर्माण के कर्म-फिलासफी के अनुसार निमित्त बन कार्य कर रहे हैं। भावी अटल है। लेकिन सिर्फ आप श्रेष्ठ भावना द्वारा, भावना का फल अविनाशी प्राप्त करने के निमित्त बने हुए हैं। दुनिया की अन्जान आत्मायें यही सोचती हैं कि - शान्ति होगी, क्या होगा, कैसे होगा! कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती। क्या सचमुच होगा! और आप कहते हो, होगा तो क्या लेकिन हुआ ही पड़ा है। क्योंकि नई बात नहीं है। अनेक बार हुआ है और अब भी हुआ ही पड़ा है। निश्चयबुद्धि निश्चित भावी को जानते हो। इतना अटल निश्चय क्यों है? क्योंकि स्व-परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण से जानते हो कि प्रत्यक्ष प्रमाण के आगे और कोई प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है। साथ-साथ परमात्म वार्य सदा सफल है ही है। यह कार्य आत्माओं, महान आत्माओं वा धर्म आत्माओं का नहीं है। परमात्म कार्य सफल हुआ ही पड़ा है ऐसे निश्चय बुद्धि, निश्चित भविष्य को जानने वाले निश्चिन्त आत्मायें हो। लोग कहते हैं वा डरते हैं कि विनाश होगा और आप निश्चिन्त हो कि नई स्थापना होगी। कितना अन्तर है - असम्भव और सम्भव का। आपके सामने सदा स्वार्णिम दुनिया का स्वार्णिम सूर्य उदय हुआ ही पड़ा है। और उन्हों के सामने है - विनाश की काली घटायें। अभी आप सभी तो समय समीप होने के कारण सदा खुशी के घुँघरू डाल नाचते रहते हो कि आज पुरानी दुनिया है, कल स्वार्णिम दुनिया होगी। आज और कल, इतना समीप पहुँच गये हो।
अभी इस वर्ष ‘‘सम्पूर्णता और समानता’’ का समीप अनुभव करना है। सम्पूर्णता आप सभी फरिश्तों का विजय माला ले आह्वाहन कर रही है। विजय माला के अधिकारी तो बनना है ना। सम्पूर्ण बाप और सम्पूर्ण स्टेज, दोनों ही आप बच्चों को बुला रहे हैं कि - आओ श्रेष्ठ आत्मायें आओ, समान बच्चे आओ, समर्थ बच्चे आओ, समान बन अपने स्वीट होम में विश्रामी बनो। जैसे बापदादा विधाता है, वरदाता है ऐसे आप भी इस वर्ष विशेष ब्राह्मण आत्माओं प्रति वा सर्व आत्माओं प्रति ‘विधाता बनो, वरदाता बनो’। फरिश्ता क्या करता? वरदाता बन वरदान देता है। देवता सदा देता है, लेता नहीं है। लेवता नहीं कहते। तो वरदाता और विधाता, फरिश्ता सो देवता ... अभी यह महामन्त्र हम ‘फरिश्ता सो देवता’, इस मंत्र को विशेष स्मृति स्वरूप बनाओ। मन्मनाभव तो हो ही गये, यह आदि का मंत्र रहा। अभी इस समर्थ मंत्र को अनुभव में लाओ। ‘‘यह होना चाहिए, यह मिलना चाहिए’’ यह दोनों ही बातें लेवता बनाती हैं, लेवता-पन के संस्कार देवता बनने में समय डाल देंगे। इसलिए इन संस्कारों को समाप्त करो। पहले जन्म में ब्रह्मा के घर से देवता बन नये जीवन, नये युग के वन नम्बर में आओ। संवत भी वन-वन-वन हो। प्रकृति भी सतोप्रधान नम्बरवन हो। राज्य भी नम्बरवन हो। आपकी गोल्डन स्टेज भी नम्बर वन हो। एक दिन के फर्क में भी वन-वन-वन से बदल जायेगा। अभी से फरिश्ता सो देवता बनने में बहुत काल के संस्कार प्रैक्टिकल कर्म में इमर्ज करो। क्योंकि बहुत काल जो गया है, वह बहुत काल की सीमा अब समाप्त हो रही है। उसकी डेट नहीं गिनती करो।
विनाश को अन्तकाल कहा जायेगा। उस समय बहुत काल का चांस तो समाप्त है ही, लेकिन थोड़े समय का भी चांस समाप्त हो जायेगा। इसलिए बापदादा बहुत काल की समाप्ति का इशारा दे रहे है। फिर बहुत काल की गिनती का चांस समाप्त हो थोड़ा समय पुरूषार्थ, थोड़ा समय प्रालब्ध, यही कहा जायेगा। कर्मों के खाते में अब बहुत काल खत्म हो थोड़ा समय वा अल्पकाल आरम्भ हो रहा है। इसलिए यह वर्ष ‘परिवर्तन काल’ का वर्ष है। बहुत काल से थोड़े समय से परिवर्तन होना है। इसलिए इस वर्ष के पुरूषार्थ में बहुत काल का हिसाब जितना जमा करने चाहो वह कर लो। फिर उल्हना नहीं देना कि हम तो अलबेले होकर चल रहे थे। आज नहीं तो कल बदल ही जायेंगे। इसलिए ‘कर्मों की गति’ को जानने वाले बनो। नॉलेजफुल बन तीव्रगति से आगे बढ़ो। ऐसा न हो दो हजार का हिसाब ही लगाते रहो। पुरूषार्थ का हिसाब अलग है और सृष्टि परिवर्तन का हिसाब अलग है। ऐसा नहीं सोचो - कि अभी 15 वर्ष पड़ा है, अभी 18 वर्ष पड़ा है। 99 में होगा, 88 में होगा... यह नहीं सोचते रहना। हिसाब को समझो। अपने पुरूषार्थ और प्रालब्ध के हिसाब को जान उस गति से आगे बढ़ो। नहीं तो बहुत काल के पुराने संस्कार अगर रह गये तो इस बहुत काल की गिनती धर्मराजपुरी के खाते में जमा हो जायेगी। कोई-कोई का बहुत काल के व्यर्थ, अयथार्थ कर्म-विकर्म का खाता अभी भी है, बापदादा जानते हैं सिर्फ आउट नहीं करते हैं। थोड़ा-सा पर्दा डाले हैं। लेकिन व्यर्थ और अयथार्थ यह खाता अभी भी बहुत है। इसलिए यह वर्ष एकस्ट्रा गोल्डन चांस का वर्ष है - जैसे पुरूषोत्तम युग है वैसे यह ‘पुरूषार्थ और परिवर्तन’ के गोल्डन चांस का वर्ष है। इसलिए विशेष हिम्मत और मदद के इस विशेष वरदान के वर्ष को साधारण 50 वर्ष के समान नहीं गँवाना। अभी तक बाप स्नेह के सागर बन सर्व सम्बन्ध के स्नेह में, अलबेलापन, साधारण पुरूषार्थ इसको देखते-सुनते भी न सुन न देख बच्चों को स्नेह की एकस्ट्रा मदद से, एकस्ट्रा मार्क्स देकर बढ़ा रहे हैं। लिफ्ट दे रहे हैं। लेकिन अभी समय परिवर्तन हो रहा है। इसलिए अभी कर्मों की गति को अच्छी तरह से समझ समय का लाभ लो। सुनाया था ना - कि 18 वाँ अध्याय आरम्भ हो गया है। 18वें अध्याय की विशेषता - अब ‘स्मृति स्वरूप बनो’। अभी स्मृति, अभी विस्मृति नहीं। स्मृति स्वरूप अर्थात् बहुत काल स्मृति स्वत: और सहज रहे। अभी युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार, मन को मुँझाने के संस्कार इसकी समाप्ति करो। नहीं तो यही बहुत काल के संस्कार बन, ‘अन्त मति सो भविष्य गति’ प्राप्त कराने के निमित्त बन जायेंगे। सुनाया ना - अभी बहुत काल के पुरूषार्थ का समय समाप्त हो रहा है और बहुत काल की कमज़ोरी का हिसाब शुरू हो रहा है। समझ में आया! इसलिए यह विशेष परिवर्तन का समय है। अभी वरदाता है फिर हिसाब-किताब करने वाले बन जायेंगे। अभी सिर्फ स्नेह का हिसाब है। तो क्या करना है! स्मृति स्वरूप बनो। स्मृति स्वरूप स्वत: ही नष्टोमोहा बना ही देगा। अभी तो मोह की लिस्ट बड़ी लम्बी हो गई है। एक स्व की प्रवृत्ति, एक दैवी परिवार की प्रवृत्ति, सेवा की प्रवृत्ति, हद के प्राप्तियों की प्रवृत्ति - इन सभी से नष्टोमोहा अर्थात् न्यारा बन प्यारा बनो। मैं-पन अर्थात् मोह। इससे नष्टोमोहा बनो। तब बहुतकाल के पुरूषार्थ से बहुतकाल के प्रालब्ध की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे। बहुतकाल अर्थात् आदि से अन्त तक की प्रालब्ध का फल। वैसे तो एक-एक प्रवृत्ति होने का राज़ भी अच्छी तरह से जानते हो और भाषण भी अच्छा कर सकते हो। लेकिन निवृत्त होना अर्थात् नष्टोमोहा होना। समझा! प्वाइंटस तो आपके पास बापदादा से भी ज्यादा हैं। इसलिए प्वाइन्ट क्या सुनायें। ‘प्वाइन्टस’ तो हैं अब ‘प्वाइन्ट’ बनो। अच्छा –
सदा श्रेष्ठ कर्मों के प्राप्ति की गति को जानने वाले, सदा बहुतकाल के तीव्र पुरूषार्थ के, श्रेष्ठ पुरूषार्थ के श्रेष्ठ संस्कार वाले, सदा स्वार्णिम युग के आदि रत्न, संगमयुग के भी आदि रत्न, ऐसे आदि देव के समान बच्चों को, आदि बाप, अनादि बाप की सदा आदि बनने की श्रेष्ठ वरदानी यादप्यार और साथ-साथ सेवाधारी बाप की नमस्ते।’’
22-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बापदादा की आशा - सम्पूर्ण और सम्पन्न बनो
वरदाता, दिव्य बुद्धि दाता बापदादा बोले
आज विशेष दूरदेशवासी दूरदेश निवासी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। इतने दूर से किस लगन से आते हैं। बापदादा बच्चों की लगन को जानते हैं। एक तरफ दिल के मिलन की लगन है। दूसरे तरफ बाप से मिलने के लिए धैर्य भी धरा है। इसलिए धैर्य का फल विशेष रूप में देने के लिए आये हैं। विशेष मिलने के लिए आये हैं। सभी डबल विदेशी बच्चों के स्नेह के संकल्प, दिल मे मिलन के उमंग हर समय बापदादा देखते और सुनते रहते हैं। दूर बैठे भी स्नेह के कारण समीप हैं। बापदादा हर समय देखते हैं कि कैसे रात-रात जागरण कर बच्चे दृष्टि और वायब्रेशन से स्नेह और शक्ति कैच करते रहते हैं। आज विशेष मुरली चलाने नहीं आये हैं। मुरलियाँ तो बहुत सुनी - अब तो बापदादा को यह वर्ष विशेष प्रत्यक्ष स्वरूप, बापदादा के स्नेह का प्रमाण स्वरूप, सम्पूर्ण और सम्पन्न बनने के समीपता का स्वरूप, श्रेष्ठ संकल्प, श्रेष्ठ बोल, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ सम्बन्ध और सम्पर्क ऐसा श्रेष्ठ स्वरूप देखना चाहते हैं। जो सुना, सुनना और स्वरूप बनना यह समानता देखना चाहते हैं। प्रैक्टिकल परिवर्तन का श्रेष्ठ समारोह देखने चाहते हैं। इस वर्ष में सिल्वर, गोल्डन जुबली तो मनाई और मनायेंगे लेकिन बापदादा सच्चे बेदाग, अमूल्य हीरों का हार बनाने चाहते हैं। ऐसा एक-एक हीरा अमूल्य चकमता हुआ हो जो उसके लाइट माइट की चमक हद तक नहीं लेकिन बेहद तक जाए। जब बापदादा ने बच्चों के हद के संकल्प, हद के बोल, हद की सेवायें, हद के सम्बन्ध बहुत समय देखे, लेकिन अभी बेहद का बाप है - बेहद के सेवा की आवश्यकता है। उसके आगे यह दीपकों की रोशनी क्या लगेगी। अभी लाइट हाउस माइट हाउस बनना है। बेहद के तरफ दृष्टि रखो। बेहद की दृष्टि बने तब सृष्टि परिवर्तन हो। सृष्टि परिवर्तन का इतना बड़ा कार्य थोड़े समय में सम्पन्न करना है। तो गति और विधि भी बेहद की फास्ट चाहिए।
आपकी वृत्ति से देश विदेश के वायुमण्डल में यह एक ही आवाज गूँजे कि बेहद के मालिक, विश्व के मालिक, बेहद के राज्य अधिकारी, बेहद के सच्चे सेवाधारी, हमारे देव आत्मायें आ गये। अभी यह बेहद का एक आवाज देशविदेश में गूँजे। तब सम्पूर्णता और समाप्ति समीप अनुभव होगी। समझा! अच्छा –
चारों ओर के श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना पूर्ण करने वाले, फरिश्ता सो देवता आत्माओं को, सदा ऊँच स्थिति में स्थित रहने वाले लाइट हाउस, माइट हाउस विशेष आत्माओं को, बापदादा के सूक्ष्म इशारों को समझने वाले विशाल बुद्धि बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
देश विदेश के सभी बच्चों प्रति बापदादा ने सन्देश के रूप में यादप्यार दी - चारों ओर के स्नेही सहयोगी और शक्तिशाली बच्चों के भिन्न-भिन्न लहरों के पत्र बापदादा के स्नेह के सागर में समा गये हैं। सभी की भिन्न-भिन्न लहरें अपने-अपने उमंग उत्साह के अनुसार श्रेष्ठ हैं और बापदादा उन लहरों को देख हर्षित होते हैं। उमंग भी बहुत अच्छे हैं, प्लैन भी बड़े अच्छे हैं। अभी प्रैक्टिकल की मार्क्स बापदादा से लेनी है, और भविष्य खाता जमा करना है। इस समय बापदादा प्रैक्टिकल कोर्स की मार्क्स हर बच्चे की नोट कर रहे हैं। और यह वर्ष विशेष प्रैक्टिकल कोर्स और प्रैक्टिकल फोर्स की एकस्ट्रा मार्क्स लेने का है। इसलिए जो इशारे समय प्रति समय मिले हैं उन इशारों को हर एक स्वयं प्रति समझ प्रैक्टिकल में लाये तो नम्बर वन ले सकते हैं। विदेश के वा देश के बच्चे जिन्हों को दूर बैठे भी समीप के स्नेह का सदा अनुभव होता है और सदा उमंग रहता है, कुछ करके दिखायें, यह करें- ऐसा करें... यह उमंग है तो अभी बेहद की सेवा का सबूत बन उमंग को प्रैक्टिकल में लाने का विशेष चांस हैं। इसलिए उड़ती कला की रेस करो। याद में, सेवा में, दिव्य गुण मूर्त बनने में और साथसाथ ज्ञान स्वरूप बन ज्ञान चर्चा करने में, चार ही सब्जेक्ट में उड़ती कला वी रेस में नम्बर विशेष लेने का यह वर्ष का चांस है। यह विशेष चांस ले लो। नया अनुभव कर लो। नवीनता पसन्द करते हो ना! तो यह नवीनता करके नम्बर ले सकते हो। अभी इस वर्ष में एकस्ट्रा रेस की एकस्ट्रा मार्क्स है। समय एकस्ट्रा मिला है। पुरूषार्थ अनुसार प्रालब्ध तो सदा ही है। लेकिन यह वर्ष विशेष एकस्ट्रा का है। इसलिए खूब उड़ती कला के अनुभवी बन आगे बढ़ते, औरों को भी आगे बढ़ाओ। बाप सभी बच्चों के गले में बाँहों की माला डाल देते हैं। दिल बड़ी करेंगे तो साकार में पहुँचना भी सहज हो जायेगा। जहाँ दिल है वहाँ धन आ ही जाता है। दिल धन को कहाँ न कहाँ से लाता है। इसलिए दिल है और धन नहीं है यह बापदादा नहीं मानते हैं। दिल वाले को किसी न किसी प्रकार से टचिंग होती है और पहुँच जाते हैं। मेहनत का पैसा हो, मेहनत का धन पद्मगुणा लाभ देता है। याद करते-करते कमाते हैं ना। तो याद के खाते में जमा हो जाता है। और पहुँच भी जाते हैं। अच्छा - सभी अपने-अपने नाम और विशेषता से बाँहो की माला सहित यादप्यार स्वीकार करना।
16-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प
भाग्य विधाता बाप अपने भाग्यवान बच्चों प्रति बोले
आज भाग्य विधाता बाप अपने चारों ओर के पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को देख रहें हैं। हर एक बच्चे के मस्तक पर भाग्य का चमकता हुआ सितारा देख हर्षित हो रहें हैं। सारे कल्प में ऐसा कोई बाप हो नही सकता जिसके इतने सभी बच्चे भाग्यवान हों। नम्बरवार भाग्यवान होते हुए भी दुनिया के आजकल के श्रेष्ठ भाग्य के आगे लास्ट नम्बर भाग्यवान बच्चा भी अति श्रेष्ठ है। इसलिए बेहद के बापदादा को सभी बच्चों के भाग्य पर नाज़ है। बापदादा भी सदा - वाह मेंरे भाग्यवान बच्चे, वाह एक लगन में मगन रहने वाले बच्चे, यही गीत गाते रहते हैं। बापदादा आज विशेष सर्व बच्चों के स्नेह और साहस, दोनों विशेषताओं की मुबारक देने आये हैं।
हर एक ने यथा योग्य स्नेह का रिटर्न सेवा मे दिखाया। एक लगन से एक बाप को प्रत्यक्ष करने की हिम्मत प्रत्यक्ष रूप मे दिखाई। अपना-अपना कार्य उमंग उत्साह से सम्पन्न किया। यह कार्य के खुशी की मुबारक बापदादा दे रहे हैं। देशविदेश के सम्मुख आने वाले वा दूर बैठे भी अपने दिल के श्रेष्ठ संकल्प द्वारा वा सेवा द्वारा सहयोगी बने हैं तो सभी बच्चों को बापदादा ‘सदा सफलता भव, सदा हर कार्य में सम्पन्न भव, सदा प्रत्यक्ष प्रमाण भव का वरदान दे रहे हैं।’ सभी स्व परिवर्तन की, सेवा में और भी आगे बढ़ने की शुभ उमंग उत्साह की प्रतिज्ञायें बापदादा ने सुनी। सुनाया था ना कि बापदादा के पास आपकी साकार दुनिया से न्यारी शक्तिशाली टी.वी. है। आप सिर्फ शरीर के एक्ट को देख सकते हो। बापदादा मन के संकल्प को भी देख सकते हैं। जो भी हर एक ने पार्ट बजाया वह सब संकल्प सहित, मन की गतिविधि और तन की गतिविधि दोनों ही देखी, सुनी। क्या देखा होगा? आज तो मुबारक देने आये हैं इसलिए और बातें आज नहीं सुनायेंगे। बापदादा और साथ में सभी आपके सेवा के साथी बच्चों ने एक बात पर बहुत खुशी की तालियाँ बजाई। हाथ की तालियाँ नहीं, खुशी की तालियाँ बजाई कि सारे संगठन में सेवा द्वारा अभी-अभी बाप को प्रत्यक्ष कर लें, अभी-अभी विश्व में आवाज फैल जाए... यह एक उमंग और उत्साह का संकल्प सभी में एक था। चाहे भाषण करने वाले, चाहे सुनने वाले, चाहे कोई भी स्थूल कार्य करने वाले, सभी में यह संकल्प खुशी के रूप में अच्छा रहा। इसलिए चारों ओर खुशी की रौनक, प्रत्यक्ष करने का उमंग, वातावरण को खुशी की लहर में लाने वाला रहा। मैजारटी खुशी और नि:स्वार्थ स्नेह, यह अनुभव का प्रसाद ले गये। इसलिए बापदादा भी बच्चों की खुशी में खुश हो रहे थे। समझा।
गोल्डन जुबली भी मना ली ना! अभी आगे क्या मनायेंगे? डायमण्ड जुबली यहाँ ही मनायेंगे या अपने राज्य में मनायेंगे? गोल्डन जुबली किसलिए मनाई? गोल्डन दुनिया लाने के लिए मनाई ना। इस गोल्डन जुबली से क्या श्रेष्ठ गोल्डन संकल्प किया? दूसरों को तो गोल्डन थाट्स बहुत सुनायें। अच्छे-अच्छे सुनायें। अपने प्रति कौन-सा विशेष सुनहरी संकल्प किया? जो पूरा वर्ष हर संकल्प हर घड़ी गोल्डन हो। लोग तो सिर्फ गोल्डन मार्निंग या गोल्डन नाइट कह देते या गोल्डन इवनिंग कहते हैं। लेकिन आप सर्वश्रेष्ठ आत्माओं की हर सेकण्ड गोल्डन हो। गोल्डन सेकण्ड हो, सिर्फ गोल्डन मार्निग या गोल्डन नाइट नहीं। हर सेकण्ड आपके दोनों नयनों में गोल्डन दुनिया और गोल्डन लाइट का स्वीट होम हो। वह गोल्डन लाइट है, वह गोल्डन दुनिया है। ऐसे ही अनुभव हो। याद है ना - शुरू-शुरू में एक चित्र बनाते थे। एक आँख में मुक्ति दूसरी आँख में जीवनमुक्ति। यह अनुभव कराना यही गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प है। ऐसा संकल्प सभी ने किया या सिर्फ दृश्य देख-देखकर खुश होते रहें। गोल्डन जुबली इस श्रेष्ठ कार्य की है। कार्य के निमित्त आप सभी भी कार्य के साथी हो। सिर्फ साक्षी हो देखने वाले नहीं, साथी हो। विश्व-विद्यालय की गोल्डन जुबली है। चाहे एक दिन का भी विद्यार्था हो। उसकी भी गोल्डन जुबली है। और ही बनी बनाई जुबली पर पहुँचे हो। बनाने की मेहनत इन्होनें की और मनाने के समय आप सब पहुँच गये। तो सभी को गोल्डन जुबली की बापदादा भी बधाई देते हैं। सभी ऐसे समझते हो ना! देखने वाले तो सिर्फ नहीं हो ना! बनने वाले हैं या देखने वाले! देखा तो दुनिया में बहुत कुछ है लेकिन यहाँ देखना अर्थात् बनना। सुनना अर्थात् बनना। तो क्या संकल्प किया? हर सेकण्ड गोल्डन हो। हर संकल्प गोल्डन हो। सदा हर आत्मा के प्रति स्नेह के, खुशी के सुनहरी पुष्प की वर्षा करते रहो। चाहे दुश्मन भी हो लेकिन स्नेह की वर्षा दुश्मन को भी दोस्त बना देगी। चाहे कोई आपको मान दे वा माने न माने। लेकिन आप सदा स्वमान में रह औरों को स्नेही दृष्टि से, स्नेही वृत्ति से आत्मिक मान देते चलो। वह माने न माने आपको लेकिन आप उसको मीठा भाई, मीठी बहन मानते चलो। वह नहीं माने, आप तो मान सकते हो ना! वह पत्थर फेंके, आप रत्न दो। आप भी पत्थर न फेंको क्योंकि आप रत्नागर बाप के बच्चे हो। रत्नों की खान के मालिक हो। मल्टी-मल्टी-मल्टीमिलिनियर हो। भिखारी नहीं हो जो सोचो - वह दे तब दूँ। यह भिखारी के संस्कार हैं। दाता के बच्चे कभी लेने का हाथ नहीं फैलाते। बुद्धि से भी यह संकल्प करना कि यह करें तो मैं करूँ, यह स्नेह दे तो मैं दूँ। यह मान देवे तो मैं दूँ। यह भी हाथ फैलाना है। यह भी रॉयल भिखारीपन है। इसमें निष्काम योगी बनो। तब ही गोल्डन दुनिया की खुशी की लहर विश्व तक पहुँचेगी। जैसे विज्ञान की शक्ति, सारे विश्व को समाप्त करने की सामग्री बहुत शक्तिशाली बनाई है। जो थोड़े समय में कार्य समाप्त हो जाए। विज्ञान की शक्ति ऐसे रिफाइन वस्तु बना रही है। आप ज्ञान की शक्ति वाले ऐसे शक्तिशाली वृत्ति और वायुमण्डल बनाओ जो थोड़े समय में चारों ओर खुशी की लहर, सृष्टि के श्रेष्ठ भविष्य की लहर, बहुत जल्दी से जल्दी फैल जाए। आधी दुनिया अभी आधा मरी हुई है। भय के मौत की शैय्या पर सोई हुई है। उसको खुशी की लहर की आक्सीजन दो। यही गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प सदा इमर्ज रूप में रहे। समझा क्या करना है? अभी और गति को तीव्र बनाना है। अब तक जो किया वह भी बहुत अच्छा किया। अभी आगे और भी अच्छे ते अच्छा करते चलो। अच्छा।
डबल विदेशियों को बहुत उमंग है। अभी हैं तो डबल विदेशियों का चांस। पहुँच भी गये हैं बहुत। समझा! अभी सभी को खुशी की टोली खिलाओ। दिल खुश मिठाई होती है ना! तो खूब दिलखुश मिठाई बाँटो। अच्छा - सेवाधारी भी खुशी में नाच रहे हैं ना! नाचने से थकावट खत्म हो जाती है। तो सेवा की या खुशी की डांस सभी को दिखाई? क्या किया? डांस दिखाई ना! अच्छा –
सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान, विशेष आत्माओं को, हर सेकण्ड, हर संकल्प सुनहरी बनाने वाले सभी आज्ञाकारी बच्चों को, सदा दाता के बच्चे बन सर्व की झोली भरने वाले सम्पन्न बच्चों को, सदा विधाता और वरदाता बन सर्व को मुक्ति वा जीवनमुक्ति की प्राप्ति कराने वाले, सदा भरपूर बच्चों को बापदादा का सुनहरी स्नेह के सुनहरी खुशी के पुष्पों सहित यादप्यार, बधाई और नमस्ते।’’
पार्टियों से - सदा बाप और वर्सा दोनों याद रहता है? बाप की याद स्वत: ही वर्से की भी याद दिलाती है और वर्सा याद है तो बाप की स्वत: याद है। बाप और वर्सा दोनों साथ-साथ हैं। बाप को याद करते हैं - वर्से के लिए। अगर वर्से की प्राप्ति न हो तो बाप को भी याद क्यों करे! तो बाप और वर्सा यही याद - सदा ही भरपूर बनाती है। खज़ानों से भरपूर और दुख दर्द से दूर। दोनों ही फायदा हैं। दुःख से दूर हो जाते और खज़ानों से भरपूर हो जाते। ऐसी प्राप्ति सदाकाल की, बाप के बिना और कोई करा नहीं सकता। यही स्मृति सदा सन्तुष्ट, सम्पन्न बनायेगी। जैसे बाप सागर है, सदा भरपूर है। कितना भी सागर को सुखाए फिर भी सागर समाप्त होने वाला नहीं। सागर सम्पन्न है। तो आप सभी सदा सम्पन्न आत्मायें हो ना! खाली होंगे तो कहाँ लेने के लिए हाथ फैलाना पड़ेगा। लेकिन भरपूर आत्मा सदा ही खुशी के झूले में झूलती रहती है, सुख के झूले में झूलती रहती है। तो ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें बन गये। सदा सम्पन्न रहना ही है। चेक करो मिले हुए शक्तियों के खज़ाने को कहाँ तक कार्य में लगाया है!
सदा हिम्मत और उमंग के पंखों से उड़ते रहो और दूसरों को उड़ाते रहो। हिम्मत है उमंग उत्साह नहीं तो भी सफलता नहीं। उमंग है हिम्मत नहीं तो भी सफलता नहीं। दोनों साथ रहें तो उड़ती कला है। इसलिए सदा हिम्मत और उमंग के पंखों से उड़ते रहो। अच्छा।
18-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
निरंतर सेवाधारी तथा निरंतर योगी बनो
ज्ञान सागर बाप अपने विश्व-कल्याणकारी बच्चों प्रति बोले
आज ज्ञान सागर बाप अपनी ज्ञान गंगाओं को देख रहे हैं। ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान गंगायें कैसे और कहाँ-कहाँ से पावन करते हुए इस समय सागर और गंगा का मिलन मना रहीं हैं। यह ‘गंगा सागर’ का मेला है। जिस मेले में चारों ओर की गंगायें पहुँच गई। बापदादा भी ज्ञान गंगाओं को देख हर्षित होते हैं। हर एक गंगा के अन्दर यह दृढ़ निश्चय और नशा है कि पतित दुनिया को, पतित आत्माओं को पावन बनाना ही है। इसी निश्चय और नशे से हर एक सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे हैं। मन में यही उमंग है कि जल्दी से जल्दी परिवर्तन का कार्य सम्पन्न हो। सभी ज्ञान गंगायें ज्ञान सागर बाप समान विश्वकल् याणी, वरदानी और महादानी रहमदिल आत्मायें हैं। इसलिए आत्माओं की दुःख, अशान्ति की आवाज अनुभव कर आत्माओं के दुःख अशान्ति को परिवर्तन करने की सेवा तीव्रगति से करने का उमंग बढ़ता रहता है। दुःखी आत्माओं के दिल की पुकार सुनकर रहम आता है ना। स्नेह से उठता है कि सभी सुखी बन जाएँ। सुख की किरणें, शांति की किरणें, शक्ति की किरणें विश्व को देने के निमित्त बने हुए हो। आज आदि से अब तक ज्ञान गंगाओं की सेवा, कहाँ तक परिवर्तन करने के निमित्त बनी है, यह देख रहे थे। अभी भी थोड़े समय में अनेक आत्माओं की सेवा करनी है। 50 वर्षों के अन्दर देश-विदेश में सेवा का फाउण्डेशन तो अच्छा डाला है। सेवास्थान चारों ओर स्थापन किये हैं। आवाज फैलाने के साधन भिन्न-भिन्न रूप से अपनायें हैं। यह भी ठीक ही किया है। देशविदेश में बिखरे हुए बच्चों का संगठन भी बना है और बनता रहेगा। अभी और क्या करना है? क्योंकि अभी विधि भी जान गये हो। साधन भी अनेक प्रकार के इकट्ठे करते जा रहे हो और किये भी हैं। स्व-स्थिति, स्व-उन्नति उसके प्रति भी अटेन्शन दे रहे हैं और दिला रहे हैं। अब बाकी क्या रहा है? जैसे आदि में सभी आदि रत्नों ने उमंग उत्साह से तन-मन-धन, समय-सम्बन्ध, दिन-रात बाप के हवाले अर्थात् बाप के आगे समर्पण किया, जिस समर्पण के उमंग-उत्साह के फलस्वरूप सेवा मे शक्तिशाली स्थिति का प्रत्यक्ष रूप देखा। जब सेवा का आरम्भ किया तो सेवा के आरम्भ में और स्थापना के आरम्भ में, दोनों समय यह विशेषता देखी। आदि में ब्रह्मा बाप चलते-फिरते साधारण दिखते थे वा कृष्ण रूप मे दिखाई देते थे? साधारण रूप देखते भी नहीं दिखाई देता था यह अनुभव है ना! दादा है यह सोचते थे? चलते-फिरते कृष्ण ही अनुभव करते थे। ऐसे किया ना? आदि में ब्रह्मा बाप मे यह विशेषता देखी, अनुभव की और सेवा की आदि में जब भी जहाँ भी गये, सबने देवियाँ ही अनुभव किया। देवियाँ आई हैं, यही सबके बोल सुनते, यही सभी के मुख से निकलता कि यह अलौकिक व्यक्तियाँ हैं। ऐसे ही अनुभव किया ना? यह देवियों की भावना सभी को आकर्षित कर सेवा की वृद्धि के निमित्त बनी। तो आदि में भी न्यारेपन की विशेषता रही। सेवा की आदि में भी न्यारेपन की, देवी पन की विशेषता रही। अभी अन्त में वही झलक और फलक प्रत्यक्ष रूप में अनुभव करेंगे। तब प्रत्यक्षता के नगाड़े बजेंगे। अभी रहा हुआ थोड़ा-सा समय ‘निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी, निरन्तर साक्षात्कार स्वरूप, निरन्तर साक्षात् बाप’ - इस विधि से सिद्धि प्राप्त करेंगे। गोल्डन जुबली मनाई अर्थात् गोल्डन दुनिया के साक्षात्कार स्वरूप तक पहुँचे। जैसे गोल्डन जुबली मनाने के दृश्य में साक्षात देवियाँ अनुभव किया, बैठने वालों ने भी, देखने वालों ने भी। चलते-चलते अब यही अनुभव सेवा में कराते रहना। यह है गोल्डन जुबली मनाना। सभी ने गोल्डन जुबली मनाई या देखी? क्या कहेंगे? आप सबकी भी गोल्डन जुबली हुई ना। या कोई की सिल्वर हुई, कोई की तांबे की हुई। सभी की गोल्डन जुबली हुई। गोल्डन जुबली मनाना अर्थात् निरन्तर गोल्डन स्थिति वाला बनना। अभी चलते फिरते इसी अनुभव में चलो कि - ‘मैं फरिश्ता सो देवता हूँ’। दूसरों को भी आपके इस समर्थ स्मृति से आपका फरिश्ता रूप वा देवी-देवता रूप ही दिखाई देगा। गोल्डन जुबली मनाई अर्थात् अभी समय को, संकल्प को, सेवा में अर्पण करो। अभी यह समर्पण समारोह मनाओ। स्व की छोटी-छोटी बातों के पीछे, तन के पीछे, मन के पीछे, साधनों के पीछे, सम्बन्ध निभाने के पीछे समय और संकल्प नहीं लगाओ। सेवा में लगाना अर्थात् स्व-उन्नति की गिफ्ट स्वत: ही प्राप्त होना। अभी अपने प्रति समय लगाने का समय - परिवर्तन करो। जैसे भक्त लोग श्वाँस-श्वाँस में नाम जपने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे श्वांस-श्वांस सेवा की लगन हो। सेवा में मगन हो। विधाता बनो, वरदाता बनो। निरन्तर महादानी बनो। 4 घण्टे के 6 घण्टे के सेवाधारी नहीं अभी विश्व-कल्याणकारी स्टेज पर हो। हर घड़ी विश्व-कल्याण प्रति समार्पित करो। विश्व-कल्याण में स्व-कल्याण स्वत: ही समाया हुआ है। जब संकल्प और सेकण्ड सेवा मे बिजी रहेंगे, फुर्सत नहीं होगी, माया को भी आने की आपके पास फुर्सत नहीं होगी। समस्यायें समाधान के रूप में परिवर्तन हो जायेंगी। समाधान स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं के पास समस्या आने की हिम्मत नहीं रख सकती। जैसे शुरू में सेवा में देखा देवी रूप, शक्ति रूप के कारण आये हुए पतित दृष्टि वाले भी परिवर्तित हो पावन बनने के जिज्ञासु बन जाते। जैसे पतित, परिवर्तन हो आपके सामने आये, ऐसे समस्या आपके सामने आते समाधान के रूप मे परिवर्तित हो जाए। अभी अपने संस्कार-परिवर्तन में समय नहीं लगाओ। विश्व-कल्याण की श्रेष्ठ भावना से श्रेष्ठ कामना के संस्कार इमर्ज करो। इस श्रेष्ठ संस्कार के आगे हद के संस्कार स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे। अब युद्ध में समय नहीं गँवाओ। विजयीपन के संस्कार इमर्ज करो। दुश्मन विजयी संस्कारों के आगे स्वत: ही भस्म हो जायेगा। इसीलिए कहा तनमन- धन िनरन्तर सेवा में समार्पित करो। चाहे मन्सा करो, चाहे वाचा करो, चाहे कर्मणा करो लेकिन सेवा के सिवाए और कोई समस्याओं में नहीं चलो। दान दो, वरदान दो तो स्व का ग्रहण स्वत: ही समाप्त हो जायेगा। अविनाशी लंगर लगाओ। क्योंकि समय कम है और सेवा आत्माओं की, वायुमण्डल की, प्रकृति की, भूत-प्रेत आत्माओं की, सबकी करनी है। उन भटकती हुई आत्माओं को भी ठिकाना देना है। मुक्तिधाम में तो भेजेंगे ना! उन्हों को घर तो देंगे ना! तो अभी कितनी सेवा करनी है! कितनी संख्या है आत्माओं की! हर आत्मा को मुक्ति वा जीवनमुक्ति देनी ही है। सब कुछ सेवा में लगाओ तो श्रेष्ठ मेवा खूब खाओ। मेहनत का मेवा नहीं खाओ। सेवा का मेवा, मेहनत से छुड़ाने वाला है।
बापदादा ने रिजल्ट में देखा बहुत करके जो पुरूषार्थ में अपने प्रति, संस्कार परिवर्तन के प्रति समय देते हैं। चाहे 50 वर्ष हो गये हैं, चाहे एक मास हुआ है लेकिन आदि से अब तक परिवर्तन करने का संस्कार मूल रूप में वही होता है, एक ही होता है और वही मूल संस्कार भिन्न-भिन्न रूप में समस्या बनकर आता है। मानो दृष्टान्त के रूप में किसका बुद्धि के अभिमान का संस्कार है, किसी का घृणा भाव का संस्कार है वा किसी का दिल-शिकस्त होने का संस्कार है वा किसी का अपने को और ही ज्यादा होशियार समझने का संस्कार है। संस्कार वही आदि से अब तक भिन्न-भिन्न रूप में भिन्न-भिन्न समय पर इमर्ज होता रहता है। चाहे 50 वर्ष लगा है, चाहे एक वर्ष लगा है। इस कारण उस मूल संस्कार को जो समय प्रति समय भिन्न-भिन्न रूप में समस्या बन करके आता है, उसमें समय भी बहुत लगाया है, शक्ति भी बहुत लगाई है। अब शक्तिशाली संस्कार - ‘दाता विधाता, वरदाता के इमर्ज करो।’ तो यह महासंस्कार कमज़ोर संस्कार को स्वत: समाप्त कर देगा। अभी संस्कार को मारने में समय नहीं लगाओ। लेकिन सेवा के फल से, फल की शक्ति से स्वत: ही मर जायेगा। जैसे अनुभव भी है कि अच्छी स्थिति से जब सेवा में बिजी रहते हों तो सेवा की खुशी से उस समय तक समस्यायें स्वतः ही दब जाती हैं। क्योंकि समस्याओं को सोचने की फुर्सत ही नहीं। हर सेकण्ड, हर संकल्प सेवा में बिजी रहेंगे तो समस्याओं का लंगर उठ जायेगा, किनारा हो जायेगा। आप औरों को रास्ता दिखाने के, बाप का खज़ाना देने के निमित्त सहारा बनो तो कमज़ोरियों का किनारा स्वत: ही हो जायेगा। समझा अभी क्या करना है? अभी बेहद को सोचो, बेहद के कार्य को सोचो। चाहे दृष्टि से दो, चाहे वृत्ति से दो, चाहे वाणी से दो, चाहे संग से दो, चाहे वाइब्रेशन से दो। लेकिन देना ही है। वैसे भी भक्ति में यह नियम होता है, कोई भी वस्तु की कमी होती है तो कहते हैं - दान करो। दान करने से देना - लेना हो जाता है। समझा गोल्डन जुबली क्या है? सिर्फ मना लिया यह नहीं सोंचो। सेवा के 50 वर्ष पूरे हुए, अभी नया मोड़ लो। छोटा-बड़ा एक दिन का वा 50 वर्ष का सब समाधान स्वरूप बनो। समझा क्या करना है? वैसे भी 50 वर्ष के बाद जीवन परिवर्तन होता है। गोल्डन जुबली अर्थात् परिवर्तन जुबली, सम्पन्न बनने की जुबली। अच्छा –
सदा विश्व-कल्याणकारी समर्थ स्मृति में रहने वाले, सदा वरदानी, महादानी स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा स्व की समस्याओं को औरों प्रति समाधान स्वरूप बन सहज समाप्त करने वाले, हर समय हर संकल्प को सेवा में समर्पण करने वाले - ऐसे रीयल गोल्ड विशेष आत्माओं को, बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।’’
(गोल्डन जुबली के आदि रत्नों से बापदादा की मुलाकात)
यह विशेष खुशी सदा रहती है कि आदि से हम आत्माओं का साथ रहने का और साथी बनने का, दोनों ही विशेष पार्ट है। साथ भी रहे और फिर जहाँ तक जीना है वहाँ तक स्थिति में भी बाप समान साथी बन रहना है। तो साथ रहना और साथी बनना यह विशेष वरदान आदि से अन्त तक मिला हुआ है। स्नेह से जन्म हुआ, ज्ञान तो पहले नहीं था ना। स्नेह से ही पैदा हुए, जिस स्नेह से जन्म हुआ वही स्नेह सभी को देने के लिए विशेष निमित्त हो। जो भी सामने आये विशेष आप सबसे बाप के स्नेह का अनुभव करे। आप में बाप का चित्र और आपकी चलन से बाप का चरित्र दिखाई दे। अगर कोई पूछे कि बाप के चरित्र क्या हैं तो आपकी चलन चरित्र दिखाये। क्योंकि स्वयं बाप के चरित्र देखने और साथ-साथ चरित्र में चलने वाली आत्मायें हो। चरित्र जो भी हुए वह अकेले बाप के चरित्र नहीं हैं। गोपी वल्लभ और गोपिकाओं के ही चरित्र हैं। बाप ने बच्चों के साथ ही हर कर्म किया, अकेला नहीं किया। सदा आगे बच्चों को रखा। तो ‘आगे रखना’ यह चरित्र हुआ। ऐसे चरित्र आप विशेष आत्माओं द्वारा दिखाई दें। कभी भी ‘मैं आगे रहूँ’ यह संकल्प बाप ने नहीं किया। इसमें भी सदा त्यागी रहे और इसी त्याग के फल में सभी को आगे रखा, इसलिए आगे का फल मिला। नम्बरवन हर बात में ब्रह्मा बाप ही बना। क्यों बना? आगे रखना ही आगे होना - इस त्याग भाव से। सम्बन्ध का त्याग, वैभवों का त्याग कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन हर कार्य में, संकल्प में भी औरों को आगे रखने की भावना। यह त्याग श्रेष्ठ त्याग रहा। इसको कहा जाता है - ‘स्वयं के भान को मिटा देना’। मै पन को मिटा देना। तो डायरेक्ट पालना लेने वालों मे विशेष शक्तियाँ हैं। डायरेक्ट पालना की शक्तियाँ कम नहीं हैं। वही पालना, अभी औरों की पालना में प्रत्यक्ष करते चलो। वैसे विशेष तो हो ही। अनेक बातों में विशेष हो। आदि से बाप के साथ पार्ट बजाना यह कोई कम विशेषता नहीं है। विशेषतायें तो बहुत हैं लेकिन अभी आप विशेष आत्माओं को दान भी विशेष करना है। ज्ञान दान तो सब करते हैं लेकिन आपको अपनी ‘विशेषताओं का दान करना है।’ बाप की विशेषतायें सो आपकी विशेषतायें। तो उन विशेषताओं का दान करो। जो विशेषताओं के महादानी हैं वह सदा के लिए महान रहते हैं। चाहे पूज्य पन में चाहे पुजारी पन में, सारा कल्प महान रहते हैं। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा अन्त में भी कलियुगी दुनिया के हिसाब में भी महान रहा ना! तो आदि से अन्त तक ऐसा महादानी महान रहता है। अच्छा, आपको देखकर सब खुश हुए तो खुशी बाँटी ना। बहुत अच्छा मनाया, सबको खुश किया और खुश हुए। बापदादा विशेष आत्माओं के विशेष कार्य पर हर्षित होते हैं। स्नेह की माला तो तैयार है ना। पुरूषार्थ की माला, सम्पूर्ण होने की माला वह तो समय प्रति समय प्रत्यक्ष हो रही है।
जितना जिसको सम्पूर्ण फरिश्ता का अनुभव होता है वह समझो - मणका माला में पिरोया जाता है। तो वह समय प्रति समय प्रत्यक्ष होते रहते हैं। लेकिन स्नेह की माला तो पक्की है ना! स्नेह की माला के मोती सदा ही अमर हैं, अविनाशी है। स्नेह में तो सभी पास मार्क्स लेने वाले हैं। बाकी समाधान स्वरूप की माला तैयार होनी है। ‘सम्पूर्ण अर्थात् समाधान स्वरूप’। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, समस्या ले जाने वाला भी समस्या भूल जाता था। क्या लेकर आया और क्या ले करके गया! यह अनुभव किया ना! समस्या की बातें बोलने की हिम्मत नहीं रही। क्यों कि सम्पूर्ण स्थिति के आगे बचपन का खेल अनुभव करते थे। इसलिए समाप्त हो जाती थी। इसको कहते हैं - ‘समाधान स्वरूप’। एक-एक समाधान स्वरूप हो जाए तो समस्यायें कहाँ जायेंगी? आधा कल्प के लिए विदाई समारोह हो जायेगा। अभी तो विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है। तो क्या गोल्डन जुबली मनाई! मोल्ड होने की जुबली मनाई। जो मोल्ड होता है वह जिस भी रूप में लाने चाहो उस रूप में आ सकता है। मोल्ड होना अर्थात् सर्व का प्यारा होना। सबकी नजर फिर भी निमित्त बनने वालों पर रहती है। अच्छा-
20-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
उड़ती कला से सर्व का भला
सदा कल्याणकारी शिव बाबा बोले
आज विशेष डबल विदेशी बच्चों को डबल मुबारक देने आये हैं। एक दूरदेश में भिन्न धर्म में जाते हुए भी नजदीक भारत में रहने वाली अनेक आत्माओं से जल्दी बाप को पहचाना। बाप को पहचानने की अर्थात् अपने भाग्य को प्राप्त करने की मुबारक और दूसरी जैसे तीव्रगति से पहचाना वैसे ही तीव्रगति से सेवा में स्वयं को लगाया। तो सेवा में तीव्रगति से आगे बढ़ने की दूसरी मुबारक। सेवा की वृद्धि की गति तीव्र रही है और आगे भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष कार्य अर्थ निमित्त बनना है। भारत के निमित्त आदि रत्नों ने, विशेष आत्माओं ने स्थापना के कार्य में बहुत मजबूत फाउण्डेशन बन कार्य की स्थापना की और डबल विदेशी बच्चों ने चारों ओर आवाज फैलाने की तीव्रगति की सेवा की और करते रहेंगे। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को आते ही, जन्मते ही बहुत जल्दी सेवा में आगे बढ़ने की विशेष मुबारक दे रहें हैं। थोड़े समय में भिन्न-भिन्न देशों में विस्तार सेवा का किया है, इसलिए आवाज फैलाने का कार्य सहज वृद्धि को पा रहा है। और सदा डबल लाइट बन डबल ताजधारी बनने का सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त करने का तीव्र पुरूषार्थ अवश्य करेंगे। आज विशेष मिलने के लिए आये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि सभी की दिल में खुशी के बाजे बज रहें हैं। बच्चों की खुशी के साज, खुशी के गीत बापदादा को सुनाई देते हैं। याद और सेवा में लगन से आगे बढ़ रहे हैं। याद भी है, सेवा भी है लेकिन अभी एडीशन क्या होना है? हैं दोनों ही लेकिन सदा दोनों का बैलेन्स रहे। यह बैलेन्स स्वयं को और सेवा मे बाप की ब्लैसिंग के अनुभवी बनाता है। सेवा का उमंग उत्साह रहता है। अभी और भी सेवा में याद और सेवा का बैलेन्स रखने से ज्यादा आवाज बुलन्द रूप में विश्व में गूँजेगा। विस्तार अच्छा किया है। विस्तार के बाद क्या किया जाता है? विस्तार के साथ अभी और भी सेवा का सार ऐसी विशेष आत्मायें निमित्त बनानी हैं जो विशेष आत्मायें भारत की विशेष आत्माओं को जगायें। अभी भारत में भी सेवा की रूपरेखा, समय प्रमाण आगे बढ़ती जा रही हैं। नेतायें, धर्मनेतायें और साथ-साथ अभिनेतायें भी सम्पर्क में आ रहे हैं। बाकी कौन रहे हैं? सम्पर्क में तो आ रहे हैं, नेतायें भी आ रहे हैं लेकिन विशेष राजनेतायें उन्हों तक भी समीप सम्पर्क में आने का संकल्प उत्पन्न होना ही है।
सभी डबल विदेशी बच्चे उड़ती कला में जा रहे हो ना! चढ़ती कला वाले तो नही हो ना! उड़ती कला है? ‘उड़ती कला होना अर्थात् सर्व का भला होना।’ जब सभी बच्चों की एकरस उड़ती कला बन जायेगी तो सर्व का भला अर्थात् परिवर्तन का कार्य सम्पन्न हो जायेगा। अभी उड़ती कला है लेकिन उड़ती के साथ-साथ स्टेजेस है। कभी बहुत अच्छी स्टेज है और कभी स्टेज के लिए पुरूषार्थ करने की स्टेज हैं। सदा और मैजारटी की उड़ती कला होना अर्थात् समाप्ति होना। अभी सभी बच्चे जानते हैं कि उड़ती कला ही श्रेष्ठ स्थिति है। उड़ती कला ही कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करने की स्थिति है। उड़ती कला ही देह में रहते, देह से न्यारी ओर सदा बाप और सेवा में प्यारे-पन की स्थिति है। उड़ती कला ही विधाता और वरदाता स्टेज की स्थिति है। उड़ती कला ही चलते फिरते फरिश्ता वा देवता दोनों रूप का साक्षात्कार कराने वाली स्थिति है।
उड़ती कला सर्व आत्माओं को भिखारीपन से छुड़ाए बाप के वर्से के अधिकारी बनाने वाली है। सभी आत्मायें अनुभव करेंगी कि हम सब आत्माओं के इष्ट देव वा इष्ट देवियाँ वा निमित्त बने हुए जो भी अनेक देवतायें हैं, सभी इस धरनी पर अवतरित हो गए हैं। सतयुग में तो सब सद्गति में होंगे लेकिन इस समय जो भी आत्मायें है - सर्व के सद्गतिदाता हो। जैसे कोई भी ड्रामा जब समाप्त होता है तो अन्त में सभी एक्टर्स स्टेज पर सामने आते हैं। तो अभी कल्प का ड्रामा समाप्त होने का समय आ रहा है। सारी विश्व की आत्माओं को चाहे स्वप्न में, चाहे एक सेकण्ड की झलक में, चाहे प्रत्यक्षता के चारों ओर के आवाज द्वारा यह जरूर साक्षात्कार होना है कि इस ड्रामा के हीरो पार्टधारी स्टेज पर प्रत्यक्ष हो गये। धरती के सितारे, धरती पर प्रत्यक्ष हो गये। सब अपने-अपने इष्ट देव को प्राप्त कर बहुत खुश होंगे। सहारा मिलेगा। डबल विदेशी भी इष्ट देव, इष्ट देवियों में हैं ना! या गोल्डन जुबली वाले हैं? आप भी उसमें हो या देखने वाले हो? जैसे अभी गोल्डन जुबली का दृश्य देखा। यह तो एक रमणीक पार्ट बजाया। लेकिन जब फाइनल दृश्य होगा उसमें तो आप साक्षात्कार कराने वाले होंगे या देखने वाले होंगे? क्या होंगे? हीरो एक्टर हो ना! अभी इमर्ज करो वह दृश्य कैसा होगा। इसी अन्तिम दृश्य के लिए अभी से त्रिकालदर्शी बन देखो कि कैसा सुन्दर दृश्य होगा और कितने सुन्दर हम होंगे। सजे सजाये दिव्य गुण मूर्त्त फरिश्ते सो देवता, इसके लिए अभी से अपने को सदा फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अभ्यास करते हुए आगे बढ़ते चलो। जो चार विशेष सब्जेक्ट हैं - ज्ञान मूर्त, निरन्तर याद मूर्त, सर्व दिव्यगुण मूर्त, एक दिव्य गुण की भी कमी होगी तो 16 कला सम्पन्न नहीं कहेंगे। 16 कला, सर्व और सम्पूर्ण यह तीनों महिमा हैं। सर्वगुण सम्पन्न कहते हो, सम्पूर्ण निर्विकारी कहते हो और 16 कला सम्पन्न कहते हो। तीनों विशेषतायें चाहिए। 16 कला अर्थात् सम्पन्न भी चाहिए, सम्पूर्ण भी चाहिए और सर्व भी चाहिए। तो यह चेक करो। सुनाया था ना कि यह वर्ष बहुतकाल के हिसाब में जमा होने का है फिर बहुतकाल का हिसाब समाप्त हो जायेगा, फिर थोड़ा काल कहने में आयेगा, बहुतकाल नहीं। बहुतकाल के पुरूषार्थ की लाइन में आ जाओ। तभी बहुतकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करने के अधिकारी बनेंगे। नहीं तो बहुत काल का राज्य भाग्य बदल कुछ कम राज्य भाग्य प्राप्त होने के अधिकारी बनेंगे। दो चार जन्म भी कम हुआ तो बहुतकाल में गिनती नहीं होगी। पहला जन्म हो और पहला प्रकृति का श्रेष्ठ सुख हो। वन-वन- वन हो। सबमें वन हो। उसके लिए क्या करना पड़ेगा? सेवा भी नम्बरवन, स्थिति भी नम्बरवन तब तो वन-वन में आयेंगे ना! तो सतयुग के आदि में आने वाले नम्बरवन आत्मा के साथ पार्ट बजाने वाले और नम्बरवन जन्म में पार्ट बजाने वाले। तो संवत भी आरम्भ आप करेंगे। पहले-पहले जन्म वाले ही पहली तारीख पहला मास पहला संवत शुरू करेंगे। तो डबल विदेशी नम्बरवन में आयेंगे ना। अच्छा - फरिश्तेपन की ड्रेस पहनने आती है ना! यह चमकीली ड्रेस है। यह स्मृति और स्वरूप बनना अर्थात् फरिश्ता ड्रेस धारण करना। चमकने वाली चीज़ दूर से ही आकर्षित करती है। तो यह फरिश्ता ड्रेस अर्थात् फरिश्ता स्वरूप दूरदूर तक आत्माओं को आकर्षित करेगी। अच्छा –
आज यू.के. का टर्न है। यू.के.वालों की विशेषता क्या है? लण्डन को सतयुग में भी राजधानी बनायेंगे या सिर्फ घूमने का स्थान बनायेंगे? है तो युनाइटेड किंगडम ना! वहाँ भी किंगडम बनायेंगे या सिर्फ किंग्स जाकर चक्र लगायेंगे? फिर भी जो नाम है, किंगडम कहते हैं। तो इस समय सेवा का किंगडम तो है ही। सारे विदेश के सेवा की राजधानी तो निमित्त है ही। किंगडम नाम तो ठीक है ना! सभी को युनाइट करने वाली किंगडम है। सभी आत्माओं को बाप से मिलाने की राजधानी है। यू.के. वालों को बापदादा कहते हैं ‘ओ.के.’ रहने वाले। यू.के. अर्थात् ओ.के. रहने वाले। कभी भी किसी से भी पूछें तो ‘ओ.के.’, ऐसे हैं ना! ऐसे तो नहीं कहेंगे - हाँ - हैं तो सही। लम्बा श्वांस उठाकर कहते हैं - हाँ। और जब ठीक होते हैं तो कहते हैं - हाँ ओ.के., ओ.के। फर्क होता है। तो संगमयुग की राजधानी, सेवा की राजधानी जिसमें राज्य सत्ता अर्थात् रायल फैमली की आत्मायें तैयार होने की प्रेरणा चारों ओर फैले। तो राजधानी में राज्य अधिकारी बनाने का राजस्थान तो हुआ ना। इसलिए बापदादा हर देश की विशेषता को विशेष रूप से याद करते हैं और विशेषता से सदा आगे बढ़ाते हैं। बापदादा कमज़ोरियाँ नहीं देखते हैं, सिर्फ इशारा देते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे कहते-कहते बहुत अच्छे हो जाते हैं। कमज़ोर हो, कमज़ोर हो कहते हो तो कमज़ोर हो जाते। एक तो पहले कमज़ोर होते हैं दूसरा कोई कह देता है तो मूर्छित हो जाते हैं। कैसा भी मूर्छित हो लेकिन उसको श्रेष्ठ स्मृति की, विशेषताओं की स्मृति की संजीवनी बूटी खिलाओ तो मूर्छित से सुरजीत हो जायेगा। संजीवनी बूटी सबके पास है ना! तो विशेषताओं के स्वरूप का दर्पण उसके सामने रखो। क्योंकि हर ब्राह्मण आत्मा विशेष है। कोटो में कोई है ना। तो विशेष हुई ना! सिर्फ उस समय अपनी विशेषता को भूल जाते हैं। उसको स्मृति दिलाने से विशेष आत्मा बन ही जायेंगे। और जितनी विशेषता का वर्णन करेंगे तो उसको स्वयं ही अपनी कमज़ोरी और ही ज्यादा स्पष्ट अनुभव होगी। आपको कराने की जरूरत नहीं होगी। अगर आप किसको कमज़ोरी सुनायेंगे तो वह छिपायेंगे। टाल देंगे, मैं ऐसा नहीं हूँ। आप विशेषता सुनाओ। जब तक कमज़ोरी स्वयं ही अनुभव न करे तब तक परिवर्तन कर नहीं सकते। चाहे 50 वर्ष आप मेहनत करते रहो। इसलिए इस संजीवनी बूटी से मूर्छित को भी सुरजीत कर उड़ते चलो और उड़ाते चलो। यही यू.के.करता है ना! अच्छा –
लंदन से और-और स्थानों पर कितने गये हैं? भारत से तो गये हैं, लंदन से कितने गये हैं? आस्ट्रेलिया से कितने गये? आस्ट्रेलिया ने भी वृद्धि की है और कहाँ-कहाँ गये? ज्ञान गंगायें जितना दूर-दूर बहती हैं उतना अच्छा है। यू.के.आस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप में कितने सेन्टर हैं? (सबने अपनी-अपनी संख्या सुनाई)
मतलब तो वृद्धि को प्राप्त कर रहे हो। अभी कोई विशेष स्थान रहा हुआ है? (बहुत हैं) अच्छा उसका प्लैन भी बना रहे हो ना? विदेश को यह लिफ्ट है कि बहुत सहज सेन्टर खोल सकते हैं। लौकिक सेवा भी कर सकते हैं और अलौकिक सेवा के भी निमित्त बन सकते हैं। भारत में फिर भी निमन्त्रण पर सेन्टर स्थापन होने की विशेषता रही है लेकिन विदेश में स्वयं ही निमन्त्रण स्वयं को देते। निमन्त्रण देने वाले भी खुद और पहुँचने वाले भी खुद तो यह भी सेवा में वृद्धि सहज होने की एक लिफ्ट मिली हुई है। जहाँ भी जाओ तो दो तीन मिलकर वहाँ स्थापना के निमित्त बन सकते हो और बनते रहेंगे। यह ड्रामा अनुसार गिफ्ट कहो, लिफ्ट कहो, मिली हुई है। क्योंकि थोड़े समय में सेवा को समाप्त करना है तो तीव्रगति हो तब तो समय पर समाप्त हो सके। भारत की विधि और विदेश की विधि में अन्तर है इसलिए विदेश में जल्दी वृद्धि हो रही है और होती रहेगी। एक ही दिन में बहुत ही सेन्टर खुल सकते हैं। चारों ओर विदेश में निमित्त रहने वाले विदेशियों को सेवा का चांस सहज है। भारत वालों को देखो ‘वीसा’ भी मुश्किल मिलती है। तो यह चांस है वहाँ के रहने वाले ही वहाँ की सेवा के निमित्त बनते हैं इसलिए सेवा का चांस है। जैसे लास्ट सो फास्ट जाने का चांस है वैसे सेवा का चांस भी फास्ट मिला हुआ है इसलिए उल्हना नहीं रहेगा कि हम पीछे आये। पीछे आने वालों को फास्ट जाने का चांस भी विशेष है इसलिए हर एक सेवाधारी है। सभी सेवाधारी हो या सेन्टर पर रहने वाले सेवाधारी हैं? कहाँ भी हैं सेवा के बिना चैन नहीं हो सकती। सेवा ही चैन की निंद्रा है। कहते हैं - चैन से सोना यही जीवन है। सेवा ही चैन की निंद्रा कहो, सोना कहो। सेवा नहीं तो चैन की नींद नहीं। सुनाया ना, सेवा सिर्फ वाणी की नहीं, हर सेकण्ड सेवा है। हर संकल्प में सेवा है। कोई भी यह नहीं कह सकता - चाहे भारतवासी चाहे विदेश में रहने वाले कोई ब्राह्मण यह नहीं कह सकते कि सेवा का चांस नहीं है। बीमार है तो भी मन्सा सेवा, वायुमण्डल बनाने की सेवा, वायब्रेशन फैलाने की सेवा तो कर ही सकते हैं। कोई भी प्रकार की सेवा करो लेकिन सेवा में ही रहना है। ‘सेवा ही जीवन है। ब्राह्मण का अर्थ ही है सेवाधारी’। अच्छा –
‘सदा उड़ती कला सर्व का भला’ स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा स्वयं को फरिश्ता अनुभव करने वाले, सदा विश्व के आगे इष्ट देव रूप में प्रत्यक्ष होने वाले देव आत्मायें, सदा स्वयं को विशेष आत्मा समझ औरों को भी विशेषता का अनुभव कराने वाले विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
पार्टियों से
सदा स्वयं को कर्मयोगी अनुभव करते हो? कर्मयोगी जीवन अर्थात् हर कार्य करते याद की यात्रा में सदा रहे। यह श्रेष्ठ कार्य श्रेष्ठ बाप के बच्चे ही करते हैं और सदा सफल होते हैं। आप सभी कर्मयोगी आत्मायें हो ना! कर्म में रहते ‘न्यारा और प्यारा’ सदा इसी अभ्यास से स्वयं को आगे बढ़ाना है। स्वयं के साथ-साथ विश्व की जिम्मेवारी सभी के ऊपर है। लेकिन यह सब स्थूल साधन हैं। कर्मयोगी जीवन द्वारा आगे बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। यही जीवन अति प्रिय जीवन है। सेवा भी और खुशी भी हो। दोनों साथ-साथ, ठीक हैं ना! गोल्डन जुबली तो सभी की है। गोल्डन अर्थात् सतोप्रधान स्थिति में स्थित रहने वाले। तो सदा अपने को इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा आगे बढ़ाते चलो। सभी ने सेवा अच्छी तरह से की ना! सेवा का चांस भी अभी ही मिलता है फिर यह चांस समाप्त हो जाता है। तो सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो। अच्छा
22-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
रूहानी सेवा - निःस्वार्थ सेवा
सदा विश्व-कल्याणकारी शिव बाबा अपने सेवाधारी बच्चों प्रति बोले
आज सर्व आत्माओं के विश्व-कल्याणकारी बाप अपने सेवाधारी सेवा के साथी बच्चों को देख रहे हैं। आदि से बापदादा के साथ-साथ सेवाधारी बच्चे साथी बने और अन्त तक बापदादा ने गुप्त रूप में और प्रत्यक्ष रूप में बच्चों को विश्व-सेवा के निमित्त बनाया। आदि में ब्रह्मा बाप और ब्राह्मण बच्चे गुप्त रूप में सेवा के निमित्त बनें। अभी सेवाधारी बच्चे शक्ति सेना और पाण्डव सेना विश्व के आगे प्रत्यक्ष रूप में कार्य कर रहे हैं। सेवा का उमंग-उत्साह मैजारिटी बच्चों में अच्छा दिखाई देता है। सेवा की लगन आदि से रही है और अन्त तक रहेगी। ब्राह्मण जीवन ही सेवा का जीवन है। ब्राह्मण आत्मायें सेवा के बिना जी नहीं सकती। माया से जिन्दा रखने का श्रेष्ठ साधन - ‘सेवा’ ही है। सेवा योगयुक्त भी बनाती है। लेकिन कौन सी सेवा? एक है सिर्फ मुख की सेवा, सुना हुआ सुनाने की सेवा। दूसरी है मन से मुख की सेवा। सुने हुए मधुर बोल का स्वरूप बन, स्वरूप से सेवा - नि:स्वार्थ सेवा। त्याग, तपस्या स्वरूप से सेवा। हद की कामनाओं से परे निष्काम सेवा। इसको कहा जाता है - ईश्वरीय सेवा, रूहानी सेवा। जो सिर्फ मुख की सेवा है उसको कहते हैं सिर्फ स्वयं को खुश करने की सेवा। सर्व को खुश करने की सेवा, मन और मुख की साथ-साथ होती है। मन से अर्थात् ‘मन्मनाभव स्थिति’ से मुख की सेवा।
बापदादा आज अपने राइट हैण्डस सेवाधारी और लेफ्ट हैण्ड सेवाधारी दोनों को देख रहे थे। सेवाधारी दोनों ही हैं लेकिन राइट और लेफ्ट में अन्तर तो है ना। राइट हैण्ड सदा निष्काम सेवाधारी है। लेफ्ट हैण्ड कोई न कोई हद की इस जन्म के लिए सेवा का फल खाने की इच्छा से सेवा के निमित्त बनते हैं। वह गुप्त सेवाधारी और वह नामधारी सेवाधारी। अभी-अभी सेवा की, अभी-अभी नाम हुआ - बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। लेकिन अभी किया अभी खाया। जमा का खाता नहीं। गुप्त सेवाधारी अर्थात् निष्काम सेवाधारी। तो गुप्त सेवाधारी सफलता की खुशी में सदा भरपूर रहता है। कई बच्चों को संकल्प आता है कि हम करते भी हैं लेकिन नाम नहीं होता। और जो बाहर से नामधारी बन सेवा का शो दिखाते हैं, उनका नाम ज्यादा होता है। लेकिन ऐसे नहीं है। जो निष्काम अविनाशी नाम कमाने वाले हैं, उनके दिल का आवाज दिल तक पहुँचता हैं। छिपा हुआ नहीं रह सकता है। उसकी सूरत में, मूर्त्त में सच्चे सेवाधारी की झलक अवश्य दिखाई देती है। अगर कोई नामधारी यहाँ नाम कमा लिया तो आगे के लिए किया और खाया और खत्म कर दिया, भविष्य श्रेष्ठ नहीं, अविनाशी नहीं। इसलिए बापदादा के पास सभी सेवाधारियों का पूरा रिकार्ड है। सेवा करते चलो, नाम हो यह संकल्प नहीं करो। जमा हो यह सोचो। अविनाशी फल के अधिकारी बनो। अविनाशी वर्से के लिए आये हो। सेवा का फल विनाशी समय के लिए खाया तो अविनाशी वर्से का अधिकार कम हो जायेगा। इसलिए सदा विनाशी कामनाओं से मुक्त निष्काम सेवाधारी, राइट हैण्ड बन सेवा में बढ़ते चलो। गुप्त सेवा का महत्त्व ज्यादा होता है। वह आत्मा सदा स्वयं में भरपूर होगी। बेपरवाह बादशाह होगी। नाम-शान की परवाह नहीं। इसमें ही बेपरवाह बादशाह होंगे अर्थात् सदा स्वमान के अधिकारी होंगे। हद के मान के तख्तनशीन नहीं। स्वमान के तख्तनशीन, अविनाशी तख्तनशीन। अटल अखण्ड प्राप्ति के तख्तनशीन। इसको कहते हैं - ‘विश्व-कल्याणकारी सेवाधारी’। कभी साधारण संकल्पों के कारण विश्व-सेवा के कार्य में सफलता प्राप्त करने में पीछे नहीं हटना। त्याग और तपस्या से सदा सफलता को प्राप्त कर आगे बढ़ते रहना। समझा-
सेवाधारी किसको कहा जाता है? तो सभी सेवाधारी हो? सेवा स्थिति को डगमग करे, वह सेवा नहीं है। कई सोचते हैं सेवा में नीचे ऊपर भी बहुत होते हैं। विघ्न भी सेवा में आते हैं और निर्विघ्न भी सेवा ही बनाती है। लेकिन जो सेवा विघ्न रूप बने वह सेवा नहीं। उसको सच्ची सेवा नहीं कहेंगे। नामधारी सेवा कहेंगे। सच्ची सेवा सच्चा हीरा है। जैसे सच्चा हीरा कभी चमक से छिप नहीं सकता। ऐसे सच्चा सेवाधारी सच्चा हीरा है। चाहे झूठे हीरे में चमक कितनी भी बढ़िया हो लेकिन मूल्यवान कौन? मूल्य तो सच्चे का होता है ना। झूठे का तो नहीं होता। अमूल्य रत्न सच्चे सेवाधारी हैं। अनेक जन्म मूल्य सच्चे सेवाधारी का है। अल्पकाल की चमक का शो नामधारी सेवा है। इसलिए सदा सेवाधारी बन सेवा से विश्व-कल्याण करते चलो। समझा - सेवा का महत्त्व क्या है! कोई कम नहीं है। हरेक सेवाधारी अपनी-अपनी विशेषता से विशेष सेवाधारी है। अपने को कम भी नहीं समझो और फिर करने से नाम की इच्छा भी नहीं रखो। सेवा को विश्व-कल्याण के अर्पण करते चलो। वैसे भी भक्ति में जो गुप्त दानी पुण्य आत्मायें होती हैं वो यही संकल्प करती हैं कि - सर्व के भले प्रति हो! मेरे प्रति हो, मुझे फल मिले, नहीं, सर्व को फल मिले। सर्व की सेवा में अर्पण हो। कभी अपनेपन की कामना नहीं रखेंगे। ऐसे ही सर्व प्रति सेवा करो। सर्व के कल्याण की बैंक में जमा करते चलो। तो सभी क्या बन जायेंगे? - ‘निष्काम सेवाधारी’। अभी कोई ने नहीं पूछा तो 2500 वर्ष आपको पूछेंगे। एक जन्म में कोई पूछे या 2500 वर्ष कोई पूछे, तो ज्यादा क्या हुआ। वह ज्यादा है ना। हद के संकल्प से परे होकर बेहद के सेवाधारी बन बाप के दिलतख्तनशीन बेपरवाह बादशाह बन, संगमयुग की खुशियों को, मौजों को मनाते चलो। कभी भी कोई सेवा उदास करे तो समझो - वह सेवा नहीं है। डगमग करे, हलचल में लाये तो वह सेवा नहीं है। सेवा तो उड़ाने वाली है। सेवा बेगमपुर का बादशाह बनाने वाली है। ऐसे सेवाधारी हो ना? बेपरवाह बादशाह, बेगमपुर के बादशाह। जिसके पीछे सफलता स्वयं आती है। सफलता के पीछे वह नहीं भागता। सफलता उसके पीछे-पीछे है। अच्छा - बेहद की सेवा के प्लैन बनाते हो ना। बेहद की स्थिति से बेहद की सेवा के प्लैन सहज सफल होती ही हैं। (डबल विदेशी भाई बहनों ने एक प्लैन बनाया है जिसमें सभी आत्माओं से कुछ मिनट शान्ति का दान लेना है।)
यह भी विश्व को महादानी बनाने का अच्छा प्लैन बनाया है ना! थोड़ा समय भी शान्ति के संस्कारों को चाहे मजबूरी से, चाहे स्नेह से इमर्ज तो करेंगे ना। प्रोग्राम प्रमाण भी करें तो भी जब आत्मा में शान्ति के संस्कार इमर्ज होते हैं तो शान्ति ‘स्वधर्म’ तो है ही ना। शान्ति के सागर के बच्चे तो हैं ही। शान्तिधाम के निवासी भी हैं। तो प्रोग्राम प्रमाण भी वह इमर्ज होने से वह शान्ति की शक्ति उन्हों को आकर्षित करती रहेगी। जैसे कहते हैं ना - एक बारी जिसने मीठा चखकर देखा तो चाहे उसे मीठा मिले, न मिले लेकिन वह चखा हुआ रस उसको बार-बार खींचता रहेगा। तो यह भी शान्ति की माखी चखना है। तो यह शान्ति के संस्कार स्वत: ही स्मृति दिलाते रहेंगे। इसलिए धीरे-धीरे आत्माओं में शान्ति की जागृति आती रहे यह भी आप सभी शान्ति का दान दे उन्हों को भी दानी बनाते हो। आप लोगों का शुभ संकल्प है कि किसी भी रीति से आत्मायें शान्ति की अनुभूति करें। विश्व शान्ति भी आत्मिक शान्ति के आधार पर होगी ना। प्रकृति भी पुरूष के आधार से चलती है। यह प्रकृति भी तब शान्त होगी जब आत्माओं में शान्ति की स्मृति आये। चाहे किस विधि से भी करें लेकिन अशान्ति से तो परे हो गये ना। और एक मिनट की शान्ति भी उन्हों को अनेक समय के लिए आकर्षित करती रहेगी। तो अच्छा प्लैन बनाया है। यह भी जैसे कोई को थोड़ा-सा आक्सीजन दे करके शान्ति का श्वाँस चलाने का साधन है। शान्ति के श्वांस से वास्तव में मानव जीवन है, उससे तो मुर्च्छित हो गये हैं ना। अशान्ति में बेहोश पड़े हैं। तो यह साधन जैसे आक्सीजन है। उससे थोड़ा श्वांस चलना शुरू होगा। कईयों का श्वांस आक्सीजन से चलते-चलते चल भी पड़ता है। तो सभी उमंग उत्साह से पहले स्वयं पूरा ही समय शान्ति हाउस बन शान्ति से आपके शान्ति के संकल्प से उन्हों को भी संकल्प उठेगा और किसी भी विधि से करेंगे, लेकिन आप लोगों की शान्ति के वाइब्रेशन उनको सच्ची विधि तक खींचकर ले आयेंगे। यह भी किसी को जो नाउम्मीद हैं उनको उम्मीद की झलक दिखाने का साधन है। नाउम्मीद में उम्मीद पैदा करने का साधन है। जहाँ तक हो सके वहाँ तक जो भी सम्पर्क में आये, जिसके भी सम्पर्क में आये तो उनको दो शब्दों में आत्मिक शान्ति, मन की शान्ति का परिचय देने का प्रयत्न जरूर करना। क्योंकि हरेक अपना-अपना नाम एड तो करायेंगे ही। चाहे पत्र-व्यवहार द्वारा करें लेकिन कनेक्शन में तो आयेंगे ना। लिस्ट में तो आयेगा ना। तो जहाँ तक हो सके शान्ति का अर्थ क्या है वह दो शब्दों में भी स्पष्ट करने का प्रयत्न करना। एक मिनट में भी आत्मा में जागृति आ सकती है। समझा! प्लैन तो आप सबको भी पसन्द है ना। दूसरे तो काम उतारते हैं आप काम करते हो। जब हैं ही शान्ति के दूत तो चारो ओर शान्ति दूतों की यह आवाज गूंजेगी और शान्ति के फरिश्ते प्रत्यक्ष होते जायेंगे। सिर्फ आपस में यह राय करना कि पीस के आगे कोई ऐसा शब्द हो जो दुनिया से थोड़ा न्यारा लगे। पीस मार्च या पीस यह शब्द तो दुनिया भी यूज करती है। तो पीस शब्द के साथ कोई विशेष शब्द हो जो युनिवर्सल भी हो और सुनने से ही लगे कि यह न्यारे हैं। तो इन्वेन्शन करना। बाकी अच्छी बातें हैं। कम से कम जितना समय यह प्रोग्राम चले उतना समय कुछ भी हो जाए - स्वयं न अशान्त होना है न अशान्त करना है। शान्ति को नहीं छोड़ना है। पहले तो ब्राह्मण यह कंगन बांधेंगे ना! जब उन्हों को भी कंगन बांधते हो तो पहले ब्राह्मण जब अपने को कंगन बांधेंगे तब ही औरों को भी बांध सकेंगे। जैसे गोल्डन जुबली में सभी ने क्या संकल्प किया? हम समस्या स्वरूप नहीं बनेंगे, यही संकल्प किया ना! इसको ही बार-बार अन्डरलाइन करते रहना। ऐसे नहीं, समस्या बनो और कहो कि समस्या स्वरूप नहीं बनेंगे। तो यह कंगन बाँधना पसन्द है ना? पहले स्व, पीछे विश्व। स्व का प्रभाव विश्व पर पड़ता है। अच्छा-
आज यूरोप का टर्न है। यूरोप भी बहुत बड़ा है ना। जितना बड़ा यूरोप है उतनी बड़ी दिल वाले हो ना। जैसे यूरोप का विस्तार है, जितना विस्तार है उतना ही सेवा में सार है। विनाश की चिनगारी कहाँ से निकली? यूरोप से निकली ना! तो जैसे विनाश का साधन यूरोप से निकला तो स्थापना के कार्य में विशेष यूरोप से आत्मायें प्रख्यात होनी ही है। जैसे पहले बाम्बस अन्डरग्राउण्ड बने, पीछे कार्य में लाये गये। ऐसे ऐसी आत्मायें भी तैयार हो रही हैं, अभी गुप्त है, अन्डरग्राउण्ड हैं लेकिन प्रख्यात हो भी रही हैं और होती भी रहेगी। जैसे हर देश की अपनी- अपनी विशेषता होती है ना तो यहाँ भी हर स्थान की अपनी विशेषता है। नाम बाला करने के लिए यूरोप का यन्त्र काम में आयेगा। जैसे साइन्स के यन्त्र कार्य में आये, ऐसे आवाज बुलन्द करने के लिए यूरोप से यन्त्र निमित्त बनेंगे। नई विश्व तैयार करने के लिए यूरोप ही आपका मददगार बनेगा। यूरोप की चीज़ सदा मजबूत होती है। जर्मनी की चीज़ को सब महत्त्व देते हैं। तो ऐसे ही सेवा के निमित्त महत्त्व वाली आत्मायें प्रत्यक्ष होती रहेंगी। समझा। यूरोप भी कम नहीं है। अभी प्रत्यक्षता का पर्दा खुलने शुरू हो रहा है। समय पर बाहर आ जायेगा। अच्छा है, थोड़े समय में चारों ओर विस्तार अच्छा किया है, रचना अच्छी रची है। अभी इस रचना को पालना का पानी दे मजबूत बना रहे हैं। जैसे यूरोप की स्थूल चीज़े मजबूत होती है वैसे आत्मायें भी विशेष अचल अडोल मजबूत होंगी। मेहनत मुहब्बत से कर रहे हो इसलिए मेहनत, मेहनत नहीं है लेकिन सेवा की लगन अच्छी है। जहाँ लगन है वहाँ विघ्न आते भी समाप्त हो, सफलता मिलती रहती है। वैसे टोटल यूरोप की अगर क्वालिटी देखो तो बहुत अच्छी है। ब्राह्मण भी आई. पी. हैं। वैसे भी आई. पी. हैं। इसलिए यूरोप के निमित्त सेवाधारियों को और भी स्नेह भरी श्रेष्ठ पालना से मजबूत कर विशेष सेवा के मैदान में लाते रहो। वैसे धरनी फल देने वाली है। अच्छा यह तो विशेषता है जो बाप का बनते ही दूसरों को बनाने में लग जाते हैं। हिम्मत अच्छी रखते हैं और हिम्मत के कारण ही यह गिफ्ट है जो सेवाकेन्द्र वृद्धि को पाते रहते हैं। क्वालिटी भी बढ़ाओ और क्वान्टिटी भी बढ़ाओ। दोनों का बेलेन्स हो। क्वालिटी की शोभा अपनी है और क्वान्टिटी की शोभा फिर अपनी है। दोनों ही चाहिए। सिर्फ क्वालिटी हो क्वान्टिटी न हो तो भी सेवा करने वाले थक जाते हैं। इसलिए दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता के काम के हैं। दोनों की सेवा जरूरी है। क्योंकि 9 लाख तो बनाना है ना। 9 लाख में विदेश से कितने हुए हैं? (5 हजार) अच्छा- एक कल्प का चक्र तो पूरा किया। विदेश को लास्ट सो फास्ट का वरदान है तो भारत से फास्ट जाना है। क्योंकि भारत वालों को धरनी बनाने में मेहनत होती है। विदेश में कलराठी जमीन नहीं है। यहाँ पहले बुरे को अच्छा बनाना पड़ता है। वहाँ बुरा सुना ही नहीं है तो बुरी बातें, उल्टी बातें सुनी ही नहीं इसलिए साफ है। और भारत वालों को पहले सलेट साफ करनी पड़ती है फिर लिखना पड़ता है। विदेश को समय प्रमाण वरदान है - लास्ट सो फास्ट का। इसलिए यूरोप कितने लाख तैयार करेगा? जैसे यह मिलियन मिनट का प्रोग्राम बनाया है ऐसे ही प्रजा का बनाओ। प्रजा तो बन सकती हैं ना! मिलियन मिनट बना सकते हो तो मिलियन प्रजा नहीं बना सकते हो? और ही एक लाख कम 9 लाख ही कहते हैं! समझा - यूरोप वालों को क्या करना है! जोर शोर से तैयारी करो। अच्छा - डबल विदेशियों का डबल लक है, वैसे सभी को दो मुरलियाँ सुनने को मिलती आपको डबल मिलीं। कांफ्रेंस भी देखी, गोल्डन जुबली भी देखी। बड़ी-बड़ी दादियाँ भी देखी। गंगा, जमुना, गोदावरी, ब्रह्मापुत्रा सब देखी। सब बड़ी-बड़ी दादियाँ देखी ना! एक-एक दादी की एक-एक विशेषता सौगात में लेकर जाना तो सभी की विशेषता काम में आ जायेगी। विशेषताओं के सौगात की झोली भर करके जाना। इसमें कस्टम वाले नहीं रोकेंगे। अच्छा –
सदा विश्व-कल्याणकारी बन विश्व-सेवा के निमित्त सच्चे सेवाधारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा सफलता के जन्म सिद्ध अधिकार को प्राप्त करने वाली विशेष आत्मायें, सदा स्व के स्वरूप द्वारा सर्व को स्वरूप की समृति दिलाने वाली समीप आत्मायें, सदा बेहद के निष्काम सेवाधारी बन उड़ती कला में उड़ने वाले, डबल लाइट बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
25-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मधुबन में 50 विदेशी भाई-बहिनों के समर्पण समारोह पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य
आज बापदादा विशेष श्रेष्ठ दिन की, विशेष स्नेह भरी मुबारक दे रहे हैं। आज कौन-सा समारोह मनाया? बाहर का दृश्य तो सुन्दर था ही। लेकिन सभी के उमंग उत्साह और दृढ़ सकंल्प का, दिल का आवाज दिलाराम बाप के पास पहुँचा। तो आज के दिन को विशेष उमंग उत्साह भरा ‘दृढ़ संकल्प समारोह’ कहेंगे। जब से बाप के बने तब से सम्बन्ध है और रहेगा। लेकिन यह विशेष दिन विशेष रूप से मनाया इसको कहेंगे ‘दृढ़ संकल्प’ किया? कुछ भी हो जाए चाहे माया के तूफान आयें, चाहे लोगों की भिन्न-भिन्न बातें आयें, चाहे प्रकृति का कोई भी हलचल का नजारा हो। चाहे लौकिक वा अलौकिक सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के सरकमस्टांस हो, मन के सकंल्पों का बहुत जोर से तूफान भी हो तो भी - ‘एक बाप दूसरा न कोई’। एक बल एक भरोसा ऐसा दृढ़ संकल्प किया वा सिर्फ स्टेज पर बैठे! डबल स्टेज पर बैठे थे या सिंगल स्टेज पर? एक थी यह स्थूल स्टेज, दूसरी थी ‘दृढ़ संकल्प’ की स्टेज, दृढ़ता की स्टेज। तो डबल स्टेज पर बैठे थे ना।! हार भी बहुत सुन्दर पहने। सिर्फ यह हार पहना वा सफलता का भी हार पहना! सफलता गले का हार है। यह दृढ़ता ही सफलता का आधार है। इससे स्थूल हार के साथ सफलता का हार भी पड़ा हुआ था ना! बापदादा डबल दृश्य देखते हैं। सिर्फ साकार रूप का दृश्य नहीं देखते। लेकिन साकार दृश्य के साथ-साथ आत्मिक स्टेज, मन के दृढ़ संकल्प और सफलता की श्रेष्ठ माला यह दोनों देख रहे थे। डबल माला, डबल स्टेज देख रहे थे। सभी ने दृढ़ संकल्प किया। बहुत अच्छा। कुछ भी हो जाए लेकिन सम्बन्ध को निभाना है। परमात्म प्रीती की रीति सदा निभाते हुए सफलता को पाना है। निश्चित है - सफलता गले का हार है। ‘एक बाप दूसरा न कोई’ - यह है दृढ़ संकल्प। जब एक है तो एकरस स्थिति स्वत: और सहज है। सर्व सम्बन्धों की अविनाशी तार जोड़ी है ना? अगर एक भी सम्बन्ध कम होगा तो हलचल होगी। इसलिए सर्व सम्बन्धों की डोर बांधी। कनेक्शन जोड़ा। संकल्प किया। सर्व सम्बन्ध हैं या सिर्फ मुख्य 3 सम्बन्ध हैं? सर्व सम्बन्ध हैं तो सर्व प्राप्तियाँ हैं। सर्व सम्बन्ध नहीं तो कोई न कोई प्राप्ति की कमी रह जाती है। सभी का समारोह हुआ ना। दृढ़ संकल्प करने से आगे पुरूषार्थ में भी विशेष रूप से लिफ्ट मिल जाती है। यह विधी भी विशेष उमंग उत्साह बढ़ाती है। बापदादा भी सभी बच्चों को दृढ़ संकल्प करने के समारोह की बधाई देते हैं। और वरदान देते - ‘सदा अविनाशी भव। अमर भव’।
आज एशिया का ग्रुप बैठा है। एशिया की विशेषता क्या है? विदेश सेवा का पहला ग्रुप जापान में गया, यह विशेषता हुई ना। साकार बाप की प्रेरणा प्रमाण विशेष विदेश सेवा का निमन्त्रण और सेवा का आरम्भ जापान से हुआ। तो एशिया का नम्बर स्थापना में आगे हुआ ना। पहला विदेश का निमन्त्रण था। और धर्म वाले निमन्त्रण दे बुलावें इसका आरम्भ एशिया से हुआ। तो एशिया कितना लकी है! और दूसरी विशेषता - सबसे भारत के समीप एशिया देश है। जो समीप होता है उनको सिकीलधे कहते हैं। सिकीलधे बच्चे छिपे हुए हैं। हर स्थान पर कितने अच्छे-अच्छे रत्न निकले हैं। क्वान्टिटी भले कम है लेकिन क्वालिटी है। मेहनत का फल अच्छा है। इस तरह धीरे-धीरे अब संख्या बढ़ रही है। सब स्नेही हैं। सब लवली हैं। हर एक-दो से ज्यादा स्नेही है। यही ब्राह्मण परिवार की विशेषता है। हर एक यह अनुभव करता है कि मेरा सबसे ज्यादा स्नेह है और बाप का भी मेरे से ज्यादा स्नेह है। मेरे को ही बापदादा आगे बढ़ाता है। इसलिए भक्ति मार्ग वालों ने भी बहुत अच्छा एक चित्र अर्थ से बनाया है। करके गोपी के साथ ‘गोपी-वल्लभ’ है। सिर्फ एक राधे से वा सिर्फ 8 पटरानियों के साथ नहीं। हर एक गोपी के साथ गोपीवल्लभ है। जैसे दिलवाला मन्दिर में जाते हो तो नोट करते हो ना कि यह मेरा चित्र है अथवा मेरी कोठी है। तो इस रास मण्डल में भी आप सबका चित्र है। इसको कहते ही हैं - ‘महारास’। इस महारास का बहुत बड़ा गायन है। बापदादा का हर एक से एक दो से ज्यादा प्यार है। बापदादा हरेक बच्चे के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित होते है। कोई भी है लेकिन कोटो में कोई है। पद्मापद्म भाग्यवान है। दुनिया के हिसाब से देखो तो इतने कोटों में से कोई हो ना! जापान तो कितना बड़ा है लेकिन बाप के बच्चे कितने हैं! तो कोटो में कोई हुए ना। बापदादा हर एक की विशेषता, भाग्य देखते हैं। कोटों में कोई सिकीलधे हैं। बाप के लिए सभी विशेष आत्मायें हैं। बाप किसको साधारण, किसको विशेष नहीं देखते। सब विशेष हैं। इस तरफ और ज्यादा वृद्धि होनी है। क्योंकि इस पूरे साइड में डबल सेवा विशेष है। एक तो अनेक वैरायटी धर्म के हैं। और इस तरफ सिन्ध की निकली हुई आत्मायें भी बहुत हैं। उन्हों की सेवा भी अच्छी कर सकते हो। उन्हों को समीप लाया तो उन्हों के सहयोग से और धर्मों तक भी सहज पहुँच सकेंगे। डबल सेवा से डबल वृद्धि कर सकते हो। उन्हों में किसी न किसी रीति से उल्टे रूप में चाहे सुल्टे रूप में बीज पड़ा हुआ है। परिचय होने के कारण सहज सम्बन्ध में आ सकते हैं। बहुत सेवा कर सकते हो। क्योंकि सर्व आत्माओं का परिवार है। ब्राह्मण सभी धर्मों में बिखर गये हैं। ऐसा कोई धर्म नहीं जिसमें ब्राह्मण न पहुँचे हो। अब सब धर्मों से निकलनिकलकर आ रहे हैं। और जो ब्राह्मण परिवार के हैं उन्हों से अपना-पन लगता है ना! जैसे कोई हिसाब किताब से गये और फिर से अपने परिवार में पहुँच गये। कहाँ-कहाँ से पहुँच अपना सेवा का भाग्य लेने के निमित्त बन गये। यह कोई कम भाग्य नहीं। बहुत श्रेष्ठ भाग्य है। बड़े ते बड़े पुण्य आत्मायें बन जाते। महादानियों, महान सेवाधारियों की लिस्ट में आ जाते। तो निमित्त बनना भी एक विशेष गिफ्ट है। और डबल विदेशियों को यह गिफ्ट मिलती है। थोड़ा ही अनुभव किया और निमित्त बन जाते सेन्टर स्थापन करने के। तो यह भी लास्ट सो फास्ट जाने की विशेष गिफ्ट है। सेवा करने से मैजारिटी को यह स्मृति में रहता है कि जो हम निमित्त करेंगे अथवा चलेंगे, हमको देख और करेंगे। तो यह डबल अटेन्शन हो जाता है। डबल अटेन्शन होने के कारण डबल लिफ्ट हो जाती है। समझा - डबल विदेशियों को डबल लिफ्ट है। अभी सब तरफ धरनी अच्छी हो गई है। हल चलने के बाद धरनी ठीक हो जाती है ना। और फिर फल भी अच्छे और सहज निकलते हैं। अच्छा - एशिया के बड़े माइक का आवाज भारत में जल्दी पहुँचेगा। इसलिए ऐसे माइक तैयार करो। अच्छा -’’
बड़ी दादियों से - आप लोगों की महिमा भी क्या करें - जैसे बाप के लिए कहते हैं ना - सागर की स्याही बनायें, धरनी को कागज बनायें.....ऐसे ही आप सभी दादियों की महिमा है। अगर महिमा शुरू करें तो सारी रात-दिन एक सप्ताह का कोर्स हो जायेगा। अच्छे हैं, सबकी रास अच्छी है। सभी की रास मिलती है और सभी रास करते भी अच्छी हैं। हाथ में हाथ मिलाना अर्थात् विचार मिलाना यही रास है। तो बापदादा दादियों की यही रास देखते रहते हैं। अष्ट रत्नों की यही रास है।
आप दादियाँ परिवार का विशेष श्रृंगार हो। अगर श्रृंगार न हो तो शोभा नहीं होती है। तो सभी उसी स्नेह से देखते हैं। (बृजइन्द्रा दादी से) बचपन से लौकिक में, अलौकक में श्रृंगार करती रही तो श्रृंगार करते-करते श्रृंगार बन गई। ऐसे हैं ना! बापदादा महावीर महारथी बच्चों को सदा ही याद तो क्या करते लेकिन समाये हुए रहते हैं। जो समाया हुआ होता है उनको याद करने की भी जरूरत नहीं। बापदादा सदा ही हर विशेष रत्न को विश्व के आगे प्रत्यक्ष करते हैं। तो विश्व के आगे प्रत्यक्ष होने वाली विशेष रत्न हो। एकस्ट्रा सभी के खुशी की मदद है। आपकी खुशी को देखकर सबको खुशी की खुराक मिल जाती है। इसलिए आप सबकी आयु बढ़ रही है। क्योंकि सभी के स्नेह की आशीर्वाद मिलती रहती है। अभी तो बहुत कार्य करना है। इसलिए श्रृंगार हो परिवार का। सभी कितने प्यार से देखते हैं। जैसे कोई का छत्र उतर जाए तो माथा कैसे लगेगा। छत्र पहनने वाला अगर छत्र न पहनें तो क्या लगेगा! तो आप सभी भी परिवार के छत्र हो। (निर्मलशान्ता दादी से) अपना यादगार सदा ही मधुबन में देखती रहती हो। यादगार होते हैं याद करने के लिए। लेकिन आपकी याद, यादगार बना देती है। चलते-फिरते सभी परिवार को निमित्त बने हुए आधार मूर्त्त याद आते रहते हैं। तो आधार मूर्त्त हो। स्थापना के कार्य के आधार मूर्त्त मजबूत होने के कारण यह वृद्धि की, उन्नति की बिल्डिंग कितनी मजबूत हो रही है। कारण? आधार मजबूत है। अच्छा –
27-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
रूहानी सेना कल्प-कल्प की विजयी
अव्यक्त बापदादा अफ्रिकन ग्रुप प्रति बोले
सभी रूहानी शक्ति सेना, पाण्डव सेना, रूहानी सेना सदा विजय के निश्चय और नशे में रहते हैं न, और कोई भी सेना जब लड़ाई करती है तो विजय की गैरन्टी नहीं होती है। निश्चय नहीं होता कि - विजय निश्चित ही है। लेकिन आप रूहानी सेना, शक्ति सेना सदा इस निश्चय के नशे में रहते कि न सिर्फ अब के विजयी है लेकिन कल्प-कल्प के विजयी हैं। अपने कल्प पहले के विजय की कथायें भी भक्ति मार्ग में सुनते आये हो। पाण्डवों की विजय की यादगार कथा अभी भी सुन रहे हो। अपने विजय के चित्र अब भी देख रहे हो। भक्ति में सिर्फ अहिंसक के बजाए हिंसक दिखा दिया है। रूहानी सेना को जिस्मानी साधारण सेना दिखा दिया है। अपना विजय का गायन अभी भी भक्तों द्वारा सुन हर्षित होते हो। गायन भी है - ‘प्रभु-प्रीत बुद्धि विजयन्ति’। ‘विपरीत बुद्धि विनशन्ति’। तो कल्प पहले का आपका गायन कितना प्रसिद्ध है! विजय निश्चित होने के कारण निश्चयबुद्धि विजयी हो। इसलिए माला को भी ‘विजय माला’ कहते हैं। तो निश्चय और नशा दोनों हैं ना! कोई भी अगर पूछे तो निश्चय से कहेंगे कि विजय तो हुई पड़ी है। स्वप्न में भी यह संकल्प नही उठ सकता कि पता नहीं विजय होगी वा नहीं, हुई पड़ी है। पास्ट कल्प और भविष्य को भी जानते हो। त्रिकालदर्शी बन उसी नशे से कहते हो। सभी पक्के हो ना! अगर कोई कहे भी कि सोचो, देखो तो क्या कहेंगे? अनेक बार देख चुके हैं। कोई नई बात हो तो सोचें भी और देखें भी। यह तो अनेक बार की बात अब रिपीट कर रहे हैं। तो ऐसे निश्चय बुद्धि ज्ञानी तू आत्मायें योगी तू आत्मायें हो ना!
आज अफ्रीका के ग्रुप का टर्न है। ऐसे तो सभी अब मधुबन निवासी हो। परमानेंट एड्रेस तो मधुबन है ना। वह तो सेवास्थान है। सेवा-स्थान हो गया दफ्तर, लेकिन घर तो मधुबन है ना। सेवा के अर्थ अफ्रीका, यू.के. आदि चारों तरफ गये हुए हो। चाहे धर्म बदली किया, चाहे देश बदली किया लेकिन सेवा के लिए ही गये हो। याद कौन-सा घर आता है? मधुबन या परमधाम। सेवा स्थान पर सेवा करते भी सदा ही मधुबन और मुरली यही याद रहता है ना। अफ्रीका में भी सेवा अर्थ गये हो ना। सेवा ने ‘ज्ञान गंगा’ बना लिया। ज्ञान गंगाओं में ज्ञान स्नान कर आज कितने पावन बन गये! बच्चों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर सेवा करते हुए देख बापदादा सोचते हैं कि कैसे-कैसे स्थानों पर सेवा के लिए निर्भय बन बहुत लगन से रहे हुए हैं। अफ्रिकन लोगों का वायुमण्डल, उन्हों का आहार व्यवहार कैसा है, फिर भी सेवा के कारण रहे हुए हो। सेवा का बल मिलता रहता। सेवा का प्रत्यक्ष फल मिलता है, वह बल निर्भय बना देता है। कभी घबराते तो नहीं हो न। और ऑफीशियल निमंत्रण पहले यहाँ से ही मिला। विदेश सेवा का निमंत्रण मिलने से ऐसे-ऐसे देशों में पहुँच गये। निमंत्रण की सेवा का फाउण्डेशन यहाँ से ही शुरू हुआ। सेवा के उमंग उत्साह का प्रत्यक्ष फल यहाँ के बच्चे ने दिखाया। बलिहारी उस एक निमित्त बनने वाले की जो कितने अच्छे- अच्छे छिपे हुए रत्न निकल आये। अभी तो बहुत वृद्धि हो गई है। वह छिप गया और आप प्रत्यक्ष हो गये। निमंत्रण के कारण नम्बर आगे हो गया। तो अफ्रीका वालों को बापदादा ‘आफरीन’ लेने वाले कहते हैं। आफरीन लेने का स्थान है क्योंकि वातावरण अशुद्ध है। अशुद्ध वातावरण के बीच वृद्धि हो रही है। इसके लिए आफरीन कहते हैं।
शक्ति सेना और पाण्डव सेना दोनों ही शक्तिशाली हैं। मैजारिटी इन्डियन्स हैं। लेकिन इन्डिया से दूर हो गये तो दूर होते भी अपना हक तो नहीं छोड़ सकते। वहाँ भी बाप का परिचय मिल गया। बाप के बन गये। नैरोबी में मेहनत नहीं लगी। सहज ही बिछुड़े हुए पहुँच गये और गुजरातियों के यह विशेष संस्कार हैं। जैसे उन्हों की यह रीति है। सभी मिलकर गर्बा रास करते हैं। अकेले नहीं करते। छोटा हो चाहे मोटा हो सब मिलकर गर्बा डान्स जरूर करते हैं। यह संगठन की निशानी है। सेवा में भी देखा गया है गुजराती संगठन वाले होते। एक आता तो 10 को जरूर लाता। यह संगठन की रीति अच्छी है उन्हों में। इसलिए वृद्धि जल्दी हो जाती है। सेवा की वृद्धि और विस्तार भी हो रहा है। ऐसे-ऐसे स्थानों पर शान्ति की शक्ति देना, भय के बदले खुशी दिलाना - यही श्रेष्ठ सेवा है। ऐसे स्थानों पर आवश्यकता है। विश्व कल्याणकारी हो तो विश्व के चारों ओर सेवा बढ़ती है। और निमित्त बनना ही है। कोई भी कोना अगर रह गया तो उल्हना देंगे। अच्छा है - हिम्मते बच्चे मदद दे बाप। हैण्डस भी वहाँ से ही निकल और सेवा कर रहे हैं। यह भी सहयोग हो गया ना। स्वयं जगे हो तो बहुत अच्छा लेकिन जगकर फिर जगाने के भी निमित्त बनें यह डबल फायदा हो गया। बहुत करके हैण्डस भी वहाँ के ही हैं। यह विशेषता अच्छी है। विदेश सेवा में मैजारिटी सब वहाँ से निकल वहाँ ही सेवा के निमित्त बन जाते। विदेश ने भारत को हैण्डस नहीं दिया है। भारत ने विदेश को दिये हैं। भारत भी बहुत बड़ा है। अलग-अलग जोन हैं। स्वर्ग तो भारत को ही बनाना है। विदेश तो पिकनिक स्थान बन जायेगा। तो सभी एवररेडी हो ना! आज किसको कहाँ भेजें तो एवररेडी हो ना! जब हिम्मत रखते हैं तो मदद भी मिलती है। एवररेडी जरूर रहना चाहिए। और जब समय ऐसा आयेगा तो फिर आर्डर तो करना ही होगा। बाप द्वारा आर्डर होना ही हैं। कब करेंगे वह डेट नहीं बतायेंगे। डेट बतावें फिर तो सब नम्बर वन पास हो जाएँ। यहाँ डेट का ही ‘अचानक’ एक ही क्वेश्चन आयेगा! एवररेडी हो ना। कहें यहाँ ही बैठ जाओ तो बाल-बच्चे घर आदि याद आयेगा? सुख के साधन तो वहाँ हैं लेकिन स्वर्ग तो यहाँ बनना है। तो ‘सदा एवररेडी रहनाश्। यह हैं ब्राह्मण जीवन की विशेषता। अपनी बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। सेवा के लिए निमित्त मात्र स्थान बाप ने दिया है। तो निमित्त बनकर सेवा में उपस्थित हुए हो। फिर बाप का इशारा मिला तो कुछ भी सोचने की जरूरत ही नहीं है। डायरेक्शन प्रमाण सेवा अच्छी कर रहे हो। इसलिए न्यारे और बाप के प्यारे हो। अफ्रीका ने भी वृद्धि अच्छी की है। वी.आई.पी. की सेवा अच्छी हो रही है। गवर्मेन्ट के भी कनेक्शन अच्छे हैं। यह विशेषता है जो सर्व प्रकार वाले वर्ग की आत्माओं का सम्पर्क भी कोई न कोई समय समीप ले ही आता है। आज सम्पर्क वाले, कल सम्बन्ध वाले हो जायेंगे। उन्हों को जगाते रहना चाहिए। नहीं तो थोड़ी आँख खोल फिर सो जाते हैं। कुम्भकरण तो हैं ही। नींद का नशा होता है तो कुछ भी खा-पी भी लेते तो भूल जाते। कुम्भकरण भी ऐसे हैं। कहेंगे हाँ, फिर आयेंगे, यह करेंगे। लेकिन फिर पूछो तो कहेंगे याद नहीं रहा। इसलिए बार-बार जगाना पड़ता है। गुजरातियों ने बाप का बनने में, तनमन- धन से स्वयं को सेवा में लगाने में नम्बर अच्छा लिया है। सहज ही सहयोगी बन जाते हैं। यह भी भाग्य है। संख्या गुजरातियों की अच्छी है। बाप का बनने की लाटरी कोई कम नहीं है।
हर स्थान पर कोई न कोई बाप के बिछुड़े हुए रत्न हैं ही। जहाँ भी पाँव रखते हैं तो कोई न कोई निकल ही आते। बेपरवाह निर्भय हो करके सेवा में लगन से आगे बढ़ते हैं तो पद्म गुणा मदद भी मिलती है। आफिशियल निमन्त्रण तो फिर भी यहाँ से ही आरम्भ हुआ। फिर भी सेवा का जमा तो हुआ ना। वह जमा का खाता समय पर खींचेगा जरूर। तो सभी नम्बरवन तीव्र पुरुषार्थी आफरीन लेने वाले हो ना। नम्बरवन सम्बन्ध निभाने वाले, नम्बरवन सेवा में सबूत दिखाने वाले, सब में नम्बरवन होना ही हैं। तब तो आफरीन लेंगे ना। आफरीन ते आफरीन लेते ही रहना है। सभी की हिम्मत देख बापदादा खुश होते हैं। अनेक आत्माओं को बाप का सहारा दिलाने के लिए निमित्त बने हुए हो। अच्छे ही परिवार के परिवार हैं। परिवार को बाबा ‘गुलदस्ता’ कहते हैं। यह भी विशेषता अच्छी है। वैसे तो सभी ब्राह्मणों के स्थान हैं। अगर कोई नैरोबी जायेंगे वा कहाँ भी जायेंगे तो कहेंगे हमारा सेन्टर, बाबा का सेन्टर है। हमारा परिवार है। तो कितने लकी हो गये! बापदादा हर एक रत्न को देख खुश होते। चाहे कोई भी स्थान के हैं लेकिन बाप के हैं और बाप बच्चों का है। इसलिए ब्राह्मण आत्मा अति प्रिय है। विशेष है। एक दो से जास्ती प्यारे लगते हैं। अच्छा
01-03-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
होली हंस - बुद्धि, वृत्ति, दृष्टि और मुख
पतित पावन बाप अपने होली हँस बच्चों प्रति बोले
आज बापदादा सर्व होली हँसों की सभा देख रहे हैं। यह साधारण सभा नहीं है। लेकिन रूहानी होली हँसों की सभा है। बापदादा हर एक होली हँस को देख रहे हैं कि सभी कहाँ तक होली हँस बने हैं। हँस की विशेषता अच्छी तरह से जानते हो। सबसे पहले ‘हँस बुद्धि’ अर्थात् सदा हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ और शुभ सोचने वाले। होली हँस अर्थात् कंकड़ और रत्न को अच्छी तरह परखने वाले और फिर रत्न धारण करने वाले। पहले हर आत्मा के भाव को परखने वाले और फिर धारण करने वाले। कभी भी बुद्धि में किसी भी आत्मा के प्रति अशुभ वा साधारण भाव धारण करने वाले न हो। सदा शुभ भाव और शुभ भावना धारण करना। भाव जानने से कभी भी किसी के साधारण स्वभाव या व्यर्थ स्वभाव का प्रभाव नहीं पड़ेगा। शुभ भाव शुभ भावना, जिसको भाव स्वभाव कहते हो। जो व्यर्थ है उनको बदलने का है। बापदादा देख रहे हैं - ऐसे ‘हँस बुद्धि’ कहाँ तक बने हैं। ऐसे ही ‘हँस वृत्ति’ अर्थात् सदा हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ कल्याण की वृत्ति। हर आत्मा के अकल्याण की बातें सुनते-देखते भी अकल्याण को कल्याण की वृत्ति से बदल लेना। इसको कहते हैं - होली हँस वृत्ति। अपने कल्याण की वृत्ति से औरों को भी बदल सकते हो। उनके अकल्याण की वृत्ति को अपने कल्याण की वृत्ति से बदल लेना यही होली हँस का कर्त्तव्य है। इसी प्रमाण दृष्टि में सदा हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ शुद्ध स्नेह की दृष्टि हो। कैसा भी हो लेकिन अपनी तरफ से सबके प्रति रूहानी आत्मिक स्नेह की दृष्टि धारण करना। इसको कहते - ‘होली हंस दृष्टि’। इसी प्रकार बोल में भी पहले सुनाया है, बुरा बोल अलग चीज़ है। वह तो ब्राह्मणों का बदल गया है लेकिन व्यर्थ बोल को भी होली हँस मुख नहीं कहेंगे। मुख भी होली हँस मुख हो! जिसके मुख से कभी व्यर्थ न निकले। इसको कहेंगे ‘हँस मुख स्थिति’। तो होली हंस बुद्धि, वृत्ति, दृष्टि और मुख। जब यह पवित्र अर्थात् श्रेष्ठ बन जाते हैं तो स्वत: ही होली हँस की स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देता है। तो सभी अपने आपको देखो कि कहाँ तक सदा होली हँस बन चलते-फिरते हैं। क्योंकि स्व-उन्नति का समय ज्यादा नही रहा है। इसलिए अपने आपको चेक करो और चेन्ज करो।
इस समय का परिवर्तन बहुत काल के परिवर्तन वाली गोल्डन दुनिया के अधिकारी बनायेगा। यह ईशारा बापदादा ने पहले भी दिया है। स्व की तरफ डबल अन्डर लाइन से अटेन्शन सभी का है! थोड़े समय का अटेन्शन है और बहुत काल के अटेन्शन के फलस्वरूप श्रेष्ठ प्राप्ति की प्रालब्ध है। इसलिए यह थोड़ा समय बहुत श्रेष्ठ सुहावना है। मेहनत भी नहीं है सिर्फ जो बाप ने कहा और धारण किया। और धारण करने से प्रैक्टिकल स्वत: ही होगा। होली हंस का काम ही है - धारण करना। तो ऐसे होली हंसो की यह सभा है ना। नॉलेजफुल बन गये। व्यर्थ वा साधारण को अच्छी तरह से समझ गये हो। तो समझने के बाद कर्म में स्वत: ही आता है। वैसे भी साधारण भाषा में यही कहते हो ना कि - अभी मेरे को समझ में आया। फिर करने के बिना रह नहीं सकते हो। तो पहले यह चेक करो कि साधारण अथवा व्यर्थ क्या है? कभी व्यर्थ या साधारण को ही श्रेष्ठ तो नहीं समझ लेते! इसलिए पहले-पहले मुख्य है - होली हंस बुद्धि। उसमें स्वत: ही परखने की शक्ति आ ही जाती है। क्योंकि व्यर्थ संकल्प और व्यर्थ समय तब जाता जब उसकी परख नहीं रहती कि यह राइट है या रांग है। अपने व्यर्थ को, रांग को राइट समझ लेते हैं तब ही ज्यादा व्यर्थ समय जाता है। है व्यर्थ लेकिन समझते हैं कि मैं समर्थ, राइट सोच रही हूँ। जो मैंने कहा वही राइट है। इसी में परखने की शक्ति न होने के कारण मन की शक्ति, समय की शक्ति, वाणी की शक्ति सब चली जाती है। और दूसरे से मेहनत लेने का बोझ भी चढ़ता है। कारण? क्योंकि होली हंस बुद्धि नहीं बने हैं। तो बापदादा सभी होली हंसों को फिर से यही ईशारा दे रहे हैं कि उल्टे को उल्टा नहीं करो। यह है ही उल्टा यह नहीं सोचो लेकिन उल्टे को सुल्टा कैसे करूँ, यह सोचो। इसको कहा जाता है - कल्याण की भावना। श्रेष्ठ भाव, शुभ भावना से अपने व्यर्थ भाव-स्वभाव और दूसरे के भाव स्वभाव को परिवर्तन करने की विजय प्राप्त करेंगे! समझा। पहले स्व पर विजयी फिर सर्व पर विजयी, फिर प्रकृति पर विजयी बनेंगे। यह तीनों विजय आपको ‘विजयी माला’ का मणका बनायेगी। प्रकृति में वायुमण्डल, वायब्रशेन या स्थूल प्रकृति की समस्यायें सब आ जाती हैं। तो तीनों पर विजय हो? इसी आधार से विजय माला का नम्बर अपना देख सकते हो! इसलिए नाम ही ‘वैजयन्ती माला’ रखा है। तो सभी विजयी हो? अच्छा!
आज आस्ट्रलेया वालों का टर्न है। आस्ट्रेलिया वालों को मधुबन से भी गोल्डन चान्सलर बनने का चांस मिलता है। क्योंकि सभी को आगे रखने का चांस देते हो, यह विशेषता है। औरों को आगे रखना यह चांस देना अर्थात् चान्सलर बनना है। चांस लेने वाले को, चांस देने वाले को दोनों को चांसलर कहते हैं। बापदादा सदा हर बच्चे की विशेषता देखते हैं और वर्णन करते हैं। आस्ट्रेलिया में पाण्डवों को सेवा का चांस विशेष मिला हुआ है। ज्यादा सेन्टर्स भी पाण्डव सम्भालते हैं। शक्तियों ने पाण्डवों को चांस दिया है। आगे रखने वाले सदैव आगे रहते ही हैं। यह भी शक्तियों की विशालता है। लेकिन पाण्डव अपने को सदा निमित्त समझ सेवा में आगे बढ़ रहे हो ना! सेवा में निमित्त भाव ही सेवा की सफलता का आधार है। बापदादा तीन शब्द कहते हैं ना, जो साकार द्वारा भी लास्ट में उच्चारण किये। ‘निराकारी, निर्विकारी और निरअहंकारी’। यह तीनों विशेषतायें निमित्त भाव से स्वत: ही आती हैं। निमित्त भाव नहीं तो इन तीनों विशेषताओं का अनुभव नहीं होता। निमित्त भाव अनेक प्रकार का मैं-पन मेरा-पन सहज ही खत्म कर देता है। न मैं, न मेरा। स्थिति में जो हलचल होती है वह इसी एक कमी के कारण। सेवा में भी मेहनत करनी पड़ती और अपनी उड़ती कला की स्थिति में भी मेहनत करनी पड़ती। निमित्त हैं अर्थात् निमित्त बनाने वाला सदा याद रहे। तो इसी विशेषता से सदा सेवा की वृद्धि करते हुए आगे बढ़ रहे हो ना। सेवा का विस्तार होना यह भी सेवा की सफलता की निशानी है। अभी अचल-अडोल स्थिति के अच्छे अनुभवी हो गये हो। समझा - आस्ट्रेलिया अर्थात् कुछ एकस्ट्रा है, जो औरों में नहीं है। आस्ट्रेलिया में और वैरायटी - गुजराती आदि नहीं हैं। ‘चैरिटी बिगन्स एट होम’ का काम ज्यादा किया है। हमजिन्स को जगाया है। कुमार-कुमारियों का अच्छा कल्याण हो रहा है। इस जीवन में अपने जीवन का श्रेष्ठ फैसला करना होता है। अपनी जीवन बना ली तो सदा के लिए श्रेष्ठ बन गये। उल्टी सीढ़ी चढ़ने से बच गये। बापदादा खुश होते हैं कि एक दो से अनेक दीपक जग ‘दीपमाला’ बना रहे हैं। उमंग-उत्साह अच्छा है। सेवा में बिजी रहने से उन्नति अच्छी कर रहे हैं।
एक तो निमित्त भाव की बात सुनाई दूसरा जो सेवा के निमित्त बनते उन्हों के लिए स्व-उन्नति वा सेवा की उन्नति प्रति एक विशेष स्लोगन सेफ्टी का साधन है। हम निमित्त बने हुए जो करेंगे हमें देख सब करेंगे। क्योंकि सेवा के निमित्त बनना अर्थात् स्टेज पर आना। जैसे कोई पार्टधारी जब स्टेज पर आता है तो कितना अटेन्शन रखता है। तो सेवा के निमित्त बनना अर्थात् स्टेज पर पार्ट बजाना। स्टेज तरफ सभी की नजर होती है। और जो जितना हीरो एक्टर होता उस पर ज्यादा नजर होती है। तो यह स्लोगन सेफ्टी का साधन है। इससे स्वत: ही उड़ती कला का अनुभव करेंगे। वैसे तो चाहे सेन्टर पर रहते वा कहाँ भी रह कर सेवा करते। सेवाधारी तो सब हैं। कई अपने निमित्त स्थानों पर रहकर सेवा का चांस लेते वह भी सेवा की स्टेज पर हैं। सेवा के सिवाए अपने समय को व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। सेवा का भी खाता बहुत जमा होता है। सच्ची दिल से सेवा करने वाले अपना खाता बहुत अच्छी तरह से जमा कर रहे हैं। बापदादा के पास हर एक बच्चे का आदि से अन्त तक सेवा का खाता है। और आटोमेटिकली उसमें जमा होता रहता है। एक-एक का एकाउन्ट नहीं रखना पड़ता हैं। एकाउन्ट रखने वालों के पास बहुत फाइल होती हैं। बाप के पास स्थूल फाइल कोई नहीं है। एक सेकण्ड में हर एक का आदि से अभी तक का रजिस्टर सेकण्ड में इमर्ज होता है। आटोमेटिक जमा होता रहता है। ऐसे कभी नहीं समझना हमको तो कोई देखता नहीं, समझता नहीं। बापदादा के पास तो जो जैसा है, जितना करता है, जिस स्टेज से करता है सब जमा होता है। फाइल नहीं है लेकिन फाइनल है। आस्ट्रेलिया में शक्तियों ने बाप का बनने की, बाप को पहचान बाप से स्नेह निभाने में हिम्मत बहुत अच्छी दिखाई है। हलचल की भूल होती है वह तो कई स्थान के, धरनी के या टोटल पिछले जीवन के संस्कार के कारण हलचल आती है। उनको भी पार कर स्नेह के बन्धन में आगे बढ़ते रहते हैं। इसलिए बापदादा शक्तियों की हिम्मत पर मुबारक देते हैं। एक बल एक भरोसा आगे बढ़ा रहा है। तो शक्तियों की हिम्मत और पाण्डवों का सेवा का उमंग दोनों पंख पक्के हो गये हैं। सेवा के क्षेत्र में पाण्डव भी महावीर बन आगे बढ़ रहे हैं। हलचल को पार करने में होशियार हैं। सभी का चित्र वही है। पाण्डव मोटे ताजे लम्बे-चौड़े दिखाते हैं। क्योंकि स्थिति ऐसी ऊँची और मजबूत है। इसलिए पाण्डव ऊँचे और बहादुर दिखाये हैं। आस्ट्रेलिया वाले रहमदिल भी ज्यादा हैं। भटकती हुई आत्माओं के ऊपर रहमदिल बन सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। वे कभी सेवा के बिना रह नहीं सकते। बापदादा को बच्चों के आगे बढ़ने की विशेषता पर सदा खुशी है। विशेष खुशनसीब हो। हर बच्चे के उमंग उत्साह पर बापदादा को हर्ष होता है। कैसे हर एक श्रेष्ठ लक्ष्य से आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे। बापदादा सदैव विशेषता को ही देखते हैं। हर एक, एक दो से प्यारा लगता है। आप भी एक दो को इस विधि से देखते हो ना! जिसको भी देखो एक दो से प्रिय लगे। क्योंकि 5 हजार वर्ष के बाद बिछुड़े हुए आपस में मिले हैं तो कितने प्यारे लगते हैं। बाप से प्यार की निशानी यह है कि सभी ब्राह्मण आत्मायें प्यारी लगेंगी। हर ब्राह्मण प्यारा लगना माना बाप से प्यार है। माला में एक दो के सम्बन्ध में तो ब्राह्मण ही आयेंगे। बाप तो रिटायर हो देखेंगे। इसलिए बाप से प्यार की निशानी को सदा अनुभव करो। सभी बाप के प्यारे हैं तो हमारे भी प्यारे हैं। अच्छा-
पार्टियों से
1. सभी अपने को विशेष आत्मायें समझते हो? विशेष आत्मा विशेष कार्य के निमित्त हैं और विशेषतायें दिखानी हैं - ऐसे सदा स्मृति में रहे। विशेष स्मृति साधारण स्मृति को भी शक्तिशाली बना देती है। व्यर्थ को भी समाप्त कर देती है। तो सदा यह ‘विशेष’ शब्द याद रखना। बोलना भी विशेष, देखना भी विशेष, करना भी विशेष, सोचना भी विशेष। हर बात में यह विशेष शब्द लाने से स्वत: ही बदल जायेंगे और इसी स्मृति से स्व-परिवर्तन तथा विश्व-परिवर्तन सहज हो जायेगा। हर बात में विशेष शब्द ऐड करते जाना। इसी से जो सम्पूर्णता को प्राप्त करने का लक्ष्य है, मंज़िल है उसको प्राप्त कर लेंगे।
2. सदा बाप और वर्से की स्मृति में रहते हो! श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव होता है। स्थिति का आधार है - ‘स्मृति’। स्मृति कमज़ोर है तो स्थिति भी कमज़ोर हो जाती है। स्मृति सदा शक्तिशाली रहे। वह शक्तिशाली स्मृति है - ‘मैं बाप का और बाप मेरा’। इसी स्मृति से स्थिति शक्तिशाली रहेगी और दूसरों को भी शक्तिशाली बनायेंगे। तो सदा स्मृति के ऊपर विशेष अटेन्शन रहे। समर्थ स्मृति, समर्थ स्थिति, समर्थ सेवा स्वत: होती रहे। स्मृति, स्थिति और सेवा तीनों ही समर्थ हों। जैसे स्विच आन करो तो रोशनी हो जाती, आफ करो तो अंधियारा हो जाता, ऐसे ही यह स्मृति भी एक ‘स्विच’ है। स्मृति का स्विच अगर कमज़ोर है तो स्थिति भी कमज़ोर है। सदा ‘स्मृति रूपी स्विच का अटेन्शन’। इसी से ही स्वयं का और सर्व का कल्याण है। नया जन्म हुआ तो नई स्मृति हो। पुरानी स्मृतियाँ सब समाप्त। तो इसी विधि से सदा सिद्धि को प्राप्त करते चलो।
3. सभी अपने को भाग्यवान समझते हो? वरदान भूमि पर आना यह महान भाग्य है। एक भाग्य वरदान भूमि पर पहुँचने का मिल गया, इसी भाग्य को जितना चाहो श्रेष्ठ बना सकते हो। श्रेष्ठ मत ही भाग्य की रेखा खींचने की कलम है। इसमें जितना भी अपनी श्रेष्ठ रेखा बनाते जायेंगे उतना श्रेष्ठ बन जायेंगे। सारे कल्प के अन्दर यही श्रेष्ठ समय भाग्य की रेखा बनाने का है। ऐसे समय पर और ऐसे स्थान पर पहुँच गये। तो थोड़े में खुश होने वाले नहीं। जब देने वाला दाता दे रहा है तो लेने वाला थके क्यों! बाप की याद ही श्रेष्ठ बनाती है। बाप को याद करना अर्थात् पावन बनना। जन्म-जन्म का सम्बन्ध है तो याद क्या मुश्किल है! सिर्फ स्नेह से और सम्बन्ध से याद करो। जहाँ स्नेह होता है वहाँ याद न आवे, यह हो नहीं सकता। भूलने की कोशिश करो तो भी याद आता। अच्छा
04-03-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्वश्रेष्ठ नई रचना का फाउण्डेशन - निःस्वार्थ स्नेह
सर्व स्नेही बापदादा बोले
आज बापदादा अपने श्रेष्ठ आत्माओं की रचना को देख हर्षित हो रहे हैं। यह श्रेष्ठ वा नई रचना सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ है और अति प्रिय है। क्योंकि पवित्र आत्माओं की रचना है। पवित्र आत्मा होने के कारण अभी बापदादा को प्रिय हो और अपने राज्य में सर्व के प्रिय होंगे। द्वापर में भक्तों के प्रिय देव आत्मायें बनेंगे। इस समय हो ‘परमात्मा-प्रिय ब्राह्मण आत्मायें’। और सतयुग त्रेता में होंगे राज्य अधिकारी परम श्रेष्ठ दैवी आत्मायें और द्वापर से अब कलियुग तक बनते हो पूज्य आत्मायें। तीनों में से श्रेष्ठ हो इस समय - परमात्मा प्रिय ब्राह्मण सो फरिश्ता आत्मायें। इस समय की श्रेष्ठता के आधार पर सारा कल्प श्रेष्ठ रहते हो। देख रहे हो कि इस लास्ट जन्म तक भी आप श्रेष्ठ आत्माओं का भक्त लोग कितना आह्वाहन कर रहे हैं। कितना प्यार से पुकार रहे हैं। जड़ चित्र जानते भी आप श्रेष्ठ आत्माओं की भावना से पूजा करते, भोग लगाते, आरती करते हैं। आप डबल विदेशी समझते हो कि हमारे चित्रों की पूजा हो रही है! भारत में बाप का कर्त्तव्य चला है इसलिए बाप के साथ आप सबके चित्र भी भारत में ही हैं। ज्यादा मन्दिर भारत में बनाते हैं। यह नशा तो है न कि हम ही पूज्य आत्मायें हैं। सेवा के लिए चारों ओर विश्व में बिखर गये थे। कोई अमेरिका तो कोई अफ्रीका पहुँच गये। लेकिन किसलिए गये हो? इस समय सेवा के संस्कार, स्नेह के संस्कार हैं। सेवा की विशेषता है ही - ‘स्नेह’। जब तक ज्ञान के साथ रूहानी स्नेह की अनुभूति नहीं होती तो ज्ञान कोई नहीं सुनेगा।
आप सब डबल विदेशी बाप के बने तो आप सबका फाउण्डेशन क्या रहा? बाप का स्नेह। परिवार का स्नेह। दिल का स्नेह। नि:स्वार्थ स्नेह। इसने श्रेष्ठ आत्मा बनाया। तो सेवा का पहला सफलता का स्वरूप हुआ ‘स्नेह’। जब स्नेह में बाप के बन जाते हो तो फिर कोई भी ज्ञान की पाइंट सहज स्पष्ट होती जाती। जो स्नेह में नहीं आता वह सिर्फ ज्ञान को धारण कर आगे बढ़ने में समय भी लेता, मेहनत भी लेता। क्योंकि उनकी वृत्ति - क्यों, क्या ऐसा कैसे इसमें ज्यादा चली जाती। और स्नेह में जब लवलीन हो जाते तो स्नेह के कारण बाप का हर बोल स्नेही लगता। क्वेश्चन समाप्त हो जाते। बाप का स्नेह आकर्षित करने के कारण क्वेश्चन करेंगे तो भी समझने के रूप से करेंगे। अनुभवी हो ना। जो प्यार में खो जाते हैं तो जिससे प्यार है उसको वह जो बोलेगा उनको वह प्यार ही दिखाई देगा। तो सेवा का मूल आधार है - स्नेह। बाप भी सदैव बच्चों को स्नेह से याद करते हैं। स्नेह से बुलाते हैं, स्नेह से ही सर्व समस्याओं से पार कराते हैं। तो ईश्वरीय जन्म का, ब्राह्मण जन्म का फाउण्डेशन है ही - स्नेह। स्नेह के फाउण्डेशन वाले को कभी भी कोई मुश्किल बात नहीं लगेगी। स्नेह के कारण उमंग उत्साह रहेगा। जो भी श्रीमत बाप की है, हमें करना ही है। देखेंगे, करेंगे यह स्नेही के लक्षण नहीं। बाप ने मेरे प्रति कहा है और मुझे करना ही है। यह है - स्नेही आशिक आत्माओं की स्थिति। स्नेही हलचल वाले नहीं होंगे। सदा बाप और मैं, तीसरा न कोई। जैसे बाप बड़े ते बड़ा है वैसे स्नेही आत्मायें भी सदा बड़ी दिल वाली होती हैं। छोटी दिल वाले थोड़ी-थोड़ी बात में मूंझेंगे। छोटी बात भी बड़ी हो जायेगी। बड़ी दिल वालों के लिए बड़ी बात छोटी हो जायेगी। डबल विदेशी सब बड़ी दिल वाले हो ना! बापदादा सभी डबल विदेशी बच्चों को देख खुश होते हैं। कितना दूर-दूर से परवाने शमा के ऊपर फिदा होने पहुँच जाते हैं। पक्के परवाने हैं।
आज अमेरिका वालों का टर्न है! अमेरिका वालों को बाप कहते हैं - ‘आ मेरे’। अमेरिका वाले भी कहते हैं, ‘आ मेरे’। यह विशेषता है न। वृक्ष के चित्र मे आदि से विशेष शक्ति के रूप में अमेरिका दिखाया हुआ है। जब से स्थापना हुई है तो अमेरिका को बाप ने याद किया है। विशेष पार्ट है ना। जैसे एक विनाश की शक्ति श्रेष्ठ है - दूसरी क्या विशेषता है? विशेषतायें तो स्थान की हैं ही। लेकिन अमेरिका की विशेषता यह भी है - एक तरफ विनाश कि तैयारियाँ भी ज्यादा हैं। दूसरी तरफ फिर विनाश को समाप्त करने की यू.एन. भी वहाँ है। एक तरफ विनाश की शक्ति। दूसरे तरफ है सभी को मिलाने की शक्ति। तो डबल शक्ति हो गई ना। वहाँ सभी को मिलाने के लिए प्रयत्न करते हैं, तो वहाँ से ही फिर यह रूहानी मिलन का भी आवाज बुलन्द होगा। वह लोग तो अपनी रीति से सभी को मिलाकर शांति का प्रयत्न करते हैं लेकिन यथार्थ रीति से मिलाना तो आप लोगों का ही कर्त्तव्य है ना। वह मिलाने की कोशिश करते भी हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं। वास्तव में सभी धर्म की आत्माओं को एक परिवार में लाना यह है - आप ब्राह्मणों का वास्तविक कार्य। यह विशेष करना है। जैसे विनाश की शक्ति वहाँ श्रेष्ठ है ऐसे ही स्थापना की शक्ति का आवाज बुलन्द हो। विनाश और स्थापना साथ-साथ दोनों झण्डे लहरावें। एक साइंस का झण्डा और एक साइलेन्स का। साइन्स की शक्ति का प्रभाव और साइलेन्स की शक्ति का प्रभाव दोनों जब प्रत्यक्ष हों तब कहेंगे प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना। जैसे कोई वी.आई.पी. किसी भी देश में जाते हैं तो उनका स्वागत करने के लिए झण्डा लगा लेते हैं ना। अपने देश का भी लगाते हैं और जो आता है उनके देश का भी लगाते हैं। तो परमात्म-अवतरण का भी झण्डा लहरावें। परमात्म-कार्य का भी स्वागत करें। बाप का झण्डा कोने-कोने में लहरावे तब कहेंगे विशेष शक्तियों को प्रत्यक्ष किया। यह गोल्डन जुबली का वर्ष है ना। तो गोल्डन सितारा सभी को दिखाई दे। कोई विशेष सितारा आकाश में दिखाई देता है तो सभी का अटेन्शन उस तरफ जाता है ना। यह गोल्डन चमकता हुआ सितारा सभी की आँखों में, बुद्धि में दिखाई दे। यह है गोल्डन जुबली मनाना। यह सितारा पहले कहाँ चमकेगा?
अभी विदेश में अच्छी वृद्धि हो रही है और होनी ही है। बाप के बिछुड़े हुए बच्चे कोने-कोने में जो छिपे हुए हैं वह समय प्रमाण सम्पर्क में आ रहे हैं। सभी एक दो से सेवा में उमंग उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं। हिम्मत से मदद भी बाप की मिल जाती है। नाउम्मीद में भी उम्मीदों के दीपक जग जाते हैं। दुनिया वाले सोचते हैं यह होना तो असम्भव है। बहुत मुश्किल है। और लगन निर्विघ्न बनाकर उड़ते पंछी के समान उड़ाते पहुँचा देती है। डबल उड़ान से पहुँचे हो ना। एक प्लेन, दूसरा बुद्धि का विमान। हिम्मत उमंग के पंख जब लग जाते हैं तो जहाँ भी उड़ना चाहें उड़ सकते हैं। बच्चों की हिम्मत पर बापदादा सदा बच्चों की महिमा करते हैं। हिम्मत रखने से एक से दूसरा दीपक जगते माला तो बन गई है ना। मुहब्बत से जो मेहनत कहते हैं उसका फल बहुत अच्छा निकलता है। यह सभी के सहयोग की विशेषता है। कोई भी बात हो लेकिन पहले दृढ़ता, स्नेह का संगठन चाहिए। उससे सफलता प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती है। दृढ़ता कलराठी जमीन में भी फल पैदा कर सकती है। आजकल साइंस वाले भी रेत में भी फल पैदा करने का प्रयत्न कर रहें हैं। तो साइलेन्स की शक्ति क्या नहीं कर सकती है। जिस धरनी को स्नेह का पानी मिलता है वहाँ के फल बड़े भी होते और स्वादिष्ट भी होते हैं। जैसे स्वर्ग में बड़े-बड़े फल और टेस्टी भी अच्छे होते हैं। विदेश में बड़े फल होते हैं लेकिन टेस्टी नहीं होते। फल की शक्ल बहुत अच्छी होती लेकिन टेस्ट नहीं। भारत के फल छोटे होते लेकिन टेस्ट अच्छी होती है। फाउण्डेशन तो सब यहाँ ही पड़ता। जिस सेन्टर पर स्नेह का पानी मिलता है वह सेन्टर सदा फलीभूत होता है। सेवा में भी और साथियों में भी। स्वर्ग में शुद्ध पानी शुद्ध धरती होगी। तब ऐसे फल मिलते हैं। जहाँ स्नेह है वहाँ वायुमण्डल अर्थात् धरनी श्रेष्ठ होती है। वैसे भी जब कोई डिस्टर्ब होता है तो क्या कहते हैं? मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ स्नेह चाहिए। तो डिस्टर्ब होने से बचने का साधन भी स्नेह ही है। बापदादा को सबसे बड़ी खुशी इस बात की है कि खोये हुए बच्चे फिर से आ गये हैं। अगर आप वहाँ नहीं पहुँचते तो सेवा कैसे होती? इसलिए बिछुड़ना भी कल्याणकारी हो गया। और मिलना तो है ही कल्याणकारी। अपने-अपने स्थान पर सब अच्छे उमंग से आगे बढ़ रहे हैं और सभी के अन्दर एक लक्ष्य है कि बापदादा की जो एक ही आश है कि सर्व आत्माओं को अनाथ से सनाथ बना दें, यह आश हम पूर्ण करें। सभी ने मिलकर जो शान्ति के लिए विशेष प्रोग्राम बनाया है वह भी अच्छा है। कम से कम सभी को थोड़ा साइलेन्स में रहने का अभ्यास कराने के निमित्त तो बन जायेंगे। अगर कोई सही रीति से एक मिनट भी साइलेन्स का अनुभव करे तो वह एक मिनट का साईलेन्स का अनुभव बार-बार उनको स्वत: ही खींचता रहेगा। क्योंकि सभी को शांति चाहिए। लेकिन विधि नहीं आती है। संग नहीं मिलता है। जबकि शांति प्रिय सब आत्मायें है तो ऐसी आत्माओं को शांति की अनुभूति होने से स्वत: ही आकर्षित होते रहेंगे। हर स्थान पर अपने-अपने विशेष कार्य करने वाले अच्छी निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्मायें हैं। तो कमाल करना कोई बड़ी बात नहीं है। आवाज फैलाने का साधन है ही आज कल की विशेष आत्मायें। जितना कोई विशेष आत्मायें सम्पर्क में आती हैं तो उनके सम्पर्क से अनेक आत्माओं का कल्याण होता है। एक वी.आई.पी. द्वारा अनेक साधारण आत्माओं का कल्याण हो जाता है। बाकी समीप सम्बन्ध में तो नहीं आयेंगे। अपने धर्म में, अपने पार्ट में उन्हों को विशेषता का कोई न कोई फल मिल जाता है। बाप को पसन्द साधारण ही है। समय भी वह दे सकते। उन्हों को तो समय ही नहीं है। लेकिन वह निमित्त बनते हैं तो फायदा अनेकों को हो जाता है। अच्छा - ओमशांति।’’
पार्टियों से
सदा अमर भव की वरदानी आत्मायें हैं - ऐसा अनुभव करते हो? सदा वरदानों से पलते हुए आगे बढ़ रहे हो न! जिनका बाप से अटूट स्नेह है वह ‘अमर भव’ के वरदानी हैं, सदा बेफिकर बादशाह हैं। किसी भी कार्य के निमित्त बनते भी बेफिकर रहना यही विशेषता है। जैसे बाप निमित्त तो बनता है न। लेकिन निमित्त बनते भी न्यारा है इसलिए बेफिकर है। ऐसे फालो फादर। सदा स्नेह की सेफ्टी से आगे बढ़ते चलो। स्नेह के आधार पर बाप सदा सेफ कर आगे उड़ाके ले जा रहा है। यह भी अटल निश्चय है ना। स्नेह का रूहानी सम्बन्ध जुट गया। इसी रूहानी सम्बन्ध से कितना एक दो के प्रिय हो गये। बापदादा ने माताओं को एक शब्द की बहुत सहज बात बताई है, एक शब्द याद करो ‘‘मेरा बाबा’’ बस। मेरा बाबा कहा और सब खज़ाने मिले। यह बाबा शब्द की चाबी है खज़ानों की। माताओं को चाबियाँ सम्भालना अच्छा आता है ना। तो बापदादा ने भी चाबी दी है। जो खज़ाना चाहें वह मिल सकता है। एक खज़ाने की चाबी नहीं है, सभी खज़ानों की चाबी है। बस ‘बाबा-बाबा’ कहते रहो तो अभी भी बालक सो मालिक और भविष्य में भी मालिक। सदा इसी खुशी में नाचते रहो। अच्छा।
07-03-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
शिवरात्रि पर अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य
भोलानाथ शिव बाबा बोले
आज ज्ञान दाता, भाग्य विधाता, सर्वशक्तियों के वरदाता, सर्व खज़ानों से भरपूर करने वाले भोलानाथ बाप अपने अति स्नेही, सदा सहयोगी, समीप बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। यह मिलन ही सदाकाल का उत्सव मनाने का यादगार बन जाता है। जो भी भिन्न-भिन्न नामों से समय प्रति समय उत्सव मनाते हैं - वह सभी इस समय बाप और बच्चों के मधुर मिलन, उत्साह भरा मिलन, भविष्य के लिए उत्सव के रूप में बन जाता है। इस समय आप सर्वश्रेष्ठ बच्चों का हर दिन, हर घड़ी सदा खुशी में रहने की घड़ियाँ वा समय है। तो इस छोटे से संगमयुग के अलौकिक जीवन, अलौकिक प्राप्तियाँ, अलौकिक अनुभवों को द्वापर से भक्तों ने भिन्न-भिन्न नाम से यादगार बना दिये हैं। एक जन्म की आपकी यह जीवन, भक्ति के 63 जन्मों के लिए याद का साधन बन जाती है। इतनी महान आत्मायें हो! इस समय की सबसे वन्डरफुल बात यही देख रहे हो - जो प्रैक्टिकल भी मना रहे हो और निमित्त उस यादगार को भी मना रहे हो। चैतन्य भी हो और चित्र भी साथ-साथ हैं।
पाँच हजार वर्ष पहले हर एक ने क्या-क्या प्राप्त किया, क्या बने, कैसे बने- यह 5 हजार वर्ष का पूरा अपना यादगार चित्र और जीवन पत्री सभी स्पष्ट रूप में जान गये हो। सुन रहे हो और देख-देख हर्षित हो रहे हो कि यह हमारा ही गायन-पूजन हमारे जीवन की कथायें वर्णन कर रहे हैं। डबल फारेनर्स ने अपना यादगार चित्र देखा है ना! तो चित्रों को देखकर ऐसे अनुभव करते हो कि यह मेरा चित्र है! ओरीजनल आपका चित्र तो बना नहीं सकते हैं। इसलिए भावनापूर्वक जो भी टच हुआ वह चित्र बना दिया है। तो आज भी आप सभी ‘शिवरात्रि’ मना रहे हो। प्रैक्टिकल शिव-जयन्ति तो रोज मनाते ही हो क्योंकि संगमयुग है ही अवतरण का युग, श्रेष्ठ कर्त्तव्य, श्रेष्ठ चरित्र करने का युग। लेकिन बेहद युग के बीच मे यह यादगार दिन भी मना रहे हो। आप सबका मनाना है - ‘मिलन मनाना’ और उन्हों का मनाना है - ‘आह्वाहन करना’। उन्हों का है ‘पुकारना’ और आपका है ‘पा लेना’। वह कहेंगे ‘आओ’ और आप कहेंगे ‘आ गये’। मिल गये। यादगार और प्रैक्टिकल में कितना रात-दिन का अन्तर है। वास्तव में यह दिन भोलानाथ बाप का दिन है, भोलानाथ अर्थात् बिना हिसाब के अनगिनत देने वाला। वैसे जितना और उतने का हिसाब होता है, जो करेगा वह पायेगा। उतना ही पायेगा। यह हिसाब है। लेकिन भोलानाथ क्यों कहते? क्योंकि इस समय देने में जितने और उतने का हिसाब नहीं रखता। एक का पद्मगुणा हिसाब है। तो अनगिनत हो गया ना। कहाँ एक, कहाँ पद्म। पद्म भी लास्ट शब्द है इसलिए पद्म कहते हैं। अनगिनत देने वाले भोले भण्डारी का दिन यादगार रूप में मनाते हैं। आपको तो इतना मिला है जो अब तो भरपूर हो ही लेकिन 21 जन्म 21 पीढ़ी सदा भरपूर रहेंगे।
इतने जन्मों की गैरन्टी और कोई नहीं कर सकता। कितना भी कोई बड़ा दाता हो लेकिन अनेक जन्म का भरपूर भण्डारा होने की गैरन्टी कोई भी नहीं कर सकता। तो भोलानाथ हुआ ना! नॉलेजफुल होते भी भोला बनते हैं... इसलिए भोलानाथ कहा जाता है। वैसे तो हिसाब करने में - एक-एक संकल्प का भी हिसाब जान सकते हैं। लेकिन जानते हुए भी देने में भोलानाथ ही बनता है। तो आप सभी भोलानाथ बाप के भोलानाथ बच्चे हो ना! एक तरफ भोलानाथ कहते दूसरे तरफ भरपूर भण्डारी कहते हैं। यादगार भी देखो कितना अच्छा मनाते हैं। मनाने वालों को पता नहीं लेकिन आप जानते हो। जो मुख्य इस संगमयुग की पढ़ाई है, जिसकी विशेष 4 सबजेक्ट हैं, वह चार ही सबजेक्ट यादगार दिवस पर मनाते आते हैं। कैसे? पहले भी सुनाया था कि विशेष इस उत्सव के दिन बिन्दु का और बूँद का महत्व होता है। तो बिन्दु इस समय के याद अर्थात् योग के सबजेक्ट की निशानी है। याद में बिन्दु स्थिति में ही स्थित होते हो ना! तो ‘बिन्दु’ याद की निशानी और बूँद - ज्ञान की भिन्न-भिन्न बूँदें। इस ज्ञान के सबजेक्ट की निशानी ‘बूँद’ के रूप में दिखाई है। धारणा की निशानी इसी दिन विशेष व्रत रखते हैं। तो व्रत धारण करना। धारणा में भी आप दृढ़ संकल्प करते हो। तो व्रत रखते हो कि ऐसा सहनशील वा अन्तर्मुख अवश्य बनके ही दिखायेंगे। तो यह व्रत धारण करते हो ना! यह ‘व्रत’ धारणा की निशानी है। और सेवा की निशानी है ‘जागरण’। सेवा करते ही हो - किसको जगाने के लिए? अज्ञान नींद से जगाना, जागरण कराना, जागृति दिलाना यही आपकी सेवा है। तो यह ‘जागरण’ सेवा की निशानी है। तो चार ही सबजेक्ट आ गई ना। लेकिन सिर्फ रूपरेखा उन्होंने स्थूल रूप में बदल दी है। गुह्य रहस्य धारण करने की दिव्य बुद्धि तो हैं ही नहीं। भक्त-बुद्धि, महीन बुद्धि नहीं होती। भक्त-बुद्धि को बापदादा मोटी बुद्धि कहते हैं। ब्रह्मा बाप के बोल सुने हैं ना। तो यह भी भक्त बुद्धि महीनता को नहीं ग्रहण कर सकते। इसलिए स्थूल रूप, साधारण रूप दे दिया है। फिर भी भक्तों के ऊपर भी भगवान खुश होते हैं, क्यों? फिर भी ठगत बनने से तो बच गये न। ठगत से भक्त बनना अच्छा ही है। जो सच्चे भक्त होते हैं वह ठगत नहीं होते हैं। वह भावना वाले होते हैं और सदा ही सच्चे भक्तों की यह निशानी होगी कि जो संकल्प करेंगे उसमें दृढ़ रहेंगे। इसलिए भक्तों से भी बाप का स्नेह है। फिर भी आपके यादगार की द्वापर से परम्परा तो चला रहे हैं और विशेष इस दिन जैसे आप लोग यहाँ संगमयुग पर बार-बार समर्पण समारोह मनाते हो, अलग-अलग भी मनाते हो, ऐसे ही आपके इस फंक्शन का भी यादगार वह स्वयं को समर्पण नहीं करते लेकिन बकरे को करते हैं। बलि चढ़ा देते हैं। वैसे तो बापदादा भी हंसी में कहते हैं कि यह ‘मैं-मैं-पन’ का समर्पण हो तब समर्पण अर्थात् सम्पूर्ण बनो। बाप समान बनो। जैसे ब्रह्मा बाप ने पहला-पहला कदम क्या उठाया? मैं और मेरा-पन का समर्पण समारोह मनाया किसी भी बात में ‘मैं’ के बजाए सदा नेचुरल भाषा में, साधारण भाषा में भी ‘बाप’ शब्द ही सुना। ‘मैं’ शब्द नहीं।
मैं कर रहा हूँ, नहीं। बाबा करा रहा है। बाबा चला रहा है, मै कहता हूँ, नहीं। बाबा कहता है। हद के कोई भी व्यक्ति या वैभव से लगाव यह ‘मेरापन’ है। तो मेरेपन को और मैं-पन को समर्पण करना इसको ही कहते हैं - ‘बलि चढ़ना’। बलि चढ़ना अर्थात् - महाबली बनना। तो यह समर्पण होने की निशानी है। तो बनाया अच्छा है न। भक्तों को आप भी दिल से शाबास तो देते हो ना! फिर भी आप सबके भक्त हैं। ऐसे आता है ना कि यह हमारे भक्त हैं। या समझते हो कि यह बापदादा के भक्त हैं। बाप के भी हैं, आपके भी हैं। जैसे कहते हो हमारा राज्य आने वाला है। तख्त पर तो एक लक्ष्मी नारायण बैठेंगे! एक समय पर तो एक ही तख्तनशीन होंगे न। लेकिन फिर भी आप लोग क्या कहेंगे? आधाकल्प हमारा राज्य है। ऐसे नहीं कहेंगे कि लक्ष्मी नारायण का राज्य है। हमारा कहेंगे न। ऐसे ही जो बाप के भक्त वह आपके भी भक्त हैं। साक्षी होकर देखो तो बहुत मजा आयेगा। हम क्या कर रहे हैं और हमारे भक्त क्या कर रहे हैं! प्रैक्टिकल क्या है और यादगार क्या है! फिर भी बापदादा भक्तों को एक बात की आफरीन देते हैं। किसी भी रूप से भारत में वा हर देश में उत्साह की लहर फैलाने के लिए उत्सव बनाये तो अच्छे हैं ना। चाहे दो दिन के लिए हो या एक दिन के लिए हो लेकिन उत्साह की लहर तो फैल जाती हैं न। इसलिए ‘उत्सव’ कहते हैं। फिर भी अल्पकाल के लिए विशेष रूप से बाप के तरफ मैजारिटी का अटेन्शन तो जाता है ना। तो सुना ‘शिवरात्रि’ का महत्व क्या है! यह तो है दिन का महत्व लेकिन आपको क्या करना है? विशेष दिन पर क्या विशेष करेंगे? झण्डा लहरेगा वह तो देखेंगे, पिकनिक करेंगे, गीत गायेंगे, बस। यही करेंगे! मनाना तो अच्छा है। आये ही हो मौज करने के लिए। आजकल तो व्रत भी लेते हैं और फिर छोड़ भी देते हैं। जैसे भक्ति में कोई सदाकाल के लिए व्रत लेता है और कोई में हिम्मत नहीं होती है तो एक मास के लिए, एक दिन के लिए या थोड़े समय के लिए लेते हैं। फिर वह व्रत छोड़ देते हैं। आप तो ऐसे नहीं करते हो न! मधुबन में तो धरनी पर पाँव नहीं है और फिर जब विदेश में जायेंगे तो धरनी पर आयेंगे या ऊपर ही रहेंगे! सदा ऊपर से नीचे आकर कर्म करेंगे या नीचे रहकर कर्म करेंगे? ऊपर रहना अर्थात् ऊपर की स्थिति में रहना। ऊपर कोई छत पर नहीं लटकना है। ऊँची स्थिति में स्थित हो कोई भी साधारण कर्म करना अर्थात् नीचे आना, लेकिन साधारण कर्म करते भी स्थिति ऊपर अर्थात् ऊँची हो। जैसे बाप भी साधारण तन लेता है ना। कर्म तो साधारण ही करेंगे न जैसे आप लोग बोलेंगे वैसे ही बोलेंगे। वैसे ही चलेंगे। तो कर्म साधारण है, तन ही साधारण है, लेकिन साधारण कर्म करते भी स्थिति ऊँची रहती। ऐसे आप की भी स्थिति सदा ऊँची हो।
जैसे आज के दिन को अवतरण का दिन कहते हो ना तो रोज अमृतवेले ऐसे ही सोचो कि निंद्रा से नही शान्तिधाम से कर्म करने के लिए अवतरित हुए हैं। और रात को कर्म करके शान्तिधाम में चले जाओ। तो अवतार अवतरित होते ही हैं - श्रेष्ठ कर्म करने के लिए। उनको जन्म नहीं कहते हैं, अवतरण कहते हैं। ऊपर की स्थिति से नीचे आते हैं - यह है अवतरण। तो ऐसी स्थिति में रहकर कर्म करने से साधारण कर्म भी अलौकिक कर्म में बदल जाते हैं। जैसे दूसरे लोग भी भोजन खाते और आप कहते हो ‘ब्रह्मा भोजन’ खाते हैं। फर्क हो गया न। चलते हो लेकिन आप फरिश्ते की चाल चलते, डबल लाइट स्थिति में चलते। तो अलौकिक चाल अलौकिक कर्म हो गया। तो सिर्फ आज का दिन अवतरण का दिन नहीं लेकिन संगमयुग ही अवतरण दिवस है।
आज के दिन मुबारक तो चारों ओर से बापदादा के साथ-साथ सबको भी आ रही है। बापदादा सभी बच्चों को मुबारक की रेसपाण्ड में अनगिनत मुबारक दे रहे हैं। पहली मुबारक, सभी बच्चों को - बाप को पहचानने के विशेषता की मुबारक। बाप के सदा वर्से के अधिकारी बनने की मुबारक। सदा अपने श्रेष्ठ हीरे तुल्य ब्राह्मण जीवन की मुबारक। सदा बाप समान अथक बेहद के सेवाधारी बनने की मुबारक। सदा बाप समान फरिश्ता सो देवता बनने के दृढ़ संकल्प, श्रेष्ठ कर्म की मुबारक। ऐसे तो मुबारक बहुत हैं, हर कदम की मुबारक है। हर घड़ी की मुबारक है। हर संकल्प की मुबारक है। आप लोग बापदादा को मुबारक देते हो लेकिन बापदादा कहते हैं - ‘पहले आप’। अगर बच्चे नहीं होते तो बाप कौन कहता। बच्चे ही बाप को बाप कहते हैं। इसलिए पहले बच्चों को मुबारक। तब बाप कहेगा - हाँ, मैं बाप हूँ, तो मुबारक स्वीकार हो। आप सब बर्थ डे का गीत गाते हो ना - हैपी बर्थ डे टू यू... बापदादा भी कहते हैं - हैपी बर्थ डे टू यू। बर्थ डे की मुबारक तो बच्चों ने बाप को दी। बाप ने बच्चों को दी। और मुबारक से ही पल रहे हो। आप सबकी पालना ही क्या है? बाप की, परिवार की बधाइयों से ही पल रहे हो। बधाइयों से ही नाचते, गाते, पलते, उड़ते जा रहे हो। यह पालना भी वन्डरफुल है। एक दो को हर घड़ी क्या देते हो? बधाईयाँ हैं और यही पालना की विधि है। कोई कैसा भी है, वह तो बापदादा भी जानते हैं, आप भी जानते हो कि नम्बरवार तो होंगे ही। अगर नम्बरवार नहीं बनते फिर तो सतयुग में कम से कम डेढ़ लाख तख्त बनाने पड़ें। इसलिए नम्बरवार तो होने ही हैं। संख्या अभी डेढ़ लाख तक पहुँची है ना! तो इतने तख्त बनाने पड़े। लेकिन बनना एक ही है। बाकी साथी बनने हैं, रायल फैमली बननी है। मुख्य ‘विश्व-महाराजन’ तो एक ही बनेगा ना। साथ में राज्य करने वालों को लक्ष्मी नारायण तो नहीं कहेंगे। नम्बर भी बदली हो गया। पहले जन्म वाले को पहला नम्बर लक्ष्मी नारायण। फिर सेकण्ड नम्बर लक्ष्मी नारायण तो बदल गया न। रायल फैमली और राज्य के साथी यह विस्तार हो जाता है। रायल फैमली को भी राज्य अधिकारी तो कहेंगे ना। तो नम्बरवार होना है लेकिन कभी कोई को अगर आप समझते हैं कि यह रांग है, यह अच्छा काम नहीं कर रहा है, तो रांग को राइट करने की विधि या यथार्थ कर्म नही करने वाले को यथार्थ कर्म सिखाने की विधि - कभी भी उसको सीधा नहीं कहो कि तुम तो रांग हो। यह कहने से वह कभी नहीं बदलेगा। जैसे आग बुझाने के लिए आग नहीं जलाई जाती है। उसको ठण्डा पानी डाला जाता है।
इसलिए कभी भी उसको पहले ही कहा कि तुम रांग हो, तुम रांग हो तो वह और ही दिलशिकस्त हो जायेगा। पहले उसको अच्छा-अच्छा कह करके थमाओ तो सही, पहले पानी तो डालो फिर उसको सुनाओ कि आग क्यों लगी! पहले यह नहीं कहो कि तुम ऐसे हो, तुमने यह किया, यह किया। पहले ठण्डा पानी डालो। पीछे वह भी महसूस करेगा कि हाँ, आग लगने का कारण क्या है और आग बुझाने का साधन क्या है! अगर बुरे को बुरा कह देते तो आग में तेल डालते हो। इसीलिए बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कह करके पीछे उसको कोई भी बात दो तो उसमें सुनने की, धारण करने की हिम्मत आ जाती है। इसलिए सुना रहे थे कि ‘बहुत अच्छा, बहुत अच्छा’ यही बधाइयाँ हैं। जैसे बापदादा भी कभी किसको डायरेक्ट रांग नहीं कहेगा, मुरली में सुना देगा - राइट क्या है, रांग क्या है। लेकिन अगर कोई सीधा आकर पूछेगा भी कि मैं रांग हूँ? तो कहेगा नहीं तुम तो बहुत राइट हो क्योंकि उसमें उस समय हिम्मत नहीं होती है। जैसे पेशेन्ट जा भी रहा होता है, आखरी साँस होता है तो भी डाक्टर से अगर पूछेगा कि मैं जा रहा हूँ तो कभी नहीं कहेगा हाँ, जा रहे हो। क्योंकि उस टाइम हिम्मत नहीं होती। किसकी दिल कमज़ोर हो और आप अगर उसको ऐसी बात कह दो, वह तो हार्टफेल हो ही जायेगा। अर्थात् पुरूषार्थ में परिवर्तन करने की शक्ति नहीं आयेगी। तो संगमयुग है ही बधाइयों से वृद्धि को पाने का युग। यह बधाइयाँ ही श्रेष्ठ पालना हैं। इसीलिए आपके इस बधाइयों की पालना का यादगार जब भी कोई देवी देवता का दिन मनाते हैं तो उसको बड़ा दिन कह देते हैं। दीपमाला होगी, शिवरात्रि होगी तो कहेंगे आज बड़ा दिन है। जो भी उत्सव होंगे उसको बड़ा दिन कहेंगे। क्योंकि आपकी बड़ी दिल है तो उन्होंने बड़ा दिन कह दिया है। तो एक दो को बधाइयाँ देना यह बड़ी दिल है। समझा - ऐसे नहीं कि रांग को रांग समझायेंगे नहीं, लेकिन थोड़ा धैर्य रखो, इशारा तो देना पड़ेगा लेकिन टाइम तो देखो ना। वह मर रहा है और उसको कहो मर जाओ, मर जाओ...। तो टाइम देखो, उसकी हिम्मत देखो। बहुत अच्छा, ‘बहुत अच्छा’ कहने से हिम्मत आ जाती है। लेकिन दिल से कहो, ऐसे नहीं बाहर से कहो तो वह समझे कि मेरे को ऐसे ही कह रहे हैं। यह भावना की बात है। दिल का भाव ‘रहम’ का हो तो उसके दिल को रहम का भाव लगेगा। इसीलिए सदा बधाइयाँ द