17-11-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


हर गुण व शक्ति के अनुभवों में खो जाना अर्थात् खुशनसीब बनना

आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार स्वरूप बच्चों से मिलन मना रहे हैं। बाप का भी प्यार बच्चों से अति है और बच्चों का भी प्यार बाप से अति है। ये प्यार की डोर बच्चों को भी खींचकर लाती है और बाप को भी खींच कर लाती है। बच्चे जानते हैं कि ये परमात्म­प्यार कितना सुखदायी है। अगर एक सेकण्ड भी प्यार में खो जाते हो तो अनेक दु:ख भूल जाते हैं। सुख के झूले में झूलने लगते हो। ऐसा अनुभव है ना? बापदादा देख रहे हैं कि दुनिया के हिसाब से आत्मायें कितनी साधारण हैं लेकिन भाग्य कितना श्रेष्ठ है! जो सारे कल्प में, चाहे कोई धर्म आत्मा हो, महान आत्मा हो, लेकिन ऐसा श्रेष्ठ भाग्य न तो किसी को प्राप्त है, न हो सकता है। तो अति साधारण और अति श्रेष्ठ भाग्यवान! बापदादा को साधारण आत्मायें ही पसन्द हैं - क्यों? बाप स्वयं भी साधारण तन में आते हैं। कोई राजा के तन में या रानी के तन में नहीं आते। कोई धर्मात्मा, महात्मा के तन में नहीं आते। साधारण तन में स्वयं भी आते हैं और बच्चे भी साधारण ही आते हैं। आज का करोड़पति भी साधारण है। साधारण बच्चों में भावना है। और बाप को भावना चाहिये, देह भान वाले नहीं चाहिए। जितना बड़ा होगा उतना भावना नहीं होगी लेकिन भान होगा। तो बाप को भावना का फल देना है और भावना साधारण आत्माओं में होती है। नामीग्रामी आत्माओं के पास न भावना है, न समय है। तो बाप देख रहे हैं कि कितने साधारण और कितने श्रेष्ठ भावना का फल प्राप्त कर रहे हैं। इसलिये ड्रामानुसार संगमयुग में साधारण बनना- ये भी भाग्य की निशानी है। क्योंकि संगम पर ही भाग्यविधाता भाग्य की श्रेष्ठ लकीर खींच रहे हैं और साथ­साथ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी बच्चों को दे दिया है। कलम मिली है ना? भाग्य की लकीर खींचना आता है? कितनी लम्बी लकीर खींची है? छोटी­मोटी तो नहीं खींच ली? जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो। खुली छुट्टी है और सभी को छुट्टी है। चाहे नये हो, चाहे पुराने हो, सप्ताह कोर्स किया, बाप को पहचाना और बाप भाग्य की कलम दे देता है। यही परमात्म प्यार है। प्यार की निशानी क्या होती है? जो जीवन में चाहिये वह अगर कोई किसको देता है तो वही प्यार की निशानी है। तो बाप के प्यार की निशानी है - जो जीवन में चाहिये वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देते हैं। सुख­शान्ति तो चाहिये ना! अगर कोई वस्तु एक­दो को देते हैं तो उससे सुख मिलता है ना? तो बाप सुख क्या देता लेकिन सुख का भण्डार आप सबको बना देते हैं। सुख का भण्डार है ना! पूरा स्टॉक है या एक कमरा, दो कमरा है! भण्डार है। जैसे बाप सुख का सागर है, नदी और तलाव नहीं है, सागर है, तो बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है। कोई सुख की कमी है क्या? कोई अप्राप्ति है? फिर यह नहीं कहना कि थोड़ी­सी शक्ति दे दो! ‘दे दिया’। ‘दे दो’ कहने की आवश्यकता ही नहीं है। बाप ने दे दिया है, सिर्फ उसको कार्य में लगाने की विधि चाहिये। और विधि भी बाप द्वारा अनेक प्रकार की मिलती है। सिर्फ उसको समय प्रति समय कार्य में लगाते नहीं हो इसीलिये होते हुए भी उसका लाभ नहीं ले सकते। कितना बड़ा भाग्य है! और कितना सहज मिला है! कोई मेहनत की है क्या? एक टांग पर खड़ा तो नहीं होना पड़ा ना? या सेकण्ड के दर्शन के लिए क्यू में खड़े हो-ऐसे तो नहीं है ना। आराम से बैठे हो ना। नीचे भी फोम पर बैठे हो। आराम से ही सहज श्रेष्ठ भाग्य बना रहे हो। यह नशा है ना? सभी नशे से कहेंगे कि भाग्य विधाता हमारा है। जब भाग्य विधाता आपका हो गया तो भाग्य किसको देगा?

भाग्य विधाता को अपना बनाया अर्थात् भाग्य के अधिकार को प्राप्त कर लिया। जिसको नशा है वो सदा यही अनुभव करते हैं कि भाग्य मेरा नहीं होगा तो किसका होगा? क्योंकि भाग्य विधाता ही मेरा है। इतना नशा है या कभी­कभी चढ़ता है, कभी उतरता है? संगम का समय ही कितना छोटा­सा है। और आप मैजारिटी तो सब नये हो। कितना थोड़ा समय मिला है! लेकिन ड्रामा में विशेष इस संगमयुग की ये विशेषता है कि कोई भी नया हो या पुराना हो, नये को भी गोल्डन चांस है-नम्बर आगे लेने का। तो नयों में उमंग है या समझते हो हमारे से आगे तो बहुत हैं, हम तो आये ही अभी हैं....। नहीं, ये खुली छुट्टी है - जितना आगे बढ़ना चाहें उतना बढ़ सकते हैं - सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो। कोई­कोई पुराने अलबेले हो जाते हैं और आप नये अलबेले नहीं होना तो आगे बढ़ जायेंगे। नम्बर ले लेंगे। नम्बर लेना है ना? फर्स्ट नम्बर नहीं, फर्स्ट डिविजन। फर्स्ट नम्बर तो ब्रह्मा बाप निश्चित हो गये ना। लेकिन फर्स्ट डिविजन में जितने चाहे उतने आ सकते हैं। तो सभी किस डिविजन में आयेंगे? सभी फर्स्ट में आयेंगे तो सेकण्ड में कौन आयेगा? मातायें किसमें आयेगी? फर्स्ट में आयेंगी? बहुत अच्छा। ‘आना ही है’ - यह दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है। पता नहीं.... आयेंगे, नहीं आयेंगे...., पता नहीं आगे चलकर कोई माया आ जाये..., माया बड़ी चतुर है - ऐसे व्यर्थ संकल्प कभी भी नहीं करना। जब सर्वशक्तिमान् साथ है तो माया तो उसके आगे पेपर टाइगर है। इसलिये घबराना नहीं। ‘पता नहीं’ का संकल्प कभी नहीं करना। मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो। साथ का अनुभव सदा ही सहज और सेफ रखता है। साथ भूल जाते हैं तो मुश्किल हो जाता है। लेकिन सभी का वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे - यही वायदा है ना? कि अकेले रहेंगे, अकेले जायेंगे? तो साथ का अनुभव बढ़ाओ। जानते हो कि साथ हैं, मानते भी हो लेकिन फर्क क्या पड़ता है? जानते भी हो, मानते भी हो लेकिन समय पर उसी प्रमाण चलते नहीं हो। माया का फोर्स ये जो कोर्स है उसको भुला देता है। लेकिन क्या माया बहुत बलवान है? वह बलवान है या आप बलवान हो? या कभी माया बलवान, कभी आप बलवान? आपकी कमज़ोरी माया है, और कुछ नहीं है। आपकी कमज़ोरी माया बनकर सामने आती है। जैसे शरीर की कमज़ोरी बीमारी बनकर सामने आती है ना, ऐसे आत्मा की कमज़ोरी माया बन करके सामना करती है। तो न कमज़ोर बनना है, न माया आनी है। लक्ष्य ही है - मायाजीत जगतजीत। कितने बार विजयी बने हो? अनगिनत बार, फिर भी घबरा जाते हो! कोई नई बात होती है तो कहा जाता है - नई बात थी ना, मुझे पता नहीं था इसीलिये घबरा गये। लेकिन एक तरफ कहते हो अनेक बार विजयी बने हैं। फिर क्यों घबराते हो? बाप का प्यार ही ये है कि हर बच्चा श्रेष्ठ आत्मा बन राज्य अधिकारी बने। प्रजा अधिकारी तो नहीं बनना है ना? तो राज्य अधिकारी अर्थात् हर कर्मेन्द्रिय जीत। अगर अपनी कर्मेन्द्रियों के ऊपर, मन­बुद्धि­संस्कार के ऊपर विजय नहीं तो प्रजा पर क्या राज्य करेंगे! अगर ऐसे राजे बने जो अपने ऊपर विजय नहीं पा सकते तो सतयुग भी कलियुग बन जायेगा। इसीलिये ये चेक करो कि मन­बुद्धि­संस्कार कन्ट्रोल में हैं? मन आपको चलाता है या आप मन को चलाने वाले हो? जब ये कम्पलेन्ट करते हो कि मेरा मन आज लगता नहीं, मेरा मन आज भटक रहा है तो ये मनजीत हुए? आज मन उदास है, आज मन और आकर्षण की तरफ जा रहा है - ये विजयी के संकल्प हैं? तो जो स्वयं पर विजय नहीं पा सकते हैं वो विश्व पर कैसे विजय प्राप्त करेंगे? इसलिये चेक करो कर्मेन्द्रिय जीत, मन जीत कहाँ तक बने हैं? अगर फर्स्ट डिविजन में आना है तो इस लक्षण से लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो।

बापदादा ने देखा कि बच्चे उमंग­उत्साह में भी रहते हैं, ज्ञान की जीवन अच्छी भी लगती है, ज्ञान सुनना­सुनाना इसमें भी अच्छे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन चलते­चलते अगर कमज़ोरी आती है तो उसका कारण क्या है? विशेष कारण है कि जो कहते हो, जो सुनते हो, उस एक­एक गुण का, शक्ति का, ज्ञान के पॉइन्ट्स का अनुभव कम है। मानो सारे दिन में स्वयं भी वा दूसरे को भी कितने बार कहते हो - मैं आत्मा हूँ, आप आत्मा हो, शान्त स्वरूप हो, सुख स्वरूप हो, कितने बार स्वयं भी सोचते हो और दूसरों को भी कहते हो। लेकिन चलते फिरते आत्मिक अनुभूति, ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, शान्त स्वरूप की अनुभूति, वो कम होती है। सुनना­कहना ज्यादा है और अनुभूति कम है। लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की होती है तो उस अनुभव में खो जाओ। जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो। एक­एक गुण का वर्णन करते हो, शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये। कई तो बोलते भी रहते हैं कि सहनशक्ति धारण करनी चाहिये, सहनशीलता अच्छी है, लेकिन अनुभूति नहीं होती। अनुभूति की कमी होने के कारण जितना चाहते हो उतना पा नहीं सकते। अगर सभी से पूछें कि जितना पुरूषार्थ होना चाहिये उतना है तो थोड़े हाँ कहेंगे। तो जितना मिल रहा है उतना जीवन में वा कर्म में अनुभव हो। सिर्फ सोचने में अनुभव नहीं हो लेकिन चलन में, कर्म में - शक्तियाँ, गुण स्वयं को भी अनुभव हो, दूसरों को भी अनुभव हो। कहते ही हो कि ज्ञान स्वरूप हैं। तो वह स्वरूप दिखाई देना चाहिये ना? और स्वरूप सदा होता है। स्वरूप कभी­कभी नहीं होता है। अज्ञानकाल की जीवन में यदि किसी का क्रोधी स्वरूप होता है तो जब भी कोई बात होगी तो वो स्वरूप दिखाई देता है, छिपता नहीं है। चाहे छोटी बात हो या बड़ी बात हो लेकिन जिसका जो स्वरूप होता है वह दिखाई देता है। स्वयं को भी अनुभव होता है और दूसरे को भी अनुभव होता है। क्या कहते हैं - ये है ही क्रोधी, इसका संस्कार ही क्रोध का है। तो संस्कार दिखाई देता है ना। ऐसे ये ज्ञान स्वरूप, शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप अनुभव में आये। तो अनुभवीमूर्त - ये है श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी। तो अनुभव को बढ़ाओ। जो कहा वो अनुभव किया? अगर अनुभव नहीं होता है तो उसका कारण ये है कि जो समय प्रति समय विधि मिलती है उस विधि के ऊपर अटेन्शन कम है? जितनाज्ञान को, शक्तियों को, गुणों को रिवाइज करते रहेंगे तो रियलाइज सहज होगा। रिवाइज नहीं करते तो रियलाजेशन भी कम है। सुना, बहुत अच्छा। लेकिन चलते फिरते रिवाइज होना चाहिये। जैसे दुनिया वाले कहते हैं कि कर्म ही योग है। कर्म ­ योग अलग नहीं मानते। कर्म ही योग मानते हैं। कर्म से योग लगाना, इसी को ही कर्मयोग समझते हैं। लेकिन कर्म और योग दोनों का बैलेन्स चाहिये। कर्म में बिजी रहना योग नहीं है। कर्म करते योग का अनुभव होना चाहिये। कर्म में बिजी हो जाते हैं तो कर्म ही श्रेष्ठ हो जाता है, योग किनारे हो जाता है। चलते­चलते यही अलबेलापन आता है। तो कर्म में योग का अनुभव होना-इसको कहा जाता है कर्मयोगी। मूल बात है अनुभवी स्वरूप बनो। एक­एक गुण के अनुभव में खो जाओ। शक्ति स्वरूप बन जाओ। आपके स्वरूप से शक्तियाँ दिखाई दें। अभी भी देखो, अगर कोई में कोई विशेष शक्ति होती है तो उसके लिये कहते हो - ये बहुत सहनशील स्वरूप है, इसमें समाने की शक्ति बहुत दिखाई देती है। तो कोई में दिखाई देती है, कोई में नहीं और कभी दिखाई देती है, कभी नहीं तो अटेन्शन कम हुआ ना। तो हर शक्ति, हर गुण, हर ज्ञान की पॉइन्ट्स आपके स्वरूप में अनुभव करें और वो तब होगा जब पहले स्वयं को अनुभव होगा। अगर स्वयं अनुभवी होगा तो दूसरे को उससे स्वत: ही अनुभव होगा। और जब अनुभव करते हो तो कितनी खुशी होती है! एक सेकण्ड भी अगर किसी गुण वा शक्ति का अनुभव होता है तो कितनी खुशी बढ़ जाती है और जब सदा अनुभवी स्वरूप होंगे तो सदा चेहरे पर खुशी की झलक, खुशनसीब की झलक अनुभव होगी। तो अनुभव को बढ़ाओ। विधि तो स्पष्ट है ना? अच्छा, सभी खुशनसीब तो हो ही लेकिन विशेष खुशी मनाने आये हो। तो सबको खुशी मिली है?

सब आराम से रहे हुए हो? मन आराम में है तो तन को आराम मिल ही जाता है। ये तो होना ही है, जितना स्थान बढ़ायेंगे उतना कम होना ही है। ये भावी है, उसको क्या करेंगे। और अच्छा है, रिहर्सल हो जाती है, जहाँ बिठाओ, जैसे बिठाओ, जैसे सुलाओ, इसकी रिहर्सल हो जाती है। तो पट में सोना अच्छा है, पटराजा बन गये ना। शास्त्र में तो पटरानी और पटराजा का बड़ा गायन है, आप तो बहुत सहज बन गये। कोई तकलीफ है? बापदादा और निमित्त आत्मायें सोचती तो यही हैं कि सब आराम से रहें लेकिन अगर ज्यादा संख्या में भी आराम लगता है तो खुशी की बात है। जहाँ भी रहे हुए हो, वहाँ खुश हो? कोई तकलीफ नहीं है, और बुलायें? सिर्फ एक सूचना चली जाये कि जो आना चाहे वो आ जाये, तो क्या करना पड़ेगा? अखण्ड तपस्या करनी पड़ेगी। खुशी की खुराक खाओ और अखण्ड योग करो फिर तो सभी आ सकते हैं। करेंगे? थक नहीं जायेगे, भूख नहीं लगेगी, सात दिन नहीं खायेंगे? सात दिन खाना नहीं मिलेगा! बापदादा ऐसा हठ कराना नहीं चाहते। सहजयोगी हो ना।

ये परमात्म मिलन कम भाग्य नहीं है! ये परमात्म मिलन का श्रेष्ठ भाग्य कोटो में कोई आप आत्माओं को ही मिलता है। अच्छा! मिल लिया ना! भक्ति में तो जड़ चित्र मिलता है और यहाँ चैतन्य में बाप बच्चों से मिलते भी हैं, रूहरिहान भी करते हैं। तो ये भाग्य कोई कम है! फिर भी आप सब लक्की हो, समय की गति बदलती जाती है। अभी फिर भी आराम से बैठकर सुन रहे हो। आगे चलकर वृद्धि होगी तो बदलेगा ना, फिर भी आप लक्की हो क्योंकि टूलेट के टाइम पर नहीं आये हो। लेट के टाइम पर आये हो। तो सब खुश हो? अच्छा, कौन­से कौन­से जोन आये हैं?

महाराष्ट्र:­ महाराष्ट्र वाले सदा विशेष सन्तुष्ट मणियाँ हैं - इस वरदान को स्वरूप में लाना। और फिर बापदादा दूसरे ग्रुप में पूछेंगे कि महाराष्ट्र ने सन्तुष्टता का स्वरूप दिखाया? तो सदा सन्तुष्ट मणि हैं, असन्तुष्टता का नामय्निशान नहीं। तो अभी इसमें नम्बर लेना। रिजल्ट बताना कि इस 6 मास में कोई असन्तुष्ट रहा क्या या सन्तुष्ट किया? स्वयं भी सन्तुष्ट दूसरे भी सन्तुष्ष्ट। तो महाराष्ट्र को ये पसन्द है? अगर कोई आपको असन्तुष्ट करे तो क्या करेंगे? फिर तो असन्तुष्ट होंगे ना। करने वाले ने असन्तुष्ट कर दिया तो आप क्या करेंगे? शीतलता धारण करेंगे। वो सेक दे रहा है और आप शीतल रहेंगे? थोड़ा­थोड़ा असन्तुष्ट होंगे? देखना। वो असन्तुष्ट करे और आप सन्तुष्टता का जल डालो, वो आग जलाये आप पानी डालो। ये तो कर सकते हो या नहीं? तो रिजल्ट देखेंगे। तो महाराष्ट्र अर्थात् सन्तुष्ट रहने वाले और सन्तुष्ट करने वाले।

तामिलनाडु:­ तामिलनाडु क्या करेगा? तामिलनाडु सदा सुखदाता के बच्चे मास्टर सुख दाता हैं। कोई दु:ख भी दे तो उसको सुख में परिवर्तन कर लेंगे। तो 6 मास की रिजल्ट देखेंगे। ऐसे ताली नहीं बजाना। रिजल्ट के समय भी ताली बजे, ऐसा करना। तो तामिलनाडु भी रेस अच्छी कर रहे हैं। सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। प्रकृति को भी तामिलनाडु अच्छा लगता है। वहाँ प्रकृति भी वार करती है। तामिलनाडु वाले क्या बनेंगे? मास्टर सुखदाता। अब देखेंगे महाराष्ट्र आगे जाता है या तामिलनाडु आगे जाता है? लक्ष्य तो सभी का यही है कि सबसे आगे जाना है और जा सकते हैं। कोई मुश्किल बात नहीं है।

इस्टर्न जोन (बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, नेपाल):­

पांच नदियां मिलकर इस्टर्न जोन बना है। तो इस्टर्न जोन क्या करके दिखायेंगे? सदा स्वयं कम्बाइन्ड स्वरूप, मास्टर सर्वशक्तिमान अनुभव करेंगे। सबसे ज्यादा विस्तार ईस्टर्न जोन का है। देखो, नेपाल भी इस्टर्न में आ गया, इस्टर्न में फॉरेन भी आ गया तो कितना बड़ा है। बड़ा जोन है तो बड़ा ही दिखायेंगे ना। इस्टर्न जोन महान लक्की जोन है। क्यों लक्की है? क्योंकि ब्रह्मा बाप की कर्म भूमि और प्रवेशता भूमि है। इसलिये सदा कम्बाइन्ड स्वरूप में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मायें हैं - ये प्रैक्टिकल में दिखायेंगे ना। सेकण्ड भी अलग नहीं होना। कम्बाइन्ड कभी अलग नहीं होता। सदा साथ और सदा साथ रहकर औरों को भी साथ में मिलाने वाला। समझा? अभी देखेंगे कि नम्बर कौन लेते हैं? अभी तो नाम का नम्बर है ना फिर काम का नम्बर आयेगा।

यू.पी.:­ लौकिक कहावत में यू.पी.की विशेषता है कि यू.पी. वाले ‘पहले आप, पहले आप’ का मन्त्र ज्यादा पढ़ते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण कौन­सा मन्त्र पढ़ते हो? पहले बाप। हर बात में पहले बाप। बाप याद आया तो सब कुछ आ गया। तो हर कर्म में पहले बाप की याद हो। इसलिये यू.पी. वाले सदा मस्तक में पदमपति, पदमापदम भाग्य की लकीर वाले। सदा मस्तक में ये पदमापदम भाग्यवान की लकीर चमकती हुई दिखाई दे। इसमें यू.पी. वाले नम्बर लेंगे ना? सदा भाग्यवान भव। अच्छा, स्थापना में दिल्ली का भी पार्ट है तो यू.पी. का भी विशेष पार्ट है। इसलिये विशेष भाग्यवान आत्मायें हैं।

इन्दौर:­ इन्दौर वाले क्या करेंगे? इन्दौर वाले विशेष महादानी हैं। सदा अपने कर्म द्वारा, बोल द्वारा महादानी। दान करने वाले हो। लेने वाले नहीं, देने वाले। तो महादानी हैं? दान करना आता है ना? जो महादानी होते हैं वही वरदानी होते हैं। तो वरदान लेने वाले और औरों को वरदान देने वाले - महादानी और मास्टर वरदानी। कोई कैसा भी हो वरदान दो, महादानी बनो - यही विशेषता है। तो इन्दौर वाले क्या करेंगे? वरदानी बनेंगे। कोई गाली भी देंगे तो वरदानी बनेंगे ना। कोई इन्सल्ट करेंगे तो क्या करेंगे? वरदानी बनेंगे कि उस समय थोड़ा शक्ल बदली करेंगे? थोड़ी शक्ल बदली नहीं होगी? वरदान देंगे! वो गाली देवे, आप वरदान देंगे! फिर तो बहुत पास हो गये, अभी से ही पास हो गये।

कर्नाटक:­ कर्नाटक वाले क्या करेंगे? सदा अपने को पुण्य आत्मायें समझ पुण्य करते रहेंगे। कर्नाटक वालों के पुण्य की पुंजी सदा जमा होगी। तो पुण्यात्मायें बन पुण्य की पूंजी जमा करने वाले और पुण्यात्मा बन औरों को भी पुण्यात्मा बनाने वाले। तो कर्नाटक वाले क्या हैं? पुण्यात्मायें। पाप तो खत्म हो गये ना। कर्नाटक वालों ने पाप का खाता खत्म कर दिया ना? कि थोड़ा­थोड़ा रखा है? सारा खत्म। तब तो पुण्य आत्मा बने हैं ना। तो पुण्यात्मायें हैं और सदा पुण्यात्मायें रहेंगे और औरों को भी पुण्यात्मा बनायेंगे। बनाने में तो होशियार हो ना। कर्नाटक की वृद्धि बहुत जल्दी होती है ना। सबसे ज्यादा किस जोन की संख्या है? (महाराष्ट्र की) अच्छा है, जैसा नाम है वैसा काम है। अच्छा!

डबल विदेशी:­ डबल विदेशी बहुत होशियार हैं। कौन­सी होशियारी करते हैं? भागने में होशियार हैं! और भाग्य लेने और भाग्य देने में भी होशियार हैं! थोड़ा लेने वाले नहीं हैं, पूरा लेने वाले हैं। भाग्य लेने में होशियार हैं? डबल विदेशियों की विशेषता है कि हर बात में डबल हिस्सा लेते हैं। भारत वालों में भी हिस्सा लेते हैं तो अपने में भी हिस्सा लेते हैं। और विदेश वालों को विशेष अव्यक्त पालना की अनुभूति का वरदान विशेष है। तो अनुभव स्वयं भी करते हैं और ड्रामानुसार डबल विदेशियों को बापदादा द्वारा भी अव्यक्त पालना का विशेष वरदान मिला है। लेकिन लेने में भी आगे हैं। इसलिये बापदादा डबल याद­प्यार देते हैं। इन्हों के आगे जाने का एक विशेष कारण है। ऐसे ही वरदान नहीं मिला है, कोई कारण से मिलता है। तो इन्हों की विशेषता यह है कि जो भी होगा, अच्छा होगा या बुरा होगा, स्पष्टवादी हैं। अन्दर एक, बाहर दूसरे नहीं हैं। जो अन्दर है, वो बाहर है। तो स्पष्ट होने के कारण जल्दी में आगे कदम उठा लेते हैं। छिपाने वाले नहीं हैं। तो यह स्पष्टवादी बनने के कारण विशेष अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकारी बने हैं और बनते रहेंगे। समझा!

तो आप भी जितने स्पष्टवादी होंगे उतने अनुभव ज्यादा करेंगे। स्पष्टवादी बनना अर्थात् सहज श्रेष्ठ बनना। ये वरदान स्वत: ही मिल जाता है।

आन्ध्रप्रदेश:­ आन्ध्रा में भी सेन्टर्स तो बहुत हैं ना। आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा वाले कमाल करने वाले हैं। (बीच में ही ताली बजा दी) इससे ही सिद्ध होता है कि कमाल करने में होशियार हैं। तो आन्ध्रा वालों को यही कमाल करनी है कि सदा डबल लाइट बन उड़ना है और उड़ाना है। उड़ती कला और औरों का भी भला। स्वयं भी उड़ती कला और औरों की भी उड़ती कला में सबसे आगे जाना है। अपने भी बोझ को सेकण्ड में समाप्त करने वाले और दूसरों के भी बोझ को समाप्त कर उड़ाने वाले। अभी उड़ती कला की कमाल आन्ध्रा को दिखानी है। हिम्मत है? तो 6 मास में पूरे आन्ध्रा जोन में कोई भी विघ्न नहीं आना चाहिये। हो सकता है? अभी हाँ नहीं करते, खिटखिट है क्या? मिटा नहीं सकते? तो आन्ध्रा को प्राइज लेनी चाहिये। 6 मास के बाद आन्ध्रा वाले प्राइज लेंगे?

6 मास के बाद सभी को प्राइज देंगे। जो वरदान मिला है, उसमें जो सब पास होंगे उनको प्राइज मिलेगी। पहले पास होंगे फिर प्राइज मिलेगी। तो फुल पास होना है। फिर यह नहीं कहना कि क्या करें, चाहता नहीं था, हो गया..., भाषा बदली कर देना - हो ही नहीं सकता। इतना निश्चय है? अच्छा है। नये कमाल करके दिखायेंगे ना। तो बाप कहेंगे पुराने तो पुराने, नये समान बाप होंगे। तो आगे जाने के लिए ये वरदान लेना है ना।

अच्छा, बाकी मधुबन निवासी और ज्ञान सरोवर। बापदादा ने पहले भी कहा तो आबू में सबका याद­प्यार देने के लिये पांच मुखी ब्रह्मा है, ब्रह्मावत्स हैं। एक मधुबन है और दूसरा ज्ञान सरोवर है, तीसरा हॉस्पिटल है, चौथा तहलटी है और पांचवा आबू निवासी। तो पांच मुखी ब्रह्मावत्स। पांचों को बापदादा सदा उमंग­उत्साह के पंखों से उड़ने वाले और औरों को भी उड़ाने वाले-ऐसा विशेष वरदान वा याद­प्यार दे रहे हैं। तो मधुबन निवासियों को विशेष उमंग­उत्साह के पंख सदा लगे हुए रहते हैं। उमंग­उत्साह के पंख कभी कमज़ोर नहीं होते। इसका प्रूफ है ज्ञान सरोवर में पंख लग गये हैं ना। जो भी देखता है वो क्या कहता है? कमाल है। तो उमंग­उत्साह के पंख का प्रैक्टिकल प्रूफ है ज्ञान सरोवर। आप समझते हो इतने में इतना बड़ा बन सकता है? कॉमन कोई सोच सकता है? तो ज्ञान सरोवर वाले या मधुबन वाले उमंग­उत्साह के पंखों से उड़ाने वाले भी हैं और उड़ने वाले भी हैं। बापदादा ज्ञान सरोवर के सेवाधारियों को विशेष दुआओं भरी याद­प्यार दे रहे हैं। विशेषता है कि निश्चयबुद्धि हैं। कितना भी कोई हिलाता है, डेट पर तैयार होगा? नहीं हो सकता! लेकिन ज्ञान सरोवर वाले निश्चयबुद्धि नम्बरवन हैं। ज्ञान सरोवर वाले हाथ उठाओ। बहुत हैं। अच्छा, हमारे विशेष सेवाधारी भी आये हुए हैं। अच्छे हैं, सबकी हिम्मत, सबका उत्साह, कार्य को आगे बढ़ा रहा है, इसलिये बापदादा प्यार की मसाज करते रहते हैं। मधुबन वाले अर्थात् सदा ताजा भोजन करने वाले। फैक्स द्वारा या टाइप द्वारा खाने वाले नहीं, ताजा माल खाने वाले। मधुबन वाले शरीर से नीचे हैं, (हाल फुल होने कारण पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) मन से बापदादा के सामने ऊपर हैं। ऐसे तो चारों ओर के बच्चों के दिल की टी.वी. खुली हुई है, उसमें देख रहे हैं। चाहे देश, चाहे विदेश के, सभी बच्चे अव्यक्त रूप से मिलन मना रहे हैं। तो देखो आप विशेष लक्की हो जो पहला चांस आप लोगों को मिला है। अच्छा-सभी सन्तुष्ट हो ना? सन्तुष्ट हो और रहेंगे भी। अच्छा!

चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ भाग्य विधाता के भाग्यवान आत्माओं को, सदा मनजीत­जगतजीत के निश्चय और नशे में रहने वाले, सदा हर गुण, शक्ति और ज्ञान के अनुभवी आत्मायें, सदा बाप को साथ रखने वाले कम्बाइन्ड स्वरूप आत्मायें, सदा श्रेष्ठ भाग्य की लकीर को सहज श्रेष्ठ बनाने वाले, ऐसे अति समीप और श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।



26-11-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


परमात्म पालना और परिवर्तन शक्ति का प्रत्यक्ष स्वरूप - सहजयोगी जीवन

ज बापदादा हर एक बच्चों के मस्तक पर विशेष श्रेष्ठ भाग्य की तीन आ लकीरें देख रहे हैं। सर्व बच्चों का भाग्य तो सदा सर्वश्रेष्ठ है ही लेकिन आज विशेष तीन लकीरें चमक रही हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की लकीर और दूसरी है बेहद के ऊंचे ते ऊंचे पढ़ाई के भाग्य की लकीर। तीसरी है श्रेष्ठ मत प्राप्त होने के भाग्य की लकीर। चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक, हर एक को इस जीवन में ये तीन प्राप्तियाँ होती ही हैं। पालना भी मिलती, पढ़ाई भी मिलती और मत भी मिलती है। इन तीनों द्वारा ही हर आत्मा अपना वर्तमान और भविष्य बनाने के निमित्त बनती हैं। आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं को किसकी पालना मिल रही है? परमात्म­पालना के अन्दर हर सेकण्ड पल रहे हो। जैसे परम आत्मा ऊंचे ते ऊंचे हैं तो परमात्म­पालना भी कितनी श्रेष्ठ है! और इस परमात्म­पालना के पात्र कौन बने हैं और कितने बने हैं? सारे विश्व की आत्मायें ‘बाप’ कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं। और आप कितनी थोड़ी­सी आत्मायें इस भाग्य के पात्र बनती हो! सारे कल्प में यही थोड़ा­सा समय परमात्म­पालना मिलती है। दैवी पालना, मानव पालना-ये तो अनेक जन्म मिलती है लेकिन ये श्रेष्ठ पालना अब नहीं तो कब नहीं। ऐसे श्रेष्ठ भाग्य की श्रेष्ठ लकीर सदा अपने मस्तक में चमकते हुए अनुभव करते हो? कोई भी प्राप्ति सदा करना चाहते हो या कभी­कभी करना चाहते हो? तो प्राप्ति का पुरूषार्थ भी सदा चाहिये या कभी­कभी चाहिये? और सदा तीव्र चाहिये या कभी साधारण, कभी तीव्र? प्रैक्टिकल क्या है? चाहना और प्रैक्टिकल में अन्तर हो जाता है ना! सोचते तो बहुत हो लेकिन स्मृति में कम रखते हो। सोचना स्वरूप बनना है या स्मृति स्वरूप बनना है? स्मृति स्वरूप बनने वाले हो ना! तो एक बात भी स्मृति में रखो कि अमृतवेले आपको उठाने वाला कौन? बाप का प्यार उठाता है। दिन का आरम्भ कितना श्रेष्ठ है! और बाप स्वयं मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रूहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! तो हर दिन का आदि कितना श्रेष्ठ है! बाप की मोहब्बत से उठते हो कि कभी­कभी मजबूरी से भी उठते हो? यथार्थ तो मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। अमृतवेले से बाप कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ.....। तो जिसका आदि इतना श्रेष्ठ है तो मध्य और अन्त क्या होगा? श्रेष्ठ होगा ना!

बापदादा देख रहे थे कि कितना पालना का भाग्य वर्तमान समय बच्चों को प्राप्त है! जितना प्राप्त है उतना फायदा उठाते हो? स्वप्न में भी संकल्प मात्र नहीं था कि इतने भाग्य के पात्र बनेंगे! सोचने से बाहर था लेकिन मिला कितना सहज! बाप के प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ही है ‘सहज योगी जीवन’। जिससे प्यार होता है उसके लिये मुश्किल परिस्थिति या मुश्किल कोई भी बात देखी­सुनी नहीं जाती। तो बाप ने भी मुश्किल को सहज बनाया है ना! सदा सहज है। तो सदा ही पुरूषार्थ की गति तीव्र हो। आज बहुत अच्छा पुरूषार्थ है और कल थोड़ी परसेन्टेज कम हो गई तो क्या सदा सहज कहेंगे? सदा मुश्किल कौन बनाते हैं? स्वयं ही बनाते हो ना? कारण क्या? सोचने की तो आदत है लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कार कभी इमर्ज रखते हो, कभी मर्ज हो जाते हैं। क्योंकि स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। सोचना, यह समर्थी स्वरूप नहीं है। स्मृति समर्थी है। विस्मृति में क्यों आ जाते हो? आदत से मजबूर हो जाते हो। अगर मजबूत नहीं तो मजबूर हो जायेंगे। जहाँ मजबूत हैं वहाँ मजबूरी नहीं है। जब ओरीजिनल आदत विस्मृति की नहीं है। आदि में स्मृति स्वरूप प्रालब्ध प्राप्त करने वाली देवात्मायें हो, योग लगाने का पुरूषार्थ नहीं करते लेकिन स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त करते हो। तो आदि में भी स्मृति स्वरूप का प्रत्यक्ष जीवन है और अनादि आत्मा, जब आप परमधाम से आई तो आप विशेष आत्माओं के संस्कार स्वत: ही स्मृति स्वरूप हैं। और अन्त में संगम पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो ना! तो अनादि, आदि और अन्त - तीनों ही काल स्मृति स्वरूप हैं। विस्मृति तो बीच में आई। तो आदि, अनादि स्वरूप सहज होना चाहिये या मध्य का स्वरूप? सोचते हो कि हाँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन स्मृति स्वरूप हो चलना, बोलना, देखना उसमें अन्तर पड़ जाता है। तो यह स्मृति में रखो कि हम परमात्म पालना की अधिकारी आत्मायें हैं।

बापदादा चार्ट चेक करते हैं तो लकीर कभी ऊंची, कभी नीची होती है, कभी कोई दाग होता है, कभी जीवन के कागज में कोई दाग नहीं भी होता है

और कोई समय दाग ही दाग, एक पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा दाग ही नजर आते हैं। क्यों? एक तो गलती हो जाती है लेकिन गलती होने के बाद भी उसी गलती को सोचते रहते हो। क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं, वैसे..... कई रूप से बात को छोड़ते नहीं हो। बात आपको छोड़ कर चली जाती है लेकिन आप बात को नहीं छोड़ते हो। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो, यथार्थ स्मृति स्वरूप नहीं बनते हो, तो दाग के ऊपर दाग लगते जाते हैं। पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार होने के कारण पेपर का टाइम बढ़ा देते हो। सेकण्ड पूरा हुआ और निर्विकल्प स्थिति बन जाये - यह संस्कार इमर्ज करो।

निर्विकल्प बनना आता है ना? अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाकर सदा हर्षित रहो। अपने परमात्म पालना को सदा बार­बार स्मृति में लाओ। सुनना भी आता है, सोचना भी आता है लेकिन फर्क क्या पड़ जाता है? बापदादा बच्चों का खेल देखते रहते हैं। सारे दिन में क्या­क्या खेल करते हो - ये रात्रि को चेक करते हो ना? माया के खिलौने बड़े आकर्षण वाले हैं। तो उन खिलौनों से खेलने लग जाते हो। पहले तो बहुत प्यार से माया खेल कराती है और खेल कराते­कराते जब हार खिलाती है तब होश में आते हैं। मैजारिटी में एक विशेष शक्ति की कमी रह जाती है। कभी बहुत अच्छे चलते हो, कभी चलते हो, कभी उड़ते हो, आगे बढ़ते हो लेकिन फिर नीचे क्यों आ जाते हो? इसका विशेष कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमज़ोरी है। समझते भी हो कि ये यथार्थ नहीं है लेकिन परिवर्तित होने की कमी हो जाती है। ब्राह्मण जीवन में परिवर्तन में आ गये, अब कोई कहेंगे कि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ? सभी अपने को बी.के. लिखते हो ना! हम ब्राह्मण हैं, यह समझते हो ना? ब्राह्मण जीवन में जो परीक्षायें आती हैं उसमें परिवर्तन करने की शक्ति आवश्यक होती है। जब व्यर्थ संकल्प चलते हैं तो समझते भी हो कि ये व्यर्थ हैं। लेकिन व्यर्थ संकल्पों का बहाव इतना तेज होता है जो अपने तरफ खींचता जाता है। जैसे नदी का वा सागर का बहुत फोर्स होता है तो कितना भी अपने को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर भी बहते जाते हैं। समझते भी हो, सोचते भी हो कि ये ठीक नहीं है, इससे नुकसान है फिर भी बहाव में बह जाते हो-इसका कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमी। पहला विशेष परिवर्तन है स्वरूप का परिवर्तन। मैं शरीर नहीं, लेकिन आत्मा हूँ, यह स्वरूप का परिवर्तन है। यह आदि परिवर्तन है। इसमें भी चेक करो तो जब देहभान का फोर्स होता है तो आत्म अभिमान के स्वरूप में टिक सकते हो या बह जाते हो? अगर सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति काम में आ जाये तो समय, संकल्प कितने बच जाते हैं। वेस्ट से बेस्ट में जमा हो जाते हैं।

पहली परिवर्तन शक्ति है स्वरूप का परिवर्तन और स्वभाव का परिवर्तन। पुराना स्वभाव पुरूषार्थी जीवन में धोखा देता है। समझते भी हो कि यह मेरा स्वभाव यथार्थ नहीं है और यह स्वभाव समय प्रति समय धोखा भी देता है-यह भी समझते हो, लेकिन फिर भी स्वभाव के वश हो जाते हो। फिर अपने बचाव के लिये कहते हो कि मेरा भाव नहीं था, मेरा स्वभाव ऐसा है, मैं चाहता या चाहती नहीं हूँ लेकिन मेरा स्वभाव है। ब्राह्मण बन गये तो जन्म बदल गया, सम्बन्ध बदल गया, माँ­बाप बदल गये, परिवार बदल गया लेकिन स्वभाव नहीं बदला। फिर रॉयल शब्द कहते कि मेरी नेचर है। तो पहली कमज़ोरी स्वरूप का परिवर्तन, दूसरा स्वभाव का परिवर्तन, तीसरा संकल्प का परिवर्तन। सेकण्ड में व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करो। कई समझते हैं बस आधा घण्टे का तूफान था, आधा घण्टा, 15 मिनट चला, लेकिन आधा घण्टा वा 15 मिनट की कमज़ोरी संस्कार बना देती है ना? जैसे शरीर में अगर कोई बार­बार कमज़ोर होता रहे तो सदा के लिये कमज़ोर बन जाते हैं। तो 15 मिनट कोई कम नहीं हैं। संगमयुग का एक­एक सेकण्ड वर्षों के समान है। तो ऐसे अलबेले नहीं बनो। भल थोड़ा ही चला लेकिन गँवाया कितना? जब कदम में पदम कहते हो तो 15 मिनट में कितने कदम उठेंगे और कितने पदम गंवाये? जमा में तो हिसाब अच्छा रखते हो कि कदम में पदम जमा हो गया लेकिन गँवाने का भी तो हिसाब रखो। तो न चाहते हुए भी संस्कार खींचते हैं। जो भी बात बार­बार होती वो संस्कार रूप में भर जाती है। तो संकल्प परिवर्तन करो। सिर्फ सोचते नहीं रहो - करना नहीं चाहिये, हो गया, क्या करूँ? नहीं, सोचो और करके दिखाओ? कहते हो बीती को बिन्दी लगाओ, एक­दो को ज्ञान देते हो ना - कोई आकर बात करेंगे तो कहेंगे ठीक है, बिन्दी लगा दो, लेकिन स्वयं बिन्दी लगाते हो? बिन्दी लगाने लिये कौन­सी शक्ति चाहिए? परिवर्तन शक्ति। परिवर्तन शक्ति वाला सदा ही निर्मल और निर्माण रहता है। जैसे पहले भी बापदादा ने सुनाया है कि मोल्ड होने वाला ही रीयल गोल्ड है। रीयल गोल्ड की निशानी है वो मोल्ड हो जायेगा। तो चेक करो कि परिवर्तन शक्ति समय पर काम आती है या समय बीत जाने के बाद सोचते ही रहते हैं? तो परिवर्तन शक्ति को बढ़ाना है। जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है। विचारों में भी सहज रहेगा, आगे बढ़ते सेवा में रहते हो ना? सेवा में भी विघ्न रूप क्या होता है? मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया? तो उसको रीयल गोल्ड कहेंगे? मेरापन आ गया, मेरापन आना अर्थात् अलाय मिक्स होना। जब रीयल गोल्ड में अलाए मिक्स हो जाता है तो वो रीयल रहता है? उसका मूल्य रहता है? कितना फर्क पड़ जाता है! तो समय और वायुमण्डल को परखकर अपने को परिवर्तन करना, इसकी आवश्यकता है। मोटी­मोटी बातों में परिवर्तन करना तो सहज है लेकिन हर परिस्थिति में, हर सम्बन्ध, सम्पर्क में समय और वायुमण्डल को समझ स्वयं को परिवर्तन करना, यही नम्बरवन बनना है। ये नहीं सोचो कि फलाना भी समझे ना, ये भी तो परिवर्तन करे ना, सिर्फ मैं ही परिवर्तन करूँ क्या? जो ओटे सो अर्जुन, इसमें अगर आपने अपने को परिवर्तन किया तो ये परिवर्तन ही विजयी बनने की निशानी है। समझा।

अच्छा, सब आराम से पहुँच गये ना? आराम से रहे हुए हो ना? भक्ति मार्ग के मेलों में कितनी मेहनत और मुश्किल होती है! और ये मेला आराम देने वाला है ना? नींद तो आराम से करते हो ना? फिर भी नीचे (पट में) सोने के लिये, बैठने के लिये फोम तो मिला है ना। और नदी के किनारे के मेले में तो भोजन भी खाओ तो मिट्टी भी खाओ। मेले में अपना भी प्रोग्राम रखते हो तो कितनी मिट्टी होती है! यहाँ तो आराम से अच्छा ब्रह्मा भोजन मिलता है। प्राप्तियों को सदा सामने रखो तो प्राप्ति के स्मृति स्वरूप से कमज़ोरियाँ सहज समाप्त हो जायेंगी। अमृतवेले से लेकर क्या­क्या प्राप्त होता है? अगर कोई पूछे आपको अमृतवेले कौन उठाता है? कोई समझेगा कि परमात्मा इन्हों को उठाता है? हंसेंगे कि परमात्मा आपके लिये बहुत फ्री बैठा है क्या? पढ़ाने के लिये भी फ्री है, उठाने के लिये भी फ्री है? तो फलक से कहते हो ना कि है ही हमारे लिये। कोई बुजुर्ग माताओं से पूछे - आपका टीचर कौन है तो क्या कहेंगी? परमात्मा हमें पढ़ाता है! आश्चर्य की बात है ना! परमात्मा को और कोई स्टूडेण्ट नहीं मिले! अच्छा!

जैसे मधुबन में खुश रहते हो - ऐसे अपने स्थानों को मधुबन बनाओ। माताओं को सबसे ज्यादा खुशी है ना? खुशी को सम्भालना आता है? माताओं को वैसे भी चीज़ें सम्भालने की आदत होती है तो खुशी को सदा सम्भालकर रखना। पाण्डवों को जमा करना आता है, कमाना अर्थात् जमा करना। तो पाण्डव जमा करने में होशियार हैं। जेब खर्च रखने में होशियार होते हैं। तो सदा चेक करो - कितना गँवाया, कितना जमा किया? जमा का खाता सदा बढ़ता रहे। अच्छे कमाने वाले की निशानी यही होती है कि आज एक हजार है तो कल दो होना चाहिये। ऐसे होशियार हो ना?

दूर बैठने वाले और ही बापदादा के अति समीप है। क्योंकि बापदादा के पास ऐसी टी.वी. है जो दूर वाले बिल्कुल नयनों में आ जाते हैं। अच्छा! सब नाच रहे हैं। बस, नाचो, गाओ और ब्रह्मा भोजन खाओ।

डबल विदेशी:­ डबल विदेशी बहुत चतुर हैं। सभी ग्रुप में डबल विदेशी होते ही हैं। वैसे विदेशियों की सीजन में भी भारत वाले तो होते ही हैं। पहले तो यहाँ के (आबू के) पांच स्थानों के होते हैं। तो डबल विदेशी फ्रीखदिल हैं तो भारतवासी भी फ्रीखदिल बने हैं। डबल विदेशी सिकीलधे हैं। विशेष उमंग उड़ती कला का ज्यादा रहता है। तो जैसे उड़ती कला का लक्ष्य है, वैसे ही लक्ष्य और लक्षण को समान बनाते हुए उड़ते चलो और उड़ाते चलो। उड़ने वाले तो वैसे भी हो। प्लेन में तो उड़कर आते हो ना। तो शरीर से भी उड़ने वाले हो और पुरूषार्थ में भी उड़ती कला। लेकिन लक्ष्य और लक्षण को और समीपता में आगे लाओ। है, लेकिन और समीपता में लाओ। इससे सदा ही श्रेष्ठ रहेंगे। समझा! अच्छा!

दिल्ली:­ दिल्ली की कल्प के आदि से अब अन्त तक क्या विशेषता है? (राजधानी रही है) तो देहली वाले अपने को सदा राज्य अधिकारी आत्मायें हैं ­­ ऐसे श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप अनुभव करते हो? क्योंकि बापदादा ने अभी भी स्वराज्य अधिकारी बनाया है। तो स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी। स्वराज्य अधिकारी कम तो विश्व राज्य अधिकारी भी कम। इसलिये दिल्ली वालों को विशेष ये नशा है और सदा रहना है कि हम स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी हैं। अभी विश्व सेवाधारी और स्वराज्यधारी हैं। क्योंकि दिल्ली में जो भी कार्य होते हैं वो विश्व के कोने­कोने में पहुँच जाते हैं। तो विश्व सेवाधारी भी हो और स्वराज्य अधिकारी भी हो और विश्व के राज्य अधिकारी भी हो। तो सेवा और राज्य दोनों की स्मृति स्वरूप, ये है दिल्ली की विशेषता। समझा? अच्छा।

राजस्थान:­ राजस्थान की विशेषता क्या है? राजस्थान अर्थात् ताज­तख्तधारी। राजाओं की निशानी-ताज होता है ना। तो राजस्थान अर्थात् सदा सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी। और साथ­साथ बाप के दिलतख्त नशीन। एक सेवा की जिम्मेवारी का ताज और दूसरा लाइट का। तो डबल ताजधारी भी हैं और डबल तख्तधारी भी। बाप का दिलतख्त भी है और अकालतख्त भी है। तो दोनों तख्त के अधिकारी। डबल तख्तधारी और डबल ताजधारी। समझा।

अभी राजस्थान वालों को और सेवा स्थान बढ़ाने हैं। राजस्थान के सेवाकेन्द्र की संख्या और बढ़ाओ। सभी जोन में से सेवाकेन्द्र की लिस्ट सबसे कम से कम किसकी है? (राजस्थान की) आज तो राजस्थान है ना! राजस्थान वाले अभी क्या करेंगे? सेवाकेन्द्र बढ़ायेंगे? करके दिखाओ। थोड़ी मेहनत लगती है ना। लेकिन अभी समय सहयोगी बन रहा है इसलिये अभी मेहनत कम लगेगी। अच्छा!

बनारस, यू.पी.:­ यू.पी.वाले क्या करेंगे? विशेषता करेंगे ना। देहली और यू.पी. में पहले­पहले ब्रह्मा बाप ने साकार में बहुत प्यार से निमन्त्रण स्वीकार किया। ब्रह्मा बाप के साकार में जाने की धरनी है। तो जहाँ ब्रह्मा बाप के पांव पड़े हैं वहाँ क्या होगा? ज्यादा में ज्यादा पावन होंगे ना! तो यू.पी. वाले सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रख हीरो पार्टधारी बन हीरो पार्ट बजायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप की विशेषता हीरो पार्ट रहा, वैसे यू.पी.निवासी हर एक हीरो पार्टधारी बन विशेष पार्ट बजाने के निमित्त हैं और रहेंगे। समझा!

कर्नाटक:­ कनार्टक में संख्या अच्छी है, सेवा अच्छी है लेकिन विशेष निर्विघ्न सेवाधारी बनना है। निर्विघ्न सेवाधारी सो निर्विघ्न विश्व राज्य अधिकारी भव। तो कर्नाटक निवासियों को विशेष टाइटल है-विघ्न विनाशक आत्मायें। इसी का ही गायन और पूजन है । तो कर्नाटक वाले अपना यह विशेष टाइटल स्मृति में रख अपने पूज्य स्वरूप को सदा सामने रखो। हर एक विघ्न विनाशक हैं ना? फलक से कहो कि विघ्न विनाशक हैं और सदा रहेंगे। अभी देखेंगे कि क्या समाचार आते हैं? विघ्न विनाशक का समाचार आता है?

महाराष्ट्र:­ जैसा नाम है महाराष्ट्र वैसा विस्तार भी है। नाम है महाराष्ट्र तो जोन वा संख्या में भी महान महाराष्ट्र है। इसलिये महाराष्ट्र को सदा महादानी बनना है। कौन­सा दान करेंगे? पहले सबसे बड़ा दान है सर्विस हैण्ड्स। तो महाराष्ट्र को सेवा के हैण्ड्स निकालने में महादानी बनना है। वैसे निकलते भी हैं लेकिन और निकालो। तो महाराष्ट्र अर्थात् महादानी, महादानी बनना अर्थात् महान बनना। तो थोड़ा और फ्रीखदिल बनो। वैसे रिजल्ट में देखा गया है कि ट्रेनिंग में जो हैण्ड्स निकलते हैं वो ज्यादा महाराष्ट्र के ही निकलते हैं। ये विशेषता है। इसलिये बापदादा इस विशेषता की मुबारक दे रहे हैं। अब इस मुबारक को और बढ़ाते जाना फिर और मुबारक देंगे।

बम्बई वाले भी सदा सेवा में आगे बढ़ते रहते हैं और बढ़ते रहेंगे। सेवा के प्लैन विशेष देहली और बाम्बे में ज्यादा बनते हैं। और बाम्बे को विशेष वरदान है कि यज्ञ सहयोगी आत्माओं के निमित्त बाम्बे है। आन्ध्रा में आई.पीज सहयोगी हैं और बाम्बे के वारिस सहयोगी हैं। तो बाम्बे की विशेषता वारिस क्वालिटी के सहयोगी अच्छे हैं। ऐसे है ना? भण्डारा भरपूर करने वाले।

आन्ध्र प्रदेश:­ आन्ध्रा वाले सदा स्वयं को आगे बढ़ाने के उमंग­उत्साह में अच्छे हैं। और आगे बढ़ो तो आन्ध्रा से विशेष आई.पीज आत्मायें निकल सकती हैं। आन्ध्रा वालों को विशेष सहयोगी आत्मायें बनाने का वरदान है, तो सहयोगी बनाओ। रेग्युलर स्टूडेण्ट नहीं बनेंगे सहयोगी बनेंगे। तो जो विशेषता है उसको और बढ़ाते चलो। जितनी सहयोगी आत्मायें निकालने चाहो उतने निकालो। क्योंकि कर्नाटक और आन्ध्रा दोनों भावना प्रधान हैं। कर्नाटक से भी स्नेही आत्मायें बहुत निकल सकती हैं। अभी उन्हों को आगे लाओ। हैं बहुत। तो अभी देखेंगे कि ज्ञान सरोवर में सहयोगी आत्मायें कितने निकालते हैं? समझा?

केरला:­ (3-4 हैं) अच्छा है, आप केरला वाले लाडले हो। जो थोड़े होते हैं वो लाडले होते हैं। विशेष लाडली आत्मायें हो।

गुजरात:­ गुजरात तो मधुबन का कमरा है। गुजरात की विशेषता हर कार्य में सहयोगी बनने की है। आप ब्रह्मा भोजन खाते हो, तो गुजरात की मातायें जो रोटी पकाती हैं वो और कोई नहीं पका सकता। इसीलिये कांफ्रेंस में या कोई भी फंक्शन होता है तो गुजरात की माताओं को निमन्त्रण ज्यादा मिलता है। तो गुजरात की विशेषता है सहयोग देना। सब प्रकार का सहयोग देते हैं। सेवा स्थान और गीता पाठशालाओं की विशेषता भी गुजरात में है। तो सेवा की विधि भी अच्छी है और वृद्धि भी है इसीलिये वरदानी हैं। तो गुजरात को जन्म से ही वरदान है - ‘‘बढ़ते रहो, बढ़ाते रहो।’’ आवाज दो और पहुँच जाते हैं ना। जैसे कमरे से किसी को बुला लेते हैं ना, वैसे आवाज दो तो पहुँच जाते हैं। अच्छे हैं, हल्के भी हैं और उमंग­उत्साह वाले भी हैं। सेवा में अथक हैं। जो भी मुश्किल ड्यूटीज होती हैं वो गुजरात वाले ही उठाते हैं। सबसे मुश्किल ड्यूटी होती है आवासय्निवास की, वो भी गुजरात उठाता है ना। भोजन बनाने की, रोटी बनाने की गुजरात उठाता है। और सबको सन्तुष्ट करने की विशेषता भी है। तो गुजरात सैल्वेशन आर्मा है। सब सैलवेशन देने वाले हैं। गुजरात ने अपनी विशेषता को समझा, अभी इसको और बढ़ाना। अच्छा!

टीचर्स:­ सभी टीचर्स तो सदा ही ज्ञान स्वरूप, स्मृति स्वरूप हैं ही। क्योंकि जैसे बाप शिक्षक बनकर आते हैं तो बाप समान निमित्त शिक्षक हो। बाप जैसे नहीं हो, लेकिन निमित्त शिक्षक हो। तो टीचर्स की विशेषता निमित्त भाव और निर्मान भाव। सफल टीचर वही बनती है जिसका निर्मल स्वभाव हो। अभी निर्मल स्वभाव के ऊपर विशेष अण्डरलाइन करो। कुछ भी हो जाए लेकिन अपना स्वभाव सदा निर्मल रहे। यही निर्मल स्वभाव निर्मानता की निशानी है। तो अण्डरलाइन करो ‘निर्मल स्वभाव’। बिल्कुल शीतल। शीतलता का गायन शीतला देवी है। तो निर्मल स्वभाव अर्थात् शीतल स्वभाव। बात जोश दिलाने की हो लेकिन आप निर्मल हो तब कहेंगे सफल टीचर। तो बापदादा फिर भी अण्डरलाइन करा रहा है किस पर? निर्मल स्वभाव। समझा? अच्छा!

अच्छा, चारों ओर के सर्व सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सहज योगी अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को, सदा बाप के समीप और समान बनने के उमंग­उत्साह में रहने वाली सर्व आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।



05-12-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


वर्तमान समय की आवश्यकता - बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल बनाना

आज स्नेह के सागर बाप अपने स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। यह ईश्वरीय स्नेह सिवाए आप बच्चों के किसी को भी प्राप्त नहीं होता। आप सभी को ये विशेष प्राप्ति है। प्राप्ति सभी बच्चों को है लेकिन पहली स्टेज है प्राप्ति होना और आगे की स्टेज है प्राप्ति के अनुभव में खो जाना। पहली बात, प्राप्ति की नशे से सभी कहते हो कि हमें बाप का प्यार मिला। बाप मिला अर्थात् प्यार मिला। सभी के मुख से यही निकलता है ‘मेरा बाबा’। तो पहली स्टेज में प्राप्ति सभी को है। लेकिन अनुभूति में सदा खोये रहें, इसमें नम्बरवार हैं। जो परमात्म प्यार में खोये हुए रहते हैं उनको इस प्यार से कोई हटा नहीं सकता। परमात्म प्यार में खोई हुई आत्मा की झलक और फलक, अनुभूति की किरणें इतनी शक्तिशाली होती हैं जो कोई भी समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख सकता। ऐसी अनुभूति सदा रहे तो कभी भी किसी भी प्रकार की मेहनत नहीं होगी। अभी योग लगाते­लगाते युद्ध करनी पड़ती है। बैठते योग में हैं लेकिन अनुभूति में खोये हुए नहीं होने के कारण कभी योग, कभी युद्ध दोनों चलते रहते हैं। मैं बाप का हूँ-ये बार­बार स्मृति में लाना पड़ता है। तो बार­बार स्मृति में लाना, विस्मृति है तब तो स्मृति में लाते हो ना? तो हाँ­ना, स्मृतिय्विस्मृति-ये युद्ध लवलीन अनुभूति करने नहीं देती है। वर्तमान समय बच्चों को जो युद्ध वा मेहनत करनी पड़ती है वो व्यर्थ और समर्थ की युद्ध ज्यादा चलती है। कोई­कोई बच्चों में व्यर्थ देखने के संस्कार नेचुरल नेचर हो गई है। कोई में सुनने की, कोई में वर्णन करने की, कोई में सोचने की-ऐसी नेचुरल नेचर हो गई है जो वो समझते ही नहीं हैं कि ये हम करते भी हैं। अगर कोई इशारा भी देते हैं तो माया की समझदारी होने के कारण अपने को बहुत समझदार समझते हैं। या तो माया के समझदार बन जाते वा अलबेलापन आ जाता-ये तो चलता ही है, ये तो होता ही है.....। माया की समझदारी से रांग में भी अपने को राइट समझते हैं। होती माया की समझदारी है लेकिन समझेंगे-मेरे जैसा ज्ञानी, मेरे जैसा योगी, मेरे जैसा सेवाधारी कोई है ही नहीं। क्योंकि उस समय माया की छाया मन और बुद्धि को ऐसे वशीभूत कर देती है जो यथार्थ निर्णय कर नहीं सकते। मायावी योगी वा मायावी ज्ञानी समझदार, ईश्वरीय समझ से किनारा करा देती है। माया की समझदारी भी कम नहीं है। माया से योग लगाने वाले भी अचल­अटल योगी हैं। इसलिये फर्क नहीं समझते। उस समय के बोल का नशा भी सभी जानते हो ना-कितना बढ़िया होता है! इसलिये बापदादा सदा बच्चों को कहते हैं कि प्राप्तियों की अनुभूतियों के सागर में समाये रहो। सागर में समाना अर्थात् सागर समान बेहद के प्राप्ति स्वरूप बन कर्म में आना।

बापदादा ने चारों ओर के बच्चों का चार्ट चेक किया। क्या देखा? समय के समीपता के प्रमाण वर्तमान के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष स्वरूप में होना आवश्यक है। बेहद का वैराग्य वर्णन भी करते हो। पॉइन्ट्स बहुत निकालते हो, भाषण भी बहुत अच्छे करते हो। सभी के पास पॉइन्ट्स हैं ना? पॉइन्ट्स वर्णन करना वा सोचना-इसमें तो मैजारिटी पास हैं। इन छोटी­छोटी कुमारियों को भी भाषण तैयार करके देंगे तो कर लेंगी। यथार्थ वैराग्य वृत्ति का सहज अर्थ है-चाहे आत्माओं के सम्पर्क में आयें, चाहे साधनों के सम्बन्ध में आयें, चाहे सेवा के चांस में चांसलर बनने का भाग्य मिले लेकिन सर्व के सम्बन्ध­सम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा-इसका बैलेन्स रहे। होता क्या है? कभी न्यारेपन की परसेन्टेज बढ़ जाती और कभी प्यारेपन की परसेन्टेज बढ़ जाती। प्यारापन का अर्थ है निमित्त भाव, निर्मान भाव। लेकिन इसके बदले मेरेपन का भान आ जाता। ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे ही सर्व साधन भाग्य अनुसार मिले हुए हैं, इतनी मेहनत से मैंने ये साधन, स्थान वा सेवा वा सेवा साथी (स्टूडेन्ट्स भी साथी हैं) बनायें हैं। ये मेरा है, क्या मेरी मेहनत की कोई वैल्यू नहीं है? ये निमित्त भाव और मेरेपन के भाव में अन्तर है या एक ही है? ये मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है। ये मेरेपन की रॉयल भाषा, रॉयल संकल्प बाप से रूहरिहान में भी बापदादा बहुत सुनते हैं। बहुत प्यार से बाप को या निमित्त आत्माओं को मनाने या मनवाने आते हैं-बाबा आप ही इसमें मेरे को मदद करना, आप क्या समझते हो कि ये मेरा काम नहीं है, मेरी जिम्मेदारी नहीं है, मेरा अधिकार मेरे को ही मिलना चाहिये। बाप को भी ज्ञान देने के लिये बहुत होशियारी करते हैं। बापदादा मुस्कराते रहते हैं। निमित्त हैं, जो मिला, जैसे मिला, जहाँ बिठायेंगे, जो खिलायेंगे, जो करायेंगे वही करेंगे। ये पहला­पहला सभी का वायदा है। वायदा है ना? ये वायदा है या सिर्फ खाने­पीने के लिये है? मेरेपन के भाव का वैराग्य ही बेहद का वैराग्य है। नये­नये प्रकार के मेरेपन और इमर्ज हो रहे हैं। माया वर्तमान समय नये­नये प्रकार के मेरेपन की छाया डाल रही है। इसलिये समय की समीपता प्रत्यक्ष रूप में नहीं आ रही है। ज्ञानी, चाहे अज्ञानी, दोनों जानते हैं और कहते भी हैं कि दुनिया की हालतें बहुत खराब है, ये दुनिया कहाँ तक चलेगी, कैसे चलेगी? लेवि्ान फिर भी दुनिया चल रही है। समय की समीपता का फाउण्डेशन है - बेहद की वैराग्य वृत्ति। बापदादा ने चेक किया बेहद की वैराग्य वृत्ति के बजाय नये­नये प्रकार के छोटे­छोटे लगाव का विस्तार बहुत बड़ा है। इस विस्तार ने सार को छिपा लिया है। समझा? अब क्या करना है?

यह लगाव बड़े टेस्टी लगते हैं। एक­दो बार टेस्ट किया तो वो टेस्ट खींचते रहते हैं। सेवा कर रहे हो बहुत अच्छा लेकिन अपनी चेकिंग करो कि निमित्त भाव है वा लगाव का भाव है? ‘बाबा­बाबा’ के बदले ‘मेरा­मेरा’ तो नहीं आ जाता? मानना है तेरा और बन जाता है मेरा। तो अब क्या करेंगे? मेरा­मेरा पसन्द है? बापदादा ने पहले भी सुनाया है-एक बहुत बड़ी गलती करते हैं वा चलते­चलते हो जाती है, करना नहीं चाहते हैं लेकिन हो जाती है, वह क्या? दूसरे के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं। बनना है अपना जज और बनते हैं दूसरों का। इसको यह नहीं करना चाहिये, इनको बदलना चाहिये। और अपने लिये समझेंगे-यह बात बिल्कुल सही है। मैं जो कहती हूँ, वही राइट है, ये ऐसे है, ये वैसे है। वकील लोग भी सिद्ध करते हैं ना-सच को झूठ, झूठ को सच। और जितने प्रमाण देना वकीलों को आता है उतना और किसको नहीं आता। अपना जज बनना-ये गलती हो जाती है। दूसरे के लिये रिमार्क देना बहुत सहज है। लेकिन अपने को बदलना है। सलोगन भी है-’’स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन।’’ पहले ‘स्व’ है। सुना, क्या चार्ट देखा?

बापदादा भी माया की चाल को देख मुस्कराते रहते हैं-माया कितनी चतुर है! मास्टर सर्वशक्तिमान् आत्माओं को भी अपना बना लेती है। तो अभी क्या चाहिये? बेहद की वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल बनाओ। जैसे सेवा का वायुम­ ण्डल बनाते हो ना, प्रोग्राम बनाते हो। सिर्फ दिमाग तक ये वृत्ति नहीं, दिल तक पहुँचे। सबके दिमाग में तो है-होना चाहिये, करना चाहिये लेकिन दिल में ये लहर उत्पन्न हो जाये इसकी आवश्यकता है। समझा? सभी ने अच्छी तरह से समझा? कि अभी समझ में आया फिर उठने के बाद सोचेंगे-ये कैसे होगा, ये करना मुश्किल है, सुनना­बोलना तो सहज है, करना मुश्किल है। तो अभी ऐसे नहीं कहेंगे ना?

स्नेह से आप भी पहुँच गये हैं और बापदादा भी पहुँच गये हैं। स्नेह में देखो कितनी शक्ति है! स्नेह अव्यक्त को व्यक्त में ले आता है। आप सबको मधुबन में ले आया है। सभी स्नेह में ठीक पहुँच गये हैं ना? किसने लाया? ट्रेन ने लाया कि स्नेह ने लाया? जहाँ स्नेह है वहाँ मेहनत, मेहनत नहीं लगती, मुश्किल, मुश्किल नहीं लगता। ये तीन पैर के बजाय दो पैर पृथ्वी भी मिले तो क्या लगता है? सतयुग के पलंगों से भी श्रेष्ठ है। सब आराम से रहे हुए हैं कि मजबूरी से? क्या करें, रहना ही है....। भक्ति मार्ग में तो सिर्फ पांव रखने के लिये इतनी मेहनत करते हैं, आपको सोने के लिये तीन पैर नहीं तो दो पैर तो मिलता है। आपने तो मांगा था कि चरणों में जगह दे दो लेकिन बाप ने चरणों की बजाय पटरानी बना दिया। फिर भी मधुबन का आंगन है ना। चाहे कहाँ भी सोते हो लेकिन हैं तो मधुबन के आंगन में। इतना बाप के समीप आने का अधिकार मिलेगा-ये तो स्वप्न में भी नहीं था। तो सब खुश हो ना? दो पैर की बजाय एक पैर मिले तो भी राजी रहेंगे? बैठे­बैठे सोयेंगे! कइयों को बैठने में नींद अच्छी आती है। सोयेंगे तो नींद नहीं आयेगी। योग में बैठना और सोना शुरू। पांच दिन अखण्ड तपस्या करनी पड़े तो सब तैयार हो? खाना भी नहीं मिले तो चलेगा? कि समझते हो ये होना नहीं है? जो चीज़ वहाँ नहीं खाते वो और ही मधुबन में मिलती है। लेकिन एवररेडी रहना चाहिये। मिले तो बहुत अच्छा, न मिले तो बहुत­बहुत अच्छा। क्योंकि सबको अमृतवेले दिलखुश मिठाई तो मिलती ही है और सारा दिन खुशी की खुराक भी मिलती है। तो चल सकता है ना? ये भी ट्रॉयल करेंगे। अच्छा!

पंजाब- सभी चलते फिरते सदा ये अनुभव करते हो कि हम विश्व की सर्व आत्माओं के पूर्वज हैं? आपसे ही सब निकले हैं ना? तो सबसे बड़े ते बड़े पूर्वज आप आत्मायें हो। पूर्वज स्वरूप से सदा विश्व की सर्व आत्माओं को रहम की भावना से देखते, वरदानी बन शुभ भावना और शुभ कामना का वरदान देते रहो। साधारण नहीं, पूर्वज हैं। पूर्वज अर्थात् रहमदिल आत्मा। रहम की भावना, शुभ भावना यही विश्व की आवश्यकता है। तो सभी अपने को ऐसा विश्व का पूर्वज समझते हो या कभी­कभी अपने को साधारण समझ लेते हो? जैसे ब्रह्मा बाप ग्रेट­ग्रेट ग्रैण्ड फादर है तो ब्राह्मण क्या हैं? पूर्वज हैं ना? समझा?

पंजाब ने क्या कमाल की है? देखो, आपके वायब्रेशन्स से वायुमण्डल तो बदल गया है ना। समझते हो कि हमारे वायब्रेशन का प्रभाव है? योग तपस्या तो सभी ने अच्छी की ना। तो जो तपस्या का बल है वो व्यर्थ नहीं जाता। फल जरूर निकलता है। वैसे भी जब कोई विघ्न आता है तो अखण्ड योग रख देते हो ना? उससे फर्क पड़ता है। तो पंजाब वालों को तपस्या का समय तो बहुत मिला? अच्छा वायुमण्डल परिवर्तन हुआ है तो अभी धूमधाम से सेवा कर रहे हो? अभी चारों ओर सेवा की धूम मचा दो। जितना भी समय मिलता है उतना समय प्रमाण फायदा उठा लो। एक से अनेक निकलते हैं तो उस एक से जो अनेक निकलते हैं उनका वायुमण्डल पर प्रभाव पड़ता है। धरनी की सपलता बदल जाती है। तो अभी जोरशोर से सेवा करो। अभी चांस है सेवा करने का। लेकिन निमित्त भाव से करना, ‘मेरा’ नहीं लाना। अच्छा!

आगरा - आगरा में विशेषता क्या है? आगरा को कहते ही हैं ताज नगरी। तो आगरा वालों को सदा ही सेवा की निर्विघ्न वृद्धि की जिम्मेदारी का ताज धारण करना है। सेवा हो लेकिन उसकी विशेषता है निर्विघ्न सेवा। तो सेवा की जिम्मेदारी के ताजधारी और साथ­साथ सदा लाइट के ताजधारी अर्थात् सम्पूर्ण पवित्रता की जिम्मेदारी के ताजधारी होंगे ना? सेवा और लाइट ये डबल ताज सदा प्रैक्टिकल स्वरूप में रहे। तो ये ताज ही सर्व आत्माओं को सहज आकर्षित करेगा। तो सेवा में भी आगे बढ़ो और लाइट के ताजधारी बन दूसरों को बनाने में भी आगे बढ़ो। समझा?

हुबली, गुलबर्गा - कर्नाटक की विशेषता क्या है? वहाँ भावना ज्यादा होती है ना। तो जैसे धरनी की विशेषता है भावना, वैसे ही कर्नाटक निवासी चाहे किसी भी स्थान के हो, सभी विशेष हर सेकण्ड, हर संकल्प में शुभ भावना, शुभ कामना - इसके नेचुरल स्वरूपधारी। कर्नाटक निवासियों की विशेषता है कि व्यर्थ की समाप्ति और शुभ भावना, शुभ कामना स्वरूप सदा रहे। व्यर्थ को फुल स्टॉप। शुभ भावना और शुभ कामना का सदा फुल स्टॉक। तो स्टॉप लगाना आता है? और शुभ भावना का स्टॉक जमा करना भी आता है? स्टॉक जमा करने और स्टॉप लगाने में होशियार हो ना? जैसे आगे बैठना पसन्द करते हो ऐसे सदा हर श्रेष्ठ धारणा में भी आगे से आगे रहना। अच्छा।

तामिलनाडु, केरला -  तामिल वाले क्या करेंगे? क्या विशेष नशा रखेंगे? सबसे बड़े ते बड़ा रूहानी नशा है-हम बाप के और बाप हमारा। जो इस नशे में रहते हैं वो सदा ही निश्चित सहज विजयी हैं। तो तामिल वाले वा केरला वाले सदा इस रूहानी नशे में रहने वाले और सदा सहज विजय प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। समझा?

हैदराबाद, सिकन्दराबाद - आन्ध्रा वाले भाषा नहीं जानते हैं लेकिन भावना की भाषा जानते हैं। तो आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा में भी सेवा तो अच्छी है। सदा अपने को हम कोटों में कोई और कोई में भी कोई आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? जो गायन है कोटों में कोई, कोई में भी कोई, तो वो कौन­सी आत्मायें हैं, किसका गायन है? आन्ध्रा वालों का है? चाहे कैसी भी आत्मायें हो लेकिन बाप की तो प्यारी हो ना। तो ये खुशी सदा रहे कि जो हूँ, जैसी हूँ लेकिन बाप की प्यारी हूँ इसलिये कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा बनने का भाग्य आपको मिला है। अच्छा।

महाराष्ट्र - ‘महाराष्ट्र’ नाम लेने से ही नशा चढ़ता है ना? देश का नाम भी महान और ब्राह्मण बन गये तो आत्मायें भी महान और महान आत्माओं का कर्तव्य है सभी आत्माओं को महान बनाना। तो महाराष्ट्र वालों को हर समय संकल्प में, बोल में, कर्म में, सम्बन्ध में ‘महान’ शब्द सदा स्मृति में रहे। महान स्वरूप के स्मृति स्वरूप। संकल्प भी साधारण नहीं, महान। एक बोल भी साधारण नहीं, महान। तो ऐसे महान हो? बोलो, हाँ जी। महान हैं और महान बनाने वाले हैं तो महान शब्द सदा स्वरूप में रहे। सिर्फ मुख में नहीं लेकिन स्वरूप में।

इन्दौर, हॉस्टल की कुमारियों से - हॉस्टल की कुमारियाँ हो या हाइएस्ट, होलिएस्ट कुमारियाँ हो? हाइएस्ट भी हो, होलिएस्ट भी। ऊंचे ते ऊंचे भी हो और महान पवित्र आत्मायें भी हो। क्योंकि कुमारी जीवन का अर्थ ही है महान पवित्र। इसीलिये कुमारियों को पूजते हैं। और कुमारी से माता बनी तो सबके पांव छूने पड़ेंगे। अगर बहु बनकर घर में आई तो क्या करेंगे? सबके पांव छुयेंगे और कुमारियों के पांव पूजे जाते हैं। तो कुमारी जीवन अर्थात् महान पवित्र जीवन। ऐसी कुमारियाँ हो ना कि कभी­कभी जोश आ जाता है? आपस में एक­दो में जोश आता है कि नहीं आता? क्योंकि क्रोध भी अपवित्रता है। सिर्फ काम विकार नहीं, लेकिन उसके और भी साथी हैं। तो महान पवित्र अर्थात् अपवित्रता का नामय्निशान नहीं। इसको कहा जाता है होलीएस्ट, हाइएस्ट कुमारियाँ। तो ऐसी हो या थोड़ा­थोड़ा कभी माया को छुट्टी दे देते हो? माया प्यारी लगती है ना तो आती है! लेकिन माया कभी भी न आये इसका सहज साधन है कि सदा गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ में रहो, स्टडी, स्टडी, स्टडी। और कोई बातों में नहीं जाना। अगर कर्मणा सेवा भी करते हो तो वो भी स्टडी की सब्जेक्ट है। खाना बनाना भी स्टडी है। कर्मयोगी का पाठ है, तो पढ़ाई हुई ना? तो कुमारी जीवन में सफलता का आधार है स्टूडेण्ट लाइफ। और बातों में जाना ही नहीं है, रास्ता बन्द। ऐसे है या कभी­कभी गलत गली में चली जाती हो? नहीं। अच्छा है, अपना भाग्य तो बना लिया। अभी भाग्य की लकीर को जितना लम्बा बनाने चाहो, उतना बना सकती हो। तो छोटी लकीर नहीं खींचना, लम्बी खींचना। बापदादा भी खुश होते हैं कि कुमारी जीवन में बच गई। भाग्यवान बन गयी। और भी कुछ स्थानों से कुमारियाँ आई हैं। ट्रेनिंग वाली कुमारियां हाथ उठाओ। ट्रेनिंग करना माना सेवा की ट्रेन में चढ़ना। तो सेवा की ट्रेन में चढ़ गये कि अभी फैसला कर रहे हैं? सेवा में लग गये? अच्छा है, आदि से निःस्वार्थ सेवाधारी। सेवाधारी सभी हैं लेकिन निःस्वार्थ सेवाधारी, वो कोई­कोई हैं। आप किस लाइन में हो? निःस्वार्थ सेवाधारी या थोड़ा­थोड़ा स्वार्थ तो रखना ही पड़ेगा! नहीं। फाउण्डेशन ही ऐसा मजबूत रखना, क्योंकि सेवा में स्वार्थ मिक्स करने से सफलता भी मिक्स मिलती है। तो अच्छा है, बापदादा खुश होते हैं, जो कुमारियाँ हिम्मत रखकर सेवा में आगे बढ़ती हैं। आगे बढ़ने की मुबारक। अच्छा।

डबल विदेशी - (सभी स्थानों से पहुंचे हैं) होशियार हैं डबल फारेनर्स। जैसे सब देश के एम्बेसेडर भेजते हैं ना। तो इन्टरनेशनल ब्राह्मण परिवार हो गया ना। डबल विदेशियों की विशेषता है कि सदा हाथ में हाथ है और साथ है। विदेश का फैशन है ना हाथ में हाथ देना। तो अभी किसके हाथ में हो? बाप के। सदा बाप के हाथ से हाथ मिलाके आगे चलने वाले। हाथ है श्रीमत, तो श्रीमत का हाथ सदा हाथ में है। पक्का है कि कभी थक जाते हैं तो छोड़ देते हैं? कभी हाथ छूटता है? माया छुड़ावे तो? नहीं छूटता है? तो सदा साथ रहने वाले और सदा श्रीमत के हाथ में हाथ देकर चलने वाले। जिसका साथी बाप है, जिसका हाथ बाप के हाथ में है वो सदा ही निश्चिन्त, बेफिक्र बादशाह है। क्योंकि हाथ और साथ दोनों मजबूत हैं। ठीक है ना? नैरोबी वाले, पक्का हाथ और साथ है ना? चाहे सारी दुनिया के अक्षौहिणी लोग हाथ छुड़ाये तो छूटेगा? वो अक्षौहिणी शक्तिहीन हैं और आप एक मास्टर सर्व शक्तिमान हैं। इसीलिये डबल विदेशियों को नशा है कि बापदादा का एक्स्ट्रा हाथ और साथ है, लिफ्ट है। अच्छा।

टीचर्स - जैसे टीचर्स का टाइटल है, तो जैसा टाइटल है वैसे विशेष बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल बनाने में टाइट रहना। हल्के नहीं होना। क्योंकि निमित्त टीचर्स का वायुमण्डल अनेकों तक पहुँचता है। तो टीचर्स अभी ये कमाल करके दिखायें। जैसे परिवर्तन में आज्ञाकारी तो बने। आज्ञाकारी बनने का, हाँ जी करने का एक पाठ तो पक्का कर लिया। लेकिन दूसरा पाठ बेहद के वैराग्य वृत्ति का, अभी ये पाठ पक्का करके दिखाओ। क्योंकि निमित्त हो ना। तो निमित्त आत्मायें ही निर्मान बन निर्माण का कर्तव्य बहुत सहज कर सकती हैं। अभी ये वर्ष तो पूरा हो ही रहा है। लेकिन नये वर्ष में इस नवीनता की झलक बापदादा भी देखेंगे। सेवा की, सेन्टर खोले, बहुत बढ़ाया, आई.पीज भी आ गये, वी.आई.पीज भी आ गये, ये तो होता ही रहता है लेकिन सेवा में बेहद की वैराग्य वृत्ति अन्य आत्माओं को और समीप लायेगी। मुख की सेवा सम्पर्क में लाती है और वृत्ति से वायुमण्डल की सेवा समीप लायेगी। समझा? बापदादा तो चार्ट देखते ही हैं ना? फिर भी सेवा के निमित्त हो-ये श्रेष्ठ भाग्य कम नहीं है! ये भी विशेष वर्सा है। तो इस विशेष वर्से के भाग्य के अधिकारी बने हो। समझा? अच्छा।

चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को, सदा सर्व प्राप्तियों के अनुभूतियों में समाये हुए श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा परखने की, निर्णय करने की शक्ति को तीव्र बनाने वाले समीप आत्माओं को, सदा सेवा में समर्थ बन समर्थ बनाने के निमित्त आत्माओं को, सदा न्यारा और प्यारा दोनों का बैलेन्स रखने वाली ब्लैसिंग के पात्र आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।



14-12-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


समय­संकल्प­बोल द्वारा कमाई जमा करने का आधार - तीन बिन्दी लगाना

आज बापदादा किस सभा में आये हैं? ये सारी सभा किन आत्माओं की है? आ बापदादा देख रहे हैं कि हर एक हाइएस्ट (Highest), रिचेस्ट (Richest) हैं। दुनिया वाले तो कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप सभी हैं रिचेस्ट इन कल्पा। इस समय का जमा किया हुआ खज़ाना सारा कल्प साथ में चलता है। सारे कल्प में ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा जो ये सोचे कि इस जन्म में तो रिचेस्ट हूँ लेकिन भविष्य में भी अनेक जन्म साहूकार से साहूकार रहूंगा। और आप सभी निश्चय और नशे से कहते हो कि हमारा ये खज़ाना अनेक जन्म साथ रहेगा। गैरेन्टी है ना? तो ऐसा रिचेस्ट सारे कल्प में देखा? तो आज बापदादा अपने शाहन के भी शाह, राजाओं के भी राजा बच्चों को देख रहे हैं। एक­एक दिन में कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकालो, जमा का खाता कितना तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है? और बढ़ाने का साधन कितना सहज है! इसमें मेहनत है क्या? आपकी कमाई वा जमा खाता बढ़ने का सबसे सहज साधन है - बिन्दी लगाते जाओ और बढ़ाते जाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में भी बीती को बिन्दी लगाना। तो कमाई का आधार है बिन्दी लगाना। और कोई मात्रा है ही नहीं। क्या, क्यों, कैसे-ये क्वेश्चन मार्क की मात्रा, आश्चर्य की मात्रा, किसी की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल बन गये। तो ‘कैसे’ शब्द ‘ऐसे’ में बदल गया। बदल गया या अभी भी ‘कैसे­कैसे’ कहते हो? ‘पता नहीं’ ये शब्द संकल्प में भी बदल गया? त्रिकालदर्शी ये स्वप्न में भी नहीं सोच सकते तो मुख से तो बोलने का सवाल ही नहीं है। संगम पर सारा खेल ही तीन बिन्दियों का है। सबसे सहज बिन्दी होती या क्वेश्चन मार्क सहज है? बिन्दी सहज है ना? बिन्दी लगाने में कितना टाइम लगता? सेकण्ड से भी कम। बिन्दी लगाना आता है कि कलम खिसक जाती है? कई बार बिन्दी के बजाय कलम भी लम्बी लकीर खींच लेती है। बिन्दी लगाने से एक सेकण्ड में आपके कितने खज़ाने बच जाते हैं। खज़ानों की लिस्ट तो जानते हो ना? अगर बिन्दी के बजाय और कोई मात्रा लगाते हो वा लग जाती है, तो सोचो ज्ञान का खज़ाना गया, शक्तियों का खज़ाना गया, गुणों का खज़ाना गया, संकल्प का खज़ाना गया, इनर्जा गई, श्वास सफल के बजाय असफलता में गया, समय गया! कितना गया? लम्बी लिस्ट हो गई ना? तो ये कभी भी नहीं सोचो कि एक­दो सेकण्ड ही तो गया। लेकिन एक सेकण्ड में गँवाया कितना? एक सेकण्ड भी कितना भारी हो गया? हर समय अपने जमा का खाता बढ़ाते चलो। कमाया क्या और गँवाया क्या? इन सभी खज़ानों में से कितने खज़ाने गँवाये? बापदादा भी बच्चों के जमा के खाते चेक करते रहते हैं। जब खाता देखते हैं तो मुस्कराते रहते हैं। क्या देखते होंगे जो मुस्कराते हैं? अमृतवेले मिलन भी मनाते, रूहरिहान भी करते, वायदे भी बहुत अच्छे करते कि ये करेंगे, ये करेंगे, बहुत अच्छी­अच्छी बातें करते हैं लेकिन चलते­चलते सारे दिन में कोई न कोई खज़ाना गँवा भी देते हैं। फिर आधार क्या बनाते हैं? बापदादा को भी अपनी अच्छी­अच्छी बातें सुनाने लगते हैं। अगर व्यर्थ संकल्प चला तो क्या ये जमा हुआ या गँवाया? तो फिर बातें क्या करते हैं? सिर्फ संकल्प में चला ना-वो तो ठीक हो जायेगा, बाप को भी दिलासे दिलाते हैं कि ठीक हो जायेगा, पुरूषार्थी हैं ना, सम्पूर्ण तो नहीं हुए हैं, हो जायेगा.....। तो बापदादा कहते हैं कि ये गा­गा के गीत सारे दिन में बहुत सुनते हैं लेकिन ये भी कब तक? क्या अंत में सम्पूर्ण होना है? कि बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल का वर्सा पाना है? वर्सा अविनाशी चाहते हो? सम्पूर्ण वर्सा चाहते हो कि अधूरा चलेगा? और पुरूषार्थ में अधूरा पुरूषार्थ चलेगा? तो पुरूषार्थ के समय तो करेंगे, देखेंगे, बनेंगे, कर ही लेंगे, हो ही जायेगा..... ये सोचते हो और प्राप्ति के समय गे­गे करेंगे? उसमें तो सम्पूर्ण प्राप्ति चाहिये, सम्पूर्ण वर्सा चाहिये। सभी लक्ष्मी­नारायण बनने में हाथ उठाते हो। मालूम भी है कि लक्ष्मी­नारायण की भी आठ गद्दियाँ चलेंगी लेकिन हाथ तो लक्ष्मी­नारायण में उठाते हो ना? तो लक्ष्मी­नारायण का अर्थ है नम्बरवन पास विद् ऑनर होना। बापदादा बच्चों की हिम्मत को देखकर खुश भी होते हैं। राम­सीता में कोई नहीं हाथ उठाता। हिम्मत अच्छी है और हिम्मत वाले को मदद भी मिलती है। सिर्फ पुरूषार्थ के समय भी जैसे बाप के आगे संकल्प करते हो वैसे ही ये बोल और कर्म में लाओ।

बापदादा ने देखा समय के खज़ाने का महत्व जितना रखना चाहिये उतना कई बच्चे नहीं रखते हैं। एक दिन का भी चार्ट चेक करें तो मैजारिटी का समय वेस्ट के खाते में जाता दिखाई देता है। द्वापर काल से व्यर्थ सुनने, देखने और फिर सोचने की आदत न चाहते भी आकर्षित कर लेती है और इसी कारण समय का खज़ाना वेस्ट के खाते में चला जाता है। पहले भी सुनाया कि सेकण्ड का भी कितना महत्व है! दूसरी बात, मैजारिटी व्यर्थ बोल में भी समय वेस्ट करते हैं। एक घण्टे के अन्दर भी चेक करो कि जो भी बोल बोला, हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना है? बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती है। अगर हर बोल में शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना नहीं है तो अवश्य माया की भावनायें हैं। वो तो अनेक हैं, ईर्ष्या, हषद, घृणा, ये भावनायें चाहे किसी भी परसेन्ट में समाई हुई होती है। कई बार बोल के टेप रिकॉर्ड बापदादा सुनते हैं। हर एक की ऑटोमेटिक टेप भरती जाती है और जिस घड़ी जिसकी भी सुनना चाहे वो सुन सकते हैं। हर बोल का सार नहीं होता। कई बार कहते भी हो मेरी भावना, मेरा भाव खराब नहीं था, ऐसे ही निकल गया वा बोल दिया लेकिन जिस बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना नहीं, वो किस खाते में जमा होगा? वेस्ट में हुआ ना? तो कमाई का खाता ज्यादा होगा या गँवाने का खाता ज्यादा होगा? ये तो गँवाया ना? तो बोल में भी गँवाने का खाता ज्यादा होता है। तो बोल को भी चेक करो। ऐसे ही बोल दिया-ये भाषा बदली करो। समर्थ बोल का अर्थ ही है-जिस बोल में किसी आत्मा को प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर सार नहीं है तो जमा का खाता तो नहीं होगा ना? जितना एक दिन में जमा कर सकते हो, तो बापदादा ने देखा जितने के हिसाब से उतना नहीं है। तो क्या करना पड़ेगा? लक्ष्मी­नारायण तो बनना ही है ना? कि नहीं बने तो भी हर्जा नहीं! पहले जन्म से लेकर श्रेष्ठ प्रालब्ध पानी है कि दूसरे­तीसरे जन्म से शुरू करेंगे? पहले जन्म में नहीं आओ, दूसरे­तीसरे में आओ, पसन्द है? नहीं पसन्द है ना? तो इतना जमा का खाता है? अगर खाता कम जमा होगा तो प्रालब्ध क्या खायेंगे? उतना ही खायेंगे जितना जमा किया है। तो आज बापदादा ने सभी के जमा के खाते देखे। दूसरों को समय का महत्व बहुत अच्छा सुनाते हो, संगमयुग की महिमा कितनी अच्छी करते हो! तो स्वयं भी सदा समय के महत्व को सामने रखो। समय के पहले अपने श्रेष्ठ भाग्य के आधार से प्राप्तियों का खाता फुल जमा करो।

संगमयुग के समय की विशेषता है कि तीनों रूप की प्राप्ति है। एक-वर्से के रूप में, दूसरा-पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहते हैं तो पढ़ाई की प्राप्ति के आधार से और तीसरा है वरदान के रूप में। वर्सा भी है, इनकम भी है और वरदान भी है। प्राप्ति बहुत भारी है, बहुत बड़ी है! सिर्फ सम्भालने वाले बनो। वर्सा भी बेहद है, इनकम भी बेहद है और वरदान भी बेहद के हैं। कभी सोचा था कि रोज भगवान का वरदान मिलेगा? इतने वरदान किसी को भी, कभी भी नहीं मिल सकते। लेकिन आप तो कहते हो हमारा तो अधिकार है। वर्से पर भी, पढ़ाई पर भी और वरदान पर भी। छोटी बात नहीं है, बहुत बड़ी है! तीनों ही सम्बन्ध से तीनों के ऊपर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया ना? सभी फखुर से कहते हैं ना-बाप मेरा है। ये कहते हो क्या कि मेरा नहीं, तेरा है? हमारे लिये बाप पढ़ाने आता है-ये समझते हो ना? तो पढ़ाई पर अधिकार है ना? और वरदाता के पास वरदान है ही किसके लिये? हरेक सोचता है कि मेरे लिये ही वरदाता बाप है। तो तीनों पर अधिकार है। कहने में तो बहुत साधारण है। इसीलिये तो दुनिया वाले हंसते हैं कि, हैं क्या और कहते क्या हैं? तो अधिकार को सदा स्मृति में रख कदम उठाओ। इमर्ज रूप में रखो, मर्ज रूप में नहीं। हैं तो ब्रह्माकुमार, हैं ही बाबा के... ऐसे नहीं। इमर्ज रूप में, मन में, बुद्धि में, कर्म में इमर्ज रखो। मन में ये संकल्प इमर्ज हो कि मैं ये हूँ, बुद्धि में स्मृति स्वरूप हो और कर्म में अधिकारी के निश्चय और नशे से हर कर्म हो। ऐसे नहीं, अमृतवेले तो इमर्ज रहता है फिर सारे दिन में मर्ज हो जाता है। नहीं, सदा इमर्ज रूप में रहे। तो जमा का खाता बढ़ाओ। तीव्र गति से बढ़ाना, ढीला­ढाला नहीं करना। क्योंकि समय आप मास्टर रचयिता के लिये रूका हुआ है। अभी भी प्रकृति को ऑर्डर करें तो क्या नहीं कर सकती है? अगर पांचों ही तत्व हलचल मचाना शुरू कर दें तो क्या नहीं हो सकता और कितने में हो सकता? तो समय, प्रकृति और माया विदाई के लिये इन्तजार कर रही है। आप सम्पूर्णता की बधाइयाँ मनाओ तो वो विदाई लेकर ही जायेगी। माया भी देखती है अभी ये तैयार नहीं हैं तो चांस लेती रहती है। प्रकृति को ऑर्डर करें? पुरूष तैयार हैं? प्रकृति तो तैयार हो जायेगी। ऑर्डर करें? कि ज्ञान सरोवर तैयार हो पीछे ऑर्डर करें? ऐसे एवररेडी हो, कि रेडी हो? शक्तियाँ एवररेडी हैं? सम्पूर्ण हो गये? थोड़े को तो एवररेडी नहीं कहेंगे ना? ये सोचो, चेक करो कि अगर इस घड़ी भी महाविनाश हो जाये तो अपनी तस्वीर देखो नॉलेज के आइने में, कि मैं क्या बनूँगा? आइना तो सबके पास है ना? क्लीयर है ना? तो अपने तकदीर की तस्वीर देखो। बाप को क्या टाइम लगेगा? जब ब्रह्मा के लिये गायन है कि संकल्प से सृष्टि रच ली तो क्या संकल्प से विनाश नहीं हो सकता? बाप जानते हैं राजधानी चलनी है तो उसमें एक ब्रह्मा क्या करेगा? साथी चाहिये ना? तो ब्रह्मा बाप भी आप साथियों के लिये रूके हुए हैं। तो बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं, बच्चे तो बाप से प्रश्न बहुत कर चुके हैं। अभी बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं कि डेट फिक्स करो। सभी काम की डेट फिक्स करते हो ना? तो इसकी भी डेट फिक्स करो, इसका भी मुहूर्त होना है ना। ज्ञान सरोवर की भी डेट फिक्स है, हॉस्पिटल की भी डेट फिक्स है। इसकी डेट क्या है? ये किसको फिक्स करनी है? बाप को नहीं करनी है। ये बाप ने आप बच्चों के हाथ में दिया है। कोई काम तो आप भी करेंगे, कि सब बाप करेंगे? डेट फिक्स का प्रोग्राम बनाना। अच्छा!

(ये बच्चों को देखते हुए) देखो, आप नये­नये बच्चे जो आये हैं, आप से सबका कितना प्यार है? पहला चांस आप सबको ही देते हैं। सब खुशराजी हैं? कितने पैर पृथ्वी मिली है? दो पैर या तीन पैर? (दो पैर) दो पैर में भी राजी तो हो, तकलीफ तो नहीं है ना? खाना­पीना तो अच्छा मिल रहा है ना? मेले में ऐसी पालना और कोई की हो ही नहीं सकती। मेले देखे हैं ना? ऐसा ब्रह्मा भोजन, ऐसा परमात्म परिवार कहाँ मिलता है? सर्दी लगती है? मौसम की भी मिठाई होती है। तो ये सर्दी भी मौसम की मिठाई है, मिठाई तो खानी चाहिये ना? सबको शालों की सौगात तो मिलती है ना? कोई मेले में ऐसी सौगात मिलती है या खाली होकर आते हो? अच्छा-नयों की दिल पूरी हुई, मधुबन देख लिया? पहले स्वप्न में था, अभी साकार में हो गया। कितना भी स्थान बढ़ायेंगे लेकिन कम होना ही है। क्यों? सोचो, अभी 9 लाख जमा हुए हैं? पहले जन्म की संख्या ही तैयार नहीं हुई है। वो तो होनी है ना? कितने मकान बनायेंगे? कितने ज्ञान सरोवर बनायेंगे? सभी कहते हैं संख्या बढ़ाओ। जितना संख्या बढ़ायेंगे, उतनी संख्या दूसरे वर्ष और हो जायेगी तो क्या करेंगे? जितना मिले उतने में राजी रहो। मेला भी करना है ना? (तलहटी में ब्राह्मणों का विशाल संगठन होना है) ये तो मेले में आने नहीं हैं, ये तो आ गये। दूसरों के लिये इतना बड़ा मेला पसन्द है? दस हजार सोयेंगे! भीड़ नहीं हो जायेगी? ये तो समझते हैं हमको तो चांस मिलना नहीं है। इन्तजार की घड़ियाँ भी प्यारी होती हैं। एक साल के बाद जाना है-ये इन्तजार होता है ना? तो इन्तजार में पुरूषार्थ कितना अच्छा चलता है! और जब होकर चले जायेंगे तो देख लिया, फिर क्या होगा? फिर अलबेलापन आयेगा? नहीं आयेगा? और आगे बढ़ेंगे? ये भी ड्रामा में जो विधि बनी है वो बहुत ही फायदे वाली है। एक साल में पक्के तो हो जाते हो ना? नहीं तो कच्चे­कच्चे आ जाते फिर युद्ध करनी पड़ती।

हर साल में आपके यहाँ (मधुबन में) इन्टरनेशनल मेले कितने लगते हैं? अभी भी ये मेला क्या है? इन्टरनेशनल है ना? देशय्विदेश सब तरफ के हैं ना? दुनिया वाले तो सोचते हैं इन्टरनेशनल प्रोग्राम पांच साल में एक किया तो बहुत कर लिया। और मधुबन में कितने होते हैं, पता पड़ता है? इन्टरनेशनल मेला हो गया। और सब खुश! मजा आता है ना? लेकिन आना टर्न पर। अभी तो देखो दस हजार में भी टेन्ट तो मिलेगा ना? आखिर में ये सब साधन समाप्त हो जायेंगे। सारे आबू के पहाड़ों को सोने के स्थान बना लो तो कितने रह सकते हैं? अच्छा!

दिल्ली ग्रुप - पहले तो दिल्ली वालों को डेट फिक्स करनी पड़ेगी। क्योंकि देहली को परिस्तान बनाना है ना? राज गद्दी तो दिल्ली में होनी है ना? तो पहले दिल्ली वालों को तैयारी करनी पड़ेगी तब तो राज्य करेंगे ना? तो दिल्ली वाले क्या तैयारी करेंगे? दिल्ली वालों को एक्स्ट्रा सेवा करनी पड़ेगी। क्योंकि एक तो आत्माओं को योग्य और योगी बनाना है, दूसरा धरणी को भी तैयार करना है। तो विशेष अपने वाणी के साथ­साथ वृत्ति को और तीव्र गति देनी पड़ेगी। क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा, तब तैयार होंगे। तो दिल्ली वालों को डबल सेवा का सदा अटेन्शन रखना है। वाणी और वृत्ति दोनों साथ­साथ सेवा में लगे रहें। सभी पावरफुल वृत्ति वाले हो ना? ढीला पुरूषार्थ नहीं करना। क्योंकि अगर आप देरी करेंगे तो राज्य भी देरी से स्थापन होगा। इसलिये दिल्ली वालों को सदा ही डबल सेवा द्वारा तीव्र गति से तैयारी करनी है, राजधानी बनानी है। बनायेंगे तो नजदीक भी रहेंगे ना? तो डबल सेवा द्वारा ऐसा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ जो प्रकृति भी दासी बन जाये, हलचल करने के बजाय दासी बनकर सेवा करे। तो देहली निवासी विश्व परिवर्तक तो हो ही लेकिन विश्व में भी राजधानी परिवर्तन के विशेष निमित्त हो। नशा है ना? तो डबल सेवा करनी है, तब ही डबल ताज मिलेगा, ऐसे नहीं मिलेगा। सेवाधारी सो ताजधारी। अच्छा।

बम्बई, महाराष्ट्र - बम्बई वाले क्या करेंगे? देहली वाले राजधानी तैयार करेंगे, आप प्रजा और राजा­रानी तैयार करेंगे? बाम्बे वालों को विशेष ब्रह्मा बाप का वरदान है। (रमेश भाई से) कौन­सा वरदान है? (नरदेसावर) नरदेसावर का अर्थ है सदा सम्पूर्ण, सदा भरपूर। कभी कोई कमी नहीं होगी। नरदेसावर अर्थात् सदा कमाने वाले, कमाने में होशियार। ऐसे नरदेसावर, सदा भरपूर हो? या कभी खाली हो जाते हो? इतना भरपूर जो औरों को भी भरपूर करने वाले। बाम्बे वाले राजधानी के राजा­रानी और प्रजा तैयार करेंगे। बाम्बे वालों का तो बहुत बड़ा काम हो गया! देहली वालों को भी राज्य अधिकारी तो बनाने पड़ेंगे। क्योंकि अभी भी देखो लास्ट जन्म में भी राज्य अधिकारी तो देहली में ही हैं। तो देहली और बाम्बे दोनों को मिलकर राजधानी जल्दी­जल्दी तैयार करनी है। पसन्द है? डेट भी फिक्स करेंगे ना? डेट नहीं भूल जाना। देहली और बाम्बे वाले जब कहेंगे राजधानी तैयार हो गई तब तो काम होगा ना? राज्य अधिकारी हो नहीं और राज्य तैयार हो जाये, कैसे होगा? बाम्बे में सेवा के रत्न भी अच्छे­अच्छे हैं। अच्छे हैं या अच्छे ते अच्छे हैं? बाप कहते हैं अच्छे ते अच्छे हैं। देखो, एक­एक रत्न, पुराने­पुराने रत्न गिनती करो तो कितने अच्छे हैं। दिल्ली में भी हैं, बाम्बे में भी हैं। क्योंकि आदि से सेवा के निमित्त बने हो। ऐसे तो गुजरात भी कम नहीं हैं। गुजरात लास्ट सो फास्ट है और ये आदि हैं। गुजरात ने वृद्धि बहुत जल्दी की है।

नागपुर, पूना - नागपुर वा पूना वाले राजधानी में विशेष क्या करेंगे? राजधानी को सजायेंगे? महाराष्ट्र सजाने की ड्युटी ज्यादा लेता है ना? कितना भी तैयार हो जाये कोई लेकिन सजावट नहीं तो कुछ नहीं। तो महाराष्ट्र वाले राजधानी को सजायेंगे। सजाने के लिये साधन तैयार करने पड़ते हैं ना? तो महाराष्ट्र वाले सदा अपने सहयोग से सहयोगी आत्माओं को निमित्त बनायेंगे। क्योंकि जितना आगे चलते जायेंगे, सहयोगी आत्मायें सदा ही सहयोग के हाथ बढ़ाते हुए परिवर्तन में आगे बढ़ेंगे। ब्राह्मणों के जोन में तो महाराष्ट्र बहुत बड़ा है ना? तो जैसे अभी भी सेवा में, हर कार्य में सहयोगी बनते हो और आगे भी अनेक सहयोगी आत्माओं द्वारा राजधानी को सजाने में सहयोगी बनेंगे। तो महाराष्ट्र वाले सहयोग देने में और सहयोगी बनाने में अच्छे निमित्त हैं और आगे भी रहेंगे। ऐसे हैं ना? योग शिविर में भी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के आते हैं ना और ब्राह्मण परिवार में संख्या किसकी ज्यादा आती है? (महाराष्ट्र की) अच्छा है, वृद्धि है और सहयोग की विधि से सफलता को पाते रहना ही है। समझा? अच्छा!

भोपाल -  भोपाल वाले राजधानी में क्या तैयारी करेंगे? भोपाल वाले नगाड़ा बजायेंगे। वैसे भी जब तक नगाड़ा नहीं बजेगा तो तैयारी कैसे होगी? तो भोपाल वाले बहुत जोरशोर से चारों ओर नगाड़ा बजायेंगे। क्या नगाड़ा बजायेंगे? बाप आ गया, वर्सा ले लो-ये नगाड़ा बजायेंगे। नक्शे के हिसाब से भी मध्य प्रदेश है ना। वैसे भी जब कोई आवाज फैलाना होता है तो बीच में खड़े होकर फैलायेंगे ना? तो खूब नगाड़ा बजाओ। बजा भी रहे हैं और बजायेंगे भी। सबको खुशनसीब बनने की खुशखबरी सुनायेंगे। खुशखबरी सुनाने में होशियार हो ना? सबको खुशखबरी सुनाना, यही सबसे बड़ा श्रेष्ठ कर्तव्य है। क्योंकि चारों ओर दु:ख­अशान्ति की खबरें सुनते रहते हैं। तो ऐसी आत्मायें खुशखबरी सुनकर कितनी खुश होंगी! सबके दिल से निकलेगा कि वाह! परमात्म बच्चे वाह! तो ऐसा श्रेष्ठ कार्य करना ही है। हुआ ही पड़ा है, सिर्फ निमित्त करना है। राजधानी भी तैयार हुई पड़ी है, प्रजा भी तैयार है, आप सिर्फ ठप्पा लगाते जाओ, बस। अच्छा।

कर्नाटक - कर्नाटक वाले क्या करेंगे? कर्नाटक के धरनी की क्या विशेषता है? भावना वाले ज्यादा हैं, तो भावना प्रधान आत्मायें क्या करेंगी? आत्माओं में श्रेष्ठ भावना पैदा करने के निमित्त बनेंगी। जैसे धरनी की विशेषता है, वैसे चारों ओर सारे विश्व को तैयार करने के लिये सभी में श्रेष्ठ भावना, शुभ भावना उत्पन्न करेंगे। श्रेष्ठ भावना क्या है? हम बाप के और बाप हमारा। इस श्रेष्ठ भावना से सभी भावना का फल सहज प्राप्त करेंगे। भावना का फल बहुत जल्दी मिलता है। तो ऐसी सहज सेवा करो जो भावना उत्पन्न करो और भावना का फल सहज प्राप्त करो। तो ये सेवा करना आता है कि नहीं? अभी से फरिश्ते बन गये हैं क्योंकि भाषा नहीं समझते हैं लेकिन इशारों से समझ जाते हैं। तो समझा, कर्नाटक वालों को क्या करना है? सहज फल खिलाओ, मेहनत नहीं कराओ। कर्नाटक की धरनी में वृद्धि बहुत सहज होती है। तो जैसे आप लोगों की धरनी है वैसे औरों की धरनी को भी तैयार करो और फल की प्राप्ति करो।

आन्ध्र प्रदेश - आन्ध्र प्रदेश क्या करेंगे? ऐसा कोई नया प्लैन बनाओ, जैसे साइन्स वाले नई­नई इन्वेन्शन निकालते रहते हैं ना, तो थोड़े समय में प्राप्ति ज्यादा हो तो आन्ध्र प्रदेश ऐसे ही इन्वेन्शन करो जो थोड़े समय में आत्मायें अनुभूति की प्राप्तियाँ ज्यादा अनुभव करें, उसका साधन क्या है जो समय कम लगे और प्राप्ति ज्यादा हो? इसका साधन है आन्ध्र प्रदेश की हर ब्राह्मण आत्मा को लाइट हाउस, माइट हाउस बनना पड़े। लाइट हाउस कितना जल्दी लाइट फैलाता है और चारों ओर फैला देता है। तो आन्ध्र प्रदेश लाइट हाउस, माइट हाउस बन ऐसा प्रकाश फैलाओ जो सबको दिखाई दे कि मैं आत्मा हूँ और बाप आ चुका है। रोशनी में दिखाई देता है ना कि मैं कौन हूँ? तो ऐसे लाइट और माइट हाउस बनकर लाइट और माइट फैलाओ।

डबल विदेशी - डबल विदेशियों ने बाप का एक टाइटल तो प्रैक्टिकल कर लिया है। कौन सा? सर्वव्यापी का। कोई ऐसा प्रोग्राम नहीं होता जिसमें डबल विदेशी न हो। तो सर्व कार्य में व्यापी हो गये और बापदादा को भी खुशी होती है। क्योंकि डबल विदेशियों से इन्टरनेशनल हो जाता है। बाप का टाइटल भी विश्व कल्याणकारी है ना। भारत कल्याणकारी तो नहीं है ना। तो जब डबल विदेशी आते हैं तो बाप का भी विश्व कल्याणकारी टाइटल सिद्ध कर देते हैं। रौनक हो जाती है। डबल विदेशियों की विशेषता है - हर कार्य में रौनक करने वाले। वहाँ गोल्डन दुनिया में भी क्या करेंगे? चारों ओर रौनक मचा देंगे। विदेश में वैसे भी लाइट की सजावट की रौनक बहुत होती है ना। तो ब्राह्मण परिवार की रूहानी रौनक डबल विदेशी हैं। डबल विदेशी कहाँ­कहाँ से आये हैं? (लन्दन, नैरोबी, न्युजीलैण्ड, जर्मनी, जापान, मैक्सिको) मैक्सिको नाच रहा है, मैक्सिको वालों की बहादुरी भी बहुत अच्छी है, स्थान भी दूर है और इकॉनॉमी सिस्टम भी विचित्र ही है। फिर भी भावना और स्नेह पहुँचा देता है। इसलिये मैक्सिको वालों को मुबारक। अच्छा, देखो लन्दन वाले भी बहुत आगे बढ़ा रहे हैं, समाचार सुना चाबी मिल गई है। (लन्दन शहर में म्यूजयम के लिए मकान मिला है) इससे क्या सिद्ध हुआ कि ब्राह्मणों का दृढ़ संकल्प जो चाहे वो कर सकता है। बुद्धिवान बन किसी की भी बुद्धि को बदल सकते हैं। कायदे भी बदल करके फायदे में दिखाई देते हैं। विदेश के कायदे कितने सख्त हैं लेकिन कायदे के ऊपर फायदा विजय प्राप्त कर लेता है। (बाबा करनकरावनहार बन करा लेता है) लेकिन ब्राह्मण बच्चे भी भुजायें हैं। भुजाओं के बिना तो कोई काम नहीं होता।

जीतू भाई (ज्ञान सरोवर के कान्ट्रैक्टर) परिवार सहित बापदादा के सामने सभा में बैठे हैं:­ बाप की भुजा हो ना? (राइट हैण्ड हैं) मुबारक हो। राइट हैण्ड की मुबारक हो। परमात्म भुजा बनना कितना बड़ा भाग्य है! सेवा के सहयोगी बनना अर्थात् भुजा बनना। सभी का बाप से अच्छा प्यार है। बाप को भी प्यार है। बाप से ज्यादा प्यार है या प्रवृत्ति से ज्यादा प्यार है? (दोनों से) जवाब देने में होशियार हैं। अच्छा है कितने शेयर्स आप लोगों ने इकट्ठा किया है? अपना एकाउण्ट देखा है? सारे परिवार को कितने शेयर्स मिले हैं? अगर घर बैठे शेयर मिल जायें, बिना मेहनत के तो इसको भाग्य कहेंगे ना? अच्छा है, बाप से भी मिल लिया, मना भी लिया। परिवार ही अच्छा है।

(डा.अशोक मेहता से) ये क्या मनाने आये हैं? बर्थ डे मनाने आये हैं। जन्मते ही भाग्य की लकीर श्रेष्ठ लेकर आये हो। गीत है ना तकदीर जगाकर आये हैं। तो जन्मते मेहनत करनी पड़ी है कि सहज प्राप्ति से आगे बढ़ते जाते हैं? सहज प्राप्ति है ना! तो तकदीर लेकरके ही आये हैं। और कलम तो हाथ में है ही। सेवा का बल, परिवार का सहयोग और बाप का प्यार तीनों प्राप्त हैं। तो तीनों सहज कर रहे हैं और करते रहेंगे। परिवार के भी समीप आने में देरी नहीं लगी ना? बाप के समीप जल्दी आये तो परिवार के समीप भी बहुत तीव्र गति से आ रहे हो। देखो, कितने प्यारे हो सबके! जिसका बाप से और सेवा से प्यार है ना तो बाप का और परिवार का प्यार स्वत: ही मिलता है। ऐसे हैं ना? सब पहचाने हुए लगते हैं ना। कहाँ भी जाओ तो आपको जल्दी पहचान लेंगे ना? अच्छा, सभी ने दिल खुश मिठाई खाई?

टीचर्स - देखो, टीचर्स नहीं होती तो आप लोग कैसे आते? टीचर्स का महत्व है ना! फिर भी निमित्त टीचर्स तो हैं। आप सभी को पाठ पक्का कराने वाले निमित्त हैं ना? उमंग­उत्साह बढ़ाने वाले निमित्त टीचर्स हैं। टीचर्स का विशेष कार्य ही है उमंग­उत्साह के पंख लगाए, स्वयं भी उड़ने वाले और दूसरों को भी उड़ाने वाले। योग्य टीचर्स की विशेषता ही यह है कि आने वाले हर स्टूडेण्ट सदा ही सहज पुरूषार्थ द्वारा आगे से आगे उड़ते रहेंगे। वैसे टीचर्स का भाग्य ब्राह्मण परिवार में एक्स्ट्रा भी है। क्योंकि निमित्त बनना ये एक एक्स्ट्रा लिफ्ट है। सेवा के अधिकारी बनना-ये एक्स्ट्रा अधिकार अन्दर बहुत मदद करता है। तो टीचर्स को बापदादा सदा निमित्त और समान सेवाधारी समझते हैं। जो बाप का कार्य वो निमित्त टीचर्स का कार्य। तो बापदादा सदा टीचर्स को समान स्वरूप से देखते हैं। इतना स्नेह और इतना रिगार्ड बाप सदा देते हैं और उसी नजर से देखते हैं कि ये समान सेवाधारी हैं। टीचर्स के बिना तो काम नहीं चलेगा ना! आप लोगों को ठप्पा तो टीचर्स का लगाना पड़ता है ना? अगर टीचर्स आपके फॉर्म पर ठप्पा नहीं लगायेंगी तो कैसे आयेंगे? अच्छा!

चारों ओर के हाइएस्ट और रिचेस्ट श्रेष्ठ आत्माओं को, हर खज़ानों के मालिक सम्पन्न आत्माओं को, सदा स्वयं को एवररेडी बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी आत्माओं को, सदा समय, संकल्प, बोल द्वारा श्रेष्ठ कमाई का खाता जमा करने वाले अति समीप आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादी जी से :­

सब सहज चल रहा है ना? मेला चल रहा है या खेल चल रहा है? सन्तुष्टता का खेल चल रहा है। सन्तुष्ट करने वाले सन्तुष्ट करते हैं और सन्तुष्ट होने वाले सन्तुष्ट होते हैं। ये सन्तुष्टता का खेल सभी को प्यारा लगता है। और सब ठीक है? (तलहटी में दो टर्न का सोचा है) पहले लिस्ट देखो, पीछे दो बारी भी होगा तो कोई बात नहीं। बाप बच्चों की सब आशायें पूर्ण करता है। बाप को आने में तो कोई तकलीफ नहीं है ना। चाहे मधुबन, पाण्डव भवन में आये, चाहे तलहटी में आये, उनको आने में कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ तो बच्चों को है, लेकिन वो तकलीफ नहीं लगती। जब बच्चे हिम्मत रखते हैं कि हमारे लिये तकलीफ नहीं है, मनोरंजन है, तो बाप को तो तन में ही आना है ना, बस। संगम पर करना ही क्या है? मेला और खेला। सेवा है खेल। मेला मचाओ, सेवा का खेल करो, और क्या करना है? खाओपियो, ब्रह्मा भोजन खाओ। अच्छा।


 


23-12-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


अपने तीन स्वरूप सदा स्मृति में रहें - 1­संगमयुगी ब्राह्मण, 2­ब्राह्मण सो फरिश्ता और 3­फरिश्ता सो देवता

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं। सबसे श्रेष्ठ स्वरूप है ब्राह्मण और ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता। ब्राह्मण स्वरूप, फरिश्ता स्वरूप और देवता स्वरूप। ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता सर्व शक्तियों सम्पन्न स्वरूप की है। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् मायाजीत। तो सर्व शक्ति सम्पन्न बनना ही मायाजीत बनना है। पहला स्वरूप ब्राह्मण-स्वयं को देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता (सर्व शक्तियाँ) धारण हुई हैं? सर्व शक्तियाँ हैं वा कोई­कोई शक्ति है? अगर एक शक्ति भी कमज़ोर है वा कम है तो ब्राह्मण स्वरूप के बदले बार­बार क्षत्रिय अर्थात् युद्ध करने वाले बन जाते हैं। क्षत्रिय का कर्तव्य है युद्ध करना और ब्राह्मण का कर्तव्य है - सदा और सहज मायाजीत बनना। ब्राह्मण अर्थात् विजयी। सदा सर्व शक्तियाँ अर्थात् सर्व शस्त्रों से सम्पन्न हैं। और क्षत्रिय अर्थात् कभी विजयी और कभी हार खाने वाले। क्योंकि शक्तियाँ मिलते हुए भी धारण नहीं कर सकते इसलिये समय और परिस्थिति प्रमाण सदा विजयी नहीं बन सकते। ब्राह्मण स्वरूप अर्थात् सदा ताज, तख्त और तिलकधारी। विश्व कल्याण की जिम्मेदारी के ताजधारी, सदा स्वत: स्मृति के तिलकधारी, सदा बाप के दिलतख्तनशीन। क्षत्रिय एकरस, अचल, अडोल न होने के कारण कभी अचल, कभी हलचल, कभी अधिकारी और कभी बाप से शक्ति मांगने वाले रॉयल भिखारी। ब्राह्मण अर्थात् सदा अलौकिक मौज के जीवन में रहने वाले। सदा रूहानी सीरत और सूरत वाले। क्षत्रिय अर्थात् कभी ऐसे, कभी कैसे। तो अपने से पूछो मैं कौन? कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय या सदा ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं से सम्पन्न हैं? लक्ष्य ब्राह्मण जीवन का है लेकिन कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय-ऐसे लक्षण तो नहीं हैं? लक्ष्य और लक्षण समान हैं वा अन्तर है? बोल और कर्म समान हैं वा अन्तर है? सभी ब्रह्माकुमार­ ब्रह्माकुमारी कहलाते हो ना? कि क्षत्रिय कहलाते हो? चन्द्रवंशी कहलाना भी पसन्द नहीं करते ना? कोई कहे आप चन्द्रवंशी हैं तो पसन्द आयेगा? नहीं। और कर्म क्या है? जिस समय युद्ध में लगे हुए हो उस समय का फोटो अपना निकालो। फोटो निकालने का शौक बहुत होता है ना? तो अपना फोटो निकालना आता है या दूसरों का फोटो निकालना आता है? तो अपना फोटो निकालो कि मैं कौन हूँ? अगर फोटो भी कोई का अच्छा नहीं निकलता है तो पसन्द नहीं करते हो ना? तो सारे दिन में वा कितने बारी समय प्रति समय ब्राह्मण के बजाय क्षत्रिय बन जाते हैं-ये चेक करो और चेक करके चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। चेक किया जाता है चेंज करने के लिये। तो सभी के पास परिवर्तन शक्ति है? कि कोई के पास नहीं है? ये तो बहुत अच्छी खुशी की बात है कि सभी के पास है। अब समय पर काम में लगाना आती है या कभी नहीं भी लगती है? क्योंकि शक्ति है तो समय पर काम आवे। दुश्मन है ही नहीं और शस्त्र बहुत बढ़िया हैं मेरे पास और जब दुश्मन आवे तो शस्त्र काम में ही नहीं आवे-क्या उसको शक्तिशाली कहेंगे? सिर्फ ये चेक नहीं करो कि शक्ति है लेकिन कर्म में समय प्रमाण जो शक्ति चाहिये वही शक्ति कार्य में लगाना आता है? कि दुश्मन वार कर देता, पीछे शक्ति याद आती है? तो ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं को चेक करो। ब्राह्मण सो फरिश्ता बनेगा। क्षत्रिय सो फरिश्ता नहीं। दूसरा स्वरूप है फरिश्ता। सभी को फरिश्ता बनना ही है ना? कि फरिश्ता बनना मुश्किल है? सहज है या मुश्किल? या कभी मुश्किल, कभी सहज? तो फरिश्ता स्वरूप की विशेषता सभी जानते भी हो कि फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट? तो डबल लाइट हैं? कि कभी बोझ उठाने को दिल करती और उठा लेते हो? वा उठाने नहीं चाहते हो लेकिन माया सिर पर टोकरी रख देती है? माया अपनी आर्टीफिशियल टेम्पररी शक्ति ऐसी दिखाती है जो मजबूरी से भी बोझ उठाना न चाहते भी उठा लेते हैं। क्योंकि कमज़ोर होने के कारण कमज़ोर सदा पर­अधीन होता है। तो माया भी अधीन बना देती है। अधिकारीपन भूल जाता है और अधीन बन जाते। उस समय भाषा क्या होती है? चाहते तो नहीं हैं लेकिन पता नहीं.....। हर बात में ‘पता नहीं’, ‘पता नहीं’ कहते रहेंगे। अधिकारी अर्थात् सदा स्वतन्त्र और अधीन अर्थात् सदा परवश। तो परवश कभी भी मौज की जीवन में नहीं रह सकते। ब्राह्मण अर्थात् मौज की जीवन। अगर कोई भी समय मौज के बजाय मूँझते हो-ये क्या है, ये कैसा है, क्या यही होता है..... तो ये मौज नहीं, ये मूँझने की जीवन है। अगर कोई भी समय मौज की कमी अनुभव करते हो तो फिर से ये पाठ पहला याद करो कि मैं कौन हूँ? सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन कौन­सी आत्मा हूँ? इसके कितने जवाब आयेंगे? लम्बी लिस्ट है ना! रोज की मुरली में ‘मैं कौन’ का भिन्नभिन्न पाठ पढ़ते रहते हो, सुनते रहते हो।

तो फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। लाइट अर्थात् हल्कापन। हल्कापन का अर्थ है सिर्फ परिस्थिति के समय हल्का नहीं लेकिन सारे दिन में स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में लाइट रहे? वैसे ठीक हैं लेकिन स्वभाव­संस्कार में भी अगर हल्कापन नहीं है तो फरिश्ता कहेंगे? और हल्के की निशानी है-हल्की चीज़ सभी को प्यारी लगती है। कोई बोझ वाली चीज़ आपको देवे तो पसन्द करेंगे? और हल्की बढ़िया चीज़ हो तो पसन्द करेंगे ना? तो जो स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में हल्का होगा उसकी निशानी-वो सर्व के प्यारे और न्यारे होंगे। क्योंकि ब्राह्मण स्वभाव है, अलग स्वभाव नहीं। ब्राह्मण अर्थात् सबके दिल पसन्द स्वभाव­संस्कार वा सम्बन्ध­सम्पर्क वाले हो। मैजारिटी 95% के दिलपसन्द जरूर हो-इतनी रिजल्ट जरूर होनी चाहिये। 5% अभी भी मार्जिन दे रहे हैं, अन्त तक नहीं है लेकिन अभी दे रहे हैं। 95% सर्व के दिल पसन्द अर्थात् सर्व से लाइट। और वो हल्कापन बोल, कर्म और वृत्ति से अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विल पॉवर से उन्हों को भी पहचान दो। आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ परिवर्तन करने में सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। और फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी देह और पुरानी दुनिया से रिश्ता नहीं। ये सभी को याद है ना? कि अभी भी वो रहा हुआ है? पुरानी देह से लगाव है क्या? देह के सम्बन्ध से हल्के हो गये हो कि नहीं? काका, चाचा, मामा, उससे न्यारे हो गये हो ना? कि अभी भी हैं? न्यारे और प्यारे हैं? प्यारे हैं लेकिन न्यारे होकरके प्यारे बनते हैं, ये गलती हो जाती है। ये मिस हो जाता है। या तो न्यारे हो जाना सहज लगता है या तो प्यारा होना सहज लगता। लेकिन ये देह के सम्बन्ध काका, चाचा, मामा, ये फिर भी सहज हैं। सहज हैं या थोड़ा­थोड़ा स्वप्न में, संकल्प में आ जाता है? जब ब्राह्मण परिवार में कोई परिस्थिति आती है तो चाचा, काका, मामा याद आते हैं? बापदादा देखते हैं कि परिस्थिति के समय कई आत्माओं को ब्राह्मण परिवार के बजाय लौकिक सम्बन्ध जल्दी स्मृति में आता है। परिस्थिति किनारे के बजाय सहारा अनुभव कराती है। जब मरजीवा बन गये तो अगले जन्म के सम्बन्धी काका, चाचा, माँ, बाप, याद हैं क्या? स्वप्न में भी आते हैं क्या? तो सम्बन्ध, जन्म बदल गया ना। तो फरिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, यही परिभाषा बोलते हो ना? फिर समय पर कहाँ से निकल आते हैं? टूटा हुआ रिश्ता जुड़ जाता है? मरे हुए से जिन्दा हो जाते हो? फरिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, सब नया। बापदादा ने देखा कि फरिश्ता बनने में जो रूकावट होती है उसका कारण एक पहली सीढ़ी है देह भान को छोड़ना, दूसरी सीढ़ी जो और सूक्ष्म है वो है देह अभिमान को छोड़ना। देह भान और देह अभिमान। देह भान फिर भी कॉमन चीज़ है लेकिन जितने ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा बनते हैं उतना देह अभिमान रूकावट डालता है। और अभिमान अनेक प्रकार का आता है-अपने बुद्धि का अभिमान, अपने श्रेष्ठ संस्कार का अभिमान, अपने अच्छे स्वभाव का अभिमान, अपनी विशेषताओं का अभिमान, अपनी कोई विशेष कला का अभिमान, अपनी सेवा की सफलता का अभिमान। ये सूक्ष्म अभिमान देह भान से भी बहुत महीन हैं। अभिमान का दरवाजा तो जानते हो ना? मैं­पन, मेरापन-ये है अभिमान के दरवाजे। तो फरिश्ता का अर्थ ये नहीं कि सिर्फ देह भान वा देह के आकर्षण से परे होना वा देह के स्थूल सम्बन्ध से परे होना, लेकिन फरिश्ता अर्थात् देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारे होना। और अभिमान की निशानी-जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान भी जल्दी फील होता है। जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग बहुत जल्दी होती है। क्योंकि ‘मैं’ और ‘मेरे’ के दरवाजे खुले हुए होते हैं। फरिश्ते का यथार्थ स्वरूप है देह भान और देह के सम्बन्ध से, देह अभिमान से न्यारा। अगर कोई गुण हैं, कोई शक्ति है तो दाता को क्यों भूल जाते हैं? और दूसरी बात इससे सहज न्यारे होने का रास्ता वा विधि बहुत सहज है, एक अक्षर है। एक अक्षर में इतनी ताकत है जो देह अभिमान और देह भान सदा के लिये समाप्त हो जाता है। वो एक शब्द कौन­सा है? करनकरावनहार बाप करा रहा है। ‘करनकरावनहार’ शब्द भान और अभिमान दोनों को मिटा देता है। एक शब्द याद करना तो सहज है ना? और सारी पॉइन्ट्स भूल भी जाओ, भूलना तो नहीं है लेकिन अगर भूल भी जाओ तो एक शब्द तो याद कर सकते हो ना? करनकरावनहार बाबा है। तो देखो, फरिश्ते जीवन का अनुभव कितना सहज अनुभव होता। ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना-किस आधार से? सदा करनकरावनहार की स्मृति से समर्थ बन फरिश्ते बने। फॉलो फादर है ना? या फॉलो माया है? कभी माया भी मदर फादर बन जाती है, बड़ी अच्छी पालना और प्राप्ति कराती है। लेकिन वो सब है धोखे की प्राप्ति। पहले प्राप्ति, फिर धोखा। परखने की शक्ति तो है ना? माया है या बाप है-इसको समय पर परखना है। धोखा खाकर परखना, यह कोई समझदारी नहीं हुई। धोखा खाकर तो सब समझ जाते हैं लेकिन ज्ञानी तू आत्मा पहले यह परखकर स्वयं को बचा लेता है। तो समझा फरिश्ता किसको कहते हैं?

तीसरा है फरिश्ता सो देवता। अभी देवता बनना है या भविष्य में बनेंगे? देवता अर्थात् सर्व गुणों से सजे­सजाये। ये दिव्यगुण संगम के देवता जीवन के श्रृंगार हैं। इस समय दिव्य गुणों से सजे­सजाये होते हो तब ही भविष्य में स्थूल श्रृंगार से सजे­सजाये रहते हो। तो देवता अर्थात् दिव्यगुणों से सजे­सजाये। और दूसरा देवता अर्थात् देने वाला। लेवता नहीं, लेकिन देवता। तो मास्टर दाता हो? वा कभी लेवता, कभी देवता? चेक करो कि दिव्य गुणों का श्रृंगार सदा रहता है वा कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है, कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है? सम्पूर्ण सर्व गुण सम्पन्न...... यही देवता जीवन की निशानी है। ये गुण ही गहने हैं। तो देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की सर्व शक्तियाँ, फरिश्ते स्वरूप की डबल लाइट स्थिति और देवता स्वरूप की दातापन की निशानी और दिव्य गुणों सम्पन्न बने हैं? तीनों स्वरूप अनुभव करते हो? जैसे बाप के तीन सम्बन्ध-बाप, शिक्षक, सद्गुरू सदा याद रहते, ऐसे ये तीन स्वरूप सदा याद रखो। समझा? बनना तो आपको ही है या और कोई आने वाले हैं? आपको ही बनना है ना? आज ब्राह्मण, कल फरिश्ता और कल देवता। अपने फरिश्ते स्वरूप को ज्ञान के दर्पण में देखो। फरिश्ते सदा उड़ते रहते हैं और मैसेज देते रहते हैं। फरिश्ता आया, सन्देश दिया और उड़ा। तो वो फरिश्ते कौन हैं? आप ही हो ना? फलक से कहो-हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे। पक्का है ना? इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि विजयी। क्षत्रिय हो वा विजयी हो? क्षत्रिय कोई तो बनेगा? वो दूसरे बनेंगे! तो आप ब्राह्मण हो। चलते­चलते कभी क्षत्रिय नहीं बनना। अगर बार­बार क्षत्रिय बनते रहेंगे, युद्ध करते रहेंगे तो युद्ध के संस्कार ले जाने वाले कहाँ पहुँचेंगे? चन्द्रवंशी में या सूर्यवंशी में? तो चन्द्रवंशी तो पसन्द नहीं है ना, कि कभी­कभी हो गये तो भी हर्जा नहीं? तो सब कौन हो? ब्राह्मण? पक्के ब्राह्मण हो या थोड़े­थोड़े कच्चे? शक्तियाँ पक्की हैं? पाण्डव पक्के हैं? अगर पक्के हैं तो सदा खुशखबरी के पत्र आवें। माया आ गई, ये हो गया, पता नहीं क्या हो गया, कैसे हो गया-ये संकल्प में भी नहीं हो। बाप तो कहते हैं स्वप्न मात्र भी नहीं। स्वप्न में भी क्यों, क्या नहीं-ऐसे पक्के हो? शक्तियाँ महा पक्की हो? कहो, पाण्डव पक्के तो हम महा पक्के। क्योंकि शक्तियों को ही निमित्त बनाया है। तो निमित्त वाले ही कच्चे­पक्के होंगे तो औरों का क्या हाल होगा! पाण्डव बैकबोन हैं। बैकबोन बनना अच्छा लगता है ना? या सामना करना अच्छा लगता है? बैकबोन बनना अच्छा है, सेफ हो बहुत, नहीं तो मार खाते। अच्छा।

सभी अपने स्वीट होम में पहुँच गये। संकल्प था-जाना है, जाना है और अभी फिर क्या संकल्प है? अभी भी जाना है ना? सेवा अर्थ जा रहे हैं इसलिये खुशी­खुशी से जाते हैं। सेवा पर जायेंगे या दुकान पर जायेंगे, घर में जायेंगे, दफ्तर में जायेंगे? चाहे दफ्तर हो, चाहे घर हो, लेकिन सभी सेवा के स्थान हैं। सेवाधारियों की हर जगह सेवा है। तो मधुबन में आना और उमंग­उत्साह का खज़ाना भरना और फिर सेवा पर जाना। खुशी­खुशी से जाते हो ना? कि मजबूरी से जाते हो? सेवा माना खुशी। हिसाबकिताब है, कर्ज चुकाने जा रहे हैं, ऐसे नहीं। फर्ज चुकाने जा रहे हैं। घर में बगुले बहुत हैं। अगर बगुले नहीं होंगे तो ज्ञान किसको देंगे? हंस को हंस बनायेंगे क्या? बगुलों को ही तो हंस बनायेंगे ना? तो क्या याद रखेंगे? ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। पक्का रहेगा ना? कि ट्रेन में जाते­जाते एक भूल जायेगा? अपने स्थान पर जाते­जाते बाकी एक रह जाये-ऐसे तो नहीं होगा ना?

सभी आराम से रहे हुए हैं? डबल फॉरेनर्स फिर भी खटाराणे हैं और भारतवासी पटराने। पट में सोना सहज लगता है ना? पलंग याद तो नहीं आते? हाँ, कोई समय ऐसा आयेगा जो सभी को पलंग मिलेगा। लेकिन कब आयेगा? जब सारा आबू अपना बनायेंगे। ये संगठन का सुख पलंग और डनलप से भी ज्यादा है। यहाँ भी आराम से नींद तो आती है ना? ज्ञान अमृत पीते­पीते सो जाते हो, तो कितनी अच्छी नींद करेंगे। ज्ञान अमृत पीना और ब्रह्मा भोजन खाना। सभी को बना­बनाया भोजन मिलता है। सभी खुश हैं। खुशनसीब भी हैं और खुशमिजाज भी हैं। कि कभी सीरियस, कभी खुश मिजाज? कभी शक्ल में अन्तर नहीं आना चाहिए। जब क्रोध या गुस्सा आता है तो चेहरा लाल­पीला होता है ना? सदा चेहरा हर्षितमुख हो। इसको कहते हैं खुशमिजाज रहना। अच्छा, सभी जितना बाप को याद करते हैं और दिल से प्यार करते तो बाप सभी को आपसे पदमगुणा याद करते और प्यार करते हैं। बाप से पूछते हैं कि सारा दिन क्या करते हो? बाप क्या कहते हैं कि सारा दिन बच्चों को ही याद करते हैं। और काम ही क्या है? ये नशा है ना? दुनिया वाले बाप को याद करते हैं और बाप आपको याद करते हैं। अच्छा!

गुजरात - गुजरात को एवररेडी रहने, जी हाँ करने का वरदान मिला हुआ है। गुजरात में दो विशेषताओं की निशानी अभी भी दिखाई देती है और आगे भी दिखाते रहना है। वो दो निशानियाँ व दो विशेषतायें कौन­सी हैं? सन्तुष्टता और प्रसन्नता। प्रसन्नता भी तब रहती है जब सन्तुष्टता है। तो ये दो विशेषतायें विशेष हैं और सदा रहेंगी। समझा? गुजरात वाले कभी असन्तुष्ट न रहेंगे, न करेंगे। दो विशेषताओं के कारण सदा उड़ते रहेंगे। गुजरात विशेष ब्रह्मा बाप ने अपने संकल्प से स्थापन किया। और जन्मते ही सदा सहयोगी रहे हैं और अब भी हैं। समझा! सहयोग की अंगुली सदा है ही है। देखो, कोई भी प्रोग्राम होता है, सीजन भी होती है तो ब्रह्मा भोजन में गुजरात की माताओं को याद करते हैं ना। कितनी भी कोई रोटी बनावे लेकिन गुजरात जैसी नहीं बना सकते, ये विशेषता है। तो हर कार्य में एवररेडी रहने वाले। अच्छा!

इस्टर्न - इस्टर्न का सूर्य उदय हो गया। इस्टर्न जोन वाले सदा ही स्वयं को और औरों को पूज्य आत्मा बनाने की प्रेरणा देने वाले हैं। क्योंकि इस्टर्न में पूजा बहुत होती है। तो पुजारी बहुत हैं। तो पुजारियों को पूज्य बनाना - इस सेवा का चांस इस्टर्न जोन को बहुत है। और जो ज्यादा में ज्यादा पुजारी से पूज्य बनाते हैं, उसकी पूजा बहुत जन्म और बहुत विधिपूर्वक होती है। तो इस्टर्न वाले पूज्य बनाने के कारण बहुत बड़े पूज्य आत्मा अनेक जन्म बनने वाले हैं। यही सेवा करते हो ना? पुजारी से पूज्य बनते हैं या सिर्फ दर्शन करने वाले बनते हैं? क्या होता है? तो इस्टर्न जोन को पूज्य बनाने का विशेष वरदान भी मिला हुआ है और चांस भी मिला हुआ है। तो नशा रहता है कि हम पूज्य आत्मायें हैं और औरों को भी पूज्य बनाने के निमित्त हैं। समझा? इस्टर्न जोन की विशेषता - ब्रह्मा बाप की प्रत्यक्षता भूमि है। तो भूमि को भी वरदान है। इस्टर्न जोन में ही ब्रह्मा बाप में प्रत्यक्षता हुई। तो कितनी श्रेष्ठ भूमि है! भूमि भी श्रेष्ठ, सेवा भी श्रेष्ठ और सेवाधारी भी सदा श्रेष्ठ। अच्छा-(सभी ने खूब तालियां बजाई) ऐसे ही सदा खुशी में तालियाँ बजाते रहना। खुशी की तालियाँ कौन­सी होती हैं? खुशी की ताली बजाने आती हैं? ये तालियाँ तो स्थूल हैं। खुशी की ताली कौन­सी है? खुशी की ताली है मुस्कराना। यहाँ भले बजाओ, मना नहीं है लेकिन वहाँ जाकर खुशी की ताली सदा बजाते रहना। सभी ऐसे करना। आपकी खुशी और मुस्कराहट ऐसी हो जो आपको देखने वाले भी ताली बजाना शुरू कर दें।

बाम्बे, पूना - पूना और बाम्बे सदा ही िफक्र से फारिग रहने वाले। बाम्बे भी बेफिक्र बादशाहों का स्थान है और पूना भी बेफिक्र बादशाहों का स्थान है। तो सभी बेफिक्र हो? या थोड़ा­थोड़ा िफक्र है? स्वयं बेफिक्र बादशाह हैं और दूसरों के भी िफक्र को मिटाने वाले हैं। सभी को बेफिक्र बादशाह बनाने वाले हैं। तो बादशाही देने में होशियार हो ना। गरीब को बादशाह बनाना आता है? बेफिक्र बादशाह बनाने वाले और स्वयं भी सदा बेफिक्र रहने वाले, यही संगमयुग के श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषता है-बेफिक्र बादशाह। तो बादशाह हो कि कभी प्रजा भी बन जाते हो? सेवा में आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे। पूना वालों ने कितने सेवास्थान बनाये हैं? (22) और गीता पाठशालायें कितनी हैं? (300) तो देखो सेवा में होशियार हो ना। और बाम्बे में सेवाकेन्द्र कितने हैं? (36) और गीता पाठशालायें? वो अनगिनत! अच्छा है, वैसे तो चारों ओर सेवायें वृद्धि को प्राप्त कर ही रही हैं लेकिन सेवा की दुआओं द्वारा स्व की उड़ती कला और सर्व की उड़ती कला, ऐसी स्पीड तीव्र बनाते चलो। इसलिये बापदादा सेवा पर सदा खुश हैं। आप भी खुश हो ना? अभी 9 लाख पूरे नहीं किये हैं। अभी वो करना है लेकिन फिर भी कर रहे हैं, तो जो कर रहे हैं उस पर बापदादा खुश हैं। लेकिन अभी करने की मार्जिन है, समाप्त नहीं हुआ है। अभी कितने तैयार हुए हैं? (3 लाख) अभी तो डबल पड़ा है। अभी एक परसेन्ट बना है, दो परसेन्ट रह गया है। तो देखेंगे 9 लाख का हार (नौलखा हार) बाप को कौन पहनाता है? कौन तैयार करता है? अच्छा।

कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश - कर्नाटक में मैजारिटी स्नेही आत्मायें बहुत हैं, बाप के स्नेही मैजारिटी हैं। तो स्नेह सहज याद का साधन है। और जो स्वयं स्नेही होता है वो औरों को भी सहज स्नेही बना देता है। तो कर्नाटक को विशेष यह वरदान है वा विशेषता है। तो स्नेह है और स्नेह के कारण वृद्धि भी है। अभी स्नेह को प्रैक्टिकल में लाते भी हो और और ज्यादा स्नेह की शक्ति से और आगे बढ़ते रहना। तो स्नेह के कारण बाप को भूलते कम हैं लेकिन भूलते हैं तो बहुत भूलते हैं। क्यों? कभी­कभी भूलने के भी समाचार आते हैं। लेकिन स्नेह की विशेषता को कभी भी छोड़ना नहीं। ये एक ड्रामानुसार कर्नाटक को विशेषता मिली हुई है, इसको यूज कर भी रहे हैं, और भी आगे अन्डरलाइन कर आगे बढ़ते रहना। ऐसे तैयार हैं? अच्छा। टीचर्स ये समझती हैं कि आज के बाद कर्नाटक से स्नेह के बिना और कोई समाचार नहीं आयेंगे? हिम्मत है टीचर्स में? हाँ बोलो या ना बोलो। अच्छा, ऐसी गैरेन्टी है? जो समझते हैं कि इस विशेषता को प्रैक्टिकल में लाना ही है, वो हाथ उठाओ। अभी देखना कोई पत्र ऐसा नहीं आयेगा। ठीक है? मंजूर है? अच्छा है, स्नेही तो बहुत हैं। दृष्टि के इतने स्नेही हैं, भाषा नहीं समझें लेकिन स्नेह बहुत है। तो बापदादा स्नेह को देख खुश होते हैं। लेकिन सम्पूर्ण तो बनना है ना। तो थोड़ा भी स्नेही आत्माओं के बीच में रूकावट नहीं आनी चाहिये। इसलिये कर्नाटक सदा ये स्नेह का नाटक करके दिखाये। फिर भी बापदादा देखते हैं कि वृद्धि करने में भी होशियार हैं। लेकिन सदा स्नेही रहना और स्नेही बनाना, स्नेह का ही नाटक करना। समझा?

अच्छा - आन्ध्रा वाले क्या कमाल करेंगे? सेवा में स्व­उन्नति में नम्बरवन। ठीक है? नम्बरवन बनना है। अच्छा!

डबल विदेशी - डबल विदेशी क्रिसमस मनाने आये हैं, न्यु इयर मनाने आये हैं। तो पहले सभी डबल विदेशियों को क्रिसमस की मुबारक। क्योंकि चारों ओर से कार्ड और पत्र भी बहुत आये हैं ना। बापदादा के पास तो पोस्ट के पहले ही पहुँच जाते हैं। आप लोग एयरमेल से भेजते हो ना और बापदादा के पास एयरफ्लाई से पहुँच जाते हैं। विदेश में भी सेवा और स्व पुरूषार्थ की लहर अच्छी चल रही है और मैजारिटी सभी के अन्दर ये उमंग बहुत अच्छा है। दिन­रात एक ही लगन है कि विश्व में बाप के प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी से जल्दी लहरायें। क्योंकि विदेशियों की ड्युटी है भारत को जगाना। तो ऊंचा झण्डा लहरायेंगे तब तो सबकी नजर जायेगी। लेकिन बापदादा डबल विदेशियों को कमाल करने वाले भी कहते हैं। तो कौन­सी कमाल की है? दूरी को समीप अनुभव करने की कमाल की है। जितना देश दूर है ना, इतना दिल से समीप हैं। चारों ओर से आये हैं। बापदादा सभी डबल विदेशियों को विशेष विशेषता का वरदान देते हैं कि सदा दिल तख्त नशीन। बाप के दिल पर आप हैं और आपके दिल पर बाप है। रशिया वाले भी कमाल कर रहे हैं ना! आगे बढ़ते जाते हैं। रशिया वालों को सबसे ज्यादा किस बात की विशेष खुशी है? रशिया वालों को विशेष खुशी इस बात की है - जो स्वतन्त्रता की प्रिय इच्छा थी वो स्वतन्त्रता मिल गई। समझा? देश के हिसाब से, आत्मा के बन्धन के हिसाब से परतन्त्र बहुत रहे और अभी स्वतन्त्र हो गये। स्वतन्त्र है ना! तो स्वतन्त्रता का झण्डा रशिया में लहरा रहा है। शिव बाबा के झण्डे के साथ सभी स्थानों पर स्वतन्त्रता का झण्डा भी लहरा रहा है। और कितने खुश होते हैं। सारे परतन्त्रता के बन्धन से मुक्त हो गये और कितना सहज सर्व प्राप्तियाँ कर ली! सर्व प्राप्तियाँ हो गई ना! (हाँ जी) अच्छा है, हिम्मत भी अच्छी है। डबल विदेशी अपने को चलाने की हिम्मत और औरों को भी चलाने की हिम्मत अच्छी रखते हैं। और हिम्मत के कारण ही विदेश में सेवा में आगे बढ़ते हैं। तो विशेष हिम्मत और मदद दोनों के पात्र आत्मायें हैं। देखो, लन्दन वालों ने भी हिम्मत करके म्युजियम ले लिया ना! चाबी मिल गई ना! स्वर्ग की चाबी के पहले सेवा की चाबी मिल गई। अच्छी कमाल की। सबकी नजर जाती है कि आखिर भी ये राजयोगी हैं क्या? ये गुप्त ही गुप्त क्या कर रहे हैं? ऑस्ट्रेलिया या जो भी भिन्नभिन्न देशों से आये हैं तो बापदादा सभी बच्चों को विशेष क्रिसमस की सौगात दे रहे हैं कि ‘‘सदा दिल खुश मिठाई खाते रहो और खिलाते रहो।’’ स्वर्ग की बादशाही की सौगात तो सभी को मिली हुई है ना। सभी के हाथ में नई दुनिया, स्वर्ग का गोला है ना? पत्र और कार्ड भेजने में फास्ट गति वाले हैं। बापदादा समझते हैं कि अपने याद का सबूत वा निशानी भेजने में होशियार हैं। ठीक है? मौज में रहने वाले हैं ना? सभी स्थान के सिकीलधे, लाडले आत्माओं को विशेष बापदादा सम्मुख देख रहे हैं और सदा समीप रहने की विशेषता से आगे बढ़ते रहेंगे। समझा? अच्छा!

चारों ओर के सर्व ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता, तीनों स्वरूप के स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा एक शब्द ‘करनकरावनहार’ की स्मृति से स्वयं को डबल लाइट बनाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा देवता अर्थात् दाता बन देने वाले, सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा वरदानों को कर्म में लाने वाले कर्मयोगी आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और क्रिसमस की मुबारक और नमस्ते।

(सभी दादियाँ बापदादा के सम्मुख स्टेज पर खड़ी हैं)

दादी जानकी से - अच्छा है उड़ने में होशियार हो गई है। जीवन दान मिला है। और जितनी सेवा करते जाते तो जीवन की तन्दुरूस्ती और बढ़ती जाती है। क्योंकि सबकी दुआएं तन्दुरूस्त बना देती हैं। बाप की तो मदद है ही लेकिन दुआयें जवान बना रही हैं। जब किसको दुआयें मिलती हैं ना, या कोई भी खुशी, शान्ति की प्राप्ति होती है तो मुख से, दिल से यही दुआयें होती हैं कि हमारी आयु आपको लग जाये। कार्ड में भी क्या भेजते हैं कि हमारी आयु आपको मिल जाये। तो आप एक चक्र में हजारों की सेवा करते हो तो यही जार गुणा दुआयें मिल जाती हैं। अच्छा है, सभी अपनी­अपनी सेवा अच्छी करते रहते हो।

सभी का दादियों में शुभ मोह है ना? साधारण मोह तो नहीं है ना। दु:ख देने वाला मोह नहीं, सुख देने वाला। लेकिन जितना मोह, उतने ही निर्मोही। न्यारे भी और प्यारे भी। ऐसे है ना? कि सिर्फ प्यारे हैं, न्यारे नहीं? न्यारे और प्यारे दोनों का बैलेन्स रखने वाले। ये भी ड्रामा में आदि से विशेष आत्माओं का निमित्त बनने का पार्ट है। पालना ली भी बहुत है, जितनी आप लोगों ने पालना ली है डायरेक्ट बाप की, उतनी इन्होंने तो नहीं ली है। तो जितनी पालना ली है उतनी पालना करने का पार्ट भी मिला है। तो सब खुश हैं? हजार साल सभी की आयु बन जाये! हजार साल! घर नहीं जाना है? पुरानी दुनिया में ही रहना है?

अच्छा है, यह म्युजियम भी कमाल करेगा। ये है दृढ़ता का प्रत्यक्ष स्वरूप। तो दृढ़ता सफलता के लिये असम्भव से भी सम्भव करा देती है। हिम्मत वाले हैं। तो सभी जो विशेष निमित्त बने हैं उन्हों को विशेष याद प्यार। यह भी सेवा का अच्छा साधन है, कोई न कोई निमित्त बन अपना भाग्य बनाते हैं। देने वाले पहले ही ड्रामा में नूँधे हुए हैं। अच्छा।

चन्द्रमणि दादी से - ये भी चक्र लगाकर आई। चक्रवर्ता राजा में नाम पक्का हो गया ना। अच्छा है, सेवा भविष्य को प्रत्यक्ष कर रही है। नाम तो नहीं लेंगे ना कि ये ये हैं लेकिन सेवा स्वयं में प्रत्यक्ष कर रही है। कितने चक्रवर्ता राजा तैयार हो रहे हैं? एक चक्र में अनेक आत्मायें सन्तुष्ट हो जाती हैं तो उस चक्र में चक्रवर्ता राजा का वरदान होता है। कितनी आत्मायें सन्तुष्ट होती हैं? बहुत होती हैं। जितनी आयु बढ़ती जाती है उतने ज्यादा चक्र लगाते हैं।

दादी जी - अभी मेले का सोच रही है। दिल्ली और बाम्बे के भी बैठे हैं ना। कमाल करके ही दिखायेंगे। दिल्ली और बाम्बे निमित्त हैं ही। स्थापना के भी निमित्त हैं तो प्रत्यक्षता के भी निमित्त हैं। ऐसे ही विदेश में लन्दन, स्थापना के भी निमित्त है और प्रत्यक्ष करने के भी निमित्त है। अच्छा।



31-12-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


नये वर्ष को शुभ भावना, गुण स्वरूप वर्ष के रूप में मनाओ

आज नवयुग रचता बापदादा अपने नवयुग राज्य अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। नव वर्ष को देख अपना नवयुग याद आता है! नवयुग के आगे यह नव वर्ष कोई बड़ी बात नहीं। जिस नवयुग में हर वस्तु, हर व्यक्ति, प्रकृति-सब नया है। नया वर्ष जब शुरू होता है तो पुरानी वस्तु वा व्यक्ति के पुराने स्वभाव, संस्कार, चाल­चलन कुछ नये होते हैं, कुछ पुराने होते हैं। लेकिन आपके नवयुग में पुराने का नामय्निशान नहीं। व्यक्ति भी नया अर्थात् सतोप्रधान है और प्रकृति भी सतोप्रधान अर्थात् नई है। प्रकृति में भी आजकल जैसा पुरानापन नहीं होगा। तो नवयुग की मुबारक के साथ नव वर्ष की मुबारक।

आज विशेष नया वर्ष मनाने के उमंग­उत्साह से, खुशी­खुशी से सभी पहुँच गये हैं। तो बापदादा भी दिल से दिल की दुआओं सहित नव युग की और नये वर्ष की डबल मुबारक देते हैं। आप सभी को भी डबल याद है या सिंगल याद है? अपना नया युग नयनों के आगे बुद्धि में स्पष्ट है ना? जैसे कहेंगे कल से नया वर्ष शुरू है, ऐसे ही कहेंगे कल नवयुग आया कि आया-इतना स्पष्ट है? नशा है? सभी नवयुग के राज्य अधिकारी हैं? सभी राजा बनेंगे तो प्रजा बनाई है? आप सब तो राजा हो लेकिन राज्य किस पर करेंगे? अपने ऊपर! तो बापदादा नवयुग और नया वर्ष डबल देख रहे हैं। कल की बात है ना, वो भी कल और ये भी कल की बात है। फिर नवयुग होगा ना! अपने नवयुग की ड्रेस (शरीर) सामने दिखाई देती है? बस, पुरानी ड्रेस छोड़ेंगे और नई ड्रेस धारण करेंगे। तो वो ड्रेस अच्छी, चमकीली, सुन्दर है ना! अभी तो देखो हर व्यक्ति में कोई ना कोई नुक्स होगा। कोई की नाक टेढ़ी होगी, किसकी आंख टेढ़ी होगी, किसके ओंठ ऐसे होंगे और नवयुग में सब नम्बरवन, हर कर्मेन्द्रिय एक्यूरेट। तो ऐसी ड्रेस सामने खूटी पर लगी हुई है ना! बस पहननी है। अपनी ड्रेस अच्छी, पसन्द है? देख रहे हो ना?

बापदादा सदैव जब हर एक बच्चे को देखते हैं तो क्या देखते हैं? एक तो हर एक के मस्तक की चमकती हुई मणि श्रेष्ठ आत्मा को देखते हैं और साथ­साथ हर एक बच्चे के भाग्य की श्रेष्ठ लकीर को देखते हैं। हर एक का भाग्य कितना श्रेष्ठ है! सभी का भाग्य श्रेष्ठ है ना! कि किसका मध्यम भी है? सभी वन हैं? सेकण्ड, थर्ड और आने वाले हैं? अच्छा है, दुनिया वाले कहते हैं आपके मुख में गुलाब और बापदादा कहते हैं आपके मुख में गुलाब­जामुन। गुलाब­जामुन सबको बहुत अच्छा लगता है ना? गुलाब­जामुन या मिठाई खाने के लिये ही बापदादा ने हर गुरूवार भोग का रखा है। भोग में खुद भी खाते हो और बापदादा को भी स्वीकार कराते हो। घर में बनाये, नहीं बनाये, लेकिन गुरूवार को तो मीठा मिलेगा ना। और जब कभी खुशी का उत्सव होता है तो मुख ही मीठा कराते हैं। मीठा मुख अर्थात् मीठा मुखड़ा। मुख मीठा तो सब करते हैं लेकिन आप सबका मुख भी मीठा है तो मुखड़ा (फेस) भी मीठा है, या थोड़ा­थोड़ा कड़ुवा भी है? अगर एक लकीर भी कड़ुवे की हो तो आज वर्ष को विदाई देने के साथ­साथ इस थोड़े से कड़ुवे­पन को भी विदाई दे देना। विदाई देना आता है कि पास में रखना अच्छा लगता है? या विदाई देकर फिर बुला लेंगे? फिर कहेंगे हम तो छोड़ना चाहते हैं लेकिन माया नहीं छोड़ती है! ऐसे तो नहीं कहेंगे कि हमने छोड़ दिया लेकिन माया आ गई? वहाँ जाकर फिर ऐसे पत्र लिखेंगे? विदाई, तो सदा काल के लिये विदाई। विदाई देने का अर्थ ही है फिर आने नहीं देना। कि कभी­कभी आ जाये तो कोई हर्जा नहीं? क्योंकि पुराने संस्कार कइयों को बहुत अच्छे लगते हैं। आज कहेंगे कल से नहीं होगा और फिर परसों परवश हो जायेंगे। तो उसको विदाई नहीं कहेंगे ना। तो विदाई देना भी सीखो। वर्ष को विदाई देना तो कॉमन बात है लेकिन आप सबको अंश, वंश सहित माया को विदाई देना है। अंश मात्र भी नहीं रहे। कई बच्चे कहते हैं 75% तो फर्क पड़ गया है, और भी पड़ जायेगा। लेकिन माया अंश से वंश बहुत जल्दी पैदा करती है। 25% अंश मात्र भी रहा तो 25 से 50 तक भी बहुत जल्दी पहुँच सकता है। इसीलिये अंश सहित समाप्त करना है। तो नये वर्ष में क्या करेंगे? पुराने वर्ष को विदाई देने के साथ­साथ माया के अंश को भी विदाई देना। और विदाई के साथ बधाई भी देते हो ना! कल सभी एक­दो को मिलेंगे तो कहेंगे नये वर्ष की मुबारक हो, बधाई हो। तो विदाई दो और विदाई के साथ­साथ अपने को भी और दूसरों को भी सदा फरिश्ते स्वरूप की बधाई दो। हैं ही फरिश्ता। ऊपर से नीचे आये, अपना कार्य किया और उड़ा। फरिश्ते यही करते हैं ना! उड़ती कला की निशानी पंख दिखाये हैं। कोई आर्टीफिशियल पंख नहीं हैं। लेकिन ये फरिश्तों को जो पंख दिखाते हैं उसका अर्थ है फरिश्ता अर्थात् उड़ती कला वाले। तो फरिश्ते स्वरूप की बधाई स्वयं को भी दो और दूसरों को भी। सदा फरिश्ते स्वरूप के स्मृति में भी रहो और दूसरे को भी उसी स्वरूप से देखो। फलानी है, फलाना है......। नहीं, फरिश्ता है। ये फरिश्ता संदेश देने के निमित्त है। समझा? तो सभी को फरिश्ते स्वरूप की मुबारक दो। चाहे कोई कैसा भी हो लेकिन दृष्टि से सृष्टि बदल सकती है। जब दृष्टि से सृष्टि बदल सकती है तो क्या ब्राह्मण नहीं बदल सकता? आपकी दृष्टि­स्मृति हर आत्मा को बदल देगी।

बापदादा को कभी­कभी बच्चों पर हंसी आती है। आप लोगों को भी अपने ऊपर आती है? एक तरफ कहते हैं कि हम विश्व परिवर्तक हैं, विश्व कल्याणकारी हैं.... और फिर विश्व परिवर्तक आकर कहता है कि ये मेरे से बदली नहीं होता! अपने प्रति भी कभी रूहरिहान में कहते हैं-चाहते हैं, ये नहीं करें, फिर भी कर लेते हैं..... तो विश्व परिवर्तक और स्वयं के लिए ही कहे कि मैं चाहता हूँ लेकिन कर नहीं पाता हूँ तो उसका टाइटल क्या होना चाहिये? उसको विश्व परिवर्तक कहना चाहिये या कमज़ोर कहना चाहिये? गीत सुनाते हैं ना-क्या करें, कैसे करें, पता नहीं कब होगा...... यह गीत बापदादा तो सुनते हैं ना! जब विश्व परिवर्तक हैं, विश्व कल्याणकारी हैं तो क्या कोई आत्मा को नहीं बदल सकते? स्वयं को नहीं बदल सकते? अगर स्व परिवर्तक भी नहीं तो विश्व परिवर्तक कैसे होंगे?

बापदादा कहते हैं इस वर्ष की विशेष दृढ़ प्रतिज्ञा स्वयं से करो। प्रतिज्ञा का अर्थ ही है - कि शरीर चला जाये लेकिन जो प्रतिज्ञा की है, वह प्रतिज्ञा नहीं जाये। तो प्रतिज्ञा करने की इतनी हिम्मत है? करेंगे? डरेंगे तो नहीं? तो यही प्रतिज्ञा स्वयं से करो कि ‘‘ कभी भी किसी की कमज़ोरी वा कमी को नहीं देखेंगे। किसी की कमज़ोरी­कमी को नहीं सुनेंगे, नहीं बोलेंगे।’’ न सुनेंगे, न बोलेंगे, न देखेंगे - तो ये वर्ष क्या हो जायेगा? ये वर्ष हो जायेगा शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष। हर वर्ष को अपना­अपना नाम देते हो ना। जब ये प्रतिज्ञा सभी कर लेंगे तो ये वर्ष हुआ - शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष। मंजूर है? फिर वहाँ जाकर नहीं बदल जाना! फिर कहेंगे मधुबन में तो वायुमण्डल अच्छा था ना और यहाँ तो वायुमण्डल का संग है ना! परिवर्तक किसी के संग में नहीं आता, किसी के प्रभाव में नहीं आता। अगर परिवर्तक ही प्रभाव में आ जायेगा तो परिवर्तन क्या करेगा? इसलिये इस वर्ष को गुण मूर्त, शुभ भावना वर्ष के रूप में मनाओ। किसकी अशुभ बात को भी आप अपने पास शुभ करके उठाओ। अशुभ देखते हुए भी आप शुभ दृष्टि से देखो। जब प्रकृति को बदल सकते हो तो मनुष्यात्माओं को नहीं बदल सकते हो? और उसमें भी ब्राह्मण आत्मायें हैं, उनको नहीं बदल सकते हो? जब सबके प्रति शुभ भावना होगी तो ‘कारण’ शब्द समाप्त होकर ‘निवारण’ शब्द ही दिखाई देगा। इस कारण से ये हुआ, इस कारण हुआ.......। नहीं, कारण को निवारण में परिवर्तन करो। हिम्मत है? अच्छा! बापदादा जब टी.वी.खोलते हैं तो बड़ा मजा आता है। ये कलियुगी टी.वी.नहीं देखते। ब्राह्मणों की टी.वी.देखते हैं। ऐसे नहीं, आप लोग वह टी.वी. खोल लो, ऐसे नहीं करना। तो जब बच्चों का खेल देखते हैं तो बहुत मजा आता है। मिक्की माउस का खेल तो करते हो ना! थोड़े टाइम के लिये कोई शेर बन जाता, कोई कुत्ता बन जाता। जिस समय क्रोध करते हो उस समय क्या हो? जिस समय किससे डिस्कस करते हो, उसके ऊपर वार करते जाते हो, सिद्ध करते जाते हो तो उस समय क्या हो? मिक्की माउस ही बन जाते हो ना। तो इस वर्ष मिक्की माउस नहीं बनना। फरिश्ता बनना। मिक्की माउस का खेल बहुत किया। तो ये वर्ष ऐसे शक्तिशाली वर्ष मनाना। क्योंकि समय तो समीप आना भी है और लाना भी है। ड्रामानुसार आना तो है ही लेकिन लाने वाले कौन हैं? आप ही हो ना?

दूसरी विशेषता इस वर्ष में क्या करेंगे? नये वर्ष में एक तो बधाइयाँ देते हो और दूसरा गिफ्ट देते हो। तो इस नये वर्ष में सदैव हर एक को, जो भी जब भी सम्बन्ध­सम्पर्क में आये, चाहे ब्राह्मण परिवार, चाहे और आत्मायें हो, उन सबको एक तो मधुर बोल की गिफ्ट दो, स्नेह के बोल की सौगात दो और दूसरा सदैव कोई न कोई गुण की, शक्ति की सौगात दो। यह सौगात सेकण्ड में भी दे सकते हो। ऐसे नहीं कह सकते हो कि टाइम ही नहीं मिला, न लेने वाले को टाइम था, न देने वाले को टाइम था। लेकिन अगर अपनी श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति है तो सेकण्ड के संकल्प से, दृष्टि से अपने दिल के मुस्कराहट से सेकण्ड में भी किसी को बहुत कुछ दे सकते हो। जो भी आवे उसको गिफ्ट देनी है, खाली हाथ नहीं जावे। तो इतनी गिफ्ट आपके पास है? कि दो दिन देंगे तो खत्म हो जायेगी? सभी का स्टॉक भरपूर है? कि कोई का स्टॉक थोड़ा कम हो गया है? जिसके पास कम हो वो हाथ उठा लो। भर देंगे। जिसके पास कमी हो वो चिटकी लिखकर जनक (दादी जानकी) को देना वो क्लास करा लेगी। कमी तो नहीं रहनी चाहिये ना! दाता के बच्चे और कमी हो तो अच्छा नहीं है ना! इसलिये भरपूर होकर जाना। कमी को लेकर नहीं जाना। वर्ष के साथ कमियों को भी विदाई देकर जाना। ऐसे नहीं, कि सिर्फ कल एक दिन ही गिफ्ट देना है। नहीं, सारा वर्ष सबको गिफ्ट बांटते जाओ। बिना गिफ्ट के कोई नहीं जाये। तो कितना अच्छा लगेगा। अगर कोई आता है उसको छोटी­सी प्यार से गिफ्ट दे दो तो कितना खुश होता है। चीज़ को नहीं देखते हैं लेकिन गिफ्ट अर्थात् स्नेह के स्वरूप को देखते हैं। गिफ्ट से कोई मालामाल नहीं हो जाते हैं लेकिन स्नेह से मालामाल हो जाते हैं। तो स्नेह देना और स्नेह लेना। अगर कोई आपको स्नेह नहीं भी दे, तो भी आप उनसे ले लेना। लेना आयेगा कि शर्म करेंगे-कैसे लें? इस लेने में कोई हर्जा नहीं है। वो आप पर क्रोध करे, आप स्नेह के रूप में ले लेना। आप विश्व परिवर्तक हो ना। तो विश्व परिवर्तक किसी के निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकता! तो ये वर्ष सदा स्नेह देना और स्नेह लेना। ऐसे नहीं कहना-कोई ने दिया ही नहीं, क्या करूँ......। वो दे या न दे, आप ले लो। कुछ तो देगा ना, निगेटिव दे या पॉजिटिव दे कुछ तो देगा ना! लेकिन हे विश्व परिवर्तक, आप निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेना। समझा, इस वर्ष क्या करना है! अच्छा। डबल विदेशी क्या करेंगे? गिफ्ट देंगे? दाता बन गये हो? वाह, दातापन की मुबारक हो।

बापदादा रोज बच्चों की एक बात देखते हैं। कौन­सी? कि ये ‘मैं’ और ‘मेरा’ ये परेशान कर देता है। कभी ‘मेरा’ आ जाता है, कभी ‘मैं’ आ जाता है, जो बीच­बीच में परेशान करता है। तो जब वर्ष परिवर्तन हो रहा है तो इस ‘मैं’ और ‘मेरे’ को भी परिवर्तन करो। शब्द भले ‘मैं’ बोलो लेकिन मैं कौन? ओरिजनल ‘मैं’ किसको कहते हैं? शरीर को या आत्मा को? मैं आत्मा हूँ। तो जब भी ‘मैं’ शब्द यूज करते हो तो क्यों नहीं ‘मैं’ शब्द का ओरिजनल स्वरूप, ओरीजिनल अर्थ स्मृति में रखते हो। और सारे दिन में कितने बार ‘मैं’ शब्द यूज करते हो? करना ही पड़ता है ना। ‘मेरा’ भी कई बार यूज करते हो और ‘मैं’ भी कई बार यूज करते हो। तो जितने बार ‘मैं’ शब्द यूज करते हो उतने बार अगर वास्तविक अर्थ से ‘मैं’ स्मृति में लाओ तो ‘मैं’ धोखा देगा या उड़ायेगा? तो जब भी ‘मैं’ शब्द यूज करते हो उस समय यही सोचो मैं आत्मा हूँ। क्योंकि ‘मैं’ और ‘मेरे’ शब्द के बिना रह भी नहीं सकते हो। बोलना ही पड़ता है और आदत भी है, ‘मैं’ ‘मेरे’ के पक्के संस्कार हो गये हैं। तो जिस समय ‘मैं’ शब्द यूज करते हो उस समय ये सोचो कि मैं कौन? मैं शरीर तो हूँ ही नहीं ना। बॉडी कॉन्सेसनेस तब आवे जब मैं शरीर हूँ। शरीर तो मेरा कहते हो ना? कि मैं शरीर कहते हो? कभी गलती से कहते हो कि मैं शरीर हूँ? गलती से भी नहीं कहेंगे ना कि मैं शरीर हूँ। तो ‘मैं’ शब्द और ही स्मृति और समर्थी दिलाने वाला शब्द है, गिराने वाला नहीं है। तो परिवर्तन करो। विश्व परिवर्तक पक्के हो ना? देखना कच्चे नहीं बनना। तो ‘मैं’ शब्द को भी अर्थ से परिवर्तन करो। जब भी ‘मैं’ शब्द बोलो, तो उस स्वरूप में टिक जाओ और जब ‘मेरा’ शब्द यूज करते हो तो सबसे पहले मेरा कौन? सारे दिन में मेरा­मेरा तो बहुत बनाते हो! मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी ये चीज़ें, मेरा परिवार, मेरा सेन्टर, मेरा जिज्ञासु, मेरी सेवा, मेरी सेवा इसने क्यों की? ये कहते हो ना? खेल तो करते हो ना। तो जब ‘मेरा’ शब्द बोलते हो तो ‘मेरा’ कहने से पहले ये याद करो कि मेरा कौन? पहले ‘मेरा बाबा’ याद करो। फिर मेरा और याद करो। तो जहाँ बाप होगा वहाँ देह अभिमान वा गिरावट नहीं आयेगी। तो ‘मैं’ और ‘मेरा’ इन दोनों शब्दों को उस वृत्ति से, उस दृष्टि से, उस अर्थ से देखो और बोलो। ‘मेरा’ शब्द मुख से निकले और पहले ‘मेरा बाबा’ याद आये। तो निरन्तर योगी तो हो जायेंगे ना! क्योंकि हर घण्टे में ‘मेरा’ और ‘मैं’ शब्द यूज करते हो। कारोबार में भी करना पड़ता है ना! तो जितने बार ये रिपीट करो, मुख से बोलो वा मन से सोचो-मैं या मेरा, तो अर्थ का परिवर्तन करो।

हद से बेहद में जाना है ना। जब बेहद सृष्टि की परिवर्तक आत्मायें हो तो हद में क्यों जाते हो? सिर्फ भारत परिवर्तक तो नहीं हो ना? या डबल विदेशी सिर्फ फॉरेन परिवर्तक तो नहीं हो ना? विश्व परिवर्तक हो। विश्व अर्थात् बेहद। विश्व परिवर्तक हैं-यह पक्का याद है ना? तो ऑटोमेटिकली निरन्तर योगी सहज बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। क्योंकि भाव और भावना बदल जायेगी। जब मैं आत्मा सोचेंगे तो हर कर्म या बोल में भाव भी बदल जायेगा, भावना भी बदल जायेगी। क्योंकि भाव और भावना ही धोखा भी देती है, सुख भी देती है। तो यह परिवर्तन करेंगे ना? फिर यह पत्र नहीं लिखना क्या करें, कैसे करें....? ओ.के. का पत्र आयेगा या ये हुआ, वो हुआ..... हुआ­हुआ तो नहीं आयेगा ना? बापदादा के पास सबके पत्रों के फाइल हैं। कभी देखते हैं शुरू से लेकर क्या­क्या पत्र हैं, जो मन में सोचते हैं, वो भी सबका टेप रिकॉर्ड है।

तो नया वर्ष अर्थात् नवीनता लाना। नवीनता सभी को प्रिय लगती है ना? पुरानी चीज़ शो में रखने के लिये तो पसन्द करेंगे लेकिन यूज करने के लिये नहीं। यूज करने के लिये तो सोचेंगे नया। तो हर बात में नवीनता हो, संकल्प भी नया हो। रमणीकता से पुरूषार्थ करो। कभी­कभी कोई­कोई बच्चे इतना हठ से पुरूषार्थ करते हैं जो बापदादा को देखकरके तरस पड़ता है। बहुत युद्ध करते हैं। आवश्यकता नहीं है लेकिन करते हैं, क्यों? अपनी कमज़ोरी के कारण। तो मेहनत का पुरूषार्थ नहीं करो। पुरूषार्थ भी मौज­मौज से करो। करना भी क्या है? याद कोई ना कोई तो रहता ही है, कोई नई बात तो है नहीं। एक घड़ी भी बिना याद के रहते हो क्या? कोई न कोई तो याद रहता ही है। चाहे बात याद रहे, चाहे कोई व्यक्ति याद रहे, चाहे कोई वस्तु याद रहे लेकिन याद तो रहती है ना। बिना याद के होता है क्या? किसी को तो याद करना ही है। तो जो मतलब की बात है उसको याद करो। याद वरना किसे नहीं आता है? कोई है जिसको याद करना नहीं आता हो? छोटी कुमारियों को याद करना आता है? अच्छा। तो जब याद करना ही है तो क्यों नहीं जिससे फायदा है, प्राप्ति है उसको करें, जिससे नुकसान है उसको क्यों करें? याद भी करते हैं और फिर परेशान भी होते हैं। क्यों याद आया, नहीं याद आना चाहिये.... तो अपने आपको परेशान क्यों करते हो? बस मेरा बाबा। मेरेपन की अनेक हद की भावनायें एक ‘मेरे बाबा’ में समा दो। खिलौने होते हैं ना, एक में एक, एक में एक होते हैं ना? एक खोलो तो दूसरा होता है, दूसरा खोलो तो और होता है। तो एक ‘मेरे बाबा’ में सब समा लो। अन्दर बन्द कर दो। लेकिन एक होता है मुख से कहना ‘मेरा बाबा’, एक होता है दिल से लग जाये ‘मेरा बाबा’, जो दिल से मेरा मान लेते हैं वो कभी नहीं भूलते हैं। देखो, सम्बन्ध में भी अगर कोई नजदीक परिवार का शरीर भी छोड़ता है और ज्ञान नहीं है तो कितना मेरा­मेरा कहते हैं। उसकी चीज़ देखेंगे, उसका चित्र देखेंगे, और मेरा­मेरा कह परेशान होंगे। तो जाने वाले को भी याद करते हैं। पता भी है जाने वाला आना नहीं है फिर भी मेरा है तो याद आता है। तो जब दिल से मान लिया ‘मेरा बाबा’ तो इससे बड़ी बात और है ही क्या? तो जो कॉमन शब्द बोलते हो, उसे ही उड़ती कला का साधन बना लो-मैं और मेरा। पुरूषार्थ भी रमणीक करो। कई याद में बैठते हैं सोचते हैं ‘‘मैं ज्योति बिन्दु, मैं ज्योति बिन्दु’’ और ज्योति टिकती नहीं, शरीर भूलता नहीं। ज्योति बिन्दु तो हैं ही लेकिन कौन­सी ज्योतिबिन्दु हैं! हर रोज अपना नया­नया टाइटल याद रखो कि ज्योति बिन्दु भी कौन है? रोज सर्व प्राप्तियों में से कोई न कोई प्राप्ति को याद करो। प्राप्तियों की लिस्ट तो बुद्धि में है ना? अगर नहीं हो, याद नहीं पड़ती हो तो अपने टीचर से लिस्ट ले लेना, अगर टीचर के पास भी नहीं हो तो मधुबन से ले लेना। तो रोज एक नया टाइटल परिवर्तन करो। आज नूरे रत्न हैं तो कल मस्तक मणि हैं.... कितना अच्छा लगेगा। और हर रोज वेराइटी प्राप्तियों को सामने रखो-बाप ने क्या दिया, क्या मिला! तो जब अविनाशी प्राप्ति सामने रहेंगी तो प्राप्ति से खुशी होती है ना? अगर मानों किसी को बहुत दर्द हो रहा है और कोई ऐसी प्राप्ति की सूचना आ जाये कि एक करोड़ लॉटरी में आ गये हैं तो दर्द याद रहेगा कि लॉटरी याद आयेगी? तो प्राप्ति दु:ख को, परेशानी को भुला देती है। तो रोज नई प्राप्ति की पॉइन्ट को याद रखो। अपने टाइटल याद रखो। टाइटल की सीट पर सेट होकर बैठो। छोटे बच्चे की तरह घड़ी­घड़ी नीचे नहीं आओ। जैसे छोटे बच्चे को कुर्सा पर बिठाओ तो नीचे आ जाता है। मन भी नटखट होता है, तो कितना भी सीट पर बिठाओ नीचे आ जाता है। तो अपने टाइटल के नशे की सीट पर अच्छी तरह से सेट होना आता है ना? प्लेन में भी देखो कोई नीचे नहीं आ जाये तो बेल्ट बांध देते हैं। तो दृढ़ संकल्प की बेल्ट सबके पास है! जब देखो थोड़ा हलचल में आते हैं तो बेल्ट बांध लो।

तो इस वर्ष की नवीनता यह है कि किसी का भी निगेटिव समाचार नहीं आयेगा। ठीक है? हाँ जी या ना जी? अभी ये आपका आवाज भी टेप में भर रहा है। आप सभी भी चाहते हो, सिर्फ बाप नहीं चाहता लेकिन आप सभी भी चाहते हो कि बस अभी­अभी फरिश्ते बन जायें, चाहते हो ना? (सभी ने हाँ जी की) हाँ बहुत अच्छी करते हो। हाँ सुनकर बाप भी खुश हो जाता है। परन्तु ऐसे­ ऐसे पत्र आते हैं जो वेस्ट पेपर बॉक्स में डालने वाले होते हैं, ऐसे भी पत्र आते हैं जो पढ़ने की भी दिल नहीं होती। लिफाफे से ही समझ जाते हैं कि ये ऐसा ही कोई समाचार है। अच्छे भी आते हैं। प्यार के भी आते हैं, उमंग के भी आते हैं, खुशी के भी आते हैं लेकिन फालतू भी आते हैं। वेस्ट मनी, वेस्ट टाइम, अपना भी और दूसरों का भी। आपके सेवाकेन्द्र पर ऐसे पत्र लिखने वाले हों तो उन्हें भी परिवर्तन करना। फिर ये वर्ष कौन­सा वर्ष होगा? मौज का वर्ष। फरिश्ता स्वरूप, फरिश्तों की दुनिया में रहने वाले। जहाँ देखो वहाँ फरिश्ता ही फरिश्ता। कोई फरिश्ता उड़ रहा है, कोई सन्देश दे रहा है, कोई नीचे धरनी पर आकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कर रहा है-ऐसे ही दिखाई दे। सृष्टि बदल जाये। जहाँ भी देखो फरिश्तों की दुनिया। दृष्टि परिवर्तन, वृत्ति परिवर्तन। अच्छा!

सेवा क्या करेंगे? इस वर्ष में कोई विशेष सेवा भी करेंगे? क्या करेंगे? मेला करेंगे, प्रदर्शनियाँ करेंगे, कांफ्रेंस करेंगे? ये तो करते ही रहते हो। नवीनता क्या लायेंगे? बापदादा का एक संकल्प अभी बच्चों ने पूरा नहीं किया है। बापदादा बार­बार इशारा देते हैं कि वर्तमान समय क्वान्टिटी तो बढ़ाते जाते हो लेकिन क्वालिटी अर्थात् वारिस, लिस्ट में तो आ जाता है इतने बढ़ गये, प्राइज भी ले ली ना। बापदादा ने सुना था कि चान्दी का गिलास भी गिफ्ट में ले लिया। वो भी अच्छी बात है। क्योंकि राजधानी में सब प्रकार के चाहिये। लेकिन अभी बहुत समय से वारिस क्वालिटी बहुत कम निकलती है। सम्पर्क वाले बढ़ रहे हैं, संख्या बढ़ रही है। वो भी ड्रामानुसार होनी ही है और आवश्यक है लेकिन ये मिस है। अब वारिस क्वालिटी प्रत्यक्ष करो। क्वान्टिटी को देखकर बापदादा भी खुश होते हैं लेकिन साथ­साथ इसके ऊपर भी अण्डरलाइन करो। और दूसरी बात, अभी ज्ञान सरोवर भी तैयार हो जाना है और इसे विशेष बनाया ही है सम्पर्क वालों को वारिस बनाने के लिये। बापदादा ने पहले भी कहा है किज्ञान सरोवर है ही - सेवा के वृद्धि की खान। तो जब सेवा का स्थान तैयार हो ही रहा है और होना ही है, हुआ ही पड़ा है तो सेवा भी तो करेंगे? कि सिर्फ देखकर खुश होंगे कि बहुत अच्छा बना, बहुत अच्छा बना? तो एक ऐसा विशाल प्रोग्राम करो - जैसे कोई विशेष स्थान बनाते हैं तो विशेष स्थान की सेरीमनी में अलग­अलग देश वाले सभी, या पानी डालते हैं, या मिट्टी डालते हैं। तो आप पानी या मिट्टी तो नहीं डलवायेंगे लेकिन सारे विश्व में एक भी स्टेट खाली नहीं रहे, सब तरफ के आवें, चाहे विदेश, चाहे देश की जो भिन्न भिन्न स्टेट हैं उसका एक­एक जरूर आवे। तो इन्टरनेशनल इसको कहेंगे ना। या दो चार लण्डन के आ गये, अमेरिका का आ गया तो इन्टरनेशनल हो गया क्या? तो इन्टरनेशनल प्रोग्राम बनाओ। अब डबल स्थान हो गया ना। नहीं तो सोचते हैं स्थान चाहिये, वो चाहिये, सैलवेशन चाहिये। तो अभी ज्ञान सरोवर का स्थान भी मिला है। इसलिये इस वर्ष में ऐसा देशय्विदेश दोनों मिलकर, दोनों की राय से, दोनों के प्लैन से, दोनों के हाँ जी से, दोनों की समानता से ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो विदेश वाले भी कहे कि हाँ, हमारे योग्य है और देश वाले भी कहें कि हमारे योग्य है। विदेश की भी विधि और देश की भी विधि-दोनों विधि को सम्मिलित करके एक­दो को आगे रखकर, देश विदेश को आगे रखे, विदेश देश को आगे रखे, और ऐसा अच्छा प्रोग्राम बनाओ जो कोई एक देश भी वंचित नहीं रह जाये। विदेश वाले बताओ, हो सकता है? होना ही है ना! देश वाले बताओ, करना है? अच्छा, इनका (दादी का) तो संकल्प है। दादी को संकल्प बहुत आते हैं, सेवा के अच्छे संकल्प, नींद नहीं करने देते हैं। अच्छा है। शुद्ध संकल्पों से नींद की कमज़ोरी का प्रभाव नहीं पड़ता। वैसे नींद खुल जाये तो कमज़ोरी या कमी महसूस होती है। तो अच्छा है, सबकी मिट्टी नहीं लाना लेकिन सबके विचारों की मिट्टी इकट्ठी करेंगे। दुनिया वाले तो मिट्टी, मिट्टी कर देते हैं ना, मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है। और ये सभी के विचार, सब तरफ विश्व में आवाज फैलायेंगे। कोई भी देश वंचित क्यों रह जाये। और अगर एक कोई आता है तो अपने देश में अपने अखबार में तो डालेगा। तो हरेक विश्व के चारों कोनों की सेवा भी हो जायेगी।। लेकिन बापदादा इस वर्ष देशविदेश की विधि का मिला हुआ प्रोग्राम चाहते हैं। विदेश वाले भी पीछे नहीं हटें और देश वाले भी पीछे नहीं हटें। विचार भी तो मिलाने हैं ना। एक­दो को कहो-पहले आप। अच्छा हो सकता है ना।

तो ज्ञान सरोवर का ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो विश्व में ऐसा सेवा समाचार किसी स्थान का नहीं हो। चाहे यू.एन. हो या उससे भी बड़ा स्थान हो, उससे भी बड़ा हो जाये। इसमें सबका तन भी लगा है, मन भी लगा है और छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी का धन भी लगा है। तो जैसे सबके सहयोग की अंगुली लगी है तो सेवा में भी सबके सहयोग की अंगुली लगनी ही है। प्लैन देते रहो लेकिन प्लैन बनाने के टाइम, देने के टाइम, मालिक बनकर दो और जब फाइनल मैजारिटी करे तो बालक बन जाना। बालक क्या करता है? हाँ जी और मालिक क्या कहता है? नहीं, ऐसा करो। तो बालक और मालिक। प्लैन देना अच्छा है लेकिन प्लैन होना ही चाहिये, ये सोच के नहीं। जो होगा वो अच्छा। किनारा नहीं करो, प्लैन दो लेकिन बालक भी बनो, मालिक भी बनो। बनाने के टाइम मालिक और फाइनल के टाइम बालक। बालक और मालिक बनना आता है कि सिर्फ मालिक बनना आता है? क्योंकि सभी होशियार हो गये हैं ना। मालिक जल्दी बन जाते हैं। अभी समझा, नये वर्ष में क्या करना है? सेवा भी करनी है और सेवा के पहले स्वयं परिवर्तक। दोनों ही चाहिये ना!

तो नया वर्ष मना लिया। मनाना अर्थात् बनना और बनाना। यही मनाना है, न कि सिर्फ डांस कर लिया तो मनाया। वो भी करो, डांस भी बापदादा को अच्छी लगती है। लेकिन मन की भी डांस करो। बापदादा सब गीत भी सुनते हैं, डांस भी देखते हैं, कोई प्रोग्राम मिस नहीं करते। क्यों? देखो, कोई भी प्रोग्राम आप करते हो तो पहले गीत में बाप को याद करते हो ना? जब बाप को याद करेंगे तो आना ही पड़ेगा, देखना ही पड़ेगा। जब प्रोग्राम करते हो तो बापदादा को भी अच्छा लगता है। अच्छा!

हॉस्टल की कुमारियों से:­ हॉस्टल की कुमारियों को देखकर आदि स्थापना का समय याद आता है। पहले तो ऐसे ही हॉस्टल खोली थी ना। पहले जब ब्रह्मा बाप ने, हॉस्टल अथवा गुरूकुल वा बो\डग खोला तो फाउण्डेशन निकले। आज यज्ञ के जो भी निमित्त फाउण्डेशन हैं, वो सभी बो\डग के ही तो हैं। चाहे टीचर हैं, चाहे स्टूडेण्ट हैं, लेकिन हैं तो आदि स्थापना के ना। तो जहाँ भी हॉस्टल है वहाँ से ऐसे फाउण्डेशन तैयार होने चाहिये। समझा? सिर्फ कॉलेज­स्कूल में पढ़ लिया, सेन्टर सम्भाल लिया। नहीं, इतना बड़ा कार्य करना है। अच्छा है, साधन अच्छा है।

डबल विदेशी:­

यू.के.­यूरोप:­ यू.के. और यूरोप वाले दोनों इकट्ठे हाथ उठाओ। सेकण्ड में देखो, हाथ नीचे कर लिये। ऐसे मन की ड्रिल भी सेकण्ड में। अभी­अभी उड़ती कला, अभी­अभी कर्मयोगी। हाथ की एक्सरसाइज अच्छी है, मन की एक्सरसाइज भी ऐसे है? तो यू.के. या यूरोप की विशेषता क्या है? यू.के. विदेश सेवा के वृक्ष का बीज है। तो बीज की विशेषता क्या होती है? बीज में पानी दे दो तो सारे झाड़ के पत्ते­पत्ते को पानी पहुँच जाता है। तो आज भी विदेश के वृक्ष की सेवा का फाउण्डेशन यू.के. निमित्त है, विदेश के सभी देशों को पालना का पानी कहाँ से मिलता है? यू.के. से ना! तो यू.के. अपना बीज का कार्य अच्छा कर रहे हैं। ऐसे नहीं, सिर्फ एक, लेकिन सभी सहयोगी हो। आप सब भी यू.के. वाले या यूरोप वाले सहयोगी हो ना? दादियों को मदद देते हो? कि कहते हैं कि दादी का काम दादी जाने। ऐसे तो नहीं कहते ना! भुजायें अच्छी मिली है ना! तो बापदादा बीज को सदा शक्तिशाली देख हर्षित होते हैं। और दूसरी यू.के. या यूरोप की विशेषता यह है कि सेवा में तन­मन­धन तीनों में एवररेडी हैं। कोई भी कार्य जो साधारण सोचने में लगता-कैसे होगा लेकिन यू.के. की विशेषता है कि कोई भी कार्य दृढ़ संकल्प और सहयोग के अंगुली से सहज हो जाता है। सहज हो जाता है ना! म्युजयम बनने के पहले करने वाले तैयार है ना! तो इसको कहा जाता है विशेषता। सर्व के सहयोग की अंगुली शक्तिशाली है। अगर कोई हिम्मत भी दिलाते हैं कि हाँ कर लो, कर लो, कर लो तो वो हिम्मत भी सहयोग की अंगुली है। लेकिन रिजल्ट में देखा गया है कि तन­मन­धन तीनों में सदा जी हाँ करने वाले हैं, सोचने वाले नहीं हैं। इसलिये सब कार्य सहज हो जाता है। अगर सोचने वाले होते हैं ना तो वो सूक्ष्म वायब्रेशन, वो अंगुली कम हो जाती है। तो सर्व के अंगुली से सफलता होती है। अगर थोड़ा भी सोचने वाले होते हैं कि कैसे होगा, क्या होगा तो संगठन की स्नेह की अंगुली न होने के कारण सफलता में कमी पड़ जाती है। इसलिये यू.के. वा यूरोप वालों को विशेष और सर्व विदेश के सहयोगी आत्माओं को कार्य में आगे बढ़ने की मुबारक हो। समझा!

ऑस्ट्रेलिया-बापदादा जब ऑस्ट्रेलिया का नाम सुनते हैं तो नाम सुनकर ऑस्ट्रेलिया का बचपन बहुत याद आता है। ऑस्ट्रेलिया और न्युजीलैण्ड वाले हाथ उठाओ। ऑस्ट्रेलिया में बहुत अच्छे­अच्छे रत्न पैदा हुए। ऑस्ट्रेलिया की ये विशेषता रही कि यू.के. में फिर भी मिक्स हैं, भारतवासी भी हैं तो विदेशी

भी हैं, मिक्स क्लास है लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सेवा ने विदेशियों की संख्या को काफी बढ़ा दिया। और क्लास की रौनक, विदेश की आत्माओं के क्लास की रौनक सबसे नम्बरवन ऑस्ट्रेलिया की रही। कोई थोड़ा बहुत आते­जाते हैं, चक्कर लगाते हैं लेकिन फाउण्डेशन तो निमित्त बने। और जाने वाले भी कहाँ जायेंगे? आना तो है ही। सिर्फ चक्कर लगाने जाते हैं। फिर जब चक्कर पूरा हो जाता है तो कहते हैं बाबा मैं आपका ही हूँ, आपका ही रहूँगा। और ऑस्ट्रेलिया की विशेषता ये है कि वहाँ प्लैंनिंग बुद्धि बहुत अच्छी है। सेवा के प्लैन बनाने में और सेवा में सहयोग देने में, बड़ी­बड़ी इन्वेन्शन को प्रैक्टिकल में लाने में प्लेन बुद्धि भी हैं और सहयोगी भी हैं। प्लेन बुद्धि होकर प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने में और थोड़ा सिर्फ अण्डरलाइन करो। समझा? थोड़ा अण्डर लाइन करना है - प्लैनिंग के साथ प्लेन बुद्धि। जब प्लेन बुद्धि होकर प्लैन बनाते हैं तो प्लेन में सर्व शक्तियाँ भर जाती हैं और जहाँ सर्वशक्तियाँ होती हैं वहाँ सफलता भी निर्विघ्न 100% होती है। तो ऑस्ट्रेलिया के अच्छे­अच्छे रत्न बापदादा के नजर में सदा रहते हैं। सफलता स्वरूप भी हैं, सेवा में आगे बढ़ने वाले भी हैं, बढ़ाने वाले भी हैं। तो ऑस्ट्रेलिया की विशेषता भी कम नहीं। ऑस्ट्रेलिया को बापदादा सदा आगे बढ़ने वालों की नजर से देखते हैं। और तीसरी विशेषता है कि पाण्डव और शक्तियाँ दोनों ही सेन्टर खोलने के निमित्त हैं। पाण्डव भी शक्तियों से कम नहीं हैं। पाण्डव भी निमित्त बनने में अच्छे सहयोगी हैं। वहाँ जायेंगे तो क्या देखेंगे? ये पाण्डवों का सेन्टर है, वो शक्तियों का सेन्टर है और दोनों की साथ­साथ रेस चल रही है। समझा? ऑस्ट्रेलिया वालों ने अपनी विशेषतायें सुनी? अच्छा।

साउथ एशिया - एशिया की भी विशेषता है। हर स्थान की विशेषता है। एशिया भारत के नजदीक है। तो एशिया का आवाज भारत में जल्दी पहुँचेगा। भारत के कुम्भकरण को जगाने में एशिया सहज कार्य कर सकता है। जैसे यू.के., यूरोप, अमेरिका में क्रिश्चियन्स ज्यादा निकले हैं, ऐसे एशिया में बौद्ध धर्म वाले ज्यादा निकले हैं। वो क्रिश्चियन्स और ये बौद्धी। तो देखो दूसरे धर्म का विस्तार ज्यादा एशिया में है। वैसे भी बुद्ध धर्म को भारत से कनेक्ट ज्यादा करते हैं। तो एशिया की विशेषता और भी है कि एक ही एशिया में

ऑफिशियल प्रेजीडेन्ट सम्पर्क वाला है। मलेशिया का प्रेजीडेन्ट, फिलिपिन्स का प्रेजीडेन्ट होमली है ना और संख्या भी अच्छी है। वैसे तो हर स्थान की संख्या वृद्धि को प्राप्त कर रही है। सभी अच्छे उमंग­उत्साह से बढ़ रहे हैं। अभी सिर्फ एशिया को क्या करना है कि जो वहाँ निमित्त बने हुए हैं, उन्हों को भारत तक पहुँचाना है। अभी भारत तक नहीं पहुँचाया है। ये एडीशन करना है। जो विशेष सेवा के निमित्त हैं, वो सभी मिलकर जो भी सम्पर्क में हैं उन्हें समीप लाओ। जितना देश समीप है उतना आवाज भी समीप लाओ। और ऐसा हो जो आवाज को जल्दी पहुँचा सके। तो अभी जल्दी­जल्दी भारत तक आवाज पहुँचाओ। अभी भारत तक नहीं पहुँचा है। अच्छा!

मॉरिशियस:­ मॉरिशियस की विशेषता ही ये है कि मॉरिशियस के स्टूडेण्ट अच्छे एकरस होकर चलने वाले हैं। थोड़ा बहुत नीचे­ऊपर होता है, वो कोई बात नहीं। लेकिन मैजारिटी देखा जाता है कि मॉरिशियस के स्टूडेन्ट ज्यादा हलचल में नहीं आते। तो मॉरिशियस की विशेषता-एक तो हलचल कम है, अचल ज्यादा हैं और दूसरा सहयोगी सहज बन जाते हैं, चाहे आई.पी. हो, चाहे वी.आई.पी. हो लेकिन सहयोग देने में अच्छे निमित्त बन जाते हैं। आई.पी. या वी.आई.पी. की सेवा में मेहनत नहीं लगती। इजी धरनी है। खिटपिट वाली धरनी नहीं। मेहनत लेने वाली धरनी नहीं। और इसीलिये मॉरिशियस भी भारत के बहुत नजदीक है। मॉरिशियस वाले तो भारत की फिलॉसॉफी को भी मानते हैं। इसलिये मॉरिशियस की आवाज भी भारत में जल्दी पहुँच सकती है। प्रत्यक्षता करने में पहले झण्डा किसका पहुँचेगा? मॉरिशियस का या एशिया का? मॉरिशियस का पहले पहुँचेगा? एशिया वाले भी दौड़­दौड़ कर फ्लैग ले आयेंगे और मॉरिशियस वाले भी ले आयेंगे। सब विदेश की तरफ से प्रत्यक्षता का झण्डा भारत में आयेगा। तो अच्छा है मॉरिशियस वालों की भी सहज सफलता है। ये विशेष धरनी को और ब्राह्मण सेवाधारियों को वरदान है।

फ्रीका:­फ्रीका की विशेषता ये है जो ये देश सदा ही भय के देश हैं और भय में निर्भय रहना, ये अफ्रीका वालों की विशेषता है। बापदादा सदा बिल्ली के पूंगरों की कहानी याद करते हैं, कि चारों ओर आग के बीच में बिल्ली के पूंगरे सेफ रहे। तो जैसे अफ्रीका के सरकमस्टांश हैं, उस सरकम­स्टांश के अनुसार जो भी बाप के बच्चे हैं वो हिम्मत और निर्भयता में बहुत अच्छे ए­वन हैं। कमाल है उन्हों की। कैसी भी हालत हो लेकिन सेवा को छोड़ते नहीं। पक्के हैं। तो बापदादा उन्हों के निर्भयता और हिम्मत को देखकरके सदा छत्रछाया भी देते और मुबारक भी देते हैं कि कमाल के बच्चे हैं। कैसी भी हालत हो लेकिन परिस्थिति में स्व स्थिति का सबूत देने वाले हैं। इसलिये जो आने वाले हैं उन्हों में भी हिम्मत भरते रहते हैं। अगर निमित्त हलचल में आ जाये तो आने वाले भी हलचल में आ जाये और ये देश वंचित रह जाये। लेकिन बच्चों की कमाल है जो अचल रह करके हिम्मत रखी है। सदा आगे बढ़ते रहते हैं और सेवाकेन्द्र खोलते जाते हैं, लोग भागते जाते हैं और ये खोलते जाते हैं। तो ये विशेषता है। और जो नाम है कि बाप विश्व कल्याणकारी है, तो काले हो या गोरे हो लेकिन कालों को भी सफेद बनाना - ये भी विशेष सेवा है। विश्व कल्याण में ये भी तो होने चाहिये ना। अगर ये नहीं हो तो विश्व कल्याण तो नहीं कहेंगे ना। साउथ अफ्रीका भी देखो सेवा के उमंग के कारण स्वतन्त्र हो गया ना। तो ये हिम्मत की कमाल है। साउथ अफ्रीका में भी सेवा का चांस अभी सहज मिल गया ना। तो ये किसने हिम्मत रखी? बच्चों ने हिम्मत रखी और स्वतन्त्र हो गये। आपकी सेवा ने देश को स्वतन्त्र कर दिया। तो अफ्रीका की रिजल्ट अच्छे उमंग­उत्साह वाली है। सबसे हिम्मत में नम्बरवन है। समझा? अफ्रीका वाले हिम्मत वाले हैं? डरते तो नहीं हैं ना? अच्छा, सबूत देने वाले हैं। तो सबूत देने वाले को बापदादा सपूत कहते हैं। जो सपूत होता है वो सबूत देता है। तो अच्छा बढ़ रहा है और बढ़ता रहेगा। समझा? श्री लंका भी छोटा है लेकिन कमाल कर रहा है।

जापान:­ जापान में सेवा की मेहनत है लेकिन मेहनत से डरने वाले नहीं। कोई­कोई धरनी मेहनत वाली होती है। तो जापान में मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है लेकिन फाउन्डेशन पक्के हो गये हैं ना। तो फाउन्डेशन में मेहनत लगती है, अभी फाउण्डेशन अच्छे हैं इसलिये अभी सहज होना चाहिये। तो जो सेवा के फाउण्डेशन निमित्त बनते हैं वो बापदादा के सदा सामने रहते हैं। तो जापान भी अच्छा प्रोग्रेस कर रहा है। अच्छा।

अमेरिका:­ अमेरिका की भी विशेषता ये है कि अमेरिका में विस्तार बहुत अच्छा किया है। अमेरिका के चारों ओर अच्छे­अच्छे सेवास्थान खुले हैं, चल रहे हैं। तो अमेरिका ने विस्तार अच्छा किया है। कोने­कोने में आवाज फैलाया है। एरिया के हिसाब से सबसे ज्यादा सेवाकेन्द्र अच्छी हिम्म्त से खोल रहे हैं और खुलते रहेंगे। तो जैसे अमेरिका देश का विस्तार है ना, तो सेवा का भी विस्तार अच्छा किया है। और हर स्थान में बाप के बच्चे निकल ही आते हैं। चाहे कहाँ थोड़े हैं, कहाँ ज्यादा हैं लेकिन आवाज तो पहुँच गया ना। और दूसरी अमेरिका की विशेषता-ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, उसको प्रसिद्ध करने के लिये यू.एन. के द्वारा अमेरिका ही तो निमित्त है ना। तो अमेरिका, विश्वविद्यालय को, कार्य को सहज प्रत्यक्ष करने के निमित्त बना हुआ है। और जो भी सुनते हैं तो सब आश्चर्य खाते हैं, ब्रह्माकुमारियाँ यू.एन. तक पहुँच गई! तो ये भी विशेष सेवा का साधन है। और साधन बनाने के निमित्त अमेरिका ही है। तो अमेरिका का विस्तार चारों ओर नाम फैलाने में अच्छा आगे बढ़ रहा है। अच्छा।

रशिया:­ आपके चित्रों में भी रशिया और अमेरिका विशेष दिखाया हुआ है। एक बिल्ला बिचारा कमज़ोर हो गया है। लेकिन रशिया वालों ने, जो एक भाग सेवा का रहा हुआ था वो भाग पूरा कर लिया। और हिम्मत है इन्हों की जो इकॉनॉमी डाउन होते हुए भी ये स्वयं डाउन नहीं होते। हिम्मत नहीं हारते। फिर भी देखो इतना ग्रुप पहुँच जाता है। समाचार सुनो तो कहते हैं बड़ा मुश्किल है, बड़ा मुश्किल है फिर ग्रुप भी पहुँच जाता है। इसको कहा जाता है सच्ची दिल पर साहब राजी। कहाँ न कहाँ से पहुँचने की हिम्मत अच्छी रखते हैं। नम्बर पीछे नहीं हटते। और भी अगर संख्या मिल जायेगी तो आ जायेंगे। तो इकॉनॉमी होते हुए एकनामी में होशियार हैं। इकॉनॉमी की परवाह नहीं करते लेकिन एकनामी बनने में आगे बढ़ते हैं। तो अच्छा है, बापदादा का नाम बाला करने में सहयोगी हैं, स्नेही हैं और सदा आगे बढ़ते रहेंगे।

भारत:­ अच्छा, भारत तो पहले है, विदेश वाले भारत में ही तो आये हैं। लेकिन हैं भारतवासी। भारतवासी हो या विदेशी? असली तो भारतवासी हो ना? ये तो सेवा के लिये गये हो। ओरिजनल आत्मा के संस्कार कौन­से हैं? विदेश के या भारत के कि विदेश का कल्चर अलग है? पहले बहुत कहते थे, पहले विदेशियों की ये कम्पलेन आती थी, कि विदेशियों का कल्चर और है, भारत का कल्चर और है। अभी परिवर्तन हो गया है। अभी ऐसी कम्पलेन कोई बिरले की आती है। अभी बदल गये हैं, अभी संस्कार इमर्ज हो गये हैं, कि मुश्किल लगता है भारत का कल्चर? मुश्किल तो नहीं लगता? तो भारत वालों की विशेषता है सदा डबल विदेशियों की मेहमान निवाजी करना। आने और जाने वाले को भी मेहमान कहा जाता है। ऐसे तो मालिक हो लेकिन आते हो और जाते हो तो उस हिसाब से मेहमान भी हो। बापदादा भी मेहमान होकर आता है। तो बापदादा भी भारत का मेहमान हो गया ना! विदेश का मेहमान बना? नहीं बना। भारत के ही मेहमान बने। तो भारत की विशेषता है कि भगवान भी भारत में ही मेहमान होकर आते हैं और आप सभी को राज्य­भाग्य भी भारत वाले देंगे ना। भारत में महल बनायेंगे या विदेश में? कहाँ महल बनायेंगे? भारत में बनायेंगे ना? तो देखो, भारत कितना बड़े दिल वाला है। जो भगवान को भी मेहमान बना सकते हैं वो कितने बड़े हो गये। तो भारत की विशेषता है एक तो सभी की बड़े दिल से मेहमान निवाजी करते हैं और दूसरा भारत स्थापना के निमित्त है। अगर भारत की बहनें विदेश सेवा में नहीं जातीं तो आप लोग कैसे आते? विदेश सेवा के अर्थ भारत की बहनें निमित्त बनी ना। तो भारत स्थापना के निमित्त है। और भारत ही आप सबको राज्य के साथी बनाने के निमित्त है। पहले आपको महल देंगे, पहले आपको रखेंगे। भारत फ्रीखदिल है, ‘पहले आप’ करने वाले हैं। ‘मैं­मैं’ करने वाले नहीं हैं। भारत सदा ही दान­पुण्य करने में होशियार है। तो औरों को आगे बढ़ाना ये पुण्य है। अच्छा-

(विदेश से सिन्धी भाई­बहिनों का ग्रुप आया है) सिन्धी ग्रुप हाथ उठाओ। यह ब्रह्मा बाप के देश के साथी हैं। तो नजदीक के साथी हो। सिर्फ आये थोड़ा देरी से हो। लेकिन लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट - ऐसे है ना? पीछे रहने वाले नहीं हैं। स्नेह और सहयोग में सिन्धी ग्रुप पहला नम्बर जाता है। बाकी एक बात एड करनी है। तीन शब्द हैं-एक सहयोग, दूसरा स्नेह, तीसरा शक्ति। तो स्नेह और सहयोग में सभी पास हो। अभी शक्ति रूप में थोड़ा और आगे बढ़ना है। शक्ति रूप बनेंगे ना तो राजधानी में भी नम्बर लेंगे। अभी सभी आपको स्नेह की दृष्टि से देखते हैं कि ये देश के साथी हैं, बाबा के देश के साथी हैं। अभी शक्ति रूप बनने से और सिन्धियों को सहज जगायेंगे। अभी स्नेह रूप का अनुभव तो सुनाते हो। शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ, कि इतनी शक्ति आ गई है। धारणा की शक्ति, चलने की शक्ति। अभी ये एड करना है। बाकी बापदादा को पसन्द हो, अच्छे लगते हो। अच्छा। एक­एक कम से कम कितनों को जगायेंगे? एक दीपक कितनी दीपमाला बनायेंगे? (लाखों की! ) वाह! अच्छी हिम्मत रखी है! हजार भी नहीं, लाख। मुख में गुलाब जामुन। अच्छा है और ये तो जरूर है कि एक आता है तो अनेकों का वायुमण्डल बदलता है। चाहे आने में देरी करते हैं लेकिन वायुमण्डल तो बदलता ही है। वायुमण्डल बदल रहा है ना? अभी अच्छा­अच्छा सब कहने लगे हैं। अच्छा बनने की हिम्मत नहीं है लेकिन अच्छा है, यहाँ तक तो पहुँचे हैं ना? पहला कदम तो हुआ है, धरनी तो बनी है ना। अभी और बीज डालकर फल निकालना। अभी जहाँ तहाँ देखने में आता है ये वायुमण्डल बदलता जाता है। पहले आना नहीं चाहते थे, अभी आना चाहते हैं लेकिन यहाँ से मना होती है। फर्क तो पड़ गया ना। आप लोग आते हैं, सुनाते हैं तो दूसरे भी कहते हैं ना कि हमको भी ले चलना, हमको भी ले चलना। तो फर्क आ गया ना। अभी माला तैयार करके आना। अभी दूसरी बारी आओ तो माला तैयार करके आयेंगे या कंगन तैयार करके आयेंगे? (माला) माला तैयार करके आयेंगे। अच्छा है, हिम्मते बच्चे मददे बाप। सदा मददगार है बाप। सिर्फ हिम्मत का एक कदम बढ़ाओ और बाप हजार कदम बढ़ाने के लिये बंधा हुआ है। बाप को भी बांधने वाले हो ना। स्नेह की रस्सी में बांधने में होशियार हो। अच्छा! बाप को शुद्ध दिल वाले प्रिय लगते हैं और बाप आपको प्रिय लगता है-ऐसे? जादू तो नहीं लग गया। यह जादू फायदे वाला है, नुकसान वाला नहीं। तो अच्छी तरह से जादू लगा? थोड़ा तो नहीं लगा जो वहाँ उतर जाये। जादू माना परिवर्तन। तो परिवर्तन हो ही गया ना। इस जादू से खुश हो ना, घबराते तो नहीं हो?

सभी चैरिटी बिगन्स एट होम सिद्ध करने वाले बने हो। नहीं तो जब ये सेवा करते हैं तो सभी लोग पूछते हैं-सिन्धी लोग क्यों नहीं आते? तो आप कहेंगे आते हैं ना, तो सहयोगी बन गये ना। टूलेट में नहीं आये, लेट में आये। फिर भी लक्की हैं। (सभी हंसते हैं) अच्छा है रोते तो नहीं हैं ना। लोग तो रूलाते हैं, आप हंसाते हो तो अच्छा है ना। रोने वाले को भी हंसा दो। परवाह नहीं करो, हंसने दो। फिर ये हंसने वाले आपको नमस्कार करने वाले हैं। आज हंसते हैं, कल नमस्कार करेंगे। अच्छा!

दुबई - अच्छा, गुप्त सेवाधारी। अननोन बट वेरी वेल नोन। राज्य के हिसाब से गुप्त रूप में सेवा कर रहे हैं और अविनाशी रत्न हैं, चाहे कितनी भी हलचल हो जाये लेकिन अविनाशी रत्न होने के कारण अचल हैं। गुप्त में भी आगे बढ़ रहे हैं। दुबई वाले पक्के हैं ना! हिलने वाले तो नहीं है ना? तो अच्छी हिम्मत रखने वाले हैं। इसीलिये बापदादा की स्पेशल मदद और मुबारक। अच्छा!

नया वर्ष मनाया कि 12 बजे मनायेंगे? आपकी तो हर घड़ी नई है ना कि 12 बजे नया होगा? हर घड़ी नई है, हर सेकण्ड नया दिन है। जब भी मनाओ आपके लिये नया वर्ष है। जब युग ही नया है तो नवयुग स्थापन करने वालों का सब नया है कि 12 बजे नया होगा? आपके लिये नया है ना। क्योंकि आप नये बन गये ना! वो तो घण्टा बजायेंगे। अभी 12 घण्टे बजा दो इसमें क्या है? अच्छा!

चारों ओर के नवयुग के राज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को सदा स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन के निमित्त विशेष आत्माओं को, सदा पुरूषार्थ में नवीनता­श्रेष्ठता लाने वाले सर्व स्नेही आत्माओं को, सदा बाप का नाम प्रत्यक्ष करने वाले सपूत आत्माओं को, सदा ‘मेरा’ और ‘मैं’ को यथार्थ भाव और अर्थ में लाने वाले सहजयोगी आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

अच्छा, चारों ओर के न्यु वर्ष के कार्ड बहुत आये। वैसे तो कार्ड खरीद करते हो और बापदादा के पास पहले ही आपकी मुबारक पहुँच जाती है। कार्ड में लिखने के पहले बाप के दिल में लिख जाती है। लेकिन फिर भी सुहेज मनाने के लिये भेज देते हैं। तो बापदादा सभी देशय्विदेश के न्यु वर्ष के पत्र वा कार्ड भेजने वालों को विशेष पदमगुणा मुबारक के साथ सदा उड़ने वाले और उड़ाने वाले, सदा सहज विश्व परिवर्तक बनने वाले, इस स्वरूप से पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं-मुबारक हो! मुबारक हो! !

दादी जी से - आपके संकल्प पूरे हो रहे हैं ना! अच्छा है, जो निमित्त बनता है उसको टचिंग होती है। ब्रह्मा बाप के समान हो। ब्रह्मा बाप को नींद आती थी क्या? तो निमित्त बनने वालों को निमित्त बनने के कारण संकल्प अच्छे आते ही हैं। अच्छा है, आपके सहयोगी भी अच्छे­अच्छे हैं। आदि रत्नों का ग्रुप अच्छा है। फाउण्डेशन जो होते हैं, फाउण्डेशन के पिल्लर्स अगर मजबूत होते हैं तो चाहे कितना भी कोई हिलाये, अगर पिल्लर्स पक्के हैं तो सब सहज होता है। (दादियों से) बापदादा आप निमित्त पिल्लर्स का ग्रुप देखकर खुश होता है। मजबूत पिल्लर हैं ना? हिलने वाले हैं ही नहीं। चाहे कितना भी कोई पिल्लर को हिलावे लेकिन अविनाशी हैं। अच्छा है, भारत और विदेश दोनों ही सेवा­स्थान और सेवा में रेस कर रहे हैं। एडवांस मुबारक हो। जो सेवा कर रहे हैं उन्हों को विशेष याद­प्यार देना। अच्छा है। क्या नहीं हो सकता! जो चाहे वो कर सकते हैं। (आप जो चाहे करा सकते हो) और बच्चे निमित्त बन सकते हैं। अच्छे हैं, चारों ओर के, चाहे देश, चाहे विदेश, लेकिन सहयोगी बहुत अच्छे हैं। और समय पर सहयोगी बनने के कारण, जो समय पर सहयोगी होते हैं-उनको एक का पदमगुणा फल मिल जाता है। स्थान अपना साधन लेकर आता है। ज्ञान सरोवर का देखकर समझते हो ना, इतना कैसे होगा, क्या होगा, लेकिन सहज बढ़ता जाता है, होता जाता है। प्रैक्टिकल सभी ब्राह्मणों की अंगुली उमंग­उत्साह से पड़ रही है इसीलिये सहज हो रहा है। खर्चा भी खूब हो रहा है और सहयोग भी खूब मिल रहा है, मिलता रहेगा। अभी आगे भी तो सहयोग देना है या मकान बन गया, बस। (अभी दादी को मेला करना है) मेला तो उसके आगे कुछ भी नहीं है। वो तो सहज है। ये करोड़ों की बात है वो लाखों की बात है। फर्क है ना! अच्छा है, जो कार्य हो जाये और जितना तुरन्त हो जाये उतना अच्छा है।

(12 बजे रात तक भाई­बहिनों ने खूब गीत गाये फिर बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष (1995 की मुबारक दी)

चारों ओर के सभी बच्चों को नये वर्ष की पदम पदम पदम गुणा मुबारक हो। इस नये वर्ष में यही दृढ़ संकल्प करो कि सदा खुश रहेंगे और सभी को दिलखुश मिठाई बांटेंगे। कैसी भी परिस्थिति हो, परिस्थिति चली जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। कोई आपको दु:ख देने की बातें भी करे लेकिन हम सदा सुख देंगे, सुख लेंगे-इस दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ नये वर्ष को आरम्भ किया? तो पुरानी बातों को, पुरानी दुनिया की बातों को विदाई दी? वापस तो नहीं लेंगे? तो सदा विदाई की बधाइयाँ हो, मुबारक हो। अच्छा!



09-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


निश्चयबुद्धि की निशानियाँ - निश्चित विजयी और सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव

आज सर्व बच्चों के रक्षक और शिक्षक बापदादा अपने सभी ब्राह्मण बच्चों के फाउण्डेशन को देख रहे थे। ये तो सभी जानते हो कि वर्तमान श्रेष्ठ जीवन का फाउण्डेशन निश्चय है। जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होती है। हर समय चलन और चेहरे से उनकी झलक अनुभव होती है क्योंकि ब्राह्मण जीवन में सिर्फ जानना नहीं है कि ‘मैं ये हूँ और बाप ये है’, लेकिन जानने का अर्थ है जो जानते हैं वो मानना और चलना।

बापदादा देख रहे थे कि जो भी बच्चे अपने को ब्राह्मण कहलाते हैं वो सभी ये फलक से कहते हैं कि हम निश्चयबुद्धि हैं। तो बापदादा सभी निश्चयबुद्धि बच्चों से पूछते हैं, जब आप सभी कहते हो कि हम निश्चयबुद्धि विजयी हैं तो कभी विजय, कभी हार क्यों होती है? जब कभी­कभी थोड़ी हलचल होती है तो क्या उस समय निश्चय खत्म हो जाता है? जब निश्चयबुद्धि सदा हो तो विजयी सदा हो कि बीच­बीच में घुटका और झुटका होता है? निश्चय का फाउण्डेशन चारों ओर से मजबूत है या चारों ओर के बजाय कभी एक ओर कभी दो ओर ढीले हो जाते हैं? कोई भी चीज़ को मजबूत किया जाता है तो चारों ओर से टाइट किया जाता है ना। अगर एक साइड भी थोड़ा­सा हलचल वाला हो तो हिलेगा ना! तो चारों प्रकार का निश्चय अर्थात् बाप में, आप में, ड्रामा में और ब्राह्मण परिवार में निश्चय। ये चार ही तरफ के निश्चय को जानना नहीं लेकिन मानकर चलना। अगर जानते हैं लेकिन चलते नहीं हैं तो विजय डगमग होती है। जिस समय विजय हलचल में आती है, तो चेक करना कि चारों तरफ से कौन­सा तरफ हलचल में है? बापदादा देखते हैं कि कई बच्चों को बाप में पूरा निश्चय है, इसमें पास हैं लेकिन अपने आपमें जो निश्चय चाहिए उसमें अन्तर पड़ जाता है। जानते भी हैं, कहते भी हैं कि मैं ये हूँ, मैं ये हूँ, लेकिन जो जानते हैं, मानते हैं वो स्वरूप में, चलन में, कर्म में हो-इसमें ही अन्तर पड़ जाता है। एक तरफ सोचते हैं कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ, विश्व कल्याणकारी हूँ, दूसरे तरफ छोटी­सी परिस्थिति पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते। हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान् लेकिन ये परिस्थिति बहुत बड़ी है, ये बात ही ऐसी है! तो क्या ये निश्चय है कि सिर्फ जानना है लेकिन मानकर चलना नहीं? कहते वा सोचते हैं कि मैं विश्व कल्याणकारी हूँ लेकिन विश्व को तो छोड़ो, स्व कल्याण में भी कमज़ोर होते हैं। अगर उस समय उन्हें कहो कि क्या स्वयं को परिवर्तन कर स्व कल्याणकारी नहीं बन सकते? तो जवाब देते हैं कि हैं तो विश्व कल्याणकारी लेकिन स्व कल्याण बहुत मुश्किल है! ये बात बदलना मुश्किल है! तो विश्व कल्याणकारी कहेंगे या कमज़ोर? तो स्व में भी परिस्थिति प्रमाण, समय प्रमाण, सम्बन्ध­सम्पर्क प्रमाण निश्चय स्वरूप में आये, ऐसे निश्चय बुद्धि की विजय हुई ही पड़ी है। जैसे सभी को ये पक्का निश्चय है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, इसके लिए कोई दुनिया के वैज्ञानिक भी आपको हिलाने की कोशिश करें कि आत्मा नहीं शरीर हो, तो मानेंगे नहीं और ही उसको मनायेंगे। तो जैसे ये पक्का है कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ और कौन­सी आत्मा हूँ, ये भी पक्का है, ऐसे निश्चयबुद्धि की विजय भी इतनी निश्चित है। हार असम्भव है और विजय निश्चित है। और ये भी निश्चित है कि बातें भी अन्त तक आनी हैं। लेकिन उसमें विजयी बनने के लिए एक ही समय पर चारों ही तरफ का निश्चय पक्का चाहिये। तीन में निश्चय है और एक में नहीं है तो विजय निश्चित नहीं है लेकिन मेहनत से विजय होगी। निश्चित विजय वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

कई बार कई कहते हैं बापदादा तो बहुत अच्छा, वो तो पक्का है कि बाप है और हम बच्चे हैं, हमारा बाप से ही सम्बन्ध है लेकिन दैवी परिवार में खिटखिट होती है, उसमें निश्चय डगमग हो जाता है इसीलिये परिवार को छोड़ देते हैं, हल्का कर देते हैं। तो एक साइड ढीला हो गया ना। बिना परिवार के माला में कैसे आयेंगे? माला कब बनती है? जब दाना दाने से मिलता है और एक ही धागे में पिरोये हुए होते हैं। अगर अलग­अलग धागे में अलग­ अलग दाना हो तो उसको माला नहीं कहेंगे। तो परिवार है माला। अगर परिवार को छोड़कर तीन निश्चय पक्के हैं तो भी विजय निश्चित नहीं है। चलो परिवार की खिटखिट से किनारा कर लो, बाप का सहारा हो, परिवार का किनारा हो, तो चलेगा? काम तो बाप से है या भाइयों से है? बाप से काम है, वर्सा बाप से मिलना है, भाई­बहनों से क्या मिलेगा? लेकिन ब्राह्मण जीवन में यही न्यारापन है कि धर्म और राज्य दोनों की स्थापना होती है, सिर्फ धर्म की नहीं। और धर्म पितायें सिर्फ धर्म की स्थापना करते हैं, बाप की विशेषता है धर्म और राज्य की स्थापना करना। तो राज्य में एक राजा क्या करेगा? बहुत अच्छा तख्त भी हो, ताज भी हो, क्या करेगा? राजधानी भी चाहिये ना? तो राजधानी अर्थात् ब्राह्मण परिवार सो राज परिवार। इसलिए ब्राह्मण परिवार में हर परिस्थिति में निश्चयबुद्धि, तब राज्य­भाग्य में भी सदा राज्य अधिकारी होंगे। तो ऐसे नहीं समझना-कोई बात नहीं, परिवार से नहीं बनती है, बाप से तो बनती है! ड्रामा अगर भूल जाता है तो बाप तो याद रहता ही है! लेकिन कोई भी कमज़ोरी एक ही समय पर होती है, स्व स्थिति अर्थात् स्वय्निश्चय भी अगर कमज़ोर होता है तो विजय निश्चित के बजाय हलचल में आ जाती है। तो बापदादा निश्चय के फाउण्डेशन को चेक कर रहे थे। क्या देखा?

सदा चार ही प्रकार का निश्चय एक समय पर साथ नहीं रहता, कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का अनुभव नहीं कर पाते हैं। फिर सोचते हैं-होना तो ये चाहिये लेकिन पता नहीं क्यों नहीं हुआ? किया तो बहुत मेहनत, सोचा तो बहुत अच्छा.... लेकिन सोचना और होना इसमें अन्तर पड़ जाता है। इसका अर्थ ही है कि निश्चय के चारों तरफ मजबूत नहीं हैं। और हंसी की बात तो ये है कि ड्रामा भी कह रहे हैं, है तो ड्रामा, है तो ड्रामा.... लेकिन अच्छी तरह से हिल भी रहे हैं। कभी संकल्प में हिलते, कभी बोल तक भी हिल जाते, कभी कर्म तक भी आ जाते। उस समय क्या लगता होगा, दृश्य सामने लाओ, ड्रामा­ड्रामा भी कह रहे हैं और हिलडुल भी रहे हैं! लेकिन निश्चयबुद्धि की निशानी है निश्चित विजयी। अगर विधि ठीक है तो सिद्धि प्राप्त न हो, ये हो नहीं सकता। तो जब भी कोई भी कार्य में विजय प्राप्त नहीं होती है तो समझ लो कि निश्चय की कमी है। चारों ओर चेक करो, एक ओर नहीं।

और बात, निश्चयबुद्धि की निशानी जैसे निश्चित विजय है वैसे निश्चिन्त होंगे। कोई भी व्यर्थ चिन्तन आ ही नहीं सकता। सिवाए शुभ चिन्तन के व्यर्थ का नामय्निशान नहीं होगा। ऐसे नहीं, व्यर्थ आया, भगाया। निश्चयबुद्धि के आगे व्यर्थ आ नहीं सकता। क्योंकि क्यों, क्या, और कैसे-ये व्यर्थ होता है। जब ड्रामा के राज को जानते हैं, आदि­मध्य­अन्त को जानने वाले हैं तो जो ड्रामा के आदि­मध्य­अन्त को जानने वाले हैं वो छोटी­सी बात के आदि­मध्य­अन्त को नहीं जान सकते! न जानने के कारण क्यों, क्या, कैसे, ऐसे-ये व्यर्थ संकल्प चलते हैं। अगर ड्रामा में अटल निश्चय है, नॉलेजफुल भी हैं, पॉवरफुल भी हैं तो व्यर्थ संकल्प हिलाने की हिम्मत भी नहीं रख सकते। परन्तु जब हिलते हैं तो सोचते हैं पता नहीं क्या हो गया! तो बापदादा हंसते हैं कि ड्रामा के आदि­मध्य­अन्त को जान लिया, अपने 84 जन्म को जान लिया और एक बात को नहीं जानते! बड़े होशियार हो! होशियारी दिखाते हो ना समय प्रति समय! कल्प वृक्ष के सभी पत्तों को जानते हो कि नहीं? सभी वृक्ष के फाउण्डेशन में बैठे हो या 7-8 बैठे हैं? तो जड़ में बैठे हुए वृक्ष को जानते हो? पत्ते­पत्ते को जानते हो और ये पता नहीं कैसे? तो निश्चय की निशानियाँ निश्चिन्त स्थिति, इसका अनुभव करो। होगा, नहीं होगा, क्या होगा, कर तो रहे हैं, देखें क्या होता है-इसको निश्चिन्त नहीं कहेंगे। और फिर बाप के आगे ही फरियाद करते हैं-आप मददगार हो ना, आप रक्षक हो ना, आप ये हो ना, आप ये हो ना....। फरियाद करना अर्थात् अधिकार गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् निश्चिन्त। तो ये प्रैक्टिकल निशानियाँ अपने आपमें चेक करो। ऐसे अलबेले नहीं रह जाना-हम तो हैं ही निश्चयबुद्धि। कौन­सा निश्चय कमज़ोर है वो चेक करो और चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। बापदादा ने कहा था ना चेकर के साथ मेकर भी हो। सिर्फ चेकर नहीं। चेक करने का अर्थ ही है सेकण्ड में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में दिलशिकस्त के संस्कार पक्के होते जायेंगे और जो बहुतकाल के संस्कार हैं वही अन्त में अवश्य सामना करते रहेंगे। कोई सोचे अन्त में तो मैं सिवाए बाप के और कुछ नहीं सोचूँगा। लेकिन हो नहीं सकता। बहुतकाल का अभ्यास चाहिये। नहीं तो एक सेकण्ड सोचेंगे-शिवबाबा शिवबाबा शिवबाबा.... और दूसरे सेकण्ड माया कहेगी-नहीं, तुम्हारे में शक्ति नहीं है, तुम हो ही कमज़ोर, तो युद्ध चलती रहेगी। यदि निश्चिन्त नहीं होंगे तो ब्राह्मण जीवन के अन्तकाल का जो लक्ष्य वर्णन करते हो वो सहज कैसे होगा और अगर अन्त तक ये व्यर्थ संकल्प होंगे तो वही भूतों के, यमदूतों के रूप में आयेंगे। और कोई यमदूत नहीं आते हैं, ये व्यर्थ संकल्प अपनी कमज़ोरियाँ, यही यमदूत के रूप में आते हैं। यमदूत क्या करते हैं? डराते हैं। और दूसरों के लिये कहेंगे विमान में जायेंगे अर्थात् उड़ती कला से पार हो जायेंगे। कोई विमान आदि नहीं हैं लेकिन उड़ती कला का अनुभव है। इसलिये पहले से ही चेक करके चेंज करो। कब तक करेंगे? बापदादा को खुश तो कर देते हैं-करेंगे, प्रतिज्ञा भी लिख देते हैं लेकिन वो कागज तक रहती हैं या जीवन तक?

अच्छा - आज मधुबन निवासियों का भी टर्न है। मधुबन वालों से तो विशेष बापदादा का स्नेह है। सबसे है लेकिन फिर भी थोड़ा­सा विशेष मधुबन निवासियों से है क्योंकि निमित्त हैं। फिर भी देखो आप आते हैं, खातिरी तो ठीक करते हैं ना। मधुबन वाले खातिरी करने में पास हैं ना। मेहमानय्निवाजी करना ही महानता है। जिसको मेहमानय्निवाजी करना आता है, वो महान हो ही जाता है। सिर्फ खाने­पीने से नहीं लेकिन दिल के स्नेह की मेहमानय्निवाजी, वो सबसे श्रेष्ठ है। चाहे पिकनिक कितनी भी वरा लो लेकिन दिल का स्नेह नहीं मिला तो कहेंगे कुछ नहीं मिला। तो मधुबन वाले दिल के स्नेह सहित मेहमानय्निवाजी करते हैं। करते हो ना कि कोई नीचे­ऊपर करेंगे तो कहेंगे बापदादा ने ऐसे ही कहा? ऐसे नहीं करना। स्नेह के सागर के बच्चे हो ना, कब तक स्नेह देंगे? नहीं। गागर के बच्चे नहीं, सागर के बच्चे, बेहद।

सबके पास स्नेह का स्टॉक है ना? माताओं के पास भी है, कुमारियों के पास भी है, पाण्डवों के पास भी है। सागर है या थोड़ा है? तो कभी क्रोध तो नहीं करते होंगे ना? जब स्नेह के सागर हैं तो क्रोध कहाँ से आया? किसके संस्कारों को जानकर सेटिस्फाय करते हो ना। चाहे वो रांग है लेकिन आप तो नॉलेजफुल हो ना, आप तो जानते हो ना कि ये क्या है लेकिन उस समय क्या कहते हैं-इसने ऐसे किया ना, इसीलिये हमने भी किया। रांग से रांग हो गया तो क्या कमाल की? उसने रांग किया और आपने उसका रेसपॉन्ड भी रांग ही दिया। कई कहते हैं ना क्रोध एक बारी करते हैं तो कुछ नहीं होता, बार­बार करता रहता है! तो जानते हो कि जिसका स्वभाव ही क्रोध का है तो वो क्रोध नहीं करेगा तो क्या करेगा? उसका काम है क्रोध करना और आपका काम है स्नेह देना या क्रोध करना? वो 10 बारी करे तो आप एक बारी तो जवाब देंगे ना? नहीं देंगे तो वो 20 बारी करेगा, फिर क्या करेंगे? तो इतनी सहनशक्ति है या उसने 10 किया, आपने आधा किया कोई हर्जा नहीं? उसने झूठ बोला, आपने क्रोध किया, तो क्या ठीक हुआ? फिर बड़े बहादुरी से कहते हैं-झूठ बोला ना, इसीलिये क्रोध आ गया। लेकिन झूठ बोलना तो अच्छा नहीं लगा और क्रोध करना अच्छा है! तो स्नेह के सागर के मास्टर स्नेह के सागर। मास्टर स्नेह के सागर के नयन, चैन, वृत्ति, दृष्टि में जरा भी और कोई भाव नहीं आ सकता। यदि थोड़ा­थोड़ा जोश आ गया तो क्या उसको स्नेह का सागर कहेंगे कि लोटा है? चाहे कुछ भी हो जाये, सारी दुनिया क्यों नहीं आप पर क्रोध करे लेकिन मास्टर स्नेह के सागर दुनिया की परवाह नहीं करेंगे। बेपरवाह बादशाह हो। जो परवाह थी वो पा लिया। अभी इन व्यर्थ बातों से बेपरवाह बादशाह। चेकिंग की परवाह करो, चेंज होने की परवाह करो, लेकिन व्यर्थ में बेपरवाह। कर सकते हो कि बच्चा, पोत्रा, धोत्रा, धोत्री.... थोड़ा­सा क्रोध करेगा, थोड़ा­सा नीचे­ऊपर करेगा, तो स्नेह के बजाय और भावना भी आ जायेगी? दफतर में जायेंगे, बिजनेस में जायेंगे, नौकर ऐसा मिल जायेगा, वायुमण्डल ऐसा मिल जायेगा.... लेकिन व्यर्थ से बेपरवाह बादशाह। समर्थ में बेपरवाह नहीं होना। कई उल्टा भी उठा लेते हैं, जहाँ मर्यादा होगी वहाँ कहेंगे बापदादा ने कहा ना कि बेपरवाह बादशाह बन जाओ। लेकिन मर्यादाओं में बेपरवाह नहीं। आपका टाइटल है मर्यादा पुरूषोत्तम। ये मर्यादायें ही ब्राह्मण जीवन के कदम हैं। अगर कदम पर कदम नहीं रखा तो मंज़िल कैसे मिलेगी? ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो। तो ये मर्यादायें ही कदम हैं। अगर इस कदम में थोड़ा भी नीचे­ऊपर होते हो तो मंज़िल से दूर हो जाते हो और फिर मेहनत करनी पड़ती है। और बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती, कहते हैं सहज योगी और करते हैं मेहनत। तो अच्छा लगता है क्या? अच्छा।

(बापदादा ने ड्रिल कराई) एवररेडी हो? अभी­अभी बापदादा कहें सब इकट्ठे चलो तो चल पड़ेंगे? कि सोचेंगे कि फोन करें, टेलीग्राम करें कि हम जा रहे हैं? टेलीफोन के ऊपर लाइन नहीं लगेगी? आपके घर वाले सोचेंगे कहाँ गये फिर? सेकण्ड में आत्मा चल पड़ी-है तो अच्छा ना कि याद आयेगा कि अभी तो एक सब्जेक्ट में कमज़ोर हूँ? अच्छा, यह याद आयेगा कि चीजों को सिर्फ ठिकाने लगाकर आऊं? सिर्फ इतल्ला करके आऊं कि हम जा रहे हैं? यह सोच थोड़ा­थोड़ा चलेगा? नहीं। सभी बंधनमुक्त बनेंगे। अभी से चेक करो कि कोई सोने का, चांदी का धागा तो नहीं है? लोहा मोटा होता है तो दिखाई देता है लेकिन ये सोना और चांदी आकर्षित कर लेता है। एवररेडी का अर्थ ही है ऑर्डर हुआ और चल पड़ा। इतना मेरेपन से मुक्त हो? सबसे बड़ा मेरापन सुनाया ना कि देहभान के साथ देह­अभिमान के सोने­चांदी के धागे बहुत हैं। इसलिये सूक्ष्म बुद्धि से, महीन बुद्धि से चेक करो कि कोई भी अल्पकाल का नशा ये धागा बन करके रोकने के निमित्त तो नहीं बनेगा? मोटी बुद्धि से नहीं सोचना कि मेरा कुछ नहीं है, कुछ नहीं है। फॉलो करने में सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करो। सर्व प्रति गुणग्राहक बनना अलग चीज़ है लेकिन फॉलो फादर। कई हैं जो भाई­बहनों को फॉलो करने लगते हैं लेकिन वो फॉलो किसको करते हैं? वो फॉलो ब्रह्मा बाप को करते हैं और आप फिर उनको करते! डायरेक्ट क्यों नहीं करते? सभी ब्रह्मा कुमार हो ना? कि फलाने भाई कुमार, फलानी बहन कुमार? यह तो नहीं? फॉलो फादर गाया हुआ है या फॉलो ब्रदर्स सिस्टर? विशेषता देखो, लेकिन फॉलो फादर। रिगार्ड रखो लेकिन गाइड एक बाप है। कोई भाई­बहन गाइड नहीं बन सकता। गाइड एक है। गॉड गाइड है और साकार एग्जाम्पल ब्रह्मा बाप है। बस। तो फॉलो फादर करते हो कि सोचते हो कि ब्रह्मा को तो देखा ही नहीं, जाना ही नहीं, तो कैसे फॉलो करें? जानते नहीं हो, देखा नहीं है? टीचर्स को देखा, भाई­बहनों को देखा, बाप को देखा ही नहीं-ऐसे तो नहीं सोचते? कोई भी निमित्त हैं लेकिन निमित्त बनाया किसने? अपने आप ही तो निमित्त नहीं बने ना? बाप ने बनाया। तो फिर बाप याद आयेगा ना?

अच्छा। सभी अच्छी तरह से सेट हो गये हैं। सोना­खाना ठीक है? कि बहुत दूर कोने में भेज दिया है? भक्ति मार्ग में तो यात्राओं में कितना पैदल करते हो और आप अगर दूर भी रहते हो तो लेने के लिए बस आती है। आराम से आते हो ना? और ब्रह्मा बाप के आगे तो यह कोच­कुर्सियाँ भी नहीं थी। अभी तो देखो, कोच और कुर्सियों वाले हो गये। कितने आराम से बैठे हो। बापदादा भी जानते हैं कि पुराने शरीर हैं तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। लेकिन ऐसा अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सा मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा। सब आराम से रहे हुए हो कि खटिया चाहिये? घरों में तो खटिया पर सोते हो ना, यहाँ भी खटिया मिली तो क्या बात हुई! चेंज चाहिये ना। चेंज के लिये कितना खर्चा करके जाते हैं। वहाँ खटिया पर सोते हो, यहाँ पट पर सोते हो, चेंज हो गई ना। ये तो सुना दिया कि जितना साधन बढ़ायेंगे उतनी संख्या डबल, ट्रिबल बढ़ेगी। तो ये तो चलना ही है। अभी ज्ञान सरोवर बना रहे हैं फिर दूसरे वर्ष कहेंगे ज्ञान सरोवर छोटा हो गया। ये तो होना ही है। क्योंकि सेवा को समाप्त भी करना है या चलते रहना है? सम्पन्न करके समाप्त करना है। तो सम्पन्न तब होगी जब कम से कम 9 लाख की माला बनाओ। अच्छा।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल ­ अच्छा, ये कितनी माला लायेंगे? लाख, दो, तीन, कितनी? (4 लाख) 4 लाख लायेंगे! फिर तो अच्छा है, और जोन मौज मनाये और पंजाब माला बनाये। अच्छा, ऐसा कौन­सा जोन है जो अभी 50 हजार तक पहुँचा हो? कोई भी जोन में 50 हजार नहीं हैं। तो कम से कम हर जोन 50 हजार तो बनाये। पंजाब की संख्या कितनी है? (12 हजार) अच्छी बात है, 4 लाख का लक्ष्य रखा है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू कश्मीर 4 तो हैं, तो चार एक­एक लाख बनाये तो क्या बड़ी बात है। लेकिन कब तक बनायेंगे? सतयुग के आदि तक या अभी? पंजाब वाले समीपता को समीप लाने वाले हैं। सम्पूर्णता समीपता का आधार है। तो पंजाब की विशेषता है स्वयं को सम्पूर्ण बनाये अन्तिम समय को समीप लाने वाले। हिम्मत है? जितना जितना स्वयं को सम्पन्न बनाते जायेंगे उतना सम्पूर्णता और समीपता नजदीक आ जायेगी। तो सदा समीप रहने वाले और सदा समय को समीप लाने वाले। देखो, पंजाब वालों ने एक विजय तो प्राप्त कर ली, वायुमण्डल को परिवर्तन कर लिया। आतंकवादियों का वायुमण्डल तो बदला अभी अंत लाने में भी इतने बहादुर बनो। पंजाब माना बहादुर। शरीर में भी, आत्मा में भी। तो सदा यह याद रखना कि-सम्पूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप लाने वाले हैं, समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं। जो बाप समान होंगे वो ही समीप रहेंगे । तो ऐसे समीप रहने वाली आत्मायें हो। इसी स्मृति के समर्थी से सदा आगे बढ़ते चलो। समझा? अच्छा!

बाम्बे, नागपुर, पूना, जलगांव (महाराष्ट्र) - महाराष्ट्र वाले कितनी माला तैयार करेंगे? (5 लाख) महाराष्ट्र में बाम्बे भी है और बाम्बे को नरदेसावर का टाइटल है तो सिर्फ पैसे में थोड़ेही नरदेसावर होंगे, माला के मणके बनाने में भी नरदेसावर। तो महाराष्ट्र पांच लाख बनायेंगे! कोई ख्याल नहीं करना कि 9 लाख तो पूरे हो गये! पंजाब वाले चार लाख लायेंगे और महाराष्ट्र पांच लाख लायेगा। फिर छांट छूट भी तो होगी ना? कोई त्रेता की प्रजा होगी, कोई सतयुग की होगी, इसलिये इतने भले बनाओ। महाराष्ट्र की महानता अर्थात् सदा विजयी। महानता है ही विजय में। तो सदा निर्विघ्न स्थिति द्वारा सदा विजयी आत्मायें। विजय निश्चित है ऐसे निश्चय बुद्धि विजयी। क्योंकि आप विजयी नहीं बनेंगे तो और कौन बनेगा? बनना ही है। तो महाराष्ट्र प्रजा भी महान बनायेंगे। छोटी­मोटी नहीं बनाना। और पंजाब बहादुर बनाना, कमज़ोर नहीं।

कर्नाटक - अच्छा कर्नाटक वाले कितनी माला बनायेंगे? (दो लाख) अच्छा है, कर्नाटक वालों को स्नेह का जादू बहुत जल्दी लगता है। ज्ञान समझे, नहीं समझे, लेकिन स्नेह में नम्बरवन। भाषा के कारण ज्ञान समझेंगे आधा, लेकिन स्नेह में नम्बरवन। देखो, स्नेह की निशानी है कि सेन्टर बहुत खोलते जाते हैं, सिर्फ एडीशन ये करना कि निर्विघ्न प्रजा बनानी है और निर्विघ्न राजधानी बनानी है। तो कर्नाटक वालों को क्या याद रखना है-निर्विघ्न राज्य अधिकारी और निर्विघ्न साथी बनाना। वृद्धि में बहुत अच्छे हैं लेकिन सिर्फ बैलेन्स रखना-जितना स्नेह उतना ही निर्विघ्न स्थिति। दोनों के बैलेन्स से सदा स्वत: ही कर्नाटक वालों को ब्लैसिंग मिलती रहेगी। तो कर्नाटक वाले अण्डर­लाइन करना-निर्विघ्न वृद्धि। अच्छा।

गुजरात - गुजरात के ऊपर बापदादा का, दादियों का अधिकार बहुत है। कोई भी काम पड़ता है तो गुजरात पर अधिकार रखते हैं। तो गुजरात की विशेषता क्या हुई? सेवा में भी अधिकारी। जो सेवा में अधिकारी हैं वो राज्य में तो अधिकारी बनेंगे ही। देखो, सेवा में हाँ जी, हाँ जी करते हैं तो राज्य में क्या होगा? जी हजूर, जी हजूर। तो सहयोग देने में नम्बरवन हैं क्योंकि ड्रामानुसार नजदीक का भाग्य मिला हुआ है। अभी अगर गुजरात को कहें कि सभी भले एक­एक बस तैयार करके पहुँच जायें तो कितनी बसें आयेंगी? बहुत आ जायेंगी ना! तो एवररेडी संख्या तो है ना! महाराष्ट्र को, दूर वालों को बुलाओ तो दूर के कारण मुश्किल होता है। लेकिन गुजरात को तो भाग्य है। और सेवा में जिम्मेदारी उठाने वाले भी अच्छे­अच्छे हैं। पूछ­पूछ करने वाले नहीं हैं। जिम्मेदारी उठाने में अच्छे हैं। तो ये भी ड्रामा में भाग्य स्वत: ही प्राप्त है, जो रेडी हो जाते हैं, जितनों को ऑर्डर करते हैं आ जाते हैं। (दादी से) अभी देखो मेले के लिए आप निश्चिन्त हो ना। क्योंकि गुजरात ने जिम्मेदारी उठाई। तो बापदादा भी जिम्मेदारी का ताज पहनने वाले बच्चों को देखकर खुश होते हैं।

भोपाल - भोपाल की संख्या कितनी है? (5 हजार) बहुत थोड़ी है। तो क्या करेंगे? पांच हजार के आगे एक बिन्दी लगायेंगे। अच्छी प्रजा लायेंगे ना! अच्छा है, सदा विधि द्वारा सहज वृद्धि को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें। जल्दी वृद्धि को प्राप्त करेंगे ना? फिर भी सेवा के साधन अच्छे हैं। अगर दो­चार माइक तैयार कर लो तो बिन्दी लगना कोई मुश्किल नहीं होगी और चांस है। देखो सेन्ट्रल वाले समय मुश्किल देते हैं और स्टेट वाले समय सहज देते हैं, सम्बन्ध­सम्पर्क में सहज आ सकते हैं इसलिये माइक तैयार करो। तो माइक तैयार करने से उनके पीछे अनेक आत्मायें सहज आ जाती हैं। एक के आवाज से अनेकों का कल्याण हो सकता है। उन्हों को सिर्फ स्नेही, सम्पर्क वाले नहीं बनाओ लेकिन नजदीक सम्बन्धी बनाओ। तो भोपाल वाले माइक तैयार करके लायेंगे? कि हुए ही पड़े हैं? ला सकते हो, मार्जिन अच्छी है। सम्बन्ध है लेकिन थोड़ा और सम्बन्ध नजदीक का हो। तो सदा श्रेष्ठ विधि द्वारा वृद्धि को प्राप्त करने वाले। समझा, क्या विशेषता है? सहज वृद्धि करने वाले। अच्छा।

राजस्थान - राजस्थान में आबू वाले भी हैं कि अलग हैं? ये सेन्ट्रल है, वो सेन्टर है। मुख्य केन्द्र राजस्थान में है, ये तो कमाल है राजस्थान की। लाइट हाउस तो राजस्थान में ही हुआ ना। अभी सेन्ट्रल में हो गया लाइट हाउस और सेन्टर्स पर क्या है? लाइट है या लाइट हाउस है? जयपुर लाइट है या लाइट हाउस है? कितनी जगह लाइट दिया है? लाइट हाउस का काम क्या होता है? चारों ओर लाइट देना या सिर्फ आस­पास लाइट देना? चारों ओर लाइट देते हैं ना। तो राजस्थान को चारों ओर राजस्थान में लाइट देना है। जगाया तो है, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर.... आदि में जगाया तो है लेकिन अभी लाइट से लाइट हाउस बनाओ। राजस्थान में एक भी एरिया खुश्क नहीं रह जाये। राजस्थान को वैसे कहते हैं बड़ा खुश्क है लेकिन ब्राह्मण जीवन में सबसे हरा­भरा राजस्थान। जो कहते हैं ना राजस्थान में रेत है तो रेत के बजाए सोने के महल हो जायेंगे। होना तो है ना! तो रेती को सोना बनाओ। राजस्थान क्या करेगा? सोने जैसी आत्मायें तैयार करेंगे और सोने के महल तैयार करेंगे। देखो, देहली में राजधानी बनेगी तो राजस्थान कितना नजदीक है। तो वहाँ भी बनेंगे ना। तो राजस्थान मिट्टी को सोना बनायेगा। इतना उमंग है ना? राजस्थान को परिस्तान बनाने वाले। चारों ओर परिस्तान की खुशबू दिखाई दे। संख्या भी बढ़ाओ और संख्या के साथ­साथ माइक भी तैयार करो। हर एक स्टेट के सहज माइक निकाल सकते हैं। चाहे छोटा माइक हो, चाहे बड़ा हो, चलो बड़ा नहीं तो छोटा ही सही। देखो राजस्थान के माइक ने कमाल तो किया ना। आज ज्ञान सरोवर में माइक ने ही काम किया ना। तो हर स्टेट को महाराष्ट्र, कर्नाटक.... जो भी हैं, सभी स्टेट को माइक तैयार करने चाहिये। और एक­एक स्टेट के माइक अगर सभी मिल जायेंगे तो संगठन बन जायेगा और संगठन का आवाज सहज फैलेगा। तो राजस्थान वाले माला भी तैयार करना और माइक भी। अच्छा।

आगरा - आगरा वाले क्या करेंगे? जैसे आगरा में मिट्टी का, इंटों का ताजमहल आकर्षित करता है वैसे आगरा में ये प्रसिद्ध हो जाये कि यहाँ ताजमहल तो है लेकिन ताजधारी भी गुप्त वेश में हैं। सिर्फ ताजमहल देखने नहीं आयें लेकिन यहाँ ताजधारी कौन हैं-वो भी देखने आयें। आपको ढूंढे कि कहाँ हैं? इतनी ताजधारी आत्माओं की आकर्षण हो। उन्हों को वायब्रेशन आये कि यहाँ कोई श्रेष्ठ आत्मायें गुप्त हुए वेश में है। जैसे द्वापर में जो ऋषि­मुनि सतोप्रधान स्थिति में थे तो दूर से ही प्रभाव पड़ता था ना, ढूँढ करके उन्हों के पास पहुँचाते थे। वो खुद तो नहीं बुलाते थे। तो जब ऋषि­मुनि आत्मिक ज्ञान वाले आकर्षित कर सकते हैं तो परमात्म ज्ञानी क्या नहीं कर सकते! तो हर एक अपने को ऐसा ताजधारी अर्थात् जिम्मेदार समझे, कि मेरी जिम्मेदारी है-लोगों को आकर्षित कर बाप का बनाना। अपना नहीं बनाना, बाप का बनाना। तो आगरा वाले यह नवीनता दिखाओ, जो सबकी नजर जाये। समझा? हीरे तैयार करो। ताज में झूठे हीरे हैं ना। आप सच्चे हीरे तैयार करो। अच्छा!

नेपाल - नेपाल को देश भी कहते हैं तो विदेश भी कहते हैं। डबल फायदा उठाते हैं। जब फारेनर्स का टर्न होता तो कहते हैं हम फारेनर्स हैं, जब इण्डिया का टर्न होता है तो कहते हैं हम इण्डियन हैं। डबल चांस लेते हैं। अच्छा है। नेपाल के भी कई लोग भावना वाले बहुत हैं। प्यार से सुनने वाले अच्छे हैं। नेपाल की धरनी में भी भावना अच्छी है। और दूसरी विशेषता देखी है कि ज्यादा बातों में कम जाते हैं, अपने में मस्त रहते हैं। खिटखिट कम करते हैं। इसीलिये वृद्धि भी अच्छी हो रही है और क्वालिटी भी अच्छी है। बहुत अच्छी नहीं कहेंगे लेकिन अच्छी है। नेपाल वालों ने भी माइक नहीं तैयार किया है। सहयोगी हैं, समय पर सहयोग दे देते हैं लेकिन समीप­सम्बन्ध में लाने से बुलन्द आवाज होगा। अभी छोटा­सा आवाज होता है तो सिर्फ नेपाल में ही फैलता है, बस। बुलन्द आवाज करने वाले तैयार करो। अगर हर स्टेट के माइक दो­तीन, दो­तीन भी तैयार हो जायें तो क्या रौनक नहीं होगी? फिर आप लोगों को सेवा करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप लाइट हो जायेंगे, वो माइक हो जायेंगे। आप सिर्फ लाइट देते रहेंगे। अभी लाइट भी देते हो तो माइक भी बनते हो। फिर माइक वो बनेंगे और आप लाइट देते रहेंगे। तो सेवा में नया मोड़ लाओ। नवीनता लाओ। इसके लिये ये प्रोग्राम रखा है ना कि विदेश से भी हर देश से आवें, यहाँ के भी हर स्टेट से आवें। लेकिन माइक तैयार करो तो माइक की दरबार हो जायेगी। और इतने माइक इकट्ठे हो जायेंगे तो आवाज भी बुलन्द होगा। तो ऐसे नवीनता का प्रोग्राम करो। अभी माइक तैयार करके फिर डेट फिक्स करो। लेकिन कोई भी कोना, कोई भी स्टेट रहनी नहीं चाहिये। अगर कहाँ भी आवाज बुलन्द करना होता है तो चारों ओर माइक लगाते हो ना, चारों ओर माइक लगने से आवाज बड़ा हो जाता है। सभी माइक एक ही आवाज बोलें तो चारों ओर से एक ही आवाज निकलेगा-यही प्रत्यक्षता का झण्डा है। तो अभी तैयारी करो। तो सभी जोन वाले सिर्फ इसमें खुश नहीं होना कि हमको भी वरदान मिला लेकिन जाकर सेवा करना। देहली वालों को पहले करना है। देहली, बाम्बे दोनों ही नाम बाला करने वाले हैं। तो ऐसी कमाल करो जो सबके मुख से यही निकले कि सचमुच परिवर्तक आप ही हो। ये भी हैं, नहीं, ये ही हैं। अभी कहते हैं ये भी हैं, वो भी हैं, ये भी अच्छे हैं। ये ही अच्छे हैं-जब ये आवाज निकले तब झण्डा लहरायेगा। अनेक हैं, नहीं। एक हैं। तो सभी जोन वाले ऐसा करने के लिए तैयार हो ना? कोई मन्सा सेवा करो, कोई वाचा करो। मन्सा सेवा तो सभी कर सकते हो ना? तो वायब्रेशन फैलाओ। वाणी से नहीं तो मंसा से योगदान दो। सबकी अंगुली चाहिये। समझा? अच्छा।

डबल विदेशी - डबल विदेशी अर्थात् दूरदेशी और दूरांदेशी। भारत में जो मैसेज देने वाले होते हैं उनको दरवेश भी कहते हैं। तो डबल विदेशी दूरांदेश बुद्धि वाले अच्छे हैं। दूरांदेश बुद्धि अर्थात् हर परिस्थिति, हर बात को आदि­मध्य­अन्त तीनों कालों से जानने और देखने वाले। जिसको दूसरे शब्दों में कहेंगे त्रिकालदर्शी। तो जो भी कार्य करें त्रिकालदर्शी होकर करें। एक काल नहीं देखें। तीनों ही कालों को जानने, समझने और समझकर चलने वाले। इसको कहते हैं दूरांदेश बुद्धि, दूरांदेशी दृष्टि। तो जो तीनों काल को जानकर करते हैं वो कभी भी भटकेंगे नहीं। तीनों कालों को जानकर करने वाले सदा ही विजयी होंगे। सहज विजयी। मेहनत के बाद विजयी नहीं। मेहनत करके विजय प्राप्त होती है तो मेहनत में आधा मौज तो खत्म हो जाती है। और जो सहज विजय होती है उसमें नशा, खुशी, मौज-सब होती है। तो डबल विदेशी त्रिकालदर्शी हो? कि एकदर्शी हो? जल्दी­जल्दी में एक काल देखकर तो नहीं कर लेते? त्रिकालदर्शी अर्थात् सोच­समझ कर कार्य करने वाले। जल्दी­जल्दी में सिर्फ वर्तमान देखकर कर लिया तो धोखा खा लेते हैं। लेकिन त्रिकालदर्शी बनकर कार्य करते तो सदा सफलता सहज मिलती है। तो सहज सफलता प्राप्त करने वाले त्रिकालदर्शी अर्थात् दूरांदेशी बुद्धि वाले। समझा।

मधुबन निवासी - (बापदादा ने आबू के भिन्नभिन्न स्थानों पर सेवा में उपस्थित भाई­बहिनों से हाथ उठवाया) देखो, पीस पार्क भी कम नहीं है। लण्डन अमेरिका सबको भूल जाता है। जो पीस पार्क देखते हैं तो कॉपी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन कितनी भी कॉपी करें, रूहानियत की झलक तो आ नहीं सकती, प्यार की झलक तो आ नहीं सकती। तो मेहनत का फल मिल रहा है। मेहनत तो अच्छी की है। प्यार से मेहनत की है ना। सिर्फ पानी नहीं दिया है लेकिन प्यार का पानी दिया है इसीलिये वायुमण्डल न्यारा और प्यारा है। औरज्ञान सरोवर वाले भी बहुत प्यार से मेहनत कर रहे हैं। अच्छी रिजल्ट है। और निश्चयबुद्धि सबसे नम्बरवन हैं। कितना भी कोई जाकर हिलाता है-नहीं तैयार होगा, नहीं तैयार होगा, जितना वो ना करते हैं उतना ये हाँ करते हैं। इसलिये निश्चय की विजय होती है। तैयार होना ही है, बाप को आना ही है। इसलिये मुबारक हो निश्चय की। अच्छा। तलहटी वाले भी मौज में आ गये हैं, मेला मनाने की तैयारी कर रहे हैं। अच्छा है, रौनक तो चाहिये ना। कोई नवीनता चाहिये ना। ओम् शान्ति भवन के हाल में तो सदा बैठते ही हो। लेकिन नवीनता भी चाहिये ना। और कितनी आत्माओं का संकल्प पूरा हो जायेगा। उल्हने कम हो जायेंगे। तो तलहटी में ठीक तैयारी हो रही है? बड़ी बात तो नहीं लगती? खुशी में मुश्किल भी सहज हो जाती है। अच्छा। आबू निवासी क्या कर रहे हैं? सहयोग का साथ दे रहे हैं। कभी भी कोई कार्य होता है तो आबू निवासी कार्य कर लेते हैं। अच्छा है, म्युजियम भी अच्छी सेवा कर रहा है, म्युजियम वाले बच्चे भी मेहनत अच्छी करते हैं। म्युजियम तो चलताफिरता एक सेवा का स्थान है। इस म्युजियम ने भी वि्ातने सेवाकेन्द्र खोले होंगे। कितनी आत्माओं की धरनी परिवर्तन कर दी है। यहाँ का प्रभाव वहाँ स्थानों पर भी काम में आता है। क्योंकि यहाँ आने वाले फ्री होते हैं तो बुद्धि फ्री होने के कारण प्रभाव अच्छा पड़ता है फिर वही वहाँ काम में आता है। तो म्युजियम की सेवा भी कम नहीं है। सभी स्थानों की सेवा अच्छी है। यहाँ (ओम् शान्ति भवन में) भी जो ग्रुप समझाते हैं, वो भी अच्छी सेवा है। तो सब जगह सेवा सहज होती जाती है, प्रभाव पड़ता जाता है। अच्छा है।

अच्छा, मधुबन वाले क्या करेंगे? मधुबन वाले सदा ही अपने को आधा­रमूर्त और उदाहरणमूर्त समझो। साकार कर्म में मधुबन निवासी उदाहरण हैं और आधारमूर्त भी हैं। क्योंकि जो भी रूहानी साधन चाहिये वो सब तो मधुबन से ही जाते हैं। इसलिये मधुबन वाले ये नहीं समझें कि हम मधुबन के कमरे में हैं या पाण्डव भवन के अन्दर रहते हैं लेकिन हर कर्म में, हर संकल्प में, हर बोल में आधारमूर्त हो। हर एक जो विशेषता देखते हैं कर्म में, वाणी में, वो प्रैक्टिकल मधुबन में ही देखते हैं। तो सदा हर समय आधारमूर्त भी हो और उदाहरणमूर्त भी हो। चाहे अच्छा करते हो तो भी उदाहरण बनते हो और मिक्स करते हो तो भी उदाहरण। उदाहरण सभी मधुबन का ही देते हैं। इसीलिये इतना जिम्मेदारी का बड़ा ताज मधुबन निवासियों को पड़ा हुआ है। अच्छा-संगम भवन के थोड़े हैं लेकिन सेवा बहुत अथक करते हैं। संगम निवासी भागदौड़ का काम अच्छा करते हैं।

अच्छा - हॉस्पिटल का क्या हालचाल है? हॉस्पिटल बहुत अच्छा है कि अच्छा है? देखो हॉस्पिटल की विशेषता क्या है? वैसे सोचते हैं कि पेशेन्ट कोई नहीं हो, और हॉस्पिटल सोचती है कि पेशेन्ट आवें। अगर पेशेन्ट नहीं आते तो उदास हो जाते हैं। पेशेन्ट को पेशन्स में लाते हैं। तो हॉस्पिटल में सिर्फ पेशेन्ट नहीं लेकिन पेशन्स धारण करने वाले पेशेन्ट भी आते हैं। अच्छा है, सबसे ज्यादा हॉस्पिटल का फायदा ब्राह्मणों को है। एम्बुलेन्स में बैठे और पहुँच गये। अच्छी मदद है। एक तो ब्राह्मणों को मदद है और दूसरा जो लोग समझते हैं कि ये कुछ नहीं करते हैं वो समझते हैं कि हाँ ये करते हैं, बहुत करते हैं। हॉस्पिटल ने सेवा बढ़ाई ना। ‘कुछ नहीं’ को ‘करते हैं’ में परिवर्तन कर लिया। ऐसे है ना। अच्छा है, हॉस्पिटल वाले अगर फुर्सत मिलती है तो मंसा सेवा बहुत करो। उससे फुर्सत नहीं मिलेगी। अच्छा।

चारों ओर के सर्व निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्मायें, सदा निश्चित विजयी आत्मायें, सदा निश्चिन्त आत्मायें, सदा श्रेष्ठ विधि द्वारा वृद्धि करने के निमित्त बनने वाली विशेष आत्मायें, सदा एक बाप एक बल एक भरोसे में अचल­अडोल रहने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादियों से:­ (दादी जी बाम्बे अहमदाबाद तथा जानकी दादी पूना सेवा पर गई थी) चक्कर लगाकर आई। सन्तुष्टता दिलाने वाली सन्तुष्ट मणियाँ हो। तो सन्तुष्ट मणियाँ जहाँ भी जायेंगी तो सन्तुष्ट करेंगी ना! चाहे तन वालों को, चाहे मन वालों को, दोनों प्रकार से सन्तुष्ट करते हैं। इसीलिये बापदादा सदा सन्तुष्ट मणियाँ कहते हैं। (सभी की याद दी) अच्छा है। याद का टोकरा भरकर आये हैं। कदम में पदम भरे हुए हैं। इसलिये आपके चक्कर लगाने से अनेकों के चक्कर समाप्त हो जाते हैं। जिनको जो चाहिये वो मिल जाता है। इसलिये अनेकों के व्यर्थ चक्कर खत्म हो जाते हैं। ऐसे ही अनुभव होता है ना? दादियों में सबका प्यार है ना। जो भी निमित्त हैं उन्हों में प्यार है। (दादी जानकी) अच्छा है, दृढ़ निश्चय से सब ठीक हो जाता है। कितने भी कड़े संस्कार हो लेकिन जहाँ दृढ़ता है वहाँ सब एकदम मोम के समान खत्म हो जाते हैं।

जगदीश भाई से - अब क्या करेंगे नवीनता? (विशाल प्रोग्राम माइक बनाने का) एक बारी इकट्ठा सभी कोने से आवाज आये तो बुलन्द हो। हाँ जी, हाँ जी करते चलो और सबका हाँ जी हो ही जाना है। विदेश वाले देश वालों को कहे हाँ जी और देश वाले विदेश वालों को कहे हाँ जी। तो जहाँ हाँ जी होगा वहाँ हुआ ही पड़ा है।

साधन बहुत अच्छा है सिर्फ बालक और मालिक बनना आ जाये। समय पर बालक, समय पर मालिक। सभी को बनना आता है? कि जिस समय बालक बनना है उस समय मालिकपन आ जाता है? तो बापदादा देखेंगे कि हाँ जी का पाठ किसने पक्का किया है? सभी करते हैं, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन कार्य के टाइम देखेंगे। अच्छा!

(दादी चन्द्रमणी इलाहाबाद कुम्भ मेले में जा रही हैं) आपको सीट बहुत अच्छी मिली है, चक्कर लगाते रहो, मौज मनाते रहो। और दूसरों को भी मौज में लाते रहो।

अच्छा, पाण्डव और शक्तियाँ दोनों का संगठन अच्छा है। शक्ति के बिना पाण्डव नहीं चलते, पाण्डवों के बिना शक्तियाँ नहीं चल सकतीं। दोनों की आवश्यकता आदि से अन्त तक रही है और रहेगी।

अच्छा-जो भी जहाँ से भी आये हो, सब अच्छे ते अच्छे भाग्यवान हो, श्रेष्ठ हो, बाप के प्यारे हो। चाहे विदेश से आये हो, चाहे देश से आये हो, हर एक बाप का प्यारा है। सभी बाप का श्रृंगार हो। बिना आपके बाप कुछ नहीं कर सकता। इसलिये बापदादा भी कहते हैं पहले बच्चे। तो हरेक समझता है कि मैं प्यारा हूँ? एक ही बेहद का बाप सबको प्यार दे सकता है। आत्मायें नहीं दे सकती, बाप दे सकता है। क्योंकि बेहद है। तो हर एक समझता है मैं बाप का प्यारा हूँ। नाम लेवें, नहीं लेवें लेकिन प्यारे सब हैं। अच्छा!



18-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ज्ञान सरोवर उद्घाटन के शुभ मुहूर्त्त पर अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य प्रात: 11.00 बजे

आज स्नेह सम्पन्न दिवस पर स्नेह के सागर बापदादा अपने अति स्नेही, स्नेह में समाए हुए लवलीन बच्चों से मिलने आए हैं। सबके स्नेह के गीत बापदादा सुनते रहे हैं और सुनते रहेंगे। हर एक बच्चे का स्नेह बापदादा देख, बाप भी गीत गाते हैं वाह मेरे स्नेही बच्चे वाह! बच्चों ने भी आज के समर्थ दिवस को सेवा में साकार किया है और करते रहेंगे। ब्रह्मा बाप भी बच्चों के गुणगान करते हैं। लेकिन साकार रूप से अव्यक्त रूप में और समीप वा साथ का विशेष अनुभव करा रहे हैं। क्या बच्चों को ऐसे लगता है कि बाप साथ नहीं है? लगता है? साथ जन्म लिया है, साथ सेवाधारी साथी रहे हैं और आगे भी साथ­साथ हैं और साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप को भी अकेला अच्छा नहीं लगता। आप लोगों को लगता है अकेले हैं? साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथ­साथ राज्य करेंगे। शिव बाप को आराम देंगे और आपके साथ ब्रह्मा बाप भी राज्य करेंगे। अपना राज्य याद है ना? आज सेवाधारी हैं और कल राज्य अधिकारी हैं। अपना राज्य सामने दिखाई दे रहा है ना? अपने राज्य का वो स्वर्ग का स्थान, स्वर्ग का दिव्य शरीर रूपी चोला सबके सामने स्पष्ट है ना। बस धारण किया कि किया। ऐसे अनुभव होता है ना? अपना भविष्य स्पष्ट है ना? आज वर्तमान है और कल भविष्य वर्तमान हो जायेगा-निश्चय है ना? पक्का निश्चय है?

सब पुराने­पुराने पक्के आए हैं ना। बापदादा को भी, विशेष ब्रह्मा बाप को भी खुशी है कि स्थापना के एक हैं आदि साथी रत्न, जो सामने बैठे हैं और दूसरे हैं स्थापना की वृद्धि के श्रेष्ठ रत्न। तो इस संगठन में ब्रह्मा बाप दोनों प्रकार के रत्नों को देख हर्षित हो रहे हैं। और बच्चे भी कितने उमंग­उत्साह से, शरीर का भी, सैलवेशन का भी ख्याल न करते हुए ठण्डी­ठण्डी हवाओं में पहुँच गए। ये ठण्डी हवाएं आप बच्चों से सलाम करने आती हैं। वैसे भी देखो जब राज्य तख्त पर बैठते हैं तो पीछे से क्या होता है? चंवर झुलाते हैं ना, तो उससे ठण्डी­ठण्डी हवाएं तो होती है। तो ये ठण्डी हवाएं भी चंवर झुलाने आती हैं। क्योंकि आप सब भी ऊंचे ते ऊंची विशेष आत्माएं हो। नशा है ना? तो आज ब्रह्मा बाप विशेष अपने जन्म के साथी और सेवा के साथी (सेवा के निमित्त पहले रत्न और जन्म के समय के पहले रत्न) दोनों को देख­देख हर्षित होते हैं।

अच्छा, यह हाल भी राज दरबार माफिक बनाया है। (ज्ञान सरोवर का ऑडोटोरियम हाल) राज दरबार लगती है तो गैलरी में बैठते हैं, तो गैलरी वाले भी अच्छे लग रहे हैं। (हाल में सभी भाई बैठे हैं, मातायें सब बाहर बैठी हैं) अच्छा आज तो माताओं के त्याग का भाग्य उन्हों को अभी मिल ही जाएगा। अच्छी तरह से तपस्या कर ही रही हैं। तपस्या का फल मिल जाएगा। ठण्डी­ ठण्डी हवा आ रही है तो धूप भी आ रही है। अच्छा।

ज्ञान सरोवर कहेंगे या स्नेह का सरोवर कहेंगे? ज्ञान सरोवर में स्नेह का सरोवर अच्छा है। ये ज्ञान सरोवर सेवा का विशेष लाइट हाउस और माइट हाउस है। इस धरनी से अनेक आत्माओं के भाग्य का सितारा चमकेगा। अनेक आत्माएं अपने बिछुड़े हुए बाप से मिलन मनायेंगी। अनेक आत्माओं के दु:ख दूर करने वाली धरनी है। सरोवर में आते ही सुख की लहरों में लहराने का अनुभव करते रहेंगे। इस ज्ञान सरोवर द्वारा तीन प्रकार के लोग, तीन प्रकार की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे-कोई वर्से के अधिकारी, कोई वरदानों के अधिकारी और कोई सिर्फ दुआओं के अधिकारी। तो तीन प्रकार के प्राप्ति सम्पन्न। ये श्रेष्ठ सरोवर है। साधारण आत्माएं आयेंगी और फरिश्ता जीवन का अनुभव कर जायेंगी। साथ­साथ अनेक ब्राह्मण आत्माएं तपस्या के सूक्ष्म अनुभूतियों द्वारा अव्यक्त पालना और सूक्ष्म योग के सहज अनुभव और प्राप्तियों का लाभ लेंगी। कई ब्राह्मण आत्माओं की श्रेष्ठ आशायें स्व उन्नति की पूर्ण होने का साधन बहुत श्रेष्ठ है। स्थान तो कॉमन है लेकिन स्थिति श्रेष्ठ अनुभव कराने वाला है। विधिपूर्वक ज्ञान के नॉलेज को विश्व में प्रत्यक्ष करने का स्थान है। और सबसे पहला फायदा तो बाप और बच्चों के मिलने का है। देखो, डबल संख्या में मिल तो रहे हैं ना! चाहे बाहर बैठे हैं या कहाँ भी रहे हैं, डबल संख्या तो है ना। तो सबसे प्रत्यक्षफल बच्चों की संख्या डबल मिलन मना रही है। समझा? ऐसे सरोवर में, सरोवर बनाने वालों को, सहयोग देने वालों को, संकल्प से हिम्मत दिलाने वालों को, स्नेह के हाथों से सरोवर को सम्पन्न करने वाले देश विदेश के बच्चों को पदमगुणा मुबारक हो, मुबारक हो।

यह पहला ही स्थान है जिसमें छोटे बच्चों से लेकर जो भी ब्राह्मण हैं उनके सहयोग का तन­मन­धन लगा है। तन से इंट नहीं भी उठाई है लेकिन तन से अपने­अपने साथियों को साथी बनाया है, उमंग दिलाया है तो ऐसे स्नेह, सहयोग, शक्ति की बूँद­बूँद से सजा हुआ सरोवर श्रेष्ठ सफलता का अनुभव कराता रहेगा। तो सभी सहयोगियों को, कोने­कोने के विदेश, देश वालों को और विशेष जिन्होंने ठण्डी­ठण्डी हवाओं में, बारिश में भी हिम्मत नहीं हारी है, उन्हों को विशेष मुबारक है, मुबारक है। बापदादा जानते हैं बच्चों ने थोड़ी तकलीफ तो उठाई लेकिन प्यार से उठाई है। मोहब्बत में मेहनत का अनुभव नहीं किया है और जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की पदमगुणा मदद भी है ही। इसलिये बापदादा मसाज करते रहे हैं, करते रहेंगे। अच्छा, यहाँ के इंजीनियर्स हाथ उठाओ। समय पर सम्पन्न करने की बहुत­बहुत मुबारक हो। आपको बैठने योग्य तो बना कर दे दिया ना! बाप तो आ गए ना! वायदा ही ये था। आप सब भी इन्हों को मुबारक दे रहे हो ना! जिन्होंने हाल को सजाया वो कहाँ है? ये मुन्नी पार्टी है। देखो, स्नेह का सरोवर है ना तो कलकत्ता से यहाँ फूल आ गए। (कलकत्ता से बहुत सुन्दर रंगय्बिरंगे फूल आये हैं जिससे सारी स्टेज सजी हुई है) अच्छा! आप सबको भी पहुँचने की मुबारक है और माताओं को पदमगुणा मुबारक है।

(जाल मिस्त्री, जिन्होंने हाल में साउण्ड का प्रबन्ध किया है) देखो अगर इनकी हिम्मत नहीं होती तो आप मुरली नहीं सुन सकते थे। सभी मुरली के पीछे तो दीवाने हैं ना। मुरली का साधन सबसे श्रेष्ठ है। कितना अच्छा प्रबन्ध किया है। आराम से सुनने आ रहा है। बाहर भी सुनाई दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा प्रबन्ध किया है। जो भी सेवा के निमित्त हैं एक­एक डिपार्टमेन्ट का नाम नहीं लेते हैं लेकिन हर एक समझे मुझे स्नेह और सहयोग की मुबारक। अच्छा, सबसे पहली मुबारक किसको दें? दादी को। (बापदादा को) बापदादा तो देने वाला है ना। बापदादा सदा कहते हैं कि बच्चों का नम्बरवन सर्वेन्ट है तो बाप है। बाप तो सदा सेवाधारी है लेकिन बच्चे भी सेवा में बाप से भी आगे सहयोगी हैं। क्या एक­एक का नाम लें लेकिन दिल में एक­एक बच्चे का नाम ले रहे हैं और याद­प्यार दे रहे हैं। सभी डिपार्टमेन्ट को मुबारक है। लाइट के बिना भी काम नहीं, माइक के बिना भी काम नहीं। लाइट, माइट, माइक सभी को मुबारक।

(टीचर्स से) आप लोग नहीं होते तो सेन्टर्स नहीं खुलते। एक­एक ने देखो कितने सेन्टर्स खोले हैं। यहाँ सेवा की राजधानी और वहाँ राज्य की राजधानी होगी। अच्छा। पाण्डव भी देख रहे हैं। अच्छे­अच्छे पाण्डव भी पहुँच गये हैं। पाण्डव के बिना भी गति नहीं लेकिन पाण्डवों ने शक्तियों को आगे रखा है। आप लोगों ने रखा है कि बाप ने रखा है? फॉलो फादर किया है। वैसे आप सभी भी बाप के समीप बैठे हो। ऐसे नहीं समझना ये ही हैं समीप। लेकिन जो सामने हैं वो अति समीप हैं।

डबल फारेनर्स भी आए हैं। यह भी कमाल कर रहे हैं। देशय्विदेश में प्रत्यक्ष करने की सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं और करते रहेंगे। अच्छा! (फिर बापदादा ने ज्ञान सरोवर की विशाल स्टेज पर खड़े होकर इंजीनियर्स के साथ मोमबत्ती जलाई तथा मुख्य टीचर्स एवं दादियों के साथ केक काटी, फिर मुख्य दादियां बापदादा के साथ हाल के बाहर प्लाजा में आई, जहाँ पर बापदादा ने 2 हजार से भी अधिक संख्या में बैठी हुई माताओं से हाथ हिलाते हुए मुलाकात की तथा ध्वज फहराया, तत्पश्चात् जो महावाक्य उच्चारण किये वह इस प्रकार हैं):­

बापदादा, आप सभी बच्चों के दिल में जो बाप के स्नेह का झण्डा लहरा रहा है, उसको देख हर्षित हो रहे हैं। यह सेवा के लिए है और बाप बच्चों के बीच में दिल में स्नेह का झण्डा है। तो जैसे यह फ्लैग सेरीमनी करते हो तो ऊंचा लहराते हो ना, ऐसे ही सदा स्नेह में ऊंचे ते ऊंचा लहराते रहो। यह झण्डा भी बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा है। यह कपड़े का झण्डा है लेकिन इस कपड़े के झण्डे में आप सबका आवाज समाया हुआ है कि ‘‘बाप आ गये हैं।’’ यही प्रत्यक्षता का झण्डा अभी कोने­कोने में लहरायेगा। और आप सभी वह लहराया हुआ प्रत्यक्षता का झण्डा देखेंगे, सुनेंगे, हर्षित होंगे। तो आज ज्ञान सरोवर में है, कल विश्व में यह झण्डा लहरायेगा। आप सभी को तपस्या करनी पड़ी उसकी मुबारक लेकिन बहुत आराम से अच्छे बैठे हो और जितना आपको देखने में आ रहा है उतना अन्दर पीछे वालों को नहीं। आप बाहर नहीं थे लेकिन दिल के अन्दर थे। सब बहुत­बहुत खुशनसीब हो इसलिये सदा खुशी बांटते रहना। खुश रहना और खुशी बांटते रहना।



19-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख आज्ञाकारी और सर्वंश त्यागी बनो

आज बेहद का बापदादा अपने बेहद के सेवा साथियों को देख रहे हैं। दो प्रकार के साथी हैं-एक हैं स्नेह सम्बन्ध का साथ निभाने वाले और दूसरे हैं स्नेह, सम्बन्ध और सेवा का साथ निभाने वाले। दोनों प्रकार के साथियों को देख रहे हैं। चाहे विश्व के लास्ट कोने में भी हैं लेकिन बापदादा के सामने हैं। बापदादा और बच्चों का वायदा है कि कहाँ भी रहेंगे, जहाँ भी हैं लेकिन सदा साथ हैं। ये ब्राह्मण जीवन आदि से अन्त तक बाप और बच्चों का अविनाशी साथ है। चाहे बच्चे साकार में हैं और बापदादा आकार निराकार हैं लेकिन अलग हैं क्या? नहीं है ना! तो दूर हो या समीप हो? ये दिल की समीपता साकार में भी समीपता अनुभव कराती है। चाहे किसी भी देश में हैं लेकिन दिल की समीपता साथ का अनुभव कराती है। अलग हो नहीं सकते, असम्भव है। परमात्म वायदा कभी टल नहीं सकता। परमात्म वायदा भावी बन जाता है तो भावी टाली नहीं टले। इसलिये सदा समीप हैं, सदा साथी हैं और साथी बन हाथ में हाथ, साथ लेते हुए कितने मौज से चल रहे हैं। मौज है कि मेहनत है? थोड़ी­थोड़ी मेहनत है? जब कोई बात आ जाती है तो बाप किनारे हो जाता है। कोई बात को नहीं लाओ तो बाप नहीं जायेगा। बात बाप को किनारे करती है। जैसे बीच में कोई पर्दा आ जाये, तो पर्दा आने से किनारा हो जाता है ना! तो ये बात रूपी पर्दा बीच­बीच में आ जाता है। लेकिन लाने वाला कौन? पर्दे का काम है आना और आपका काम क्या है? हटाना या थोड़ा­थोड़ा मजा लेना? बापदादा देखते हैं, बच्चे कभी­कभी बातों में बड़े मजे लेते हैं।

जिससे प्यार होता है, प्यार की निशानी है साथ रहना। साथ रहने का मतलब यह नहीं है कि आबू में रहना। आबू में तो देखो अभी थोड़ी भी संख्या ज्यादा है तो पानी की मुश्किल हो गई है ना! तो साकार में साथ रहना नहीं लेकिन दिल से साथ निभाना। अगर दिल से साथ नहीं निभाते तो मधुबन में होते भी दूर हैं। विदेश और लास्ट देश में रहते भी दिल से समीप हैं तो वो साथ हैं। इसीलिये बापदादा को दिलाराम कहते हैं, शरीर राम नहीं कहते। तो दिल बाप में है ना? बाप के दिल में आपका दिल है और आपके दिल में बाप का दिल है। तो दिल जाने इस रूहानी साथ को। अनुभवी हो ना? कि यहाँ से जायेंगे तो कहेंगे दूर हो गये? नहीं। सदा साथ निभाना-यह कोई भी आत्मा, आत्मा से नहीं निभा सकती। एक ही परम आत्मा आत्माओं से साथ निभा सकता है। और ये परमात्म साथ निभाने का भाग्य आप सभी बच्चों को ही है ना?

(आज पूरे हाल में सभी भाई­बहिनें पट पर बैठे हुए हैं) बहुत अच्छी सीन है। बापदादा को आज की सभा का दृश्य देख करके यादगार याद आ रहा है। यादगार में रूद्र माला दिखाते हैं, उसमें सिर्फ फेस दिखाई देते हैं, शरीर नहीं दिखाई देते। तो यहाँ से भी सिर्फ फेस ही दिखाई दे रहे हैं, बाकी कुछ नहीं दिखाई देता। तो रूद्र माला का यादगार दिखाई दे रहा है। एक के पीछे एक बैठे हैं ना तो शरीर छिप गये हैं, फेस दिखाई दे रहे हैं।

ये है स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप - ब्रह्मा बाप से सभी का स्नेह है तब तो आये हो ना! और कहलाते भी सभी ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी हो, शिव कुमार, शिव कुमारी नहीं कहते। तो ब्रह्मा बाप से ज्यादा प्यार है ना! और ब्रह्मा बाप का भी सदा बच्चों से प्यार है। तभी तो अव्यक्त होते भी अव्यक्त पालना कर रहे हैं। अव्यक्त पालना मिल रही है ना? या आप कहेंगे कि हमने ब्रह्मा बाबा का अनुभव नहीं किया है? ब्रह्माकुमार­ब्रह्माकुमारी कहलाते हो तो क्या बिना बाप की पालना के पैदा हो गये! अगर ब्रह्मा बाप की पालना नहीं होती तो आज सिर्फ निराकार बाप की पालना से यज्ञ की रचना और यज्ञ की वृद्धि नहीं होती। डबल फॉरेनर्स को ब्रह्मा बाप की पालना मिलती है ना? (हाँ जी) देखो, फॉरेन में बाप जाता है, तो इण्डिया में नहीं करता है क्या! तो उल्हना तो नहीं देते कि बाबा हमने देखा ही नहीं! सदा मिलते, सदा देखते, सदा साथ रहते हैं। साकार शरीर में, साकार रूप में तो सदा साथ नहीं दे सकते लेकिन अव्यक्त रूप में सभी को साथ दे सकते हैं। जब चाहो मिलन के दरवाजे खुले हुए हैं। अव्यक्त वतन में नहीं कहेंगे कि अभी जगह नहीं है, अभी टाइम नहीं है, नहीं। देह में देह के बंधन हैं और अव्यक्त में न देह का बंधन है, न देह की दुनिया के कायदों का बंधन है। यहाँ तो कायदे रखने पड़ते हैं ना-आगे बैठो, पीछे बैठो। अभी भी समय प्रमाण बहुत­बहुत­बहुत भाग्यवान हो! फिर भी बैठने की जगह तो मिली है ना! फिर तो खड़े रहने की भी जगह मुश्किल होगी। क्योंकि आप सभी को औरों को चांस देना पड़ेगा। अभी तो आप लोगों को चांस मिला है। जैसे अभी देखो मधुबन वालों को चांस देना पड़ा ना! (सभी मधुबन निवासी तथा आबू निवासी सभी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) ये भी परिवार का प्यार है।

ब्रह्मा बाप से प्यार अर्थात् बाप समान बनना। निराकार के समान बनना, वो थोड़े समय का अनुभव करते हो। लेकिन ब्राह्मण अर्थात् सदा ब्रह्मा समान ब्रह्माचारी। जो ब्रह्मा बाप का आचरण वो ही सर्व ब्राह्मणों का आचरण अर्थात् कर्म। उच्चारण भी ब्रह्मा बाप समान है, आचरण भी ब्रह्मा बाप समान है, जिसको कहते हो फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप के हर कदम पर कदम रखना इसको कहा जाता है फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप ने बाप के श्रीमत पर पहला कदम क्या उठाया?

पहला कदम आज्ञाकारी बने। जो आज्ञा मिली उसी आज्ञा को प्रत्यक्ष स्वरूप में लाया। तो चेक करो कि आज्ञाकारी के पहले कदम में फॉलो फादर हैं? अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध, सम्पर्क में जो आज्ञा मिली हुई है उसी आज्ञा प्रमाण चलते हैं? कि कोई आज्ञा पालन होती है और कोई नहीं होती है? संकल्प भी आज्ञा प्रमाण है, कि मिक्स है? अगर मिक्स है तो फुल आज्ञाकारी हैं या अधूरे आज्ञाकारी? हर समय के संकल्प की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। अमृतवेले क्या संकल्प करना है ये भी स्पष्ट है ना! तो फॉलो करते हो कि कभी परमधाम में चले जाते हो और कभी निद्रालोक में चले जाते हो? हर कर्म में, हर समय कदम पर कदम है? बाप का कदम एक और बच्चे का कदम दूसरा हो तो उसे आज्ञाकारी नहीं कहेंगे ना! चाहे परमार्थ में, चाहे व्यवहार में, दोनों में जो जैसी आज्ञा है वैसे आज्ञा को पालन करना-इसकी परसेन्टेज चेक करो। चेक करना आता है? तो पहला कदम आज्ञाकारी बने, इसलिये आज्ञाकारी को सदा बाप की दुआएं स्वत: मिलती हैं और साथ­साथ ब्राह्मण परिवार की भी दुआएं हैं। तो चेक करो कि जो भी संकल्प किया, चाहे स्व प्रति, चाहे सेवा के प्रति, चाहे स्थूल कर्म के प्रति या अन्य आत्माओं के प्रति उसमें सबकी दुआयें मिली? क्योंकि आज्ञाकारी बनने से सर्व की दुआयें मिलती हैं और यदि दुआयें मिल रही हैं तो उसकी निशानी है कि दुआओं के प्रभाव से दिल सदा सन्तुष्ट रहेगी, मन सन्तुष्ट रहेगा। बाहर की सन्तुष्टता नहीं लेकिन मन की सन्तुष्टता। और मन की सन्तुष्टता यथार्थ है वा मियाँ मिù§ हैं-इसकी निशानी, अगर यथार्थ रीति से यथार्थ आज्ञाकारी हैं, दुआएं हैं तो सदा स्वयं और सर्व डबल लाइट रहेंगे। अगर डबल लाइट नहीं रहते तो समझो मन की सन्तुष्टता नहीं। बाप की वा परिवार की दुआएं भी नहीं मिल रही हैं। परिवार की भी दुआएं आवश्यक हैं। ऐसे नहीं समझो कि बाप से हमारा कनेक्शन है, बाप की तो दुआएं हैं, परिवार से नहीं बनता कोई हर्जा नहीं। पहले भी सुनाया कि माला में सिर्फ युगल दाना नहीं है, उससे माला नहीं बनती। तो माला में आना है इसलिए पूरा लक्ष्य रखो कि हरेक आत्मा मुझे देखकर खुश रहे, देख करके हल्के हो जायें, बोझ खत्म हो जाए। तो दिल की सन्तुष्टता वा आज्ञाकारी की दुआएं स्वयं को भी लाइट और दूसरे को भी लाइट बनायेंगी। इससे समझो कि आज्ञाकारी कहाँ तक हैं? जैसे ब्रह्मा बाप को देखा हर एक छोटा­बड़ा सन्तुष्ट होकर खुशी में नाचता। नाचने के टाइम तो हल्के होंगे ना तभी तो नाचेंगे ना। चाहे कोई मोटा है लेकिन मन से हल्का है तो भी नाचता है और पतला है लेकिन भारी है तो नहीं नाचेगा। तो बोल ऐसे हों जो स्वयं भी अपने आपसे सन्तुष्ट हो और दूसरे भी सन्तुष्ट रहें। ऐसे नहीं, हमारा तो भाव नहीं था, हमारी तो भावना नहीं थी, लेकिन भाव और भावना पहुँचती क्यों नहीं? अगर सही है तो दूसरे तक वायब्रेशन्स क्यों नहीं जाता है? कोई तो कारण होगा ना? तो चेक करो दुआओं के पात्र कहाँ तक बने हैं?

जितना अभी बाप और ब्राह्मण आत्माओं की दुआओं के पात्र बनेंगे उतना ही राज्य के पात्र बनेंगे। अगर अभी ब्राह्मण परिवार को सन्तुष्ट नहीं कर सकते, तो राज्य क्या चलायेंगे! राज्य को क्या सन्तुष्ट करेंगे! क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें आपकी रॉयल फैमिली बनेंगे तो जो फैमिली को सन्तुष्ट नहीं कर सकते वो प्रजा को क्या करेंगे? संस्कार तो यहाँ भरना है ना! कि वहाँ योग करके भरेंगे! यहाँ ही भरना है। अगर वर्तमान ब्राह्मण परिवार में कारण का निवारण नहीं कर सकते, कारण­कारण ही कहते रहते हैं, तो जहाँ कारण है वहाँ निवारण शक्ति नहीं है। अगर परिवार में निवारण शक्ति नहीं तो विश्व के राज्य को क्या निवारण करेंगे! क्योंकि आपके राज्य में हर आत्मा सदा निवारण स्वरूप है। वहाँ कारण होंगे क्या? जैसे अभी राज्य सभा में कारण बताते हैं-ये कारण है, ये कारण है, ये कारण है...... वहाँ ऐसे राज्य दरबार होगी क्या? वहाँ तो सिर्फ खुश खैराफत पूछेंगे। सिर्फ दरबार नहीं है लेकिन बहुत अच्छा मिलन है। तो कारण कहकर अपने को दुआओं से वंचित नहीं करो। ब्रह्मा बाप ने कारण को निवारण किया इसीलिये नम्बरवन हुआ। बापदादा के पास सभी के कारणों के फाइल ही इकट्ठे होते हैं। सभी के फाइल हैं-किसका छोटा, किसका बड़ा फाइल है। तो अभी भी फाइलें रखनी है, फाइल बढ़ाते रहना है या रिफाइन होना है? तो आज से फाइल सब खत्म कर दें? फिर दूसरा नया फाइल तो नहीं रखना पड़ेगा। अगर नया फाइल रखा तो फाइन पड़ेगा। सोच लो! बोलो-खत्म करें कि थोड़ा दिन रखें? शिव रात्रि तक रखें! जो समझते हैं शिवरात्रि तक थोड़ी मार्जिन मिलनी चाहिये, तब तक पुरूषार्थ करके रिफाइन हो जायेंगे, वो हाथ उठाओ। अच्छा है, हिम्मत रखना भी अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ अभी हिम्मत नहीं रखना। ऐसे तो नहीं बापदादा के सामने थे तो हिम्मत थी, नीचे उतरे तो थोड़ी हिम्मत कम हो गई और अपने देशों में गये तो और कम हो गई। कोई बात आई तो और कम हो गई। ऐसे तो नहीं करेंगे? देखो जब कोई भी कारण सामने आता है और कारण के कारण हिम्मत कम होती है, कमज़ोरी आती है और जब वो बात समाप्त हो जाती है तो अपने ऊपर शर्म आती है ना! अपने ऊपर ही संकोच होता है कि ये अच्छा नहीं किया, ये अच्छा नहीं हुआ। करके और फिर पश्चाताप् करे...... ये तो आपकी प्रजा का काम है या आपका है? पश्चाताप् वाले क्या राजा बनेंगे? तो सोचो साक्षी स्थिति के सिंहासन पर बैठ जाओ और अपने आपको ही जज करो। अपना जज बनना, दूसरे का जज नहीं बनना। दूसरे का जज बनना सभी को आता है, दूसरे का जज बहुत जल्दी बन जाते हैं और अपना वकील बन जाते हैं। तो साक्षीपन के सिंहासन पर अपने आपका निर्णय बहुत अच्छा होगा। सिंहासन के नीचे रहकर जज करते हो तो निर्णय अच्छा नहीं होता। सेकण्ड में तख्तनशीन बन जाओ। ये स्थिति आपका तख्त है। यथार्थ सहज निर्णय का तख्त ये साक्षीपन की स्थिति है। साक्षी नहीं होते हैं तो दूसरे की बात, दूसरे की चलन वो ज्यादा सामने आती है, अपनी नहीं आती। अगर साक्षी होकर देखेंगे तो अपनी भी नजर आयेगी, दूसरे की भी नजर आयेगी। फिर जजमेन्ट जो होगी वो यथार्थ होगी, नहीं तो यथार्थ नहीं होती। बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि ड्रामा में जो भी बातें आती हैं उन बातों में बहुत अच्छा अक्ल है लेकिन कभी­कभी ब्राह्मण बच्चों में अक्ल थोड़ा कम हो जाता है। बात आती है और चली जाती है, लेकिन ब्राह्मण बच्चे बात को पकड़कर बैठते हैं। बात रूकती नहीं, चली जाती है लेकिन स्वयं बात को नहीं छोड़ते। तो बातों में अक्ल ज्यादा हुआ या ब्राह्मणों में? बातें अक्ल वाली हुई ना! कई बच्चे कहते हैं दो दिन से ये बात चल रही है, दो घण्टे ये बात चली और दो ण्टे में गँवाया कितना? दो दिन में गँवाया कितना? तो अक्ल वाले बनो।

तो पहला कदम आज्ञाकारी, दूसरा कदम है सर्वंश त्यागी। पहले आज्ञाकारी की दुआएं मिली और दुआओं के बल से सर्वंश त्यागी। तो त्याग में भी नम्बरवन एग्जाम्पल ब्रह्मा बना। देह के सम्बन्धों का त्याग बड़ी बात नहीं है। लेकिन देह के पुराने स्वभाव­संस्कार का त्याग जरूरी है। सम्बन्ध का त्याग तो और धर्म में भी करते हैं लेकिन स्वभाव­संस्कार का सर्व वंश सहित त्याग करना-इसको कहा जाता है सर्वंश त्यागी। अगर अंश मात्र भी देह का स्वभाव­संस्कार रह जाता है तो समय प्रति समय वो वंश बढ़ता रहता है और वो वंश इतना तेज होता है जैसे लौकिक परिवार में देखा है ना बड़े बूढ़े बड़े शीतल होंगे लेकिन पोत्रे­धोत्रे बहुत तेज होंगे। तो अगर कोई वंश भी पुराना रहा हुआ है वो भी उल्टी कमाल करके दिखाता है। उस समय की हालत बापदादा देखते हैं बिल्कुल ऐसे लगता है जैसे कोई दुनिया में दिवाला निकालते हैं-तो सेकण्ड में लखपति से कखपति बन जाते हैं। सारे खज़ाने सेकण्ड में खत्म। फिर मेहनत करनी पड़े ना। इसलिये सर्वंश त्यागी अर्थात् देह के सम्बन्ध और देह के पुराने स्वभाव­संस्कार से त्यागी। कभी भी अपनी अवस्था को चेक करो अगर धोखा देता है तो कौन देता है? स्वभाव­संस्कार ना! तो त्याग का भाग्य समाप्त करने वाला ये स्वभाव­संस्कार हैं। और बापदादा तो ब्राह्मणों के लिये और अण्डर लाइन करते हैं कि त्याग का भी त्याग करो। ‘‘मैं त्यागी हूँ’’-इस अभिमान का भी त्याग। इसको कहा जाता है त्याग का भी त्याग। मैंने किया, सहन किया, ये किया, ये किया-ये कथायें नहीं करो। अगर किसने सहन भी किया तो सहन के पीछे शक्ति है। सिर्फ सहन नहीं है, सहन करना अर्थात् शक्ति धारण करना, इसलिये सहन शक्ति कहते हैं। सहन करना अर्थात् शक्ति रूप को प्रत्यक्ष रूप दिखाना। तो अच्छा ही हुआ ना। क्या सहन किया? और ही लाभ ले लिया ना! और किसके प्रति सहन किया? बाप के आज्ञाकारी बनने के लिये सहन किया, दूसरे के लिये नहीं सहन किया। बाप की आज्ञा मानी। तो आज्ञा की दुआएं मिलेगी ना! तो सहन क्या किया? दुआएं ली ना! बात को सामने रखते हो तो सोचते हो बहुत सहन किया, कब तक सहन करेंगे, सहन करने की भी कोई हद होनी चाहिये। लेकिन जितना बेहद सहन, उतनी बेहद की दुआएं। क्योंकि बाप के आज्ञाकारी बन रहे हैं। बाप ने कहा है सहन करो। तो आज्ञा को मानना खुशी की बात है या मजबूरी की बात है? मजबूरी से सहन नहीं करो। कई सहन करते भी हैं और कहते भी हैं कि मेरे जैसा कोई सहन नहीं करता। फिर दादियों को आकर बताते हैं-आपको नहीं पता हमने कितना सहन किया! लेकिन नुकसान क्या किया! फायदा ही इकट्ठा हुआ।

तो त्याग की परिभाषा समझी? देखो भक्ति मार्ग में भी ये निशानी है कि जब बलि चढ़ाते हैं तो अगर बलि का बकरा चिल्लाता है तो वो प्रसाद नहीं माना जाता। एक धक से बिना चिल्लाये स्वाहा हो जाता है तो प्रसाद हो जाता है। तो बलि के बकरे को भी कहते हैं चिल्लाये नहीं। और आप कहते हैं सहन किया, सहन किया तो क्या ये चिल्लाना नहीं हुआ? चाहे मन में, चाहे मुख से अगर थोड़ा भी चिल्लाते हैं तो प्रसाद नहीं हुआ। बाप को स्वीकार नहीं होता है तो दुआएं कैसे देगा? तो क्या करेंगे, थोड़ा­थोड़ा अन्दर चिल्लायेंगे? थोड़ा कोने में, बाथरूम में, छिपकर एक­दो आंसू बहायेंगे? थोड़ी तो छुट्टी मिलनी चाहिये! माताओं को बच्चे तंग करें तो क्या करेंगी? थोड़ा मन में तो रोयेंगी? मातायें मन में रोती हो? थोड़ा­थोड़ा रोती हो! और भाई क्या करते हैं? वो आंखों से नहीं रोते हैं लेकिन क्रोध करके अन्दर से रो लेते हैं। जोश आना भी रोना है। तो पाण्डव सेना क्या समझती है? थोड़ा रोने की छुट्टी चाहिये? जिसको थोड़ी­थोड़ी छुट्टी चाहिये वो हाथ उठाओ। नहीं चाहिये? तो आज से रोने का फाइल भी खत्म, कि सिर्फ ताली बजाकर खुश कर दिया? फिर तो आज से पोस्ट भी कम हो जायेगी। पोस्ट का फालतु खर्चा ज्ञान सरोवर के लिए बच जायेगा, जब कोई ऐसी बात आये तो पोस्ट के पैसे भण्डारी में डाल देना। ज्ञान सरोवर में तो अभी भी लगना है ना।

ज्ञान सरोवर से प्यार सभी का बहुत अच्छा है। ज्ञान सरोवर से प्यार अर्थात् सेवा से प्यार। स्थान से प्यार नहीं है लेकिन सेवा के निमित्त स्थान है तो सेवा से प्यार। जो भी सभी यहाँ बैठे हैं कोई ऐसा है जिसने ज्ञान सरोवर में अपना कणादाना नहीं डाला है? जिन्होंने डाला है वो हाथ उठाओ। सभी ने किया है। मधुबन वाले, हॉस्पिटल वाले, सेवाधारी सभी डालते हैं? तो सबके सहयोग से देखो कितना अच्छा सेवा का स्थान बन गया। सभी को अच्छा लगा ना, पसन्द आया? हाँ, रहने में थोड़ी तकलीफ हुई है लेकिन ठीक हो जायेगा। फिर दूसरे बारी आयेंगे तो मौज मनायेंगे। अभी तो कभी गरम पानी नहीं, कभी ठण्डा पानी नहीं। नये मकान में होता है। लेकिन ज्ञान सरोवर में रहने वाले सभी खुश हैं? सुनाया ना आप तो फिर भी बहुत­बहुत­बहुत भाग्यवान हो। भक्ति मार्ग के मेले में तो मिट्टी पर सोते हैं, यहाँ गदेला, रजाई तो मिली है ना! तो सब अच्छे सोये हुए हैं? नया बिस्तरा है, नया मकान है। फिर भी देखो इतनों को आने का चांस तो मिला है ना! अच्छा, दादियों को ज्ञान सरोवर पसन्द है ना!

ज्ञान सरोवर में दो लक्ष्य हैं - एक तो विशेष सेवा, दूसरा ब्राह्मणों का एशलम। तो दोनों लक्ष्य के कारण इसी विधि से बनाया है। यहाँ पाण्डव भवन में सिवाए ब्राह्मणों के एलाउ नहीं करते लेकिन वहाँ अनेक सम्पर्क वाले नजदीक सम्बन्ध में आयेंगे। जो नाम है ईश्वरीय विश्वविद्यालय, तो जो नाम है विद्यालय उस नाम को भी प्रत्यक्ष करेंगे। तो डबल सेवा है ना? यहाँ ब्राह्मणों के हिसाब से बना हुआ है और वहाँ विश्व की सर्व आत्माओं के हिसाब से। इसलिये अन्तर हो गया ना, लक्ष्य में अन्तर हो गया। अच्छा!

और कदम फिर पीछे बतायेंगे। लेकिन ये दोनों कदम अच्छी तरह से चेक करना और याद रखना फाइल सारे खत्म। भूल नहीं जाना। कौन से फाइल? कारण के और रोने के। जोश भी रोना है। आवेशता में आना ये भी मन का रोना है। वो समझते हैं हमने रोया थोड़ेही। लेकिन मन में तो बहुत रोया। तो दोनों फाइल खत्म! फाइन नहीं डालना अपने ऊपर, रिफाइन बनना।

ब्रह्मा बाप अपने आदि साथियों को देख करके खुश हो रहे हैं। साथी हो ना? टीचर्स सब साथी हो ना? पाण्डव भी आदि साथी हैं तो शक्तियाँ भी साथी हैं। राइट हैण्ड हैं इसलिये ब्रह्मा की अनेक भुजायें दिखाई हैं। भुजा अर्थात् सहयोगी­साथी। सभी राइट हैण्ड हो ना? यहाँ लेफ्ट भी राइट हो जाता है। लेफ्ट को लेफ्ट नहीं कहेंगे, सर्व साथी कहेंगे। अच्छा! चारों ओर से आये हैं।

एक हैं भारत की सेवा के निमित्त सभी जोन। तो भारत के सेवाधारी बच्चों को बापदादा सेवा की मुबारक भी देते हैं और साथ­साथ सदा सपूत और सबूत देने वाले बच्चों को विशेष दिव्य गुणों की ज्वेलरी गिफ्ट में दे रहे हैं। सपूत की निशानी है सबूत देना अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाना। तो सपूत बच्चे अपना­अपना सबूत अर्थात् सेवा के फल का प्रमाण दिखा रहे हैं और आगे भी दिखाते रहेंगे। इसके लिये जो सपूत बच्चे होते हैं उन्हों को बापदादा, माँ सदा बढ़िया ते बढ़िया श्रृंगार करते हैं, सजाते हैं। जो अच्छा बच्चा लगता है उसको सदा बढ़िया चीज़ देते हैं। तो यहाँ तो सभी एक­दो से बढ़िया हो। इसलिए बापदादा ऐसे सपूत और सबूत देने वाले बच्चों को विशेष दिव्य गुणों की ज्वेलरी गिफ्ट में दे रहे हैं। तो ये गिफ्ट सम्भाल के रखना। कानों में भी पहनना और मस्तक पर भी पहनना, सिर पर ताज पहनना, उतारना नहीं। माया को चोरी करने नहीं देना। माया को भी पता पड़ रहा है कि इन्हों को गिफ्ट मिल रही है। तो डबल लॉक है ना? याद और सेवा दोनों के बैलेन्स में सदा रहना अर्थात् डबल लॉक लगाना। तो सभी के पास डबल लॉक है या एक लॉक है एक ढीला है? देखना चाबी तो नहीं खो गई है। आप समझो चाबी बहुत सम्भाल के रखी है लेकिन जब आवश्यकता हो तो दिखाई न दे, ऐसे तो नहीं? अच्छे हैं!

(बापदादा ने सभी जोन्स के भाई­बहिनों से से हाथ उठवाये)

दिल्ली - चाबी सम्भाल के रखना। माया बिल्ली नहीं आ जाये दिल्ली में! दिल्ली वाले क्या करेंगे? बड़े­बड़े माइक लाना, छोटे नहीं। क्योंकि दिल्ली का आवाज सहज चारों ओर फैलता है। दिल्ली की न्यूज इन्टरनेशनल न्यूज होती है। इसलिये दिल्ली वालों को एक माइक नहीं, माइक का ग्रुप लाना है। झण्डा लहराना है। दिल्ली में राज्य का झण्डा लहरायेंगे तो राज्य के फ्लैग के पहले सेवा का फ्लैग। तो एक माइक नहीं लाना, झुण्ड लाना। एक का आवाज चारों ओर नहीं फैलता फैलता। संगठन में आते हैं तो सबकी नजर जाती है।

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू - पंजाब तो है ही शेर, शेर के आगे बिल्ली क्या आयेगी! पंजाब शेर है ना!

बंगाल, बिहार, उड़ीसा, नेपाल, आसाम - ये पांच नदियाँ इकट्ठी हैं। अच्छा है, पांचों का मिलन है। सबसे पहले बंगाल में सूर्योदय होता है तो माया का अंधकार तो आ नहीं सकता। अच्छा है अभी थोड़ी और संख्या को बढ़ाओ। कोई वारिस निकालो, पांच प्रदेश हैं, तो पांचों प्रदेशों से अच्छे से अच्छे वारिसों को स्टेज पर लाओ। अगर गुप्त हैं तो स्टेज पर लाओ। अगर नहीं हैं तो निकालो। दूसरे सीजन में सबसे ज्यादा संख्या इन पांच नदियों की होनी चाहिये। समझा?

यू.पी., बनारस - यू.पी. बनारस क्या करेंगे? भक्त तो ज्यादा यू.पी. में हैं। तो भक्तों का जल्दी­जल्दी कल्याण करो, बिचारे भटकते रहते हैं। कभी कुम्भ के मेले में, कभी किसी मेले में, कभी मन्दिरों में तो कभी कहाँ, भटकने वाले भक्तों को बाप का परिचय देकर मधुबन तक पहुँचाओ। समझा?

राजस्थान - राजस्थान क्या करेगा? राजाओं को फिर से राज्य­भाग्य के अधिकारी बनाओ। जब नाम ही राजस्थान है तो कितने राजायें होंगे। अब राजायें नहीं हैं, लेकिन राजायें बना तो सकते हो ना। कितनी दुआयें देंगे कि हमको फिर से राज्य अधिकारी बनाया! तो हिम्मत है ना? राजस्थान, ऐसा ग्रुप तैयार करो जो सारे राजायें, राज्य अधिकार की खुशी में मधुबन की स्टेज पर डांस करे।

बाम्बे, महाराष्ट्र - महाराष्ट्र की धरनी तो बहुत अच्छी है, उसकी मुबारक है। लेकिन अभी बाम्बे वा महाराष्ट्र एक वारिस क्वालिटी का ग्रुप तैयार करो। जैसे वो राजाओं का ग्रुप लायेंगे तो महाराष्ट्र वा बाम्बे वारिसों का ग्रुप लाये। ला सकते हैं? देखेंगे दूसरे सीजन में वारिसों का गुलदस्ता आयेगा। अच्छा।

गुजरात - वो तो चुल पर और दिल पर है। चुल पर है तभी देखो रोटी अच्छी बनाते हैं ना! तो दिल के चुल पर हैं और साथ­साथ हिम्मत की मुबारक तो बापदादा सदा ही गुजरात को देते हैं। गुजरात वारिस बना सकता है। गुजरात में वारिस क्वालिटी निकल सकती है। जैसे बाम्बे वारिस क्वालिटी का ग्रुप बनायेंगे आप महावारिस का ग्रुप बनाओ। धरनी अच्छी है। अभी क्वान्टिटी में ज्यादा लग गये हैं, पहले­पहले कुछ वारिस निकले, अभी क्वान्टिटी में क्वालिटी छिप गई हैं। नाम लेते हैं तो दिखाई देते हैं, इसलिये अभी फिर से वारिस क्वालिटी निकालो। एक वारिस हजारों क्वान्टिटी के बरोबर है। समझा गुजरात क्या करेगा? महावारिस लायेंगे, वन नम्बर लेंगे ना! सभी नम्बरवन लेना, टू कोई नहीं लेना।

तामिलनाडु - तामिल वाले कौन­सा ग्रुप लायेंगे? तामिल में स्थूल नॉलेजफुल क्वालिटी बहुत अच्छी है। तो जो नॉलेज की अथॉरिटी कहलाई जाती है ऐसे अथॉरिटी वालों का ग्रुप तैयार करके लाना। हिम्मत है ना? सारा ग्रुप नॉलेज के अथॉरिटी वाले हो। ये भी छोटे­छोटे माइक हो जाते हैं।

कर्नाटक - कर्नाटक वाले कौन­सा ग्रुप लायेंगे? ज्ञान का नाटक करने वाले। वहाँ जो भी धर्म के निमित्त, धर्म आत्मायें सम्बन्ध­सम्पर्क में हैं उन्हें बच्चों के रूप में ग्रुप बनाकर लेकर आयें। धर्म नेता बनकर नहीं आवे, चांदी की कुर्सा चाहिये, वो चाहिये... नहीं। लेकिन धर्म नेताएं बच्चे बनकर आयें। तो जैसे राज्य अधिकारियों द्वारा नाम बाला होता है वैसे धर्म नेताओं द्वारा भी, ये भी बड़े माइक हैं, तो ऐसा ग्रुप लाओ। एक धर्म आत्मा नहीं लाना, संगठन में लाना। धर्म नेताओं को सम्भाल सकेंगे कि वो आपस में ही लड़ेंगे? नहीं, भावना वाले हैं, चाहे धर्म नेतायें भी हैं फिर भी माताओं में भावना अच्छी है। इसलिये कनार्टक वाले धर्म नेताओं का नाटक दिखाना। अच्छा!

आन्ध्र प्रदेश - आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा में भी अच्छे­अच्छे पोजीशन वाले हैं और भावना वाले भी हैं इसलिये आन्ध्रा वालों को जो आजकल के नामीग्रामी गाये हुए हैं उन सभी को बाप के घर में पहुँचाओ। समझा? देखेंगे कौन अपना अच्छा ग्रुप लाता है? अगले सीजन में सब ग्रुप­ग्रुप आयेंगे ना! देखेंगे नम्बरवन, टू, थ्री कौन हैं? तब तो प्रत्यक्षता होगी ना! नहीं तो कैसे होगी?

इन्दौर - संख्या तो अच्छी है इन्दौर की। इन्दौर वाले क्या करेंगे? इन्दौर में भी नामीग्रामी अच्छे हैं, जिसको सेठ लोग कहते हैं ना, तो सेठ लोग बहुत हैं। तो सेठों का ग्रुप लाना। जब सभी सेठों का ग्रुप आयेगा तो कितना अच्छा लगेगा। कोई टोपी वाले, कोई पगड़ी वाले। इन्दौर वाले क्या समझते हैं? बापदादा ने इन्दौर में भेजा ही है सेठों की सेवा के लिये। लेकिन अभी तक कोई सेठ नहीं आया है। आप लोगों को पहले सेठ के पास भेजा ना। लेकिन वो कहाँ आया है? कितने सेठ आये हैं? छोटे­छोटे बिजनेस वाले नहीं, सेठ लोग। तो एक सेठ आयेगा तो उसके सेवाधारी कितने होते हैं! तो कितने आ जायेंगे? लेकिन अभी साहूकार साहूकार नहीं है, चिन्ता के घर हैं। इसलिये अभी समय बदल रहा है। अभी वह साहूकारी का नशा नहीं है। अपने बचने का नशा है। साहूकारी का नहीं।

भोपाल, आगरा - आगरा ने तो अभी काम पूरा नहीं किया है। ताजमहल के साथ ज्ञान के ताज का साक्षात्कार हो, अभी वो सोच रहे हैं। अभी पहले आगरा वालों को वो ही करना है। समझा! पीछे ग्रुप लायेंगे। जब स्थान बन जायेगा तो इन्टरनेशनल ग्रुप लायेंगे।

अच्छा, भोपाल वाले क्या करेंगे? वहाँ छोटे­छोटे माइक बहुत हैं। एडमिय्निस्ट्री के लोग बहुत हैं। तो छोटे­छोटे माइक के ग्रुप भी आवाज फैला सकते हैं। वहाँ भी ऑफिसर क्वालिटी अच्छी है। तो अच्छे­अच्छे सेवा में सहयोगी ऑफिसर्स ग्रुप समीप आने वाले और लायेंगे, लाते हैं लेकिन और समीप लायेंगे। तो कितने ग्रुप आयेंगे? बहुत ग्रुप आयेंगे ना। और सब वेराइटी ग्रुप देखकरके आप क्या करेंगे? ताली बजायेंगे। प्रत्यक्षता की ताली बजाना, ये ताली नहीं। तो सभी खुश हो ना? अच्छा।

इस ग्रुप में बीमार आये हुए हैं? बीमार जो आये हैं वह हाथ उठायें। कोई नहीं है। इस समय सब तन्दुरूस्त हैं, बीमारी भूल गई। हॉस्पिटल में पेशेन्ट आये हैं? नहीं आये हैं। तो ये ग्रुप अच्छा हुआ ना पेशेन्ट कोई नहीं है। पेशन्स में रहने वाले हैं इसलिये पेशेन्ट नहीं हैं। अच्छा।

डबल विदेशी - डबल विदेशियों को बापदादा दिल से याद­प्यार के साथ­साथ दुआओं की गिफ्ट दे रहे हैं। क्योंकि इन्हों की हिम्मत भारतवासियों से भी ज्यादा है। कई दीवारें पार कर बाप के बने हैं। इसलिये बापदादा सदा उमंग­उत्साह के पंख देकर उड़ाते रहते हैं, इस हिम्मत की दुआओं के साथ सभी देशों के बच्चों को विशेष गिफ्ट दे रहे हैं और यही गिफ्ट लिफ्ट का काम करेगी। मेहनत नहीं करनी पड़े। समझा? अभी पंखों की गिफ्ट को सदा साथ रखना। दुआएं सदा साथ रखना। अच्छा है, सब देशों से थोड़े­थोड़े पहुँच जाते हैं यही बापदादा को देख­देख खुशी होती है। कैसे भी सरकमस्टांश हो लेकिन दिल की दुआएं सैलवेशन बन जाती हैं इसलिये पहुँच जाते हैं। एक भी ग्रुप विदेशियों के बिना नहीं गया है। हर ग्रुप में हैं, तो हाजिर­नाजिर हो गये ना!

मधुबन निवासी, हॉस्पिटल परिवार - (मधुबन निवासी, हॉस्पिटल वाले सब पाण्डव भवन में बैठ मुरली सुन रहे हैं) उन्हों का ख्याल आ रहा है। मधुबन वाले तो हर रोज की लॉटरी लेने वाले हैं। कितनी लॉटरी मिलती है। मेहनत नहीं करनी पड़ती है, लॉटरी आ जाती है। चाहे मधुबन में या हॉस्पिटल में या ज्ञान सरोवर में, नीचे­ऊपर जो भी हैं, रोज की लॉटरी निकलती है। और लॉटरी से ही चल रहे हैं। आराम से खा पी रहे हैं। सेन्टर वालों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है भण्डारी भरने की और मधुबन वालों की भण्डारी और भण्डारा सदा भरपूर है। मधुबन है खर्च करने वाले और मधुबन में इकट्ठा करने वाले सेन्टर वाले हैं। तो सेन्टर वाले कमाउ बच्चे हो। तो कमाने का नशा अपना, लॉटरी का नशा अपना। तो सबको अपना­अपना भाग्य मिला हुआ है। किसी का भाग्य किसी से कम नहीं। क्योंकि भाग्य विधाता के भाग्य का भण्डारा भरपूर है। इसीलिये सबका एक­दो से ज्यादा भाग्य है। सिर्फ अपना­अपना है लेकिन है एक­एक का एक­दो से बढ़िया। अच्छा!

टीचर्स - टीचर्स कौन हैं? राइट हैण्ड हैं ना! राइट हैण्ड के बिना कोई काम नहीं होता। बाप के कार्य को सफल करने वाले राइट हैण्ड। अच्छा।

चारों ओर के सर्व बापदादा के स्नेह को प्रत्यक्ष करने वाले, फॉलो फादर करने वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बापदादा के कदम पर कदम रखने वाले आज्ञाकारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा ब्रह्मा बाप समान सर्वंश त्यागी विशेष आत्मायें, सदा सपूत बन हर समय सबूत देने वाले सुपात्र आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादियों से - सब सहज सम्पन्न हो रहा है ना? खुशी सब भुला देती है। खुशी के आगे और कुछ लगता नहीं। तो मधुबन है खुशियों की खान। खुशी के कारण सब सहज हो जाता है। चाहे खाना मिले, नहीं मिले लेकिन खुशी की खुराक मिलती रहती है। (सभा को देखते हुए) सभी बहुत खुश हो ना? कि थोड़ी­बहुत कमी रह गई? नहीं। खुशियों की खान पर आ गये हो ना! कुछ भी हो लेकिन सन्तुष्टता का वरदान मिला हुआ है। तो सन्तुष्टता का फल है प्रसन्नता। सब प्रसन्न रहते हैं। नीचे­ऊपर भी होगा फिर प्रसन्न हो जाते हैं। अगर प्रसन्न चित्त आत्मायें देखनी हो तो कहाँ देखें? मधुबन में या सेन्टर पर भी? प्रसन्नचित्त देखना हो तो ब्राह्मणों को देखो। सदा सन्तुष्ट, सदा प्रसन्न चित्त। चित्त में और कुछ है क्या? प्रसन्नता ही प्रसन्नता। ऐसे है ना! सभी प्रसन्नचित्त हैं कि प्रश्नचित्त हैं? ऐसी कोई सभा होगी जो सब मुस्कराते रहें? और सतसंग में जाओ तो कोई का चेहरा कैसा होगा, कोई का कैसा होगा? और यहाँ सबके चेहरे देखो तो क्या हैं? मुस्कराते हुए। ब्राह्मणों के मुस्कान की निशानी देवताओं के चित्र में भी दिखाते हैं। वो किसके चित्र हैं? आपके हैं ना? कि बड़ी दादियों के हैं? आपके मन्दिर हैं? कौन­सी देवी या देवता हो? मालूम है? गणेश हो, हनूमान हो, देवियाँ हो, क्या हो? कोई भी देवी­देवता हो लेकिन दिव्यगुणधारी आत्मा देवता है। फिर कोई हनूमान कहे या गणेश कहे या देवी कहे, लेकिन दिव्यगुणधारी देव आत्मा हो।

अच्छा - (दादियों से) आप लोगों को मालूम पड़ता है कि आपके भक्त किस समय प्रार्थना करते हैं? जिस समय भक्त पुकारते हैं तो आप लोगों को मालूम पड़ता है? कि अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं? बिचारे भक्त ऐसे ही चिल्लाते हैं! फील होता है ना! भक्तों के पुकार की फीलिंग जरूर आती है। तब तो शुभ भावना, शुभ कामनायें देते हो ना! वायुमण्डल में शान्ति क्यों फैलाते हो, लाइट हाउस, माइट हाउस क्यों बनते हो? सर्व भक्त आत्मायें या अन्य आत्मायें सन्तुष्ट, खुश रहे, शान्त रहे। (दादी जानकी से) विश्व के गोले पर खड़ी हो ना! कि लण्डन के गोले पर खड़ी हो? विश्व के गोले पर हैं ना! मधुबन के गोले पर नहीं, विश्व के गोले पर। आना और जाना तो प्रैक्टिस है। अभी आना­जाना क्या लगता है? विदेश लगता है या घर लगता है? घर से हाल में आये या हाल से घर में आये! अच्छा-लण्डन वालों को भी विशेष सेवा की मुबारक। मुश्किल को सहज करना ये एक अच्छा एग्जाम्पल है। अच्छा है कोई ने तन से, कोई ने मन से, कोई ने धन से, सर्व के सहयोग से ही सफलता मिली है और मिलती ही रहेगी। लण्डन भी विदेश का लाइट हाउस है। जैसे भारत के लिये मधुबन लाइट हाउस है तो लण्डन भी लाइट हाउस है। इसलिये दोनों दादियों से बहुत प्यार है ना। दोनों का बाप से प्यार और बाप का इन्हों से प्यार और सबका भी दादियों से प्यार। बहुत प्यार है ना! अच्छा है प्यार ही किला है। अगर प्यार का किला नहीं होता तो यज्ञ की स्थापना का कार्य हिलता लेकिन प्यार का किला अविनाशी अखण्ड बनाकर चला रहा है। जोड़ी अच्छी है। प्यार रखो तो ऐसे प्यार रखो, प्यारे भी और न्यारे भी। अच्छा!

(ज्वेल ऑफ लाइट पुस्तक का हिन्दी अनुवाद (रत्न प्रभा - दादी प्रकाश­मणि) छपवाया गया है जिसका बापदादा ने अपने हस्तों से अनावरण किया) जो भी हो रहा है वो सेवा को और उड़ती कला में ले जाने का साधन है। ये भी सेवा का साधन है, ऐसे ही सेवाओं की प्रत्यक्षता होते सेवा कराने वाला बाप प्रत्यक्ष हो जायेगा। साधन अच्छे हैं - प्रत्यक्षता के लिये।

अच्छा - ओम् शान्ति।



26-01-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ब्रह्मा बाप के और दो कदम - फरमानबरदार­वफादार

ज बापदादा चारों ओर के स्नेही और सहयोगी बच्चों को और शक्ति­आ शाली समान बच्चों को देख रहे हैं। स्नेही सभी बच्चे हैं लेकिन शक्तिशाली यथाशक्ति हैं। स्नेही बच्चों को स्नेह का रिटर्न पदम गुणा स्नेह और सहयोग प्राप्त होता है। शक्तिशाली समान बच्चों को सदा सहज विजयी भव का रिटर्न मिलता है। मिलता सभी को है। स्नेही बच्चे यथा शक्तिशाली होने के कारण सदा सहज विजय का अनुभव नहीं कर पाते। कभी सहज, कभी मेहनत। बापदादा स्नेही बच्चों को भी मेहनत को सहज करने का सहयोग देते हैं क्योंकि स्नेही आत्मायें सहयोगी भी रहती ही हैं। तो सहयोग के रिटर्न में बापदादा सहयोग जरूर देते हैं लेकिन योग यथार्थ न होने कारण सहयोग मिलते भी प्राप्ति का अनुभव नहीं कर पाते। योग द्वारा ही सहयोग का अनुभव होता है और शक्तिशाली समान बच्चे सदा योगयुक्त हैं इसलिये सहयोग का अनुभव करते सहज विजयी बन जाते हैं। लेकिन बाप को दोनों ही बच्चे प्यारे हैं। प्यार और सदा विजयी रहने की शुभ चाहना सभी बच्चों में रहती है लेकिन शक्ति कम होने के कारण समय पर और सर्व शक्तियाँ कार्य में नहीं लगा सकते। बाप वर्से के अधिकार में सर्व शक्तियों का अधिकार सभी बच्चों को देते हैं। अधिकार देने में बापदादा अन्तर नहीं रखते, सभी को सम्पूर्ण अधिकारी बनाते हैं लेकिन लेने में नम्बरवार बन जाते हैं। बापदादा किसको स्पेशल, किसको अलग ट्युशन देते हैं क्या? नहीं देते। पढ़ाई सबकी एक है, पालना सबकी एक है। पाण्डवों को अलग पालना हो, शक्तियों को अलग हो-ऐसे है क्या? सबको एक जैसी पालना और पढ़ाई है। लेकिन लेने में, रिजल्ट में कितना अन्तर हो जाता है! कहाँ अष्ट रत्न और कहाँ 16108 रत्न-कितना अन्तर है! यह अन्तर क्यों हुआ? पढ़ाई और पालना को, वरदानों को धारण करना और कार्य में लगाना-इसमें अन्तर हो जाता है। कई बच्चे धारण भी कर लेते हैं लेकिन समय प्रमाण कार्य में लगाना नहीं आता है। बुद्धि तक बहुत भरपूर होंगे लेकिन कर्म में आने में फर्क पड़ जाता है।

ब्रह्मा बाप नम्बरवन क्यों बना? दो कदम पहले सुनाये ना! तीसरा-सदा बाप, शिक्षक और सद्गुरू के फरमानबरदार बनें। हर फरमान को जी हाजर किया। बाप का फरमान है सदा सर्व खज़ानों के वर्से में सम्पन्न बनना और बनाना। तो प्रत्यक्ष देखा कि सर्व खज़ाने-ज्ञान, शक्तियाँ, गुण, श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना पहले दिन से लेकर लास्ट दिन तक कार्य में लगाया। लास्ट दिन भी समय, संकल्प बच्चों प्रति लगाया। ज्ञान का खज़ाना, याद की शक्ति और सहनशीलता के गुण का स्वरूप-यह सब खज़ाने लास्ट समय तक, शरीर को भी भूल सेवा में प्रैक्टिकल में लगाकर दिखाया। तो इसको कहा जाता है फरमानबरदार नम्बरवन बच्चा। क्योंकि बाप का विशेष फरमान यही है कि याद और सेवा में सदा बाप समान रहो। तो आदि से लेकर अन्त घड़ी तक दोनों ही फरमान प्रैक्टिकल में देखा ना? स्नेह की निशानी है फॉलो करना। तो चेक करो-आदि से अब तक सर्व खज़ानों को स्व के साथ­साथ सेवा में लगाया है? बाप का फरमान एक श्वास वा संकल्प, सेकण्ड व्यर्थ नहीं गंवाना है। तो सारे दिन में ये फरमान प्रैक्टिकल में लाया? वा कभी लाया, कभी नहीं लाया? अगर कभी­कभी फरमानबरदार बने और कभी नहीं बने तो किस लिस्ट में जायेंगे? अगर बापदादा फरमानबरदार की लिस्ट निकाले तो आप किस लिस्ट में होंगे? अपने को तो जानते हो ना? क्योंकि आप सभी सर्व खज़ानों के ट्रस्टी, मालिक हो। तो एक संकल्प भी बिना बाप के फरमान के यूज नहीं कर सकते हो। या सोचते हो कि हम बालक सो मालिक हैं, इसलिए व्यर्थ गंवायें या क्या भी करें, इसमें बाप का क्या जाता है! बाप ने दे दिया, अभी हिसाब क्यों लेते हैं? नहीं। आप रोज बाप के आगे कहते हो कि सब तेरा है, मेरा नहीं है। कहते हो ना! कि टाइम पर मेरा और टाइम पर तेरा! जब हमारा मतलब हो तो मेरा, वैसे तेरा..... ऐसी चतुराई तो नहीं करते हो? ब्रह्मा बाप को देखा-अपना आराम का समय भी विचार सागर मंथन कर बच्चों के प्रति लगाया। रात्रि भी जागकर बच्चों को योग की शक्ति देते रहे। ये चरित्र तो सुने हैं ना? ब्रह्मा की कहानी सुनी है ना? फॉलो फादर किया कि सिर्फ सुन लिया? सुनना अर्थात् करना।

तो तीसरा कदम सदा जी हाजर, सदा हजूर हाजर और नाज़र। कभी ब्रह्मा बाप से शिव बाप अलग नहीं हुए, हाजर­नाज़र रहे ना! बच्चे ने कहा बाबा और बाप ने कहा मीठा बच्चा। तो मन की स्थिति में सदा हाजर और नाज़र अनुभव किया। सेवा में सदा जी हाजर किया। चाहे रात हो, चाहे दिन हो, सेवा का डायरेक्शन मिला और प्रैक्टिकल किया और कर्म में सदा हाँ जी किया। हाँ जी का पाठ पढ़ाया ना? तो आप क्या फॉलो करते हो? कभी हाँ जी, कभी ना जी तो नहीं करते? तो प्यार का सबूत दिखाओ। ऐसे नहीं सोचो कि जितना बाबा से मेरा प्यार है उतना और किसका नहीं। मेरे दिल में देख लो, क्या दिखाऊं, क्या सुनाऊं.... बच्चे ऐसे गीत गाते हैं। लेकिन सबूत दिखाओ। सबूत है फॉलो फादर। तो चेक करो-स्थिति में, सेवा में, कर्म अर्थात् सम्बन्ध­सम्पर्क में, (सम्बन्ध और सम्पर्क में आना ही कर्म है) तीनों में सदा फॉलो फादर हैं? हर फरमान सिर्फ बुद्धि तक रहता है या कर्म में भी आता है? रिजल्ट में देखा जाता है कि अगर बुद्धि और वाणी में 100 बातें रहती है तो कर्म में 50 हैं। तो उन्हों को फॉलो फादर कहें? अधूरी रिजल्ट वालों को फॉलो फादर की लिस्ट में रखें? आप क्या समझते हैं? वे फरमानबरदार हैं? कि आप आधे में राजी हैं? थोड़ा­थोड़ा अन्तर पसन्द है! शुरू­शुरू में माला भी बनाते थे, गोल्डनय्सिल्वर भी लिस्ट निकालते थे। तो अभी फिर से लिस्ट निकालें? कि सिल्वर में नाम देखकर कॉपर बन जायेंगे?

समय की सूचना बाप तो दे ही रहे हैं लेकिन प्रकृति भी दे रही है। प्रकृति भी चैलेन्ज कर रही है तो समय के प्रमाण आप लोग औरों को भी सूचना देते रहते हो। भाषणों में सबको कहते हो कि समय आ गया है, समय आ गया है। तो अपने को भी कहते हो या सिर्फ दूसरों को कहते हो? दूसरों को कहना तो सहज होता है ना? तो स्वयं भी ये चैलेन्ज स्मृति में लाओ। समय के प्रमाण अपने पुरूषार्थ की गति क्या है? बापदादा एक बात पर अन्दर ही अन्दर मुस्कराते रहते हैं। किस बात पर मुस्कराते हैं, जानते हो? एक तरफ मैजारिटी बच्चे कभी­कभी एक सेकण्ड ये सोचते हैं कि समय प्रमाण पुरूषार्थ में तीव्रता होनी चाहिये और दूसरे तरफ जब माया अपना प्रभाव डाल देती है तो दूसरे सेकण्ड ये सोचते हैं कि यह तो सब चलता ही है, ये तो महारथियों से भी परम्परा चला आता है। तो बापदादा क्या करेंगे? गुस्सा तो नहीं करेंगे ना! मुस्करायेंगे। और इसका विशेष कारण है कि समय प्रति समय पुरूषार्थ को बहुत सहज कर दिया है, इजी कर लिया है। स्वभाव को इजी नहीं करते, स्वभाव में टाइट होते हैं और पुरूषार्थ में इजी हो जाते हैं। फिर सोचते हैं सहज योग है ना! लेकिन जीवन में, पुरूषार्थ में इजी रहना-इसको सहज योग नहीं कहा जाता। क्योंकि इजी रहने से शक्तियाँ मर्ज हो जाती हैं, इमर्ज नहीं होती। आप सभी अपने ब्राह्मण जीवन के आदि का समय याद करो। उस समय कैसा पुरूषार्थ रहा? इजी पुरूषार्थ रहा या अटेन्शन वाला पुरूषार्थ रहा? अटेन्शन वाला रहा, उमंग­उत्साह वाला रहा और अभी अलबेलेपन के डनलप के तकिये और बिस्तरे मिल गये हैं। साधनों ने आराम पसन्द ज्यादा बना दिया है। तो अपने आदि के पुरूषार्थ, आदि की सेवा और आदि के उमंग­उत्साह को चेक करो-क्या था? आराम पसन्द थे? (नहीं) और अभी थोड़ा­थोड़ा हैं? साधन सेवा के प्रति हैं, साधन स्वयं को आराम पसन्द बनाने के लिये नहीं हैं। तो अभी डनलप का तकिया और बिस्तरा निकालो। पटरानियाँ बनो, पटराने बनो। भले पलंग पर सोओ लेकिन स्थिति पटरानी­पटराने की हो। देखो, आदि सेवा के समय में साधन नहीं थे, लेकिन साधना कितनी श्रेष्ठ रही। जिस आदि की साधना ने ये सारी वृद्धि की है। तो साधना के बीज को विस्तार में छिपा नहीं दो। जब विस्तार होता है तो बीज छिप जाता है। तो साधना है बीज, साधन है विस्तार। तो साधना का बीज छिपने नहीं दो, अभी फिर से बीज को प्रत्यक्ष करो।

बापदादा ने इस सीजन में काम दिया था लेकिन किया नहीं। याद है क्या दिया था? कि कापियों में है! काम दिया था कि बेहद के वैराग्य वृत्ति पर स्वयं से भी चर्चा करो और आपस में भी चर्चा करो और प्रैक्टिकल में इस साधना के बीज को प्रत्यक्ष करो। तो किया? कि एक दिन सिर्फ डिबेट कर ली, वर्कशॉप तो हो गई लेकिन वर्क में नहीं आई। तो वर्तमान समय के प्रमाण अभी अपनी सेवा वा सेवा­स्थानों की दिनचर्या बेहद के वैराग्य वृत्ति की बनाओ। अभी आराम की दिनचर्या मिक्स हो गई है। ये अलबेलापन शरीर की छोटी­छोटी बीमारियों के भी बहाने बनाता है। पहले भी तो बीमारी होती थी ना, लेकिन सेवा का उमंग बीमारी को मर्ज कर देता है। जब कोई आपके दिल पसन्द सेवा होती है तो बीमारी याद आती है? अगर आपको इन्चार्ज बहन कहे-नहीं, आपकी तबियत ठीक नहीं है, दूसरे को करने दो, तो करने देंगे? उस समय बुखार वा सिर दर्द कहाँ चला जाता है? और जब सेवा कोई पसन्द नहीं होगी तो क्या होगा? सिर दर्द भी आ जायेगा तो पेट दर्द भी आ जायेगा। सुनाया है ना कि अगर बहानेबाजी में बुखार कहेंगी तो टीचर कहेगी कि थर्मा मीटर लगाओ लेकिन पेट दर्द और सिर दर्द का थर्मा मीटर तो है ही नहीं। मूड ठीक नहीं होगा और कहेंगे कि पेट दर्द है! तो ये अलबेलेपन के बहाने हैं। बेहद की वैराग्य वृत्ति मर्ज हो गई है और बहानेबाजी इमर्ज हो गई है।

बापदादा देख रहे थे कि सभी बच्चे बहुत स्नेह से मधुबन में पहुँच गये हैं। तो स्नेह तो दिखाया, उसकी मुबारक हो। बापदादा को भी बच्चों की खुशी देखकर खुशी होती है लेकिन आगे क्या करना है? सिर्फ मधुबन तक पहुँचना है या स्नेह का सबूत दिखाने के लिये फरिश्ते रूप में वतन में पहुँचना है? क्या करना है? मधुबन में पहुँचे उसकी मुबारक है लेकिन फरिश्ता बन वतन में कब पहुँचेंगे? चलते फिरते आप सभी को फरिश्ता ही देखें। बोल­चाल, रहन­सहन सब फरिश्तों का बन जाये। और फरिश्ते का अर्थ ही है डबल लाइट। तो दिनचर्या में लाइट नहीं बनना है लेकिन सम्बन्ध­सम्पर्क में, स्थिति में लाइट। तो लाइट बनना आता है कि बोझ खींचता है? बापदादा स्नेह का सबूत देखना चाहते हैं और जब स्नेह का सबूत देंगे तो आपको तालियाँ बजाने की जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन माया, प्रकृति सब तालिय्यां बजाय्येंगे। माया भी ताली बजायेगी- वाह विजयी वाह, प्रकृति भी ताली बजायेगी। तो अभी कुछ परिवर्तन करो।

आज इस सीजन का लास्ट मेला है। फॉरेनर्स की सीजन अलग है लेकिन इण्डियन प्रोग्राम के प्रमाण तो आज लास्ट है, मेले की बात भी अलग है। वो तो चूंगी में रख दिया है। लेकिन बापदादा देख रहे थे कि सारे सीजन में मिलना, बहलना, खुशी मनाना-ये तो बहुत अच्छा, लेकिन सबूत क्या है! तो सेन्टर्स पर वा प्रवृत्ति में रहते हुए भी अपने टाइम टेबल, दिनचर्या को परिवर्तन करो। और परिवर्तन क्या करो? बस, सिर्फ फॉलो फादर। ब्रह्मा बाप ने क्या किया? ब्रह्मा बाप अलबेले रहे? सबूत है ना-लास्ट दिन तक आराम किया क्या? तो स्नेह है ना? कितना स्नेह है? (टू मच) और सबूत कितना है? इसमें टू मच नहीं कहा! तो अभी स्वयं को स्नेह के साथ शक्तिशाली बनाओ। स्वयं के परिवर्तन में शक्तिरूप बनो। सहज योगी, सहज योगी करके अलबेलापन नहीं लाओ। बापदादा देखते हैं कि स्व प्रति, चाहे सेवा प्रति, चाहे औरों के सम्बन्ध­सम्पर्क प्रति अलबेलापन ज्यादा आ गया है। ऐसे नहीं सोचो कि सब चलता है। एक­दो को कॉपी नहीं करो, बाप को कॉपी करो। दूसरों को देखने की आदत थोड़ी ज्यादा हो गई है। अपने को देखने में अलबेलापन आ गया है। बापदादा ने सुनाया था ना कि नजदीक की नजर कमज़ोर हो गई है और दूर की नजर तेज हो गई है। तो अभी क्या करेंगे? सीजन का फल क्या देंगे? कि सिर्फ बाप आया, मिला, मनाया, मुरली सुनी-ये फल है? हर सीजन का फल होता है ना? तो इस सीजन का फल बापदादा को क्या भोग लगायेंगे? भोग लगाते हो तो फल भी रखते हो ना? वो तो बाजार में मिल जाता है, कोई बड़ी बात नहीं। अब इस सीजन का फल क्या भेंट करेंगे या भोग लगायेंगे? लगाना है या मुश्किल है? तो देखेंगे कि नम्बरवन भोग कहाँ से आता है। वायदा तो बहुत अच्छा करके जाते हो, कभी भी ना नहीं करते हो, हाँ ही करते हो! खुश कर देते हो। लेकिन अभी क्या करेंगे? टीचर्स नम्बरवन भोग लगायेंगी ना? सभी सेन्टर्स का भोग देखेंगे। प्रवृत्ति वाले भी भोग तो लगाते हो ना कि खुद ही खा जाते हो? तो ये नहीं सोचना कि सिर्फ सेन्टर्स वालों का काम है। सभी का काम है। तो फरमानबरदार का कदम प्रैक्टिकल में लाना है।

चौथा कदम है - वफादार। कभी भी मन से, बुद्धि से, संकल्प से बाप के बेवफा नहीं बनना। वफादार का अर्थ ही है सदा एक बाप, दूसरा न कोई। संकल्प में भी देह, देह के सम्बन्ध, देह के पदार्थ वा देहधारी व्यक्ति आकर्षित नहीं करें। जैसे जब पति­पत्नि एक­दो के वफादार बनते हैं तो स्वप्न में भी अगर पर (दूसरे) की याद आ गई तो वफादार नहीं कहा जाता। तो ब्रह्मा बाप को देखा, संकल्प भी दूसरे के तरफ नहीं। एक बाप सब कुछ है, इसको कहा जाता है वफादार। अगर पदार्थ की भी आकर्षण है, साधनों की भी आकर्षण है तो साधना खण्डित हो जाती है, वफादारी खण्डित हो जाती है। और खण्डित कभी भी सम्पन्न, पूज्य नहीं गाया जाता है। तो चेक करो कि संकल्प में भी कोई आकर्षण बेवफा तो नहीं बना देती? अगर जरा भी किसी के प्रति विशेष झुकाव है, थोड़ा भी पर्सनल झुकाव है, चाहे गुण के ऊपर, चाहे सेवा के ऊपर, चाहे अच्छे संस्कारों के ऊपर भी अगर एक्स्ट्रा प्रभावित हैं तो वफादार नहीं कहा जायेगा। सबकी विशेषता, बेहद की विशेषता पर आकर्षित है, वो दूसरी बात है लेकिन किसी विशेष व्यक्ति या वैभव के ऊपर आकर्षित है तो वफादार की लिस्ट में खण्डित गाया जायेगा। तो चेक करो कि खण्डित मूर्ति तो नहीं है? पूज्य है? कहाँ एक्स्ट्रा लगाव व झुकाव तो नहीं है? संकल्प मात्र भी झुकाव नहीं। वाचा­कर्मणा की तो बात ही छोड़ो। लेकिन संकल्प मात्र भी है तो खण्डित के लिस्ट में आ जायेंगे। तो चेक करना आता है ना? अच्छा।

अब कोई नवीनता दिखाओ। नया वर्ष तो शुरू हो गया। बापदादा को आदि का बेहद वैराग्य सदा याद आता है। उसी समय का फल आप लोग हो। अगर बेहद की वैराग्य वृत्ति नहीं होती तो स्थापना की वृद्धि इतनी नहीं हो सकती। ब्रह्मा बाप ने अन्त तक बड़ी आयु होते हुए भी, तन का हिसाब चुक्तू करते हुए भी बेहद के वैराग्य की स्थिति प्रत्यक्ष दिखाई। साधनों को स्व प्रति स्वीकार नहीं किया। सेवा के प्रति अलग चीज़ है। स्व प्रति स्वीकार करना और सेवा प्रति कार्य में लगाना-अन्तर तो जानते हो ना? स्व प्रति बेहद का वैराग्य हो, सेवा प्रति साधन को कार्य में लगाओ। लेकिन साधन अलबेलापन नहीं लाये। तो ये फॉलो फादर करना ही है ना कि जो और आने हैं उनको करना है? आप लोगों को करना है। अच्छा!

बच्चों को सदा क्या कहा जाता है? कुल दीपक। तो ब्राह्मण कुल का सदा जगमगाता हुआ दीपक हो ना? बाप की श्रेष्ठ आशाओं का दीपक जगाने वाले कुल दीपक। ऐसे हो ना?

अच्छा, आज टीचर्स ने आगे बैठने का चांस लिया है - तो सिर्फ बैठने के चांस में खुश नहीं हो जाना। इसमें भी नम्बरवन चांस लेना। अभी आपस में ऐसी दिनचर्या बनाओ तो सब परिवर्तन हो जायेगा। जो आया वो किया, जैसे आया वो किया, नहीं, दिनचर्या को टाइट करो। यह अच्छा है ना कि सहज योगी के बजाय मुश्किल योगी हो जायेंगे?

अच्छा, आज सभी जो को बापदादा यही विशेष वरदान वा सेवा देते हैं कि सदा बाप को फॉलो करने में नम्बरवन बनो और बापदादा देखेंगे कि कौन­सा सेन्टर कौन­से जोन में फॉलो फादर में नम्बरवन हैं। ऐसे नहीं सोचना कि मैं तो नम्बरवन रहा लेकिन दूसरे नहीं रहे, तो नम्बरवन की प्राइज नहीं मिलेगी। अभी जिस जोन में जो नम्बरवन सेवाकेन्द्र होगा उसको बहुत बढ़िया प्राइज देंगे। तो सेन्टर्स को रिजल्ट दिखानी है। सेन्टर में आने वाले स्टूडेन्ट भी आ जाते हैं। एक सेन्टर साथी और दूसरे आने वाले स्टूडेन्ट दोनों ही नम्बरवन हों। तो कितने टाइम में इनाम लेंगे? जितना कहेंगे उतना देंगे। अगर दो साल कहेंगे तो दो साल भी देंगे। बोलो, दो साल चाहिये? एक साल चाहिये? कितना चाहिये? (6 मास) अच्छा चलो 6 मास ही सही। क्योंकि दूसरी सीजन 6 मास के बाद ही होनी है। तो पहली बारी में बापदादा रिजल्ट वालों को विशेष बहुत अच्छा रहने का प्रबन्ध देंगे। कुंज भवन अच्छा है ना! एक कमरे में दो­दो सोना।

मधुबन वाले तो ओटे सो अर्जुन हैं ही। मधुबन का वायब्रेशन सब तरफ फैलता है। तो मधुबन वाले तो सदा ही जी हाजर हैं। हां जी करने वाले हैं ना या थोड़ा­थोड़ा बीच में ना जी भी अच्छा लगता है? बहुत अच्छी प्राइज देंगे। बिल्कुल बेहद की वैरागी आत्मा अनुभव हो, मिया मिटठू नहीं बनना। दूसरे सर्टीफिकेट दें कि हाँ ये नम्बरवन है। तीन सर्टीफिकेट हैं ना, एक मन पसन्द, दूसरा बाप पसन्द और तीसरा लोक पसन्द। तो तीनों सर्टीफिकेट जो लेंगे उनको एक्स्ट्रा रहने का भी प्रबन्ध देंगे, ब्रह्मा भोजन भी एक्स्ट्रा करायेंगे। सबसे पहले तो विजयी एनाउन्स होंगे, ये कितना बढ़िया होगा। विजयी रत्नों की माला बन जायेगी। सभी नम्बर ले सकते हैं। ऐसे नहीं सिर्फ टीचर्स। प्रवृत्ति वालों को भी टीचर्स सर्टीफिकेट देंगी तो नम्बर मिलेंगे या ये सोचते हो कि मेरी टीचर्स तो देंगी नहीं! अगर ऐसी कोई बात हो तो दादियों से वेरीफाय कराना।

सभी जोन ने क्या सोचा? सभी नम्बरवन बनेंगे! अच्छा, इन्दौर नम्बरवन बनेगा! भोपाल भी नम्बरवन, 100% ! और इन्दौर 100% से भी 10-20 नम्बर ज्यादा! और पंजाब 1000% ! पंजाब को तो चार लाख की माला लानी थी! पक्का है ना! भूल तो नहीं गये! देखेंगे चार लाख में से अगले सीजन तक एक लाख तो लाओ। पंजाब वाले क्या करेंगे? अभी पंजाब के निमित्त (दादी चन्द्रमणी) में ज्ञान सरोवर का बीज पड़ गया है, डबल जिम्मेदारी हो गई है। तो पंजाब की टीचर्स करेंगी ना? हाँ जी तो बोलो। करेंगी? अच्छा। दिल्ली कितना नम्बर लेगी? सभी नम्बरवन लेंगे! दिल्ली वालों को कहना चाहिये ए­वन। दिल्ली को तो निमित्त बनना चाहिये ना? अगली बार सभी जोन को ड्यूटी दी थी, याद है क्या करना है? छोटे माइक नहीं लाना, बड़े­बड़े माइक संगठन रूप में लाना है। इन्दौर को सेठों का झुण्ड लाना है। भोपाल को, संगठित रूप में लाना है। पंजाब ऐसा संगठन लाये जो विश्व में नाम हो जाये। किससे नाम होगा? जो बड़े ते बड़े आतंकवादी हैं वो अन्तर्मुखी हो जायें। तो गवर्नमेन्ट ब्रह्माकुमारीज को इनाम देंगी। नामीग्रामी आतंकवादी जो प्रसिद्ध हो, जिसके लिये इनाम मुकरर हो। कमाल तो ऐसी करो ना। मिनिस्टर तो आते ही रहते हैं। पंजाब वाले कर सकते हैं? कि आतंकवादियों से डरते हैं! देखेंगे, कौन­सा सेन्टर किसको लाता है? कोई नई बात करके दिखाओ, देखो एक डाकू आया तो भी कितनी सर्विस हो गई। लेकिन उन्हों को डाकू से ब्राह्मण बनाकर लाओ, ऐसे नहीं लाना। यहाँ आये और बाहर जाकर ऐसी कोई हिंसा का काम करे तो ब्रह्माकुमारियों का नाम भी खराब। इसलिये परिवर्तन करके लाओ। अच्छा।

इस्टर्न क्या करेंगे? नम्बरवन लेंगे? नेपाल बोलो। नम्बरवन लेंगे, पक्का? सारा इस्टर्न लेगा या नेपाल लेगा? बिहार वाले क्या करेंगे, नम्बर लेंगे? (बापदादा ने अलग­अलग स्टेट के भाई­बहिनों से हाथ उठवाया) तो सभी कौन­सा नम्बर लेंगे? फर्स्ट या सेकण्ड? अच्छा!

महाराष्ट्र क्या करेंगे? लाख परसेन्ट इनाम लेंगे या सौ परसेन्ट! जितना करो उतना अपना ही वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाते हो। अच्छा। गुजरात सबसे आगे जायेगा ना। कर्नाटक कमाल करके दिखायेगा। धमाल नहीं करना। जब संख्या ज्यादा हो जाती है ना तो थोड़ी­थोड़ी धमाल भी शुरू होती है। तो सदा कमाल करके दिखाना। आन्ध्रा विश्व का सेकण्ड में अंधकार दूर कर देगा। पहले अपना करेंगे तभी विश्व का होगा। अच्छा है आन्ध्रा वाले भी उमंग­उत्साह में हैं। तो सदा उमंग­उत्साह से आगे बढ़ते रहना। और तामिल क्या करेगा? तामिल तमोगुण को खत्म कर दो। सब सतोप्रधान हो जायें। केरला और तामिल है छोटा लेकिन कमाल करने वाले हैं। राजस्थान वाले क्या कमाल करेंगे? रिजल्ट में भी सबसे राजा बन जाना। समझा! राजा बनना अर्थात् नम्बर आगे लेना। राजस्थान है ही राज्य का स्थान। तो रिजल्ट में भी राजा का इनाम लेना।

यू.पी. वाले क्या कमाल करेंगे? सभी भक्ति मार्ग के तीर्थों को आबू तीर्थ में समा लेंगे। कमाल करेंगे ना, कोई भी तीर्थ करने जाये तो कहाँ जाये? आबू तीर्थ में आये, महान तीर्थ में आये। तो सब तीर्थ महान तीर्थ में समा जायें। आगरा है छोटा, लेकिन बापदादा हमेशा कहते हैं छोटा सो शुभान अल्ला तो आगरा वाले ऐसी कोई कमाल करके दिखाओ। है छोटा लेकिन कमाल बड़ी करके दिखाओ।

डबल विदेशी - डबल विदेशी क्या करेंगे? इण्डिया से भी डबल काम करेंगे। डबल कमाल दिखायेंगे - कौन­सी? जो सभी आकर्षित हो भारत में बाप से मिलने के लिये। ऐसी जिज्ञासा उन्हों में उत्पन्न करो जो सभी भारत में आकर्षित होकरके आये। पहले माइक लायेंगे ना। विदेश के माइक भी बुलन्द आवाज करने वाले हैं। इसलिये विदेश के माइक अनेकों को बुलन्द आवाज से जगाते रहे हैं, जगाते रहेंगे। विदेश में ही ब्रह्माकुमारीज को पीस प्राइज मिली ना! तो ये सेवा का सबूत दिखाया और विदेश ने बाप की विशेष आशा पूर्ण की, जो मुख्य स्थान पर (लण्डन में कल 27 तारीख को वहाँ के मुख्य स्थान पर म्युजियम का उद्घाटन है) अनेक आत्माओं को सन्देश मिलना है। आज के दिन सभी ब्राह्मण विशेष सेवा के निमित्त बन रहे हैं। भारत में ऐसे मेन स्थान पर अभी तक नहीं किया है। ये तो गली­गली में म्युजियम खोल दिया है लेकिन मेन स्थान पर म्युजियम हो, इसमें नम्बरवन फॉरेन गया। तो नम्बरवन वालों को मुबारक भी नम्बरवन। अच्छा!

चारों ओर के स्नेह का सबूत देने वाले, हर फरमान को संकल्प, बोल और कर्म में लाने वाले, सदा स्वयं को बाप समान सिम्पल और सेम्पल बनाने वाले, ब्रह्मा बाप के हर कदम पर कदम रखने वाले ऐसे शक्तिशाली बाप समान बनने के दृढ़ संकल्पधारी सर्व बच्चों को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादी जी से - बेफिक्र बादशाह है इसलिये कार्य सहज होता है। जो स्वयं समार्पित स्थिति में रहते हैं उनको सर्व का सहयोग स्वत: ही मिलता है। सहयोग भी उनके आगे समार्पित होता है। और दिल से जो समार्पित हैं तो सहयोग भी दिल से सामने आता है। जहाँ दिल का स्नेह है तो सहयोग मिलता है। स्नेह नहीं तो सहयोग नहीं। तो सबका सहयोग दिल से है ना? हरेक क्या समझता है? हमारा काम है या दादियों का काम है? हमारा मधुबन है या मधुबन वालों का मधुबन है? तो बाप भी कहते हैं पहले आप। अच्छा, सभी ठीक हैं? ऐसे नहीं समझना सिर्फ दादियाँ आगे जाती हैं। दादियों में आप सब समाये हुए हैं। दूर लगता है या समीप लगता है? समीप हैं ना। चाहे पीछे वाले भी हैं ना, लास्ट कुर्सा पर जो बैठे हैं, वो भी समीप हैं। सभी सदा कहाँ रहते हो? दिल में रहते हो ना? कि फॉरेन में रहते हो? पंजाब में रहते हैं, बाम्बे में रहते हैं, नैरोबी में रहते हैं, कहाँ रहते हैं? सभी दिल में हैं तो दिल कहाँ है, दूर है, नजदीक है? तो सभी दिल में हैं इसीलिये दूर नहीं है। अगर दूर होते हो तो बाप को फिर ढूंढकर लाना पड़ता है। अगर बच्चे घर के दरवाजे से बाहर चले जायें तो क्या करेंगे? उनको लेने जायेंगे ना? कि छोड़ देंगे? तो बाप भी देखते हैं कि ये दिल के दरवाजे से बाहर चले गये हैं। और कामों में बिजी हो जाते हो ना, तो थोड़ा दरवाजे से बाहर निकल जाते हो। फिर बाप को बुलाना पड़ता है या पकड़कर लाना पड़ता है।

अच्छा, सभी खुश है ना? कोई कम्पलेन्ट नहीं कि वहाँ जाकर कहेंगे कि थोड़ा­थोड़ा ये हुआ था। आप स्वयं भी सोचो कि बड़े संगठन में थोड़ा­बहुत तो होता ही है। फिर भी कुम्भ के मेले से तो हजार गुणा अच्छा है। बढ़िया ब्रह्मा भोजन तो मिलता है ना! भोजन में तो कोई मुश्किलात नहीं हुई? नाश्ता नहीं मिला तो किसको भूख तो नहीं लगी? अच्छा।



26-02-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


संगमयुग उत्सव का युग है उत्सव मनाना अर्थात् अविनाशी उमंग­उत्साह में रहना

ज त्रिदेव रचता त्रिमूर्ति शिव बाप अपने रूहानी डायमण्ड्स के साथ आ डायमण्ड जुबली वा डायमण्ड जयन्ती मनाने आये हैं। इसी विचित्र जयन्ती को डायमण्ड जयन्ती कहते हो। क्योंकि बाप अवतरित होते ही हैं कौड़ी समान आत्माओं को हीरे तुल्य बनाने। यही एक वण्डरफुल जयन्ती है जो सारे कल्प में, सारे विश्व में सबसे न्यारी और प्यारी है। कोई भी जयन्ती मनाते हैं तो आत्माओं की, देहधारियों की जयन्ती मनाते हैं। लेकिन यह शिव जयन्ती शरीरधारी आत्मा की नहीं है, निराकार बिन्दु रूप की जयन्ती है। शिव जयन्ती कहने से ज्योतिबिन्दु रूप ही सामने आता है। तो सारे कल्प में अशरीरी परम आत्मा की जयन्ती नहीं मनाई जाती। एक ही त्रिमूर्ति शिव बाप की विचित्र जयन्ती है, जो अशरीरी है। और यही एक शिव जयन्ती है जो बाप और बच्चों की साथ­साथ जयन्ती है। आज सिर्फ बाप की जयन्ती मनाने आये हो वा ब्राह्मण आत्माओं की भी जयन्ती मनाने आये हो? सभी को बताते हो ना कि शिव जयन्ती सो त्रिमूर्ति जयन्ती, ब्राह्मण जयन्ती, तो इतनी आत्माओं की परमात्मा बाप के साथ­साथ की जयन्ती-यह विचित्र है ना। लौकिक रीति से बाप का जन्म दिन और बच्चे का जन्म दिन एक नहीं होगा। दिन चाहे एक हो लेकिन वर्ष में अन्तर पड़ जायेगा। तो ऐसी विचित्र जयन्ती, न्यारी और प्यारी जयन्ती मनाने कहाँ­कहाँ से पहुँच गये हो! विश्व के कोने­कोने से किसलिए आये हो? अपनी जयन्ती मनाने या बाप की? या दोनों की? तो आप बाप को मुबारक देंगे या बाप आपको देंगे? आप बाप को कहते हो मुबारक हो और बाप आपको कहते हैं पदम­पदम गुणा मुबारक हो। एक­एक ब्राह्मण आत्मा हीरे से भी मूल्यवान हो। यह स्थूल हीरा तो आपके आगे कुछ भी नहीं है। इस दुनिया में हीरे का मूल्य है इसलिये हीरे­जैसा कहा जाता है। लेकिन आपके मूल्य के आगे हीरा क्या है! कुछ भी नहीं। यही हीरे तो आपके महलों में, दीवारों में होंगे। हीरे से भी ज्यादा एक­एक ब्राह्मण आत्मा हो। बापदादा चारों ओर के बच्चों को जो हीरे से भी अमूल्य हैं, सबको सामने देख रहे हैं। बापदादा के आगे सिर्फ मधुबन की सभा नहीं है लेकिन विश्व के चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की सभा है। सबके दिल की मुबारक के स्नेह भरे गीत कहो, बोल कहो बाप समीप से सुन रहे हैं। दिल का आवाज दिलाराम के पास पहले पहुँचता है। तो बापदादा देख रहे हैं कि बच्चों के सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण चारों ओर से मधुबन, बाप के स्वीट होम तक पहुँच रहा है। वैसे भी शिव जयन्ती को उत्सव कहते हैं। यथार्थ रीति से उत्सव आप ब्राह्मण ही मनाते हो। क्योंकि उत्सव का अर्थ ही है-सर्व उत्साह­उमंग में रहें। तो आप जो भी बैठे हो, सभी के दिल में उत्साह और उमंग कितना है? अविनाशी है या आज के लिये है? अविनाशी है ना? इसलिये बापदादा इस श्रेष्ठ संगमयुग को उत्सव का युग कहते हैं। हर दिन आपके लिये उत्साह सम्पन्न है। हर दिन उत्सव है।

जो गायन है, आप लोग टॉपिक रखते हो ‘अनेकता में एकता’ तो प्रैक्टिकल में अनेक देश, अनेक भाषायें, अनेक रूप­रंग लेकिन अनेकता में भी सबके दिल में एकता है ना! क्योंकि एक बाप है। चाहे अमेरिका से आये हो, चाहे अफ्रीका से आये हो लेकिन दिल में एक बाप है। एक श्रीमत पर चलने वाले हो। तो बापदादा को अच्छा लगता है कि अनेक भाषाओं में होते हुए भी मन का गीत, मन की भाषा एक है। चाहे किसी भी भाषा वाले हो, काला ताज तो मिला है (सभी हेडफोन से अपनी­अपनी भाषा में सुन रहे हैं), अभी यही काला ताज बदलकर गोल्डन हो जायेगा। लेकिन सबके मन की भाषा एक है और एक ही शब्द है, ‘मेरा बाबा’। सभी भाषा वाले बोलो ‘मेरा बाबा’। हाँ, यह एक ही है। तो अनेकता में एकता है ना!

तो उत्साह में रहने वाले अर्थात् सदा उत्सव मनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। कभी भी उत्साह कम नहीं होना चाहिये। पहले भी सुनाया था-ब्राह्मण जीवन का सांस है उमंग­उत्साह। अगर सांस चला जाये तो जीवन सेकेण्ड में खत्म हो जायेगी ना! तो ब्राह्मण जीवन में यदि उमंग­उत्साह का सांस नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। जो सदा उमंग­उत्साह में होगा, वो फलक से कहेगा कि ब्राह्मण हैं ही उत्साह­उमंग के लिये। और जिसका उमंग­उत्साह कम हो जाता है उसके बोल ही बदल जाते हैं। वो कहेगा-हैं तो सही...., होना तो चाहिये...., हो जायेगा.... तो ये भाषा और उस भाषा में कितना अन्तर है! उसके हर बोल में ‘तो’ जरूर होगा-होना तो चाहिये.... तो ये जो ‘तो­तो’ होता है ना, ये उमंग­ उत्साह का प्रेशर कम होने से ही ऐसे बोल, कमज़ोरी के बोल निकलते हैं। तो उमंग­उत्साह कभी कम नहीं होना चाहिये। उमंग­उत्साह कम क्यों होता है? बापदादा कहते हैं सदा वाह­वाह कहो और कहते हैं व्हाई­व्हाई (Why, Why)। अगर कोई भी परिस्थिति में व्हाई शब्द आ जाता है तो उमंग­उत्साह का प्रेशर कम हो जाता है। बापदादा ने अगले साल भी विशेष डबल फारेनर्स को कहा था कि व्हाई शब्द को ब्राह्मण डिक्शनरी में चेंज करो, जब व्हाई शब्द आये तो फ्लाय शब्द याद रखो तो व्हाई खत्म हो जायेगा। कोई भी परिस्थिति छोटी भी जब बड़ी लगती है तो व्हाई शब्द आता है-ये क्यों, ये क्या.... और फ्लाय कर लो तो परिस्थिति क्या होगी? छोटा­सा खिलौना। तो जब भी व्हाई शब्द मन में आवे तो कहो ब्राह्मण डिक्शनरी में व्हाई शब्द नहीं है, फ्लाय है। क्योंकि व्हाई­व्हाई, हाय­हाय करा देता है। बापदादा को हंसी भी आती है, एक तरफ कहेंगे-नहीं, हमारे जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसका नहीं है। अभी­अभी यह कहेंगे और अभी­अभी उत्साह कम हुआ तो कहेंगे-पता नहीं मेरा भाग्य ही ऐसा है! मेरे भाग्य में इतना ही है! तो हाय­हाय हो गया ना! तो जब भी हाय­हाय का नजारा आवे तो वाह­वाह कर लो तो नजारा भी बदल जायेगा और आप भी बदल जायेंगे।

डबल विदेशी आजकल ‘पॉजिटिव थिंकिंग’ का कोर्स कराते हो ना। सभी विदेश में विशेष कोर्स यह कराते हो? तो अपने को भी कराते हो या दूसरों को कराते हो? जिस समय कोई ऐसी परिस्थिति आ जाये तो अपने को ही स्टूडेण्ड बनाकर, खुद ही टीचर बन करके अपने को यह कोर्स कराओ। अपने को करा सकते हो या सिर्फ दूसरे को करा सकते हो? दूसरे को कराना सहज है। जब यह नेचुरल स्थिति हो जाये कि हर व्यक्ति को, बात को पॉजिटिव वृत्ति से देखो, सुनो या सोचो तो कैसी स्थिति रहेगी? आजकल के साइन्स द्वारा भी ऐसे साधन निकले हैं जो रफ माल को भी बहुत सुन्दर रूप में बदल देते हैं। देखा है ना-क्या से क्या बना देते हैं! तो आपकी वृत्ति क्या ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकती? आवे निगेटिव रूप में लेकिन आप निगेटिव को पॉजिटिव वृत्ति से बदल दो। अगर हलचल में आते हैं तो उसका कारण है-निगेटिव सुनना, सोचना वा बोलना या करना। ये मॉडल बनाते हो ना-न सोचो, न देखो, न बोलो, न करो। साइलेन्स की पॉवर क्या निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकती! आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकण्ड में परिवर्तन हो जाये। ऐसे तीव्र गति की अनुभूति कर सकते हो? मन और बुद्धि ऐसा तीव्र गति का यन्त्र बन जाये। बन सकता है कि टाइम लगेगा? कि निगेटिव बात आयेगी तो कहेंगे कि थोड़ा सोचने तो दो, देखें तो सही क्या है! क्विक स्पीड से परिवर्तन हो जाये-इसको कहा जाता है ब्राह्मण जीवन का मजा, मौज। अगर जीना है तो मौज से जीयें। सोच­सोचकर जीना वो जीना नहीं है। आप लोग औरों को कहते हो कि राजयोग जीने की कला है। तो आप लोग राजयोगी जीवन वाले हो ना! कि कहने वाले हो? जब राजयोग जीने की कला है तो राजयोगियों की कला क्या है? यही है ना? तो उत्सव मनाना अर्थात् मौज में रहना। मन भी मौज में, तन भी मौज में, सम्बन्ध­सम्पर्क भी मौज में।

कई बच्चे कहते हैं अपने रीति से तो ठीक रहते हैं, अपने मौज में रहते हैं लेकिन सम्बन्ध­सम्पर्क में मौज में रहें, यह कभी­कभी होता है। लेकिन सम्बन्ध­सम्पर्क ही आपके स्थिति का पेपर है। यदि स्टूडेण्ट कहे वैसे तो मैं पास विद् ऑनर हूँ लेकिन पेपर के टाइम मार्क्स कम हो जाती है तो ऐसे को क्या कहेंगे? तो ऐसे तो नहीं हो ना! फुल पास होने वाले हो ना? बापदादा ने सुनाया है कि जो सदा बाप के पास रहते हैं वो पास हैं। पास नहीं रहते तो पास नहीं हैं। तो सदा कहाँ रहते हो? दूर रहते हो, पास नहीं रहते हो! डबल विदेशियों को तो डबल पास होना चाहिये ना! अच्छा।

तो डबल विदेशियों ने इस बारी हाइ जम्प लगा दी है। मधुबन में हाई जम्प लगाकर पहुँच गये हैं। (इस बार हर वर्ष से ज्यादा संख्या में डबल विदेशी मधुबन पहुँचे हुए हैं) अच्छा, डबल विदेशियों को भी कइयों को पटरानी बनने का चांस तो अच्छा मिला है। पटरानी बनने में मजा है कि नहीं? आप लोगों की तो अटैची इतनी है जो उस पर ही सो सकते हैं। क्योंकि एक बड़ी लाते हैं, एक छोटी लाते हैं, तो छोटी को तकिया बनाओ। जगह बच जायेगी ना! अच्छा लगता है बापदादा सीन देखते हैं कैसे भारी­भारी अटैचियाँ घसीट कर ला रहे हैं! अच्छी सीन लगती है ना! संगम पर ये मेहनत भी थोड़े समय की है फिर तो प्रकृति भी आपकी दासी होगी तो दासियाँ भी बहुत होंगी। फिर आपको सामान उठाने की जरूरत नहीं। अभी अपना राज्य स्थापन हो रहा है, इस समय गुप्त वेश में हो, सेवाधारी हो फिर राज्य अधिकारी बनेंगे। तो सेवाधारियों को तो सब प्रकार की सेवा करनी पड़ती है। जितनी अभी तन, मन, धन और सम्पर्क से सेवा करते हो उतना ही वहाँ सेवाधारी मिलेंगे। सबसे पहले तो ये प्रकृति के पांच ही तत्व आपके सेवाधारी बनेंगे। अपना राज्य­भाग्य स्मृति में है ना! कितने बारी राज्य अधिकारी बने हैं! अनगिनत बार बने हैं और बनते ही रहेंगे। लेकिन राज्य अधिकारी से भी अब का सेवाधारी जीवन श्रेष्ठ है। क्योंकि अभी बाप और बच्चों का साथ है। चाहे किसी भी प्रकार की सेवा है लेकिन सेवा का प्रत्यक्षफल अभी मिलता है। बाप का स्नेह, सहयोग और बाप द्वारा मिले हुए खज़ाने प्रत्यक्षफल के रूप में मिलते हैं। जब भी कोई विशेष सेवा करते हो और युक्तियुक्त सेवा करते हो तो कितनी खुशी होती है! उस समय के चेहरे का फोटो निकालो तो कैसा होता है! तो एक तरफ सेवा करते हो, दूसरे तरफ प्रत्यक्षफल आपके लिये सदा तैयार है ही है। एक हाथ से सेवा करो, दूसरे हाथ से फल खाओ-ऐसे अनुभव होता है? कि सेवा में बड़ी मेहनत है? सेवा में हलचल होती है या नहीं? कभी­कभी होती है। ये हलचल ही परिपक्व बनाती है, अनुभवी बनाती है। हलचल में इसीलिये आते हो जो सिर्फ वर्तमान को देखते हो। लेकिन वर्तमान में छिपा हुआ भविष्य जो है वो स्पष्ट नहीं दिखाई देता है, इसलिये हलचल में आ जाते हैं। कोई भी बड़े ते बड़ी नाजुक परिस्थिति वास्तव में आगे के लिये बहुत बड़ा पाठ पढ़ाती है, परिस्थिति नहीं है लेकिन वह आपकी टीचर है। उस नजर से देखो कि इस परिस्थिति ने क्या पाठ पढ़ाया? इसको कहा जाता है निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना। सिर्फ परिस्थिति को देखते हो तो घबरा जाते हो। और परिस्थिति माया द्वारा सदा नये­नये रूप से आयेगी। वैसे ही नहीं आयेगी, जिस रूप में आ चुकी है, उस रूप में नहीं आयेगी। नये रूप में आयेगी। तो उसमें घबरा जाते हैं-ये तो नई बात है, ये तो होता नहीं है, ये तो होना नहीं चाहिये....। लेकिन समझ लो कि माया अन्त तक बहुरूपी बन बहुरूप दिखायेगी। माया को बहुरूपी बनना बहुत जल्दी और अच्छा आता है। जैसे आपकी स्थिति होगी ना वैसी परिस्थिति बनाकर आयेगी। आज मानो आप थोड़ा­सा अलबेले जीवन में हो तो माया भी उसी अलबेले परिस्थिति के रूप में आयेगी। आज मूड थोड़ी ऑफ है, जैसे होनी चाहिये वैसे नहीं है, तो मूड ऑफ की परिस्थिति के रूप में ही आयेगी। फिर सोचते हैं कि पहले ही मैं सोच रही थी फिर ये क्या हुआ? इसलिये माया को देखने के लिये, जानने के लिये त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो। आगे, पीछे, सामने त्रिनेत्री बनो। आप सभी त्रिनेत्री और त्रिकालदर्शी हो ना? डबल फॉरेनर्स त्रिकालदर्शी हैं-यस या नो? सब बोलो-हाँ जी या ना जी। (हाँ जी) अपनी भाषा से तो ये अच्छा बोलते हो। सब खुश हो? (हाँ जी) इतने बड़े संगठन में मजा आ रहा है? (हाँ जी) कोई­कोई यह तो नहीं सोच रहे हैं कि अगले वर्ष रश में नहीं आयेंगे, थोड़ा पीछे आयेंगे? संगठन का मजा भी प्यारा है। वैसे आना तो प्रोग्राम प्रमाण ही, ज्यादा नहीं आना लेकिन आदत ऐसी होनी चाहिये जो सबमें एडजस्ट कर सके। एडजस्ट करने की पॉवर सदा विजयी बना देती है। ब्रह्मा बाप को देखा तो बच्चों से बच्चा बनकर एडजस्ट हो जाता, बड़ों से बड़ा बनकर एडजस्ट हो जाता। चाहे बेगरी लाइफ, चाहे साधनों की लाइफ, दोनों में एडजस्ट होना और खुशी­खुशी से होना, सोचकर नहीं। यहाँ दु:खी तो नहीं होते हो लेकिन खुशी के बजाय थोड़ा सोच में पड़ जाते हो-ये क्या हुआ, कैसे हुआ....। तो सोचने वाले को एडजस्ट होने के मजे में कुछ समय लग जाता है। अपने को चेक करो कि कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे अच्छी हो, चाहे हिलाने वाली हो लेकिन हर समय, हर सरकमस्टांस के अन्दर अपने को एडजस्ट कर सकते हैं? डबल फॉरेनर्स को अकेलापन भी अच्छा लगता है और कम्पैनियन भी बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन कम्पनी में हो या अकेले हो, दोनों में एडजस्ट होना-ये है ब्राह्मण जीवन। ऐसे नहीं, संगठन हो और माथा भारी हो जाये-नहीं, मुझे एकान्त चाहिये, ये घमसान में नहीं, मुझे अकेला चाहिये....। मन अकेला अर्थात् बाहरमुखता से अन्तर्मुख में चले जाओ तो अकेलापन है। कोई­कोई कहते हैं ना-अकेला कमरा चाहिये, दो भी नहीं चाहिये। अकेला मिले तो भी मौज से सोओ और दस के बीच में भी सोना हो तो मौज से सोओ। फॉरेनर्स दस के बीच में सो सकते हैं कि मुश्किल है? सो सकते हैं? (हाँ जी) अच्छा, अभी अगले वर्ष 20-20 को सुलायेंगे। देखो समय बदलता रहता है और बदलता रहेगा। दुनिया की हालतें नाजुक हो रही हैं और भी होंगी। होनी ही है। अभी सिर्फ एक स्थान पर अलग­अलग होती हैं, आखिर में सब तरफ इकट्ठी होगी। तो नाजुक समय तो आना ही है। समय नाजुक हो लेकिन आपकी नेचर नाजुक नहीं हो। कइयों की नेचर बहुत नाजुक होती है ना, थोड़ा­सा आवाज हुआ, थोड़ा­सा कुछ हुआ तो डिस्टर्ब हो गये। इसको कहते हैं नाजुक स्थिति, नाजुक नेचर। तो नाजुक नेचर नहीं हो। जैसा समय वैसा अपने को एडजस्ट कर सको। ये अभ्यास आगे चलकर आपको बहुत काम में आयेगा। क्योंकि हालतें सदा एक जैसी नहीं रहनी है। और फाइनल पेपर आपका नाजुक समय पर होना है। आराम के समय पर नहीं होना है। नाजुक समय पर होना है। तो जितना अभी से अपने को एडजस्ट करने की शक्ति होगी तो नाजुक समय पर पास विद् ऑनर हो सकेंगे। पेपर बहुत टाइम का नहीं है, पेपर तो बहुत थोड़े समय का है लेकिन चारों ओर की नाजुक परिस्थितियाँ, उनके बीच में पेपर देना है। इसलिये अपने को नेचर में भी शक्तिशाली बनाओ। क्या करें, मेरी नेचर ये है, मेरी आदत ही ऐसी है, ये नहीं। इसको नाजुक नेचर कहा जाता है। देखो, बापदादा ने स्थापना के आदि में सब अनुभव करा लिया। जब आदि हुई तो राजकुमार और राजकुमारियों से भी ज्यादा पालना, साधन, सब अनुभव कराया और आगे चलकर बेगरी लाइफ का भी पूरा अनुभव कराया। तो जिन्होंने दोनों अनुभव किया उनकी आदत बन गई। तो आप लोगों के आगे तो ऐसा समय आया नहीं है लेकिन आना है। जहाँ भी रहते हो, सभी हिलने हैं, सब आधार टूटने हैं। तो ऐसे टाइम पर क्या चाहिये? एक ही बाप का आधार। आप लोग तो बहुत­बहुत­बहुत लक्की हो, जो आने का समय आपका सहज साधनों का है। सहज साधनों के साथ­साथ आपका ब्राह्मण जन्म है। लेकिन साधन और साधना-साधनों को देखते साधना को नहीं भूल जाना। क्योंकि आखिर में साधना ही काम में आनी है। समझा?

बापदादा खुश होते हैं कि डबल फॉरेनर्स सन्देश देने में बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। सेन्टर्स भी अच्छे उमंग­उत्साह से खोल रहे हैं। तो बापदादा आज आप सबको उत्सव मनाने की मुबारक भी दे रहे हैं और साथ­साथ सेवा की भी मुबारक दे रहे हैं। सिर्फ और अण्डरलाइन करा रहे हैं कि सेवा और स्वय्स्थिति दोनों में तीव्र गति हो। स्वय्स्थिति और सेवा दोनों का बैलेन्स सदा स्मृति में रहे। कभी­कभी बापदादा सुनते हैं, देखते भी हैं, जब कोई सेवा का बहुत बड़ा भागदौड़ का कार्य करते हैं ना, तो कार्य के उमंग में कार्य तो कर लेते हैं लेकिन कभी­कभी कोई कहते हैं-सेवा में गये ना तो अपनी स्थिति थोड़ी ढीली हो गई। वो नहीं होना चाहिये। बस, अभी योग में बैठे, सेवा नहीं करेंगे, योग में ही बैठेंगे! योग और सेवा इकट्ठा­इकट्ठा होना चाहिये।

बापदादा आप सबके पत्र समाचार पढ़ते हैं! कई बच्चे कहते हैं 6-6 पेज लिखा, उत्तर तो आया ही नहीं। इतने कार्ड भेजे, उत्तर तो आया नहीं। लेकिन बापदादा सभी को रेसपाण्ड जरूर करते हैं। आपको लिखने का संकल्प चलता है और बाप के पास वहाँ पहुँच जाता है। लेकिन अच्छा करते हो, सिर्फ लम्बा नहीं लिखो, शॉर्ट में लिखो। क्योंकि लिखने से जो मन में चलता रहता है वो खत्म हो जाता है, हल्का हो जाता है। इसलिये लिखो जरूर लेकिन शॉर्ट में लिखो। आप सबके कार्ड वगैरह की सब एक्जीबिशन वतन में भी लगती है। (सभी के कार्ड स्टेज पर बहुत सुन्दर ढंग से सजाकर रखे गये हैं) यहाँ भी एक्जीबिशन लगाई है ना। तो पहुँचा या नहीं पहुँचा, ऐसे नहीं सोचो। पहुँचता ही है। और बापदादा एक­एक के समाचार को, चाहे सेवा का, चाहे स्थिति का, देखते हैं और देखकर शक्तियों का वायब्रेशन देते हैं। अच्छा!

(बापदादा ने सभी देशों के भाई­बहिनों से अलग­अलग ग्रुप में हाथ उठवाये)

साउथ और नार्थ अमेरिका हाथ उठाओ। अमेरिका क्या जलवा दिखायेगी? कोई नई बात करेंगे ना! क्या करेंगे? आज शिवरात्रि का झण्डा लहरायेंगे ना तो प्रत्यक्षता का झण्डा पहले देखें अमेरिका में लहराते हैं या अफ्रीका में, या भारत में? पहले कहाँ लहरायेगा? अमेरिका में? यू.एन. की बिल्डिंग पर शिव बाबा का झण्डा लहराना। जैसे भारत वाले समझते हैं ना लाल किले पर झण्डा लहरायेंगे तो सबकी नजर होगी ना, तो यू.एन. की बिल्डिंग पर झण्डा लहरायेंगे तो सब क्या बोलेंगे? वन्स मोर, वन्स मोर। वह भी दिन आना ही है। और यूरोप कहाँ झण्डा लहरायेगा? लण्डन के महल में। जैसे वहाँ की परेड देखने आते हैं ना तो ऐसे इस झण्डे को देखने आवे। होना है ना! और ही आपको आर्जियाँ करके ले जायेंगे-आओ। थोड़ा­सा हलचल होने दो, उन्हों की हलचल होगी, अपना झण्डा लहरायेंगे और अफ्रीका कहाँ झण्डा लहरायेगा? अफ्रीका में जो नामीग्रामी स्थान हो वहाँ झण्डा लहराना। अभी उस मिलेट्री की परेड निकालते हैं और फिर ब्रह्माकुमारियों की यात्रा निकले। ऑस्ट्रेलिया वाले क्या करेंगे? अच्छा! इस बारी ऑस्ट्रेलिया कम आया है। नहीं तो सबसे नम्बर तो ऑस्ट्रेलिया लेते हैं। इस बारी किसको ज्यादा चांस दिया है? यू.के. को। यू.के. वाले बहुत आये हैं। यू.के. तो लक्की हुआ। शिवरात्रि का चांस यू.के. को मिला है। यू.के. वालों ने मेहनत भी अच्छी की है। मलेशिया की सेवा भी अच्छी वृद्धि को प्राप्त कर रही है। अच्छे हैं। यू.के. तो है ही फाउण्डेशन और अमेरिका है सर्विस के वृद्धि की आवाज फैलाने का बड़ा माइक। अमेरिका की यह विशेषता है। और अफ्रीका की विशेषता क्या है? अफ्रीका वालों की कमाल है जो दुनिया भय में है और ये निर्भय हैं। रीयल में श्याम से सुन्दर बनाने वाला तो अफ्रीका है ना! निर्भयता की कमाल इन्हों की है। देखो, दो­दो बहनें रहती हैं लेकिन निर्भय होकर रहती हैं। हिम्मत रखते हैं ना तो बाप की मदद है। अफ्रीका की भी सेवा अच्छी वृद्धि को पा रही है। वैसे विदेश में भी इस समय सब तरफ सेवा का उमंग­उत्साह और वृद्धि अच्छी है। अभी तरीका, विधि आ गई है। धरनी भी बदली है और विधि भी आ गई है। देखो सबसे पीछे रशिया खुला है, वहाँ की भी सेवा देखो कितनी है! रशिया वाले भी आये हैं ना! ये तो एक ही तरफ बैठते हैं। इन्हों की युनिटी बहुत अच्छी है, जहाँ एक जायेगा ना वहाँ सब जायेंगे। अच्छा है, लास्ट सो फर्स्ट हो रहे हैं। अच्छी रिजल्ट है। देखो, अभी तो स्थान भी मिल रहे हैं। अभी गवर्मेन्ट को और अपना बनाते जाओ। अच्छा उमंग­उत्साह है। और ऑस्ट्रेलिया में बापदादा की बहुत­बहुत­बहुत श्रेष्ठ आशाओं के दीपक जग रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया ऐसी कमाल करेंगे जो कोई ने नहीं की। क्यों कमाल करेंगे? कारण बताओ? क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में सब प्रकार की बुद्धि वाले हैं। इन्वेन्टर भी हैं, कार्य को, प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने वाली बुद्धि भी है, इसलिये आदि में भी ऑस्ट्रेलिया ने बहुत अपनी कमाल दिखाई। अभी बीच में थोड़ा प्लैन बना रहे थे। और आगे चलकर प्रैक्टिकल में आना ही है। तो ऑस्ट्रेलिया की तरफ बापदादा की विशेष श्रेष्ठ सेवा के आशाओं की नजर है। समझा? इस बारी कम आये हैं लेकिन सभी सुनेंगे। अच्छा, जो डायलाग में आये थे वो हाथ उठाओ। (आबू डायलाग में आये हुए कुछ मेहमान भी बापदादा की मुरली सुन रहे हैं) ये थोड़ी­सी आत्मायें महान भाग्यवान हैं। तो डॉयलाग में आये और बहुत अच्छे श्रेष्ठ माइक बनकर जा रहे हैं। मैसेन्जर बनकर जा रहे हैं। सभी के मन में, सारे ग्रुप के मन में ये उमंग है कि ज्यादा से ज्यादा मैसेज देकर अनेक आत्माओं को परिचय दें और स्वीट होम में पहुँचाये। ऐसा उमंग है? जिन्होंने हाथ उठाया उन्हों को उमंग है? अच्छा, सभी ने देखा है कौन­सी भाग्यवान आत्मायें हैं? रीयल में तो इन्हों का बर्थ डे हो गया। तो मैसेन्जर बनने के बर्थ डे की मुबारक।

अच्छा, यूरोप क्या करेगा? यूरोप अपनी अंचली यू.के. में डालता है, ऐसे! लेकिन अच्छा है, कोई भी ऐसा विशेष देश रहना नहीं चाहिये जो उलहना दे कि हमारे देश में तो आपका मैसेज पहुँचा ही नहीं। तो जो भी विशेष देश है, पहुँचना तो कोने­कोने में है, लेकिन कोने­कोने में मैसेज जरूर देना। उलहना नहीं सुनना पड़े। अच्छा! मॉरीशियस देश के हिसाब से जितना ही छोटा है उतना ही सेवा में बड़ा है। मॉरीशियस की ये विशेषता है कि आई.पी. भी होमली हैं। चाहे प्राइम मिनिस्टर है या मिनिस्टर हैं लेकिन होमली रूप से मिलते भी हैं और सहयोगी भी बनते हैं। श्रीलंका वाले हाथ उठाओ। ये भाषा के कारण इकट्ठे बैठे हैं। श्रीलंका तो नाम ही श्री है। श्री का अर्थ ही महान है। तो श्रीलंका में जहाँ अशान्ति है वहाँ शान्ति स्थापन करना और शान्ति का सन्देश देना ये कितना श्रेष्ठ कार्य है तो श्रीलंका सन्देश देने का श्री­कार्य कर रहे हैं। मिडिल ईस्ट भी आया है। दुबई के भी आये हैं। हैं थोड़े लेकिन महावीर हैं। अच्छा है श्रीलंका तो कल्प पहले भी लंकाजीत ब्राह्मण कहलाते हैं। तो श्रीलंका पर तो विजय होनी ही है। मिडिल ईस्ट भी धीरे­धीरे आगे बढ़ रहा है। क्योंकि गुप्त में भी गुप्त वेश धारण करके सेवा करनी पड़ती है ना तो डबल सेवा करने की मुबारक। फिर भी बापदादा मुबारक देते हैं जो वायुमण्डल कैसा भी हो अचल­अडोल­अविनाशी रत्न हैं। एक­एक रत्न अमूल्य हैं। और जगह सेवा करना सहज है लेकिन यहाँ सेवा डबल गुप्त रूप में करना पड़ता है। फिर भी हिम्मत वाले हैं। हिम्मत छोड़ने वाले नहीं। अचल­अडोल आत्मायें हैं। इसलिये बापदादा हिम्मतवान बच्चों को पदमगुणा मदद की मुबारक देते हैं। अच्छा। करेबियन में फाउण्डेशन तो अच्छा पड़ा। अभी कितने सेन्टर हो गये करेबियन में। (10-12) फिर भी हिम्मत अच्छी रखी है। भक्ति के विस्तार में ज्ञानी तू आत्मा बनाना इसमें हिम्मत अच्छी रखी है और ब्राह्मण भी अच्छे वृद्धि को पा रहे हैं। शुरू से जो आदि से आये हैं वो बहुत अच्छे चल रहे हैं। ज्यादा हलचल में नहीं आये हैं। यह भी अच्छा रिकॉर्ड है। करेबियन भी कम नहीं है, कमाल करने वाला है। अच्छा! जहाँ के भी हो, सभी बाप के समीप और सिकीलधे हो। बापदादा अमृतवेले चारों ओर के अमूल्य रत्नों को देख­देख हर्षित होते हैं। जिसको देखते हैं सब एक­दो से आगे हैं। क्यों? हर एक की अपनी­अपनी विशेषता है।

चारों ओर के अमूल्य विशेष रत्नों को, सदा हर दिन उत्साह से उत्सव मनाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्वय्स्थिति और सेवा के उन्नति में बैलेन्स रखने वाली ब्लैसिंग के अधिकारी आत्माओं को, सदा परिस्थिति को सहज पार करने वाली ऐसे अचल, अडोल, महावीर आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

टीचर्स से - टीचर्स को विशेष बापदादा मुबारक दे रहे हैं। क्योंकि हर वर्ष सेवा की रिजल्ट में टीचर्स ने मेहनत अच्छी की है। इसलिये प्रत्यक्षफल बाप की दुआएं हैं। समझा! टीचर्स से पूछने की आवश्यकता नहीं है कि खुश हैं? खुश हैं और खुश बनाने के निमित्त हैं। तो जो औरों को खुश बनाते हैं वो स्वयं तो जरूर होंगे। टीचर का अर्थ ही अचल­अमर। तो अमर भी हैं और अचल भी हैं। ऐसे है! कि कभी­कभी खुशी थोड़ी कम होती है? नहीं, हो ही नहीं सकती। इतना निश्चय है।

दादी जानकी से - प्रकृतिजीत है ना! प्रकृति का काम है हिलाना और आपका काम है प्रकृति को हिलाना। अच्छा है, प्यार से रेस्ट नहीं करते तो मजबूरी से कराते हैं। क्या है, इनकी सेवा से बहुत मोहब्बत है। उमंग है, कोई रह नहीं जाये, कोई रह नहीं जाये। ऐसे है ना! (बाबा ने अपने पास बिठाया) साथ रहती है ना तो साथ ही बिठायेंगे। अच्छा है, नई­नई इन्वेन्शन निकलेगी। कोई बात नहीं। रेस्ट भी मिलती है तो कोई नया प्लैन बनाने के लिये। इसलिये आपको कोई नया माल मिलेगा। दादियों को देख करके सभी को बहुत खुशी होती है ना। सभी का स्नेह भी सेवा का प्रत्यक्षफल है। तो सारे दिन में कितने फल मिलते हैं! जो भी देखते हैं वो किस नजर से देखते हैं? सबके दिल से वाह दादी वाह, वाह दादी वाह निकलता है। ये भी सेवा का फल है। जितना जो स्नेह से, निस्वार्थ सेवा करते हैं उनको प्रत्यक्षफल सदा ही मिलता है और सर्व से मिलता है। सबके दिल से निकलता है-हमारी दादी, या कहेंगे कि ये लन्दन की दादी है, ये मधुबन की दादी है? सबकी दादियाँ है। जो विश्व अधिकारी बनते हैं उसको अभी से सर्व, उसमें भी विशेष ब्राह्मण अपना मानेंगे। अच्छा, ठीक है? सब बहुत अच्छा! खराब तो होना ही नहीं है। अभी सिर्फ बीच­बीच में थोड़ी रेस्ट ले लो, बाकी अच्छा है। उमंग­उत्साह रखने से औरों का भी उमंग­उत्साह बढ़ता रहता है। सिर्फ उड़ने वाले नहीं हो लेकिन उड़ाने वाले हो। सप्ताह में आधा दिन या एक दिन रेस्ट का रखो फिर आपका शरीर बहुत मदद देगा। कुछ समय अभी रेस्ट चाहिये। इतोने राइट हैण्ड तैयार हुए हैं, सभी देशों में राइट हैण्ड हैं। तो राइट हैण्ड को करने दो। सिर्फ बैक बोन रहो। पुराने­पुराने आदि रत्न भी बहुत आये हैं। 20 साल वाले हाथ उठाओ। जो पहली बार आये हैं वो हाथ उठाओ। फर्स्ट टाइम वालों को विशेष मुबारक है। अच्छे­अच्छे आये हैं। अभी अमर भव के वरदान को सदा साथ रखना। ओम् शान्ति।

(बच्चों ने बापदादा के साथ शिव जयन्ती मनाई, गीत गाये, मोमबत्तियां जलाई, केक काटी। बापदादा ने स्टेज पर खड़े होकर अपने हस्तों से झण्डा लहराया और सबको बधाइयाँ दी)

इस झण्डे को लहराने के पहले सबके दिलों में जो स्नेह का झण्डा लहरा रहे हैं वह देख­देख हर्षित हो रहे हैं। पहले सबके दिलों में स्नेह का, सेवा का झण्डा है फिर यह निशानी है आप सबकी। सबके खुशनुम: चेहरे सारे विश्व में खुशियाँ लहरा रहे हैं। खुशियों के वायब्रेशन चारों ओर विश्व में जा रहे हैं। ऐसे ही सदा खुशियों के वायब्रेशन देते रहना और बाप का प्रैक्टिकल प्रत्यक्षता का झण्डा लहराते रहना। अच्छा।



07-03-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ब्राह्मण अर्थात् धर्म सत्ता और स्वराज्य सत्ता की अधिकारी आत्मा

ज बापदादा चारों ओर के बच्चों में दो विशेष सत्ता को देख रहे हैं। वो आ दो सत्तायें हैं एक धर्म सत्ता और दूसरी स्वराज्य सत्ता। ब्राह्मण जीवन की विशेषता-ये दोनों सत्तायें हर एक को प्राप्त होती हैं। धर्म सत्ता अर्थात् सत्यता, पवित्रता के धारणा स्वरूप और स्वराज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी बन सर्व कर्मेन्द्रियों को अपने अधिकार से ऑर्डर में चलाना। स्वराज्य अधिकारी वा स्वराज्य के सत्ताधारी किसी भी परिस्थिति, प्रकृति और माया के सर्व स्वरूपों में अधीन नहीं बनेंगे, अधिकारी रहेंगे। हर ब्राह्मण आत्मा को बापदादा ने ये दोनों ही सत्तायें प्राप्त कराई है ना? सभी में ये दोनों सत्तायें हैं कि अभी पूरी नहीं आई हैं? अभी की दोनों सत्तायें प्राप्त करने वाले ही भविष्य में धर्म और राज्य सत्ता के अधिकारी बनते हैं। दोनों ही सत्तायें धारण की हैं? अपना चित्र देखा है? डबल विदेशियों का चित्र है या औरों का चित्र है? तो उस चित्र में दोनों सत्ताओं की निशानी देखी है? धर्म सत्ता की निशानी है-लाइट का ताज और राज्य सत्ता की निशानी है रत्न जड़ित ताज। तो ऐसा अपना चित्र देखा है? तो दोनों सत्ता धारण इस समय करते हो। जो आधाकल्प दोनों ही सत्तायें आप सबके, एक के हाथ में हैं। द्वापर से देखो तो धर्म सत्ता अलग हो गई और राज्य सत्ता अलग हो गई। इसीलिये धर्म पिताओं को आना पड़ा। तो धर्म पिता और राजा दोनों अलग­अलग रहे। लेकिन आपके राज्य में अलग होंगे क्या? हर एक के पास दोनों सत्तायें इकट्ठी होती हैं इसलिये अखण्ड निर्विघ्न राज्य चलता है। तो हर एक में ये दोनों ही सत्तायें देख रहे थे कि हर एक ने कितनी अपने में धारण की है? कहाँ तक अधिकारी बने हैं? क्या सदा अधिकारी रहते हैं या कभी अधीन, कभी अधिकारी? अभी­अभी अधिकारी हैं और अभी­अभी अधीन हो जाये तो अच्छा लगेगा? कि सदा अधिकारी अच्छा है? सदा अधिकार चाहिये या थोड़े टाइम के लिये चलेगा? जब स्वयं बाप अधिकार दे रहा है, देने वाला दे रहा है और लेने वाले जो हैं उनको क्या करना चाहिये? लेना सहज है या देना सहज है? लेने में तो कोई मुश्किल नहीं है ना? देने मे सोचा जाता है-दें, नहीं दें, थोड़ा दें, ज्यादा दें.... लेकिन लेने में तो सब कहेंगे-जितना मिले उतना ले लें। तो लेने में नम्बरवन हो या नम्बर टू हो? इसमें तो नम्बर दो कोई नहीं बनता और जब देना पड़ता है तो.... देने में भी नम्बरवन हो कि सोचना पड़ता है, हिम्मत रखनी पड़ती है! वास्तव में देखो कि देते क्या हो? ब्राह्मण जीवन में देना है या लेना है? अगर देने वाली चीज़ से लेने वाली चीज़ श्रेष्ठ है तो लेना हुआ या देना हुआ? देना पड़ेगा, देना है-ये सोचते हो तो भारी होते हो। लेना है, तो सदा खुश रहेंगे, हिम्मत में रहेंगे। देने में सोचते हो देना मुश्किल है लेकिन पहले लेते हो फिर देते तो कुछ भी नहीं हो। आपके पास कुछ है जो बाप को देंगे? दी तो अच्छी चीज़ जाती है या खराब चीज़? तो क्या अच्छा है आपके पास-तन अच्छा है? मन अच्छा है? धन अच्छा है? बेकार है। दवाइयों के धक्के से शरीर चला रहे हो। तो धक्के वाली गाड़ी अच्छी होती है क्या! तो ब्राह्मण जीवन में लेना ही लेना है। और बाप तो मुस्कराते हैं कि बच्चे बाप से भी चतुर हैं। पहले लेते हैं फिर देने का सोचते हैं। होशियार हो ना! अच्छा है, बच्चे होशियार होते हैं तो बाप को अच्छा लगता है लेकिन चलते­चलते यदि डल हो जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। कभी­कभी बच्चों की शक्ल (फेस) ऐसे लगती है कि पता नहीं क्या हो गया! जैसे शरीर में चलते­चलते खून कम हो जाता है तो कमज़ोर हो जाते हैं ना, फेस से भी कमज़ोरी नजर आती है। तो यहाँ भी खुशी की, शक्तियों की कमी हो जाती है ना तो चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे...., सब जानते हैं, सभी अनुभवी हैं। एक तरफ कहते हो कि खुशियों की खान मिली है और वो भी अविनाशी फिर कम कैसे हो जाती है? तो बाप के पास आपके सारे दिन के मन के मूड और मूड प्रमाण जो फेस बदलता है वो सारे दिन के चित्र वहाँ होते हैं। आप तो चित्रों का म्युजयम बनाते हो ना, बाप के पास आपके चित्रों का म्युजयम होता है। तो सदा यह याद रखो कि मैं ब्राह्मण आत्मा राज्य सत्ता और धर्म सत्ता की अधिकारी आत्मा हूँ। यह स्मृति का निश्चय है तो नशा है, निश्चय कम तो नशा भी कम। तो चेक करो-ये सत्तायें सदा साथ रहती हैं वा कभी खो जाती हैं, कभी आ जाती हैं?

अच्छा-आज डबल विदेशी मैजारिटी हैं। बापदादा विशेष डबल विदेय्शियों से पूछते हैं कि सारे दिन में अपने अधिकार के सीट पर सेट रहते हो या अपसेट बहुत जल्दी होते हो? कि अपसेट होना-ये पास्ट की बात है, अभी नहीं होते। पास्ट हो गया ना! अभी तो नहीं होते हो ना! अभी नॉलेजफुल, पॉवरफुल बन गये। ऐसे तो नहीं कि छोटी­सी बात में अपसेट हो जाओ, चेहरा बदल जाये, मूड बदल जाये! ऐसा कभी­कभी होता है? कभी­कभी अपसेट होते हो? अच्छा! जो समझते हैं कि अपसेट होना क्या होता है वह भी भूल गया है, ऐसे शक्तिशाली आत्मायें जो कभी अपसेट नहीं होते हैं वो हाथ उठाओ। सच तो बोल रहे हो उसकी मुबारक। अभी इस सीजन में कुछ तो मधुबन में छोड़कर जायेंगे या कुछ लेकर जायेंगे? मैजारिटी ने मधुबन में शिवरात्रि मनाई है ना! तो जिसका बर्थ डे होता है उसको गिफ्ट देते हो ना। तो बाप को क्या गिफ्ट दी? ये अपसेट होना यही गिफ्ट दे दो-नहीं होंगे। हिम्मत है? अच्छा, हाथ उठाओ और टी.वी. में सबके हाथ निकालो। सोच­समझकर पक्के हाथ उठाना। देखो सभी के हाथ का फोटो निकाला। देखना अभी फोटो निकल गया है। बापदादा को वो चेहरा अच्छा नहीं लगता। बापदादा हर एक बच्चे को सदा खिला हुआ रूहानी गुलाब देखना चाहते हैं। मुरझाया हुआ नहीं, खिला हुआ। जिससे प्यार होता है ना तो उसको जो अच्छा लगता है वही किया जाता है! डबल फारेनर्स तो बाप से बहुत प्यार करते हैं। तो जो बाप को अच्छा लगता है वही आपको अच्छा लगता है ना! अभी किसी का भी ऐसा समाचार नहीं आये कि क्या करें, बात ही ऐसी थी, इसीलिये अपसेट हो गये! अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपसेट स्थिति में नहीं आओ। जैसे झूला झूलते हो ना, तो वो बहुत नीचे­ऊपर होता है, बहुत नीचे हो, बहुत ऊपर हो और बहुत फास्ट हो तो शरीर को अपसेट करेगा ना। लेकिन आप अपसेट होते हो क्या? क्यों नहीं होते हो? खेल समझते हो तो अपसेट होने के बजाय मनोरंजन समझते हो। कारण क्या हुआ? खेल है। ऐसे अगर कोई अपसेट करने की बातें आये भी, आयेंगी जरूर, जिन्होंने हाथ उठाया उन्हों के पास और बड़ी अपसेट करने वाली बातें आयेंगी। क्योंकि माया भी मुरली सुन रही है। लेकिन उसको एक खेल समझो। घबराओ नहीं। अच्छा, झुलाती है, झूलने दो। लेकिन मन घबराये नहीं। नॉलेजफुल, पॉवरफुल बन जाओ। उस सीट को छोड़ो नहीं। अगर एक­दो बार भी माया ने देखा कि ये अपसेट होने वाले नहीं हैं तो खुद अपसेट हो जायेगी, आपको नहीं करेगी। बात की लेन देन भले करो, कोई भी बात आती है तो नॉलेजफुल होने के कारण समझते तो हो ना-ये ठीक है, ये नहीं ठीक है, ये होनी चाहिये, ये नहीं होनी चाहिये.... लेकिन बात की लेन­ देन बात के रीति से करो, अपसेट रूप से नहीं करो। एक तरफ बोलते जायेंगे, दूसरे तरफ गंगा­जमुना बहाते रहेंगे। चाहे मन में बहाओ, चाहे आंख से बहाओ, दोनों ही ठीक नहीं है। तो गिफ्ट देने के लिये तैयार हो? सोच लिया कि ऐसे ही हाँ कर लिया?

बापदादा बहुत सहज शब्दों में युक्ति बता रहे हैं कि जब भी कोई परिस्थिति या प्रकृति हलचल के रूप में आये तो दो शब्द याद रखो, विधि है-या नॉट (Not) करो या डॉट (Dot) लगाओ। नॉट या डॉट। अगर कोई बात रांग है तो यही सोचो नॉट माना नहीं करना है। न सोचना है, न करना है, न बोलना है। और डॉट लगा दो तो नॉट हो ही जायेगा। सोचो नॉट, लगाओ डॉट। फिनिश। डॉट (बिन्दी) लगाने में कितना टाइम लगता है? सेकण्ड से भी कम। लेकिन होता क्या है? समझते हो कि यह नहीं करना है, ठीक नहीं है लेकिन डॉट लगाना नहीं आता है। नॉलेजफुल तो बन गये लेकिन सिर्फ नॉलेजफुल नहीं चाहिये, नॉलेज के साथ पॉवरफुल भी चहिये। तो पॉवरफुल स्थिति की कमज़ोरी है इसीलिये डॉट नहीं लगा सकते हो। और जिसे डॉट लगाना आयेगा वो बाप को भी नहीं भूलेगा, बाप भी डॉट (बिन्दी) है। आप भी तो डॉट हो। तो सभी याद आ जायेगा। फुल स्टॉप। क्वेचन मार्क (? ), आश्चर्य की मात्रा ( ! ) या कॉमा ( , ) ये नहीं दो, फुल स्टॉप ( . )। फुल स्टॉप की मात्रा इजी है ना। और सब तो मुश्किल है। और सबसे मुश्किल है क्वेश्चन मार्क। वो लगाने बहुत जल्दी आता है। सुनाया है ना कि व्हाई (WHY) शब्द आये तो क्या करो? फ्लाय। ऊपर उड़ जाओ। व्हाई नहीं फ्लाय। फ्लाय करना आता है?

वैसे डबल फारेनर्स में अच्छे­अच्छे रत्न निकले हैं। बापदादा ऐसे रत्नों को देख हर्षित होते हैं। साथ­साथ ऐसे रत्न जो बहुत अमूल्य हैं, ऐसे अमूल्य रत्नों में अगर बहुत जरा­सा भी कहाँ दाग दिखाई देता है तो अमूल्य रत्न के आगे वो दाग अच्छा नहीं लगता। होता छोटा­सा दाग है लेकिन कहेंगे तो दाग ना! तो जब अमूल्य रत्न बन गये हो तो बाकी छोटा­सा दाग क्यों रखा है? अच्छा लगता है क्या? ये तो नहीं सोचते हो कि चन्द्रमा में भी काला दिखाई देता है इसीलिये अच्छा है! डबल विदेशी सेम्पल बनकर दिखाओ। जरा भी कोई कमी नहीं। वैसे दाग का कारण क्या होता है? चाहते नहीं हो कि दाग लगे लेकिन लग जाता है। क्यों लग जाता है? मूल कारण जानते हो? जानने में तो होशियार हो। जानते भी हो और जब आपस में वर्कशॉप करते हो तो बापदादा वर्कशॉप के भी फोटो देखते हैं, कारण बहुत निकालते हो-ये कारण है, ये कारण है.... और अच्छी­अच्छी बातें वर्कशॉप में निकालते हो लेकिन वर्क में नहीं लाते हो। बॉडी कॉन्सेसनेस के बहुत सूक्ष्म रूप बनते जाते हैं। अभी मोटे­मोटे रूप में बॉडी कान्सेस नहीं आता लेकिन सूक्ष्म और रॉयल रूप में आता है। बुद्धि बहुत अच्छी चलाते हो, जब अच्छी­अच्छी बातें सोचते हो तो बापदादा खुश होते हैं लेकिन अच्छी बातें सोचते­करते फिर थोड़ा भी अगर कोई एडीशन­करेक्शन करते हैं तो मैं­पन आ जाता है। जैसे खुशी से अपने विचार देते हो ऐसे दूसरे के विचार भी खुशी से लो। घबराओ नहीं-ये कैसे होगा, ये क्या किया, ये तो हो नहीं सकता, ये तो चल नहीं सकता....। दूसरे की राय, दूसरे की बात को भी इतना ही रिगार्ड दो जितना अपनी बात को रिगार्ड देते हो। विचार देना अलग चीज़ है, आपको उनके विचार अगर ठीक नहीं भी लगते हैं तो उसके इफेक्ट में आना, अवस्था नीचे­ऊपर हो जाये तो ये सेवा, सेवा नहीं होती। एडजस्ट करना, दूसरों के विचार को भी अपने विचारों के माफिक सोचना­समझना-यह है दूसरे के विचारों को रिगार्ड देना। जैसे समझते हो ना कि मैंने यह सोचा या विचार निकाला, विचार किया, काम किया, तो मेरे विचारों का महत्व होना चाहिये, दूसरों को रिगॉर्ड देना चाहिये, ऐसे दूसरे का विचार भी अपने विचारों से मिलाना, वो मिलाना नहीं आता है, दूसरे के विचार को दूसरों के विचार समझते हो। क्योंकि अभी आप डबल विदेशी भी सेवा के क्षेत्र में प्लैन बनाने में अच्छी प्रोग्रेस कर रहे हो और आगे भी होनी है। लेकिन एडजस्टमेन्ट की विशेषता को यूज करो। अगर कोई भी बच्चा आगे बढ़ता है तो बापदादा को खुशी होती है। ऐसे नहीं समझते कि ये क्यों आगे बढ़े! जो बढ़ता है वो बहुत अच्छा। तो डबल विदेशियों के लिये बापदादा को स्नेह तो है ही लेकिन सेवा के प्लैन वा प्रैक्टिकल सेवा के लिये जो करते हो, कर रहे हो, उसके लिये बहुत­बहुत रिगार्ड है।

बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि अगर आप डबल विदेशी नहीं होते तो बाप का एक टाइटल प्रैक्टिकल में सिद्ध नहीं होता। कौन­सा? विश्व कल्या­णकारी। तो अभी देखो विश्व के चारों ओर बाप का मैसेज दे रहे हो ना! इस सीजन में चारों ओर के आये हैं ना! टोटल कितने देशों के आये हैं? (58) बाकी कितने मुख्य देश रहे हैं? (125) छोटे­छोटे देश तो बहुत होंगे, लेकिन मुख्य देश 125 रहे हुए हैं! तो अभी डबल विदेशियों को तो बहुत काम करना पड़ेगा! भारत में भी करना है तो विदेश में भी करना है, दोनों जगह करना है। बापदादा ने पहले भी कहा है कि सेवा की सम्पूर्ण सफलता की निशानी ये है कि कोई भी तरफ की आत्मा उलहना नहीं दे कि हमारे तरफ तो मैसेज पहुँचा ही नहीं। मैसेज पहुँचाया और सुनते हुए कोई ने अपना भाग्य नहीं बनाया तो आपके प्रति उलहना नहीं हुआ, वह उन आत्मा के प्रति हुआ। लेकिन आपके प्रति कोई उलहना नहीं रह जाये। जब कहते ही हैं कि मास्टर विश्व कल्याण­कारी हैं तो विश्व के चारों ओर मैसेज तो पहुँचना चाहिये। भारत में भी पहुँचना चाहिये तो विदेश में भी पहुँचना चाहिए। जिस समय आपका विजय का झण्डा लहराता हो उस समय यदि कोई आत्मा आकर यह उलहना दे तो अच्छा लगेगा? एक तरफ आप झण्डा लहरा रहे हैं और दूसरे तरफ लोग उलहना दे रहे हैं तो अच्छा लगेगा? नहीं लगेगा ना! डबल विदेशियों की हिम्मत अच्छी है, बाप से प्यार तो है ही लेकिन सेवा से भी प्यार अच्छा है। दोनों से प्यार का सर्टीफिकेट अच्छा है। अभी कौन­सा सर्टीफिकेट लेना है? जितने सेवाधारी, उतने ही शक्तिधारी। तो शक्तिस्वरूप बन गये-यह सर्टीफिकेट लेना है। बापदादा देखते हैं-मैजारिटी बाप से और सेवा से प्यार में पास हैं।

अभी जो इस सीजन में पहली बार आये हैं वो हाथ उठाओ। टोटल कितने हैं? 600 पहली बार आये हैं। आप बहुत लक्की हो। क्योंकि आपको सेवा के लिये मार्जिन बहुत अच्छी मिली है। अभी सवा सौ स्थान रहे हुए हैं और आप 600 हो तो 2-2, 3-3 मिलकर भी करो तो पूरा हो जायेगा। आपके लिये सेवा का निमन्त्रण पहले से ही तैयार है। बहुत अच्छी प्रोग्रेस की है। 600 इस सीजन में नये आ गये तो सेवा की है तब तो आये हैं ना! तो कितनी मुबारक है! पदमापदम मुबारक। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

एक सेकण्ड में डॉट लगा सकते हो? अभी­अभी कर्म में और अभी­अभी कर्म से न्यारे, कर्म के सम्बन्ध से न्यारे हो सकते हो? यह एक्सरसाइज आती है? किसी भी कर्म में बहुत बिजी हो, मन­बुद्धि कर्म के सम्बन्ध में लगी हुई है, बन्धन में नहीं, सम्बन्ध में, लेकिन डायरेक्शन मिले-फुल स्टॉप। तो फुल स्टॉप लगा सकते हो कि कर्म के संकल्प चलते रहेंगे? यह करना है, यह नहीं करना है, यह ऐसे है, यह वैसे है....। तो यह प्रैक्टिस एक सेकण्ड के लिये भी करो लेकिन अभ्यास करते जाओ, क्योंकि अन्तिम सर्टीफिकेट एक सेकण्ड के फुल स्टॉप लगाने पर ही मिलना है। सेकण्ड में विस्तार को समा ले, सार स्वरूप बन जाये। तो यह प्रैक्टिस जब भी चांस मिले, कर सकते हो तो करते रहो। ऐसे नहीं, योग में बैठेंगे तो फुल स्टॉप लगेगा। हलचल में फुल स्टॉप। इतनी पॉवरफुल ब्रेक है? कि ब्रेक लगायेंगे यहाँ और ठहरेगी वहाँ! और समय पर फुल स्टॉप लगे, समय बीत जाने के बाद फुल स्टॉप लगाया तो उससे फायदा नहीं है। सोचा और हुआ। सोचते ही नहीं रहो कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ, आत्मा हूँ, मेरे को फुल स्टॉप लगाना है और कुछ नहीं सोचना है, यह सोचते भी टाइम लग जायेगा। ये सेकण्ड का फुल स्टॉप नहीं हुआ। ये अभ्यास स्वयं ही करो। कोई को कराने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि नये चाहे पुराने, सभी यह विधि तो जानते हैं ना! तो अभ्यास बहुत काल का चाहिये। उस समय समझो-नहीं, मैं फुल स्टॉप लगा दूँगी! नहीं लगेगा, यह पहले से ही समझना। उस समय, समय अनुसार कर लेंगे! नहीं, होगा ही नहीं। बहुत काल का अभ्यास काम में आयेगा। क्योंकि कनेक्शन है। यहाँ बहुतकाल का अभ्यास बहुतकाल का राज्य­भाग्य प्राप्त करायेगा। अगर अल्पकाल का अभ्यास है तो प्राप्ति भी अल्पकाल की होगी। तो ये अभ्यास सारे दिन में जब भी चांस मिले करते रहो। एक सेकण्ड में कुछ बिगड़ता नहीं है। पि्ार काम करना शुरू कर दो। लेकिन हलचल में फुल स्टॉप लगता है या नहीं-ये चेक करो। कर्म के सम्बन्ध में आना और कर्म के बन्धन में आना इसमें भी फर्क है। अगर कर्म के बन्धन में आते हैं तो कर्म आपको खींचेगा, फुल स्टॉप नहीं लगाने देगा। और न्यारे­प्यारे होकर किसी भी कर्म के सम्बन्ध में हो तो सेकण्ड में फुल स्टॉप लगेगा। क्योंकि बन्धन नहीं है। बन्धन भी खींचता है और सम्बन्ध भी खींचता है लेकिन न्यारे होकर सम्बन्ध में आना-यह अण्डरलाइन करना। इसी अभ्यास वाले ही पास विद् ऑनर होंगे। ये लास्ट कर्मातीत अवस्था है। बिल्कुल न्यारे होकर, अधिकारी होकर कर्म में आयें, बन्धन के वश नहीं।

तो चेक करो कर्म करते­करते कर्म के बन्धन में तो नहीं आ जाते? बहुत न्यारा और प्यारा चाहिये। समझा क्या अभ्यास चाहिये? मुश्किल तो नहीं लगता है ना? कि थोड़ा­थोड़ा मुश्किल लगता है? कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना? राजयोगी अपने को कहलाते हो, किसके राजा हो? अमेरिका के, अफ्रीका के! कर्मेन्द्रियों के राजा हो ना! और राजा बन्धन में आ गया तो राजा रहा? सभी का टाइटल तो बहुत अच्छा है। सब राजयोगी हैं। तो राजयोगी हो या प्रजायोगी हो? कभी प्रजायोगी, कभी राजयोगी? तो डबल विदेशी सभी पास विद् ऑनर होंगे? बापदादा को तो बहुत खुशी होगी-यदि सब विदेशी पास विद् ऑनर हो जायें। थोड़ा­सा मुश्किल है कि सहज है? अच्छा। मुश्किल शब्द आपके डिक्शनरी से निकल गया है। ये ब्राह्मण जीवन भी एक डिक्शनरी है। तो ब्राह्मण जीवन के डिक्शनरी में मुश्किल शब्द है ही नहीं कि कभी कभी उड़कर आ जाता है?

कितने वरदान मिलते हैं! अभी तक लिस्ट भी निकालो तो कितने वरदान मिले हैं! बहुत मिले हैं ना! रोज वरदान मिलता है। भक्ति मार्ग में भक्त को यदि एक वरदान भी मिल जाता है तो वो क्या से क्या बन जाता है! और आप कितने लक्की हो जो भगवान रोज वरदान देते हैं। पालना ही वरदानों से हो रही है। तो वरदान याद रहता है? या सुनने के टाइम याद रहता है? एक है याद रहना और दूसरा है वरदान को काम में लगाना। वरदान ऐसी चीज़ है जो कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन वरदान की शक्ति परिस्थिति को आग से पानी बना देती है। इतना शीतल बना देती है। सिर्फ यूज करने की विधि आनी चाहिये। और दूसरी बात, समय पर काम में लगाओ। आधा समय बीत जाये, पीछे होश में आये! नहीं। तो वरदान को यूज करना आता है? करते हो या सुन­सुनकर खुश होते हो? डायरी में तो बहुत वरदान भर गये हैं, बुक भी बन गया है। अलमारी में बुक तो रखा ही है लेकिन समय पर कार्य में लगाओ। और जितना कार्य में लगाते जायेंगे उतना वरदान और बढ़ता जायेगा। वरदान का विशाल रूप और अनुभव में आता जायेगा। अच्छा!

पहले सभी को अलग­अलग डायरेक्शन दिये हैं। इस सीजन के बाद विशेष सभी को भिन्नभिन्न शक्तियाँ अपने में 100% भरनी हैं। जो भी शक्ति अपना सकते हो उस एक शक्ति को लक्ष्य बनाओ कि इस वर्ष हमें विशेष इस शक्ति को स्वरूप में लाना ही है।

अमेरिका कौन­सी शक्ति अपनायेगा? शक्तियों का तो पता है ना? कौन­सी शक्ति पसन्द है? (थ्दन) स्नेह की शक्ति सामने रखेंगे, लक्ष्य रखेंगे! अच्छा, स्नेह की शक्ति से अमेरिका वाले क्या करेंगे? स्नेह ऐसी शक्ति है जो अज्ञान में गाया हुआ है कि स्नेह पत्थर को भी पानी कर देता है। तो आप क्या करेंगे? माया कितने भी 100 हिमालय जितना पहाड़ बनकर आये लेकिन उस पहाड़ को भी पानी बना दे। बना सकते हो कि माया बड़ी पॉवरफुल है? अमेरिका वाले बोलो-आप पॉवरफुल हो या माया? तो एक माया के पहाड़ को पानी बना देना और दूसरा कोई कुछ भी दे लेकिन आप रूहानी स्नेह देना। बॉडी का स्नेह नहीं देना, रूहानी स्नेह देना। कोई आपकी ग्लानि करे लेकिन आप स्नेह देना। और स्नेह की शक्ति एक चुम्बक है, जैसे चुम्बक दूर को नजदीक करता है ना! तो स्नेह की शक्ति से, जो बाप से दूर हैं उन्हों को समीप लाना और आपस में स्नेह की लेन­देन करना। ऐसा कोई बोल नहीं निकले जो स्नेह का नहीं है। कोई कैसा भी हो लेकिन आपके बोल में स्नेह की शक्ति हो। अच्छा!

अफ्रीका वाले कौन­सी शक्ति अपनायेंगे? (र्झीम) इन्हों को शान्ति की शक्ति पसन्द है क्योंकि अफ्रीका में घमसान बहुत होता है ना तो शान्ति की शक्ति पसन्द है। तो शान्ति की शक्ति की निशानी है-जहाँ शान्ति होगी, वहाँ सदा सन्तुष्ट होंगे। क्योंकि अशान्त करती है असन्तुष्टता। जहाँ सन्तुष्टता होगी वहाँ शान्ति होगी और जहाँ शान्ति होगी वहाँ सन्तुष्टता होगी। और शान्ति की शक्ति वाला सदा ही खुश मिजाज होगा। जितनी शान्ति उतनी खुशी उसके चेहरे से, चलन से अनुभव होगी। तो शान्ति की शक्ति की निशानी दिखाना। सदैव सबका चेहरा हर्षित हो। कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन खुशी को नहीं छोड़े। अपनी प्रापर्टी है ना। तो प्रापर्टी को कोई छोड़ता है क्या? तो शान्ति की शक्ति की निशानी है-सदा खुश रहना और खुशी बांटना। शान्ति की शक्ति से सहज मंसा सेवा कर सकते हैं। जितना शान्त रहते हैं उतनी मंसा सेवा बड़ी शक्तिशाली होगी। तो अफ्रीका वाले ऐसे शान्ति के शक्ति का स्वरूप बन इस वर्ष का इनाम लेना। सभी इनाम लेंगे ना! अच्छा! रिजल्ट आतो रहेगी। हरेक सेन्टर के हर स्टूडेन्ट की रिजल्ट आती रहेगी। फिर जो नम्बर आगे लेगा, तीन नम्बर को इनाम देंगे। बाकी सेकण्ड नम्बर देंगे। तो शान्त रहना है, हलचल में नहीं आना। कुछ भी हो जाये, शान्त। तो आपकी शान्ति हलचल वालों को भी शान्त कर सकती है। ऐसे पॉवरफुल वायब्रेशन फैलाना। यह सेवा वाणी से नहीं हो सकती लेकिन मंसा से हो सकती है। अच्छा!

ऑस्ट्रेलिया वाले कौन­सी शक्ति अपनायेंगे? (सहयोग) ये तो बहुत अच्छी बात सुनाई। ऑस्ट्रेलिया को सेवा में सहयोगी बनना ही चाहिये। क्योंकि सहयोग से असम्भव बात भी सम्भव हो जाती है। कठिन बात सहज हो जाती है। और सहयोग की शक्ति से एक­दो में हिम्मत, उमंग, उल्लास बहुत बढ़ा सकते हो। सहयोग की शक्ति ऑस्ट्रेलिया के कोई भी सेन्टर की ब्राह्मण आत्मा को कमज़ोर करने नहीं देगी। सहयोग की शक्ति एक सेफ्टी का किला है। किला कैसे बनता है? ईटों के सहयोग से किला बनता है, सेफ्टी का साधन बनता है। तो सहयोग की शक्ति से मजबूत किला भी बनायेंगे और असम्भव बात सम्भव करके दिखायेंगे। जो सहयोगी होते हैं, सहयोग देते हैं उसको सहयोग मिलता भी बहुत है। इच्छा न होते हुए भी चारों ओर से सहयोग देने वाले को सहयोग मिलता है। करके देखना। अच्छा।

एशिया वाले क्या करेंगे? कौन­सी शक्ति अपनायेंगे? (एडजस्टमेन्ट) बहुत बढ़िया बात बताई। एडजस्टमेन्ट की शक्ति को अपनाया तो बहुत सहज सम्पूर्ण बन जायेंगे। क्योंकि माया का दरवाजा ही है-चाहे अपने में एडजस्ट नहीं होते, चाहे सेवा में, चाहे सम्बन्ध­सम्पर्क में। एडजस्ट होने की कला को लक्ष्य बना दिया तो सबसे पहला नम्बर सम्पूर्ण एशिया वाले बनेंगे। यह शक्ति इतनी पावरफुल है। क्योंकि जिसमें एडजस्ट होने की शक्ति होगी उसमें सहनशक्ति, अन्तर्मुखता सब उसके बाल बच्चे बन जायेंगे। तो एशिया वालों ने मदर को चुन लिया है। सब आ जायेंगे। लेकिन इस लक्ष्य को प्रैक्टिकल में लाने के लिये एक बात सदा याद रखना कि पहले अपनी एडजस्टमेन्ट देखना, दूसरे की नहीं। मुझे पहले एडजस्ट होना है। सेवा में पहले आप होना चाहिये, दूसरों को साथी बनाओ, सहयोगी बनाओ, आगे बढ़ाओ, हिम्मत बढ़ाओ। लेकिन एडजस्ट पहले मेरे को होना है, दूसरे आप ही हो जायेंगे। अगर दूसरे को देखा तो स्वयं भी नहीं होंगे, दूसरा भी नहीं होगा। जो ओटे सो अर्जुन, मैं अर्जुन हूँ। दूसरा अर्जुन बने तो मैं भी अर्जुन बनूँ! नहीं, जो ओटे सो अर्जुन। वैसे भी एशिया में भिन्नभिन्न वैरायटी होने के कारण सेवा में भी प्लैन एडजस्ट करने पड़ते हैं। वेरायटी धर्म वाले भी एशिया में आते हैं। चाइना, जापान सब आता है ना। तो बौद्ध धर्म वाले, चाइनीज सबको एडजस्ट करना पड़ता है ना। उन्हों की मत न्यारी। क्रिश्चियन्स फिर भी उन्हों से नजदीक हैं, गॉड फादर को तो मानते हैं। तो बहुत अच्छा लक्ष्य रखा है इससे स्वयं में भी एडजस्ट हो जायेंगे, सेवा में भी एडजस्ट हो जायेंगे और दूसरों से भी हो जायेंगे। तो इनएडवांस मुबारक हो। अच्छा।

यूरोप क्या करेगा? यूरोप में यू.के. भी आ गया। यूरोप कौन­सी शक्ति को अपनायेगा? (युनिटी) तो यूरोप सभी खण्डों को मिलाकर एक खण्ड बना देगा, ऐसे करेगा! क्योंकि भविष्य में तो ये अलग­अलग खण्ड होने ही नहीं हैं। एक ही होगा। तो यूरोप वाले युनिटी से भिन्नता को खत्म करके विश्व में भी एक धर्म, एक राज्य, एक खण्ड बनाने का इतना बड़ा कार्य करेंगे!

वैसे तो यूरोप में युनिटी का स्तम्भ तो है ही। पहले से ही स्तम्भ है। कौन है स्तम्भ? (दादी) आप नहीं। (दादी तो सबकी है) लेकिन फाउण्डेशन यू.के. में डाला है। जो स्तम्भ होता है वो चारों ओर के लिये होता है, उसी स्थान के लिये नहीं होता। तो चारों तरफ चाहे अमेरिका है, चाहे अफ्रीका है ...... लेकिन एक है-यही विशेषता है। ऐसे नहीं कि अफ्रीका को क्या करना, वो जाने, नहीं। इसको कहा जाता है युनिटी का स्तम्भ। तो एक दादी नहीं, सारा यूरोप युनिटी का स्तम्भ है। ये तो एक­एक एक्जैम्पुल हैं। लेकिन एक्जैम्पुल को देखकर सिर्फ खुश होना होता है या बनना होता है? दादी को देखकर बहुत अच्छी, बहुत अच्छी कहकर खुश होते हो या स्वयं भी बनते हो? क्या करते हो? लण्डन की टीचर्स बताओ। सिर्फ देखकर खुश होते हो या बनते भी हो। युनिटी का अर्थ ही है बेहद की वृत्ति, बेहद की दृष्टि, तभी युनिटी होती है। अगर बेहद की दृष्टि और वृत्ति नहीं तो युनिटी नहीं हो सकती। तो यू.के. और यूरोप बेहद की दृष्टि वाले हैं ना! बहुत आये हैं। इतने सब बेहद की वृत्ति, दृष्टि वाले बन जायेंगे तो अपना राज्य आया कि आया। क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुम­ण्डल बनेगा तो प्रैक्टिकल में भी होगा। यूरोप वालों ने युनिटी को पसन्द किया है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। तो यह जिम्मेदारी उठाने के लिये तैयार हो? है? हाँ या ना बोलो। हाँ जी ठीक बोला। बाप इंग्लिश बोले तो भी आप हाँ जी बोलो। हाँ जी अच्छा लगता है। बहुत अच्छी बात उठाई। फिर तो फॉरेन में पहले स्वर्ग आयेगा या भारत में आयेगा? कहाँ आयेगा? अच्छी हिम्मत रखी है। हिम्मत बच्चों की और मदद बाप की है ही है। ये वरदान है। समझा? करते भी हैं, लक्षण हैं भी, लक्ष्य है भी, सिर्फ उसको अण्डरलाइन करना।

अच्छा, रशिया वाले हाथ उठाओ। देखो रशिया वालों को देखकर सब खुश होते हैं क्यों खुश होते हैं? क्योंकि बहुत प्यासे थे। प्यासे को अगर अमृत मिल जाये तो कितने खुश हो जाते हैं। तो उनकी खुशी आपको भी खुश करती है। जब भी रशिया का नाम आता है तो तालियाँ जरूर बजाते हैं। तो रशिया वाले इतने सिकीलधे हो-समझा! सबका प्यार है कि ये पूरा ही एक था अब अनेकता में आ गया लेकिन अब फिर से एक राज्य में, सतयुगी राज्य के अधिकारी बनेंगे।

तो रशिया वाले कौन­सा लक्ष्य बनायेंगे, कौन सी शक्ति लायेंगे? (सहन­शक्ति) आपकी टीचर कह रही है सहनशक्ति। पसन्द है? वैसे तो सहनशक्ति में ये पास हैं। सहन करना तो इन्हों को बहुत आता है। कोई भी परिस्थिति आती है तो सहनशक्ति में पास हो जाते हैं। फिर भी अण्डरलाइन लगाना। सहनशक्ति के संस्कार हैं। अभी तक बन्धन में रहने में सहनशक्ति का पार्ट अच्छा बजाया है। अभी अपने को श्रेष्ठ बनाने के बीच में जो भी कोई विघ्न आये उसमें सहनशीलता की शक्ति से नम्बर आगे लेना। यह शक्ति अपनाना आपको मुश्किल नहीं होगा, सहज होगा। इसीलिये नम्बर ले लेना। कौन­सा नम्बर लेंगे? पहला नम्बर लेंगे या पांचवा? सभी को खुशी होगी पहला नम्बर लेना। आप नम्बरवन लेना तो जैसे अभी तालियाँ बजाई ना ऐसे बहुत बहुत तालियाँ बजेगी, बापदादा भी तालियाँ बजायेंगे। अच्छा है, लास्ट को फास्ट जाना ही है। जो छोटा बच्चा होता है ना वो सबका लाडला होता है, प्यारा होता है। और क्वालिटी भी अच्छी निकली है। एक्जैम्पुल बनने वाले हैं। मैजारिटी खुश रहते हैं, कभी­कभी कोई टेन्शन में आते होंगे बाकी मैजारिटी खुश रहते हैं। रशिया में ब्राह्मणों के पास टेन्शन है? कभी टेन्शन में आते हो? कभी­कभी आते हो? अभी नहीं आना। अभी टेन्शन फ्री। गीत भी प्यार से गाते हैं। सब चीजों का उमंग है। स्वतन्त्र हो गये हैं ना। तो उमंग­उत्साह में नाचते रहते हैं। अच्छा!

अभी जब थोड़ी­सी प्रत्यक्षता होगी ना कि एक ही बाप है, वही अल्लाह है, वही ईश्वर है। थोड़ा­सा प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेगा तो कैसे भी देश हो, कैसे भी धर्म हो, चाहे मुस्लिम देश हो फिर भी अल्लाह को तो मानते हैं ना। तो वो दिन भी आयेगा जो सब कहेंगे कि एक हैं, एक हैं, यही हैं, यही हैं, इस झण्डे के नीचे सभी आयेंगे। अभी थोड़ी­सी प्रत्यक्षता होने दो। अभी कहते हैं ये भी हैं। यही हैं, नहीं कहते हैं। ये भी हैं। अभी ‘भी’ निकल जाये, ‘ये ही हैं’। इसको कहा जाता है प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना। जब ये झण्डा लहरायेंगे तो सब एक झण्डे के नीचे आयेंगे। सब एक झण्डे के नीचे एक ही शब्द बोलेंगे-ओम् शान्ति। (बाबा बोलेंगे) बाबा तो बोलेंगे ही। अच्छा इनको ‘मेरा बाबा’ शब्द अच्छा लगता है।

(हॉस्टल की कुमारियों से) अच्छा है, हॉस्टल की रिजल्ट तब कहेंगे जब जितने हॉस्टल में हैं इतने टीचर्स बनकर निकले। तब कहेंगे हॉस्टल नम्बरवन है। ऐसे नहीं, दो तो निकली हैं, चार चली गई। जितने हॉस्टल में आये, कुमारी बनकर आये और टीचर बनकर निकले तब कहेंगे हॉस्टल की रिजल्ट सबसे आगे। तो इतनी हिम्मत है कि माया आयेगी तो कहेंगे क्या करें! बापदादा तो खुश होते हैं क्योंकि देखो स्थापना का फाउण्डेशन ही ओम् निवास में छोटी­छोटी कुमारियों से शुरू हुआ। तो बापदादा को भी पहले स्थापना में क्या पसन्द आया? छोटे बच्चे ही पसन्द आये ना। आज वो छोटे ही विश्व कल्याणकारी बन गये। तो आप भी ऐसे ही बनना। ये अच्छा है, सेफ तो रहे हुए हैं ना। माया के प्रभाव से बचे हुए हैं।

अच्छा, पोलेण्ड वाले क्या करेंगे? पोलेण्ड वालों ने भी हिम्मत अच्छी रखी है। सरकमस्टांश देश के कैसे भी हैं लेकिन हिम्मत रख ब्राह्मण परिवार को आगे बढ़ाने में सफल है और होते रहेंगे। पोलेण्ड की टीचर कहाँ है? (ट्रांसलेशन कर रही है) अच्छी है। जितनी भी टीचर हैं लेकिन यह फाउण्डेशन है। चाहे जितनी भी हलचल हुई खुद अचल रही तो सेवा भी हुई। सेवा की मुबारक है। हिम्मत जो भी रखते हैं उनको मदद जरूर मिलती है। हिम्मत में हिलना नहीं चहिये। पता नहीं क्या होगा! पता नहीं-आया, और गया, खत्म! अच्छा होना है, और अच्छे ते अच्छा होना है। अच्छा­अच्छा सोचने से अच्छा हो ही जाता है। क्योंकि आपकी अच्छी वृत्ति वायुमण्डल को परिवर्तन कर देगी। अगर क्यों­क्या में जायेंगे-ऐसा है, ऐसा है तो कभी परिवर्तन नहीं होगा। अच्छा­अच्छा कहते जाओ तो अच्छे बन जायेंगे। अपनी मंसा वृत्ति सदा अच्छे की, पॉवरफुल बनाओ तो खराब भी अच्छा हो जायेगा। बाप ने आप सब बच्चों में खराब है, खराब है-ये वृत्ति रखी? जैसे भी हो, जो भी हो बाप ने अच्छा समझा ना! तो सभी अच्छे बन गये ना! कोई खराब हैं? सब अच्छे हैं। तो अच्छा, अच्छा, अच्छा.... कोई बात भी करता है तो कहो अच्छा जी, बहुत अच्छा, तो अच्छा हो जायेगा। नहीं, तुम क्यों बोलते हो, क्या बोलते हो.... लड़ाई नहीं करो। यह बोलने में भी अच्छा नहीं लगा और अच्छा जी, यह कहना अच्छा लगा ना। तो अच्छा जी बोलते रहो, अच्छा बनाते चलो। आपको ही तो अच्छा बनना है ना और कोई आने हैं क्या? इसमें सभी पहले मैं, अभिमान वाली मैं नहीं, शुद्ध मैं। अच्छा!

चारों ओर के धर्म सत्ता के अधिकारी आत्मायें, सदा स्वराज्य सत्ता के अधिकारी आत्मायें, सदा डबल सत्ताधारी डबल ताजधारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा सर्व शक्तियों द्वारा शक्ति स्वरूप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले शक्तिशाली आत्मायें, सदा लक्ष्य को लक्षण के रूप में दिखाने वाले, अभव कराने वाले शक्तिशाली महावीर, अचल­अडोल आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादियों से - (दादी जी एवं दादी जानकी ने बाबा को भाकी पहनी) सभी को मिल गया ना! सन्तुष्ट हो गये ना! बहुत सयाने हो, समझदार हो। सभी अपने को स्टेज पर देख रहे हो कि नीचे देख रहे हो? कहाँ हो? स्टेज पर हो ना। यह सारा हाल ही स्टेज है। सब समीप हो, साथ हो। स्टेज पर आना माना साथ में आना, पास में आना। आप तो सदा ही पास हो। अलग हो ही नहीं सकते। कोई अलग करे तो अलग होंगे? कि उसको अलग कर देंगे? उसको भगा देंगे? लेकिन स्वयं सदा साथ रहेंगे। साथ हैं, साथ रहेंगे और साथ चलेंगे। (साथ में चक्कर लगायेंगे) चक्कर तो लगाते ही हैं साथ में। चक्कर लगाने का सोच रही है। 84 का चक्कर तो पूरा हो गया। अभी तो घर चलना है। घर जायेंगे या सीधे ही राज्य में जायेंगे? घर जाना है कि राज्य करना है? घर जाना है ना! तो साथ हैं ही। बापदादा को अकेलापन अच्छा नहीं लगता। आप लोगों को कभी­कभी अकेलापन अच्छा लगता है! अकेले नहीं बैठते, सेवा करते रहते हैं। (दादी जी गुजरात तथा गुल्जार दादी बाम्बे चक्कर पर जा रही हैं) चक्कर लगाना है तो चक्कर पर तो जायेंगे। बिना चक्कर के चक्रवर्ता राजा नहीं बनेंगे। आप लोगों को भी चक्कर लगाना अच्छा लगता है ना। जब कोई निमन्त्रण मिलता है तो कितनी खुशी होती है। अच्छा है, चक्कर लगाना अर्थात् अपने अनुभवी मूर्त में और मार्क्स बढ़ाना। जमा होता जाता है। लेकिन ऐसे नहीं सोचना कि हमको चक्कर का निमन्त्रण नहीं मिला तो शायद मैं अच्छी नहीं हूँ। ये नहीं सोचना। कोई मुख से भाषण करते, कोई मन से करते। सिर्फ भाषण करना सेवा नहीं है। ये भी एक विधि है। लेकिन चाहे मन्सा करो, चाहे वाचा करो, चाहे कर्मणा करो, सम्बन्ध­सम्पर्क से करो, चारों ही के मार्क्स 100 हैं। 100 सभी की मार्क्स है। कर्मणा वाले को 50 मिलेगा, भाषण वाले को 100 मिलेगा, ऐसा नहीं है। कोई भी सेवा करो लेकिन सेवाधारी बन सेवा करो, निःस्वार्थ सेवा करो तो सेवा का मेवा मिला हुआ ही है। ऐसे समझते हो ना? या बड़ी­बड़ी कांफ्रेंस में भाषण करना ही सेवा है? वो तो एक­दो ही जायेंगे ना, इतने लाखों के लाख चले जायें तो भाषण कैसे होगा। सुनाने वाले 3 लाख और सुनने वाले 100 वो कैसे होगा! तो ऐसे कभी भी नहीं समझना कि मेरे को सेवा का चांस नहीं मिला तो मैं सेवा के योग्य नहीं हूँ। कभी भी दिलशिकस्त नहीं होना। बापदादा के पास सब रिकॉर्ड होते हैं। चांस मिला, नहीं मिला, लेकिन मंसा का चांस ले लिया तो वो चक्कर लगाकर भाषण करके आई, आपने मंसा सेवा किया तो मार्क्स आपको वैसे ही मिलेंगे। इसीलिये कभी यह फिक्र नहीं करना कि मेरा तो भाग्य ही ऐसा है। नहीं, बहुत बड़ा भाग्य है। सन्तुष्ट रहना, चाहे कर्मणा हो, चाहे वाचा हो, चाहे मंसा हो, सन्तुष्ट रहना इसमें मार्क्स मिलनी है। भाषण में गये असन्तुष्ट हो गये, खिटखिट हो गई, खत्म, मार्क्स एक भी नहीं। आप घर बैठे बहुत अच्छी स्थिति में रहे तो आपको 100 मार्क्स मिलेगी। तो हिसाब पूरा है। हिसाब में ऊपर­नीचे नहीं होगा, आपको फुल मार्क्स मिलेंगी। कोई भी सेवा करो लेकिन सच्चे दिल से। मैं और मेरापन नहीं। सेवा भाव। मै­पन का भाव नहीं। अगर सेवाभाव है तो आपको फल पहले मिलेगा। चाहे सदा रोटी पकाते हो, कोई हर्जा नहीं। तो भी 100 मार्क्स मिलेगी। सच्ची दिल से करते हैं ना, तो रोटी बनाते हुए आप जो बल भरते हैं वही भाषण वालों को काम में आता है। समझा! इसीलिये दिलशिकस्त नहीं होना, मेरा नाम कभी भी कोई कांफ्रेंस में नहीं आया, मेरा नाम ही कोई नहीं लेता, शायद मैं पीछे हूँ....। नहीं, सन्तुष्ट रहो, सन्तुष्टता ही सफलता का साधन है। कहाँ भी रहो, सन्तुष्ट रहो। ठीक है ना कि कभी­कभी सोचते हो कि महारथी तो यही बनेंगे। हम तो महारथी के लिस्ट में आ नहीं सकते। नहीं, पहले महारथी नम्बरवन आप हो। बाप की लिस्ट में महारथी आप हो। समझा! तो कभी ऐसा­ऐसा फेस नहीं करना। बापदादा बहुत फेस देखते हैं, कभी ऐसा, कभी ऐसा! नहीं, सदा मुस्कराते रहो। अच्छा, सभी ठीक है?

(मुन्नी बहन ने बापदादा के सामने फल की थाली सजाकर रखी) आपकी मूर्ति की भी विधिपूर्वक पूजा होगी। अच्छा है विधि पूर्वक बनाना, रखना-यह भी एक विशेषता है। यह भी आना चाहिये। ऐसे नहीं, जैसा आया वैसे भोग लगा दिया। आधा कच्चा, आधा पक्का लगा दिया कभी बनाने की सुस्ती हुई तो एक फल ही रख दिया। (डबल विदेशियों को देखते हुए) यह थक जाते हैं ना, डबल काम करते हैं, लौकिक काम भी करते हैं, सेन्टर भी सम्भालते हैं, अपना पुरूषार्थ भी करते हैं इसलिये थक जाते हैं। ऐसे चलाना नहीं। एक चीज़ ही प्यार से बनाओ। तीन नहीं बनाओ लेकिन एक भी प्यार से बनाओ। ऐसे नहीं कि ब्रेड तो बना हुआ है ब्रेड का ही भोग लगा दो-चलाना नहीं। जितनी विधि उतनी सिद्धि। अगर विधिपूर्वक करते हैं तो सिद्धि भी मिलती है। ब्राह्मण का अर्थ ही है-हर कार्य में एक्युरेट, शुद्धिपूर्वक। शुद्धि भी हो, विधि भी हो-दोनों चाहिये। अच्छा। ओम् शान्ति।



16-03-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मा की निशानी - सन्तुष्टता और प्रसन्नता

आज सर्व प्राप्तियाँ कराने वाले बापदादा अपने चारों ओर के प्राप्ति सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। सर्व प्राप्तियों के दाता सम्पन्न और सम्पूर्ण बाप के बच्चे हैं तो हर एक बच्चे को बाप ने सर्व प्राप्तियों का वर्सा दिया है। ऐसे नहीं-किसको 10 दिया हो, किसको 20 दिया हो। सभी बच्चों को सर्व प्राप्तियों का अधिकार दिया है। सभी बच्चे फुल वर्से के अधिकारी हैं। तो बापदादा देख रहे हैं कि हर एक अधिकारी बच्चों ने अपने में प्राप्तियों का अधिकार कितना प्राप्त किया है? बाप ने सर्व दिया है। बाप को सर्व शक्तिमान् वा सम्पन्न सागर कहते हैं। लेकिन बच्चों ने उन प्राप्तियों को कहाँ तक अपना बनाया है? बाप का दिया हुआ वर्सा जब अपना बना लेते हैं तो जितना अपना बनाते हैं उतना नशा और खुशी रहती है-मेरा खज़ाना है। दिया बाप ने लेकिन अपने में धारण कर अपना बना लिया। तो क्या देखा? कि अपना बनाने में नम्बरवार हो गये हैं। बाप ने नम्बर नहीं बनाये हैं लेकिन अपने­अपने धारणा की यथा­शक्ति ने नम्बरवार बना दिया है। सम्पूर्ण अधिकार वा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा जो सदा अमृतवेले से रात तक प्राप्तियों के नशे वा अनुभव में रहती है, उनकी निशानी क्या होगी? प्राप्तियों की निशानी है सन्तुष्टता। वो सदा सन्तुष्टमणि बन दूसरों को भी सन्तुष्टता की झलक का वायब्रेशन फैलाते रहते हैं। उनका चेहरा सदा प्रसन्नचित्त दिखाई देगा। प्रसन्नचित्त अर्थात् सर्व प्रश्नचित्त से न्यारा। कोई प्रश्न नहीं होगा, प्रसन्न होगा। क्यों, क्या, कैसे-यह सब समाप्त। तो ऐसे प्रसन्नचित्त बने हो? कि अभी भी कभी­कभी कोई प्रश्न उठता है कि ये क्या है, ये क्यों है, ये कैसे होगा, कब होगा? ये प्रश्न चाहे मन में, चाहे दूसरों से उठता है? प्रश्नचित्त हो या प्रसन्नचित्त हो? या कभी प्रश्नचित्त, कभी प्रसन्नचित्त? क्या है? वैसे गायन है-अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खज़ाने में। ये किसका, किन ब्राह्मणों का गायन है? आपका है या दूसरे आने वाले हैं? आप ही हो! तो जब कोई अप्राप्ति होती है ना, अप्राप्ति असन्तुष्टता का कारण है। अपना अनुभव देखो-कभी भी मन असन्तुष्ट होता है तो कारण क्या होता है? कोई न कोई अप्राप्ति का अनुभव करते हो तब असन्तुष्टता होती है। गायन तो है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु। ये अब का गायन है या विनाश के समय का? विनाश के समय सम्पन्न हो जायेंगे कि अभी होना है? जो समझते हैं कि हम सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं, कभी भी किसी भी बात में, चाहे अपने सम्बन्ध में, चाहे दूसरों के सम्बन्ध में भी प्रश्न नहीं उठता, सदा सन्तुष्ट रहते हैं-ऐसी सन्तुष्ट आत्मायें कितनी होंगी? बहुत हैं! अच्छा, जो समझते हैं सदा प्रसन्न रहते हैं, चाहे माया कितना भी हिलाये, लेकिन हम नहीं हिलते, माया को हिला देते हैं, माया नमस्कार करती है, हम नहीं हिलते हैं, हम अंगद हैं, माया हार जाती लेकिन हम विजयी हैं, जो ऐसे हैं वो हाथ उठाओ, सदा शब्द याद रखना, कभी­कभी वाले नहीं। बहुत थोड़े हैं, कोटो में कोई हैं! क्वेश्चनमार्क उठता तो है ना। क्वेश्चनमार्क डिक्शनरी से निकल जाये। हलचल भी न हो। कम्प्युटर चलाते हो तो उसमें आता है ना? तो आपके बुद्धि रूपी कम्प्युटर में सदा फुलस्टॉप की मात्रा आये। क्वेश्चन मार्क, आश्चर्य की मात्रा खत्म। इसको कहा जाता है सदा प्रसन्नचित्त। ऐसा प्रसन्नचित्त औरों का भी क्वेश्चन मार्क खत्म कर देता है। नहीं तो स्वयं में अगर क्वेश्चन मार्क है तो कोई भी बात सुनेंगे, देखेंगे, कहेंगे-हाँ, ये तो होना नहीं चाहिये, लेकिन होता है, मैं भी समझती हूँ, होना नहीं चाहिये, मिक्स हो जायेंगे। उसके प्रश्न को और अण्डरलाइन कर देंगे। टेका तो दे दिया ना-कि हाँ, ये ठीक नहीं है लेकिन होता है....। तो प्रसन्नचित्त उसको नहीं किया लेकिन और ही प्रश्न को बढ़ा लिया। एडीशन हो गई। वैसे एक का क्वेश्चन था, अभी दो का हो गया, दो से चार का हो जायेगा। तो प्रसन्नचित्त वायब्रेशन के बजाय प्रश्नचित्त का वायब्रेशन जल्दी फैलता है। हाँ! ऐसा है.... साथ दे दिया। आश्चर्य की मात्रा आ गई ना-हाँ! तो फुलस्टॉप तो नहीं हुआ ना। चाहे अपने प्रति भी-ये मेरे से होना नहीं चाहिये, ये मेरे को मिलना चाहिये, ये दूसरे को नहीं होना चाहिये, तो ये चाहिये­चाहिये प्रश्नचित्त बना देती है, प्रसन्नचित्त नहीं। तो सभी का लक्ष्य क्या है? सन्तुष्ट, प्रसन्नचित्त।

जिसका प्रसन्नचित्त होता है उसके मन­बुद्धि के व्यर्थ की गति फास्ट नहीं होगी। सदा निर्मल, निर्मान। निर्मान होने के कारण सभी को अपने प्रसन्नचित्त की छाया में शीतलता देंगे। कैसा भी आग समान जला हुआ, बहुत गरम दिमाग का हो लेकिन प्रसन्नचित्त के वायब्रेशन की छाया में शीतल हो जायेगा। कमज़ोरी क्या आती है? वैसे ठीक चलते हो, अपने रीति से अच्छे चलते हो लेकिन जब सम्बन्ध­सम्पर्क में आते हो तो दूसरे की कमज़ोरी देखते­सुनते, वर्णन करते प्रभाव में आ जाते हो। फिर कहते हो कि इसने किया ना, इसीलिये मेरे से भी हो गया। इसने कहा, तभी मैंने कहा। उसने 50 बारी कहा, मैंने एक बारी कहा। फिर बाप के आगे भी बहुत मीठी­मीठी बातें रखते हैं, कहते हैं-बाबा आप समझो ना इतना सहन कहाँ तक करेंगे! फिर भी पुरूषार्थी हैं ना, तो थोड़ा तो आयेगा ना! बाप को भी समझाने लगते हैं। यहाँ जो निमित्त हैं उन्हों वो बहुत कथायें सुनाते हैं। ऐसा था ना, ऐसा था ना, ऐसा था ना.... ऐसे­ऐसे की माला जपते हैं। बापदादा सदा ही इशारा देते हैं कि ऐसी बातें दो अक्षर में वर्णन करो। लम्बा वर्णन नहीं करो। क्योंकि ये व्यर्थ बातें बहुत चटपटी होती हैं। मजेदार लगती हैं, जैसे खाने में भी खट्टी­मीठी चीज़ हो तो अच्छी लगेगी ना, और फीकी, सादी हो तो कहेंगे ये तो खाते ही रहते हैं। तो व्यर्थ बातें, व्यर्थ चिन्तन सुनना, बोलना और करना इसमें चलते­चलते इन्ट्रेस्ट बढ़ जाता है। फिर सोचते हैं-मैं तो नहीं चाहती थी लेकिन उसने सुनाया ना तो मैंने कहा कि अच्छा उसका सुन लें, दिल खाली कर दें। उसकी तो दिल खाली हुई और अपना दिल भर लिया। वो थोड़ा­थोड़ा दिल में भरते­भरते फिर संस्कार बन जाता है और जब संस्कार बन जाता है तो महसूस ही नहीं होता कि ये राँग है। ये व्यर्थ संस्कार बुद्धि के निर्णय को खत्म कर देता है। इसलिये सबसे सहज सदा सन्तुष्ट रहने की विधि है-सदा अपने सामने कोई न कोई विशेष प्राप्ति को रखो। क्योंकि प्राप्ति भूलती नहीं है। ज्ञान की पॉइन्ट्स भूल सकती हैं लेकिन कोई भी प्राप्ति भूलती नहीं है। बाप से क्या­क्या मिला, कितना मिला है, वेरायटी पसन्द आती है ना! एक जैसा पसन्द नहीं होता। तो आप अपने प्राप्तियों को देखो-ज्ञान के खज़ाने की प्राप्ति कितनी है, योग से शक्तियों की प्राप्ति कितनी है, दिव्यगुणों की प्राप्तियाँ कितनी हैं, प्रैक्टिकल नशे में, खुशी में रहने की प्राप्तियाँ कितनी हैं? बहुत लिस्ट है ना! पहले भी सुनाया था कि कभी कोई, कभी कोई गुण की प्राप्ति को सामने रखते हुए सन्तुष्ट रहो। क्योंकि एक गुण भी अपनाया तो जैसे विकारों का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है, अगर बाहर के रूप में इमर्ज रीति से क्रोध है लेकिन आन्तरिक चेक करो तो क्रोध के साथ लोभ, अहंकार होता ही है। ये सब आपस में साथी हैं। कोई इमर्ज रूप में होते हैं, कोई मर्ज रूप में होते हैं। तो गुण भी जो हैं उन्हों का भी आपस में सम्बन्ध है। इमर्ज एक गुण को रखो लेकिन दूसरे गुण भी उनके साथ ही मर्ज रूप में होते हैं। तो रोज कोई न कोई प्राप्ति स्वरूप का अनुभव अवश्य करो। अगर प्राप्ति इमर्ज रूप में होगी तो प्राप्ति के आगे अप्राप्ति खत्म हो जायेगी और सदा सन्तुष्ट रहेंगे। वैसे भी देखो, दुनिया में भी मुख्य प्राप्ति सभी क्या चाहते हैं?

हर एक चाहता है कि अपना नाम अच्छा हो, दूसरा मान और तीसरा शान। नाम­मान­शान-ये प्राप्त करना चाहते हैं। आप भी क्या चाहते हो? आप भी तो यही चाहते हो ना! हद का नहीं, बेहद का। तो दुनिया वाले तो हद के नाम के पिछाड़ी दौड़ते हैं और आपका नाम विश्व में जितना ऊंचा है उतना और किसका है? तो आप अपने नाम को देखो। सबसे नाम की विशेषता ये है कि आपका नाम कौन जपता है? स्वयं भगवान आपका नाम जपता है! तो इससे बड़ा नाम क्या होगा! आपके नाम से अभी लास्ट जन्म में भी अनेक आत्मायें अपना शरीर निर्वाह चला रही हैं। आप ब्राह्मण हो ना, तो ब्राह्मणों के नाम से आज भी नामधारी ब्राह्मण कितना कमा रहे हैं! अभी तक नामधारी ब्राह्मण भी कितना ऊंचे गाये जाते हैं! तो आपके नाम की कितनी महिमा है! इतना श्रेष्ठ नाम आपका हो गया, इसीलिये हद के नाम के पीछे नहीं जाओ। मेरा नाम तो कभी किसी में लेते ही नहीं हैं, मेरा नाम सदा पीछे ही रहता है, सेवा मैं करती हूँ नाम दूसरे का हो जाता है...., तो हद के नाम के पीछे नहीं जाओ। बाप के दिल में आपका नाम सदा ही श्रेष्ठ है। जब बाप के दिल में नाम हो गया तो कोई सेवा में या कोई प्रोग्राम में या कोई भी बातों में आपका नाम नहीं भी आया तो क्या हर्जा, बाप के पास तो है ना! जैसे भक्ति मार्ग में हनुमान का चित्र दिखाते हैं ना तो उसके दिल में क्या था? राम था। और बाप के दिल में क्या है? (बच्चे) तो बच्चों में आप हो या नहीं हो? तो सभी का नाम है! देखा है, पक्का? कभी मिस हो गया हो तो! आप सभी का नाम है! तो और नाम के पीछे क्यों पड़ते हो? क्योंकि मैजारिटी यही नाम­मान­शान गिराता भी है और यही नाम­मान­शान नशा भी चढ़ाता है। तो प्राप्ति के रूप में देखो। अगर मानों कोई कारण से आपका नाम गुप्त है और आप समझते हो कि मेरा नाम होना चाहिये, यथार्थ है फिर भी अगर किसी आत्मा से हिसाबकिताब के कारण या उसके संस्कार के कारण आपका नाम नहीं होता है, आप राइट हो, वो रांग है फिर भी उसका नाम होता है, आपका नहीं, तो विजय माला में आपका नाम निश्चित है। इसीलिये इसकी भी परवाह नहीं करो। इस रूप में माया ज्यादा आती है। इसलिये अभी गलती से नाम मिस हो भी गया, कोई हर्जा नहीं लेकिन विजय माला में आपका नाम मिस नहीं हो सकता। पहले आपका नाम होगा। तो अपने नाम की महिमा याद रखो कि मेरा नाम बाप के दिल पर है, विजय माला में है, अन्त तक मेरा नाम सेवा कर रहा है।

और आपका मान कितना है? भगवान ने भी आपको अपने से आगे रखा है! पहले बच्चे। तो स्वयं बाप ने मान दे दिया। कितना आपका मान है, उसका प्रुफ देखो कि आपके जड़ चित्रों का भी लास्ट जन्म तक कितना मान है! चाहे जाने, नहीं जाने लेकिन कोई भी देवी­देवता का चित्र होगा तो कितने मान से उसको देखते हैं! सबसे श्रेष्ठ मान अब तक आपके चित्रों का भी है। ये प्रुफ है। जब आपके चित्र ही इतने माननीय, पूजनीय हैं तो जिसका मान रखा जाता है उसको पूजनीय माना जाता है। हमेशा कहते हैं ना-यह हमारे पूजनीय हैं, पूज्य हैं। तो प्रैक्टिकल प्रुफ है कि आपके चित्रों का भी मान है तो चैतन्य में हैं तब भी चित्रों का मान है। अगर चैतन्य में मान नहीं होता तो चित्रों को कैसे मिलता? बाप तो सदा कहते हैं-पहले बच्चे। बच्चे डबल पूजे जाते हैं, बाप सिंगल। तो आपका मान बाप से ज्यादा हुआ ना! इतना श्रेष्ठ मान मिल गया! तो जब भी कोई हद के मान की बात आये तो सोचना कि आत्माओं का मान क्या करेगा जब परम आत्मा का मान मिल गया। ऐसे नहीं सोचो-कि हम इतना कुछ करते हैं फिर भी मान नहीं देते, पूछते ही नहीं हैं! ये सोचना व्यर्थ है। क्योंकि जितना आप हद के मान के पीछे दौड़ लगायेंगे ना तो ये हद की कोई भी चीज़ परछाई के समान है। परछाई के पीछे पड़ने से कभी परछाई मिलती है कि और आगे बढ़ती जाती है? तो ये हद का मान, हद का नाम-ये परछाई है। ये माया के धूप में दिखाई देती है लेकिन है कुछ भी नहीं। तो नाम भी आपको मिल गया, मान भी आपको मिला हुआ है और शान कितना है! अपने एक­एक शान को याद करो और किसने शान में बिठाया? बाप ने बिठाया। बाप के दिलतख्तन­शीन हैं। सबसे बड़े ते बड़ी शान राज्य पद है ना! तो आपको तख्त­ताज मिल गया है ना! जो परम आत्मा के तख्तनशीन हैं इससे बड़ी शान क्या है!

कभी­कभी निर्णय करने में एक छोटी­सी गलती कर देते हो। जो रीयल शान है, रूहानी शान है वो कभी भी अभिमान की फीलिंग नहीं देगा। तो कभी­कभी क्या करते हो? होता अभिमान है लेकिन समझते हो कि ये शान तो अपना रखना चाहिये, इतना शान तो रखना चाहिये ना, शान में रहना अच्छा होता है, लेकिन शान है या अभिमान है, उसको अच्छी तरह से चेक करो। कभी­कभी अभिमान को शान समझ लेते हैं और फिर निर्मान नहीं होते हैं। आप अपने शान को रीयल समझते हो लेकिन दूसरे समझते हैं कि ये अभिमान है तो थोड़ा भी कुछ कह देंगे तो आपको अपमान लगेगा। अभिमान वाले को अपमान बहुत जल्दी फील होगा। थोड़ा भी किसने हंसी में भी कुछ कह दिया तो अपमान लगेगा। ये अभिमान की निशानी है। सोचेंगे-नहीं, मैं तो ऐसा हूँ नहीं, ऐसे थोड़ेही कहना चाहिये। तो निर्णय ठीक करो। उस समय निर्णय में कमी कर लेते हो। यथार्थ के बजाय मिक्स होता है और आप उसको यथार्थ समझ लेते हो। तो कहने में आता है कि ये हैं बहुत अच्छे लेकिन बोलचाल, उठना, बैठना जो है ना वो अभिमान का लगता है। ये भी किसी ने कहा तो अपमान की फीलिंग आ जायेगी। तो स्वमान और अभिमान के अन्तर को भी चेक करो। स्वमान कितना बड़ा है, शान कितनी बड़ी है, उस बेहद के नाम, मान और शान को सदा इमर्ज रखो। मर्ज नहीं, इमर्ज करो। जैसे याद में कभी­कभी अलबेलापन आ जाता है तो कहते हैं हम हैं ही बाप के, याद क्या करें....। लेकिन इमर्ज संकल्प से प्राप्ति का अनुभव होता है। ऐसे ही हर धारणा में अलर्ट रहो, अलबेले नहीं बनो। क्योंकि समय समीप आ रहा है और समय समीप क्या सूचना दे रहा है? समान बनो, सम्पन्न बनो। तो समय की चैलेन्ज को देखो। आपको कोई भी अप्राप्ति नहीं है। और क्या प्राप्ति होती है? अगर स्थूल रीति से देखो तो तन्दुरूस्ती चाहिये, सम्पत्ति चाहिये, सम्बन्ध चाहिये-यही प्राप्ति में चाहिये ना। तो आपकी आत्मा कितनी तन्दुरूस्त है? आत्मा में लो ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड प्रेशर होता है क्या? नहीं, सदा तन्दुरूस्त। क्योंकि अमृतवेले हर रोज बापदादा सदा तन्दुरूस्त भव का वरदान देता है। शरीर का तो हिसाबकिताब है लेकिन आत्मा सदा तन्दुरूस्त। आत्मा को कोई बीमारी नहीं है। तो आत्मा की तन्दुरूस्ती है ना? कि कभी­कभी बीमार पड़ जाते हो?

डबल विदेशी बीमार पड़ते हैं? कि थोड़ा­थोड़ा रेस्ट कर लेते हैं? डबल विदेशी अर्थात् डबल हेल्दी। और ऐसे डबल हेल्दी को देख करके बीमार भी हेल्दी हो जायेगा। तो तन्दुरूस्ती की प्राप्ति आपको कितनी बड़ी है। और सम्बन्ध में देखो, दुनिया वालों को तो कोई सम्बन्ध होगा, कोई नहीं होगा। होगा तो कभी वो सम्बन्ध खत्म भी हो जायेगा, लेकिन आपके सर्व सम्बन्ध एक बाप से हैं। कोई सम्बन्ध की कमी है क्या? कि सिर्फ बाप है, फ्रेंड नहीं है-ऐसे तो नहीं समझते ना! सर्व सम्बन्ध बाप से हैं। किसी भी सम्बन्ध से बाप को याद करो तो बाप सदा वह सम्बन्ध निभाने के लिये हाजर है। बाप को क्या देरी लगती है! एक ही समय पर सबसे सम्बन्ध निभा सकते हैं। ऐसे नहीं, मैं तो फ्रेंड का सम्बन्ध चाहती थी लेकिन बाबा दूसरे में बिजी था! ऐसे तो नहीं समझते ना? जिस सेकण्ड जिस सम्बन्ध से याद करो-उस सम्बन्ध में बाप कहते हैं हे बालक सो मालिक, जी हाजिर। मालिक बुलावे और पहुँचे नहीं, ये कैसे हो सकता है! तो सम्बन्ध में भी देखो-सर्व सम्बन्ध की प्राप्ति है? यह अनुभव है कि सिर्फ सुना है?

जब भी अपनी अवस्था अनुसार बिन्दी नहीं याद आवे, बिन्दी सूक्ष्म है ना, आपकी स्थिति या अवस्था कमज़ोर है, स्थूल में है तो सूक्ष्म बिन्दी याद करते भी याद नहीं आयेगी, तो ऐसे टाइम पर युद्ध नहीं करो-नहीं, बिन्दी होनी चाहिये, बिन्दी आवे, बिन्दी आवे....। प्राप्ति याद करो, सम्बन्ध याद करो, साकार मिलन याद करो, अपना भिन्नभिन्न विचित्र अनुभव याद करो। वो तो सहज है ना। किसी को भी भाषण करने नहीं आये और समझे कि मैं तो भाषण करने वाली बनी नहीं। सबसे अच्छे ते अच्छा भाषण है-अनुभव सुनाना। ये सभी को आता है या नहीं? इसके लिये तैयारी चाहिये क्या? कौन­सी पॉइन्ट बोलूँ, कौन­सी नहीं? अनुभव के रूप से बोलो तो देखो नम्बरवन हो जायेंगे। अपने भिन्नभिन्न अनुभव जो किये हैं वो बांटते जाओ तो बढ़ता जायेगा। सभी को भाषण करना आता है, पांच वर्ष के बच्चे को भी आता है। तो युद्ध में समय नहीं गँवाओ। नहीं, यही होना चाहिये, नहीं। किसी भी विधि से व्यर्थ को समाप्त करो और समर्थ को इमर्ज करो। युद्ध करते­करते क्या होता है? कमज़ोरी के संस्कार पड़ जाते हैं। फिर सोचते कि मेरे से तो होता ही नहीं है, बाबा कहते हैं विकर्म विनाश करो, मेरे से तो होता नहीं है। विकर्म विनाश नहीं होता तो सुकर्म तो बनाओ ना, व्यर्थ में टाइम नहीं गंवाओ। तो जितना जितना श्रेष्ठ कर्मों का खाता बढ़ता जायेगा तो भी विकर्मों का खाता खत्म होता जायेगा। इसीलिये समय को नहीं गँवाओ। सबसे बड़े ते बड़ा मूल्य है समय का। क्योंकि इस समय का गायन है-अब नहीं तो कब नहीं। एक­एक सेकण्ड-अब नहीं तो कब नहीं। चलते फिरते, रास्ते चलते दो बातें सुन ली, दो बातें कर ली-ये भी समय जाता है। और जितना समय गँवाते हैं ना तो व्यर्थ के संस्कार पक्के होते जाते हैं। कोई लम्बी बात करे तो उसको शॉर्ट करो। सुनाया ना-व्यर्थ बात का वर्णन बहुत लम्बा होता है। तो व्यर्थ को बचाओ। समझने में ऐसे होता है-मैंने तो कुछ नहीं किया, न सुना, न बोला लेकिन चलते­चलते दो शब्द उसने बोला, दो शब्द उससे बोला और व्यर्थ का खाता जमा हो जाता है। सुनने से भी व्यर्थ जमा होता है। अगर कोई व्यर्थ सुनाते भी हैं तो उसको भी शॉर्ट करो, उसको सिखाओ। यह है शुद्ध सेवा, रहम करना। रहमदिल हो ना!

अच्छा, आज होली मनाने आये हो। तो होली तो आप बन गये हो, अभी क्या होली मनायेंगे? होली बन गये हैं, होली हंस हो ना! ये होली आत्माओं की सभा कितनी न्यारी और प्यारी लगती है। होली की विशेषता है ही रंग लगाने की। आप सभी को तो रूहानी रंग लग गया। पक्का लग गया ना कि थोड़ी माया की धूप में रंग उड़ जायेगा। नहीं उड़ेगा! दुनिया वाले तो एक दिन के लिये मनोरंजन करते हैं और आपका सदा ही मनोरंजन है। मन नाचता­खेलता रहता है। वास्तव में सब उत्सव आपके जीवन का यादगार हैं। होली की विशेषता रंग लगाना, होली जलाना और फिर मंगल मिलन मनाना। जब बाप के संग के रंग में रंग गये, सबसे बड़े ते बड़ा, अच्छे ते अच्छा रंग है सदा बाप का संग। तो सदा संग है ना। तो सदा ही होली है। क्योंकि संग का रंग सदा ही है। और जब बाप के साथ रहते हो, संग रहते हो तो बुराइयाँ तो स्वत: ही जल जाती हैं। अपवित्रता को जलाना ये होली जलाना है। और जब रंग में रंग जाते हैं, बुराइयाँ जल जाती हैं तो क्या होता है? मंगल मिलन। सदा एक­दो से मिलते हो तो शुभ भावना सबके प्रति रखते हो, तो ये शुभ भावना से मिलना-ये है मंगल मिलन। सदा ही शुभ है। तो मंगल मिलन शुभ मिलन है। चाहे कैसी भी आत्मा हो लेकिन आप शुभ भावना से उनको भी परिवर्तन कर देते हो। तो सदा मंगल मिलन बाप से भी और अपने में भी मनाते ही रहते हो। वो होली है नुकसान की और आपकी होली है फायदे की। वहाँ कितना नुकसान होता है! रंग का नुकसान, समय का नुकसान, कपड़ों का भी नुकसान। और आपका है जमा करने का। होली मनाना अच्छा लगता है, रंग डालना अच्छा लगता है? देवताओं के समान थोड़ा­बहुत सुहेज करना वो है दिन को महत्व देना। बाकी ज्यादा रंग लगाना तो दुनिया जैसे हो जाते हैं। सदा होलीएस्ट बनने की होली की मुबारक। वो तो विशेष उत्सव पर मीठा मुख करते हैं और आप तो हर गुरूवार को मीठा मुख करते हो। भोग मीठा बनाते हो ना? या मीठा नहीं बनाते, नमकीन रख देते हो! डबल फॉरेनर्स बनाते हैं? कि ब्रेड का भोग लगा देते हो? सुनाया था ना कि ये भी विधि है। तो विधि को अपनाने से खुशी होती है। जैसे कोई अपना प्यारा आ जाता है तो क्या करते हो? प्यार से उसके लिये बनाते हो ना। बाप से प्यार है तो दो चीज़ भल नहीं बनाओ, एक ही चीज़ बनाओ लेकिन बनाओ प्यार से और विधिपूर्वक। ऐसे नहीं, ऑफिस का टाइम हो गया और गैस पर हलुआ बन रहा है, टाइम नहीं है तो यही लगा दो। (सभी हँस रहे हैं) अच्छा नहीं लगता है ना इसीलिये हँसी आती है। बापदादा तो आपके प्यार का फल भी प्यार से ही स्वीकार करते हैं लेकिन जो स्टूडेण्ट आते हैं वो अपने­अपने स्थान पर इतनी चीज़ें तो नहीं बना सकते इसीलिये बाप बच्चों के प्रति भी ये नियम रखते हैं। कम से कम हर गुरूवार उन्हों को वेरायटी मिलनी चाहिये। तो बाप भी खा लेंगे, बच्चे भी खा लेंगे।

मेहनत तो बहुत करते हो लेकिन मुहब्बत से मेहनत करते हो तो मेहनत मुहब्बत में बदल जाती है। वैसे तो डबल विदेशी स्वयं भी खाना बनाने के लिये टाइम नहीं होने के कारण जैसे आता है वैसे चलते रहते हैं। डबल विदेशियों का ब्रह्मा भोजन भी बहुत इजी है। इण्डिया का ब्रह्मा भोजन और डबल विदेश में ब्रह्मा भोजन-कितना फर्क होता है! जो इण्डियन बहनें हैं वो तो करते होंगे। लेकिन जहाँ सिर्फ डबल विदेशी हैं उन्हों का ब्रह्मा भोजन तो रोज हो सकता है। अच्छा है। तबियत के लिये भी ठीक है और सहज भी है। लेकिन गुरूवार को कुछ न कुछ बनाना।

अच्छा, सब तरफ से आये हैं। डबल विदेशियों ने भी रेस अच्छी की है। सब ठीक रहे हुए हो? पलंग मिला है या पटरानी, पटराणे बने हैं? सबको खटिया मिली है कि कोई पट में भी सोते हैं? सबको खटिया मिलती है। यह आपकी विशेष खातिरी है। पट में सो तो सकते हो ना या नहीं? कि कमर में दर्द पड़ेगा? जो मिले उसमें सन्तुष्ट रहो। अगर खटिया मिलती है तो भी ठीक, अगर धरनी मिलती है तो भी ठीक। आदत सब पड़नी चाहिये। अच्छा!

ब्राज़ील ज्यादा ग्रुप आया है इसीलिये खुशी है। बहुत अच्छा। (फर्स्ट टाइम वाले ज्यादा हैं) अच्छा है वृद्धि होना ये तो ड्रामा की नूंध है। ये तो बढ़ेगा। संख्या बढ़ना ये सेवा की वृद्धि की निशानी है। तो अच्छा है बापदादा खुश हैं कि सभी तरफ से मैजारिटी देखा गया कि चारों ओर के ग्रुप्स बढ़ करके ही आये हैं। जो अगले साल की संख्या है और इस साल की संख्या में काफी फर्क है। जब मधुबन तक इतने ज्यादा पहुँच गये हैं तो वहाँ भी तो होंगे ना। तो अच्छा है, सेवा के वृद्धि की सभी को मुबारक। अच्छा, ब्राजील वाले क्या करेंगे? कौन­सा नशा रखेंगे? (उमंग­उत्साह) बहुत ज्यादा उमंग है। तो सदा उमंग­उत्साह में रहना अर्थात् अपने श्रेष्ठ शान वा स्वमान में रहना। तो सबसे बड़ी शान है कि सदा खुश रहने वाले और दूसरों को खुशी बांटने वाले दाता के बच्चे हैं। सदा देने वाले हैं, लेने वाले नहीं। बाप से तो बिना मांगे भी मिलता ही रहता है। बाप से मिलता है और बच्चों को बांटना है तो सदा खुशी के खज़ाने को बांटने वाले महादानी। ये है ब्राजील वालों के लिये विशेष वरदान।

साउथ अमेरिका:­ उसमें कौन है हाथ उठाओ। (पांच देश हैं) तो पांच ही देश किस टाइटल को याद करेंगे? टाइटल तो बहुत हैं ना। हर रोज कोई न कोई विशेष शान का टाइटल मिलता है। तो ये पांच ही मिल करके क्या टाइटल याद रखेंगे? (सन्तुष्टमणि) अच्छा-मणि कहाँ होती है? ताज में होती है ना। तो सबसे ऊंचे स्थान पर मणि चमकती है। तो ये पांच ही सदा ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाले सन्तुष्टमणि बन अपनी सन्तुष्टता की लाइट चारों ओर फैलायेंगे। तो सदा सन्तुष्ट मणि भव। ये अच्छा है। दूर होते भी समीप हैं। देश दूर है लेकिन दिल से नजदीक हैं। समझा? अच्छा!

जर्मनी:­ जर्मनी वालों को अभी कोई नई कमाल करके दिखानी है। जो सभी ने किया है वो तो किया लेकिन जर्मनी वाले नवीनता क्या करेंगे? हाथ उठाओ जो समझते हैं नवीनता करके दिखायेंगे। ये तो बहुत हैं। एक­एक की अंगुली से नवीनता का पहाड़ तो उठा हुआ ही है। उठेगा नहीं, उठा हुआ ही है। सभी अच्छे हैं, उमंग­उत्साह है, अभी सिर्फ प्रैक्टिकल में लाना है। दिल में है लेकिन दिल के उमंग­उत्साह को बाहर में लाना है। ऐसी कमाल करके दिखाओ, जो किसी ने ऐसी आत्मायें तैयार नहीं की हो लेकिन जर्मनी ऐसी आत्मायें तैयार करें जो सब ताली बजायें-वाह जर्मनी, वाह! वैसे तो जर्मनी की मदद अभी भी अच्छी मिल रही है। अच्छी मेहनत कर रहे हैं। यहाँ हॉस्पिटल में कितनी मदद कर रहे हैं। हॉस्पिटल में तो मदद की है उसकी मुबारक हो। अभी ऐसा अच्छा सेवाकेन्द्र खोलो, जो उस सेवा स्थान के ऐसे वायब्रेशन हों जिससे हर एक को नवीनता का अनुभव हो। जैसे चुम्बक दूर से ही खींचता है ऐसे सेवास्थान की आत्माओं के वायब्रेशन सभी को आकर्षित करें। हिम्मत है ना! सेवाकेन्द्र खोलने की राय पसन्द है? जर्मनी वाले फिर से हाथ उठाओ। हिम्मत है? ये हिम्मत का हाथ है या वैसे! बापदादा देख रहे हैं कि आत्मायें अच्छी हैं। जो करना चाहें वो कर सकती हैं लेकिन अभी तक गुप्त रहे, अभी प्रत्यक्ष हो जायेंगे। तो सभी ब्राह्मणों की बापदादा सहित जर्मनी वालों को दुआएं हैं। कितनी दुआएं मिल गई! ठीक है ना! जब सब ब्राह्मणों की, बापदादा की विशेष नजर जर्मनी पर पड़ी तो क्या होगा? कमाल होगी। तो सदा सर्व को दुआएं देते हुए स्वयं को भी बाप की दुवाओं से भरपूर आत्मा अनुभव करते रहना। समझा? जर्मनी का सुन करके आप सभी को भी खुशी हो रही है ना। देखो कितनी खुशी है, सबके चेहरे मुस्करा रहे हैं। अच्छा!

कैनेडा:­ कैनेडा वाले क्या करेंगे? कैनेडा का स्थान तो बहुत बड़ा है, उसमें नवीनता क्या बनाई है? सेवाकेन्द्र तो सभी हैं लेकिन नवीनता क्या बनाई है? कैनेडा वालों को जैसे स्थान है उसी अनुसार कोई न कोई नवीनता करो, म्युजियम कॉमन नहीं, जो अभी तक हो चुका है वह कॉमन हो गया, अभी और इन्वेन्शन कर ऐसा बनाओ जैसे लौकिक हिस्ट्री में वण्डर्स गाये जाते हैं ना ऐसे कैनेडा का स्थान वण्डर्स में गाया जाये। हो सकता है? अगर हाँ है तो हाथ उठाओ। थोड़े हैं लेकिन साथ में और भी तो हैं ना। तो ऐसी कोई कमाल करके दिखाओ और सदा स्वयं को बाप के इन्स्टåमेन्ट समझकर करो। बाप करावनहार है, करावनहार की स्मृति से निमित्त बन कार्य करने वाली आत्मायें हैं। तो करावनहार के द्वारा हर कार्य सहज हो जाता है। समझा? बहुत अच्छे इन्स्टåमेन्ट हैं। अच्छा!

मैक्सिको:­ मैक्सिकों वालों की भी कमाल है। वहाँ के मनी की हालत तो खराब है लेकिन मैक्सिको के ब्राह्मणों की हालत सबसे अच्छी है। बेफिक्र बादशाह हैं। देश की हालत तो होनी ही है लेकिन वो कलियुग की हालत है और आप सभी संगमयुग पर बैठे हो। इसीलिये मैक्सिको वाले साक्षी दृष्टा बन हर दृश्य को देखने वाले हैं। हलचल में आने वाले नहीं, लेकिन साक्षीपन की सीट पर दृष्टा बन खेल देख रहे हैं और खेल में हर्षित हो रहे हैं। नीचे­ऊपर होने के प्रभाव से न्यारे और प्यारे। अच्छा है, देश की हालत लोगों को हिलाती है तो जब हिलते हैं ना तो और ही स्प्रिचुअलिटी की तरफ अटेन्शन जाता है। वैराग्य की धरनी तैयार होती है और जितनी वैराग्य की धरनी तैयार होती है उतना बीज फल जल्दी देता है। तो मैक्सिको को अभी और सेवा का चांस है। बढ़ो और बढ़ाओ। बाकी निश्चयबुद्धि अच्छे­अच्छे बच्चे सदा बाप के सामने हैं और सदा रहेंगे। समझा?

करेबियन:­ गयाना, ट्रिनीडाड, सुरीनाम, बारबेडोज.... सभी तरफ सेवा का अच्छा चांस है और चांस रहेगा। तो करेबियन जो हैं वो चांस लेने वाले विशेष चांसलर हैं। चांस अच्छा लेते रहते हैं। और जितना चांस लेते हैं उतना अपने को भी खुशी होती है और दूसरों को भी खुशी होती है। धरनी को अच्छा परिवर्तन किया है। पहले भक्ति की कठोर धरनी थी, अभी परिवर्तन होकर ज्ञान सुनने की जिज्ञासा वाले बने। तो भक्ति के ऊपर जीत प्राप्त कर ली ना, विजयी बन गये। अच्छी रिजल्ट है, बापदादा खुश हैं। समझा! चांसलर हैं। अच्छा, कितने नाम लेंगे, सभी को याद­प्यार तो मिलता ही है बाकी सभी के लिये, चाहे बड़े शहर हैं, चाहे छोटे हैं, छोटे और सिकीलधे हैं क्योंकि जहाँ छोटे होते हैं वहाँ खातिरी होती है और बहुत होते हैं तो बट जाता है। जैसे देखो डबल विदेशी थोड़े थे तो पर्सनल मिलते थे और बढ़ गये हैं तो बट गया। और छोटे सुभान अल्लाह हैं। सभी को बापदादा देखते हैं, ऐसे नहीं समझना सिर्फ अमेरिका अफ्रीका देखते हैं। सभी जगह चक्कर लगाते हैं। पहले छोटों को प्यार करते हैं फिर बड़ों को। तो सभी के लिये यही विशेष वरदान है कि बिन्दु और सिन्धु, जितना ही बिन्दु है उतना ही सिन्धु बनो। ज्ञान, गुण और शक्तियों की धारणा में सिन्धु बनो और स्मृति में बिन्दु बनो। बिन्दु बनो, बिन्दु को याद करो और बिन्दु लगाते चलो। तो बिन्दु स्मृति स्वरूप और धारणा में सिन्धु स्वरूप। यही लक्ष्य सब रखते चलो। अभी किसी भी प्रकार का वेस्ट खत्म करो। हर कर्म बेस्ट। हर सेकण्ड बेस्ट हो, बोल भी बेस्ट हो, सम्बन्ध­सम्पर्क सब बेस्ट हो। जितना बेस्ट करते जायेंगे तो वेस्ट स्वत: ही खत्म हो जायेगा। अभी वेस्ट का खाता कुछ दिखाई देता है, तो बापदादा को अच्छा नहीं लगता है। आपके सारे दिन की दिनचर्या चेक करते हैं, वहाँ चारों ओर सबकी टी.वी. लगी हुई है। एक­एक बच्चे की टी.वी. है, तो दिखाई तो देता है ना कि ये वेस्ट कर रहा है या बेस्ट कर रहा है। एक सेकण्ड में देख लेते हैं। तो अभी भी वेस्ट का खाता कुछ बेस्ट से ज्यादा लगता है। तो बापदादा को वेस्ट देखकर अच्छा लगेगा? तो इस वर्ष में यह प्रतिज्ञा करो कि वेस्ट खत्म करेंगे, बेस्ट बनेंगे। कितनी भी परीक्षा आये लेकिन परीक्षा परीक्षा है, प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा है। परीक्षा आये, प्रतिज्ञा याद करो। और जब सब बेस्ट बन जायेंगे तब ही प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। आपके लिये रूका हुआ है। ऐसे ही पर्दा खुल जाये और आप तैयार हो रहे हो तो अच्छा लगेगा! इसीलिये पर्दा बन्द है। कोई मन को ठीक कर रहा है, कोई तन को ठीक कर रहा है, कोई स्वभाव को, कोई संस्कार को और पर्दा खुल जाये तो ठीक लगेगा! इसीलिये जल्दी­जल्दी तैयार हो जाओ। डायमण्ड जुबली मनाने की तैयारी कर रहे हो ना। तो सब बेदाग डायमण्ड बन जायें। डायमण्ड जुबली का तो ये अर्थ है ना। मनाओ डायमण्ड जुबली और रहे फ्लो (इर्त्ी; दाग) वाले डायमण्ड, तो अच्छा लगेगा! इसीलिये इस वर्ष में तैयार हो जाओ। टी.वी. खुले तो सब बेस्ट, बेस्ट, बेस्ट हो। वेस्ट का नाम निशान ही दिखाई न देवे। हो सकता है? कि होना ही है? बापदादा ने तो जानबूझ कर कहा कि हो सकता है। आप जवाब दो-होना ही है। अच्छा।

चारों ओर के सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें, सदा सन्तुष्ट, सदा प्रसन्नय्चित्त रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा स्वयं को श्रेष्ठ नाम, मान, शान के अधिकारी अनुभव करने वाली समीप आत्मायें, सदा सर्व को सन्तुष्टता के वायब्रेशन की लाइट­माइट देने वाले प्रसन्नचित्त आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

(बापदादा के साथ जब दादियां स्टेज पर बैठीं तो सभी फोटो निकाल रहे हैं) क्या करेंगे इतने फोटो? डबल विदेशी फोटो बहुत निकालते हैं। आप सब कहते हो दिल में बाबा है तो फोटो क्यों निकालते हो? दिल में तो है ना। ये भी एक मनोरंजन है। अभी डबल विदेशी भी पक्के हो गये। पहले जल्दी डिस्टर्ब होते थे, अभी कम होते हैं। फर्क आ गया ना। अच्छे हैं, परिवर्तन अच्छा किया है। अभी मूड ऑफ करते हो? मूड ऑफ होती है? नहीं। आपके बुद्धि का स्वीच ऑन है तो मूड ऑफ नहीं होगी। जब स्विच ऑफ हो जाता है ना तो मूड ऑफ होती है। तो आपका तो ऑटोमेटिक स्विच है ना! कि फ्युज होता है? जिसका फ्युज होता है वो कन्फ्युज होता है। अभी फर्क है। अभी और भी फ्लाय करते­करते जो बाप चाहते हैं वो दिखायेंगे। लेकिन बापदादा का नाम प्रत्यक्ष करने में आप सभी विशेष निमित्त आत्मायें हो।

अहमदाबाद (सुख­शान्ति भवन ) के भाई­बहनों से:­ अच्छे हैं, सेवा भी अच्छी करते हैं। सबको सन्तुष्ट करना यही बड़े ते बड़ी सेवा कर रहे हो। चाहे सीजन में नहीं आये हो लेकिन बापदादा सदा ही याद करते हैं। तो सुख­शान्ति भवन वाले सदा सुख­शान्ति में रहने वाले हैं। अशान्ति का नामय्निशान नहीं। और बापदादा के पास सफलता की रिजल्ट है इसलिये मुबारक हो, मुबारक हो।

तलहटी में बापदादा के कार्यक्रम के लिये आये सेवाधारियों के प्रति-अच्छा है, गुजरात सेवा की जिम्मेदारी उठाने में नम्बर आगे लेते हैं। सारा गुजरात ही संगठन में सेवा के निमित्त बना है। जो निमित्त बनते हैं उन्हों को विशेष एक कदम पर पदम गुणा सहयोग मिलता है। इसीलिये हिम्मत भी अच्छी रखी है, मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं। प्रकृति थोड़ा हिलाती है लेकिन ये अचल हैं। अच्छा है, एक संगठन की शक्ति, दूसरी हिम्मत है तो कार्य सफल हुआ ही पड़ा है।

निर्वैर भाई ने बापदादा को गुलदस्ता भेंट किया- अच्छा, ज्ञान सरोवर का क्या हो रहा है? अभी बाकी जो रहा हुआ काम है उसमें अभी किसी भी ढंग से कम खर्चा बाला नशीन करके दिखाओ।

आप सभी ज्ञान सरोवर देख करके खुश होते हो ना? ज्ञान सरोवर किसने बनाया? (बाबा ने) आप सबने। अगर आप सबकी अंगुली नहीं होती तो ज्ञान सरोवर का पहाड़ कैसे उठता! बना तो अच्छा है। फिर भी जिसने जो किया है वो बहुत अच्छा किया है और आगे भी अच्छे ते अच्छा करते ही रहेंगे। ठीक है ना! सभी ने ज्ञान सरोवर में अंगुली लगाई है या किसी ने नहीं भी लगाई है? जो भी सभी बैठे हो, सभी ने अपनी अंगुली लगाई है ना? अच्छा।



25-03-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ब्राह्मण जीवन का सबसे श्रेष्ठ खज़ाना संकल्प का खज़ाना

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के खज़ानों के खाते देख रहे थे। हर एक बच्चे को खज़ाने बहुत मिले हैं और अविनाशी अनगिनत खज़ाने मिले हैं। सिर्फ इस जन्म के लिये नहीं लेकिन अनेक जन्मों की गैरेन्टी है। अब भी साथ हैं और आगे भी साथ रहेंगे। तो आज विशेष जो सबसे श्रेष्ठ खज़ाना है और सर्व खज़ानों का विशेष आधार है वो ही विशेष देख रहे थे कि सबके खाते में जमा कितना है? मिला अनगिनत है लेकिन जमा कितना है? तो सबसे श्रेष्ठ खज़ाना संकल्प का खज़ाना है और आप सबका श्रेष्ठ संकल्प ही ब्राह्मण जीवन का आधार है। संकल्प का खज़ाना बहुत शक्तिशाली है। संकल्प द्वारा सेकण्ड से भी कम समय में परमधाम तक पहुँच सकते हो। संकल्प शक्ति एक ऑटोमेटिक रॉकेट से भी तीव्र गति वाला रॉकेट है। जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। चाहे बैठे हो, चाहे कोई कर्म कर रहे हो लेकिन संकल्प के खज़ाने से वा शक्ति से जिस आत्मा के पास पहुँचना चाहो उसके समीप अपने को अनुभव कर सकते हो। जिस स्थान पर पहुँचना चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। जिस स्थिति को अपनाना चाहो, चाहे श्रेष्ठ हो, खुशी की हो, चाहे व्यर्थ हो, कमज़ोरी की हो, सेकण्ड के संकल्प से अपना सकते हो। संकल्प किया-मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ तो श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ अनुभूति होगी और संकल्प किया मैं तो कमज़ोर आत्मा हूँ, मेरे में कोई शक्ति नहीं है, तो सेकण्ड के संकल्प से खुशी गायब हो जायेगी। परेशानी के चिन्ह स्थिति में अनुभव होंगे। लेकिन दोनों स्थिति का आधार संकल्प है। याद में भी बैठते हो तो संकल्प के आधार से ही स्थिति बनाते हो। मैं बिन्दु हूँ, मैं फरिश्ता हूँ... यह स्थिति संकल्प से ही बनी। तो संकल्प कितना शक्तिशाली है!

ज्ञान का आधार भी संकल्प ही है। मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं हूँ-ये संकल्प करते हो। सारा दिन मन­बुद्धि को शुद्ध संकल्प देते हो वा मनन में शुद्ध संकल्प करते हो तो मनन शक्ति का आधार भी संकल्प शक्ति है। धारणा करते हो, मन­बुद्धि को संकल्प देते हो कि आज मुझे सहनशक्ति धारण करनी है तो धारणा का भी आधार संकल्प है। सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो तो भी शुद्ध संकल्प ही चलते हैं ना! शुद्ध संकल्प द्वारा ही प्लैन बनता है। अनुभव है ना! तो ब्राह्मण जीवन का विशेष श्रेष्ठ खज़ाना है संकल्प का खज़ाना। अगर आप संकल्प के खज़ाने को सफल करते हो तो आपकी स्थिति, कर्म सारा दिन बहुत अच्छा रहता है और संकल्प के खज़ाने को व्यर्थ गँवाते हो तो रिजल्ट क्या होती? जो स्थिति चाहते हो वो नहीं होती। और आप सब जानते हो कि व्यर्थ संकल्प बुद्धि को भी कमज़ोर करते हैं और स्थिति को भी कमज़ोर करते हैं। जिनका व्यर्थ चलता है उनकी बुद्धि कमज़ोर होती है, कन्फ्युजड होती है। निर्णय ठीक नहीं होगा। सदा मूंझा हुआ होगा। क्या करूँ, क्या न करूँ, स्पष्ट निर्णय नहीं होगा। और व्यर्थ संकल्प की गति बहुत फास्ट होती है। व्यर्थ संकल्प का तो सबको अनुभव होगा। विकल्प नहीं, व्यर्थ का अनुभव सभी को है। तो फास्ट गति होने के कारण उसको कन्ट्रोल नहीं कर पाते हैं। कन्ट्रोल खत्म हो जाता है। परेशानी या खुशी गायब होना या मन उदास रहना, अपने जीवन से मजा नहीं आना-ये व्यर्थ संकल्प की निशानियाँ हैं। कइयों को मालूम ही नहीं पड़ता कि मेरी स्थिति ऐसी हुई ही क्यों? वो मोटी­मोटी बातें देखते हैं कि कोई विकर्म तो किया ही नहीं, कोई गलती तो की नहीं फिर भी खुशी कम क्यों, उदासी क्यों, क्यों नहीं आज जीवन में मजा आ रहा है! मन नहीं लग रहा है। कारण? विकर्म को देखते, विकल्प को देखते, बड़ी गलतियों को चेक करते लेकिन ये सूक्ष्म गलती व्यर्थ खज़ाने गँवाने की होती है। जरूर वेस्ट का, व्यर्थ गँवाने का खाता बढ़ा हुआ है। जैसे शारीरिक रोग पहले बड़ा रूप नहीं होता, छोटा रूप होता है लेकिन छोटे से बढ़ते­बढ़ते बड़ा रूप हो जाता है और बड़ा रूप दिखाई देता है, छोटा रूप दिखाई नहीं देता है, वैसे ये व्यर्थ का खाता, गँवाने का खाता बढ़ता जाता, बढ़ता जाता। पाप का खाता अलग है, ये खज़ाने गँवाने का खाता है। पाप तो स्पष्ट दिखाई देता है तो महसूस कर लेते हो कि आज ये किया ना इसीलिये खुशी गुम हो गई। लेकिन व्यर्थ गँवाने का खाता, उसकी चेकिंग कम होती है। और आप समझते हो कि चलो, आज का दिन भी बीत गया, अच्छा हुआ, कोई ऐसी गलती नहीं की, लेकिन ये चेक किया कि अपने संकल्प के श्रेष्ठ खज़ाने को जमा किया या व्यर्थ गँवाया? यदि जमा नहीं होगा तो गँवाने का खाता होगा ना! अन्दर समझ में आता है कि बहुत कुछ कर रहे हैं, लेकिन खाता चेक करो-कि आज क्या­क्या खज़ाना जमा किया? चेक करना आता है? अपना चेकर बने हो या दूसरे का चेकर बने हो? क्योंकि अपने को अन्दर से देखना होता है, दूसरे को बाहर से देखना होता है, वो सहज हो जाता है। तो बापदादा देख रहे थे कि जो विशेष श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना है वह व्यर्थ बहुत जाता है। पता ही नहीं पड़ता है कि व्यर्थ गया या समर्थ है?

ब्रह्मा बाप को इकॉनॉमी का अवतार कहते हैं। आप सभी कौन हो? आप भी मास्टर हो या नहीं? इकॉनॉमी नहीं आती है? खर्च करना आता है! वैसे डबल फॉरेनर्स को लौकिक जीवन के हिसाब से जमा का खाता बनाना कम आता है। खाया और खर्चा, खत्म। बैंक बैलेन्स कम रखते हैं। लेकिन इसमें तो इकॉनॉमी का अवतार बनना पड़ेगा। तो बापदादा देख रहे थे कि जितना मिला है, जितना संकल्प का श्रेष्ठ खज़ाना जमा होना चाहिये उतना नहीं है, व्यर्थ का हिसाब ज्यादा देखा। अगर संकल्प व्यर्थ हुआ तो और खज़ाने व्यर्थ स्वत: ही हो जाते हैं। संकल्प व्यर्थ तो कर्म और बोल क्या होगा? व्यर्थ ही होगा ना! फाउण्डेशन है संकल्प। तो संकल्प को चेक करो। हल्का नहीं छोड़ो। ठीक है, सिर्फ दो मिनट ही तो हुआ, ज्यादा नहीं हुआ.... लेकिन दो मिनट में आप चेक करो कि कितने संकल्प चलते हैं? व्यर्थ संकल्प तो तेज होते हैं ना! एक सेकण्ड में आबू से अमेरिका पहुँच जायेंगे। वैसे पहुँचने में कितने घण्टे लगते हैं! तो इतनी फास्ट गति है, उस गति के प्रमाण चेक करो, अपने संकल्प शक्ति की बचत करो और फिर रात्रि को चेक करो। अगर अटेन्शन दे करके कोई भी चीज़ की बचत करते हैं तो चाहे बचत थोड़ी हो लेकिन बचत की खुशी एक्स्ट्रा होती है। अगर 10 पाउण्ड या डॉलर खर्च होना है और आपने एक पाउण्ड या डॉलर बचा लिया तो एक पाउण्ड की बड़ी खुशी होगी कि बचाकर आये हैं। तो अपने संकल्पों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर रखो। ये नहीं कहो-चाहते तो नहीं थे, समझते तो हैं लेकिन क्या करें हो जाता है....। कौन कहता है हो जाता है? मालिक या गुलाम? मालिक के तो कन्ट्रोल में होते हैं ना। अगर मालिक को भी कोई धोखा दे दे तो वो मालिक है क्या? तो ये चेक करो-कन्ट्रोलिंग पॉवर है? एक तो बचत करो, वेस्ट के बजाय बेस्ट के खाते में जमा करो और दूसरा अगर बचत नहीं कर सकते हो तो व्यर्थ को समर्थ संकल्पों में परिवर्तन करो। यदि कन्ट्रोल नहीं हो सकता है तो परिवर्तन तो कर सकते हो ना? उसकी रफ्तार को जल्दी से चेंज करना। नहीं तो आदत पड़ जाती है। एक घण्टे को भी चेक करो तो एक घण्टे में भी देखेंगे कि 5-10 मिनट भी जो वेस्ट संकल्प जा रहे थे, वह 5 मिनट भी वेस्ट से बेस्ट में जमा हो गये तो 12 घण्टे में 5-5 मिनट भी कितने हो जायेंगे? और खुशी कितनी होगी? और जितना श्रेष्ठ संकल्पों का खाता जमा होगा तो समय पर जमा का खाता काम में आयेगा। नहीं तो जैसे स्थूल धन में अगर जमा नहीं होता तो समय पर धोखा खा लेते हैं। ऐसे यहाँ भी जब कोई बड़ी परीक्षा आ जाती है तो मन और बुद्धि खाली­खाली लगती है, शक्ति नहीं लगती है। तो क्या करना है? जमा करना सीखो। अगले वर्ष अगर देखें तो सबके श्रेष्ठ संकल्पों का खाता भरपूर हो। खाली­खाली नहीं हो। यही श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना श्रेष्ठ प्रालब्ध का आधार बनेगा। तो जमा करना आता है? राजयोगी अर्थात् चेक करना भी आता और जमा करना भी आता। जिसका खाता जमा होगा उसकी चलन और चेहरा सदा ही भरपूर दिखाई देगा। ऐसे नहीं, आज देखो तो चेहरा बड़ा चमक रहा है और कल देखो तो उदासी की लहर-ऐसा नहीं होगा। सारे दिन में चेक करो तो आपके पोज कितने बदलते हैं? कभी चेक किया है? बहुत पोज बदलते हैं। बापदादा तो सबके पोज देखते हैं ना! कभी­कभी देखते हैं कि कई बच्चे कर्म करने में इतना टाइम नहीं लगाते लेकिन किये हुए कर्म के पश्चाताप् में टाइम बहुत गँवाते हैं। फिर कहते हैं तीन दिन हो गये, खुशी गुम हो गई है। क्यों खुशी गुम हुई, कहाँ गई, कौन ले गया? खज़ाना तो आपका है लेकिन ले कौन गया? पश्चाताप् करना अच्छी चीज़ है, क्योंकि पश्चाताप् परिवर्तन कराता है लेकिन उसमें ज्यादा टाइम नहीं लगाओ। पश्चाताप् का रोना करेंगे तो सारा सप्ताह रोते रहेंगे। पश्चाताप् किया, बहुत अच्छा-लेकिन पश्चाताप् करना और प्राप्ति की खुशी लाना। आगे के लिये सेकण्ड में निर्णय करो कि ये करना है या ये नहीं करना है। पहले सुनाया है ना-नॉट और डॉट ये दोनों शब्द याद रखो। नॉट सोचा और डॉट लगाया। चार घण्टा रोते रहे, चलो पानी नहीं आया, अन्दर रोते रहे। आधा घण्टा पानी बहाया और चार घण्टा मन से रोया तो इतना पश्चाताप् नहीं करो। यह बहुत है। पश्चाताप् की भी कोई हद रखो।

बापदादा को डबल फॉरेनर्स की एक विशेषता बहुत अच्छी लगती है, रोना नहीं अच्छा लगता लेकिन एक विशेषता अच्छी लगती है। कौन सी? सच्ची दिल पर साहेब राजी। सच बताने में डरेंगे नहीं, छिपायेंगे नहीं। तो सच्ची दिल है इसके कारण बाप के डबल प्यार के भी पात्र हो। तो सच्ची दिल रखी, साहेब को तो राजी कर लिया लेकिन परिवर्तन भी फिर इतना जल्दी करना चाहिये। उसको बार­बार अपने अन्दर में वर्णन नहीं करो-ये हो गया, ये हो गया....। हो गया, फिनिश। आगे के लिये अटेन्शन। लेकिन कभी­कभी अटेन्शन के बजाय टेन्शन कर लेते हो, वो नहीं करना है। बड़े ते बड़ा जस्टिस बनो। यहाँ भी चीफ जस्टिस होते हैं ना, आप तो चीफ जस्टिस के भी चीफ हो। अपने प्रति जल्दी से जल्दी जस्टिस करो-राँग, राईट। राँग है तो नॉट और डॉट। ऐसा नहीं होता तो ऐसे होता, ऐसे नहीं करते तो ऐसा होता.... ये गँवाने का खाता जमा करते हैं। कमाई खत्म हो जाती, जमा का खाता खत्म होता। सोचो लेकिन व्यर्थ नहीं। और बचाकर दिखाओ-एक घण्टे से इतना बचाया, ये रिजल्ट दिखाओ कि व्यर्थ चालू हुआ लेकिन हमने चेंज किया और जमा किया। वेस्ट को बचाओ। ये बचत वा खाता बहुत खुशी दिलायेगा।

इस वर्ष बापदादा सभी के बचत का खाता भरपूर देखना चाहते हैं। कर सकते हो ना? तो अभी फास्ट गति से करना। क्योंकि टाइम भी तो फास्ट जा रहा है ना! फिर देखेंगे-इसमें नम्बरवन कौन जाता है? बचत का खाता किसका सबसे ज्यादा होता है? बचत के खाते में नम्बरवार कौन­कौन होते हैं, वो लिस्ट निकालेंगे। और अगर आपने संकल्प को कन्ट्रोल किया तो औरों को कन्ट्रोल करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। कई कहते हैं बोलना नहीं चाहते हैं लेकिन पता नहीं मुख से निकल गया। लेकिन जब बोल निकलता है या कर्म भी होता है तो पहले तो संकल्प आता है। अगर किससे क्रोध भी करना है तो पहले संकल्प में प्लैन बनता है-ऐसे करूँगा, ऐसे बोलूँगा, ये क्या समझता है.... प्लैन चलता है। फिर समय को भी उसमें यूज करते हैं। समय देखते रहेंगे कब आता है, कौन आता है....। तो संकल्प के खज़ाने के पीछे समय का खज़ाना भी वेस्ट जाता है। सम्बन्ध है। तो संकल्प को बचाने से समय को, बोल को बचाना स्वत: ही हो जायेगा।

अभी डायमण्ड जुबली मनाने के प्लैन बना रहे हो ना। तो डायमण्ड जुबली में बापदादा एक बच्चों का दृश्य देखना चाहते हैं। जैसे दीपावली होती है ना या कोई भी ऐसा बड़ा उत्सव होता है तो जगह­जगह पर लाइट जगी हुई दिखाई देती है। देखा है ना? आप सबके देशों में बड़ा दिन तो होता होगा, तो कितने बल्ब या कुछ भी चीज़ जगमगाती है, यहाँ देखो तो जगमगा रहे हैं, वहाँ देखो तो जगमगा रहे हैं। ऐसे डायमण्ड जुबली में ये रीयल रूहानी डायमण्ड जगह­जगह पर ऐसे चमकते हुए दिखाई दें जो सब अनुभव करें कि ये कौन­सी चमक है। डायमण्ड तो चमकता है ना। चाहे मिट्टी में भी छिपाओ तो अपनी चमक नहीं गँवायेगा। तो जहाँ भी, जिस भी देश में, जिस भी स्थान पर रहते हो तो सभी को अनुभव हो कि ये जगमगाता हुआ डायमण्ड है। उन्हों को वायब्रेशन आये। जैसे लाइट कहाँ भी जगी हुई होती है, अच्छी सजावट होती है तो आप चाहो, नहीं चाहो लेकिन आपकी दृष्टि को आकर्षित जरूर करेगी। कितने डायमण्ड हैं और सारे वर्ल्ड में फैले हुए हैं। तो सारे वर्ल्ड के अन्दर जगमगाते हुए डायमण्ड अपनी चमक दिखायें-तो क्या दृश्य होगा! अच्छा लगेगा ना! इसका फोटो बापदादा निकालेंगे। क्योंकि आप तो सब जगह­जगह जा नहीं सकते, बापदादा तो जा सकते हैं। ये कैमरा लेकर कहाँ जायेंगे! तो ऐसे चमकते हुए डायमण्ड्स का दृश्य विश्व में दिखाई दे। आरम्भ तो हो जाये कि कुछ चमत्कार है। पहले ‘कुछ है’ तक पहुँचेंगे, फिर लास्ट में कहेंगे ‘सब कुछ ये हैं’। तो उसका आधार है-ये संकल्प का खाता जमा करना। छोटी­छोटी बात में पुरूषार्थ करके थको नहीं। ईर्ष्या खत्म नहीं होती है, थोड़ा­सा क्रोध अभी भी आ जाता है, बोल निकल जाता है-एक­एक बात में मेहनत नहीं करो। बीज को ठीक कर दो तो झाड़ आपेही ठीक हो जायेगा। इन सबका बीज तो संकल्प ही है ना। संकल्प श्रेष्ठ तो सब श्रेष्ठ हुआ ही पड़ा है। मेहनत करने की जरूरत ही नहीं है। नहीं तो मुश्किल लगता है ना-इतना अभी करना है! 10 साल हो गये, 20 साल हो गये, 40 साल, 50 साल हो गये, तो भी यह कमज़ोरी नहीं गई.... अगर फाउण्डेशन को चेक किया तो 4 सेकण्ड भी नहीं लगने चाहिये। फिर देखो आपकी मंसा सेवा कितनी फास्ट होती है! अभी मन्सा शक्ति वेस्ट जाती है, काम में नहीं लगती और जब बचत होगी तो काम में लगेगी ना। फिर मेहनत करने की भी जरूरत नहीं है। चलते फिरते लाइट हाउस, माइट हाउस अनुभव होंगे। लाइट हाउस एक­एक के पास जाकर नहीं कहता, दूर से ही इशारा करता है-रास्ता ये है। तो आप सभी चमकते हुए डायमण्ड लाइट हाउस, माइट हाउस हो जायेंगे तो विश्व में अंधकार रहेगा क्या? ये पसन्द है या सिर्फ डायमण्ड जुबली के प्रोग्राम करेंगे और डायमण्ड जुबली पूरी हो गई। ऐसे तो नहीं! पहले स्व, फिर विश्व। देखो अभी भी आप लोगों का कहना और दूसरे बड़े­बड़े मण्डलेश्वर भी कहते हैं लेकिन आप लोगों के कहने का प्रभाव पड़ता है, दिल से लगता है क्योंकि आप करके फिर कहते हो। वो सिर्फ कहते हैं, करते नहीं हैं। तो सभी को फर्क लगता है ना। तो जो स्वयं करके और फिर कहता है उसका प्रभाव अलग होता है। यहाँ भी कहते हो ना कि जो फलानी बहन या भाई कहता है उसका दिल में लगता है और कोई­कोई का सिर्फ भाषण सुन लिया, ठीक है। तो फर्क क्या है? सिर्फ कहना और करके कहना, उसका वाणी पर स्वत: ही प्रभाव हो जाता है। तो डायमण्ड तो सभी हो ना कि कोई सिल्वर है, कोई गोल्ड है, कोई डायमण्ड है? डायमण्ड तो हो ही सिर्फ थोड़ी चमक दिखाई दे। बापदादा को भी खुशी होती है कि बाप के खज़ाने में कितने डायमण्ड हैं और एक­एक डायमण्ड कितना वैल्युएबल है। इतने रूहानी डायमण्ड कहाँ मिलेंगे, मिलेंगे किसी के पास? सारे अमेरिका, अफ्रीका में ढूँढकर आओ, मिलेंगे? और यहाँ देखो-कितने रीयल डायमण्ड बाप को मिले हैं। लेकिन ऐसे बनना जो वायब्रेशन की चमक फैले। ऐसे नहीं, अपने आपमें खुश रहो कि मैं तो डायमण्ड हूँ। जो सच्चा डायमण्ड होता है उसकी चमक कब छिप सकती है! कितना भी ऐसे­ऐसे करके दिखाओ तो भी चमक दिखाई देगी। आजकल तो बाहर के जो रीयल डायमण्ड कहते हैं ना वो रीयल नहीं हैं। आपके स्वर्ग के डायमण्ड रीयल हैं, उसके आगे तो ये कुछ भी नहीं हैं। तो रीयल डायमण्ड की निशानी है कि उसकी चमक फैलेगी। जैसे ये लाइट जलती है तो फैलती है ना! जितनी पॉवरफुल उतना फैलती है। तो वायब्रेशन द्वारा आप रीयल डायमण्ड की चमक फैले। जैसे देखो मधुबन में जब बाप के कमरे में जाते हो तो विशेष अनुभव होता है ना। चाहे जाने, न जाने, निश्चय हो या नहीं हो लेकिन साइलेन्स के वायब्रेशन तो लगते हैं ना! तो आपके साथियों को वायब्रेशन आये कि हाँ ये तो चमक रहे हैं। ऐसे नहीं कहे कि ये तो वैसे के वैसे ही हैं। पहले साथियों को वायब्रेशन आयेंगे तो दूर तक भी जायेंगे।

परिवर्तन शक्ति अच्छी है ना या कम है? जिसको परिवर्तन करना है तो टाइम नहीं लगता है, कि सोचते हो-करेंगे, देखेंगे! करना ही है, चाहे कोई करे या न करे, मुझे करना है। बहानेबाजी सबको बहुत अच्छी आती है। ऐसा कोई नहीं होगा जिसको बहानेबाजी नहीं आती हो। होशियार हैं। बहाने क्या बना­ येंगे-ऐसे हुआ तब ऐसा हुआ, इसने किया तब हुआ, वैसे मैं ठीक हूँ, इसने चलते हुए चोट मार दी तो गिर गई, चोट नहीं लगती तो नहीं गिरते लेकिन उसने चोट मार दी। आप अपने को क्यों नहीं बचा सकते! चोट लगाने वाले का काम है चोट लगाना, आपका काम है अपने को बचाना या ये बहाना बनाना कि इसने चोट लगाई तो गिर गये। बचाव करना अपना काम है या दूसरा करेगा? तो ये भी बहाने हैं। ये ठीक हो जायेगा ना तो देखना....। बहुत अच्छी मीठी­ मीठी बातें सुनाते हो-कल से ये हो जायेगा ना तो तीव्र पुरूषार्थी बन जायेंगे। कल फिर दूसरी बात आ जाती है तो कहते हैं परसों हो जायेगा। तो बहाने नहीं लगाओ। उड़ती कला की बाजी में नम्बर लो। बहानेबाजी में नम्बर नहीं लो। आपके साथी, सहयोगी बहुत अन्धकार में हो, चारों ओर अंधकार हो तो आप ये नहीं कह सकते कि अंधकार है ना इसलिये मैं रोशनी नहीं दे सकता। अंधकार के लिये ही तो आप रोशनी हो ना! अंधकार था इसीलिये ठोकर खा ली! कहाँ गये लाइट हाउस! अपने को भी लाइट नहीं दे सकते! तो वर्ष बीतता जा रहा है। अभी संकल्प में साधारण संकल्प नहीं करो, प्रतिज्ञा करो। शरीर जाये लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जाये। कितना भी सहन करना पड़े, परिवर्तन करना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा नहीं तोड़ो। इसको कहा जाता है दृढ़ संकल्प। सोचते बहुत अच्छा हो, बापदादा भी खुश हो जाते हैं। ये करेंगे, ये करेंगे, ये नहीं करेंगे-खुश तो कर देते हो लेकिन इसमें दृढ़ता द्वारा सदा शब्द एड करो। थोड़ा समय तो प्रभाव दिखाते हो। उसके लिये जैसे पहले सुनाया ना कि अपने को सदा इकॉनॉमी का अवतार समझो। साथ­साथ इकॉनॉमी, एकनामी और एकान्तवासी। ज्यादा बोल में नहीं आओ। एकान्तवासी बनो। देखा जाता है जो बोल में सारा दिन आते हैं उनके संकल्प, समय सब खज़ाने ज्यादा वेस्ट होते हैं। एकान्तवासी का डबल अर्थ है। सिर्फ बाहर की एकान्त नहीं लेकिन एक के अन्त में खो जाना, एकान्त। नहीं तो सिर्फ बाहर की एकान्त होगी तो बोर हो जायेंगे, कहेंगे-पता नहीं दिन कैसे बीतेगा! लेकिन एक बाप के अन्त में खो जाओ। जैसे सागर के तले में चले जाते हैं तो कितना खज़ाना मिलता है। अन्त में चले जाओ अर्थात् बाप से जो प्राप्तियाँ हैं उसमें खो जाओ। सिर्फ ऊपर­ऊपर की लहरों में नहीं लहराओ, अन्त में चले जाओ, खो जाओ। फिर देखो कितना मजा आता है। तो सर्व खज़ानों में इकॉनॉमी करो, और एक बाप दूसरा न कोई, इसको कहते हैं एकनामी। ऐसे स्थिति में रहने वाले अपने सर्व खज़ानों को जमा कर सकेंगे, नहीं तो जमा नहीं होता है। तो इकॉनॉमी करना जानते हो ना? अच्छा!

जिससे ज्यादा प्यार होता है तो प्यार की निशानी होती है अपने से भी आगे बढ़ाना। तो बापदादा भी यही चाहते हैं कि हर बच्चा मेरे से भी आगे हो। यही प्यार की निशानी है। कोई में कोई कमी नहीं रहे। सब सम्पूर्ण और सम्पन्न हों। अगर सम्पन्न हैं तो सम्पूर्ण होंगे। तो डबल विदेशियों से तो डबल प्यार है ना! क्योंकि स्थापना के पार्ट में आप डबल विदेशियों की विशेष एक शोभा है। स्थापना के पार्ट का विशेष श्रृंगार हो। अभी देखेंगे कि जमा के खाते में अभी विदेश नम्बरवन लेता है या भारत वाले नम्बरवन लेते हैं? क्योंकि डबल विदेशियों में नेचरल संस्कार हैं जिस लाइन में भी जायेंगे तो तीव्र गति से जायेंगे, गिरेंगे तो भी तीव्र, चढ़ेंगे तो भी तीव्र। तो इस संस्कार को अभी जमा के खाते में तीव्र गति से लगाओ। छोटे­छोटे जो स्थान हैं ना वो नम्बर और आगे लेना। अच्छा।

अफ्रीका अफ्रीका वाले क्या करेंगे? बापदादा को अमेरिका, अफ्रीका बोलना बहुत अच्छा लगता है। तो अफ्रीका वाले क्या कमाल करेंगे? कौन­सा नम्बर लेंगे? सारे अफ्रीका में जगमग हो जायेंगे। डायमण्ड्स चमकेंगे! तो संकल्प करो कि इस वर्ष विशेष दृढ़ता की विशेषता को हर संकल्प में प्रैक्टिकल में लायेंगे। तो अफ्रीका अर्थात् दृढ़ता की विशेषता। पसन्द है? करना पड़ेगा। ऐसे नहीं, पसन्द तो है....। लेकिन बाप को भी पसन्द आ जायेगा ना! तो अफ्रीका वाले इस विशेषता को सदा सामने रखना। चाहे साउथ है, चाहे कोई भी है, लेकिन दृढ़ता को नहीं छोड़ना।

अमेरीका:­ अमेरिका वाले कौन­सी विशेषता को अपनायेंगे? (परिर्वतन करेंगे) बहुत अच्छा, इसमें एडीशन करना-फास्ट गति का परिवर्तन। कोई भी संकल्प में एकाग्रता की विशेषता श्रेष्ठ परिवर्तन में फास्ट गति लायेगी। अमेरिका में बाहर का टेन्शन बहुत है ना तो जितना बाहर का टेन्शन है उतना आप लोग एकाग्र, टेन्शन फ्री। एकाग्रता की विशेषता से फास्ट गति का परिवर्तन, ठीक है ना! अमेरिका वालों को पसन्द है! बापदादा के पास तो सबके फोटो हैं। देखेंगे अभी एकाग्र रहते हैं या सारे दिन में पोज बदलते हैं। बापदादा को भी निश्चय है कि होना तो इन्हों को ही है। होना ही है। ये एकाग्रता की विशेषता सदा साथ रखना। अच्छा!

यू.के., यूरोप:­ यू.के., यूरोप वाले क्या करेंगे? वायब्रेशन से सेवा करेंगे। वैसे लण्डन तो लाइट हाउस है ही। तो यूरोप से लाइट कहाँ तक जायेगी? विश्व तक या सिर्फ यूरोप तक? विश्व तक जायेगी, अच्छा! तो इस विशेषता को और प्रैक्टिकल में लाने के लिये सदा यह स्मृति में रखना कि ‘‘सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।’’ सफल करना अर्थात् सफलता पाना। तो सफलता की शक्ति है? है ही सफलता, होगी या नहीं होगी, नहीं। तो सफलता के निश्चय की विशेषता सदा साथ रखो। सब जगह होना तो है ही लेकिन हिम्मत रखकरके मदद के पात्र बन, सफलता के जन्म सिद्ध अधिकार को अनुभव करते रहेंगे। होना ही है। ठीक है ना! अफ्रीका, अमेरिका, सब ठीक है। अच्छा!

ऑस्ट्रेलिया:­ ऑस्ट्रेलिया क्या करेगा? (इकॉनॉमी का अवतार बनेंगे) अच्छा, आस्ट्रेलिया अवतार बन जायेगा। बहुत अच्छा है। ऑस्ट्रेलिया में जो भी आयेंगे तो ऑस्ट्रेलिया की भूमि अवतारों की भूमि लगेगी। जब एक अवतार इतना कमाल करके दिखाता है तो ऑस्ट्रेलिया में इतने अवतार हैं तो क्या कमाल दिखायेंगे! अच्छी बात है, इसके लिये जो विशेषता धारण करनी है वो है दिव्यता। जितना जितना दिव्यता की शक्ति या विशेषता हर संकल्प में लायेंगे तो सहज ही अवतार भूमि बन जायेगी। ऑस्ट्रेलिया का नाम ही बदली हो जायेगा-अवतार भूमि। इतने अवतार आ गये! इतनी सारी क्रिश्चियन डिना­ यस्टी के लिये एक क्राइस्ट अवतार आया। यहाँ तो कितने अवतार होंगे तो अवतार भूमि बन जायेगी। ऑस्टेलिया का भविष्य बहुत ऊंचा है। ऑस्ट्रेलिया के सभी रत्न सदा बापदादा के सामने आते हैं। बीच­बीच में थोड़ी आंख मिचौनी का खेल खेलते हैं। खेल अच्छा लगता है, लेकिन खेल खत्म, तो क्या होगा? सफलता। तो सदा दिव्यता ही अवतार की विशेषता है। दिव्यता की विशेषता से इस संकल्प को स्वरूप में लायेंगे। लाना ही है। अच्छा!

एशिया:­ जापान वालों ने तो परीक्षा पास कर लिया ना। जापान वाले भी आये हैं। हाथ उठाओ। तो एशिया वाले क्या करेंगे? (एकान्तवासी बनेंगे, बाबा को प्रत्यक्ष करेंगे) प्रत्यक्षता का सूर्य एशिया से प्रकट होगा, बहुत अच्छा संकल्प है। तो एशिया वाले प्रत्यक्षता का झण्डा वहाँ से पहले लहरायेंगे। अच्छी बात, छोटे सुभान अल्लाह होते हैं ना। देखो कितनी अच्छी हिम्मत रखी-एशिया से प्रत्यक्षता होगी। आपके मुंह में गुलाब जामुन। बहुत अच्छा संकल्प लिया है। तो इस संकल्प को सहज पूर्ण करने के लिये पहले पवित्रता की शमा चारों ओर जलानी पड़े। जैसे वो शमा ले करके चक्कर लगाते हैं ना तो आपको पवित्रता की शमा चारों ओर एशिया में जगमगानी पड़ेगी तभी सब बाप को देख सकेंगे, पहचान सकेंगे। तो पवित्रता की शमा सदा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ जलती रहे। जरा भी हलचल में नहीं आये, अचल। जितनी अचल पवित्रता की शमा होगी उतना सहज सभी बाप को पहचान सकेंगे और पवित्रता की जयजयकार होगी। समझा! अच्छा!

मॉरिशिस:­ मॉरिशियस भी छोटा है लेकिन कमाल करता है। तो मॉरिशि­ यस वाले क्या करेंगे? मॉरिशियस की चमक इतनी होगी जो जल्दी भारत में पहुँचेंगी। नजदीक है ना। तो मॉरिशियस की चमक भारत के कुम्भकरण को जगा देगी ना। कोई नहीं जागता है तो लाइट जलाकर उसको जगा देते हैं ना। तो मारिशियस वाले पहले सदा एकरस चमक के लिए सत्यता की शक्ति का झण्डा लहराओ। बाप सत्य है, ज्ञान सत्य है, आत्मा भी सत्य है और ब्राह्मण जीवन भी सत्य है। तो सत्यता का झण्डा पहले लहराना पड़ेगा तब इस सत्यता की विशेषता से चमक बढ़ेगी और भारत क्या, सारे विश्व तक फैलेगी। ठीक है ना!

रशिया:­ रशिया वाले भी रेस तो कर रहे हैं। रशिया वाले हाथ उठाओ। वो इकट्ठे ही बैठते हैं। इन्हों का आपस में बहुत प्यार है। एक जायेगा ना, तो सारी लाइन जायेगी। संगठन की शक्ति की प्रैक्टिस इन्हों की अच्छी है। तो रशिया वाले क्या कमाल दिखायेंगे? (अडोलता की शक्ति धारण करेंगे) फिर तो सारी रशिया को किनारा मिल जायेगा। बहुत अच्छा है। तो सारे विश्व में सच्चा सहारा कौन-यह झण्डा लहरायेंगे। क्योंकि सहारे तो समय प्रति समय बहुत आये हैं लेकिन सहारे ने किनारे में नहीं पहुँचाया है। तो सच्चा सहारा कौन है जिससे किनारा मिलना ही है, निश्चित है। तो जो सहारा स्वयं लिया है उस सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष करके सबको किनारे लगायेंगे। अच्छी बात है। तो सहारे दाता कौन-यह झण्डा लहराना।

मिडिल ईस्ट:­ मिडिल ईस्ट वाले क्या करेंगे? (असम्भव को सम्भव करेंगे, राष्ट्रपति को लायेंगे) तो विदेश का पहला राष्ट्रपति यही आयेगा। हिम्मत तो अच्छी रखी। अभी पहले असम्भव से सम्भव ये करो कि खुले रूप से सेन्टर खुल जाये। है तो सम्भव ना! लेकिन असम्भव को सम्भव करने वाले युक्ति­ युक्त, युक्ति के बिना भी मुक्ति नहीं होनी है। इसीलिये युक्तियुक्त ऐसा प्रयत्न करो जो सभी आवाज निकालें कि अल्लाह आ गया। हिम्मत अच्छी रखी है। और हिम्मत वालों को मदद तो बाप की है। इसलिये युक्ति से आगे बढ़ते चलो। युक्ति को नहीं छोड़ना। जाकर प्रभातफेरी निकाल लो-ऐसे नहीं करना। अभी तो गुप्त है ना। पाण्डवों के लिए प्रसिद्ध है कि पराये राज्य में गुप्त में रह कार्य किया। तो अभी गुप्त का पार्ट धीरे­धीरे खुलता जा रहा है।

तो सब खुश हो? ज्ञान सरोवर पसन्द है। पसन्द है, ये तो नहीं सोचते हो कि मधुबन में सीट खाली हो तो आ जायें। अगले वर्ष डबल विदेशियों को ज्ञान सरोवर ही देंगे। ठीक है? पसन्द है? (दादियाँ भी रहेंगी) आपके साथ दादियाँ भी रहेंगी। बापदादा तो आ सकते हैं लेकिन हाल ही छोटा बनाया है। हाँ कोई युक्ति से हाल को बड़ा करो, कम से कम 3 हजार तो बैठ सकें। कोई इन्वेन्शन करो। बापदादा तो तलहटी में भी आ रहे हैं। हाल सुन्दर बहुत बनाया है लेकिन सिर्फ छोटा बना दिया। देखो दादियाँ अगर वहाँ रहें तो डबल विदेशी मधुबन वाले, मधुबन की टोटल सात भुजायें हैं, सभी वहाँ बैठ तो सकें, मुरली तो सुन सकें। अभी कितने बैठ सकते हैं? (16-17 सौ) 16-17 सौ तो डबल विदेशी हो जाते हैं। कोई इन्वेन्शन करो, बापदादा आयेंगे। (लण्डन में भी बापदादा आयेंगे? ) अभी लण्डन का टर्न पीछे है। पहले लण्डन में बापदादा आयें तो इतनी टिकट कटवायेंगे? कितने चार्टर करेंगे? जम्बो प्लेन करेंगे, वो भी कितने? इतने सारे इकट्ठे करके दिखाओ, मधुबन बनाकर दिखाओ। यहाँ इण्डिया में आते हैं तो दोनों (देशय्विदेश) होते हैं। इसीलिये कहा ना कि उसमें थोड़ा टाइम पड़ा है। एयर इण्डिया के जो सारे डिपार्टमेन्ट हैं ना उनको आप समान बनाओ तो सब टिकट फ्री देवें। आखिर तो आप लोगों के ही सब काम में आना है। थोड़ा झण्डा लहराओ तो सब खुद ही ऑफर करेंगे। अच्छा!

(आज बापदादा को ज्ञान सरोवर में आने की एप्लीकेशन दी गई थी लेकिन बापदादा मधुबन में ही आये)

मधुबन निवासियों प्रति:­ विशेष मधुबन के कारण ही बापदादा यहाँ आये हैं। क्योंकि मधुबन वालों ने अपने तन­मन से, सम्बन्ध­सम्पर्क से अथक सेवा की है। सेवा में मधुबनवासियों को बहुत अच्छे नम्बर मिलते हैं। लेकिन जैसे सेवा की सब्जेक्ट में अच्छे मार्क हैं ऐसे डायमण्ड जुबली में मधुबनवासीज्ञान­योग­धारणा इन तीन सब्जेक्ट में भी विशेष नम्बर लेवें। जैसे सेवा के गीत सब गाते हैं, सारा विश्व मधुबन निवासियों की सेवा के गीत गाता है, ऐसे धारणा में और सब्जेक्ट में नम्बर हैं, लेकिन और ज्यादा लेवें। मंजूर है? मधुबन वाले हाथ उठाओ। मधुबन वालों का खज़ानों के बचत का खाता नम्बरवन हो। होना है। बाकी अच्छे भाग्यवान आत्मायें हैं। मधुबन निवासी बनना भी एक्स्ट्रा भाग्य का मेडल है। क्यों? रहने की सिर्फ बात नहीं है। लेकिन अनेक प्रकार के चांस मधुबन में मिलते हैं। तो मधुबनवासी बनना अर्थात् अनेक गोल्डन चांस लेना। इसीलिये बापदादा मधुबन निवासियों का भाग्य देख हर्षित होते हैं-वाह भाग्यवान, वाह!

हॉस्पिटल:­ हॉस्पिटल भी वृद्धि कर रही है और जितना जितना दिल से सेवा करते हैं, तन से सेवा सभी करते हैं लेकिन यहाँ दिल से सेवा करना अर्थात् दिल की दुआयें देना। तो जो दिल से सेवा करते हैं वो बापदादा के दिल पर नम्बर आगे रहते हैं। रहते तो सभी हैं लेकिन नम्बर आगे और पीछे तो होगा ना! तो दिल से सेवा करने वाले हॉस्पिटल निवासियों को सदा ही नम्बर आगे लेना है। बढ़ रहे हैं, बढ़ते रहेंगे। क्योंकि आवश्यकता भी बढ़नी है। तो मधुबन की, माउण्ट आबू की हॉस्पिटल सबके लिए और आसपास वालों के लिए भी एक सहारा अनुभव होगी कि अगर सहारा मिलना है तो यहीं मिलना है। तन और मन दोनों का। तो मधुबन की हॉस्पिटल भी अनेक आत्माओं के तन और मन का सहारा है और बनती रहेगी। इसलिये सेवा की मुबारक है। लेकिन और भी मुबारक लेने के लिये प्लैन बनाते चलो। समझा? अच्छा, जो भी हैं तलहटी वाले हैं, म्युजियम वाले हैं, आबू निवासी हैं, पीसपार्क वाले, संगम भवन वाले, ऐसे और भी हैं, देखो मधुबन की भुजायें कितनी है? अभी सात भुजायें हैं, ये जो ज्ञान सरोवर है आठवीं भुजा है। तो मधुबन अष्ट भुजा हो गया। तो अष्ट भुजाओं को विशेष याद­प्यार।

भारत तो है ही, अभी भारत का मेला लगना है। बापदादा को भारत ही पसन्द आया, लण्डन का रिट्रीट हाउस नहीं। जब रेस्ट करेंगे ना तो परमधाम के रिट्रीट हाउस में जायेंगे। तो भारतवासियों से विशेष बाप का प्यार है और भारतवासियों को भी विशेष नाज़ है, नशा है कि स्वर्ग भी विशेष तो भारत ही बनेगा और बनाने वाला बाप भी भारत में ही आते हैं। और स्टोरी भी विशेष तो आदि से अन्त तक भारत की है। तो भारत अविनाशी खण्ड है। इसीलिये भारतवासी सबसे नम्बरवन अखण्ड, अचल, अडोल स्थिति वाले बनने ही हैं। अच्छा।

(टीचर्स ट्रेनिंग का प्रोग्राम चल रहा है) प्रोग्राम अच्छा चला? प्रोग्राम तो अच्छा रहा और प्रोग्रेस क्या रही? क्योंकि टीचर्स निमित्त हैं। अगर निमित्त टीचर्स सदा शक्तिशाली हैं तो आने वाले भी सहज शक्तिशाली बनते हैं। अगर टीचर्स हलचल में आती हैं, तो चाहे कोई देखे, नहीं देखे, सुने, नहीं सुने, लेकिन टीचर्स वायब्रेशन ऑटोमेटिक जाता है। आप देखेंगे जैसी टीचर होगी वैसी विशेषता स्टूडेन्ट में भी होगी। अगर कोई रमणीक टीचर है तो स्टूडेन्ट भी रमणीक होंगे, अगर टीचर ऑफिशल है तो स्टूडेन्ट भी आफिशल होंगे, योग की इन्ट्रेस्ट ज्यादा है तो स्टूडेन्ट भी ऐसे होंगे, अगर कल्चरल प्रोग्राम करने वाली है तो स्टूडेन्ट भी ऐसे होंगे। तो टीचर्स विशेष आधार है। तो टीचर्स के फीचर्स काम करते हैं। बोले, नहीं बोले, लेकिन उसके फीचर्स बोलते हैं, छिप नहीं सकते। तो टीचर्स को समझना है कि हम फाउन्डेशन हैं, निमित्त हैं। फाउण्डेशन वैसे तो बापदादा है लेकिन सेवा प्रति निमित्त हैं। तो निमित्त भाव, करनकरावनहार की स्मृति-ये टीचर्स को सदा ही सहज आगे बढ़ाती है। तो टीचर्स माना सिर्फ मुख से सेवा करने वाले नहीं, टीचर्स अर्थात् अपने फीचर्स से भी सेवा करें। ऐसे दिव्य फीचर्स, मुस्कराते हुए फीचर्स, अचल­अडोल के फीचर्स वो सेवा करते हैं। तो सिर्फ ये नहीं देखो-कोर्स तो अच्छा करा लिया, सप्ताह कोर्स भी करा लिया, पॉजिटिव का भी करा लिया और भी सारे पाठ पढ़ा लिये लेकिन फीचर्स से सेवा की? फीचर्स से सेवा अर्थात् प्रैक्टिकल लाइफ में बल देना। तो प्रैक्टिकल लाइफ का बल दिया या सिर्फ पाठ पढ़ाया? तो डबल सेवाधारी बनना अर्थात् नम्बरवन टीचर बनना।

अच्छा, जो भी जहाँ से आये हो, सबको बहुत­बहुत आने की मुबारक हो और याद­प्यार। क्योंकि सभी को मालूम है कि डबल विदेशियों की इस वर्ष की सीजन का ये लास्ट चांस है। तो सभी ने अपने पत्र और कार्ड भी भेजे हैं। बापदादा के पास तो वहाँ लाइन लगी हुई है, आकर देखना। तो जो भी कार्ड या याद­प्यार भेजते हैं, अपने अवस्था के बारे में समाचार देते हैं, सुनाया ना कि डबल विदेशी छिपाते नहीं हैं, छोटी­सी बात भी होगी ना तो सच सुना देंगे, छिपाते नहीं हैं। तो सच्ची दिल की विशेषता है। इसीलिये पत्रों में भी समाचार बहुत देते हैं। सेवा का भी देते हैं, अवस्था का भी देते हैं, खुशी का भी देते हैं और फिर ग्रीटिंग्स के कार्ड भी बहुत भेजते हैं। बापदादा के पास सबकी ग्रीटिंग्स बड़े दिल में समा जाती है। जिन्होंने भी अपने विशेष नाम से कार्ड भेजे हैं या पत्र भेजे हैं या सन्देश भेजे हैं, जो आते हैं वो भी सन्देश लेकर आते हैं-हमारे क्लास वालों ने बहुत­बहुत याद दी है, तो जिन्होंने सन्देश भेजा है उन सभी को बापदादा आने वाले डायमण्ड जुबली की विशेष डायमण्ड बनने की एडवांस मुबारक दे रहे हैं।

चारों ओर के रूहानी सच्चे डायमण्ड आत्माओं को, सदा इकॉनॉमी के अवतार विशेष आत्माओं को, सदा एकनामी, एकान्तप्रिय विशेष आत्माओं को अपने वायब्रेशन वृत्ति की चमक से विश्व में प्रकाश फैलाने वाले चमकती हुई आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादियों से - सब कार्य सफल हुए ही पड़े हैं। सफलता स्वरूप आत्मायें निमित्त हो। आप सभी निमित्त आत्मायें कौन­से सितारे हो? सफलता के सितारे हो ना! ये सारा संगठन सफलता के सितारे हैं। यह सारा संगठन ब्राह्मण परिवार के तारा मण्डल में सफलता के सितारे चमकते हुए हैं।

(बापदादा ने दादी जी को अपने पास बिठाया) सब आपको देखकर खुश होते हैं। मीठी­मीठी ईर्ष्या तो नहीं होती, हम भी बैठें! प्यार है, ईर्ष्या नहीं है। तो प्यार अच्छा लगता है ना! क्योंकि आप सबके आगे साकार में सेम्पल तो यही हैं ना तो सेम्पल को देख करके सौदा करना सहज होता है। बापदादा ये नहीं समझते हैं कि ये 10-12 बैठे हैं, बापदादा सभी के साथ हैं। निमित्त ये हैं लेकिन आप सभी साथ हो। साथ का वायदा अन्त तक है और साथ ही चलेंगे। नीचे बैठे हो या ऊपर बैठे हो, और ही सामने बैठे हो। अच्छा है डबल विदेशियों ने भी डबल विदेशियों की सेवा अच्छी की। जो निमित्त बने हैं उन्होंने अच्छी सेवा की। तो ऐसा बनाया है जो कभी कोई रोयेगा नहीं? मन में भी नहीं! कि छिपकर बाथरूम में रोकर आयेंगे? रोना बन्द हो गया ना! जब परीक्षा आती है ना फिर देखो थोड़ा­सा चेहरा बदलता है। फिर भी बहुत अच्छे हो। थोड़ा­थोड़ा रोते हो, खेल दिखाते हो फिर भी अच्छे हो। बाप को पहचान लिया-ये कमाल कम नहीं की! डायमण्ड तो हैं और भी जो कुछ कमी हो वह सम्पन्न करनी है। डायमण्ड जुबली मनाने का अर्थ सिर्फ ये नहीं है कि सिर्फ प्रोग्राम कर लिये। डायमण्ड बन डायमण्ड बनने का मैसेज देना है। अपने प्रत्यक्ष प्रमाण से सेवा करना-ये है डायमण्ड जुबली। नहीं तो दूसरे को डायमण्ड बनाया और स्वयं डायमण्ड नम्बरवन नहीं तो देखने वाले क्या कहेंगे? अच्छा।

विदेश मुख्य टीचर्स बापदादा के सामने आई तो बापदादा ने सभी से पूछा:­

ये तो नहीं सोचते हो कि इण्डियन को ही बुलाया जाता है। कभी ये सोचते हो कि इण्डियन बहनों को ही क्यों आगे किया गया है? संकल्प आता है? नहीं आता? थोड़ा­थोड़ा! देखो, आपके पालना के लिये भारत से ही भेजना पड़ा ना। और भारत से आये तब आप आगे आये। वैसे विदेश से भी जो विशेष टीचर्स निकली हैं वो भी बहुत अच्छी निकली हैं, और अच्छी सेवा कर रही हैं। ऐसे नहीं है जो स्टेज पर हैं वो बापदादा के सामने हैं। चाहे नीचे बैठे हैं चाहे अपने स्थान पर बैठे हैं लेकिन बापदादा के साथ हैं। इन्हों के साथी आप सभी हो। अगर आप अपनी भाषा से सेवा नहीं करते तो वृद्धि भी नहीं होती। इतने सेन्टर्स नहीं खुल सवते थे। यह तो गिनती वाले हैं। इतने सेवाकेन्द्र जो खोले हैं वो किसने खोले हैं? आप लोगों ने ही तो निमित्त बनकर खोले हैं, इसीलिये निमित्त और थोड़े ही बैठ सकते हैं तो सेम्पुल थोड़ों को बिठाया जाता है, लेकिन हो आप सभी। समझा! बापदादा ने देखा है कि जिस भी तरफ इण्डियन सिस्टर नहीं हैं तो मांगनी करते हैं इण्डियन दो। अच्छा, तो सभी ने अच्छी सेवा की है इसकी मुबारक। अच्छा सम्भालते हैं। इसीलिये अभी केसेस कम होते हैं। पहले होते थे। अभी सम्भल गये हैं और सम्भाल लेते हैं। दोनों ही बाते हैं। विदेश के सेवाधारियों की भी बहुत अच्छी माला है। जैसे दादियों में प्यार है तो निमित्त बनने वाली आत्माओं में भी प्यार है। अच्छा, सब खुश है ना? तो बापदादा भी सभी बच्चों के लिये गीत गाते हैं-वाह बच्चे वाह! अच्छा।



31-03-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


परमात्म मिलन मेले की सौगात - ताज, तख्त और तिलक

आज बेहद का बाप बेहद में सभी बच्चों को देख रहे हैं। बेहद का बाप है और आप सभी भी बेहद के मालिक सो बालक हो। बापदादा सभी स्नेही सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं और बच्चे बाप को देखकर हर्षित हो रहे हैं। बाप को ज्यादा खुशी है वा बच्चों को ज्यादा खुशी है-क्या कहेंगे? दोनों को! इसको कहा जाता है परमात्म मिलन मेला। मेले तो बहुत होते ही हैं लेकिन परमात्म मिलन मेला एक ही संगमयुग पर होता है। सारे कल्प में नहीं हो सकता है। अब हो रहा है और होगा। आप सबको भी मेला अच्छा लग रहा है ना! बापदादा तो बच्चों के भाग्य को देख हर्षित होते हैं और दिल में गीत गाते हैं-वाह बच्चे वाह! जो भाग्य स्वप्न में भी न था, संकल्प में भी नहीं था लेकिन अब साकार में श्रेष्ठ भाग्य अनुभव कर रहे हैं। हर एक के मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर चमक रही है। सभी चमकते हुए सितारे हो ना? अपना ये श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है ना! क्यों श्रेष्ठ भाग्य है? क्योंकि भाग्य विधाता द्वारा आप भाग्यवान आत्माओं का दिव्य ब्राह्मण जन्म हुआ है। बाप को भी भाग्य विधाता कहते हैं और ब्रह्मा को भी भाग्य विधाता कहते हैं। और आप सबका जन्म बापदादा द्वारा हुआ है। तो जिसका बाप स्वयं भाग्य विधाता है उसका भाग्य कितना श्रेष्ठ होगा! परमात्म मिलन मना रहे हो ना! (डबल फॉरेनर्स से) ये भी मना रहे हैं! बेहद के मेले में अगर डबल विदेशी नहीं होते तो बेहद का नहीं कहा जाता। तो आप लोगों का भी विशेष पार्ट है, जो बाप और सर्व बच्चे देख­देख हर्षित होते हैं। भाग्य विधाता द्वारा जन्म होना-ये सबसे नम्बरवन भाग्य है। साथ­साथ सारे कल्प में किसी भी जन्म में एक ही परमात्मा बाप भी बने, शिक्षक भी बने, सतगुरू भी बने और सर्व सम्बन्ध भी निभाये-ऐसा सतयुग से कलियुग तक किसको भाग्य मिला है? और अभी आपको मिला है! अभी आप निश्चय और नशे से कहते हो कि हमारा पालनहार परम आत्मा है। दुनिया वाले कहने मात्र कहते हैं कि परमात्मा ही पाल रहा है लेकिन आप प्रैक्टिकल अनुभव से कहते हो कि परमात्मा बाप है और बाप ही पालनहार है, पालना कर रहे हैं! नशा है ना या थोड़ा­थोड़ा भूल जाते हो? चलते­चलते अपने श्रेष्ठ भाग्य को साधारण समझ लेते हो, है श्रेष्ठ लेकिन समझ साधारण लेते हो। इसलिए जो नशा और खुशी की झलक सदा होनी चाहिये, वह नहीं रहती। वैसे एक सेकण्ड भी भूल नहीं सकते लेकिन कॉमन समझ लेते हो कि बाप मिल गया, हमारा हो गया, हम भी बाप के हो गये....... जब हमारा है तो नशा (फखुर) होना चाहिये ना? लेकिन कभी ऊंचा तो कभी मध्यम, कभी साधारण हो जाता है। सोचो, हमारा बाप परम आत्मा है! और फिर शिक्षक डायरेक्ट परम आत्मा है! क्या शिक्षा दी? आपको क्या बना दिया? त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ। ऐसी कोई पढ़ाई पढ़ता है! अभी तक ये डिग्री सुनी है? जज बैरिस्टर, डॉक्टर, इंजीनियर ये तो सब डिग्रीज देखी हैं लेकिन त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, नॉलेजफुल....ऐसी डिग्री देखी है? द्वापर से कलियुग तक किसको मिली है? आपको मिली थी? आपने भी तो 63 जन्म लिये हैं। तो न किसको मिली है, न मिलनी है। ऐसा शिक्षक हमारा है। साइंस वाले साइंस की कितनी भी योजना करें तो भी त्रिलोक तक नहीं पहुँच सकते। तीनों लोकों का नॉलेज प्राप्त हो नहीं सकता। और आपमें तो 5 वर्ष का बच्चा भी तीन लोकों की नॉलेज देता है! वो भी फलक से कहेगा-हाँ, सूक्ष्म वतन है, मूल वतन है। तो परम आत्मा शिक्षक भी है। श्रेष्ठ शिक्षा से ये डिग्री तो प्राप्त कराई लेकिन दुनिया में सबसे बड़े ते बड़ा पद राज्य पद होता है। तो पढ़ाई से पद भी मिलता है ना! तो आपको राजा बनाया है? अभी राजा हो या बनना है? हो राजा और बैठे पट में हो! पक्का मकान भी नहीं, टेन्ट में बैठे हो! तो देखो श्रेष्ठ में श्रेष्ठ पद राज­पद है। अभी भी स्वराज्य अधिकारी हो और भविष्य में भी विश्व राज्य अधिकारी बनना ही है। ये पक्का है ना? किसको राज्य करना है? आप राज्य करेंगे कि आपके ऊपर कोई राजा राज्य करेगा? नहीं। ये सब इतने राजा बन जायेंगे! इतने सब राज्य करेंगे! प्रजा भी तैयार की है या अपने ऊपर ही राज्य करेंगे? तो अपना भाग्य देखो-परम आत्मा मेरा शिक्षक है, राज्य पद देने वाला। और फिर सतगुरू बन..... गुरू क्या करते हैं? मन्त्र देते हैं ना। तो सतगुरू ने क्या मन्त्र दिया? मनमनाभव। सतगुरू द्वारा महामन्त्र भी मिला और सर्व वरदान भी मिले। कितने वरदान मिले हैं? वरदानों की लिस्ट देखो कितनी लम्बी है! रोज वरदान मिलता है ना! कितने समय से मिल रहे हैं! इतने वरदान कोई भी फॉलोअर को कोई गुरू दे ही नहीं सकते। ऐसा सतगुरू जो रोज वरदान दे, ऐसा देखा? अभी नशा है ना! (हाँ जी) बहुत अच्छा। सदा रखना। ऐसे नहीं, यहाँ से बस में जाओ तो नशा उतरना शुरू हो जाये। सदा बढ़ता रहे।

बापदादा सभी बच्चों को सदा ही हर सब्जेक्ट में नम्बरवन देखना चाहते हैं। तो नम्बरवन हो कि अभी बनना है? नशे से कहो कि हम नहीं होंगे तो कौन होगा! विदेशियों को डबल नशा है ना! अच्छा है। बाप भी खुश होते हैं कि एक­एक मेरा बच्चा राजा बच्चा है। प्रजा नहीं है। प्रजा तो पीछे आने वाली है। आप तो फिर भी लक्की हो जो इतना भी मिलने का चांस मिला है। टेन्ट में रहना पड़ा तो क्या हु। मिट्टी पर तो नहीं सो रहे हो ना, गदेले पर सो रहे हो। ब्रह्मा भोजन तो अच्छा मिलता है ना? मिट्टी वाला तो नहीं मिलता? प्यार से खाते हो ना? थोड़ा बहुत तो होता ही है, होना ही है। क्यों? माया और प्रभु का खेल साथ­साथ चल रहा है। अगर परमात्मा द्वारा मेला हुआ तो माया भी झमेला जरूर करती है। आपका काम है मेला करना, उसका काम है झमेला करना। तो झमेला भी हुआ और मेला भी हुआ। (किसी ने कहा आंधी चली) कोई बात नहीं। आपके पुरूषार्थ की आंधी है और ये हवा की आंधी है। घबराते तो नहीं हो ना कि क्या हो गया? नहीं, आंधी आये या बरसात आये, कितनी भी हलचल हो लेकिन आपका मन अचल है ना? मातायें घबरा तो नहीं गई, टेन्ट उड़ गया, क्या करें? थोड़ा­थोड़ा घबराये, क्या होगा, तबियत अच्छी रहेगी, नहीं रहेगी? कुछ भी हो भक्ति से तो धक्के और मेहनत कम ही है ना। भक्ति के धक्के तो नहीं खाते हो ना, मजे में रहते हो ना! तो ये मेला अच्छा लगा या झमेला देखकर घबरा गये? नहीं, कोई नहीं घबराये? एक­दो तो घबराये होंगे? मजा आ रहा है? और भी दो दिन रखें? अच्छा। बापदादा भी माया का झमेला देख चक्कर लगाते रहते हैं। खेल देखते हैं-बच्चे क्या करते हैं और माया क्या करती है?

बापदादा को बच्चों का स्नेह देख खुशी है। स्नेह ने मेला रचाया है। बाप का भी स्नेह है तो बच्चों का भी स्नेह है, दोनों मिल गये तो क्या हो गया? मेला। दृश्य भी कितना अच्छा लग रहा है। ऐसा कभी सोचा था-इतना बड़ा परिवार मिलेगा और इतना परिवार किसको होगा? आपके घर कितने हैं? (एक है) और आपके सेवा के स्थान कितने हैं? (अनेक हैं) तो उसको भी तो बाबा का घर कहते हो ना! तो बाबा का घर आपका घर है। दुनिया कहती है घरबार छोड़ते हैं और आपने कितने घर बनाये हैं! गिनती नहीं कर सकते हो, याद रखना पड़ता है। तो ये छोड़ना नहीं है, बनाना है। और परिवार को छोड़ा है या परिवार इतना बड़ा बनाया है जो मिलना ही मुश्किल होता है। सारे ब्राह्मण जितने भी जहाँ भी हैं, एक स्थान पर मिल सकते हैं? मुश्किल होगा ना। क्योकि दूसरे का राज्य है ना, अपना राज्य तो नहीं है। लेकिन बाप मिला, बेहद का परिवार मिला। तो बेहद को याद करने से बेहद की खुशी, बेहद का नशा होगा। अगर हद में समझते हैं-मैं तो फलाने देश में हूँ, फलाने देश का हूँ, फलाने जोन का हूँ तो हद होती है लेकिन ये तो निमित्त मात्र निशानी के लिये कहते हैं-ये फलाना जोन, ये फलाना स्थान। बाकी अपने को बेहद का समझते हो ना। नियम भी रखने पड़ते हैं। कई ऐसे भी सोचते हैं कि ये क्या बैज लगाओ तभी खाना मिलेगा। आपको खाने पर तंग करते हैं ना? लेकिन ये करना ही पड़ता है। क्योंकि कायदे में फायदे हैं। ये बंधन नहीं है लेकिन विघ्नों से निर्बन्धन बनाने का साधन है। ये क्या नई बात निकाली-ये नहीं सोचना। संकल्प तो बाप के पास पहुँचते हैं ना। लेकिन मर्यादा पुरूषोत्तम आप ही हो ना। या सिर्फ बड़ी दादियां मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, आप फ्री हो? मर्यादा पुरूषोत्तम अर्थात् मर्यादा के अन्दर रहने वाले, चलने वाले। हाँ जी का पाठ पक्का है ना? अच्छा! और जब कोई बात हो जाती है तो हाँ जी होता है या ना जी भी होता है? जब कोई ऐसी बात करते हैं तो हाँ जी के बदले फिर ना जी में इतने पक्के हो जाते हैं जो बाप भी कहे तो भी नहीं सुनेंगे। जैसे स्थापना में जब छोटे­छोटे बच्चे आये तो बापदादा उन्हों को पाठ पक्का कराने के लिये हमेशा कहते रहे कि ना करना माना नास्तिक, हाँ करना माना आस्तिक। तो आप सब कौन हो? आस्तिक हो। नास्तिक तो नहीं हो ना! कभी­कभी बन जाते हो। खेल करते हैं! माया के भी नॉलेजफुल हो गये! क्योंकि माया भी नॉलेजफुल है। गिराने में माया नॉलेजफुल है और उड़ने में आप नॉलेजफुल हो। तो माया भी देखती है कि इसकी उड़ान थोड़ी नीचे­ऊपर हो गई है तो देख करके वार करती है। और आप नॉलेजफुल होने के कारण जान जाते हो, तो हार नहीं खाते हो लेकिन विजय का हार गले में पड़ा। सबके गले में विजय की माला है या कभी­कभी उतार देते हो? अच्छा।

पीछे वाले मौज में हो? यह भी मधुबन की ही एरिया हुई ना, तो सिवाए मधुबन के और कहाँ इतना बड़ा मेला हो सकता है? नहीं हो सकता ना। तो मधुबन है बेहद का घर। यहाँ सब बेहद है और और जगह फिर भी सब देखना पड़ता है और यहाँ संकल्प किया और हो गया। तो सभी अपने भाग्य द्वारा परमात्म मेले में पहुँच गये। जो पहले बारी इस कल्प में आये हैं वो हाथ उठाओ। (करीब 13-14 हजार भाई बहिनों की सभा है, उसमें बहुत से नये भाई­बहिनें हैं) अच्छा है, टी.वी. में देख रहे हो। ये भी देखो मैजारिटी साइन्स के साधन अभी­अभी निकले हैं। कुछ वर्ष पहले ये साइन्स के साधन भी नहीं थे। लेकिन किसके लिये निकले हैं? आपके लिये। बापदादा भी साइन्स वाले बच्चों को मुबारक देते हैं। क्योंकि बाप के बच्चे उससे सुख तो ले रहे हैं ना। तो कितना अच्छा लग रहा है। लेकिन बापदादा अब क्या चाहते हैं? स्थापना हुए कितने वर्ष हो गये? डायमण्ड जुबली मनाने की तैयारी कर रहे हो। तो बापदादा ने अभी सभी बच्चों को राजा बच्चे कहा ना, सब राजा हैं। राजा तख्त नशीन होता है ना? राज्य की निशानी ताज, तख्त और तिलक होता है। तो बापदादा इस वर्ष में चाहे नय्ो हो, चाहे पुराने-अगर नये भी हो तो समाप्ति का समय तो नयों के लिये भी समीप है तो पुरानों के लिये भी समीप है। ऐसे नहीं समझना कि हमारे को भी 60 वर्ष शायद मिलने हैं। नहीं, आपको मेकप करना है। अगर लास्ट आये हो तो फास्ट जाना है। लेकिन सम्पन्न होने का, समाप्ति का समय सबका एक ही है इसलिये चाहे नये हो या पुराने हो लेकिन मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ-सदा स्मृति का तिलक लगा हुआ ही है। कभी मिट जाये, कभी लगा हुआ हो......। नहीं, राज्य अधिकारी अर्थात् तिलकधारी-इस स्मृति का तिलक अविनाशी रहे, साधारण नहीं। मैं तिलकधारी हूँ, मैं विश्व कल्याण के जिम्मेवारी का ताजधारी हूँ। कितना बड़ा विश्व है और आप सभी विश्व कल्याणकारी हो। अकेला बाप नहीं है। बाप के साथी आप सभी हो। तो विश्व कल्याण की जिम्मेवारी के ताजधारी और सदा बाप के दिलतख्तनशीन। नीचे नहीं आना। सदा तख्तनशीन। वैसे भी देखो जो बहुत प्यारे होते हैं, लाडले बच्चे होते हैं तो माँ­बाप उनको मिट्टी में जाने नहीं देते, धरनी पर पांव रखने नहीं देते। तो आप कितने लाडले हो! लाडले हो या और आने वाले हैं? आप हो। तो तख्त को छोड़ करके साधारण स्वरूप, साधारण संकल्प.... इस मिट्टी में या धरनी में पांव नहीं रखो। बुद्धि रूपी पांव सदा तख्तनशीन हो। परमात्म बाप के बच्चे हो। महात्मा, धर्मात्मा के नहीं हो, परम आत्मा के हो। अभी तो सब नशे में ठीक हो, वो तो दिखाई दे रहा है लेकिन सदा रहेगा ना? कि थोड़ा­थोड़ा रहेगा फिर युद्ध करेंगे, फिर विजय प्राप्त करेंगे-ऐसे तो नहीं? ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो? ब्राह्मण हो। क्षत्रिय नहीं हो, युद्ध नहीं करते हो? कि कभी ब्राह्मण बन जाते हो, कभी क्षत्रिय बन जाते हो? अगर माया से युद्ध करनी पड़ती है तो क्षत्रिय हुए। ब्राह्मण माना विजयी और क्षत्रिय माना युद्ध करने वाले। बापदादा को तो कभी­कभी बच्चों पर बहुत रहम आता है, बैठते योग में हैं और करते युद्ध हैं! कहेंगे एक घण्टे योग लगाया लेकिन एक घण्टे में युद्ध कितना समय चली और योग कितना समय रहा? अगर किसी भी कारण से अनुभूति नहीं होती है तो अवश्य ही युद्ध की स्टेज है। बापदादा कहते हैं-योगी बच्चे हैं और बन जाते हैं योद्धे बच्चे! कब तक युद्ध करेंगे? अन्त तक युद्ध करेंगे! छुट्टी दे दें-भले युद्ध करो। छुट्टी चाहिए? नहीं चाहिये? फिर करते क्यों हो? कमज़ोर हो जाते हो तो माया इतना अधीन बना देती है जो चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो। जैसे कोई­कोई सर्वेन्ट बहुत भोले होते हैं तो मालिक उसे अधीन बना लेते हैं, सर्वेन्ट जो नहीं कर सकता उसके लिए भी मालिक कहता है करो, नहीं तो नौकरी क्यों करते हो। माया भी ऐसे करती है, आप चाहते नहीं हो लेकिन कमज़ोर होने के कारण माया के अधीन बनना पड़ता है। तो उस समय योगी हो या योद्धे हो? योगी तो नहीं कहेंगे ना? तो बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक बच्चा योगी बच्चा हो, युद्ध वाला नहीं। बापदादा को बच्चों के युद्ध की मेहनत अच्छी नहीं लगती। परमात्म बच्चे तो सदा मौज में रहने वाले हैं, मजे में रहने वाले हैं, युद्ध की मेहनत वाले नहीं। तो क्या बनेंगे? योगी बच्चे या योद्धे बच्चे? योगी बनेंगे या थोड़ा­थोड़ा युद्ध करना अच्छा है? कहने में तो हाँ­हाँ करते हो और जब करते हो तो उस समय फोटो निकलता है। तो इस वर्ष सभी का चार्ट हो-सदा राज्य अधिकारी। अधीनता समाप्त। 63 जन्म तो अधीन रहे ना, अभी एक जन्म अधिकारी बनने का मिला है, उसमें भी अधीन रहेंगे क्या? अधीन बनने का एक जन्म और एक्स्ट्रा दे दें, मजा ले लो। नहीं चाहिये! अधिकार तो मिला है सिर्फ अधिकार को सम्भालो। अलबेले नहीं बनो, कमज़ोर नहीं बनो। कहने में देखो क्या कहते हो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ। कोई कहता है मैं मास्टर कमज़ोर हूँ? लेकिन बनते क्या हो? मास्टर सर्वशक्तिमान और कमज़ोर! तो अच्छा लगता है? सुनना भी अच्छा नहीं लगता!

तो इस वर्ष की रिजल्ट में क्या करेंगे? अभी तो डायमण्ड जुबली मनाने की तैयारी कर रहे हो ना! आप भी मनायेंगे या जिनको 60 वर्ष हुआ है वो मनायेंगे? क्योंकि ये स्थापना की डायमण्ड जुबली है। तो स्थापना में आप सभी हो या नहीं? क्योकि अभी तो मिक्स आये हैं, कोई तो दो­चार वर्ष के हैं, कोई दो­चार मास के भी हैं, लेकिन डायमण्ड जुबली सभी की है क्योंकि स्थापना की डायमण्ड जुबली है। तो धूमधाम से मनायेंगे ना! मनाने का अर्थ क्या है? कांफ्रेंस करना, प्रोग्राम करना कि बनना? मनाना अर्थात् बनना और बनाना। सिर्फ मनाना नहीं, बनना। देखो आप सभी इस सीजन के समाप्ति में भोग डालने वाली आत्मायें हो। तो कितना अच्छा चांस मिला है। तो मेला अच्छा लगा? अभी आप सबके उलहने तो पूरे हो गये ना! चांस नहीं मिलता, चांस नहीं मिलता-ये उलहना तो पूरा हुआ ना। देखो, बच्चों के प्यार में जहाँ बच्चे वहाँ आना पड़ा। क्योंकि बाप जानते हैं कि आधा कल्प बच्चों ने याद किया-आओ­आओ। बाप तो अपने समय पर आये, आपके चिल्लाने पर नहीं आये लेकिन सुनते तो हैं ना। तो आपने आधाकल्प कहा आओ­आओ और बाप ने अभी कहा मेले में आओ­आओ। सभी खुश हो? सब तन्दुरूस्त भी हो या बीमार भी कोई टेन्ट में सोया हुआ है। आप तो यहाँ बैठे हुए हैं और आपके साथी? कोई नहीं। इससे सिद्ध है सब इतने तन्दुरूस्त हैं माना ब्रह्मा भोजन बहुत अच्छा मिला है। अभी तो फिर भी देखो नीचे सोने का प्रबन्ध मिला है आगे चलकर विनाश के समय हो सकता है बांहों को ही तकिया बनाना पड़े। मिट्टी पर आराम से सो जायेंगे, अगर पत्थर­कंकड़ लगेंगे तो साफ कर लेंगे, किनारे कर लेंगे। अभी तो बापदादा ने देखा, बापदादा ने चक्कर लगाया है, बहुत अच्छा प्रबन्ध किया है और उसमें भी गुजरात वालों को पदम गुणा मुबारक। बहुत अच्छा किया है। दिल से मेहनत की है। तो जिन्होंने दिल से मेहनत की है उनको बापदादा मेहनत की पदम गुणा मोहब्बत दे रहे हैं। हाथ उठाओ जिन्होंने सेवा में निमित्त बनकर सेवा की है? गुजरात वालों ने की है ना! गुजरात वाले हाथ उठाओ। बहुत अच्छी की है। देखो पतली­पतली रोटी तो मिलती हैं। जली हुई तो नहीं मिलती? बापदादा ने रिजल्ट सुनी है कि ब्रह्मा भोजन बहुत अच्छा बनता है। अभ्यास तो हो गया ना पट में सोने का! अच्छा है, गर्मी की सीजन में अगर टेन्ट भी उड़ गया तो हवा के लिए छत खाली हो गई ना। नेचरल खिड़कियाँ बन गई। लेकिन दूसरे ग्रुप को ऐसा नहीं मिलेगा, उनके लिये प्रबन्ध अच्छा करेंगे। और मधुबन वालों ने, जिन्होंने बहुत अच्छा सहयोग दिया वो हाथ उठाओ। मेहनत अच्छी की। (दादी ने की) दादी तो निमित्त है ना। दादी को सारे दिन में कितनी मालायें पड़ती हैं! दुआओं की मालायें एक के पीछे एक पड़ती हैं जो उतारनी भी नहीं पड़ती। फूलों की 10 माला अगर गले में पड़ गई तो गला ही थक जायेगा और ये दुआओं की माला कितनी हल्की और कितनी प्यारी है! जो सेवा करते हैं, वैसे तो सभी ने सहयोग दिया है, बिना सहयोग के कोई कार्य नहीं होता। सबको हाँ जी करना ही है, करो, ये सहयोग का हाथ बढ़ाया तभी ये कार्य हुआ। अगर दो­चार भी सहयोगी ना ना करते तो मेला नहीं हो सकता। लेकिन मधुबन वालों ने, चाहे तलहटी वालों ने, चाहे हॉस्पिटल वालों ने वा चारों ओर के देश वालों ने, ज्ञान सरोवर वालों ने भी मदद की है। बलिहारी ज्ञान सरोवर की, जो आपको भोजन अच्छा मिला। (ज्ञान सरोवर का स्टीम सिस्टम तथा बड़े बर्तन आदि मेले में यूज हो रहे हैं) क्योंकि आप सबनेज्ञान सरोवर बनाया है ना, तो जो बीज डाला उसका फल खा रहे हैं। प्रत्यक्षफल है ना, तो प्रत्यक्षफल मिला है और बना भी प्यार से रहे हैं। जरा भी थकावट के चिन्ह चेहरे पर नहीं हैं। कमाल तो ये है ना! काम करे और प्यार से करें। घुटके खाकर काम करे तो वो काम, काम नहीं है। तो मेले में जब जाते हैं ना तो कोई न कोई चीज़ निशानी जरूर ले जाते हैं। इस परमात्म मेले से क्या निशानी ले जायेंगे? ताज, तख्त और अविनाशी तिलक की निशानी सभी साथ में ले जाना। ऐसे नहीं करना कि तीन चीजों में से एक चीज़ रह गई दो साथ चली। यहीं तो नहीं छोड़कर जायेंगे? ले जाना आता है? एनाउन्स करते हैं ना सीजन में, लॉस्ट प्रापर्टी रोज इकट्ठी होती है, तो ऐसे नहीं छोड़कर जाना। मैं ब्राह्मण आत्मा हूँ, मै सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ-इस निश्चय और नशे में सदा ही रहना। यह सिर्फ बुद्धि में नहीं हो लेकिन चलन और चेहरे में दिखाई दे, जो भी आपके सम्पर्क में आये वो अनुभव करे कि ये साधारण नहीं हैं लेकिन न्यारे हैं। और अलौकिक न्यारापन ही तो प्यारा लगता है ना! तो न्यारा बनना आता है?

भारत के चारों तरफ से पहुँचे हैं। सब तरफ से आये हैं या कोई रह गया है? सभी जोन आ गये हैं। तो जैसे आने में एवररेडी होकर पहुँच गये, ऐसे ही अगर बापदादा ऑर्डर करे कि अभी एक सेकण्ड में वापस घर जाने की तैयारी करो तो कर सकते हो? कि याद आयेगा टेलीफोन कर दें कि हम जा रहे हैं, प्रवृत्ति वाले याद करेंगे? ऐसी प्रैक्टिस करो-एक सेकण्ड में आत्मा शरीर से परे होने के लिये एवररेडी बन जाये। क्योंकि सबका वायदा है-साथ चलेंगे। वायदा है, कि नहीं? बाप चला जाये और हम देखते रहें! नहीं, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे। तो चलने के लिये तैयारी भी चाहिये ना! कोई गोल्डन, सिल्वर, कॉपर की सूक्ष्म रस्सियाँ तो नहीं हैं, जो आप उड़ने की कोशिश करो और रस्सी आपको नीचे ले आये? तो चेक करो और अभ्यास करो कि सेकण्ड में अशरीरी बन सकते हैं? अशरीरी का अर्थ है कि शरीर की कोई भी आकर्षण आत्मा को अपने तरफ आकर्षित नहीं करे। चाहे जिन्दा भी हैं, लेकिन जैसे जीते जी मरजीवा। वैसे आप सबका अपना शरीर तो है ही नहीं। मेरा शरीर कहेंगे या बाप की अमानत है? जब है ही बाप की अमानत तो अशरीरी बनना क्या मुश्किल है? मुश्किल है या सहज है? (सहज है) कहने में तो सहज है। युद्ध नहीं करनी पड़े कि नहीं, मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ......। युद्ध में ही एक सेकण्ड पूरा हो जायेगा तो कहाँ पहुँचेंगे! बाप ने कहा और किया। अगर जरा भी सोचा-ऐसा नहीं वैसा, अभी तो थोड़ा टाइम चाहिये, इतना अभ्यास तो हुआ नहीं है, हो जायेगा...... सोचा और गया। कहाँ गया? त्रेता में गया। हाँ जी किया तो ब्रह्मा बाप के साथी बनेंगे। अच्छा।

टीचर्स से:­ टीचर्स सब आगे बैठी हैं, होशियार हैं। बहुत अच्छा। बापदादा निमित्त बन सेवा करने की मुबारक देते हैं। फिर भी देखो पुरूषार्थ करके सभी को यात्रा तो कराई है।

कुमारों से:­ कुमार क्या करेंगे? कुमार सदा ही विश्व में कोई न कोई परिवर्तन के लिये एवररेडी रहते हैं। कोई भी क्रान्ति के निमित्त कुमार बनते हैं। तो ये है शान्ति की क्रान्ति। तो सभी कुमार सदा यह याद रखो कि हमारा हर कर्म परिवर्तन करने के निमित्त है। तो कुमार अर्थात् विश्व परिवर्तक। ऐसे है ना? सिर्फ तालियाँ तो नहीं बजा रहे हो। अच्छे­अच्छे कुमार हैं। देखो, बापदादा सदा कहते हैं कि सेवाकेन्द्र सेवा में आगे नम्बर पर जायें, उसके लिए कुमार भी जरूर चाहिये। जहाँ कुमार नहीं होंगे वहाँ सेवा के प्लैन कम बनेंगे। तो ऐसे निर्विघ्न सेवाधारी कुमार। खिटखिट करने वाले नहीं बनना। निर्विघ्न सेवाधारी कुमार। कुमार ही सेवा की शोभा हैं इसीलिये बापदादा को कुमार प्यारे लगते हैं। अच्छा है। इस वर्ष तो सभी को निर्विघ्न होना ही है, आपके पास कोई विघ्नों के पत्र नहीं आयेंगे-ये हो गया, ये हो गया......। कुमारों को माया भी बहुत प्यार करती है। माया भी समझती है मेरा बनें, इसीलिये डबल अटेन्शन। माया के नहीं बनना।

कुमारियों से:­ कुमारियाँ क्या करेंगी? कुमारियों का तो बहुत­बहुत बड़ा भाग्य है। कुमार 25 वर्ष का होगा लेकिन उनको कोई दादा नहीं कहेगा, लेकिन कुमारियों को दादी कहेंगे, दीदी कहेंगे। कुमारियाँ अगर टीचर बन जाती हैं तो दादी, दीदी का टाइटल मिल जाता है। दीदी कहने वाले तो बहुत अच्छे हैं और बनने वाले भी अच्छे हैं। लेकिन दीदी माना बड़ी। तो दीदी बनना अर्थात् बड़े दिल से स्व का पुरूषार्थ और औरों को पुरूषार्थ कराना। सिर्फ दीदी नाम से नहीं खुश हो जाना। काम भी करना है। कुमार और कुमारियों से देखा जाता है कि माया का कुछ एक्स्ट्रा प्यार है। लेकिन ये प्यार नहीं है, धोखा है। पहले माया बहुत प्यार करती है लेकिन समाया हुआ धोखा होता है। अभी कोई कुमार और कुमारी की माया के प्रति रिपोर्ट नहीं आनी चाहिये। अभी रिपोर्ट आती है। कई खेल करते हैं कुमार भी, कुमारियाँ भी। अभी खेल नहीं करना। अभी विश्व परिवर्तक बन, सभी एक­दो के सहयोगी बन आगे उड़ना। ठीक है ना।

प्रवृत्ति वालों से:­ प्रवृत्ति वाले क्या करेंगे? प्रवृत्ति वाले सदा ये वरदान याद रखना कि हम विश्व के शो केस में बहुत बढ़िया नम्बरवन शो पीस हैं। जितना आप शो पीस अर्थात् सेम्पल बढ़िया होंगे तो बाप से सौदा करने वाले बहुत आयेंगे। सेम्पल को देखकरके स्वयं भी खरीददार बन जायेंगे। प्रवृत्ति वाले अपना बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। अगर प्रवृत्ति वाले नहीं होते तो अभी तक भी बापदादा को गालियाँ खानी पड़ती। देखो पहले कितनी गाली खाई। लेकिन आप प्रवृत्ति वालों का सेम्पल देखकर हिम्मत आती है। तो प्रवृत्ति वालों की भी अपनी विशेषता है लेकिन प्रवृत्ति का अर्थ क्या है? पर वृत्ति में रहने वाले। प्रवृत्ति का अर्थ ये नहीं है-मेरा पोत्रा, मेरा धौत्रा। नहीं, पर वृत्ति में रहने वाले। लेकिन होता क्या है? बापदादा कहते हैं न्यारे और प्यारे रहो, तो प्यारे बनेंगे लेकिन न्यारे बनकर प्यारे नहीं बनते। ये गलती करते हैं। प्यारे तो बन जाते हैं लेकिन न्यारापन भूल जाता है। तो प्यारे भी और न्यारे भी-ये प्रवृत्ति वालों को आता है ना! प्यारे और न्यारे रहने में होशियार हैं ना? अभी ये नहीं लिखना कि माया आ गई क्या करें? माया को हमेशा के लिए भगा दिया-ऐसा पत्र लिखना। पत्र लिखने की भी जरूरत नहीं, बाबा के पास पहुँचता है। लिखते हैं तो 4-4 पेज पत्र लिखते हैं, इकॉनॉमी खत्म। खर्चा तो होता है ना, खर्चा किसका हुआ? आपका हुआ या बाप का हुआ? तो फालतू खर्चा किया ना और फिर पढ़ने वाले का कितना फालतू टाइम जाता है। अक्षर भी क्या लिखते हैं कोई ईस्ट में जाता है, कोई वेस्ट में जाता है। दो शब्दों में लिखो, डिटेल में नहीं लिखो। खुशखबरी के पत्र कभी भी लम्बे नहीं होते। उल्टे सुल्टे समाचार का पत्र चार पेज का होगा। तो अभी खुशखबरी के पत्र आने हैं ना कि लम्बे­चौड़े आने हैं? कोई कितना भी आपके पास ऐसे­ऐसे पत्र या समाचार सुनाये तो आपको क्या करना है? अचल­अडोल। वेस्ट पेपर बॉक्स में डाल दो। इन्टरेस्ट नहीं लो-ये क्या होता है, ये क्या हुआ......। नहीं, कहने वाले कह रहे हैं। आप तो बाप का कहा हुआ सुन रहे हो, कि औरों का भी सुनना है? क्या वायदा है? आप से ही सुनेंगे कि औरों से भी थोड़ा­थोड़ा सुनेंगे? कोई कुछ भी कहे, कोई कहे-हम बाप हैं, कोई कहे हम ये हैं...... कहने दो, मौज मनाने दो। आप बाप के हैं और बाप के रहना है। मंजूर है ना कि थोड़ा­थोड़ा मजा लेना है? बाप के प्रभाव में रहने वाले किसी भी आत्मा के प्रभाव में नहीं आ सकते। ये भी अच्छा बोलते हैं-सुन लिया तो क्या हुआ! लेकिन बाप ने क्या कहा है? एक से सुनो, एक का ही सुनो। तो ये पसन्द है ना कि थोड़ा­थोड़ा रामायण की कथा, महाभारत की कथा सुनना अच्छा है? बीच­बीच में थोड़ा मनोरंजन तो होना चाहिये! नहीं, आप अपनी मौज में रहो। अगर और कुछ भी करते हैं तो उनको भी मौज करने दो, शुभ भावना दो। आप सेफ रहो। सेफ रहना आता है कि थोड़ा सेक आ जाता है? सेक भी नहीं आये। सदा सेफ रहना।

अच्छा, सभी को वरदान मिल गये। कितना परमात्म प्यार है। गीत गाते हो ना-इतना प्यार करेगा कौन? परमात्म प्यार कोई और दे ही नहीं सकता। असम्भव है। तो आशायें सब पूरी हुई? जब तक जीना है तब तक मिलते रहना है। कभी भी माया के झमेले से घबराना नहीं। आओ, हम भी विजयी हैं। और ही चैलेन्ज करो-आओ, ई हर्जा नहीं। आपका झमेला है तो हमारा मेला है।

अच्छा, ज्ञान सरोवर में इतना मेला हो सकता है? (हो सकता है) बापदादा को दिखाना, कहाँ करेंगे? अच्छा है, ज्ञान सरोवर एक विश्व के लिये सेम्पुल बना है। आखिर तो एसलम बनना ही है। अभी देख लिया ना, जब भी कोई बात नीचे­ऊपर हो तो आ जाना। स्थान तो देख लिया ना? ज्ञान सरोवर में सब तरफ के माइक्स का मेला होगा। सब तरफ के माइक आने हैं ना? ये ब्राह्मणों का मेला और वो है चारों ओर के माइक्स का मेला। क्योंकि ज्ञान सरोवर सभी के बूंद­बूंद से सरोवर बना है और सभी ने दिल वा जान से सिक व प्रेम से बूंद­बूंद डाली है। इसीलिये आप सबके सहयोग का सेम्पल ज्ञान सरोवर है। यहाँ तलहटी वालों ने भी तपस्या बहुत समय से की, उन्हों की भी तपस्या पूरी हुई।

सर्व तरफ के देशविदेश के सर्व सूक्ष्म स्वरूप से दृश्य देखने वाली आत्मायें, चारों ओर के सदा श्रेष्ठ पालना में पलने वाली, श्रेष्ठ पढ़ाई से राज्य पद पाने वाली आत्मायें, सद्गुरू द्वारा सर्व वरदान प्राप्त करने वाली आत्मायें, सदा मायाजीत विजयी रत्न, सदा युद्ध को छोड़ राजयोगी स्थिति में स्थित रहने वाली सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

अच्छा, डबल विदेशियों को भी मेला अच्छा लगा? आप लोग ऐसे सोयेंगे, टेन्ट में सोयेंगे कि नींद नहीं आयेगी? सोने के लिये तैयार हैं? ये तो तैयार हैं आप नहीं सुलाते हो। बहुत बहादुर हैं, एवररेडी हैं। अगर डनलप मिलेगा तो भी ठीक, जमीन मिलेगी तो भी ठीक। अच्छा, डबल विदेशी भी इस सीजन में अच्छे उमंग­उत्साह वाले देखे। वृद्धि भी देखी, संख्या में भी वृद्धि है तो स्थिति में भी वृद्धि है। अभी बचपन का खेल समाप्त हो गया, अभी बड़े हो गये। अच्छा, सब ठीक है? मेला पसन्द आया? ऐसे तो नहीं सोचते-ये झमेला क्या है? नहीं, बहुत अच्छा। जो ड्रामा में होता है वो अच्छा है और अच्छे ते अच्छा रहेगा।



06-04-95   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


प्योरिटी की रूहानी पर्सनालिटी की स्मृति स्वरूप द्वारा मायाजीत बनो

ज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों को देख रहे आ हैं। हर एक स्नेही बच्चों के मूरत में रूहानी पर्सनालिटी की झलक देख रहे हैं। बाहर के रूप में तो साधारण पर्सनालिटी वाले हैं लेकिन रूहानी पर्सनालिटी में सबसे नम्बरवन हैं। दुनिया में अनेक प्रकार की पर्सनालिटीज गाई जाती हैं। शरीर की भी पर्सनालिटी, कोई विशेषता की भी पर्सनालिटी और कोई विशेष पोजीशन की भी पर्सनालिटी, लेकिन आप सबके चेहरे पर, चलन में कौन­सी पर्सनालिटी है? प्योरिटी की पर्सनालिटी। प्योरिटी ही पर्सनालिटी है। जितना जितना जो प्योर हैं उतनी उनकी पर्सनालिटी न सिर्फ दिखाई देती है लेकिन अनुभव होती है। सभी अपने रूहानी पर्सनालिटी को अनुभव करते हो? आप जैसी पर्सनालिटी सतयुग से अब तक कोई की है? सारे कल्प में चक्कर लगाओ तो आप जैसी पर्सनालिटी है? नहीं है ना! तो आपको अपने रूहानी पर्सनालिटी का नशा है! अनादि काल में तो परमधाम में भी आप विशेष आत्माओं की पर्सनालिटी सबसे ऊंची है। चाहे आत्मायें सब चमकती हुई ज्योति हैं लेकिन आप रूहानी पर्सनालिटी वाली आत्माओं की चमक अन्य सब आत्माओं से न्यारी और प्यारी है। अपने अनादि काल की पर्सनालिटी को स्मृति में लाओ। आई स्मृति में? देख रहे हो? बापदादा के साथ­साथ कैसे रूहानी पर्सनालिटी में दिखाई दे रहे हैं। अपने आपको देख सकते हो? तो चले जाओ अनादि काल में। कितने टाइम में जा सकते हो? जाने में कितना टाइम लगेगा? सेकण्ड से कम ना! कि एक दिन, एक घण्टा चाहिये? सेकण्ड से भी कम जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। तो अनादि काल की अपनी पर्सनालिटी देख ली? अभी अनादि काल से आदि काल में आ जाओ। आ गये या अभी चल रहे हो? पहुँच गये? तो अनादि काल से आदि काल में अपनी रूहानी पर्सनालिटी देखो-कितनी श्रेष्ठ पर्सनालिटी है! तन की भी तो मन की भी तो धन की भी और सम्बन्ध की भी। सब प्रकार की पर्सनालिटी कितनी श्रेष्ठ है! तो आदि काल की पर्सनालिटी देख रहे हो? कितने सुन्दर लगते हो, कितने सजे हुए हो, कितने सुख, शान्ति, प्रेम, आनन्द स्वरूप हो तो आदि काल में भी अपनी पर्सनालिटी को देखो। स्पष्ट दिखाई देती है वा 5 हजार वर्ष हो गये तो थोड़ा स्पष्ट नहीं है? सभी को स्पष्ट है? होशियार हो सभी। तो आदि काल भी अपना देख लिया। अभी आओ मध्य काल में तो मध्य काल में भी आपकी पर्सनालिटी क्या रही? आपके जड़ चित्र कितने विधिपूर्वक पूजे और गाये जाते हैं। चाहे कितने भी धर्मात्मा, महात्मा, नेतायें पर्सनालिटी वाले गाये जाते हैं लेकिन आपके जड़ चित्रों की पर्सनालिटी के आगे उनकी पर्सनालिटी कुछ भी नहीं है। जैसे आप सबकी पूजा होती है वैसे कोई महात्मा या नेता की, धर्म आत्मा की विधिपूर्वक पूजा होती है? कभी देखी है? आपके जड़ चित्रों जैसे श्रृंगार किसका होता है? तो मध्य काल में भी आप आत्माओं के प्योरिटी की पर्सनालिटी की विशेषता कितनी श्रेष्ठ है! अपना चित्र देखा? आपकी पूजा होती है कि नहीं? सिर्फ बड़े­बड़ों की होती है, हमारी नहीं! डबल विदेशियों के मन्दिर हैं? देखा है, उसमें आपका चित्र है? कि सुना है तो कहते हो कि हाँ होंगे! स्मृति में है? तो मध्य काल भी आपका अति श्रेष्ठ है और अब लास्ट जन्म में जो मरजीवा ब्राह्मण जन्म है उसकी पर्सनालिटी देखो कितनी बड़ी है! गायन कितना है-कोई भी श्रेष्ठ कार्य अब तक भी आपके नामधारी ब्राह्मण ही करते हैं। चाहे ब्राह्मण अभी ब्राह्मण रहे नहीं हैं लेकिन नाम के तो ब्राह्मण है ना! आपके नाम से आपकी पर्सनालिटी के कारण वो भी श्रेष्ठ गाये जाते हैं। तो ब्राह्मण जन्म की पर्सनालिटी कितनी श्रेष्ठ है! आदि काल, अनादि काल, मध्य काल और अब अन्त काल-सारे कल्प में आपकी पर्सनालिटी सदा ही महान रही है।

लौकिक पर्सनालिटी वालों का अगर नाम भी आता है तो कोई विशेष बुक में उन्हों का नाम आता है-फलाने­फलाने हैं। लेकिन आपका नाम किसमें आता है? साधारण बुक में नहीं आता है, शास्त्र में आता है। जो भी आदि काल से शास्त्र बने उसमें किसके चरित्र हैं? किसका गायन है? किसकी कहानियाँ हैं? तो लौकिक पर्सनालिटी वालों का गायन विशेष बुक में होता है और आपका गायन शास्त्र में होता है और शास्त्र को कितना रिगार्ड देते हैं। बड़े विधिपूर्वक शास्त्र को सम्भालते हैं, उसको भी बड़े पूज्य के रूप में देखते हैं। जो सच्चे भक्त हैं वो शास्त्र को विधिपूर्वक रखते भी हैं और पढ़ते भी हैं। ऐसे रिवाजी किताबों के माफिक नहीं रखते। तो अपनी पवित्रता की पर्सनालिटी को सदा ही इमर्ज रूप में स्मृति में रखो। जानते हैं.... या हैं तो हम ही.... ऐसे मर्ज नहीं।

स्मृति स्वरूप में रखो। जिसके बुद्धि में ये इमर्ज रूप में स्मृति रहती है तो स्मृति ही समर्थी का आधार है। और जहाँ समर्थी है वहाँ माया आ सकती है? समर्थ आत्मा के पास माया का आना असम्भव है। मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है। माया का काम है आना लेकिन आपका काम अभी समय प्रमाण भगाना नहीं है। माया आई और भगाया। नहीं, आपका काम है सदा मायाजीत रहना। तो मायाजीत हो वा माया को बार­बार भगाने वाले हो? अभी भगाना पड़ता है, थोड़ा­थोड़ा वो दर्शन देने के लिये आ जाती है! नहीं ना! डबल फारेनर्स ने माया को सदा के लिए भगा दिया? या भगाते ही रहते हैं? क्या हाल है? माया सदा के लिए भाग गई? अभी नहीं आयेगी ना? कि थोड़ा­थोड़ा आये, कोई हर्जा नहीं? फिर भी आधा कल्प की दोस्ती है, फ्रेंड है ना! उसको ऐसे ही छोड़ देंगे, आवे ही नहीं! सुनाया ना कि समय समाप्त होने के पहले बहुत काल का मायाजीत बनने का अभ्यास चाहिये। अन्त में नहीं हो सकेगा। अगर अन्त में मायाजीत बनने का पुरूषार्थ भी करेंगे तो क्या हाल होगा? बापदादा तोते की कहानी सुनाते हैं ना कि तोते को कहा नलके पर नहीं बैठना, पर नलके पर बैठकर ही बोल रहा था। ऐसे ही अन्त काल में अगर बहुत काल का अभ्यास नहीं होगा तो मन में सोचते रहेंगे कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, लेकिन माया का प्रभाव भी होता रहेगा, और कोशिश भी करेंगे मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन होगा ही नहीं। इसीलिये क्या करना है? अभी से मायाजीत बनने का अभ्यास करो। और उसका सहज साधन है अपने रूहानी पर्सनालिटी को स्मृति स्वरूप में रखो। पर्सनालिटी वाले की निशानी क्या होती है? जो ऊंची पर्सनालिटी वाले होते हैं उसकी कहाँ भी, किसी में भी आंख नहीं जायेगी। ये ऐसा है, ये ऐसा है, ये ऐसा करता, ये ऐसे करती, मैं क्यों नहीं करूँ, मैं क्यों नहीं कर सकती हूँ/कर सकता हूँ..... दूसरे के प्राप्ति में आंख नहीं जायेगी। क्यों? रूहानी पर्सनालिटी वाला सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न है। स्वभाव में भी सम्पन्न, संस्कार में भी सम्पन्न और सम्बन्ध­सम्पर्क में भी सम्पन्न, भरपूर। वो कभी अपने प्राप्तियों के भण्डार में कोई अप्राप्ति अनुभव ही नहीं करेगा। क्यों? रूहानी पर्सनालिटी के कारण वो सदा ही मन से भरपूर होने के कारण सन्तुष्ट रहता है। आंख दूसरे की प्राप्ति में तब जाती है जब अपने में अप्राप्ति अनुभव करते हो। तो कोई अप्राप्ति है क्या? गीत क्या गाते हो-अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खज़ाने में। ये गीत मुख से नहीं, मन से गाते हो ना? जो गाते हैं वो हाथ उठाओ। अच्छा, डबल विदेशी भी गीत गाते हो? अच्छा!

बापदादा आज चारों ओर के बच्चों की प्योरिटी की पर्सनालिटी चेक कर रहे थे। प्योरिटी की परिभाषा को भी अच्छी तरह से जानते हो। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत नहीं, ब्रह्मचर्य व्रत में तो आजकल के सरकमस्टांस अनुसार कई अज्ञानी भी रहते हैं। ज्ञान से नहीं लेकिन हालातों को देखकर। कई भक्त भी रहते हैं। वो कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन प्योरिटी को सारे दिन में चेक करो-पवि­त्रता की निशानी है स्वच्छता, सत्यता। अगर सारे दिन में चाहे उठने में, चाहे बैठने में, चाहे बोलने में, चाहे सेवा करने में, चाहे स्थूल सेवा की वा सूक्ष्म सेवा की लेकिन अगर विधिपूर्वक नहीं की, विधि में भी अगर जरा­सा अन्तर रह गया तो वो भी स्वच्छता अर्थात् पवित्रता नहीं। व्यर्थ संकल्प भी अपवित्रता है। क्यों? आप सोचेंगे कि हमने पाप तो किया ही नहीं, किसको दु:ख तो दिया ही नहीं लेकिन अगर व्यर्थ चला, समय गया, संकल्प गया, सन्तुष्टता गई तो आपके पवित्रता की फाइनल स्टेज के डिग्री में फर्क पड़ जायेगा। 16 कला नहीं बन सकेंगे। 15 कला, 14 कला, साढ़े पन्द्रह कला...... नम्बरवार हो जायेगा। तो अपवित्रता सिर्फ किसको दु:ख देना या पाप कर्म करना नहीं है लेकिन स्वयं में सत्यता, स्वच्छता विधिपूर्वक अगर अनुभव करते हो तो पवित्र हो। निकल गया, बोलना नहीं था लेकिन बोल लिया, तो इसको क्या कहेंगे? मालिक हैं? इसीलिये अमृतवेले से लेकर रात तक अपने संकल्प, बोल, कर्म, सेवा-सबको चेक करो। मोटे रूप से नहीं चेक करो। अगर मोटे रूप से चेक करेंगे तो देखो चन्द्रवंशी को मोटी निशानी तीर­कमान दिया है और सूर्यवंशी को कितनी छोटी­सी मुरली दे दी है। मुरली कितनी हल्की है! और तीर कमान कितना मेहनत का है। पहले तो निशाना लगाते रहो, दूसरा बोझ उठाते रहो! और मुरली देखो-नाचो, गाओ, हंसो, खेलो। तो इसीलिये मोटे­मोटे रूप न पुरूषार्थ का रखो, न चेकिंग का रखो। अभी महीन बुद्धि बनो। क्योंकि समय समाप्त अचानक होना है, बताकर नहीं होना है। बापदादा ने तो पहले ही कह दिया है कि कोई उलहना नहीं देना-बाबा, आपने बताया क्यों नहीं? बाप कभी भी टाइम कॉन्सेस नहीं बनायेगा। अभी पूरा डायमण्ड बनना है ना! ये वायदा किया है ना? डायमण्ड जुबली मनानी है या डायमण्ड बनना है? क्या करना है? बनना भी है और मनाना भी है। दोनों साथ­साथ करना है। तो बापदादा अगले वर्ष में चेक करेंगे-वायदा निभाया या सिर्फ मुख मीठा किया? तो कौन हो? सिर्फ बोलने वाले हो या निभाने वाले हो? अच्छा! देखो, टी.वी. में आप सबका फोटो आ रहा है, फिर बदल नहीं जाना-मैं था ही नहीं, मैंने नहीं कहा था! बनना तो अच्छा है ना, तो जो अच्छी बात है उसको जल्दी करना चाहिये या देरी से? जल्दी करना चाहिये ना!

सेकण्ड में एवररेडी बन सकते हो? सेकण्ड में अशरीरी बन सकते हो? कि युद्ध करनी पड़ेगी कि नहीं, मैं शरीर नहीं हूँ, मैं शरीर नहीं हूँ..... ऐसे तो नहीं ना! सोचा और हुआ। सोचना और स्थित होना। (बापदादा ने कुछ मिनटों तक ड्रिल कराई) अच्छा लगता है ना! तो सारे दिन में बीच­बीच में ये अभ्यास करो। कितने भी बिजी हो लेकिन बीच­बीच में एक सेकण्ड भी अशरीरी होने का अभ्यास अवश्य करो। इसके लिये कोई नहीं कह सकता-मैं बिजी हूँ। एक सेकण्ड निकालना ही है, अभ्यास करना ही है। अगर किसी से बातें भी कर रहे हो, किसके साथ कार्य कर रहे हो, तो उन्हों को भी एक सेकण्ड ये ड्रिल कराओ, क्योंकि समय प्रमाण ये अशरीरीपन का अनुभव, यह अभ्यास जिसको ज्यादा होगा वो नम्बर आगे ले लेगा। क्योंकि सुनाया कि समय समाप्त अचानक होना है। अशरीरी होने का अभ्यास होगा तो फौरन ही समय की समाप्ति का वायब्रेशन आयेगा। इसलिये अभी से अभ्यास बढ़ाओ। ऐसे नहीं, अगले साल में डायमण्ड जुबली है तो अब नहीं करना है, पीछे करना है। जितना बहुत काल एड करेंगे उतना राज्य­भाग्य के प्राप्ति में भी नम्बर आगे लेंगे। अगर बीच­बीच में यह अभ्यास करेंगे तो स्वत: ही शक्तिशाली स्थिति सहज अनुभव करेंगे। ये छोटी­छोटी बातों में जो पुरूषार्थ करना पड़ता है वो सब सहज समाप्त हो जायेगा।

अच्छा सभी खुशराजी हैं ही या पूछना पड़ेगा? मातायें खुश हो? बहुत अच्छा। देखो, कहाँ­कहाँ से मेले में पहुँच गये हो। अच्छा चांस मिला ना, नहीं तो डेट का इन्तजार करते रहते हैं-हमारा नम्बर कब आयेगा, हमारा नम्बर कब आयेगा? अभी तो खुला निमन्त्रण था ना! सब ठीक अच्छी तरह से रह रहे हो? बेहद अनुभव हो रहा है ना? कि थोड़ी­थोड़ी तकलीफ है? बुजुर्ग माताओं को तकलीफ नहीं हुई है? लाइन में लगो तब ही खाना मिलेगा! लाइन में लगने में थकावट नहीं होती? मजा आता है? इतना बड़ा परिवार कब मिलेगा! तो परिवार को देखकर हर्षित होते हैं ना! भक्ति मार्ग के मेले से तो अच्छा मेला है ना? और दो दिन बढ़ा दें कि बस का खर्चा होगा? घर नहीं याद आयेगा? नौकरी नहीं याद आयेगी? ये भी कुछ नवीनता होनी चाहिये ना तो ये मेला भी एक नवीनता हुई। नवीनता का अनुभव कर लिया। अभी फिर पुरानी बातें थोड़ेही होगी, नई बातें होगी ना! नई बात पसन्द आती है या पुरानी? नई बात अच्छी लगती है ना! अच्छा।

कुमारियों से- कुमारियाँ क्या कमाल करेंगी! कुमारियाँ टीचर बनेंगी? कुमारियाँ सभी अपने चेहरे से, चलन से, पवित्रता की परिभाषा का भाषण करेंगी। मुख से भाषण तो सभी करते हैं लेकिन आपके सम्बन्ध में जो भी सामने आये वो चेहरे और चलन से अनुभव करे कि पवित्रता की श्रेष्ठता क्या है? कभी भी कोई कुमारी किसके भी सामने जाये तो साधारण कुमारी नहीं दिखाई दे। पवित्रता की देवी अनुभव हो। देखो शुरू­शुरू में जब तपस्या के बाद सेवा पर निकले तो आप सबको किस रूप में देखते थे? देवियाँ समझते थे ना! उन्हों को साधारण स्वरूप नहीं दिखाई देता था, देवी रूप दिखाई देता था। देवियाँ आई हैं, कुमारियाँ नहीं। तो हर कुमारी अपने को देवी स्वरूप अनुभव करे और दूसरों को भी अनुभव कराये। देवी रूप के ऊपर कभी भी कोई की व्यर्थ नजर नहीं जा सकती। औरों को भी बचा लेंगे और स्वयं भी बच जायेंगे। ऐसे नहीं कह सकते कि इसकी बुरी दृष्टि थी ना, मैं तो पवित्र हूँ लेकिन दूसरे की बुरी दृष्टि थी। अगर आपकी पॉवरफुल पवित्र दृष्टि है तो जैसे सूर्य अन्धकार को रहने नहीं देता, समाप्त हो जाता है, अन्धकार रोशनी में बदल जाता है, वैसे ही आपकी पवित्रदृष्टि, देवी स्वरूप आसुरी संस्कार को समाप्त कर देगी। तो कुमारियाँ क्या हैं? पवित्र देवियाँ। तो कुमारियाँ ऐसे समझती हैं? हाँ कहते हो तो हाथ उठाओ, अगर ना तो हाथ नहीं उठाओ। पवित्र कुमारियाँ हैं।

कुमार:­ कुमार भी पवित्र देव हैं। ऐसे नहीं, ये तो पवित्र देवियाँ हो गई! कुमार भी पवित्र देव हैं। किसी भी तरफ, अपवित्र दृष्टि की बात तो छोड़ो लेकिन स्वप्न मात्र भी अपवित्र वृत्ति नहीं जा सकती। कुमार हाथ उठाओ। कुमार भी बहुत हैं। तो कुमार कौन हो? पवित्र देव। देव आत्मा हूँ। मैं फलाना हूँ, नहीं। देव आत्मा हूँ, पवित्र आत्मा हूँ।

माताओं से - मातायें बहुत हैं। मातायें क्या कमाल करेंगी? कमाल करना है ना? तो मातायें सदा ईश्वरीय स्नेह से सभी को अज्ञान की नींद से जगाओ। जैसे छोटे बच्चों को उठाती हो ना-उठो, तैयार हो, स्कूल में जाओ, तो ऐसे जगत मातायें बन अज्ञान के नींद में सोये हुए बच्चों को उठाओ। आत्माओं को जगाओ, क्योंकि जगत माता हो। जैसे अपने को हद की माता समझने से जिम्मेवारी समझती हो ना। जो भी बच्चें होंगे, 8 हो कि 6, लेकिन जिम्मेवारी समझती हो ना ऐसे बेहद की जगत मातायें बन बच्चों (आत्माओं) पर रहम करो। बच्चा माना बाप का बच्चा। कई ऐसे भी कहानियाँ सुनते हैं, कहते हैं बुरीदृष्टि नहीं है लेकिन इसको माँ समझते हैं। लेकिन माँ सिवाए ब्रह्मा बाप के और कोई आत्मा हो नहीं सकती। तो अपना बच्चा नहीं बनाना, बाप का बच्चा बनाना। तो मातायें तैयार हैं? करनी है सेवा? अच्छा, हाथ हिला रही हैं। कई बच्चे खेल बहुत करते हैं, सारे दिन में कहाँ न कहाँ, कोई न कोई नया खेल जरूर होता है। और बातें भी बड़ी अच्छी बनाते हैं। ऐसी नई­नई अच्छी बातें बनाते हैं जो न शास्त्र में हैं न मुरली में हैं, तो अभी ये बचपन के खेल कब तक करेंगे? ये बचपन के खेल हैं। जैसे गुड़िया बनाते भी हैं, उनको बड़ा भी करते हैं, परिवार वाले भी बना देते हैं, फिर खत्म कर देते हैं। तो बातें बनाने वाले भी ऐसे करते हैं-बात को पहले जन्म देते हैं, फिर उसको विस्तार करते हैं, फिर उसमें नमक-मिर्ची डालकर, मसाला डालकर बहुत टेस्टी करते हैं, फिर एक­दो को खिलाते हैं। अभी आप सबका बचपन है या वानप्रस्थ है? वानप्रस्थ तक पहुँच गये हो ना? अभी तो वाणी से परे जाने का समय है। तो वानप्रस्थ स्थिति वाले बचपन के खेल नहीं करते लेकिन कमाल करते हैं। जब खेल में लग जाते हैं ना तो ये खेल क्या कर रहा हूँ-ये महसूस भी कम करते हैं। खेल में इतने मस्त हो जाते हैं। तो अभी वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करो और कराओ। बचपन के खेल खेल लिये, बहुत खेले।

अच्छा, अभी इस वर्ष के सीजन का समय समाप्त हो रहा है। तो बापदादा को एक संकल्प है। ब्रह्मचर्य व्रत तो सभी ने बहुत सहज धारण किया लेकिन अगले वर्ष सीजन में वही आयें जो क्रोध नहीं करे। ये हो सकता है कि फेल हो जायेंगे? बोलेंगे तो सच ना। तो ऑटोमेटिकली सीजन कम हो जायेगी। ऐसा करें? फॉर्म में सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत का नहीं लिखना, कि 6 मास से या 6 वर्ष से ब्रह्मचर्य में रहे, लेकिन क्रोध कितने समय से नहीं किया? क्रोध पर कड़ी नजर रखना। क्या समझते हैं? पसन्द है? पाण्डवों को पसन्द है? देखो नाम तो आउट हो जायेगा-क्यों नहीं सीजन में आये! तो मातायें बोलो, टीचर्स बोलो-करें? हाँ जी बोलो। टीचर्स को भी आने को नहीं मिलेगा! कोई भी होगा, चाहे महारथी हो, चाहे प्यादा हो, चाहे घोड़े सवार हो-मधुबन वाले कहेंगे हम तो मधुबन में होंगे, लेकिन उन्हों को सामने नहीं बिठायेंगे। टी.वी. में जाकर देखें, सुने। ये इन्सल्ट तो है ना। किसलिये सामने नहीं आये! तो मधुबन वालों को पक्का कंगन बांधना पड़ेगा। पहले मधुबन वाले हाँ करते हैं? पहले मधुबन करेगा। ऐसे नहीं, दूसरे कहें कि पहले मधुबन को तो देखो, ये अच्छा नहीं। अच्छा, सभी तैयार हो? जो सोचे कि नहीं, बहुत मुश्किल है तो वो खड़े हो जाओ। क्योंकि पीछे वालों का हाथ दिखाई नहीं देता। कहेंगे कि हमने तो हाथ उठाया ही नहीं था। तो दादियाँ बताओ-करें? अच्छा! देखो, सभी हाँ­हाँ कर रहे हो फिर कल से सोचना शुरू नहीं करना कि ये क्या हो गया! अन्तर्मुखता से मुख को बन्द कर देना। मुख खुलेगा तब तो क्रोध होगा ना। तो इस सीजन में क्रोध­मुक्त आत्माओं का मेला होगा। पसन्द है ना? अच्छा फिर भी बापदादा समझते हैं कि कइयों के संस्कार बहुत पक्के हैं, रिवाजी बोल भी बोलेंगे तो लगता ऐसे है जैसे क्रोध करते हैं। बोल ऐसा है, आदत पड़ गई है। इसीलिये अभी जब तक सीजन शुरू हो तब तक के लिये अगर कभी गलती से क्रोध हो भी गया ना तो तीन बारी माफ करेंगे। तीन बार छुट्टी है। (सभी ने तालियां बजाई) अच्छा तीन बार छुट्टियाँ चाहिये तभी तालियाँ बजाई। बापदादा ने तो ट्रायल की, फेल हो गये। कहो, हम करके दिखायेंगे, विजय प्राप्त करके दिखायेंगे, ये बोलो। कुछ तो नवीनता होनी चाहिये ना! वही फॉर्म आते हैं-खाना खाया, नहीं खाया? ब्रह्मचर्य में रहे, नहीं रहे? अभी फॉर्म चेंज करेंगे। नवीनता पसन्द है ना? टीचर्स को भी नियम में रहना पड़ेगा। टीचर्स को रियायत नहीं करेंगे। स्टूडेन्ट्स को तीन बार तो टीचर्स को दो बार।

पाण्डवों से - पाण्डव क्या कमाल करके दिखायेंगे? पाण्डव गाये जाते हैं - विजयी पाण्डव। कोई भी पाण्डव नाम लेंगे तो पाण्डवों की दो बातें सामने आती हैं एक बाप के साथी और दूसरा पाण्डव अर्थात् विजयी, तो जो भी पाण्डव हैं वो सभी ये संकल्प करो कि किसी भी बात में हार नहीं खानी है। सदा विजयी। और निश्चय रखो विजयी माला में मुझ पाण्डव का ही पार्ट है। विजयी रत्न हूँ। सदा अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक रोज रिफ्रेश करो और अमृतवेले से लेकर अपने मस्तक पर विजय का तिलक इमर्ज रूप में देखो। ऐसे नहीं, मैं तो हूँ ही। नहीं...। अगर हूँ तो सारे दिन में विजय प्राप्त की या नहीं की-ये चेक करो। तो पाण्डव अर्थात् विजयी।

टीचर्स से - टीचर्स क्या करेंगी? टीचर्स ने मेहनत तो की, बसें भर­भर कर लाई। तो टीचर्स क्या कमाल करेंगी? टीचर्स को विशेष ये लक्ष्य रखना है कि सदा हर परिस्थिति में, परिस्थिति बदले लेकिन स्थिति नहीं बदले। स्थिति सदा खज़ानों से सम्पन्न हो और सन्तुष्ट रहे। परिस्थिति आयेगी और चली जायेगी। लेकिन परिस्थिति की क्या शक्ति है जो आपकी सन्तुष्टता को ले जाये। तो परिस्थिति का खेल भले देखो लेकिन साक्षीपन, सन्तुष्टता की सीट पर बैठकर देखो। तो टीचर्स अर्थात् सदा सम्पन्न और सन्तुष्ट। टीचर्स का टाइटल है सन्तुष्टमणियाँ। ऐसे हैं ना? सदा सन्तुष्टमणि।

मधुबन निवासियों से - मधुबन वाले क्या करेंगे? मधुबन वालों को बापदादा सेवा की मुबारक सदा दिल से पदमगुणा देते हैं, अब भी दे रहे हैं। अब मधुबन वालों को आगे क्या करना है? विशेष ये पाठ पक्का करना है कि मधुबन निवासी हर कर्म में, हर संकल्प में विशेष हीरो पार्टधारी हैं। मधुबन की स्टेज पर नहीं, लेकिन विश्व की स्टेज पर संकल्प, बोल और कर्म में हीरो पार्टधारी। तो हीरो एक्टर के ऊपर न चाहते भी सबकी नजर होती है और हीरो एक्टर थोड़ा भी नीचे ऊपर करता है तो हाहाकार हो जाता है। और अच्छा करता है तो वाह­वाह हो जाती है। तो मधुबन वाले जीरो के साथ रहने वाले सदा हीरो पार्ट बजाने वाले। मधुबन में सब आ गये, हॉस्पिटल भी आ गई तो ज्ञान सरोर भी आ गया, तलहटी भी आ गई, सब आ गये, जो भी आठ भुजायें हैं सब आ गये। समझा? मधुबन निवासी नाम सुनकर सब कितना आपको प्यार करते हैं, कहाँ भी चले जाओ, कहाँ से आये हैं? मधुबन वाले हैं। जैसे मधुबन वाला बाबा मशहूर है ऐसे मधुबन वाले भी मशहूर हैं। ऐसे समझते हो ना! अच्छा है, नशा तो है मधुबन वालों को।

अच्छा, मेला निर्विघ्न हो गया? कल तो चलाचली का मेला शुरू होगा। मिलन का मेला समाप्त हो गया, अभी चलाचली का मेला होगा। देखो, क्या नहीं आप कर सकते हो! जो चाहे वो कर सकते हो! देख लिया ना! जो सुन करके समझते थे पता नहीं क्या होगा, कैसे होगा....? और अभी क्या कहते हैं? ये तो कुछ भी नहीं है। अभी ये कॉमन हो गया ना! कि गुजरात वालों को बहुत मेहनत लगी? मेहनत करनी पड़ी? नहीं, अच्छा लगा। प्राइज मिलने योग्य कार्य किया है। बापदादा दिल के याद­प्यार की प्राइज गुजरात को दे रहे हैं। अच्छा, इसमें जो मातायें सवेरे से लेकर रोटी बनाती हैं, हाथ थक जाते होंगे, तो बाप­दादा दोनों ऐसे सेवाधारी माताओं के बाहों की मसाज कर रहे हैं। रोटी बनाने वाले खड़े हो जाओ। हाँ, बहुत ताली बजाओ। सब्जी काटने वाले भी हैं। सब्जी काटने वाले उठो। सबसे मुश्किल काम जो है वो है गर्मी में इतना समय गैस के आगे ठहरकर रोटी पकाना। तो मुबारक हो, मुबारक। खाने वाले नहीं होते तो ये क्या करते! देखो खाने वालों से ही तो रौनक है। जैसे मन्दिरों में घण्टे बजते हैं ना, जो जाता है घण्टे बजाता है तो इस मेले में बर्तनों के घण्टे बजते रहते हैं। अच्छी सीन होती है, जब बर्तन धुलाई करते हैं ना तो बहुत घण्टे बजते हैं बर्तनों के। तो कमाल तो खाने वालों की है ना!

मधुबन वालों ने भी बहुत मेहनत की। गुजरात को भी सहयोग देने वाले तो मधुबन वाले हैं। बहुत सहयोग दिया है ना। मेला निर्विघ्न समाप्त हो जाये - इस दृढ़ संकल्प से बहुत किया है। मधुबन वालों ने सहयोग दिया है ना या तंग किया है? मधुबन वाले तंग नहीं करते, सबको खुश करते हैं।

बापदादा तो टी. वी. में देखते हैं ना, तो ये देखा कि कोई की शक्ल के पोज इस बारी ज्यादा बदली नहीं हुए हैं। मैजारिटी ठीक रहे हैं, खुशी खुशी से सेवा की है। अगर थोड़ा बहुत हुआ भी है तो सहन शक्ति, समाने की शक्ति अच्छी यूज की है इसलिये मुबारक है। अच्छा, गर्मी लगी? कि पता ही नहीं पड़ा, आप बापदादा के याद की लहरों में लहरा रहे थे। टेन्ट में सोते हो या बापदादा की गोदी में सोते हो? टेन्ट में तो नहीं ना! टेन्ट उड़ जाये तो भी कोई हर्जा नहीं, गोदी तो है ना! लेकिन पहले थोड़ा डराया अभी प्रकृति भी समझ गई ये हटने वाले नहीं हैं। अगर छत उड़ जायेगी तो दूसरी छत आ जायेगी।

अच्छा, डबल विदेशी क्या करेंगे? अभी थोड़े हो, सिकीलधे हो। तो डबल विदेशी सदा अपने चेहरे को, सूरत को चलता फिरता म्युजयम बनायेंगे। आपके नयनों को कोई देखे तो नयनों द्वारा हर्षित रूहानी आकर्षित मूर्त का चित्र देखे। साधारण नयन नहीं देखे। दिव्य नयन। जिन दिव्य नयनों में सदा बाप बिन्दु दिखाई दे। तो आपके नयन चलताफिरता म्युजियम बन जायें। आपका मस्तक आत्म साक्षात्कार कराये। आपके ओंठ सर्व को मुस्कराना सिखा दें। ऐसे चारों ओर चैतन्य म्युजियम अपनी सेवा करते रहें। करने वाले हो ना? अच्छा है। उमंग­उत्साह तो अच्छा है ही और सदा उमंग­उत्साह में आगे बढ़ते रहेंगे।

डबल विदेशियों को मेले में मिलने में मजा आया? सिर्फ विदेश की सीजन तो देखते ही रहते हो लेकिन इतना परिवार तो देखते नहीं हो तो डबल फायदा हो गया। बापदादा से मिलना हो गया और परिवार से भी मिलना हो गया। तो लक्की हो। अच्छा, फॉरेन के कोई भी सेन्टर्स पर रहने वाले टीचर्स हाथ उठाओ। जो भी चारों ओर सेवा में निमित्त रहते हैं उन सबको बापदादा श्रेष्ठ सेवा के भाग्यवान समझते हैं। सेवा का भाग्य प्राप्त होना ये बहुत बड़ा भाग्य है। सेवा में प्रत्यक्षफल प्राप्त होने का अनुभव बहुत सहज होता है। अभी­अभी सेवा की और अभी­अभी स्थिति में आगे बढ़ते रहे। अगर नि:स्वार्थ सेवा की तो सेवा का फल मिलता है। स्वार्थ का फल नहीं मिलता है। लेकिन आप सभी सेवाधारी हो। इसलिये सेवा का फल अवश्य मिलता है। भविष्य तो कुछ नहीं है, अभी का प्रत्यक्षफल आत्मा को उड़ती कला का बल देता है। इसलिये बापदादा निमित्त सेवाधारियों को देख खुश होते हैं। तो श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें हैं और सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा अनेकों के भाग्य को जगाते रहेंगे। अच्छे हैं, अथक सेवा करते हैं। बापदादा के पास सबका रिकॉर्ड है। ऐसे नहीं, बापदादा के पास तो हम जाते ही नहीं, आते ही नहीं, पता ही नहीं.... ये तो नहीं सोचते। जो गुप्त हैं वो सदा नयनों में हैं। गुप्त नहीं रह सकते हो, बाप के आगे प्रत्यक्ष हो। चाहे नाम हो, नहीं हो, सामने आओ, नहीं आओ, लेकिन सामने के बजाय नयनो में समाये हो। समझा?

चारों ओर के सर्व रूहानी प्योरिटी की पर्सनालिटी वाले विशेष आत्माओं को, सदा आदि से अन्त तक पर्सनालिटी की झलक दिखाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा पवित्रता, स्वच्छता, सत्यता के शक्ति से स्व को और विश्व को परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक आत्मायें, सदा निमित्त भाव से सेवाधारी बन प्रत्यक्षफल अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।

दादियों से - अच्छा रहा मेला? कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना? सबके शुभ संकल्प और उमंग­उत्साह के संकल्प से सफलता है ही है। यह संगठन का संकल्प ऐसे होता है जो असफलता को मिटा देता है। जैसे किला होता है ना तो किला कमज़ोर तब होता है जब एक भी ईट हिलती है। और सब ईटे मजबूत हैं तो किला कभी हिल नहीं सकता। विजय है। तो ये भी संगठन से उमंग­उत्साह और श्रेष्ठ संकल्प से, सहयोग से सफलता हुई पड़ी है। अच्छा लगा और समय प्रति समय और अनुभव करते जाते हैं। पहले क्वेश्चन उठता था होगा? लेकिन जो सोचो उसमें सफलता है ही। तो सफलता मूर्त का वरदान संगठन की शक्ति को मिलता है। बापदादा सदा गुडमॉर्निंग, गुडनाइट करते हैं। अच्छा डबल विदेश उड़ रहा है ना। अच्छा है।