31-12-96   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


नये वर्ष में अनुभवी मूर्त बन, सबको अनुभवी बनाओ

(शान्तिवन डायमण्ड जुबली हाल के उद्घाटन अवसर पर) आज नज़र से निहाल करने वाले बापदादा आप सभी अति स्नेही, सहयोगी, स्नेह में लवलीन बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के मस्तक में, दिल में स्नेह का सबूत दिखाई दे रहा है। (हाल में पीछे वाले भाई बहिनों से) आप सोचेंगे कि हम पीछे वाले तो दिखाई नहीं देते हैं लेकिन बापदादा के नयनों में ऐसी अनोखी टी.वी. है जिससे दूर की चीज़ भी सामने दिखाई दे रही है। चाहे कहाँ भी कोने में बैठे हो लेकिन बाप के सामने हो। अभी तो फिर भी आराम से बैठे तो हो ना। (तालियां बजाई) आज बहुत उमंग-उत्साह और खुशी है ना तो तालियों से दिखा रहे हैं। लेकिन बापदादा आपके दिल की खुशी को जानते हैं। बापदादा देख रहे हैं कि हर एक बच्चे को सहयोग का सबूत देने में बहुत खुशी होती है इसलिए हजारों भुजायें दिखाई हैं। तो भुजायें सहयोग की निशानी हैं। बापदादा जानते हैं एक-एक बच्चे ने चारों ओर चाहे देश में, चाहे विदेश में सभी ने चाहे धन से, चाहे मन से, चाहे तन से सहयोग अवश्य दिया है। और आज आप सबके सहयोग का सबूत आप आराम से बैठ देख भी रहे हो, सुन भी रहे हो। अभी ज्यादा ताली नहीं बजाओ। आपके खुशी की, मन की तालियां बापदादा के पास पहुंच गई हैं।

देखो आज दो विशेषतायें हैं। एक इस शान्तिवन को जो सभी ने उमंग- उत्साह से बनाया है उसका बापदादा के साथ-साथ आप बच्चे भी उद्घाटन कर रहे हैं और आज ड्रामानुसार नया वर्ष भी शुरू होने वाला ही है इसलिए बापदादा सभी बच्चों को अपनी दोनों बाहों में समाते हुए दोनों बातों की मुबारक दे रहे हैं। और जैसे अभी इस समय साकार रूप में बाप के साथ उमंग-उत्साह और खुशी में झूम रहे हो ऐसे ही नये वर्ष में सदा अव्यक्त रूप में साथी समझना, अनुभव करना - यह साथ का अनुभव बहुत प्यारा है। बापदादा को भी बच्चों के बिना अच्छा नहीं लगता है। (माइक बंद हो गया) पहला-पहला अनुभव है ना इसलिए यह भी ड्रामा में खेल समझना, कोई भी बात नीचे ऊपर नहीं समझना। अच्छा है और अच्छा ही रहेगा। बहुत अच्छा, बहुत अच्छा करते-करते आप भी अच्छे बन जायेंगे और ड्रामा की हर सीन भी अच्छी बन जायेगी क्योंकि आपके अच्छे बनने के वायब्रेशन कैसी भी सीन हो नेगेटिव को पॉजिटिव में बदल देगी, इतनी शक्ति आप बच्चों में है सिर्फ यूज़ करो। शक्तियां बहुत हैं, समय पर यूज़ करके देखो तो बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव करेंगे।

यह नया हाल और नया वर्ष तो इसमें क्या करेंगे? नये वर्ष में कुछ नवीनता करेंगे ना। तो यह वर्ष अनुभवी मूर्त बन औरों को भी अनुभव कराने का वर्ष है। समझा - क्या करना है? अनुभव करना है। वाणी द्वारा वर्णन तो करते ही हो लेकिन हर बच्चे को हर शक्ति का, हर गुण का अनुभव करना है। अनुभवी मूर्त हो ना! अनुभवी मूर्त हो या वाणी मूर्त हो? अनुभवी हो भी लेकिन इस वर्ष में कोई भी ऐसा बच्चा नहीं कहे कि मुझे इन बातों का तो अनुभव है, लेकिन इस बात का अनुभव बहुत कम है। ऐसा कोई बच्चा न रहे क्योंकि ज्ञान का अर्थ ही है सिर्फ समझना नहीं लेकिन अनुभव करना और जब तक अनुभव नहीं किया है तो औरों को भी अनुभवी नहीं बना सकते। अगर वाणी तक है, अनुभव तक नहीं है तो जिन आत्माओं की सेवा के निमित्त बनते हो वह भी वाणी द्वारा बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, कमाल है-यहाँ तक आते हैं। अनुभवी हो जाएं - वह कोटों में कोई, कोई में भी कोई हैं और प्रत्यक्षता का आधार अनुभव है। अनुभव वाली आत्मायें कभी भी वायुमण्डल वा संग के रंग में नहीं आ सकती हैं। सिर्फ वाणी के प्रभाव वाले कभी नाचेंगे और कभी सोच में पड़ जायेंगे, अनुभव अर्थात् पक्का फाउण्डेशन। आधा अनुभव है तो आधा फाउण्डेशन पक्का है, उसकी निशानी है वह छोटी बड़ी बातों में हिलेगा, अचल नहीं होगा क्योंकि आने वाली बातें वा समस्यायें प्रबल हो जाती हैं, इसलिए अधूरे फाउण्डेशन वाले लड़खड़ाते हैं, गिरते नहीं हैं लेकिन लड़खड़ाते हैं तो पहले इस वर्ष में अपने अनुभवी मूर्त के फाउण्डेशन को पक्का करो। कई बच्चे आज बहुत फास्ट चलते हैं और कल थोड़ा सा चेहरा बदला हुआ होता है, कारण? अनुभव का फाउण्डेशन पक्का नहीं है। अनुभव वाली आत्मायें कितनी भी बड़ी समस्या को ऐसे हल करेंगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं। आया और अपना पार्ट बजाया लेकिन साक्षी होकर, न्यारे और प्यारे होकर खेल समान देखेंगे। बात नहीं खेल, मनोरंजन। मनोरंजन अच्छा लगता है ना? तो कोई भी बात हो, आप के लिए बड़ी बात तब लगती है जब फाउण्डेशन जरा भी कच्चा है। चाहे 75 परसेन्ट पक्का है, चाहे 90 परसेन्ट पक्का है तो भी हिलने का चांस सम्भव है। बापदादा को बच्चों की मेहनत अर्थात् युद्ध करना अच्छा नहीं लगता। मेहनत क्यों? युद्ध क्यों? क्या योगी के बजाए योद्धे बनने वाले हो या योगी आत्मायें हो? युद्ध करने वाले संस्कार चन्द्रवंश में ले जायेंगे और योगी तू आत्मा के संस्कार सूर्यवंश में ले जायेंगे। तो क्या बनना है सूर्यवंशी या चन्द्रवंशी बनना है? सूर्यवंशी बनना है तो युद्ध खत्म। इस वर्ष में युद्ध खत्म हुई? इसमें हाँ नहीं कहते हो? कहने से कहते हो? बापदादा तो न देखते हुए भी बच्चों की रिजल्ट देख लेते हैं, हर समय की रिजल्ट नयनों के सामने नहीं लेकिन दिल में आ ही जाती है। यहाँ साकार वतन में जब आप थोड़ा-थोड़ा या बहुत हिलते हो तो बाप को वहाँ वतन में अनुभव होता है कि कोई हिल रहा है। इसलिए जैसे शान्तिवन की खुशी है, हाल की खुशी है ऐसे बापदादा और इतने बड़े संगठन के बीच यह वायदा करो कि इस वर्ष में हलचल से परे हो अचल-अडोल बनना ही है, बनेंगे नहीं, बनना ही है। ऐसे है? ऐसे जो समझते हैं बनना ही है, सोचेंगे, करेंगे, देखेंगे - यह नहीं, वह हाथ उठाओ। अच्छा-मुबारक हो और जिन्होंने किसी भी कारण से नहीं उठाया, ऐसे नहीं हो सकता कि नहीं बनेंगे लेकिन कोई कारण से नहीं उठाया हो तो वह उठाओ। शर्म आता है उठाने में, तो सोचो जब हाथ उठाने में शर्म आता है तो करने के टाइम भी शर्म करना। सोचना कि यह शर्म करने की बात है, तो नहीं होगी। पक्के हो जायेंगे क्योंकि कई बच्चे बारबार पूछते हैं, चाहे निमित्त बच्चों से या रूहरिहान में बापदादा से एक ही क्वेश्चन करते हैं, बाबा विनाश की डेट बता दो। सभी का क्वेश्चन है ना? अच्छा बापदादा कहते हैं डेट बता देते हैं - चलो दो हज़ार में पूरा होगा तो क्या करेंगे? यह कोई डेट नहीं दे रहे हैं, मिसअन्डरस्टैण्ड नहीं करना। बापदादा पूछ रहे हैं कि समझो 2 हज़ार तक आपको बताते हैं तो क्या करेंगे? अलबेले बनेगे या तीव्र पुरुषार्थी बनेंगे? तीव्र पुरुषार्थी बनेंगे! और बापदादा कहते हैं कि इस वर्ष में हलचल होगी तो फिर क्या करेंगे? और तीव्र पुरूषार्थ कर लेंगे? या थोड़ा-थोड़ा डेट कोन्सेस हो जायेंगे, गिनती करते रहेंगे कि इतना समय पूरा हुआ, एक मास पूरा हुआ, एक वर्ष पूरा हुआ, बाकी इतने मास हैं! ..... तो डेट कोन्सेस बनेंगे या सोल कोन्सेस बनेंगे? क्या करेंगे? अलबेले नहीं बनेंगे? यह तो नहीं सोचेंगे कि अभी तो 4 वर्ष पड़े हैं? क्या हुआ, लास्ट वर्ष में कर लेंगे - ऐसे अलबेले नहीं बनेंगे या थोड़ा-थोड़ा बन जायेंगे? आप नहीं भी बनेंगे तो माया सुन रही है, वह ऐसी बातें आपके आगे लायेगी जो अलबेलापन, आलस्य बीच-बीच में आयेगा, फिर क्या करेंगे? इसीलिए बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि डेट कोन्सेस नहीं बनो लेकिन हर समय अन्तिम घड़ी है, इतना हर घड़ी में एवररेडी रहो। अच्छा मानों बापदादा कहते हैं 2 हजार के बाद होगा, चलो आपने मान लिया, रीयल नहीं है लेकिन मान लिया तो आप दो हजार में सम्पूर्ण बनेंगे और दूसरों को कब बनायेंगे? सतयुग में बनायेंगे क्या? बनाने वाले थोड़े हैं और बनने वाले बहुत हैं, उन्हों के लिए भी समय चाहिए या नहीं? अगली सीजन में भी पूछा था कि कम से कम सतयुग आदि के 9 लाख बने हैं? नहीं बने हैं तो विनाश कैसे हो? किस पर राज्य करेंगे? पुरानी आत्माओं के ऊपर राज्य करेंगे? नई आत्मायें तो तैयार हुई नहीं और विनाश हो जाए तो क्या करेंगे? इसलिए बापदादा ने यह काम अपने बच्चे जो ज्योतिषी हैं ना, उन्हों के ऊपर ही रखा है। जो ज्योतिषी कर सकते हैं, वह बाप क्यों करेगा! फिर भी बाप के बच्चे हैं, उन्हों को कमाने दो। उन्हों की कमाई का साधन यही है। अगर किसको बहुत जल्दी हो तो उन बच्चों से पूछो। बाप नहीं बतायेगा।

समझा - इस वर्ष क्या करना है? अनुभवी मूर्त। कई बच्चे रूहरिहान में बहुत ही मीठी-मीठी रूहरिहान करते, कहते हैं - क्या करें बाबा, इतना तो हो गया है, बाकी इतना आप कर लो। राज्य हम करेंगे लेकिन सम्पूर्ण आप बना दो। ऐसे होगा? बाप मददगार जरूर है और अन्त तक रहेंगे, यह गैरन्टी है लेकिन किसके मददगार? जो पहले हिम्मत का पांव आगे करते हैं, फिर बाप मदद का दूसरा पांव उठाने में सम्पूर्ण मदद करते हैं। हिम्मत का पांव उठाओ नहीं और सिर्फ कहो बाबा आप कर लो, बाबा आप कर लो। तो बापदादा भी कहेगा देखेंगे, पहले पांव तो रखो। एक पांव भी नहीं रखेंगे तो कैसे होगा! इसलिए इस वर्ष में हर समय यह चेक करो कि हिम्मत के पांव मजबूत हैं? बाप को कहने के पहले यह चेक करो। हिम्मत का पांव बढ़ाया और मदद नहीं मिले, यह असम्भव है। सिर्फ थोड़ा सा हिम्मत का पांव बढ़ाओ, इसीलिए गाया हुआ है पहला शब्द क्या आता है? हिम्मते बच्चे मददे बाप ,इसको उल्टा नहीं करो - मददे बाप और फिर हिम्मत बच्चों की। बाप तो मुस्कुराते रहते हैं, वाह मेरे लाड़ले बच्चे वाह! निश्चय से हिम्मत का पांव जरा भी आगे करेंगे तो बाप पदमगुणा मदद के लिए हर एक बच्चे के लिए हर समय तैयार है।

अच्छा - नये वर्ष में और क्या करेंगे? अभी तक सेवा की एक बात रही हुई है, कौन सी? गीता का भगवान तो हो जायेगा, लेकिन बापदादा ने अगले वर्ष हर ज़ोन को कहा था कि स्नेही, सहयोगी, सम्पर्क वाले तो बहुत बने हैं और बनेंगे लेकिन अभी वारिस निकालो। वारिस कम निकालते हैं क्योंकि बापदादा हर सेवाकेन्द्र की रोज़ की रिजल्ट देखते हैं। तो चारों ओर की रिजल्ट में वारिस कम हैं। स्नेही, सहयोगी अच्छे हैं लेकिन उन्हों को आगे बढ़ाओ या कोई भी नयों को, लास्ट वालों को फास्ट करके वारिस क्वालिटी बाप के सामने लाओ। कोई-कोई निकलते हैं लेकिन गिनती करने वाले हैं। जब चाहते हो कि 2000 तक परिवर्तन हो, चाहते तो सभी ऐसे ही हो तो वारिस कितने बनाये हैं? सतयुग की प्रजा भी रॉयल चाहिए। वह कम है। प्रजा बनी है, यह जो अभी अनेक प्रकार की कांफ्रेंस की है वा बाहर की स्टेज पर जो भी प्रोग्राम्स मिले हैं, इस वर्ष में प्रभाव और प्रजा - यह रिजल्ट अच्छी है। लेकिन बापदादा क्या चाहते हैं? अभी वारिस क्वालिटी तैयार करो। यहाँ वारिस तैयार करेंगे तब एडवान्स पार्टी भी प्रत्यक्ष होगी और बाप के नाम का, प्रत्यक्षता का नगाड़ा चारों ओर बजेगा। अभी तक की रिजल्ट में कहते हैं कि यह भी अच्छा काम कर रहे हैं या कोई-कोई कहते हैं कि यही कर सकते हैं, लेकिन परम आत्मा की तरफ अटेन्शन जाए, परम आत्मा का यह कार्य चल रहा है, वह अभी इनकागनीटो (गुप्त) है। बच्चे अपनी शक्ति से, स्नेह से बाप को प्रत्यक्ष करने का अच्छा पुरूषार्थ कर रहे हैं लेकिन अभी जब तक स्नेही हैं, सहयोगी हैं तब तक बाप की प्रत्यक्षता मैदान पर नहीं आई है। अच्छा है - यहाँ तक हुआ है, लेकिन सबके मुख से यह निकले कि बस अभी समय आ गया, बाप आ गया, तब विनाश भी आयेगा। तो बाप कहते हैं कि बाप से नहीं पूछो कि विनाश कब होगा? बाप आपसे पूछते हैं कि आप कब तैयार होगे? पर्दा खोलें, तैयार हो? कि पर्दा खुलेगा और तैयार होते रहेंगे? कम से कम 16108 पक्के-पक्के रत्न तो प्रत्यक्ष करो, माला तो बनाओ। बाप भी देखे तैयार हैं? इतनी मार्जिन है, ज्यादा नहीं कह रहे हैं। 9 लाख नहीं कह रहे हैं, 16108 की माला बनाओ। तो इस वर्ष बनाना, देखेंगे कि 16108 की निर्विघ्न, अचल माला तैयार है या अभी थोड़ा-थोड़ा लड़खड़ाते हैं? थोड़ा-थोड़ा खेल दिखाते हैं? पाण्डव क्या समझते हो? बोलो, तैयार हो? दादियां तो बोलती हैं - हाँ। सभी शक्तियों की हाँ है? 16108 तैयार हैं? अच्छा 18 तारीख को माला बनाकर देना। हाथ उठवायेंगे तो आधी सभा कहेगी 16 हज़ार में हैं। जो समझते हैं कि हम 16 हजार में हैं, वो दादियों को अपनी चिटकी लिखकर देना कि मैं 16 हज़ार में हूँ या 108 में? फिर दादियाँ पास करेंगी। ऐसे नहीं समझना कि चिटकी दे दी है, पहले यह पास करेंगी फिर बापदादा पास करेंगे, फिर फाइनल रिजल्ट बतायेंगे। अच्छा।

इस वर्ष में और क्या करेंगे? बापदादा ने एक रिजल्ट सभी बच्चों की देखी। सिर्फ यहाँ वालों की नहीं, चारों ओर के बच्चों की एक बात की रिजल्ट देखी, वह कौन सी बात? जमा का खाता किसने कितना जमा किया है? चाहे मन्सा में, चाहे वाचा से, चाहे कर्मणा से, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से - आप सभी का चैलेन्ज है, अपने को ही नहीं लेकिन विश्व के आगे बोलते हो कि एक जन्म में 21 जन्म का जमा करना है। यह बोलते हो ना! जानते हो ना? तो एक जन्म में 21 जन्मों का जमा करना है तो कितना करना पड़े?

अभी मन्सा में जो जमा करते हो उससे एक तो आधाकल्प आपको मन्सा से वृत्ति या वायब्रेशन फैलाने की आवश्यकता नहीं है, 21 जन्म यह पुरूषार्थ करने की आवश्यकता नहीं है और दूसरा द्वापर से लेकर जो आपके चित्र भिन्न-भिन्न  रूप में पूजे जाते हैं, आपको पता नहीं है कि हम किस रूप में पूजे जाते हैं लेकिन पूज्य तो हो ना! 33 करोड़ देवताओं की मान्यता है तो आधाकल्प माननीय और पूज्यनीय बनते हो। उन जड़ चित्रों द्वारा भी आपकी मन्सा सेवा आटोमेटिक होती रहेगी। कोई भी भगत आपके जड़ चित्र के सामने आयेंगे तो उनको मन्सा वायब्रेशन से शान्ति, खुशी, शक्ति की अनुभूति होगी, यह मन्सा के जमा का प्रभाव होगा। और जो वाणी में जमा करते हैं, खाता अच्छा है, उन्हों का फिर वाणी द्वारा गायन और पूजन ज्यादा होता है। वाणी द्वारा उन्हों की महिमा और पूजा युक्तियुक्त होती है। काम चलाऊ पूजा नहीं, युक्तियुक्त पूजा होती है, क्योंकि वाणी द्वारा आप सभी उन्हों को सुख देते हो, शान्ति देते हो तो आधाकल्प आपका वाणी से बहुत युक्तियुक्त गायन होगा। एक गायन होगा और दूसरा युक्तियुक्त पूज्य बनेंगे। और कर्म द्वारा जो सदा करने वाली आत्मायें हैं, आधा दिन किया, आधा दिन नहीं किया, कभी किया, कभी नहीं किया, नहीं। लेकिन सदा और हर कर्म में अगर आपने जमा किया है, तो आपके हर कर्म की पूजा होगी। बहुत थोड़े देवताओं की हर कर्म की पूजा होती है। कभी-कभी वालों की सारे दिन में कभी-कभी होगी। और स्नेह, सहयोग वाली जो आत्मायें हैं, स्नेह से सहयोग से जो जमा करते हैं उन्हों की चाहे छोटी सी मूर्ति भी हो, मन्दिर भले छोटा हो लेकिन उस मूर्ति से स्नेह और सहयोग का वरदान प्रैक्टिकल में अनुभव होगा। समझा। अभी अपने को चेक करना कि चारों बातों में मेरा जमा का खाता कितना है? तीन में ज्यादा है, एक में कम है, या एक में ज्यादा है, तीन में कम है?

बापदादा ने जो रिजल्ट देखी तो बापदादा को पसन्द नहीं आई। अभी बैठकर क्या बतायें, इसलिए शार्ट में ही कहते हैं कि विनाश को जल्दी लाना है तो इस वर्ष से इन चारों ही बातों में जमा का खाता बढ़ाओ। कम खर्च बालानशीन बनो। वाणी से भी ज्यादा व्यर्थ जाता है, जो जरूरत भी नहीं होगी उसमें भी टाइम लगा देते हैं। मन्सा में जो सोचने की बात नहीं है, वह भी सोचने लग जाते हैं तो जमा का खाता कम हो जाता है। वेस्ट जाता है, जमा नहीं होता। तो विनाश के पहले जमा का खाता बढ़ाओ। तो बापदादा को विनाश का आर्डर देने में क्या देरी लगेगी, ताली बजाई और हुआ। यह ताली तो बजा ली ना। अभी तैयारी की ताली बजाओ। (सभी बार-बार तालियां बजा रहे हैं) आज तालियों की महफिल ज्यादा है। बापदादा बच्चों को देख करके खुश हैं। समझा इस वर्ष में क्या करना है?

बापदादा के पास हर एक बच्चे की टी.वी. है और बापदादा कभी-कभी अचानक हर बच्चे की टी.वी. का स्विच आन करते हैं तो बहुत रमणीक दृश्य होता है। अचानक करते हैं, प्रोग्राम से करेंगे तो ठीक बैठेंगे, ठीक करेंगे लेकिन अचानक का खेल देखते हैं तो अभी भी मैजारिटी का वेस्ट खाता बहुत है। बापदादा ने पहले एक स्लोगन दिया था -कम बोलो, मीठा बोलो। याद है? सभी ने यह स्लोगन चारों ओर लिखकर भी लगाया था, लेकिन दीवारों में तो लग गया, अभी दिल में लगाओ। एडवान्स पार्टी का सब पूछते हैं, कहाँ हैं, क्या करते हैं? क्यों नहीं प्रत्यक्ष होते हैं? तो वह आत्मायें कहती हैं हम प्रत्यक्ष होंगे तो क्या हम अकेले प्रत्यक्ष होंगे कि साथ-साथ होंगे? अगर मानों एडवान्स पार्टी का पार्ट प्रत्यक्ष होता है तो कौन हैं, यह क्या है, उसमें आप नहीं होंगे? क्या सिर्फ एडवान्स पार्टी प्रत्यक्ष होगी? वह भी आपका इन्तजार कर रहे हैं कि एक साथ ताली बजायें। दूसरे तरफ विनाश का समय आपका इन्तजार कर रहा है, आप इन्तजार नहीं करो वह कर रहा है। समय तो आपकी रचना है, आप आर्डर करो तो वह तो सदा तैयार है। तो अभी अपने को अचल-अडोल बनाने की, बनने की तैयारी करो। जो भी आपके सम्पर्क-सम्बन्ध में आते हैं, मानों टीचर्स हैं या निमित्त बड़े भाई या बहनें हैं, उन्हों को अपने सम्बन्ध-सम्पर्क वाले ग्रुप को इस वर्ष में ऐसा तैयार करना है जो हर एक के मुख से निकले कि हम अनुभवी मूर्त हैं। चाहे सेन्टर पर साथी हैं, चाहे प्रवृत्ति में रहने वाले हैं, लेकिन हर एक के सहयोग से, वृत्ति से ऐसा ग्रुप तैयार करो जो कोई के भी मुख से, कोई की भी वृत्ति से ऐसा अनुभव नहीं हो कि यह अनुभवी मूर्त बनने वाली है, बनी नहीं है। समझा? ऐसे नहीं समझना कि जो सेन्टर्स के बड़े हैं, वह बने, हम तो बने नहीं। सबकी अंगुली चाहिए। चाहे भण्डारे का कार्य करने वाले भी हैं लेकिन सभी ज़िम्मेवार हैं।

अभी इस वर्ष की एन्ड में यह रिजल्ट पूछेंगे क्योंकि डायमण्ड जुबली हो गई, अभी समाप्ति के नज़दीक हैं। डायमण्ड जुबली में भी डायमण्ड नहीं बनेंगे तो कौन सी जुबली और मनायेंगे? और मनानी है कि समाप्ति करनी है? 100 वर्ष की मनानी है? मनानी हो तो फिर भले ढीले-ढाले चलो। अगर जल्दी करना है तो इस वर्ष में पहले आप तो बनो। जो रोज़ आने वाले हैं या कभी-कभी की लिस्ट में हैं, ब्राह्मण की लिस्ट में हैं वह सब तो तैयार हो जाओ, जब आप तैयार हो जायेंगे तब ताली बजायेंगे। अगर कल तैयार हो जाओ तो कल बजायेंगे। तो सभी तैयार हैं या होने ही हैं? सेन्टर पर रहने वाले वा सेन्टर पर आने वाले हर बच्चे की रिजल्ट देखेंगे कि नम्बर कौन लेता है, ठीक है? पाण्डव ठीक है? पाण्डव चुप हैं, सोच में हैं क्या?

देखो, बापदादा ने तो अपना वायदा पूरा किया, डेट पर आ गये ना। अभी आप भी डेट पर पूरा तैयार हो जाना। यह बड़ा हाल पसन्द है कि छोटा हाल ठीक है? अभी तो और वृद्धि होनी ही है। इस हाल में भी पीछे खड़ा होना पड़ेगा, आप भाग्यवान हो जो आराम से बैठे हो। जितना बड़ा बनायेंगे ना उतना छोटा होता जायेगा। अच्छा-जो इस स्थान की सेवा के निमित्त बने हैं, बापदादा उन सबको बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। कुछ भी थोड़ा बहुत रह गया है तो सोचना नहीं, तैयार ही है। फिर भी देखो बापदादा देख रहे थे कि थोड़े समय में जितना फास्ट काम किया है, उसी प्रमाण समय को देखते हुए बहुत अच्छा प्रोग्रेस किया है और बाकी थोड़ा सा है, वह हो जायेगा। बापदादा को पसन्द है। दादी ने आप लोगों को उल्हना दिया लेकिन बापदादा मुबारक दे रहे हैं। दादी निमित्त है बनाने के, अगर नहीं कहती तो आप आज बना नहीं पाते। तो उनका काम है कहना और बापदादा का काम है मुबारक देना। नाम तो नहीं ले सकते, बहुत हैं लेकिन जो मुख्य कन्स्ट्रक्शन के निमित्त हैं, वह खड़े हो जाओ।

(निर्वैर भाई) यह आपका बैकबोन है ना। सभी दिल से बोलो मुबारक हो, मुबारक हो।

इस बारी की रिजल्ट में बापदादा को सबूत मिला कि हर बच्चे का बाप से कितना स्नेह है। बाप ने कहा और बच्चों ने जी हज़ूर, जी हाजिर किया। (कान्ट्रैक्टर्स प्रति) इन्हों को समय कम मिला है, समय के अनुसार काम बहुत किया, अच्छा किया और आप सबने भी सहयोग दिया इसीलिए बापदादा एक एक का दिल में नाम ले रहा है, मुख से नहीं दिल से। देश-विदेश के सभी बच्चों को स्नेह के सबूत की मुबारक दे रहे हैं। हर बच्चे ने अपने दिल से अंगुली दी है, चाहे किस भी रूप में, लेकिन सर्व के सहयोग से यह शान्तिवन समय पर तैयार हो गया। बैठने के योग्य तो है ना। अच्छा है। बेहद का हाल है लेकिन आगे क्या करेंगे? बस इतना ही ठीक है? कई बच्चों ने बापदादा को मीठा-मीठा उल्हना भी दिया कि हमने समझा था कि अभी संख्या नहीं मिलेगी, जो आना चाहे वो आये। लेकिन संख्या तो और कम हो गई, बहुत थोड़ी संख्या मिली है। तो अभी क्या करना पड़े, सोचना। अच्छा।

टीचर्स समझती हैं ना कि और संख्या मिलनी चाहिए। टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स को तो चांस अच्छा मिल जाता है एक ग्रुप में आते तो दूसरे में भी आ जाते। अभी सभी टीचर्स क्या करेंगी? रिजल्ट देंगी ना? सेन्टर को तैयार करेंगी? जो समझती हैं हो सकता है, वह हाथ उठाओ। सभी निमित्त हैं, चाहे छोटी सी कुमारी रहती है, कुमार रहते हैं, भाई रहते हैं, सब ज़िम्मेवार हैं। एक साल दिया है, एक मास नहीं दिया है, एक साल दिया है। मधुबन भी तैयार होगा ना।

मधुबन वाले हाथ उठाओ। तो पहला एक्जैम्पल कौन बनेगा? मधुबन या सभी साथ बनेंगे? बापदादा ने देखा है कि मधुबन को कॉपी करना सबको आता है। चाहे अच्छी बात हो, चाहे कोई भी बात हो लेकिन मधुबन को कॉपी करना बहुत सहज आता है। और एक स्लोगन बन गया है - मधुबन में भी तो होता है! अभी इस वर्ष में यह स्लोगन नहीं कहना, इस वर्ष का स्लोगन है, मुझे करना है। यह भी होता है, यह भी होता है, नहीं। करना ही है। मुझे करना है। अर्जुन मैं हूँ। दूसरा अर्जुन नहीं है, जिसको देखना है। मैं अर्जुन हूँ, मैं निमित्त हूँ।

अच्छा-इस मेले में जो प्रबन्ध मिला है उसमें सब सन्तुष्ट हो? सन्तुष्ट अभी भी हैं और आगे भी हो जायेंगे। तो इस वर्ष का अन्त और दूसरे वर्ष का आदि तो संगम हो गया ना। तो संगम का बापदादा सभी को टाइटल देते हैं - सन्तुष्ट आत्मायें, सन्तुष्ट मणियां। चाहे भाई हैं, चाहे बहिनें हैं लेकिन आत्मा मणी है इसलिए सभी सन्तुष्ट मणियां हैं, और सदा रहेंगी। देखना सन्तुष्टता को छोड़ना नहीं। कितना भी कोई आपके आगे कोशिश करे, आपकी सन्तुष्टता हिलाने के लिए आये लेकिन आप हिलना नहीं, सदा सन्तुष्ट। सदा मुखड़ा मुस्कुराता रहे। कभी कैसा, कभी कैसा नहीं। सदा मुस्कुराता हुआ चेहरा, अगर चेहरे में कभी थोड़ा फर्क आये तो अपने पूजने वाले चित्र को सामने रखो तो मेरा चित्र तो मुस्कुरा रहा है और मैं सोच रही हूँ। तो मुस्कुराना सन्तुष्टता की निशानी है। तो क्या बनेंगे? क्या करेंगे? सन्तुष्टमणि। चेहरे पर कभी भी और रेखायें नहीं हों, सिवाए मुस्कुराने के। उदासी को अपनी दासी बना दो। अपने चेहरे पर उसको लाने नहीं देना। आर्डर से चलाओ, नहीं आ सकती। अच्छा।

इस ग्रुप में तो सब जोन आये हैं ना। सबसे बड़ी संख्या किसकी है? (गुजरात) गुजरात वालों ने हिम्मत अच्छी की है। (महाराष्ट्र, कर्नाटक, ईस्टर्न, पंजाब, दिल्ली, नेपाल, यू.पी. आदि सभी ज़ोन से बापदादा हाथ उठवाकर मिल रहे हैं) तामिलनाडु कहाँ है? तामिलनाडु में भी बहुत अच्छी वृद्धि है।

डबल फॉरेनर्स को भी डबल मुबारक हो। कन्स्ट्रक्शन वालों ने जिस भी डिपार्टमेंट में काम किया है, वह उठकर खड़े हो जाओ। कन्स्ट्रक्शन वालों को बापदादा वतन में मसाज करता है।

जिन्होंने भी काम किया है वह सभी वतन में आना, वतन में मसाज होता है। अच्छा। बहुत अच्छा किया है। (इसके पीछे दादी जी और दादी जानकी जी की विशेष प्रेरणा रही है, सभी ने दादियों को मुबारक दी) सभी ने तालियां तो बजाई और बापदादा उनके लिए ताली बजा रहे हैं जो आप सारी सभा सहयोगी बनी। अच्छा।

चारों ओर के सर्व उमंग-उत्साह से आगे बढ़ने वाले, सदा इकॉनामी के अवतार बन समय, संकल्प, वाणी और कर्म को बचत के खाते में जमा करने वाले, साकार वा आकार रूप में नया वर्ष मनाने वाले सिकीलधे बच्चे, बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर के बच्चे, साकार में नहीं तो आकार रूप में मधुबन में ही हैं और आकार रूप में मना रहे हैं। तो सभी को बापदादा नये वर्ष की, शान्तिवन के स्थापना की मुबारक और यादप्यार दे रहे हैं। सभी सन्तुष्ट मणियों को नमस्ते।

(दादी जी तथा दादी जानकी जी ने सिन्धी सम्मेलन का समाचार बापदादा को सुनाया)

इस समय जो सभी ने मिलकर सेवा की और लास्ट में सिन्धी सम्मेलन भी किया तो भारत या विदेश दोनों में जिन्होंने भी सेवा की, निमित्त बनें, उन्हों को सच्ची ज्योत जगाने की विशेष मुबारक है। (सिन्धी सम्मेलन में आये हुए भाई- बहिनों से) जो अभी यहाँ हैं, वह खड़े हो जाओ। बीज बहुत अच्छा डाला है, फल देखते जाना। अच्छी सेवा की है। मुबारक हो।

(बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा फहराया, मोमबत्तियां जलाई, केक काटी और 12 बजे सभी बच्चों को नये वर्ष की बधाई के साथ याद-प्यार दी)

पुराने वर्ष को विदाई दी और नये वर्ष का आह्वान किया, आरम्भ किया। जैसे पुराने वर्ष को विदाई दी वैसे वर्ष के साथ जो इस वर्ष में कोई भी कमी रह गई हो, कमजोरी रह गई हो उसको भी सदा के लिए विदाई और सर्व गुणों का आह्वान करके नई दुनिया के स्मृति से, तीव्र गति से आगे बढ़ते चलो, पुरानी बातों को छोड़ो। पुराने को विदाई दी या कभी-कभी बुलायेंगे? नहीं ना? सदा के लिए विदाई दी? जैसे यह 96 का वर्ष अभी नहीं आयेगा। विदाई दे दी ना! अब आगे 97 आयेगा, 96 नहीं। इसलिए पुरानी कमजोरियों को स्वाहा करो। स्वाहा किया? यह डायमण्ड जुबली हाल है ना तो डायमण्ड जुबली हाल अर्थात् यज्ञ, तो यज्ञ में स्वाहा की हुई चीज़ फिर वापिस नहीं ली जाती। तो आपने स्वाहा किया? हाँ या ना? सभी ने कर लिया? थोड़ा छिपाकर तो नहीं रखा? जेब खर्च की आदत होती है ना। तो यह कमजोरियां जेब खर्च की रीति से भी नहीं रखना। क्या करें, बात ही ऐसी थी, थोड़ा सा करना पड़ा, आइवेल के लिए रखना ही पड़ता है, ऐसे नहीं। जेबखर्च भी नहीं रखना। स्वाहा तो पूरा स्वाहा। तो बीती सो बीती। और अभी से नई बातें आरम्भ हो गई। अभी से किया ना? तो सच्चा डायमण्ड बन गये। बनना पड़ेगा, देखेंगे, पक्का नहीं - यह पुरानी भाषा खत्म। अभी पुरानी बातें नहीं बोलना। पता नहीं, पता नहीं, नहीं कहना। करना ही पड़ता है, नहीं। हम जो करेंगे वो और करेगे -यह पाठ पक्का करो। ठीक है ना! तो मुबारक हो, बधाई हो। पदमगुणा बधाई हो।

अच्छा। ओम् शान्ति।



18-01-97   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


अपनी सूरत से बाप की सीरत को प्रत्यक्ष करो तब प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा

आज बापदादा दो विशाल सभायें देख रहे हैं। एक तो साकार रूप में आप सभी सम्मुख हो और दूसरी अव्यक्त रूप की विशाल सभा देख रहे हैं। चारों ओर के अनेक बच्चे इस समय अव्यक्त रूप में बाप को सम्मुख देख रहे हैं, सुन रहे हैं। दोनों ही सभा एक दो से प्रिय हैं। आज विशेष सभी के दिल में ब्रह्मा बाप की याद इमर्ज है क्योंकि ब्रह्मा बाप का इस ड्रामा में विशेष पार्ट है। सभी का ब्रह्मा बाप से दिल का स्नेह है क्योंकि ब्रह्मा बाप का भी एक-एक बच्चे से अति प्यार है। जैसे आप बच्चे यहाँ साकार में ब्रह्मा बाप के गुण और कर्तव्य याद करते हो वैसे ब्रह्मा बाप भी आप बच्चों की विशेषताओं का, सेवा का गुणगान करते हैं। तो ब्रह्मा का अव्यक्त आवाज़ आप सबको पहुंचता है? आप सब विशेष अमृतवेले से लेकर जो मीठी-मीठी बातें करते हो वा मीठे-मीठे उल्हनें भी देते हो, वह ब्रह्मा बाप सुनकर मुस्कुराते रहते हैं और क्या गुण गाते हैं? वाह मेरे सिकीलधे, लाडले बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चे वाह! ब्रह्मा बाप अब बच्चों से क्या शुभ आशायें रखते हैं, वह जानते हो?

बाप यही चाहते हैं कि मेरा हर एक बच्चा अपनी मूर्त से बाप की सीरत दिखायें। सूरत भिन्न-भिन्न हो लेकिन सबकी सूरत से बाप की सीरत दिखाई दे। जो भी देखे, जो भी सम्बन्ध में आये - वह आपको देखकर आपको भूल जाये, लेकिन आप में बाप दिखाई दे तब ही समय की समाप्ति होगी। सबके दिल से यह आवाज़ निकले हमारा बाप आ गया है, मेरा बाप है। ब्रह्माकुमारियों का बाप नहीं, मेरा बाप है। जब सभी के दिलों से आवाज़ निकले कि मेरा बाप है, तब ही यह आवाज़ चारों ओर नगाड़े के माफिक गूँजेगा। जो भी साइंस के साधन हैं, उन साधनों में यह नगाड़ा बजता रहेगा - मेरा बाप आ गया। अभी जो भी कर रहे हो, बहुत अच्छा किया है और कर रहे हो। लेकिन अभी सबका इकठ्ठा नगाड़ा बजना है। जहाँ भी सुनेंगे, एक ही आवाज़ सुनेंगे। आने वाले आ गये - इसको कहा जाता है बाप की स्पष्ट प्रत्यक्षता। अभी नाम प्रसिद्ध हुआ है। पहला  कदम नाम प्रत्यक्ष हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां - ब्रह्माकुमार अच्छा काम कर रहे हैं। विद्यालय वा कार्य की, नॉलेज की अभी महिमा करते हैं, खुश होते हैं। यह भी समझते हैं कि ऐसा कार्य और कोई कर नहीं सकता, इतने तक पहुँचे हैं। यह बात स्पष्ट हुई है, चारों ओर इस बात की महिमा है। लेकिन इस बात का अभी स्पष्टीकरण नहीं हुआ है कि बापदादा आ गये हैं। अभी थोड़ा-थोड़ा पर्दा खुलने लगा है लेकिन स्पष्ट नहीं है। जानते भी हैं कि इन्हों का बैकबोन कोई अथॉरिटी है लेकिन वही बापदादा है और हमें भी बाप से वर्सा लेना है, यह दीवार अभी उमंग-उत्साह में आगे आ रही है, वो अभी होना है। एक कदम उठाते हैं, वो एक कदम है - सहयोग का। एक कदम उठने लगा है, सहयोग देने की प्रेरणा अन्दर आने लगी है, अभी दूसरा कदम है - स्वयं वर्सा लेने की उमंग में आये। जब दोनों ही कदम मिल जायेंगे तो चारों ओर बाजे बजेंगे। कौन से बाजे? - मेरा बाबा। तेरा बाबा नहीं, मेरा बाबा। जैसे कार्य की महिमा करते हैं, ऐसे करन-करावनहार बाप की महिमा झूम-झूम कर गायें। होने वाला ही है। आपको भी यह नज़ारा आंखों के समाने दिल में, दिमाग में आ रहा है ना! क्योंकि बाप और दादा आये हैं - सब बच्चों को वर्सा देने के लिए। चाहे मुक्ति का, चाहे जीवनमुक्ति का, लेकिन वर्सा मिलना जरूर है। कोई भी वंचित नहीं रहेगा क्योंकि बाप बेहद का मालिक है, बेहद का बाप है। तो बेहद को वर्सा लेना ही है। भल योगबल से अपने जन्म-जन्म के पाप नहीं भी काट सकें लेकिन सिर्फ इतना भी जान लिया कि बाप आये हैं, तो कुछ न कुछ पहचान से वर्से के अधिकारी बन ही जायेंगे। तो जैसे बाप को बेहद का वर्सा देने का संकल्प है और निश्चित होना ही है। ऐसे आप सबके दिल में ये शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि हमारे सब भाई-बहन बेहद के वर्से के अधिकारी बन जायें? तो ये शुभ भावना और शुभ कामना कब तक प्रत्यक्ष रूप में करेंगे? उसकी डेट पहले से अपने दिल में फिक्स करो, संगठन से पहले दिल में करो फिर संगठन में करो तो विनाश की डेट आपे ही स्पष्ट हो जायेगी, उसकी चिन्ता नहीं करो। रहम आता है या इसी मौज में रहते हो कि हम तो अधिकारी बन गये? मौज में रहो, यह तो बहुत अच्छा है लेकिन रहमदिल बाप के बच्चे अभी बेहद पर रहम करो। जब दूसरे पर रहम आयेगा तो अपने ऊपर रहम पहले आयेगा, फिर जो एक ही छोटी सी बात पर आपको पुरूषार्थ करना पड़ता है, वह करने की आवश्यकता नहीं होगी। मास्टर रहमदिल, मास्टर दयालू, मर्सी- फुल बन जाओ। इस गुण को इमर्ज करो। तो औरों के ऊपर रहम करने से स्वयं पर रहम आपे ही आयेगा।

बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि बाप-दादा को बच्चों की कौन सी बात अच्छी नहीं लगती है, जानते हो? बापदादा को बच्चों का मेहनत करना वा बारबार युद्ध करना, यह अच्छा नहीं लगता है। बाप कहते भी हैं - हे मेरे योगी बच्चे, योद्धे बच्चे नहीं कहते हैं, योगी बच्चे। तो योगी बच्चों का क्या काम है? युद्ध करना। युद्ध करना अच्छा लगता है? परेशान भी होते हो और फिर युद्ध भी करते हो। आज प्रतिज्ञा करते हो कि युद्ध नहीं करेंगे और कुछ समय के बाद फिर योगी के बजाए योद्धे बन जाते हो। यह क्यों? बापदादा समझते हैं कि बच्चों को योग से प्यार कम है, युद्ध से प्यार ज्यादा है। तो आज से क्या करेंगे? योद्धे बनेंगे वा निरन्तर योगी बनेंगे?

बापदादा ने देखा - कितनी 18 जनवरी भी बीत गई! और विशेष ब्रह्मा बाप आप बच्चों का आह्वान कर रहा है कि मेरे बच्चे समान बन वतन में आ जाओ। वतन अच्छा नहीं लगता? क्या युद्ध करना ही अच्छा लगता है? युद्ध नहीं करो। आज से युद्ध करना बन्द करो। कर सकते हो? बोलो हाँ जी। फिर वहाँ जाकर पत्र नहीं लिखना कि माया आ गई, युद्ध करके भगा दिया। किसी को अपनी माया आती है और कोई-कोई दूसरों की माया को देख खुद माया के असर में आ जाते हैं। यह क्यों, यह क्या..... यह दूसरों की माया अपने अन्दर ले आते हैं। यह भी नहीं करना। माया से छुड़ाना बाप का काम है, आप स्व पुरूषार्थ में तीव्र बनो, तो आपके वायब्रेशन से, वृत्ति से, शुभ भावना से दूसरे की माया सहज भाग जायेगी। अगर क्यों, क्या में जायेंगे, तो न आपकी माया जायेगी न दूसरे की जायेगी। इसलिए जैसे नये वर्ष में पुराने वर्ष को विदाई दी। अभी 96 नहीं कहेंगे, 97 के कहेंगे ना! अगर कोई गलती से कह दे तो आप कहेंगे 96 नहीं है, 97 है। ऐसे आज क्यों-क्या, ऐसे-वैसे, इन शब्दों को विदाई दे दो। क्वेश्चन मार्क नहीं करो। बिन्दी लगाओ, नहीं तो क्वेश्चन मार्क हुआ और व्यर्थ का खाता आरम्भ हुआ। और जब व्यर्थ का खाता आरम्भ हो जाता है तो समर्थी समाप्त हो जाती है। और जहाँ समर्थी समाप्त हुई, वहाँ माया भिन्न-भिन्न रूप से, भिन्न-भिन्न सरकमस्टांश से अपना ग्राहक बना देती है। फिर क्या बन जाते? योगी या योद्धे? योद्धे नहीं बनना। पक्का प्रॉमिस किया? या बापदादा कहता है तो हाँ किया? पक्का किया? बाहर जब अपने देश में जायेंगे तो थोड़ा कच्चा होगा? शक्तियां क्या कहती हैं? होगा या नहीं? सब हाँ नहीं करते, माना थोड़ा अपने में शक है। (सबने हाँ जी कहा) देखना टी.वी. में फोटो निकल रहा है! फिर बापदादा टी.वी. की कैसेट भेजेंगे क्योंकि बाप का हर बच्चे के साथ - चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं लेकिन जिसने दिल से कहा मेरा बाबा, सिर्फ कहा नहीं लेकिन माना और मानकर चल रहे हैं, उस एक-एक के साथ बाप का दिल का प्यार है, कहने वाला प्यार नहीं।

बापदादा बहुत बच्चों की रंगत देखते हैं - आज कहेंगे बाबा, ओ मेरे बाबा, ओ मीठा बाबा, क्या कहूं, क्या नहीं कहूं ...... आप ही मेरा संसार हो, बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं और दो चार घण्टे के बाद अगर कोई बात आ गई तो भूत आ जाता है। बात नहीं आती, भूत आता है। बापदादा के पास सभी का भूत वाला फोटो भी है। देखो, एक यादगार भी भूतनाथ का है। तो भूतों को भी बापदादा देखते हैं - कहाँ से आया, कैसे आया और कैसे भगा रहे हैं। यह खेल भी देखते रहते हैं। कोई तो घबराकर, दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। फिर बापदादा को यही शुभ संकल्प आता है कि इनको कोई द्वारा संजीवनी बूटी खिलाकर सुरजीत करें लेकिन वे मूर्छा में इतने मस्त होते हैं जो संजीवनी बूटी को देखते ही नहीं हैं। ऐसे नहीं करना। सारा होश नहीं गंवाना, थोड़ा रखना। थोड़ा भी होश होगा ना तो बच जायेंगे।

तो आज विशेष ब्रह्मा बाप हर बच्चे की रिजल्ट को देख रहे थे क्योंकि आज के दिन को आप सभी स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस कहते हैं। तो ब्रह्मा बाप देख रहे थे कि कितने समर्थी दिवस मना चुके हैं, लेकिन समर्थी सदाकाल की कहाँ तक आई है? तो क्या देखा होगा? अभी की रिजल्ट अनुसार बाप की नॉलेज से नॉलेजफुल और माया के भी नॉलेजफुल, ऐसे नॉलेजफुल कितने निकले होंगे! माया की नॉलेज से भी नॉलेजफुल बनना पड़े, जो माया को दूर से ही पहचान लें, कैच कर लें कि आज कुछ पेपर होने वाला है और पहले से ही समर्थ हो जाएं। समाचार में क्या लिखते हैं? माया आई, मैंने भगाया फिर भाग गई। लेकिन आई क्यों? माया को आने की छुट्टी दे दी है क्या कि भले कभी-कभी आया करो? यदि बिना छुट्टी कोई आता है, तो उसको आने दिया जाता है क्या? माया पर रहम तो नहीं करते हो कि बिचारी आधाकल्प की साथी है! माया पर रहम नहीं करना। इतनी सारी आत्माओं पर तो रहम कर लो। तो रिजल्ट में फर्स्ट और सेकण्ड नम्बर में 50-50 देखा। सिर्फ फर्स्ट नहीं, फर्स्ट और सेकण्ड दोनों मिलाकर 50, लेकिन बापदादा को एक बात की बहुत खुशी है कि बच्चों को बाप के स्नेह से विजयी बन ही जाना है। अभी सभी के मस्तक पर विजय का तिलक ऐसा स्पष्ट दिखाई दे जो दूसरे भी अनुभव करें कि सचमुच यही विजयी रत्न हैं।

बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि इस फाइनल पढ़ाई में हर एक बच्चे को तीन सर्टिफिकेट लेने हैं - एक स्वयं, स्वयं से सन्तुष्ट - यह सर्टिफिकेट और दूसरा बापदादा द्वारा सर्टिफिकेट और तीसरा परिवार के सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वालों द्वारा सर्टिफिकेट। यह तीन सर्टिफिकेट जब मिलें तब समझो पढ़ाई पूरी हुई। ऐसे नहीं समझना कि बापदादा तो हमारे से सन्तुष्ट हैं। लेकिन तीनों ही सर्टिफिकेट चाहिए, एक नहीं चलेगा। तो चेक करो तीन सर्टिफिकेट से कितने सर्टिफिकेट मिले हैं? बाप के बिना भी कुछ नहीं मिलता। लेकिन परिवार की सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट इससे भी बहुत कुछ मिलता है। परिवार की जितनी आत्माओं से सर्टिफिकेट जिसको मिलता है, जितने ब्राह्मण सन्तुष्ट हैं उतने ही भगत भी आपकी पूजा सन्तुष्टता से करेंगे, काम चलाऊ नहीं, दिल से करेंगे। तो यहाँ ब्राह्मण जीवन में जितने ब्राह्मणों का आपके प्रति स्नेह, सम्मान अर्थात् रिगार्ड होगा, दिल से सन्तुष्ट होंगे, उतना ही पूज्य बनेंगे। पूज्य के लिए स्नेह और सम्मान होता है। तो जब जब जड़ चित्रों की पूजा होगी, तब इतना ही स्नेह और रिगार्ड मिलेगा। सारे कल्प की प्रारब्ध अभी बनानी है। सिर्फ आधाकल्प राज्य की प्रारब्ध नहीं, पूज्य की प्रारब्ध भी अभी बनती है। ऐसे नहीं समझो-हमारा तो बाप से ही काम चल जायेगा। नहीं। बाप का परिवार से कितना प्यार है। तो फॉलो फादर करो। ब्रह्मा बाप को देखा, कैसा भी बच्चा हो, शिक्षादाता बन शिक्षा भी देते लेकिन शिक्षा के साथ प्यार भी दिल में रखते। और प्यार कोई बाहों का नहीं, लेकिन प्यार की निशानी है - अपनी शुभ भावना से, शुभ कामना से कैसी भी माया के वश आत्मा को परिवर्तन करना। कोई भी है, कैसी भी है, घृणा भाव नहीं आवे, यह तो बदलने वाले ही नहीं हैं, यह तो हैं ही ऐसे। नहीं। अभी आवश्यकता है रहमदिल बनने की क्योंकि कई बच्चे कमजोर होने के कारण अपनी शक्ति से कोई बड़ी समस्या से पार नहीं हो सकते, तो आप सहयोगी बनो। किससे? सिर्फ शिक्षा से नहीं, आजकल शिक्षा, सिवाए प्यार या शुभ भावना के कोई नहीं सुन सकता। यह तो फाइनल रिजल्ट है, शिक्षा काम नहीं करती लेकिन शिक्षा के साथ शुभ भावना, रहमदिल यह सहज काम करता है। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, मालूम भी होता कि आज इस बच्चे ने भूल की  है, तो भी उस बच्चे को शिक्षा भी तरीके से, युक्ति से देता और फिर उसको बहुत प्यार भी करता, जिससे वह समझ जाते कि बाबा का प्यार है और प्यार में गलती के महसूसता की शक्ति उसमें आ जाती। तो ब्रह्मा बाप को आज बहुत याद किया ना! तो फॉलो फादर। बाप समान बनने की हिम्मत है? मुबारक हो हिम्मत की। बापदादा आपके दिल की तालियां पहले ही सुन लेता है आप खुशी से तालियां बजाते हो लेकिन बाप को दिल की तालियां पहले पहुंचती हैं।

बापदादा भी हंसी की बात सुनाते हैं। ब्रह्मा बाबा की रूहरिहान चली! तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि मेरे को एक बात के लिए डेट कान्सेस-नेस है। बच्चों को तो कहते हैं डेडकोन्सेस नहीं बनो लेकिन ब्रह्मा बाप एक बात में डेट कान्सेस हैं, कौन सी डेट? कि कब मेरा एक-एक बच्चा जीवन मुक्त बन जाए! ऐसे नहीं समझना कि अन्त में जीवनमुक्त बनेंगे, नहीं। बहुतकाल से जीवनमुक्त स्थिति का अभ्यास, बहुतकाल जीवनमुक्त राज्य भाग्य का अधिकारी बनायेगा। उसके पहले जब आप अभी जीवनमुक्त बनो तो आप जीवनमुक्त स्थिति वालों का प्रभाव जीवनबंध वाली आत्माओं का बंधन समाप्त करेगा। तो यह सेवा नहीं करनी है क्या? करनी है ना! तो आप ब्रह्मा बाप को डेटकान्सेस का जवाब दो। वह डेट कब होगी जब सब जीवनमुक्त हों? कोई बंधन नहीं। बंधनों की लम्बी लिस्ट वर्णन करते हो, क्लासेज कराते हो तो बंधनों की बड़ी लम्बी लिस्ट निकालते हो लेकिन बाप कहते हैं सब बन्धनों में पहला एक बंधन है-देह भान का बंधन। उससे मुक्त बनो। देह नहीं तो दूसरे बंधन स्वत: ही खत्म हो जायेंगे। अपने को वर्तमान समय मैं टीचर हूँ, मैं स्टूडेंट हूँ, मैं सेवाधारी हूँ, इस समझने के बजाए अमृतवेले से यह अभ्यास करो कि मैं श्रेष्ठ आत्मा ऊपर से आई हूँ - इस पुरानी दुनिया में, पुराने शरीर में सेवा के लिए। मैं आत्मा हूँ-यह पाठ अभी और पक्का करो। आप आत्मा का भान धारण करो तो यह आत्मिक भान, माया के भान को सदा के लिए समाप्त कर देगा। लेकिन आत्मा का भान - यह अभी चलते फिरते स्मृति में रहे, वह अभी और होना चाहिए। ब्रह्मा बाप ने आत्मा का पाठ आदि से कितना पक्का किया! दीवारों पर भी मैं आत्मा हूँ, परिवार वाले आत्मा हैं, एक-एक के नाम से दीवारों में भी यह पाठ पक्का किया। डायरियां भर दी-मैं आत्मा हूँ, यह भी आत्मा है, यह भी आत्मा है। आपने आत्मा का पाठ इतना पक्का किया है? मैं सेवाधारी हूँ, यह पाठ कुछ पक्का लगता है लेकिन आत्मा सेवाधारी हूँ, तो जीवनमुक्त बन जायेंगे। रोज़ शरीर में ऊपर से अवतरित हो, मैं अवतार हूँ, इस शरीर में अवतरित आत्मा हूँ, फिर युद्ध नहीं करनी पड़ेगी। आत्मा बिन्दू है ना? तो सब बातों को बिन्दू लग जायेगा। कौन सी आत्मा हूँ? रोज एक नया-नया टाइटल स्मृति में रखो। आपके पास बहुत से टाइटल की लिस्ट तो है ना। रोज़ नया टाइटल स्मृति में रखो कि मैं ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। सहज है या मुश्किल है? आत्मा बिन्दू रूप में रहेगी, तो ड्रामा बिन्दू भी काम में आयेगा और समस्याओं को भी सेकण्ड में बिन्दू लगा सकेंगे और बिन्दू बन परमधाम में बिन्दू जायेगी। जाना है या सीधा स्वर्ग में जायेंगे? कहाँ जायेंगे? पहले घर जायेगे या राज्य में जायेंगे? बाप के साथ घर तक तो चलना है ना कि सीधा राज्य में चले जायेंगे, बाप को पूछेंगे नहीं! तो बिन्दू बाप के साथ बिन्दू बन पहले घर जाना है। वैसे राज्य का पासपोर्ट नहीं मिलेगा। परमधाम से राजधानी में जाने का पासपोर्ट आटोमेटिक मिल जायेगा, किसको देने की आवश्यकता नहीं। जितना नजदीक होंगे, उतना नम्बरवार परमधाम से राज्य में आयेंगे, परमधाम से पहली आत्मा कौन सी जायेगी? किसके साथ जायेंगे? ब्रह्मा बाप के साथ जायेंगे! सभी राज्य में भी साथ में जायेंगे या दूसरे तीसरे जन्म में आयेंगे? जाना है ना? प्यार है ना? ब्रह्मा बाप को छोड़ेंगे तो नहीं, साथ जायेंगे? तो बापदादा को डेट बतायेंगे या नहीं? (बापदादा बतायें) बापदादा तो कहते हैं अभी बनो। तो बाप भी डेट कोन्सेस से बदल जायेगा। देखो, ब्रह्मा बाप ने कल को देखा? तुरत दान महादान किया। तीव्र पुरूषार्थ, पहला पुरूषार्थ किया। कल को नहीं देखा। कल क्या होगा! परिवार कैसे चलेगा! सोचा? जो आज हो रहा है वह अच्छा और जो कल होगा वह भी अच्छा। तभी तो तुरत दान महापुण्य और पहला नम्बर का महान बना। अभी बच्चों को तुरत दानी बनना चाहिए। संकल्प किया और तुरत दान महाबलि बनें। जब हाथ उठवाते हैं कि पहले डिवीजन में कौन आयेगा? तो सभी हाथ उठाते हैं। अभी भी उठवायेंगे तो सब उठायेंगे। बापदादा जानते हैं कि कोई भी हाथ नीचे नहीं करेंगे। जब पहले डिवीजन में आना है तो पहले नम्बर को फॉलो तो करो। फॉलो करना सहज है - बस ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो। कॉपी करो। कॉपी करना आता है कि नहीं आता है! फॉलो करना आता है? तो फॉलो करो और क्या करना है!

विशाल सभा को देख खुशी हो रही है ना! (सभी ने जोर से तालियां बजाई) सभी को एक हाथ की ताली सिखाओ (सभी ने एक हाथ हिलाया) यह अच्छी है। अच्छा।

इस बारी सभी ज़ोन के आये हैं ना! मैजॉरिटी सभी तरफ से आये हैं।

महाराष्ट्र और बाम्बे :- हाथ उठाओ। महाराष्ट्र सेवा के निमित्त हैं ना। अच्छी सेवा का सबूत दे रहे हैं। सभी खुशी से सेवा कर रहे हैं। नींद आती है कि रात भी सेवा में गुज़र जाती है? रात दिन सेवा यह महा पुण्य बन रहा है। रात भी हो तो सेवाधारी सेवा के लिए हाजिर हैं। ऐसे है ना महाराष्ट्र? अच्छी रिजल्ट है। पहले गुजरात ने किया, अभी महाराष्ट्र कर रहा है। हर सेवाधारी ग्रुप की अपनी- अपनी विशेषता है। गुजरात को भी टर्न मिला ना। अच्छा है। देखो सेवा के कारण आपको डबल चांस मिला है। अपने टर्न में भी आ सकते हो और सेवाधारी बनकर भी आये तो सेवाधारियों को डबल चांस है। अच्छा।

दिल्ली- दिल्ली वाले डायमण्ड जुबली की समाप्ति का समारोह मना रहे हैं, अच्छा है। देहली से आवाज़ चारों ओर सहज फैलता है। इसलिए अच्छी हिम्मत से कार्य कर रहे हैं और डायमण्ड जुबली की सम्पन्न समाप्ति धूमधाम से होनी ही है। अच्छा।

गुजरात - गुजरात तो पड़ोसी है ताली बजाओ तो हाजिर हो जाए।

(कर्नाटक, आन्ध्रा, पंजाब, इस्टर्न, नेपाल, आसाम, उड़ीसा, इन्दौर, यू.पी., बनारस, भोपाल, तामिलनाडु, राजस्थान, आगरा, मधुबन, डबल विदेशी आदि सभी ज़ोन से बापदादा हाथ उठवाकर मिल रहे हैं)

डबल विदेशी तो मधुबन की सभा का श्रृंगार हैं। डबल विदेशी यादप्यार देने और लेने में बहुत होशियार हैं। भारत, भारत है लेकिन विदेश भी कम नहीं है। हर समय अपनी भिन्न-भिन्न रूप में याद भेजते रहते हैं। अभी भी नये वर्ष की याद बहुत ही बच्चों ने भेजी है और विशेष इस दिन बहुत बच्चे विधिपूर्वक याद करते हैं। दिल से भी याद भेजते तो कार्ड और पत्रों द्वारा भी भेजते हैं। बापदादा के पास विशेष डबल विदेशियों के यादप्यार के पत्र और कार्ड भी मिले हैं। बापदादा सभी को पदमगुणा यादप्यार और मुबारक दे रहे हैं। अभी भी कई स्थानों से फरिश्ते रूप में मधुबन सभा में पहुंचें हुए हैं। बापदादा सामने देख रहे हैं और रिजल्ट में याद और सेवा के उंमग-उत्साह की विशेष मुबारक दे रहे हैं। अभी डबल विदेशी मैजारटी याद और सेवा में अनुभवी हो गये हैं और आगे भी होते रहेंगे। अभी पहला नटखट का बचपन मैजारिटी का समाप्त हुआ है और आगे भी हो रहा है। इसलिए डबल विदेशियों को तीव्र पुरूषार्थ की बापदादा मुबारक के साथ यह स्लोगन भी सुना रहे हैं -कि माया की नज़र से सदा बचे रहने वाले अपने नज़रों में सदा बाप को समाने वाले, जब बाप नज़रों में है तो माया की नज़र लग नहीं सकती है। इसलिए सदा बच्चे बचे रहें, रहना ही है। अच्छा।

 अभी-अभी सभी जो भी बैठे हैं एक सेकण्ड में अशरीरी आत्मिक स्थिति में स्थित हो जाओ। शरीर भान में नहीं आओ। आत्मा, परम आत्मा से मिलन मना रही है। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

ऐसा अभ्यास बार-बार कर्म करते, करते रहो। स्विच आन किया और सेकण्ड में अशरीरी बनें। यह अभ्यास कर्मातीत स्थिति का अनुभव करायेगा।

चारों ओर के सदा समर्थ आत्माओं को, सदा बापदादा को फॉलो करने वाले सहज पुरुषार्थी बच्चों को, सदा एक बाप, एकाग्र बुद्धि, एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले, बिन्दू बन बिन्दू बाप के साथ चलने वाले ऐसे सर्व बाप के स्नेही, सहयोगी, सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से - निर्विघ्न मेले की समाप्ति हुई ना!

(सायं 7.30 बजे, ग्लोबल हॉस्पिटल में लण्डन की शैली बहन ने अपना पुराना शरीर छोड़ बापदादा की गोद ली, यह समाचार बापदादा को सुनाया गया) कोई न कोई का यादगार रहता है। जिसका जो पार्ट है वह कहाँ भी कैसे भी हो, उसको निभाना ही है। डबल फॉरेनर्स भी तो एडवांस पार्टी में चाहिए ना। एडवांस पार्टी के गुलदस्ते में भिन्न-भिन्न फूल जमा हो रहे हैं। (पूरी सरेन्डर थी, दो मास से यहाँ थी, लास्ट के तीन-चार दिन साइलेन्स में थी, अचानक तबियत खराब हुई और 2-3 दिन हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट चली) ऐसे अच्छे-अच्छे ही चाहिए ना, जो वायब्रेशन से कार्य कर सकें। तो यह जाना नहीं कहेंगे, सेवा में आना कहेंगे। यह भी कई आत्माओं को बेहद का वैराग्य दिलाने के लिए निमित्त बनी है। इतने बड़े विशाल मेले से जाना यह भी बेहद मेले में बेहद का पार्ट बजाना है। तो आप कहेंगे क्या चली गई? नहीं, चली नहीं गई लेकिन भिन्न-भिन्न ड्रेस से भिन्न पार्ट बजाने आई। (लण्डन में खास सभी ने उसके प्रति योग किया) इन सभी को भी सुनाओ, सभी उसे याद का सहयोग देवें, वायब्रेशन देवें। (निर्वैर भाई ने उसी समय सभी को समाचार सुनाया तथा एक मिनट के लिए सभी ने उस आत्मा को योगदान दिया)

विदाई के समय - सभी को यह शान्तिवन का विशाल हाल पसन्द है? (हाँ जी) तो किसने बनाया? आप सभी के सहयोग के अंगुली से यह विशाल हाल तैयार हुआ है। बाप तो है लेकिन बच्चों के सहयोग की अंगुली भी जरूरी है। तो पसन्द है ना? अच्छा इससे बड़ा बनायें? अच्छा है, सभी बच्चों के सहयोग से बना है और आगे भी जो कार्य रहा हुआ है, वह होना ही है। तो आप सभी को यह मेला, पट में सोना, खाना पसन्द है? तकलीफ नहीं है! तकलीफ हुई? देखो भक्ति के मेले तो बहुत किये हैं, उसमें तो खाने के साथ मिट्टी भी खाते हैं, मिट्टी में सोते हैं, मिट्टी में खाते हैं। आपको तो ब्रह्माभोजन अच्छा मिला ना। ब्रह्माभोजन ठीक मिला? कोई को ब्रह्मा भोजन में तकलीफ हुई? तबियत खराब तो नहीं हुई! अच्छा बीमार भी ठीक हो गये? तो यह शान्तिवन का मेला विशेष ब्राह्मणों के लिए हुआ और होता रहेगा लेकिन इस शान्तिवन को सेवा में भी लगाओ।

ब्राह्मण माना सेवाधारी। तो जो आपके सम्बन्ध, सम्पर्क में हैं और चाहते हैं कि हमें भी कोई चांस मिले, लेकिन स्थान के कारण आप उन्हों की सेवा नहीं कर सके हैं, अभी बड़ी दिल से इतने ही हजारों में सेवा कर सकते हो क्योंकि ऊपर आपको हद मिलती है, यहाँ एक ही हाल में दो तीन ग्रुप बनाकर योग शिविर करा सकते हो, कोर्स करा सकते हो और साथ में वारिस बना सकते हो। यहाँ की पालना से वारिस बनना बहुत सहज होगा क्योंकि यहाँ का वायुमण्डल और अनुभवी दादियों की दृष्टि, पालना सहज परिवर्तन कर सकती है। एक प्रोग्राम ब्राह्मणों के रिफ्रेशमेंट का और एक प्रोग्राम सेवा का भिन्न-भिन्न रूप से एक ही समय पर ग्रुप-ग्रुप बनाकर एक ही हाल में और जो रहने के अच्छे बड़े हाल हैं, उसमें भी रख सकते हो। तो आप जैसे खुद आये हैं ना, वैसे फिर अपने सम्पर्क वालों का प्रोग्राम बनाते रहना। ऐसे नहीं है कि यह बड़ा हाल कैसे काम में आयेगा, यह बड़े से छोटा भी हो सकता है, छोटे से बड़ा भी हो सकता है। तो इतनी संख्या तैयार करेंगे? इस हाल द्वारा 9 लाख तैयार करो। कर सकते हो? (इच वन टीच वन करें) यह अच्छी आइडिया है, जितने आप बैठे हो एक, एक को लायेगा तो कितने हो जायेंगे? अभी समय के प्रमाण सेवा भी बेहद बड़ी करो, छोटे-छोटे ग्रुप तो ऊपर भी होते हैं लेकिन यहाँ ज्यादा संख्या में प्रजा बना सकते हो, रॉयल प्रजा बना सकते हो, वारिस बना सकते हो। पसन्द है? तो दूसरी बारी क्या करेंगे? जितने बैठे हो ना-उतने लाना। ज्यादा भले लाना, कम नहीं लाना।

आप लोगों को रिफ्रेशमेंट चाहिए! आपकी भट्ठियाँ रखें? लेकिन यहाँ भट्ठी करो और वहाँ बैठ जाओ, ऐसे नहीं करना। भट्ठी माना सदा का परिवर्तन। तो ऐसा प्लैन बनाओ जो सब खुश हो जाएं। मिनिस्टर जो हैं, प्राइम मिनिस्टर, प्रेजीडेंट सब आपके अनुभव से प्रभावित हों। कम से कम गवर्नमेंट भी यह तो कहे कि अगर भारत का कल्याण होना है तो यहाँ से ही होना है। तो अभी फास्ट सेवा करो। समझा। अभी बाकी जो भी रहा हुआ है उसको ठीक कराते रहो, करने वाले सभी मिलकर पहाड़ उठाने चाहें तो यह क्या है! बापदादा को भी विशाल मेला अच्छा लगता है। हिम्मत बच्चों की मदद बाप की।

अच्छा। ओम् शान्ति।



23-02-97   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


साथी को साथ रख साक्षी और खुशनुमः के तख़्तनशीन बनो

आज विश्व कल्याणकारी बाप विश्व के चारों तरफ के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। सभी बच्चों के स्नेह और सहयोग की रेखायें बच्चों के चेहरे से दिखाई दे रही हैं। हर एक के दिल से ''मेरा बाबा``, यह गीत बापदादा सुन रहे हैं। बापदादा भी रेसपान्ड में कहते हैं ''ओ मेरे अति प्रिय, अति स्नेही लाडले बच्चे``। हर एक बच्चा प्रिय भी है, लाडले भी हैं, क्यों? कोटों में कोई और कोई में भी कोई हो। तो लाडले हुए ना! तो बापदादा भी लाडले बच्चों को देख खुश होते हैं। बच्चों को भी सदा खुशी में डांस करते हुए देखते हैं और सदा देखने चाहते हैं। खुशी में रहते तो हैं लेकिन बाप सदा चाहते हैं। सदा खुश रहते हो या खुशी में फर्क पड़ता है? कभी बहुत खुशी, कभी थोड़ी कम और कभी बहुत कम!

बाप ने पहले भी सुनाया है कि वर्तमान समय आप बच्चों की विश्व को इस सेवा की आवश्यकता है जो चेहरे से, नयनों से, दो शब्द से हर आत्मा के दु:ख को दूर कर खुशी दे दो। आपको देखते ही खुश हो जाएं। इसलिए खुशनुमा चेहरा या खुशनुमा मूर्त सदा रहे क्योंकि मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई देती है। कितना भी कोई भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव भी समझते हों लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर ले। आज मन की खुशी के लिए कितना खर्चा करते हैं, कितने मनोरंजन के नये-नये साधन बनाते हैं। वह हैं अल्पकाल के साधन और आपकी है सदाकाल की सच्ची साधना। तो साधना उन आत्माओं को परिवर्तन कर ले। हाय-हाय ले आवें और वाह-वाह लेकर जाये। वाह कमाल है - परमात्म आत्माओं की! तो यह सेवा करो। समय प्रति समय जितना अल्पकाल के साधनों से परेशान होते जायेंगे, ऐसे समय पर आपकी खुशी उन्हों को सहारा बन जायेगी क्योंकि आप हैं ही खुशनसीब। खुशनसीब हैं या नहीं? अधूरे तो नहीं? हैं ही खुशनसीब। आप जैसा खुशनसीब सारे कल्प में कोई आत्मायें नहीं। इतना नशा चेहरे और चलन से अनुभव कराओ। करा सकते हो या कराते भी हो?

ब्राह्मण जीवन में अगर खुशी नहीं तो ब्राह्मण बनकर क्या किया! ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुशी की जीवन। कभी-कभी बापदादा देखते हैं, कोई-कोई के चेहरे जो होते हैं ना वह थोड़ा सा.... क्या होता है? अच्छी तरह से जानते हैं, तभी हंसते हैं। तो बापदादा को ऐसा चेहरा देख रहम भी आता और थोड़ा सा आश्चर्य भी लगता। मेरे बच्चे और उदास! हो सकता है क्या? नहीं ना! उदास अर्थात् माया के दास। लेकिन आप तो मास्टर मायापति हो। माया आपके आगे क्या है? चींटी भी नहीं है, मरी हुई चींटी। दूर से लगता है जिंदा है लेकिन होती मरी हुई है। सिर्फ दूर से परखने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप की नॉलेज विस्तार से जानते हो ना, ऐसे माया के भी बहुरूपी रूप की पहचान, नॉलेज अच्छी तरह से धारण कर लो। वह सिर्फ डराती है, जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना तो उनको माँ बाप निर्भय बनाने के लिए डराते हैं। कुछ करेंगे नहीं, जानबूझकर डराने के लिए करते हैं। ऐसे माया भी अपना बनाने के लिए बहुरूप धारण करती है। जब बहुरूप धारण करती है तो आप भी बहुरूपी बन उसको परख लो। परख नहीं सकते हैं ना, तो क्या खेल करते हो? युद्ध करने शुरू कर देते हो हाय, माया आ गई! और युद्ध करने से बुद्धि, मन थक जाता है। फिर थकावट से क्या कहते हो? माया बड़ी प्रबल है, माया बड़ी तेज है। कुछ भी नहीं है। आपकी कमजोरी भिन्न-भिन्न माया के रूप बन जाती है। तो बापदादा सदा हर एक बच्चे को खुशनसीब के नशे में, खुशनुमा चेहरे में और खुशी की खुराक से तन्दरूस्त और सदा खुशी के खज़ानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं। जीवन में चाहिए क्या? खुराक और खज़ाना। और क्या चाहिए? तो आपके पास खुशी की खुराक है या स्टॉक कभी खत्म हो जाता है? खुशी का खज़ाना अखुट है। अखुट है ना? और जितना खर्चो उतना बढ़े। अगर और कोई भी पुरूषार्थ नहीं करो सिर्फ एक लक्ष्य रखो - कुछ भी हो जाए, चाहे अपने मन के स्थिति द्वारा, चाहे कोई अन्य आत्माओं द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा, चाहे वायुमण्डल द्वारा कुछ भी हो जाए, मुझे खुशी नहीं छोड़नी है। यह तो सहज पुरूषार्थ है ना या खुशी खिसक जाती है? सहज है या कभी-कभी मुश्किल है? दृढ़ संकल्प रखो और बातों को भूल जाओ। एक ही बात पक्की रखो - मुझे खुश रहना है। तो बातें क्या लगेंगी? खेल। और अपनी खेल देखने की साक्षीपन की सीट पर सदा स्थित रहो। चाहे कोई अपमान करने वाला हो, आपको परेशान कर नीचे उतारने वाले हों, लेकिन आप साक्षीपन की सीट से नीचे नहीं आओ। नीचे आ जाते हो तभी खुशी कम हो जाती है।

बापदादा ने पहले भी दो शब्द सुनाये हैं - साथी और साक्षी। जब बापदादा साथ है तो साक्षीपन की सीट सदा मजबूत रहती है। कहते सभी हो बापदादा साथ है, बापदादा साथ है लेकिन माया का प्रभाव भी पड़ता रहता और कहते भी रहते हो बापदादा साथ है, बापदादा साथ है। साथ है, लेकिन साथ को ऐसे समय पर यूज़ नहीं करते हो, किनारे कर देते हो। जैसे कोई साथ में होता है ना, कोई बहुत ऐसा काम पड़ जाता है या कोई ऐसी बात होती है तो साथ कभी ख्याल नहीं होता, बातों में पड़ जाते हैं। ऐसे साथ है यह मानते भी हो, अनुभव भी करते हो। कोई है जो कहेगा साथ नहीं है? कोई नहीं कहता। सब कहते हैं मेरे साथ है, यह भी नहीं कहते कि तेरे साथ है। हर एक कहता है मेरे साथ है। मेरा साथी है। मन से कहते हो या मुख से? मन से कहते हो?

बापदादा तो खेल देखते हैं, बाप साथ बैठे हैं और अपनी परिस्थिति में, उसको सामना करने में इतना मस्त हो जाते हैं जो देखते नहीं हैं कि साथ में कौन हैं। तो बाप भी क्या करते? बाप भी साथी से साक्षी बनकर खेल देखते हैं। ऐसे तो नहीं करो ना। जब साथी कहते हो तो साथ तो निभाओ, किनारा क्यों करते हो? बाप को अच्छा नहीं लगता। बाप यही शुभ आशा रखते हैं और है भी कि एक-एक बच्चा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व अधिकारी है। आप लोग प्रजा हैं क्या! प्रजा तो नहीं बनना है ना? राजे, महाराजे, विश्व राजे हो ना! प्रजा बनाने वाले हो, प्रजा बनने वाले नहीं हो। राजा बनने वाले, प्रजा बनाने वाले हो। तो राजा कहाँ बैठता है? तख्त पर बैठता है ना! जब प्रैक्टिकल में राजा के नशे में होता है तो तख्त पर बैठता है ना! तो साक्षीपन का तख्त छोड़ो नहीं। जो अलग- अलग पुरूषार्थ करते हो उसमें थक जाते हो। आज मन्सा का किया, कल वाचा का किया, सम्बन्ध-सम्पर्क का किया तो थक जाते हो। एक ही पुरूषार्थ करो कि साक्षी और खुशनुम: तख्तनशीन रहना है। यह तख्त कभी नहीं छोड़ना है। कोई राजा ऐसे सीरियस होकर तख्त पर बैठे, बैठा तख्त पर हो लेकिन बहुत क्रोधी हो, आफीशियल हो तो अच्छा लगेगा? कहेंगे यह तो राजा नहीं है। तो आप सदा तख्तनशीन है ना! वह राजे तो कभी तख्त पर बैठते, कभी नहीं बैठते लेकिन साक्षीपन का तख्त ऐसा है जिसमें हर कार्य करते भी तख्तनशीन, उतरना नहीं पड़ता है। सोते भी तख्तनशीन, उठते-चलते, सम्बन्ध-सम्पर्क में आते तख्तनशीन। तख्त पर बैठना आता है कि बैठना नहीं आता है, खिसक जाते हो? साक्षीपन के तख्तनशीन आत्मा कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा ना। तो बापदादा को ऐसे समय पर आश्चर्य लगता है, आप नहीं आश्चर्य करना। अपने पर भले करना, दूसरे पर नहीं करना। तो आश्चर्य लगता है कि यह मेरे बच्चे क्या कर रहे हैं! तख्त से उतर रहे हैं। जब तख्तनशीन रहने के संस्कार अब से ही डालेंगे तब विश्व के तख्त पर भी बैठेंगे। यहाँ सदाकाल तख्तनशीन नहीं होंगे तो वहाँ भी सदा अर्थात् जितना समय फुल है, उतना समय नहीं बैठ सकेंगे। संस्कार सब अभी भरने हैं। फिर वही भरे हुए संस्कार सतयुग में कार्य करेंगे। रॉयल्टी के संस्कार अभी से भरने हैं। ऐसे नहीं सोचना कि अभी कुछ समय तो पड़ा है, इतने में विनाश तो होना नहीं है, यह नहीं सोचना। विनाश होना है अचानक। पूछकर नहीं आयेगा कि हाँ तैयार हो! सब अचानक होना है। आप लोग भी ब्राह्मण कैसे बनें? अचानक ही सन्देश मिला, प्रदर्शनी देखी, सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ बदल गये। क्या सोचा था कि इस तारीख को ब्राह्मण बनेंगे? अचानक हो गया ना! तो परिवर्तन भी अचानक होना है। आपको पहले माया और ही अलबेला बनायेगी, सोचेंगे हमने तो दो हजार सोचा था - वह भी पूरा हो गया, अभी तो थोड़ा रेस्ट कर लो। पहले माया अपना जादू फैलायेगी, अलबेला बनायेगी। किसी भी बात में, चाहे सेवा में, चाहे योग में, चाहे धारणा में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में यह तो चलता ही है, यह तो होता ही है ...., ऐसे पहले माया अलबेला बनाने की कोशिश करेगी। फिर अचानक विनाश होगा, फिर नहीं कहना कि बापदादा ने सुनाया ही नहीं, ऐसा भी होना है क्या! इसलिए पहले ही सुना देते हैं - अलबेले कभी भी किसी भी बात में नहीं बनना। चार ही सबजेक्ट में अलर्ट, अभी भी कुछ हो जाए तो अलर्ट। उस समय नहीं कहना बापदादा अभी आओ, अभी साथ निभाओ, अभी थोड़ी शक्ति दे दो, उस समय नहीं देंगे। अभी जितनी शक्ति चाहिए, जैसी चाहिए उतनी जमा कर लो। सबको खुली छुट्टी है, खुले भण्डार हैं, जितनी शक्ति चाहिए, जो शक्ति चाहिए ले लो। पेपर के समय टीचर वा प्रिन्सीपाल मदद नहीं करता।

डबल विदेशी बच्चों को देख बाप को भी डबल खुशी होती है। क्यों होती है? क्योंकि डबल विदेशियों को स्वयं को परिवर्तन करने में डबल मेहनत करनी पड़ी। इसीलिए जब बापदादा डबल विदेशी बच्चों को देखते हैं तो डबल खुशी होती है, वाह मेरे डबल विदेशी बच्चे वाह! डबल विदेशी हाथ उठाओ। (विश्व के अनेक देशों के करीब 1 हजार भाई बहिनें सभा में उपस्थित हैं) वाह बहुत अच्छा। डबल ताली बजाओ। बापदादा विदेश की सेवा के समाचार सुनते रहते हैं, देखते भी रहते हैं, रिजल्ट में सेवा का उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है। सिर्फ कभी-कभी अपने ऊपर सेवा का थोड़ा सा बोझ उठा लेते हो। बोझ नहीं उठाओ। बोझ बाप को दे दो। बाप के लिए वह बोझ कुछ भी नहीं है लेकिन आप सेवा का बोझ उठा लेते हो तो थक जाते हो। सेवा बहुत अच्छी करते हो, सेवा के समय नहीं थकते हो। उस समय बहुत अच्छे चेहरों का फोटो निकालने वाला होता है लेकिन कोई-कोई (सभी नहीं) सेवा के बाद थोड़ा सा थकावट के चेहरे में दिखाई देते हैं। बाप कहते हैं बोझ उठाते क्यों हो? क्या बोझ उठाना अच्छा लगता है या आदत पड़ी हुई है? बोझ नहीं उठाओ। बोझ तब लगता है जब बाप साथ नहीं है। मैंने किया, मैं करती हूँ, मैं करता हूँ तो बोझ हो जाता है। बाप साथ है, बाप का कार्य है, बाप करा रहा है तो बोझ नहीं होगा। हल्के हो नाचते रहेंगे। जैसे डांस बहुत अच्छी करते हो ना। डबल विदेशियों की डांस देखो तो बहुत अच्छी होती है। अपने को थकाते नहीं हैं, फरिश्ते माफिक करते हो। इन्डियन जो करेंगे वह पांव थकायेंगे, हाथ भी थकायेंगे। लेकिन विदेशी डांस भी लाइट करते हो, तो ऐसे सेवा भी एक डांस समझो, खेल समझो। थको नहीं। बापदादा को वह फोटो अच्छा नहीं लगता है। सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा है और यह भी रिजल्ट बाप के पास है कि अभी थोड़ी सी बात में हलचल में आने की परसेन्टेज बहुत कम है। मैजॉरिटी ठीक हैं, बाकी थोड़ी संख्या कभी-कभी थोड़ा सा हलचल में दिखाई देती है। लेकिन आदि की रिजल्ट और अब की रिजल्ट में बहुत अच्छा अन्तर है। ऐसा दिखाई देता है ना? अभी नाज़ुकपन छोड़ते जा रहे हैं। बापदादा को रिजल्ट देख करके खुशी है।

अभी छोटे-छोटे माइक भी तैयार कर रहे हैं। अभी छोटे माइक हैं, लेकिन छोटे से बड़े तक भी आ जायेंगे। बापदादा को याद है-आदि में यह विदेशी टीचर्स कहती थी कि वी.आई.पीज को मिलना ही मुश्किल है, आना तो छोड़ो, मिलना ही मुश्किल है। और अभी सहज हो गया है क्योंकि आप भी वी.वी.वी.आई.पी. हो गये तो आपके आगे वी. आई. पी. क्या हैं! टोटल विदेश की रिजल्ट अच्छी है। सेन्टर्स भी अच्छे हैं, वृद्धि को प्राप्त करते जा रहे हैं। भारत में हैण्डस नहीं हैं, नहीं तो भारत में भी सेवाकेन्द्र तो बहुत खुल जायें। एक-एक ज़ोन वाला कहता है - हैण्डस नहीं हैं। तो अभी इस वर्ष हैण्डस निकालने की सेवा करो। हैण्डस मांगो नहीं, निकालो; और ही दान-पुण्य करो।

विदेश में यह बहुत अच्छा तरीका है - जहाँ भी सेन्टर खुलता है, वहाँ के ही लौकिक कार्य भी करते हैं सेन्टर भी चलाते हैं। कैसे चलेगा, कौन चलायेगा, यह प्राब्लम कम है। आप लोग यह नहीं सोचना कि हम लौकिक काम क्यों करें! यह तो आपकी सेवा का साधन है। लौकिक कार्य नहीं करते हो लेकिन अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए लौकिक कार्य करते हो। जहाँ भी जाते हो वहाँ सेन्टर खोलने का उमंग रहता है ना। तो लौकिक कार्य कब तक करेंगे-यह नहीं सोचो। लौकिक कार्य अलौकिक कार्य निमित्त करते हो तो आप सरेन्डर हो। लौकिकपन नहीं हो, अलौकिकपन है तो लौकिक कार्य में भी समर्पण हो। लौकिक कार्य को छोड़कर समर्पण समारोह मनाना है - यह बात नहीं है। ऐसा करने से वृद्धि कैसे होगी! इसीलिए लौकिक कार्य करते अलौकिक कार्य के निमित्त बनते हो, तो जो निमित्त लौकिक समझते हैं और रहते अलौकिकता में हैं, ऐसी आत्माओं को डबल क्या, पदम मुबारक है। समझा। इसीलिए यह नहीं कहना-दादी हमको छुड़ाओ, हमको छुड़ाओ। नहीं, और ही डबल प्रालब्ध बना रहे हो। हाँ आवश्यकता अगर समझेंगे तो आपेही छुड़ायेंगे, आपको क्या है! जिम्मेवार दादियां हैं, आप अपने लौकिकता में अलौकिकता लाओ। थको नहीं। लौकिक काम करके थक कर आते हैं तो कहते हैं क्या करें! नहीं खुशी-खुशी में दोनों निभाओ क्योंकि देखा गया है कि डबल विदेशी आत्माओं में दोनों तरफ कार्य करने की शक्ति है। तो अपनी शक्ति को कार्य में लगाओ। कब छोड़ेंगे, क्या होगा .... यह बाप और जो दादियां निमित्त हैं उनके ऊपर छोड़ दो, आप नहीं सोचो। कौन-कौन हैं जो लौकिक कार्य भी करते हैं और सेन्टर भी सम्भालते हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। आप निश्चिंत रहो। नम्बर आप लोगों को वैसे ही मिलेंगे, जो सारा दिन करते हैं उन्हों जितना ही मिलेगा। सिर्फ ट्रस्टी होकर करना, मैं-पन में नहीं आना। मैं इतना काम करती हूँ, मैं-पन नहीं। करावनहार करा रहा है। मैं इंस्ट्रूमेंट हूँ। पावर के आधार पर चल रही हूँ।

आज डबल विदेशियों का टर्न है ना। आप लोगों को भी डबल विदेशियों को देख खुशी होती है ना! तो सभी डबल विदेशी खुशनुम: हो? हाथ की ताली बजाओ। अभी मधुबन में तो माया नहीं आती है ना?

भारत की टीचर्स और डबल विदेशी दोनों का मेल देखो कितना अच्छा है। आप टीचर्स ने डबल विदेशियों की सीजन कम ही देखी होगी और डबल विदेशियों ने सभी टीचर्स का संगठन पहले बारी देखा होगा। दोनों के मेले में अच्छा लग रहा है ना। टीचर्स को अच्छा लगता है? डबल विदेशियों को अच्छा लगता है? अच्छा है। टीचर्स भी निमन्त्रण पर पहुंच गई हैं। ऐसा कभी सोचा था कि ऐसा निमन्त्रण आयेगा? यह भी देखो अचानक हुआ तो अच्छा लगा ना! अच्छा-सभी टीचर्स हाथ उठाओ जो निमन्त्रण पर आई हैं।

दिल्ली वालों ने भी अच्छा सन्देश दिया। बापदादा को विशेष यह खुशी है कि संगठित रूप में निर्विघ्न होकर कार्य किया, इसकी मुबारक हो। निमित्त तो कोई बनता ही है। बापदादा ने रिजल्ट देखी कि निमित्त बच्चों ने चाहे रात हो, चाहे दिन हो, चाहे खड़े हों, चाहे बैठे हों, लेकिन अथक बन लक्ष्य रखा, उस लक्ष्य की सफलता हुई। प्राइम मिनिस्टर आना, प्रेजीडेंट आना या कोई का भी आना-यह लक्ष्य की सफलता है। जब लक्ष्य एक होता है कि हम सबको अंगुली देनी है और खुशी-खुशी से करना है, अथक बनना है-यह लक्ष्य प्रत्यक्ष रूप में आया, इसीलिए यह दृढ़ता सफलता की चाबी बन गई। कहाँ भी कार्य करो लेकिन यह लक्ष्य पक्का करके संगठित रूप में करो। एक भी यह नहीं कहे कि हमने कार्य नहीं किया। कोई भी कार्य करे लेकिन सबका संगठित रूप में सहयोग होना चाहिए और सबको खुशी होनी चाहिए कि हम प्रोग्राम कर रहे हैं। ऐसे नहीं कि फलाने कर रहे हैं, हम तो देख रहे हैं, नहीं। हम देखने वाले नहीं हैं, करने वाले हैं। चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा। छोटे बड़े जो भी हैं, चाहे स्टेज पर कार्य करें, चाहे घर बैठे मन्सा सेवा करें, वाचा सेवा करें, लेकिन सबको सेवा में सहयोग की अंगुली देनी ही है।

दिल्ली को वरदान है और उसमें भी आदि रत्न जगदीश को वरदान  है-स्थापना के कार्य में। इस बारी बापदादा ने देखा एक भी दिल्ली का सेन्टर ऐसे नहीं रहा जिसका कोई न कोई सहयोग नहीं हो। 100 से ही ज्यादा होंगे, दूर वाले स्थान की बात छोड़ो, लेकिन जो दिल्ली में थे उनमें से हर एक ने अपने खुशी से सेवा ली और प्रैक्टिकल किया तो यही सफलता का साधन है। ऐसे था ना? जगदीश से पूछते हैं। तो कहाँ भी करो, पहले सबको मिलाओ। चाहे मीटिंग करो, चाहे फोन में बात करो, समय नहीं हो तो फोन में ही मीटिंग हो सकती है। इन्होंने भी मीटिंग की, एक ही दिल्ली है ना तो दिल्ली में मीटिंग होना सहज है। लेकिन एक बात यह समझ लो कि जहाँ संगठन की शक्ति है वहाँ विजय है। बाकी विघ्न तो आने ही हैं। नहीं तो विघ्न-विनाशक नाम क्यों रखा है! विघ्न विनाशक का अर्थ क्या है? विघ्न आवे और विनाश करो। यह तो होना ही है। विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विनाशक बनना। इसकी परवाह नहीं करो। यह खेल है। खेल में खेल और खेल देखने में तो मजा है ना।

दूसरी बात सभी यह ध्यान रखें कि जहाँ भी जो भी सहयोगी आत्मायें हैं, मानों लण्डन में कोई प्रोग्राम करते हैं और अमेरिका में कोई नजदीक वाला सहयोगी विशेष आत्मा है, तो ऐसे टाइम पर जो जहाँ सहयोगी हो सकते हैं, जैसा कार्य है उस अनुसार सहयोगी आत्माओं को निमित्त बनाओ। जिसको बापदादा कहते हैं छोटे माइक। उसका भी प्रभाव पड़ता है, और जो सम्पर्क में आते हैं उन्हों को समय प्रति समय सहयोगी बनाते रहो। सिर्फ कांफ्रेंस होवे तो आप जाओ, आओ और फिर अपनी सेवा में लग जाओ। नहीं। नई-नई सेवा करते रहते हो और जो पुरानी आत्मायें, सम्पर्क में आने वाली हैं उनके लिए फुर्सत कम निकालते हो। अब ऐसा सहयोगियों का ग्रुप तैयार करो। कहाँ भी हो, चाहे विदेश में हो तो इन्डिया में उसका लाभ ले सकते हो या विदेश का विदेश में, इन्डिया का इन्डिया में, लेकिन सहयोगियों से लाभ लो। दिल्ली वाले हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। साथ भी एक दो को अच्छा दिया है। बृजमोहन कहाँ है। देखो निमित्त बनने वालों के हाँ जी, हाँ जी करने से, एक दो के सहयोग से सफलता समीप आई। इसलिए इस पाठ को सदा याद रखना। स्वभाव-संस्कारों को सेवा के समय देखो ही नहीं। देखते हैं ना-इसने यह किया, इसने यह कहा -तो सफलता दूर हो जाती है। देखो ही नहीं। बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। हाँ जी और बहुत अच्छा, यह दो शब्द हर कार्य में यूज़ करो। स्वभाव वैरायटी हैं और रहने भी हैं। स्वभाव को देखा तो सेवा खत्म। बाबा करा रहा है, बाबा को देखो, बाबा का काम है। इसकी ड्यूटी नहीं है, बाबा की है। तो बाप में तो स्वभाव नहीं है ना। तो स्वभाव देखने नहीं आयेगा। बाकी दिल्ली ने एक अच्छा नक्शा तैयार कर दिया। तो बापदादा भी दिल्ली वालों को मुबारक देते हैं।

फॉरेन का जो स्नेह मिलन (आबू फोरम वा रिट्रीट) का प्रोग्राम चला, वह भी हर वर्ष सफलता मिल रही है। फाउण्डेशन तैयार हो रहा है। बापदादा के घर में धरनी तैयार होती है। बाकी बीज को बढ़ाना, यह आप लोगों का अपने-अपने स्थान का काम है। बापदादा ने यहाँ मधुबन में धरनी भी तैयार की, बीज भी डाला अभी पानी देना, फल निकालना आपका काम है। निकलेंगे फल। सिर्फ एक ग्रुप बनाओ जो लिस्ट को देख करके सम्पर्क करता रहे। नई-नई सेवाओं में बिजी हो जाते हो ना तो यह थोड़ा ढीला हो जाता है। बाकी डबल विदेशियों की वृद्धि भी है और विधि भी बहुत अच्छी बनाते जाते हो इसलिए निमित्त जनक को और आप सब राइट हैण्डस को, सभी ब्राह्मण परिवार की तरफ से मुबारक हो। अच्छा।

सब खुश हैं और खुश सदा रहने वाले हैं। ऐसे है ना! बापदादा ठीक कहता है या कोई पेपर आयेगा तो चेहरा बदल जायेगा? नहीं, बदले नहीं। उस समय पता है क्या होता है? बापदादा को क्या दिखाई देता है? जैसे आजकल का फैशन है - स्वांग बनाते हैं तो और शक्ल (मास्क) लगा देते हैं ना। उस समय जैसे आप लोगों का चेहरा ओरिजिनल नहीं होता, मास्क लगा देते हो। कोई लोभ का कोई मोह का, कोई अभिमान का, कोई मैं पन का, कोई मेरे पन का, चेहरे ही बदल जाते हैं। फिर परेशान होते हैं ना। दूसरा फेस अगर लगा लो तो परेशान होते हैं ना। गर्मी लगती है ना, यह क्या पहना है तो और फेस नहीं लगाओ। अपना ओरिजिनल स्वरूप का चेहरा सदा रखो। बापदादा के पास हर एक के बहुत फोटो हैं। यहाँ साकार दुनिया में तो जगह ही नहीं है जो आपके फोटो रखें।

अच्छा-एक सेकण्ड में बिल्कुल बाप समान अशरीरी बन सकते हो? तो एक सेकण्ड में फुल स्टॉप लगाओ और अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ। (बापदादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) अच्छा-यह सारे दिन में बार-बार अभ्यास करते रहो।

चारों ओर के सर्व मायाजीत, प्रकृतिजीत, साक्षीपन के तख्तनशीन, साथी के साथ का सदा अनुभव करने वाले, सदा दृढ़ता से सफलता को गले का हार बनाने वाले, सदा बाप समान लाइट रहने वाले, सदा अपने माइट द्वारा विश्व को दु:ख-अशान्ति की कमजोरी से छुड़ाने वाले ऐसे मास्टर सुख के सागर, खुशी के सागर, प्रेम के सागर, ज्ञान के सागर बाप समान बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।



06-03-97   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


शिवजयन्ती की गिफ्ट- मेहनत को छोड़ मुहब्बत के झूले में झूलो

आज स्वयं शिव पिता अपने चारों ओर के आये हुए बच्चों से अपनी जयन्ति मनाने आये हैं। कितना बच्चों का भाग्य है जो स्वयं बाप मिलने और मनाने आये हैं। दुनिया वाले तो पुकारते रहते हैं - आओ, कब आयेंगे, किस रूप में आयेंगे, आह्वान करते रहते हैं और आप बच्चों से स्वयं बाप मनाने के लिए आये हैं। ऐसा विचित्र दृश्य कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा, लेकिन आज साकार रूप में मनाने के लिए भाग-भाग कर पहुंच गये हो। बाप भी चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित होते हैं - वाह सालिग्राम बच्चे वाह! वाह साकार स्वरूपधारी होवनहार फरिश्ता सो देवता बच्चे वाह! भक्त बच्चों और आप ज्ञानी तू आत्मा बच्चों में कितना अन्तर है। भगत भावना का, अल्पकाल का फल पाकर खुश हो जाते हैं। वाह-वाह के गीत गाते रहते हैं और आप ज्ञानी तू आत्मायें बच्चे थोड़ा सा अल्पकाल का फल नहीं पाते लेकिन बाप से पूरा वर्सा ले, वर्से के अधिकारी बन जाते हो। तो भक्त आत्मायें और ज्ञानी तू आत्मा बच्चों में कितना अन्तर है! मनाते भक्त भी हैं और मनाने आप भी आये हैं लेकिन मनाने में कितना अन्तर है! शिव जयन्ती मनाने आये हो ना! भाग-भाग कर आये हैं कोई अमेरिका से, कोई लण्डन से, कोई आस्ट्रेलिया से, कोई एशिया से, कितना स्नेह से आकर पहुंचे हैं। तो बापदादा, बाप की जयन्ती साथ में बच्चों की भी जयन्ती है, तो बाप के साथ बच्चों के भी जयन्ती की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। क्योंकि अकेला बाप इस साकार दुनिया में सिवाए बच्चों के कोई भी कार्य कर नहीं सकता। इतना बच्चों से प्यार है। अकेला कर ही नहीं सकता। पहले बच्चों को निमित्त बनाते फिर बैकबोन होकर वा कम्बाइन्ड होकर, करावनहार होकर निमित्त बच्चों से कार्य कराते हैं। साकार दुनिया में अकेला, बच्चों के बिना नहीं पसन्द करता। निराकारी दुनिया में तो आप बच्चे बाप को अकेला छोड़कर चले जाते हो। बाप की आज्ञा से ही जाते हो लेकिन साकार दुनिया में बाप बच्चों के बिना रह नहीं सकते। बच्चे जरूर साथ चाहिए। बच्चों का भी वायदा है साथ रहेंगे, साथ चलेंगे - सिर्फ निराकारी दुनिया तक।

बापदादा देख रहे थे कि सभी बच्चों को बाप की जयन्ती मनाने का कितना उमंग-उत्साह है। तो बाप भी देखो बच्चों के स्नेह में आपके साथ साकार शरीर का लोन लेकर पहुंच गये हैं। इसको कहते हैं अलौकिक प्यार। बच्चे बाप के बिना नहीं रह सकते और बाप बच्चों के बिना नहीं रह सकते। प्यार भी अति है और फिर न्यारे भी अति हैं, इसीलिए बाप की महिमा ही है न्यारा और प्यारा। बच्चे बाप के लिए बहुत प्रकार की गिफ्ट चाहे कार्ड, चाहे कोई चीज़े, चाहे दिल के उमंग के पत्र, जो भी लाये हैं बाप के पास आज के दिन वतन में सब गिफ्ट का म्युजियम लगा हुआ है। आपका म्युजियम है सेवा का और बाप का म्युजियम है स्नेह का। तो जो भी सभी लाये हैं वा भेजे हैं सबका स्नेह सम्पन्न गिफ्ट बाप के पास अभी भी म्युजियम लगा हुआ है। जिन्हों को देख-देख बाप हर्षाते रहते हैं। चीज़ बड़ी नहीं है लेकिन जब चीज़ में स्नेह भर जाता है तो वह छोटी चीज़ भी बहुत महान बन जाती है। तो बापदादा चीज़ को नहीं देखते हैं, कागज के कार्ड को या पत्र को नहीं देखते हैं लेकिन उसमें समाये हुए दिल के स्नेह को देखते हैं। इसीलिए कहा कि बाप के पास स्नेह का म्युजियम है। ऐसा म्युजियम आपके वर्ल्ड में नहीं है। है ऐसा म्युजियम? नहीं है। जब बाप एक- एक प्यार की गिफ्ट को देखते हैं तो देखते ही बच्चे की सूरत उसमें दिखाई देती है। ऐसा कैमरा है आपके पास? नहीं है। गिफ्ट को देखते हुए बापदादा को एक शुभ संकल्प उठा, बतायें? करना पड़ेगा। करेंगे, तैयार हैं? सोचना नहीं।

बापदादा को संकल्प उठा यह गिफ्ट तो बाप के पास पहुंच गई लेकिन साथ में बापदादा को एक और भी गिफ्ट चाहिए। आप लोगों की गिफ्ट बहुत अच्छी है लेकिन बापदादा को और भी चाहिए। तो देंगे गिफ्ट? वैसे भी यह जो यादगार मनाते हैं, शिव जयन्ती अर्थात् कुछ न कुछ अर्पण करते हैं। बलिहार जाते हैं। तो बापदादा ने सोचा, बलिहार तो सब बच्चे गये हैं। बलिहार हो गये हैं या अभी थोड़ा-थोड़ा अपने पास सम्भालकर रखा है? आज के दिन व्रत भी लेते हैं। तो बापदादा को संकल्प आया कि बच्चे जो कभी-कभी थोड़ा सा चलते-चलते थक जाते हैं, मेहनत बहुत महसूस करते हैं या निरन्तर योग लगाना मुश्किल अनुभव करते हैं, सोचते हैं हो तो जायेगा.... बाप को दिलासे देते हैं - आप फिकर नहीं करो, हो जायेगा। लेकिन बापदादा को बच्चों की थकावट वा अकेलापन या कभी-कभी, कोई-कोई थोड़ा सा दिलशिकस्त भी हो जाते हैं, पता नहीं हमारा भाग्य है या नहीं है .... कभी-कभी ऐसा सोचते हैं तो यह बाप को अच्छा नहीं लगता। सबसे ज्यादा बाप को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। मालिक और मेहनत! बाप के भी बालक सो मालिक हैं। भगवान के भी मालिक और फिर मेहनत करें! तो अच्छा लगेगा? सुनना भी अच्छा नहीं लगता। तो बाप को संकल्प आया कि बच्चे बर्थ डे की गिफ्ट तो जरूर देते ही हैं तो क्यों नहीं आज के दिन सभी बच्चे यह गिफ्ट के रूप में दें। वह स्थूल गिफ्ट जो दी वह तो वतन में इमर्ज हो गई, लेकिन निराकारी दुनिया में तो यह गिफ्ट इमर्ज नहीं होगी। वहाँ तो संकल्प की गिफ्ट पहुंचती है। तो बाप को संकल्प आया कि आज के दिन सब बच्चों से गिफ्ट लेनी है। तो गिफ्ट देंगे या देकर फिर वहाँ जाकर वापस ले लेंगे? कहेंगे, मधुबन का मधुबन में रहा और अपने देश में अपना देश है, ऐसे तो नहीं करेंगे? बच्चे बड़े चतुर हो गये हैं। बाप को कहते हैं कि हम चाहते तो नहीं हैं वापस आये, लेकिन आ जाती है। आ जाती है तो आप स्वीकार क्यों करते हो? आ जाती है यह राइट है, लेकिन कोई चीज़ आपको पसन्द नहीं है और कोई जबरदस्ती भी दे तो आप लेंगे या वापस दे देंगे? वापस देंगे ना? तो स्वीकार क्यों करते हो? माया तो वापस लायेगी लेकिन आप स्वीकार नहीं करो। ऐसी हिम्मत है? सोचकर कहो। फिर वहाँ जाकर नहीं कहना - बाबा क्या करूं, चाहते नहीं हैं लेकिन हो गया। ऐसे पत्र तो नहीं लिखेंगे? आपकी हिम्मत और बाप की मदद। हिम्मत कम नहीं करना फिर देखो बाप की मदद मिलती है या नहीं। सभी को अनुभव भी है कि हिम्मत रखने से बाप की मदद समय पर मिलती है और मिलनी ही है, गैरन्टी है। हिम्मत आपकी मदद बाप की। तो संकल्प क्या हुआ? चेहरे देख रहे हैं - हिम्मत है या नहीं है! हिम्मत वाले तो हो, क्योंकि अगर हिम्मत नहीं होती तो बाप के बनते नहीं। बन गये - इससे सिद्ध होता है कि हिम्मत है। सिर्फ छोटी सी बात करते हो कि समय पर हिम्मत को थोड़ा सा भूल जाते हो। जब कुछ हो जाता है ना तो पीछे हिम्मत वा मदद याद आती है। समय पर सब शक्तियां, समय प्रमाण यूज करना इसको कहा जाता है ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा।

बापदादा को एक बात की बहुत खुशी है, पता है किस बात की? बोलो। (बहुतों ने सुनाया) सब ठीक बोल रहे हो लेकिन बाप का संकल्प और है। आप बहुत गुह्य सुना रहे हो, नॉलेजफुल हो गये हो ना।

बापदादा खुश हो रहे थे कि कई बच्चों ने पत्र और चिटकी लिखी है कि हम 108 में आयेंगे, बहुत चिटकियां आई हैं। बापदादा ने सोचा जब इतने 108 में आयेंगे, तो 108 की माला पांच लड़ियों की बनानी पड़ेगी। तो 5- 6-7-8 लड़ियों की माला बनायें ना? जिन्होंने संकल्प किया है, लक्ष्य रखा है बहुत अच्छा है। लेकिन सिर्फ इस संकल्प को बीच-बीच में दृढ़ करते रहना। ढीला नहीं करना। ऐसे तो नहीं कहेंगे माया आ गई - अब पता नहीं आयेंगे या नहीं! पता नहीं, पता नहीं...नहीं करना। पता कर लिया, आना ही है। दृढ़ता का ठप्पा लगाते रहना। हाँ मुझे आना ही है, कुछ भी हो जाए, मेरा निश्चय अटल है, अखण्ड है। ऐसा अटल-अखण्ड निश्चय है? तो माया को हिलाने के लिए भेजें? नहीं? डरते हो? माया आपसे डरती है और आप माया से डरते हो? माया अपने दरवाजे देखती है, यहाँ खुला हुआ है, यहाँ खुला हुआ है। ढूंढती रहती है। आप घबराते क्यों हो? माया कुछ नहीं है। कुछ नहीं कहो तो कुछ नहीं हो जायेगी। आ नहीं सकती, आ नहीं सकती, तो आ नहीं सकती। क्या करें....? तो माया का दरवाजा खोला, आह्वान किया। तो अच्छी बात है कि बहुत बच्चों ने 108 में आने की प्रॉमिस किया है। किया है ना? जिन्होंने कहा है कि हम 108 में आयेंगे - वह लम्बा हाथ उठाओ। अच्छी तरह से ड्रिल करो। बहुत अच्छा, मुबारक हो। यह नहीं सोचो कि 108 में कितने आयेंगे, हम कहाँ आयेंगे - यह नहीं सोचो। पहले गिनती करने लग जाते हैं - दादी आयेंगी, दीदी आयेंगी, फिर दादे भी आयेंगे, एडवांस पार्टी वाले भी आयेंगे। हमारा नम्बर आयेगा या नहीं, पता नहीं! बापदादा ने कहा कि बापदादा 8-10 लड़ों की माला बना देंगे, इसलिए आप यह चिंता नहीं करो। औरों को नहीं देखो, आपको नम्बर मिल ही जाना है, यह बाप की गैरन्टी है। आप किनारा नहीं करना। माला के बीच में धागा खाली नहीं करना। एक दाना बीच से टूट जाए, निकल जाए तो माला अच्छी नहीं लगेगी। सिर्फ यह नहीं करना, बाकी बाबा की गैरन्टी है आप जरूर आयेंगे।

आज तो मनाने आये हैं, मुरली चलाने थोड़ेही आये हैं। तो और जो भी हो वह माला में आ जाओ, 108 की माला में सबको वेलकम है। यह तो भक्ति मार्ग वालों ने 108 की माला बना ली। बापदादा तो कितनी भी बढ़ा सकता है। सिर्फ इसमें गिफ्ट तो बाप जरूर लेगा, गिफ्ट को नहीं छोड़ेगा। छोटी सी गिफ्ट है कोई बड़ी नहीं है, क्योंकि बाप ने सभी बच्चों का 6 मास का चार्ट देखा। तो क्या देखा? अगर कोई भी बच्चे थोड़ा भी नीचे-ऊपर होते हैं, अचल से हलचल में आते हैं तो उसका कारण सिर्फ 3 बातें मुख्य हैं, वही तीन बातें भिन्न-भिन्न समस्या या परिस्थिति बनकर आती हैं। वह तीन बातें क्या हैं?

अशुभ वा व्यर्थ सोचना। अशुभ वा व्यर्थ बोलना और अशुभ वा व्यर्थ करना। सोचना, बोलना और करना - इसमें टाइम वेस्ट बहुत होता है। अभी विकर्म कम होते हैं, व्यर्थ ज्यादा होते हैं। व्यर्थ का तूफान हिला देता है और पहले सोच में आता है, फिर बोल में आता है, फिर कर्म में आता है और रिजल्ट में देखा तो किसी का बोल और कर्म में नहीं आता है लेकिन सोचने में बहुत आता है। जो समय बनाने का है, वह सोचने में बीत जाता है। तो बापदादा आज यह तीन बातें सोचना, बोलना और करना - इनकी गिफ्ट सभी से लेने चाहते हैं। तैयार हैं? जिन्होंने दे दी वह हाथ उठाओ। हाथ का वीडियो अच्छी तरह से एक-एक साइड का निकालो। बड़ा हाथ उठाओ। ड्रिल नहीं करते हो इसीलिए मोटे हो जाते हो। अच्छा-सभी ने यह दे दिया। वापस नहीं लेना। यह नहीं कहना कि मुख से निकल गया, क्या करें? मुख पर दृढ़ संकल्प का बटन लगा दो। दृढ़ संकल्प का बटन तो है ना? क्योंकि बापदादा को बच्चों से प्यार है ना। तो प्यार की निशानी है, प्यार वाले की मेहनत देख नहीं सकते। बापदादा तो उस समय यही सोचते कि बापदादा साकार में जाकर इनको कुछ बोले, लेकिन अब तो आकारी, निराकारी है। बिल्कुल सभी मेहनत से दूर मुहब्बत के झूले में झूलते रहो। जब मुहब्बत के झूले में झूलते रहेंगे तो मेहनत समाप्त हो जायेगी। मेहनत को खत्म करें, खत्म करें नहीं सोचो। सिर्फ मुहब्बत के झूले में बैठ जाओ, मेहनत आपेही छूट जायेगी। छोड़ने की कोशिश नहीं करो, बैठने की, झूलने की कोशिश करो।

शिव जयन्ती अर्थात् बच्चों के मेहनत समाप्त की जयन्ती। ठीक है ना? बाप को भी बच्चों पर फेथ है। पता नहीं कैसे कोई-कोई किनारा कर लेते हैं जो बाप को भी पता नहीं पड़ता। छत्रछाया के अन्दर बैठे रहो। ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है झूलना, माया में नहीं। माया भी झुलाती है। अमृतवेले देखो माया ऐसे झुलाती है जो सूक्ष्मवतन में आने के बजाए, निराकारी दुनिया में आने के बजाए निद्रालोक में चले जाते हैं। कहते हैं योग डबल लाइट बनाता है लेकिन माथा भारी हो जाता है। तो माया भी झूला झुलाती है लेकिन माया के झूले में नहीं अचानक के पेपर में पास होना है तो अलबेलेपन को छोड़ अलर्ट बनो। 42 झूलना। आधाकल्प तो माया के झूले में खूब झूलकर देखा है ना। क्या मिला? मिला कुछ? थक गये ना! अभी अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलो, खुशी के झूले में झूलो। शक्तियों की अनुभूतियों के झूले में झूलो। इतने झूले आपको मिले हैं जो यहाँ के प्रिन्स-प्रिन्सेज को भी नहीं होंगे। चाहे जिस झूले में झूलो। अभी प्रेम के झूले में झूलो, अभी आनंद के झूले में झूलो। अभी ज्ञान के झूले में झूलो। कितने झूले हैं! अनगिनत। तो झूले से उतरो नहीं। जो लाडले होते हैं ना तो मांबाप यही चाहते हैं कि बच्चे का पांव मिट्टी में नहीं पड़े या गोदी में हो या झूले में हो या गलीचों में हो। मिट्टी में पांव नहीं जाये। ऐसे होता है ना? तो आप कितने लाडले हो! आप जैसा लाडला कोई है? परमात्म लाडले बच्चे अगर देहभान में आते हैं तो देह क्या है? मिट्टी है ना! देह को क्या कहते हैं? मिट्टी, मिट्टी में मिल जायेगी। तो यह मिट्टी है ना। मिट्टी में पांव क्यों रखते हो? मिट्टी अच्छी लगती है? कई बच्चों को मिट्टी अच्छी लगती है, कई मिट्टी खाते भी हैं। लेकिन आप नहीं खाना, पांव भी नहीं रखो। संकल्प आना अर्थात् पांव रखना। संकल्प में भी देह-भान नहीं आवे। सोचो, याद रखो कि हम कितने लाडले हैं, किसके लाडले हैं! सतयुग में भी परमात्म लाडले नहीं होंगे। दिव्य आत्माओं के लाडले होंगे। लेकिन इस समय परमात्म बाप के लाडले हो। तो बच्चों ने हिम्मत के हाथ से गिफ्ट दी इसलिए बापदादा उसकी थैंक्स करते हैं, शुक्रिया, धन्यवाद।

अच्छा - आज डबल विदेशियों का विशेष दिन है। आये भी बहुत हैं। जो डबल विदेशी बैठे हैं वह हाथ उठाओ। हाल में पौना हिस्सा डबल विदेशी हैं। बाप भी स्वागत करते हैं भले आये, सदा आओ। देखो, बच्चे बढ़ते जाते हैं और पृथ्वी छोटी होती जाती है। जब यह हाल बना था तो सोचते थे इतना हाल भरेगा? अभी हाल तो क्या लेकिन कितनी नीचे गीता पाठशालायें बन गई हैं। बहुत बच्चे नीचे बैठे हैं। (मधुबन में मुरली सुन रहे हैं) अभी देखो नीचे (शान्तिवन) का हाल बनाया तो भी कहते हैं कि संख्या देनी पड़ेगी। इतना बड़ा हाल क्यों बनाया? संख्या देने के लिए या फ्रीडम देने के लिए? इससे क्या सिद्ध होता है? आप सभी को विश्व का मालिक बनना है। तो विश्व का मालिक बनने वाले इतने बड़े, उनके लिए सब छोटा हो जाता है। हाल तो कुछ भी नहीं है, सारी विश्व आपको मिलनी ही है।

(बापदादा ने ड्रिल कराई) मन के मालिक हो ना! तो सेकण्ड में स्टॉप, तो स्टॉप हो जाए। ऐसा नहीं आप कहो स्टॉप और मन चलता रहे, इससे सिद्ध है कि मालिकपन की शक्ति कम है। अगर मालिक शक्तिशाली है तो मालिक के डायरेक्शन बिना मन एक संकल्प भी नहीं कर सकता। स्टॉप, तो स्टॉप। चलो, तो चले। जहाँ चलाने चाहो वहाँ चले। ऐसे नहीं कि मन को बहुत समय की व्यर्थ तरफ चलने की आदत है, तो आप चलाओ शुद्ध संकल्प की तरफ और मन जाये व्यर्थ की तरफ। तो यह मालिक को मालिकपन में चलाना नहीं आता। यह अभ्यास करो। चेक करो स्टॉप कहने से, स्टॉप होता है? या कुछ चलकर फिर स्टॉप होता है? अगर गाड़ी में ब्रेक लगानी हो लेकिन कुछ समय चलकर फिर ब्रेक लगे, तो वह गाड़ी काम की है? ड्राइव करने वाला योग्य है कि एक्सीडेंट करने वाला है? ब्रेक, तो फौरन सेकण्ड में ब्रेक लगनी चाहिए। यही अभ्यास कर्मातीत अवस्था के समीप लायेगा। संकल्प करने के कर्म में भी फुल पास। कर्मातीत का अर्थ ही है हर सबजेक्ट में फुल पास। 75 परसेन्ट, 90 परसेन्ट भी नहीं, फुल पास। यह अवस्था तब आयेगी जब अपने अनुभव में सर्व शक्तियों का स्टॉक प्रैक्टिकल यूज़ में आवे। पहले भी सुनाया - सर्व शक्तियां बाप ने दी, आपने ली लेकिन समय पर यूज़ होती हैं या नहीं, सिर्फ स्टॉक ही है! सिर्फ स्टॉक है लेकिन समय पर यूज नहीं हुआ तो होना या न होना एक ही बात है। यह अनुभव करो परिस्थिति बहुत नाजुक है लेकिन आर्डर दिया मन बुद्धि को कि न्यारे होकर खेल देखो तो परिस्थिति आपके इस अचल स्थिति के आसन के नीचे दब जायेगी। सामना नहीं करेगी। आसन नहीं छोड़ो, आसन में बैठने का अभ्यास ही सिंहासन प्राप्त करायेगा। अगर आसन पर बैठना नहीं आता है, कभी-कभी बैठना आता है तो सिंहासन में भी कभी-कभी बैठेंगे। आसन ही सिंहासन प्राप्त कराता है। अब आसन है फिर सिंहासन है। हलचल वाला आसन पर एकाग्र होकर बैठ नहीं सकता। इसीलिए कहा व्यर्थ समाप्त, अशुभ समाप्त - तो अचल हो जायेंगे और अचल स्थिति के आसन पर सहज और सदा स्थित हो सकेंगे। देखो आप सबका यादगार यहाँ अचलघर है। अचलघर देखा है ना? यह किसका यादगार है? आप सबके स्थिति का यादगार यह अचलघर है। अनुभव करो, ट्रायल करते जाओ, यूज करते जाओ। ऐसे नहीं समझ लेना, हाँ सब शक्तियां तो हैं ही। समय पर यूज़ हों। यूज़ नहीं करेंगे तो लौकिक कार्य करते समय पर धोखा मिल सकता है। इसलिए छोटी-मोटी परिस्थिति में यूज करके देखो। परिस्थितियां तो आनी ही हैं, आती भी हैं। पहले भी बापदादा ने कहा है कि वर्तमान समय अनुभव करते हुए चलो। हर शक्ति का अनुभव करो, हर गुण का अनुभव करो। ऐसे अनुभवी मूर्त बनो जो कोई भी आवे तो आपके अनुभव की मदद से उस आत्मा को प्राप्ति हो जाए। दिन-प्रतिदिन आत्मायें शक्तिहीन हो रही हैं, होती रहेंगी। ऐसी आत्माओं को आप अपनी शक्तियों की अनुभूति यों से सहारा बन अनुभव करायेंगे। अच्छा। मालिक हैं ना! तो मालेकम सलाम, बाप कहते हैं - मालिकों को सलाम। अच्छा।

(66 देशों से बाबा के बच्चे आये हैं) 66 देशों के बच्चों को पदमगुणा मुबारक हो। आखिर तो विश्व में आप ही चारों ओर फैल जायेंगे। जहाँ देखेंगे वहाँ सफेद वस्त्रधारी फरिश्ते दिखाई देंगे। अच्छा।

अमेरिका:- अमेरिका के कितने देशों से आये हैं? (19) 19 देशों के हाथ उठाओ। अमेरिका क्या जलवा दिखायेंगे? देखो नाम बहुत अच्छा है- अमेरिका माना आ मेरे आ। तो अमेरिका सभी खोये हुए बच्चों को आ मेरे, आ मेरे कहके बाप का बना देंगे। ऐसे है ना? बढ़ रहे हैं ना वहाँ? बढ़ते रहेंगे।

अफ्रीका:- (अफ्रीका के 13 देश वाले आये हैं) सब हाथ उठाओ। इसमे साउथ अफ्रीका, मौरीशियस भी है? अफ्रीका क्या करेंगे? अफ्रीका आफरीन के लायक बनेंगे। सेवा का ऐसा नगाड़ा बजायेंगे जो चारों ओर से यही निकले आफरीन है, आफरीन है।

एशिया:- (एशिया के 13 देशों से आयें हैं) एशिया क्या करेगा? सर्व आत्माओं की आशायें पूरी करे। जब सब आत्माओं की आशायें पूरी होंगी तो सब कहेंगे वाह एशिया वाह!

यूरोप:- (यूरोप के 17 देशों से आये हैं) उसमें लण्डन भी है? यूरोप तो विदेश का फाउण्डेशन है। तो फाउण्डेशन सदा ही सबकी नज़रों में आता है कि फाउण्डेशन कितना पक्का है! यूरोप से ही फाउण्डेशन फैला है और भिन्न-भिन्न शाखायें फैली हैं। पहले नम्बर में दो पत्ते निकलते हैं, जब बीज डालते हैं तो दो पत्ते निकलते हैं। तो पहले सेन्टर कौन से निकले? लण्डन और साथ में हांगकांग। तो दो पत्तों की ही कमाल हुई ना। दो पत्तों से तना निकला, तना से डालियां निकली, डालियों से शाखायें निकली और डबल विदेश का वृक्ष हरा भरा हो गया। तो यूरोप के दो पत्ते लण्डन और हांगकांग को बहुत-बहुत पदमगुणा मुबारक हो। (यूरोप वाले हाथ उठाओ) पहले पत्ते हैं तो विस्तार तो होगा ना।

मिडिल ईस्ट:- (3 देशों से आये हैं) यह अच्छे हैं, अभी-अभी आगे बढ़ रहे हैं। अभी थोड़े हैं, अभी मिडिल को मॉडल लेना चाहिए। इतनी सेवा बढ़ाओ जो सब देश वाले आपको मिडिल नहीं, मॉडल लेने वाले कहें। बढ़ायेंगे ना? विश्व का कल्याण होना है तो मिडिल वालों का कल्याण तो करना ही है। नहीं तो विश्व का एक कोना छूटा रह जायेगा तो अच्छा नहीं है। इसीलिए जब भी कोई आपको कहे ना मिडिल ईस्ट है तो कहो नहीं मॉडल इस्ट है।

रशिया:- रशिया के टोटल हाथ उठाओ। अच्छे हैं। रशिया वाले क्या करेंगे? रशिया में ज्यादा समय कम्युनिस्ट का राज्य रहा है और अभी रशिया में देवताओं का राज्य होगा क्योंकि भारत के नजदीक है ना। तो भारत के आसपास आ जायेगा, स्वर्ग बन जायेगा। जो दूर दूर देश हैं, वह दूर होंगे। रशिया नजदीक है, तो देवताओं का राज्य अभी तो नहीं है लेकिन बहुत समय कम्युनिस्ट का रहा है ना, अभी स्वतन्त्र है। अभी फिर राजा-रानी का राज्य होगा। राजा-रानी का राज्य पसन्द है? बहुत अच्छा। वृद्धि बहुत जल्दी-जल्दी हो रही है। बापदादा सेवा से खुश हैं। रशिया वालों ने कहा था ना कि हम बापदादा को फूलों की पंखुडियां डालेंगे, तो ऐसे हाथ कर लो, डल गई और ही खुशबू आ गई। दिल के स्नेह के पुष्प बाप के पास पहुंच गये। अच्छा।

आस्ट्रेलिया- आस्ट्रेलिया हाथ उठाओ। आस्ट्रेलिया के कम आये हैं। आस्ट्रेलिया को अभी फर्स्ट जाना है। आस्ट्रेलिया में बापदादा के बहुत अच्छे आदि रत्न हैं लेकिन अभी थोड़े गुप्त हो गये हैं। भट्ठी में चले गये हैं। अभी रिट्रीट हाउस मिला है ना तो अभी बाहर आयेंगे। फिर आस्ट्रेलिया का झुण्ड दिखाई देगा। आस्ट्रेलिया नक्शे में बहुत बड़ा है तो ब्राह्मण परिवार में भी बड़ा होगा। थोड़ा भट्ठी में पक रहे हैं। आस्ट्रेलिया से बापदादा का बहुत प्यार है क्योंकि लण्डन और आस्ट्रेलिया की रेस थी, लण्डन से भी ज्यादा संख्या आस्ट्रेलिया की थी, अभी गुप्त हो गये हैं। प्रत्यक्ष होंगे। अभी अननोन हैं, वेलनोन हो जायेंगे। अच्छा।

डबल विदेशी रिफ्रेश हो गये? आपके लिए खास बापदादा आये हैं। डबल विदेशियों से डबल प्यार है।

फर्स्ट टाइम वालों से:- फर्स्ट टाइम वाले हाथ उठाओ। बहुत हैं। आज बाप की जयन्ती है तो आप जो पहली बारी आये हैं, तो बाप उन्हों का भी विशेष आज के दिन नया बर्थ डे मना रहे हैं। बर्थ डे का गीत गाओ। अच्छा है। अलौकिक बर्थ डे की पदमगुणा मुबारक हो, बधाई हो। अच्छा।

(आज शिवबाबा के बर्थ डे पर ब्रह्मा बाबा ने कौन सी गिफ्ट बाप को दी?)

ब्रह्मा बाप ने सब पहले ही दे दी है, कुछ रखा ही नहीं। जब सम्पूर्ण बनें तब सब दे दी। उसके पास कुछ है ही नहीं। बच्चों के पास छिपा हुआ है तब तो देंगे। अभी सिर्फ ब्रह्मा बाप आप बच्चों का इन्तजार कर रहा है। रोज़ बांहे पसार कर आओ बच्चे, आओ बच्चे कहते हैं। तो बाप समान बनो और चलो वतन में। परमधाम का दरवाजा ही नहीं खोलते हैं। आपके लिए रूका हुआ है। ब्रह्मा बाबा तो बीच-बीच में कहते हैं, दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो। लेकिन बाप कहते हैं अभी थोड़ा रूको, थोड़ा रूको।

अच्छा-डबल विदेशी सब अच्छी तरह से मिले ना! बड़ा परिवार तो बड़े परिवार में सब बांटना पड़ता है। छोटे परिवार में तो छोटे में बांटा जाता है। बड़ा हो गया तो बड़े के अनुसार ही बांटा जाता है। आप सोचो बड़ा नहीं हो तो राज्य किस पर करेंगे! 5-10 पर करेंगे क्या? इतने 108 माला के दाने तैयार हो गये हैं, तो लोग तो चाहिए जिस पर राज्य करो। इसीलिए बड़ा परिवार होना ही है। अच्छा।

चारों ओर के अति-अति भाग्यवान बच्चे जो स्वयं शिव बाप से शिवजयंती मना रहे हैं, ऐसे पदमगुणा तो क्या लेकिन जितना भी ज्यादा में ज्यादा कहो वह भी थोड़ा है। ऐसे महान भाग्यवान आत्मायें, सदा बाप की आज्ञा पर हर कदम रखने वाले बाप के स्नेही और समीप आत्मायें, सदा मालिकपन के अचल आसन निवासी सो भविष्य सिंहासन निवासी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के साथ-साथ मौज से मुहब्बत के झूले में झूलते हुए साथ चलने वाले ऐसे बापदादा के साथी बच्चों को बापदादा का बर्थ डे की मुबारक और यादप्यार स्वीकार हो, बाप का सभी मालिकों को नमस्ते।

दादियों से:- अपने-अपने आसन पर बैठ जाओ, छोटी सी राज दरबार है ना। स्वराज्य अधिकारी राजायें अपनी दरबार में बैठ जाओ। (सभा से) आप सभी को भी राज दरबार अच्छी लगती है ना? यह संगम की दरबार है। आप सभी भी नीचे नहीं बैठे हो, ऊपर बैठे हो। देखो यह सिंहासन पर हैं और आप सभी दिल के सिंहासन पर हैं। यह सिंहासन तो छोटा है, दिल का सिंहासन तो बहुत बड़ा है।

(निर्वैर भाई ने बापदादा को गुलदस्ता दिया और मुबारक दी) आपको भी मुबारक। सभी पाण्डवों की तरफ से यह आपकी याद ले आये इसीलिए पाण्डवों को खास मुबारक हो। शक्तियों की तरफ से तो बहुत शक्तियां आई ही हैं इसलिए बहुत-बहुत मुबारक।

आप लोगों को नशा रहता है ना कि हम सिंहासन के अधिकारी हैं? आज फरिश्ते और कल तख्तनशीन। एक एक बच्चा तख्तनशीन बनना ही है। ऐसे नहीं समझना हम शायद प्रजा में जायेंगे, नहीं। रॉयल फैमिली में आना ही है। जब बाप के बने हो तो संगमयुग के वर्से के साथ चाहे राजा बनो, चाहे रॉयल फैमिली के बनों। बनना ही है। राज्य परिवार में आना ही है। समझा।

डबल विदेशियों के बीच में भारतवासी छिप गये हैं। भारतवासी हाथ उठाओ। भारतवासी तो हर एक के मुख पर हैं ही। भारत महान है, भारत स्वर्ग है, भारत ऊंचा है। तो भारतवासी तो ऊंचे हैं ही लेकिन भारतवासी महादानी हैं, डबल विदेशियों को चांस देते हैं इसलिए महादानी भव:।

(बाबा भी भारत का है) बाबा विश्व का है, सिर्फ भारत का नहीं है। विश्व कल्याणकारी है, भारत का कल्याणकारी तो छोटा हो जायेगा। विश्व कल्याणकारी अर्थात् विश्व का बाप है। भारत तो हद हो जायेगी। इसलिए बाप स्वर्ग में नहीं आता, हद हो जायेगी ना। बेहद का बाप बेहद में ही रहता है। डबल विदेशी सदा सर्व वरदानों से भरपूर भव:। बापदादा जानते हैं कितनी मेहनत से एक-एक डालर कहो या जो भी मनी है, वह जमा करके आते हैं। मेहनत और मुश्किलात भारतवासियों को है, विदेशियों को तो प्लेन में बैठे और आ गये। भारतवासियों को तो ट्रेन और बसों में आना पड़ता है लेकिन एक-एक डालर जमा करने की जो टैक्ट (युक्ति) है, वह डबल विदेशियों में ज्यादा है।

शान्तिवन के लिए भी अपने पेट की रोटी बचाकर के भी कर रहे हैं। बापदादा जानते हैं खुद दाल रोटी खायेंगे, शान्तिवन में भेजेंगे। चाहे भारतवासी भी, चाहे विदेशी - सबकी ज्ञान सरोवर चाहे शान्तिवन में जान लगी हुई है। दिल से प्यार है। (आगे क्या होना है?) आगे भी हो जायेगा। शान्तिवन भी अभी पूरा बना नहीं है इसीलिए नेक्स्ट नहीं कहते हैं।

(विनाश के पहले एक-एक कान्टीनेंट में एक-एक बार बाबा आये) देखो, ड्रामा। बाप लण्डन में भी आये, लेकिन मधुबन की महिमा तो मधुबन की है। आगे चलकर क्या होता है, वह बताने से मजा खत्म हो जायेगा। इसीलिए देखो आगे क्या होता है! अच्छा, सौगात को पार्सल कर दिया! वापस नहीं लेना। अच्छा-डबल विदेशी खुश हैं? डबल विदेशी सब आराम से रहे हुए हैं? (सभी भवन फुल हैं) कोई पटरानी नहीं बने हैं? अभी पटरानी बनायेंगे। आपकी जो अटैची है ना, उसको बिस्तरा बनाना, कम से कम तकिया तो बन सकता है। यह भी दृश्य अच्छा होगा ना, अटैची का तकिया होगा, सब आराम से विष्णु के माफिक लेटे हुए होंगे। कितना अच्छा होगा। डबल विदेशियों को पटरानी जरूर बनायेंगे। देखो शुरू-शुरू में स्थापना में पहले यह सभी विशेष आत्मायें तीन फुट की जगह पर सोई हैं। चार फुट भी नहीं, तीन फुट, पट में। विशेष महारथी पट में सोते थे तो जो आदि में हुआ वह आप अन्त में करेंगे ना! कारण तो नहीं बतायेंगे कि कमर में दर्द हो गया? जब कोई भी दर्द होता है ना तो डाक्टर्स भी कहते हैं - सीधा-सीधा पट जैसा सोओ। बेड पर नहीं सोओ, संदल पर सीधा सोओ तो हेल्थ भी ठीक हो जायेगी। यह तो सब एवररेडी हैं। डबल विदेशी अर्थात् डबल एवररेडी। अच्छा। खूब मनाओ।

(बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा लहराया तथा सबको शिवजयन्ती की बधाईयां दी)

सभी बच्चों ने शिव पिता का झण्डा लहराया। ऐसे ही जैसे इस हाल में झण्डा लहराया है, ऐसे सारे विश्व के हाल में यह न्यारा और प्यारा झण्डा जल्दी से जल्दी लहरायेंगे। सबके मुख से, दिल से यही गीत बजेगा, आ गया, आ गया, हमारा बाप आ गया। सबकी दिल से खुशी की तालियां बजेंगी। इसलिए यह झण्डा तो निमित्त-मात्र है लेकिन बहुत ऊंचे ते ऊंचा बाप आ गया, आ गया, जो आना था वो आ गया। हम सबको ले जाने वाला आ गया, यही मन से झण्डा विश्व में लहरेगा। आप सब देखेंगे और आप सबको सफेद-सफेद फरिश्तों के रूप में देखेंगे। बाप के साथ आप सभी के भी गीत गायेंगे। हमारे पूज्य देवीदेवता यें आ गये, आ गये। सिर्फ आप थोड़ा जल्दी तैयार हो जाओ फिर बहुत जल्दी झण्डा लहरायेंगे। फिर सभी पेरशानी से छूट जायेंगे। अच्छा-सभी को प्यारे और न्यारे झण्डे की मुबारक हो।



03-04-97   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


पुराने संस्कारों को खत्म कर अपने निजी संस्कार धारण करने वाले एवररेडी बनो

आज बापदादा अपने चारों ओर से विश्व के बाप के लव में लवलीन और लक्की बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य पर बाप को भी नाज़ है कि मेरे बच्चे वर्तमान समय इतने महान हैं जो सारे कल्प में चाहे देवता स्वरूप में, चाहे धर्म नेताओं के रूप में, चाहे महात्माओं के रूप में, चाहे पदमपति आत्माओं के रूप में किसी का भी इतना भाग्य नहीं है जितना आप ब्राह्मणों का भाग्य है। तो अपने ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हो? सदा यह अनहद गीत मन में गाते रहते हो कि वाह भाग्य विधाता बाप और वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य! यह भाग्य का गीत सदा आटोमेटिक बजता रहता है? बाप बच्चों को देख-देख सदा हर्षित होते हैं। बच्चे भी हर्षित होते हैं लेकिन कभी-कभी बीच में अपने भाग्य को इमर्ज करने के बजाए मर्ज कर देते हैं। जब बाप देखते हैं कि बच्चों के अन्दर अपने सौभाग्य का नशा, निश्चय मर्ज हो जाता है तो क्या कहेंगे? ड्रामा। लेकिन बापदादा सभी बच्चों को सदा ही भाग्य के स्मृति स्वरूप देखने चाहते हैं। आप भी सभी चाहते यही हैं `लेकिन'.. बीच में आ जाता है। किसी से भी पूछो तो सब बच्चे यही लक्ष्य रख करके चल रहे हैं कि मुझे बाप समान बनना ही है। लक्ष्य बहुत अच्छा है। जब लक्ष्य श्रेष्ठ है, बहुत अच्छा है फिर कभी इमर्ज रूप, कभी मर्ज रूप क्यों? कारण क्या? बापदादा से इतने अच्छे-अच्छे वायदे भी करते हैं, रूहरिहान भी करते हैं फिर भी लक्ष्य और लक्षण में अन्तर क्यों? तो बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि कारण क्या है? वैसे तो आप सब जानते हैं, नई बात नहीं है फिर भी बापदादा रिवाइज कराते हैं।

बापदादा ने देखा तीन बातें हैं - एक है सोचना, संकल्प करना। दूसरा है बोलना, वर्णन करना और तीसरा है कर्म में प्रैक्टिकल अनुभव में और चलन में लाना, कर्म में लाना। तो तीनों का समान बैलेन्स कम है। जब बैलेन्स होता है तो निश्चय और नशा इमर्ज होता है और जब बैलेन्स कम है तो निश्चय और नशा मर्ज हो जाता है। रिजल्ट में देखा गया कि सोचने की गति बहुत अच्छी भी है और फास्ट भी है। बोलने में रफ्तार और नशा वह भी 75 परसेन्ट ठीक है। बोलने में मैजारिटी होशियार भी हैं लेकिन प्रैक्टिकल चलन में लाने में टोटल मार्क्स कम हैं। तो दो बातों में ठीक हैं लेकिन तीसरी बात में बहुत कम हैं। कारण? जब संकल्प भी अच्छा है, बोल भी बहुत सुन्दर रूप में हैं फिर प्रैक्टिकल में कम क्यों होता है? कारण क्या, जानते हो? हाँ या ना बोलो। जानते बहुत अच्छा हैं। अगर किसी को भी कहेंगे इस टापिक पर भाषण करो या क्लास कराओ तो कितना अच्छा क्लास करायेंगे! और बड़े निश्चय, नशे, फलक से भाषण भी करेंगे, क्लास भी करायेंगे। कराते हैं। बापदादा सबके क्लासेज़ सुनते हैं क्या-क्या बोलते हैं। मुस्कुराते रहते हैं, वाह! वाह बच्चे वाह!

मूल बात है - बापदादा ने पहले भी सुनाया है यह रिवाइज कोर्स चल रहा है। तो बाप कहते हैं कि कारण एक ही है, ज्यादा भी नहीं है, एक ही कारण है और बापदादा समझते हैं कि कारण को निवारण करना मुश्किल भी नहीं है, बहुत सहज है। लेकिन सहज को मुश्किल बना देते हैं। मुश्किल है नहीं, बना देते हैं, क्यों? नशा मर्ज हो जाता है। एक ही कारण है जो भी धारणा की बातें सुनते हो, करते भी हो, चाहे शक्तियों के रूप में, चाहे गुणों के रूप में, धारणा की बातें बहुत अच्छी-अच्छी करते हो, इतनी अच्छी करते हो जो सुनने वाले चाहे अज्ञानी, चाहे ज्ञानी सुनकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहकर खूब तालियां बजाते हैं, बहुत अच्छा कहा। लेकिन, कितने बार `लेकिन' आया? यह `लेकिन' ही विघ्न डाल देता है। `लेकिन' शब्द समाप्त होना अर्थात् बाप समान-समीप आना और बाप के समीप आना अर्थात् समय को समीप लाना। लेकिन अभी तक `लेकिन' शब्द कहना पड़ता है। बाप को अच्छा नहीं लगता, लेकिन कहना ही पड़ता है। तो कारण क्या? जो भी कहते हो, धारण भी करते हो, धारणा के रूप से धारण करते हो और वह धारणा किसकी थोड़ा समय, किसकी ज्यादा समय भी चलती है लेकिन धारणा प्रैक्टिकल में सदा बढ़ती चले उसके लिए यही मुख्य बात है कि जैसे द्वापर से लेकर अन्तिम जन्म तक जो भी अवगुण वा कमजोरियां हैं उसकी धारणा संस्कार रूप में बन गई हैं और संस्कार बनने के कारण मेहनत नहीं करना पड़ता। छोड़ना भी चाहते हैं, अच्छा नहीं लगता है फिर भी कहते हैं क्या करें, मेरा संस्कार ऐसा है। आप बुरा नहीं मानना, मेरा संस्कार ऐसा है। संस्कार बना कैसे? बनाया तभी तो बना ना! तो जब द्वापर से यह उल्टे संस्कार बन गये, जिससे आप समय पर मजबूर भी होते हो फिर भी कहते हो क्या करें, संस्कार हैं। तो संस्कार सहज, न चाहते हुए भी प्रैक्टिकल में आ जाते हैं ना! किसी को क्रोध आ जाता है, थोड़े समय के बाद कहते हैं आप बुरा नहीं मानना, मेरा संस्कार है। क्रोध को संस्कार बनाया, अवगुण को संस्कार बनाया और गुणों को संस्कार क्यों नहीं बनाया है? जैसे क्रोध अज्ञान की शक्ति है और ज्ञान की शक्ति शान्ति है। सहन शक्ति है। तो अज्ञान की शक्ति क्रोध को बहुत अच्छी तरह से संस्कार बना लिया है और यूज़ भी करते रहते हो फिर माफी भी लेते रहते हो। माफ कर देना, आगे से नहीं होगा। और आगे और ज्यादा होता है। कारण? क्योंकि संस्कार बना दिया है। तो बापदादा एक ही बात बच्चों को बार-बार सुनाते हैं कि अभी हर गुण को, हर ज्ञान की बात को संस्कार रूप में बनाओ।

ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है। ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ। मेरा निज़ी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो। वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया। पराये माल को अपना बना लिया। अब बाप के खज़ाने को अपना बनाओ। रावण की चीज़ को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज़ को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है? कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है। जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं - बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है। बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज्यादा। बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं। फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है - कि दिल से अगर एक बार भी ''मेरा बाबा`` बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला ''मेरा बाबा``, तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो। ले तो जाना ही है। सिर्फ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सज़नी बनकर चलना। सुनकर के तो सभी बहुत खुश हो रहे हैं। अपने ऊपर हंसी भी आ रही है।

अभी सुनने के समय अपने ऊपर हंसते हो ना! अपने ऊपर हंसी आती है और जब जोश करते हो तब लाल, पीले हो जाते हो। लेकिन बाप ने रिजल्ट में देखा कि बच्चों में एक विशेषता बहुत अच्छी है, कौन सी? पवित्रता में रहना, इसके लिए कितना भी सहन करना पड़ा है, कितना भी आपोजीशन करने वाले सामने आये हैं लेकिन इस बात में 75 परसेन्ट अच्छे हैं। कोई-कोई गसिया (गपोड़ा) भी लगाते हैं लेकिन फिर भी 75 परसेन्ट ने इस बात में पास होकर दिखलाया है। अब उसके बाद दूसरा सबजेक्ट कौन सा आता है? क्रोध। देह-भान तो टोटल है ही। लेकिन देखा गया है कि क्रोध की सबजेक्ट में बहुत कम पास हैं। ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं है, यह शस्त्र है, विकार नहीं है। लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है। क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानी होती है। कहने वाले यही कहते हैं, देख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को। क्रोध के बहुत रूप हैं। एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते हो, दिखाई देता है - यह क्रोध कर रहा है। दूसरा - क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा होती है। इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है, लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है त् क्रोध अग्नि रूप है ना, वह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है। ऐसे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा - यह जिसमें है, वह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है। तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है। वह क्या है? कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है। कहाँ-कहाँ ला उठाना ही पड़ता है - कल्याण के लिए। अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो। बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में ला (Law) उठाने की छुट्टी नहीं दी है। क्या कोई मुरली में कहा है कि भले ला उठाओ, क्रोध नहीं करो? ला उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है। जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी ला उठाते नहीं हैं, लेकिन उन्हों को ला रिवाइज कराना पड़ता है। ला कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए ला को रिवाइज करना पड़ता है। निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी है, सबको नहीं।

आज बापदादा थोड़ा आफीशियल शिक्षा दे रहे हैं, प्यार से उठाना क्योंकि बापदादा बच्चों के लिखे हुए, किये हुए वायदे देखकर, सुनकर मुस्कुराते रहते हैं। अभी बापदादा ने जो सुनाया कि हर गुण को निजी संस्कार बनाओ। अन्डरलाइन किया? तो अभी से यह कहना - कि शान्त स्वरूप में रहना, सहनशील बनना - यह तो मेरा संस्कार बन गया है। फिर बापदादा जब मिलन मनाने आये, तो इसे अपना निजी संस्कार बनाकर बापदादा के आगे इन 5-6 मास में दिखाना। इसलिए आज रिजल्ट सुना रहे हैं। क्रोध की रिपोर्ट बहुत आती है। छोटा-बड़ा, भिन्न-भिन्न रूप से क्रोध करते हैं। अभी बापदादा ज्यादा नहीं खोलते हैं लेकिन कहानियां बहुत मजे की हैं। इसलिए आज से क्रोध को क्या करेंगे? विदाई देंगे? (सभी ने ताली बजाई) देखो, ताली बजाना बहुत सहज है लेकिन क्रोध की ताली नहीं बजे। बापदादा अभी यह बार-बार सुनने नहीं चाहते हैं फिर भी रहम पड़ता है तो सुन लेते हैं। तो अब से यह नहीं कहना कि बाबा वायदा तो किया लेकिन.... फिर-फिर आ गया, क्या करें! चाहते नहीं हैं, आ जाता है। आप ही माया को समझा दो, क्रोध को समझा दो। तो यह पुरूषार्थ भी बाप करे और प्रालब्ध बच्चे लेंगे? यह भी मेहनत बाप करे? तो ऐसा वायदा नहीं करना, जो फिर 5 मास के बाद रिजल्ट देखें। भले आप बताओ नहीं बताओ, बाप के पास तो पहुंचती है। ऐसी रिजल्ट न हो - क्या करें, हो जाता है, सरकमस्टांश ऐसे आते हैं, बात बहुत बड़ी हो गई ना! बाप को भी समझाने की कोशिश करते हैं, बड़े होशियार हैं। कहते हैं बाबा छोटी-मोटी बातें हम पार कर लेते हैं, यह बात ही बड़ी थी ना! अभी दोष किस पर रखा? बात पर। और बात क्या करती है? आई और गई। 5 हजार वर्ष के बाद फिर बात आयेगी। जो 5 हजार वर्ष के बाद बात आनी है, उस पर दोष रख देते हैं। ऐसे नहीं करना। क्या करूं...! यह संकल्प में भी नहीं लाना। बापदादा क्रोध के लिए क्यों विशेष कह रहा है? क्योंकि अगर क्रोध को आपने विदाई दे दी तो इसमें लोभ, इच्छा सब आ जाता। लोभ सिर्फ पैसे और खाने का नहीं होता है, भिन्न-भिन्न प्रकार की, चाहे ज्ञान की, चाहे अज्ञान की कोई भी इच्छा - यह भी लोभ है। तो क्रोध को खत्म करने से लोभ स्वत: खत्म होता जायेगा, अहंकार भी खत्म हो जायेगा। अभिमान आता है ना - मैं बड़ा, मैं समझदार, मैं जानता हूँ - यह क्या अपने को समझते हैं! तब क्रोध आता है। तो अभिमान और लोभ यह भी साथ-साथ विदाई ले लेंगे। इसीलिए बापदादा विशेष लोभ के लिए न कह करके क्रोध को अन्डरलाइन करा रहा है। तो संस्कार बनायेंगे? अभी सब हाथ उठाओ और सबका फोटो निकालो। (सबने हाथ उठाया) अभी थोड़ी सी मुबारक देते हैं, बहुत नहीं और जब फिर से रिजल्ट देखेंगे फिर वतन के देवतायें भी, स्वर्ग के देवतायें भी आपके ऊपर वाह, वाह के पुष्प गिरायेंगे।

आज से हर एक अपने में देखे - दूसरे का नहीं देखना। दूसरे की यह बातें देखने के लिए मन की आंख बंद करना। यह आंखें तो बंद कर नहीं सकते ना, लेकिन मन की आंख बन्द करना - दूसरा करता है या तीसरा करता है, मुझे नहीं देखना है। बाप इतना भी फोर्स देकर कहते हैं कि अगर कोई विरला महारथी भी कोई ऐसी कमजोरी करे तो भी देखने के लिए और सुनने के लिए मन को अन्तर्मुखी बनाना। हंसी की बात सुनायें - बापदादा आज थोड़ा स्पष्ट सुना रहे हैं, बुरा तो नहीं लगता है। अच्छा-एक और भी स्पष्ट बात सुनाते हैं। बापदादा ने देखा है कि मैजारिटी समय प्रति समय, सदा नहीं कभी-कभी महारथियों की विशेषता को कम देखते और कमजोरी को बहुत गहराई से देखते हैं और फॉलो करते हैं। एक दो से वर्णन भी करते हैं कि क्या है, सबको देख लिया है। महारथी भी करते हैं, हम तो हैं ही पीछे। अभी महारथी जब बदलेंगे ना तो हम बदल जायेंगे। लेकिन महारथियों की तपस्या, महारथियों के बहुतकाल का पुरूषार्थ उन्हों को एडीशन मार्क्स दिलाकर भी पास विद आनर कर लेती है। आप इसी इन्तजार में रहेंगे कि महारथी बदलेंगे तो हम बदलेंगे तो धोखा खा लेंगे इसलिए मन को अन्तर्मुखी बनाओ। समझा। यह भी बापदादा बहुत सुनते हैं, देख लिया... देख लिया। हमारी भी तो आंखे हैं ना, हमारे भी तो कान हैं ना, हम भी बहुत सुनते हैं। लेकिन महारथियों से इस बात में रीस नहीं करना। अच्छाई की रेस करो, बुराई की रीस नहीं करो, नहीं तो धोखा खा लेंगे। बाप को तरस पड़ता है क्योंकि महारथियों का फाउन्डेशन निश्चय, अटूट-अचल है, उसकी दुआयें एक्स्ट्रा महारथियों को मिलती हैं। इसलिए कभी भी मन की आंख को इस बात के लिए नहीं खोलना। बंद रखो। सुनने के बजाए मन को अन्तर्मुखी रखो। समझा।

आज गर्म-गर्म हलुआ खिलाया है। लेकिन निजी संस्कार बनाओ। मेहनत करते हो, वह भी बापदादा को अच्छा नहीं लगता। बापदादा ने बच्चों का एक वन्डरफुल चित्र देखा। वह चित्र देखेंगे। सुनना चाहते हैं कि बहुत हलुआ खा लिया? कमाल का चित्र है। बापदादा को भी कमाल लगती है। वह चित्र क्या देखा? कि बच्चे कहते एक हैं और करते दूसरा हैं। मुख से कह रहे हैं - हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे, राम सीता नहीं, लक्ष्मी-नारायण और करते क्या हैं? कहते तो हैं लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। कहने वालों के मुख में गुलाबजामुन। लेकिन करते क्या हैं? पूछो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे पक्का? कहते हैं हाँ 100 परसेन्ट लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। लेकिन चित्र क्या दिखाते हैं? त्रेता वाले राम के समान युद्ध करते रहते हैं। तीर कमान हाथ में सदा ही है। कहते हैं लक्ष्मी-नारायण बनेंगे लेकिन प्रैक्टिकल में त्रेतायुगी राम समान युद्ध करते रहते हैं। सदा आधा समय युद्ध में, आधा समय योग में। सभी नहीं, लेकिन बहुत हैं। तो बापदादा को यह चित्र देख करके वन्डरफुल चित्र लगता है। जो कहते हो, जो अच्छा-अच्छा सोचते हो वह करना ही है। उसकी सहज विधि सुनाई कि ओरिजिनल निजी संस्कार को इमर्ज करो। संस्कार से स्वत: ही कर्म हो ही जाता है। मेहनत कम सफलता ज्यादा होती है, मेहनत से बच जायेंगे। जैसे आधाकल्प जब विश्व के मालिक बनते हो तो कई प्रकार की मेहनत से स्वत: ही छूट जाते हो। ऐसे इस समय निजी संस्कार बनाने से सहज मेहनत से छूट जायेंगे। समय प्रति समय कमान उठाने की, युद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। निरन्तर योगी, सहज योगी, कर्मयोगी, राजयोगी स्वत: ही बन जायेंगे। योग लगाना नहीं पड़ेगा लेकिन हर सेकण्ड, हर समय योगी जीवन स्वत: ही होगी। तो ऐसे ही चाहते हो ना?

ज्ञान, योग, धारणा और सेवा इन चारों सबजेक्ट का सार दो शब्द हैं। एक - बाप ही मेरा संसार है। दूसरा - हर गुण, हर शक्ति मेरा निज़ी संस्कार है। तो दो शब्द याद रखना - संसार और संस्कार। मुश्किल है क्या? थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? जब बात आ जाती है फिर तो मुश्किल है? लेकिन बात आपके आगे क्या है? बात बड़ी या बाप बड़ा? कौन बड़ा है? लेकिन उस समय बात बड़ी लगती है। बापदादा के पास ऐसे समय के बच्चों के फोटो बहुत हैं। म्यूजियम लगा हुआ है। कभी आना तो देखना। अपना ही फोटो देख लेना। लेकिन अभी समाप्ति समारोह मनाओ। जब आप यह समाप्ति समारोह मनायेंगे तब विश्व परिवर्तन का समारोह आपके सामने आयेगा।

और एक बात सुनायें, सुनने के लिए तैयार हो? बालक मालिक होते हैं ना! तो मालिक से आर्डर लेकर फिर सुनाना होता है। बेहद का हाल है ना। देखो जैसे रूण्ड माला दिखाई है ना। वैसे यहाँ आकर देखो तो रूण्ड माला ही लगती है। सिर्फ आपको फेस दिखाई देगा, बस। तो बेहद के हाल में बापदादा भी आज खुली दिल से बेहद की बातें बता रहे हैं। कल का दिन कौन सा था?(बुद्धवार) तो बुद्धवार की बात है। आज तो सभी रात का खेल देखकर थोड़ा थके हुए थे। थोड़ा सा परेशानी तो हुई ना। (रात को तूफान के साथ बरसात हुई) लेकिन लास्ट समय में तो बहुत कुछ होने वाला है। अगर थोड़ी सी रिहर्सल कर ली तो अच्छा है। थोड़ी रिहर्सल होनी चाहिए। बैग बैगेज समेटना और भागना, दौड़ना - यह तो एक्सरसाइज कराई। वैसे तो बूढ़ी-बूढ़ी मातायें भागती नहीं हैं लेकिन रात को बिस्तर और अटैची लेकर तो भागी। इसलिए यह भी खेल है। एक्सरसाइज तो हो गई ना। टांगे तो चली। यह छोटी-मोटी रिहर्सल तो फाइनल के आगे कुछ भी नहीं है। यह भी अभ्यास होना चाहिए। बापदादा ने कहा है एवररेडी रहो। इसमें भी एवररेडी, बारिस पड़ी सेकण्ड में चल पड़े। कोई डिस्टर्ब हुए? सेकण्ड में सेट हो गये। बापदादा भी समझते हैं जब तक पक्का नहीं बना है तब तक बच्चे कम आवें। लेकिन जितना ही कम कहते हैं उतना ही बढ़ता जाता है। लाल झण्डी दिखाते भी हैं - नहीं आओ, फिर भी आ जाते हो तो देखो खेल। बापदादा को बच्चों का स्नेह देखकर खुशी होती है और सदा यही बच्चों को कहते हैं - आओ बच्चे, आओ। नहीं आओ, कैसे कहेंगे! कह सकते हैं? तो सभी जितने भी आये हो, खुशी से आये हो और खुशी लेकर जाना और टोली के साथ-साथ पहले खुशी बांटना - उसके साथ टोली बांटना। अच्छा।

कल की बात सुनाते हैं। कल वतन में एडवांस पार्टी इमर्ज हुई थी। बापदादा से रूहरिहान कर रहे थे और बापदादा से पूछ रहे थे कि हमें जिस सेवा के अर्थ निमित्त बनाकर भेजा है, वह सेवा कब शुरू होगी? बापदादा ने क्या जवाब दिया होगा? वह बार-बार यही कह रहे थे कि हमें एडवांस पार्टी में जो जन्म दिलाया है, वह विशेष कार्य के लिए दिलाया है और मैजारिटी अच्छे ते अच्छे योगी तू आत्मायें, ज्ञानी तू आत्मायें, महावीर भी बहुत एडवांस पार्टी में गये हैं और जो दूसरे साथ में गये हैं, उन्हों में भी मैजारिटी ऐसी आत्मायें गई हैं जो स्नेही और गुप्त योगी हैं। मिक्स तो सबमें होते हैं लेकिन आपके हिसाब से जिसको महारथी नहीं कहें, मैजारिटी साधारण कहते हो, वह भी स्नेह के कारण योग में अच्छे पावरफुल रहे हैं। और विशेष योग की सबजेक्ट में आगे रहने वाली ऐसी आत्मायें, योगबल से जन्म देने के निमित्त बन नई सृष्टि की स्थापना करेंगी। तो वह पूछ रहे थे कि कब हमारी सेवा शुरू होगी? इसमें भी कुछ आत्माओं का, जो गई हैं अलग पार्ट भी है। सभी का एक जैसा नहीं है लेकिन मैजारिटी का नई सृष्टि के स्थापना का पार्ट बना हुआ है। तो रूहरिहान चल रही थी। बापदादा ने तो मुस्कुराते हुए उन्हों को दूसरी-दूसरी बातों में बिज़ी कर दिया क्योंकि कब का रेसपान्ड बापदादा को अकेला नहीं करना है, आप सभी को करना है। जब आप कहेंगे एवररेडी, तब उन्हों की सेवा आरम्भ होगी। इसीलिए विनाश का समय कभी भी फिक्स नहीं होना है। अचानक होना है। बापदादा ने पहले से ही इशारा दे दिया है, उस समय नहीं उल्हना देना कि बाबा थोड़ा इशारा तो देते। अचानक होना है, एवररेडी रहना है। इसके लिए एक निमित्त महारथी को एक्जैम्पल बनाया (दादी चन्द्रमणी को)। है तो सब ड्रामा अनुसार लेकिन कोई विशाल सेवा का एक्जैम्पल भी बनता है। इसलिए क्या करेंगे? जब बापदादा मिले तो सब मन से कहना, कागज का वायदा या मुख का वायदा नहीं, मन से वायदा करके दिखाना कि ''हम सब पुराने संस्कार खत्म कर अपने निजी संस्कार धारण करने वाले एवररेडी आत्मायें हैं।`` ठीक है? करेंगे? छोटी-छोटी बातें खत्म करो। ऐसे लगता है जैसे 60 साल का बुजुर्ग और बच्चे माफिक गेंद से खेले। अच्छा नहीं लगता। गेंद क्या, मिट्टी से खेलते हो। देह- अभिमान की मिट्टी से खेलते हो। अभी ज्ञान रत्नों से खेलो, गुणों से खेलो, शक्तियों से खेलो, मिट्टी से नहीं। किसी भी प्रकार का देह-अभिमान, मिट्टी से खेलना है। सुना! वतन का समाचार सुना!

आप सभी की यज्ञ माता, सरस्वती माता उसने विशेष सभी बच्चों को यादप् यार दिया है। दिया तो सभी ने है लेकिन विशेष यज्ञ माता ने आप सबके लिए बहुत-बहुत दिल से यादप्यार दिया है और यही महामन्त्र याद कराया कि अब घर चलने की तैयारी करो। किनारे सारे छोड़ो, चलो, उड़ो। यज्ञ माता से प्यार है ना! अच्छा।

आज बहुत बातें सुनाई हैं। अभी एक सेकण्ड में एकदम मन और बुद्धि को बिल्कुल प्लेन कर एक बाप से सर्व संबंधों का, बाप ही संसार है - चाहे व्यक्ति सम्बन्ध, चाहे प्राप्तियां, यही संसार है .... तो एक ही बाप संसार है, इस बाप की याद में, इस रूप में, इस रस में, इस अनुभव में लवलीन हो जाओ। (बापदादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) अच्छा।

आज टीचर्स भी आई है ना। हाथ उठाओ टीचर्स। जो खास प्रोग्राम प्रमाण भट्ठी में आई हैं वह हाथ उठाओ। विशेष टीचर्स प्रति, बापदादा सदा खुश होते हैं कि चाहे बड़ी, चाहे छोटी लेकिन अपने जीवन के लिए फैंसला करने में बहुत ही अच्छे अपने जज बने हैं, जो फट से अपने जीवन का फैंसला किया कि मुझे यही सेवा की जीवन व्यतीत करनी है। यह वायदा सभी टीचर्स ने किया है ना? या कभी-कभी सोचती हैं कि सोचा नहीं था ऐसा होगा, पहले पता होता तो नहीं करते। ऐसे तो नहीं सोचते? यहाँ एक गीत बजाते हो, बाहर का है या आप लोगों का है, एक गीत बजाते हो उसमें बाप को कहते हो - आपके फूलों से भी प्यार तो कांटों से भी प्यार। यह गाती हो? यह मन में धारणा है? कांटों से प्यार है तो कांटे तो चुभते भी हैं ना। अगर कांटे को प्यार से सम्भाल से उठाओ तो कांटे भी प्यारे लगते हैं और अलबेले पन में कांटे को हाथ लगाओ तो नाराजगी का खून भी निकलता है। तो ऐसे तो नहीं हो ना? आप तो प्यार करने वाले हो ना। छोटी-छोटी बातें, छोटे-छोटे कांटे हैं। लेकिन आपको तो कांटों से भी प्यार है क्योंकि कांटे अर्थात् छोटी-छोटी बातें अनुभवी बहुत बनाती हैं।

बापदादा को इस ग्रुप से जो अभी आये हैं और आने वाले भी हैं, उनसे बड़ों से भी ज्यादा प्यार है। क्यों प्यार है? क्योंकि नाम छोटी है लेकिन सेवा बड़ी करते हो। देखो, प्रदर्शनी कौन समझाते हैं, बड़े समझाते हैं या आप समझाती हो? कोर्स कौन कराता है, भाषण अच्छे-अच्छे कौन करता है? आप लोग ही तो करते हो। तो बापदादा, नाम छोटे है लेकिन सेवा में आपको बड़ों से भी बड़े समझते हैं। सिर्फ घबराना नहीं, घबराना काम कमजोरों का। आप तो बहुत बहादुर हो, महावीर हो, इसीलिए घबराओ नहीं। दिल छोटी कभी नहीं करो, बड़ी दिल। बड़े बाप के बच्चे हैं ना। छोटे बाप के बच्चे हैं क्या! तो छोटी दिल नहीं। न छोटी दिल करो न छोटी-छोटी बातों में घबराओ। सदा यह स्लोगन याद रखो कि देखने में छोटे हैं लेकिन काम बड़ा करके दिखायेंगे। बड़ों के सहयोगी बनेंगे। बड़ों को आंख नहीं दिखायेंगे लेकिन सहयोगी बन विश्व में नाम बाला करेंगे। ऐसी टीचर्स हैं? जो समझती हैं ऐसा ही करते हैं और करेंगे - वह हाथ उठाओ। यह तो बहुत हैं बहादुर। हाथ उठाना बहुत सहज है, देखना! फिर भी बापदादा आपके भाग्य पर खुश होते हैं। आपका भी बाप से बहुत प्यार है ना! तो बाप का भी आपसे बहुत प्यार है, सिर्फ छोटी दिल नहीं करना। कोमल नहीं बनना, महावीर बनना। कभी भी चेहरे पर कमजोरी का, कोमलता का चिन्ह न हो। निर्माणता अलग चीज़ है, कोमलता अलग चीज़ है। निर्माण भले बनो, कोमल नहीं बनो। कोमल कहते हैं जो पानी का फल हो। ऐसे लगाओ पानी और बह जाये उसको कहते हैं कोमल। तो कोमल नहीं बनना, कमाल करके दिखाना। बातें तो बड़ों के सामने भी आती हैं, आपके सामने भी आती हैं लेकिन आप और ही ऐसे समझो कि हम एक्जैम्पल बनकर दिखायेंगे। हम ज्ञान और योग में आगे हैं और रहेंगे। बातों की परवाह नहीं करो। कभी भी हर्षितमुख चेहरा बदलना नहीं चाहिए। सदा मन, तन मुस्कुराता रहे। समझा! कमाल करके दिखायेंगी? कभी भी मन मुरझाये नहीं, मुस्कुराता रहे। हो सकता है?

टीचर्स बोलो-हाँ जी? हाँ जी बोल रही हो या ना जी? मन से बोल रही हो या मुख से? देखो, बापदादा ने विशेष मिलने के लिए प्रोग्राम रखा। तो सदा मुस्कुराते रहना तभी आपके पूज्य स्वरूप में यादगार बन जायेगा। सब खुश हैं? बापदादा मिला, बातें की? अभी जो भट्ठी हो उसमें इस ग्रुप की सभी टीचर्स नम्बरवन हो, सेकण्ड नम्बर नहीं हो, सेकण्ड ग्रुप का नाम है, आप सेकण्ड नहीं हो। तो जो सेकण्ड ग्रुप आया है वह सब बात में नम्बरवन हो। अच्छा।

टीचर्स सिकीलधी हैं ना? सेवा तो बहुत करती हैं ना, दिन रात लगी हुई तो हैं। ऐसे ही जो भी यहाँ शान्तिवन में वा मधुबन में, ज्ञान सरोवर में, हॉस्पिटल में, संगम भवन में सेवा पर हैं, सभी तरफ के सेवाधारियों को बापदादा प्यार की मसाज़ कर रहे हैं। जो भी जहाँ सेवा कर रहे हैं, वह सभी अपने को प्यार की अपने हाथ में मसाज़ अनुभव करना। नाम कितनों का लेंगे। देखो आप सबकी सेवा है। आप आये तो सेवाधारियों को सेवा का भाग्य दिया। तो पहले तो आप हो। अगर आने वाले आते नहीं तो सेवाधारी किसकी सेवा करते। तो महत्व तो आपका भी है ना! अच्छा।

चारों ओर के सर्व बापदादा के लवलीन आत्मायें, सर्व बाप के सेवाधारी आत्मायें, सर्व सहज पुरूषार्थ को अपनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बाप समान बनने के लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाली, बाप के समीप आत्माओं को बापदादा का बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते।

अच्छा-डबल फॉरेनर्स ठीक हैं? हाथ हिलाओ। बहुत अच्छा-देखो, डबल फॉरेनर्स हो तो बैठने के लिए भी डबल हाल चाहिए। इसीलिए आपको यह डबल, ट्रिबल हाल में बिठाया है। डबल फॉरेनर्स को अच्छा लगता है? बापदादा को भी बेहद अच्छी लगती है। लेकिन यह बेहद भी हद हो गई है। अभी से छोटा हो गया है। अभी क्या करेंगी? देखो लास्ट तक फुल बैठे हैं। वृद्धि तो होनी है। अच्छा।

डबल फॉरेनर्स इस सीजन में खुश हैं? ज्ञान सरोवर में खुश हैं? देखो, डबल फॉरेनर्स, डबल भाग्यवान हो, सब दादियां आपके लिए ज्ञान सरोवर में आती हैं, आपको आने की मेहनत नहीं करनी पड़ती, वहाँ ही पहुंच जाती हैं। सिकीलधे हो ना। तो सिकीलधे को मेहनत नहीं दी जाती है। तो आपके पास सभी दादियां, दादे आते हैं तो अच्छा लगता है ना। सिर्फ डबल फॉरेनर्स की सीजन में तो अपने आपको ही देखते हो, कभी भारत वालों को भी तो देखो, इसीलिए अभी मिक्स किया है। अच्छा लगता है मिक्स या अलग? अच्छा। आखिर तो अभी डबल विदेशी हो लेकिन ओरिजिनल तो भारत के हो ना कि विदेश के हो? भारत के हो ना! राज्य कहाँ करेंगे, अमेरिका में, लण्डन में या भारत में? भारत में ही करेंगे ना। इसीलिए भारत और विदेश का संगम है। बापदादा तो आपको इसी रूप में देखते हैं कि आदि भारतवासी हैं और अभी भी भारत में ही रहेंगे, भारतवासी बनेंगे। अच्छा। ओम् शान्ति।

जगदीश भाई तथा अन्य मुख्य भाईयों से

सेवा में पहला सेवा के निमित्त बनना और सेवा में सरेन्डर होना - ये आपका विशेष पार्ट है। अच्छा है चारों का अपना-अपना पार्ट है। सभी की विशेषता आपनी-अपनी है।

सभी की विशेषता आवश्यक है ना। इनकी विशेषता भी आवश्यक है, आपकी भी आवश्यक है। जैसे बहुत चीजें मिला के अच्छी बन जाती हैं ना टेस्टी, तो ऐसे सभी की विशेषता मिलकर सेवा में टेस्ट आ जाती है।

सभी की विशेषता चाहिए। बहुत अच्छा। दादियों ने कहा और पाण्डवों ने माना - ये बहुत अच्छी बात है, जब भी बुलायें हां-जी, हाँ-जी। आपके संगठन के आधार पर सारा दैवी परिवार चलता है। इसलिए जैसे दादियां निमित्त हैं, वैसे आप भी निमित्त हो। जिम्मेवार हो। हैं या नहीं हैं? सब बात में समझो हम सब सेवा के साथी हैं, यह 10-12 नहीं हैं लेकिन एक हैं, इसमें यज्ञ का शान है। बाप-दादा सभी को एवररेडी देखकर बहुत खुश हैं, कार्य तो बढ़ने ही हैं। कम तो होने नहीं हैं। संगठन की शक्ति बहुत वायुमण्डल को पावर देता है। राइट हैण्ड तो आप लोग हो ना! विशेष राइटहैण्ड हो। ठीक है ना? सोच में तो नहीं हो? नहीं। निमित्त हैं निमित्त बन अंगुली लास्ट तक देनी है। अच्छा।

सब ठीक हैं। सेवा में सफलता है ही ना? वृद्धि भी हो रही है और विधि भी स्पष्ट हो रही है। सहज है ना?

(मोहिनी बहन अमेरिका का समाचार सुना रही हैं) दिल का प्यार ले आया है क्योंकि बापदादा जानते हैं जितना सेवा से प्यार है उतना बाप से भी दिल का प्यार है। तो दिल का प्यार दिल तक पहुंचाता है। बहुत अच्छा किया। यह उड़ती कला की निशानी है। जैसे स्थूल में उड़करके आये ना। तो यह उड़ना, उड़ती कला की विधि को सिद्ध करता है। अच्छी रफतार ठीक है।

वेदान्ती बहन से:- आप छत्रछाया के बीच में हो। सेवा अच्छी चल रही है। डोंट केयर।

सुदेश बहन से:- सभी को प्यार से चलाओ। पहले इन्हों को ठीक करेंगी फिर होगा। पहले इन आत्माओं को पक्का करो और ही एक्स्ट्रा पावरफुल स्टेज से। ठीक।

चक्रधारी बहन से:- रशिया तो अच्छा है। रिजल्ट अच्छी है। धरनी भी अच्छी है। रशिया की धरनी अच्छी है इसीलिए फल जल्दी निकलता है।

जो इस समय शान्तिवन की सेवा में हाजिर हैं वह हाथ उठाओ। इन्दौर वाले हाथ उठाओ। । अच्छी सेवा कर रहे हो, उमंग और उत्साह से सेवा कर रहे हो और अनेकों की दुआयें प्राप्त कर रहे हो। ऐसे ही सदा सेवा में दुआयें लेते रहना।

अशोक मेहता के बच्चे से:- लक्की है ना? ब्राह्मण परिवार के प्यारे हो। देखो लौकिक परिवार में भी लकी, अलौकिक परिवार में भी लकी। अभी क्या करेगें जाकर? आज क्या पाठ पढ़ा? (गुस्सा कम करेंगे)तो यहाँ गुस्सा छोड़कर जा रहे हो। जब भी गुस्सा आवे ना तो यह हाल इमर्ज करना। बहुत अच्छा। ऐसे ही खिले हुए रूहे गुलाब बनना।